अपना प रवार अपने प रवार म बु धमान क , भावनाशील क ,
तभावान क , साधना स प न क कमी नह ं। पर
दे खते ह क उ कृ टता को यवहार म उतारने के लए
िजस साहस क आव यकता है उसे वे जट ु ा नह ं पाते। सोचते बहुत ह, पर करने का समय आता है तो बगल
झाँकने लगते ह। य द ऐसा न होता तो अब तक अपने ह प रवार म से इतनी तभाएँ नकल पड़तीं जो कम ेय पन ु ः दला दे तीं। य तता, अभाव
से कम भारत भू म को नर-र न क खदान होने का
तता, उलझन, अड़चन आ द के बहाने उपहासा पद ह। वे उ ह ं काय के
लए यु त होते ह िज ह नरथक समझा जाता है । जो मह वपण ू समझा जाता है उसे सदा मख ु ता मलती है और
समय, साधन, मनोयोग आ द जो कुछ पास है सब उसी म लग जाता है ।
य द यग ु पक ु ार को-जीवनो दे य को मह व दया गया होता तो कसी को भी वैसी बहाने-बाजी न करनी पड़ती जैसी क असमथता स ध करने के लए आमतौर से कह या गढ़ जाती है । इससे आ म- वंचना के अ त र त और कुछ
बनता नह ं। िज ह कुछ करने क उ कट अ भलाषा होती है वे उसके लए क ठनतम प रि थ तय के बीच रहते हुए भी इतना कुछ कर सकते ह िजतना साधन स प न से भी नह ं बन पड़ता। दो-पाँच मालाएँ उलट -पल ु ट घम ु ाकर-सम त संकट दरू होने से लेकर चरु धन स पदा मलने तक क
ऋ ध- स धय म कमी पड़ने क शकायत तो आये दन सन ु ने को मलती ह, पर यह बताने कोई नह ं आता क उपासना बीज को खाद, पानी दे ने वाल जीवन-साधना म कोई
च है या नह ं। साधना के अ वि छ न अंग
वा याय, संयम और सेवा क ओर भी यान दया गया है या नह ं। श य होने का दावा करते और िज वा भाग से
गु दे व कहते तो कतने ह सन ु े जाते ह, पर अपने प रवार म वेश करने क पहल और अ नवाय शत यन ू तम एक
घ टा समय और दस पैसा न य ान-य के लए नकालते रहने को कतने लोग पालन करते ह, यह जाँचने पर भार नराशा होती है । लगता है कम न ठा का यग ु लद गया और वाचालता ने उसका थान ह थया लया है ।
प रजन ने य द वाथ परमाथ का सम वय कया होता तो न चय ह वे यि तगत लोभ, मोह के लए िजतनी भाग दौड़ करते और चि तत रहते ह उतना ह उ साह लोक- नमाण के
या-कलाप म भी
तत ु करते। ढे र समय
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