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गु
व कायालय
गु मं
के
गु
ाथना
ारा
तुत मािसक ई-प का
भाव से ई
दशन
जुलाई- 2011
ीम आ
ीकृ ण क गु सेवा
दे व ष नारद ने एक म लाह को अपना गु
बनाया
स
गु
के याग से
द र ता आती ह
मं
के जप से अलौ कक
िस
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शंकराचायके सदगु
होती ह
गु मं
के
भाव से ई
जब दवासाजी ने ु
ी कृ ण क प र ाली।
NON PROFIT PUBLICATION
दशन
गु
FREE E CIRCULAR योितष प का जुलाई 2011
व
िचंतन जोशी
संपादक
गु
गु
संपक
व
योितष वभाग
व कायालय
92/3. BANK COLONY, BRAHMESHWAR PATNA, BHUBNESWAR-751018, (ORISSA) INDIA
फोन
91+9338213418, 91+9238328785,
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जुलाई 2011
3
वशेष लेख गु
ाथना
जब दवासाजी ने ु
ी कृ ण क प र ाली।
5
ािभषेक से कामनापूित
33
7
ािभषेक तो
35
गु मं के भाव से ई दशन
11
सोमवार को िशवपूजन का मह व
गु मं के भाव से र ा
13
िशव कृ पा हे तु उ म
गु मं
के जप से अलौ कक िस
या
ा
होती
या ह?
ावण मास
ावण मास के सोमवार
ह
मु
आ ण क गु भ
18
आ या मक उ नित हे तु उ म चातुमास
स
गु
19
य िशव को
मं
जप से
21
ावण सोमवार
एकल य क गु भ
22
ा
ीकृ ण क गु सेवा
23
एक मुखी से 12 मुखी
25
चातुमास म मांगिलक काय व जत ह।
ा
हवा ु शा
ान
दे व ष नारद ने एक म लाह को अपना गु बनाया ीम
आ
शंकराचाय सदगु
37
त से भौितक क ो से
14
के याग से द र ता आती ह
36
िमलती ह त
य ह बेल प ?
41 43
त कैसे कर?
45
धारण से कामनापूित ा
40
46 धारण करने के लाभ
48 50
27
अनु म संपादक य
4
मं िस साम ी
67
गुव कम ्
6
जुलाई 2011 - वशेष योग
68
ीकृ ण बीसा यं
10
दै िनक शुभ एवं अशुभ समय
ी गु
31
दन-रात के चौघ डये
69
32
दन-रात क होरा सूय दय से सूया त तक
70
51
71
राम र ा यं
ह चलन जुलाई -2011
42
सव रोगनाशक यं /कवच
72
व ा ाि हे तु सर वती कवच और यं
53
मं िस कवच
74
मं िस प ना गणेश
53
YANTRA LIST
75
मं िस साम ी
54
GEM STONE
77
मािसक रािश फल
57
BOOK PHONE/ CHAT CONSULTATION
78
रािश र
61
सूचना
79
जुलाई 2011 मािसक पंचांग
60
हमारा उ े य
81
जुलाई -2011 मािसक त-पव- यौहार
64
तो म ्
ह तरे खा
ान
सव काय िस
कवच
ान तािलका
68
जुलाई 2011
4
संपादक य य आ मय बंधु/ ब हन जय गु दे व महापु षो के मतानुशार य
को अपने जीवन म पूण ता कसी स ु
भारतीय धमशा ो म गु को कसी स
गु
के
अथात: जनके
ा
क शरण म जाने से
ा
हो सकती ह।
व प कहां गया ह।
होने पर य
मरण मा
गु
से
के सभी धम-अधम, पाप-पु य आ द समा
य य
मरणमा ेण
ानमु प ते
वयम ् ।
सः एव सवस प ः त मा संपूजये
ान अपने आप
हो जाते ह।
गु म् ।।
कट होने लगता है और वे ह सव स पदा
प ह, अतः
ी गु दे व क
पूजा करनी चा हए। हमारे ऋ ष मुिन के मतानुशार गु
उसे मानना चा हये जो
ेरकः सूचक ैव वाचको दशक तथा । िश को बोधक ैव षडे ते गुरवः
मृ ताः ॥
अथात:
ेरणा दे नेवाले, सूचन दे नेवाले, सच बतानेवाले, सह रा ता दखानेवाले, िश ण दे नेवाले, और बोध करानेवाले ये
सब गु
समान ह।
गु श द क प रभाषा श दो म िलखना या बताना एक मूख ता ह एक ओछापन ह।
यो क गु
क म हमा अनंत ह
अपार ह। इस िलये क बरजी ने िलखा ह। गु गु
गो वंद दोनो खड़े काके लागू पांव, गु
बिलहार आपने गो वंद दयो बताए।
क तुलना कसी अ य से करना कभी भी संभव नह ं ह। इस िलये शा
न
ा तो नैव
भुवनजठरे स रो ु ानदातुः पश े
पश वं तथा प ि तचरगुणयुगे स ु ः
अथात: तीन लोक, वग, पृ वी, पाताल म
कहते ह।
कल यः स नयित यदहो
व ताम मसारम ् ।
वीयिश ये वीयं सा यं वधते भवित िन पम तेवालौ ककोऽ प ॥
ान दे नेवाले गु
के िलए कोई उपमा नह ं दखाई दे ती । गु
के जैसा मानते है , तो वह ठ क नह ं है , कारण पारसम ण केवल लोहे को सोना बनाता है , पर स ु
है , गु
को पारसम ण
वयं जैसा न ह बनाता !
तो अपने चरण का आ य लेनेवाले िश य को अपने जैसा बना दे ता है ; इस िलए गु दे व के िलए कोई उपमा न ह तो अलौ कक है ।
इस किलयुग म धम के नाम पर गु के नाम का ठ गी चोला पहनने वालो क भी कमी नह ं ह इस िलये शा ो म िलखा ह।
सवािभला षणः सवभो जनः सप र हाः । अ
अथात: अिभलाषा रखनेवाले, सब भोग करनेवाले, सं ह करनेवाले, करनेवाले, गु
न ह होते है ।
चा रणो िम योपदे शा गुरवो न तु ॥
चय का पालन न करनेवाले, और िम या उपदे श
िचंतन जोशी
जुलाई 2011
5
गु
ाथना िचंतन जोशी
गु
ा ु व णुः गु दवो महे रः ।
गु ः सा ात ् परं भावाथ: गु
ा ह, गु
व णु ह, गु
त मै ी गुरवे नमः ॥
ह शंकर ह; गु
ह सा ात ् पर
ह; एसे स ु को नमन ।
यानमूलं गु मू ितः पूजामूलम गु र पदम।् मं मूलं गु रवा यं मो मूलं गु र कृ पा।। भावाथ: गु
क मूित
यान का मूल कारण है , गु
सम त मं
का और गु
क कृ पा मो
ाि
के चरण पूजा का मूल कारण ह, वाणी जगत के
का मूल कारण ह।
अख डम डलाकारं या ं येन चराचरम।् त पदं दिशतं येन त मै ीगुरवे नमः।। वमेव माता च पता वमेव वमेव बंधु वमेव व ा
सखा वमेव।
वणं वमेव वमेव सव मम दे व दे व।।
ानंदं परमसुखदं केवलं
ानमूित
ं ातीतं गगनस शं त वम या दल यम ् । एकं िन यं वमलमचलं सवधीसा
भावातीतं भावाथ:
ा के आनंद प परम ् सुख प,
भुतं
गुणर हतं स ु ं तं नमािम ॥ ानमूित, ं से परे , आकाश जैसे िनलप, और सू म "त वमिस"
इस ईशत व क अनुभूित ह जसका ल य है ; अ तीय, िन य वमल, अचल, भावातीत, और ऐसे स ु को म णाम करता हँू ।
गुणर हत -
जुलाई 2011
6
गुव कम् शर रं सु पं तथा वा कल ,ं यश ा िच ं धनं मे तु यम।् मन ेन ल नं गुरोरि प ,े ततः कं ततः कं ततः कं ततः कम॥्१॥ कल ं धनं पु पौ ा दसव, गृ हो बा धवाः सवमेत
जातम।्
मन ेन ल नं गुरोरि प ,े ततः कं ततः कं ततः कं ततः कम॥्२॥ षड़ं गा दवेदो मुखे शा
व ा,
क व वा द ग ं सुप ं करोित। मन ेन ल नं गुरोरि प ,े ततः कं ततः कं ततः कं ततः कम॥्३॥ वदे शेषु मा यः वदे शेषु ध यः, सदाचारवृ ेषु म ो न चा यः। मन ेन ल नं गुरोरि प ,े ततः कं ततः कं ततः कं ततः कम॥्४॥ माम डले भूपभूपलबृ दै ः, सदा से वतं य य पादार व दम।् मन ेन ल नं गुरोरि प ,े ततः कं ततः कं ततः कं ततः कम॥्५॥ यशो मे गतं द ु दान तापात ्, जग
तु सव करे य
सादात।्
मन ेन ल नं गुरोरि प ,े ततः कं ततः कं ततः कं ततः कम॥्६॥ न भोगे न योगे न वा वा जराजौ, न क तामुखे नैव व ेषु िच म।् मन ेन ल नं गुरोरि प ,े ततः कं ततः कं ततः कं ततः कम॥्७॥
अर ये न वा व य गेहे न काय,
(५) जन महानुभाव के चरण कमल
न दे हे मनो वतते मे वन य।
भूम डल के राजा-महाराजाओं से िन य
मन ेन ल नं गुरोरि प ,े
पू जत रहते ह , कंतु उनका मन य द गु
ततः कं ततः कं ततः कं ततः कम॥्८॥
के ीचरण के ित आस
गुरोर कं यः पठे पुरायदे ह ,
सदभा य से या लाभ?
यितभूपित
(६) दानवृ
चार च गेह ।
लमे ा छताथं पदं
न हो तो इस
के ताप से जनक क ित
चारो दशा म या हो, अित उदार गु क
सं ,ं
सहज कृ पा
गुरो
वा ये मनो य य ल नम॥्९॥
॥इित
ीमद आ शंकराचाय वरिचतम्
से ज ह संसार के सारे
सुख-ए य ह तगत ह , कंतु उनका मन
गुव कम ् संपूण म॥ ्
य द गु के ीचरण म आस भाव न
भावाथ: (१) य द शर र पवान हो, प ी
रखता हो तो इन सारे एशवय से या लाभ?
भी पसी हो और स क ित चार दशाओं म व त रत हो, सुमे पवत के तु य अपार
ी-सुख और धन भोग से कभी वचिलत
धन हो, कंतु गु के ीचरण म य द मन आस
(७) जनका मन भोग, योग, अ , रा य, न होता हो, फर भी गु के ीचरण के ित
न हो तो इन सार उपल धय से
या लाभ?
आस
(२) य द प ी, धन, पु -पौ , कुटु ं ब, गृ ह
अटलता से या लाभ?
एवं वजन, आ द ार ध से सव सुलभ हो कंतु गु के ीचरण म य द मन आस
हो तो इस ार ध-सुख से या लाभ? (३) य द वेद एवं ६ वेदांगा द शा
न
ज ह
कंठ थ ह , जनम सु दर का य िनमाण क ितभा हो, कंतु उनका मन य द गु के ीचरण के ित आस
सदगुण से या लाभ?
न हो तो इन
(४) ज ह वदे श म समान आदर िमलता हो, अपने दे श म जनका िन य जय-
जयकार से वागत कया जाता हो और
(८) जनका मन वन या अपने वशाल भवन म, अपने काय या शर र म तथा अमू य भ डार म आस
ित आस
न हो तो सदगुण से या लाभ?
न हो, पर गु के
ीचरण म भी वह मन आस
न हो पाये
तो इन सार अनास
य का या लाभ?
(९) जो यित, राजा,
चार एवं गृ ह थ इस
गु अ क का पठन-पाठन करता है और जसका मन गु के वचन म आस
है , वह
पु यशाली शर रधार अपने इ छताथ एवं पद इन दोन को सं ा कर लेता है यह
जसके समान दसरा कोई सदाचार भ ू
नह ं, य द उनका भी मन गु के ीचरण के
न बन पाया हो तो मन क इस
िन
त है ।
***
जुलाई 2011
7
जब दवा ु साजी ने
ी कृ ण क प र ाली।
िचंतन जोशी ह द ु शा ो के अनुशार दवासाजी ु
ानी महापु ष
म ऐसा भी रख द जए। घर का सामान उठाकर दे नेवाला
वामी थे
जस
कोई िमल जाये तो आप दोगे, आप उठा तो नह ं सकोगे।
कारण समय-समय पर दवासाजी अपनी योगलीला रचते ु
आप चाह तो घर को भी जला द तो भी हमारे मन म
रहते थे। एक बार दवासाजी ने ु
कभी दःख नह ं होगा। ु
होने के साथ ह अ तीय योगबल के
ी कृ ण के साथ
योगलीला रचने का मन बनाया।
महाराज ! आप आइये, हमारे अितिथ बिनये।"
एक बार दवासाजी ने चुनौती द क , ह कोई जो ु मुझे अितिथ रखने को तैयार हो।
दवासा ऋ ष अितिथ बनकर आये, अितिथ बनकर ु
ी कृ ण ने दे खा तो
उनको तो करनी थी कुछ लीला। अितिथ स कार म कह ं
दवासा जी ! आज तो दवासा जी को अितिथ रखने क ु ु
कुछ चूक हो जाये तो दवासाजी िच लाव, झूठ कैसे बोल? ु
चुनौती िमल रह है ।
यहाँ तो सब ठ क-ठाक था।
ीकृ णजी आये और बोलेः "महाराज ! आप आइये, हमारे अितिथ बिनये।"
दवासाजी बोलेः "तो हम अभी जायगे और थोड़ ु दे र म वापस आयगे। हमारे जो भगत ह गे उनको भी
दवासाजी बोलेः "अितिथ तो बन जाऊ पर मेर ु
साथ लायगे। भोजन तैयार हो।"
शत है ।"
दवासाजी जाय, आय तो भोजन तैयार िमले। ु
'म जब आऊँ-जाऊँ, जो चाहँू , जहाँ चाहँू ,
जतना चाहँू
कसी को बाँट, बँटवाय, कुछ भी कर। फर भी दे खा क
खाऊँ, जनको चाहँू खलाऊँ, जनको जो चाहँू दे दँ,ू जो भी
' ीकृ ण कसी भी गलती म नह ं आते परं तु मुझे लाना
लुटाऊँ, जतना भी लुटाऊँ, कुछ भी क ँ ,
है ।
मुझे न कोई रोके न कोई टोके। बाहर से तो
या मन से भी कोई मुझे
रोकेगा-टोकेगा तो शाप ले,
दँ ग ू ा। सुन
कान खोल कर!
अब मुझे
अथवा अंदर से भी कुछ बोल दगे तो फर म शाप दँ ग ू ा।' दवासाजी ु
वे
सभी शत
आप
भूल गये ह या जतनी भी
और
शत
वीकार ह और जो वीकार ह।"
लगे क 'सब चल रहा है । जो माँगता हंू, तैयार िमलता है । जो माँगता हँू फर िस
कसी को दे दँ,ू
कसी को
दलाऊँ, चाहे जलाऊँ...। ीकृ ण बोलेः "महाराज ! अपनी शत
ीकृ ण या तो
के बल से
कट कर दे ते ह या
कट कर दे ते ह। सब िस
याँ
इनके पास मौजूद ह, 64 कलाओं के जानकार ह।
महाराज! ये तो ठ क है परं तु घर का सामान
दवासा ऋ ष कैसे ह! ु
एक दन दोपहर के समय दवासाजी वचार करने ु
"महाराज ! आपने जो कह ं
वे भी
ीकृ ण को शाप दे ने का मौका ढँू ढ रहे
थे। सती अनुसूयाजी के पु
सामने आ जाय।'
ह
मणी को अ छा
नह ं लगे ऐसा कुछ करना है । शत है क 'ना' बोल दगे
जो
मुझे अितिथ रखता है , तो
ीकृ ण को अथवा
अब ऐसा कुछ कया जाएं क
ीकृ ण नाराज हो
जाय।' दवासाजी ने घर का सारा लकड़ ु
का सामान
इक ठा कया। फर आग लगा द और बोलेः "होली रे
जुलाई 2011
8
होली कृ ण ! दे खो,
अ छ लगती है ? आप कस समय
होली जल रह है ।"
आपके मन म आयेगा न? मन म आयेगा, उसक गहराई
ीकृ ण गु जी
बोलेः !
"हाँ,
होली
या माँगगे? यह तो
म तो हम ह।"
रे
दवासाजी खीर खा रहे ह। दे खा क ु
होली"
रह है । "अरे !
दवासाजी बोलेः अरे , ु
"गु जी ! आप तो महान ह, पर तु आपका िश य भी
कृ ण ! तेरा ये सब
कम नह ं है । आप माँगेगे खीर यह जानकर उ ह ने पहले
लकड़
से ह कह दया क खीर का कड़ाह तैयार रखो।
का
सामान
जल रहा है ! ीकृ ण
य हँ सी?
मणी हँ स
मणी?"
थोड़ बनाते तो डाँट पड़ती आप आयगे और ढे र सार बोलेः"हाँ,
खीर माँगेगे तो इस कड़ाहे म खीर भी ढे र सार है । जैसा
गु जी !
मेर
सार
आपने माँगा, वैसा हमारे
भु ने पहले से ह
सृ याँ
कई
बार
रखवाया है । इस बात क हँ सी आती है ।"
तैयार
जलती ह, कई बार बनती ह, गु जी ! होली रे होली !"
"हाँ, बड़ हँ सी आरह ह तुझे सफलता दखती है अपने
"कृ ण ! तेरे
भु क ?" इधर आ ।
दय म चोट नह ं लगती है ?"
"आप गु ओं का 'अ छा !
साद है तो मुझे चोट
य लगेगी?"
मणीजी आयीं तो दवासाजी ने ु
ीकृ ण दवासाजी के झांसे म फँसे नह ,ं और ु
उपर से हँ स रहे ह। एक
चोट पकड़ और उनके मुँह पर झुठ खीर मल द ।
दन दवासा जी बोलेः "हम ु
नहाने जा रहे ह।"
मणी क
अब कोई पित कैसे दे खे
क कोई बाबा उसक
प ी क चोट पकड़ कर उस के मुहं पर झुठ खीर मल
कृ णः "गु जी ! आप आयगे तो आपके िलए भोजन
या
होगा?"
रहा है ? थोड़ा बहत ु कुछ तो होगा क 'यह
या?' अगर
ीकृ ण के चेहरे पर थोड़ भी िशकन आयेगी तो सेवा
दवासाजी बोले: "हम नहाकर आयगे तब जो इ छा होगी ु
सब न
बोल दगे, वह भोजन दे दे ना।
और शाप दँ ग ू ा, शाप।' यह शत थी। दवासाजी ने ु
ीकृ ण क ओर दे खा तो
ीकृ ण के
दवासा जी मन ह मन म सोच रहे थे 'पहले बोलकर ु
चेहरे पर िशकन नह ं है । अ दर से कोई रोष नह ं है ।
जायगे तो सब तैयार िमलेगा। आकर ऐसी चीज माँगूगा
कृ ण
ी
य -के- य खड़े ह।
जो घर म तैयार न हो। कृ ण लेने जायगे या मँगवायगे
" ी कृ ण ! कैसी लगती है ये
तो म
"हाँ, गु जी ! जैसी आप चाहते ह, वैसी ह लगती
ठ जाऊँगा'
दवासा जी नहाकर आये और बोलेः "मुझे ढे र सार खीर ु खानी है ।"
है ।" अगर 'अ छ लगती है ' बोल जो वो है नह ं और
ीकृ ण बड़ा कड़ाह भरकर ले आयेः "ली जए, गु जी !" दवासाजी बोले: "अरे , तुमको कैसे पता चला?" ु दया। जहाँ से आपका
'ठ क नह ं लगती' बोल तो गलती िनकाल दे । इसिलए ीकृ ण ने कहाः "गु जी ! जैसा आप चाहते ह, वैसी
आप यह बोलनेवाले ह, मुझे पता चल गया तो मने तैयार करके रखवा
मणी?"
वचार
उठता है वहाँ तो म रहता हँू । आपको कौन-सी चीज
लगती है ।" दवासाजी ने दे खा क प ी को ऐसा कया तो भी ु कृ ण म कोई फक नह ं पड़ा।
मणी तो अधािगनी है ।
जुलाई 2011
9
कृ ण को कुछ गड़बड़ कर तो
मणी के चेहरे पर
या ह यह बाबा जानते ह।
िशकन पड़े गी ऐसा सोचकर कृ ण को बुलायाः
ा रका के लोग इक ठे हो गये, चौराहे पर रथ
"कृ ण ! यह खीर बहत ु अ छ है ।"
आ गया है फर भी
"हाँ, गु जी ! अ छ है ।" "तो फर
है ? दवासाजी उतरे और जैस,े घोड़े को पुचकारते ह वैसे ु
या दे खते हो? खाओ।"
ह पुचकारते हए ु पूछाः " य
ीकृ ण ने खीर खायी। "इतना ह
नह ं, सारे शर र को खीर लगाओ। जैसे
मुलतानी िम ट लगाते ह ऐसे पूरे शर र को लगाओ। घुँघराले बाल म लगाओ। सब जगह लगाओ।"
दवासा जी ने दे खा क 'अभी-भी ये नह ं फँसे। ु
या क ँ ?'
फर बोलेः "मुझे रथ म बैठना है , रथ मँगवाओ। नहाना नह ,ं ऐसे ह चलो।" रथ मँगवाया। दवासाजी बोलेः "घोड़े हटा दो।" घोड़े हटा दये गये। "म ु मणी, एक तरफ
ी कृ ण,
रथ खींचेगे।" दवासाजी को हआ 'अब तो ना बोलगे क ऐसी ु ु
थित
मणी के मुँह पर भी खीर लगी
परं तु दोन ने रथ खींचा। जैस,े घोड़े को चलाते ह
ऐसे दवासाजी ने ु
ी कृ ण और
मणी को चलाया। रथ
चौराहे पर पहँु चा। लोग क भीड़ इक ठ हो गयी
क
' ीकृ ण कौन-से बाबा के च कर म आ गये?' लोग ने दे खा क 'यह
या ! दवासाजी रथ पर ु
बैठे ह। खीर और पसीने से तरबतर
ी कृ ण और
मणी जी दोन रथ हाँक रहे ह? मुँह पर, सवाग पर खीर लगी हई ु है ?'
उस नजारे खो दे खने वाले लोग को
ीकृ ण पर तरस
आया क "कैसे बाबा के चककर म आ गये ह?" अब ये बाबा
या ह यह
"जैसा आपको अ छा लगता है , वैसा ह अ छा है ।" ीकृ ण से कहाः "कृ ण ! म तु हार सेवा स न हँू ।
प र थितयाँ सब माया म ह और म मायातीत हँू ,
"गु जी, जैसा आप चाहते ह वैसा।"
हई ु है ।'
"कृ ण ! कैसा रहा?"
पर, समता पर, सजगता पर, सूझबूझ पर
"कैसे लग रहे हो, कृ ण?"
म? खीर लगी हई ु है ,
मणी ! कैसा रहा?"
"गु जी आनंद है ।"
दवासाजी ने ु
"हाँ, गु जी।"
रथ म बैठूँगा। एक तरफ
ीकृ ण को कोई फक नह ं पड़ रहा
ीकृ ण जानते ह और
ीकृ ण
तु हार ये समझ इतनी ब ढ़या है क इससे म बहत ु खुश
हँू । तुम जो वरदान माँगना चाहो, माँग लो। परंतु दे खो कृ ण ! तुमने एक गलती क । मने कहा खीर चुपड़ो,
तुमने खीर सारे शर र पर चुपड़ पर हे क है या ! पैर के तलुओं पर नह ं चुपड़ । तु हारा सारा शर र अब व काय हो गया है । इस शर र पर अब कोई हिथयार सफल नह ं होगा, परं तु पैर के तलुओं का तलुओं म कोई बाण न लगे,
याल करना। पैर के
य क तुमने वहाँ मेर जूठ
खीर नह ं लगायी है ।" पौरा णक कथा के अनुशार:
ीकृ ण को िशकार ने मृ ग
जानकर बाण मारा और पैर के तलुए म लगा। और जगह लगता तो कोई असर नह ं होता। यु
के मैदान म
ीकृ ण अजु न का रथ चला रहे थे वहाँ पर श ु प बाण का उन पर कोई वशेष
के
भाव नह ं पड़ा था।
दवासाजीः " या चा हए, कृ ण?" ु "गु जी ! आप "म तो
स न रह।"
स न हँू , परं तु कृ ण ! जहाँ कोई तु हारा नाम
लेगा वहाँ भी आनंद हो जायेगा, वरदान दे ता हँू ." ीकृ ण का नाम लेते ह आनंद हो जाता है ।
ीकृ ण का नाम
लेने से
स नता िमलेगी - ये दवासा ऋ ष के वचन ु
अभी तक
कृ ित स य कर रह है ।
जुलाई 2011
10
ीकृ ण बीसा यं कसी भी य
का जीवन तब आसान बन जाता ह जब उसके चार और का माहोल उसके अनु प उसके वश
म ह । जब कोई य
का आकषण दसरो के उपर एक चु बक य ु
सेवा हे तु त पर होते है और उसके भौितकता वा द युग म हर
य
ायः सभी काय बना अिधक क
िलये सरल उपाय ह,
ीकृ ण बीसा यं ।
धनी थे। इसी कारण से
ीकृ ण बीसा यं
होती ह, ज से य
के साथ
य
यो क भगवान
ी कृ ण एक अलौ कव एवं दवय चुंबक य
ढ़ इ छा श
एवं उजा
हमेशा एक भीड म हमेशा आकषण का क
य द कसी य
को अपनी
ितभा व आ म व ास के
ीकृ ण बीसा यं
तर म वृ ,
का पूजन एक सरल व सुलभ मा यम
अंको से
य
को अ
सबसे आगे एवं सभी
पर अं कत श
शाली वशेष रे खाएं, बीज मं
एवं
त ु आंत रक श
यां
को
े ो म अ
ीकृ ण बीसा यं
ा
होती ह जो
णय बनाने म सहायक िस
ीकृ ण बीसा यं
अलौ कक
एक
ाकृ
य
वा
य, योग और
ीकृ ण बीसा यं
था पत कर।
के भीतर स भावना, समृ , सफलता, उ म शाली मा यम ह!
के पूजन से य
कवच
को
केवल
वशेष शुभ मुहु त म िनमाण कया
जाता ह। कवच को व ान कमकांड ाहमण
ारा शुभ मुहु त म शा ो
विध- वधान से विश ारा िस यु
तेज वी मं ो
ाण- ित त पूण चैत य
करके िनमाण कया जाता ह।
जस के फल य
को शी
व प धारण करता
पूण लाभ
ा
होता
ह। कवच को गले म धारण करने से वहं अ यंत
भाव शाली होता
य
पर उसका लाभ अित ती
एवं शी
ात होने लगता ह।
यान योग
क त करने से य
क चेतना श
जा त होकर शी
उ च
जो पु ष और म हला अपने साथी पर अपना म क वृ
बीसा
दय के पास रहता ह ज से
के म यभाग पर
पित-प ी म आपसी
ीकृ ण
हमेशा
ीकृ ण बीसा यं
ीकृ ण बीसा यं
होता ह।
ह। गले म धारण करने से कवच
व ानो के मतानुशार
चाहते ह। उनके िलये
व के
के सामा जक मान-स मान व
होती ह।
को ा होती ह ।
थान
ांड य उजा का संचार करता ह, जो
यान के िलये एक श
पद- ित ा म वृ
होती ह।
के पूजन व िनयिमत दशन के मा यम से भगवान
ीकृ ण का आशीवाद ा कर समाज म वयं का अ तीय मा यम से
य
ा
य
ीकृ ण बीसा कवच
रहता ह।
सा बत हो सकता ह। ीकृ ण बीसा यं
व
ा
अपने िम ो व प रवारजनो के बच म र तो म सुधार करने क ई छा होती ह उनके िलये
भावशािल चुंबक व को कायम
व आपके चारो ओर से लोग को आक षत करे इस
के पूजन एवं दशन से आकषक य को
लोग उसक सहायता एवं
व परे शानी से संप न हो जाते ह। आज के
के िलये दसरो को अपनी और खीचने हे तु एक ू
रखना अित आव यक हो जाता ह। आपका आकषण और य
ीकृ ण बीसा यं
भाव डालता ह, तब
तर
मूलय मा : 1900
भाव डालना चाहते ह और उ ह अपनी और आक षत करना
उ म उपाय िस
हो सकता ह।
और सुखी दा प य जीवन के िलये
ीकृ ण बीसा यं
लाभदायी होता ह।
मू य:- Rs. 550 से Rs. 8200 तक उ ल
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जुलाई 2011
11
गु मं के
भाव से ई
दशन
व तक.ऎन.जोशी व ानो के अनुशार शा ो भी मं
प से अपना
उ लेख ह क कोई
िन
त
जस
कार पानी म कंकड़-प थर डालने से उसम
तरं गे उठती ह उसी
भाव अव य रखते ह।
कार से मं जप के
भाव से हमारे
भीतर आ या मक तरं ग उ प न होती ह। जो हमारे इद-िगद सू म कवच जैसा
प से एक सुर ा
का सू म जगत म उसका
भाव पड़ता
है । जो खुली आंखो से सामा य को उसका
भाव
उस सुर ा
कवच से
नकारा मक
भावी जीव व श
य
दखाई नह ं दे ता। य
को या
उसके पास नह ं आ सकतीं। ीमदभगवदगीता
क
' ी
मधुसूदनी ट का' चिलत एवं मह वपूण ट काओं म से एक ह। इस ट का के रचियता
ी मधुसूदन सर वतीजी जब
संक प करके लेखनकाय के िलए बैठे ह
थे
पर ट का िलखो। लो यह मं । छः मह ने इसका
अनु ान करो। भगवान फर लेखनकाय का मं
अपने
म था पत करने यापार म वशेष ा
होता ह। यं के भाव से
भा य म उ नित, मान- ित ा एवं यापर म वृ
होती ह एवं आिथक
थम सुधार होता ह। गणेश ल मी यं
को
था पत करने से भगवान
गणेश और दे वी ल मी का संयु आशीवाद ा होता ह।
कया। अनु ान के छः मह ने पूण ीकृ ण के दशन न
हए ु । 'अनु ान म कुछ होगी' ऐसा सोचकर दसरे ू
ु ट रह गई
ी मधुसूदनजी ने
छः मह ने म दसरा अनु ान ू
कया फर भी दो
बार
असफलता के िच
ा म
ीकृ ण दशन न हए ु । अनु ान
होने पर
के
उरांत
ी मधुसूदन
लािन हो गई। सोचा
कः ' कसी अजनबी बाबाजी के कहने से
मने
बारह
मास
बगाड़
दये
अनु ान म। सबम
माननेवाला म 'हे कृ ण ...हे
भगवान ...दशन दो ...दशन दो...' ऐसे
Rs.550 से Rs.8200 तक
ार
ी मधुसूदनजी ने अनु ान
हो गये ले कन
म पूजन थान, ग ला या अलमार
ेरणा िमले
ारं भ करो।"
शु
घर-दकान -ओ फस-फै टर ु
लाभ
कट ह गे। उनसे
दे कर बाबाजी चले गये।
ाण- ित त गणेश ल मी यं को
क एक तेज वी आभा िलये
परमहं स सं यासी अचानक घर का
शा
गणेश ल मी यं
कािशत वलय (अथात
ओरा) का िनमाण होता ह। उन ओरा
"सं यासी बोले नह ं ....पहले उनके दशन करो फर उनके
मेरा िगड़िगड़ाना ? जो
ीकृ ण क
आ मा है वह
मेर
खोलकर भीतर आये और बोलेः "अरे मधुसूदन! तू गीता
आ मा है । उसी आ मा म म त रहता तो ठ क रहता।
पर ट का िलखता है तो गीताकार से िमला भी है क ऐसे
ीकृ ण आये नह ं और पूरा वष भी चला गया। अब
ह कलम उठाकर बैठ गया है ? तूने कभी भगवान के दशन
कये ह
क ऐसे ह
उनके वचन
ीकृ ण
बोलेः "दशन तो नह ं कये। िनराकार ीकृ ण के
वे ऊब गये। अब न ट का िलख सकते ह न तीसरा अनु ान कर सकते ह। चले गये या ा करने को तीथ म।
ी मधुसूदनजी तो थे वेदा ती, अ ै तवाद । वे एक ह है ।
ट का िलखना ?"
पर ट का
िलखने लग गया?"
या
-परमा मा सबम
प म उनका दशन करने का
वहाँ पहँु चे तो सामने से एक चमार आ रहा था। उस चमार ने इनको पहली बार दे खा और
ी मधुसूदनजी ने
भी चमार को पहली बार दे खा।
हमारा
योजन भी नह ं है । हम तो केवल उनक गीता
चमार ने कहाः "बस, वामीजी! थक गये न दो अनु ान
का अथ
प
करके?"
करना है ।"
जुलाई 2011
12
ीमधुसूदन
वामी च के ! सोचाः "अरे मने अनु ान कये,
ी मधुसूदनजी ने कहाः "नह ं दखा।"
यह मेरे िसवा और कोई जानता नह ।ं इस चमार को कैसे
चमार ने कहाः "म उसे रोज बुलाता हँू , रोज दे खता हँू ।
पता चला?"
ठह रये, म बुलाता हँू , उसे।" वह गया एक तरफ और
वे चमार से बोलेः "तेरे को कैसे पता चला?", "कैसे भी पता चला। बात स ची करता हँू
अपनी विध करके उस भूत को बुलाया, भूत से बात क
क नह ं ? दो अनु ान
और वापस आकर बोलाः
करके थककर आये हो। ऊब गये, तभी
"बाबा जी ! वह भूत बोलता है
इधर आये हो। बोलो, सच क नह ?ं "
मधुसूदन
वामी ने
य ह मेरा नाम
"भाई ! तू भी अ तयामी गु
मरण
कया, तो म
खंचकर आने
जैसा लग
क
रहा है । सच बता, तूने कैसे जाना ?"
लगा। ले कन उनके कर ब जाने से मेरे
" वामी जी ! म अ तयामी भी नह ं
को आग जैसी तपन लगी। उनका तेज
और गु
मेरे
भी नह ।ं म तो हँू जाित का
से
सहा
नह ं
गया।
उ ह ने
चमार। मने भूत को अपने वश म
सकारा मक श
कया है । मेरे भूत ने बतायी आपके
है तो उनका आ या मक ओज इतना
अ तःकरण क बात।"
बढ़ गया है
ी
मधुसूदनजी
बोले
मं
"भाई ! दे ख
ीकृ ण के तो दशन नह ं हए ु , कोई
बात नह ।ं
णव का जप
कया, कोई
िस
भगवान
प ना गणेश
ी गणेश बु
कारक
और िश ा के
ह बुध के अिधपित दे वता
दशन नह ं हए ु । गाय ी का जप कया,
ह। प ना गणेश बुध के सकारा मक
ह दशन करा दे , चल।"
भाव
को
म वृ
म वृ
दशन नह ं हए ु । अब तू अपने भूत का
चमार ने कहाः " वामी जी ! मेरा भूत तो तीन
दन के अंदर ह
दशन दे
सकता है ।
72घ टे म ह
वह आ
जायेगा।
यह
उसक
लो
मं
और
विध।" ी मधुसूदनजी ने चमार
ारा
बताई गई पूण विध जाप कया। एक दन बीता, दसरा बीता, तीसरा भी बीत ू
गया और चौथा शु
हो गया।
72घ टे
तो पूरे हो गये। भूत आया नह ं। गये चमार
के
पास।
ी
मधुसूदनजी
बोलेः " ी कृ ण के दशन तो नह ं हए ु मुझे तेरा भूत भी नह ं दखता?" चमार ने कहाः " वामी जी! दखना चा हए।"
भाव को बठाता ह एवं नकारा मक
गणेश के
कम करता ह।. प न
भाव से यापार और धन
पढाई हे तु भी
होती ह। ब चो क वशेष फल
प ना गणेश इस के क
बु
कूशा
द ह
भाव से ब चे
होकर
आ म व ास म भी वशेष वृ
उसके
होती
ह। मानिसक अशांित को कम करने म मदद करता ह, य हर
य
व करण शांती
करती
ारा अवशो षत
जगर,
फेफड़े , जीभ,
म त क और तं का तं इ या द रोग म सहायक होते ह। क मती प थर मरगज के बने होते ह।
Rs.550 से Rs.8200 तक
क हमारे जैसे तु छ
यां उनके कर ब खड़े
नह ं रह
सकते। अब तुम मेर ओर से उनको हाथ जोड़कर
ाथना करना क वे फर
से अनु ान कर तो सब हो
जायगे
और
ितब ध दरू
भगवान
ीकृ ण
िमलगे। बाद म जो गीता क िलखगे। वह बहत ु
िस
ी मधुसूदन जी ने
कया, भगवान
ट का
होगी।" फर से अनु ान
ीकृ ण के दशन हए ु
और बाद म भगवदगीता पर ट का िलखी।
आज भी वह ' ी मधुसूदनी
ट का' के नाम से पूरे
व
म
िस
है ।
दान करती ह,
के शार र के तं को िनयं त ह।
श
ओं का अनु ान कया
ज ह स
भा य से गु मं
िमला है और वहं पूण िन ा व व ास से विध- वधान से उसका जप करता है । उसे सभी
कार क िस या
वतः
ा
हो जाती ह। उसे नकारा मक
श
यां व
सकते।
भावीजीव क
नह ं पहंू चा
जुलाई 2011
13
गु मं के
भाव से र ा
व तक.ऎन.जोशी ' क द पुराण' के
ो र ख ड म उ लेख है ः
काशी नरे श क क या कलावती के साथ मथुरा के दाशाह नामक राजा का ववाह हआ। ु
भी
आपने
थापीत करने क बात कह ं परं तु
प ी ने इ कार कर दया। तब राजा ने जबद ती करने क बात कह । प ी ने कहाः " ी के साथ संसार- यवहार करना हो तो बल- योग नह ,ं यार
नेह- योग करना चा हए।
प ी ने कहाः नाथ ! म आपक प ी हँू , फर भी
आप मेरे साथ बल- योग करके संसार- यवहार न कर।"
आ खर वह राजा था। प ी क बात सुनी-अनसुनी करके प ी के नजद क गया। पश
कया
य
य ह उसके शर र म
लगा। उसका
ह उसने प ी का व ुत जैसा करं ट
पश करते ह राजा का अंग-अंग जलने
लगा। वह दरू हटा और बोलाः " या बात है ? तुम इतनी सु दर और कोमल हो फर भी तु हारे शर र के
पश से
गु मं
िलया था। वह जपने से मेर सा वक ऊजा का
वकास हआ है । ु
जैस,े रात और दोपहर एक साथ नह ं रहते उसी
तरह आपने शराब पीने वाली वे याओं के साथ और कुलटाओं के साथ जो संसार-भोग भोगा ह, उससे आपके पाप के कण आपके शर र म, मन म, बु
प ीः "नाथ ! राजा
रहकर आपसे
ाथना करती थी। आप बु मान ह बलवान
ह, यश वी ह धम क बात भी आपने सुन रखी है । फर
दय शु
साथ
और
होता है तो यह
याल
भा वत हआ और रानी से बोलाः "तुम मुझे ु
भी भगवान िशव का वह मं
दे दो।"
रानीः "आप मेरे पित ह। म आपक गु
नह ं बन
सकती। हम दोन गगाचाय महाराज के पास चलते ह।" दोन गगाचायजी के पास गये और उनसे क । उ ह ने
नाना द से प व
िशव व प के
यान म बैठकर राजा-रानी को
पावन कया। फर िशवमं राजा पर श
ाथना
हो, यमुना तट पर अपने ीपात से
दे कर अपनी शांभवी द
ा से
पात कया। व ानो के मतानुशार कथा मे
उ लेख ह क दे खते-ह -दे खते सैकडो तु छ परमाणु राजा के शर र से िनकल-िनकलकर पलायन कर गये।
या आप जानते ह?
महाभारत क रचना इसी गु हई ु थी।
व
गु
के सु िस
आष
ंथ
पू णमा के दन पूण सू का लेखन काय
पू णमा के आरं भ कया गया था।
दे वलोक म दे वताओं ने वेद यासजी का पूजन गु
पू णमा के दन कया था। इस िलये इस दन वेद यास का पूजन कया जाता ह एवं इस पू णमा
और मने जो मं जप कया है उसके कारण मेरे शर र म आपके नजद क नह ं आती थी ब क आपसे थोड़ दरू
के
वतः आ जाता है ।"
म अिधक है
ओज, तेज, आ या मक कण अिधक ह। इसिलए म
वे याओं
राजाः "तु ह इस बात का पता कैसे चल गया?"
मुझे जलन होने लगी?" प ीः "नाथ ! मने बा यकाल म दवासा ऋ ष से ु
पीनेवाली
कुलटाओं के साथ भोग भोगे ह।"
ववाह के बाद राजा ने अपनी प ी को बुलाया
और संसार- यवहार
शराब
को यासपू णमा भी कहा जाता ह।
व ानो के मत मे गु
पू णमा के दन गु
का
पूजन कर नेसे वषभर के पव मनाने के समान फल
ा
होता ह।
जुलाई 2011
14
गु मं
के जप से अलौ कक िस या
ा
होती ह
िचंतन जोशी, व तक.ऎन.जोशी थे। वे
क ड यपुर म शशांगर नाम के राजा रा य करते
तनपान कराने लगी। धीरे -धीरे बालक बड़ा होने लगा।
जापालक थे। उनक रानी मंदा कनी भी पित ता,
वह बालक कृ णा नद के संगम- थान पर
धमपरायण थी। ले कन संतान न होने के कारण दोन दःखी रहते थे। उ ह ने रामे र जाकर ु संतान
ाि
तप या का
वचार
कया। प ी को
लेकर राजा रामे र क ओर चल पड़े ।
से ऋण मु
माग म कृ णा-तुंगभ ा नद के संगम-
मंगल
थल पर दोन ने
नान
कया और
वह ं िनवास करते हए ु वे िशवजी क आराधना करने लगे। एक
दन
नान करके दोन
लौट रहे थे क राजा को िम
सरोवर
म एक िशविलंग दखाई पड़ा। उ ह ने वह िशविलंग उठा िलया और अ यंत ा से उसक
ाण- ित ा क । राजा
रानी पूण िन ा से िशवजी क पूजाअचना करने लगे। संगम म
नान
करके िशविलंग क पूजा करना उनका िन य म बन गया। एक दन कृ णा नद म
नान
करके राजा सूय दे वता को अ य दे ने के िलए अंजिल म जल ले रहे थे, तभी उ ह एक िशशु
दखाई
दया। उ ह
आसपास दरू-दरू तक कोई नजर नह ं आया। तब राजा ने सोचा
राजा-रानी कृ णागर को लेकर
यं
अपनी राजधानी क ड युपर म वापस लौट आये। ऐसे अलौ कक बालक को दे खने
को
जमीन-
जायदाद के ववादो को हल करने के काम म लाभ दे ता ह, इस के अित र
य
को ऋण मु
हे तु मंगल साधना से अित शी लाभ
ा
होता ह।
ववाह आ द
म मंगली जातक के क याण के िलए मंगल यं वशेष लाभ
ाण
ा
क पूजा करने से होता ह।
ित त मंगल यं
के
पूजन से भा योदय, शर र म खून क कमी, गभपात से बचाव, बुखार, चेचक, पागलपन, सूजन और घाव, यौन श
म वृ , श ु वजय, तं
मं के द ु
भा, भूत- ेत भय, वाहन
दघटनाओं , हमला, चोर इ याद से ु बचाव होता ह।
क 'ज र
भगवान िशवजी क कृ पा से ह मुझे इस िशशु क
होने के
कारण उसका नाम 'कृ णागर' रखा गया।
मंगल यं
के िलए िशवजी क पूजा,
ा
मू य मा ाि
Rs- 550
के
िलए
सभी
रा यवासी
राजभवन म आये। बड़े उ साह के साथ
समारोहपूव क
उ सव
मनाया
गया। जब
कृ णागर
17
वष
का
युवक हआ तब राजा ने अपने मं य ु
को कृ णागर के िलए उ म क या
ढँू ढने क आ ा द । परं तु कृ णागर के यो य क या उ ह कह ं भी न िमली। उसके बाद कुछ ह मंदा कनी क
दन
म रानी
मृ यु हो गयी। अपनी
य रानी के मर जाने का राजा को बहत ु
ा ाद
दःख ु
हआ। ु
सभी काय
उ ह ने पूरे
वषभर
कये और
अपनी मदन-पीड़ा के कारण िच कूट के राजा भुज वज क नवयौवना क या भुजावंती के साथ दसरा ववाह कया। ू उस समय भुजावंती क उ क
13 वष
थी और राजा शशांगर का पु
कृ णागर क उ
17 वष क थी।
एक दन राजा िशकार खेलने राजधानी से बाहर
हई ु है !' वे अ यंत ह षत हए ु और अपनी प ी के पास
गये हए ु थे। कृ णागर महल के
ांगण म खड़े होकर खेल
वह बालक गोद म रखते ह मंदा कनी के आचल
कारण भुजावंती उस पर आस
हो गयी। उसने एक
जाकर उसको सब वृ ांत सुनाया।
से दध ू क धारा बहने लगी। रानी मंदा कनी बालक को
रहा था। उसका शर र अ यंत सुंदर व आकषक होने के
जुलाई 2011
15
दासी के
ारा कृ णागर को अपने पास बुलवाया और
द।
उसका हाथ पकड़कर कामे छा पूरण करने क माँग क । पु
आ ानुसार
वे
कृ णागर
को
ले
गये।
परं तु
तब कृ णागर न कहाः "हे माते ! म तो आपका
राजसेवक को लगा क राजा ने आवेश म आकर आ ा
हँू और आप मेर माता ह। अतः आपको यह शोभा
द है । कह ं अनथ न हो जाय ! इसिलए कुछ सेवक पुनः
नह ं दे ता। आप माता होकर भी पु
से ऐसा पापकम
करवाना चाहती हो !' ऐसा कहकर गु से से कृ णागर वहाँ से चला
राजा के पास आये। राजा का मन प रवतन करने क अिभलाषा से वापस आये हए ु कुछ राजसेवक और अ य
नगर िनवासी अपनी आ ा वापस लेने के राजा से
गया। कृ णागर के वहां से चले जाने के बाद म भुजावंती
अनुनय- वनय करने लगे। परं तु राजा का आवेश शांत
को अपने पापकम पर प ाताप होने लगा। राजा को इस
नह ं हआ और फर से वह आ ा द । ु
बात का पता चल जायेगा, इस भय के कारण वह आ मह या करने के िलए
े रत हई। परं तु उसक दासी ु
फर राजसेवक कृ णागर को चौराहे पर ले आये।
सोने के चौरं ग (चौक ) पर बठाया और उसके हाथ पैर
ने उसे समझायाः 'राजा के आने के बाद तुम ह
बाँध दये। यह
कृ णागर के खलाफ बोलना शु
दयावश आँसू बह रहे थे। आ खर सेवक ने आ ाधीन
कर दो क उसने मेरा
य दे खकर नगरवािसय क आँख मे
सती व लूटने क कोिशश क । यहाँ मेरे सती व क र ा
होकर कृ णागर के हाथ-पैर तोड़
नह ं हो सकती। कृ णागर बुर िनयत का है , अब आपको
चौराहे पर पड़ा रहा।
जो करना है सो करो, मेर तो जीने क इ छा नह ं।' राजा के आने के बाद रानी ने सब वृ ा त इसी कार राजा को बताया जस
कार से दासी ने बताया।
राजा ने कृ णागर क ऐसी हरकत सुनकर
ोध के आवेश
म अपने मं य को उसके हाथ-पैर तोड़ने क आ ा दे
कुछ समय बाद दै वयोग से नाथ पंथ के योगी मछ नाथ अपने िश य गोरखनाथ के साथ उसी रा य म आये। वहाँ लोग के सुनी। परं तु
या आपके ब चे कुसंगती के िशकार ह?
या आपके ब चे आपका कहना नह ं मान रहे ह?
या आपके ब चे घर म अशांित पैदा कर रहे ह? ाण- ित त पूण चैत य यु
वषय म चचा
यान करके उ ह ने वा त वक रह य का
पता लगाया। दोन
ारा कृ णागर के
ने कृ णागर को चौरं ग पर दे खा,
घर प रवार म शांित एवं ब चे को कुसंगती से छुडाने हे तु ब चे के नाम से गु विध- वधान से मं
िस
उसे अपने घर म
था पत कर अ प पूजा, विध- वधान से आप वशेष लाभ
आप तो आप मं
िस
ह।
दये। कृ णागर वह ं
व कायालत
ारा शा ो
वशीकरण कवच एवं एस.एन. ड बी बनवाले एवं ा
कर सकते ह। य द
वशीकरण कवच एवं एस.एन. ड बी बनवाना चाहते ह, तो संपक इस कर सकते
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इसिलए उसका नाम 'चौरं गीनाथ' रख दया। फर राजा से
शर र कृ श हो गया।
वीकृ ित लेकर चौरं गीनाथ को गोद म उठा िलया और बद रका म गये। मछे
नाथ ने गोरखनाथ से कहाः "तुम
चौरं गी को नाथ पंथ क द
ा दो और सव
व ाओं म
इसे पारं गत करके इसके
ारा राजा को योग साम य
दखाकर रानी को दं ड दलवाओ।"
मछ नाथ और गोरखनाथ तीथाटन करते हए ु जब
याग पहँु चे तो वहाँ उ ह एक िशवमं दर के पास राजा व म का अंितम सं कार होते हए ु
नगरवािसय
दखाई पड़ा।
को अ यंत दःखी दे खकर गोरखनाथ को ु
अ यंत दयाभाव उमड़ आया और उ ह ने मछे
गोरखनाथ ने कहाः "पहले म चौरं गी का तप
ाथना क
साम य दे खग ूँ ा।" गोरखनाथ के इस वचार को मछ नाथ
नाथ से
क राजा को पुनः जी वत कर। परंतु राजा
व प म लीन हए ु थे इसिलए मछे
नाथ ने राजा
बठाकर
ने कहाः "म राजा को जी वत करके
जा को सुखी
गोरखनाथ ने कहाः 'तु हारे म तक के ऊपर जो िशला है ,
क ँ गा। अगर म ऐसा नह ं कर पाया तो
वयं दे ह
उस पर
दँ ग ू ा।"
ने
वीकृ ित द । चौरं गीनाथ
को जी वत करने क को
पवत
क
गुफा
म
टकाये रखना और म जो मं
का जप चालू रखना। अगर
वहाँ से हट तो िशला
तुम पर िगर जायेगी और तु हार इसिलए िशला पर ह
दे ता हँू उसी
मृ यु हो जायेगी।
टका कर रखना।' ऐसा कहकर
गोरखनाथ ने उसे मं ोपदे श दया और गुफा का तरह से बंद कया क अंदर कोई व य पशु सके।
ार इस
वेश न कर
फर अपने योगबल से चामु डा दे वी को
करके आ ा द
कट
क इसके िलए रोज फल लाकर रखना
ता क यह उ ह खाकर जी वत रहे । उसके बाद दोन
वीकृ ित नह ं द । परं तु गोरखनाथ
थम गोरखनाथ ने
यान के
जीवनकाल दे खा तो सचमुच वह था।
फर गु दे व को
गोरखनाथ
ारा राजा का म लीन हो चुका
दए हए ु वचन क पूित के िलए
ाण याग करने के िलए तैयार हए। तब गु ु
मछ नाथ ने कहाः ''राजा क आ मा तो म इसके शर र म
म लीन हई ु है
वेश करके 12 वष तक रहँू गा।
बाद म म लोक क याण के िलए म मेरे शर र म पुनः वेश क ँ गा। तब तक तू मेरा यह शर र सँभाल कर
तीथया ा के िलए चले गये।
चौरं गीनाथ िशला िगरने के भय से उसी पर
जमाये
रखना।" मछ नाथ ने तुरंत दे ह याग करके राजा के मृ त
बैठे थे। फल क ओर तो कभी दे खा ह नह ं वायु भ ण
शर र म
करके बैठे रहते। इस
दे खकर सभी जनता ह षत हई। फर ु
कार क
याग
योगसाधना से उनका
वेश कया। राजा उठकर बैठ गया। यह आ य जा ने अ न को
पढाई से संबंिधत सम या या आपके लडके-लडक क पढाई म अनाव यक
प से बाधा- व न या
कावटे हो रह ह? ब चो को अपने पूण
प र म एवं मेहनत का उिचत फल नह ं िमल रहा? अपने लडके-लडक क कुंडली का व तृ त अ ययन अव य करवाले और उनके व ा अ ययन म आनेवाली बार म व तार से जनकार
ा
कावट एवं दोषो के कारण एवं उन दोष के िनवारण के उपायो के
कर।
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शांत करने के िलए राजा का सोने का पुतला बनाकर
पटकना शु
अं यसं कार- विध क ।
अनुनय- वनय कया तब उसने पवता
गोरखनाथ क भट िशवमं दर क पुजा रन से हई। ु
उ ह ने उसे सब वृ ा त सुनाया और गु दे व का शर र 12 वष तक सुर
त रखने का यो य
पुजा रन ने िशवमं दर क गुफा
कया। कुछ नगरवािसय ने चौरं गीनाथ को का
योग करके
राजा को उसके लशकर स हत पवत पर पहँु चा दया और पवत को आकाश म उठाकर धरती पर पटक दया।
थान पूछा। तब
फर गोरखनाथ ने चौरं गीनाथ को आ ा द
क
दखायी। गोरखनाथ ने
वह अपने पता का चरण पश करे । चौरं गीनाथ राजा का
गु वर के शर र को गुफा म रखा। फर वे राजा से आ ा
चरण पश करने लगे कंतु राजा ने उ ह पहचाना नह ं ।
लेकर आगे तीथया ा के िलए िनकल पड़े ।
तब
12 वष बाद गोरखनाथ पुनः बद रका म पहँु चे।
वहाँ चौरं गीनाथ क एका ता, गु मं
गुफा म
वेश
कया। दे खा
का जप तथा तप या के
क
गोरखनाथ
ने
बतायाः
"तुमने
जसके
हाथ-पैर
कटवाकर चौराहे पर डलवा दया था, यह वह तु हारा पु कृ णागर अब योगी चौरं गीनाथ बन गया है ।"
भाव से
गोरखनाथ ने रानी भुजावंती का संपूण वृ ा त
चौरं गीनाथ के कटे हए ु हाथ-पैर पुनः िनकल आये ह। यह
राजा को सुनाया। राजा को अपने कृ य पर प ाताप
को सभी
गोरखनाथ ने राजा से कहाः "अब तुम तीसरा
दे खकर गोरखनाथ अ यंत
स न हए। ु
फर चौरं गीनाथ
व ाएँ िसखाकर तीथया ा करने साथ म ले
हआ। उ ह ने रानी को रा य से बाहर िनकाल ु
दया। ववाह
गये। चलते-चलते वे क ड यपुर पहँु चे। वहाँ राजा शशांगर
करो। तीसर रानी के
द
का उ रािधकार बनेगा और तु हारा नाम रोशन करे गा।"
के बाग म
क गये। गोरखनाथ ने चौरं गीनाथ तो आ ा
क राजा के सामने अपनी श चौरं गीनाथ ने वाता
का
मं
दिशत करे । से अिभमं त भ म
योग करके राजा के बाग म जोर क आँधी चला
ू -टटकर ू द । वृ ा द टट िगरने लगे, माली लोग ऊपर उठकर धरती पर िगरने लगे। इस आँधी का बाग म ह
भाव केवल
दखायी दे रहा था इसिलए लोग ने राजा के
पास समाचार पहँु चाया। राजा हाथी-घोड़े , लशकर आ द के साथ बाग म पहँु चे। चौरं गीनाथ ने वाता
के
ारा राजा
का स पूण लशकर आ द आकाश म उठाकर फर नीचे
ारा तु ह एक अ यंत गुणवान,
बु शाली और द घजीवी पु
क
ाि
होगी। वह रा य
राजा ने तीसरा ववाह कया। उससे जो पु
ा
हआ ु , समय पाकर उस पर रा य का भार स पकर राजा वन म चले गये और ई र ाि गोरखनाथ
के
साथ
के साधन म लग गये।
तीथ
क
या ा
करके
इस
कार गु कृ पा से कृ णागर को गु मं
ा
हवा गु मं ु
का िन ा से जप कर के उ ह िस या
ा
चौरं गीनाथ बद रका म म रहने लगे।
हई ु व अपना खोया हवा ु मान-समान पूनः
ा
हवा। ु
भा य ल मी द बी सुख-शा त-समृ
क
ाि के िलये भा य ल मी द बी :- ज से धन ि , ववाह योग, यापार
वृ , वशीकरण, कोट कचेर के काय, भूत ेत बाधा, मारण, स मोहन, ता चोर भय जेसी अनेक परे शािनयो से र ा होित है और घर मे सुख समृ
क बाधा, श ु भय,
क ाि होित है , भा य
ल मी द बी मे लघु
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सफ़ेद-लाल गुंजा, इ
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आ ण क गु भ
व तक.ऎन.जोशी पौरा णक कथा के अनुशार मह ष आयोदधौ य के
आयोदधौ यने दे खा क आज सबेरे आ ण
आ म म बहत ु से िश य थे। सभी िश य गु दे व मह ष
नह ं आया।
सं या के समय वषा होने लगी। मौसम को दे खते हएं ु
व ािथय
आयोदधौ य क बड़े
ेम से सेवा करते थे। एक
दन
णाम करने
मह षने दसरे व ािथय से पूछा:‘आ ण कहाँ है ?’ ू
ने कहा: ‘कल शामको आपने आ ण को
अंदाजा लगना मु कल था क अगले कुछ समय तक
खेतक मेड़ बाँधनेको भेजा था, तबसे वह लौटकर नह ं
वषा होगी या नह ,ं इसका कुछ ठ क- ठकाना नह ं था। वषा
आया।’
बहत ु जोरसे हो रह थी। मह षने सोचा क कह ं अपने
मह ष उसी समय दसरे व िथय को साथ लेकर आ ण ू
तो खेतम से सब पानी बह जायगा। पीछे फर वषा न हो
को पुकारा। आ ण से ठ ड के मारे बोला तक नह ं जाता
तो धान बना पानी के सूख जायेगा। ह षने आ ण से
था। उ ह ने कसी
कहा—‘बेटा आ ण
मह ष ने वहाँ पहँु च कर अपने आ ाकार िश यको उठाकर
ू जायगी धान के खेत क मेड़ अिधक पानी भरने से टट
!तुम खेत पर जाकर दे खो, क कह
ू से खेत का पानी बह न जाय।’ मेड़ टटने
आ ण अपने गु दे व क आ ा पाकर वषा म भीगते हए ु खेतपर चले गये। वहाँ जाकर उ हने दे खा क खेतक मेड़ एक
ू गयी है और वहाँ से बड़े थान पर टट
ू हए जोरसे पानी बाहर िनकल रहा है । आ ण ने टटे ु
थान पर िम ट रखकर मेड़ बाँधना चाहा। पानी वेग से
िनकल रहा था और वषा से िम ट भी गीली हो गयी थी, इस िलये आ ण
जतनी िम ट
मेड़ बाँधने के िलये
रखते थे, उसे पानी बहा ले जाता था। बहत ु दे र प र म ू करके भी जब आ ण मेड़ न बाँध सके तो वे उस टट मेड़के पास
वयं लेट गये। उनके शर रसे पानीका बहाव
क गया। उस
दन पूर रात आ ण पानीभरे खेतम मेड़से
सटे पड़े रहे । सद से उनका सारा शर र भी अकड़ गया, ले कन गु दे व के खेतका पानी बहने न पाये, इस वचार से वे न तो तिनक भी हले और न उ ह ने करवट बदली। इस कारण आ ण के शर रम भयंकर पीड़ा होते रहने पर भी वे चुपचाप पड़े रहे । सबेरा होने पर पूजा और हवन करके सब िश य गु दे व को
णाम करते थे। मह ष
को ढँू ढ़ने िनकल पड़े । मह ष ने खेत पर जाकर आ ण कार अपने गु दे वक को उ र दया।
दय से लगा िलया, आशीवाद दया:‘पु
सब
आ ण ! तु ह
व ाएँ अपने-आप ह आ जायँ।’ अपने गु दे व के
आशीवाद से आ ण बड़े भार व ान हो गए।
संपूण
ाण ित त 22 गेज शु म िनिमत अखं डत
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स
गु
के याग से द र ता आती ह
िचंतन जोशी, व तक.ऎन.जोशी िशवाजी के गु दे व
ी समथ रामदास के इद-िगद
राजसी और भोजन-भगत बहत ु हो गये थे। तुकारामजी क भ
सादगी यु
रहते थे।
तुकारामजी कह ं भी भजन-क तन करने जाते तो क तन करानेवाले गृ ह थ का सीरा-पूड़ , आ द भोजन हण नह ं करते थे। तुकारामजी साद -सूद रोट , तंदरू
क
भाजी और छाछ लेते। घोड़ागाड , ताँगा आ द का
उपयोग नह ं करते और पैदल चलकर जाते। उनका जीवन एक तप वी का जीवन था। तुकारामजी के कई सारे िश यो म से एक िश य व दे खा क समथ रामदास के साथ म जो लोग जाते ह वे अ छे कपड़े पहनते ह, सीरा-पूड़ आ द उ म
खार के
यंजन खाते ह। कुछ भी हो, समथ रामदास िशवाजी महाराज के गु
ह, अथात राजगु
ह। उनके यहां रहने
वाले िश य को खाने-पीने का, अमन-चमन आ द का, खूब मौज है । उनके िश य को समाज म मान-स मान भी िमलता है । हमारे गु
तुकारामजी महाराज के पास
कुछ नह ं है । मखमल के ग -त कये नह ,ं खाने-पहनने क ठ क यव था नह ं। यहाँ रहकर
या कर ?
िश य के िचतम इस
कार का िचंतन-मनन
करते-करते समथ रामदास क
म डली म जाने का
आकषण पैदा हो गया हआ। ु
िश य पहँु चा समथजी के पास और हाथ जोड़कर
ाथना क ः "महाराज ! आप मुझे अपना िश य बनाय। आपक
म डली म रहँू गा, भजन-क तन आ द क ँ गा।
आपक सेवा म रहँू गा।"
समथ जी ने पूछाः "तू पहले कहाँ रहता था?" िश य बोला: "तुकारामजी महाराज के वहाँ।" । "तुकारामजी महाराज से तूने गु मं
म तुझे कैसे मं
दँ ?ू
अगर मेरा िश य बनना है , मेरा मं तुकारामजी को मं गु मं
लेना है तो
और माला वापस दे आ। पहले
का याग कर तो म तेरा गु
बनूँ।"
समथजी ने उसको स य समझाने के िलए वापस भेज
दया। िश य तो खुश हो गया
क म अभी
तुकारामजी का याग करके आता हँू । तुकाराम जैसे सदगु
का
याग करने क कुबु
िश य को आयी ? समथजी ने उसको सबक िसखाने का िन य कया। चेला खुश होता हआ तुकारामजी के पास पहँु चाः ु
िलया है तो
"महाराज ! मुझे आपका िश य अब नह ं रहना है ।"
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20
तुकारामजी ने कहाः "मने तुझे िश य बनाने के िलए खत िलखकर बुलाया ह कहाँ था ? तू ह अपने आप आकर िश य बना था, भाई ! क ठ
है ? तू तो प थर से भी गया बीता है तो इधर तू करे गा ? खाने के िलए आया है ?"
मने कहाँ
िश य बोला:"महाराज ! वहाँ गु
पहनाई है ? तूने ह अपने हाथ से बाँधी है । मेरे गु दे व
और यहाँ आपने मुझे लटकता रखा ?"
ने जो मं
मुझे दया था वह तुझे बता दया। उसम मेरा
कुछ नह ं है ।"
तुकारामजी: "नह ं चा हए तो तोड़ दो।" चेले ने खींचकर क ठ तोड़ द । "अब आपका मं तुकारामजी ने कहा:"वह तो मेरे गु दे व आपाजी साद है । उसम मेरा कुछ नह ं है ।"
िश य बोला: "महाराज ! मुझे वह नह ं चा हए। मुझे तो दसरा गु ू
करना है ।"
तुकारामजी बोले: "अ छा, तो मं
गधा बन जाना, घोड़ा बन जाना।"
याग दे ।"
बोलकर प थर पर थूक दे । मं
का
िलए मं
का
याग
याग करने के
बोलकर प थर पर थूक दया। तब अनोखी घटना घट । प थर पर थूकते ह वह
मं
उस प थर पर अं कत हो गया। िश य तुकारामजी के यहां से वह गया समथ जी
के पास। बोलाः "महाराज ! म मं
और क ठ वापस दे
आया हँू । अब आप मुझे अपना िश य बनाओ।" समथ जी ने पूछा: "मं
समय
या हआ था ?" ु
िश य बोला: "वह मं
का
याग
कया उस
प थर पर अं कत हो गया
था।" समथजी बोले: "ऐसे गु दे व का याग करके आया जनका मं
प थर पर अं कत हो जाता है ? प थर जैसे
प थर पर मं
का
भाव पड़ा ले कन तुझ पर कोई
भाव नह ं पड़ा तो कमब त तू मेरे पास
कहते ह गु
यागने से आदमी द र
हो जाता है ।
समथजी ने सुना दयाः "तेरे जैसे गु
का दया ोह को म
िश य बनाऊँगा ? जा भाई, जा। अपना रा ता नाप।" वह तो रामदासजी के सम
कान पकड़कर उठ-
बैठ करने लगा, नाक रगड़ने लगा। रोते-रोते
ाथना करने
लगा। क णामूित
वामी
रामदास
"तुकारामजी उदार आ मा ह। वहाँ जा। मेर
हो जायगा।" उस अभागे िश य ने गु मं
हआ मं ु
व ानो के मतानुशार शा
तब
"कैसे यागूँ ?" "मं
याग कया
समथजी बोले: "तेरे जैसे लटकते ह रहते ह। अब
चा हए।"
चैत य का
का
जा, घंट बजाता रे ह। अगले ज म म तू बैल बन जाना,
िश य: " फर भी महाराज ! मुझे यह क ठ नह ं
?"
या
या लेने आया
ाथना करना। कहना अपनी गलती क
क समथ ने
कहाः ओर से
णाम कहे ह। तू
मा माँगना।"
िश य अपने गु समझ गये
ने
के पास वापस लौटा। तुकारामजी
क समथ का भेजा हआ है तो म इ कार ु
कैसे क ँ ?
बोलेः "अ छा भाई ! तू आया था, क ठ िलया था। हमने द , तूने छोड़ । फर लेने आया है तो फर दे दे ते ह। समथ ने भेजा है तो चलो ठ क है । समथ क जय हो !" वयं भगवान शंकरजी ने कहां ह:
गु
यागत ् भवे मृ युः मं
गु मं प र यागी रौरवं नरकं
यागात ् द र ता।
जेत।। ् (गु गीता)
व ानो के अनुशार गु भ
योग के अनुशार एक बार गु
कर लेने के बाद गु
याग नह ं करना चा हए। गु
का
का
याग करने से तो यह अ छा है क िश य पहले से
ह गु
न करे और संसार म सड़ता रहे, भटकता रहे ।
एक बार गु चा हए।
करके उनका
याग कभी नह ं करना
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मं जाप से शा
ान
व तक.ऎन.जोशी रामव लभशरणजी कसी संत के दशनगये।
संत ने पूछाः तू ह " या चा हए?"
रामव लभशरणः "महाराज ! भगवान इ र क भ
और शा
का
ान चा हए।"
रामव लभशरणजी ने ईमानदार से माँगा था।
रामव लभशरजी का स चाई का जीवन था। कम बोलते थे। उनके िभतर भगवान के िलए तड़प थी। संत ने पूछाः "ठ क है । बस न?"
रामव लभशरणः "जी, महाराज।" संत ने हनुमानजी का मं
दया।
रामव लभशरजी एका िच होकर पूण िन ा व त परता से मं जप कर रहे थे। मं जप करते समय हनुमानजी कट हो गये। हनुमान जी ने पूछा: " या चा हए?" "आपके दशन तो हो गये। शा
का
ान चा हए।"
हनुमानजीः "बस, इतनी सी बात? जाओ, तीन दन के अंदर तूम जतने भी
थ दे खोगे उन
सबका अथस हत अिभ ाय तु हारे दय म कट हो जायेगा।" रामव लभशरजी काशी चले गये और काशी के व
व ालय आ द के ंथ दे खे। वे बड़े भार
व ान हो गये। ज ह ने रामव लभशरजी के साथ वातालाप कया और शा - वषयक ो र कये ह वे ह लोग उ ह भली कार से जानते ह । दिनया के अ छे -अ छे व ान ु
उनका लोहा मानते ह।
रामव लभशरजी केवल मं जाप करते-करते अनु ान म सफल हए ु ।
हनुमानजी के सा ात दशन हो गये और तीन दन के अंदर जतने शा
दे खे उन शा
का
अिभ ाय उनके दय म कट हो गया।
योितष संबंिधत वशेष परामश योित व ान, अंक अनुभव के साथ कर सकते ह।
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22
एकल य क गु भ
आलोक शमा पौरा णक
कथा
के
अनुशार
एकल य नाम का एक लड़का था। भील थे।
उस काल म धनु व ा म
हर यधनु
का
हर यधनु जाित से
ोणाचायजी को महारथ
हािसल थी इस िलये उनका नाम व क ित चारो और फेली हई ु थी।
ोणाचाय जी कौरव एवं पांडव के गु
थे
इस िलये उ ह धनु व ा िशखाते थे। एकल य धनु व ा सीखने के उ े य से गु
ोणाचाय के पास गया ले कन
ोणाचाय ने कहा क वे राजकुमार के अलावा और कसी
को धनु व ा नह ं िसखा सकते।
ोणाचाय जी के मना करने के बावजुद एकल य
ने मन-ह -मन
ोणाचाय को अपना गु
इस के िलए एकल य क गु कम नह ं हई ु ।
मान िलया था।
ोणाचाय जी के
ित
ा
एकल य वहाँ से वापस घर न जाकर सीधे जंगल
म चला गया। वहाँ जाकर उसने
ोणाचाय क िम ट क
वचार आयाः ‘कु े के मुँह म चोट न लगे इस
बाण मारने क
व ा तो म भी नह ं जानता!’
अजु न ने गु
तो कहा था
क तेर
ोणाचाय से कहाः "गु दे व! आपने बराबर
कर सके ऐसा कोई भी
धनुधार नह ं होगा परं तु ऐसी अ
त ु और अनोखी व ा
तो म भी नह ं जानता।"
ोणाचाय भी वचार म पड़ गये। इस जंगल म
ऐसा कुशल धनुध र कौन होगा? आगे जाकर दे खा तो उ हे हर यधनु का पु
एकल य दखायी पड़ा।
ोणाचाय ने पूछाः "बेटा! तुमने यह
सीखी?"
व ा कहाँ से
एकल य ने कहाः "गु दे व! आपक कृ पा से ह सीखी है ।" ोणाचाय तो अजु न को वचन दे चुके थे क उसके जैसा
कोई दसरा धनुध र नह ं होगा कंतु एकल य तो अजु न से ू भी आगे बढ़ गया।
ोणाचाय ने एकल य से कहाः "मेर मूित को सामने
मूित बनायी। एकल य हररोज गु मूित का पूजन करता,
रखकर तुमने धनु व ा तो सीखी परं तु गु द
उससे
ोणाचाय ने कहाः "तु हारे दा हने हाथ का अँगूठा।"
फर उसक तरफ एकटक दे खते-दे खते
यान करता और
ेरणा लेकर धनु व ा का अ यास करता हवा ु
कार
णा?"
एकल य ने कहाः "आप जो माँग।"
धनु व ा सीखने लगा। एका ता के कारण एकल य को
एकल य ने एक पल भी वचार कये बना अपने दा हने
धनु व ा म बहत ु आगे बढ़ गया।
दया।
ेरणा िमलने लगी। इस एक बार
कार अ यास करते-करते वह
ोणाचाय धनु व ा के अ यास के िलए
हाथ का अँगूठा काट कर गु दे व के चरण म अ पत कर ोणाचाय ने कहाः "पु ! अजु न भले ह धनु व ा
पांडव और कौरव को जंगल म ले गये। उनके साथ एक
म सबसे आगे रहे
एकल य धनु व ा का अ यास कर रहा था, वहाँ वह कु ा
गुणगान होता रहे गा।" एकल य क गु भ
कु ा भी था, वह दौड़ते-दौड़ते आगे िनकल गया। जहाँ क गया। एकल य के
विच
वेष को दे खकर कु ा
भ कने लगा। एकल य ने कु े को चोट न लगे और उसका भ कना भी बंद हो जाए इस
कार उसके मुँह म
सात बाण भर दये। जब कु ा इस दशा म
ोणाचाय के
पास पहँु चा तो कु े क यह हालत दे खकर अजु न को
य क म उसको वचन दे चुका हँू
पर तु जब तक सूय, चाँद और न म सफलता के साथ ह
णा म अपना अंगूठा दे कर उनके
गु भ
,
कट कर
उसे धनु व ा
ोणाचाय जैसे
गु द
िलए आदर
रहगे, तु हारा
दया।
व ान को
दय म अपने
व ानो के मातानुशार
ा और लगनपूव क कोई भी काय करने से
अव य सफलता
ा
होती है ।
जुलाई 2011
23
ीकृ ण क गु सेवा
राकेश पंडा सह
मुखो से भी गु
क म हमा बखाण ना संभव नह ं ह।
योक गु
क म हमा अपरं पार ह। इसी िलये तो
वयं भगवान को भी जगत के क याणा हे तु जब मानव प म अवत रत होना पडता ह तो
ान
ाि
हे तु गु
क
आव य ा होती ह। पौरा णक शा ो के अनुशार
ापर युग म जब भगवान
ीकृ ण जब भूलोक पर अवत रत हएं ु । कालांतर म कंस
का वनाश होने के प यात भगवान
ीकृ ण ने शा ो
हाथ म सिमधा लेकर अपने गु म
ीकृ ण
करते
भ
हए ु
पूव क गु
भगवान
ष दशन, अ -श ा
क।
बारबताने मा
ीसांद पनी के आ म म गये। गु आ म क सेवा करने लगे।
ीकृ ण
ने
वेद-वेदांग,
व ा, धमशा
ीकृ ण न
विध- वधान से अपने गु
आ म म सेवा
उपिनषद, मीमांसा द
और राजनीित आ द अनेको व ाएं
अपनी
खर बु
के
कारण गु
के एक
से ह सब सीख िलया। व णुपुराण के अनुशार
ीकृ ण
ने 64 कलाएँ केवल64 दन म ह सीख लीं। जब व ा अ यास पूण हआ ु , तब
ीकृ ण ने गु दे व से द
णा हेतु अनुरोध कया।
ीकृ णः "गु दे व ! आ ा क जए, म आपक
या सेवा क ँ ?"
गु ः "कोई आव यकता नह ं है ।" ीकृ णः "गु दे व आपको तो कुछ नह ं चा हए, कंतु हम दये बना चैन नह ं पड़े गा। कुछ तो आ ा कर !" गु ः "अ छा जाओ, अपनी गु
माँ से पूछ लो।"
ीकृ ण गु प ी के पास गये और बोलेः "माँ ! कोई सेवा हो तो बताइये।" गु प ी जानती थीं क
ीकृ ण कोई साधारण मानव नह ं
वयं भगवान ह, अतः वे बोलीः "मेरा पु
भास
े
म
मर गया है । उसे लाकर दे दो ता क म उसे पयः पान करा सकूँ।" ीकृ ण बोले: "जो आ ा।" ीकृ ण रथ पर सवार होकर
भास
"तुमने अपनी बड़ बड़ लहर से हमारे गु पु
े
पहँु चे। समु
ने उ ह दे खकर उनक यथायो य पूजा क ।
को हर िलया था। अब उसे शी
ीकृ ण बोलेः
लौटा दो।"
समु ः "मने बालक को नह ं हरा है , मेरे भीतर शंख प से पंचजन नामक एक बड़ा दै य रहता है , िनसंदेह उसी ने आपके गु पु
का हरण कया है ।"
ीकृ ण ने उसी ण जल के भीतर घुसकर पंचजन नामक िमला। तब उसके शर र का पांचज य शंख लेकर
नह ं
ीकृ ण जल से बाहर िनकल कर यमराज क यमनी पुर म गये।
वहाँ भगवान ने उस शंख को बजाया। कथा कहती ह क शंख और वे सभी जीव वैकुंठ पहँु च गये।
दै य को मार डाला, पर उसके पेट म गु पु विन को सुनकर नारक य जीव के पाप न
हो गये
जुलाई 2011
24
यमराज ने आपक
ीकृ ण को दे खकर उनक बड़ भ
के साथ पूजा क और
ाथना करते हए ु कहाः "हे पु षो म ! म
या सेवा क ँ ?"
ीकृ णः "तु हारे दत ू कमबंधन के अनुसार हमारे गु पु
को यहाँ ले आये ह। उसे मेर आ ा से वापस दे दो।"
'जो आ ा' कहकर यमराज उस बालक को ले आये। ीकृ ण ने गु पु
को, जस
प म वह मरा था उसी
पम पूनः उसका शर र बनाकर, र ा द के साथ गु चरण म
अ पत कर दया। ीकृ ण ने कहाः"गु दे व ! और जो कुछ भी आप चाह, आ ा कर।" गु दे वः "व स ! तुमने अपनी गु द
णा भली
कार से संप न कर द । तु हारे जैसे िश य से गु
क कौन-सी
कामना अवशेष रह सकती है ? व स ! अब तुम अपने घर जाओ। गु दे व ने ारा अ जत
ीकृ ण को आिशवाद दे ते हवे ु कहां व स ! तु हार क ित
ोताओं को प व
करने वाली होगी और तु हारे
ान व व ा हर समय उप थत और नवीन बनी रहकर सभीलोक म तु हारे अभी
फल को दे ने म
समथ ह ।"
मं
िस
फ टक
ी यं
" ी यं " सबसे मह वपूण एवं श
शाली यं है । " ी यं " को यं राज कहा जाता है यो क यह अ य त शुभ
फ़लदयी यं है । जो न केवल दसरे ू य
ो से अिधक से अिधक लाभ दे ने मे समथ है एवं संसार के हर य
फायदे मंद सा बत होता है । पूण ाण- ित त एवं पूण चैत य यु
" ी यं " जस य
के घर मे होता है उसके
िलये " ी यं " अ य त फ़लदायी िस होता है उसके दशन मा से अन-िगनत लाभ एवं सुख क " ी यं " मे समाई अ ितय एवं अ
यश
के िलए
ाि होित है ।
मनु य क सम त शुभ इ छाओं को पूरा करने मे समथ होित है ।
ज से उसका जीवन से हताशा और िनराशा दरू होकर वह मनु य असफ़लता से सफ़लता क और िनर तर गित
करने लगता है एवं उसे जीवन मे सम त भौितक सुखो क ाि होित है । " ी यं " मनु य जीवन म उ प न होने वाली सम या-बाधा एवं नकारा मक उजा को दरू कर सकार मक उजा का िनमाण करने मे समथ है । " ी यं " क
थापन से घर या यापार के थान पर था पत करने से वा तु दोष य वा तु से स ब धत परे शािन मे युनता
आित है व सुख-समृ , शांित एवं ऐ य क ि होती है । गु
व कायालय मे " ी यं " 12
ाम से 75
ाम तक क साइज मे उ ल ध है
मू य:- ित
ाम Rs. 8.20 से Rs.28.00
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जुलाई 2011
25
दे व ष नारद ने एक म लाह को अपना गु
बनाया
व तक.ऎन.जोशी पौरा णक कथा के अनुशार एक बार दे व ष नारद ने
दे खा तो एक आदमी शायद
वैकु ठ म
म जलती अगरब ी है । नारद जी ने मन ह मन उसको
वेश
कया।
वेश करते ह भगवान
व णु
नान करके आ रहा है । हाथ
और ल मी जी "दे व ष नारद" का खूब आदर-स कार
गु
करने लगे।
माछ मार है , हं सक है । (म लाह के
भगवान
ह आये थे।) नारदजी ने अपना संक प बताते हएं ु कहां:
व णु ने नारदजी का हाथ पकड़ा और आराम
करने को कहा। एक तरफ भगवान व णु नारद जी क
मान िलया। पास पहँु चे तो पता चला
"हे म लाह ! मने आपको गु
सेवा कर रहे ह और दसर तरफ ल मी जी पंखा हाँक ू
म लाह ने कहाः "गु
रह ह।
नह ं जानते गु
नारद जी कहते ह- "भगवान ! अब छोड़ो। यह लीला
गु
कस बात क है ?
अ धकार।
नाथ ! यह
या राज समझाने क यु
है ? आप मेर
का मतलब
का मतलब समझाते हे तु दे व ष नारद बोले: "गु माने माने
काश।
अ धकार को हटाकर
ान पी
अथात ्:जो
आप मेरे आ त रक जीवन के गु
भोगे जाते ह, वैकु ठ म पु य का फल भोगा जाता है
म लाह के पैर पकड़ िलये।
ले कन मृ युलोक म सदगु
म लाह बोला: "छोड़ो मुझे !"
सदा के िलए मु
हो जाता है ।
मालूम होता है , तू
नारद: "आप मुझे िश य के
कसी गु
क
शरण
हण करके
अ ान पी
काश कर द उ ह गु
"नारद ! तू गु ओं के लोक से आया है । यमपुर म पाप होती है और जीव
या होता है ? हम
या होता है ?"
कहा जाता है ।
ाि
प म आ दनारायण
मान िलया है ।"
सेवा कर रहे ह और माता जी पंखा हाँक रह ह ?"
क
ह।" नारदजी ने
प म
वीकार कर लो
गु दे व!"
आया है ।"
म लाह ने पीछा छुड़ाने के िलए कहाः "अ छा,
नारदजी को अपनी भूल का अहसास कराने के िलए
है , जा।"
भगवान ये सब
नारदजी आये वैकु ठ म।
यास कर रहे थे।
नारद जी ने कहाः " भु ! म भ (िनगुरा अथात जसका कोई गु गु
या दे ते ह ? गु
य
भगवान ने कहाः "नारद ! अब तू िनगुरा तो नह ं है ?"
या होता है आप
"कैसे ह तेरे गु
यह बताने क कृ पा करो भगवान !" "गु
या दे ते ह..... गु
का माहा
वीकार
हँू ले कन िनगुरा
नह )ं हँू ।
का माहा
क वह
"नह ं भगवान ! म गु ?"
करके आया हँू ।"
"जरा धोखा खा गया म। वह कमब त म लाह िमल य
या होता है यह
गया। अब
या कर ?
जानना हो तो गु ओं के पास जाओ। यह वैकु ठ है ।
आपक आ ा मानी। उसी को गु
"नारद ! जा, तू कसी गु
नारद क
बात से भगवान नाराज हो गये और बोलेः
"तूने गु
श द का अपमान कया है ।"जा, तुझे चौरासी
क शरण ले। बाद म इधर
आ।" दे व ष नारद गु सोचा क मुझे म गु
मानूँगा।
क
खोज करने मृ युलोक म आये।
बना िलया।"
लाख ज म तक माता के गभ म नक भोगना पड़े गा।"
भातकाल म जो सव थम िमलेगा उसको
नारद रोये, छटपटाये। भगवान ने कहाः "इसका इलाज
ातःकाल म स रता के तीर पर गये।
यहाँ नह ं है । यह तो पु य का फल भोगने क जगह है ।
जुलाई 2011
26
नक पाप का फल भोगने क जगह है । कम से छूटने क
उसका न शा तो बना दो ! जरा दखा तो दो नाथ !
जगह तो वह ं है । तू जा उन गु ओं के पास मृ युलोक
कैसी होती है चौरासी ?
म।"
भगवान ने न शा बना
नारद आये मृ युलोक म ।
लोटने-पोटने लगे।
उस गु
"अरे ! यह
बनाये हए ु म लाह के पैर पकड़े ः "गु दे व !
उपाय बताओ। चौरासी के च कर से छूटने का उपाय बताओ।"
या करते हो नारद ?"
"भगवान ! वह चौरासी भी आपक बनाई हई ु है और यह
चौरासी भी आपक ह बनायी हई ु है । म इसी म च कर
गु जी ने पूर बात जान ली और कुछ संकेत दये। नारद
दया। नारद उसी न शे म
फर वैकु ठ म पहँु चे। भगवान को कहाः "म
चौरासी लाख योिनयाँ तो भोग लूँगा ले कन कृ पा करके
राशी र
लगाकर अपनी चौरासी पूर कर रहा हँू ।"
भगवान ने कहाः "महापु ष (गु ) के नु खे भी अनोखे होते ह। यह यु
भी तुझे उ ह ं से िमली नारद !
एवं उपर वशेष यं हमार यहां सभी
कार के यं
चां द-ता बे म आपक
सोने-
आव य ा के
अनुशार कसी भी भाषा/धम के यं ो को
आपक
अनुशार सभी साईज एवं मू य व
२२
आव यक गेज
अखं डत बनाने क
वािल ट के
उपल ध ह।
असली नवर
एवं उपर
भी उपल ध है ।
हमारे यहां सभी
कार के र
एवं उपर
बधु/बहन व र
यवसाय से जुडे लोगो के िलये वशेष मू य पर र
यापार मू य पर उपल ध ह।
शु
डजाईन ता बे
के म
वशेष सु वधाएं
योितष काय से जुडे़ व अ य साम ीया व
अ य सु वधाएं उपल ध ह।
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ीम
आ
शंकराचाय सदगु
व तक.ऎन.जोशी एक संत नमदा कनारे ओंकारे र तीथ म एका त गुफा म आ मशा त व पर यानम न थे। उनके
परमा मा क शा त म
यान क चचा दरू-दरू तक चार
व प का बोध हो गया है ।
नमदा कनारे तप करने वाले अ य तप वी
बालक
बोला:
"मने
नाम
सुना
है
भगवान
गो व दपादाचाय का। वे पू यपाद आचाय कहाँ रहते ह?"
और फेली हई ु थी। वहं संत भगवान गो व दपादाचाय थे। ज होने अपने
या ा करके शंकर नाम का बालक पहँु चा।
ी
सं यािसय
ने बताया
कः "हम भी उनके दशन का
इ तजार कर रहे है । उनक समािध खुल,े और उनक अमृ त बरसाने वाली िनगाह हम पर पड़, उनके
गो व दपादाचाय के दशन करने हे तु उसी गुफा के िनकट
के वचनो से हमारे कान प व
कु टया नाकर रहने लगे। उनका कहना था क
भी नमदा कनारे अपनी कु टयाएँ बनाकर बैठे ह।"
इसी
थान पर वे रहते-रहते बूढ़े हो गये ले कन अभी तक
ानुभव
ह इसी इ तजार म हम
ी
सं यािसय ने उस बालक को िनहारा। वह बालक
व दपादाचायजी क समािध नह ं खुली। इसी वषय पर
बड़ा तेज वी लग रहा था। इस बाल सं यासी का स यक्
अ य योगी, संत- नयािस उप थत लोग चचा कर रहे
प रचय पाकर उनका व मय बढ़ गया। कतनी दरू केरल
थे। तने म उसी
दे श ! और यह ब चा वहाँ से अकेला ह आया है
थान पर द
ण भारत के केरल
ांत
से पैदल चलते हए ु दो मह ने से भी अिधक समय क
क आश म। जब उ ह ने दे खा क इस अ प अव था म
ादश महा यं यं
को अित
ािचन एवं दलभ यं ो के संकलन से हमारे वष के अनुसंधान ु
सह ा ी ल मी आब यं
मनोवांिछत काय िस
पूण पौ ष ाि कामदे व यं
रा य बाधा िनवृ
.
ारा बनाया गया ह।
परम दलभ वशीकरण यं , ु भा योदय यं
आक मक धन ाि यं
यं
यं
रोग िनवृ
यं
गृ ह थ सुख यं
साधना िस
शी
श ु दमन यं
उपरो
ववाह संप न गौर अनंग यं
सभी यं ो को ादश महा यं के प म शा ो
कये जाते ह। जसे
ीगु
विध- वधान से मं
िस
यं पूण
थापीत कर बना कसी पूजा अचना- विध वधान वशेष लाभ
ाण ित त एवं चैत य यु ा
कर सकते ह।
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ह वह भा य समेत सभी शा
भगवान गो व दपादाचाय का दशन करते ह शंकर का
म पारं गत है और इसके
रोम-रोम पुल कत हो उठा। उसका मन एक
फल व प उसके मन म वैरा य उ प न हो गया है तो उन सबका मन
अिनवचनीय द य आन द से भर उठा। िनर तर आखो
स नता से भर गया।
से बहते अ ुजल से उनका व ः
वहां उप थत कसी ने पूछाः " या नाम है बेटे ?" ओज वी वाणी और ती
थल ला वत हो गया।
उसक या ा का प र म साथक हो गया और उसक सार
"मेरा नाम शंकर है ।" ब चे क
कार से
थकान पलभर म ह उतर गयी।
ज ासा
दे खकर उ ह ने समािध थ बैठे महायोगी गु वय
करब
ी
होकर बह बालक
तुित करने लगाः
इस सु दर भगवान क
गो व दपादाचाय के बारे म कुछ बात कह । तो वह
तुित से गुफा गु ज
उठ । तब अ य सं यासी भी गुफा म आ इक ठे हए। ु
िनद ष बालक भगवान गो व दपादाचाय के दशन के िलए
शंकर तब तक
तड़प उठा। सं यािसय ने कहाः "वह दरू जो गुफा दखाई दे रह है
िच
पड़े गा इसिलए यह द पक ले जा।"
का
तवगान म ह म न थे। व मय वमु ध
से सबने दे खा
क भगवान गो व दपाद क
वह ाण
गुफा म
दखाई नह ं
िन ल िन प द दे ह बार-बार क पत हो रह है।
द या जलाकर उस बालक ने गुफा म
वेश कया।
द घ िनः ास छोड़कर च ु खोले कये।
उसम वे समािध थ ह। अ धेर
णाम
वशाल-भाल- दे शवाले, शा त मु ा, ल बी जटा और कृ श वचा
योितमय था।
नवर शा ज ड़त
वचन के अनुसार शु ी यं
कहलाता ह। सभी र ो को उसके िन
को अनंत ए य एवं ल मी क नव ह को
ी यं
ाि
होती ह।
के साथ लगाने से
गले म होने के कारण यं
पव
से यिथत कराने के िलए यौिगक
हो
ी यं
कयाओं म िनयु
ी यं के चार और य द नवर
थान पर जड़ कर लॉकेट के
जड़वा ने पर यह नवर प म धारण करने से य
को एसा आभास होता ह जैसे मां ल मी उसके साथ ह।
नान करते समय इस यं
पर
य
पर
भाव नह ं होता ह।
पश कर जो जल बंद ु शर र को
होता ह। इस िलये इसे सबसे तेज वी एवं फलदािय कहजाता ह। जैसे कार ल मी
शा ो
ज ड़त
कार के नवर
त
य
अमृ त से उ म कोई औषिध नह ं, उसी वचन ह। इस
प
ह क अशुभ दशा का धारण करने वाले
रहता ह एवं
लगते ह, वह गंगा जल के समान प व
वीण सं यासीगण योगीराज को समािध से स पूण
ज ड़त
सुवण या रजत म िनिमत
कया। दसरे सं यासी भी योगी र के चरण म ू
णत हए। आनंद विन से गुफा गुं जत हो उठ । तब ु
दे हवाले फर भी द य तेज से आलो कत एक महापु ष सूख चुक थी फर भी उनका शर र
णभर म ह उ ह ने एक
शंकर ने गो व दपादाचाय भगवान को सा ांग
व मयता से वमु ध होकर दे खा तो एक अित द घकाय,
प ासन म समािध थ बैठे थे। उनके शर र क
प दन दखाई दे ने लगा।
ाि
ी यं
के िलये गु
ी यं
व कायालय
से उ म कोई यं ारा शुभ मुहू त म
संसार म नह ं ह एसा ाण
ित त करके
बनावाए जाते ह। GURUTVA KARYALAY 92/3. BANK COLONY, BRAHMESHWAR PATNA, BHUBNESWAR-751018, (ORISSA) Call us: 91 + 9338213418, 91+ 9238328785 Mail Us: gurutva.karyalay@gmail.com, gurutva_karyalay@yahoo.in,
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गये।
म से योगीराज का मन जीवभूिम पर उतर आया।
फु टत हो उठ । उनके मुखम डल पर अनुपम लाव य
यथा समय आसन का प र याग कर वे गुफा से बाहर
और
िनकले।
गित अब समािध क ओर थी। बलपूव क उनके मन को योगीराज क सह
वष क समािध एक बालक
सं यासी के आने से छूट गई है , यह बात चारौ दशा म फैल गयी। दरू क
तगित से ु
कर
म प रणत कर
गो व दापादाचाय
ने
िशवावतार शंकर है ,
दया। शंकर का प रचय
ा
जान
वह
िलया
जसे अ ै त
करने के िलए उ होने सह अव थान सू
वष
क
यह
िन वक प भूिम पर अिध ढ़ हो गया। गो व दपादाचाय ने दे खा और िश ा अब समा
है । िश य उस
थित म पहंू च गया है जहाँ
ित त होने से
दय
थ छ
अथातः यह परावर
हण कर िलया और उसे योगा द क
ु ित
आ द सं कार प
दय
ते सवसंशयाः। ा का अ व ा
थ-समूह न
हो जाता है एवं
य होने लगता है ।
शंकर अब उसी दलभ अव था म ु वषा
ऋतु
का
े परावरे ।।
होने पर
( ार धिभ न) कमरािश का ीगो व दपादाचायजी ने शंकर को
ा
कहती है ः
ीय ते चा य कमा ण त मन ्
व ा का
साधना
हो चुक
तक समािध म
चार करे गा। प म
क शंकर क
िभ ते
कया और अब यह शंकर वेद- यास रिचत
एक शुभ दन
मशः उनका मन
व ा का उपदे श
पर भा य िलखकर जगत म अ ै त
िश य
जीवभूिम पर रखना पड़ता था।
थान से यितवर के दशन
आकां ा से लोगो ने आकर ओंकारनाथ को एक
तीथ े
वग य हास झलकने लगा। उनके मन क सहज
ित त हो गये।
आगमन
हआ। ु
नमदा-वे त
होती रह । नमदा का जल
मशः बढ़ने
कुछ
दे ने
िश ा दे ने लगे। शंकर के साथ-साथ अ या य सं यािसय
ओंकारनाथ क शोभा अनुपम हो गयी। कुछ दन तक
ने भी उनका िश य व
अ वराम
हण
कया।
थम वष उ ह ने
शंकर को हठयोग क िश ा द । वष पूरा होने के पूव ह
लगा।
शंकर ने हठयोग म पूण िस
ामवािसय ने पालतू पशुओं समेत
म शंकर राजयोग म िस क
िस
ाि
अलौ कक
श
ा
कर ली।
तीय वष
हो गये। हठयोग और राजयोग
करने के फल व प शंकर बहत बड़ ु के
अिधकार
दरदशन , सू म दे ह से ू लिघमा, दे हा तर म
बन
गये।
दरू वण,
योममाग म गमन, अ णमा,
वेश एवं सव प र इ छामृ यु श
सब
िनरापद उ च
थे। बाढ़ का जल बढ़ते-बढ़ते गुफा के सं यासीगण गु दे व का जीवन
ानयोग क िश ा दे ने
लगे।
यान, धारणा, समािध
से दरू कर उ हे
कृ त रह य िसखा दे ने के बाद उ ह ने अपने िश य
ित त कर दया। यानबल
से
समािध थ
होकर
वचरण करने लगा। उनक दे ह म
लगा। यागकर
ार तक आ पहँु चा।
वप न दे खकर बहत ु
िलये सभी
य
वेश रोकना
य क वहाँ गु दे व समािध थ थे। समािध कसी िनरापद हो उठे । यह
थान पर ले चलने के
य ता दे खकर शंकर कह ं
से िम ट का एक कुंभ ले आये और उसे गुफा के
ार
तर म
ढ़
पर रख
हर
ण
करने क कोई आव यकता नह ं। बाढ़ का जल इस कुंभ
द यानुभूित से शंकर का मन अब सदै व एक अती रा य म
ाम का
शं कत होने लगे। गुफा म बाढ़ के जल का
अपने िश य को वशेष य पूव क
को साधनकमानुसार अपरो नुभूित के उ च
दखाई
गु दे व कुछ दन से गुफा म समािध थ हए ु बैठे
आव याक था
का
ह
थान म आ य ले िलया।
के वे अिधकार हो गये। तृ तीय वष म गो व दपादाचाय वण, मनन, िन द यासन,
जलमय
य योित
दया और अ य सं यािसय को आ ासन दे ते
हए ु बोलेः "आप िच तत न ह । गु दे व क समािध भंग म
व
होते ह
हो सकेगा।"
ितहत हो जायेगा, गुफा म
व
नह ं
जुलाई 2011
30
सबको शंकर का यह काय बाल सुलभ खेल जैसा
ज ासा है ?"
लगा क तु सभी ने व मत होकर दे खा क जल कुंभ
शंकर ने आन दत हो गु दे व को
म
"भगवन ! आपक कृ पा से अब मेरे िलए
वेश करते ह
ितहत एवं
हो गया है । गुफा अब
िनरापद हो गई है । शंकर क यह अलौ कक श
दे खकर
ा
सभी अवाक् रह गये।
काय क
बात सुनी तो
गौड़पादचाय के
कार सह धारा नमदा का
एक कुंभ म अव
कर
यासकृ त आपात
सू
दया है उसी
कार तुम
से उ चतम आसन पर
ित त करने म सफल ह गे तथा अ य धम सावभौम अ ै त
ान के अ तभु
ऐसा ह
अ यथा
वष से तु हार
ान
ा
करते ह दे ह याग कर मु
लेता। अब मेरा काय समा समािधयोग से अ वमु दशन
कर दोगे।
े ा
ती ा कर रहा था। लाभ कर
हो गया है । अब म
व व प म लीन हो जाऊँगा। तुम अब म जाओ। वहाँ तु ह भवािनपित शंकर के
ह गे। वे तु ह जस
कार का आदे श दगे उसी
कार तुम करना।" शंकर ने
ीगु दे व का आदे श िशरोधाय
कया।
ीमुख से सुना था। इन
तदन तर एक शुभ
दन
काय के िलए ह तु हारा ज म हआ है । म तु ह ु
िश य को आशीवाद
दान कर समािध योग से दे ह याग
कर
ने यथाचार गु दे व क
करने म सफल ह गे।"
नमदाजल म योगीजनोिचत सं कार कया।
आशीवाद दे ता हँू क तुम सम िल पब
को
ान का उपदे श करने के िलए म गु दे व क
आ ा से सह
गु दे व भगवान गौड़पादाचाय ने अपने
गु दे व शुकदे व जी महाराज के विश
ोत
पर भा यरचना कर अ ै त वेदा त को
वरोधी सब धममत
ी गो व दपादाचाय ने शा त
वर म कहाः "व स ! वै दक धम-सं थापन के िलए अ ैत
ीमुख से मने सुना था क
तुम आओगे और जस
क म समा हत िच
दे वािधदे व शंकर के अंश से तु हारा ज म हआ है । तु ह ु
"व स ! तु ह ं शंकर के अंश से उदभूत लोक-शंकर हो। अपने गु
कुछ दे र मौर रहकर
स न होकर उसके
म तक पर हाथ रखकर कहाः
अब आप अनुमित द
होकर िचरिनवाण लाभ क ँ ।"
समािध से िनकल गये। उ ह ने िश य के मुख से शंकर के उ
ात य अथवा
य कुछ भी नह ं रहा। आपने मुझे पूण मनोरथ कर
दया है ।
मशः बाढ़ शांत हो गई। गो व दपादाचाय भी
णाम करके कहाः
वेदाथ
सू
भा य म
ी गो व दपादाचाय ने जान िलया क शंकर क िश ा समा
दया। िश य
ीगो व दपादाचाय ने सभी दे ह का
गु दे व क आ ा के अनुसार शंकर पैदल चलते-
हो गई है । उनका काय भी स पूण हो गया
चलते काशी आये। वहाँ काशी व नाथ के दशन कये।
है । एक दन उ ह ने शंकर को अपने िनकट बुलाकर पूछा
भगवान वेद यास का
कः व स !
या तु हारे मन म
स दे ह है ?
या तुम भीतर कसी
दये। अपनी क हई ु साधना, वेदा त के अ यास और
कसी
कार का कोई
कार अपूणता का
अनुभव कर रहे हो ? अथवा तु ह अब
मं
या कोई
िस
सदगु
'भगवान
मरण कया तो उ ह ने भी दशन
क कृ पा से अपने िशव व प म जगे हए ु शंकर ीम
दलभ साम ी ु
आ
शंकराचाय' हो गये।
ह था जोड - Rs- 370
घोडे क नाल- Rs.351
माया जाल- Rs- 251
िसयार िसंगी- Rs- 370
द
इ
ब ली नाल- Rs- 370
मोित शंख- Rs- 550
णावत शंख- Rs- 550
जाल- Rs- 251
धन वृ
हक क सेट Rs-251
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31
ी गु
तो म ्
भावाथ: माता पावती ने कहा हे दयािनिध शंभु ! गु मं के दे वता
पावती उवाच गु म
य
वशेष तु
दे व य महादे व
धम य
त य
एव
वा
।
त
वद व
दयािनधे
॥
!
महादे व उवाच जीवा मनं
परमा मनं
दानं
यानं
योगो
ानम।्
उ कल काशीगंगामरणं न गुरोरिधकं न गुरोरिधकं॥१॥ ाणं
दे हं
गेहं
भायािम ं पु ं वान
थं
रा यं िम ं
वग
भोगं
न
गुरोरिधकं
यित वधधम
पारमहं यं
योगं
न
मु
म।्
गुरोरिधकं॥२॥ िभ ुकच रतम।्
साधोः सेवां बहसु ु खभु ं न गुरोरिधकं न गुरोरिधकं॥३॥ व णो
भ ं
व णो रव
पूजनर ं
वै णवसेवां
मात र
भ
म।्
पतृ सेवनयोगं न गुरोरिधकं न गुरोरिधकं॥४॥
याहारं
चे
ययजनं
इ े पूजा जप तपभ
ाणायां
यास वधानम।्
न गुरोरिधकं न गुरोरिधकं॥५॥
काली दगा कमला भुवना ु
पुरा भीमा बगला पूणा।
ीमातंगी धूमा तारा न गुरोरिधकं न गुरोरिधकं॥६॥ मा
यं
कौम
ीवाराहं
नरह र पं
वामनच रतम।्
नरनारायण च रतं योगं न गुरोरिधकं न गुरोरिधकं॥७॥ ीभृ गुदेवं
ीरघुनाथं
ीयदनाथं ु
बौ ं
क
यम।्
अवतारा दश वेद वधानं न गुरोरिधकं न गुरोरिधकं॥८॥ गंगा
काशी
का ची
ारा
मायाऽयो याऽव ती
मथुरा।
यमुना रे वा पु करतीथ न गुरोरिधकं न गुरोरिधकं॥९॥ गोकुलगमनं
गोपुररमणं
ीवृ दावन-मधुपुर-रटनम।्
एतत ् सव सु द र ! मातन गुरोरिधकं न गुरोरिधकं॥१०॥ तुलसीसेवा
ह रहरभ
कमपरमिधकं कृ णेभ
ः
ः।
न गुरोरिधकं न गुरोरिधकं॥११॥
एतत ् तो म ् पठित च िन यं मो ा डा तय -य
गंगासागर-संगममु
ानी सोऽ प च ध यम ् ।
येयं न गुरोरिधकं न गुरोरिधकं॥१२॥
|| वृ हद व ान परमे रतं े
पुरािशवसंवादे
ीगुरोः तो म ् ||
अथात ् गु दे व एवं उनका आचारा द धम या है - इस बारे व तार से बताये।
महादे व ने कहा जीवा मा-परमा मा का
ान, दान,
गु दे व से बढ़कर नह ं है , गु दे व से बढ़कर नह ं ह॥१॥
ाण, शर र,
यान, योग पुर , काशी या गंगा तट पर मृ यु - इन सबम से कुछ भी
गृ ह, रा य, वग, भोग, योग, मु
, प ी, इ , पु , िम - इन सबम
से कुछ भी गु दे व से बढ़कर नह ं है , गु दे व से बढ़कर नह ं ह॥२॥ वान
थ धम, यित वषयक धम, परमहं स के धम, िभ ुक अथात ्
याचक के धम - इन सबम से कुछ भी गु दे व से बढ़कर नह ं है , गु दे व से बढ़कर नह ं ह॥३॥ भगवान व णु क भ म अनुर
, व णु भ
क सेवा, माता क भ
,
, उनके पूजन
ी व णु ह पता
प म ह, इस कार क पता सेवा - इन सबम से कुछ भी गु दे व से
बढ़कर नह ं है , गु दे व से बढ़कर नह ं ह॥४॥ का दमन,
याहार और इ
य
ाणायाम, यास- व यास का वधान, इ दे व क पूजा,
मं जप, तप या व भ
- इन सबम से कुछ भी गु दे व से बढ़कर
नह ं है , गु दे व से बढ़कर नह ं ह॥५॥ काली, दगा ु , ल मी, भुवने
र,
पुरासु दर , भीमा, बगलामुखी (पूणा), मातंगी, धूमावती व तारा ये
सभी मातृ श
याँ भी गु दे व से बढ़कर नह ं है , गु दे व से बढ़कर नह ं
ह॥६॥ भगवान के म
य, कूम, वाराह, नरिसंह, वामन, नर-
नारायण आ द अवतार, उनक लीलाएँ, च र
एवं तप आ द भी
गु दे व से बढ़कर नह ं है , गु दे व से बढ़कर नह ं ह॥७॥ भगवान के ी भृग,ु राम, कृ ण, बु
तथा क क आ द वेद म व णत दस
अवतार गु दे व से बढ़कर नह ं है , गु दे व से बढ़कर नह ं ह॥८॥ गंगा, यमुना, रे वा आ द प व न दयाँ , काशी, कांची, पुर , ह र ार, ा रका, उ जियनी, मथुरा, अयो या आ द प व पु रयाँ व पु करा द तीथ भी गु दे व से बढ़कर नह ं है , गु दे व से बढ़कर नह ं ह॥९॥ हे सु दर ! हे माते र ! गोकुल या ा, गौशालाओं म
मण एवं
ी वृ दावन व
मधुपुर आ द शुभ नाम का रटन - ये सब भी गु दे व से बढ़कर नह ं है ,गु दे व से बढ़कर नह ं ह॥१०॥ तुलसी क सेवा, व णु व िशव क भ
, गंगा सागर के संगम पर दे ह याग और अिधक
परा पर भगवान
ी कृ ण क भ
या कहँू
भी गु दे व से बढ़कर नह ं है ,
गु दे व से बढ़कर नह ं ह॥११॥ इस तो का जो िन य पाठ करता है वह आ म ान एवं मो
दोन को पाकर ध य हो जाता है | िन
त
ह सम त
ा ड मे जस- जसका भी यान कया जाता है , उनम
उपरो
तो वृहद व ान परमे रतं मं
से कुछ भी गु दे व से बढ़कर नह ं है , गु दे व से बढ़कर नह ं ह॥१२॥ गु
व णत ह।
पुरा-िशव संवाद म
जुलाई 2011
32
ह तरे खा
ान
िचंतन जोशी भाग:1 ह तरे खा शा
ाचीन युग म भारत से होती हई ु ह तरे खा व ा
अथात हथेली को पढ़कर उनके
ल ण का वणन और भ व य बताने क एक कला ह। जसे ह तरे खा अ ययन या ह तरे खा शा
भी कहा
जाता ह। इस कला का
योग आज कई सां कृ ितक म
व वधताओं के साथ व
के विभ न
थानो म दे खा
का चीन, ित बत, िम , फारस और यूरोप के अ य कई दे श म
सार होने का व ानो का मत ह।
भारतीय ऋषीय ने जब मानव दे ह का शू म अ ययन कया तो मानव के चेहरे पर उसक आँख, नाक, कान, व शर र के विभ न अंगो का अवलोकन कर मानव क
जाता ह। ह तरे खा पूरातन व ा होने के कारण साधारण तौर पर
प से समझ कर उसका और
ह तरे खा ान के
हम
शा
ा
पूण प
का
प म
साथ-साथ
यद
व ानो
ािचन ऋषी-मुिनय के
भाव
के
प म हमे
विभ न
दान कया ह।
ान का अमू य सं ह एक कर िलया था
जसक सराहना आज भी व
म फेली हई ु ह। जसका
ान समय के साथ अ य दे श म पहँु च गयां। व ानो
के मतानुशार ह तरे खा से स ब धत अभी तक जतने भी
ाचीन
ंथ
शा
सबसे
ाचीन
ा
हवे ु ह उनम वेद और सामु क
ंथ माने जाते है ।
क
याशीलता
के
बारे
म
वचार
कर,
तो
के बीच
जतने भी यव था
म और कह ं भी नह ं होते ह। मनु य
हजारो वष पूव भारत के मनी षय ने ह तरे खा से संबिं धत
मानव
नायु होते ह, उतने शार रक
ान के
ह तरे खा शा
करके
थती का अवलोकन
और उसके हाथ
ने
ान व अनुभवो को िमलाकर
ा
वै ािनक के अनुशार मानव म त क
ंथ
साथ अपने
जानकार
और उसके पूरे शर र पर पडने वाले
से
दान कया। समय के विभ न
क
ह तरे खा व ान कहा जाने लगा।
यवहा रक
हो इस उ े य से
आद
करने म स म रहे । इस कारण उसे
व ान को
गहन अ ययन मनन व िचंतन कया
कार मानव क हथेली पर
उसक वा त वक
ने ह त व ान क खोज क थी पूण
थी। इसी रं ग
जस भारतीय महाऋ षय ने ह तरे खा
ात करने क कला िशखली
बनने वाली विभ न रे खा, पवत, िच ,
उसे व ान भी माना जाता ह।
उ ह
थित को
जब हाथ से कोई काय करता है तो उसका
भाव म त क पडता है । मनु य
क
काय
शैली,
जीवन
आनुवांिशक ल णो के अनुशार िभ न-िभ न वभाव, वृ ,
कृ ित और मानिसक
शैली
व
कार के
थित के य
य
के हाथ म िभ नता होती ह। व ानो का मत ह क हाथ क रे खाएँ एक अिमट स य है जो य और उसक
कृ ित को
प
युग म भी बताने म स म है ।
के जीवन
प से आज के आधुिनक
जुलाई 2011
33
ािभषेक से कामनापूित
िचंतन जोशी धम शा
म व वध कामनाओं क पूित हे तु
ािभषेक के साथ िनधा रत साम ी या
य के
योग से काय क िस
होती ह। िशविलंग पर जल से
ािभषेक करने पर वषा होती ह।
िशविलंग पर कुशोदक से िशविलंग पर दह से
ािभषेक करने से असा य रोग को शांत होते ह।
ािभषेक करने से भूिम-भवन-वाहन
िशविलंग पर ग ने के रस से
ािभषेक करने से ल मी
िशविलंग पर शहद एवं घी के िम ण से िशविलंग पर तीथ के जल से िशविलंग पर दध ू से रहे हो, काकव
ाि
ा
होते ह।
होती ह।
ािभषेक करने से ल मी
ािभषेक करने से मो
ािभषेक करने से संतान क
माग ाि
ाि
व धन वृ
होती ह।
श त होता ह।
होती ह। जस दं प
को संतान
ाि
या दोष अथात एक संतान के प यात दसर संतान न होना अथवा मृ तव सा दोष अथात ू
संतान पैदा होते मर जाती हो उनह गाय के दध ू से िशविलंग पर शीतल जल से िशविलंग पर दध ू से
ािभषेक करने से
ािभषेक करने से
ािभषेक करना चा हए।
वर क शांित होती ह।
मेह रोग (मधुमेह) रोग क शांित होती ह।
िशविलंग पर गाय के दध ू एवं श कर के िम ण से िशविलंग पर सरस के तेल से
ािभषेक करने से जडबु
ािभषेक करने से श ु पर वजय
ा
य
व ान बन जाता ह।
होती ह।
िशविलंग पर शहद से
ािभषेक करने से य मा अथात तपे दक रोग क िनवृ
िशविलंग पर शहद से
ािभषेक करने से बडे से बडे पातक अथात पाप का नाश होता ह।
िशविलंग पर गाय के घी से
शा ो
होती ह।
ािभषेक करने से आरो य लाभ होता ह।
एवं व ानो के मत से िशविलंगका विधवत अिभषेक करने पर अभी िन य ह पूण होता ह।
यजुवद म उ ले खत विध- वधान से
ािभषेक करना अ यािधक लाभ द मानागया ह। ले कन जो भ
को करने म असमथ ह अथवा इस वधान से प रिचत नह ं ह वह भ करते हए ु
के योग नह ं बन
िशवजी के षडा ती मं
इस विध- वधान
ॐ नम:िशवाय का जप
ािभषेक कर सकते ह।
वशेष कामना पूित हे तु कये गये
ािभषेक के शा ो
िनयम:
व ानो के मत से कसी वशेष कामना क पूित हे तु कये जाने वाले पूित हे तु कये गये अनु ान म िन
त मनोवांिछत सफलता
ा
ािभषेक हे तु िशव वास का वचार करने पर कामना
होती ह।
जुलाई 2011
34
िशववास वचार : ितिथं च
गुणी कृ यपंचािभ
स िभ तुहर
सम ततम।। ्
दगंशेषं िशववास उ चयते।।
सके कैलाश वासंच तीयं गौ र न हो।। तृ तीये वृ षभा ढ़ चतुथ च समा थत पंचमे भोजनेचैव
डाया तुरसा मके।।
शू ये मशानकेचैव िशववासंच योजयेत।। ्
येक मास के कृ णप
क
ितपदा (१), अ मी (८), अमाव या तथा शु लप
भगवान िशव माता पावती के साथ होते ह, इस ितिथ म कृ णप कृ णप
म मण करते ह, इस ितिथ म
अव य
ा
होती ह।
होती ह।
क ष ी (६)व योदशी (१३) ितिथय म भगवान िशव नंद पर सवार ािभषेक करने से अभी
क स मी (७), चतुदशी (१४) तथा शु लप
म यान रत रहते ह, इस ितिथ म
तीया (२)व नवमी (९) के दन
क पंचमी (५) व ादशी (१२) ितिथय म भगवान िशव कैलास
ािभषेक करने से प रवार सुख म वृ
क पंचमी (५), ादशी (१२) तथा शु लप
होकर संपूण व कृ णप
ािभषेक करने से सुख-समृ
क चतुथ (४), एकादशी (११) तथा शु लप
पवत पर िनवास करते ह, इस ितिथ म
क
क
काय िस होता है ।
ितपदा (१), अ मी (८), पू णमा (१५) म भगवान िशव मशान
ािभषेक करने से काय म िस
नह ं होता व यजमान पर महा वप
आने क
संभावना अिधक हो जाती ह। कृ णप
क
तीया (२), नवमी (९) तथा शु लप
क तृ तीया (३) व दशमी (१०) म भगवान िशव दे वलोक म दे वताओं
क सभा म उनक सम याएं सुनते ह, इस ितिथ म कृ णप
क तृ तीया (३), दशमी (१०) तथा शु लप
ितिथय म सकाम कृ णप
ािभषेक करने से संताप अथात दःख म वृ ु
क चतुथ (४) व एकादशी (११)म भगवान िशव
होती ह। डारत रहते ह। इन
ाचनसंतान को क दे सकता है ।
क ष ी (6), योदशी (13) तथा शु लप
क स मी (7) व चतुदशी (14) म
दे वभोजन करते ह, इस ितिथ म
ािभषेक करने से पीडाएं उ प न हो सकती ह।
नोट: िशववास का वचार िनधा रत काय क पूित हे तु अथवा अिभ कामनाओं क पूित हे तु वचार कया जाता ह। िन काम भाव से क जाने वाला िशव पूजा-अचना अथवा
( ादश योितिलंग
े एवं तीथ
ािभषेक हे तु िशववास वचार करने क आव यका नह ं होती।
थान म तथा िशवरा ,
दोष, सावन के सोमवार-
इ या द वशेष शुभ-अवसरो अथवा पव म िशववास वचार करने क आव यका नह ं होती।)
तं
र ा कवच
तं र ा कवच को धारण करने से य के उपर कगई सम त तां क बाधाएं दरू होती ह, उसी के साथ ह धारण कता य पर कसी भी कार क नकार मन श यो का कु भाव नह ं होता। इस कवच के भाव
से इषा- े ष रखने वाले सभी लोगो
ारा होने वाले द ु
भावो से र ाहोती ह।
मू य मा : Rs.730
जुलाई 2011
35
ािभषेक तो ॐ सवदे वता यो नम : ॐ
नमो
पशूनाम ्
भवाय पतये
शवाय
ाय
वरदाय
च
िन यमु ाय
च
कप दने
॥१॥
महादे वाय
भीमाय
य बकाय
ईशानाय
मख नाय
नमोऽ
कुमारगुरवे
तु यम ्
पना कने
हव याय
वलो हताय ह
े
गो
अिच
े
सदा
॥३॥
याधायानपरा जते
।
वभवे
शूिलने
याया बकाभ
द यच ुषे याधाय
च चा रणे
।
च
॥६॥
वृ ष वजाय
मु डाय
जटने
त यमानाय
िसलले
याया जताय
नमो
नम ते
से याय
भूतानां
भवे
सदा
ाय
सवाय
शंकराय
िशवाय
नमोऽ तु
वाच पतये
जानां
व
य
पतये
पतये
महतां
:सहि शरसे
। ॥७॥
च
नम:
पतये
। ॥८॥
नम:
सह भुजमृ यवे
सह ने पादाय
। ।
नमोऽसं येयकमणे॥९॥
£ρ≠ſ∂ρx æ∂Л∂ρЇ†Ŷûûρ∑xªŷ•x≠øН ]
भ ानु क पने िन यं िस यतां नो वर एवं
।
सवदे व तुताय
ित ते
नम
॥४॥
वसुरेतसे
व मावृ य
नमो
॥२॥ ।
व सृ जे
व
।
वेधसे
स याय
ने ाय
शा तये
व धकघाितने
नील ीवाय
धू ाय
िन यनीिलशख डाय
च
।
व ा मने
तु वा
सादयामास
॥५॥
महादे वं भवं
वासुदेव तदा
: भो ॥१०॥ :सहाजु न:
ोपल धये
। ॥११॥
. ॥ इित
ािभषेक तो म ् संपूण ॥
योग : तांबेके लोटे म शु ध पानी या गंगाजल, गाय का क चा दध ू , सफेद या काले ितल इन सबको लोटे म िमलाकर िशविलंग उपर दध ू क धारा चालु रखकर उपरो आयी हई ु और आनेवाली सम त मा
लघु
ािभषेक
तो
का पाठ यारा बार
धा पूव क करने से जीवन म
कार के क ो से छुटकारा िमलता ह और सुख शांित एवं समृ
क
ाि होती है । इसम लेस
सदे ह नह ं ह।
गु
मं िस यं
व कायालय ारा विभ न कार के यं कोपर ता
कार क सम या के अनुसार बनवा के मं िस
पूण
प , िसलवर (चांद ) ओर गो ड (सोने) मे विभ न
साधारण (जो पूजा-पाठ नह जानते या नह कसकते) य
ाण ित त एवं चैत य यु
कये जाते है . जसे
बना कसी पूजा अचना- विध वधान वशेष
लाभ ा कर सकते है . जस मे िचन यं ो स हत हमारे वष के अनुसंधान ारा बनाए गये यं भी समा हत है . इसके अलवा आपक आव यकता अनुशार यं बनवाए जाते है . गु सभी यं
अखं डत एवं २२ गेज शु
कोपर(ता
प )- 99.99 टच शु
व कायालय ारा उपल ध कराये गये िसलवर (चांद ) एवं 22 केरे ट गो ड
(सोने) मे बनवाए जाते है . यं के वषय मे अिधक जानकार के िलये हे तु स पक करे
गु
व कायालय:
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सोमवार को िशवपूजन का मह व
या ह?
िचंतन जोशी ह द ू धम म स ाह के हर दवस का संबंध कसी न कसी दे वता व
इस
ह से माना गया ह।
विभ न वार म
संबंिधत दे व-दे वता का पूजन-अचन वशेष फलदािय िस
र ववार के दन सूय क उपासना क जाती है
ह सूय ह। सोमवार को भगवान िशव
उपासना
क जाती ह,
जसका कारक
होने क मा यता पौरा णक काल से चली आरह ह।
जसका
कारक
क
धम
ह चं मा ह।
मंगलवार को भगवान
गणपित और हनुमानजी
उपासना
जसका कारक
क जाती ह,
कार भरतीय परं परा म
के
विभ न फलो
स व तार उ लेख कया गया ह।
ह मंगल ह।
परं तु य द कसी िशव भ
जसका कारक
ह बुध ह। बृह पितवार को
ी ह र का
पूजन करने का
वधान ह
ह दे व गु
एसे
ह शु
क व
अंश यहा
कट होने का उ लेख हमारे
दे वता शिनदे व क उपासना क जाती ह जसके कारक
ालु के मन म
वधान के कुछ
तुत ह।
स ाह के दन क उ प
शिनवार को मां महाकाली, हनुमान, भैरव व कम के
होने का
यो कया जाता ह!
आपके मागदशन हे तु शा ो
ह।
ाि
अव य उठते ह, क िशवजी क आराधना व हे तु
सोमवार का वशेष आ ह
बृ ह पित ह। शु वार के दन मां ल मी एवं माता संतोषी क उपासना क जाती ह, जसका कारक
दन करने से
क
बुधवार को गणेश पूजन व बुध क पूजा क जाती ह, जसके कारक
ंथो म भगवान िशव क उपासना पूरे स ाह
भगवान िशव से ह
ंथो म कया गया ह।
ह शिनदे व ह।
महामृ युंजय यं संपूण
ाण
ित त चैत य यु
महामृ युंजय यं
+ कवच
मनु य के िलए अ त ु कवच क तरह काय करता ह। शा ो
वधान के अनुशार महामृ युंजय मं -यं -कवच के पूजन से साधारण रोग से लेकर असा य रोगो तक का िनवारण कया जा सकता ह। उसके अलावा उिचत विध- वधान से कये गये पूजन से आक मक दघटना ु इ या द को टालकर अकाल मृ यु से बचाव हो सकता ह। मनु य अपने जीवन के विभ न समय पर कसी ना कसी सा य या असा य रोग से
त होता ह। उिचत उपचार से
यादातर सा य रोगो से तो मु
जाती ह, ले कन कभी-कभी सा य रोग होकर भी असा या हो जाते ह, या कोइ असा य रोग से ह। हजारो लाखो
पये खच करने पर भी अिधक लाभ
अ प समय के िलये कारगर सा बत होती ह, एिस
ा
नह ं हो पाता। डॉ टर
थती म लाभा
ाि
के िलये
िमल
िसत होजाते
ारा दजाने वाली दवाईया य
एक डॉ टर से दसरे ू
डॉ टर के च कर लगाने को बा य हो जाता ह। एसी अव था म रोगो के िनदान हे तु भगवान िशव के पूण आिशवाद से यु
महामृ युंजय कवच एवं यं
से उ म और कोई मं -यं -कवच नह ं ह।
महामृ युजय ं कवच + यं
= 730+550 = 1280 1250/- मा
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िशव-महापुराण म उ लेख ह:
आ दसृ ौ महादे वः सव ः क णाकरः॥
सवलोकोपकाराथ वारा क पतवा
वामी इं
दया। न
ह ह
च
ा णय क आयु िनधारण करने के िलए भगवान िशव ने काल क क पना क थी। काल से ह दे व-मानव से लेकर सम त छोटे -बडे जीव क आयु य का अनुमान लगाया यव थत करने के िलए भगवान
सातवार
क क पना क
छाया
ह होने के कारण
सव ः
आ वारो यदं
वारं
संप कारं जनने
सवभेषजभेषजम् ववारं
वमायाया
वरं
कृ तवा च
दगित ांते ु
कुमार य
संपूण
र क य
तथा
व णोल कानां
पु
चैव
आल यद ु रत ां यै यथ
आयु करं
वारं
र ाथ
वारं
वारमायुषां
ैलो यसृ क ु ह
णः
आदौ तयोः
क
यथ
कृ तवां ततः
॥
परम ्
क पतवा
ततो
जगदायु यिस
॥
वारं
भुः
हतका यया
॥ ॥
क पतवा
भुः
॥
कतु रे व
ह
॥
परमे नः क पतवा
ैलो यवृ
यथ
पु यपापे
ततो
वारिमं
य
.
॥
च
॥
भुः
॥
क पते
॥
यम य
च
॥
( ीिशवमहापुराणम ्) सव थम भगवान िशव सूय के
होकर आरो य के िलए
प म
कट
थमवार क क पना क । अपनी
सवसौभा यदा ी श
के िलए
क । उसके बाद अपने
ये
पु
तीयवार क
क पना
कुमार के िलए अ य त
सु दर तृ तीयवार क क पना क । उसके बाद सवलोक क र ा का भार वहन करने वाले परम िम िलए चतुथ वार क क पना क । दे वगु से प चमवार क
क पना कर उसका
बनाया। असुरगु
शु
करके उसका
मुरार के
बृ ह पित के नाम वामी यम को
के नाम से छठे वार क क पना वामी
ा को बना
दया एवं
गई।
यो क राहु और केतु
गत न होने से उनके वार
ाण ित त 22 गेज शु
ट ल म िनिमत अखं डत
पु षाकार
।
भुः
ततः
गोचर होते
क क पना नह ं क गई।
िशव ने स वार क क पना क थी। संसारवै ः
म भी सात मूल
को बना
ह, इसिलए भगवान ् ने सूय से लेकर शिन तक के िलए
भुः॥
( ीिशवमहापुराणम ्)
जाता है । काल को ह
स मवार क क पना कर उसका
शिन यं
पु षाकार शिन यं
( ट ल म) को ती
भावशाली
बनाने हे तु शिन क कारक धातु शु बनाया गया ह। जस के लाभ
ा
ट ल(लोहे ) म
भाव से साधक को त काल
होता ह। य द ज म कुंडली म शिन
ितकूल
होने
असफलता
ा
पर
य
को
होती है , कभी
अनेक
बढ़ती
ाण ित त को
यपार
जाती
है
ऐसी
लेश आ द थितय
ह पीड़ा िनवारक शिन यं थान या घर म
म
यवसाय म घटा,
नौकर म परे शानी, वाहन दघटना , गृ ह ु परे शानीयां
काय
म
क अपने
थापना करने से अनेक
लाभ िमलते ह। य द शिन क ढै ़या या साढ़े साती का समय हो तो इसे अव य पूजना चा हए। शिनयं पूजन मा
से
य
के
को मृ यु, कज, कोटकेश, जोडो
का दद, बात रोग तथा ल बे समय के सभी
कार के
रोग से परे शान
अिधक
लाभकार
य
के िलये शिन यं
होगा। नौकर
पदौ नित भी शिन अित उपयोगी यं जा सकता है ।
पेशा आ द के लोग
को
ारा ह िमलती है अतः यह यं है जसके
ारा शी
ह लाभ पाया
मू य: 1050 से 8200
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िशवमहापुराण
ंथ के अनुशार भगवान िशव क
उपासना स ाह के हर वार को अलग फल
पुराण के अनुसार सोम का अथ चं मा होता है
दान करती
है ।
होकर अ य त सुशोिभत होता है । लगता है क भगवान ्
आरो यंसंपद चैव याधीनांशांितरे व च।
पु रायु तथाभोगोमृ तेहािनयथा मम॥ ् (िशवमहापुराण)
अथात:
वा
य, संप , रोग-नाश, पु , आयु, भोग तथा
मृ यु हािन से र ा के िलए र ववार से लेकर शिनवार तक भगवान िशव क आराधना करनी चा हए। व ानो के अनुशार सभी वार म िशव फल द ह फर भी लोग सोमवार का आ ह इस िलये करते ह, यो क क
मनु य मा
को भौितक सुख-स प
अ यिधक
ेम होता है , इसिलए उसने िशव के िलए
सोमवार का चयन कया।
व ानो के मतानुशार य द कोई
से
धालु स ाह के
सात दन िशव पूजन नह कर सके तो उ हे सोमवार को िशव पूजन अव य करनी चा हये। आ खर ऐसा
य?
िशव के िलए सोमवार का आ ह ह
ान
क वृ
के िलये शा ो
वधान
और चं मा भगवान ् श कर के शीश पर मुकुटायमान
य ? आपके तुत ह।
मं
श कर ने जैसे कु टल, कलंक , कामी, व
एवं
चं मा को उसके अपराधी होते हए ु भी
मा कर अपने
शीश पर
ीण
थान दया वैसे ह भगवान ् हम भी िसर पर
नह ं तो चरण म जगह अव य दगे। यह याद दलाने के िलए सोमवार को ह लोग ने िशव का वार बना दया। व ानो के मत से सोम (SOM) म ॐ (OM) समा हत है । धािमक
ंथो के अनुशार भगवान िशव ॐ कार
व प ह। सोम का अथ चं मा होता है और चं मा मन का
तीक
है । जड़ मन म चेतनता जा त करने वाले परमे र ह है । इसिलए दे वािधदे व महादे व क उपासना सोमवार को क जाती है । भगवान िशव का सतो गुण, रजो गुण, तमो गुण तीन पर एक समान अिधकार ह। िशवने अपने म तक पर चं मा को धारण कर शिश शेखर कहलाये ह। चं मा से िशव को वशेष
नेह होने के कारण चं
इस िलये िशव का
िस
सोमवार का अिधपित ह
य वार सोमवार ह।
ा
एकमुखी
ा -Rs- 1250,2800
छह मुखी
ा -Rs- 55,100
यारहमुखी
ा -Rs- 2800
दो मुखी
ा -Rs- 100,151
सात मुखी
ा -Rs- 120,190
बारह मुखी
ा -Rs- 3600
ा -Rs- 820,1250
तेरह मुखी
ा -Rs- 6400 ा -Rs- 19000
तीन मुखी
ा -Rs- 100,151
आठ मुखी
चार मुखी
ा -Rs- 55,100
नौ मुखी
ा -Rs- 820,1250
चौदह मुखी
पंच मुखी
ा -Rs- 28,55
दसमुखी
ा -Rs- ........
गौर षंकर
ा -Rs-
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िशव कृ पा हे तु उ म
ावण मास
िचंतन जोशी भारत वष म अना दकाल से विभ न पव मनाये जाते ह, एवं भगवान िशव से संबंधी अनेक मनाए जाते रहे ह। इन उतसवो म
ावण मास का अपना वशेष मह व ह। पौरा णक मा यताओं के अनुशार
मास म चार सोमवार (कभी-कभी पांच सोमवार होते ह) , एक संयोग एकसाथ
त- यौहात
ावण मह ने म होता ह, इसिलए
दोष
त तथा एक िशवरा
ावण का मह ना िशव कृ पा हे तु शी
ावण
शािमल होत ह इन सबका शुभ फल दे ने वाला मानागया
ह। िशवपुराण
के
अनुशार
ावण
माह
म
ादश
योितिलग के दशन करने से सम त तीथ के दशन का पू य एक साथ ह
ा
प
हो जाता ह। पुराण
के अनुशार
ावण माह म
ादश
योितिलग के दशन करने से मनु य क सम त शुभ कामनाएं पूण होती ह एवं उसे संसार के सम त सुख
क
ाि
होकर
उसे
हो
जाती
ह।
िशव
कृ पा
से
मो
क
ाि
थम सोमवार को- क चे चावल एक मु ठ िशव िलंग
पर चढाया जाता ह। दसरे सोमवार को- सफेद ित ली एक मु ठ िशव िलंग ू पर चढाया जाता ह।
तीसरे सोमवार को- ख़ड़े मूँग एक मु ठ िशव िलंग पर चढाया जाता ह। चौथे सोमवार को- जौ एक मु ठ िशव िलंग पर चढाया जाता ह। य द पाँचवाँ सोमवार आए तो एक मु ठ क चा स ू चढाया जाता ह। िशव क पूजा म ब वप जल क
अिधक मह व रखता है । िशव
धारा से जलािभषेक िशव भ
ारा
ारा वषपान करने के कारण िशव के म तक पर
कया जाता है । िशव भोलेनाथ ने गंगा को िशरोधाय
कया है ।
ावण मास म िशवपुराण, िशवलीलामृ त, िशव कवच, िशव चालीसा, िशव पंचा र मं , िशव पंचा र महामृ युंजय मं
का पाठ एवं जाप करना वशेष लाभ
तो ,
द होता ह।
सर वती कवच एवं यं उ म िश ा एवं व ा
ाि
यु
और सर वती यं
सर वती कवच
के िलये वंसत पंचमी पर दलभ तेज वी मं श ु के
ारा पूण ाण- ित त एवं पूण चैत य
योग से सरलता एवं सहजता से मां सर वती क कृ पा
ा
कर।
मू य:280 से 1450 तक
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ावण मास के सोमवार
त से भौितक क ो से मु
िमलती ह
िचंतन जोशी ावण मास इस साल 27 जुलाई से 24 अग त के बीच रहे गा। इस दौरान 2 अग त , 9 अग त , 16 अग त , 23 अग त को चार सोमवार
ावण मास म पड़ रहे ह। क हं
मास के सम त सोमवार के दन के
त के दन
ातःकाल ह
दह , शहद, घी, चीनी,
दे शो म 27 जुलाई से
त करने से पूरे साल भर के सोमवार के
नान इ या द से िनवृ
ाि
य को सोमवार के दन
त रखने से िशव कृ पा से अखंड सौभा य
होती ह। ाि
त कर िशव मं दर म जलािभषेक करने से व ा और बु
हे तु दध ू एवं जल चढाने से रोजगार
यापार एवं नौकर करने वाले वृ
त समान पु य फल िमलता ह। सोमवार
ेत चंदन, रोली(कुमकुम), ब व प (बेल प ), भांग, धतूरा आ द स अिभषेक कया जाता ह।
ब चो को सोमवार का रोजगार
य
यद
ाि
क
ाि
क संभावना बढ जाती ह।
ावण मास के सोमवार का
त करने से धन-धा य और ल मी क
नान कर अथवा जल म थोडा गंगा जल िमला कर
नान करने के प यात िशव िलंग पर
जल चढ़ाया जाता ह। आज भी उ र एवं पूव भारत म कांवड़ पर परा का वशेष मह व ह। न द स कावड़ म जल भरकर तीथ
य
को भ व य म अनेक सम याओं से
य
ारा कये गये
य
के
करना ह।
व प अपने
ितकूल कम के
िसत होते दे खा गया ह।
ितकूल कम के बंधन से मु
ारा संिचत पाप न
ा
अिधक से अिधक भौितक सुख साधनो को जुटाते हए ु कभी-कभी
नैितकता का दामन छोड कर अनैितकता का दामन थाम लेता ह जस के फल
कारण य
ालु गंगाजल अथवा
थल तक कांवड़ लेकर जाते ह। इसका उ े य िशवजीक कृ पा
आज के भौितकतावा द युग म य
होती ह।
होती ह।
त के दन गंगाजल से पव
ावण
होकर, िशव मं दर, दे वालय घरम जाकर िशव िलंग पर जल, दध ू ,
पित क लंबी आयु क कामना हे तु सुहागन क
ावण मास ारं भ होने से 5 सोमवार होरहे ह।
कराने क समथता भगवान भोले भंडार िशव क कृ पा
ाि
से
हो जाते ह।
पित-प ी म कलह िनवारण हे तु य द प रवार म सुख-सु वधा के सम त साधान होते हए ु भी छोट -छोट बातो म पित-प ी के बच मे कलह होता रहता ह, तो घर के जतने सद य हो उन सबके नाम से गु ित त पूण चैत य यु
व कायालत
ारा शा ो
विध- वधान से मं
िस
ाण-
वशीकरण कवच एवं गृह कलह नाशक ड बी बनवाले एवं उसे अपने घर म बना कसी
पूजा, विध- वधान से आप वशेष लाभ
ा
कर सकते ह। य द आप मं
िस
पित वशीकरण या प ी वशीकरण
एवं गृ ह कलह नाशक ड बी बनवाना चाहते ह, तो संपक आप कर सकते ह।
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आ या मक उ नित हे तु उ म चातुमास त
िचंतन जोशी ह द ू धम ंथ के अनुसार, आषाढ मास म शु लप
एकादशी क रा
से भगवान
क
व णु इस दन से लेकर अगले
चार मास के िलए योगिन ा म लीन हो जाते ह, एवं काितक मास म शु लप
क एकादशी के दन योगिन ा से जगते ह।
इसिलये चार इन मह न को चातुमास कहाजाता ह। चातुमास का ह द ू धम म वशेष आ या मक मह व माना जाता ह। अषाढ मास म शु ल प
क
ादशी अथवा पू णमा
अथवा जब सूय का िमथुन रािश से कक रािश म तब से चातुमास के समाि
वेश होता ह
त का आरं भ होता ह। चातुमास के
काितक मास म शु ल प
क
त क
ादशी को होती ह। साधु सं यासी अषाढ मास क पू णमा से चातुमास मानते ह।
सनातन धम के अनुयायी के मत से भगवान व णु सव यापी ह. एवं स पूण श
ांडा भगवान व णु क
से ह संचािलत होता ह। इस िलये सनातन धम के लोग अपने सभी मांगिलक काय का शुभारं भ भगवान व णु
को सा ी मानकर करते ह। शा ो म िलखा गया है क वषाऋतु के चार मास म ल मी जी भगवान व णु क सेवा करती ह। इस अविध म य द कुछ िनयम का पालन करते हवे ु अपनी मनोकामना पूित हे तु चातुमास म
त करने वाले साधक को
त करने से वशेष लाभ
ित दन सूय दय के समय
नान इ या द से िनवृ
ा
होता ह।
होकर भगवान
व णु क आराधना करनी चा हये। चातुमास के
त का "हे
कर मेरे
ारं भ करने से पूव िन न संक प करना चा हये।
भु, मने यह
त को िन व न समा
त का संक प आपको सा
मानकर उप थित म िलया ह। आप मेरे उपर कृ पा रख
करने का साम य मुजे
दान कर। य द
यह पूण
प से समा
हो जाये।
त के दौरन भगवान व णु क वंदना इस
कार कर।
मृ यु हो जाये तो आपक कृ पा
त को
हण करने के उपरांत बीच म मेर
शांताकारं भुजगशयनंप नाभंसुरेशं।
व ाधारं गगनस शंमेघवणशुभा गम॥ ्
ल मीका तंकमलनयनंयोिगिभ यानग यं। व दे व णुंभवभयहरं सवलोकैकनाथम॥्
भावाथ:- जनक आकृ ित अितशय शांत ह, जो शेषनाग क श यापर शयन कर रहे ह, जनक नािभ म कमल है, जो सब दे वताओं
ारा पू य ह, जो संपूण व
के आधार ह, जो आकाश के स
वण ह, जनके सभी अंग अ यंत सुंदर ह, जो योिगय
ारा
यान करके
य सव ा
या
ह, नीले मेघ के समान जनका
कये जाते ह, जो सब लोक के
जो ज म-मरण प भय को दरू करने वाले ह, ऐसे ल मीपित,कमलनयन,भगवान व णु को म
णाम करता हंू ।
वामी ह,
जुलाई 2011
42
कंदपुराण के अनुशार चातुमास का विध- वधान और माहा
य इस
कार व तार से
व णत ह। चातुमास म शा ीय विभ न िनयम का पालन कर पु य लाभ
ा
त करने से अ यािधक
होते ह।
जो य
चातुमास म केवल शाकाहार भोजन
जो
य
चातुमास म
जो
य
भगवान व णु के शयनकाल म बना मांगे अ न का सेवन करता
स प न होता ह।
ित दन रा ी चं
हण करता ह, वह धन धा य से
उदय के बाद दन म मा
भोजन करता ह, उसे सुख समृ
एवं ए य क
ह, उसे भाई-बंधुओं का पूण सुख
ा
ाि
होती ह।
होता ह।
वा थय लाभ एवं िनरोगी रे हने के िलये चातुमास म व णुसू
एकबार
के मं
वाहा करके िन य हवन म चावल और ितल क आहितयां दे ने से लाभ ु
होता ह।
को ा
चातुमास के चार मह न म धम ंथ के िनयिमत
वा याय से
चातुमास के चार मह न म य
यागता ह वह व तु उसे अ य
ह।
म पुनः
ा
जस व तु को
हो जाती ह।
पु य फल िमलता प
चातुमास का सद उपयोग आ म उ नित के िलए कया जाता ह। चातुमास के िनयम मनु य के िभतर संयम क भावना उ प न करने के िलए बने ह।
चातुमास म कस पदाथ का त करने वाले य
ावण मास म हर स जी का
आ
याग करना चा हये।
याग करना चा हये।
न मास म दध ू का याग करना चा हये।
काितक मास म दाल का का
याग कर
को...
भा पद मास म दह का
याग और
याग करना चा हये।
त कता को शै या शयन, मांस, मधु आ द का सेवन याग करना चा हये।
याग कये गय पदाथ का फल िन न
कार ह।
जो य
गुड़ का
याग करता ह, उसक वाणी म मधुरता आित ह।
जो य
घी का
याग करता ह, उसके सौ दय म वृ
जो य जो य जो य जो
य
होती ह।
तेल का
याग करता ह, उसके सम त श ुओं का नाश होता ह।
हर स जी का
दध ू एवं दह का नमक का
याग करता ह, उसक बु
होती ह।
बल होती ह एवं पु
याग करता ह, उसके वंश म वृ
लाभ
ा
होता ह।
होकर उसे मृ यु उपरांत गौलोक म
थान
याग करता ह, उसक सम त मनोकामना पूण होकर उसके सभी काय म िन
ा
होता ह।
त सफलता
ा
जुलाई 2011
43
य िशव को
य ह बेल प ?
िचंतन जोशी या ह बेल प अथवा ब व-प ? ब व-प एक पेड़ क प यां ह, जस के हर प े लगभग तीन-तीन के समूह म िमलते ह। कुछ प यां चार या पांच के समूह क भी होती ह। क तु चार या पांच के समूह वाली प यां बड़ दलभ होती ह। बेल के पेड को ब व भी कहते ह। ु ब व के पेड़ का वशेष धािमक मह व ह। शा ो
मा यता ह क बेल के पेड़ को पानी या गंगाजल से सींचने से सम त तीथ
का फल
ाि
औषधीय
ा
होता ह एवं भ
को िशवलोक क
होती ह। बेल क प य म औषिध गुण भी होते ह। जसके उिचत
योग से कई रोग दरू हो जाते ह। भारितय सं कृ ित म बेल के वृ
भगवान िशव का ह
प है । धािमक ऐसी मा यता ह क ब व-वृ
का धािमक मह व ह, यो क ब व का वृ
के मूल अथात उसक जड़ म िशव िलंग व पी भगवान
िशव का वास होता ह। इसी कारण से ब व के मूल म भगवान िशव का पूजन कया जाता ह। पूजन म इसक मूल यानी जड़ को सींचा जाता ह।
धम ंथ म भी इसका उ लेख िमलता हब वमूले महादे वं िलंग पणम ययम।् य: पूजयित पु या मा स िशवं ा नुया ॥ ब वमूले जलैय तु मूधानमिभ ष चित। स सवतीथ नात : या स एव भु व पावन:॥ (िशवपुराण(( भावाथ : ब व के मूल म िलंग पी अ वनाशी महादे व का पूजन जो पु या मा य य
करता है , उसका क याण होता है । जो
िशवजी के ऊपर ब वमूल म जल चढ़ाता है उसे सब तीथ म नान का फल िमल जाता है ।
ब व प तोड़ने का मं ब व-प को सोच-समझ कर ह तोड़ना चा हए। बेल के प े तोड़ने से पहले िन न मं का उ चरण करना चा हएअमृ तो व ीवृ
महादे व यःसदा।
गृ ािम तव प ा ण िशवपूजाथमादरात॥् -(आचारे द)ु भावाथ :अमृ त से उ प न स दय व ऐ यपूण वृ
महादे व को हमेशा
य है । भगवान िशव क पूजा के िलए हे वृ
प तोड़ता हंू ।
कब न तोड़ ब व क प यां? वशेष दन या वशेष पव के अवसर पर ब व के पेड़ से प यां तोड़ना िनषेध ह। शा
के अनुसार बेल क प यां इन दन म नह ं तोड़ना चा हए-
बेल क प यां सोमवार के दन नह ं तोड़ना चा हए। बेल क प यां चतुथ , अ मी, नवमी, चतुदशी और अमाव या क ितिथय को नह ं तोड़ना चा हए। बेल क प यां सं ांित के दन नह ं तोड़ना चा हए।
म तु हारे
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अमा र ासु सं ा ब वप ं न च िछ
ा छ
याम
यािम दवासरे । ु
ा चे नरकं जेत ॥) िलंगपुराण
भावाथ: अमाव या, सं ा त के समय, चतुथ , अ मी, नवमी और चतुदशी ितिथय तथा सोमवार के दन ब व-प तोड़ना व जत है ।
चढ़ाया गया प भी पूनः चढ़ा सकते ह? शा
म वशेष दन पर ब व-प तोडकर चढ़ाने से मना कया गया ह तो यह भी कहा गया है क इन दन म चढ़ाया गया
ब व-प धोकर पुन :चढ़ा सकते ह।
अ पता य प ब वािन
ा या प पुन :पुन:।
शंकरायापणीयािन न नवािन य द िचत॥्) क दपुराण( और (आचारे द)ु
भावाथ: अगर भगवान िशव को अ पत करने के िलए नूतन ब व-प न हो तो चढ़ाए गए प
को बार-बार धोकर चढ़ा सकते
ह। बेल प चढाने का मं भगवान शंकर को व वप अ पत करने से मनु य क सवकाय व मनोकामना िस होती ह।
ावण म व व प अ पत करने का
वशेष मह व शा ो म बताया गया ह। व व प अ पत करते समय इस मं का उ चारण करना चा हए: दलं भावाथ: तीन गुण, तीन ने ,
गुणाकारं
ने ं च
धायुतम।्
ज मपापसंहार, व वप िशवापणम ्
शूल धारण करने वाले और तीन ज म के पाप को संहार करने वाले हे िशवजी आपको
प अ पत करता हंू ।
* िशव को ब व-प चढ़ाने से ल मी क
ाि होती है ।
या आप कसी सम या से
त ह?
आपके पास अपनी सम याओं से छुटकारा पाने हे तु पूजा-अचना, साधना, मं कसी
गु
व कायालत
विध- वधान से विश तेज वी मं ो ारा िस
यु
विभ न कार के य
ा
वशेष पूजा-अचना,
जाप इ या द करने का समय नह ं
ह? अब आप अपनी सम याओं से बीना सफलता
कर सके एवं आपको अपने जीवन के सम त सुखो को ारा हमारा उ े य शा ो
दल ब व
ा
विध- वधान के आपको अपने काय म करने का माग
ा
हो सके इस िलये
ाण- ित त पूण चैत य
- कवच एवं शुभ फलदायी ह र एवं उपर आपके घर तक पहोचाने का है ।
GURUTVA KARYALAY Bhubaneswar- 751 018, (ORISSA) INDIA, Call Us : 91+ 9338213418, 91+ 9238328785, E-mail Us:- gurutva.karyalay@gmail.com, gurutva_karyalay@yahoo.in, Visit Us: http://gk.yolasite.com/ ,http://www.gurutvakaryalay.blogspot.com/
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ावण सोमवार
त कैसे कर?
वजय ठाकुर ावण सोमवार के
त म भगवान िशव और माता पावती क पूजा-अचना करने का वधान ह।
व ानो के अनुसार
ावण सोमवार का
ावण सोमवार के दव
त करने वाले य
बार सा वक भोजन करना चा हए। सोमवार
त-पूजन- विध इस
कार ह।
को सूय दय के समय से
त
ारं भ कर लेना चा हये एवं दन म एक
त के दन िशव पावित क पूजा अचना के उपरांत
त क समाि
से पूव
त क कथा सुनने का वधान ह।
ावण सोमवार को
मुहू त म उठ कर।
पूरे घर क साफ-सफाई कर
नान इ या द से िनवृ
हो कर।
पूरे घर म गंगा जल िछड़क। घर म पूजा
थान पर भगवान िशव क मूित या िच
पूजन क सार तैयार होने के बाद िन न मं 'मम इसके प ात िन न मं
से
था पत कर।
से संक प ल-
ेम थैय वजयारो यै यािभवृ यथ सोम तं क र ये'
यान कर-
' याये न यंमहे शं रजतिग रिनभं चा चं ावतंसं र ाक पो प ासीनं समंता
तुतममरगणै या कृ
यान के प ात 'ॐ नमः िशवाय' मं
वलांग परशुम ृ गवराभीितह तं स नम।्
ं वसानं व ा ं व वं ं िन खलभयहरं पंचव
से िशवजी का तथा 'ॐ नमः िशवायै' मं
ं
ने म॥्
से पावतीजी का षोडशो उपचार से
पूजन करना चा हये। पूजन के प ात
ावण सोमवार
त कथा सुन।
त प ात आरती कर साद बाटदे । इसक प यात ह भोजन या फलाहार ावण सोमवार सोमवार य
हण करना चा हये ।
त का फल
त उपरो
विध से करने पर भगवान िशव तथा माता पावती क कृ पा बनी रहती ह।
का जीवन सुख समृ
एवं ए य यु
होकर य
के सम त संकटो नाश हो जाते ह।
वा तु दोष िनवारक यं भवन छोटा होया बडा य द भवन म कसी कारण से िनमाण म वा तु दोष लगरहा हो, तो शा
म उसके िनवारण हे तु
वा तु दे वता को स न एवं स तु करने के िलए अनेक उपाय का उ लेख िमलता ह। उ ह ं उपायो म से एक ह वा तु यं क
थापना जसे घर-दकान -ओ फस-फै टर म ु
दोष का िनवारण होजाता ह एवं भवन म सुख समृ
था पत करने से संबंिधत सम त परे शानीओं का शमन होकर वा तु का आगमन होता ह।
मू य मा
Rs : 550
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ा
धारण से कामनापूित
िचंतन जोशी, व तक.ऎन.जोशी ा ा
को भगवान शंकर का
धारण करते ह।
योक
य आभूषण माना जाता ह। यह ं कारण ह क िशव भ
व ानो के मत से शा ो
अपने गले व भुजा म
मा यता है क द घायु दान करने वाला तथा मनु य को
अकाल मृ यु से र ा करने वाला ह। गृ ह थ य मो
को
य के िलए
ा
अथ और काम को दान करता ह तो साधुसंत व सं यािसय के िलए
दान करने वाला माना जाता ह।
ा
ा ह पाप का का ा
ा
धम और
को मनु य क अनेक शार रक और मानिसक यािधय को दरू कर
मानिसक शांित दान करने वाला माना जाता ह। योगा यास से जुडे साधनो के िलये सहायक िस
ा
ा
कुंडिलनी जागृ त करने म
होता ह। के धारण करता को तं क व भूत- ेत इ या द का असर नह ं होता ह। शा ो य हो जाता ह। जसके घर म
ा
मत से
ा
के दशन मा से
क पूजा क जाती है वहाँ ल मीजी सदा वास करती ह। साधारण
प से
ा
भाव 1-2 दन म
भाव दखने लगता है । परं तु वशेष प र थत व काय उ े य क पूित हे तु धारण कया गया
45 दन म अपना
भाव दखता ह।
धारण के शा ो
सभी वण के लोग
ा
िनयम और मत
धारण कर सकते ह।
धारण करते समय ॐ नम: िशवाय का जाप करना लाभ द रहे गा।
ा
को अप व ता के साथ धारण न कर।
ा
को पूण भ
यो क
ा
ा
ू अटट
और शु ता से ह धारण कर। ा और व ास से धारण करने पर ह फल ा होता ह।
को लाल, पीला या सफेद धागे म धारण करना लाभ द रहे गा।
चाँद , सोना या तांबे म भी धारण कया जा सकता ह।
ा
हमेशा वषम सं या म धारण करना लाभ द होता ह।
रोजगार के अनुशार िशव भ ो के जीवन म सव
े
ा
चुनाव
सफलता के िलए
राजनेता को पूण सफलता हे तु तेरह मुखी
ा ा
धारण करना सव म माना गया ह। धारण करना चा हए।
सरकार व कानूनी काय से जुड़े जुडे लोगो को एक व तेरह मुखी
ा
के साथ म चांद के मोती जडवा कर धारण
करना चा हए। वकालत के काय से जुडे लोगो को चार व तेरह मुखी
ा
बक, वमा इ या द से जुडे लोगो को यारह व तेरह मुखी
धारण करना चा हए। ा
धारण करना चा हए।
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पुिलस वभाग से जुडे लोगो को नौ व तेरह मुखी
ा
धारण करना चा हए।
िच क सक या िच क सा वभाद से जुडे लोगो को तीन व चार मुखी शै य
िच क सा
से
जुडे
लोगो
को
दस,
बारह
मैकेिनकल काय से जुडे लोगो को दस व यारह मुखी
ा
व
धारण करना चा हए।
चौदह
मुखी
कल इं जीिनयर से जुडे लोगो को सात व यारह मुखी
ा
ा
धारण
करना
चा हए।
ा
धारण करना चा हए। धारण करना चा हए।
कं यूटर सॉ टवेयर इं जीिनयर से जुडे लोगो को चौदह मुखी व गौर शंकर लोगो को नौ व बारह मुखी
ा
धारण करना चा हए।
िस वल इं जीिनयर काय से जुडे लोगो को आठ व चौदह मुखी इले
ा
ा
कं यूटर हाडवेयर इं जीिनयर से जुडे
धारण करना चा हए।
िश ण काय से जुडे लोगो को छह व चौदह मुखी
ा
धारण करना चा हए।
ठे केदार के काय से जुडे लोगो को यारह, तेरह व चौदह मुखी
ा
धारण करना चा हए।
भूिम-भवन इ याद काय से जुडे लोगो को एक, दस व चौदह मुखी दकानदार को दस, तेरह व चौदह मुखी ु
ा
उ ोगपित को बारह व चौदह मुखी
धारण करना चा हए।
ा
ा
धारण करना चा हए।
धारण करना चा हए।
होटे ल, रे टोरट के काय से जुडे लोग एक, तेरह व चौदह मुखी
मं
िस
ा
धारण करना चा हए।
ा
एकमुखी
ा -Rs- 1250,2800
छह मुखी
ा -Rs- 55,100
यारहमुखी
ा -Rs- 2800
दो मुखी
ा -Rs- 100,151
सात मुखी
ा -Rs- 120,190
बारह मुखी
ा -Rs- 3600
ा -Rs- 820,1250 तेरह मुखी
ा -Rs- 6400
तीन मुखी
ा -Rs- 100,151
आठ मुखी
चार मुखी
ा -Rs- 55,100
नौ मुखी
ा -Rs- 820,1250
चौदह मुखी
पंच मुखी
ा -Rs- 28,55
दसमुखी
ा -Rs- ........
गौर षंकर
ा -Rs- 19000 ा -Rs-
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एक मुखी से 12 मुखी
ा
धारण करने के लाभ
िचंतन जोशी ा
को भगवान िशव का ितक मानाजाता है .
ा
क उ प
जाता है . ा अ
श द "
+अ
- "
भगवान िशव के अ ु से हइथी इस िलये इसे ु
ा
कह
=िशव
=आशु/अ ु ा
: 1 मुखी
भगवान : िशव ह : सूरज लाभ : व ानो के मत से एक मुखी
ा
धारण करने से आंत रक चेतना बु
होती है एवं मानिसक श
क वकास होत
है . धारण करता को सभी सांसा रक सुखो क ाि होती है . ा
: 2 मुखी
भगवान : अधनार
र
ह : चं मा लाभ : व ानो के मत से दो मुखी
ा
एकता बनाए रखने सहायक िस
होता है
ा
धारण करने से गु -िश य, माता- पता, ब चे, पित-प ी एवं अ य र तो के म य
: 3 मुखी
भगवान : अ न ह : मंगल लाभ : व ानो के मत से तीन मुखी
ा
धारण करने से खरब वचार धारा (कुमित) ओर सव
ा
धारण करने से वा
होित है ा
कार के भय और पीडा दरु
: 5 मुखी
भगवान : काला न ह : बृ ह पित लाभ : व ानो के मत से पांच मुखी ा
य लाभ और शांित क ाि होती है .
: 6 मुखी
भगवान : काितकेय ह : शु
लाभ : व ानो के मत से छ मुखी
ा
धारण करने से सांसा रक दख ु से र ा होित है
ान और बु
क ाि होती है . एवं
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यार, संगीत और य ा
गत संबंध क सराहना करता है .
: 7 मुखी
भगवान : महाल मी ह : शिन लाभ : व ानो के मत से सात मुखी
ा
धारण करने से यापार ओर आदमी वृ
ा
धारण करने से र - िस
होित है . सम त
कार के भौितक सुखो
क ाि होित है ा
: 8 मुखी
भगवान : गणेश ह : राहू
लाभ : व ानो के मत से आठ मुखी वजय ा
ा
क ाि होित है ओर सम त
कार के श ु पर
कर सम त बाधा दरु होित है
: 9 मुखी
भगवान : दगा ु ह : केतु
लाभ : व ानो के मत से नव मुखी
ा
धारण करने से उजा श
मे इजफा होत है एवं जीवन मे सफलता ा
ा
धारण करने से शर र क र ा होित है
कर
गितशीलता क ाि होित है . ा
: 10 मुखी
भगवान : व णु ह : कोई नह ं लाभ : व ानो के मत से दश मुखी ा
: 11 मुखी
भगवान : हनुमान ह : कोई नह ं लाभ : व ानो के मत से एकादश मुखी
ा
धारण करने से ताकत, वाक श
, साहसी जीवन, उ म
मृ यु से बचाता है . यान ओर योगाभयास मे सहायक होत है ा
ान एवं दघटना म ु
: 12 मुखी
भगवान : सूरज ह : कोई नह ं
लाभ : व ानो के मत से ादश मुखी
ा
शक और डर को दरु करता है ओर आ म श
धारण करने से य का वकास होता है
सूरज के समान तेज ओर गुणव ा ा
होित है एवं िचंता,
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चातुमास म मांगिलक काय व जत ह।
व तक.ऎन.जोशी शयन का अथ होता है सोना अथात िन ा। ह द ू धािमक मा यता ह क
ह द ू पंचांग के अनुशार
आषाढ़ शु ल प
क
एकादशी (अथात ह रशयन एकादशी) से लेकर अगले चार माह तक भगवान व णु शेषनाग क शै या पर सोने के िलये ीरसागर म चले जाते ह अथात वे िन ा म रहते ह। िन ा म िलन होने के प यात जाते ह।
ी ह र काितक शु ल एकादशी (अथात ् दे वो थान या दे वउठनी एकादशी) को वे उठ
भारतीय परं परा के अनुशार दे वशयन एकादशी से लेकर काितक शु ल दशमी इन चार माह तक कोई भी मांगिलक काय नह ं कया जाता।
यो क इन काय म पंच दे वता क उप थित आव यक होती ह भगवान व णु पंचदे वता म योम
अथात आकाश के अिधपित ह अतः वशेष
प से भगवान व णु क उप थित आव य ा होती है ।
ी व णु क िन ा
म खलल न पड़े इस िलए सभी शुभ काय ह रशयन एकादशी के बाद से बंद हो जाते ह, जो दे वो थान एकादशी से पुनः ारं भ होते ह। (मांगिलक काय अथात गृ ह
वेश, ववाह, दे वताओं क
ाण- ित ा, य -हवन, सं कार आ द काय को भारितय
सं कृ ित म मांगिलक काय कहां जाता ह।)
अमो अमो
महामृ युंजय कवच व
अ यंत
भावशाली होता ह।
व ान
ा णो
अमो
महामृ युंजय कवच उ ले खत अ य साम ीय को शा ो
ारा सवा लाख महामृ युंजय मं
महामृ युंजय कवच
जप एवं दशांश हवन
अमो
कवच बनवाने हे तु: अपना नाम, पता-माता का नाम, गो , एक नया फोटो भेजे
द
विध- वधान से
ारा िनिमत कवच
महामृ युंजय
कवच
णा मा : 10900
संपक कर:
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सव काय िस जस
य
म िस
को लाख (लाभ)
कवच के
य
और प र म करने के बादभी उसे मनोवांिछत सफलताये एवं कये गये काय
ा नह ं होती, उस य
मुख लाभ: सव काय िस
शांत कर धारण करता य उ नित ाि
कवच अव य धारण करना चा हये।
ारा सुख समृ
और नव
के जीवन से सव कार के द:ु ख-दा र कार के शुभ काय िस
यवसाय करता होतो कारोबार मे वृ
ह के नकारा मक भाव को
का नाश हो कर सुख-सौभा य एवं
होते ह। जसे धारण करने से य
यद
होित ह और य द नौकर करता होतो उसमे उ नित होती ह।
कवच के साथ म सवजन वशीकरण कवच के िमले होने क वजह से धारण करता
क बात का दसरे ू सव काय िस
को सव काय िस
कवच के
होकर जीवन मे सिभ
सव काय िस
कवच
य
ओ पर
भाव बना रहता ह।
कवच के साथ म अ ल मी कवच के िमले होने क वजह से य
पर मां महा
सदा ल मी क कृ पा एवं आशीवाद बना रहता ह। ज से मां ल मी के अ
प (१)-आ द
ल मी, (२)-धा य ल मी, (३)-धैर य ल मी, (४)-गज ल मी, (५)-संतान ल मी, (६)- वजय ल मी, (७)- व ा ल मी और (८)-धन ल मी इन सभी सव काय िस
कवच के साथ म तं
होती ह, साथ ह नकार मन श कवच के
होता ह।
यो का कोइ कु भाव धारण कता ओ
ारा होने वाले द ु
य
पर नह ं होता। इस
भावो से र ाहोती ह।
कवच के साथ म श ु वजय कवच के िमले होने क वजह से श ु से संबंिधत
सम त परे शािनओ से य
ा
र ा कवच के िमले होने क वजह से तां क बाधाए दरू
भाव से इषा- े ष रखने वाले य
सव काय िस
पो का अशीवाद
वतः ह छुटकारा िमल जाता ह। कवच के
का चाहकर कुछ नह
भाव से श ु धारण कता
बगड सकते।
अ य कवच के बारे मे अिधक जानकार के िलये कायालय म संपक करे : कसी य
वशेष को सव काय िस
कवच दे ने नह दे ना का अंितम िनणय हमारे पास सुर
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त ह।
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राम र ा यं राम र ा यं
सभी भय, बाधाओं से मु
से धन लाभ होता ह व य ह। राम र ा यं क ठनाइय
सभी
ाि
हे तु उ म यं
ह। जसके
का सवागी वकार होकर उसे सुख-समृ , मानस मान क
कार के अशुभ
से र ा करता ह।
हनुमानजी के भ
व काय म सफलता भाव को दरू कर
व ानो के मत से जो
ह उ ह अपने िनवास
थान,
य
ाि
को जीवन क सभी
कार क
भगवान राम के भ
ह या
यवसायीक
थान पर राम र ा यं
को अव य
पर सुवण पोलीस
ता
प
(Gold Plated)
पर रजत पोलीस
ता प पर (Copper)
(Silver Plated)
ी
यतीत हो सके
एवं उनक सम त आ द भौितक व आ या मक मनोकामनाएं पूण हो सके।
प
होती
य
थापीत करना चा हये जससे आने वाले संकटो से र ा हो उनका जीवन सुखमय
ता
योग
साईज
मू य
साईज
मू य
साईज
मू य
2” X 2”
640
2” X 2”
460
2” X 2”
370
3” X 3”
1250
3” X 3”
820
3” X 3”
550
4” X 4”
1850
4” X 4”
1250
4” X 4”
820
6” X 6”
2700
6” X 6”
2100
6” X 6”
1450
9” X 9”
4600
9” X 9”
3700
9” X 9”
2450
12” X12”
8200
12” X12”
6400
12” X12”
4600
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व ा ाि आज के आधुिनक युग म िश ा
हे तु सर वती कवच और यं ाि जीवन क मह वपूण आव यकताओं म से एक है । ह द ू धम म
अिध ा ी दे वी सर वती को माना जाता ह। इस िलए दे वी सर वती क पूजा-अचना से कृ पा
ा
करने से बु
व ाक
कुशा
एवं
ती होती है । आज के सु वकिसत समाज म चार ओर बदलते प रवेश एवं आधुिनकता क दौड म नये-नये खोज एवं संशोधन के आधारो पर ब चो के बौिधक
तर पर अ छे
वकास हे तु विभ न पर
ा,
ितयोिगता एवं
होती रहती ह, जस म ब चे का बु मान होना अित आव यक हो जाता ह। अ यथा ब चा पर ित पधा म पीछड जाता ह, जससे आजके पढे िलखे आधुिनक बु या अ पबु
ा,
ित पधाएं
ितयोिगता एवं
से सुसंप न लोग ब चे को मूख अथवा बु ह न
समझते ह। एसे ब चो को ह न भावना से दे खने लोगो को हमने दे खा ह, आपने भी कई सैकडो बार
अव य दे खा होगा? ऐसे ब चो क बु
को कुशा
एवं ती
हो, ब चो क बौ क
मता और
मरण श
का वकास हो इस िलए
सर वती कवच अ यंत लाभदायक हो सकता ह। सर वती कवच को दे वी सर वती के परं म दलभ तेज वी मं ो ारा पूण मं िस ू
ह। ज से जो ब चे मं
जप अथवा पूजा-अचना नह ं कर सकते वह वशेष लाभ
अचना करते ह, उ ह दे वी सर वती क कृ पा शी
और पूण चैत ययु ा
कया जाता
कर सके और जो ब चे पूजा-
ा
हो इस िलये सर वती कवच अ यंत लाभदायक होता ह।
सर वती कवच : मू य: 280 और 370
सर वती यं :मू य : 280 से 1450 तक
मं भगवान
ी गणेश बु
सकारा मक
िस
और िश ा के कारक
ह बुध के अिधपित दे वता ह। प ना गणेश बुध के
भाव को बठाता ह एवं नकारा मक
भाव से यापार और धन म वृ प ना गणेश इस के वृ
प ना गणेश म वृ
भाव को कम करता ह।. प न गणेश के
होती ह। ब चो क पढाई हे तु भी वशेष फल
भाव से ब चे क बु
कूशा
होकर उसके आ म व ास म भी वशेष
होती ह। मानिसक अशांित को कम करने म मदद करता ह,
व करण शांती
दान करती ह,
य
द ह
य
ारा अवशो षत हर
के शार र के तं को िनयं त करती ह। जगर, फेफड़े ,
जीभ, म त क और तं का तं इ या द रोग म सहायक होते ह। क मती प थर मरगज के बने होते ह।
Rs.550 से Rs.8200 तक
GURUTVA KARYALAY 92/3. BANK COLONY, BRAHMESHWAR PATNA, BHUBNESWAR-751018, (ORISSA) Call Us - 9338213418, 9238328785 Our Website:- http://gk.yolasite.com/ and http://gurutvakaryalay.blogspot.com/ Email Us:- gurutva_karyalay@yahoo.in, gurutva.karyalay@gmail.com
जुलाई 2011
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फ टक गणेश फ टक ऊजा को क त करने म सहायता मानागया ह। इस के एवं एक उ म गुणव ा वाले
फ टक से बनी गणेश
भाव से यह य
ितमा को और अिधक
को नकारा मक उजा से बचाता ह
भावी और प व माना जाता ह।
मू य Rs.550 से Rs.8200 तक
तं कवच को धारण करने से धारण कता
य
य
पर कसी भी
र ा
के उपर कगई सम त तां क बाधाएं दरू होती ह, उसी के साथ ह कार क नकार मन श
भाव से इषा- े ष रखने वाले सभी लोगो
यो का कु भाव नह ं होता। इस कवच के
ारा होने वाले द ु
भावो से र ाहोती ह।
मू य मा : Rs.730
श ु वजय कवच श ु वजय कवच धारण करने से य कवच के
को श ु से संबंिधत सम त परे शािनओ से
भाव से श ु धारण कता य
का चाहकर कुछ नह
मं िस
बगड सकते।
मूंगा गणेश
मूंगा गणेश को व ने र और िस
वतः ह छुटकारा िमल जाता ह।
मू य मा :Rs: 640
वनायक के प म जाना जाता ह। इस िलये मूंगा गणेश पूजन
के िलए अ यंत लाभकार ह। गणेश जो व न नाश एवं शी फल क ाि हे तु वशेष लाभदायी ह। मूंगा गणेश घर एवं यवसाय म पूजन हे तु था पत करने से गणेशजी का आशीवाद शी
ा होता ह।
यो क लाल रं ग और लाल मूंगे को प व माना गया ह। लाल मूंगा शार रक और मानिसक श
य का वकास करने हे तु वशेष सहायक ह।
हं सक वृ
और गु से को िनयं त
करने हे तु भी मूंगा गणेश क पूजा लाभ द ह। एसी लोकमा यता ह क मंगल गणेश को था पत करने से भगवान गणेश क कृ पा श
चोर , लूट, आग, अक मात से वशेष सुर ा
ा
होती ह,
ज से घर म या दकान म उ नती एवं सुर ा हे तु मूंगा गणेश था पत कया जासकता ह। ु
ाण ित त मूंगा गणेश क थापना से भा योदय, शर र म खून क कमी, गभपात से बचाव, बुखार,
चेचक, पागलपन, सूजन और घाव, यौन श
म वृ , श ु वजय, तं मं के द ु
चोर, तूफान, आग, बजली से बचाव होता ह। एवं ज म कुंडली म मंगल मु
भा, भूत- ेत भय, वाहन दघटनाओं , हमला, ु
ह के पी ड़त होने पर िमलने वाले हािनकर भाव से
िमलती ह।
जो य
उपरो
लाभ ा करना चाहते ह उनके िलये मं िस मूंगा गणेश अ यिधक फायदे मंद ह।
मूंगा गणेश क िनयिमत प से पूजा करने से यह अ यिधक भावशाली होता ह एवं इसके शुभ भाव से सुख सौभा य क ाि होकर जीवन के सारे संकटो का वतः िनवारण होजाता ह।
Rs.550 से Rs.8200 तक
जुलाई 2011
55
नवर शा
वचन के अनुसार शु
ज ड़त
ी यं
सुवण या रजत म िनिमत
कहलाता ह। सभी र ो को उसके िन
अनंत ए य एवं ल मी क ी यं
ाि
के साथ लगाने से
कारण यं
ज ड़त
पव
होती ह।
के चार और य द नवर
थान पर जड़ कर लॉकेट के
जड़वा ने पर यह नवर
प म धारण करने से य
को
को एसा आभास होता ह जैसे मां ल मी उसके साथ ह। नव ह को
ह क अशुभ दशा का धारण करने वाले
रहता ह एवं
जल के समान प व
य
त
ी यं
ी यं
नान करते समय इस यं
पर
य
पर
भाव नह ं होता ह। गले म होने के
पश कर जो जल बंद ु शर र को लगते ह, वह गंगा
होता ह। इस िलये इसे सबसे तेज वी एवं फलदािय कहजाता ह। जैसे अमृ त से उ म कोई
औषिध नह ,ं उसी
कार ल मी
कार के नवर
ी यं
ज ड़त
ाि गु
के िलये
ी यं
व कायालय
से उ म कोई यं
ारा शुभ मुहू त म
संसार म नह ं ह एसा शा ो
ाण
वचन ह। इस
ित त करके बनावाए जाते ह।
अ ल मी कवच अ ल मी कवच को धारण करने से य ह। ज से मां ल मी के अ
पर सदा मां महा ल मी क कृ पा एवं आशीवाद बना रहता
प (१)-आ द ल मी, (२)-धा य ल मी, (३)-धैर य ल मी, (४)-गज
ल मी, (५)-संतान ल मी, (६)- वजय ल मी, (७)- व ा ल मी और (८)-धन ल मी इन सभी वतः अशीवाद
ा
होता ह।
मू य मा : Rs-1050
मं यापार वृ
कवच
बार हािन हो रह ह। चैत य यु
यापार के शी कसी
यापात वृ
िस
यापार वृ
कवच
उ नित के िलए उ म ह। चाह कोई भी यापार हो अगर उसम लाभ के
कार से यापार म बार-बार बांधा उ प न हो रह हो! तो संपूण यं को
पो का
यपार
थान या घर म था पत करने से शी ह
ाण
यापार वृ
थान पर बार-
ित त मं
िस
पूण
एवं िनत तर लाभ ा
मू य मा : Rs.370 & 730
होता ह।
मंगल यं ( कोण) मंगल यं
को जमीन-जायदाद के ववादो को हल करने के काम म लाभ दे ता ह, इस के अित र
ऋण मु
हे तु मंगल साधना से अित शी
लाभ ा
मंगल यं
क पूजा करने से वशेष लाभ
होता ह।
ा
य
को
होता ह। ववाह आ द म मंगली जातक के क याण के िलए
मू य मा
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Rs- 550
जुलाई 2011
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गणेश ल मी यं ाण- ित त गणेश ल मी यं करने यापार म वशेष लाभ
ा
को अपने घर-दकान -ओ फस-फै टर म पूजन ु होता ह। यं
के
भाव से भा य म उ नित, मान- ित ा एवं
एवं आिथक
थम सुधार होता ह। गणेश ल मी यं
आशीवाद
होता ह।
ा
थान, ग ला या अलमार म
को
था पत
यापर म वृ
होती ह
था पत करने से भगवान गणेश और दे वी ल मी का संयु
Rs.550 से Rs.8200 तक
मंगल यं से ऋण मु मंगल यं
को जमीन-जायदाद के ववादो को हल करने के काम म लाभ दे ता ह, इस के अित र
मु
हे तु मंगल साधना से अित शी
यं
क पूजा करने से वशेष लाभ
लाभ ा
ा
होता ह।
होता ह।
ाण
य
को ऋण
ववाह आ द म मंगली जातक के क याण के िलए मंगल
ित त मंगल यं
गभपात से बचाव, बुखार, चेचक, पागलपन, सूजन और घाव, यौन श
के पूजन से भा योदय, शर र म खून क कमी,
म वृ , श ु वजय, तं मं के द ु
भा, भूत- ेत भय,
मू य मा
वाहन दघटनाओं , हमला, चोर इ याद से बचाव होता ह। ु
Rs- 550
कुबेर यं कुबेर यं
के पूजन से
वण लाभ, र लाभ, पैत ृ क स प ी एवं गड़े हए ु धन से लाभ ाि
िलये कुबेर यं अ य त सफलता दायक होता ह। एसा शा ो ा
वचन ह। कुबेर यं
क कामना करने वाले य
के पूजन से एकािधक
ो
से धन का
होकर धन संचय होता ह।
ता
प
पर सुवण पोलीस (Gold Plated)
साईज 2” X 2” 3” X 3” 4” X 4” 6” X 6” 9” X 9” 12” X12”
ता
प
पर रजत पोलीस
ता प पर (Copper)
(Silver Plated)
मू य 640 1250 1850 2700 4600 8200
साईज 2” X 2” 3” X 3” 4” X 4” 6” X 6” 9” X 9” 12” X12”
मू य 460 820 1250 2100 3700 6400
साईज 2” X 2” 3” X 3” 4” X 4” 6” X 6” 9” X 9” 12” X12”
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के
मू य 370 550 820 1450 2450 4600
जुलाई 2011
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मािसक रािश फल
िचंतन जोशी मेष: 1 से 15 जुलाई 2011: आपके मान-स मान और अचल संप
या
ित ा म वृ
कसी घरे लू मामल म बदलाव हो सकता है ।
होगी। चल-
नौकर - यवसाय म
बदलाव का वचार कर सकते है । प र म से कये गये काय म सफलता ा होगी। सुख म वृ
होगी। इ
साथी से सुख क
िम
वा
य
एवं प रवार के सहयोग से आिथक लाभ संभव ह। जीवन
ा ी होगी।
16 से 31 जुलाई 2011: प रवार और र तेदार से आ मयता के अनुभव म कमी रह सकती ह। आप उजा व उ साह क कमी महसूस करगे। इस िलये सकारा मक
ी कोण
रखे। सतकता रखे काय े म चोर , धोखो, मतभेद इ याद से सम या हो सकती ह। आंख से संबंिधत सम या हो सकती ह अतः आंख का वशेष यान रखे। नये िम
वृ षभ:
1 से 15 जुलाई 2011 : एक से अिधक
आप दरू थान म अपना
यवसाय फेलाने का
ोत धन से लाभ
यास करगे। आिथक
ा
ह गी।
के िलये थती थोड
कमजोर हो सकती ह। धन संचय म वृ
होने के योग बन रहे ह।
रहे गी। खान-पान का वशेष
क आव यकता रहे गी अ यथ आप पेट से
यान रखने
वा
ाि
से सहायता
यम
थरता
संबंिधत परे शानी का सामना कर सकते ह। अपनो से मतभेद के कारण आपक आिथक थती कमजोस हो सकती ह। 16 से 31 जुलाई 2011 : संघष एवं सकारा मक
योग बन रहे ह। नौकर - यवसाय म उ नित के है । भूिम-भवन-संप
से संबंिधत
कोण के कारण धन लाभ
के
यास से आप दरू थान क या ाएं कर नये लोगो से िम ता कर सकते
य- व य लाभ द होगा। अपनी
कर। दरू थान क या ा एवं अपया
ाि
व ाम के कारण
वा
मता से अिधक काय करे ने क वृ ित का
य का वशेष
याग
यान दे ने क आव यकता रहे गी।
िमथुन: 1 से 15 जुलाई 2011 : अपने के हए ु काय को कुशलता से पूरा करगे। सफलता क पुनः ाि से आपका उ साह और आ म व ास बढे गा। नये लोगो क िम ता से लाभ ा
कर सकते ह। जीवन साथी से सहयोग ा होगा। शुभ समाचार क ाि हो सकती ह। अपने संिचत धन को पूं ज िनवेश कर लाभ ा कर सकते है । काय क य तता, अ यािधक भागदौड के कारण आपको थकावट हो सकती ह। 16 से 31 जुलाई 2011 : यापा रक
य- व य से इ छा से कम लाभ
ा
हो सकता
ह। आपके िभतर कुछ िनराशावाद भाव रह सकते ह जससे मानिसक अशांित हो सकती है । वप रत प र थती म अपने
ोध एवं गु से पर िनयं ण रखने का
यास कर।
पा रवार क वं िम ो से र तो म सूझ-बूझ क कमी के कारण परे शानी का सामना करना पड सकता ह। खान-पान म सावधानी बत अ यथा आपका
व
य नरम हो सकता ह।
जुलाई 2011
58
कक:
1 से 15 जुलाई 2011:
हो सकती ह। मानिसक
आपके काय
े
नता बढे गी। भूिम- भवन-वाहन के
हो सकता ह। अपनी अिधक खच करने क ेम संबंिधत मामलो म भी सफलता पद- ित ा म वृ
म नये बदलाव हो सकते ह। आपको नया यवसाय या नौकर
ा
य- व य से लाभ
वृ ित पर िनयं ण करने का
ा
ा
यास कर।
कर सकते है । सामा जक मान-स मान और
होगी।
16 से 30 जुलाई 2011: उ चािधका रय
क से सलाह लाभ
कमजोर हो सकती ह। आपके मह व पूण काय म अित र
ा
होगा। आिथक
थती
सावधानी रखनी चा हये
अ यथा कुछ काय म नु शान सकता है । आपको अपना नाम और
ित ा कायम रखने के
िलये योजनाब त रके से काय करना चा हये। जीवन साथी के साथ यवहार कूशल रह बे खा पन नु शान कर सकता ह।
िसंह: 1 से 15 जुलाई 2011: आक मक धन लाभ िमलने क संभावना है । आपके काय ह। भूिम- भवन-वाहन के भी सफलता
ा
य- व य से लाभ
ा
े
म नये बदलाव हो सकते
हो सकता ह।
ेम संबंिधत मामलो म
कर सकते है । सामा जक मान-स मान और पद- ित ा म वृ
अपने खाने- पीने का यान रखे अ यथा आपका का वा
होगी।
य नरम हो सकता है । आंख से
संबंिधत सम या हो सकती ह अतः आंख का वशेष यान रखे। 16 से 30 जुलाई 2011: यवसाियक
यय म कमी करने का
यास करे । मह वपूण
िनणय लेने म असमथता अनुभव हो सकती ह। इस अविध के शु
म यवसाियक
का व तार होगा और आप अपने बड योजनाओं पर काय करना शु जीवन साथी का सद यो एवं िम ो का व ास पूनः
ा
े
सकर सकता है ।
वभाव संब ध म कमी लासकता ह। इस अविध म पा रवार क
कर सकते ह।
क या: 1 से 15 जुलाई 2011 : इस दौरान आपको अपनी योजनाओं म अनुकूल फल क
ाि
होगी।
यवसाियक
यय म कमी करने का
यास करे । नयी प रयोजना क
शु आत करने हे तु समय लाभ द रहे गा। आप अपनी िनयित के अनुसार कुशलता और बु मानी से मह वपूण काय को पूण करने म समथ होगे। भूिम-भवन से संबंिधत मामलो म
य- व य करना लाभदायक रहे गा।
16 से 31 जुलाई 2011 : मह वपूण िनणय लेने के िलये समय उ म रहे गा। आपके उपर झुठे आरोप लग सकते ह। इस िलये आपको अपनी समा जक रखने का
यास करना आव यक हो सकता ह।
आपको सफलता
ित ा को कायम
वप रत प र थतीओं म भी आपके
य
गत गुण और अनुभव
दान हे तु सहायक रहे गे। इस अविध म बना कसी बाधा के आप अपने ल य को
ा
कर सकते ह।
जुलाई 2011
59
तुला: 1 से 15 जुलाई 2011: इस दौरान कसी नये काय एवं योजनाओं को शु एवं अनुकूल प रणाम
ा
कर सकते है । आपक सामा जक
हे तु दखावा करने से पीछे नह ं रह सकते। अपको द ु
कर शुभ
ित ा को कायम करने
य
य से दरू रहना चा हये,
अ यथा बदनामी का सामना कर सकते ह। आपके घर-प रवार म खुशीओं का माहोल रहे गा। आप कसी धािमक काय अथवा अनु ान म सािमल हो सकते ह। 16 से 31 जुलाई 2011: इस अविध म आय के नये ह। आपक पूव क योजनाएं एवं
ोत
ा
होने के योग बन रहे
यास सफल ह गे ज से आपका भ व य उ जवल
होगा। आपके भीतर दसरो के िलये आिथक एवं िनजी तौर पर सहायक होने के भाव जा त हो सकते ह। कसी य ू वशेष से वाद- ववाद करने से बच। प रवार के साथ अ छा समय यितत करगे।
वृ
क:
1 से 15 जुलाई 2011 : इस अविध म आपको मह वपूण काय म
कावट और क
ितकूल प रणाम
ा
हो सकते ह।
का सामना करना पड सकता ह। आपको मन म
अनाव य भय और घबराहट हो सकती ह। आपनी सहनशीलता और मन मन म शांित बनाएं रखने का
यास कर। अपनी गलितओं का अवलोकन कर भ व य क योजनाओं
म उसे दरू करने का
यास कर।
16 से 31 जुलाई 2011 : इस दौरान आपको मह वपूण काय को सकता ह। आपको प र म के उपरांत साधारण फलो क प
ाि
थिगत करना पड
होगी। श ु एवं वरोिध
से वाद- ववाद करने से बचे अ यथा आपको अपमान, पराजय, पीड़ा एवं दःख हो सकता ह। अपनो से असहयोग ु
रहे गा। शार रक क
हो सकता ह अपने खान-पान का अित र
यान रख। अपना आ म व ास बनाएं रखे।
धनु: 1 से 15 जुलाई 2011 : अिधकार एवं सहकम का सहयोग पूण होग। एक से अिधक
ो
से आय
ा
ा
होने से
कर सकते ह।
विभ न
िनवेश करने का मन बना सकते ह। वप रत प र थती म अपने िनयं ण रखने का
के हएं ु काय
े ो म पूं ज
ोध एवं गु से पर
यास कर। मानिसक िच ताओं म कमी आयेगी। आपके इ
िम एवं
साथी के कारण यय बढ सकते ह। 16 से 31 जुलाई 2011 : नई प रयोजनाओं को शु करने और मह वपूण िनणय लेने हे तु समय लाभ द सा बत हो सकता ह। आिथक क ठनाई होगी। प रवार क सुख -शा त को बनाये रखने का ह। भूिम- भवन-वाहन के
य- व य से लाभ
ा
यास कर।
थती सुधरे गी परं तु धन सं ह करने म
यावसाियक काय के िलये कज लेना पड सकता
होने के योग बन रहे ह।
जुलाई 2011
60
मकर: 1 से 15 जुलाई 2011: इस दौरान आपको नौकर काय म नुकसान होने का खतरा ह।श ु एवं वरोिध प
यवसाय म क ठनाईय हो सकती ह।
य- व य से संबंिधत
के साथ म वाद- ववाद करने से बचे अ यथा आपको हार का
सामना पड सकता ह। अपने खाने- पीने का यान रखे अ यथा आपका का वा हो सकता है । जीवन साथी से सहयोग
ा
हो सकता ह।
16 से 30 जुलाई 2011: इस अविध म फायदे -नु शान पूर तरह आपके िनभर करे ग।
याशो पर
य- व य से संबंिधत काय म नुकसान होने का खतरा ह। आपके िनणयो
के अनु प आपका आने वाला भ व य पूण
प से िनभर हो सकता ह अतः गलत
िनणयो को लेने से बचे। अपने खान पानका वशेष हो सकती ह। आपके इ
कुंभ:
य नरम
यान रखे। पेट से संबंिधत परे शानी
िम -पा रवार क सद य आपसे दरू बना सकते ह।
1 से 15 जुलाई 2011 : यह माह मह वपूण फैसला लेने के िलए और नयी
प रयोजना
ारं भ करने के िलए शुभदायक हो सकता है । अ
यािशत
ोत से
आक मक धन लाभ िमलने क संभावना है । आज आप अपने उ रदािय व को पूण करने म समथ ह गे। आव यकता से अिधक भाग-दौड के कारण आपको थकावट हो सकती ह। आप काय के बोझ से मानिसक तनाव और िच ता से 16 से 30 जुलाई 2011: नया यापार, नौकर शु
त हो सकते ह।
करने के िलए, मह वपूण
य व ेय
या नया िनवेष करने के िलए उ म समय है । उ चािधका रय एवं सहकम का सहयोग ा
होगा। मानिसक परे शानी म िलये गये िनणय ग़लत हो सकता है । जीवन साथी
और ब चो के साथ खुशी-खुशी समय बताने का ा
यास करे । इस अविध म पा रवार क सद यो एवं िम ो का सहयोग
कर सकते ह।
मीन:
1 से 15 जुलाई 2011 : नौकर - यवसाय म संबंधो का सू म अवलोकन करना लाभ
द रहे गा। श ु एवं
वरोिध प
से सावधान रह, आपके उपर झुठे आरोप लग सकते ह। आपको अपनी
समा जक
ित ा को कायम रखने का
यास करना आव यक हो सकता ह।मह वपूण
िनणय लेने के िलये समय उ म रहे गा। अनुिचत काय शैली का याग कर। 16 से 30 जुलाई 2011: इस दौरान सावधानी से नयी प रयोजना और ऋण संबंधी सौदे क
शु आत करना लाभ द हो सकता ह।
अनाव यक कोई ववाद खडा हो सकता ह। गुण और अनुभव आपको सफलता लोगो का सहयोग
ा
होगा।
वरोिध एवं श ु प
से सावधान रह
वप रत प र थतीओं म भी आपके य
गत
दान हे तु सहायक रहे गे। दो त और प रवार के
जुलाई 2011
61
रािश र मूंगा
ह रा
प ना
मोती
माणेक
प ना
Red Coral
Diamond (Special)
Green Emerald
Naturel Pearl (Special)
Ruby (Old Berma) (Special)
Green Emerald
10 cent Rs. 4100 20 cent Rs. 8200 30 cent Rs. 12500 40 cent Rs. 18500 50 cent Rs. 23500
5.25" Rs. 9100 6.25" Rs. 12500 7.25" Rs. 14500 8.25" Rs. 19000 9.25" Rs. 23000 10.25" Rs. 28000
5.25" 6.25" 7.25" 8.25" 9.25" 10.25"
** All Weight In Rati
क रािश:
ह रा
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नीलम
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उ ल ध ह।
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जुलाई 2011
62
जुलाई 2011 मािसक पंचांग द वार
माह
प
ितिथ
1 शु
आषाढ़
कृ ण
अमाव या 14:23:46 आ ा
2 शिन
आषाढ़
शु ल एकम
13:23:12 पुनवसु
22:35:23
3 रव
आषाढ़
शु ल
11:56:24 पु य
4 सोम
आषाढ़
शु ल तृतीया
5 मंगल आषाढ़
शु ल चतुथ
तीया
पंचमी-
समाि
न
समाि
योग
करण
समाि
चं रािश
समाि
08:10:38 नाग
14:23:46 िमथुन
06:28:50 बव
13:23:12 िमथुन 16:45:00
21:45:09 हषण
25:57:20 कौलव
11:56:24 कक
10:08:03 अ ेषा
20:36:11 व
23:19:18 गर
10:08:03 कक
08:03:47 मघा
19:13:09 िस
20:30:58
व
08:03:47 िसंह
पूवाफा गुनी
23:02:12 वृ
समाि
17:42:39
व ु
यितपात 17:35:09 बालव
20:36:00
05:50:09 िसंह
23:20:00
6 बुध
आषाढ़
शु ल
7 गु
आषाढ़
शु ल स मी
16:10:16 व रयान 25:09:20 उ राफा गुनी
14:38:24 गर
14:19:39 क या
8 शु
आषाढ़
शु ल अ मी
22:51:02 ह त
14:38:51 प र ह
11:41:39
व
11:59:28 क या
9 शिन
आषाढ़
शु ल नवमी
20:39:18 िच ा
13:11:11 िशव
08:48:41 बालव
09:43:59 तुला
10 र व
आषाढ़
शु ल दशमी
18:36:01
वाती
11:52:54 िस
06:00:24 तैितल
07:36:01 तुला
11 सोम
आषाढ़
शु ल एकादशी
16:43:03
वशाखा
10:43:03 शुभ
24:53:22 व णज
05:38:22 वृ
क
12 मंगल आषाढ़
शु ल
ादशी
15:06:02 अनुराधा
09:49:10 शु ल
22:36:59 बालव
15:06:02 वृ
क
13 बुध
आषाढ़
शु ल
योदशी
13:44:58 जे ा
09:09:21
20:35:36 तैितल
13:44:58 वृ
क 09:09:00
14 गु
आषाढ़
शु ल चतुदशी
12:44:32 मूल
08:51:06 इ
18:52:02 व णज
12:44:32 धनु
15 शु
आषाढ़
शु ल पू णमा
12:10:21 पूवाषाढ़
08:55:21 वैध ृ ित
17:29:06 बव
12:10:21 धनु
16 शिन
ावण
कृ ण
एकम
12:02:26 उ राषाढ़
09:27:44
वषकुंभ
16:28:41 कौलव
12:02:26 मकर
17 र व
ावण
कृ ण
तीया
10:29:12
ीित
15:53:34 गर
12:26:23 मकर
18 सोम
ावण
कृ ण
तृतीया
ष ी
05:50:09
12:26:23
वण
13:23:10 धिन ा
12:02:32 आयु मान 15:42:51
व
13:23:10 कुंभ
25:54:00
29:00:00
15:01:00
23:12:00
जुलाई 2011
63
19 मंगल
ावण
कृ ण
चतुथ
14:49:57 शतिभषा
14:07:45 सौभा य
15:57:27 बालव
14:49:57 कुंभ
20 बुध
ावण
कृ ण
पंचमी
16:44:51 पूवाभा पद
16:38:18 शोभन
16:31:44 तैितल
16:44:51 कुंभ
21 गु
ावण
कृ ण
ष ी
18:59:28 उ राभा पद
19:27:35 अितगंड
17:21:01 गर
05:50:05 मीन
22 शु
ावण
कृ ण
स मी
21:21:34 रे वित
22:24:23 सुकमा
18:17:49
व
08:10:19 मीन
23 शिन
ावण
कृ ण
अ मी
23:39:56 अ
नी
25:16:30 धृ ित
19:12:45 बालव
10:32:26 मेष
24 र व
ावण
कृ ण
नवमी
25:39:33 भरणी
27:48:55 शूल
19:54:33 तैितल
12:42:22 मेष
25 सोम
ावण
कृ ण
दशमी
27:07:18 कृ ितका
29:52:18 गंड
20:13:51 व णज
14:27:55 मेष
26 मंगल
ावण
कृ ण
एकादशी
27:57:32 कृ ितका
05:51:55 वृ
20:05:02 बव
15:37:51 वृष
27 बुध
ावण
कृ ण
ादशी
28:02:47 रो ह ण
07:16:51
ुव
19:21:32 कौलव
16:05:36 वृष
28 गु
ावण
कृ ण
योदशी
27:23:59 मृगिशरा
07:57:44
याघात
18:04:17 गर
15:49:17 िमथुन
29 शु
ावण
कृ ण
चतुदशी
26:04:51 आ ा
07:54:33 हषण
16:12:21
30 शिन
ावण
कृ ण
अमाव या 24:10:06 पुनवसु
07:13:51 व
13:49:29 चतु पद
31 र व
ावण
शु ल एकम
05:58:29 िस
11:01:18
शा ो
21:48:10 पु य
मत के अनुशार दगा ु बीसा यं
गया ह। दगा बीसा यं ु
ारा
य
दगा ु बीसा यं
दभा ु य को दरू कर य
व
य द नवरा
म
ाण
22:24:00
10:23:00
19:42:00
14:48:55 िमथुन 25:27:00 13:11:03 कक
क तु न 11:02:14 कक
के सोये हवे ु भा य को जगाने वाला माना
को जीवन म धन से संबंिधत सं याओं म लाभ
आिथक सम यासे परे शान ह , वह य
09:58:00
ा
होता ह। जो
ित त कया गया दगा ु बीसा यं
को
थाि
य
कर
लेता ह, तो उसक धन, रोजगार एवं यवसाय से संबंधी सभी सम य का शी ह अंत होने लगता ह। नवरा
के दनो
म
ा
ाण
ह, य
ित त दगा ु बीसा यं
था पत करने से वशेष लाभ
को शुभ मुहू त म अपने घर-दकान -ओ फस म ु
था पत करने से वशेष लाभ
शी ह अपने यापार म वृ
पूण चैत य दगा ु बीसा यं ह।
को अपने घर-दकान -ओ फस-फै टर म ु एवं अपनी आिथक
थती म सुधार होता दे खगे। संपूण
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होता होता
जुलाई 2011
64
जुलाई-2011 मािसक त-पव- यौहार द 1
वार शु
माह आषाढ़
प कृ ण
ितिथ अमाव या
समाि
14:23:46
मुख
त- योहार
अमाव या,
नान-दान
हे तु
उ म
अमाव या,
हलहा रणी
अमावस,
आषाढ़ वंशवधक
अमाव या, 2
शिन
आषाढ़
शु ल
एकम
13:23:12
गु
आषाढ़ नवरा
ारं भ, नवीन च
ीजग नाथ-सुभ ा-बलराम 3
रव
आषाढ़
शु ल
तीया
11:56:24
मनोरथ
तीया
त,
-दशन,
रथया ा(पुर ), ीव लभाचाय वैकु ठ-
गमन, वरद वनायक 4
सोम
आषाढ़
शु ल
तृ तीया
10:08:03
गु ड चा
चतुथ
महो सव
त
(पुर ),
(चं.उ.रा.09:26), वामी
ववेकानंद
मृ ित दवस, 5
मंगल
आषाढ़
शु ल
चतुथ
08:03:47
6
बुध
आषाढ़
शु ल
पंचमी-ष ी
05:50:09
7
गु
आषाढ़
शु ल
स मी
25:09:20
8
शु
आषाढ़
शु ल
अ मी
22:51:02
9
शिन
आषाढ़
शु ल
नवमी
20:39:18
10
रव
आषाढ़
शु ल
दशमी
18:36:01
है रा पंचमी (उड़ सा) क द (कुमार) ष ी
त, कदम ष ी,
यामा
साद मुखज जयंती, कसुंबा ष ी (गुजरात), वव वत ् सूय-पूजन, सांई टे ऊँराम जयंती ीदगा मी ु
त,
ीअ नपूणा मी
परशुरामा मी, म हष नी
त,
त, हार अ मी,
भड़ला नवमी, क दप नवमी, हार नवमी-शा रका जयंती, गु
आषाढ़ नवरा
पूण,
आशा दशमी, िग रजा पूजा, सोपपदा दशमी, पुनया ा-उ टा रथ (उड़ सा), ीह र शयनी एकादशी, दे व शयनी एकादशी
11
सोम
आषाढ़
शु ल
एकादशी
16:43:03
त,
पंढरपुर-या ा
(महारा ),
जयंती, वैध ृ ित महापात
यामसुंदरदास
ात: 8.41 से रा
9.39
ारं भ, भौम- दोष
त,
तक 12
मंगल
आषाढ़
शु ल
ादशी
15:06:02
चातुमास
त-िनयम
वामन-पूजन, यामबाबा
ादशी,
ीकृ ण
ादशी,
जुलाई 2011
65
ह रवासर
ात: 9.47 तक, हार
ादशी, वासुदेव
ादशी, 13
14
बुध गु
आषाढ़ आषाढ़
शु ल शु ल
योदशी चतुदशी
13:44:58
12:44:32
मंगला तेरस, जयापावती
त
ारं भ (गुजरात),
िशव-शयन चतुदशी, शील चतुदशी, पू णमा
त,
को कला
ारं भ
तारं भ,
सा बाबा
उ सव
(िशरड ), गु
पू णमा, यास पू णमा, नान-दान हे तु उ म
आषाढ़ पू णमा, मु ड़या पूनम-गोवधन प र मा 15
शु
आषाढ़
शु ल
पू णमा
12:10:21
( ज), द
णामूित-पूजन, कनखल-कणघंटा म
नान, सं यािसय का चातुमास ारं भ, जयापावती त पूण, मैिथल साल 1419 शु , सा बाबा उ सव
16
शिन
ावण
कृ ण
एकम
पूण (िशरड ), बौ
का धमच - वतन (सारनाथ),
ावण मास
ारं भ, सावन मास-िशवाचन शु ,
सावन म शाक (साग) को याग, अशू यशयन त, 12:02:26
कक-सं ा त दे र रात 3.21 बजे, पु यकाल अगामी दन, सूय द
णायन, संक प म
योजनीय ‘वषा
ऋतु’ ारं भ, गो-घृ त दान, मनसादे वी पूजा शु , 17
रव
ावण
कृ ण
तीया
12:26:23
18
सोम
ावण
कृ ण
तृ तीया
13:23:10
पंचक
मंगल
ावण
कृ ण
चतुथ
14:49:57
11.29), कक-सं ा त का
पु यकाल सूय दय से म या संक ी गणेश चतुथ सोमवार सावन
19
ारं भ (रा
तक,
त (चं.उ.रा.8.53), सावन
त के
येक मंगलवार को भौम
मंगलागौर , दगाजी तथा संकटमोटन ु
त,
ीहनुमान का
दशन-पूजन (काशी) ु े र नागपंचमी, मौनापंचमी, भै या पंचमी, बटक
20
बुध
ावण
कृ ण
पंचमी
16:44:51
द
21
गु
ावण
कृ ण
ष ी
18:59:28
-
22
शु
ावण
कृ ण
स मी
21:21:34
शीतला स मी
मृ ित दवस,
जुलाई 2011
66
23
शिन
ावण
कृ ण
अ मी
23:39:56
काला मी
त, केर पूजा ( पुरा), लोकमा य
ितलक एवं
ीच
शेखर आजाद जयंती, हरकाली
पूजा 24
रव
ावण
कृ ण
नवमी
25:39:33
यितपात महापात सायं 4.23 से रा
25
सोम
ावण
कृ ण
दशमी
27:07:18
सावन सोमवार त
26
मंगल
ावण
कृ ण
एकादशी
27:57:32
27
बुध
ावण
कृ ण
ादशी
28:02:47
28
गु
ावण
कृ ण
योदशी
27:23:59
29
शु
ावण
कृ ण
चतुदशी
26:04:51
30
शिन
ावण
कृ ण
अमाव या
24:10:06
कािमका एकादशी गौर
1.15 तक
त, कमला एकादशी, मंगला
त
ितिथवासर ात: 9.59 तक, एकादशी त (िन बाक) दोष त िशव चतुदशी, मािसक िशवरा
त
नान-दान- ा
शनै र
ावणी
ह रयाली
अमावस,
अमाव या,
हे तु
उ म
शिनदे व-दशन,
वामी अख डानंद जयंती, आ द अमाव या (द ण), िचतलगी अमावस (उड़ सा)
31
गु
रव
ावण
शु ल
व कायालय ारा विभ न
कार के यं
सम या के अनुसार बनवा के मं िस जानते या नह कसकते) य
एकम
21:48:10
-
मं िस यं
कोपर ता
प , िसलवर (चांद ) ओर गो ड (सोने) मे विभ न
पूण ाण ित त एवं चैत य यु
कार क
कये जाते है . जसे साधारण (जो पूजा-पाठ नह
बना कसी पूजा अचना- विध वधान वशेष लाभ ा कर सकते है. जस मे िचन यं ो
स हत हमारे वष के अनुसंधान ारा बनाए गये यं भी समा हत है. इसके अलवा आपक आव यकता अनुशार यं बनवाए जाते है . गु
व कायालय ारा उपल ध कराये गये सभी यं अखं डत एवं २२ गेज शु
कोपर(ता
प )- 99.99 टच शु
िसलवर (चांद ) एवं 22 केरे ट गो ड (सोने) मे बनवाए जाते है . यं के वषय मे अिधक जानकार के िलये हे तु स पक करे
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जुलाई 2011
67
ववाह संबंिधत सम या या आपके लडके-लडक
क आपक शाद म अनाव यक
प से वल ब हो रहा ह या उनके वैवा हक जीवन म खुिशयां कम
होती जारह ह और सम या अिधक बढती जारह ह। एसी
थती होने पर अपने लडके-लडक
क कुंडली का अ ययन
अव य करवाले और उनके वैवा हक सुख को कम करने वाले दोष के िनवारण के उपायो के बार म व तार से जनकार
ा
कर।
िश ा से संबंिधत सम या या आपके लडके-लडक क पढाई म अनाव यक प से बाधा- व न या
कावटे हो रह ह? ब चो को अपने पूण प र म
एवं मेहनत का उिचत फल नह ं िमल रहा? अपने लडके-लडक क कुंडली का व तृ त अ ययन अव य करवाले और उनके व ा अ ययन म आनेवाली जनकार
ा
कावट एवं दोषो के कारण एवं उन दोष के िनवारण के उपायो के बार म व तार से
कर।
या आप कसी सम या से
त ह?
आपके पास अपनी सम याओं से छुटकारा पाने हे तु पूजा-अचना, साधना, मं
जाप इ या द करने का समय नह ं ह?
अब आप अपनी सम याओं से बीना कसी वशेष पूजा-अचना, विध- वधान के आपको अपने काय म सफलता कर सके एवं आपको अपने जीवन के सम त सुखो को ारा हमारा उ े य शा ो य
ा
करने का माग
विध- वधान से विश तेज वी मं ो ारा िस
ा
हो सके इस िलये गु
ाण- ित त पूण चैत य यु
ा
व कायालत
विभ न कार के
- कवच एवं शुभ फलदायी ह र एवं उपर आपके घर तक पहोचाने का है ।
योितष संबंिधत वशेष परामश योित व ान, अंक अनुभव के साथ
योितष, वा तु एवं आ या मक
ान स संबंिधत वषय म हमारे 30 वष से अिधक वष के
योितस से जुडे नये-नये संशोधन के आधार पर आप अपनी हर सम या के सरल समाधान
ा
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ओने स जो
य
उ च िश ा
प ना धारण करने मे असमथ हो उ ह बुध ाि
हे तु और
मरण श
के वकास हे तु ओने स र
उं गली या लॉकेट बनवा कर गले म धारण कर। ओने स र श
का वकास होता ह।
ह के उपर
ओने स को धारण करना चा हए।
क अंगूठ को दाय हाथ क सबसे छोट
धारण करने से व ा-बु
क
ाि
हो होकर
मरण
जुलाई 2011
68
जुलाई 2011 - वशेष योग काय िस दनांक योग अविध 11:01 से रातभर
योग
दनांक
योग अविध
21
सं या 7:26 से रातभर
22
स पूण दन-रात
1
रा
3
सूय दय से रा
9
दोपहर 1:10 से रातभर
27
स पूण दन-रात
11
ात: 10:42 से रातभर
29
ात: 7:54 से दन-रात
16
ात: 9:26 से रातभर
-
9:45 तक
-
अमृ त योग 22
सूय दय से रा
10:23 तक
पु कर योग (दोगुना फल) 17
ात: 10:28 से दन 12:26 तक
पु कर योग (तीनगुना फल) 2
दोपहर 1:23 से रा
10:34 तक
र व-पु यामृ त योग 3
सूय दय से रा
9:45 तक
सूय दय से
31
ात: 5:57 तक
योग फल : काय िस
योग मे कये गये शुभ काय मे िन
त सफलता ा होती ह, एसा शा ो
पु कर योग म कये गये शुभ काय का लाभ दोगुना होता ह। एसा शा ो
वचन ह।
वचन ह।
पु कर योग म कये गये शुभ काय का लाभ तीन गुना होता ह। एसा शा ो
दै िनक शुभ एवं अशुभ समय
वचन ह
ान तािलका
गुिलक काल
यम काल
राहु काल
(शुभ)
(अशुभ)
वार
समय अविध
समय अविध
समय अविध
र ववार
03:00 से 04:30
12:00 से 01:30
04:30 से 06:00
सोमवार
01:30 से 03:00
10:30 से 12:00
07:30 से 09:00
मंगलवार
12:00 से 01:30
09:00 से 10:30
03:00 से 04:30
बुधवार
10:30 से 12:00
07:30 से 09:00
12:00 से 01:30
गु वार
09:00 से 10:30
06:00 से 07:30
01:30 से 03:00
शु वार
07:30 से 09:00
03:00 से 04:30
10:30 से 12:00
शिनवार
06:00 से 07:30
01:30 से 03:00
09:00 से 10:30
(अशुभ)
जुलाई 2011
69
दन के चौघ डये समय
र ववार
सोमवार
मंगलवार बुधवार गु वार
शु वार
शिनवार
06:00 से 07:30
उ ेग
अमृ त
रोग
लाभ
शुभ
चल
काल
07:30 से 09:00
चल
काल
उ ेग
अमृत
रोग
लाभ
शुभ
09:00 से 10:30
लाभ
शुभ
चल
काल
उ ेग
अमृ त
रोग
10:30 से 12:00
अमृ त
रोग
लाभ
शुभ
चल
काल
उ ेग
12:00 से 01:30
काल
उ ेग
अमृ त
रोग
लाभ
शुभ
चल
01:30 से 03:00
शुभ
चल
काल
उ ेग
अमृ त
रोग
लाभ
03:00 से 04:30
रोग
लाभ
शुभ
चल
काल
उ ेग
अमृ त
04:30 से 06:00
उ ेग
अमृ त
रोग
लाभ
शुभ
चल
काल
रात के चौघ डये
शा ो
समय
र ववार
सोमवार
मंगलवार
बुधवार गु वार
शु वार
शिनवार
06:00 से 07:30
शुभ
चल
काल
उ ेग
अमृ त
रोग
लाभ
07:30 से 09:00
अमृ त
रोग
लाभ
शुभ
चल
काल
उ ेग
09:00 से 10:30
चल
काल
उ ेग
अमृ त
रोग
लाभ
शुभ
10:30 से 12:00
रोग
लाभ
शुभ
चल
काल
उ ेग
अमृ त
12:00 से 01:30
काल
उ ेग
अमृ त
रोग
लाभ
शुभ
चल
01:30 से 03:00
लाभ
शुभ
चल
काल
उ ेग
अमृ त
रोग
03:00 से 04:30
उ ेग
अमृ त
रोग
लाभ
शुभ
चल
काल
04:30 से 06:00
शुभ
चल
काल
उ ेग
अमृ त
रोग
लाभ
मत के अनुशार य द कसी भी काय का ारं भ शुभ मुहू त या शुभ समय पर कया जाये तो काय म सफलता
ा होने क संभावना यादा बल हो जाती ह। इस िलये दै िनक शुभ समय चौघ ड़या दे खकर ा
कया जा सकता ह।
नोट: ायः दन और रा
येक चौघ ड़ये क अविध 1
के चौघ ड़ये क िगनती
मशः सूय दय और सूया त से क जाती ह।
घंटा 30 िमिनट अथात डे ढ़ घंटा होती ह। समय के अनुसार चौघ ड़ये को शुभाशुभ तीन भाग म बांटा जाता ह, जो म यम और अशुभ ह।
चौघ डये के
वामी
ह
मशः शुभ,
* हर काय के िलये शुभ/अमृ त/लाभ का
शुभ चौघ डया
म यम चौघ डया
अशुभ चौघ ड़या
चौघ डया
वामी ह
चौघ डया
वामी ह
चौघ डया
वामी ह
शुभ
गु
चर
शु
उ ेग
सूय
अमृ त
चं मा
काल
शिन
लाभ
बुध
रोग
मंगल
चौघ ड़या उ म माना जाता ह। * हर काय के िलये चल/काल/रोग/उ े ग का चौघ ड़या उिचत नह ं माना जाता।
जुलाई 2011
70
दन क होरा - सूय दय से सूया त तक वार
1.घं
2.घं
3.घं
4.घं
5.घं
6.घं
7.घं
8.घं
9.घं
10.घं 11.घं 12.घं
र ववार
सूय
शु
बुध
चं
शिन
गु
मंगल
सूय
शु
बुध
चं
शिन
सोमवार
चं
शिन
गु
मंगल सूय
शु
बुध
चं
शिन
गु
मंगल
सूय
मंगलवार
मंगल
सूय
शु
बुध
चं
शिन
गु
मंगल
सूय
शु
बुध
चं
बुधवार
बुध
चं
शिन
गु
मंगल सूय
शु
बुध
चं
शिन
गु
मंगल
गु वार
गु
मंगल
सूय
शु
बुध
चं
शिन
गु
मंगल
सूय
शु
बुध
शु वार
शु
बुध
चं
शिन
गु
मंगल
सूय
शु
बुध
चं
शिन
गु
शिनवार
शिन
गु
मंगल
सूय
शु
बुध
चं
शिन
गु
मंगल
सूय
शु
रात क होरा – सूया त से सूय दय तक र ववार
गु
मंगल
सूय
शु
बुध
चं
शिन
गु
मंगल
सूय
शु
बुध
सोमवार
शु
बुध
चं
शिन
गु
मंगल
सूय
शु
बुध
चं
शिन
गु
मंगलवार
शिन
गु
मंगल
सूय
शु
बुध
चं
शिन
गु
मंगल
सूय
शु
बुधवार
सूय
शु
बुध
चं
शिन
गु
मंगल
सूय
शु
बुध
चं
शिन
गु वार
चं
शिन
गु
मंगल सूय
शु
बुध
चं
शिन
गु
मंगल
सूय
शु वार
मंगल
सूय
शु
बुध
चं
शिन
गु
मंगल
सूय
शु
बुध
चं
शिनवार
बुध
चं
शिन
गु
मंगल सूय
शु
बुध
चं
शिन
गु
मंगल
होरा मुहू त को काय िस को समय से पूव
के िलए पूण फलदायक एवं अचूक माना जाता ह, दन-रात के २४ घंट म शुभ-अशुभ समय
ात कर अपने काय िस
के िलए
योग करना चा हये।
व ानो के मत से इ छत काय िस
के िलए
ह से संबंिधत होरा का चुनाव करने से वशेष लाभ
ा
होता ह। सूय क होरा सरकार काय के िलये उ म होती ह। चं मा क होरा सभी काय के िलये उ म होती ह। मंगल क होरा कोट-कचेर के काय के िलये उ म होती ह। बुध क होरा व ा-बु
अथात पढाई के िलये उ म होती ह।
गु
क होरा धािमक काय एवं ववाह के िलये उ म होती ह।
शु
क होरा या ा के िलये उ म होती ह।
शिन क होरा धन-
य संबंिधत काय के िलये उ म होती ह।
जुलाई 2011
71
ह चलन जुलाई -2011 Day 1
Sun
Mon
Ma
Me
Jup
Ven
Sat
Rah
Ket
Ua
Nep
Plu
02:14:49
02:10:15
01:13:00
03:03:52
00:10:54
02:02:05
05:16:41
07:29:26
01:29:26
11:10:30
10:06:42
08:12:06
2
02:15:47
02:23:38
01:13:42
03:05:34
00:11:03
02:03:18
05:16:42
07:29:25
01:29:25
11:10:30
10:06:41
08:12:05
3
02:16:44
03:07:17
01:14:24
03:07:15
00:11:13
02:04:32
05:16:44
07:29:23
01:29:23
11:10:31
10:06:40
08:12:03
4
02:17:41
03:21:10
01:15:06
03:08:53
00:11:23
02:05:45
05:16:46
07:29:21
01:29:21
11:10:31
10:06:39
08:12:01
5
02:18:38
04:05:14
01:15:48
03:10:28
00:11:32
02:06:58
05:16:49
07:29:19
01:29:19
11:10:31
10:06:38
08:12:00
6
02:19:35
04:19:25
01:16:30
03:12:02
00:11:41
02:08:12
05:16:51
07:29:16
01:29:16
11:10:32
10:06:37
08:11:58
7
02:20:33
05:03:39
01:17:12
03:13:33
00:11:51
02:09:25
05:16:53
07:29:15
01:29:15
11:10:32
10:06:36
08:11:57
8
02:21:30
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00:12:00
02:10:39
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9
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06:02:07
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00:12:09
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11:10:32
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08:11:54
10
02:23:24
06:16:15
01:19:18
03:17:54
00:12:18
02:13:06
05:17:00
07:29:15
01:29:15
11:10:32
10:06:33
08:11:52
11
02:24:21
07:00:17
01:20:00
03:19:16
00:12:26
02:14:19
05:17:03
07:29:17
01:29:17
11:10:32
10:06:32
08:11:51
12
02:25:19
07:14:11
01:20:41
03:20:36
00:12:35
02:15:33
05:17:06
07:29:18
01:29:18
11:10:32
10:06:31
08:11:49
13
02:26:16
07:27:55
01:21:23
03:21:54
00:12:43
02:16:46
05:17:09
07:29:18
01:29:18
11:10:32
10:06:30
08:11:48
14
02:27:13
08:11:28
01:22:05
03:23:09
00:12:52
02:18:00
05:17:12
07:29:18
01:29:18
11:10:32
10:06:29
08:11:47
15
02:28:10
08:24:47
01:22:46
03:24:21
00:13:00
02:19:14
05:17:15
07:29:16
01:29:16
11:10:31
10:06:27
08:11:45
16
02:29:07
09:07:52
01:23:27
03:25:32
00:13:08
02:20:27
05:17:18
07:29:13
01:29:13
11:10:31
10:06:26
08:11:44
17
03:00:05
09:20:41
01:24:09
03:26:39
00:13:16
02:21:41
05:17:21
07:29:08
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11:10:31
10:06:25
08:11:42
18
03:01:02
10:03:16
01:24:50
03:27:44
00:13:23
02:22:54
05:17:24
07:29:03
01:29:03
11:10:30
10:06:24
08:11:41
19
03:01:59
10:15:37
01:25:31
03:28:46
00:13:31
02:24:08
05:17:28
07:28:58
01:28:58
11:10:30
10:06:22
08:11:39
20
03:02:56
10:27:45
01:26:13
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00:13:38
02:25:22
05:17:31
07:28:53
01:28:53
11:10:30
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08:11:38
21
03:03:54
11:09:44
01:26:54
04:00:41
00:13:46
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11:10:29
10:06:20
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22
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00:13:53
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07:28:47
01:28:47
11:10:29
10:06:19
08:11:35
23
03:05:48
00:03:30
01:28:16
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02:29:03
05:17:42
07:28:46
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10:06:17
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24
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03:00:17
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10:06:16
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25
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00:27:31
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03:01:30
05:17:50
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11:10:27
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01:09:48
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03:02:44
05:17:54
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11:10:26
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27
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01:22:23
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00:14:26
03:03:58
05:17:58
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01:28:50
11:10:25
10:06:12
08:11:28
28
03:10:35
02:05:19
02:01:40
04:05:37
00:14:33
03:05:12
05:18:02
07:28:50
01:28:50
11:10:24
10:06:10
08:11:27
29
03:11:32
02:18:38
02:02:20
04:06:04
00:14:39
03:06:26
05:18:06
07:28:48
01:28:48
11:10:23
10:06:09
08:11:26
30
03:12:29
03:02:20
02:03:01
04:06:27
00:14:45
03:07:40
05:18:10
07:28:44
01:28:44
11:10:22
10:06:07
08:11:25
31
03:13:27
03:16:23
02:03:41
04:06:45
00:14:50
03:08:54
05:18:15
07:28:39
01:28:39
11:10:22
10:06:06
08:11:23
जुलाई 2011
72
सव रोगनाशक यं /कवच मनु य अपने जीवन के विभ न समय पर कसी ना कसी सा य या असा य रोग से उिचत उपचार से
यादातर सा य रोगो से तो मु
होजाते ह, या कोइ असा य रोग से पाता। डॉ टर िलये य
िमल जाती ह, ले कन कभी-कभी सा य रोग होकर भी असा या
िसत होजाते ह। हजारो लाखो
ा
नह ं हो
थती म लाभा
ाि
के
एक डॉ टर से दसरे डॉ टर के च कर लगाने को बा य हो जाता ह। ू
एवं तं
उ लेख अपने
को विभ न रोग से
ताप से रोग शांित हे तु विभ न आयुवर औषधो के अित र
ंथो म कर मानव जीवन को लाभ
बु जीवो के मत से जो य से
पये खच करने पर भी अिधक लाभ
ारा दजाने वाली दवाईया अ प समय के िलये कारगर सा बत होती ह, एिस
भारतीय ऋषीयोने अपने योग साधना के मं
त होता ह।
जीवनभर अपनी दनचया पर िनयम, संयम रख कर आहार यो क सम
संसार काल के अधीन ह। एवं मृ यु िन
और कोई टाल नह ं सकता, ले कन रोग होने क मं
एवं तं
को कम करने का
यास हजारो वष पूव कया था। हण करता ह, एसे य
िसत होने क संभावना कम होती ह। ले कन आज के बदलते युग म एसे य
त होते दख जाते ह।
इस िलये यं
दान करने का साथक
थती म य
रोग दरू करने का
के कुशल जानकार से यो य मागदशन लेकर य
यं ,
भी भयंकर रोग
त ह जसे वधाता के अलावा यास तो अव य कर सकता ह।
रोगो से मु
पाने का या उसके
भावो
यास भी अव य कर सकता ह।
योितष व ा के कुशल जानकर भी काल पु षक गणना कर अनेक रोगो के अनेको रह य को उजागर कर सकते ह। योितष शा
के मा यम से रोग के मूलको पकडने मे सहयोग िमलता ह, जहा आधुिनक िच क सा शा
अ म होजाता ह वहा
योितष शा
उपायोगी िस
ारा रोग के मूल(जड़) को पकड कर उसका िनदान करना लाभदायक एवं
होता ह।
हर य
म लाल रं गक कोिशकाए पाइ जाती ह, जसका िनयमीत वकास
जब इन कोिशकाओ के
म म प रवतन होता है या वखं डन होता ह तब य
उ प न होते ह। एवं इन कोिशकाओ का संबंध नव ज मांग से दशा-महादशा एवं
हो क गोचर म
म ब
के शर र म
थती से
ा
य संबंधी वकारो
के मा यम से
य
के ज मांग म
भाव को कम करने का काय सरलता पूव क कया जासकता ह। जेसे हर य
पृ वी का गु
वाकषण बल
सकारा मक
भाव से य
ठक उसी ा
य
के
होता ह।
हो के अशुभ
को सकारा मक उजा
वा
हो के साथ होता ह। ज से रोगो के होने के कारणा
सव रोग िनवारण कवच एवं महामृ युंजय यं भावीत कता ह
तर के से होता रहता ह।
कार कवच एवं यं
होती ह ज से रोग के
थत कमजोर एवं पी डत को
के मा यम से
ांड क उजा एवं ांड
क उजा के
भाव को कम कर रोग मु
करने हे तु
सहायता िमलती ह। रोग िनवारण हे तु महामृ युंजय मं महामृ युंजय मं
से प रिचत ह।
एवं यं
का बडा मह व ह। ज से ह द ू सं कृ ित का
ायः हर
य
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वचन ह जस घर म महामृ युंजय यं
था पत होता ह वहा िनवास कता हो नाना
कवच के लाभ :
एसा शा ो
कार क
आिध- यािध-उपािध से र ा होती ह।
पूण
ाण
ित त एवं पूण चैत य यु
सव रोग िनवारण कवच कसी भी उ
एवं जाित धम के लोग चाहे
ी हो या पु ष धारण कर सकते ह।
ज मांगम अनेक कारके खराब योगो और खराब
कुछ रोग सं मण से होते ह एवं कुछ रोग खान-पान क अिनयिमतता और अशु तासे उ प न होते ह। कवच एवं यं
ारा एसे अनेक कार के खराब योगो को न
सव रोगनाशक कवच एवं यं
हो क
ितकूलता से रोग उतप न होते ह।
कर, वा
य लाभ और शार रक र ण
ा
करने हे तु
सव उपयोगी होता ह।
आज के भौितकता वाद आधुिनक युगमे अनेक एसे रोग होते ह, जसका उपचार ओपरे शन और दवासे भी क ठन हो जाता ह। कुछ रोग एसे होते ह जसे बताने म लोग हच कचाते ह शरम अनुभव करते ह एसे रोगो को रोकने हे तु एवं उसके उपचार हे तु सव रोगनाशक कवच एवं यं
येक य
थती म उपचार हे तु सवरोगनाशक कवच एवं यं
जस घर म पता-पु , माता-पु , माता-पु ी, या दो भाई एक ह न अिधक क दायक
जस य
थती होती ह। उपचार हे तु महामृ युंजय यं
ाण
से संपक कर।
ित त एवं पूण चैत य यु
फल द होता ह।
मे ज म लेते ह, तब उसक माता के िलये
फल द होता ह।
का ज म प रिध योगमे होता ह उ हे होने वाले मृ यु तु य क
उपचार हे तु सव रोगनाशक कवच एवं यं नोट:- पूण
होता ह।
क जेसे-जेसे आयु बढती ह वैसे-वसै उसके शर र क ऊजा होती जाती ह। जसके साथ अनेक
कार के वकार पैदा होने लगते ह एसी
लाभादािय िस
एवं होने वाले रोग, िचंता म
शुभ फल द होता ह। सव रोग िनवारण कवच एवं यं
के बारे म अिधक जानकार हे तु हम
Declaration Notice We do not accept liability for any out of date or incorrect information. We will not be liable for your any indirect consequential loss, loss of profit, If you will cancel your order for any article we can not any amount will be refunded or Exchange. We are keepers of secrets. We honour our clients' rights to privacy and will release no information about our any other clients' transactions with us. Our ability lies in having learned to read the subtle spiritual energy, Yantra, mantra and promptings of the natural and spiritual world. Our skill lies in communicating clearly and honestly with each client. Our all kawach, yantra and any other article are prepared on the Principle of Positiv energy, our Article dose not produce any bad energy.
Our Goal Here Our goal has The classical Method-Legislation with Proved by specific with fiery chants prestigious full consciousness (Puarn Praan Pratisthit) Give miraculous powers & Good effect All types of Yantra, Kavach, Rudraksh, preciouse and semi preciouse Gems stone deliver on your door step.
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मं िस कवच
मं िस कवच को वशेष योजन म उपयोग के िलए और शी
भाव शाली बनाने के िलए तेज वी मं ो ारा
शुभ महत ू म शुभ दन को तैयार कये जाते है . अलग-अलग कवच तैयार करने केिलए अलग-अलग तरह के मं ो का योग कया जाता है .
य चुने मं िस कवच?
उपयोग म आसान कोई ितब ध नह ं कोई वशेष िनित-िनयम नह ं कोई बुरा भाव नह ं कवच के बारे म अिधक जानकार हे तु सव काय िस
कवच - 3700/-
ऋण मु
कवच सूिच
कवच - 730/-
वरोध नाशक कवचा- 550/-
सवजन वशीकरण कवच - 1050/-*
नव ह शांित कवच- 730/-
अ ल मी कवच - 1050/-
तं र ा कवच- 730/-
आक मक धन ाि कवच-910/-
श ु वजय कवच - 640/- *
नज़र र ा कवच - 460/-
भूिम लाभ कवच - 910/-
पद उ नित कवच- 640/-
यापर वृ
संतान ाि कवच - 910/-
धन ाि कवच- 640/-
पित वशीकरण कवच - 370/-*
काय िस
ववाह बाधा िनवारण कवच- 640/-
दभा ु य नाशक कवच - 370/-
कवच - 910/-
के िलए)
प ी वशीकरण कवच - 460/-* कवच - 370/-
काम दे व कवच - 820/-
म त क पृ
जगत मोहन कवच -730/-*
कामना पूित कवच- 550/-
सर वती कवक- 280/- क ा 10 तक के िलए
व न बाधा िनवारण कवच- 550/-
वशीकरण कवच - 280/-* 1 य
पे - यापार वृ
*कवच मा
कवच - 730/-
वधक कवच- 640/-
वशीकरण कवच- 550/-* (2-3 य
सर वती कवक - 370/- क ा+ 10 के िलए
शुभ काय या उ े य के िलये
GURUTVA KARYALAY 92/3. BANK COLONY, BRAHMESHWAR PATNA, BHUBNESWAR-751018, (ORISSA) Call Us - 9338213418, 9238328785 Our Website:- http://gk.yolasite.com/ and http://gurutvakaryalay.blogspot.com/ Email Us:- gurutva_karyalay@yahoo.in, gurutva.karyalay@gmail.com (ALL DISPUTES SUBJECT TO BHUBANESWAR JURISDICTION) (ALL DISPUTES SUBJECT TO BHUBANESWAR JURISDICTION)
के िलए
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YANTRA LIST Our Splecial Yantra 1 2 3 4 5 6 7 8 9 10
12 – YANTRA SET VYAPAR VRUDDHI YANTRA BHOOMI LABHA YANTRA TANTRA RAKSHA YANTRA AAKASMIK DHAN PRAPTI YANTRA PADOUNNATI YANTRA RATNE SHWARI YANTRA BHUMI PRAPTI YANTRA GRUH PRAPTI YANTRA KAILASH DHAN RAKSHA YANTRA
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EFFECTS For all Family Troubles For Business Development For Farming Benefits For Protection Evil Sprite For Unexpected Wealth Benefits For Getting Promotion For Benefits of Gems & Jewellery For Land Obtained For Ready Made House -
Shastrokt Yantra 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42
AADHYA SHAKTI AMBAJEE(DURGA) YANTRA BAGALA MUKHI YANTRA (PITTAL) BAGALA MUKHI POOJAN YANTRA (PITTAL) BHAGYA VARDHAK YANTRA BHAY NASHAK YANTRA CHAMUNDA BISHA YANTRA (Navgraha Yukta) CHHINNAMASTA POOJAN YANTRA DARIDRA VINASHAK YANTRA DHANDA POOJAN YANTRA DHANDA YAKSHANI YANTRA GANESH YANTRA (Sampurna Beej Mantra) GARBHA STAMBHAN YANTRA GAYATRI BISHA YANTRA HANUMAN YANTRA JWAR NIVARAN YANTRA JYOTISH TANTRA GYAN VIGYAN PRAD SHIDDHA BISHA YANTRA KALI YANTRA KALPVRUKSHA YANTRA KALSARP YANTRA (NAGPASH YANTRA) KANAK DHARA YANTRA KARTVIRYAJUN POOJAN YANTRA KARYA SHIDDHI YANTRA SARVA KARYA SHIDDHI YANTRA KRISHNA BISHA YANTRA KUBER YANTRA LAGNA BADHA NIVARAN YANTRA LAKSHAMI GANESH YANTRA MAHA MRUTYUNJAY YANTRA MAHA MRUTYUNJAY POOJAN YANTRA MANGAL YANTRA ( TRIKON 21 BEEJ MANTRA) MANO VANCHHIT KANYA PRAPTI YANTRA NAVDURGA YANTRA
Blessing of Durga Win over Enemies Blessing of Bagala Mukhi For Good Luck For Fear Ending Blessing of Chamunda & Navgraha Blessing of Chhinnamasta For Poverty Ending For Good Wealth For Good Wealth Blessing of Lord Ganesh For Pregnancy Protection Blessing of Gayatri Blessing of Lord Hanuman For Fewer Ending For Astrology & Spritual Knowlage Blessing of Kali For Fullfill your all Ambition Destroyed negative effect of Kalsarp Yoga Blessing of Maha Lakshami For Successes in work For Successes in all work Blessing of Lord Krishna Blessing of Kuber (Good wealth) For Obstaele Of marriage Blessing of Lakshami & Ganesh For Good Health Blessing of Shiva For Fullfill your all Ambition For Marriage with choice able Girl Blessing of Durga
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YANTRA LIST
43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64
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EFFECTS
NAVGRAHA SHANTI YANTRA NAVGRAHA YUKTA BISHA YANTRA SURYA YANTRA CHANDRA YANTRA MANGAL YANTRA BUDHA YANTRA GURU YANTRA (BRUHASPATI YANTRA) SUKRA YANTRA SHANI YANTRA (COPER & STEEL) RAHU YANTRA KETU YANTRA PITRU DOSH NIVARAN YANTRA PRASAW KASHT NIVARAN YANTRA RAJ RAJESHWARI VANCHA KALPLATA YANTRA RAM YANTRA RIDDHI SHIDDHI DATA YANTRA ROG-KASHT DARIDRATA NASHAK YANTRA SANKAT MOCHAN YANTRA SANTAN GOPAL YANTRA SANTAN PRAPTI YANTRA SARASWATI YANTRA SHIV YANTRA
For good effect of 9 Planets For good effect of 9 Planets Good effect of Sun Good effect of Moon Good effect of Mars Good effect of Mercury Good effect of Jyupiter Good effect of Venus Good effect of Saturn Good effect of Rahu Good effect of Ketu For Ancestor Fault Ending For Pregnancy Pain Ending For Benefits of State & Central Gov Blessing of Ram Blessing of Riddhi-Siddhi For Disease- Pain- Poverty Ending For Trouble Ending Blessing Lorg Krishana For child acquisition For child acquisition Blessing of Sawaswati (For Study & Education) Blessing of Shiv Blessing of Maa Lakshami for Good Wealth & 65 SHREE YANTRA (SAMPURNA BEEJ MANTRA) Peace SHREE YANTRA SHREE SUKTA YANTRA Blessing of Maa Lakshami for Good Wealth 66 For Bad Dreams Ending 67 SWAPNA BHAY NIVARAN YANTRA For Vehicle Accident Ending 68 VAHAN DURGHATNA NASHAK YANTRA VAIBHAV LAKSHMI YANTRA (MAHA SHIDDHI DAYAK SHREE Blessing of Maa Lakshami for Good Wealth & All 69 MAHALAKSHAMI YANTRA) Successes VASTU YANTRA For Bulding Defect Ending 70 For Education- Fame- state Award Winning 71 VIDHYA YASH VIBHUTI RAJ SAMMAN PRAD BISHA YANTRA VISHNU BISHA YANTRA Blessing of Lord Vishnu (Narayan) 72 Attraction For office Purpose 73 VASI KARAN YANTRA Attraction For Female MOHINI VASI KARAN YANTRA 74 Attraction For Husband PATI VASI KARAN YANTRA 75 Attraction For Wife PATNI VASI KARAN YANTRA 76 Attraction For Marriage Purpose VIVAH VASHI KARAN YANTRA 77 Yantra Available @:- Rs- 190, 280, 370, 460, 550, 640, 730, 820, 910, 1250, 1850, 2300, 2800 and Above…..
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GURUTVA KARYALAY NAME OF GEM STONE
GENERAL
MEDIUM FINE
FINE
SUPER FINE
Emerald (प ना) Yellow Sapphire (पुखराज) Blue Sapphire (नीलम) White Sapphire (सफ़ेद पुखराज) Bangkok Black Blue(बकोक नीलम) Ruby (मा णक) Ruby Berma (बमा मा णक) Speenal (नरम मा णक/लालड ) Pearl (मोित) Red Coral (4 jrh rd) (लाल मूंगा) Red Coral (4 jrh ls mij) (लाल मूंगा) White Coral (सफ़ेद मूंगा) Cat’s Eye (लहसुिनया) Cat’s Eye Orissa (उ डसा लहसुिनया) Gomed (गोमेद) Gomed CLN (िसलोनी गोमेद) Zarakan (जरकन) Aquamarine (बे ज) Lolite (नीली) Turquoise ( फ़रोजा) Golden Topaz (सुनहला) Real Topaz (उ डसा पुखराज/टोपज) Blue Topaz (नीला टोपज) White Topaz (सफ़ेद टोपज) Amethyst (कटे ला) Opal (उपल) Garnet (गारनेट) Tourmaline (तुमलीन) Star Ruby (सुय का त म ण) Black Star (काला टार) Green Onyx (ओने स) Real Onyx (ओने स) Lapis (लाजवत) Moon Stone (च का त म ण) Rock Crystal ( फ़ टक) Kidney Stone (दाना फ़रं गी) Tiger Eye (टाइगर टोन) Jade (मरगच) Sun Stone (सन िसतारा) Diamond (ह रा)
100.00 370.00 370.00 370.00 80.00 55.00 2800.00 300.00 30.00 55.00 90.00 15.00 18.00 210.00 15.00 300.00 150.00 190.00 50.00 15.00 15.00 60.00 60.00 50.00 15.00 30.00 30.00 120.00 45.00 10.00 09.00 60.00 15.00 12.00 09.00 09.00 03.00 12.00 12.00 50.00
500.00 900.00 900.00 900.00 150.00 190.00 3700.00 600.00 60.00 75.00 120.00 24.00 27.00 410.00 27.00 410.00 230.00 280.00 120.00 20.00 20.00 90.00 90.00 90.00 20.00 45.00 45.00 140.00 75.00 20.00 12.00 90.00 25.00 21.00 12.00 11.00 05.00 19.00 19.00 100.00
1200.00 1900.00 1500.00 2800.00 1500.00 2800.00 1500.00 2400.00 200.00 500.00 370.00 730.00 4500.00 10000.00 1200.00 2100.00 90.00 120.00 90.00 120.00 140.00 180.00 33.00 42.00 60.00 90.00 640.00 1800.00 60.00 90.00 640.00 1800.00 330.00 410.00 370.00 550.00 230.00 390.00 30.00 45.00 30.00 45.00 120.00 280.00 120.00 280.00 120.00 240.00 30.00 45.00 90.00 120.00 90.00 120.00 190.00 300.00 90.00 120.00 30.00 40.00 15.00 19.00 120.00 190.00 30.00 45.00 30.00 45.00 15.00 30.00 15.00 19.00 10.00 15.00 23.00 27.00 23.00 27.00 200.00 370.00
(.05 to .20 Cent )
(Per Cent )
(Per Cent )
(PerCent )
SPECIAL
2800.00 & above 4600.00 & above 4600.00 & above 4600.00 & above 1000.00 & above 1900.00 & above 21000.00 & above 3200.00 & above 280.00 & above 180.00 & above 280.00 & above 51.00 & above 120.00 & above 2800.00 & above 120.00 & above 2800.00 & above 550.00 & above 730.00 & above 500.00 & above 55.00 & above 55.00 & above 460.00 & above 460.00 & above 410.00& above 55.00 & above 190.00 & above 190.00 & above 730.00 & above 190.00 & above 50.00 & above 25.00 & above 280.00 & above 55.00 & above 100.00 & above 45.00 & above 21.00 & above 21.00 & above 45.00 & above 45.00 & above 460.00 & above
(Per Cent)
(Per Cent )
Note : Bangkok (Black) Blue for Shani, not good in looking but mor effective, Blue Topaz not Sapphire This Color of Sky Blue, For Venus *** Super fine & Special Quality Not Available Easily. We can try only after getting order fortunately one or two pieces may be available if possible you can tack corres pondence about
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BOOK PHONE/ CHAT CONSULTATION We are mostly engaged in spreading the ancient knowledge of Astrology, Numerology, Vastu and Spiritual Science in the modern context, across the world. Our research and experiments on the basic principals of various ancient sciences for the use of common man. exhaustive guide lines exhibited in the original Sanskrit texts
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How Does it work Phone/Chat Consultation This is a unique service of GURUATVA KARYALAY where we offer you the option of having a personalized discussion with our expert astrologers. There is no limit on the number of question although time is of consideration. Once you request for the consultation, with a suggestion as to your convenient time we get back with a confirmation whether the time is available for consultation or not. We send you a Phone Number at the designated time of the appointment We send you a Chat URL / ID to visit at the designated time of the appointment You would need to refer your Booking number before the chat is initiated Please remember it takes about 1-2 minutes before the chat process is initiated. Once the chat is initiated you can commence asking your questions and clarifications We recommend 25 minutes when you need to consult for one persona Only and usually the time is sufficient for 3-5 questions depending on the timing questions that are put. For more than these questions or one birth charts we would recommend 60/45 minutes Phone/chat is recommended Our expert is assisted by our technician and so chatting & typing is not a bottle neck In special cases we don't have the time available about your Specific Questions We will taken some time for properly Analysis your birth chart and we get back with an alternate or ask you for an alternate. All the time mentioned is Indian Standard Time which is + 5.30 hr ahead of G.M.T. Many clients prefer the chat so that many questions that come up during a personal discussion can be answered right away. BOOKING FOR PHONE/ CHAT CONSULTATION PLEASE CONTECT
GURUTVA KARYALAY Call Us:- 91+9338213418, 91+9238328785. Email Us:- gurutva_karyalay@yahoo.in, gurutva.karyalay@gmail.com, chintan_n_joshi@yahoo.co.in,
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सूचना प का म कािशत सभी लेख प का के अिधकार के साथ ह आर
त ह।
लेख कािशत होना का मतलब यह कतई नह ं क कायालय या संपादक भी इन वचारो से सहमत ह । ना तक/ अ व ासु य प का म
मा पठन साम ी समझ सकते ह।
कािशत कसी भी नाम, थान या घटना का उ लेख यहां कसी भी य
वशेष या कसी भी थान या
घटना से कोई संबंध नह ं ह।
कािशत लेख
योितष, अंक
योितष, वा तु, मं , यं , तं , आ या मक
ान पर आधा रत होने के कारण
य द कसी के लेख, कसी भी नाम, थान या घटना का कसी के वा त वक जीवन से मेल होता ह तो यह मा एक संयोग ह।
कािशत सभी लेख भारितय आ या मक शा स यता अथवा
अ य लेखको
ामा णकता पर कसी भी ारा
से
े रत होकर िलये जाते ह। इस कारण इन वषयो क
कार क ज मेदार कायालय या संपादक क नह ं ह।
दान कये गये लेख/ योग क
ामा णकता एवं
भाव क ज मेदार कायालय या संपादक
क नह ं ह। और नाह ं लेखक के पते ठकाने के बारे म जानकार दे ने हे तु कायालय या संपादक कसी भी कार से बा य ह।
योितष, अंक
योितष, वा तु, मं , यं , तं , आ या मक
व ास होना आव यक ह। कसी भी य का अंितम िनणय पाठक
वशेष को कसी भी
ान पर आधा रत लेखो म पाठक का अपना कार से इन वषयो म व ास करने ना करने
वयं का होगा।
ारा कसी भी
कार क आप ी
वीकाय नह ं होगी।
हमारे ारा पो ट कये गये सभी लेख हमारे वष के अनुभव एवं अनुशंधान के आधार पर िलखे होते ह। हम कसी भी य वशेष ारा योग कये जाने वाले मं - यं या अ य योग या उपायोक ज मेदार न हं लेते ह। यह ज मेदार मं -यं या अ य योग या उपायोको करने वाले य मानदं ड , सामा जक , कानूनी िनयम के खलाफ कोई
य
क वयं क होगी। यो क इन वषयो म नैितक
य द नीजी
वाथ पूित हे तु
योग कता ह अथवा
योग के करने मे ु ट होने पर ितकूल प रणाम संभव ह। हमारे ारा पो ट कये गये सभी मं -यं या उपाय हमने सैकडोबार वयं पर एवं अ य हमारे बंधुगण पर योग कये ह ज से हमे हर योग या मं -यं या उपायो ारा िन पाठक
क मांग पर एक ह लेखका पूनः
काशन से लाभ
ा
त सफलता ा हई ु ह।
काशन करने का अिधकार रखता ह। पाठक को एक लेख के पूनः
हो सकता ह।
अिधक जानकार हे तु आप कायालय म संपक कर सकते ह। (सभी ववादो केिलये केवल भुवने र यायालय ह मा य होगा।)
80
गु
व
जुलाई 2011
FREE E CIRCULAR योितष प का जुलाई -2011
संपादक
िचंतन जोशी संपक गु
गु
व
योितष वभाग
व कायालय
92/3. BANK COLONY, BRAHMESHWAR PATNA, BHUBNESWAR-751018, (ORISSA) INDIA फोन
91+9338213418, 91+9238328785 ईमेल gurutva.karyalay@gmail.com, gurutva_karyalay@yahoo.in,
वेब http://gk.yolasite.com/ http://www.gurutvakaryalay.blogspot.com/
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हमारा उ े य य आ मय बंध/ु ब हन जय गु दे व जहाँ आधुिनक व ान समा हो जाता है । वहां आ या मक
ान ारं भ हो जाता है , भौितकता का आवरण ओढे य
जीवन म हताशा और िनराशा म बंध जाता है , और उसे अपने जीवन म गितशील होने के िलए माग ा नह ं हो पाता यो क भावनाए ह भवसागर है , जसमे मनु य क सफलता और असफलता िन हत है । उसे पाने और समजने का साथक यास ह
े कर
सफलता है । सफलता को ा करना आप का भा य ह नह ं अिधकार है । ईसी िलये हमार शुभ कामना सदै व आप के साथ है । आप अपने काय-उ े य एवं अनुकूलता हे तु यं ,
हर
एवं उपर
और दलभ मं श ु
योग करे जो १००% फलदायक हो। ईसी िलये हमारा उ े य यह ं हे क शा ो ाण- ित त पूण चैत य यु
सभी कार के य
सूय क
से पूण ाण- ित त िचज व तु का हमशा विध- वधान से विश तेज वी मं ो ारा िस
- कवच एवं शुभ फलदायी ह र एवं उपर आपके घर तक पहोचाने का है ।
करणे उस घर म वेश करापाती है ।
जीस घर के खड़क दरवाजे खुले ह ।
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JULY 2011
जुलाई 2011