Awakeningarticle01

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सष्ृ टिकर्ता वतल्मीकक दयतवतन अपनी रचनत पतवन योगवशिटठ के मुमुक्ष प्रकरण में कहर्े हैं, "जो मतनव अपने ह्रदय के भीर्र वर्ामतन ईश्वर को छोड़ कर और दस ू रे दे वर्तओं की उपतसनत के चक्कर में पड़र्े हैं और बतहर ईश्वर को र्लति करर्े हैं, वे ऐसे मढ़ ू हैं जैसे कक कोई मतनव अपने हतथ में मौजद ू मणण को फेंक कर कताँच के पीछे भतगर्त है ।"

ऐसत ही कथन गुरु नतनक दे व जी ने जीवन भर पतखण्डों के ववरुद्ध संघर्ा ककयत। वह कहर्े हैं, "इको शसमरो नतनकत, जो जल थल ररहत समतये। दज ू त कहे शसमररये, जो जम्मे र्े मर जतये ।। " अथतार् जो ईश्वर इस जगर् के कण-कण {जलथल} में ववद्यमतन है , वही सवािष्क्र्मतन है , वह अक्षय है भतव जन्म और मत्ृ यु से ननलेप है , मैं उसी 'एक' को मतनर्त हूाँ ककसी दे वी-दे वर्त को नहीं।

ईश्वर और इंसतन दो ही र्तकर्े हैं बतकक सब बकवतस है । सष्ृ टिकर्ता वतल्मीकक दयतवतन कहर्े हैं, "दे व मख ु ा लोगों की कल्पनत है । साँसतर में जो भी प्रतप्र् होर्त है वह केवल पुरुर्तथा के द्वतरत ही।" ककसी धतगे र्तबीज़ यत ककसी धुनें की रतख से भतग्य नहीं बनर्त। भतग्य कत ननमताण आपके परु ु र्तथा के द्वतरत होर्त है ।

उपरोक्र् कथन को बतर-बतर पढ़ने की जरुरर् है । आज वतल्मीकक समतज कत यव ु त परू ी र्रह से भिकत हुआ है । वतल्मीकक नतम हमतरे सतथ जतनर् की एक पहचतन के रूप में जुड़त हुआ है । वतल्मीकक नतम सष्ृ टिकर्ता कत यह हम र्ो क्यत हमतरे सन्र्-महतत्मत, नेर्त-कतयाकर्ता व शिक्षक्षर् वगा भी नहीं समझ सकत।

हमतरे यहताँ पहले नेर्त और सन्र् दरू घिनत-वि हुआ करर्े थे परन्र्ु अब जैसे अयोग्य युवत नतई {Salon} की दक ू तन जत कर हीरो बन जतर्त है वैसे ही संर् और नेर्त बनने लगे हैं। पंजतबी में कहर्े हैं,"नत अक्ल मौर्" ठीक इसी र्रह नत हमतरे संर्, नेर्त और शिक्षक्षर् वगा के पतस उचचर् समझ है न इच्छत-िष्क्र्, यतनन नीनर् और नीयर् दोनों सतफ नहीं।

सष्ृ टिकर्ता वतल्मीकक दयतवतन को आम जन-सतधतरण रतमतयण के आदद-कवव के रूप में ही दे खर्त है । वह भी दे खर्त ही है समझर्त नहीं। समझत होर्त गर रतमतयण को र्ो आज जीवों की हत्यत करने को धमा कभी नत कहर्त क्योंकक रतमतयण की रचनत ही जीव हत्यत के ववरोध में हुयी थी।


रतमतयण की रचनत जीव हत्यत की प्रनर्कियत कत प्रनर्फल ही है । जब ववटणु ने प्रेम में मग्न िौंच पक्षक्षयों पर र्ीर चलतयत। एक िौंच की हत्यत हो गई। अपने उस सतथी की जुदतई पर दस ू रत िौंच र्ड़पने लगत, रोने चीखने लगत। इस ववरलतप आवतज़ पर करुणत-सतगर स्वयं प्रकि हुए और साँसतर कत प्रथम श्लोक कहत और ववधतन कतयम ककयत।

जीव की हत्यत कर, उसकी चीख पुकतर करवत कर अपने शलए सुख-ितष्न्र् चतहर्े हो, यह कैसत इन्सतफ, कैसत र्का, कैसी समझ ? इस मूखर् ा त और पतगलपन पर पूणा संर् दतद ु जी कहर्े हैं, "दतद ू दनु नयत बतवरी, कबरे पूजे ऊर्। ष्जनको कीड़े खत गए, उनसे मतंगे पूर् ॥

ककर्नी र्तककाक और र्थ्यतत्मक बतर् ककर्ने सरल अंदतज़ में कह दी दतद ु जी ने की जो अपने आपको कीड़ों से नत बचत सके लोग उनसे अपने और अपने पररवतर की बुरी {?} नज़रों से सुरक्षत की दआ ु एाँ और कबर में गड़े मुदों से जीवन {पुत्र} मतंगने जतर्े हैं।

र्करीबन सुनने को शमल जतर्त है मताँ कत आिीवताद यत बतबे दी फूल कृपत। मैं हमेित ऐसे पररवतरों को गहरतई से दे खने समझने की कोशि​ि करर्त हूाँ कक ककर्नी कृपत हुई इन पर। दे खने को शमलर्त है कक एक भी बच्चत कक्षत 10 भी पतस नहीं और सफतई के पेिे से अपनत वपंड छुड़त नहीं पतए।

दे वी कत जतगरण हो यत पीर की चौकी बतर-बतर स्पीकर से आवतज़ आर्ी है रहमर् बरसने की। भजन मण्डली वतले पैसे दे ने वतले के शलए अरदतस करर्े हैं कक इन्हत दे कतरोबतर चतलवी। इसके बतद भी आज र्क कूड़े के कतम पर अिके हैं। सोच कर बर्तइए, जतगरण यत कव्वतशलयों के दस ु र् हो गए। ू रे ददन ककर्ने गरीबी, जलतलर्, िोर्ण और गन्दगी से मक्

र्ुम जीव हत्यत को पुण्य मतनर्े हो और सष्ृ टिकर्ता वतल्मीकक दयतवतन पतप कहर्े हैं। र्ुम झतड़ू को छोड़नत नहीं चतहर्े और सष्ृ टिकर्ता वतल्मीकक दयतवतन सदत कलम शलए। र्म ु धतगत-र्तबीज़ में ककस्मर् खोज रहे हो, सष्ृ टिकर्ता परु ु र्तथा से बनतने को कहर्े हैं। र्ुम झूठी िष्क्र्यों को मतनर्े हो, सष्ृ टिकर्ता वतल्मीकक र्ुम्हें िष्क्र् बनने को कहर्े हैं।


कफर क्यों र्ुम्हतरे संगठन उनके पर नहीं ष्जनके जतगरण और कव्वतली करवतर्े हो ? कृपयत सष्ृ टिकर्ता वतल्मीकक दयतवतन के नतम को नत बदनतम करें नत उनके नतम से पतप करें नत व्योपतर करें ।

बहुर् सतरों को गुस्सत भी आ रहत होगत। मुझे और मुझ जैसे बहुर्ों को भी बहुर् गुस्सत आर्त है जब आप सष्ृ टिकर्ता वतल्मीकक दयतवतन के नतम को शमट्टी में शमलतर्े हो। एक बतर सष्ृ टिकर्ता वतल्मीकक दयतवतन की कलम अपनत कर दे खो कफर खुद कहोगे ककस्मर् बदल गई। दशलर् अष्स्र्त्व की सम्मतन-जनक स्वीकृनर् हे र्ु।।।।


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