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वर्ष 10 अंक 9 n 1-15 मई 2017 n ~ 20

वह अनोखा प्​्योग

सौ वर्ष पहले चंपारण मे् महात्मा गांधी के सत्याग्​्ह की दास्​्ान



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वर्ष10 अंक 9 n 1 से 15 मई 2017 स्वत्वािधकारी, मुद्क एवं प्​्काशक क्​्मता सिंह प्​्बंध िंपादक आशुतोष सिंह िंपादक अंबरीश कुमार िंपादकीय िलाहकार मंगलेश डबराल राजनीसतक िंपादक सववेक िक्िेना फोटो िंपादक पवन कुमार िंपादकीय िहयोगी

िसवता वम्ा​ा अंजना सिंह फजल इमाम मल्ललक (सिल्ली) िुनीता शाही (लखनऊ) अिनल चौबे (रायपुर) पूजा ि​िंह (भोपाल) िंजीत स्​्िपाठी (रायपुर) अिवनाश ि​िंह (ि​िल्ली) अिनल अंशुमन (रांची)

आवरण कथा

6 | चंपारण: आज़ादी का पहला प़​़योग

भारत लौटने के बाद मिात़मा गांधी का पिला प़य़ ोग था चंपारण मे़नील के हकसानो़को उनकी दुदश द़ ा से मुबक़ त हदलाने का सत़याग़ि़ . ह़​़िहटश साम़​़ाज़यवाद की जड़े़हिलाने का काम यिी़से शुऱिुआ और अंतरराष़​़ीय मुबक़ त के अहभयानो़ने भी उससे प़ऱे णा ली.

16 | बांग्ला राज बबहारी दुद्षशा

आजादी के साढ़ेचार दशक बाद भी बांगल ़ ादेश की आबादी का एक हिस़सा अपनी जबान के कारण िमदद़​़ी की आस मे़िी जी रिा िै. इस बीच उसका दद़दऔर गिरा िोता गया िै.

कला

प्​्वीण अिभषेक

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सिसध िलाहकार शुभांशु सिंह

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20 | खनन पर रोक से बढ्ी उम्मीद उत़ऱ ाखंड मे़तमाम प़श ़ ासहनक और राजनीहतक हवफलता के बीच उच़​़ अदालत ने बालू के खनन पर रोक लगाकर पय़ावद रण को नये हसरे से सिारा हदया िै.

26 | दो गांव चार बलात्कार

भूहतया-िोहलबायड़ा की आहदवासी महिलाओ़ने पुहलस पर सामूहिक बलात़कार का इल़जाम लगाया िै. यिां की यात़​़ा आंख खोल देने वाले पूव़दग़िो़से साक़​़ात़कार कराती िै.

30 | सायनागॉग का सूनापन

सहदयो़पिले भारत आये यिूहदयो़का एक बड़ा तबका इजरायल लौट गया िै. लेहकन कोलकाता और सूरत आहद शिरो़मे़जो यिूदी रि गये िै,़ उनके प़​़ाथ़नद ाघरो़की िालत भी खराब िै.

44 | काला पानी और नीला पानी 48 | फोगाट और चार बेबटयां अंडमान के द़​़ीप अंगज ़े शासको़की क्ऱ ता की गवािी देते िै,़ लेहकन जैसी कल़पना थी, वे उससे किी़ज़यादा अनोखे िै़ और हवचहलत करने वाले िै.

‘दंगल’ के असल नायक मिावीर फोगाट का अखाड़ा हभवानी मे़िै. हपता ने चार बेहटयो़के साथ िहरयाणा को कुशत़ ी की ऊंचाइयो़तक पिुच ं ा हदया िै. शुक्वार | 1 से 15 मई 2017

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आपकी डाक

एकजुटता की ककतनी उम्मीद

ब्​्ाडं मोदी बरकरार

ि़​़ांड मोदी चल रिा िै और खूब चल रिा िै. उत़ऱ प़द़ श े मे़ जबरदस़​़और आत़महवश़​़ास से भर देने वाली चुनावी जीत के बाद हदल़ली मे़ एमसीडी यानी स़थानीय हनकाय के चुनाव भी भाजपा ने जीत हलया. िालांहक इस जीत के बाद समाचार चैनलो़ को देखकर हकसी को भी भ़म़ िो सकता िै हक यि स़थानीय हनकाय का निी़ मानो हवधानसभा का चुनाव था लेहकन भाजपा की खुशी तो जायज िै. दरअसल इन चुनावो़को हदल़ली मे़केजरीवाल के नेततृ व़ वाली सरकार के हलए हलटमस टेसट़ माना जा रिा था. नेशहलज़म की खुराक को भाजपा ने न केवल आम चुनाव मे़ आजमाया बब़लक उसका यि फाम़दूला अब उत़ऱ प़द़ श े हवधानसभा चुनाव के रास़​़ेस़थानीय हनकाय चुनाव तक नजर आ रिा िै. राहत अली, इंदौर

धम्म भरोसे चौहान

शुकव़ ार पह़​़तका के हपछले अंक मे़'अब आसरा िै धम़दका' शीष़क द से आयी खबर मध़य प़द़ श े मे़ भाजपा की रणनीहत को बखूबी उजागर करती िै. वास़व़ मे़मध़य प़द़ श े सरकार नम़दद ा सेवा यात़​़ा

सोशल मीडिया पक्​्िम की तज्म पर

ि़​़ांड मोदी की चमक से याद आता िै हक भारतीय चुनाव भी अब पह़​़िमी चुनावो़की राि चल पड़ेिै़जिां व़यब़कत हवशेष की ि़​़ांहडंग कुछ इस अंदाज मे़ की जाती थी हक सिी गलत का फक़फपूरी तरि हमट जाता था. मोदी की ि़​़ांहडंग, हवदेशो़ मे़ रिने वाले भारतीयो़ को संबोहधत करने का उनका राकस़टार समान अंदाज सब 4

शुक्वार | 1 से 15 मई 2017

मुख़यमंत़ी का पद संभालने के बाद योगी आहदत़यनाथ ने जो सह़​़कयता हदखायी िै वि लोगो़ के बीच चच़ाद का हवषय बनी िै. अब उसके पहरणाम सकारात़मक िो़गे या नकारात़मक, यि तो बाद मे़ पता चलेगा. इस बीच प़​़देश मे़हवपक़​़की िालत हवहचत़​़िो गयी िै. माना हक हवपक़​़का आकार छोटा िै लेहकन वि तो चच़ाद से िी बािर िै. बीते चुनाव मे़बसपा की जो िालत िुई, वि बताती िै हक पाट़​़ी लोकसभा चुनाव मे़हमली पराजय से कोई संकते लेने मे़नाकाम रिी िै.

भाजपा ने हजस तरि यि चच़ाद फैलायी हक तीन तलाक के कारण मुब़सलम महिलाओ़ ने जमकर उसे वोट हदया िै यि बात भी हवपक़​़के हलए हचंता का हवषय िै. बिरिाल, भाजपा का मुकाबला करने के हलए मिागठबंधन की शुऱआत िो गयी लगती िै. हपछले हदनो़ संसद भवन मे़ एक आयोजन मे़ अहखलेश यादव ने आगे बढक़र ममता बनज़​़ी और मायावती से बात की. अगर 2019 के आम चुनाव मे़भाजपा का हवजय रथ रोकना िै तो गैर भाजपा दलो़का साथ आना जऱरी िै. राघव मिश्​्, इलाहाबाद

के जहरये सरकारी खच़​़ेपर अपना चुनाव प़च ़ ार कर रिी िै. िाल िी मे़ मुखय़ मंत़ी ने नम़दद ा को जीहवत मनुषय़ का दज़ाद देने की बात भी किी िै. कुलहमलाकर यिी सच िै हक प़​़देश सरकार अगले चुनाव की गंभीर तैयाहरयो़मे़जुट गयी िै. िम केवल मध़य प़द़ श े की िी बात क़यो़करे,़ इस समय तो पूरा देश िी धम़,द राष़​़और हिंदतु व़ को लेकर चच़ाद मे़िै. यि जऱर िै हक चुनावी राज़य िोने के नाते इस चच़ाद मे़ मध़य प़​़देश का नाम आगे िै इस राज़य मे़ आगामी चुनाव को देखते िुए धम़द एक बिुत बडा मसला बना िुआ िै. मुखय़ मंत़ी हशवराज हसंि चौिान ने इस बिाने जो दाव खेला िै उसके हवफल िोने का तो सवाल िी निी़ िै. इससे पिले वि सरकारी खच़​़े पर सभी धम़​़ो़ के वहरष़​़ नागहरको़ को तीथ़द यात़​़ा करवाते आये िै.़ हपछले साल िुए हसंिस़थ कुंभ का भी सरकार ने जबरदस़​़प़च ़ ार पऩस ़ ार हकया. अब नम़दद ा की बारी िै. बिुसखं य़ क आबादी का हदल हशवराज जीत चुके िै.़ अगर आगामी हवधानसभा चुनाव भी वि आसानी से फति कर ले जाये़तो हकसी को अचरज निी़िोना चाहिए.

योगी की बारी

अजीत कुिार, गया

बताते िै़हक भारतीय नेता इस मामले मे़पह़​़िम से पीछे निी़. रंजीत कुिार, फेिबुक

सरोगेसी के नये अर्म

सरोगेसी पर एक रोचक रपट शुक़वार के इस अंक मे़ छपी िै. वास़​़व मे़ सरोगेसी जो एक जेनुइन जऱरत िो सकती थी उसे अमीरो़ के शौक ने एक धंधे, एक फ्िड़ता मे़ बदल हदया िै. आहमर खान-शािऱख खान जैसे अहभनेता जो पिले से िी कई बच़​़ो़ के हपता िै़, करन जौिर जैसे सक़​़म हफल़मकार जो एक बच़​़ा गोद लेकर उसका जीवन संवार सकते थे, उऩिो़ने

संपादकीय 'कज़मद ाफी का इंतज़ार' शुकव़ ार से अपेह़कत िी था. उत़ऱ प़द़ श े की कमान संभालने के बाद अब मुखय़ मंत़ी योगी से अपेक़ाये़बढ गयी िै़. हकसानो़ का कज़द माफ हकये जाने के बाद उनके प़ह़त धारणा बदलनी शुऱिो गयी िै. अब उऩिे़ समझना िोगा हक वे हसफ़फनिी़ बब़लक पूरे राज़य के सेवक िै.़ िालांहक मुखय़ मंत़ी बनने के बाद वि इस कदर चच़ाद मे़ रिे हक स़वयं प़​़धानमंत़ी नरे़द़ मोदी की चमक फीकी पड़ती नजर आयी. केतकी मिंह, मदल्ली

पाठको् से बनवेदन

शुक़वार मे़प़​़कािशत हरपोट़​़ो़और रचनाओ़ पर पाठको़की प़​़हतहक़​़या का स़वागत िै़ आप अपने पत़​़नीचे िदए गए पते पर या ईमेल से भेज सकते िै़. एमडी-10/503, सिारा ग़​़ेस, जानकीपुरम, लखनऊ, उत़​़र प़​़देश-226021 टेलीफैक़स : +91.522.2735504 ईमेल :shukrawaardelhi@gmail.com

सरोगेसी अपनायी. किी़न किी़इसका मतलब यि िै हक वे रक़त की शुद़ता के पुरानत हवचार को िी पालपोस रिे िै़.

अच्छा आत्मवृत्

िुिन मिंह, फेिबुक

शुकव़ ार ने िाल के कई अंक मे़शेखर जोशी का आत़मवृत़ डायरीनुमा अंदाजा मे़ छापा. यि पह़​़तका के हलए स़वयं हकसी उपलब़लध से कम निी़. आम पाठको़ को भी धारावाहिक ऱप मे़ सिज िी एक स़ऱ ीय रचना पढ़ने को हमल गयी. मविल शि्ा​ा, फेिबुक


संपादकीय

आम जन से कटते नेता उ

अंबरीश कुमार

देश के कई प्​्धानमंत्ी और मुख्यमंत्ी तक वररष्​्पत्​्कारो्से समयसमय पर चच्ाष कर हालात को समझने का प्​्यास करते रहे है्और उन्हे् महत्वपूर्षजानकारी भी रमलती रही है. पर अब नये नेताओ्मे्बहुत कम लोग ऐसे नजर आते है्.

त़​़र प़​़देश चुनाव नतीजो़के बाद से हवपक़​़ का आत़म मंथन चल रिा िै. इस बीच जन आंदोलन से हनकले अरहवंद केजरीवाल भी हदल़ली मे़ एमसीडी का चुनाव बुरी तरि िारने के बाद संकट से जूझ रिे िै़. उत़​़र प़​़देश मे़ अहखलेश यादव ठीक हदशा मे़काम कर रिे थे पर वे भी आम लोगो़ से और काय़दकत़ाद से दूर िोते जा रिे थे. उनकी पाट़​़ी के लोग िी उनसे निी़ हमल पा रिे थे तो बाकी के बारे मे़ कुछ किना बेकार िै. इसकी एक वजि यि थी हक वे अराजनैहतक लोगो़पर ज़यादा हनभ़दर िोने लगे थे हजनमे़ नौकरशाि और अऩय क़​़ेत़ के लोग भी थे. कोई उद़​़मी था तो कोई अफसर. ऐसे मे़ जनता की नल़ज को समझने मे़वे भी चूक गये. ध़यान से देखे़ तो रािुल गांधी, मायावती से लेकर अहखलेश यादव तक जैसे नेता से आम लोगो़का हमलना हकतना मुब़शकल िोता िै. मुझे याद िै अस़सी के दशक शुऱआत मे़ भी इंहदरा गांधी जैसी कद़​़ावर नेता से कोई भी आराम से हमल लेता था. पर बीते करीब दो दशक मे़जबसे नेताओ़की सुरक़​़ा का घेरा बढा िै वे आम लोगो़ से दूर िोते जा रिे िै़. समय की हदक़​़त िो सकती िै पर इसके बावजूद अगर नेता चािे तो लोगो़ से हमलने का समय आराम से हनकाल सकता िै. राजस़थान के पूव़द मुख़यमंत़ी अशोक गिलौत जब सत़​़ा मे़थे तब भी लोगो़से आराम से हमलते थे खुद फोन कर राजनैहतक िालात पर चच़ाद भी कर लेते थे. पर बीते हवधान सभा चुनाव मे़ तो उत़​़र प़​़देश कांग़ेस के अध़यक़​़ राजबल़बर तक मीहडया से िी निी़ हमल पा रिे थे. यि बानगी िै बदलती िुई राजनीहत की. मुलायम हसंि यादव एक दौर मे़ सुबि नौ बजे तक करीब सौ लोगो़से मुलाक़ात कर चुके िोते थे जबहक आज के दौर के कई नेता तो नौ बजे तक सो कर िी निी़उठ पाते िै़. यि बात अलग िै हक बाद मे़मुलायम हसंि यादव से भी लोगो़ का हमलना मुब़शकल िो गया. मायावती से लोगो़ का हमलना तो और िै. बनारस की एक सामाहजक काय़दकत़ाद और मशिूर महिला डाॅक़टर हवधान सभा का चुनाव लडना चािती थी़. उऩिो़ने बिुत प़​़यास हकया हक हकसी तरि मायावती से हमल सके़. बसपा के एक पूव़द सांसद जो अब भाजपा सरकार मे़मंत़ी िै़उनसे संपक़फसाधा लेहकन मुलाक़ात संभव निी़िुई. बताया गया हक उनसे मुलाक़ात के हलये पांच

लाख ऱपये देने पडे़गे. इसके हलये भी तैयार थी़ हफर भी मुलाक़ात निी़ िी िो पायी. हफर अहखलेश यादव के एक कैहबनेट मंत़ी के जहरये मुख़यमंत़ी से इस बाबत हमलने का प़​़यास हकया गया पर इसमे़भी सफलता निी़हमली. िालांहक हकसी अऩय काय़दक़म के जहरये उनकी मुलाक़ात अहखलेश यादव से िो गयी. इस उदािरण से साफ़ िै हक अगर हकसी नेता से आम आदमी या कोई आम काय़दकत़ाद हमलना चािे तो हकतना मुब़शकल िै. अहखलेश यादव से हमलने के संदभ़दमे़तो एक नौकरशाि ने हदल़ली से आये पत़​़कार से उसके अखबार की प़​़सार संख़या तक पूछ डाली. साफ़ िै अगर बिुत प़​़सार वाले अख़बार का कोई पत़​़कार निी़ िै तो उसका हकसी मुख़यमंत़ी से हमलना हकतना मुब़शकल िोगा. इस हसलहसले मे़यि भी जान लेना चाहिये की इंहडयन एक़सप़​़ेस समूि का कोई भी अखबार हदल़ली मे़ दस बडे अखबारो़ मे़ भी शुमार निी़ िै जबहक वि देशभर के लोगो़ को प़​़भाहवत करता िै अपनी संपादकीय हटप़पणी और खबरो़से. पर यि समझ हकसी नौकरशाि को क़या िोगी. और जो नेता ऐसे नौकरशाि पर हनभ़दर िोगा उसे भी इसका खाहमयाजा भुगतना पडेगा. देश के कई प़​़धानमंत़ी और मुख़यमंत़ी तक वहरष़​़ पत़​़कारो़ से समय समय पर चच़ाद कर िालात को समझने का प़​़यास करते रिे िै़ और उऩिे़ काफी मित़वपूण़द जानकारी भी हमलती रिी िै. पर अब नये नेताओ़ मे़ बिुत कम लोग ऐसे नजर आते िै़. यिी वजि िै देश, प़​़देश से लेकर समाज मे़क़या घट बढ रिा िै इसका आकलन करने मे़ युवा नेता चूक जा रिे िै़. इसहलये आम लोगो़ से लगातार संवाद बनाये रखने और आम काय़दकत़ादओ़से हमलते रिने से नेता कई मामले मे़ अपडेट रिेगा. इसके अलावा पाट़​़ी के राष़​़ीय अध़यक़​़से लेकर प़​़देश अध़यक़​़ तक को कुछ समय पाट़​़ी मुख़यालय मे़ देना चाहिये. अगर दो घंटे भी आप पाट़​़ी दफ़तर मे़ निी़ बैठे़गे तो कैसे पाट़​़ी चलेगी? दफ़तर मे़ बैठने से आम लोग भी हमलते रिते िै़और िर हिस़से की जानकारी हमलती रिती िै. उत़​़र प़​़देश मे़ िारने वाले अहखलेश यादव िो़ या रािुल गांधी उऩिे़ अब लोगो़ के बीच ज़यादा n जाना चाहिये. ambrish2000kumar@gmail.com शुक्वार | 1 से 15 मई 2017

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आवरण मास्ट हेकथा ड

चंपारण: का पहला भारत लौटने के बाद महात्मा गांधी का पहला प्य् ोग था चंपारर मे् नील के रकसानो्को उनकी दुदश ष् ा से मुकत् त रदलाने का सत्याग्ह् . र्​्िरटश साम्​्ाज्यवाद की जड्े् रहलाने का काम यही्से शुर्हुआ और बाद मे्अंतरराष्​्ीय स्र् पर मुकत् त के अरभयानो्ने भी उससे प्र्े रा ली. शताब्दी वर्षमे्इस सत्याग्ह् को औपचाररक ढंग से मनाना सही नही्होगा. अरकवंद मोहन

चंपारण िे्गांधी के ित्याग्​्ह का स्िारक: एक िहान प्​्योग की याद 6

शुक्वार | 1 से 15 मई 2017

ि चंपारण सत़याग़​़ि का सौवां साल िै. इस अवसर को हजस तरि याद करना चाहिए, वि किी़ हदखाई निी़ दे रिा िै. यि तो मुलक ़ िी गांधी का माना जाता िै इसहलए यि हगनवाने का कोई मतलब निी़िै हक सरकार या गांधी का नाम लेने वाली पाह़टियां या हफर गांधीवादी संस़थाओ़/व़यब़कतयो़ मे़ कौन ज़यादा हजम़मेदार िै. पर इससे गांधी का क़या बनना हबगड़ना िै? यि तो िमारे हलए एक बड़ा अवसर गंवाने का भी प़​़माण िै. संयोग से यि साल ऱस की क़​़ाहं त का सौवां साल भी िै. पर उसकी ब़सथहत िमसे भी बदतर िै क़यो़हक अभी िाल तक हजसे आधुहनक इहतिास की सबसे बड़ी क़​़ांहत और तरि-तरि के नामो़ से जाना जाता था, आज उसको याद करने वालो़को भी शम़दसी आ रिी िै. अपने पिले भारतीय आंदोलन मे़ चंपारण मे़ गांधी ने जो प़य़ ोग हकया, हजसे बाद मे़ आम तौर पर चंपारण सत़याग़ि़ किा गया, उसके बाद


आज्ादी प्​्योग

गांधी के भारत के अहभयान की शुरआ ़ त तो िुई िी, उसने उस ह़​़िहटश साम़​़ाज़य की जड़े़हिलाने की पिल की हजसमे़ कभी सूय़ादस़ न िोने की बात बड़ी शान से किी जाती थी. हसफ़फ ह़​़िहटश उपहनवेश िी क़यो़, अगले तीसेक वष़दमे़दुहनया से उपहनवेशवाद पूरी तरि हवदा िुआ और अब जो मूलय़ ांकन िो रिे िै़उनसे यि बात साहबत िो रिी िै हक हसफ़फ आजादी की िी निी़, उपहनवेशवाद पर चोट करने के मामले मे़िमारा राष़​़ीय आंदोलन सबसे आगे था. कई देश िमारे आसपास िी औपहनवेहशक शासन से आजाद िुए, पर लगातार तीस वष़द िम िी लड़े और चंपारण से शुऱआत करके गांधी ने देश को एकजुट करने के साथ सच़े़ अथ़द मे़ अकेले िी इस लड़ाई के हलए तैयार हकया. मिात़मा गांधी जब दह़​़कण अफ़​़ीका से भारत लौटे तो उऩिो़ने अपने राजनैहतक गुऱ गोपालकृष़ण गोखले की सलाि पर देश देखने का काम सबसे पिले शुऱहकया. जाहिर िै हक गोखले को उनकी भारत की समझ पर पूरा भरोसा न था, पर उनके देश वापस लौटने तक उनके अफ़​़ीका के कामो़ का यश भारत भर मे़ फैल चुका था. और गांधी खुद से ज़यादा घूमे या जगि-जगि से और तरि-तरि के संगठनो़की तरफ से आये ऩयौते से वे कई सौ आयोजनो़ मे़ शाहमल िुए. यिी समय िै जब सुदरू और एकदम हपछड़ेचंपारण हजले से भी उऩिे़कुछ बेचनै लोगो़ का बुलावा आने लगा था. यि बुलावा हकसी सम़मान या भाषण वाला न िोकर एक लड़ाई मे़ शाहमल िोने के हलए था. और सम़भवत: गांधी को भी इस बुलावे मे़दम नजर आने लगा था तभी वे हबना बिुत शोर-शराबे के भी चंपारण चल हदये. जब वे पटना पिुंचे तो विां उऩिे़ बिुत भरोसे वाला या मदद करने वाला सियोगी भी निी़हमला, पर वे ऱके निी़और लगभग अनजान मुजफ़फरपुर मे़एक अल़पज़​़ात और हसफ़फएकाध बार हमले दादा कृपलानी के भरोसे पिुच ं .े विां से जब वे चंपारण गये तो शासन उनको किी़आने जाने देने को तैयार न था. लेहकन गांधी चंपारण मे़ऱके और हनलिो़के आतंक को समाप़त करने की लड़ाई लड़ी. इससे चंपारण के शोहषत और कमजोर हकसानो़ का जो फायदा िुआ, वि

चंपारण और गुजरात िे्खेडा ित्याग्​्ह के दौर िे्गांधी और कस्​्ूरबा: इमतहाि की याद अपनी जगि िै,पर गांधी को और उनके माध़यम कुछ चंदे वगैरि के स़​़ोत लेकर आये थे, से पूरे देश मे़ चल रिे उपहनवेशवाद हवरोधी कस़ऱू बा समेत कुछ काय़क द त़ाद लाने की ब़सथहत आंदोलन को एक नयी जान हमली. मे़ थे और दह़​़कण अफ़​़ीका के प़​़योग से गांधी का चंपारण पिुच ं ना एक युगांतकारी सामाहजक-राजनैहतक काम करने का एक घटना साहबत िुआ. यि प़​़योग कई मायनो़ मे़ खाका भी उनके हदमाग मे़था. हवलक़ण ़ था. यि गांधी के दम को बताने के साथ लेहकन जब चंपारण िी क़यो़ पूरे हबिार मे़ िी अऩयाय सिने वाले समाज मे़ प़​़हतरोध की एक भी पूण़दकाहलक काय़दकत़ाद न िो, बािर से शब़कत के उभरने और खुद गांधी द़​़ारा अपनी आने वाले िर काय़क द त़ाद के साथ उसका नौकर ईमानदारी, हनष़​़ा, दम और समझ के साथ और रसोइया साथ आ रिा िो, अनजान इलाका, स़थानीय लोगो़और समस़याओ़से हरश़ता जोड़ने मुबश़ कल मौसम, बोली और भाषा की भी हदक़त़ और उन िजारो़-लाखो़ द़​़ारा झट से गांधी पर िो, तब अप़ल ़ै की गम़​़ी से शुऱकरके गांधी हकस भरोसा करके उनको अपनाने की अद़त़ दास़​़ान तरि इलाके मे़घूमे िो़ग,े हकस तरि सारे नेताओ़ भी िै. गांधी चंपारण को तो निी़ िी जानते थे, को साथ भोजन करने तक मनाया िोगा, बड़-े हजन लोगो़ के बुलावे पर वे गये थे, उनके बडे वकीलो़ तक को कैहरयर छोड़ने के हलए सियोग की भी बिुत साफ सीमा थी. समाज प़​़ेहरत कर पाये िो़गे और हनलिो़ के हवरोध के जाहतयो़-संपद़ ायो़मे़बंटा था और हनलिो़के पक़​़ आंदोलन को हकस तरि हशक़​़ा, स़वास़थ़य और मे़ शासन तो था िी, उनका अपना जाल िर सफाई जैसे बडे मुद़ो़ से जोड़कर चंपारण मे़ जगि फैला था, िर चीज मे़जमी़दारो़का शोषण जमने का फैसला हकया िोगा, यि एक हदलचस़प चलता था. गांधी कुछ तो तैयार िोकर आये थे, और प़​़ेरक किानी तो िै िी, गांधी की संवाद शुक्वार | 1 से 15 मई 2017

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आवरण कथा

चंपारण की शताब्दी पर जारी दस्​्ावेज: ित्याग्​्ह के नायक शैली और उनके संदश े देन-े लेने के तरीके की शुकल ़ को तो उऩिे़बुलाने की सूझी, पर चंपारण भी हदलचस़प दास़​़ान िै. के िजारो़ लोग गांधी के पास अपनी आपबीती गांधी और राष़​़ीय आंदोलन के हलए सुनाने क़यो़और कैसे पिुच ं ?े उऩिे़क़या किकर चंपारण आंदोलन का क़या मित़व िै, यि बताने बुलाया गया और उऩिे़ क़या हमला? अंग़ेज की जऱरत निी़िै. इस आंदोलन के बाद गांधी प़श ़ ासन को उनके आने का संदश े कैसे और क़यो़ मे़और राष़​़ीय आंदोलन मे़जो फक़फआया, उसे पिुच ं ा? इससे भी बड़ी बात यि िै हक हजस गांधी देश-दुहनया ने देखा और समझा िै, बब़लक अब को चंपारण नक़शे मे़ भी निी़ मालूम था, उसने भी समझने की कोहशश की जा रिी िै. खुद कैसे हतनकहठया प़​़णाली को इतना बड़ा मुद़ा चंपारण के लोगो़ के हलए तो अनजान और माना और आंदोलन की सोच ली. हफर यि भी परदेसी गांधी आज तक उनकी पिचान और िुआ हक गांधी को चंपारण की लगभग सभी जीवन का अहभऩन अंग बने िुए िै.़ सौ साल िोने समस़याओ़( और उसी के साथ देश के ग़​़ामीण को आये और दूसरी भी बिुत चीजे़ िुई िै़- इलाको़की भी) की इतनी समझ बन गयी हक वे चंपारण के लोगो़ के हलए भी और मुल़क के देश-दुहनया छोड़कर विी़ हटके और अपने जीवन मे़ भी, पर इस आंदोलन की छाप को साहथयो़के साथ उऩिो़ने हशक़​़ा से लेकर िर क़त़े ़ हमटाना मुबश़ कल िै. आज भी जो नेता कुछ करना मे़प़य़ ोग शुऱहकये हजसमे़पस़नद ल िाइजीन और चािता िै या करने का हदखावा करता िै, वि उसके माध़यम से ग़​़ामीण दहरद़त़ ा को दूर करना लोटा-डोरी लेकर चंपारण और हभहतिरवा भी शाहमल थी. इसे अकेले करना या हसफ़फपुरष़ ो़ पिुच ं ता िै और विां से नयी शुरआ ़ त का दावा के भरोसे करना असंभव मानकर बापू ने करता िै. अभी गांधी आंदोलन के हदखाने लायक कस़ऱू बा और अपने संपक़फकी अऩय महिलाओ़ अवशेष िै़हजससे यि नाटक भी चलता िै और को भी इस काम मे़लगाया. कुछ को भरोसा भी िोता िै. अभी भी कोई गांधी बिुत बड़ी-बड़ी बाते़और क़​़ाहं त जैसा स़थानीय कहव बनता िै तो गांधी को याद करना भारी-भरकम शल़द इस़म़े ाल हकये हबना जो कर अपना कत़दव़य मानता िै. सैकड़ो़ स़थानीय रिे थे, उसे मात़​़ राजनैहतक लड़ाई निी़ मानते हवद़​़ालयो़मे़गांधी तरि-तरि से याद हकये जाते थे- वे इसे सभ़यताओ़ की लड़ाई बताते थे और रिे िै़. खुद उनके बनाये–बताये अनुसार एक बड़ी राजनैहतक लड़ाई के साथ एक देशज स़थाहपत कई दज़दन बुहनयादी हवद़​़ालय हगरते- हवकल़प देने और उसके रचनात़मक कामो़को भी पड़ते िुए भी उनके प़य़ ोगो़को काफी समय तक समान मित़व देते थे. वे सब कुछ खुद से जानतेचलाते रिे िै.़ समझते िो़, इसका दावा उऩिो़ने कभी निी़हकया. लेहकन सौ साल बाद भी इस आंदोलन और वे अपने जीवन को सत़य का प़य़ ोग िी मानते थे. उसके नतीजो़ के बारे मे़ अभी काफी कुछ हजस पह़​़िम की सभ़यता को वे शैतानी मानते जानना-समझना बाकी िै. सबसे बड़ी बात तो थे, उसकी अच़छी बातो़ को न गांधी ने हसफ़फ यिी जाननी िै हक आहखर बापू का संदश े एक अपने जीवन और राजनैहतक काम मे़ प़​़योग तरफ चंपारण के आम लोगो़ और दूसरी तरफ हकया बब़लक प़​़चाहरत करके अमर भी बनाया. पूरी दुहनया तक कैसे पिुंचा. हकसी राजकुमार गांधी ने दह़​़कण अफ़​़ीका मे़ जो प़​़योग हकये थे 8

शुक्वार | 1 से 15 मई 2017

और सत़याग़ि़ से लेकर दूसरी हजन चीजो़को एक राजनैहतक िहथयार बनाया था, उसमे़पह़​़िम मे़ तब चले प़य़ ोगो़का अनुभव िी आधार बना था, पर यि किना कुछ ज़यादा पह़​़िम भब़कत हदखाता िै हक गांधी ने टालस़टाय और रब़सकन से िी सब कुछ सीखा था. गांधी के सबसे अहधक इस़​़ेमाल िुए िहथयार सत़याग़​़ि को िी पिले पह़​़िम के ‘पैहसव रेहजस़टस े़ ’ से जोडा गया, पर गांधी ने खुद बिुत हवस़​़ार से बताया िै हक यि हकस तरि अलग िै और इसके हलए हकस तरि की नैहतक शब़कत और तैयारी जऱरी िै. गांधी ने अहिंसा को अपनाया और इसे एक राजनैहतक औजार बनाया पर न तो उनकी अहिंसा को अकेले बुद़-मिावीर से जोड़ा जा सकता िै न पह़​़िम के ‘नॉन-वायले़स’ से. अहिंसा को व़यब़कतगत आचरण की चीज की जगि साव़ज द हनक आचरण की चीज बनाना, अऩयाय दूर करने मे़ िहथयार बनाना और प़​़हशक़​़ण से लोगो़ को, खासकर साव़दजहनक काम मे़ आने वाले सत़याग़ह़ियो़को अहिंसक बनाने का प़य़ ोग और आचरण तो गांधी ने िी हकया. गांधी की कऱणा भी बुद़ से आयी थी लेहकन हसफ़फ बुद़ वाली न रि गयी थी. गांधी हनजी तौर पर चंपारण पूरी तरि तैयार िोकर गये थे, िर पहरणाम भुगतने की पक़​़ी मानहसकता के साथ गये थे, पर उऩिे़अकेलपे न की, अपनी बाकी तैयाहरयो़ की, साधन और अपने समाज की कमजोहरयो़-अच़छाइयो़ का अंदाजा था. उऩिो़ने खुद सत़याग़ि़ ी के हलए जो ग़यारि हनयम बनाये थे उन सबको वे अपने पर लागू करने के साथ आजमा चुके थे. वे कुछ साधनो़ का इंतजाम करके गये थे और चंपारण मे़चंदा न लेने का साफ फरमान सुना हदया था. बाद मे़ जब 2200 ऱपये मे़ िी 10 मिीने आंदोलन का खच़दचल गया, तो वे बिुत हनिाल िोकर बताते िै़ हक िमारे पांच सौ-िजार ऱपये बच िी गये. वे तब भी चंदे की हचंता करते िै,़ पर साबरमती आश़म़ और दूसरे कामो़ के हलए. वे तब भी बािर के कामो़के हलए काय़क द त़ ा़द ढूढं त़ े िै,़ पर उनकी मुखय़ हचंता चंपारण िी रिती िै. कुछ िी लोगो़को वे चंपारण मे़लगाने की जगि विां से बािर भेजते िै- स़वामी सत़यदेव को हिंदी प़च ़ ार के हलए चंपारण से दह़​़कण भारत भेजते िै.़ गांधी ने चंपारण मे़ हकसी क़​़ांहत का नाम निी़हलया, कोई सत़​़ा उखाड़ने का आह़​़ान निी़ हकया, हकसी जाहत, हकसी मजिब का नाम निी़ हलया, मुबश़ कल से हिंदी बोली, लेहकन ज़यादातर उसी का प़​़योग हकया, कोई भूख िड़ताल निी़ की और हिंसक ऱझान हदखने पर सब कुछ छोड़कर उस पर पिले ध़यान हदया, अंग़ेज िुक़मरानो़ िी निी़, हनलिो़ से भी स़नेि का व़यविार हकया. िर बात मे़गांधी और कस़ऱू बा तक पर िमला करने से लेकर खुद को जिर देने


का प़​़यास करने वाले हनलिे हवल़सन के प़​़हत उनकी तरफ से कभी कडवािट आयी िो, यि भी निी़ हदखता. कस़​़ूरबा पर जब उसने व़यब़कतगत आक़​़ेप हकया और आम तौर से अखबारी बिस से दूर रिने की रणनीहत छोड़कर भी जब गांधी ने उसका जबाब हदया िै़तो उसमे़ कोई कडवािट निी़हदखाई दी. हनलिे भी आम तौर पर उनकी जगि उनके सियोहगयो़ पर िमला करते हदखते िै़, जबहक गांधी उनकी लंका िी जला रिे थे. अपनी हकताब ‘दह़​़कण अफ़​़ीका के सत़याग़ि़ का इहतिास’ की भूहमका मे़ गांधी ने 2 अप़ल ़ै , 1924 को हलखा था, ‘यि बात उल़लख े नीय िै हक सत़याग़ि़ मे़ चंपारण के लोगो़ ने खूब शांहत रखी. इसका साक़​़ी मै़ िूं हक सारे िी नेताओ़ ने मन से, वचन से और काया से संपण ू द़शांहत रखी. यिी कारण िै हक चंपारण मे़सहदयो़पुरानी बुराई छि माि मे़ दूर िो गयी.’ वे आगे हलखते िै़, ‘अिमदाबाद हमल मजदूरो़ की जीत को मै़ने दोषयुकत़ माना िै, क़यो़हक मजदूरो़ की टेक की रक़​़ा के हलए मैऩ े जो उपवास हकया, वि हमल माहलको़ पर दबाव डालने वाला था... मजदूर अगर शांहत की टेक पर डटे रिते तो उनकी जीत अवश़य िोती और वे हमल माहलको़का मन जीत लेत.े ’ वे हफर हलखते िै, ‘खेड़ा मे़शुद़सत़य की रक़​़ा िुई, ऐसा तो मै़निी़कि सकता. शांहत की रक़​़ा जऱर िुई... परंतु खेडा ने पूरी तरि शांहत का पाठ निी़ सीखा था; और अिमदाबाद के मजदूर शांहत के शुद़स़वऱप को निी़समझे थे. इससे रॉलट एक़ट सत़याग़ि़ के समय लोगो़ को कष़​़ उठाना पडा, मुझे अपनी हिमालय जैसी भूल स़वीकार करनी पड़ी और उपवास करना और दूसरो़ से करवाना पड़ा.’ काफी बाद मे़ गांधी ने चंपारण आंदोलन के अपने सियोगी जनकधारी प़​़साद को हलखा, ‘चंपारण के सियोहगयो़ की यादे़ मेरे मन के खजाने मे़ भरी पड़ी िै.़ अगर देश भर मे़ ऐसे लोग हमल जाये,़ तो स़वराज आने मे़वक़त निी़लगेगा.’ चंपारण के गांधी के प़​़योग को दूसरो़ से ऊपर करने वाली चीज रचनात़मक काम िी थे. यि चीज उनके दह़​़कण अफ़​़ीकी सत़याग़​़ि आंदोलन मे़निी़थी जिां सत़य की लड़ाई और सत़याग़​़िी तैयार करने का प़​़योग काफी बड़े पैमाने पर िुआ और मोिनदास के मिात़मा बनने की शुऱआत िुई पर विां सफाई संबंधी कुछ प़​़योगो़ के अलावा अऩय रचनात़मक काम निी़ िुए. अखबार छापना और आश़​़म के नाम पर सि-जीवन का प़य़ ोग िुआ, हशक़​़ा की बात थी पर िल़के प़य़ ोग भर िी िुए और जल़दी िी ऱक गये. और तब के सत़याग़​़िी तैयार करने के काय़क द म़ मे़भी काफी कमी खुद गांधी मानते िै.़ उऩिो़ने स़वयं अपने खाने, पिनने, सेकस ़ -जीवन से लेकर लगभग िर चीज मे़ बाद मे़ बदलाव

कस्​्ूरबा गांधी: िम्​्िय िहयोग

आचाय्ाकृपलानी: एक युग का िाथ

चंपारण के िाथी: राजे्द्प्​्िाद और अन्य

हकये. और जब वे यि भूहमका हलख रिे थे उसके बाद भी बदलावो़का क़म़ ऱका निी़पर सत़याग़ि़ ी कौन िो, कैसा िो इस बारे मे़बिुत स़पष़त़ ा आ चुकी थी. पर गांधी नील की खेती और हनलिो़ के जुलम़ को हमटाने के साथ जो दूसरे प़य़ ोग हकये वे तब ज़यादा प़​़चाहरत निी़ िुए या खुद गांधी उनका उस तरि का प़च ़ ार निी़ चाह़ते थे जैसा हक नील की खेती की समाब़पत का. गांधी के आदेशो़, सलािो़, हटप़पहणयो़ और आचरण को देखने के बाद तीन चीजे़ ऐसी हदखती िै़उऩिे़गांधी पाना चािते थे: चंपारण के हकसानो़का दुख-दद़दखत़म करना, गोरी चमड़ी और शासन का डर हनकालना और अंग़ेजी शोषक व़यवस़था की जगि देसी हवकल़प देने का अपना प़​़यास, जो उनके रचनात़मक कामो़ से हनकलता िै. पिला काम तो उऩिोने डंके की चोट पर हकया और शोर मचाकर भी अंग़ेजी व़यवस़था पर दबाव बनाया. इस मुद़ेको उऩिो़ने न कभी हछपाया और न मह़​़दम पड़ने हदया. एक आलोचना यि की जाती िै हक तब नील अपनी स़वाभाहवक मौत मरने जा रिा था क़यो़हक तब तक कृह़तम रंग बन गये थे और पौधे से बनने वाले नील की हवदाई िो रिी थी. तब हसफ़फ हवश़य़ द ु ़के चलते कुछ समय के हलए मांग एक बार हफर बनी थी और गांधी ने उसी अवसर का लाभ हलया. अब सबको यि हदख रिा िो और खुद हनलिे नील की खेती से मुिं मोड़रिे िो़तब गांधी को यि समझ न आ रिा िो यि संभव निी़ था. पर हतनकहठया खेती, हनलिो़की जमी़दारी, अंगज ़े ी शासन से उनके हनकट संबधं और पुरानी जमी़दारी व़यवस़था से आये दज़दनो़ हकस़म के आबवाब की व़यवस़था हकस तरि हकसानो़ के गले का फांस बन गयी थी, यि समझने मे़गांधी को ज़यादा वक़त निी़ लगा. उऩिो़ने चंपारण पिुंचते िी जान हलया था हक हनलिे खुद हतनकहठया का अंत देखकर हकसानो़को उससे मुक़त करने के नाम पर अहधक लगान का शरिबेशी करार कर रिे िै़ और शासन उसे कानूनी माऩयता दे रिा िै. गांधी ने इन सब सवालो़ को िर मंच पर उठाया और थोडे िी हदनो़ मे़ सबको अपनी दलीलो़से सिमत कर हलया. और जैसे िी उऩिे़ लगा हक शासन हनलिो़ के साथ जाकर अपनी प़​़हतष़​़ा और इकबाल को दांव पर लगाने को तैयार निी़ िै और हनलिे अपनी करतूतो़ को जारी निी़ रख पाये़गे, िी उऩिो़ने अपने तीसरे लक़​़य के हलए काम शुऱ कर हदया और इसमे़ सरकार के साथ िी हनलिो़से भी सियोग मांगा. यि समथ़दन हमला तो निी़, पर इसका वैसा हवरोध भी निी़ िुआ जैसा हक नील की हतनकहठया खेती खत़म कराने के मसले का िुआ था. इस काम मे़ पिले की तरि एक आदेश से सब कुछ िाहसल िो जाने जैसा कुछ था भी और शुक्वार | 1 से 15 मई 2017

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आवरण कथा

गांधी जब खेडा के हकसानो़और अिमदाबाद के हमल मजदूरो़के बुलावे पर चंपारण से हनकले तो उऩिे़अफसोस रिा हक वे अपने इस पिले प़य़ ोग के फल निी़देख पा रिे िै़और उनके कई सपने अधूरे िै़. गोरी चमड़ी और शासन का डर हनकालने का काम उऩिो़ने इन दोनो़ की तरि बिुत शोर-शराबे के साथ निी़हकया, पर बिुत गोपनीय ढंग भी निी़रखा. गांधी ने बाकी जीवन मे़ कब-कब हकस तरि के प़य़ ोग हकये, यि हगनवाना मकसद निी़ िै, लेहकन यि रेखांहकत करना जऱरी िै हक हिंदस ु ़ान मे़ तीस साल से ज़यादा की अवहध मे़ गांधी ने जो भी प़​़योग हकये, चंपारण उसकी शुऱआत िी निी़ करता, यि एक बड़ा और सम़भवत: सबसे मित़वपूणद़ पड़ाव था. अब यि हगनती मौजूद िै हक गांधी सेवाग़​़ाम मे़हकतने हदन रिे और साबरमती मे़ हकतने हदन, हदल़ली मे़ हकतना समय गुजारा और लािौर मे़ हकतना, कलकत़​़ा हकतने हदन रिे और मद़​़ास मे़हकतने हदन, पर इन जगिो़पर रिते िुए वे हसफ़फउऩिी़ जगिो़ का काम करते रिे िो़ या उऩिोने सारा समय और ध़यान विी़की चीजो़पर लगाया िो, यि किना गलत िोगा. इस हलिाज से चंपारण यि दावा कर सकता िै हक यिां गुजारे दस मिीने की अवहध मे़ज़यादातर ध़यान उऩिो़ने चंपारण पर केह़​़दत हकया. दह़​़कण अफ़​़ीका के दो हठकानो़को छोड़कर उऩिो़ने हकसी और जगि न तो इतना समय लगाया और न िी हसफ़फविी़के काम पर अपना ध़यान लगाया. चंपारण रिते िुए गांधी की हचंता का एक अंश तब बन रिे साबरमती आश़म़ पर और हफर अिमदाबाद के मजदूरो़और खेडा के हकसानो़ की समस़याओ़ पर था, लेहकन गांधी चंपारण मे़ रम गये थे. और जैसे िी उऩिे़ नील 10 शुक्वार | 1 से 15 मई 2017

चंपारण िे्गांधी आश्​्ि: बेहतर रख-रखाव की खेती की हतनकहठया प़​़णाली के अंत का संकते हमलने लगा, उऩिोने भारत मे़अपने सबसे मित़वपूण़द प़​़योगो़ की धूम-धड़ाके से शुऱआत की. वे चंपारण आने के कुछ समय बाद िी सव़​़ेट़स आफ इंहडया सोसाइटी के डा. श़​़ीिहरक़ृष़ण देव को साथ लेकर आये थे और स़वच़छता तथा स़वास़थ़य के मामलो़ मे़ उनकी सेवाएं लेने लगे थे. और जैसे िी उऩिे़चंपारण की सहदयो़ पुरानी नील की खेती की बीमारी जाती लगी उऩिो़ने, बीमारी, मिामारी, साफ सफाई अथ़ातद िाइहजन, हशक़​़ा, हशल़पकारी, खादी, गौसदन बनाने जैसे न जाने हकतने िी प़य़ ोग शुऱ हकये और हबिार के अपने सारे पुराने सियोहगयो़ को तो लगाया िी, बािर से रचनात़मक काम वाले पंद़ि काय़दकत़ाद भी ले आये. इस काम मे़ उऩिो़ने कस़​़ूरबा और देवदास गांधी को भी लगाया और मिादेव देसाई और कृपलानी जैसे सियोहगयो़को भी. इहतिास गवाि िै हक चंपारण के बाद गांधी की रफ़तार तेज िुई. और जो प़​़योग उऩिो़ने चंपारण मे़हकये थे, उऩिे़बड़ेपैमाने पर देश भर मे़चलाया गया. कांगस ़े की कमान िाथ मे़आते िी गांधी ने एक करोड़चवब़ननया सदस़य बनाने के साथ पच़​़ीस लाख चरखे चलवाने का अहभयान भी छेड़ा. पिले का कोई कांग़ेसी या िमारा कहथत राष़​़ीय नेता यि संखय़ ा सोच भी निी़ सकता था. हशक़​़ा का जो अनगढ़ प़​़योग चंपारण मे़ शुऱ िुआ, वि थोड़े हदनो़ मे़ िी बुहनयादी तालीम आंदोलन के ऱप मे़देशव़यापी िुआ और चंपारण समेत पूरे मुल़क मे़ राष़​़ीय स़क्ल और कॉलेज िी निी़, हवश़​़हवद़​़ालय खोलने का आंदोलन िी खड़ा िो गया. गांधी ने छुआछूत हनषेध, हवकेह़​़दत उत़पादन, हवतरण और खपत की व़यवस़था शुऱकी, सफाई, शराबबंदी,

प़​़ाकृहतक हचहकत़सा, उऩनत खेती और पशुपालन से लेकर कुटीर उद़​़ोग तक जैसे जाने हकतने िी प़​़योग हकये. साथ िी बारीक की जगि मोटी खादी, बिुत सुघड़ की जगि अनगढ़ चीज के इस़म़े ाल, बािरी की जगि स़थानीय उत़पाद के उपयोग का प़​़योग शुऱ िुआ. चंपारण मे़ बने पिले स़कल ् ो़ मे़ कोई भी हनम़ाण द दूर के सामग़​़ी इस़म़े ाल न हकये जाने की प़​़ाथहमक शत़दथी. गांधी ने दस मिीने की छोटी अवहध मे़ चंपारण से, यिां के लोगो़ से और अपने सियोहगयो़ के व़यविार और आचरण से भी काफी कुछ ऐसा सीखा, हजसका असर उनके पूरे जीवन पर रिा, पूरे आंदोलन पर रिा. चंपारण पर भी गांधी का ऐसा रंग चढ़ा जो जीवन भर बना रिा और आज का चंपारण अब राजा जनक. सीता, वाल़मीहक, आल़िा-ऊदल, मौय़द, कौहटल़य, अशोक जैसे प़त़ ापी लोगो़के नाम की जगि गांधी के चंपारण के नाम से जाना जाता िै और इस बात पर गव़दअनुभव करता िै. सोहवयत संघ का पतन िोने के बाद अमेहरकापरस़​़जमात हवचारधारा और इहतिास से लेकर जाने हकन हकन चीजो़ के अंत की घोषणा करने लगी. और उसने जो वैश़ीकरण, उदारीकरण और भूमंडलीकरण के ऱप मे़ जो समाधान दुहनया को देना चािा, उसका क्ऱ और लुटेरा चेिरा समझने-देखने मे़ हकसी को भी मुब़शकल निी़ िुई. आज उसका हवरोध करने वाले दुहनया की हवहवधताओ़ का, हटकाऊ हवकास के माॅडल का, हवके़द़ीकरण का, स़थानीय समूिो़का उनके प़​़ाकृहतक संसाधनो़पर अहधकार को स़वीकार करने लगे िै़जो गांधी के दश़नद और आचरण का केद़ ़ीय तत़व िै. वे गांधी को हवकल़प के ऱप मे़पेश भी करने लगे िै.़ गांधी अब तक दुहनया भर मे़अऩयाय का प़ह़तरोध करने वाली जमातो़ मे़ (जैसे इजरायल हवरोधी हफलस़​़ीहनयो़), अहिंसक हवरोध आंदोलनो़ मे़ (जैसे दलाई लामा और हतल़बत की आजादी के आंदोलन) पह़​़िमी मॉडल के लोकतंत़ का हवकल़प चािने वालो़ (जैसे बम़ाद की नेता आंग सांग सू की), सोहवयत मॉडल के साम़यवाद से बगावत करने वालो़ (जैसे पोलै़ड के श़​़हमक नेता लेख वे़लेसा), िर तरि के अऩयाय से लडने वालो़ (जैसे दह़​़कण अफ़​़ीका के रंगभेद हवरोधी आंदोलन) के हलए प़ऱे णा के स़​़ोत िुआ करते थे, अब वे एक वैकब़लपक हवश़​़व़यवस़था चािने वालो़की आशा के केद़ ़बने िै.़ ऐसे मे़यि जऱरी िै हक गांधी को, उनके आंदोलनो़ को उनके प़​़योगो़ को ज़यादा बारीकी से देखा जाये और अपनी जऱरतो़ के लायक समाधान या समाधान तक ले जाने वाली राि तलाशने का n काम हकया जाये. (लेखक वहरष़​़ पत़​़कार िै़. चंपारण सत़याग़ि़ पर उनकी दो पुसक ़ े़शीघ़​़प़क ़ ाश़य िै.़)


गुमनाम नायकों का चंपारण

चंपारर सत्याग्​्ह ने मोहन दास करमचंद गांधी को ‘महात्मा’ बनाया था. उसका शताब्दी वर्ष देश मे्मनाया जा रहा है लेरकन वह रबहार के रबना अधूरा है. संजय कुमार

िात़मा गांधी सौ वष़दपूवद़हबिार के चंपारण मे़ नील की खेती करने वाले हकसानो़ को ह़​़िहटश साम़​़ाज़य से मुब़कत हदलाने आये थे. चंपारण सत़याग़​़ि ने िी मोिन दास करमचंद गांधी को ‘मिात़मा’ बना हदया था. हबिार की धरती चंपारण गांधी की प़थ़ म कम़भद हू म थी. यो़ तो चंपारण सत़याग़ि़ शताल़दी वष़द समारोि देश भर मे़आयोहजत िो रिा िै लेहकन हबिार के हबना यि अधूरा िै. चंपारण सत़याग़​़ि की बात िो या हफर गांधीजी से जुडा कोई पिलू. इस पर प़​़काश डालने के हलए पटना ब़सथत गांधी संगि़ ालय के सहचव और प़​़हसद़​़ गांधीवादी रजी अिमद का नाम सामने आता िै. चंपारण सत़याग़ि़ के सवाल पर रजी बताते िै़, बात 1916 की िै लखनऊ कांग़ेस अहधवेशन के दौरान हकसान देता राजकुमार शुकल ़ चंपारण के हकसानो़के दद़दको लेकर गये थे. उऩिो़ने गांधीजी से अनुरोध हकया रजी अहिद: गांधी की मवराित

हक वे चंपारण आये़ और नील की खेती करने वाले हकसानो़को आजादी हदलाये. रजी बताते िै,़ गांधीजी ने चंपारण का नाम निी़सुना था. उऩिे़विां के लोगो़की ब़सथहत के बारे मे़भी कोई खास जानकारी निी़थी. ह़​़िहटश िुकम् त ने विां के हकसानो़को नील की खेती को अहनवाय़द कर हदया था. इस व़यवस़था के तित हकसानो़के हलए यि अहनवाय़दकर हदया गया था हक वे अपनी ज़मीन के एक हनह़​़ित हिस़से मे़ नील की खेती करेग़ .े नील एक रंजक िै, जो खेत को नुकसान पिुंचाता िै. नील की खेती ने हकसानो़ को संकट मे़ डाल हदया. हवरोध करने वाले हकसानो़पर जुलम़ ढािे जाते थे. साथ िी जो हकसान नील की खेती निी़ करते तो उऩिे़ आह़थक द ऱप से दंहडत हकया जाता था. नील की अहनवाय़द खेती से हकसनो़ को आह़थदक मार झेलनी पडी. अनाज के उत़पादन मे़ भारी कमी आयी. हकसानो़पर दुख का पिाड टूट पडा. रजी अिमद बताते िै़ हक शुक़लजी के आग़​़ि पर गांधीजी ने उऩिे़कोई आश़​़ासन निी़हदया बब़लक उऩिो़ने किा हक जब तक वे खुद िालात को देखगे़ े निी़और जायजा लेग़ े निी़तब तक कुछ निी़करेग़ .े आहखर मे़वि ऐहतिाहसक हदन आया, जब 15 अप़ल ़ै 1917 को गांधीजी मोतीिारी रेलवे स़टश े न पर उतरे. िजारो़लोगो़ने उनका स़वागत हकया. पूरा हदन मोतीिारी मे़ हबताने के बाद गांधीजी जासूलीपट़​़ी नामक गांव के हलए िाथी पर बैठकर रवाना िुय.े गांधीजी थोडी आगे बढे िी थे हक उऩिे़एक बाबू ब्​्जमकशोर प्​्िाद: गुिनाि िेनानी

नोहटस थमा हदया गया. उऩिे़ आदेश हदया गया था हक वे अगली ट़ऩे से इस क़त़े ़को छोडकर चले जाएं. लेहकन, गांधीजी ने इस आदेश को मानने से इंकार कर हदया. नतीजे मे़उऩिे़हगरफ़तार हकया गया और 18 अप़​़ैल को एक अदालत मे़ पेश हकया गया. रजी बताते िै़ हक गांधीजी अंग़ेजी िुकम् त को मानते िी निी़ थे. बापू ने कभी भी अंगज ़े ो़के हनयम कानून और शासन व़यवस़था को निी़ माना इसहलए उनपर जब भी कोई मामला लादा जाता तो वे अपना बचाव निी़ करते थे. चंपारण सत़याग़​़ि को लेकर गांधीजी पर जो मुकदमा लादा गया उसे बापू के प़ह़त हकसानो़के जन समथ़नद को देखते िुये ह़​़िहटश िुकमु त को वापस लेना पडा. वे बताते िै़हक चंपारण आगमन पर गांधीजी को हमले जनसम़दथन से ह़​़िहटश िुक्मत घबरा गयी और उऩिे़ हरिा कर हदया गया. दो हदन के बाद मुकदमा भी वापस ले हलया गया. अंग़ेज सरकार ने गांधीजी को यि आश़​़ासन भी हदया गया हक हकसानो़ की समस़या पर हवचार हकया जायेगा. हकसानो़की ब़सथहत का अध़ययन करने के हलए एक सहमहत बनाई गयी और इसमे़ गांधीजी को भी शाहमल हकया गया. इस सहमहत ने विां के हकसानो़ से संपक़फ कर उनकी तकलीफो़ का जायजा हलया और सहमहत की हसफाहरशे़स़वीकार की गयी़. सहमहत ने माना हक हकसानो़ के साथ जुल़म िो रिा िै. हतनकहठया व़यवस़था वापस ले ली गयी. तो इस तरि से गांधीजी ने चंपारण के हकसानो़ को अंग़ेजी िुकम् त से मुबक़ त हदलायी थी. यो़ तो बापू को चंपारण लाने मे़ राजकुमार शुकल ़ की भूहमका अिम रिी िै. रजी बताते िै़हक कई और नाम चंपारण सत़याग़ि़ से जुडे िै हजनका हजक़​़निी़ हमलता. वे किते िै़ बापू के चंपारण सत़याग़ि़ मे़कई ऐसे लोग भी शाहमल थे हजऩिो़ने बढ-चढ़कर उनके अहभयान मे़ साथ हदया लेहकन उनका हजक़​़प़म़ ख ु ता से निी़िुआ. इसी मे़ एक नाम रामदयाल सािू का भी िै, जो मोहतिारी के कारोबारी थे और उऩिो़ने इस अहभयान मे़बढ-चढकर आह़थक द सियोग हकया. बापू ने जब अपने अहभयान को गहत दी तो उस दौर के कई नामी और प़ह़तह़​़षत वकील भी इसमे़ शाहमल िो गये. उन लोगो़की समप़ण द भूहमका का अंदाजा इसी बात से भी लगाया जा सकता िै हक राजेद़ ़बाबू और ि़ज ़ हकशोर बाबू विां खाना पकाते थे और बत़नद भी साफ करते थे. मिात़मा गांधी ने हकसनो़के दुख-दद़दको लेकर जो पिल की वि इहतिास बन चुका िै. n शुक्वार | 1 से 15 मई 2017 11


आवरण मास्ट हेकथा ड

आयेगांधी छायेगांधी अरकवंद मोहन

गां

धी ने हकसानो़ के मन से शासन, गोरी चमड़ी और जेल वगैरि का डर हकस तरि हनकाला, इसके दो-तीन मजेदार हकस़से जानने चाहिए. दादा कृपलानी को घोड़े की सवारी का शौक था और तब चंपारण मे़ लोग स़थानीय सवारी के हलए घोड़ो़ का खूब इस़​़ेमाल करते थे. हकसी हदन उऩिो़ने हकसी स़थानीय साथी का घोड़ा लेकर अपना शौक पूरा करना चािा. उऩिे़तेज सवारी अच़छे लगती थी. सो उऩिो़ने घोड़ेको ऐड़लगायी, पर वि भड़क गया. उसने सवार को िी पटक हदया. दादा कृपलानी के घुटने हछल गये और चोट लगी. घोड़ा जब भड़ककर मुड़ा तो एक बुजुग़दमहिला भी डर कर भागी और हगर गयी. लोगो़ ने दोनो़ को संभाला और कृपलानी जी अपना यि काय़दक़म त़यागा. हजस समय यि घटना िुई, स़थानीय पुहलस प़​़मुख भी आसपास थे. उऩिोने कृपलानी पर शांहत भंग करने का मुकदमा कर हदया हजसमे़ खुद चश़मदीद गवाि बन गये. नोहटस हमलने पर सब िैरान थे, पर गांधी ने हकसी वकील को उनकी पैरवी निी़ करने दी. कृपलानी जी को चालीस ऱपये जुम़ादना या पंद़ि हदन जेल की सजा िो गयी. कृपलानी जुम़ादना देने और आंदोलन मे शाहमल बाकी वकील अपील करने की बात करने लगे. गांधी ने हफर उऩिे़रोक हदया. उऩिो़ने किा हक अभी चंपारण के लोग जेल जाने से काफी डरते िै़. कृपलानी जी जेल जाये़गे तो लोगो़के मन मे़बैठा जेल का खौफ कम िोगा और इस प़​़कार कृपलानी की पिली जेल यात़​़ा गांधी ने िी करायी. दूसरा मामला भी कम हदलचस़प निी़ िै गांधी के समाधान के हिसाब से. िुआ यि हक जब हकसान अपने ऊपर िोने वाले जुल़मो़ की किानी सत़याग़​़ि के काय़दकत़ादओ़ को सुना रिे थे और वे लोग हजरि के जहरये िर मुद़े का स़पष़​़ीकरण भी करते चल रिे थे तो काफी गिमागिमी रिती थी. कई जगिो़ पर ये गवाहियां चलती थी़. एक खुहफया अहधकारी

12 शुक्वार | 1 से 15 मई 2017

गांधी ने चंपारर मे्रकसानो्के मन से अंग्ेज शासन, गोरी चमड्ी और जेल वगैरह का डर रकस तरह रनकाला, इसके कई मजेदार रकस्से है्. खास बात यह भी है रक गांधी ने नामी वकील होते हुए भी अंग्ेजो्से नील के रकसानो्की लड्ाई कानूनी तौर पर नही्लड्ी.

बार-बार इस जगि से उस जगि जाकर गवािी देने वाले रैयतो़का नाम-पता नोट कर रिा था. गवािी देने वाले और लेने वाले दोनो़ िी यि जानकर परेशान थे क़यो़हक बाद मे़ बदले की काऱदवाई िोने का अंदेशा था. पिले अक़सर ऐसा िी िोता था. बाबू धरणीधर ने उस अहधकारी से किा हक आप दूर रिे़. गांधी से हशकायत िुई तो वे भी आये. अहधकारी ने किा यि िमारी ड़​़ूटी िै. िम पास न जाये़गे तो सिी जानकारी कैसे दे़गे. हफर गांधी ने अपने लोगो़से किा हक जब आप बयान लेते िै़ तो इतने रैयत घेरे बैठे रिते िै़. आप कोई चोरी का काम तो निी़ कर रिे िै़. जब इतने रैयतो़ के मौजूद रिने से आपको हदक़​़त निी़िोती तो एक और आदमी के रिने से आप क़यो़ परेशान िै़. जो बात सबको मालूम िोती िै, इस बेचारे से क़यो़छुपाई जाये. इनको भी रैयत िी समहझए. गांधी का इतना किना था हक सब लोग िंस पड़े और अहधकारी पर मानो घडो़ पानी पड़ गया. वि अपना और शासन का रौब बढ़ाने आया था पर यिां रैयत बन गया. गांधी सीधी बातचीत या हलखत-पढ़त मे़ डॉ.राजे्द्प्​्िाद की पुस्क: प्​्ािामणक मववरण

बातचीत के भी उतने िी बड़े माहिर थे. उनसे हमलने वाले चंपारण वाले, हबिारी, भारतीय और बािरी लोगो़ की छोहड़ए शासन मे़ बैठा कोई भी गोरा और शोषण तथा लूट का प़​़तीक बन गये हनलिो़ मे़ शायद िी कोई िोगा जो उनसे प़​़भाहवत न िुआ िो. और वे बुराई से नफरत करते थे, बुरे आदमी से निी़. यि बात कदम-कदम पर हदखती िै. लगभग सारे िी अहधकारी गांधी से बातचीत करके प़​़भाहवत लगते थे और अक़सर उनके सधे तक़फभी उनको गांधी के पक़​़मे़कर देते थे. इसहलए हसफ़फएक अदालती लड़ाई जीतने का मामला न था, गांधी ने हजस तेजी से सरकारी जांच आयोग बनवाने मे़ सफलता पायी, उसकी जांच मे़ चंपारण की खेती-हकसानी के िर पिलू को अकेले ढंग से रखा और जो-जो चीजे़ पाना चाह़ते थे उन पर सव़दसम़मत हसफाहरशो़ वाली हरपोट़द तैयार कराके मनवा ली. यि साधारण कौशल का काम न था. उऩिो़ने हकस तरि मूल हसद़​़ांतो़ पर अहडग रिते िुए छोटे-छोटे मसलो़पर हनलिो़की हजद को मानकर यि िाहसल हकया, इसकी चच़ाद पिले की जा चुकी िै. पर उनको भी यि लग गया था हक नील तो हवदा िो रिी फसल िै, असल मामला हनलिो़और गोरो़की हवदाई का संदेश देने का िै और वि इस आयोग ने और उसकी हसफाहरशो़ के आधार पर आये शासकीय आदेश से िाहसल िो गया. दो-तीन साल मे़ नील-हनलिो़ और फैक़टहरयो़-हजरातो़ का सारा खेल इहतिास की चीज बन गया. गांधी वकील भी थे और उऩिंे कानून की बिुत बारीक समझ थी. अपने मुकदमे मे़हजस तरि से उऩिोने पूरे अंग़ेजी शासन तंत़ को पटखनी दी, वि साधारण समझ की चीज निी़ िै. सरकारी वकीलो़ की टोली और महजस़ट़ेट समेत सारे लोगो़ को कुछ सूझा िी निी़ जब गांधी ने अपना हलहखत छोटा बयान पढ़ा और सीधे मुकदमा उठाने और जांच मे़सियोग देने का वायदा करने के अलावा शासन को और रास़​़ा निी़सूझा.


अरमवंद िोहन की मकताब: एक युग का दस्​्ावेज

बाद मे़गांधी ने इस सियोग का भी पय़ादप़त सांकेहतक लाभ हलया. गांधी ने हनषेधाज़​़ा का उल़लंघन करके और हगरफ़तार करके पेश िोने पर महजस़ट़ेट के सामने अपना गुनाि कबूला और सजा भुगतने पर िामी भरी. बाद मे़ जब गांधी ने अपना काम शुऱहकया तो प़​़शासन ने उनसे पूछा हक आपको क़या सियोग चाहिए तो गांधी ने किा हक एक मेज और दो कुह़सदयां. इस पर शासन के अहधकारी ने किा हक िमारा एक आदमी भी आपके साथ रिेगा तो गांधी ने उस पर आपह़​़त करने या यि आदमी कौन िोगा, यि पूछे हबना कि हदया हक उसके हलए आपको एक और कुस़ी देनी िोगी. सिमहत के बाद िुक्मत ने तीन कुह़सदयां और एक मेज बैलगाड़ी मे़लदवा कर गांधी के पास भी भेजवा हदये. और इस एकमात़​़ कानूनी लड़ाई मे़ बैहरस़टर गांधी ने क़या कर हदया, इसकी हमसाल हमलनी मुब़शकल िै. शासन तो स़​़ल़ध रिकर सियोग देने के वायदे पर आया, हनलिे सिमकर पीछे िुए पर देश दुहनया के अखबारो़ ने इस खबर को सुह़खदयां दी़, संपादकीय हलखे, लेख और हटप़पहणयां छपी़. राजे़द़ प़​़साद की हकताब चंपारण मे़मिात़मा गांधी मे़हवस़​़ार से अखबारो़ की खबरो़ और हटप़पहणयो़ को उद़​़ृत हकया िै. मद़​़ास के इंहडयन पैह़टयट, बंबई के द मैसे़जर, मद़​़ास के ऩयू इंहडया, लािौर के द पंजाबी, बंबई के द इंहडयन सोशल हरफाम़दर, लखनऊ के द एडवोकेट, मद़​़ास के मद़​़ास टाइम़स, बंबई के बांबे क़​़ाहनकल, कलकत़​़ा के द बंगाली और लािौर के ह़​़टल़यून के संपादकीय मे़ मुकदमा जीतने पर खुशी का इजिार हकया

गया था. ये सब गांधी की िवा बनाने और अंग़ेजो़की िवा हबगाड़ने मे़सिायक िुए. गांधी को अदालती कामकाज और कानून की सीमाओ़का भी पता था सो अपनी तरफ से उऩिो़ने कभी अदालत का दरवाजा निी़ खटखटाया और न िी अपने साथ के नामी वकीलो़ को ऐसा करने हदया. वे उनकी सेवाएं हकरानी तौर पर िी लेते रिे. बब़लक जब शरिबेशी के मामलो़ मे़ लोमराज हसंि समेत कुछ लोग िार-जीत के अदालती खेल मे़ लगे रिे और पिले से चल रिे इस मुकदमे मे़ ि़​़जहकशोर प़​़साद भी जुटे थे, तब भी गांधी ने उस या उस तरि के मुकदमे पर भरोसा करने की जगि शरिबेशी का हसफ़फ चार आना पैसा िी वापस करने जैसा समझौता कर हलया क़यो़हक उनको साफ लगता था हक ऐसे 75000 मुकदमे कौन हकसान लड़ेगा, हकतनो़ के पास अदालत की लड़ाई लड़ने का खच़द िोगा और हकस मामले मे़अदालत क़या ऱख लेकर गाड़ी पटरी से उतार दे, इसका भरोसा मुब़शकल िै. जिां तक नील और गाड़ी के सट़​़ो़ की बात िै तो तीन लाख सट़​़े समाप़त कराने के मुकदमो़ की तो कल़पना भी मुब़शकल िै. गांधी ने बाकी जीवन भी अपनी लड़ाई मे़ अदालती और कानूनी मदद की कोहशश निी़की. चंपारण के लोग भी राजनैहतक लड़ाई मे़ अदालत निी़ गये. कानूनी मसले आये, नये कानून बनाने के हववाद िुए, इन पर गोलमेज बातचीत िुई और गांधी ने सबमे़ अपना पक़​़ अच़छे से रखा पर अदालत और कानून के भरोसे अपनी लड़ाई निी़लड़ी.

सरकार से पत़​़ाचार िो या किी़ औपचाहरक संवाद का अवसर, गांधी उस कंयुहनकेशन के भी उस़​़ाद थे. उनकी काॅपी का एक-एक शल़द मित़वपूण़दिोता था और उसको बदल सकना भी मुब़शकल था. वे हजस संबोधन से पत़​़ाचार शुऱकरते थे वि भी अपने आप मे़ काफी मित़वपूण़दिोता था. अहधकाहरयो़के नाम हलखी उनकी हचह़​़ियां इहतिासकार बी.बी. हमश़​़ और प़​़शासहनक अहधकारी श़​़ीधर वासुदेव सोिोनी के सौजऩय से काफी समय पिले सामने आ गयी थी़और वे इस बात की गवािी देती िै़. पर सबसे हदलचस़प वे हरपोट़​़े और स़मरणपत़​़ िै़ जो गांधी ने हवहभऩन अवसरो़ पर शासन को या अऩय संस़थाओ़ को औपचाहरक ऱप से हदये थे. चंपारण के हकसानो़की ब़सथहत पर उनकी सबसे शुऱआती हरपोट़द भी उनकी इस प़​़हतभा का अच़छा प़​़माण िै जबहक अभी गांधी को चंपारण आये एक मिीना भी निी़िुए थे और वे भोजपुरी न जानने के चलते काफी िद तक पंगु बने रिे थे. गांधी जब चंपारण मे़ थे, रोज औसतन पच़​़ीस से तीस हचह़​़ियां हलखते थे, तार भेजते थे. जाहिर िै, उनके कंयुहनकेशन का यि सबसे ह़​़पय तरीका था. और कई बार तो वे पूरीपूरी रात हलखते-पढ़ते िी गुजार देते थे. हजस हदन मोहतिारी अदालत मे़ उनका मुकदमा था वि रात तो उऩिो़ने अपना जबाब हलखने और लोगो़को पत़​़हलखने और तार देने का मसहवदा हलखने मे़ िी गुजार दी. इन पत़​़ो़ की भाषा औपचाहरक सरकारी पत़​़ाचार से एकदम अलग िोती थी. इसमे़ वे अपने भतीजे को यि भी हलखते िै़हक तुम़िारे पत़​़का इंतजार मै़चातक द़​़ारा स़वाहत की बूंद के इंतजार की तरि करता िूं. डेनमाक़फ की नन एस़थर फैहरंग को पत़​़ हलखते सम़य उनका स़नेि ऐसा उमड़ता िै हक आज भी मिसूस हकया जा सकता िै. अमदाबाद आश़​़म स़थाहपत करने मे़ लगे मगनलाल के पत़​़हजम़मेवाहरयो़और भरोसे एक संदेश से भरे िै़. बाकी साहथयो़ के पत़​़ मे़ स़वास़थ़य का िालचाल लेने और आिार संबंधी सलाि से लेकर आंदोलन की हरपोह़टि़ग तक िै. अथ़ादत िर हकसी से हनजी स़​़र का हरश़ता बनाने जताने वाले संदेश. एस़थर को वे चंपारण के बारे मे़ बुहनयादी जानकाहरयां देने के साथ घूमने-हफरने का इंतजाम करने की सूचना देते िै़ और उऩिी को हलखी शुऱआती हचि़​़ी से यि सूचना हमलती िै हक गांधी को चंपारण आते िी यिां के काम मे़ छि मिीने से अहधक समय लगने का अनुमान िो गया था. n (शीघ़​़प़​़काश़य पुस़क का एक अंश.) शुक्वार | 1 से 15 मई 2017 13


आवरण कथा

चंपारण: पहलेऔर आज

िभी फोटो िौजन्य: इंटरनेट स्​्ोत

नील की कटाई और ढुलाई: चंपारण के मकिानो्की मववशता

वह घर जहां गांधी चंपारण िे्पहली बार र्के

कुम्िया कोठी का िंकेत मचन्ह 14 शुक्वार | 1 से 15 मई 2017

हरमदया कोठी के पाि नील फैक्टरी के अवशेष

नील के मकिानो्का श्​्ि


िोमतहारी रेलवे स्टेशन: आज

िोमतहारी का पुराना रेलवे जंक्शन

चंपारण िे्अंग्ेजो्के बंगले के अवशेष

बेमतया अदालत: यहां भी गांधी की याद

चंपारण िे्कस्​्ूरबा की स्िृमत िे्स्थामपत कै्टीन

हरमदया कोठी के पाि नील फैक्टरी के अवशेष शुक्वार | 1 से 15 मई 2017 15


अंमास् तरराष् ट हे्ीडय

िीरपुर: मबहारी िुिलिानाे्की गरीब बस्​्ी

बांग्ला राज िे् मबहारी दुद्ाशा ढाका से लौटकर अकभषेक रंजन कसंह

भा

रत हवभाजन के समय हबिार और पूव़ी उत़​़र प़​़देश से लाखो़मुसलमान मजिब के नाम पर बने देश पाहकस़​़ान के पूव़ी हिस़से मे़गये. चौबीस वष़ो़​़तक इन लोगो़को यिां कोई परेशानी निी़ िुई, लेहकन 1971 मे़ बांग़लादेश बनने के बाद बंगाहलयो़ की नजरो़ मे़ हबिारी मुसलमानो़ की पिचान एक गद़​़ार के ऱप मे़ िोने लगी. अपने िी देश मे़ उनकी िालत शरणाह़थदयो़ जैसी िो गयी. नौ साल पिले बांग़लादेश िाईकोट़द के आदेश पर उऩिे़ नागहरकता हमली, लेहकन दुश़ाहरयां अब भी बरकरार िै. दरअसल बांगल ़ ादेश मे़रिने वाले उद़दूभाषी हबिारी मुसलमान दशको़ से गैर बराबरी के हशकार रिे िै़. िालांहक, िालात अब पिले से कुछ बेितर िै, लेहकन देश की चुनावी राजनीहत

16 शुक्वार | 1 से 15 मई 2017

और सरकारी नौकहरयो़मे़इनकी भागीदारी अब भी शूनय़ िै. इन लोगो़को बांगल ़ ादेश नेशनहलस़ट पाट़​़ी और जमात-ए-इस़लामी का समथ़दक माना जाता िै. यिां इऩिे़ इसहलए भी हिकारत भरी हनगािो़ से देखा जाता िै, क़यो़हक ये लोग पाहकस़​़ान के हवभाजन के हखलाफ थे और इऩिो़ने वष़द1971 के मुब़कत युद़मे़पाहकस़​़ानी फौज का साथ हदया था. राजधानी ढाका मे़ हबिारी मुसलमानो़की कुल आबादी 1,25,000 िजार िै. जबहक पूरे बांग़लादेश मे़इनकी तादाद 7,50000 िै. 1947 के भारत हवभाजन के समय तकरीबन 14 लाख उद़दूभाषी मुसलमान पूव़ी पाहकस़​़ान (अब बांग़लादेश) गये थे. विां जाने वालो़ मे़ ज़यादातर हबिार और पूव़ी उत़​़र प़​़देश के मुसलमान थे. िालांहक इनमे़ काफी लोग कुछ िी हदनो़ बाद वापस भी लौट आए, क़यो़हक विां की संस़कृहत और जबान उऩिे़रास निी़ आयी. इनमे़ से करीब 1,70,000 लोग बाद मे़पाहकस़​़ान चले गये. वष़​़ो़इंतजार के बाद

आजादी के साढ्ेचार दशक बाद भी बांग्लादेश की आबादी का एक रहस्सा अपनी जबान के कारर हमदद्​्ी की आस मे्ही जी रहा है. इस बीच उसका दद्ष और गहरा होता गया है. 10 जनवरी 1993 मे़बांग़लादेश से 325 लोगो़ का एक जत़था पाहकस़​़ान के शिर कराची जाकर बस गया. ये सभी लोग यि सोचकर पाहकस़​़ान गये थे हक यिां उऩिे़ खुशनुमा हजंदगी हमलेगी, लेहकन विां उनकी हजंदगी मुिाहजरो़ से भी बदतर िो गयी. इन लोगो़ को पाहकस़​़ानी खुले हदल से स़वीकार निी़कर रिे िै़. वापस बांग़लादेश जा निी़सकते और भारत आने का कोई सवाल िी निी़िै. सत़​़र के दशक मे़ मुब़कत युद़ के दौरान हबिारी मुसलमानो़ ने पाहकस़​़ान का समथ़दन हकया और बांग़लादेश बनने के बाद संपऩन लोग पाहकस़​़ान चले गये. गरीबो़ के हलए पाहकस़​़ान जाना मुमहकन निी़ था, नतीजतन वे शरणाह़थदयो़ की माहनंद आज भी बांग़लादेश मे़ रि रिे िै़. हबिारी मुसलमानो़ ने भले िी पाहकस़​़ान का समथ़दन हकया िो, लेहकन पाहकस़​़ान ने कभी भी इन लोगो़के प़​़हत िमदद़​़ी निी़हदखाई. मोिम़मदपुर कै़प की रिने वाली सायदा


सुल़ताना बेगम बताती िै़ हक उनके चाचा मुश़ताक अली अपनी बीबी-बच़​़ो़ के साथ कराची गये, लेहकन विां उनकी हजंदगी जिऩनमु बन गयी. यि किानी हसफ़फएक मुशत़ ाक की निी़ िै, बब़लक बांग़लादेश से पाहकस़​़ान गये उन तमाम लोगो़की िै हजऩिो़ने विां रिने का फैसला हकया. कुछ साल पिले उनका इंतकाल िो गया. वि जब भी फोन करते थे, तो एक िी बात किते थे इस हजंदगी से बेितर िै हक मौत आ जाये. जाने वालो़ ने सोचा था हक विां उऩिे़ बेितर हजंदगी हमलेगी, लेहकन उनकी िालत मुिाहजरो़ से भी बदतर िो गयी. कराची मे़ भी इनकी हजंदगी बद से बदतर िै. पाहकस़​़ान मे़अल़ताफ िुसैन की अगुवाई वाली मुत़हिदा कौमी मूवमे़ट को छोड़कर दीगर हसयासी पाह़टियो़ को हबिारी मुसलमानो़ की कोई हचंता निी़ िै. मीरपुर कै़प मे़रिने वाली हसतारा परवीन ढाका मे़गारमे़ट़स फैकट़ ़ी मे़काम करती िै.़ भारत हवभाजन के वक़त उनका पहरवार हबिार के मुंगेर से ढाका आकर बसा था. बांग़लादेश बनने से पिले हबिारी मुसलमानो़की िालत अच़छी थी. लेहकन बाद मे़ िालात खराब िो गये. बांग़लादेश के बंगाली मुसलमान उऩिे़देशद़​़ोिी समझते िै़. जबहक यि पूरी सच़​़ाई निी़िै. ढाका मे़ हबिारी मुसलमानो़ और बंगाली मुसलमानो़ के बीच अक़सर खूनी संघष़द की घटनाएं िोती िै़. कभी त़योिार के नाम पर तो कभी अपनी रवायत के नाम पर. इन घटनाओ़ मे़अक़सर कई हजंदहगयां जाया िोती िै़. िताित

मबहारी िुस्सलि: कब मिले्गे हक िोने वाले ज़यादातर हबिारी मुसलमान िी िोते िै.़ साल 2014 की बात करे,़ मीरपुर कैप़ मे़एक हबिारी मुसलमान पहरवार को घर मे़ बंद कर हजंदा जला हदया गया. इस घटना मे़नौ लोगो़की मौत िो गयी थी. हववाद शब-ए-बारात के मौके पर पटाखे फोड़ने को लेकर शुऱिुई थी. देखते िी देखते यि खूनी संघष़द मे़ तल़दील िो गया. सामाहजक काय़दकत़ाद जैनब खातून बताती िै़, ढाका मे़ हबिारी मुसलमानो़ को हनशाना बनाने के हलए एक बिाना चाहिये. उनके मुताहबक, स़थानीय पुहलस-प़​़शासन का रवैया भी हबिारी मुसलमानो़के प़​़हत सकारात़मक निी़िै. बांग़लादेश मे़ रिने वाले उद़दू भाषी हबिारी मुसलमानो़ की समस़या यिी़ खत़म निी़ िोती. मुल़क मे़ कई दशको़ से रिने के बावजूद उऩिे़ हिकारत भरी हनगािो़ से देखा जाता िै. सुऩनी मुसलमान िोने के बावजूद उद़दू भाहषयो़ से बंगाली मुसलमान शाहदयां निी़करते. दरअसल गैर हबिारी मुसलमानो़ की नजर मे़ हबिारी मुसलमान मुल़क के गद़​़ार िै़. इसहलए उनसे हकसी तरि का संबंध रखना वि उहचत निी़ मानते. ईरानी कै़प मे़ रिने वाली रौशन आरा बताती िै़ हक नयी पीढ़ी की सोच मे़ थोड़ी तल़दीली जऱर आयी िै, लेहकन एक-दो शाहदयो़ को छोड़दे़तो हबिारी मुसलमानो़से कोई रोटीबेटी का संबंध रखना निी़चािता. उद़दू स़पीहकंग पीपुल़स यूथ हरिैहवहलटेशन मूवमे़ट (यूएसपीयूआरएम) के अध़यक़​़ सदाकत खान कई वष़​़ो़ से उद़दू भाषी हबिारी

मुसलमानो़की अहधकारो़की लड़ाई लड़रिे िै.़ हबिारी मुसलमानो़ की नागहरकता और मताहधकार का िक हमले इस बाबत उऩिो़ने बांग़लादेश िाईकोट़द मे़ एक हरट पेटीशन 10129/2007 सदाकत खान वगैरि बनाम बांग़लादेश सरकार-चुनाव आयोग वगैरि दायर हकया था. साल 2008 मे़ िाईकोट़द ने ऐहतिाहसक फैसला सुनाते िुए हबिारी मुसलमानो़ को बांग़लादेश की नागहरकता और वोहटंग राइट देने का आदेश हदया. अदालत ने यि भी किा हक हजन लोगो़का जऩम 1971 के बाद िुआ िै, वे सभी बांगल ़ ादेशी नागहरक िै़और देश की संसाधनो़पर उनका बराबर िक़़िै. उद़दू स़पीहकंग पीपुल़स यूथ हरिैहवहलटेशन मूवमे़ट (यूएसपीयूआरएम) के अध़यक़​़ सदाकत खान ने किा, हबिारी मुसलमानो़के हलए अदालत का यि फैसला बेिद अिम िै. बांग़लादेश की नागहरकता हमलने के बाद पिली बार 2009 के चुनाव मे़ हबिारी मुसलमानो़ ने वोट हदया था. िमारी लड़ाई यिी़ खत़म निी़ िोती, क़यो़हक हबिारी मुसलमानो़ से जुड़े कई ऐसे मुद़े िै़, जो जेरे बिस िै़. सन 1971 की जंग मे़ पाहकस़​़ान की िार और बांग़लादेश बनने के बाद बंगाहलयो़ का आक़​़ोश हबिारी मुसलमानो़पर टूट पड़ा. लाखो़ हबिारी मुसलमानो़ को अपने घरो़ और नौकरी से बेदखल िोना पड़ा. उस बब़दर घटना को याद करते िुए यूएसपीयूआरएम के मिासहचव शाहिद अली बबलू बताते िै़, नया मुल़क बनने के बाद हबिारी मुसलमानो़ के घरो़ की तलाशी लेने का फरमान सुनाया गया. पुहलस की मौजूदगी मे़ लोगो़ को घरो़ से बािर एक खुले मैदान मे़ बैठा हदया गया. तलाशी के नाम पर बुजुग़ो़ और महिलाओ़ के साथ गलत व़यविार हकया गया. घरो़मे़लूटपाट भी की गयी और िम अपने पके़ घरो़ से बेदखल िोकर खुले आसमान के नीचे आ गये. साल 1976 मे़ रेड क़​़ॉस सोसायटी के सियोग से ढाका मे़ हबिारी मुसलमानो़के हलए कैप़ बनाये गये. लेहकन चार दशक बाद भी िमे़ कै़पो़ मे़ रिना पड़ रिा िै. साल 1974 मे़ भारत, पाहकस़​़ान और बांगल ़ ादेश के बीच एक समझौता िुआ था. इसके तित पाहकस़​़ान उद़दू भाषी इन हबिारी मुसलमानो़को पाहकस़​़ान मे़बसाने पर सिमत िो गया था. लेहकन 1,26000 लोगो़ को छोड़कर बाकी लोग आज भी बांग़लादेश मे़ िी िै़. शाहिद अली बबलू के मुताहबक, अब पाहकस़​़ान जाने का कोई सवाल िी निी़ िै, क़यो़हक विां मौजूद मुिाहजरो़और बांग़लादेश से गये लोगो़की बदतर िालत हकसी से छुपी निी़ िै. अब िमारा मुल़क यिी िै और यिी़की हमट़​़ी मे़दफन िोना िै. बांगल ़ ादेश मे़मुबक़ त युद़के दौरान 10 लाख शुक्वार | 1 से 15 मई 2017 17


अंतरराष्​्ीय

ढाका िे्पामकस्​्ानी शरणाम्थायो्की बस्​्ी: िुमवधाओ्का अभाव

लोग मारे गये थे. करीब दो लाख महिलाओ़के साथ पाहकस़​़ानी फौज और रजाकरो़ ने बलात़कार हकया था. हबिारी मुसलमानो़ मे़ ज़यादातर लोग पाहकस़​़ानी फौज का साथ दे रिे थे. लेहकन लाखो़ लोग ऐसे भी थे, जो अपनी जान बचाने की कोहशशो़मे़जुटे थे. सामाहजक काय़दकत़ाद मसूद खान बताते िै़, जब मुब़कत वाहिनी की ओर से हबिारी मुसलमानो़ को हनशाना बनाया जा रिा था. उस वक़त अपनी जान बचाने के हलए उन लोगो़ने भारतीय फौज से गुिार लगाई. चूंहक भारतीय फौज को उद़दू समझने मे़ कोई हदक़​़त निी़ थी, इसहलए हबिारी मुसलमान अपनी पीड़ा बताने मे़ कामयाब रिे. भारतीय फौज भी इस बात से वाहकफ थी हक बांग़लादेश के सारे हबिारी मुसलमान पाहकस़​़ान के साथ निी़िै़. इसहलए बेगुनािो़ के साथ कोई जुल़म न िो इसके हलए उऩिो़ने हबिारी मुसलमानो़ को संरक़​़ण देकर मुब़कत वाहिनी के लड़ाको़ से बचाया. हबिारी मुसलमान इसके हलए आज भी भारतीय फौज के शुक़गुजार िै़. बांग़लादेश के हबिारी मुसलमानो़ को पाहकस़​़ान का समथ़दक माना जाता िै, लेहकन कई लोग इन आरोपो़को सिी निी़मानते. उद़दू भाहषयो़के हितो़के हलए संघष़रद त सदाकत खान बताते िै़, यि सिी िै हक ज़यादातर हबिारी मुसलमान पाहकस़​़ान के बंटवारे के पक़​़मे़निी़ थे. लेहकन कई काफी संख़या मे़ वैसे हबिारी 18 शुक्वार | 1 से 15 मई 2017

मुसलमान भी थे, जो मुब़कत वाहिनी मे़ शाहमल िोकर पाहकस़​़ानी फौज का मुकाबला कर रिे थे. आम लोगो़ की धारणा िै हक हबिारी मुसलमानो़ने पाहकस़​़ानी सेना का साथ हदया, लेहकन कोई यि निी़किता िै हक बंगाहलयो़का एक बड़ा हिस़सा ऐसा भी था, जो मुब़कत युद़के हखलाफ रिा. उऩिो़ने पाहकस़​़ान का साथ हदया, लेहकन तोिमत िम पर िै. युद़अपराध मे़हजन लोगो़ को फांसी दी गयी, उनमे़ एक भी हबिारी मुसलमान निी़ था और वे सभी बंगाली मुसलमान थे. जमात-ए-इस़लामी के अध़यक़​़ मोहतउर रिमान हनजामी बंगाली मुसलमान थे न हक हबिारी. इसके बावजूद िमे़ पाहकस़​़ान परस़​़किा जाता िै. सैयद जुबैर अिमद मीरपुर मे़ उद़दू भाषी मुसलमानो़ के हलए कानूनी लड़ाई लड़ते िै़. उऩिो़ने बताया हक बांग़लादेश बनने के बाद बंगबंधु शेख मुजीबुऱदिमान ढाका के रेसकोस़द मैदान मे़एक हवशाल जनसभा को संबोहधत कर रिे थे. मुब़कत युद़ के दौरान हजन हबिारी मुसलमानो़ ने पाहकस़​़ान का साथ हदया था. उनके बारे मे़उनका किना था हक जो बाते़बीत गयी िै,़ उसे भुला देना चाहिये. पाहकस़​़ान का साथ देने वालो़ को उऩिो़ने आम माफी देने का ऐलान हकया. शेख मुजीब ने किा था, हबिारी और बंगाली दोनो़अब बांगल ़ ादेशी िै़और पुरानी बातो़ को याद करने से तकलीफे़ बढ़ती िै़. इसहलए दोनो़कौम एक साथ हमलकर बांगल ़ ादेश

की तरक़​़ी मे़ अपना योगदान दे़. उनकी इस अपील से हबिारी मुसलमानो़को काफी हिम़मत हमली और उऩिे़ अपनी गलती का एिसास भी िुआ. बदहकस़मती से उनकी ित़या ऐसे वक़त िुई, जब बांगल ़ ादेश के हबिारी मुसलमानो़को उनकी जऱरत थी. उनके निी़ रिने से िम अनाथ िो गये. कोई सरकार िमारी सुनने वाली निी़ थी. नतीजतन िमारी हजंदगी मे़ कोई बदलाव निी़ आया. बांग़लादेश िाईकोट़द के आदेश के बाद उद़दूभाषी हबिारी मुसलमानो़को नागहरकता और वोहटंग अहधकार भले िी हमल गया िो लेहकन हसयासत मे़उनकी नुमांइदगी अब भी हसफर िै. समूचे बांग़लादेश मे़ साढे सात लाख हबिारी मुसलमान िै.़ लेहकन देश के चुनावी इहतिास मे़ हसफ़फएक हबिारी मुसलमान को सांसद बनने का मौका हमला. सैदपुर की हनलफामारी सीट से जातीय पाट़​़ी के उम़मीदवार चुनाव जीतने मे़ सफल रिे. अमूमन हबिारी मुसलमानो के बारे मे़ किा जाता िै हक वे बांग़लादेश नेशनहलस़ट पाट़​़ी या हफर जमात-ए-इस़लामी के समथ़दक िै़. इसे खाहरज करते िुए मोिम़मद शमशाद बताते िै़ हक मौजूदा समय मे़ पचास फीसद हबिारी मुसलमान वामी लीग के साथ िै़ और पचास फीसद बीएनपी के साथ िै़. देश की आबादी का एक बड़ा तबका आज भी उम़मीद मे़िै हक उसे मुल़क की मुख़य धारा मे़ n शाहमल िोने का अवसर हमलेगा.


मुद्ा

सेल्फ्ी से एक नयी शुर्आत एक नौजवान नवीन राय उत्​्र प्​्देश के ग्​्ामीर अंचल को अपने नये सोच और तकनीक की मदद से एक नयी राह पर ले जा रहे है्.

नवीन राय ने बष़द2016 मे़बीटेक की पढ़ाई पूरी की और हमशन माग़ददश़दन को िी अपने जीवन का हमशन बना हलया और एक ऐसे जनपद मे़काय़दप़​़ारंभ हकया जो गंगा के हकनारे, प़​़हसद़​़ काशी नगरी से 30 हकमी की दूरी पर ब़सथत और देश के पूव़दप़​़धानमंत़ी लाल बिादुर शास़​़ी एवं वत़मद ान मे़गृिमंत़ी राजनाथ हसंि का गृि जनपद चंदौली िै. चंदौली को वष़द1997 मे़ वाराणसी से अलग हकया गया. कम़दनाशा नदी इस जनपद और हबिार राज़य के मध़य की हवभाजन रेखा िै. यि हजला नक़सल प़​़भाहवत हजला िै और इसकी कुल आबादी जनगणना 2011 के अनुसार लगभग 20 लाख िै. इस हजले को 'धान का कटोरा' भी किा जाता िै. बावजूद इसके 2006 के पंचायती राज मंत़ालय

समय पर िौसला देते रिे. नवीन ने बताया हक सबसे पिले वि गांव गांव जाकर स़थानीय लोगो़, युवाओ़, अहधकाहरयो़आहद से हमला. वि रात मे़ गांव मे़ हकसी के घर सो जाता था और हकसी के घर भोजन कर लेता था. इसके बाद उसने स़क्लो़ मे़ जाकर बच़​़ो़ को पढ़ाना शुऱ हकया तथा उनको रोजगार के हटप़स देता था. कुछ समय बाद उसने स़थानीय प़​़शासन के सियोग से चऩदौली के आईटीआई कालेज मे़ 12 जनवरी युवा हदवस के अवसर पर रोजगार मेले का आयोजन करवाया हजसमे़प़​़त़येक गांव से लडक़ो को फाम़दभरवाकर बुलाया गया था. रोजगार मेले मे़ कुल 35 युवाओ़ को नौकरी हमली. इस प़​़कार वि नौगढ़के युवाओ़के हलये प़​़ेरणास़​़ोत बन गया. इसके बाद नवीन राय ने

के हरपोट़द के अनुसार यि देश के सबसे हपछड़े 250 हजलो़मे़से एक था. नवीन राय ने इसी हजले के नौगढ़तिसील को चुना जो बष़द 2016 मे़ िी तिसील बना. इस तिसील मे़ कुल 130 राजस़व गांव िै़ और 21 िजार िेक़टेयर का क़​़ेत़फल िै. यि नक़सल प़​़भाहवत वन क़​़ेत़ िै, यिां अहशक़​़ा, बेराजगारी चरम पर िै, स़क्ल के नाम पर यिां 15 हकमी के बीच केवल एक राजकीय इंटर कालेज िै. नवीन इस हजले मे़ सव़दप़थम युवा हजलाहधकारी कुमार प़​़शांत से मुलाकात की और इस क़​़ेत़मे़काय़​़करने की मंशा जाहिर की. कुमार प़​़शांत और नवीन की मुलाकात गोरखपुर मे़ िी िो चुकी थी और दोनो़ नवोदय हवद़​़ालय के छात़​़ तथा इंजीनीयर िै. कुमार प़​़शांत जिां आईआईटी कानपुर के छात़​़थे विी नवीन गोरखपुर मदन मोिन मालवीय प़​़ौद़​़ोहगकी हवश़​़हवद़​़ालय का छात़​़. कुमार प़​़शांत की इस हजले मे़हजलाहधकारी के ऱप मे़ पिली पोब़सटंग िै. हजलाहधकारी कुमार प़​़शांत ने नवीन राय को काय़दकरने के हलये पूरा समथ़दन और समय

िेल्फी िे उपस्सथमत: एक नया मशक्​्ा प्​्योग उऩिी युवाओ़के माध़यम से प़त़य़ क े गांव मे़स़कल ् प़​़बऩधन सहमहत के हनगरानी और बेितर हशक़​़ा व़यवस़था के हलये एक सहमहत का गठन हकया जो स़क्ल के पठन पाठन और हशक़​़ा व़यवस़था का देखरेख करती थी. नवीन राय और कुमार प़​़शांत ने हमलकर हशक़​़ा व़यवस़था को ठीक करने के हलये तकनीक का सिारा हलया और 'एटे़डे़श हवद सेल़फी' अनोखे काय़दक़म की शुऱआत की. इसमे़ हशक़​़को़ की उपब़सथहत के हलये अपना सेल़फी हखचकर व़िाट़सअप पर भेजना िोता िै. यि काय़दक़म पूरे हजले मे़चच़ाद का हवषय बना िुआ िै. काय़क द म़ की हनगरानी खुद कुमार प़श ़ ांत कर रिे िै. बेहसक हशक़​़ा अहधकारी भी भरपूर सियोग प़​़दान कर रिे िै. एक हवकास खंड मे़ सफलता के बाद दूसरे हवकास खंडो़मे़भी यि 'एटे़डे़श हवद सेल़फी' काय़दक़म शुऱिो रिा िै. 'एटे़डे़श हवद सेल़फी' काय़दक़म समऩवयक नवीन राय ने बताया हक सोमवार से इस ग़​़ुप मे़ फोटो आने लगे िै हजससे हक यि सुहनह़​़ित िो पा रिा िै़हक सभी अध़यापक समय पर हवद़​़ालय n रोजना पिुंचे.

शुक्वार ब्यूरो

धुहनकता की िोड़वाले इस युग मे़भी कुछ लोग िै़ जो समाज मे़ असमानता और अहशक़​़ा से हचंहतत िोकर न केवल अपना जीवन समह़पदत कर देते िै बब़लक अपने जोश और जुनून से समाज मे़ बदलाव भी ला रिे िै़. नवीन राय ऐसे िी व़यब़कत िै.़ गोरखपुर के मदन मोिन मालवीय प़​़ौद़​़ोहगकी हवश़​़हवद़​़ालय से बीटेक करने वाले नवीन ने युवाओ़के माग़दद श़नद और सामाहजक बदलाव के हलए हमशन माग़दद श़नद शुऱहकया. नवीन राय ने गोरखपुर मे़ पढ़ाई के दौरान िी कंप़यूटर इंजीनीयर सत़य प़​़काश और अहमत अग़​़िहर के साथ हमलकर तत़कालीन हजलाहधकारी रंजन कुमार और मुखय़ हवकास अहधकारी कुमार प़श ़ ांत के माग़दद श़नद मे़ 100 गरीब बच़​़ो़ को अंग़ेजी और कहरयर काउऩसहलंग िेतु 'ऱरल यूथ लीडरशीप प़​़ोग़​़ाम' की शुऱआत की. 'ऱरल यूथ लीडरशीप प़​़ोग़​़ाम' के सफलता के बाद नवीन राय ने गोरखपुर देवहरया रोड पर ब़सथत मोतीराम अड़​़ा गांव मे़ युवाओ़ और महिलाओ़को जागऱक एवं उनके माग़ददश़दन के हलये 'हमशन माग़ददश़दन' की शुऱआत गोरखपुर के तत़कलीन कमीश़नर पी. गुऱवार प़​़साद के माध़यम से हकया. इस काय़दक़म के दौरान गांव मे़ कै़प कर प़​़ाथहमक और जूनहयर स़क्ल के बच़​़ो़ का काउंसहलंग हकया गया और उनके पोषण के हलये ऩयूट़ीशन हवलेज का माडल अपनाया गया, साथ िी साथ गांव के महिलाओ़ को भी उनके स़वास़थ़य के प़​़हत व़यापक स़​़र पर प़​़हशक़​़ण हदया गया.

शुक्वार | 1 से 15 मई 2017 19


उत् मास्​्रटाखंहेड

उत्​्राखंड मे्तमाम प्​्शासरनक और राजनीरतक रवफलता के बीच उच्​्अदालत ने बालू के खनन पर रोक लगाकर पय्ाषवरर को नये रसरे से सहारा रदया है. फ्जल ् इमाम मल्ललक

य़ावद रण को लेकर सरकारो़के पास योजनाये़ बिुत िै़और वि इसका प़च ़ ार भी जोरशोर से करती िै. लेहकन सच तो यि िै हक पय़ावद रण को बचाने और उसे बनाये रखने के हलए सरकारे़कभी गंभीर निी़ रिी िै.़ नारे जऱर लगाये िै.़ सभासेहमनार मे़बड़ी-बड़ी बाते़भी िोती िै.़ मंत़ी-संतरी तस़वीरे़भी हखंचवाते रिे िै़और पय़ावद रण को लेकर हचंता भी हदखाते िै़लेहकन उनकी हचंता जमीन पर कम िी उतरती िै. उत़ऱ ाखंड इसका सबूत िै. पय़ावद रण की ब़सथहत लगातार खराब िोती जा रिी िै और इसे लेकर सरकार मे़हकसी तरि की बेचनै ी निी़ िै. िालांहक मंत़ी से लेकर बाबुओ़ तक को पता िै हक िालात बेितर निी़ िै और प़द़ श े मे़ पय़ावद रण को लेकर हचंता निी़की गई तो इसके नतीज गंभीर िो़ग.े लेहकन सब कुछ जानते िुए भी सब चुप िै़ क़यो़हक संसाधनो़ के दोिन मे़ इनके िाथ भी कम काले निी़िै.़ िालांहक अदालतो़का ऱख पय़ावद रण संरक़ण ़ को लेकर सकारात़मक िै. उसने कई फैसले ऐसे हदये िै़ जो एक नजीर िै़ लेहकन इन फैसलो़ पर अमल तो सरकार और बाबुओ़को िी कराना िै इसहलए संशय िोता िै. लेहकन अदालत इस मामले मे़गंभीर िै और उसने पय़ावद रण संरक़ण ़ से जुड़ेमुद़ो़पर हचंता भी जतायी िै. गंगा-यमुना नहदयो़को व़यब़कत का दज़ाद देने के फैसले ने पूरे देश मे़नजीर कायम की िै. इसके अलावा नैनीताल सहित दूसरी झीलो़ के दो हकलोमीटर दायरे को इको सेस ़ हे टव जोन घोहषत करना, कचरो़के हनपटारा, जंगलो़मे़आग लगने और वऩय जीवो़की सुरक़​़ा को लेकर अदालतो़के फैसले ने पय़ावद रणहवदो़की उम़मीदो़को बढ़ाया िै. यि सिी िै हक इन फैसलो़ने मीहडया मे़कम िी जगि पायी. ठीक इसी तरि एक अदालत ने िाल िी मे़ एक और बड़ा फैसला सुनाया िै लेहकन इसकी धमक भी लोगो़ने निी़सुनी. पूरे उत़ऱ ाखंड मे़सभी हनजी, राजस़व और वन क़त़े ़ो़मे़अगले चार मिीनो़तक खनन बंद करने का आदेश अदालत ने हदया िै. हदलचस़प यि िै हक ये सभी हनण़यद हवहभऩन जनहित याहचकाओ़पर ऩयायमूहत़ द राजीव शम़ाद की पीठ ने हदये िै,़ हजनमे़ऩयायमूहत़ द आलोक 20 शुक्वार | 1 से 15 मई 2017

उत्​्राखंड िे्बालू का खनन: खुलेआि लूटपाट

खनन पर रोक िे

हसंि या सुधांशु धूहलया उनके सियोगी थे. एक तरफ जब सत़​़ा और व़यवस़था पय़ावद रण संरक़ण ़ को लेकर गंभीर निी़िै और कानून को ताक पर रख कर उद़​़ोगपहतयो़की मदद की जा रिी िै, ऐसे समय मे़अदालत ने पय़ावद रण के मुद़ेको गंभीरता से लेकर नेताओ़व अफसरो़पर नकेल कसने की कोहशश की िै. गत 28 माच़द को ऩयायमूहत़ द राजीव शम़ाद व ऩयायमूहत़ द सुधांशु धूहलया की खंडपीठ ने उत़ऱ ाखंड मे़ चार मिीने तक रोक लगाने का मित़व़ पूणद़फैसला दोनो़जजो़ने जनहित याहचका पर यि फैसला सुनाया िै. जाहिर िै हक इससे सत़​़ा और अफसर सऩन िै.़ बागेशऱ हजले मे़खह़डया माहफया की मनमानी से परेशान नवीन चऩद़पंत और दूसरे लोगो़ने अदालत से जनहित याहचका के जहरए गुिार लगाई थी. याहचका के मित़व़ को समझते िुए दोनो़ माननीय ऩयायधीशो़ ने इसकी सीमा हसफ़फएक हजले तक सीहमत निी़रखी और पूरे प़द़ श े के खनन कामो़ की पड़ताल करने के साथ-साथ एक काय़पद ण ़ ाली बनाने के आदेश हदये. देखा जाए तो यि काम सरकरा को करना था. लेहकन सरकारे़खनन माहफया पर रोक लगाने मे़ हदलचस़पी कम िी हदखाती रिी िै. इसहलए सरकार ने खनन माहफया पर न तो लगाम लगाने की कोहशश की और न िी हकसी तरि का काय़पद ण ़ ाली बनाने पर ध़यान हदया. िालांहक प़द़ श े मे़किने को

खनन नीहत िै लेहकन इस पर अमल फाइलो़मे़िी िोता िै. इसहलए जब सरकार ने इस मामले मे़ हदलचस़पी निी़ हदखायी तो अदालत को दखल देना पड़ा. उत़ऱ ाखंड मे़पिाड़ी नहदयां िै,़ हजसकी वजि से मैदानी क़त़े ़ो़मे़भारी मात़​़ा मे़रेता, बजरी, बोल़डर जमा िो जाते िै.़ िहरद़​़ार मे़गंगा, िल़द़ानी की गौला, रामनगर की कोसी और दाबका मे़ अवैध खनन िोता रिा िै. इन नहदयो़मे़सालो़तक हनजी ठेको़के आधार पर खनन हकया जाता रिा लेहकन उत़ऱ ाखंड बनने के बाद प़द़ श े की सरकार ने 2002 मे़माहफया के हखलाफ काऱवद ाई करते िुए राज़य मे़वन नीहत बनायी और सभी वन क़त़े ़ वन हनगम व राजस़व क़त़े ़कुमाऊं मंडल हवकास हनगम और गढ़वाल मंडल हवकास हनगम के अधीन दे हदये गये. सरकार ने यि नीहत दरअसल सुप़ीम कोट़दके हनद़श ़े पर बनायी थी. लेहकन बाद की सरकारो़ने इस नीहत को बदलने की भरसक कोहशश की ताहक हफर से इन इलाको़को हनजी ठेकदे ारो़ या माहफया के िवाले हकए जा सके. इसमे़ उऩिे़ कुछ िद तक कामयाबी हमली भी. लेहकन सरकार नीहत बदलने मे़ कामयाबा निी़ िुई. बावजूद इसके सरकार की नाक के नीचे माहफया खुल कर अवैध खनन करते रिे. हपछली सरकार के तो दो नेता पर इन नहदयो़से कमाई के आरोप लगते रिे. लेहकन सरकार जानबूझ कर आंखे़मूदं े रिी और नहदयो़से अवैध खनन जारी


नैनीताल िे्हाईकोट्ा: िाहि का फैिला

बढ्ी उम्िीद

बागेशऱ और उसका आसपास खनन माहफया ने रिा. देिरादून की नहदयो़ और िहरद़​़ार मे़ गंगा बाकायदा कंपना बना कर स़थानीय लोगो़के नाम सहित दूसरी नहदयो़मे़भी अवैध खनन का काम पर बेतरि लूट मचाई िै. दूसरे इलाको़मे़नहदयो़ बेरोकटोक जारी िै. अवैध खनन की वजि से िी के आसपास की हनजी भूहम के बि जाने पर विां मातृ सदन के स़वामी हनगमानंद को अनशन के पर हनजी पट़​़ेमंजरू करवा कर नदी के मे़मनमाने बाद अपनी जान तक देनी पड़ी व स़वामी हशवानंद तरीके से खनन कर लेना आम बात िो गई िै. लंबे समय से संघष़दकर रिे िै.़ नैनीताल के नजदीक गौला मे़ रानीबाग के पिाड़ो़ मे़ हजन इलाको़ मे़ खह़डया िै, विां अमृतपुर और बेतालघाट मे़कोसी और िहरद़​़ार मे़ खनन माहफया ने अपना अलग साम़​़ाज़य स़थाहपत गंगा मे़खनन इसके ऐसे उदािरण िै,़ हजऩिे़वन कर रखा िै. सरकार सब कुछ जानती िै और हवभाग और प़श ़ ासन पूरी तरि जानता िै पर अफसर भी लेहकन उन पर काऱवद ाई की बजाय अनजान बना िै. कई इलाके ऐसे िै,़ जिां पर कोई सरकारे़अब तक उनके साथ खड़नजर आई िै. न्यायिूम्ता राजीव शि्ा​ा और िुधांशु धूमलया: आिखरकार लगाि

पट़​़ा िी निी़िै पर खनन िो रिा िै. रातीघाट की घूना नदी, कोसी के पिाड़ी क़त़े ,़ बौर, भाकड़ा, हनिाल वगैरि मे़इसे देखा जा सकता िै. इसी तरि गौला, कोसी और दाबका मे़हजन इलाको़मे़खनन की कोई मंजरू ी निी़िै, विां नहदयो़का दोिन िो रिा िै और प़श ़ ासन खामोश तमाशाई बना अवैध खनन िोने दे रिा िै. अदालत ने पाया हक याहचका बागेशऱ के एक हवशेष क़त़े ़मे़माहफयाहगरी के हखलाफ थी, पर खनन तो पूरे उत़ऱ ाखंड मे़िो रिी िै और इससे पय़ावद रण को काफी नुकसान िो रिा िै. अपने फैसले मे़अदालत ने साफ हकया िै हक अभी िमे़ ‘और तथ़यो़’ की जऱरत िै, ताहक यि तय हकया हकया जा सके हक क़या वत़मद ान व भहवष़य मे़खनन गहतहवहधयो़की इजाजत दी जाये या निी़. इसके हलए ऩयायालय ने एक उच़​़अहधकार प़​़ाप़त सहमहत का गठन हकया िै। इसमे़केद़ ़ीय वन एवं पय़ावद रण मंत़ालय के सहचव या उनके द़​़ारा नाहमत अहधकारी, जो अहतहरक़त सहचव के दज़​़ेसे कम का न िो, को सहमहत का अध़यक़​़बनाया िै. इस सहमहत का सहचव राजेनद़ ़मिाजन प़म़ ख ु , सहचव वन व नोडल अहधकारी सैह़थल पांहडयन को बनाया गया िै. यि भी किा गया िै हक काय़दपूणद़िोने तक इन अहधकाहरयो़का तबादला भी, हबना ऩयायालय की अनुमहत के निी़हकया जाये. इनके अहतहरक़त वन अनुसध ं ान संसथ ़ ान, देिरादून, हनदेशक वाहडया इंबस़ टट़ट़ू , मिाहनदेशक भूगभ़दसव़​़ेदेिरादून इसके सदस़य िो़गे व सहमहत हकऩिी़दो हवशेषज़​़ो़और को चुन सकती िै. इस फैसले ने हफलिाल तो खनन माहफया को परशानी मे़डाल हदया िै. अदालत ने इस सहमहत के काय़क द त़े ़व दाहयत़व का भी हनध़ाहद रण कर हदया िै, हजसके मुताहबक. क़या राज़य की संवदे नशील भू संरचना व स़थानीय जनता पर इसके दुषप़ भ़ ाव को देखते िुए क़या खनन काय़​़ो़ को पूणद़ या आंहशक ऱप से बंद कर देना चाहिये और वत़मद ान खनन गहतहवहधयो़को ’सतत हवकास’ के आधार पर जारी रखा जाये या इन पर ’सावधानी की कठोर शत़’़े लगायी जाये.़ क़या समुद़सति से 1000 फीट के ऊपर के इलाको़मे़ खनन प़ह़तबंहधत हकया जाये? सहमहत हवशेष संसह़ुतयां देगी हक क़या खनन हवदोिन का चरम हबंदु आ गया िै और सहमहत खनन काय़​़ो़ को ’पय़ावद रण की सीमाओ़’ को ध़यान मे़ रखते िुए अगले 50 सालो़के हलए ल़लू ह़​़पटं तैयार करने पर सहमहत को हवचार करने को किा गया िै. इस फैसले को भी ऐहतिाहसक बताया जा रिा िै क़यो़हक इससे खनन से उत़ऱ ाखंड मे़पय़ावद रण को जो खतरा िै उसे रोकने मे़मदद हमलेगी. अब सहमहत को यि हनध़ाहद रत करना िै हक जो खहनज, उप खहनजो़ के भंडार िै,़ पय़ावद रण को प़भ़ ाहवत हकये हबना अनंत काल तक उनका इसी तरि दोिन हकया जाता रिेगा या इन पर अभी से हनयंतण ़ लगाया जाये. n शुक्वार | 1 से 15 मई 2017 21


ददल्ली

अरमवंद केजरीवाल और िनोज मि​िोमदया: गलत रहा अनुिान

हवा हुए दिन ‘आप’ के रदल्ली के नगर रनगम चुनावो्मे् आप की शम्षनाक हार के बाद चच्ाष तेज हो चली है रक त्या भ्​्ष्टाचार से लड्ने के रलए उभरी पाट्​्ी को लोगो्ने नकार रदया है. शुकव् ार संवाददाता

म आदमी पाट़​़ी (आप) की लोकह़​़पयता मे़काफी कमी आ गयी िै. हदल़ली नगर हनगम चुनाव के साथ िी िाल िी मे़ िुये हवधानसभा चुनावो़ के पहरणाम भी यिी इशारा कर रिे िै.़ ऐसे मे़चच़ाद तेज िो चली िै हक क़या देश मे़भ़ष़टाचार ़ से लड़ने के हलये उभरी इस पाट़​़ी को लोगो़ने नकार हदया िै क़या? इन चुनाव नतीजो़से यि भी साफ िो गया िै हक आम आदमी पाट़​़ी अध़यक़​़ और हदल़ली के मुखयमं ़ त़ी अरहवंद केजरीवाल के पास जो जनबल था, वि अब उनका साथ छोडकर भाजपा के साथ चला गया िै. इस समय मे़ अरहवंद केजरीवाल के हवरोधी तो उन पर िमला कर िी रिे िै,़ उनके अपने साथी भी उन पर भयंकर िमले कर रिे िै.़ आप का एमसीडी चुनाव मे़ प़द़ श़नद बिुत खराब रिा िै और उसने 270 मे़से मिज 48 सीटे़िी जीती िै.़ इन चुनाव नतीजो़से ठीक पिले केजरीवाल के पुराने साथी और आप 22 शुक्वार | 1 से 15 मई 2017

के संसथ ़ ापको़ मे़ एक और आजकल स़वराज अहभयान चला रिे योगेद़ ़यादव ने केजरीवाल को एक खुला पत़​़हलखा था. यादव ने पत़​़हलखकर रामलीला मैदान मे़हकये गए राइट टू हरकॉल वादे की याद हदलाई िै. यादव ने हलखा िै, हदल़ली मे़ आप 70 मे़से 67 सीटे़जीतने के दो साल मे़िी इस रेफरेड़ म मे़िार जाते िै़तो नैहतकता की मांग िै हक आप ईवीएम जैसा बिाना निी़बनाएं और मुखय़ मंत़ी पद से इस़​़ीफा दे दे.़ आपकी सरकार हदल़ली मे़हरकॉल के हसद़​़ातं के अनुसार दुबारा जनमत से हवश़​़ास मत िाहसल करे. हदल़ली मे़हजन हदनो़आम आदमी पाट़​़ी बन रिी थी तब अरहवंद केजरीवाल ने सरकारो़ के हलए हरकॉल की बात बिुत बढ-चढकर किी थी. हदल़ली एमसीडी के चुनाव मे़ऐहतिाहसक पराजय के बाद पंजाब सहित कई राज़यो़ से अरहवंद केजरीवाल और आम आदमी पाट़​़ी के बारे मे़ उऩिी़के साथी तीखे प़श़ ऩ उठ रिे िै.़ संगऱर से सांसद भगवंत हसंि मान ने आप के शीष़दनेततृ व़ पर प़श़ ऩ उठाये िै़और किा िै हक वि गलहतयां कर रिे िै.़ इसीहलये जनता उनसे दूर िोती जा रिी िै. उऩिो़ने एमसीडी चुनाव मे़भी पाट़​़ी की रणनीहत को गलत बताया िै. मान के अनुसार ईवीएम को दोष देना और अपनी गलहतयो़ को निी़ देखना भारी भूल िै. कांगस ़े की युवा नेता रिी़अलका लांबा इस समय आप की हवधायक िै़ और उऩिो़ने अपने इलाके मे़चुनाव िारने के बाद इस़​़ीफा देने की पेशकश कर डाली. लेहकन, केजरीवाल या

हससोहदया जैसे बडे नेताओ़ ने ऐसी हकसी औपचाहरक नैहतकता की भी हजम़मदे ारी हदखावटी तौर पर भी निी़हदखाई. केजरीवाल के पुराने साथी और आम आदमी पाट़​़ी के अनुभवो़ के कारण राजनीहत को िी अलहवदा कि चुके मयंक गांधी ने ट़वीट हकया, 'हदल़ली मिानगर हनगम मे़भारतीय जनता पाट़​़ी के कुशासन के बावजूद बीजेपी को इतनी सीटे़ हमलने से साफ िै हक आप सरकार हदल़ली के लोगो़मे़बिुत बदनाम िो चुकी िै.' विी़, अऩना िजारे ने भी बुधवार को जारी िुये पहरणामो़को देखते िी अरहवंद केजरीवाल और उनकी सोच को दोषी बना हदया. उऩिो़ने किा था हक जनता ने इऩिे़हसफ़फइसहलये नकारा िै क़यो़हक आम आदमी पाट़​़ी ने जनता से हकये िर वादे को सत़ता पाने के बाद भुला हदया िै. ये चुनाव नतीजे ऐसे समय आये िै,़ जब कुछ िी हदन पिले आम आदमी पाट़​़ी की राजौरी गाड़नद हवधानसभा उपचुनाव मे़जमानत जल़त िो गई थी और यिां भाजपा ने जीत दज़द की थी. िजारे ने किा हक अगर केजरीवाल उनकी बताई राि पर चलते तो आज यि िालत निी़िोती. कथनी और करनी के अंतर ने केजरीवाल की लुहटया डुबो दी. अरहवंद और उनके मंह़तयो़ ने पिले गाहडयां ले ली़, हफर बंगले ले हलए और बाद मे़तनख़वािे़बढा ली़. िालांहक, आम आदमी पाट़​़ी सरकार के उपमुखय़ मंत़ी मनीष हससोहदया ने किा िै हक यि ईवीएम के कारण िुई िार िै. कुल हमलाकर भ़ष ़ ़ाचार के हखलाफ हजस तरि यि पाट़​़ी उभरी और एक नया नैहतकतावाद खडा हकया और सरकार बनी, उसके बाद आम आदमी पाट़​़ी हजस तेजी से शीष़ास द न करने लगी, उसने जनता मे़ उसका सारा भरोसा खत़म कर हदया. अऩना आंदोलन से जुडी हकरण बेदी और अऩय कई नेता तो केजरीवाल की राजनीहतक मित़वाकांक़ाओ़को भांपकर िी उनका साथ छोड गये. िालांहक बाद मे़बेदी भाजपा मे़चली गई़और केजरीवाल के हखलाफ चुनाव मैदान मे़ उतरी़ और अब पुडच ु रे ी की उपराज़यपाल िै.़ आम आदमी पाट़​़ी और केजरीवाल के बारे मे़सोशल मीहडया और अऩय स़​़ोतो़से जो हटप़पहणयां आ रिी िै,़ उनमे़ एक बात बिुत साफ िै हक उऩिो़ने सादगी, गांधीवाद और सुशासन के जो वादे हकए थे, उन पर वे निी़चले. साथ िी उऩिे़12000 ऱपये की वि थाली उसी तरि मिंगी पडी हजस तरि हदल़ली हवधानसभा के उप चुनाव मे़ प़ध ़ ानमंत़ी नरेद़ ़ मोदी का दस लाख का कोट बीजेपी को मिंगा पडा था. ऐसे मे़यि तो साफ िो चला िै हक आम आदमी पाट़​़ी के हलये राजनीहतक सफर मुह़शकलो़ भरा नजर आ रिा िै. देश मे़ भ़ष़टाचार ़ से लड़ने के हलये हजन केजरीवाल और उनके साहथयो़पर भरोसा जताया गया था वे िी n जनता को अब नापसंद िो चले िै.़


उत्​्र प्​्देश

सहारनपुर के एसएसपी की पत्नी की रटप्परी के सोशल मीरडया पर आने से उन्हे्यह सजा भुगतनी पड्ी रक पुरलस अधीक्​्क को हटा रदया गया. धीरेद् ् श्​्ीवास्​्व

त़ऱ प़द़ श े मे़ िाल मे़ तीन घटनाएं िुई.़ दो पूरब के गोरखपुर और अंबड े कर नगर मे़ तथा एक सिारनपुर मे.़ सिारनपुर के एसएसपी लव कुमार की पत़नी की एक हटप़पणी सोशल मीहडया पर वायरल िो गयी थी हजसमे़ उनके दोनो़बच़​़ेदंगाइयो़की भीड से डर कर रोने लगे थे. सिारनपुर मे़ हववाद की जड सांसद राघव लखनपाल से उलझना एसएसपी को मिंगा पडा और उऩिे़िटा हदया गया. मगर इन दोनो़घटनाओ़ से प़द़ श े की राजनीहत गम़ाद गयी िै. पिली घटना गोरखपुर की िै. पुहलस ने एक अपराधी की तलाश मे़पूवा़च ा़ ल के बािुबली और पूवद़मंत़ी िहरशंकर हतवारी के आवास हजसे िाता किते िै,़ पर छापा मारा. अपराधी निी़ हमला. हमलता कैस,े वि पिले से जेल मे़था. बिरिाल, िाता से आधा दज़नद लोगो़को हिरासत मे़हलया गया. इसमे़से केवल एक का चालान हकया गया. औरो़को पूछताछ के बाद छोड हदया गया. पूवद़ मंत़ी िहरशंकर हतवारी का नाम हकसी पहरचय का मुिताज निी़िै.़ शासन हकसी का िो, वीरबिादुर हसंि की सरकार को छोड हदया जाये तो आमतौर पर कानून उनकी सेवा करता रिा िै. पहरणाम, कभी उनके मुकाबले मे़खडे िोने वाले लोग आज दुहनयां मे़ निी़ िै.़ सुर िै़ तो निी़ के बराबर. पब़डडत जी की तीसरी पीढी भी फलफ्ल रिी िै. आज भी बडे बडे से मामले मे़उनका नाम सटा दीहजए, बडे बडो़को पसीना आ जायेगा. ऐसे िहरशंकर हतवारी के आवास पर छापा, कानून की यि जुरतद़ , उनके िनक पर िमला, इसे वि या उनके समथ़क द कैसे पसऩद करते? और, हकए भी निी़. 48 घड़टे बाद िज़ारो़ लोगो़ ने गोरखपुर हजला मुखय़ ालय पर पिुच ं कर कानून की जुरतद़ के हवरोध मे़रोष जताया, िाता पर छापा को लोकतंत़पर िमला बताया और किा हक इसे कीमत पर बद़ाशद त़ निी़करेग़ .े इस प़ह़तह़​़कया पर कानून ने अपना संयम निी़खोया. वि खरी खोटी सुनकर भी हवजयी भाव मे़खडा रिा. दूसरी घटना अम़बडे कर नगर की िै. पुहलस ने यिां मऊ के हवधायक मुख़्तार अंसारी के पुत़ अल़बास अंसारी के काहफले मे़ आगे चल रिे वािन का िूटर उतरवा हलया. वि मुख़्तार अंसारी जो कृषण ़ ानऩद राय की ित़या के मामले मे़जेल मे़ बंद िोने बाद भी लगातार चुनाव जीत रिे िै,़ जो

वमरष्​्पुमलि अधीक्​्क लव कुिार: पंगा पि्ा िहंगा

बेलगाि िांिद पंगु प्​्शािन जेल से अपने साम़​़ाज़य का कुशल संचालन करते िै.़ अम़बडे कर नगर मे़उनके बेटे के काहफले को कानून ने रोक हलया. यिी निी़, काहफले मे़आगे चल रिे वािन का िूटर उतरवा हलया. हनह़​़ित तौर पर यि मुख़्तार अंसारी के िनक पर िमला िै. कोई और समय िोता तो अम़बडे कर नगर से ग़ाज़ीपुर तक इसे भी लोकतंत़की ित़या बताया जाता. कानून के काहरंदे अब तक सज़ा पा चुके िोते. लेहकन, समय खराब चल रिा िै. इसहलए इस मामले मे़ भी कानून हवजयी भाव मे़खडा िै. तीसरी घटना सिारनपुर की िै. यिां के जनकपुरी थाने के दूधली मे़एक शोभायात़​़ा को राधव लखनपाल: िांिद की हेकि्ी

लेकर दो संपद़ ायो़मे़हववाद िो गया. कानून ने अपनी ड़ट़ू ी की. हववाद हवकराल ऱप निी़ले पाया. अपना राज और कानून की यि जुरतद़ ? सबक हसखाने के हलए एसएसपी आवास के सीसीटीवी कैमरे और नेमप़लटे तोड़ हदये. एसएसपी के साथ भी धक़​़ा-मुक़ी की गयी. डीएम ने भागकर जान बचायी. कहमश़नर की गाडी के शीशे तोड हदए गए. कुछ दुकानो़मे़भी तोड़फोड़की गयी और सामान लूट हलया िै. इस दौरान पथराव के चलते डीएम और एसएसपी ने भागकर अपनी जान बचाई. कानून का अपराध यि था हक उसने सांसद राघव लखनपाल के किने पर भी हफर से शोभायात़​़ा हनकलने की अनुमहत निी़दी. प़द़ श े के अपर पुहलस मिाहनदेशक कानून व़यवस़था दलजीत चौधरी ने इसे लेकर किा हक ब़सथहत हनयंतण ़ मे़ िै. घटना मे़ जो भी दोषी िै,़ उनके हखलाफ सख़त काऱवद ाई की जाएगी. घटना मे़ केवल भाजपा काय़क द त़ाद निी़, सांसद राघवलखन पाल का नाम भी शाहमल िै. इस घटना को लेकर सरकार की साख पर सवाल आमतौर पर उठा. इसहलए उम़मीद की जा रिी थी हक दोहषयो़ के हखलाफ काऱवद ाई िोगी. िुआ ठीक उलट, यिां से कानून व़यवस़था बनाए रखने के हलए जूझने वाले एसएसपी और हजलाहधकारी िी िटा हदये गये. इसहलए सिारनपुर की घटना को लेकर कानून n का हसर झुका-झुका हदख रिा िै. शुक्वार | 1 से 15 मई 2017 23


पंजाब

आंखो्िे्बिा एक फ़क्ीर

बाबा बलरवंदर रसंह आंखो्की बीमाररयो्का इलाज पारंपररक ज्​्ान परंपरा के आधार पर करते आये है्, लेरकन उनकी सफलता ने कई दुश्मन भी तैयार कर रदये है्.

बाबा बलमवंदर मिंह: आंखो्के मलए मन:शुल्क इलाज 24 शुक्वार | 1 से 15 मई 2017

आलोक कसंह

जा

लंधर के छोटे से मुिल़ले गुरऩ ानकपुरा मे़ सैकडो़लोग कतार मे़खडे अपनी बारी का इंतजार कर रिे िै. कतार बिुत लंबी िै. इसके बावजूद ना तो बैचेनी िै, न थकान का नामोहनशान. बब़लक आंखो़मे़आशा की हकरण िै हक नयी रोशनी बस कुछ कदमो़की दूरी पर िै. सबकी नजरे हटकी िै सड़क के हकनारे एक छोटे से घर के सामने खडे फ़कीर पर. लंबी खुली दाढी और घनी मुसक ़ राती मूछ ं ो़के बीच ओ़ठो़पर ऐसी िल़की मुसक ़ रािट हक कोई भी हफ़दा िुए हबना निी़ रि सकता. कभी कभी जब हकसी गलती पर गुसस ़ ा हदखाते िै़ तब भी यि मुसक ़ रािट वैसे िी बनी रिती िै. साधारण से हदखने वाले बाबा बलहवंदर आंखो़के हलए हनशुलक ़ दवा बांटते िै.़ हपछले 27 वष़​़ो़मे़50-60 लाख लोगो़का चश़मा उतारने के साथ कम से कम एक करोड से अहधक लोगो़की आंखो़का इलाज कर चुके िै.़ सुबि से लगने वाली लंबी कतारे़ इनकी काबहलयत और लोकह़​़पयता की किानी किती िै.़ आई बाबा, आंखो़वाले बाबा, चश़मा तोडू डॉक़टर जैसे कई नामो़ से लोकह़​़पय बाबा बलहवंदर के इस सेवा मे़आने की किानी बडी हदलचस़प िै. साधारण पहरवार मे़पले-बढे संगीत प़​़ेमी बाबा 21-22 के उम़​़ मे़ जीवन के सिी मायने तलाशते-तलाशते गंगोत़​़ी जा पिुच ं .े विां अपने गुऱ के साथ करीब पांच साल तक कडी साधना की. गुर-़ हशष़य परंपरा मे़अगाध आस़था रखने वाले बाबा से यि पूछने पर गुऱ के साथ पांच साल मे़ क़या सीखा एक सरल सा जवाब, व़यविार करना सीखा. व़यविार से आशय आत़मीयता की उस संवेदना से िै जो प़क ़ ृहत, मनुषय़ से पदाथ़दतक, के संबधं को मिसूस करता िै. गुऱ के आदेश पर घर वापस आ गये और जीहवका चलाने के वास़​़े एक सरकारी इंटर कालेज मे़ संगीत के अध़यापक बन गये. और कुछ समय संगीत मे़ रम गये. लेहकन मन की बैचनी बार-बार गुऱ के पास पिुंचा देती. ऐसा लगभग 17 वष़​़ो़तक चलता रिा. एक हदन बातचीत मे़पता चला गुऱके पास आंखो़को हजंदगी देने वाला ज़​़ान िै. यि बात उनके हदल को गिरे से छू गयी. मानो हजंदगी का मकसद हमल गया. हफर क़या था गुऱसे यि ज़​़ान पाने की कोहशश करने लगे लेहकन गुऱ ने एक ना सुनी. कई वष़​़ो़तक लगातार कोहशश ने एक हदन रंग हदखाया. उनके गुऱकेदारनाथ के दरबार मे़ले जाकर एक प़ण ़ करने को किा हक इस ज़​़ान को तुम कभी बेचोगे निी़. बाबा बलहवंदर ने तुरतं मना कर हदया. उनके गुऱितप़भ़ िोकर पूछा हक क़या िुआ? बाबा ने तपाक से किा ऐसे ज़​़ान पाने की कोई इच़छा निी़िै हजसमे गुऱको हशष़य पर


क्या कहते है् बाबा बलविंदर

आप भारतीय परंपरा के ज्​्ान के आधार पर आंखो् का इलाज कर रहे है् यह टूट-े बिखरे ज्​्ान को खड़ा करने की कोबि​ि की िड़ी बिसाल है. मै़ तो हसफ़़फ अपने गुऱ से हमले ज़​़ान को आगे बढा रिा. गुऱ-हशष़य परंपरा मे़ ऐसे िी चलता रिेगा. िां इतना जऱर मानता िूं हक पढे-हलखे लोगो़मे़इसके प़​़हत िीन नजहरया रखते िै़. लेहकन मेरा अनुभव िै़हक उनको भी बदलते देर निी़लगती िै. गुर्-बिष्य परंपरा और आज के स्कूलो् की बिक्​्ा िे् क्या फ़क्क आप देखते है्. मुझे तो एक िी बात लगता िै गुऱ-हशष़य परंपरा मे़ इंसान बनता िै और आज की हशक़​़ा मे़ काहबल बनाया जाता िै. मै स़क्ल मे़ संगीत का अध़यापक रिा. संगीत की कला मन की आंखे खोलने मे़सिायक िोता िै वि भी आजकल अहधकांश मे़प़​़दश़दन की कला बनती जा रिी िै. मै़ने गुऱऔर संगीत से खुद को पिचाना. आप के इलाज के तरीके को गैरकानूनी या झोला छाप डॉक्टर कहा जाता रहा. मुझे लगता िमारा नजहरया बदलना चाहिये. आजकल िमारा ध़यान बीमारी पर अहधक िोता िै ताकत पर कम. यिां जो प़​़साद हमलता िै वि आंखो़मे़ताकत भरता िै, बीमारी अपने आप चली जाती िै. जिां तक कानून की बात िै पिले सोचता रिा हक मै़सेवा और लोक कल़याण का काम कर रिा िूं उसमे़ कानून किां िै़. लेहकन काम मे़ जब बिुत बाधा आने लगी तो प़​़साद बनाने के तरीके का कानूनी प़ह़​़कया भी पूरी कर ली. अब तो गैरकानूनी निी़रिा. गुलाम मानस के लोग अपने देशज ज़​़ान को झोला छाप ज़​़ान किते तो उनकी समझ पर दुःख हकया जा सकता िै. हवश़​़ास प़ण ़ करके पाया जा सके. बाबा किते िै हक इस बात को सुनते िी उनके गुऱबिुत भावुक िोकर किे इस ज़​़ान के सिी िक़दार तुम िी िो. कुछ समय बाद िी बाबा ने लोगो़के आंखो़ मे़ताकत और रोशनी फ़ैलाने का काम शुऱकर हदया. बाबा ने लगभग अंधे लोगो़ की आंखो़ मे़ रोशनी भर दी लेहकन बच़​़ो़के हलए यि रामबाण िी बन गयी. लाखो़ बच़​़ो़ के कोमल चेिरो़ से चश़मा उतार कर नयी हजंदगी दी. लेहकन यि रास़​़ा कांटो़ भरा रिा. िर मोड पर एक नया संकट खडा रिता. सबसे पिले तो पढे-हलखे लोगो़ने इसका उपिास उडाया. उनके हलए यि हवश़​़ास करना कहठन था हक अपनी परंपरा मे़ ऐसा कोई ज़​़ान िोगा. बाबा किते िै़हक आधुहनक सोच वालो़को अपने देश-समाज मे़केवल बुराई और कमी िी हदखती िै, इसकी ताकत का तहनक भी भान निी़िै. इस दवा, हजसे लोग अब प़स ़ ाद

किते िै, के असर ने बिुत से लोगो़का मुिं बंद कर हदया. लेहकन अभी और संकट आने वाले थे. इसके हदन दुगना रात चौगुना बढने से आंखो़ के इलाज के नाम पर लूट करने वालो़के आंखो़ मे़बाबा खटकने लगे. इसके व़यापार से जुडे लोगो़ ने कई तरि से उऩिे़ परेशान करना शुऱ कर हदया. इस वजि से बाबा को कई बार प़स ़ ाद देने की जगि बदलना पडा. बाबा किते िै सब कुछ जानते िुए मैऩ े कभी हकसी के हखलाफ हशकायत निी़ की. लोक कल़याण का काम सच़​़े मन से हकया जाय तो ईश़​़र सभी बाधा दूर करता िै. इसहलए तमाम संकट के बाद भी यि चलता रिा और आगे भी चलता रिेगा. बाबा मे़आस़था रखने वालो़का किना िै बाधा पिुचाने मे़दवा व़यापारी, अहधकारी और नेताओ़ का बडे स़​़र गठजोड काम करता िै. अभी कुछ समय पिले िी गुडं ो़ने धावा बोल कर बाबा के घर को तिस-निस कर

हदया. इस तरि घटना से हबना हवचहलत िुए मुसक ़ राते िुए किते मुझे तो प़स ़ ाद बांटने के हलए जगि बनानी थी इन लोगो़ ने तोडने का खच़ाद बचा हदया. इस तरि के कई दबावो़ के चलते और सरकारी-कानूनी अडचनो़ से छुटकारा पाने के खाहतर बेमन से एक-दो साल पिले इसके बनाने के तरीके का पंजीकरण करा हलया. बाबा का मानना िै हक हबना तप-साधना और मन की आंख खुले इसका प़य़ ोग बेअसर िोगा. इसहलए बाबा इस बात से बेहफक़​़िै हक इसको कोई बेच सकेगा. जिां यि बात बेहफक़​़ी देता इसी बात का दुःख भी िै हक इस ज़​़ान को आगे ले जा सके इस लायक अभी कोई हशष़य निी़हमला. क़या सिी मे़ आज अपने समाज मे़सोच की कंगाली यिां तक पिुच ं गयी? क़या इस ज़​़ान की परंपरा की बाबा आहख़री कडी साहबत िो़ग?े n

शुक्वार | 1 से 15 मई 2017 25


मध् मास्यटप्हे्दडेश

दो गांव डेढ् सौ पुललस चार बलात्कार

आरदवासी-बहुल गांव भूरतयाहोरलबायड्ा की आरदवासी मरहलाओ्ने पुरलस पर सामूरहक बलात्कार का इल्जाम लगाया है. इस इलाके की यात्​्ा आंख खोल देने वाले पूवग ष् ह् ो्से साक्​्ात्कार कराती है. पूजा कसंह

ड़सठवे़गणतंत़हदवस की पूव़दसंध़या पर यानी 25 जनवरी 2017 को जब देश के राष़​़पहत प़​़णव मुखज़​़ी देश के सशस़​़ सैऩय बलो़ और आंतहरक सुरक़​़ा बलो़ को हवशेष बधाई दे रिे थे उस वक़त मध़य प़​़देश के आहदवासी हजले धार की भूहतया ग़​़ाम पंचायत पर स़थानीय पुहलसकह़मदयो़ का किर टूटा था. भूहतया ग़​़ाम पंचायत के दो गांवो़ भूहतया और िोहलबायड़ा के लोगो़का आरोप िै हक उस शाम 150 से अहधक पुहलसकह़मदयो़ ने गांव पर संगहठत ढंग से िमला हकया. पुहलसकह़मदयो़ ने गांव को तीन ओर से घेर हलया, आंसू गैस के गोले छोड़े और गोलीबारी की. गांव वालो़ का आरोप िै हक पुहलसकह़मदयो़ ने गांव की चार महिलाओ़के साथ बलात़कार और पांच अऩय के

26 शुक्वार | 1 से 15 मई 2017

िभी फोटो: पूजा मिंह

साथ छेड़छाड़व यौन हिंसा की. इतना िी निी़ उऩिो़ने गांव मे़ जमकर लूटपाट भी की. विी़ पुहलस का आरोप िै हक इन गांवो़ मे़ 140 से अहधक अपराधी रिते िै़ जो देश के अलगअलग हिस़सो़ मे़ वांहछत िै़. पुहलस उनकी धर पकड़के हलए गांव मे़गयी थी. घटना को तीन मिीने से अहधक वक़त बीत चुका िै. मामले मे़अब तक कोई हगरफ़तारी निी़ िो सकी िै. पुहलस ने िमले के दौरान कई मोटरसाइहकल, दो ट़क़ै ट़ र तथा कुछ अऩय वािन जल़त हकये हजऩिे़उसने चोरी का बताया. लेहकन ये सारे वािन गांव वालो़ के थे जो अदालती िस़​़क़ेप के बाद छोड़ने पड़े. स़थानीय पुहलस उस हदन भूहतया ग़​़ाम पंचायत के दो गांवो़भूहतया और िोहलबायड़ा मे़ जाने की बात स़वीकार करती िै लेहकन वि बलात़कार-यौन हिंसा या लूटपाट के आरोपो़से पूरी तरि इनकार करती िै. पुहलस का किना िै हक दोनो़ गांवो़ मे़ आदतन अपराधी रिते िै़ जो केवल आसपास के इलाके मे़ िी निी़ बब़लक गुजरात, राजस़थान, आंध़प़​़देश, कऩादटक और मिाराष़​़ जैसे दूरदराज राज़यो़ मे़ भी हवहभऩन अपराधो़ मे़ वांहछत िै़. पुहलस टीम इन अपराहधयो़के बारे मे़खबर हमलने पर िी गांव पिुंची थी. पिले से जानकारी हमल जाने के कारण सारे पुऱष गांव से फरार िो गये थे. पुहलस केवल कुछ वािन जल़त करके विां से वापस आ गयी.

भूमतया-होमलबायि्ा: अभाव का गांव

यि सवाल वाहजब िै हक गांव मे़कई थानो़ के 150 से अहधक पुहलसकह़मदयो़ की काऱदवाई के बावजूद एक भी हगरफ़तारी क़यो़ निी़ िो सकी? प़​़त़यक़​़दह़शदयो़ के मुताहबक पुहलस बल 30 से अहधक मोटर साइहकलो़ और एक बड़े हपक अप वािन मे़ विां पिुंची थी. इसके बावजूद एक भी व़यब़कत को पकड़ा निी़ जा सका? इससे पीह़डतो़ के इस आरोप को बल हमलता िै हक पुहलस की मंशा दरअसल हगरफ़तारी करने की थी िी निी़. पीह़डत ह़​़सयो़ पहला मबजली का खंभा: िात दशक बाद


का आरोप िै हक दरअसल पुहलस ने गांव के पुऱषो़ को जानबूझकर भाग जाने हदया ताहक लूटपाट व केवल औरतो़ के रि जाने के बाद मनमानी की जा सके. मौके का मुआयना करने वाला गैर लाभकारी संगठन मध़य प़​़देश महिला मंच अपनी फैक़ट फाइंहडंग हरपोट़द मे़ हलखता िै: गभ़वद ती और उम़द़ राज औरते़भी पुहलहसया कोप से बच निी़सकी़. दो अल़पवयस़क लड़हकयो़से छेड़छाड़ की गयी, पुहलस ने राशन लूटा, पैसे लूटे और खेतो़मे़डालने के हलए रखे गये बीज तक लूट हलये गये. पुहलस हवभाग के उच़​़ अहधकारी इन आरोपो़ को नकारते िै़ लेहकन उनके पास इस प़​़श़न का कोई उत़​़र निी़िै हक आहखर इतनी बड़ी काऱदवाई के बावजूद एक भी हगरफ़तारी क़यो़निी़की जा सकी? भूहतया ग़​़ाम पंचायत टांडा थाना क़​़ेत़ मे़ आती िै. इस ग़​़ाम पंचायत मे़ तीन गांव िै़: भूहतया, िोहलबायड़ा और इंदला. भूहतया और िोहलबायड़ा गांव जिां भील बिुल िै़विी़इंदला हभलाला समुदाय की बिुलता वाला गांव िै. इन तीनो़ गांवो़ मे़ भूहतया और िोहलबायड़ा की िालत बेिद खराब िै. स़थानीय टांडा बाजार मे़ स़थानीय लोगो़और पत़​़कारो़से बातचीत मे़एक अलग किानी सामने आयी. टांडा बाजार के कारोबाहरयो़का किना िै हक इलाके मे़इन गांवो़ के अपराहधयो़ का खौफ िै. इन गांवो़ से कभी हकसी पुऱष को बािर आते निी़ देखा गया. िमेशा ह़​़सयो़ िी खरीदारी करने के हलए बािर आती िै़. स़थानीय पत़​़कार पप़पू शम़ाद दबी जुबान मे़ किते िै़, 'यि सच िै हक भूहतया मे़ आपराहधक प़​़वृह़त के लोगो़ की अच़छी खासी तादाद िै लेहकन इसका यि मतलब तो निी़हक पुहलस ज़यादती पर उतर जाये.' बलात़कार की आशंका से इनकार न करते िुए वि किते िै़हक एक दुष्कि्ापीम्िता: बलात्कार और िारपीट

पुहलस जब शिरी इलाको़मे़हदनदिाड़ेलोगो़के साथ ज़यादती कर सकती िै तो यि तो ऐसे दूरदराज गांव का मामला िै जिां पिुंचना तक आसान निी़. इन हवरोधाभासी बातो़और हवचारो़के बीच िमने यि तय हकया हक िम भूहतया और िोहलबायड़ा जाकर िी सच जानने का प़​़यास करे़गे. िम स़थानीय लोगो़से हमलना चाि रिे थे लेहकन यि काम िमारी कल़पना से ज़यादा मुब़शकल था. टांडा से कोई िमारे साथ चलना तो दूर िमे़ उस गांव का रास़​़ा तक बताने से परिेज हकया जा रिा था. लगभग िर हकसी ने िमे़ यिी सलाि दी हक िम उन गांवो़ मे़ हबना पिले से सूहचत हकये निी़ जाये़ वरना िमारी जान को भी खतरा उत़पऩन िो सकता िै. काफी कोहशश के बाद आहखरकार िमारी मुलाकात एक ऐसे व़यब़कत से करायी गयी जो खुद को स़थानीय गंगवानी हवधानसभा क़​़ेत़के हवधायक उमंग हसंघार का प़​़हतहनहध बता रिा था. लोगो़ने बताया हक हबना उसकी मदद के भूहतया के लोगो़ से हमल पाना लगभग असंभव िै. िमारी गाड़ी को बकायदा दो गाहडयो़के सुरक़​़ा घेरे मे़ भूहतया ले जाया गया. विां िमारी मुलाकत गांव के सरपंच भुऱहसंि से िुई. भुऱहसंि ने बताया हक 25 जनवरी के बाद से अकेले उनके हखलाफ छि प़क ़ रण पंजीबद़​़हकये गये िै.़ इनमे़ शासकीय काम मे़ बाधा डालने और आगजनी जैसे आरोप शाहमल िै़. भुऱबताते िै़हक उनके पहरवार की दो ह़​़सयां भी पुऱष ज़यादती की हशकार िुई़. िमारी मुलाकात गांव मे़ ज़यादती हशकार महिलाओ़से भी िुई. भूहतया की रिने वाली िरखू (बदला िुआ नाम) बताती िै़, 'मेरे ल़याि को एक साल भी निी़ िुए थे. घटना के वक़त मे़ गभ़दवती थी. पुहलस वालो़ ने मेरे घर का सारा सामान तोड़ िरपंच भुर्मिंह: ज्यादती की मशकायत

हदया. कुछ पुहलस वाले मुझे खी़चकर घर के भीतर ले गये. एक पुहलसकम़​़ी दरवाजे पर खड़ा रिा और दूसरे ने घर के भीतर मेरे साथ बलात़कार हकया.' वि किती िै़ हक पुहलस को देखकर गांव के मद़दखेतो़मे़जा हछपे. विी़इस अचानक िमले से अचकचायी िुई महिलाये़ सकते मे़आ गयी़. वे अपनी जान बचाने के हलए गांव की आंगनबाड़ी काय़दकत़ाद के घर की ओर गयी़क़यो़हक इस काय़दकत़ाद और उसके पहत की पुहलस के कुछ अहधकाहरयो़से जानपिचान थी. उऩिे़लगा हक ये लोग उऩिे़बचा पाये़गे. लेहकन उस हदन बचाव के हलए कोई जगि सुरह़​़कत निी़ थी. एक अऩय पीहडत महिला अपने छोटे से बच़​़ेके साथ अकेले रिती िै. वि उस रात की घटना को याद कर आज भी हसिर उठती िै. वि किती िै हक उस रात एक पुहलस वाला उसके घर आया. उसने उसके बच़​़ेको गोद से छीनकर जमीन पर पटक हदया. उसके बाद उसके साथ बलात़कार हकया गया. महिला के मुताहबक पुहलस वालो़ने उसके घर से मेिनत से कमाये गये 20,000 ऱपये भी लूट हलये. इससे पिले उऩिो़ने उसके आंगन मे़बैठकर शराब भी पी. बलात़कार की हशकार एक अऩय महिला की उम़​़ तकरीबन 50 वष़द िै. उऩिो़ने बताया हक पुहलस वालो़ ने उऩिे़ दौड़ाकर पकड़ा. वि अपनी उम़​़ की दुिाई देती रिी़. उऩिो़ने गुिार लगायी हक वे उन पुहलस जवानो़की मां की उम़​़ की िै. लेहकन कोई सुनवायी निी़ िुई. पुहलस वालो़ ने उनका भी बलात़कार हकया. कुछ िी हदन पिले उनकी बेटी की शादी िुई िै. पुहलस वाले शादी का सामान भी लूट ले गये. धार के इस अंचल के लोग अक़सर मेिनत मजदूरी करने गुजरात चले जाते िै़. बदहकस़मती से रीना (बदला िुआ नाम) भी उन हदनो़ गुजरात से कमायी करके आयी थी. पुहलस वालो़ ने न केवल उसके साथ यौन हिंसा की बब़लक गुजरात से कमा कर लायी गयी 35,000 ऱपये की राहश भी छीन ली. पुहलस वालो़के सर पर उस हदन मानो़ खून सवार था. रीना किती िै हक उस हदन पुहलस वालो़ ने गांव मे़ तांडव हकया. जो जी मे़ आया तोड़ते फोड़ते गये. अनाज भंडार, हरिायशी मकान, गाह़डयां आहद के साथ तोड़फोड़की गयी. मानो वे कोई पुरानी खुऩनस हनकालने पर आमादा थे. गांव के सरपंच भुऱहसंि के चेिरे पर अब तक उस रात के खौफ की छाप नाच रिी िै. सरपंच ने िमे़बताया हक घटना के तत़काल बाद उऩिो़ने स़थानीय हवधायक उमंग हसंघार को फोन हकया. हवधायक ने तत़काल उनकी मदद की. उनके नेतृत़व मे़ सभी पीहडत धार हजला मुख़यालय पिुंचे. जिां अस़पताल मे़ मेहडकल पैनल ने तो निी़लेहकन एक महिला हचहकत़सक शुक्वार | 1 से 15 मई 2017 27



मध्य प्​्देश

ने पीहडतो़की जांच की. महिलाओ़ने जो कपड़े पिन रखे थे उनको जांच के हलए निी़हलया जा सका क़यो़हक उनके पास पिनने के हलए दूसरा कोई कपड़ा निी़था. आहखरकार घटना के पांच हदन बाद 30 जनवरी को अज़​़ात आरोहपयो़ के हखलाफ सामूहिक बलात़कार का मामला दज़द कर हलया गया. ध़यान रिे हक गांव के लोगो़का स़पष़​़ किना था हक आरोपी पुहलसकम़​़ी थे लेहकन इसके बावजूद एफआईआर मे़ अज़​़ात आरोहपयो़हलखा गया. हवधायक उमंग हसंघार किते िै़हक भूहतया और िोहलबायड़ा गांव मे़आपराहधक प़​़वृह़त के कुछ लोग िै़. लेहकन इन नामो़के हखलाफ दज़द अपराधो़ की तादाद लगातार बढ़ती जा रिी िै क़यो़हक मेिनत से बचने के हलए पुहलसकम़​़ी इस इलाके मे़ िोने वाले तमाम अपराधो़ मे़ इऩिी़ लोगो़का नाम डाल देते िै़. धार के पुहलस अधीक़​़क वीरे़द़ हसंि ने बलात़कार-हिंसा और लूटपाट के आरोपो़ को हसरे से खाहरज कर हदया. उऩिो़ने किा हक ये गांव आदतन अपराहधयो़ का गढ़ िै. भूहतया से एक-दो निी़बब़लक 143 अपराहधयो़के हखलाफ वारंट जारी िै़ लेहकन ये सभी फरार िै़. गांव से जो वािन जल़त हकये गये उनके चोरी का िोने की आशंका के चलते ऐसा हकया गया. उऩिो़ने यि भी किा हक उलटा गांव वालो़ ने छापे के दौरान पुहलस बल पर िमला हकया. अब ये सारे इल़जाम इसहलए लगाये जा रिे िै़ ताहक पुहलस दोबारा गांव मे़ घुसने के पिले दो बार हवचार करे. उनसे जब पूछा गया हक अगर यि सच िै तो पुहलस को अज़​़ात लोगो़ के हखलाफ कहथत सामूहिक बलात़कार का मामला क़यो़दज़दकरना

गांव के बच्​्े: मशक्​्ा िे दूर पड़ा? हसंि ने किा हक चूंहक इस अपराध की प़​़कृहत अत़यंत गंभीर िै इसहलए जांच करना जऱरी िै. गौरतलब िै हक हजन 143 व़यब़कतयो़ का नाम हलया गया उनमे़ से शायद िी कोई हकसी गंभीर अपराध के आरोप मे़आरोहपत िो. अहधकांश पर शराब के अवैध कारोबार, बकरी चुराने, फसल चुराने जैसे छोटे इल़जाम िी िै़. पुहलस अधीक़​़क इस पूव़दग़ि की वजि इतने ज़यादा अपराधो़ को बताते िै़. पुहलस अधीक़​़क यि तक कि चुके िै़हक यि गांव केवल अपराध पर िी जीता िै. इस मामले मे़ हवधायक उमंग हसंघार की सह़​़कयता भी लोगो़ के बीच चच़ाद का हवषय िै. एक अऩय पुहलस अहधकारी नाम न जाहिर करने की शत़दपर बताते िै़हक उक़त गांवो़मे़रिने वाले लोग आदतन अपराधी िै़ और वे हवधायक के हलए मसल पॉवर का काम करते िै़. उनका संकेत िै हक ये आरोप झूठे िै़और हनहित स़वाथ़द वाले तत़व़ ो़की शि पर लगाये गये िै.़ वि दलील देते िै़ हक बलात़कार के आरोप हववाहित महिलाओ़से लगवाये गये िै़और कम उम़​़की हकशोहरयो़तथा अहववाहित लड़हकयो़ने केवल छेड़छाड़ के आरोप लगाये िै़. ऐसा शायद इसहलए हकया गया िोगा क़यो़हक काफी समय बीत जाने के बाद हववाहित ह़​़सयो़के मामले मे़ बलात़कार की पुह़ष कर पाना संभव निी़ रि जाता. इस मामले मे़ अत़यहधक सह़​़कय कांग़ेस हवधायक उमंग हसंघार इन महिलाओ़को लेकर प़​़देश की राजधानी भोपाल और देश की राजधानी नयी हदल़ली तक जा चुके िै.़ वि किते िै़हक इन गरीब आहदवासी महिलाओ़की किी़ सुनवायी निी़ िुई िै. जांच की प़​़ह़कया तो एक

अंतिीन प़​़ह़कया िै. इसमे़ क़या िाथ लगेगा यि देखा जाना िै. बलात़कार और लूटपाट मामले की सचाई तो जांच से सामने आ िी जायेगी लेहकन इन गांवो़की यात़​़ा से एक बात िमे़समझ मे़आ गयी हक हवकास इस क़​़ेत़की सबसे बड़ी समस़या िै. ऊंचे नीचे पिाड़ी टीलो़ पर बसे इन गांवो़ मे़ पीने का पानी महिलाओ़को मीलो़दूर से भरकर लाना पड़ता िै. गांव मे़ हबजली के खंबे गाड़े जाने की शुऱआत अब िुई िै. जबहक प़​़देश सरकार अहतहरक़त हबजली दूसरे प़​़देशो़ को बेचती िै. यिां से मिज 100 हकमी की दूरी पर िी प़​़देश का बड़ा औद़​़ोहगक शिर पीथमपुर ब़सथत िै. गांव के अहधकांश लोगो़ ने बैक ़ की शक़ल तक निी़देखी िै. भूहतया मे़कक़​़ा पांच तक की एक प़​़ाथहमक शाला जऱर िै लेहकन एक भी बच़​़ा स़क्ल निी़ जाता िै. िमे़ पांच-सात वष़द की उम़​़ के हजतने बच़​़े हमले उनमे़ से कोई भी स़क्ल निी़ जाता िै. िोहलबायड़ा गांव मे़ स़क्ल की नयी इमारत बनकर तैयार िै लेहकन उसमे़ताला लगा िुआ िै. शाला मे़एक अहतहथ हशक़​़क जऱर हनयुक़त िै़ लेहकन वि कभी आते निी़. दोनो़ गांवो़ मे़ हमलाकर एक िी स़नातक िै. यि श़​़ेगय गांव के प़​़धान भुऱहसंि को जाता िै. चंद लड़को़ने िाई स़क्ल की पढ़ायी की िै. नौहनिालो़का िाल तो सबसे अहधक बुरा िै. गांव के लोगो़ के पास अगर करने को काम निी़ िोगा तो वे सिज अपराध की तरफ झुक सकते िै़. इसमे़ चहकत िोने वाली कोई बात निी़िै. भूहतया और िोहलबायड़ा गांव आम भील बिुल गांवो़की तरि िी काफी हवस़​़ृत इलाके मे़ फैले िुए िै़. घर एक दूसरे से काफी दूरी पर बने िुए िै़. िोहलबायड़ा गांव की भौगोहलक ब़सथहत अत़यंत दुऱि िै. विां जाने के हलए नदी नाले पार करने पड़ते िै़. इसके हबना इन दोनो़ गांवो़ मे़ कुल हमलाकर तकरीबन 220 पहरवार रिते िै़. इनकी कुल आबादी 1400 के आसपास िै हजसमे़ 400 बच़​़े िै़. दोनो़ गांवो़ की 100 फीसदी आबादी अनुसूहचत जाहत से ताल़लुक रखती िै. आय का जहरया या तो खेती िै या हफर गुजरात मजदूरी करना. धार हजला मुख़यालय, टांडा कस़बे के कारोबाहरयो़ और आम लोगो़ तथा हवहभऩन पुहलस अहधकाहरयो़ के साथ बातचीत मे़ एक चीज जो साफ नजर आती िै वि िै, इन गांवो़ के हनवाहसयो़ यानी भील समुदाय के लोगो़ को लेकर पूवगद़ ़ि. लगभग सभी इस बात पर सिमत नजर आते िै़ हक इस समुदाय के लोग आपराहधक प़​़वृह़त के िोते िै़ और हबना हकसी लालच हकसी से बात निी़ करते. एक पुहलस अहधकारी ने तो यि तक किा हक ये मौका n हमलते िी आपको लूट भी सकते िै़. शुक्वार | 1 से 15 मई 2017 29


मास् समाज ट हेड

कोलकाता िे्यहूदी िायनागाॅग: बाहर का िन्नाटा

सायनागॉग का सूनापन सतीश जायसवाल

हव

देशी मूल के हजन धम़ादवलंहबयो़ने भारत को अपना घर बनाया और यिां के उद़​़ोग-व़यापार को दूर-दूर तक फैलाया, उनमे़ यिूदी भी शाहमल िै़. भारत मे़ आने वाले सबसे पिले यिूदी सीहरया से आये थे. बाद मे़ ईरान, ईराक, अफगहनस़​़ान और अऩय पूव़ी यूरोपीय देशो़से भी यिूदी यिां आये. यिां आकर बसने वाले इन यिूहदयो़ को तीन शाखाओ़ मे़ बांटकर देखा जा सकता िै- कोचीन के प़​़ाचीन यिूदी, बेने इज़राइली और बग़दादी यिूदी. इनमे़, कोचीन समूि के यिूहदयो़को सबसे प़​़ाचीन माना जाता िै.

30 शुक्वार | 1 से 15 मई 2017

प्​्ाथ्ाना स्थल: अनुयामययो्का इंतजार

सरदयो्पहले भारत आये यहूरदयो्का एक बड्ा तबका इजरायल लौट गया है. लेरकन कोलकाता और सूरत आरद शहरो्मे्जो यहूदी रह गये है्, उनकी तादाद बहुत कम है और उनके प्​्ाथ्षनाघरो् की हालत भी खराब है. यिां बसने के साथ यिूहदयो़ने यिां अपने प़​़ाथ़दना स़थल भी बनवाये. इऩिे़सायनागॉग किा गया. अपनी हवहशष़​़स़थापत़य शैली और भव़यता के कारण ये सायनागॉग दश़दनीय िै़. और ऐहतिाहसक भी. इनके साथ यिूहदयो़ का अपना इहतिास भी जुडा िुआ िै. भारत मे़ यिूदी सबसे पिले कब आये इसका ठीक-ठीक पता निी़ हमलता. लेहकन यि अनुमान हकया जाता िै हक भारत मे़आकर बसने वाले हवदेशी मूल के लोगो़ मे़,यिूदी िी सबसे पिले थे. कोचीन का यिूदी समुदाय 16वी़सदी मे़यिां आ चुका था. और सन 1568 मे़हनह़मतद कोचीन के सायनागॉग को भारत मे़सबसे प़​़ाचीन माना जाता िै. बग़दादी शाखा के यिूदी बाद मे़ आये, 18वी़ सदी मे़. लेहकन उनके यिां आने और आकर


कोलकता मे़ यिूहदयो़ के पांच सायनागॉग िै़. इनमे़ से दो मे़ िी प़​़ाथ़दनाये़ िोती िै़. पिला सायनागॉग, हजसे सबसे प़​़ाचीन बताया जाता िै,कब का िै इसका ठीक-ठीक पता निी़ चलता. और दूसरे सायनागॉग को, फुटपाथ पर बत़दन-भाडे का अपना रोजगार-व़यापार फैला चुके व़यापाहरयो़ ने इस तरि घेर हलया िै हक अब उसका पता निी़चलता. अलबत़​़ा कैहनंग स़ट़ीट की भीड मे़भी, इसका नाम दूर से हदखाई देता रिता िै 'नेवेन शलोम' या नबी सलाम सायनागॉग. इस सायनागॉग का हनम़ादण सन 1825 मे़ िुआ था. सन 1911 मे़इसका पुनह़नदम़ादण कराया गया. इस सायनागॉग मे़एक अत़यल़प संख़यक धाह़मदक समुदाय के भारत मे़ आने और बसने का जातीय इहतिास सुरह़​़कत िै. लेहकन फुटपाथ पर अपना रोजगार-व़यापार फैला चुके कल़जधाहरयो़ ने इस सुरह़​़कत इहतिास का प़​़वेश-द़​़ार िी मूंद हदया िै. और हकसी को इसकी हफ़क़​़ निी़ िै. इहतिास की हफ़क़​़करने की शायद अब ज़ऱरत निी़बची.

पहले के दिनोंमेंगैर-यहूदियोंके दलए इस सायनागॉग मेंपं​ंवेश की मनाही थी. अब बस एक ही मनाही बची है दक सर खुला हुआ नहींहोना चादहए.

िायनागॉग के भीतर: थोि्ी चहल-पहल बसने के ऐहतिाहसक हववरण उपलल़ध िै़. इन हववरणो़के अनुसार भारत आने वाले, बग़दादी शाखा के,पिले यिूदी व़यापारी जोसेफ सेमाि थे. जोसेफ सेमाि सीहरया से चलकर 1730 मे़सूरत के समुद़ी तट पर पिुंचे थे. बाद मे़उनके वंशज मुंबई और कोलकता जैसे बडे व़यापाहरक नगरो़मे़ फ़ैल गये. यिूहदयो़के अहतहरक़त, हवदेशी मूल के हजन लोगो़ने भारत को अपना घर बनाया और यिां के उद़​़ोग-व़यापार को दूर-दूर तक फैलाया, उनमे़ पारसी भी िै़. पारसी ईरान से भारत आये. और यि हकतना हदलचस़प िै हक ईरान से आने वाले पारसी भी सबसे पिले सूरत के पास िी समुद़तट पर उतरे थे. यि कोई अकेला संयोग निी़बब़लक भारत मे़बसने वाले यिूहदयो़ और पारहसयो़के बीच और भी कई समानताये़िै़. पारहसयो़ने सूरत के पास िी सऩजान मे़अपनी सबसे पिली 'अग़यारी' की स़थापना की. 'अग़यारी' पारहसयो़का धम़दस़थल िै. यिूहदयो़ने भी, सूरत पिुंचने के बाद, विां अपने पिले सायनागॉग का हनम़ादण हकया था. लेहकन अब उसके ध़वंसावशेष िी बचे िै़. सूरत के उस सायनागॉग और कोचीन के सायनागॉग के बीच लंबा फासला रिा िै. पता निी़ क़यो़? सन 1568 मे़ हनह़मदत कोचीन के सायनागॉग को भारत मे़सबसे प़​़ाचीन माना जाता िै. बग़दादी यिूदी 1798 मे़ कोलकता पिुंचे. और अपनी धाह़मदक गहतहवहधयो़ के हलए उऩिो़ने यिां भव़य सायनागागो़ के हनम़ादण कराये.

सायनागॉग मे़रोशनी-पानी, साफ़-सफाई और देख-भाल के हलए यिां एक केयरटेकर िै हजसका नाम िै रल़बुल. उसके साथ काम करने वाले पांच और कम़दचारी भी. रल़बुल यिां यिां आने वालो़ को यिां के हनयमकायदे बताता िै, इसके वैभवशाली हदनो़ की दास़​़ान सुनाता िै और शहनवार-रहववार के प़​़ाथ़दना हदवसो़ की प़​़तीक़​़ा करता िै. ये दोनो़ हदन प़​़ाथ़दनाओ़ के हलए हनध़ादहरत िै़. कोलकता मे़ इने-हगने बचे िुए यिूदी इन प़​़ाथ़दनाओ़मे़शाहमल िोने के हलए यिां आते िै़. रल़बुल और उसके साथ के पांच कम़दचाहरयो़ का जीवन यापन भी इऩिी़ धम़ादवलंहबयो़ पर आह़​़शत िै. लेहकन इनकी संख़या हदनो़-हदन कम िोती जा रिी िै. पिले के हदनो़ मे़ गैर-यिूहदयो़ के हलए इस सायनागॉग मे़ प़​़वेश के हलए मनािी थी. अब अनुमहत हमल जाती िै. बस एक िी मनािी बची िै हक सर खुला िुआ निी़िोना चाहिए. अब प़​़वेश के हलए अनुमहत और सर ढांकने के हलए यिूदी टोपी भी रल़बुल के पास से िी हमल जाती िै. इस सायनागॉग की देख-भाल मे़ रल़बुल अपने खानदान की तीसरी पीढी का िै. उसके पूव़दज ओहडशा से यिां आये थे. लेहकन रल़बुल को यि निी़ पता हक देखभाल का यि हजम़मा अब कब तक उसके पास रिेगा? हजन हदनो़उसके पूव़दजो़को इस सायनागॉग की देख-भाल का हजम़मा सौ़पा गया था उन हदनो़कोलकता मे़यिूदी समुदाय के 6000 लोगो़की आबादी थी. आज कोलकता मे़यिूहदयो़के 20-25 पहरवार िी बचे िो़गे. कोलकता से यिूहदयो़ का पलायन सन 1948 से शुऱ िो चुका था. उसी वष़दइज़राइल एक यिूदी देश की िैहसयत के साथ अह़​़सत़व मे़आया, तभी से. अब किा निी़जा सकता हक ये बचे-खुचे पहरवार भी हकस हदन अपने देश का ऱख कर ले़गे? पारहसयो़ के साथ यिूहदयो़ की कई समानताये़िै़. लेहकन यि प़​़वृह़त उनसे अलग िै. एक बार यिां आकर बस गये पारसी यिी़के िोकर रि गये. वापसी की निी़सोची. लेहकन यिूहदयो़ ने अपने हलए देश वापसी का रास़​़ा खुला रखा. यिूदी जब यिां आये थे तब पृथ़वी पर उनका अपना कोई देश था भी निी़. अब इज़राइल िै, उनका अपना देश, जिां वे जा रिे िै़. मब़सजदो़या चच़​़ो़से अलग,यिूहदयो़के सायनागागो़के हनम़ादण हकसी एक हनध़ादहरत स़थापत़य शास़​़से बंधे िुए निी़हमलते. इस समय भारत मे़ कोई 33 सायनागॉग िै़. लेहकन सभी अलग-अलग स़थापत़य के भव़य हनम़ादण िै़. और दश़दनीय भी. इज़राइल से बािर,पुणे के सायनागॉग को शुक्वार | 1 से 15 मई 2017 31


समाज

प्​्मिला: पहली भारतीय मवश्​्िुंदरी

रब्बुल: िायनागॉग की देखरेख

एहशया का सबसे बडा सायनागॉग माना जाता िै. इसकी स़थापत़य शैली 'नव-गोहथक' काल की िै. ईरान और इराक से आने वाले बग़दादी यिूहदयो़ ने कोलकता से पिले मुंबई मे़ अपने सायनागॉग का हनम़ादण कराया था. विां के फोट़द इलाके का वि सायनागॉग अंग़ेजी परंपरा मे़ 'नव गोहथक' स़थापत़य शैली का िै. कोलकता मे़, कैहनंग स़ट़ीट का यि, नेवेन शलोम या नबी सलाम सायनागॉग पुनऩदव-जागरण काल के स़थापत़य वाली, गैहरक रंग की एक भव़य और दश़दनीय ईमारत िै. लेहकन फुटपाथ पर अपना रोजगार-धंधा फैलाये िुए क़ल़ज़ाधाहरयो़ने इसे घेर हलया िै. और इसके भीतर पिुंचने का रास़​़ा ढूंढ पाना अब एक मुब़शकल का काम िै. उनकी हकसी एक दुकान के बीच से, दो लोगो़ के गुजरने लायक एक पतली गली जैसी, हकसी तरि बच गयी िै. विी सायनागॉग की सीहढयो़तक पिुंचाती िै. ये बािरी सीहढयां िै़. सायनागॉग के मुख़य भाग तक पिुंचाने वाली सीहढयां इमारती लकडी की िै़. इसे िम उनके गभ़दगृि की तरि समझ सकते िै़. यि एक बिुत बडा िाल िै. इसके ठीक बीच मे़ इमारती लकडी का िी एक प़लेटफॉम़द या चबूतरा अलग से बना िुआ िै. चौकोर घेरे मे़बंधा िुआ. इस घेरे के भीतर बैठने के हलए दोनो़तरफ कुह़सदयां रखी िुयी िै़. ह़​़सयो़और पुऱषो़के हलए अलग-अलग. दोनो़ के बीच एक मुख़य आसन 'रल़बी' या उनके पुरोहित के हलए िै. जऩम से लेकर हववाि तक के, यिूहदयो़के सभी हवहशष़​़धाह़मक द संस़कार इस घेरे के भीतर संपऩन िोते िै़. इन हवहशष़​़संस़कारो़मे़'खतना' या 'हखतना' प़​़मुख िै. हनयहमत प़​़ाथ़दनाओ़ और अऩय अवसरो़ पर की जाने वाली धाह़मदक सभाये़भी इस मुखय़ िाल मे़िी िोती िै़. लेहकन इस घेरे से बािर. घेरे से बािर, बे़चो़की खडी कतारे़लगी िुयी िै़. और ऊपर,दोनो़तरफ हनकली िुयी बालकनी मे़ भी कतार से कुह़सदयां लगी िुयी िै़. पुऱष नीचे बैठते िै़ और ह़​़सयां ऊपर,बालकनी मे़. यिूदी, एक अत़यऩत प़​़ाचीन धम़द को मानने वाला परंपरावादी जाहतसमुदाय िै. इनके धम़दग़ंथ, संभवतः दुहनया की एक सबसे प़​़ाचीन हलहपहि​ि़​़ूमे़िै़. 'तोरा' इनका प़​़मुख धम़दग़ंथ िै. यि हि​ि़​़ूमे़िी हलहपबद़​़िै. इसे िज़रत मूसा ने सीधे ईश़​़र से सुना और हलहपबद़​़हकया था. सीधे ईश़​़र से प़​़ाप़त 'तोरा' को अत़यंत पहवत़​़ माना जाता िै. इसके पदो़ को धातु की मञ़​़ूषा मे़उत़कीण़दकरके सुरह़​़कत रखा जाता िै. यिूहदयो़मे़माऩयता िै हक 'तोरा' की हवद़​़मानता पृथ़वी के अह़​़सत़व से भी पिले थी. इसके पदो़ का पाठ यिूदी धम़ादचरण का एक प़​़मुख आधार िै. भारत मे़पारंपहरक ऱप से कोचीन के अहतहरक़त, गोवा, मुम़बई, चेऩनई और कोलकता को यिूदी बसािटो़ के के़द़ माना जाता रिा िै. लेहकन, 32 शुक्वार | 1 से 15 मई 2017

शीला रोहेकर: महंदी की पहली यहूदी लेखक

1948 मे़इज़राइल के अह़​़सत़व मे़आने के बाद हमजोरम और महणपुर से भी विां के यिूहदयो़के इज़राइल जाने का हसलहसला शुऱिुआ. तब उधर ध़यान गया. और परम़परावाहदयो़ ने हमजोरम और महणपुर के लोगो़ को यिूदी मूल का मानने से मना कर हदया. सन 2003-04 मे़उनका डीएनए परीक़​़ण भी कराया गया. लेहकन परीक़​़ण मे़वो कोई लक़​़ण निी़हमले जो उन लोगो़ के मध़य-पूव़ीय मूल को प़​़माहणत कर सकते. अलबत़​़ा, सन 2005 मे़ कोलकता मे़ िुए एक उदारवादी अध़ययन के हलए उनके यिां की कुछ ह़​़सयो़ के डीएनए परीक़​़ण हकये गये. और उनमे़ मध़यपूव़ी आनुवंहशकी के लक़​़ण बताये गये. लेहकन परंपरावाहदयो़ की ओर से इस अध़ययन की काफी आलोचना की गयी. आहखर, सन 2005 मे़ िी,इज़राइल से 'रब़लबयो़' या उनके पुरोहितो़ को आमंह़तत हकया गया. और एक धाह़मदक व़यवस़था दी गयी. मुख़य 'रल़बी' की उपब़सथहत मे़'हमकवेि' या पहवत़​़स़नान की रस़मे़पूरी करने के बाद उन लोगो़ का हवहधवत धम़ा​ा़तरण हकया गया. इसके बाद िी उऩिे़ समुदाय शाहमल हकया गया. लेहकन उऩिे़एक 'हवलुपत़ जनजाहत' की माऩयता प़द़ ान की गयी. 'हमकवेि' या पहवत़​़ स़नान की यि ह़​़कया धम़ा​ा़तरण के हलए अहनवाय़दिोती िै. सामाऩय तौर पर यिूहदयो़ की पिचान एक समृद़ व़यापाहरक समुदाय की िै. ये लोग बिुमूल़य रत़नो़ के अच़छे पारखी िोते िै़. और कोलकता के चाय व़यवसाय और जूट उद़​़ोग के हवकास मे इस समुदाय का बडा हिस़सा रिा िै. लेहकन इनका अपना इहतिास उद़​़ोग और व़यापार के अहतहरक़त भी िै. वि,इनके यिां की हवलक़​़ण प़​़हतभाओ़की उपलब़लधयो़ से समृद़िै. सन 1947 मे़ चुनी गयी पिली 'हमस इंहडया' या भारत सुंदरी,एस़टर हवक़टोहरया अि़​़ािम, भारतीय मूल की निी़ बब़लक कोलकता के बग़दादी यिूदी समुदाय की थी़. लेहकन उनका भारतीय नाम प़ह़मला था. प़ह़मला उन हदनो़की हिंदी हफल़मो़की ताहरका भी रिी़. एस़टर हवक़टोहरया या प़​़हमला को जब 'हमस इंहडया' घोहषत हकया गया, उस समय वि 'हमस' या कुमारी भी निी़थी़, बब़लक गभ़दवती थी़. और अपनी पांचवी़संतान की प़​़तीक़​़ा मे़थी़. पारहसयो़की तरि यिूहदयो़के यिां भी अपने जातीय समुदाय के भीतर िी हववाि की परंपरा िै. लेहकन कोलकता मे़जऩमी एस़टर हवक़टोहरया अि़​़ािम पारसी मूल की थी़और बग़दादी यिूदी मूल के सय़यद िसन अली ज़ैदी से हववाि करके यिूदी िुयी थी़. यि उनका दूसरा हववाि था. बाद मे़, सन 1963 मे़सय़यद िसन अली ज़ैदी पहकस़​़ान चले गये. लेहकन प़​़हमला ने n भारत मे़िी रिने का फैसला हकया. (लेखक हिंदी के जाने-माने कथाकार िै़.)


खानपान अर्ण कुमार ‘पानीबाबा’ (पानी बाबा निी़रिे. पानी बाबा अमर रिे़. समाज के हलए जीने वाला लेखक और काय़दकत़ाद कभी मरता निी़. अऱण कुमार पानीबाबा ने मौसम के अनूक्ल बनने वाले भारतीय व़यंजनो़पर हलखकर स़वाद और सेित संबंधी समाज की समझ को हजंदा रखा िै. उनके कालम को बंद करना संवाद के अहवरल प़​़वाि को बंद करना िै. इसहलए शुक़वार के सुधी पाठक बाबा की रसोई मे़हकहसम-हकहसम के स़वाद आगे भी पाते रिे़गे.)

तरावट मुग़लिया कुल़फ़ी की

जब बफ्फबनाना आ गया तो कुल्फी बनाना कोई बड्ी बात नही्थी. उसके साथ फलूदा भी प्​्चलन मे्आया.

लू

काट या लौकाट चीनी मूल का फल माना जाता िै. अपने यिां हनघंटु मे़ इसका हजक़​़निी़हमलता और पह़​़िम से जो पुसक ़ े़खान-पान-खाद़​़ान वगैरि पर आती िै़उनमे़भी इसका हजक़​़नदारद िी िै. यूरोप-अमेहरका मे़ यि फल िोता िी निी़, चीन मे़भी बिुत कम िोता िै. बिुत नाजुक फल िै इसहलए हनय़ातद भी निी़िो सकता यानी साधारण लिजे मे़किे़तो यि नायाब फल हफरंगी गोरे को नसीब िी निी़िै.़ बस अभी 40-50 बरस पिले तक अपने यिां बिुतायत िोता था. लौकाट की उपयोहगता पर तब़सकरा कर चुके िै.़ यि फल डाहयबटीज और मूत़संबधं ी बीमाहरयो़के हलए कारगर दवाई माना जाता िै. जब बिुतायत मे िोता था तो अपने दोआब मे़पुदीने, िरी हमच़दके साथ रोजना इसकी चटनी हपसा करती थी. राजेद़ ़ हसंि बेदी के मशिूर उपऩयास, ‘एक चादर मैली सी’ मे़ चटनी करारी, पुदीने वाली’ का बड़ी नफासत से हजक़​़िुआ िै. रानो ने सुबि-सुबि देवर-पहत के हलए तंदरू गम़दकर पराठे सेक ़ े िै,़ पड़ोसन से ताजा मक़खन मांगने के हलए छोटे लड़के को उधर भेजा िै. बस उसी क़ण ़ चटनी करारी पुदीने वाली का हजक़​़कर हदया िै. बात हसफ़फखान-पान की संसक ़ हृ त की निी़िै, बदलते िुए लैड ़ स़कपे की भी िै, हवशेष हचंता का मुद़ा यि िै हक इन पहरब़सथहतयो़का हजक़​़साहित़य से नदारद िै. इस संदभ़दमे़िमारा आग़ि़ िै हक बसंत ऋ तु के जाने से पिले बच़​़ो़ का लौकाट और शितूत से पहरचय जऱर करवा दे.़ शितूत असाधारण गुणो़से भरपूर फल िै. रसभरी की तरि कैस ़ र का इलाज िै. हवशेषऱप से गले के कैस ़ र मे़शितूत का शब़तद थ़​़ोट पेट़ की तरि लगाना चाहिए. हदन मे़ तीन-चार बार एक-डेढ़चम़मच काली हमच़)द चूणद़हमलाकर चाटना चाहिए. शितूत शब़तद स़वस़थ व़यब़कतयो़ के हलए भी लाभकारी िै. हवशेष ऱप से हजऩिे़गाने का शौक िै़ हपछले 30-40 बरस से जागऱक माता-हपता अपने बच़​़ो़को नाश़ते के साथ हवटाहमन-बी-कांपल ़ कै स ़ का कैपस़ ल ु हदया करते िै.़ िमारा सुझाव िै हक परंपरावादी माता-हपता बच़​़ो़को दो चम़मच शितूत का शब़तद और दो चम़मच रसभरी का जैम हखलायेग़ े तो बच़​़ो़को हकसी भी हकस़म के खहनज (हमनरल) का अभाव निी़रिेगा. तपेहदक/कैस ़ र से भी सिज िी बचे रिे.़े रसभरी के जैम का नुसख ़ ा पिले हलख चुके िै.़ आज शितूत का शब़तद बनाकर देखते िै.़ ताजे शितूत (पके-मीठे, बेशक खट़​़ेभी, लेहकन पके िुए िोने चाहिए) को हमक़सी मे़चलाकर रस हनकाल ले.़ इस रस मे़चौगुना हमठास चाहिए. िमारे नुसख ़ े के मुताहबक देसी खांड मे़ बनी हनखारी का बूरा िी उपयुकत़ मीठा िै, हजससे शितूत का शब़तद बनना चाहिए. मोटा-मोटी नाप यिी िै हक एक हगलास शितूत का रस िो तो चार हगलास शुद़बूरा हमला कर दो उबाल पका ले.़ चलाते-चलाते-हिलाते-हिलाते ठंडा करे़और छान-िनथार कर कांच की बोतल मे़भर कर रख ले.़ हजन बच़​़ो़को गाने का शौक िो वि एक चम़मच शब़तद ह़​़तकुट के साथ हनयहमत चाटे.़ गला सुरीला बनेगा, कान मे़ इंफके श ़ न से बचाव िोगा, दांत भी ठीक रिेग़ .े

वायदे के मुताहबक कुलफ ़ ी, फलूदा, गो़द कतीरा, मऱआ के बीजो़के शब़तद का हकस़सा किना िी चाहिए. सन 1498 मे़वास़कोहडगामा हिंदस ु ़ान पिुच ं ा तब तक दुिनया मे़किी़भी करखहनया बफ़फनिी़बनायी जाती थी. 1525-26 मे़बाबर मध़य एहशया से आकर आगरा बस गया. यिां उसे बफ़फजैसा ठंडा पानी निी़हमला और गह़मयद ो़मे़प़​़ाकृहतक बफ़फभी उपलल़ध निी़थी. सन 1775 का सर रॉबट़दबारबर का प़क ़ ाहशत लेख िै हक इलािाबाद से कलकत़​़ेतक उस जमाने मे़ ऐसे अनेक कारीगर थे जो हदसंबर से फरवरी के बीच रात की प़​़ाकृहतक ठंडक से बफ़फजमा कर इकि़​़ी कर लेते थे और गह़मयद ो़मे़उसका व़यापार कर हलया करते थे. बात साफ िै हक मुगल काल मे़बाबर से औरंगजेब के समय मे़ हिंदस ु ़ान मे़ बफ़फ बननी शुऱ िो गयी. (इंहडयन साई़स एंड टेकऩ ालॉजी इन एटी़थ सेच ़ रु ी-धम़पद ाल द़​़ारा संकहलत) बफ़फबनाना आ गया तो कुलफ ़ ी बनाना कोई बड़ी बात निी़थी. बफ़फमे़ नमक या शोरा डालकर फ़​़ीहजंग हमक़सर बन जाता था. कढ़ेदूध को बराबर मात़​़ा मे़रबड़ी के साथ हमलाकर अच़छी तरि हबलो लेते िै.़ अब आधा हमनट हमक़सी मे़चला सकते िै.़ पुराने जमाने मे़हमट़​़ी के कुलि़ ड़खोल मे़मलाई दूध भरकर हमट़​़ी का ढक़ऩ आटे से चस़पा कर देते और इन कुलि़ ड़ो़को एक मटके मे-़ ह़​़फहजंग हमक़सर मे़डालकर हिलाते तो घंट-े दो घंटे मे़ अच़छी सख़त कुलफ ़ ी जमकर तैयार िो जाती. माल मे़इलायची, केसर, बादाम, हपस़​़ा और हचरौ़जी भी डालते िै.़ आजकल यि कुलफ ़ ी ह़​़फज के फ़​़ीजर मे़ भी जमा सकते िै.़ हमठास कम िी रखे.़ फलूदे के हलए गेि,ूं चावल, जौ और हसंघाड़ेके आटे को कपड़े से छानकर मशीर से उसकी सेव़ ई बना लेते िै.़ पानी मे़ उबालकर ठंडा कर लेते िै.़ कतीरा नाम की कांटदे ार झाड़ी पर जो गो़द उपलल़ध िोता िै उसे बराबर मात़​़ा मे़ गो़द बबूल के साथ हमलकर हभगो लेते िै.़ एक कुलफ ़ ी मे़एक-डेढ़चम़मच भीगा गो़द कतीरा भी डाल लेते िै.़ मऱआ-तुलसी की जाहत का पेड़िोता िै. हवश़​़ास हकया जाता िै हक घर के आसपास तुलसी की तरि लगा दे़तो सांप हनकट निी़आते. मऱआ के बीज लगभग तुलसी के बीजो़की तरि िोते िै.़ बस रंग मे़थोड़ेकाले. इऩिे़भी हभगोकर मामूली मात़​़ा मे़कुलफ ़ ी शरबत मे़हमला लेते िै.़ एक कुलफ ़ ी लगभग डेढ़छटांक की िोनी चाहिए, उसमे़दो तोला फलूदा, आधा तोला गो़द कतीरा, माशा दो माशा मऱआ के बीज, एक-दो चम़मच रबड़ी, आधी छटांक बफ़फका कुट और एक ताेला केवड़ेका शब़तद डालकर यि मुगहलया कुलफ ़ ी का घोल तैयार िोता िै. तीस-चालीस बरस पिले तक जामा मब़सजद, चांदनी चौक, फतेिपुरी, सदर, बाड़ा हिंदरू ाव, पिाड़गज ं मे़ ऐसे अनेक कुलफ ़ ी वाले थे जो यि शािी कुलफ ़ ी बनाया और हखलाया करते थे. अब तो 20-30 बरस से कोई ऐसा हठया हदखाई निी़देता. िो सकता िै लािौर, अमृतसर और लखनऊ मे़अभी इस अंदाज की कुलफ ़ ी हमलती िो. जब भी उधर जाना िोगा तो लौट कर िालात से आपको भी अवगत करा देग़ .े n शुक्वार | 1 से 15 मई 2017 33


सादहत्य

‘वाक’ करवता द्व्ै ार्रक ष ी एक ऐसा आयोजन था रजसमे्पंदह् भारतीय भाराओ्की करवता की संवदे ना उसके कथ्यो्, सरोकारो् और रशल्प की रवरवधता व्यत्त होती रही और उससे जुड्े समकालीन जीवंत सवालो्पर भी साथ्क ष बातचीत भी हो सकी.

कलवता मे् साथ चलते हुए मंगलेश डबराल

जा

ती िुई सह़ददयां और आती िुई गह़मदयां थी़ जब हदल़ली मे़ िोने वाले सांस़कृहतक आयोजन उतार पर आने लगते िै़ और संगीत, नृत़य, कला, रंगमच के काय़दक़मो़ की गिमागिमी मे़ हशहथलता आ जाती िै. लेहकन सह़ददयो़ भर हदन मे़चार-पांच की संख़या मे़िोने वाले इन आयोजनो़ की भरमार के बीच ऐसे काय़क द म़ बिुत कम िोते िै,़ जो भाषाई हवधाओ़, कहवता, किानी, उपऩयास आहद पर के़ह़दत िो़. ऐसी रचनाओ़ पर चच़ादओ़ के आयोजन जऱर कुछ प़​़चहलत िुए िै़ जो लोकह़​़पय संस़कृहत या मास मीहडया के हनकट पड़ती िो़. शायद इसकी वजि यि िै हक हदल़ली का सुहवधासंपऩन वग़द खासा उत़सवधम़​़ी िै जो मनोरंजन चािता िै, तमिल स्वर: रेवती कुट्ी, िनुष्य पुतीरन और िलिा

34 शुक्वार | 1 से 15 मई 2017

िल़का-फुल़का हवचार भी उसे स़वीकार िै, लेहकन हदल और हदमाग को झकझोरनेहवचहलत करने वाली हवधाओ़से वि बचता िै. िाल के वष़​़ो़ मे़ कुछ बदलाव आया िै. कुछ समय पिले िुआ ‘उद़​़ान मे़शल़द’ एक ऐसा िी आयोजन था. और अब अप़​़ैल के आरंभ मे़रजा फाउंडेशन की ओर से से िुई ‘वाक’ कहवता द़​़ैवाह़षदकी ने मािौल मे़बिुत साथ़दक स़पंदन पैदा हकये. यि प़ख़ य़ ात हचत़क ़ ार सैयद मोिम़मद रजा और जऩमशती वष़द मे़ हिंदी के मिाकहव मुब़कतबोध को समह़पदत था हजसमे़ श़​़ोताओ़ की मौजूदगी भी प़​़भावशाली थी. कहवता पाठो़के अलावा आयोजन का एक उल़लेखनीय पिलू था- आज के तीन सरोकारो़ पर पहरसंवाद: कहवता और स़मृहत, कहवता और स़वाधीनता, कहवता और आत़म-हववेक. इन

पहरसंवादो़ मे़ हवहवध लेहकन हवचारोत़​़ेजक बातचीत िुई हजसका मकसद हकऩिी़ हनष़कष़​़ो़ तक पिुंचने की बजाय उनके हवमश़दको ज़ऱरी और प़​़ासंहगक बनाना था. ‘वाक’ के प़​़मुख आयोजक और कहव अशोक वाजपेयी ने शुऱ मे़यि प़​़स़थापना की हक’ आज अहभव़यब़कत की स़वतंत़ता पर कई तरि के आक़​़मण िै़ और कहवता का यि काम िै हक वि आज़ादी की अवधारणाओ़ को साकार करे.’ और यि भी हसफ़फ संयोग निी़ था हक पहरसंवादो़ मे़ व़यक़त हकये गये ज़यादातर हवचार स़मृहत और हववेक से गुजरते िुए कहवता और स़वाधीनता पर के़ह़दत िो गये, क़यो़हक मौजूदा समय मे़अहभव़यब़कत की स़वाधीनता एक ऐसा मुद़ा बना िुआ िै जो बौह़​़दक वग़दको हवचहलत कर रिा िै. पंद़ि प़​़मुख भाषाएं और तै़तालीस कहव. असहमया, बांग़ला, अंग़ेज़ी, गुजराती, हिंदी, कऩनड, कश़मीरी, मलयालम, महणपुरी, मराठी, ओहडया, पंजाबी, तहमल, तेलुगु और उद़दू. हनहलम कुमार, सुबोध सरकार, केकी दाऱवाला, अऱधं हत सुिह़ म़ ड़यम, अनद ठाकोर, कांजी पटेल,सहवता हसंि, एच एस हशवप़​़काश, ताहरणी शुभदाहयनी, के सह़​़चदानंदन, पी पी रामचंद़न, अनीता तंपी, प़​़फुल़ल हशलेदार, हवनोद कुमरे, कुट़ी रेवती, मनुष़य पुतीरन, सलमा, गोरटी वे़कऩना, शमीम िनफी आहद और बिुत से हबलकुल युवा नाम, हजनकी कहवता नये सपने देखती िुई और हवरोध दज़द


करती िुई थी. इतने सारे कहवयो़ का समवेत पाठ इससे पिले हदल़ली मे़निी़िुआ िोगा. यि भी गौरतलब था हक तैतालीस मे़से पै़तीस कहव या तो हबलकुल युवा थे या युवावस़था को लांघ चुके थे़, लेहकन वयोवृद़ता से काफी दूर थे. इसीहलए उनकी रचनाओ़मे़नयी संवदे नाओ़को साफ़ पिचाना जा सकता था और उस समकालीनता को भी, जो सभी कहवयो़ को आपस मे़ जोडती िै. अब जबहक कहवता का संसार भी हसकुड रिा िै या उस पर व़यब़कतवाद िावी िोता हदखाई दे रिा िै, ‘वाक’ मे़इतने सारे काव़य स़पंदन, भाषाओ़ की बिुत सारी भंहगमाएं और फुसफुसािटे़ एक साथ संवाद करती रिी़ और यि भी रेखांहकत िुआ हक कहवगण अकेले निी़ िै़, वे दूसरे कहवयो़ के भीतर, उनकी संवेदना मे़ हशरकत कर रिे िै़ और उनके दरवाजो़पर दस़​़क दे रिे िै. उनका अकेलापन अगर िै भी तो वि कबीर के पद और कुमार गंधव़दके गाये ‘बिुहर अकेला’ की तरि िै हजसमे़ बिुवचनीयता िै और दरअसल बिुत से लोगो़ का अकेलापन िै. मराठी कहव प़​़फुल़ल हशलेदार की ‘रास़​़े पर’ इस बिुवचनीयता और सामूहिकता को मनुष़य की यात़​़ा के ऱप मे़ दज़द करने वाली कहवता थी: ‘रास़​़ेपर चलता िूं तो कोई न कोई आदमी साथ मे़चलता रिता िै

'वाक’ कमवता द्​्ैवाम्षाकी िे्भारतीय भाषाओ्के कमव: प्​्भावशाली उपस्सथमत और पूरे रास़​़ेमे़तो बिुत से लोग छोड कर आये िुए घर के बारे मे़ सोच रिे िै़’ ठीक उसकी वक़त पूरे शिर मे़ यिं नया घर भी धीरे-धीरे पुराना िोता एकाध लाख लोग तो गया िै मेरे चलने का साथ देते रिते िै और एक नये घर की बुहनयाद रखने के और पृथ़वी पर करोड़किी़न किी़ हलए बच़​़ेघर छोड कर चले गये िै़’. कीड़ेचीहटयां जीव-जंतु जानवर असम के दूसरे युवा कहव प़​़हतम बऱआ की सभी मेरे साथ चलते िै़ कहवता मे़ घर की जगि शिर था और ऐसे िी बदलावो़ और हवरोधाभासो़ के हववरण थे. मै़ऱक गया तो भी दरअसल, हवरोधभास की प़ह़वहधयां समकालीन वे चलते रिते िै़ कहवता की हवहशष़​़ पिचान बन चुकी िै़, चािे वि हकसी भी भाषा मे़हलखी जा रिी िो: यिी मान कर ‘मेरे छोटे से शिर मे़सभी घटनाएं हक मै़उनके साथ-साथ पिले की तरि घहटत निी़िो रिी थी़ चल रिा िूं.’ छोटी झोपहडयो़ की जगि बडी-बडी िाल के वष़​़ो़ मे़ कहवता के अनुभव और अट़​़ाहलकाएं कथ़य मे़एक प़स़ थ ़ ापना पहरवत़नद यि िुआ िै हक शॉहपंग मॉल आहद बन रिे थे उसमे़ मिा-वृत़ांत बिुत कम िो गये िै़, वि िौले-िौले लोगो़की िंसी और आंसुओ़के जीवन के छोटे अंशो़-प़​़संगो़-दृश़यो़ की तरफ रंग भी बदल रिे थे मुड़गयी िै और उनके ज़हरये यथाथ़दकी चीरतुम़िारी हदव़य-सजल आखो़ से आंसू भी फाड कर रिी िै. उसमे़िमारे चारो़ओर िो रिे मोती निी़रिे थे अब.’ बदलावो़ और हवस़थापनो़ की आिटे़ िै़. असम अंग़ेजी कहव आनंद ठाकोर की कहवता मे़ के युवा कहव मृदुल िलोई इसे पुराने और नये यिी घर एक दूसरे ऱप मे़ आया. उऩिो़ने मुंबई घर की हवडंबनाओ़मे़व़यक़त करते िै़: िमले के कसूरवार और फरीदकोट के रिने ‘िम अपने पुराने घर को वाले कसाब की आहखरी इच़छा- ‘घर वालो़को हमलना िै’- आहखरी इच़छा को सूफी कहव बाबा छोड आये िै़ और एक नये घर के साफ़ फश़दपर बैठकर फरीद से जोड़कर एक मह़सदया जैसा प़​़स़ुत शुक्वार | 1 से 15 मई 2017 35


सादहत्य

कमवता पाठ िे्श्​्ोता: िुनते है्गौर िे हकया. असहमया के िी वहरष़​़और हिंदी संसार के हलए भी पहरहचत नीहलम कुमार की ‘नमक’, ‘धूप’, ‘दरवाजा’, ‘बाहरश’ जैसी कहवताएं बुहनयादी भौहतक चीज़ो़के आंतहरक जीवन को अहभव़यक़त करती थी़: ‘उसका ह़दय ऊंचा पव़दत िै मेघ बनकर मै़उसके पास जाता िूं स़पश़दकरता िूं

कभी-कभी उसके पथरीले वक़​़से टकराकर मै़नीचे आ जाता िूं पिाड़, पेड़-पौधो़और घरो़को हभगोते िुए लोग सोचते िै़ बाहरश आयी िै.’ हवडंबना, व़यंग़य और हवऱप आधुहनक कहवता के पहरहचत और ह़​़पय औज़ार िै़. ‘वाक’ मे़पढ़ी गयी़बिुत सी कहवताएं इऩिी़तरकीबो़मे़ से यथाथ़द की हवहभऩन शक़लो़ को न हसफ़फ दज़द करती थी़, बब़लक उनमे़ मुखर और अमुखर दोनो़ तरि का प़​़हतरोध भी शाहमल था. मराठी के दहलत कहव हवनोद कुमरे, पंजाबी के मदन वीरा, तहमल के मनुष़य पुतीरन, गुजराती के कांजी पटेल, महणपुरी के शरदचंद़ हथयम, उद़दू के अहभषेक शुक़ल और शमीम िनफी आहद की कहवताओ़ मे़ व़यवस़था, सत़​़ा और िमारे समय के अमानवीकरण की तीखी पडताल थी. युवा ग़ज़लगो अहभषेक शुक़ल की कुछ रचनाएं अपने व़यंग़य-बोध से एक गिरा अस़वीकार पेश करती थी़: ‘मै़अपने आप से हबलकुल भी मुतमइन निी़ िूं/ ये तुमने मुझे क़या बनाया िै, हफर से 36 शुक्वार | 1 से 15 मई 2017

अशोक वाजपेयी: कमवता के िरोकार

बनाओ.’ जाने-माने शायर और आलोचक शमीम िनफी मे़ इसी अस़वीकार का एक और पिलू नजर आता था: ‘तो ये िोता िै िम घर से हनकलना छोड़देते िै/़ कभी अपनी गली के लोग जब अच़छे निी़लगते.’ ‘वाक’ मे़पढी गयी बिुत सी कहवताओ़मे़ राजनीहतक स़वर भी साफ़ सुने जा सकते थे. हिंदी के युवा कहव सुधांशु हफरदौस की कहवता ‘तानाशाि’ के बारे मे़ किती थी: ‘वि पिले चूिा था/ हफर हबलार िुआ /हफर देखते–देखते शेर बन गया/खबर यिी िै हक वि शिद चाटतेचाटते/ खून चाटने लगा िै.’ इसी तरि, मराठी के हवनोद कुमरे की कहवता बतलाती थी: ‘व़यवस़था ने पूरे कैनवस को हवनाश के रंग मे़रंग हदया िै िर छोर तक उऩिो़ने हफर से माइन कांफ पढ हलया िै इहतिास को दोिराते िुए’. स़​़ीवादी अनुभवो़को व़यक़त करने के स़​़र पर भी यि आयोजन बिुत कामयाब रिा. अनीता तंपी, कुट़ी रेवती, सलमा और ताहरणी जैसी अंग़ेजी-मलयालम-तहमल-कऩनड़ महिलाओ़की रचनाएं अपने व़यब़कतत़व, रोजमऱाद की गहतहवहध और आंतहरक दुहनया के हववरणो़ से िमारे समय पर राजनीहतक हटप़पहणयां करती थी़. सलमा की एक कहवता किती थी: ‘जब मै़सो जाती िूं तो भयभीत तुम जगे िुए रिते िो मेरी िल़की सी गहतहवहध भी तुम़िे़डरा देती िै तुम़िारा लोिे का आकार गल जाता िै.’ ऐसी कहवताएं भी कम निी़ थी जो प़​़ेम, स़मृहत, स़वप़न, दाश़दहनकता और मृत़यु को

संबोहधत थी. हिंदी की सहवता हसंि, उदयन वाजपेयी और ओहडया की मोनाहलसा जेना की रचनाएं इसी श़​़ेणी मे़रखी जाये़गी. मलयालम के वहरष़​़कहव के सह़​़चदानंदन ने ताओधम़द के मंहदर मे़ जाने की प़​़ह़कया को व़यक़त हकया, जिां सारे शल़द पीछे छोडकर हसफ़फ अपना मौन लेकर जाने का अनुभव था. उनकी ‘िक़लािट’ कहवता उत़पीहड़त मनुष़यता की शब़कत के ऱपक की तरि थी. मलयालम के िी पीपी रामचंद़न की कहवताएं अपने हमतकथन और मौहलक नज़हरये के हलए सरािी गयी़. ‘सरल’ शीष़दक से उनकी एक छोटी सी कहवता हचहडयो़के अह़​़सत़व के हबंबो़की माह़मक द ता हलये िुए थी़: ‘एक मीठी सी चीख से ज़यादा कुछ निी़ जो किती िै, मै़यिां िूं. मिज़ एक हगरा िुआ पंख जो किता िै, मै़यिां था अंडे सेने की एक ऊष़मा जो किती िै, मै़यिां िोऊंगी कैसे इतने संक़ेप मे़ हचहडयां बतलाती िै़अपना जीवन.’ रामचंद़न की यि कहवता ‘वाक’ कहवता द़​़ैवाह़षदकी के भी एक और पिलू को व़यंहजत करती थी़ और वि था हक पंद़ि भाषाओ़ की समकालीन कहवता अपनी हवपुलता, भाषा और अथ़द की समकालीनता को हसफ़फ ढ़ाई हदन की संह़कप़त अवहध मे़ इस तरि अहभव़यक़त कर गयी हक उसकी याद लंबे समय n तक बनी रिे.


सादहत्य/कदवता

सरबजीत गरचा की कबवताएं पता िी निी़चला कब सारे जंगल के पंहछयो़को बिेहलये ने तोता बना डाला

मुख़बिर बिशाि रात के घने अंधेरे मे़भी हकसी ने मुझे पिचान हलया था मुझे निी़पता था हक मै़भी उसके हनशाने पर था हिंदी और अंग़ेजी के युवा कहव. अंग़ेजी, मराठी और हिंदी कहवता के परस़पर अनुवाद के हलए भी चह़चदत िै़. अंग़ेजी मे़दो कहवता संग़ि प़​़काहशत. हिंदी मे़पिला कहवता संग़ि शीघ़​़प़​़काश़य. ईमेल: sarbjeetgarcha@gmail.com

एकरंग मै़ने उसे बस इतना िी किा था हक िरे ने िी मुझे िरा िरे ने िी मेरी आंखो़की वीरान वाहदयो़को भरा उसे लगा हक मै़अपनी नाह़​़सकता को तजने लगा िूं मोहित भक़तो़की क़तार मे़खडा नाम भजने लगा िूं कृतज़​़ता से अहभभूत वि दूत मुझे एक हवशाल भवन के बग़ीचे मे़ले गया जिां वे सारे पंछी इत़मीनान से बैठे दाना चुग रिे थे जो हकसी किानी मे़ पूरा का पूरा जाल िी ले उडे थे बिेहलये ने उऩिे़अपने हदल मे़ जगि दे दी थी बग़ीचे मे़रिकर अब उऩिे़ जी भरकर हचहचयाने की आज़ादी थी मै़तो बस जंगल की िहरयाली चािता था पर जो िहरयाई मुझे दूत ने हदखाई उसकी एकजान एकरंगता और एकस़वरता से बाग़-बाग़ िुआ एक भी पंछी अब हरिाई निी़चाि रिा था

मेरे सपने मे़हफर हजस तीखे उजाले ने से़ध लगायी वि उसी हवशाल गुफ़ा मे़हछपे ख़ज़ाने से आ रिा था हजसकी हसमहसम चाबी नी़द मे़भी मेरे कल़ज़े मे़थी लेहकन इससे पिले हक मेरे घर के दरवाज़े़पर बनाया गया ताज़ा हनशान मेरा हठकाना उघाड देता हकसी ने उसकी नक़ल अनहगनत दरवाज़ो़पर दोिरा दी और सुबि शिर की सबसे ऊंची मीनार पर खडे िोकर अपना नाम सारे ज़माने की जान बचाने वाला पैग़ंबर बताया जाने़तो हफर भी गयी़ लेहकन हसफ़़फउऩिी़लोगो़की हजनके पास न तो हकसी ख़ज़ाने की चाबी थी न वैसी हकसी चाबी की कोई ख़बर बाक़ी सारे संपऩन घरो़के दरवाज़े अद़​़तन नैनोटेक़नॉलजी से बनाये हकसी ऐसे पदाथ़दके बने थे जो उसे हदये गये बडे-छोटे घाव

ख़ुद िी भर लेता िै और इस बार क़त़ल के इरादे से आये चोर हसफ़़फचालीस निी़थे

बि​िास अगर बात राजा के हलबास तक िी िोती तो आज भी भीड मे़ कोई न कोई बच़​़ा चीख उठा िोता और िमारी आंखे़खुल गयी िोती़ लेहकन इस बार अपना पै़तरा आज़माने से पिले दज़​़ी ने कोई जोहखम निी़उठाया राजा की पोशाक हसलने से पिले िी एक ऐसी सुई से सबके िो़ठ हसल डाले जो थी िी निी़ एक ऐसा सुरमा सबकी आंखो़मे़डाल हदया जो था िी निी़ अब राजा के साथ-साथ मुग़ध प़​़जा भी उस अद़​़त हलबास को देख रिी िै जो िै िी निी़.

पुकार अकेला खडा िूं एक डरावने जंगल की सीमा पर तेज़ी से फैल रिी इस नारंगी सवेर मे़ गडहरये लडके की मदद के हलए दी गयी दाऱण पुकार िमेशा िी झूठी निी़थी मुझे अपने कसमसाते भय से बािर हनकालने को आज वि लडका ख़ुद िी आ जाता पर उसे उसकी बढती पुकारो़समेत ग़ायब कर हदया गया और अब अगर मै़हचल़लाऊंगा तो ख़ुद िी खूंख़्वार भेहडया किलाऊंगा. n शुक्वार | 1 से 15 मई 2017 37


सादहत् मास्यट/कहानी हेड

र से वि हनकला तो यि सोचकर था हक बािर चक़​़र मार आने से तबीयत जरा बिल जायेगी, लेहकन िुआ इसका उलटा िी. अभी कुछ िी देर िुई िोगी हक उसे अजीब-सी अनुभहू त िोने लगी. जैस-े जैसे वि आगे बढ़ता, उसे लगता जैसे कोई उसका पीछा कर रिा िै. एकबारगी तो उसने सोचा हक आम रास़​़ा ठिरा. कोई न कोई तो आगे-पीछे चलता िी रिेगा. इसमे़घबराने जैसी क़या बात िै! िर वक़त खुद को लेकर इस तरि सशंहकत िोना कोई अच़छी बात जो क़या िुई? वि सोच िी रिा था हक ऐन इसी वक़त उसे पीछे से हकसी इंसान के आने की आवाज अपने बिुत करीब मिसूस िोने लगी. घबरािट मे़ जैसे िी उसने पलटकर देखने का मन बनाया, उसे लगा हक पीछे से आ रिी आवाज एक झटके मे़किी़दुबक गयी िै. उसने सोचा, क़या आवाजो़के भी कान िोते िै़. इस सोच के साथ उसने हफर पीछे मुड़कर देखने का हवचार िी छोड़हदया. अब वि आगे की तरफ बढ़ना चािता था, लेहकन हफर यि देखकर हठठक िी गया हक उससे कुछ दूर आगे की तरफ चल रिा कोई अनजान भी अचानक ऱक गया िै. तो क़या मेरे आगे-पीछे चलते लोग मुझ पर नजर रखे िुए िै?़ उसने अपन आप से पूछा और हफर सड़क हकनारे पड़े एक बड़े से पत़थर पर लधर गया. वि कुछ इस तरि लधरा िुआ था हक अपने आगे और पीछे, दोनो़तरफ समान ऱप से देख सकता था. उसने एक बार अपने दाये़और हफर अपने बाये़ नजर दौड़ायी तो पाया हक करीब-करीब समान दूसरी पर एक-एक शख़श

हिंदी के जाने-माने कथाकार और पत़​़कार. प़​़मुख किानी संग़ि: ‘अपने साथ’, ‘चेिरे’, जाल, इक़​़ीस किाहनयाँ, हमट़​़ी की औलाद‘. यात़​़ा संस़मरण: पूब़शकन के देश मे़. पूब़शकन पुरस़कार समेत कई पुरस़कारो़से सम़माहनत. ईमेल:darpan.mahesh@gmail.com 38 शुक्वार | 1 से 15 मई 2017

अपने जैिे लोग कहानी

महेश दप्मण

सुस़ाने वाले अंदाज मे़बैठा जऱर लग रिा िै, लेहकन नजर बराबर उसी की गहतहवहधयो़ पर बनाये िुए िै. ‘तो क़या ये लोग भी मेरे ऱक जाने की वजि से ठिर गये िै.़ आहखर कौन िोगा हजसने इऩिे़ मुझ पर नजर रखने के हलए किा िोगा.’ उसने सोचा और हफर इस खयाल से बुरी तरि घबरा गया हक क़या इसकी वजि विी िोगी जो वि सोच रिा िै या... सोचते-सोचते, वि अपने भीतर क़या उतरता गया, उसे लगा हक ऐसी तो कई वजि िो सकती िै़ हजनसे लोगो़ को उस पर नजर रखने की जऱरत मिसूस िोने लगे. उसने अपने सर को एक जोरदार झटका हदया तो उसे लगा हक उसमे़ से ढेर-सारी धूल झड़ रिी िै. उसे यि प़​़योग बड़ा सुक्नदेि मिसूस िुआ. लेहकन उसे लगा धूल तो उसके हदमाग पर भी जमी िै. उसने मन बनाया हक हदमाग पर जमी िुई धूल को भी अच़छी तरि से झाड़कर िी आगे बढ़ना ठीक रिेगा. लेहकन जाने क़यो़, हजतनी कोहशश वि धूल झाड़ने की करता, उतनी िी उसकी घबरािट भी बढ़ती जाती. दरअसल, रि-रि कर उसका ध़यान उन वजिो़ की तरफ चला जा रिा था हजनके चलते वि

दूसरो़के हलए हनगरानी का केद़ ़बना िुआ था. उसने एक-एक कर उन वजिो़पर खुद िी हवचार-हवमश़द करना चािा. लेहकन हफर अपने इस हवचार के साथ वि खुद पर िी िंस हदया‘हवचार-हवमश़द क़या बला िै जी! अकेले तो एकालाप िोने वाला िुआ. अरे हवचार-हवमश़दिी करना िै तो हकसी दूसरे को खोजकर तो ले आओ!’ हवचार तो बह़ढया िै, उसने सोचा िी था हक अपने िी भीतर से आती एक आवाज ने उसे चौ़का हदया- ‘निी़हमलेगा, यिी सोच रिे िो न तुम! आज के समय मे़ऐसा इंसान खोजना कोई आसान काम थोड़े िी िै जो सिज भाव से इस सब मे़ भागीदारी कर सके! अच़छा, ऐसा करो, तुम अपनी िी दो फांक कर लो. खुद को हवभाहजत व़यब़कतत़व का बना लेना अब कोई मुबश़ कल काम निी़रि गया िै.’ .... उसे आहखर ये िोता क़या जा रिा िै! इतनी बड़ी दुहनया मे़क़या वि एकदम अकेला रि गया िै! इतना हक संवाद भी उसे अब खुद से िी करना पड़गे ा! और हफर ऐसे मे़अपनी िी दो फांको़के बीच वि खुद हकसके साथ रिेगा! वि इस ऊिापोि मे़िी था हक अचानक िी


उसे हनकट अतीत के कुछ दृशय़ नजर आने लगे. अजीब बात यि थी हक इन दृश़यो़ के बीच वि खुद भी मौजूद था. पिला दृशय़ पीछे छूट रिे एक बाजार का था. वि खुद छोटी-मोटी खरीदारी के बाद, बाजार से घर की तरफ लौट रिा था. उसे बड़े जोर की प़यास लगी थी. तभी उसके कानो़मे़कुछ नारो़की आवाज आने लगी. उसने देखा हक बिुत करीब से एक जुलस ू गुजर रिा था. जुलस ू मे,़ उसे अपने िी इलाके के कई लोग बड़ेउत़साि से भाग लेते नजर आये. उनके िाथो़मे़कुछ तब़खतयां भी थी़, हजनमे़कुछ नारे हलखे िुए थे. उसने पढ़ने की बिुतरे ी कोहशश की, लेहकन वि कुछ शल़दो़ के अलावा और कुछ न पढ़सका. ये शल़द थे- गौ माता... हिंदुत़व की रक़​़ा... राष़​़भक़तो़ का अपमान... देश की रक़​़ा... दरअसल, जुलस ू मे़ शाहमल लोग इतनी तेज रफ़तार मे़थे हक तब़खतयां बार-बार हिले जा रिी थी़. वि चुपचाप सड़क के हकनारे खड़ा िोकर जुलूस गुजर जाने की राि देखने लगा. लेहकन यि क़या, ठीक इसी वक़त जुलूस मे़ शाहमल उसके इलाके के एक नौजवान ने उसे पिचान हलया- ‘अंकल, आप भी आइए न िम लोगो़के साथ...’ जवाब मे़ वि कुछ कि पाता, इससे पिले िी वि नौजवान नारे का पुछल़ला हचल़लाते

िुए आगे बढ़गया. वि पुछल़ला ‘निी़सिेग़ .े ..’ कर रिे शम़ाद जी ने उत़साि मे़भरकर किा था‘भाभी जी, तमाम लोगो़ के संगठन बने िुए िै.़ िी बता रिा था हक मूल नारा क़या रिा िोगा! जुलूस का वक़त तो आगे हनकल गया, बस िम सवण़द िी िै़ जो हबखरे पड़े िै.़ लेहकन लेहकन दूसरा दृशय़ शाम के वक़त का नजर आया अब ऐसा निी़िोगा. आप लोग भी सवण़दसभा मे़ िमारे साथ रिेग़ े तो िमे़माग़दद श़नद हमलता रिेगा. था. शाम को वि चाय पीने के बाद अक़सर एक- िम आपका ज़यादा समय निी़ लेग़ .े .. प़​़ारंहभक डेढ़ हकलोमीटर का चक़​़र मार आता िै. उस सदस़यता के हलए बस पांच सौ ऱपये देने िो़गे रोज वि मेन रोड से सल़जी लेने के बिाने घूमने आपको...’ उनकी बात पूरी िोते-िोते, एक नौजवान को हनकला िी था हक जुलस ू वाला वि लड़का हफर टकरा गया- ‘अंकल, आप िमारे जुलस ू मे़ आगे बढ़ा और रसीद पर नाम हलखने लगा. तभी पत़नी ने अपनी प़त़य़ तु प़ ऩनमहत का पहरचय देते िुए शाहमल निी़िुए. आप आ जाते, तो िमारे जुलस ू की शान और बढ़ जाती!’ जवाब मे़ उसने बस किा- ‘देहखए भाई सािब, आप जो चािे सभा इतना किा- ‘आप लोग जब जुलस ू हनकालने की बनाये,़ लेहकन पिले ये तो तय कीहजए हक यि मंशा तय कर रिे थे, उस वक़त मुझे याद करने काम हकस तरि के करेगी! काम ऐसे िोने चाहिए की जऱरत क़यो़मिसूस निी़िुई. तब याद कर हजनसे समाज का िर वग़द प़भ़ ाहवत िो. लगे तो लेत,े तो क़या पता मै़कुछ कायदे की बाते़आप हक िम ढंग के काम कर रिे िै.़..’ शम़ाद जी बड़ेखुश िुए- ‘अरे वाि भाभी जी, लोगो़के सामने रख देता.’ लड़का तो मुस़कराकर आगे बढ़ गया, पर ये िुई न बात. अच़छा आप िी बताइए हक िम वि उस वक़त खुद को न बुलाने का मतलब खूब लोग ऐसा क़या करे?़ हफर पलटकर पच़​़ी काटने समझ रिा था. िुआ दरअसल यि था हक कुछ वाले नौजवान से बोले- ‘चल भई’ काट िी रोज पिले मंहदर कमेटी के लोग यि प़स ़ ़ाव उपाध़याय जी की सदस़यता पच़​़ी...’ ‘पच़​़ी तो कटती रिेगी, पिले आप मेरी बात लेकर आये थे हक भंडारे वाली जगि पर एसबेसट़ स की छत पड़वानी िै, इसके हलए सब तो सुन लीहजए! क़या यि सवण़दसभा यि शपथ लोग हमलकर प़य़ ास करे.़ ‘प़य़ ास’ का सीधा अथ़द लेने को तैयार िै हक इसके सभी सदस़य न कभी ऐसे लोगो़के साथ रिने वाला बन जाना था जो दिेज ले़गे और न दे़गे! जो ऐसा करता पाया द हनक भत़सनद़ ा की जायेगी..’ सामाहजक काय़​़ो़ के नाम पर अपनी स़थानीय गया, उसकी साव़ज पत़नी का िस़क ़ प़े सुनकर आगंतक ु ो़को तो ठेकदे ारी पुखत़ ा करना चािते िो़. उसे अच़छी तरि से याद िै हक इस प़य़ ास के जैसे सांप सूघं गया. एक-एक कर वे हखसकने जवाब मे़ जब उसने यि प़​़स़ाव रखा था हक लगे. न उऩिो़ने शपथ का आश़​़ासन हदया न पत़नी ‘कॉलोनी मे़ जगि-जगि नाहलयां टूटी पड़ी िै.़ ने रसीद कटवायी. उसने गौर हकया था हक इसके बाद सवण़दसभा के लोग गंदगी गहलयो़मे़हबखरी वह सडंक के दकनारे खडंा होकर उसे अजीब हनगािो़ से पड़ी रिती िै. िम लोग उऩिे़ ठीक कराने की जुलूस गुजर जाने की राह िेखने देखने लगे थे. ..... कोहशश क़यो़ निी़ लगा. ठीक इसी वकंत जुलूस में उस वक़त भले िी करते? तब मंहदर कमेटी शादमल उसके इलाके के एक बात आयी- गयी सी िो के लोग उसकी तरफ नौजवान ने उसे पहचान दलया. गयी लगी िो लेहकन ऐसे देखने लगे थे जैसे आज उसे साफ मिसूस उसने कोई नाकाहबलेबद़ाशद त़ बात कि डाली िो. एकाध के िो रिा था, िो न िो, इन गुजरे दृशय़ ो़का आज के मुिं से हनकला वाक़य तो उसने साफ-साफ सुन इन पीछा करते लोगो़ से कोई न कोई संबंध िै भी हलया था- ‘चलो जी, ऐसे मूढ़इंसान से क़या जऱर. एक के बाद एक वाकया हजस तरि उसकी सर-खपाई करनी...’ इसके बाद उनके साथ मे़ आये लड़के भी अजीबोगरीब इशारे और आवाजे़ आंखो़के सामने िो आया था, उसी तरि घूहमल भी िोता चला गया. लेहकन हदक़त़ सामने यि करते िुए आगे बढ़हलये थे. चीजे़ जब अनुकल ् न िो़, तो बिुतरे े गुजरे थी हक अपनी यि परेशानी वि िर हकसी से बांट िुए खराब दृशय़ स़महृ तयो़मे़और गिरे िो आते िै.़ भी तो निी़ सकता था. तो क़या उसे अब अपने ऐसा िी एक दृश़य उसकी स़मृहत मे़ सवण़द आपको दो फांक करना िी िोगा! इस खयाल के साथ िी उसने अपने आप से सभा वाला उभर आया. इस दृशय़ मे़वि खुद भले िी खामोश रिा िो, उसकी पत़नी ने आगंतक ु ो़को प़श़ ऩ हकया- ‘तब हफर मै़अपनी हकस फांक के हवचार को सिी मानूगं ा?’ बोलती बंद करके रख दी थी. एक तरफ यि प़श़ ऩ उसके हदमाग मे़उथलिुआ दरअसल यि था हक एक सुबि कॉलोनी के कुछ लोगो़ ने आकर बताया हक पुथल मचाये िुए था और दूसरी तरफ उसका मन स़थानीय सवण़दसभा का गठन िो गया िै. अगुवाई िुआ हक वि दोनो़ तरफ दूर ठिरे िुए, खुद पर शुक्वार | 1 से 15 मई 2017 39


सादहत्य/कहानी नजर रखने वाले उन लोगो़का जायजा तो ले ले. इस खयाल के साथ जैसे िी उसने अपनी नजर दौड़ायी, वि िैरान रि गया- दोनो़ के दोनो़ अपनी-अपनी जगि से नदारद थे. ‘तो क़या वे चले गये?’ उसने खुद से पूछा. उत़​़र हमला, ‘ऐसे लोग आसानी से निी़ जाते...’ आशंका उपजी, ‘मौका िाथ लगते िी वे िमला भी तो कर सकते िै.़’ ‘निी़, वे अकेले मे़ हकसी पर िमला निी़ करते. पिले वे हवरोधी की उसके साहथयो़ के साथ पिचान करते िै.़ उऩिे़जो कुछ करना िोता िै, सबके सामने करते िै.़’ ‘इससे उऩिे़क़या िाहसल िोता िोगा?’ ‘सामूहिक भय की धाकड़छहव. ताहक हफर कोई उनका हवरोध करने की हिम़मत िी न जुटा सके...’ अपने आप से िुए इस संवाद से वि पसीनापसीना िो आया. उसने जेब से ऱमाल हनकालकर पसीना पोछा तो यि देखकर िैरान िी रि गया हक उसका ऱमाल पसीने से तर-ब-तर िो गया िै. घबरािट मे़वि ऱमाल को झटकारने लगा तभी पीछे से एक िाथ उसका कंधा थपथपाने लगा. उसने मुडक ़ र देखा तो पाया हक पीछे से आ रिा आदमी अब एकदम करीब आ खड़ा िुआ था. उससे नजरे़ हमलते िी बोला- ‘लाइए, आपका ऱमाल मै़ हनचोड़ दूं! दरअसल, इधर अचानक गम़​़ी भी तो काफी बढ़गयी िै...’ वि यि तय निी़ कर पाया हक ऱमाल उसके िाथ मे़थमाये या निी़. तभी उसे सामने से दूसरा आदमी अपनी ओर आता िुआ नजर आया. उसे देख उसने संयत िोने की कोहशश की और एक बेमतलब जुमला उसकी तरफ उछाल हदया- ‘ज़यादा गम़​़ी मे़कभी-कभी घबरािट िोने िी लगती िै...’ यि सुनते िी वि आदमी िंसने लगा- ‘आप भी कैसी बात कर रिे िै़जी. इस भरी सद़​़ी मे़किां से आ गयी गम़​़ी! देहखए, किी़आपका ल़लडप़श ़े र

अपने बारे मेंसोचना शुरंदकया, तो पाया दक दपछले कई दिनोंसे वह अजीब-अजीब-सा महसूस करने लगा है. टी.वी. िेखता है, तो उसमेंमन नहींलगता. तो निी़बढ़गया िै!’ लो, अब ये एक नयी मुसीबत...! उसने अपने बारे मे़सोचना शुऱहकया, तो पाया हक हपछले कई हदनो़से वि अजीब-अजीबसा मिसूस करने लगा िै. टी.वी. देखता िै, तो उसमे़ मन निी़ लगता. घूमने हनकलता िै, तो घबरािट उसे घेर लेती िै. कुछ पढ़ने बैठता िै, तो उसे हकताब से िी हचढ़िोने लगती िै. हलखने को बैठता िै, तो तमाम शल़द बेमतलब नजर आने लगते िै.़ ‘यि सब आहखर िै क़या?’ उसने खुद से िी पूछना ठीक समझा. थोड़ी देर की खामोशी के बाद जवाब हमला‘जब हकसी चीज का किी़ कोई असर िी न िो रिा िो तो कुछ भी करने का मतलब क़या रि जाता िै! देखता निी़, ज़यादातर हफल़मे़नकली,

रचनाएं कृह़तम, व़यवस़था नाटकबाज... इंसान दोगले... और मतलबपरस़.़.. नेता भ़ष ़ ,़ सरकार बेअसर, हवकास नकली, ...संस़थाएं खोखली, नागहरक गैरहजम़मदे ार... ऐसे मे़ तू अकेला क़या भाड़ झो़कने हनकला िै...! बड़ा आया प़ह़तरोध करने वाला...’ ‘अरे िां, मै़तो प़ह़तरोध करने हनकला था... पक़​़ा इरादा था मेरा हक चािे जो िो जाये, गलत को गलत किकर िी रिूगं ा. हकसी गलत चीज के आगे कभी झुकग्ं ा निी़... दूसरो़को भी बताऊंगा हक िमे़अपने िको़के हलए लड़ने को एकजुट िो जाना चाहिए...’ अपने मे़ लौटते िी उसे लगा हक उसकी घबरािट धीरे-धीरे कम िोती जा रिी िै. सूख गया तो तिा कर ऱमाल उसने अपनी जेब मे़रख हलया और जैसे िी आगे बढ़ने को िुआ, उसकी नजरे़खुद-ब-खुद चारो़तरफ घूम गयी़. लेहकन यि क़या, दूर-दूर तक खामोश सड़क के अलावा उसे कुछ नजर िी न आया. हनसाखाहतर िोकर उसने अपने पांव बढ़ाये और आगे की तरफ चल पड़ा. उसी पल उसे एक आवाज सुनाई दी- ‘अब किां चल हदया?’ ‘िमखयाल लोगो़से हमलने, ताहक प़ह़तरोध को हवरोध मे़बदला जा सके.’ ‘वे तुझे किां हमलेग़ ?े ’ ‘मेरी िी तरि वे भी िमखयालो़को खोज रिे िो़ग!े वे तभी तक खामोश िै़जब तक उऩिे़अपने जैसे लोग न हमल जाये.़ किी़न किी़तो टकरा िी जायेग़ .े ’ जाने हफर क़या िुआ हक इस आवाज ने उसमे़ एक नयी उमंग और ताकत भर दी. वि सधी और हनभ़​़ीक चाल से चलने लगा. जाने हकतने लोग सड़क पर आ-जा रिे थे, पर वि उन सबसे हनह़​़ितं आगे बढ़ा चला जा रिा था. उसमे़ यि यकीन गिराने लगा था हक दुहनया के तमाम लोग कभी एक जैसे निी़ िो सकते. कुछ तो ऐसे जऱर िो़गे जो उस जैसा सोच रिे िो़ग.े n

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सादहत्य/समीक्​्ा

समय की नब्ज् पर एक ब्​्िलर

रप्​्यदश्षन का उपन्यास भरवष्य मे्इस तरह के उपन्यासो्के रलए एक मॉडल का काम कर सकता है. संजय कुदं न

प़​़संग भी उपऩयास मे़ िै़. उपऩयासकार ने, जो खुद एक पत़​़कार िै़, इन पत़क ़ ारो़के वैचाहरक पूवा़गद ि़ ो़की ओर भी इशारा हकया िै. जाहिर िै इनका ़ त़ु ीकरण तक मे़झलकता िै. न हदनो़ प़​़ोजेक़ट लेखन या हवमश़दवादी लेखन का बोलबाला िै. एक वैचाहरक आग़ि़ खबरो़के चयन से लेकर प़स इनमे़ कई सशक़त महिला चहरत़​़ िै़. लेखक ने उनके जहरए िाल के प़​़ोजेकट़ के तित चहरत़​़या हवषय चुने जाते िै़और उन पर उपऩयासकार अपना पूरा शोध प़स ़ त़ु कर देता िै. इसी तरि कुछ हवमश़​़ो़को आगे बढ़ाने सामाहजक बदलावो़ को हचब़हनत हकया िै. हपछले कुछ दशको़ मे़ हमडल के हलए पूरी योजना के साथ उपऩयास हलखे जाते िै़हजनमे़लेखक अपना क़लास मे़लड़हकयो़को लेकर जागऱकता आई िै. उऩिे़लड़को़के बराबर पूरा ज़​़ान उड़ल े देने को आतुर नजर आता िै. िालांहक इस तरि के कुछ बिुत अवसर और सुहवधाएं हमली िै़ हजस कारण उऩिो़ने पढ़ाई और कहरयर के े नीय सफलता िाहसल की. असली खबर मे़काम करने वाली अच़छे उपऩयास भी आये िै,़ लेहकन उनमे़ से ज़यादातर ने पाठको़ के साथ क़त़े ़मे़उल़लख इमोशनल अत़याचार िी हकया िै. इसी संदभ़दमे़यि बात उभरकर आई िै हक महिला पत़​़कारो़ ने अपने कामकाज से अपनी एक िैहसयत बनाई िै. वे रचना ऐसी िो जो लोकह़​़पय और गंभीर साहित़य दोनो़की हवहशष़त़ ाओ़को आजाद ख़याल की, पूरे आत़महवश़​़ास के साथ जीनेवाली महिलाएं िै़ जो समेटे िुए िो. ह़​़पयदश़नद का उपऩयास ‘हजंदगी लाइव’ इस कसौटी पर खरा हकसी भी बड़े नेता और नौकरशाि के साथ बराबरी के स़ऱ पर बात कर उतरता िै. इसकी सबसे बड़ी हवशेषता यि िै हक यि एक या दो बैठक मे़ सकती िै़, हकसी भी अफसर को उसकी गैरहजम़मेदाराना रवैये के कारण पढ़ने के हलए हववश करता िै. यि एक क़​़ाइम ह़​़थलर िै, लेहकन इसमे़न तो लताड़भी सकती िै.़ लेहकन उनके सामने भी नौकरी और पहरवार के बीच तालमेल बनाए रखने का संघष़दिै. वे जीवन की भागदौड़ हवषय के साथ कोई समझौता हकया गया िै न िी मे ़खुद को कई बार अकेली भी पाती िै.़ उनके बरक़स हनम़न लोकह़​़पयतावादी तत़वो़ का अनावश़यक इस़​़ेमाल. वग़ द की शीला िै जो न हसफ़फअपने पहत की मार खाती िै, व़यावसाहयक कलेवर मे़छपा यि उपऩयास िमारी व़यवस़था बब़लक पुहलसवालो़ की बुरी नजर का भी हशकार िोती िै. की एक पड़ताल करता िै और कुछ जऱरी सवाल भी उसके हलए कोई बदलाव निी़िुआ िै. उठाता िै. ह़​़पयदश़नद ने सामाहजक बदलाव के एक हचंताजनक ‘हजंदगी लाइव’ वष़द2008 मे़ मुबं ई पर िुए आतंकी पिलू की ओर भी इशारा हकया िै. िाल के सामाहजक िमले की पृषभ़ हू म मे़हलखा गया िै. पूरे देश को इस िादसे हवकास मे़ताकत एक सबसे बड़ा मूलय़ बनकर उभरी िै. की जानकारी दे रिे एक हनजी टीवी चैनल के कुछ पत़क ़ ारो़ हजसके पास ताकत िै, वि पूरे समाज को हनयंह़तत कर रिा की हजंदगी की घटनाओ़को लेकर उपऩयास का ताना-बाना िै. बब़लक वि जो कि रिा िै, विी समाज का मूलय़ बन जा बुना गया िै. असली खबर चैनल की एंकर सुलभा को मुबं ई रिा िै. मीहडया को भी विी तबका हनयंह़तत करने लगा िै. िमले की खबर देने के हलए ड़ट़ू ी के बाद भी ऱकना पड़ता मीहडया अब उसका िै, हजसके पास पूज ं ी की ताकत िै. वे िै. मामला देश भर के हलए बेिद संवदे नशील िै हलिाजा हदन लद गए जब मीहडया का कोई सरोकार िोता था. जब चैनल के तमाम कम़च द ारी अपना सब कुछ भूलकर देश को वि पहरवत़ न द का िहथयार माना जाता था. इस उपऩयास मे़ खबर देने मे़जुट जाते िै.़ खबर बताते िुए रात बीत जाती मजंदगी लाइव: म्​्पयदश्ना ; जगरनॉट एक आपराहधक प़ व ़ ह ृ त ़ वाला हबल़ ड र हसफ़ फ इसहलए एक ऩयज ू िै. तब सुलभा को याद आता िै हक वि अपने बेटे अहभ को बुकि् , केएि हाउि.118 शाहपुर जट, चै न ल खोलना चािता िै ताहक समाज मे ़ अपना दबदबा बना दफ़तर के केच ़ से लेना भूल गई िै. उसे लगता िै हक उसके नयी मदल्ली; 250 र्पये सके. अपना धंधा चलाए रखने के हलए उसे राजनेताओ़को पहत हवशाल उसे जऱर घर ले गये िो़ग.े लेहकन दूसरी तरफ हवशाल यि सोचकर हनह़​़ितं रिता िै हक सुलभा उसे ले गई िोगी. दरअसल पैसे देने पड़ते िै़लेहकन वि सोचता िै हक एक चैनल का माहलक बनकर वि खुद िी तमाम लीडरो़को दबाव मे़रख सकता िै. चैनल खोल लेने के हवशाल को आनन-फानन मे़मुबई जाना पड़ता िै आतंकी िमले की हरपोह़टगि़ के हलए. इस बीच अहभ को केच ़ मे़ बच़​़ो़ की देखभाल करने वाली आया बाद भी वि अपराध निी़छोड़ता. अहभ के अपनी मां से हबछुड़जाने मे़भी शीला लेकर चली जाती िै. लेहकन बीच रास़​़े मे़ दफ़तर की एक और वि अपने हलए अवसर देखता िै. उसे लगता िै इस घटना का लाभ उठाकर कम़च द ारी चाऱउससे बच़​़ा ले लेती िै यि किकर हक वि उसकी बेितर वि कुछ माल बना लेगा. िालांहक वि अपने मकसद मे़कामयाब निी़िो देखभाल करेगी. दूसरे हदन सुलभा बच़​़ेको न पाकर परेशान िोती िै. हफर पाता. 26/11 की घटना और अहभ के अपिरण मे़सीधे कोई मेल न िो पर शुऱिोता िै बच़​़ेको खोजने का हसलहसला. एक तरफ मुबं ई िमले की भयाविता िै तो दूसरी तरफ बच़​़ा खोने की इन दोनो़के पीछे कमोबेश एक िी खेल हदखाई देता िै, वि िै मानवीयता त़​़ासदी. इन दोनो़के बीच किानी आगे बढ़ती िै और इसमे़िमारे समाज और को ताक पर रखकर अपना स़वाथ़दसाधने का खेल. एक बड़ी साहजश िै दूसरी व़यवस़था की परते़खुलती जाती िै.़ संभवतः पिली बार हकसी उपऩयास मे़ छोटी, लेहकन दोनो़के पीछे मंशा एक िी िै. चंद ताकतवर लोग अपना स़वाथ़द इलेकट़ ़ॉहनक मीहडया मे़काम कर रिे पत़क ़ ारो़के जीवन का इतना बारीक साधने के हलए, अपना वच़सद व़ बनाए रखने के हलए हकसी भी िद तक जा हचत़ण ़ िुआ िै. अपने हनजी जीवन को परे धकेलकर तमाम मुबश़ कलो़ के सकते िै.़ उनके खरतनाक खेल मे़ हपसते िै़ साधारण लोग. उपऩयास की बीच वे हकस तरि खबरे़लोगो़तक पिुच ं ाते िै,़ इसके जीवंत हचत़​़इसमे़िै.़ भाषा बेिद चुस़और सधी िुई िै. चहरत़​़के मुताहबक संवाद िै और नाटकीय ़ प़े न के बराबर इऩके काम ने इऩिे़ काफी यांह़तक भी बना हदया िै. तमाम तरि के तनावो़ दृशय़ भी रचे गए िै.़ सबसे बड़ी बात हक इसमे़लेखकीय िस़क n और दबावो़के बीच इऩके आपसी संबधं हकस तरि बनते-हबखरते िै,़ इसके िै, हजससे आज के ज़यादातर उपऩयास भरे रिते िै.़

शुक्वार | 1 से 15 मई 2017 41


सादहत्य/समीक्​्ा

एक तफ़्तीश का ताना-बाना सांप्दारयकता और आतंकवाद के मुद्े पर यह पहला नाटक रवचरलत करने वाला आख्यान है. उषा राय

कृषण ़ चंदर, प़म़े चंद, नागाज़नदु , रेण,ु धूहमल गोरख पांडे वगैरि की िै.़ तब एसीपी. राघवेद़ र हसंि किता िै...’िमे़न हसखाओ उद़दूमे़क़या हलखा जा रिा त़मद ान िालात की नफ़रत और असंवदे नशीलता के यथाथ़दका बयान िै और हिंदी मे़मुबक़ तबोध क़या पाठ पढा रिे िै?़ ये कहवता की आड मे़लोगो़ ़ मे़अब़सथरता ला रिे करता िुआ राजेश कुमार का नाटक ‘तफ़्तीश’ मित़वपूणद़उपलब़लध िै. को भडका रिे िै.़ शांहत व़यवस़था भंग कर रिे िै.़ मुलक तफ़्तीश का मतलब िै खोज, अऩवषे ण, लेहकन जिां फैसला एकतरफ़ा िै.़ दिशत का मािौल पैदा कर रिे िै.़ ये सारे कहव आतंकवादी िै.़ ‘ आये हदन घट रिी घटनाएं,फेक एनकाउंटस़,द मो. शोएब द़​़ारा हनकाली सुरह़​़कत कर हलया गया िो,जिां के राजा ने खुद अपनी प़ज ़ ा चुन ली िो,जिां नाव निी़पूरी नदी खतरे मे़िो, विां पर यि शल़द धीरे-धीरे अपना अथ़दखोने जाने वाली पह़​़तका 'लोकसंघष़द' शिनवाज, राजीव तथा अऩय का सब़ममहलत लगता िै या रास़​़ा बदल देता िै. नाटक का कथ़य भय, हवस़मय, प़श़ ऩ ाकुल प़य़ ास हरिाई मंच,कला जगत की अनेक हफल़मो़ने इस धुधं लके से पद़ाद उठा पीडा और पथरायी िुई मानवता का हवस़त़ृ दस़​़ावेज िै. इन तमाम ब़सथहतयो़ हदया िै. इस हवषय वस़​़ु पर नाटक हलखने मे़ राजेश कुमार को बिुत ़ ार ठिरे िुए को समझने के हलए की भूहमका की एक पंबक़ त उल़लख े नीय िै: ‘पिले तो मानहसक कश़मकश का सामना करना पडा िै, परंतु हजस प़क असुर दुष़हवधम़​़ी से खतरा बना रिता था, आज वे कौन लोग िै,़ हकस ऱप पानी मे़एक कंकड काफी उथल-पुथल मचा सकता िै उसी तरि इस हवषय पर एक हकताब का आना बडी बात िै. मे़िै़और उनके व़यवधान का लक़य़ क़या िै. ‘ एसीपी असदुलल ़ ाि खान,एसएसपी भरत हसऩिा,डीएसपी प़त़ ाप भाटी सब पडताल करने पर हवडंबनाप़द़ ब़सथहत नजर आती िै. हजऩिे़िम राक़स ़ हमलकर रेिान को आतंकवादी मुजाहिद़​़ीन, धम़यद ोद़​़ा आहद या असुर किते िै़वे आज अपने अह़​़सत़व की लडाई लड किकर प़ त़ ाहडत करते िै.़ पुहलस द़​़ारा दी जाने वाली थड़द रिे िै.़ महिषासुर के वंशज लौि अयस़क के जानकार िै.़ हडग़ ी ़ टाच़ र द की बाते़सुनाते िै.़ हफर वि यातनाओ़की बात आज के दौर मे़बॉक़साइट खनन के उनके पैतक ृ व़यवसाय करते िुए रेिान को बताता िै हक जऱरी निी़ हक यातना मे़बडी-बडी कंपहनयां घुस आयी िै़जो उऩिे़बेदखल करती हसफ़़फ हजस़मानी िो वि मानहसक भी िोती िै. पहरवार के िुई खत़म कर रिी िै.़ सुषमा असुर का किना िै: ‘िम सदस़यो़ दोस़​़ो़ जांच अहधकाहरयो़ के सामने नंगा करने असभ़य िै़ पर आप तो सभ़य िै़ हफर आज िमारा संिार कवायद कराने का तरीका बिुत बेइज़त़ ी भरा और क़यो़? 'दुष़दलन', 'दैतय़ वंश हनकंदन' का मतलब क़या नाकाहबले बद़ाशद त़ िोता िै. उन लोगो़के कल़जे मे़पहरवार िै? आसुरी प़व़ हृ त के लोग पुरस़कतृ िो रिे िै.़ इसी तरि के िोने की बात सुनकर रेिान बेचनै िो उठता िै और हवधम़​़ी भी हनशाने पर िै. हवधम़​़ी या नाह़​़सक धम़दको निी़ असदुलल ़ ाि खान और राघवेद़ र से पूछता िै- 'तुम चािते मानते िै,़ चूहं क वे धम़ाधा़ ो़के काय़दव़यापार मे़बाधा पैदा क़या िो?' उनके किने पर रेिान दुभा़गद य़ और साहजश के करते िै इसहलए हनशाने पर िै. सुरह़​़कत वे िै़जो सब जानते हशकार गुलशाद के बारे मे़उसकी भयानक रो़गटे खडी कर िुए भी चुप िै या हफर वे जो तक़फनिी़करते,िस़क ़ प़े निी़ देने वाली यातनाओ़ की किानी बताता िै. हजसे बडी करते, आंखे़मूदं े िुए िै क़यो़हक उऩिे़कोई फ़क़फनिी़पडता.’ सावधानी से हरकॉड़दहकया जाता िै, लेहकन उसकी वि बात आज मुबस़ लम नौजवानो़ को बेइज़त़ करना, गायब तफ़्तीश: राजेश कुिार; गुलिोहर सु नी निी़जाती िै हक ‘अगर गुलशाद को फांसी दे दी गयी करवा देना,हगरफ़तार कर लेना, एनकाउंटर मे़मरवा देना मकताब; 55 िी,पॉकेट 4 ियूर मवहार -1, तो सच़​़ाई का पता निी़चल पायेगा.’ सत़​़ा का चहरत़​़िो गया िै. घटनाएं बिुत तेजी से घहटत िो मदल्ली; 70 र्पये. वे लोग रेिान साथ एक आतंकवादी की तरि व़यविार रिी िै़और िम संदिे भी निी़कर पाते. कभी कभी सूचनाओ़ को दूसरे ढंग से पेश हकया जाता िै जिां हकसी शक़ की गुज ं ाइश निी़िोती. करते िुए उसे शूट करना चािते िै.़ तभी िोम सेकट़े री का फोन आता िै और हिटलर के यिां बिुत सारे कैप़ थे जिां नरसंिार िोता था लेहकन विां के वि डाँटते िुए बताता िै़हक हजस रेिान को आतंकवादी बता कर पूछताछ ़ ार िै. वास़व़ मे़जो आतंकवादी कमांडटे़ ऐसे हकसी दूसरे कैप़ के बारे मे़अनहभज़त़ ा प़क ़ ट करते थे. यिां तक कर रिे िो, वि दरअसल माना िुआ पत़क ़ ांत वम़ाद आता िै हक अपने हशहवर मे़िो रिी गहतहवहधयो़के बारे मे़कठोर चुपप़ ी साधे रखते थे. रेिान िै उसे श़​़ीनगर के स़टडै़ पर देखा गया िै. तभी वि प़श ़ ांत यि सब पूछना चािता िै लेहकन उनकी नफ़रत और चुपप़ ी वि काम करती थी जो सौ-पचास सामाऩय लोग हजससे हमलने रेिान आया था. प़श ़ ांत हमल कर निी़कर पाते. नाटक मे़रेिान के माध़यम से कई मित़वपूणद़सवाल राघवेद़ र रेिान को आतंकवादी िी बताता िै और उसे ले जाता िै. िताश प़श उठाये गये िै. दरअसल नाटक का प़स़ थ़ ान हबंदु नफ़रत िै जिां पता चलता िै थोडी रौशनी मे़पद़​़ेपर देखता िै... एक आदमी घने जंगल मे़भागता रिा िै. हक लोगो़को चाक्-छुरी उठाने की जऱरत निी़िै वि तो ठीक खाल के नीचे उसके पीछे ढेर सारे िहथयारबंद पुहलस दौड रिे िै.़ भागता िुआ आदमी कभी िी बि रिी िै जरा सा खुरच भर देने की देर िै और वि जिर के ऱप मे़बािर हगरता िै कभी उठता िै. फासला कम िोता जा रिा िै. आदमी थकने लगा िै, जोर-जोर से सांसे़ले रिा िै. लेहकन भागे जा रिा िै. अचानक पुहलस वाले आ जाती िै. फायर करने लगते िै़आदमी को गोली लगती िै. वि लडखड़ाते िुए हगरता और यिां से रिस़य शुऱिो जाता िै. एक साधारण हवहजटर अपना नाम िै . ‘तफ़ ् तीश’ की किानी मे़ स़वामी सत़यानंद और वास़ह़वक आतंकवादी रेिान बताते िी संदिे के घेरे मे़आ जाता िै. इंसप़ के ट़ र त़यागी और इंसप़ के ट़ र शम़ाद रेिान की कोई बात निी़सुनते उसका लैपटॉप और बैग अपने कल़जे मे़ रेिान की किानी थोडी और साफ़ िोनी चाहिए थी. वैसे हकसी भी नाटक की ले लेते िै़और उलटे सीधे-तरीके से सवाल पूछते िै.़ रेिान उनसे किता िै सफलता और असफलता उसकी रंगमंचीय सुबोधता और जनपक़ध़ रता पर n हक िै मेरे पास हसयासी कुछ भी निी़िै,केवल कुछ हकताबे इस़मत चुगताई, आधाहरत िोती िै.

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जनजातीय कथा-कोलाज

लाहुल पर ऐसी संपूर्षरकताब रहंदी मे्मुक्शकल है रक कोई और हो. लेखक का श्​्म स्पष्​्रदखाई पडता है. सतपाल शहगल

सभी जऱरी संदभ़​़ो़और संदभ़-द ग़थ़ं ो़का उपयोग या सूची यिाँ िै. इससे हिंदी का भंडार समृद़िुआ िै, हनस़सदं िे . ऐसे हवषयो़पर अंगज ़े ी मे़काफी कुछ ़े ी पढने-हलखने वाला समाज पहरहचत कहव तुलसी रमण अपनी शोधपरक रचना ‘ लािुल हिमालय हमल जाता िै और इनमे़ हदलचस़पी भी अंगज का अंतरंग लोक’ हलखने से पिले हिमाचल के अनूठे जनजातीय क़त़े ़ ज़यादा लेता िै. निी़जानते हक हिंदी की ‘हवशाल दुहनया’ मे़से हकतने इसको लािुल पर एक कहवता-लडी हलख चुके िै.़ दोनो़गहतहवहधयो़के बीच कोई ऱहच का लेखन पायेग़ !े िमे़सोचना िोगा हक क़या हिंदी मे़ऱहच-वैहवध़य का लगभग 25 बरस का अंतर िै. कहवता से पैदा लगाव ऐसे िी िोते िै;़ जकडने ऐसा संकट िै? या हफर संबहं धत हिंदी लेखन िी लद़ड़ िै? परीक़​़ा तुलसी ़े ी मे़पढने वालो़हक समस़या िै हक वे हिंदी मे़पढने मे़ वाले. प़स ़ त़ु हकताब को उनकी कहवताओ़के हवस़​़ार के तौर पर देखना एक रमण की भी िै. अंगज ़ की एक खाहसयत दुस़सािस िोगा; पर िुआ करे. हवद़​़त-लेखन कहवता का दूसरा चेिरा िो न तो हदलचस़पी हदखाते िै़और न िी दक़​़िै.़ इस पुसक े के सकता िै जबहक अकादहमक दुहनया मे़उऩिे़अक़सर एक दूसरे के हवलोम के यि िो सकती िै हक इसे एक पिाडी ने हलखा िै और साथ िी वि प़द़ श ़ हृ त-हवभाग और उसकी गहतहवहधयो़से उच़​़स़ऱ पर और ‘हवपाशा’ के तौर पर देखा जाता िै. उस नासमझी को त़याग कर िी रमण की इस हकताब संसक की रचना-प़​़ह़कया को समझा जा सकेगा. इसका मतलब यि निी़ हक संपादक के तौर पर, लंबे समय से जुडा रिा िै. उसके अपने स़​़ोत और अपनी ‘लािुल’ की कथनशैली हकसी कहवता का आभास देती िै. इस पुसक ़ मे़ प़​़ामाहणक जानकाहरयां िै,़ जो दूसरो़को उपलल़ध िो, जऱरी निी़. साथ िी ़ ार अहतहरक़त ऱप से उतनी भी कहवता निी़िै, हजतनी हनम़ल द वम़ाद के हनबंधो़मे़आमफिम हमल वि हिंदी के सृजनात़मक लेखन से भी जुडा िै. इस प़क ‘कु श ल’ और ‘साफ-शफ़ ् फ़ाफ’ अं ग ज े ़ ी ले ख न की जगि यिां एक ‘स़थानीय जाती िै. हसफ़फइतना हक इसका पाठ एक कहवता के पाठ जैसे संभाहवत असर गम़ ा ि द ट’, ‘मै त ी ़ -भाव’ और ऐसी पक़ ी ़ सूचनाएं िो सकती की तरफ ले जा सकता िै. आप लािुल के दुग़दम और िै , जो नायाब िो़ . पर उनके दु भ ा ़ ग द य ़ से , भारत के अंगज ़े ीरिस़यपूणद़ भूगोल, अतीत और वत़मद ान से ‘आहवष़’़ िो दां कम िी हिंदी सीखते हमलते िै.़ यूं घोर मेिनत के ऐसे सकते िै.़ यिां हमथक-कथाओ़और अध़-द पुष़ऐहतिाहसक काम बिुधा धऩयवाद-रहित साहबत िोते िै़. आशा िै, घटना-क़म़ ो़ हक भरमार िै; यि कुछ िैरान भी करता िै पहरब़सथहत मे़बदलाव आयेगा. वस़त़ु ः तुलसी रमण की इस क़यो़हक लािुल घाटी अपेक़ाकृत एक छोटा इलाका िै और कृहत का मुक़ाबला तत़सबं धं ी अंगज ़े ी-लेखन से िै. आबादी भी ऩयनू िै. जरा अहतरंजना से किे़तो हजतने जन जनजातीय क़त़े ़ो़और समुदायो़का केवल अतीत िी िै़ उतनी िी कथाएं िै़. खास कर लािुल के प़​़वेश-द़​़ार निी़एक वत़मद ान और भहवष़य भी िै; खास कर, हिमाचल रोितांग और अऩय दऱ​़ो़को लेकर. इस तरि यि ग़थ़ं एक जैसे अंचल मे.़ इऩिे़केद़ ़ीय भारत की जनजाहतयो़के साथ कथा-कोलाज जैसा बन जाता िै. लािुल के ‘रिस़य’ से ये रख कर देखना उहचत निी़ िोगा. अत़याधुहनक जीवनकथाएं पैदा िुई़ और ‘कथाओ़’ के कारण यि ‘रिस़य’ शैली और आह़थक द समृह़द ने अपने पांव यिां पसारे िै़और बरकरार रिता िै. लािु ल जै स े कहठन भूखडं से, सुहवधा के हलए, बडी संखय़ ा लेखक ने अपनी आधुहनक पृष़भूहम के चलते इन मे ़ आबादी कु ल ़ ल ू मनाली-चंडीगढ जैसे प़​़ांतर मे़ भी किाहनयो़को काय़-द कारण संबधं के बुह़दवादी, तक़वफ ादी स़ थ ानां त हरत िु ई िै . पय़ ावद रण-पहरवत़नद संबधं ी गंभीर मुद़े नज़हरये से पेश करने की कोहशश की िै. यि लेखकीय भी िै . ़ पु स क ़ मे ़ दो-एक अध़याय इनको लेकर भी िै;़ चािे दृह़ष काफी सूझ-बूझ का पहरचय देती िै; पर यिी लाहुल महिालय का अंतरंग लोक: तुलिी और अहधक समाजशास़​़ीय तथ़य िो सकते थे. एक यात़​़ाजनजातीय मन को नागवार लग सकती िै क़यो़हक हजसे रिण; प्ज् ्ान प्क् ाशन; दयार-दुगा्ा वृत़ातं भी िै. अंत मे़रमण की लािुल-संबधं ी कहवताएं िै.़ लेखक प़​़श़नांहकत करता िै, विी उसका ‘अह़​़सत़व’ िै. कालोनी, ढली, मशिला; 295 र्पये. इस प़क ़ ार इसका ढांचा जरा हदलचस़प और नए तरीके का उसका जीवन उनसे अहभऩन िै. इसहलए एक स़ऱ पर यिी लेखक का ‘बािरीपन’ माना जा सकता िै और लेखक हकसी और समय िै. आगे और हरसच़दिोनी चाहिए. नयी पीढी के सपनो़, जऱरतो़और नये पर इससे जूझने का काम कर सकता िै. खुद पिाड के अंदर एक दूसरा राजनैहतक-आह़थदक पहरदृश़य मे़ उनकी जीवनशैली की तटस़थ हकंतु पिाड िै जो पिुच ं ने के नज़हरये से िी निी़, अनुभव के मामले मे़भी कहठन सिानुभहू तपूणद़जांच िोनी चाहिए. लािुल घाटी और उसके बािर के लािुहलयो़ द ठीक िै, पर वत़मद ान और दुभद ़े ़िै. खुद एक पिाडवासी के हलए भी. यिी़गद़​़और पद़​़का कुछ मे़बिुत कुछ नया घट रिा िै. अतीत-रेखा का हनम़ाण अंतर समझ पडता िै. संभवतः कहवता और तुलसी रमण की अपनी कहवताएं का अध़ययन उपेह़कत रिने से भहवष़य का अंदाज़ा सिी निी़लगेगा. इस रचना का छपना प़म़ ख ु तः लेखक के अपने प़य़ त़नो़पर िी हटका रिा भी, इस ‘अनुभव’ के नजदीक का उद़​़म िै; बहनस़बत गद़​़ के, हजसका िै . सं स ाधनो़ की कमी साफ झलकती िै. इसका नया संसक ़ रण मुह़दत करने स़वभाव दूरी बनाए रखने का लगता िै. यि अंदर का पिाड काफी खामोश के हलए हकसी पू ज ं ीसं प ऩ न प़ क ़ ाशक को सामने आना चाहिए; क़यो़हक यि रिा िै. अजेय कुमार जैसी कहवयो़ की एक श़ण ़े ी तो यिां से अब उभरती दु ल भ द ़ हवषय पर एक दु ल भ द ़ ले ख कीय प़ य ़ ास िै और दीघ़ द अवहध मे़अच़छी नज़र आती िै; पर हिंदी गद़-़ लेखको़के बारे मे़िम ज़यादा निी़जानते. कभी हबजने स -पिल िो सकती िै . ऐसे सारे काम ने श नल बु क ट़ स ़ ट ़ के िवाले िी जब ऐसा रचना-कम़दसामने आएगा तो उसे तुलसी रमण के काम के समक़​़ क़यो़हकए जाये?़ लेखक भी इस बात का ध़यान रख सकता िै हक कैसे इसे रख कर दोनो़के नजहरयो़का तुलनात़मक अध़ययन हदलचस़प िोगा. अहधक आमफिम मुिावरे और पत़क ़ ारीय रवानगी मे़पेश हकया जाये. ताहक बिरिाल, लािुल पर तुलसी रमण जैसी ऐसी संपण ू द़हकताब, हिऩदी मे,़ मुबश़ कल िै कोई और िो. लेखक का पहरश़म़ स़पष़​़हदखाई पडता िै. लगभग स़कालर के साथ यि साधारण पाठक को भी अपनी-सी हकताब लगे. n

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मास् यायावरी ट हेड

पोट्ाब्लेयर िे्िेलुलर जेल: िुंदरता के बीच ि्​्रता

संतोष श्​्ीवास्व्

चंहभत िूं मै़. मुग़ध भी. भारत के नक़शे से अलग-थलग बंगाल की खाड़ी मे़ उत़ऱ दह़​़कण की ओर 780 हकलोमीटर क़त़े ़मे़फैले छोटे छोटे द़​़ीप समूि, अंडमान हनकोबार. सागर के िजारो़हकलोमीटर फैले वक़​़स़थल पर आरती की सजी थाहलयो़ से तैरते ये द़​़ीप. 570 द़​़ीपो़मे़से केवल 38 पर मानव आबादी िै. इनमे़ 26 द़​़ीप अंडमान मे़िै़और 12 हनकोबार मे़.पूव़ी हिमालय से िोते िुए म़यांमार, अराकान और सुमात़​़ा के डूबे िुए पव़तद ीय श़ख ़ं लाओ़के हशखर िै ये द़​़ीप समूि. जैसी कल़पना की थी, उससे किी़ अहधक सुदं र, अनदेख,े अनछुए प़क ़ हृ त की सुदं र संरचना से पहरपूण.द़ लेहकन तब जब भारत पर ह़​़िहटश शासन था और 1857 का गदर िुआ था, अंगज ़े ो़ने अंडमान को एक बड़े कैदखाने के ऱप मे़ पहरवह़ततद कर हदया था. घने जंगल, बड़े-बड़े मच़छर, जो़क, ि​िराता अथाि सागर. मातृभूहम से िजारो़ हकलोमीटर दूर इन जंगलो़ मे़ बने कैदखाने मे,़ जिां की कोठहरयो़मे़न प़क ़ ाश का इंतजाम था न जीवन का कोई उल़लास. कैसे काटी िोगी उन आजादी के दीवानो़ने उम़​़कैद या फांसी की सजा का इंतजार? वे आपस मे़बातचीत तक निी़कर सकते थे. सेल़युलर जेल राष़​़ीय स़मारक िै हजस मे़ 44 शुक्वार | 1 से 15 मई 2017

काला पानी और नीला पानी

कैहदयो़को दी यातनाओ़के दस़​़ावेज िै. मेरे साथ िै लेहखका प़ह़मला वम़ा,द पोट़दल़लये र के पत़क ़ ार मिेद़ ़ और गौतम और गाइड वेकटेश. जैसे पैरो़ मे़पंख उग आये िो़. प़व़ श े द़​़ार के दाहिनी ओर की लकड़ी की सीह़ढयां मै लगभग दौड़ते िुए तय करती िूं. सामने नेताजी सुभाष चंद़ बोस के जीवन का लेखाजोखा हवहभऩन तस़वीरो़मे़प़द़ ह़शतद हकया गया िै. नीचे उतरते िी एक बड़े िॉल मे़ जेल का मॉडल रखा िै. वे़कटेश बताते िै़ हक अंडमान को एक बड़े कैदखाने के ऱप मे़ पहरवह़तदत करने का काम 1896 मे़ ख़ौफनाक अंगज ़े चीफ कहमश़नर एहडम की हनगरानी मे़शुऱ िुआ. सोचा गया हक तीन साल मे़काम पूरा िो जायेगा पर लग गये 10 साल. सेलय़ ल ु र जेल मे़ सात हवंग बनायी गयी़. प़त़य़ क े हवंग तीन मंहजली थी. कुल 698 काल कोठहरयां बनी़. साढे 13 फुट लंबी और सात फुट चौड़ी उन कोठहरयो़ मे़ कैहदयो़के हलए टॉयलेट की कोई अलग व़यवस़था निी़रखी गयी. भारत से 600 कैहदयो़की पिली खेप काले

पानी की सजा काटने यिां लायी गयी. जेल की हवंग की घोर अंधकार भरी कोहठयो़मे़इऩिे़रखा गया .िर एक हवंग का आपस मे़कोई कनेकश ़न निी़ था. कैहदयो़ के अपनी-अपनी वक़फशॉप मे़ जाने के रास़​़ेअलग अलग थे, .ताहक आपस मे़ कोई हमले निी़. तीन मंहजली इमारत मे़एक हवंग से दूसरी हवंग मे़लकड़ी के फट़​़ो से जाया जाता था. बाद मे़फट़​़ेिटा हदये जाते थे. प़त़य़ क े कोठरी की सांकल को आले मे़ घुसा कर ताला लगा हदया जाता था. न आले तक कैदी का िाथ पिुच ं गे ा न वि जेल से भागने की सोचेगा. मिेद़ ़ने किा ‘असल मे़भारत से इतनी दूर अथाि सागर से हघरे इस द़​़ीप पर जेल बनाने का मकसद िी कैदी को आपसी संवाद, मेलजोल, आजादी की योजनाओ़ आहद से दूर रखना था. उनकी सजाएं भी भयानक थी़. ये कोठहरयां भी उऩिे़ तब नसीब िोती थी जब वे तीन तरि की सजाएं पिले भुगत लेते थे. चेन फेटर सजा हजसमे़ कमर और पैर लोिे की छड़ मे़ फंसा कर दोनो़ िाथ कमर मे़ चेन से बांध देते थे. न कैदी बैठ


अंडमान के द्​्ीप अंग्ेज शासको् की क्​्रता की गवाही देते है्, लेरकन जैसी कल्पना थी, वे उससे कही्ज्यादा अनोखे है् और सेलुलर जेल पय्षटको्को रवचरलत करने वाला स्मारक है. सकता था, न हिलडुल सकता था. बस पैर हिला सकता था. दूसरी सजा बार फेटर थी. इसमे़िाथपैर दोनो़चेन से बांध देते थे. तब न िाथ पैर हिला सकते थे ना कोई काम कर सकते थे. तीसरी सजा थी क़​़ॉस फेटर. इस मे़लोिे की चेन कमर से पैर तक बंधी रिती थी. तीनो़सजाएं िफ़ता िफ़ता भर भुगत कर कैदी काल कोठरी मे़ लाया जाता था. विां भी उसे िथकड़ी बेड़ी मे़जकड़कर रखा जाता था.गद़नद के हिसाब से लोिे का हरंग डालकर लकड़ी के लंबे टुकड़ेपर उनका पहरचय, सजा की तारीख ,कैदी नंबर आहद हलखा जाता था .विी नंबर उनकी पिचान था, संबोधन था. कोठरी मे़कटोरे मे़दो हडल़बे पीने का पानी 24 घंटे के हलए हदया जाता था. दूसरे कटोरे मे़कैदी टट़​़ी-पेशाब करते थे. निाने के हलए समुद़का खारा पानी था. जो शरीर पर सूख कर खुजली पैदा करता था. हकतने ताज़ब़ु की बात िै हक चारो़ओर नमकीन जल का साम़​़ाज़य, लेहकन खाना फीका, हबना नमक के उबले चावल, पनीली दाल ,कच़​़ी अधजली

रोहटयां, सब़लजयो़ मे़ कीड़ो़ की भरमार रिती. अंडमान द़​़ीप समूि नाहरयल और सुपारी के वनो़ से आच़छाहदत थे, अतः इन कैहदयो़ के काम थे प़​़हतहदन कोल़िू से 30 पौ़ड नाहरयल का तेल हनकालना, तीन सेर नाहरयल के रेशे से रस़सी बुनना, नाहरयल के हछलको़को क्टना. काम पूरा न कर पाने की ब़सथहत मे़टाट की वद़​़ी पिना कर धूप मे़जंगल मे़लकड़ी काट ने भेजा जाता था. हटकटी से बांधकर नंगी पीठ पर तब तक कोड़े मारे जाते, जब तक खून न छलक आये. काम

जेल का प्​्वेश द्​्ार: यातनाओ्का अध्याय पूरा िोने पर प़थ़ म श़ण ़े ी के कैदी को एक आना नौ पाई मजदूरी हमलती थी. बाद मे़ प़थ़ म श़ण ़े ी का तीन आना, ह़​़दतीय का ढाई आना और तृतीय का एक आना तय हकया गया. मै़ पिली मंहजल पर िूं जिां की चार कोठहरयो़मे़फांसी की सजा प़​़ाप़त कैदी रखे जाते थे. एक-एक कोठरी जैसे उनकी पीड़ा की किानी किती थी. ’वि देहखए मैडम, नीचे लॉन मे़जो सफेद चूने से पुता हबना पायो का बैच ़ जैसा िै ना फांसी घर ले जाने से पूवद़यिां कैदी को मीठे पानी शुक्वार | 1 से 15 मई 2017 45


मास् यायावरी ट हेड

वाइपर द्​्ीप िे्फांिी घर: बेगुनाहो्पर अत्याचार का स्िारक से स़नान कराकर पूजा-पाठ कराया जाता था. लाइट इतनी तेज जलती हक समुद़मे़दूर से आते जिाज के याह़​़तयो़ को पता चल जाता हक तीन उसके पीछे वि फांसी घर िै.’ मेरे रो़गटे खड़ेिो गये. एक छोटे से कमरे मे़ कैहदयो़ को फांसी दी गयी िै. उस दौरान फांसी तीन मोटे-मोटे फांसी के फंदे झूल रिे थे. वेक ़ टेश घर मे़ 87 कैहदयो़ को फांसी दी गयी और उस ु ़ानी गाड़दको फांसी से कोई मतलब को बताना था, बता रिा था. भावनाओ़मे़तो मै़ हनम़मद हिंदस बिी जा रिी थी. जैसे आज से सौ साल पिले मुझे निी़ था. उसका काम था हनगरानी करना और यिां फांसी दी गयी फांसी िो. फांसी एक साथ फांसी के बाद उजाले का जश़न मनाना.’ मई 1941 मे़ चाथम द़​़ीप पर रॉयल एयर तीन कैहदयो़को दी जाती थी. बाद मे़उनकी लाश का कोई अंहतम संसक ़ ार निी़ िोता था. देश के फ़ोस़दजापान द़​़ारा बम हगराये गये. इस बमबारी हलए शिीद िोने वाले ये मतवाले सेनानी जेल की मे़ सेल़यूलर जेल के चार हवंग नष़​़ िो गये. दीवार से लगे समुद़मे़फेक ़ हदये जाते जिां उनकी आजादी के बाद इन चारो़ हवंग़स के मलबे से लाश मछली-मगर का भोजन बनती. आजादी की अंडमान के सबसे बड़ेअस़पताल गोहवंद बल़लभ क़या यिी कीमत िै? मेरी आंखे़छलछला जाती पंत अस़पताल का हनम़ादण उसी जेल भूहम पर िै.़ ‘यि जो सभी हवंगस ़ के बीच लाइट िाउस िै, हकया गया. पिले जिां कैहदयो़का लकड़ी से बना उस समय यिां खड़े िोकर गाड़दसातो़ हवंग की अस़पताल था, विां शिीद स़भ़ं बना िै हजसका द 1979 मे़हकया गया. प़थ़ म हवश़​़युद़से हनगरानी करता था. फांसी के समय लाइट िाउस हनम़ाण से जोर-जोर से घंटे बजने आरंभ िोते थे और पिले जो शिीद िुए थे, यि उऩिी़ की स़महृ त मे़ िेलुलर जेल की काल कोठरी:िेनामनयो्की यादे्

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बना िै. शिीद स़भ़ं की ओर जाने वाली सीह़ढयो़ के बांयी ओर शिीद ज़योहत िै, जो िमेशा जलती रिती िै. दाहिनी ओर पीपल का वि ठूठं िै जो उस जमाने का मूक साक़​़ी िै और जो लाइट एंड साउंड शो मे़ हससकते स़वरो़ मे़ ओम पुरी की आवाज मे़उस समय की यातनाओ़भरी किानी किता िै. हवनायक दामोदर, इंदभु षू ण रॉय,बाबा भान हसंि, पंहडत रामसखा, मिावीर हसंि ,मोिन हकशोर नामदास ,मोहित मोइत़​़ा सबके हलए सजाएं सुनाता, टॉच़दर के िुक़म देता था सामने कुस़ी पर बैठा जेलर डेहवड. नंबर 123 कोठरी मे़ वीर सावरकर रिते थे, हजनकी कोठरी पर हलखे वाक़य हववाद का हवषय बने थे. उनके भाई गणेश सावरकर भी उसी दौरान सेलय़ ल ु र जेल मे़थे, पर दोनो़ भाइयो़ को इस बात का पता न था. अत़याचारी डेहवड कलकत़​़े जाकर मरा. उसे अपना वतन भी दुबारा देखना नसीब निी़िुआ. मै़ डूब गयी िूं आकंठ उस काले पानी मे़ हजसकी यातना भरी किानी मेरी रग-रग मे़ नुकीले दंश चुभो रिी िै. जब मै़ऱमाल से अपनी आंखे़पोछती िूं तो मेरे बाजू मे़बैठा हचप़स खाता िनीमून जोड़ा मुझे आि़य़ द़से देखता िै. सेलय़ ल ु र जेल के हनम़ाण द के दौरान कैहदयो़ को वाइपर द़​़ीप मे़ रखा जाता था. वाइपर द़​़ीप जाने के हलए िम वॉटर स़पोट़स द कांपल ़ के स ़ मे़िी बने फोहनक़स बे जेट़ी पर आये. वेक ़ टेश हवदा ले चुका था. अपना चाज़द अनुराधा को सौ़प कर. दुबली-पतली-फुत़ीली अनुराधा गाइड जिाज पर बैठे याह़​़तयो़ का पहरचय स़वयं िी पूछ रिी थी. मौसम खुशगवार, लेहकन सागर बौखलाया िुआ था. लिरे़ऊंची-ऊंची मानो लपक कर जिाज मे़ बैठे मुसाहफरो़ को छूना चाि रिी िो़. िम खुली डेक पर आ गये. धूप ऐन सर पर थी. जब अंगज ़े इन सुनसान,घने,गिरे जंगलो़ से भरे और चारो़ ओर ि​िराते सागर के शोर से डरावना एिसास कराते द़​़ीपो़पर कैहदयो़की बस़​़ी बसाने आये थे फांिी के फंदे: यातना का इमतहाि


तो सबसे पिले उऩिो़ने चाथम द़​़ीप पर कल़जा जमाया था. लेहकन पानी की कमी के कारण पच़​़ीस पच़​़ीस की संखय़ ा मे़कैहदयो़को वाइपर द़​़ीप भेजा गया जिां पिले िी हदन कैदी नंबर 46 ने आत़मित़या कर ली. आठ अक़टबू र 1858 को भारत से कैहदयो़ के चार दल हजस जिाज पर इस द़​़ीप मे़ भेजे गये थे, उस जिाज का नाम वाइपर था. उसी के नाम पर इस द़​़ीप का नाम वाइपर रखा गया. वाइपर मे़ पह़​़िमी क़​़ेत़ का मुख़यालय था. अंडमान की इस पिली जेल मे़ सजा के दौरान कैहदयो़ ने अंग़ेजो के रिने के हलए सुंदर भवन और सड़को़का हनम़ाण द हकया था. मीठे पानी से भरे तीन गिरे कुएं खोदे थे. यिां खतरनाक माने जाने वाले कैहदयो़को बेह़डयो़मे़जकड़कर रखा जाता था. सेलल ु र जेल बनने के बाद भी अंडमान आने वाले िर कैदी को चेन से बांधकर पिले वाइपर द़​़ीप लाया जाता था ताहक खूख ं ार कैहदयो़ को दी जाने वाली ऱि थऱाद देने वाली यातनाएं देखकर वि भयभीत िो जाये. उनसे जो काम कराये जाते थे वे भी सजा जैसे िी पीड़ादायक थे. उनके औजार भोथरे थे, ताहक वि हकसी पर िमला न कर सके. भारी मन से िम वाइपर द़​़ीप मे़प़व़ श े कर रिे थे. स़वतंतत़ ा सेनानी ननी गोपाल, नंदलाल और पुहलन दास को भावभीनी श़द ़ ़ाज ं हल देते िुए, हजऩिे यिां बंदी बनाकर रखा गया था. ऊंचे ऊंचे घने दरख़तो़से भरपूर यि छोटा सा द़​़ीप मूक साक़​़ी था उन हदनो़ का. लाल और सफेद रंग से पुते साफ-सुथरे वीरान उन चार कमरो़ के आगे

बरामदे मे़ खड़ी अनुराधा धाराप़​़वाि बोल रिी थी. ‘इन कमरो़मे़मृतय़ ु की सजा प़​़ाप़त कैदी को लाया जाता था. फांसी से एक हदन पूवद़यिां उऩिे़ भोजन कराया जाता था. दूसरे हदन उऩिे़ दूसरे कमरे मे़ले जाकर बताया जाता हक उऩिे़फांसी क़यो़ दी जा रिी िै. फांसी पिाड़ी के ऊपर बने कमरे मे़ दी जाती थी जिां की 80 सीहढयो़ को कैदी खुद चढ़ता था. रात को सात और आठ के बीच फांसी दी जाती थी. अहधकतर कैदी फांसी पर लटकने के बाद जल़दी निी़मरते थे, लेहकन अंगज ़े ो़के पास इतना समय किां था. वे मूहछ ़ ति अवस़था मे़िी कैदी का पोस़टमाट़मद कर लाश को बोरी मे़भरकर समुद़मे़फेक ़ देते थे.’ उन चारो़ कमरो़ को देखने के बाद अब मै़ फांसी घर देखने के हलए 80 सीहढयो़को चढ रिी थी. तो सर से पैर तक एक उबाल मेरे शरीर मे़ हतर रिा था. यि भावना का जोर निी़ था. यि उन जीहवत कटते शिीदो़ के हलए सुलगता दावानल था हजसने मेरी ऱि को कंपा डाला था. फांसी घर मे़फांसी के हलए लटकते मोटे रस़से को देख अनुराधा ने अथाि पीडा मे़ भरकर किा, ‘यिां शेर अली को फांसी दी गयी थी.’ मैऩ े इहतिास मे़एम ए हकया िै और जब भी मै नारी हवमश़दपर लेख हलखती िू,ं इहतिास के उन पऩनो़ से कुलबुला कर शेर अली बािर हनकल आता िै. कौन िै यि शेर अली? शेर अली पेशावर का था. विां उसने अंगज ़े ऑहफसर ह़​़िगेहडयर ऑस़कर की ित़या की थी इसहलए उसे काले पानी की सजा िुई परंतु उसके अच़छे व़यविार के कारण उसे जेल का नाई बना हदया

वाइपर द्​्ीप: हरे और नीले का िंगि गया. उसी दौरान लॉड़द मेयो ने जेल की एक महिला कैदी के साथ बलात़कार हकया. यि तो जेल का चलन था. अंग़ेज अपने मनोरंजन के हलए हकसी भी महिला कैदी को उठा लेते थे. शेर अली के बद़ादश़त से बािर की थी यि वारदात. उसने अपने उस़ऱ े से अपनी बेह़डयां काटी और समुद़मे़छलांग लगा दी.वि तैरता िुआ िोपटाउन पिुच ं ा जिां लॉड़दमेयो एक हदन की छुट़ी मनाने ऱका था. उसने उस़​़रे से उसकी ित़या कर दी और अंगज ़े सरकार के सामने आत़म-समप़ण द कर हदया. लेहकन इसके पिले उसने पुरष़ कैहदयो़को राजी कर हलया था हक वि महिला कैहदयो़ से जेल मे़ िी शादी कर ले़ ताहक बलात़कार की घटनाएं दोिराई न जा सके. सन 1872 मे़वाइपर द़​़ीप के इसी फांसी घर मे़शेर अली को फांसी दे दी गयी थी. हकतनी जीवट दृढता थी शेर अली मे.़ उसने औरत के ऊपर िुए अत़याचार का बदला हलया. अंतरजातीय हववाि परंपरा की शुरआ ़ त का श़य़े भी उसे िी जाता िै. मेरा माथा श़द ़ ़ा से झुक गया शेर अली की याद मे.़ जब सेलय़ ल ु र जेल बन गयी तो वाइपर से सारे कैदी विां हशफ़ट िो गये. वाइपर खाली िो गया. सत़​़ासी वष़​़ो़तक वाइपर द़​़ीप की अंगज ़े प़श ़ ासन मे़मित़वपूणद़भूहमका रिी. वाइपर द़​़ीप के ये खंडिर मूक साक़​़ी िै हक समय हकसी का एक सा निी़रिता. प़क ़ हृ त भी तो िर मौसम मे,़ िर ऋतु मे़अपना ऱप बदलती िै. समय के थपेड़ो़ने अंगज ़े ी शानो-शौकत को आज n खंडिर मे़बदल हदया िै.

(बाकी द़​़ीपो़पर अगले अंक मे.़)

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मास् दिल्ट महेड

िहावीर फोगाट अपनी चार बेमटयो्के िाथ: कुश्ती कला का खानदान

दंगल फोगाट और चार बेमटयां फ्ज्ल इमाम मल्ललक

ि

हरयाणा मे़हभवानी हजले के बलाली गांव मे़ मिावीर फोगाट अक़सर खाट हबछा कर अपने िमउम़​़ गांव वालो़ के साथ िुक़ा गुड़गुड़ाते, स़थानीय मुद़ो़ पर बहतयाते या हफर ताश खेलते नजर आते थे. दंगल हफल़म की हरलीज के बाद भी मिाबीर फोगाट मे़ बिुत बदलाव निी़ आया िै. दंगल ने दंगल के इस नायक को रातो़रात स़टार बना हदया िै. लेहकन उनकी हदनचय़ाद मे़ बिुत ज़यादा बदलाव निी़ आया िै. पिलवानी और अखाड़ो़ मे़ दांवपेच अब भी उनकी पिली पसंद िै और बातचीत के के़द़मे़अखाड़ो़के दांवपेच िी रिते िै़. मिाबीर फोगाट की उम़​़करीब 55 साल की िै और वे कभी मास़टर चंदगी राम अखाड़े के नामी पिलवानो़मे़से रिे िै़. मिाबीर फोगाट ने गद़​़े पर भी कुब़शतयां लड़ी़ और हमट़​़ी पर भी. लेहकन उनकी पिचान राष़​़ीय अंतरराष़​़ीय स़ऱ पर उनकी कुश़ती ने उस तरि निी़ बनायी, हजतनी उनकी बेटी और भतीजी ने बनायी. 48 शुक्वार | 1 से 15 मई 2017

दरअसल मिाबीर फोगाट ने भारत मे़ महिला कुश़ती को आज हजस मुकाम पर पिुंचाया िै उसका सपना कभी मास़टर चंदगी राम ने देखा था. भारत मे़ महिला कुश़ती की शुऱआत मे़ मास़टर चंदगी राम की बड़ी भूहमका रिी. अपने बेहटयो़ को उऩिो़ने तब कुश़ती के दांवपेच हसखाये, जब कुशत़ ी मे़महिलाओ़का प़व़ श े एक तरि से वह़जदत था. मिाबीर फोगाट ने मास़टर चंदगी राम के सपनो़ को नये अथ़द हदये और भारतीय महिला कुश़ती को एक नये मुकाम तक पिुंचाया. चार बेहटयो़ मे़ से दो गीता और बबीता और भतीजी हवनेश फोगाट ने अंतरराष़​़ीय स़​़र पर पिचान बनायी. मिाबीर फोगाट ने अपनी चार बेहटयो़ और दो भतीहजयो़ को कुश़ती के क़​़ेत़ मे़ लेकर आये. उनकी उपलब़लध इसहलए भी मित़​़वपूण़दिै क़यो़हक िहरयाणा जिां लड़हकयो़को लेकर लोगो़ को नजहरया ठीक निी़ िै और ढेरो़ बंहदशे़ उन पर िै, उसी िहरयाणा मे़ मिाबीर फोगाट ने अपनी बह़​़चयो़को उस खेल मे़पारंगत हकया जो पुऱषो़का खेल माना जाता रिा िै. गीता, बबीता

आरमर खान की चर्चषत रफल्म ‘दंगल’ के असल नायक महावीर फोगाट का अखाड्ा रभवानी मे्है. रपता ने चार बेरटयो् के साथ हररयारा को कुश्ती की ऊंचाइयो्तक पहुंचा रदया है. और हवनेश ने राष़​़मंडल खेलो़का स़वण़दपदक जीत कर भारतीय महिला कुश़ती को तो ऊंचाई पर पिुंचाया िी, मिाबीर फोगाट के सपनो़ को भी ऊंचाई दी. हदल़ली मे़2010 मे़िुए राष़म़ ड ं ल खेलो़मे़गीता ने आस़ट़ेहलयाई पिलवान एहमली को िरा कर राष़​़मंडल खेलो़ मे़ पदक जीतने


िहावीर फोगाट को मिठाई मखलाते आमिर खान: मफल्ि के िेट पर वाली पिली भारतीय महिला पिलवान बनने पर पदक जीते िै़. सबसे छोटी संगीता और का गौरव िाहसल हकया था. इतना िी निी़ वे दुष़यंत मिाबीर फोगाट की देखरेख मे़प़​़हशक़​़ण ओलंहपक के हलए क़वालीफाई करने वाली भी ले रिे िै़. इनके अलावा भतीजी हवनेश और पिली भारतीय महिला पिलवान थी़. मिावीर ह़​़पयंका को भी मिाबीर फोगाट ने कुश़ती के गुर की पत़नी दया कौर किती िै़ हक मै़ चािती थी हसखाये िै़. हवनेश ने अंतरराष़​़ीय पिचान हक मेरे घर छोरे पैदा िो़लेहकन वे िमेशा चािते बनायी तो ह़​़पयंका अभी स़थानीय स़​़र पर थे हक छोहरयां िी पैदा िो़और भगवान ने िर बार कुब़शतयां लड़ रिी़ िै़. ये दोनो़ मिाबीर के छोटे उनकी िी सुनी. दया बताती िै़ हक गीता और भाई राजपाल की बेहटयां िै़हजनकी मौत काफी बबीता को उऩिो़ने छुटपन से िी प़​़हशक़​़ण देना पिले िो गई थी और मिाबीर ने िी इन दोनो़की शुऱ हकया. वे चािते थे हक दोनो़ कम से कम परवहरश की िै. राष़​़ीय स़​़र की पिलवान जऱर बने़. दोनो़को यि भी कम हदलचस़प निी़ िै हक मिाबीर पांच बच़​़ेिै.़ चार बेटी और एक बेटा. बेटा सबसे फोगाट के पहरवार मे़ दम लड़हकयो़ ने िी छोटा िै. मिाबीर फोगाट ने पांचो़को पिलवानी हदखाया िै, लड़के उस ऊंचाई को निी छू पाये. के दांव पेच हसखाये. गीता और बबीता ने तो उनकी पत़नी का भतीजा अनूप, हवनेश क भाई अपनी पिचान बना ली िै. तीसरी बेटी हरतु िरनाम और दूसरे भाई सज़ऩ का बेटा रािुल ने उभरती िुई पिलवान िै और उसने राष़​़ीय स़​़र भी मिाबीर के अखाड़ेमे़प़ह़शक़ण ़ िाहसल करने ‘दंगल’ िे्आमिर खान और िाथी कलाकार: पद्​्ेपर जीवन

पिुंचे लेहकन शायद मिाबीर फोगाट के अऩुशासन और कड़ी मेिनत की वजि से उनका मन उचटा और अखाड़ेसे बािर रिने मे़ िी उऩिो़ने भलाई समझी. अस़सी के दशक मे़ मिाबीर फोगाट एक जुझाऱ पिलवान के तौर पर जाने जाते थे. मिाबीर बताते िै़ हक उन हदनो़ दंगल मे़ हिस़सा लेने के हलए दूसरे गांवो़ से ऩयोता हमलता था. मुझे निी़ याद िै हक उन हदनो़ मै़ने कोई कुश़ती गंवायी भी थी. मुझे फाइटर किा जाता था. इस वजि से धीरे-धीरे मेरी शोिरत बढ़ती चली गयी. लोग मेरी कुश़ती पर सट़​़ा लगाने लगे. तब मै़ने दस से पचास िजार ऱपये के रकम वाली दंगलो़ मे़ हिस़सा हलया और जीत िाहसल की. लोग मुझे दूसरे राज़यो़से भी बाद मे़मुझे बुलाने लगे. मै़ने अपने सो ज़यादा भार वजन वाले पिलवानो़को भी धूल चटाई. सच तो यि िै हक मुझे िारना पसंद निी़था. मिाबीर किते िै़हक जब बेहटयो़को कुशत़ ी मे़लाने का मन बनाया तो इस बात का पता था हक अगर मै़उऩिे़बेितर प़ह़शक़ण ़ दूगं ा तो वे एक हदन महिला कुशत़ ी मे़भारत की नुमाइंदगी करेग़ ी. मैऩ े उऩिे़िर वि दांवपेच हसखाया जो मै़जानता था. इसके बाद मै़उऩिे़लेकर स़थानीय दंगल मे़ गया लेहकन उऩिे़कुशत़ ी लड़ने की इजाजत निी़ दी गयी. सच तो यि िै हक मुझे चेताया भी गया हक भहवष़य मे़ अपने बेहटयो़ को लेकर दंगल मे़ निी़ आया करं़ क़यो़हक यि हसफ़फ लड़को़ का खेल िै, लड़हकयो़का निी़. इस वजि से मै़और मेरे पहरवार के साथ एक तरि से अछूतो़की तरि व़यविार हकया जाने लगा था. तब मिाबीर ने तय हकया हक वे अपनी बेहटयो़ को और बेितर प़​़हशक़​़ण दे़गे और हफर वे दोनो़ को लेकर सोनीपत के भारतीय खेल प़​़ाहधकरण केद़ ़लेकर गये. विां कोच ने उनकी प़ह़तभा को देखा और उऩिे़ आगे की तैयारी के हलए प़ह़शक़ण ़ देने की िामी भरी. इसके बाद राि खुलती गयी और बाकी की बाते़ इहतिास िो गयी़. गीता, बबीता और हवनेश की कामयाबी ने बलाली गांव की दूसरी छोहरयो़ के हलए भी रास़​़े खोले. मिाबीर फोगाट के अखाड़ेमे़लड़हकयो़की तादाद बढ़ी. आसपास के गांवो़ से भी अब लड़हकयां पिलवानी के गुर सीखने आने लगी़. मिाबीर फोगाट ने गांव मे़हजम़नहे जयम भी बनाया िै और लड़हकयो़को बेितर प़ह़शक़ण ़ देने के हलए उच़​़ तकनीक की मशीने मंगाई िै.़ राष़म़ ड ं ल खेलो़ मे़ तीन स़वण़द पदक भारत को हदलाने वाले मिाबीर फोगाट की उपलब़लधयो़ को सरकार ने सालो़तक नजरअंदाज हकया. अब जाकर उऩिे़ सरकार ने द़​़ोणाचाय़द पुरस़कार से नवाज कर उनकी कद़​़की िै. दंगल मे़भले आहमर खान ने मुखय़ भूहमका हनभायी िो लेहकन दंगल के असल नायक तो मिाबीर फोगाट िी िै.़ n शुक्वार | 1 से 15 मई 2017 49


अंितम पन्ना संदीप पांडेय

तीन तलाकं के बीच जशोदाबेन

तीन तलाक पर मुर्सलम धम्षगुर्ओ्का रवैया रहंदुओ्द्​्ारा स्​्ी-प्​्ताड्ना को घरेलू मामला मानने जैसा ही है.

भा

रतीय जनता पाट़​़ी ने मुबस़ लम समाज मे़तीन बार तलाक कि पहत द़​़ारा पत़नी से संबधं हवच़छदे कर लेने की प़थ़ ा के हखलाफ अहभयान छेडा िै जो काहबले तारीफ िै. मुबस़ लम धम़दगुरओ ़ ़का यि किना हक यि उनके धाह़मक द कानूनो़के मामले मे़िस़क ़ प़े िै उसी तरि की बात िै जब हकसी घर के अंदर हकसी प़त़ ाहडत की जाने वाली महिला के हरश़तदे ार किे़हक यि उनके घर का आंतहरक मामला िै. हजस तरि से हकसी घर के अंदर हकसी महिला को प़त़ ाहडत िोने निी़ हदया जा सकता उसी तरि मुबस़ लम समाज की महिलाओ़को उनके पहतयो़द़​़ारा तीन बार तलाक किने के खतरे के साथ निी़ छोडा जा सकता. चािे हिंदू िो अथवा मुबस़ लम दोनो़ समाजो़ मे़ हपतृसत़​़ात़मक सोच िावी िै जो अपनी जऩमी और अजऩमी लडहकयो़के प़ह़त काफी क्ऱ रवैया अपनाती िै. भारत मे़हलंग अनुपात 940 िै जबहक िमारे पडोसी बांगल ़ ादेश मे़यि 997 िै. यानी भारत मे़कऩया भ़ण ़ू ित़या एक बडी समस़या िै. बच़​़ो़का अपिरण कर उऩिे़वेशय़ ावृह़त अथवा भीख मांगने के काम मे़लगाना भी बडी समस़याये़िै.़ ये गैर-कानूनी काम हदन-दिाडे िोते िै.़ यि बात समझ से परे िै हक कऩया भ़ण ़ू ित़या अथवा बच़​़ो़को देि व़यापार मे़ढकेलने अथवा हभखमंगा बनाने के मुद़ो़को छोड तीन बार तलाक के मुद़े को इतनी मित़व क़यो़हदया जा रिा िै? क़या जो लोग इन मुद़ो़पर चुप िै़वे इन अपराधो़के हलए हजम़मदे ार निी़? प़ध़ ानमंत़ी को पूरा िक िै हक वे मुबस़ लम महिलाओ़के प़ह़त सिानुभहू त रखते िुए उनके साथ िोने वाले अऩयाय के हखलाफ आवाज उठाये.़ परंतु जैसे प़ध ़ ानमंत़ी को मुबस़ लम महिलाओ़के िक की बात उठाने का अहधकार िै उसी तरि कोई उनकी पत़नी जशोदाबेन के अहधकारो़की बात भी उठा सकता िै, जो हबना तलाक के हपछले करीब पांच दशको़से एकल महिला का जीवन जीने को मजबूर िै.़ ऊपर हदये गये तक़फके आधार पर यि निी़किा जा सकता हक यि नरेद़ ़मोदी का हनजी मामला िै. अमरीका मे़जब कोई साव़ज द हनक जीवन मे़आता िै तो उसके पाहरवाहरक मामलो़पर खुली चच़ाद िोती िै. आम अमेहरकी नागहरक जो अपने पाहरवाहरक मामले मे़िस़क ़ प़े निी़चािता अपने राष़प़ हत पद के उम़मीदवार से अपेक़ा करता िै हक उसका पाहरवाहरक जीवन स़वच़छ िोगा. हकसी की कोई कमजोरी पकडी जाती िै तो उसकी उम़मीदवारी खतरे मे़पड जाती िै. मोदी पिले कि चुके िै़ हक उऩिो़ने साव़ज द हनक काय़द करने के हलए पाहरवाहरक जीवन का त़याग हकया. यि सिी िै हक वे शादी के बाद हिमालय चले गये थे हकंतु यि भी िकीकत िै हक वे तीन वष़​़ो़बाद वापस आये और हफर अपने एक चाचा के व़यवसाय मे़लग गये. यहद जशोदाबेन के दृह़षकोण से चीजो़को देखे़तो हजसे वे त़याग कि रिे िै़उसे पाहरवाहरक हजम़मदे ाहरयो़से भागना भी किा जा सकता िै. नरेद़ ़ मोदी मे़ भी सामाऩय इंसानो़ जैसी कमजोहरयां िै.़ उऩिो़ने वि मिंगा कोट पिना हजस पर उनके नाम की कढ़ाई की गयी थी या अपने प़ध़ ान मंह़तत़व काल के प़​़ारब़मभक दो वष़​़ो़मे़िरेक हवदेश यात़​़ा पर हवहभऩन देशो़के राष़​़ाध़यक़​़ो़के साथ सेलफ ़ ी खी़चते थे. जाहिर िै हक 50 शुक्वार | 1 से 15 मई 2017

अपने त़याग से वे सांसहरक चीजो़से ऊपर निी़उठे िै.़ दूसरी तरफ जशोदाबेन के मन मे़उनके प़ह़त अभी भावना शेष िै और उऩिो़ने किा िै हक उपयुकत़ समय आने पर वे उनसे हमलेग़ ी. इन दोनो़के बीच यहद हकसी ने त़याग हकया िै तो वि जशोदाबेन ने, क़यो़हक अलग िोने के हनण़यद पर उनका कोई हनयंतण ़ निी़था. यि हनण़यद तो उनके ऊपर थोप हदया गया. नरेद़ ़मोदी कि सकते िै़ हक शादी का िी हनण़यद उनके ऊपर थोपा गया. हकंतु भारतीय समाज मे़तो ज़यादातर शाहदयां ऐसे िी िोती िै.़ मां-हपता की राय से जोडी बनायी जाती िै. जशोदाबेन ने सूचना के अहधकार अहधहनयम के तित सरकार से यि जानने की कोहशश की हक प़ध़ ानमंत़ी की पत़नी के ऱप मे़उनके क़या अहधकार िै़तथा उनको सुरक़​़ा उपलल़ध कराने के आदेश की प़ह़त उऩिो़ने मांगी. हकंतु उऩिे़कोई भी सूचना निी़दी गई. मजेदार बात यि िै हक वे सूचनाये़मांग रिी थी़जशोदाबेन नरेद़ भ़ ाई मोदी के नाम से और अहधकाहरयो़के जवाब आ रिे थे जशोदाबेन हचमनभाई मोदी के नाम पर. हचमनभाई उनके हपता का नाम िै. जशोदाबेन ने जब हवदेश से अपने हरश़तदे ारो़द़​़ारा आमंतण ़ भेजे जाने पर पासपोट़दबनवाने िेतु आवेदन हदया तो उनका आवेदन अस़वीकृत िो गया क़यो़हक वे अपना हववाि प़म़ ाण पत़​़अथवा पहत की ओर से शपथपत़​़निी़ दाहखल कर पायी़. क़या यि उनके पहत की हजम़मदे ारी निी़ थी हक उऩिे़ सूचनाये़और पासपोट़दउपलल़ध कराया जाता? जशोदाबेन को तो एक आम नागहरक के ऱप मे़भी अपने अहधकार निी़हमले. दूरदश़नद के एक अहधकारी ने जब उनसे साक़​़ात़कार को प़स ़ ाहरत हकया तो उसका तबादला अिमदाबाद से पोट़दल़लये र, जिां अंगज ़े काले पानी की सजा के हलए भेजते थे, कर हदया गया. यानी सरकार ने जशोदाबेन का काम तो हकया निी़, हजसने उनकी मदद करने की कोहशश की उस अहधकारी को सजा दे डाली. क़या नरेद़ ़मोदी जशोदाबेन से डरते िै?़ यहद निी़ तो उऩिे़ जशोदाबेन द़​़ारा मांगी गयी जानकारी व उनका पासपोट़दउनको हदलवाना चाहिये. वे कोई बिुत बडी चीजे़निी़मांग रिी िै.़ जशोदाबेन की तुलना गौतम बुद़की पत़नी यशोधरा, तुलसी दास की पत़नी रत़नावली या हफर साहवत़​़ी, सीता और शकुतं ला से की जाती िै हजऩिो़ने अपने पहतयो़के हलए त़याग हकया. िम कोई पौराहणक युग मे़निी़रि रिे. धम़दया धम़गद थ ़ं ो़ के आधार पर इस तरि के कडे फैसलो़ को जायज निी़ ठिराया जा सकता. हजस तरि इस़लाम के नाम पर तीन बार तलाक किने की प़थ़ ा को उहचत निी़माना जा सकता उसी तरि नरेद़ ़मोदी का यशोदाबेन से हवच़छदे भी सिी निी़ठिराया जा सकता. हपछले महिला हदवस पर कुछ महिलाओ़ने भी वाराणसी मे़प़द़ श़नद कर नरेद़ ़मोदी से मांग की थी हक वे जशोदाबेन के साथ ऩयाय करे.़ यि देश चािता िै हक उसका प़ध़ ानमंत़ी अपने साथ ईमानदारी करे और हजन मूलय़ ो़ की वि बात कर रिा िै उऩिे़ अपने जीवन मे़भी हजये. कौन मानेगा हक जो व़यब़कत अपनी पत़नी के प़ह़त इतना कठोर िो सकता िै वि दूसरी पीहडत महिलाओ़के प़ह़त संवदे नशील िोगा?n (लेखक मैगसेसे पुरस़कार से सम़माहनत समाजकम़​़ी िै.़)




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