Hindi vyakaran

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ह द

याकरण

ान क

वे शका

ह द याकरण TAT ,

TET-I, II

HTAT

भाषा

, वण- वचार, श द- वचार, पद- वचार, सं ा के वकारक त व, वचन, कारक, सवनाम, वशेषण, या, काल, वा य, यावशेषण, संबंधबोधक अ यय, समु यबोधक अ यय, व मया दबोधक अ यय, श द-रचना, यय, सं ध, समास, पद-प रचय, श द- ान, वराम- च न, वा य- करण, अशु वा य के शु प, मुहावरे और लोकोि तयाँ भाषा

याकरण और बोल

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यह पु तक

ह द

याकरण

ान क

वे शका है ।

आशा है क पाठकगण इसका समु चत लाभ उठा पायगे। य द आप इस प ृ ठ पर कोई

ु ट दे ख तो हमे अव य

लख ता क भूल सुधार करके सह सम

ान पाठक

के

तुत कया जा सके। - ध यवाद

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वषयानु म णका 1.

भाषा, याकरण और बोल

2.

वण- वचार

3.

श द- वचार

4.

पद- वचार

5.

सं ा के वकारक त व

6.

वचन

7.

कारक

8.

सवनाम

9.

वशेषण

10.

या

11.

काल

12.

वा य

13.

या- वशेषण

14.

संबंधबोधक अ यय

15.

समु यबोधक अ यय

16. 17. 18.

व मया दबोधक अ यय श द-रचना यय

19.

सं ध

20.

समास

21.

पद-प रचय

22.

श द- ान

23.

वराम- च न

24.

वा य- करण

25.

अशु वा य के शु

26.

मुहावरे और लोकोि तयाँ

अ याय 1 भाषा, याकरण और बोल [Ahalgama Aashwin v 9904643643 www.ashwin100.webs.com

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प रभाषाभाषा अ भ यि त का एक ऐसा समथ साधन है िजसके दस ू र पर

वारा मनु य अपने वचार को

कट कर सकता है और दस ू र के वचार जाना सकता है ।

संसार म अनेक भाषाएँ ह। जैसे1.

ह द

6.

पंजाबी

11.

2.

सं कृत

7.

उद ू

12.

चीनी

3.

अं ेजी

8.

तेलुगु

13.

जमन इ या द।

4.

बँगला

9.

मलयालम

5.

गुजराती

10.

क नड़

भाषा के

कार- भाषा दो

कार क होती है-

1. मौ खक भाषा। 2. ल खत भाषा। आमने-सामने बैठे यि त पर पर बातचीत करते ह अथवा कोई यि त भाषण आ द वचार

कट करता है तो उसे भाषा का मौ खक

जब यि त कसी दरू बैठे यि त को प वचार

प कहते ह।

वारा अथवा पु तक एवं प -प काओं म लेख

कट करता है तब उसे भाषा का ल खत

वारा अपने वारा अपने

प कहते ह।

याकरण मनु य मौ खक एवं ल खत भाषा म अपने वचार कट कर सकता है और करता रहा है क तु इससे भाषा का कोई नि चत एवं शु नि चत करने के लए नयमब

व प ि थर नह ं हो सकता। भाषा के शु

और

योजना क आव यकता होती है और उस नयमब

थायी

प को

योजना को हम

याकरण कहते ह।

प रभाषा-

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याकरण वह शा एवं शु

योग का वशद

भाषा का पण ू

है िजसके

वारा कसी भी भाषा के श द और वा य के शु

व प

ान कराया जाता है । भाषा और याकरण का संबंध- कोई भी मनु य शु

ान याकरण के बना

ा त नह ं कर सकता। अतः भाषा और याकरण का घ न ठ

संबंध ह वह भाषा म उ चारण, श द- योग, वा य-गठन तथा अथ के योग के

प को नि चत करता

है । याकरण के वभाग- याकरण के चार अंग नधा रत कये गये ह1. वण- वचार।

3. पद- वचार।

2. श द- वचार।

4. वा य वचार।

बोल भाषा का

े ीय

प बोल कहलाता है । अथात ् दे श के व भ न भाग म बोल जाने वाल

भाषा बोल कहलाती है और कसी भी

े ीय बोल का ल खत प म ि थर सा ह य वहाँ क भाषा

कहलाता है ।

लप कसी भी भाषा के लखने क ह द और सं कृत भाषा क

व ध को ‘ ल प’ कहते ह।

ल प का नाम दे वनागर है ।

अं ेजी भाषा क ल प ‘रोमन’, उद ू भाषा क

ल प फारसी,

पंजाबी भाषा क

ल प गु मुखी है ।

सा ह य ान-रा श का सं चत कोश ह सा ह य है । सा ह य ह जीवंत रखने का- उसके अतीत वभ न प

को

प को दशाने का एकमा

प ट करता है और पाठक एवं

कसी भी दे श, जा त और वग को

सा य होता है । यह मानव क अनुभू त के

ोताओं के

दय म एक अलौ कक अ नवचनीय

आनंद क अनुभू त उ प न करता है ।

अ याय 2 प रभाषा- ह द भाषा म

वण- वचार यु त सबसे छोट

व न वण कहलाती है । जैसे-अ, आ, इ, ई, उ, ऊ, क् , ख ् आ द।

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वणमाला वण के समुदाय को ह वणमाला कहते ह। ह द वणमाला म 44 वण ह। उ चारण और योग के आधार पर ह द वणमाला के दो भेद कए गए ह-

1. वर 2. यंजन वर

िजन वण का उ चारण ह वे

वतं

प से होता हो और जो यंजन के उ चारण म सहायक

वर कहलाते है । ये सं या म यारह हअ, आ, इ, ई, उ, ऊ, ऋ, ए, ऐ, ओ, औ।

उ चारण के समय क व

वर।

2. द घ

वर।

1.

3. लत ु 1.

ि ट से

वर के तीन भेद कए गए ह-

वर।

व वर िजन

वर के उ चारण म कम-से-कम समय लगता ह उ ह

ह- अ, इ, उ, ऋ। इ ह मूल

वर कहते ह। ये चार

वर भी कहते ह।

2. द घ वर िजन

वर के उ चारण म

वर से दग ु ुना समय लगता है उ ह द घ

ह द म सात ह- आ, ई, ऊ, ए, ऐ, ओ, औ। वशेष- द घ चा हए। यहाँ द घ श द का 3. लुत

ायः इनका

वर का द घ

प नह ं समझना

योग उ चारण म लगने वाले समय को आधार मानकर कया गया है ।

वर

िजन ह।

वर को

वर कहते ह। ये

वर के उ चारण म द घ

वर से भी अ धक समय लगता है उ ह लुत

वर कहते

योग दरू से बुलाने म कया जाता है ।

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मा ाएँ

वर के बदले हुए व प को मा ा कहते ह वर मा ाएँ श द:-

वर क मा ाएँ न न ल खत ह-

अ × कम

ऋ ◌ृ तण ृ

आ ◌ा काम

ए ◌े केश

इ ि◌ कसलय

ऐ ◌ै है

ई ◌ी खीर

ओ ◌ो चोर

उ ◌ु गुलाब

औ ◌ौ चौख

ऊ ◌ू भूल अ वण ( वर) क कोई मा ा नह ं होती। यंजन का अपना क् च ्

व प न न ल खत ह-

ज ् झ ् त ् थ ् ध ् आ द।

अ लगने पर यंजन के नीचे का (हल) च न हट जाता है । तब ये इस

कार लखे जाते ह-

क च छ ज झ त थ ध आ द।

यंजन िजन वण के पूण उ चारण के लए अथात यंजन बना

वर क सहायता ल जाती है वे यंजन कहलाते ह।

वर क सहायता के बोले ह नह ं जा सकते। ये सं या म 33 ह। इसके

न न ल खत तीन भेद ह-

1. पश 2. अंतः थ 3. ऊ म

1. पश इ ह पाँच वग म रखा गया है और हर वग म पाँच-पाँच यंजन ह। हर वग का नाम पहले वग के अनुसार रखा गया है जैसे[Ahalgama Aashwin v 9904643643 www.ashwin100.webs.com

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क वग- क् ख ् ग ् घ ् च वग- च ्

ज् झ् ञ्

ट वग त वग- त ् थ ्

ण् (

)

ध् न्

प वग- प ् फ् ब ् भ ् म ् 2. अंतः थ ये न न ल खत चार ह-

य ् र् ल ् व ् 3. ऊ म ये न न ल खत चार ह-

श् ष् स् वैसे तो जहाँ भी दो अथवा दो से अ धक यंजन मल जाते ह वे संयु त यंजन कहलाते ह, क तु दे वनागर

ल प म संयोग के बाद

प-प रवतन हो जाने के कारण इन तीन को गनाया गया

है । ये दो-दो यंजन से मलकर बने ह। जैसे- =क् +ष अ र, ् और उ चत

=ज ्+ञ

ान, =त ्+र न

कुछ लोग

् को भी ह द वणमाला म गनते ह, पर ये संयु त यंजन ह। अतः इ ह वणमाला म गनना तीत नह ं होता।

अनु वार इसका

योग पंचम वण के

थान पर होता है । इसका च ह (◌ं) है । जैसे- स भव=संभव,

स जय=संजय, ग गा=गंगा।

वसग इसका उ चारण

के समान होता है । इसका च न (:) है । जैसे-अतः, ातः।

चं बंद ु [Ahalgama Aashwin v 9904643643 www.ashwin100.webs.com

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जब कसी

वर का उ चारण ना सका और मुख दोन से कया जाता है तब उसके

ऊपर चं बंद ु (◌ँ) लगा दया जाता है । यह अनुना सक कहलाता है । जैसे-हँसना, आँख। ह द वणमाला म 11 वर तथा 33 यंजन गनाए जाते ह, पर तु इनम ,

अं तथा अः जोड़ने पर ह द के वण क कुल सं या 48 हो जाती है ।

हलंत जब कभी यंजन का

योग

वर से र हत कया जाता है तब उसके नीचे एक तरछ

रे खा (◌्) लगा द जाती है । यह रे खा हल कहलाती है । हलयु त यंजन हलंत वण कहलाता है । जैसे- व या।

वण के उ चारण- थान मुख के िजस भाग से िजस वण का उ चारण होता है उसे उस वण का उ चारण थान कहते ह।

उ चारण म

थान ता लका

वण

उ चारण

1.

अ आ क् ख ् ग ् घ ्

2.

इ ई च्

3.

4.

त् थ्

5.

े णी

वसग कंठ और जीभ का नचला भाग कंठ थ

ज् झ् ञ् य् श

तालु और जीभ

ताल य

मूधा और जीभ

मूध य

दाँत और जीभ

दं य

उ ऊ प ् फ् ब ् भ ् म

दोन ह ठ

6.

ए ऐ

कंठ तालु और जीभ

कंठताल य

7.

ओ औ

दाँत जीभ और ह ठ

कंठो

8.

व्

दाँत जीभ और ह ठ

दं तोष ्

ण्

र् ष ्

ध् न् ल् स्

य य

अ याय 3 श द- वचार

प रभाषा-

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एक या अ धक वण से बनी हुई वतं साथक व न श द कहलाता है । जैसे- एक वण से न मत श द-न (नह ं) व (और) अनेक वण से न मत श द-कु ता, शेर,कमल, नयन, ासाद, सव यापी, परमा मा।

श द-भेद यु पि त (बनावट) के आधार पर श द-भेदयु पि त (बनावट) के आधार पर श द के न न ल खत तीन भेद ह1. ढ़ 2. यौ गक 3. योग ढ़ 1. ढ़ जो श द क ह ं अ य श द के योग से न बने ह और कसी वशेष अथ को तथा िजनके टुकड़ का कोई अथ नह ं होता, वे

कट करते ह

ढ़ कहलाते ह। जैसे-कल, पर। इनम क, ल, प, र का टुकड़े

करने पर कुछ अथ नह ं ह। अतः ये नरथक ह। 2. यौ गक जो श द कई साथक श द के मेल से बने ह ,वे यौ गक कहलाते ह। जैसेदे वालय=दे व+आलय

हमालय= हम+आलय

राजपु ष=राज+पु ष

दे वदत ू =दे व+दत ू आ द।

ये सभी श द दो साथक श द के मेल से बने ह। 3. योग ढ़ वे श द, जो यौ गक तो ह, क तु सामा य अथ को न

कट कर कसी वशेष अथ को

कट करते ह, योग ढ़ कहलाते ह। जैसे-पंकज, दशानन आ द। पंकज=पंक+ज (क चड़ म उ प न होने वाला) सामा य अथ म म

च लत न होकर कमल के अथ

ढ़ हो गया है । अतः पंकज श द योग ढ़ है ।

इसी कार दश (दस) आनन (मुख) वाला रावण के अथ म

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है ।

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उ पि त के आधार पर श द-भेद उ पि त के आधार पर श द के न न ल खत चार भेद ह1. त सम-

3. दे शज-

2. त व-

4. वदे शी या वदे शज-

1. त समजो श द सं कृत भाषा से ह द म बना कसी प रवतन के ले लए गए ह वे त सम कहलाते ह। जैसे-अि न,

े , वायु, रा , सूय आ द।

2. त वजो श द

प बदलने के बाद सं कृत से ह द म आए ह वे त व कहलाते ह।

जैसे-आग (अि न), खेत( े ), रात (रा ), सूरज (सूय) आ द।

3. दे शजजो श द

े ीय

भाव के कारण प रि थ त व आव यकतानुसार बनकर

च लत हो गए ह वे

दे शज कहलाते ह। जैसे-पगड़ी, गाड़ी, थैला, पेट, खटखटाना आ द।

4. वदे शी या वदे शजवदे शी जा तय के संपक से उनक भाषा के बहुत से श द ह द म यु त होने लगे ह। ऐसे श द वदे शी अथवा वदे शज कहलाते ह। जैसे- कूल, अनार, आम, कची,अचार, पु लस, टे ल फोन, र शा आ द। ऐसे कुछ वदे शी श द क सूची नीचे द जा रह है । अं ेजी- कॉलेज, प सल, रे डयो, टे ल वजन, डॉ टर, लैटरब स, पैन, टकट, मशीन, सगरे ट, साइ कल, बोतल आ द। फारसी- अनार,च मा, जमींदार, दक ु ान, दरबार, नमक, नमूना, बीमार, बरफ, माल, आदमी, चुगलखोर, गंदगी, चापलूसी आ द। [Ahalgama Aashwin v 9904643643 www.ashwin100.webs.com

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अरबी- औलाद, अमीर, क ल, कलम, कानून, खत, फक र, र वत, औरत, कैद , मा लक, गर ब आ द। तुक - कची, चाकू, तोप, बा द, लाश, दारोगा, बहादरु आ द। पत ु गाल - अचार, आलपीन, कारतूस, गमला, चाबी, तजोर , तौ लया, फ ता, साबुन, तंबाकू, कॉफ , कमीज आ द।

ांसीसी- पु लस, काटून, इं जी नयर, क यू, बगुल आ द।

चीनी- तूफान, ल ची, चाय, पटाखा आ द। यूनानी- टे ल फोन, टे ल ाफ, ऐटम, डे टा आ द। जापानी- र शा आ द।

योग के आधार पर श द-भेद

योग के आधार पर श द के न न ल खत आठ भेद है 1. सं ा 2. सवनाम 3. वशेषण 4.

या

5.

या- वशेषण

6. संबंधबोधक 7. समु चयबोधक 8. व मया दबोधक इन उपयु त आठ

कार के श द को भी वकार क

ि ट से दो भाग म बाँटा जा सकता है -

1. वकार 2. अ वकार

1. वकार श द िजन श द का

प-प रवतन होता रहता है वे वकार श द कहलाते ह।

जैसे कु ता, कु ते, कु त , म मझ ु े,हम अ छा, अ छे खाता है , खाती है , खाते ह। इनम सं ा, सवनाम, वशेषण और

या वकार श द ह।

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2. अ वकार श द िजन श द के

प म कभी कोई प रवतन नह ं होता है वे अ वकार श द कहलाते ह।

जैसेयहाँ, क तु, न य, और, हे अरे आ द। इनम

या- वशेषण, संबंधबोधक, समु चयबोधक और व मया दबोधक आ द ह।

अथ क अथ क

ि ट से श द-भेद

ि ट से श द के दो भेद ह-

1. साथक 2. नरथक 1. साथक श द िजन श द का कुछ-न-कुछ अथ हो वे श द साथक श द कहलाते ह। जैसेरोट , पानी, ममता, डंडा आ द। 2. नरथक श द िजन श द का कोई अथ नह ं होता है वे श द नरथक कहलाते ह। जैसेरोट -वोट , पानी-वानी, डंडा-वंडा इनम वोट , वानी, वंडा आ द नरथक श द ह। वशेष- नरथक श द पर याकरण म कोई वचार नह ं कया जाता है ।

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अ याय 4 पद- वचार [Ahalgama Aashwin v 9904643643 www.ashwin100.webs.com

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साथक वण-समूह श द कहलाता है , पर जब इसका योग वा य म होता है तो वह रहता बि क याकरण के नयम म बँध जाता है और श द वा य म

ायः इसका

वतं

नह ं

प भी बदल जाता है । जब कोई

यु त होता है तो उसे श द न कहकर पद कहा जाता है ।

ह द म पद पाँच

कार के होते ह-

1. सं ा

4.

या

2. सवनाम

5. अ यय

3. वशेषण 1. सं ा कसी यि त, थान, व तु आ द तथा नाम के गुण, धम, वभाव का बोध कराने वाले श द सं ा कहलाते ह। जैसे- याम, आम, मठास, हाथी आ द। सं ा के

कार- सं ा के तीन भेद ह-

1. यि तवाचक सं ा। 2. जा तवाचक सं ा। 3. भाववाचक सं ा। 1. यि तवाचक सं ा िजस सं ा श द से कसी वशेष, यि त, ाणी, व तु अथवा

थान का बोध हो उसे यि तवाचक सं ा

कहते ह।जैसे-जय काश नारायण, ीकृ ण, रामायण, ताजमहल, कुतुबमीनार, लाल कला हमालय आ द। 2. जा तवाचक सं ा िजस सं ा श द से उसक संपूण जा त का बोध हो उसे जा तवाचक सं ा कहते ह। जैसे-मनु य, नद , नगर, पवत, पशु, प ी, लड़का, कु ता, गाय, घोड़ा, भस, बकर , नार , गाँव आ द। 3. भाववाचक सं ा िजस सं ा श द से पदाथ क अव था, गुण-दोष, धम आ द का बोध हो उसे भाववाचक सं ा कहते ह। जैसे-बुढ़ापा, मठास, बचपन, मोटापा, चढ़ाई, थकावट आ द। वशेष व त य- कुछ व वान अं ेजी याकरण के

भाव के कारण सं ा श द के दो भेद और बतलाते

ह1. समद ु ायवाचक सं ा। 2.

यवाचक सं ा।

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1. समुदायवाचक सं ा िजन सं ा श द से यि तय , व तुओं आ द के समूह का बोध हो उ ह समुदायवाचक सं ा कहते ह। जैसे-सभा, क ा, सेना, भीड़, पु तकालय दल आ द। 2.

यवाचक सं ा

िजन सं ा-श द से कसी धातु,

य आ द पदाथ का बोध हो उ ह

यवाचक सं ा कहते ह।

जैसे-घी, तेल, सोना, चाँद ,पीतल, चावल, गेहूँ, कोयला, लोहा आ द। इस

कार सं ा के पाँच भेद हो गए, क तु अनेक व वान समुदायवाचक और

जा तवाचक सं ा के अंतगत ह मानते ह, और यह उ चत भी भाववाचक सं ा बनाना- भाववाचक सं ाएँ चार

यवाचक सं ाओं को

तीत होता है ।

कार के श द से बनती ह। जैसे-

1. जा तवाचक सं ाओं से दास दासता पं डत पां ड य बंधु बंधु व य

पु ष पु ष व भु

भुता

पशु पशुता,पशु व य व

ा मण

ा मण व

म ता

बालक बालकपन ब चा बचपन नार नार व

2. सवनाम से अपना अपनापन, अपन व नज नज व, नजता

व व

सव सव व

अहं अहं कार मम मम व,ममता

पराया परायापन 3. वशेषण से मीठा मठास

मधुर माधुय

चतुर चातुय, चतुराई

सद ंु र स दय, सद ुं रता

हरा ह रयाल

खेलना खेल

लेना-दे ना लेन-दे न

मुसकाना मुसकान

थकना थकावट

पढ़ना पढ़ाई

कमाना कमाई

मलना मेल

उतरना उतराई

4.

नबल नबलता सफेद सफेद

या से

लखना लेख, लखाई हँसना हँसी

चढ़ना चढ़ाई

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उड़ना उड़ान Page 16


रहना-सहना रहन-सहन

दे खना-भालना दे ख-भाल

अ याय 5 सं ा के वकारक त व

िजन त व के आधार पर सं ा (सं ा, सवनाम, वशेषण) का

पांतर होता है वे वकारक त व

कहलाते ह।

वा य म श द क ि थ त के आधार पर ह उनम वकार आते ह। यह वकार लंग, वचन और

कारक के कारण ह होता है ।

जैसे-लड़का श द के चार

प- 1.लड़का, 2.लड़के, 3.लड़क , 4.लड़को-केवल वचन और कारक के

कारण बनते ह।

लंग- िजस च न से यह बोध होता हो क अमुक श द पु ष जा त का है अथवा

ी जा त का

वह लंग कहलाता है [Ahalgama Aashwin v 9904643643 www.ashwin100.webs.com

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प रभाषाश द के िजस का

प से कसी यि त, व तु आ द के पु ष जा त अथवा

ी जा त के होने

ान हो उसे लंग कहते ह।

जैसे-लड़का, लड़क , नर, नार आ द। इनम ‘लड़का’ और ‘नर’ पुि लंग तथा लड़क और ‘नार ’

ी लंग ह।

ह द म लंग के दो भेद ह1. पिु लंग। 2.

ी लंग।

1. पुि लंग िजन सं ा श द से पु ष जा त का बोध हो अथवा जो श द पु ष जा त के अंतगत माने जाते ह वे पुि लंग ह। जैसे-कु ता, लड़का, पेड़, संह, बैल, घर आ द। पुि लंग क पहचान 1. आ, आव, पा, पन न ये

यय िजन श द के अंत म ह वे

ायः पिु लंग होते ह। जैसे- मोटा, चढ़ाव,

बुढ़ापा, लड़कपन लेन-दे न। 2. पवत, मास, वार और कुछ

ह के नाम पुि लंग होते ह जैसे- वं याचल, हमालय, वैशाख, सूय, चं ,

मंगल, बुध, राहु, केतु ( ह)। 3. पेड़ के नाम पुि लंग होते ह। जैसे-पीपल, नीम, आम, शीशम, सागौन, जामुन, बरगद आ द। 4. अनाज के नाम पुि लंग होते ह। जैसे-बाजरा, गेहूँ, चावल, चना, मटर, जौ, उड़द आ द। 5. व पदाथ के नाम पुि लंग होते ह। जैसे-पानी, सोना, ताँबा, लोहा, घी, तेल आ द। 6. र न के नाम पुि लंग होते ह। जैसे-ह रा, प ना, मूँगा, मोती मा णक आ द। 7. दे ह के अवयव के नाम पुि लंग होते ह। जैसे- सर, म तक, दाँत, मुख, कान, गला, हाथ, पाँव, ह ठ, तालु, नख, रोम आ द। 8. जल, थान और भूमंडल के भाग के नाम पिु लंग होते ह। जैसे-समु , भारत, दे श, नगर, वीप, आकाश, पाताल, घर, सरोवर आ द। 9. वणमाला के अनेक अ र के नाम पुि लंग होते ह। जैसे-अ,उ,ए,ओ,क,ख,ग,घ, च,छ,य,र,ल,व,श आ द।

2.

ी लंग

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िजन सं ा श द से

ी जा त का बोध हो अथवा जो श द

ी जा त के अंतगत माने जाते ह वे

ी लंग ह। जैसे-गाय, घड़ी, लड़क , कुरसी, छड़ी, नार आ द। ी लंग क पहचान 1. िजन सं ा श द के अंत म ख होते है , वे

ी लंग कहलाते ह। जैसे-ईख, भूख, चोख, राख, कोख, लाख,

दे खरे ख आ द। 2. िजन भाववाचक सं ाओं के अंत म ट, वट, या हट होता है , वे

ी लंग कहलाती ह। जैसे-झंझट, आहट,

चकनाहट, बनावट, सजावट आ द। 3. अनु वारांत, ईकारांत, ऊकारांत, तकारांत, सकारांत सं ाएँ

ी लंग कहलाती है । जैसे-रोट , टोपी, नद , च ी,

उदासी, रात, बात, छत, भीत, लू, बालू, दा , सरस , खड़ाऊँ, यास, वास, साँस आ द। 4. भाषा, बोल और ल पय के नाम

ी लंग होते ह। जैसे- ह द , सं कृत, दे वनागर , पहाड़ी, तेलुगु पंजाबी

गु मख ु ी। 5. िजन श द के अंत म इया आता है वे 6. न दय के नाम

ी लंग होते ह। जैसे-गंगा, यमुना, गोदावर , सर वती आ द।

7. तार ख और त थय के नाम 8. प ृ वी 9. न

ी लंग होते ह। जैसे-कु टया, ख टया, च ड़या आ द।

ी लंग होते ह। जैसे-पहल , दस ू र,

तपदा, पू णमा आ द।

ी लंग होते ह।

के नाम

ी लंग होते ह। जैसे-अि वनी, भरणी, रो हणी आ द। श द का लंग-प रवतन

यय ई

पुि लंग

लु टया

माल

मा लन

घोड़ी

दे व

दे वी

कहार

कहा रन

दादा

दाद

सुनार

सुना रन

लड़का

लड़क

लुहार

लुहा रन

धोबी

धो बन

मोर

मोरनी

हाथी

हा थन

संह

संहनी

नौकर

नौकरानी

ा मणी

नर

नार

बकरा

बकर

चूहा

चु हया

चड़ा

इन

लोटा

घोड़ा

ा मण

इया

ी लंग

च ड़या

नी

आनी

बेटा

ब टया

चौधर

चौधरानी

गु डा

गु ड़या

दे वर

दे वरानी

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आइन आ

अक को इका

सेठ

सेठानी

जेठ

जेठानी

अ यापक

अ या पका

पं डत

पं डताइन

बालक

बा लका

ठाकुर

ठाकुराइन

लेखक

ले खका

बाल

बाला

सेवक

से वका

सत ु

सत ु ा

तप वी

तपि वनी

छा

छा ा

इनी (इणी)

पाठक

पा ठका

परोपकार

ी लंग

स ाट

स ा ी

भाई

भाभी

पु ष

नर

मादा

बैल

गाय

राजा

रानी

युवक

युवती

वशेष व त य- जो

ा णवाचक सदा श द ह

ी लंग ह अथवा जो सदा ह पुि लंग ह उनके पुि लंग

ी लंग जताने के लए उनके साथ ‘नर’ व ‘मादा’ श द लगा दे ते ह। जैसेपिु लंग

खटमल

मादा खटमल

म खी

नर म खी

चील

नर चील

कोयल

नर कोयल

कछुआ

नर कछुआ

नर गलहर

कौआ

नर कौआ

नर मैना

भे ड़या

मादा भे ड़या

नर ततल

उ लू

मादा उ लू

मादा बाज

म छर

मादा म छर

गलहर मैना ततल बाज

परोपका रनी

ी लंग म बलकुल ह बदल जाते ह।

माता

ी लंग

वा मनी

वामी

सास

अथवा

हतका रनी

श या

ससुर

पता

हतकार

श य

कुछ वशेष श द जो पुि लंग

करके

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अ याय 6 वचन

प रभाषाश द के िजस

प से उसके एक अथवा अनेक होने का बोध हो उसे वचन कहते ह।

ह द म वचन दो होते ह1. एकवचन 2. बहुवचन एकवचन श द के िजस

प से एक ह व तु का बोध हो, उसे एकवचन कहते ह। जैसे-लड़का, गाय, सपाह ,

ब चा, कपड़ा, माता, माला, पु तक,

ी, टोपी बंदर, मोर आ द।

बहुवचन श द के िजस

प से अनेकता का बोध हो उसे बहुवचन कहते ह।

जैसे-लड़के, गाय, कपड़े, टो पयाँ, मालाएँ, माताएँ, पु तक, वधुएँ, गु जन, रो टयाँ, ि एकवचन के

थान पर बहुवचन का

याँ, लताएँ, बेटे आ द।

योग

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(क) आदर के लए भी बहुवचन का योग होता है । जैसे(1) भी म पतामह तो मचार थे। (2) गु जी आज नह ं आये। (3) शवाजी स चे वीर थे। (ख) बड़ पन दशाने के लए कुछ लोग वह के

थान पर वे और म के

थान हम का

योग करते ह

जैसे(1) मा लक ने कमचार से कहा, हम मी टंग म जा रहे ह। (2) आज गु जी आए तो वे

स न दखाई दे रहे थे।

(ग) केश, रोम, अ ु, ाण, दशन, लोग, दशक, समाचार, दाम, होश, भा य आ द ऐसे श द ह िजनका

योग

बहुधा बहुवचन म ह होता है । जैसे(1) तु हारे केश बड़े सु दर ह। (2) लोग कहते ह। बहुवचन के थान पर एकवचन का योग (क) तू एकवचन है िजसका बहुवचन है तुम क तु स य लोग आजकल लोक- यवहार म एकवचन के लए तुम का ह

योग करते ह जैसे-

(1) म , तुम कब आए। (2) या तुमने खाना खा लया। (ख) वग, वंद ृ , दल, गण, जा त आ द श द अनेकता को

कट करने वाले ह, क तु इनका यवहार

एकवचन के समान होता है । जैसे(1) सै नक दल श ु का दमन कर रहा है । (2)

ी जा त संघष कर रह है ।

(ग) जा तवाचक श द का

योग एकवचन म कया जा सकता है । जैसे-

(1) सोना बहुमू य व तु है । (2) मंब ु ई का आम वा द ट होता है । बहुवचन बनाने के नयम (1) अकारांत ी लंग श द के अं तम अ को एँ कर दे ने से श द बहुवचन म बदल जाते ह। जैसेएकवचन

सड़क

सड़के

आँख

बहुवचन आँख

गाय

गाय

बहन

बहन

बात

बात

पु तक

पु तक

(2) आकारांत पुि लंग श द के अं तम ‘आ’ को ‘ए’ कर दे ने से श द बहुवचन म बदल जाते ह। जैसेएकवचन

बहुवचन

एकवचन

बहुवचन

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घोड़ा

घोड़े

कौआ

कौए

कु ता

कु ते

गधा

गधे

केला

केले

बेटा

बेटे

(3) आकारांत

ी लंग श द के अं तम ‘आ’ के आगे ‘एँ’ लगा दे ने से श द बहुवचन म बदल जाते ह।

जैसेएकवचन

एकवचन

क या

बहुवचन क याएँ

अ या पका

बहुवचन अ या पकाएँ

कला

कलाएँ

माता

माताएँ

क वता

क वताएँ

लता

लताएँ

(4) इकारांत अथवा ईकारांत

ी लंग श द के अंत म ‘याँ’ लगा दे ने से और द घ ई को

व इ कर दे ने

से श द बहुवचन म बदल जाते ह। जैसेएकवचन

एकवचन

बु

बहुवचन बु याँ

गत

बहुवचन ग तयाँ

कल

क लयाँ

नी त

नी तयाँ

कॉपी

कॉ पयाँ

लड़क

लड़ कयाँ

थाल

था लयाँ

नार

ना रयाँ

(5) िजन

ी लंग श द के अंत म या है उनके अं तम आ को आँ कर दे ने से वे बहुवचन बन जाते ह।

जैसेएकवचन

एकवचन

गु ड़या

बहुवचन गु ड़याँ

ब टया

बहुवचन ब टयाँ

चु हया

चु हयाँ

कु तया

कु तयाँ

ख टया

ख टयाँ

गैया

गैयाँ

च ड़या बु ढ़या

च ड़याँ बु ढ़याँ

(6) कुछ श द म अं तम उ, ऊ और औ के साथ एँ लगा दे ते ह और द घ ऊ के साथन पर

व उ हो

जाता है । जैसेएकवचन गौ

बहुवचन गौएँ

एकवचन

वधू

वधूएँ

बहू व तु

धेनु

धेनुएँ

धातु

बहुवचन बहूएँ व तुएँ धातुएँ

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(7) दल, वंद ृ , वग, जन लोग, गण आ द श द जोड़कर भी श द का बहुवचन बना दे ते ह। जैसेएकवचन अ यापक

बहुवचन अ यापकवंद ृ

व याथ

व याथ गण

आप

आप लोग

ोता

ोताजन

(8) कुछ श द के

एकवचन म

बहुवचन म वग

सेना

सेनादल

गु

गु जन

गर ब

गर ब लोग

प ‘एकवचन’ और ‘बहुवचन’ दोनो म समान होते ह। जैसे-

एकवचन

बहुवचन मा

मा जल

जल

गर राजा

एकवचन नेता

बहुवचन नेता

ेम

ेम

गर

ोध

ोध

राजा

पानी

पानी

वशेष- (1) जब सं ाओं के साथ ने, को, से आ द परसग लगे होते ह तो सं ाओं का बहुवचन बनाने के लए उनम ‘ओ’ लगाया जाता है । जैसेएकवचन लड़के को बल ु ाओ

बहुवचन लड़को को बुलाओ

नद का जल ठं डा है न दय का जल

एकवचन ब चे ने गाना गाया

बहुवचन ब च ने गाना गाया

आदमी से पूछ लो

आद मय से पछ ू लो

ठं डा है (2) संबोधन म ‘ओ’ जोड़कर बहुवचन बनाया जाता है । जैसेब च !

यान से सुनो।

भाइय ! मेहनत करो। बहनो ! अपना कत य नभाओ।

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अ याय 7 कारक प रभाषा-सं ा या सवनाम के िजस

प से उसका सीधा संबंध

या के साथ

ात हो वह कारक कहलाता है । जैसे-गीता ने दध ू पीया। इस वा य म ‘गीता’ पीना

या का कता है और दध ू उसका कम। अतः ‘गीता’

कता कारक है और ‘दध ू ’ कम कारक। कारक वभि त- सं ा अथवा सवनाम श द के बाद ‘ने, को, से, के लए’, आ द जो च न लगते ह वे च न कारक वभि त कहलाते ह। ह द म आठ कारक होते ह। उ ह वभि त च न स हत नीचे दे खा जा सकता है कारक वभि त च न (परसग) 1. कता

ने

2. कम

को

3. करण

से, के साथ, के

4. सं दान

के लए, को

5. अपादान

से (पथ ृ क)

6. संबंध

का, के, क

7. अ धकरण

म, पर

8. संबोधन

हे ! हरे !

कारक च न कता ने अ

वारा

मरण करने के लए इस पद क रचना क गई हकम को, करण र त से जान।

सं दान को, के लए, अपादान से मान।। का, के, क , संबंध ह, अ धकरणा दक म मान। रे ! हे ! हो ! संबोधन, म

धरहु यह

यान।।

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वशेष-कता से अ धकरण तक वभि त च न (परसग) श द के अंत म लगाए जाते ह, क तु संबोधन कारक के च न-हे , रे , आ द

ायः श द से पव ू लगाए जाते ह।

1. कता कारक िजस

प से

या (काय) के करने वाले का बोध होता है वह ‘कता’ कारक कहलाता है । इसका वभि त-

च न ‘ने’ है । इस ‘ने’ च न का वतमानकाल और भ व यकाल म धातुओं के साथ भूतकाल म पहले वा य म ‘मारा’ भूतकाल क

योग नह ं होता है । इसका सकमक

योग होता है । जैसे- 1.राम ने रावण को मारा। 2.लड़क

कूल जाती है ।

या का कता राम है । इसम ‘ने’ कता कारक का वभि त- च न है । इस वा य म या है । ‘ने’ का

योग

ायः भूतकाल म होता है । दस ू रे वा य म वतमानकाल क

या का कता लड़क है । इसम ‘ने’ वभि त का वशेष- (1) भूतकाल म अकमक

योग नह ं हुआ है ।

या के कता के साथ भी ने परसग ( वभि त च न) नह ं लगता है ।

जैसे-वह हँसा। (2) वतमानकाल व भ व यतकाल क सकमक

या के कता के साथ ने परसग का

योग नह ं होता है ।

जैसे-वह फल खाता है । वह फल खाएगा। (3) कभी-कभी कता के साथ ‘को’ तथा ‘स’ का

योग भी कया जाता है । जैसे-

(अ) बालक को सो जाना चा हए। (आ) सीता से पु तक पढ़ गई। (इ) रोगी से चला भी नह ं जाता। (ई) उससे श द लखा नह ं गया। 2. कम कारक या के काय का फल िजस पर पड़ता है , वह कम कारक कहलाता है । इसका वभि त- च न ‘को’ है । यह च न भी बहुत-से थान पर नह ं लगता। जैसे- 1. मोहन ने साँप को मारा। 2. लड़क ने प लखा। पहले वा य म ‘मारने’ क या का फल साँप पर पड़ा है । अतः साँप कम कारक है । इसके साथ परसग ‘को’ लगा है । दस ू रे वा य म ‘ लखने’ क

या का फल प

पर पड़ा। अतः प

कम कारक है । इसम कम कारक का

वभि त च न ‘को’ नह ं लगा। 3. करण कारक सं ा आ द श द के िजस

प से

या के करने के साधन का बोध हो अथात ् िजसक सहायता से काय

संप न हो वह करण कारक कहलाता है । इसके वभि त- च न ‘से’ के ‘ वारा’ है । जैसे- 1.अजुन ने [Ahalgama Aashwin v 9904643643 www.ashwin100.webs.com

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जय थ को बाण से मारा। 2.बालक गद से खेल रहे है । पहले वा य म कता अजुन ने मारने का काय ‘बाण’ से कया। अतः ‘बाण से’ करण कारक है । दस ू रे वा य म कता बालक खेलने का काय ‘गद से’ कर रहे ह। अतः ‘गद से’ करण कारक है । 4. सं दान कारक सं दान का अथ है -दे ना। अथात कता िजसके लए कुछ काय करता है , अथवा िजसे कुछ दे ता है उसे य त करने वाले 1. वा

प को सं दान कारक कहते ह। इसके वभि त च न ‘के लए’ को ह।

य के लए सूय को नम कार करो। 2.गु जी को फल दो।

इन दो वा य म ‘ वा

य के लए’ और ‘गु जी को’ सं दान कारक ह।

5. अपादान कारक सं ा के िजस

प से एक व तु का दस ू र से अलग होना पाया जाए वह अपादान कारक कहलाता है ।

इसका वभि त- च न ‘से’ है । जैसे- 1.ब चा छत से गर पड़ा। 2.संगीता घोड़े से गर पड़ी। इन दोन वा य म ‘छत से’ और घोड़े ‘से’ गरने म अलग होना

कट होता है । अतः घोड़े से और छत

से अपादान कारक ह। 6. संबंध कारक श द के िजस

प से कसी एक व तु का दस ू र व तु से संबंध

कट हो वह संबंध कारक कहलाता है ।

इसका वभि त च न ‘का’, ‘के’, ‘क ’, ‘रा’, ‘रे ’, ‘र ’ है । जैसे- 1.यह राधे याम का बेटा है । 2.यह कमला क गाय है । इन दोन वा य म ‘राधे याम का बेटे’ से और ‘कमला का’ गाय से संबंध

कट हो रहा है । अतः यहाँ

संबंध कारक है । 7. अ धकरण कारक श द के िजस

प से

या के आधार का बोध होता है उसे अ धकरण कारक कहते ह। इसके वभि त-

च न ‘म’, ‘पर’ ह। जैसे- 1.भँवरा फूल पर मँडरा रहा है । 2.कमरे म ट .वी. रखा है । इन दोन वा य म ‘फूल पर’ और ‘कमरे म’ अ धकरण कारक है । 8. संबोधन कारक

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िजससे कसी को बुलाने अथवा सचेत करने का भाव कट हो उसे संबोधन कारक कहते है और संबोधन च न (!) लगाया जाता है । जैसे- 1.अरे भैया !

य रो रहे हो ? 2.हे गोपाल ! यहाँ आओ।

इन वा य म ‘अरे भैया’ और ‘हे गोपाल’ ! संबोधन कारक है ।

अ याय 8 सवनाम सवनाम-सं ा के

थान पर

यु त होने वाले श द को सवनाम कहते है । सं ा क

पुन ि त को दरू करने के लए ह सवनाम का

योग कया जाता है । जैसे-म, हम, तू, तुम, वह, यह, आप,

कौन, कोई, जो आ द। सवनाम के भेद- सवनाम के छह भेद ह1. पु षवाचक सवनाम। 2. न चयवाचक सवनाम। 3. अ न चयवाचक सवनाम। 4. संबंधवाचक सवनाम। 5.

नवाचक सवनाम।

6. नजवाचक सवनाम। 1. पु षवाचक सवनाम िजस सवनाम का

योग व ता या लेखक

वयं अपने लए अथवा

ोता या पाठक के लए अथवा कसी

अ य के लए करता है वह पु षवाचक सवनाम कहलाता है । पु षवाचक सवनाम तीन (1) उ तम पु षवाचक सवनाम- िजस सवनाम का

कार के होते ह-

योग बोलने वाला अपने लए करे , उसे उ तम

पु षवाचक सवनाम कहते ह। जैसे-म, हम, मझ ु े, हमारा आ द। (2) म यम पु षवाचक सवनाम- िजस सवनाम का

योग बोलने वाला सुनने वाले के लए करे , उसे

म यम पु षवाचक सवनाम कहते ह। जैसे-तू, तुम,तुझे, तु हारा आ द। (3) अ य पु षवाचक सवनाम- िजस सवनाम का

योग बोलने वाला सुनने वाले के अ त र त कसी

अ य पु ष के लए करे उसे अ य पु षवाचक सवनाम कहते ह। जैसे-वह, वे, उसने, यह, ये, इसने, आ द। 2. न चयवाचक सवनाम जो सवनाम कसी यि त व तु आ द क ओर न चयपूवक संकेत कर वे न चयवाचक सवनाम कहलाते ह। इनम ‘यह’, ‘वह’, ‘वे’ सवनाम श द कसी वशेष यि त आ द का न चयपूवक बोध करा रहे ह, अतः ये न चयवाचक सवनाम है । [Ahalgama Aashwin v 9904643643 www.ashwin100.webs.com

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3. अ न चयवाचक सवनाम िजस सवनाम श द के

वारा कसी नि चत यि त अथवा व तु का बोध न हो वे

अ न चयवाचक सवनाम कहलाते ह। इनम ‘कोई’ और ‘कुछ’ सवनाम श द से कसी वशेष यि त अथवा व तु का न चय नह ं हो रहा है । अतः ऐसे श द अ न चयवाचक सवनाम कहलाते ह। 4. संबंधवाचक सवनाम पर पर एक-दस ू र बात का संबंध बतलाने के लए िजन सवनाम का

योग होता है उ ह संबंधवाचक

सवनाम कहते ह। इनम ‘जो’, ‘वह’, ‘िजसक ’, ‘उसक ’, ‘जैसा’, ‘वैसा’-ये दो-दो श द पर पर संबंध का बोध करा रहे ह। ऐसे श द संबंधवाचक सवनाम कहलाते ह। 5.

नवाचक सवनाम

जो सवनाम सं ा श द के

थान पर तो आते ह है , क तु वा य को

नवाचक भी बनाते ह वे

नवाचक सवनाम कहलाते ह। जैसे- या, कौन आ द। इनम ‘ या’ और ‘कौन’ श द ह, य क इन सवनाम के

वारा वा य

नवाचक सवनाम

नवाचक बन जाते ह।

6. नजवाचक सवनाम जहाँ अपने लए ‘आप’ श द ‘अपना’ श द अथवा ‘अपने’ ‘आप’ श द का योग हो वहाँ नजवाचक सवनाम होता है । इनम ‘अपना’ और ‘आप’ श द उ तम, पु ष म यम पु ष और अ य पु ष के ( वयं का) अपने आप का बोध करा रहे ह। ऐसे श द नजवाचक सवनाम कहलाते ह। वशेष-जहाँ केवल ‘आप’ श द का

योग

ोता के लए हो वहाँ यह आदर-सूचक म यम पु ष होता है

और जहाँ ‘आप’ श द का

योग अपने लए हो वहाँ नजवाचक होता है ।

सवनाम श द के वशेष

योग

(1) आप, वे, ये, हम, तुम श द बहुवचन के यि त के लए भी होता है । (2) ‘आप’ श द

वयं के अथ म भी

प म ह, क तु आदर

कट करने के लए इनका

योग एक

यु त हो जाता है । जैसे-म यह काय आप ह कर लँ ूगा।

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अ याय 9 वशेषण वशेषण क प रभाषा- सं ा अथवा सवनाम श द क

वशेषता (गुण, दोष, सं या,

प रमाण आ द) बताने वाले श द ‘ वशेषण’ कहलाते ह। जैसे-बड़ा, काला, लंबा, दयाल,ु भार , सु दर, कायर, टे ढ़ा-मेढ़ा, एक, दो आ द। वशे य- िजस सं ा अथवा सवनाम श द क

वशेषता बताई जाए वह वशे य कहलाता है । यथा- गीता

सु दर है । इसम ‘सु दर’ वशेषण है और ‘गीता’ वशे य है । वशेषण श द वशे य से पूव भी आते ह और उसके बाद भी। पूव म, जैसे- (1) थोड़ा-सा जल लाओ। (2) एक मीटर कपड़ा ले आना। बाद म, जैसे- (1) यह रा ता लंबा है । (2) खीरा कड़वा है । वशेषण के भेद- वशेषण के चार भेद ह1. गण ु वाचक। 2. प रमाणवाचक। 3. सं यावाचक। 4. संकेतवाचक अथवा सावना मक। 1. गुणवाचक वशेषण िजन वशेषण श द से सं ा अथवा सवनाम श द के गुण-दोष का बोध हो वे गुणवाचक वशेषण कहलाते ह। जैसे(1) भाव- अ छा, बरु ा, कायर, वीर, डरपोक आ द। (2) रं ग- लाल, हरा, पीला, सफेद, काला, चमक ला, फ का आ द। (3) दशा- पतला, मोटा, सख ू ा, गाढ़ा, पघला, भार , गीला, गर ब, अमीर, रोगी, व थ, पालतू आ द। (4) आकार- गोल, सुडौल, नुक ला, समान, पोला आ द। (5) समय- अगला, पछला, दोपहर, सं या, सवेरा आ द। (6) थान- भीतर , बाहर , पंजाबी, जापानी, पुराना, ताजा, आगामी आ द। (7) गुण- भला, बुरा, सु दर, मीठा, ख ा, दानी,सच, झूठ, सीधा आ द। (8) दशा- उ तर , द

णी, पूव , पि चमी आ द।

2. प रमाणवाचक वशेषण िजन वशेषण श द से सं ा या सवनाम क मा ा अथवा नाप-तोल का

ान हो वे प रमाणवाचक

वशेषण कहलाते ह। प रमाणवाचक वशेषण के दो उपभेद है[Ahalgama Aashwin v 9904643643 www.ashwin100.webs.com

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(1) नि चत प रमाणवाचक वशेषण- िजन वशेषण श द से व तु क

नि चत मा ा का

ान हो। जैसे-

(क) मेरे सूट म साढ़े तीन मीटर कपड़ा लगेगा। (ख) दस कलो चीनी ले आओ। (ग) दो लटर दध ू गरम करो। (2) अ नि चत प रमाणवाचक वशेषण- िजन वशेषण श द से व तु क अ नि चत मा ा का

ान हो।

जैसे(क) थोड़ी-सी नमक न व तु ले आओ। (ख) कुछ आम दे दो। (ग) थोड़ा-सा दध ू गरम कर दो। 3. सं यावाचक वशेषण िजन वशेषण श द से सं ा या सवनाम क सं या का बोध हो वे सं यावाचक वशेषण कहलाते ह। जैसे-एक, दो,

वतीय, दग ु ुना, चौगुना, पाँच आ द।

सं यावाचक वशेषण के दो उपभेद ह(1) नि चत सं यावाचक वशेषण- िजन वशेषण श द से नि चत सं या का बोध हो। जैसे-दो पु तक मेरे लए ले आना। नि चत सं यावाचक के न न ल खत चार भेद ह(क) गणवाचक- िजन श द के (1) एक लड़का (2) प चीस

वारा गनती का बोध हो। जैसे-

कूल जा रहा है।

पये द िजए।

(3) कल मेरे यहाँ दो म

आएँगे।

(4) चार आम लाओ। (ख)

मवाचक- िजन श द के

वारा सं या के

म का बोध हो। जैसे-

(1) पहला लड़का यहाँ आए। (2) दस ू रा लड़का वहाँ बैठे। (3) राम क ा म (4) याम

थम रहा।

वतीय

ेणी म पास हुआ है । (ग) आविृ तवाचक- िजन श द के वारा केवल आविृ त का बोध हो। जैसे(1) मोहन तुमसे चौगुना काम करता है । (2) गोपाल तुमसे दग ु ुना मोटा है । (घ) समुदायवाचक- िजन श द के

वारा केवल सामू हक सं या का बोध हो। जैसे-

(1) तुम तीन को जाना पड़ेगा। [Ahalgama Aashwin v 9904643643 www.ashwin100.webs.com

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(2) यहाँ से चार चले जाओ। (2) अ नि चत सं यावाचक वशेषण- िजन वशेषण श द से नि चत सं या का बोध न हो। जैसे-कुछ ब चे पाक म खेल रहे ह। 4. संकेतवाचक ( नदशक) वशेषण जो सवनाम संकेत

वारा सं ा या सवनाम क

वशेषता बतलाते ह वे संकेतवाचक वशेषण कहलाते ह।

वशेष- य क संकेतवाचक वशेषण सवनाम श द से बनते ह, अतः ये सावना मक वशेषण कहलाते ह। इ ह नदशक भी कहते ह। (1) प रमाणवाचक वशेषण और सं यावाचक वशेषण म अंतर- िजन व तुओं क नाप-तोल क जा सके उनके वाचक श द प रमाणवाचक वशेषण कहलाते ह। जैसे-‘कुछ दध ू लाओ’। इसम ‘कुछ’ श द तोल के लए आया है । इस लए यह प रमाणवाचक वशेषण है । 2.िजन व तुओं क गनती क जा सके उनके वाचक श द सं यावाचक वशेषण कहलाते ह। जैसे-कुछ ब चे इधर आओ। यहाँ पर ‘कुछ’ ब च क गनती के लए आया है । इस लए यह सं यावाचक वशेषण है । प रमाणवाचक वशेषण के बाद

अथवा पदाथवाचक सं ाएँ आएँगी जब क सं यावाचक वशेषण के बाद जा तवाचक सं ाएँ आती ह। (2) सवनाम और सावना मक वशेषण म अंतर- िजस श द का

योग सं ा श द के

सवनाम कहते ह। जैसे-वह मुंबई गया। इस वा य म वह सवनाम है । िजस श द का अथवा बाद म वशेषण के

थान पर हो उसे योग सं ा से पूव

प म कया गया हो उसे सावना मक वशेषण कहते ह। जैसे-वह रथ आ रहा

है । इसम वह श द रथ का वशेषण है । अतः यह सावना मक वशेषण है । वशेषण क अव थाएँ वशेषण श द कसी सं ा या सवनाम क वशेषता बतलाते ह। वशेषता बताई जाने वाल व तुओं के गुण-दोष कम- यादा होते ह। गुण-दोष के इस कम- यादा होने को तुलना मक ढं ग से ह जाना जा सकता है । तुलना क

ि ट से वशेषण क

न न ल खत तीन अव थाएँ होती ह-

(1) मूलाव था (2) उ तराव था (3) उ तमाव था

(1) मूलाव था

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मूलाव था म वशेषण का तुलना मक

प नह ं होता है । वह केवल सामा य वशेषता ह

कट करता है ।

जैसे- 1.सा व ी संद ु र लड़क है । 2.सरु े श अ छा लड़का है । 3.सय ू तेज वी है । (2) उ तराव था जब दो यि तय या व तुओं के गुण-दोष क तुलना क जाती है तब वशेषण उ तराव था म होता है । जैसे- 1.रवी

यु त

चेतन से अ धक बु मान है । 2.स वता रमा क अपे ा अ धक सु दर है ।

(3) उ तमाव था उ तमाव था म दो से अ धक यि तय एवं व तुओं क तुलना करके कसी एक को सबसे अ धक अथवा सबसे कम बताया गया है । जैसे- 1.पंजाब म अ धकतम अ न होता है । 2.संद प नकृ टतम बालक है । वशेष-केवल गुणवाचक एवं अ नि चत सं यावाचक तथा नि चत प रमाणवाचक वशेषण क ह ये तुलना मक अव थाएँ होती ह, अ य वशेषण क नह ं। अव थाओं के

प-

(1) अ धक और सबसे अ धक श द का

योग करके उ तराव था और उ तमाव था के

प बनाए जा

सकते ह। जैसेमूलाव था उ तराव था उ तमाव था अ छ अ धक अ छ सबसे अ छ चतुर अ धक चतुर सबसे अ धक चतुर बु मान अ धक बु मान सबसे अ धक बु मान बलवान अ धक बलवान सबसे अ धक बलवान इसी

कार दस ू रे वशेषण श द के

प भी बनाए जा सकते ह।

(2) त सम श द म मल ू ाव था म वशेषण का मूल

प, उ तराव था म ‘तर’ और उ तमाव था म ‘तम’

का योग होता है । जैसेमल ू ाव था

उ तराव था

उ तमाव था

यून

यूनतर

उ च

उ चतर

उ चतम

लघु

लघुतर

लघुतम

कठोर

कठोरतर

कठोरतम

ती

ती तर

ती तम

गु

गु तर

गु तम

वशाल

महान,

मह तर,

मह तम

उ कृ ट

उ कृ टर

उ कृ तम

महानतर

महानतम

सद ंु र

सद ंु रतर

सद ंु रतम

वशालतर

यनूतम

वशालतम

वशेषण क रचना

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कुछ श द मूल प म ह

वशेषण होते ह, क तु कुछ वशेषण श द क रचना सं ा, सवनाम एवं

या

श द से क जाती है (1) सं ा से वशेषण बनाना यय क

इत

इल इम

सं ा

वशेषण

सं ा

वशेषण

अंश

आं शक

धम

धा मक

अलंकार

आलंका रक

नी त

नै तक

अथ

आ थक

दन

दै नक

इ तहास

ऐ तहा सक

दे व

अंक

अं कत

कुसुम

सुर भ

सुर भत

ुधा

ु धत

जटा फेन वण

दै वक कुसु मत वन

व नत

तरं ग

तरं गत

ज टल

पंक

पं कल

फे नल

उम

उ मल

र त

रि तम

भोग

भोगी

व णम

रोग

रोगी

ईन,ईण

कुल

कुल न

ईय

आ मा

आ मीय

जा त

जातीय

आलु

ालु

ई या

ई यालु

ाम

ामीण

वी

मनस

मन वी

तपस

तप वी

मय

सुख

सुखमय

दख ु

दख ु मय

वान

पवान

गुण

गुणवान

गुण

गुणवती

पु

पु वती

बु

बु मान

वती( मान मती (

ी)

ीमती

ीमान

बु

बु मती

ी)

रत

धम

धमरत

कम

कमरत

समीप

समीप थ

दे ह

दे ह थ

न ठ

धम

धम न ठ

कम

कम न ठ

(2) सवनाम से वशेषण बनाना सवनाम वह

वशेषण वैसा

सवनाम यह

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वशेषण ऐसा

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(3)

या से वशेषण बनाना

या

वशेषण

या

वशेषण

पत

प तत

पूज

पूजनीय

पठ

प ठत

वंद

वंदनीय

भागना

भागने वाला

पालना

पालने वाला

अ याय 10

या या- िजस श द अथवा श द-समूह के

करने का बोध हो उसे

वारा कसी काय के होने अथवा

या कहते ह। जैसे-

(1) गीता नाच रह है । [Ahalgama Aashwin v 9904643643 www.ashwin100.webs.com

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(2) ब चा दध ू पी रहा है । (3) राकेश कॉलेज जा रहा है। (4) गौरव बु मान है । (5) शवाजी बहुत वीर थे। इनम ‘नाच रह है ’, ‘पी रहा है ’, ‘जा रहा है ’ श द काय- यापार का बोध करा रहे ह। जब क ‘है ’, ‘थे’ श द होने का। इन सभी से कसी काय के करने अथवा होने का बोध हो रहा है । अतः ये

याएँ ह।

धातु या का मल ू पढ़ता, आ द

प धातु कहलाता है । जैसे- लख, पढ़, जा, खा, गा, रो, पा आ द। इ ह ं धातुओं से लखता, याएँ बनती ह।

या के भेद-

या के दो भेद ह-

(1) अकमक

या।

(2) सकमक

या।

1. अकमक िजन

या

याओं का फल सीधा कता पर ह पड़े वे अकमक

कम क आव यकता नह ं होती। अकमक

या कहलाती ह। ऐसी अकमक

याओं को

याओं के अ य उदाहरण ह-

(1) गौरव रोता है । (2) साँप रगता है । (3) रे लगाड़ी चलती है । कुछ अकमक

याएँ- लजाना, होना, बढ़ना, सोना, खेलना, अकड़ना, डरना, बैठना, हँसना, उगना, जीना, दौड़ना,

रोना, ठहरना, चमकना, डोलना, मरना, घटना, फाँदना, जागना, बरसना, उछलना, कूदना आ द।

2. सकमक िजन

या

याओं का फल (कता को छोड़कर) कम पर पड़ता है वे सकमक

म कम का होना आव यक ह, सकमक

या कहलाती ह। इन

याओं

याओं के अ य उदाहरण ह-

(1) म लेख लखता हूँ। (2) रमेश मठाई खाता है । [Ahalgama Aashwin v 9904643643 www.ashwin100.webs.com

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(3) स वता फल लाती है । (4) भँवरा फूल का रस पीता है । 3. वकमक िजन

या

याओं के दो कम होते ह, वे

वकमक

याएँ कहलाती ह।

वकमक

याओं के उदाहरण ह-

(1) मने याम को पु तक द । (2) सीता ने राधा को

पये दए।

ऊपर के वा य म ‘दे ना’

या के दो कम ह। अतः दे ना

योग क

ि ट से

या के भेद

योग क

ि ट से

या के न न ल खत पाँच भेद ह-

1.सामा य

या- जहाँ केवल एक

या का

वकमक

या ह।

योग होता है वह सामा य

या कहलाती है । जैसे-

1. आप आए। 2.वह नहाया आ द। 2.संयु त

या- जहाँ दो अथवा अ धक

याओं का साथ-साथ

योग हो वे संयु त

या कहलाती ह।

जैसे1.स वता महाभारत पढ़ने लगी। 2.वह खा चुका। 3.नामधातु

या- सं ा, सवनाम अथवा वशेषण श द से बने

यापद नामधातु

या कहलाते ह। जैसे-

ह थयाना, शरमाना, अपनाना, लजाना, चकनाना, झुठलाना आ द। 4. ेरणाथक

या- िजस

को करने क

ेरणा दे ता है वह

कता- ेरणा

ेरणाथक

5.पूवका लक

ेरणाथक

वयं काय को न करके कसी अ य को उस काय

या कहलाती है । ऐसी

याओं के दो कता होते ह- (1) ेरक

दान करने वाला। (2) े रत कता- ेरणा लेने वाला। जैसे- यामा राधा से प

इसम वा तव म प या

या से पता चले क कता

तो राधा लखती है , क तु उसको लखने क या है । इस वा य म यामा

या- कसी

कहलाती है । जैसे- म अभी सोकर उठा हूँ। इसम ‘उठा हूँ’ अतः ‘सोकर’ पूवका लक या है । वशेष- पूवका लक

या या तो

या के सामा य

अथवा ‘करके’ लगा दे ने से पूवका लक

ेरणा दे ती है यामा। अतः ‘ लखवाना’

ेरक कता है और राधा

या से पूव य द कोई दस ू र

प म

या

लखवाती है ।

े रत कता।

यु त हो तो वह पूवका लक

या से पूव ‘सोकर’

या का

या

योग हुआ है ।

यु त होती है अथवा धातु के अंत म ‘कर’

या बन जाती है । जैसे-

(1) ब चा दध ू पीते ह सो गया। (2) लड़ कयाँ पु तक पढ़कर जाएँगी। [Ahalgama Aashwin v 9904643643 www.ashwin100.webs.com

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अपूण

या कई बार वा य म

या के होते हुए भी उसका अथ प ट नह ं हो पाता। ऐसी या कहलाती ह। जैसे-गाँधीजी थे। तुम हो। ये याएँ अपण याएँ है । अब इ ह ं ू

याएँ अपण ू

वा य को फर से प ढ़एगांधीजी रा

पता थे। तुम बु मान हो।

इन वा य म

मशः ‘रा

पता’ और ‘बु मान’ श द के

योग से

प टता आ गई। ये सभी श द

‘पूरक’ ह। अपूण

या के अथ को पूरा करने के लए िजन श द का

योग कया जाता है उ ह पूरक कहते ह।

अ याय 11 काल काल या के िजस

प से काय संप न होने का समय (काल)

ात हो वह काल कहलाता है । काल के

न न ल खत तीन भेद ह1. भूतकाल।

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2. वतमानकाल। 3. भ व यकाल। 1. भूतकाल या के िजस

प से बीते हुए समय (अतीत) म काय संप न होने का बोध हो वह भूतकाल कहलाता

है । जैसे(1) ब चा गया। (2) ब चा गया है । (3) ब चा जा चुका था। ये सब भूतकाल क

याएँ ह, य क ‘गया’, ‘गया है ’, ‘जा चुका था’,

याएँ भूतकाल का बोध कराती

है । भत ू काल के न न ल खत छह भेद ह1. सामा य भत ू । 2. आस न भूत। 3. अपूण भूत। 4. पूण भूत। 5. सं द ध भूत। 6. हे तुहेतुमद भूत। 1.सामा य भूतका

या के िजस

प से बीते हुए समय म काय के होने का बोध हो क तु ठ क समय ान न हो, वहाँ सामा य भूत होता है । जैसे-

(1) ब चा गया। (2) याम ने प

लखा।

(3) कमल आया। 2.आस न भूत-

या के िजस

प से अभी-अभी नकट भत ू काल म

या का होना

कट हो, वहाँ

आस न भूत होता है । जैसे(1) ब चा आया है । (2) यान ने प

लखा है ।

(3) कमल गया है । 3.अपूण भूत-

या के िजस

प से काय का होना बीते समय म

कट हो, पर पूरा होना

कट न हो

वहाँ अपूण भूत होता है । जैसे(1) ब चा आ रहा था। (2) याम प

लख रहा था।

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(3) कमल जा रहा था। 4.पूण भूत-

या के िजस

प से यह

ात हो क काय समा त हुए बहुत समय बीत चक ु ा है उसे पण ू

भत ू कहते ह। जैसे(1) याम ने प

लखा था।

(2) ब चा आया था। (3) कमल गया था। 5.सं द ध भूत-

या के िजस

प से भूतकाल का बोध तो हो क तु काय के होने म संदेह हो वहाँ

सं द ध भूत होता है । जैसे(1) ब चा आया होगा। (2) याम ने प

लखा होगा।

(3) कमल गया होगा। 6.हे तुहेतुमद भूतआ

या के िजस

त हो अथवा एक

प से बीते समय म एक

या के न होने पर दस ू र

या के होने पर दस ू र

या का न होना आ

या का होना

त हो वहाँ हे तुहेतुमद भत ू होता

है । जैसे(1) य द याम ने प

लखा होता तो म अव य आता।

(2) य द वषा होती तो फसल अ छ होती। 2. वतमान काल या के िजस

प से काय का वतमान काल म होना पाया जाए उसे वतमान काल कहते ह। जैसे-

(1) मु न माला फेरता है । (2) याम प

लखता होगा।

इन सब म वतमान काल क

याएँ ह, य क ‘फेरता है ’, ‘ लखता होगा’,

याएँ वतमान काल का बोध

कराती ह। इसके न न ल खत तीन भेद ह(1) सामा य वतमान। (2) अपूण वतमान। (3) सं द ध वतमान। 1.सामा य वतमान-

या के िजस

प से यह बोध हो क काय वतमान काल म सामा य

प से होता

है वहाँ सामा य वतमान होता है । जैसे(1) ब चा रोता है । (2) याम प

लखता है।

(3) कमल आता है । [Ahalgama Aashwin v 9904643643 www.ashwin100.webs.com

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2.अपूण वतमान-

या के िजस

प से यह बोध हो क काय अभी चल ह रहा है , समा त नह ं हुआ है

वहाँ अपण ू वतमान होता है । जैसे(1) ब चा रो रहा है । (2) याम प

लख रहा है ।

(3) कमल आ रहा है । 3.सं द ध वतमान-

या के िजस

प से वतमान म काय के होने म संदेह का बोध हो वहाँ सं द ध

वतमान होता है। जैसे(1) अब ब चा रोता होगा। (2) याम इस समय प

लखता होगा।

3. भ व यत काल या के िजस याम प

प से यह

ात हो क काय भ व य म होगा वह भ व यत काल कहलाता है । जैसे- (1)

लखेगा। (2) शायद आज सं या को वह आए।

इन दोन म भ व यत काल क

याएँ ह, य क लखेगा और आए

याएँ भ व यत काल का बोध

कराती ह। इसके न न ल खत दो भेद ह1. सामा य भ व यत। 2. संभा य भ व यत। 1.सामा य भ व यत-

या के िजस

प से काय के भ व य म होने का बोध हो उसे सामा य भ व यत

कहते ह। जैसे(1) याम प

लखेगा।

(2) हम घूमने जाएँगे। 2.संभा य भ व यत-

या के िजस

प से काय के भ व य म होने क संभावना का बोध हो वहाँ

संभा य भ व यत होता है जैसे(1) शायद आज वह आए। (2) संभव है याम प

लखे।

(3) कदा चत सं या तक पानी पड़े।

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अ याय 12 वा य वा य-

या के िजस

प से यह

ात हो क वा य म

या

वारा संपा दत वधान का वषय कता है ,

कम है , अथवा भाव है , उसे वा य कहते ह। वा य के तीन

कार ह-

1. कतवा ृ य। 2. कमवा य। 3. भाववा य। 1.कतवा ृ य-

या के िजस

है । इसम लंग एवं वचन

प से वा य के उ े य (

या के कता) का बोध हो, वह कतवा ृ य कहलाता

ायः कता के अनुसार होते ह। जैसे-

1.ब चा खेलता है । [Ahalgama Aashwin v 9904643643 www.ashwin100.webs.com

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2.घोड़ा भागता है । इन वा य म ‘ब चा’, ‘घोड़ा’ कता ह तथा वा य म कता क ह

धानता है । अतः ‘खेलता है ’, ‘भागता

है ’ ये कतवा ृ य ह। 2.कमवा य-

या के िजस

1.भारत-पाक यु

म सह

वारा नाटक

2.छा

3.पु तक मेरे

प से वा य का उ े य ‘कम’ धान हो उसे कमवा य कहते ह। जैसेसै नक मारे गए।

तुत कया जा रहा है ।

वारा पढ़ गई।

4.ब च के वारा नबंध पढ़े गए। इन वा य म

याओं म ‘कम’ क

धानता दशाई गई है । उनक

प-रचना भी कम के लंग, वचन और

पु ष के अनुसार हुई है । या के ऐसे प ‘कमवा य’ कहलाते ह। 3.भाववा य- या के िजस प से वा य का उ े य केवल भाव ( भाववा य होता है। इसम कता या कम क योग होता है और साथ ह

या का अथ) ह जाना जाए वहाँ

धानता नह ं होती है । इसम मु यतः अकमक

ायः नषेधाथक वा य ह भाववा य म

या का ह

यु त होते ह। इसम

या सदै व

पिु लंग, अ य पु ष के एक वचन क होती है । योग योग तीन 1. कत र

योग।

2. कम ण 3. भावे

कार के होते हयोग।

योग।

1.कत र

योग- जब कता के लंग, वचन और पु ष के अनु प

या हो तो वह ‘कत र

योग’ कहलाता

है । जैसे1.लड़का प

लखता है ।

2.लड़ कयाँ प

लखती है ।

इन वा य म ‘लड़का’ एकवचन, पुि लंग और अ य पु ष है और उसके साथ

या भी ‘ लखता है ’

एकवचन, पुि लंग और अ य पु ष है । इसी तरह ‘लड़ कयाँ प ी लंग और अ य पु ष है तथा उसक 2.कम ण

योग- जब

लखती ह’ दस ू रे वा य म कता बहुवचन, या भी ‘ लखती ह’ बहुवचन ी लंग और अ य पु ष है ।

या कम के लंग, वचन और पु ष के अनु प हो तो वह ‘कम ण

योग’ कहलाता

है । जैसे- 1.उप यास मेरे वारा पढ़ा गया। 2.छा 3.यु

से नबंध लखे गए। म हजार सै नक मारे गए।

इन वा य म ‘उप यास’, ‘सै नक’, कम कता क ि थ त म ह अतः उनक [Ahalgama Aashwin v 9904643643 www.ashwin100.webs.com

धानता है । इनम

या का Page 43


प कम के लंग, वचन और पु ष के अनु प बदला है , अतः यहाँ ‘कम ण योग- कत र वा य क सकमक

3.भावे

योग’ के अंतगत आती ह। इसी

‘भावे

योग’ है ।

याएँ, जब उनके कता और कम दोन कार भाववा य क सभी

वभि तयु त ह तो वे

याएँ भी भावे

योग म मानी जाती

है । जैसे1.अनीता ने बेल को सींचा। 2.लड़क ने प

को दे खा है ।

3.लड़ कय ने पु तक को पढ़ा है । 4.अब उससे चला नह ं जाता है । इन वा य क

याओं के लंग, वचन और पु ष न कता के अनुसार ह और न ह कम के अनुसार,

अ पतु वे एकवचन, पुि लंग और अ य पु ष ह। इस

कार के ‘ योग भावे’ योग कहलाते ह।

वा य प रवतन 1.कतवा ृ य से कमवा य बनाना(1) कतवा ृ य क

या को सामा य भूतकाल म बदलना चा हए।

(2) उस प रव तत

या- प के साथ काल, पु ष, वचन और लंग के अनु प जाना

या का

प जोड़ना

चा हए। (3) इनम ‘से’ अथवा ‘के

वारा’ का

योग करना चा हए। जैसे-

कतवा ृ य कमवा य 1. यामा उप यास लखती है । यामा से उप यास लखा जाता है । 2. यामा ने उप यास लखा। यामा से उप यास लखा गया। 3. यामा उप यास लखेगी। यामा से (के

वारा) उप यास लखा जाएगा।

2.कतवा ृ य से भाववा य बनाना(1) इसके लए

या अ य पु ष और एकवचन म रखनी चा हए।

(2) कता म करण कारक क (3)

वभि त लगानी चा हए।

या को सामा य भूतकाल म लाकर उसके काल के अनु प जाना

(4) आव यकतानुसार नषेधसूचक ‘नह ं’ का

या का प जोड़ना चा हए।

योग करना चा हए। जैसे-

कतवा ृ य भाववा य 1.ब चे नह ं दौड़ते। ब च से दौड़ा नह ं जाता। 2.प ी नह ं उड़ते। प

य से उड़ा नह ं जाता।

3.ब चा नह ं सोया। ब चे से सोया नह ं जाता।

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अ याय 13

या- वशेषण या- वशेषण- जो श द

या क

वशेषता कट करते ह वे

कहलाते ह। जैसे- 1.सोहन सुंदर लखता है । 2.गौरव यहाँ रहता है । 3.संगीता वा य म ‘सु दर’, ‘यहाँ’ और ‘ त दन’ श द

या क

या- वशेषण

त दन पढ़ती है । इन

वशेषता बतला रहे ह। अतः ये श द

या-

वशेषण ह। अथानुसार

या- वशेषण के न न ल खत चार भेद ह-

1. कालवाचक

या- वशेषण।

2. थानवाचक

या- वशेषण।

3. प रमाणवाचक

या- वशेषण।

4. र तवाचक

या- वशेषण।

1.कालवाचक

या- वशेषण-

िजस

या- वशेषण श द से काय के होने का समय

इसम बहुधा ये श द

ात हो वह कालवाचक

या- वशेषण कहलाता है ।

योग म आते ह- यदा, कदा, जब, तब, हमेशा, तभी, त काल, नरं तर, शी , पूव, बाद,

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पीछे , घड़ी-घड़ी, अब, त प चात ्, तदनंतर, कल, कई बार, अभी फर कभी आ द। 2. थानवाचक िजस

या- वशेषण-

या- वशेषण श द

वारा

या के होने के

थान का बोध हो वह

थानवाचक

या- वशेषण

कहलाता है । इसम बहुधा ये श द योग म आते ह- भीतर, बाहर, अंदर, यहाँ, वहाँ, कधर, उधर, इधर, कहाँ, जहाँ, पास, दरू , अ य , इस ओर, उस ओर, दाएँ, बाएँ, ऊपर, नीचे आ द। 3.प रमाणवाचक जो श द

या- वशेषण-

या का प रमाण बतलाते ह वे ‘प रमाणवाचक

या- वशेषण’ कहलाते ह। इसम बहुधा थोड़ाथोड़ा, अ यंत, अ धक, अ प, बहुत, कुछ, पया त, भूत, कम, यून, बूँद-बूँद, व प, केवल, ायः अनुमानतः,

सवथा आ द श द कुछ श द का

योग म आते ह।

योग प रमाणवाचक वशेषण और प रमाणवाचक

या- वशेषण दोन म समान

प से

कया जाता है । जैसे-थोड़ा, कम, कुछ काफ आ द। 4.र तवाचक

या- वशेषण-

िजन श द के

वारा

या के संप न होने क र त का बोध होता है वे ‘र तवाचक

या- वशेषण’

कहलाते ह। इनम बहुधा ये श द योग म आते ह- अचानक, सहसा, एकाएक, झटपट, आप ह , यानपूवक, धड़ाधड़, यथा, तथा, ठ क, सचमुच, अव य, वा तव म, न संदेह, बेशक, शायद, संभव ह, कदा चत ्, बहुत करके, हाँ, ठ क, सच, जी, ज र, अतएव, कस लए, य क, नह ं, न, मत, कभी नह ं, कदा प नह ं आ द।

अ याय 14 संबंधबोधक अ यय संबंधबोधक अ यय- िजन अ यय श द से सं ा अथवा सवनाम का वा य के दस ू रे श द के साथ संबंध जाना जाता है , वे संबंधबोधक अ यय कहलाते ह। जैसे- 1. उसका साथ छोड़ द िजए। 2.मेरे सामने से हट जा। 3.लाल कले पर तरं गा लहरा रहा है । 4.वीर अ भम यु अंत तक श ु से लोहा लेता रहा। इनम ‘साथ’, ‘सामने’, ‘पर’, ‘तक’ श द सं ा अथवा सवनाम श द के साथ आकर उनका संबंध वा य के दस ू रे श द के साथ बता रहे ह। अतः वे संबंधबोधक अ यय है । अथ के अनुसार संबंधबोधक अ यय के न न ल खत भेद ह1. कालवाचक- पहले, बाद, आगे, पीछे । 2. थानवाचक- बाहर, भीतर, बीच, ऊपर, नीचे। 3. दशावाचक- नकट, समीप, ओर, सामने। 4. साधनवाचक- न म त, वारा, ज रये। 5. वरोधसच ू क- उलटे , व

,

तकूल।

6. समतासूचक- अनुसार, स श, समान, तु य, तरह। 7. हे तुवाचक- र हत, अथवा, सवा, अ त र त। 8. सहचरसूचक- समेत, संग, साथ। [Ahalgama Aashwin v 9904643643 www.ashwin100.webs.com

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9. वषयवाचक- वषय, बाबत, लेख। 10. सं वाचक- समेत, भर, तक। या- वशेषण और संबंधबोधक अ यय म अंतर जब इनका या क

योग सं ा अथवा सवनाम के साथ होता है तब ये संबंधबोधक अ यय होते ह और जब ये वशेषता

(1) अंदर जाओ। (

कट करते ह तब

या- वशेषण होते ह। जैसे-

या वशेषण)

(2) दक ु ान के भीतर जाओ। (संबंधबोधक अ यय)

अ याय 15 समु चयबोधक अ यय समु चयबोधक अ यय- दो श द , वा यांश या वा य को मलाने वाले अ यय समु चयबोधक अ यय कहलाते ह। इ ह ‘योजक’ भी कहते ह। जैसे(1) ु त और गुंजन पढ़ रहे ह। (2) मुझे टे प रकाडर या घड़ी चा हए। (3) सीता ने बहुत मेहनत क क तु फर भी सफल न हो सक । (4) बेशक वह धनवान है पर तु है कंजूस। इनम ‘और’, ‘या’, ‘ क तु’, ‘पर तु’ श द आए ह जो क दो श द अथवा दो वा य को मला रहे ह। अतः ये समु चयबोधक अ यय ह। समु चयबोधक के दो भेद ह1. समाना धकरण समु चयबोधक। 2. य धकरण समु चयबोधक। 1. समाना धकरण समु चयबोधक

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िजन समु चयबोधक श द के

वारा दो समान वा यांश पद और वा य को पर पर जोड़ा जाता है , उ ह

समाना धकरण समु चयबोधक कहते ह। जैसे- 1.सुनंदा खड़ी थी और अलका बैठ थी। 2.ऋतेश गाएगा तो ऋतु तबला बजाएगी। इन वा य म और, तो समु चयबोधक श द

वारा दो समान श द और वा य

पर पर जुड़े ह। समाना धकरण समु चयबोधक के भेद- समाना धकरण समु चयबोधक चार

कार के होते ह-

(क) संयोजक। (ख) वभाजक। (ग) वरोधसूचक। (घ) प रणामसूचक। (क) संयोजक- जो श द , वा यांश और उपवा य को पर पर जोड़ने वाले श द संयोजक कहलाते ह। और, तथा, एवं व आ द संयोजक श द ह। (ख) वभाजक- श द , वा यांश और उपवा य म पर पर वभाजन और वक प कट करने वाले श द वभाजक या वक पक कहलाते ह। जैसे-या, चाहे अथवा, अ यथा, वा आ द। (ग) वरोधसूचक- दो पर पर वरोधी कथन और उपवा य को जोड़ने वाले श द वरोधसूचक कहलाते ह। जैसे-पर तु, पर, क तु, मगर, बि क, ले कन आ द। (घ) प रणामसूचक- दो उपवा य को पर पर जोड़कर प रणाम को दशाने वाले श द प रणामसूचक कहलाते ह। जैसे-फलतः, प रणाम व प, इस लए, अतः, अतएव, फल व प, अ यथा आ द। 2. य धकरण समु चयबोधक कसी वा य के

धान और आ

त उपवा य को पर पर जोड़ने वाले श द य धकरण समु चयबोधक

कहलाते ह। य धकरण समु चयबोधक के भेद- य धकरण समु चयबोधक चार (क) कारणसूचक। (ख) संकेतसूचक। (ग) उ े यसूचक। (घ)

कार के होते ह-

व पसूचक।

(क) कारणसूचक- दो उपवा य को पर पर जोड़कर होने वाले काय का कारण प ट करने वाले श द को कारणसूचक कहते ह। जैसे- क, य क, इस लए, चँू क, ता क आ द। (ख) संकेतसच ू क- जो दो योजक श द दो उपवा य को जोड़ने का काय करते ह, उ ह संकेतसूचक कहते ह। जैसे- य द....तो, जा...तो, य य प....तथा प, य य प...पर तु आ द। (ग) उदे यसच ू क- दो उपवा य को पर पर जोड़कर उनका उ े य

प ट करने वाले श द उ े यसच ू क

कहलाते ह। जैसे- इस लए क, ता क, िजससे क आ द। (घ)

व पसूचक- मु य उपवा य का अथ

प ट करने वाले श द

व पसूचक कहलाते ह। जैसे-यानी,

मानो, क, अथात ् आ द। [Ahalgama Aashwin v 9904643643 www.ashwin100.webs.com

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अ याय 16 व मया दबोधक अ यय व मया दबोधक अ यय- िजन श द म हष, शोक, व मय, ला न, घण ृ ा, ल जा आ द भाव

कट होते ह

वे व मया दबोधक अ यय कहलाते ह। इ ह ‘ योतक’ भी कहते ह। जैसे1.अहा !

या मौसम है ।

2.उफ ! कतनी गरमी पड़ रह है । 3. अरे ! आप आ गए ? 4.बाप रे बाप ! यह

या कर डाला ?

5. छः- छः ! ध कार है तु हारे नाम को। इनम ‘अहा’, ‘उफ’, ‘अरे ’, ‘बाप-रे -बाप’, ‘ छः- छः’ श द आए ह। ये सभी अनेक भाव को य त कर रहे ह। अतः ये व मया दबोधक अ यय है । इन श द के बाद व मया दबोधक च न (!) लगता है । कट होने वाले भाव के आधार पर इसके न न ल खत भेद ह(1) हषबोधक- अहा ! ध य !, वाह-वाह !, ओह ! वाह ! शाबाश ! (2) शोकबोधक- आह !, हाय !, हाय-हाय !, हा, ा ह- ा ह !, बाप रे ! (3) व मया दबोधक- ह !, ऐं !, ओहो !, अरे , वाह ! (4) तर कारबोधक- छः !, हट !, धक् , धत ् !, छः छः !, चप ु ! (5) वीकृ तबोधक- हाँ-हाँ !, अ छा !, ठ क !, जी हाँ !, बहुत अ छा ! [Ahalgama Aashwin v 9904643643 www.ashwin100.webs.com

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(6) संबोधनबोधक- रे !, र !, अरे !, अर !, ओ !, अजी !, है लो ! (7) आशीवादबोधक- द घायु हो !, जीते रहो !

अ याय 17 श द-रचना श द-रचना-हम

वभावतः भाषा- यवहार म कम-से-कम श द का

योग करके

अ धक-से-अ धक काम चलाना चाहते ह। अतः श द के आरं भ अथवा अंत म कुछ जोड़कर अथवा उनक मा ाओं या

वर म कुछ प रवतन करके नवीन-से-नवीन अथ-बोध कराना चाहते ह। कभी-कभी दो अथवा

अ धक श दांश को जोड़कर नए अथ-बोध को

वीकारते ह। इस तरह एक श द से कई अथ क

अ भ यि त हे तु जो नए-नए श द बनाए जाते ह उसे श द-रचना कहते ह। श द रचना के चार

कार ह-

1. उपसग लगाकर 2.

यय लगाकर

3. सं ध 4. समास

वारा वारा

उपसग वे श दांश जो कसी श द के आरं भ म लगकर उनके अथ म वशेषता ला दे ते ह अथवा उसके अथ को बदल दे ते ह, उपसग कहलाते ह। जैसे-परा-परा म, पराजय, पराभव, पराधीन, पराभूत। उपसग को चार भाग म बाँटा जा सकता ह[Ahalgama Aashwin v 9904643643 www.ashwin100.webs.com

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(क) सं कृत के उपसग (ख) ह द के उपसग (ग) उद ू के उपसग (घ) उपसग क तरह

यु त होने वाले सं कृत के अ यय

(क) सं कृत के उपसग उपसग

अथ (म)

श द- प

अत

अ धक, ऊपर

अ यंत, अ यु तम, अ त र त

अध

ऊपर, धानता

अ धकार, अ य , अ धप त

अनु

पीछे , समान

अनु प, अनुज, अनुकरण

अप

बुरा, ह न

अपमान, अपयश, अपकार

अभ

सामने, अ धक पास

अ भयोग, अ भमान, अ भभावक

अव

बुरा, नीचे

अवन त, अवगुण, अवशेष

तक से, लेकर, उलटा

आज म, आगमन, आकाश

उत ्

ऊपर, े ठ

उ कंठा, उ कष, उ प न

उप

नकट, गौण

उपकार, उपदे श, उपचार, उपा य

दरु ्

बुरा, क ठन

दज ु न, दद ु शा, दग ु म

दस ु ्

बुरा

द ु च र , द ु साहस, दग ु म

अभाव, वशेष

नयु त, नबंध, नम न

नर्

बना

नवाह, नमल, नजन

नस ्

बना

न चल, न छल, नि चत

परा

पीछे , उलटा

परामश, पराधीन, परा म

पर

सब ओर

प रपूण, प रजन, प रवतन

आगे, अ धक, उ कृ ट त

सामने, उलटा, हरएक

ह नता, वशेष

य न, बल, तकूल,

येक,

वयोग, वशेष, वधवा

सम ्

पूण, अ छा

संचय, संग त, सं कार

सु

अ छा, सरल

सुगम, सुयश, वागत

(ख) ह द के उपसग ये

ायः सं कृत उपसग के अप ंश मा ह ह।

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उपसग

अथ (म)

श द- प

अभाव, नषेध

अजर, अछूत, अकाल

अन

र हत

अनपढ़, अनबन, अनजान

अध

आधा

अधमरा, अध खला, अधपका

र हत

औगुन, औतार, औघट

कु

बरु ाई

कुसंग, कुकम, कुम त

अभाव

नडर, नह था, नक मा

उपसग

अथ (म)

श द- प

कम

थोड़ा

कमब त, कमजोर, कम सन

(ग) उद ू के उपसग

खुश

स न, अ छा

खुशबू, खुश दल, खुश मजाज

गैर

नषेध

गैरहािजर, गैरकानूनी, गैरकौम

दर

दरअसल, दरकार, दर मयान

ना

नषेध

नालायक, नापसंद, नामुम कन

बा

अनुसार

बामौका, बाकायदा, बाइ जत

बद

बुरा

बदनाम, बदमाश, बदचलन

बे

बना

ला

र हत

लापरवाह, लाचार, लावा रस

सर

मु य

सरकार, सरदार, सरपंच

हम

साथ

हमदद , हमराज, हमदम

हर

(घ) उपसग क तरह उपसग

बेईमान, बेचारा, बेअ ल

हर दन, हरएक,हरसाल

यु त होने वाले सं कृत अ यय अथ (म)

श द- प

अ ( यंजन से पूव)

नषेध

अ ान, अभाव, अचेत

अन ् ( वर से पूव)

नषेध

अनागत, अनथ, अना द

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स हत

सजल, सकल, सहष

अधः

नीचे

अधःपतन, अधोग त, अधोमुख

चर

बहुत दे र भीतर

अंतर

चरायु, चरकाल, चरं तन अंतरा मा, अंतरा

पुनः

फर

परु ा

परु ाना

परु ात व, परु ातन

पुरस ्

आगे

पुर कार, पुर कृत

तरस ्

पुनगमन, पुनज म, पुन मलन

बुरा, ह न

सत ्

तर कार, तरोभाव

े ठ

अ याय 18

य, अंतजातीय

स कार, स जन, स काय

यय

यय- जो श दांश श द के अंत म लगकर उनके अथ को बदल दे ते ह वे

यय कहलाते ह। जैसे-

जलज, पंकज आ द। जल=पानी तथा ज=ज म लेने वाला। पानी म ज म लेने वाला अथात ् कमल। इसी कार पंक श द म ज 1. कृत

जो

यय दो

कार के होते ह-

यय।

2. त त 1. कृत

यय लगकर पंकज अथात कमल कर दे ता है ।

यय। यय

यय धातुओं के अंत म लगते ह वे कृत

यय कहलाते ह। कृत

यय के योग से बने श द को

(कृत+अंत) कृदं त कहते ह। जैसे-राखन+हारा=राखनहारा, घट+इया=घ टया, लख+आवट= लखावट आ द। (क) कतवाचक कृदं त- िजस ृ

यय से बने श द से काय करने वाले अथात कता का बोध हो, वह

कतवाचक कृदं त कहलाता है। जैसे-‘पढ़ना’। इस सामा य ृ

या के साथ वाला

यय लगाने से

‘पढ़नेवाला’ श द बना। यय श द- प वाला

पढ़नेवाला, लखनेवाला,रखवाला

यय

श द- प

हारा

राखनहारा, खेवनहारा, पालनहारा

आऊ

बकाऊ, टकाऊ, चलाऊ

आक

तैराक

आका

लड़का, धड़ाका, धमाका

आड़ी

अनाड़ी, खलाड़ी, अगाड़ी

आलू

आलु, झगड़ालू, दयाल,ु कृपालु

उड़ाऊ, कमाऊ, खाऊ

एरा

लट ु े रा, सपेरा

इया

ब ढ़या, घ टया

ऐया

गवैया, रखैया, लट ु ै या

अक

धावक, सहायक, पालक

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(ख) कमवाचक कृदं त- िजस है । जैसे-गा म ना

यय से बने श द से कसी कम का बोध हो वह कमवाचक कृदं त कहलाता

यय लगाने से गाना, सूँघ म ना

यय लगाने से सूँघना और बछ म औना

यय

लगाने से बछौना बना है । (ग) करणवाचक कृदं त- िजस

यय से बने श द से

करणवाचक कृदं त कहलाता है । जैसे-रे त म ई यय

श द- प

या के साधन अथात करण का बोध हो वह

यय लगाने से रे ती बना। यय

श द- प

भटका, भूला, झूला

रे ती, फाँसी, भार

झाड़़ ू

बेलन, झाड़न, बंधन

नी

ध कनी करतनी, सु मरनी

(घ) भाववाचक कृदं त- िजस

यय से बने श द से भाव अथात ्

भाववाचक कृदं त कहलाता है । जैसे-सजा म आवट यय

श द- प

यय

अन

चलन, मनन, मलन

औती

आवा

भुलावा,छलावा, दखावा

अंत

आई

कमाई, चढ़ाई, लड़ाई

आवट

आहट

घबराहट, च लाहट

(ड़)

यावाचक कृदं त- िजस

यय से बने श द से

या के यापार का बोध हो वह

यय लगाने से सजावट बना। श द- प मनौती, फरौती, चुनौती भड़ंत, गढ़ं त सजावट, बनावट, कावट

या के होने का भाव कट हो वह

यावाचक

कृदं त कहलाता है । जैसे-भागता हुआ, लखता हुआ आ द। इसम मूल धातु के साथ ता लगाकर बाद म हुआ लगा दे ने से वतमानका लक यावाचक कृदं त बन जाता है । यावाचक कृदं त केवल पुि लंग और एकवचन म यय

यु त होता है ।

श द- प

यय

श द- प

ता

डूबता, बहता, रमता, चलता

ता

या

खोया, बोया

हुआ आता हुआ, पढ़ता हुआ सूखा, भूला, बैठा

कर

जाकर, दे खकर

ना

दौड़ना, सोना

2. त त जो

यय

यय सं ा, सवनाम अथवा वशेषण के अंत म लगकर नए श द बनाते ह त त

यय कहलाते ह।

इनके योग से बने श द को ‘त तांत’ अथवा त त श द कहते ह। जैसे-अपना+पन=अपनापन,

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दानव+ता=दानवता आ द। (क) कतवाचक त त- िजससे कसी काय के करने वाले का बोध हो। जैसे- सुनार, कहार आ द। ृ यय

श द- प

यय

श द- प

पाठक, लेखक, ल पक

आर

सुनार, लुहार, कहार

कार

प कार, कलाकार, च कार

इया

सु वधा, द ु खया, आढ़ तया

एरा

सपेरा, ठठे रा, चतेरा

मछुआ, गे आ, ठलुआ

वाला

टोपीवाला घरवाला, गाड़ीवाला

दार

ईमानदार, दक ु ानदार, कजदार

हारा

लकड़हारा, प नहारा, म नहार

ची

मशालची, खजानची, मोची

गर

कार गर, बाजीगर, जादग ू र

(ख) भाववाचक त त- िजससे भाव य त हो। जैसे-सराफा, बुढ़ापा, संगत, भुता आ द। यय

श द- प

यय

श द- प

पन

बचपन, लड़कपन, बालपन

बुलावा, सराफा

आई

भलाई, बुराई, ढठाई

आहट

इमा

ला लमा, म हमा, अ णमा

पा

बढ़ ु ापा, मोटापा

गरमी, सरद ,गर बी

औती

बपौती

चकनाहट, कड़वाहट, घबराहट

(ग) संबंधवाचक त त- िजससे संबंध का बोध हो। जैसे-ससुराल, भतीजा, चचेरा आ द। यय

श द- प

यय

श द- प

आल

ससुराल, न नहाल

एरा

ममेरा,चचेरा, फुफेरा

जा

भानजा, भतीजा

इक

नै तक, धा मक, आ थक

(घ) ऊनता (लघुता) वाचक त त- िजससे लघुता का बोध हो। जैसे-लु टया। ययय

श द- प

यय

श द- प

इया

लु टया, ड बया, ख टया

कोठर , टोकनी, ढोलक

ट , टा

लँ गोट , कछौट ,कलूटा

ड़ी, ड़ा

पगड़ी, टुकड़ी, बछड़ा

(ड़) गणनावाचक त त- िजससे सं या का बोध हो। जैसे-इकहरा, पहला, पाँचवाँ आ द। यय

श द- प

यय

श द- प

हरा

इकहरा, दह ु रा, तहरा

ला

पहला

रा

दस ू रा, तीसरा

था

चौथा

(च) सा

यवाचक त त- िजससे समता का बोध हो। जैसे-सुनहरा।

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यय सा

श द- प

यय

पीला-सा, नीला-सा, काला-सा

श द- प

हरा

सुनहरा, पहरा

(छ) गुणवाचक त त- िजससे कसी गुण का बोध हो। जैसे-भूख, वषैला, कुलवंत आ द। यय

श द- प

यय

श द- प

भख ू ा, यासा, ठं डा,मीठा

धनी, लोभी,

ईय

वांछनीय, अनुकरणीय

ईला

रं गीला, सजीला

लु

कृपालु, दयालु

वान

गुणवान, पवान

ऐला

वषैला, कसैला

वंत

दयावंत, कुलवंत

(ज)

थानवाचक त त- िजससे

यय

थान का बोध हो. जैसे-पंजाबी, जबलपु रया, द ल वाला आ द।

श द- प

यय

पंजाबी, बंगाल , गुजराती

वाल

वाला डेरेवाला, द ल वाला

कृत

यय और त त

कृत

यय- जो

ोधी

इया

श द- प कलक तया, जबलपु रया

यय म अंतर

यय धातु या

या के अंत म जड़ ु कर नया श द बनाते ह कृत

यय कहलाते ह।

जैसे- लखना, लखाई, लखावट। त त

यय- जो

यय सं ा, सवनाम या वशेषण म जुड़कर नया श द बनाते हं वे त त

कहलाते ह। जैसे-नी त-नै तक, काला-का लमा, रा

-रा

यय

यता आ द।

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अ याय 19 सं ध सं ध-सं ध श द का अथ है मेल। दो नकटवत वण के पर पर मेल से जो वकार (प रवतन) होता है वह सं ध कहलाता है । जैसे-सम ्+तोष=संतोष। दे व+इं =दे व । भानु+उदय=भानूदय। सं ध के भेद-सं ध तीन

कार क होती ह-

1. वर सं ध। 2. यंजन सं ध। 3. वसग सं ध। 1. वर सं ध दो

वर के मेल से होने वाले वकार (प रवतन) को

वर-सं ध पाँच

वर-सं ध कहते ह। जैसे- व या+आलय= व यालय।

कार क होती ह-

(क) द घ सं ध व या द घ अ, इ, उ के बाद य द

व या द घ अ, इ, उ आ जाएँ तो दोन

मलकर द घ आ, ई, और ऊ

हो जाते ह। जैसे(क) अ+अ=आ धम+अथ=धमाथ, अ+आ=आ- हम+आलय= हमालय। आ+अ=आ आ व या+अथ = व याथ आ+आ=आ- व या+आलय= व यालय। (ख) इ और ई क सं धइ+इ=ई- र व+इं =रवीं , मु न+इं =मुनीं । इ+ई=ई- ग र+ईश= गर श मु न+ईश=मुनीश। [Ahalgama Aashwin v 9904643643 www.ashwin100.webs.com

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ई+इ=ई- मह +इं =मह ं

नार +इंद= ु नार ंद ु

ई+ई=ई- नद +ईश=नद श मह +ईश=मह श (ग) उ और ऊ क सं धउ+उ=ऊ- भानु+उदय=भानूदय वधु+उदय= वधद ू य उ+ऊ=ऊ- लघु+ऊ म=लघू म सधु+ऊ म= संधू म ऊ+उ=ऊ- वधू+उ सव=वधू सव वधू+उ लेख=वधू लेख ऊ+ऊ=ऊ- भू+ऊ व=भू व वधू+ऊजा=वधूजा (ख) गुण सं ध इसम अ, आ के आगे इ, ई हो तो ए, उ, ऊ हो तो ओ, तथा ऋ हो तो अर् हो जाता है । इसे गुण-सं ध कहते ह जैसे(क) अ+इ=ए- नर+इं =नर आ+इ=ए- महा+इं =मह (ख) अ+ई=ओ

अ+ई=ए- नर+ईश=नरे श

आ+ई=ए महा+ईश=महे श

ान+उपदे श= ानोपदे श आ+उ=ओ महा+उ सव=महो सव

अ+ऊ=ओ जल+ऊ म=जलो म आ+ऊ=ओ महा+ऊ म=महो म (ग) अ+ऋ=अर् दे व+ऋ ष=दे व ष (घ) आ+ऋ=अर् महा+ऋ ष=मह ष (ग) व ृ

सं ध

अ आ का ए ऐ से मेल होने पर ऐ अ आ का ओ, औ से मेल होने पर औ हो जाता है । इसे व ृ

सं ध

कहते ह। जैसे(क) अ+ए=ऐ एक+एक=एकैक अ+ऐ=ऐ मत+ऐ य=मतै य आ+ए=ऐ सदा+एव=सदै व आ+ऐ=ऐ महा+ऐ वय=महै वय (ख) अ+ओ=औ वन+ओष ध=वनौष ध आ+ओ=औ महा+औषध=महौष ध अ+औ=औ परम+औषध=परमौषध आ+औ=औ महा+औषध=महौषध (घ) यण सं ध (क) इ, ई के आगे कोई वजातीय (असमान) कसी वजातीय

वर होने पर इ ई को ‘य ्’ हो जाता है । (ख) उ, ऊ के आगे

वर के आने पर उ ऊ को ‘व ्’ हो जाता है । (ग) ‘ऋ’ के आगे कसी वजातीय

वर के

आने पर ऋ को ‘र्’ हो जाता है । इ ह यण-सं ध कहते ह। इ+अ=य ्+अ य द+अ प=य य प ई+आ=य ्+आ इ त+आ द=इ या द। [Ahalgama Aashwin v 9904643643 www.ashwin100.webs.com

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ई+अ=य ्+अ नद +अपण=न यपण ई+आ=य ्+आ दे वी+आगमन=दे यागमन (घ) उ+अ=व ्+अ अनु+अय=अ वय उ+आ=व ्+आ सु+आगत= वागत उ+ए=व ्+ए अनु+एषण=अ वेषण ऋ+अ=र्+आ पत+ ृ आ ा= प ा ा (ड़) अया द सं ध- ए, ऐ और ओ औ से परे कसी भी

वर के होने पर

मशः अय ्, आय ्, अव ् और आव ्

हो जाता है । इसे अया द सं ध कहते ह। (क) ए+अ=अय ्+अ ने+अन+नयन (ख) ऐ+अ=आय ्+अ गै+अक=गायक (ग) ओ+अ=अव ्+अ पो+अन=पवन (घ) औ+अ=आव ्+अ पौ+अक=पावक औ+इ=आव ्+इ नौ+इक=ना वक 2. यंजन सं ध यंजन का यंजन से अथवा कसी

वर से मेल होने पर जो प रवतन होता है उसे यंजन सं ध कहते ह।

जैसे-शरत ्+चं =शर चं । (क) कसी वग के पहले वण क् , च ्, , त ्, प ् का मेल कसी वग के तीसरे अथवा चौथे वण या य ्, र्, ल ्, व ्, ह या कसी

वर से हो जाए तो क् को ग ् च ् को ज ्,

को

और प ् को ब ् हो जाता है । जैसे-

क् +ग= ग दक् +गज= द गज। क् +ई=गी वाक् +ईश=वागीश च ्+अ=ज ् अच ्+अंत=अजंत

+आ=डा ष +आनन=षडानन

प+ज+ ज अप ्+ज=अ ज (ख) य द कसी वग के पहले वण (क् , च ्, , त ्, प ्) का मेल न ् या म ् वण से हो तो उसके

थान पर उसी

वग का पाँचवाँ वण हो जाता है । जैसेक् +म=

वाक् +मय=वा मय च ्+न=ञ ् अच ्+नाश=अ नाश

+म=ण ् ष +मास=ष मास त ्+न=न ् उत ्+नयन=उ नयन प ्+म ्=म ् अप ्+मय=अ मय (ग) त ् का मेल ग, घ, द, ध, ब, भ, य, र, व या कसी

वर से हो जाए तो

त ्+भ=

सत ्+भावना=स ावना त ्+ई=द जगत ्+ईश=जगद श

त ्+भ=

भगवत ्+भि त=भगव ि त त ्+र=

त ्+ध=

सत ्+धम=स म

(घ) त ् से परे च ् या

हो जाता है । जैसे-

तत ्+ प=त प ू

होने पर च, ज ् या झ ् होने पर ज ्,

या

होने पर ,

या

होने पर

और

ल होने पर ल ् हो जाता है । जैसेत ्+च= च उत ्+चारण=उ चारण त ्+ज= ज सत ्+जन=स जन त ्+झ= झ उत ्+झ टका=उ झ टका त ्+ट=

तत ्+ट का=त ीका

त ्+ड= ड उत ्+डयन=उ डयन त ्+ल= ल उत ्+लास=उ लास (ड़) त ् का मेल य द श ् से हो तो त ् को च ् और श ् का

बन जाता है । जैसे-

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त ्+श ्= छ उत ्+ वास=उ त ्+श= छ सत ्+शा

वास त ्+श= छ उत ्+ श ट=उि छ ट

=स छा

(च) त ् का मेल य द

से हो तो त ् का

त ्+ह=

उत ्+हार=उ ार त ्+ह=

त ्+ह=

तत ्+ हत=त त

(छ)

वर के बाद य द

अ+छ=अ छ

और

का ध ् हो जाता है । जैसे-

उत ्+हरण=उ रण

वण आ जाए तो

से पहले च ् वण बढ़ा दया जाता है । जैसे-

व+छं द= व छं द आ+छ=आ छ आ+छादन=आ छादन

इ+छ=इ छ सं ध+छे द=सं ध छे द उ+छ=उ छ अनु+छे द=अनु छे द (ज) य द म ् के बाद क् से म ् तक कोई यंजन हो तो म ् अनु वार म बदल जाता है । जैसेम ्+च ्=◌ं कम ्+ चत= कं चत म ्+क=◌ं कम ्+कर= कं कर म ्+क=◌ं सम ्+क प=संक प म ्+च=◌ं सम ्+चय=संचय म ्+त=◌ं सम ्+तोष=संतोष म ्+ब=◌ं सम ्+बंध=संबंध म ्+प=◌ं सम ्+पण ू =संपण ू (झ) म ् के बाद म का

व व हो जाता है । जैसे-

म ्+म= म सम ्+म त=स म त म ्+म= म सम ्+मान=स मान (ञ) म ् के बाद य ्, र्, ल ्, व ्, श ्, ष ्, स ्,

म से कोई यंजन होने पर म ् का अनु वार हो जाता है । जैसे-

म ्+य=◌ं सम ्+योग=संयोग म ्+र=◌ं सम ्+र ण=संर ण म ्+व=◌ं सम ्+ वधान=सं वधान म ्+व=◌ं सम ्+वाद=संवाद म ्+श=◌ं सम ्+शय=संशय म ्+ल=◌ं सम ्+ल न=संल न म ्+स=◌ं सम ्+सार=संसार (ट) ऋ,र्, ष ् से परे न ् का ण ् हो जाता है । पर तु चवग, टवग, तवग, श और स का यवधान हो जाने पर न ् का ण ् नह ं होता। जैसेर्+न=ण प र+नाम=प रणाम र्+म=ण

+मान= माण

(ठ) स ् से पहले अ, आ से भ न कोई

वर आ जाए तो स ् को ष हो जाता है । जैसे-

भ ्+स ्=ष अ भ+सेक=अ भषेक न+ स = न ष

व+सम+ वषम

3. वसग-सं ध वसग (:) के बाद

वर या यंजन आने पर वसग म जो वकार होता है उसे वसग-सं ध कहते ह। जैसे-

मनः+अनुकूल=मनोनुकूल। (क) वसग के पहले य द ‘अ’ और बाद म भी ‘अ’ अथवा वग के तीसरे , चौथे पाँचव वण, अथवा य, र, ल, व हो तो वसग का ओ हो जाता है। जैसे[Ahalgama Aashwin v 9904643643 www.ashwin100.webs.com

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मनः+अनुकूल=मनोनुकूल अधः+ग त=अधोग त मनः+बल=मनोबल (ख) वसग से पहले अ, आ को छोड़कर कोई

वर हो और बाद म कोई

वर हो, वग के तीसरे , चौथे,

पाँचव वण अथवा य ्, र, ल, व, ह म से कोई हो तो वसग का र या र् हो जाता है । जैसेनः+आहार= नराहार नः+आशा= नराशा नः+धन= नधन (ग) वसग से पहले कोई

वर हो और बाद म च, छ या श हो तो वसग का श हो जाता है । जैसे-

नः+चल= न चल नः+छल= न छल दःु +शासन=द ु शासन (घ) वसग के बाद य द त या स हो तो वसग स ् बन जाता है । जैसेनमः+ते=नम ते नः+संतान= न संतान दःु +साहस=द ु साहस (ड़) वसग से पहले इ, उ और बाद म क, ख, ट, ठ, प, फ म से कोई वण हो तो वसग का ष हो जाता है । जैसेनः+कलंक= न कलंक चतुः+पाद=चतु पाद नः+फल= न फल (ड) वसग से पहले अ, आ हो और बाद म कोई भ न

वर हो तो वसग का लोप हो जाता है । जैसे-

नः+रोग= नरोग नः+रस=नीरस (छ) वसग के बाद क, ख अथवा प, फ होने पर वसग म कोई प रवतन नह ं होता। जैसेअंतः+करण=अंतःकरण

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अ याय 20 समास समास का ता पय है ‘सं

तीकरण’। दो या दो से अ धक श द से मलकर बने हुए एक नवीन एवं साथक श द को समास कहते ह। जैसे-‘रसोई के लए घर’ इसे हम ‘रसोईघर’ भी कह सकते ह। सामा सक श द- समास के नयम से न मत श द सामा सक श द कहलाता है । इसे सम तपद भी कहते ह। समास होने के बाद वभि तय के च न (परसग) लु त हो जाते ह। जैसे-राजपु । समास- व ह- सामा सक श द के बीच के संबंध को

प ट करना समास- व ह कहलाता है । जैसे-

राजपु -राजा का पु । पूवपद और उ तरपद- समास म दो पद (श द) होते ह। पहले पद को पूवपद और दस ू रे पद को उ तरपद कहते ह। जैसे-गंगाजल। इसम गंगा पूवपद और जल उ तरपद है । समास के भेद समास के चार भेद ह1. अ ययीभाव समास। 2. त पु ष समास। 3. वं व समास। 4. बहु ी ह समास। 1. अ ययीभाव समास िजस समास का पहला पद

धान हो और वह अ यय हो उसे अ ययीभाव समास कहते ह। जैसे-यथाम त

(म त के अनुसार), आमरण (म ृ यु कर) इनम यथा और आ अ यय ह। कुछ अ य उदाहरणआजीवन - जीवन-भर, यथासाम य - साम य के अनुसार यथाशि त - शि त के अनुसार, यथा व ध व ध के अनुसार यथा म -

म के अनुसार, भरपेट पेट भरकर

हररोज़ - रोज़-रोज़, हाथ हाथ - हाथ ह हाथ म रात रात - रात ह रात म,

त दन -

येक दन

बेशक - शक के बना, नडर - डर के बना न संदेह - संदेह के बना, हरसाल - हरे क साल [Ahalgama Aashwin v 9904643643 www.ashwin100.webs.com

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अ ययीभाव समास क पहचान- इसम सम त पद अ यय बन जाता है अथात समास होने के बाद उसका प कभी नह ं बदलता है । इसके साथ वभि त च न भी नह ं लगता। जैसे-ऊपर के सम त श द है । 2. त पु ष समास िजस समास का उ तरपद तुलसीदासकृत=तुलसी

धान हो और पूवपद गौण हो उसे त पु ष समास कहते ह। जैसे-

वारा कृत (र चत)

ात य- व ह म जो कारक

कट हो उसी कारक वाला वह समास होता है । वभि तय के नाम के

अनुसार इसके छह भेद ह(1) कम त पु ष गरहकट गरह को काटने वाला (2) करण त पु ष मनचाहा मन से चाहा (3) सं दान त पु ष रसोईघर रसोई के लए घर (4) अपादान त पु ष दे श नकाला दे श से नकाला (5) संबंध त पु ष गंगाजल गंगा का जल (6) अ धकरण त पु ष नगरवास नगर म वास (क) नञ त पु ष समास िजस समास म पहला पद नषेधा मक हो उसे नञ त पु ष समास कहते ह। जैसेसम त पद समास- व ह सम त पद समास- व ह अस य न स य अनंत न अंत अना द न आ द असंभव न संभव (ख) कमधारय समास िजस समास का उ तरपद

धान हो और पूववद व उ तरपद म वशेषण- वशे य अथवा उपमान-उपमेय

का संबंध हो वह कमधारय समास कहलाता है । जैसेसम त

समास- व ह

सम त पद

समात व ह

चं मुख

चं

जैसा मुख

कमलनयन

कमल के समान नयन

दे हलता

दे ह

पी लता

दह बड़ा

दह म डूबा बड़ा

नीलकमल

नीला कमल

पीतांबर

पीला अंबर (व

स जन

सत ् (अ छा) जन

नर संह

नर म संह के समान

पद

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)

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(ग)

वगु समास

िजस समास का पूवपद सं यावाचक वशेषण हो उसे

वगु समास कहते ह। इससे समूह अथवा समाहार

का बोध होता है । जैसेसम त

समात- व ह

सम त पद

समास व ह

नौ

ह का मसूह

दोपहर

दो पहर का समाहार

तीन लोक का समाहार

चौमासा

चार मास का समूह

नवरा

नौ रा य का समूह

शता द

सौ अ दो (साल ) का समूह

अठ नी

आठ आन का समूह

पद नव ह लोक

3. वं व समास िजस समास के दोन पद

धान होते ह तथा व ह करने पर ‘और’, अथवा, ‘या’, एवं लगता है , वह

वं व

समास कहलाता है । जैसेसम त पद

समास- व ह

सम त पद

समास- व ह

पाप-पु य

पाप और पु य

अ न-जल

अ न और जल

सीता-राम

सीता और राम

खरा-खोटा

खरा और खोटा

ऊँच-नीच

ऊँच और नीच

राधा-कृ ण

राधा और कृ ण

4. बहु ी ह समास िजस समास के दोन पद अ धान ह और सम तपद के अथ के अ त र त कोई सांके तक अथ

धान हो

उसे बहु ी ह समास कहते ह। जैसेसम त पद

समास- व ह

दशानन

दश है आनन (मुख) िजसके अथात ् रावण

नीलकंठ

नीला है कंठ िजसका अथात ् शव

सल ु ोचना

सद ंु र है लोचन िजसके अथात ् मेघनाद क प नी

पीतांबर

पीले है अ बर (व

लंबोदर

लंबा है उदर (पेट) िजसका अथात ् गणेशजी

दरु ा मा

बुर आ मा वाला (कोई द ु ट)

वेतांबर

) िजसके अथात ्

वेत है िजसके अंबर (व

ीकृ ण

) अथात ् सर वती

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सं ध और समास म अंतर सं ध वण म होती है । इसम वभि त या श द का लोप नह ं होता है । जैसे-दे व+आलय=दे वालय। समास दो पद म होता है । समास होने पर वभि त या श द का लोप भी हो जाता है । जैसे-माता- पता=माता और पता। कमधारय और बहु ी ह समास म अंतर- कमधारय म सम त-पद का एक पद दस ू रे का वशेषण होता है । इसम श दाथ धान होता है । जैसे-नीलकंठ=नीला कंठ। बहु ी ह म सम त पद के दोन पद म वशेषणवशे य का संबंध नह ं होता अ पतु वह सम त पद ह साथ ह श दाथ गौण होता है और कोई भ नाथ ह

कसी अ य सं ा द का वशेषण होता है । इसके धान हो जाता है । जैसे-नील+कंठ=नीला है कंठ

िजसका अथात शव।

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अ याय 21 पद-प रचय पद-प रचय- वा यगत श द के

प और उनका पार प रक संबंध बताने म िजस

या क आव यकता पड़ती है वह पद-प रचय या श दबोध कहलाता है । प रभाषा-वा यगत

ये क पद (श द) का याकरण क

ि ट से पूण प रचय दे ना ह पद-प रचय

कहलाता है । श द आठ

कार के होते ह-

1.सं ा- भेद, लंग, वचन, कारक,

या अथवा अ य श द से संबंध।

2.सवनाम- भेद, पु ष, लंग, वचन, कारक,

या अथवा अ य श द से संबंध। कस सं ा के

थान पर

आया है (य द पता हो)। 3.

या- भेद, लंग, वचन, योग, धातु, काल, वा य, कता और कम से संबंध।

4. वशेषण- भेद, लंग, वचन और वशे य क 5.

या- वशेषण- भेद, िजस

या क

वशेषता।

वशेषता बताई गई हो उसके बारे म नदश।

6.संबंधबोधक- भेद, िजससे संबंध है उसका नदश। 7.समु चयबोधक- भेद, अि वत श द, वा यांश या वा य। 8. व मया दबोधक- भेद अथात कौन-सा भाव

प ट कर रहा है ।

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अ याय 22 श द- ान 1. पयायवाची श द कसी श द- वशेष के लए

यु त समानाथक श द को पयायवाची श द कहते ह। य य प पयायवाची

श द समानाथ होते ह क तु भाव म एक-दस ू रे से कं चत भ न होते ह। 1.अमत ृ - सुधा, सोम, पीयूष, अ मय। 2.असुर- रा स, दै य, दानव, नशाचर। 3.अि न- आग, अनल, पावक, वि न। 4.अ व- घोड़ा, हय, तुरंग, बाजी। 5.आकाश- गगन, नभ, आसमान, योम, अंबर। 6.आँख- ने , ग, नयन, लोचन। 7.इ छा- आकां ा, चाह, अ भलाषा, कामना। 8.इं - सुरेश, दे व , दे वराज, पुरंदर। 9.ई वर-

भु, परमे वर, भगवान, परमा मा।

10.कमल- जलज, पंकज, सरोज, राजीव, अर व द। 11.गरमी-

ी म, ताप, नदाघ, ऊ मा।

12.गह ृ - घर, नकेतन, भवन, आलय। 13.गंगा- सुरस र,

पथगा, दे वनद , जा नवी, भागीरथी।

14.चं - चाँद, चं मा, वधु, श श, राकेश। 15.जल- वा र, पानी, नीर, स लल, तोय। 16.नद - स रता, त टनी, तरं गणी, नझ रणी। [Ahalgama Aashwin v 9904643643 www.ashwin100.webs.com

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17.पवन- वायु, समीर, हवा, अ नल। 18.प नी- भाया, दारा, अधा गनी, वामा। 19.पु - बेटा, सत ु , तनय, आ मज। 20.पु ी-बेट , सत ु ा, तनया, आ मजा। 21.प ृ वी- धरा, मह , धरती, वसुधा, भू म, वसुंधरा। 22.पवत- शैल, नग, भूधर, पहाड़। 23. बजल - चपला, चंचला, दा मनी, सौदामनी। 24.मेघ- बादल, जलधर, पयोद, पयोधर, घन। 25.राजा- नप ृ , नप ृ त, भूप त, नरप त। 26.रजनी- रा , नशा, या मनी, वभावर । 27.सप- सांप, अ ह, भुजंग, वषधर। 28.सागर- समु , उद ध, जल ध, वा र ध। 29. संह- शेर, वनराज, शादल, ू मग ृ राज। 30.सय ू - र व, दनकर, सरू ज, भा कर। 31.

ी- ललना, नार , का मनी, रमणी, म हला।

32. श क- गु , अ यापक, आचाय, उपा याय। 33.हाथी- कंु जर, गज,

वप, कर , ह ती।

2. अनेक श द के लए एक श द 1

िजसे दे खकर डर (भय) लगे

2

जो ि थर रहे

3

डरावना, भयानक थावर

ान दे ने वाल

ानदा

4

भूत-वतमान-भ व य को दे खने (जानने) वाले

5

जानने क इ छा रखने वाला

िज ासु

6

िजसे

7

पं ह दन म एक बार होने वाला

पा

8

अ छे च र

स चर

9

आ ा का पालन करने वाला

10

रोगी क

11

स य बोलने वाला

स यवाद

12

दस ू र पर उपकार करने वाला

उपकार

13

िजसे कभी बुढ़ापा न आये

अजर

मा न कया जा सके वाला

च क सा करने वाला

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कालदश

आ ाकार च क सक

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14

दया करने वाला

15

िजसका आकार न हो

16

जो आँख के सामने हो

17

जहाँ पहुँचा न जा सके

अगम, अग य

18

िजसे बहुत कम ान हो, थोड़ा जानने वाला मास म एक बार आने वाला

अ प

19

दयालु नराकार य

मा सक

20

िजसके कोई संतान न हो

21

जो कभी न मरे

अमर

22

िजसका आचरण अ छा न हो

दरु ाचार

23

िजसका कोई मू य न हो

अमू य

24

जो वन म घूमता हो

वनचर

25

जो इस लोक से बाहर क बात हो

अलौ कक

26

जो इस लोक क बात हो

लौ कक

27

िजसके नीचे रे खा हो

रे खां कत

28

िजसका संबंध पि चम से हो

पा चा य

29

जो ि थर रहे

थावर

30

दख ु ांत नाटक

ासद

31

जो

न संतान

मा करने के यो य हो

32

हंसा करने वाला

हंसक

33

हत चाहने वाला

हतैषी

34 35

हाथ से लखा हुआ सब कुछ जानने वाला

36

जो

ह त ल खत सव

वयं पैदा हुआ हो जो शरण म आया हो

शरणागत

38

िजसका वणन न कया जा सके

वणनातीत

39

फल-फूल खाने वाला

शाकाहार

40

िजसक प नी मर गई हो

वधुर

41

िजसका प त मर गया हो

वधवा

42

सौतेल माँ

वमाता

37

43

याकरण जाननेवाला

वयंभू

वैयाकरण

44

रचना करने वाला

रच यता

45

खून से रँगा हुआ

र तरं िजत

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46

अ यंत सु दर

47

क तमान पु ष

48

कम खच करने वाला

49

मछल क तरह आँख वाल

मीना ी

50

मयूर क तरह आँख वाल

मयूरा ी

51

ब च के लए काम क व तु

बालोपयोगी

52

िजसक बहुत अ धक चचा हो िजस ी के कभी संतान न हुई हो

बहुच चत वं या (बाँझ)

फेन से भरा हुआ य बोलने वाल

फे नल

53 54 55

पसी यश वी मत ययी

यंवदा

56

िजसक उपमा न हो

57

जो थोड़ी दे र पहले पैदा हुआ हो िजसका कोई आधार न हो

नवजात

59

नगर म वास करने वाला

नाग रक

60

रात म घूमने वाला

61

ई वर पर व वास न रखने वाला

62

मांस न खाने वाला

58

63

बलकुल बरबाद हो गया हो

न पम नराधार नशाचर नाि तक नरा मष व त

64

िजसक धम म न ठा हो

धम न ठ

65

दे खने यो य

दशनीय

66

बहुत तेज चलने वाला जो कसी प म न हो

तट थ

68

69

तप करने वाला

तप वी

70

जो ज म से अंधा हो

ज मांध

71

िजसने इं य को जीत लया हो

िजत य

72 73

चंता म डूबा हुआ जो बहुत समय कर ठहरे

74

िजसक चार भुजाएँ ह

चतुभुज

75

हाथ म च

च पा ण

76

िजससे घण ृ ा क जाए

घ ृ णत

77

िजसे गु त रखा जाए

गोपनीय

67

तव को जानने वाला

धारण करनेवाला

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त ु गामी तव

चं तत चर थायी

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78

ग णत का

79

आकाश को चूमने वाला

गगनचुंबी

80

जो टुकड़े-टुकड़े हो गया हो

खं डत

ाता

ग णत

818 आकाश म उड़ने वाला 82 तेज बु वाला 83 क पना से परे हो

कुशा बु

84

जो उपकार मानता है

कृत

85

कसी क हँसी उड़ाना

86

नभचर क पनातीत उपहास

ऊपर कहा हुआ ऊपर लखा गया

उपयु त

88

िजस पर उपकार कया गया हो

उपकृत

89

इ तहास का

अ तहास

90

आलोचना करने वाला

आलोचक

91

ई वर म आ था रखने वाला

आि तक

87

92

उप र ल खत

ाता

बना वेतन का

अवैत नक

93

जो कहा न जा सके

अकथनीय

94

जो गना न जा सके

अग णत

95

िजसका कोई श ु ह न ज मा हो

अजातश ु

96

िजसके समान कोई दस ू रा न हो

अ वतीय

97

जो प र चत न हो

अप र चत

98

िजसक कोई उपमा न हो

अनुपम

3. वपर ताथक ( वलोम श द) श द अथ

वलोम इत

आ मष

नरा मष

अनुकूल

तकूल

श द

वलोम

श द

वलोम

आ वभाव

तरोभाव

आकषण

वकषण

अभ

अन भ

आजाद

गुलामी

शु क

अनुराग

वराग

आहार

नराहार

अ प

अ धक

अ नवाय

वैकि पक

अमत ृ

वष

अगम

स ुग म

अ भमान

न ता

आकाश

पाताल

आशा

नराशा

अथ

अनथ

अ पायु

द घायु

अनु ह

व ह

अपमान

स मान

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नरा

अंधकार

काश

अ ज

आदान

दान

अवाचीन

ाचीन

अ च

आद

आरं भ

अंत

आय

यय

अवन त

उ नत

कटु

मधुर

अवनी

अंबर

या

कृत

कृत न

आदर

अनादर

या

अंत

अनुज

कड़वा

मीठा

आलोक

अंधकार

उदय

अ त

व य

शा त ु

आयात

नयात

खलना

मुरझाना

कम

न कम

अनुपि थत

उपि थत

आल य

फू त

खुशी

दख ु , गम

आय

अनाय

गहरा

उथला

अ तविृ ट

अनाविृ ट

गु

लघु

आद

अना द

जीवन

मरण

इ छा

अ न छा

गुण

दोष

इ ट

अन ट

गर ब

अमीर

इि छत

अ नि छत

घर

बाहर

इहलोक

परलोक

चर

अचर

उपकार

अपकार

छूत

अछूत

उदार

अनुदार

जल

थल

उ तीण

अनु तीण

जड़

चेतन

उधार

नकद

जीवन

मरण

उ थान

पतन

जंगम

उ कष

अपकष

उ तर

ज टल

सरस

गु त

एक

अनेक

तु छ

महान

ऐसा

वैसा

रात

दे व

दानव

दरु ाचार

सदाचार

मानवता

दानवता

धम

अधम

महा मा

दरु ा मा

धीर

अधीर

मान

अपमान

धूप

छाँव

श ु

नूतन

पुरातन

मधुर

कटु

दन

म नकल मौ खक नकट प त ता

असल ल खत

स य

नमाण

आि तक

नाि तक

दरू

र क

भ क

कुलटा

राजा

रं क

पाप

लय

सिृ ट

रा

लाभ

हा न

राग

वेष

पव

अप व

ेम

घण ृ ा

पूण

अपूण समथन

वरोध

म या

थावर

मो

कट

वनाश बंधन

नंदा

तु त पु य दवस

वधवा

सधवा

पराजय

उ तर

वसंत

पतझर

परतं

वतं

बाढ़

सूखा

शूर

कायर

वजय

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बंधन

मुि त

शयन

जागरण

शीत

उ ण

भाव

मंगल

अमंगल

सौभा य

शु ल

कृ ण

हत

भलाई

अभाव

वग

नरक

दभ ु ा य

वीकृत

अ वीकृत

अ हत

सा र

नर र

शोक

हंसा

अ हंसा

शा वत

साधु

असाधु

वदे श

वदे श

वाधीन

पराधीन

ान

अ ान

सुजन

दज ु न

शुभ

अशुभ

सुपु

कुपु

सुम त

कुम त

सरस

नीरस

सच

झूठ

साकार

तु त

नंदा

वषम

सम

4. एकाथक 1. अ श

हष

बुराई

णक

नराकार

वशु

द ू षत

सुर

असुर

व ाम

सजीव

नज व

व वान

मूख

तीत होने वाले श द

- जो ह थयार हाथ से फककर चलाया जाए। जैसे-बाण। - जो ह थयार हाथ म पकड़े-पकड़े चलाया जाए। जैसे-कृपाण।

2. अलौ कक- जो इस जगत म क ठनाई से अ वाभा वक- जो मानव

ा त हो। लोको तर।

वभाव के वपर त हो।

असाधारण- सांसा रक होकर भी अ धकता से न मले। वशेष। 3. अमू य- जो चीज मू य दे कर भी

ा त न हो सके।

बहुमू य- िजस चीज का बहुत मू य दे ना पड़ा। 4. आनंद- खश ु ी का थायी और गंभीर भाव। आ लाद-

णक एवं ती

आनंद।

उ लास- सुख- ाि त क अ पका लक

या, उमंग।

स नता-साधारण आनंद का भाव। 5. ई या- दस ू रे क उ न त को सहन न कर सकना। डाह-ई यायु त जलन। वेष- श ुता का भाव। पधा- दस ू र क उ न त दे खकर

वयं उ न त करने का

यास करना।

6. अपराध- सामािजक एवं सरकार कानून का उ लंघन। पाप- नै तक एवं धा मक नयम को तोड़ना। 7. अनुनय- कसी बात पर सहमत होने क

ाथना।

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वनय- अनुशासन एवं श टतापूण नवेदन। आवेदन-यो यतानुसार कसी पद के लए कथन वारा ाथना- कसी काय- स

तुत होना।

के लए वन तापूण कथन।

8. आ ा-बड़ का छोट को कुछ करने के लए आदे श। अनुम त- ाथना करने पर बड़

वारा द गई सहम त।

9. इ छा- कसी व तु को चाहना। उ कंठा-

ती ायु त

ाि त क ती

इ छा।

आशा- ाि त क संभावना के साथ इ छा का सम वय। पह ृ ा-उ कृ ट इ छा। 10. सद ुं र- आकषक व तु। चा - प व

और सुंदर व तु।

चर-सु च जा त करने वाल सुंदर व तु। मनोहर- मन को लुभाने वाल व तु। 11. म - समवय क, जो अपने

त यार रखता हो।

सखा-साथ रहने वाला समवय क। सगा-आ मीयता रखने वाला। सु दय-सुंदर

दय वाला, िजसका यवहार अ छा हो।

12. अंतःकरण- मन, च त, बु , और अहं कार क समि ट। च त-

म ृ त, व म ृ त, व न आ द गुणधार

च त।

मन- सुख-दख ु क अनुभू त करने वाला। 13. म हला- कुल न घराने क प नी- अपनी ववा हत

ी।

ी।

ी- नार जा त क बोधक। 14. नम ते- समान अव था वालो को अ भवादन। नम कार- समान अव था वाल को अ भवादन। णाम- अपने से बड़ को अ भवादन। अ भवादन- स माननीय यि त को हाथ जोड़ना। 15. अनुज- छोटा भाई। अ ज- बड़ा भाई। भाई- छोटे -बड़े दोन के लए। 16. वागत- कसी के आगमन पर स मान। अ भनंदन- अपने से बड़ का व धवत स मान। [Ahalgama Aashwin v 9904643643 www.ashwin100.webs.com

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17. अहं कार- अपने गुण पर घमंड करना। अ भमान- अपने को बड़ा और दस ू रे को छोटा समझना। दं भ- अयो य होते हुए भी अ भमान करना। 18. मं णा- गोपनीय प से परामश करना। परामश- पूणतया कसी वषय पर वचार- वमश कर मत

कट करना।

5.समो च रत श द 1. अनल=आग

13. अ ल= मर

अ नल=हवा, वायु

आल =सखी

2. उपकार=भलाई, भला करना

14. कृ म=क ट

अपकार=बुराई, बरु ा करना

कृ ष=खेती

3. अ न=अनाज

15. अपचार=अपराध उपचार=इलाज

अ य=दस ू रा

16. अ याय=गैर-इंसाफ अ या य=दस ू रे -दस ू रे

4. अणु=कण

17. कृ त=रचना

अनु=प चात

कृती= नपुण, प र मी

5. ओर=तरफ

18. आमरण=म ृ युपयत

और=तथा

आभरण=गहना

6. अ सत=काला

19. अवसान=अंत

अ शत=खाया हुआ 7. अपे ा=तुलना म

आसान=सरल

उपे ा= नरादर, लापरवाह

कल =अध खला फूल

8. कल=सद ुं र, पुरजा

21. इतर=दस ू रा

काल=समय

इ =सुगं धत

9. अंदर=भीतर

22.

अंतर=भेद

23. प ष=कठोर

10. अंक=गोद

पु ष=आदमी

अंग=दे ह का भाग

24. कुट=घर, कला

11. कुल=वंश

कूट=पवत

कूल= कनारा

25. कुच= तन

12. अ व=घोड़ा

कूच=

अ म=प थर

26. साद=कृपा

20. क ल=क लयुग, झगड़ा

म= सल सला कम=काम

थान

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ासादा=महल

43. दन= दवस

27. कुजन=दज ु न

द न=द र

कूजन=प

44. भी त=भय

य का कलरव

28. गत=बीता हुआ ग त=चाल 29. पानी=जल पा ण=हाथ

भि त=द वार 45. दशा=हालत दशा=तरफ़

30. गुर=उपाय

46. व=तरल पदार

गु = श क, भार

अथ

31. ह=सूय,चं

47. भाषण= या यान

गह ृ =घर

भीषण=भयंकर

32. कार=तरह

48. धरा=प ृ वी

ाकार= कला, घेरा

य=धन

धारा= वाह

33. चरण=पैर

49. नय=नी त

चारण=भाट

नव=नया

34. चर=पुराना

50. नवाण=मो नमाण=बनाना

चीर=व 35. फन=साँप का फन

51. नजर=दे वता नझर=झरना

फ़न=कला

52. मत=राय

36. छ =छाया

म त=बु

=

य,शि त

53. नेक=अ छा

37. ढ ठ=द ु ट,िज ी

नेकु=त नक

डीठ= ि ट

54. पथ=राह

38. बदन=दे ह

प य=रोगी का आहार

वदन=मख ु

55. मद=म ती

39. तर ण=सूय

म य=म दरा

तरणी=नौका

56. प रणाम=फल

40. तरं ग=लहर

प रमाण=वजन

तुरंग=घोड़ा

57. म ण=र न

41. भवन=घर

फणी=सप

भुवन=संसार

58. म लन=मैला

42. त त=गरम

लान=मुरझाया हुआ 59. मात= ृ माता

त ृ त=संतु ट

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मा =केवल

72. शम=संयम

60. र त=तर का

सम=बराबर

र ता=खाल

73. च वाक=चकवा

61. राज=शासन

च वात=बवंडर

राज=रह य

74. शूर=वीर

62. ल लत=सुंदर

सूर=अंधा

ल लता=गोपी

75. सु ध= मरण

63. ल य=उ े य

सुधी=बु मान

ल =लाख

76. अभेद=अंतर नह ं

64. व =छाती

अभे य=न टूटने यो य

व ृ =पेड़

77. संघ=समुदाय

65. वसन=व

संग=साथ

यसन=नशा, आदत

78. सग=अ याय

66. वासना=कुि सत

वग=एक लोक

वचार बास=गंध

79. णय= ेम

67. व तु=चीज

प रणय= ववाह

वा तु=मकान

80. समथ=स म

68. वजन=सुनसान

साम य=शि त

यजन=पंखा

81. क टबंध=कमरबंध

69. शंकर= शव

क टब =तैयार

संकर= म

82.

70. हय= दय

ां त= व ोह

लां त=थकावट

हय=घोड़ा

83. इं दरा=ल मी

71. शर=बाण

इं ा=इं ाणी

सर=तालाब 6. अनेकाथक श द 1. अ र= न ट न होने वाला, वण, ई वर, शव। 2. अथ= धन, ऐ वय, योजन, हे तु। 3. आराम= बाग, व ाम, रोग का दरू होना। 4. कर= हाथ, करण, टै स, हाथी क सूँड़। 5. काल= समय, म ृ यु, यमराज। 6. काम= काय, पेशा, धंधा, वासना, कामदे व। [Ahalgama Aashwin v 9904643643 www.ashwin100.webs.com

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7. गुण= कौशल, शील, र सी, वभाव, धनुष क डोर । 8. घन= बादल, भार , हथौड़ा, घना। 9. जलज= कमल, मोती, मछल , चं मा, शंख। 10. तात= पता, भाई, बड़ा, पू य, यारा, म । 11. दल= समूह, सेना, प ता, ह सा, प , भाग, चड़ी। 12. नग= पवत, व ृ , नगीना। 13. पयोधर= बादल, तन, पवत, ग ना। 14. फल= लाभ, मेवा, नतीजा, भाले क नोक। 15. बाल= बालक, केश, बाला, दानेयु त डंठल। 16. मधु= शहद, म दरा, चैत मास, एक दै य, वसंत। 17. राग=

ेम, लाल रं ग, संगीत क

व न।

18. रा श= समूह, मेष, कक, विृ चक आ द रा शयाँ। 19. ल य= नशान, उ े य। 20. वण= अ र, रं ग, ा मण आ द जा तयाँ। 21. सारं ग= मोर, सप, मेघ, हरन, पपीहा, राजहं स, हाथी, कोयल, कामदे व, संह, धनुष भ रा, मधुम खी, कमल। 22. सर= अमत ू , पानी, गंगा, मधु, प ृ वी, तालाब। ृ , दध 23.

े = दे ह, खेत, तीथ, सदा त बाँटने का

थान।

24. शव= भा यशाल , महादे व, ग ृ ाल, दे व, मंगल। 25. ह र= हाथी, व णु, इं , पहाड़, संह, घोड़ा, सप, वानर, मेढक, यमराज, 7. पशु-प

मा, शव, कोयल, करण, हं स।

य क बो लयाँ

पशु

बोल

पशु

बोल

पशु

बोल

ऊँट

बलबलाना

कोयल

कूकना

गाय

रँभाना

चहचहाना

भस

डकराना (रँभाना)

बकर

म मयाना

कुहकना

घोड़ा

तोता

ट-ट करना

साँप

फुफकारना

च ड़या मोर हाथी शेर टटहर

चघाड़ना

िज वा

कौआ

दहाड़ना

सारस

ट ं-ट ं करना

कु ता

8. कुछ जड़ पदाथ क

वशेष

लपलपाना

हन हनाना

व नयाँ या

काँव-काँव करना -

करना

भ कना

म खी

भन भनाना

याएँ दाँत

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कट कटाना Page 78


दय

धड़कना

पैर

पटकना

अ ु

छलछलाना

घड़ी

पंख

फड़फड़ाना

तारे

जगमगाना

नौका

डगमगाना

मेघ

गरजना

टक- टक करना

9. कुछ सामा य अशु याँ अशु

शु

अशु

अगामी

आगामी

संसा रक

सांसा रक

यूँ

योहार

यवहार

बरात

बारात

लखायी

शु लखाई

द ु नयां

द ु नया

तथी

तथ

अ तथी

अतथ

नीती

नी त

आ शवाद

आशीवाद

शताि द

शता द

लड़ायी

सा म ी

साम ी

दस ु रा अनु दत

शु

अशु

स ता हक

सा ता हक

अलो कक अलौ कक

आधीन

अधीन

ह ता ेप

उप या सक औप या सक

शु ह त ेप

ीय

काल दास

का लदास

पूरती

गह ृ णी

ग ृ हणी

प रि थत प रि थ त

बमार

बीमार

पि न

लड़ाई

थाई

थायी

ीम त

ीमती

वा पस

वापस

द शनी

दशनी

ऊ थान

उ थान

दस ू रा

साधू

साधु

रे णू

रे णु

नुपुर

नूपुर

अनू दत

जाद ु

जाद ू

बज ृ

दाइ व

दा य व

से नक

सै नक

सैना

सेना

ाप

शाप

बन प त

वन प त

बन

वन

इ तहा सक ऐ तहा सक घबड़ाना

अशु

घबराना

नर ण

नर

थक

पू त प नी

पथ ृ क

वना

बना

बसंत

वसंत

अमाव या

अमाव या

शाद

साद

हं सया

हँ सया

गंवार

गँवार

असोक

अशोक

न वाथ

नः वाथ

द ु कर

द ु कर

मु यवान मू यवान

ीमान

महाअन

महान

नवम ्

नवम

छा

मा

आदश

आदश

ष टम ्

ष ठ

ंतु

परं तु

ी ा

पर

मरयादा

मयादा

दद ु शा

दद ु शा

कव य ी

मा मा

परमा मा

घन ट

घन ठ

राज भषेक

रा या भषेक

यतीत

कृ या

कृपा

यि तक

वैयि तक

कव ी पयास

यास

सर मान छमा

वतीत

मां सक

मान सक समवाद

संवाद

संप त

संपि त

मूलतयः

मूलतः

सहास

साहस

वषेश

वशेष

शाशन

शासन

दःु ख

दख ु

पओ

पयो

हुये चरन

हुए चरण

ल ये

लए

रनभू म

रणभू म

रसायण

रसायन

मरन

मरण

क यान

क याण

पडता

पड़ता

झाडू

झाड़ू

मढ़क

मेढक

े ट

े ठ

रामायन ान ढ़े र

रामायण ाण ढे र

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ष ट

ष ठ

वा थ मह व

न टा

न ठा

वा

पांडे

पांडय े

मह

आ हाद

आ लाद

सिृ ठ

सिृ ट

वतं ा

वतं ता

उ वल

उ जवल

इ ठ

इ ट

उपल

उपल य

य क

वय क

अ याय 23 वराम- च न वराम- च न- ‘ वराम’ श द का अथ है ‘ कना’। जब हम अपने भाव को भाषा के वारा य त करते ह तब एक भाव क अ भ यि त के बाद कुछ दे र

कते ह, यह

कना ह वराम

कहलाता है । इस वराम को इस

कट करने हे तु िजन कुछ च न का

योग कया जाता है , वराम- च न कहलाते ह। वे

कार ह-

1. अ प वराम (,)- पढ़ते अथवा बोलते समय बहुत थोड़ा कने के लए अ प वराम- च न का योग कया जाता है । जैसे-सीता, गीता और ल मी। यह सद ुं र थल, जो आप दे ख रहे ह, बापू क समा ध है । हा न-लाभ, जीवन-मरण, यश-अपयश व ध हाथ। 2. अध वराम (;)- जहाँ अ प वराम क अपे ा कुछ च न का

यादा दे र तक

कना हो वहाँ इस अध- वराम

योग कया जाता है । जैसे-सूय दय हो गया; अंधकार न जाने कहाँ लु त हो गया।

3. पूण वराम (।)- जहाँ वा य पूण होता है वहाँ पूण वराम- च न का योग कया जाता है । जैसे-मोहन पु तक पढ़ रहा है । वह फूल तोड़ता है । 4. व मया दबोधक च न (!)- व मय, हष, शोक, घण ृ ा आ द भाव को दशाने वाले श द के बाद अथवा कभी-कभी ऐसे वा यांश या वा य के अंत म भी व मया दबोधक च न का

योग कया जाता है । जैसे-

हाय ! वह बेचारा मारा गया। वह तो अ यंत सुशील था ! बड़ा अफ़सोस है ! 5.

नवाचक च न (?)-

नवाचक वा य के अंत म

नवाचक च न का

योग कया जाता है । जैसे-

कधर चले ? तुम कहाँ रहते हो ? 6. को ठक ()- इसका

योग पद (श द) का अथ

कट करने हे तु,

म-बोध और नाटक या एकांक म

अ भनय के भाव को य त करने के लए कया जाता है । जैसे- नरं तर (लगातार) यायाम करते रहने से दे ह (शर र)

व थ रहता है । व व के महान रा

म (1) अमे रका, (2) स, (3) चीन, (4)

टे न आ द ह।

नल-( ख न होकर) ओर मेरे दभ ु ा य ! तूने दमयंती को मेरे साथ बाँधकर उसे भी जीवन-भर क ट दया। 7. नदशक च न (-)- इसका

योग वषय- वभाग संबंधी

येक शीषक के आगे, वा य , वा यांश अथवा

पद के म य वचार अथवा भाव को व श ट प से य त करने हे तु, उदाहरण अथवा जैसे के बाद, उ रण के अंत म, लेखक के नाम के पूव और कथोपकथन म नाम के आगे कया जाता है । जैसे-सम त जीव-जंतु-घोड़ा, ऊँट, बैल, कोयल, च ड़या सभी याकुल थे। तुम सो रहे हो- अ छा, सोओ। वारपाल-भगवन ! एक दब ु ला-पतला

ा मण

वार पर खड़ा है ।

8. उ रण च न (‘‘ ’’)- जब कसी अ य क उि त को बना कसी प रवतन के [Ahalgama Aashwin v 9904643643 www.ashwin100.webs.com

य -का- य रखा जाता Page 80


है , तब वहाँ इस च न का

योग कया जाता है । इसके पूव अ प वराम- च न लगता है । जैसे-नेताजी ने

कहा था, ‘‘तुम हम खून दो, हम तु ह आजाद दगे।’’, ‘‘ ‘रामच रत मानस’ तुलसी का अमर का य

ंथ

है ।’’ 9. आदे श च न (:- )- कसी वषय को योग कया जाता है । जैसे-सवनाम के

म से लखना हो तो वषय- म य त करने से पूव इसका मुख पाँच भेद ह :-

(1) पु षवाचक, (2) न चयवाचक, (3) अ न चयवाचक, (4) संबंधवाचक, (5) 10. योजक च न (-)- सम त कए हुए श द म िजस च न का कहलाता है । जैसे-माता- पता, दाल-भात, सुख-दख ु , पाप-पु य।

नवाचक।

योग कया जाता है , वह योजक च न

11. लाघव च न (.)- कसी बड़े श द को सं ेप म लखने के लए उस श द का

थम अ र लखकर

उसके आगे शू य लगा दे ते ह। जैसे-पं डत=पं., डॉ टर=डॉ., ोफेसर= ो.।

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अ याय 24 वा य- करण वा य- एक वचार को पूणता से

कट करने वाला श द-समूह वा य कहलाता है । जैसे- 1. याम दध ू पी

रहा है । 2. म भागते-भागते थक गया। 3. यह कतना सद ुं र उपवन है । 4. ओह ! आज तो गरमी के कारण ाण नकले जा रहे ह। 5. वह मेहनत करता तो पास हो जाता। ये सभी मुख से नकलने वाल साथक

व नय के समूह ह। अतः ये वा य ह। वा य भाषा का चरम

अवयव है । वा य-खंड वा य के

मख ु दो खंड ह-

1. उ े य। 2. वधेय। 1. उ े य- िजसके वषय म कुछ कहा जाता है उसे सूच क करने वाले श द को उ े य कहते ह। जैसे1. अजुन ने जय थ को मारा। 2. कु ता भ क रहा है । 3. तोता डाल पर बैठा है । इनम अजुन ने, कु ता, तोता उ े य ह; इनके वषय म कुछ कहा गया है । अथवा य कह सकते ह क वा य म जो कता हो उसे उ े य कह सकते ह

य क कसी

या को करने के कारण वह मु य होता

है । 2. वधेय- उ े य के वषय म जो कुछ कहा जाता है , अथवा उ े य (कता) जो कुछ काय करता है वह सब वधेय कहलाता है । जैसे1. अजुन ने जय थ को मारा। 2. कु ता भ क रहा है । 3. तोता डाल पर बैठा है । इनम ‘जय थ को मारा’, ‘भ क रहा है ’, ‘डाल पर बैठा है ’ वधेय ह उ े य (कताओं) के काय के वषय म

य क अजुन ने, कु ता, तोता,-इन

मशः मारा, भ क रहा है , बैठा है , ये वधान कए गए ह, अतः

इ ह वधेय कहते ह। उ े य का व तार- कई बार वा य म उसका प रचय दे ने वाले अ य श द भी साथ आए होते ह। ये अ य श द उ े य का व तार कहलाते ह। जैसे1. सद ुं र प ी डाल पर बैठा है । [Ahalgama Aashwin v 9904643643 www.ashwin100.webs.com

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2. काला साँप पेड़ के नीचे बैठा है । इनम संुदर और काला श द उ े य का व तार ह। उ े य म न न ल खत श द-भेद का

योग होता है -

(1) सं ा- घोड़ा भागता है । (2) सवनाम- वह जाता है । (3) वशेषण- व वान क सव (4)

पूजा होती है ।

या- वशेषण- (िजसका) भीतर-बाहर एक-सा हो।

(5) वा यांश- झूठ बोलना पाप है । वा य के साधारण उ े य म वशेषणा द जोड़कर उसका व तार करते ह। उ े य का व तार नीचे लखे श द के

वारा

कट होता है -

(1) वशेषण से- अ छा बालक आ ा का पालन करता है । (2) संबंध कारक से- दशक क भीड़ ने उसे घेर लया। (3) वा यांश से- काम सीखा हुआ कार गर क ठनाई से मलता है । वधेय का व तार- मल वधेय को पण ू ू करने के लए िजन श द का

योग कया जाता है वे वधेय का

व तार कहलाते ह। जैसे-वह अपने पैन से लखता है । इसम अपने वधेय का व तार है । कम का व तार- इसी तरह कम का व तार हो सकता है । जैसे- म , अ छ पु तक पढ़ो। इसम अ छ कम का व तार है । या का व तार- इसी तरह लगाकर

या का भी व तार हो सकता है । जैसे- ेय मन लगाकर पढ़ता है । मन

या का व तार है ।

वा य-भेद रचना के अनुसार वा य के न न ल खत भेद ह1. साधारण वा य। 2. संयु त वा य। 3. म

त वा य।

1. साधारण वा य िजस वा य म केवल एक ह उ े य (कता) और एक ह समा पका

या हो, वह साधारण वा य कहलाता

है । जैसे- 1. ब चा दध ू पीता है । 2. कमल गद से खेलता है । 3. मद ु ा पु तक पढ़ रह ह। ृ ल वशेष-इसम कता के साथ उसके व तारक वशेषण और

या के साथ व तारक स हत कम एवं

या-

वशेषण आ सकते ह। जैसे-अ छा ब चा मीठा दध ू अ छ तरह पीता है । यह भी साधारण वा य है ।

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2. संयु त वा य दो अथवा दो से अ धक साधारण वा य जब सामाना धकरण समु चयबोधक जैसे- (पर, क तु, और, या आ द) से जुड़े होते ह, तो वे संयु त वा य कहलाते ह। ये चार (1) संयोजक- जब एक साधारण वा य दस ू रे साधारण या म

कार के होते ह। त वा य से संयोजक अ यय

वारा जुड़ा

होता है । जैसे-गीता गई और सीता आई। (2) वभाजक- जब साधारण अथवा म

वा य का पर पर भेद या वरोध का संबंध रहता है । जैसे-वह

मेहनत तो बहुत करता है पर फल नह ं मलता। (3) वक पसूचक- जब दो बात म से कसी एक को

वीकार करना होता है । जैसे- या तो उसे म अखाड़े

म पछाड़ूँगा या अखाड़े म उतरना ह छोड़ दँ ग ू ा। (4) प रणामबोधक- जब एक साधारण वा य दसूरे साधारण या म

त वा य का प रणाम होता है । जैसे-

आज मुझे बहुत काम है इस लए म तु हारे पास नह ं आ सकूँगा। 3. म

त वा य

जब कसी वषय पर पूण वचार

कट करने के लए कई साधारण वा य को मलाकर एक वा य क

रचना करनी पड़ती है तब ऐसे र चत वा य ह वशेष- (1) इन वा य म एक मु य या

त वा य कहलाते ह।

धान उपवा य और एक अथवा अ धक आ

त उपवा य होते

ह जो समु चयबोधक अ यय से जुड़े होते ह। (2) मु य उपवा य क पिु ट, समथन, प टता अथवा व तार हे तु ह आ आ

त वा य तीन

त वा य आते है ।

कार के होते ह-

(1) सं ा उपवा य। (2) वशेषण उपवा य। (3)

या- वशेषण उपवा य।

1. सं ा उपवा य- जब आ

त उपवा य कसी सं ा अथवा सवनाम के

थान पर आता है तब वह सं ा

उपवा य कहलाता है । जैसे- वह चाहता है क म यहाँ कभी न आऊँ। यहाँ क म कभी न आऊँ, यह सं ा उपवा य है । 2. वशेषण उपवा य- जो आ

त उपवा य मु य उपवा य क सं ा श द अथवा सवनाम श द क

वशेषता बतलाता है वह वशेषण उपवा य कहलाता है । जैसे- जो घड़ी मेज पर रखी है वह मझ ु े परु कार व प मल है । यहाँ जो घड़ी मेज पर रखी है यह वशेषण उपवा य है । 3. वह

या- वशेषण उपवा य- जब आ

त उपवा य

धान उपवा य क

या क वशेषता बतलाता है तब

या- वशेषण उपवा य कहलाता है । जैसे- जब वह मेरे पास आया तब म सो रहा था। यहाँ पर जब

वह मेरे पास आया यह

या- वशेषण उपवा य है।

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वा य-प रवतन वा य के अथ म कसी तरह का प रवतन कए बना उसे एक

कार के वा य से दस ू रे

कार के वा य

म प रवतन करना वा य-प रवतन कहलाता है । (1) साधारण वा य का संयु त वा य म प रवतनसाधारण वा य संयु त वा य 1. म दध ू पीकर सो गया। मने दध ू पया और सो गया। 2. वह पढ़ने के अलावा अखबार भी बेचता है । वह पढ़ता भी है और अखबार भी बेचता है 3. मने घर पहुँचकर सब ब च को खेलते हुए दे खा। मने घर पहुँचकर दे खा क सब ब चे खेल रहे थे। 4. वा य ठ क न होने से म काशी नह ं जा सका। मेरा वा य ठ क नह ं था इस लए म काशी नह ं जा सका। 5. सवेरे तेज वषा होने के कारण म द तर दे र से पहुँचा। सवेरे तेज वषा हो रह थी इस लए म द तर दे र से पहुँचा। (2) संयु त वा य का साधारण वा य म प रवतनसंयु त वा य साधारण वा य 1. पताजी अ व थ ह इस लए मझ ु े जाना ह पड़ेगा। पताजी के अ व थ होने के कारण मझ ु े जाना ह पड़ेगा। 2. उसने कहा और म मान गया। उसके कहने से म मान गया। 3. वह केवल उप यासकार ह नह ं अ पतु अ छा व ता भी है । वह उप यासकार के अ त र त अ छा व ता भी है । 4. लू चल रह थी इस लए म घर से बाहर नह ं नकल सका। लू चलने के कारण म घर से बाहर नह ं नकल सका। 5. गाड ने सीट द और े न चल पड़ी। गाड के सीट दे ने पर (3) साधारण वा य का म साधारण वा य म

े न चल पड़ी।

त वा य म प रवतन-

त वा य

1. हर संगार को दे खते ह मझ ु े गीता क याद आ जाती है । जब म हर संगार क ओर दे खता हूँ तब मझ ु े गीता क याद आ जाती है । 2. रा

के लए मर मटने वाला यि त स चा रा

भ त है । वह यि त स चा रा

भ त है जो रा

के लए मर मटे । 3. पैसे के बना इंसान कुछ नह ं कर सकता। य द इंसान के पास पैसा नह ं है तो वह कुछ नह ं कर सकता। [Ahalgama Aashwin v 9904643643 www.ashwin100.webs.com

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4. आधी रात होते-होते मने काम करना बंद कर दया।

य ह आधी रात हुई य ह मने काम करना बंद

कर दया। (4) म म

त वा य का साधारण वा य म प रवतन-

त वा य साधारण वा य

1. जो संतोषी होते ह वे सदै व सुखी रहते ह संतोषी सदै व सुखी रहते ह। 2. य द तुम नह ं पढ़ोगे तो पर

ा म सफल नह ं होगे। न पढ़ने क दशा म तुम पर

ा म सफल नह ं

होगे। 3. तुम नह ं जानते क वह कौन है ? तुम उसे नह ं जानते। 4. जब जेबकतरे ने मुझे दे खा तो वह भाग गया। मुझे दे खकर जेबकतरा भाग गया। 5. जो व वान है , उसका सव

आदर होता है । व वान का सव

आदर होता है ।

वा य- व लेषण वा य म आए हुए श द अथवा वा य-खंड को अलग-अलग करके उनका पार प रक संबंध बताना वा यव लेषण कहलाता है । साधारण वा य का व लेषण 1. हमारा रा

सम ृ शाल है ।

2. हम नय मत

प से व यालय आना चा हए।

3. अशोक, सोहन का बड़ा पु , पु तकालय म अ छ पु तक छाँट रहा है । उ े य वधेय वा य उ े य उ े य का 1. रा

या कम कम का पूरक वधेय

हमारा है - - सम ृ

-

2. हम - आना व यालय - शाल चा हए

मांक कता व तार व तार का व तार

नय मत

प से

3. अशोक सोहन का छाँट रहा पु तक अ छ पु तकालय बड़ा पु म

है म

त वा य का व लेषण-

1. जो यि त जैसा होता है वह दस ू र को भी वैसा ह समझता है । 2. जब-जब धम क

त होती है तब-तब ई वर का अवतार होता है ।

3. मालूम होता है क आज वषा होगी। 4. जो संतोषी होत ह वे सदै व सुखी रहते ह। 5. दाश नक कहते ह क जीवन पानी का बुलबुला है । संयु त वा य का व लेषण[Ahalgama Aashwin v 9904643643 www.ashwin100.webs.com

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1. तेज वषा हो रह थी इस लए परस म तु हारे घर नह ं आ सका। 2. म तु हार राह दे खता रहा पर तुम नह ं आए। 3. अपनी

ग त करो और दस ू र का हत भी करो तथा

अथ के अनुसार वा य के

वाथ म न हचको।

कार

अथानुसार वा य के न न ल खत आठ भेद ह1. वधानाथक वा य। 2. नषेधाथक वा य। 3. आ ाथक वा य। 4.

नाथक वा य।

5. इ छाथक वा य। 6. संदेथक वा य। 7. संकेताथक वा य। 8. व मयबोधक वा य। 1. वधानाथक वा य-िजन वा य म

या के करने या होने का सामा य कथन हो। जैसे-म कल द ल

जाऊँगा। प ृ वी गोल है । 2. नषेधाथक वा य- िजस वा य से कसी बात के न होने का बोध हो। जैसे-म कसी से लड़ाई मोल नह ं लेना चाहता। 3. आ ाथक वा य- िजस वा य से आ ा उपदे श अथवा आदे श दे ने का बोध हो। जैसे-शी

जाओ वरना

गाड़ी छूट जाएगी। आप जा सकते ह। 4.

नाथक वा य- िजस वा य म

न कया जाए। जैसे-वह कौन ह उसका नाम

या है ।

5. इ छाथक वा य- िजस वा य से इ छा या आशा के भाव का बोध हो। जैसे-द घायु हो। धनवान हो। 6. संदेहाथक वा य- िजस वा य से संदेह का बोध हो। जैसे-शायद आज वषा हो। अब तक पताजी जा चक ु े ह गे। 7. संकेताथक वा य- िजस वा य से संकेत का बोध हो। जैसे-य द तुम क याकुमार चलो तो म भी चलँ ू। 8. व मयबोधक वा य-िजस वा य से व मय के भाव

कट ह । जैसे-अहा ! कैसा सुहावना मौसम है ।

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अ याय 25 अशु

वा य के शु वा य

(1) वचन-संबंधी अशु याँ अशु

शु

1. पा क तान ने गोले और तोप से आ मण कया। पा क तान ने गोल और तोप से आ मण कया। 2. उसने अनेक

ंथ लखे। उसने अनेक

ंथ लखे।

3. महाभारत अठारह दन तक चलता रहा। महाभारत अठारह दन तक चलता रहा। 4. तेर बात सुनते-सुनते कान पक गए। तेर बात सुनते-सुनते कान पक गए। 5. पेड़ पर तोता बैठा है । पेड़ पर तोता बैठा है । (2) लंग संबंधी अशु याँअशु

शु

1. उसने संतोष का साँस ल । उसने संतोष क साँस ल । 2. स वता ने जोर से हँस दया। स वता जोर से हँ स द । 3. मुझे बहुत आनंद आती है । मुझे बहुत आनंद आता है । 4. वह धीमी वर म बोला। वह धीमे वर म बोला। 5. राम और सीता वन को गई। राम और सीता वन को गए। (3) वभि त-संबंधी अशु अशु

याँ-

शु

1. म यह काम नह ं कया हूँ। मने यह काम नह ं कया है । 2. म पु तक को पढ़ता हूँ। म पु तक पढ़ता हूँ। 3. हमने इस वषय को वचार कया। हमने इस वषय पर वचार कया 4. आठ बजने को दस मनट है । आठ बजने म दस मनट है । 5. वह दे र म सोकर उठता है । वह दे र से सोकर उठता है । (4) सं ा संबंधी अशु याँअशु

शु

1. म र ववार के दन तु हारे घर आऊँगा। म र ववार को तु हारे घर आऊँगा। 2. कु ता रकता है । कु ता भ कता है । 3. मझ ु े सफल होने क

नराशा है । मुझे सफल होने क आशा नह ं है ।

4. गले म गुलामी क बे ड़याँ पड़ गई। पैर म गुलामी क बे ड़याँ पड़ गई। (5) सवनाम क अशु याँअशु

शु

1. गीता आई और कहा। गीता आई और उसने कहा। 2. मने तेरे को कतना समझाया। मने तुझे कतना समझाया। [Ahalgama Aashwin v 9904643643 www.ashwin100.webs.com

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3. वह

या जाने क म कैसे जी वत हूँ। वह

या जाने क म कैसे जी रहा हूँ।

(6) वशेषण-संबंधी अशु याँअशु

शु

1. कसी और लड़के को बल ु ाओ। कसी दस ू रे लड़के को बल ु ाओ। 2. संह बड़ा बीभ स होता है । संह बड़ा भयानक होता है । 3. उसे भार दख ु हुआ। उसे बहुत दख ु हुआ। 4. सब लोग अपना काम करो। सब लोग अपना-अपना काम करो। (7)

या-संबंधी अशु याँ-

अशु

शु

1. या यह संभव हो सकता है ? या यह संभव है ? 2. म दशन दे ने आया था। म दशन करने आया था। 3. वह पढ़ना माँगता है । वह पढ़ना चाहता है । 4. बस तुम इतने 5. तुम

ठ उठे बस, तुम इतने म

या काम करता है ? तुम

ठ गए।

या काम करते हो ?

(8) मुहावरे -संबंधी अशु याँअशु

शु

1. युग क माँग का यह बीड़ा कौन चबाता है युग क माँग का यह बीड़ा कौन उठाता है । 2. वह याम पर बरस गया। वह याम पर बरस पड़ा। 3. उसक अ ल च कर खा गई। उसक अ ल चकरा गई। 4. उस पर घड़ पानी गर गया। उस पर घड़ पानी पड़ गया। (9)

या- वशेषण-संबंधी अशु याँ-

अशु

शु

1. वह लगभग दौड़ रहा था। वह दौड़ रहा था। 2. सार रात भर म जागता रहा। म सार रात जागता रहा। 3. तुम बड़ा आगे बढ़ गया। तुम बहुत आगे बढ़ गए. 4. इस पवतीय े म सव व शां त है। इस पवतीय े

म सव

शां त है ।

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अ याय 26 मुहावरे और लोकोि तयाँ मुहावरा- कोई भी ऐसा वा यांश जो अपने साधारण अथ को छोड़कर कसी वशेष अथ को य त करे उसे मुहावरा कहते ह। लोकोि त- लोकोि तयाँ लोक-अनुभव से बनती ह। कसी समाज ने जो कुछ अपने लंबे अनुभव से सीखा है उसे एक वा य म बाँध दया है । ऐसे वा य को ह लोकोि त कहते ह। इसे कहावत, जन ु त आ द भी कहते ह। मुहावरा और लोकोि त म अंतर- मुहावरा वा यांश है और इसका सकता। लोकोि त संपूण वा य है और इसका

योग वतं

वतं

प से

योग नह ं कया जा

प से कया जा सकता है । जैसे-‘होश उड़

जाना’ मुहावरा है । ‘बकरे क माँ कब तक खैर मनाएगी’ लोकोि त है । कुछ

च लत मुहावरे

1. अंग संबंधी मुहावरे 1. अंग छूटा- (कसम खाना) म अंग छूकर कहता हूँ साहब, मैने पाजेब नह ं दे खी। 2. अंग-अंग मुसकाना-(बहुत

स न होना)- आज उसका अंग-अंग मुसकरा रहा था।

3. अंग-अंग टूटना-(सारे बदन म दद होना)-इस

वर ने तो मेरा अंग-अंग तोड़कर रख दया।

4. अंग-अंग ढ ला होना-(बहुत थक जाना)- तु हारे साथ कल चलँ ूगा। आज तो मेरा अंग-अंग ढ ला हो रहा है । 2. अ ल-संबंधी मुहावरे 1. अ ल का द ु मन-(मूख)- वह तो नरा अ ल का द ु मन नकला। 2. अ ल चकराना-(कुछ समझ म न आना)-

न-प

दे खते ह मेर अ ल चकरा गई।

3. अ ल के पीछे लठ लए फरना (समझाने पर भी न मानना)- तुम तो सदै व अ ल के पीछे लठ लए फरते हो। 4. अ ल के घोड़े दौड़ाना-(तरह-तरह के वचार करना)- बड़े-बड़े वै ा नक ने अ ल के घोड़े दौड़ाए, तब कह ं वे अणुबम बना सके। 3. आँख-संबंधी मुहावरे 1. आँख दखाना-(गु से से दे खना)- जो हम आँख दखाएगा, हम उसक आँख फोड़ दे ग। 2. आँख म गरना-(स मानर हत होना)- कुरसी क होड़ ने जनता सरकार को जनता क आँख म गरा दया। 3. आँख म धूल झ कना-(धोखा दे ना)- शवाजी मुगल पहरे दार क आँख म धूल झ ककर बंद गह ृ से [Ahalgama Aashwin v 9904643643 www.ashwin100.webs.com

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बाहर नकल गए। 4. आँख चुराना-( छपना)- आजकल वह मझ ु से आँख चुराता फरता है । 5. आँख मारना-(इशारा करना)-गवाह मेरे भाई का म व

नकला, उसने उसे आँख मार , अ यथा वह मेरे

गवाह दे दे ता।

6. आँख तरसना-(दे खने के लाला यत होना)- तु ह दे खने के लए तो मेर आँख तरस गई। 7. आँख फेर लेना-( तकूल होना)- उसने आजकल मेर ओर से आँख फेर ल ह। 8. आँख बछाना-( ती ा करना)- लोकनायक जय काश नारायण िजधर जाते थे उधर ह जनता उनके लए आँख बछाए खड़ी होती थी। 9. आँख सकना-(सुंदर व तु को दे खते रहना)- आँख सकते रहोगे या कुछ करोगे भी 10. आँख चार होना-( ेम होना,आमना-सामना होना)- आँख चार होते ह वह खड़क पर से हट गई। 11. आँख का तारा-(अ त य)-आशीष अपनी माँ क आँख का तारा है । 12. आँख उठाना-(दे खने का साहस करना)- अब वह कभी भी मेरे सामने आँख नह ं उठा सकेगा। 13. आँख खल ु ना-(होश आना)- जब संबं धय ने उसक सार संपि त हड़प ल तब उसक आँख खल ु ं। 14. आँख लगना-(नींद आना अथवा यार होना)- बड़ी मिु कल से अब उसक आँख लगी है । आजकल आँख लगते दे र नह ं होती। 15. आँख पर परदा पड़ना-(लोभ के कारण सचाई न द खना)- जो दस ू र को ठगा करते ह, उनक आँख पर परदा पड़ा हुआ है । इसका फल उ ह अव य मलेगा। 16. आँख का काटा-(अ य यि त)- अपनी कु विृ तय के कारण राजन पताजी क आँख का काँटा बन गया। 17. आँख म समाना-( दल म बस जाना)- गरधर मीरा क आँ ख म समा गया। 4. कलेजा-संबंधी कुछ मुहावरे 1. कलेजे पर हाथ रखना-(अपने दल से पूछना)- अपने कलेजे पर हाथ रखकर कहो क या तुमने पैन नह ं तोड़ा। 2. कलेजा जलना-(ती

असंतोष होना)- उसक बात सुनकर मेरा कलेजा जल उठा।

3. कलेजा ठं डा होना-(संतोष हो जाना)- डाकुओं को पकड़ा हुआ दे खकर गाँव वाल का कलेजा ठं ढा हो गया। 4. कलेजा थामना-(जी कड़ा करना)- अपने एकमा

युवा पु

क म ृ यु पर माता- पता कलेजा थामकर रह

गए। 5. कलेजे पर प थर रखना-(दख ु म भी धीरज रखना)- उस बेचारे क

या कहते ह , उसने तो कलेजे पर

प थर रख लया है ।

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6. कलेजे पर साँप लोटना-(ई या से जलना)-

ीराम के रा या भषेक का समाचार सुनकर दासी मंथरा के

कलेजे पर साँप लोटने लगा। 5. कान-संबंधी कुछ मुहावरे 1. कान भरना-(चुगल करना)- अपने सा थय के व

अ यापक के कान भरने वाले व याथ अ छे नह ं

होते। 2. कान कतरना-(बहुत चतुर होना)- वह तो अभी से बड़े-बड़ के कान कतरता है । 3. कान का क चा-(सुनते ह कसी बात पर व वास करना)- जो मा लक कान के क चे होते ह वे भले कमचा रय पर भी व वास नह ं करते। 4. कान पर जँू तक न रगना-(कुछ असर न होना)-माँ ने गौरव को बहुत समझाया, क तु उसके कान पर जँू तक नह ं रगी। 5. कान कान खबर न होना-( बलकुल पता न चलना)-सोने के ये ब कुट ले जाओ, कसी को कान कान खबर न हो। 6. नाक-संबंधी कुछ मुहावरे 1. नाक म दम करना-(बहुत तंग करना)- आतंकवा दय ने सरकार क नाक म दम कर रखा है । 2. नाक रखना-(मान रखना)- सच पूछो तो उसने सच कहकर मेर नाक रख ल । 3. नाक रगड़ना-(द नता दखाना)- गरहकट ने सपाह के सामने खूब नाक रगड़ी, पर उसने उसे छोड़ा नह ं। 4. नाक पर म खी न बैठने दे ना-(अपने पर आँच न आने दे ना)- कतनी ह मुसीबत उठाई, पर उसने नाक पर म खी न बैठने द । 5. नाक कटना-( त ठा न ट होना)- अरे भैया आजकल क औलाद तो खानदान क नाक काटकर रख दे ती है । 7. मुँह-संबंधी कुछ मुहावरे 1. मुँह क खाना-(हार मानना)-पड़ोसी के घर के मामले म दखल दे कर हर वार को मुँह क खानी पड़ी। 2. मुँह म पानी भर आना-( दल ललचाना)- ल डुओं का नाम सुनते ह पं डतजी के मुँह म पानी भर आया। 3. मुँह खून लगना-( र वत लेने क आदत पड़ जाना)- उसके मुँह खून लगा है , बना लए वह काम नह ं करे गा। 4. मँुह छपाना-(लि जत होना)- मँुह छपाने से काम नह ं बनेगा, कुछ करके भी दखाओ। [Ahalgama Aashwin v 9904643643 www.ashwin100.webs.com

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5. मुँह रखना-(मान रखना)-म तु हारा मुँह रखने के लए ह

मोद के पास गया था, अ यथा मुझे

या

आव यकता थी। 6. मँुहतोड़ जवाब दे ना-(कड़ा उ तर दे ना)- याम मँुहतोड़ जवाब सुनकर फर कुछ नह ं बोला। 7. मँुह पर का लख पोतना-(कलंक लगाना)-बेटा तु हारे कुकम ने मेरे मँुह पर का लख पोत द है । 8. मुँह उतरना-(उदास होना)-आज तु हारा मुँह

य उतरा हुआ है । 9. मुँह ताकना-(दस ू रे पर आ त होना)-अब गेहूँ के लए हम अमे रका का मुँह नह ं ताकना पड़ेगा। 10. मुँह बंद करना-(चुप कर दे ना)-आजकल र वत ने बड़े-बड़े अफसर का मुँह बंद कर रखा है । 8. दाँत-संबंधी मुहावरे 1. दाँत पीसना-(बहुत है ।

यादा गु सा करना)- भला मुझ पर दाँत

य पीसते हो? शीशा तो शंकर ने तोड़ा

2. दाँत ख े करना-(बुर तरह हराना)- भारतीय सै नक ने पा क तानी सै नक के दाँत ख े कर दए। 3. दाँत काट रोट -(घ न ठता, प क

म ता)- कभी राम और याम म दाँत काट रोट थी पर आज एक-

दस ू रे के जानी द ु मन है । 9. गरदन-संबंधी मुहावरे 1. गरदन झुकाना-(लि जत होना)- मेरा सामना होते ह उसक गरदन झुक गई। 2. गरदन पर सवार होना-(पीछे पड़ना)- मेर गरदन पर सवार होने से तु हारा काम नह ं बनने वाला है । 3. गरदन पर छुर फेरना-(अ याचार करना)-उस बेचारे क गरदन पर छुर फेरते तु ह शरम नह ं आती, भगवान इसके लए तु ह कभी

मा नह ं करगे।

10. गले-संबंधी मुहावरे 1. गला घ टना-(अ याचार करना)- जो सरकार गर ब का गला घ टती है वह दे र तक नह ं टक सकती। 2. गला फँसाना-(बंधन म पड़ना)- दस ू र के मामले म गला फँसाने से कुछ हाथ नह ं आएगा। 3. गले मढ़ना-(जबरद ती कसी को कोई काम स पना)- इस बु ू को मेरे गले मढ़कर लालाजी ने तो मुझे तंग कर डाला है । 4. गले का हार-(बहुत यारा)- तुम तो उसके गले का हार हो, भला वह तु हारे काम को लगा।

य मना करने

11. सर-संबंधी मुहावरे

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1. सर पर भूत सवार होना-(धुन लगाना)-तु हारे सर पर तो हर समय भूत सवार रहता है । 2. सर पर मौत खेलना-(मृ यु समीप होना)- वभीषण ने रावण को संबो धत करते हुए कहा, ‘भैया ! मझ ु े या डरा रहे हो ? तु हारे सर पर तो मौत खेल रह है ‘। 3. सर पर खन ू सवार होना-(मरने-मारने को तैयार होना)- अरे , बदमाश क

या बात करते हो ? उसके

सर पर तो हर समय खून सवार रहता है । 4. सर-धड़ क बाजी लगाना-( ाण क भी परवाह न करना)- भारतीय वीर दे श क र ा के लए सर-धड़ क बाजी लगा दे ते ह। 5. सर नीचा करना-(लजा जाना)-मुझे दे खते ह उसने सर नीचा कर लया। 12. हाथ-संबंधी मुहावरे 1. हाथ खाल होना-( पया-पैसा न होना)- जुआ खेलने के कारण राजा नल का हाथ खाल हो गया था। 2. हाथ खींचना-(साथ न दे ना)-मस ु ीबत के समय नकल

हाथ खींच लेते ह।

3. हाथ पे हाथ धरकर बैठना-( नक मा होना)- उ यमी कभी भी हाथ पर हाथ धरकर नह ं बैठते ह, वे तो कुछ करके ह

दखाते ह।

4. हाथ के तोते उड़ना-(दख ु से है रान होना)- भाई के नधन का समाचार पाते ह उसके हाथ के तोते उड़ गए। 5. हाथ हाथ-(बहुत ज द )-यह काम हाथ हाथ हो जाना चा हए। 6. हाथ मलते रह जाना-(पछताना)- जो बना सोचे-समझे काम शु

करते है वे अंत म हाथ मलते रह

जाते ह। 7. हाथ साफ करना-(चुरा लेना)- ओह ! कसी ने मेर जेब पर हाथ साफ कर दया। 8. हाथ-पाँव मारना-( यास करना)- हाथ-पाँव मारने वाला यि त अंत म अव य सफलता 9. हाथ डालना-(शु

ा त करता है ।

करना)- कसी भी काम म हाथ डालने से पव ू उसके अ छे या बुरे फल पर वचार

कर लेना चा हए। 13. हवा-संबंधी मुहावरे 1. हवा लगना-(असर पड़ना)-आजकल भारतीय को भी पि चम क हवा लग चुक है । 2. हवा से बात करना-(बहुत तेज दौड़ना)- राणा लगा।

ताप ने

य ह लगाम हलाई, चेतक हवा से बात करने

3. हवाई कले बनाना-(झूठ क पनाएँ करना)- हवाई कले ह बनाते रहोगे या कुछ करोगे भी ? 4. हवा हो जाना-(गायब हो जाना)- दे खते-ह -दे खते मेर साइ कल न जाने कहाँ हवा हो गई ? 14. पानी-संबंधी मुहावरे [Ahalgama Aashwin v 9904643643 www.ashwin100.webs.com

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1. पानी-पानी होना-(लि जत होना)- य ह सोहन ने माताजी के पस म हाथ डाला क ऊपर से माताजी आ गई। बस, उ ह दे खते ह वह पानी-पानी हो गया। 2. पानी म आग लगाना-(शां त भंग कर दे ना)-तुमने तो सदा पानी म आग लगाने का ह काम कया है । 3. पानी फेर दे ना-( नराश कर दे ना)-उसने तो मेर आशाओं पर पानी पेर दया। 4. पानी भरना-(तु छ लगना)-तुमने तो जीवन-भर पानी ह भरा है । 15. कुछ मले-जुले मुहावरे 1. अँगूठा दखाना-(दे ने से साफ इनकार कर दे ना)-सेठ रामलाल ने धमशाला के लए पाँच हजार

पए

दान दे ने को कहा था, क तु जब मैनेजर उनसे मांगने गया तो उ ह ने अँगूठा दखा दया। 2. अगर-मगर करना-(टालमटोल करना)-अगर-मगर करने से अब काम चलने वाला नह ं है । बंधु ! 3. अंगारे बरसाना-(अ यंत गु से से दे खना)-अ भम यु वध क सूचना पाते ह अजुन के ने

अंगारे

बरसाने लगे। 4. आड़े हाथ लेना-(अ छ तरह काबू करना)- ीकृ ण ने कंस को आड़े हाथ लया। 5. आकाश से बात करना-(बहुत ऊँचा होना)-ट .वी.टावर तो आकाश से बाते करती है । 6. ईद का चाँद-(बहुत कम द खना)- म आजकल तो तुम ईद का चाँद हो गए हो, कहाँ रहते हो ? 7. उँ गल पर नचाना-(वश म करना)-आजकल क औरत अपने प तय को उँ ग लय पर नचाती ह। 8. कलई खुलना-(रह य

कट हो जाना)-उसने तो तु हार कलई खोलकर रख द ।

9. काम तमाम करना-(मार दे ना)- रानी ल मीबाई ने पीछा करने वाले दोन अं ेज का काम तमाम कर दया। 10. कु ते क मौत करना-(बुर तरह से मरना)-रा

ोह सदा कु ते क मौत मरते ह।

11. को हू का बैल-( नरं तर काम म लगे रहना)-को हू का बैल बनकर भी लोग आज भरपेट भोजन नह ं पा सकते। 12. खाक छानना-(दर-दर भटकना)-खाक छानने से तो अ छा है एक जगह जमकर काम करो। 13. गड़े मरु दे उखाड़ना-( पछल बात को याद करना)-गड़े मरु दे उखाड़ने से तो अ छा है क अब हम चप ु हो जाएँ। 14. गुलछर उड़ाना-(मौज करना)-आजकल तुम तो दस ू रे के माल पर गुलछर उड़ा रहे हो। 15. घास खोदना-(फुजूल समय बताना)-सार उ

तुमने घास ह खोद है ।

16. चंपत होना-(भाग जाना)-चोर पु लस को दे खते ह चंपत हो गए। 17. चौकड़ी भरना-(छलाँगे लगाना)- हरन चौकड़ी भरते हुए कह ं से कह ं जा पहुँचे। 18. छ के छुडाना-(ब ़ ुर तरह परािजत करना)-प ृ वीराज चौहान ने मुह मद गोर के छ के छुड़ा दए। 19. टका-सा जवाब दे ना-(कोरा उ तर दे ना)-आशा थी क कह ं वह मेर जी वका का बंध कर दे गा, पर उसने तो दे खते ह टका-सा जवाब दे दया। [Ahalgama Aashwin v 9904643643 www.ashwin100.webs.com

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20. टोपी उछालना-(अपमा नत करना)-मेर टोपी उछालने से उसे

या मलेगा?

21. तलवे चाटने-(खुशामद करना)-तलवे चाटकर नौकर करने से तो कह ं डूब मरना अ छा है । 22. थाल का बगन-(अि थर वचार वाला)- जो लोग थाल के बैगन होते ह, वे कसी के स चे म

नह ं

होते। 23. दाने-दाने को तरसना-(अ यंत गर ब होना)-बचपन म म दाने-दाने को तरसता फरा, आज ई वर क कृपा है । 24. दौड़-धूप करना-(कठोर 25. धि जयाँ उड़ाना-(न ट-

म करना)-आज के युग म दौड़-धूप करने से ह कुछ काम बन पाता है । ट करना)-य द कोई भी रा

हमार

वतं ता को हड़पना चाहे गा तो हम

उसक धि जयाँ उड़ा दगे। 26. नमक- मच लगाना-(बढ़ा-चढ़ाकर कहना)-आजकल समाचारप

कसी भी बात को इस

कार नमक-

मच लगाकर लखते ह क जनसाधारण उस पर व वास करने लग जाता है । 27. नौ-दो यारह होना-(भाग जाना)- ब ल को दे खते ह चूहे नौ-दो यारह हो गए। 28. फूँक-फूँककर कदम रखना-(सोच-समझकर कदम बढ़ाना)-जवानी म फँू क-फँू ककर कदम रखना चा हए। 29. बाल-बाल बचना-(बड़ी क ठनाई से बचना)-गाड़ी क ट कर होने पर मेरा म बाल-बाल बच गया। 30. भाड़ झ कना-(य ह समय बताना)- द ल म आकर भी तुमने तीस साल तक भाड़ ह झ का है । 31. मि खयाँ मारना-( नक मे रहकर समय बताना)-यह समय मि खयाँ मारने का नह ं है , घर का कुछ काम-काज ह कर लो। 32. माथा ठनकना-(संदेह होना)- संह के पंज के नशान रे त पर दे खते ह गीदड़ का माथा ठनक गया। 33. म ी खराब करना-(बुरा हाल करना)-आजकल के नौजवान ने बूढ़ क म ी खराब कर रखी है । 34. रं ग उड़ाना-(घबरा जाना)-काले नाग को दे खते ह मेरा रं ग उड़ गया। 35. रफूच कर होना-(भाग जाना)-पु लस को दे खते ह बदमाश रफूच कर हो गए। 36. लोहे के चने चबाना-(बहुत क ठनाई से सामना करना)- मुगल स ाट अकबर को राणा ताप के साथ ट कर लेते समय लोहे के चने चबाने पड़े। 37. वष उगलना-(बरु ा-भला कहना)-दय ु धन को गांडीव धनुष का अपमान करते दे ख अजुन वष उगलने लगा। 38. ीगणेश करना-(शु

करना)-आज बहृ प तवार है , नए वष क पढाई का ीगणेश कर लो।

39. हजामत बनाना-(ठगना)-ये ह पी न जाने कतने भारतीय क हजामत बना चुके ह। 40. शैतान के कान कतरना-(बहुत चालाक होना)-तुम तो शैतान के भी कान कतरने वाले हो, बेचारे रामनाथ क तु हारे सामने बसात ह या है ? 41. राई का पहाड़ बनाना-(छोट -सी बात को बहुत बढ़ा दे ना)- त नक-सी बात के लए तुमने राई का पहाड़ बना दया।

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कुछ

च लत लोकोि तयाँ

1. अधजल गगर छलकत जाए-(कम गुण वाला यि त दखावा बहुत करता है )- याम बात तो ऐसी करता है जैसे हर वषय म मा टर हो, वा तव म उसे कसी वषय का भी पूरा ान नह ं-अधजल गगर छलकत जाए। 2. अब पछताए होत

या, जब च ड़याँ चुग गई खेत-(समय नकल जाने पर पछताने से

या लाभ)- सारा

साल तुमने पु तक खोलकर नह ं दे खीं। अब पछताए होत या, जब च ड़याँ चुग गई खेत। 3. आम के आम गुठ लय के दाम-(दग ु ुना लाभ)- ह द पढ़ने से एक तो आप नई भाषा सीखकर नौकर पर पदो न त कर सकते ह, दस ू रे ह द के उ च सा ह य का रसा वादन कर सकते ह, इसे कहते ह-आम के आम गुठ लय के दाम। 4. ऊँची दक ु ान फ का पकवान-(केवल ऊपर

दखावा करना)- कनॉट लेस के अनेक टोर बड़े

है , पर

सब घ टया दज का माल बेचते ह। सच है , ऊँची दक ु ान फ का पकवान। 5. घर का भेद लंका ढाए-(आपसी फूट के कारण भेद खोलना)-कई यि त पहले कां ेस म थे, अब जनता (एस) पाट म मलकर का स क बुराई करते ह। सच है , घर का भेद लंका ढाए। 6. िजसक लाठ उसक भस-(शि तशाल क

वजय होती है )- अं ेज ने सेना के बल पर बंगाल पर

अ धकार कर लया था-िजसक लाठ उसक भस। 7. जल म रहकर मगर से वैर-( कसी के आ य म रहकर उससे श ुता मोल लेना)- जो भारत म रहकर वदे श का गुणगान करते ह, उनके लए वह कहावत है क जल म रहकर मगर से वैर। 8. थोथा चना बाजे घना-(िजसम सत नह ं होता वह दखावा करता है )- गज ने अभी दसवीं क पर

पास क है , और आलोचना अपने बड़े-बड़े गु जन क करता है । थोथा चना बाजे घना। 9. दध ू का दध ू पानी का पानी-(सच और झूठ का ठ क फैसला)- सरपंच ने दध ू का दध ू ,पानी का पानी कर दखाया, असल दोषी मंगू को ह दं ड मला। 10. दरू के ढोल सुहावने-(जो चीज दरू से अ छ लगती ह )- उनके मसूर वाले बंगले क बहुत शंसा सुनते थे क तु वहाँ दग ु ध के मारे तंग आकर हमारे मुख से नकल ह गया-दरू के ढोल सुहावने। 11. न रहे गा बाँस, न बजेगी बाँसुर -(कारण के न ट होने पर काय न होना)- सारा दन लड़के आम के लए प थर मारते रहते थे। हमने आँगन म से आम का व ृ

क कटवा दया। न रहे गा बाँस, न बजेगी

बाँसुर । 12. नाच न जाने आँगन टे ढ़ा-(काम करना नह ं आना और बहाने बनाना)-जब रवीं ने कहा क कोई गीत सुनाइए, तो सुनील बोला, ‘आज समय नह ं है ’। फर कसी दन कहा तो कहने लगा, ‘आज मूड नह ं है ’। सच है , नाच न जाने आँगन टे ढ़ा। 13. बन माँगे मोती मले, माँगे मले न भीख-(माँगे बना अ छ व तु क

ाि त हो जाती है , माँगने पर

साधारण भी नह ं मलती)- अ यापक ने माँग के लए हड़ताल कर द , पर उ ह

या मला ? इनसे तो

बैक कमचार अ छे रहे , उनका भ ता बढ़ा दया गया। बन माँगे मोती मले, माँगे मले न भीख। [Ahalgama Aashwin v 9904643643 www.ashwin100.webs.com

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14. मान न मान म तेरा मेहमान-(जबरद ती कसी का मेहमान बनना)-एक अमे रकन कहने लगा, म एक मास आपके पास रहकर आपके रहन-सहन का अ ययन क ँ गा। मने मन म कहा, अजब आदमी है , मान न मान म तेरा मेहमान। 15. मन चंगा तो कठौती म गंगा-(य द मन प व

है तो घर ह तीथ है )-भैया रामे वरम जाकर

या

करोगे ? घर पर ह ईश तु त करो। मन चंगा तो कठौती म गंगा। 16. दोन हाथ म ल डू-(दोन ओर लाभ)- मह

को इधर उ च पद मल रहा था और उधर अमे रका से

वजीफा उसके तो दोन हाथ म ल डू थे। 17. नया नौ दन पुराना सौ दन-(नई व तुओं का व वास नह ं होता, पुरानी व तु टकाऊ होती है )- अब भारतीय जनता का यह व वास है क इस सरकार से तो पहल सरकार फर भी अ छ थी। नया नौ दन, पुराना नौ दन। 18. बगल म छुर मुँह म राम-राम-(भीतर से श ुता और ऊपर से मीठ बात)- सा ा यवाद आज भी कुछ रा

को उ न त क आशा दलाकर उ ह अपने अधीन रखना चाहते ह, पर तु अब सभी दे श समझ

गए ह क उनक बगल म छुर और मँुह म राम-राम है । 19. लात के भत ू बात से नह ं मानते-(शरारती समझाने से वश म नह ं आते)- सल म बड़ा शरारती है , पर उसके अ बा उसे यार से समझाना चाहते ह। क तु वे नह ं जानते क लात के भूत बात से नह ं मानते। 20. सहज पके जो मीठा होय-(धीरे -धीरे कए जाने वाला काय

थायी फलदायक होता है )- वनोबा भावे

का वचार था क भू म सुधार धीरे -धीरे और शां तपूवक लाना चा हए

य क सहज पके सो मीठा होय।

21. साँप मरे लाठ न टूटे -(हा न भी न हो और काम भी बन जाए)- घन याम को उसक द ु टता का ऐसा मजा चखाओ क बदनामी भी न हो और उसे दं ड भी मल जाए। बस यह समझो क साँप भी मर जाए और लाठ भी न टूटे । 22. अंत भला सो भला-(िजसका प रणाम अ छा है , वह सव तम है )- याम पढ़ने म कमजोर था, ले कन पर

ा का समय आते -आते परू तैयार कर ल और पर

ा थम

ेणी म उ तीण क । इसी को कहते ह

अंत भला सो भला। 23. चमड़ी जाए पर दमड़ी न जाए-(बहुत कंजूस होना)-मह पाल अपने बेटे को अ छे कपड़े तक भी सलवाकर नह ं दे ता। उसका तो यह स ा त है क चमड़ी जाए पर दमड़ी न जाए। 24. सौ सुनार क एक लुहार क -( नबल क सैकड़ चोट क सबल एक ह चोट से मुकाबला कर दे ते है )कौरव ने भीम को बहुत तंग कया तो वह कौरव को गदा से पीटने लगा-सौ सुनार क एक लुहार क । 25. सावन हरे न भाद सूखे-(सदै व एक-सी ि थ त म रहना)- गत चार वष म हमारे वेतन व भ ते म एक सौ

पए क बढ़ो तर हुई है । उधर 25 क सावन हरे न भाग सूखे

तशत दाम बढ़ गए ह-भैया हमार तो यह ि थ त रह है

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