Khirkee Voice (Issue 7) Hindi

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खिड़की आवाज़

पतझड़ संस्करण

अंक #7

अध्याय 7- जबरन समुद्र में ले जाया गया

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अ क्टू ब र - द ि सं ब र 2 0 1 8

आबिजान, ऐवेरी कोस्ट ने व ल ा

अनु व ाद- वेदि का सिंघानिया युक्त राष्ट्र की ‘वर्ल्ड है प ्पीने स रिपोर्ट 2018’ के अनु स ार भारत 133वें पायदान पर है । यह एक द :ु खद सं के त है क्योंकि 156 दे शों की इस सू ची में पाकिस्तान (75) भू ट ान (97), ने प ाल (101) , बां ग ्लादे श (115) और श्री लं क ा (116) जै से पडोसी दे श हमसे बे ह तर हैं । हाल ही के वर्षों में सं युक्त राष्ट्र ने ‘आर्थिक विकास’ को किसी भी दे श के समृद् धि के सू च क के रूप में नकार ‘है प ्पीने स ’ को अपनाना शु रू किया है । यदि सरल शब्दों में ‘है प ्पीने स ’ को समझा जाए तो खुश रहना जीवन की गु ण वत्ता का आधार है , जिसके कई सू च क हो सकते हैं , जिनमें से अच्छी आमदनी, स्वस्थ लम्बी आयु, सामाजिक सहयोग (सरकार द्वारा ), आज़ादी ( ज़िन्दगी से जु ड़े फै सले ले ने की), विश्वास ( आपसी और व्यवस्था पर) और उदारता (द स ू रों के प्रत ि) शामिल हैं । इन्हें हासिल करने लिए सामाजिक उपायों में अच्छी शिक्षा और स्वास्थय से व ाओं के साथ-साथ सामाजिक

गर्म और नम, दिसंबर में ठं डा

ह ि म तें दु आ

काबुल, अफगानीस्तान

सुहावना और धूप, सर्द और बारिश दिसम्बर में

किन्शासा, कॉन्गो ल् ला

सुहावना और लगातार गर्म छिटपुट आं धी-तूफ़ान

लेगोस, नाइजीरिया

नरेश कु मार जो खिड़की में पिछले 15 वर्षों से रह रहे हैं , कहते है , ”देखि ये , शहरों की ज़िंदगी मुश्कि ल होती है । हम छोटी-छोटी चीज़ों में ख़ु शी ढू ँ ढ ते हैं । अगर हमारा परिवार ख़ु श है , तो हम ख़ु श हैं । हम चाहते हैं कि हमारे बच्चे अच्छे से पढ़-लिख लें । आजकल दिल्ली के सरकारी स्कू लों की शिक्षा में सु ध ार हु आ है । मे र ा छोटा बे ट ा वहीं पढ़ता है । हमें अच्छा लगता है , वो अभी स्कू ल जाने में दिलचस्पी ले त ा है । ” हमने जानना चाहा कि दिल्ली सरकार के शिक्षा विभाग ने ऐसे क्या उपाय किए हैं कि सरकारी स्कू लों को कोसने वाले अभिभावकों की राय बदली है ।

पड़ताल करने पर पता चला कि दिल्ली सरकार के शिक्षा विभाग ने अपने कार्यकाल में बुनि यादी ढाँ चे में सु ध ार के साथ, पहली से आठवीं कक्षाओं में एक ‘है पीने स करिकु लम’ की शु रु आत की है । इससे पहले मध्य प्र दे श और आं ध्र प्र दे श की सरकारों ने इसी तरह के प् रो ग् रा म की घोषणा की थी। इन घोषणाओं में ज़िक्र किया गया कि इन योजनाओं का मकसद शिक्षा के साथ-साथ बच्चों का चौतरफा विकास हो, साथ ही मानसिक विकास पर विशे ष ध्यान दिया जाए। ‘है प ्पीने स ’ को समग्र विकास से जोड़ने और समझने के लिए भारत जै से दे शों को सटीक आँ कड़े एकत्रित करने की प्रणाली और इसे लागू करने के लिए विशे ष ज्ञों और प्रक्रि याओं की एक सू ची तै य ार करनी होगी ताकि विधिवत तरीके से इसे मु ख ्यधारा में लाया जा सके । असर 2017: शिक्षा रिपोर्ट के अनु स ार आज भी हमारे दे श में 1418 साल की उम्र के वर्ग में 25 % किशोरों को अपनी भाषा में सरल वाक्य पढ़ने में परेश ानी होती है , और 57% किशोर सरल गु ण ा-

प श् चि म ी अ फ़ ्री क ी शे र

कलाकार बलबीर कृ ष्ण की ज़िन्दगी कई उतार चढ़ावों से गु ज री है, फिर भी उन्होंने कभी हिम्मत नहीं हारी और हमे श ा लड़कर वापस आये हैं, बे ह तर और मजबू त बनकर। खिड़की आवाज़ प्यार, साहस और कला की अद्भुत कहानी आपके सामने ला रहा है। महावीर सिंह बिष्ट

मोगदिशु, सोमालिया

अनुवाद-नेहा सुयाल हिरोल हिरण

लुप्तप्राय जंतु, रेखाचित्र: अरु बोस

विकास से जु ड़ी नीतियों पर सरकारों का योजनाओं की घोषणा कर; सशक्त रूप से लागू करना अति आवश्यक है । बुनि यादी स्तर पर किसी भी नागरिक की सामाजिक गु ण वत्ता को शिक्षा से जोड़ा जा सकता है । एक जागरूक, शिक्षित और खुश किशोर, एक सक्षम और उपयोगी युव ा और नागरिक बन सकता है । ‘है प ्पीने स ’ और शिक्षा के मायनों को खिड़की गाँ व जै से क्षेत्र में सू क् ष्म स्तर समझने के लिए हमने यहाँ के लोगों से बात की।

हमें प्यार की ज़रूरत है

सुहावना और गर्म, छिटपुट बारिश और आं धी

धूप और हलकी बारिश दिसंबर में ठं डा

10 11

6

सं

गं ग ा न द ी क ी डॉलफिन

सिंगिंग ट्री के आर्ट क्लास से बच्चों में नीचे चाय ख़ुशी की लहर

हॉस्टल के जीवन की झलकियाँ

महावीर सिंह बिष्ट

दिल्ली, भारत ग ौ रै य ा

पटना, भारत

के सहयोग से

दिल्ली सरकार ने हाल ही में सरकारी स्कू लों में ‘है प ्पीने स करीकु लम’ की शु रु आत की । खिड़की आवाज़ ने पता लगाने का प्र य ास किया कि यह कार्यक्र म किस बारे में है और इसपर बच्चों की प्रत िक्रि या क्या है ।

सुहावना और गर्म, छिटपुट बारिश और आं धी

गर्म और नम बीच-बीच में बारिश

सतता और समुदाय विशेषांक

सीखिए हैप्पीनेस

मौसम की रिपोर्ट

ग ो रि

12 पन्ने

“इ

तिहास इन सब लोगों और इनके परिवारों से क्षमा प्रार्थी है। समलैंगिगता मानव यौनिकता का हिस्सा है। उन्हें इज़्ज़त और बिना किसी भेदभाव के ज़िन्दगी जीने का पूरा हक़ है। एल.जी.बी.टी. समुदाय को सह-संवेदी संबध ं बनाने की पूरी आज़ादी है।” 6 सितम्बर 2018 को भारतीय दंड संहिता की धारा 377 हटाए जाने पर जस्टिस इंद ु मल्होत्रा के इन शब्दों ने एल.जी.बी.टी. समुदाय में ख़ुशी की लहर भर दी। यह एक ऐसा संघर्ष था, जिनमें कईयों ने साहसिक निजी लड़ाईयाँ लड़ी हैं, उस समाज से जो उन्हें स्वीकारना नहीं

चाहता था। यह लड़ाई अभी जारी है, उन बहुत-सी आवाज़ों के लिए जो छोटे शहरों में रूढ़िवादी सोच से रोज़ संघर्ष कर रहे हैं। बलबीर कृष्ण एक कलाकर हैं, जो अपने पार्टनर माइकल के साथ वर्तमान में न्यू यॉर्क में रह रहे हैं। उनकी कहानी कोई साधारण कहानी नहीं है। उनकी पेंटिंग जितनी भी शांत, गूढ़ और मन को सुकून देने वाली नज़र आती हों, उनका जीवन उतना ही उथल-पुथल और संघर्ष भरा रहा है। वे एक मंझे हुए कलाकार हैं और एल.जी.बी.टी. समुदाय के अधिकारों के मज़बूत अधिवक्ता हैं। बलबीर का जन्म 1 दिसंबर, सन 1973 े के एक छोटे से गाँव बिजरौल में उत्तर प्रदश के एक जाट परिवार में हुआ था। उनके गाँव के युवा लड़के पुलिस या फ़ौज में जाने की चाह रखते थे। लेकिन बलबीर का भविष्य कला के क्षेत्र में नाम कमाना था। उन्हें 9

बलबीर अपने स्टूडियो में एक पेंटिंग पर काम करते हुए।

भाग भी नहीं कर सकते । ये आं कड़े हमारी शिक्षा व्यवस्था की अक्षमता को दर्शाता है । ऐसे में ‘है प ्पीने स करिकु लम’ को बच्चों और अभिभावकों ने खुले मन से स्वागत किया है । 2018 के बोर्ड के नतीजों में दिल्ली के सरकारी स्कू लों ने प् रा इवे ट स्कू लों को पीछे छोड़ दिया। साथ ही दक्षिणी दिल्ली, जिसमें खिड़की और उसके आसपास के स्कू ल भी शामिल हैं , का मानो ढाँ च ागत रूप से भी कायाकल्प हो गया हो। स्कू लों में क्लासरूम में नए टे ब ल और बें च के साथ साफ़-सफाई और उर्जित माहौल नज़र आता है । शिक्षकों को अपने पढ़ाने के तरीकों में बदलाव के विशे ष निर्दे श दिए गए हैं । पवन भार्गव, जो दक्षिणी दिल्ली के एक सरकारी स्कू ल में पढ़ाते हैं , कहते हैं , ” शिक्षक होने के नाते हमनें अन्य अध्यापकों के साथ मिलकर यह तय किया है कि हम छात्रों के शिक्षा के अनु भ व को एक्टिविटी और इं ट्रक्टिवि टी के माध्यम से सीखने लायक बनायें गे और रटने और पाठ याद करने पर ज़ोर नहीं दें गे । ” इस तरह की सोच में बदलाव के नतीज़े; बच्चों के सु ध रे हु ए परीक्षा फल पर नज़र आने लगा है ।

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खिड़की आवाज़ • पतझड़ अंक 2018

खिड़की वासियों के लिए ‘सस्टे नेबल डेवलपमेंट गोल्स’ की मार्गदर्शि का

‘स

मालिनी कोचुपि ल्लै

स ्टे ने ब ल डेवलपमेंट गोल्स’, संयक्त राष्ट्र द्वारा ु निर्धारित 17 वैश्विक लक्ष्यों की सूची है जिन्हें ‘संयक्त ु राष्ट्र विकास कार्यक्रम’ ( यू.एन. डी.पी.) ने जारी किया है। इसके बारे में यू.एन.डी.पी. की वेबसाइट पर लिखा है,”यह एक वैश्विक आह्वान है, गरीबी ख़त्म करने के लिए, पृथ्वी को बचाने के लिए और यह तय करने के लिए कि सभी लोग ख़ुश और समृद्ध रहें।” जब विश्व भर के नेता ‘क्लाइमेट चेंज’ (जलवायु परिवर्तन ) जैसी समस्याओं की वैश्विक पर चर्चा कर रहे हैं और देशों के लिए भारी भरकम लक्ष्य तय कर रहे हैं, तब हमारे आस पड़ोस के समुदाय बिखरते हुए, नज़रअंदाज़ कर दिए जाते हैं - इस बात की प्रतीक्षा करते हुए कि कोई सरकारी अफसर कोई दस्तावेज़ साईन करेगा और धरती में एक और सुराख और विकास के नाम पर एक और दीवार बनाएगा। न सबका सामना करते हुए और पानी भरे गड्ढों से बचते-बचाते, खिड़की आवाज़ ने इन बड़ी समस्याओं को संबोधित करने की कोशिश की -जिसकी वजह हम हैं और गरीबी से जो हमसेआज़ादी प्रभावित होता है सरल और आसान स्थानीय उपाय और छोटे-छोटे कदमों के माध्यम से समाधान ढू ँढ़कर।

अपने घर पर ही खाना उगाना अब, हीड्रोपोनिक्स और वर्टीकल फार्मिंग जैसी नई तकनीकों से बहुत आसान हो गया है। एक ऐसी सामुदायिक मुहीम जो लोगों और परिवारों को अपना खाना उगाने में मदद करे। साथ ही समुदाय में विशेषज्ञों और उत्साही लोगों का एक ऐसा तंत्र हो, जो सहयोगी ढाँचा तैयार करे।

मानव कल्याण और अच्छा स्वास्थ्य

घर का साफ़ सुथरा और शांत माहौल, सबको स्वस्थ रख सकता है। खुली जगहों का साफ़ और सुरक्षित होना एक स्वस्थ और खुश समुदाय का निर्माण करेगा। निजी तौर पर हम सभी को अपने घरों, गलियों, पार्कों और बाज़ारों को साफ़ रखने में योगदान देना पड़ेगा। इससे हम दस ू रों के लिए उदाहरण स्थापित कर सकते हैं।

श्रेष्ठ शिक्षा

निकले कलेक्टिव, जो अलगअलग प्रोग्रामों के माध्यम से कमज़ोर वर्ग की लड़कियों और महिलाओं के लिए नए आर्थिक अवसर प्रदान करेगा। स्वेच्छा; कई कौशल संबध ं ी प्रोग्राम चलाता है। जिनमें कबाड़ को अप-साइकिल कर वॉलेट, नोटबुक, लैंप और गमले जैसे रोजमर्रा के सामान बनाकर, उन्हें बेचने में मदद कर आय के नए साधन उपलब्ध कराता है।

निवेश में एक छोटा बिज़नेस शुरू किया जा सकता है। एक ढलते हुए बिज़नेस को बहुत कम समय में कायाकल्प किया जा सकता है क्योंकि यहाँ अक्सर नए ग्राहक मिल जाते हैं।

उद्योग, नयी पद्वति व आधारिक संरचना

खिड़की, अपनी जटिल और सह-आवासीय और एक सक्रीय और छोटे व्यापारों के चलन वाली मोहल्ला संस्कृति के कारण, सहयोग के एक ऐसे तंत्र को बनाने का मौका देता है, जो मुश्किल आर्थिक हालात में, एक सेफ्टी नेट की तरह काम करता है। डीमोनीटाईजेशन की तंगी की हालत में, समुदाय ने खुद को उधारी पर संभाला। ज़रूरत के सामान को लोगों ने बहीखाता में चढ़ाकर लिया। यह सीधे तरीके से गरीबी तो नहीं हटाता है, पर मुश्किल आर्थिक हालात के दषु ्प्रभावों को कम करता है।

भूख से आज़ादी

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लैंगिक समानता

समुदाय को पानी जैसे संसाधन को बचाना सीखना होगा। निजी और सामूहिक तौर पर रेन वाटर हार्वेस्टिंग जैसे उपाय किये जा सकते हैं। साथ ही यह ध्यान रखना होगा कि सीवेज में डालने से पहले पानी को ठीक से ट्रीट किया जाए।

सस्ती और साफ़ ऊर्जा

तकनीक में सुधार की वजह से, सोलर पैनल जैसे ऊर्जा के सतत स्त्रोतों को निजी तौर भी लगाया जा सकता है। सामूहिक स्तर पर, सरकारी संस्थानों को निजी और सामूहिक तौर पर सोलर पैनल सस्ते दामों पर मुहयै ्या कराने चाहिए। वक़्त के साथ हमारी ऊर्जा की कोयले और पेट्रोल पर हमारी निर्भरता कम होनी चाहिए। घर की ज़रूरतों के लिए सोलर कुकर भी इस्तेमाल किये जा सकते हैं।

अच्छा काम और आर्थि क विकास

खिड़की की गलियाँ लोगों और गतिविधियों से भरी रहती है, लेकिन उनमें महिलायें कम नज़र आती हैं। यह दर्शाता है कि यहाँ कम महिलाएं काम करती हैं। शोध से पता चला है कि आर्थिक रूप से सक्षम महिलायें, एक स्वस्थ और खुशहाल परिवार आगे बढाती हैं। समुदाय में से

जिम्मेदार खपत और उत्पादन

साफ़ पानी और स्वच्छता

कम खर्च और शहर से नज़दीकी, अलग-अलग तरह के छोटे उद्योगों और व्यापारिक गतिविधि को बढ़ावा देते हैं। छोटे उद्यमी बहुत कम निवेश में नया बिज़नेस शुरू कर सकते हैं और उन्हें सोचने और नवीनीकरण के लिए समय मिल जाता है। स्थानीय ढाँचागत विकास न के बराबर है, सरकारी तंत्र की गैरदिलचस्पी और सामुदायिक अनुकूलनशीलता, उम्मीद जगाती है। लोगों का मिलकर कार्य करना, बेहतर सेवाओं की माँग करता है।

खिड़की में हर टू टे सामान को ठीक करने की दक ु ाने दो कदम की दरू ी पर मौजूद हैं। रिपेयर और री-यूज़ का यह तरीका, यूज़ और थ्रो’ रवैय्ये से बेहतर है, खिड़की को जिम्मेदार उपभोग क्रांति का हिस्सा बनाता है।

जलवायु कार्यवाई

कम विषमतायें

गरीबी से आज़ादी

दिल्ली के सरकारी स्कू लों में कई अच्छे कदम उठाये जा रहे हैं। पब्लिक स्कू लों में हर समुदाय से बच्चे पढ़ने आते है, वे एक दस ू रे के साथ सीखकर और बढ़कर, संवेदनशील इंसान बनते हैं और सामाजिक और सांस्कृतिक ढाँचे को बेहतर बनाते हैं।

अफ़ग़ानिस्तान और ईरान आदि देशों के लोग रहते हैं। खिड़की एक्सटेंशन सभी के लिए सतत संसाधन उपलब्ध कराता है। इसमें सभी लोग एक दस ू रे से बातचीत करते हैं

असमानतायें तभी ख़त्म होंगी जब ज़्यादा से ज़्यादा लोग आत्मनिर्भर और सशक्त महसूस करेंगे - इसका मतलब है सभी को काम मिले। खिड़की में हर वर्ग के लोगों के लिए अवसर मौजूद हैं। छोटे व्यापार समुदाय के लोगों की रोज़मर्रा की ज़रूरतों को पूरा करने में तत्पर रहते हैं। कुछ स्थानीय बुटीक दिल्ली के अन्य हिस्सों में सामान निर्यात करते हैं, साथ ही यहाँ रहने वाले मजदरू ों और प्रवासियों को रोज़गार देते हैं।

सतत शहर और समुदाय

कम किराये वाले छोटे व्यापार, ज़रूरी घरेलु सर्विस और रेजीडेंसी इलाके, समुदाय खिड़की एक्सटेंशन में यू.पी. के लोगों के लिए रोज़गार के अवसर प्रदान करते हैं। ऐसे बिहार, बंगाल, सोमालिया, आईवेरी कोस्ट, समुदाय में कोई भी बहुत काम कांगो,

निजी तौर पर हम काम ऊर्जा की खपत कर सकते हैं। खिड़की जैसे मोहल्ले कम ऊर्जा की खपत करते हैं, क्योंकि ज़रुरति सामानों की दक ु ानें, स्कू ल, स्वास्थ्य सेवायें, रोज़गार के अवसर, रिपेयर की दक ु ानें आदि दो कदम की दरू ी पर होती हैं। इससे लोग गाडी का इस्तेमाल कम करते हैं। ऐसे समुदाय में साइकिल परिवहन का साधन होते हैं।

समुद्री जीवन

यह सोचना थोड़ा अजीब हो सकता है कि समद ्रों पर हम कोई प्रभाव नहीं डालते हैं, लेकिन ऐसा नहीं है। हम जो भी प्लास्टिक जैसे- प्लास्टिक की थैलियाँ, बोतलें और पैकेजिंग का सामान आदि, हमारे जलतंत्रों के रास्ते, समुद ्र में पहुँच जाता है। यह समुद ्री जीवन को प्रभावित कर ख़त्म कर देता है। 5


पतझड़ अंक 2018 • खिड़की आवाज़

तस्वीरें: विदिशा सैनी

बच्चा एक कलात्मक और समग्र माहौल में पै द ा होता है , वे द स ू री तरफ इज़्ज़त और आत्मनिर्भर ज़िन्दगी जीते हैं । ‘द स्माल बिज़ने स इन्क्यूबे श न प्रोग्राम’, युव ा उद्यमियों को अपने प्रोडक्ट को थर्ड वार्ड के सहयोगी समु द य में प्र य ोग और जाँ च ने सं बं धी सहयोग दे क र आगे बढ़ाता है । वे घरों में कु छ समय तक सहयोग दे ते हैं और बाद में शॉपिंग ब्लॉक में जगह मु है य ्या कराते हैं । युव ा उद्यमी नई ज़रूरतों को भां प ले ते और कीमत तय कर समु द ाय को अपना सामान बे च ते । पी.आर. एच. कई मायनो में सफल रहा है ।

कला के माध्यम से समुदाय का कायाकल्प

विदिशा सै नी

ला का मकसद सिर्फ अकादमी और पै से की चकाचौंध से जू झ ना ही नहीं बल्कि, समाज की सां स ्कृतिक ज़रूरतों को पू र ा करना भी है । सं वे द नशील कलाकारों ने दनु िया भर में में वार्तालाप और मे ल जोल के कई मॉडल बनाये हैं , आं तरिक तौर पर और समु द ायों के साथ साझा तौर पर। कु छ समकालीन कलाकार, अपनी कला और समाज से जु ड़े अलग-अलग विषयों अर्थशास्त्र, रियल स्टे ट , सरकारी पॉलिसी, स्वदे शी मू ल ्यों, परिवार, कार्यक्षे त्र , स्वास्थ्य से व ायें आदि, की जानकारी और उनके सं य ोजन को कार्यप्र ण ाली में लाते हैं ; इवें ट , नई जगहों के निर्माण और अपनी कलात्मक कौशल और समय को दे क र। कु छ सबसे प्र भ ावशाली वर्क शॉप वे हैं , जिनका मकसद समु द ाय के मौजू द ा कौशल को सु ध ारना और सह-शिक्षा के नए आयाम खोलने के साथ आय के साधन जु ट ाना भी होता है । इस तरह के प्र य ासों में शिकागो के ‘डोर्चेस्टर प्रोजेक्ट’ और ह्यू स ्टन के ‘प्रोजेक्ट रो हाउसे स ’ उम्दा उदाहरण हैं । यह प्रोजेक्ट हमें सोचने पर मजबू र करते हैं कि कै से जिन जगहों में हम रहते हैं , पड़ताल करने और सामूहि क रूप से पु नर्निर्माण की जगहें बन सकती हैं । दिल्ली एक ऐसा शहर है जिसमें प्र व ास, सिर्फ अन्य राज्यों से ही नहीं बल्कि, दनु िया के द स ू रे हिस्सों से भी होता है । हर आय के लोग यहाँ नौकरी ढ़ूँढ़ने या पढ़ने के लिए

खिड़की जै सी कम किराये वाली जगहों को अपना पहला ठिकाना बनाते हैं । जै से - जै से इन मोहल्लो का विकास होता है , नए व्यापर पनपने लगते हैं , और रातों-रात, छोटीसे - बड़ी हर ज़रूरत को पू र ा करते , चार कदम की द रू ी पर। ये नयी जगहें पु र ाने लोगों को अलग-थलग कर दे ते , या तो उन्हें अपनाना पड़ता या दीवारें खड़ी हो जाती। खिड़की में अलग-अलग व्यंजनों की द क ु ानें और रेस ्त्रां हैं , यहाँ कला की जगहें , गै र -लाभ प्र द सं स ्थाएं , या छोटे व्यापार आदि हैं । ये सब भविष्य के लिए एक ऐसे सतत सामु द ायिक मॉडल को प्र स ्तुत करते हैं , जो इन प्र य ासों को समु द ाय की जरूरतों के साथ लाकर सबके लिए उपलब्ध कराते हैं । एक समु द ाय किस तरह से अपनी जरूरतों और मां गों को पहचान उनके उपाय दे ग ा, और नई जानकारी को सीखने का मौका दे ग ा ? कोई कै से इन समु द ायों के बीच एक मज़बू त सहयोग तं त्र बना सकता है ? प्रोजेक्ट रो हाउसे स एक उदाहरण हो सकता, ऐसी जगह की,जो समु द ाय की ज़रूरतें पू री कर सके , स्वयं को निर्मित करे, पूँ जी और सह-सं च ालन द्वारा। यह एक कला और माध्यमिक हाउसिंग प्रोजेक्ट है , जो थर्ड वार्ड ह्यू स ्टन ( टेक्सास, यू . एस.) में स्थित है , जो वहाँ की ऐतिहासिक ब्लैक समु द ाय के इतिहास और सं स ्कृति को सत्कार दे त ा है । यह प्रोजेक्ट आसपास की असमानता को चु न ौती दे ने के रास्ते खोज ही ले त ा है । इसे सात कलाकारों द्वारा 90 के दशक में शु रू किया गया, इस कलेक्टिव ने थर्ड वार्ड के 22 घरों को खरीदा और ने श नल

एं डोमें ट फॉर आर्ट और एलिज़ाबेथ फायरस्टोन ग्राहम फाउं डे श न की मदद से इनकी मरम्मत की। एक प्राइवेट आर्ट्स फाउं डे श न, द मेन िल कले क ्शन ने , हर मं ग लवार अपने कर्मचारियों को छु ट्टी दे क र इनके नवीनीकरण में लगा दिया। लोग सफाई के लिए एक साथ आये , पड़ोस के चर्च और अन्य परिवारों ने एक-एक घर को गोद ले लिया। यह प्रोजेक्ट रिक लोवे (पी.आर.एच. के सं स ्थापक) के दिमाग में तब आया जब वे कु छ स्कू ली बच्चों से बात कर रहे थे, तो एक स्टूडियो विजिट में बच्चों ने कहा कि वे लोगों को उन समस्याओं के बारे में बता रहे हैं , जो उन्हें पहले से मालू म हैं , वे समाधान क्यों नहीं दे ते ?

इस प्रोजेक्ट ने थर्ड वार्ड में पूँ जी, डिज़ाइन और ज़रूरतें पू र ा करने की प्र ण ाली तै य ार की है । कला और स्नेह सिर्फ कलाकारों का नहीं है , लेकिन ये उनका भी है , जो समु द ाय

से आते हैं , और अपने ज्ञान को सबके साथ बाँ ट कर, बातचीत का सिलसिला शु रू करते हैं । बढ़ती हु ई कीमतों की ज़रूरतों को पू र ा करने , के द स ू रे तरीकों में , सामाजिक प्रोजेक्ट और जगहें हो सकती हैं , जहाँ बू ढ़े और बच्चों के लिए समय बिता सकें , जब माता-पिता बाहर काम पर हों। लोग प्लंबिंग,गार्डनिंग, इले क ्ट्रीशियन आदि कौशल बाँ टें ताकि आय के साधन उपलब्ध हों। कानू नी, मेडिकल और अन्य विशे ष ज्ञ ज़रूरत के लिए सहयोग तं त्र बनाया जाए। एक द स ू रे के प्रति इज़्ज़त, विश्वास और सहानु भूति बढ़ाने के लिए भाषाओँ , सं गीत, भोजन और सं स ्कृतियों का आदान-प्र द ान ज़रूरी है । खिड़की में इस तरह सभी सं भ ावनायें मौजू द हैं ।

बायें: प्रोजेक्ट रो हाउसेस, ह्यूस्टन, टेक्सास, यू.एस.ए., मार्च 2018 नीचे: “राइट तो स्टे, राइट तो से” कलाकृति, ज़ैनब बहैत, आउलुटोमी सुबुलादे, मेलानी मेलीकह विल्लेगास, पी.आर.एच. राउं ड 47, ह्यूस्टन, टेक्सास, यू.एस.ए.

पी.आर.एच. कई कला कार्यक्र म जै से प्र द र्शनी, रेजीडें सी और सेमिनार; अके ली माँ ओं के लिए माध्यमिक हाउसिंग प्रोग्राम; और छोटे व्यापारों को सहारा दे ने के लिए प्रोग्राम। रेजीडें सी समाज से जु ड़े विषयों पर काम करने वाले कलाकारों को बु ल ाकर समु द ाय से जु ड़ ने के लिए प्रेर ित करती है । वे छात्रों को पे शे व र लोगों के साथ में ट रशिप प्रोग्राम के ज़रिये जोड़ते । स्टूडियो आम तौर पर खुले रहते , कामों को को प्र द र्शनी और दस ू रे इवें ट के ज़रिये दिखाया जाता। ब्लॉक के एक समू ह को ‘यं ग मोठेर्स रेज िडेंश ियल प्रोग्राम’ कहते हैं , जहाँ अके ली और काम आय वाली माँ ओं को माद्यमिक घर, काउं सलिंग और उनकी शिक्षा पू री करने और करियर बनाने के लिए सहयोग दिया जाता। जबकि उनका

नई शुरुआत, नए रास्ते मालिनी कोचुपि ल्लै

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सितम्बर 2016 को, ठीक दो साल पहले , खोज इं ट रने श नल आर्टिस्ट एसोसिएशन की छः हफ्ते लम्बी रेजीडें सी से एक नए आईडिया का जन्म हु आ था। यह विचार था, समु द ाय द्वारा एक सामु द ायिक अखबार। जो कहानियों, किस्सों, तस्वीरों और चित्रों के माध्यम से , सभी सामाजिक, आर्थिक और सां स ्कृतिक अं त र को ख़त्म करने का प्र य ास करे ग ा। तब से यह प्रोजेक्ट समु द ाय के लोगों से अनोखे और नए तरीकों से जु ड़ ता रहा है । विनीत गुप्ता फोटोग्राफी वर्क शॉप के दौरान प्रतिभागियों से फोटो-एस्से के बारे में करते हुए।

पिछली गर्मी में , खिड़की आवाज़ ने , खोज के सहयोग से , फोटोग्राफी और ले ख नी की वर्क शॉप की। इसका मकसद समाज के अलगअलग तबकों से आये लोगों को एक सामु द ायिक अखबार बनाने के बारे में सिखाना और जागरूक करना था। चार सप्ताहां तों में , अदिति अंगि रस ने इच्छु क ले ख कों को कलात्मक ले ख नी से रूबरू कराया, वहीँ विनीत गु प् ता ने फोटोग्राफी वर्क शॉप के माध्यम से , फोटो-एस्से को बनाना और एडिट करने के तरीकों से रूबरू कराया। हमारा मकसद एक ऐसे ‘सामु द ायिक अखबार’ को बनाना है , जो सही मायनों में खिड़की के लोगों के

बारे में हो और उन्हीं के द्वारा चलाया जा रहा हो।वर्क शॉप करना इसी दिशा में पहला कदम है । इसका उद्देश्य ऐसे लोगों का समू ह तै य ार करना है , जो जागरूक और भागीदार हों और इस प्रोजेक्ट को आगे ले जा सकें । इसे बढ़ने में अभी वक़्त लगे ग ा, लेकिन हम ख़ुशी के साथ अपने पाठकों के लिए वर्क शॉप के प्रतिभागियों का काम इस अं क में ला रहे हैं । ऐं सी थॉमस, हमारी फोटोग्राफी वर्क शॉप की प्रतिभागी हैं , जिन्होंने एक सं वे द नशील और रोचक फोटो एस्से किया है , जिसमें वे अपने हॉस्टल में रह रहे दोस्तों की ज़िन्दगी को दिखा रही हैं । वे कहती हैं कि यह सिर्फ इस प्रोजेक्ट की शु रु आत है । साथ 5

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खिड़की आवाज़ • पतझड़ अंक 2018 की ओर भागी। वे सीढ़ियों से निचे उतरी और पडोसी के आम के बगीचे की तरफ दौड़ी। उसने पु र ाने लकड़ी के घे रे को चपलता से पार किया और ज़मीन में बिखरे नाज़ुक पत्तों पर जा पहुँ ची। पे ड़ों के बीच पहुं च कर उसने चै न की साँ स ली, उसने अपने मन को शान्त कर विचारों को इकठ्ठा किया। जब वह काम पर थी, उसकी बहन जा चु की थी। उसके मालिक ने राजधानी की अराजकता के बारे में माला को आगाह किया और गाँ व की हालत बिगड़ने से पहले उसे घर जाने को कहा। वह घर पहुं ची तो कोई नहीं था। जब वह सामान इकठ्ठा कर रही थी, उसने कु छ लोगों के घर में घु स ने की आहत को सु न ा। उसने ज़ोर की सां स ली और आम के बगीचे में विचारों को समे ट कर, इधर-उधर दे ख ने लगी। हरे पत्तों ने ढलती हु ई रौशनी में शरण दी। शाम घिर आयी थी और फल खाने वाले चमगादड़ चीखते और गाते , बगीचे से भीतर-बाहर जाते हु ए। हरे पत्तों ने ढलती हु ई रौशनी में शरण दी। शाम घिर आयी थी और फल खाने वाले चमगादड़ चीखते और गाते , बगीचे से भीतर-बाहर जाते हु ए। माला ने उनके बड़े शरीरों को पे ड़ों के बीच खू बसू र ती से लटके हु ए, पके हु ए आमों को खोजते दे ख ा। गाँ व से आती गोलियों की आवाज़ों को सु न ते हु ए, वह धीरे धीरे घने आम के बगीचे में भीतर घु सती गयी। पे ड़ों के पत्तो के बीच, वह चटख बै ग नीं और गु ल ाबी आसमान को दे ख पा रही थी, जो कैरिबियाई महाद्वीप की सर्द शामों की खासियत थी। आमों के पीले गु च ्छे हवा में लहराते ग्र हों से नज़र आते । उसने उन चमकते फलों को का बगीचे में पीछा किया और धु ल

ख़ास शृंखला

समुद्र में जबरन ले जाया गया एक कलाकार की अपनी परदादी के जबरन प्रवास की 7वीं क़िस्त

तख्तापलट शब्द + कलाकृ ति एं ड्रू अनं द ा वू गे ल

ह छु पी हु ई थी और एक ज़ोर की आवाज़ पर वह दरवाज़े पर आयी। माला ने अपनी साँ स थामी। वह पें ट्री की अलमारी में खाने के डब्बे जमा कर रही थी, जै से ही उसने अपनी बहन के घर के दरवाज़े पर ज़ोर की आहट सु नी। लू ट -पाट तभी शु रू हो गयी थी, जब दोपहर में , बू टे रसे के आदमी पे र ामरिबो के पहाड़ों से नीचे उतरने लगे । जै से जै से सैनि क गाँ व से गु ज रे उन्होंने सरकारी दफ्तरों और पुल िस थानों को तोडना और लू ट ना शु रू कर दिया। उन्होंने साफ-साफ़ बता दिया कि नई सरकार सत्ता में आने वाली है । कई सौ की तादाद में मिलिट्री के इस समू ह का ने तृ त ्व ग्रु प 16 नाम की एक टु कड़ी कर रही थी। डच से आज़ादी के बाद, सू रीनाम ने स्थानीय सरदारों और फ़ौज में रह-रह कर विद ्रो ह के स्वर फू ट रहे थे । बू टे रसे ने , जो ग्रु प 16 का ने त ा

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था, पु र ाने मिलिट्री सर्जें ट की टु कड़ी तै य ार की, जो डच द्वारा स्थापित सरकार को उखाड़ फें कना चाहते थे और अपने दे श को वापस पाना चाहते थे । उस ख़ास दिन, मिलिट्री ने राजधानी पर हमला किया और पू रे दे श में अराजकता की लहर फ़ै ल गई। माला कु छ महीने पहले सू रीनाम आयी थी, गु य ाना में इसी तरह की अराजकता से बचकर। गु य ाना को सू रीनाम से दस साल पहले ही आज़ादी मिली थी और अब उत्तर-उपनिवे शी उथल-पु थ ल से जू झ रहा था, नाराज़गी, गरीबी, आपस में भिड़ती सं स ्कृ तियाँ , बाह्य दिलचस्पी और हिंसक लोगों ने , जन्नत जै सी इस जगह को जहन्नुम बना दिया था। जै से - जै से दरवाज़े का खटकना ते ज़ हु आ, माला ने धीरे से साँ स ली। स्थानीय गुं डे तख्तापलट को लोगों के घरों और व्यापारों को लू ट ने का बहाना बना रहे थे । माला की बहन उसी दिन वापस गु य ाना अपने परिवार के

साथ चली गयी थी। उसने सक्रि य अराजकता से भागकर अस्पष्ट अराजकता और उथल-पथल में जाकर इं तज़ा र करना बे ह तर समझा। एक ज़ोर के दरवाज़ा टू टने के धमाके से माला के कान गूँ ज उठे और कु छ लोगों के कदमों की आहात को उसने अं द र आते सु न ा। ज़ोर की सां स ले क र वह पै न ्ट्री की अलमारी का धीरे से दरवाज़ा बं द कर उसमें चु प गई। जै से - जै से लोग उसकी बहन के घर में इधर-उधर चहलकदमी कर, कीमती सामानों की तलाश कर रहे थे , माला का दिल ते ज़ी से धड़कने लगा। वह उनको बात करते सु न सकती थी, वे शायद पिए हु ए, नशे में थे । वे गु स ्से में इधर-उधर चल रहे थे , सामानों को उलट-पु ल टकर दे ख रहे थे , कीमती सामानों की तलाश में । जब वे लोग उसकी बहन के शयनकक्ष की ओर बड़े , माला ने चु प के से पै न ्ट्री का दरवाज़ा खोला और खाली दरवाज़े की जगह, बाहर

भरी हलचल को पीछा छोड़ वह आगे अपनी बहन के गाँ व से बाहर निकल गई। वह बगीचे में जितना भीतर जाती गयी, वह उतना थकती गई, अब वह पडोसी की ज़मीन के छोर पर पहुँ च चु की थी, उसने सटे हु ए जं ग ल को दे ख ा। वहां एक स्पष्ट रे ख ा थी, आम के पे ड़ ख़त्म होते हु ए और वर्षावन के पे ड़ों की कतार शु रू होती हु ई। खाने - पीने के सामान के झोले को उसने नीचे रखा, उसपर सिर रखा और आँ खें मूँ द ली। द ू र वह पटाखों की सी आवाज़ें सु न पा रही थी, वे आवाज़ें धूमि ल होती गई, जै से - जै से वह गहरी नींद में डू बती गई। उसका मन आम के बगीचे की गीली मिट्टी में धँ स रहा था। नरम ज़मीन जै से - जै से उसके शरीर को भीतर खींच रही थी, माला को जं ग ल के नरम आगोश की गर्मी महसू स हो रही थी, उसका मन बगीचे से द ू र विचरण करने लगा। उसका मन धीरे से अँ धे रे में उड़ता हु आ जा रहा था, उसे द ू र कु छ चमकता हु आ नज़र आया। वह धीरे से उस चमकती हु ई चीज़ की तरफ बड़ी तो आसपास का नज़ारा एक घर की दीवारों और माहौल में तब्दील हो गया। वह बिल्डिंग धू ल भरी और चरमराई हु ई लकड़ी के खं भों के सहारे खड़ा था। खिड़की की जाली से प्रद्विप इस जगह में माला की नज़रें कु छ ढू ँ ढने लगी। उसने कोने में रे श म के गु च ्छे दे खे और कु छ ब्यूटी प् रो डक्ट के डब्बे, ऐसे जो भारत से आयात किये गए हों, जिन्हें पे र ामरिबो के महं गे बूटि कों में ही दे ख ा और खरीदा जाता है । वह खिड़की की जाली की तरफ बढ़ी


पतझड़ अंक 2018 • खिड़की आवाज़ और उन्हें खोल दिया। सु ब ह की खिली धू प से उसकी आँ खें चुँधि याँ गई और कढ़ाईदार साड़ियों और नाज़ुक कपडे , अँ धे रे और फफंू द लगे हु ए कोनो में चमकने लगे । द ुक ान के दरवाज़े पर ‘क्लोसड’ का निशान था और माला अपने सिर के आसपास कदमों की आहात सु न पा रही थी। उसने घू म कर दे ख ना चाहा कि कौन है और सीढ़ियों पर उसकी नज़र गई। उसकी नज़र “मिस्टर कान ब्यूटी बूटि क” लिखे साईन बोर्ड की तरफ गई। उसका दिमाग इस नई जगह की पड़ताल करने लगा और झट से उसके सामने दरवाज़ा खु ल ा। उसने पलट कर दे ख ा तो एक लम्बी द ुब ली आकृति खड़ी थी। जै से ही उस आकृति ने द ुक ान के भीतर प्र वे श किया, माला की आँ खें उस डच आदमी को दे ख ने लगी, उसके घुं घ राले सु न हरे बाल और नीली आँ खों ने उसे पकड़ लिया। वह आदमी आगे बढ़ा, तो

माला ने उसे अचंभित नज़रों से दे ख ा।”ऐक्सक्यूस मी मिस, क्या मिस्टर कान भीतर हैं ? ”, उसने पू छ ा। घबराई हु ई उसने पीछे सीढ़ियों की तरफ दे ख ा, एक छोटा और मोटा आदमी अपने दफ्तर से बाहर निकला और नीचे झाँ क ने लगा। उसने आँ खों पर ज़ोर दे ने की कोशिश की, कि सु ब ह-सु ब ह आगं तु क कौन है । “ओह... मिस्टर वू गे ल , आप कै से हैं , कृ पया मे रे दफ्तर में आईये , ”वह आदमी ऊँ ची पर विनम्र स्वर में बोला।”थैं क यू मिस,”बोलकर, मु स ्कराकर वह व्यक्ति मिस्टर कान की तरफ बढ़ा। माला ने उसे मिस्टर कान के दफ्तर में ओझल होते हु ए दे ख ा। वह सोचने लगी कि वह कौन था, लेकि न आलस में चमकती हु ई साड़ियों को दे ख ने लगी। माला ने अपने में गु ड़ गु ड ाने की आवाज़ सु नी और अगले ही पल उसकी आँ खें खु ल गई, वह आम के बगीचे की काली रात में थी।

विनीत गुप्ता फोटोग्राफी वर्क शॉप के दौरान प्रतिभागियों से बातचीत करते हुए।

भविष्य की नई उड़ान / पृ ष्ठ 3 से

ही हमने अन्य दो प्रतिभागी ले ख कोंस्टीवन एस जॉर्ज (आकां क्षी ले ख क और फोटोग्राफर ) के नाटक की पहली क़िस्त और मु र वारिद पै व न्द (जो कि एक अफगानी प्र व ासी हैं और वर्त मान में खिड़की में रह रही हैं ) की दिलचस्प घटनाओं से भरी आत्मकथा की पहली क़िस्त को प्र क ाशित किया है । खिड़की आवाज़ और हमारे वर्क शॉप के फैसिलिटेटर इन कहानियों को आगे बढ़ाने में आगे भी सहयोग दे ते रहें गे और प्र क ाशित करते रहें गे । पिछले

छः अं कों में , खिड़की

आवाज़ ने , कहानियों, कलाकृतियों, कविताओं और तस्वीरों के माध्यम से , इस समु द ाय के लोगों का स्पष्ट रे ख ाचित्र गढ़ने की कोशिश की है । साथ ही हमने कोशिश की है कि समु द ाय के अलग-अलग लोगों के बीच सं च ार का माध्यम विकसित हो। हमने अपने पन्नों में यह भी कोशिश की है , कि जटिल वैश् विक विषयों के बारे में एक स्थानीय नज़रिया विकसित हो, जिससे लोग जु ड़ पायें । हमारे पाठकों द्वारा अखबार और इससे जु ड़े कार्य क्र मों के प्रति अच्छी प्रतिक्रि यायों से हम इस प्रोजेक्ट की अनं त सं भ ावनाओं को ले क र सकरात्मक

हैं । साथ ही हम समु द ाय के लोगों में सामूहि क विचारों और कृ त्यों के प्रति नयी कलात्मक सोच बढ़ावा दे न ा चाहते हैं । तीसरे साल में प्र वे श करते हु ए , हमें उम्मीद है कि इन विचारों को हम समु द ाय के लोगों के जहन में मजबू त और गहरा करेंगे । यह विचार अब इस समु द ाय की चार दीवारी के बाहर अन्य प्र य ासों; जो विशवास, सद्भाव और सामूहि क विचारों और कृ त्यों को बढ़ाने का काम कर रहे हैं , के साथ मिलकर आगे जाना चाहिए।

सामने पृष्ठ पर: गाँव का बगीचा, सिल्वर जेलाटीन प्रिंट, लगभग 1970 ऊपर: डाउनटाउन पेरामरिबो, सिल्वर जेलाटीन प्रिंट, लगभग 1970 नीचे: चौराहा क्रासिंग, कागज़ पर आयल पेंट, 2014

अदिति अंगिरस, मुरवारिद की कहानी पढ़ते हुए। अदिति ने मुरवारिद का मार्दर्शन किया।

खिड़की वासियों के लिए ‘सस्टेनेबल डेवलपमेंट गोल्स’ की मार्गदर्शि का/ पृष्ठ 2 से

धरती पर जीवन

थर्मोकोल,प्लास्टिक और मानव निर्मित धूना हमारे जंगलों और प्राकृतिक आवासीय संसाधनों को तबाह कर रहा है। पालतू और जंगली जंतु इसे खाकर बीमार पड़ जाते हैं। प्लास्टिक को पूरी तरह बन करने की बहुत सी कोशिशें हुई, लेकिन नाकाम रही। हम सभी को दोबारा इस्तेमाल किये जा सकने वाले शॉपिंग बैग आदि का इस्तेमाल कम करना चाहिए।

शांति, न्याय और मज़बूत संस्थान

सामुदायिक स्तर पर, यह ज़रूरी है कि ऐसे मज़बूत संस्थान हों, जो सामूहिक ज़रूरतों का ख्याल रखे और ऐसी पहल और उपायों को लागू करे। स्थानीय रेसिडेंशियल वेलफेयर एसोसिएशन (आर. डब्ल्यू.ए.) इसमें अहम् भूमिका निभा सकते हैं।

साझेदारी और सहभागिता

खिड़की पहले से ही स ा म ाज ि क , स ां स ्कृति क , शैक्षिक और कलात्मक संस्थानों से भरा हुआ है। इससे अलग-अलग स्तरों पर साझेदारी और सहयोग के अवसर उभर कर सामने आते हैं। बड़े स्तर पर ये उपाय मुश्किल लग सकते हैं, लेकिन खिड़की जैसे छोटे स्तर पर यह आसानी से संभव है। 5


खिड़की आवाज़ • पतझड़ अंक 2018

बायें: स्नेहा अपने कम सजावट वाले कमरे में, खोयी हुई ऊपर: रिन्ज़ीन, वेदी में पूजा करती हुई नीचे: सैंड्रा के कमरे में फेमिनिस्ट पोस्टर और बर्थडे कार्ड नीचे: रिन्ज़ीन अपने बिस्तर पर पढ़ते हुए

हॉस्टल लाइफ

घर से दूर भी एक घर “मैं

हॉस्टल में ज़रूरी और न्यूनतम सामान के साथ रहती हूँ। मैं इस सोच के साथ रहती हूँ कि मुझे कल ही खाली करने के लिए बोला जायेगा, और मैं पैक कर हॉस्टल छोड़ दँ।ू ” स्नेहा कहती है, जो केरल के कोट्य्यम डिस्ट्रि क्ट से हैं और दिल्ली यूनिवर्सिटी से पोलिटिकल साइंस में एम.फिल कर रही हैं। इसके बिलकुल उलट, रिज़िन का कमरा होटल के कमरे की तरह दीखता है।”मैं हमेशा से एक डबल बैड चाहती थी, तो जैसे ही मुझे अकेले रहने का मौका मिला, तो मैंने दोनों पलंगों को जोड़ दिया और खुद के लिए एक बड़ा बिस्तर तैयार किया।”, रिज़िन कहती हैं, जो तिब्बिति मूल की हैं और दिल्ली यूनिवर्सिटी से बुद्धिस्ट स्टडीज में एम.फिल कर रहीं हैं। मैं एक शांत जगह की तलाश में थी। हैरान करने

वाली बात यह थी कि मुझे पहाड़ों तक नहीं जाना पड़ा। मैंने इसे अपने दोस्त के हॉस्टल में एक रात बिताने पर पाया, जब मैं वहाँ नाईट स्टे करने के लिए गयी थी। हॉस्टल की ज़िन्दगी अलग-अलग लोगों के लिए अलग-अलग भाव लेकर आता है। मेरे जैसे मेहमान के लिए, यह शांति लेकर आता है। सुबह मोर की आवाज़ सुनकर उठना मन को आराम देता है। लेकिन हॉस्टल में रहने वाले लोग अपनी ज़िन्दगियों को कैसे मेहसिस कर रहे हैं? मेरा फोटो एस्से इस बदलते हुए परिवेश को समझने की कोशिश करते हुए यह जानने में है कि वे इसे अपना कैसे बनाते हैं। मेरी दिलचस्पी इस बात में भी थी कि अलग-अलग सामाजिक पृष्ठभूमि से आये लोग, हॉस्टल की ज़िन्दगी को कैसे देखते हैं और क्या उन्हें यह घर जैसा लगता है। हॉस्टल की ज़िन्दगी के बारे

में उनकी राय पारिवारिक ज़िन्दगी से जुडी हुई होती है, उनके अपने मातापिता और भाई-बहनों, घर की स्थिति, उनकी विकसित होती राजनितिक समझ और हॉस्टल के भीतर और बाहर बनते दोस्त इसे प्रभावित करते हैं। दीवारों के भित्तिचित्र और वस्तुएं जो उनके दिल के करीब होती हैं, वे हॉस्टल के सफर के महत्वपूर्ण किरदार बन जाते हैं। वे उनकी रुचि और राजनीती को दर्शाते हैं। कमरे उनके व्यक्तित्व का विस्तार बन जाते हैं। ये हमें संकेत देते हैं कि वे किस तरह इस जगह को ‘घर जैसा’ बनाते हैं या यह घर से दरू सिर्फ एक सराय है। मुझे इस जगह के प्रति उनके व्यवहार के दो नज़रिये दिखे। पहला, कम से कम सामान के साथ हॉस्टल को सिर्फ एक सराय की तरह देखते। निरंतर बदलते और अस्थायी

प्रवास की वजह से, उन्हें दीवारों पर कुछ लगाने और सामान खरीदने से रोकते। और दस ू रा रास्ता होता, पूरा कमरे को सामानों और वस्तुओं से भर देना, जो अक्सर उनके व्यक्तित्व का प्रतिबिम्ब होता है। वे कोशिश करते हैं कि उनका कमरा उनके घर जैसा लगे। अस्थायी प्रवास के बीच भी वे बहुत सी वस्तुओं का इस्तेमाल करते हैं। दोनों तरीके निजी स्तर पर शहर की अस्थिरता और निरालेपन का सामना करने में सहायक होते हैं। हॉस्टल में, लड़कियों को लगता कि वे एक विरोधाभास का सामना कर रहे हैं। यहाँ, हर कोई अपनी ज़िन्दगी में व्यस्त है। कभी-कभी वे अकेला महसूस करते हैं। लेकिन अगर करीबी दोस्त है, तो ये मज़ेदार होता है और वे एक दस ू रे मिलकर मस्ती या अन्य गतिविधि

करते। साथ रहने वाले दोस्तों का एक अहम स्थान होता है। वे एक दस ू रे के लिए नोट्स छोड़ते। वे एक दस ू रे के साथ घूमने जाते। एक दस ू रे के लिए खाना खरीदते। मेरी दोस्त सफीदा ने एक बार कहा,”मेरी ज़िन्दगी की सबसे अच्छी बात मेरी रूममेट है.” देखभाल और स्नेह के मायने बदल जाते हैं, जब वे घर-से दरू होते हैं। एक लड़की ने बताया कि वह अपने हॉस्टल के दोस्तों के साथ रहकर स्नेहिल हो गयी है। एक बार मेरी दोस्त ने मुझे बताया कि उसकी दोस्त उसे “सफी मोले” कहती, तो उसे घर जैसा महसूस होता! (मलयालम में लाड-प्यार से बेटी को मोले कहा जाता है। फिर घर एक एहसास बन जाता है, स्नेह और प्यार में लिप्त हुआ।

तस्वीरें +

ऊपर: सफीदा के ऊपर दायें: दिव्या नीचे दायें: दिव्या नीचे: दिव्या के प

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+ शब्द

पतझड़ अंक 2018 • खिड़की आवाज़

बायें से दायें: दिव्या का पढाई का कमरा, किताबों, बर्तनों और विरोध मार्च के पोस्टरों से भरा हुआ। दिव्या का कमरा राजनैतिक पोस्टरों, नोट, स्टीकर और सैंड्रा के कमरे का फेयरवेल पोस्टर।

ऐंसी थॉमस

छु ट्टी से लौटने पर सभी दोस्त एक साथ या का कमरा। अकेली रहने पर वह अपना कमरा साफ़ रखना पसंद करती है। अपने कमरे में पढ़ते हुए। पूजा करने की जगह। उसके पसंदीदा भगवान, गणेश, हनुमान और मुरुगन।

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खिड़की आवाज़ • पतझड़ अंक 2018

‘है प ्पीने स करिकु लम’ के अं तर्गत बच्चों को स्कू ल के पहले घं टे में मैडि टे श न (ध्यान), कहानियों और गतिविधियों के माध्यम से चौतरफा मानसिक और आत्मिक विकास पर ज़ोर दिया जाता है । साथ ही उन्हें अपने दोस्तों और परिवार वालों से बे ह तर रिश्ते बनाने के किये प्रेर ित किया जाता है । खिड़की में रहने वाली 11 साल की सलमा कहती हैं , ” मु झे मेडि टे ट करना अच्छा लगता है । इससे मन शां त होता है और फिर पढाई पर ध्यान लगता है । ” दिल्ली के शिक्षा मं त्री मनीष सिसोदिया का मानना है कि कौशल विकास के साथ-साथ यदि बच्चों की बुनि यादी नींव में अच्छे इं स ान बनने पर भी ज़ोर दिया जाए तो, राज्य और दे श का विकास होगा। उनका मानना है कि शिक्षा का मकसद सिर्फ अच्छे अं क हासिल करना ही नहीं बल्कि किशोरों और युव ाओं को जागरूक, साहसी और खुश नागरिक के रूप में आगे बढ़ाना ज़रूरी है । यह बात हमें सोचने पर मज़बू र करती है कि सरकार और उससे जु डी अन्य सं स ्थायें यदि आर्थिक और सामाजिक नीतियों के सामं ज स्य से नागरिकों को खुश नु म ा माहौल दे पायें तो विकास के एक नए मॉडल की परिकल्पना की जा सकती है जिसमें हर नागरिक विकास में बराबर का सहयोग दे ग ा। खिड़की में रहने वाला 12 साल का विकास कहता है , ”पिछली कक्षा में हमें अपने मित्रों और परिवार वालों को ‘धन्यवाद’ दे ने को कहा गया। जब घर जाकर मैं ने अपनी मम्मी को ‘थैं क यू ’ बोला तो वे बहु त खुश थीं।”

जब घर एक

लीदा फ़िरोज़ी

सीखिए हैप्पीनेस /

पृष्ठ 1 से इन सब प्र य ासों के बीच अभिभावकों को ‘स्कू ल मै ने ज में ट कमे टी’ के माध्यम से स्कू ल से जु ड़े महत्वपू र्ण विषयों में निर्णय ले ने के लिए बराबर का हिस्सेदार बनाया गया है । गोमती दे वी (45) कहती हैं , ” मु झे पी.टी. एम. में अपने बच्चों के अध्यापकों से बात करना अच्छा लगता है । हमसे स्कू ल से जु ड़े मु द्दों के बारे में राय ली जाती है । मे रे बे टे राजीव का प्र द र्शन पिछले दो सालों में बे ह तर हु आ है । ” आलोचकों की माने तो इस तरह की योजनाएँ महत्वकां क्षी तो हैं , पर भारत जै से दे श में इन्हें लागू करने के लिए बहु त सी अड़चने हैं । अनंदित ा कर गु प्ता जो डे व लपमें ट और शिक्षा के क्षेत्र में पिछले 12 सालों से अधिक समय से जु डी हैं , कहती हैं , ”इस तरह की योजना के लिए शिक्षकों को इसके मनोवै ज् ञानिक और भावात्मक व्यवहार की गहरी समझ होना ज़रूरी है । साथ ही ये कार्यक्र म सिर्फ कक्षा तक ही सीमित नहीं होना चाहिए, सतत प्र भ ावों के लिए इन्हें बारहवीं कक्षा तक लागू करना चाहिए। इसके सही प्र भ ावों को समझने में अभी वक़्त लगे ग ा।” इस तरह की सरकारी नीतियों में राज्य और कें द ्र सरकारों को एक मं च पर आना ज़रूरी है । सामाजिक विकास की गु ण वत्ता में सु ध ार में अच्छी और समग्र शिक्षा एक ही पहलू है । परिवारों, स्कू लों और सं स ्थानों का अन्य मू ल भू त सुवि धाओं के प्रत ि परस्पर जागरूकता और प्र य ास एक ‘है प ्पी’ समाज का निर्माण करेग ा।

कल्पना हो

मुरवारीद एविएशन के क्षेत्र में काम करने वाली कामकाज़ी युवा है, जो खिड़की एक्सटेंशन में रहती है। उसका परिवार अफ़ग़ानिस्तान से है और इस तीन हिस्सों वाले लेख का यह पहला अध्याय है। जिसमें वह अपनी जड़ों को खोजने की कोशिश कर रही है। कराची से काबुल होते हुए, दिल्ली तक का उसका सफरनामा, प्रवास, राजनैतिक उथल-पुथल, बॉलीवुड और शिक्षा तंत्र से जुड़े कई दिलचस्प सवाल उठाता है।

मुरवारिद कैमरे पर मुस्काती हुई।

मुरवारिद पैवन्द

मैं

पाकिस्तान में पैदा हुई, लेकिन मैं अफ़ग़ानिस्तान से हूँ। 1996 में, तालिबान ने काबुल पर कब्ज़ा कर लिया और कई लोगों को अपना घर छोड़ना पड़ा। उन्होंने अफ़ग़ानिस्तान ही नहीं, हमपर भी हमला किया, उनके कड़े नियम और कानूनों ने हमारी ज़िन्दगी को बहुत मुश्किल बना दिया। वे पुरुषों को धमकाते और पीटते थे, शादीशुदा औरतों से निकाह करते और अन्य कई कड़े नियम हमपर थोपते, जैसे औरतों को शिक्षा से दरू रखना। ऐसे हालातों ने मेरे माता-पिता पाकिस्तान की शरण में जाने को मज़बूर कर दिया, क्योंकि जीने का कोई और तरीका नहीं था। वे कराची में रेफ्यूजी की हैसियत से आये और उन्हें अन्य नई परेशानियों का सामना करना पड़ा, वे एक परेशानी से दस ू री परेशानी में पड़ते गए। दस ू रे रेफ्यूजी की तरफ, वे इस शहर में किसी और को जानते नहीं थे। न उनके पास पैसा था और न ही वे स्थानीय लोगों की तरह उर्दू

महावीर सिंह बिष्ट

अलविदा...

पुन्यसिल योनजोँ न अन्य लोगों के साथ ऑटो साझा कर, कृष्णा मंदिर पर उतरते ही बीड़ी की महक आयी। फिर ठहाके की आवाज़ आती है। मैंने देखा कि कुछ लोग मोची को घेरे हुए बातचीत कर रहे हैं। उनमें से जान पहचान के एक आदमी ने मेरा हालचाल पूछा। व्याकुलता में मैंने उनको “हाई” बोला। वे मेरी पडोसी खुशबू के पापा हैं, जो सब्ज़ी भी बेचते हैं। खुशबू के बार रोती हुई मदद के लिए आयी, जब उसके पिताजी शराब पी हुई हालत में, बर्तन इधर-उधर फ़ेंक रहे थे। तबसे वे हमेशा मेरा अभिवादन करते हैं।

ती

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मैं आगे बढ़ती हूँ, स्ट्रीट लाइट के बाद की सकरात्मकता आपको इसे नीचे सुनहरी धूल का पीछा करते और अधिक समझने में मदद करती हुए। मैं थोड़ी खो सी गयी थी, फिट है। ऑटो और बाइक के हॉर्न से मैं सुध में आयी। मैं जल्दी से बायें मुड़ी मैं दक्षिणी दिली में सपनों से भरी एक युवा कामकाजी महिला के तौर और जे. ब्लॉक में प्रवेश किया। पर आई थी। खिड़की की ऊर्जा ने अगर भारत अचम्भों का देश है तो, मुझे अवसरों की कल्पना करने की खिड़की उसका सूक्ष्म रूप है। यह हिम्मत दी। मानो मैंने अपने लिए सपने देखने वाले लोगों को और आगेकी सीट बुक कर ली हो। मुझे साहसी लोगों को आकर्षित करता मालूम था कि मुझे इस अनुभव है, और ऐसे अनुभवों के मौके देता का हिस्सा बनना है और वह भी है, जो आपको हमेशा याद रहती फरं् ट सीट से । आसानी से पहुँच है। यहाँ आने के बहुत से रास्ते हैं पाना, आम सुविधाओं का नज़दीक और हर गली आपको हैरान करेगी। होना और आरामदायक माहौल यह आपको हर सपना हासिल कर का होना, मानो में सिंहासन पर जीत की ख़ुशी भी देती है। इसके हूँ और अपनी शर्तों जी रही हूँ। मैं

बोल पाते थे। शुरूआत में, उन्हें एक रेफ्यूजी कैंप में रहना पड़ा, लेकिन वहां ज़िन्दगी बहुत मुश्किल थी। वक़्त बीतने के साथ स्थिति बेहतर हुई, क्योंकि कुछ स्थानीय लोग अफ़ग़ानियों को पसंद करते थे और मदद के लिए सामने आये। उन्हें नौकरियाँ मिली, अपार्टमेंट में रहना शुरू किया और ज़िन्दगी का स्तर बेहतर हुआ। कुछ सालों में, उस रेफ्यूजी घर में मेरा जन्म हुआ। जैसे ही मैं 6 महीने की हुई, आर्थिक समस्याओं से बचने के लिए मेरी माँ काम पर वापस लौटना चाहती थी, तो यह तय हुआ कि मुझे अपने बड़े भाई-बहनों की देखरेख रहना पड़ेगा। चार साल की उम्र में मेरा स्कू ल जाना शुरू हुआ, मुझे याद है कि अपनी उम्र के बच्चों के आसपास रहना मुझे पसंद था। मुझे पहला दिन अब भी याद है, मेरी माँ नीले और सफ़ेद पंजाबी सूट में काम के बाद मुझे लेने आयी थी। बहुत ही जल्द, उन्होंने मेरा दाखिला, एक ठीक-ठाक स्कू ल की

गर्व के साथ इस जगह को साझा करने और सफर का हिस्सा बनने के लिए बुलाती थी। मुझे इस समय को याद करने में मज़ा आता है। जब मेरे दोस्त पहली बार मेरी पार्टी में आये थे, उन्होंने मेरी मर्ज़ी की कटलरी और खाने का लुफ्त उठाया। इस सिंहासन ने मुझे एक नजरिया भी दिया, प्रत्यक्ष से आगे देखने का। मैंने सीखा है, बिजली का मीटर बिजली की खपत से ज़्यादा जानकारी देता है। यह आपके मोलभाव करने की क्षमता और पडोसी के पानी की खपत की जानकारी भी देता है। जो लोग मदद करने आते हैं, सही दाम के मोलभाव में, भावनात्मक और आर्थिक क्षति होती है। इस तरह के बहुत से किस्से नज़रों के सामने हैं, जब में शीशे के सामने खड़ी हूँ, सारा सामान बक्शों में पैक रखा हुआ है, उठाकर खिड़की गाँव से बाहर जाने के इंतज़ार में। मैं खुद को आईने में देखकर मुस्काती हूँ। वह खिड़की से आगे बढ़ चुकी है। पीली रौशनी के नीचे सुनहरी धूल अब नहीं चमकती, परेशान करती है। सिंहासन पर बिखरी हुई धूल, उसे अब गुस्सा दिलाती है। गलियों की आवाज़ें, अब कानों को नहीं भाति, शांति को भंग करती हुई लगती है। जिस सुविधा के वह कसीदे पढ़ती थी, अब वह इतना आसान हो गया है कि घबराराहट सी होती है। अब उसे लगता है कि जिस तरह की गंभीरता वह अपनी दस ु या ू री दनि

नर्सरी में कराया। सब चीज़ें सही चल रही थीं, मुझे अपना स्कू ल और वहाँ जाना पसंद था। सबसे अच्छा वाकया था, जब मेरी माँ को दफ्तर से एक टी.वी. तोहफे में मिला। जब मेरे पिताजी केबल से ट लाये तो हमने हिंदी फिल्में देखना शुरू किया और मुझे बॉलीवुड से प्यार हो गया। मैं स्कू ल में उर्दू सीखना शुरू किया, ताकि मुझे फिल्में समझ आने लगे। अबतक मैं माधुरी दीक्षित की बहुत बड़ी फैन बन गई, क्योंकि मेरे पिताजी सिर्फ गोविंदा और माधुरी दीक्षित की फिल्में देखा करते, उनके साथ मैं भी सारी फिल्में देखती। मुझे आज भी कोयला, जोरू का गुलाम, मेला और मोहरा जैसी फिल्मों के सभी डायलॉग याद हैं। मैं स्कू ल की पढाई में ठीक-ठाक थी और मैंने मन बनाया कि एक्टिंग ही मेरा भविष्य है। मेरा बचपन ख़ुशी में बीत रहा था, तभी हमें अफ़ग़ानिस्तान वापस बुला लिया गया। मुझे नहीं मालूम था कि क्या होने वाला है और हम कैसी स्थिति में वापस लौट रहे हैं।

से चाहती है, इस मेले में उसे नहीं मिलेगा। मैं बालकनी में आखिरी बार निचे देखती हूँ और एलो वे रा का पौधा उठाती हूँ और जाने के लिए तैयार हो जाती हूँ। मेरी पडोसी कहती हैं कि वह हमारे बीच की बालकनी की बातचीत को याद करेगी। मैं भी उसे याद करूँ गी। मुझे खिड़की की बहुत सी बातें याद आयेंगी। यह काफी अच्छा अनुभव था। अब यहाँ के लोगों से विदा चाहती हूँ। वह चमक कहीं और ही है, लेकिन शायद इस बार सुनहरी न हो। सुबह चिड़ियों की आवाज़ें और पेड़ों का डू बती धूप में चमकना, शायद मुझे ये चाहिए। मैं खिड़की को ऐसे ऊर्जा स्त्रोत के लिए छोड़ रही हूँ, जो मेरे मन को शांति देगा। मेरी खोज अभी भी जारी है। मेरे खिड़की में गिने चुने दिन बचे हैं। मैं एक दोस्त के साथ अस्थाई रूप से कुछ दिन रह रही हूँ। खिड़की से मैंने यह सीखा है कि कोई भी जगह आपको एक पल में प्रभावित नहीं करती। जैसी ही पर्दा गिरता है और सब ओझल होने लगा, इसकी यादें मुझे ख़ुशी देती हैं और इसी मन से मैं खिड़की से बाहर निकल जाती हूँ। कृष्णा मंदिर का फड़फड़ाता हुआ झंडा नज़रों से ओझल होने लगता है और मेरी आँ खें नम हो जाती हैं। लेकिन मैं आं सुओं को रोक लेती हूँ क्योंकि खुशबू के पिताजी देख रहे हैं और मेरा हालचाल पूछेंगे।


पतझड़ अंक 2018 • खिड़की आवाज़

हमें प्यार की ज़रूरत है /

जब भी हाशिये पर धकेलने की कोशिश की गई, वे जीने की तीव्र इच्छा लिए, अपनी कला के माध्यम से मज़बूती से लड़ते रहे। उन्हें धमकियाँ दी गई, उनकी कला प्रदर्शनियों पर हमले हुए, पर वे टू टे नहीं। हालात ने उनके दोनों पैर तो छीन लिए, पर उनकी हिम्मत को तोड़ नहीं पाये। “मैं विकलांग हूँ , मैं गे हूँ , लेकिन यह मुझे मन मुताबिक ज़िन्दगी जीने से नहीं रोक सकता।” - बलबीर कृष्ण अगर आप बलबीर कृष्ण के चित्रों को देखग ें े तो उनमें रंगों की सरल लकीरों में छवियाँ बुनती हुई नज़र आयेंगी। कुछ में पुरुष आकृति एक छोटी नदी की तरह बहती हुई और कुछ में वे गुमसुम दर्शक को पीठ दिखाए बैठे हुए कुछ छुपाती दिखेंगी। उनके चित्रों के विषयों में लैंगिगता, यौनिकता, संघर्ष , दर्द, आज़ादी और उम्मीदों के साथ-साथ समकालीन विषयों को देखा जा सकता है। उनके चित्रों में सरल और शांत मुखाकृति और छवियाँ मानो ध्यान लगाकर, अनंत मैं कहीं देख रहीं हों। ये तस्वीरें उनके मुश्किल बचपन को चुनौती देती नज़र आती हैं। उन्हें बचपन से ही ड्राइंग बनाना पसंद था। उन्हें किशोरावस्था में ही एहसास हो गया कि वे दस ू रे लड़कों से अलग हैं। जब वे 9 साल के थे, तो स्कू ल से खाना-खाने के लिए उन्हें घर आना पड़ता था। माता-पिता खेतों पर काम करते और मेज़ पर उनके लिए खाना छोड़ जाते। एक पडोसी ने उन्हें अकेला देख उनका शारीरिक शोषण किया। वे लहूलह ु ान हालत में स्कू ल वापस गए। मदद करने की बजाय अध्यापक ने भरी कक्षा में उनका मज़ाक उड़ाया। इस घटना से मानो उनका बचपन छिन गया हो। इसके बाद उनके साथ कई बार यौन शोषण होता रहा। उन्हें धमकाकर चुप रहने को कहा जाता। इन सबसे जूझने के लिए वे अक्सर अपने खेतों के पास की नहर के पानी में सूरज को उगते और डू बते देखते। कई सालों बाद मानों इन्हीं खुशनुमा

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दृश्यों के अंश वे अपने कैनवास में उकेरते रहें। पर इन सरल रंगों में संघर्ष की बहुतसी परतें छुपी हुई हैं। वे हर जगह हँसी मज़ाक का पात्र बनते।16 साल की उम्र में अपने पिता से झगड़ा होने पर वे अपने गाँव से भागकर दिल्ली आ गए। यहाँ वे रेलवे स्टेशन पर सोये, लाल बत्ती पर सामान बेचा, भीख माँगी और ट्रक ड्राइवरों के लिए हेल्पर का काम किया। एक ट्रक ड्राइवर ने उनका शारीरिक शोषण करने की कोशिश की, तो बलबीर लड़कर उसके चंगल ु से निकल दिल्ली वापस आ गए। इसे किस्मत का फेर ही कहें कि उन्हें जींद, हरियाणा के एक संपन्न परिवार में नौकर का काम मिल गया। ज़िन्दगी के ये उतार-चढ़ाव मानो उन्हें कुछ सिखाना चाहते थे। इस घर में उन्होंने मुश रे चंद ं ी प्म जैसे लेखकों की संघर्ष से भरी कहानियों को पढ़ना शुरू किया। उनकी कल्पना में नए बीज फूटने लगे। संघर्ष की इन गाथाओं को पढ़ उन्होंने खुद को मज़बूत महसूस किया। इसी हिम्मत और नए नज़रिये के साथ वे अपने गाँव वापस लौट गए। पूरे परिवार ने उनका गले लगाकर स्वागत किया। इस बार उन्होंने शोषण करने वाले लोगों को पहले ही बता दिया कि वे अब कमज़ोर नहीं हैं। बलबीर अब अपने जीवन का एक नया अध्याय रचने वाले थे, पर यह राह भी आसान नहीं थी। उन्होंने अपनी पढाई जारी रखी और पेंटिंग को परिपक्व करना शुरू किया। इस उम्र में वे अपनी लैंगिगकता को लेकर भी जागरूक हो रहे थे। पर उन्हें मालूम था, इस रूढ़िवादी समाज में उन्हें अपने समलैंगिगक होने को गुप्त रखना है। आगरा के कॉलेज में एम.ए. की पढाई के दौरान उन्हें एक लड़के से प्यार हो गया। उस लड़के की पहले से एक गलफें्र ड थी और उसने बलबीर को भी एक गलफें्र ड बनाने की सलाह दी। बलबीर ने एक लड़की से प्यार करने की कोशिश की, लेकिन यह

विरोधाभास लेखक द्वारा वैचारिक चित्र

अधिकृ त कर लिया है ।

र रोज़ कु कर की सीटी जोर से बजती है , कमज़ोर दिल लोगों को नींद पू री होने से पहले जगा दे ती है । यह ध्वनि इं स ान की इन्द्रियों को अलार्म क्लॉक की तरह जागृ त कर दे ती है । नाक रसोई के मसालों की महक को सूं घ कर, रसोइये की कु शलता का अं द ाज़ा नहीं लगा पाती। कसाई की दक ु ानों के मु र्गों की तरह पिंजरे में रहने वाले ये लोग, अपने जीने के तरीके और खाने की वस्तुएं साझा करते हैं । पर्यावरण सं क ट की तरह नज़र आने के बावजू द , यहाँ की गलियाँ अपनी चकाचौंध नहीं खोती। सड़क के गड्ढों की चौड़ाई और कू ड़ाघरों की नजदीकी, लोगों के बीच बातचीत का मु द् दा होता है और वहाँ के ज़िन्दगी के स्तर को दिखाता है । भद ्र लोगों ने , आर्थिक और वाणिज्यिक कें द ्र के रूप में उभरे, राजधानी के दक्षिणी क्षेत्र को

स्कू ल और कॉले ज जाने वाले युव ा और सडकों पर एक साथ चल रहे हैं , डरे हु ए कॉकरोचों की तरह; जो एक ही उद्दे श ्य से , एक कोने से द स ू रे में बिखरे हु ए । सू र ज का इन गलियों को रोशन करने से पहले , कु छ लोग अपने काम धाम ख़त्म कर चु के होते हैं । उनके जाने के बाद ही शहर के असल रखवाले सामने आते हैं । यह वो वक़्त होता है , जब कू ड़ा बीनने वाले और झाड़ू लगाने वाले शहर में नज़र आते हैं , भोंकते हु ए कु त्तों को भगाते हु ए । कु त्ते भी, बाकी लोगों की तरह यही चाहते हैं कि ये लोग यहाँ न रहें । पू र ा शहर एक गति से साफ़ नहीं होता, इसकी एक वजह सफाई करने वाले हाथों की कमी हो सकता है , लेकि न मु ख ्य कारण शहर की विषमता हो सकता है । हीरे और कोयले के बीच की समानता यह कहती है कि कोयला हीरे को कीमती बनाने में अहम भूमि का निभाता है । शायद एक विरोधाभास की तरह, पर बिलकु ल भिन्न। सत्या की मशहू र चाय की दक ू ान पर बहु त भीड़ है , सू र ज के उगने से पहले , चाय की एक चु स ्की और मट्ठी खाने के लिए। सत्या को नियमित दिनचर्या की आदत है , जिसे अपनाने मै किसी भी नए मजद रू को सं घ र्ष करना पड़ता है । सत्या, सभी को ग्लुको-वीटा दे ने

बलबीर और माइक; अपने विवाह के दिन, न्यू यॉर्क, 2014।

सब उसके लिए एक नाटक-सा था। उन्हें लगा वे उस लड़की को धोखा दे रहे हैं। उन्होंने यह दवि ु धा और दोहरापन अपने एक राजस्थानी मित्र को बताई। जब सुबह बलबीर चाय-नाश्ते के लिए बाहर निकले तो उनके हॉस्टल में सभी लोग उनपर हँस रहे थे और उनका उपहास कर रहे थे। इन सब बातों ने उन्हें पूरी तरह तोड़ दिया। वे अपने वजूद और जीवन पर सवाल उठाने लगे और उन्हें कुछ सूझ नहीं रहा था। उन्हें लगा कि ये दनि ु या उनके लिए नहीं हैं। वे रेलवे स्टेशन की ओर बढ़ते चले गए। वे बदहवासी में पटरी पर चलने लगे और उनके अब तक के जीवन की दर्द भरी झलकियाँ उन्हें याद आने लगी। अपने बारें में कहे गए ज़िल्लत भरे शब्द उनके कानों में गूँजने लगे। कुछ ही क्षणों में वो मर जाने के लिए पटरी पर लेट गए मगर पास आती ट्न रै की तेज़ आवाज़ ने उनके भीतर जीने की तीव्र इच्छा जगा दी। लेकिन, तब तक बहुत देर हो चुकी थी। उनकी दोनों टांगें घुटने से

नीचे कट चुकी थी। जीने की तीव्र इच्छा ने उनका जीवन बचा लिया। आने वाले सालों में उन्होंने अपनी कला को परिपक्व बनाया और अपनी पढाई पूरी की। उन्होंने अपनी कला में अपने टू टे हुए अस्तित्व को जोड़ना सीखा। रेखाओं और रंगो के जोड़ तोड़ ने उन्हें फिर से जीने की चाहत दीं। इस लड़ाई में कई फरिश्ते उनसे जुड़ते चले गए, जिन्होंने उनके भीतर के खूबसरू त इंसान को देखा और उन्हें आगे बढ़ने में हाथ-बटाया। धीरे-धीरे उनकी कला को सराहना मिली। उनके चित्रों में उनका अंतर्दद ्वं झलकता हैं। जिस समाज में हम रहतें हैं वहाँ बलबीर जैसे कलाकार के लिए अपनी इच्छाएँ और सपने कला में उतारना बहुत मुश्किल हैं और इसके लिए उन्हें ख़ुद से ओर समाज से एक लम्बी लड़ाई लड़नी पड़ी। आज वो अपनी कला में समलैंगिगता और अन्य किसी विषय को बिना किसी डर के चित्रित करते हैं। उन्हें अपनी कला के लिए कई पुरस्कारों से सम्मानित किया जा

चुका है और उनकी कलाकृतियां प्राइवेट कलेक्शन और कला संगह ्र ालयों द्वारा अधिकृत हैं। प्यार की तलाश माइकल से मिलने के बाद ख़त्म हो गई। माइकल का प्यार उनके जीवन में बहुत सारी ख़ुशियाँ लेकर आया। वे कहते हैं, “पिछले कुछ सालों में, मैं कई मायनों में बिना किसी डर के समाज के सामने आया हूँ अपनी लैंगिगता को लेकर, अपने बचपन के यौन शोषण को लेकर, अपने एक्सीडेंट को लेकर, अपनी कला को लेकर और माइक से अपनी शादी को लेकर। यह एक गुरु मन्त्र बन गया है, यह सच है; मेरे होने का, मैं जो करता हूँ और मैं जो भी बनना चाहता हू।ँ मैं बलबीर हू,ँ मैं चालीस साल की विध्वंश और फिर जीत की कहानी हू,ँ आगे बढ़ता हुआ, सामने आता हुआ, इस दनि ु या के बीच, जीने की भूख लिए हुए।”

एक्ट वन, चार एक्ट का पहला भाग, स्टीवन एस जॉर्ज द्वारा रचित। प्रवासी समुदाय के अनुभवों पर आधारित। की अपनी ज़िम्मेदारी को समझता है , जो उन्हें दिन और कभी-कभी शाम तक ताकत दे त ा है । जै से भे ड़ों का एक झुं ड , एक गड़रिये की दे ख रेख में , और अर्थव्यवस्था, सड़क पार कर सफ़े द किले ओर जा रहे हैं । सत्या ( बाकी लोगों से ): किला में बहु त से अवसर हैं । हर रोज़ में लोगों को खिलने का पु ण ्य करता हूँ और साथ-के -साथ पै स ा भी कमा रहा हूँ । ( लोग हँ सते हैं ) पहला व्यक्ति: कटु सच। पीपल के ऊँ चे पे ड़ की छाँ व में , दोस्तों के साथ पत्ते खे ल ते हु ए , अपनी भै सों के साथ नदी में तै र ते हु ए , मैं पू रे दिन गाँ व में तफरी करता। दस ू रा व्यक्ति: तू सही बोल रहा है , किला बहु त शानदार है । मैं ने इसके जै सी गज़ब जगह अपनी पू री ज़िन्दगी में नहीं दे खी। तीसरा व्यक्ति: मु झे नहीं लगता यह एक किला है , यह एक शहर की तरह है । अगर यह किला हमारे गाँ व में होता, तो एक भी इं स ान यहाँ से कु छ भी खरीद नहीं सकता, ब् रा ह्मण लोग भी नहीं। सत्या: गाँ व ??? मु झे इस शहर में

10 साल हो गए हैं , मैं आज तक इस किले में कदम नहीं रखे । पहला व्यक्ति: तू हमारे साथ आजा एक दिन? हमारा सु प रवाइजर ज़्यादातर आता ही नहीं, हम खुद ही सु प रवाइजर हैं और कर्मचारी भी। वहाँ बीड़ी पीयें गे , ऊपर एक जगह है , जो किसी को नहीं मालू म । सत्या: हाँ आऊं गा एक दिन, उस दिन सिगरेट फू कें गे । फिर तु म सब का ख्याल कौन रखे ग ा। हम जै से लोगों को एक दिन का भी आराम नहीं है । पहला व्यक्ति: अरे, तु म बताओ, क्या तु म ्हारे गाँ व के लोग खरीद पायें गे ? अशफ़ाक़ ( प्र व ासी ): हाहा मैं तो मर ही जाऊं गा, अगर ये किला न हो। ( सभी हँ सते हैं , चाय पीते हु ए और निकलते हु ए )

शाम ढलते ही शहर,ते ज़ हलचल से भर जाता है । गलियों में बढ़ी गतिविधि से अराजकता सी नज़र आती है । एक रोज़ाना के नीरस से दिन के बाद, जो गतिविधियाँ होती हैं उनमें शामिल है - निजी गपशप, दबे हु ए भाव, पु र ानी बातों को याद करना, ते ज़ हलचल, थके शरीर, सरकार को गाली दे न ा, लोगों की मनोस्थिति की निंदा और प्र व ासियों पर हमले , शहर में फै ले कू ड़े के लिए। इस सब उथल-पु थ ल के बीच, सत्या गली में कु छ लोगों के जमावड़े को दे ख ता है । वह वजह जानने के लिए निचे उतरता है । पहला व्यक्ति: उन कमीने लोगों ने उसे अरेस ्ट कर लिया है । ...जारी रहे ग ा ( आगे का सीन और अध्याय 2 अगले अं क में प्र क ाशित होगा)

हर रात सत्या आसमान में तारों को ढू ँ ढ़त ा है , कभी-कभी एक-आध उसे दिख भी जाता है । दस साल यहाँ रहने के बाद, वह 2 लोगों के साथ एक किराये का कमरा ले ने में समर्थ है । उसमें एक खिड़की है । उस खिड़की से वह अक्सर उस किले को मायू सी और सं दे ह से दे ख ता है ।

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खिड़की आवाज़ • पतझड़ अंक 2018 एक दिन मैं खिड़की में टहल रही थी, एक दीवार ने चटकीले रं गों में रं गी हुई चाय की दुकान की तरफ इशारा किया। मैं बैठी हुई, अगस्त की भीगी दोपहरी का लुफ्त उठा रही थी...

मैं एक ही पल में द सिंगिंग ट्री के के पास पहुँ च गई...

राजू दा का द सिंगिंग ट्री वहाँ था भी और नहीं भी। आप उसे शाम को सी.आर पार्क की मार्किट नंबर 1 के पास याद किया करें गे

द सिगं िगं ट्री में चाय की चुस्की शब्द + कलाकृति

आलिया सिन्हा अगर आपको दिख गया तो, अद्भुत नज़ारे दिखेंगे...

रं गीला पेड़ और पड़ोस की गपशप

लड़ी वाले बल्ब एक नीली के तली, एक प्लास्टिक की खोपड़ी, कु छ अजीब सजावट साहसी चूहे और एक खिड़की में मोना लिसा...

...और हमेशा, हमेशा चाय यह एक लम्बे दिन की शुरूआत और अंत का सबसे बढ़िया तरीका है

रे डियो में पुराने हिं दी के प्रेम-गीत बजते। यह एक पनाहगाह-सी है (जैसे सारी चाय पीने की जगहें होती हैं , जिनको चाहिए होता है )-दोस्तों, प्रेमियों और परिवार के साथ समय बिताने की सबसे बेहतरीन जगह। यह सुरक्षित, परिचित और मत्वपूर्ण लगने लगी।

फिर जनवरी 2018 में किसी ने फैसला किया कि द सिंगिंग ट्री खतरा है यह उतना ‘स्वच्छ’ नहीं है , खराब चीज़ों को आकर्षि त करता है , जैसे गन्दगी और युवा जोड़े ।

फिर एक सुबह अचानक, जिस जगह ने 1989 से यहाँ की गली को उम्मीदों, सुरक्षा और भाई-चारे से भरा था, हटा दी गयी है , नामो-निशान भी नहीं रहा ।

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तीन हफ्ते पहले, एक सिंगिंग ट्री गिर गया है । उसकी जगह आज एक पीपल का पौधा है । सबकु छ हो जाने के बावजूद। मैं उम्मीद करती हूँ , यूँ ही, राजू दा का टी स्टाल एक दिन वापस आ जायेगा।


पतझड़ अंक 2018 • खिड़की आवाज़

कला के माध्यम से मोहल्ले के बच्चों की नई खोजें ऊपर: निलब, मीणा और ओमिद, सेल्फी खींचते हुए ऊपर दाँये: खिड़की महोत्सव 2017 नीचे: ‘ज़ोंबी ट्रैन:, सब्रा की बनाई हुई अक्सोर्डि यन बुक, ‘द यूनिवर्स’,’आवर फनी फॅमिली’,क्ले के साथ खेलते हुए, किरदारों को गढ़ना।

photographs- aru bose

अरु बोस

रवरी 2017 के मध्य में, कॉफ़ी पर चर्चा करते हुए मेरी बात खोज संस्थान की राधा से हुई, मैंने खिड़की एक्सटें शन में रह रहे अफगानी बच्चों को आर्ट और क्राफ्ट सिखाने के लिए वालंटियर किया। मैं न तो एक सीखी हुई आर्टिस्ट थी और न ही मुझे बच्चों को पढ़ाने और संभालने का कोई अनुभव था। थोड़े घरबराये और थोड़े उत्साहित मन से मैंने इस काम को ले लिया।

आज़ादी की उड़ान होता है। दिल्ली में महिला सुरक्षा के बारे में लोग इस तरह की बातें, बहुत कम सुनने को मिलती हैं। खिड़की की गलियों में हमारा सफर, इस समुदाय में अलग-अलग राज्यों और देशों से आये लोगों को देखकर और समझकर हमने खिड़की के नक़्शे बनाये। “दीदी, मुझे ये क्लास पसंद है, क्यूंकि हम यहाँ गेम्स खेल सकते हैं और फ्री रह सकते हैं।”

मैं खुद से सवाल करने लगी, इन कक्षाओं के विषयों को लेकर, यह जगह क्या बनकर उभरेगी, मेरे और उनके लिए। क्या स्कू ल की कक्षाओं जैसा माहौल होगा? उनकी वृद्धि को कैसे जाँचंूगी ? उनकी प्रगति के मानदंड क्या होंगे ? क्या मैं उनकी टीचर या मेंटर या दोस्त बनूँगी ? इस तरह की आर्ट क्लास में बच्चे क्यों आयेंगे? क्या मैं उनकी ज़िन्दगी में कोई योगदान दे पाऊँगी ?

बच्चों को पढ़ाने के इस अनौपचारिक काम, खिड़की आर्ट प्रोजेक्ट नाम के एक वर्ष लम्बी सुन्दर पहल में तब्दील हो गया, मुख्य रूप से अफगानी लड़कियों के लिए। पिछला साल उड़न खटोले की सवारी से कम नहीं था। हमने कुछ बहुत से सुन्दर पल साथ बिताये- ईद और जन्मदिन के जश्नों से लेकर, ओरिगामी और किरीगामी के बारे में सीखने से लेकर, प्रिंट मेकिंग और पेंटिंग की तकनीक से लेकर, अपने भविष्य के सपनों और इच्छाओं की कॉमिक्स बनाना।

“यहाँ हमारी मम्मी हमको बाहर जाने देती है। हमको अच्छा लगता है।” हालाँकि यह एक आर्ट और क्राफ्ट क्लास है, इसका मकसद सिर्फ कला नहीं था। महीनों हमारी एक दस ु रे बातचीत का सिर्फ अंतिम परिणाम कला के रूप में उभरकर आती थी। हमने अपनी आसपास की देखी हुई चीज़ों पर ज़ीन बनाई- जैसे जामुन पार्क में खेलते हुए बच्चों पर या मेट्रो की सवारी को हमने ‘ज़ोंबी’ ट्विस्ट दिया, क्योंकि हमें भूतिया कहानियाँ पसंद हैं। बहुत सी लड़कियों के लिए घर से निकल खिड़की की गलियों में चलना

हमें कई दिक्कतों का सामना भी करना पड़ता था - स्कू ल, इंग्लिश, कंप्यूटर और ट्यूशन के साथ-साथ कला के लिए कुछ घंटे निकलना मुश्किल होता था। किशोरावस्था के बुरे दिनों में, जब दोस्तों से लड़ाई होती थी, दिन काटना मुश्किल होता था। हमनें भावनाओं से जुडी बातें भी की, और जो बातें हमें ख़ुशी, गुस्सा और दःु ख देती थीं, एक-दस ू रे से साझा की! जब स्कू ल और किशोर होने का दबाव ज़्यादा होता था, तो हमने निष्कर्ष निकाला कि चिप्स और केक के साथ एक डांस पार्टी हमें अच्छा महसूस करतीं हैं।

बायें: खिड़की महोत्सव से एक पोस्टकार्ड नीचे: मुजहदा ओरिगामी के क्रेन बनाती हुई

“दीदी, आपको क्या मिलता है हमको पढ़ाकर?” “ख़ुशी”, मैं कहती। इस पड़ाव पर, मुझे अक्सर शंका होती थी। मैं अपने कौशल को लेकर आस्वस्त नहीं थी, मुझे ये भी मालूम था कि अस्थायी आबादी के साथ काम कर रही हूँ। साथ ही, बच्चे और उनके माता-पिता कला जैसी महत्वहीन चीज़ सीखने क्यों भेजेंगे? ऐसे भी दिन होते थे, जब में एक्टिविटी के लिए पूरी तरह तैयार रहती और कोई भी नहीं आता। कभी-कभी मैं क्लास को भाषा में अंतर की वजह से कंट्रोल नहीं कर पाती। लेकिन जैसे-जैसे वक़्त बीता, चीज़ें सुधरने लगीं। उनकी दिलचस्पी और उत्साह बढ़ने लगा, वे बेसब्री से कक्षा की प्रतीक्षा करते, मुझे मनाकर क्लास को लम्बा करने को कहते और हमारी पहले से व्यस्त कार्यक्रम में और दिन जोड़ देते! “क्या आप एक और प्रदर्शनी लगाकर हमारी ड्राइंग बेच सकते हो? क्या हम अपने स्कू ल के दोस्तों को बुला सकते हैं?” पिछले साल दिसंबर में, खिड़की महोत्सव के दौरान, लड़कियों के साथ हमारी चर्चाओं का फल सामने आया। गैलरी को क्यूरेट करने से लेकर, दोस्तों और परिवारों को निमंत्रण देने तक और यह पुख्ता करना कि अपने परिवारों को वे महोत्सव तक लायेंउन्होंने स्वयं किया। उनका स्वामित्व, करुणा और आत्मविश्वास तेजी से बढ़ा है। वे अपनी कलाकृतियों को लेकर काफी उत्साहित थे और ज़ाहिर करना चाहते थे कि क्लास में बिताये हुए समय के क्या मायने हैं।

एस्ट्रोनॉट और अंतरिक्ष की कहानियाँ

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खिड़की आवाज़ • पतझड़ अंक 2018

स्थानीय हुनर

उभरते हुए लेखक की कवितायेँ

लीदा फिरोज़ी, जो कि अफ़ग़ानिस्तान से हैं, खिड़की एक्सटेंशन में पिछले तीन सालों से रह रही हैं। लीदा 13 साल की उम्र से उर्दू, फ़ारसी (दरी) और हिंदी में लिखती हैं। उसने अफ़ग़ानिस्तान, पाकिस्तान और भारत की खूबसूरती को देखा है,और इन्हीं से प्रेरणा लेती है। नए लोगों से मिलना और नई जगहों पर जाना कल्पना के नए द्वार खोलता है। वह मिर्ज़ा ग़ालिब, अहमद फ़राज़ और इक़बाल की कविताओं को पढ़ना पसंद करती है। रविवार को लीदा बच्चों को पढ़ाती है और उनके माता-पिता को ‘अर्ली चाइल्डहुड डेवलपमेंट’ की जानकारी देती है। उसे प्यार, सौंदर्य, अध्यात्म और मानवीय स्थिति के बारे में लिखना अच्छा लगता है।

लीदा खिड़की एक्सटेंशन की अपनी पसंदीदा कैंटीन में

न लालच जन्नत की होती, न गुनाह पे पर्दा होता जो होती मुख़लिस मोहब्बत महज़ सिर्फ खुदा से होती। •

• ज़ाहिर होती लोगो की नीयत बोलो कितनी तबाही होती जो फिरते हैं झूठे वादे लिए बोलो कितनी रुसवाई होती दावा करते हैं सच्चे प्यार का फिर देखें कैसे बेवफाई होती सर-ए-बाज़ार नीलाम होते वो लोग जिनकी फितरत में सिर्फ़ बुराई होती न छुपते पैसे तले ऐब अमीरों के न दिखती लाचारी, मुस्कराहट तले गरीबों की

जो मोहब्बत थी तुझसे, वो मोहब्बत अब भी है बाक़ी वो हसरत तुझको देखने की, वो क़ु रबत तुझे पाने की, हम-राह तुझे बनाने की, वो चाहत अब भी है बाक़ी। जो मोहब्बत थी तुझसे, वो मोहब्बत अब भी है बाक़ी

न होती हुश्न की इबादत, न खौफ दोज़ख का होता,

वो फितरत तुझको सोचने की,

वो आहत तेरे क़दमों की, वो आँ खों में हया, और दिलो में वफ़ा, वो खुशबू अब भी है बाक़ी। दिल रहें तनहा, दरू ी रही दर्मिया फिर भी वो इश्क़ का सुरूर वो नशा औ गुरूर अब भी न बाक़ी जो मोहब्बत थी तुझसे, वो मोहब्बत अब भी है बाक़ी

• उन्हें गुमान है कि हम उनकी खूबसूरती पे मरते हैं और जिस्म से लिपटते हैं शायद उन्हें मालूम नहीं जो कशिश दरमियाँ है दोनों की, वो रूहों की तड़प है- जिस्म की प्यास नहीं, हुस्न का गुरूर है उनको और इस बात का यकीन है हमको

मिलने को हज़ार मिलेंगे उन्हें, जो जिस्म तो रख लेंगे-फ़ेंक देंगे रूह को। • नशा-ए-इश्क़ में डू बी हुई है दनि ु या इस तरह, कि कोई काम ही न हो इश्क़ के बिना जिस तरह। लम्हा-लम्हा यार की याद में गुज़रती इस तरह, सदियों से कोई माँ अपने बच्चे से बिछड़ी हो जिस तरह। अजब कश्मकश मची है काइनात के कोने-कोने पर, की जैसे आसमान बना हो मेहमान ज़मीन का। अल्लाह ही जाने कि क्या माज़रा है उसके बन्दों का, की कोई सजदा मैं गिरा बरसों से मांगता है यार अपना, तो कोई गुनाहों की भीग झोली में बढ़ रहा है अपना।

दर-दर भटकती हूँ कोई ठिकाना नहीं मेरा मुहाज़िर हूँ कहते हैं ये जैसे कायनात हो इनका न भूख, न लालच- पैसों की न आस, न प्यास - शोहरत की बस एक छत्त चाहिए सुख से सोने को बस एक घर चाहिए ज़िन्दगी बसर करने को

• लोग कहते हैं वक़्त ज़ख्म भर देता है, मैं हैरान हूँ कि वक़्त के आगे नहीं भरा अब तक या लोग झूठ कहते थे। •

अतु ल्य दिल्ली.

तस्वीर: चन्दन गोम्स, डिजिटल कोलाज: मालिनी कोचुपिल्लै

आइये,सुन्दर पहाड़ों का लुत्फ़ उठाइये थोड़ा रुकिए, धुध ं भरी सर्दी की महक लीजिये!

Layout design by Malini Kochupillai

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Edited by Malini Kochupillai & Mahavir Singh Bisht [khirkeevoice@gmail.com]

Supported & Published by KHOJ International Artists Association


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