मेरा कोहिहिनरू "मेरी बेटी "
बेटी तम ु मेरे जीवन का नरू हिोह , तुमसे हिै क़ायनात मेरी -
तुम मेरे हृदय का कोहिहिनूर हिोह।
कभी जब तम ु एक कोहने मे जाकर रोहती , मेरा भी मन घबराता , न जाने मै भी अपने मन के साहिस कोह कहिाँ खोह दे ती।
मुझे दे ख कर तुम नन्हिी- मुन्नी भांप जाती हिोह मेरे मन का भय। िफिर दौड़ी -दौड़ी आती सरपट गले लगाती बड़ी बनकर िनभर्भय।
मेरी पलको पे आये आँसुओ कोह बड़े प्यार से पोछती हिुई तम ु दादी माँ बन कर के चलती । िफिर कान पकड़कर माफ़ी मांग ,अटखेली करती , लाल परी िक सहिे ली लगती।
कभी जोह ददर्भ से मै कराहिूं , तोह तुम मेरी भी माँ बन जाती , मुझे अपने कोहमल हिाथो के सपश र्भ से िबलकुल माँ िक तरहि सहिलाती ,
न जाने लोहग क्यूँ बेटा मांगते हिै दआ ु ओं मे , नहिीं जानते मूढ़ वे बेटी जनम लेते हिी करती हिै प्रकाश जीवन िक अँधेरी कंदराओं मे।
ईश्वर िक सबसे अनमोहल धरोहहिर "बेटी"हिी तोह हिै , जोह कभी माँ ,कभी पत्नी , कभी चंडािलनी दे वी दग ु ार्भ बन जाती । कभी रूप बदलती तोह कल्पना ,िकरण बेदी , कभी सान्या नेहिवाल कहिलाती।
बेटी ये तम् ु हिारी माँ धन्य-धन्य हिै तम् ु हिे पा कर। . बेटी तुम मेरे जीवन का नरू हिोह , तुमसे हिै क़ायनात मेरी तुम मेरे हृदय का कोहिहिनूर हिोह। QATAR).
: Written by- Shruti Sharma. (Doha,