मकसद
उम हमारे बहत बीती िदन हमने बहत िगने रोज कै लेडर की एक पने को फाडकर िदन की शुरवात की. एक पना को फाडकर हमने उम का एक िदन िजया है हर एक पल ता िहसाब लेने आज िजदगी से सवाल िकया है. रात बीती और िदन ढली कया िदया और कया िजया है, न िमला हमे कोई जवाब कया िजदगी हमसे रठा है? जी रहे है औ' जीते रहेगे हम एक बोझ है धरती की, बीत गई है आिध उम आज भी वही खडे पाए है. छोड िदए कु छ रासते मे बचपन का वे एहसास आज बचो मे ढू ँढ रहे है गुजरे पल की एक साँस. बाकी िजदगी की कया है मकसद, वह भी अनजान है आज तक हम समझ न पाएँ जी रहे है तो कयो है.
....लता तेज....******