चार अंकों का संकलन

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आयम्ब ई-ऩत्रिका 2014-15


आयम्ब ई-ऩत्रिका 2014-15

सॊऩादकीम भॊडर

हभाये ऩाठकों एवॊ यचनाकायों

वरयष्ठ सराहकाय

की ववभबन्द्न प्रततकिमा

डॉ.ककयण नॊदा डॉ.प्रऻा

प्रधान सॊऩादक

. “माद आता शै लो ददन जफ तुभवे कशा था की ऑनराइन भैगज़ीन ळुरू औय तुभ वफने इव चैरेज को स्लीकाय कय लरमा औय आज एक वार शो गमा भैगज़ीन भें वबी चीजे शै , जो अऩने आऩ भें भुकभर शै ,आऩ वबी को ळुबकाभनाए” -डॉ.ककयन नॊदा

ववकास कुभाय

सॊऩादक सदस्म भनीषा तॊवय अभबषेक मादव शैरेन्द्र भसॊह रभरता जोशी भशवाॊगी भाहे श्वयी अनुयाग भसॊह

----------

“वलकाव आज के वभम भें ऩत्रिका ननकारना एक ळौक शो गमा शै ऩय ऩत्रिका को वार बय तक चराना औय उवे फेशतय कथ्म औय रूऩ वे ननकारना वाशव भेशनत औय चुनौती का काभ शै । मे वतत प्रमाव शये क के फव की फात नशी। आयम्ब के ज़ियमे तुभने औय ी​ीभ ने

इवेकयददखामा। एक लऴष की उऩरब्धध ऩय भेयी शाददष क फधाई। ऩत्रिका अऩनी गम्बीय औय लैवलध्मऩूणष वाभग्री वे वाथषक शस्तषेऩ कय यशी शै । आयम्ब आज अनेक मुलाओॊ का स्लप्न शै । फधाई।“

-डॉ प्रऻा “वलकाव वलषप्रथभ रगाताय एक वार तक अथक भेशनत वे आयॊ ब ऩत्रिका का चाय राजलाफ अॊक ननकारने के लरए आऩको औय आऩके वबी आयॊ ब के ी​ीभ को अनॊत फधाई । मश ऩत्रिका लास्तल भें एक मुला वोच को दळाषती शै तबी तो इवके चायो अॊक की वाभग्री कशी न कशी मुला भानलवकता के वोच को आगे फढाती शुई ननयॊ तय रोकवप्रम शो यशी शै ।भैं तो इतना चाशुॅॎगा कक मश आयॊ ब ऩत्रिका लैवलध्मऩूणष वाभग्री को अऩने करेलय भे वभेीते शुए एक अरग भक ु ाभ फनाए।“ -डॉ.आरोक यॊ जन ऩाॊडे


आयम्ब ई-ऩत्रिका 2014-15 “आयम्ब ने ई भैगजीन के रूऩ भें कभ सभम भें

को ब्ज़ॊदा यखने लारी औय ऊजाष वे बय दे ने लारी शै .

भरए इसके सॊऩादक ववकास कुभाय जी फधाई के

लैवलध्म वे रफये ज़ एलॊ वॊग्रशणीम शैं। आयम्ब का मश

ही अऩनी अच्छी ऩहचान कामभ की है . जजसके ऩात्र हैं. ऩहरे चाय अॊकों ने जो उम्भीद जगाई है

दस ू ये चयण भें उसे औय आगे रे जाने की जरुयत है . ऩत्रत्रका को एकाग्र अॊकों के रूऩ भें तनकारा जाए तो

मह

एक

नमा

आयम्ब

होगा. सभकारीन

वऩछरे चायों अॊक वलऴम वाभग्री के स्तय ऩमाषप्त वफ़य भनष्ु म की फेशतयी की मािा भें बागीदाय फन मूॉ शी चरता यशे । इवी काभना के वाथ वलकाव औय उवके वाथथमों को फशुत फशुत ळुबकाभनाएॊ।“

-अनुऩभा शभा​ा

यचनाशीरता के आकरन भल् ू माङ्कन के प्रमास

“ कशा जाता शै जशाॉ चाश लशाॊ याश ।। इवे वात्रफत ककमा

हैं. इस ददशा भें आयम्ब को सोचना चादहए. इसके

प्रमाव वे शी आज ऩत्रिका आयम्ब वे कई ऩामदान

कभ होते हैं, जो होते बी हैं वे प्रामोजजत से रगते सॊऩादक स्वमॊ मव ु ा हैं. भझ ु े रगता है वे इस ददशा

भें बी कुछ भानीखेज कय ऩाएॊगे. भेयी शब ु कभनाएॊ इस यचनात्भक प्रमास के साथ हैं”

-प्रबात यॊ जन

“वप्रम लभिों आयम्ब भाि एक ऩत्रिका नशी शै लयन वज ृ नात्भक प्रनतबाओॊ का लभरन स्थर शै । आयम्ब

अऩने आऩ भें आयम्ब शै उन प्रनतबाओॊ को मोग्म गुरुलों के वभष ननखायने का। वलकाव औय उवकी ऩूयी ी​ीभ के शय उव वदस्म को भेयी फधाई ब्जवने इव

ऩत्रिका को जन्भ शी नशी ददमा फब्कक उवके रारन ऩारन

की

बी

ब्जम्भेदायी

उठाई।

आयम्ब के ी​ीभ ने ।। लास्तल भें आऩ वबी के अथक ऊऩय की ओय फढ़ा शै ।। आऩका मे प्रमाव औय बी जोयदाय शो ब्जववे मश ऩत्रिका 4000 अॊको तक के फुरॊददमों को छुए ।। ऩत्रिका एक नवलन वोच को उजागय

कयती

शै

वले

वे

रेकय

वलळेऴाॊक

औय

वभवाभइक्ता तक को अऩने भें वभेीे शुए शै ।। इवका षेि औय बी व्माऩक शो ऐवी आळा शै ।। आॊयब के रोकवप्रमता को नाकाया नशीॊ जा वकता मे फेवक वे एक अथक प्रमाव शी तो शै ।। आऩ अऩनी ऊजाष औय अऩनी ी​ीभ को औय फढाकय इवे औय फुरॊददमों तक रे कय जाएॉ ।। ऩत्रिका के वार बय शोने ऩय आऩके अथक प्रमाव को वराभ ।। औय फधाई ।।“

-तनतीश आनॊद

एक रेखक के नज़य वे दे खूॉ तो आयम्ब ऩत्रिका के वाथ फड़े शी वुखद अनुबल यशे शैं।ऩत्रिका का स्तय

प्रेयणादामी गुरुलों के रेखों औय नए ऊजाषलान वाथथमों की लजश वे अऩने चयभ भें शै । आयम्ब की ी​ीभ नए

रेखकों को नमा भजनू वभझकय शीा नशी दे ती फब्कक नए भजनू वे बी उवके अनुबल वाझा कयने की कलामद कयती शै ।“

-जम प्रकाश ऩाॊडे

“आयम्ब' ऩत्रिका वे फतौय ऩाठक जुड़ना फेशद योचक एलॊ सानलर्दषधक यशा। इव ऩत्रिका के प्रनत मुला-उत्वाश एलॊ प्रनतफर्दधता आज के नैयाश्म वे बये वभम भें उम्भीद

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आयम्ब ई-ऩत्रिका 2014-15 इव

सपयनाभा

ऩत्रिका

का

वुझाल

शभायी

वराशकाय

आदयणीम डॉ. ककयण नॊदा जी ने ददमा औय

आयम्ब ई-ऩत्रत्रका आज शभायी ऩशचान फन चुकी शै , आज शभ कशी बी जाते शै तो ऩशरे ऩियचम शभायी ऩत्रिका के नाभ वे शोता शै , तफ कशी जा कय शभाया व्मब्क्तगत ऩियचम शोता शै I इव भुकाभ तक आना इतना आवान नशी था I आज वे एक वार ऩशरे इव ऩत्रिका को कोई जानता तक बी नशी था I मशा तक आना बी आवान काभ नशीॊ था ऩय शभ वफकी भेशनत औय आऩ वफके वाथ ने इव ऩत्रिका को एक मल ु ा स्तम्ब फना ददमा , इव ऩत्रिका का ऩशरा औय आखखयी भकवद मशी शै की शभ इव ऩत्रिका को एक मल ु ा ळब्क्त के रूऩ भें स्थावऩत कय ऩामे, इव एक वार भें शभने इव कामष भें थोड़ी वपरता बी ऩामी शै , शभायी ऩत्रिका का

शभने उनके वझ ु ाल को लास्तवलकता भें रा खड़ा ककमा , डॉ ककयण नॊदा भैडभ ने न लवपष इव ऩत्रिका के फाये भें वझ ु ाल ददमा अवऩतु शय लक्त वकायात्भक रूऩ वे शभें शभेळा प्रोत्वादशत बी ककमा , जशाॊ आऩने गरती दे खी उवके लरए डाॊीा बी औय वशी काभ के लरए शभेळा शभाया शौवरा अपजाई बी ककमा I इवके आराला आदयणीम डॉ प्रसा जी ने शभेळा एक वराशकाय के तौय ऩय लक्त –लक्त ऩय शभेळा अऩनी वराश के र्दलाया शभाया भागषदळषन ककमा, प्रसा भैडभ की ऺाव फात मश यशी की उनवे जफ बी शभने कोई वराश भाॊगी उन्शोंने उवी लक्त शभाया वाथ ददमा , आऩ दोनों के कायण शी ऩत्रिका का अब्स्तत्ल ननखय कय आमा शै I

का ीै ग राइन ळुरू वे शी मे यशा शै – “ एक

ऩत्रिका केलर एक व्मब्क्त की नशीॊ शोती फब्कक

मुला स्तम्ब “, ऩत्रिका का आयम्ब बी शभने

एक वम्ऩूणष वभूश के र्दलाया शी अऩना अब्स्तत्ल

इवी वलचाय वे ककमा था की शभ एक ऐवी ऩत्रिका को स्थावऩत कये जो लवपष मुलाओॊ की शो औय ब्जवभे उन यचनाकायों को भौका लभरे

कामभ कय ऩाती शै ,आयम्ब के ऩीछे बी एक ऩुये वभूश का शाथ यशा शै , ब्जनका नाभ शै ‘आयम्बकता​ा’ औय ब्जनवे आऩ वबी लाककप शै

ब्जनभे लरखने का शुनय तो शै ऩय उनको एक

I इनकी भेशनत का नतीजा शी शै जो आज

वशी जियमा नशी लभर ऩाता अऩनी प्रनतबा को

ऩत्रिका का एक वार वपर रूऩ वे ऩूया शुआ शै

ददखाने का , इव कामष भें वपर बी यशें शैं I इव ऩुये एक वार भें शभने कुछ ऐवे यचनाकायों की यचनाओॊ को प्रकालळत ककमा शै यचनाएॉ अफ तक फव फीच थी I arambh.co.in

ब्जनकी

कॉऩी औय करभ के

I आयम्ब

ई-ऩत्रिका

फाकी

ऩत्रिकओॊ वे थोड़ी अरग शै मशाॉ कोई एक वॊऩादक नशीॊ शै फब्कक शय अॊक का एक अऩना वॊऩादक शै ब्जववे शय ककवी के बीतय एक Page 4


आयम्ब ई-ऩत्रिका 2014-15 वकायात्भक

अनुबल लभरता

लकष बी अच्छा शोता शै

शै वाथ भें ी​ीभ

I

इवके आराला एक ऩत्रिका तफ तक वपर नशीॊ शोती जफ तक की उवे ऩाठको का वाथ न लभरे ,आयम्ब ऩत्रिका वे अफ तक रगबग 2000 ऩाठक शय अॊक के वाथ जड़ ु यशे शै जो शभायी अऩेषा वे कई अथधक शै , मशी शभायी अफ तक की वपरता की कशानी शै I ऩत्रिका वे जुड़े शय एक ऩाठक ,

रेखक

,ळोधाथी , औय वबी ळुभ थचॊतको को शभायी ऩूयी ी​ीभ की तयप वे अनेकोनेक धन्मलाद आऩ वबी के कायण मशाॉ तक आमे शै औय आऩके वाथ अबी औय आगे जाना शै

,शभेळा अऩना

वाथ फनाए यखखमे I

ववकास कुभाय प्र.सॊऩादक एवॊ सॊचारक आयम्ब त्रैभाभसक ई-ऩत्रत्रका

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आयम्ब ई-ऩत्रिका 2014-15

आयम्ब-„एक मव ु ा स्तम्ब’

आयम्ब याजनीनत ,दे ळ,वभाज ल वादशत्म को एक फेशतय नमे नजियऐ वे ऩेळ कयने की ऩशर

आयम्ब ऩत्रिका के र्दलाया शभ

वभाज को एक नमे नजियए वे दे खने का

आयम्ब कयने जा यशे शैं ।वभाज का नमा वत्म

क्मा शोगा ब्जवका लणषन वादशत्म कयता आमा

शै उव नमे वत्म को तराळने ,वॉलायने की एक कोलळळ

शै

आयम्ब

वभाज ल वादशत्म एक दव ू ये वे कबी अरग

नशीॊ यशे शैं औय न शो वकते शै ।वाऩेषता इव

दनु नमा का ळामद वफवे फड़ा वत्म शै । वभाज ल वादशत्म के वत्म भे एक नमा नज़ियमा ढूढनें

की कोलळळ मल ु ा लगष का शै । ककवी बी दे ळ के

शै जो अऩने फढ़ने के वाथ गूढ़ता को प्राप्त कयता जाएगा । आयम्ब की मश ऩशर इवी

आयम्ब को रेकय आऩके वभष प्रस्तत ु शै ।इवे आऩके वशमोग की आलश्मकता शै । उम्भीद शै

आयम्ब की मश ऩशर आऩको ऩवन्द आएगी

औय आऩ नमे नजियमे को जानने भें वपर यशे गें ।

शैरेन्द्र भसॊह

सॊऩादक ,ऩहरा अॊक

वादशत्म ,वभाज,वलसान,करा आदद की फागडोय

उव दे ळ के मुलाओॊ के शाथ भें शोती शै । बायत भें रगबग ५०%मल ु ा शैं ,रेककन इन मुलाओॊ को शी वशी ददळा नशीॊ लभर ऩा यशी शै । ऐवे भें

वादशत्म की मश ब्जम्भेदायी शै कक लश दे ळ के

मल ु ाओॊ को वकिम कय उन्शे वशी ददळा प्रदान कये

लतषभान वभम भें बायत का शी नशीॊ लयन वलश्ल

का प्रबुत्ल लगष इन्ीयनेी वे जुडा शै ,खावकय मुला लगष अत्मथधक वकिम शै । ई-ऩत्रिका ननकारने का शभाया उर्ददे श्म मल ु ा लगष का अथधक वे अथधक ध्मानाकऴषण शै । ऐवा नशीॊ शै कक शभ

अन्म लगष की उऩेषा कय यशे शैं ,ऩत्रिका ऩढ़ने ऩय आऩको ऩता चरेगा कक मश एक वभालेळी

दृब्ष्ीकोण को रेकय आयम्ब शो यशा शै ।ऐवा बी

नशीॊ शै कक मश ऩत्रिका वादशत्म वलळेऴ को रेकय आगे फढ़ यशी शै । वादशत्म को प्राथलभकता शै

वाथ शी अन्म वलऴमों ल वन्दबों का वभालेळ बी

आयम्ब

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भें

शै

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आयम्ब ई-ऩत्रिका 2014-15

सूचना प्रोद्मोगगकी औय

के वलऴम बी फनें । इववे इनकी एक–दव ू ये

ऩय वे ऩयू कता ल फढ़ती नजदीकी स्ऩष्ीत्

सादहत्म

दे खी जा वकती शै । छाऩेखाने

के

अवलष्काय

वे

ऩशरे

वादशत्म

रगबग भौखखक रूऩ वे ऩीदढ़मों के फीच कोई वादशत्म को वभाज का दऩषण भानता शै

शस्ताॊतियत शोता था ऩयन्तु छाऩेखाने ने इन्शे

तो कुछ इवे मथाथष को उर्दघादीत कयने लर

ककताफों के रूऩ भें वुयक्षषत ककमा । इवी के

ननदशत

अथधक वभर्द ृ ध कयने का प्रमत्न ककमा शै ।

औय कुछ रोग रोक ककमाण की बालना वे

अगरी कड़ी भें वूचना प्रोर्दमोथगकी ने इवे

वादशत्म अऩना स्लरुऩ बी ऩुन् ऩियबावऴत कय

यचनाएॊ जो कागज़ के ऩष्ृ ठों ऩय शुआ कयती थी अफ उनको कम्प्मुीय अऩनी दनु नमा भें

वभम

ऩियलतषन

के

वाऩेष

शी

यशा शै । आधनु नक मग भें नलजागयण वे ु वलकलवत चेतना के कायण वलऴमों को वलळेऴ

वुयक्षषत यख यशा शै । आज ई– फुक , ई–

ऩर्दधनत वे ऩढ़ने की प्रकिमा औय फरलती शुई शै । इवके फाद वलसान के ताककषकता के

षभता के अनुवाय तकयीफन तीन वौ ल उववे

चभत्काियक ऩियणाभ आने रगे तो लैसाननक ऩर्दधनत वेए वादशत्म वज ृ न की प्रकिमा बी

ऩत्रिका का वभम शै । एक ई– फुक भे उवकी

अथधक तक ऩुस्तकें यखी जाती शै । वादशत्म प्रेलभमों

को,जो

एक

जगश

जाने

ऩय

कई

प्रबावलत

ऩुस्तकें ककवी कायण लळ नशी रे जा यशे

के के आश्रम आरम्फन भें प्रेभ, प्रळब्स्त मुक्त

अध्ममन भें वशजता आमी शै । भोफाइर भें

रूऩ भें लखणषत ककमा जाता था इनका लणषन

वुयक्षषत

बी अवॊगत ल अताककषकता शुआ कयता था । फाद भें न केलर उवके वलऴम बी फदरे अवऩतु

प्रोर्दमोथगकी ने एक जगश वभम औय दयू ी की फाध्मता को खत्भ कय एक जगश के वादशत्म

यचनाओॊ भें तकषप्रधान लैचाियकता का वलकाव

को दव ु ये जगश आवानी वे तुयन्त उऩरधध

शुआ । आज के वभम भें अगय वलसान ल वूचना तॊि

कयामा शै । आज ककवी ऩस् ु तक के वलभोचन के वाथ अगय उवका ई– फक प्रारुऩ बी ु

शुई । ऩशरे वादशत्म भें केलर याजा, यानी ,ळावक ,प्रजा ल नामक – नानमका आदद भनोयॊ जन प्रधान वलऴमों को वाधायण

अऩने ई– फुक को रे जा यशे शै ब्जववे उनके आज ऩुस्तकों को ऩी.डी.एप. पाइर के रूऩ भें यखा

जा

वकता

शै

वूचना

आधनु नक शुआ शै तो वादशत्म बी अऩने भानदणडो ो़ ऩय आधनु नक शुआ शै । आज के वभम भें वच ू ना प्रोर्दमोथगकी के भाध्मभ वे न

वलभोथचत शोता शै ( कपय चाशे लश वलश्ल के

ककमा जा यशा शै अवऩतु मे वादशब्त्मक यचना

वूचना

केलर वादशत्म को नए रूऩों भें वॊचालरत

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ककवी बी कोने भे शुआ शो), तो शभ औय आऩ ऩरक झऩकते शी उवे डाउनरोड कय उवको ऩढ़ वकते शै । प्रोर्दमोथगकी

ने

वादशब्त्मक

ळोधाथी

वलर्दमाथथषमों को बी नई ददळा के वाथ वलस्तत ृ Page 7


आयम्ब ई-ऩत्रिका 2014-15 आमाभ प्रदान ककए शै । वादशत्म ने वच ू ना

प्रोर्दमोथगकी तॊि के भाध्मभ वे अऩनी ऩशुॉच भें बी वलस्ताय ककमा शै ,मश अफ ऩस् ु तकों मा ई–

फक के रूऩ भें शी नशी ऩढा ो़ जाता अवऩतु ु

इनके श्रव्म ल दृश्म भाध्मभ बी भौजद ु शै । वादशत्म

के प्रचाय –प्रवाय

के लरए

वूचना

प्रोर्दमोथगकी का उऩमोग आधनु नक बायत भें

शोने रगा शै जशाॉ ऑनराइन उऩरधध शैं । शाॉ !मश अलश्म शै कक मश प्रकिमा बायत भें कापी धीभी शै , ऩयन्तु उम्भीद शै कक लश ो़ जकदी शी गनत ऩकडेगी । इवके लरए केब्न्िम वलश्ल वलर्दमारमों को वकिम बूलभका अदा कयनी शोगी ।

अनयु ाग भसहॊ

सम्ऩादक

दस ू या अॊक

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आयम्ब ई-ऩत्रिका 2014-15

‘व्मजतत की अजस्भता की तयप स्त्री’ स्िी

वलभळष

के

तभाभ

वफके वाथ स्िी ने अऩने शक के लरए वकिम

शोकय रड़ाइमों भें दशस्वा लरमा औय जीती बी । कपय लश वॊवलधान शो मा कोई बी कानन ू

प्रत्मेक स्तय ऩय उवे ऩरु ु ऴ के वभान अथधकाय

। रेककन स्िी वलभळष ऩय जफ

फातचीत शोती शै तो वलार मश खड़ा शोता शै कक जो भान्मताएॉ उवे कानन ू ी स्तय ऩय लभरी शै लो उवे उवके व्मालशाियक जीलन भें क्मों नशी लभर ऩा यशी शै

? औय

अगय व्मालशाियक

जीलन भें लभरी बी शै तो उवे ककव दृब्ष्ीकोण वे लभरी शै औय कशाॉ तक लभरी शै ,क्मा लश एक व्मब्क्त के स्तय ऩय मा कपय उवे दमा के ऩाि के अनुवाय दे खने ऩय लभरती शै , क्मोंकक स्िी को बाल के रूऩभे दे खना शभाये वभाज

की भानलवकता यशी शै । कानूनी अथधकाय ऩय शभ चाशें ककतनी बी फात कय रें रेककन स्िी को एक बाल के रूऩभें शी दे खा जाता शै । आज बी रोग स्िी की ऩशचान ऩशरे उवकी ळायीियक फनाली वे कयते शै फाद भें उवे वभाब्जक ऩशचान वे जानते शैं । क्मा मशी स्िी की ऩशचान शै कक स्िी को रोग व्मब्क्त के रूऩ भें नशी फब्कक इन वबी कायणों वे जानते शै । स्िी को व्मब्क्त के रूऩ भें भशत्ता शभाया वभाज न ऩशरे दे ऩामा था औय न आगे दे ऩामेगा,कपय चाशे लश ननणषम रेने की फात शो मा कपय स्लतॊि रूऩ वे जीने की arambh.co.in

दफाकय वभाज के ननमभानव ु ाय चरना ऩड़ता शै ,लश कोई काभ अऩने अनव ु ाय नशी कय

आॊदोरन औय उवभें स्िी की वशबाथगता , इन

लभरा शै

इच्छा । शभेळा स्िी को अऩनी बालनाएॉ

वकती जैवे कक लश मदद स्लतॊि रूऩ वे यशना चाशती शै मा अऩने स्लतॊि वलचायों को यखती

शै तो वभाज उवके ननजी व्मब्क्तत्ल औय स्लतॊि वलचायों ऩय प्रनतफॊध रगा दे ता शै औय

शभेळा उवे अऩने र्दलाया फनाए गए ननमभों के वाथ चरने के लरए भजफूय कयता शै । इवलरए वभाज के र्दलाया बी शभ स्िी को व्मब्क्त के रूऩ भें । ‗यलीॊिनाथ उऩन्माव ‗गोया‗ भें शै ,उऩन्माव भें

नशी दे ख ऩा यशें ठाकुय‗ ने

इव

‗ गोया

औय

शैं

अऩने वॊकेत

ककमा

ने वुचियता को एक

बाल रूऩ भे दे खा शै न की व्मब्क्त के रूऩ भे

‗।

शभायी ऩत्रिका के इव अॊक भें ब्जतनी

बी यचनाएॊ प्रकालळत शुई शै वबी स्िी की अब्स्भता उवकी ऩशचान की फात कयते आऩ को नजय आएगें । एक स्िी को व्मब्क्त की ऩशचान आज तक नशी शो ऩाई शै औय ळामद बायत जैवे दे ळ भे इवे वददमों रग जाएॉगे रेककन रोग स्िी को एक व्मब्क्त की ऩशचान नशीॊ दें ऩाएगें आज वभाज भें ब्जतने बी रोग शै लो फात तो स्िी के व्मब्क्तत्ल की कयते शै रेककन लशी अऩने घय की औयतों को उव ‘स्िी‘ के रूऩभें ढार दे ते शै जो कबी अऩने लरए स्लतॊि नशी शो ऩाती

फ्ाॊवीवी

स्िी

वलभळषक

‗ लवभन द फोउलाय‘ का बी कशना शै कक – ‖ स्िी ऩैदा नशी की जाती ,फनाई जाती शै ‖ ( द वेकणड वेक्व ) एक रड़की के ऩैदा शोते शी उवे इव फात का अशवाव कया ददमा जाता शै कक लो Page 9


आयम्ब ई-ऩत्रिका 2014-15 एक स्िी शै ना कक एक व्मब्क्त । उवे बाल

व्मब्क्त की अब्स्भता को स्थावऩत भें कयें तो

के रूऩभें ढारकय एक वाभाब्जक रूऩदे ददमा

मश फदराल वॊबल शो ऩाएगा ।

जाता शै । इन वबी प्रकिमाओॊ भें एक स्िी अऩनी अब्स्भता को ढूॊढती यशती शै । अऩने व्मब्क्त की ऩशचान को ढूॊढती शै रेककन उवे

भनीषा तॊवय

सॊऩादक (तीसया अॊक)

लश नशी लभर ऩाती औय अगय मशी शभाये

वभाज की भानलवकता यशी तो उवे अऩने अब्स्तत्ल को ढूॊढ ऩाना नाभुभककन शो जाएगा ।

अक्वय शभ ददकरी भैट्रो भें वपय के दौयान वैकड़ों फाय मश वुनते शै कक

– ‖ भैट्रो

की गनत की ददळा भें ऩशरा

डडधफा भदशराओॊ के लरए आयक्षषत शै अगय मश ऩशरा डधफा न चरें

‖ वोथचमे तो ? … तो

ऩूयी गाड़ी रूक जाएगी , उवी तयश

अगय

व्मालशाियक जीलन भे बी उवे लशी स्थान दें तो ननब्श्चत शी शभाये वभाज को गनत प्रदान शोगी, ब्जवकी लश शकदाय बी शै औय कपय वभाज की भानलवकता को फदरते दे य नशी रगेगी औय एक स्िी को एक व्मब्क्त के ऩशचान वे जाना जाएगा । प्राचीन वभम शो मा

आधनु नक

वभम ,ब्स्िमों

कक

ब्स्थनत

व्मालाशियक जीलन भें कोई खावा फदराल ददखाई नशी ऩड़ता। तो मदद शभने अऩनी भानलवकता भें फदराल ककमा तो लश वभम आएगा जफ स्िी को एक व्मब्क्त की ऩशचान वॊघऴष न कयना ऩड़े , ननब्श्चत शी शभाया वभाज स्िी को एक व्मब्क्त की ऩशचान दे ऩाएगा । मश प्रमाव अगय शभ अऩनी आने लारी ऩीढ़ी वे ळरू ु कयें

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, उनकी

भानलवकता भें स्िी की

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आयम्ब ई-ऩत्रिका 2014-15

पेसफुककमा सादहत्म

घीना शै ; जो स्ल की ळैरी भें शय योज यची जा

यशी शै | वफवे फड़ी फात मश शै कक इव भॊच ऩय

औय

कोई बी अऩनी इच्छानव ष अऩनी ु ाय वपरताऩल ू क

अलबव्मब्क्त कय वकता शै चाशे लश गाॉल का शो

सोशर भीडडमा

मा ळशय का,लळक्षषत शो मा अलळक्षषत वबी को

फात अगय पेसफकु कमा सादहत्म‟ की कयें तो इवे

आधनु नक मग ु का वादशत्म कशने भें कोई शजष नशीॊ शोना

चादशए, ऩय

इतना

बाऴा, लळकऩ, ळास्ि

औय

जरुय

शै

कक

काव्मगत

इवकी

वलऴमों

को

ऩायॊ ऩियक वादशत्म की कवौी​ी ऩय नशीॊ कवा जा

वकता। रेककन, वलार मश बी शै कक क्मा इवे

वादशत्म भाना जा वकता शै ? मश फशव का वलऴम शै , ब्जव ऩय आने लारे ददनों भें गॊबीय चचाष की आलश्मकता

शै| एक

औय

प्रश्न

कक

क्मा

इव

वादशत्म की वाभग्री ऩाठकों के लरए उऩमोगी लवर्दध शोगी मा नशीॊ? मश बी एक अरग भवरा शै

ऩय इवकी अवर ऩयीषा इवकी प्राभाखणकता ऩय ननबषय कये गा कक मश ऩाठकों के लरए ककतना उऩमोगी वात्रफत शोगा | फशयशार

वोळर

भीडडमा

ऩय

उऩरधध

वाभग्री

ऩण ष ऩ वे वाथषक शो मा न शो ऩय इवे वस्ते भें ू रू

ऺाियज नशीॊ ककमा जा वकता क्मोंकक ‗पेवफकु कमा

वादशत्म‘ ने ब्जव तेजी वे अऩनी तयप रोगों को आकृष्ी

ककमा

शै

उवे

बर ू ना

आवान

नशीॊ

शै | तकनीक के फाये भें थोड़ी–वी जानकयी ने शय व्मब्क्त को एक नमा भॊच प्रदान ककमा शै जशाॉ शय

कोई एक छोीा–फड़ा रेखक औय ऩिकाय शै औय फड़े अवानी वे अऩने वलचायों औय बालनाओॊ की अलबव्मब्क्त कय ऩा यशा शै | ध्मान यशे मशाॉ लरखा

जाने लारा वादशत्म केलर ऩयु ाणों की दनु नमा मा

कोई चभत्कायी वादशत्म नशीॊ शै औय न शी इवका नामक

ऐनतशालवक

ददव्म

ऩरु ु ऴ

शै | मश

केलर

ककऩनाओॊ की दनु नमा की फात नशीॊ कयता फब्कक

मशाॉ तो योजभयाष की ब्जॊदगी भें घदीत शय योज की arambh.co.in

वभानता प्रदान शै |

पेवफकु कमा वदशत्म फड़ी तेजी वे रोगो के फीच भें अऩनी ऩैठ फनाने की वपर कोलळळ कय यशी शै

औय वभाज भें िाॊनतकायी ऩियलतषन राने भें बी

खावी बलू भका अदा की शै | अबी कुछ लऴष ऩशरे

भ्रष्ीाचाय के खखराप भश ु ीभ चरा यशे वाभाब्जक कामषकताष अन्नाह्जाये ने ब्जव तयश ऩयू े बायत भें

रोगों के फीच अऩनी फात ऩशुॉचाने भें वोळर नेीलककिंग वाइट्व का वशमोग लरमा था उवे बर ु ामा नशीॊ जा वकता | आभतौय ऩय दे खते शैं कक

याजनीनत भें शो यशे भ्रष्ीाचाय, भनभानी,मा औय

तयश की कई चीजें ब्जववे आभ जनता अलगत नशीॊ शो ऩाती मा एक तयश वे कशें तो ब्जवे वप्रॊी

भीडडमा, इरेक्ट्रॉननक भीडडमा आदद नशीॊ ददखा ऩाते उन ऺफयों को वोळर भीडडमा ने आभ जनता के

फीच तक रे जाने भें भशत्लऩण ू ष बलू भका ननबामा शै | कबी–कबी

भशत्लऩण ू ष

खफयों

को

न्मज़ ू

चैनरों, अऺफायों भें उथचत स्थान नशी लभर ऩाता शै ऐवी ब्स्थनत भें बी वोळर भीडडमा ने फखफ ू ी अऩना

काभ

ननबामा

रोकवबा, वलधानवबा

के

शै | शार

चुनालों

शी

भें

भें

शुमे आयोऩ–

प्रत्मायोऩ का लवरलवरा शोता यशा, इव दौयान कई फाय अखफायों, ऩिकायों औय नेताओॊ के आऩवी वाॊठ–गाॉठ के बी आयोऩ रगते यशे ,ऐवी ब्स्थनत भें

वोळर भीडडमा र्दलाया ऩष–वलऩष दोनों को अऩनी वॊतब्ु ष्ी

तक

फात

यखने

का

वभान

भौका

लभरा | ध्मातधम शै कक ददकरी वलधानवबा चुनाल शो मा रोकवबा चुनाल जन जन तक अऩनी फात

ऩशुॉचाने, अऩने प्रत्मालळमों के ऩशचान कयाने औय आभ आदभी को ियझाने तक तभाभ वॊगठनों औय Page 11


आयम्ब ई-ऩत्रिका 2014-15 ऩादीष मों र्दलाया वोळर वाइट्व का ज्मादा वे ज्मादा

भॊत्रिमो को वोळर नेीलककिंग वाइट्व वे जुड़ने का

तयश

मोजनाओॊ

वशाया रेते दे खा गमा | ऩष औय वलऩष र्दलाया कई के

रेख

औय

वादशत्म

बी

अऩने–अऩने

प्रत्मालळमों के प्रचाय औय लोीयों को रब ु ाने के लरए लरखे गए |

गौयतरफ शै कक आज का ‗पेववफकु कमा वादशत्म‘ फड़ी तेजी वे वलस्ताय ऩा यशा शै | लरखने लारा चाशे

मल ु ा रेखक शो मा लियष्ठ रेखक दोनों तेजी वे इववे जुड़ यशे शैं| रेखक जशाॉ ऩशरे अऩनी वलचायों

को लरखकय ऩशरे छऩने के लरए बेजता था लशी आज शभ दे खते शैं कक पेवफक ु ,धरॉग ऩय ऩशरे

लरखते शैं| आज का फड़ा वे फड़ा वादशत्मकाय ,कवल ककवी न ककवी तयश वोळर वाइट्व ऩय जड़ ु ा शै

फशुतेये कभ शी शै जो अबी बी इववे लॊथचत शै | मल ु ा वादशत्मकाय के लरमे मश एक ऐवा भॊच फन गमा शै जशाॉ मल ु ा फड़ी आवानी वे अऩने अॊदय

ननदे ळ

दे

चुके

शैं

ब्जवकी

फदौतर

अऩनी

को जनता तक वग ु भता वे ऩशुॊचा वकें | तभाभ वॊगठनों के ळीऴष ऩदाथधकायी बी इववे जुड़ यशे शैं |नाभचीन शब्स्तमों के जुड़ने औय उनके

र्दलाया अलबव्मक्त वलचाय को जानने वभझने औय उनवे जुड़ने का भौका मल ु ा ऩीढ़ी के लरए वाथषक वात्रफत शो यशा शै | बागदौड़ की इव ब्जन्दगी भें

घय फैठे जरुयत की वायी वाभग्री वीधे उऩरधध शो

जाती शै | वलळेऴ कय मल ु ा ऩीढ़ी के लरए मश जानकायी प्राप्त कयने, तनाल वे दयू यशने ,आऩवी ऩशचान फनाने का भशत्लऩण ू ष भॊच फन गमा शै

जशाॉ शय मल ु ा के लरए वभान बागीदायी का यास्ता उऩरधध शै |

उकरेखनीम शै कक नधफे के दळक भें ऩशरी फाय

वॊथचत प्रनतबा का प्रदळषन कय यशे शैं| जशाॉ तक

वोळर भीडडमा की चचाष शुई जफ १९९४ भें वफवे ऩशरे मश ‗ब्जमोवाइी‘ के रूऩ भें रोगों के वाभने

ककताफों के सान भाि तक शी वीलभत नशीॊ शै

वीलभत था ऩयन्तु काराॊतय भें ऩयू ी दनु नमा भें

वोळर भीडडमा वादशत्म की फात शै तो मश केलर फब्कक ककताफों वे फाशय की एक ऐवी दनु नमा शै , जशाॉ वफकुछ प्रत्मष रूऩ वे वाप शै औय ब्जवे तकनीक ने वशज वॊबल फना ददमा शै । वफवे ददरचस्ऩ फात शै कक मश बायत के एक फड़े ब–ू बाग ऩय अऩना प्रवाय ऩा यशा शै ब्जववे जड़ ु ने

लारा केलर फर्द ु थधजीली लगष शी नशीॊ फब्कक गाॉल का व्मब्क्त बी ळालभर शै जो इववे ऩियथचत शो यशा शै |

ध्मातधम शै की वोळर भीडडमा आभ आदभी के

जड़ ु ने भाि वे आज का एक ऐवा भॊच फन गमा शै

जशाॉ अवानी वे एक–दव ू ये वे वॊऩकष स्थावऩत ककमे जाते शैं औय तो औय वच ू नाओॊ एलॊ वॊचाय को बी

एक षेि वे दव ू ये षेि भें बेजने का एक वळक्त जियमा शै | तबी तो वोळर भीडडमा का जभकय प्रमोग कयने लारे प्रधानभॊिी नये न्ि भोदी ने अऩने arambh.co.in

आमा | ळरू ु भें मश कुछ चुननन्दे ळशयों तक शी रोकवप्रम शो गमा शै | आज वलश्लबय भें200 वोळर नेीलककिंग

वाइट्व

शैं; पेवफक ु , ी​ीलीय, गग ू र

प्रव, आयकूी, लाट्वएऩ, धरॉग आदद के रूऩ भें

रोगों के वाभने शै ब्जववे फड़ी वॊख्मा भें रोग योज जड़ ु यशे शैं| जो वायी दनु नमा को एक वि ू भें

फाॉधने का काभ यशा शै | भानो एक तयश वे ऩयू ी

दनु नमा के रोगों को एक छत के नीचे रा खड़ा कय ददमा शो जशाॉ वबी एक ऩियलाय शैं औय अनेकता भें एकता की बालना वशे जे वॊगदठत शोने की वॊबालना की तराळ कय यशे शैं | मश वच बी शै

कक इव भॊच की वशामता वे दनु नमा के कोने–कोने

भें फवे फशुतेये रोगे जुड़े शै औय एक–दव ू ये की बालनाओॊ को ळेमय कयने के वाथ–वाथ एक–दव ू ये के वभीऩ बी आ यशे शैं |

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आयम्ब ई-ऩत्रिका 2014-15 आज

डामयी

के

ऩन्ने

की

जगश

पेवफकु कमा

वादशत्म ने रे लरमा शै | कबी वलचायों को वभेीने के लरए ऩन्ने बये डामयी की जरुयत ऩड़ती थी लशी आज तकनीक की फदौरत शभ ऩर बय भें अऩने

अकाउॊ ी के भाध्मभ वे अऩनी ननजता को प्रदलळषत

कय ऩा यशे शैं| िदु ी की दृष्ी​ी वे बरे शी तभाभ आयोऩ भढें जा यशे शों ऩय वीखने की प्रकिमा स्लरूऩ शय प्रकाय के रेखकों ,ऩिकायों के लरमे कायीगय औय वाथषक वात्रफत शो यशा शै |

अभबषेक मादव सॊऩादक

चौथा अॊक

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आयम्ब ई-ऩत्रिका 2014-15

भुॊहफोरे नाना (2013भें

वे ज़फान ऩय चरे आते।

भौखखक रूऩ वे थी उतनी शी व्मलशाय भें बी

प्रकाभशत डॉ प्रऻा की

ऩुस्तक आईने के साभने से साबाय)

जैवे

भशानगयो

भें

अॊकर,आॊी​ी

जैवे

फशुत वाये रोग इव ऩय नाक-बौं बी लवकोड़ते शैं। आत्भीमता,अऩनत्ल,कयीफीऩन की दश ु ाई दे ने लारे औय भुॊशफोरे वॊफॊधों की लकारत कयने

लारे कुछ औय भाने न भाने मे तो भानेंगे कक

आज के वभम भें अॊकर-आॊी​ी वभानताभूरक ळधद शैं। ियश्तेदाय,ऩाव-ऩड़ोवी वे रेकय घय के

काभों भें वशमोग दे ने लारा प्रत्मेक व्मब्क्त-

काभलारी भाई,गाड़ी वाप कयने लारा,कऩड़े प्रैव लारा,कूड़ा

उठाने

कक प्माय कयते शैं तो डाॊीेंगे बी। भाॊ के स्लबाल

की वयरता,वशजता औय वशनळीरता के गण ु ों शभाये नाना-नानी ददकरी भें नशीॊ यशते थे ऩय

वम्फोधनों का धड़करे वे प्रमोग ककमा जाता शै ।

कयने

थी। उनवे ब्जतना प्रेभ लभरता तो फशुत फाय डाॊी बी ऩड़ती रेककन भाॊ-वऩताजी मशी वभझाते

ने इन वम्फॊधों को अब्जषत ककमा था। फेळक

(कशानी ) (ऩशरा अॊक) ददकरी

ब्जतनी वशजता

लारा,दक ु ानदाय

मानी

प्रत्मेक व्मब्क्त अॊकर मा आॊी​ी कशराता शै । शय

उम्र,लगष,लरॊग मशाॊ तक कक जानत औय धभष के

आधाय ऩय मे वम्फोधन वभाज भें वभानता का डॊका ऩी​ी यशे शैं।

उनके अबाल को भाॊ ने ऩूया कयते शुए कई भौवी,भाभा औय नाना-नानी के कुनफे वे बय ददमा

था।

भाॊ-वऩताजी

ने

इन

वम्फॊधों

को

वीॊचा,उन्शें वशे जा औय मथावॊबल ननबामा। आज उनभें वे फशुत वाये रोग जीवलत बी नशीॊ शैं कपय बी उनकी अगरी ऩीढ़ी वे फातचीत फनी

शुई शै । भाॊ का मश गुण वलयावत भें शभ बाई-फशनों भें अनामाव चरा आमा। आज भेयी फेी​ी के बी कई चाचा-ताउ,भाभा-भौवी,फुआ-पूपा,नाना-नानी

शैं।

औय बाई-फशन की तो कोई थगनती शी नशीॊ शै ।

फचऩन भें ऩड़ी इव आदत को दो-तीन भशीनों के बीतय दो धायदाय झीके रगे। ऩड़ोव भें यशने लारा

एक

ऩियलाय

शभायी

फच्ची

के

इतना

नज़दीक आ गमा कक अफ उन उम्रदयाज़ भदशरा

औय उनके इकरौते फेीे को अॊकर-आॊी​ी कशना

भुझे माद शै फचऩन भें ब्जव ककयाए के भकान

खुद

छोीे -फड़े ऩियलायों भें कोई बी शभाया अॊकर-आॊी​ी

शी उनके ऩोते का ऩशरा जन्भददन शोने को शै

फुरातीॊ,ककवी

कोई

नशीॊ यशना शोगा फब्कक उनकी भदद बी कयनी

जाने लारे वम्फोधन शभें उवी रूऩ भें शी ियश्तों

उनके फेीे को भाभा कशकय औय उन्शें नानी

भौवाजी जैवे वम्फोधन फड़े शी स्लाबावलक रूऩ

बी शोंठों वे न ननकरे थे कक उव नौजलान ने

भें शभ यशते थे उवके तीन दशस्वों भें यशने लारे

भुझे

अीऩीा

रगने

रगा।

एक

ददन

फातचीत के दौयान भदशरा ने फतामा कक जकद

भौवाजी-भौवी

औय शभें उव दौयान आमोजन भें उऩब्स्थत शी

बाबीजी-बाईवाशफ था। भाॊ र्दलाया प्रमुक्त ककए

शोगी। उऩमुक्त भौका दे खकय भैंने त्रफदीमा वे

भें फाॊध रेते। नानाजी,नानीजी,भाभा-भाभी,भौवी-

कशकय ऩुकायने को कशा। अबी त्रफदीमा के ळधद

नशीॊ

था।

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भाॊ

को

ककवी

को

भाताजी-वऩताजी

औय

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आयम्ब ई-ऩत्रिका 2014-15 कशा भैं भाभा नशीॊ चाचा कशरलाउॊ गा गुडड़मा वे।

प्रनतष्ठा। मशाॊ न ताकत शै न ओशदा औय न शी

फात को ऩूया कयते शुए फुजुगष भदशरा ने जो दादी फनने का ‗वौबाग्मॱ ऩशरे शी प्राप्त कय

भुॊशफोरे

‗शाॊ बई!भैं तो दादी फनग ॊू ी इवकीॱ रड़के की

चुकीॊ थीॊ,उवकी फात का वभथषन कयते शुए कथन को वत्मावऩत कय ददमा।

दव ू यी घीना कुछ ददन ऩशरे शी घी​ी। एक ऩियथचत जो अक्वय शभाये घय कशानी-उऩन्माव रेने आमा कयते थे औय उन ऩय शभवे अच्छी-

खावी चचाष बी ककमा कयते थे,उन्शोंने एक ददन ददकरी की वॊलेदनळून्मता की ओय फातचीत का रुख भोड़ ददमा। इव चचाष का ऩशरा ननळाना फना अॊकर-आॊी​ी वॊफोधन। चचाष रॊफी चरी औय

रधफोरआ ु फ मे ननकरा कक शभेळा उन्शें अॊकर कशती आई भैंने रुखवत के वभम फेी​ी वे कशा

‗नाना को नभस्ते कयोॱ । इधय उवने नभस्काय ककमा शी था कक उन वज्जन ने थोड़ा अीकते

शुए ऩय वभ्म फने यशने के अॊदाज़ भें स्ऩष्ी ककमा ‗नाना नशीॊ दादा ठीक यशे गा।ॱ त्रफदीमा तो

अथधकायों का दॊ ब। नाना-नानी,भाभा-भौवी जैवे वॊफॊधों

को

ननबाकय

दानमत्लों

की

आजीलन चक्की कौन ऩीवेगा?इन घीनाओॊ के

घीने के फाद तो ऐवा रगता शै कक कन्मा भ्रण ू शत्मा,फरात्काय,दशे ज औय कई औय तयीकों वे

ककमे गमे स्िी-उत्ऩीड़न का खुरा वच आज इतने ननभषभ रूऩ भें ददख यशा शै कक रोग

वऩतव ॊु फोरे वॊफॊधों भें बी ृ त्ता के भद भे भश

भातऩ ृ ष के प्रनत अवॊलेदनळीर शैं। औय मे शार तो तफ शै जफ भशानगय की बागभबाग बयी

ब्ज़न्दगी रोगों को इत्भीनान वे न तो वभम

त्रफताने की छूी दे ती शै न वरीके वे वॊफॊधों को ननबाने का अलकाळ।

डॉ.प्रऻा एसोभसएट प्रोपेसय , कक.भ.भहा.,दद., वव., वव.

उवभें बी अऩनी खुळी ढूॊढकय खेर भें रग गई ऩय शभ ऩनत-ऩत्नी शतप्रब थे कक वशज रूऩ वे कशे

गए मे ळधद अथष की ककतनी भायक

को

वाभने

अलबव्मॊजना यखते शैं। दोनों घीनाएॊ एक शी वच भातळ ृ ब्क्त,दे ली खोखरा

रा

यशीॊ

कशने

औय

थीॊ

लारा

कक

वभाज

वाशवशीन

स्िी

को

ककतना शै ।

घीनाओॊ वे वॊफॊथधत वबी ककयदाय प्रत्मष मा

ऩयोष रूऩ वे वऩत ृ ऩष के वॊफॊध ननबाने को शी

आतुय ददखे। शों बी क्मों नशीॊ,भात ृ ऩष के वॊफॊधों को ननबाकय वभाज भें नीचा दजाष क्मों

स्लीकाय कयें । इव ऩष भें खड़े शोकय लभरेगा बी

क्मा?न तो इवभें वभाज के ताकतलय भाने जाने लारे धड़े का वम्भान शै न शी वाभाब्जक arambh.co.in

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आयम्ब ई-ऩत्रिका 2014-15

‘फयाफाद …. नहीॊ आफाद’ (कशानी ) (दव ू या अॊक)

आमा गन्नौय न। वन ु ो आज गन्नौय भें दो प्माय

कयने लारों ने जान दे दी ट्रे न वे कीकय।‘‘ ‗‗शे भेये भालरक क्मा खफय वण ु ाई वफेये- वफेये

म्शाये भामके की। जी बाग गए शोंगे दोनों। न दी

शोगी भॊजूयी घयलारों ने। आश बयकय वन ु ीता काभ

भें रग गई । वात फज चुके थे औय अबी चाय घयों का काभ फाकी था। वला वात वे ऩशरे उवे

शय शारत भें डडम्ऩर के घय ऩशुॊचना था क्मोंकक स्कूर के लरए ननकरने वे ऩशरे उवका भाई वे

फतषन भॊजलाना जरूयी शै । मों तो डडम्ऩर का ऩनत दव फजे दक ु ान के लरए ननकरता शै ऩय भाई वे कयलाना

उवकी

ळान

के

खखराप

शै ।

ऩचाव वार की उम्र की वन ु ीता अऩने वे दव-ऩॊिश

वार छोी​ी भारककनों को बाबी ळधद वे वम्फोब्ध्त कयती शै ऩय गस् ु वे भें कबी-कबी बाबी डडम्ऩर को डडम्ऩर

भैडभ

कशती

शै।

‗‗वन ु रो बाबी, आज डडम्ऩर भैडभ ने एकवाथ

चाय चादय डार दीॊ धोने ने के लरए। वफ ऩता शै

भझ ु ,े कर नशीॊ आई थी न काभ ऩय। वफ ु श वे शी भश ुॊ फना यक्खा शै । उवीका फदरा शै औय क्मा?

डार दो । भैंने बी भवीन भें डारी औय दो ऩानी वे ननकारी। एक उवी का काभ कयती यशी तो कभा लरए भैंने चाय शजाय रुऩमे भशीना। औय अबी तनखा फढ़ाने को कशूॊ तो योने रगेगी।‘‘

अवे वे उवकी ऐवी फातें वन ु ने की आदी शो चक ु ी

शूॊ। अऩना काभ कयती जाएगी औय भझ ु े खड़ा कय रेगी श्रोता फनाकय। कई फाय भैं न बी खड़ी शों तो

बी तेज़ आलाज़ भें अऩनी फात वन ु ाती शी चरी arambh.co.in

वयाफोय शै । कुछ ठे ठ ळधदों के वाथ काभ के फीच-

फीच भें ऩछ ू ती यशती शै वन ु यशी शो न बाबी? भझ ु े

‗‗ क्मा नाभ रेती शो तभ ु अऩने गाॊल का…शाॊ माद

काभ

जाती शै । उवकी शियमाणली ददकरी के ऩानी भें

अऩनी फात भें ळालभर कयने का उवका अऩना तयीका

शै –

‗‗अफ तभ फताओ भैं क्मा करूॊ?‘‘मशी उवका ु

याभफाण शै । भजी न भजी फात भें ळालभर शोना

शी शोगा क्मोंकक वन ु ीता के लरए आऩकी याम फड़े भामने यखती शै । उवे रोगों का भनोवलसान ऩढ़ना फखफ ू ी आता शै इवलरए वफके वाभने अऩनी

याभकशानी नशीॊ कशती। अऩने वथु ध श्रोता उवने चुन यखे शैं। ऩड़ोव की भानवी को बी ळरू ु -ळरू ु भें

अऩनी कशानी वन ु ाने रगी थी ऩय जकदी शी उवने

भशवव ू ककमा कक ब्जव ददन लो कशानी वन ु ाती उवी ददन भानवी कबी उववे फारों भें भें शदी रगलाती, ऩैय की भालरळ कयलाती मा खखड़की-कूरय

वाप कयलाती थी। इव अनतियक्त श्रभ का कोई बग ु तान न ककमा जाता। बग ु तानस्लरूऩ कशानी

वन ु री मशी क्मा कभ शै ? भानवी को ळरू ु वे उवकी तॊगददरी के कायण वन ु ीता आॊखे नतयछी कयके नाभ रेने मा बाबी कशने की फजाम ‗लो‘वम्फोधन

शी

ददमा

कयती

शै ।

भैं अफ तक उवे ब्जतना बी जान ऩाई थी उवका कुर ननचोड़ मे शै कक वन ु ीता एक भेशनती औयत शै । अच्छों के वाथ फशुत अच्छी औय फयु ों के वाथ

फयु ी नशीॊ ऩय अऩने काभ वे काभ यखने लारी। ऩय फात केलर इतनी वीधी बी नशीॊ शै । उवका एक

वलरषण गण मे बी शै कक लश अच्छी- तीस्थ ु औय तीस्थ- अच्छी एकवाथ बी शो वकती थी

फळते कोई फात उवे छू जाए। उवकी दियमाददरी की कोई वीभा नशीॊ थी फव कोई उवे दीदी कश दे

तो वफ कुछ ननछालय कय दे । वऩछरे ऩाॊच वार वे डडम्ऩर भैडभ का काभ इवी कायण चर यशा था। Page 16


आयम्ब ई-ऩत्रिका 2014-15 वफ ु श डडम्ऩर भैडभ ऩय गस् ु वाने-खीजने लारी

फातें उवकी आदत भें ळालभर शैं । एक ददन दे खा

कयने रगती। ‗‗आखखय कौण शै जी उवका? त्रफचायी

‗‗मे ककवलरए राई शो?इनका क्मा शोगा वन ु ीता?‘‘

वन ु ीता ळाभ तक डडम्ऩर बाबी की तयपदायी

कक

फड़े

वाये

ऩत्ते

रेकय

आई

शै ।

दख ु -ददष कश-वन ु रेती शै भेये ते। जी शकका कय

‗‗जी आऩ न जानोगे इवे । दे वी इराज के लरए

रेती शै । भैं तो लैवे बी दखु खमा की वॊगी शूॊ ।जी

शैं। अॊडुए के ऩत्ते शैं। इन्शें वयवों का तेर रगाकय

वशी फात शै जी आदभी ढॊ ग का न शो तो वफ

फाॊध रो। फव शला न रगनी चादशए। कवभ वे

वख ु

ऩयु ानी वे ऩयु ानी चोी औय दयद दयू शो जाता शै ।

आदभी की तयप वे घणी ऩये ळान शो यक्खी शै । फयाफाद

शैं।‘‘

‗‗अये वफ ु श तक तो तभ ु उववे फड़ी नायाज़ थीॊ।

तले ऩय शकका -वा गयभ कय रो औय चोी ऩय

नीचे एक बाबी के आदभी के शाथ भें चोी रगी

अफ क्मा शो गमा?‘‘ळरू भें उवके स्लबाल वे ु

शै । फीय-भयद कफवे ऩये ळान थे। कई भशीने शो

‗‗क्मा कये बाबी तम् ु शाये जैवों के धोये भैं बी अऩने

आई।‘‘

लाककप न शोने के कायण भैं वलार कय फैठती।

लरए दलाएॊ खाते। भझ ु े ऩता रगा तो भैं रेती

दख फाॊी रेती शूॊ औय वन ु ु बी रेती शूॊ। औय

पौज भें यशे अऩने वऩता के इव शुनय को ब्जतना

गाड़ी।

फात तो मे थी कक अथधकाॊळळशयाती जो आधनु नक

नयाजगी कैवी?तभ वे खखॊच यशी शै ु रोगों की दआ ु ीै भ

ऩाव

शो

रेगा

भेया

बी।‘‘

धीये -धीये उवके स्लबाल को जानकय भैंने इव तयश के वलार कयने छोड़ ददए। औय जान लरमा मे औयत ककवी का फयु ा कयना तो दयू फयु ा वोच

बी जानती थी वफको फताती यशती । कभार की

ववु लधओॊ औय लस्तओ ु ॊ के फीच जी यशे थे ले बी उवके दे वी नस् ु खों ऩय अभर कयते थे। इव वफके ऩीछे

उवका

वरीके

वे

यशना-फोरना,उम्र

औय

बी नशीॊ वकती। वन ु ीता लाचार नशीॊ शै ऩय चुऩ

अनब ु ल,फोरी का जाद ू औय आॊखों वे झरकता ढे य

अक्वय‗‗फोरते-फनतमाते ीै भ ऩाव शो जाता शै भेयी

ऩय अभर कयने ऩय भजफयू कय दे ता। प्माय औय

यशना

उवे

ऩवॊद

नशीॊ।

लश

कशती

बी

शै

जैलवमों का। चुऩ यशने लारी घन् ु नी शोती शैं।‘‘भैं भशवव ू कयती शूॊ उवके घय भें आते शी यौनक-वी

वाया बयोवा शी तो था जो इॊवान को उवकी फातों

अऩनेऩन की बख ू ी शै वन ु ीता,ऩय इतनी फेलकूऩप

नशीॊ कक अवरी औय नकरी का पकष शी न जान

आ जाती शै ।‗‗जी नभस्ते‘‘वे घय भें कदभ फढ़ाने

वके।नीचे लारी भिावी आॊी​ी की फेी​ी जफ उवे

लारी वन ु ीता काभ के दौयान वाये वभाचाय रे-दे

वन ु ीता आॊी​ी कश दे ती तो ढे य-ढे य आळीऴों की

भानना शै -‗‗जी वफवे याभ-यभी यखने भें कैवी

कपय उवकी कोई चचाष शी जुफान ऩय नशीॊ राती।

रेती शै । लभरनवाय औय खुळलभजाज़ वन ु ीता का फयु ाई। दो फोर प्माय वे फोर रो औय क्मा धया शै ब्जनगी

फाियळ कय दे ती। औय ब्जववे भन खट्ीा शो जाता शय वभम उवकी कोलळळ मशी यशती कक कोई

भें ।‘‘

रड़ाई-झगड़ा न शो। अऩनी तयप वे लश शयवॊबल

प्माय के फोरों ऩय तो जान खझड़कती शै । प्रेव के

कोलळळ कयती शै वफको खळ ु यखने की। चाशे कोई

कऩड़े रेने आए भशे ळ वे शभेळा उवकी रड़की का शार-चार ऩछ ू ना,भेयी ऩड़ोवन के वलाषइकर के ददष

वे ऩीडड़त शोते शी दख ु व्मक्त कयना जैवी कई arambh.co.in

खयाफ व्मलशाय बी कये तो बी उवका उवर ू शै‗‗चुऩ

यशो औय ननबाते चरो।‘‘भैं कई फाय वोचती शूॊ कक मे औयत मशाॊ यशती बी नशीॊ कपयबी शभवे ज्मादा

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आयम्ब ई-ऩत्रिका 2014-15 रोगों को जानती शै । ब्जन्शें शभ योज लभरकय शॊ वते-भस् ु कुयाते आगे फढ़ जाते शैं,इवे उनके दख ु ों का ऩता शै । नाभ रेने बय की दे य शै लश उनकी

तकरीपों का फमान कय दे गी। ऐवा नशीॊ शै कक उवभें बेद रेने की जन्भजात प्रलवृ त्त शै फब्कक मे तो उवके

अनठ ू े

स्लबाल

का

दशस्वा

शै ।

आज नभस्ते कयने के फाद वन ु ीता अऩने स्लबाल के वलऩयीत न‗फोर-फनतमा‘यशी थी न शी भेयी फातों का

वशी

‗‗क्मा

ढॊ ग

फात

शै

वे

जलाफ

आज

दे

तफीमत

यशी

थी।

खयाफ

शै ?‘‘

‗‗नशी

तो…‘‘

‗‗ऐवे तो तभ ु चुऩ नशीॊ यशतीॊ?‘‘आत्भीम ळधदों का

वशाया ऩाकय उवके भन की गाॊठ खुरने रगी। ‗‗क्मा

कयोगे

जी

इव

गयीफनी

का

दख ु

जानकय?क्मा कशूॊ… आदभी चरा गमा,ववयु ारलारों ने धोखा कय ददमा औय छोड़ दी भैं बीकने को।

घयों भें काभ कयके फेीे-फेी​ी ऩारे। वाददमाॊ कय दीॊ। अफ छोीे की फाकी शै । राख शै भेया फेीा । नवीफ लारी शोगी उवकी औयत ऩय तकदीय भें जाने क्मा लरखा शै । दो वार ऩशरे जफ फड़े की वादी की थी तो इवे उवकी वारी ऩवॊद आ गई थी। जी रड़की बी चाशे थी इवे,भैंने फात बी चराई ऩय फशू की भाॊ नाी गई– एक घय भें दोनों फेी​ी न दे गी।‘‘ ‗‗तभ ु ने

कुछ

वभझामा

नशीॊ

उवे?‘‘भैंने

ऩछ ू ा।

‗‗बतेयी वभझामी ऩय चक्कय दव ू या था। भैं ठशयी

गयीफ। वभथधन ऩीछे एक फेी​ी दे कय ऩछता यशी थी। वफके वाभने फोर नशीॊ वकती थी। भेये ते

फशू ने फताई कक भाॊ तो अच्छा घय दे ख यशी शै । औय जी फशू की बैन शभाये घय बी आती थी औय भेये वप्रॊव ते खफ ू फोरे-चारे थी। ऩय वादी कय दी

उवकी। लो फम्फई चरी गई। वला वार फाद लाऩव आई शै तफवे वप्रॊव को पोन कये जा यशी शै कक भेयी फशन को भझ ु वे लभराने रे आ। भझ ु े रे जा arambh.co.in

कुछ

ददन

के

लरए

भौवी

वे

लभराने।‘‘

‗‗आखखय फात क्मा शुई?‘‘ ‗‗लो कैवे फताउॊ …लो…जी फव फच्ची फशुत तॊग

शो री लशाॊ…आदभी वॊग खुव न यश वकी।‘‘ ‗‗क्मा

भायता-ऩी​ीता

था?‘‘

‗‗जी लो बी… फव वभझ रो रड़की ने लशाॊ वख ु

जाना

शी

नशीॊ…आदभी

नाभयद

ननकरा।‘‘

दयअवर वन ु ीता की वभथधनभेशतयानी थी ऩय उवकी नौकयी वयकायी थी। वभधी ने बैंव ऩार

यखी थीॊ तो आभदनी अच्छी थी। कपय दव ू यी रड़की वद ॊु य बी फशुत थी तो उनका भन था अऩने वे अच्छी कभाई लारे घय भें शी उवका ियश्ता

कयें गे। इत्तेपाक वे रड़का बी लभर गमा,लो बी वयकायी नौकयी लारा।वन ु ीता के फशुत आग्रश औय रड़का -रड़की के एक-दव ू ये को चाशने के फाद बी रड़की की ळादी लशीॊ कय दी। वन ु ीता औय उवके रड़के ने ददर ऩय ऩत्थय यख लरमा। वार बय फाद

अफ जफ कपय रड़के की कशीॊ फात चराने की वोच शी यशी थी कक मे खफय लभर गई। ब्जतना भझ ु े

फतामा उववे तो ऐवा शी रगा कक अफ रड़की दोफाया फम्फई तो नशीॊ जाएगी। औय मे बी ऩता चरा कक वन ु ीता कुछ ददन के लरए उवे अऩने घय बी फर ु ाना चाश यशी शै ताकक लो फशन वे भन की

फातें कय रे। ऩय उव ददनरगा कक वन ु ीता के भन भें औय बी कुछ था ब्जवे फताते-फताते लो दशचक गई थी। ऐवा रगा कक ब्जतना उवने फतामा मे

तो केलर बलू भका शै आख्मान कुछ औय शी शै । इव फात को शुए कुछ ददन गज ु य गए। भैं बी व्मस्त थी औय वन ु ीता ने बी कोई चचाष नशीॊ

छे ड़ी। उव ददन ळि ु लाय था। अगरे दो ददन के

अलकाळ वे भन याशत औय खळ ु ी वे बया था। आज कुछ भीठा फनाने का ददर था। काभ के Page 18


आयम्ब ई-ऩत्रिका 2014-15 दौयान ‗‗कुछ

वन ु ीता

फना

बी

यशी

शूॊ

गई।

खाकय

जाना।‘‘

कापी थी झूठन भाॊजने का औय गॊदगी वाप कयने को।‘‘

‗‗ओशो तो आज फड़े खुव रग यशे शो। कर वफकी

अगरे कुछ ददन तो वन ु ीता की शॊ वी दे खते शी

कर

औय ऩज ू ा ऩय खत्भ। आज उवने मे ककमा। आज

छुट्ी​ी जो शै । चरो भैं बी कर दे य वे आउॊ गी। लो

‗‗कौन

ऩज ू ा

यशी

शै ।‘‘

ऩज ू ा?‘‘

फनती थी। उवकी फातें ऩज ू ा वे ळरू ु शो यशी थीॊ मे फनामा। आज घय वाप कय ददमा जी। अऩने

‗‗जी फशू की बैन की फताई थी न आऩको…

बतीजे का फड़ा ख्मार यखती शै । ऩज ू ा के आने वे

‗‗तो

कोलळळ मशी यशती ब्जतने ददन को आई शै खूफ

लशी।‘‘

अफ

क्मा

शो

यशा

शै

उवका?‘‘

‗‗जी आए शुए बी शफ्ता शो लरमा,घयलारे ने पोन

बी नशीॊ ककमा। न ववयु ार भें वे ककवी ने खफय री। रड़की भयी कक ब्जॊदा शै । जी इवकी भाॊ तो कश यशी शै कक शभें बी न बेजनी रड़की। वच भें जी क्मा कये गी लशाॊ जाकय। दे खो वादी भें शजाय-

शजाय के वी ू चढ़ा ददए। वोने की दो-तीन ीूभें ीाभें दे दीॊ उववे क्मा फन गमा वफ?जफ रड़की

खुव न यशी तो कपयलभट्ी​ी शो लरमा न वफ।‘‘

जैवे उवके घय भें फशाय आ गई थी। वन ु ीता की खळ ु यशे । मों बी उववे ककवी का दख ु दे खा नशीॊ

जाता था। उवका फचऩन फड़े वख ु भें फीता था। वऩता पौज भें थे। अऩना घय था । भाॊ ने शभेळा

राड़ वे यखा।भाॊ के भयने के फाद जैवे वफ कुछ

फदर गमा। वऩता ने ब्जम्भेदायी वे भक् ु त शोने के लरए वन ु ीता की ळादी कय दी। ळादी के फाद ऩता

चरा कक उवके वाथ धोखाशुआ शै । जो ऩक्का घय ददखाकय ळादी की गई थी लो ककवी औय ननकरा।

‗‗तराक ददरला के दव ू यी ळादी कय दें उवकी।‘‘

वन ु ीता का ऩनत जोगेश्लय फैंड ऩाी​ी भें फाजा

कोयी-पोयी के चक्कय। कपय औयत की दव ू यी

उवे नळे की रत थी। नळे भें यात-यात बय वन ु ीता

काड़

वशराने-दर ु याने रगता। वन ु ीता इवी प्माय की

‗‗जी शभाये भें कशाॊ शोते शैं तराक। कौन काीे

वादी कौन-वी आवान शै । दनु नमा तो उवीभें दोव दे गी।

फार-फच्चा

शो

तो

दोव

उवीका,तराक भें तो उवका। वलधलाशो जाए तो बी उवीका। वद ुॊ य शो तो उवका। जी जफ आदभी

फजाता था। कभाई का कोई ठीक था नशीॊ क्मोंकक को भाया कयता औय ददन भें नळा उतयने ऩय उवे

बख ू ी थी। प्माय लभरते शी कोई थगरा-लळकला नशीॊ कयती।

अक्वय

फताती

शै–

गज ॊु पेय लरमा। एक ु या भेया,ववयु ार लारों ने भश

‗‗न था जी शभाये ऩाव कोई ऩैवा,ज्मोनत का फाऩ

ऩय अॊगठ ू ा रेके शभाया दशस्वा बी अऩने नाभ कय

नशीॊ ददमा। कोई एक ीापी बी दे दे ता तो खुद न

रुऩमे की भदद न की। ऩता नशीॊ कौन-वे कागजों लरमा। उन्शोंने वोचा था भय-भया जाएगी ऩय जी

बी फशुत भाया कये था। ऩय उवने प्माय बी कभ खाता भेये लरए फचा के यखता। यात चाशे ककतना

भेये आगे तीन फारक थे। खुद को दे खती मा

करेव कये खाना शभ वाथ खाकय शी वोते। जी

उनको। भन कड़ा कयके काभ कयती गई। फड़े डोफ

बरे भाये था ऩय उवके वाथ शी ओढ़ने-ऩशनने के

रेके ऩारे शैं जी अऩने फच्चे,ऩय अऩनी ज्मोनत को

वाये

न डारा इव काभ भें । घणी कशी रोगों ने रे आ

‗‗क्मों

काभ ऩय दो ऩैवे कभाएगी ऩय जी नशीॊ भैं अकेरी

‗‗दनु नमा नशीॊ जीने दे गी भेये भालरक। फाऩ के

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वख ु

अफ

बी

गए ऩशनो

भेये न

जो

तो।‘‘ भन

कये ?‘‘

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आयम्ब ई-ऩत्रिका 2014-15 भयने के कई ददन फाद एक अच्छा वी ू ऩशन

कपय वप्रॊव वे?क्मा वप्रॊव तैमाय शै ?‘‘भैंने ऩछ ू ा।

फन के कशाॊ जा यशी शै आज?‘‘फड़ा तो जी अऩने

आई न लाऩव। औय उवका क्मा कवयू शै ?कभी तो

लरमा था तो जी फड़े फेीे ने कश दी –भाॊ छोयी-वी फाऩ का बी फाऩ शै । ऩीने भें उवते आगे,गॊदी

जफान औय फीफी-फच्चों की कोई ऩयलाश नशीॊ। उवका घय भैं शी चरा यशी शूॊ। ऩैवे ऩय जान दे ता

‗‗भैं भना रग ूॊ ी उवे। दे खो वप्रॊव की शी थी तबी तो

आदभी की थी। लो तो वप्रॊव को शी चाशती थी न।

औय वाव-ववयु औय फेीा भेये लरए क्मा कय यशे शैं जो

उनवे

कुछ

ऩछ ू ू ॊ ?‘‘

शै । वारों फीत गए दख ु न कीा। फड़ा फेीा अऩने

‗‗ऩशरे वप्रॊव वे शी फात कयो। कशीॊ ऐवा न शो

लैवा शी न कये जैवे फाऩ के बाइमों ने उवके वाथ

तैमाय न शो औय कपयतैमाय शो बी जाए तो कशीॊ

वगे बाई वे जरता शै । जी कशीॊ भेये वप्रॊव के वाथ

ळादी की फात ऩज ू ा के कान भें डार दो औय वप्रॊव

ककमा।‘‘वगे बाइमों ने जोगेश्लय वे भश ॊु भोड़ लरमा

जीलन

बय

उवे

ताना

था। ियश्ते की एक नॊद दोनों को ददकरी रे आई।

यखे….वभझ

मशाॊ आकय वन ु ीता ने घयों भें काभ कयना ळरू ु

‗‗जी भैंने ज्मोनत ते औय डडम्ऩर बाबी ते फात

लाम लभर गई तो ठीक नशीॊ तो बख ू े ऩेी शी दो

‗‗क्मा

औय कपयळाभ को घयों भें फतषन का काभ। यात भें

याजी शो गई ऩय जी भेयी ज्मोनत तो नयाज शो

यशी

भायता

यशे ।

शो

दख ु ी

न?‘‘

ककमा। भश ुॊ अॉधेयेकाभ ऩय ननकरती। कशीॊ चाम-

की

शै ।‘‘

फजे तक काभ ननऩीाती। घय आकय घय का काभ

‗‗जी डडम्ऩर बाबी ने तो थोड़ी शी न-नक ु ु य की ऩय

कशा

दोनों

ने?‘‘

अऩना घय। फव कपय अवे वे वन ु ीता ददकरी की

गई। फोरी‗भेये बाई के लरए दनु नमा भें मशी रड़की

भानी। शौवरा कयके आगे फढ़ती गई। तीन फच्चों

कॊलाया शै । भाॊ तू बाई की ब्जनगी न खयाफ

शी शो गई।तभाभ दख ु ों भें इव औयत ने शाय नशीॊ को जन्भ ददमा ऩय घय के शारात औय रड़ाईझगड़े भें उन्शें ऩढ़ा न वकी। कच्ची फस्ती भें

जभीन का एक छोीा वा ीुकड़ा बी उवका शो गमा। कच्चा-ऩक्का घय बी फना लरमा था। दो फच्चों की ळादी के फाद अफ उवे वप्रॊव की शी थचॊता

थी।

इध्र ब्जव ददन वे ऩज ू ा उवके घय आई थी उवी

यै गई शै?शभें न कयनी इववे वादी। भेया बाई तो कय।‘….अफ आऩ शी फताओ जी जीलन भें इतने

दख ु उठाकय बी क्मा उव दखु खमायी का दख ु दे खे जाउ

तो

क्मा

वीख

री

ब्जनगी

वे

भैंने?‘‘

भैं अलाक् यश गई उवकी फात वन ु कय। एकाएक

उवका कद ककतना फढ़ गमा था। भझ ु े रगा भेये आव-ऩाव ळामद शी इतनी वाशवी औय वर ु झे वलचायों की कोई भदशरा शोगी। इतने कष्ी वशने

ददन वे खाने-ऩीने का छोीा-भोीा वाभान उवके

के फाद जफ शभ फेशतय ब्स्थनत भें शोते शैं तो

लरए खयीदकय रे जाती। ळाभ को उवके रॊफे फार

वऩछरा वफ बर जाते शैं। ऩय वन ू ु ीता वफवे

वॊलायती औय अगरे ददन उन फारों का गण ु -गान कयती थी। आखखय एक ददन वॊकोच वे बयकय

ीकयाकय ऩज ू ा को अऩनाने का भन फना चुकी थी। औय अफ चाशे ककवी वे रड़ना ऩड़े मा भनाना ऩड़े।

भझ ु वे फोरी–‗‗जी भन भें एक फात शै । क्मा ऩज ू ा

भैं जानती शूॊ एक फाय ननणषम कयके लो उवी ददळा

‗‗क्मा वफवे फात कय री?वाव-ववयु ,फेीे वे औय

वशी ऩय भना लरमा,फेी​ी ने बी दे य-वफेय ब्जद छोड़

को

अऩने

arambh.co.in

घय

रे

आऊ,वप्रॊव

के

लरए?‘‘

भें आगे शी फढ़े गी। उवने फेीे को भब्ु श्कर वे शी

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आयम्ब ई-ऩत्रिका 2014-15 दी। अफ फव ऩज ू ा के भाॊ-फाऩ वे फात कयनी फाकी

उवके भाॊ-फाऩ फोरे–‗‗जैवी तकदीय उवकी‘‘अफ

थी। ऩज ू ा अऩने घय रौी गई थी। वन ु ीता भशीना

कपयक्मा कशती उनवे। तबी वभथधनने कशा ऩड़ोव

खत्भ शोने के इॊतजाय भें थी। तनख्लाश लभरे तो

भें एक रड़की शै दे ख के जा वप्रॊव के लरए। जी

ऩज ू ा के लरए कुछ खयीदकय वोनीऩत जाए। वफ

भन नशीॊ कय यशा था । क्मा आव रगाके गए थे

बी भाॊग री थी। योज शी नए-नए भॊवफ ू े फनाती–

भझ े ऐवे भें धमाश-वादी की फात वश ु … ु ा नशीॊ यशी

घयों वे उवने भशीने के ऩशरे ळननलाय की छुट्ी​ी

औय क्मा शो गमा। घणा दख ु था जी रड़की का

‗‗जी वोने की तो नई चाॊदी की दो-एक ीूभें फनला

थी। वभथधनने ब्जद ऩकड़ री । कशी,चर चाम

रग ूॊ ी। ऐवे कऩड़े रग ूॊ ी। ऩय जी ज्मादा ददखाला

ऩीरे लशाॊ चरके। छोयी बा जाए तो ठीक न बाए

भाॊ को भना र… ॊू .लो बी भान जाएगी दे खना

गमा भेया। ककतना भीठा फोर। गोयी ऐवी कक छूने

नशीॊ वादी तयीके वे कय रेंगे वफ….फव ऩज ू ा की

तो ठीक। फव जी रड़की दे ख के भन खुव शो

तभ ु ।‘‘

वे भैरी शो जाए। वच भेंजी खारी गोयी शी नशीॊ

इतलाय की वफ ु श भझ ु े इॊतज़ाय था वन ु ीता के आने

थी,नैन-नक्व बी चोखे थे। भेये वप्रॊव ने तो वफ

आई,भस् ु कुयाई‗‗रगता शै फात फन गई।‘‘भैंने कशा।

औय रड़की का क्मा कशना?जी वीधी,एकदभ।

का। इव फात का कक आखखय क्मा शुआ?वन ु ीता

भझ ु ऩय छोड़ ददमा। अच्छा घय था। भाॊ-फाऩ ठीक

‗‗नशीॊ जी वफ उकीा-ऩक ु ीा शो गमा…शभ घय गए

आजकर जैवी कोई फात शी नशीॊ। फव जी इव

गई। जी न जाने कैवा शो आमा था शभ भाॊ-फेीे

वन ु ीता की कशानी का क्राईभेक्व राजलाफ था।

तो ऩता चरा ऩज ू ा तो अऩने घयलारे के वाथ चरी

फाय

का। वफ कुछ जानते- फझ ू ते बी रड़की ढकेर दी

फात

घय का

फव

जाए

फनना,कपय

त्रफगड़ना

जाना।

तेजी

फेीे औय

त्रफगड़

के

नारे भें । जी फताते शैं ऩज ू ा बी भयजी वे चरी

कपयफन

गई। धभकाई शोगी जी। कपयउवे बयोवा न शोगा

घीनािभ,ऩियब्स्थनतमों

जी कक वादी के फाद बी कोई उवे अऩना रेगा? ‘‘

नाीकीमता औय कपय प्रमोजन बी…मशी तो कशानी

अफ क्मा कशूॊ कुछ वभझ नशीॊ आ यशा था कक

का आधय शै । कपय वख ु ाॊत बी शो गई। इववे

भेये

आफाद बी शो गमा। वन ु ीता के ळधदों भें कशूॉ

इतने भें वन ु ीता फोरी, ‗‗जी ियस्ता ऩक्का शो गमा वप्रॊव

का।‘‘

‗‗तो इतनी दे य वे भज़ाक कय यशी थीॊ तभ ु ?जान

ननकार दी भेयी। भेया तो ददर शी फैठ गमा था तम् ु शायी

फातों

वे

कक…‘‘

‘‘कोई झूठ नशीॊ कै यशी… नशीॊ जी वच। ऩूजा तो वच भें जा

‘‘तो

घीता

उथर-ऩथ ु र,ऩमाषप्त

फेशतय औय क्मा शो वकता था?चलरए फेीे का घय तो‗‗फयाफाद नशीॊ गमा उवका वोनीऩत जाना।‘‘ऩय

वफ कुछ शोते शुए बी कशानी मशीॊ खत्भ न शो वकी। कुछ ददन वन ु ीता अऩनी ककऩनाओॊ भें शी डूफी यशी। कपयवे ऩयु ानी फातें कुछ औय नएऩन के

री।’’

वाथ दोशयाने रगी-‗‗वोने की नई तो चाॊदी की दो-

कपय?’’

एक ीूभें फनला रग ॊू ी…लैवे वोने का ऩानी चढ़ीबी

‘‘जी लो तो वऩॊकी शै । उनके ऩड़ोव भें यशती शै । शभ तो जी ऩूजा के जाने की फात वन ु के चुऩ रगा गए थे।

एक फाय कशी बी भैंने –क्मोंबेजी उव घय भें?ऩय arambh.co.in

की

वे

का।‘‘

दे ख रग ूॊ ी। कुछ अच्छे -वे कऩड़े रे रग ूॊ ी। ऩय जीवफ वादी तयीके वे कय रेंगे….ऩैवा तो न उनके

ऩाव शै न भेये। ददखाला क्मा कयना शै ?ऩाॊच रोगों Page 21


आयम्ब ई-ऩत्रिका 2014-15 की फयात जाएगी । फवइव फाय वफ ठीक शो रे तम् वे।‘‘ळादी चाय भशीने फाद तम शो ु शायी दआ ु

गमी थी। वन ु ीता ऩैवे जोड़ने भें रग गई। कुछ कजाष रेने की फात बी उवने कशीॊ कय री थी।

रड़की के वलऴम भें वाये ियश्तेदायों को फता ददमा

शभेळा की तयश फड़े फेीे ने तो कुछ नशीॊ कश

ददमा?भेया ददर फैठा जा यशा था। आखखय आॊवू ऩोंछकय उवने ऩानी भाॊगा । ऩानी ऩीकय आलाज

काफू भें आई तो ऩशरा लाक्म मशी ननकरा‗‗जी फयाफाद शो लरमा वफ।‘‘भैं क्मा अीकर रगाउॊ

गमा। वाव-ववयु नायाज़ शो गए। अकेरे शी ियश्ता

कुछ वभझ नशीॊ ऩा यशी थी। कुछ षण फाद

ऩय वन ु ीता का अऩना तकष था–‗‗जी जफ आदभी

के फाऩ को उकी​ी-वीधीऩट्ी​ी ऩढ़ाके । बाई-बाबी

तम कय आने की फात उन्शें जभ नशीॊ यशी थी।

फोरी‗‗जी फड़े ने ियस्ता तड़ ु ला ददमा छोीे का,वऩॊकी

गमा तो न ददमा वशाया इन्शोंने । फच्चे भैंने

चालै शैं कक मे कभाके उनका घय बयता यशै ।

अकेरे ऩारे तो ियस्ते बी भैं तै करूॊगी।…भेया वख ु

इवकी वादी शो गई तो …वन ु ीता कपय योने

गयीफनी को अच्छा घय लभर गमा। जी वप्रॊव रामा

वऩॊकी के फीच पोन ऩय फातचीत फॊद शो गईं शैं।

नशीॊ दे खा जा यशा औय क्मा। कैवे वलधला -

रगी।‘‘कुछ दे य फाद भारभ ू शुआ कक वप्रॊव औय

शै न भोफाइर वे रड़की की पोीो खेंचकय,तबी वे

ददक्कत वऩॊकी के वऩता को शै ।‗‗वऩॊकी के फाऩ ने

छुियमाॊ चर यशी शैं–‗‗कशाॊ ते लभर गई इतनी वद ुॊ य

भना कय दी कक अफ कबी फात नशीॊ कयणी। लो

चरना चादशए। अये ऩशरे वे तै कय आई शोगी… मे

जो फतामा लो तो एक फशुत फड़े नाीक का दशस्वा

रड़की?इतनी जकदी क्मा ऩड़ी शै ?वफ दे खबार के औयत तो फड़ा-छोीा बी न दे ख यशी।‘‘वन ु ीता मों

तो इन तानों की ऩयलाश नशीॊ कय यशी थी ऩय उवके बीतय फौखराशी थी। अऩने फेीे को रेकय ककवी अनजाने-अदृश्म बम वे लश ऩये ळान थी। फाय-फाय उवकी ळादी के फनते-त्रफगड़ते िभ ने उवे वॊकी भें डार ददमा था। इधयखचे की थचॊता बी

वोतेरा फाऩ शै जी।‘‘ऐवा वन ु ीता ने फतामा। औय था। वऩॊकी का वौतेरा वऩता रड़की ऩय कोई दोऴ

रगाकय उवेफेचने के भॊवफ ू े फाॊध यशा था। ऩय रड़की भें कोई ऐफ था शी नशीॊ। मे वुनशयी भौका

उवके शाथ रग गमा था। एक फाय ळादी ीूी

जाएगी तो दोफाया भब्ु श्कर आएगी,लो इवीका ऩपामदा उठाने की कपयाक भें था। कपय उवने

थी। ऩय इव वफके फीच उवे वच्ची खुळी लभरती

ऩज ू ा-वप्रॊव के फाये भें अपलाशें उड़ाना बी ळरू ु कय

फताता। उन दोनोंके बाली जीलन के वऩनों को

राब उठामा। फात का फतॊगड़ फनाकय ियश्ता तड़ ु ला

जफ वोने वे ऩशरे वप्रॊव उवे वऩॊकी वे शुई फातचीत

वन ु -वन ु कय शी लश खुळ शो जाती । फच्चों के फीच ऩनऩ यशा प्रेभ बाल उवे उत्वादशत कयता। वन ु ीता

ददमा। इधय वन ु ीता के फड़े फेीे ने बी भौके का

ददमा। ऩय वन ु ीता का भन फेशद दख ु ी औय थचॊनतत था औय मे थचॊता लाब्जफ बी थी। मशाॊ केलर

खुद को अऩने रड़के के दोस्त जैवा भशवव ू कयने

रड़की की फदनाभी की फात नशीॊ थी फदनाभी

थी।

रड़के की बी थी। वफको कशने का भौका लभर

कपय अचानक एक ळाभ वन ु ीता आॊवओ ु ॊ वे योने

यशा था।‗‗अये कोई खोी शी शोगी जो फाय-फाय

थी। भझ ु े रगा वाव-ववयु वे रड़कय आई शै ऩय

ऐवा

रगी

रगी। ककवी फात का कोई जलाफ शी नशीॊ दे यशी रड़ना तो उवके स्लबाल भें था शी नशीॊ। कशीॊ arambh.co.in

ियश्ता ीूी यशा शै ।‘‘राख दे ते यदशए वपाइमाॊ ब्जवे भानना

शी

शै

उवे

कुछ

वन ु ना

कशाॊ?

इध्र वन ु ीता की ऩये ळानी तो कुछ औय शी थी। उवे Page 22


आयम्ब ई-ऩत्रिका 2014-15 दख जरूय था कक ियश्ता ीूी गमा ऩय अवरी ु

बयती

औय

गशये

दख ु

वे

कशती…‗‗शाम

यी

थचॊता बवलष्म वे जुड़ी थी कक फड़ा फेीा उवके

ककस्भत…न जाने ककव बागलान को लभरेगी

भयने ऩय छोीे का क्मा शार कये गा। उवकी आॊखों

वऩॊकी?‘‘ऩय अगरे शी षण दठठक जाती कक जाने

भें अतीत एक फाय कपय वे जीवलत शो उठा — मशी

ककव कवाई के ऩकरे फॊधेगी?न जाने ककतनी शी

फड़ा फेीा एक ददन अऩने वऩता को थधक्कायते शुए

फाय तो भझ ु वे कश चक ु ी शै‗‗जी गाम गाय भें धॊवी

योी​ी बी न दॊ ग ू ा,दे ख लरमो।‘‘आज बी गयभ राले

तैमाय थी ऩय रड़की का वऩता तो कुछ वन ु ना शी

थे। उव लक्त बी अऩने ऩनत की तयपदायी कयते

भोश भें घर ु ी जा यशी थी। फाय-फाय एक शी

कश यशा था‗‗फड़ा शोने दे बीख भॊगलाउॊ गा तझ ु वे । जैवे उवके मे ळधद वन ु ीता के कानों भें खौर यशे

शुए उवने एक ऩैवा कभाकय न राने लारे फेीे वे कशा था‗‗फाऩ शै तेया,कैवे फोर यशा शै इववे?इवकी

कपकयन कय त।ू जफ तक जीती शूॊ खखरा रग ूॊ ी इवे। भैं अबी फैठी शूॊ।‘‘औय फाऩ के भयने ऩय फड़ा

उववे बी आगे ननकर गमा। ळयाफ ऩीना,जुआ खेरना,चोयी-चकायी,भाय-ऩी​ी। मशाॊ तक की ऩत्नी औय फच्चों वे बी प्माय नशीॊ। तनख्लाश कशाॊ खत्भ शो जाती शै उवकी ऩता शी नशीॊ चरता। वन ु ीता अऩने औय वप्रॊव के फरफत ू े शी उवके फीफी-फच्चों का बाय उठाती यशी। दो फाय न्माया कयने ऩय बी

ददर ऩवीज गमा उवका छोीे -छोीे ऩोता-ऩोती को दे खकय। लो अवशाम फशू को चाशती शै ऩय फशू अऩने बवलष्म वे डयती शै । डय शै कक अगय दे लय

का धमाश शो गमा तो कौन आथथषक वशामता कये गा?कैवे

चरेगा

उवका

घय-ऩियलाय?

इन वफ ऩये ळाननमों के अराला उवके ददर की वफवे फड़ी कवक लो रड़की थी ब्जववे ियश्ता तम शुआ था। ऩता नशीॊ कुछ दे य के लभरने औय अऩने

फेीे वे वन ु ी उवकी फातों वे शी वन ु ीता ने अनभ ु ान रगा लरमा था कक रूऩ-गण ु भें उवके जैवी रड़की ढूॊढ ऩाना उवके लरए अवॊबल शै । उवके चेशये भें

ब्जव अऩाय धैमष को उवने ऩयखा था अफ लशी चेशया आॊखों वे शीता नशीॊ था। वफ कुछ खत्भ शोने के फाद बी ब्जि नछड़ते शी लो ठॊ डी वाॊव arambh.co.in

शै ।‘‘मशाॊ तक कक लो रुऩमे दे कय राने को बी नशीॊ चाशता था। लो फेीे की थचॊता औय रड़की के फात‗‗फयाफाद

शो

लरमा

वफ।‘‘

कुछ ददन फीतने के फाद एक वफ ु श ऩाॊच फजे घॊी​ी

फजी। दयलाजे ऩय वन ु ीता खड़ी थी।‗‗जी कुछ ऩैवे चादशए उधय । नये रे जा यशी शूॊ। आज काभ नशीॊ शोगा । आऩ वफको फता ददमो।‘‘ ‗‗इतनी

वफ ु श…क्माफातशै?‘‘

‗‗जी रड़की की भाॊ बगा राई शै रड़की को कवाई

वे छुड़ाके। कशीॊ नशीॊ कयनी थी ळादी उवे रड़की की। अफ कशता शै भैं यख रग ूॊ ा इवे अऩने लरए ।

भाॊ नाी गई तो योज भायता-ऩी​ीता शै । दोनों जननमों की ब्जॊदगी नयक कय यखी थी। रड़की की भाॊ भौका दे खकय बगा राई शै । भेये ऩाव पोन आमा था। वप्रॊव के वाथ ननकरग ॊू ी छश लारी गाड़ी वे। दे खूॊ क्मा शोता शै ?जाने क्मों फर ु ामा शै ीे वन ऩय?‘‘

ऩये ळानशार वन ु ीता ऩैवे रेकय चरी गई। भैं मशी वोचती यशी कक जाने अफ क्मा शोगा?कशीॊ वन ु ीता

के ऩशुॉचने वे ऩशरे लो आदभी ऩशुॊच गमा तो?क्मा वन ु ीता को रड़की वौंऩने के लरए फर ु ामा शै मा

केलर भदद के लरए?क्मा वन ु ीता का फेीा इव

तयश बागी शुई रड़की वे ळादी कये गा?कशीॊ ऩलु रव

का चक्कय न शो जाए?जाने कैवे-कैवे ख्मार आते यशे । वाया ददन इवी उधेड़फन ु भें ननकर गमा।

काभ की बी थचॊता वता यशी थी कक अगय वन ु ीता Page 23


आयम्ब ई-ऩत्रिका 2014-15

फ्रेभ

पॊव गई तो दो-तीन ददन काभ कैवे चरेगा?अगरे ददन वफ ु श ठीक वभम ऩय घॊी​ी घनघनाई। वन ु ीता

फाशय खड़ी थी। दयलाजा खोरते शुए भैंने ऩछ ू ा‗‗क्मा कय

‗‗लशी जो कयने गई थी…थायी फशू रे आई।‘‘तारी

ऩी​ीकय

शॊ वते

शुए

उवने

फतामा।

‗‗जी फशू की भाॊ ने रड़की वप्रॊव को वौंऩ दी।

कवभ वे यो ऩड़ी दोनों जननमाॊ। भैंने बी बाई फर ु ा

लरमा था अऩना। उवने ऩक्का काभ कया डारा। पेये डरला ददए। लकीर बी बाई की ऩैचान का था। लकीर ने ऩक्के कागज फना ददए शैं। दोनों फालरग शैं। वादी भें दोनों की भाॊएॊ खड़ी थीॊ। रड़की ने कश ददमा वादी भेयी भयजी वे शो यशी शै । ऩाॊच शजाय भें काभ शो गमा। रड़की की भाॊ के ऩाव तो कुछ नई था ऩय भेये ऩाव था।छोीा फेीा फशुत खुव शै औय लो रड़की को तो मकीन नशीॊ आमा अफ तक कक शभ वादी कयाकय रे आए उवे। जी फड़ा प्माया जोड़ा शै फच्चों का। रड़की की भाॊ

(कहानी) (तीसया अॊक)

आईं?‘‘

फड़ी

दशम्भती

ननकरी

जी।‘‘

‗‗औय रड़के की भाॊ क्मा कभ शै ?‘‘भैंने कशा। ‗‗फव जी शौवरा कयके खड़ी शो गई। फच्चों को

रेकय घय भें फड़ी तो जी भेया फड़ा फेीा तो दे खता यश गमा। रड़की के वौतेरे फाऩ को बी धक्का रगेगा। इन दोनों ने फयाफाद कयने भें कोई कभी न छोड़ी थी…..फव जी आफाद यशे मे दोनों फच्चे।‘‘

डॉ.प्रऻा एसोभसएट प्रोपेसय , कक.भ.भहा.,दद., वव., वव.

‗‗आज शाी‘‘

ळाभ

ऩाॊच

फजे

आई.एन.ए….ददकरी

‗‗ओ.के.‘‘

‗‗ठीक ऩाॊच‘‘ ‗‗ओ.के.‘‘

याली औय जनतन के फीच ददन बय भें न जाने

ककतने भैवेजेव का आदान–प्रदान शोता यशता शै । कशने को दोनों एक शी जगश काभ कयते शैं ऩय

ककतने जोड़ी आॊखें औय ककतने जोड़ी कान उन्शीॊ की तयप रगे यशते शैं। जैवे शी दोनों के शाथ

पोन ऩय जाते शैं ककतने शोंठों ऩय भस् ु कुयाशी तैयने रगती शै । चाशे खट्ी​ी शो मा भीठी। एक

शी आॅॎकपव के अरग दशस्वों भें फैठे याली–

जनतन जानते शैं कक लो रोगों के भनोयॊ जन का ो़ फेशतयीन वाध्न शैं । एक राइल,भजेदाय ीाइभ

ऩाव। उनके इदष–थगदष घभ ू ते रोग वऩमून वे रेकय लाइव वप्रॊवीऩर तक वबी को इव ककस्वे

भें गशयी ददरचस्ऩी शै । ऊऩय वे खद ु को ननस्ऩश ृ

ददखाने लारे बी आॊख–कान खुरे यखते शैं। औय

रूभार वे नाक को ऩाॊॅेछऩाॊछ कय उवके वूॊघने की षभता ऩय आॊच नशीॊ आने दे ते। झूठी औय

गढ़ी शुई कोई बी फात इन दोनों के नाभ वे खूफ चरती शै ऩयू े स्कूर भें । नाॅॎन ी​ीथचॊग शी नशीॊ ी​ीथचॊग स्ीाप बी उनके चेशये ऩढ़कय कशाननमाॊ

यचने का एक्वऩीष शो यशा शै । याली–जनतन दोनों वे मे तभाभ शयकतें नछऩी नशीॊ शैं। ऩय वालधानी

शी​ी दघ ष ना घी​ी की तजष ऩय दोनों अनतियक्त ु ी रूऩ वे वालधन शी यशते शैं। दोनों के लरए शय arambh.co.in

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आयम्ब ई-ऩत्रिका 2014-15 ऩर एक आपत की तयश गुजयता शै । फैठने–

इवलरए लभरने–लभराने के अलवय कभ नशीॊ शैं

कड़ा ऩशया उनको वाप ददखाई दे ता शै । जनतन

अगय

उठने,फोरने–फनतमाने भें शय तयप नजयों का तो फाय–फाय कशता शै -‗‗दो ददर लभर यशे शैं

भगय चुऩके–चऩ ु के…‘‘औययाली का जलाफ शय

फाय उवे वालधान कयते शुए मशी शोता शै ‗‗वफको शो यशी शै खफय चुऩके–चुऩके।‘‘ वप्ताश भें दो–तीन फाय याली फशाने फनाकय जनतन वे लभरने भें काभमाफ शो शी जाती शै ।

ऩय मे लभरना बी कोई लभरना शै ?स्कूर वे शी घूभने

का

कामषिभ

फनता

शै

तो

दोनों,रोगों की आॊखों भें ध ्ॅूर झौंकते शुए योज़ की तयश अऩने अऩने यास्तों की ओय ननकरते शैं औय कपय तम ककए प्लाॊइी ऩय लभरकय याली जनतन की फाइक ऩय वलाय शो जाती शै । याली

शे रभेी रगाना कबी नशीॊ बूरती। कई फाय जनतन वे कशती शै —

मों तो योज़ शी जनतन की आॊखों वे लभरी

‗‗मा तो गाड़ी खयीद रो नशीॊ तो एक फुकाष।‘‘

आती शै ऩय ब्जव ददन दोनों के घभ ू ने का प्रान

जाएगी औय कुछ ददन फाद फुकेलारी घय शी आ

तायीप ऩाने के चक्कय भें याली तैमाय शोकय शोता शै उव ददन तो याली वे नज़य शी नशीॊ

शीती। कऩड़े औय फारों के अॊदाज वे शी नशीॊ

उवके फोरने–चारने के अॊदाज़ वे शी वफको ळक

शो जाता शै कक आज तो कोई खाव फात शै ।

जनतन के वाथ वभम त्रफताने की ककऩना वे शी

लश ददन बय अऩने भें भगन वी यशती शै । ददभाग भें रगाताय एक लरस्ी फनाती यशती शै

जरूयी फातों की जो आज जनतन वे शय शार भें

कयनी शी शैं। लैवे तो भोफाइर वे शय तयश की

वशूलरमत शै ऩय शाथों भें शाथ औय आभने– वाभने की फात का भजा शी औय शै । उव ददन

तो कोई कुछ ऩूछे ऩशरी फाय भें याली को वभझ

शी नशीॊ आता कपय चैंककय कशती शै ‗‗क्मा कशा दोफाया कदशए‘‘। रोग कोशनी भायकय आॊखों भें एक–दव ू ये

वे कशते शैं-‗‗शाॊ बई ददभाग तो

जनतन भें रगा यखा शै शभायी फातें क्मा खाक

औय जनतन मशी जफाफ दे ता-‗‗गाड़ी तो आ शी जाएगी।‘‘

नमे ज़भाने की तभाभ शला रगे शोने के फालजूद जनतन के मे ळधद अनोखा–वा योभाॊच बय दे ते याली के बीतय।

आज बी याली की लरस्ी शभेळा की तयश तैमाय थी। लैवे तो लश जनतन के वाभने एक धैमल ष ान

श्रोता की शी तयश फैठती थीऩय अऩनी फात

कशने के फाद। आज की लरस्ी के भुतात्रफक ऩशरा भवरा चॊदेर चाचाजी औय उनकी जावूवी

का था। नाक भें दभ कय यखा था उन्शोंने। ‗‗

अये वगे चाचा थोड़े शी न शैं तम् ु शाये जो इतना डयती यशती शो उनवे।‘‘

‗‗वगे नशीॊ शैं ऩय योफ तो ऩूया शै उनका। ऩाऩा इवी स्कूर वे जो ियीामडष शुए शैं औय वऩपय भेयी नौकयी रगलाने भेॅेॅॊ बी ो़

वभझ भें आएॊगी।‘‘ जनतन अऩने आऩ को वॊमत

‗‗उव नाते तो भैं तुम्शाया चाचा शुआ लभव याली लभत्तर। तम् ु शायी नौकयी रगलाने भें भेया योर

अऩना ऩाीष ननबाने भें अक्वय चूक जाती शै ।

लरए फड़ी थचयौयी की थी भेयी। उनकी ददरी

यखने का ढाॊॅेग फखफ ू ी ननबा रेता शै ऩय याली कशने को जनतन स्कूर का मूडीवी शै औय याली उवके

भातशत

arambh.co.in

तीन

एरडीवी

भें

वे

एक।

वफवे ज़्मादा शै । तुम्शाये ऩाऩा ने इव काभ के ख्लादशळ थी कक उनके ियीामय शोने वे ऩशरे तुभ मशाॊ आ जाओ। कभ ऩाऩड़ नशीॊ फेरे शैं

Page 25


आयम्ब ई-ऩत्रिका 2014-15 भैंने।‘‘

क्मा?‘‘

‗‗वच याली जफ तक तुम्शें दे खा औय जानानशीॊ

भें फाकी वललाशों जैवा शी शो जाता शै।‘‘

‗‗शाॊ–शाॊ वफ भतरफ के लरए तो‘‘

था तुभ भेये लरए लभत्तर वय की फेी​ी शी थीॊ।

एक वशकभी शोने के नाते शी मशाॊ तम् ु शायी अस्थाई ननमब्ु क्त भें भेयी औय तम् ु शाये चाचाजी चॊदेर वाशफ की बूलभका थी। ऩय क्मा तुभ नशीॊ जानतीॊ कक मशाॊ स्थाई कयलाने के लरए भैंने

ककतनी बागदौड़ की। लो तो बरा शो वप्रवीॊऩर वय का जो भेयी फात वुन–वभझ रेते शैं नशीॊ तो इन ऩब्धरक स्कूरों भें नौकयी लभरनी ककतनी भब्ु श्कर शै ?‘‘

‗‗मशी तो भतरफ था।‘‘ ‗‗अफ

प्माय

चरेगा?‘‘

को

भतरफ

‗‗शाॊ वफ तो मशी कशते शैं। प्रेभ–वललाश बी फाद ‗‗क्मा भतरफ?‘‘

‗‗भतरफ भैं नौकयी औय घय वॊबारॊग ू ी औय तभ ु फाशय यशोगे।‘‘

‗‗याली ळादी के फाद क्मा भुझे घय वे ननकार

दे ने का इयादा शै तुम्शाया?औय तुभ शी घय क्मों वॊबारोगी?भेये घय को भैं बी वॊबारूॊगा। औय तुभ कबी–कबी अकेरे आना मशाॊ ळाभ त्रफताने ।

कबी घभ ू ने–वऩपयने अऩने दोस्तों के वाथ। भैं खाना फनाकय तम् ु शाया इॊतज़ाय करूॊगा।‘‘ ‗‗जाओ–जाओ

कशोगी

तो

कैवे

‗‗ऩय चाचाजी को ऩक्का ळक शै । अऩने जावूव छोड़ यखे शैं उन्शोंने। उनको अऩने घय दे खकय जान वख ू जाती शै भेयी।‘‘

‗‗ऩये ळान न शो याली इतने बी फुये नशीॊ शैं। ‘‘

‗‗शाॊ फुयी तो भैं शूॅूॅॊ जो मशाॊ तुम्शाये चक्कय भें अऩना वभम गलाॊ यशी शूॊ। तुभ कैवे बी इव भुवीफत वे भेया ऩीछा छुड़लाओ।‘‘ ‗‗कैवे?‘‘

‗‗ऩाऩा वे वफ कश दो। दे य शो जाएगी तो ….‘‘

‗‗ऐवे कैवे दे य शो जाएगी?थोड़ा इॊतज़ाय कयो।

औय तुभ बी न मशी वफके लरए लभरने आई थीॊ

पुवराओ।‘‘

मे

वफ

कोयी

फातों

वे

याली–जनतन की ळाभें ऐवी शी नोंक–झौंक भें

ननकर जाती। जनतन को कई फाय रगता कक याली जैवे एक अफोध फच्चे की तयश शै ब्जवने

अऩनी भाॊ–दादी–नानी को दे खकय जीलन के कुछ

ननष्कऴष ननकारे शुए शैं औय वभम के वाथ उन्शें फदरना नशीॊ चाशती। इवीलरए जनतन के घय वॊबारने औय खाना ऩकाने जैवी फातों ऩय उवे वलश्लाव नशीॊ शोता। जनतन गशये अपवोव वे बय उठता था कबी–कबी। ककतनी भेशनत की शै

जनतन ने कक अऩने वऩता जैवा न फनने के

लरए,याली क्मा जाने?आज बी अतीत जनतन की आॊखों भें ब्जॊॅो़दा शै ।

मशाॊ?चरो कुछ औय फात कयो।‘‘

‗‗ळायदा ककतनी फाय वभझाना ऩड़ेगा तझ ु ?े एक

‗‗अये कय रॊग ू ा फाफा अफ तो कुछ औय फात

वधजी भें लभचष नशीॊ डरेगी,इभरी नशीॊ थगये गी।

‗‗यशने दो।‘‘

कयो न प्रीज़।‘‘

‗‗अच्छा जनतन क्मा ळादी के फाद बी शभ मशाॊ ऐवे शी आते यशें गे? ‘‘

‗‗क्मों नशीॊ?ळादी शोने वे वफ कुछ फदर जाएगा arambh.co.in

फाय भें वुनता नशीॊ शै क्मा?कश ददमा दार–

क्मों डारा शै गयभ भवारा?क्मा छौंके त्रफना दार गरे नशीॊ उतये गी?फार–फच्चे लारी शो गमी ऩय ळौक–भौज नई दक ु शन जैव।े चीोयी कशीॊ की।‘‘

जफ तक वऩताजी जीवलत यशे जनतन को वभझ Page 26


आयम्ब ई-ऩत्रिका 2014-15 शी नशीॊ आमा कक क्मों वऩताजी जफयन भाॊ को

वफवे फड़ी वाध शी भाॊ को उवकी ऩवॊद का

यशे लवऩपष एक तकष दे कय-‗‗वादा खाना खाओ ळयीय ठीक यशे गा औय चॊचरता बी काफू भें

‗‗भाॊ ळादी के फाद तेयी फशू जैवा खाना चाशे गी लैवा शी खाएगी। तेयी तयश इच्छाएॊ नशीॊ

औय भाॊ धीये –धीये यॊ गती गई वऩताजी के यॊ ग

ददखाना

अऩने जैवा वादा खाना खाने ऩय भजफूय कयते

यशे गी।‘‘

भें ,एक फेयॊग,फेयौनक यॊ ग भें। वऩता की कठोय

छवल के आगे अऩनी पूर–वी इच्छाओॊ को भवरती

भाॊ।

फचऩन

वे

शी

चीऩीे

खाने

खखराना–घुभाना शो गमी।भाॊ वे कशता बी कक

भाये गी।‘‘ औय भाॊ कशती ‗‗कशकय नशीॊ कयके त।ू

औय

खाने–ऩीने

भें

शी

नशीॊ

घूभने,फोरने–फनतमाने,वजने–वॊलयने वफका ध्मान यखना शोगा तुझ।े ‘‘ इवीलरए याली के बोरे ननष्कऴों ऩय जनतन भन भें शी शॊ वकय यश

की,घूभने–वऩपयने,वजने–वॊलयने औय गप्ऩे भायने

जाता। लश ळादी के फाद ब्जॊो़ दगी को उवे

नज़य आती। वऩताजी ने फड़ी चतयु ाई वे ढार

स्कूर भें केलर एक वॊजील वय शी थे ब्जन्शें

की ळौकीन भाॊ अऩनी जलानी भें शी लर्द ृ ध–वी लरमा था उन्शें । कबी–कबी जनतन को भाॊ ऩय गुस्वा

बी

आता।

जफ

बोजन

को

इतने

अरूथचकय ढॊ ग वे गीकती भाॊ को दे खता। भाॊ

पॊॅेक क्मों नशीॊ दे ती शै मे थारी?क्मों अऩने वाये गस् ु वे को फेस्लाद दार की तयश शरक भें

उॊ डेर रेती शै ?वऩताजी की चाराकी क्मों नशीॊ

वभझती शै जो खुद अस्लस्थ यशने के चरते भाॊ

को बी अऩने जैवा फनाने ऩय तुरे शैं। जीलन बय तभाभ इच्छाओॊ को भायने लारी भाॊ जफ

वलधला शुई तो ियश्तेदायों वे बये घय भें एकाॊत ऩाकय जनतन वे फोरी ‗‗ फेीा कशीॊ वे खखचड़ी लभर जाए खूफ भीय लारी,ऊऩय वे घी औय ढे य

ब्जॊो़ दाददर तोशपे के रूऩ भें दे ना चाशता था।

जनतन एक ऩियऩक्ल औय वॊलेदनळीर इॊवान

वभझता था औय कई फाय याली वे जुड़ी फातों को उनवे वाझा बी ककमा कयता था। क्रावेज़

वे कबी–कबाय पुवषत लभरने ऩय ले जनतन के वाथ कुछ वभम त्रफताते। जनतन उन्शें याली वे जड़ ु ी फातें फताने को तो आभादा यशता शी वाथ शी अऩनी ब्जसावाओॊ के शर औय अऩनी वॊळमों को बी फाॊीता। जकदी शी उवे याली के घय बी

जाना था तो थोड़ा ऩये ळान बी था। अऩनी

ऩये ळानी रेकय जनतन एक ददन वॊजील वय के वाभने शाब्जय ो़ शो गमा।

वाया गयभ भवारा डारकय रे आ। फड़ा भन शो

‗‗वय,याली के वऩता तो भझ ु े फशुत अच्छी तयश जानते शैं ऩय भैंने उन्शें ब्जतना जाना शै ले

वे ‗कफवे‘ळधद जनतन के भन भें अीक गमा।

भुझे स्लीकायें गें?‘‘

की ऩवॊद का उवे खखराना ळरू ु कय ददमा। भाॊ

फाकी ननणषम तो तभ ु दोनों का शी शै । तीव ऩाय

यशा शै । कफवे कुछ खामा शी नशीॊ। ‘‘ उव ददन

उवके फाद जनतन ने खद ु वे ऩकाना औय भाॊ को ऩकाने वे बी अरुथच शो गई थी। कई फाय

जनतन ऩूछऩाछकय मा इॊीयनेी औय ी​ीली की भदद वे नई चीजें फना दे ता तो कई फाय फाशय

वे चाी–ऩकौड़े बी आ जाते।उवके जीलन की arambh.co.in

जात–त्रफयादयी औय धभष के फड़े ऩक्के शैं। क्मा ले

‗‗भेये दशवाफ वे तो तुभ एक फाय उनवे लभर रो की उम्र शै याली की,ळादी के फाये भें वोच तो यशे

शी शोंगे। न बी भानेॅेॅॊ तो तुभ रोग अऩना

ननणषम जीना। दोनों वभझदाय शो,आत्भननबषय बी शो।‘‘

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आयम्ब ई-ऩत्रिका 2014-15 ‗‗ऩय भझ ु े रगता शै कक याली के भन को ठे व

तयश अऩने वऩता को अच्छी रगने लारी फातें

उवके ऩियलाय की वबी ळाददमों की तयश वफ

औय फात आवानी वे फन जाए। इवी फीच स्कूर

रगेगी अगय ले नशीॊ भाने तो। उवका वऩना शै

शॊ वी–खुळी औय ऩूये ताभझाभ के वाथ शो। दे खने वे तो वभझदाय रगती शै ऩय भैं शी जानता शूॊ कक अबी उवभें ककतना फचऩना फाकी शै । ‘‘ ‗‗औय तुभ क्मा वोचते शो जनतन इव फाये भें ?‘‘वॊजील वय ने ताककषक भुिा भें ककमा।

वलार

उवे फताने रगी ताकक फात कयने भें वुवलध शो का एनुअर डे आ गमा। एनुअर डे का भतरफ

वाॊस्कृनतक कामषिभों वे रेकय ऩूये स्कूर के बोज तक था। कई ददनों की भेशनत के फाद जफ बोजन का वभम आमा तो वबी राॅॎन भें

इक्​्ठे शो गए। इभायत रगबग खारी थी। याली औय जनतन बी बोजन भें ळालभर शोने जाने

‗‗शॊ वी–खुळी तो भैं बी चाशता शूॊ वय ऩय ताभझाभ नशीॊ। भैंने अऩनी ळादी के फाये भें मशी

लारे थे। ऩय याली ने वुफश शी जनतन को फता

रूॊगा। जो भेये ऩाव शै जैवा शै उवीभें अच्छा

ननब्श्चॊत शोकय जनतन औय याली शरला खा यशे

वोचा शै कक ककवी वे बी आथथषक भदद नशीॊ

कयने की कोलळळ यखूॊगा। याली वे बी भुझे कोई

भदद नशीॊ चादशए। ऩय लो भेयी फातों ऩय गौय शी

नशीॊ कयती। उवे तो रगता शै भाॊ–फाऩ फेदीमों के लरए कयते शी शैं वफ। अक्वय शभ दोनों की इव फात ऩय तकयाय शो जाती शै वय। ‘‘

‗‗वशी वोचा शै तुभने…औय याली अबी तक इवे वाभान्म वललाश की तयश शी रे यशी शै । शाॊ,ऩय अफ दे य कयना वशी नशीॊ। एक फाय लभर रो

लभत्तर जी वे औय तभ ु दलरत–ललरत तो शो नशीॊ जो उनके गरे नशीॊ उतयोगे। भेयी ज़रूयत शो तो फताओ?‘‘

‗‗तो आऩ क्मा वस्ते भें छूी जाएॊगे वय?ऩय अबी भैं अकेरे जाॊउगा कपय भाॊ औय आऩ

ददमा था कक आज उवकी ऩवॊद का भॊॅूग दार

शरला फनाकय राई शै । रोगों के न शोने वे कुछ थे। अऩनी प्रळॊवात्भक प्रनतकिमा भें जनतन ने याली के दोनों शाथ अऩने शाथों भें थाभ लरए।

याली के फारों को वशराने के लरए लश उवके कयीफ आमा शी था कक न जाने कशाॊ वे चॊदेर

वय प्रगी शो गए। आज दोनों यॊ गे शाथ ऩकड़े गए। जनतन शड़फड़ाशी भें कुछ वभझ शी नशीॊ ऩामा औय याली का शाथ थाभे खड़ा यशा। याली ने

जकदी वे शाथ छुड़ाकय नजयें नीची कय रीॊ। चॊदेर वय ने दोनाॊॅे भें वे ककवी को कुछ बी

नशीॊ कशा। ज़या दे य दठठके औय चरे गए। एक

तूपान गुजया था ऩय एक फड़े तूपान की आळॊका के वाथ। याली उवी वभम घय चरी गई

औय जनतन मशी वोचता यशा कक ककवी बी षण

चलरएगा। वऩताजी शैं नशीॊ औय फड़े बैमा को

लभत्तर वय का पोन आता शी शोगा।

नशीॊ।‘‘

अफ

त्रफना दशे ज लारी ळादी भें कोई इॊीयै स्ी शोगा जनतन ने वोच लरमा कक अगरे इतलाय दशम्भत कयके याली के वऩता वे वाप–वाप फात कय

रेनी शै । फीच के कुछ ददन अऩने भन को

दशम्भत फॊधाता यशा। याली अन्म प्रेलभकाओॊ की arambh.co.in

वायी यात इवी उध ्ॅेॅाड़फुन भें ननकर गई कक क्मा शोगा?क्मा फीती शोगी याली ऩय।

शाराॊकक ळाभ को याली वे कुछ दे य फात कयने ऩय जनतन ने जान लरमा था कक घय ऩय कोई

वलार–जलाफ नशीॊ शुआ ऩय शाॊ घय की शला को वाभान्म नशीॊ कशा जा वकता था। भाॊ को Page 28


आयम्ब ई-ऩत्रिका 2014-15 चाशकय बी नशीॊ फता ऩामा जनतन कक थचॊता भें

‗‗ठीक शै फता दॊ ग ू ी। पोन कयके आना।‘‘ ऩानी

फाय–फाय याली के ळधद माद आ यशे थे-‗‗दे य शो

त्रफना मे वॊलाद शुआ। इव दौयान जनतन की शय वाॊव याली की आशी ऩाने की कोलळळ कयती

अऩनी वायी यात कारी कय दे गी भाॊ। जनतन को जाएगी जनतन।‘‘ औय वचभुच दे य शो गमी। चॊदेर वय ज़रूय गए शोंगे लभत्तर वय के कान

बयने। अफ इतलाय को अऩयाधी की तयश जाना

ऩड़ेगा औय दव ू यी शी तयश फात वॊबारनी शोगी।

न चाशते शुए बी वायी ब्स्थनत त्रफगड़ चुकी थी। वुफश स्कूर ऩशॊ चकय तो दे खा याली की कुवी खारी शै । ज्मों–ज्मों वभम गुजयता जनतन का

ऩूछने औय त्रफठाने की औऩचाियकता ऩूयी ककए

यशी। ऩय व्मथष। रगा जैवॅ े े ककवी गरत घय का

दयलाजा खीखीा ददमा शै । चाशते शुए बी ऩूछ नशीॊ वका–‗‗याली कशाॊ शै ?कैवी शै ?‘‘ आज कपय याली नशीॊ आई। जनतन का वॊदेश

मकीन भें फदर यशा था कक ज़रूय भाया–ऩी​ीा

भन घीने रगता। वलारों के अनथगनत जॊगर

गमा शोगा। वऩीाई के ननळान औय वूजी शुई आॊखें रेकय कैवे आती स्कूर?याली का पोन

यशे थे। दशम्भत कयके ऩपोन ककमा तो दे य तक

कोलळळ की ऩय व्मथष। कई प्रमावों के फाद त्रफना

औय आॊळका के स्माश फादर वाभने ददखाई दे

फजता यशा औय ककवी ने ऩपोन नशीॊ उठामा। अजीफ फात मे बी थी कक चॊदेर वय वे बें ी शुई तो लो बी ऩशरे की तयश शी लभरे। चेशये औय

फातों वे कर की ककवी नायाज़गी का कोई वयु ाग

नशीॊ लभरा। अफ ककववे ऩूछे जनतन याली का शार?ऐवे शारात भें क्मा वॊडे का इॊतज़ाय कये मा

ननकर जाए अबी उवके घय के लरए। वाया ददन काभ भें भन नशीॊ रगा जनतन का। वॊजील वय

बी आज व्मस्त थे कपय ननणषम तो उवे खुद

आज बी फजता शी यशा। दव ू ये नॊफयों वे बी एक ऩर गॊलाए उवने लभत्तर वय को पोन

रगामा। वाभान्म ढॊ ग वे शुई फातचीत भें उन्शोंने कर ळाभ का वभम ददमा। उनकी फातों वे

जनतन को ककवी तऩ ू पान की बनक नशीॊ रगी।

भन को याशत ऩशुॊची ऩय याली वे फात न शो ऩाना औय उवका स्कूर न आना फशुत फुया रग यशा था। ‗‗कैवे शो जनतन?उव ददन तुभ आए…कशीॊ गमा

कयना शै –के ख्मार वे जनतन ददन बय खद ु वे

शुआ था…ऩय फता दे ते भझ ु े तो…ठशय जाता।‘‘ ऩानी ऩीते शुए जनतन को रगा एक लाक्म

ळाभ के नघयते जाने ऩय आखखयकाय उवने वोच

वॊमत ककमा कक लभत्तर वय के लरए बी तो मे

शी उरझता यशा।

शी लरमा ‗‗फव अफ नशीॊ। याली की शारत जाने त्रफना आज घय जाना गुनाश शै ।‘‘ ळाभ को त्रफना

इत्तरा ककए जनतन याली के घय ऩशुॊच गमा। ‗‗जी,भैं जनतन शूॊ लभत्तर वय घय ऩय शैं क्मा?‘‘वाभने ळामद याली की भम्भी थीॊ। त्रफना

ककवी उत्वुकता के एकदभ ळाॊत जलाफ लभरा‗‗नशीॊ घय ऩय नशीॊ शैं। कोई काभ शै ?‘‘ ‗‗जी लभरना था।‘‘ arambh.co.in

फोरने भें इतनी जगश रुकना?ऩय कपय खुद को वफ अजीफ शोगा। चाम आने तक बी याली का ऩता नशीॊ था। जनतन को रग गमा उवे याली

की गैयशाब्जयी भें शी फात कयनी शोगी जफकक ो़ याली घय भें शी भौजद ू शै ।

‗‗वय भैं औय याली चाशते शैं कक शभें आऩका आळीलाषद लभरे…ळादी के लरए।‘‘

त्रफना कोई वलार ककए,त्रफना शड़फड़ाए लभत्तर वय ने कशा-‗‗भुझे अऩने फड़ों वे फात कयनी शोगी।‘‘

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आयम्ब ई-ऩत्रिका 2014-15 ‗‗ऩय आऩको तो कोई एतयाज़ नशीॊ शैं

वय?‘‘अऩनी फेचैनी ऩय काफू न ऩाते शुए जनतन के भुॊश वे ननकर शी गमा। लभत्तर वय जैवे तैमाय थे इव वलार के लरए-

‗‗दे खो जनतन इतनी जकदी कुछ कश ऩाना भेये लरए वॊबल नशीॊ। फशुत–वी फातें दे खनी शाॊॅेगी अबी।‘‘ ‗‗वय…याली…याली वे…‘‘

‗‗याली की भौवेयी फशन की ळादी शै । शाथ फॊीाने के लरए उवे फुरामा शै । गरती वे भोफाइर बी मशीॊ छोड़ गई शै ।‘‘ आगे के वलार का अॊदेळा रगाकय जैवे लभत्तर वय ने जलाफ ददमा। अफ फेळभष शोकय भौवी के घय का ऩता

औय नॊफय बी तो नशीॊ भाॊगा जा वकता । ळॊका

शोते शुए बी जनतन का भन कशा यशा था-‗‗ऩय वशी बी तो शो वकता शै जो कुछ उन्शोंने कशा। लभरे तो ढॊ ग वे शी। चाम–लाम बी वऩराई औय गरत बी क्मा कशा ऩियलाय वे फात तो कयनी

शी ऩड़ती शै ळादी–धमाश के भाभरों भें। औय

फशन की ळादी का ब्जि तो याली ने बी ककमा ो़ था। ‘‘ ऩय स्कूर को त्रफना इन्पाॅॎभष ककए जाना औय त्रफना भोफाइर के जाना अखय यशा था

जनतन को। तभाभ शरचरों के फीच फव एक

वुकून था कक आखखयकाय अऩनी फात कश ऩामा आज। वॊजील वय ने बी शौवरा फढ़ामा-‗‗जलान

आधा काभ तो कय शी आए दशम्भत वे तुभ।

भें तुभ वऩताजी के वाथ क्मों नशीॊ फैठी शो?ले फैठे शैं औय तुभ खड़ी शो?‘‘

‗‗अये अऩने फयाफय कबी त्रफठामा शी कशाॊ ये उन्शोंने।‘‘

‗‗तभ ु जा फैठतीॊ…जगश तो खारी थी न उनकी फगर भें।‘‘

‗‗फात तो भन भें जगश की थी न ये …चर तू त्रफठा लरमो अऩनी याली को फगर भें। लशी फ्ेभ

रगा दें गे इवके फगर भें,ऊऩय फैठे–फैठे बी कुढ़ें गे भुझवे।‘‘ इव फात ऩय दोनों दे य तक शॊ वते यशे ।

जनतन के नवीफ भें आए याशत के ऩर ये त की

भाननॊद शाथ वे कपवर गए। जीलन भें एक

अजीफ अब्स्थयता,अवुयषा औय अननब्श्चतता ने घय कय लरमा। वशज प्रेभ की वुन्दय ककऩनाएॊ त्रफखय

यशी

थीॊ।

याली

वे

कोई

भुराकात

नशीॊ,फातचीत नशीॊ। कशीॊ कोई याश नशीॊ,ददळाएॊ

वफ उरझीॊ औय अनत्त ु ियत। ददन शककी–वी

उम्भीद वे ळरू ु तो शोता ऩय एक फड़ी नाउम्भीदी ऩय उवे अकेरा छोड़ जाता। ददभाग याली को इतना माद कयता कक अक्वय जनतन को रगता

कक लश याली की वूयत शी बूरता जा यशा शै । ऐवे भें स्कूर का काभ उऩेक्षषत शो यशा था। ककवी वे फात कयने की इच्छा बी नशीॊ शोती

थी। शयदभ उवे रगता कक ऩीठ ऩीछे शी नशीॊ अफ वाभने बी भज़ाक उड़ाने भें रोग वॊकोच

नशीॊ कय यशे शैं। अक्वय उवके कान व्मॊग्म फाणों

मकीन यखो वफ ठीक शोगा।‘‘ वऩछरे कुछ ददनों

के नुकीरे प्रशायों वे त्रफध ॊ ्ॅे यशते औय भन

ककवी शद तक ब्स्थय शुईं । यात को वोचा भाॊ वे कश दे वफ ऩय योक लरमा कक अफ अच्छी खफय

शै । इधय चॊदेर वय ने तो इव वलऴम भें उववे

वे चेशये ऩय चस्ऩाॊ तनाल की लि ये खाएॊ आज

शी

वुनाएगा

भाॊ

को।

उव

ददन

दे य

तक

गप्ऩफाजी शुई आज भाॊ के वाथ। ‗‗एक फात फताओ भाॊ,वाभने फ्ेभ लारी तस्लीय arambh.co.in

वोचता कक वभाज ककव शद तक अवॊलेदनळीर फात कयने वे वाप भना कय ददमा। वफ कुछ

ठशया,थभा औय रुका शुआ था। औय याली जैवे लो कशीॊ थी शी नशीॊ। वऩनों भें याली,जनतन को ककवी तॊग तशखाने भें चीखती ददखाई दे ती। कई

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आयम्ब ई-ऩत्रिका 2014-15 ळाभ दयू वे उवके घय ऩय ननगाश बी यखता था

दष्ु चि रगाताय जनतन को अऩनी थगयऩफ्त भें

इव ळशय भें गामफ कय दी गई थी औय कशीॊ

‗‗याली को आना शी चादशए जनतन,चाशे कैवी बी

जनतन,ऩय वफ व्मथष। वऩनों वे बयी एक रड़की कोई शरचर नशीॊ थी । वफ अऩने काभों भें

ऩशरे की शी तयश व्मस्त थे। ककवी को कोई थचॊता

शी नशीॊ थी। इव फीच

जनतन थयाष

जाता,बाई औय वऩता र्दलाया मा ियश्तेदायों र्दलाया जानतधभष की यषा भें अऩने वऩनों के आकाळ

भें स्लतॊिा उड़ने लारी रड़ककमों के कत्र की

रेते जा यशे थे। अफ क्मा शोगा? ऩये ळानी

शो।‘‘

वॊजील

वय

वफ

जानकय

ननणषमात्भक ढॊ ग वे फोरे। ऩय जनतन न लवपष याली के अफोध भन का जानकाय था फब्कक

उवके र्दलाया जीलन के फनाए गए वुयक्षषत फ्ेभ की बनक बी थी उवे,ब्जवभें नानी–दादी औय भाॊ के जीलन–ननष्कऴों की तस्लीय जड़ी थी। मे

खफयों वे। कई फाय रगता कक गुऩचुऩ उवकी

तस्लीय कापी खुळशार दीखती थी। ब्जवभें तीनों

अत्माचायों के फाये भें वोचकय एक अऩयाध ् फोध

वय को याली को रेकय एक वख्त नायाज़गी थी

ळादी तो नशीॊ कय दी गई शै । याली ऩय ककए

वे योज़ बयता जा यशा था जैवे। जनतन के ऩाव लवपष इॊतज़ाय फचा था—एक रॊफा इॊतजाय। ‗‗कैवे शो जनतन?‘‘

‗‗याली तुभ शो न?कशाॊ शो याली?कैवी शो?‘‘बयाषए गरे वे जनतन के फोर ऩपूीे ।

‗‗वफ बर ू जाओ जनतन। भैं अऩने ऩियलाय को कोई दख ु नशीॊ ऩशुॊचाना चाशती।‘‘ ‗‗नशीॊ याली। मे क्मा कश यशी शो?अच्छा एक फाय लभर रो कपय फात कयते शैं।‘‘

‗‗नशीॊ जनतन….अफ कबी नशीॊ।‘‘

‗‗नशीॊ याली,रुको,वन ु ो तो…वन ु यशी शो न…फव एक फाय दशम्भत कयके आ जाओ भैं वफ वॊबार

रूॊगा याली। फव एक फाय। क्मा इव ददन के

लरए दे खे थे शभने लो वऩने?याली भैं कश…।‘‘ फात ऩूयी शुए फगैय शी पोन की गमा मा काी ददमा गमा। जनतन के अकपाज़ कुछ दे य वाॊव के वाथ ध्ड़के कपय ककवी अॊधेये भें गभ ु शोते चरे गए। अफ क्मा शोगा?मशी वफवे फड़ा वलार

था। याली के ब्जन्दा शोने की वूचना ककतना कुछ खत्भ शोने के वाथ लभर यशी थी। ककतना वऩाी था याली का स्लय। थचॊताओॊ औय तनाल के arambh.co.in

औयतें भजफूती वे याली का शाथ थाभे शैं। वॊजील ऩय जनतन याली के अवभॊजव औय उवकी ऩीड़ा को बी वभझ ऩा यशा था। क्मा याली उव फ्ेभ

भें उन तीन भदशराओॊ वे खझीककय खड़ी अऩनी

दख ु ी तस्लीय की ककऩना वे लवशय नशीॊ उठती शोगी?कैवे उनवे अऩना शाथ छुड़ा वकेगी याली?

‗‗इतनी फच्ची बी नशीॊ शै याली। ऩैयों ऩय खड़ी

शै । वभझदायी वे काभ रे औय क्मा प्माय कयते वभम इन खतयों के फाये भें वोचा नशीॊ शोगा उवने?‘‘वॊजील वय यौ भें फोरे चरे जा यशे थे।

जनतन के फॊधे शोंठ बाऴा की शद वे फाशय शो चरे थे ऩय भन ज़ोय–ज़ोय वे कश यशा था ‗‗ आऩ नशीॊ वभझते वय याली को। ऩैयों ऩय ज़रूय खड़ी शै ऩय खड़ा कयलामा शै उवके ऩाऩा ने।

उवकी भॊजूयी कशाॊ थी?बरे शी भुझवे प्माय कयती शै ऩय औयों के ननणषमों ऩय जीने की

आदत शै उवे। खुद को अकेरे कैवे ननकारेगी उव फ्ेभ वे?तस्लीय की अशलभमत औय उवभें

याली की वुयक्षषत जगश की ककतनी दशु ाई दी

गई शोगी । लो तो भेये ‗भैं वफ ठीक कय दॊ ग ू ा ‘ जैवे चभत्काियक ळधदोॅेॅॊ भें फॊध ्ॅी चर यशी थी अफ तक। अफ जीलन के इव भोड़ ऩय उवे भेये

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आयम्ब ई-ऩत्रिका 2014-15 ळधदों का जाद ू बी फेअवय रग यशा शोगा।

‗‗ब्जव वभाज भें यशती शै क्मा जानती नशीॊ कक

शुए औय लावऩव वप्रॊवीऩर वय को बेजते शुए जनतन के भन ने कशा ‗‗अफ याली रौी आएगी।

ऩशरे धभककमाॊ औय शत्माएॊ। तयश–तयश के

ऐवे शी जाने दे गा लो बी नौकियमों के अकार के

प्रेभ की क्मा कीभत चुकानी ऩड़ती शै ?ळादी वे

अत्माचाय औय ळादी के फाद धोखे वे फुराकय रड़की को भायकय गाड़ दे ना औय रड़के की

राळ को उवके घय के आगे ऩपेंक दे ना। ‘‘ वॊजील वय याली की चुप्ऩी को अऩनी तीखी प्रनतकिमा वे बय यशे थे।

‗‗जानती क्मों नशीॊ शै वय वफ जानती शै ऩय

उवका भन?उवका क्मा वय?भन नशीॊ भानना

ककतनी कोलळळों वे रगी नौकयी को कोई क्मों इव भशाकार भें ?‘‘मे नोदीव जैवे जनतन की

आळा का एकभाि आधाय फनकय उवके वाभने था। उवे भाॊ के ळधद माद आए ‗‗फेीा अच्छे

ददन नशीॊ यशे तो दे खना फुये बी गुज़य जामेंगे।‘‘ इॊतज़ाय की घडडमाॊ एक फाय वऩपय वे जनतन को ो़

योभाॊथचत कयने रगीॊ। याली की भेज़ वे गुजयते

चाशता मे वफ। भन तो उवका अऩनी फशनों की

शुए मों शी उवे दर ु ाय वे वशरामा जनतन ने। कुवी ऩय भस् ु कुयाती याली नज़य आई। अचानक

जनतन के ळधद ज़ुफान ऩय आकय बी खाभोळ

रगा। कपय वे वाये वऩने अऩनी भाॊगों को रेकय

तयश शॊ वी–खुळी वललाश कयना चाशता शै । ‘‘ थे। लश खाभोळ औय अकेरा दोतयपा रड़ाई रड़ यशा था। अऩनी औय याली के दशस्वे की।

‗‗तम् ु शायी चुप्ऩी को क्मा वभझॊू जनतन?लभत्तर वय बी झाॊवाशी दे यशे शैं औय क्मा?‘‘

‗‗वय चुऩ कशाॊ शूॊ,वफ जानता शूॊ। ऩय भुझे याली के आने का इॊतज़ाय शै ।‘‘ ‗‗औय लो नशीॊ आई तो?‘‘वॊजील वय के वलार ने जनतन को ननरुत्तय कय ददमा। ऩय याली वे पोन ऩय शुई फात ने जनतन को थोड़ी–वी आव फॊधई थी कक याली ज़रूय रौीे गी।

इधय याली की रॊफी गैयशाब्जयी के चरते एक ो़ ददन जनतन के डेस्क ऩय वप्रॊवीऩर वय की ओय वे लबजलामा गमा नोदीव उवके वाइन के लरए आमा। ऩि भें याली के आने की अॊनतभ लभमाद

तम थी ब्जवके फाद उवकी वेलाएॊ वभाप्त

वभझी जाएॊगीॊ। वाये स्कूर भें इव नोदीव को

शी जनतन कपय वे वफ फातों–मादों को वशे जने जनतन के वाभने खड़े थे औय जनतन एक फाय

कपय वे उन्शें वाकाय कयने के जोळ भें बय उठा था। लश जानता था कक याली को तभाभ दशदामतें

दे कय बेजा जाएगा। शो वकता शै लो कुछ ददन फोरे बी न,उवकी उऩेषा कये । ऩय वऩपय बी जनतन को बयोवा था ककलो वफ ठीक कय रेगा।

ळधदों का जाद ू खुद वे ध ्ॅूॅार झाड़कय लावऩव रौी यशा था।

स्कूर भें आज फड़ी यौनक थी। वाया स्कूर आज फायात भें तधदीर शोने लारा था। ळाभ को

दशस्ट्री लारे अननर वय की फायात जानी थी।

फशुत वे रोग अननर के घय वे वायी यस्भों भें ळालभर शोते शुए ळादी की जगश ऩशुॊचने लारे थे। वप्रॊवीऩर वय औय जनतन को खावतौय ऩय इवके लरए ननभॊत्रित ककमा गमा था। अननर के

रेकय एक शरचर थी। वफ रोग तभाळे की

घय फायात का शुडदॊ ग भचा था ऩय वप्रॊवीऩर वय आज शभेळा की तयश शॊव नशीॊ यशे थे। एक

नोदीव ऩय स्ीैंऩ रगाकय अऩने इनीश्मर कयते

काऩपी ऩूछने के फाद उन्शोंने जनतन को फतामा-

अगरी कड़ी का फेवब्री वे इॊतज़ाय कयने रगे। arambh.co.in

खखॊची–वी

भुस्कुयाशी

उनके

चेशये

ऩय

थी।

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आयम्ब ई-ऩत्रिका 2014-15 ‗‗फुयी

खफय

शै

जनतन…याली

का

लरखखत

इस्तीऩपा लभरा शै आज। ककन्शीॊ व्मब्क्तगत कायणों वे लश मश नौकयी छोड़ना चाशती शै ।‘‘

‗‗वय आऩने फात…‘‘जनतन के अस्पुी वे स्लय

भनभॊजयी का खखराना,ऩशनाना–घुभाना शी नशीॊ दीलाय ऩय याली–जनतन की वाथ फैठे शुए खखॊचने लारी तस्लीय का फ्ेभ बी खारी शी यश गमा।

फाशय आने को ऩपड़ऩपड़ाए।

जनतन अक्वय खुद को वजा दे ता शुआ दे य ळाभ मा कबी अरस्वफ ु श ऩैदर रॊफी दयू ी तम कयके

‗मशाॊ शी नशीॊ कशीॊ बी नशीॊ कयलानी नौकयी इव

रौी आता शै । याली वे त्रफछड़े शुए आज ऩाॊच वार वे अथधक फीत चुके शैं। चाशें तो इतना

मानन

नशीॊ

याली को उव वफका दोऴी नशीॊ ठशयाता। याली

जनतन के चरते। मे तो जनतन ने कबी नशीॊ

घयकैद भें। उवकी छोी​ी फशन की ळादी शो गई

‗‗लभत्तर जी वे फात शुई भेयी। वॊजील ने बी वभझामा ऩय उन्शोंने तो वीध शी कश ददमारड़की वे‘…जनतन उनका पैवरा ऩक्का शै ।‘‘ याली

आत्भननबषयता

वे

का

उवके

अथधकाय

वऩने बी

शी

नछन

गमा

चाशा था। ककतना कुछ ीूी यशा था उवके बीतय औय ककतना कुछ तोड़ा जा यशा था बीतय तक कपय बी जनतन की फाशय वे वशज फने यशने की कोलळळें जायी थीॊ। अचानक लश बीड़ भें एकदभ

अकेरा भशवव ू कय यशा था। एक भळीनी तयीके ो़ वे वेशयाफॊदी,घड़ ु चड़ी की यस्भों वे जड ु े शुए जनतन ने दे खा वाभने वॊजील वय थे। रड़खड़ाते कदभों वे उनके कयीफ गमा औय गरे रगकय

योने रगा। वशी जगश औय भौका न शोते शुए बी वॊजील वय आज इव शयकत ऩय ळाॊत थे।

अऩनी फाशों भें कवकय जनतन को थाभे थे औय जनतन ढोर की तेज़ आलाज भें अऩनी फेवाख्ता

रूराई औय ददष को ऩूया भौका दे यशा था।

जनतन के योने भें उवके चीखते शुए वलार ळालभर थे-‗‗लभत्तर वय आऩकी वभस्मा जात–

जाता शै याली के घय तक औय त्रफना उवे दे खे

औय जोड़ रें कक जनतन आज बी औयों की तयश

को घय त्रफठा ददमा गमा शै । कई वार गज़ ु य गए औय ळादी के लरए याली की उम्र ननकरती जा

यशी शै । जनतन ने वुना,स्कूर भें शी कोई कश

यशा था कक ‗‗याली बाई के फेीे को ऐवे वॊबार

यशी शै कक वगी भाॊ बी क्मा वॊबारेगी। फड़ी शी

आसाकायी औय अच्छी रड़की शै … ‘‘एक फॊधक

आकाळ के नीचे दव ू यों की दी शुई फैवाखखमों ऩय चरते,अऩने ीूीे –त्रफखये वऩनों को खुद वे बी नछऩाते,शयऩर तस्लीय की याली की यषा कयती लश आसाकायी औय अच्छी रड़की नशीॊ तो औय क्मा शै ?

डॉप्रसा एवोलवएी प्रोपेवय ककयोड़ीभर भशावलर्दमारम ,दद.वल

त्रफयादयी शै मा फेी​ी के स्लतॊि ननणषम?‘‘

नशीॊ इवके फाद बी जीलन खत्भ नशीॊ शुआ। जनतन की नौकयी चरती यशी ऩय याली को ब्जॊदाददर ब्जॊदगी का तोशपा न दे ऩाने का दोऴी

खुद को भानते शुए उवने ळादी नशीॊ की। भाॊ की वायी वाध भन भें शी यश गई। फशू की arambh.co.in

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आयम्ब ई-ऩत्रिका 2014-15

कबी ताखों ऩय जरते थे

दढफयी भें भेयी कोई रुथच नशीॊ थी…। उवकी रौ वे उठता लो तेज़,कारा–वा धुआॉ शभेळा भुझभें

ददए…

एक अनाभ वी अरुथच ऩैदा कयता था। भाॉ कबी कशती बी,दढफयी जरा दो…तो अव्लर तो भैं

(कहानी) (तीसया अॊक)

जफ छोी​ी थी तो फशुत वायी चीज़ों की तयश कबी घय के ककवी कोने भें जरती शुई एक नन्शीॊ वी भोभफत्ती का भशत्ल बी नशीॊ वभझ

दढफयी तक ऩशुॉचने भें शी रम्फा लक़्त त्रफता दे ती…औय जफ ऩशुॉच बी जाती तो फड़ी ळयाफ़त वे उवे राकय भाॉ के शलारे कय दे ती…आऩ शी जरा दीब्जए…।

ऩाई थी। आज जफ त्रफजरी वलबाग की अनलयत

भाॉ का ध्मान कबी इव फात की ओय

कृऩा के चरते कई फाय ळाभ वे रेकय यात तक

गमा शी नशीॊ…आज तक नशीॊ…। अफ तो उनको

बी फत्ती जाती शै ,तो बी भोभफत्ती की ळक़्र दे खे

इन फातों की माद बी नशीॊ…। ऩय भैं कैवे बूर

ककतना ज़भाना गज़ ु य गमा,माद बी नशीॊ…।

जाऊॉ…?लो गभी की ळाभों औय यातों भें भाॉ का

बूरे–बीके ककवी फच्चे के फथषडे ऩय बरे कशीॊ

ऩॊखा झरना औय भेया उनकी गोद भें लवय यख

इव नन्शीॊ को रूऩ फदरे शुए,थोड़ा वजे–वॉलये शुए

कय घणीों,अऩरक भोभफत्ती की नाचती रौ को

दे ख

ननशायना…औय इवी तयश ऩरकें कफ झऩक कय

बी

रेती

थी,ऩय

अफ

तो

लशाॉ

बी

आनतळफाज़ी छूीती ददखाई दे ती शै …।

भुझे

अक्वय माद आता शै लो ज़भाना…ज़्मादा

वऩनों

की

दनु नमा

भें

वैय

कयाने

रे

जाती,ऩता बी न चरना…। भाॉ का शाथ फदर–

वभम शुआ बी नशीॊ उवे गुज़ये …कपय बी जाने

फदर

कशाॉ बुरा ददमा गमा…। गभी–वदी–फयवात की

फालजूद लवफ़ष इव कायण न रुकना कक गभी

ळाभों

लरए

औय भच्छय की लजश वे भेयी नीॊद न खर ु

आफ़त,कक अन्धेये भें भोभफत्ती,दढफयी मा रारीे न

जाए…। नीॊद के शाथों अलळ शो उनका लवय

की भॊद योळनी भें खाना कैवे फनेगा,ऩय शभ

शकके वे तककए ऩय दीक जाना…भेया नीॊद भें शी

फच्चों के लरए लो उत्वल जैवा शोता था…। घय

कुनभुनाना

के फाकी काभ करूॉ,न करूॉ,भोभफत्ती जराने भैं

चरना…चाशूॉ बी तो कैवे बर ु ा दॉ … ू ?वदी की

भें

त्रफजरी

का

जाना…भाॉ

के

वफवे ऩशरे दौड़ ऩड़ती थी…। रारीे न थी तो एक,ऩय

वाभान्मतमा

जराई

नशीॊ

ऩॊखा

औय

झरते

उनके

यशना,थक

शाथों

का

जाने

कपय

के

वे

यातों भें एक फचकाना–वा फशाना(लैवे भेये फशाने

जाती

आज बी फचकाने शी शोते शैं अक्वय…)कक

थी…थचभनी वाफ़ कयने का एक औय झॊझी…।

भोभफत्ती के ऩाव फैठने वे गभाषशी लभरती

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लो

कय

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आयम्ब ई-ऩत्रिका 2014-15 शै ,औय कपय भाॉ की आॉख फचा कय रौ भें तेज़ी

नशीॊ शोती कक आज उनके ऩाव शभ रोगों वे

वे उॉ गरी कपया दे ना…इव तयश कक जरे न…।

ज़्मादा वुवलधाएॉ शैं,फब्कक इव फात वे द्ु खी शोते

ऐवे भें रशयाती रौ का फर खाना…फशुत गज़फ

शैं,कक लो वुवलधाएॉ उनके ऩड़ोव के फच्चे वे कभ

का आनब्न्दत कय जाता था…। त्रफजरी आते शी

क्मों शैं…। आज यात के वन्नाीे भें ‗शोॱॱॱॱ‘

ऩूये भोशकरे के फच्चों का वभलेत स्लय भें

कयके

‗शोॱॱॱ‘ कयते शुए ळोय भचाना…छत ऩय चढ़ कय

डाउनभाकेी…की

यात के वूनऩ े न भें थोड़ी दयू यश यशे ककवी औय

कम्प्मूीय,भोफाइर औय गेम्व की दनु नमा भें

घय की छत ऩय भौजूद अऩने वॊगी–वाथी को

लवभीे –उरझे इन फच्चों के वॊगी–वाथी उनके

आलाज़ दे कय ऩुकायना…भाॉओॊ की एक भीठी–वी

आवऩाव शैं शी कशाॉ…आलाज़ दे कय फुराने के

खझड़की

वफका

लरए…?छत ऩय चढ़ना,चाॉद को फादरों के वाथ

शुकरड़ भचाना…ककतनी–ककतनी मादें शैं उन ऩरों

रुका–नछऩी खेरते दे खना,ठणडी फमाय की थऩकी

की,जो आज बी गुदगुदा जाती शैं…।

वे झऩकी भायती आॉखों का कशीॊ दयू ककवी

को

नज़यअन्दाज़

कयते

शुए

थचकराना श्रेणी

उनके भें

लरए…शाउ चुका

शै …।

कई फाय त्रफजरी जाने ऩय वोचती

अनजान ऩॊछी के थचकराने वे खुर जाना…औय

शूॉ,आजकर के फच्चे नई ीे क्नोरॉज़ी वे बरे

कपय वशभ कय भाॉ की गोदी भें ,उनके आॉचर

राबाब्न्लत शों,ऩय उव वख ु वे त्रफककुर अनजान

तरे छुऩ कय धीये वे झाॉकना…मे वख ु कशाॉ शैं

शैं…जो गभी–वदी की उन यातों औय ळाभों भें

इन

शभने बोगा शै …। उन फच्चों ने जो वुवलधाएॉ

नीचे,तायों की छाॉल तरे राइन वे गर्ददे त्रफछा

ऩाई शैं,उन वुवलधाओॊ ने वुख तो ळामद फशुत

कय उनके एक लवये वे दव ू ये लवये तक रोीाऩोी​ी

ददए,ऩय वकून नशीॊ…। मुला शोते मा शो चुके

कयते

फच्चे अऩने ककवी वाथी के वाथ ब्जव कैब्णडर–

वाथ ककवी एक शी गर्ददे –तककमा को रेकय शोनी

राइी डडनय को खाने के लरए ऩैवा खचष कयते

लारी रड़ाइमाॉ…कपय ककवी की बी भाॉ–ऩाऩा की

शैं,शभ रोगों ने न जाने ककतनी फाय ऐवा डडनय

डाॉी वुन कय भुॉश पुरा कय चुऩचाऩ रेी जाना

ककमा शै ,औय लो बी त्रफना कानी–कौड़ी खचष ककए

औय ऩर बय फाद शी ककवी फात ऩय आऩव भें

शुए…। आज अगय दे खा जाए तो घयों भें

कपय खखरखखराते शुए जाने कफ वो जाना…मे

जेनये ीय–इन्लीषय

वख ु ककव ववु लधा वे लभर वकता शै ,ककवी को

के

यशते

अथधकाॊळ

वभम

त्रफजरी शो,न शो…ऩय ऩॊखा औय फवत्तमाॉ यशती शी

फच्चों

के

शुए

ऩाव…?खुरे

जाना…चचेये–भभेये

आवभान

बाई–फशनों

के

के

नशीॊ ऩता…।

शैं…। अफ के फच्चे भोभफत्ती की रौ दे ख कय

आज वुवलधा–वम्ऩन्न घयों वे दढफयी

‗इयी​ीे ी‘ शोते शैं…। उनको इव फात की खुळी

औय रारीे नें रगबग गामफ शो चुकी शैं…।

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आयम्ब ई-ऩत्रिका 2014-15

तीन कुत्ते

झरने लारे ऩॊखे तफ शी माद आते शैं,जफ घय का इन्लीष य डडस्चाज़ष शो जाता शै …। आज घय के फच्चे रारीे न की थचभनी वाफ़ कयने के

(इतारो काजल्वनो)

लरए भाॉओॊ की थचयौयी नशीॊ कयते…दढफयी भें

(कहानी) (चौथा अॊक)

तेर बयने भें वालधानी फयत कय फड़ा शो जाने का

वदीष कफ़केी

ऩाने

के

इच्छुक

नशीॊ

शोते…भोभफत्ती की रौ भें उॉ गरी कपया कय ‗फशादयु ‘ शोने की ळेखी नशीॊ फघायते…औय वफवे फड़ी फात…अन्धेये वे डय कय अफ लो भाॉ का आॉचर नशीॊ तराळते…। फाशय के अन्धेये ऺत्भ शो गए,ऩय भन के फढ़ गए शैं…। शभ वच भें ककतने आधुननक शो गए शैं…शैं न…?

वप्रमॊका गुप्ता कानऩुय ,उ. प्र.

(मह प्रस्तुत अनुवददत कथा इतारवी

रेखक श्री इतारो काजल्वनो (Italo

Calvino )द्वाया सॊग्रदहत औय यगचत

ककताफ

कपमाफे

इतभरआने

(Fiabe

Italiane = जजसका भतरफ इतारवी

रोककथाए हैं) से री गमी हैं)

फशुत वभम ऩशरे इीरी के योभॊन्मा नाभक जगश ऩय एक फूढा ककवान था ब्जवके एक रड़का औय रड़की थी। जीलन के अॊनतभ वभम

भें उवने उन दोनों को अऩने ऩाव फुरामा औय कशा :- भेये फच्चों भेया अॊत ननकी शैं भेये ऩाव

तुम्शे दे ने के लरए कुछ नशीॊ शै लवलाम तीन उन तीन बेड़ों के जो फाड़े भें शैं । भेये फाद वशभनत

वे यशने की कोलळळ कयना औय तुभ कबी बूखे नशीॊ यशोंगे। जफ लश भय गमा तो बाई औय फशन एक वाथ यशने रगे।

रड़का बेड़ो को चयाने जाता तो रड़की घय ऩय

यशकय ऊन फुनती औय खाना फनामा कयती थी। एक ददन जफ लश रड़का अऩनी बेड़ो के वाथ

जॊगर भे था तबी लशाॊ वे एक उम्रदयाज़ व्मब्क्त

अऩने तीन कुत्तो के वाथ लशाॉ वे गुजया। दोनों ने एक दव ू ये को दे खा औय अलबलादन ककमा।

फूढा :- ककतनी वुन्दय बेड़ें शैं तुम्शाये ऩाव ,फच्चे ! arambh.co.in

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आयम्ब ई-ऩत्रिका 2014-15 रड़का :- आऩके ऩाव बी तो ताहतलय औय वुन्दय कुत्ते शैं।

फूढा :- अच्छा तो क्मा एक कुत्ता खयीदना चाशोगे ??

रड़का :- दाभ ना फताओगे ?? फूढा:- तुभ भुझे अऩनी एक बेड़ दो तो भैं तुम्शे अऩना एक कुत्ता दे दॉ ग ू ा।

रड़का:- अये तो कपय भेयी फशन क्मा फोरेगी ?? फूढा :- क्मा फोरेगी ?? कशना कक बेड़ो की यखलारी के लरए कुत्ते की जरुयत शैं।

रड़का भान गमा औय उवने अऩनी बेड़ दे कय फदरे भें एक कुत्ता रे लरमा।

रड़का :- इवका नाभ क्मा शैं? फूढा :- रोशातोड़ !!!! जफ घय जाने का का वभम शुआ तो रड़के का ददर जोय जोय वे धड़कने रगा क्मोंकक लश मश जानता था की उवकी फशन अलश्म शी उव ऩय

आगफफूरा शोगी। शभेळा की तयश रड़की जफ फाड़े भे दध ू काढ़ने गई तो दे खा की लशा दो बेड़ें

औय एक कुत्ता था ,औय उवने रड़के को बरा

फुया कशना ळरू ु कय ददमा औय डॊडे वे ऩी​ीना ळुरू कय ददमा । रड़की ने गुस्वे भे आकय ऩूछा कक शभ इव कुत्ते का क्मा कयें गे ?? फताओ ??

अगय तुभ कर तीनो की तीनो बेड़े लाऩव रेकय ना आमे तो कपय भैं तुम्शे फताऊॉगी। आखऺय भें

लो मश फात भान गमी की बेड़ो की यखलारी के लरए एक कुत्ते की एक कुत्ते की जरुयत थी।

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अगरे ददन रकड़ा कपय जॊगर भें उवी जगश

लावऩव गमा औय उवी फूढ़े को दो कुत्तो औय एक बेड़ के वाथ दे खा। दोनों ने एक दव ू ये का अलबलादन ककमा।

दोनों ने एक दव ू ये को दे खा औय अलबलादन ककमा।

फूढा:- बेड़ अकेरे फशुत ऩये ळान शैं। रड़का :- भेया कुत्ता बी अकेरे फशुत ऩये ळान शैं। फूढा ने एक उऩाम वुझामा की तुभ भुझे एक औय बेड़ दो औय भैं तुम्शे एक औय कुत्ता दॊ ग ू ा।

रड़का वकऩकामा औय फोरा :- शये याभ ! लवपष

एक बेड़ एक नाभ ऩय भेयी फशन भझ ु े खा डारना चाशती थी, वोचो अगय तम् ु शे एक औय बेड़ दे दॉ ू तो क्मा शोगा ??

फूढा:- दे खो ! एक कुत्ता तम् ु शाये ककवी काभ का

नशीॊ शैं , अगय दो बेडड़मे आ गए तो तुभ अऩने आऩ को कैवे फचाओगे ??

( रड़का इव फात को स्लीकाय कयता शैं ) रड़का :- क्मा नाभ शैं इवका ?? फूढा:- जॊजीयतोड़ !!! जफ लश रड़का ळाभ को एक बेड़ औय दो कुत्तो के वाथ घय ऩशुॊचा तो उवकी फशन ने ऩूछा ‖ क्मा तीनो बेड़ो को लावऩव रे आमे शो ?? रड़के के ऩाव कोई उत्तय नशीॊ था औय फोरा :शाॉ भगय तुम्शे फाड़े भें जाने की जरुयत नशीॊ शैं , आज भैं दध ू काढूॉगा।

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आयम्ब ई-ऩत्रिका 2014-15 रड़की नशीॊ भानी क्मूॊकक लश खुद जाके दे खना चाशती थी भगय रड़का त्रफना खाए वऩए त्रफस्तय जाके वो गमा

रड़की:- अगय कर तीनो बेड़े लाऩव नशीॊ आमी तो भैं तुम्शे भाय डारूॊगी।

अगरे ददन जफ लश रड़का बेड़ को चया यशा था तो कपय उवने उव आदभी को दो बेड़ो औय

वाथ गज ु यते शुए दे खा , दोनों ने एक दव ू या का कपय अलबलादन ककमा। फूढा:- अफ भेया मश कुत्ता अकेरा यश गमा शैं औय अकेरा फशुत ऩये ळान शैं।

रड़का:- भेयी बेड़ का बी मशी शार शैं। फूढा:- ठीक शैं , भझ ु े लो बेड़ दे दो औय मश कुत्ता रे रो।

रकड़ा वोच भें ऩड़ गमा औय फोरा :- नशीॊ -नशीॊ अफ भैं इवके फाये भें फात बी नशीॊ करूॉगा।

फूढा ने उवे वभझमा औय कशा :- अबी तुम्शाये

ऩाव दो कुत्ते शैं तो तीवया क्मों नशीॊ चाशते ,

तुम्शाये ऩाव तीन कुत्ते शोंगे औय वाये एक वे फढ़कय एक।

रड़का :- औय इवका नाभ ? फूढा:- दीलयतोड़ !!!! रड़के ने आलाज़ रगामी :- रोशतोड़ , जॊजीयतोड़ , दीलायतोड , भेये वाथ चरो।

जफ ळाभ शुईं तो रड़के की घय जाने की दशम्भत नशीॊ शुई औय उवने अऩने आऩ वे कशा

‖ इववे अच्छा शैं कक भैं दनु नमा की वैय ऩय ननकर जाउ‖

लश उव ददन तीन कुत्तो के वाथ चरता गमा

औय वड़क, नदी नारे औय लाददमाॊ ऩाय कयते शुए एक जॊगर भें ऩशुॉच गमा , तबी जोय जोय वे भूवराधाय फाियळ शोने रगी , अॉधेया छा गमा औय लश मश नशीॊ जानता था की अफ कशाॉ जामा जाएॉ। चरते चरते उवे जॊगर एक अॊदय

एक जगभगाता भशर ददखा जो की ऊॉची दीलायो वे फॊद था।

रड़के ने दयलाज़ा खीखीामा ऩय ककवी ने बी

दयलाज़ा नशीॊ खोरा , रड़के ने ज़ोय वे आलाज़ रगाई ऩय कोई उत्तय नशीॊ लभरा औय तफ लश फोरा :- ‖ दीलायतोड, भेयी भदद कयो ―

रड़के ने अबी अऩनी फात ऩूयी बी नशीॊ की थी कक दीलायतोड ने ऩॊजे भायकय दीलाय तोड़ दी। लो

कुत्तो के वाथ आगे फढ़ा तबी उवने अऩने वाभने एक रोशे का फाड़ा दे खा औय उवने

आलाज़ रगाई रोशतोड़ औय उव रोशतोड़ ने ऩर बय भें फाड़े को ीुकड़े ीुकड़े कय ददमा।

भगय उव भशर भें एक दयलाज़ा था जो की रोशे

की जॊजीयो वे फॊधा था औय रड़के ने तुयॊत

अऩने तीवये कुत्ते को आलाज़ रगाई ‖ जॊजीयतोड़ ‖ औय उव जॊजीयतोड़ ने वायी जॊजीये तोड़ दी औय दयलाज़ा खुर गमा। कुत्ते आगे आगे चरने रगे औय रड़का उनके ऩीछे ऩीछे , उव भशर भें कोई बी नज़य नशीॊ

आ यशा था , लशाॊ एक छोी​ी वी थचभनी जर

यशी थी औय एक भेज़ ऩय खाने का शय प्रकाय का वाभान यखा शुआ था। लश खाना खाने फैठा

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आयम्ब ई-ऩत्रिका 2014-15 औय भेज़ के नीचे दे खा कक लशाॊ बोजन वे बये तीन कीोये कुत्तो के लरए यखे थे।

खाना खाकय लश लशाॊ वे चरा गमा औय उवने

दे खा कक उवके लरए एक आयाभदामक त्रफस्तय

औय कुत्तों के लरए तीन चीाइमाॊ वोने के लरए तैमाय थी।

अगरी वुफश जफ लश उठा तो उवे लळकाय ऩय

जाने के लरए घोड़ा औय फन्दक ू लभरी औय लश लळकाय ऩय चरा गमा।

जफ लश रौीा तो वऩछरी यात की तयश खाने वे

वजी भेज़ औय आयाभदामक त्रफस्तय रगा ऩामा औय इव तयश अच्छे ददन फीतने रगे भगय भशर भें कबी कोई बी नजय नशीॊ आमा ऩय

उवकी शय जरुयत ऩूयी शो यशी थी। इव तयश लश नलाफो की तयश जीने रगा।

एक ददन उवे अऩनी फशन की माद आई ‖

फेचायी ऩता नशीॊ कैवे अऩना गज ु ाया कय यशी शोगी औय अऩने आऩवे फोरा की भैं उवे अऩने वाथ यखूग ॉ ा ―

औय जफ वफकुछ इतना फदढ़मा शैं तो तीन बेड़ो की लरए भुझे नशीॊ डाीें गी।

अगरे ददन कुत्तो को वाथ रेकय नलाफो की तयश

वज धज के अऩने ऩुयाने घय ऩशुॊचा। जफ लश ऩशुॊचा तो उवकी फशन (जोकक चौखी ऩय फैठ

कय ऊन फुन यशी थी ) ने फोरा की ‖ मश कौन नलाफ शैं जो भेये ऩाव आ यशा शैं ऩय ध्मान वे दे खने ऩय ऩता चरा की मश तो उवका बाई शैं

औय तीन बेड़ो की फजाए तीन कुत्तो के वाथ आ यशा शैं।

औय उवने अऩने ऩुयाने अॊदाज़ भें उवे डाॊीना

ळुरू कय ददमा। भगय रड़के ने उवे फोरा की

अफ जाने बी दो भुझे डाॊीने वे क्मा शोगा , भैं तो तुम्शे रेने आमा शूॉ, अफ शभे बेड़ों की जरुयत नशीॊ शै ।

रड़के ने अऩनी फशन को घोड़े ऩय त्रफठामा औय

भशर की औय चर ऩड़ा ,रड़की बी नलाफो लारी ब्ज़न्दगी जीने रगी ,रड़के की तयश लश बी

वोचती उवे लश लभर जाता भगय उवकी आदत

अबी बी नशीॊ वुधयी थी औय शय ळाभ जफ रड़का रोीता तो लश उव ऩय फड़फड़ाने रगती थी ।

एक ददन जफ बाई लळकाय ऩय था तफ लश

भशर क फगीचे भे गई उवने फगीचे के अॊत भे

एक वेफ -वॊतये का ऩेड़ दे खा औय लश पर तोड़ने गई ऩय जैवे शी लश डारी वे पर तोड़

यशी थी , एक दै त्म फाशय आमा औय उवे खाने के लरए आगे फढ़ा ऐवा दे ख रड़की योने रगी

औय फोरी ‖ की लो नशी ऩशरे भेया मशाॉ आमा था तो ऩशरे भेये बाई को खामो ―|

दै त्म :-―भै उवे नशी खा वकता क्मोंकक लश शभेळा तीन कुत्तो के वाथ यशता शै |

रड़की ने फोरा कक अगय लो उवकी जान फक्ळ दे गा तो लश अऩने बाई को उवके ऩाव रे

आएगी। दै त्म ने उऩाम फतामा कक ‖ तुभ उन कुत्तो को फगीचे की दीलायों के फीच रोशे के वऩॊजड़े भें डारकय फाॊध दे ना।

रड़का जफ घय आमा तो उवकी फशन फडफडाने

रगी औय कशा ‖ भैं खान खाते वभम इन कुत्तो

को अऩने आव ऩाव नशीॊ दे खना चाशती क्मॊकू क इनवे फदफू आती शैं ―

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आयम्ब ई-ऩत्रिका 2014-15 औय बाई जो अऩनी फशन को शभेळा खुळ यखना

कपय लश दै त्म कक खोज भें खोज भें ननकर

फशन ने फतामा था औय उन्शें रे जाकय फाॉध

उवके कुत्ते उव दै त्म को खा डारते शैं।

चाशता था उवने लैवे शी ककमा जैवा कक उवकी ददमा।

कपय उवकी फशन उवे फगीचे वे जाकय पर राने को कशती शैं औय रड़का अऩनी फशन के

कशे अनव ु ाय जाता शैं औय जैवे शी पर तोड़ता

शैं तो तुयॊत दै त्म फाशय आ जाता शैं। रड़का अऩनी फशन कक चार वभझ जाता शैं औय अऩने

कुत्तों को आलाज़ रगता शैं ‖ रोशतोड़ , जॊजीयतोड़

, दीलायतोड ‖ तीनो अऩने नाभ अनुवाय लशाॊ ऩशुॉच जाते शै औय उव दै त्म के ीुकड़े ीुकड़े कय दे ते शैं।

रड़का अऩनी फशन के ऩाव जाता शैं औय ऩूछता

शैं कक मशीॊ बराई का पर शैं , तभ ु भझ ु े दै त्म वे भयलाना चाशती थी , अफ भैं तुम्शाये वाथ औय नशीॊ यशूॉगा।

लश घोड़े ऩय वलाय शोकय अऩने कुत्तों के वाथ लशाॊ वे चरा जाता शैं औय एक याजा एक ऩाव

ऩशुचता शैं ब्जवकी एक रड़की एक दै त्म के कधज़े भें थी औय लो उवे खाना चाशता था। लश याजा वे लभरकय उवकी रड़की वे अऩनी ळादी का प्रस्ताल यखता शैं तो याजा उत्तय दे ता शैं कक

अगय तुभ रड़की को दै त्म वे आज़ाद कयला रेते शो तो वभझो रड़की तुम्शायी शुमी।

रड़का कशता शैं कक शे याजन अफ इव ऩये ळानी

का शर भैं ननकारॉ ूगा , आऩ इवके फाये भें थचॊता कयना छोड़ दे ।

ऩड़ता शैं औय जाकय दै त्म ऩय शभरा कय दे ता शैं

लश जीतकय रौीता शैं औय याजा उवे अऩनी रड़की वौंऩ दे ता शैं।

वायी ऩुयानी फातें बुराकय लश अऩनी फशन को फुरलाता शैं। ळादी कक यस्भे शोने के फाद लश

फशन ब्जवके भन भें अऩने बाई के लरए शभेळा ज़शय बया था कशती शैं कक ‖ भैं तम् ु शाया त्रफस्तय वजाऊॉगी भेये बाई !!‖

वफने वोचे के फड़ी फशन शोने के नाते मश

उवका कत्तषव्म शैं भगय दव ू यी तयप उवने ळादी के त्रफस्तय भें चादय के नीचे एक तेज़ धाय लारा

आया यख ददमा था अरु जफ ळाभ को उवका

बाई त्रफस्तय ऩय रेता तो लश दो ीुकडो भें फॊी गमा। रोग फड़े द्ु ख के वाथ उवकी राळ को चचष रे जाते शैं जशाॊ उवके ऩीछे ऩीछे तीनो

लपादाय कुत्ते बी ऩशुच जाते शैं औय जफ ळाभ को चचष का दयलाज़ा फॊद शुआ तो कुत्ते लशी अन्दय शी रुक गए। एक कुत्ता राळ कक दाई तयप , दव ू या फामीॊ औय तीवया लवय कक तयप फैठा था औय जफ कुत्तो ने दे खा कक लशा कोई नशीॊ था तो लो आऩव भें

फनतमाने रगे इवी िभ भे एक कुत्ता फोरा :-‖ भैं जाता शूॉ औय कुछ वाभान राता शूॉ ―।

दव ू या कुत्ता बी फोर ऩड़ा :- ‖ भैं बी जाऊॊगा ―। तीवया कुत्ता बी मशी फोरा । इव प्रकाय दो कुत्ते गए औय जाकय दलाई का फतषन रे आमे औय तीवये ( जो रड़के की राळ

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आयम्ब ई-ऩत्रिका 2014-15 की यखलारी कय यशा था ) ने रड़के के घालों

वुनकय तीनो ने एक वाथ फोरा :-―ओश !!!शभे

जाता शै ।

कुत्तो को बूर जाओगे ।

ऩय दलाई रगाई औय रड़का कपय जीवलत शो

तो वलश्लाव शी नशीॊ की तभ ु अऩने तीन लपादाय

इवी फीच याजा रड़के त्रफस्तय भई आया यखलाने

रड़का( आष्चमष के वाथ ) फोरा :-‖ क्मा

ऩड़ता शै की लो रड़के की फशन थी ,याजा उवे

फदर गए !!!!

लारे की खोज ळुरू कयलाता शै औय भारूभ भत्ृ मद ु ॊ ड दे दे ता शै ।

रड़का अफ फशुत कुळ था औय वख ु ी जीलन त्रफता यशा था ऩयन्तु याजा अफ फूढ़ा शो चरा था

औय ददन कार का ग्राव फन गमा , याजा की भत्ृ मु के फाद लश रड़का याजा फन गमा इतना वफ कुछ शोने के फाद बी रड़के का भन दख ु ी था क्मोंकक उववे कुत्ते उव ददन वे शी नशी लभर

यशे थे ,उवने ऩुये याज्म उन्शें खोजने के लरए कई कोलळळे कयी ऩय वफ फेकाय यशा लश उन्शें

ढूॊढ न ऩामा अन्त् उवने शय भान री औय याज्म ऩय याज कयने रगा ।

एक वुफश याजदत ू ने खफय दी कक तीन व्मब्क्त यथ ऩय वलाय शोकय याज्म की ओय आ यशे शै

मश तीनो शी याज्म वे दफ ु ाया दोस्ती कयना चशाते शै ।

औय मश वुनकय याजा शॉ वता शै औय फोरा :-―भेँ एक ककवान था औय यथलारे ककवी फड़े व्मब्क्त

को नशीॊ जानता था । इवके फालज़ूद बी लश

याजदत ू के वाथ जाता शै औय तीनो वे लभरता

रोशतोड़ , जॊजीयतोड़ , दीलायतोड !!!!!!! भगय तुभ उन्शोंने उत्तय ददमा शभे एक जादग ू य ने कुत्ते भें

फदर ददमा था औय शभ अऩने अवरी रुऩ भें लावऩव नशीॊ आ वकते थे जफतक की कोई

ककवान शभायी भदद वे याजा ना फन जामे औय

इवलरए शभ तुम्शाया धय्नन्लाद कयते शैं औय

तुम्शे बी शभाया धन्मलाद कयना चादशए क्मूॊकक शभ वफने एक दव ू ये की भदद की शैं।

औय आगे वे माद यखना की तुम्शायी वेला भें दो याजा औय एक वम्राी शभेळा उऩब्स्थत शैं।

उन्शोंने फाद भें कुछ ददन शवी ऺुळी त्रफतामे औय वलदाई का वभम आमा , अॊत भें वफ एक दव ु ये

को ळब ु काभनामे दे कय अऩने अऩने याज्म रौी गए औय ऺळ ु ी वे जीलन त्रफतामा। (वभाप्त)

याकेश

कुभाय सहामक प्रोपेसय ,दद.वव.वव.

शै ,उवकी बेंी् दो याजाओॊ औय एक वम्राी वे शुई लश तीनो शी फशुत खुळलभज़ाज थे उनभे वे एक फोरा:- ―शभे ऩशचानते शो याजन ?‖ याजा :-―भुझे रगता शै आऩ रोग गरती कय यशे शो ‖ ।

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आयम्ब ई-ऩत्रिका 2014-15

काशी मा फनायस

अनेक गाॊलों -ळशयों वे अऩने अब्न्तभ वाॊवे थगनते रोग लभर जामेंगे जो इवी वोच को लरए शैं कक लळल की नगयी भें भयने वे भोष लभर जामेगा ।

(गचन्द्तन),(ऩहरा अॊक) काळी मा फनायव एक शी ळशय के दो नाभ,ऐवे शी जैवे याभ कशो मा यशीभ कशो भतरफ तो एक ईश्लय वे शी शै । काळी ळधद वॊस्ित के `कळ`ळधद वे फना शै ब्जवका अथष शै चभकना औय लास्तल भें प्राचीन कार वे शी धभष,वॊस्कृनत औय लळषा के षेि भें वलश्ल भें प्रलवर्दध यशा शै । लळल की नगयी काळी

–ऐवा भाना जाता शै कक लळल मशाॊ

वलश्लेश्लय औय अवलभक् ु तेश्लय रुऩ भें वलयाजभान शैं ।काळी के ऩाव वायनाथ भें भशात्भा फर्द ु ध ने अऩना

प्रथभ

उऩदे ळ

ददमा

था

ळॊकयाचामष,ऩतॊजलर,याभानज ु ाचामष,तर ु वीदाव,याभान न्द,कफीय जैवे भशान धभष प्रचायक ,वध ु ायक काळी की दे न शैं । मों तो कफीय ने कशा शै–जो कावी तन तजे वयीया याभदश कशाॊ ननशोया औय ले स्लमॊ भयने वे ऩशरे काळी छोड कय चरे गमे ऩय भखणकयखणका घाी ऩय ननयन्तय जरती थचताएॉ काळीलाव ळधद को चियताथष कयती शैं अनेकानेक लऴो तक दयू दयाज वे रोग अऩने जीलन के अॊनतभ कार भें काळी चरे आते थे इव वोच के वाथ कक मशाॊ भयें गे तो भोष लभर

मश काळी शै मा फनायव — प्रधानभॊिी नये न्ि भोदी का ननला्षचन-स्थर ।आज लश फनायव जो फनायवी वाडी,फनायवी रॊगडा आभ,फनायवी इक्का.फनायवी ठग ,फनायवी ऩान (ब्जवे खाकय खुर जाए फन्द अक्र का तारा ) फनायव के गरी-कूचे औय फनायव की गॊगा घाीों के लरए न केलर बायत के वललबन्न प्रदे ळो के ऩमषीकों लयन बायत आने लारे वबी वलदे ळी ऩमषट्कों के लरए बी आकऴषण का केन्ि यशा शै

अऩने इव प्रधानभॊिी की औय

ीकीकी रगाए शुए शै । काळी उपष फनायव लश नगयी शै जशाॊ कफीय ने एक ऐवे वभाज की ककऩना की थी जो जानतगत,लगषगत,धभषगत बेदों वे ऊऩय शो ।आज आलश्मकता शै ऐवे शी वभाज की औय स्लच्छ गॊगा की ।बगीयथ अऩने प्रमाव वे गॊगा को धयती ऩय राए थे आज भोदीजी अऩने बगीयथ प्रमाव वे अगरे ऩाॊच लऴों भें गॊगा को स्लच्छ कये गें नभो् नभा् काळी फनायव।

डॉ ककयन नन्द्दा एसोभसएट प्रोपेसय , कक.भ.भहा.,दद., वव., वव

जामेगा मानन फाय-फाय के जन्भ-भयण के चि वे भब्ु क्त ।ककतना वत्म शै नशीॊ जानती ऩय आज बी आऩको काळी की कुछ खाव धभषळाराओॊ भें दयू के arambh.co.in

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आयम्ब ई-ऩत्रिका 2014-15

बायत- आस्रे भरमा सॊफॊध: नए ऊचाइमों की ओय

प्रगनत कय वकेगी | इववे ऩशरे ीोनी एफाी ने भॊफ ु ई भें कशा था कक ― शभ चाशते शैं कक शभाये

बायत– आस्ट्रे लरमा वॊफॊध: नए ऊचाइमों की ओय बायत औय आस्ट्रे लरमा के फीच एक वभझौते ऩयभाणु

वभझौता (civil

nuclear

deal)‖ ऩय शस्ताषय शुए शैं, ब्जवके तशत बायत अफ

आस्ट्रे लरमा

वे

मूयेननमभ

खयीद

वकेगा | बायत ऐवा ऩशरा दे ळ शोगा, जो कक ऩयभाणु अप्रवाय वॊथध( nuclear non proliferation treaty) ऩय शस्ताषय ककए त्रफना आस्ट्रे लरमा वे मूयेननमभ खयीद वकेगा | प्रधानभॊिी नयें ि भोदी ने इवे ऐनतशालवक कदभ फतामा शै | दोनों दे ळों के फीच चाय वभझौतों ऩय शस्ताषय शुए शैं | 1. नालबकीम ऊजाष का ळाॊनतऩूणष कामों भें प्रमोग कयने के लरए वशमोग वॊवाधन

प्रफॊधन(water

resource

management) के षेि भें वशमोग 4. तकनीकी लळषा, व्मालवानमक लळषा के षेि भें वशमोग नयें ि भोदी ने आस्ट्रे लरमा के प्रधानभॊिी ीोनी एफाी का स्लागत कयते शुए कशा कक शभाये लरए आस्ट्रे लरमा एक फेशतय यणनीनतक वाझेदाय शै औय शभ आस्ट्रे लरमा के वाथ वम्फन्धों को औय arambh.co.in

मशाॉ के छाि बी ज्मादा वे ज्मादा इव भशान दे ळ भें आए औय मशाॉ सान प्राप्त कयें | इवके

अराला

आस्ट्रे लरमा

प्रधानभॊिी के

नयें ि

वम्फन्धों

भोदी भें

वशमोग, आतॊकलाद, वाइफय

ने

वुयषा

आतॊक(cyber

threat) जैवे भशत्त्लऩूणष भुर्ददों ऩय ज़ोय ददमा |नयें ि भोदी ने मे बी ऐरान ककमा कक ले जी20 वम्भेरन के फाद नलॊफय भें आस्ट्रे लरमा के दौये ऩय जाएॊगे | 28 लऴष फाद मश ऩशरी फाय शोगा जफ कोई बायतीम प्रधानभॊिी आस्ट्रे लरमा दौये ऩय जाएगा | वभम औय वभम की जरूयत के दशवाफ वे आस्ट्रे लरमा औय बायत एक दव ू ये के वाथ अऩने वम्फन्धों को अच्छा कयने ऩय ज्मादा ज़ोय दे यशे शैं |

2. खेर के षेि भें वशमोग 3. जर

कोरॊफो प्रान की घोऴणा की, ब्जवके तशत दोनों दे ळों की मुला ळब्क्त लळषा के षेि भें औय

(गचन्द्तन) (दस ू या अॊक)

―अवैन्म

अच्छा कयना चाशते शैं | प्रधानभॊिी नयें ि भोदी ने

आस्ट्रे लरमा के प्रधानभॊिी ीोनी ऐफाी ने कशा कक

―शभने

अवैन्म

nuclear deal) ऩय

ऩयभाणु

शस्ताषय

वभझौता (civil

ककए

शैं

क्मोंकक

आस्ट्रे लरमा का बायत भें वलश्लाव शै कक लश इवका वशी षेि भें वशी तयीके वे उऩमोग कये गा जैवा कक उवने अबी तक प्रत्मेक षेि भें ककमा शै | शभ बायत को मूयेननमभ दे कय फशुत खुळ शैं |‖ ऐवा नशीॊ शै कक मे वभझौता भोदी वयकाय के Page 43


आयम्ब ई-ऩत्रिका 2014-15 कायण शी शुआ शै | 2012 वे शी रगाताय दोनों

Nuclear Deal) वे शोने लारे पामदे की | बायत

दे ळों के फीच इव भुर्ददे ऩय लाताषएॊ चर यशी थी

जैवे दे ळ के लरए अवैन्म ऩयभाणु वॊथध शोना

औय अॊतत: मे वॊबल शो गमा | अवैन्म ऩयभाणु

दे ळ

वभझौता (civil nuclear deal) ऩय काॉग्रेव नेता

शै | आस्ट्रे लरमा ने ऩशरे बायत को मूयेननमभ दे ने

ळकीर अशभद का कशना शै कक जो वभझौता

वे भना कय ददमा था | उवके ऩीछे आस्ट्रे लरमा

आज शुआ शै , लश तो भनभोशन वयकाय के

का तकष था कक बायत ने ऩयभाणु अप्रवाय

वभम शी वॊबल शो गमा था |

वॊथध(Nuclear

आस्ट्रे लरमा अवैन्म ऩयभाणु उऩमोग के लरए

शस्ताषय नशीॊ ककए शैं | आस्ट्रे लरमा ने उव वभम

बायत

को

गमा | मानन

मूयेननमभ कक

आमानतत

अफ

दे ने बायत

मूयेननमभ

को

के

वलकाव

के

Non

लरए

फशुत

आलश्मक

Treaty) ऩय

Proliferation

तैमाय

शो

मे बी वलार उठामा था कक नालबकीम वुयषा के

आस्ट्रे लरमा

वे

लरए वयु षा भानक उथचत शैं मा नशीॊ | बायत

उऩमोग

ने NPT ऩय शस्ताषय कयने वे भना कय ददमा शै

का

त्रफजरी,नालबकीम ियमेक्ीय जैवे षेिों भें

शो

क्मोंकक इवभें फशुत अथधक खालभमाॉ शैं | मदद

वकेगा | आस्ट्रे लरमा औय बायत के फीच शुए

बायत इवभें शस्ताषय कय दे ता शै , तो उवके

कयाय वे एलळमा भशार्दलीऩ भें ळब्क्त वॊतुरन ऩय

ऩयभाणु वॊवाधन फशुत वीलभत शो जाएॊगे | मश

कापी प्रबाल ऩड़ेगा | नयें ि भोदी अबी कुछ शी

वॊथध बेदबाल ऩूणष शै |

ददन ऩशरे जाऩान मािा ऩय गए थे , रेककन लशाॉ

NPT & NON NPT MEMBERS

नालबकीम वभझौता नशीॊ शो ऩामा था |

ऩयभाणु

मदद ऩूये वलश्ल भें मूयेननमभ की फात कयें , तो ऩूये

Proliferation Treaty) शै क्मा ? जफ तक इवको

वलश्ल का 40% मूयेननमभ आस्ट्रे लरमा के ऩाव

वभझ नशीॊ रेते शैं तफ तक अवैन्म ऩयभाणु

शै | आस्ट्रे लरमा, ब्जव दे ळ भें अबी तक कोई

वॊथध (Civil Nuclear Deal) न शोने के कायण

न्मूब्क्रमय ऩालय प्राॊी नशीॊ शै , लश दनु नमा भें

वभझ

आमात कयने लारा वफवे फड़ा दे ळ शै | वयकायी

वॊथध (Nuclear Non Proliferation Treaty) ऩयभाणु

वूिों के अनुवाय, वलत्त–लऴष 2011/12 भें आस्ट्रे लरमा

तकनीक के ळाॊनतऩूणष ढॊ ग वे प्रमोग को फढ़ाला

ने 7529 ीन

मयू े ननमभ

दे ने औय ऩयभाणु शथथमायों का वलस्ताय योकने के

था , ब्जवकी

कीभत 782 लभलरमन

का

खनन

ककमा

आस्ट्रे लरमन

कयते

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शैं

अवैन्म

नशीॊ

अॊतयाषष्ट्रीम

वॊथध (Nuclear

आएॊगे | ऩयभाणु

प्रमावों

का

Non

अप्रवाय

एक

नतीजा

शै | इवे 1970 भें फनामा गमा था, ब्जवका उर्ददे श्म

डॉरय (A$782) के फयाफय शै | फात

लरए

अप्रवाय

ऩयभाणु

वॊथध (Civil

था

कक

ऩयभाणु

शथथमायों

को

ऩाॉच Page 44


आयम्ब ई-ऩत्रिका 2014-15 दे ळों (अभेियका, वोवलमत

वॊघ{आज

रूव}, चीन, त्रब्रीे न, फ़्ाॊव) दे ळों

तक

का वीलभत

अलरुर्दध

शो

भें 10 अबी

गमा बी

शै | बायत

भें 20 ियमेक्ीय

अॊतयाषष्ट्रीम

ऩयभाणु

यखना, ब्जनके ऩाव ऩयभाणु शथथमाय थे औय जो

एजेंवी (IAEA) की ननगयानी भें शैं | इन ियमेक्ीय

मे स्लीकाय कयते थे | चीन औय फ़्ाॊव ने इव

के अथधकतय मूयेननमभ रूव औय कजाककस्तान

वॊथध ऩय ळरू ु भें शस्ताषय कयने वे भना कय

वे आता शै | दे ळ भें इव वभम त्रफजरी के लरए

ददमा, ऩय 1992 भें इव वॊथध ऩय चीन औय फ़्ाॊव

ऩयॊ ऩयागत स्रोत रगाताय कभ शोते जा यशे

ने शस्ताषय कय ददमे | इव वॊथध ऩय187 दे ळों ने

शैं | कोमरा जैवे ऩयॊ ऩयागत स्रोतों ऩय ननबषय

शस्ताषय

शैं , शाराॊकक

यशकय दे ळ की त्रफजरी जरूयतों को ऩूया नशीॊ

बायत, ऩाककस्तान,उत्तय कोियमा औय इवयाइर ने

ककमा जा वकता | शभाये दे ळ भें जर वॊवाधनों वे

अबी तक इव वॊथध ऩय शस्ताषय नशीॊ ककए

बी उतनी त्रफजरी नशीॊ लभर ऩा यशी शै | मदद

शैं | इव वॊथध की कई ळते शैं ,जैवे कक मश गैय

जर वॊवाधनों की ओय ज्मादा फढ़ते शैं , तो

ऩयभाणु दे ळों को न तो शथथमाय दें गे औय न शी

उवभें

इन्शें

शै | बायत भें त्रफजरी जरूयतों को ऩूया कयने के

ककए

शालवर

कयने

भें

उनकी

भदद

ऩमाषलयणीम

कक ले ऩयभाणु ऊजाष ळाॊनतऩूणष उर्ददे श्मों के लरए

3.5% शै , जफकक फ़्ाॊव भें मशी 73% शै औय दक्षषण

वलकलवत कय वकते शैं रेककन लश बी वलमना

कोियमा भें 28% शै |

ब्स्थत

अगय न्मूब्क्रमय ऩालय प्राॊी की वॊख्मा फढ़े गी

एजेंवी (IAEA) के

ननयीषकों की दे खये ख भें शोगा बायतीम

नालबकीम

तो

कॊऩननमों

के

फीच

मोगदान 2-

प्रनतमोथगता

ननकाम

फढ़े गी | प्रनतमोथगता फढ़े गी तो न्मूब्क्रमय ऊजाष

लरलभीे ड (Nuclear Power Corporation of India

वस्ती बी शोगी | रेककन प्रायब्म्बक अलस्था भें

Limited) के अनुवाय, बायत 20 छोीे , 4780 भेगा

न्मूब्क्रमय ऩालय भशॊ गी शोगी औय न्मूब्क्रमय

लाी षभता लारे नालबकीम ियमेक्ीय वॊचालरत

ियमेक्ीय के यख–यखाल भें खचाष फशुत अथधक

कय यशा शै , जो कक कुर ऊजाष खऩत का 2-

आता

3.5% शै | वयकाय

कक 2032 तक

वलकाव(Sustainable Development) की फात कयें

नालबकीम ऊजाष षभता 63,000 भेगा लाी तक

तो उव भाभरे भें मश ऊजाष वफवे वस्ती फैठती

फढ़

रगबग 85 डॉरय

शै | इव वभम बायत भें फ़्ाॊव, रूव, अभेियका औय

त्रफलरमन शोगी | बायत भें त्रफजरी की आऩूनतष न

कई दे ळों की नालबकीम ऊजाष उत्ऩादन कयने

शो ऩाने के कायण वलकाव कई स्थानों भें

लारी कॊऩननमाॉ बायत आने को इच्छुक शैं | ऐवे

को

जाए, ब्जवभें

arambh.co.in

ऊजाष

उववे

का

अथधक

लरए

ऩयभाणु

ऊजाष

फशुत

कयें गे | शाराॊकक, उन्शें इव फात की इजाजत शोगी

अॊतयाषष्ट्रीम

नालबकीम

नुकवान

आळा रागत

शै

शै | रेककन

अगय

वॊऩोऴणीम

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आयम्ब ई-ऩत्रिका 2014-15 भें

जफ

आऩूनतषकताष (Supplier) फशुत

शोंगे, तो

ऊजाष

की

कीभत

ज्मादा

उतनी

शी

व्माऩाियक

वाझेदायी

के

ऩवॊदीदा

दे ळों

भें

अभेियका, जाऩान औय लवॊगाऩुय के फाद चौथे

थगये गी, शाराॊकक मे वफ शोने भें फशुत लक़्त

स्थान ऩय शै |

रगेगा | ऐवे भें ीोनी ऐफाी की घोऴणा बायत के

भोदी की ऩॉलरवी यडाय भें व्मालवानमक लळषा

लरए फशुत भशत्त्लऩूणष भामने यखती शै |

फशुत भशत्त्लऩूणष शै | बायत भें वऩछरी वयकाय ने

मदद बायत औय आस्ट्रे लरमा के फीच शोने लारे

लळषा के षेि भें फदराल के लरए कई प्रमाव

व्माऩाय के वलकाव की फात कयें , तो वऩछरे कुछ

ककए

लऴों भें इवभें रगाताय फढ़ोत्तयी शुई शै | एक

थे | आस्ट्रे लरमन वलश्लवलर्दमारम बायत भें लळषा

दळक ऩशरे बायत,आस्ट्रे लरमा को ननमाषत के

के षेि भें एक फड़ा फाजाय दे खते शैं |

आकड़ों

बायत

के

भाभरे

भें

ळीऴष

दव

भें

नशीॊ

थे, रेककन

औय

ले

अवपर

आस्ट्रे लरमा

के

शो

गए

दशन्द–प्रळाॊत

था, रेककन आज शभ आस्ट्रे लरमा के ऩाॊचले फड़े

भशावागयीम षेि(Indo-Pacific Region) ऩय वाझा

ननमाषतक दे ळ शैं | व्माऩाियक अवॊतुरन रगाताय

दशत

वुधाय यशा शै | बायत की कई कॊऩननमों जैवे ीाीा

Pacific Region)भें चीन के फढ़ते दफदफे वे कई

कॊवरीें वी, इॊपोवेलवव, भदशॊिा

आदद

दे ळ थचॊनतत शैं | इवका वॊकेत शभें भोदी की

कॊऩननमों ने आस्ट्रे लरमा की अथषव्मलस्था भें

जाऩन मािा भें बी लभर जाता शै , ब्जवभें भोदी

फशुत भािा भें ननलेळ कय यखा शै | आकड़ों की

ने अप्रत्मष तौय ऩय चीन का नाभ लरए त्रफना

फात

तक

मे कशा था कक ―कुछ दे ळ अबी बी 18लीॊ वदी

चुका

की वलस्तायलाद की नीनत भें वलश्लाव यखते

के

शैं , रेककन भेया वलश्लाव वलकावलाद की नीनत भें

व्माऩाय 2003 भें 5.1 त्रफलरमन आस्ट्रे लरमन डॉरय

शै | ऐवे भें अभेियका बी चीन वे प्रनतर्दलॊदी के

वे फढ़कय 2013 भें 15.2 त्रफलरमन डॉरय तक ऩशुॉच

तौय ऩय एलळमा भशार्दलीऩ भें बायत को खड़ा

चुका शै | अवैन्म ऩयभाणु वॊथध शो जाने वे बायत

कयना

औय आस्ट्रे लरमा के फीच व्माऩाय औय अथधक

अभेियका 2008 भें अभेियका बायत को ळाॊनतऩूणष

फढ़े गा रेककन इवभें आस्ट्रे लरमा को राब शोने

कामों भें ऩयभाणु वशमोग दे ने भें वशभत शो

की ज्मादा उम्भीदें शैं |

गमा था |

भेरफनष वलश्लवलर्दमारम के आस्ट्रे लरमा–इॊडडमा

अलभताब

वॊस्थान

वॊस्थान, प्रोपेवय{भेरफनष

कयें , तो

मश

रगबग 11 त्रफलरमन शै | बायत

औय

के

arambh.co.in

डॉरय

एमयोस्ऩेव

इव तक

वभम ऩशुॉच

आस्ट्रे लरमा

अनुवाय, आस्ट्रे लरमा

बायत

के

शैं | दशन्द–प्रळाॊत

चाशता

भशावागयीम

शै , ब्जवके

षेि(Indo-

कायण 2008 भें

भातो( डामये क्ीय, इॊडडमा–आस्ट्रे लरमा वलश्लवलर्दमारम

औय

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आयम्ब ई-ऩत्रिका 2014-15

स्त्री- शोषण के फदरते

जे.एन.मू.}) का अऩने रेख ―The New Promise of India-Australia Relations‖ भें कशना शै कक ऩूलष भें बायत,जाऩान औय अभेियका के वाथ

आमाभों के फीच ववभशा

आस्ट्रे लरमा के वैन्म ियश्ते स्ऩष्ी रूऩ वे नशीॊ

(गचन्द्तन) (दस ू या अॊक)

ददखाई दे ते थे, रेककन अऩने दशतों को दे खते शुए, वलश्ल अथषव्मलस्था भें ळब्क्त के केंि को

स्िी–वलभळष का रक्ष्म प्रत्मेक स्तय ऩय शो यशे

फदरने के कायण अफ इन्शीॊ दे ळों को एक वाथ

स्िी ळोऴण के खखराप्फ़ लवपष आलाज उठाना

आगे आना ऩड़ यशा शै |

नशीॊ;फब्कक उवे योकना शै । मश वलभळष मशीॊ

रेककन

इवको

रगेगा; क्मा

ऩूया

शोने

भें

लक़्त

बायत, आस्ट्रे लरमा, अभेियका

ककतना

खत्भ नशीॊ शोता शै । इवका भूर रक्ष्म स्िी को

औय

ळोऴण वे भुक्त कय उवे एक व्मब्क्त के रुऩ भें

जाऩान के दशतों भें ीकयाल नशीॊ शोगा ? इव फात की कोई गायॊ ी​ी नशीॊ शै |मदद नालबकीम वमन्ि

स्थावऩत कयना शै न लवपष ऩुरूऴ वे प्रनतस्ऩधाष । मश स्िी को वभानता ल वभता के अथधकाय को

वे ऊजाष की फात कयें , तो बायत भें इवको रेकय

न लवपष कानन ू ी फब्कक व्मालाशाियक स्तय ऩय

वॊळम व्माप्त शै | इवकी वुयषा को रेकय रोगों

ददराने की लकारत शै ।

भें डय व्माप्त शै | ऐवे भें आस्ट्रे लरमा अवैन्म

जशाॉ व्मालशाियक ळधद आता शै ,लशीॊ बायतीम ो़ कानून व्मलस्था के वपरता ऩय प्रश्न खडे शोने

ऩयभाणु उऩमोग के लरए बायत को मूयेननमभ दे ने को तैमाय शो गमा शै | अफ आगे बायत को दे खना शै कक लो इन वबी वॊळम को दयू कयने के लरए ककव तयीके की यणनीनत अऩनाता शै |

शुबभ गुप्ता

ळुरू शो जाते शैं ।`ननबषमा काणड`के फाद स्िी– वयु षा की लकारत भें कानन ू की एक रम्फी पेशियस्त ननकारी गमी,रेककन क्मा शुआ?इवकी व्मालशाियक वपरता स्िी के जीलन को कशाॉ तक छू ऩामी?क्मा ब्स्िमों ऩय ळायीियक दशॊवा शोना फन्द शो गमा मा कभ शो गमा?मे वलार लवपष वलचाय की दास्तान फनकय यश जाते शैं । `ननबषमा काणड`के फाद फॎारीलुड भें लक्तव्मों की फशाय

वॊलेदनात्भक

ऩडी

मकीनन

वशानुबनू त

बी

उवभे

उनकी

ळालभर

यशी

शोगी!रगा कक मे कोई कपकभ फना कय अऩनी

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आयम्ब ई-ऩत्रिका 2014-15 श्रध्दाॊजलर अवऩषत कयें गें,रेककन अच्छा शुआ कक

ब्जधय

इव घीना को अबी व्माऩाय के दामये भे नशीॊ

गमा,क्मोंकक उनकी नजय भें स्िी ळोऴण लवपष

रामा गमा । शार शी आमी कपकभ` HAPPY

ळायीियक दशॊवा औय उनको अथधकायों वे लॊथचत

NEW YEAR `भें भोशनी के चियि ऩय चारी के

यखना शै । शभें आज इव तयप बी ध्मान दे ना

ळधद ककवी बी स्िी के स्लालबभान,अब्स्भता ल

शोगा जशाॉ स्िी की भानलवक वलकराॊगता का

ऩशचान ऩय रात भायते शैं । ब्जवे फदाषश्त कनाष

वशाया रेकय शास्म उत्ऩन्न ककमा जाता शैं ।

वम्बल

शोFARHA

चुीकुरे इवके वाषात उदाशयण शैं । ब्जनभें

KHANआऩने इव स्िी भें इतनी ळब्क्त बयी शै

प्राम:स्िी को भानलवक रुऩ वे वलकराॊग ददखा

कक

अऩने

कय शस्म उत्ऩन्न ककमा जाता शैं । मश शभाये

अब्स्तत्ल,स्लालबभान ल ऩशचान को फेच दे ती शै

वभाज कक फडी ो़ वलडम्फना शै कक शास्म अफ

।कौन–वी स्िी शोगी मा शोना चाशे गी जो अऩनी

अऩने स्लस्थ रूऩ न शोकय वलकराॊगता का

अब्स्भता,वम्भान ल स्लालबभान को अॊग्रेजी के

आश्रम रेने को भजफूय शै । दयअवर मश स्िी

चन्द

के भानलवक स्तय का ळोऴण शैं ब्जवकी जड़ें

नशीॊ

लो

शै ।

अॊग्रेजी

ळधदों

वे

रेककन बाऴा

तौरना

जम के

आगे

चाशे गी?ळामद

कोई

स्िी–वलभळषकायों

का

ध्मान

नशीॊ

नशी,क्मोंकक एक स्िी मा व्मब्क्त के तौय ऩय

अफ गशयी शोती जा आ यशी शै ।

उवे अऩना वम्भान ल स्लालबभान शी वप्रम शोता

जरूयत वभाज की भानलवकता को फदरने की

शै ।

शै ,क्मोंकक मशी लो यास्ता शै जशाॉ वे स्िी के

इव कपकभ की वफवे फडी वलडम्फना भोदशनी को

ळोऴण को योका मा कभ ककमा जा वकता शैं,न

रेकय शी शै ,जो फाय–फाय मश कशती कक`शायो तो

कक कानूनों का आश्रम रेकय । मश ऩशर एक

शायो!भगय इज्जत भत उतायो!`उव स्लालबभानी

व्मब्क्त ल ऩियलाय के स्तय ऩय शो तबी वपरता

भोदशनी कोFRAHA KHANने अॊग्रेजी के चॊद

प्राप्त शो वकती शै । दयअवर बायतीम वभाज

ळधदों के आगे फेफव ददखामा शै । दयअवर मश

की रूदढमाॉ औय जड़ शो चुकी ऩयम्ऩयाएॉ व्मब्क्त ो़

अलबजात्म ऩुरूऴ भानलवकता कक उऩज शै ,जो

की भानलवकता को फाॉध के यखती शै जो ककवी

फ़या खान के ददभाग भें घय कय गमी शै । जो

बी वभाज के लरए फशुत शी खतवाख शैं । इव

मश चाशती शै कक भानलवक वलकराॊगता के दभ

लरए शभें मश ऩशर उव ऩीढी ो़ के वाथ कयनी

ऩय शास्म उत्ऩन्न ककमा जाए,ब्जवे प्राम:स्िी के

शोगी ब्जवभें वाभाब्जकता के बाल ऩनऩने कक

वन्दबष भें प्रमुक्त ककमा जाता शै ।

प्रकिमा भें शैं । उन्शे एक स्लस्थ ल स्लतॊि

मश तो लवपष एक ताजा–तयीन उदाशयण था

भानलवकता उव आधुननक चेतना को ग्रशण

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आयम्ब ई-ऩत्रिका 2014-15 कये गी जो वभाज की‗आधी आफादी‗को स्िी नशीॊ फब्कक एक व्मब्क्त के रूऩ भें भशत्ल दे गी । मकीनन

मश

भानलवकता

बायतीम

फोर के रफ आजाद है तेये …

रूदढलादी ो़

भानलवकता वे नमी औय अरग शोगी ।

(गचन्द्तन) (तीसया अॊक)

दयअवर व्मब्क्त लश इकाई शै ब्जवभे वभाज ननलभषत शोता शै औय लश वुयक्षषत शै तो वभाज वुयक्षषत शै । ब्जव याष्ट्र का वभाज वुयक्षषत शै

―वफ चुऩ,वादशब्त्मक चुऩ,कवलजन ननलाषक थचन्तक,लळकऩकाय,नतषक चऩ ु शै

मकीनन लश याष्ट्र एक वलकलवत ल भजफूत याष्ट्र के तौय ऩय ऩशचाना जाएगा। वभम की जरूयत मशी शै कक स्िी को एक व्मब्क्त के रूऩ भें स्लीकायोब्क्त लभरे ।इवके लरमे बायतीम रूढ़ वभाज को प्रौढ़ ल स्लस्थ भानलवकता के वाथ आगे आना शोगा जशाॉ स्िी के ननब्ष्िम दे ली के रूऩ को तोड़कय एक वकिम व्मब्क्तत्ल के रूऩ भें स्थाऩना लभरे । मश स्ऩष्ी शै कक जफ व्मब्क्त–व्मब्क्त स्तय का बेद नशीॊ शोगा तो वभता,स्लतॊिता का अथधकाय व्मालशाियक रुऩ स्लत् शी प्राप्त कये गा औय ळोऴण की प्रकिमा खत्भ शो वकेगी । शैरेन्द्र भसहॊ (सम्ऩादक ऩहरा अॊक)

उनके ख्मार वे मश वफ गऩ शै ― रेककन अफ मश गऩ नशी यशा…चुप्ऩी ीूी​ी शै ….स्िी जागरुकशुई शै औय उवका भाध्मभ फना शै उवकी―लळषा‖। आज लश चायददलायी औय चौखीे वे फाशय ननकरकय चशरकदभी कय यशी शै । फुके के फाशय ननकरकय उवकी ननगाशें अॊतियष तक ऩशुॉच गमी शै । आज लश फेरन वे लवपष योी​ी शी नशी फनाती फब्कक लश फन्दक ु रेकय वीभा ऩय भस् ु तैद शै । उवकी झाडू ऩकड़ने लारे

शाथों

भें

कीफोडष

ह्ऐ

आज

उवके

भब्स्तष्क कशी औय वे वॊचालरत नशी शोता शै ,उवके भुॉश ऩय रगा तारा खुरा शै । लश आत्भननबषय शुई शै । उवका आत्भवलश्लाव फढ़ा शै । आज लश अऩना ननणषम रे वकती शै । उवका दखर वभाज के शय षेि भें फढ़ा शै – रेककन

मश

दनु नमा

अकऩवॊख्मक‖भदशराओॊ वीलभत

शै

जो

के लळक्षषत

की‖वफवे

फड़ी

कुछ

तक

अॊळ शै

।‗स्लाभी

वललेकानन्द‗कशते थे– ‖जफ तक भदशराओॊ की ब्स्थनत नशीॊ वुधयती,लश

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आयम्ब ई-ऩत्रिका 2014-15 लळक्षषत नशी शोती तफ तक दनु नमा के ककमाण

औय मश स्िी को लळक्षषत ककमे त्रफना वॊबल नशी

की कोई वम्बालना नशी शै । ककवी ऩषी का

शै । मदद शभ‗एक ऩुरुऴ को लळक्षषत कयते शै तो

एक ऩॊख वे उड़ना वम्बल नशी शै । इवलरए

लश खुद लळक्षषत शोता शै जफकक एक स्िी को

उवे ऩशरे लळक्षषत कयो,तफ लश अऩना ननणषम

लळक्षषत कयने ऩय ऩूया ऩियलाय ल वभाज लळक्षषत

खद ु रेगी,तभ ु उवके ननणषम रेने लारे कौन शोते शो?‖

शोता शै ।‗ शभें ऩूलाषग्रश भुक्त शोना,भदशराओॊ को बी लळषा

ब्स्िमो का वऩतव ृ त्ता ल‖ऩुरुऴलादी वोच‖के र्दलाया

के

वभान

अलवय

दभन आज बी जायी शै ।‖कन्मा भ्रूण शत्माएॊ‖शो

ववलधान की स्िी ल मथाथष की स्िी भें जभीन

यशी शै । लळषा तो फाद की फात शै उवे ऩैदा शी

आवभान का अन्तय शै । उवकी जफान ऩय रगी

नशी शोने ददमा जा यशा शै औय मदद बाग्मलळ ले

ऩाफन्दी को शीाना शोगा–

ऩैदा बी शो जा यशी शै तो―खाऩ ऩॊचामते‖राठी

―फोर के रफ आजाद शै तेये

रेकय फैठी शै । उनकी अलबव्मब्क्त को छीना जा

फोर जुफाॉ शै आज बी तेयी―

यशा शै –

जशाॉ–जशाॉ

लश

उऩरधध

स्लतन्ि

कयाने

शुई

शै ,उवने

शोंगे

फेशतय

‗भेये भुॉश भे बी शै जफान

प्रदळषन ककमा शै । आज फोडष की ीॉऩय रडककमाॉ

काळ की कोई ऩछ ु े भर्द ु दा क्मा शै ? ‗

शै । इॊजीननमियॊग,डॉक्ीयी,भैनेजभेंी वफ स्तयों ऩय

रेककन उनको तो चूडड़माॉ ल फुकाष ऩशना ददमे

उनकी

गमे शै । लैददक कार भें स्िी को लळषा का

कोचय‖जैवी भदशराएॉ दे ळ की अथषव्मलस्था को

अथधकाय था रेककन फाद भें उववे मश अथधकाय

आथथषक गनत दे यशी शैं । लशी आई.एभ.एप.की

छीन लरमा गमा । उवे चायददलायी भें कैद कय

अध्मष बी भदशरा शै । याज्मों की भुख्मभॊिी

ददमा गमा । ग्राभीण स्तय ऩय इव कैद भें

भामालती,जमरलरता,भभता फनजी,ळीरा दीक्षषत

तधदीरी नशी शै । धभष,कानून,आचाय वॊदशताओॊ

जैवी भदशराएॉ यश चुकी शै । दे ळ की केन्िीम

वे उवे कैद ककमा गमा,उवकी अलबव्मब्क्त छीनी

वत्ता का लश प्रनतननथधत्ल

जा यशी शै । इवलरए मदद स्िी को वळक्त

अन्तियष भें ले चशर–कदभी कय यशी शै ।

फनाना शै तो उवे चायदीलायी वे फाशय ननकारकय

ककऩना

खर ु े आवभान भें ऩॊख पैराने की छूी दे नी शोगी

उदाशयण शै औय शभायी प्रेयणा बी ।

औय इवके लरए– ‗तोड़ने शोगें भठ औय गढ़ वफ

दक्षषण अभयीका भें ब्राजीर,थचरी,अजेब्न्ीना की

ऩशुॉचना शोगा दद ु ष भ ऩशाड़ों के उव ऩाय‗

याष्ट्रऩनत भदशराएॊ शै । प्रनतबा ऩादीर,कोडलरना

arambh.co.in

वपरता

जगजादशय

चालरा,वन ु ीता

शै

।―चन्दा

कय चुकी शै वललरमम्व

इवके

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आयम्ब ई-ऩत्रिका 2014-15 याइव आदद अऩनी लळषा की फदोरत दे ळ ल

शभ दोनों ऩैयों वे चर वके । शभाया वभाज

दनु नमाॉ को यास्ता ददखा यशी शै । भेघा ऩादीकय

ननब्श्चत शी इव ब्स्थनत भे फेशतय शोगा ।‖स्िी

जैवी वाभाब्जक कामषकताष वभाज को जागरुक

ऩैदा नशी शोती उवे ऩैदा ककमा जाता शै ,फनामा

कय यशी शै । अवॊख्म ऐवे उदाशयण शै जो अऩनी

जाता शै ‖ (द वेकणड वेक्व–लवभन द फोउलाय)उवे

लळषा के फदौरत अऩने षैि भें प्रेयणास्रोत फनी

उवकी दफ ष ता का अशवाव कयलामा जाता शै ु र

शुई शै । रेखन भें बी उनका शस्तषेऩ फढा ो़ शै –

ब्जववे लश ऩुरुऴ के अधीन यशे । लळषा शी लश

जे.के.यालरग,लवभोन द फोउलाय,भन्नु बॊडायी,भद ु ा ृ र

शथथमाय शै जो इव ऩुरुऴलादी वोच ल ळोऴण वे

गगष आदद वादशत्म को वभर्द ृ ध कय यशी शै ।

स्िी को भुक्त कये गा । स्िी लळषा की वफवे

ऩयन्तु इन अवॊख्म उदाशयणों के इतय बी एक

फडी चुनौती ऩुरुऴलादी वोच शै जो ब्स्थनत को

वॊवाय शै –जशाॉ स्िी दलभत शै ,उवे अलबव्मब्क्त की

अऩने अधीन यखना चाशती शै ।

आजादी नशी ऩदे भे यशना उवका बाग्म शै ,लश

वलश्लवलर्दमारमों वे दयू ी,अवुयषा की बालना,फढती

ऩढ़ नशी वकती,उवे ऩुि के फयाफय अथधकाय

मौन दशॊवा ल रैथगक बेद बी स्िी लळषा भे फडी

नशी–ब्स्थनतमों

फाधाएॉ ऩैदा कयती शै ।

की

ब्जम्भेदाय

ले

जडताएॊ

ऩुरुऴलादी वोच शै ब्जवके अनुवाय-―स्िी जन्भ वे

ब्स्िमाॉ अलळक्षषत ल जगरुकता वलशीन शै । खाऩ

अऩूणष शै ‖ (अयस्तु)उवका अब्स्तत्ल ऩुि,ऩनत ल

ऩॊचामते शै ,भक ु रा भौरली शै ,धभष मा वभाज के

वऩता वे स्लतॊि नशी शै (काव्मामन)आदद शै ।

ठे केदाय शै को उवे गश ृ स्थी तक शी वीलभत

स्िी ऩय मदद ऩुरुऴ के फयाफय ननलेळ ककमा जाए

यखना चाशते शै । मदद ऩढाते बी शै तो लवपष

तो ले उनवे कन्धो वे कन्धा लभराकय खडी

ळादी के लरए–गुणलत्ताऩूणष लळषा नशी शो ऩाती

शोगी औय ळामद आगे बी ।

शै –

―ऩदढए गीता

मयू ोऩ ल ऩब्श्चभी जगत की ब्स्िमों भें लळषा के

फननए वीता

प्रनत जागरुकता शै ले ऩुरुऴों वे कदभतार कयती

कपय इन फव ऩय रगा ऩरीता

शै । रेककन दक्षषण एलळमाई दे ळों भें स्िी लळषा

ककवी भुखष की शो ऩियणीता–

की ब्स्थनत अच्छी नशी शै क्मोकक ले स्िी को

बय–बय बात ऩवाइए ।―

दोय्नभ दजे का भानते शै –

स्िी की इव दमनीम ब्स्थनत को वध ु ायना शोगा

‖बायत जैवा दे ळ अऩनी ब्स्िमों को घयों भे कैद

। उवको―आॉचर भें ऩानी‖लारी स्िी वे उठाकय

कय एक ऩैय वे आगे फढने की कोलळळ कय यशा

वळक्त कयना शोगा औय मश तबी वॊबल शै जफ

शै ।― (याधाकृष्णन)

स्िी लळक्षषत शो,उवे रैंथगक बेद वे भुब्क्त लभरे

मदद शभ स्िी को लळक्षषत कयते शै तो ळामद

। उव ऩय ऩुरुऴ के फयाफय शी ननलेळ ककमा जाए

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आयम्ब ई-ऩत्रिका 2014-15

भैं एक स्त्री हूॉ…..

। ननब्श्चत रुऩ वे जशाॉ ऐवी ऩियब्स्थनत शै लशाॉॅॊ आज बी गागी,भैिम े ी,अऩारा ऩैदा शो यशी शै । शभें स्िी लळषा को रेकय जगरुक शोना शोगा ।

(गचन्द्तन) (तीसया अॊक)

स्िी लळषा वे शी शभ ऩूणष शोगे शभाया वभाज ऩूणष शोगा―यभाफाई पूरे,‖आनॊदी जोळी ल भरारा मूवुप जई जैवी ब्स्िमों को प्रेयणा रेकय लळषा के लरए वॊघऴष कयना शोगा । तबी आज वे फेशतय वभाज का शभ ननभाषण कय वकते शै । ब्स्िमो भें चेतना ल जगरुकता लळषा वे दी जा वकती शै । लळषा के आबाल भें ले अऩने अथधकायों वे लॊथचत ल ळोवऴत शै ।‖एक भजदयू अऩनी गयीफी को ऩशचानता शै औय एक कारा आदभी अऩने यॊ ग वे ऩियथचत शै रेककन स्िी लबन्न–लबन्न लगों,जनतमों भे फॉी​ी ह्ऐ उवे अऩने दशत–अदशत की जानकायी नशी । मश फव लळषा कय वकती शै ―(लवभोन द फोउलाय) स्िी लळषा ने ब्स्िमों की ब्स्थनत को फेशतय फनामा शै ,वभाज ल दनु नमाॉ को फेशतय फनामा शै आज लश अऩने अथधकायों के प्रनत जागरूक शै वॊघऴषयत शै लश वभानता के लरए रड यशी शै ,अलबव्मब्क्त के लरए रड यशी शै । ववलधान के वाथ–वाथ वभाज भें ,मथाथष भें उवकी ब्स्थनत वध ु ायनी शोगी–वभाज

को

इवके

लरए

आगे

आना

शोगा,ऩुरुऴलादी वो ल ऩूलाषग्रश भक् ु त शोकय ब्स्िमों को वळक्त कयना शोगा–औय इवका वफवे फडा शथथमाय उनको लळक्षषत कयना शै । दीऩक जमसवार arambh.co.in

आज शय वभाज भें ब्स्िमाॉ अऩना जीलन एक वॊघऴाषत्भक ढॊ ग वे जी यशी शैं। लतषभान भें शभाया इव तयश अऩनी फात कशना एलॊ लरखना बी उवी वॊघऴष की याश ऩय चरने का दशस्वा शै .कई फाय रगता शै कक मश फोरना औय लरखना बी इव वॊघऴष के िभ भें शभायी उऩरब्धध शै .इनतशाव ऩय नज़य डारे औय वफक रें तो मश स्ऩष्ी शै कक स्िी को मश रडाई स्लमॊ रडनी

शै

चॉूककवभाज

का

लतषभान

चेशया

ऩुरुऴलादी भानलवकता वे गढ़ा गमाशै ,ब्जवने स्िी को वददमों वेठगा शै .मदद उवने कुछ स्लतॊिता शालवर की बी शै तो अऩनी स्लतॊिता ऩाने की अथक ररक औय फेदशवाफ प्रमावों के फूते.ऩुरूऴ ने बी इव आज़ादी को स्िी ऩय कृताथष कयने के रूऩ भें शी लरमा.मा तो स्िी को दे ली के रूऩ भें यखा गमा मा गर ु ाभ की ब्स्थनत भें .स्िी को जानने–वभझने के इवी िभ भें वऩछरे ददनों एक ऩुस्तक ऩढ़ी–लवभोन दी फोउलाय की चथचषत ऩुस्तक‗द वेकॊड वेक्व‘ब्जवेप्रलवर्दध रेखखका प्रबा खेतान

ने

दशॊदी

भें

अनुददत

ककमा

शै -‗स्िी

उऩेक्षषता‗नाभ वे.आज तक अवभॊजव की ब्स्थनत शै कक क्मा लास्तवलक बाऴा वे अनुददत ऩुस्तक भें वे बालों,वाय तत्लों,तथा ळधदों की गशयाई का रोऩ शो जाता शै ककन्तु ननष्कऴष मशी ननकारा Page 52


आयम्ब ई-ऩत्रिका 2014-15 कक मश ऩुस्तक स्लमॊ भें वॊघऴष वे जूझने का

कशीॊ वत्म बी शै कक प्रकृनत ने तो वब्ृ ष्ी को

फमान शै तो इवे एक औय वॊघऴष उऩशाय स्लरुऩ

चराने के लरए दो आधाय स्िी ल ऩुरुऴ ददए थे

न ददमा जाए.

जो वॊतुरन के वच ू क थे ककन्तु इन दो आधायों

मश ऩुस्तक केलर भनोयॊ जन भाि का वाधन

भें कौन वा श्रेष्ठ शै ?मश तो इव धयातर ऩय

नशीॊ शै अवऩतु आधी आफादी का प्रनतननथधत्ल

रड़ी गई जॊग शै औय स्ऩष्ी तौय ऩय इव जॊग

कय यशी स्िी को,उवके अब्स्तत्ल को जानने–

को जीता ऩुरुऴों ने शी शै .ब्स्िमाॉ वददमों वे ऩुरुऴों

वभझने तथा उववे शोकय गुज़यने की प्रकिमा

के र्दलाया उऩेषा का दॊ ळ झेरती आई शैं,लवभोन

शै .मश ऩुस्तक इव रूऩ भें बी वललळष्ी शै कक

ने स्ऩष्ी ककमा कक स्िी को‗अन्मा‗ (Other)की

इववे ऩूलष स्िी ऩय ऩुरुऴों ने लरखा ककन्तु इवे

वॊसा दी जाती यशी शै कक वब्ृ ष्ी चराने के लरए

एक स्िी ने लरखा शै ,ऩुस्तक भें कशा बी गमा

केलर ऩुरुऴ फनामा गमा तथा ब्जव प्रकाय

शै – ‖अफ तक औयत के फाये भें ऩुरुऴ ने जो कुछ

वूम,ष चॊिभा,ताये ,नदी,लष इत्मादद उवके वशामक ृ

बी

जाना

रूऩ भें शै ,उवी प्रकाय स्िी बी उवके आभोद–

चादशए,क्मोंकक लरखने लारा न्मामाधीळ औय

प्रभोद का वाधन भाि शै .जन्भ के वभम स्िी बी

अऩयाधीदोनों शी शै .‖जशाॉ एक ओय इव ऩुस्तक

एक जील शोती शै ककन्तु ऐवी कौन वी घीना

भें स्िी के भन को,उवकी ऩीड़ा को वभझा गमा

घदीत शोती शै मा कौन वे शाभोन वलकलवत शोते

शै

ऩुरुऴ–भन,उवकी

शै

बी

फनती

लरखा,उव

लशीॊ

ऩूये

ऩय

वाथ

ळक

शी

भानलवकता,उवकी

वोच

गशनता

खझॊझोड़ा

के

खोरा

शी

स्िी चरी

कभनीम,रज्जालान,आसाकाियणी जाती

शै

तथा

ऩुरुऴ

भजफूत,गवलषत,ऩयािभी,तथा श्रेष्ठ शोने का अशभ ्

शै .लवभोन ने स्िी के ककवी बी ऩष का लणषन

यखने रगता शै .इव दृब्ष्ी वे दे खा जाए तो वब्ृ ष्ी

कयने मा उवे वलस्ताय दे ने भें कशीॊ ऩय बी

ने स्िी के वाथ ककमा तो अन्माम शी शै कक उवे

वॊकोच

कोभर अॊगी फनामा,जो ऩुरुऴ के फाशुफर के

ककमा.उन्शोंने

एलॊ

उतनी

कक

गमा

नशीॊ

वाथ

को

ककमा

स्िी–जीलन

के

वललबन्न आमाभों का लणषन फड़ी शी ब्ज़म्भेदायी

वभषस्लमॊ को दफ ष ऩाती शै । ु र

के वाथ कशीॊ ऩय भभषस्ऩळी ढॊ ग वे तो कशीॊ ऩय

मश ऩुस्तक स्िी के अब्स्तत्ल की रड़ाई शै जो

वलश्रेऴणात्भक अॊदाज़ भें ककमा शैं.

एक―स्लाधीन स्िी का घोऴणा–ऩि―शै । स्िी के

इव ऩुस्तक की ऩशरी ऩॊब्क्त शी स्िी की व्मथा

अब्स्तत्ल एलॊ उवके स्िीत्ल के अध्ममन भें मश

कशने भें ऩूणत ष ् वषभ शै कक―स्िी ऩैदा नशीॊ

ऩुस्तक भीर का ऩत्थय शै .मश ऩुस्तक इॊडोनेलळमा

शोती फब्कक उवे फना ददमा जाता शै .‖ (―One is

जैवे दे ळों के लरए एक प्रश्न शै जशाॉ स्िी को

not born rather becomes, a woman‖)कशीॊ न

आज बी नागियकता के दोमभ दज़े भें लयीमता

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आयम्ब ई-ऩत्रिका 2014-15 दी जाती शै .इव ऩुस्तक भें नायीत्ल के भुख्मत्

अथधकायों की यषा का वि ू ऩात कयने की अऩेषा

तीन आधायों को फतामा गमा शै –दाळषननक,ळैक्षषक

एक स्िी वे शी की जा वकती थी ककन्तु स्िी

तथा जैवलक.लवभोन के वलचायों भें दाळषननकता

का

अथधक लभरती शै ननब्श्चत रूऩ वे इवका कायण

ननयाळाजनक शी प्रतीत शोता शै .लवभोन ने इव

अब्स्तत्ललाद शी शै जो भाक्वषलाद औय गशये

ऩय बी प्रकाळ डारा कक नायी उत्थान के लरए

वभाजलाद वे प्रेियत शै .

वफवे भशत्लऩूणष कामष वभान अथधकायों का

लवभोन

ने

वभकारीन

ऩाॊच

स्िी

के

प्रनत

मश

दृब्ष्ीकोण

प्रलवर्दध

वलतयण शै चाशे ले याजनैनतक,आथथषक,लैमब्क्तक,ल

रेखकों के नायी दृब्ष्ीकोणों का बी खुरावा

वाभाब्जक ककवी बी प्रकाय के शो ककन्तु इवके

ककमा ब्जवभें भान्दे रान के वलचायों भें भाता रुऩी

लरए बी फशुत ळब्क्त औय वाशव जुीाना शोगा

स्िी बी ऩुरुऴ की ळिु शै जो उवे गबष के अॉधेये

क्मोंकक मदद ब्स्िमों को वभान अथधकाय दे ना

भें हैद कयके यखती शै तथा क्रान्दे के वलचाय

बी चाशे ,तो स्िी वफर नशीॊ शै ,लश स्लमॊ को नीच

वे स्िी केलर दमा की ऩाि शै जो ऩुरुऴ के लरए

उऩमोगी लस्तु शै वाथ शी वॊतानोत्ऩवत्त का भागष

वॊगठन(वॊमुक्त याष्ट्र)की एक ियऩोीष के अनुवाय–

शै .इन रेखकों के अनुवाय―ऩुरुऴ ळुर्दध शै तथा

―दनु नमा की98प्रनतळत ऩूॊजी ऩय ऩुरूऴों का कधजा

स्िी दवू ऴत शै चॉूकक ईल ने शी आदभ को दवू ऴत

शै .ऩुरुऴों के फयाफय आथथषक औय याजनीनतक वत्ता

ककमा था.―इन रेखकों ने बी अऩनी ऩुरुऴप्रधान

ऩाने

वत्ता का शी त्रफगुर फजामा,इनवे इववे अथधक

रगें गे‖.इवके लरए वलषप्रथभ स्िी के उव स्िीत्ल

की अऩेषा बी नशीॊ की जा वकती थी.लवभोन ने

को

स्िी के प्रनत ऩुरुऴों के वलचायों को शी नशीॊ,लयन

गमा.उवे,उवके

ब्स्िमों के वलचाय बी यखें .उनके अनव ु ाय ब्स्िमों

शोगा,उवे एक भज़फूत न्माम–व्मलस्था वे जोड़ना

भें अऩने कष्ीों को वश कय इतने अथधक ग्रानन

शोगा जो उवके अथधकायों की यषा कये .अभूभन

वे बये शुए कुवऩत बाल आ गए शै कक आज के

घय औय ऩियलाय की प्रनतष्ठा फचाने के लरए

ऩियप्रेक्ष्म भें एक स्िी शी स्िी की ळिु फन गई

मौनळोऴण के अथधकाॊळ भाभरे दफाए जाते

शै .भाता,ऩुिी की स्लतॊिता का शनन कयती शै .कशीॊ

शैं.मश ऩुस्तक बी इव वन्दबष भें न्माम औय स्िी

न कशीॊ ले अऩने कष्ीों ल वशी शुई मातनाओॊ को

के अन्त्वम्फन्ध ऩय प्रकाळ डारती शै – ―लतषभान

एक ननयॊ तय चरने लारी ऩयम्ऩया भान रेती शै

कानून व्मलस्था नायी को कानूनी वुयषा कभ

कक भैने वशा शै तो औय बी वशे .स्िी के

दे ता शै ,आतॊककत,बमबीत औय ऩीडडत अथधक ो़

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अऩने

एक

तुच्छ

भें

वभझती

शै .अॊतयाषष्ट्रीम

अबी औयतों को

जगाना

शोगा,ब्जवे अब्स्तत्ल

श्रभ

शजाय लऴष औय ननयॊ तय का

फोध

कुचरा कयाना

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आयम्ब ई-ऩत्रिका 2014-15 कयता शै .जफ तक फरात्काय औय ळोऴण के

तथा वभझ फनाने के लरए दव ू यी फाय ऩढ़ने को

वन्दबष भें कानून औय वभाज का दृब्ष्ीकोण

उत्वादशत कयती शै .भुझे ऐवा रगता शै कक मश

औय वऩतव ृ त्तात्भक व्मलस्था की भानलवकता

ऩुस्तक प्रत्मेक स्िी की वोच के ननभाषण भें तथा

नशीॊ फदरती तफ तक फरात्काय वे ऩीडडत ो़ नायी

उवको एक ददळा दे ने भें वशामक लवर्दध शो

स्लमॊ वभाज के कठघये भें खड़ी यशे गी.ब्स्िमाॉ

वकती शै .अऩने अब्स्तत्ल की खोज भें ननकरी

आखखय कफ तक गॉग ू ी,फशयी औय अॊधी फनी

ब्स्िमों

यशें गी.‖ब्स्िमों भें

चादशए,ब्जववे ले उव रज्जा का त्माग कयके

जागनृ त,आत्भवलश्लाव जगाने

औय अऩने अब्स्तत्ल की ऩशचान कयाने भें वललबन्न वलचायकों एलॊ रेखखकाओॊ ने अऩनी भशत्लऩण ू ष बलू भका ननबाई ब्जनभें लवभोन की मश ऩुस्तक एक फैीन के रूऩ भें काभ कयती शै .

को

मश

ऩुस्तक

अलश्म

ऩढ़नी

गलष वे कश वके ककभैं एक स्िी शूॉ.….

अनऩ ु भा शभा​ा शोधाथी ददल्री ववश्वववद्मारम

अॊत भें,कोई बी ऩुस्तकएक वलचाय के रूऩ भें ऩूणष नशीॊ शोतीककन्तु लश वलचायों के आमाभ ज़रूय

खोरती

उन‗वाभान्म‗नाियमों

शै .मश के

ऩुस्तक प्रनत

इनतशाव

शभें का

दृब्ष्ीकोण फताती शै ,जो वदा वे उऩेक्षषत शी यशी.इवीलरए इव ऩुस्तक को स्िी के इनतशाव का भशत्लऩूणष दस्तालेज़ भाना जाता शै ,जो ऩुरुऴ वभाज को एक कीघये भें खड़ा कयती शै ,उव कीघये भें जशाॉ ऩय ककवी बी प्रकाय वत्ता को खड़ा ककमा जा वकता शै .वत्ताएॉ शभेळा अऩनी ळब्क्तमों का दरु ु ऩमोग कयती शैं मा दव ू ये ळधदों भें कशें तो अऩने लरए उऩमोथगतालादी दृब्ष्ीकोण अऩनाते

शुए

अऩनी

ळब्क्तमों

का

वदऩ ु मोग

कयती शैं…अऩने लरए। मशी कीु वत्म शै …ऩुरुऴ ने अऩनी ळब्क्तका इस्तेभार कुछ इवी तयश ककमा शै .मश ऩुस्तक आऩको झकझोयती शै ..एक फाय ऩढने वे वलचायों को आॊदोलरत कयती शै arambh.co.in

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आयम्ब ई-ऩत्रिका 2014-15

नायी के भरए गततयोध

खुरकय जीने की आजादी नशीॊ दे ते औय न शी

(गचन्द्तन) (तीसया अॊक)

यास्ते की तराळ कय वकें। नायी के लरमे ऩशरा

खुरा भॊच ब्जव ऩय चरकय लश एक अरग

ऩियलाय की धुयी कशी जाने लारी नायीवब्ृ ष्ीकी वफवे वुॊदय यचना शै ऩय वफवे ज्मादा दशॊवा की लळकाय शोने लारी बी मशी शै । वभाज औय वॊस्कृनत के वलकाव भें नायी औय ऩुरुऴ दोनों की वभान बागीदायी यशी शै ककन्तु वऩतव ृ त्तात्भक वभाज ने नायी को ऩुरुऴ के वभान लश दजाष नशीॊ ददमा जो उवे लभरना चादशए मा वशी भामने

भें

ब्जवकी

लश

शहदाय

शै ।

वाभाब्जक,आथथषक,याजनीनतक रूऩ वे व्मलशाियक स्तय ऩय वषभ ऩुरुऴ शभेळा वे नायी ऩय जुकभ ढाते यशे शैं। ध्मातव्म शै कक शभेळा वे दोमभ दजे की वभझे जाने लारी नायी ऩय उवके जन्भ वे शी उत्ऩीड़न का कोशया गशयाने रगता शै ,ब्जवका ऩानी ियव – ियव कय उवके ऩूये जीलन भें वभा जाता शै ब्जववे फाशय ननकरना उनके लरमे अवान नशीॊ शोता फब्कक उवकेऩैयोंभें रगे जॊजीय की तयश काभ कयता शै । आभतौय ऩय दे खते शै की एक शी ऩियलाय भें जशाॉ रड़कों को काभ कयने की ऩूयी आजादी शोती शै लशी रड़ककमों को आजादी के लरमे वॊघऴष कयना ऩड़ता शैं औय तो औय उन ऩय कई तयश के वाभाब्जक फॊधन थोऩ ददए जाते शैं। ऩियलाियक ढ़ाचे भें यशने की आदत औय वाभाब्जक भमाषदा के फॊधन उन्शें arambh.co.in

कबी बी

उत्ऩीड़न उवके अऩने शी ऩियलाय वे ळुरू शोता शै ब्जवभें लश ऩरकय फड़ी शोती शै औय मशीॊ वे उनके ऩूये जीलन की यचना एक ननब्श्चत वीभा भें फाॊध दी जाती शै । वऩछरे वार आमे मूननवेप की

एक

ियऩोीष

के

अनुवाय15वे19वार

की

बायतीम रड़ककमों भें वे41प्रनतळत को अऩनी भाॉ मा वौतेरी भाॉ के शाथों वऩीाई मा प्रताड़ना झेरनी ऩड़ती शै जफकक केलर18प्रनतळत मश लवतभ उनके वऩता मा वौतेरे वऩता कयते शैं औय77प्रनतळत अऩने ऩनत की दशॊवा की लळकाय शै । इन ऩय मश जुकभ केलर ळायीियक स्तय ऩय शी नशीॊ थभता फब्कक भानलवक प्रताड़ना बी दे ता शै । जफ रड़ककमाॊ फड़ी शोकय घय वे वलदा शोती शै तफ बी भाॉ के कुछ ळधदों वे फधॊ जाती शै

कक

आज

वे

तुम्शायी

कामषस्थरी

औय

भयणस्थरी लवपष चौका शी शै । भाॉ के मे ळधद जरुय उन्शें अऩने वे ऩयामा शोने के बान कया जाते शै कक अफ चौका शी उनका अवर घय शै । नायी चाशे ककतना बी क्मों न ऩढ़ी शो ऩय भाॉ के मे चुननॊदे ळधद उवके कानों भें शभेळा यें गते यशते शै औय उनके लरए रक्ष्भण ये खा फन जाते शै । फशुत शी कभ नाियमाॊ इववे ऩाय ऩाती शै नशीॊ तो अथधकाॊळत् तभाभ उरझने वशते शुमे खुद को

दोऴी

शोने

के

दोऴ

वे

फचाती

अऩने

Page 56


आयम्ब ई-ऩत्रिका 2014-15 भयणस्थरी तक चुन रेती शै ।

तक उवके वलकाव भें मश फाधामें घेयती यशें गी

गौयतरफ शै कक नाियमाॊ घय औय फाशय ककवी

चाशे लश ककतना शी ऩियश्रभ क्मों न कये । आज

जगश भशपूज नशीॊ शै घय भें अगय भानलवक

नायी दे ळ के ककवी बी कोने भें अऩने को

तनाल भें जी यशी शै तो फाशय बी इववे ननजात

वुयक्षषत नशी भशवूव कय यशी शै क्मों कक चायों

नशीॊ । वड़कों,गलरमों,वन ु वान आदद वबी जगश

ओय उन्शें दफोचने के लरए बेडड़मों का वभश ू

शो

दीऩणणी

आॉख गड़ाए लळकाय के लरमे घूभ यशा शै । लश

औयभशानगयोंवभेत ऩुये दे ळ भें शो यशे फर्दवरुकी

अवशाम खड़ी आज बी न्माम की भाॊग कय यशी

की घीनामें बी उनके जीलन के वलकाव के लरमे

शै ऩयन्तु अबी तक कोई बी कानून इतना

फाधक शै । उकरेखनीम शै कक इतना शोने के

प्रबालळारी नशीॊ वात्रफत शुआ जो उन्शें खुरे

फालजद ू बी नाियमों को जफ बी भौका लभरा शै

आवभान भें वाॉव रेने की आजादी दे वके।

ऩुरुऴों वे कतई ऩीछे नशीॊ यशी शै उनके शय ये व

भवरन शभ नायी को खुरे आवभान दे ने की

भें फयाफयी का ओशदा शालवर की शै । अबी शार

फात तो कयते शै ऩय उन्शें उड़ने दे ने के लरमे

शी भें

गमे

ऩॊख नशीॊ दे ना चाशते ताकक लश लास्तवलकता की

एलळमा ऩौलवकपक यीजन की ऩालयपुर भदशरओॊ

भाऩ न कय वके। जफ तक उन्शें लास्तवलकता

की वथू च भें कॉऩोये ी लकडष भें आईवीआईवीआई

वे दयू यखें गे तफ तक लश वलकाव भें अग्रणीम

फैंक की चीप इॊग्जेक्मुदील चॊदा कोचय बायत की

नशीॊ शो वकेंगी । जरुयत शै उन्शें खुरे भॊच की

वफवे ऩालयपुर भदशरा के रूऩ भें चुना जाना।

ताकक ऩुरुऴों वे कन्धा वे कन्धा लभरकय वके

औय बी ऐवे तभाभ षेि शै जशाॉ नाियमों ने

औय अऩनी भॊब्जरे अवान कय वके। क्मोंककमश

अऩने नाभ का रोशा भनलामा शै । ऩय मश बी

वच शै कक नायी के लळषा भें शी ऩुये ऩियलाय की

वच शै कक ऩुरुऴों के अनैनतक कृत्मों ने उन्शें

लळषा,उवके बराई भें शी ऩुये ऩियलाय की बराई

ऩूयी तयश वे दशरा ददमा शै उन्शें पूॊक पूॊक कय

तथा उवके स्लतॊिता भें शी ऩुये वभाज की

कदभ यखने के लरमे वललळ कय ददमा शै उनके

स्लतॊिता वभादशत शै ।

यशे

उन

ऩय

बर्ददी

बर्ददी

पाच्मून ष भैंगजीन र्दलाया कयामे

जीलन भें फॊददळ की जॊजीये रगा ददमा शै । नायी

अलबऴेक कुभाय मादल

वलकाव तो कयना चाशती शै ,रम्फी छराॊग तो रगाना चाशती शै ऩय आमे ददनों उन ऩय शो यशे अत्माचायों ने उनके जीलन भें गनतयोध ऩैदा कय दी शै । शभ कश वकते शै ककवी बी प्राणी की जफ तक स्लतॊिता वुननब्श्चत नशीॊ की जाती तफ arambh.co.in

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आयम्ब ई-ऩत्रिका 2014-15

सादहत्म से ऑनराइन सादहत्म तक

(गचन्द्तन) (चौथा अॊक) साहहत्य समाज का दर्पण होता है। साहहत्य की र्रम्र्रा में यह वाक्य शीषप र्र है और प्रासा​ांहगक भी। साहहत्य र्ारम्र्ररक है र्र रूढ़ नहीं जीवांत है क्योंहक यह समाज र्ररप्रेक्ष्य है, उसका रूर्, कलेवर, हवन्यास समाज के साथ, समाज के अनक ु ू ल और समाज के हलए बनता है, बदलता है। आज समाज का रूर् र्ररवहतपत हो गया है, आज का समाज सोशल मीहिया से झलकता है, समाज की सोच कभी फे सबक ु से तो कभी ट्वीटर से प्रहतहबहम्बत होती है। ऐसा नहीं है हक सोशल मीहिया के इतर समाज नहीं है या कोई ओर सोच नहीं है। लेहकन, आज के सदां भप में समाज का आइना सोशल मीहिया ही बनता नजर आ रहा है। अब बात करें हक क्या समाज का दर्पण कहलाने वाला साहहत्य सोशल मीहिया से इत्तेफाक रखता है हक नहीं? तो दोस्तों यह बात स्वीकार करनी र्ड़ेगी हक हा​ाँ साहहत्य सोशल मीहिया के अनरू ु र् ढला है। फे सबक ु , ट्वीटर जैसी सोशल साइटें लेखकों के हलए अहभव्यहि का एक ज़ररया बन गई हैं। आज तमाम लेखन कायप सोशल मीहिया र्र हकए जा रहे हैं। चाहे वो र्त्रकाररता हो, ब्लॉग लेखन हो, फे सबक ु र्र कहवताओ ां की, हवचारों की, गजलों की प्रस्तुहत हो, या हफर अन्य ज्ञानात्मक, तकनीकी या वैज्ञाहनक साहहत्य हो सोशल मीहिया हकसी से अछूता नहीं है। इतना ही नहीं वतपमान लेखन कायप तो सोशल मीहिया र्र हो ही रहा है साथ ही– साथ र्रु ातन साहहत्य को हफर वो चांदबरदाई से लेकर धमपवीर भारती तक का साहहत्य ही क्यों न हो उसे भी सोशल मीहिया र्र सांजोने का प्रयास जारी है। आज गगू ल की नजरों से कोई भी साहहत्य या साहहत्यकार छुर्ा नहीं है। हफर वो चाहे भारतीय साहहत्य हो या र्हिमी साहहत्य हो। आज हर लेखक का फे सबक ु र्र अर्ना एक र्ेज हदखाई देता हो हफर वो लेखक मांजा हुआ हो या हफर arambh.co.in

हवकासकाल में हो। सोशल मीहिया की वजह से आज साहहत्य का हवस्तार हो रहा है, साहहत्य की र्हुचां करोड़ों लोगों तक जा र्हुचां ी है। इससे न हसफप साहहत्य बहकक भाषा का भी खासकर कहें तो हहदां ी भाषा का प्रचलन बढ़ा है, लोगों में हहदां ी के प्रहत आत्मीयता बढ़ी है, लगाव बढ़ा है। साहहत्य का सोशल मीहिया र्र आगमन होना लोगों में प्रेरणा का स्रोत बना है। चाहे हम फे सबक ु र्र देखें या ट्वीटर र्र यह स्र्ष्ट रूर् से हदखता है हक लोगों में हलखने की प्रवृहत्त का हवकास हुआ है। फे सबक ु आज न जानें हकतने लोगों की प्रहतभा को उजागर कर रहा है। बेहझझक और आत्महवश्वास के साथ लोग इस वचपवु ल दहु नया में अर्नी सोच को, अर्नी ककर्ना को प्रकट कर रहे हैं। ई–लेखन आज की आवश्यकता भी और आज का प्रचलन भी। यह तो था सोशल मीहिया और साहहत्य के जड़ु ाव का सकारात्मक र्हलु र्र इसका एक नकारात्मक र्हलु भी हमारे समक्ष उभरता है। वो यह है हक आज भी कई ऐसे लोग हैं हजनकी र्हुचां सोशल मीहिया तक नहीं हैं, वे ऑनलाइन अहभव्यहि की तकनीक नहीं जानते। ऐसे में होता यह है हक वे लोग अर्नी लेखन प्रहतभा को अहभव्यि करने में समथप नहीं हो र्ाते, उनके द्वारा हलखा साहहत्य बस उन तक या कुछ लोगों तक सीहमत रह जाता है और इस तरह कई प्रहतभाएां दबी रह जाती हैं। इसहलए कई बार ऑनलाइन लेखन आलोचना से भी वहां छत नहीं हैं। जनाब नजररया ही तो है। नजररया ही कभी आम तो कभी खास होता है, नजररया ही कभी र्ानी तो कभी आब होता है। अब देहखए न सोशल मीहिया और साहहत्य का जड़ु ाव इतना गहरा है हक मेरे द्वारा हलखा यह लेख आर् ऑनलाइन र्ढ़ रहे हैं और जाहहर तौर र्र इसके प्रहत प्रहतहिया जाहहर करने के हलए भी आर् भी ऑनलाइन का ही सहारा लेंगे। कलम की ताकत अब के वल कागजी र्न्नों तक ही नहीं बहकक सोशल र्ेजों र्र भी नजर आ रही है। साहेब यही तो हवकास का सच्चा अथप। यह न के वल बौहिक हवकास है बहकक तकनीकी भी है। कहा जाता है हक साहहत्य मनष्ु य की हचत्तवृहत्त का प्रहतहबबां होता है तो इस र्ररप्रेक्ष्य में सोशल मीहिया तक साहहत्य की र्हुचां ने यह बात Page 58


आयम्ब ई-ऩत्रिका 2014-15 र्णू तप : हसि कर हदया है हक हा​ाँ साहहत्य मनष्ु य की हचत्तवृहत्त का ही प्रहतहबम्ब है।

फदरते सॊफॊध औय सोशर भीडडमा

अन्द्नु भभश्रा

(गचन्द्तन) (चौथा अॊक) आधुननक दौय अऩनी अब्स्भता की ऩशचान का दौय शै । आज के व्मब्क्त को अऩने भुकाभ ऩय

ऩशुॉचने के लरए शय लो काभ कयता शै ब्जववे ळामद उवके वाथ वभाज के वॊफॊधों भें खीाव

आ जाए । आज व्मब्क्त अऩनी भॊब्जर को ऩाने के लरए शय उव व्मब्क्त को बूर जाना चशता शै जो उववे फाशयी औय बीतयी रूऩ वे जुडें शोते शै

। ब्जववे उनके वॊफॊधों भें दिू यमाॊ आ जाती शै ।

इव चीज भें ब्जतना शभ उवके व्मस्त शोने को ब्जम्भेदाय ठशया वकते शै ,उतना शी आज के

वभम शभ वोळर भीडडमा को ब्जम्भेदाय ठशया वकते शै ।

वोळर भीडडमा वभाज वे जुडा शै व्मब्क्त वे जुडा

शै

जो

व्मब्क्त

को

वलश्ल

की

याजनीनतक ,वाभाब्जक जानकायी के वाथ –वाथ

उवे वाॊस्कृनतक –आथथषक जानकायी बी दे ता शै । ब्जववे व्मब्क्त अऩने सान का वलकाव कय ऩाता

शै अथाषत वोळर भीडडमा जशाॉ एक भनोयजन का वाधन शै वाथ शी लश फौर्दथधक वलकाव का बी भाध्मभ शै । जशाॉ एक ओय वोळर भीडडमा का

वकायात्भक प्रबाल शै तो दव ू यी ओय वोळर भीडडमा का नाकायात्भक प्रबाल बी शभें दे खने को लभरता शै जो व्मब्क्त को अऩने वॊफॊधों वे

दयू कयता शै ,ऩशरे व्मब्क्त कपय लश भदशरा शो

मा ऩुरूऴ अऩने ऩियलाय वे कयीफी रूऩ वे जुड़ा यशता था , एक शी वफ ु श की चाम ऩीना , ळाभ को arambh.co.in

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आयम्ब ई-ऩत्रिका 2014-15 जफ वबी अऩने काभ वे रौी कय आते थे तो

ऩाियलाियक वॊफॊधों की डोय ीूीती जा यशी ह्ऐ

वाथ बोजन आदद कयना शोता था जो शभें शभाये

त्रफखय यशे शै ब्जवका एक भाि कायण शै कक

एक वाथ कशी घुभने जाना औय यात को एक ऩियलाय वे औय गशयाई वे जोड़ने का काभ

कयता था ऩय आज का वभम थोड़ा फदर गमा शै आज व्मब्क्त अऩनी वोळर नेी लककिंग की

दनु नमा भें इव कदय वे जुड़ गमा ह्ऐ कक उवे

औय ऩियलाय के वदस्म के आऩवी वॊफॊध ीुीकय

वोळर भीडडमा वॊफॊधों की घननष्ठता को फदरने भें अशभ बलू भका ननबाई शै

रभरता जोशी

अऩने वॊफॊधों का ध्मान तक नशी यशता , आज

शभाया भोफाइर की दनु नमा इतना गशया वॊफॊध शो गमा शै कक ब्जवके ना यशने ऩय शभ भानों

दनु नमा वे की वे गमे शो , इव भोफाइर नाभक मॊि ने शभाये भन–भब्स्तष्क भे एक ऐवी जगश

फना री शै कक शभ अऩने ऩियलाय अऩने वॊफॊधों

को बूर कय उवी के नळे भे चुय यशते शै । आज

उवकी

दनू नमा

पेवफुक ,ट्वलीय ,जीप्कव, शाईक , ली चेी तक शी वीलभत यश गमी शै जशाॉ लश अऩने कयीफी ियश्तों को छोड़कय दयू के ियश्तों भें घननष्ठता राने का

प्रमाव कयते शै ब्जववे लैमब्क्तक ल वाभाब्जक

वॊफॊध ीूीते जा यशे शै औय मे वॊफॊध वोळर भीडडमा तक वीलभत शोते जा यशे शै ।

इव वोळर भीडडमा नेीलककिंग वाइट्व ने केलर

व्मब्क्त के वाभाब्जक रूऩ ऩय शी प्रबाल नशी डारा फब्कक उवे लैमब्क्तक रुऩ वे बी प्रबावलत

ककमा शै । ब्जववे लश भानलवक रूऩ वे फीभाय शो यशा शै । आज वोळर भीडडमा वे जशाॉ दे ळ वाभाब्जक रूऩ वे वलकाव कय यशा शै ,लशी लश दे ळ के रोगो को लैमब्क्तक बी फना यशा शै ।

वोळर भीडडमा ने जशाॉ वॊचाय का वलस्ताय ककमा शै लशी वयर तयीके वे रोगों दे ळ –वलदे ळ की

वूचना रोगो तक ऩशूॉचामी शै , वाथ श ई इवकी फढती वुवलधा ल वाइट्व के वाथ व्मब्क्त भोफाइरी

दनु नमा

arambh.co.in

तक

यश

गमा

ब्जवभें

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आयम्ब ई-ऩत्रिका 2014-15

वैददक कार ववषमक

प्राकृत–ऩाठ एलॊ वलकृनत–ऩाठ दो बागों भें फाॉीा गमा था। प्रकृनत–ऩाठ भें भॊिों को जैवे भॊि

अवधायणा

शै , उवी

वभाज

लेदों

को

माद

ककमा

जाता

था

तथा

वलकृनतऩाठ भें उवे तोड़–पोड़ कय मानन ऩदों को

(गचन्द्तन) (चौथा अॊक) दशन्द ु

प्रकाय

अऩौरुऴेम

भानता

शै , क्मोंकक इन्शें वब्ृ ष्ी के आदद की यचना फतामा

जाता शै , ऩयन्तु ननब्श्चत रूऩ वे मश दब ु ाषग्म शी

कशना शोगा कक शभाया लेदों वे ऩियचम ज्मादा

आगे ऩीछे वे दोशयाते शुए लबन्न–लबन्न प्रकाय वे माद ककमा जाता था। माद कयने के इन उऩामों को 13 बागों भें फाॉीा गमा था–

1. वॊदशता–ऩाठ 2. ऩद–ऩाठ 3. िभ–ऩाठ 4. जीा– ऩाठ 5. ऩुष्ऩभारा–ऩाठ 6. िभ

ऩुयाना न शोकय रगबग 200 लऴष ऩशरे का शी शै ।

ऩाठ 7. लळखा–ऩाठ 8. यखा–ऩाठ 9. दॊ ड–

मश बी अॊग्रेजों के बायत आगभन के वभम वे

शी शुआ शै । इववे ऩशरे लेदों के वलऴम भें नाभ भाि शी जानते थे तथा वॊस्कृत के शय ग्रन्थ को शी लेद वभझने रग गए थे, ब्जवके कायण

बाऴा–

ऩाठ 10.यठ–ऩाठ 11. ध्लज–ऩाठ 12. घन– ऩाठ 13. त्रि–ऩद ऩाठ।

इव प्रकाय इन वफ ऩर्दधनतमों को ध्मान भें

ऩुयाणों तथा स्भनृ त ग्रन्थों को बी लेद कशा जाने

यखते शुए शी लेदों के कार ननधाषयण ऩय चचाष ळुरु की गई तथा तफ वे अफ तक कोई बी

मर्दमवऩ दक्षषण भें अनेक ऐवे घयाने यशे शैं, जशाॉ

वलऴम ऩय अनेक ऩाश्चात्म वलर्दलानों ने बी

रगा था। लैददक

भॊिों

को

माद

ककमा

जाता।

ऩयन्तु

प्रभाखणकता वे ऩता नशीॊ चरता कक मे ग्रन्थ शभ तक कैवे ऩशुॉचे शैं। गरु ु लळष्म की ऩठन– ऩाठन की प्रकिमान्तगषत इन भॊिों को ऩीढ़ी दय

ऩीढ़ी वॊजोमा जाता यशा तथा मश प्रकिमा ब्जन रोगों के भाध्मभ वे चरी आई, ले केलर लेद के ळधद को शी जानते थे, अथष वे उनका ऩियचम नशीॊ यशा था।

ऩयन्तु इतने वे बी उन रोगों की भदशभा कभ नशीॊ कशी जा वकती कक उन्शोंने लेद को उव

वभम भें वुयक्षषत यखा जफ प्रकालळत कयने के

वाधन बी नशीॊ थे। लेद भॊि को स्भयण यखने तथा उनभें ककवी बी प्रकाय की भािा का शे य पेय न शो इवलरए इवे 13 प्रकाय वे माद ककमा

जाता था तथा माद कयने के इव उऩाम को arambh.co.in

इवका वभम ननधाषयण नशीॊ कय ऩामा। इव अऩने भत ददए तथा लभथक आधायों ऩय शी कार

ननधाषयण

भैक्वभूरय

तथा

कार 1400ई.ऩू.

को

ननब्श्चत

भैकडॉ

रन

ककमा। ने

मथा–

लेदों

का

(फी.वी.) कशा, जैकोफी

ने 1500 ई.ऩू. भाना। ज्मोनतऴळास्ि के आधाय ऩय फार

गॊगाधय

नतरक

ने

आदद

वलर्दलानों

भें 6000 ई.ऩू. तक इवके वभम को भाना शै । लैददक रोगों का भत शै कक मे अनादद कार वे

चरे आ यशे शैं। इव प्रकाय स्ऩष्ीतमा प्रभाण

नशीॊ लभरते। ऩयन्तु भैं बी लेद वलऴम की छािा

यशी शूॉ, इव वलऴम भें भेया मश भानना शै कक उऩमुक् ष त कार ननधाषयण वलऴमक धायणाएॉ ननब्श्चत शी वशी नशीॊ शै । इन ग्रन्थों की

ळधदालरी तथा वललळष्ीता के आधाय ऩय इनका वभम औय बी ऩीछे जान ऩड़ता शै ।

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आयम्ब ई-ऩत्रिका 2014-15 भैक्वभूरय तथा भैक्डाॅॎनर ने लेदों का कार

का बी वशाया लरमा शै , ब्जनका लणषन ऋग्लेदों भें

शै । तथा फौर्दध धभष 500 मा 600 ई.ऩू. बायत भें

दे वदहततॊ, जुगुमु् फादशस्म ऋतुभ ्। नय् न प्र

ननधाषयण कयने शे तु फौर्दधधभष का वशाया ददमा प्रचाियत शुआ। फौध धभष वे ऩशरे लेदों का कार ननधाषयण भाना गमा शै क्मोंकक लशाॉ ऩय लेदों के वलऴम भें उकरेख लभरता शै । लेद तथा फौर्दध

अनेक स्थरों ऩय लभरता शै मथा–

भभनजन्द्त सते सॊवत्सये

प्राववृ ष आगतामाभ ्। तप्ता् धभा​ा् अश्नुवते ववसगान ् ।

ग्रन्थों के फीच का वभम ब्राह्भण वादशत्म तथा

मशाॉ ऩय वॊलत्वय की गणना भें लऴाष ऋतु के

वभम

प्रथभ

उऩननऴदों का यशा शै। इवलरए इव फीच के को

भैक्डाॅॎरन

रगबग 600 ई. का

ने

लेदों

का

भानते

कार

शुए ननधाषयण

ऩशरे 1200 ई. ऩूलष तथा फाद भें 1400 ई.ऩ.ू भाना शै

ऩयन्तु इव फात वे मश फात लवर्दध तो नशीॊ

शोती कक लेदों का कार इववे ऩूलष नशीॊ यशा शोगा।

भैक्वभूरय तथा भैक्डाॅॎनर ने लेदों के कार

ननधाषयण का दव ू या कायण ईयानी तथा बायतीमों का आऩव भें एक वाथ यशने के फाद ळिु फन

जाना बी उवके कार के वाथ वाम्मता फैठाने का

शै ।

ऩायलवमों

को

धभष

ऩुस्तक

ब्जन्दालेस्ता 700 मा 900 ई.ऩू. की शै तथा मे दोनों

धभष ककवी वभम एक शी भाने जाते थे तथा

इनकी बाऴा बी उव वभम एक शी थी। इवके आधाय ऩय इनकी ळित ु ा फढ़ने के कार का

ननधाषयण कय लरमा गमा कक लश वभम कभ वे

कभ 500 वे 600 ई.ऩू. यशा शोगा। इव आधाय ऩय

आनेऩय, उवके िभ के प्रायम्ब भें लऴाष ऋतु को स्थान

ऩय

भाना

शै ।

जैकोफी

के

अनुवाय, ऋग्लेद के वभम ऋतुओॊ की ब्स्थनत ऐवी यशी शोगी, ब्जववे कक लऴाष ऋतु का लऴष–

गणना भें प्रथभ स्थान ऩय था। इवी कायण

ळामद वन ् को लऴष बी कशा जाता शै । इव आधाय ऩय लऴाष ऋतु को 1500 ई.ऩू. भाना शै , जफ

ऋतुओॊ का प्रायम्ब लऴाष ऋतु वे शोता था।

ऩयन्तु जैकोफी के इव भत भैक्डाॅॎनर ने बी वॊदेश जतामा शै ।

नतरक ने ऋग्लेद का कार 7000 लऴष ऩू. भाना शै ।

उन्शोंने लेदों के कार ननधाषयण ज्मोनतऴ वलर्दमा के आधाय ऩय ककमा शै औय कशा शै कक लेदों के वभम भें ददन–यात भग ृ लळया नषि भें शोते थे, ब्जवका प्रभाण ऋग्लेद के भॊि को भाना शै –

सम ू ा​ामा वहत्ु प्रागात ् सववता मभ ् अवासज ृ त ्। अघासु हन्द्मन्द्ते आव् अजन्द् ुा मो ऩरय उह्मते।।

रगबग 1400 ई.ऩ.ू तक ऩशुॉच जाते शैं कक मश

अथाषत ् वूम–ष ऩुिी वूमाष का वललाश शुआ, ब्जवे ववलता अथाषत ् वूमष ने ककमा। अघा नषि भें

जैकोफी का भत बी भैक्वभूरय तथा भैक्डाॅॎनर

शो जाते शैं औय यात्रिमाॉ कदठनाई वे त्रफतती शैं।

कार लेदों का कार वशन शै ।

के कार ननधाषयण के इदष–थगदष घभ ु ता शै , उनका भानना शै कक ईयानी तथा आमों की एक दव ू ये

वे ळिुता ई.ऩू. 1500 लऴष ऩशरे शुई थी। इवी आधाय ऩय 1500 ई.ऩू. लेदों का कार शो वकता शै । जैकोफी ने कार ननधाषयण के लरए ऋतओ ु ॊ arambh.co.in

वूमष की ककयणों भायी जाती शैं अथाषत ् ददन छोीे

इव ऋचा वे ऩता चरता शै कक यात्रिमाॊ रम्फी

तथा ददन छोीे शो जाते शैं अघा नषि भें। रोकभान्म

नतरक

ने

कार

ननधाषयण

शे तु

भागषळीऴष को प्रभुख स्थान ददमा शै । तथा मशाॊ ऩय ननदे लळत अघा शी भघा मा भागषळीऴष शै । Page 62


आयम्ब ई-ऩत्रिका 2014-15 वामण वलरवन आदद ने बी अघा को भघा

कुछ ऩता नशीॊ चरता कक ले ककतने प्राचीन शै ।

शभाये 27 नषिों (अब्श्लनी), बयणी, कृवत्तका, योदशणी,

कक वलश्ल का वफवे प्राचीनतभ ग्रन्थ ऋग्लेद शी

नषि

भाना

शै , जो

कक

भग ष ,ु ऩुष्ऩ, आश्रेऴा, भघा, ऩूलाष, ृ लळया, आद्र्या, नुलव

उत्तया, शस्त, थचिा, स्लानत

वलळाखा,अनयु ाधा, ज्मेष्ठ, भर ू ा, ऩूलाषऴाख, उत्तयऴाढ़ा, उत्तयाऴाढ़ा, श्रलणा, घननष्ठा, यातलबऴा, ऩूलब ष ाि, उत्त

यबाि, तथा ये लती) भें वे एक शै । मदद भघा

नषि वे कार लरमा जाए तो ऋग्लेद का कार 11000-12000 ई.ऩू. जान

ऩड़ता

शै , क्मोंकक

ईवा वन ् के आव–ऩाव उत्तयाबािऩद नषि वे

भघा नषि का11लाॉ मा 12लाॉ स्थान शै तथा एक नषि

को

दव ू ये

नषि

भें

प्रलेळ

कयने

के

लरए 960 मा 1000 लऴष रग जाते शैं। अत् 11लें

मा 12लें नषि तक ऩशुॉचने भें 11 वे 12000 लऴष रग गए शोंगे।

डॉ . अवलनाळ चन्ि ने ‗ऋग्लैददक इब्णडमा‘ भें ऋग्लेद लवर्दध

के

कार

ककमा

का 25,000-50,000 लऴष

शै ।

मश

जशाॉ

तथ्म

ऩूलष

उन्शोंने

बूगबषळास्ि;ऱभलवलशरर्दध के आधाय ऩय भाना शै ।

उनके

अनुवाय

को

ऋग्लेद

भें

अबी

दशभारम

शै , लशाॉ 50,000 वाथ ऩशरे वभुि था तथा इवी दृब्ष्ीकोण

अऩय

जो

को 50,000 ई.ऩू. भाना शै ।

वभि ु

कशा

ऋग्लैददक

शै ।

इव

भैक्वभूरय ने बी अन्तत् मश स्लीकाय ककमा शै

शै । वामण ने अऩने बाष्म बूलभका भें लरखा शै – “After the latest researches into the history and chronology of the books of old Teatment, we may how safely call the Rigveda the oldest book, not only of Aryan humanity, but of the whole world.” लस्तुत् उऩमक् ुष त वभस्त

वलललयण वे मश तो सात शोता शै कक वबी वलर्दलानों ने ननधाषयण का बयवक प्रमाव ककमा शै

तथा अऩने कार वलऴमक अलधायणाओॊ को ऩुष्ी कयने के लरए बी मथावॊबल प्रभाण ददमे शैं

तथावऩ उनभें इतनी अथधक लबन्नता शै कक ब्जववे ले वफ लभथक अथाषत ् लभथ्मा शी प्रतीत

शोते शैं तथा लैददककार वलऴमक इन वलर्दलानों के लभथक के स्थान ऩय लैददक ऋवऴ की लाणी भें

लैददक

लाङ्भम

को

ननत्म

भानना शी उथचत प्रतीत शोता शै ।

एलॊ

अनादद

इॊद ु सोनी

अभसस्टें ट प्रोपेसय

दौरत याभ कारेज दद. वव.वव.

कार

अत् कार की जो लबन्नता इन वलर्दलानों के भत भें ऩाई जाती शै , लश ककवी अन्म ग्रन्थ के भत भें नशीॊ ऩाई जाती शै । इवी कायण अगय

इन्शें ‗अनादद‘ कश ददमा जाए तो कोई आऩवत्त नशीॊ शोनी चादशए क्मोंकक अनादद का अथष शी शै

कक ब्जवका कार ननब्श्चत रूऩ वे नशीॊ कशा जा वके। वॊवाय के वफ धभष ग्रन्थों भें लेद शी एकभाि ऐवा ग्रन्थ शै ब्जवके कार वलऴम भें arambh.co.in

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आयम्ब ई-ऩत्रिका 2014-15

दहॊदी का ‘ई’ सादहत्म (गचन्द्तन) (चौथा अॊक)

वततमान युग ‘ई’ युग है । दनु नया में चारों ओर इस ई ई की धूम मची है । ई–बैंनकिं ग, ई–शोन िंग ई–मनी, ई–गवनेंस और न जाने क्या क्या । तकनीक के यगु में सब ‘ई’ मय हो गया है । ऐसे में इस ‘ई’ का प्रभाव सानहत्य के क्षेत्र र न ड़े ऐसा कै से हो सकता था । गूगल ने नजस नदन से इन्टरनेट र नहिंदी की टाइन िंग की व्यवस्था की और यूननकोड जैसे सॉफ्टवेयर नहिंदी के नलए बने उस नदन से ही लेखकों और कनवयों की टोली अ ना सामान बािंधकर इन्टरनेट र हचुँ गयी । सानहत्य में ‘ई’ जुड़ा तो यह ई–सानहत्य बन गया और इसे नलखने वाला ई–सानहत्यकार या ई–लेखक कहलाने लगा ।एक समय था जब सानहत्य नशला लेखों (रोड कनव कृत राऊलवेल) र नलखा जाता था । उसके श्चात् वृक्ष के त्तो, ताम्र– त्रों एविं काग़जों र नलखा जाने लगा । नवजागरण काल में मद्रु ण यिंत्रो के अनवष्कार के बाद सानहत्य जगत में एक क्ािंनत सी आ गई मद्रु ण यिंत्रों ने त्र– नत्रकाओिं ुस्तकों आनद के द्वारा नहिंदी सानहत्य को एक नए आयाम तक हचुँ ाया । आज वततमान में नहिंदी सानहत्य की हचुँ इन्टरनेट तक हचुँ गयी है । आज नहिंदी सानहत्य कई प्रकार की वेब साइट् स, ब्लॉग, ई– नत्रका, इत्यानद र नलखा जाने लगा है ।आज इन्टरनेट र नलखना एक ट्रेंड के रू में सामने आने लगा है । ई–लेखन की और लेखक व कनवयों का ध्यान नवशेष रू से आकनषतत होने लगा है । बहत से प्रनसद्ध लेखक व कनव ई–लेखन से जड़ु ने लगे है । इसका करण यह भी हो सकता है नक रचनाएिं प्रकानशत करवाने में बात प्रकाशकों की मनमानी की हो या लेखकों को दी जाने वाली रॉयल्टी में आनाकानी करने की, इसका खानमयाजा सदैव लेखकों को ही उठाना ड़ता है । कभी– कभी लेखकों को अ नी रचनाओिं को प्रकानशत करवाने के नलए ैसों का खेल भी खेलना ड़ता है । लेखकों की मजबूरी का फायदा उठाना यह कुछ प्रकाशक अच्छी तरह से जानते है । इनको लेखकों की अनभव्यनि से या लेखन की गण ु वत्ता से कोई सरोकार नहीं होता । यहाुँ तो के वल सानहत्य के नाम र व्या ार ही होता है । इन सब arambh.co.in

मकड़जाल से दूर अ नी स्वच्छ एविं स्वतिंत्र अनभव्यनि का माध्यम ही ई–सानहत्य है ।नजन लोगों को अनभव्यनि के इस नए मिंच की वैनिक शनि का अिंदाजा है वे तेजी से इिंटरनेट र अ ने स्थान बना रहे हैं । नहिंदी की इिंटरनेटीय दनु नया से थोड़ी बहत जानकारी रखने वाले लोग बहत जल्द ही इस ई–सानहत्य के जानकार घोनषत कर नदए गए । आज से 15 वषत ूवत ई–सानहत्य की कल् ना करना मजाक लगती । ई–सानहत्य नई ीढ़ी का सानहत्य है । वह नकताबी कल्चर में नहीं, बनल्क सायबर कल्चर में जीता है । थोडा सानहनत्यक शब्दों में इस बात को स् ष्ट नकया जाये हो वह यह होगी नक – नकताबी सानहत्य उस सगण ु रम ब्रह्म के सामान है नजसे साक्षात् रू से देखा, छुआ और महसूस नकया जा सकता है और ई–सानहत्य उस ननगतण ु रम ब्रह्म के सामान है नजसे तभी देखा और महसस ू नकया जा सकता है जब आ के ास इन्टरनेट (गरु ु ) हो । गरु ु रू ी इन्टरनेट के अभाव में ई–सानहत्य न जाने कहा उस अलौनकक सवतर में लीन रहता है ।ई–सानहत्य नकताबों से बाहर की दनु नया है । जहाुँ लेखक कभी अ ना लेख–कनवता या कहानी इत्यानद नलखने के बाद महीनों समाचार त्र– नत्रकाओिं या प्रकाशकों के चक्कर लगाया करते थे या उनसे प्रकानशत करवाने के नलए त्र सिंवाद नकया करते थे तब जाकर उनकी रचना प्रकानशत होती थी । और एक लम्बे अन्तराल के बाद उसे ाठकों की प्रनतनक्या नमल ाती थी, वही आज का ई–लेखक इन्टरनेट के जररए अ नी नलखी गयी रचना को फे सबुक,ट् नवटर,ब्लॉग इत्यानद के माध्यम से इन्टरनेट र डाल देता है और कुछ ही लों में उसके ास ाठकों व आलोचकों की नटप् नणयों के ढेर लगे नमलते है । उसकी रचनाओिं र चिंद लों में ही ाठकों की प्रनतनक्याएुँ आनी शरू ु हो जाती है । एक समय में जो लेखकों को जो समय एविं धन की बबातदी साथ ही जो माननसक व्यायाम करना ड़ता था । वह उसे अब इतनी नहीं उठाना ड़ता ।न जाने नकतने कष्ट भारतेंद,ु प्रेमचिंद, प्रसाद, ननराला आनद जैसे लेखकों ने अ नी रचनाओिं को प्रकानशत कराने के नलए झेलें होंगे तब जाकर वह अ ने भावों को आम जन तक हचिं ा ाए । वही ई–लेखक आज अ नी रचनायें इन्टरनेट र अ लोड कर वैनिक धरातल र प्रसाररत करने में व्यस्त रहता है । आज स्ु तकों का स्थान ई– ुस्तकों (e book) ने ले नलया है तथा त्र– नत्रकाओिं का स्थान ई– Page 64


आयम्ब ई-ऩत्रिका 2014-15 नत्रकाओिं (e magazine) ने । नजन्हें क्मशः isbn तथा issn भी उ लब्ध होने लगे है । इन्टरनेट र उ लब्ध ई– नत्रकाएिं अ नी गण ु वत्ता (Quality) से जीनवत रहती हैं जबनक मनु द्रत नत्रकाएिं अ नी बाज़ारवाद की नीनतयों से । ई– नत्रकायें मफ्ु त में ढ़ी जा सकती है । इनके नलए कोई शल्ु क देना नहीं होता ।नहिंदी सानहत्य को वैनिक स्तर र स्थान त करने का काम ई–सानहत्य कर रहा है । देश में नहीं नवदेशों में भी नहिंदी सानहत्य के ाठकों की सिंख्या में काफी इज़ाफा हआ है । ई–सानहत्य ने एक बहत बड़े ाठक वगत को अ नी और आकनषतत नकया है । आज ाठक का सानहत्य के प्रनत दृनष्टकोण में बदलाव आ रहा है । आज नकताबी सानहत्य की भािंनत ई–सानहत्य भी ाठक के जीवन का नहस्सा बनने लगा है । ई –सानहत्य से आम लोगो में एक बार नफर सानहत्य के प्रनत सिंवेदना जगी है । एक बार नफर ठनीयता लौट रही है । एक समय था जब लोग स्ु तकों को खरीद कर ढ़ा करते थे और उन ुस्तकों को स्ु तकालय रू में घर र ही सिंग्रह करते थे । नकन्तु आज नस्थनत बहत नभन्न है, आज जीवन में अनेकों व्यस्तताओिं के बीच भले ही कोई आम व्यनि ुस्तक खरीदे या ुस्तकालय में जाकर ुस्तक ढ़े नकन्तु इन्टरनेट के नलए वो समय ननकाल ही लेता है और वह यहाुँ र अ नी सिंद का र सानहत्य ढ़ सकता है ।नकताबी सानहत्य भी आज ई–सानहत्य का रू लेने लगा है । प्रेमचिंद. प्रसाद, तिं , महादेवी इत्यानद सानहत्यकारों की रचनायें इन्टरनेट र ढ़ी जा सकती हैं । आनदकाल से लेकर आधनु नक काल तक का सानहत्य आज ई–सामग्री (econtent) के रू में इन्टरनेट र उ लब्ध है । ाठक नकसी भी सानहत्यकार की रचनाओिं को कही भी ढ़ सकता है । यहाुँ एक नक्लक र सानहत्य उ लब्ध है ।ई–सानहत्य लेखन में नवषय की नचिंता नहीं की जाती । नकताबी लेखक जहाुँ यह बात अक्सर करता आया है की उसे नलखने के नलए उनचत प्लाट (नवषय) नहीं नमलता । वह इसी उधेड़– बुन में लगा रहता है की वह नकस नवषय को आनधकानधक आत्मसात कर अनभव्यि कर ायेगा । वही ई–लेखक तो एक ही प्लाट अथातत् नवषय र बुरी तरह से टूट ड़ते है, कोई एक नवषय नमला नहीं के नलखने वालो की ूरी टोली उस नवषय र इतना नलख डालती है की अगले कई वषों तक उस नवषय र न नलखा जाये तो भी चलेगा । arambh.co.in

वस्ततु ः ई–लेखक नलख तो रहा है लेनकन वह अल् कानलक है । आज है, कल नहीं है । अभी नकसी ने कनवता की चार िंनियाुँ ब्लॉग र अ लोड की । थोड़ी देर में लेखक का मन बदल गया और रचना नडलीट कर दी । मनु द्रत सानहत्य के स्थानयत्व का स्थान ई सानहत्य में अस्थायी है ।कई आलोचकों ने नहिंदी के ई–सानहत्य लेखन को ‘महु फ िं ट सानहत्य’, ‘भड़ास का सानहत्य’, ‘गस्ु से का सानहत्य’ तक कहा है । इसमें अमयातनदत भाषा का उ योग अनधक होता है । वह ई–सानहत्य को सानहत्य श्रेणी का मानते ही नहीं । वह मनु द्रत (नकताबी) सानहत्य के समक्ष इसकी भत्सतना खल ु कर करते हए इसे दोयम दजे का सानहत्य तक कहते है । हमें यह बात स्वीकार करनी होगी नक ई– सानहत्य में अभी अनश ु ासन का अभाव है । नहिंदी का ई– सानहत्य लेखन अभी अ नी आरिंनभक अवस्था में ही है । इसके अभी प्रनतमान लागू करने बाकी है । स्वाभनवक है नक इसे अभी अ ने आलोचकों का प्रको झेलना ही होगा । वस्तुत: ई–लेखक होना एक नजम्मेदारी का काम है । इनकी अनभव्यनि ाठक र सीधे असर डालती है । समाज में हो रहे ररवततनों, सामानजक नववादों, राजनीनतक उठा टक की तुरतिं अनभव्यनि ई–लेखक ही कर सकता है । यहाुँ र अनभव्यनि के नखरों से सम् ूणत आजादी है । यहाुँ अ नी भाषा में अ ने भावों को व्यि नकया जाता है । यहाुँ जो मन में आता है उसको कहानी, लघु कथा, कनवता या लेख के रू में ढाल कर नलख नदया जाता है । ई–सानहत्य लेखन शीघ्र भावों की अनभव्यनि का सशि माध्यम बनकर सामने आया है । ई–लेखक अ नी रचना से समाज से तुरतिं ही असर देखना चाहता है । वह शीघ्र प्रनतनक्या चाहता है ।आज नकताबी सानहत्य के सामान ही ई–सानहत्य में सानहनत्यक कायत हो रहा है और लगातार हो रहा है तथा वह नहिंदी सानहत्य को प्रभानवत भी कर रहा है । नहिंदी के नकताबी सानहत्य की भािंनत ई–सानहत्य भी नहिंदी के नवकास में बराबर अ ना योगदान दे रहा है । नहिंदी की नस्थनत को सधु ारने में नकताबी सानहत्य नजतना प्रयासरत है उतना ही प्रयासरत नहिंदी का ई–सानहत्य भी है । इसनलए ई–सानहत्य को नकताबी सानहत्य के समक्ष कमतर नहीं आुँका जा सकता है । ई–सानहत्य की असली चनु ौती इस वततमान ीढ़ी को कें द्र में रखकर कुछ रचने और कुछ काम करने की Page 65


आयम्ब ई-ऩत्रिका 2014-15

दहन्द्दी सादहत्म की

है । इस वैिीकरण के दौर में लेखन के क्षेत्र में सबसे ज्यादा असरदार श्रेणी ई–सानहत्य की ही होगी । सनचन वमात, छात्र महनषत दयानिंद नविनवद्यालय

गततववगधमाॊ

(गचन्द्तन) (चौथा अॊक) २१लीॊ ळताधदी को दशॊदी वादशत्म का वलषश्रेष्ठ

मुग भाना जाता शै ऩय शभे मश बी भानना शोगा कक

आज

शै ।

ब्जवभें

का

दशॊदी

वादशत्म

तत्कारीन

याजनैनतक गनतवलथधमों वे ऩूयी तयश प्रबावलत ऩर्दम

के

वाथ-वाथ

गर्दम,

वभारोचना, कशानी, नाीक ल ऩिकाियता का बी

वलकाव शुआ शै । भध्मकार वे शी बायत भें अनेक मूयोऩीम जानतमाॊ आईं ब्जनके वॊऩकष वे मशाॊ ऩाश्चात्म वभ्मता का प्रबाल ऩड़ना प्रायॊ ब

शुआ। उव वभम वलदे लळमों ने मशाॊ के दे ळी याजाओॊ के आऩवी भतबेद का राब उठाकय

बायत भें अऩने ऩैय जभाने भें वपरता प्राप्त की थी ब्जवके ऩियणाभस्लरूऩ मशाॊ वललबन्न वभमों

भे फाशयी रोगों ने अऩने ळावन व्मलस्थ की स्थाऩना बी की। ध्मान दे ने कक फात शै की

आधुननक कार भे अॊग्रेजों ने मशाॊ अऩने ळावन

कामष को वच ु ारु रूऩ वे चराने एलॊ अऩने धभष-

प्रचाय के लरए मशाॉ के जन-वाधायण की बाऴा

को अऩनामा एलॊ अऩने लशाॉ शुए भुिण करा के आवलष्काय की भदद वे उन्शोने अऩने दस्तालेजों के वाथ-वाथ ईवाई धालभषक ग्रन्थों को छऩलाना वरू ु ककमा ब्जववे जाने अॊजाने भें बायतीम बाऴा के वलकाव के वाथ-वाथ वादशत्म के वलकाव भें बी भशान मोगदान ददमा।

मथाथष तो मश शै कक वादशत्म ककवी बी वभाज

का जीता-जागता दऩषण शोता शै । ब्जव दे ळ भे

वादशत्म को भशत्ल ददमा जाता शै , उव दे ळ का arambh.co.in

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आयम्ब ई-ऩत्रिका 2014-15 वलकाव बी तीव्र गनत वे शोता शै , ऩय थचॊता की

वाथ-वाथ धीये -धीये शभाया दशन्दी वादशत्म अॊधेये

भें

कक दशन्दी वादशब्त्मक ऩत्रिकाओॊ के फॊद शोने के

वलऴम शै कक शभेवा वे बायतीम ऩूॊजीलादी वभाज दशन्दी

वादशत्म

को

अनुत्ऩादक

एलॊ

अनुऩमोगीता की दृब्ष्ी वे दे खने की ऩयॊ ऩया यशी शै । अथधकतय रोगों का कशना शै कक कुछ काभ न शोने ऩय शी रोग वादशत्म की यचना कयते शैं।

भुझे तोरगता शै कक आज शभाये दे ळ भे वयकाय

की बी मशी वोंच शै । ऩय ऩूॊजीलादी वभाज जीतने बी उऩेक्षषत दृब्ष्ी वे दशन्दी वादशत्म को

की ओय धकेरता जा यशा शै । फड़ी वलडम्फना शै

वाथ-वाथ दशन्दी बाऴा भे ऩाठक कभ शोते जा यशे शैं। वलडम्फना मश शै कक दशन्दी बाऴा ब्जव

तफके के रोगों को योजी-योी​ी दे यशी शै , उनभे वे

अथधकाॊळों को दशन्दी बाऴा की तयक्की, खुळशारी औय चभक वे कोई रेना दे ना नशीॊ शै । लें लवपष उतना शी जानते शैं एलॊ जानना चाशते शैं ब्जतना

दे खे मा कपय ब्जतना बी उऩशाव कये , शभाये

उन्शे अऩने ऩा्मिभ के अनुवाय ऩढ़ने औय

नशीॊ

जाता शै कक १४ लवतॊफय को दशन्दी ददलव के

प्रगनतळीर वादशत्मकाय कबी बी वादशत्म यचना छोड़ेंगे

क्मोकक

ब्जव

ददन

वादशब्त्मक

आरोचक ककवी बी वभाज मा कपय वयकाय की आरोचना कयना छोय दें गे उव ददन लश वभाज

मा उव दे ळ की वयकाय भें भ्रष्ी रोगों का लचषश्ल कामभ शो जाएगा। वादशत्म यचना के भागष

भे

यचनाकायों

को

आज

फशुत वाये कठनाइमों का वाभना कयना ऩय यशा शै ऩय इन

व्मलधानों के फालजूद बी वादशत्मकायों र्दलाया रेखन कामष तीव्रगती वे फढ़ता शी जा यशा शै ।

वाथ शी आज दशन्दी वादशब्त्मक ऩुस्तकों के प्रकाळन भे बी इजापा शुआ शै । फड़े ळशयों के यचनाकायों को अऩनी ऩशचान फनाने की ब्जतनी वुवलधाए उऩरधध शै इतने ळामद दे ळ के छोीे

ळशयों एलॊ गालों भे फवे यचनाकायों को नशीॊ लभर ऩाता। उन्शे छोीे ळशयों भे यशकय फड़े ळशयों के वादशत्मकायों की तयश याब्ष्ट्रम स्तय के ऩि-

ऩत्रिकाओॊ भें अऩने यचनाओॊ को प्रकालळत कयने

की बी ववु लधा नशीॊ लभर ऩा यशी शै । ब्जवके अबाल भे प्रनतबालान वादशत्मकाय अऩनी ऩशचान

फना ऩाने भे अवभथष शै । ब्जवकी लजश वे दशन्दी वादशत्म को ब्जतनी ऩामदान ऊऩय चढ़कय

फुरॊदी ऩाना था नशीॊ ऩा वका शै औय वभम के arambh.co.in

ऩढ़ाने के लरए जरूयी शोता शै । अक्वय दे खा वभायोश ऩय एकाएक दशन्दी जगत के जाने भाने

रेखकों की भाॊग अचानक वे फढ़ जाता शै औय

ददन त्रफतते शी जैवे दशन्दी वे उनका नाता ीूी जाता शै । दयवर वभझने की फात मश शै कक

वलकाव औय रूऩाॊतय आवानी वे उऩरधध शोने लारी चीजें नशीॊ शोती, न शी अकादलभक जगत

की भोशय का शी भोशताज शोती शै औय न शी

उन्शे फाजाय की भाॊग के भुतावलक गढ़े गए

उत्ऩादों की तयश फेचा-खयीदा जा वकता शै । श्रेष्ठ वादशत्म एलॊ वादशत्मकाय यचनाधलभषता के

तर ऩय ब्जव तयश के वभऩषण औय आत्भत्माग

कय जभीन ऩय अॊकुियत शोता शै , ठीक उवी

प्रकाय ले ऩाठकों की चेतना भे ऩूयी ननष्ठा औय वॊघऴष की भाॊग कयती शै । मथाथष तो मश शै

कक आज जनवॊचाय मा

इन्ीयनेी के कायण दनु नमा जैवे एक छोीा वा आॉगन फन गमा शै । वलश्ल के एक कोने भे फैठा

कोई बी व्मब्क्त वलश्ल के दव ू ये कोने वे षण बय भे वॊऩकष कय वकते शैं ऩय बायत के

अथधकाॊळ जनता इॊडयनेी वे अफ बी अनलबस

एलॊ अछूते शैं, ब्जववे बायत के छोीे ळशयों भे Page 67


आयम्ब ई-ऩत्रिका 2014-15 फवे रेखकों के लरए जैवे मश कशालत वाथषक

याजनीनत वे अछूते नशीॊ शैं। ब्जव दर की

शोकय क्मा कयें गे‖। आज ळशयी षेिों भें पेवफुक

को लयीमता दी जाती शै । जफकक प्रनतष्ठानो भे

शोता शै – ―ऩेड़ ऩय फेर ऩकने ऩय कौए खुळ

के र्दलाया बी दशन्दी वादशत्म का प्रचाय-प्रवाय शो यशा शै । पेवफुक वादशत्म भे कवलताओॊ, वामियमों, चुीकुरों, प्रगनतळीर वलचायों एलॊ कशाननमों का रेखन फढ़ते िभ भे शै मशाॉ शभ वबी प्रकाय के

रघु कथा, कवलतामेँ, चुट्कुरे, कशालतें आदद को फड़ी शी आवानी वे ऩढ़ वकते शैं औय उवी

वभम अच्छे -फुये की दीप्ऩणी बी कय वकते शैं।

वलस्ताय ऩूलक ष दे खे तो दशन्दी वादशत्म का वलस्ताय आज बायत भे शी वीलभत नशीॊ शै , जशाॊ-

वयकाय शै , उवी दर के कामषकताषओॊ के रेखन वबी रेखकों को फयाफयी का वम्भान ददमा जाना

जरूयी शै । दे ळ भे आज शये क षेि भे गी ु फॊदी शै ,

मश गी ु फॊदी योग दशन्दी वादशत्म भे बी ऩूणष रूऩ वे पैर चुकी शै । मश गुी भाि भे वीलभत

न शो याजनीनतक ऩष-वलऩष ने बी अऩनी जड़े भजफूत कय यशी शै औय याजनीनत ऩष एलॊ

वलऩष की अलधायणा के वाथ आगे का भागष प्रवस्त कयती शै । भैं तो अऩने छोीे वे लाक्म भें

जशाॊ बायतीम गए शै लशाॉ-लशाॉ अऩने दशन्दी

मशी कशूॉगा कक फड़े वे छोीे वबी रेखक का दानमत्ल शै कक लश वभाज भे व्माप्त वलकृनतमों

वादशब्त्मक वॊस्थान खोरकय अऩने दे ळ एलॊ

वभाज भें अनुळावन को कामभ यखने की

वादशत्म

की

ऩशचान

फनाए

शैं।

लशाॉ

लें

वलदे ळी कृनतमों का प्रकाळन लशी वे कयते शैं। आज दे खा जाए तो वादशत्म रेखन भें अलवय

के वाथ-वाथ चुनौनतमाॉ बी फशुत शै । आज का आधुननक वभाज ऩर-ऩर प्रगनत की ओय फढ़ यशा शै ब्जववे कक वभाज भे शो यशी गनतवलथधमों के वाथ तादात्भ कय वादशत्म रेखन कयना फशुत कदठन शो चरा शै । बायत जैवे वाभाब्जक एलॊ बौगोलरक वललबन्नता लारे दे ळ के लातालयण भें रेखन के वलऴम की बी कभी नशीॊ ऩय वबी को वाथ रेकय चरना बी वशज नशीॊ शै । आज ऩियब्स्थनत ऐवी शो चरी शै कक रेखन

के अलवयों भे इजापा के लरए छोीे -फड़े वबी वादशत्मकायों की वशबाथगता आलश्मक शै , क्मोंकक

चथचषत कुछ रेखकों को छोडकय ज़्मादातय दशन्दी वादशत्मकाय रेखन के जियमे अऩने जीवलका चराने की अलस्था भे नशीॊ शै । वाधायणत् वादशत्म

स्थावऩत

के

वॊयषण

ककमा

arambh.co.in

गमा

एलॊ

वॊघवषन

प्रनतष्ठान

के

बी

लरए

दरीम

की अऩने रेखनी के र्दलाया आरोचना कय काभना कयते शुए स्लच्छ वभाज का वज ृ न कये ।

वादशत्म क्मा शै , क्मों शै औय ककवके लरए लरखा जाता शै , इव फात को रेकय अगय रेखक शी अनलबस शै तो लश वभाज के जरूयतों को वभझ नशीॊ वकेगा।

यचनाकाय जफतक वभाज

के वभस्माओॊ को रृदम वे भशवूव नशीॊ कये गा तफतक अऩने वादशत्म के र्दलाया वभाज भे व्माप्त वभस्माओॊ के वभाधान का भागष प्रवस्त

नशीॊ कय ऩाएगा। वादशत्म भे ननयॊ तय रेखन की जरूयत शोती शै कोई एक मा दो ककताफ ननकार

कय खुद को लियष्ठ मा अव्लर वादशत्मकाय का दजाष दे ने के लरए प्रमत्न कयने के लरए गुीफाजी

कय अऩने ऩषधयों के वभथषन एलॊ दव ू यों के रेखन भे कलभमाॉ ननकारकय वलयोध कयने की प्रलनृ त बी वादशब्त्मक रेखकों के लरए घातक शै ।

एवे कुकृनतमों वे शभे शभेळा वचेत यशना शै । जो रेखक एवे कामष कयते शैं क्मा कबी ऐवे

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आयम्ब ई-ऩत्रिका 2014-15 वादशत्मकाय वाधायण ऩाठक के भन को जीत

वकेंगे? आदय, वम्भान ऩा वकते शैं ? शभाये दे ळ भे

जीतने

बी

वादशत्मक

वॊस्थाए

शैं

बायतीम नवजागयण की

उनभे

प्रथभ अभबव्मजतत :

वॊख्मात्भक फर्द ृ थध की जगश गुणात्भक फर्द ृ थध की आलश्मकता शै । शभ वबी को याजनीनत वे

बाग्मवती

शीकय वादशब्त्मक रेखनी एलॊ कामषिभों को तीव्रता दे ने की आलश्मकता शै । आज वभाज को

(गचन्द्तन) (चौथा अॊक)

जरूयत शै कक दशन्दी वादशत्म के ऩुयाने तथा नमे

ऩीढ़ी के वादशत्मकायों भे आऩव भे वभानता एलॊ आदय का बाल रामे एलॊ एक-दव ू ये

का वशमोग

नलजागयण का ळाब्धदक अथष शोता शै - नई

कये । अरग शोकय नशीॊ ! एकजी ु शोकय, गी ु

चेतना अथाषत एक ऐवी चेतना जो ऩूलष कबी

याजनीनतलाद वे उठकय वादशब्त्मकलाद को आगे

ऩियब्स्थनतमाॉ ऩशरे वे गण ु ात्भक रूऩ भें एकदभ

फाजी

वे

नशीॊ

!

एकजी ु

शोकय

आज

फढ़ाने की आलश्मकता शै ।

आज दशन्दी वादशत्म लवपष बायत भे

शी नशीॊ ऩूये वलश्ल भे पैर यशी शै । आज वलश्ल भे दशन्दी वादशब्त्मक वॊस्थाओॊ की वॊख्माओॊ भे

फर्द ृ थध शो यशी शै । लतषभान भे ऩिऩत्रिकाओॊ,

ऩुस्तकों के प्रकाळन एलॊ वादशब्त्मक गनतवलथधमों को आगे फढ्ने के िभ भे वललबन्न दशन्दी

वादशब्त्मक लेफवाइीों ने बी फड़ी बूलभका ननबाई

शै । इन वबी वॊस्थाओॊ ने दशन्दी वादशत्म की प्रगनत

भे

ब्जतना

मोगदान

ददमा

शै , लश

प्रळॊवनीम शै । शभ वबी को एकजी ु शोकय दशन्दी वादशत्म को वलकलवत दे ळो के वादशत्म के वाथ प्रनतस्ऩधी रूऩ भे आगे राना शै औय ब्जवके

इनतशाव भें नशीॊ आई शो। नलजागयण मुग की लबन्न शोती शै । नलजागयण ळधद का दशन्दी भें ऩशरी

फाय

प्रमोग

कयने

का

श्रेम

प्रख्मात

भाक्र्वलादी आरोचक डॉ . याभवलराव ळभाष को जाता शै ब्जन्शोंने 1977 भें प्रकालळत अऩनी

ऩुस्तक ―भशालीय प्रवाद र्दवललेदी औय दशन्दी

नलजागयण‖ भें नलजागयण ळधद की वॊककऩना

प्रस्तुत की शै , मश ळधद उन्शोंने अॊगे ्यजी ळधद ‗ये नेवाॊ‘ के ऩमाषम भें प्रमुक्त ककमा शै । ले 14लीॊ15लीॊ

वदी

के

ये नेवाॊ

को

19लीॊ

वदी

के

नलजागयण का गुणात्भक रूऩ वे लबन्न भानते शैं इवलरए नलजागयण ळधद को ज्मादा उऩमक् ु त वभझते शैं।

नलजागयण का आयम्ब 1857 ई. भें प्रथभ

फड़े

स्लतॊिता वॊग्राभ वे भाना जाता शै ऩय वाभाब्जक

शोगा तबी जाकय दशन्दी वादशत्म को वशी

स्थाऩना 1875 के आन्दोरन के वाथ शुआ। दयअवर बायत भें नलजागयण का उदम फॊगार

लरए

शभ

वबी

दशन्दी

के

छोीे

वे

वादशत्मकायों को एकजुी शोकय प्रमत्न कयना भक ु ाभ लभर ऩाएगा……….

डॉ भोo भजीद भभमा ऊ.प्र arambh.co.in

षेि भें नलजागयण का आयम्ब आमष वभाज की

याज्म वे शोता शै । इवकी रशय 1860 के आवऩाव दशन्दी षेि भें आने रगती शै । वफवे ऩशरे स्िी

लळषा

का

आॊदोरन, वलधला-वललाश

का

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आयम्ब ई-ऩत्रिका 2014-15 वभथषन, फार-वललाश का वलयोध आदद इवी के

लरए इव उऩन्माव को शभेळा माद ककमा जाता

बायत भें नलजागयण के जनक याजा याभभोशन

कपकरौयी

फार-वललाश,

इच्छा‘ शै ब्जवके ऩढ़ने वे बायत खणड की

ऩियचामक थे।

याम शैं, ब्जन्शोंने वाभाब्जक षेि भें वती-प्रथा, ऩदाष-ऩथा

आदद

घातक

अननष्ीकायी कुयीनतमों का वलयोध

औय

ककमा शै ।

दशन्दी नलजागयण के वाथ दमानन्द जी का

वॊफॊध भशत्त्लऩूणष शै । दशन्दी के वलकाव भें उनका

मोगदान फशुत अथधक शै । वभाज वुधाय औय अॊधवलश्लावों, रूदढमों वम्फन्धी भतों का उन्शोंने ो़ वलयोध

ककमा

स्लदे ळीमता

शै ।

की

दशन्दी

बालना

को

नलजागयण उजागय

भें

कयना,

धालभषक अॊधवलश्लावों का वलयोध कयना, वभाज वुधाय आदद वबी फातें ददखाई ऩड़ती शै ।

ककवी बी वभाज का आधाय स्तम्ब लशाॉ की

ब्स्िमाॉ शोती शैं, अत् मदद वभाज भें वुधाय राना शै तो आलश्मक शो जाता शै कक ऩशरे ब्स्िमों भें

वुधाय रामा जाए, ब्जववे ले लळक्षषत फने। इवलरए वबी वभाज वध ु ायकों ने ब्स्िमों की

लळषा ऩय फर ददमा। याजा याभभोशन याम ने

वती-प्रथा का वलयोध ककमा तथा वलधला-वललाश तथा स्िी-ऩुरुऴ के वन्दबष भें वभानता का वभथषन ककमा शै । ऩॊ.

श्रर्दधायाभ

उऩन्माव

बी

कपकरौयी

इवी

वभाज

कृत

को

‗बाग्मलती‘ वुधायने

के

उर्ददे श्म भें लरखी गमी शै । ‗बाग्मलती‘ की यचना वन ् 1887 भें शुई थी। मश दशन्दी का प्रथभ प्रकालळत ल भौलरक उऩन्माव शै । औऩन्मालवकता की दृब्ष्ी वे बरे शी मश यचना

इतनी भशत्त्लऩूणष नशीॊ शै , रेककन वभाज वुधाय के

यशा शै ।

जी

ने

उऩन्माव

‗बाग्मलती‘ की

‗बूलभका‘ भें लरखा शै ―ऐवी ‗ऩोथी‘ लरखने की

ब्स्िमों को गश ृ स्थ धभष की लळषा प्राप्त शो।‖

कपकरौयी जी दशन्द ू ब्स्िमों की वऩछड़ी दळा वे

फशुत थचब्न्तत शोकय लरखते शैं ―मर्दमवऩ कई ब्स्िमाॉ कुछ ऩढ़ी-लरखी शोती तो शैं ऩयन्तु वदा अऩने शी घय भें फैठे यशने के कायण उनको दे ळ

वलदे ळ की फोरचार औय अन्म रोगों वे फात

व्मलशाय की ऩूयी लर्द ृ थध नशीॊ शो ऩाती औय कई फाय ऐवा बी दे खने भें आमा शै कक जफ कबी

उनको वलदे ळ जाने का भौका लभरता शै तो ले

अऩना गशना, कऩड़ा, फतषन आदद ऩदाथष खो

फैठती औय घय भें फैठती तो ककवी ढोंगी ऩुरुऴ के शाथ वे अऩने घय का नाळ कय फैठती शै ।

कपय मश बी दे खा जाता शै कक फशुत ब्स्िमाॉ अऩनी दे लयाननमों, जेठाननमों वे आठों ऩशय रड़ाई यखती शै लळषा के अबाल भें।‖ ‗दे लयानी जेठानी‘ की कशानी भें बी अलळषा के कायण भध्मलगीम

ऩियलायों की ब्स्िमों की दीन-दळा का आॊकरन ककमा गमा शै ऩय बाग्मलती भें इवका अथधक

वलस्ताय वे थचिण शुआ शै । लस्तत ु ् स्िी-लळषा शी बाग्मलती उऩन्माव के केन्ि भें शै । नलजागयण की एक वलळेऴता मश बी शै कक इवभें बालनाओॊ के स्थान ऩय तकष औय वललेकफुर्दथध

को

भशत्त्ल

ददमा

गमा।

उऩन्माव

‗बाग्मलती‘ भें बी बाग्मलती के वऩता अभादत्त जी ऩूये तकष के वाथ फार-वललाश का वलयोध कयते

शैं।

उन्शोंने

मश

तकष

ददमा

शै

कक

भव ु रभानी ळावन भें भब्ु स्रभ ळावक कॉु लायी arambh.co.in

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आयम्ब ई-ऩत्रिका 2014-15 दशन्द ू रड़ककमों का अऩशयण कय लरमा कयते थे,

जागरूकता राने की बी चेष्ीा की शै । उन्शोंने

अऩशयण कयना लब्जषत था। इवलरए वात-आठ

दोनों भें कोई बेद नशीॊ भाना। बाग्मलती एक

क्मोंकक

इस्राभ

भें

वललादशत

रड़ककमों

का

लऴष की उम्र भें शी रड़ककमों का वललाश कय ददमा जाता था ―अफ छोी​ी अलस्था भें रड़की-रड़कों के वललाश कयने भें क्मा प्रमोजन शो चरा था।‖

उन्नीवलीॊ ळताधदी के वातलें दळक तक फॊगार

वे प्रस्पूदीत नलजागयण आन्दोरन दशन्दी षेि

भें बी प्रलेळ कय चुका था। रोग लळषा का भशत्त्ल वभझने रगे थे, प्रफुर्दध रोगों का ध्मान रड़ककमों की लळषा की ओय जाने रगा था। कपकरौयी जी लळषा ऩय वलळेऴ फर दे ते शैं।

अऩने उऩन्माव ‗बाग्मलती‘ भें बाग्मलती को बाऴा, व्माकयण, लळषा

भॊजयी

के

वाथ-वाथ

खगोर, बूगोर, गखणत औय आत्भ थचककत्वा आदद का अध्ममन दे ने का प्रमत्न कयते शैं। बाग्मलती

उऩन्माव

भें

अॊधवलश्लाव

का

बी

वलयोध ककमा गमा शै जैवे वललाश के वभम चीर

का ऩूजन कयना, कीकय की भनौती, फकये का

कान छे दना आदद इववे उव कार के दशन्द ू वभाज, वलळेऴकय

ब्राह्भण

लगष के

फौर्दथधक

वऩछड़ेऩन का फोध शोता शै औय दव ू यी तयप इनके

वलयोध

भें

ऩैदा

शो

यशी

फौर्दथधक

जागरूकता बी वाभने आती शै मश नलजागयण की चेतना का मथाथष रूऩ शै । लशीॊ वललाश भें

दशे ज प्रथा, अनतळफाजी आदद को कपजर ू खची फताते शैं।

फेीे औय फेी​ी को वभान दजाष ददमा शै , इन्शोंने स्थर ऩय कशती शै ―क्मा आऩ कन्मा औय

फारक भे कुछ बेद थगनते शो? ईश्लय की दृब्ष्ी

भें तो कुछ बेद प्रतीत नशीॊ शोता।‖ इव प्रकाय जन्भ वे फारक औय फालरका का रूऩ वाभान्म शोता शै ब्जवको आज बी वाथषकता दी जा यशी

शै । लळषा का भशत्त्ल कपकरौयी जी बाग्मलती के भाध्मभ वे ऩाठक को फताते शैं ककवलधा फन्धु वलदे ळ भें, वलधा वलऩत वशाम। जो नायी वलधालती, वो कैवे दख ु ऩाम।। याज बाग वुख रूऩ धन, वलऩत वभम तज जाॉश। इक वलधा वलऩत वभम, तजे न नय की लाॉश।। इव प्रकाय कपकरौयी जी ने वलधा के भशत्त्ल ऩय

फर दे ते शुए लळषा को नलजागयण की प्रभुख वलळेऴता फताते शैं। ‗बाग्मलती‘ उऩन्माव नलजायण की नई योळनी के अनेक ऩषों को

उजागय कयती शै । स्िी लळषा के फाद ब्स्िमों के

लरए स्लालरम्फन को उन्शोंने आलश्मक फतामा

शै । बाग्मलती का चियि, अवलश्लवनीम शोने ऩय

बी, स्लालरम्फन का अनोखा उदाशयण प्रस्तुत कयता शै । 19लीॊ ळताधदी भें दशन्द ू वभाज भें

अनेक फुयाइमाॉ थी, इन्शीॊ फुयाइमों को दयू कयने के लरए नलजागयण आमा। बाग्मलती भें बी

दशन्द ू वभाज की फुयाइमों, जैवे- फार-वललाश, बूत-

कपकरौयी जी ऩुयाने रूदढमों औय भान्मताओॊ का ो़

प्रेत औय जाद-ू ीोना, फच्चों को ी​ीका न रगलाने,

शो जाने के फाद ऩियजनों को छाती ऩी​ीके योना

आदद की आरोचना की गई शै । नलजागयण

बाग्मलती

भॊॅे जो फुयाईमाॉ व्माप्त शै उनके प्रनत आलाज

बी वलयोध कयते शैं। ले कशते शैं ―ककवी के भत्ृ मु

उन्शें जेलय ऩशनाने, रड़ककमों को लळषा न दे ने

आदद कभष नशीॊ कयना चादशए।‖ कपकरौयी जी ने

चेतना की व्माऩक ऩशर के अन्तगषत वभाज

के

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भाध्मभ

वे

कानून

के

प्रनत

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आयम्ब ई-ऩत्रिका 2014-15

कॉरोनी के अखफाय से

उठाना औय उवको नमे वॊदबों वे व्मक्त कयना एक

भशत्त्लऩूणष

उऩरब्धध

थी।

बाग्मलती

दयू दशान तक अशोक

उऩन्माव भें जगश-जगश मे प्रश्न उठामे गमे शैं।

कुयीनतमों को उऩन्माव के भाध्मभ वे उजागय

श्रीवास्तव जी का सपय

कयने का बयऩयू प्रमाव ककमा गमा शै औय इन कुयीनतमों वे भब्ु क्त ददराने का भागष बी फतामा गमा शै । उऩन्माव अऩने आऩ भें

(साऺात्काय) (ऩहरा अॊक)

बायतीम

नलजागयण चेतना की अलबव्मब्क्त का आयॊ लबक ऩयॊ तु वपर कोलळळ शै , ऐवा कशना अनतश्मोब्क्त न शोगी।

दयू दळषन

शोधाथी (दहन्द्दी ववबाग) ददल्री ववश्वववद्मारम

प्रलवर्दध

एॊकय

औय

लतषभान प्रधाभॊिी नये न्ि भोदी के वाषात्काय के फाद

सज्जन कुभाय

के

वखु खषमों

लतषभान

भे

वपरता

दास्तानॊ यशी शै

आए के

अळोक ऩीछे

श्रीलास्तल

वॊघऴष

की

की

रम्फी

दशन्दी ऩिकाियता एलॊ इवभे

मल ु ाओॊ का बवलष्म तथा वादशत्म के वललबन्न भर्द ु दों ऩय प्रबाॊळु ओझा र्दलाया अळोक श्रीलास्तल वे फातचीत के प्रभख ु अॊळ । प्रश्न- ऩत्रकारयता की शरू ु आत आऩने कैसे की एवॊ कफ आऩको रगा कक आऩको इसी ऺैत्र भे जाना चादहए ? उत्तय- एक तयश वे तो १०ली कषा के फाद वे शी इव षैि की ओय भेया रूझान फढ़ने रगा था औय गलभषमों की छुट्दीमों भे कुछ काॅॎरोनी के वाथथमों के वाथ शभने मश तम ककमा कक क्मो न अऩनी काॅॎरोनी की खफयों वे जड़ ु ी एक अऺफाय ननकारा जाए औय कुछ ददनों फाद लश अऺफाय वफ ु श-वफ ु श वफके घयों भे ऩशुॉच गमा । अऺफाय का नाभ था `मल ु ाअलबव्मब्क्त `औय भजे की फात मश थी की भैं शी उवका वम्ऩादक फना औय भेया वम्ऩादकीम रेख १७ लऴीम ीे ननव खखराड़ी ब्जवने उन ददनों वलम्फरडन वलजेता जो कक वफवे कभ उम्र का था

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आयम्ब ई-ऩत्रिका 2014-15 उव ऩय था भैने उव रेख भे मश ददखामा की

प्रश्न- आऩने फतामा की आऩ दहन्द्दी के छात्र थे

आने लारा वभम मल ु ाओ का शी शै ।

,तो दहन्द्दी के छात्रों को उनके कैरयमय के फाये भे

प्रश्न-रेख को घय वारो ने ऩढ़ा ?औय उनकी तमा प्रततकिमा यही? उत्तय- जफ वफ ु श -वफ ु श लश अऺफाय आमा तो वफ चौंक गए..क्मोकक अफ तक ककवी को ऩता नशी था ,वऩताजी फशुत खुळ शुए क्मोकक लश खुद बी ऩिकाियता के षैि भें नलबायत ीाइम्व भे कामषयत थे , रेककन भाताजी नायाज़ शो गमी उन्शे रगता था भैं कुछ नशी कय ऩाऊॉगा क्मोकक ऩढ़ाई भे भेये अॊक कभ आते थे , इवके ऩीछे वफवे फड़ा कायण था भैं यीने भे वलश्लाव नशी कयता था । प्रश्न- आऩके काॅॎरेज के ददन कैसे यहे औय आऩने ककस ववषम भे स्नातक उत्तीणा ककमा ? उत्तय- १२लीॊ की ऩयीषा ऩाव कयने के फाद भे ददकरी

वलश्लवलर्दमारम

के

ककयोड़ीभर

भशावलर्दमारम भे दशन्दी (वलळेऴ)भे दाखखरा लरमा औय

काॅॎरेज

भे

ऩशरा

शी

ददन

भेये

लरमे

अवलस्भयणीम फन गमा , जफ नलागन्तक ु स्लागत वभायोश भे भैने एक कवलता वन ु ाई औय डॎा॰ वत्मऩार औय डॎा॰ ककयन नन्दा जी ने भझ ु े प्रोत्वादशत ककमा । डॎा॰ ककयन नन्दा जी अक्वय कषा भें कशती थी की अफ इव भर्द ु दे ऩय अळोक एक कवलता लरखकय राएगा औय भैं लरखता बी था लश भझ ु े शभेळा प्रोत्वादशत कयती थी औय आज

बी

भेयी

वपरता

भे

उनका

मोगदान

अतर ु नीम शै ,भैने दशन्दी वलऴम के वाथ शी अऩना स्नातक उत्तीणष ककमा । arambh.co.in

कुछ फताएॉ औय तमा आऩको दहन्द्दी का छात्र होने के फाद कबी हीन बावना तो नही भहसस ू हुआ ? उत्तय-वफवे ऩशरे तो मश फता दॉ ू कक भैने दशन्दी वलऴम का चुनाल ककवी भजफयू ी लळ नशी ळौह वे ककमा था औय भैने दशन्दी ऩढ़ा नशी ब्जमा शैं । भेये लभि भणड़री भे लवपष दशन्दी शी नशी फब्कक अॊग्रेजी ,वलसान औय गखणत वलऴमों के बी लभि शोते थे । काॅॎरेज के अळोका राॅॎन भे फैठ कय भैं कवलताएॉ वन ु ाता था ,ले लाश-लाश कयते वे चरने लारी म-ू स्ऩेळर फव भे बी कवलताओॊ के कायण भेये ढ़े य वाये लभि फन गए थे । ऩयु े काॅॎरेज भे अध्माऩक वे रेकय छाि ज्मादातय रोग भझ ु े जानते थे ,भैने काॅॎरेज भे छाि वॊघ का चुनाल बी रड़ा । जशाॉ तक आऩने प्रश्न ककमा शै शीनबालना का तो इवका तो वलार शी नशी उठता औय मशी वराश भैं दशन्दी के छािों दॉ ग ू ा की कक लो लवपष दशन्दी तक शी वीलभत न यशे अॊग्रेजी बी वीखे औय दशन्दी एक अच्छा वलऴम शै ब्जववे आऩ

भीडडमा,रोकवेला

आमोग

,लळषक,अनल ु ाद

अनेकों षैि भे जा वकते शै छाि यट्ीू तोते फनने के फजामे व्मलाशाियक फने औय अऩने व्मब्क्तत्ल का बी कुळर वलकाव कयें । प्रश्न- दयू दशान का अफ तक का सपय कैसा यहा औय आऩके सभम की भीडडमा औय आऩके सभम की भीडडमा औय वताभान भीडडमा भें ककतना अन्द्तय है ? उत्तय- दयू दळषन भे आना तो एक वॊमोग था । भैने Page 73


आयम्ब ई-ऩत्रिका 2014-15 रेखन कामष अऩने काॅॎरज े के ददनों भे शी ळरू ु

प्रश्न- दयू दशान एक सयकायी चैनर है औय बायत

कय ददमा था । ककयोड़ीभर भे पुीकय वाभान

का सफसे ऩयू ाना चैनर है इ आऩको तमा रगता है

फेचने

कक वताभान दौय के तनजी चैनरों से तमा मे

लारे

दीॊगू

जी

ऩय

भैने

अऩना

रेख

नलबायतीाइम्व भें ददमा औय कैम्ऩव के लरमे बी

प्रततस्ऩधा​ा कय ऩा यहा है ?

लरखता यशा । ऐवे शी एक ददन ऩिकाय अरुण

उत्तय- दे खखए वभम की भाॊग शै की दयू दळषन ऩय

ळौयी जी ने अऩनी फशन नलरनी लवॊश जी को

शाली शोती रार पीताळाशी औय वत्ता ऩष के

रच्छे दाय दशन्दी लवखाने के लरए कशा क्मोकक उन

प्रबाल वे भक् ु त शोना चादशए ,जशाॉ खफयों को उनके

ददनों नलरनी जी को रगाताय ऩाॉच घन्ीे का एक

लास्तवलक रूऩ भें ऩेळ ककमा जाए ।दयू दळषन भे

दशन्दी कामाषिभ कयना था औय लशी वे नलरनी

वध ु ाय की आलश्मक्ता शै औए आळा शै इ शभ

लवॊश जी ने भझ ु वे जुड़ने को कशा औय शभाया वाथ

बवलष्म भें फेशतय कये गें ।

भे फनामा कामषिभ आॉखों दे खी वपरता के नए आमाभों को छुआ। फाद भे भैने एक प्रोडक्ळन शाउव खोरने की मोजना फनामी ककन्शी कायणों वे फशुत ऩैव,े वभम दालॊ ऩय रगाने के फाद बी लश वपर नशी शो वकी तो कपय वे भै अऩने ऩशरे के शी दौय ऩय आ गमा, जफ काॅॎरेज के ददनों भे अऩने ळौह औय कुछ खाव जरूयतों के लरए एक दक ू ान ऩय काभ ककमा कयता था । शाॉराकक कुछ ददनों फाद एक वलसाऩन दे खा ब्जवभे मश लरखा

प्रश्न- दहन्द्दी बाषा के बववष्म को रेकय आऩकी तमा

याम

है

?

उत्तय-नई वयकाय के प्रधानभॊिी दशन्दी प्रेभी शै औय उन्शोने मश ननदे ळ बी दे ददमा शै कक आने लारे ददन दशन्दी बाऴा के लरए जरूय अच्छे शोगें ।

साऺात्कायकता​ा प्रबाॊशु ओझा

था कक एक चैनर को कुछ एन्कवष की जरूयत शै इ भैने इन्ीयमू ददमा भझ ु े चन ु लरमा गमा औय फाद भे ऩता चरा की लश दयू दळषन शी शै । तफ वे रेकय अफ तक अऩना कामष ईभानदायी वे कय यशा शूॉ । जशाॉ तक फात फदराल की शै तफ वे रेकय अफ तक का भीडडमा के षैि भे तो िाब्न्त आ गमी शै । जशाॉ ऩशरे लवपष दयू दळषन एकभाि चैनर शोता था । अफ वैकड़ो चैनर औय ऩर -ऩर की खफय शय व्मब्क्त तक ऩशुॉचामी जा यशी शैं । arambh.co.in

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आयम्ब ई-ऩत्रिका 2014-15

नभक

चाॉदनी यात भें

(रघुकथा) (तीसया अॊक)

(रघु कववता)

‗शाॉ थचयौंजी रामी शूॉ!‘उव आददलावी भदशरा का

(कववता) (ऩहरा अॊक)

आखखयी वॊलाद था,उव लक़्त का जफ लश फाज़ाय भें व्माऩायी वे भशुआ के फीज के फदरे नभक

जफ भैं चाॉदनी यात भें

भाॊगने आई थी। व्माऩायी ने उवे पीकायते शुए

खुरे आवभान भें

लशाॉ वे त्रफना नभक ददए शी लाऩव बेज ददमा।

तायों को दे खता शूॉ

व्माऩायी के ळधद थे ‗नभक रेना शै तो थचयौजी

दीभदीभाते औय जगभगाते

राना ऩड़ेगा,तबी नभक लभरेगा।‘ उव आददलावी

अच्छा रगता शै औय फशुत अच्छा रगता शै

भदशरा को नभक चादशए था उवके फदरे उवे

खो जाता शूॉ

चाशे भशुआ के फीज दे ने ऩड़े मा कपय थचयौंजी

डूफ जाता शूॉ

दोनों का भक ू म उवेनशीॊऩता औय लश कुछ शी दे य

इन तायो की गशयाइमों भें

भें स्थानीम व्माऩायी के ऩाव ऩुन:आ खड़ी शुमी

जफ भैं कैद कयने के लरए

औय फोरी ‗शाॉ थचयौंजी रामी शूॉ!‘

ऩकड़ता शूॉ

रोकेंर प्रताऩ

आॉखों वे ओझर शो जाते शैं फेचैन,शताळ शोकय कशता शूॉ मे दयू शी अच्छे शैं

अभबषेक कुभाय मादव

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आयम्ब ई-ऩत्रिका 2014-15

बैंस को भाॉ का दजा​ा दे ने की भसफ़ारयश भें (कववता) (ऩहरा अॊक)

दध ू ,दशी,भराई कपय उवे भाॉ का दजाष क्मों नशी? मश यॊ ग बेद शै शाॉ भणडेरा(कारे)औय गोयो का (नस्रलादी नजियमाॉ)

भैने एक बैंव ऩार यखी शै

मा कपय ..

औय ळभाष जी ने गाम

लॊळलाद(ऩूॊजीऩनतमों,याजनेताओॊ,धभष के ठे केदायों

रोग उनके चायऩामें औय

का)

ऩॉूछ लारी को भाॉ फोरते शै

आऩ लारी वे ज्मादा

औय भेयी लारी को

भेयी बैंव शै

लवफ़ष बैंव …

आज तक कबी

फातो शी फातो भे एक ददन

उवे भैंने भाॉ नशी फोरा

ळभाष जी वे ऩूछ फैठा

कपय बी दध ू वऩराती शै

अजी ळभाष जी

मश वयावय ना इन्वापी शै

आऩकी चौऩामें को भाॉ क्मो फोरते शै ो़ ळभाष जी फोर ऩडे-

फेलजश रोगो ने बैव को रताड़ यखा शै

अजी लो अऩने

अगय`गाम के आगे`

दध ू ,दशी,घी वे

फीन फजाने वे लश डान्व कये गी ?

शभें भाॉ की तयश ऩारती शै

राठी के फर ऩय

तो क्मो ना कशे

गाम क्मो नशी राई जा वकती ?

शभ उवे भाॉ

कारा अषय बैव फयाफय

भेयी दफती नव जैवे –

क्मो नशी शो वकता ?

खर ु गमी ….

तभाभ औय तथ्म जो बैव के लवय

जी..लो तो वायी खुत्रफमाॉ

थोऩे गए गरत शै

भेयी बैंव भें बी शै

मदद वशी शै …

औय तो औय भेयी बैंव

तो लश गाम के लरमे बी

आऩके चौऩामें वे बी दे ती शै ज्मादा

इवलरए बैव को बी

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औय गाम को इज्जत फक्ळी शै

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साॊऩ से फड़े नेता जी

भाॉ का दजाष दे ने का ऩषधय शूॉ भैं जज वाशफ ।

(कववता) (ऩहरा अॊक)

दीऩक जमसवार

जफ एक वाॊऩ ने नेता को डवा नेता तो फचा ऩय वाॊऩ फेचाया पवा नेता को डवते शी वाॊऩ ददष वे झीऩीामा औधे भॉश ू अऩने आऩ को पळष ऩय ऩामा, नेता ने वाॊऩ को उठामा ,प्माय वे वशरामा , दध ू वऩरामा औय कुछ मूॉ वभझामा – भख ू ष एक छोी​ी-वी ज़शय की थैरी ऩाकय इतयातेय शो? नेता औय आदभी का पकष बर ू जाते शो? वन ु ा शै तम् ु शाये इवी बायतलऴष भें ळॊकय शुआ था ब्जवने ऩयोऩकाय के लरए घड़ा ज़शय का वऩमा था भैं बी आज अऩनी जनता को जानतलाद , षैिलाद , वाम्प्रदानमकता का ज़शय वऩरा यशा शूॉ औय ळॊकय की तयश नॊग -धडॊग कय के आऩव भें रड़ा यशा शूॉ।

हे भन्द्त यवव यभन

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तीसया जन : ‘तेया बाग्म’ (कववता) (दस ू या अॊक) शथौड़ा थगयने की रगाताय आलाज फमाॊ कय यशी थी एक कशानी – ब्जवभें शय ऩाि ऩाऴाण था वभम भगय कशीॊ फरलान था, शाथ की भजफूत ऩकड़ यॊ गों की ऊची वरलीें औय झुियष मों भें एक कारूखणक आत्भफर

औय ‗दव ू या‗ उवी फदशारी भें था , जो दब ु ाषग्म वे ककवी की नजय न ऩा वका … अजीफ वलडम्फना थी इव ऩियलाय की ‗ऩशरे‗ की आॉख भें चश्भे न थे ‗दव ू ये ‗ की शाॉथ भें कियश्भे न थे ‗तीवये ‗ के ऩाव ळेऴ वभम न था.. औय औयत एक जो बायी कदभों वे गट्ठय रादे आ यशी थी ; दे ख नजाया दठठकी ‗तीवया‗

उम्भीदी था –

जो फाय–फाय

कक

दव ू ये को ननशाय यशा था ो़ शथौडे को ध्लनन दे ने की कपयाक भें

ो़ ‗दव ू या‗ बी शथौड़ा ऩकडेगा ‗तीवया‗ कुछ रुढ़कता वा शथौड़ा घवी​ीते शुए ऩशरे के वाथ

भुट्दठमाॉ कव यशा था …

शैरेन्द्र भसहॊ

कुछ अठखेलरमाॅेॅॊ के अॊदाज भें श्रभ खेर यशा था । वड़क वे दयू ऩगडॊडडमों का वशाया था , ो़ ीऩक ऩडे कागज औय कैभये ने खफय री ‗तीवये ‗ की अगरे ददन की खफय के वाथ ‗ऩशरा‗ न्माम भें वऩव गमा arambh.co.in

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जरकुम्बी

भेहतय

(कववता) (दस ू या अॊक)

(कववता) (दस ू या अॊक)

जीलन कुछ ऐवे त्रफताता शूॉ ो़

भैं भब्ु क्तफोध शोकय भयना नशी चाशता

कवलता आती नशी कवलताएॉ शूॉ

एक फेचैन भौत ,भेशतय न फन ऩाने की कवक

रगता शै शूॉ एक जरीम ऩौधा ,

ऩय न जाने क्मा शै जो भझ ु े षुधध यखता शै

जरकुम्बी ब्जवे कशते वुना शैं गाॉल भें

ब्जववे ब्जतना बागता शूॉ लशी शोते जाता शूॉ

शभ वफ उवी जरकुम्बी की तयश शै

वड़ान्ध भेयी आत्भा को फेचैन कयने रगती शै

जो अऩनी ककतनी शी ऩुश्तों को

औय भेये नथूने पूरने रगते शै

वड़ाता शै औय कपय…..

―व्मलस्था‖ ब्जवभें शय जगश दयाय शै

लशीॊ जर भें उवी जगश ऩनऩता शै

जीणष–ळीणष औय जजषय शै , ऩय ऩता नशीॊ

ऩत्तों को पुरा कय तैयाता शै जर भें जड़ो को पैराकय अऩनी नई ऩौध उऩजाता शै घूभता शैं, झूभता शैं , पैरता शै

क्मा शै जो उवे थगयने नशी दे ती ,अऩने ऩाीों भें ऩीव दे ती , दे ती शै एक फेचैन भौत भैं आदळषलादी नशी ,रेककन भेयी आत्भा

औय लशीॊ भय जाता शै

भुझे जीने नशीॊ दे यशी ,भुझे यातों भें

ऩय भयता नशीॊ एक औय नए

वोने नशी दे ती ,भैं याशगीय नशीॊ

नए जड़ को जर भें ऩुन्

क्मों नशीॊ लश वभझ रेती इव फात को

जरकुम्बी का आधाय फनाता शै

भैं वलिोश नशी कयना चशता , `भध्मभ भागष`

ऩुया जीलन चि मूॉ शी शभाया चरता शै

ऩय चरते यशना चाशता शूॉ

औय जभीन ऩय ऩशूॉचते शी लभी जाता शै

फुर्दध ! भेयी आत्भा भुझे थधक्कायती शै

ळोऴण का अब्स्तत्ल ऩता नशी ककवका

इव व्मलस्था वे

जर का मा शभाया !

गोऩार

फुर्दध ने बी तो रड़ी थी एक रड़ाई भेयी करभ कागजों ऩय चरते लक्त भेये वीने भें चुबती शै जैवे भेये खून वे स्माशी भाॉगने रगती शै रेककन भै उवें

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आयम्ब ई-ऩत्रिका 2014-15 कैवे वभझाऊॉ भैं लश नशीॊ ब्जवे लश खोजती शै

लभरती शै वच्चाई,

रेककन शय खखड़की ऩय शय कामाषरम भें फैठे भुदों

ब्जवका गरा घोी कय भाय ददमा गमा शै

की तयश जीना बी नशी चाशता

कवाई खाने के फाशय फशते शुए नारे वे बी

रेककन व्मलस्था के शय कोने भें इतनी

आता शै नजय भुझे इॊवानी खुन

फदफू , कचया औय कीड़े शै

कफ़न रऩेते भद ु ाष घभ ू यशे शैं फोर यशे शै ,

कक भेयी आत्भा यो उठती शै औय भेये शाथों भें

भै गौय वे दे खता शूॉ

झाड़ू आ जाता शै ,रेककन लश ताकत अऩने

जनता वुन यशी थी वम्भोशन के वाथ , भैं डया

अन्दय

शुआ शूॉ

नशी रा ऩाता ,ब्जववे इव दनु नमा को कय दॉ ू

इन राळों की वडान्ध ,इनके भुॉश

वाप

की फदफू ककवी को

जैवे ग्रेलळमय भें जभा ऩानी शै , फाियळ के फाद

फेचैन नशी कय यशी शै

चरती शला शै

भेयी आॉखेउव कफ़न रऩेीे वपेदऩोळ को

भुब्क्तफोध तुभ वे डय रगता शै

दे ख यशी थी ,

तुभ भेयी आत्भा के एक कोने भें थे

औय भै डयात शुआ था

रेककन तभ ु पैरते जा यशे

क्मोकक कत्रब्रस्तान कक लश खारी जगश

भुझे डय रगता शै तुभवे , एक फेचैन भौत

जशाॉ वे लश ननकरा था भै जानता था,

वे, कवक के वाथ भयने वे

(जशाॉ ककवी वच्चाई को कपय दफ़न ककमा

`दनु नमा को वाप कयने को एक भेशतय चादशए

जाएगा)

तुभ ब्जव कवक को ददर भें दपन

कफ़न के नीचे ऩड़े धधफों को

कय भये थे ,

औय उवके ऩेी भे उग आए दाॉतों को दे ख

उववे भैं बी ऩीडड़त शो चरा शूॉ

वकता था

औय नुकीरे , धायदाय ऩैने कुदीर वलचायों वे

उवने दफाल फन यख था शय उव तन्ि ऩय

शय जगश वाब्जळ यची जाती शै वता को

जो वच्चाई ददखाती शै ,

शथथमाने की

झठ ु वच शो गमा शै

भेयी आॉखे खयाफ शो गमी शैं

औय जनता दख ु ों की आदी ,प्रनतकिमा भे भैं

शय जगश ददखता शै , कत्रब्रस्तान

रगता शूॉ फड़फड़ने ,

ब्जवभे दफ़न

अलबव्मब्क्त भेयी दपन शो

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कमास

जाती शै , कैवे फनॉू लश भेशतय दनु नमा जो शै कभ वे कभ लशी ददखा वके

(कववता) (दस ू या अॊक)

एक ीाॅॎचष शी खयीद रॉ ू औय ददखा दॅ ू ॎॅॊ शय लश कोना जो वड़ चुका शै जशाॉ वे पैर यशी शै फीभायी ,ळामद कुछ औयों के आत्भा के कोने भें घय कय जाए भुब्क्तफोध मा एक अदना भेशतय ……….

दीऩक जमसवार

भैंने पूरों भें उवकी उॊ गलरमों के ऩोय दे खे शैं जो भुझको छू गमा शै प्माय वे, अशवाव की ळफनभ वे भैं बीगी खड़ी शूॉ, भैंने उवकी आॉखों भें क्षषनतज के ऩाय शैं जो छोय दे खे शैं प्रेभ उवका शै तो भैं आकाळ गॊगा की रड़ी शूॉ वोचती शूॉ आज भैं ककतनी फड़ी शूॉ लो जो भुझको दे श के आगे वे आगे रे गमा शै लो भेया नायीत्ल रे ऩुरुऴत्ल भुझको दे गमा शै एक जीलन भें लो भुझको कई जीलन दे गमा शै लो नज़य रगने की शद तक खफ ू वयू त तो नशीॊ कपय बी उवे भैं आॉख के काजर का एक ी​ीका रगाकय । काळ अऩनी आॉख का ताया फना रेती,फेचायगी का उवको भैं चाया फना रेती भैंने उवके ळधदों भें अऩनी अब्स्भता का प्रनतत्रफम्फ दे खा शै त्रफम्फ भें वलश्लाव का प्रनतत्रफम्फ दे खा शै लो जो भेये आइनों भें छा गमा शै , ध्मान ब्जवकी आशीों भें खो गमा शै शै , भैं बी उवके शोते–शोते शो गमी शूॉ,

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भेये वप्रमतभ

रृदम बी उवका शोते–शोते शो गमा शै भैंने उवकी आॉखों भें बयी थचॊगाियमा दे खी तो उववे भाॉग री तो उववे भाॊग री औय इव आॉचर भें फाॊध री थोड़ी, कक मश दनु नमा फदरने की जया वी ब्ज़द शै भेयी बी भैंने प्रेभ वे उवकी चुनी शै िाॊनत की याशें , वुफश शोते शी खड़ा शोगा कशीॊ फ़ैराए लो फाशें

ऩर्ू णाभा

(कववता) (तीसया अॊक) आओ एक छोीा नाीक खेरें तभ ु थोड़ी दे य के लरमे स्िी फन जाओ औय भै ऩुरुऴ तुम्शायी शय छोी​ी गरती ऩय तुम्शे दो रात औय तीन तभाचे भारूॊ तुभवे अगय योी​ी जर जाए तो तुम्शायी उॊ गरी शी जरा दॊ ू तुभ ददन यात चूकशा चौका झाड़ू ऩोछा कयो फच्चों को स्कूर बेजो,खाना फनाओ ऩशरे घय भे वफको खखराओ औय कपय शाड़ तोड़ भेशनत कयने के फाद,खुद जठ ू न खाओ भै तुम्शाया ईश्लय ऩनत ऩयभेश्लय फनूॊ औय तुभ भेये गुराभ भै जफ बी कशूॉ तुभ त्रफछ जाओ,औय कपय अऩनी शलव ळाॊत कयने के फाद तम् ु शे एक ककनाये पेंक दॊ ू तुभ त्रफरखो योओ लववको औय फॊद कभये भे कैद यशो भेये ऩैय ऩड़ो थगड़थगड़ाओ ककवी वे शॊ वी दठठोरी कयने के वौ कायण फताओ भेये वप्रमतभ एक गर ु ाभ,ळावक फनकय ब्जतना जघन्म ब्जतना नळ ृ ॊव शोता शै उतना शो जाना चाशती शूॉ

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„सरीके‟ का भतरफ

भै भै शलाओॊ की तयश उड़ना चाशती शूॉ, त्रफजरी फनकय चभकना चाशती शूॉ

.

(कववता) (तीसया अॊक)

थचडड़मों की तयश चशकना चाशती शूॉ

तुभको ठगा जाता यशे गा…

फदर फनकय फयव जाना चाशती शूॉ भैछीननाचाशती शूॉ तुभवे तम् ु शाया वफ कुछ भै ऩुरुऴ शोकय थोड़ी दे य के लरमेजानना चाशती शूॉ

जफ तक…. तुभ ककचन भें ऩियलाय के भदाषना वोच को ब्जॊदा यखने के लरए…योदीमाॊ फनाते यशोगी तेज़ाफी शभरों,फरात्काय,दशे ज़ के नाभ ऩय ब्ज़ॊदा

आजादी का भतरफ औय फताना चाशती शूॉ तम् ु शे स्िी शोने का ददष फताओ कैवा यशे गा मश छोीा नाीक भेये वप्रमतभ

जरामी गमी औयतों की आत्भाएॊ.. ….ऩीछा क्मों नशीॊ कयती..कानतर वभाज का न जाने कफ वे ठगा जा यशा शै …तुभको दग ु ाष मा भियमभ के नाभ ऩय.

प्रबाॊशू ओझा ददल्री ववश्वववद्मारम

. गालरमाॊ औयतों ऩय शी क्मों फनती शैं….भाॉओॊ,फशनों के नाभ ऩय. शाॉ आजकर औयतें बी दे ती शैं गालरमाॊ..रेककन लशी. . जैवे शी तुभ इॊददया मा फेनज़ीय शोती शो क्मों उनकी ऩेळाननमों ऩय फर ऩड़ने रगता शै . तुभको ठगा जाता यशे गा…. जफ तक. तुभ आईने भें खुद को ननशायती यशोगी…ले तुम्शे प्रेभ के भोशऩाळ भें फाॉध ठगते यशें गे. जफ तक. तुभ अऩनी मा ऩयामी ळाददमों भें जाती यशोगी…मे तम् ु शे कैद कयते यशें गे.तयीके फदर कय.

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आददवासी स्त्री अजस्भता

तुभको ठगा जाता यशे गा… शॉरी,फॉरी मा ीोरी लुड भें ..आइीभ वोंगों ऩय नचा नचा कय.

(कववता) (तीसया अॊक)

तुभको ठगा जाता यशे गा.

एक स्िी,ब्जवका लजूद

. ब्जव ददन ळादी के यस्भों की आशुनत दे कय. आइनों को तोड़ कय,

दजष शै इनतशाव के ऩन्नों भें जुभष की स्माशी वे शै लाननमत की करभ वे

ककचन की कड़ाशी छोड़ कय.

लरखा गमा उवका इनतशाव ।

ळभष को भदों के कन्धों ऩय रादकय,

शभेळा वे लश छरी गई

ब्जव ददन भदों को जनना फॊद कय.

कबी ऩियलाय के प्रनत

तभ ु दशरीज़ राॉघोगी.. .

कबी ळौशय के प्रनत

जेर के बीतय वे

कबी इकयाय के प्रनत

पाॊवी वे कुछ ऩशरे…

कबी इजशाय के प्रनत ।

कैभयों के वाभने‗वरीका‗लवखाने लारे जान

खूफ ळोऴण ककमा उवका

जामेंगे….

ऩीलायी,वेठ–वाशूकाय,ऩुलरव ऩवन भोय ददल्री ववश्वववधारम

ऩेळकाय याजनेताओॊ ने लभरकय । फना ददमा वफने लभरकय उवे नायी वे लेश्मा । जफ कबी आददलावी को झठ ू े जभ ु ष भें ऩकड़ रे जाती ऩुलरव ऩनत को छुड़ाने के लरए उवे दाॊल ऩय रगाना शोता अऩना ब्जस्भ । ऩनत छूी जाता, ऩत्नी की अब्स्भता के फदरे । आददलावी स्िी वभाज की शभेळा वे फलर दी गई शै चाशे धभष,वभाज,कुर,यीनत–ियलाज

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भैं कारी हूॊ न

मा शो कपय त्रफयादयी की ीकयाय । ददनयात जी तोड़ भेशनत कय ऩेी ऩारती शै अऩने ऩियलायों की

(कववता) (तीसया अॊक)

इवके फालजूद उवे लभरता अभानलीम व्मलशाय,नतयस्काय,फदशष्काय । खेरते शैं वफ दाॊल–ऩें च

आज कपय, ‗फाफा‗ने भझ ु े भना कय ददमा, ‗फाफा‗कशकय फुराने वे.

उवके औय उवके ब्जस्भ के लरए

योज़ की तयश ननकार फाशय ककमा,

थगर्दध की तयश नोचने के लरए,

यवव कुभाय गोंड़ काॉगड़ा(दह.प्र.)

अऩने कभये वे. मूॉ रगा जैवे, अऩनी ब्ज़ॊदगी वे ननकार पेंका शो. ‗भाॉ‗वे ऩूछा था भैंन,े ‗फाफा‗ऐवा क्मों कयते शैं? कपय खुद शी जलाफ दे ती – ‗भैं कारी शूॉ न‗ ळामद इवलरए.

याहुर शभा​ा(करकत्ता)

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आयम्ब ई-ऩत्रिका 2014-15 ऩरयॊदे के कटे ऩॊख… (कववता) (चौथा अॊक)

ऩियॊदे के कीे ऩॊख कशाॉ वे जुड़ते शैं !

की​ी यस्वी के नेी कशाॉ वे खर ु ते शैं !

भेये वलारों के जलाफ कशाॉ वे फनते शैं ! जलाफदे शी भौन उत्तय बी कशाॉ वे दे तेॅे शैं ! ए भेये शभजोरी तू इतना तो फता,

गॉग ू े ळशय भें फशये कशाॉ वे आते शैं ! ऩियॊदे के कीे ऩॊख…..

याज हीयाभन

ए भेये शभवपय तू इतना तो फता,

प्रेभ वे लभरे ज़ख़्भ कशाॉ वे बयते शैं ! ऩियॊदे के कीे ऩॊख…… अऩनों के ददए ददष कशाॉ वे लभीते शैं ! घाल जो लभरे गशये कशाॉ वे बयते शैं ! ए भेये शभददष तू इतना तो फता,

ज़ख़्भी ऺन ू जो फशे कशाॉ वे रौीते शैं ! ऩियॊदे के कीे ऩॊख……

नदी–नारे उकीे ऩरी कशाॉ वे फशते शैं ! नदी के ऩत्थय धऩ ू कशाॉ वे वेंकते शैं ! ए भेये शभयाज़ तू इतना तो फता,

नाल भें गशये वागय कशाॉ वे डूफते शैं ! ऩियॊदे के कीे ऩॊख……

रोग नपयत के फीज कशाॉ वे फोते शैं ! रोगों को फददल ु ाएॉ क्मों कशाॉ वे दे ते शैं ! ए भेये शभयाशी तू इतना तो फता,

इन्वानी ददर,ऩय प्माय कशाॉ वे कयते शैं ! ऩियॊदे के कीे ऩॊख……

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आयम्ब ई-ऩत्रिका 2014-15

तें दए ु ॉ

कक शभ यक्त फनाते जाए लो ऩीता जाए घाघ ,दागदाय ,ळातीय ,कानतर

(कववता) (चौथा अॊक)

कक कत्रब्रस्तानों औय गशयें कुओॊ भें शो जाएॉ दपन

फॊध गमी शला ,फढ गमी ऊभव

ले वाये वलचाय जो शभायी जफानों ऩय भढ़ गए

थचऩथचऩा ऩवीना ,अवनीम फदफू

तारे

चीखती कोई आलाज ,ऩुकायती कोई आलाज

ले वायी दास्तानें ब्जन्शोने नशी दे खी वॊकयी

कयाशती –लववकती कोई आलाज

फचा रो भझ ु े , धड़–धड़ धड़ाभ औय पैर गमा वन्नाीा

वभानता बाईचाया– याग फेयाग फड़ी –फड़ी फातें ढोंग औय मश चोरा मे थचतकफये

तें दए के ु ॉ ,भाॊव के बख ू े ,खन ू

प्मावे

…..॥ ननफषर ,अवशाम ,खभोळ ,दमनीम,खौप –

– कपय

तुभ

दो

आन्दोरन –कय

छे ड़

फगालत –तें न्दॉ आ दे ख यशा शै ु भुझवे

थचऩकी

भेयी

भजफुयीमाॉ

कान भॉश ु के यास्ते बय गमी ऊभव भेये भब्स्तष्क भें

खखॊच यशा था वाॉव ,ऩुतलरमाॉ पैर यशी थी भेयी कक चौक गमा

औय

दो मश

ऊभव ,फदफू , दभघोीूॊ शला डॉक्ीय ने फतामा

इव व्मलस्था भें वाये भध्म लगष को अस्थभा शै औय ननम्न लगष को एनीलभमा तें दए ु ॉ का बया ऩेी ,बया खन ू वे गोदाभ arambh.co.in

फाशय ननकर आमी शै भेयी

.. भेये

वाभने था भेया ऩड़ोवी

भेया लभि

दे नशी वकता वाथ तुम्शाया चाशे

दे खती शै कठऩुतलरमाॉ

कोठयी भें थका–

मा भेये पेपडों भें बय गमी शै श्रेष्भा तरक

तें दए ु ॉ अक्वय फुनते शै खन ू ी ऩॊजों वे जार

भैं ऩूये दभ वे बागा ,फेवुध –नछऩ गमा –अॊधेयी

शाॉपता शूॉ खखचते शुए वाॉव कक शो गमा शो खत्भ वाया ऑक्वीजन

– दयू

कशानी

तें दए ु ॉ को रग गमी बनक ले थे चायों तयप

वन्नाीा

कक शै भुझे अस्थभा

फड़ी–फड़ी भॊब्जरे कशती शै वाब्जळ की एक

नाक

कोीयो भे दफ ु की आॉखे औय उनकी वूखी ननयव औय मश चीॊख –कपय चप्ु ऩी

गलरमों की लववकती यातें

आॉख

नाउम्भीदी ऩुतलरमा

ब्जवकी शय वपरता ऩय भेया वीना चौड़ा शुआ था ब्जवकी जीत अऩनी जीत रगी थी

– ककवी

जभाने भें लश बी था भेयी जभात का उवे दे खकय ,भझ ु े फड़ा वक ु ू न लभरा

शॉ वते शुए उवने गरे रगामा औय तऩाक वे बोंक ददमा छुया भेये ऩीठ भें

भैनें दोफाया की उवे ऩशचानने की कोलळळ भगय थगय ऩड़ा फेवुध Page 87


आयम्ब ई-ऩत्रिका 2014-15 जफ शोळ आमा तफ तें दए ु ॉ की जभात भें लश बी खड़ा था

खन ु ननकार यशे थे ले भेये ळयीय वे औय वाये अॊग

(कववता) (चौथा अॊक)

जफ लो शभाये घय आई

भैं लवपष दे ख यशा था कुछ दे य फाद भेयी आॉख ननकार री जाएगी भैं भय यशा शूॉ तें दए ु ॉ फुन यशे शैं जार

चभक यशी शै आॉख उव अॉधेये भें ो़ ढे य वायी राळे ऩड़ी शै षत –वलषत अबी औय आनी शै …

तें दॉ ओ ु ॊ के ीऩक यशे शैं राय.. ीऩ ीऩ ीऩ शभ वफ कताय भें शैं

झाड़ू मा नायी

—-

दीऩक जामसवार

नानी ने नर वे ळादी कयलाई भैं रामा था चाल वे ऩड़ी स्कूीय की छाॉल भें

ऩदशमे के नीचे फार दफे वुफश खड़ी शोकय वपाई कयती कबी फैड के नीचे

कबी छाीती वड़क के ऩत्ते कबी छतों के जारे कपय ऩशुॉच जाती लशीॊ

जशाॉ उवकी जगश थी पळष नघव–नघव कय खद ु नघव गई, पळष वाफ़ लो भैरी

अफ दक ु ानों ऩय लभरती शै , भैं दे ख कय वभझ यशा शूॉ, उवकी ब्जॊदगी,

फेचायी दलरत औय दलभत लो झाड़ू……. अफ बी अळाॊत वड़क ऩय आ गई चभकीरे ऩत्थय वे…. अफ मािा वभाप्त अॊत भें जरा, फशा, दफा ददमा गमा……. अफ अगरी की फायी शै , मे झाड़ू शै मा नायी शै…?

गौयव वभा​ा शोधाथी

भ॰ गा॰ अ॰ दहॊ॰ वव॰ वधा​ा

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आयम्ब ई-ऩत्रिका 2014-15

पूर नही भैं रेखक हूॊ (कववता) (चौथा अॊक)

भैं तो शू अदशॊवा का ऩज ु ायी भेये इव ऩज ू ा के श्रेम को…

अफ तभ ु बी खद ु जरऩान कयो…

भझ ु े रेखक शी तभ ु यशने दो……

कवलता रूऩी जो– कुछ ळधद लरखे शैं .

भेये भन की भधयु वलु भियनो भे,

भैं स्लप्रेभ की आव लरमे …

औय ळनै –ळनै भेये कानो भे

इवलरमे लभरन की त्माग ककमे …

कामा भे वाॊवे फोर यशी

भन की दशॊन्डोरे डोर यशीॊ

कुछ कयने को शै फोर यशीॊ

ऐवे ऩालन वलचयण भे तुभ . कोई ना दखरॊन्दाज कयो.

अऩने भधयु प्रेभ की नैमा को तुभ अऩने शी ऩाव यखो.

भेये भन की बाल बब्न्गभा को भुझे मूॊ शी तुभ लरखने दो …

उनका कुछ गण ु गान कयो…

भुझे आळ नशी शै लभरने की

भैं ऩुन: गुजाियळ कयता शूॊ | जो ददखता शूॊ – लो लरखता शूॊ … भेये इव काव्म प्रेभ को तुभ वतत प्रलादशत फशने दो……

पूर नशी भैं रेखक शूॊ भुझे रेखक शी तुभ यशने दो…… चन्द्रहास ऩाॊडम े

पूर नशी भैं रेखक शू भुझे रेखक शी तुभ यशने दो…… भैं कदभो भें इक चार लरमे .… जीलन के शय भोडो ऩय खारी शाॊथो भे ढार लरमे… औय थचय अनॊत तक चरने लारी वत्मभेल की याश लरमे … अऩने रक्ष्मों को दे खू भैं

इव चाशत की रौ– लभळार लरमे … भैं प्मावा शू ब्जव दियमा का | भुझे खोज सान की कयने दो ……

पूर नशी भैं रेखक शू भुझे रेखक शी तुभ यशने दो…… भेये इव जीलन के ध्मे म को वत्म शो मा वत्मभेल को

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आयम्ब ई-ऩत्रिका 2014-15

अऩने-अऩने फदराऩुय,

ऻयीफ आदभी नशीॊ शै कक उवे वशी ऩयलियळ न लभरी शो। लश अॊग्रेज़ी ऩढ़ा–लरखा भध्मलगीम

अऩनी-अऩनी कैद..

मुलक शै ,ऩय फदरे की आग ने उवके वाये नैनतक भूकमों को ऺाक कय ददमा शै । भज़ेदाय फात शै

( सभीऺा) (तीसया अॊक)

कक लश ॱफदराऩुयॱ नाभ के कस्फे भें शी यशता

फदराऩुय एक योचक कफ़कभ शै । फेशद योचक। मश

शै । मश प्रतीक उवकी भन्ब्स्थनत फताने के लरमे

दळषक

गढ़ा गमा शै ।

को

बीतय

तक झकझोय

बी

वकती

शै ;फळते उवके भैवेज को ठीक वे ऩकड़ा जाए।

लश फदरे की आग भें इव कदय ऩागर शै कक

कशानी लवफ़ष इतनी शै कक दो रुीेये एक फैंक रूी

एक रुीेये की प्रेलभका वे(जो अऩनी भजफूियमों

को वपर फनाने की कोलळळ भें षखणक आलेग

के चरते लेश्मा शै )लशलळमाना तयीके वे मौन

भें आकय एक भदशरा औय उवके फच्चे की गैय–

वॊफॊध फनाता शै ताकक उवके प्रेभी को तड़ऩा

इयादतन शत्मा कय दे ते शैं। उनभें वे एक ऩैवा

वके। जफ १५ वार की जेर के फाद इव रुीेये

रेकय फ़याय शो जाता शै औय दव ू या ऩुलरव की

के कैं वयग्रस्त शोने की जानकायी नामक को

थगयफ़्त भें आने के कायण २० वार की कैद

लभरती शै तो लश इव फात को बी वेलरब्रेी

ऩाता शै । मश दघ ष ना भावूभ वे ददखने लारे ु ी

कयता शै । कपय लश दव ू ये री ु े ये औय उवकी

नामक को(जो भायी गई भदशरा का ऩनत औय

ननदोऴ ऩत्नी का हत्र कयता शै ,लश बी काफ़ी

फच्चे का वऩता शै )फदर दे ती शै । लश यात–ददन

ऩये ळान कयने के फाद। लश एनजीओ चराने

फदरे की आग भें झर ु वता शै औय रगाताय

लारी उव भदशरा वे बी फदरा रेता शै जो उवे

अऩनी नफ़यत को ब्ज़ॊदा यखता शै । ऩॊिश वारों

कैं वयग्रस्त अऩयाधी को भाफ़ कयने के लरमे

फाद उवे ऩता चरता शै कक दव ू या रुीेया कौन

वभझाती शै । लश प्माय का नाीक कयके उवके

था?लश उवे औय उवकी ऩत्नी को लशळी तयीके

ळयीय औय बालनाओॊ के वाथ खेरता शै । ळामद

वे भाय डारता शै । दव ू या रुीेया कैं वय शो जाने

लश उवकी फेी​ी को बी तड़ऩाना चाशता शै ,ऩय

के कायण नतर–नतर के भयता शै । इवी त्रफॊद ु ऩय

लश शॉस्ीर भें शोने के कायण फच जाती शै ।

नामक का फदरा ऩूया शोता शै ।

ळरू ु

ऩय इव कशानी का भभष कुछ औय शै । लश

वशानब ु नू त शोती शै क्मोंकक उवकी ऩत्नी औय

नामक के भन भें जभी नफ़यत ऩय वोचने को

फच्चा फेकवूय शोकय बी बमानक तयीके वे भाये

भजफूय कयती शै । नामक कोई अनऩढ़ मा इतना

गए शैं। ऩय धीये –धीये दळषक उवकी नफ़यत वे

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भें

दळषक

को

नामक

के

प्रनत

गशयी

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आयम्ब ई-ऩत्रिका 2014-15 तादात्म्म स्थावऩत कयने भें अवभथष शोता जाता

भशीने की शी ब्ज़न्दगी फची शै औय लश इवे बी

शै क्मोंकक लश ऺुद फदरा रेने की प्रकिमा भें

जेर के नाभ कय दे ता शै । उवी जेर के नाभ

कई फेकवूयों को ननळाना फनाता शै । कोई बी

जशाॉ वे फ़याय शोने की दो अवपर कोलळळें लश

भनुष्म अऩनी वाभान्म वभझ वे जानता शै कक

कय चुका था। लश नामक का ज़ुभष अऩने लवय

फेकवयू

वे

इवलरमे रेता शै ताकक नामक को फदरे की आग

जुड़)े ककवी फेहवूय का हत्र नशीॊ शो वकता।

औय जेर की कैद वे भुक्त शोकय अऩनी ब्ज़ॊदगी

मुर्दध भें वफ कुछ जामज़ शोने की कशालत चाशे

जीने का एक औय भौका लभर वके। लश

प्रलवर्दध शो,वच मश शै कक उवकी बी एक

भौका,जो गयीफी औय जशारत वे बयी उवकी

भमाषदा शोती शै । मशी कायण शै कक ऺतयनाक वे

ब्ज़न्दगी ने खुद उवे कबी नशीॊ फख़्ळा था…

ऺतयनाक गैंगस्ीय बी अभभ ू न अऩने दश्ु भनों के

औय कफ़कभ के इन्शीॊ आखऺयी रम्शों भें वफ कुछ

ऩियलायों ऩय शभरा नशीॊ कयते..

फदर जाता शै । नामक खरनामक फन जाता शै

कफ़कभ के अॊत वे एक–दो लभनी ऩशरे तक भैं

औय खरनामक के बीतय वे नामक उबयता शै ।

वोच यशा था कक फदरे की इव अॊधी आग को

म,ूॉ दोनों शी एक–दव ू ये के शाथों शुए कत्रों की

इतना ग्रोियपाई कयके रेखक।ननदे ळक आखऺय

वज़ाएॉ बुगतते शैं;ऩय खरनामक इव रेन–दे न

क्मा भैवेज दे ना चाश यशा शै ?शभाया वभाज तो

को ब्जव औदात्म औय ब्ज़ॊदाददरी के वाथ

लैवे शी इव भानलवकता वे ऩये ळान शै । कबी

ननबाता

तेज़ाफी शभरे भें,कबी ऑनय ककलरॊग्व भें तो

शालवर शोती शै ;औय नामक उवके फड़प्ऩन के

कबी वाॊप्रदानमक दॊ गों भें मशी फदरे की आग

वाभने फौना वात्रफत शोता शै । नामकत्ल औय

नए–नए

तो

खरनामकत्ल की ऐवी घुरनळीरता नलरेखन

ननदे ळक इव आग को औय बड़काकय क्मा

औय ऩयलती दौय के दशॊदी नाीकों औय उऩन्मावों

शालवर कयना चाशता शै ?

भें तो ददखती यशी शै ,ऩय दशॊदी लवनेभा भें मश

ऩय क्राइभेक्व के त्रफद ॊ ु ऩय कशानी भें ीननिंग

एक भौलरक उऩरब्धध शै । इवके लरमे ननस्वॊदेश

ऩॉइॊी आता शै औय भेयी थचॊता दयू शोती शै । एक

रेखक–वश–ननदे ळक श्रीयाभ याघलन को फधाई दी

री ु े या,जो फचा शुआ शै (औय जो अवरी शत्माया

जानी चादशमे।

बी था),नामक र्दलाया दव ू ये री ु े ये औय उवकी

कफ़कभ तो अचानक इव झीके के वाथ ऺत्भ शो

फीली की की गई शत्मा का आयोऩ अऩने लवय रे

गई;ऩय उवने भजफूय ककमा कक इवके अथष का

रेता शै औय कफ़य जेर चरा जाता शै । ऻौयतरफ

वलस्ताय जीलन तक कयके दे खा जाए। औय कफ़य

शै कक कैं वय वे ऩीडड़त इव व्मब्क्त की ७–८

वाफ़ नज़य आमा कक शभ वफ अऩने–अऩने

के

रूऩों

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हत्र

भें

का

जलाफ(कवयू लाय

वुरगती

ददखती

शै ।

शै ,उववे

उवे

नामकोथचत

भशानता

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आयम्ब ई-ऩत्रिका 2014-15 फदराऩुय के कैदी शैं। शभ वफकी अऩनी–अऩनी

औय अॊनतभ षणों भें लश उवे चौंकाकय एक

दशी लरस्ी शै औय शभ वायी ब्ज़ॊदगी कुछ

कामदे की फात लवखा दे ती शै । लशी फात जो

नपयतों को ननबाने भें ननकार दे ते शैं। कशीॊ

फुर्दध,भशालीय,ईवा भवीश औय भशात्भा गाॊधी बी

दशॊद–ू भुवरभान के नाभ ऩय;तो कशीॊ लळमा–

वभझाकय गए शैं कक नफ़यत की आग भें जरने

वन् ु नी,मशूदी–भव ु रभान,श्लेत–अश्लेत मा खानदानी

वे फेशतय शै षभा कयके अतीत की ऩीड़ा वे

औय व्मालवानमक नफ़यतों के नाभ ऩय। औय इन

भुक्त शो जाना। गाॊधी जी ने कशा था ककॱआॉख

नफ़यतों को ननबाने के चक्कय भें ब्ज़ॊदगी शाथ

के फदरे आॉखॱका ननमभ वायी दनु नमा को अॊधा

वे कपवर जाती शै । ब्ज़ॊदगी,जो एक शी फाय

फना दे गा। शोना तो मश चादशमे कक जो तुम्शाया

लभरी शै औय ब्जवे फेशतय तयीके वे ब्जमा जा

फुया कये ,तुभ उवका बी अच्छा कयो। यशीभ की

वकता शै …

बाऴा भें कशें तोॱजो तोकू काॉीा फुलै,फोऊ तादश

एक भौजॉ ू वा अथष मश बी नछीका कक ॱऩढ़े

तू पूरॱ। वनद यशे कक प्रनतळोध की ताहत शोने

लरखेॱ औय ॱवभझदायॱ को वभानाथी भानना

ऩय बी भाफ़ कय दे ना कभज़ोयों का नशीॊ,लीयों का

ऻरत शै । ॱऩढ़ा लरखाॱ नामक १५ वारों भें बी

रषण शै । षभा लीयस्म बऴ ू णॊ…

अऩनी नफ़यत को नशीॊ वॊबार वका जफकक एक

ववकास ददव्म कीतता

अनऩढ़ वे खरनामक ने फशुत जकदी औय कयीने वे अऩनी नपयत को शया ददमा। वभझदायी का वम्फन्ध

अषय

सान

मा

डडथग्रमों

वे

नशीॊ

शोता,एक वुरझे शुए ददभाग वे शोता शै । मशी कायण शै कक कफीय जैवा अनऩढ़ आज तक के वबी डडग्रीधाियमों ऩय बायी ऩड़ता यशा शै जफकक ऩढ़ाई वे इॊजीननमय शोते शुए बी ओवाभा–त्रफन– रादे न दनु नमा को नफ़यत का ऩैगाभ शी दे ऩामा। ननचोड़

मश

कक

कफ़कभ

दे खने

रामक

शै ।

नलाज़र्द ु दीन लवर्दददकी औय वलनम ऩाठक का अलबनम तो अच्छा शै शी;लरुण धलन,शुभा कुयै ळी औय ददव्मा दत्ता ने बी ठीक वे ननबामा शै । कफ़कभ दळषक को फाॊधकय यखने भें वफ़र यशी शै arambh.co.in

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आयम्ब ई-ऩत्रिका 2014-15

दभरत स्त्रीवाद की

खोज

बीतय

कयना,अत्मन्त

ऐवा लगष–वभूश शै ब्जवे न तो नायीलादी–वादशत्म

अभबव्मजतत‟ ऩस् ु तक की

भें स्थान लभरा औय न शी दलरत वादशत्म भें शी।

सभीऺा

मशाॉ प्रश्न उठता शै कक दलरत नायीलादी–वलभळष की आलश्मकता क्मों ऩड़ यशी शै औय नायीलादी

( सभीऺा) (तीसया अॊक) इव ऩुस्तक„दभरत स्त्रीवाद

की आत्भकथात्भक

अभबव्मजतत‘ का वज ृ न ‗याभ नये ळ याभ जी‘ र्दलाया वन ्2013के अन्त भें

प्रकालळत ककमा

गमा। मश ऩुस्तक ऐवे वभम भें प्रकालळत शुआ ब्जव वभम बायतीम दशन्दी वादशत्म भें

नायीलादी तथा दलरत–वादशत्म अऩने वलकाव की ओय अग्रवय शो यशा शै । आधुननकमग ु भें लैश्लीकयण औय बभ ू ॊडरीकयण के इव दौय ने बायतीम दशन्दी वादशत्म को अनेक

के

प्रावॊथगक,ककन्तु चुनौतीऩूणष बी यशे गा। मश एक

आत्भकथात्भक

शै

अब्स्भता

लादों

औय

वाभाब्जक

अब्स्भता

रूऩी

वॊघऴों वे अलगत कयलामा शै । इध्र कुछ लऴों भें दशन्दी वादशत्म भें स्िाॅी– वलभळष औय दलरत–वलभळष ऩय फशुत–वी चचाषएॉ एलॊ अध्ममन शुए शैं। ब्जवके ऩियणाभस्लरूऩ वभाज भें अब्स्तत्ल की ऩशचान भुख्म धया के रूऩ भें कामष कय यशी शै । स्िाॅी–वलभळष ने जशाॉ वादशत्म के षेि भें अऩना वलळेऴ स्थान फनाने भें वपरता ऩाई शै । लशीॊ दलरत–वादशत्म अबी बी वॊघऴषयत प्रतीत शोता शै औय ऐवे भें ,दलरत नायीलाद की चचाष कयना,उनकी अब्स्भता की arambh.co.in

तथा दलरत–वलभळष वे मश ककव प्रकाय लबन्न शै । इवके जलाफ स्लरूऩ कशा जा वकता शै कक बायत भें ब्स्िमाॉ चाशे लश दलरत–वभाज की शो मा गैय–दलरत वभाज की,वबी इव वऩतव ृ त्तात्भक वभाज भें ळोवऴत शोती यशीशैं। ककन्तु दलरत– वभाज की ब्स्िमाॉ केलर वभाज र्दलाया शी नशीॊ,अवऩतु अऩने ऩियलाय र्दलाया बी ननयन्तय प्रताडडत की जाती यशी शै । बरे शी दलरत ो़ ब्स्िामाॉ घय वे ननकरकय कामष कयती यशीॊ शैं ककन्तु उन्शें ळोऴण औय अत्माचाय का मश दॊ ळ प्रत्मेक स्तय ऩय वशना ऩड़ा शै । आजआधुननकमग ु भें बरे शी नायीलादी वलभळष का प्रबाल वादशत्म ल वभाज ऩय ऩड़ यशा शै औय इववे वलणष ब्स्िमों को लळषा ल योजगाय के वभान अलवय बी प्राप्त शो यशे शैं ककन्तु दलरत लगष की ब्स्िमाॉ आज बी लळषा ल योजगाय वे कोवों दयू शै । ऐवे भें मश ऩुस्तक उन दलरत– ब्स्िमों के अब्स्तत्ल ल अब्स्भता के प्रश्न को अत्मन्त वळक्त रूऩ वे उठाता शै । जो अफ तक अऩने भौलरक अब्ध्कायों एलॊ वाभाब्जक अब्स्तत्ल Page 93


आयम्ब ई-ऩत्रिका 2014-15 वे लॊथचत यशी शै ।

ऩय प्रनतयोधर्दलाया नायी एलॊ दलरत भुब्क्त चेतना

इव ऩुस्तक के भाध्मभ वे रेखक ने दलरत–

के प्रश्न को उठामा शै ।

ब्स्िमों

की,उनके

बायतीम

आब्त्भक

ऩूॊजीलाद,उऩननलेळलाद,और्दमोथगक,िाॊनत आदद के

ओय

प्रबाल वे उत्ऩन्न प्रनतयोध ् की वॊस्कृनत र्दलाया

प्रत्मेकफुर्दथधजीवलमोंका ध्मानाकवऴषत कयने का

दलरत–नायीलादी–वलभळष के प्रश्नों को उठाने का

वऩपर प्रमाव ककमा शै जो इव ऩुस्तक को

प्रमाव इव अध्माम भें रेखक ने ककमा शै ।

अत्मन्त भशत्लऩूणष एलॊ प्रावॊथगक कयता शै ।

ऩुस्तक के र्दवलतीम अध्माम भें ‗दलरतस्िीजीलन‘

इव ऩुस्तक भें कुर नौ अध्माम भाने जा वकते

भें

शैं। ब्जवभें रेखक ने वललबन्न स्तयों ऩय दलरत

ब्स्िमों

नायीलादी वॊलेदनाओॊ को प्रनतस्थावऩत कयने का

औयऩयाधीनफतामा

वऩपर प्रमाव ककमा शै । इव वम्ऩूणष ऩुस्तक के

अत्मन्त भशत्लऩूणष एलॊ प्रावॊथगक फनाता शै । इव

वज ृ न का आधय वलख्मात दलरत रेखखका ‗फेफी

अध्माम भें रेखक ने दलरत–स्िाॅी जीलन को न

काॊफरे‘ की

शभाया‘ औय

केलर वलणष ब्स्िामों अवऩतु गयीफ,भेशनतकळ

‗कौळकमालैवॊिी‘ की आत्भकथा ‗दोशया अलबळाऩ‘

ब्स्िामों के जीलन वे बी अब्ध्क वॊघऴषऩण ू ष भाना

शै ।

शै ।

रेखक ने अऩनी ऩुस्तक के प्रथभ अध्माम

वऩछड़ेऩन की लजश को इॊथगत कयने के लरए

‗प्रनतयोध ् की वॊस्कृनत औय स्िाॅी वलभळष‘ र्दलाया

‗कौळकमालैवॊिी‘ की आत्भकथा ‗दोशया अलबळाऩ‘

बायतीम वॊस्कृनत भें ननयन्तय शुमे ऩियलतषनों

को आधय फनामा शै । इव अध्माम र्दलाया रेखक

र्दलाया नायी अब्स्भता के प्रश्नों को उठामा शै

ने

तथा

जामे?जैवे फुननमादी प्रश्नों को उठामा शै तथा

के

अब्स्तत्ल

लॊथचतअथधकायोंकी,उनकी वॊलेदनाओॊ,उनके

इव

जीलन–वॊघऴों

आत्भकथा

प्रनतयोध ्

‗जीलन

की

की

वॊस्कृनत

के

वभाज

ऩय

दलरत ब्स्िमों के जीलन को गैय–दलरत के

उन्शोंने

दलरत

शै

वादशत्म

कौन का

वे

बीअथधकअलबळप्त

जो

इव

भें

शै ?औय

दलरत

ककवे

वाभाब्जक

एलॊ

ऩुस्तक

को

ब्स्िामों

दलरत

के

भाना

ननभाषण,वलकाव के स्लरूऩ तथा कायणों को स्ऩष्ी

इन

कयने का प्रमाव रेखक र्दलाया ककमा गमा शै ।

भान्मताओॊ कोआधायफनाकय जलाफ दे ने का बी

दशन्द ू वॊस्कृनत वे दलरत एलॊ स्िाॅी–वलभळों के

प्रमाव ककमा शै ।

लचषस्ल की ीकयाशी र्दलाया रेखक ने प्रनतयोध ्

इवके ऩश्चात ् बायतीम वभाज भें स्िीऔय ऩुरुऴ

की वॊस्कृनत के ननलभषत शोने की फात कशी

के अब्स्तत्ल एलॊ उनके आऩवी ीकयाशीों र्दलाया

शै ।धभष,जानत,वभाज,वभ्मता आदद वललबन्न स्तयों

वभाज की फदरती भान्मताओॊ को वभझाने का

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प्रश्नों

जीलन

वाॊस्कृनतक

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आयम्ब ई-ऩत्रिका 2014-15 प्रमाव

शुआ

शै

स्लामत्तअब्स्तत्ल

तथाआधुननकवभाज की

फात

स्ऩष्ी

भें स्िीके

कयते

शुए

को स्ऩष्ी ककमा शै । वभाज

की

वललबन्न

ऩष्ृ ठबूलभ

जैव

दलरत–स्िीकी बायतीम वभाज भें जो रूऩ–ये खा

ऩियलाय,धभष,जानत,वॊस्काय,वलणों की भानलवकता

तथा ऩशचान शै उवे फड़े शी भालभषक ढॊ ग वे

आदद अनेक स्तयों एलॊ ऩियब्स्थनतमों र्दलाया

प्रस्तत कय,उन्शें ु

दलरत–स्िीजीलन के वॊघऴष,ळोऴण,उऩेषा,शीनता–

वलणष–ब्स्िमों वेअथधकळोवऴत

एलॊ लॊथचत रूऩ भें प्रस्तुत ककमा शै ।

बाल,अत्माचाय आदद को प्रस्तुत कयने का प्रमाव

ऩुस्तक के तत ृ ीम अध्माम ‗दलरत आत्भकथाओॊ

मशाॉ शुआ शै ।

का उर्दबल औय वलकाव‘ भें रेखक ने दलरत

मदद इव अध्माम को ऩुस्तक का भेरूदन्ड कशा

आत्भकथाओॊ के वज ृ न का कायण,उनके वलकाव

जामे तो अनतश्मोब्क्त नशीॊ शोगी। मश अध्माम

के स्लरूऩ ऩय प्रकाळ डारते शुए उन्शोंने दलरत–

दलरत–ब्स्िामों

के

आत्भकथाओॊ के वाभाब्जक–वाॊस्कृनतक कायणों

ऩष्ृ ठबूलभ

ऩयत–दय–ऩयत

को उजागय ककमा शै तथा इनके वलकाव भें

चरता शै ।

भयाठी दलरत आत्भकथाओॊ के वलळेऴ मोगदान

ऩॊचभ अध्माम ‗जीलन दळषन का वभाजळास्ि‘ भें

की ऩष्ृ ठबूलभ को स्ऩष्ी ककमा शै ।

रेखक भानते शैं कक दलरत वादशत्म भें ब्जव

इव अध्माम र्दलाया रेखक ने दलरत–ब्स्िमों की

जीलन–दळषन की अलबव्मब्क्त शुई शै लश दशन्द ू

आत्भकथाओॊ के बायतीम वादशत्म भें वऩछड़ेऩन

जीलन दळषन के वलऩयीत शै इवलरए दलरतों के

तथा अबाल के कायणों को उजागय कयते शुए

जीलन

उनकी आत्भकथाओॊ के प्रनत वलळेऴ जागरूकता

ब्राह्भणलादी वभाजळास्ि वे वलषथा लबन्न शै ।

की आलश्मकता को स्ऩष्ी ककमा शै

इवके

अथाषत ् लश वाभान्म जीलन दळषन तथा दलरत

अनतियक्त,इन दलरत–ब्स्िामों की आत्भकथाओॊ

जीलन दळषन भें ऩमाषप्त अन्तय को स्लीकायते शै

की

दलरत–

औय फताते शैं कक प्रत्मेक लगष का जो जीलन

रेखखकाओॊ एलॊ दलरत ब्स्िामों के जीलन की

दळषन शोता शै उवी के आधय ऩय उनके वभाज

वाभाब्जक तथा वाॊस्कृनतक ळोऴण के दोशये

का ळास्ि ननलभषत शोता शै ।

स्लरूऩ वे अलगत कयलाने का वपर प्रमाव

इव अध्माम भें रेखक ने दलरतों के जीलन

ककमा शै ।

दळषन काआधायअम्फेडकय जी के जीलन दळषन

चतुथष अध्माम ‗दलरत स्िाॅी आत्भकथाओॊ भें

को भाना शै । इवके अनतियक्त भयाठी तथा

स्िाॅी जीलन‘ र्दलाया रेखक ने दलरत–ब्स्िामों के

दशन्दी

जीलन के वललबन्न वॊघऴष,ळोऴण,अत्माचाय आदद

स्िाॅी–ऩुरुऴ के अरग–अरग ीकयाशी की लजश

वलऴम–लस्तु

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र्दलाया

रेखक

ने

को

का

दलरत

जीलन–वॊघऴों

वभाजळास्ि

उजागय

दशन्द ू

आत्भकथाकायों

के

के

प्रत्मेक कयता

जीलन

जीलन

मा

भें

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आयम्ब ई-ऩत्रिका 2014-15 को बी स्ऩष्ी ककमा शै वाथ शी भयाठी दलरत

उऩेषा शुई शै ,औय दलरतों ऩय फनीकपकभों की

ब्स्िामों

कलभमों को बी उजागय ककमा शै ।

तथा

दलरतब्स्िमोंके

दशन्दी

दलरतब्स्िमोंतथा

तथा

इव ऩुस्तक के अब्न्तभ अध्माम भें रेखक ने

प्रबाल को फताने का प्रमाव मशाॉ शुआ शै । दलरत

दलरत आत्भकथाकाय वळ ु ीरा ीाकबौये जी का

आत्भकथाओॊ के अबाल के कायणों को बी स्ऩष्ी

वाषात्काय रेकय उनके र्दलाया दलरत–ब्स्िामों के

कयने का प्रमाव यशा शै ।

जीलन वॊघऴष तथा ऩाियलाियक औय वाभाब्जक

रेखक ने ऩुस्तक के ऴष्ठभ ्,वप्तभ तथा अष्ठभ

ळोऴण को प्रभाखणकता प्रदान कयने का प्रमाव

अध्माम र्दलाया अरग–अरग वलध भें दलरत–

ककमा शै ।

ब्स्िामों के जीलन की ऩष्ृ ठबूलभ को स्ऩष्ी कयने

मदद शभ वम्ऩूणष ऩुस्तक की बाऴा ऩय नजय

का प्रमाव ककमा शै।

डारे तो रेखक की बाऴा अत्मन्त वयर,स्ऩष्ी

ऴष्ठभ अध्माम ‗लळकॊजे का ददष ‘ ‗वुळीरा जी‘ की

तथा बालों की अलबव्मब्क्त भें वशज यशी शै ।

आत्भकथा र्दलाया उन्शोंने दलरत–स्िाॅी जीलन

ककन्तु अनेक स्थर ऩय लाक्म–वॊयचना कभजोय

के वॊघऴष,ळोऴण तथा उनकी भालभषक वॊलेदनाओॊ

ददखाई ऩड़ती शै तथा षेिाॅीम ळधदों की फशुरता

को उजागय कय,वभाज भें दलरत–ब्स्िमोंके जीलन

रेखक की बाऴा को वभर्द ृ धकयता शै तथा इनके

की शालळमेता का प्रस्तत ु ककमा शै ।

ळधदों के प्रनत उनके प्रेभ को बी स्ऩष्ी कयता

वप्तभ अध्माम भें रेखक ने कवलताओॊ र्दलाया

शै । इन्शोंने अॊग्रेजी की ळधदों तथा लाक्मों का बी

जो दलरत ब्स्िामों की वॊलेदनाओॊ को स्ऩष्ी

प्रमोग फशुतअथधकककमा शै जो कई फाय खीकती

ककमा शै उवकी व्माख्मा प्रस्तुत की शै मशाॉ

शै ।

उन्शोंने फतामा शै कक केलर आत्भकथाओॊ र्दलाया

व्मॊग्मऩूणअ ष थधकप्रतीत

शी नशीॊ अवऩतु कवलताओॊ र्दलाया बी दलरत–

स्थरों ऩय बालऩण ू ष एलॊ प्रलाशभम शो जाती शै ।

ब्स्िामों के जीलन को प्रस्तत ु ककमा गमा शै ।

अत् कशा जा वकता शै कक ‗याभनये ळ याभ जी‘

ठीक इवी प्रकाय दशन्दी लवनेभा भें दलरत–

र्दलाया

ब्स्िमोंके जीलन का जो स्लरूऩ यशा शै लश

जीलन वॊघऴों के प्रनत ऩाठक लगष की भालभषक

उन्शोंने ऩुस्तक के अष्ठभ अध्माम भें प्रस्तत ु

वॊलेदना को उजागय कयता शै ,उनके जीलन के

ककमा शै । तथा मश फताने का प्रमाव ककमा शै

वाभाब्जक–वाॊस्कृनतक वॊघऴष,ळोऴण,उऩेषा आदद

कक

दलरत–ब्स्िमोंएलॊ

वे ऩाठक जगत को अलगत कयलाता शै । मश

दलरतों की भालभषक वॊलेदनाओॊ की ककव रूऩ भें

ऩुस्तक दलरत–स्िीलादी–वलभळष मा थचन्तन के

लवनेभा

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जीलन–दळषन

जगत

र्दलाया

के

दशन्दी

स्लरूऩ

इनकी

लरखखत

बाऴा

मश

ळैरी शोती

ऩुस्तक

शै

वऩाी तथा

एलॊ भालभषक

दलरत–ब्स्िमोंके

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आयम्ब ई-ऩत्रिका 2014-15 वॊदबष भें भीर–का–ऩत्थय वात्रफत शोगी?तथा नमी दलरत–स्िाॅीलादी

िाॊनत

का

वलकाव

कये गी।

इवके अनतियक्त इव ऩुस्तक भें रेखक का कभजोय ऩष बी ददखता शै । ले जफ बी ककवी वलऴम ऩय वलर्दलानों का भत प्रस्तत ु कयते शैं तो उनके ऩष मा वलऩष भें अऩना भत नशीॊ दे ते। जो इव ऩुस्तक के प्रनत उनके वलचायों को कभजोय फनाता शै । मश ऩुस्तक अऩनी अनेक कभजोियमों एलॊ कलभमों को वाथ यखकय बी दलरत–ब्स्िामों के जीलन वॊघऴष तथा ळोऴण को भालभषक रूऩ वे प्रस्तुत कयने भें वपर यशा शै ।

ओभप्रकाश साहनी शोधाथी ददल्री ववश्वववद्मारम

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आयम्ब ई-ऩत्रिका 2014-15

माऱ क़ क़व्य-सौन्दयय (ळोधऩि)(दव ू या अॊक ) ऽहन्दा स़ऽहत्य आऽतह़स में माऱ सर्य प्रथम कर्ऽयऽि म़ना ज़ सकता है ऽजन्हें जन लोक एर्ं स़ऽहत्य-जगत में श्रेष्ठतम स्थ़न ऽमल़ है। माऱ के जार्नर्ुत्त और क़व्य को लेकर स़ऽहत्य ऄनिसंध़नकत़य ओ ं में ऄत्यन्त ऽर्ऱ्द रह़ है। ईनके जन्म से लेकर ईनकी मुत्यि तक क़ कोइ ऽनऽित प्रम़ण तो ऄब तक ईपलब्ध नहीं हो सक़ है

ऄपशकिन, धऽमय क-त्यौह़र, लोक-भ़ष़, मिह़र्रे -कह़र्तें अऽद सभा क़ सम़र्ेश स्पष्ट रूप से दृऽष्टगत होत़ है। ऄतः आस संस़र में रहकर आस लोक के ऽलए एक अदशय भऽक्त को प्रस्तित करने ऱ्ला माऱ को लोक से ऄलग करके नहीं समझ़ ज़ सकत़ है। माऱ के क़व्य में ईनके तत्क़ऽलक-यिग की समस्त ऱजनैऽतक, धऽमय क, अऽथय क एर्ं स़ंस्कु ऽतक पररऽस्थऽतयों एर्ं म़न्यत़ओं क़ स्पष्ट ऽदग्दशय न होत़ है। ईनके एकएक पद में ईनके यिग की भव्य-संस्कुऽत को ऽजस रूप में

ऽकन्ति ऽिर भा म़ऩ ज़त़ है ऽक ईनक़ जन्म 1498 इ. में किड़की ऩमक स्थ़न पर हु अ थ़। ईनके ऽपत़ रतन

भोग़, ईसकी साधा एर्ं सरल ऄऽभव्यऽक्त ऄपने क़व्यों में की है। जो ईनके पदों की प्रमिख ऽर्शेषत़ है।

ऽसंह थे और ईनकी मुत्यि 1557 इ. के अस-प़स स्र्ाक़र की ज़ता है।

माऱ ने ऄपने क़व्य में ऄपने जार्न-संघषय के प्रत्येक पहली को स्थ़न ऽदय़ है। ऩरा होने के ब़र्जीद स़म़ऽजक

माऱ क़ सम्पीणय जार्न-क़ल एक रहस्य की तरह रह़ है। ऽजसक़ ईल्लेख हमें ईनके पदों में सहज हा ऽमल ज़त़ है। ईनके जन्म एर्ं मुत्यि की हा भ़ंऽत ईनके पदों की प्रम़ऽणकत़ को लेकर भा स़ऽहत्य ऄनिसंध़नकत़य ओ ं में ऽर्ऱ्द रह़ है। माऱब़इ सगिण र्ैष्णर् भक्तन एर्ं कर्ऽयिा

बंध्नों, किल-मय़य द़, लोक-ल़ज अऽद सभा को तोड़कर ऄपने भक्त बनने तथ़ ईसके ब़द की समस्त ब़धओं, संघषों की सहज ऄऽभव्यऽक्त ईन्होंने ऄपने क़व्य-पदों में की है। आसके ऄऽतररक्त ईन्होंने ऱजनाऽतक स्तर पर स़मंतऱ्दा ऽर्च़र-ध़ऱ क़ ऽर्रोध भा मिख्य रूप से ऽकय़

के रूप में सम्पीणय स़ऽहऽत्यक, धऽमय क एर्ं ऐऽतह़ऽसक

है जो भऽक्त-अन्दोलन की प्रमिख ऽर्शेषत़ रहा है। कबार,

जगत में ऄत्यन्त प्रऽसद्च रहा है। ईन्होंने एक ऐसे क़ल-

तिलसा, सीर अऽद ऄनेक भक्त कऽर्यों ने ऄपने क़व्यसंस़र में तत्क़ऽलक स़मंता व्यर्स्थ़ तथ़ ऱज़ओं की ऽर्ऽभन्न रूपों में भत्सय ऩ की है। आसा क़ प्रभ़र् माऱ के क़व्य में भा स्पष्ट ऽदख़इ पड़त़ है। ईन्होंने ऄपने क़व्य

खण्ड क़ प्रऽतऽनऽधत्र् ऽकय़ है, ऽजस समय भऽक्त अन्दोलन क़ प्रभ़र् सम्पीणय भ़रत पर थ़। आस भऽक्त-अन्दोलन में मील रूप से दे श की स़मन्ता व्यर्स्थ़ पर प्रह़र ऽकय़ गय़ तथ़ ज़ऽत-प़ऽत, ऩरा पऱधानत़, र्णय व्यर्स्थ़ अऽद के प्रऽत ऽर्द्रोह क़ भ़र् प्रबल थ़। ऽजसक़ स्पष्ट प्रभ़र् माऱब़इ के क़व्यों पर भा ऽदखत़ है। माऱब़इ के क़व्यों में सम़ज की रूऽढऱ्दा ऺ राऽत-ररऱ्जों, परम्पऱओं एर्ं म़न्यत़ओं के प्रऽत स्पष्ट अक्रोश नजर अत़ है। माऱ की कऽर्त़ओं में ईनकी व्यऽक्तगत जार्न एर्ं सम़ज क़ पीणयतः एकीकरण हो गय़ है। ईनकी पद़र्ला एक लोक ऽनऽध है। क्योंऽक ईनके पदों में लोकम़न्यत़ओं, arambh.co.in

लोकऱ्त़य ओ,ं

परम्पऱओं,

में ‘ऱण़ जा’ क़ बहु त ऽर्रोध ऽकय़ है। जो स़मंताव्यर्स्थ़ के प्रताक है―थ़रे दे स़ाँ में ऱण़ स़ध नहीं छै, लोग बसे सब किड़ों।‛1 माऱ को ऱण़ की श़सन, ईनके दे श के लोगों से ऽशक़यत है ऽक ईनके यह़ाँ स़धि नहीं है, बिरे लोग ऄऽधक बसते हैं। माऱ को ऱण़ के रूठने क़ कोइ भय नहीं थ़ ऽकन्ति कुष्ण के रूठने क़ डर ऄर्श्य थ़-

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आयम्ब ई-ऩत्रिका 2014-15 ―सासोधो रूठ् यो म्ह़रो कोइ कर लेसा

―स़धो रे संग बन-बन भटको, ल़ज गम़इ स़रा।

ऱणोजा रूठ् यों ब़ाँरो दे श रख़सा।

बड़ो धऱं में जन्म ऽलयो छै, ऩचो दे दे त़रा।‛5

हरर रूठ् यों किम्हल़स्य़ाँ, हो भ़इ।’’2

यह़ाँ यह भा पिष्ट हो ज़त़ है ऽक माऱ क़ जन्म एक उाँचे किल में हु अ थ़ ऽकन्ति ऽिर भा र्े कुष्ण भऽक्त में आतना

ईन्हें लगत़ है ऽक ऱण़ ऄगर रूठ ज़येग़ तो दे श ऄपने प़स रख लेग़ ऽकन्ति हरर रूठ गये तो र्ह किम्हल़ ज़येंगा। माऱ ऱण़जा के श़सन व्यर्स्थ़ से ऄत्यन्त दिखा भा प्रतात होता है। ईन्होंने स्पष्ट रूप से ऽलख़ है ऽक ऱण़ भक्तो क़ संह़र करत़ है―मिरख जण ऽसंघ़सण ऱज़, पंऽडत िीरत़ाँ द्ऱऱाँ। माऱ रे प्रभी ऽगरधर ऩगर, ऱण़ भगत संध़ऱाँ||”3 यह़ाँ ईन्होंने ऱज़ को मीखय कह कर सम्बोऽधत ऽकय़ है जो ईनके ऱज़ओं के प्रऽत ईनके प्रबल ऽर्रोध को दश़य त़ है। ऐसा साधा और कटि ऄऽभव्यऽक्त भऽक्तक़ल में ऄन्यि़ दिलयभ हा है। ऽकन्ति यह़ाँ माऱ, कबार से प्रभ़ऽर्त प्रतात होता है और म़ऩ भा ज़त़ है ऽक माऱ भले हा उाँचे किल में जन्मा था ऽकन्ति ईनके मन में ऽनम्न ज़ऽतयों के ऽलए ऽर्शेष अदर-सम्म़न थ़ आसऽलए माऱ ने ऄपने पदों में ‘रै द़स जा’ को ऄपऩ गिरू स्र्ाक़र ऽकय़ है-

मग्न था ऽक ईन्हें लोक-ल़ज, किल-मय़य द़, स़म़ऽजक बंधनों की भा ऽचन्त़ नहीं था। र्े ऄपने पदों में आन्हें ब़रब़र तोड़ने की ब़त करता है―स़ज ऽसंग़र ब़ंध पग घिाँघर लोक ल़ज तज ऩचा।‛6 ―लोग कह़ाँ माऱाँ ब़र्रा स़सि कहऩ किल ऩस़ाँ रा।‛7 ―लोक ल़ज किल क़ण जगत की दआ बह़आ जस प़णा।‛8 ―थ़रे क़रण जग जण त्य़ग़ाँ लोक लोज किल ड़ऱाँ।‛9 भऽक्त अंदोलन में अऽथय क सम़नत़ की ब़त नहीं था केर्ल भऽक्त की दृऽष्ट से सम़नत़ की ब़त की ज़ता था ऽकन्ति आस सम़नत़ के ऽलए तत्क़ऽलक ऽह्लयों को सम़ऽजक रूऽढयों से टकऱऩ पड़त़ थ़। माऱ की ऺ कऽर्त़ओं में जो ब़र-ब़र लोक-ल़ज, मय़य द़ओं को तोड़ने की ब़त हु इ है। र्ह आसा ओर संकेत करता है। माऱ कुष्ण़ भऽक्त में आतना रम गइ था ऽक ईन्हें स़म़ऽजक बंध्नों की भा प्रऱ्ह न होता था। आसऽलए सम़ज के लोग

―नऽहं मैं पाहर स़सरे , नऽह मैं ऽपय़जा के स़थ

भा माऱ को भल़-बिऱ कहते थे ईनकी ऽनन्द़ करते थे-

माऱं ने गोऽर्न्द ऽमऽलय़ जा गिरू ऽमऽलय़ रै द़स।‛4

―कड़ऱ् बोल लोक जग बोल्य़ करस्य़ाँ म्ह़रा ह़ाँसा।‛10

माऱ की कऽर्त़ क़ पररर्े श ऄत्यन्त साऽमत एर्ं व्यऽक्तगत रह़ है। ईनकी कऽर्त़ओं में ईनके सम्पीणय जार्न क़ संघषय एर्ं स़म़ऽजक परम्पऱओं एर्ं पररऽस्थऽतयों क़ स्र्रूप स्पष्ट ऽदख़इ पड़त़ है। ईन्होंने ऄपने सम्पीणय पदों में ऄपना आन स़म़ऽजक साम़ओं एर्ं लोक म़न्यत़ओं को तोड़ने क़ प्रय़स ऽकय़ है। तथ़

माऱ की कऽर्त़ओं से तत्क़ऽलक सम़ज की म़नऽसकत़ क़ स्पष्ट ऽचिण ऽमलत़ है तथ़ यह़ाँ ऩरा जार्न की ऽर्कट पररऽस्थऽतय़ाँ ऽचऽित हु इ है। संयिक्त पररऱ्र में ऽकस प्रक़र के दोष किंठ़ बढ़ते ज़ रहे थे

लोक-ल़ज त्य़गकर र्े स़धि-संतों के स़थ र्न-र्न,

स्पष्ट संकेत ईन्होंने ऄपना कऽर्त़ओं में ऽदय़ है-

स़स-ननद ऽकस प्रक़र माऱ पर ऄत्य़च़र करता था, ईन्हें ऽर्ऽभन्न प्रक़र से प्रत़ऽडत ऺ करता था? आसक़ भा

नगर-नगर भटकऩ च़हता है। आसऽलए र्े कहता है―स़स बिरा ऄर नणद हठाला, लरर लरर मोऽह त़रा।‛11 arambh.co.in

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आयम्ब ई-ऩत्रिका 2014-15 ―स़स लड़े ननद ऽखज़र्ै ऱण़ रह़ ऽसररस़य।

ऽजसक़ स्र्रूप भऽक्त-भ़र् से जिड़कर ऄलौऽकक रूप

―पहरो भा ऱख्यो चौकी ऽबठ़रयो, त़लो ऽदयो जड़​़य।‛12

लेत़ है। स़स-ननद-ऱण़ जा तथ़ सम़ज क़ व्यर्ह़र ईनके ऽर्रह को ऄत्यन्त ताव्रत़ प्रद़न करत़ चलत़ है।

यह़ाँ ईन्होंने ऄपने स़स-ननद के ऽचढ़कर ईन्हें त़ले में बन्द करने तक की ब़त कहा है त़ऽक र्ह ब़हर न ज़ सके। मध्य र्गीय भ़रताय सम़ज की ऽह्लयों पर ऄत्य़च़र क़ क़रण ऽह्लय़ाँ हा होता है। स़स-ननद-भ़भा के बाच क़ कलह, भ़रताय सम़ज में संयिक्त पररऱ्र की प्रमिख ऽर्शेषत़ है। ऽजसक़ जार्ंत ऽचिण माऱ ने ऄपने क़व्य में प्रस्तित ऽकय़ है। जो ईन्हें अज के अधिऽनक भ़रताय सम़ज में भा प्ऱसंऽगक बऩत़ है। माऱ ने ऄपने क़व्य में जह़ाँ सम़ज की रूऽढगत ऺ म़न्यत़ओं एर्ं स़मंता ऱज-व्यर्स्थ़ क़ ऽर्रोध ऽकय़ है र्हीं ईन्होंने स्र्यं को ऄबल़ ऩरा के रूप में प्रस्तित ऽकय़ है। ईन्हें ऄपना ऽनबय लत़ क़ भा एहस़स है तथ़ सम़ज की ऽनन्द़ से िस्त होकर माऱ क़ मन भा टी टत़, ऽबखरत़ है। आसऽलए र्ह ऄपने आष्ट ऽगरधर ऩगर (कुष्ण)

ऄतः माऱ क़ क़व्य ऽर्रह प्रध़न है। कुष्ण से ऽमलन की अतिरत़ हा ईनके क़व्य क़ प्रध़न ऽर्षय है―स्य़म ऽर्ण़ सऽख रहऩ ण़ ज़ऱ्ं। तण मण जार्न प्रातम ऱ्य़ां थ़रे रूप लिभ़ऱ्ं। ख़ण-प़ण म्ह़णे िीक़ं लण़ं णेण रह़ मिरझ़ऱ्ं। ऽनसऽद जोऱ्ं ब़ट मिऱरा कब रो दरसण प़ऱ्ं।‛16 यह़ाँ माऱ के ऽर्रह क़ क़रण ईनके पऽत से ऽर्योग भा प्रतात होत़ है ऽजसने कुष्ण क़ रूप ध़रण कर माऱ के ऽर्योग को लौऽकक से ऄलौऽककत़ प्रद़न कर दा है। माऱ ने ऄपने ऽर्रह र्णय न में कुष्ण के स्र्रूप को, ईनके रूप-ऽचिण, भंऽगम़ओं को स्पष्ट रूप से व्य़ख्य़ऽयत ऽकय़ है-

को ऄपने ऄबल़त्र् क़ स्मरण करऱ्ता है-

―र्न कि ज़र्त र्ैन बज़र्त गल र्ैजंऽयम़ल

―म्ह़ ऄबल़ बल म्ह़रो ऽगरधर।‛13

मोर मिगट ऽसर छि र्ाऱजै किंडल झलकत क़न

―मैं ऄबल़ बल ऩऽहं गोस़इ, ऱखो ऄबकै ल़ज।‛14

माऱाँ कहे प्रभि ऽगरधर ऩगर नारषत भइ ऽनह़ल।‛17

‗ऄरज कऱाँ ऄबल़ कर जोर्य य़ स्य़म तिम्ह़रा द़सा।‛15

माऱ के रृदय में ऽर्रह-त़प है। माऱ ऄपने ऽर्रह त़प को

आन पंऽक्तयों में माऱ ऄपने ऄबल़पन के बोध द्ऱऱ तत्क़ऽलक सम़ज में समस्त ऩरा ज़ऽत के ऄबल़पन क़ प्रऽतऽनऽधत्र् करता नजर अता है। माऱ क़ जार्न संघषय ईनके ऽर्धऱ् होने के पि़त् अरम्भ होत़ हैं जब र्ह पऽत की मुत्यि के पि़त् सता होने की जगह भऽक्तन हो ज़ता है। माऱ भऽक्तन होने के स़थस़थ एक ऽर्रहणा भा है जो ऄपने पऽत के ऽर्योग में ऄपऩ सम्पीणय जार्न व्यतात करता है। आसऽलए ईनकी रचऩओं में ऽर्रह की प्रध़नत़ रहा है। और आस ऽर्रह-भ़र् की ऄऽभव्यऽक्त क़ मिख्य अध़र लौऽकक हा रह़ है arambh.co.in

आन पंऽक्तयों में ऄऽभव्यऽक्त प्रद़न करता चलता है―ज़ घट ऽर्रह़ सोइ लऽख है, कै कोइ हररजन म़नै हो। रोगा ऄंतर र्ैद बसत है। र्ैद हा ओखद ज़णै हो|”18 ―हे रा म्ह़ तो दरद ऽदऱ्ण़ाँ, म्ह़ऱाँ दरद न ज़ण्य़ाँ कोय। घ़यल रा गत घ़यल ज़ण्य़ाँ ऽहर्ड़ो ऄगम संजोय। दरद की म़रय़ाँ दर दर डोल्य़ र्ैद ऽमल्य़ाँ ण़ कोय। माऱ दा प्रभि पार ऽमट़ाँग़ जब र्ैद स़ाँर्रो होय।‛19 Page 100


आयम्ब ई-ऩत्रिका 2014-15 स़र्न म़ाँ ईमग्यो म्ह़रो मण रा, भणक सिण्य़ हरर यह़ाँ माऱ ने ऄपने ऽर्रह की ऄऽभव्यऽक्त साधा सरल सप़ट रूप से की है। जो प़ठक य़ श्रोत़ की रृदय को

अर्णरा।‛24

माऱ के ऽगरधर ईन्हें आस जगत में तो नहीं ऽमले ऽकन्ति

ऽनःसंदेह माऱ ने ऽर्रह की ईत्कण्ठ़ और ऽमलन-सिख की ऽजन पररऽस्थऽतयों क़ ऽचिण ऽकय़ है र्े बहु त सरल एर्ं स्ऱ्भ़ऽर्क है। आन पदों में माऱ ने ऄपने मनोभ़र्ों को सिलत़ के स़थ संयोऽजत ऽकय़ है। ईन्होंने ऄपने जार्न के समस्त ऄनिभर्ों एर्ं ऄन्तमय न के भ़र्ों को ऄत्यन्त सहज एर्ं प्रभ़र्श़ला ढं ग से ऄऽभव्यऽक्त प्रद़न की है। माऱ ने ऄपने भ़र्ों की ऄऽभव्यऽक्त के ऽलए भ़ष़ चमत्क़र क़ सह़ऱ नहीं ऽलय़ है। ईनके पदों में राऽतक़लान कऽर्यों की तरह ऄलंक़रऽप्रयत़ नहीं ऽदख़इ पड़ता है।

स्र्प्न जगत में ऄर्श्य ऽमलते हैं। र्ह कहता है-

भ़ष़ सौन्दयय

―नादड़ा अऱ्ाँ ण़ाँ स़ऱाँ ऱत! किण ऽर्ऽध होय परभ़त।

ऽजस प्रक़र माऱ के पदों की प्रम़ऽणकत़ को लेकर ऄनेक तरह के ऽर्ऱ्द रहे हैं ईसा प्रक़र माऱ के पदों की भ़ष़ क़ स्र्रूप भा ऄत्यन्त ऽर्ऱ्द़स्पद रह़ है। चींऽक माऱ – पद़र्ऽलयों के पद मिख्यतः मौऽखक परम्पऱ और संऽदग्ध् एर्ं ऄशि हस्तऽलऽखत गिटकों से ऽलये गये हैं

साधे-साधे छी ज़ता है। माऱ ऄपने ऽप्रयतम ऄथ़य त् कुष्ण से ऽमलने की आच्छ़ प्रकट करता है माऱ ऽमलन-भ़र् में संकोचर्श कुष्ण के स़मने नहीं अता है―अर्त मोरा गऽलयन में ऽगरध़रा मैं तो घिस गइ ल़ज की म़रा।‛20

चमक ईण सिपऩाँ लख सजणा, सिध ण़ भील्य़ाँ ज़त।‛21 माऱ ने ऄपने क़व्य में कुष्ण को ऄनेक ऩम ऽदये हैं जैसे जोगा, ऽगरधर ऩगर, गोकल क़ ऽबह़रा, ऽपय, मनमोहन, ब्रजऱज, गोऽर्न्द, हरर अऽद। ―अर्ो मनमोहऩ जा माठो थ़रो बोल।‛22 किछ स्थ़नों पर माऱ ने ऄपने ऽर्रह तथ़ ऽमलन के भ़र्ों की ऄऽभव्यऽक्त के ऽलए प्रकुऽत र्णय न क़ भा सह़ऱ ऽलय़ है। ऽजसकी र्जह से ईनके भ़र् सरृदय को बहु त ताव्रत़ से प्रभ़ऽर्त करता है। तथ़ माऱ के भातरा भ़र्ों को सहज स्र्रूप प्ऱप्त होत़ है-

ऽजससे ईनमें भ़ष़, भ़र्, संगात़त्मकत़, भऽक्त ऽर्षयक ध़रण़ और स्र्रूप़त्मक पररर्तय न होते ज़ते हैं। ऽकन्ति ऽिर भा माऱ के जो भा पद स्र्ाक़र ऽकये गये हैं। ईनमें माऱ की भ़ष़ की सबसे प्रमिख ऽर्शेषत़ भ़र् प्रध़नत़ है। ईन्होंने सहज भ़र्ों की ऄऽभव्यऽक्त सहज भ़ष़ में की है। ऄपने भ़र्ों की ऄऽभव्यऽक्त करऩ हा माऱ क़ मील ईद्ङे श्य रह़ है। ईसमें ईन्होंने ऄपना रचऩधऽमय त़ द्ऱऱ चमत्क़र ईत्पन्न करने क़ कहीं भा प्रय़स नहीं ऽकय़ है।

म्हैल़ाँ चढ़ चढ़ जोऱ्ाँ सजणा कब अऱ्ाँ महऱज।

माऱब़इ की भ़ष़ में ऽमश्रण बहु त है ऽकन्तिनरोतमद़स जा स्ऱ्माने माऱब़इ की कऽर्त़ की भ़ष़ ऱजस्थ़ना म़ना है। ऄनेक ऽर्द्ऱनों ने म़ऩ है ऽक माऱ की भ़ष़ में ऄनेक

द़दिर मोर पपाअ बोल्य़ाँ कोइल मधिऱ स़ज

भ़ष़ओं क़ ऽमश्रण ऄलग-ऄलग प्रदे श में भ्रमण के क़रण होत़ चल़ गय़ थ़।

ईमग्य़ाँ आन्द्र चहु ाँ ऽदस बरस़ाँ द़मण छोड़य़ अज।‛23

‗श्रामता ऽर्ष्णिकिम़रा मंजि’क़ मत है ऽक माऱ क़

―बरस़ाँ रा बदररय़ स़र्न रा। स़र्ण रा मण भ़र्ण रा।

सम्बन्ध् च़र ऽर्ऽभन्न प्रदे शों से रह़ है, म़रऱ्ड, मेऱ्ड़

―सिण्य़रा म्ह़रे हरर अऱ्ाँग़ अज।

गिजऱत, और ब्रज! यद्यऽप आनकी भ़ष़ ऱजस्थ़ना है। arambh.co.in

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आयम्ब ई-ऩत्रिका 2014-15 गिजऱता, पंज़बा, ि़रसा अऽद के शब्द भा कहीं-कहीं

तण मण धण ऽगरधर पर ऱ्ऱाँ, चरण काँर्ल माऱाँ

प्रयिक्त हु ये हैं। पीर्ी (ऽबह़रा अऽद) भ़ष़ क़ भा कहीं-कहीं रूप ऽमलत़ है“ ऽिर भा यह कहऩ पड़े ग़ ऽक माऱ की

ऽर्लम़णा।‛26

कऽर्त़ में बहु त-सा भ़ष़ओं क़ सऽमश्रण प़ये ज़ने पर भा ईनकी कऽर्त़ की भ़ष़, ऱजस्थ़ना है, जो पऽिमा ऽहन्दा

यह़ाँ संयोग श्रुंग़र क़ स्पष्ट रूप झलकत़ है। ऽजसमें रऽत स्थ़या भ़र् के रूप में तो है ऽकन्ति कोरा अध्य़ऽत्मकत़

की एक प्रध़न श़ख़ है।’’25

को स़थ लेकर ऽजसकी र्जह से यह संयोग- श्रुंग़र-रस होते हु ए भा म़धियय रस की सहज ऄऽभव्यऽक्त करत़ है।

आस प्रक़र कह़ ज़ सकत़ है ऽक माऱ के क़व्य में भ़ष़ के ऄनेक रूप ऽमलते हैं ऽजनमें ऱजस्थ़ना ईनकी मील

आसा प्रक़र श्रुंग़र रस में ऽर्प्रलंभ श्रुंग़र के ऄनेक

भ़ष़ है और गिजऱता, पीरबा, पंज़बा, ि़रसा अऽद के

श्रुंग़र में जार्ऩनिभऽी त और अत्म-पररष्क़र क़ ईद़त्त

शब्दों, कह़र्तों, मिह़र्रों, लोकोऽक्तय़ाँ अऽद क़ भा

ऱग़त्मक संस्क़र ऽर्द्यम़न है। अध्य़ऽत्मक भ़र्-भीऽम

प्रयोग ऽकय़ गय़ है जो माऱ के ऄनेक भ़ष़-ज्ञ़न क़ पररच़यक है।

पर प्रेम, ऽप्रय-ऽचन्तन, ईत्कण्ठ़, ऽर्रह-क़तरत़, ममय स्पशी ईच्छऱ्स तथ़ ऽप्रय ऽमलन की अश़ अऽद

माऱ के पद, प्रेम, सौन्दयय , संयोग और ऽर्योग की

ईनके ऽर्प्रलंभ श्रुंग़र में सर्य ि प़इ ज़ता है-

भ़र्ऩओं से अप्लऽर्त है। ईसमें अऱध्य क़ नख-ऽशख र्णय न और र्णय ऩत्मक ब़रृय जगत क़ ऽर्र्रण कम और

―हे रा। म्ह़रे प़र ऽनकस गय़, स़ाँर्रे म़य़य तार।

ऄनिभऽी त-ऽचिण की प्रध़नत़ ऄऽधक ऽमलता है।

ऽर्रह ऄनल ल़गा ईर ऄन्तर, व्य़किल म्ह़रो सरार।

ईनके पदों में ऩरात्र् के ऄकुऽिम ऽर्रह, ऽमलन और प्रेमोद्ग़रो की प्रचिरत़ है। माऱ की पद़र्ला में भ़र्ों की ऄऽभव्यऽक्त के ऽलए ‘म़धियय रस’ क़ प्रयोग ऄऽधक हु अ है जो भऽक्त की दृऽष्ट से ऽर्र्ेच्य है ऽकन्ति स़ऽहत्य की दृऽष्ट से श्रुंग़र और श़न्त रस ईनके पदों में ऽर्द्यम़न हैं।

चंचल ऽचत चलय़ाँ न च़ले, ब़ाँध्य़ प्रेम जंजार।

माऱ के क़व्य में श्रुंग़र रस, संयोग और ऽर्प्रलंभ दोनों हा रूपों में प़य़ ज़त़ है। आसक़ स्थ़या भ़र् रऽत है। यह लौऽकक रऽत भ़र् न होकर अध्य़ऽत्मक रऽत भ़र् है जो

यो साँस़र किबिध् रो भ़ंडो, स़ध संगत ऩ भ़र्े।‛28

म़धियय रस की पिऽष्ट करत़ है। यहा म़धियय रस माऱपद़र्ला के प्ऱण है―म्ह़ मोहणरो रूप लिभ़णा। सिन्दर बदण़ कमल दल लोचण, ब़ंक़ाँ ऽचतर्ण णेण़ाँ सम़णा। जमण़ ऽकण़रे क़न्ह़ धेनि चऱऱ्ाँ, बंशा बज़ऱ्ाँ माठठ़ाँ ऱ्णा। arambh.co.in

ईद़हरण माऱ-पद़र्ला में ईपलब्ध है। माऱ के ऽर्प्रलंभ

के ज़णे म्ह़रो प्रातम प्य़रो, के ज़ंण़ म्ह़ाँ पार।‛27 ―स्य़म ऽबन दिःख प़ऱ्ाँ सजना, किण म्ह़ने धार बाँध़र्े

ईपरोक्त पदों में स्थ़या भ़र् रऽत है जो माऱ के प्रेम ऽर्रह को अध्य़ऽत्मक रूप प्रद़न कर संयोग एर्ं ऽर्प्रलंभ श्रुंग़र द्ऱऱ म़धियय रस की ऽनष्पऽत करत़ है। आनके ऄऽतररक्त श़न्त और करूण रस क़ सम़र्ेश भा आनके पदों में हु अ है। माऱ के पदों में लयबद्चत़ तथ़ संगात के समस्त ऱगों क़ सम़र्ेश सहज हा हो गय़ है ऽकन्ति ईनके पद छं द रऽहत है। ह़ल़ंऽक ईनके पदों को दे खकर छप्पय और दीहो छन्द क़ भ्रम ऄर्श्य होत़ है ऽकन्ति र्े पद एर्ं गात है। ईनके पदों में संगात के लगभग सभा ऱग-ऱगऽनयों क़ सम़र्ेश हो गय़ है जैसे- छ़य़नट, गीजरा, लऽलत, Page 102


आयम्ब ई-ऩत्रिका 2014-15 ऽिर्ेना, धना, सीह़, स़रं ग, दरब़रा, सोरठ़, हमार, म़ंड, ऽतलंग, जोऽगय़, ऽर्ह़ग, स़र्न, प्रभ़ता, पट मंजरा,

पदों में ऄलंक़र भ़र्ों की ऄऽभव्यऽक्त के ऽलए हा प्रयिक्त हु ए है।

गन्धर, कजरा, कल्य़ण, धऩश्रा, क़न्हऱ, ऄलैय़, ल़र्ना अऽद।

ऽनष्कषय तः हम कह सकते हैं ऽक माऱ के क़व्य क़

आस दृऽष्ट से कह़ ज़ सकत़ है ऽक माऱ के प्रत्येक पद संगात स़धऩ के ऽलये र्रद़न है।

स़ऽहत्य श़ह्लाय संप्रद़यों से सर्य थ़ स्र्तंि रहा है। भ़ष़, छन्द और ऄलंक़रों क़ स़म़न्य सहज प्रयोग तो ईनके

माऱ की कऽर्त़ओं के ऄध्ययन से यह तो स्पष्ट हो ज़त़ है ऽक ईनके समस्त पदों की प्रमिख ऽर्शेषत़ ऽनरलंकुऽत है। ऽजसे अज की अलोचऩत्मक भ़ष़ में सप़ट बय़ना कहते हैं। ऄलंक़रों क़ प्रयोग यऽद माऱ के क़व्य में ऽमल भा ज़त़ है तो र्ह सहज ऄऽभव्यऽक्त क़ हा पररण़म है। ईनक़ स्ऱ्भ़ऽर्क प्रयोग हा ईनके पदों में हु अ है। ईन्होंने ऄपने भ़र्ों को ऽर्ऽशष्टत़ प्रद़न करने के ऽलए य़ सप्रय़स ऄलंक़रों क़ प्रयोग ऄपने पद़र्ला में नहीं ऽकय़ है। चींऽक ईनके पदों में भ़र्ों की हा ऽर्ऽशष्टत़ रहा है। आसऽलए ईनके पदों में भ़र्पीणय ऄलंक़र हा ऄऽधक प़ये ज़ते हैं। जैसे- ईपम़, रूपक, ईत्प्रेक्ष़, ऽर्भ़र्ऩ, श्ले ष, दृष्ट़न्त अऽद। ऽजसके किछ ईद़हरण आस प्रक़र हैंईपम़ –प़ऩ जयीाँ पाला पड़ा रा, लोग कहे ऽपंड ऱ्य।29

स्र्रूप कऽर्-कमय की ईप़सऩ करऩ नहीं थ़। र्े ऽर्ऽर्ध

पदों में ऽमलत़ है ऽकन्ति भ़र् ऽचिण की प्रक़ष्ठ़ के ऽलए! ईनके शब्द-ऽचि ईनके भ़र्ों की ऄऽभव्यऽक्त में पीणयतः सिल रहे हैं। माऱ क़ क़व्य, ऄथय प्रेषक हा नहीं र्रन् ऽबम्ब ऽर्धयक भा है। ईसमें कल़त्मक सम्प्रेषणायत़ की ऄपेक्ष़ स्र्भ़ऽर्क प्रभ़र्ोत्प़दकत़ प़इ ज़ता हैं ईनक़ भ़र्-सौन्दयय , भऽक्त और संगात पर छ़य़ हु अ है। स़ऽहत्य की दृऽष्ट से माऱ क़ क़व्य भ़र्पीणय, संगात की दृऽष्ट से लऽलत और कल़ की दृऽष्ट से सौन्दयय सम्पन्न है और म़धियय रस से पररपीणय है, माऱ की पद़र्ला के प्रत्येक पद पर ईनके व्यऽक्तत्र् एर्ं जार्न की गहरा छ़प ऽर्द्यम़न है जो ईनके भ़र्ों की प्रभ़र्ोत्प़दकत़ को बढ़​़त़ है और ईन्हें भऽक्त अन्दोलन के यिग में एक मह़न एर्ं श्रेष्ठ कर्ऽयऽि के रूप में प्रऽतऽष्ठत करत़ है। संदभय ग्रंथ • माऱ की भऽक्त और ईनकी क़व्य – स़धऩ क़

दृष्ट़ंत –गऽणक़ कीर पठ़र्त़ाँ, बैकिण्ड बस़णा जा।30

ऄनिशालन – डॉ . भगऱ्न द़स ऽतऱ्रा (स़ऽहत्य

ऽर्भ़र्ऩ –जल ऽबन काँर्ल चाँद ऽबऩ रजना अज जायों न

भर्न प्ऱ.ऽल. आल़ह़ब़द ; प्रथम संस्करण-1974

ज़य।31 रूपक –ऄसिऱ्ाँ जल साच-सींच, प्रेम बेल बोइ।32

• माऱ क़ क़व्य – ऽर्श्वऩथ ऽिप़ठा (ऽद मैकऽमलन कंपना अॅि आंऽडय़ ऽल. प्रथम संस्करण-1979) 3.माऱ – ग्रंथ़र्ला – कल्य़ण ऽसंह शेख़र्त (ऱ्णा

र्ाप्स़ –ऄाँग खाण व्य़किल भय़ मिख, पार् पार् ऱ्णा

प्रक़शन, ऽद्रताय संस्करण-2010)

हो।33

4.माऱ : व्यऽक्तत्र् और कुऽतत्र्-पदम़र्ता, ऽहन्दा

ईद़हरण –जयीाँ च़तक धन रहे , मछला जयीाँ प़णा हो।34

प्रच़रक संस्थ़न, ऱ्ऱणसा, प्रथम संस्करण-1973

ईपयियक्त पदों में ऄलंक़रों क़ सम़र्ेश सहज रूप से हो गय़ है। माऱ के पदों में संगात़त्मकत़ है ऽजसमें ऄलंक़रों क़ सम़र्ेश स्र्भ़ऽर्क रूप से हो गय़ है। आनके

ओमप्रकाश साहनी शोधार्थी हहन्दी हिभाग हदल्ली हिश्वहिद्यालय

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आयम्ब ई-ऩत्रिका 2014-15

दऽलत-चेतऩ क़ ईद्घोष : „बस्स ! बहु त हो चिक़ (ळोधऩि)(दव ू या अॊक )

आहलोक से मिऽक्त की कऽर्त़एाँ हैं.आनकी कऽर्त़एाँ ऽभन्न क़व्यलोक रचता हैं जह़ाँ ऄतात एर्ं र्तय म़न क़ मंथन है और भऽर्ष्य की ऽचंत़ एर्ं ऽचंतन है.ओमप्रक़श ऱ्ल्माऽक ऄपना कऽर्त़ओं में घुण़,ऽहंस़ और ऽर्षमत़ पर अध़ररत व्यर्स्थ़ को नक़र कर समत़,स्र्तंित़ और करुण़ क़

‗हज़रों र्षय क़ ऄाँधेऱ

म़नस रचने ऱ्ला दिऽनय़ की कऽर्त़एाँ रचते हैं.आनकी कऽर्त़ओं में मनिष्य और प्रकु ऽत की नैसऽगय कत़ में सहज

ऽछप़ बैठ़ है मे रा स़ंसों में

म़नर्ाय ररश्तों की तल़श है:

क़ाँपत़ है दाये की लौ स़

‗मौसम से लड़ते हु ए

और तब्दाल हो ज़त़ है कऽर्त़ में .’

ऄच्छे लगते हैं पेड़

ओमप्रक़श ऱ्ल्माऽक की कऽर्त़एं समय से सऱ्ंद करता

और ईनक़ हऱपन

हैं.आसा सऱ्ंद में दऽलत ऽचंतन और स़ऽहत्य पिऱना जड़त़ को खत्म करने की कऱ्यद करत़ है ।.र्णय और ज़ऽत भ़रताय सम़ज की सबसे बड़ा जड़त़ है ।र्णय और ज़ऽत अध़ररत व्यर्स्थ़ क़ नक़र तथ़ समत़ अध़ररत व्यर्स्थ़ की ऽनऽमय ता दऽलत स़ऽहत्य क़ मिख्य स्र्र है.ऽजस स़ऽहत्य एर्ं अन्दोलन में यह स्र्र मिख्य ऽर्षय नहीं बन सक़ है र्हा दऽलत स़ऽहत्य क़ प्रऽतपक्ष और ‘मिख्यध़ऱ’ है । ओमप्रक़श ऱ्ल्माऽक स्पष्ट शब्दों में ऽलखते हैं– ‚मिख्यध़ऱ एक र्णय ऽर्शेष की आच्छ़ओं–अकंक्ष़ओं से ईत्पन्न म़न्यत़ओं,स्थ़पऩओं की ध़ऱ है और आस ध़ऱ के ऽलए एक दऽलत को ऄपऩ र्जीद खोऩ पड़े तब यह मिख्यध़ऱ बेहद खींख़र और ऽनदय या होकर ऄपने तम़म द़ंर्– पेंचों,कल़ब़ऽजयों,बौऽद्चक ऽर्मशों,स़ऽहत्य ऽशल्पों के स़थ दाऱ्र की तरह खड़ा हो ज़ता है और दऽलत के ऄऽस्तत्र् को हा नक़र दे ता है । ओमप्रक़श ऱ्ल्माऽक की कऽर्त़ ऄतात और र्तय म़न की स़म़ऽजक एर्ं स़ंस्कु ऽतक अलोचऩ है.आनकी रचऩ–दृऽष्ट झीठ एर्ं प़खंड पर गहरा चोट करता है तथ़ त़ऽकयक ढंग से सच को स़ऽहत्य एर्ं सम़ज के समक्ष ईज़गर करता है.ओमप्रक़श ऱ्ल्माऽक क़ स्ऱ्निभर् स़मिद़ऽयक–स़मीऽहक ऄनिभर् है.ईनके ले खन क़ मिख्य सरोक़र ‘मिख्यध़ऱ’ और ह़ऽशये के ि़सले को प़टऩ है । दऽलत य़तऩ के आऽतह़सबोध से गहरे जिड़ीं ओमप्रक़श ऱ्ल्माऽक की कऽर्त़एाँ परम्पऱगत क़व्य–सौंदयय के arambh.co.in

ईससे भा जय़द़ ऄच्छे लगते हैं हाँसते ऽखलऽखल़ते र्े लोग जो निरत नहीं करते अदमा से सपनों में भा! समक़लान ऽहंदा कऽर्त़ में दऽलत अन्दोलन से ईपजे कऽर् ओमप्रक़श ऱ्ल्माऽक क़ क़व्य संग्रह ‚बस्स!बहु त हो चिक़‛ क़ प्रक़शन सन1997में ऱ्णा प्रक़शन नइ ऽदल्ला दररय़ गंज से हु अ.ऱ्ल्माऽक जा ने यह क़व्य–संग्रह दऽलत चेतऩ के प्रखर कऽर् हाऱडोम को स़दर समऽपय त ऽकय़ है.आस क़व्य–संग्रह में पच़स कऽर्त़एं संग्रऽहत हैं,और यह क़व्य–संग्रह पीणयत:स़थय क है जो ऄनेक ऐसे प्रश्नों को ईभ़रत़ है ऽजसक़ ईत्तर ऽसिय ह़थ मलने के ऽसऱ् किछ नहीं है. ‘बस्स!बहु त हो चिक़ कऽर्त़–संग्रह की कऽर्त़एाँ ख़स तौर से पठनाय हैं.आस कऽर्त़–संग्रह की कऽर्त़एाँ जय़द़तर छोटा–छोटा हैं पर ये कऽर्त़एं ऄपने अप में र्ुहद ऄथों को समे टे हु ए हैं.आस संग्रह की हर एक कऽर्त़ क़ ऽर्षय गंभार है तथ़ क्षेि व्य़पक है । ―ऱ्ल्माऽक जा क़ मन जड़त़ओं,ऽर्षमत़ओं,ऽर्द्रीपत़ओं और किसंस्क़रों को त्य़गने के ऽलए ऱ्त़र्रण तैय़र करत़ Page 104


आयम्ब ई-ऩत्रिका 2014-15 है.स़म़ऽजक म़न्यत़ओं में जो कठोरत़ है,और ऽर्च़रों में

पररर्तय न की भ़ष़ से है.भ़ष़ ऽशल्प ऽकसा म़नक पर तय

जो बौऩपन है,ईसके ऽर्रुद्च हऽथय़र ईठ़ने क़ क़म भा ये संग्रह में दऽलत कऽर्त़ओं ने जन्म ऽलय़ है.स़रा कऽर्त़ओं

नहीं हैं.ऱ्ल्माऽक जा की कऽर्त़ ऄपने ऄनगढ़पन में हा नर्ान ऽबम्ब–ऽर्ध़न सुऽजत करता है और समत़ की भ़ष़ में रूप़ंतररत होकर दऽलत चेतऩ क़ ओज भरता

के भ़र्ों की ऄऽभव्यऽक्त क़ म़ध्यम बेहद सशक्त है.आस संग्रह की जय़द़तर कऽर्त़एाँ छोटा है परन्ति छोटा कऽर्त़एाँ

है.ओमप्रक़श ऱ्ल्माऽक की ‚पेड़‛ कऽर्त़ स़म़न्य और सहज भ़ष़ के स़थ ऽहंदा स़ऽहत्य–श़ह्ल के सम़ऩंतर

बेहद म़ऽमय क भा हैं.कऽर्त़–संग्रह में ईन समस्य़ओं को ईभ़ऱ गय़ है ऽजनकी र्जह से दऽलतों को त़ईम्र द़ररद्र्य के स़थ–स़थ हर जगह ऄपम़न झेलऩ पड़त़ है और जन्म से हा स़म़ऽजक और बड़े होने पर अऽथय क य़तऩ को सहने के

ऽबम्ब़थय क़ नय़ संस़र रचता है:

कऽर्त़एाँ करता हैं.आस संग्रह की कऽर्त़एाँ प्रे रक हैं.आस

ऽलए ब़ध्य होऩ पड़त़ है.‛1ऱ्ल्माऽक जा की कऽर्त़एाँ सम़ज की ऄसम़नत़ और य़तऩ पर ताख़ एर्ं ऄत्यंत अक्ऱमक भ़र् व्यक्त करता हैं. ‘बस्स!बहु त हो चिक़’ कऽर्त़ संग्रह में कऽर्त़ओं क़ केंद्र ‘ऄस्पुश्यत़’ को रख़ गय़ है और ऱ्ल्माऽक जा क़ मिख्य लक्ष्य ऄस्पुश्यत़ पर प्रह़र करऩ है.ऱ्ल्माऽक जा ऄपने क़व्य संग्रह ‘बस्स!बहु त हो चिक़’ की पंऽक्तयों के म़ध्यम से ऄस्पुश्यत़ पर ताख़ प्रह़र करते हु ए ऽलखते हैं और सम़ज पर प्रश्न भा ईठ़ते हैं–

―पेड़, तिम ईसा र्क़्त तक पेड़ हो, जब तक ये पत्ते तिम्ह़रे स़थ हैं पत्ते झरते हा पेड़ नहीं ठी ाँ ठ कहल़ओगे जाते जा मर ज़ओगे!‛

आस धरता पर

र्चय स्र्श़ला सभ्यत़ एर्ं संस्कु ऽत के हज़रों र्षय के आऽतह़स कोप्रश्ऩंऽकतकर स़ऽहत्य की ऄर्ध़रण़ और सौन्दयय बोध के म़नदंडों को ऱ्ल्माऽक जा की कऽर्त़ओं ने नर्ान स्र्रूप

ईसा ऱस्ते से चलकर अय़ मैं भा

ऽदय़ है.दऽलत क़व्य में ररररय़हट एर्ं य़चऩ के ऽलए कोइ

―ऽजस ऱस्ते से चलकर तिम पहु ाँचे हो

ऽिर तिम्ह़ऱ कद आतऩ उाँच़ ऽक असम़न को भा छी ले ते हो तिम अस़ना से और मे ऱ कद आतऩ छोट़ ऽक मैं छी नहीं सकत़ ज़मान भा!

जगह नहीं है,ऽनयऽतऱ्द और इश्वर की ऄर्ध़रण़ क़ पीणयत:नक़र है.र्ेद,ईपऽनषद,स्मुऽतय़ं,ऄन्य धमय श़ह्लों एर्ं पौऱऽणक ग़थ़ओं में व्यक्त दऽलत ऽर्रोधा छऽर् के ऽतऽलस्म को ओमप्रक़श ऱ्ल्माऽक की क़व्य–संर्ेदऩ बेनक़ब करता है और ऽमथकों को नर्ान ऄथय प्रद़न करता है. ‘श़यद अप ज़नते हो’ कऽर्त़ में ऽहन्दी सभ्यत़ और संस्कु ऽत की ऽहंस़ और षड् यंिों को बेनक़ब ऽकय़ गय़ है.ऱ्ल्माऽक जा आस कऽर्त़ में स्पष्ट करते हैं ऽक ऽहन्द–ी व्यर्स्थ़ की जो क्रीरत़एं हैं ईन्हें ज़नबीझकर ऄनदेख़ और

प्रश्ऩंऽकत नहीं ऽकय़ गय़ है.र्णय और ज़ऽत की श्रेणाबद्चत़ पर प्रह़र ऱ्ल्माऽक जा के क़व्य की ऄनीठा ऽर्शेषत़

ऄनसिऩ कर ऽदय़ ज़त़ है.ओमप्रक़श ऱ्ल्माऽक कव्योऽक्तयों में ऄऽभव्यक्त चे तऩ और ऄम्बेडकरऱ्दा र्ैच़ररकी से यह भ़न होत़ है ऽक कऽर् और ईनक़ सम़ज ईस सच को ज़न चिक़ है ऽजसके अध़र पर सऽदयों से

है.दऽलत क़व्य में सौन्दयय बोध क़ सम्बन्ध स़म़ऽजक

जिल्म होत़ अय़ है.ऱ्ल्माऽक जा आस कऽर्त़ के म़ध्यम से

ऽहंदा स़ऽहत्य की परम्पऱगत क़व्य परम्पऱ में ‚ज़ऽत‛ को

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आयम्ब ई-ऩत्रिका 2014-15 यह चेत़र्ना दे ते हैं ऽक ऄब तिम बहु त ऽदनों तक ऄपने षड् यंिों को ज़रा नहीं रख सकोगे:

श़यद अप ज़नते हों!‛

―तिम्ह़रे रचे शब्द

आन पंऽक्तयों के द्ऱऱ ऱ्ल्माऽक जा यह स्पष्ट करते हैं ऽक यह कऽर्त़ दऽलत क़व्य के ईन्मे ष और ईन्नयन के प्रताक

तिम्हें हा डसेंगे स़ाँप बनकर‛.

के रूप में रे ख़ंऽकत की गया है.अगे र्ह बत़ते हैं ऽक पंऽडतों ने धमय की अड़ में सद़ से यहा िै ल़कर रख़ है ऽक डोम

‗श़यद अप ज़नते हों’ कऽर्त़ के ब़रे में ऱ्ल्माऽक जा अगे ऽलखते हैं ऽक दऽलत ऽहन्दी सम़ज की सेऱ् करते रहे आसके

स्पशय हो ज़ये तो छी त हो ज़ता है.शिद्च होने के ऽलए स्ऩन

ऽलए ईन्हें धमय की भंग ऽपल़इ ज़ता है.अदशों की घिट्टा

सिध़रने की ऽचंत़ आन्हें ख़ये ज़ता है.

ऽपल़इ ज़ता था.भंगा सम़ज को धमय र् म़न्यत़ओं से ब़ंधे रखने क़ ईद्ङे श्य दऽलत सम़ज क़ ईद्च़र करऩ नहीं बऽल्क

ऽहन्दी

र्णय –व्यर्स्थ़ की रक्ष़ करऩ है.जीठे ईपदे शों क़ प्रच़र– प्रस़र कर ब्ऱह्मणों क़ दबदब़ क़यम ऽकय़ ज़त़ है त़ऽक ईच्च सत्त़ध़ररयों के खौि के क़रण दऽलत ऄऽधक़रों की म़ंग न कर प़ए.ऱ्ल्माऽक जा कऽर्त़ओं की पंऽक्तयों के

ज़प य़ प़ठ आस तरह के ढोंग करने पड़ते हैं.ऄगल़ जन्म

संस्कु ऽत

द्ऱऱ

ऽनऽमय त

धमय श़ह्ल,पिऱण,स्मुऽतय़ं,ऽमथक,कमय क़ंड और ऄन्धऽर्श्व़स की परम्पऱ को बदलने की ऄनिगंज ी ओमप्रक़श ऱ्ल्माऽक की कऽर्त़ओं की महत्र्पीणय ऽर्शे षत़ है.दऽलत क़व्य में श्रम क़ बहु त महत्र्पीणय स्थ़न है.ऽजनके पसाने की कम़इ से

म़ध्यम से स्पष्ट करते हैं:

पीऱ भ़रत पल–बढ़ रह़ है.ईनकी भीऽमक़ और महत्र् को ऱ्ल्माऽक जा की कऽर्त़ पीऱ सम्म़न दे ता है और श्रमशाल

―यज्ञों में पशिओ ं की बऽल चढ़​़ऩ

दऽलतों के र्जीद को रे ख़ंऽकत करता है:

ऽकस संस्कु ऽत के प्रताक हैं

―र्े भीखे हैं

मैं नहीं ज़नत़

पर अदमा क़ म़ंस नहीं ख़ते

श़यद अप ज़नते हों

प्य़से हैं

ऄथय बदल कर शब्दों के

पर लहू नहीं पाते

गढ़ ले ऩ ऄसंख्य प्रताक,

नंगे हैं

ऊग्र्ेद के कु ष्ण को

पर दीसरों को नंग़ नहीं करते

मह़भ़रत में ऽिट कर के

ईनके ऽसर पर छत नहीं हैं

हो ज़ऩ अत्मऽर्भोर‛

पर दस ी रों के ऽलए

र्े पिन:ऽलखते हैं–

छत बऩते हैं.‛

―चीहड़े य़ डोम की अत्म़

ऱ्ल्माऽक जा की ये कऽर्त़एं दऽलत अन्दोलन को एक ऽदश़ दे ता हैं और भऽर्ष्य में ईठने ऱ्ले बर्ंडर क़ ऄहस़स

ब्रह्म क़ ऄंश क्यों नहीं

कऱता हैं.ये कऽर्त़एं ईनके गहन जार्ऩनिभर् और व्य़पक

मैं नहीं ज़नत़

दृऽष्टकोण की पय़य य हैं.ओमप्रक़श ऱ्ल्माऽक ऄपना एक कऽर्त़ ‘कभा सोच़ है’ के म़ध्यम से भ़रताय र्णय –व्यर्स्थ़

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आयम्ब ई-ऩत्रिका 2014-15 के ब़रे में बत़ते हु ए कहते हैं ऽक– ‚भ़रताय र्णय व्यर्स्थ़ क़ प्रभ़र् स्र्तंित़ के ब़द भा कम नहा हु अ,क्योंऽक ऽजनके ह़थों में र्णय व्यर्स्थ़ की सत्त़ था,अज ईन्हीं की सरक़र है.अज भा शोषकों क़ ऱजनाऽत में स्थ़न नगण्य है.अज दऽलत स़ऽहत्य मजदरी र्गय की ऱजसत्त़ की ऱजनाऽत क़ पक्ष ले रह़ है.ईसक़ ऽर्श्व़स ज़ऽत की नहीं,र्गय –चेतऩ की ऱजनाऽत में है.र्े ईस ऱजनाऽत की अलोचऩ करत़ है,जो ऽहन्दी य़ ऽकसा भा धमय के ऱज की ऄर्ध़रण़ से जिड़ा है और धमय ऽनरपेक्ष मील्यों को ध्र्स्त करता है.‛ओमप्रक़श ऱ्ल्माऽक ऱजनैऽतक क्षेि में भा संघषय

ईठ़ते हैं.ईन्हें ऽर्श्व़स है की ऄब नइ पाढ़ा के बच्चे सर्णों क़ मिंह नहा त़केंगे बऽल्क ऽजन य़तऩओं को ईनके बिजिगों ने भोग़ है ईसके ऽखल़ि र्े संघषय करके ऄपने ऽलए ऄच्छे ऽदन ले अयेंगे.ऱ्ल्माऽक जा कऽर्त़ की आन पंऽक्तयों से स्पष्ट करते हैं– ―नहीं ऽनह़रें गे दरी खड़े होकर लहलह़ता िसलें ऽजसे ईग़ने में

करते ऽदख़इ दे ते हैं.ईनकी ऱजनैऽतक सरोक़रों से यिक्त

रक्त ऽपय़ है पिरखों क़

कऽर्त़ ‘कभा सोच़ है’ क़ एक ईद़हरण:

आस धरता ने

―र्णय व्यर्स्थ़ को तिम कहते हो अदशय

नहीं भरें गे ईनकी कोऽठय़ं और गोद़म

खिश हो ज़ते हो

ऄऩज के बोरों से

स़म्यऱ्द की ह़र पर

ये भीखे–प्य़से बच्चे

जब टी टत़ है रूस

ब़हर अयेंगे एक ऽदन

तो तिम्ह़ऱ साऩ36हो ज़त़ है

बंद ऄंधेरा कोठररयों से

क्योंऽक म़क्सय ऱ्ऽदयों ने

कच्चा म़टा की गंध

ऽछऩल बऩ ऽदय़ है

स़ंसों में भरकर.‛

तिम़रा संस्कु ऽत को‛

ओमप्रक़श ऱ्ल्माऽक के ऽलए कऽर्त़ कल़ से जय़द़ जार्न

ओमप्रक़श

ऱ्ल्माऽक

की

कऽर्त़एं

पिऱना

रूऽढ़यों,परम्पऱओं,नैऽतकत़ओं और अस्थ़ओं के प्रऽत ऽर्द्रोह करता हैं,ऄन्य़य,ऄत्य़च़रों और शोषण पर ऽटकी– संस्कु ऽत सभ्यत़ को नक़रता हैं.र्े ऐसा संस्कु ऽत र्​् सभ्यत़ क़ पोषण करने ऱ्लों की अस्थ़ पर थीकता हैं.परस्पर स्नेह,प्रे म और सद्भ़र् क़ प़ठ पढ़​़ने ऱ्ले ऄनैऽतक– ऄमय़य ऽदत,ब्ऱह्मणों द्ऱऱ संच़ऽलत परम्पऱओं को ऱ्ल्माऽक जा ऄपने क़व्य में कोसते हैं.आन परम्पऱओं और य़तऩओं के ऽर्रुद्च घोर संघषय ईपऽस्थत कऱते हैं.ऱ्ल्माऽक जा ऄपने क़व्य–संग्रह की एक कऽर्त़ ‘ब़हर अयेंगे एक ऽदन’ के म़ध्यम से बरसों से चलीं अ रहा त़ऩश़हा के प्रऽत अऱ्ज़ arambh.co.in

की ऄद्मय ल़लस़,गऽतशालत़ की संऱ्हक है ऽजसमें आनकी पाड़​़,सिख दिःख ऄऽभव्यक्त होत़ है.कऽर्त़ आन्हें जार्न की ऽर्द्रीपत़ओं से जीझने क़ हौसल़ दे ता है.ऱ्ल्माऽक जा की कऽर्त़एं ऽर्रोध और नक़र की हा कऽर्त़ नहीं र्ह अदमा की पहच़न की कऽर्त़ भा है.एक दऽलत कऽर् के ऽलए ‘कऽर्त़ क़बय नड़यऑक्स़आड के ऽर्रुद्च ऑक्साजन के ऽलए यिद्चरत हऽथय़र है’.यह ऄाँधेरे के ऽलए ऄऽग्न चिऱ ल़ने की प्रऽक्रय़ है.कोइ भा दऽलत कऽर् कऽर्त़ के ऽलए कऽर्त़ नहीं ऽलखत़.र्ह आसा मिऽक्त के ऽलए कऽर्त़ ऽलखत़ है,ईसकी स़ंसों पर जो क़ज़य है,दब़र् है ईसा को ईत़रने क़ ऱ्यस है कऽर्त़.ऱ्ल्माऽक जा की कऽर्त़एाँ एक़ंत में रोने की बज़य चाखने और प्रऽतक़र करने क़ ऽर्श्व़स है. Page 107


आयम्ब ई-ऩत्रिका 2014-15 ओमप्रक़श ऱ्ल्माऽक जा ‘बस्स!बहु त हो चिक़’ क़व्य संग्रह की कऽर्त़ ‘बस्स बहु त हो चिक़’ में कहते हैं ऽक–दऽलत सम़ज हज़रों र्षों से जो गिल़मा की य़तऩओं को सहन कर रह़ थ़ पर ऄब आस सहनशऽक्त की साम़ सम़प्त हो गइ है और ऄब बस्स बहु त हो चिक़.दऽलतों के जार्न की

बस्स!बहु त हो चिक़.‛ ‗आन पंऽक्तयों में ऱ्ल्माऽक जा दऽलत सम़ज के स़थ ऄम़नर्ाय व्यव्ह़र की साम़ बहु त हो गया कहकर रोकने के ऽलए कहते है’

दयनाय,ऄसह़य दिबयल ऽस्थऽत क़ और ईनके परम्पऱगत व्यर्स़य क़ ऽचिण करते हु ए ऱ्ल्माऽक जा क्रोध प्रकट करते हैं और कहते हैं ऽक ये सब हम़रे नसाब में हा

ऽहन्दी र्णय व्यर्स्थ़ ने ज़ऽत व्यर्स्थ़ को ऽनऽमय त करके पिरे

क्यों?आसऽलए ऄभा तक जो हु अ सो हु अ पर ऄब नहा

कमजोर करत़ है.ज़ऽतदंश जो ऽक समीचा प्रगऽत और

सहें गे.ऱ्ल्माऽक जा ऄपने सम़ज को,ऄपने पररऱ्र को परम्पऱगत क़म करते हु ए दे ख कर ऄपने अप को ऄसह़य महसीस करने लगते हैं.स्र्णय सम़ज ने ज़ऽत के ऩम पर हम़रे सम़ज क़ ऽकस प्रक़र शोषण ऽकय़ है आसकी गहन पाड़​़ की ऄऽभव्यऽक्त र्ह ऄपना कऽर्त़ के म़ध्यम से करते हैं. ‘झ़ड़ू’ शब्द क़ प्रयोग ऱ्ल्माऽक जा ने दऽलत सम़ज की

भ़रताय सम़ज को धोखे में रख़ है,दऽलत सम़ज में व्य़प्त है भीख,ऄऽशक्ष़,बेरोजग़रा जो भ़र्ऩत्मक रूप से भा ै ़ऽनक ऽर्क़स में ब़धक है.ह़ल़ंऽक सरक़र ने तम़म संर्ध प्ऱर्ध़न ऽकए हैं.ब़र्जीद आसके ज़ऽत पर अध़ररत शोषण बरकऱर है.यह सब सर्णय ज़ऽत ऄहम क़ पररण़म है.भ़रत में मनिष्य की पहच़न ज़ऽत से हा होता है.ले ऽकन ऱ्ल्माऽक जा ऄपना कऽर्त़ओं में आन ऽहन्दिओ ं की म़न्यत़ओं क़,आस

दश़ को व्यक्त करने के ऽकय़ है.ईनकी कमय ठत़ क़म के

व्यर्स्थ़ क़ ऽर्रोध करते हैं.ऽहन्दिओ ं क़ दशय न कहत़ है ऽक

प्रऽत ऽनष्ठ़ र् ऽनपिणत़ क़ प्रताक भा ‘झ़ड़ू’ हा है.दऽलतों के परम्पऱगत क़म–क़ज क़ ईनकी स़म़ऽजक ऽस्थऽत क़

कहऩ है ऽक दऽलत भीख से अहत कम ऽदख़त़ है,ज़ऽतगत

मनिष्य मरने के ब़द स्र्गय में ज़त़ है.ऱ्ल्माऽक जा क़

यथ़थय ऽचिण ऱ्ल्माऽक जा ने ‘बस्स!बहु त हो चिक़’ कऽर्त़

ऄपम़न और स़ंस्कु ऽतक शोषण से ऄऽधक अहत है.ऐसा

में आस प्रक़र ऽकय़ है:

व्यर्स्थ़ क़ ऽर्रोध करते हु ए ऱ्ल्माऽक जा ऽलखते हैं:

―जब भा देखत़ हू ाँ मैं

―स्र्ाक़यय नहीं मिझे

झ़ड़ू य़ गंदगा से भरा ब़ल्टा य़ कनस्तर

ज़ऩ

ऽकसा ह़थ में

मुत्यि के ब़द

मे रा रगों में दहकने लगते हैं

तिम्ह़रे स्र्गय में

य़तऩओं के कइ हज़़र र्षय एक स़थ

र्ह़ाँ भा तिम

अाँखों में ईतर अत़ है

पहच़नोगे मिझे

आऽतह़स क़ स्य़हपन

मे रा ज़ऽत से हा.‛

ऄपना अत्मघ़ता किऽटलत़ओं के स़थ ऄसंख्य मीक पाड़​़एाँ

आन पंऽक्तयों के म़ध्यम से यह स्पष्ट होत़ है ऽक दऽलत ने ज़ऽत के दंश को आतऩ सह़ है ऽक र्ह आस ब़त की कल्पऩ भा नहीं कर प़त़ की सर्णय सम़ज ईसे ज़ऽत से ऄलग देख

कसमस़ रहा हैं

और व्यर्ह़र कर सकत़ है.

मिखर होने के ऽलए रोष से भरा हु इ arambh.co.in

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आयम्ब ई-ऩत्रिका 2014-15 ओमप्रक़श ऱ्ल्माऽक ऽहंदा दऽलत स़ऽहत्य के सशक्त

ऄंधेरे में खो ज़ओगे

हस्त़क्षर हैं.ऄपने क़व्य–संग्रह ‘बस्स!बहु त हो चिक़’ में ऱ्ल्माऽक जा ने परम्पऱगत रूप से चला अ रहा र्णय –

हमे श़–हमे श़ के ऽलए.‛

व्यर्स्थ़,ज़ऽत–व्यर्स्थ़,ऽहन्दी के ध़ऽमय क कमय क़ंड,दऽलतों र् सर्णों के बाच की ऄसम़नत़ के प्रऽत ऄपऩ अक्रोश व्यक्त ऽकय़ है.डॉ.भामऱर् ऄम्बेडकर ने कह़ थ़– ‚ऽशक्ष़ शेरना क़ दध ी है,जो आसे ऽपयेग़ र्ो गिऱय येग़ जरुर‛ आसा ऱ्क्य को सच स़ऽबत करते हु ए ऱ्ल्माऽक जा ऄपने क़व्य संग्रह में ऄपऩ संघषय प्रस्तित कर रहे हैं.आनकी कऽर्त़ओं में स़म़ऽजक,अऽथय क तथ़ ध़ऽमय क व्यर्स्थ़ के प्रऽत ऄपऩ खिल़ ऽर्द्रोह प्रस्तित ऽकय़ गय़ है.र्ह ऄपने पिरखों के द्ऱऱ भोगे गये दिःख,य़तऩ र् पाड़​़ की द़रुण ऽस्थऽत को ऄपना कऽर्त़ के म़ध्यम से ऄऽभव्यक्त करते हैं.दऽलतों को सम़ज

―समक़लान ऽहंदा कऽर्त़ की तम़म प्रऽतबद्चत़ओं के ब़र्जीद कऽर्त़ओं से जार्न के र्े दग्ध ऄनिभर् ग़यब थे ऽजन्हें ओमप्रक़श ऱ्ल्माऽक की कऽर्त़ओं में महसीस ऽकय़ ज़ सकत़ है.ऱ्ल्माऽक जा की कऽर्त़एाँ ऽहंदा स़ऽहत्य के ऄधीरेपन को पीररत करने की कऽर्त़एाँ हैं.आनके क़व्य– संग्रह को पढ़ कर कह़ ज़ सकत़ है ऽक आनमें अक्रोश,ऽर्द्रोह र् संघषय क़ स्र्र ऽदख़इ दे त़ है,ये भ़रताय संस्कु ऽत के ऽमथकों को तोड़कर स़फ़–सिथरा संस्कु ऽत के ऽनम़य ण की प्रे रण़ दे ते हैं.ऱ्ल्माऽक जा ने ऄपना कऽर्त़ओं के म़ध्यम से दऽलतों की सोया हु इ म़नर्त़ को जग़ने क़

खऽलह़न,धन दौलत,घर–द्ऱर,जमान ज़यद़द पर केर्ल

प्रय़स ऽकय़ है.र्ह च़हते हैं की दऽलत ऄपने ऄऽधक़रों के प्रऽत ज़गरूक होकर सम़ज में एकत़ स्थ़ऽपत करने के

सर्णों क़ ऄऽधक़र थ़.‛2दऽलतों से केर्ल ईनके घरों र्

ऽलए ऄग्रसर हो सकें.‛3

खे तों में क़म करऱ्य़ ज़त़ थ़,ले ऽकन आसके बदले ईन्हें

ओमप्रक़श ऱ्ल्माऽक दऽलत–स़ऽहत्य अन्दोलन के

भरपेट भोजन भा नसाब नहीं थ़.परन्ति अज दऽलत सम़ज ज़गुत हो चिक़ है और आन य़तऩओं के प्रऽत खिले संघषय क़

शिरूअता रचऩक़रों में शिम़र होते हैं.ईनके स़ऽहत्य में ऽशल्प के प्रऽत सजगत़ भा ईतना हा है ऽजतऩ की दऽलत

ऐल़न करत़ है.ऱ्ल्माऽक जा ऄपना पंऽक्तयों के द्ऱऱ ऄपऩ

सरोक़रों की ऽिक्र. ‘बस्स!बहु त हो चिक़’ की पच़स

संघषय प्रस्तित करते हु ए ऽलखते हैं:

कऽर्त़यें ऄपना दृऽष्ट और ईद्ङे श्य में पीणय हैं.शब्द़र्ला भा

में ऽकसा भा प्रक़र क़ ऄऽधक़र नहीं थ़,क्योंऽक खे त–

―कच्चे घर में जलते दाये की रोशना पर कब्ज़़ करके बैठ गए तिम

स़म़न्य ऽहंदा कऽर्त़ जैसा है.ऽहंदा दऽलत–स़ऽहत्य की भ़ष़ और सौंदयय को ले कर ऽहंदा के मिख्य–ध़ऱ के स़ऽहत्य में तम़म प्रश्न और ऽर्ऱ्द खड़े ऽकये गए ऽकन्ति ओमप्रक़श ऱ्ल्माऽक की कऽर्त़यें ईन सभा ऽर्ऱ्दों को ऽनऱध़र

मे रा ऽपंडऽलयों

स़ऽबत करता हैं.ऽबम्ब सिथरे और ऽस्थर हैं ईद़हरण के ऽलए हम आस संग्रह की आन पंऽक्तयों को दे ख सकते हैं–

और भिज़ओं के म़ंस से बना ब़ता

…..ऽगन रह़ है स़ाँसें

हड् ऽडयों को ऽनचोड़कर

कन्धों से तलर्ों तक

ऽनक़ल़ गय़ है तेल

ऽिसलत़ पसाऩ

ऽकन्ति य़द रखो

तंग गऽलयों में .

ऽजस रोज़ आंक़र कर ऽदय़

कन्धों से तलर्ों तक ऽिसलत़ पसाऩ एक ऐस़ ऽबम्ब है जो भ़रताय सम़ज के दऽलत मे हनतकश र्गय के सौन्दयय बोध से

ऽदय़ बनने से मे रे ऽजस्म ने arambh.co.in

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आयम्ब ई-ऩत्रिका 2014-15 भऱ हु अ है. ‘र्संत को मरे तो यिग बात गय़’ कऽर्त़,क़व्य के रच़र् की ईत्कु ष्टत़ को प्रदऽशय त करता है– र्े च़हते हैं

भ़रताय स़ऽहत्य और संस्कुऽत में ऩरा ( ळोधऩि)(तीवया अॊक )

शब्द बन ज़ए ऽततला शब्द ज़नत़ है ऽततला बन ज़ने के ब़द

र्ैऽदक यिग से पीर्य प्ऱगैऽतह़ऽसक यिग में भा म़तुदेर्ा की

क्य़ होग़.

ईप़सऩ,से यह ऄनिम़न लग़य़ गय़ है ऽक संभर्त:र्ह सम़ज म़तुसत्त़त्मक सम़ज थ़। ईस अऽद यिग में म़त़ हा समस्त शऽक्त और सत्त़ की केन्द्र था।

ऽनष्कषय यह ऽक आस संग्रह की कऽर्त़यें केर्ल दऽलत अन्दोलन की कऽर्त़यें नहीं हैं बऽल्क आनमें क़व्य–सौंदयय को प्ऱप्त करने की ईत्कट ऄऽभल़ष़ भा है.यहा ब़त ओमप्रक़श ऱ्ल्माऽक को ऽहंदा कऽर्त़ के कऽर्यों के अगे की कत़र में स्थ़न दे ता है.भ़र्–पक्ष और कल़ पक्ष दोनों हा रूपों में कऽर्त़यें सरलत़ और सहजत़ से प़ठक के ह्रदय तक पैठ ज़ता हैं.

ऩूखणषभा,ळोधाथी

म़नर् सभ्यत़ के मधिमय ऽर्ह़न के यिग, ‘र्ैऽदक यिग‘में अयोंनेप्रकु ऽतकी अियय जनक शऽक्तयों को दैर्ा शऽक्त क़ प्रताक म़नकर ईनमें दे र्त्र् क़ अरोपण ऽकय़।ऄऽदऽतको जह़ाँ म़तुत्र् क़ प्रताक म़ऩ गय़र्हींऱऽि,प्रभ़त,ऽनश़,आल़,भ़रता अऽद को प्ऱकु ऽतक शऽक्तयों क़ पद ऽदय़ गय़। ऽह्लयों को सम़ज में गररम़पीणय स्थ़न प्ऱप्त थ़। र्ैऽदक संस्कु ऽत में ऽह्लयों को पिरूषों के सम़न हा ईच्च ऽशक्ष़ ग्रहण करने की स्र्ाक़यय त़ था। ―संगठन के ऽसद्च़ंत और व्यर्ह़र में ऽह्लयों क़ स्थ़न बहु त उाँच़ थ़,ऽकसा प्रक़र क़ परद़ नहीं थ़। स़ध़रण जार्न के ऄल़ऱ् सम़ज के म़नऽसक और ध़ऽमय क नेतत्ु र् में भा ऽह्लयों क़ ह़थ थ़।1 ऽर्श्वर्ऱ,लोप़मिद्ऱ,ऽसक्त़ ऽनऱ्र्रा और घोष़ जैसा प्रऽतभ़संपन्न कर्ऽयऽियों से भऱ र्ैऽदक सम़ज भले हा ऽपतुसत्त़त्मक थ़ ले ऽकन ह्ला के ऄऽधक़र और सम्म़न के प्रऽत अग्रहा भा थ़। ईत्तर र्ैऽदक क़ल अते–अते ऩरा की ऽस्थऽत में क्रऽमकह्ऱसअने लग़। ऐतरे य ब्ऱह्मण में जह़ाँ ऩरा को एक भ़राय,ऄनथय की जड़ और कन्य़ के जन्म को संकट ईत्पन्न करने ऱ्ल़ म़ऩ गय़ है।‘संऽहत़‘में ऩरा को मऽदऱ और जिअ के स़थ तान प्रध़न दोषों के स़थ ऽगऩय़ गय़ है।‘तैऽत्तराय संऽहत़‘में ऩरा को एक बिरे शीद्र से भा नाच़ बतल़य़ गय़ है। र्हीं शतपथ ब्ऱह्मण ने ऩरा को एक बिरे अदमा से भा हान म़ऩ है।

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आयम्ब ई-ऩत्रिका 2014-15 500इ.पी तक अते–अते सम़ज में ऩरा ऽर्षयक ऄर्ध़रण़ में पररर्तय न अने लग़। ऩरा क़ दो स्पष्ट रूपों में ऽर्भ़जन होने लग़। एक ओर ऩरा को ऄत्यन्त गौरर्पीणय स्थ़न में हा बैठ़य़ गय़ तो र्हीं दीसरा ओर ईन्हें सभा दोंषों के मील,व्यऽभच़ररणा अऽद क़ भा तमग़ दे ऽदय़ गय़।2 ऽलखते हैं– ‚मह़भ़रतक़ल तक ऽह्लयों की ऽशक्ष़ और अध्य़ऽत्मक ईन्नऽत में क्रमश:ह्म़स होने पर भा ईनको सम़ज में प्रऽतऽष्ठत स्थ़न ईपलब्ध थ़।‚3 र्हीं दीसरा जगह पर हम दे खते हैं ऽक– ‚ऽह्लयों से बढक़र कोइ प़पानहींहै,क्योंऽक ऽह्लयों सब दोषों क़ मील है। ह्लायों को ऽकसा भा ऄर्स्थ़ में स्र्तंि नहीं रहऩ च़ऽहए।4‖ दोले खकोंकी यह दो ऽर्ऽभन्न ऄंतयदृऽष्ट ऩरा ऽर्षयक दो ऽभन्न म़न्यत़ओं को ऽदख़ता है जो तत्क़लान सम़ज में प्रचऽलत हो गया था। र्ैऽदक संस्क़रों में जैसे–जैसे जऽटलत़एाँ और रूऽढऱ्ऽदत़ बढ़ता गइ र्ैसे–र्ैसे ऩरा क़ स्थ़न कम से ऺ हानतर में पररणत हो गय़। आसाब़ह्य़डम्बरकी जऽटलत़,तथ़कऽथतपऽर्ित़एर्ं उाँच–नींच की प्रऽतऽक्रय़ में बौद्च धमय क़ अऽर्य भ़र् हु अ। ―ऩरा,जो पिरूष के ऄत्य़च़रों के बोझ से दबा ज़ रहा था,श़ह्लक़रों ने ऽजसे व्यऽक्तगत अऱधऩ क़ भा ऄऽधक़र नहीं ऽदय़ थ़,ईसे भा बौद्चक़ल में संर्ेदऩ क़ संदेश ऽमल़।‚5 बौद्च धमय ने ऄपने द्ऱर सभा के ऽलए खोल ऽदये। थेराग़थ़ के ऄध्ययन से तत्क़लान सम़ज क़ सच स़मने अत़ है। यह भलाभ़ाँऽत ज्ञ़त हो ज़त़ है ऽक ऩरा पत्ना य़ ग्रह की

धारे –धारे ऩरा को क़म क़ स़धन,ऱ्सऩ क़ मील समझकर त्य़जय बऩने लगत़ है। ―ऽदगम्बर पंथ ऱ्लों ने तो स्पष्ट घोषण़ कर दा ऽक मिऽक्त ऩररयों के ऽलए नहीं है। ईनके ऽलए साऽमत धमय क़ प़लन हा श्रेयस्कर है,ऽजससे र्ह पिरूष क़ जन्म प्ऱप्त कर सकें,क्योंऽक मोक्ष–ल़भ पिरूष–जन्म में हा संभर् है।‚ आस प्रक़र हम दे खते हैं ऽक10र्ीं शता के ईत्तऱद्चय तक अते–अते ऽर्ल़सा सम़ज में ऩरा केर्ल क़म एर्ं ईपयोग के ईपकरण रूप में था,ईपनयन की औपच़ररकत़ खत्म हो गया।‚र्ैऽदक ऊच़ओं की रचऩकमी ऩरा को मंिों के ईच्च़रण क़ भा ऄऽधक़र न रह़,और र्ह शिद्र के स्तर पर अ गइ।‚7 बौद्च और जैन स़ऽहत्य में प्ऱय:कहीं भा सता प्रथ़ क़ ईल्ले ख नहीं है।‚मह़भ़रत में भा ऽजसक़ र्तय म़न रूप इस़ की तासरा शत़ब्दा क़ है,केर्ल एक म़हा के सता होने पर ईद़हरण ऽमलत़ है।‚8 परर्ती कऽर्यों जैसे क़ऽलद़स के क़व्य में हमें सता प्रथ़ क़ ईल्ले ख दे खने को ऽमलत़ है,क़लाद़स,म़घ,ऄश्वघोष अऽद क़व्यक़रों के यह़ाँ ऩरा में ऄनंत ममत़,त्य़ग,ऱ्त्सल्य अऽद गिण ऽदखते है। आस्ल़मा अक्रमणों के झंझ़ऱ्तो को झेलते हु ए भ़रताय सम़ज

पीणयत:संकीणय त़ओं

से

भर

गय़।

ऽर्दे शा

अक्रमणकररयों के भय से ईत्पन्न हु या ब़ल ऽर्ऱ्ह,सता

ऱना नहीं था,र्रन् केर्ल एक स़धन था–ऽर्ल़स क़। बौद्च– सम़ज ने ऩरा ईद्ऱरक के रूप में जो ख्य़ऽत ग्रहण की र्ह

प्रथ़,पद़य प्रथ़ जैसा ऄनेॅेक ऽर्संगऽतय़ाँ सम़ज में घर कर गया। र्ेश्य़र्ुऽत्त हरम अऽद ऄर्ध़रण़ओं ने ऩरा को तिच्छत़ रूप प्रद़न करने में ऄहम भीऽमक़ ऽनभ़या।

जय़द़ ऽटक न सकी। मह़य़न,हानय़न,पंचमंकर पद्चऽत

―712इ.के मिहम्मद ऽबन क़ऽसम के ऄरब अक्रमण से

जैसे–जैॅैसे बौद्च धमय में भा संकीणय त़एाँ अनाशिरूहु इ,मठों में भा ऽभक्षिणा म़ि भोग्य़ हा रह गइ।

ले कर1707इ.में मिगल स़म्ऱजय के पतन तक भ़रताय श़लानत़ क़ आऽतह़स ऩरा ऄपने रक्त से ऽलखता रहा। यह

आसके ब़द भ़रताय सम़ज में जैन धमय क़ ऄभ्यिदय होत़ है। ऩरा के म़त़ रूप को स्थ़ऽपत करते हु ए यह संप्रद़य ऩरा श्रद्च़ और अदरणाय रूप में स्थ़ऽपत करने क़ प्रयत्न करत़ है। ले ऽकन मोक्ष की तरि ईन्मिख यह संप्रद़य भा

आऽतह़स हज़र र्षो के जौहर क़ आऽतह़स थ़,संस़र की

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ज़ऽतयों क़ अऩ–ज़न,भ़रत की ब़र–ब़र पऱजय क़ मील्य,भ़रताय ऩरा के गौरर् क़ ऽर्ध्र्ंसक।‚9

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आयम्ब ई-ऩत्रिका 2014-15 संत संप्रद़य में संतों ने स़म़ऽजक व्यर्स्थ़ क़ हा ऱ्स्तऽर्क चेहऱ प्रस्तित ऽकय़। ऩरा को तपस्य़ क़ ऄर्रोध एर्ं सत्पथ से च्यित करने ऱ्ल़ अकषय ण संत क़व्य में कह़ गय़ है एक–दो प्रसंगों को छोड़ दें तो कबार क़ खिद को बहु ररय़ घोऽषत करऩ और‚जे ता औरत मररद़ सब में रूप तिम्ह़ऱ‚10यह कहऩ,ऄपने अप में आस ब़त क़ सिबत ी है ऽक संतों ने ऩरा को भा शऽक्त के योग्य प़य़। सहजोब़इ,दय़ब़इ अऽद संत कर्ऽयऽिय़ाँ आस ब़त को पिष्ट करता हैं। ऱम़नंदा भक्तों की दीसरा श़ख़ में तिलसाद़स भा ऩरा के क़ऽमना रूप को त्य़जय म़नते हैं। ऱर्ण–मंदोदरा संऱ्द में मंदोदरा क़ सात़–हरण करने पर ऱर्ण को दित्क़रऩ हो य़ किंभकरण क़ ऱर्ण से ऄसहयोग क़ िै सल़ ये दोनों प्रसंग ऩरा की स़थय कत को हा ब़त़ते हैं जह़ाँ ऩरा र्ंदनाय

हा ह़ऽशऐ पर ज़ चिक़ है। आस समय में ऩरा को दे र्ा के पद पर ऽबठ़ने में ‘स्र्यं–ऄनिभत ी ‘ऩरा भा संतिष्ट नहीं है। ऩरा की ऄऽस्मत़ अधिऽनक ऽर्मशय क़ एक महत्र्पीणय प्रश्न है। एसे में ऩरा ऄपने रचऩ क़यय में आसक़ अह्ऱ़ह्न करता है,की ईसे सम़नत़ और म़नर्ाय दृऽष्टकोण से दे ख़ ज़ए। ‗अजकल‘पऽिक़ के म़चय 2014ऽर्शेष़ंक में प्रक़ऽशत‚र्ररष्ठ पिक़र–कथ़क़र क्षम़ शम़य से ऽदनेश चमोल़‘शैलेश‘‛की ब़तचात–ह्ला को दे र्ा न बऩएं ,में क्षम़ जा कहता है। ―ह्ला–ऽर्मशय के ब़रे में प्ऱय:मैं सोचता हू ाँ ऽक ह्ला को दे र्ा बऩय़ ज़ रह़ है आन ऽदनों। मीऽतय तो स्थ़ऽपत करने के ऽलए होता है और ऄंतत:ईसे ऽर्सजय न हा करने की परं पऱ है।‚11

है,जगतस्र्रूप है।

प़ि़त्य ऽशक्ष़ प्रण़ला एर्ं संस्कु ऽत सभ्यत़ और स़ऽहत्य के संपकय के क़रण पिरूषों की म़नऽसक पुष्ठभीऽम क़ भा

आसा समय सीिी क़व्यध़ऱ जो ऽक संत क़व्यध़ऱ के सम़ऩन्तर चल रहा था ऩरा को ब्रह्म रूप में स्थ़ऽपत करते है। द़उद जैसे कऽर् तो ऩरा को म़नर्ा रूप में प्रऽतऽष्ठत करते है।

ईद़राकरण

हु अ।

महऽषय

दय़नंद,ऱज़ऱममोहन

कु ष्ण क़व्य में ऩरा की स्र्च्छं दत़ को गऽत ऽमलता है और

ऱय,ऱऩडे ,रऽर्न्द्रऩथ ठ़किर,जयोऽतब़ ि​िले द्ऱऱ समय– समय पर ऽदये ऽर्च़र ऽर्मशो ने भा ऩरा ऽर्मशय को ऽदश़ प्रद़न की। ऩरा–ज़गरण संबंऽधत ऽर्ऽभन्न संस्थ़ओं ने भा सम़ज में ऩरा–ऽस्थऽत पर ऽर्च़र ऽकय़। आन सभा क़यो क़

यहीं र्े प्रस्थ़न ऽबंदि है,जह़ाँ से स़ऽहत्य के केन्द्र में ऩरा स्थ़ऽपत होने लगता है। परर्ती राऽतकऽर्यों में तो स़ऽहत्य

स़ऽहत्य पर प्रभ़र् पड़ऩ स्ऱ्भ़ऽर्क है,क्योंऽक स़ऽहत्य सम़ज क़ दपय ण है।

पीणयत:ऩरा पर हा अऽश्रत है। मध्यक़लान म़नऽसकत़ के ऽर्ल़सपीणय म़हौल में भा यथ़य थत़ के ऽचिों क़ ऄंकन यह़ाँ से प्ऱरं भ हो ज़त़ है।

ऽहंदा स़ऽहत्य में अधिऽनकत़ के द्ऱर–पटल नर्ज़गरण और नर्ज़गरण के ऄग्रदीत भ़रतेंदि जा थे। भ़रतेंदि जा को प्ऱचान क़ मोह थ़ परन्ति नर्ानत़ के स्ऱ्गत की ईत्सिकत़ भा ईनमें भरपीर था। जह़ाँ र्े एक तरि ऩरा के प्रे ममया और लोक ल़ज ऱ्ले रूप क़ ऽचिण करते है र्हीं दीसरा तरि‘किलक़ऽन की बतऱर्न‘में बहल़इ नहीं ज़

अधिऽनकक़ल में ‚ऩरा तिम केर्ल श्रद्च़ हो‛से चलत़ हु अ भ़रताय सम़ज‚मिक्त करो ऩरा को म़नर् ऽचर बंऽदना ऩरा को,से हु अ क्ऱंऽत क़ स्र्र पकड़त़ है। आसकी हा पररणऽत ऩराऱ्दा अंदोलन के रूप में हमें ऽदख़इ दे ता है।‛आस प्रक़र हम दे खते हैं ऽक‚ज़की कन्य़ सिन्दर दे खा-‛जैसा त़ऽलब़ना व्यर्स्थ़ से होकर भ़रताय सम़ज,स़ऽहत्य में ,ऩरा क़ बदलत़ स्र्रूप,सम़ज की हा दे न है। दबे पैरो तले हा सहा,ईज़ले की छट़ स़मने खड़ा ऽदखता है।

सकता,ऱ्ला ऩरा क़ ऽचिण भा करते है। भ़रतेन्दि ऄपने क़व्य में ऩरा प़ि को ले कर ऱध़ और गोऽपयों पर केऽन्द्रत रहें है। चलो सखा ऽमल देखन जैये दिलऽहन ऱध़ गोरा जी। कोऽट रम़ मिख छऽर् पे द़रौं मे रा नर्ल ऽकसोरा जी।12

अज क़ स़ऽहत्य‘ऽर्मशय ‘क़ स़ऽहत्य है,जह़ाँ ह्ला और दऽलत दो जर्लंत मिद्ङे हैं। अधिऽनक समय में जब इश्वर स्र्यं arambh.co.in

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आयम्ब ई-ऩत्रिका 2014-15 भ़रतेन्दी के समक़लान ऄन्य महत्र्पीणय कऽर्यों में ब़ब़ सिमेरऽसंह‘प्रे मघन‘ठ़किर

जगमोहन

ऽसंह,प्रत़तऩऱयण

ऽमश्र,ऱयदे र्ा प्रस़द पीणय ब़लमिकिन्द गिप्त अऽद की ऩरा सम्बंधा ऄऽभव्यंजऩ भा भ़रतेन्दी के इद–गादय घीमता है। स़थ हा आन कऽर्यों क़‘स्र्‘भा कहीं–कहीं पुथक ऄऽभव्यऽक्त प़त़ है। मह़र्ाऱ प्रस़द ऽद्रर्ेदा जा आस यिग के य़ अधिऽनक यिग के दस ी रे यिग–प्रर्तय क,प्रक़श स्तंभ है। ईन्होंने क़व्य की भ़ष़

ऱष्र प्रे म से ओत–प्रोत ऩरा,सिभद्ऱकिम़रा चौह़न एक महत्र्पीणय ह्ला रचऩक़र है। ऩरा के क्ऱंऽतक़रा रूप को सम्प्रे ऽषत करके झ़ाँसा की ऱना के स़थ आऽतह़स में और दे श की स्र्तंित़ प्ऱऽप्त में ऩरा के महत्र् क़ बख़न करता कऽर्ऽयऽि कहता है। बिंदेले हरबोलों के मिाँह हमने सिना कह़ना था। खीब लड़ा मद़य ना र्ह तो झ़ंसा ऱ्ला ऱना था।15

के रूप में खड़ा–बोला की स्थ़पऩ की,ऽजसने ऄनेक कऽर्यों क़ स़ऽहत्य जगत में स्ऱ्गत ऽकय़। आतऩ हा नहीं ऽद्रर्ेदा–यिग के कऽर्यों ने ऄनिऱ्द की ऄंगिला थ़म कर ऽहंदा स़ऽहत्य को ऽर्श्व स़ऽहत्य से जोड़ने क़ क़म भा ऽकय़।

छ़य़ऱ्द के ब़द भ़रताय क़व्यध़ऱ को क़लय म़क्सय के स़म्यऱ्दा जार्न–दशय न ने भा प्रभ़ऽर्त ऽकय़ है। अऽदम स़म्यऱ्द और कऽबल़इ संस्कु ऽत में ऩरा को सम़न और ऽर्शेष ऄऽधक़र प्ऱप्त थे परन्ति स़मंतऱ्दा और पीाँजाऱ्दा ऽर्च़रों और पद्चऽतयों ने ऩरा को ह़ऽशए पर पहु ाँच़ ऽदय़

अधिऽनक कऽर् सौन्दयय क़ ईप़सक है,ऽकन्ति ईसकी यह सौन्दयय ईप़सऩ राऽतक़लान कऽर्यों की सौन्दयोप़सऩ से ऽबलकिल ऄलग है। राऽतक़लान कऽर् जह़ाँ ऩरा के म़ंसल सौन्दयय पर राझते रहे र्हा अधिऽनक–कऽर् सौन्दयय के अन्तररक पक्ष पर बल दे त़ है। मैऽथऽलशरण गिप्त जा ऽलखते है।

और म़क्सय के र्गय संघषय में एक‘शोऽषत र्गय ‘,ऩरा ने भा जन्म ऽलय़। म़क्सय ऱ्ऽदयों के ऄनिस़र सम़ज में ऽकस़न,मजदरी ों के स़थ–स़थ ऩरा–र्गय क़ भा शोषण हु अ है। र्ह पिरूष के ऽर्ल़स और भोग की र्स्ति म़ि रहा है।

‗दान न हो गोपे ,हान नहा ऩरा कभा।

ऄत:अज के प्रगऽतऱ्दा,प्रयोगऱ्दा और नया–कऽर्त़ क़ ईद्ङे श्य ऩरा को सम़नत़ ऽदल़ऩ हा नहीं ईसे स़म़ऽजक बंधनों से मिक्त करऩ भा है।

भीत–दय़–मीऽतय ,र्ह मन से शरार से।‘13

‗नइ ऩरा,

छ़य़ऱ्दा कऽर् जयशंकर प्रस़द जा ऄपना श्रद्च़ रूपा ऩरा के ऽलए ऽलखते हु ए ऩरा क़ ईद्ङ़ख्त रूप प्रक़श में ल़ते है। ऩरा समपय ण की कथ़ र्े आन पंऽक्तयों से कहते हैं।

ह़ाँ,नइ ऩरा,

―आस ऄपय ण में किछ और नहीं,केर्ल ईत्सगय छलकत़ है।

घींघट को ऽजसने ईलट ऽदय़ है,

मैं दें दंी और न ऽप र किछ लीं,आतऩ हा सरल झलकत़ है।‚14

पदे को ऽजसने ि़ड़ िेंक़ है,’16

ह्ला ऽर्मशय संबंऽधत स़ऽहत्य में सह़निभऽी त और स्र्:ऄनिभऽी त के प्रश्न ईठने के क़रण ह्ला द्ऱऱ ऽलऽखत स़ऽहत्य पर ऽर्च़र करऩ अर्श्यक हो ज़त़ है। छ़य़ऱ्दा यिग में मह़दे र्ा र्म़य की कऽर्त़ में रहस्यऱ्दा प्रर्ुऽत्त और दिखऱ्द की ऄऽधकत़ है,भ़र्िकत़ है। परन्ति ईनक़ गद्य बौऽद्चक रूप से प्रखर है। ऄतात के चलऽचि,स्मुऽत की रे ख़एाँ ,श्रुंखल़ की कऽडय़ाँ जैसा रचऩओं के म़ध्यम से मह़दे र्ा र्म़य ने ऺ भ़रताय ऩरा के ऄनदे खे पहलिओ ं पर प्रक़श ड़ल़ है। arambh.co.in

दे खो,र्ह ऄन्तररक्ष पर ऄर्ताणय हु इ है,

अज के समय और पररऽस्थऽतयों को दे खते हु ए नइ कऽर्ऽियों ने जन्म ऽलय़ है जो अधिऽनक ऩरा क़ ऽचि स़मने रखता है और ईसकी प्रऽतबद्चत़ओं को खऽण्डत करके ईसे मिऽक्त क़ प़ठ ऽसख़ता है। यीं तो मऽहल़ ले खन और रचऩ क़यय में गद्य क़ हा मिख्य रूप से ऄऽर्य भ़र् हु अ है। परन्ति संर्ेदऩत्मक शब्दों में बंधे यथ़थय को ईकेरने क़ स़हस पीणय क़म क़व्य में होने लग़ है। ऽहन्दा स़ऽहत्य में स्र्:ऄनिभऽी त और सह़निभऽी त क़ प्रश्न हमे श़ से ईठत़ रह़ है। च़हे र्ह दऽलत ले खन हो य़ ह्ला–ले खन ऄंबेडरऱ्दा Page 113


आयम्ब ई-ऩत्रिका 2014-15 ऽर्च़रों ने दे श की स्र्तंित़ से ऄपने र्गय की स्र्तंित़ को ऄऽधक महत्त्र् ऽदय़। आसके दीसरा तरि ह्ला ने भा दे श की स्र्तंित़ और दऽलत–र्गय स्र्तंित़ से ऄऽधक महत्र् ऩरा स्र्तंित़ को ऽदय़ आसमें ऩरा दृऽष्ट यह कहता है ऽक यऽद दऽलत र्गय स्र्तंि भा हो गय़ तो ह्ला दऽलतों के पैरों तले रूंधता रहे गा। आस क़रण से दऽलत ह्ला ऽर्मशय ने जन्म ऽलय़। र्तय म़न समय में कऽर्त़ओं के क्षेि में क़म करने ऱ्ला कर्ऽयऽियों

में

मधि

पंत,शऽशकल़

ऽिप़ठा,रऽश्म

बड़थ्ऱ्ल,सिध़ ऄरोड़​़,रजना मोख़ल,ऽहम़ना दाऱ्न के ऩम ईल्ले खनाय है। ऩरा के ऽर्रोध क़ स्र्र और अधिऽनक ऩरा क़ ऽचि,यह़ाँ मधि पंत जा की कऽर्त़ में दे ख़ ज़ सकत़ है।

• भ़रताय सम़ज क़ एक ऽर्श्ले षण,भगर्तशरण,पु. 264,1950बऩरस • कबार ग्रंथ़र्ला,पु. 176, 256। • ‗अजकल’;पऽिक़,म़चय 2014,पु. 67 • भ़रतेंदि ग्रंथ़र्ला,भ़ग-2पु. 72 • यशोधऱ–मैऽथऽलशरण गिप्त • क़म़यना,प्रस़द-,पु. 113 • झ़ाँसा की ऱना,सिभद्ऱकिम़रा चैह़न-,पु. 64 • नइ ऩरा,ऱमर्ुक्ष बेनापिरा,पु. 9 • मधिपंत-‘ऩरा की र्जय ऩ ‘,अजकल म़चय 2014 ;पु. 4

े जय प्रकाश पा​ांडय शोधार्थी हदल्ली हिश्वहिद्याल

और स्र्ेच्छ़ से मिस्कऱकर ज़ग्रऽत क़ गात ग़कर ईसने ऄपने–अपको कह़-‘ऩरा‘ ऄनिऽचत‘ऩ‘की र्जय ऩ करने ऱ्ला ऩरा।17 संदभय : • ऽहन्दिस्त़न की पिऱना सभ्यत़,बेनाप्रस़द,पु. 50 • मह़भ़रत एण्ड आट् स कल्चर,कल्चरल हैररटेज अॅप आंऽडय़,हे मचंद्र ऱय चैध्रा,भ़ग11,पु. 103¸ • ऽहंदा मह़भ़रत ऄनिश़सन पर्य ,ऄनि॰ द्ऱररक़ प्रस़द चतिर्ेदा,,पु. 190, • ऽहंदा मह़भ़रत ऄनिश़सन पर्य ,ऄनि॰ द्ऱररक़ प्रस़द चतिर्ेदा,,पु. 190, • संस्कु ऽत के च़र ऄध्य़य,ऱमधरा ऽसंह ऽदनकर पु. 155, 1956 • द एज अॅि आम्पाररयल यीऽनटा सम़ऽज जार्न,ऱधकिमिद और अर.सा.मजीमद़र564 • द एज अॅि आम्पाररयल यीऽनटा सम़ऽज जार्न,ऱधकिमिद और अर.सा.मजीमद़र564 • ऽहन्दा स़ऽहत्य में ऩरा भ़र्ऩ,डॉ .ईष़ प़ण्डे य arambh.co.in

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आयम्ब ई-ऩत्रिका 2014-15

‗ऩच्यौ बहु त गोप़ल’ में ह्ला ऽर्मशय ’ ( ळोधऩि)(तीवया अॊक ) ‗ऩच्यौ बहु त गोप़ल’ ऽहन्दा–ईपन्य़स स़ऽहत्य में प्र्रेमचंद परं पऱ के म़ने ज़ने ऱ्ले ले खक ईपन्य़सक़र ऄमुतल़ल ऩगर जा की महत्र्पीणय कु ऽत है। ‘ऩच्यौ बहु त गोप़ल’ ऽहन्दा क़ एक ऐस़ ईपन्य़स है ऽजसने ऽहन्दा स़ऽहत्य को एक नय़ कथ्य ऽदय़। आस ईपन्य़स में जह़ं ले खक क़ल,घटऩ र् स्थ़न क़ प्रयोग नर्ान ढं ग से करत़ है र्हीं यह ईपन्य़स रूढ़ ढ़ंचे को भा तोड़त़ हु अ ऽदख़इ पड़त़ है। ऽहन्दा ईपन्य़स स़ऽहत्य में संभर्तः पहला ब़र ऄमुतल़ल ऩगर जा ने हा सम़ज के सबसेऄऽधकशोऽषत,प्रत़ऽड़तमे हतर

र्गय

की

करूण़मया,झ़ंकी,रृदयग्ऱहा कथ़ के त़ने –ब़ने से बिनकर एक कु ऽत के रूप में प्रस्तित ऽकय़। आस कु ऽत को प़ठकों ने आतऩ पसंद ऽकय़ ऽक यह मे हतर ज़ऽत की यिग–यिगान ररसता पाड़​़ क़ ऄनीठ़ दस्त़र्े ज बन गइ। ले ऽकन ईपन्य़स को पढ़ने पर मिझे यह ब़र–ब़र लग़ ऽक आस ईपन्य़स की केन्द्राय समस्य़ न केर्ल दऽलत बऽल्क ह्ला भा है। आसऽलए हमें ईपन्य़स की ऩऽयक़ ऽनगियन के म़ध्यम से पीरे ईपन्य़स में ऽर्स्तुत ह्ला ऽर्मशय पर भा ऄपना ब़त कहना च़ऽहए। ‗ऩच्यौ बहु त गोप़ल’ शाषय क हा आस तथ्य की पिऽष्ट करत़ है ऽक यह कु ऽत ऽनगियन के जार्नगत ईत़र–चढ़​़र् की ग़थ़ है। ऽजस प्रक़र कथ़ सम्ऱट प्रे मचंद की सर्य श्रेष्ठ कु ऽत ‘गोद़न’ एक व्यऽक्त(होरा)के ऽकस़न से मजदीर बनने की ग़थ़ है। ईसा प्रक़र ‘ऩच्यौ बहु त गोप़ल’ ईपन्य़स की ऩऽयक़ ऽनगियन के म़ध्यम से ह्ला के शोषण और ऄत्य़च़र क़ यथ़थय ऽचिण ऽकय़ है। ऽनगियन एक स़थ दोहऱ संघषय भोगता है–एक ह्ला क़,दस ी ऱ मे हतर क़। ईपन्य़स की ऩऽयक़ ऽनगियन पिरूष ज़ऽत द्ऱऱ ऽकए गए शोषण के क़रण हा ब्ऱह्मण किल में ईत्पन्न होकर,मे हतऱना बनता है। र्ह ऄपने जार्न के कटि यथ़थय के ब़रे में कहता है। ‘‘दिऽनय़ में दो पिऱने से पिऱने गिल़म

हैं–एक भंगा और दस ी रा औरत। जब तक ये गिल़म हैं अपकी अज़दा रूपये में पीरे सौ के सौ नये पैसे भर झीठा है।’’1 डॉ ॰ ऱममनोहर लोऽहय़ क़ भा म़नऩ थ़ ऽक ज़ऽत और ऩरा को बऱबर ऄऽधक़र ऽदए बगैर म़नर् सम़ज क़ ऽर्क़स ऄसंभर् के बऱबर है। ‘‘ज़ऽत और औरत क़ जो ढ़ंच़ आस समय दे श में बऩ हु अ है,ईससे पतन के ऄल़ऱ् और कोइ पररण़म नहीं ऽनकल सकत़।’’2 संपण ी य सम़ज में सऱ्य ऽधक शोऽषत,पाऽडत ऺ तथ़ बंधनग्रस्त सम़ज की अधा–अब़दा ऄथ़य त ऩरा रहा है। आस संदभय में ग़ंधा जा ने भा कह़ है– ‘‘मनि की म़ना ज़ने ऱ्ला आस ईऽक्त को ऽक ‘ह्ला स्ऱ्तंत्र्य की प़ि नहीं’ मैं ब्रह्म ऱ्क्य नहीं म़नत़। ईससे आतऩ हा प्रकट होत़ है ऽक ऽजस समय यह ईऽक्त बना और प्रच़र में अया,ईस समय श़यद ऽह्लयों को पऱधानत़ की ह़लत में रख़ ज़त़ थ़। हम़रे स़ऽहत्य में पत्ना के ऽलए ‘ऄद्र्ध़ंगऩ’ और ‘सहधऽमय णा’ शब्दों क़ प्रयोग हु अ है। पऽत,पत्ना को देर्ा कहकर संबोऽधत करत़ थ़,ऽजससे ऽह्लयों के प्रऽत ऽतरस्क़र की भ़र्ऩ तो सीऽचत नहीं होता। ले ऽकन दिभ़य ग्य से एक समय ऐस़ अय़ जब ह्ला से ईसके कइ ऄऽधक़र छान ऽलए गए और ईसक़ दज़य छोट़ कर ऽदय़ गय़।’’3 ऩरा संपण ी य सम़ज में हमे श़ ऄनेक समस्य़ओं से पाऽडत ऺ रहा है। जह़ं एक ओर पिरूष स्र्च्छं द जार्न व्यतात करत़ रह़ है,र्हीं ऩरा पिरूष के ह़थ की कठपितला बन गिल़मा की बेऽडयों ऺ में जकड़ा रहा। ऩरा को ऽकसा भा प्रक़र क़ पिरूष के सम़न ऄऽधक़र प्ऱप्त नहीं थ़। आसक़ पररण़म यह हु अ ऽक र्ह घर की च़रदाऱ्रा में ऽघरा सभा ऄत्य़च़रों को मौन रूप से सहता रहा है। ऄमुतल़ल ऩगर जा ने ऄपने सभा ईपन्य़सों में ऩरा के शोषण और ईसकी जार्न ऽस्थऽत को ऽचऽित ऽकय़ है। ‘ऩच्यौ बहु त गोप़ल’ ईपन्य़स में भा ऩऽयक़ ऽनगियण के म़ध्यम से ऩरा जार्न की समस्य़ओं को जयों क़ त्यों र्ऽणय त ऽकय़ है। ऽभन्न–ऽभन्न प़िों के द्ऱऱ व्यक्त ऽर्च़र ऩरा की स़म़ऽजक ऽस्थऽत को ईद्घ़ऽटत करते हैं। अज ऩरा पिरूष के ऽलए म़ि भोग की र्स्ति रह गइ है। द्रष्टव्य है– ‘‘ब्यीटाि​िल औरत मदों के ऽलए कच़ली मटर की च़ट होता है।’’4

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आयम्ब ई-ऩत्रिका 2014-15 ऄमुतल़ल ऩगर जा ने ह्ला की समस्य़ओं को एक व्य़पक घऱतल पर प्रस्तित ऽकय़ हैं ईपन्य़स की ऩऽयक़ ऽनगियन कहता है– ‘‘औरत हर तरह से मरद ज़ऽत की दबोच में है। जब च़हत़ है गल़ सहल़त़ है और जब च़हत़ है ईसे घोंट भा दे त़ है। ऽजसके प़स त़कत होता है,र्ह कमजोर के स़थ यहा करत़ है। सद़ करत़ अय़ और सद़ करत़ रहे ग़।’’5 ले खक ने ईपन्य़स की ऩऽयक़ ऽनगियन के म़ध्यम से ऩरा सम़ज की ि़सदा और पिरूष सम़ज क़ ऄहं ऽचऽित ऽकय़ है। पिरूष च़हे ऽकसा भा र्गय य़ र्णय क़ हो,र्ह ऩरा क़ शोषण करऩ च़हत़ है। ऽर्डम्बऩ यह है ऽक च़हे भीऽम के ऽलए यिद्च हो य़ प़रस्पररक संघषय हर तरह के यिद्च में ऩरा हा ऄपम़ऽनत होता रहा है। ऽनगियण कहता है– ‘‘औरत से बढ़कर कोइ भा जय़द़ गिल़म नहीं है। मैंने ब्ऱह्मण भा दे ख़,मे हतर भा दे ख़। मरद सब जगह एक है,स़ंसे सब एक है,सब जगह औरत की एक जैसा हा ऽमट्टा पलात होता है। मैंने दऽलतों की समऽसय़ को दोहरे ढं ग से भोग़ है।’’6 पिरूष सम़ज ऽकतना भा प्रगऽत क्यों न कर ले परं ति मन में र्ह यह ध़रण़ बऩए रखत़ है ऽक ऩरा पर ईसक़ हा ऄऽधक़र है। एक ओर समक़लान सम़ज में व्य़प्त ईपपऽत,कौटि ऽम्बक व्यऽभच़र,र्ेश्य़गमन,बल़त्क़र,समलैंऽगकत़ को ले खक ने आस ईपन्य़स में ऽर्स्त़र ऽदय़ है। दीसरा ओर ले खक ने ऽनगियन की कथ़ में ररशा दे र्ा और र्ेदर्ता अऽद मऽहल़ओं के आऽतह़स के द्ऱऱ ऽर्धऱ् ह्ला की कसक को ऽचऽित ऽकय़ है। एक ऩरा के ऽर्धऱ् होते हा ऽकस प्रक़र ररश्ते– ऩते के किछ दिऱच़रा लोग ईस ऩरा क़ जार्न नरक बऩ दे ते हैं। आसक़ ऽचिण करते हु ए ले खक कहत़ है ऽक ‘‘ईनके घरऱ्लों ने ईन्हें ईनकी बड़ा बऽहन की तरह घर से ऽनक़ल़ तो नहीं पर ऽर्धऱ् होने के किछ हा ऽदनों ब़द ररशा दे र्ा के

ऄनेक संस्थ़यें भा क़यय कर रहा हैं। ऽिर भा यह बदल़र् सौ में से दस प्रऽतशत हा है। ऩरा की ऽस्थऽत ग़ंर् और शहर दोनों हा जगह एक जैसा है। क्योंऽक स्थ़न बदलने से पररर्तय न नहीं होत़ है,बऽल्क पिरूष सम़ज की सोच में बदल़र् अयेग़ तभा ऩरा की दश़ और ऽदश़ दोनों में पररर्तय न हो सकेग़। ऄंतः नंदऽकशोर नर्ल के शब्दों में कह़ ज़ सकत़ है ऽक ‘‘ऩच्यौ बहु त गोप़ल’ ऩगर जा क़ सोलहों कल़ओं से पीणय ईपन्य़स है।’’8 संदभय 1.ऩच्यौ बहु त गोप़ल,ऄमुतल़ल ऩगर,पु॰ सं॰343 2.पऽर्ित़ और नर–ऩरा संबंध,ऱममनोहर लोऽहय़,भ़रत म़त़–घरता म़त़,पु॰ सं॰79 3.हररजन पऽिक़-(12.10.1934)मोहनद़स कमय चंद ग़ंधा 4.ऩच्यौ बहु त गोप़ल,ऄमुतल़ल ऩगर,पु॰ सं॰167 5.ऩच्यौ बहु त गोप़ल,ऄमुतल़ल ऩगर,पु॰ सं॰271 6.ऩच्यौ बहु त गोप़ल,ऄमुतल़ल ऩगर,पु॰ सं॰229 7.ऩच्यौ बहु त गोप़ल,ऄमुतल़ल ऩगर,पु॰ सं॰207 8.प्रे मचंद क़ सौंदयश़ह्ल से ईद्द्यतु ऩच्यौ बहु त गोप़ल:एक पि–प्रऽतऽक्रय़,नंदऽकशोर नर्ल,पु॰ सं॰95

गररमा हिपाठी शोधार्थी हदल्ली हिश्वहिद्यालय

ससिर हा ईनके प्रे मा बन गए।’’7 आस प्रक़र ऽर्धऱ् ऩरा भा हर तरह से सम़ज में शोषण की ऽशक़र हु इ। ऽनष्कषय यह है ऽक समक़लान सम़ज पढ़– ऽलख रह़ है और सभ्य सम़ज की ओर ऄग्रसर होने ऱ्ल़ सम़ज है। अज सम़ज में ऩरा और ईसकी ऽशक्ष़,नौकरा,ऽर्ऱ्ह अऽद के ब़रे में लोगों की सोच में क़िी ज़गरूकत़ अया है। आस ऽदश़ में अयय सम़ज जैसा arambh.co.in

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आयम्ब ई-ऩत्रिका 2014-15

‗मय़य द़’ और तिलसाद़स क़ सौन्दयय -ऽचिण

प्रतात होते।’’1ईनके सौन्दयय –ऽचिण में कहीं भा िीक़पन य़ नारसत़ नहीं है,सभा रं ग चटक है। तिलसा कहीं भा,ऽकसा भा ऄर्सर पर,ऱम और सात़ की सिषम़ के र्णय न में नहीं चीके हैं,परं ति ईन्होने सौन्दयय –ऽचिण में कहीं भा मय़य द़–भ़र् को खंऽडत नहीं होने ऽदय़। तिलसा की सौंदयय – ऽचिण की ।

( ळोधऩि)(चौथा अॊक ) स़ऽहत्य में सौन्दयय –ऽचिण ऐस़ धऱतल है,ऽजसके नाचे रं ग– रूप–सौन्दयय –शोभ़–ल़र्ण्य,मन के मिक्त ईल्ल़स और ईमंग,श़राररक सिषम़,प्रे म–प्रताऽत अऽद कोमल–क़ंत भ़र्ऩओं से भरपीर छलछल़त़,अनंद क़ ऄनन्त स्रोत होत़ है। आस दृऽष्ट से जब हम तिलसा–स़ऽहत्य पर ऽर्च़र करते हैं तो ईनक़ समीच़ स़ऽहत्य ज्ञ़न–र्ैऱग्य–भऽक्त से ओत–प्रोत ऽदख़इ दे त़ है। ले ऽकन आसा में तिलसा की ऄखण्ड सौन्दयय –

आस दृऽष्ट क़ ऽर्श्ले षण हम अगे ऱम,सात़ तथ़ ऄन्य प़िों के सौंदयय –ऽनरूपण की कल़ के ऄंतगय त करें गे। 1.ऱम क़ सौन्दयय –ऽचिण सौन्दयय को सिंदर,मधिर लऽलत,भव्य,ईद़त्त कोऽटयों में

चेतऩ,ईनकी कऽर्–अत्म़,ऄपना सभा रं गाऽनयों को ले कर प्रकट हु इ है।

ऽर्भक्त ऽकय़ ज़त़ है। सिंदर र्ह है,जो स़म़न्यरूपसे हम़रे सौन्दयय –बोध् को तुप्त करे । मधिर जो ऽर्शेष ऽप्रय हो।

‗मय़य द़’ क़ कोशगत ऄथय हैॅै–साम़ में रहऩ,नैऽतक

लऽलत,जो ऄत्यऽधक ऽप्रय हो। भव्य र्ह है,जो ऄपने प्रभ़र् से हम़रा चेतऩ को स्र्ाक़र कर ले । ईद़त्त में चेतऩ की गऽत को ऄर्रुद्च कर दे ने की शऽक्त होता है। भव्य और ईद़त्त– सौन्दयय में ऄलौऽकक तत्त्र्ों क़ ऽर्शेष योग होत़ है।

व्यर्स्थ़,ऽशष्ट़च़र क़ ऽनयम,सद़चरण क़ औऽचत्य। आस प्रक़र मय़य द़ क़ संबंध मनिष्य के ऐसे व्यर्ह़र य़ सद़चरण

से

है,ऽजसे

सम़ज

ईऽचत

म़नत़

है।

धमय ,नाऽत,लौऽकक राऽत ररऱ्ज और औऽचत्य ऽसद्च़ंत अऽद मय़य द़ के अध़र तत्र् हैं। सौन्दयय क़ संबंध् व्यऽक्तत्र् से होत़ है और व्यऽक्तत्र् चररि क़ ऄऽनऱ्यय ऄंग है। जयोऽतष श़ह्ल के ऄनिस़र ब़ह्य अकु ऽत से हा व्यऽक्त के गिणों क़ बोध् हो ज़त़ है ।‘‘अकु तो गिण़’’।प्रत्येक कऽर् ऄपने प़िों के सौन्दयय क़ गठन ऄपने दृऽष्टकोण,ईद्ङे श्य और भ़र्ऩओं के ऄनिरूप करत़ है। म़य़य द़ऱ्दा और र्ैऱगा भक्त होने के ऩते तिलसा सात़ म़त़ य़ ऄन्य ह्ला प़िों क़ नख–ऽशख र्णय न तो नहीं कर सकते थे,परं ति कऽर् होने के ऩते ईन्हें नख–ऽशख–र्णय न करऩ ऄर्श्य थ़। ऄतः ईन्होंने कऽर्– कमय क़ ऽनऱ्य ह करते हु ए नख–ऽशख ऽनरूपण की पररप़टा ऱम के सौन्दयय –ऽचिण में पीरा की। तिलसा के सौन्दयय –ऽचिण के संबंध् में डॉ .हरद्ऱरा ल़ल शम़य ने ठाक हा ऽलख़ है ऽक‘‘ऐस़ प्रतात होत़ है ऽक तिलसा के संपण ी य स़ऽहत्य में ज्ञ़न–र्ैऱग्य–भऽक्त के झाने अर्रण के नाचे ऽझलऽमल़ता सौन्दयय र् सिषम़ की मधिमय दाऽप्त है। तिलसा कहीं भा रस–रूप,रं ग और ईमंग के ऽर्रुद्च नहीं arambh.co.in

गोस्ऱ्मा तिलसाद़स ने ऱम के रूप–सौन्दयय के ऽनरूपण में सौन्दयय की ईपयियक्त सभा कोऽटयों को ग्रहण ऽकय़ है। र्े सौन्दयय के ईप़सक हैं। ईनके ऱम सिंदर हैं और र्े सिंदर के ऽलए संपण ी य रूपसे,सऱ्य त्मऩ,समऽपय त हैं। ऱमचररतम़नस में ऽर्स्तुतरूपमें केर्ल ऱम के हा रूप–सौन्दयय क़ र्णय न है। ऱम केरूपक़ र्णय न ऽर्स्तुतरूपमें प़ाँच ब़र हु अ है । च़र ब़र ब़लक़ंड में और एक ब़र ईत्तरक़ंड में । आसके ऄऽतररक्त ऱम के ऄन्य रूप–र्णय न ऄत्यंत संऽक्षप्त हैं और ईनकी ऽनयोजऩ भक्तों की भ़र्ऩ में ताव्रत़ भर दे ने के ऽलए हु इ है। ऽर्श्व–रूप–ऱऽश ऱम को ऄपना गोद में ऽनरखकर म़त़ कौशल्य़ क़ मन ऽकतऩ अह्ऱऽदत होत़ है,आसक़ प्रत्यक्ष र्णय न तिलसाद़स ने ऄपना अाँखों से नहीं,ऄऽपति स्र्यं ईस म़ाँ;कौशल्य़ की अाँखों से दे खकर ऽकय़ है। ईनके नाल कमल और गंभार मे घ के सम़न श्य़म शरार में करोड़ों क़मदे र्ों की शोभ़ है। ल़ल–ल़ल चरण कमलों में नखों की जयोऽत ऐसा म़लीम होता है जैसे कमल के पत्तों पर मोता ऽस्थर हों।“ईनकेरूपक़ र्णय न र्ेद और शेष जा भा नहीं कर Page 117


आयम्ब ई-ऩत्रिका 2014-15 सकते। ईसे तो र्हा ज़न सकत़ है,ऽजसने ईन्हें स्र्यं में दे ख़ हो। तिलसाद़स के शब्दों में ।

‗‗क़कपच्छ धर,कर कोदंड–सर,सिभग पातपट कऽट

‗‗क़म कोऽट छऽब स्य़म सराऱ। नाल कंज ब़ररद गंभाऱ।।

आस प्रक़र के सौन्दयय –र्णय न से तिलसा सौन्दयय और र्ारत़ क़ समऽन्र्तरूपप़ठक के स़मने खड़​़ कर दे ते हैं।

ऄरुन चरन पंकज नख जोॅेऽत। कमल दलऽन्ह बैठे जनि मोता।। रूपसकऽहं नऽहं कऽह श्रिऽत सेष़। सो ज़नआ सपनेहुाँ जे ऽहं दे ख़।।’’2 म़त़ कोशल्य़ को ऱम ने ऄपऩ ऄद्भितरूपऽदख़य़ थ़,ऽजसके एक–एक रोम में करोड़ों ब्ऱह्म़ण्ड लगे हु ए हैं।‘‘ऄगऽनत रऽब सऽस ऽसर् चतिऱनन। बहु ऽगरर सररत ऽसंधि मऽह क़नन।।’’पि​ि ऱम केरूपमें बलर्ता म़य़ को दे खकर

तीनार।।’’5

तिलसा के ऄनिस़र ऱम–लक्ष्मण के सौन्दयय को गढ़ने में ब्रह्य़ जा ने सिंदरत़,शाल और स्नेह को स़नकर ऽमल़कर हा म़नो आनके रूप रचे हैं। आनके रोम–रोम पर ऄरबों चन्द्रम़ और क़मदे र् ऱ्र कर िेंक ऽदये हैं। दे खने ऱ्लों की दृऽष्ट में ईनके चररि के ऽभन्न–ऽभन्न पहली ईभरते हैं। ऽकसा की दृऽष्ट में र्े शोभ़ ऽसंधि हैं तो दीसरों की दृऽष्ट में प्रत़प पिाँज हैं। ‗‗सिखम़ साल–सनेह स़ऽन म़नोरूपऽबरं चे साँऱ्रे ।

म़त़ क़ शरार पिलऽकत हो गय़,ईनके मिख से र्चन नहीं ऽनकलत़। ईन्होंने ऄपना अाँखें मीाँदकर श्राऱम के चरणों में ऽसर नऱ्य़।‘‘तन पिलऽकत मिख बचन न अऱ्। नयन मीऽद

रोम–रोम पर सोम–क़म सत कोऽट ब़रर पेिरर ड़रे ।।

चरननऽन ऽसरु ऩऱ्।।’’3

यऽद ईनकेरूपकी सिध़ भरने के ऽलए जनकपिर की ऩररय़ाँ ऄपने नयन रूप कलशों को ख़ला करता हैं।

आन संदभों से स्पष्ट होत़ है ऽक गोस्ऱ्मा तिलसाद़स ने ऄपने अऱध्य दे र् श्राऱम के सौन्दयय –ऽचिण में अध्य़ऽत्मकत़ क़ पिट ऽदय़ है।

2.ऱम के सौन्दयय –ऽचिण में शाल और शऽक्त क़ समन्र्य सौन्दयय –ऽचिण के संदभय में तिलसाद़स की महत्त्र्पीणय ऽर्शेषत़ है ऽक ईन्होंने सौन्दयय को कहीं भा कलिऽषत नहीं होने ऽदय़। आसऽलए जह़ाँ भा सौन्दयय –र्णय न क़ ऄर्सर अत़ है र्े ईसके स़थ शाल क़ पिट भा ऄर्श्य दे दे ते हैं। आसा प्रक़र शाल के स़थ शऽक्त क़ प्रयोग कर दे ते हैं। मिऽन के स़थ ऱम–लक्ष्मण जनकपिर की ओर य़ि कर रहे हैं। आस ऄर्सर पर गोस्ऱ्मा जा ऽलखते हैं– ‗‗मिऽन के संग ऽबऱजत बार!बदनि आंदि,ऄंभोरुह लोचन,स्य़म

कोई कहै,तेज–प्ऱप्त–पिंज ऽचतये नऽहं ज़त,ऽभय़ रे ।।’’6

‗‗नख ऽसख सिंदरत़ ऄर्लोकत कह्यो न परत सिख होत ऽजतौरा’’7 तो ईनक़ शाल स्र्भ़र् दे खकर र्े ईन्हें ऄपने रृदय में स्थ़न दे ने को ईत्सिक हो ज़ता हैं। ‗‗सोभ़–सिध अऽल!ऄाँचर्हु करर नयन मंजि मुदि दोने। हे रत रृदय हरत नऽहं पीरत च़रु ऽबलोचन कोने।’’8 उपर से कोमल दाखने पर भा ईनके ऄंदर ऄतिल बल भऱ हु अ है,यह सभा को ऽर्श्व़स है। एक ओर ईनकी सिॅिॅदं रत़ नेिों को अकऽषय त करता है तो दस ी रा ओर ईनक़ र्ारत्र् ऽचत्त को अह्ऱऽदत करत़ है।

गौर सोभ़–सदन सरार।’’4

आस प्रक़र तिलसा के ऱम में शाल,शऽक्त और सौन्दयय क़ समन्र्य है। तिलसा के ऱम में तान शऽक्तयों की प्रधनत़ को

आससे कोमलत़ और सौन्दयय क़ ऽचि हम़रा अाँखों के

समऽन्र्तरूपसे ऽचऽित ऽकय़ है। ऐश्वयय ,म़धियय और सौन्दयय ।

समक्ष ईपऽस्थत हो ज़त़ है,ऽकंति सौन्दयय के स़थ–स़थ शऽक्त क़ पिट दे ते हु ए र्े यह भा कहते हैं ऽक।

जह़ाँ ईनक़ ऐश्वयय प्रकट होत़ है,र्ह़ाँ र्े लोकरक्षक केरूपमें हम़रे पीजनाय बन ज़ते हैं तथ़ जह़ाँ पर ईनके औद़यय अऽद

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आयम्ब ई-ऩत्रिका 2014-15 म़नर्ाय गिण प्रकट होते हैं,र्ह़ाँ र्े हम़रे ऄनिकरणाय बन ज़ते हैं। 3.सात़ क़ सौन्दयय –ऽचिण

सात़ जा के नर्ल शरार पर स़ड़ा और अभीषणों की शोभ़ क़ कऽर् ने ऽचिण ऽकय़,ले ऽकन स़थ हा र्े ईन्हें जगजजनना कहकर ईनकी मह़न छऽर् को ऄतिलनाय बत़ते हैं।

तिलसाद़स सात़ को म़ाँ केरूपमें म़नते हैं। ऄतः म़ाँ के सौन्दयय क़ ऽचिण ऽकंऽचत साम़ओं के ऄंदर हा ऽकय़ ज़ सकत़ है। ईनकी ईप़सऩ द़स्य–भ़र् की है। ऩरा– सौन्दयय –ऽचिण में ऩरा के ऄंग–प्रत्यंगों के सौन्दयय क़ र्णय न करऩ मय़य द़ के ऽर्रुद्च म़ऩ ज़त़ है। ऄतः तिलसा जैसे मय़य द़ऱ्दा कऽर् ऩरा के ऄंग–प्रत्यंगों को खिलेरूपमें ऽचिण ऄपना रचऩओं में कैसे कर सकते थे। आसऽलए तिलसा ने केर्ल सात़ के ऄंग–प्रत्यंग क़ हा नहीं बऽल्क ऄन्य ऽकसा भा ऩरा प़ि के सौन्दयय –ऽचिण पर ध्य़न नहीं ऽदय़। ऩरागत सौन्दयय –ऽचिण के ऄर्सर पर तिलसा की दृऽष्ट ऽर्शेषरूपसे मय़य द़ऱ्दा भ़र्ऩओं से यिक्त ऽदख़इ पड़ता है। आस संबंध में ईदयभ़नि ऽसंह ने ऽलख़ है ऽक‘‘तिलसा के मय़य द़ऱ्द क़ प्रकु ष्ट ऽनदशय न शुंग़र–र्णय न

‗‗सोह नर्ल तनि सिंदर स़रा। जगत जनऽन ऄतिऽलत छऽब भ़रा।

में ऽमलत़ है।’’9

जगत् में कोइ भा ह्ला सात़ जा के सम़न सिंदर नहीं

सात़–ऱम के संयोग और ऽर्प्रलंभ क़ ऽर्शद ऽनरूपण करते हु ए भा तिलसा ने ईसे सर्य थ़ मय़य ऽदत रख़ ईल्ले खनाय है ऽक जयदे र् ने पिष्पऱ्ऽटक़–प्रसंग में सात़ के स्तन क़ भा

है,आसऽलए ईनकी सिंदरत़ की तिलऩ ऽकसा ह्ला से नहीं दा ज़ सकता।

ऽचिण ऽकय़ है।10हऽस्तमल्ल ने ‘क़मदे र्–भर्न’ में , ‘म़ध्र्ाकिंज’ में और ‘संकेतस्थल’ पर सात़–ऱम के ऱ्सऩ

भीषन सकल सिदेश सिह़ए। ऄंग ऄंग रऽच सऽखन्ह बऩए।।’’14 गोस्ऱ्मा तिलसाद़स जा रूप और गिणों की ख़न सात़ जा की शोभ़ क़ र्णय न करने में ऄपने अपको ऄसमथय प़ते हैं। सात़ म़त़ जगदंऽबक़ के सम़न हैं,जो रूप और गिण की ख़न है। ईनकी शोभ़ क़ बख़न नहीं ऽकय़ ज़ सकत़। ‗‗ऽसय सोभ़ नऽहं ज़आ बखना। जगदंऽबक़रूपगिन ख़ना।।’’15

‗‗जौं पटतररऄ ताय सम साय़। जग ऄऽस जिबऽत कह़ाँ कमनाय।।’’16

प्रधन ऽमलन–ऽर्रह क़ तान ब़र ऽनरूपण ऽकय़ है।11आसा प्रक़र क़ऽलद़स के ऽर्रह–व्य़किल ऱम पिष्पगिच्छों ऱ्ला लत़ को सिस्तना सात़ समझकर ईसक़ अऽलंगन करने

कऽर् को सात़ की सिंदरत़ में यह कहऩ पड़त़ है ऽक सऽखयों के बाच में सात़ जा ईसा प्रक़र सिशोऽभत हो रहा

ज़ रहे थे,तब लक्ष्मण ने ईन्हें रोक़ थ़।12

सिंदर जयम़ल़ है,ऽजसमें ऽर्श्व ऽर्जय की शोभ़ छ़या हु इ है।

मय़य द़ऱ्दा कऽर् तिलसा की दृऽष्ट प्रसंग अने पर सात़ के

‗‗सऽखन्ह मध्य ऽसय सोहऽत कैसें। छऽबगन मध्य मह़छऽर् जैसें।।

सौन्दयय –र्णय न पर ऄर्श्य ज़ता है,ले ॅेऽकन र्े सात़ की क़ंऽत,मिखमंडल,स़ड़ा,भीषणों और कर के र्णय न करने तक हा साऽमत रहते हैं। ‗‗ऄस कऽह ऽिरर ऽचतए तेऽह ओऱ। ऽसय सऽस मिख भए नयन चकोऱ।।“ सिंदरत़ कहु ाँ सिंदर करइ। छऽर् गुहाँ दापऽसख़ जनि बरइ।।’’13

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है;जैसे बहु त सा छऽर्यों के बाच में मह़छऽर् हो। कर कमल में

कर सरोज जयम़ल़ सिह़इ। ऽबस्र् ऽबजय सोभ़ जे ऽहं छ़इ।।’’17 आस प्रक़र हम दे खते हैं ऽक तिलसा ऄपने अऱध्य दे र् श्राऱम की शऽक्त सात़ को म़त़ स्र्रूप म़नते हैं। ईन्होंने सात़ क़ सौंदयय –ऽचिण मय़य द़ की साम़ के ऄंतगय त हा ऽकय़ है।

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आयम्ब ई-ऩत्रिका 2014-15 4.यिगल–छऽर् क़ सौन्दयय –ऽचिण तिलसाद़स मय़य द़ऱ्दा कऽर् हैं। शुंग़रा–कऽर्यों की भ़ाँऽत यिगल–छऽर् क़ ऽचिण ईन्होंने नहीं ऽकय़ है। ईनकी रचऩओं में कऽतपय स्थलों पर यिग्म–अऱध्यों क़ मय़य द़पीणय सौन्दयय –र्णय न ऽकय़ है। ईनके ऄनिस़र ऱम–सात़ की यिगल–छऽर् को व्यक्त ऽकय़ हा नहीं ज़ सकत़ है। र्ह तो गींगे क़ गिड़ है,ईसे व्यक्त कैसे करें ।

‗‗ऱम साय बयः समौ सिभ़य सिह़र्न। नुप जोर्न छऽब पिरआ चहत ऄनि अर्न।। सो छऽब ज़हू न बरऽन दे ऽख मन म़ाँने। सिध़ प़न करर मीक ऽक स्ऱ्द बख़नै।।’’

श्राऱम दील्ह़ और ज़नकी दिलऽहन बना हु इ हैं। समस्त सिंदरा ऽह्लय़ाँ गात ग़ रहा हैं। आस ऄर्सर पर सात़ जा क़ मन ऱम कीरूपऱऽश की शोभ़ दे खकर लान हो ज़त़ है। परं ति मय़य द़ऱ्दा कऽर् तिलसा ने सात़ को ऱम क़ ऄपीर्य सौन्दयय सात़ के कंकण के म़ध्यम से कऱय़ है–

यिगल–छऽर् के सौन्दयय –ऽचिण की एक पररऽस्थऽत ऽशर्– ऽर्ऱ्ह के ऄर्सर पर प्रस्तित होता है। तिलसा ने आस कथ़ को ऽलय़ है। प़र्य ता के म़त़–ऽपत़ में किछ शिद्च म़नर्ाय भ़र् भा ज़गुत होते हैं,पर कहीं शुंग़र क़ ईद्रे क नहीं ऽमलत़। तकय यह है ऽक कहीं म़त़–ऽपत़ क़ शुंग़र र्णय न भा ऽकय़ ज़त़ है। ऽपिर भा शुंग़र–केऽल क़ एक संकेत दे ऽदय़ ज़त़ है– ‗‗जगत म़ति ऽपति संभि भऱ्ना। तेऽहं ऽसंग़रु न कहईाँ बख़ना।। करऽहं ऽबऽबध ऽबऽध भोग ऽबल़स़। गनन्ह समे त बसऽहं कैल़स़।।20 आस प्रक़र तिलसा ने सात़–ऱम और ऽशर्–प़र्य ता के ऽदव्य यिग्म को शुंग़र की पकड़ से ब़हर कर ऽदय़। र्स्तितः यह र्जय नशाल म़य़य द़ क़ प्रभ़र् हा है ऽक किछ ऄपऱ्दों को छोड़कर तिलसा ऩरा के रूप–सौंदयय से पररऽचत होते हु ए भा ऄपररऽचत जैसे हा बने रहते हैं। शुंग़र की दे हला तक तो तिलसा की कल्पऩ अइ,पर शुंग़र–भर्न की ऄंतरं ग क्रीड़​़ओं के स़थ ईनक़ कोइ संबंध स्थ़ऽपत नहीं हो सक़।

5.सौन्दय–ऽचिण पर मय़य द़ क़ ऄंकिश ‗‗ऱम को रूपि ऽनह़रऽत ज़नकी कंकन के नग की परछ़हीं।’’18 सौन्दयय –ऽचिण क़ जोरूपहम तिलसा–क़व्य में दे खते ऽर्ऱ्ह के ऄर्सर पर ऱम सात़ की म़ंग में ऽसंदीर लग़ रहे हैं। पररकल्पऩ ऽबंब केरूपमें ईस छऽर् को व्यक्त करने के

हैं,अध्य़ऽत्मक क्षेि में शुंग़र की ऐसा एक़ंत प्रऽतष्ठ़ संभर्तः पहले कभा नहीं हु इ था। क़व्यश़ह्लाय और क़मश़ह्लाय परं पऱ ने ऄपऩ स़रभीत तत्त्र् भऽक्तमीलक

ऽलए कऽर् ऽकतऩ ईद़त्त ईपम़न प्रस्तित करत़ है,म़नो सपय ऄमुत के लोक से चन्द्रम़ को ल़ल–पऱग कमल में भरकर प्रद़न कर रह़ हो–

शुंग़र की सेऱ् में समऽपय त कर ऽदय़। कल़,भऽक्त और शुंग़र की िया ने स़ंस्कु ॅुऽतक पिनरुत्थ़न की भ़र्भीऽम प्रस्तित की।

‗‗ऱम साय ऽसर सेंदिर दे हीं। शोभ़ कऽह न ज़ऽत ऽबऽध केहीं।। अरुन पऱग जलजि भरर नाकें। सऽसऽह भीष ऄऽह लोभ ऄमा के ।।19 arambh.co.in

गोस्ऱ्मा तिलसाद़स जा कट्टर मय़य द़ऱ्दा कऽर् हैं। ऩरा के रूप–सौन्दयय को ऽचऽित करऩ ईन्होंने ‘लोक–मय़य द़’ के ऄनिकील नहीं समझ़। ऐस़ नहीं है ऽक तिलसा ने ऩरा के सौन्दयय को ऄपने स़ऽहत्य में ऽबलकिल स्थ़न नहीं ऽदय़। ऱ्स्तऽर्कत़ तो यह है ऽक ईऽचत प्रसंग अने पर तिलसा Page 120


आयम्ब ई-ऩत्रिका 2014-15 ऩरा के सौन्दयय –ऽचिण के लोभ को छोड़ नहीं प़ते हैं,ले ऽकन मय़य द़–भ़र् के क़रण र्े क़व्य में रूपके ऽचिण को खिलकर ऄऽभव्यक्त नहीं कर प़ते। आस संबंध में डॉ ॰ ऽर्श्वऩथ ऽिप़ठा के ऽर्च़र ईल्लेखनाय हैं। ईन्होंने ऽलख़ है ऽक–

स़थ करत़ है। ऱ्त़र्रण ‘कंकण–ऽकंऽकणा’ के मधि–क्र्णन से गीाँज कर ईद्ङापक भा होने लगत़ है। सऽख सम़ज से ऽघरा सात़ क़ मन भा मील भ़र् के लऽलत संकेतों से ऽसहरने लगत़ है। ऱम के व्यऽक्तत्र् में भा किछ लोच–लचक अने लगा। तिलसा के दऽमत शुंग़र–भ़र् को जैसे ईन्मिऽक्त क़ द्ऱर ऽमलने लग़ हो। आस ऄर्सर पर ऱम के रूप–सौन्दयय क़

‗‗तिलसा में शुंग़र और ऩरा–सौन्दयय की कमा नहीं है। ईनकी कऽर्त़ में स्ऱ्भ़ऽर्क ऩरा–सौन्दयय राऽतक़लान कऽर्यों से बेहतर ऽचऽित है। ले ऽकन एक तो ईनके यह़ाँ

ऽचिण तो तिलसा ने ऽकय़ है,पर र्ह शुंग़र के ईभ़र को सह़यत़ नहीं दे प़त़।

ऩरा–सौन्दयय क़ ईच्छु ं खल ऽचिण नहीं है,दीसरे ईनके यह़ाँ

ऱ्स्तऽर्कत़ यह है ऽक ऱम के सौन्दयय को संतों,भक्तों और गिरुजनों क़ संदभय ऽमल़। यह संदभय शुंग़र की ईद्भऽी त में ऄसमथय रहत़ है। यहा ब़त सात़ के सौन्दयय के संदभय में है। जनकपिर के ह्ला–पिरुष भा ईस ऄऽनंद्य सौन्दयय की झ़ाँकी प़ते हैं। ऱह में ग्ऱमऱ्सा और म़गय ऱ्सा भा खड़े हैं। ईच्छऽलत–यौर्ऩ तरुणा केरूपमें सात़ को ऽचऽित करते हु ए तिलसा की ले खना रूक ज़ता है। आस संबंध में डॉ ॰ चन्द्रभ़न ऱर्त ने ऽलख़ है ऽक‘‘ऽह्लयों की और तरुऽणयों

ऩरा केर्ल रमणा नहीं है,र्ह कन्य़,पत्ना और म़ाँ तानों है।’’21 शुंग़र–ऽर्ल़स के क्रम में ऩयक द्ऱऱ ऩऽयक़ के शुंग़र क़ प्रसंग भा मऽदर–म़दक म़ऩ ज़त़ है। तिलसा ने ऱम के र्नप्रऱ्स के समय एक ऽदन ऱम के द्ऱऱ सात़ क़ पिष्प– शुंग़र कऱय़ है। शुंग़र–ऽर्ल़स क़ यह प्रसंग किछ म़दक और रमणाय हो सकत़ थ़। ले ऽकन तिलसाद़स की मय़य द़ऱ्दा दृऽष्ट के क़रण यह प्रसंग राऽतक़लान कऽर्यों की तरह ईच्छु खल नहीं हो प़त़। दृष्टव्य है–

की कहीं भाड़ हैं,ईनक़ सौंदयय तिलसा की ऄलंक़र–र्ुऽत्त को ईकस़ता भा है,रूढ़ ईपम़न शुंखल़बद्च भा हो ज़ते हैं,पर शुंग़र क़ ईद्रे क नहीं हो प़त़।’’23

‗‗एक ब़र चिऽन किसिम सिह़ए। ऽनज कर भीषन ऱम बऩए।।

तिलसा की शुंग़र–र्णय न की आसा र्णय ऩत्मक ऽर्शेषत़ को समझकर डॉ ॰ चन्द्रभ़न ऱर्त ने ऽलख़ है ऽक

सातऽहं पऽहऱए प्रभि स़दर। बैठे िऽटक ऽसल़ पर सिंदर ।।’’22

‗‗ऐस़ प्रतात होत़ है ऽक म़नसक़र शुंग़र की पररऽस्थऽतयों को सप्रय़स पंगि बऩये दे रह़ है।’’24

यऽद यह़ाँ ‘स़दर’ शब्द नहीं होत़,तो ऽचि किछ शुंग़र–तरल हो ज़त़। आस शब्द की शातलत़ ने जैसे भ़गर्त तरलत़ को ऽहमखण्ड की सघनत़ में बदल ऽदय़ है। न भ़र्ोत्तेजन हा हो प़य़ और न शुंग़र क़ भ़र्न। र्स्तितः तिलसा क़ व्यऽक्तत्र् मय़य द़ऱ्दा ऽशल़खंड की भ़ाँऽत ऄऽर्चल है। ऽजस कऽर् की ऱ्णा ‘प्ऱकु त–जन गिण– ग़न’ में मीक रहा,र्ह प्ऱकु त भ़र्ों की अध्य़ऽत्मक ऄऽभव्यंजऩ और भऽक्त–स़धऩ के क्षणों के स़थ कैसे समऽन्र्त कर सकता था। ऱमचररतम़नस में संभर्तः ऐस़ एक भा ऄर्सर नहीं अय़,जो शुंग़र क़ ईद्रे क करत़ है। पिष्प–ऱ्ऽटक़ प्रसंग की ईद्भ़र्ऩ कऽर् ऽकतना ललक के

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ऽर्ऱ्ह के ऄर्सर पर सात़–ऱम र्धि और र्र केरूपमें प़स– प़स बैठे हैं। एक–दस ी रे के रूप को ऽनह़रने की स्ऱ्भ़ऽर्क ईत्कंठ़ दोनों के नेिों को किछ चंचल कर दे रहा है। अाँखों क़ मधि–ऽर्ल़स एक साम़ तक होत़ भा है। आतने में एक द़शय ऽनक रहस्य की दाऱ्र प़ठक और क़व्यगत पररऽस्थऽत को ऄलग–ऄलग कर दे ता है– ‗‗ऽसय ऱम ऄर्लोकऽहं परस्पर,प्रे म क़हु न लऽख परै । मन बिऽद्च बर ब़ना ऄगोचर,प्रगट कऽर् कैसे करै ।’’25 शुंग़र पर आतऩ प्रऽतबंध संभर्तः तिलसा ने म़नस के ऱ्त़र्रण को शिद्च स़ऽत्त्र्क रखने के क़रण लग़य़ है।

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आयम्ब ई-ऩत्रिका 2014-15 आसऽलए सौन्दयय –ऽचिण और प्रे म की ऽर्शेषत़ को ईद्घ़ऽटत करते हु ए अच़यय ऱमचन्द्र शिक्ल ने ऽलख़ है ऽक ‗‗प्रे म और शुंग़र क़ ऐस़ र्णय न जो ऽबऩ ऽकसा लजज़ और संकोच के सबके स़मने पढ़​़ ज़ सके,गोस्ऱ्मा जा क़ हा है।’’26 ले ऽकन यह भा सत्य है ऽक शुंग़र–ऽचिण में मय़य द़–भ़र् के ऄऽधक दब़र् ने कल़ के स्ऱ्भ़ऽर्क ऽर्ल़स को और मनिष्य–मन की सहज भ़र्ऩओं को क़पफ़ी हद तक किंऽठत भा ऽकय़ है।

सऽतयों में प़र्य ता और सात़ ऄग्रगण्य है। ये दोनों दे ऽर्य़ाँ हैं। श्रासात़ तिलसाद़स जा के अऱध्य दे र् की पत्ना है और प़र्य ता जगत् की म़त़ है। मय़य द़ऱ्दा तिलसा ईनके शुंग़र क़ र्णय न भल़ कैसे कर सकते हैं। ले ऽकन जैस़ ऽक पहले भा कह़ ज़ चिक़ है ऽक तिलसा प़र्य ता और ऽशर् के शुंग़र और ईनकी केऽल–ऽक्रड़​़ओं क़ संकेत ऽपिर भा ऄपने क़व्य में दे हा दे ते हैं। कऽर् ने सात़ और प़र्य ता की सिंदरत़ क़ ऄंकन प्रताक़त्मकरूपमें ऽकय़ है। आस संबंध में डॉ ॰ चन्द्रभ़न ऱर्त क़ कथन है ऽक– ‗‗सौन्दयय की ऄपेक्ष़ आनकी प़र्नत़ हा कऽर्–कल्पऩ को ऄऽधक ऽर्रम़ता है।’’27

6.तिलसा के ऽलए ऩरा–सौंदयय :एक र्ऽजय त क्षेि

प्ऱयः ऐस़ म़न ऽलय़ ज़त़ है ऽक ऩरा–सौन्दयय और रऽत– शुंग़र तिलसा के ऽनऽषद्च क्षेि हैं। ले ऽकन ऱ्स्तर् में ऐस़ नहीं है। ह़ाँ दृऽष्ट–भेद और स्तर क़ ऄंतर है। ईन्होंने ऩरा–सौन्दयय को ऄश्लालत़ के दोष से मिक्त रखने हे ति बड़ा स़र्ध़ना पीर्यक प्रय़स ऽकय़। कु ष्ण क़व्यध़ऱ क़ मय़य द़हान स्र्च्छं द प्रे म तिलसा की भऽक्त–स़धऩ क़ अदशय नहीं बन सकत़ थ़। कु ष्ण क़व्यध़ऱ में ऽचऽित ऩरा–सौन्दयय ,ऩरा के ऄंग–प्रत्यंगों क़ स्र्च्छं द ऽचिण ऄश्लालत़ के दोष से यिक्त ऽदख़इ दे त़ है। र्ह़ाँ ऩरा–सौन्दयय क़ रूप किछ ऐस़ है ऽक ईसे पररऱ्र में पढ़​़–सिऩ नहीं ज़ सकत़। र्स्तितः तिलसा व्यर्ह़रऱ्दा हैं। जो ब़त व्यर्ह़र में ऽनभ न सके,तिलसा ईसे सप्रय़स य़ तो छोड़ दे ते हैं ऄथऱ् ईसक़रूपबदल दे ते हैं। आस संबंध में ईन्होंने ऄपने मय़य द़ऱ्दा दृऽष्टकोण क़ पीणय पररचय ऽदय़ है। ले ऽकन यह़ाँ यह ईल्ले खनाय है ऽक तिलसा ने संत कऽर्यों की भ़ाँऽत ऩरा सौन्दयय को ईतना ईपेक्ष़ से नहीं दे ख़। जैस़ ऽक पीर्य र्ऽणय त ऽकय़ ज़ चिक़ है ऽक तिलसा ऩरा–सौन्दयय क़ प्रसंग अने पर कहीं भा ईसकी झलक क़ ऽचिण करने में नहीं चीकते हैं,ले ऽकन मय़य द़–तत्त्र् के क़रण ईसे केऽल–क्रीड़​़ओं के ऱ्त़र्रण में ईन्मिक्त नहीं छोड़ते।

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सात़ सिन्दरत़ को भा सिंदर करने ऱ्ला है। मय़य द़–भ़र् के क़रण तिलसा ऄपना बिऽद्च की साम़ स्र्ाक़र कर सात़ की सिंदरत़ क़ र्णय न करने में ऄपना ऄसमथय त़ को स़ग्रह व्यक्त करते हैं–

‗‗ऽसय सिंदरत़ बरऽन न ज़इ। लघि मऽत बहु त मनोहरत़इ।’’28 आस प्रक़र म़ध्यम की ऄपीणयत़ और र्स्तितगत ऄलौऽककत़ के क़रण सौन्दयय ऄऽनर्य चनाय हो ज़त़ है। कऽर् कहीं भा यह नहीं भील प़त़ ऽक सात़ और प़र्य ता दोनों हा जगजजनना हैं। म़तुत्र् क़ सौन्दयय ,ममत़ अऽद गिणों में हा दे ख़ ज़ सकत़ है,म़त़ के ऄंगों क़ सौन्दयय ऄर्ण्र्य हा है। तिलसा द्ऱऱ सात़–प़र्य ता के सौन्दयय –ऽचिण की आसा तकनाक पर ऽर्च़र कर डॉ ॰ चन्द्रभ़न ऱर्त ने कह़ है ऽक ‘‘प्रत्येक ऄंग और प्रत्येक ईद्ङापक ऽस्थऽत में र्ह अंऽगक सौन्दयय की झ़ाँआय़ाँ नहीं दे प़य़ है–न दे ने के ऽलए कऽटबद्च हा है।’’29 गात़र्ला में ऽहंडोले के ईत्सर् के ऄर्सर पर तिलसा ने ऩरा–र्ुंद क़ सहज सौन्दयय –ऽचिण ऽकय़ है। आस ऄर्सर पर किसिम्भा स़ड़ा और अभीषणों से सजा मुगनयना ब़ल़एाँ सिंदर स्र्र में स़रं ग और गौड़ ऱग में ‘ऱम–सियश’ ग़ता हैं। झीलने ऱ्ला रमऽणयों की घिंघऱला ऄलकें ऽबखर ज़ता हैं,हऱ्

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आयम्ब ई-ऩत्रिका 2014-15 लगने से ईनके र्ह्ल ईड़ने लगते हैं और अभीषण ऽखसक ज़ते हैं–

क़ पीणयतः ऽनऱ्य ह ऽकय़। ऱम के सौन्दयय में ईन्होंने शऽक्त और शाल क़ समऽन्र्तरूपखड़​़ ऽकय़ है। तिलसा के ऱम में

झिंड–झिंड झीलन चलीं गजग़ऽमना बर ऩरर।

र्स्तितः शाल की हा पऱक़ष्ठ़ है,ऽजसके सौन्दयय और शऽक्त दो अर्रण हैं। स़मीऽहक ऩरा–सौन्दयय के किछ छींटे तो

किसाँऽभ चार तनि सोहहीं,भीषण ऽबऽबध साँऱ्रर।। ऽपकबयना मुगलोचना स़रद सऽस सम तिंड। ऱम सिजस सब ग़र्हीं सिसिर सिस़राँ ग गिंड –––––––––––––––– पट ईड़त,भीषण खसत,हाँऽस–हाँऽस ऄपर सखा झिल़र्हीं।।30 आस सौन्दयय –ऽचिण को दे खकर प्रतात होत़ है ऽक यह ऽचिण कु ष्ण की ऽप्रय़ओं क़ है। ऩररयों की भाड़ में तिलसा की प्रशऽमत सौन्दयय –बोध की र्ुऽत्त ऄर्श्य ज़ग पड़ता है। ऽनष्कषय

तिलसा–स़ऽहत्य में ऽमल ज़ते हैं,ऄन्यथ़ तिलसा शुंग़र की लौऽकक और ऄलौऽकक परं पऱ से कटे हा रहे । एक तो तिलसा ने ऽजस ऽदव्य यिगल को चिऩ,र्ह शुंग़र क़ अलंबन बन हा नहीं सकत़ थ़। दीसरे तिलसा की मय़य द़ऱ्दा दृऽष्ट शुंग़र के स्थील पक्षों में नहीं रम सकता था। आसऽलए र्े शुंग़र के प्रसंगों की ऽदश़ को य़ तो बदल हा दे ते हैं ऄथऱ् ईस चच़य को अगे बढ़ने से रोक दे ते हैं। आस प्रक़र हम कह सकते हैं ऽक तिलसा क़ सौन्दयय –ऽचिण मय़य द़ की छ़य़ तले हा पल्लऽर्त हु अ है,र्े सौन्दयय की ऄंतरं ग गहऱआयों क़ खिलेरूपमें ऽचिण करने के पक्ष में नहीं थे।

संदभय सीचा:

गोस्ऱ्मा तिलसाद़स ऱ्स्तऽर्क सौन्दयय के ईप़सक भक्त कऽर् हैं। जार्न के ऽकसा भा क्षेि में ऄमय़य ऽदत होऩ,ईन्हें म़न्य नहीं हु अ। ईनके अऱध्य दे र् ऱम और सात़ क़ प्रे म सघन–र्न–कंि जों के एक़ंत ऱ्त़र्रण में पिऽष्पत,पल्लऽर्त एर्ं ऽर्कऽसत नहीं होत़। र्े सदैर् सम़ज और सम़ज की

• तिलसा ऱ्ङ्मय ऽर्मशय ,प्रध़न संप़.डॉ ॰ किन्दरल़ल जैन श़ह्ला,पु.

351नर्ज़त

मंच,च़ाँदपिर,ऽबजनौर,ऽद्रताय संस्करण,सन्1989 • ऱमचररतम़नस, 1/199/1-6

च़र दाऱ्रा के भातर य़ असप़स रहते हैं,य़ तिलसा ईन्हें आन्हीं पररऽस्थऽतयों में रखने के ऽलए कु त–संकल्प हैं। तिलसा की दृऽष्ट में ऩरा केर्ल भोग–ऽर्ल़स की र्स्ति म़ि नहीं है। ईनके समक्ष ऩरा के सदैर् तान रूप रहते हैं। र्ह अदशय

• ऱमचररतम़नस, 1/202/1-6

पि​िा,अदशय पत्ना और अदशय म़त़ है। ऩरा के सौन्दयय – ऽचिण में ईन्होंने ईसके आन तान रूपों को सदैर् ध्य़न में रख़। ऄतः ईन्होंने ऄपने क़व्य में ऩरा क़ सौन्दयय –ऽचिण मय़य द़ की साम़ में रहकर हा ऽकय़। ऽिर भा ऽनगियऽणय़ सन्तों की ऄपेक्ष़ तिलसा ने ऩरा–सौन्दयय को ऄऽधक स्र्ाक़ऱ है। ऩरा–र्ुंद के सौन्दयय –ऽचिण में तिलसा की शुंग़र–भ़र्ऩ किछ ऽर्कऽसत होता–सा ज़न पड़ता

• गात़र्ला, 77/1

है,ले ऽकन मय़य द़ की दाऱ्र ईन्हें अगे बढ़ने से रोक दे ता है।

• मैऽथला कल्य़ण ऄंक1,2,3

र्स्तितः जह़ाँ ऩरा–जार्न मय़य ऽदत ऽदख़इ पड़त़ है,र्हीं तिलसा को ऱ्स्तऽर्क सौन्दयय ऽमलत़ है। पिरुष–सौन्दयय ऽचिण में तिलसा ने ऱम के हा सौन्दयय को स्थ़न ऽदय़। ऱम के सौन्दयय क़ ऽनरूपण करने में भा तिलसा ने मय़य द़–भ़र् arambh.co.in

स़ऽहत्यक़र

• गात़र्ला, 1/54/1 • गात़र्ला, 1/54/1 • गात़र्ला, 68/10-11 • गात़र्ला, 23/2 • ऱमचररतम़नस:स़ऽहऽत्यक

मील्य़ंकन,संप़.सिध़कर

प़ण्डे य,पुष्ठ. 161,ऱध़ कु ष्ण प्रक़शन,दररय़गंज,नइ ऽदल्ला,संस्करण सन्1999इ0 • प्रसन्नऱघर्, 2/19

डॉ. नरे श किम़र ऽहंदा सह़यक ऽद.ऽर्.ऽर्., ऽदल्ला

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आयम्ब ई-ऩत्रिका 2014-15

स़म़ऽजक प्रऽतष्ठ़ क़ प्रश्न: ऱग ऽर्ऱग ( ळोधऩि)(चौथा अॊक)

संबंध् पर नर्ान पुष्ठभीऽम में ऽलखने सोचने क़ म़गय प्रशस्त करत़ है। शिक्ल जा के ऄन्य ईपन्य़सों की भ़ाँऽत आस ईपन्य़स

में

भा

ग़ाँर्,ईसके

प्रऽत

ले खकीय

असऽक्त,स़म़ऽजक जार्न की व्य़ख्य़,जार्न के यथ़थय को पकड़ने की प्रबल अक़ंक्ष़ अऽद शंकरल़ल जैसे प़ि़ के म़ध्यम से ऽचऽित हु इ है।112पुष्ठों में ऽलख़ गय़ यह ईपन्य़स उाँच–नाच के भेदभ़र्,ऄमार–गराब में पिकय तथ़

ऽहन्दा स़ऽहत्य के आऽतह़स में श्रा ल़ल शिक्ल ईन स़ऽहत्यक़रों में हैं ऽजन्होंने प्रे मचंद और रे णि की परं पऱ को तोड़ते हु ए एक नया परं पऱ की शिरूअत की। ‗‗स्ऱ्तंियोत्तर ऽहन्छा ईपन्य़स में श्रा ल़ल शिक्ल संभर्तः ईन चंद आन ऽगने ईपन्य़सक़रों में से एक हैं ऽजन्होंने ‘स़ऽहऽत्यक’ और ‘लोकऽप्रय’ के ऄंतर को ऽमट़ते हु ए औपन्य़ऽसक अस्ऱ्द की मौऽलक शैला ऽर्कऽसत की है। ले ऽकन यह कहते हु ए र्े ऄकेले ऐसे ईपन्य़सक़र हैं,ऽजन्होंने अलोचकों के समक्ष एक संकट र् ऄसमंजस की ऽस्थऽत भा पैद़ की। श्रा ल़ल शिक्ल क़ ईपन्य़स स़ऽहत्य आस ब़त क़ प्रम़ण है ऽक र्े स्ऱ्तंियोत्तर भ़रताय के यथ़थय के ऄत्यन्त सतकय और ऽर्लक्षण ईद्घ़टनकत़य हैं। ऄपने समय और समक़लान जार्न के गहन ऽचंतक होने के क़रण श्रा ल़ल शिक्ल ने ऄपने ईपन्य़सों में प्ऱयः सभा प्रक़र के सम़ज को ऽचऽित ऽकय़ है। शिक्लजा की रचऩओं में ऄपने पररर्ेश के प्रऽत गहऱ लग़र् लऽक्षत होत़ है। पररर्ेशगत ऄनिभर्ों की ईनकी म़नर्ाय प्रगऽतशाल दृऽष्ट आस कल़त्मकत़ से ऽर्न्यस्त करता है ऽक ईनकी रचऩएं स़म़न्य और ऄऽभशप्त म़नर् सम़ज क़ प्क्षध्र बन ज़ता हैं। यहा आनकी रचऩओं की पहच़न भा है और शऽक्त भा। श्रा ल़ल शिक्ल क़ ईपन्य़स ऱग ऽर्ऱग नर्ान पुष्ठभीऽम पर ऽलख़ गय़ एक लघि ईपन्य़स है। ले खक ने प्रस्तित ईपन्य़स में ह्ल़ॅा पिरूष के पे्रम और अकषय ण,ईनकी मनःऽस्थऽत,पीऱ्य ग्रहों और ऄंतऽर्य रोधें अऽद की चच़य सिकन्य़ और शंकरल़ल के म़ध्यम से की है। ह्ल़ॅा–पिरूष क़ प़रस्पररक प्रे म र्स्तितः म़नर् जार्न के मील अधर है। ऽकसा भा सम़ज में लड़के और लड़की के बाच प्रे म संबंध् अम ब़त है ऽकन्ति प्रस्तित ईपन्य़स में ले खक प्रे म क़ एक ऽर्परात रूप ऽदख़य़ है य़ ऽचऽित ऽकय़ है। ऱग ऽर्ऱग आस arambh.co.in

मनःऽस्थऽत,स़म़ऽजक प्रऽतष्ठ़ जैसे प्रश्नों को ऄनेक ऄंतऽर्य रोधें के म़ध्यम से प्रकट करत़ है। यह ईपन्य़स छोट़ होते हु ए भा ऄपना स़ंकेऽतकत़ और व्यंजऩ में ऄनिपम है। शिक्ल जा की यह ऽर्शेषत़ है ऽक र्ह ऄपने ऄनिभर् को प़ठक ऄनिभर् बऩ दे ते हैं। ऱग ऽर्ऱग ईपन्य़स भा आस दृऽष्ट से महत्र्पीणय है। ईपन्य़स मे ऽडकल छ़ि़ सिकन्य़ और ईसके ऽपत़ कनय ल भ़रद्ऱज के बाच ब़तचात से शिरू होत़ है। सिकन्य़ ऄपने ऽपत़ से ऄपने प्रे मा शंकरल़ल की प्रशंस़ करता है। आस ब़त पर कनय ल भ़रद्ऱज ऄपना पि​ि़ॅा सिकन्य़ से शंकरल़ल की ज़ऽत ज़नऩ च़हते हैं। र्े कहते है ‘‘मे रे न म़नने से क्य़ ज़ऽत प्रथ़ खत्म हो ज़एगा?“ऽनजा तौर पर मे रे ऽलए भा ज़ऽत की कोइ ऄहऽमयत नहीं है। ऽपिर भा लोगों के ऽलए रोजमऱय की ऽजंदगा मे ईसकी ऄहऽमयत है।2 कनय ल भ़रद्ऱज के र्क्तव्यों से स्पष्ट है ऽक व्यऽक्तगत तौर पर ईन्हें भा ज़ऽत प़ंऽत से कोइ मतलब नहीं है ऽकन्ति स़म़ऽजक प्रऽतष्ठ़ बऩए रखने के ऽलए र्े ऐस़ करऩ च़हते है। आसा प्रक़र मैि़ॅाय पिष्प़ जा ने ऄपने ईपन्य़स ‘कस्तीरा किण्डल बसै’ में स़म़ऽजक प्रऽतब(बऩए रखने के ऽलए पररऱ्ररक प्रऽतऽक्रय़ र्ऽणय त की है। द्रष्टव्य है– ‘‘मैं ब्य़ह नहीं करूाँगा सोलह र्षीय लड़की की आस घोषण़ ने घर में प्रलय मच़ दा। म़ाँ–ब़प के अगे ऽसर तक न ईठ़ने ऱ्ला लड़ऽकयों में एक स़ंर्ला और म़मीला सीरत की लड़की से ऐसे दिस्स़हस की ईम्माद कौन कर सकत़ है?जबऽक र् ज़नता है ऽक लड़ऽकयों को घरऱ्ले मरने क़ श़प भा दें तो चिपच़प सहऩ ईनकी श़लानत़ है। छोटे भ़इ ने कह़–मे रा ससिऱल के लोग क्य़ कहे गे और म़ाँ बोला ऽबऱदरा“.?3 ईपरोक्त र्क्तव्य भा आस ब़त की पिऽष्ट करते है ऽक कोइ भा बदल़र् अने पर व्यऽक्त की ऄपना प्रऽतऽक्रय़ समझ नहीं Page 124


आयम्ब ई-ऩत्रिका 2014-15 अता ऽकन्ति र्ह सम़ज और ईसमें ऄपने प्रऽतष्ठ़ की ब़त जरूर सोचने लगत़ है। शंकरल़ल ऽजस मे ऽडकल क़ॅले ज से एम.डा.कर रह़ है,सिकन्य़ ईसा क़ॅले ज की छ़ि़ है। दोनों के बाच प्रे म संबंध् भा है। शंकरल़ल क़ बचपन ग़ंर् में और गराबा में बात़ है। जबऽक सिकन्य़ अध्ॅिऽनक और ऄमार ऽपत़ की बेटा है। शंकरल़ल के ऽपत़ ने ऽकसा डॉ क्टरा आल़ज के ऄभ़र् के क़रण हा ज़न गंऱ् दा था। आस घटऩ क़ शंकरल़ल स़क्षा भा रह़ है। यह कसक ईसके भातर ऄभा भा मौजीद है ले ऽकन यह कसक तब और भय़नक रूप ले ले ता है जब र्ह सिकन्य़ के ऽपत़ से ऽमलने ईसके घर ज़त़ है और दे खत़ है ऽक रोशना के अकऽस्मक खिलेपन में शंकरल़ल ऄब कनय ल भ़रद्ऱज के चहरे की ओर दे खत़ है। दे खत़ है,ऽपिर गौर से दे खत़ है। ईसे लगत़ है ऽक ऽर्स्मुऽत के ऽर्भ्रम को,ईसकी ऽनःस्तब्ध्त़ को रोकत़ हु ए ऄतात क़ प्रे त ऄच़नक ईसकी ऱह में अकर खड़​़ हो गय़ है और खीाँख़र अाँखों से ईसे घीर रह़ है।4 ‗‗ऽजंदगा में खऩयकों से शंकरल़ल क़ स़मऩ बहु त कम हु अ है। ईसे ऽसपिय एक खलऩयक की य़द है ऽजसने सि़ह स़ल पहले एक बरस़ता ऱत में ईसे ऽझंझोड़कर रख ऽदय़ थ़। र्हीं आस समय एक सिरूऽच संपन्न कक्ष में बैठ़ हु अ सौम्भ संऱ्दों क़ ले न–दे न कर रह़ है।5 ‗‗साने में जो घ़र् है ईसमें क्रीरत़ से ऄपने ऩखीन गड़​़ कर र्ह जैसे ऄपना सहनशऽक्त की साम़ को ऩपऩ च़ह रह़ है। र्ह कनय ल से ऽर्द़ होकर घर लौटते हु ए सोचत़ है ऽक सिकन्य़ को ले कर ईसके भऽर्ष्य क़ ऄब ध्र्ंस हो गय़ है।6 र्हीं दस ी रा और सिकन्य़ को शंकरल़ल जब ऄपने बचपन,गराबा,ऽपत़ की बाम़रा और दऱ्इ के ऄभ़र् में मुत्यि अऽद सभा घटऩओं को ब्यौरे ऱ्र बत़ दे त़ है। ऽकन्ति शंकरल़ल की पुष्ठभीऽम को ज़नने के ब़द सिकन्य़ क़ ऽनणय य ऄपने और शंकरल़ल के प्रे म संबंध् और ईससे जिड़े भऽर्ष्य को ले कर बदल ज़त़ है। आसक़ ऽजक्र र्ह ऄपना मौसा से करता है ‘‘संक्षेप में मौसा ह़लत यह है ऽक शंकर क़ पररऱ्र बहु त गराब हा नहीं,ऄऽशऽक्षत और किसंस्कु त भा है। अज भा ग़ंर् में ईसक़ टी ट़ पिी ट़ घर है,ईसकी बिऽढय़ ऺ म़ं र्ह़ं ऄकेला पड़ा है।“.एक़ध् खे त हैं ऽजनकी बदौलत ईसकी बचपन भिखमरा और ऽभखमंगेपन से बच़ रह़ है। arambh.co.in

मौसा शंकर की बैकग्ऱईण्ड यह है। यह ईसके ऄतात क़ ऽहस्स़ नहीं है। यह ईसके र्तय म़न में भा मौजीद है।7 ‗‗ऄब शंकर को ईसके पीरे पररर्ेश में ज़न चिकने के ब़द ईत्कंठ़ मर चिकी हंॅै।8 सिकन्य़ और शंकर के बाच जो प्रे म है। ऄब ईसक़ स्र्रूप बदल चिकी है। सिकन्य और शंकर म़नऽसकत़ में जो ऄंतर अय़ है ईसमें ईनके रहन–सहन सोच और संस्क़र की ऄहम भीऽमक़ है। यहा क़रण ऽक सिकन्य़ और शंकर में गहऱ प्रे म होने के ब़र्जीद ईनकी संस्क़रगत म़नऽसकत़ के पररण़मस्र्रूप हा ईनकी सोच में बदल़र् ऽदख़इ दे त़ है। एक–दीसरे पुष्ठभीऽम ज़नने के ब़द दोनों क़ प्रे म लगभग सम़प्त स़ हो ज़त़ है। समक़लान जार्न में व्यऽक्त ऽकतऩ प्रैऽक्टल होत़ ज़ रह़ है ऽक दो व्यऽक्त जो एक दस ी रे से ऄत्यऽध्क पे्रम करते हैं,भऽर्ष्य में स़थ जाने क़ ऱ्द़ करते हैं ले ऽकन किछ पीऱ्य ग्रहों के क़रण र्े एक दीसरे से ऄलग होने की सोच ले ते हैं। क्य़ सचमिच प्रे म में ऐस़ हा होत़ है। यह प्रे म थ़ भा य़ नहीं,थोथ़ प्रे म थ़ य़ अकषय ण जो ऄच़नक हो गय़। शंकरल़ल के भातर सिकन्य़ के ऽपत़ के प्रऽत घुण़ है और र्ह भा आस साम़ तक ऽक ईसके अगे ,सिकन्य़ और ईसक़ प्रे म पिीक़ पड़ ज़त़ है। य़ सम़प्त हो ज़त़ है क्योंऽक एक दीसरे की पुष्ठभीऽम ज़नने के ब़द र्े एक–दीसरे को प़ने क़ कोइ प्रयत्न नहीं करते। दिभ़य ग्य र्श पररऽस्थऽत यह हो गइ ऽक र्तय म़न ने;एक दीसरे क़ ऄतात ज़नने के ब़दद्च ईसक़ प्रे म संबंध् तो खत्म ऽकय़ हा,स़थ हा किछ ऐस़ अधर भा नहीं ऽदय़,जो ईनके भऽर्ष्य के ऽलए सहीं ऽदश़ दे सके। ऽनष्कषय तः कह़ ज़ सकत़ है ऽक सिकन्य़ और शंकरल़ल के प्रे म संबंधें के म़ध्यम से ले खक स़म़ऽजक प्रऽतष्ठ़ जैसे प्रश्नों पर ऄनेक कोणों से ऄपना ब़त रखत़ है। ऽजसमें कनय ल भ़रद्ऱज ऄपने ऽमि़ के बेटे सिर्ार की श़दा सिकन्य़ से आसऽलए कऱऩ च़हते हैं क्योंऽक र्े सम़ज में संपन्न और प्रऽतऽष्ठत व्यऽक्त है। ऄंततः सिकन्य़ भा ईसा स़म़ऽजक प्रऽतष्ठ़ की ख़ऽतर सीर्ार से श़दा कर ले ता है। मद्यव्यसऽनक सीर्ार हमे श़ नशे में ध्ॅीतय प्ड़​़ रहत़ है। और आसा बायर के क़रण हा न ऽसपिय सिकन्य़ और सिर्ार क़ Page 125


आयम्ब ई-ऩत्रिका 2014-15 तल़क होत़ है बऽल्क सीर्ार की ज़न भा चला ज़ता है। सिकन्य़ क़ जार्न भा बब़य द कर दे ता है। ऄंततः ले खक ईपन्य़स में एक प्रश्न छोड़ ज़त़ है ऽक ‘‘ब़हरा पररऽस्थऽतयों के बदलने से क़म नहीं चले ग़। अदमा को भातर से भा बदलऩ पड़े ग़ और ईसक़ अधर आंस़ऽनयत पर होग़।9 आस ईपन्य़स में सम़ज और स़म़ऽजक प्रऽतष्आ़ क़ प्रश्न आतऩ महत्र्पीणय है ऽक म़नर्ायत़ के घऱतल पर व्यऽक्त की ऄपना सोच क़ कोइ ऄऽस्तत्र् नहीं है ऽपिर ऐसे में प्रे म की खोज कह़ं और ऽकस रूप में की ज़ए। संदभय 1.श्राल़ल शिक्ल की दिऽनय़,सं॰ ऄऽखले श,पु॰ सं॰39 2.ऱग

ऽर्ऱग,श्राल़ल

शिक्ल,पु॰

सं॰78,ऱजकमल

बसै,मैिोया

पिष्प़,ऱजकमल

प्रक़शन,प्र॰ सं॰2000 3.कस्तीरा

किण्डल

प्रक़शन,ऽदल्ला,संस्करण2002 4.ऱग ऽर्ऱग,श्राल़ल शिक्ल,पु॰ सं॰44 5.ऱग ऽर्ऱग,श्राल़ल शिक्ल,पु॰ सं॰48 6.ऱग ऽर्ऱग,श्राल़ल शिक्ल,पु॰ सं॰48 7.ऱग ऽर्ऱग,श्राल़ल शिक्ल,पु॰ सं॰38 8.ऱग ऽर्ऱग,श्राल़ल शिक्ल,पु॰ सं॰39 9.सोय़ हु अ जल,सर्ेश्वर दय़ल सक्सेऩ,पु॰ सं॰39

गररम़ ऽिप़ठा,शोधथी ऽद ऽर्.ऽर्.

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आयम्ब ई-ऩत्रिका 2014-15

अधिऽनक भ़रताय भ़ष़ समस्य़ और ऽहन्दा ( ळोधऩि)(चौथा अॊक) अधिऽनक र्ैऽश्वक व्यर्स्थ़ के तम़म ऽर्मशों में भ़ष़ ऽर्षयक ऽर्मशय भा महत्र्पीणय बऩ हु अ है। सीचऩक्ऱऽन्त,तकनाकी और र्ैज्ञ़ऽनक ऽर्क़स के क़रण मनिष्य के परम्पऱगत जार्न में बहु त स़रे बदल़र् हु ए हैं। जार्न और जगत की ऽर्ऽर्ध्त़ भा बहु त हद तक एकरूपत़ में पररर्ऽतय त होता ज़ रहा है। म़नर् जार्न से संबऽन्धत ऄनेक ऄर्ध़रण़ ओं यथ़ –ईद़रऱ्द, पींजाऱ्द, औद्योऽगक ऽर्क़स, र्ैश्वाकरण अऽद ने ऱष्राय ऱजयों की साम़ओं क़ ऄऽतक्रमण ऽकय़ है। जह़ाँ मनिष्य के जार्न स्तर में व्य़पक पररर्तय न हु अ है र्हीं र्ैयऽक्तकत़ से ले कर ऱष्रायत़ तक के ऄनेक पक्ष आससे प्रभ़ऽर्त हु ए हैं। भीमण्डलाकरण की ऄर्ध़रण़ अधिऽनक यिग की दे न है ऽजसके ऄनिस़र समस्त ऱष्र ऄब एक ‘र्ैऽश्वक ग़ाँर् में पररर्ऽतय त

हो

चिके

है।

आस ‗र्ैऽश्वक–ग़ाँर्

की

अर्श्यकत़एाँ , अक़ंक्ष़एाँ , ऽर्श्व़स, सोच लगभग सम़न है। पींजाऱ्द एक र्ैऽश्वक सत्य बन चिक़ है। ईद़रऱ्द ने पींजाऱ्द और पींजाऱ्द ने र्ैयऽक्तकत़ को जन्म ऽदय़। मिक्त व्य़प़र और अऽथय क ऽर्क़स पर अधररत र्ैऽश्वक व्यर्स्थ़ मनिष्य को र्स्तिभोगा बऩ चिकी है। मनिष्य की संर्ेदऩएाँ , भ़र्ऩएाँ , संस्कु ऽत,भ़ष़ ऄब गैर–महत्र्पीणय हो चिके हैं, महत्र्पीणय है तो केर्ल मनिष्य की स्थील अर्श्यकत़एाँ ।’ 1 भीमण्डलाकरण के दौर में ऱष्राय ऱजयों की ऄर्ध़रण़ के कमजोर पड़ने की भऽर्ष्यऱ्ऽणय़ाँ की ज़ता रहा हैं। तम़म ऱष्राय प्रताकों की भ़ाँऽत ऱष्रभ़ष़ के महत्र् को भा नक़ऱ ज़ रह़ है तथ़ ऱष्रभ़ष़ की ऄर्ध़रण़ के कमजोर पड़ने की घोषण़एाँ होता रहा हैं। ऽपछले किछ र्षों के ऄनिभर् के अधर पर यह स़ऽबत हो चिक़ है ऽक भीमण्डलाकरण से न तो ऱष्राय ऱजय क़ ऄऽस्तत्र् सम़प्त हु अ है, न हा ऱष्रभ़ष़ संबंधा ऽचन्त़एाँ , र्रन सच्च़इ तो यह है ऽक

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भीमण्डलाकरण से ऱष्रभ़ष़ की ऄर्ध़रण़ को मजबीता ऽमला है। भीमण्डलाकरण मीलतः एक अऽथय क प्रऽक्रय़ है, न ऽक स़ंस्कु ऽतक। स्ऱ्भ़ऽर्क है ऽक ऽजस भ़ष़ के बोलने ऱ्ले लोग एक बड़​़ ब़ज़र बऩते है, ईसक़ ऄऽस्तत्र् आस प्रऽक्रय़ में और मजबीत होत़ है। अज की गल़क़ट प्रऽतस्पधय के पींजाऱ्दा दौर में ऽर्ज्ञ़पनों क़ महत्र् व्य़प़र में बढ़त़ ज़ रह़ है क्योंऽक र्हा ईपभोक्त़ के ऄर्चेतन में प्रऽर्ष्ट होकर ‘ब्ऱंड क़ भ़र् ईत्पन्न करते है। यह प्रऽक्रय़ ऽर्दे शा भ़ष़ में ऄसंभर् है। ऱष्रभ़ष़ के प्रयोक्त़ओं की संख्य़ऄऽधक होता है। ऄतः ब़ज़र की शऽक्तयों से आसे बल हा ऽमले ग़। फ्भीमण्डलाकरण क़ एक हऽथय़र स़ंस्कु ऽतक अक्रमण भा है तथ़ संस्कु ऽत और भ़ष़ ऄऽभन्न भा। ऄपऩ म़ल बेचने के ऽलए ऽर्दे शा प्रऽतष्ठ़न पहले ईस सोच क़ ऽनम़य ण करऩ च़हते है ऽजसमें र्ैसा जरूरतें पैद़ होने लगें ऽजनकी पीऽतय र्े करते हैं। ऽकसा सम़ज की सोच बदलने क़ तराक़ है ईसकी भ़ष़ को बदल दे ऩ।’ 2 आस ऄथय में ऱष्रभ़ष़ की ऄर्ध़रण़ हमें स़ंस्कु ऽतक स़म्ऱजयऱ्द से बच़ता है और हम़रे र्ैच़ररक ऄऽस्तत्र् को बच़ए रखता है। ऱष्रभ़ष़ क़ प्रश्न मनिष्य की ऱष्राय चेतऩ से जिड़​़ प्रश्न है। चेतऩ ऄऽर्भ़जय होता है और पररऽस्थऽतजन्य भा। प्रत्येक दे श ऄनेक ऱष्राय प्रताकों की भ़ाँऽत ऄपना एक भ़ष़ को ऱष्रभ़ष़ क़ दज़य दे त़ है। प्ऱयः र्ह भ़ष़ दे श के ऄऽधक़ंश लोगों द्ऱऱ व्यर्ह़र में ल़इ ज़ता है। ऄथ़य त ऱष्राय स्र्र–शऽक्त संपन्न भ़ष़ ऱष्रभ़ष़ होता है। डॉ . हरदे र् ब़हरा के ऄनिस़र – र्ह भ़ष़ पीरे दे श में सम्पकय सीि़ स्थ़ऽपत करने में सक्षम हो। र्ह भ़ष़ दे श की स़ंस्कु ऽतक ऽर्ऱसत को धरण करने में सक्षम हो। ईसक़ शब्द भण्ड़र आतऩ व्य़पक हो ऽक दे श के ऽर्ऽभन्न ऽहस्सों में प्रचऽलत शब्द़र्ला ईसमें श़ऽमल हो सके। र्ह दे श की ऄन्य भ़ष़ओं के शब्दों को सहजत़पीर्यक श़ऽमल करे । र्ह साखने तथ़ प्रयोग करने में अस़न हो। ईसकी ऽलऽप भा ऱष्राय हो ऽजसमें दे श की सभा भ़ष़ओं में प्रयिक्त होने ऱ्ले ध्र्ऽन संकेत ऽलखे ज़ सके। ईस भ़ष़ में पय़य प्त स़ऽहत्य रऽचत हो तथ़ र्ह सम्पीणय दे श से संबऽन्धत हो। ईस भ़ष़ ने दे श के प्रमिख ऱष्राय अंदोलनों में सऽक्रय भ़गाद़रा की हो Page 127


आयम्ब ई-ऩत्रिका 2014-15 ऄथ़य त स़म़ऽजक ऽर्क़स की प्रऽक्रय़ में सऽक्रय भीऽमक़ ऽनभ़इ हो।’3 ै ऽनक भ़ष़ओं की सीचा में केर्ल ऽहन्दा भ़रत की 22 संर्ध की ईपय यिक्त समस्त योग्यत़ओं को पीऱ करता है। ऽहन्दा के ऱष्रभ़ष़ होने के तकय भीमण्डलाकरण के दौर मेंऄऽधक सशक्त हु ए हैं। ब़ज़राकरण की अर्श्यकत़ओं को पीऱ करने के ऽलए ऽहन्दा को ऱष्रभ़ष़ क़ दज़य दे ऩ अर्श्यक भा हो चिक़ है। ऄनेक संच़र म़ध्यमों यथ़– मोब़आल, टेलाऽर्जन, लैपट़प, कम्प्यीटर अऽद की भ़ष़ भा ऄब ऽहन्दा है क्योंऽक ऽहन्दा ईस व्य़पक जन म़नस से जिड़ा हु इ है जो आस भीमण्डलाकु त–ब़ज़रऱ्द की अर्श्यकत़ है। ईत्तर–औद्योऽगक सम़ज सीचऩ अधररत है और संच़र म़ध्यमों से सीचऩ क़ प्रस़र ऱष्रभ़ष़ में दरत ी् गऽत से हो सकत़ है। ऱष्रभ़ष़ ऽहन्दा आस क़यय को बखीबा संप़ऽदत कर सकता है। ऽहन्दा को ऱष्रभ़ष़ म़नने के ऄन्य परम्पऱगत तकय भा है। सबसे पहल़ तकय तो लोकत़ंऽिक है। ऽहन्दा भ़रत में सऱ्य ऽधकजनसंख्य़ द्ऱऱ प्रयिक्त होता है। यह दस ऱजयों में प्रथम भ़ष़ है जो लगभग ५०% जनसंख्य़ क़ प्रऽतऽनऽध्त्र्

ऽहन्दा को ऱष्राय एकत़ की भ़ष़ बऩय़। ऄतः दऽक्षण भ़रत में भा अरम्भ से ऄब तक ऽहन्दा हा सम्पकय भ़ष़ भा रहा है। सबसे महत्र्पीणय अधर यह है ऽक हम़रे दे श के सबसे बड़े दो स़म़ऽजक अंदोलनों, ‘भऽक्त अंदोलन तथ़ ‘स्र्तंित़ अंदोलन ऽहन्दा भ़ष़ के दम पर हा सपिल हु ए। भऽक्त की परम्पऱ ईत्पन्न च़हे दऽक्षण में हु इ हो और मह़ऱष्र, गिजऱत होते हु ए ईत्तर भ़रत पहु ाँचा हो, ऽकंति भऽक्त ने अंदोलन क़ रूप ईत्तर भ़रत में हा ऽलय़ ऽजसमें भ़ष़ की महत्र्पीणय भीऽमक़ रहा। ऩमदे र् और तिक़ऱम ने मह़ऱष्र में , नरसा मे हत़ ने गिजऱत में, चैतन्य मह़प्रभि ने बंग़ल में , गिरूऩनक ने पंज़ब में, माऱ ने ऱजस्थ़न में जो भऽक्त की धर बह़इ, र्ह ऄपने स्र्रूप में ऽहन्दा को ऱष्रभ़ष़ हा स़ऽबत करता है। ‗स्र्तंित़ अंदोलन में ऽहन्दा को औपच़ररक रूप से ऱष्रभ़ष़ की संज्ञ़ भा दा गइ। केशर्चन्द्र सेन और बंऽकमचन्द्र चटजी ने नर्ज़गरण अंदोलन में कह़ भा ऽक फ्दे श की एकत़ ऽहन्दा भ़ष़ के म़ध्यम से हा संभर् है।’4

करते है। यह़ाँ तक ऽक केरल, कऩय टक, अन्ध्र प्रदे श में भा ऽहन्दा को बोलने समझने ऱ्ले लोग सहज हा दे खे ज़ सकते है। समस्त दे श क़ संदभय लें तो लगभग किल

‗सन १९१८ इ. में मह़त्म़ ग़ाँधा ने घोषण़ की ऽक ऽफ्हन्दा हा ऽहन्दिस्त़न की ऱष्रभ़ष़ हो सकता है। ऽहन्दा को भ़रत की ऱष्रभ़ष़ बऩने क़ गौरर् प्रद़न करें । ऽहन्दा सब

जनसंख्य़ के ८०% लोग ऽहन्दा समझने, बोलने की क्षमत़ रखते हैं।

समझते है, आसे ऱष्रभ़ष़ बऩकर हमें ऄपऩ कतय व्य प़लन

दस ी ऱ क़रण यह है ऽक ऽहन्दा अयय भ़ष़ संस्कु त से ऽर्कऽसत है। ऽर्क़स की आस प्रऽक्रय़ में ऽहन्दा ईस स्थ़न पर बोला गइ जो हमे श़ से भ़रताय आऽतह़स के

ग़ाँधा जा म़नते थे ऽक ऱष्रभ़ष़ के समस्त गिण भ़रत की

ऱजनाऽतक, अऽथय क, स़म़ऽजक पररर्तय नों क़ केन्द्र ऽबन्दि रह़। आतऩ हा नहीं जब दऽक्षण की ओर ऱजनाऽतक ऄऽभय़न होने लगे तो ऽहन्दा भ़ष़ भा दऽक्खना ऽहन्दा बनकर दऽक्षण भ़रत में पहु ाँ च गइ। २०र्ीं शत़ब्दा में दे र्कीनन्दन खि़ॅा, प्रे मचन्द के ईपन्य़सों ने पीरे ऽर्श्व में ऽहन्दा डं क़ बज़ ऽदय़। कह़ तो यह भा ज़त़ है ऽक दे र्कीनन्दन खि़ॅा के ईपन्य़सों को पढ़ने के ऽलए बहु तों ने ऽहन्दा साखा और व्यर्ह़र करऩ अरम्भ कर ऽदय़। मैऽथलाशरण गिप्त की रचऩ ‘भ़रत–भ़रता ने पीरे दे श में arambh.co.in

करऩ च़ऽहए। ऽहन्दा क़ प्रश्न स्र्ऱज क़ प्रश्न है।’5

भ़ष़ओं में केर्ल ऽहन्दा में ऽमलते है। १९३६ इ. में ग़ाँधा ने कह़ थ़– िगर ऽहन्दिस्त़न को सचमिच अगे बढ़ऩ है तो कोइ म़ने य़ न म़ने ऱष्रभ़ष़ ऽहन्दा हा बन सकता है। ऄगर स्र्ऱज ऄंग्रेजा बोलने ऱ्ले भ़रतायों क़ और ईन्हीं के ऽलए होने ऱ्ल़ हो तो ऽनस्सन्दे ह ऄंग्रेजा हा ऱष्रभ़ष़ होगा ले ऽकन ऄगर स्र्ऱज करोड़ो भीखों मरने ऱ्लों, ऽनरक्षरों और दऽलतों तथ़ ऄन्त्यजों क़ हो और ईन सब के ऽलए होने ऱ्ल़ हो तो ऽहन्दा हा एकम़ि ऱष्रभ़ष़ हो सकता है। 6 आसके ब़द सम्पीणय नर्ज़गरण तथ़ स्ऱ्धानत़ अंदोलन में गैर ऽहन्दाभ़षा ऱजयों के नेत़ओं ने ऽहन्दा के प्रच़र–प्रस़र Page 128


आयम्ब ई-ऩत्रिका 2014-15 को एक नाऽत हा बऩ ऽलय़। पंज़ब में ल़ल़ ल़जपतऱय और

यशप़ल

जैसे

क्ऱऽन्तक़ररयों

ने , मह़ऱष्र

में

स़र्रकर, ऽतलक, गिजऱत में दय़नन्द सरस्र्ता तथ़ पटेल ने, बंग़ल

में

चटजी, सिभ़षचन्द्र

केशर्चन्द्र बोस

सेन

और

ने, दऽक्षण

बंऽकमचन्द्र भ़रत

में

सा. ऱजगोप़ल़च़रा जैसे नेत़ओं ने ऽहन्दा को ऱष्रभ़ष़ बऩने की पिरजोर र्क़लत की। ऽहन्दा को ऱष्रभ़ष़ म़नने क़ एक ऄन्य अधर रऽचत स़ऽहत्य की क्षेि़गत व्य़पकत़ है। ऽहन्दातर प्रदे शों में कइ रचऩक़रों ने ऽहन्दा स़ऽहत्य की रचऩ की। पंज़ब में गिरूऩनक, श्रा ऱम पि​िल्लौरा तथ़ यशप़ल जैसे रचऩक़र हु ए, मह़ऱष्र में प्रभ़कर म़चर्े, मिऽक्तबोध ने रचऩएाँ की, ऽबह़र–बंग़ल में ऽर्द्य़पऽत, ऄसम में शंकरदे र्, केरल में श्राऱम र्म़य अऽद कऽर्यों ने ऽहन्दा में हा ऽलख़। ऽहन्दा पीणयतः र्ैज्ञ़ऽनक भ़ष़ है। व्य़करण आतऩ सरल है ऽक आसे सरलत़ से साख़ ज़ सकत़ है। भीमण्डलाकरण के ईपऱन्त प्रर्सन की प्रऽक्रय़ द् ि रत गऽत से हो रहा है ऽजससे ऽर्ऽर्ध भ़ष़–भ़षा मनिष्यों क़ सम्पकय बढ़​़ है। सीचऩ और संच़र प्रौद्योऽगकी के म़ध्यमों पर ऽर्ऽभन्न भ़ष़–भ़ऽषयों के बाच ऄन्तः ऽक्रय़ के पररण़मस्र्रूप ऄनेक ध्र्ऽनय़ाँ और शब्द ऽहन्दा में हू बहू अ गए हैं। ऽपिर भा ऽहन्दा ने ईसको अत्मस़त कर ऽलय़ है। ऄरबा, ि़रसा, पितयग़ला, मऱठा, संस्कु त, ऄपभ्रंश, ऄंग्रेजा की ऄनेक ध्र्ऽनय़ाँ, शब्द ऽहन्दा में प्रयिक्त हो रहे हैं ऽकन्ति ऽहन्दा क़ मील स्र्रूप ऽर्रूऽपत नहीं हु अ है। ध्य़तव्य है ऽक भीमण्डलाकरण की प्रऽक्रय़ में भा र्हा भ़ष़ सशक्त होगा जो ऄऽधक़ऽधक लोगों की सम्पकय भ़ष़ है। र्स्तिओ ं के ऽर्ज्ञ़पनों क़ ऽनम़य ण प्ऱयः ईसा भ़ष़ में कम खचील़ रहत़ है जो भ़ष़ सर्य ग्ऱह्य हो क्योंऽक ऽर्ज्ञ़पन ब़ज़राकरण तथ़ भीमण्डलाकरण के ऽलए ऄऽनऱ्यय मजबीरा बन चिक़ है। र्ैऽश्वक स्तर पर ऽहन्दा की ईपऽस्थऽत लग़त़र बढ़ रहा है। ऽहन्दा अज ऽर्श्व की तासरा सऱ्य ऽधक बोला, समझा ज़ने ऱ्ला भ़ष़ है। ऽहन्दा संयिक्त ऱष्र संघ तक भा पहु ाँच चिकी है। दे श के म़ननाय दो प्रधनमंऽियों श्रा ऄटल ऽबह़रा ऱ्जपेया और श्रा नरे न्द्र मोदा ने आस सऱ् सौ करोड़ के भ़रताय ब़ज़र तथ़ आसकी भ़ष़ के महत्र् को arambh.co.in

संयिक्त ऱष्र संघ तथ़ ऄमे ररक़ में रे ख़ंऽकत ऽकय़ है। दोनों जगहों पर ईपयियक्त मह़निभ़र्ों ने ऄपने ऄऽभभ़षण ऽहन्दा में ऽदए। पर ददय यह है ऽक ऱजनाऽतक आच्छ़शऽक्त की कमा और परस्पर एकजिटत़ के ऄभ़र् में हम ऽहन्दा को संयिक्त ऱष्र संघ की अऽध्क़ररक भ़ष़ क़ दज़य ऄब तक नहीं ऽदल़ प़ए हैं। भीमण्डलाकरण की प्रऽक्रय़ में हम दीसरे ऱष्रों के ऽनकट पहु ाँच चिके हैं ऽजससे हम एक–दस के ी रे कल़, स़ऽहत्य, संस्कु ऽत, ऽसनेम़ अऽद से रूबरू होते रहते हैं। ऽहन्दा की ऱष्रभ़ष़ संबंधा ऄर्ध़रण़ को मजबीता प्रद़न करने में भ़रताय ऽसनेम़ क़ योगद़न सऱहनाय है। भ़रताय ऽसनेम़ ने ऽहन्दा को घर–घर तक पहु ाँच़य़ है। यह़ाँ तक ऽक दऽक्षण और पीर्ोत्तर के ऱजयों में भा ऽहन्दा लोकऽप्रय हु इ है। केरल, कऩय टक, तऽमलऩडि , ऄसम, मे घ़लय,ऽमजोरम, ऽिपि ऱ, ऽसऽक्कम, मऽणपिर, ऩग़लैण्ड, पऽिमा बंग़ल अऽद ऄऽहन्दाभ़षा ऱजयों में भा ऽहन्दा ऽपिल्मों के संऱ्द सहज हा सिने ज़ सकते हैं।7 यह़ाँ तक ऽक भ़रतायों कीऄऽधक संख्य़ ऽर्दे शों में भा रहता है तो र्ह़ाँ भा ऽहन्दा ऽसनेम़ लोकऽप्रय है। ऽहन्दा ऽसनेम़ की लगभग 1/3 कम़इ तो ऽर्दे शों में होता है। भ़ष़ भ़र्ऩ और संर्ेदऩ क़ ऽर्षय होता है। ऄतः ऽकसा दे श की म़तुभ़ष़ में हा र्ह़ाँ के लोगों से सहजत़ से जिड़​़ ज़ सकत़ है। ऽर्श्व व्य़प़र के ऄगिअ ऄमे ररक़ के ऱष्रपऽत बऱक ओब़म़ क़ ऽर्गत भ़रताय दौऱ आसक़ ईद़हरण है। गणतन्ि़ ऽदर्स परे ड के मिख्य ऄऽतऽथ ओब़म़ ने प्रऽस( भ़रताय ऽपिल्म ‘ऽदलऱ्ले दिल्हऽनय़ाँ ले ज़येंगेऻ के संऱ्द– फ्सेनोररट़! बड़े –बड़े दे शों में छोटा–छोटा ब़तें होता रहता हैं। 8 कहकर भ़रताय लोगों से जिड़ने की कोऽशश की। प्रऽसद्च ऄंग्रेजा ले खक चेतन भगत को भा ऄब ऽहन्दा की त़कत समझ में अने लगा है। ह़ल में हा‘ऽहन्दिस्त़नऻ दैऽनक सम़च़र पि़ में ईनकी ऽटप्पणा था ऽक ऽहन्दा को नजरऄंद़ज कर कोइ बड़​़ ले खक नहीं बन सकत़ है। ऽहन्दा को ऄब रोमन में ऽलखऩ च़ऽहए। 9

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आयम्ब ई-ऩत्रिका 2014-15 ऽनिय हा ये समस्त संदभय ऽहन्दा भ़ष़ के मजबीत होने के प्रम़ण है। भीमण्डलाकरण की प्रऽक्रय़ में ब़ज़र की अर्श्यकत़ओं के ऄनिस़र ऽहन्दा बदल रहा है और ऽनरन्तर

ईन गिल़मा के ऽदनों की य़द दे ज़ता है।

गऽतशाल है। ऽर्गत र्षों में ऽहन्दा के प़ठकों, ले खकों और स़ऽहत्य में ऽनरन्तर र्ुऽद्च हु इ है और ऽहन्दा को ऱष्रभ़ष़ घोऽषत करने की म़ाँग जोर पकड़ता ज़ रहा है। ऽसऽर्ल सेऱ् पराक्ष़ में ऽपछले र्षय ऽहन्दा अंदोलन ने महत्र्पीणय भीऽमक़ ऽनभ़इ है ऽजससे सरक़र को भा झिकऩ पड़​़। ऽहन्दा ऽनरं तर स्र्ाक़यय हो रहा है और समय–समय पर ऄपना अऱ्ज बिलंद करता रहा है।

ऽनकलत़ थ़ ऽजस भ़ष़ में

समग्रतः

यह

कह़

ज़

सकत़

है ऽक

तो

भीमण्डलाकरण, र्ैज्ञ़ऽनक– तकनाकी ऽर्क़स, सीचऩ क्ऱऽन्त के ईपऱन्त ऱष्रभ़ष़ की ऄर्ध़रण़ कमजोर हु इ है और न हा ऽहन्दा को ऱष्रभ़ष़ बऩने की म़ाँग। तथ्य यह है ऽक भीमण्डलाकरण भा स़ंस्कु ऽतक र्ैऽर्ध्य क़ समथय क है। अज की म़ाँग यह है ऽक ऱष्रभ़ष़ के स़थ ऽर्श्व की

च़बिक की बौछ़रों क़ अदे श

ईस भ़ष़ को मे रा भ़ष़ मत कह मे रे दोस्त!10 समस्त ऱजनाऽतक षड् यंिों के ब़र्जीद ऽहन्दा क़ ऄऽस्तत्र् समुद्चश़ला हो रह़ है। ऽर्दे शा जमान पर ऽहन्दा हा हमें एकजिट बऩता है। र्ोट बैंक की ऱजनाऽत ने भले हा आस मिद्ङे को ठं डे बस्ते में ड़ल ऽदय़ है पर यह दृढ़ ऽर्श्व़स है ऽहन्दा हा भ़रत की ऱष्रभ़ष़ होगा, बस आसकी औपच़ररक घोषण़ ै ऽनक प्ऱर्धन भा। होऩ ब़ऽक है और संर्ध संदभय संबंध – डॉ

. बा.एल. पिऽडय़, पुष्ठ ऺ

अर्श्यक और महत्र्पीणय भ़ष़एाँ भा साखा ज़एाँ , न ऽक ऱष्रभ़ष़ को हा छोड़ ऽदय़ ज़ए। फ़्ंस और जमय ना में अज

• ऄन्तरऱष्राय

भा ऄंग्रेजा ऽसपय ि ईपयोगा भ़ष़ के रूप में साखा ज़ता है, न ऽक ऄपना भ़ष़ के ऽर्कल्प के रूप में । ऱष्रभ़ष़ संबंधा मिद्ङे क़ ऱजनाऽतकरण हा आस समस्य़ की ऄसला जड़ है। संकीणय ऱजनाऽतक स्ऱ्थों की ऱजनाऽत ने

• २१र्ीं शत़ब्दा में ऄन्तऱष्राय संबंध – पिष्पेश पंत, पुष्ठ

क्षेि़ऱ्द, ज़ऽतऱ्द और भ़ष़ की ऱजनाऽत को पैद़ ऽकय़ है। मह़ऱष्र में ऽर्गत र्षों में आसक़ ईद़हरण दे ख़ ज़ सकत़ है। ऄन्य ऱष्राय प्रताकों की भ़ाँऽत ऱष्रभ़ष़ भा ऱष्राय एकत़ क़ सीि़प़त करता है। ऄतः औपच़ररक रूप से दे श की एक ऱष्रभ़ष़ होना हा च़ऽहए और ऽहन्दा ईसकीऄऽधक़ररणा है। ऽर्दे शा भ़ष़ में र्ह ऄऽभव्यऽक्त संभर् नहीं जो ऱष्रभ़ष़ ऽहन्दा में संभर् है। म़ररशस के प्रऽसद्च स़ऽहत्यक़र ‘ऄऽभमन्यि ऄनतऻ की पंऽक्तय़ाँ बरबस हा य़द अ ज़ता हैं– मे रे दोस्त

४६४, स़ऽहत्य भर्न पऽब्लकेशन, अगऱ ३७६, ट़ट़ मैकग्ऱऽहल प्रक़शन, नइ ऽदल्ला • . ऽहन्दा

भ़ष़ – डॉ

. हरदे र्

ब़हरा, पुष्ठ

१५७–

५८, ऄऽभव्यऽक्त प्रक़शन, आल़ह़ब़द • . र्हा, – पुष्ठ १५८ • . भ़ष़ ऽर्ज्ञ़न और ऽहन्दा भ़ष़ – डॉ . ऱमदरश ऱय, पुष्ठ २४७–४८, भर्दाय प्रक़शन, पिै ज़ब़द • . र्हा, – पुष्ठ २४९ • . अजकल ;पऽिक़द्च – म़चय –२०१४

ऄंक, प्रक़शन

ऽर्भ़ग, भ़रत सरक़र, नइ ऽदल्ला गोपेश्वर दत्त पाण्डेय

शोधर्थी हद हि.हि.

ईस भ़ष़ में मे रे ऽलए शिभ की क़मऩ मत कर ऽजसकी चिभता ध्र्ऽन मिझे arambh.co.in

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आयम्ब ई-ऩत्रिका 2014-15

बदलत़ सौन्दयय बोधऔर प्रगऽतऱ्दा ऽहन्दा कऽर्त़

था तथ़ समस्त पिऱतन अस्थ़ एर्ं ऽर्श्व़सों को नष्ट करके नर् सम़ज ऽनऽमय त करने की क़मऩ था जह़ाँ सब सम़न हो। आस यिग क़ कऽर् न केर्ल पिऱतन को नष्ट करऩ च़हत़ है, ऄऽपति र्तय म़न व्यर्स्थ़ की ऽर्संगऽतयों क़ प्रबल शि​ि है। र्ह सीक्ष्म ऄध्य़त्म के स्थ़न पर स्थील भौऽतकत़

( ळोधऩि)(चौथा अॊक)

को, धमय के स्थ़न पर ऄथय को, व्यऽक्त के स्थ़न पर समीह

स़ऽहत्य में स़म़ऽजक जार्न की पीणय ऄऽभव्यऽक्त प्रगऽतऱ्द की प्रमिख ऽर्शेषत़ है। सम़ज और स़ऽहत्य की ऐसा एकरूपत़ और ऽकसा यिग में नहीं ऽमलता। र्ारग़थ़क़ल भऽक्तक़ल तथ़ राऽतक़ल के क़व्य में सम़ज में ऄऽधक़ंशतः ईच्च पक्ष की प्रधनत़ है। र्ारग़थ़क़लान क़व्य में र्ार स़मंता जार्न ऽचिों की प्रधनत़ है तो राऽतक़ल में ऽर्ल़सा ऱज़ओं और दरब़रों के भोगऽर्ल़समय जार्न क़ ऽर्स्त़रपीर्यक ऽचि़ण है। ऽजसमें अम जन की ईपऽस्थऽत नगण्य है। भ़रतेन्दि र् ऽद्रर्ेदा यिगान कऽर्यों ने भा प्ऱयः लोकगातों में हा तत्क़लान स़म़ऽजकऱजनाऽतक चेतऩ की ऄऽभव्यऽक्त की है। स़थ हा ये कऽर् सम़ज में ऽकन्हीं नीतन अदशों की स्थ़पऩ की ऄपेक्ष़ पिऱतन सम़ज व्यर्स्थ़ के सऩतन अदशों की रक्ष़ में

की ऄपेक्ष़ स़म़न्य को, सिन्दर की ऄपेक्ष़ भदे स और र्ैयऽक्तकत़ की जगह स़म़ऽजकत़ को ऄऽधकमहत्त्र् दे त़ है और ईसा की स्थ़पऩ करऩ च़हत़ है।

ऄऽधकतत्पर रहे । ऽहन्दा के छ़य़ऱ्दा कऽर्, स़ऽहत्य में नर्ान क़व्य शैला के प्रर्तय क के रूप में य़ सम़ज ऽनरपेक्ष क़ल्पऽनक जगत के रचऩक़रों के रूप में ऄऽधक प्रऽसद्च प़ते रहे । ‘बहु जन ऽहत़य’ क़व्य की रचऩ तथ़ ईसमें सम़ज की बदलता पररऽस्थऽतयों और ईनसे संघषय की व्य़ख्य़ प्रगऽतऱ्द की ईल्ले खनाय ईपलऽब्ध है।

एर्ं सम़ज को, अदशय के स्थ़न पर यथ़थय को एर्ं ऽर्शेष

सौन्दयय और कल़ के पररर्ऽतय त प्रऽतम़न आस प्रक़र प्रगऽतयिग के पररर्ऽतय त ऽर्च़रों के ऄनिकील सौन्दयय एर्ं कल़ संबंधा धरण़ भा बदल गइ। आस यिग में कऽर् को ऄसिन्दर सिन्दर प्रतात होते हैं और शोऽषत पाऽडत ऺ व्यऽक्त जनऽप्रय। शोऽषत, पाऽडत ऺ और मजदीर, ऽकस़नों की पक्षध्रत़ हा प्रगऽतऱ्दा कऽर् करत़ है। प्रगऽतऱ्दा यिग में छ़य़ऱ्दा सीक्ष्म सौन्दयय दृऽष्ट क़ स्थ़न स्थील र् ब़ह्य सौन्दयय दृऽष्ट ने ले ऽलय़। छ़य़ऱ्द की ऱ्यर्ाय अशय ऱ्ऽदत़ के स्थ़न पर कठोर भौऽतक यथ़थय की हा प्रऽतष्ठ़ ऽदख़इ पड़ता है। स़म़ऽजक ईपयोऽगत़ की दृऽष्ट हा मिख्य हो गइ और प्रे म और सौन्दयय भा ईसा दृऽष्ट से दे खे ज़ने लगे। ऄतः यिग के बदलते दृऽष्टकोण के स़थ सौन्दयय दृऽष्ट में भा ऄंतर अय़। प्रगऽतऱ्दा कऽर् मीढ़ ऄसभ्य, ईपेऽक्षत, दीऽषत को भा भीऽम क़ ईपक़रक म़नत़ है और धऽमय क ईपदे शक, पंऽडत, जमींद़र पींजापऽतयों को लोक प्रत़ड़क म़नत़ है। प्रगऽतऱ्द

सम़नत़ऱ्दा सम़ज क़ अदशय

ने पहला ब़र ऄनपढ़ ऄऽशऽक्षत र्ंऽचत, ऄन्य़य के ऽशक़र लोगों में प्रेम करऩ ऽसख़य़। प्रगऽतऱ्दा दृऽष्टकोण के

सन १९३५ के पि़त ऽहन्दा क़व्य में एक ऐसा नर्ान

ऄनिस़र सम़ज में अऽथय क, स़म़ऽजक, स़ंस्कु ऽतक समत़ तभा अयेगा जबऽक मनिष्य संगऽठत रूप से ऽर्रोधा शऽक्तयों से संघषय करे । तत्क़लान यथ़थय भा आसा संगऽठत जार्न से संबंध है। सम़ज में ऽर्रोधा और सत्त़धररयों से प्रत़ऽडत ऺ श्रऽमक और कु षक र्गय क़ समथय न हा यथ़थय ऱ्दा दृऽष्ट से जिड़​़ हु अ है। शोऽषत जनत़ क़ ईद्च़र और शोषक र्गय क़

ऽर्च़रधऱ क़ प्रर्ेश हु अ, ऽजसने ऄपना पीर्यर्ती पररर्तय नऱ्दा क़व्यधऱ के कऽल्पत स़म़ऽजक अदशों एर्ं व्यऽक्तमन के सीक्ष्म मनोभ़र्ों के सौन्दयय घ़टन से ऽभन्न जार्न की यथ़थय , भौऽतक अर्श्यकत़ओं की पीऽतय को महत्त्र् दे कर सम़नत़ऱ्दा सम़ज क़ अदशय प्रस्तित ऽकय़। प्रगऽतऱ्दा यिगान क़व्य में ऐसा रचऩओं क़ प्ऱधन्य हो गय़ जो मह़क्ऱंऽत द्ऱऱ पररर्तय न की भ़र्ऩओं से व्य़प्त था। ऽजनमें दे श की र्तय म़न ऄथय व्यर्स्थ़ एर्ं स़म़ऽजक ढ़ंचे की ऄसंगऽत के प्रऽत भयंकर द्रे ष, घुण़ की भ़र्ऩ ऽर्द्यम़न arambh.co.in

ऄंत सम़जऱ्दा दशय न क़ लक्ष्य है, आसऽलए जनऱ्दा भ़र्ऩ से प्रे ररत कल़क़र शोऽषत र्गय क़ पक्षध्र बनकर हा म़नर् ईद्च़र कर सकत़ है। प्रगऽतऱ्दा कऽर् स़म़ऽजक जार्न को ईसकी समऽष्ट-चेतऩ सेसंबंध करके दे खत़ है और क्ऱंऽत Page 131


आयम्ब ई-ऩत्रिका 2014-15 के पिलस्र्रूप सबको सम़न ऄऽध्क़र र् ऄर्सर प्रद़न

फ्कल़क़र ने ऽकस़न से पीछ़- तिम ज़नते हो ऽक सौन्दयय

करने क़ पक्षप़ता है- स़मीऽहक सिख हा ईनकी क़मऩ है-

क्य़ है ? ऽकस़न ने ऄपने कंधे पर हल रखते हु ए ईत्तर ऽदय़ ह़ाँ सौन्दयय है भरपेट भोजन करऩ।

फ्सिख सिऽर्ध सबके हे ति सहज सब सक्षम होंगे प्रबिद्च अब़ल र्ुद्च र्ऽनत़ स़रे कतय व्य ऽनरत ऽनम़य ण शाल सब एक सीि़ में गिऽम्पित किसिम़र्ऽल सम़न ऄमरत्र् न च़हे ग़ कोइ, सम होंगे जार्न और मरण।य् श्रमजार्ा र्गय की पक्षधत़य आस प्रक़र, जनऱ्दा चेतऩ य़ ‘सर्य जन ऽहत़यऻ क़ समथय न करऩ हा प्रगऽतऱ्ऽदयों क़ लक्ष्य है। ईनकी संर्ेदऩ पीणयरूप से श्रमजाऽर्यों के पक्ष में है च़हे र्ह ऽकस़न हो य़ मजदीर। प्रगऽतऱ्दा कऽर् की चेतऩ स़म़ऽजक है। र्ह प्रत्येक र्स्ति को जनकल्य़ण के संदभय में दे खत़ है। आस संदभय में ऽशर्द़नऽसंह चैह़न क़ यह कथन दृष्टव्य है“कऽर्त़ में सौन्दयय और सत्य ऄर्ऽस्थत होत़ है, ऄथ़य त

कल़क़र ने यहा प्रश्न मजदरी , बऽनए, दफ्तर के मिंशा ऄपिसर और कल़क़र अऽद सबके सम्मिख दोहऱय़ और ईसे सब ओर से एकम़ि़ यहा ईत्तर ऽमल़ है- सौन्दयय है भरपेट भोजन करऩ। ऽनऽित रूप से सौंदयय की ऐसा व्य़ख्य़ स़ऽहत्य में पहला ब़र प्रगऽतऱ्दा क़व्य में दे खने को ऽमलता है। म़क्सय ऱ्दर्स्ति संबंधा ऽर्च़र को प्रऽतऽष्ठत करते हु ए प्ऱॅब्लम्स अॅपि म़ॅडनय एस्थेऽटक्स में ऽलख़ है ऽक ‘जार्न को ऄपने पररर्ेश से एकदम ऄनिभत ी ऽस( करऩ और सौंदय़य निभऽी त को मनोमय जगत तक ऽस( कर दे ऩ ऽनरथय क है, ऄसल में सौंदयय र्स्ति भा है, र्स्ति संबंधा ऽर्च़र भा। र्स्ति और र्स्तिगत ऄनिभर् क़ सीक्ष्म ऽचन्तन हा अनन्द़निभऽी त है।

ईसके ऽलए आतऩ हा क़पिी नहीं है, ऽक र्ह भ़ऱ्त्मक हो। यऽद ईसके ऄन्दर व्यक्त भ़र् क़ ऄनिभऽी त क़ अधर ऐस़

श्रम क़ सौंदयय

र्ैयऽक्तक ऄनिभर् है, जो स़म़ऽजक रूप से ऄनिभत ी नहीं ऽकय़ ज़ सकत़ तो र्ह सौन्दयय की सुऽष्ट नहीं कर सकत़

शोषण होत़ है, ईसक़ ऽर्रोध करत़ है, ले ऽकन स़थ हा श्रम

क्योंऽक सौन्दयय -भ़र्ऩ क़ ईद्रे क चेष्ट़शाल मनिष्य के प़रस्पररक सबंधें में ऽनऽहत ऱग़त्मक संबंध पर ऽनभय र करत़ है। ऄतः यऽद व्यऽक्त क़ ऄनिभत ी भ़र् स़म़ऽजक मनिष्य के ऄंदर ईसक़ ईद्रे क नहीं कर सकत़ तो र्ह

प्रगऽतऱ्दा कऽर्त़ में कऽर् बल़त श्रम के ऄन्तगय त जो के सौंदयय को सहा पररप्रे क्ष्य में गररम़-मंऽडत भा करत़ है। ईनके ऽलए जार्न जाने क़ ऄथय हा संघषय है। प्रगऽतऱ्दा कऽर्त़ ने जार्न के ईपेऽक्षत क्षेिों में ज़कर ईसकी ऽर्ऽर्ध्त़ में सौंदयय की ईपलऽब्धकी है।

सौन्दयय य़ सत्य की सुऽष्ट भा नहीं कर सकत़।य डॉ . ऱमऽर्ल़स शम़य ने भा कह़ हैः ‘सौन्दयय क़ स्रोत जनत़

प्रगऽतऱ्ऽदयों के ऽलए सौंदयय प्ऱयः कमय , श्रम, संघषय और

है।ऻ आस प्रक़र, सौन्दयय और सत्य एक़ंगा श़ह्ल़ॅाय म़न्यत़ की जगह पर आस क़ल क़ कऽर् स़म़ऽजक पररर्ेश में हा सौन्दयय और सत्य के नये म़नर्ाय बोध को स्र्ाक़र करत़ है।

हंऽसय़, पत्थर, हल अऽद श्रमशाल प्रताक सऽक्रयत़ क़

अऽथय क दृऽष्ट से जार्न की व्य़ख्य़ करने के क़रण आस क़ल के सत्य, सौन्दयय एर्ं कल़ में ईन तत्र्ों की प्रधनत़ है, जो जार्न की भौऽतक अर्श्यकत़ओं की पीऽतय करने में समथय है। कऽर् भगर्ताचरण र्म़य की सौन्दयय की पररभ़ष़ यह़ाँ ईल्ले खनाय हैarambh.co.in

गऽतमयत़ क़ पय़य य है। आसाऽलए ईनकी कऽर्त़ओं में लोह़, सौंदयय -ऽबंब बनकर अगे अते हैं और स़थ हा क़टो, तोड़ो, प़टो जैसा ऽक्रय़एं अता हैंक़टो क़टो क़टो करबा म़रो म़रो म़रो हंऽसय़ …………………………. प़टो प़टो प़टो धरता। Page 132


आयम्ब ई-ऩत्रिका 2014-15 प्रगऽतऱ्दा कऽर् जार्न के ऽर्ऽभन्न क्षेिों में सौंदय़य निभऽी त

क़ ब़दल नहीं बऩत़, सौंदयय और प्रे म जार्न के भौऽतक

करत़ है। यह सौंदयय च़हे प्रकु ऽत क़ हो, पिरुष क़ हो, पशि-

और बौऽद्चक ऽर्क़स क़ ऱग़त्मक बोध होकर यह़ाँ अय़

पक्षा, खे त खऽलह़न, हऱ्- धिप क़ हो, श्रम-संघषय क़ हो,

है-

ऽकस़न-मजदीर क़ हो य़ पेड़-पौधें, नदा-पह़ड़ क़ हो सब ईन्हें ब़ंध्त़ है। सौंदयय में ह्ला सौंदयय सबसे म़दक, सबसे

‗किछ ब़त ऽदल की कह सकाँ ी

व्य़पक होत़ है, ले ऽकन प्रगऽतऱ्दा कऽर्यों क़ ह्ल़ॅा सौंदयय र्णय न सबसे ऄलग है ईन्हें तो श्रमशाल ऩररय़ाँ हा सबसे सिंदर लगता है। ऩररयों के ऄर्यर्ों क़ सौंदयय ऄब

ईपह़स जग क़ सह सकाँ ी

कोमलत़ में नहीं, ऄऽपति पिरुष के स़थ कंधे से कंध ऽमल़कर मजबीता से ऽमलों में क़म करने में ऽनऽहत है। सजा धजा ऩरा क़ सौन्दयय आस यिग के कऽर् की अाँखों को क़टत़ है। ईसक़ दृऽष्टकोण ऄब बदल गय़ है। ईसकी श्रम

आतऩ मिझे ऄऽध्क़र दो

दिःख-सिख में सम रह सकं ी

मिझको न सिख संस़र दो। स़म़ऽजक प्रे म

की प़ि़ है, र्ह मजदरी ना जो ऩरा की संज्ञ़ भिल़कर पिरुषों के संग क़म-क़ज में ह़थ बंट़ता है ‗र्ह तोड़ता पत्थर दे ख़ ईसको मैंने आल़ह़ब़द के पथ पर

प्रगऽतऱ्दा कऽर् ऩरा के प्रे म और सौंदयय के प्रऽत अकऽषय त होते हु ए भा समीचे सम़ज को नेह पीररत दे खऩ च़हत़ है। आस ऽनम़य ण के ऽलए प्रयत्नशाल कऽर् सौंदयय की एक़ंगा तुऽप्त से संतिष्ट नहीं हैं आस नेह क़ मील्य स्र्ाक़र करने में र्ह ऄसमथय है। जब समीचा जार्न-भीऽम सिख सौंदयय हान,

प्रगऽतऱ्दा कऽर्यों के ऽलए आस मजदरी ना के चेहरे पर श्रम

र्ाऱन है, तो कऽर् एक़ंगा ऩरा-सौन्दयय और शुंग़र से

ऽबन्दि ;पसाऩ, हा ईसके सौंदयय -प्रस़ध्न है। परन्ति कऽर् ऩरा को र्गय की दृऽष्ट से शोऽषत र्गय म़नत़ है। अज कऽर् जब

ऄपने को कैसे बहल़येग़? यह़ाँ ईसकी र्ुऽत्त ऩरा सौन्दयय की ईपेक्ष़ की नहीं है। र्ह आस ने ह को पीरे स़म़ऽजक जार्न के कल्य़ण के स़थ स्र्ाक़र करऩ च़हत़ है।

शोऽषत र्गय पर ऽकसा प्रक़र क़ श़सन और बंधंन सहने को तैय़र नहीं, तब ऩरा जो यिगों से पददऽलत है, के ऽलए ऽनधय ररत पिऱने ऽसद्च़ंत ईसे कैसे म़न्य होंगे ऄब तक ऩरा पिरुष की ऄनिग़ऽमना रहा ओर पिरुष ऄपने ऄऽधक़रों के मद, में सदैर् से ऩरा क़ शोषण करत़ अय़ है पऽतव्रत धमय ईस पर ल़द़ गय़। ‘ग्ऱम्य़ऻ में सिऽमि़नंदन पंत ने ऩरा को मनिष्य की द़सत़ से मिक्त करके स्र्तंि़ म़नर्ा

आस प्रक़र प्रगऽतऱ्दा कऽर्यों ने ऽजस नइ यथ़थय ऱ्दा सौंदयय दृऽष्ट क़ पररचय ऄपने क़व्य में ऽदय़ है, र्ह नये सौन्दयय बोध की ऱ्स्तऽर्क भीऽमक़ र्हीं से ऽनमत करता है। जार्न की ऽर्ऽशष्ट ऽस्थऽतयों में लोक जार्न एर्ं अऽथय क र्ैषम्य के म़ध्यम से प्रगऽतऱ्दा कऽर्यों ने जार्न के ईस

के रूप में प्रऽतऽष्ठत करने की प्रे रण़ दा है-

सीक्ष्म तथ्य की ओर संकेत ऽकय़ है,जो ऄतिलनाय सौंदयय है। मनिष्य क़ पररऽस्थऽतयों से ऽघर कर भा संघषय करऩ र्

‗मिक्त करो ऩरा को म़नर्

व्यर्स्थ़ के प्रऽत ऽर्रोध्, पाड़​़ के प्रऽत ईसकी प्रगऽतशालत़

यिग-यिग की क़ऱ से ’

है। जह़ाँ से व्यऽक्त आसा ददय में अश़ की ऽकरण खोज ले त़ है, र्हीं से सौंदयय बोध को नइ ऽदश़ ऽमलता है।

यह़ाँ ऩरा दे र्ा, भोग्य़ और व्यऽभच़र के स़ध्न के स्थ़न पर

लड़ता हु अ सम़ज नइ अश़ ऄऽभल़ष़

गररम़यिक्त म़नर्-जार्न की संऽगना है। यह़ाँ र्ह जार्नसंघषय को सहने की शऽक्त देने ऱ्ल़ भौऽतक अधर है। प्रगऽतऱ्दा कऽर् ह्ल़ॅा में अंसिओ ं की म़ल़ और ईच्छऱ्सों

नये ऽचि़ के स़थ नइ दे त़ हू ाँ भ़ष़।

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यह़ाँ कऽर् बेहतर म़नर्ाय सम़ज बऩने के प्रऽत सऽक्रय है और ऄपने ऄऽधक़रों के प्रऽत ईसकी यह म़नर्ाय ज़यज Page 133


आयम्ब ई-ऩत्रिका 2014-15 म़ंग है। ईनक़ सौन्दयय बोध केर्ल दऽलत जार्न से ईबरने में हा नहीं है, बऽल्क जार्न के यथ़थय पक्ष के ऽनकट ज़ने में है। आसा क़रण आस सऽक्रय सौंदयय बोध की एक स़म़ऽजक ईपयोऽगत़ भा है। क़व्य के संदभय में र्हा सौन्दयय ऱ्दा दृऽष्ट

आस प्रक़र प्रगऽतऱ्दा क़व्य की मिख्य ऽर्शेषत़ है, ऽनम्न एर्ं मध्यर्गय के जार्न एर्ं सम़ज क़ यथ़थय ऽचि़ण और सम़नत़ऱ्दा अदशों पर नीतन सम़ज रचऩ के ऽलए क्ऱंऽत क़ अह्ऩन। यद्यऽप ऄन्य यिगों में भा दान-हान दऽलत र्गय

ईपयोगा भा है, जो सम़ज को ईन्नयन की ओर ऄग्रसर करे । आसऽलए ईनकी कऽर्त़ जार्न को बदलने की चेतऩ प्रद़न करता है र् मनिष्य को उपर ईठ़ता है। तभा प्रगऽतऱ्दा

की समस्य़ओं क़ क़व्य में ईनक़ ऽचिण हु अ है, ऽकन्ति आनक़ आतऩ सीक्ष्म ऄध्ययन एर्ं क़व्य में ईनक़ ऽर्शद ऽचि़ण ऄन्य यिगों के क़व्य में नहीं हु अ। कल्पऩ के स्थ़न

म़नर् पररर्तय न च़हत़ हैं सम़ज में पिै ले भेद-भ़र् की

पर यथ़थय की किरूपत़, पल़यन के स्थ़न पर संघषय और

दाऱ्र को ऽगऱकर एक नर्ान समत़ऱ्दा भर्न क़ ऽनम़य ण

क्ऱंऽत, ऩरा की सम़नत़, स़हस और शऽक्त, अऽथय क

करऩ च़हते हैं-

सम़नत़, अस्थ़हान म़नर् के स्थ़न पर संघषय रत अस्थ़ऱ्न म़नर् में सौंदयय ढी ं ढने क़ प्रयत्न प्रगऽतऱ्ऽदयों

फ्च़हत़ हू ाँ ध्र्ंस कर दे ऩ ऽर्षमत़ की कह़ना हो सिलभ सबको जगत में र्ह्ल़ भोजन ऄन्न प़ना

ने ऽकय़ है, जो ह़ऽशए के सम़ज को केन्द्र में ल़ने की ईनकी क़यय ऱ्हा हैं

नर् भर्न ऽनम़य ण ऽहत में जजय ररत प्ऱचानत़ क़

सौंदयय की बदलता कसौटा

गढ़ ढह़त़ रह़ हू ाँ पर तिम्हें भील़ नहीं हू ाँ।

प्रगऽतऱ्ऽदयों ने जार्न की ‘किरूपत़ऻ को दे ख़ र्े ईसकी मऽलनत़ में हा सौंदय़य न्र्ेषण कर ले ते हैं। प्रे मचंद ने कह़ थ़ फ्हमें सिंदरत़ की कसौटा बदलना होगा। ऄभा तक यह कसौटा ऄमारा और ऽर्ल़ऽसत़ के ढं ग की थाय अगे र्े ऽलखते हैं ि​िपऱ्स और नग्नत़ में भा सौंदयय क़ ऄऽस्तत्र्

प्रगऽतऱ्दा म़नर् आस प्रक़र ऄभ़र्ों, भेदभ़र्, शोषण अऽद को ऽमट़कर संघषय करते हु ए सतत ऽर्क़स के ऽलए प्रयत्नशाल है। ऄघ़तों को सहकर भा अगे बढ़ने के ऽलए कहत़ है, क्योंऽक अघ़त के ब़द संभलऩ हा चेतऩ क़ प्रताक है यहा प्रगऽतऱ्दा सौंदयय है। क़व्य ऽशल्प के स्र्ाकु त ईपम़नों को भा प्रगऽतयिगान कऽर् जनऱ्दा संस्कु ऽत के प्रऽतकील म़नत़ है। ऄतः ईसे परं पऱगत ईपम़नों के प्रयोग की ऄपेक्ष़ ऐसे ईपम़नों क़ प्रयोग ऽकय़ है जो शोऽषतों के जार्न से संबंऽधत है, य़ ऽजनसे मध्य एर्ं ऽनम्नर्गय के जार्न और पींजाऱ्दा र्गय के ऽर्ल़सा जार्न क़ ऄन्तर स्पष्ट ऽचऽित होत़ है जैसे ल़लटेन शोऽषत क़ और ‘ऽबजला क़ बल्बऻ शोषकों क़ प्रताक है और नगरों की सड़कों पर ऽबजला के बल्ब लहू की बीाँदों से ल़ल-ल़ल ऽदख़इ देते है। त़त्पयय यह है ऽक प्रगऽतयिगान क़व्य क़ सौन्दयय बोध परम्पऱ से ऽभन्न जार्न के यथ़थय क़ बोध है। आसमें कल्पऩ की सीक्ष्मतर ईपम़ओं और शब्द-प्रयोगों की ऄपेक्ष़ दैऽनक जार्न की ईपम़ओं और बोलच़ल के शब्दों के प्रयोग से नए भ़र् प्रकट हु ए हैं। ऄंतर्य स्ति को नए रूप में रख़ गय़ है, जो जन-स़धरण के ऄऽधक ऽनकट है। arambh.co.in

संभर् है, आसे कद़ऽचत र्ह ;प्ऱचान कल़क़रद्च स्र्ाक़र नहीं करत़, ईसके ऽलए सौंदयय सिंदर ह्ल़ॅा में हैं- ईस बच्चेऱ्ला गराब रूप रऽहत ह्ल़ॅा में नहीं जो बच्चे को खे त की में ड पर सिल़ए पसाऩ बह़ रहा है“ पर यह संकीणय दृऽष्ट क़ दोष है। ऄगर ईस सौन्दयय दे खने ऱ्ला दृऽष्ट में ऽर्स्तुऽत अ ज़य तो र्ह देखेग़ ऽक आन मिरझ़ए हु ए ओठों और किम्हल़ये हु ए ग़लों के अंसिओ ं में त्य़ग, श्रम और कष्ट-सऽहष्णित़ है।य स्पष्ट रूप से प्रगऽतऱ्दा ऽचंतक की दृऽष्ट में सिंदर र्हा है जो ‘‘ऽशर्‛ भा है। आस प्रक़र, स्पष्ट हो ज़त़ है, ऽक सौंदयय ऽचन्तन के आऽतह़स में प्रगऽतऱ्द क़ स्थ़न ऄग्रणा है। प्रगऽतऱ्दा सच्चे ऄथों में जन कऽर् है। ईनकी कऽर्त़ ने सम़ज में व्य़प्त ऽर्द्रीपत़ को हा ऄऩर्ुत्त नहीं ऽकय़, र्रन भ्रष्ट व्यर्स्थ़ के प्रऽत ऽर्द्रोह भ़र् भा व्यक्त ऽकए हैं। प्रगऽतऱ्द ने सौंदयय के स्थ़ऽपत ढ़ंचे को ढह़कर नए सौंदयय म़नक तैय़र ऽकए ऽजसके द्ऱऱ सम़ज में व्य़पक दृऽष्ट पररर्तय न हु अ। ईनकी यहा प्रगऽतऱ्दा दृऽष्ट ईत्तरोत्तर ईन्नऽत क़ म़गय प्रशस्त Page 134


आयम्ब ई-ऩत्रिका 2014-15 करता है। ऄतः सौंदयय परक दृऽष्ट र्हा है, जो जार्न की चिनौऽतयों को स्र्ाक़र करता है। संदभय ग्रंथ सीचा १. प्रगऽतऱ्दा क़व्य – श्रा ईमे शचन्द्र ऽमश्र, प्रक़शक – ग्रंथम, ऱमब़ग, क़नपिर २. अधिऽनक ऽहन्दा कऽर्त़ में प्रे म और सौंदयय , डॉ . ऱमे श्वरल़ल खण्डे लऱ्ल, नेशनल पऽब्लऽशंग ह़ईस ३. स़ऽहत्य क़ ईद्ङे श्य – प्रे मचंद ४. प्रगऽतऱ्दा कऽर्त़ में प्रकु ऽत प्रे म और सौंदयय – डॉ . हाऱल़ल शम़य ५. अधिऽनक ऽहन्दा क़व्य में सम़ज – डॉ . ग़यि़ॅा र्ैश्य – रं जन प्रक़शन ६. छ़य़ऱ्दोत्तर क़व्य – प्रर्ुऽत्तय़ाँ – डॉ . टा.एन. मिरला कु ष्णम्म़, ऱ्णा प्रक़शन ७. छ़य़ऱ्दोत्तर ऽहन्दा क़व्य बदलते म़नदण्ड एर्ं स्र्रूप ;सन १९३६-१९६० तकद्च, ड़. कौशलऩथ ईप़ध्य़य, प्रक़शक ऱजस्थ़ना ग्रन्थ़ग़र, जोधपिर ८. र्ररम़: शोध पऽिक़ म़नऽर्की एर्ं स़ऽहत्य – ऄक्टी बर २०११, ऄंक २ केद़रऩथ ऄग्रऱ्ल: श्रम, सौन्दयय और संघषय क़ कऽर् ९. ऽहन्दा की प्रगऽतऱ्दा कऽर्त़ – सिरेन्द्र प्रस़द १०. ऽहन्दा की म़क्सय ऱ्दकऽर्त़ – डॉ . सम्पत ;ठ़किरद्च, प्रगऽत प्रक़शन, अगऱ-३

साधना सैनी शोधार्थी , हद.हि.हि.

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आयम्ब ई-ऩत्रिका 2014-15

जनम़नस के ऽमथक को तोड़त़ ईपन्य़स: कैकेया: चेतऩ ऽशख़ ( ळोधऩि)(चौथा अॊक) कैकेया, स़ऽहत्य के पुष्ठों में दब़ एक ऐस़ चररि ऽजसक़ ऩम सिन स़म़न्य जन की भुकिऽट तऽनक तन ज़ता है। कै केया एक सत्त़लोलिप मह़ऱना ऽजसने एक द़सा की ब़त म़न ऄपने प्ऱणों से ऽप्रय पि​ि को चैदह र्षय क़ र्नऱ्स दे ऽद य़, ऽजस ऱना ने ऄपना ज़न परखे ल कर दो र्र प्ऱप्त ऽकये थे, ईनक़ दिरूपयोग कर ऱज़ दशरथ की मुत्यि क़ क़रण बना, ऐसा हा ध़रण़एं अमजन के मऽस्तष्क में कैकेया के ऽलए हज़रों र्षो से दबा पड़ा है, यह़ं तक की अम जन– जार्न में ग़ए ज़ने ऱ्ले भजनों में कह़ ज़त़ है ऽक ‗कैके या तिमनेजिलम कर ड़ल़, र्न को भेज ऽदए रघिऱइ’। ऄथ़य त हर दृऽष्ट से ऱम के र्न ज़ने के क़रण के रूप कैकेया को ऽलय़ ज़त़ है। हज़रों र्षोंसे जन म़नस में व्य़प्त आस ऽमथक को तोड़ने के ऽलए कऩड़ ऽनऱ्सा भ़रताय स्नेह ठ़किर ने कैकेया पर पय़य प्त शोध कर कैकेया: चेतऩऽशख़ ईपन्य़स

ल करने क़ प्रयत्न ऽकय़। र्ह चररि है कैकेया क़, स्नेह ठ़किर ने कैकेया के चररि को ईपन्य़स में ढ़ल़, स़थ हा कैकेया पर आनके दो शोध प्रबंध भा प्रक़ऽशत होचिके है। स्ने ह ठ़किर ऄपने कैकेया ईपन्य़स में , कैकेया के चररि पर प्र क़श ड़लते हु ए, आस ईपन्य़स के प्ऱक्कथन के प्ऱरम्भ में ऽलखता है‘कैकेया क़ चररि लम्बे समय सेऽर्ऱ्दों के घेरे में रह़ है। प्ऱ यः ईसे सत्त़लोलिप, पि​ि– मोहा, षड् यंि रचने ऱ्ला ऩरा के रूप में ज़ऩ ज़त़ है ऽज सके किचक्र रचने के दिष्पररण़म की पररऽध में दशरथ कीमु त्यि, ऱम र्न गमन, सात़ हरण तथ़ लंक़ क़ ध्र्ंस तक अ ते हैं। र्हा दीसरा ओर ऐसा ऽर्च़रध़ऱ भा ऽर्द्यम़न है ऽक ए क ऄदृश्य सत्त़ ऱक्षसों के अतंक से जन स़म़न्यकी मिऽक्त तथ़ ऊऽषयों क़ पररि़ण च़हता था ऽजसे ज़नने और समझ ने के ऽलए तथ़ ईस ऱक्षसा सत्त़ के ऽर्ऩश के ऽलए ऱम क़ र्न गमन अर्श्यक थ़ एर्ं आसऄपररह़यय त़ में एक भीऽमक़ कैकेया की था जो ऱम के ऄर्तरण के महनाय ईद्ङे श्य की पीऽतय करता है। यह दस ी रा ऽर्च़रध़ऱ कैकेया पर दोष़रोपण नहीं करता।’1

ऽलख़, ऽजसमें ईन्होंने आस ऽमथक को तोड़ने क़ प्रय़स ऽक

कैकेया ईपन्य़स ऽलखने से पीर्य स्नेह ठ़किर ऄपने शोध में

य़ है ऽक कैकेया सत्त़लोलिप मह़ऱना ऩ होकर स्नेहमया

प़ता है ऽक कैकेया एक ममत़मया म़ाँ होने के स़थ–

म़त़ हा था जो ऱम को सबसे ऄऽधक प्रे म करता था।

स़थ एक र्ाऱंगऩ मह़ऱना भा था, ईनमें ऄच़नक आतनेब

स्नेह ठ़किर प्रऱ्सा ऽहंदा स़ऽहत्य के प्रमिख स़ऽहत्यक़रों में ऽगना ज़ता है। ‗द सन्डे आंऽडयंस’ द्ऱऱ ऽहंदा की 25 श्रेष्ठ प्र ऱ्सा मऽहल़ले ऽखक़ओं में चयऽनत श्रामता स्नेह ठ़किर र्तय म़न में कऩड़ में रहता है। आन्होंने स़ऽहत्य की हर ऽर्ध़ में रचऩ की है ऽकन्ति आनकी स़ऽहऽत्यक कीऽतय क़ अध़र आन क़ईपन्य़स ‗कैकेया: चेतऩ ऽशख़’ है। स़ऽहत्य ऄक़दमा, मध्यप्रदे श संस्कु ऽत पररषद् भोप़ल ने र्षय 2012 के ऽलए अ पकी आस कु ऽत को र्ारऽसंह दे र् पिरस्क़र से नऱ्ज़ है।

दल़र् कैसे अ गए ऽक र्े ऄपने ऽप्रय ऱम को र्नऱ्स दे बैठा , ईनकी ऐसा मनोदश़ के ब़रे में ऽर्च़र कर र्े ऽलखता है– ‘आन्स़न पररऽस्थऽतयों र्श च़हे ऽकतऩ भा बदलज़ये पर क्य़ ऽकसा भा व्यऽक्त के नैसऽगय क गिणों में , च़हे कैसा भा प ररऽस्थऽत क्यों न हो, क्य़ आतऩ अक़श प़त़ल क़ ऄंतर अ सकत़ है ?‘2 र्े अगे ऽलखता है ‗कैकेयाके चररि को ई सके जार्न में घऽटत केर्ल किछ दृष्ट़न्तों के झरोखों से न हीं झ़ाँक़ ज़ऩ च़ऽहए, र्रन ईसके जार्न को ईसकी सम्पी णय त़ में दे खऩ होग़ ऱ्स्तर् में दे ख़ ज़येतो कैकेया के एक

ऄपना संस्कु ऽत से जिड़ें स़ऽहत्यक़रों में स्नेह ठ़किर क़ ऩ

हा कु त्य ने ईसके जार्न भर के सिकुत्यों को धो–

म ऄन्यतम है। आन्होंने भ़रत के अऽदक़व्य कहें ज़ने ऱ्ले

पोंछकर ईसकी ऽजंदगा की स्ले ट से ईन्हें ऽमट़ ऽदय़ थ़।‘ 3

ग्रंथ से एक चररि को ईठ़य़ और धीऽमल हु इ कीऽतय को ईजजर् arambh.co.in

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आयम्ब ई-ऩत्रिका 2014-15 कैकेया के चररि के ऽर्षय में एक अम ध़रण़ बन गइ ऽक

नोभ़र्ों में श्राऱम के प्रऽत ईनक़ ऱ्त्सल्य, ईनक़ स्नेह हा

र्ह भरत के प्रे म में ऱम के स़थ ऄन्य़य कर गइ ऽकन्ति आस

झलकत़ हैऺ; ईदाप्त हो स्नेह ऽसक्त ऱ्त्सल्यत़ हा प्रदाप्त होता

होना में कैकया एक ऽनऽमत्त म़ि था, आसा ब़त कोस्नेह ठ़

है।6 तो ऽिर क्य़ क़रण थ़ ऽक केकैया में आतऩबदल़र् अ

किर ने ऄपने ईपन्य़स में सशक्त ढं ग से ईभऱ है। ईनक़ यह

गय़ और र्े ऄपने ऽप्रय ऱम को र्नऱ्स दे बैठा र्ह भा चैदह

ईपन्य़स म़ि कल्पऩ ऄथऱ् ऽमथक पर अध़ररत नहीं ब

बरस क़, क्य़ ऐस़ संभर् है! क्य़ कोइ भा चररि ममत़

ऽल्क आस ऽर्षय पर ईन्होंने पय़य प्त शोध भाऽकये है

की सौम्य प्रऽतमीऽतय से यक़यक पलट करकिऽटलत़ के प्ऱंग

। ऄपना शोध के संदभों के अध़र पर र्ह ऽलखता है ‗ऄने

ण में ऽर्ध्र्ंस की चण्ड़ऽलक़ क़ रूप ध़रण कर सकत़ है !

कों सन्दभों द्ऱऱ ऱ्ल्माऽक र् तिलसाकु त ग्रंथों में तथ़ ऄन्य

क्य़ ऽजसे जन्म से हा स्नेऽहल गोद में प़ल़–

ऱम कथ़ ग्रंथों में , मह़ऱना कैकेया के चररिकी मह़नत़,

पोस़, ईस पर अाँचल क़ संरक्षण ड़ल बड़​़ ऽकय़,ईसकी ए

ऽर्श़लत़ ईभर कर स़मने अइ है, ईज़गर हु इ है। जह़ं कैके

क मधिर मिस्क़न पर ब़र–

या की भत्सऩय की गइ है र्हा ईसके असप़स के श्लोकों,

ब़र न्योछ़र्र हु इ, र्हा कैकेया ईसा ऱम को ऽबऩ ऽकसा दो

दोहों, चैप़आयों को ध्य़नपीर्यक मनन करनेसे कैकेया के गि

ष के, ऽबऩ ऽकसा ऄपऱध के आतऩ बड़​़ दण्ड दे सकता है।

ण भा पररलऽक्षत होते हैं, ईसके पीर्यक़ऽलक सत्कमों क़ स़ं

7 यऽद हम स़ऽहत्यके पुष्ठ पलटें तो एक नय़ तथ्य ईभर क

केऽतक र्णय न य़ व्य़ख्य़ भा दृऽष्टगत होता हैं।4 कैकेया के ममत़–

र स़मने अएग़। कैकेया में आतऩ बड़​़ बदल़र् कैसे अय़ आ

रूपा म़नर्ाय पक्ष की दिबयलत़कहीं भा दृऽष्टगोचर नहीं होता

दे र्त़ म़ाँसरस्र्ता से ऄनिरोध करते हंॅै ऽक र्े ऄयोध्य़पिरा

ऽक र्ह पि​ि की ममत़ में ऄंधा हो, ल़लच में डी ब कर, मंथऱ

ज़ये और ऱम के ऱजय़ऽभषेक में ऽर्घ्न ईत्पन्न करें –

स की पिऽष्ट ऄध्य़त्म ऱम़यण के श्लोक से हो ज़ता है जह़ं

जैसा मंदबिऽद्च, किबिऽद्च की सोच के स्तर पर ईतर अए, मंथ ऱ द़सा था। कहीं भाईसके चररि को बिऽद्चमत्त़पीणय नहीं दश़य य़ गय़ है, जबऽक कैकेया को ऽर्दिषा, बिऽद्चमता, शह्ल और

एतऽस्मन्नन्तरे दे ऱ् दे र्ीं ऱ्णामचोदयन्। गच्छ दे ऽर् भिर्ो लोकमयोध्य़य़ं प्रयत्नतः।।

श़ह्ल की ज्ञ़त़, शऽक्तसम्पन्ऩ, र्ाऱंगऩ म़ऩ गय़ है। ऄ तः एक द़सा कीसल़ह पर कैकेया द्ऱऱ आतऩ बड़​़ ऽनणय य

(ऄध्य़त्म ऱम़यण, ऄयोध्य़क़ण्ड, ऽद्रताय सगय )

ले ऩ ईऽचत य़ संभर् प्रतात नहीं होत़।5 ऱ्ल्माऽक ऱम़यण

आसा समय दे र्त़ओं ने सरस्र्ता से अग्रह ऽकय़ ऽक ‗हे दे ऽर्

के एक श्लोक में कैकेया कहता है –

! तिम यत्नपीर्यक भीलोक में ऄयोध्य़पिरा में ज़ओ।

यथ़ र्ै भरतो म़न्यस्तथ़ भीयोऻऽप ऱघर्ः।

ऱम़ऽभषेकऽर्घ्ऩथां यतस्र् ब्रह्मऱ्क्यतः।

कौसल्य़तोऻऽतररक्तं च मम शिश्रषी ते बहु ।।

मंथऱं प्रऽर्शस्ऱ्दौ कैकेया च ततः परम्।।

(श्रामद्ऱल्माऽकयऱम़यणे –ऄयोध्य़क़ण्डे ऄष्टमः सगय ः)

(ऄध्य़त्म ऱम़यण, ऄयोध्य़क़ण्ड, ऽद्रताय सगय )

‗मे रे ऽलए जैसे भरत अदर के प़ि है, र्ैसे हा बऽल्क ईनसे ब

र्ह़ं ब्रह्म़जा की अज्ञ़ से ऱमचन्द्रजा के ऱजय़ऽभषेक में ऽर्

ढ़कर श्राऱम है; क्योंऽक र्े कौशल्य़ से भा बढ़कर मे रा सेऱ्

घ्न ईपऽस्थत करने के ऽलए यत्न करो। प्रथम तो तिम मंथऱ

ऽकय़ करते हैं’। मह़ऱना कैकेया के ईपरोक्त र्चनोंमें कहीं

में प्रर्ेश करऩ और ऽिर कैकेया में ।8

भा किऽटलत़ क़ अभ़स म़ि भा नहीं ऽमलत़। श्राऱम के प्र ऽत ईनके ईद्ग़रों में मनोम़ऽलन्य क़ ले श–

तिलसा ने भा ऱमचररतम़नस में ऽलख़ है–

म़ि भा नहीं ऽदखत़, बऽल्क ईनके द्ऱऱ प्रकट ऽकये गएम arambh.co.in

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आयम्ब ई-ऩत्रिका 2014-15 ऽबपऽत हम़रर ऽबलोऽक बऽड़ म़ति कररऄ सोआ अजि। ऱमि ज़ऽहं बन ऱजि तऽज होआ सकल सिरक़जी।। (ऱमचररतम़नस, ऄयोध्य़क़ण्ड–दोह़ 11) हे म़त़! हम़रा ऽर्पऽत्त को दे खकर अज र्हा कीऽजए ऽजस से श्रा ऱमचन्द्रजा ऱजय त्य़गकर र्न को चले ज़एं और दे र् त़ओं क़ सब क़यय ऽसद्च हो।9

ऱ्स्तर् में न केर्ल संपण ी य भीमण्डल रूपा पि​ि के जार्न को सिध़रने के ऽलए, ईसके कल्य़ण के ऽलए आहलौऽकक सम़ज के ऽलए र् परम़थय के ऽलए हा नहीं र्रन दे ख़ ज़ये तोतानों लोकों को हा अतंकरऽहत बऩने के ऽलए कैकेया ने कल्य़ णमया िैलोकी म़त़ क़ रूप ध़रण कर ऄपऩ सब किछ प ऽत, पि​ि, यश, सिख– चैन, सभा किछ न्योछ़र्र करऽदय़। यह त्य़ग की पऱक़ष्ठ़ है य़ नहीं। जनकल्य़ण की होम़ऽग्न में ऄपऩ सब किछ

स्पष्ट है ऽक ऱम को र्नऱ्स भेजऩ कैकेया क़ ध्येय नहीं

स्ऱ्ह़ कर भस्माभीत करने के ब़द भा कैकेया को ऽमला ऽस

थ़ और न हा सत्त़ की च़ह य़ पि​ि मोह में ईस मह़ऱना ने

िय प्रत़ड़ऩ। दे र्त़ओं कीऽसऽद्च हे ति किब़य न होने ऱ्ला कैके

ऐस़ ऽकय़ बऽल्क यह सब आस धऱ को अतंक से मिक्तकरने

या के ऽसर म़थे पर, यह़ं तक की ऱम की हा मनोक़मऩ पी

की प्रऽक्रय़ की रचऩ म़ि था और आसमे एक हे ति बना कै

णय करने ऱ्ला कैकेया के ऽसर–

केया। र्ह कैकेया जो प्रत्यित्पन्नमऽत एर्ं शऽक्तमय थीं। मह़

म़थे पर हमने जो ऄपयश की ऽपट़रा रखा ऽिरईस तरि मि

ऱना कैकेया बिऽद्चम़न भा थीं और ऄऽत सिंदर भा।बिऽद्च और

ड़कर दोब़ऱ दे खने की कोइ अर्श्यकत़ हा नहीं समझा।

सौंदयय के ऄपीर्य स़मंजस्य की ऄद्भित स्ऱ्ऽमना थीं र्े। जह़ं ए

और–तो–और कह़र्त के रूप में कैकेया को सुऽष्ट में यिग–

क ओर ईनके चेहरे की ऽह्लयोऽचत कोमलत़ र् कमनायत़

यिग़ंतर तक सऱ्य ऽधक ऽनम्न कोऽट कीईपेऽक्षत किम़त़ स्र्

क़मदे र् की रऽत को म़त दे ता था र्हींदीसरा ओर यिद्च के प्ऱं

रुप घोऽषत कर प्रचऽलत कर ऽदय़। एक ममत़मया म़ाँ के

गण में यह र्ाऱंगऩ रण–चण्डा रूप ध़रण ऽकए बड़े –

स़थ ये कैस़ न्य़य ?12

बड़े योद्च़ओं के छक्के छिड़​़ने की, ईन्हें धऱश़या करने क़ स़मथ्र्य रखता थीं। जह़ं एक ओरकोमल–रृदय़ भा। ऄह्ल– शह्ल में ऽनपिण, यिद्च–कौशल में प़रं गत, रण– क्षेि में पऱक्रमा, र्ारत़ की प्रऽतमीऽतय थीं र्े। कोमलत़ और र्ारत़ क़ ऄऽद्रताय सऽम्मश्रण, ऽनिय कीऄटल, प़ष़ण– सा दृढ़ा।10 र्े कैकेया हा हो सकता था जो ऱम को र्न ज़ने क़ अदे श दे सकता था। आसऽलए होना ने ईन्हें हा ऽनऽमत्त बऩय़। र्न गमन के प्रत्येक चरण में ऱम एक अदशय पिरुष ऽसद्चहु ए है। यऽद कैकेया ने ईन्हें र्नऱ्स न ऽदल़य़ होत़ तो हर दृऽष्ट से यह अदशय ऽकसा भा तरह आतऩ ईभर कर स़मने न अत़। कैकेया ऱम कथ़ क़ अध़र स्तम्भ है,कैकेया न होता तो ऱम कथ़ भा आस पीणय रूप में ईज़गर न होता। और केर्ल ऱ म चररि हा क्यों, यऽद ऱम र्नऱ्स न होत़ तो दशरथ, कौ शल्य़, सिऽमि़, म़ंडर्ा, श्रितकीऽतय ,भरत, लक्ष्मण, शि​िघ्न ,जै

दे ख़ ज़ए तो श्राऱम के ऄर्तरण के ऽनऽहत़थय की पीऽतय हा कैकेया क़ ध्येय है। ऽनऽहत़थय कइ हैं। एक ऽनऽहत़थय धमय की पिनस्र्थ़पऩ भा है। धमय की ऄधमय पर ऽर्जय,दे र्त़ओं एर्ं ऊ ऽषयों के रक्ष़थय ऱक्षस र् ऱक्षसऱज ऱर्ण र्ध हे ति ऱम़र्त़र , ऱम के इश्वरत्र् को स्थ़ऽपत करते हु ए कैकेया को दोष मि क्त करऩ, कैकेयाः चेतऩ ऽशख़ईपन्य़स क़ ऽर्षय है। कैकेया द्ऱऱ ऽदए गए र्नऱ्स ने हा श्राऱम की लोक़ऽभऱम छऽर् को च़र–च़ंद लग़ए है– ऄयोध्य़ और ईसके असप़स के क्षेिों के ब़द, ऽर्श्व़ऽमि के यज्ञ की रक्ष़ ऄर्ऽधतक जनकपिरा तक श्राऱम की जो लो क़ऽभऱम छऽर् स़मने अता है, यहा छऽर् कइ गिऩ बढ़– चढ़कर स़मने अता है। यहा छऽर् श्राऱम को लोकऩयक ऽसद्च करके तब ईन्हें ऄयोध्य़पऽत के ऽसंह़सन पर अरूढ़ क रता है।13

से चररि भा ऄपना अदशय पीणयत़ को प्ऱप्त न होते।11 arambh.co.in

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आयम्ब ई-ऩत्रिका 2014-15 कैकेया चेतऩ ऽशख़ ईपन्य़स के अध़र पर कह़ ज़ सक त़ है ऽक मह़ऱना कैकेया क़ चररि ऽर्ऽर्ध अय़मा है। ईन के आन्हीं स्र्भ़र्गत गिणों को दृऽष्टगत रखते हु एदे र्त़ओं ने भा ईनक़ हा चयन ऽकय़। कैकेया ने ऱम क़ क़यय ऽसद्च क रने के ऽलए ऄपने सर पर कलंक ढोय़। ऽजस सौभ़ग्यश़ऽल ना म़त़ ने भरत जैसे स़धि पि​ि को जन्मऽदय़ हो र् श्राऱम क़ ल़लन– प़लन ऽकय़ हो, र्ह क्य़ कलंऽकना हो सकता है! कैकेया ने जो किछ ऽकय़ दैर्– र्श ऽकय़, ऄन्यथ़ र्ह सम्पीणय रूप से ऽनमय ल मनोभ़र् की ऩरा हैं।14 संपण ी य ईपन्य़स में कैकेया की ऱम के ऽर्योग में भ़र्मय ऽचि खींच आसा छऽर् क़ ऄंकन ऽकय़ गय़ है। स्नेह ठ़किर के आस ईपन्य़स में कैकेया ममत़मया म़ं केरूप में सबके स़मने अता है जो ईसक़ ऱ्स्तऽर्क रूप थ़, जो क हीं अलोचऩओं और प्रत़ड़ऩओं में दब गय़ थ़। संदभय – 1. स्नेह ठ़किर, ऽर्नम्र ऽनर्ेदन: प्ऱक्कथन, कैकेया: चेतऩ ऽशख़, ऽद्रताय संस्करण: 2013, स्ट़र पऽब्लकेशंस, नइ ऽदल्ला,

स्िर्णलता ठन्ना , शोध–छािा (हहांदी) हिक्रम हिश्वहिद्यालय उज्जैन।

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आयम्ब ई-ऩत्रिका 2014-15

जनपक्षधरत़ के कऽर्: ब़ब़ ऩग़जय िन ( ळोधऩि)(चौथा अॊक) अधिऽनक ऽहन्दा स़ऽहत्य के प्रऽतऽनऽध कऽर् ऩग़जियन क़ कतुय त्र् ऄपऩ एक ऽर्शेष महत्र् रखत़ है। ईन्होंने जार्न के तिच्छ से तिच्छ ऄंशों और ऄनिभर्ों को कऽर्त़ में बदल़ और कऽर्त़ की भ़ष़ को बोलच़ल की भ़ष़ के नजदाक ल़य़। एक ओर र्े प्रगऽतऱ्दा एर्ं प्रगऽतशाल कऽर्त़ के ईन्ऩयक हैं। दीसरा ओर ईनके रचऩओं में अंचऽलकत़ और स़म़ऽजक यथ़थय ऱ्द के तत्र् ऽमलते हैं।

सम़ज क़ यह ऄन्तद्र्र्न्द्र ईस संघषय को गऽत एर्ं ऽदश़ दे त़ है। रचऩ और सम़ज क़ यह संघषय एक दीसरे को ईन्नऽत की ओर ले ज़त़ है। रचऩ ऄपने समय और सम़ज के सच को ईद्घ़ऽटत करता है। ऩग़जियन के रचऩ संस़र में जार्न की ऽर्ऽर्ध छऽर्यों के ऽदग्दशय न होते हैं। ऩग़जियन सम़ज से गहरे स्तर पर जिड़े हु ये कऽर् हैं। पाऽडत ऺ जनत़ के कष्टों से र्े सऱ्य ऽधक प्रभ़ऽर्त रहे हैं। सम़ज में रहकर ईन्होंने दे ख़ ऽक श्रमशाल जनत़ को भरपेट भोजन नहीं ऽमल प़ रह़ है। र्हीं दीसरा ओर पींजापऽत र्गय है जो ऐश– अऱम में ऽलप्त हैं। कम क़म और ऄऽधक अऱम यहा ईनके जार्न क़ ध्येय है। ऄभ़र्पीणय जार्न ऩग़जियन क़ खिद क़ भोग़ हु अ थ़ आसाऽलये र्े पींजापऽत र्गय पर व्यंग्य भा करते हैं।

ऩग़जियन क़ प्रगऽतशाल कऽर्यों में एक महत्र्पीणय स्थ़न है। ईन्हें जनकऽर् और जनकऽर् होने की ऽजम्मे द़रा दोनों क़ एहस़स है। र्े कहते हैं– ‘‘जनत़ मिझसे पीछ रहा है क्य़

‘‘जब र्े दे खते हैं ऽक क़ंग्रेसा नेत़ ‘ऽदल्ला से लौटे हैं कल

बतल़उाँ। जनकऽर् हू ाँ मैं स़ि कहू ाँग़, क्यों हकल़उाँ? और

तरह भ़रत में ऽब्रटेªन की ऱना के अने पर स्ऱ्गत की

ऽिर ‘जनकऽर् हू ाँ मैं क्यों च़टी ं मैं थीक तिम्ह़रा/श्रऽमकों पर

धीमध़म दे खकर ऩग़जियन ने ग़य़–अओ ऱना, हम

क्यों चलने दंी बन्दक ी तिम्ह़रा?1

ढ़ंॅेएगें प़लकी/यहा हु इ है ऱय जऱ्हरल़ल की।’’3

ऩग़जियन क़ समीच़ ले खन जन पक्षधरत़ की ब़त करत़ है र्े जनत़ की समस्य़ र् कऽठऩआयों से रूबरू थे। अमजन ईनको प्य़ऱ थ़ चींऽक र्े सम़ज की यथ़थय ऽस्थऽत को बहु त नजदाक से दे खते और परखते थे। बऩर्टापन र् च़टि क़ररत़ के र्े कट्टर ऽर्रोधा थे।

एक जगह नौटंकी के गात की और दीसरा जगह लोकगात की छौंक लग़कर ऩग़जियन ने व्यंग्य को ऄनीठा ध़र दा है। व्यंग्य की आसा ऽर्दग्धत़ ने हा ईनकी ऄनेक त़त्क़ऽलक कऽर्त़ओं को क़लजया बऩ ऽदय़ है ऽजसके क़रण र्े कभा ब़सा नहीं हु इ बऽल्क अज भा प्ऱसंऽगक बना हु इ हैं। आसाऽलये यह ऽनऽर्य ऱ्द है ऽक ‘कबार के ब़द ऽहन्दा कऽर्त़ में ऩग़जियन से बड़​़ व्यंग्यक़र ऄभा तक कोइ नहीं हु अ।’

जनकऽर् के रूप में ऩग़जियन की सबसे बड़ा ऽर्शेषत़ है कऽर्त़ के कल़त्मक सौन्दयय को बऩये रखऩ तथ़ स़थ हा ईसे सर्य सिलभ बऩ दे ऩ। जैस़ ऽक ड़ॅ​ॅं.ऱमऽर्ल़स शम़य ने कह़ है– ‘‘ऩग़जियन ने लोकऽप्रयत़ और कल़त्मक सौन्दयय के संतिलन और स़मंजस्य की समस्य़ को ऽजतना सिलत़ से हल ऽकय़ है। ईतना सिलत़ से बहु त कम कऽर्–ऽहन्दा से ऽभन्न भ़ष़ओं में भा – हल कर प़ये हैं।’’2 ऩग़जियन की कऽर्त़ की भ़ष़ अमजन के समझ की भ़ष़ है र्े ईपम़ भा ऄपने अस–प़स की र्स्तिओ ं से हा दे ते हैं। ऩग़जियन ऽहन्दा के शाषय स्थ रचऩक़र हैं चींऽक रचऩ जार्न की कल़त्मक ऄऽभव्यऽक्त होने के स़थ हा स़थ सम़ज की संघषय शाल र्गय चेतऩ की ऄऽभव्यऽक्त भा होता है। रचऩ और arambh.co.in

ऽटकट म़र के/ऽखले हैं द़ंत जयों द़ने ऄऩर के’ तो ऩग़जियन अए ऽदन बह़र के ग़ते हु ए ऩचने लगते हैं आसा

ऩग़जियन श्रमशाल सौन्दयय के सच्चे प़रखा थे। ईन्होंने ऄपने ब़रे में भा कइ कऽर्त़यें ऽलखा हैं। र्े ऐसा कऽर्त़एॅ​ॅं हंॅै ऽजनमें कऽर् ने बड़े इम़नद़रा के स़थ ऄपना दिबयलत़ओं ऄपना व्यथ़ और ऽनष्ठ़ को ऱ्णा प्रद़न ऽकय़ है। आस दृऽष्ट से ‘ऽखचड़ा ऽर्प्लर् दे ख़ हमने कऽर्त़ संग्रह की आन सल़खों से ऽटक़कर भ़ल व्यऽक्त चऽकत भ्रऽमत भग्न मन और प्रऽतबद्च हू ाँ शाषय क कऽर्त़एाँ ऽर्शेष रूप से ईल्ले खनाय हैं। ऽजसमें कऽर् ने अत्म–भत्र्सऩ की है। ‗‗व्यऽक्तगत दिख पर न रूककर र्े ब़र–ब़र व्य़पक दिख पर प्रक़श ड़लते हैं। और यहा सच्चे कऽर् की पहच़न है। Page 140


आयम्ब ई-ऩत्रिका 2014-15 ऄतः धरता, जनत़ और श्रम के गात ग़ने ऱ्ले आस यिग के संर्ेदनशाल कऽर्यों में ऩग़जियन क़ ऩम सदैर् ऄमर रहे ग़।4 प्रगऽतऱ्दा ऽर्च़रध़ऱ के ऄनिरूप ऩग़जियन के क़व्य में पाऽडत ऺ र्गय के प्रऽत बड़ा ऽनिल संर्ेदऩ व्यक्त हु इ है। ईन्होंने दे श में ऄभ़र् हा ऄभ़र् दे खकर ‘ख़ला नहीं और

ऩग़जियन सम़ज में अडम्बरों र् रूऽढगत सम़ज ऽर्रोधा ऺ परम्पऱओं पर भा जमकर ऽर्रोध जत़य़ है तथ़ ईसके सच को जनत़ के स़मने रखने क़ प्रय़स ऽकय़ है। ईनक़ म़नऩ है ऽक ढोंग ठगने के ऽलए हा ऽकय़ ज़त़ है। ‘‘चैऱहे के ईस निक्कड़ पर/क़ंटों क़ ऽर्स्तर ऽर्छ़कर, स़धि सोय़ द़ढ़ा ऱ्ल़, शर–शय्य़ पर ऽचत लेट़ थ़/दशय क पैसे

ख़ला’ कऽर्त़ में मक़न, दिक़न, स्कील, रेन सबको ख़ला नहीं बत़कर ऽलख़ है।

िेंक रहे थे।/श्रद्च़ क़ ऽतकड़म से ऩत़/जय हे ऽभक्षिक जय हे

‗‗ख़ला है ह़थ ख़ला है पेट / ख़ला है थ़ला ख़ला है

ऩग़जियन को यह बोध थ़ ऽक जनत़ की ह़लत में सिध़र करऩ है तो ईसे बौऽद्चक जड़त़ से ऽनक़लऩ

प्ले ट।’’5 ऩग़जियन की ऽचन्त़ है ऽक यह कैस़ समय अ गय़ है जो ख़ला होने च़ऽहये र्े भरे हु ए हैं और जो भरे होने च़ऽहये र्े ख़ला हैं यह कैसा ऽर्षमत़ है आसे हर ह़ल में ऽमट़ऩ है। र्े प्रत्येक क्षेि में सम़ज के ऽर्ऽभन्न र्गों की व्य़पक भ़गाद़रा च़हते हैं ऽजससे सम़ज में जो ऄसम़नत़ व्य़प्त है ईसक़ ऽनऱकरण संभर् हो सके। जनत़ को शोषण ऄनेक प्रक़र से हो रह़ है कहीं धमय के ऩम पर तो कहीं स़म़ऽजक व्यर्स्थ़ के म़ध्यम से। ऩग़जियन की ऽचंत़ है ऽक ईसे कैस़ रोक़ ज़ सके ईसके रोकने के ऽलए र्े एक स़थय क ईप़य सिझ़ते हैं। ऩग़जियन सम़ज में ऱजनाऽत की ईपऽस्थऽत की साम़ को बतल़ते हैं। जो क़व्य ईपयोऽगत़ और स़म़ऽजक महत्त़ के प्रश्न क़ सम़ध़न करत़ है र्हा सिन्दर है स़थय क है ’’क्योंऽक स़ऽहत्यक़र ऱजनाऽतकों से बहु त उाँच़ होत़ है सम़ज के ऽनम़य ण और ईत्थ़न में ईसक़ महत्र्पीणय योगद़न रहत़ है। स़ऽहत्यक़र को च़ऽहये ऽक र्ह ऄपना आस ऽजम्मे द़रा को समझकर हा स़ऽहत्य में प्रर्ुत्त हो’’।6 ऩग़जियन ने आस ऽजम्मे द़रा को समझ़ और ऄंत तक आसकी स़थय कत़ ऽसद्च करने क़ प्रय़स करते रहे । स़ऽहत्य को सम़ज की ऽनऽमय ऽत क़ एक प्रमिख क़रक म़नते रहे । एक स्र्च्छ र् प़रदशी सम़ज को गढ़ने में स़ऽहत्य की महता भीऽमक़ होता है क्योंऽक स़ऽहत्य सम़ज को जाने क़ ढं ग ऽसख़ता है र्ह ईसक़ म़गय दशय न करता है। मनिष्य को संस्क़रऱ्न बऩने क़ क़यय स़ऽहत्य क़ है क्योंऽक स़ऽहत्य मनिष्य के ऄऽस्मत़ की पहच़न कऱता है ईसे मनिष्य होने के बोध क़ एहस़स ऽदल़ता है। arambh.co.in

द़त़।‘‘7

होग़, ऱजनाऽत की ऱ्स्तऽर्क पररभ़ष़ समझने में सह़यत़ दे ना होगा। संघषय में ईतरने के ऽलये तैय़र करऩ पड़े ग़। आसके ऽलये जनत़ के स़थ सहभ़ऽगत़ की अर्श्यकत़ है। ऄपना आसा ऽजम्मे द़रा को ऽनभ़ने में ऱजनाऽतक कऽर्त़ओं की भीऽमक़ को ऄच्छा तरह पहच़नकर हा ऩग़जियन ने ऄन्य़य, दमन, शोषण क़ ऽर्रोध करने के ऽलये ईनक़ ईपयोग ऽकय़ है। ऽजस कऽर् क़ जनत़ से दरी क़ ऩत़ हो, सत्त़ के स़थ ऄपना पकड़ को हा सच्चा क्ऱऽन्तक़ररत़ म़नत़ हो, र्ह स़ध़रण जनत़ के जार्न की घिटन और संघषय को नहीं समझ सकत़ ऽक जनत़ की ये समस्य़एाँ और संघषय ईसा ऄन्य़य दमन और शोषण क़ प्रऽतिल हैं ऽजसके ऽखल़ि कटि त़ ऩग़जियन के क़व्य में भरा पड़ा है। ऩग़जियन ऄपने आस भ़र् को प्रऽतऽहंस़ कहते हैं। अच़यय शिक्ल कहते हैं – ―जो ऽकसा प्ऱणा के कष्ट–व्यंजक रूप और चेष्ट़ पर करूण़द्रय नहीं होत़ जो ऽकसा पर ऽनष्ठु र ऄत्य़च़र होते दे ख क्रोध से नहीं ऽतलऽमल़त़, ईसमें क़व्य क़ सच्च़ प्रभ़र् ग्रहण करने की क्षमत़ नहीं हो सकता।‚8 ऩग़जियन सच्चे कऽर् होने क़ ऄथय और ऄपना जब़र्दे हा को भला भ़ंऽत समझते हैं। र्े जनत़ पर ऄत्य़च़र दे खकर ऽतलऽमल़ ईठते हैं ईसके प्रऽतक़र के ऽलये जनत़ को ज़गरूक और संगऽठत करने के ऽलये बैचेन हो ईठते हैं। ईनमें लोकरक्ष़ क़ सच्च़ भ़र् ऽनऽहत है। दे श के मजदरी ों और ऽकस़नों की ऽस्थऽत क़ ऱ्स्तऽर्क ऄंकन कऽर् ने ऽकय़ है। Page 141


आयम्ब ई-ऩत्रिका 2014-15 ‘‘बाज नहीं है, बैल नहीं है, बरख़ ऽबन ऄकिल़ते हैं नहर रे त बढ़ गय़ खे त में प़ना नहीं पट़ते हैं नहीं खे त से कनक़ भर भा द़ऩ ईपज़ प़ते हैं ऽपछल़ कजय चिक़ न सके, स़हू की ऽझड़की ख़ते हैं।‘‘9 कऽर् ऩग़जियन ऽकस़नों की मीलभीत अर्श्यकत़ को महसीस करते हैं और ईस पर ऄपना ले खना चल़ते हैं र्े ऽलखते हैं ऽक ऽकस़न ऽजसके प़स खे त में बोने के ऽलए बाज नहीं है, जोतने के ऽलए बैल नहीं हैं तथ़ और तो और र्ष़य भा नहीं हो रहा है। ऽकतऩ भाषण समस्य़ग्रस्त है ऽकस़न। नहर में प़ना के बज़य रे त हा रे त खे त में भर गय़ है तो ऽकस़न खे ता कैसे करे ग़ ईसे तो ख़ने के ल़ले पड़े हैं और उपर से पैद़ऱ्र न होने के क़रण स़हू भा ऄपऩ ऽपछल़ कजय म़ंगते हैं तो ऽकस़न कह़ाँ से लौट़ प़येग़। ऩग़जियन ऽकस़न की समस्य़ को बहु त हा सजग दृऽष्ट से दे खते हैं और मनिष्यत़ को बऩये रखने की ऄपाल करते हैं। सम़जऱ्दा जार्न के समथय क होने के क़रण ऩग़जियन की कऽर्त़ क़ प्रमिख ध्ये य शोषण के दिख में डी बा जनत़ क़ यथ़थय ऽचिण हा है। आस ऽर्शेषत़ के क़रण र्े मिऽक्तबोध के क़िी ऽनकट प्रतात होते हैं। दोनों हा कऽर्यों को पींजाऱ्दा व्यर्स्थ़ के शोषण क़ ऽनजा ऄनिभर् है। ऄतः आनकी कऽर्त़ में दीर से दे खने पर करूण़ र् दिख में पसाज ईठने ऱ्ला भ़र्ऩ य़ म़क्र्सऱ्द के ऄध्ययन से ऽर्र्ेक में ईपजने ऱ्ला अस्थ़ की ऄपेक्ष़ खिद भाषण पररस्थऽतयों से गिजरने से प्ऱप्त होने ऱ्ला ऄनिमऽत क़ ऄंकन ऄऽधक ताव्रत़ के स़थ हु अ है। प्रस्तित पंऽक्तयों में ऩग़जियन के जार्ऩनिभर्ों को व्यक्त ऽकय़ गय़ है– ‗‗द़ने अए घर के ऄन्दर कइ ऽदनों के ब़द/धिअाँ ईठ़ अंगन के उपर कइ ऽदनों के ब़द/चमक ईठा घर भर की अंखें कइ ऽदनों के ब़द/कौए ने खिजल़इ प़ाँखें कइ ऽदनों के ब़द।‘‘10 ऩग़जियन जनकऽर् के रूप में तो महत्र्पीणय हैं स़थ हा एक बड़े कऽर् के रूप में भा। जनत़ के पक्ष में कऽर्त़एाँ ऽलखने ऱ्ले और भा हैं पर जनत़ को ऄपने में अत्मस़त कर कऽर्त़ ऽलखने ऱ्ले ऩग़जियन ऄपने ढं ग के ऄकेले कऽर् हैं। arambh.co.in

अम जन के जार्न में हर क्षण हर ऽदन घटने ऱ्ल़ यथ़थय ईनकी कऽर्त़ क़ सच है पर यह त़त्क़ऽलक प्रऽतऽक्रय़ को कऽर्त़ में प्रत्यक्ष करने ऱ्ला कऽर् दृऽष्ट ऐऽतह़ऽसक यथ़थय के गहरे बोध य़ ऽर्र्के क़ पररण़म है। ऩग़जियन की कऽर्त़ में स़म़ऽजकत़ क़ एक प्रखर बोध ऽमलत़ है। समक़लान मनिष्य और जार्न के ऄन्तब़य ह्य लोक की य़ि़ से ईपलब्ध स़म़ऽजक यथ़थय ईनमें मीतय और स़थय क होत़ है। ऱजनाऽतक बंऽदयों क़ र्ध, ऽकस़नों पर जमाद़रा ऄत्य़च़र, मजदीरों क़ शोषण, ईनके स़थ ऽकये ज़ने ऱ्ले बबय र और ऽघनौने ऄत्य़च़र किबेरों को ऄच्छे लगते हैं। आसाऽलये आन सबके ऽर्रूद्च जब जनत़ अमने– स़मने खड़ा होता है तो ईसे ईत्प़ता कह़ ज़त़ है। ‗‗ऩग़जियन ने रूऽढऱ्ऽदत़, च़हे र्ह कऽर्त़ य़ स़ऽहत्य में ऺ हो, ऱजनाऽत व्यर्स्थ़, दय़, धमय में हो, ऱ्मपंथ और म़क्र्सऱ्द में हो सभा क़ ऽर्रोध हा नहीं ऽकय़ है,र्रन् ईस जड़त़ को तोड़ने क़ भरसक प्रयत्न भा ऽकय़ है। यहा क़रण है ऽक ईनकी कऽर्त़ सम्बन्धा ऄर्ध़रण़ ऄऽभज़त्य मनोभ़र् की न होकर जनऱ्दा मनोभ़र् की है।11 ऩग़जियन जनऱ्दा कऽर्त़ के लोक कऽर् हैं। लोक म़नस की ऱजनाऽत, ऄथय नाऽत, धमय नाऽत, लोक कथ़एं , ऽमथक और परम्पऱएं ऩग़जियन को म़लीम हैं। आसा ज्ञ़न के जररये लोक कथ़नक के भातर से र्े यथ़ऽस्थऽतयों को तोड़ते हैं। यथ़ऽस्थऽत मंजन में पर्य त ब़दल और नऽदयों को प़ि बऩ ड़लते हैं, ऽनरन्तर समय की ऱजनाऽत से जिड़े रहते हैं। र्गय संघषय के द्ऱऱ ऩगररक धमय ऽनभ़ते हैं। सर्य ह़ऱ की ओर से शराक होकर ऩग़जियन ऽनष्ठ़ऱ्न जनऱ्द क़ पररचय दे ते हैं। आतने संर्ेदनशाल कऽर् हैं ऽक सर्य ह़ऱ पर होते हु ए जिल्म के ऽर्रोध में ऽठठरा क़य़ के भातर से िनिऩने लगते हैं। जनऱ्दा ऱजनाऽत की ऐसा कऽर्त़एं ऽलखते हैं ऽजन्हें गिनगिऩय़ ज़ सके। ऩग़जियन की कऽर्त़ के ऩयक मजदीर ऽकस़न हैं। शोषण से मि क्त कऱने के ऽलए क्ऱऽन्त के हर दौर में ईनकी कऽर्त़ स़थ ऽनभ़ता है। यिगध़ऱ, सतरं गे पंखों ऱ्ला प्य़सा पथऱइ अाँखें, संकलनों में कऽर् की सर्य ह़ऱ पक्षधरत़ जार्न के सभा क्षेिों में नजर अया है। ऩग़जियन की कऽर्त़ ’’ऐस़ तो कभा नहीं हु अ थ़‘ लोक ऽमथ के ऄन्दर से क्ऱंऽत की पुष्ठभीऽम घोऽषत करता है।‘‘12 Page 142


आयम्ब ई-ऩत्रिका 2014-15 ऩग़जियन की रचऩशालत़ जऩन्दोलन के भातर से

‘‘ऽबकत़ है गिल़ब/करे ग़ प्य़र कौन/कंटऽकत र्ुत्त

ऽनरन्तर सऽक्रय है। ऩग़जियन संस्कु त, प़ऽल अऽद ऽर्ऽभन्न भ़ष़ओं के प्रक़ण्ड ऽर्द्ऱन हैं और ऄपने रचऩकमय को गहरे स्तर पर पहच़न प्रद़न करते हैं। ऄपना रचऩ की स़मग्रा र्े साधे अम जार्न से ईठ़ ले ते हैं। कइ ब़र र्े हमें कबार के बहु त ऽनकट लगते हैं। ऩग़जियन ने ’क़ऽलद़स सच–सच

को? ऽबकत़ है गिल़ब/समझेग़ कौन/ऄन्तभेदा मिकिऽलत सौरभ?14

बतल़ऩ‘/ब़दल को ऽघरते दे ख़ है‘ जैसा कऽर्त़एं रचा हैं।

ऩग़जियन जनकऽर् हैं ईनक़ रृदय ऄत्य़च़र के प्रऽत सद़ ऽर्द्रोह से भर ज़त़ है। ईनकी रचऩएं दे शक़ल के क्षोमपीणय ऱ्त़र्रण की कोख से जन्मा हैं जो ऱजनाऽतक

जह़ाँ र्े ररक्थ की गहरा, पहच़न क़ बोध कऱते हैं। यहा कऽर् जब स़मऽयक जार्न को ऄपना रचऩओं में साधे हा ईत़रत़ है तो रचऩ क़ एक द्रन्द्र स़मने अत़ है।

क़रगिज़ररयों क़ दस्त़र्ेज हैं, जह़ाँ एक ओर र्े व्यंग्य करते हैं र्हीं दीसरा ओर सत्य क़ पक्ष भा जनम़नस के समक्ष प्रस्तित करते हैं। ऱ्स्तर् में र्े ऽकसा व्यऽक्त ऽर्शेष पर व्यंग्य न कर ईसकी नाऽतयों पर व्यंग्य करते हैं, तभा तो कह़ –

ऩग़जियन में प्रऽतऽक्रय़एं बहु त तेजा से ज़गता हैं पर आसक़ क़रण कोइ त़त्क़ऽलक ऽर्र्शत़ नहीं है, र्रन कऽर् क़ ज़गुत संर्ेदन है जो चोट ख़कर ऽतलऽमल़ ईठत़ है। ईनक़ जिड़​़र् स़म्यऱ्द से रह़ है पर भ़रत पर चाना अक्रमण के ऽलए दल से ताव्र मतभेद हु अ चीाँऽक ऱष्रायत़ ईनकी प्ऱथऽमक म़ंग था। ऱष्रऽहत सर्ोपरर थ़। ईन्होंने ऄपना कऽर्त़ओं में ताखा प्रऽतऽक्रय़एं व्यक्त की। नेहरू को सम्बोऽधत कऽर्त़ में व्यंग्य भरा पऽक्तय़ं हैं। ’ड़ॅगे को ज़ते ऱजयप़ल‘। आसा प्रक़र ऽजस क्ऱऽन्त में ईन्होंने सऽक्रय भ़ग ऽलय़ थ़, ईसकी ऄसिलत़ पर ’ऽखचड़ा ऽर्प्लर् दे ख़ हमने‘ की एक कऽर्त़ में ऩग़जियन ने स्र्यं को ’’तरल अर्ेगों ऱ्ल़,ऄऽत भ़र्िक रृदय धमी जनकऽर् कह़ है।‘‘13 यहा ऩग़जियन के व्यऽक्तत्र् क़ केन्द्राय तत्र् भा है। ऩग़जियन ऄपना ऄनेक ऱजनाऽतक कऽर्त़ओं में जह़ं र्े ऄपने संर्ेदन को ऽबम्बों में प्रक्षेऽपत करते हैं और गहरे ईतरकर ऽस्थऽत क़ ज़यज़ ले ते हैं ऄऽत महत्र्पीणय हैं। र्े एक प्रऽतबद्च कऽर् हैं और ऄपना प्रऽतबद्चत़ को महज ऱजनाऽतक चैहद्ङा तक साऽमत न करके ईसे व्य़पक म़नर्ाय अय़म दे ते हैं। म़क्र्सऱ्द को सौन्दयय श़ह्ल के स्तर पर प़ने की कोऽशश में ऽहन्दा कऽर्यों की नइ पाढ़ा ऽनऱल़, ऩग़जियन, य़ मिऽक्तबोध की ओर दे खता है। ऩग़जियन प्रऽतबद्च हैं पर म़नर्ाय ऽचन्त़ के स़थ और र्े ’पोले ऽमक्स‘ से अगे भा ज़ते हैं ईनके जड़ पीऱ्य ग्रह नहीं हैं। ’तिमने कह़ थ़‘ की अरं ऽभक कऽर्त़ ’तिम रह ज़ते दस स़ल और‘ क़ मिह़र्ऱ व्यंग्य क़ है, पर ऄपेक्ष़कु त ऽनर्ै यऽक्तक। ऄगला कऽर्त़ओं में ऩग़जियन नेहरू के व्यऽक्तत्र् को ऄपने संर्दे न की स्र्ाकु ऽत दे ते हैं– arambh.co.in

‘‘दे ऽर् ऄब तो कटे बंधन प़प के/ल़आये मैं चरण चीमाँ ी अपके/ऽजद ऽनभ़इ, डग बढ़​़ये ऩप के/ल़आये मैं चरण चीमाँ ी अपके/सौ–सौ नमीने बने आनकी छ़प के।‘‘15 ऩग़जियन के व्यंग्य में सम़जाकरण और लोकत़ंऽिकरण की प्रऽक्रय़ है। ईनकी रचऩओं में पीाँजाऱ्दा औद्योऽगक सम़ज की बढ़ता हु इ जऽटलत़ओं और ऽर्श्व में ऽनरन्तर गहऱता ऄम़निषाकरण के प्रऽत प्रऽतऽक्रय़ है। ईनकी व्यंग्य रचऩएं बेहतर सम़ज की स्थ़पऩ के प्रऽत प्रऽतबद्चत़ प्रम़ऽणत करता हैं। ऩग़जियन ने ऄपने क़व्य में स्र्तंिोत्तर यिग की समीचा ऽर्भाऽषक़ को जनऱ्दा दृऽष्ट से व्यंग्य के म़ध्यम सेॅे ईकेऱ है। स़म़ऽजक चेतऩ से लर्रे ज होने के क़रण समय के यथ़थय को ऩग़जियन द्रन्द्ऱत्मकत़ में पकड़ते हैं। यिगध़ऱ, सतरं गे पंखों ऱ्ला, पिऱना जीऽतयों क़ कोरस अऽद रचऩओं में ऱजनाऽतक व्यंग्य मौजीद है। जह़ाँ तक कऽर्त़ क़ प्रश्न है ऩग़जियन एक ऐसे कऽर् हैं ऽजन्होंने व्यंग्य को लगभग सम्पीणय ऽर्द्य़ के रूप में स्र्ाक़र ऽकय़ है। आनके क़व्य में ऱजनाऽतक व्यंग्यों की ऽर्पिल पीाँजा है क्योंऽक व्यंग्य प्ऱयः सत्त़ एर्ं व्यर्स्थ़ के ऽर्रूद्च खड़​़ होत़ है और जोऽखम ईठ़ने की जिझ़रू चेतऩ से हा ईसे शऽक्त ऽमलता है। ऩग़जियन ने जार्न की समस्य़ओं को झेल़ और कऽर्त़ओं को ऽजय़ है। ऽर्श्व के ऽकसा जगह भा ऄनाऽत हो ऩग़जियन के ऽलए एक कऽर्त़ में कह़ है– ‘‘ऩग़जियन व्यंग्य और ऽर्द्रीप को म़र करते हैं/ऽदन ऱत दीसरों क़ ऽर्ष ऽपये रहते हैं।‘‘16

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आयम्ब ई-ऩत्रिका 2014-15 प्ऱकु ऽतक प्रे म, ऩरा के प्रऽत मनोभ़र्ऩ और ऱ्त्सल्य– भ़र्ऩ सौन्दयय बोध के ऄन्तगय त प्रऽतिऽलत होते हैं। जह़ाँ कऽर् र्ैयऽक्तक रूप से सौन्दयय बोध में लान रस़स्ऱ्दन कर रह़ होत़ है, र्ह़ाँ ईसके म़नस ऽक्षऽतज में, सम़ज के ऄन्दर िै ला ऽर्संगऽतयों और ऽर्षमत़ओं के प्रऽत भ़ऱ्त्मक संर्ेदऩ और सह़निभऽी त भा छ़या रहता है, जो सौन्दय़य निभऽी त की रचऩओं में भा पररलऽक्षत हो ज़ता है। यह़ाँ र्ैयऽक्तक सौन्दयय बोध क़ स़म़ऽजक रूप़न्तरण हो ज़त़ है। सौन्दयय बोध एक संऽश्लष्ट आक़इ है–सौन्दयय प्रकु ऽत में है, मनिष्य के मन में भा। ईसकी ऄनिभऽी त व्यऽक्तगत होता है, सम़जगत भा। व्यऽक्त सम़ज क़ ऄंग है, आसऽलए न सम़जऽनरपेक्ष व्यऽक्त की सत्त़ होता है, न सम़जऽनरपेक्ष सौन्दयय ऄनिभऽी त की सम्भ़र्ऩ होता है। ऩग़जियन एक अदशय सम़ज के ऽलए बहु त ऽचंऽतत रहते हैं। ईनकी ऱ्दमिक्तत़ ईसकी ऄऽस्मत़ क़ अध़र है। ईनक़ ऄक्खड़ व्यऽक्तत्र् र्गय ऽर्शेष की पक्षधरत़ और सत्त़ के ऽर्रोध की मिद्ऱएाँ ईन्हें ऄन्य कऽर्यों से ऄलग करता है। ईनकी सतत प्रऱ्हा ऱ्दमिक्तत़ ने स़म़ऽजक, अऽथय क, ऱजनाऽतक ऄन्तऽर्य रोधों को सम़ऽहत कर रख़ है। ‘‘हररिन्द्र यिग के स़ऽहऽत्यकों को छोड़कर ऽपछले पच़स र्षों मंॅे ऩग़जियन जैस़ ताख़ और साधा चोट करने ऱ्ल़ व्यंग्यक़र हम़रे स़ऽहत्य में नहीं हु अ। आनक़ व्यंग्य क्योंऽक र्स्तिऽस्थऽत को स़मने ल़त़ है ऄतः प्रभ़र्श़ला

जनअन्दोलन के दौऱन झेला गया य़तऩएं िलप्रद ऽसद्च नहीं हु इ– ‘‘घर ब़हर भर गय़ तिम्ह़ऱ/रत्ता भर भा हु अ नहीं ईपक़र हम़ऱ/ व्यथय हु इ स़धऩ, त्य़ग किछ क़म न अय़/किछ हा लोगों ने स्र्तंित़ क़ िल प़य़।‘‘18 ऩग़जियन ने कइ कऽर्त़एं व्यऽक्त ऽर्शेष पर ऽलखा हैं। ग़ाँधा र्ध पर ऽलखा ईनकी च़रों कऽर्त़एं जब्त हु इ थीं। आसमें कऽर् स़म्प्रद़ऽयकत़ पर अक्रमण करते हु ए मह़त्म़ ग़ंधा के योगद़न को लगभग अर्ेश में स्र्ाकु ऽत दे त़ है। ग़ंधा के व्य़पक प्रभ़र् को भ़रताय जन में दे खकर ऩग़जियन जनसमीह को हा स़म्प्रद़ऽयकत़ को नष्ट करने में समथय दे खऩ च़हते हैं। ऽर्च़रध़ऱ के स्तर पर ग़ंधाऱ्द के प्रभ़र् से आन्क़र नहीं ऽकय़ ज़ सकत़। ऽर्डंबऩ यह है ऽक यह़ाँ शह़दत के पि़त हा ऽकसा व्यऽक्त के महत्र् को समझ़ ज़त़ है। आसाऽलए ऽर्च़रध़ऱ यह़ाँ गौण हो ज़ता है, व्यऽक्त– पीज़ प्रध़न। कऽर् आन प्रर्ुऽत्त को रे ख़ंऽकत करते हु ए मुत्यि के ईपऱंत हु ए अडंबरों क़ ऽर्रोध करत़ है, र्ह च़हत़ है ऽक स़म्प्रद़ऽयकत़ क़ ईन्मीलन हा ग़ंधा के अदशों क़ ऄनिसरण है। ‗‗हे भ़रत के परम ऽपत़ तिम व्यऽक्त–व्यऽक्त के मन मंऽदर में ऽर्द्यम़न हो ऽनऽर्ड़ ऽतऽमर मंॅे दे र् तिम्हीं ज़जर्ल्यम़न हो

है।‘‘17

ल़ख ऽछपे नाड़ों में , ऽिर भा ऄत्य़च़रा

भ़रताय ऱजनाऽत पर ग़ंधाऱ्दा ऽर्च़रध़ऱ क़िी समय तक छ़इ रहा ले ऽकन भ्रष्ट नेत़ओं ने आसक़ मखौल बऩ ऽदय़। र्े स़रे प्रताक जो त्य़ग और दे सज तराकों के थे व्यऽक्तत्र्हान पितलों में बदलते गये आस ऱजनाऽतक ऄधःपतन ने भ़रताय जन को स्र्तंित़ क़ छद्म झेलने पर ऽर्र्श ऽकय़। स्र्तंित़ संग्ऱम में ऽकये गये ईत्सगय और क्ऱऽन्तक़रा परम्पऱ के नताजे स़म़न्य जन के ऽर्रोध में चले गये। शह़दतें व्यथय गया और ऄंग्रेजा श़सकों के स्थ़न पर दे शा श़सकों ने भ़रत की सत्त़ पर ऄऽधक़र कर ऽलय़। यह़ाँ पर कऽर् क़ क्षोम स़म़न्य जन क़ क्षोम है ऽजसकी

बच न सकेंगे/ऄब र्े चक्रव्यीह दस ी ऱ/रच न सकेंगे।’’19

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ऩग़जियन के क़व्य में यथ़थय क़ ऽचिण ऄपना पीरा नग्नत़ एर्ं सच़इ के स़थ हु अ है ईन्होंने किछ भा ऽछप़ने क़ प्रय़स नहीं ऽकय़ है। कऽर् ज़नत़ है ऽक हम़रे र्तय म़न समय में सत्य बोलऩ प़प है और च़पलीसा करऩ, झीठ बोलऩ यिग धमय बन गय़ है ऽकन्ति र्ह हमे श़ सत्य की पक्षधरत़ क़ क़यल रह़ है जैस़ ऽक कह़ भा गय़ है सत्य परे श़न हो सकत़ है ऽकन्ति पऱऽजत नहीं।

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आयम्ब ई-ऩत्रिका 2014-15 ऄंततः ऩग़जियन की कऽर्त़ में जन स़म़न्य की एक मिकम्मल बऩर्ट के स़थ पक्षधरत़ ऽलये है। यह पक्षधरत़ श्रमरत सम़ज की संघषय चेतऩ में ऄऽधक ऽनखरा है यह संघषय चेतऩ लोक चेतऩ से पुथक आसऽलये नहीं है क्योंऽक ऩग़जियन की कऽर्त़ अरोऽपत संघषय शालत़ को न स्र्ाक़र कर, जार्न के कहीं बहु त गहरे पैठे अक्रोश से ऄपऩ स्र्रूप ऽनऽमय त करता है। ऩग़जियन ने ऄपना रचऩत्मकत़ को एक ईच्च यथ़थय भीऽम प्रद़न की जो मनिष्य के शोषण के तानों रूपों स़म्ऱजयऱ्द, स़मंतऱ्द और पींजाऱ्द क़ जमकर ऽर्रोध ऽकय़ और आसके ऱ्स्तऽर्क रूप को ईज़गर करने के ऽलये ऄपना मिख्य भ़ष़ को निक्कड़ ऩटक की शैला में अम जन के समक्ष प्रस्तित करते हैं। यहा ऽर्शेषत़ ऩग़जियन को अज भा प्ऱसंऽगक बऩये हु ये है। ऩग़जियन यथ़थय के ऽचिण से हा ऄपना ऽजम्मे द़रा खत्म नहीं म़नते बऽल्क सम़ज को एक ईन्नत, प्रगऽतशाल, म़गय की ओर ऄग्रसर करने क़ प्रयत्न भा करते हंॅ।ै आसऽलये ऩग़जियन लोक जार्न और जन जार्न को प्रभ़ऽर्त करने ऱ्ले जनधमी कऽर् के रूप में हमे श़ स्मरणशाल बने रहे गें। ब़ब़ ऩग़जियन जन चेतऩ र् ऄऽस्मत़ को शऽक्त प्रद़न करने ऱ्ले जन कऽर् हैं। र्े जनत़ को स्र्स्थ र् ऽशऽक्षत दे खेने के पक्षधर हैं, ईनक़ म़नऩ है ऽक जब तक अम जन में खिशह़ला र् समुऽद्च नहीं पहु ंचता तब तक हम़ऱ संघषय श़सक र्गय के प्रऽत ज़रा रहे ग़ ऄतः ऩग़जियन की पाड़​़ जन समिद़य के स़थ एक़क़र हो ईनकी व्यथ़ कथ़ की कह़ना कहता है। ऩग़जियन सच्चे ऄथों में जनम़नस के ईन्ऩयक कऽर् एर्ं ऽर्च़रक हैं। संदभय ग्रंथ सीचा

5. र्हा, पुष्ठ 53. 6. प्रे मलत़ दिअ – सम़जऱ्दा यथ़थय ऱ्द और ऩग़जियन क़ क़व्य, पुष्ठ 67. 7. प्रभ़कर

म़चर्े – अज

के

लोकऽप्रय

कऽर्

ऩग़जियन, पुष्ठ 62. 8. ऄजय ऽतऱ्रा – ऩग़जियन की कऽर्त़, पुष्ठ 21. 9. ऩग़जियन: प्रे त

क़

बय़न (संकल्प

अज

दिहऱते

हैं), पुष्ठ 10. 10डॉ . महे श प्रस़द शिक्ल– ऩग़जियन की कऽर्त़ में सौन्दयय बोध क़ स्र्रूप, पुष्ठ 87. 11डॉ

. र्ारे न्द्र

ऽसंह– य़य़र्र

कऽर्

ऩग़जियन, ऄंतःऄनिश़सकीय मील्य़ंकन, पुष्ठ 79. 12. ऱस्त़ आधर है: ऱष्राय प्रगऽतशाल ले खक मह़संघ क़ प्रक़शन नइ ऽदल्ला, पुष्ठ 112. 13. सं सिरेशचन्द्र त्य़गा: ऩग़जियन, पुष्ठ 170. 14. र्हा, पुष्ठ 171. 15. प्रे मलत़ दिअ: सम़जऱ्दा यथ़थय ऱ्द और ऩग़जियन क़ क़व्य, पुष्ठ 83. 16. र्हा, पुष्ठ 86. 17. ऽर्श्वम्भर म़नर्: नइ कऽर्त़, नये कऽर्, पुष्ठ 30.

1. सं. ऄरूण कमल– ऱजे न्द्र शम़य : प्रगऽतशाल कऽर्त़ के प़ंच प्रऽतऽनऽध कऽर्, पुष्ठ 124.

धारे न्द्र ऽसंह , शोध़थी ऽहन्दा ऽर्भ़ग

2. र्हा, पुष्ठ 129.

डॉ. हराऽसंह गौर ऽर्ऽर्, स़गर (म.प्र.)

3. र्हा, पुष्ठ 134. 4डॉ

. प्रक़शचंद्र

भट्ट– ऩग़जियन: जार्न

और

स़ऽहत्य, पुष्ठ 48. arambh.co.in

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आयम्ब ई-ऩत्रिका 2014-15

नीरी-सऩनीरी नगयी

इव ळशय को भुख्मत् तीन दशस्वों भें फाॊीा जा वकता शै । ऩशरा प्राचीन भशर औय अन्म

जोधऩयु

एनतशालवक इभायतें , ऩुयाना ळशय औय नौकयळाशों ल वभाज के ध्नाढ्म लगष के लरए नमा ळशय।

(सॊस्भयण) (चौथा अॊक)

इव ळशय भें आऩ इव अॊतय को ओकड ये जीडेंवी

मािाएॊ जीलन को नलीनता औय ताजगी

वे बय दे ती शैं। औय मािा के दौयान मदद आऩ ककरे औय भशर

दे खने के इच्छुक शैं

तो

याजस्थान वे फेशतय कोई जगश नशीॊ। याजस्थान के वफ ळशयों भें जोधऩुय वफवे फड़ा ळशय शै ।

मशाॊ के अथधकाॊळ घय नीरे यॊ ग के शैं। मे कापी

घना फवा ळशय शै औय इवकी वड़कों ऩय अच्छी खावी बीड़ थी। शय ळशय की तयश इव ळशय की

बी अऩनी तेज यफ़्ताय ब्जॊदगी शै । मश ळशय

शभाये लरए इवलरए बी भशत्लऩूणष था क्मोंकक दशॊदी

के

अनेक

वादशत्मकाय

जैवे

शफीफ

कैफ़ी,भीठे ळ ननभोशी जी, वत्मनायामण जी ब्जनके

वादशत्म वे तो ऩियचम था ऩयॊ तु प्रत्मष लभरना नशीॊ शुआ था उनवे लभरने का बी मश अलवय था। कथाकाय भीठे ळ ननभोशी स्ीे ळन के फाशय शी शभाया इॊतजाय कय यशे थे। ऩमषीकों का ऩवॊदीदा

ळशय शोने कायण मशाॊ प्रत्मेक फजी के लरए

शोीर की व्मलस्था शै । शभ ठशयने की व्मलस्था ददकरी वे कयके शी चरे थे ऩयॊ तु नए ळशय भें

घूभने के लरए लाशन औय बयोवेभद ॊ चारक की जरूयत थी। भीठे ळ जी ने मे वभस्मा चुीककमों

भें शर कय दी। उनके भुतात्रफक ळशय घूभने के

लरए आीोियक्ळा वशी वाधन शै । इवलरए अऩनी ऩशचान के एक आीो लारे अनीव ऩठान को

जरूयी दशदामतें दे कय उन्शोंने शभाये वाथ कय ददमा।

जशाॊ ळशय के वत्ता ऩष को दे खा जा वकता शै

वे रेकय ऩुयाने ळशय के फाज़ायों तक भें दे खा जा वकता शै । इव ळशय भें अनेक लळषण वॊस्थान

शैं ब्जनभें ळशय का मुला लगष अऩने बवलष्म के

लरए लळषा ग्रशण कयने के लरए जाता शै । शोीर वे चाय फजे शभ अनीव के वाथजोधऩुय घभ ू ने

ननकर ऩड़े। उवने आज चाय जगश ददखाने की फात कशी—भशयाणगढ़,जवलॊत थड़ा,उम्भेद बलन

औय भॊडोय गाडषन। अनीव के भुतात्रफक मे चायों

जगश ऩमषीक एक शी ददन भें घूभ रेते शैं ऩय शभ रोग इत्भीनान वे घभ ू ना चाशते थे इवलरए मश तम ककमा कक ऩशरे ददन ककरा औय उवके

कयीफ फना जवलॊत धड़ा शी दे खा जाए। जोधऩुय

के व्मस्त फाजाय औय यास्तों वे ननकरकय घुभालदाय

चढ़ाई

शुए शभ ळशय की वलाषथधक उॊ चाई ऩय फने शुए ककरे को दे ख यशे थे। ककरे वे ननब्श्चत दयू ी ऩय अनीव ऩाककिंग की ओय भड़ ु गए औय शभ ककरे की तयप। ककरे

भुझे शभेळा वे आकवऴषत कयते यशे शैं। मश

आकऴषण इनकी बव्मता, वलळारता, औय दग ष ता ु भ के लरए शी नशीॊ फब्कक इनके ननभाषण भें रगी

भानलीम यचनात्भकता, करात्भकता औय श्रभ की

वलळारता के लरए यशा शै। शभेळा भन भें उन अनाभ कायीगयों, कराकायों के एक गशयी श्रर्दध

औय कृतसता का बाल उऩजा शै ब्जन्शोंने इन वलळार ककरों औय भशरों का फनामा। ऩय इनतशाव

तो

याजाओॊ

शै , भजदयू का नशीॊ। arambh.co.in

चढ़ते

का

शी

लरखा

जाता

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आयम्ब ई-ऩत्रिका 2014-15 भशयाणगढ़ को दे खने का वफवे अच्छा तयीका शै

इवके फाद फायी आती शै लवरशखाने की। मशाॊ

ओय आकय घूभा जाए। लरफ्ी ने शभें ऊऩय छत

के इनतशाव को वभेीे शुए शैं। अनेक प्रकाय के बारे, तकलायें , गुब्प्तमाॊ, ढार, फॊदक ू , वॊगीनें, म्मानें,

कक इवे लरफ्ी वे ऊऩय जाकय कपय नीचे की की ओय ऩशुॊचामा। मे ककरा कापी वलस्तत ृ दामये भें पैरा शुआ शै । ऩीरे ऩत्थय वे फना शुआ मे ककरा पैराल की दृब्ष्ी वे शी नशीॊ ऊॊचाई के नजियए वे बी फशुत फड़ा शै । लरफ्ी वे ऊऩय की ओय जाकय ककरे वे वी​ी कई पौरादी तोऩों को दे खा जा वकता शै । भैंने वुना था कक मशाॊ के

याठौड़ों के ऩायम्ऩियक अस्िा यखे शैं जो 500 लऴों

लळयस्िाण औय रोशे के भतफूत ब्जयशफख्तय।

मशीॊ वे घभ आऩको औय ऊऩय ो़ ु ालदाय वीदढमाॊ

लरए जाती शैं। मुर्दध ् के लरए ब्जतने प्रकाय के अस्िों की आलश्मकता शो वकती शै ले वबी मशाॊ

याजाओॊ ने ऩशरे अऩनी याजधनी भॊडोय फनामी

ऩय थे। मशाॊ वे ननकरने के फाद अगरा ऩड़ाल ो़ था जनानी ड्मोढ़ी। एक ऊॊची छत लारे फडे वे

ऩय मे ककरा 500 वार ऩशरे फनामा। भशयाणगढ़

शाॅॎर भें रगी आदभकद जालरमाॊ ऩत्थय ऩय

थी ऩय फाद भें वयु षा के भर्ददे नज़य मशाॊ ऊचाई

के बीतय ट्रस्ी की ओय वे लतषभान नये ळ गजलवॊश

ने 1972 भें

एक

ळानदाय

वॊग्रशारम

फनाने की ओय कदभ उठामा। ऐवा वॊग्रशारम

शार भें वललबन्न यागों ऩय आधियत थचिा शैं। उकेयी गमी करा के करा के अर्दबुत उदाशयण

शैं। मशाॊ के दयलाजे बी कयीगयों के राजलाफ

ब्जवभें याजाओॊ के वाजो–वाभान औय उनकी

शुनय का प्रदळषन कयते शैं। इवी तयप आमताकाय ळीळभशर बी शै । इवके बीतय रार–वुनशयी छत

के

मशाॊ छोीे –फड़े आईने रार,ऩीरे यॊ गों वे एक जाद ू

बव्म जीलन–ळैरी के दळषन रोग कय वकें। ककरे बीतय

ऩशरा

दशस्वा

दौरतखाना

शै ।

मशाॊ 15 लीॊ ळताधदी वे रेकय 19 लीॊ ळताधदी के वललबन्न याठौड़ याजाओॊ के इस्तेभार भें आईं लस्तुएॊ वजाई गईं शैं। फड़े–फड़े ळीळों के ऩीछे

कयीने वे वजी थचकें, ऩारकी ,भशाडोर, वोने की भीनाकायी

की

तरलायें ,थचिा, ज़यदोज़ी

वॊद ु य के

भॊठ ू

चैगे, याननमों

लारी के

ऩानदान,व्मामाभ के भुगर्दर, तरलाये , बारे आदद

यखे गए शैं। इव जगश घूभते शुए याज ऩियलाय की ळान–औ–ळौकत को वशज की अनुबल ककमा जा वकता शै । वोने औय चाॊदी के फयतन दे खने

मोग्म शैं दौरतखाना लश जगश शै जशाॊ खजाना यखा जाता था फाद भें

मशाॊ याजघयाने के

आबूऴण यखे जाने रगे। 1560 ई. भें भुगर ळाशी कायखाने भें तैमाय की गई अकफय की तरलायें बी मशाॊ शैं।

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के फीच फड़ा–वा झाड़पानव जगभगा यशा शै । ू वा ऩैदा कयते रगते शैं। मे

ककरा ळामद

याजस्थान के वुॊदयतभ ककरों भें वे शै । मूॊ तो उदमऩुय

का

भशर, आभेय

का

ककरा, अरलय, फीकानेय के ककरे बी खालवमतें

लरए शुए शैं ऩय भशयाणगढ़ फेशद करात्भक औय ळानदाय शै । इवकी बव्मता इवके पूर भशर, तख्त

वलराव, भोती

भशर, झाॊकी

भशर

आदद को दे खकय ऩता चरती शै । इन वफ भशरों भें पूरभशर की फात शी ननयारी शै । इवका ननभाषण

याजा

अबमलवॊश ;1724-1749मुर्दध

ने

अऩने कामषकार भें कयलामा। इव भशर भें

वलवलध आमोजन शोते थे,भुख्म रूऩ वे नत्ृ म। इव भशर की खालवमत इवकी ळानदाय छत शै

ब्जव ऩय वोने के ऩानी वे ठोव पूर–ऩवत्तमों का जार फनामा गमा शै । छत औय उववे रगी Page 147


आयम्ब ई-ऩत्रिका 2014-15 दीलायों ऩय कुर दे ली, दे लता, याज ऩियलायों के

ककरे के फाद शभ जवलॊत थड़ा की ओय गए।

फने वे रगते शैं। छत के फीच एक फड़ा वा

याठौड़ याजाओॊ की छतियमाॊ शैं। मशाॊ लैवे तो कई

वदस्मों के थचि फनाए गए शैं जो एकदभ नमे

आईना शै । इव छत की खूफवूयती को दे खते शुए चायों कोनों भें कारे चुी​ीरेनभ ु ा नजयफट्ीू बी

रीकाए गए शैं। वबी भशरों भें खखड़ककमों ऩय यॊ ग–त्रफयॊ गे ऩायदळी काॊच रगे शैं।

ककरे का वफवे ऊऩयी भशर तख्त वलराव शै । मे

याजा तख्त लवॊश का ळमन कष शुआ कयता था। इवकी दीलायों ऩय ढोरा भारु , भदशऴा वयु भदष नी, दे ली–दे लता, यावरीरा,मर्द ु ध

आदद

के

थचिा आकऴषक जोधऩुयी ळैरी भेॅेॅॊ फनाए गए

शैं। झाॊकी भशर भें याजाओॊ को फचऩन भें भीठी नीॊद वुराने लारे वोने–चाॊदी के भड़े शुए ऩारने कताय फर्दध यखे शैं। इन ऩय भोय, ऩियमों, ऩक्षषमों, शाथी

आदद ऩळुओ,ॊ दयफानों

की आकृनतमाॊ बी फनामी गमी शैं। मे भशर फार नये ळों के ठाठ–फाी का जीलॊत आख्मान शै ।

भशयाणगढ़ बव्मता औय करात्भकता की अनूठी लभवार शै । रकड़ी के काभदाय दयलाजे, ऩत्थय की

जालरमाॊ, डडजामनदाय पळष, आरीळान छतें , ऩत्थय

थड़ा का अथष शै स्थान। मशाॊजोधऩुय–भायलाड़ के वभाथधमा शैं ऩय भुख्म वभाथध जोध्ऩुय के याजा जवलॊत लवॊश की शै । वॊगभयभय औय रार ऩत्थय

के वॊमोग वे तैमाय की गई मे जगश ळाॊत शै । ककरे की अऩेषा मशाॊ कापी कभ ऩमषीक आते

शैं। मे स्थान बी उत्कृष्ी स्थाऩत्म का उदाशयण शै । वम्बलत् ऩूयेजोधऩुय भें वपेद वॊगभयभय का मे

एकभािा

ऐनतशालवक

स्थर

शै ।

प्रलवर्दध ्

याजऩूताना ळैरी भें फने इव वभाथध स्थर भें भॊददयनभ ु ा

वभाथधमा

पव्लाये , भशयाफें, छतियमाॊ,कभर

शैं।

के

शौदे

मशाॊ शैं।

याननमों की वभाथधमा बी मशाॊ शैं। इवे दे खकय

रगा कक वधयण औय वललळष्ी वफका अॊत एक वा शै ऩय याजऩियलायों के भशर औय वभाथधमा वबी बव्म शैं। इन वफके ऩाव फनी एक ळाॊत

झीर ऩूये ऩियवय को एक अरग शी रूऩ प्रदान कय यशी थी।

अगरे ददन शभ उम्भेद बलन की ओय यलाना

के खखड़की–झयोखों ऩय फने फेशद करात्भक

शुए । जोधऩुय के लतषभान नये ळ गज लवॊश र्दवलतीम मशाॊ वऩियलाय यशते शैं। 26एकड़ भें पैरे

कीालों वे गढ़े गए खॊबे औय खॊबों को एक–

की भनाशी शै । मे भशर बी ऊॊचाई ऩय ब्स्थत शै ।

अदष गोराकाय

छज्जे

दे खने

रामक

शैं।

वॊद ु य

दव ू ये वे जोड़ते कीालदाय कॊगूये लाकई कभार के शैं। ऩूये ककरे भें जैवे फायीक नक्काळी का

इव भशर भें कई शये –बये ऩाकष शैं ब्जनभें खेरने

इवभें 347कभये शैं। भशर का 20 पीवद दशस्वा याज ऩियलाय का, 70 पीवद शोीर का औय

वाम्राज्म पैरा शुआ शै । ककरे भें कराओॊ के वॊयषण के लरए वाॊस्कृनतक केंि औय एक

भािा 10 पीवद ऩमषीको के लरए शै । याज तो चरे

भाता का भॊददय बी शै जशाॊ कुछ वभम ऩशरे

याजस्थान अऩनी वाॊस्कृनतक ध्रोशय के कायण

ऩुस्तकारम बी शै । इववे कुछ दयू ी ऩय चाभण ु डा नलयािा के ददनों भें बगदड़ भच जाने वे दघ ष ना घदीत शो गमी थी। ु ी arambh.co.in

गए ऩय याजाओॊ के ळाशी ठाठ–फाी का आधय अफ भशरों भें खर ु े मे शोीर औय ट्रस्ी शैं। मॊू

फशुत वललळष्ी शै औय इवका करा–लैबल भामानगयी भुम्फई को फशुत रब ु ाता शै इवलरए मशाॊ ककरों औय उनभें फने शोीरों भें आए ददन

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आयम्ब ई-ऩत्रिका 2014-15 ळूदीॊग चरती यशती शै । इवके अराला भशरों के

जैवी वलॊीेज ळाशी गाडडमाॉ बी गलरमायों भें ळीळों ो़

को बी वम्ऩन्न कयाने का खावा ियलाज़ चर

अफ फायी आमी भॊडोय गाडषन की। मे जगश ळशय

दशस्वों भें फड़ी रागत के ळादी आदद आमोजनों ऩड़ो़ा शै । ऩमषीन उर्दमोग को इववे जशाॊ पामदा

ऩशुॊच यशा शै लशाॊ यजलाड़े खानदानों की चभक बी इनवे फयकयाय शै ।

भें फॊद खड़ी शैं ।

वे अरग औय दयू ी ऩय शै। दयअवर मे भायलाड़ के ऩुयाने याजाओॊ की याजधनी थी जो फाद भें

भशर के फाशय वे शी ऊॊचा गुम्फद ददखाई दे ता

वयु षा के नजियए वेजोधऩुय जा ऩशुॊची। मशाॊ याजऩूताना ळैरी की छतियमाॊ औय दे लर भॊददय

जोकक

मश दे लर कई भॊब्जरा शैं, जोधऩुय के अन्म

शै । मश भशर उम्भेद लवॊश ने 1929 भें फनलामा चैदश

वार

भें

ऩूया

शुआ। ऩोलरळ आककषीे क्ी स्ी​ीपॊव नोब्धरॊग ने इवे फनामा। मे फेशद आधुननक भशर शै । ऊॊची छतों ऩय ऩत्थय

का काभ शाॅॎर भें डफर वीलरॊग का आबाव कयाता शै । मशाॊ उम्भेद लवॊश के ऩियलाय, उनके

ऩुिों औय ऩुिों भें वे एक शनुलॊत लवॊश औय उनके ऩुिा लतषभान नये ळ के पोीो वजाए गए शैं। याजा शनुलॊत लवॊश के जीलन भें आई भुब्स्रभ रड़की

की कशानी ऩय श्माभ फेनेगर र्दलाया ननदे लळत औय रेखक खालरद भश ु म्भद की लरखी ‗जफ ु ैदा‘

वऩपकभ बी फनी शै । शाराॊकक भशर भें यानी

कृष्णा ,शनुलॊत लवॊश उनके फच्चों के पोीो शैं ऩय भुब्स्रभ रड़की का नशीॊ। ऩोरो प्रेभी उम्भेद लवॊश

के पोीो अॊग्रेज लाइवयाम औय नेशरु जी –इॊददया जी के वाथ बी शैं।

जोधऩुय वैंडस्ीोन के लास्तवलक यॊ ग के फने इव भशर के ऩमषीकों के लरए आयक्षषत कषों औय

गलरमायों भें लळकाय ककए तें दए ु , फोन चाईना के कई

फतषन, फेब्कजमभ

काॊच

के

कई

फने शैं जो याठौड़ नये ळों के वभाथध–स्थर शैं। ऐनतशालवक

दीलायों, वॊद ु य

स्थरों

की

खॊबों, खॊबों

तयश।

ऩय

उकेयी

भजफूत गई

अनेकानेक आकृनतमों, करात्भक छतों की फात शी ननयारी शै । छतों के बीतयी दशस्वों भें ऩत्थय

ऩय खुदाई वे ननलभषत नतषककमाॊ,लादक दे खने

रामक शैं। मे वबी भॊददय एक फड़े दामये भें खड़े शैं औय वबी रार ऩत्थय वे फने शैं। इन वबी दे लरों भें वफवे आकऴषक औय फड़ा याजा अजीत

लवॊश का शै जो 1793 भें फनामा गमा। इन भॊददयों

के बीतय कोई भूनतष नशीॊ शै ,मे खारी ऩड़े शैं।

ऩत्थय लळकऩ आज बी ऩुख्ता शै ऩय मश ऩूयी जगश अव्मलब्स्थत शै । इतने करात्भक प्रागॊण

को त्रफना ककवी यख–यखाल के छोड़ ददमा गमा शै । इवी जगश वे कुछ दयू ी ऩय एक छोीा वा वॊग्रशारम

बी

शै ।

इवके

दो

कभयों

भें

भूनतषमाॊ, लभट्ी​ी वे फने खखरौने, याग–यागननमों ऩय आधियत थचिा आदद यखे गमे शैं। बीतय की

वाजो

तयप एक कृत्रिभ ताराफ बी शै ,जो उऩेषा का

तयश की छोी​ी–फड़ी घडडमाॊ आदद वजाए गए शैं। ो़

मशाॊ वे शभ कामराना झीर की ओय फढ़े ।

वाभान, इि, चाॊदी के फतषन, पनीचय, आईने, तयश–

इवी दशस्वे भें भॊत्रिभॊडर की फैठकों के लरए फना दीलान–ए–खाव बी शै जो आज खस्ताशार शै । फाशय भैदान की तयप याॅॎकव याॅॎमव, भवषडीज़

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लळकाय शै ।

दोऩशय शो चुकी थी। कामराना जाने के यास्ते भें

वीभा वुयषा फर का एक फशुत फड़ा कैम्ऩ शै । लवऩादशमों की भेशनत औय ईभानदायी दे खकय भन फेशद प्रवन्न शुआ। अफ वूयज ठीक लवय ऩय Page 149


आयम्ब ई-ऩत्रिका 2014-15 था। झीर वे वी​ी वीदढमों ऩय फैठकय थके शुए ो़ ऩैयों को झीर के ठॊ डे ऩानी भें डार ददमा। मे झीर

ळशय

वे

दयू

शै । 1872 भें

इवे

याजा

प्रताऩलवॊश ने फनलामा था। मश 50 पी​ी गशयी

डॉ.प्रऻा एसोभसमट प्रोपेसय ककयोड़ीभर भहाववद्मारम ,दद.वव.वव.

शै ।इवके ऩाव शी एक छोीा वा झयनानभ ु ा उताय

शै ब्जववे फशता आता ऩानी तेज आलाज के

वाथ झीर के ऩानी भें लभर जाता शै । ऩशाड़ों के फीच

पैरा

ऩानी

का

मश

वलस्ताय, बागती

रशयें ,ळाॊत भाशौर वुकूनदामक शै । लैवे मे एक

अच्छा–खावा वऩकननक प्लाइॊी शै जशाॊ फोदीॊग

बी शोती शै । झीर वे एक ककभी. की दयू ी ऩय भाथचमा वपायी ऩाकष का फोडष दे खकय शभने लशाॊ

का रुख ककमा ऩय ननयाळा शाथ रगी। लशाॊ के कभषचाियमों

ने

ननभाषणाधीन शै ।

फतामा

कक

मे

वऩपरशार

जोधऩुय घूभने के लरए दो ददन ऩमाषप्त शैं ऩय शभ मशाॊ तीन ददन थे। अॊनतभ ददन अनीव बाई ने

शभें

त्रिऩोलरमा

योड

ऩय

ब्स्थत

भाकेी

ऩशुॊचामा। मश एक व्मस्त फाजाय शै । ऩुयानी ददकरी के चाॊदनी चैक के फाजाय जैवा। अॊदय गलरमाॊ खुरती चरती शैं। कशीॊ रशियमा औय फॊधेज के कऩड़ों,ऩगडडमों ो़ कीदक ु ाने,कशीॊ फतषन,कशीॊ

जनू तमाॊ तो कशीॊ आबऴ ू ण। इव फाज़ाय को ऩैदर

दे खना शी वशी शै। इव फाजाय की चशर–ऩशर भें

आऩको वभाज के वबी लगों के रोग

ददखामी दे जाते शैं। भुख्म वड़क ऩय लभठाई की

फड़ी वी दक ु ान भें जाकय शभने भाले की फड़े आकाय की कचौड़ी को चाळनी भें डुफोकय खामा। लभची लड़ा औय यवभराई बी स्लाददष्ी थे।

याजस्थान के जोधऩुय ळशय ने अऩने इनतशाव ल

लतषभान दोनों वे शभें प्रबावलत ककमा। मश ळशय अत्मॊत जीलॊत ळशय शै । arambh.co.in

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आयम्ब ई-ऩत्रिका 2014-15

दहन्द्दी भसनेभा की अभबनेत्री

मश थी कक इनभे अलबनेता ने अलबनेिी के

(भेया कोना )(दस ू या अॊक)

खुद अऩनी लेळ–बूऴा फदर कय उनके ककयदाय

ब्जव प्रकाय वे वादशत्म वभाज का दऩषण शोता शैं उवी प्रकाय वे लवनेभा बी शभाये वभाज का दऩषण शैं,ब्जवभे वभाज के शय तफकें की छवल वलर्दमभान शोती शैं,लवनेभा एक भाध्मभ शैं ककवी बी पैळन,ककवी बी वूचना आदद को वभाज भें प्रचलरत

कयने

का…शभ

शय

ददन

नई–नई

तकनीकों वे नघये जा यशे शैं ,शभायी लवनेभा फनाने ल दे खन की ऩर्दधनत भें अत्मथधक फदराल आमा शैं । एक वभम था कक कपकभों भें केलर थचि शी ददखामे जाते थे,कपय वभम आमा फोरती कपकभों का,कपय यॊ गीन लवनेभा..औय आज का वभम‗थ्री.डी.‘कपकभों का आ गमा शैं ब्जवभें आऩ चीजों को भशवूव कयते शैं ना केलर बीतयी तौय अवऩतु बौनतक रूऩ भें बी, 1912भें बायत की ऩशरी कपकभ ऩुॊडियकफनी,शाॉराकक इव फात ऩय वललाद शैं कक इव कपकभ को दशन्दी लवनेभा की ऩशरी भानी जामे मा नशी क्मोंकक मश कपकभ भयाठी भें थी,ऩयन्तु ननवलषलाददत रूऩ वे1913भें फनी`याजा शयीळचन्ि`को दशन्दी लवनेभा जगत की ऩशरी कपकभ भानी जाती शैं ब्जवभें 57शजाय थचि थेथचि थे, 1931को ऩशरी वम्ऩण ू ष रूऩ वे वभर्द ृ ध कपकभ का ननभाषण ककमा गमा लश कपकभ थी`आरभ आया`जो ऩशरी फोरती कपकभ थी,इन वबी कपकभों की वफवे फड़ी खालवमत arambh.co.in

स्थान ऩय स्िी ऩािों का ननलाषश ककमा था मा ननबाए..स्लमॊ फाफा वाशे फ ने खुद ककतनी कपकभों भें स्िी ऩाि को ननबामा । इवका वफवे फड़ा कायण था कक उव वभम ब्स्िमों को लवनेभा भें काभ कयना तो दयू उन्शे कपकभ दे खने तक की बी अनूभनत नशी थी । ऩयन्तु वभम के वाथ रोगों की वोच बी फदरने रगी,वभाज ने ब्स्िमों बी लवनेभा जगत वे जुड़ने अथधकाय बी ददमा औय दे खने का बी । ऩयन्तु स्िी आखखय स्िी शैं वभाज ने न आज तक

उवे

ऩूणष

वम्भान

ददमा

शी

अथधकाय!आज शभ स्िी वलभळष की इतनी फड़ी– फड़ी फातें कयते शैं ऩय ननचरे स्तय ऩय शभ उवका वलऩयीत कय यशे शैं,लवनेभा जगत भें शभ अलबनेत्रिमों की फात कयें तो ऩाएगे की शभने अऩने भनोयजन के लरए एक अलबनेिी को मा मूॉ एर स्िी को कशाॉ रा खड़ा ककमा शै ,दशन्दी लवनेभा भें अलबनेिी को शभेळा वे एक अलबनेता वे ननचरा मा उववे फाद का स्थान लभरता शैं(कुछ अऩलादों को छोड़ दें )मशाॉ ळुरुआत भे कशी गमी फात वात्रफत शोती शैं कक लवनेभा बी वादशत्म की शी बाॉनत वभाज का दऩषण शोता शैं..वभाज की शी बाॉनत लवनेभा भें बी स्िी को ऩुरुऴ वे नीचे का स्थान लभरा शैं ..आज ब्जन कपकभों का ननभाषण ककमा जा यशा शै उनभे अथधकतय कपकभें ऩुरुऴ प्रधान शैं,अलबनेत्रिमाॅे Page 151


आयम्ब ई-ऩत्रिका 2014-15 को

अलबनेता

के

फयाफय

का

ककयदाय

नशी

वीभा नशी शै लशी अलबनेत्रिमों के लरमे एक उम्र

लभरता..शार शी भे दयू दळषन ऩय आने लारे एक

के फाद उवे भुख्म ऩाि के स्थान ऩय एकतयपा

जनदशतकायी कामषिभ भे इवी भुर्ददे ऩय फात की

ककयदाय लभरता शै । अलबनेताओॊ भें50लऴष का

गमी कक लवनेभा जगत भे आज बी ब्स्िमों को

व्मब्क्त बी20लऴष के रड़के का ककयदाय ननबा

शीन बालना ल बोग की लस्तु भानी जाती शैं

वकता

उदाशयण के लरमे शभ दशन्दी लवनेभा के कुछ

वललाश ऩश्चात शी कपकभों भे काभ लभरना

गानों औय वॊलादों को रे तो दशन्दी लवनेभा भें

भुब्श्कर शो जाता शै । आखखय भें शभ दे ख वकते

ब्स्िमों कक दमनीम ब्स्थनत का ऩता चरेगा मे

शैं कक दशन्दी लवनेभा भें एक अलबनेता औय

कुछ उदाशयण शैं–फस,रे न औय रड़की…तू चीज़

अलबनेिी के भध्म ककतना अन्तय शैं ..आज शभ

फड़ी हैं भस्त भस्त..

स्िी ल ऩुरुऴ के फीच वभानता की फात कयतें

औय बी अनेको उदाशयण शैं जो अलबनेिी के

शैं,शभ शी रोग लवनेभा शॉर भे जाकय ककवी बी

उऩशाव को दळाषतें शै । ब्जन्शे ळामद इव रेख

अवॊलेदनात्भक

भे नशी लरखा जा वके इवका कायण उन गानों

जरूयत शैं एक फेशद स्लच्छ भानलवकता औय

की एलॊ उन वॊलादों की अबिता शैं ।

स्लच्छ

बायत जैवै वलकावळीर दे ळ भें एक लऴष भें

स्लच्छता आए ।

शै

ऩयन्तु

लवनेभा

अथधकतय

दृश्मों की

ऩय

अलबनेत्रिमों को

तालरमा

ब्जववे

वभाज

ऩी​ीते भे

शैं बी

कयीफन1200कपकभों का ननभाषण ककमा जाता शै ब्जनवे अयफों का कयोफाय शोता शैं ,,इन आकडो ो़ वे इव फात वे ऩता रगामा जा वकता शैं कक

ववकास कुभाय (प्रधान सम्ऩादक)

इन कपकभों का फच्चों,ककळोयों एलॊ अन्म रोगों ऩय ककतना गरत अवय ऩड़ता शोगा । अलबनेत्रिमों की दास्तान मशीॊ खत्भ नशी शोती मश तो केलर एक शी ऩशरू था,,दव ू या ऩशरू अबी फाकी शैं लवनेभा जगत के फाशय बी अलबनेत्रिमों के वाथ ठीक व्मलशाय नशी ककमा जाता कपय लश अलबनेताओॊ वे कभ ऩाियश्रलभक ऩाना शी क्मों ना शो । लशी एक अलबनेताओॊ के काभ कयने के लरमे ककवी प्रकाय की उम्र की arambh.co.in

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आयम्ब ई-ऩत्रिका 2014-15

भदहरा ददवस का इततहास औय आज

इतलाय23पयलयी को ऩड़ा औय ग्रेगेियमन कैरेंडय के अनुवाय मश ददन8भाचष था,ब्जवके चरते8भाचष को शी अन्तययाष्ट्रीम भदशरा ददलव भनामा जाने रगा । भदशरा ददलव का इनतशाव फशुत शी फड़ा

(भेया कोना )(तीसया अॊक)

शै औय ऊऩय जो बी फाते कशी गमी शै लश

भदशरा ददलव का इनतशाव कयीफफन एक वौ छ्

उवका एक वॊक्षषप्त रूऩ शै ।

वार ऩुयाना शै ,इवकी ळुरूआत1908भें शुई मे

आज एक वौ छ् वार फाद बी इव फात ऩय

अरग

जाने

चचाष शोती शै कक क्मा भदशराओॊ को उनका

रगा,1908वे इवलरए भाना जाता शै क्मोंकक इव

अथधकाय लभरा मा नशी,शभ चाशे ब्जतनी फातें

लऴष‗इॊीयनेळनर रेडडव लकषव मुननमन‗ (वॊमुक्त

कय रे ऩय शभाया भन जानता शै कक भदशराओॊ

याष्ट्र)र्दलाया शडतार की गई ब्जवको माद कय

ककतना अथधकाय लभरा शै ,शभ केलर बायत की

के1909भें ऩशरी फाय अभेियका भें वोळलरस्ी

फात कयें तो एक वले के अनुवाय बायत भें

ऩाी​ी ने अन्तययाष्ट्रीम भदशरा ददलव28पयलयी

शय20लभनी भें एक फरात्काय शोता शै ,एक तयप

को

1910भें ‗वोळलरस्ी

शभ अऩनी वभ्मता भें दे ली ऩूजन कयते शै लशी

इॊीयनेळनर‗के कोऩेनशेगन के वम्भेरन भें इवे

अवर ब्जॊदगी भें शभ उव शी ईश्लय वन् ु दतभ

अन्तयाषष्ट्रीम दजाष ददमा गमा औय पयलयी के

कृनत को अऩने ऩैयों के नीचे दफा कय यखना

आखखयी यवललाय को भनामा जाना तम शुआ,इव

चाशते शै (भाप कयें ऩय मशी आज के वभाज का

ददलव

था

वच शै )शभाये वभाज भें आज नायी को आगे

भदशराओॊ को लोी ददरलाना क्मोंकक उव वभम

फढ़ने फशुत वाये भौके ददए जा यशे शैं ऩयन्तु

लोी दे ने का अथधकाय भदशराओॊ को नशी था

उवभें बी कई फॊददळे रगा कय जैवे आज एक

।1917भे रुव की भदशराओॊ ने भदशरा ददलव के

भादशरा मदद ककवी फशुयाष्ट्रीम कम्ऩनी भे काभ

शी ददन योी​ी औय कऩड़े के लरए एक शडतार

कयती शै ,ळाभ को उवे घय रौीने भें जया बी

की,ब्जवने इनतशाव यचा,मश लश वभम था जफ

दे यी शो जाए तो उवका ऩनत,वऩता मा बाई उववे

रुव भे फाकक दनु नमा वे अरग जुलरमन कैरें डय

इतने वलार कयने रगते शै जैवे न जाने दव

चरता था औय ऩुयी दनु नमा भें भें ग्रेगेियमन

लभनी की दे यी एक खन ु के वभान शो गई शो ।

कैरें डय,मश दोनों कैरेंडय अरग थे ब्जववे की

एक औयत अऩने घय भे उव गाड़ी की स्ीै ऩनी

इनकी तायीखों कापी अॊतय था जुलरमन कैरें डय

की तयश शोती शै ब्जवे गाड़ी के ककवी बी ऩदशमे

के

के खयाफ शोने ऩय जोड़ ददमा जाता शै उवी

फात

शै

भनामा

को

भनाए

अनव ु ाय1917भे

arambh.co.in

इवे1909वे

गमा,

जाने

भनामा

प्रथभ

पयलयी

उर्ददे श्म

का

आखखयी

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आयम्ब ई-ऩत्रिका 2014-15 प्रकाय लश बी अऩने जीलन को वॊऩूणष रूऩ वे ऩियलाय को वौंऩ दे ती शै औय जरुयत ऩड़ने ऩय लश शय प्रकाय के काभ कयती शै एक ऩुरुऴ एक

ऻान का एक अततरयतत साधन

लक्त को ीूी बी जाता शै ऩयॊ तु एक स्िी जफ

:-ऑनराइन जगत

वभम को वलऩयीत शोते दे खती शै तो उवभे वुधाय कय के भानती शै मश उवकी वशनळीरता

(भेया कोना )(चौथा अॊक)

का शी एक उदाशयण शै । भदशरा ददलव एक याजनीनतक िाॊनत के फाद ळुरू शुआ ऩयॊ तु आज मश केलर भदवष डे औय लेरेंीाइन डे का एक लभश्रण फन कय यशा गमा शै !!ऐवे भें शभें जरुयत शै कक शभ इवके प्रनत जागरुक शो औय भन भे एक फात गाठ फाॊध रे की भदशराएॊ शभवे नीचे की नशी फब्कक फयाफय की

शकदाय

अलधायणा

शै शभाये

ताकक

जो

आज

वभाज,शभायी

तक

की

वॊस्कृनत,शभाये

लवनेभा,शभाये वादशत्म,शभाये ऩियलाय औय खाव

एक वभम था जफ एक वलर्दमाथी को अऩनी लळषा प्राब्प्त के लरए भीरों दयू अऩने घय–र्दलाय को छोड़ कय ककवी गरू ु कुर भें

जाना ऩड़ता था ,ब्जवभे वलर्दमाथी को अऩने जीलन

की

वैर्दधाॊनतक

लळषा

के

वाथ

व्मलशाियक लळषा को बी ग्रशण कयता था । धीये –धीये वभम फीता औय कपय शभाये वभाज भें वलर्दमारमी लळषा की स्थाऩना शुई जो आज तक भौजूद औय आने लारे कई वारों तक

कय शभाये भन ब्स्िमों को रेकय फनी शुई शै लश

यशे गी ऩय आज लळषा के तयीकों भें फशुत वे फदराल आ गमे शै ,आज के वलर्दमाथथषमों की

खॊडडत शो औय उवकी जगश एक नई अलधायणा

लळषा केलर ककताफों वे ऩूयी नशी शोती आज ककताफों

स्थावऩत शो वके । ववकास कुभाय सॊचारकएवॊ प्र.सम्ऩादक

के

आराला

ऑनराइन

स्रोतों

का

वशाया रेना ऩड़ता शै ब्जववे उनकी लळषा प्राब्प्त ल सान प्राब्प्त भें वलस्ताय आमा शै । आज के वलर्दमारमों भें ‗स्भाीष क्राव‗ जैवी चीजें दे खने को लभर यशी शै ,जो आज की लळषा ऩर्दधनत के लरए जरूयी बी शै । ऑनराइन स्रोत का जगत फशुत शी व्माऩक शै , आज आऩको ककवी वलर्दमारम की जरुयत नशी , आऩ को ककवी प्रकाय की मोग्मता की जरुयत नशी फव आऩके बीतय ककवी चीज को वीखने की चाश शोने जरुयत शै औय मश आऩ

arambh.co.in

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आयम्ब ई-ऩत्रिका 2014-15 ऩय ननबषय कयता शै कक आऩ क्मा वीखना

आज वलसाऩन षैि भें ऑनराइन जगत एक

चाशते शै आज ऑनराइन स्रोतों भे एक फभ फनाने वे रेकय बाऴा को वीखने औय वई ू को

फशुत कायगय वात्रफत शुआ शै जो व्माऩाय को औय भजफत ु बी कय यशा शै । आज गग ु र जो

तयीके भौजद ु शै । आज शभ इॊीयनेी के

इॊजन) शै ,आऩ

भाध्मभ वे ऑनराइन स्रोतों के र्दलाया कई

ब्जवकी बी जानकायी रेना चाशते शै फव इव

वायी चीजों की लळषा को ग्रशण कय वकते

ऩय लरखे औय कुछ शी वैकॊडो भें आऩके

फनाने वे रेकय शलाई जशाज फनाने के वबी

शै ..अफ भै अऩनी शी फात कशूॊ तो इव ऩत्रिका वलचाय बी भेये बीतय ऑनराइन ककवी अन्म ऩत्रिका वे शी आमा था, इव ऩत्रिका के लरए एक लेफवाइी की आलश्मकता थी ब्जवको

कक

एक

ऑनराइन जो

बी

खोजी

वाइी (वचष

खोजना

चाशते

शै

वाभने रा दे ता शै , ब्जववे आऩके सान का वलकाव शोता शै । ऑनराइन जगत भें एक अरग वी दनु नमा स्थावऩत शोती जा यशी शै ब्जव शभ आभतौय

ननलभषत कयना बी भैने ऑनराइन स्रोतों वे शी

ऩय

वीखा उवके फाद ऩत्रिका के प्रकाळन वे रेकय

अरग –अरग

उवकी छोी​ी वे छोी​ी चीज बी ऑनराइन

अनुवाय भौजुद शै वबी को प्रमोग कयने के

स्रोतों के भाध्मभ वे वीखा

वोळर

भीडडमा

कशते

वाइी

ब्जवके

आऩकी

लरए

वुवलधा

के

तयीके अरग–अरग शै । वोळर भीडडमा वे

ऑनराइन स्रोतों भें आऩको कई ऐवी चीजें बी लभरती शै जो वभाज के लरए शननकायक बी

बी फशुत वी चीजें वीखने को लभर वकती शै मशाॉ आऩको अरग –अरग व्मब्क्तत्ल के रोग

शोती शै जैवा कक भैनें ऩशरे बी कशा कक मश

लभरते शै

आऩ ऩय ननबषय कयती शै कक आऩ क्मा ग्रशण

अनुबल बी लभरता शै ।

कयते शै मे आऩ ऩय ननबषय कयता शै , जो

ब्जववे आऩको कई चीजों का

वोळर भीडडमा ने एक व्मब्क्त को व्मब्क्तगत

आऩको फशुत आगे बी रे जा वकता शै मा आऩको फशुत नीचे बी रे जा वकता शै । मशाॉ

शोते शुए बी वाभाब्जक फना ददमा शै ,आज लश अऩनी वॊऩूणष ददनचमाष को वोळर भीडडमा के

वलदे ळ , याज्म– याजधानी ,गाॊल–दे शात शय एक

ऩय शभ वोळर भीडडमा के भाध्मभ वे रोगों

जगश की ऩर –ऩर की जनाकायी आऩको कुछ

को फधाई दे ते शै औय ककवी दख ु द वभाचाय

सान

का

अऩाय

ब्रह्भाणड

शै

दे ळ–

शी षण भें आऩके ऩाव शोती शै ,आज आऩ ो़ लभनीों भें अऩने घय भें फैठे–फैठे शजायों भीरों

भाध्मभ वे वाझा कयता शै , ककवी बी त्मौशाय

ऩय अऩना दख ु बी प्रकी कयते शै ,मश वबी अगय

अऩने

अब्स्तत्ल

भें

शै

तो

केलर

दयू अऩने वप्रमजनों वे ब्जतनी दे य चाशे फातें

ऑनराइन जगत के भाध्मभ वे ।

कय वकते शैं ,आज वलश्ल भें कई ऐवे दे ळ शै

अॊत् आज के वभम भें ऑनराइन जगत

जशाॉ ऑनराइन लोदीॊग की ववू लधा भौजद ु शै

शभायी लळषा, शभाये

जो न केलर शभायें वभम की फचत कयता शै फब्कक वुयक्षषत बी शै औय इवके आराला arambh.co.in

सान के वलकाव औय

वलस्ताय के लरए एक भूरबूत आलळमकता

Page 155


आयम्ब ई-ऩत्रिका 2014-15 फन गमा शै ब्जवके भाध्मभ वे शभ आगे फढ़ वकते शै औय अऩना वलकाव कय वकते शै ।

ववकास कुभाय प्र.सॊऩादक

arambh.co.in

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