पहाड़ डूबेंगे तो मैदान कैसे बचेंगे

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पहाड़ डूब�गे तो मैदान कैसे बच� गे उमाकांत लखेड़ा तबाह हुए शांत पहाड़� म� गड़गड़ाते हे ल�काप्टर� का शोर थम गया ह ै। देशभर के तीथर्यात और पयर्टक अपने घर� को पहुंच चुके ह� या रास्त� म� ह�। अब उत्तराखण्ड म� पूछे गए ह� तो �सफर् जजर्र बन चुके पहाड़ व केद

, यमुनौत्-गंगोत्री व अलकनंदा घाट� क

लाख� आबाद�, िजसे आने वाले कई वष� तक िजंदा रहने क� लंगी जद्दोजहद भर� त्रा झेलनी पड़ेगी। पहाड़� म� सैकड़� क� तादाद म� नष्ट हुए दो तरह के गांव ह�। एक तो वे जो मंदा�कनी , �पंडर, अलकनंदा, �भलंगना या भागीरथी न�दय� से सटे थे या इनसे जुड़े गाद गदे र� से �घरे थे। दूसर� तरफ , वे दजर्न� गांव िजनक� आजी�वका क� पूर� �नभर्रत न�दय� के मह ु ान� पर बसी जगह� पर थी। सैकड़� गांव� के ये लोग अपने घर का दूध व सिब्जयां आ�द बेचने व नम , गुड़, चीनी और तेल खर�दने जैसी हर छोट�-मोट� चीज के �लए इन्ह�ं यात्रा रूट� पर बसे कस्ब� पर आ�श्रत रहते ह�। या�त्रय� को पेश मुिश्कल� और बड़ी तादाद म� सै-सपाटे के �लए पहाड़ क� त्रासद� म� लापता हुए लोग� क बारे म� तो ट�वी चैनल� पर खूब जगह �मल�। ले�कन स्थानीय तबाह हुए हजार� पवर्ती लोग� के बारे म� �चंता कुछ ह� चैनल� म� झलकती �दखाई द�।

यात्रा सीजन म� सड़क� के �कनारे च-पानी और छोट�-मोट� कमाई करने वाले सैकड़� गांव� के कई हजार लो ग� का अिस्तत्व �मट चुका है। ऊपर� और दुगर्म गांव� को जोड़ वाल� सड़क� नक्शे से �मट चुक� ह�। तबाह हुए ज्यादातर गांव� के लोग� ने सरकार स मांग क� है �क उन्ह� सुर��त स्थान� पर बसाया जाए। सरकार के �लए सीमांत व सुदू पवर्तीय �ेत्र से इतनी बड़ी आबाद� और गांव� को �वस्था�पत करना बेहद क�ठन काम सीमांत �ेत्र �पथौरागढ़ म� भी हालात बदतर ह�। वहां इस बार बड़ी तबाह� ने भ�वष्य 1


भी हालात बदतर ह�। यहां इस बार बड़ी तबाह� ने भ�वष्य के खतर� क� नींव डाल द�। समूचे पवर्तीय �ेत्र म� जमीन क� बाहर� परत� क� �मट्टी घुलने का क्रम जंगल� क� और मानवीय हलचल� से तेज हुआ है। इसक� बड़ी वजह यह है �क आजाद� के बाद

�हमालयी �ेत्र� म� स�दय� से रहने वाल� क� -बदर करने क� नी�तयां अपनाने से सबसे ज्यादा बबार्द� हुई

समूचे पहाड़ खास तौर पर यात्रा माग� व न�दय� से सटे मुहाने पर धड़ाधड़ हुए अवै �नमार्ण काय� ने न�दय� के �नबार्ध बहाव म� ज-जगह बाधाएं खड़ी क� ह�। इसी का नतीजा है �क भार� वषार् से लबालब न�दय� को जब रास्ता नह�ं �मला तो उफनती न�दय ने अपना रौद्र रूप �दखाकर जो सामने , उसे ह� अपने साथ �मनट� म� बहा �दया। 1962 म� भारत-चीन युद्ध के बाद सुर�ा कारण� और सीमांत �ेत्र� म� सड़क� का �बछाने का काम तो तेज हुआ ले�कन सड़क� बनाने क� प्र�क्रया म� जो तकनीक मैद

�ेत्र� म� अपनाई जाती रह� , वह� तर�का संवेदनशील पहाड़� म� सड़क� के �नमार्ण म� भी अपनाया गया। मसलन , सड़क�, पुल� और दूसरे �नमार्ण काय� के �लए चट्टान� डायनामाइट (�वस्फो) से उड़ाना एक परं परा ह� बन गई। योजनाकार और सरकार� तंत् इन बात� से बेखबर है �क �हमालय के मौ�लक स्वभाव और वहां से होकर बहने वाल� न�दय� के नैस�गर्क बहाव से छेड़छाड़ ने आज नह� , तो कल इस तरह क� तबा�हय� को सीधा न्यौता देना ह� था।

मौजूदा त्रासद� को भले ह� वक्त से पहले आए मानसून क� वजह माना जा रहा है ले� चार धाम यात्रा के दौरान आई �वपदा ने अचानक इतना रौद्र रूप कैसे ले , इस पर सब हैरत म� ह�। वस्तुतः अतीत म� चार धाम यात्रा केवल पैदल ह� होती थी। ऋ�षकेश अलकनंदा के �कनारे छोट� पगडंडी ह� गढ़वाल �हमालय पर वहां के तीथर्स्थल� त पहुंचने का अहम ज�रया हुआ करती थी , ले�कन सभी प्रमुख धा�मर्क तीथर्स्थल� के �हमालय से �नकलने वाल� अलकनंदा व गंगा क� सहायक न�दय� म� जगह-जगह 2


व्यावसा�यक ग�त�व�धय� के अलावा अवैध इमारत , बाजार� और कंक्र�ट क� बिस्तय� बसने से न�दय� का प्राकृ�तक प्रवाह अवरूद्ध हुआ। नद� के पानी के 110 मीटर क� दूर� पर �नमार्ण के फामूर्ले को भी पूर� तरह नजरअंदाज �कया गया

बारह बरस पहले उत्तराखंड बनने के बाद नद-नाल� के �कनारे इस तरह के अवैध �नमार्ण क� ग�त�व�धय� का संचालन एकाएक तेज हुआ ह ै। �वशेष राज्य का दजार् प् उत्तराखण्ड म� �नवेश और मुनाफाखोर� के मौक� क� तलाश म� एक नए तरह का मा�फय तंत्र बड़ी तेजी से पनपा है। मा�फया तंत्र ने संवेदनशील जगह� पर ल�ड यूज बदलव बड़ी-बड़ी आवासीय कालो�नयां बसा ल�ं। उत्तराखण्ड क� बेलगाम नौकरशाह� के तार कहकह�ं जमीन मा�फया तंत्र से सीधे तौर पर जुड़े हुए ह�। मा�फया के साधन� के बल प चुनावी फंड का फायदा उत्तराखण्ड म� सत्ता के �वप� के लोग� को �मलता , सो जमीन मा�फया को जब राजनी�तक लोग और सरकार� ह� संर�ण दे रह� ह� तो �फर नौकरशाह� और पु�लस तंत्र म� बैठे लोग भी भ्रष्टाचार क� इस वैतरणी म� हाथ क्य� नह�ं धोएंगे सवाल आपदा प्रबंधन , तो उत्तराखण्ड म� चार धाम यात्रा आरंभ होने के पूवर् प्रबंधन इक-दक ु ्का बैठक� क� रस्म अदायगी कर द� जाती है। मौसम और वषार् आध�ु नक भ�वष्यवा�णय� और मोबाइल क्रां�त के इस युग म� भी उत्तराखण्ड सरका यह जहमत नह�ं उठाई , िजससे ऊपर� इलाक� म� भार� वषार् और बाढ़ आने क� िस्थ�त म चार धाम यात्रा पर ऋ�षकेश व दूसरे स्थल� से रवाना हो रहे या�त्रय� को अ�ग्रम च जार� हो। साथ ह� सैटे लाइट और दूसरे संचार तंत्र� के ज�रए इस बात का आकलन तैया करना जरूर� नह�ं समझा गय , जो यह बताता �क �कस तार�ख को �कतने तीथर्यात्री च धाम के माग� पर कहां-कहां ठहरे हुए ह� तथा �कतने यात्री वापस चार धाम यात्रा क वापस अपने घर� को लौट चुके ह�। अगर हाल क� त्रासद� म� उत्तराखण्ड सरकार के आपदा म� जगह-जगह बसे लोग� का कोई आंकड़ा नह�ं था तो इसक� सबसे बड़ी वजह यह� �नकल� �क सरकार के पास उत्तराखड आने वाले या�त्रय� का रत्ती भर भी �रका◌ नह�ं होता। 3


�वडंबना यह है �क उत्तराखण्ड राज्य बनने के बाद भी पहाड़� के �नयोजन का क�द्र � पवर्तीय संर�ण के मानक� से कोस� दूर है। ह ैरत यह है �क जो आबाद� उत्तराखण्ड मैदानी �ेत्र� यानी देहराद , ह�रद्वा, हल्द्वा, उधम�संह नगर म� बसी ह� , वह सुकून म�

ह� �क उनका कुछ नह�ं �बगड़ा ले�कन मैदान� क� आबोहवा को �नयं�त्रत करने वाल

�हमालयी श्रृंखलाएं लुप्त ह�गी तो आ�खर गंगाघाट क� शहर� सभ्यता का अिस्तत्व बचेगा।

साभार- दै�नक भास्कर 28 जून २०१३

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