1 minute read

ज्ञान

ज्ञान प्रकाश है, जबकि अज्ञान अँधियारा है। जीवन का पथ इस अज्ञान के अँधियारे से पूरी तरह आपूरित है। इस पर सफलतापूर्वक चलने के लिए ज्ञान के प्रकाश की जरूरत है। लेकिन याद रहे कि इस अँधियारे में औरों का प्रकाश काम नहीं आता, प्रकाश अपना ही हो तो भरोसेमन्द साथी है। जो किसी भी कारण दूसरों के प्रकाश पर भरोसा कर लेते हैं, वे हमेशा धोखा खाते हैं। सूफियों में बाबा फरीद के कथा प्रसंग में एक कथा आती है, उन्होंने अपने शिष्य से कहा- ज्ञान को उपलब्ध करो। इसके अतिरिक्त कोई दूसरा मार्ग नहीं है। यह सुनने पर वह शिष्य नम्र भाव से बोला; बाबा, रोगी तो हमेशा वैद्य के पास ही जाता है, स्वयं चिकित्साशास्त्र का ज्ञान अर्जित करने के फेर में नहीं पड़ता। आप मेरे मार्गदर्शक हैं, गुरु हैं। यह मैं जानता हूँ कि आप मेरा उद्धार करेंगे। तब फिर स्वयं के ज्ञान की क्या आवश्यकता है। यह सुनकर बाबा फरीद ने बड़ी गम्भीरतापूर्वक एक कथा सुनायी। वह बोले, एक गाँव में एक वृद्ध रहता था। वह अंधा हो गया, तो उसके बेटों ने उसकी आँखों की चिकित्सा करवानी चाही। लेकिन वृद्ध ने अस्वीकार कर दिया। वह बोला; भला मुझे आँखों की क्या जरूरत है। तुम आठ मेरे पुत्र हो, आठ पुत्र वधुएँ हैं, तुम्हारी माँ है। ऐसे चौंतीस आँखें तो मुझे मिली हैं। मेरी दो नहीं हुई तो क्या हुआ? पिता ने पुत्रों की बात न मानी। स्थिति जस की तस बनी रही। कुछ दिनों के बाद अचानक एक रात घर में आग लग गयी। सभी अपनी जान बचाने के लिए भागे, वृद्ध की याद किसी को न रही। वह उस आग में भस्म हो गया। यह कथा सुनाने के बाद शेख फरीद ने अपने शिष्य से कहा, बेटा! अज्ञान का आग्रह मत करो। ज्ञान स्वयं की आँखें हैं। इसका कोई विकल्प नहीं है। सत्य न तो शास्त्रों से मिलता है, न शास्ताओं से। इसे तो स्वयं से ही पाना होता है। स्वयं का ज्ञान ही असहाय मनुष्य का एक मात्र सहारा है। ✍🏻 डॉ. प्रणव पण्ड्या 📖 जीवन पथ के प्रदीप से पृष्ठ २१२

Advertisement

This article is from: