ताज़ा कवितायेँ

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काँधे चढ़ी औरते

अनन्त आलोक

पहाड़ के काँधे चढ़ी औरते कर रही है हजामत बढ़ ू े पहाड़ की

कनपटी और िसिर के िपछले िहस्सिे मे बचे खच ु े , पके , भिु रयाये बाल क़तर दे ती है हर वर्ष र जाड़ा आने सिे पहले

ये औरते भले ही प्रोफेशनल हजाम न हो लेिकन इनके आगे बड़े बड़े हजाम भरते है पानी जब चलता है इनका दराती उस्तरा

इनमे सिे अधिधकतर ने नहीं पढ़ा है गिणित मगर इनके ज्यािमितक ज्ञान का कोई सिानी नहीं िबजली की फुती सिे कतरती है ये अधपने अधपने िहस्सिे की आयते वर्गर और ित्रिभुजे


िबना स्केल पे िसिल और प्रकार के काटती है िभन्न िभन्न प्रकार के स्टे िशयल

पहाड़ का सिर हो जाता है एकदम फैशनेबल , आकष रक िफ़िल्मी िसितारो आज के नोजवर्ानो ने इन्हीं सिे सिीखा होगा बालो मे किटंग के अधलग अधलग िडिजाइन बनवर्ाना

पहाड़ ने गदर न सिे छाती तक ओढा रखा है स्लेट पत्थर के श्याम सिफेद चेकदार मकानो सिे बना कािफया गेहुँवर्ी हरी टी शटर पहने पवर्रत लगता है एकदम स्माटर हे डिसिम ओल्डि यंग मेन


औरतो ने रख दी है अधपने अधपने िहस्सिे की आकृितयाँ अधपने दे सिी फामूल र े सिे बदलकर बड़े बड़े शंकू और बेलन मे

तािक बफर पड़ने पर िखला सिके गाय को और सिफेद अधमत ृ बना कर दे गाय माता वर्ापसि िपये बच्चे बूढ़े और जवर्ान

नोट : िहमाचल के बफीले क्षेत्रिो मे गाँवर् की औरते सि​िदर याँ शुर होने सिे पूवर्र घासि काट कर रख दे ती है तािक बफर के सिमय िखला सिके |

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भर भर हाथ आईसक्रीम बूढ़े दे वर्दार की उँ गिलयाँ झुलसिती रही जन ू भर बाल धप ू मे हुए भूरे वर्दन पर रमाते रहे धन ू ी सिड़क की पीठ पर दनदनाती छोटी बड़ी अधसिंख्य गािड़ओं की चरणि धिू ल |

रोते रहे खड़े खड़े करारहते रहे ददर मे सिुबकते रहे मन ही मन जल ु ाई मे उसि तक पहुंची इनकी अधजी उँ गिलयो ,वर्दन पर डिाला शीतल जल लेपन िकया हिरत औष िध सिे उसिने मारी फूंक ददर हुआ कुछ कम

अनन्त आलोक


िशमला के दिणीक्षणिी धवर् ु सिे चढ़ते रहे ऊपर धीरे धीरे बढ़ते रहे इसिके तालू की ओर सिड़क की दोनो बाहे थामे िहला कर हाथ करते रहे अधिभवर्ादन हर आते जाते सिैलानी का

फैलाये रहे अधपने अधसिंख्य हाथ और िनहारते रहे अधनंत आकाश एक टक...

आह्ह ... वर्ष ो बाद इसि बार िक्रिसिमसि पर हुआ वर्ो मेहरबान िदया सिब को हाथ भर भर सिात पानी सिे धल ु ा माखन सिा आइसिक्रिीम

िफर जनवर्री , फरवर्री


जी भर िदया उसिने इसि बार जबिक अधभी पहले वर्ाला भी परू ा नहीं खा पाए थे हम अधभी रीते कहाँ थे हमारे हाथ धवर्ल हो गया रोम रोम और सिबने िकया सिजदा झुकाकर शीश है प्रभु बरसिती रहे तेरी रहमत यूँ ही सिाल दर सिाल |

नोट : िशमला मे वर्ष ो बाद इसि बार २०१३-१४ मे खूब बफर पड़ी इसिी का एक शब्द िचत्रि


बकरा

अनन्त आलोक

नहीं सिमझता बकरा मायने िरश्तो नातो के सिगा सिम्बन्धी , माँ , बहन चाची , ताई और यहाँ तक िक बेटी भी नहीं जनता वर्ह उसिके िलए ये सिब है िवर्परीत िलंग

उसिकी ज्ञानेियाँ न्द्रियाँ नहीं हुई िवर्किसित दे खते ही िवर्परीत िलंग लपलपाने लगती है उसिकी जीभ फड़फड़ाने लगते है होठ और उत्तेियाँ जत हो उठता है उसिका अधंग अधंग ...

घुटनो सिे मुड़ कर उठ जाते है उसिके अधगले दोनो नन्हे खरु उसिकी मजी के िवर्रुद रचता है ष ड्यंत्रि उसिका रोम रोम


शायद वर्ह जानता है अधपनी अधल्प आयु अधकाल मौत जो िनियाँ श्चत मगर अधिनियाँ श्चत है इसिी िलए नहीं रोकती उसिे उसिकी माँ बहन और बेटी

लेिकन ए परु ु ष ! ए िवर्श्वर्गुरु भारत ! प्राणिी जगत मे सिवर्ोत्तम सिमाज के उत्तम पुष्प तुम भी !....

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िहमािभषेक

अनन्त आलोक

वर्ष र का पिवर्त्रि महीना माह ए माघ अधिखल भारत के सिमस्त दे वर्ालयो िशवर्ालयो मे गूंजती घंिटयाँ , िभनिभनाते मन्त्रि वर्ातावर्रणि मे तैर जाती भजनो गज ूं महकती धप ू सिुंगंिध

इधर दे वर्ािधदे वर् महादे वर् की तपःस्थली चडि ू छोटी चडि ू धार खड़ी है एकदम मौन जम गया है पवर्रत की रगो मे दौड़ता रं गहीन सिुगियाँ न्धत रक्त हड्डिी मांसि ने कर ली है जुगलबंदी और शरीर हुआ पाष णि सिमस्त प्राणिी हो गए है कैद अधपने अधपने घरो , िरवर्ाड़ो और घिू रयो मे


कौन करे पूजा पाठ वर्ंदन , अधचरन कौन करे जलािभष ेक ! ऐसिे मे स्वर्यं इंद्रि ने िलया सिंज्ञान िशवर्िलंग पर चढ़ाया लोटा जल नंगे पाँवर्

जोड़ कर हाथ िकया प्रणिाम और कर िदया िहमािभष ेक हवर्ा ने बजाई कड़तािलयाँ मेघो ने ढोल नगाड़े और मद ृ ंग चंचला ने खींचे कुछ िचत्रि शेर ने िकया शंखनाद और दे वर्ांगन मे खेल रही अधमूल्य जड़ी बूिटयो तगर ,कडिू आिद ने खोल िदए नािभ क्षेत्रि और महक उठी पवर्रत घाटी | प्रमािणित िकया जाता है िक सिभी रचनाएँ मौिलक एवर्ं अधप्रकािशत है अधनन्त आलोक

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anantalok1@gmail.com Sahityaalok.blogspot.com


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