वर्ष 10 अंक 3 n 1-15 फरवरी 2017 n ~ 20
उम्मीदो् के अखिलेश
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वर्ष10 अंक 3 n 1 से 15 फरवरी 2017 स्वत्वािधकारी, मुद्क एवं प््काशक क््मता सिंह प््बंध िंपादक आशुतोष सिंह िंपादक अंबरीश कुमार िंपादकीय िलाहकार मंगलेश डबराल राजनीसतक िंपादक सववेक िक्िेना फोटो िंपादक पवन कुमार िंपादकीय िहयोगी
िसवता वम्ाा अंजना सिंह फजल इमाम मल्ललक (सिल्ली) िुनीता शाही (लखनऊ) अिनल चौबे (रायपुर) पूजा ििंह (भोपाल) िंजीत स््िपाठी (रायपुर) अिवनाश ििंह (ििल्ली) अिनल अंशुमन (रांची)
आवरण कथा
6 | एक चेहरा जो उम्मीद का ह ै
समाजवादी पाट््ी की अंदर्नी कलह से लवजयी होकर उभरना और कांगस ्े से चुनावी गठबंधन अलखलेश यादव की ताजा कामयालबयां है.् अब चुनाव जीतना एक और चुनौती है. उनकी कामयाबी उत्र् प्द् श े मे्एक नयी तरह की राजनीलत शुर्कर सकती है.
16 | गांधी िादी और मोदी
खादी ग््ामोद््ोग आयोग के कैलडे् र और डायरी की तस्वीरो् मे्गांधी का स्थान नरेद् ्मोदी ने ले ललया है, लेलकन जनमानस से गांधी को लमटाना लकसी के वश की बात नही्.
कला
प््वीण अिभषेक
महाप््बंधक
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ब््ांिडंग
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यती्द्कुमार ितवारी +91. 9984269611, 9425940024 yatendra.3984@gmail.com
सिज््ापन प््बंधक सजते्द्समश््
सिसध िलाहकार शुभांशु सिंह
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िंपादकीय काय्ाालय
एमडी-10/503, िहारा ग््ेि, जानकीपुरम लखनऊ, उत््र प््िेश-226021 टेलीफैक्ि : +91.522.2735504 ईमेल : shukrawaardelhi@gmail.com www.shukrawaar.com आिरण फोटो: पवन कुमार DELHIN/2008/24781 स्वत्वािधकारी, प्क ् ाशक और मुदक ् क्म् ता लसंह के ललए अमर उजाला पब्ललकेशस ं लललमटेड, सी-21, 22, सेकट् र-59, नोएडा, उत्र् प्द् श े से मुल्दत एवं दूसरी मंलजल, ल्ाी-146, हलरनगर आश्म् , नयी लदल्ली-110014 से प्क ् ालशत. संपादक : अंबरीश कुमार (पीआरल्ाी अिधलनयम के तहत समाचारो्के चयन के िलए िजम्मेदार) सभी कानूनी िववादो्के िलए न्याय क््ेत्िदल्ली होगा.
22 | मुत्ियां लहरािा अमेतरका
अमेलरका ने उस व्यब्कत को चुना है जो आने वाले समय मे्खुद उसके ललए मुबक् कले्खड्ी करने की वजह बनेगा. ट्प्ं के लखलाि मलहलाओ्के प्द् श्नत भी लगातार बढ्रहे है.्
28 | क्योटो का दक्किन टोला
क्योटो की तज्तपर लवकलसत होने वाले बनारस का एक लहस्सा आज भी सलदयो्पुरानी दशा मे्जीने को अलभशप्त है. वहां हालात मे्कोई सुधार होता नही्लदखता.
30 | अहो आनंदम परम अानंदम
मप््सरकार ने आनंद लवभाग के गठन और आनंदको्की लनयुबक् त के साथ एक नयी पहल की है, लेलकन कपड्,े बत्नत और बैग दान करके क्या आनंद कायम लकया जा सकता है?
44 | शांति और एकांि का यनम 48 | िलनायक से कुछ कम कभी फ््ासं ीसी उपलनवेश रहे पुडचु रे ी के पास यनम एक शांत-एकांत जगह है, जहां इलतहास की सांसे् अब भी महसूस की जा सकती है.्
शाहर्ख खान ‘रईस’ मे्शराब मालिया की सिल भूलमका के कारण आत्मलवश््ास से भरे हुए है.् लपछली लिल्म 'लडयर लजंदगी’ ने अच्छा व्यवसाय लकया था. शुक्वार | 1 से 15 िरवरी 2017
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आपकी डाक
बब्बदा हुआ असंगठित क्त ्े ्
ख्तम ् इक्बबल
नोटबंदी की कवायद ने अगर लकसी एक संसथ् ान की छलव को सबसे अलधक धक््ा पहुच ं ाया है तो वह है भारतीय लरजव्तबैक ् . देश की मौल््दक नीलत तय करने वाले और बैल्कंग लनयामक के र्प मे् आरबीआई को एक अहम मुकाम हालसल रहा है. लेलकन नोटबंदी की कवायद मे्लजस तरह केद् ् सरकार ने लगातार हस््क्ेप लकया और लजस तरह बार बार अलधसूचना जारी कर आरबीआई को लनयम कायदे बदलने पड्े उसने इस प्ल्तल््ित संसथ ् ान की छलव को जबरदस््धक््ा पहुच ं ाया है. गवन्रत ऊल्जतत पटेल को अब यह कोलशश करनी चालहये लक जल्दी से जल्दी इस संसथ ् ान की खोयी हुई प्ल्ति््ा उसे वापस लदलाये.् अगर ऐसा नही् कर सकते तो कम से कम यह सुलनल््ित करे्लक भलवष्य मे्ऐसा नही्हो. बैकठुं शर्ा,ा भोपाल
ओजोन् परत अनुपम
ल््पयदश्नत ने अपने आलेख ओजोन परत की तरह मे्अनुपम लमश््को लजस स्नहे से याद लकया है वह अब लवरल होता जा रहा है. यह सच है लक
सोशल मीडिया अलठवदब अनुपम
अनुपम लमश््पर प््कालशत सामग््ी ने आंखे्नम कर दी्. अभी उनके जाने का वक्त नही् था. पाल््कक पल््तका शुकव् ार ने उनको जो श्द ् ्ाज ं लल दी है वह अन्यत््देखना दुल्तभ है. प््भाष जोशी और ल््पयदश्तन के अनुपम लमश््पर ललखे नयेपुराने आलेख अरसे तक स्मृलत मे्अटके रहे्गे. कृसिका पाठक, फेिबुक
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शुक्वार | 1 से 15 िरवरी 2017
नोटबंदी ने देश के असंगलठत क्त्े ्को लजस कदर प्भ् ालवत लकया है उसकी भरपायी लनकट भलवष्य मे्तो होती नही्लदखती. देश के लवलभन्न उद््ोगो् को इसने बुरी तरह प््भालवत लकया. असंगलठत क््ेत् के लाखो् श््लमक बेरोजगार हो गये. लहंदस ु ्ान टाइम्स जैसे बड्ेसमाचार पत््समूह ने अपने आठ संसक ् रण बंद करने की घोषणा की उसे भी इससे जोड्कर देखा जा रहा है. ग््ामीण इलाको् मे् लोगो् को छोटे कज्त मुहैया कराने वाली सूकम् लवत््संसथ ् ाओ्से जुड्ी एक लरपोट्तमे् कहा गया है लक इस ऋ ण को चुकाने मे् छोटे
कज्दत ार बुरी तरह लविल रहे क्यो्लक उनके पास छोटे नोट नही्थे. बड्ी-बड्ी रेलटंग एजेल्सयो्का यही कहना है लक भारत को इससे उबरने मे् कािी वक्त लग जायेगा. सरकार को शायद अहसास ही नही्है लक देश की 86 प््लतशत मुद्ा को चलन से बाहर करने का देश की बड्ी आबादी पर लकतना बुरा असर हुआ है. इसने अथ्तव्यवस्था के लवलभन्न क््ेत्ो् को लजस तरह प््भालवत लकया है उससे लनजात लमलने मे्शायद बहुत अलधक समय लग जायेगा. राजेश सिरोही, नयी सिल्ली
अनुपम लमश्् जैसे लोगो् की जर्रत हमारे समाज मे्लगातार बढ्ती जा रही है जबलक उस प्क ् लृ त के लोगो्की तादाद लनरंतर घटती जा रही है. अनुपम लमश््ने आज भी खरे है्तालाब जैसी जो लकताब ललखी वह अपने आप मे् इतना महत्व् पूणत् काम है लक कई लोगो् के पूरे जीवन के काम पर भारी पड्जायेगा. उन्हो्ने अपना पूरा जीवन समाज के नाम कर लदया. इस लसललसले मे् प््भाष जोशी के आलेख का लजक्् करना भी समीचीनी होगा. उन्हो्ने गजब की आत्मीयता से अनुपम लमश्् को याद लकया है. यह पुराना आलेख अब धरोहर बन चुका है लजसे संजोकर रखने की आवक्यकता है. अनुपम लमश्् को सबसे अच्छी श््द्ांजलल यही होगी लक हम सभी अपने आसपास के जल स््ोतो् को लचब्ननत करे् और उनको प््दूलषत होने से बचाने का प्य् ास करे.् रासश शर्ा,ा पटना
सघनता उनको देश के कई अन्य इलाको् के जंगलो् से अलग करती है. घने वनो् के बीच आबाद बारनवापारा जैसे डाक बंगले रात मे् एक अलग अनुभूलत देते है्. जब चारो् ओर सुन्न कर देने वाले सन्नाटे के बीच केवल जंगली जानवरो् की आवाज आती है. तकनीक के मोहताज हो चुके इस युग मे् भी अगर आप इन स्थानो् पर पहुंच जाये् तो यह अहसास होता है लक प्क ् लृ त की गोद मे्तकनीक लकतनी बेमानी है.
घने वन कब बंगलब
छत््ीसगढ्के बारनवापारा ब्सथत डाक बंगले की यात््ा रोचक लगी. वह हम पाठको् को अपने साथ-साथ लवचरण पर ले गयी. मैन् े छत््ीसगढ् के वनो् का भ््मण लकया है और उन वनो् की
यबदगबर यबयबवरी
यायावरी स््ंभ शुक्वार पल््तका को दूसरो् से अलग मुकाम देता है. घुमक््ड्ी स्वभाव के तमाम लोगो् को इस स््ंभ को पढऩा चालहये. उनकी प््ेरणा बरकरार रहेगी. साथ ही उनको घूमने के ललए लकतने ही नये लठकानो् की भी जानकारी लमलेगी. लवदेश यात््ाओ् को लेकर उत्सुक लोगो् को यह जानकर हैरत होगी लक खुद हमारे देश मे् ही घूमने लिरने के ललए लकतनी जगहे्मौजूद है्.
व्योरेश खंडेलवाल, फेिबुक
राजेश सिंह, रायपुर
पाठको् से तनवेदन
शुक्वार मे्प््कािशत लरपोट््ो्और रचनाओ् पर पाठको्की प््लतलक््या का स्वागत है़ आप अपने पत््नीचे िदए गए पते पर या ईमेल से भेज सकते है्. एमडी-10/503, सहारा ग््ेस, जानकीपुरम, लखनऊ, उत््र प््देश-226021 टेलीिैक्स : +91.522.2735504 ईमेल :shukrawaardelhi@gmail.com
टैगोर और ओकबंपो
कवी्द् रवी्द्नाथ टैगोर और अज््ेटीना की सालहत्यकार लवक्टोलरया ओकांपो की लमत््ता के बारे मे् जानकारी शुक्वार मे् प््कालशत एक आलेख से लमली. अपने अज््ान पर शल्मि्दा भी हूं और इस जानकारी पर अभीभूत भी लक दोनो् को लेकर एक लिल्म इस समय लनम्ाण त ाधीन है. रवी्द्नाथ टैगोर के बड्े परदे पर आने से एक बड्ी कमी दूर होगी. उनको वह जर्री मान लमलेगा लजसके वे दरअसल हकदार है्. िुलोचना शास््ी, फेिबुक
संपादकीय
अखिलेश का दूसरा दौर स
अंबरीश कुमबर
देश मे्मोदी के बाद ससफ्फ दो चेहरे ऐसे है्सिन्हे् लोग पसंद कर रहे है्. इनमे्एक नीतीश कुमार है्तो दूसरे असिलेश यादव. कई मामलो्मे् असिलेश नीतीश से भी आगे निर आते है्. लोग उनमे भसवष्य का रािनेता देि रहे है.
माजवादी पाट््ी और कांगस ्े के बीच अंततः गठबंधन हो ही गया. यह तभी संभव हुआ जब मुलायम लसंह यादव को अलखलेश ने पाट््ी का रहनुमा बना कर राजनैलतक ताकत ले ली. अब अलखलेश का दूसरा दौर शुर् हो रहा है. मुलायम लसंह यादव के पालरवालरक कलह के पीछे एक वजह समाजवादी पाट््ी की राजनीलत का लवस््ार भी था. मुलायम लसंह अलखलेश की उस राजनीलत से सहमत नही्थे लजसमे पाट््ी के कोर वोट बैक ् यादव और मुसलमानो्के अलावा दूसरो्पर भी ध्यान लदया जाये. अलखलेश यादव को लपछले लवधान सभा चुनाव मे् सपा के कोर वोट बै्क के अलावा अगडी जालतयो् का भी वोट लमला था क्यो्लक उन्हो्ने पाट््ी की परंपरागत राजनैलतक धारा को बदलने का प््यास लकया था. एक दौर मे् समाजवादी कंपय् टू र के लखलाि थे और इससे उन्हे्बेरोजगारी बढने की आशंका थी. उस दौर मे् यह सही भी था. पर समय बदला लेलकन जातीय गठजोड पर खडी समाजवादी पाट््ी ने अपनी राजनीलत मे्कोई बदलाव नही्लकया. इसी वजह से उसके वोट बैक ् मे्लवस््ार कम हुआ. समाजवादी पाट््ी को न कभी पूणत्बहुमत लमला न मुलायम लसंह कभी पांच साल का काय्क त ाल पूरा कर पाये. अलखलेश ने अपने लैपटाप अलभयान के जलरये अगडी जालतयो्के युवाओ्को भी लुभाया. बाद मे सत््ा मे्आने के बाद उन्हो्ने लवकास के उन मुद्ो् पर ज्यादा िोकस लकया लजसे मध्यवग््ीय समाज ज्यादा पसंद करता है. मसलन मेट्ो, एक्सप्स ्े वे से लेकर आईटी हब तक. इस तरह की और भी कई योजनाओ् पर उन्हो्ने िोकस लकया. कुछ मे्काम हुआ तो कुछ पर हो रहा है. पर साफ़ संदश े यह गया लक अलखलेश यादव लवकास के एजेड् ा पर चल रहे है.् साथ ही वे दागी और बाहुबली नेताओ्से लकनारा कर रहे है. जबलक समाजवादी पाट््ी की परंपरागत राजनीलत मे्इनका महत्वपूणत्स्थान था. ऐसा नही्लक सब साफ़ सुथरे लोग ही अब सपा मे् बचे हो्. यह संभव भी नही् पर एक शुरआ ् त तो हो चुकी है. इसी वजह से अलखलेश यादव अबतक के सभी सव््ेमे्लोगो्की पहली पसंद बने हुये है.् वे कोई समाजवादी एजेड् ा पर नही्चल रहे है्न ही उनके लवचार या काय्क त म् ो् से कोई ऐसी उम्मीद लगा सकता है. पर शहरी मध्य वग्तऔर ग़रीबो्के ललये कुछ योजनाये्शुर्
हुई है् खासकर लशक््ा और स्वास्थय् के क्त्े ् मे.् उम्मीद है उन्हो्ने जो घोषणा पत््जारी लकया है उसपर अमल होगा. लिर भी तलमलनाडु मे्लजस तरह जयलललता ने लनम्न मध्यम वग्त को लसलाई मशीन लमक्सी और वालशंग मशीन आलद देकर अपनी तरि खी्चा था संभवतः अलखलेश भी उसी रास््ेपर है.् कुछ योजना कािी चच्ात मे्है जैसे सरकारी स्कल ू के बच््ो्को एक लकलो देसी घी और दूध पावडर देने का एलान. इसके अलावा हवाई अड््े पर एयर एम्बल ु स े् जैसी सेवा शुर् करना. यूपी की जातीय और मजहबी गोलबंदी की राजनीलत के ललये यह सब नया है. एक पीढी जो मंलदर मंडल की राजनीलत के बाद की है उसे यह सब लुभा भी सकता है. पर अलखलेश यादव को दीघ्क त ालीन राजनीलत के लहसाब से अपनी टीम और काय्तक्म तय करने चालहये. उनकी कोर टीम मे् कोई बहुत जानकार और अनुभवी लोग नजर नही्आते. मुलायम की समाजवादी राजनीलत के दौर मे् उनके साथ जनेशर् लमश्,् मोहन लसंह, बृजभूषण लतवारी, कलपलदेव लसंह, राजेद् ् चौधरी, आजम खान और माता प््साद पांडेय जैसे बहुत से अनुभवी और खांटी समाजवादी नेता रहे. ऐसे मे् अलखलेश को युवा टीम के साथ पुराने लोगो्को जोडकर चलना चालहये. समाजवादी पाट््ी पर सबसे बडा आरोप कानून व्यवस्था को न संभाल पाने का लगता है. इसकी एक वजह लसिालरशी अिसरो् की तैनाती रही है. अब वे साढे चार मुखय् मंल्तयो्के दालयत्व से मुकत् हो चुके है्ऐसे मे् कानून व्यवस्था को लेकर देश के अपराध लवशेषज््ो् की राय से नयी पहल करे्. पाट््ी से अपराधी लकस्म के नेताओ् को पूरी तरह बाहर करे्तो वे लंबी पारी खेल सकते है.् देश मे् मोदी के बाद लसि्फ दो चेहरे ऐसे है् लजन्हे् लोग पसंद कर रहे है इनमे एक नीतीश कुमार है्तो दूसरे अलखलेश यादव. कई मामलो् मे् अलखलेश नीतीश से भी आगे नजर आते है. इसललये लोग उनमे भलवष्य का राजनेता देख रहे है. ऐसे मे् अलखलेश की लजम्मेदारी और जवाबदेही भी बढ जाती है. अलखलेश को देश के हर क्त्े ्के लवशेषज््ो्की टीम बनानी चालहये जो लवकास का वह रास््ा बताये लजससे जल जंगल और जमीन भी बचे तो समाज का जीवन भी n बेहतर बने. ambrish2000kumar@gmail.com शुक्वार | 1 से 15 िरवरी 2017
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आवरण मास्ट हेकथा ड
एक चेहरा जो उम्मीद का है
समािवादी पार््ी की अंदर्नी कलह से सवियी होकर उभरना और कांग्ेस से चुनावी गठबंधन असिलेश यादव की तािा कामयासबयां है्. अब चुनाव मे् िीतना उनकी एक और चुनौती है. असिलेश की कामयाबी उत््र प््देश मे्एक नयी तरह की रािनीसत शुर्कर सकती है.
रंजीव
स
िभी फोटो: पवन कुरार
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शुक्वार | 1 से 15 िरवरी 2017
असखलेश यािव: नयी पीढ्ी की नयी राजनीसि
न 1999 की बात है. लोकसभा की कन्नौज सीट पर उपचुनाव होना था. यह सीट समाजवादी पाट््ी के मुलखया मुलायम लसंह के इस््ीिे से खाली हुई थी. समाजवादी पाट््ी को यहां ऐसे प््त्याशी की तलाश थी लजसे कन्नौज के वोटर मुलायम का उत््रालधकारी मानते हुए उपचुनाव मे्लजतवा दे.् मुलायम लसंह को अपने बेटे अलखलेश यादव से बेहतर कोई चेहरा नही् जंचा और उन्हो्ने अलखलेश को कन्नौज जाकर नामांकन के ललए कहा. समाजवादी पाट््ी की राजनीलत की खबर रखने वाले बताते है् लक अलखलेश राजनीलत मे् आना नही्चाहते थे लेलकन लपता के आदेश पर अनमने ही सही वे कन्नौज के चुनावी मैदान मे् उतरे और जीत कर लोकसभा पहुंचे. मुलायम ने तब अपनी छोड्ी संसदीय सीट पर जीत हालसल करने की लजम्मेदारी बैटे अलखलेश को सौ्पी थी. उसके करीब डेढ़् दशक बाद अलखलेश ने अब लपता की जगह समाजवादी पाट््ी के भी उत््रालधकारी के र्प मे् इसकी कमान थाम ली है. इस प््ल्कया मे् न लसि्फ अपनी पाट््ी बब्लक प््देश की बड्ी आबादी के बीच अलखलेश लजस तरह अपनी छलव लनखारते हुए स्थालपत हुए है् वह लकसी नायक के उभार से कम नही्. समाजवादी पाट््ी के चुनाव लचन्न साइलकल और पाट््ी पर अलखलेश के हक मे्चुनाव आयोग का िैसला उनके नायक के कद का लवस््ार भी है. बीते पांच साल की सरकार, खास तौर पर उसके उत््राध्त और पाट््ी के अंदर नेतृत्व की तकरार के इस दौर मे्अलखलेश यादव खुद को एक ब््ांड के र्प मे्स्थालपत करने मे्कामयाब रहे है्. एक ऐसा ब््ांड लजस पर देश की सबसे पुरानी राजनीलतक पाट््ी कांग्ेस भी उत््र प््देश मे्अपनी खोई साख जमाने के ललए दांव लगाने
को तैयार है. पांच साल तक सरकार चलाने के बाद चुनावो्मे्सत््ा लवरोध का एक स्वाभालवक आधार तैयार होने की आशंकाओ्के बावजूद न लसि्फ पूरी समाजवादी पाट््ी बब्लक गैर भाजपा दलो् का बड्ा लहस्सा भी अलखलेश पर भरोसा करने को तैयार है लक उनका साथ लमला तो चुनाव मे्बेड्ा पार लग जायेगा. अलखलेश के इस उत्थान के कारण ही खुद समाजवादी पाट््ी के कई धुरधं र भी यह याद नही् कर पा रहे है् लक राजनीलत के उस््ाद मुलायम लसंह यादव के प््लत चुनावो्मे्कामयाबी लदलाने का ऐसा भरोसा शायद ही कभी उपज पाया हो. समाजवादी पाट््ी के वोट समीकरण और मुलायम के सधे हुए चाल यलद बीते 25 साल मे् पाट््ी को यूपी की राजनीलत मे्मजबूती से जमाये रखने मे् कामयाब रहे तो अब आगे की यात््ा अलखलेश यादव की छलव और उनकी काय्श त ल ै ी के सहारे ही चलेगी. लजसे राजनीलतक लवक्लषे क समाजवादी पाट््ी मे्अलखलेश युग की शुुर्आत भी बता रहे है्. दरअसल यह अलखलेश के प््लत भरोसे का भाव ही था लक चुनाव आयोग के िैसले से पहले उनके तमाम समथ्तक मान कर चल रहे थे लक साइलकल चुनाव लचन्न न लमला तो भी चुनावो् मे् लसक््ा अलखलेश का ही चलेगा. आलखर ऐसा क्या हुआ लक डेढ्दशक पहले इसकी शुर्आत उन्हो्ने सांसद बनने के जो नौजवान राजनीलत मे्आने को तैयार ही नही् साथ की थी. वष्त2009 मे्समाजवादी पाट््ी का था वह न लसि्फ अपनी पाट््ी का लनल्वतवाद नेता प् द ् श े अध्यक््व 2012 मे्सपा की पूण्तबहुमत बन कर उभरा है बब्लक प््देश मे् आगे की की सरकार का मुख्यमंत्ी बनने के साथ उनकी राजनीलत की नयी इबारत ललखने की पहल भी इस राजनीलत और काम करने के तरीके का रंग कर रहा है? क्या वजह रही लक समाजवादी पाट््ी के ज्यादातर लवधायको् और पाट््ी के अन्य और गाढ्ा होता चला गया. सौम्य व्यवहार, पदालधकालरयो् को यह लगा लक उनकी भलवष्य तनाव के बावजूद चेहरे पर मुस्कान, तकलीि की राजनीलत अलखलेश यादव के साथ चलने मे् के लम्हो्मे्आंखो्मे्दद्तउभर आना और जनता ही बेहतर और सुरल््कत रहेगा? आलखर इसकी के ललए लवकास काय््ो् को अपनी लसयासत का भी वजह क्या रही लक प््देश मे् पहले कभी कोर एजे्डा बनाये रखने के उनके अंदाज ने समाजवादी पाट््ी के साथ तालमेल कर न लडऩे अलखलेश को आम आदमी के बीच लोकल््पय वाली कांग्ेस अलखलेश यादव के नेतृत्व वाली बनाया. लोगो्को लगा लक यह एक लसयासी चेहरा सपा संग हाथ लमलाने को तैयार हो गयी? है जो बेवजह लसयासत को ओढ्ेरखने का भान अलखलेश के प््लत नही् करता. यह कहने उपजे इस चौतरिा अखिलेश ने अपनी स्वाभाखवक का माद््ा रखता है लक भरोसे के ललए उन शैली खवकखित करने मे्कामयाबी राजनीलत उसका तत्वो् का लजक्् जर्री पायी. उनके प् ख ् त िमाजवादी कलरयर है और इसमे् है लजनके जलरये कामयाबी के ललए उसे पार््ी और िमर्क थ ो्के बीच अलखलेश ने राजनीलत भरोिे का भाव इिी िे उपजा है. इसमे् बने रहना होगा. का नया ककहरा ललहाजा कभी अंग्ेजी ललखा. लजसमे् न लसि्फ को ले क र अपनी सोच के कारण बड्ेतबके की खुद अपनी पाट््ी बब्लक उत््र प््देश मे्गए कई आलोचनाओ् का लशकार रही समाजवादी पाट््ी दशको्मे्हुई राजनीलत के स्थालपत मानको्को को अलखले श ने लै प टाप, एक् स प््ेस वे, मेट्ो रेल भी नये लसरे से गढऩे की उन्हो्ने पहल की. ऐसी और अब स् म ाट् त िोन वाली सोच और उसे राजनीलत जो 21 वी् सदी की आबादी की अं ज ाम तक पहु च ं ाने वाले दल मे ्तल्दील करने आकांक्ाओ् और प््ाथलमकताओ् से मेल खाती मे ् कामयाबी पायी है . उत् र ् प् द ् श े की राजनीलत हो.
िाइसकल रैली रे् असखलेश: रहज प््िीक नही् के तौर-तरीको् के बदलने का यह संकेत है. लोकतंत्मे्कोई सरकार स्थायी नही्होती और हर पांच साल मे् होने वाले चुनावो् मेे् सभी लसयासी दल खुद को अगले से अव्वल सालबत होने की होड्मे्शालमल होते है्. इसे बदलते ककहरे का ही असर माना जाना चालहये लक साल 2012 तक स्मारको्, मूल्ततयो् को वग्त लवशेष की आस्थाओ्, आकांक्ाओ् व जालत बोध के गव्त का प््तीक बताने से न थकने वाली्बहुजन समाज पाट््ी की मुलखया मायावती भी 2017 मे् यह वादा कर रही्है्लक अबकी सरकार बनी तो कोई स्मारक, मूलत् ि्नही्बनवायेग् ी. उनके जमाने मे्भी लवकास हुआ था इसे बताने की बसपा नेताओ्की ललक देखते ही बनती है. यह राजनीलत और राज करने के एक खास अंदाज को कॉपी करने की वह प््वृलत है लजसे अलखलेश यादव ने अपनी स्वाभालवक शैली के र्प मे् लवकलसत करने मे् कामयाबी पाई. उनके प््लत समाजवादी पाट््ी और उसके समथ्तको् के बीच भरोसे का भाव इसी से उपजा है. अलखलेश हमेशा लंबी लाइन खी्चने पर यकीन करते है्बीते साल लसतंबर-अक्टूबर के उस दौर मे् लिर लदखा जब पाट््ी के प््देश अध्यक्् पद से उन्हे् हटा कर उनके चाचा लशवपाल लसंह यादव को यह पद सौ्प लदया गया. मुलायम लसंह यादव ने 24 अक्टूबर को शुक्वार | 1 से 15 िरवरी 2017
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आवरण कथा
रुलायर सिंह यािव और असखलेश: अप््ािंसिक और प््ािंसिक समाजवादी पाट््ी के लखनऊ ब्सथत दफ्तर मे् हालसल की. पाट््ी संगठन पर दावेदारी की लड्ाई मे्जीत सम्मल े न बुलाया. उसके पहले लसयासी गललयारे ऐसी चच्ात से गुलजार थे लक अलखलेश अपनी ने लन:संदेह अलखलेश यादव का कद बढ्ाया है. अलग पाट््ी बनाने जा रहे है् ललहाजा 24 के बीते साढ्ेचार साल मे्उनकी यह छलव बनी थी लक वे लपता और चाचाओ्के साये से नही्लनकल सम्मेलन मे्वे नही्आये्गे. अलखलेश न लसि्फसम्मेलन मे्आये बब्लक पाते. सरकार मे् साढ्े चार मुख्यमंत्ी होने का अपने प््खर भाषण के जलरये अपनी लड्ाई को तंज लवपक््ी दल लगाते रहे थे. ऐसी तोहमते्भी पाट््ी मे् अपने लवरोधी धड्े के घर मे् ले आये. लगी्लक अलखलेश की नही्चलती और सरकार 2012 मे्उनके चुनाव प््चार के लदनो्मे्उनकी उनके लपता व सपा मुलखया मुलायम लसंह के तस्वीर के साथ वसीम बरेलवी का यह शेर कहने पर चलती है. लोकसभा चुनावो्के बाद लवकास के काय््ो् ललखा पोस्टर व स्टीकर खूब लोकल््पय हुआ था- उसूलो्पे जहां आंच आये टकराना ज्र्री को तेजी से आगे बढ्ाकर अगर अलखलेश ने है जो लजंदा हो तो लिर लजंदा नजऱ आना ज्र्री बतौर बेहतर मुख्यमंत्ी अपनी छलव को स्थालपत है. 2016 के आलखरी तीन महीनो्व 2017 की लकया तो संगठन पर कल्जे को लेकर शुर् हुई शुर्आत मे् अलखलेश की लड्ाई को कई लोग लड्ाई मे् पीछे न हटने और अंतत: पाट््ी का उसूलो्पर आंच के लखलाि टकराने के र्प मे् राष््ीय अध्यक्् बनने तक के उनके िैसले ने ही देख रहे है्. लजसमे् अंतत: उन्हो्ने जीत अलखलेश की तेवरदार और नायक वाली छलव
को उभारा. न लसि्फ समाजवादी पाट््ी के अंदर बब्लक प््देश के बड्े तबके को भी उनका यह र्प भाया है. पांच साल सरकार चलने से उपजी सत््ा लवरोधी आशंकाओ्के बावजूद खुद को मजबूत लवकल्प के र्प मे् मैदान मे् बनाये रखने मे् कामयाब और अब चुनाव आयोग मे् भी जीत हालसल कर अलखलेश ने खुद को हीरो सालबत कर चुनावी मैदान मे् उतरने का मुकम्मल इंतजाम कर ललया है. एक ऐसा चेहरा जो बीते कई महीनो् से इसललए लगातार चच्ात मे् है रहा है क्यो्लक वह स्थालपत मानको्के लखलाि लड्ाई लड्रहा है. चुनावो्मे्ऐसे चेहरो्को वोटरो्का बड्ा तबका पसंद करता रहा है. हालांलक खुद अलखलेश ने पाट््ी संगठन की जंग मे्बाजी मारने के बावजूद लपता मुलायम लसंह यादव के प््लत सम्मान मे् कोई कमी न आने देने का खास ख्याल रखा है. लजस नयी राजनैलतक शैली को गढऩे मे् अलखलेश जुटे है्यह भी उसका ही लहस्सा है. चुनाव आयोग मे् अलखलेश यादव के पक्् मे्आये िैसले ने उत्र् प्द् श े लवधानसभा चुनाव का पूरा पलरदृक्य भी बदल लदया है. समाजवादी पाट््ी मे्टूट और मुलायम व अलखलेश खेमो्के अलग-अलग चुनाव लचन्नो् पर लडऩे से उन्हे् होने वाले नुकसान व लवरोलधयो् को लाभ की संभावनाओ् पर झटके से लवराम लगा है. अलखलेश यादव के नेतृत्व मे् समाजवादी पाट््ी अब गठबंधन के साथ दोगुने आत्मलवश््ास से भर कर चुनावी मैदान मे्जाने की तैयारी मे्है्. कई महीनो्से हताश पड्ेसमाजवादी पाट््ी के काय्तकत्ात भी नई ऊज्ात के साथ चुनाव मे् उतरे है्. माना जा रहा है लक चुनाव मे्अलखलेश और मुलायम खेमो्के अलग-अलग उतर कर
नये ज़माने का घोषणा पत़़
स
माजवादी पाट््ी की अोर से लवधानसभा चुनाव के ललए अलखलेश यादव ने जो घोषणा पत््जारी लकया है वह लवकास को मुखय् एजेड ्ा बनाने की उनकी कोलशश का लवस््ार ही है. इसमे्अाधी अाबादी के साथ नई पीढ्ी को बेहतर भलवष्य अौर सहूललयते्देने का संकल्प है तो लवकास की योजनाअो्को अागे बढ्ाने का ठोस नजलरया भी. गरीब मलहलाअो्को खाना पकाने के ललए मुफत् प्श ्े र कुकर, युवाअो् को स्माट्तिोन व गरीब बच््ो्को मुफ्त लमल्क पाउडर व घी देने का वादा ऐसा है जो इस घोषणा पत््को बनाने मे्वक्त अौर पय्ातप्त सोच लगने की तस्दीक करते है्. घोषणा पत््मे्अत्यंत गरीब लोगो्को मुफ्त गेहूं-चावल और एक करोड्लोगो्को 1000 र्पये की मालसक पे्शन देने की बात भी कही गई है. लैपटॉप, कन्या लवद््ा धन, पूव्ाि्चल एक्सप््ेस वे, समाजवादी पेशन,
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शुक्वार | 1 से 15 िरवरी 2017
हेल्पलाइन 100, 102, 108 जैसी पुरानी योजनाओ् को और अलधक मजबूती से चलाए जाने के वादे के साथ ही अलखलेश ने कहा लक घोषणापत्् के वादो् के अलावा एसपी के जीत कर अाने वाले सभी लवधायक अपने लवधानसभा क््ेत् के लवकास का रोड मैप भी अलग से बनावाएंग.े घोषणा पत््मे्लदल्ली की तज्तपर यूपी मे्भी मोहल्ला क्लीलनक शुर्करने का वादा भी है. कुछ प््मुख घोषणाएं: कामकाजी मलहलाओ्के ललए हॉस्टलो्का लनम्ाण त l मलहलाअो्को यूपी रोडवेज की बसो्के लकराए मे्50% की छूट l एक करोड् गरीब लोगो् को 1000 र्पये की मालसक पे्शन l समाजवादी लकसान कोष बनाए जाने का ऐलान l आगरा, वाराणसी और मेरठ मे् भी मेट्ो l समाजवादी स्माट्त ग््ाम l पूव्ाि्चल एक्सप््ेस वे का लनम्ातण l सड्को्के लकनारे मंडी
सपा की नयी स़टार
घोरणा पत््िारी करने के मौके पर सिंपल यादव एक नये स्रार के र्प मे्उभरकर आयी है्.
रंजीव खनऊ मे्22 जनवरी को लवधासभा चुनाव के ललए समाजवादी पाट््ी का घोषणा पत््जारी करने के मौके पर अलखलेश यादव ने पहले से मंच पर मौजूद अपनी पत्नी व सांसद लडंपल यादव को अपने बगल मे्बुला ललया. अलखलेश ने समाजवालदयो्वाली लाल टोपी पहनी अौर लडंपल को भी लदया. लडंपल ने टोपी लगाई नही्लक मौके पर मौजूद सपा काय्तकत्ातअो् ने जोलशले नारे लगाने शुर्कर लदए. घोषणा पत््जारी करने के मौके पर हुए इस घटनाक््म को लडंपल यादव के नया स्टार बन कर सामने अाने का संकेत माना जा रहा है. िौजी पलरवार मे्जन्मी्लडंपल की स्कूली पढ्ाई देश के कई लहस्सो्मे् हुई. लजसमे्स्कूल मे्अालखर के साल अौर लिर स्नातक की पढ्ाई का दौर लखनऊ मे्रहा. जानकार बताते है्लक उसी दौरान अलखलेश यादव अौर लडंपल यादव की मुलाकात हुई जो प््ेम अौर लिर साल 1999 मे्दोनो्की शादी तक पहुंची्. अलखलेश की ही तरह लडंपल की भी शुर्मे्राजनीलत मे् कोई लदलचस्पी नही्रही. 2009 मे् लिरोजाबाद लोकसभा सीट के उप चुनाव मे् उन्हे् सपा ने प््त्याशी बनाया लेलकन वे कांग्ेस के राज बल्बर से हार गई्. 2012 मे् कन्नौज संसदीय सीट से उपचुनाव अौर लिर 2014 मे् इसी सीट से लोकसभा चुनाव मे् जीत कर उन्हो्ने अपनी लसयासी पारी का लसललसला जारी रखा. बताते है् लक 2012 के उप चुनाव मे् जीत अौर उससे पहले प््देश मे्अलखलेश यादव के नेतृत्व मे्सपा की सरकार बनने के दौर से ही लडंपल ने राजनीलत मे्लदलचस्पी लेनी शुर्की जो गए पांच साल मे्परवान चढ्ती गई. 2012 मे् अलखलेश के मुख्यमंत्ी बनने के बाद लदल्ली मे् एक काय्तकम मे्लडंपल भी उनके साथ मौजूद थी्अौर एक सवाल के जवाब मे् उन्हो्ने कहा था- लकसी मलहला की खामोशी को उसकी कमजोरी नही्
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सपा समथ्क त ो्के वोटो्की दावेदारी से वोट बंटने की संभावनाये्भी लगभग खत्म हो गयी है्. सपा के सबसे अहम आधार वोट समूह यादवो् व मुब्सलमो्के संदभ्तमे्इसके खास मायने है्. यह माना जा रहा है लक समाजवादी पाट््ी के नेतृत्व वाला गठबंधन वोटरो् के इस तबके की स्वाभालवक पसंद होगा. 2017 के लवधानसभा चुनाव मे् अलखलेश यादव का यह उभार और उनके प्य् ोग दरअसल दूरगामी राजनीलत की झलक भी देते है्. लजसमे् लववालदत व दागी चेहरो् को लेकर स्वाभालवक परहेज है तो नये राजनीलतक हमसिर की तलाश भी. गैर कांग्ेसवाद की पारंपलरक समाजवादी राजनीलत के दायरे से लनकलने की कोलशश भी है और चालक की भूलमका अपने हाथ मे्रखने का आत्मलवश््ास भी. सन 2019 मे्होने वाले लोकसभा के चुनावो्से पहले लहन्दी पट््ी के राज्यो् मे् पहले लबहार और यूपी मे् बन रही्नयी लसयासी दोल््सयां भलवष्य का संकते भी
है्.
सडंपल और असखलेश यािव: नयी िस््ियिा समझा जाना चालहए क्यो्लक यह दरअसल उसकी शब्कत अौर मय्ातदा का प््तीक है. बीते पांच साल, खास तौर पर लपछले एक वष्तमे्लडंपल अपनी खामोशी तोड्लगातार सल््कय होती चली गई्. पहले अलखलेश यादव के सोशल मीलडया अलभयान की लदशा तय करने मे् पद््े के पीछे भूलमका लनभाई अौर लिर कांग्ेस के साथ सपा के चुनावी गठबंधन को अंजाम तक पहुंचाने मे्. अब वे पद््ेके पीछे से सपा की अगली कतार मे्अा चुकी है्यह घोषणा पत््जारी करने के अवसर पर स्पष्् हो गया. ललहाजा यह तय माना जा रहा है लक चुनाव मे् लडंपल भी स्टार प्च ् ारक हो्गी अौर कुछ मौको्पर उनकी अलखलेश यादव के अलावा कांग्ेस की अोर से ल््पयंका गांधी के संग साझा चुनावी सभाअो् की संभावनाअो् से इनकार नही् लकया जा रहा. यह समाजवादी पाट््ी ही नही् प््देश की राजनीलत मे्भी युवा चेहरो्की लसयासत मे्धमक के नए दौर का सूत्पात भी होगा.
2004 के लोकसभा चुनावो् मे् तीन दजन्त सांसदो् के बावजूद सपा को संप्ग के नेतृत्व वाली सरकार मे् जगह नही् लमली थी. वह सोलनया-मुलायम के दौर वाली कांगस ्े और सपा थी. दस साल मे् राजनीलत के चेहरे और समीकरण बदले है्लजसमे्अलखलेश अपने ढंग की सपा बना रहे है्. लजसमे् राहुल गांधी वाली कांग्ेस के ललए भी जगह है. लजसमे् राहुल गाधी उन्हे् अच्छा लड्का कहते है्तो जवाब मे्अलखलेश भी उन्हे्अच्छा लड्का कह देते है्. समाजवादी पाट््ी खुद सरकार बना लेगी के दावो्के साथ ही अलखलेश यह भी कहते रहे लक कांग्ेस से गठबंधन हुआ तो 300 सीटो् पर जीत लमलेगी. यह लसयासत की स्वाभालवक ठसक से दूर एक व्यवहालरक अंदाज है. वह भी तब जबलक उन्हो्ने उत््र प््देश की ऐसी लसयासी लवरासत को संभाला है लजसने
पच््ीस साल तक अपना वच्तस्व बनाये रखा. इसका बोझ कम नही्लेलकन लसयासत के बाकी धुरंधरो्को लवरासत का यह हस््ांतरण रास आ रहा है इसकी झलक लालू यादव और ममता बनज््ी सरीखे नेताओ् के बयानो् से लमलती है लजसमे्उन्हो्ने अलखलेश के प्ल्त समथ्नत जताया है. यह सुप्ीमो बन कर उभरे अलखलेश के प््लत स्वीकाय्तता का संदेश भी है. लवधानसभा चुनावो् मे् कामयाबी या नाकामी का अंलतम िैसला जनता करेगी लजसे नतीजो्के बाद गुण-दोष की कसौटी पर कसने के कई नये पैमाने भी सामने आये्गे. अलबत््ा इतना तय है लक लपछले कुछ दशको्मे्ठस और जड् हो चुकी उत््र प््देश की राजनीलत मे् बदलाव के आगाज के तौर पर साल 2017 का लवधानसभा चुनाव जर्र याद रखा जायेगा. लजसकी धमक राष््ीय राजनीलत तक पहुंचेगी और इसका बड्ा श््ेय अलखलेश यादव को n जायेगा. शुक्वार | 1 से 15 िरवरी 2017
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आवरण मास्ट हेकथा ड चंचल
उप़़ से जाखनए देश का खमज़ाज
बदलते घरनाक्म् के बीच लगता है सक उप््प्द् श े सवधानसभा चुनाव के नतीिे देश का समिाि सामने रि देग ् .े
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ब कमोबेश यह मान ललया जाये लक उत्र् प्द् श े का चुनाव देश की नल्ज बतायेगा. अगर ऐसा नही्होता तो केद् ्मे्बैठी भाजपा सरकार एड्ी चोटी का जोर लगाकर, राजनीलत के लगरे स्र् से भी नीचे जाकर गुणागलणत न करती. पहले दबाव का खेल शुर्हुआ. सरकार दल के पास जो भी कारकून होते है्उनका राजनीलतक इस्म्े ाल शुर्हुआ. बसपा को घेरा गया लेलकन बसपा ने अतीत की बानगी दे दी लक हम जर्रत पडऩे पर उत्र् प्द् श े मे्भाजपा का समथ्नत कर सकते है्जैसा लक हमने गुजरात चुनाव मे्भाजपा के ललए वोट मांग कर लकया था. याद रहे लक गुजरात मे्हुए मुबस् लम नरसंहार के बाद जो चुनाव हुए थे उनमे्बहन मायावती ने खुलकर भाजपा का समथ्नत लकया था. दूसरे नंबर पर थे समाजवादी पाट््ी और उसकी सरकार. इससे लनपटने के ललए भाजपा की रणनीलत कारगर सालबत होती अगर अलखलेश थोड्ा भी लिसलते. लेलकन अलखलेश अपनी जगह पर अलडग रहे. इससे दो काम हुए. एक तो अलखलेश का व्यब्कतगत कद पाट््ी मे्सबसे ऊपर हो गया. इसके वालजब तक्फभी रहे. अलखलेश ने चुनावी राजनीलत मे्जहां बंदक ू और संदक ू सबसे अलधक मायने रखते है,् वहां इन दोनो्को खालरज करते हुए राजनीलत की शुलचता को ही सामने रखा और बड्ी जीत हालसल की. इतना ही नही् अलखलेश ने लबना कोई गोपनीय खेल खेल,े खुलकर कांगस ्े से हाथ लमलाने की घोषणा कर दी. ऐसे वक्त मे्जब कांगस ्े का नेततृ व् भी यथाब्सथलतवालदयो् के हाथ मे्न होकर एक युवा के हाथ मे्है, तो भाजपा भी शुर्से ही लदक्त् महसूस कर रही है. अब अलखलेश और राहुल के प््ाकृलतक गठबंधन मे्जाट बेलट् के अलजत समथ्क त ो्का जुडऩा शुभ संकते है. यह सब तब हो रहा है जब भाजपा का चलरत्् उजागर हो चुका है. जाट बेलट् मे् जाट और मुसलमानो् के बीच खाई खी्चने वाले लिर चुनाव मैदान मे् है.् जाट और मुसलमान दोनो्सजग है्और एक होकर भाजपा के लखलाि लामबंद है.् अब उत्र् प्द् श े की लसयासत और उसकी लबसात पर खेला जा रहा शतरंज का खेल रोचक होगा: अगर आप शतरंज से वालकि नही्है्जनाब तो लसयासत मे्दखलंदाजी मत कीलजये. अगर आप कतई लसयासतदां नही्है्और शतरंज के लखलाड्ी है् तो अपने झरोखे से बैठकर जंगलात मे्खेले जा रहे लसयासी खेल पर यह तो बोल ही सकते है्लक कौन पैदल सही चला है, कौन पैदल रानी के ललए खड्ा हो रहा है. अब जरा उत्र् प्द् श े का मुआयना कीलजये. बीते दो दशक से अलधक वक्त से यह प्द् श े दो अलतवालदयो्के बीच गेद् की तरह कभी इस पाले तो कभी उस पाले लुढक़ रहा है. इनकी खालमयो्को देखने का वक्त अभी नही्आया है. अभी तो केवल यह जान लेना जर्री है लक इन दोनो्सरकारो् का चलरत््क्या रहा है? राजनीलत और लवशेषकर जनतंत्मे्दो ऐसे कारक तत्व् होते है्जो सबसे पहले तंत्को ही समाप्त करते है.् एक है बाहुबल और दूसरा धनबल. लवडंबना यह लक जो अपने आपको, वंलचतो्, दललतो्, मजबूरो् और मजलूमो्के नेततृ व् का दम भरते है्और उनके कंधे पर बैठकर धन 10 शुक्वार | 1 से 15 िरवरी 2017
उगाही करते रहे, उनके ललएसमाज का यह वंलचत लहस्सा महज वोट बनकर रह गया है. दूसरी तरि बाहुबल लसयासत मे्स्थालपत होकर समाज को खोखला बनाता रहा. इनके यहां स्थालपत सत््ा का केवल एक मतलब रहा लूट और लतजारत. उत्र् प्द् श े इन्ही दो के बीच लपस रहा था, ऐसे दो राष््ीय पाल्टयि ो्ने उत्र् प्द् श े की तरि मुहं घुमाया. सन 2014 के संसदीय चुनाव मे्भाजपा को लमली जीत ने उसके सपने को िैलाने के ललए अच्छी खासी जमीन दी लेलकन मुद्ेकहां से आये?् जनता के बीच जाने के ललए भाजपा के पास कोइ ठोस नारा तक नही है. लसवाय इसके की वह समाजवादी सरकार के का कलथत गुडं ाराज खत्म करने की बात कहे. (समाजवादी सरकार पर गुडं ई का मुलम्मा चढ्ाना, सामान्य बात रही है) लेलकन इस बार भाजपा वह भी नही बोल पा रही है क्यो्लक जातीय वोट के चक्र् मे्उसने अन्य लपछड्ो्मे् से लजसे प्द् श े का अध्यक््बनाया है उस पर दज्नत ो्अपरालधक मामले दज्तहै.् ऐसे मे्भाजपा केवल कही्का ई्ट कही्क रोड्ा जोड्घटा कर कुनबा तैयार करने मे्लगी है . अब आती है कांगस ्े . मुखय् धारा की एक मात््पाट््ी. तकरीबन 60 साल तक हुकमु त करने के बाद कांगस ्े आलहस््ा आलहस््ा यथाब्सथतवाद की ओर झुक गयी है. अजगरी परंपरा मे्बैठी कांगस ्े खुद नही लहलती, जब उसका इंजन लहलता है तो यह वही्से बैठे बैठे हुक ं ार मारती है. उत्र् प्द् श े मे्कांगस ्े का जायजा ले्तो 25 साल मे् कांगस ्े ने सदन मे् या सडक पर ऐसा कुछ लकया हो जो जनता से जोड्कर देखा गया हो. इसके दो अध्यक्,् एक सलमान खुश्ीद और दूसरे लनम्ल त खत््ी ऐसे रहे लजनसे कुछ आशा थी लेलकन इनकी मजबूलरयां भी कमाल की रही्. केद् ् एक अध्यक््ही नही देता रहा, साथ मे्भांलत भांलत के तत्व भी लटका देता था, अब अध्यक्् सूबे के कांगस ्े ी को देखे् या जो गौने मे् पालकी के साथ आये है?् नतीजा यह हुआ की नये चेहरो्की भत््ी ही नही हुई और जो पुराने थे वे ठस, जस के तस कभी इस कलमटी मे्कभी उस कमेटी मे्घूमते रहे. आज राज बल्बर जब कांगस्े अध्यक््बन कर लखनऊ आये तो नौजवानो् मे् एक नई ऊज्ात का संचार हुआ क्यो्लक राज बल्बर के काम का तरीका परंपरागत कांगस ्े ी तरीके से अलग रहा है. संघष्तऔर मुद्ो्पर टकरा कर नये नये चेहरो्की खोज और उसकी लशक््ा लजससे राज आये है्यहां भी धीरे धीरे भोथरी हो रही है. ऐसे मे्अगर राज बल्बर जोलखम लेकर अपने लनण्यत पर अड्ेतो लनल््ित र्प से कांगस ्े िायदे मे्रहेगी. जहां तक राहुल गांधी या सोलनया गांधी के हस्क ् प्े की बात है ये दोनो्ही लकसी के काम मे्हस्क ् प्े नही करते, जब तक की कोई बड्ा हादसा न हो जाये. अगर राज इस डगर पर चले तो संभव है आगामी दो साल मे्कांगस ्े 52 की ब्सथलत मे्पहुच ं जाये,. उत्र् प्द् श े के इस चुनाव मे्अलखलेश और राहुल गांधी के गठबंधन की ताजा n हवा के झो्के का जनता को इंतजार है.
शंभूनबथ शुक्ल
बदलाव का नया चेहरा
असिलेश चुनावी रणनीसत मे्भी मासहर नेता है्. उन्हे्बच््ा या बबुआ समझना बड्ी भूल होगी.
स
माज बदलता रहता है. आज से 25 साल पहले जब मुलायम लसंह यादव ने समाजवादी पाट््ी का गठन लकया था तब उत्र् प्द् श े के लोगो् की महत्व् ाकांक्ाये्अलग थी्. तब गैर कांगस ्े वाद से लनकले लोग मानते थे लक चाहे कुछ भी हो लकसी भी तरह से उत्र् प्द् श े मे्जमी-जमाई कांगस ्े को सत््ा से हटा देना चालहये. क्यो्लक कांग्ेस के चलते कोई भी क््ेत्ीय पाट््ी अपने पांव नही्पसार पा रही थी और प्द् श े को केद् ्पर लनभ्रत रहना पड् रहा था. ऐसे मे्समाजवादी पाट्ी् नयी आशा का संदश े लेकर आयी थी. मगर दो-तीन बाधाये्थी्. एक तो समाजवादी पाट््ी का आधार सैिई और उसके आसपास का यदुकल ु था. दूसरे उसके आसपास गुड ं ा तत्व् ो्का समावेश और तीसरे मीलडया का उसके लवर्दघ् लगातार लवषवमन. इसललए सपा को गुड ं ा पाट््ी समझा जाता था और चूलं क मुलायम लसंह ने अपने पहले शासन काल मे् राममंलदर के कारसेवको् को कुचलने मे् कोई कसर नही् छोड्ी थी इसललए ब््ान्मण-बलनया और कायस्थो् मे् उनके लवर्द्घ भयानक गुसस ् ा था. अब यह भी सच है लक मीलडया मे् यही तीनो्हावी है्इसललए मुलायम लसंह सरकार द््ारा कार सेवको्पर गोली चलाने की घटना को यूं बताया गया मानो्मुलायम लसंह लहंदू लवरोधी हो्और प्क ् ारांतर मे्यह भी बताया गया लक कारसेवक का लवरोध मतलब लहंदओ ु ्का लवरोध. मुलायम लसंह को इसका लाभ भी लमला और उन्हे् बैठे लबठाये मुसलमानो् का थोक वोट लमलने लगा. जबलक सत्य तो यह है लक उन्हो्ने अपने राज के दौरान मुसलमानो्के ललए ऐसा कुछ नही्लकया लजससे उनके हालात मे् कोई गुणात्मक पलरवत्तन आया हो. मगर उनकी छलव मुब्सलम लहतैषी इतनी अलधक रही लक कांगस ्े से मुसलमान कन्नी काटते गये. यहां तक लक तब भी जब कांगस ्े ने बसपा के साथ तालमेल लकया. नतीजा यह लनकला लक उप््मे् मुब्सलम राजनीलत मुलायम लसंह के इद्-त लगद्तघूमने लगी. अगर अचानक कुछ संयोगो् की बदौलत 2003 मे् मायावती को अपदस्थ कर मुलायम लसंह को गवन्रत ने सत््ाशीन न कराया होता तो शायद मुलायम और उनकी सपा को प्द् श े की मुखय् धारा मे्लाना मुबक् कल होता. राजनीलत मे्संयोग तो चलते ही रहते है.् 2003 मे्सपा आयी और लिर 2007 मे् बसपा. मगर तब तक एक खेल और हो चुका था. बसपा ने अचानक पैत् रा बदलकर अपने को भाजपा से दूर कर जालतयो्और समुदायो् पर अपनी लनभ्रत ता बढ्ायी. तब मुसलमानो्तथा ब््ान्मणो्के बड्ेतबके ने बसपा को वोट लकया. चतुर मुलायम यह भांप गये और इसीललए 2012 के लवधानसभा चुनाव मे्उन्हो्ने प्च ् ार की कमान अपने पुत्व सांसद अलखलेश यादव को सौ्पी. मुलायम के पदलचन्हो्पर चलने वाले उनके छोटे भाई यह समझ नही्पाये और उनको लगा लक अलखलेश तो लसि्फयुवा मतदाताओ् को खी्चकर लायेग् .े
लेलकन यही्से शुर्हुई बदलावो्की शुरआ ् त. चुनाव नतीजे आने के बाद मुलायम लसंह ने मुखय् मंत्ी बनने के प्ल्त अपनी अलनच्छा जतायी और कमान युवा अलखेलश के हाथो्सौ्पी गयी. मुलायम की तब इच्छा थी लक वे अब उप्क ् ो छोड्केद् ्की तरि लनकले.् अलखलेश के युवा नेततृ व् ने प्द् श े के समीकरण बदले और अिसरो् व पत््कारो् के बीच अपनी नयी छलव बनायी. एक तो उन्हो्ने इस वजह से लकसी को दंलडत नही्लकया लक अमुक अिसर बसपा का ल््पय रहा है अथवा अमुक भाजपा लदमाग वाला है. इसी के साथ अखबारो् को लवज््ापन देने मे् उन्हो्ने कोई दुराग््ही पैमाना नही् अपनाया. अपनी बयानबाजी मे् उन्हो्ने संयम बरता और लकसी के प््लत पूवा्गत ह् ी होने का संकते कभी नही्लदया. इसका लाभ भी अलखलेश को लमला. उनके आसपास ऐसे लोगो् की भीड् जुटने लगी जो पलरवत्तन चाहते थे. जो उत््र प््देश को परंपरागत सामंती मूल्यो् से बाहर लाना चाहते थे. जो चाहते थे लक उप्् भी ग्लोबलाइजेशन की रेस मे्दौड्.े इसमे् वे लोग थे जो प््ोिेशनल थे और जो इस बात से दुखी रहते थे लक उप्् की पूरी राजनीलत और नौकरशाही मालियाओ् तथा गुंडेबदमाशो्व मवाललयो्के कल्जे मे्है, ऐसे सारे लोगो् को अलखलेश का पूरा समथ्नत लमला. और वही उप्् जो कल तक अंगज ्े ी की एबीसी के आगे नही्बढ्पा रहा था और जहां कंपय् टू र की बात करना गुनाह था अचानक रेस मे्आगे लनकलने लगा. अलखलेश के साथ अब समाजवादी पाट््ी का वह यादव कुल तो था ही जो लपछले ढाई दशक के आरक्ण ् की सुलवधा के चलते मुखय् धारा मे्आ गया था और वह अगड्ी जालतयो् का युवा था जो लनजी उद्म् ो् को बढ्ावा देने के कारण रोजगार पाने लगा था तथा लजसका पलायन र्क गया था. इसमे् वह आप््वासी उप््वाला एनआरआई भी था लजसे अब अपने को यूपीवाला बताने मे्कोई संकोच नही्होता था. इसका नतीजा यह लनकला लक पहली बार उप््मे् जालत और लबरादरी तथा समुदाय से आगे बढ्कर एक ऐसा नेता सामने आया लजसकी छलव उसकी अपनी व्यंग्य सचत््: डीएनए िे िाभार पाट््ी से परे थी. और तब लशवपाल के तमाम अवरोधो् के बावजूद युवा और मलहलाये्ंतो अलखलेश की दीवानी तो थी्ही हर शांलतल््पय नागलरक भी अलखलेश यादव को दोबारा मुखय् मंत्ी बनाने के बारे मे्सोचने लगा. यही कारण रहा लक लशवपाल अपनी पुरानी टीम लेकर अलखलेश की आंधी का सामना नही्कर पाए और चुनाव लचन्ह से लेकर पाट््ी तक सब अलखलेश यादव के पास आ गये. अलखलेश अब चुनावी रणनीलत मे् भी मालहर है्इसललए उन्हे्बच््ा या बबुआ समझने की भूल करना उनके जीवन की सबसे बड्ी भूल होगी. पाट््ी उनके साथ है, लवधायक उनके साथ है्और सांसद भी. सबसे जबरदस््बात तो यह है लक अलखलेश के साथ सूबे की n जनता भी है. शुक्वार | 1 से 15 िरवरी 2017 11
आवरण मास्ट हेकथा ड
अतीत की घरनाओ्को ध्यान मे् रिते हुए उत््र प््देश के मुख्यमंत्ी असिलेश यादव को भसवष्य मे्कुछ सावधासनयां बरतनी हो्गी. सफल और सकारात्मक रािनीसत के सलए यह आवश्यक है. ठवजय प््तबप
उ
त््र प््देश के बारे मे् जानकार लवक्लेषको् मे्इस बात को लेकर तीखी बहस लछड्ी है लक लवधान सभा चुनाव मे् नंबर दो और नंबर तीन पर भाजपा रहेगी या बसपा. अलखलेश यादव गठबंधन के नेता के बतौर नंबर एक पर रहेग् ,े इस पर कही्कोई असहमलत नही्लदखती. अलखलेश यादव के ललए भाजपा ने अपने ‘रणकौशल‘ से लबल्कुल वैसा अवसर तैयारा लकया है, जैसा इंलदरा गांधी ने 1977 मे् जनता पाट््ी के ललए लकया था. उस चुनाव मे् सव्त समावेशी ढंग से जनता ही काय्तकत्ात बन गयी थी. उम्मीदवारो् को न केवल अपने पास से र्पया खच्तनही्करना पडा था बब्लक बहुत से उम्मीदवारो्के पास सब खच्तकरने के बाद भी जनता के जुटाये साधनो्मे्से पैसा बच भी गया था. जनता पाट््ी के नेताओ् को इतनी अप््त्यालशत सिलता की उम्मीद नही् थी. जनता पाट््ी मे् समाजवालदयो् के पास अपने आदश्वत ादी अतीत के चलते सत््ा को लमल-बांट भोगने की कांग्ेसी और संघी संस्कृलत का कौशल न था. संघ ने बहुत योजनापूव्तक जनता पाट््ी के लवलभन्न घटको्मे्झगडा करवाया. ढाई साल मे् ही जनता पाट््ी टूट गयी एवं श््ीमती इंलदरा गांधी लौट आयी्. इस बार ऐसा कोई तात्काललक खतरा नही् है. समाजवादी पाट््ी मे्अलखलेश यादव की टीम मे् ऐसे महत्वकांक्ी और लतकडमी लोग अब नही्बचे है्जो लबहार की भांलत जीतन राम मांझी हो जाये्. श््ी राम गोपाल यादव के पास एक ईमानदार संरक््क की भूलमका लनबाहने के अलतलरक्त कोई लवकल्प नही्है. पाट््ी संगठन मे्मुलायम लसंह के अलतलरक्त अब कोई आदमकद नेता बचा नही् है. इससे तात्काललक र्प से जहां अलखलेश यादव को सुलवधा होगी, वही्दोबारा सत््ा संभालने के बाद सभी संप्दायो्और जालतयो्की अपेक्ा को पूरा करना एवं आज की गंभीर समस्याओ् का समाधान करना बहुत चुनौतीपूण्त काम होगा. समस्याओ्के समाधान की पूवत्शत्तहै लक राज्य 12 शुक्वार | 1 से 15 िरवरी 2017
यक्् प््श्नो् से घिरे
की सत््ा जनता के हाथ का औजार कैसे बने्. अलखलेश यादव की लोकल््पयता की पहली परीक््ा 2019 के लोकसभा के चुनावो्मे्होगी. लनकम्मे और कामचोर छात््, परीक््ा मे् मूल पुस्के् न पढ कर कुंलजयां पढते है् और बने बनाये उत््रो् को रट कर परीक््ा पास करते है्. अलखलेश यादव चाहे्तो वह भी शाट्तकट रास््ा अपना सकते है्. अलमत शाह-मोदी की भांलत जुमलेबाजी करे्. राजपाट की पूरी प््ल्कयाओ्मे् संसद, अपने गठबंधन, लवपक््, मीलडया, मजदूर-लकसान संगठनो्, एन.जी.ओ., आंदोलन समूहो् सभी की भूलमका नगण्य कर प््धानमंत्ी काय्ातलय की तज्तपर मुख्यमंत्ी सलचवालय के बाबूओ् के माध्यम से राज चलाने के तरीके अपना सकते है्. ध्यान रहे लक लदल्ली और लबहार के चुनावो् मे् मोदी-शाह जोडी का यह तरीका कारगर नही्हुआ. और इसी व्यब्कतवादी शैली के चलते नोटबंदी की इतनी बडी गलती हुई लक आने वाले अनेक दशको् तक भारत लवश््के लवत््ीय पूंजीवाद का गुलाम हो गया है. भलवष्य मे् 2008 की अमेलरकी आल्थतक मंदी
और बै्को् के डूबने जैसी घटना की पुनरावृल्त की कीमत भारतीय जनता को भी देनी पडेगी. अलखलेश यादव के लपता ने चंद्शेखर से अलग होने पर पाट््ी का नाम समाजवादी पाट््ी रखा था. 2010 मे्जब डा. राममनोहर लोलहया की जन्मशती के दौरान अनेक काय्तकत्ात देश मे् घूम रहे थे, तब उन्हे् मुलायम लसंह की राजनैलतक समझदारी का अहसास हुआ. समाजवादी लवरासत एक गौरवशाली लवरासत है, इसका अहसास अमर लसंह जैसो् के चलते समाजवादी पाट््ी मे् धुंधला पड गया है. ऐसा नही् है लक मुलायम लसंह ने उस लवरासत पर चलने की कोलशश न की हो. लेलकन हमारा राज्य-तंत्, चुनाव प््णाली एवं चुनाव संस्कृलत ऐसी है लक हर नेता उस लडाई को अंलतम लक््य हालसल होने तक लडे यह जर्री नही्है. मुलायम लसंह ने अपने स््र पर पाट््ी के भीतर नये ‘खून‘ को मौका देने और सुप्ीमो माडल को पूरे तौर पर न अपनाने की कोलशश तो जर्र की थी, लेलकन वह उसमे् कामयाब नही् हुए. सन 1995 मे् जब समता पाट््ी
असखलेश िरर्ाक काय्ाकि्ाा: बढ्ी हुई उम्रीि
अघिलेश
(अध्यक््जाज्तिऩ्ताडीस) नेतृत्व ने भाजपा के साथ गठबंधन का िैसला कर ललया था. उस समय श््ी रलव राय जैसे नेताओ् के साथ हम लोग समता पाट््ी से अलग हो गये थे एवं हमने (सेक्यूलर) समता पाट््ी का गठन लकया था. कैलाश मीणा राजस्थान से अलग होने वाले राष््ीय पदालधकालरयो् मे् से एक थे. वह समाजवादी पाट््ी मे् शालमल होना चाहते थे. आगरा मे् समाजवादी पाट््ी के लनम्ातण के बाद पहली बडी बैठक हुई. उस समय मै्ने रामगोपाल यादव से िोन पर बात करके कैलाश मीणा का पलरचय लदया. उन्हो्ने कैलाश मीणा को बैठक मे् आमंल्तत कर ललया. मीणा सम्मेलन मे् शरीक हुए और उन्हे् राजस्थान समाजवादी पाट््ी का अध्यक्् बना लदया गया. उन लदनो् मोबाइल बहुत प््चललत नही् थे. कैलाश मीणा ने मेरे घर का िोन नंबर मुलायम लसंह को दे रखा था. सम्मेलन से लौट कर मीणा मेरे यहां ठहरे हुए थे. अगले लदन रात मे्मुलायम लसंह का कैलाश मीणा के ललए िोन आया. लकस्सा यो् था नटवर लसंह समाजवादी पाट््ी से
चुनाव लडना चाहते थे. नेताजी ने कैलाश मीणा से इस बारे मे्बात की तो मीणा ने कहा लक यलद आप प््लतबद्् समाजवादी नौजवानो् की और आमजन की पाट््ी बनाना चाहते है् तो नटवर लसंह एवं उनके लोगो् को नही् ललया जाना चालहये. मुलायम लसंह का िोन आया और उन्हो्ने अपनी बात दोहराई. मीणा ने कहा लक 2-1 सीटो् पर नटवर लसंह के कारण वोट तो अच्छा लमल जायेगा लेलकन बाद मे् पाट््ी नही् बन पायेगी. मुलायम लसंह ने कहा लक मैन् े आपको 20 खाली िाम्तहस््ाक्र् करके लदये है,् आप उलचत समझे् तो नटवर लसंह जी एवं उनकी लसिालरश पर कुछ लोगो् को लटकट दे दे्वे. और कैलाश मीणा ने 24 लोकसभा सीटो् मे् से केवल 9 सीटो् पर चुनाव लडवाया और नटवर लसंह या उनकी लसिालरश पर कोई लटकट नही् लदया. इस पूरे प्स ् गं मे्महत्वपूणत्सबक है. एक सहज लवश््ास उस समय की राजनैलतक संस्कृलत का लहस्सा था. मेरा रामगोपाल यादव से कोई लनजी लरक्ता नही्था. केवल मेरे िोन भर से उन्हो्ने कैलाश मीणा को मुलायम लसंह एवं राज बल्बर से लमलवाया. दोनो् ने चच्ात के बाद उन्हे् प््देश अध्यक्् की लजम्मेवारी और लोकसभा लटकट बांटने के सभी अलधकार सौ्प लदये. अपनी राय को राष््ीय अध्यक्् ने प््ांतीय अध्यक्् पर नही् थोपा. लेलकन लजस कैलाश मीणा को इतने अलधकार के साथ पाट््ी मे् पदालधकारी बनाया, वही आज पाट््ी का काम न करके पूरी जी जान से एन.ए.पी.एम./पी.यू.सी.एल. और समाजवादी संगठनो्तथा स्थानीय लोकसंगठनो् के जलरये अपने क््ेत् के खनन मालिया के लखलाि संघष्तरत है्. पाल्टियो् का मौजूदा ढांचा संघष्तशील एवं प््लतबद्् काय्तकत्ात को कहां समेट पाता है. आज के तौर तरीको्के लहसाब से कैलाश मीणा को अलधकांश लटकट बेच/बांट देने चालहये थे. चुनाव मे् सिलता के बाद यही दो प््क्न यक््प््क्न सालबत हो्गे. एक, समाजवादी संगठन संस्कृलत, लजसमे् वोट, संघष्त, रचनात्मक काम, संगठन और मूल्य प््लतबद््ता तथा नीलत लनम्ातण का कौशल आलद पांचो् सभी तत्वो् का उलचत संतुलन एवं समावेश हो उसका पुनल्नतमाण कैसे हो? दूसरा यक्् प््क्न होगा लक जनता की अपेक्ाओ् पर खरा कैसे उतरा जाये एवं सामलयक सवालो् पर कैसे ठोस काम लकया जाये. पहले प््क्न पर चुनाव नतीजो्के तुरंत बाद खुली एवं व्यापक चच्ात होनी चालहये. अभी अलखलेश यादव के पक्् मे् जो वातावरण बना है, उसके कारण उन्हे् बहुत साधन नही् जुटाने पडेग् .े वह एवं उनके उम्मीदवार सोशल मीलडया
का ठीक से इस््ेमाल करे् तो खच्त की कानूनी सीमा के भीतर चुनाव लड एवं जीत सके्गे. वह अपनी टीम के माध्यम से अपने आधे करोड से ज्यादा िेस बुक अनुगालमयो्को लदन मे्तीन बार संदेश दे्गे तो बाकी काम समथ्तक जनता खुद कर लेगी. सादगीपूण्तचुनाव से न केवल भलवष्य मे् नयी राजनैलतक संस्कृलत के लनम्ातण मे् मदद लमलेगी बब्लक मोदी-अलमत शाह के ढकोसले को जनता के सामने उजागर भी करेगी. भाजपा आजकल लजस बेतहाशा ढंग से पैसा खच्तकरती है, उसके नतीजे पूरा देश भुगत रहा है. चुनाव के बाद सभी गैर राजग दलो्, मजदूर आंदोलन, आंदोलन समूहो् एवं लवमश्त चैपालो् (लथंक टै्क्स) के साथ लमल कर लोकतंत् संव्द्तन की राजनीलत पर िौरी पहल करनी होगी. साथ ही साझा लवचार वाली राजनैलतक पाल्टियो् एवं संगठनो् के साथ लमलकर कोई डेमोकेल्टक िेडरल फंट् बनाना होगा. अलखलेश यादव की उम्् और हैलसयत के चलते ऐसे िेडरल फंट् मे्राष््ीय स्र् पर सामूलहक नेततृ व् लवकलसत करना आसान होगा. खैर यह चुनाव बाद के मसले है्. दूसरा बडा यक्् प््क्न है लक जनता की अपेक्ाओ् को कैसे पूरा लकया जायेगा. इसमे् अमेलरकी राष््पलत बराक ओबामा के लवदाई भाषण मे् एक पते की बात कही गयी है, वही पलरवत्तन संभव एवं कारगर होता है लजसमे् जनता खुद से लहस्सा लेती है. हमारे यहां इसके ललए राज्यतंत् की पुनर्तचना का एजे्डा राष््ीय पर मुद्ा बनाना होगा. सबसे पहले चुनाव प््णाली मे्सुधार कर अनुपालतक चुनाव प््णाली लागू करनी होगी. दूसरा पंचायतो् को लवत््ीय अलधकार देने की संवैधालनक व्यवस्था करनी होगी. तीसरा लजला स्र् पर चुनी हुई लवधानसभा और लजला सरकार का गठन करना होगा. समाजवालदयो्के चौखंभा राज के नारे को बाद मे्वामपंलथयो्का भी समथ्तन लमला था. जनता पाट््ी द््ारा 1977 मे् श््ी अशोक मेहता की अध्यक््ता वाली पंचायत राज कमेटी मे्माकपा के वलरि्् नेता एवं लवचारक श््ी ई.एम.एस. नंबूदरीपाद ने एक अलतलरक्त नोट मे् लोकतंत् संव्द्तन हेतु लजलो् मे् चुनी हुई सरकार का एजे्डा प््स्ालवत लकया था. सत््ा के इस प््कार लवके्द्ीकरण से दलो्मे् केद् ्ीकरण की प्ल््कया से लनजात लमलेगी क्यो्लक लजलो् मे् सशक्त जन नेता बन कर उभरे लोग सुप्ीमो माडल के गुलाम न होकर समावेशी लोकतंत् के वाहक बने्गे. आशा है अलखलेश यादव अपने चुनाव घोषणापत्् मे् लकये जाने वाले वायदो्के साथ-साथ राष््लनम्ाण त की नयी राजनीलत के खडी करने के ललए कुछ n सकारात्मक संकल्प भी ले्गे. (लेखक सोशललस्ट फं्ट के संस्थापक है्.) शुक्वार | 1 से 15 िरवरी 2017 13
आवरण मास्ट हेकथा ड
सवधान िभा भवन पर िपा काय्ाकि्ााओ् की रैली: िंभावनाओ् की ओर
नये जन्म की चुनौतियां पार््ी और पसरवार मे्तात्कासलक लड्ाई िीतने के बाद अब असिलेश यादव के सामने कुछ अहम चुनौसतयां है्, सिनसे पार पाना असभमन्यु की तरह चक््व्यूह तोड्ने िैसा ही कसठन होगा. अर्ण कुमबर ठ््तपबिी
अ
लखलेश यादव ने पलरवार और पाट््ी के भीतर साि सुथरी राजनीलत की लड्ाई जीत ली है लेलकन अभी उन्हे् और भी कई लड्ाइयां लड्नी और जीतनी है्. यानी इस अलभमन्यु को चक््व्यूह के कई और द््ार पार करने है्और उसमे्वह अकेला न रहे इसका भी इंतजाम करना है. उनके सामने पाट््ी को नये लसरे से गलठत करने की चुनौती तो है ही, अपने भावी काय्तक्म को स्पष्् करने की अपेक्ा भी. अलखलेश मंडल, कमंडल और भूमड ं ल के बाद
14 शुक्वार | 1 से 15 िरवरी 2017
की राजनीलत कर रहे है् इसललए उनके सामने मुलायम लसंह की तरह दुकम् न स्पष््नही्है्और एजे्डा को लेकर भ््म भी है. ऐसे मे् उन्हे् अपने एजे्डा को स्पष््करने के साथ दूसरे के एजे्डा को साि तरह से पहचान कर उसे बेनकाब भी करना है. यह लवलचत्् संयोग है लक इस समय उत््र प््देश की राजनीलत का एजे्डा अपराध मुक्त शासन और कालेधन बनाम गोरेधन के आधार पर तय हो रहा है. अलखलेश उसे क््ेत्ीय स््र पर पलरभालषत करना चाहते थे लेलकन वह लिर राष््ीय आयाम प््ाप्त कर रहा है. इसललए अलखलेश यादव चाह कर भी प्द् श े की राजनीलत को राष््ीय बनाने से बचा नही्सकते और उन्हे् उन राष््ीय शब्कतयो् के सामने लकीर खी्चनी ही पड्ेगी जो उनकी राजनीलत के ललए आज प्द् श े तो कल देश के स्र् पर चुनौती प्स ् त्ु कर रही है्. यह तो नही् कहा जा सकता लक उनकी राजनीलत पूरी तरह से पलरवारवाद से मुक्त हो जायेगी लेलकन उन्हे् पलरवार से बाहर पाट््ी का एक ढांचा बनाना होगा लजसमे् कई िैसले लोकतांल्तक तरीके से लेने की इकाइयां बनानी हो्गी. हालांलक जो पाल्टयत ां अपने को पलरवारवाद
से मुक्त होने का दावा करती है्उनके भीतर भी व्यब्कतवाद जबरदस्् तरीके से हावी है. अगर भारतीय जनता पाट््ी पलरवारवाद को सबसे बड्ी बुराई बताती है तो वहां एक व्यब्कत और उसके लवश््सनीय दूसरे व्यब्कत के हाथो्मे्सत््ा बुरी तरह के्ल्दत है. वहां अनुशासन के नाम पर एक सन्नाटा है जो पलरवारवाद के झगड्े से ज्यादा ऊबाऊ है. तकरीबन यही ब्सथलत उन कम्यलु नस्ट पाल्टतयो्की है जो अपने को वैल्शक लसद््ांत के आधार पर संचाललत करने का दावा करती है् लेलकन उनमे् लनण्तय लेने और पहल करने की कोई भी कोलशश काय्तकत्ातओ्और दूसरी कतार के नेताओ् की ओर से नही् लदखती. लेलकन व्यब्कतवाद बनाम पलरवारवाद के इस द््ंद् मे् लकसी एक को सही नही् सालबत लकया जा सकता. यानी एक बुराई से दूसरी बुराई को उदासीन नही्लकया जा सकता. अगर जनेश्र लमश्् ने उनके राजनीलत मे् आने को संघष्त का पलरवारवाद कहा था तो अलखलेश यादव को उसे साथ्तक करके लदखाना होगा. उस अवधारणा की साथ्तकता वे तभी सालबत कर पाये्गे जब प््देश मे्सरकार देश मे् एक मजबूत और रचनात्मक लवपक््खड्ा करने
मे् वे अपना साथ्तक योगदान दे पाये्. वह योगदान तभी संभव है जब प्द् श े के भीतर वे इस चुनाव मे् कारगर मोच्ात बनाये् और प््धानमंत्ी नरे्द् मोदी के नेतृत्व मे् भाजपा के बढ्ते चरण को रोके्. अलखलेश यादव इस मोच््ेपर एक हद तक कामयाब होते लदख रहे है् लेलकन वह कामयाबी तब तक अधूरी है जब तक उसमे् बहुजन समाज पाट््ी की लवचारधारा शालमल न हो. मायावती के साथ उनका गठबंधन बनाना संभव नही्है और इसीललए उनके गठबंधन को महागठबंधन कहना भी उपयुक्त नही् होगा. इसके बावजूद उन्हे् डा राम मनोहर लोलहया और भीमराव आंबेडकर की लवचारधारा को लमलाकर एक व्यापक सामालजक और राजनीलतक आधार तैयार करना होगा जो उनकी राजनीलत के भलवष्य के ललए उपयोगी होगा. यह तभी संभव है जब वे अपनी राजनीलत का लक््य सामालजक क््ांलत रखे्और संलवधान मे्लदये गये लक््य को याद रखे्. संलवधान का एक उद््ेक्य अगर देश की एकता है तो उससे पहला और महत्व् पूणत्उद्क्े य् सामालजक क््ालं त है. अलखलेश यादव अगर अपनी पाट््ी का लक््य लैलटन अमेलरकी देशो् की तरह क््ांलतकारी समाजवाद न रख सके् तो भी उन्हे् संलवधान के नीलत लनदेशक तत्वो्मे्लदए गए समाजवादी लक्य् ो्को याद रखना होगा. लदक््त यह है लक उनके सामने जो पाट््ी सबसे बड्ी चुनौती बन कर खड्ी हुई है वह राष््वादी होने के दावे के साथ आजकल गरीबो्का मसीहा बनकर उभरने की कोलशश कर रही है. यहां अलखलेश को यह सालबत करना होगा लक गरीबो् के उत्थान का असली लक््य समाजवालदयो् का रहा है और उससे वे कभी हटने वाले नही् है्. अलखलेश यादव ने लैपटाप, एंबुले्स और समाजवादी पे्शन जैसी समाज कल्याण की महत््वपूण्त योजनाओ्के माध्यम से यह सालबत लकया है लक वे समाजवादी काय्तक्मो् को भूले नही् है्. भले ही आधुलनक लवकास उनकी सरकार के के्द्मे्
रहा है. अलखलेश को यह भी बताना होगा लक को नाकाम करना चालहये और पूव्ाि्चल, समाजवालदयो्की राष््ीय एकता की अवधारणा बुदं ल े खंड, र्हल े खंड, पल््िमी उत्र् प्द् श े और संकीण्तनही्ज्याद व्यापक है. अवध प््देश मे् लवकास की जो असमानताये् है् अलखलेश यादव के समक््दूसरा महत्व् पूणत् उन्हे् कम करने के ललए स्थानीय पलरषदो् का काय्तक्म लोकतंत् और उसकी संस्थाओ् को गठन करना चालहये. इसके अलावा टूटते और बचाने का होना चालहये. इसके ललए वे अपने लबखरते प््देश को गैर- सांप्दालयक और गैरदायरे मे्संकल्प करे्और वादा करे्लक सत््ा मे् जालतवादी आधार पर जोड्ने का प््यास करना आने पर वे देश के संघीय ढांचे के ललए संघष्त चालहये. अगर वे सत््ा मे् आते है् तो उन्हे् उसी करे्गे और महज प््देश तक अपने को सीलमत तरह प््देश के लवकास माडल पर चच्ातएं करनी करके चुप नही्रहेग् .े मौजूदा एनडीए सरकार ने चालहये लजस तरह केरल, गुजरात, तलमलनाडु कई प््देश सरकारो् मे् दलबदल कराकर उन्हे् और पल््िम बंगाल जैसे राज्य करते रहे है्. असंवैधालनक तरीके से सत््ा से हटवाया और इस दौरान अलखलेश यादव और उनकी वह खतरा अभी टला नही् है. मौजूदा के्द् पाट््ी का नया जन्म हुआ है. वे दल्बू राजनेता सरकार ने न्यायपाललका, भारतीय लरजव्त बै्क और नासमझ प््शासक से एक गलतशील और सेना जैसी संस्था मे्उसी तरह से हस््क्ेप राजनेता और समझदार प््शासक के र्प मे् लकया है लजस तरह का हस््क्ेप कभी इंलदरा उभरे है्. उनकी पाट््ी भी गुंडो्और बदमाशो्की गांधी जैसी अलधनायकवादी प््धानमंत्ी लकया छलव से बाहर आकर साि सुथरी राजनीलत की करती थी्. इस समय लदशा मे्बढ्ी है. लेलकन अखिलेश के िामने एक बड्ा समाजवादी पाट््ी और एक लोकतांल्तक, उसके नेतृत्व की यह धम्तलनरपेक् और एजेड ् ा उत्र् प्द् श े को एक लजम्मेदारी बनती है लक कल्पनाशील दल के िमाजवादी आदश््ो्के अनुरप् वह जनता को उस र्प मे् समाजवादी एक माॅडल राज्य के र्प मे् खतरे से आगाह करे. पाट््ी को खड्ा करने के खवकखित करने का है. अलखलेश को चालहये ललए उन्हे् बहुत कुछ लक वे इस मुद्े पर देश करना है. यह काम भर की क््ेत्ीय और लोकतांल्तक धम्तलनरपेक् लसि्फ चुनाव जीतने वाले नेताओ् और दलो्को एक साथ लाएं और इस लवमश्तको तेज काय्तकत्ातओ् से भी संभव नही् होगा और न ही करे्. अवसरवादी बौल््दको् से. उन्हे् समाजवादी अलखलेश के सामने इससे भी बड्ा एजे्डा आदश््ो्मे्यकीन करने वाले बुजगु त्और युवाओ् उत््र प््देश को एक समाजवादी आदश््ो् के का एक समथ्तक समूह बनाना होगा जो आचाय्त अनुर्प एक माडल राज्य के र्प मे्लवकलसत नरे्द् देव की तरह मानते है् लक समाजवादी करने का है. उन्हे्चालहये लक इस लवशाल प््देश आदश्त ही वास््लवक नैलतक आदश्त है्. की महान लवरासत को पहचाने् और उसे अलखलेश यादव को यह सालबत करना है लक समाजवादी आदश््ो् के अनुर्प संभालने की नैलतकता, पलवत्त् ा और लवकास का सपना लसि्फ कोलशश करे्. अलखलेश यादव ने कम से कम भाजपा और संघ की तरि नही् है उसके और इस प््देश को इसकी लवशालता के साथ भी लठकाने है्. अंत मे्उन्हे्पहले उत््र प््देश के लवकलसत करने का प््यास लकया है और उन्हे् भीतर एक सुंदर सपने को जगाना है और बाद मे् लकसी भी दबाव मे् उस माग्त से हटना नही् उसे पूरे देश मे्प््चालरत करना है तालक देश को चालहये. उन्हे्प्द् श े को लवभालजत करने के एजेड ् े लगे लक अलखलेश यादव उनके अपने है्. n
ख्बरो् के पीछे की ख्बर के िलए लॉिगन करे्
www.shukrawaar.com शुक्वार | 1 से 15 िरवरी 2017 15
मुद्ा
िादी ग््ामोद््ोग आयोग के कैले्िर और िायरी की तस्वीरो् मे्गांधी का स्थान नरे्द्मोदी ने ले सलया है. इसका भरपूर मिाक भी उड्ाया िा रहा है, लेसकन िनमानस से गांधी को समराना सकसी के वश की बात नही्.
िांधी और उनका चरखा: एक िंपूर्ा सवचार िश्ान
िांधी खािी और रोिी कुमबर प््शबंत
खा
ली वक्त मे्जब करने को कुछ सूझे तो हम सबका शगल होता है: कलम लेकर लकसी लड्की की तस्वीर पर दाढ्ी-मूंछ बनाना या लकसी आदमी के चेहरे को लड्कीनुमा बनाना. हम सब ने कभी न कभी यह लकया होगा लिर अपनी ही लनर्द्ेक्यता पर शरमाये हो्गे. इन लदनो् राजधानी लदल्ली के लनर्द्ेक्य गद््ीनशी् भी यही कर रहे है्. सबसे ताजा है वह कारनामा जो सरकारी खादीग््ामोद््ोग आयोग ने लकया है. उसने प््धानमंत्ी नरे्द् मोदी के िोटो पर कलमकारी कर उसे महात्मा गांधी बनाने की कोलशश की है यालक महात्मा गांधी के िोटो पर कलमकारी कर, उसे नरे्द्मोदी बनाने का उपक््म लकया है. दोनो्ही मामलो्मे्लकरलकरी तो नरे्द्मोदी की ही हुई है . एक इंसान को काट्तून बना कर छोड् लदया गया. इसने देश मे् हलचल पैदा की. खादीग््ामोद््ोग के कम्तचारी खुद नौकरी देने वालो्के लखलाि खड्े हो गये. वैसे तो चापलूसो् की िौज नरे्द् मोदी का लकतना भी काट्तून बनाये देश को कोई िक्फ नही् पड्ता लेलकन यहां मामला यह है लक नरे्द् मोदी का िोटो लगाने के ललए महात्मा गांधी का िोटो हटाया गया! खादी-ग््ामोद््ोग आयोग ने 2017 को अपने कैले्डर व डायरी पर चरखा कातते नरे्द्मोदी का वैसा िोटो छापा है लजसे संसार महात्मा 16 शुक्वार | 1 से 15 िरवरी 2017
गांधी के िोटो के र्प मे् पहचानता है. लेलकन िक्फभी है : जैसा चरखा मोदी लहला रहे है्वैसा चरखा न तो गांधीजी ने कभी काता, न वैसा चरखा बनाने की इजाजत ही वे कभी देते; िोटो-शूट का यह सरकारी आयोजन लजस ताम-झाम से लकया गया वैसा आयोजन कर, उसमे्गांधीजी को बुलाने की लहम्मत कोई नही् कर सकता था. इस िोटो-शूट मे् मोदीजी ने जैसे कपड्े पहन रखे्है्वैसे कपड्ेगांधीजी ने तो कभी नही् ही पहने, ऐसी धज मे् उनके सामने जाने की लहमाकत कोई नही्करता. जैसे टेबल पर चरखा रखा गया है और जैसे टेबल पर बैठ कर मोदीजी उस तथाकलथत चरखे को घुमा रहे है्, गांधीजी वहां होते तो पहली बात तो यही कहते लक तुम ऐसा लदखावटी तामझाम नही् करते तो इन्ही् साधनो् से हम लकतने ही नये चरखे बना लेते! सवाल लकतने ही है् लेलकन आज माहौल ऐसा बनाया गया है लक सवाल पूछना देशद््ोह से जोड् लदया गया. अगर यह कैले्डर और यह डायरी नरे्द् मोदी की सहमलत व इजाजत से छापी गयी है तो मुझे उन पर दया आ रही है, क्यो्लक आज वे गहरे पि््ाताप मे्हो्ग.े कई बार हम लकसी मौज मे्ऐसे काम कर जाते है्लजसके पलरणाम का हमे् अंदाजा नही् होता. जैसे गांधीजी की िोटोबंदी का यह िैसला या लिर नोटबंदी का वह िैसला! अगर िोटोबंदी का यह िैसला नरे्द् मोदी की जानकारी या सहमलत के लबना हुआ है
तो यह खतरे की घंटी है. चापलूसो् और चापलूसी से सावधान! ऐसे चापलूसो्ने लकतने ही वक्ती नायको्को इलतहास के कूड्ाघर मे्जा पटका है. इसललए िैसला प््धानमंत्ी को करना है. वे आयोग के कम्तचालरयो्की बात मान कर इन सारी डायलरयो् व कैले्डर को कूड्ाघर लभजवा दे्! ऐसा नही् है लक इससे पहले कभी आयोग ने ऐसे कैले्डर/डायरी नही् छापे लक लजन पर गांधीजी का िोटो नही्था. भाजपा का हर सूची बना कर घूम रहा है और बता रहा है लक संलवधान मे् ऐसी कोई धारा नही् है लक लजसके तहत महात्मा गांधी का िोटो हटाना अपराध हो! यह सच है. संलवधान मे्ऐसी कोई धारा नही् है. इन बेचारो्के ललए यह समझना कलठन है लक जो संलवधान मे्नही्है, वह समाज मे्मान्य कैसे है! ये नासमझ लोग संलवधान के पन्ने पलटते है् और परेशान पूछते है् लक इसमे् कहां ललखा है लक महात्मा गांधी राष्ल्पता है?् कही्नही्ललखा है लेलकन समाज इसे इस कदर मान्य लकये बैठा है लक इस प््तीक को छूते ही करे्ट लगता है भले हमारे अपने जीवन का बहुत सरोकार इससे न हो! लजस समाज ने संलवधान मे् प््ाण िूंके है् उसी समाज ने गांधी को अपने मन-प््ाणो् मे् बसा रखा है. इसललए आयोग ने जब-जब गांधी का िोटो नही् छापा तब-तब लकसी दूसरे का िोटो भी नही्छापा. मतलब साि था: गांधी का लवकल्प नही्है ! अब आप आज समाज को नई
खािी के कैले्डर पर नरे्द् रोिी: इसिहाि रे् जिह पाने की कोसशश
बारहखड्ी रटवाना चाह रहे है् लक ‘म’ से ‘महात्मा’, ‘म’ से ‘मोदी’! लेलकन सत््ा की ताकत से, सत््ा की पूंजी से, सत््ा के आदेश से और सत््ा के आतंक से समाज ऐसी बारहखड्ी नही्सीखता. यह समझना जर्री है लक खादी कनॉटप्लेस पर बनी दुकान नही् है लक लजसे चमकाने मे् सारी सरकार जुटी हुई है; खादी लबक््ी के बढ्ते आंकड्ो्मे्लछपा व्यापार नही्है; जो हर पहर पोशाक बदलते है् और समाज मे् उसकी कीमत का आतंक बनाते है्, उनकी पोशाक खादी की है या पोललएस्टर की समाज को इससे िक्फ नही् पड्ता है. पोशाक या मुद्ा के पीछे की असललयत समाज पहचानता है. खादी के ललए गांधी लसि्फ तीन सरल सूत् कहते है्: कातो तब पहनो, पहनो तब कातो और समझ-बूझ कर कातो ! आज की खादी का इन तीन सूत्ो्से कोई नाता नही्है. आज हालत यह है लक खादी कमीशन ने कज्त देने के नाम पर सारी खादी उत्पादक संसथ् ा की गद्नत दबोच रखी है, उनकी चल-अचल संपल््त अपने यहां लगरवी रख रखी है और नौकरशाही के आदेश पूरा करने का उन पर भयंकर दवाब डाल रखा है. यह ब्सथलत आज की नही् है बब्लक कमीशन बनने के बाद से शनै-शनै बनी है. सरकार और बाजार लमल कर गांधी की खादी की हत्या ही कर डाले्गे, यह देख-जान कर लवनोबा भावे के खादी कमीशन के समांतर खादी लमशन बनाया था और कहा था : जो अ-सरकारी होगा, वही
असरकारी होगा! लेलकन खादी के काम मे्लगे लोग भी तो माटी के ही पुतले है् न! सरकारी पैसो् का आसान रास््ा और उससे बचने का भ््ष्रास््ा सबकी तरह इन्हे्भी आसान लगता रहा और कमीशन का अजगर उन्हे् जकड् मे् लेता गया. गांधी ने खादी की ताकत यह बताई थी लक इसे लकतने लोग लमल कर बनाते है्यानी कपास की खेती से ले कर पूनी बनाने, कातने, बुनने, लसलने और लिर पहनने से लकतने लोग जुडत् े है्. खादी उत्पादन यथासंभव लवके्ल्दत हो और इसका उत्पादक ही इसका उपभोक्ता भी हो तालक माक्ल्ेटंग, लबचौललया, कमीशन जैसे बाजार्तंत् से मुकत् इसकी व्यवस्था खड्ी हो. जब गांधी ने यह सब सोचा-कहा तब कम नही्थे. ऐसी आपल््त उठाने वाले भी कई है्लक यह सब अव्यवहालरक है, यह बैलगाड्ी युग मे्देश को ले जाने की गांधी की खल्त है, यह आधुलनक प््गलत के चक््को उल्टा घुमाने की कोलशश है! आज भी तथाकलथत आधुलनक लोग, खादी कमीशन के ‘लनरक््र खादी अलधकारी’ आलद ऐसा ही कहते है्. इन सारे महानुभावो्की बातो् का जवाब देते हुए लेलकन अपने लवश््ास मे् अलडग गांधी ने खादी के काम को इस तरह आगे बढ्ाया लक शून्य मे् से ताकत खड्ी होने लगी और भारतीय कपास की लूट कर लहलहाती सुदरू इंगल ्ड ै् की लंकाशायर की कपड्ा लमले्बंद होने लगी्. गांधी कहते भी थे लक वह खादी है ही नही्जो लमलो्के सामने अल््सत्व का सवाल न
खड्ा करती हो. राजनीलतक दलो्, सरकारो्का क््द् उन्हो्ने पहचान ललया था और इसललए आजादी के बाद देश मे् बनी सरकारे् गांधी से लमलने, उनके प््लत अपनी श््द्ा लनवेलदत करने और खादी के बारे मे्तरह-तरह के आश््ासन देने आने लगी् तो गांधी खासे कठोर हो कर उनसे अपनी बाते्कहने लगे थे और पूछने लगे थे लक क्या मै्मानूं लक आप अपने यहां खादी को इतना मजबूत बनाये्गे लक आपके राज्य मे्लमले् बंद हो जाये्गी? पहले सरकारो्ने इतना अनुशासन रखा था लक खादी का कोई मान्य व्यब्कत ही खादी कमीशन का अध्यक््बनाया जाता था. लिर यह तरीका बना लक खादी कमीशन का अध्यक्् सरकारी पाट््ी का सबसे कमजोर सदस्य बना लदया जाता है तालक गुड् भी खाये् और गुलगुले से परहेज भी रखे्. कई बार तो कोई नौकरशाह ही इस कुस्ी पर लबठा लदया गया है. खादी उत्पादन और लबक््ी का सारा अनुशासन,जो गांधीजी ने ही तैयार लकया था, रद््ी की टोकड्ी मे्िेक ् लदया गया और खादी कमीशन सरकारी भो्पू मे्बदल लदया गया. आज सरकार जैसी कोई चीज बची नही्है, एक व्यब्कत है जो सब कुछ है! इसललए कमीशन का ‘पप्प’ू अध्यक््टीवी पर आकर यह बताता है लक मोदीजी के खादी-प््ेम से खादी की लबक््ी लकतनी बढ्ी है. वह यह नही्बताता है लक खादी का उत्पादन लकतना बढ्ा है, खादी की काम करने वाली संस्थाये् लकतनी बढ्ी है्, खादी कातने वाले और खादी बुनने वाले लकतने बढ्े है्. यलद ये आंकडे नही् बढ्े है् तो लबक््ी के आंकडे कैसे बढ्रहे है?् लिर तो ये आंकडे ही बता देते है्लक जो लबक रहा है या बेचा जा रहा है वह खादी नही् है! आज ब्सथलत यह है लक बाजार मे्लमलने वाला, खादी के नाम पर लबक रहा 90% कपड्ा खादी है ही नही्! इस कारनामे मे्प्ध ् ानमंत्ी का गुजरात कािी आगे है. गांधी ने खादी को सत््ा पाने का नही्, जनता को स्वावलंबी बनाने का उपकरण माना था. वे कहते थे लक जो जनता स्वावलंबी नही्है वह स्वतंत् व लोकतांल्तक कैसे हो सकती है? आज सारी सत््ा येनकेन प््कारेण अपने हाथो्मे् समेट लेने की भूख ऐसी प््बल है लक वह न तो कोई लववेक स्वीकारती है, न लकसी मय्ातदा का पालन करती है. वह गांधी की तासीर ही थी लजससे टकरा कर संसार का सबसे बड्ा साम््ाज्य ऐसा ढहा लक लिर जुड् न सका, वह लवचारो् की तासीर ही थी लक लजसके बल पर लदल्ली से कांग्ेस का खानदानी शासन ऐसा टूटा लक अब तक, 40 सालो् बाद तक अपने बूते लौट नही्सका है. अब ये अपने शेखलचल्लीपन मे् तस्वीरे् बदलने मे् लगे है्. देलखये, इलतहास n क्या-क्या बदल देता है. शुक्वार | 1 से 15 िरवरी 2017 17
मास्मुटद्ाहेड
गांधी की िादी सनरा वस््नही्, बल्कक एक सवचार मानी िाती थी, लेसकन उसे मोदी सरकार लगातार एक ब््ांि मे्तब्दील करने की कोसशश कर रही है. अर्ण कुमबर ठ््तपबिी
प
्धानमंत्ी नरे्द् मोदी और उनके समथ्तको् को ् इस बात के ललए धन्यवाद लदया जाना चालहये लक इस देश के स्वाधीनता संग्ाम के लजन मूल्यो् को 10 साल का संप्गशासन अपनी उदारीकरण की नीलतयो् के माध्यम से धीरे-धीरे कमजोर कर रहा था उसे उन्हो्ने तेजी से कर लदया. उनके प््लत इस बात के ललए भी शुक्गुजार होना चालहये लक उन्हो्ने उन मूल्यो् की लिर से याद लदला दी और परोक््र्प से यह लदखा लदया लक उन पर लकतना खतरा है. मोदी की सरकार ने भारतीय लरजव्त बै्क को लवत्् मंत्ालय या कहे् लक पीएमओ की एक शाखा बनाकर छोड् लदया. उसने न्यायपाललका के सव््ोच््व्यब्कत को जजो्के ललए अपने सामने साव्तजलनक र्प से रोने पर मजबूर कर लदया और सेना जैसी संस्था की आंतलरक ब्सथलत को भी उजागर कर लदया. लेलकन अभी खादी ग््ामोद््ोग आयोग के कैले्डर पर मोदी जी का लचत््लगवाकर उनके चाहने वालो्ने जो लववाद खड्ा लकया है उसके बहाने खादी के मूल्यो्को याद करने का एक मौका देने का श्य्े भी उनको जाता है. खादी और चरखे को स्वाधीनता संग्ाम का प्त् ीक बनाये जाने से पहले भी इस देश मे्खादी काती जाती थी और लोग उसे पहनते थे. लेलकन अंग्ेजो्के आने के साथ उनकी लमलो्के कपड्े ने उसका क्र् ण कर लदया था. गांधी ने कुछ नया करने की बजाय उसकी खोज की और उसे लिर से स्थालपत करने का प््यास लकया. दरअसल गांधी ने खादी को वस्् से एक लवचार बना लदया. खादी को उनका स्पश्त लमलने से पहले 18 शुक्वार | 1 से 15 िरवरी 2017
हार-किे िुि िे बनिी खािी: एक सवचार की बुनावट
डिचार से िस्् तक वह एक वस््ुथी. एक वस््थी. लेलकन लवचार नही् थी. गांधी ने खादी को अपने लवचार के चरखे पर कात कर पूरे देश के स्वावलंबन के लवचार से लैस कर लदया. आज मोदी जी के समथ्तको् ने लिर से खादी को एक वस्् और वस््ुबना लदया. यही उनका योगदान है. सवाल यह नही् है लक केवीआईसी के कैले्डर मे्गांधी जी की जगह मोदी जी का लचत्् लगाने का िैसला पीएमओ से पूछ कर लकया गया या नही्. सवाल यह है लक जो लोग खादी आयोग का प््लतलनलधत्व कर रहे है्और जो लोग एक के्द् मे् या राज्य मे् एक मंत्ी की हैलसयत से काम कर रहे है्उनको खादी के बारे मे्गांधी की व्याख्या की लकतनी समझ है. या समझ होते हुए भी वे उसे लकतना मानते और लागू करते है्. केवीआईसी के चेयरमैन लवनय सक्सेना कहते है् लक 1996, 2002, 2005, 2011, 2013
और 2016 मे्भी कैले्डर पर गांधी जी का लचत्् नही्था. वह स्थान या तो खाली था या उस पर मलहलाओ् के लचत्् थे. लनल््ित तौर पर हमारा पूरा समाज वैश्ीकरण के चलते लजस तरह ब््ांड बनने और पैकेज पाने को आतुर है उसमे् गांधी की लचंता लकसे है. वह मलहला लदवस पर भी मलहलाओ् का ब््ांड बेचता है न लक उनके अलधकारो् की बात करता है. वह खादी लदवस या दो अक्टूबर को भी खादी को ब््ांड बनाने को आतुर रहता है. लजस दौर का संकेत सक्सेना कर रहे थे वह दौर भारत और दुलनया मे्प््चंड वैश्ीकरण का दौर रहा है. उस समय हमारे स्वाधीनता संग्ाम के प््तीको् के सहारे अगर माल लबकता है तो वे चले्गे और अगर नही्लबकता है तो वे संग्हालय मे् पड्े रहे्गे. इसललए उसे इतना कहना तो याद है लक गांधी की जगह कोई नही्
खादी
ले सकता लेलकन गांधी ने खादी को कैसे नया अथ्तलदया यह वह भूल गया है. उसे खादी के झोलो् पर ललखी हुई वह इबारत भूल गयी है लक खादी वस््नही्लवचार है. यह बात बच््ो् को जल्दी नही् समझ मे् आती. क्यो्लक वह पूछते है् लक वस्् तो वह साि साि लदख रहा है पर लवचार कैसे है? यही बात समझाने के ललए उसे खादी का पूरा लवमश्त बताना पड्ता है और उसी के साथ लनकलता है स्वाधीनता संग्ाम का आख्यान. लेलकन के्द्ीय मंत्ी कलराज लमश््जो लक प््धानमंत्ी जी हजूरी के ललए एक सुनहरा मौका लनकाल कर लाये थे वे उस बात को कैसे याद रख सकते है्. या हलरयाणा के मंत्ी अलनल लबज लजनके ललए खादी को लवचार के मचान से नीचे उतार कर ब््ांड बनाना जर्री है वे भला यह कैसे उल्लेख कर सकते है्. लेलकन खादी गांधी के ललए जन चेतना िैलाने और संवाद करने का एक माध्यम था. उन्हे्इस बात का दुख जर्र था लक मैनचेस्टर की लमलो् ने हमारे कुशल बुनकरो् और कारीगरो् को बब्ातद कर लदया लेलकन वे उतने ही लचंलतत देशी लमलो्के हमले से भी थे. खादी का लवचार गांधी के भीतर 1909 मे्लहंद स्वराज ललखते हुए ही आ गया था लेलकन वे 1915 मे् पहली बार बुनकर बने और इसके ललए उन्हो्ने पंजाब मे्सूत कातने वाली बहनो्की तलाश की और बाद मे् गुजरात मे् एक वीर लवधवा का सहारा ललया जो अछूतो् की सेवा का काम करती थी. उनकी यह तलाश गुजरात के बीजापुर मे् कुछ मुसलमान बहनो् के दरवाजे पर जाकर लटकी जो अपने घर पर सूत लाये जाने पर उसे कात देती थी्. उन्हो्ने चरखे की खोज मे्भटकने के ललए लकस तरह गंगा बहन को प््ेलरत लकया िांव रे् खािी की किाई: अर्ाव्यवस्रा का आधार
इसकी भी रोचक कथा है और जब गंगा बहन ने उनके ललए 50 इंच की अरज की धोती का टुकड्ा चरखे से कातकर और बुनकर मुहैया कराया तब जाकर उन्हे् चैन लमला. जरा गौर कीलजये खादी की इस तलाश लकस तरह अछूत, स््ी, लवधवा और अल्पसंख्यक समाज एक साथ बुन ललया था गांधी ने. गांधी ने लजस तरह सत्य और अलहंसा की परंपरा को ढूंढ कर लनकाला उसी तरह खादी की परंपरा को भी भारतीय समाज के भीतर से खोज कर लनकाला और वह भी ग््ामीण समाज से. उन्हो्ने न तो सत्य और अलहंसा के लनम्ातण का दावा लकया और न ही खादी के लनम्ातण का दावा लकया. बस उन्हो्ने उसमे्राजनीलतक और सभ्यतामूलक अथ्त भरा और उसे धम्त और लोकजीवन से दायरे से उठाकर लवचार के मचान पर लबठा लदया. गांधी जवाहरलाल नेहर् को उद्त्ृ करते हुए कहते है्लक खादी लहंदस ु ्ान की आजादी की पोशाक है. लेलकन जब वे खादी जैसे िारसी के शल्द लजसका अथ्त होता है सौभाग्यम मे्अपने संवाद से नया अथ्तभरते है् तो वह लवलशष््बन जाती है. वे कहते है्, ` मै्ने कताई को प््ायल््ित या यज्् बताया है और चूंलक मै्मानता हूं जहां गरीबो्के ललए शुद्और सल््कय प््ेम है, वहां ईश््र भी है. इसललए चरखे पर मै् जो सूत लनकालता हूं उसके एक- एक धागे मे्मुझे ईश््र लदखायी देता है.’ जो लोग चरखे और खादी को मैनचेस्टर की लमलो्को बब्ातद करने का हलथयार बताते है् वे भी गांधी को नही् समझते. गांधी न तो स्थानीय स््र पर लहंसा की भाषा बोलते है्और न ही अंतरराष््ीय स््र पर. इसीललए वे कहते है् लक चरखा व्यापालरक युद् नही्, व्यापालरक शांलत की लनशानी है, उसके संरक््ण के ललए लकसी जलसेना की आवक्यकता नही् है, क्यो्लक चरखे के हर तार मे्शांलत , सद््ाव और प््ेम की भावना भरी है और उसे छोड् देने से लहंदुस्ान गुलाम बना है, इसललए उसके पुनर्द्ार का अथ्त होगा लहंदुस्ान की स्वतंत्ता.’ आज खादी के इस लवचार पर चरखा मचाने वालो् को शांलत और प््ेम के साथ यह सोचना होगा लक कैसे इस देश के हजारो्बुनकर भुखमरी के लशकार है् और कैसे लवदभ्त और मराठावाड्ा(और गुजरात) के उस इलाके मे् कपास पैदा करने वाले हजारो् लकसान आत्महत्या कर रहे है् लजसे गांधी ने खादी की प््योगशाला बनाया. चरखा कातना और खादी पहनना एक मशीन और व्यापार नही् एक लवचार है और मोदीजन भले न समझे् लेलकन जो गांधीजन है्उन्हे्तो उस लवचार को लिर से जीलवत करना ही होगा. चाहे उसके ललए नया चरखा चलाये्या नये अलभयान. n शुक्वार | 1 से 15 िरवरी 2017 19
मास्मुटद्ाहेड
गबंधी होने कब अथ्ा िादी के कैले्िर पर गांधी की छसव की िगह लेने से बेहतर होता अगर मोदी उन्हे्सवचारो्मे् उतार पाते. संदीप पबंडेय
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धर खादी व ग््ामोद््ोग आयोग के कैले्डर पर चरखे के साथ महात्मा गांधी की जगह नरेद् ्मोदी की तस्वीर छपने से कुछ लववाद खडा हुआ है. मोदी समथ्क त पूछ रहे है्लक जब नरेद् ् मोदी की तस्वीर झाडू के साथ छप रही थी तब इतना बवाल क्यो् नही् मचा क्यो् लक झाडू का प्त् ीक भी मोदी ने गांधी से ही ललया है? गांधी का चक्मा स्वच्छ भारत अलभयान के प्त् ीक लचन्ह के र्प मे्जगह जगह छप रहा है. अब झाडू हो या चरखा, उस पर गांधी की बपौती तो है नही्. कोई भी चाहे तो अपनी तस्वीर इन चीजो् के साथ लखंचवा ही सकता है. और इससे अच्छी बात क्या हो सकती है लक नरे्द् मोदी महात्मा गांधी से इतने प्ल्ेरत हो गये है्लक उनकी चीजो् को प््तीक लचन्ह के र्प मे् इस्म्े ाल कर रहे है.् नरेद् ् मोदी दल््कण अफ््ीका मे्उस रेलगाडी मे्भी सिर कर चुके है्लजससे गांधी का उतारा गया था और वहां उनके आश्म् भी जा चुके है.् यह बात अनोखी इसललए है लक नरेद् ् मोदी का ताल्लक ु लजस राष््ीय स्वयंसवे क संघ से है वह गांधी को अपना लवरोधी मानता है और उसकी लवचारधारा गांधी की हत्या के ललए लजम्मदे ार है. यलद नरेद् ्मोदी को गांधी का महत्व समझ मे् आ रहा है और वे अपने संगठन की सोच गांधी के प्ल्त बदल पाये् तो इससे अच्छी बात और क्या हो सकती है? सच तो यह है लक दुलनया भर मे् भारत की पहचान यलद लकसी एक व्यब्कत से सबसे ज्यादा जुडी हुई है तो वह महात्मा गांधी है. वैसे तो गौतम बुद्से ज्यादा संखय् ा मे्लोगो्का जुडाव है लेलकन बौद््धम्तको मानने वाले बुद्को अब भारत तक सीलमत कर नही्देखते. दुलनया के कई आंदोलनो् मे्, खासकर जहां कोई कमजोर तबका लकसी ताकतवर शब्कत के लखलाि संघष्त कर रहा हो वहां, गांधी प्र्े णास््ोत बनते है.् कई 20 शुक्वार | 1 से 15 िरवरी 2017
िांधी की पोशाक: हार िे बुनी खािी पय्ावत रणवादी भी गांधी से प्र्े णा लेते है.् लकंतु नरेद् ्मोदी को यह समझना चालहये लक गांधी की झाडू या चरखे के साथ तस्वीर देख लोग उन्हे्गांधी की तरह नही्देखने लगेग् .े यलद गांधी ने दुलनया भर के लोगो् के लदलो् मे् जगह बनायी है तो उसके पीछे लजन मूलय् ो्के वे प्त् ीक है्वे है.् और खास बात यह है लक गांधी ने उन मूलय् ो् को लजया है. गांधी के आश्म् मे् सिाई, खासकर शौचालय की सिाई को लवशेष महत्व लदया जाता था और चरखे पर जो सूत काता जाता था उससे बनी खादी पहनी जाती थी. खादी के पीछे स्वराज का सोच था, यानी स्थानीय वस्ओ ्ु ्के इस्म्े ाल से ऐसी तकनीक से अपनी भौलतक आवक्यकताओ् को पूरी करने वाली चीजो् को लनल्मतत करना जो भारत की गरीब जनता को रोजगार भी सुलभ करा सके्. नरे्द् मोदी लजन नीलतयो् को लागू कर रहे है्, यानी नवउदारवाद, उससे तो, पूरी दुलनया का अनुभव बताता है लक, गरीब और अमीर के बीच की खाई चौडी होती है. गांधी ने स्थानीय संसाधनो् पर भरोसे की बात की थी लेलकन नरे्द् मोदी का आकष्ण त वैल्शक पूज ं ी की तरि है. लिर भी झाडू और चरखा तो भौलतक वस्ए्ु ं है.् दुलनया इनकी वजह से गांधी को नही् जानती. गांधी को सत्य और अलहंसा जैसे मूल्यो् और सत्याग््ह जैसे संघष्त के तरीको् के ललए जाना जाता है. सत्य का रास््ा हमेशा लंबा और कलठन होता है. त्वलरत सिलता हालसल करने के ललए समझौते करने की कोई गुज ं ाइश नही्होती. इस रास््े मे् चमक-दमक नही् होती. जो जैसा है
वैसा ही लदखना होता है. अलतशयोब्कत का सहारा नही् ललया जा सकता. अपनी कमजोरी को छुपाया नही्जाता. शायद ही कोई शासक हो लजसने लहंसा का सहारा नही् ललया हो. अलहंसा को मानने वाले भय या आतंक का माहौल नही् बनाते. वे हलथयारो्और युद्की बात नही्करते. लकसी को दुकम् न नही् माना जा सकता. दुकम् न को खत्म करने का एक ही रास््ा होता है - उसे दोस््बना लो. गांधी के अंगज ्े ो्के साथ जो संबध ं थे वे याद लकये जाने चालहये. उन्हो्ने लकसी अंग्ेज से दुकम् नी नही्मानी. उनकी लडाई साम््ाज्य से थी. इसललए अंगज ्े भी उनकी इज्त् करते थे. महात्मा गांधी लहंदू-मुब्सलम एकता के लहमायती थे. जबलक नरेद् ् मोदी की सरकार मे् दोनो्समुदायो्के बीच दूलरयां बढ गयी है.् लहंदतु व् की लवचारधारा को मानने वालो् ने मुसलमानो् को आतंलकत लकया है तो सरकार ने कोई हस्क ् प्े नही्लकया. गांधी तो आजादी का जक्न मनाने के बजाये नोआखाली मे्सांपद् ालयक लहंसा रोकने चले गये और नरेद् ् मोदी के मुखय् मंत्ी होते हुए 2002 मे् गुजरात मे् तीन लदनो् तक लहंसा होती रही. क्या नरे्द् मोदी उसकी लजम्मदे ारी स्वीकार करने को तैयार है?् मोदी कहते है्लक उन्हो्ने साव्ज त लनक काम के ललए पालरवालरक जीवन का त्याग लकया. लेलकन गांधी ने लदखाया लक पलरवार को लेकर कैसे चलना है. उनके पलरवार वालो् ने उनके काम का लवरोध लकया लकंतु गांधी ने अपना पलरवार नही्छोडा. गांधी का हर कदम गरीब को ध्यान मे्रख कर उठाया जाता था. जबलक नरेद् ् मोदी की नीलतयां पूज ं ीपलतयो्को िायदा पहुच ं ाने वाली है्. उल्टे गरीब अपने को लदन प््लत लदन और असुरल््कत महसूस कर रहा है. गांधी बनने के ललए लजन मूलय् ो्को जीना है यलद नरेद् ्मोदी वह लकये लबना लसि्फबाहरी तौर पर गांधी की नकल करना चाहते है् तो उसका कोई लाभ नही्. गांधी मे् सत््ा के ललए कोई महत्वाकांक्ा नही्थी. उन्हो्ने लोगो्के लदलो्पर राज लकया और आज भी कर रहे है.् शासक की इज्त् तो लोग तभी तक करते है्जब तक वह शासन करता है. उसके बाद लोग उसे भूल जाते है्. गांधी जो कुछ भी करते थे वह एक समग्् सोच के तहत था. ऐसा नही् हो सकता लक आधुलनक प््बंधन की सोच लक तहत प््चार के ललए उनकी कुछ चीजे् ले ली जाये् और कुछ छोड दी जाये.् एक तरि मोदी चरखे से अपने को जोडना चाहे् और दूसरी तरि रक््ा क्त्े ् मे् उनके लमत्् अंबानी कारखाना लगाये् ये दोनो् चीजे्एक साथ नही्हो सकती्. मोदी के संगठन से जुडे लोग देश मे्ओछी हरकते्करे्या घलटया बयानबाजी करे्और मोदी को लोग लवश््नेता n मान ले्यह नही्हो सकता.
एड्स का िौफ पूरी दुसनया मे् है. हालांसक इस बीमारी से बचाव आसान है, लेसकन बड्ी दवा कंपसनयो्ने बचाव पर दवा को तरिीह देना शुर्कर सदया है. ज्योठत शुक्लब
ए
ड्स जैसी घातक बीमारी से लड् रही अंतरराष््ीय संसथ ् ाये् इन लदनो् एचआईवी संकम् ण रोकने का प्य् ास करने के बजाय दवा कंपलनयो् के हाथो् का लखलौना बनी हुई है.् अंतरराष््ीय सम्मल े नो् मे् अब कोई एड्स से बचाव या कंडोम की बात नही् करता. न ही मनुषय् की नैलतकता पर कोई चच्ात होती है. सारा जोर दवाओ्पर लदया जाता है तालक दवा कंपलनयां लाभ कमा सके.् एड्स न हो इसकी दवा भी आ गयी है लेलकन उसका असर केवल 24 घंटे रहता है. प्प्े लपल नामक यह दवा खासतौर पर यौनकल्मयत ो्के ललए है. लवश््स्वास्थय् संगठन ने अपने नये लदशालनद्श ्े मे्टेसट् ऐ्ड ट््ीटमेट् की बात कही है यानी जांच करो और तुरतं इलाज शुर् करो. एड्स से लडऩे वालो्का नया नारा है- एड्स को मृतय् ु दंड न समझे.् यानी यह बीमारी प्ब् धं नयोग्य है. ठीक वैसे ही जैसे डॉक्टर उच्् रक्तचाप और डायलबटीज का प्ब् ध ं न करते है.्
जैसे डायलबटीज के साथ इंसान लंबी लजंदगी जी सकता है वैसे ही एड्स के साथ भी. तमाम ताजा शोध बताते है् लक एंटीलरटरोवायरल थेरपे ी यानी एआरटी एड्स रोलगयो्के ललए वरदान सालबत हो रही है. यह दवा वायरस को तो खत्म नही् करती लेलकन एचआईवी ग्स ् ् इंसान की लजंदगी आसान कर सकती है और मरीज के लजस्म मे्इम्यलू नटी बढ्ाने के ललए लजम्मदे ार सीडी4 काउंट को नीचे लगरने से रोकती है. शत्तहै लक यह दवा हर रोज ली जाये. पूरी दुलनया मे्कोई 3.7 करोड्लोग एचआईवी से ग्स ् ्है.् इनमे्से केवल 1.7 करोड्लोगो्को ही यह दवा लमल पा रही है. भारत मे्एचआईवी के 21 लााख मामले है.् इनमे्से केवल 14 लाख ही पंजीकृत है.् सरकार की प््ाथलमकता मे्गभ्व्ि ती मलहलाये,् 15 साल से कम उम्् के बच््े और टीबीग्स ् ् एचआईवी मरीज है.् अभी एटीआर क्लीलनको्पर यह दवा लसि्फउन एचआईवी ग्स ् ्मरीजो्को दी जाती है लजनका सीडी4 काउंट 350सेलस ् से नीचे है. लपछले महीने भारत सरकार ने एक अलधसूचना जारी कर सीडी4 काउंट 500 सेलस ् वाले मरीजो् को भी यह दवा देने का िैसला लकया है. अभी कम बजट के कारण भारत केवल 9.5 लाख मरीजो्को दवा के दायरे मे्ला पाया है.् जल्द ही डेढ् लाख से अलधक मरीज इस काय्क त म् से जुडग्े .े लवशेषज्् बताते है् लक एचआईवी पालजलटव होने की पुल्ष के बाद एड्स के लक्ण ् सामने आने
एड्स से खेलती दवाएं
मे्तीन से पांच साल लगते है.् कई लोग तो जीवन भर एचआईवी पालजलटव रहते है् और रोग के लक्ण ् सामने नही् आते. उन्हे् दवा की कोई जर्रत नही् होती. लजस्म मे् सीडी4 ल्लड सेल जब 200 काउंट से नीचे आता है तब तकनीकी तौर पर मरीज एड्स रोगी कहलाता है. तब इलाज अलनवाय्तहो जाता है. पर नये लदशालनद्श ्े कहते है् लक एचआईवी का पता चलते ही दवा देना शुर् कर दो. गरीब और लवकासशील देशो् की सरकाररे् के पास इतना पैसा नही् लक वह ऐसे इलाज पर अंधाधुधं पैसा खच्तकरना शुर्कर दे् लजसकी मरीज को तत्काल जर्रत नही्. एड्स के थड्तलाइन ट््ीटमेट् मे् प्ल्त मरीज प्ल्त वष्तएक लाख का सरकारी खच्त है. लनजी अस्पतालो् मे् यह खच्त कई लाख मे् है. भारत मे् हर साल एचआईवी के दो लाख नये मरीज जुड् रहे है.् गरीब देशो्मे्टीबी, कालाजार मलेलरया जैसे दूसरे अवसरवादी संकम् क रोग है्लजससे ज्यादा लोग प्भ् ालवत होते है.् भारत जैसे देश मे्जहां स्वास्थय् के ललए बजट जीडीपी का एक िीसदी हो वो कैसे इन महंगी दवाओ्को मुफत् बांट पायेगा? एड्स पर काम करने वाले संगठनो् का कहना है लक इस बीमारी के लखलाि जंग तब तक नही्जीती जा सकती है जब तक सबको इलाज नही् मुहयै ा करा लदया जाता है. बचाव पर और पैसा खच्तकरने की आवक्यकता है. एड्स के नाम पर मनमानी िंलडंग का नतीजा हम अफ््ीका मे् देख चुके है.् वहां की सरकार ने माच्त2016 मे् नेशनल सेकस् वक्सफ त्एचआईवी प्लान 2016-19 जारी लकया. इसे वह इनोवेलटव अप््ोच का नाम देती है. इसके तहत वह अपने यहां तीन हजार सेकस ् वक्रफ को लजन्हे् एचआईवी नही् है एन्टीलरयोवायरल लपल का कांबीनेशन बांट रही है. इसे प्प्े यानी प््ी-एक्सपोजर प््ोिलैबक् सस. ये गभ्त लनरोधक लपल की तरह लसि्फ चौबस घंटे काम करती है. यानी दल््कण अफ््ीका की सरकार ने अपने एचआईवी नेगले टव सेकस ् वक्रफ ो्को कंडोम की अलनवाय्तत ा से मुबक् त दे दी है. मजे की बात यह है लक ओरल प्प्े लपल को डल्लएू चओ ने अभी तक मान्यता नही्दी है और न ही इस बात की कोई वैज्ालनक प्म् ाण लमला है लक इस लपल के खा लेने से एचआईवी वायरस हमला नही् करेगा. लजस रोग का बचाव सस््ेकंडोम से हो सकता है उसके ललए दवा की जर्रत क्यो्हो? इस सवाल पर कोई बात नही्करता. अकेले दल््कण अफ््ीका को एचआईवी और टीबी के ललए 31.4 करोड् अमेलरकी डॉलर की मदद लमलती है. आत्मसंयम और समझदारी एड्स से अचूक बचाव है. लेलकन बाजारवाद दूसरी तरह से काम करता है. वह पहले जर्रत पैदा करता है लिर वहां अपना साम््ाज्य खड्ा कर लेता है. एड्स के नाम पर भी दुलनया मे्अब यही सब शुर्हो गया है. n शुक्वार | 1 से 15 िरवरी 2017 21
अंतरराष््ीय
रुस्ियां लहरािा अरेसरका कुमबर प््शबंत
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क रात मे्लकतना कुछ बदल सकता है : 46 वष््ीय बराक ओबामा का अमरीका, 70 वष््ीय डोनाल्ड ट्प्ं का अमरीका बन सकता है ! अमरीकी इलतहास का यह सबसे मंहगा शपथग्ह् ण समारोह था जो सबसे दलरद््बन कर सामने आया. राष्प् लत बनते ही ट्प्ं ने अमरीका को लसि्फ इतना बताया लक उसके पास दुलनया को लदखाने के ललए अब एक मुक्ा है ! ट्प्ं ने वह मुक्ा बार-बार कसा और बारंबार लदखाया लेलकन हमे् मुक्ा नही्, मुका् लदखाने वाला आदमी ही 22 शुक्वार | 1 से 15 िरवरी 2017
लदखाई देता रहा और यह सवाल मन मे्घुमड्ता रहा लक अमरीलकयो्ने क्या सोच कर अपने ललए एक यह मुक्ा चुना होगा ? बराक ओबामा लपछले कुछ दशको् मे् हुए अमरीकी राष्प् लतयो्मे्सबसे शालीन, भद््और साहसी राष्प् लत थे हालांलक हम जानते है्लक वे वैसा कुछ कर नही्सके जैसा उन्हे्करना था और जैसा वे कर सकते थे. लेलकन अमरीका का हाललया इलतहास यह भी कभी भुला नही्पाएगा लक ओबामा के र्प मे्अमरीका को पहली बार वैसी जगह से, वैसा राष्प् लत लमला था जैसी जगहो्से, जैसे लोग अमरीकी राजनीलत के लशखर तक पहुच ं नही् पाते है.् ओबामा वहां पहुच ं े यह
ट््ंप के सवरोध रे् रसहलाएं: फैलिा हुआ जन आंिोलन
अमेसरका ने उस व्यल्तत को चुना है िो आने वाले समय मे्िुद उसके सलए मुल्शकले्िड्ी करने की विह बनेगा. ट््ंप के सिलाफ मसहलाओ्के प््दश्षन भी लगातार बढ्रहे है्. उनकी और लजस अमरीकी समाज ने उन्हे्वहां पहुच ं ाया, उसकी यह उपलब्लध रही. शपथ ग्ह् ण समारोह मे्वही ओबामा सामने बैठे थे और ट्प्ं कह रहे थे लक अब बात बनाने वालो् का वक्त बीत गया, काम करने वालो्का वक्त आया है. उस अवसर पर ऐसा कहने मे् वैसी ही अशालीनता थी जैस अशालीनता ट्प्ं की, और अब आगे आने वाले लदनो् मे् अमरीका की पहचान बनने जा रही है. राष्प् लत पद का शपथ लेते ही, वही्-के-वही् राष्प् लत द््ारा राष्् को संबोलधत करने की यह अमरीकी परंपरा बहुत शानदार है. व्हाइट हाउस की ऐलतहालसक सील्ढयो्पर खड्ेहो कर, लाखो्-
लाख अमरीलकयो्और अनलगनत दुलनयावालो्को संबोलधत करने वाला राष्प् लत अपने पहले ही संबोधन से सबको बता देता है लक वह क्या है; और उसके साथ अमरीका सील्ढयां चढ्गे ा लक उतरेगा! चढ्ने की बात तो कोई, कही् कर ही नही्रहा है, दुलनया को देखना तो इतना ही भर है लक क्या ट्प्ं अमरीका को उन सील्ढयो्पर खड्ा भी रख पाते है्लक लजन सील्ढयो्तक ओबामा ने उसे पहुच ं ाया था? कई बार ऐसा होता है लक आप जहां होते है् वहां बने रहने के ललए भी आपको बड्ी मशक्त् करनी पड्ती है. अमरीका आज वैसी ही जगह पर खड्ा है. तो क्या ट्प्ं जानते है् लक वे अमरीका को कहां ले जाना चाहते है;् और क्या अमरीका जानता है लक उसे इस आदमी के साथ कहां जाना है? सवाल ट्प्ं के लवरोध या समथ्नत का नही्है. सवाल है लक क्या आज दुलनया वैसी रह गयी है लक लजसे कभी अमरीका अपने इशारो्पर नचाता था? अब न धन का वह खेल बचा है, न धमकी से झुकने वाली वह दुलनया बची है. डॉलर का र्तबा है जर्र लेलकन बहुत तेजी से लवश्-् व्यापार दूसरी मुद्ाये् अपनाने मे् लगा है. भारत और चीन का बाजार उस अमरीका के ललए सबसे खास बन चुका है लजसे ट्प्ं यह समझा रहे है्लक सूरज-चांद-लसतारे सब हमारे ललए ही है्और मै् वह ले कर ही रहूगं ा. लकसी लनरक्र् का प्ल ् ाप भर लगता है. अमरीका अपनी नौकलरयां वापस लाना चाहता है तो उसे इसके ललए तैयार रहना होगा लक ट््ंप का शपर ग््हर: सववािास्पि जीि
बाकी के देश अपना बाजार वापस मांगगे् .े दुलनया भर के संसाधनो् का दोहन और दुलनया भर के बाजारो्मे्अपने माल की खपत से ही अमरीका वह बना है जो वह आज है. कोलरया, जापान के साथ-साथ एलशया के सारे ही लवकाशसील देश अमरीका को इसी तरह पालते-पोसते रहे है.् अगर यूरोप को संवारने के ललए माश्ल त प्लान मे् अमरीका ने धन उड्ल े ा है तो वहां से ही तो उसने अपना खजाना भी भरा है! सोलवयत सत््ा के लखलाि सारी दुलनया मे्घेराबंदी करने की योजना का यलद अमरीका ने नेततृ व् लकया तो उससे सबसे अलधक कमाई भी उसने ही की. खुले बाजार का नारा और उसकी पीछे की सारी हलचल रची गयी तो उसके पीछे अमरीका की सावधान योजना तो यही थी न लक अमरीकी कंपलनयां दुलनया भर के बाजारो्मे्अपने पांव जमा सके.् अमरीका मे्नौकलरयां गयी है्तो अमरीकी कंपलनयो्को धेले के भाव से वह श्म् शब्कत लमली है जो उसके अपने यहां बहुत मंहगी होती है. कमाई लकसकी हुई? ट्प्ं खुद भी इसी लूट मे्से तो अरबपलत बने है.् ट्प्ं ने नारा लदया: अमरीका अमरीका के ललए; अमरीका और दूसरा कुछ नही्; और राष्प् लत के र्प मे् पहला काम यह लकया लक ‘ओबामा केयर’ का बजट कम कर लदया. अमरीका की स्वास्थय् सेवाएं इस कदर मंहगी है् लक वहां के समथ्त लोग भारत समेत दुलनया के दूसरे मुलक ् ो्मे्इलाज के ललए जाते है.् जो समथ्त नही्है-् गरीब अमरीका- उनके ललए ओबामा ने यह योजना बनाई थी लजसमे्राज्य लनवेश करता है. यहां लजनका इलाज होता है, वे अमरीकी है्या नही्? ट्प्ं यलद उन्हे्अमरीकी नही्मानते है्तो उन्हे्यह भी कह देना चालहये या लिर उन्हे्बताना चालहये लक उनके स्वास्थय् की देखभाल कैसे होगी और कौन करेगा? यह वह अमरीका नही्है जो सारी दुलनया को ‘उबर’ मे्दौड्ना चाहता है और ‘एमेजॉन’ से ही खरीदारी के ललए उकसाता है; लजसने धन-बल से प्च ् ार का घटाटोप रच कर सारी दुलनया मे्वह खाना और वह पेय िैलाया है जो संसार भर मे्बुरे स्वास्थय् की खास वजह है. अमरीका उसी तरह आल्थक त संकट मे् है लजस तरह सारी दुलनया है. लेलकन अमरीका को जवाब देना होगा लक यह अथ्तत तं ् लकसका गढ्ा और िैलाया हुआ है? लजस वैल्शक मंदी का कहर हर तरि टूटा पड्ा है उसका जनक कौन है? ओबामा ने यह समझा था और इसललए उन्हो्ने अमरीका का भीतर-बाहर चेहरा बदलने की शुरआ ् त की थी. उसकी गलत बहुत धीमी रही और ओबामा का आत्मलवश््ास भी उतना पक््ा नही्था. लेलकन ट्प्ं लजस अनाड्ीपने से अपने देश और हमारी दुलनया को ले रहे है,् उसकी पहली चोट अमरीका पर ही पड्गे ी. हमे्अमरीका से सहानुभलू त है. n शुक्वार | 1 से 15 िरवरी 2017 23
अंमास् तरराष् ट हे्ीडय
सफिेल और राउल कास््ो: योग्य उत््रासधकारी
डि्देल के बाद क्यूबा
त्यबू ा के सलए सफदेल कास््ो की सवरासत का बहुत महत्व है, उनके सनधन के बाद आशंका व्यत्त की गयी थी सक अब शायद त्यबू ा समािवाद की राह पर नही् चल पायेगा लेसकन ऐसी आशंकाएं सनम्ल षू सािबत हो रही है.् अजेय कुमबर
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ज दुलनया भर मे् लगभग 20 करोड बच््ेगललयो्व सडको्पर रात गुजारते है्. इनमे् से कोई भी क्यूबा का नही् है. करोडो् लोग स्वास्थ्य देखभाल और लशक््ा से वंलचत है्, उन्हे् कोई सामालजक सुरक््ा या पे्शन नही् लमलती. इनमे् से कोई भी क्यूबा का नही् है. लिदेल ने एक छोटे गरीब देश क्यूबा की नी्व इतनी मजबूत बना दी है लक 60 वष््ो् के 24 शुक्वार | 1 से 15 िरवरी 2017
अमरीकी प्ल्तबंध के बाद भी वहां समाजवाद को हराया नही् जा सका. वहां की जनता के दृढ संकल्प के पीछे लिदेल का कुशल नेतृत्व था. सबसे बडी खूबी लिदेल मे् यह थी लक उनकी कथनी और करनी मे् कोई िक्फ नही् था. ‘हम घुटने टेकने की अपेक्ा मरना पसंद करे्गे.’ पच््ीस नवंबर, 2016 को लिदेल कास््ो ने इस दुलनया को अललवदा कहा. यह आकब्समक संयोग ही कहा जायेगा लक 60 वष्त पहले इसी लदन यानी 25 नवंबर को लिदेल कास््ो अपने 81 कामरेडो्के साथ मैब्कसको से ग््ानमां नामक जहाज पर सवार होकर क्यबू ा की मुब्कत के ललए लनकले थे. इसी दो लदसंबर को लिदेल की अब्सथयां हवाना से सानलदयागो (क्यूबा) पहुंची, और यहां भी एक और संयोग यह है लक 60 वष्त पहले दो लदसंबर को ही लिदेल कास््ो, राउल कास््ो और चे ग्वारा सानलदयागो पहुंचे थे. लवश्् मे् कई देशो् मे् समाजवाद आया, वहां के नेतृत्व ने अपनी पाट््ी कांग्ेसो्मे्कसमे् खायी् लक वे एक सच््े कम्युलनस्ट का जीवन लजये्गे, लक नेताओ्और जनता के बीच की दूरी
कम की जायेगी इत्यालद परंतु अकेला क्यबू ा ऐसा देश था जहां यह संभव हो पाया और इसका बडा श््ेय लिदेल कास््ो को जाता है. वे एक आशावान व्यब्कत थे. वामपंलथयो् के ललए समाजवाद मे् लनि््ा होना पहली शत्त है परन्तु आजकल कम्युलनस्ट पाल्टतयो् के नेताओ् मे् ही अपनी लवचारधारा के प््लत लगाव कम हो रहा है. चीन इसका सबसे बडा उदाहरण है. संयुक्त राष््संघ द््ारा 2001 मे्आयोलजत ‘नस्लभेद के लवर्द् लवश्् कांग्ेस’ मे् उन्हो्ने कहा था, ‘मै् आमजनो् की लामबंदी और उनके संघष््ो् मे् लवश््ास करता हूं. मै् न्याय के लवचार मे् लवश््ास करता हूं, मै्सत्य मे्लवश््ास करता हूं और मै्इंसान मे्लवश््ास करता हूं.’ उन्हो्ने लवश्् मे् बढ रही असमानता का लजक्् करते हुए एक बार कहा था, ‘दुलनया के सबसे अमीर 10 प््लतशत लोग दुलनया की 89 प््लतशत धन-दौलत को लनयंल्तत कर रहे है्. इसने मानवता को पंगु बना लदया है.’ इस असमानता के ललए वे साम््ाज्यवाद को दोषी मानते थे. समाजवादी क्यूबा की रक््ा के ललए उन्हो्ने साम््ाज्यवालदयो् की हर सालजश का
ि््ांसि के बाि हबाना रे् सफिेल: जनिा का प्यार
डटकर मुकाबला लकया. आज क्यूबा अमरीका द््ारा थोपी गयी आल्थक त नाकेबदं ी का बहादुरी के साथ लवरोध कर रहा है. ओबामा ने क्यूबा की ताकत को पहचान कर ही उससे लरक्ते सामान्य करने की पहलकदमी की है. तमाम गलतरोधो्के बावजूद लिदेल के नेतृत्व मे् क्यूबा ने मानवलवकास के उच्त् म लक्य् हालसल लकये है.् उनमे् नस्लवाद का अंत, नारी मुब्कत, लनरक््रता का उन्मूलन, नवजात मृत्यु दरो् मे् भारी कमी, लशक््ा, स्वास्थ्य, लचलकत्साशोध, खेल-कूद इत्यालद मे्नये मुकाम हालसल करना शालमल है. सोलवयत संघ के पतन के बाद क्यूबाई अथ्तव्यवस्था को नया र्प तथा नयी लदशा देने मे् उन्हो्ने क्यूबा के खलनज-भंडारो् तथा अन्य आल्थतक संसाधनो् की उपलल्धता का लवशद अध्ययन लकया. दरअसल सोलवयत संघ की आल्थतक मदद हट जाने से, लवशेषकर तेल का आयात बंद हो जाने से ब्सथलतयां लबगड सकती थी्. क्यूबा की कलठनाइयो् को देखते हुए अमरीका ने ऐसे कानून बनाये थे, जो क्यूबा के साथ व्यापालरक संबंध रखने वाले तृतीय लवश्् के देशो्को दंलडत करते थे. परंतु ये लिदेल का नेतृत्व था जो क्यूबा को आल्थतक आत्मलनभ्तरता के रास््े पर ले आया. उसने साम््ाज्यवादी ल्लैकमेल के आगे झुकने से इंकार कर लदया. उन्हो्ने अपनी साव्तजलनक लवतरण प््णाली, मुफ्त लशक््ा, स्वास्थ्य संबंधी तमाम पलरयोजनाओ् को बनाए रखा. कोई अन्य देश
होता तो इन व्यवस्थाओ् का लनजीकरण कर देता, मुक्त बाजार की शत््ो् से समझौता कर लेता परंतु लिदेल ने ऐसा नही् लकया. ‘बाजार आज पूजा की वस््ु बन गयी है, यह एक ऐसा पलवत्् शल्द बना लदया गया है लजसे हर समय दोहराया जाता है.’ लिदेल ने 1999 मे् ही यह राय रख दी थी. क्यूबा और लवशेषकर लिदेल कास््ो द््ारा गुटलनरपेक् आंदोलन को लदये गये नेतृत्व ने साम््ाज्यवाद के बढते िैलाव को रोकने मे्मदद की, लवशेषकर लालतन अमेलरकी देशो्मे्. प््ायः इन देशो्मे्सैन्य शासन हुआ करता था. लगनीबसाऊ, मोजांलबक और अंगोला मे्क्यबू ा ने वहां के संघष्तशील तबको्को लमललट््ी और मेलडकल प््लशक््ण लदया तालक वे िालसस्टो् से मुब्कत पा सके्. क्यूबाई सेनाये्इन देशो्मे्भेजी गयी्, जो जर्री मदद पहुंचाकर वापस अपने देश लौट गयी्. लालतन अमरीकी जनता के बीच अमरीका की नीलतयो् के लवर्द् एक लहर पैदा करने मे् लिदेल कास््ो की अहम भूलमका थी. दल््कण अफ््ीका के नेल्सन मंडेला को रंगभेद के लवर्द् संघष्तमे्भी लिदेल ने मदद की. लिदेल कास््ो के कलरक्मे को सी.आई.ए. ने पहचाना था. सी.आई.ए. के कुछ अिसरो्का मत था लक हो न हो, लिदेल की दाढी उनके व्यब्कतत्व को बहुत आकष्क त बनाती है, इसललए उनकी कई लवदेश यात््ाओ्मे्कई बार उन्हे्खाने के ललए ऐसी लमलावट करके भोजन परोसा गया तालक उनकी दाढी के बाल गायब हो जाये्. यह अलग बात है लक लिदेल अपने साथ खाद््लनरीक्क ् ो्को ले जाया करते थे और वे उन्हे्ऐसा भोजन नही्खाने देते थे. लिदेल की, उनके जीवन के अंत तक, एक दाश्तलनक की छलव बनी रही. उनकी सोच का दायरा व्यापक था, वे लकसी भी लवषय पर लंबी बातचीत करने मे्मालहर थे. लवज््ान, प््ौद््ोलगकी, सौ्दय्तशास््, धम्त, ईश््र, सालहत्य, आल्थतक मंदी, लशक््ा, इत्यालद पर गहन लवचार-लवमश्त करने की उनकी क््मता इतनी अलधक थी लक लवश्् की महान सज्तनात्मक प््लतभाओ् जैसे अन्स्े ट् हेलमंगव् ,े ज्यां पाल सात्र् , साइमन द बुवा, पाल्लो नेर्दा, गाल््बएल गाल्सतया माख््ेज, खोसे सरामागो इत्यालद से उनके लनजी संवाद रहा करते थे. माख््ेज ने तो साव्तजलनक र्प से कहा था लक कास््ो उनके बहुत बडे प््ेरणा-स््ोत है्. एक अन्य कारण था, लजससे वे अपने प््शंसको् पर जादू का काम करते थे. वे बहुत प््भावी वक्ता थे. लजस नेता को सी.आई.ए. ने कई बार मारने की कोलशश की, उसका कहना था, ‘आप लवचारो् को नही् मार सकते. हमे् लोगो् को लशल््कत करना होगा, नये लवचारो् के बीज बोने हो्गे, जागर्कता का लनम्ातण करना, एकजुटता
प््दल्शतत करनी होगी और एक अंतर्ातष्ीय नजलरये को पैदा करना होगा, लजसके लबना लोगो् की प््लतरोधी क््मता नही्बढ पायेगी.’ लिदेल कास््ो के बाद क्यूबा का क्या होगा? बहुत सी अटकले् लगायी जा रही थी लजनमे् एक यह भी है लक उनके लबना वहां की समाजवादी व्यवस्था चरमरा जायेगी. लेलकन लजन ताकतो् ने लमलकर साम््ाज्यवाद का मुकाबला इतने लंबे वष््ो्तक लकया है, वे क्यबू ा को हारने नही्दे्गी. यहां पाल्लो नेर्दा की लंबी कलवता के कुछ अंश आज भी प््ासंलग है्- ‘और अगर क्यूबा हारता है/तो हम सभी हारे्गे/और हम उसे लिर से उठाने आये्गे/और अगर वह लखल उठता है/अपने सभी िूलो्के साथ/तो वह हमारे ही पराग से/प््रस्िुलटत होगा/ और अगर उन्हो्ने/क्यूबा को छूने की लहम्मत की/लजसे हमने अपने हाथो् से/मुक्त कराया है/तो उन्हे् लोगो् की बंधी/मुल्ियो् का सामना करना होगा/हम अपने छुपाए हुए हलथयार लनकाल ले्गे/हम आये्गे/अपने प्यारे क्यूबा को बचाने/सगव्त, खून बहाकर!’ अपनी तमाम कोलशशो् के बावजूद कई समस्याएं अभी भी क्यूबा के सामने मुंह बाये खडी है्. स््ी-पुर्ष समानता के मुद्े पर क्यूबा अब भी पूरी तरह सिल नही्हो पाया है. लपछले कुछ वष््ो् मे् वेश्ावृल्त का चलन बढ गया है, लवशेषकर लवदेशी पय्तटको् के ललए क्यूबाई औरते् सहज उपलल्ध है्. एक इल्जाम लिदेल पर यह भी लगाया जाता रहा है लक वे अलभव्यब्कत की स्वतंतत् ा को बहाल न कर सके. ट््ंप ने उनकी मौत पर उन्हे्एक तानाशाह कहा. इसमे् सच््ाई लकतनी है, नही् कहा जा सकता. परंतु प््ायः देखने मे्आया है लक तानाशाह प्व् लृ ्त के नेतागण अपने नाम से कई संस्थाओ्, कालेजो्, सडको्, चौको्, पाक््ो् व अन्य साव्तजलनक स्थलो् का नामकरण करते है्. लिदेल ने अपने जीवनकाल मे्ऐसा नही्लकया और मरने से पहले अपने भाई राउल कास््ो को लहदायत दी लक उनके नाम से कोई स्थल न बनाया जाये और न ही कोई जन-कल्याण योजना चलायी जाये. तीन लदसंबर, 2016 को लिदेल की स्मृलत सभा मे् बोलते हुए िुटबाल लखलाडी मैराडोना ने लजन शल्दो्मे्लिदेल के ललए अपने प्यार का इजहार लकया, वे गौर करने लायक है.् मैराडोना ने कहा, ‘मै् यहां अपने दूसरे लपता से लमलने आया हूं, वह महापुर्ष, लजसने जो लवरासत हमारे ललए छोडी है, उससे हम धोखा नही्कर सकते. अगर कोई यह समझता है लक क्यूबा कमजोर हो गया है, क्यो्लक वह महान व्यब्कतत्व चला गया है, गलत है. मै्सभी क्यबू ावालसयो्को अपना अलभवादन भेजता हूं और उन्हे्कहता हूं n लक मेरा लदल उनके साथ है.’ शुक्वार | 1 से 15 िरवरी 2017 25
उत््रािंड
असरि शाह के िर पर नारायर ित्् सिवारी: और अंि रे् िरझौिा
और अब कांगस ्े ी भाजपा
उत््रािंि मे्भािपा की रािनीसत कांग्ेस छोड्कर आये नेताओ् और एनिी सतवारी के इद्षसगद्ष ससमर गयी है, िबसक कांग्ेस को प््चार के सलए प््शांत सकशोर की मदद लेनी पड्रही है. फजल इमबम मल्ललक
उ
त्र् प्द् श े मे्भारतीय जनता पाट््ी (भाजपा) का संकट गहराता जा रहा है. उसे अपने काय्क त त्ाओ त ्और नेताओ्तक पर भरोसा नही्रह गया है. यही वजह है लक वह कांगस ्े के नेताओ् के भरोसे ही सत््ा मे्वापसी के मंसबू े बांध रही है. पहले बागी कांगस े् ी नेताओ्को लवधानसभा का लटकट लदया गया और लिर आनन-िानन मे्पूवत् मुखय् मंत्ी नारायण दत्् लतवारी का दरवाजा भी खटखटा लदया. इससे पाट््ी को क्या चुनावी 26 शुक्वार | 1 से 15 िरवरी 2017
िायदा होगा वह तो नही् कहा जा सकता है लेलकन इससे लिलहाल उसकी लकरलकरी अवक्य हो रही है. दरअसल कल तक भाजपा लतवारी से जुड्ी कलथत सीडी को लेकर कांगस ् पर लनशाना साध रही थी और अब वही पाट््ी लतवारी को सर माथे पर लबठाने को तत्पर नजर आ रही है. पाट््ी का यह दांव पहाड्ो्पर ब््ान्मïण वोट जुटाने को लेकर है. लेलकन इसे लेकर खुद भाजपा के एक खेमे मे्गहरा असंतोष है. इस खेमे का मानना है लक दलबदलुओ्और लतवारी के बूते भाजपा की नैया तो पार लगने वाली नही् है. बगावत के सुर तो लवधानसभा चुनाव के ललए भाजपा के उम्मीदवारो्की सूची जारी होने के बाद ही सुनाई पडऩे लगे थे. अब उसमे्तेजी आने की उम्मीद है. प्ध् ानमंत्ी नरेद् ्मोदी ने हालांलक साि लकया था लक पाट््ी लरक्तदे ारो्को लटकट नही्देगी लेलकन ऐसा हुआ नही्. दो पूवत्मुखय् मंल्तयो्मे्से एक की बेटी और एक के बेटे को लटकट लदया. पूवत्मुखय् मंत्ी भुवनचंद्खंडडू ्ी की बेटी लरतु को यमकेशर् से और लवजय बहुगण ु ा के बेटे सौरभ बहुगण ु ा को लसतारगंज से लटकट लमला तो कुछ
घंटे पहले कांग्ेस से भाजपा मे् आए पूव्त मंत्ी यशपाल आय्त के साथ-साथ उनके बेटे संजीव आय्त को नैनीताल से लटकट थमा लदया गया. जालहर है लक इससे भाजपा काय्क त त्ाओ त ्का पारा आसमान पर है. लवरोध के स्वर बुलदं हो रहे है.् र्डक ् ी मे्भाजपा के पूवत्लवधायक सुरश े चंद्जैन बेतरह नाराज है.् उनका लटकट काट लदया गया. वे आरोप लगा रहे है्लक उनका लटकट काटकर एक दलबदलू को लटकट लदया जाना पाट््ी के समल्पतत काय्क त त्ाओ त ्का अपमान है. उम्मीद के मुतालबक नरेद् ्नगर लवधानसभा सीट से कांगस ्े से भाजपा मे्आये सुबोध उलनयाल को लटकट लमल गया है. भाजपा के पूवत्लवधायक ओमगोपाल रावत इसका पहले से ही लवरोध कर रहे थे. अब लवरोध खुल कर सामने आ गया है. लदलचस्प बात यह है लक यहां से कांगस ्े ने रावत के ललए दरवाजे खोलने के संकते लदये है.् वैसे उन्हो्ने उलनयाल के लखलाि लनद्तलीय चुनाव लडऩे के ललए ताल ठो्क दी है. रावत ने आरोप लगाया लक उत्र् ाखंड भाजपा ने केद् ्ीय नेततृ व् को गुमराह कर बागी कांगल्ेसयो्को लटकट लदलवाया
हरीश रावि: उम्रीि िो है है. लजसका खलमयाजा पाट््ी को भुगतना पड्गे ा. रावत की बात माने्तो पाट््ी मे्लटकट बंटवारे को लेकर 18 से ज्यादा लवधानसभा सीटो्पर पाट््ी मे् असंतोष है और 10 से 15 सीटो्पर पर भाजपा के पुराने समल्पतत काय्क त त्ाओ त ्ने लनद्ल त ीय चुनाव लडऩे का ऐलान कर लदया है. केदारनाथ लवधानसभा सीट से कांग्ेसी शैलारानी रावत भाजपा का लटकट ले उड्ी्और पाट््ी की पूव्त लवधायक आशा नौलटयाल मुंह ताकती रह गयी्. नौलटयाल भी अब कह रही है्लक वे जनता के बीच जाकर भाजपा की पोल खोले्गी. इन सीटो् के अलावा भाजपा मे् यमकेश्र, प््तापनगर, नैनीताल, जसपुर, काशीपुर, डीडीहाट, अल्मोड्ा, कोटद््ार,
सोमेश्र, जागेश्र, चंपावत, गंगोलीहाट, धारचुला, हलरद््ार ग््ामीण, चौबट््ाखाल, धनौल्टी, रानीखेत और डोईवाला की सीटो्के ललए घोलषत उम्मीदवारो् को लेकर भी असंतोष है. अगर लतवारी के बेटे रोलहत शेखर को लटकट लमलता है तो लिर भाजपा का संकट बढ्गे ा. वैसे भाजपा ने लतवारी के दर पर मत्था टेक कर एक दांव खेला है. यह दांव लकतना कामयाब होता है, यह तो नतीजे ही बतायेग् .े लेलकन ऐसा माना जा रहा है लक ऐसा करके भाजपा ने कांगस ्े को ही ताकत दे दी है. दूसरी ओर मुखय् मंत्ी हरीश रावत उम्मीद से भरे लदखाई देते है्और अब उन्हो्ने चुनाव मे् कांगस ्े की नैया पार कराने के ललए च्यवनप््ाश का सहारा ललया है. दरअसल चुनावो्के एलान के बाद कांग्ेस ने उत््राखंड मे् चुनावी रणनीलतकार प्श ् ांत लकशोर को सलाह के ललए बुलाया है. मुख्यमंत्ी हरीश रावत ने प््शांत लकशोर को ‘च्यवनप््ाश’ बताया. उन्हो्ने कहा लक बढती उम््मे्ऐसे टॉलनको्का सहारा लेना पडता है. अब प्श ् ांत लकशोर कांगस ्े की नैया पार लगाते है् या लिर यह टालनक भी नतीजो् पर असर डालने मे् नाकाम रहेगा, यह तो नतीजे ही तय करेग् .े लेलकन कांगस ्े को उम्मीद है लक भाजपा के अंतरकलह और लबना लकसी चेहरे को आगे लकये चुनाव लड्ने का िायदा उसे लमलेगा. रावत का मानना है लक नोटबंदी और उनकी सरकार को लगराने की भाजपा की कोलशश की वजह से चुनाव मे्उनका पलड्ा भारी है. रावत तमाम सव्क ्े ण ् ो्पर सवाल खड्ा करते हुए कहते है् लक हाल के कुछ सालो् मे् तमाम सव्क ्े ण ् गलत सालबत हुए है् और उत्र् ाखंड मे् भी यह गलत सालबत होगा. वैसे कांगस ्े सूत्ो्के मुलतबक चुनावी सव्क ्े ण ् ो्मे्कांगस ्े को लपछडते और भाजपा को सरकार बनाने की ब्सथलत मे् लदखाये जाने से पाट््ी नेता लचंलतत है्. प््शांत लकशोर को मैदान मे् उतार कर इस ब्सथलत को बदलने के प्य् ास की लदशा मे् एक कदम माना जा रहा है. चुनावी रणनीलत तय करने के ललए
उत्र् ाखंड प्द् श े कांगस ्े अध्यक््लकशोर उपाध्याय और अलखल भारतीय कांगस ्े कमेटी की ओर से लनयुक्त चुनावी रणनीलतकार प््शांत लकशोर के बीच बैठको् का दौर जारी है. इस बीच उम्मीदवारो्की सूची को अंलतम र्प दे लदया गया है. वैसे उम्मीदवारो् को लेकर रावत और उपाध्याय के बीच के मतभेद भी उभरे लेलकन आलाकमान के हस्क ्ि ्े के बाद मामला सुलटा. माना जा रहा है लक उपाध्याय को हरीश रावत लटहरी के बजाय ऋलषकेश से चुनाव लडवाने के पक्् मे् है् क्यो्लक लटहड्ी से रावत की पसंद पीडीएि उम्मीदवार लदनेश धनै है.् उपध्याय का मानना है लक पीडीएि के ललए कांग्ेस क्यो् कुब्ातनी दे. यो् भी ऋलषकेश मे् उपाध्याय का लवरोध हो रहा है. लटहरी और उत््रकाशी लवधानसभा सीट को लेकर पाट््ी हाईकमान के दूत संजय कपूर और हरीश रावत से उपाध्याय के बीच बहस तक होने की बात कही जा रही है. उपाध्याय धनौल्टी, यमकेश्र, र्द्प्याग, लैस ् डाउन, रायपुर व देहरादून कैट् मे्संगठन से जुडे कुछ पदालधकालरयो् को लटकट लदलवाने मे् कामयाब रहे है.्हालांलक हरीश रावत और कांगस ्े के सहप्भ् ारी कपूर को उपाध्याय के द््ारा लदए गए कुछ नामो्को लेकर एतराज है. उपाध्याय कहते है्लक उम्मीदवारो्के एलान के बाद सारा ध्यान कांगस ्े की सत््ा मे्वापसी कराने पर है. उम्मीदवारो्को लेकर होने वाली खी्चतान की वजह से ही कांग्ेस ने उम्मीदवारो् के नामो्का एलान करने मे्देर लगाई थी. हालांलक इस बीच लदल्ली दरबार से प््शांत लकशोर को उत््राखंड कांग्ेस की नैया पार लगाने के ललए भेजा गया. उपाध्याय के मुतालबक लकशोर के साथ समन्वय के ललये उन्हो्ने प््देश कांग्ेस उपाध्यक्् जोत लसंह लबष्् के नेतृत्व मे् प्द् श े पाट््ी सलचव लवनोद चौहान को लजम्मदे ारी सौ्पी है. उपाध्याय ने कहा लक पीके के साथ जुडने से पाट््ी की चुनावी रणनीलत को और धार लमलेगी. उन्हो्ने साि लकया लक प््शांत लकशोर द््ारा इस संबधं मे्दी जा रही सेवाएं पूरी तरह से स्वबै च् छक है. n
शुक्वार | 1 से 15 िरवरी 2017 27
उत् मास््रटप््दहेडेश
ख्योटो का िक्खखन टोला त्योरो की ति्षपर सवकससत होने वाले बनारस का एक सहस्सा आि भी ससदयो्पुरानी दशा मे्िीने को असभशप्त है. सनकर भसवष्य मे्भी वहां हालात मे्कोई सुधार होता नही्सदिता. सीमब आज़बद
गां
वो्मे्शूद्ो्का लनवास स्थान दब्कखन टोले मे् होता है, यालन गांव की दल््कण लदशा. धम्त कम्त के ललहाज से सबसे अशुभ, अपलवत्् लदशा. इस अशुभ लदशा मे्वण्वत य् वस्था की सबसे उपेल्कत जालतयां सबसे कम संसाधन मे् अपना गुजर-बसर करती है.् गांवो्का यह दब्कखन टोला हर शहर के कोने-अतरे मे् नालो् के लकनारे या कूडे के ढेर पर बसता है. छतो्के स्थान पर काली पब्ननयां उनके अल््सत्व की घोषणा करती है.् और आज तो शहरो्ही नही्स्माट्तशहरो्का दौर है. मौजूदा सरकार ने 100 शहरो् को स्माट्तबनाने की घोषणा सत््ा मे्आते ही कर दी थी. इन शहरो् को स्माट्त बनाने का ठेका लकसी ठेकेदार या इंजीलनयर को नही्, बब्लक अलग-अलग देशो्को सौ्पा जा चुका है. जैसे प््धानमंत्ी के लनव्ातचन क्त्े ्बनारस को स्माट्तबनाने का ठेका जापान को लमला है, बब्लक जापान ने कुछ ही सालो् मे् बनारस को ‘क्योटो बना देने का ऐलान कर लदया है. क्योटो जापान का अलतलवकलसत शहर है. सवाल ये है लक इन स्माट्त शहरो् मे् हमारे देश के दब्कखन टोले को कहां जगह लमलेगी? लमलेगी भी या नही? यह सवाल इन लदनो्बीएचयू के ठीक पीछे बसी मुसहर बस््ी लजला प्श ् ासन और अपने सांसद नरेद् ्मोदी से पूछ रही है. न लसि्फपूछ रही है बब्लक अपने अल््सत्व के ललए लड भी रही है. ब्सथलत लदन पर लदन तनाव पूणत् होती जा रही है. बनारस की शान बीएचयू से मात््200 मीटर की दूरी मुसहर समुदाय की बस््ी है. ये लोग दशको्से यहां रह रहे है,् लेलकन अब बनारस के क्योटो बनने की प््ल्कया मे् उजडने वाली है. पहले ही शहरीकरण की प््ल्कया की मार इस बस््ी पर थी, लेलकन अब तो धमलकयां भी लमलने लगी् है्. लगभग 300 की आबादी कहां चली 28 शुक्वार | 1 से 15 िरवरी 2017
जाये कोई बताने वाला नही् है. मुसहर समुदाय का नाम लेते ही जो लबंब लदमाग मे्आता है, वह है गेहूं की कटाई के बाद खाली हुए खेत मे्गेह् ूं और चूहो् के लबल खोजते पुर्षो्-ल््सयो् और बच््ो्के झुडं का. खेतो्के लबल मे्इन्हे्चूहे ही नही्, बब्लक चूहो्द््ारा इकि््ा लकया गया गेहूं भी लमल जाता है, लजसकी तलाश मे्ये उनके लबलो् पर हमला करते है,् इसक कारण उनकी पहचान ही चूहा खाने वाले समुदाय की बन गयी. सवाल उठ सकता है लक ‘ये बस््ी बनारस के अंदर बीएचयू के पीछे कैस?े ’ लदमाग मे् जो जवाब स्वाभालवक तौर पर आता है, उससे लवपरीत ये लोग यहां कही्बाहर से आकर नही् बसे है,् बब्लक ये बस््ी बीएचयू के पीछे ब्सथत िभी फोटो: अनुपर
लछत्प्ू रु गांव का लहस्सा है. पूरा लछत्प्ू रु गांव तो शहरीकरण के प्भ् ाव मे्बदल गया, लेलकन इस गांव का दब्कखन टोला जस का तस ही रह गया, बब्लक पहले से भी बदतर हो गया. गांव के शहर मे् बदल जाने से इनकी जीलवका का पारंपलरक सहारा व साधन समाप्त हो गया, और शहरो्ने इन्हे्कोई काम लदया नही्. शहर इनके ललए और ये शहर के ललए मुसीबत बन चुके है.् शहर का लवस््ार इनकी बस््ी का क्त्े ि ् ल भी लनगलता जा रहा है. शहरो्मे्जमीन की लूट के नये कारोबार के लवकलसत होने के कारण लछत्प्ू रु गांव के ठाकुर साहेबो्और ग््ाम प्ध् ान ने लमल कर इस टोले की एक बीघा जमीन पर कल्जा कर ललया, और अब िक्खखन टोला का जीवन: हािशये िे भी बद््िर
लगभग 300 की आबादी छह-सात लबस्वा जमीन पर लसमटकर रहने के ललए मजबूर है. बस््ी के लोग बताते है्लक पहले यहां की आबादी हजारो्की थी, लेलकन लपछले बीस साल मे्यह घटते-घटते 300 पर जा पहुच ं ी है. मुसीबते्यही् खत्म नही्हुई.् छीनी गयी जमीन की कीमते इस ‘गन्दी बस््ी’ के कारण कम न होने पाये, इसके ललए इस बस््ी को एक ऊंची चारदीवारी से घेर लदया गया है, लजसके कारण पूरा टोला एक जेल मे्बदल गया है, ऐसी जेल जहां जीवन भी सजा बन जाये. अत्यलधक घनत्व वाली इस बस््ी के अंदर ले जाने और बाहर ले आने वाली गललयां इतनी संकरी है् लक चलते वक्त शरीर का एक लहस्सा लकसी के घर की दीवार को अवक्य छूता है. मरने के बाद लचता पर लेटे हुए इंसान को भी इन गललयो्मे्से लतरछा करके ही बाहर लनकाला जा सकता है. बस््ी मे्एक भी शौचालय नही्है, न ही प््ाइवेट न सरकारी. खेत भी समाप्त हो चुके है्, इसललए शौच से लनवृत् होना इस बस््ी के लोगो्के ललए एक बडी मुसीबत है, मलहलाओ्के ललए तो और भी. इसके ललए वे चोरी लछपे बीएचयू पलरसर मे् भी घुसते है् और वहां के कम्च त ालरयो् के गुसस ् े का भी लशकार होना पडता है. यालन शौच जाना यहां हर लदन एक युद् लडने जैसा है. जबलक स्वच्छ भारत अलभयान का डंका पूरे देश मे्बज रहा है. इस टोले मे्पानी के ललए न तो कोई सरकारी नल है, न ही हैड् पंप. पानी के ललए ये लोग लिर से बीएचयू पलरसर के अंदर या लिर सडक के लकनारे लगे नल पर जाते है,् जहां मुसहर होने का
अपमान झेलना होता है. क्यो्लक सुबह-सुबह मुसहरो् का मुंह देखना भी धाल्मतक दृल्ष से अपशकुन है. बस््ी से पानी लनकासी का भी कोई रास््ा नही् है, लजसके कारण बरसात के लदनो् मे् यह टोला नरक कुडं बन जाता है, जल भराव से हर तरि गंदगी िैल जाती है और लिर इनसे होने वाली बीमालरयां. हर साल बरसात मे् यहां बीमालरयो्से मौत होती है.् लपछली बरसात मे्नौ लोगो् की मौत हुई थी, लजसमे् चार बच््े, चार बुजगु त्और एक नौजवान शालमल है.् लेलकन ग््ाम प््धान और लजला प््शासन के ललए यह शायद अच्छी खबर होती हो, वे हर हाल मे्इस बस््ी को समाप्त करना चाहते है.् टोले के बाहर का गांव भले ही शहर मे्बदल गया हो, लेलकन उसके मूलय् गांवो् वाले ही है,् ठाकुर साहब और ग््ाम प्ध् ान के कालरंदे अक्सर बस््ी मे्घुसकर कभी पानी भरने के ललए कभी गंदगी िैलाने के ललए, तो कभी चोरी का इल्जाम लगा कर भद््ी और जालतसूचक गाललयो् की बौछार करते है.् गंदगी िैलाने का आलम ये है लक अगल-बगल की बल््सयां का इल्जाम है लक टोले के कारण उनका क््ेत् गंदा कहलाता है, जबलक मुसहर बस््ी के लोगो्का कहना है लक ये लोग अपने घर की छतो्से इस बस््ी मे्कूडा िेक ् ते है.् समाज के ललए कुछ करने की इच्छा रखने वाले बीएचयू के कुछ छात्् बस््ी मे् बच््ो् को पढाने के ललए आते है,् इनके सुझाव पर बस््ी के लोगो्ने अपनी मांगो्को लेकर थाना, कचहरी, बीडीओ ऑलिस, ग््ाम पंचायत हर जगह जाकर
गुहार लगायी, लेलकन कुछ नही्हुआ. उल्टे अब तो जगह छोड देने की धमलकयां भी तेज हो गयी है्. प््शासन तो इन्हे् नागलरक भी नही् मानता. 300 लोगो्की आबादी वाली इस स्थाई बस््ी मे् लकसी के भी पास न तो राशन काड्तहै, न जॉब काड्त, न आधार काड्त न ही कोई बै्क खाता. यालन लकसी भी सरकारी सुलवधा की पहुच ं से दूर है यह बस््ी. रोजगार के नाम पर जो काम लमलता है, वह महीने मे्10 या 15 लदन का ही होता है, लजसमे् एक लदन की मजदूरी कभी 100 र्पये और कभी 150 र्पये होती है. घर चलाने के ललए छोटे बच््े भी काम करते है.् बडे घरो्के कूडे के ढेर मे्कुछ काम का खोजना ही इनका रोजगार है. पूरी बस््ी मे् केवल एक ही लडका है जो नौवी् कक््ा मे् पढता है, इसललए क्यो्लक उसे एक लशक्क ् की दलरयालदली हालसल है. गांवो् के सामंती समाज मे् गांव के सबसे उपेल्कत और लतरस्कतृ स्थान पर ही सही, शूद्ो् को रहने का स्थान था, लेलकन शहरो्ने वह छीन ललया और शहरीकरण के इस साम््ाज्यवादी दौर मे् इन्हे् स्माट्तनेस पर धल्बा मान कर वापस खदेडने का लसललसला जोर पकड रहा है. गांव शहर मे् बदल रहे है् और शहर स्माट्तलसटी मे्. लेलकन दब्कखन टोले के लनवालसयो्की मुसीबते कम होने की बजाय बढती जा रही है्. जैसे लछत्प्ू रु गांव, बनारस शहर मे्बदला और और कलथत र्प से क्योटो जैसे स्माट्तलसटी मे्बदलने की ओर बढ रहा है. इन्हो्ने सोचा तो ये था लक इस लसटी मे् लछत््ूपुर के दब्कखन टोला भी लवकलसत होगा, यहां रहने वाले लोगो्का जीवन बदलेगा, लेलकन हो उल्टा ही रहा है. लछत्प्ू रु गांव से बनारस शहर मे्बदलने का जो लसललसला 20 वष्त पहले शुर् हुआ, उसमे् इनका जीवन तो तबाह ही होता गया. इस लवकास मे्दब्कखन टोला पीछे छूट रहा है. ऐसा नही्है लक ऐसा एक ही टोला है. बनारस ही नही् बनारस जैसे हर शहर मे्ऐसे कई टोले देखे जा सकते है.् शहरो् को लवकलसत और आधुलनक बनाने की प्ल््कया मे्इनके साथ हर जगह यही सुलक ू लकया जा रहा है लक या तो इन्हे्ऊंची दीवार से ढंक लदया जाता है, या इन्हे्इतना उपेल्कत छोड लदया जाता है लक ये खुद ही वहां से कही्और चले जाये्या लिर बुलडोजर लाकर पूरी बस््ी ही खत्म कर दी जाती है. बनारस की यह मुसहर बस््ी पहले दो चरणो्से गुजर चुकी है और तीसरे के ललए उसे धमलकयां भी लमलने लगी है,् जबलक मुसहर बस््ी के लोगो्का कहना है लक वे नही्हटेग् ,े हटे्भी तो कहां? दूसरी ऐसी बल््सयो् के साथ इनकी एकता भी बनने लगी है. यालन आने वाले लदनो्मे् क्योटो का यह दल््कण टोला प्ध् ानमंत्ी मोदी के ललए एक मुसीबत खडी कर सकता है. n शुक्वार | 1 से 15 िरवरी 2017 29
मध् मास्यटप्हे्दडेश
मप््सरकार ने आनंद सवभाग के गठन और आनंदको्की सनयुल्तत के साथ एक नयी पहल की है, लेसकन कपड्े, बत्षन और बैग दान करके त्या सचमुच आनंद कायम सकया िा सकता है? पूजब ठसंह
अ
गर आप भी अपने आस-पास के लोगो् को आनंलदत रखने मे्यकीन रखते है्तो आप मध्य प््देश सरकार से संपक्फ कर सकते है्. राज्य सरकार ने 'आनंदक' के नाम से एक मानक पद सृलजत लकया है. अब तक प््देश भर से 24,000 से अलधक लोग आनंदक बनने की हामी भर चुके है् और मुख्यमंत्ी लशवराज लसंह चौहान की इस पहल मे्सहभागी हो चुके है्. प्द् श े के मुखय् मंत्ी लशवराज लसंह चौहान ने गत वष्तमाच्तमे्आनंद लवभाग के गठन का लजक््
लकया था. तब से लगातार इसे मूत्तर्प देने का प््यास चलता रहा. इस लवषय मे् प््देश के मुख्यमंत्ी कहते है्, 'मध्य प््देश आनंद लवभाग का गठन करने वाला देश का पहला राज्य है.लसि्फ भौलतक सुख-सुलवधाओ् से ही सच््े आनंद की प््ाब्पत संभव नही्है बलक ध्यान, योग, खेलकूद और बलढय़ा सालहत्य का अध्ययन हमारे भीतर आब्तमक आनंद की राह खोलता है.' आनंदक बनाये जाने वाले लोगो् की प््ाथलमक भूलमका होगी स्वेच्छा से औरो् को प््सन्न करना और ऐसा वातावरण तैयार करना जहां राज्य सरकार के अलधकारी लोगो्के बीच खुलशयो् का आकलन कर सके. राज्य सरकार कुछ मानक तय कर रही है लजनके आधार पर राज्य के नागलरको् के बीच प््सन्नता का आकलन लकया जायेगा. आने वाले लदनो् मे् राज्य सरकार खुशहाली आंकने का एक सूचकांक भी तैयार करने जा रही है. आनंदक बनने वालो् को इस काम का पेशेवर प््लशक््ण लदया जायेगा लेलकन उनको इसके ललए लकसी तरह के भत््े या वेतन का भुगतान नही्लकया जाएगा. अगर कोई सरकारी
कम्तचारी आनंद लवभाग मे् आनंदक के र्प मे् काम करता है तो उसे सेवा मे् माना जायेगा न लक अवकाश पर. आनंदको्का काम मूल र्प से अन्य लोगो् के बीच सकारात्मकता प््ेलषत करना होगा तालक उनकी जीवनशैली मे्बदलाव आये और उनके बीच खुशहाली बढ्े. एक वलरि््ï सरकारी अलधकारी ने बताया लक खुशहाली सूचकांक तैयार करने के ललए संयुक्त राष्् तथा कुछ अन्य मुल्को् के सूचकांको्का अध्ययन लकया जा रहा है. इसके ललए वहां से भारतीय पलरब्सथलतयो्को ध्यान मे् रखते हुए मानक ललए जा सकते है्. राज्य सरकार आगे आनंद दल तैयार करने की योजना भी बना रही है जो सामूलहक र्प से लोगो् को आनंद लवभाग और अन्य लोगो् के ललए काम करने को प््ेलरत करे्गे. भोपाल ब्सथत वैज्ालनक लशक््ा एवं शोध संस्थान भोपाल मे्खुशहाली के आकलन के ललए एक शोध शाखा स्थालपत करने की योजना है जो राष््ीय और अंतरराष््ीय स््र पर खुशहाली का आकलन करेगी. आनंद उत्सव की शुर्आत राजधानी भोपाल के टीटी नगर स्टेलडयम मे्एक काय्तक्म आयोलजत करके की गयी. वहां स्वयं मुख्यमंत्ी
अहो आनंिर परर अानंिर!
आनंि सवभाि की शुर्आि करिे सशवराज सिंह चौहान: बेवजह प््िन्निा 30 शुक्वार | 1 से 15 िरवरी 2017
आंकड्ो् मंे आनंद नही्
है. यह आंकड्ा भले ही लपछले आनंद लवभाग के गठन और साल के प््लत 1000 पर 54 मृत्यु हैप्पीनेस इंडेक्स की तैयालरयो् के से थोड्ा कम हो लेलकन लिर भी बीच यह याद करते चले्लक अभी मध्य प््देश इस मामले मे् अव्वल ज्यादा वक्त नही् हुआ जब प््देश बना हुआ है जो एक दुभ्ातग्यपूण्त मे् कुपोषण से हुई मौतो् के कई आंकड्ा है. मामले सामने आये थे. लसतंबर राष््ï् रीय अपराध लरकॉड्त महीने मे् मध्य प््देश के क्योपुर ल्यूरो (एनसीआरबी) के आंकड्ो् लजले मे् 20 से अलधक बच््ो् की के मुतालबक वष्त 2016 मे् देश मे् कुपोषण से मौत की खबर मीलडया लकसानो् की आत्महत्या के 8007 मे्आयी थी और हड्कंप मच गया मे् से कुल 1290 मामले भारत मे् था. घलटत हुए. इनमे् सव्ातलधक 289 सरकार लगातार कृलष कम्तण आत्महत्याये् छोटे लकसानो् ने की्. अवाड्त जीतने का प््चार-प््सार इसके अलावा 157 सीमांत और करती है, कहती है लक प््देश मे् 134 मझोले लकसानो ने आत्महत्या खाद््ान्न की कही् कोई कमी नही् आनंि रंत्ालय का प््चार: सकिना लोक लुभावन की. एनसीआरबी के मुतालबक है लेलकन उसके बावजूद प््देश मे् बीते 10 महीनपो्मे्तकरीबन 120 बच््ेप््दूषण की वजह से मौत के मुंह इनमे्से अलधकांश आत्महत्याये्पुसल खराब होने, उपज को सही मूल्य न मे्समा गये. यूलनसेि की एक लरपोट्तके मुतालबक प््देश मे्हर तीसरा बच््ा लमलने या कज्तनही्चुका पाने जैसी वजहो्से हुई्. सरकार ने लवधानसभा अल्पपोलषत है और लगभग 40 िीसदी बच््े अलतकुपोलषत है्. देश मे् मे्जो जानकारी दी है उसके मुतालबक िरवरी 2016 से नवंबर 2016 के सव्ातलधक आलदवासी आबादी वाला राज्य होने के बावजूद मध्य प््देश की बीच राज्य मे्1695 लकसानो्और कृलष श््लमको्ने आत्महत्या की. वही् गभ्ातवस्था के दौरान प््लत एक हजार मलहलाओ् मे् से 113 की जनजालतयां कुपोषण से सबसे अलधक प््भालवत है्. लशशु मृत्यु दर भी लंबे समय से प््देश के ललए लचंता का लवषय बना मौत के साथ मध्य प््देश देश मे् पहले स्थान पर बना हुआ है. रेलवे हुआ है. नेशनल सै्पल रलजस्ट्ेशन लसस्टम की ताजा लरपोट्त के मुतालबक क््ॉलसंग पर होने वाली मौतो्मे्यह अव्वल है. इन तमाम आंकडो्के बीच मध्य प््देश की हालत लशशु मृत्युदर के मामले मे्देश मे्सबसे दयनीय है्. राज्य सरकार का भौलतक आनंद का दावा लकतना सही सालबत होगा यह हमारे यहां प्ल्त एक हजार जन्म लेने वाले बच््ो्मे्से 52 की मौत हो जाती वक्त ही बतायेगा. लशवराज लसंह चौहान और उनकी पत्नी साधना उतर रही है. लवपक््ी दलो्ने इसका तीखा लवरोध लसंह ने कपड्े, बत्तन और बैग आलद का दान लकया है. आम आदमी पाट््ी (आप) के प््देश देकर पहल की. मुख्यमंत्ी ने कहा लक उन्हो्ने संयोजक आलोक अग््वाल का कहना है लक दौलतमंदो्से दुखी इंसान दूसरा कोई नही्देखा. पुराने कंबल और कपड्े बांटने से गरीबो् को उनके अंदर व्याप्त असंतोष उन्हे् कभी प््सन्न भला क्या आनंद आयेगा यह तो सोच से परे है. नही्होने देता. मुखय् मंत्ी ने कहा लक िकरी मे्जो आनंद है वह इस अवसर पर सरकार ने 14 से 21 अन्यत्् कही् नही् ऐसे मे् उनको और उनके जनवरी तक आनंद उत्सव मनाने की घोषणा भी तमाम अमीर मंल्तयो् को चालहये लक अपनी की. इस उत्सव के अधीन पंचायत स्र् पर दौड्, संपल््त का कम से कम 25 िीसदी लहस्सा ही कबड््ी, खो-खो, रस्साकशी, कुक्ती, बोरादौड्, दान कर दे्. अग््वाल ने कहा लक, लशवराज ने चम्मच दौड् आलद जो कहा उसका पालन पारंपलरक खेलो् का खुद भी करे् और जो आलोक अग््वाल का कहना आयोजन लकया गया. करोड्ो् की संपल््त है खक पुराने कंबल और कपड्े दरअसल इसका लक््य उन्हो्ने और उनके बांरने िे गरीबो्को भला क्या लबना लकसी खास मंल्तमंडल ने जोड्रखी आनंद आयेगा, यह तो िोच संसाधन के खेलकूद है उसमे्जर्रत के 25 िे परे है. के जलरये आनंद लाख र्पये रखकर शेष हालसल करने की जर्तमंदो्को दान कर परंपरा शुर्करना है. ऐसे प््त्येक आयोजन के दे्, तालक उन्हे् असली आनंद की अनुभूलत हो ललए अलधकतम 15,000 र्पये खच्त करने के सके. उन्हो्ने कहा लक मुख्यमंत्ी हर माह दो लनद््ेश जारी लकये गये है्. लाख र्पये जबलक मंत्ी 1.5 लाख र्पये की परंतु आनंद लवभाग के गठन और आनंद तनख्वाह पाते है्. यह उनकी आजीलवका के मनाने की यह नयी पलरपाटी लवपक््के गले नही् ललए पय्ातप्त है.
गौरतलब है लक लपछले लदनो्मे्मध्य प््देश के कटनी लजले मे् खनन मालिया के लखलाि सल््कय भूलमका लनभाने वाले एस पी गौरव लतवारी को हटाए जाने के बाद स्थानीय भाजपा लवधायक संजय पाठक का नाम सुल्खतयो्मे्था. पाठक के पास लनजी हेलीकॉप्टर और करीब 140 करोड् र्पये की घोलषत आय है. अपनी भव्य जीवनशैली की वजह से वह अक्सर सुल्खतयो्मे्रहते है्. माक्सवादी कम्युलनस्ट पाट््ी (माकपा) की मध्य प््देश इकाई के महासलचव शुक्वार के साथ बातचीत मे्कह चुके है,् 'लगता है रोम को िूंककर शाही दावतो् मे् रोशनी का इंतजाम करने वाले सम््ाट नीरो, भाजपा और लशवराज के आदश्तहै्. मध्यप््देश को मृत्युप्देश मे्बदल देने वाले, अकाल मौतो्की भयावह बढ्ोत्र् ी को मोक्् और कुपोषण को सात््लवक व््त उपवास बताने वाली कुब्तसत लवचारधारा पर आल््शत मनोरोगी ही आनंद लवभाग बनाने का दुस्साहस लदखा सकते है.् त््ासलदयो्को आनंद मानना एक योग्य मनोलचलकत्सक की दरकार रखता है. वैसे कािी कुछ मनोरोगो् का इलाज जनता कर ही n देती है.' शुक्वार | 1 से 15 िरवरी 2017 31
छत््ीसगढ्
छत््ीसगढ्के मुख्यमंत्ी के हासलया बयान ने पार््ी काय्षकत्ाषओ्के साथ-साथ स्थानीय नेतागण को भी सोचने पर मिबूर कर सदया है सक दरअसल इसके सनशाने पर कौन है. संजीत ठ््तपबिी
छ
त््ीसगढ प््देश भाजपा काय्तसलमलत की बैठक मे्मुखय् मंत्ी डॉ रमन लसंह के तेवर इस बार कुछ तीखे थे. उनके बोल सुनकर पहले भाजपा नेता हैरान हुए, लिर जब बैठक की बाते् बाहर आयी्तो काय्क त त्ात भी हैरान हो गये. वजह थी, उनका यह कहना लक ‘पदालधकालरयो् को ही सरकारी योजनाओ् के बारे मे् पता नही् है. ‘काय्तसलमलत की बैठक मे्भी समोसे-आलूबंडे पर लोगो्का ध्यान है’. उन्हो्ने काय्तकत्ातओ्से कहा लक कुत्ात-पायजामा पहन लेने से कोई नेता नही्बन जाता है. छत््ीसगढ्के मुख्यमंत्ी रमन लसंह ने अपने पाट््ी की काय्तसलमलत की बैठक मे् पदालधकालरयो् को चेताया लक घमंड छोड्कर काम करने मे् जुट जाये्. उन्हो्ने कहा लक यलद नही्बदले्गे तो जनता उन्हे्बदल देगी. दरअसल मुखय् मंत्ी डॉ रमन लसंह का ऐसा कहना मीलडया से ज्यादा पाट््ी मे्चच्ात का लवषय बना. चच्ात यह भी होने लगी लक क्या संगठन पद देने के ललए कोई पैमाना तय कर रहा है अथवा दो साल बाद होने वाले चुनाव के मद््ेनजर लटकट लवतरण के ललए कोई खास पैमाना बनाया जायेगा. अब संगठन के नेता इसे संगठन के ललए इशारा मान रहे है्तो पदो्पर बैठे हुए नेता अपने ललए. इधर पाट््ी काय्तकत्ात अलग सोच मे् डूबे हुए है्. हालांलक प््देश भाजपा अध्यक्् धरमलाल कौलशक तो ऐसी लकसी घमंड वाली बात को लसरे से ही नकार रहे है्. जबलक पाट््ी प््वक्ता लशवरतन शम्ात के मुतालबक तो, मुख्यमंत्ी ने घमंड वाली बात मजालकया लहजे मे्कही थी. पाट््ी के एक अन्य प््वक्ता और पूव्त लवधायक सल््चदानंद उपासने जर्र प््लतप््क्न करते है् लक जो नेता लालबत््ी गालडयो् मे् घूम रहे है्, उनमे् से लकतनो् को सरकार की योजनाओ्की जानकारी है. अथवा लालबत््ी से नवाजे जाते समय उनकी लकसी खास पैमाने पर परीक््ा ली गयी थी. इस सारे घटनाक््म के बाद कुछ सोशल साइट्स के माध्यम से पाट््ी के नेताओ्ने अपना नाम लछपाते हुए डॉ. रमन लसंह पर हमला बोला. 32 शुक्वार | 1 से 15 िरवरी 2017
खकि बात का है
सोशल साइट्स पर इन नेताओ्ने मुख्यमंत्ी को याद लदलाया लक भूखे-प्यासे रहकर पाट््ी को सत््ा के लशखर तक पहुंचाने वालो् ने कभी समोसा और आलूबंडो् की परवाह नही् की है. लजन्हे्आसानी से कुस्ी लमल गयी है, वे सत््ा के मद मे् चूर हो गये है्. पाट््ी के काय्तकत्ात उन्हे् आंखो् मे् गडऩे लगे है्. उनके दफ्तरो् और बंगलो्मे्ठेकदे ारो्ने कल्जा कर ललया है. दलाल लकस्म के काय्तकत्ात उनके दरबारी बन चुके है्. यह अद्त् बात है लक काडर बेसड ् पाट््ी होने का दावा करने वाली पाट््ी मे्नेता अपनी प््लतल््कया सोशल साइट्स के माध्यम से इस तरह सामने रख रहे है्, भले ही अपनी पहचान लछपाना चाह रहे हो्. पाट््ी के इन नेताओ् ने डॉ. रमन लसंह को भी आईना लदखाने से गुरज े नही्लकया है. उन्हो्ने सीधा सवाल लकया है लक डॉ. रमन लसंह बताये् लक अपने प््वास के दौरान वे लजलो् के भाजपा काय्ातलय कब गये है्, उन्हो्ने कब संगठन की सलाह मानी है, उन्हो्ने कब लवधायको्, मंल्तयो् व सांसदो् को महत्व लदया है. इन नेताओ् ने साि कहा है लक 'डॉ. रमन लसंह अिसरो् के
मकडजाल मे्िंस चुके है.् वे पाट््ी काय्क त त्ाओ त ् को घमंड न करने की नसीहत देते है्, लेलकन प्द् श े भाजपा मे्डॉ. रमन लसंह से अलधक घमंडी शायद ही कोई नेता नही्है. डॉ. रमन लसंह को अच्छी तरह पता है लक छोटे काय्तकत्ातओ् की राजनीलत पटवारी, थानेदार, मास्टर और कंपाउंडर के भरोसे चलती है. अगर इस सरकारी मशीनरी पर दबाव नही् रहेगा, तो उनकी कौन सुनेगा, लेलकन डॉ. रमन लसंह ने यह कहकर हजारो्काय्तकत्ातओ्को अपमालनत लकया है लक वे पटवारी-थानेदारो् के तबादले कराने आते है्. उन्हे्यह नही्भूलना चालहये लक उनके और बड्े नेताओ् के काय्तक्मो् के ललए छोटे काय्तकत्ातओ् की पहल पर ही पटवारीथानेदार भीड् जुटाते है्, उनके आवागमन की व्यवस्था करते है्और उन्हे्खाना लखलाते है्'. सोशल साइट्स पर भाजपा के गुस्साये नेताओ्ने यह भी कहा है लक वे घर-पलरवार से इतने संपन्न अवक्य है्लक अपने घर मे्समोसाआलूबड ं े खा सकते है.् इसके ललए उन्हे्पाट््ी की बैठको्की प्त् ीक््ा करने की जर्रत नही्है. रही बात सरकारी योजनाओ् की जानकारी की, तो
ररन सिंह: सनशाने पर कौन
ग्ुरर्
मुख्यमंत्ी को यह भी बताना चालहये लक उन्हो्ने कब पाट््ी दफ्तरो् मे् जाकर काय्तकत्ातओ् की बैठक लेकर उन्हे् सरकारी योजनाओ् की जानकारी दी हो. इन नेताओ् को कहना है लक बड्े पद पर बैठकर ज््ान बांटना आसान है, लेलकन धरातल मे्रहकर काम करना लबलकुल अलग है. दरअसल, लिलहाल अपनी पहचान लछपाये रखने की शत्त पर बात करने वाले भाजपा नेताओ्का लनष्कष्तयह है लक मुख्यमंत्ी डॉ. रमन लसंह ने अगर अपनी काय्तशैली नही् बदली तो दो साल बाद होने वाले लवधानसभा चुनाव मे्उनके अहम का खालमयाजा पाट््ी को भुगतना पड्सकता है. भाजपा नेताओ् की इस बात को ध्यान मे् रखे्तो इधर मुख्यमंत्ी डॉ रमन लसंह नये साल मे् अपनी काय्तशैली पहले ही बदलते नजर आ रहे है्. राज्य सरकार पर जो सबसे बडा आरोप लगता आ रहा था वह यह था लक दागी और भ््ष्ाचारी अिसरो्की िाइल दबा दी जाती है, कभी कोई कार्तवाई नही् होती. लेलकन इस आरोप के बरक्स सबसे पहले एक आईपीएस
राजकुमार देवांगन को राज्य सरकार की लसिालरश के बाद के्द् सरकार द््ारा अलनवाय्त सेवालनवृलत लदये जाने की घटना से राज्य के वे अिसर जर्र चौकन्ने हो गये है्जो अपने दामन पर दाग लगाकर काम करते रहते थे. इसी तरह इस आरोप के मद््ेनजर अगली कडी मे् अब राज्य सरकार ने छत््ीसगढ हाईकोट्त मे् सूबे के 26 दागी अिसरो् के लखलाि कार्तवाई करने का नामजद हलिनामा दालखल लकया है. हालांलक घमंड के आरोप महज भाजपा मे् चल रहे हो्, ऐसा नही् है. यह आरोप वत्तमान प््देश कांग्ेस काय्तकालरणी और प््देश कांग्ेस अध्यक्् भूपेश भघेल पर भी लग रहे है्. पाटन की लववालदत जमीन के मामले मे्राज्य सरकार से क्लीन लचट लमलने के तत्काल बाद प््देश काग््ेस अध्यक््ने राज्य सरकार की तरि तानी गयी बंदूक की नली के्द्सरकार की तरि मोड् दी. नोटबंदी को लेकर प््देश के कांग्ेसी लजस तरह आक््ामक र्ख अपनाये हुए है्. कांग्ेस के ही कुछ नेता यह कहने से नही् चूक रहे है् लक कांग्ेस अगर राज्य सरकार के लखलाि यही आक््ामकता लदखाती तो शायद डॉ. रमन लसंह अब तक भूतपूवत्मुखय् मंत्ी हो चुके होते, लेलकन लिलहाल शायद तात्काललक िायदे पर ही नजर है. यही वजह है लक कांग्ेस ने बॉयोडीजल से लेकर नान घोटाला, गभ्ातशय कांड, आंखिोड्वा कांड, झलरयामांझी कांड, शांलत कक्यप िज््ी परीक््ा कांड, योगेश साहू आत्मदाह प््करण समेत बस््र आईजीपी कल्लूरी के उस लववालदत बयान को भी भुला लदया है, लजसमे्कल्लूरी ने साि तौर पर भूपेश बघेल को चुनौती दी थी लक अगर वे नक्सलवाद खत्म करने का वादा करते है्तो चौबीस घंटे के अंदर वे बस््र छोड्दे्गे. प््देश कांग्ेस के कई नेताओ् की माने् तो जोगी लपता-पुत् को कांग्ेस से बाहर का रास््ा भूपेश बघेल: ित््ा का रि
लदखाने के बाद भूपेश बघेल खुद को प््देश कांग्ेस का सव्तमान्य नेता मानने लगे है्. इनके मुतालबक उन्हे्लगता है लक पाट््ी के अंदर उनके ललए कोई चुनौती नही् है. उधर पूव्त मुख्यमंत्ी और एक नयी पाट््ी जनता कांग्ेस छत््ीसगढ(जे) के संस्थापक अध्यक्् अजीत जोगी कहते है्लक भूपेश बघेल एक लवधानसभा के ही नेता है्. पूरे प््देश मे् उनकी स्वीकाय्तता नही् है. उनके मुतालबक तो सालभर से भूपेश बघेल ने राज्य सरकार के लखलाि तीखे तेवर लदखाये पर जैसे ही मुख्यमंत्ी ने उनकी जमीन की नाप-जोख करायी, भूपेश बघेल को जमीन लदखने लगी. उन्हो्ने तत्काल लदल्ली का र्ख लकया और अपने बड्े नेताओ् के पास दुखड्ा रोया. इस बीच कांग्ेस को नोटबंदी जैसा मुद्ा लमल गया. जोगी कहते है्, 'मानो यह भूपेश बघेल के ललए रामबाण सालबत हुआ. डॉ. रमन लसंह के प््लत लनि््ा लदखाने का वे यह अवसर छोडऩा नही्चाहते थे, ललहाजा उन्हो्ने के्द्की नरे्द्मोदी सरकार के लखलाि उन्हो्ने इस तरह जंग का ऐलान कर लदया मानो नोटबंदी से सबसे अलधक परेशानी छत््ीसगढ्की अवाम को ही है. पहले छत््ीसगढ् बंद कराया, लिर लजलो् मे् प्द् श्नत लकया, लिर थाली बजवाने के बाद सबसे अलधक हास्यास्पद प््दश्तन लकया, क्यो्लक भारतीय लरजव्त बै्क की छत््ीसगढ् शाखा मे् लकसी भी प््कार का लेन-देन नही् होता है, लेलकन भूपेश बघेल ने लदल्ली के नेताओ् को भरोसे मे्लेकर भारतीय लरजव्तबैक ् के घेराव का िैसला करा ललया'. दबे मुंह कांग्ेस के ही नेता यह कहते है्लक एक ही मुद्े को लेकर कांग्ेस ने इससे पहले इतने अलधक प््दश्तन नही्लकया है, जबलक छत््ीसगढ्मे्मुखय् मंत्ी को घेरने के ललए रोज ही मुद्ेलमलते रहे है.् ऐसी ब्सथलत मे्दो साल बाद होने वाले चुनाव मे् कांग्ेस अगर सरकार बनाने का सपना देखती है तो उसे केवल हसीन सपना ही कहा जा सकता है. लदलचस्प यह है लक जहां मुख्यमंत्ी के समोसे वाले बयान के बाद कई भाजपा नेता उस पर लटप्पणी करने को तैयार है्, वही् प््देश कांग्ेस के ल््कयाकलापो् पर कोई कांग्ेसी नेता खुलकर कुछ भी कहने को तैयार नही्है. प््देश कांग्ेस के मीलडया लवभाग के चेयरमैन ज््ानेश शम्ात यह तो कहते है् लक मुख्यमंत्ी डॉ रमन लसंह का ऐसा बयान लकसी भी पाट््ी के काय्तकत्ातओ् का अपमान है, मुख्यमंत्ी सलहत सूबे के सारे मंत्ी सत््ा के मद मे् चूर होकर अपनी ही पाट््ी के काय्तकत्ातओ् का अपमान लकए जा रहे है्, जबलक हकीकत यह है लक भाजपा के इन्ही् काय्तकत्ातओ् के दम पर ही उनकी सरकार बनी होगी. लेलकन जब मीलडया चेयरमैन शम्ात से कांग्ेस के घमंड के बारे मे् n पूछा जाता है तो वे चुप्पी ओढ लेते है्. शुक्वार | 1 से 15 िरवरी 2017 33
मास् घवरासत ट हेड
िेश ग्रीब रंसिर अरीर नोरबंदी के बाद देश भर के मंसदरो्को अपनी दानरासश बै्क मे्िमा कराने के आदेश ने देश के कई बड्ेमंसदरो्की अथाह समृस्ि को नये ससरे से सुस्िषयो्मे्ला सदया है. सिर्वनंिपुरर रे् पद््नाभस्वारी रंसिर:
मीनबक््ी
नो
टबंदी के चलते उपजी नकदी की समस्या से जूझते बैक ् ो को राहत देने के ललए केद् ् सरकार ने देश भर के मंलदरो्को अपनी रोजाना की दान रालश अपने बैक ् खाते मे्जमा करने का लनद्श ्े लदया है. इससे खाताधारको् को राहत लमलेगी और बाजार की सुस्ी दूर होगी. कई प्ल्तल््ित मंलदरो्मे्प्ल्तलदन लाखो्श्द ् ्ालु दश्नत काशी सवश््नार: िोने का आवरर
34 शुक्वार | 1 से 15 िरवरी 2017
के ललए पहुच ं ते है्और दानस्वर्प भारी रालश भेट् करते है.् कुछ लदनो् पहले लसनेजगत के महानायक की उपालधप््ाप्त अलमताभ बच्न् ने लतर्मला लतर्पलत वेक ् टे श्र् मंलदर को 51 लाख का दान लदया था. ऐसे ही कई और श्द ् ्ालु दानदाताओ्की दान रालश भी आती है जो बच्न् की तरह नामवर भले न हो् लेलकन आल्थक त हैलसयत मे्उन्ही्के समकक््हो्. इस प्क ् ार इन मंलदरो्की रोजाना आय हजारो्लाख मे्है. लवगत लदनो्वृदं ावन के बांकले बहारी मंलदर की दानपेलटयां जब बैक ् खाते मे् जमा करने के मकसद से खोली गयी्और नोटो्की गणना की गयी तो 1.2 करोड र्पये की रालश लनकली. गौरतलब है लक यह आलखरी पांच लदनो्की दान रालश थी, जबलक मंलदर की 15 दानपेलटयो्से मात्् 6 ही तब तक खोली गयी थी्. इसमे्बेशक 59 लाख के पुराने और अब गैरकानूनी बन चुके 500 और 1000 के नोट शालमल थे लेलकन ध्यान देने वाली बात यह है लक इस भीषण समय मे्भी मंलदर के पांच लदनो्की आय का 41 िीसद से अलधक भाग लवशुद्र्प से कानूनी था. अनुमान लगाया जा सकता है लक नोटबंदीपूवत्सामान्य लदनो्मे्श््ी बांकले बहारी मंलदर की प्ल्तलदन की आय लाखो्मे् पहुच ं ती होगी. हालांलक यह तथ्य भी अब सामने आ चुका है लक लपछले तीन सालो् मे् मंलदर की आय मे् दोगुनी बढोतरी हुई है और वत्मत ान मे् इसकी सालाना आय 112 करोड र्पये तक पहुच ं चुकी है. यह रालश एक ऐसे मंलदर की है लजसे समृद् मंलदरो् मे् शालमल नही् लकया जाता. कमोबेश ऐसी छोटी आयवाले मंलदर अकेले मथुरा और वृदं ावन मे्ही करीब 7000 है.् छोटे मंलदरो् के अलावा देश भर मे्ऐसे लाखो्मंलदर है्जहां
सालाना लाखो्करोड र्पये की आय होती है. इन मंलदरो्मे्नकदी के अलावा सोने व अन्य बहुमलू य् रत्न भी दान मे्लदये जाते है.् यलद इन्हे्भी जोड लदया जाये तो कुल आय लजतनी होगी उसका अनुमान भी नही्लगाया जा सकता है. देश के सबसे समृद् मंलदरो् मे् पहला नाम आता है केरल के लतर्वनंतपुरम ब्सथत पद्न् ाभस्वामी मंलदर का. इसकी अकूत संपदा का खुलासा 2011 मे्उस समय हुआ जब उच्त् म न्यायालय ने मंलदर के प्ब् धं न और व्यवस्था से जुडी चीजो्को अपनी लनगरानी मे्ललया. मंलदर के केवल एक कक््से 1200 करोड्र्पये मूलय् की संपल््त लनकली. कई कमरो्मे्बोरे-बोरे भर सोने, चांदी, हीरे जवाहरात और दूसरे बहुमलू य् रत्न पाये गये. सोने के मुकटु और सोने की सीकडे्ढेरो्मे् लबखरी पडी थी्और सोने के पत्र् ो्व लसक््ो्का अंबार लगा था. कुल एक लाख करोड की संपल््त थी. जालहर है मौजूदा समय मे्इसमे्इजािा हो चुका होगा. इसी कडी मे्लशरडी के सांई बाबा का मंलदर आता है लजसकी संपल््त 540 करोड र्पये और वाल्षक त आय 350 करोड र्पये है. मुबं ई का लसल््द लवनायक मंलदर इससे कम समृद्है लेलकन इसकी सालाना दान की रालश 125 करोड र्पये से अलधक है. तलमलनाडू के मदुरई मे् मीनाक््ी अम्मा मंलदर, जम्मू और कक्मीर मे् वैषण ् ोदेवी मंलदर, पंजाब का स्वण्त मंलदर, गुजरात का सोमनाथ मंलदर और वाराणसी मे्काशी लवश्न् ाथ मंलदर को भी इसी क्म् मे् देखा जा सकता है. इनकी अचल संपल््त और आय करोडो् मे् है. लपछले लदनो्ल््सयो्के प्व् श े संबधं ी अलधकार को लेकर चच्ात मे्आये केरल के सबरीमाला मंलदर
अकूि िंपिा की संपल््त भी 105 करोड र्पये की है. यह कुछ ही मंलदरो्की संपल््तयो्और आय का लववरण है. अगर देश भर के सभी मंलदरो्की सालाना आय का भी लहसाब लकताब लकया जाये तो यह रकम अरबो्मे्लनकलेगी. जालहर है महज दान के बूते कई मंलदर और उनके प्ब् धं क धम्गत र ु ् समृल्द और ऐश्य् त्के मामले मे्कारोबारी घरानो् को टक्र् देने की ब्सथलत मे् है.् ललहाजा इसमे् संदहे है लक सभी मंलदर अपने प्ल्तलदन की आय बैक ् ो्मे्जमा करने की जहमत भी उठाये्खासतौर से इसललए भी, क्यो् लक ऐसी कोई वैधालनक बाध्यता उन पर नही्है. दूसरे, ये मंलदर श्द ् ्ालुओ्द््ारा लदये गये दान पर ही लनभ्रत नही्रहते बब्लक लवलभन्न प्क ् ार के व्यावसालयक उपक्म् ो्के जलरये ज्यादा से ज्यादा लाभ अल्जतत करने के प्य् ासो्मे्लगातार लगे होते है.् 1700 करोड की वाल्षक त आय के बावजूद आंधप् द् श े का वेकटे् श्र् मंलदर धाल्मक त कम्क त ांड के अधीन भक्तगणो्के लसर के उतारे गये बालो् की साव्ज त लनक नीलामी करता है और खजाने मे् प्ल्त वष्तलगभग 36 करोड्र्पये की अलतलरक्त आय डालता है. नकली बाल और अन्य कास्मले टक्स बनानेवाली देसी-लवदेशी कंपलनयां इन बालो् की ऊंची कीमत देती है् लजससे यह व्यवसाय मंद नही्पडता. ऐसे मे्सामालजक लहत के ललए धन के उपयोग के मामले मे,् जालहर है, इनका नजलरया भी लकसी व्यापारी से लभन्न नही् होता. दलसयो् लाख करोड की संपल््त पर लनजी स्वालमत्व का अलधकार रखनेवाले इन मंलदरो्ने, याद नही्पडता लक संकट के समय आम लोगो् की मदद मे्कभी तत्परता लदखायी हो. हो सकता है लक सरकारी आदेश के अनुपालन मे् श््ी
बांकले बहारी मंलदर और कालांतर से कुछ अन्य मंलदर भी दान मे्प््ाप्त होनेवाली रकम को रोजाना बैक ् के खाते मे्जमा करा दे्लेलकन उनका धन करमुकत् होगा. यह मूल धन अंतत: ल्याज के साथ उनके खजाने मे ही लौट आयेगा. पलरचलन मे् आने के बावजूद यह धन गरीब लकसानो्, कामगारो्, छोटे-मोटे दुकानदारो् और अन्य मेहनतजीवी तबके के ललए कतई उपयोगी नही् होगा. देखा जाये तो ये मंलदर लोगो्की आस्था के केद् ्होते है लेलकन असललयत यही है लक उनका लोकलहत से कोई नाता नही्होता. जहां मंलदर ईश्र् के प्ल्त आस्था का नही् बब्लक इसके महंतां, बाबाओ्, प्ब् न्धकारी ट्ब्स् टयो्, धम्गत रु ओ ् ् आलद के लोभ लालच और संपल््त के प्ल्त मोह का प्त् ीक हो वहां लनजी लहत ही सव््ोपलर होगा. ई-हुबण् डयो्और ई-बैल्कंग द््ारा दान का आमंतण ् उनके व्यावसालयक नजलरये की बानगी है और मंलदरो्की संपल््त के ललए महंतो्की हत्याये्इस लोभ की पराकाि््ा है. यह भी लवलचत्् ही है लक आध्याब्तमक जगत मे्धाल्मक त जनता के ये पथप्द् श्क त बडे अनुरक्त और भोगी भाव से संपल््त के साथ जुडे होते है.् मंलदरो्की चल अचल संपल््त का अनवरत उपभोग करने की उनकी आकांक्ा और समस््भौलतक सुखो्को हालसल करने की उनकी तृषण ् ा लकसी सांसालरक मुनष्य से कही्अलधक होती है. भारत की तरक््ी के जो भी प्य् त्न लकये गये हो्और जैसे भी प््ावधान लाये गये हो्परन्तु इस हकीकत से मुहं नही् मोडा जा सकता लक कई बुलनयादी जर्रतो्के मामले मे्हम दूसरे देशो्के मुकाबले कही् पीछे है.् यूनीसेि की लरपोट्त के मुतालबक हर साल कुपोषण से पांच वष्तसे कम आयु के 10 लाख बच््ो् की मौत हो जाती है.
वैष्रो िेवी: हर िाल कई करोड् र्पये जलजलनत बीमालरयो् से मरनेवाले बच््ो् की संखय् ा इससे भी अलधक है. इसी संसथ् ा के अन्य लववरण के अनुसार देश मे्ऐसे बच््ो्की संखय् ा 170 लाख है जो स्कल ू तक नही्पहुच ं पाये है.् देखा जाये तो लशक््ा के अलधकार के बावजूद प््ाथलमक स्र् की लशक््ा अभी तक सव्स त ल ु भ नही् हो सकी है. ताजी ब्सथलत यह है लक लगभग 17 िीसद गांवो्मे्एक भी प््ाथलमक लवद््ालय नही् है. मध्यप्द् श े , पल््िमी बंगाल, झारखंड, लबहार और उत्र् प्द् श े जैसे राज्यो्के कई स्कल ू ो्मे्तो एक भी लशक्क ् नही् है. ऑक्सिैम इब्णडया के सव्क ्े ण ् के अनुसार स्कल ू ो् के ललए 10 लाख लशक्क ् ो्की कमी बनी हुई है. आज मुलक ् को 80 हजार अस्पतालो्और इससे भी अलधक संखय् ा मे् स्कल ू ो्की जर्रत है. देश के सबसे समृद् 15 मंलदरो् की केवल सालाना आय का योग ले ललया जाये तो सालभर मे्4000 स्कल ू ो्का लनम्ाण त लकया जा सकता है. उतनी ही रालश से अलखल भारतीय लचलकत्सा लवज््ान संसथ ् ान (एम्स) के स्र् के 1500 अस्पताल खोले जा सकते है.् इस दौलत की अहलमयत तभी हो सकती है जब चंद लोगो् के लनजी उपभोग का जलरया बनने की जगह इसका समालजक उपयोग हो. इसललए मंलदरो्के प्ल्तलदन की आय को उनके ही बैक ् खाते मे्जमा कराने और कालांतर मे् उन्हे् वापस लौटाने की जगह सरकार को साव्ज त लनक लहत मे् इन मंलदरो् की न्यनू तम एक साल की आय को लबजली, पानी, लशक््ा और स्वास्थय् जैसी अलनवाय्त जर्रतो् मे लगाने के बारे मे् लवचार करना चालहए. क्या सरकार देशलहत मे् धम्-त संसथ ् ाओ् और तमाम स्वालमयो्-गुरओ ् ्की संपल््त मे्भी हस्क ् प्े करने n का साहस लदखा पायेगी? शुक्वार | 1 से 15 िरवरी 2017 35
साघहत् मास्यट/कहानी हेड
मदारी कहबनी सुभबष तरबण
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गडुगी की गड्गड्ाहट हवा मे् बुलंद हुई तो बाजार की सडक पर गुजर् ते राहगीरो् का ध्यान अनायस ही उस ओर लखंचता चला गया जहां से आवाज आ रही थी. डुगडुगी की गड्गड्ाहट का स््ोत एक उम्द् राज् मदारी था जो एक आठ साला बच््ेतथा दो और मलरयल से लदखने वाले युवको् के साथ सड्क लकनारे की पटरी पर खडा होकर लदखाये जाने वाले तमाशे की भूलमका बाँध रहा था. मदारी लिलहाल उस आठ साला बच््ेसे, लजसे वह जमूरा कह कर संबोलधत कर रहा था, डुगडुगी से लय ताल लमलाते हुए सवाल-जवाब कर रहा था. जहां डुगडुगी की गड्गड्ाहट मदारी और जमूरे की आवाज के उतार-चढ्ाव के साथ क़्दमताल कर रही थी वही् मदारी के बाकी दो साथी सामने पटरी पर, जहां सडक की हद ख्तम् हो रही थी, चादर के उपर कांच के रंग लबरंगे मत्तबानो् को क़्रीने से सजाने मे् मशगूल थे. मदारी ने् जमूरे से संवाद जारी रखते हुए अपनी झोली से महाकाली के रौद्् र्प वाली एक तस्वीर लनकाली और उसे बगल मे् लवद्म् ान एक दरख्त के तने पर चस्पा कर लदया. सवाल-जवाब की इस िेरलहस्् के दौरान मदारी का हाथ जब अगली बार उस बगल मे् लटकी झोली से बाहर लनकला तो उसके हाथ मे्मानव मल््सष्क का एक कंकाल मय दो लबलाथ भर लंबी हल््डयो्के साथ था. उसने सावधानी के साथ उन हल््डयो् को काली के रौद्् र्प वाली तस्वीर के ठीक नीचे, जो दरख्त के तने पर चस्पा थी, क़्रीने से सज्ा कर लदया. बाजार मे्यहां-वहां घूमते लोग मदारी, जमूरे के संवाद और डुगडुगी 36 शुक्वार | 1 से 15 िरवरी 2017
की जुगलबंदी के चलते जैसे ही उनके इद्-त लगद्तबेतरतीब घेरा बनाने लगे, मदारी ने्अपनी झोली मे्एक बार लिर हाथ डाला और इस बार हड्ी् और लकड्ी की जुगलबंदी से बनी छड्ी लनकाल कर, भीड्की शक्ल मे्तल्दील होते लोगो्को पीछे धलकयाते हुए, उससे अपने बाकी तीनो्सहयोलगयो्के चारो्और एक लकीर खैच ् कर एक गोल घेरा बना ललया. सवाल-जवाब के दौरान इधर¬-उधर टहलते जमूरे का पैर अचानक उस ताजा खी्ची लकीर को छू गया. जमूरे का पैर लकीर पर पडते ही महाकाली की तस्वीर के नीचे क़्रीने से सज्ा कर रखी गयी इंसानी खोपड्ी और हल््डयो्के पास एक मंद लवस्िोट हुआ. अचानक मे् हुए इस मामूली धमाके का ज्ालहर अंजाम तो मामूली सी लचनगालरयां और एक पस््धुएं का ग़्बु ार था, लेलकन यह लवस्िोट जेहनी तौर पर इकि््ा हो रही भीड को भयभीत कर गया. मदारी ने्उस डर
को अपने लहजे मे्लपेट कर तेज्आवाज से जमूरे को जान के जोलखम की चेतावनी देते हुए उसे खेल ख्त्म होने तक इस लकीर को न लांघने की चेतावनी के साथ आइंदा से सावधान रहने का फ़्रमान सुना लदया. भीड् जो थोडी देर पहले कुतहू लवश मदारी और उसके सालथयो् पर टूट पडने को आतुर प्त् ीत हो रही थी, धमाके, धुएं और लचनगालरयो्के बाद उस लकीर से एक सम्मानजनक दूरी बना कर शाब्नत के साथ खडी हो गयी. तमाशाई भीड भले ही खडे होने भर की जगह के ललए एक दूसरे के साथ धक््ामुक्ी कर रही थी लेलकन मदारी के कल्जे मे्इतनी जगह आ चुकी थी लक वे चारो्लोग अपने सामान सलहत सहूललयत के साथ बेलहचक इधरउधर टहल सकते थे. मलरयल से लदखने वाले दोनो युवक अब अपने काम से फ़्ालरग़्मालूम पड रहे थे. उनके द््ारा पोटली से लनकली अब्नतम वस्ए्ु ं एक गंडासा और एक इमामदस््ा थी. वे दोनो चुपचाप से उस गोल घेरे के अन्दर एक कोने मे्जाकर बैठ गए. जहां अभी थोडी देर पहले मदारी और जमूरा अपने सवालो्-जवाबो्मे् दुलनयादारी के तमाम फ़लसफ़ो्का ल्जक््कर रहे थे, वही्अब मदारी जमूरे से सवाल-जवाब छोड सामने खडी भीड के मुखालतब हो गया. मदारी की जो बात दुलनयादारी के लवषयो्से शुर्हुई थी, वह अब कांच के मत्बत ानो्मे् रखी जड्ी बूलटयो् की ख्ूलबयो् और ख्ालसयतो् पर आ गयी. मदारी के मुतालबक लहमालय के दुरह् पहाडो पर से हालसल की गयी इन जड्ी-बूलटयो् मे्बडे से बडे असाध्य रोगो्को जड्से ख्तम् करने की ताकत थी. इन जड्ी
बूलटयो्मे्ताकत केवल रोगो्को ख्तम् करने की ही नही, बल्की खोई हुई ताकत हालसल करने की भी ताकत थी. एक सधे हुए हकीम की तरह मदारी ने् जरा सी देर मे् इमामदस््े मे् जड्ी बूलटयो् को कूट कर कई प््कार के लमश्ण ् तैयार कर लदए और उनकी बहुत सी पुलडया बना डाली. मदारी द््ारा जड्ी बूलटयो्की ख्लू बयो्और ख्ालसयतो्की प्भ् ावशाली प्स ् ल्ुत और उसकी कम कीमत के चलते भीड ने्जड्ी-बूटी के इस लमश्ण ् को हाथो्हाथ ललया. यह मदारी का ही कमाल था लक उनके चारो् ओर खडी भीड पूरी कीमत चुका कर दवा की पुलडया को हालसल करने के ललए अपनी जगह अनुशालसत और कतारबद्् होकर धैयत् के साथ अपनी बारी का इंतज्ार कर रही थी. दवा की पुलडया की एवज मे् एक माकूल कीमत वसूलते हुए मदारी भीड को लगे हाथ मुफ़्त मे्दुआएं दे भी रहा था. जड्ी-बूलटयो् से फ़्ालरग़् होते ही मदारी ने् ताली बजायी तो लकीर के अन्दर कोने मे्बैठे दोनो मलरयल से लड्को्ने्कांच के मत्बत ान समेटकर पोटली मे्रखने शुर्कर लदए. मदारी अपने वक्तव्यो् के माध्यम से एक बार लिर भीड् को दवा के मसले को पीछे छोड दुलनयादारी के फ़लसफ़े बताने लगा. वह बात कर ही रहा था लक तभी पेड के तने पर चस्पा महाकाली की तस्वीर के नीचे रखी खोपड्ी और हल््डयो् के बीच एक और मामूली सा लवस्िोट हुआ. यह लवस्िोट लपछली बार के मुक़्ाबले थोडा तेज्था. अचानक हुए लवस्िोट से हंसते-बलतयाते मदारी के चेहरे पर हवाइयां उड्ने लगी. वो तेज्ी से उस ओर पलटा और जमीन पर पडे गंडासे को उठाकर अपनी हथेली मे्पैबस््कर लदया. मुि्ी के अन्दर दबे गंडासे की मूठ से खून की धार बहने लगी. मदारी चेहरे पर दद्नत ाक भाव भंलगमाएं ओढ्ते हुए महाकाली की तस्वीर की ओर बढ्ा और हथेली से लनकलते लहू को उन हड्लडयो्पर टपका लदया. लेलकन यह क्या! धुआँ उगलती हल््डयो्पर खून की बूदँ े टपकते ही उससे आग की लपटे्उठने लगी. मदारी ने लबललबलाते हुए जमूरे का आह््ान लकया. मदारी की बौखलाहट और खून टपकने पर लपटे्उगलती हल््डयो्को देखकर तमाशाई भीड के बीच सन्नाटा पसर गया. लपटो्के तेज होने पर मदारी ने रूध् ी आवाज मे्भीड को सुनाते हुए जमूरे से कहने लगा लक तमाशाई भीड के बीच लकसी व्यब्कत ने्महाकाली के दरबार मे्लवघ्न डाल लदया है, ललहाज्ा इस पृथव् ी पर कभी भी प्ल ् य आ सकती है. एक मंजे हुए कलाकार की तरह संवादो् की अदायगी करते हुए जमूरे ने जब इस प््लय रोकने का उपाय जानना चाहा तो मदारी ने कहा लक अभी के अभी महाकाली के सामने एक इंसानी बलल चढ्ानी होगी. मदारी लगडलगडाते हुए दयनीय भाव के साथ एक बार लफ़र जमूरे से मुखालतब हुआ और कहने लगा लक क्या वह इस ब्न् म् ांड को बचाने के ललए खुद की क़ुब् ा्नत ी दे सकता है. अपने नाक खुजाते हुए लकसी प्ल्शल््कत पालतू की तरह जमूरे ने्लबना देर लकए हां कह दी. मदारी ने्लबना देर लकए गंडासा उठाया और उसे जमूरे की गरदन पर रख कर खैच ् लदया. जमूरा जमीन पर लगर कर छटपटाने लगा और उसके गरदन के आसपास खून उबलने लगा. हड्लडयो्से उठती लपटे्अचानक शान्त होने लगी. भीड सतल्ध थी. छटपटाते लडके की गरदन पर धंसे गंडासे को देखकर भीड के बीच मे् बहुत से लोगो्के मुहं से घुटी हुई चीखे्फ़ूट पडी. छटपटाते जमूरे को अपनी
युवा कलव और कहानीकार. लवलभन्न पत्-पल् ् ्तकाओ्मे् और ल्लॉग पर रचनाएं प्क ् ालशत. आलदवासी जीवन मे् गहरी र्लच. एक कलवता संगह् शीघ््प्क ् ाक्य.
आड मे्लेकर अचानक मदारी जोर से लचल्लाया. 'सब लोग अपनी-अपनी मुल्ियां खोल दे,् बच््ा आपके ललए तकलीफ़ उठा रहा है'. भीड ने तत्काल से मदारी के हुकम् की तामील की. मदारी एक बार लफ़र अपनी आवाज मे् आसपास के भय को लमलाते हुए दहाडा, ‘क्या आप लोगो्की हथेललयो्मे्पसीना आ रहा है?’ भयभीत भीड ने्मदारी द््ारा उछाले गए सवाल के जवाब मे्सामूलहक र्प से हां मे्सर लहला लदया. मदारी ने भीड से लमले मनमालफ़क जवाब की एवज मे्अपने चेहरे पर उम्मीद की परत ओढते हुए भीड के बीच एक ओर जुमला छोडा, 'हमे इस लनरीह बालक की जान बचाने की कोलशश करनी चालहए लक नही् करनी चालहए', भीड ने कुछ इस तरह से दद्मत दं आवाज मे् हामी भरी मानो् गंडासा उनकी गद्नत मे्घंसा हुआ हो. अब भीड के हाव-भाव देख कर मदारी का लहजा आदेशात्मक हो गया. इस बार लकसी जवाब की अपेक्ा लकये लबना मदारी ने भीड के समक््एक चेतावनी के साथ इस जानलेवा समस्या का समाधान परोस लदया. ‘बच््े की जान बचाई जा सकती है, बशत््ेआप लोगो्की जेब मे्जो कुछ हो उसे सामने पडी चादर पर डाल लदया जाये, वन्ात इस मासूम बच््ेकी हत्या आप लोगो्के सर होगी.’ दोनो मलरयल से युवक, जो अब तक एक कोने मे्खडे थे, लबना लकसी आदेश के चादर फ़ैला कर सहमी हुई भीड के सम्मख ु हो ललये. मदारी एक बार लफ़र गरजा, 'बच््ेकी जान का सवाल है, हम रहमलदल मुल्क के बालशंदे है. मुझे उम्मीद है आप बच््े की जान बचाने के ललए ईमानदारी लदखायेग् .े ' पूरी तरह से मदारी के काबू मे् डरी-सहमी भीड दत्ल्चत होकर दवा खरीदने के बाद खीसे मे्पडा बचा हुआ पैसा चादर पर डालने लगी. यह दौर खत्म होने ही था लक अचानक भीड के बीच एक आदमी मुहं से खून उलटता हुआ मदारी की ओर लडखडाते हुए बढने लगा. मदारी ने हाथ के इशारे से उसे वही्र्कने का हुकम् लदया. लडखडाते हुए लगरने को हो रहे उस आदमी ने अपनी जेब मे्हाथ डाला और एक दस का नोट मदारी की तरफ़ उछाल लदया और वहां का वही्धराशायी हो गया. मदारी के चेहरे पर कुलटल मुसक ् ान फ़ैल गयी. मदारी बैचने और लवकल भीड को चेतावनीस्वर्प जमीन पर पडे आदमी की ओर इशारा करते हुए भीड को संबोलधत करने लगा. 'देख ललये आपने बेईमानी के नतीजे. यह पहली चेतावनी है. लजसकी जेब मे्जो कुछ है वो चुपचाप उसे चादर पर डाल दे.् दस लमनट का समय दे रहा हू.ं अगर लकसी ने कोताही बरती तो उसका हश्् लबलकुल ऐसा ही होगा जैसा इस सामने पडे आदमी का हुआ है.' मलरयल से लदखने वाले उन युवको् ने एक बार लफ़र भीड के सामने चादर फ़ैला दी. मंतम् गु ध ् भीड के बीच से फ़ैली चादर पर लसक््ो्और नोटो् की बरसात होने लगी. चादर मय उस पर पडे र्पयो् के एक पोटली की शक्ल मे् मदारी के हाथ मे् आ गयी. मदारी ने खेल खत्म होने की घोषणा कर दी.जमूरा जो थोडी देर पहले जमीन पर पडा छटपटा रहा था, उठ कर खडा हो गया. जमीन पर खून की उब्लटयां करते हुए लगरा आदमी उठ कर भीड मे्घुस कर गायब हो गया. सारा लबखरा सामान लपेटने के बाद मदारी, जमूरा और उसके दोनो्मलरयल से साथी आरल््कत जगह पर भीड के सामने पंबक् तबद्् होकर खडे हो गए और भीड से मुखालतब होते हुए एक नारा लगाया. ‘भारत माता की जय’ सहमी हुई भीड ने डर और व्याकुलता के बीच अपना बचा खुचा-जोश इक्ि् ्ा करते हुए एक सामुलहक उद्घोष लकया, ‘भारत माता की जय!’ n शुक्वार | 1 से 15 िरवरी 2017 37
साघहत् मास्यट/कहानी हेड
ह
मारे घर मे् देवी-देवताओ् के बारे मे् बड्ी मान्यता थी. घर-घर मे् एक प््कोि्् होता था, लजसको 'ठे’ कहते थे. 'ठे’ लठया शल्द से बना होगा. वह वेदी के ऊपर खूब सजा हुआ होता था. वहां पीतल का लसंहासन रखा जाता था. उसमे् देवताओ्की पीतल, तांबे और चांदी की मूलत् यत ां होती थी्, जैस— े कृषण ् जी की बाल गोपाल वाली मूल्तत होती थी, अंडाकार शाललग््ाम होता था, चांदी की सत्यनारायण की मूल्तत होती थी. वेदी बनी हुई रहती थी. उसके ऊपर लसंहासन रखा होता. देवताओ् को हम लोग ऐसे समझते थे, जैसे—घर के ही लोग हो्. सुबह घर का कोई सयाना कहता लक अरे, देवताओ्को भी उठा दो. घंटी बजाकर उन्हे्जगाया जाता था. जैस— े कहा जा रहा हो लक बहुत देर हो गयी. कब तक सोते रहोगे? उठो. रात को सद््ी पड्ती थी. रात को देवताओ् को भी सुलाया जाता था. लसंहासन के ऊपर छोटी-सी रजाई रखी जाती थी. देवताओ्से ऐसी-वैसी भाषा मे्तो बात हो नही्सकती थी लक उन्हे्गुड नाइट कहो या शुभराल््त कहो. उनसे देव भाषा मे् बात होती थी. वह थी—गच्छ गच्छ सुरश्ि ्े ्स्वस्थाने परमेशर् ा. मतलब लक जाइयेजाइये हे सुरश््ेि् महान देवता लोग! अपनेअपने स्थानो्को अब जाइए. इस तरह से उनकी लवदाई की जाती थी. सयाने लोग संधय् ा-पूजा करते थे. वे देवीदेवताओ्को नहलाते, पो्छते और लिर रोली और चंदन का टीका लगाते थे. यह लनयलमत काम था. देवताओ् की इतनी मान्यता थी लक घर मे् कोई िल आया या कोई नया कपड्ा आया, वह पहले ठाकुरजी के लसंहासन के पास रखा जाता था.
वलरि््कहानीकार और कलव. प््मुख कृलतयां: ‘कोसी का घटवार’, ‘दाज्यू’, ‘नौरंगी बीमार है’, ‘बच््े का सपना’, ‘मेरा पहाड्’, ‘एक पेड् की याद’ और ‘साथ के लोग’. दाज्यू कहानी पर बाल लिल्म सलमलत द््ारा लिल्म का लनम्ातण. कोसी का घटवार पर िीचर लिल्म लनम्ातणाधीन. संपक्फ: 9161916840 38 शुक्वार | 1 से 15 िरवरी 2017
पासरवासरक िेविर आत्मवृत्
शेखर जोशी
उसके बाद उसको उपयोग मे्लाया जाता था. बाबू एक बारात मे्आगरा गये थे. वह वहां से मेरे ललए एक बूट लेकर आये—चमचमाता काला बूट. उसके तले मे् लाख लगा हुआ था. वह बूट इतना लचकना था लक मेरे से कहा गया लक तू लिसलना नही्. इसको पहनकर अच्छी तरह चलना. मेरे लदमाग मे्यह बात थी लक हर नयी चीज पहले ठाकुरजी के पास रखनी होती है. मै् उस बूट को लेकर ठाकुरजी के लसंहासन के पास रखने जा रहा था लक ईजा ने देख ललया. उन्हो्ने कहा लक बूट मरी भैस ् की खाल से बना है. इसे वहां नही्रखते. उसको लडल्बे मे्रखकर हाथ धो. मुझे ताज््ुब हुआ लक वह कैसी भै्स होगी, लजसका इतना लचकना चमड्ा है. हमारे ईष््देव पैथलजी थे. उनका स्थान गांव से करीब एक लकलोमीटर दूर ऊपर टेकरी पर था. वह कई गांवो्के देवता थे. वह भैरव थे, क्या थे, कुछ नही्पता. उनकी पूजा मे्कभी-कभी कोई आदमी बकरे की बलल भी देता था. पहाड्ो् के मंलदरो्की तरह वहां भी पचासो्घंलटयां लटकी
हुई थी्. ज्यादातर लोग आम््ी मे् थे. इसललए प्म् ोशन हुआ या कुछ और खुशी की बात हुई लक एक घंटी पैथलजी के नाम टांग दी. दस-दस, बीस-बीस लकलो तक की घंलटयां होती थी्. उनमे् नाम व अन्य जानकारी ललखी होती थी. जैस— े हवलदार लहम्मत लसंह, वल्द बहादुर लसंह. गांविलाना. नंबर -इतना...इतना.... कुमाऊं रेजीमेट् . छोटी-छोटी घंलटयां भी होती थी्. खैलरयत यह थी लक इतना पीतल, कांसा होते हुए भी चोरी नही्होती थी. मंलदर मे्जाने वाले सभी व्यब्कत, बच््े खास तौर से घंलटयां बजाते थे— टन...टन...टन... की आवाज दूर तक गूज ं ती थी. जब हमारा परीक््ािल आता था और हम पास हो जाते थे, तो यह माना जाता था लक भगवान की कृपा से पास हुए है.् ऐसे मे्हमारे ललए चार मंलदरो् मे् जाना जर्री होता था. पूजा की थाली लेकर पैथलजी के मंलदर जाते थे. दूसरा देबी थान था. तीसरा मंलदर गणनाथ का था, जो घर से कािी दूर था. वह लशव का बड्ा मंलदर था. गणनाथ मंलदर और पैथलजी मे् पाठ करने के
ललए कभी-कभी पुरोलहतजी भी हमारे साथ जाते थे. चौथा मंलदर गुसय् ाणी देवी का था. एक पेड्के नीचे तीन-चार पत्थरो् से बनाए गये घरौ्दे के अन्दर एक आकारहीन पत्थर था, लजसे हम गुस्याणी देवी मानते थे. बाबू ने अपना बचपन नलनहाल लबसाड् (लपथौरागढ्) मे् लबताया था. यह वहां की देवी थी्, लजसे गांव मे्केवल हमारा ही पलरवार पूजता था.
जब हम पैथलजी के मंलदर मे् पूजा करने पहुच ं ते, तो वहां लटके हुए नाना आकार के घंट-े घंलटयो्को बजाकर ऑक्स्े ट् ्ा की धुन पैदा करते थे. घंलटयो् की आवाज सुनकर ढोर चराने वाले बच््ेआकर मंलदर के बाहर प्स ् ाद पाने की इच्छा से जमा हो जाते. उनमे्से कुछ बच््ेहमारे लौट जाने के बाद हमारे द््ारा चढ्ाई गयी 'भे्ट’ भी हलथयाने के चक्र् मे्रहते हो्ग.े हम भेट् के उन थोड्-े बहुत लसक््ो्को उस प्स ् र् प्ल्तमा के पि्् भाग मे्बने कोटरो्मे्लछपाकर रख आते थे. तो भी वह रालश पैथल जी से छीन ली जाती होगी. जब कभी पंलडतजी हमारे साथ होते, तो वह मंलदर के प््ागं ण से लनकलने के बाद यह कहते हुए लक मै्आशीष के िूल ले आता हू,ँ दोबारा मंलदर मे्प्व् श े करते. आशीष के िूल तो बहाना मात्् होता, वास्व् मे्भेट् के उन लसक््ो्को हस्ग् त करने के ललए ही दोबारा मंलदर के अन्दर जाते हो्ग.े भक्त और भगवान के बीच जनसंपक्फ
अलधकारी की भूलमका लनभाने वाले पंलडतजी को मेरी बुआ का ससुराल पालटया हमारे गांव से यह सुलवधा शुलक ् समेटने का अलधकार तो था 14-15 मील दूर था. बुआ कभी-कभार ससुराल ही. से मायके आती्, तो बाबू बड्े मन से उनकी शाम को जब बच््े खेल कर आते थे तो, लवदाई करते. बाबू बुआ के ललए घरेलू सभी चीजे् उन्हे् हाथ-पैर धोकर पहले 'राम रक््ा स््ोत््’, रख देते थे. जैस— े बुआ के यहां गडेरी (पहाड् 'देवी कवच’ और 'हनुमान चालीसा’ का पाठ मे्पाई जाने वाली अरबी प्ज ् ालत का वृहत आकार करने को कहा जाता था. ये एक तरह की का घनकंद) नही् होती थी. गडेरी रख दी. प््ाथ्नत ाये् थी्, जो बचपन मे् ही कंठस्थ करा दी मौसमी िल, अखरोट, दालडम आलद खाने-पीने जाती थी्. जैसे सयाने लोग संधय् ा करते थे, वैसे की और भी बहुत-सी चीजे्रख दी्. इनसे जूट से ही बच््ो्को प््ाथ्नत ा करनी होती थी. मै्बचपन से बना बोरा (कुमला) भर जाता, तो मजदूर को ही चाई् लकस्म का था, तो मै् वहां भी गच््ा दे लवदा कर लदया जाता. बुआ से जल्दी-जल्दी जाता था. जैस— े जोरो्की भूख लग रही होती उसके पीछे जाने के ललए कहा जाता, लेलकन थी, तो शाट्क त ट मार देता था. 'राम रक््ा स््ोत्’् बुआ इस िेर मे्रहती्लक लपठया की कुछ मालाये् थोड्ा लम्बा था. मै्शाट्क त ट मारकर भगवान को चुरा ली जाये्. गांव मे् यह मान्यता थी लक भी संतष ु ्कर देता था और ईजा को भी. मै्'राम लववालहत लडलकयां मायके से रोली मांगकर नही् रक््ा स््ोत््’ पढऩे की बजाय संल्कप्त मे् पूरी ले सकती्. दैनलदन आवक्यकता के ललए घर मे् रामायण पढ् जाता था. लजसने भी संल्कप्त ही हल्दी की िांको्को नी्बू के रस मे्लभगोने के रामायण रची हो, उसने मुझ जैसे बच््ो्को बड्ी बाद सूखने के ललए उनकी मालाये्बनाकर कही् राहत दी. वह संल्कप्त रामायण थी— टांक लदया जाता था. हम बुआ की मंशा समझकर 'आदो राम तपोवनालद गमनं जब-जब वह मालाओ्के पास पहुच ं ती, वहां जा हत्वा मृगं कांचनम् धमकते. बुआ अपने उद््ेक्य मे् सिल नही् हो वेदहै ी हरणं, जटायु मरणम् पाती. अंत मे्घर के सयाने लोगो्द््ारा धमकाने सुग्ीव सम्भाषणम् पर हम उन्हे्अपने अलभयान मे्सिल होने देत.े बाली लनग्ह् णम् एक बार बुआ अकेली जा रही थी्. मैन् े कहा समुद्तरणम्, लंकापुरी दाहनम् लक मै्भी साथ चलूगं ा. बुआ ने कहा लक तू थक तत्पि््ात रावण, कुमभ् कण्तहननं जायेगा. मैन् े कहा लक नही् थकूगं ा. मैन् े लहम्मत ऐतध्य रामायणं.’ बांधी. घर से चलने मे्ही देर हो गयी थी. रास््ेमे् हो गयी पूरी रामायण. चुराड्ी का जंगल पड्ता था. शाम हो गयी थी. शहरो्मे्तो जो पढ्-े ललखे पलरवार होते थे, अंधरे ा होने लगा था. मेरी बुआ बहुत भोली थी्. उनमे् से कई घरो् मे् बुजुग्त लोग बच््ो् को कहती थी्लक भाऊ, जरा तू यहां हनुमान चालीसा 'अमरकोश’ भी रटाते थे. गांव मे्इतने पढ्-े ललखे पढ्. यहां पर हमारे गांव की एक औरत लिसल पलरवार नही्थे. कर लगर गयी थी. बुआ का मतलब यह लक वहां लोगो् के मन मे् अंधलवश््ास बहुत थे. कोई मरा था, तो कही् भूत न लग जाये. उससे सयाने लोग भी इन चीजो्को मानते थे. पहाड्मे् आगे लकसी ने िांसी लगा रखी थी. इसी तरह से 'छल’ लगना कहते है.् यलद लकसी घर मे्मौत हो बुआ ने मुझसे आठ-दस जगह हनुमान चालीसा जाती, तो बच््ो्को दूर लकसी दूसरे घर भेज लदया पढ्वाया. डर के मारे मेरी हालत खराब हो गयी. जाता था. जब अरथी उठ जाती थी, तब बच््ो्को लकसी तरह हम घर पहुच ं .े बड्ेलोग भी इस तरह घर लाया जाता था. गांव से बच््ो्के साथ करते मे् हमारी एक बुआ थी, मै्ने कहा खक मै्भी िार चलूंगा. थे. यह डर लड्कपन मे् वह खत्म हो गयी्. बुआ ने कहा खक तू रक जायेगा. भी बहुत लदनो्तक रहा. उनका शव अंलतम जब मैन् े मब्कसम गोक््ी मै्ने कहा खक नही्रकूंगा. मै्ने संस्कार के ललए 'राम की जीवनी पढ्ी, तो यह खहम्मत बांधी. घर िे चलने मे्ही डर दूर हुआ. नाम सत्य’ कर चला देर हो गयी री. गया होगा. घर वाले गोक््ी बहुत गरीब उनके गुदड्ो्को डंडो्व थे. मुब्ककल से गुजारा रस्सी से बांधकर खी्चकर जलाने के ललए ले होता था. वह शैतान लकस्म के भी थे. उनकी गये. रात को जब हम उधर से लनकलते थे, लजस जीवनी मे्एक प्स ् गं आता है लक लड्को्ने कहा रास््ेसे वो गुदड्ेगये थे, तो डर लगता था लक लक कल््बस््ान मे् रात को 12 बजे जो जायेगा, हमारी बुआ के गुदड्ेयहां से गये थे. और 'छल’ उसको हम एक र्बल देग् .े गोक््ी तैयार हो गये. का तो ऐसा था लक उसके ललए कुछ उपाय बताये एक र्बल का लालच भी था. उन्हो्ने नानी को जाते थे. जैसे—हनुमान चालीसा पढ् लो. राम नही्बताया, लेलकन नानी ने लड्को्की बाते्सुन ली थी्. आधी रात होते ही गोक््ी उठे और धीरे से रक््ा स््ोत््पढ्लो. वैस,े ये सब लनत्य का ही क्म् दरवाजा खोल कर जा रहे थे, तो नानी ने कहा, था. शुक्वार | 1 से 15 िरवरी 2017 39
साघहत्य/कहानी 'माशा, एक कंबल ले ले. तुझे कल््बस््ान मे्ठंड लगेगी.’ ऐसी नानी थी लक उसको सब मालूम था, लेलकन वह बच््े को डराना नही् चाहती थी, बब्लक और लहम्मत बढ्ाई. इस बात ने मेरे ऊपर बहुत अच्छा प्भ् ाव डाला. कुछ पलरब्सथलत भी ऐसी थी लक एक लदन मुझे रात मे्पूरा जंगल पार करके डॉक्टर को बुलाने जाना पड्ा. मै्लालटेन लेकर गया. हमारे यहां होता था लक बच््ा यलद थोड्ा अस्वस्थ लदखे और डरा हुआ सा लगे, तो घर वाले कहते लक इसे 'छल’ लग गया. भभूत लगा दो. बुखार आ गया तो शंका करते लक आज वहां तो नही्गया था, जहां छोटे बच््ो्को दिनाते है.् मां-बाप लबना सोचे-लवचारे बच््ो्के मन मे्गलत चीजो्का बीज डाल देते थे. पहाड्ो् मे् कभी-कभी रात मे् सामने वाले पहाड्मे्अचानक रोशनी होती थी और लिर बुझ जाती. लोग कहते लक भूत चल रहा है,जबलक होता यह था लक मरे हुए जानवरो्की हल््डयो्मे् िॉसिोरस जलता था. वह रह-रह कर जलताबुझता था. डर के ललए छल-भूत तो थे ही, हुलणयो्का भी डर था. भारत के सीमांत क्त्े ्ो् मे् लतल्बत से व्यापार होता था. 1962 मे्जब चीन और भारत की लड्ाई हुई, तब से यह व्यापार बंद हो गया. सीमांत क्त्े ्ो्के लोग लतल्बत से चीजे्लेकर नीचे उतरते थे. हम लोग उनको लामा कहते थे. ये लोग खूब सारा सामान अपनी पीठ और बकरो् की पीठ पर दोनो्ओर थैललयां लटका कर लाते थे. उनके साथ एक-दो बड्ेखूख ं ार कुत्ेहोते थे. वे अपना टेट् खुले मैदान मे् लगा लेते थे. वहां अपना सामान और बकरो्को रखकर कुत्ो्को
40 शुक्वार | 1 से 15 िरवरी 2017
रखवाली पर लगा देते थे. मजाल है लक कोई वहां पहुच ं सके! ये लोग जब सामान बेचने के ललए गांवो् के चक्र् लगाते थे,तब भी कुत्े टेट् की रखवाली करते थे. वे कई थैललयो् मे् सामान लेकर आते थे, जो उनके कंधो्पर लटकी रहती थी्. बच््ो्को डराया जाता था लक वे उन थैललयो् मे्बच््ो्को पकड्कर ले जाते है,् तो बदमाशी मत करना, आज हुलणयां आया है, ले जायेगा. उनका लोगो्के साथ एक लरक्ता बन जाता था. ये लोग कभी-कभी ही नहाते हो्ग.े उनके लसर मे् जुंएं रहती हो्गी, तो जब वे अपना सामान िैलाते थे, तो लसर से जूँ लनकालकर मारते भी रहते थे. हमारे घर की मलहलाये् कहती थी् लक लमतुर, पहले हाथ धो ले, तब तुम जम्बू लनकालना. जम्ब,ू ही्ग, गंधरेणी होती थी. ये सब चीजे्मसाले के तौर पर खाने मे्इस्म्े ाल होती
थी्. जंबू एक तरह की सुगंलधत घास होती है, लजससे दाल छो्की जाती थी. इनके अलावा सुइयां, मूगं ,े लशलाजीत, कस्र्ू ी, कई तरह की जड्ी-बूलटयां, मसाले आलद और भी बहुत-सा सामान वे लाते थे. इस तरह से हुलणयां गांव-गांव सामान बेचने जाते थे. हुलणयां का डर मेरे मन मे्भी बैठा हुआ था. एक लदन स्कल ू जाते हुए मै्अकेला पड्गया था. मैन् े देखा लक सामने से हुलणयां चला आ रहा है. वह बहुत ऊंचे होते थे. उनमे्औरत और मद्त मे्िक्फकर पाना मुबक् कल होता था, क्यो्लक पुरष् भी लंबे बाल रखते थे और ल््सयो्की तरह उनके बाल भी गुथं े हुए रहते थे. मद््ो्की दाढ्ी-मूछ ं े्नही् होती थी्. बहुत हुआ, तो दो-चार बाल होते. आदमी टोपी पहनते थे, तो औरते्भी टोपी पहनती थी्. लंबे लबादे और ऊनी जूते पहनते थे. मद्त और औरत का पहनावा भी एक जैसा ही होता था. मै्ने सोचा लक सामने से आ रहे हुलणयां ने मुझे नही्देखा है. मै्एक देवदार्के मोटे पेड्की आड्मे्खड्ा हो गया. उसकी चलने की आवाज सुनाई दे रही थी—आवाज नजदीक, और नजदीक आ रही थी. थोड्ी देर बाद वह ऊपर ही चढ्कर वहां आ गया, जहाँ मै् छुपा हुआ था. उसने मेरे दोनो् गालो् को थप-थपाकर मुंह से 'चूं-चूं’ जैसी कुछ आवाज लनकाली, जो मेरी समझ मे्नही्आयी और मुझे लाड्करके चला गया. मेरी जान-मे-् जान आयी. इससे समझ मे् आया लक लोग एक-दूसरे के प््लत कैसे पूव्तग्ह रखते है,् जबलक उनके भी कलेजा होता है, उन्हे् अपने बच््ो्की याद आती होगी. n ( क्म् श:)
साघहत्य/कघवता
तशवप््साद जोशी की कतविाएं
तो क्या आप लठठुर कर उन्ही्बादलो्मे्गुम हो जाते है्?
युवा कलव और पत््कार. नोबेल पुरस्कार प््ाप्त कई लेखको्के रचनाओ्का अनुवाद. संचार माध्यमो्पर कई पुस्के् प््कालशत. पहला कलवता संग्ह शीघ््प््काक्य. संपक्फ: 9756121961
आइंस्टाइन हवाएं उड्ाती जाती है्सुरो्को वॉयललन के तारो्से आती है सीखने की आवाज् मेरे शल्द वाक्य बनने से पहले एक तार बन जाते है् इस तार को छेड्ने से खुलने लगती है्कई कहालनयां लवश््युद्ो्से लेकर मेरे अपने युद्तक इस लवचार के ल्खलाफ़् जो सरकार बना बैठा है मै्बजाता हूं वॉयललन ललखता हूं भौलतकी.
प््काश लकतनी देर कोई लकसी का इंतज्ार कर सकता है लमनट घंटे लदन सप्ताह महीने साल सदी लदक््ाल मे्इंतजार कर सकता है कोई? एक सुदूर प््काश के पृथ्वी तक पहुंचने का इंतज्ार कोई कहता है इंतज्ार मत करो तो क्या आप मान लेते है्? नही्, आप बस इंतज्ार मे्चलते है् एक भूगोल से दूसरा भूगोल आ जाता है मौसम चक््बदल जाते है् लचल्डयां पुराने रास््ो्को छोड्कर नयी हवाओ्की तलाश मे्चली जाती है् इंसाफ़्दुलनया के कई घरो्को खटखटाकर लौट आता है व्यथ्तता भी जैसे कई कई अथ्तग््हण करती हुई एक सुनसान उजाड्से एक लखली हुई हरीलतमा मे् जा बैठती है यातनाओ्के घड्ेभरते जाते है् मौतो्का हरदम इंतज्ार रहता है उस अतल कुएं को लहटलर की सेना सदी की छलांग लगाकर ऐन आपके सामने आ जाती है अट््ाहस करती हुई पच््ेिे्कती हुई पूरा आसमान काले बादलो्से ढंक जाता है
जैसे प््काश स्थायी है वैसा ही रहता है इंतज्ार वह और ऊपर पहुंचकर चक््र काटता रहता है.
छूटना संताप के काले कौवे उड्ते थे वहां मेरे इद्तलगद्त एक खेत िैला हुआ था बवंडर की तरह समंदर लकीरो्की तरह काटता था शहर को उदास पलरवार झुका हुआ था आलू छीलने मे् एक रोशनी लचत््से उड्कर मेरे फ़ै्सले पर आ लगरी उन लै्डस्केपो्से भागी मै्नंगे पांव रेलवे स्टेशन तक पहुंच गयी बचकर एक अजीब घरेलू उत्पीड्न से. प््ेम तो ऐसे लबखरा जैसे एक िूल लटमलटमाते तारो्वाली सद्तरात ल््सयां और साईलकले्जहां की तहां.
गांव
(एक) नदी की स्मृलत से मै्ने जलायी आग पत्थर की स्मृलत से उठायी रात घास की स्मृलत से हवा को छुआ बचपन की बालरश मे्हुआ तरबतर घर की स्मृलत मे्पाया प््काश घास है मेरी र्ह िेडू का उदास पत््ा मेरी पीठ दूर अंधेरे मे्लटमलटमाता एक तारा मेरी सुबह. (दो) एक सांप और एक कुत्ा लड्ते थे चौक के वीराने मे् एक सुंदर स््ी दूर से आती थी मेरे पास ओबरे* मे्बँधी थी कई साल पुरानी एक गाय एक चूल्हे के पास बनी थी्कुछ आकृलतयां पूव्तजो्की नदी से आती थी आवाज्: चलो चलो चलो हवा ने नीले रंग की धोती का कोना छुआ दूर पहाड्ी से लखललखलाती उतरी्लड्लकयां भौ्चके्मेहमानो्को ललवा लाने के ललए. * मकान की सबसे लनचली मंलजल
n शुक्वार | 1 से 15 िरवरी 2017 41
साघहत् मास्यट/समीक् हेड ्ा
जल-थल मंे मल क्यो्
सोपान िोशी सवज््ान और परंपरा के आपसी तानबाने को सहि ढंग से पेश करना िानते है्. नठमतब ठसंह
बेहद लदलचस्प अंदाज्मे्यह भी बताया है लक पेलरस की सड्को्पर ऊंची हील के जूतो्का िैशन शुर्ही इसललए हुआ था लक सड्को्पर हर तरि रीब दो ढाई सालो्से देश भर मे्स्वच्छता, साि-सिाई को लमशन मल-मूत् मौजूद होता था. ऊंची हील के जूतो् के इस््ेमाल से कपड्ो् के के तौर पर पेश लकया जा रहा है, देश भर मे् शौचालय बनाने की गंदा होने की आशंका कम होती थी. पांचवां अध्याय ‘गोदी मे् खेलती है् इसकी हजारो् नाललयां’ मे् भारत रफ््तार बढ्ाई जा रही है, माना जा रहा है लक ऐसा होने से भारतीय समाज बीमालरयो्की चपेट मे्नही्आयेगा, प््सन्नता से रह पायेगा. हालांलक यह मे्जल प््दूषण के लगातार बढ्रहे संकट और उससे होने वाली बीमालरयो् सच महज एक पहलू है. इस तस्वीर का दूसरा पहलू यह भी है लक अगर पर लवस््ार से चच्ात की गयी है. यूलनसेि की 2013 की एक रपट के देश की पूरी आबादी के ललए जर्री शौचालय बना लदये जाये तो लिर साि मुतालबक भारत जल प््दूषण के टाइम बम पर बैठा हुआ है. ऐसा भी नही्है पानी के ललए हाहाकार मच सकता है. मौजूदा समय मे्साफ़्और पीने के लक भारत मे् जल प््दूषण को कम करने के ललए उपाय नही् हो रहे है्, पानी का संकट लगातार गहराता जा रहा है और आधे-अधूरे ढंग से तैयार लेलकन जो उपाय लकए जा रहे है् वे सीलमत दायरे मे् सीलमत असर वाले शौचालयो्के इस्म्े ाल से यह संकट और गहरा होगा. जब देश मे्स्वच्छता सालबत हो रहे है्. सोपान देश के अलग-अलग लहस्सो् मे् होने वाले उन लमशन का डंका पीटा जा रहा है, उसी वक्त मे्लवज््ान पत्क ् ार सोपान जोशी प््योगो्को नजदीक से समझते है्, उसे शुर्करने वालो्की दूरदल्शतता को ने करीब पांच साल तक जल, जमीन और मल के आपसी ताने-बाने और जर्री ठहराते है्लेलकन उसके सीलमत असर की वजह को भी समझने की उसका जीवन पर पड्ने वाले असर को समझने की कोलशश की है. उनकी कोलशश करते है्. भारत की भौगोललक पलरब्सथलतयां और जीवनशैली ऐसी है लक उसमे्एक जगह के ललए उपयुकत् लवलध दूसरी जगह इस कोलशश को गांधी शांलत प््लति््ान ने ‘जल थल मल’ कामयाब नही्हो पाती. शीष्तक से प््कालशत लकया है. इनमे्भारतीय रेलवे के बनाये आधुलनक शौचालय, प््कृलत का लनयम है लक जमीन से लनकले उवर्तक लजन्हे् बायोडाइजेस्टर कहा जाता है, इसे लेकर जमीन मे् ही वापस जाने चालहए, लेलकन फ्लश कमोड तलमलनाडु मे्इस््ेमाल हो रहे इकोसैन शौचालय तक के के जमाने मे्हमारे शरीर से लनकला अपलशष््बड्ी मात््ा अनुभव के बारे मे्लवस््ार से बताया गया है. इसके साथ मे्साफ़्पानी को मैले पानी मे्तल्दील कर देता है, लिर ही परंपरागत तरीके से मल-मूत् लवसज्तन की उन से उसे नाललयो्से बहाने के नाम पर हज्ारो्करोड्र्पये तरकीबो् का भी लजक्् पुस्क मे् है, लजन्हे् आज भी की लागत से नाललयां बनाई जाती है्, उसे साफ़्करने के आजमाया जा सकता है. अपलशष््मल-मूत्खेतो्के ललए ललए सीवेज ट््ीटमेट् प्लांट लगाये जाते है,् लेलकन बावजूद उपयोगी खाद सालबत हो सकते है्, लेलकन सीवरो् के इन सबके मैला पानी हमारी नलदयो्को प््दूलषत करने का बढ्ते चलन के चलते खेतो् मे् इसका इस््ेमाल कम से सबसे अहम कारक बना हुआ है. कम होता जा रहा है. हालांलक बंगुलर् जैसे शहरो् मे् शोध अध्ययन के मुतालबक, भारत के तमाम बड्े हनीसकर ट््को्के इस््ेमाल से लकसान आज भी खाद के महानगर, जो स्माट्त लसटी की कल्पना मे् डूबे है्, अपने जल रल रल: िोपान जोशी; िांधी शांसि र् प मे ् मल-मू त्का इस््ेमाल कर रहे है्. लनवालसयो्द््ारा मैले लकये पानी को साफ़्नही्कर सकते. प्स् िष््ान; िीनियाल उपाघ्याय राि्;ा नयी इन अध् य ायो् मे्यह भी बताया गया है लक जल, थल मोटे तौर पर भारतीय महानगरो् मे् रोजाना करीब 6500 सिल्ली; 300 र्पये और मल से जुड्ी समस्याएं लजतनी आम लोगो्की वजह करोड्लीटर पानी मैला करते है्, लेलकन इन महानगरो्मे् बने सीवेज ट््ीटमेट् प्लांट की क्म् ता रोजाना 2000 करोड्लीटर पानी साफ़् से बढ्रही है्और उतनी ही सरकारी अंदाज मे्इसका हल तलाशने मे्भी. करने की भी नही् है. इसके अलावा सीवेज ट््ीटमे्ट प्लांट की अपनी मसलन, नदी साफ़्करने वालो्का शौचालय से कोई नाता नही्है. उव्रत क व्यवहालरक लदक्त् े्भी है,् कभी प्लांट को चलाने के ललए लबजली नही्होती नाललयो्मे्बहाने वाली नगरपाललकाओ्का कृलष और उव्तरक मंत्ालयो्से तो कभी सफ़्ाई कम्तचारी मौजूद नही् होते है्. न ही सीवेज ट््ीटमे्ट प्लांट लेना-देना नही्है, जो बनावटी खाद््की सब्लसडी मे्अटके हुए है्. ऐसी ही आंकड्ो्मे्दज्तअपनी क्म् ता के मुतालबक मैले पानी को साफ़्करने लायक ढेरो्लवसंगलतयो्की ओर संकेत करती है यह शोध पुस्क. पुस्क मे्कुल लमलाकर दस अध्याय है्जो हमारी जीवनशैली मे्जल, थल और मल की होते है्. ‘सिाई के मंलदर मे्बलल प््था’ शीष्तक मे्सोपान ने बताने की कोलशश शुलचता पर के्ल्दत है्. लवज््ान की जानकारी को भारतीय समाज के लवलभन्न वग््ो् की की है लक लपछले 150 साल के लवकास काल के दौरान ही सफ़्ाईकल्मतयो् जीवनशै ली और सामालजक तानबाने के साथ लजस सहज और सरल अंदाज के लोग और उनकी जालतयां इतनी शोलषत और लववश कभी नही् थी्, मे ् सोपान ने लपरोया है, उससे यह पुस्क नीलत लनध्ातरको् के साथ-साथ लजतनी अब है्. चौथा अध्याय ‘शरीर से नदी की दूरी’ हमारे नलदयो् की आम लोगो् के ललए भी पठनीय बन गयी है्. सोपान लवज््ान और परंपरा के प््दूषण पर के्ल्दत है. इसमे्सोपान ने उदाहरण सलहत बताया है लक 1858 आपसी तानबाने को सहज ढंग से पेश करना जानते है.् इस पुसक ् की एक मे् लंदन की टेम्स नदी मे् आम लोगो् का मल-मूत् इतना हो गया था लक लंदन मे्सांस लेना दूभर हो था. उस घटना को आज भी लोग ‘द ग्ट्े ब्सटंक’ और खालसयत इसके बेहतरीन रेखांकन है्, जो सोमेश कुमार ने बनाए है्. के नाम से याद रखते है्. इस बदबू के चलते टेम्स नदी के लकनारे बने कई अध्यायो्मे्एक रेखांकन ही समस्या को मूल र्प मे्लचल््तत करने मे् n ल््बलटश संसद की कार्तवाई को कई बार स्थलगत करना पड्ता था. सोपान ने कामयाब है्.
क
42 शुक्वार | 1 से 15 िरवरी 2017
एक प््देश की धड्कन
यह पुस्क असिलेश यादव के बहाने उत््र प््देश के सवकास और उसके मॉिल का मूक्यांकन करती है. अंबरीश कुमबर
से भी प््कट होता है लक इतना कायर हूं लक उत््र प््देश हूं. जनेश्र लमश्् अलखलेश यादव के गुर् रहे है्. इस पर भी एक अध्याय है. इस भावना त््र प््देश लवधानसभा का महत््वपूण्त चुनाव करीब है और राज्य के को उसके युवा मुख्यमंत्ी अलखलेश यादव पकड्ते है्और कोलशश करते मुख्यमंत्ी अलखलेश यादव अपनी ही पाट््ी और पलरवार के लववाद है्लक जो लोग अपना पता उत््र प््देश बताने मे्शम्त महसूस करते है्वे के भंवर मे् पड्े है्. इन दोनो् कथानको् पर के्ल्दत अर्ण कुमार ल््तपाठी गव्तमहसूस करे्. इसललए वे ताजमहल की अंतरराष््ीय ब््ांलडंग करते है् की पुस्क ‘अब्गनपरीक््ा’ इस बहस मे् एक स्वागत योग्य हस््क्ेप है. और पक््ी महोत्सव से लेकर पय्ातवरण और पय्तटन तक के मुद्ो् पर सचमुच इस समय प््देश और अलखलेश दोनो् अब्गनपरीक््ा से गुजर रहे गंभीरता से ध्यान देते है्. लेलकन गुटबाजी और प््शासलनक दबाव से लघरे अलखलेश की है्. अगर प््देश मे् नरे्द् मोदी के नेतृत्व मे् भारतीय जनता पाट््ी की लवशेषता यह है लक उन्हो्ने पांच साल पलरवार और पाट््ी के झगड्े पर लवजय होती है तो न लसि्फ इस प््देश का, बब्लक देश की राजनीलत का ध्यान लदये लबना प््देश के लवकास पर ध्यान लदया और लबजली, सड्क, पलरदृक्य भी अलग होगा. उसके बाद 2019 मे् मोदी की के्द्ीय सत््ा मे् डेयरी, लशक््ा, स्वास्थ्य जैसी ढांचागत सुलवधाओ्और कल्याण के कामो् को दुर्स् लकया. यह पुस्क उनके आगरा एक्सप््ेस-वे, बुंदेलखंड की वापसी की गारंटी हो सकती है, लवकास का नया मॉडल पलरयोजनाओ् और लवकास के दूसरे कामो् को बन सकता है और इस बीच लदल्ली से लखनऊ तक जमीनी स््र पर आंकने का प््यास करती है. मनमानापन भी हावी हो सकता है. यानी वह देश और पुस्क मे् मुजफ्िरनगर के दंगा-पील्डतो् प््देश के साथ लोकतंत् की भी परीक््ा की घड्ी होगी. की व्यथा-कथा भी है और अपराध की अगर बहुजन समाज पाट््ी जीतती है तो उसके पास घटनाओ् का सैद्ांलतक लवक्लेषण भी. प््देश को पांच लहस्सो् मे् बांटने का मॉडल है और वह आत्महत्या करते लकसानो् के पलरवार की प््देश को पांच खंडो् मे् लवभालजत करने का प््स्ाव कहानी भी है और पे्शन, लैपटाप और स्वास्थ्य 2011 मे् प््देश लवधानसभा से भेज भी चुकी है्. तीसरी सेवाओ्से लाभ उठाती जनता के कथन भी. लेलकन सबसे महत््वपूण्त ब्सथलत अलखलेश यादव की लेखक ने जहां संभव हुआ वहां स्वयं प््देश की सत््ा मे् वापसी की है. वह ब्सथलत इस प््देश जाकर और जहां संभव नही् था वहां अन्य को एक रखकर उसका लोकतांल्तक ढंग से लवकास पत््कारो्और लेखको्के हवाले से इस लवशाल करने वाली है. अलखलेश यादव ने अपने पांच साल के प््देश की यात््ा करने की और लोगो् के दुखकाय्तकाल मे्यह लदखाया है लक प््देश को एकजुट रखते दद्त के साथ उनकी अलखलेश यादव के नेतृत्व हुए लवकास का अपना मॉडल लवकलसत लकया जा से बनी उम्मीदो्को आंकने की कोलशश की है. सकता है. पुस्क मे् कलमयां भी है्. जैसे लक पूरी यह पुस्क अलखलेश की नेतृत्व-शैली और प््देश पु स ् क एक शैली मे् नही् ललखी गयी है. कही् के लवकास मॉडल पर उनके काय््ो् के मूल्यांकन का पर लरपोत् ातज की शैली है तो कही् लवक्लेषण एक प््यास है. सोलह अध्यायो्मे्लवभालजत पुस्क का अक्गनपरीक््ा: अर्र कुरार स््तपाठी; कौसटल्य बुखि् , पहला अध्याय उत््र प््देश की खोज है. यानी लकस तरह एफ-5/20 हसर ििन, अंिारी रोड, िसरयािंज, नयी और लवमश्त की शैली है तो कही् इंटरव्यू है्. संभव है, इसके पीछे समय और संसाधन की इस प््देश का गठन हुआ और कैसे उसके बाद उसने सिल्ली-110002; 450 र्पए दबाव भी रहा हो. लिर भी इस पुस्क मे् प््देश अंग्ेजो् को सबसे समथ्त तरीके से ललकारा भी. सन 1857 से लेकर 1947 तक यह प््देश आजादी की लड्ाई मे्अग््णी रहा, के लवकास और उसके मॉडल की लचंता गहरी है. अलखलेश यादव का इंटरव्यू इस बात को व्यक्त करता है लक लिर भी अंग्ेज उसे एक मॉडल प््ांत मानते रहे. आज देश की राजनीलत मे् इस प््देश की सशक्त उपब्सथलत उसके वे न तो तलमलनाडु और केरल के मॉडल पर काम कर रहे है्और न ही आकार के कारण तो है ही, उसके महान नेताओ्के कद की वजह से भी लबहार और गुजरात के. वे उत््र प््देश का अपना मॉडल बनाने की है. लेलकन देश को नौ प््धानमंत्ी देने वाले इस प््देश की सबसे बड्ी कोलशश कर रहे है्. पुस्क कई जगह रोचक बन पड्ी है और कई जगह लवडंबना है लक उसका हर नेता राष््ीय बनना चाहता है और वह प््देश बोलझल. जहां आंकड्ो् और योजनाओ् का लजक्् है, वहां पठनीयता के लवकास पर ध्यान लदये लबना उसकी राजनीलतक ऊज्ात को अपने बालधत होती है. कुछ तथ्यात्मक गललतयां भी पुस्क मे् है्. अलखलेश यादव पर राष््ीय कलरयर मे् इस््ेमाल करने मे् लग जाता है. यह संयोग नही् है पत् ् क ार सुनीता ऐरन ने भी एक ‘पलरवत्तन की बयार’ शीष्तक से एक लक गुजरात के पूव्त मुख्यमंत्ी नरे्द् मोदी को जब प््धानमंत्ी बनना होता लकताब ललखी है. पर मौजूदा पुस्क उससे आगे की है. अलखलेश यादव है तो वे भी इस प््देश की शरण लेते है्. पुस्क की थीम कहती है लक प््देश को बादशाहत की बीमारी लग के पांच साल के काय्तकाल और प््देश के भावी सपनो् को एक साथ गयी है. वह पूरे देश के बारे मे् सोचता है, लेलकन अपने बारे मे् नही् जोड्कर प््स्ुत करने वाली यह पुस्क अपने मुद्ो्पर लवस््ृत चच्ात की n सोचता. जनेश्र लमश््का यह कथन धूलमल की इस कलवता के माध्यम मांग करती है. यही इस पुस्क की साथ्तकता है.
उ
शुक्वार | 1 से 15 िरवरी 2017 43
मास् यायावरी ट हेड
शांसि और एकांि का यनर
िोिावरी िट का प््वेश द््ार: खारोश िौ्िय्ा
सतीश जबयसवबल
ह
म लजस होटल मे्ठहरे है्उसके ठीक सामने 'यनम गेट' है. हमारा होटल आंधप् द् श े मे् है और 'यनम गेट' से पुडच ु रे ी लग जाता है. दो राज्यो्के बीच मे्बस एक सडक का िासला है. होटल की लखडकी से देखने पर यनम की बसाहट दूर तक िैली लदख रही है. और उससे भी दूर की तरि नालरयल के पेडो्का घना हरा 44 शुक्वार | 1 से 15 िरवरी 2017
लवस््ार है. आभास होता है लक उस घने लवस््ार के ठीक पीछे समुद्लहराता होगा. लेलकन समुद् को तो हम पीछे छोड आये थे. वहां, काकीनाडा के पास, जहां गोदावरी नदी उससे लमल रही थी. कोई नदी जहां समुद् से लमलती है, अपने पूरे र्प वैभव से साथ लमलती है. वह लदव्य दृकय् होता है. उसमे् एक प््ालणकीय स्पश्त लमलता है. लेलकन यह स्पश्तभूगोल के लकसी नक़्शे मे्नही् लमल सकता. नक्शा तो बस वहां तक पहुच ं ने का
कभी फ््ांसीसी उपसनवेश रहे पुिुचेरी के पास यनम एक शांतएकांत िगह है, िहां इसतहास की सांसे्अब भी महसूस की िा सकती है्. यनम रावर से िेक्रा बहुत सुंदर सदिाई देता है. रास््ा बताकर स्थलगत हो जाता है. हम रास््ा ढूढं रहे थे जहां गोदावरी नदी अपने समुद्से लमलती है, काकीनाडा के पास बंगाल की खाडी मे्. लेलकन हम काकीनाडा से आगे लनकल आये थे और सीधे यनम पहुच ं गये. यनम गोदावरी नदी के डेल्टा मे् बसा है. कोई 9-10 लकलोमीटर पहले, जहां गोदावरी की एक सहायक नदी कोलरंगा उससे लमलती है वहां, यह डेलट् ा बनता है. 'यनम टॉवर' से दोनो्नलदयो् का लमलना लदखता है. स्थल ू काय गोदावरी और कृशकाय कोलरंगा. उससे आगे समुद् होगा, जो हम पीछे छोडकर आगे लनकल आये थे. मै्ने डेल्टा से और आगे देखने की कोलशश की. लेलकन सामने ल््कलतज था. उससे आगे कुछ नही्. इधर तेल के कुओ ं ् से आग की लपकेँ उठ रही थी्और गोदावरी के जल मे्आग की परछाइयां पड रही थी्. 'यनम टावर' पर से देखने पर पानी मे्आग लदख रही थी्. गोदावरी नदी के बेलसन मे् तेल के कुएं है.् उनसे आग की लपटे्उठती रहती है.् इन कुओ ं ्पर लरलायंस का अलधकार है. फ््ांसीलसयो् के बाद अब उनके इस उपलनवेश पर लरलायंस समूह का औद््ोलगक साम््ाज्य है. उस उपलनवेश की स्मृलतयो् को बचाकर रखने के ललए लरलायंस ने यहां यनम
टावर बनवाया है. पेलरस के मशहूर एलिल टावर की प््लतकृलत. इस पर से दूर तक लदखता है. लेलकन इसके ललए लटकट खरीदना पडता है. दूर तक फ़ैल रही शाम को इतने ऊपर से लनहारना एक मायावी अनुभव था. उस मायावी अनुभव से बाहर लनकलना कुछ भारी-भारी सा लगा. नदी के साथ चल रही काली, लचकनी सडक शाम के समय सूनी थी. दूर तक बस हम थे. उस सूनी सडक पर हम देर तक अकेले चलते रहे. यहां तक लक लरलायंस की औद््ोलगक बस््ी सामने आ गयी. लेलकन रास््े भर कोई लोग नही् लदखे. बस नदी थी,साथ पकडकर चलती हुई. शायद अंधरे े मे्अकेली छूट जाने से नदी डर रही थी. पता नही् क्यो्, डोर बांधकर सीधी लकीर मे् खी्ची हुई सी गोदावरी नदी लकसी नदी से अलधक कोई बहुत बडी नहर सी लगती रही. हमारे मन मे्जो नदी होती है वह बांक लेती हुई चलती है. लहराती है. उस पर नावे् चलती है् और लोगो् को उस पार उतारती है्. लेलकन गोदावरी कुछ अलग-अलग सी लमली. नदी से कुछ अलग. लिर भी यह एक गहरी नदी है. इस पर बडी, मालवाहक नावे्चलती है.् ये नावे्उस पार नही् उतारती् बब्लक दूर की तरि ले जाती है.् दूर,समुद्की तरि. हमने एक 'स्पीड बोट' ली. और नदी पर चक्र् लगाया. बोट वाले ने गहरी नदी पर तरह तरह के करतब लदखाये. लेलकन नदी के साथ जुडी कोई प्म्े -गाथा नही्सुनाई. गहरी नदी के पास गहरा मन होता है. और गहरे मन मे् कोई पुरानी प्म्े कहानी दबी होती है. शायद गोदावरी सूने मन की नदी है. तट पर पुललस की चौकी है जहां लसपाही तट पर मुस्ैद है् और बराबर चक्र् लगा रहे है.् ध्यान रख रहे है्लक नदी मे्
कोई दुघटत् ना ना होने पाये. गोदावरी गहरी नदी है और उसमे्डूबने का डर है. यनम पुललस की टोपी अभी तक लाल रंग वाली वही फ््ांसीसी टोपी है जो उन लोगो् के समय मे् रही होगी. मलहला लसपालहयो् की टोपी भी ऐसी ही है. एक जैसी. और उन पर अच्छी सजती है. 'यनम गेट' से भीतर होते ही मै् उपलनवेश-काल के वो पुराने लनशान ढूढं ने लगा था लजनका 300 वष््ो्का जीवन-काल रहा है. इन 300 वष््ो्मे्यहां डच भी रहे और फ््ास ं ीसी भी आये. लेलकन उन लदनो् के कोई बकाया लनशान अभी तक नही्लमले थे. ना देखने मे,् ना उनके स्पदं न मे.् यनम पुललस की लाल रंग वाली फ््ांसीसी टोपी ने उन लदनो् का पहला भरोसा कराया. फ््ांसीलसयो् से पहले उनके इस उपलनवेश पर, डचो् का आलधपत्य था. लेलकन अब यहां डच बचे और ना फ््ांसीसी, लसवाय उन 10 फ््ास ं ीसी पलरवारो्के जो अब यही्के है.् लेलकन हम उन्हे्ढूढं नही्पाये. ढूढं ते तो उन तक पहुच ं सकते थे. मैन् े पता भी कर ललया था लक यहां के म्यलु नलसपल स्कल ू के पास ही कही्वो लोग रहते है्. लेलकन मन मे् एक दुलवधा थी. एक मनुष्य जालत को लकसी समय के अवशेष की तरह देखना कही्उनके मन को दुखा गया तो? सन 1956 के बाद से तो अब यहां फेच ् पढाई भी नही् जाती जो उनके अपने पूवज त् ो् की मातृभाषा रही है. इन बच गये पलरवारो्के लोग शायद अपने घरो्मे्ही फेच ् मे्बात करते हो्ग,े जो उनके पास छोडकर उनके पूवज त् यहां से चले गये. लिर भी उनको देखना एक मनुषय् जालत को लगभग 300 वष््ो्की उस लनरंतरता मे्देखने का रोमांच तो होता ही, लजसे अब इलतहास मे्स्थलगत हो जाना है. वैसे ही, जैसे कही्तक पहुच ं ने का यनर का िरुद् िट: नीले रंि की स्रृसि
रास््ा बताकर लकसी नक़्शे का भूगोल मे्स्थलगत हो जाना. इसमे्फ््ास ं ीलसयो्का आना और डचो् का जाना, दोनो्शालमल है. यनम सन 1731 मे् फ््ास ं ीलसयो्के अलधपत्य मे्आया था. तभी वहां के लोग यहां आये हो्ग.े और उन लोगो्ने डचो् को यहां से जाते हुए देखा होगा, जो उनसे पहले यहां आये थे. लिर भी मेरा अनुमान था लक उन औपलनवेलशक लदनो् का कुछ स्पश्त, कुछ गंध, कुछ अनुभूलत यहां बाकी होगी. जैसे वहां, पल््िम बंगाल के चंदन नगर मे् वह अब तक बची हुई है. वहां के पुराने घरो् के ऊंचे कमानीदार दरवाजो्-लखडलकयो् मे् और फे्च स्थापत्य वाले चच््ो्के मेहराबो्-कंगरू ो्मे.् और तो और उन चच््ो्मे्आने वाले धम्ानत यु ाइयो्के लदखने मे्. और उनके जातीय-सामालजक संस्कारो् मे् भी. चंदन नगर भी यनम की तरह एक फेच ् उपलनवेश रहा है. और इसकी ही तरह फ््ास ं ीलसयो्से पहले डचो्के आलधपत्य मे्रहा. पुदुचेरी का फ््ांसीसी उपलनवेश 4 भौगोललक-प्श ् ासलनक खण्डो्मे्बंटा हुआ था पुदच ु रे ी, कराईकल, माहे और यह, यनम. यह पुदुचेरी से 870 लकलोमीटर की दूरी है. और आंधप् द् श े से लगा है. यहां पहुच ं ना आंध्के ही लकसी लहस्से मे् पहुंच जाने जैसा लगा. बोलीबानी मे्, पहरावे-ओढने मे् और रीलत-लरवाजो् मे,्भी. दूसरे लदन हमे,् यहां के चच्तमे्हो रहे एक लववाह-संसक ् ार को देखने का अवसर लमल गया. वर-वधू सलहत, उसमे् शालमल सभी लोग स्थानीय तेलुगुभाषी ईसाई थे. और लववाह की उनकी लवलधयां वही देसी-स्थानीय थीँ जो उनके पूव्तजो् के समय मे् भी रही हो्गी. इन लोगो् ने अपने यहां की लववाह लवलधयो्और अन्य रीलतलरवाजो्को उन लदनो्मे्भी बनाये रखा था लजन लदनो्यहां फ््ास ं ीलसयो्का अलधपत्य था. यहां और आसपास के स्थानीय समुदायो्मे् बाल- लववाह का चलन लंबे समय तक रहा है. ल््बतानी भारत मे्बाल-लववाह प्ल्तबंलधत हो जाने के बहुत लदनो् बाद तक भी. आसपास के लोग यहां,यनम मे् आकर बाल-लववाह कराया करते थे. बाललववाह का लनषेध करने वाला शारदा कानून यनम मे्बहुत बाद मे्लागू हुआ. ऐ्ग्लो-इंलडयनो् की तरह फ््ांसीसी और स्थानीय रक्त के मेल-लमलाप से उपजी नस्ल को 'ल््कयोल' कहा गया. लेलकन यनम मे् स्थानीय समुदायो् के साथ ऐसा घुलना-लमलना शायद कम हुआ. अलबत््ा यहां के अलधकांश तेलुगुभाषी स्थानीय लोगो् ने अपनी स्थानीयता को बनाये रखते हुए फ््ास ं की नागलरकता लेना पसंद लकया. लकसी औपलनवेलशक नगर या पुराने पत््न की पुरातनता तक पहुंचने का एक आजमाया शुक्वार | 1 से 15 िरवरी 2017 45
मास् यायावरी ट हेड
यनर का एक चच्ा: फ््ांिीिी वास््ुकला
हुआ तरीका मेरे पास है. वहां की सबसे पुरानी लकसी शराब की दुकान तक पहुंचते ही उस पुरातनता की आहट लमलने लगती है.् मैन् े अपना वही तरीका यहां भी आजमाने की कोलशश की. यनम मे् शराब सस््ी है. इसललए, लवशाखापत्न् म और आसपास के शौक़ीन लोग शराब पीने के ललए यहां चले आया करते है.् वैसे कुछ शौक़ीन लोग तो लदखे और शराब की दुकाने् भी लदखी्. लेलकन शराब की वैसी कोई पुरानी दुकान नही्लमली लजसके पास उस पुरातनता की आहट हो रही हो. ऐसी कोई पुरानी दुकान यहां होगी जर्र, लेलकन हम वहां तक पहुच ं नही्पाये. यनम 1963 मे् लवलधवत भारत संघ के के्द् प्श ् ासन के अंतग्तत आया. लेलकन लवलय के इन 50-60 वष््ो्के समय मे्ही 300 वष््ो्का लंबा उपलनवेश-काल यहां इतना लनस्पदं हो चुका है लक उसकी आहट तक नही्लमल रही है! आज का यनम पूरे तौर पर इन 50-60 वष््ो् की एक नयी बसाहट है. लकसी मध्यम दज्ता औद््ोलगक बस््ी जैसी. करीने से बसाई गयी कालोलनयां. साफ़-सुथरी सडके्. और उन पर तरतीब से की गयी रोशलनयां. मुख्य सडक के दोनो् लकनारो् पर, हमारे अपने समय के राजनेताओ् की, प््लतमाओ् की कतारबद्् सजावट. सभी प््लतमाये् सुनहरे रंग के पानी से एक जैसी रंगी हुई है्. देखने मे्, यह सजावट अर्लचपूणत्लगती है.् और लवचार मे,् कही्-कुछ खटकता भी है. डचो्और फ््ास ं ीलसयो्के पास उनका अपना मूल्तत लशल्प था. सेरामपुर और चंदननगर जैसे उनके दूसरे उपलनवेशो् मे् उनका अपना मूलत् लत शल्प उनके शासको्और इलतहास नायको् की प्ल्तमाओ्मे्लदखता है. लेलकन यहां, यनम मे्उनकी कोई प्ल्तमा नही्लदखी. शायद हटा दी गयी हो्गी. या शायद, हम वहां नही्पहुच ं सके है.् अभी तक तो हम लोग वहां भी नही्पहुच ं सके थे जहां वो लोग रहा करते हो्गे. उनके घर, 46 शुक्वार | 1 से 15 िरवरी 2017
उनके बाजार. कुछ ना कुछ तो वहां लिर भी बाकी होगा ! लोगो् की स्मृलतयो् मे्, लकस्सेकहालनयो्मे.् चाहे नदी के पास यहां कोई प््ेम-कहानी नही्है , लेलकन 300 बरसो्के इतने लंबे लदन लबना लकसी कहानी के कैसे हो सकते है्? यनम मे् फ््ांसीसी भूतो् की कहालनयां भी बताई जाती रही है्. फ््ांसीसी भूत और उनके करतब हमारे यहां के भूतो्और उनके करतबो्जैसे ही रहे हो्गे या उनसे कुछ अलग ? यह जानने की लजज््ासा होती है. क्मसान और वीराने हमारे यहां के भूतप््ेतो् के रहने और उनके लमलने की जानीपलहचानी जगहे्होती है.् तो फ््ास ं ीसी भूत भी यहां ऐसी ही लकन्ही्जगहो्मे्रहते हो्ग.े और रातो्मे् लनकलते हो्ग.े यनम मे् डच या फ््ांसीसी शासको् और उनके इलतहास नायको् की कोई प््लतमा नही् लदखना एक खटकने वाली बात भी थी. लेलकन फेच ् शासको्की स्मलृ त मे्एक चच्तयहां जर्र है. सेन्ट ऐन्स कैथललक चच्त फे्च शासको् की स्मलृ त मे् बनवाया गया था. यह, यहां के पुराने चच्त से बाद का है. यनम का पुराना चच्त तो 1769 का है. लेलकन शासको् की स्मृलत मे् बनवाया गया सेन्ट ऐन्स चच्त 1846 का है. यूरोपीय लशल्प मे् बने इस चच्त का लशलान्यास लकन्ही् िादर लमशेल लेकनम ने लकया था. लेलकन चच्तके पूरा होने से पहले ही उनकी मृतय् ु हो गयी. चच्तके सामने ही पुरानी लसमेट्ी है. वह धूप मे्लनस्पदं पडी हुई लमली. लसमेट्ी के भीतर वीराने का वास था. और दरवाजे पर पडा हुआ ताला, मालूम नही्कब से नही्खुला था. शायद अरसे से यहां लकसी का आना-जाना नही् हुआ था. लकन्ही् के नाते-लरक्तेदार भी शायद अब उतनी दूर, फ़्रांस से चलकर यहां नही्आते हो्ग.े डचो् के पास नील की खेती करने का कौशल था. उन्हो्ने अपना यह कौशल भारतीयो्
शहर की सिरेट्ी के पाि लेखक: अिीि की यात््ा
को लसखाया था. वहां, बंगाल के सेरामपुर और चन्दन नगर मे् तो स्थानीय लोगो् को नील की खेती करने का कौशल डचो्ने ही लसखाया था. यहां, यनम मे्भी लसखाया होगा. उनके समय मे् यनम नील का एक बडा व्यापालरक के्द् रहा होगा. यहां से उनके व्यापालरक जहाज गोदावरी नदी के रास््ेसमुद्के ललए लनकलते हो्ग.े और दूर देशो् तक जाते हो्ग.े अब यहां उन लदनो् के नील के कुओ ं ् के अवेशष भर रह गए है.् नील का रोजगार-व्यापार नही्. यनम मे्कोई बडा युद्हुआ हो, ऐसा कोई उल्लख े नही्लमलता. लिर भी डचो्ने यहां, पास के ही एक गांव -- नीलपल्ली मे्अपने ललए एक लकला बनवाया था. शायद, लकले मे् उनका खजाना रहा होगा. यहां उनकी अपनी टकसाल भी थी. वहां मुद्ाएं ढाली जाती थी्. वहां जाने और उस टकसाल को देखने का मन था. लेलकन अब वहां ना उनका लकला बचा और ना ही उनकी टकसाल. डचो्के जाने के बाद यनम फ््ास ं ीलसयो् का हो गया. और नीलपल्ली गांव अंग्ेजो् के आलधपत्य मे्आ गया. उन लदनो् मंगलवार के लदन भरने वाला, यनम का साप्तालहक हाट 'मंगलावरम' बडा प््लसद्् था. उसकी प््लसल््द वहां लमलने वाले इम्पोट्ड ्े सामानो्के ललए थी. और उन लदनो्मे् भी भारतीयो्को 'इम्पोट्ड ्े ' सामान ललचाता था. इसके ललए दूर-दूर से लोग यहां आते थे. यह देखकर अंगज ्े ो्के आलधपत्य वाले नीलपल्ली ने भी अपने यहां 'मंगलवारी हाट' शुर्कर लदया. इस पर अंगज ्े ो्और फ््ास ं ीलसयो्के बीच एक लंबा लववाद चला. यह लववाद, उस समय के मद््ास प्ल्ेसडेस ् ी तक पहुच ं ा, जो अंगज ्े ो्का मुखय् ालय था. वहां इस लववाद का िैसला यनम के पक््मे् हुआ. यनम का वह 'मंगलवारी हाट' तब से चला आ रहा है. क्या उन लदनो् की कुछ रौनक वहां आज भी बची हुई होगी? क्या पता. लजस लदन हम लोग वहां थे, वह मंगलवार का लदन नही्था.n
मास् िानपान ट हेड अर्ण कुमबर ‘पबनीबबबब’ (पानी बाबा नही्रहे. पानी बाबा अमर रहे्. समाज के ललए जीने वाला लेखक और काय्तकत्ात कभी मरता नही्. अर्ण कुमार पानीबाबा ने मौसम के अनूकूल बनने वाले भारतीय व्यंजनो्पर ललखकर स्वाद और सेहत संबंधी समाज की समझ को लजंदा रखा है. उनके कालम को बंद करना संवाद के अलवरल प््वाह को बंद करना है. इसललए शुक्वार के सुधी पाठक बाबा की रसोई मे्लकलसम-लकलसम के स्वाद आगे भी पाते रहे्गे.)
भोजन सेउपचार
मै्ने अंकुसरत-पंचनािा रोरी उन्हे्परोसी थी और आग््ह सकया था सक वे गेहूं-चावल िाना बंद कर दे्.
अ
त्यंत खेद एवं संकोच के बावजूद यह कहना पड् रहा है लक आधुलनकता और बीमारी-महामारी मे्गहरी परस्परता है. सामालजक, सामूलहक स््र पर देखे् तो ऐसे समाज जहां एड्स, पोललयो, पागल गाय, लचकनगुलनया, स्वाईन-फ्लू आलद के ‘लनराकरण’ पर चच्ात, उद््म, लचंता और प््यास जारी नही्है उसे लकसी भी तरह आधुलनक तो नही् माना जा सकता. लगभग यही पलरब्सथलत, मानलसकता लनतांत लनजी एवं व्यब्कतगत स््र पर है. यलद आप बच््े है् तो आपको थाइरायड, साइनोसाइलटस, लरकेट्स वगैरह कुछ होना चालहए, आप व्यस्क है् जवान है् तो आपको अपच, कोलाईलटस, रक्तचाप, स्नायु तंत्पर अत्यालधक दबाव, लखन्नता, उदासी, हताशा, लनराशा (यानी लडप््ेशन) जैसी कोई एक, दो, तीन बीमारी होनी ही चालहए. आप अधेड् हो गये है्, बुजुग्त हो रहे है् तो आपको ह्दय रोग, मधुमेह, कै्सर, आथ्तराईलटस (लहंदी मे्तो सरल सा नाम है- बाय) जैसी कोई भारी-भरकम बीमारी होनी ही चालहए. कम-से-कम लकसी हकीम, वैद,् नानी, दादी, ताई, चाची, बुआ, मौसी से क्यो्नही्पूछना चालहए लक इस तरह की तमाम बीमालरयो्का देसी घरेलू इलाज होता है या नही्. पहले, लोलहया और प््भाष जी की दो समानताओ्का लजक््जर्री है. दोनो् ‘गांधीवादी’ थे और ल्क ् केट प््ेमी. डॉ. साहब भारत मे् ल््ककेट के प््सारलवस््ार के लवरोधी थे क्यो्लक इस खेल को मूलत औपलनवेलशकता का प््तीक मानते थे. प््भाष जी का ल््ककेट प््ेम इस तरह की नुक्ता-चीनी से ऊपर था. डॉ. लोलहया की आत्मछलव एक आदश्त गांधीवादी की थी लेलकन उन्हो्ने आधुलनक लवज््ान के ललए लनज जीवन का बललदान कर लदया. उनकी मृत्यु के लदन गुस्सा अनाथ हो जाने का था, लकंतु जैसेजैसे यह समझ आ रहा है लक लोलहया गांधीवादी कम और आधुलनकतावादी ज्यादा थे, वैसे-वैसे उनके प््लत गुस्सा भड्कता रहता है. जब भी प््भाष जी को ढेरो्दवाइयां खाते देखता या लंबी सी सुई जांघ या पेट मे्घुसेड्कर इंसुललन का प््वेश कराते देखता तो डॉ. साहब के प््लत मेरा गुस्सा और भड्क जाता गांधी के बाद वह संभवत: अकेले नेता थे जो देशजता की लमसाल कायम कर सकते थे. यही वजह थी लक उनके ममत्व से पलरलचत हो जाने के बावजूद मै् उनसे कम ही लमलता था. ‘अन्न-जल’ लेखमाल का संकलन पुस्क र्प मे् शीघ््ताशीघ्् प््कालशत हो- इस संबंध मे् पलरवार के मुलखया कीतरह सल््कय र्लच वही ले रहे थे. लेलकन न जाने, मुझे यह आभास भी होता है लक उनके जीवन मे् जो 60 संवाद प््कालशत हुए उनमे् से एक भी उनकी नजर से नही्गुजरा. हमारी आलखरी मुलाकात 8 अक्टूबर को जवाहरलाल
नेहर् लवश््लवद््ालय के एक सभागार मे् हुई थी. उन्हो्ने लोकनायक जयप््काश नारायण स्मृलत व्याख्यान लदया था. उसके बाद अलतलथगृह मे् भोजन साथ-साथ लकया था. मै्ने अपने लटलिन मे्े से अंकुलरत-पंचनाजा रोटी उन्हे् परोसी थी-यह आग््ह लकया था लक वह गेहूं-चावल खाना लबलकुल बंद कर दे्. उस लदन भी वही्अलतलथ गृह मे्भोजन से ठीक पहले प््भाष जी ने पीड्ादयक इंसुललन का इंजेक्शन लगाया था. यहां इस संवाद मे् डॉ. लोलहया और प््भाष जी की स्मृलत मे्, एक ही संकल्प प््स्ालवत करना चाहता हूं लक हर गांधीवादी, स्वदेशी-स्वराज के दश्नत से सहमत व्यब्कत को यह संकल्प करना चालहए लक बीमारी का सहज देशज इलाज उपलल्ध नही्होगा तो्मृत्यु को प््ारल्ध मानकर स्वीकार कर ले्गे, लेलकन ऐलोपैथी नाम की आध्ुलनक लनरोग-पद््लत का उपभोग नही् करे्गे. इस सूत्काे माने्और इस संकल्प का दृढ्ता से पालन करे्तो (अ) भूतपूव्तप््धानमंत्ी मोरारजी भाई और प््लसद्् सव््ोदय नेता लसद््राज ढढ््ा की तरह 100 वष्तकी आयु तक जीवन सहज संभव है. मधुमेह को बहुत ही धोखेबाज, अलनयलमत बीमारी माना जाता है. लसवाय अत्यंत अनुभवी वेदाचाय्त के अन्य लचलकत्सक इसे ला-इलाज ही मानते है्. इस संबंध मे् एक अनुभव आपके साथ बांटना है. मेरे अत्यंत सहयोगी-साथी डॉ. ओ्कार लमत््ल (एम.बी.बी.एस.) को चार बरस पहले एक लदन अचानक पता चला लक उनके रक्त मे् मधुमेह 400 लमलीग््ाम प््लत 100 लमली लीटर से भी अलधक रहने लगा है. डॉ. लमत््ल ने मेलडकल साइंस मे्स्नातक की पदवी ग्ह् ण करने के बाद प््ैब्कटस का अनुभव थोड्े लदन भी नही् लकया- वह शुर्आत मे् ही यह तथ्य बूझ गये लक जो कुछ भी आधुलनक मेलडकल कॉलेज मे् लसखाया-पढ्ाया जाता है- उस संपूण्त लवद््ा का बीमारीइलाज से संबंध न्यूनतम है. उनकी लवचार-यात््ा की कहानी लंबी हैउसकी चच्ात यहां संभव नही् है. लकंतु जब इतनी तीव््गलत का मधुमेह हो गया तो इलाज तो करना ही था और उस समय तक वह सुश्ुत संलहता का अध्ययन कर चुके थे. इस तथ्य से अवगत थे लक आज से 1600-1700 बरस पूवत्आयुवद्े शास््मे्मधुमहे के कारण, प्भ् ाव, लनराकरण की ठीकठीक समझ थी. बस डॉ. लमत््ल ने सुश्ुत की सलाह के अनुर्प-सुबह शाम लंबी सैर शुर् कर दी और थोड्ा आहार-लवहार, दैनलदन आचरण मे् पलरवत्तन कर ललया- मधुमेह चार बरस से सामान्य है, बीच-बीच मे्नाप जोख अवक्य आधुलनक लैब मे् करवाते रहते है्. आधुलनक तकनीकी पर इतना सा आल््शत होना तो शायद आपल््तजनक नही्है. नाड्ी ज््ान-लसद््वेदाचाय्ततो n शायद उतनी लनभ्तरता भी जर्री नही्मानते. शुक्वार | 1 से 15 िरवरी 2017 47
मास् घिल्ट महेड
खलनायक से कुछ कम
शाहर्ि िान ‘रईस’ मे्शराब मासफया की सफल भूसमका के कारण आत्मसवश््ास से भरे हुए है्. उनकी सपछली सफक्म 'सियर सिंदगी’ ने अच्छा व्यवसाय सकया और अब 'रईस’ से भी उन्हे्ऐसी ही उम्मीदे्है्. हठर मृदुल
शा
हर्ख खान आत्मलवश््ास से भरे हुए है.् उनकी लपछली लिल्म 'लडयर लजंदगी’ ने अच्छा व्यवसाय लकया और अब 'रईस’ से भी उन्हे् ऐसी ही उम्मीदे् है्. राहुल ढोललकया के लनद्श ्े न मे्बनी इस लिल्म मे्लकंग खान के साथ पालकस््ानी अदाकारा मालहरा खान की जोड्ी है और नवाजुद्ीन लसद््ीकी भी एक अहम लकरदार मे्है्. बातचीत के प््मुख अंश. फिल्म 'रईस’ मे् आपका फकरदार नकारात्मक माना जा रहा है. आपकी भूफमका फकस हद तक खलनायक की है? इस लिल्म मे् मेरा लकरदार कुछ हद तक जर्र नेगेलटव है, लेलकन आप मुझे लवलेन नही् 48 शुक्वार | 1 से 15 िरवरी 2017
‘रईि’ रे् शाहर्ख खान: रासफया का कारयाब सकरिार कह पाये्गे. यह एक ऐसा रोल है, लजसमे् वह डायरेकट् र है.् इस लिल्म मे्उन्हो्ने बहुत मेहनत खून खराबे की लजम्मेदारी अपने ऊपर लेता है की है, उम्मीद है लक पलरणाम बेहतर लनकलेगा. और मािी मांगता है. मेरा लकरदार गलत काम असल मे्इस लिल्म की पूरी टीम ही उम्दा थी. को जस्टीिाई करनेवाला नही्है. हां, उसे अपने मै्तो यह कहूंगा लक जब बहुत सारे अच्छे लोग लकये पर पि््ाताप है. इस लकरदार की यही लमल जाते है्, तो अच्छा काम सामने आता ही लवशेषता भी कह सकते है्. यह कोई मैसेज है. इस लिल्म की शूलटंग के दौरान कािी देनेवाली लिल्म नही्है, लेलकन इससे एक बड्ी लदक््ते् आई्, लेलकन अंत मे् हम इन सबसे सीख जर्र ली जा सकती है लक हर लकसी को लनजात पा गये. कई बार चोलटल हुआ और कई अपने लकये पर लवचार करना चालहये और अपनी बार शूलटंग कै्लसल हुई. लिल्म की लरलीज डेट गलती स्वीकार करनी चालहये. आगे लखसकती रही. परंतु हममे्से लकसी ने हार 'रईस’ शीष्षक की सार्षकता क्या है? इसे नही्मानी. सच तो यह है लक मै्ने इस लिल्म मे् आपने फकस नजफरये से देखा है? अपने काम का मजा ललया. बहुत अच्छी तरह रईस का मतलब अमीर नही् होता है. ललखी गयी लिल्म है यह. इसका सही अथ्तहोता है एक अच्छे लदल वाला. क्या यह फिल्म फकसी सच््ी घटना से प्फ्े रत हालांलक मेरा यह लकरदार शुर् मे् अच्छे लदल है? का नही्है. बाद मे्बदलता है वह और सच््ाई नही्, यह पूरी तरह काल्पलनक कहानी है. का समथ्तन करता है. लिल्म मे्कािी झगड्ेहै्. अगर लकसी से इसकी समानता लदखती है, तो एक्शन है. अंत मे्यही िलसिा है लक लदल से यह महज इत््िाक ही होगा. इस लिल्म की अपनी गलती माने्, तो ऊपर वाला माि कर कहानी के बारे मे् कई तरह की बाते् हो रही है् देता है. यह एक लवशुद्कॉमल्शतयल लिल्म है, और कई तरह के कयास लगाये जा रहे है्, लेलकन इसका क््ाफ्ट दूसरो्से अलग है. लेलकन मै् स्पष्् कर देना चाहता हूं लक यह राहुल ढोलफकया की इमेज ऑिबीट लकसी एक व्यब्कत के जीवन पर आधालरत लिल्म फसनेमा के डायरेक्टर की है. उन्हो्ने गुजरात नही्है. यह एक खास कालखंड की लिल्म है, के दंगो् पर 'परजाफनयां’ जैसी फिल्म दी है. इसललए लोगो्को लग रहा है लक लकसी व्यब्कत सार काम करने का अनुभव कैसा रहा? लवशेष पर बनायी गयी है. राहुल ढोललकया के साथ मै्ने पहली बार फिल्म को बनने और फरलीज होने मे् इतनी काम लकया है, लेलकन वे एक बड्ेलवजन वाले देर क्यो् लग गयी? आपकी फिल्मे् तो तय
वक्त पर ही बनती और प््दफ्शषत होती है्? कई बार ऐसा होता है लक लदक््ते् आती जाती है् और कम होने का नाम नही् लेती है्. इस लिल्म के ललए भी कई लकस्म की र्कावटे् आती गयी थी्. इसकी शूलटंग के दौरान ही चोट लग गयी थी. इसका भी बुरा असर पड्ा. लंबे समय तक मै्शूलटंग नही्कर पाया. यह सच है लक इस लिल्म के बारे मे् 2010 मे् सोचा गया था. लिर स्क्ीन प्ले बनने मे् समय लग गया. प््ोड््ूसर के तौर पर मेरे अलावा िरहान अख्तर और लरतेश लसधवानी भी शालमल हो गये. बाद मे् जब लिल्म बनने लगी तो इसके बनने की चाल बड्ी धीमी थी. लेलकन लिल्म आगे बढ्ती रही. हमने धैय्त रखा और पूरी एनज््ी के साथ काम लकया. यही वजह है लक थोड्ी देर हो जाने के बाद भी इसमे् एक फे्शनेस है. एक नयापन है. आपके अफभनय कैफरयर को आगे बढ्ाने मे् एंटी हीरो फकरदारो् का बड्ा योगदान है. क्या यह सही है फक आपको भी एंटी हीरो फकरदार ही ज्यादा लुभाते है्? नही्, ऐसा लबल्कुल भी नही्है. मुझे हर वह लकरदार लुभाता है, लजसमे्कुछ नया करने को होता है. यह सही है लक कई बार एंटी लकरदार ज्यादा आकल्षतत करने लगते है्. एक एक्टर के तौर पर उनमे् कािी कुछ करने की संभावना लदखने लगती है. इस तरह के लकरदार ज्यादा चुनौती देते है्और इन्हे्अलभनीत करने के ललए एक जुननू की जर्रत होती है. 'बाजीगर’, 'डर’ और 'अंजाम’ जैसी लिल्मो्मे्मै्ने एंटी हीरो का
लकरदार इसललए अदा लकया, क्यो्लक ये सभी चुनौतीपूण्त रोल थे. दश्तको् ने इन्हे् बहुत पसंद लकया. अगर ये दमदार भूलमकाये्नही्होती्, तो दश्तक इन्हे् खालरज कर देते. वैसे भी इंसान के स्वभाव मे् है लक वह बुरी चीजो् को जानने के ललए ज्यादा उत्सुक नजर आता है. यही वजह है लक अंडरवल््ड या स्मगलरो् पर बनी लिल्मे् कािी चलती है्. इस लिल्म मे्मेरी भूलमका एक शराब मालिया की है. इसमे्एक खास दौर की कहानी होने की वजह से दश्तको् को पय्ातप्त रोचकता भी लमलेगी. पहली ही बार आप और नवाजुद्ीन सार परदे पर फदखायी दे्गे. नवाजुद्ीन के बारे मे् आपका क्या कहना है? वे बहुत अच्छे एक्टर है्. उन्हो्ने बेहतरीन काम लकया है. लिल्म को खूबसूरत बनाने मे् उनका भी योगदान है. अक्सर होता है लक लिल्म की अच्छाई का सारा के्लडट हीरो ले जाता है, तब नवाज जैसे एक्टर के साथ अन्याय होता है. इस लिल्म की लरलीज के बाद लोग नवाज के काम को कािी चच्ात लमलेगी और उनके अलभनय को पय्ातप्त सराहा जायेगा. वे इस लिल्म के एक बड्ेप्लस पॉइंट है्. मै्जोर देकर यह बात कहना चाहता हूं लक हीरो ही सबकुछ नही्होता है. दूसरे अच्छे एक्टरो्की भी लिल्म को जर्रत होती है. लिल्म चलाने के कई टैले्ट एक साथ अपना योगदान देते है्. कुल लमलाकर यही लक नवाज की मौजूदगी का भी अपना एक आकष्तण है. इस फिल्म की हीरोइन पाफकस््ानी एक्ट्ेस
‘रईि’ रे् शाहर्ख और रासहरा खान: भारि-पाक िोस््ी
माफहरा खान है्. फिल्म के प््मोशन के फलए उन्हे् नही् बुलाया गया? इस बारे मे् लिल्म के प््ोड््ूसर लरतेश लसधवानी ने लनण्तय ललया था. उन्हे् लगा लक लिल्म के प््चार के ललए मै् ही कािी हूं. इसी वजह से प््मोशन के ललए मालहरा की जर्रत नही् पड्ी. थोड्ा डर भी था. उन्हे् बुलाते, तो बेवजह बखेड्ा भी हो सकता था. हालांलक उन्हे् वीजा की कोई समस्या नही्आ रही थी. फिल्म मे् सनी फलयोनी का एक खास आइटम है. सनी के सार भी आप पहली बार फकसी फिल्म मे् फदखायी दे्गे? सनी ललयोनी पर एक पुराना पॉपुलर गाना 'लैला ओ लैला...’ लिल्माया गया है. इस गाने मे्वे एकदम लिट है्. वैसे भी वे बहुत चाल्मि्ग है्. वे कािी प््ोिेशनल भी है्. असल मे्इस लिल्म की कहानी अस्सी और नल्बे के दशक की है, इसललए इसमे् उसी जमाने के गाने है्. उसी जमाने का फ्लेवर भी है. 'रईस’ के सार ही 'काफबल’ भी फरलीज होने जा रही है. एक बार फिर फटकट फखडक़ी पर टकराव का वातावरण बनेगा? ऐसी ब्सथलत से हम बच नही् सकते है्. असल मे्हमारी इंडस्ट्ी मे्हर साल दो-ढाई सौ लिल्मे्बनती है्. जालहर है लक ये लकसी न लकसी शुक्वार तो लरलीज होती ही है्. अब बहुत कम लिल्मो् को अकेली लरलीज होने का मौका लमलता है. देखा जाये, तो कोई भी लिल्म अकेली लरलीज नही् होती है. उसके साथ छोटी-मोटी लिल्मे्लरलीज होती ही है्. मै्दुआ करता हूं लक दोनो्ही लिल्मे्अच्छा प््दश्तन करे्. पहले दोनो् की फरलीज 26 जनवरी री, लेफकन अब इन्हे् एक फदन पहले फरलीज फकया जा रहा है. ऐसा क्यो्? इसललए लक 26 जनवरी की छुट्ी का िायदा लमल सके. एक लदन पहले लोग लिल्म देखने आये्गे, तो इसका हमे् अवक्य िायदा पहुंचेगा. लिल्मो् का कलेक्शन बढ्ेगा. 'रईस’ 25 जनवरी को सभी शो मे् चलेगी, लेलकन 'कालबल’ शाम के शो मे् ही लदखेगी. हालांलक इस तरह के लनण्तय मे् एक्टर की कोई दखलंदाजी नही् होती है. लिल्म कब लरलीज होगी, यह प््ोड््ूसर ही तय करता है. फरएटरो् की संख्या पय्ाषप्त न होने की वजह से भी तो फदक््त आ रही है? वाकई यह एक बड्ी समस्या है. हमारे यहां लिल्मे्तो बड्ी संख्या मे्बनती है्, लेलकन उन्हे् प््दल्शतत करने के ललए कािी कम लसनेमाघर है्. मल्टीप्लैक्स के आने से थोड्ी राहत जर्र हुई है. लेलकन अब भी लथयेटर की संखय् ा कािी कम है. छोटे शहरो्मे्लथयेटर बढऩे चालहये. इस पर काम चल तो रहा है, देलखये लक कब इस समस्या का समाधान लनकलता है. n शुक्वार | 1 से 15 िरवरी 2017 49
अंितम पन्ना सुधीरे्द् शम्बा
होने दीजिए दौड़
बैलो्की दौर की परंपरा कई राज्यो्मे्प््चसलत है और इसका अस््सत््व ससंधु घारी सभ्यता के वत्त से है.
सां
ढ्और इंसान के बीच खेले जाने वाले और अब कुख्यात हो चले खेल जलीकट््को लेकर लछड्ा लववाद खत्म होने का नाम ही नही् ले रहा. तमाम लोग इस परंपरा के बचाव मे्उतर आये है्. वही्दूसरी ओर पशु अलधकार काय्तकत्ात इसे बंद करवाना चाहते है्. तलमलनाडु सरकार और के्द् सरकार दोनो् जन भावनाओ् के साथ है् लेलकन अंलतम लनण्तय सव््ोच््न्यायालय को लेना है. नतीजा चाहे जो भी हो लेलकन तमाम संकेत यही है सरकार पशु अलधकार काय्तकत्ातओ्के लवरोध के बावजूद इस खेल को लकसी न लकसी तरह जारी रहने देगी. जीत लकसी भी पक््की हो लेलकन इससे सबसे अलधक प््भालवत हो्गे तलमलनाडु के छोटे कस्बे और गांव. इस पूरे मामले को पशुओ्के लखलाि कू्रता के चक्मे से देखा जा रहा है जबलक इसका ताल्लुक स्थानीय अथ्वत य् वस्था से भी है जो न केवल देसी नस्लो्को लवकलसत करती है बब्लक इन्ही् पर आल््शत है. उसकी अनदेखी की जा रही है. पशु आधालरत इस अथ्तव्यवस्था को पहुंचे नुकसान का असर तत्काल नही् तो कुछ वष्त मे् प््त्यक््होकर सामने आयेगा. एक बात का आकलन अब तक नही्लकया जा सकता है लक इस प््लतबंध का देसी नस्लो् के भलवष्य और ग््ामीण अथ्तव्यवस्था पर क्या असर होगा? सव््ोच््न्यायालय ने दो वष्तपहले कहा था लक सांढ्ो्को ऐसे प््दश्तन के ललए नही्इस््ेमाल लकया जा सकता है. लिर मामला चाहे जलीकट््का हो या देश मे्कही्होने वाली बैलगाड्ी दौड्का. इसके बाद पशुओ्के साथ अत्याचार लनरोधक अलधलनयम 1960 की धारा 22 मे् संशोधन करने की बात कही गयी. इस संशोधन मे्कहा गया था लक देश के लकसी भी इलाके मे् प््लशल््कत जानवरो् को रस्मी तौर पर इन आयोजनो्मे्शालमल लकया जा सकता है. प््स्ालवत संशोधन को अभी संसद की मंजूरी लमलनी बाकी है. भारतीय जैव लवलवधता संरक््ण पलरषद के झंडे तले कई संगठनो् के समूह (बीसीसीआई) ने जैव लवलवधता संबंधी समझौते के अनुच्छेद 8 (जे) और 10 (सी) का उल्लेख लकया है लजस पर भारत के भी हस््ाक्र् है.् इस समझौते के तहत स्थानीय और स्वदेशी ज््ान, नवाचार और अन्य व्यवहसार के सम्मान और संरक््ण के ललए काम करना है और उसे बरकरार रखना है. बीसीसीआई के प््बंध न्यासी और तलमलनाडु कृलष लवश््लवद््ालय के प््बंधन बोड्त के सदस्य काल्ततकेय लशवासनपलत कहते है्, 'अगर सांस्कृलतक गतलवलधयो् पर रोक लगाई गई तो पशुपालक देसी नस्ल के पशुओ्का पालन पोषण बंद करने पर मजबूर हो जाये्गे. खेती के मशीनीकरण के चलते इन पर पहले ही गहरा संकट उत्पन्न हो चुका है.' भारतीय पशु बोड्त का दावा है लक इस आयोजन के दौरान पशुओ् को कष्् पहुंचाया जाता है इस पर इन काय्तकत्ातओ् का कहना है लक भला पशु माललक अपने ही जानवरो् को 50 शुक्वार | 1 से 15 िरवरी 2017
नुकसान क्यो्पहुंचाये्गे जबलक वे उनके पलरवार के सदस्यो्की तरह होते है्? बैलगाड्ी दौड्की यह परंपरा महाराष््, कन्ातटक, पंजाब, हलरयाणा, केरल और गुजरात आलद राज्यो्मे्प््चललत है. इसका अल््सत््व लसंधु घाटी सभ्यता के वक्त से है. आज लजस बात को पशु अलधकार काय्तकत्ात कू्रता मान रहे है् वह जाने कब से पशुओ् और लकसानो् के आपसी लरक्तो् की पलरचायक रही है. प््ाचीन तलमल सालहत्य (दूसरी सदी ईपू, संगम) मे्इसे सांढ् को गले लगाना बताया गया है. इस खेल के कई स्वर्प है् जो देश भर मे्प्च ् ललत है.् तलमलनाडु मे्जलीकट््के खेल मे्सांढ्की पीठ के उभार को थामकर उसके साथ-साथ भागना होता है. वही् तटवत््ी कन्ातटक मे् कंबाला नामक दौड्मे्भैस ् ो्के एक जोड्ेके साथ भागना होता है. इन जीवो् को साल भर खास तैयारी कराई जाती है और उनका भरपूर पोषण लकया जाता है. ये सांढ्अन्य से श््ेि्नस्ल के होते है्और इनका इस््ेमाल गांव के पशुओ्मे्नस्ल सुधार के ललए लकया जाता है. चूंलक सव््ोच््न्यायालय ने जलीकट्् तथा ऐसी अन्य प््थाओ् पर मई 2014 मे् रोक लगा दी थी इसललए तलमलनाडु के कई हलको्से अच्छी गुणवत््ा वाले सांढ्ो्की लबक््ी कम होने की खबरे्आयी्. लकसानो्ने अपने सांढ्औनेपौने दामो्पर बेच लदए जबलक कुछ अन्य कसाई खानो्के हवाले हो गये. चूलं क गुणवत््ापूणत्नस्लो्के लवकास मे्प्क ् लृ त और संसक ् लृ त का जलटल अंतस््िबंध लजम्मेदार है तो कहा जा सकता है लक इन देसी नस्लो्की साज संभाल मे्भी प््कृलत की अहम भूलमका रही है. हकीकत मे् कंबाला का आयोजन ही पशुओ् को बीमालरयो् से बचाने के ललए ईश््र को धन्यवाद देते हुए लकया जाता है. पशु अलधकार भी गंभीर लचंता का लवषय है् इसललए देसी नस्लो् को बचाना जर्री है. खेती के मशीनीकरण ने उनके ललए भारी खतरा पैदा लकया है. पशुपालको् के पास ऐसा कोई प््ोत्साहन नही् है लक वे बेहतर गुणवत््ा वाले पशुओ्का रखरखाव करे्. देश के कई लहस्सो् मे्ऐसे सांढ्यूं ही आवार छोड्लदए जाते है्और वे सड्को् पर लोगो् के ललए खतरा बने रहते है्. अगर खेल पर रोक लग गयी तो इससे कई देसी नस्ले्खत्म हो सकती है्. जलीकट्् मे् प््योग की जाने वाली कंगायाम नस्ल के भलवष्य की बात करे्तो इस नस्ल का हर पांचवा सांढ्बहुत बुरी हालत मे्है. ये आयोजन स्पेन की बुल िाइट की तरह नही् बब्लक सामान्य दौड् है्. लेलकन इस तथ्य से इनकार नही्लकया जा सकता है लक ऐसे खेलो्मे् भी जानवरो् की सुरक््ा पर सबसे अलधक ध्यान लदया जाना चालहये. इन आयोजनो्के ललए लनयम तय हो्तालक जानवरो्की सुरक््ा सुलनल््ित की जा सके. दौड्के आयोजन के लनयम भी सख्त लकये जाने चालहए. n (लेखक जाने-माने सामालजक काय्तकत्ात है.)