An e-collection of Hindi & Urdu poetic talent of Canada
aur रं ग और नरू
Colours & Radiance
رنگ اور نور
Edited and compiled by
Nasim Syed, Meena Chopra, Anil Purohit 1
SB
Poems copyright © the authors This collection copyright © Rang aur Noor and StarBuzz Media All rights reserved ISBN No : 978-0-9938613-2-1 First published: 1st Edition 2014 Publishers : StarBuzz Media Canada 1022 Zante Crescent Mississauga Mississauga, ON. Canada L5J 4M8 starbuzz.ca@gmail.com
Price : $3.99
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रं ग और नूर
رنگ اور نور
रं ग और नूर
رنگ اور نور RANG AUR NOOR (Colours & Radiance)
An e-collection of Hindi & Urdu poetic talent of Canada Edited by
Nasim Syed Meena Chopra Anil Purohit
Publisher : StarBuzz Media, Canada रं ग और नूर
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رنگ اور نور
Rang Aur Noor The Mississauga Library System is pleased to host the launch of the e-book Rang Aur Noor (Colours and Radiance) as part of Mississauga Central Library’s celebration of Culture Days on Saturday, September 27, 2014. And what a fitting celebration for a work that brings together the vibrancy of the Canadian experience. We are a nation of voices, sharing our own unique experiences, sharing our own languages, and sharing our wonderful traditions. But most of all, we share this richness, and meet as one human family, in this great Canada that welcomes each voice and revels in diversity. Congratulations to Meena Chopra for having envisioned this project and for being the positive voice of diversity in our Canada today and congratulations to all the eminent and creative writers who’ve lent their own unique voices to this celebration! Marian Kutarna Arts and History Department Mississauga Central Library
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रं ग और नूर
رنگ اور نور
कनाडा की गंगा-जमन ु ी कविताएं रं ग और नरू
ब्रिटे न, अमरीका, कनाडा जैसे दे शों में बसे भारतीय उपमहाद्वीप के प्रवासी अपनी भाषाओं का रं ग सज ृ ात्मक साहहत्य के ज़ररये ब्रबखेरते रहते हैं। मगर वहीं यह भी सच है कक लिपप एवं
शब्दाविी लभन्न होने के कारण हहन्दी और उदू के साहहत्यकार आपस में एक दस ू रे की रचनाएं पढ़ने से वंचचत रह जाते हैं।
ब्रिटे न में िेबर पाटी की काउं सिर ज़ककया ज़ब ़ु रै ी ने यह बीडा
उठाया कक उदू और हहन्दी साहहत्य का आपस में अनव ़ु ाद करके
पस् ़ु तकें छपवाई जाएं ताकक दोनों भाषाओं के िेखक एक दस ू रे के
पवचारों को समझ सकें। ब्रिटे न की उदू क़िम उनका पहिा गंभीर प्रयास था जजसमें उन्होंने उदू क़िमकारों की कहाननयों का हहन्दी में अनव ़ु ाद करवाया। अन्य हहन्दी कहानीकारों की कहाननयों का उदू में प्रकाशन करवाया।
मेरी पप्रय लमत्र मीना चोपडा ने सच ू ना दी है कक अब ऐसा ही
प्रयास कनाडा में भी ककया जा रहा है और एक संकिन रं ग और नरू का िोकापूण लमलससागा की िायिेरी में 28 लसतम्बर को ककया जा रहा है । इस संकिन में हहन्दी और उदू के बाईस
कपवयों एवं शायरों की कपवताएं, ग़ज़िें एवं नज़में शालमि की गई हैं। इस संकिन का संपादन स्वयं मीना चोपडा, नसीम सय्यद एवं अननि पऱु ोहहत ने ककया है । इस संकिन की
पवशेषता यह भी है कक इसमें सभी कपवताएं मि ू भाषा में भी होंगी और उनका दस ू री भाषा में अनव ़ु ाद भी होगा। यानन कक
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रं ग और नूर
رنگ اور نور
सभी कपवताएं हहन्दी और उदू लिपप में पढ़ी जा सकेंगी। कनाडा में भारतीय उपमहाद्वीप के सभी राज्यों के प्रवासी बसे ह़ुए हैं। ज़ाहहर है कक कनाडा के जीवन के उनके अनभ ़ु व इन कपवताओं में ज़रूर हदखाई दें गे। इससे हमें भी कनाडा के जीवन, वहां की सोच, वहां के आकाश, झीिों और आसमान की बातें पता चिेंगी।
पहिे प्रयास में सभी कपवयों को शालमि कर पाना संभव नहीं
होता। मैं भी कपवयों की सचू च में क़ुछ नाम ना पा कर सोच में पड गया। मगर मझ ़ु े परू ी उम्मीद है कक यह केवि पहिा
प्रयास है और इसके बाद और संग्रह भी सामने आएंगे। जो
कपव इस संकिन में शालमि नहीं हो पाए, वे आगे आने वािे संकिनों में ज़रूर हदखाई दें गे।
मैं मीना और उनकी परू ी टीम को शभ ़ु कामनाएं प्रेपषत करता हूं कक वे अपने प्रयासों में परू ी तरह से सफि हों और आगे भी इन्हें जारी रखें । तेजेन्र शमाू
महासचचव – कथा य.ू के. (िन्दन)
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रं ग और नूर
رنگ اور نور
रं ग और नरू
मोहतरमा नसीम सैयद और मीना जी! आदाब,
सबसे पहिे मैं आपसे माज़रत और माफी चाहूूँगा कक ककसी सबब मैं वादा वफा न कर सका। ककसी ने ऐसी ही सरू तेहाि के लिए कहा है :
क़ुछ तो मजबरू रयाूँ रही होंगी यूूँ कोई बेवफा नहीं होता
मैं कमोबेश रोज़ इसी कैकफयत से गज़ ़ु रता हूूँ -- आप िोगों से ग़ाइबाना गफ़् ़ु तगू होती रहती है । कभी मीना चोपडा जी की िगाई ह़ुई पें हटंग्स के हवािे से, कभी आपके ज़ररये सजाई गई अदबी और सक़ाफती महकफिों की ख़बरों के ताल्िक़ ़ु से, कभी नसीम सैयद साहहबा की नज़्मों और समाजी खखदमात के एतराफ के
लसिलसिे से। सच्ची बात तो यह है कक आप िोग दयारे ग़ैर में
रहकर भी जजस तरह मचिक़ी तहज़ीब, सक़ाफत, ज़बान और अदब का तहफ़्फ़ुज़ कर रहे हैं -- यह बडी बात है ।
‘रं ग और नरू ’ के ज़ररये आप िोगों की जो ख़्वाहहश और कोलशश है , उसकी जजतनी तारीफ की जाए कम है । एक ज़बान के अदब
को दस ू री ज़बान के अदब तक पह़ुूँचाने की ररवायत बह़ुत पऱु ानी है । मग़ररबी अदब की शाहकार तहरीरें (नज़्मो नस्र) कभी तजम ़ुू े की शक्ि में , कभी अख़ज़ो इसनतमबात की सरू त में उदू -हहन्दी
अदब में मत ़ुं ककि होती रही हैं। और उन तहरीरों ने हमारे अदब
को कफक्री, लिसानी और तख़य्यि ़ु ी एतबार से वस ़ु अत और गहराई दी है ।
अब चूँ कू क हमारा समाज एक ‘ग्िोबि गाूँव’ में तब्दीि हो
गया है , इसलिए यही काम अगर हम बरक़ी ककताबों और ररसािों के ज़ररये करें गे तो यह हहन्दी और उदू अदब को न लसफू क़रीब
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रं ग और नूर
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करने में बजल्क मक़बि ू बनाने की तरफ भी एक अहम क़दम होगा।
तमाम मस ़ु रू त है और मब ़ु ारकबाद के मस् ़ु तहहक़ हैं आप
जैसे िोग। Indo-Canadian International Arts या ‘‘रं ग और नरू ’’ के हवािे आटू के Banner से हहन्दी और उदू अदब को न लसफू
क़रीब िाने का काम कर रहे हैं बजल्क इन ज़बानों से नावाककफ मगर मोहब्बत करने वािे शाइक़ीन को हर दो ज़बानों में मवाद
फराहम कर रहे हैं, यानी जो हहन्दी नहीं जानते वो उदू के ज़ररए और जो उदू नहीं जानते वो हहन्दी के ज़ररए -- शेर व अदब से
ित़्ु फ हालसि कर सकें -- बजल्क रोमन रस्मि ़ु -ख़त में इन मतन ू को पेश करना, ऐसा ही है , जैसे हहन्दी उदू अदब को Global Village से क़रीब करना -- ‘‘रं ग और नरू ’’ के नाम से की जाने
वािी यह कोलशश कामयाब हो, ऐसी हमारी दआ ़ु और उम्मीद है ,
जो न लसफू हमें ज़बान व अदब के इस सेह-रं गी ‘‘रं ग’’ में रं ग दे बजल्क इसके ‘‘नरू ’’ से हमारे हदिों और ज़ेहनों को रौशन और
मनौवर कर दे -- अगर ऐसा ह़ुआ और यक़ीननन ऐसा ही होगा तो मोहतरम नसीम सैयद, मीना चोपडा और अननि पऱु ोहहत जी की कोलशशें हर ऐतबार से कामयाब कही जायेंगी।
मैं ‘‘रं ग और नरू ’’ के इजरा और इशाअत पर कनाडा के
अदीब और शाइरों को मब ़ु ारकबाद दे ता हूूँ । जजनकी नज़्में /ग़ज़िें इसमें शालमि हैं और इन मत ़ु जजूमों को भी जजन्होंने इन तहरीरों को उदू /हहन्दी में मत ़ुं ककि ककया। नीज़ रं ग और नरू टीम के लिए नेक ख़्वाहहशात पेश करता हूूँ। Prof. Irteza Karim,
Head, Department of Urdu, Delhi University,,Delhi (India)
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रं ग और नूर
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रं ग और नूर
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Prof. Irteza Karim, Head, Department of Urdu, Delhi University, Delhi (India) 10
रं ग और नूर
رنگ اور نور
आम़ुख कनाडा का राष्ट्र जो की पवश्व भर की पवपवधताओं का एक ननरं तर प्रवाह है और अपने में उन्हें एक समर ़ु की तरह समेटता भी है , उसकी पावन भूमी पर,
इ-काव्य संकिन, कनाडा में बसे हहंदी और
"रं ग और नूर"
उदू के रचनाकारों द्वारा पवश्व भर के हहंदी और उदू के पाठकों और कपवता प्रेलमयों के लिए एक नया प्रयास है ।
इस संकिन में हहन्दी और उदू भाषा के च़ुननन्दा कपवयों एवं शायरों की चन ़ु ी ह़ुई कपवताओं एवं शायररयों का शानदार गि ़ु दस्ता पाठकों के समक्ष रखा गया है ।
कनाडा की पवपवधताओं के अनप ़ु म समागम में खान -
पान, रहन - सहन, रीनत - ररवाजों के अनेक आयाम एक
छोर से दस ू रे छोर तक अनेक रं गों में झिकते रहते हैं और इस कारण यह राष्ट्र पवश्व संस्कृनत में अपना एक पवलशष्ट्ट और अनठ ू ा स्थान भी बनाता हैं।
पवलभन्न दे शों से
आए ह़ुए अप्रवासी नागररक अपने - अपने दे श के आचार पवचार, धमू - कमू अपने साथ इस दे श में िाये हैं। इन सबके साथ आई है , उनके दे श की संस्कृनत, साहहत्य और
सभ्यता की महक। इसी महक की खश ़ु बू इनकी िेखनी के माध्यम से जन मन तक पह़ुूँचाने का अथक प्रयास हमने इस 'रं ग और नूर' की रौशनी के माध्यम से ककया है ।
िेखक जो समय ब्रबताकर अपने दे श से इस दे श में आया
है , उसके मन के भीतर नछपी कल्पना, आकांक्षा एवं उत्साह 11
रं ग और नूर
رنگ اور نور
वह अपनी िेखनी के जररये से अपने पाठकों तक पह़ुंचाना चाहता है । िेखक का संवेदनशीि मन अपने चह़ुंओर घटती घटनाओं से ही न केवि प्रभापवत होता है , वरन वह आने
वािे बेहतर कि की भी एक आशा रखता है । उसके स्वप्न, उसकी अलभिाषा - उसके मन में उथि प़ुथि सी मचा दे ते
हैं। िेखक मन के इसी तनाव, छटपटाहट, खश ़ु ी , प्रेरणा की भावनाओं के इन्रधऩुष को कोरे कागज़ पर उं केरता है । हहन्दी और उदू दोनों ही भाषाएं अपने आप में अपना एक
ऐनतह्य रखती हैं। कभी मौसेरी बहनें तो कभी एक ही लसक्के के दो पहिू के नजर से इन्हें दे खा गया है । भाषा की
पवपवधता और पवस्तत ृ ता में दोनों की पररधी पवस्तत ृ है ।
कनाडा में इन दोनों भाषाओं पर लिखने वािे कई प्रनतजष्ट्ठत
िेखक हैं। उनकी रचनाएं पवश्व के िाखों जनमानसों के हृदय में अपना स्थान बना रहीं है और बना चक ़ु ी हैं।
इस इ-काव्य
संकिन के ज़ररए हम सबने एक छोटा सा कदम पाठकों तक पह़ुूँचने के लिए लिया है । हमारा स्वप्न है कक ये कपवताएं/ शायररयाूँ पाठकों को आनंद पवभोर करें गी।
आज के तकनीकी य़ुग में अंतजाूि/इन्टरनेट का बडा ही
महत्वपूणू स्थान रहा है । वतूमान में इंटरनेट आम आदमी की
जज़ंदगी का अहम हहस्सा होता जा रहा है । पवश्व को एक ताने बाने में ब़ुन कर ब्रबजिी की गनत से जानकारी पह़ुंचाने में इसका योगदान अत़ुिनीय है । इसलिए पवश्व के हर कोने में बसे साहहत्यप्रेलमयों तक पि में यह इ - काव्य उपिब्ध हो, इसी आकांक्षा से इस ebook का प्रकाशन ककया गया। 12
रं ग और नूर
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पाठकगण कहीं भी ककसी भी समय इसका रसास्वादन िे सकते हैं। हमारा यह अथक प्रयास प्रथम है , पर अंनतम नहीं। भपवष्ट्य में साहहत्य की पवलभन्न पवधाओं - कपवता, कहानी, उपन्यास, नाटक, ननबन्ध आहद पर -अनेकों इ - ब़ुक के प्रकाशन का प्रयास ककया जाएगा। प्रथम प्रयास में हमसे अनेकों त्रह़ु टयाूँ
अवश्य ह़ुई होंगी एवं पाठकों से अऩुरोध है कक वे अपनी प्रनतकक्रया के साथ - साथ इन त्रह़ु टयों पर भी हमारा ध्यान
आकपषूत करें । आने वािे समय में पाठकों के पवचारों को मद्दे
नज़र रखते ह़ुए हम अचधक पररमाजजूत ebook का प्रकाशन कर सकेंगे।
इस ebook काव्य संकिन में हम सभी कपवयों/शायरों एवं अनेक सहयोचगयों का तहे हदि से धन्यवाद दे ते हैं। इनके अथक एवं ननिःस्वाथू पररिम के ब्रबना इस प्रयास की
पररकल्पना असंभव थी। इस प्रयास को एक ननजश्चत पटि दे ने में "लमजस्ससागा िाइिेरी लसस्टम" का हमें सहयोग लमिा है , जजसके लिए हम उन्हें भी धन्यवाद दे ते हैं
आशा
करते हैं, कक भपवष्ट्य में भी इनका सहयोग इसी तरह लमिता रहे गा। -नसीम सय्यद, मीना चोपडा, अननि प़ुरोहहत
पाठकगण अपना स़ुझाव/मंतव्य/हटप्पणी
meenachopra17@gmail.com ईमेि पर भेज सकते हैं।
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کینڈا کے شہر ٹو رنٹو کے حوالے سے اردو کے معروف و محترم ادیب و شا عر مرحوم سردار جعفری نے اب سے تقریبا پندرہ سال پہلے ٹو رنٹو میں اپنی تقریر کے دوران یہ پیشن گو ئ کی تھی اس شہر کو ایک دن اردو کے اہم مر کز کی حا صل ہو گی ،اور ایسا ہی ہوا آ ج ٹورنٹو نہ صرف اردو بلکہ ہندی اور دیگر زبانوں کا بھی ایک اھم مرکز ہے ٹورنٹو سے اسوقت اردو کے پندرہ سے ذیا دہ اخبار نکلتے ہیں اور اس سے بھی ذیا دہ ہندی زبان کے ۔ اردو اور ہندی کی کے شا عر ، افسانہ نگار ،نا ول نگار پوری ادبی دنیا میں اپنی شنا خت رکھتے ہیں اور کینڈا کے ملٹی کلچر ماحول میں نمو پا نے واال یہ ادب اپنی منفرد پہچا ن بنا رہا ہے ۔ منفرد شنا خت بنا نے کا ایک بڑا سبب یہا ں کا وہ ملٹی کلچر ما حول ہے جس میں سا ری دنیا کی اقوام اور انکے فنکار وں اور حرف کار وں کو ایک ساتھ رہنے کے موا قع میسر ہیں ۔ ایک دوسرے کی تہذیب ،ثقافت اور عادات و مزاج کو قریب سے جا ننے اور انکے ادب سے افا دہ کرنے کے سبب ہمارے ادیبوں اور شا عروں کے کال م اور انکی فکر میں بھی ایک نیا رنگ نظر آ تا ہے کینڈا محبت کی سر زمیں ہے ۔ یہاں پیدا ہونے اور پر ورش پا نے والے بچوں کو محبت کا نصاب پڑھا یا جا تا ہے ۔ لہذا دوسری کال س کے بچے کے سا منے بھی مجا ل ہے کہ کسی دوسری قوم کے فرد کا مزاق اڑا یا جا سکے یا کسی کو کسی سے کمتر سمجھا جا ئے ۔ محبت کی اس لیک اونٹر یو سے سیراب ہو تے ادب کے دھا رے بھی ایک دوسرے میں مدغم ہیں ،ھم اردو ہندی کے شعرا کا کال م پیش کر تے ہو ئے اسی لئے اسے رنگ و نور کو عنوان دے رہے ہیں کہ ان رنگو ں کی ست رنگ میں ہماری محبتوں کا نور بھی شا مل ہے ۔ اردو اور ہندی زبان کا سا تھ بہت پرانا ہے یہ ایک دوسرے کے ساتھ
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پلی بڑھی ہیں ایک دوسرے کی محبت انکے لہو میں دوڑ رہی ہے اور یہ سا تھ اسی طرح بر قرار رہنا ضروری ہے ہمیں اس محبت کی روایت کو قا ئم رکھنا ہے ہمارا رنگ ایک ہے اور ھم ایک ہی سیاہی کے نور سے حر ف ڈھا لتے ہیں ۔ " رنگ ونور " اس اپنا ئیت اور محبت کو ایک نذرانہ ہے ۔ ہمیں افسوس ہے کہ ھم ٹو رنٹو میں مو جود بہت سے اھم شعرا کاکال م شا مل نہیں کر سکے اسکا سبب وقت کی کمی تھا ان تما م شعرا سے دلی معذرت اس وعدے کے ساتھ کہ اس کا ازالہ ھم جلد ہی کریں گے اور تمام اھم شعرا کا کالم شامل ہو گا دوسری اشا عت میں '۔ اس کتاب کی اشا عت ممکن ہی نہیں تھی اگر مسی سا گا ال ئیبریر ی Mississauga Liberary اور اسکی انچا رج میرین کٹرنا Ms. Marian Kutarna کی کا وشیں شامل نہ ہوتیں ھم انکا تہہ دل سے شکریہ ادا کرتے ہیں ۔ نسیم سید
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FOREWORD Canada is a land of a continuous flow of world's diversity and also a vast ocean that contains it within, in a constant celebration. "RANG AUR NOOR (Colours & Radiance)" is a part of that diversity . It is a new attempt to show case and make available for reading, the colour and radiance of Urdu and Hindi verse to a global audience of these languages from the writers of Hindi and Urdu, residing on the Canadian soil. This is an e-collection of some of the selected poetic talent of Canada. Diversity, the essence of Canada, positions it uniquely in the world culture. Immigrants from various nations arrive here and they bring a pool of vast heritage of their living styles, arts, literature and culture which gives Canada an immense richness of variety. RANG AUR NOOR e- book of verse in Hindi & Urdu is an attempt to spread that essence to all and sundry. It is the essence of the rainbow of the varied experiences and the imagination of the creative writer of Hindi & Urdu which he/she wants to share with the readers. Hindi & Urdu are like twin sister languages who have grown together and at the same time they are the two sides of a coin too. Both are rich and wide in their elemental expressions. Canada has many prestigious writers/poets who's writings are making a place in the hearts of many readers worldwide. This e-collection is a small step to reach out to a wider audience on a global platform. Internet now has become an important segment of everyday life. This e-
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book can reach any one any where in seconds. Keeping this in mind this e-book is being published and is being available. Readers can enjoy it any time any where. This is our first endeavor of this kind and we plan to come up with many e-books of poetry/stories/novels/essays etc. in future as well. We thank all the creative writers who participated in this e -collection. Without their support this could not have been possible. We also congratulate them for being a part of this. We immensely thank Ms. Marian Kutarna and Mississauga Library System for encouraging this project and creating a space for RANG AUR NOOR (Colours and Radiance) in the diaspora of Canadian literary arts. Nasim Syed, Meena Chopra , Anil Purohit Email : meenachopra17@gmail.com
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ACKNOWLEDGEMENTS
I would like to thank all the well wishers and friends for their support encouragement & help for bringing out this selection of Urdu and Hindi Poetry. Without their support RANG AUR NOOR could not have happened. Mississauga Library System and Ms. Marian Kutarna—Arts and History Department. Mr Tejendra Sharma—Writer Dr Irteza Karim—Head of the department Urdu, Delhi University Dr. Tahir Aslam Gora– Writer Mr. Sameer Lal– Writer Ms. Nasim Syed– Writer Mr Anil Purohit– Writer Acharya Sundeep Tyagi– Writer Mr Bhupinder Virdi & StarBuzz Media My special thanks to Mr. Alam Khrsheed for transliterating the poems from one language to another Thanks for helping in the selection process of poems to Mr Sameer Lal, Mr Sundeep Tyagi and Alam Khrsheed
With Thanks -Meena Chopra
रं ग और नूर
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رنگ اور نور
Contents Message from Mississauga Library System
4
Foreword Hindi
5
Foreward English
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ACKNOWLEDGEMENTS
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1
Anil Purohit
34-55
2
Faisal Azim
22-43
3
Meena Chopra
56-77
4
Nasim Syed
78-99
5
Manoshi Chatterji
100-113
6
Sameer Lal ‘Sameer’
114-135
7
Krishna Verma
136-147
8
Tahir Aslam Gora
148-173
9
Irfan Sattar
174-197
10
Jawaid Danish
198-207
11
Poonam Chandra “Manu”
208-217
12
Devendra Mishra
218-221
13
Gopal Bagel ‘Madhu’
222-225
14
Poonam Kasliwal
226-231
15
Sundeep Tyagi
232-239
16
Jasbir Kalravi
240-251
17
Savita Aggarwal ‘savi’
252-259
18
Nirmal Siddhu
260-263
19
Bhagawat Sharan
264-267
20
Bhuvaneshwari Pandey
268-275
21
Jagmohan Sangha
276-277
22
Raj Maheshwari
278-279
रं ग और नूर
19
رنگ اور نور
جواری
ایک جواری بنا کر بھیج دیا اس بازار میں تیرے ہی کھیل ،تیرے ہی قاعدے تیرے ہی انجام ،تیرے ہی بازار میں بس بدمست سارے ماحول میں بکھیر دیا نشیال دھواں کہیں کھیل ہو رہا کہیں ناچ گانے تو کہیں تماشے کہیں قہقہے تو کہیں اٹھاس کوئی گم صم ،تو کوئی دھت سب پر تیری تیکھی نظر نشہ سا چھا گیا سارے جہاں میں نہ کوئی سوچ ،نہ کوئی امید ایک لت لگا دی بس ہارنے کی میں ہارتا جاتا تو کھیلے جاتا عجیب سا رچا کھیل تونے کہاں سے سیکھا کہاں سے الیا کھیل اتنے کبھی نہ کبھی کہیں تو بھی نہیں رہا ایک جواری ؟
انل پروہت رنگ اور نور
ूरं ग और नर
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जुआरी
जआ ़ु री एक बना भेज हदया इस बाजार में ।
तेरे ही खेि, तेरे ही ननयम, तेरे ही पररणाम, तेरे ही बाज़ार। मैं बस मदमस्त। सारे माहौि में- ब्रबखेर हदया नशीिा धआ । ़ुूँ
कहीं खेि हो रहा कहीं नाच, गाने
तो कहीं तमाशे। कहीं कहकहे , तो कहीं अट्टहास। कोई गम ़ु सम ़ु , तो कोई ध़ुत। सब पर तेरी तीखी नज़र।
नशा सा छा रहा, जहाूँ में सारे -
ना कोई सोच, ना कोई उम्मीद। ित एक िगा दी बस हारने की। मैं हारता जाता, तू खेिे जाता। अजीब सा रचाखेिा तन ू े।
कहाूँ से सीखा, कहाूँ से िाया खेि इतने। कहीं तू भी तो कभी ना कहीं
रहा- एक जआ ़ु री तो नहीं।
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रं ग और नरू
رنگ اور نور
अननल परु ोहित
درد ساگر کی تہہ سے اٹھتا ایک بلبلہ ...ننھا سا اوپر تک آتے آتے بیچ میں کہیں پھوٹ جاتا رہ جاتی صرف تھرتھراتی (کمپن (تھرتھراہٹ بوند وہی جوار بن کر پھیلتی ساگر کو سمیٹ لہروں میں ڈھل جاتی ٹوٹ جاتی سیمایں اجڑ جاتی بستیاں اپھن کر کھاری ہو جاتی ندیا سورج دھومل سا ہو جاتا اوجھل ہوتی چاندنی رخ اپنا موڑ لیتی ہوایں اور کہاں اڈگ رہتے پربت صدیاں بیت جاتیں سمیٹنے میں سہرتی ہوئی ایک ننھے بلبلے کی کمپن
انل پروہت رنگ اور نور
ूरं ग और नर
22
ददद
सागर की तह से उठता एक बि ़ु बि ़ु ा - नन्हा सा ऊपर तक आते आते बीच में कही फ़ुट जाता l रह जाती लसफू थर थराूती कंपन l बूँद ू वहीज्वार बन फैिती समेट सागर को िहरों में ढि जाती l टूट जाती सीमाएं, उजड जाती बजस्तयाूँ उफन खारी हो जाती नहदयां l सरू ज धलू मि सा हो जाता, ओझि होती चाूँदनी, रुख अपना मोड िेतीं हवाएंऔर कहाूँ अडडग रहते पवूत l सहदयाूँ बीत जाती समेटने लसहरती एक नन्हे बि ़ु बि ़ु े की कम्पन l
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रं ग और नरू
رنگ اور نور
अननल परु ोहित
اانورا روھا ادھورا سسنا ہو تم
ای
ساتھ ساتھ میرے میں جہاں بھی رہوں جو بھی کروں سنگ سنگ میرے رہتے ہو تم ابھی ابھی ...جو چھو کر گئی ابھی ابھی ....جو چھل کر گئی نت نیے رنگوں میں ڈھل کر آتے جاتے پل پل نیا اسپرش ہو تم کوئی میرے آگے ،کوئی میرے پیچھے بھیڑ میں میں ،مجھ میں بھیڑ کوئی کہتا کچھ ،کوئی سنتا کچھ من کا میرے شانت شور ہو تم نہ میں تم سے اچھوتا ،نہ تم مجھ سے پرے پرے رہ کر بھی ایک دوسرے کو نہارتے سب کچھ سنجویا میرا بکھر سا جاتا درپن میں چھپا میرا احساس ہو
تم
انل پروہت رنگ اور نور
ूरं ग और नर
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अधूरा स्िप्न
एक अधूरा स्वप्न, हो तम ़ु . साथ साथ मेरे - कफर भी रोम रोम मेरे लसहर रहे . मैं जहां भी रहूूँ - जो भी करूं संग मेरे - रहते हो तम ़ु . अभी अभी - जो छू कर गयी अभी अभी - जो छि कर गयी ननत नए रं गों में ढि, आते - जाते पि पि नत ू न - स्पशू हो तम ़ु . कोई मेरे आगे, कोई मेरे पीछे भीड में मैं , मझ ़ु में भीड कोई कहता क़ुछ , कोई सन ़ु ता क़ुछ मन का मेरे शांत - कोिाहि हो तम ़ु . ना मैं तम ़ु से अछूता , ना तम ़ु मझ ़ु से परे परे रहकर भी , एक दस ू रे को ननहोराते सब क़ुछ संजोया मेरा- ब्रबखर सा जाता दपूण में नछपा , एहसास मेरा हो तम ़ु .
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रं ग और नरू
अननल परु ोहित رنگ اور نور
اس کے لئے وہ جانتا ہے ...کہاں سجانا ہے مجھے ایک شبد ہوں میں اس کے لئے نت نیے جذبوں میں مجھے سجاکر وہ نکھارتا ہے اپنی کویتا تالش کر رہا ہے وہ ایک نئی دھن ایک آواز ہوں میں اس کے لیے ساز پر اپنے ترنگوں میں سجاکر نئی روح پھونکتا ہے وہ اپنی کویتا میں دیکھا ہے میں نے اسے کھینچتے آڑی ترچھی ریکھایں ایک رنگ ہوں میں اس کے لئے برش پر سجا کر بنا رہا ہے وہ (اپنے خوابوں کا اندر دھنش ( قوس قزح لہروں کی طرح بار بار بھیجتا ہے مجھے کبھی سیپ دے کر تو کبھی موتی سب کچھ کنارے پر پھینک کر بے کل سا میں بار بار لوٹ آتا ہوں اور ولین ہو جاتا ہوں اس میں
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ूरं ग और नर
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उसके ललएवो जानता - कहाूँ सजाना मझ ़ु े शब्द एक मैं उसके लिये ननत नए भावों में सजा मझ ़ु े कपवता अपनी ननखार रहा । तिाश कर रहा वह - एक नयी ध़ुन स्वर एक मैं, उसके लिये साज पर अपने तरं गों में सजा कपवता में प्राण नए फूंक रहा । दे खा है मैंने उसे - खींचते आडी नतरछी रे खाएं रं ग एक मैं, उसके लिए ति ू ी पर अपनी सजा सपनों को आकार इन्रधनष ़ु ी दे रहा । िहरों सा बार बार भेजता मझ ़ु े कभी सीपी दे कर, तो कभी मोती सब क़ुछ ककनारे धर बेकि सा मैं बार बार िौट - समा जाता उसमें ।
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रं ग और नरू
رنگ اور نور
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کورا کاغذ کورا کاغذ لیے پھرتا آنکتا جب بھی ابھرتی ..تصویر کوئی سانسیں بھرتا ان میں اور اوجھل ہو جاتی تصویر اگلے پل بس مسکرا کر دیکھتا ہوا میں تیرتی دھواں بن کر لہراتی گم ہوتی تصویر اب بھرنے لگا کاغذ کورے خیالوں میں ابھرتے ہوۓ بول گونجتے رہتے کالی گپھا میں گم ہو جاتے سورج کے اگتے اور رہ جاتا کورا کاغذ کورا کا کورا سنا ہے آجکل پھر رہا ویران ریگستان میں ...بن کر ایک مریچیکا آڑی ترچھی کھینچ رہا لکیریں کبھی دوب تو کبھی بادل کبھی ستارہ تو کبھی تال تلیا یا یاوری میں بکھیرتا جاتا پر اب بھی ساتھ اس کے انگنت خیال اور کورا کاغذ
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कोरा कागज़
कोरा कागज़ लिये कफरता आंकता जब भी उभरती - तस्वीर कोई । साूँसे भरता उनमें और ओझि हो जाती तस्वीरअगिे पि। बस मस् ़ु क़ुरा कर दे खता हवा में तैरती-
ध़ुआूँ बन िहराती गम ़ु होती तस्वीर। अब भरने िगा कागज कोरे ख्यािों में उभरते बोि गूँज ू ते रहते कािी ग़ुफा में
ग़ुम हो जाते सूरज के उगते और रह जाता कोरा कागज कोरा का कोरा। सन ़ु ा है आजकि कफर रहा
वीरान रे चगस्तान में - बन एक मरीचचका । आडी नतरछी - खींच रहा िकीरें कभी दब ू तो कभी बादि
कभी लसतारे तो कभी ताि तिैया । आूँकता रहता और यायावरी में ब्रबखेरता जाता । पर अब भी साथ उसके अनेकों ख्याि और कोरा कागज़।
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روڑنیاں
سارے گھر میں گھومتی رہتی بنا سنکوچ کے ،بنا ڈر کے پیروں میں بندھے گھنگھرو بجاتے رہتے چھن..چھن ...چھن ایک پل بھی بیٹھتی نہیں میرے پاس چین سے بیچ قدموں سے نکل بھاگتی کھانا دو تو کترا جاتی
جانے کچھ ڈھونڈھ رہی گھر میں میرے بس گھومتی ہی رہتی بے چین سی چھن ...چھن...چھن اچانک ہی کود کھڑکی جانے کہاں چلی جاتی دھیرے دھیرے آواز گھنگھروؤں کی کمزور پڑنے لگتی بس دور تک دیکھتا اسے میں اوجھل ہوتے الل پیلے پھولوں سے دور لہلہاتی جھاڑیوں کی اوٹ سے کالے ،بھورے ،چتکبرے رنگوں کی سفید سیاہ وہ بلی پھر اچانک چونک کر اٹھ پڑتا گہرے سسنے سے دیکھتا پاس کھڑی گھورتی الل الل آنکھوں سے عجیب سی ڈراؤنی پر بھولی بھالی پیاری بلی
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रूहियााँ
सारे घर में घम ू ती रहती ननिःसंकोच, ननभूय;
पैरों में बंधे घघ ़ुं रू, बजाते रहते-छन, छन, छन। एक पि भी बैठती नहीं पास मेरे चैन से-
बीच कदमों से ननकि भागती। खाना दो तो-कतरा जाती, जाने क़ुछ ढूंढ रही, घर में मेरे बस घम ू ती ही रहती बेचैन सी छन, छन, छन। अनायास ही कूद खखडकी जाने कहाूँ चिी जाती।
धीरे -धीरे आवाज़ घघ ़ुं रूओं की कमजोर पडने िगतीबस दरू तक-दे खता उसे मैं
ओझि होते िाि-पीिे फूिों से दरू िहिहाती झाडडयों की ओट से। कािे, भरू े चचतकबरे रं गों की सफेद स्याह, वह ब्रबल्िी। कफर अचानक चौंक कर
उठ पडता- गहरे स्वप्न से दे खता पास खडी
घरू ती-िाि िाि आूँखों से अजीब सी, डरावनी-
पर भोिी-भािी, प्यारी ब्रबल्िी।
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مسافر پریوں کے دیس سے جب بھی آتا وہ پستے ،بادام ،کھجور کے ساتھ کتھا پریوں کی سناتا جاتا آج کل بڑا اداس رہتا وہ پوچھو تو مٹھی بھر ریت اڑاتا اور روح تک میری رال جاتا وہ
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मुसाफिर
पररयों के दे श से जब भी आता वहपपश्ते, बादाम, खजूर के साथ कथा पररयों की स़ुनाता जाता। आजकि बडा उदास रहता वह पूछो तो मठ् ़ु ठी भर रे त उडाता और रूह तक मेरी रुिा जाता वह।
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پرندے کے پیر پر ۔ اک اندیشہ چپکا ہو اہے پلکوں کو یوں جکڑے ہوئے ہے جیسے آنکھوں میں سوزش ہو کوئی عالمت ہو آشوب کی وہ سیّال ہو ٗ جس کے شر سے آنکھیں َملنا ٗ کھولنا مشکل تر ہوجائے بس پلکوں کی درزوں سے کچھ روشنی باہر کی آتی ہے ناکافی ہے ۔۔۔۔ پھر بھی ناکافی منظر نے دل کو تھپکی دے رکھی ہے ’’سب اچھا ہے اس کواچھا ہی رہنے دو باہر کی چبھتی کرنوں کو آنا ہو تو آجائیں گی اندیشے کا مادّہ آنکھیں کھلنے سے جو روک رہا ہے روکے رکھو خواب سہی ٗ پر خواب نہ توڑو جب تک یہ ناکافی منظر دیکھ سکو بس دیکھتے جاؤ ‘‘
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पररंदे के पैर पर
इक अंदेशा चचपका ह़ुआ है पिकों को यूूँ जकडे ह़ुए है
जैसे आूँखों में सोजज़श हो कोई अिामत हो आशोब की वो सय्याि हो जजस के शर से आूँखें मिना, खोिना मज़ु श्कि-तर हो जाए बस पिकों की दरज़ों से क़ुछ रौशनी बाहर की आती है नाकाफी है ...... कफर भी नाकाफी मंज़र ने हदि को थपकी दे रक्खी है “ सब अच्छा है
शर - फसाद
माअद्द- स्त्रोत
नाकाफी - अपयाूप्त
इस को अच्छा ही रहने दो ! बाहर की च़ुभती ककरणों को आना हो तो आ जाएंगी
सोजज़श - जिन
अिामत - प्रतीक
अंदेशे का माअद्द: आूँखें खि ़ु ने से जो रोक रहा है रोके रक्खो ! ख़्वाब सही पर ख़्वाब न तोडो ! जब तक ये नाकाफी मंज़र दे ख सको बस दे खते जाओ ”
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आशोब - फसाद कराना
सय्याि -तरि
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اندیشہ لیکن آنکھوں میں گھس کر دہرائے جاتا ہے ’’منظر بدال تو کیا ہوگا خواب ہوا تو ٹوٹ کے اور بھی کرچیں آنکھوں میں بھر دے گا خواب نہیں تو دھو لینے پر شاید سوزش بڑھ جائے گی‘‘ اندیشہ اب تک چپکا ہے آنکھیں اب بھی بند نہیں ہیں منظر اب بھی ناکافی ہے خواب ٗ حقیقت ٗ جانے کیا ہے سوزش تو بڑھتی جاتی ہے اندیشہ ٗ آشوب کا چیال ٗ دھیرے دھیرے آنکھوں کو بھرتا جاتا ہے۔۔۔
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अंदेशा िेककन आूँखों में घस ़ु कर दोहराए जाता है “ मंज़र बदिा तो क्या होगा ख़्वाब ह़ुआ तो टूट के और भी ककचें आूँखों में भर दे गा ख़्वाब नहीं तो धो िेने पर शायद सोजज़श बढ़ जाएगी ” अंदेशा अब तक चचपका है आूँखें अब भी बंद नहीं हैं मंज़र अब भी नाकाफी है ख़्वाब, हक़ीक़त, जाने क्या है सोजज़श तो बढ़ती जाती है अंदेशा, आशोब का चेिा, धीरे धीरे आूँखों को भरता जाता है ......
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یہ سڑک اور میں
کوئی آگے نہ پیچھے ٗ بہت دور تک اک سڑک ٗ اور میں۔۔۔۔ بس یہ تصویر ٗ ماحول کا کینوس بے حد و بے کراں رات کا کوئلہ ٗ آگ کا رازداں جو دکھائی نہیں دے رہا ٗ وہ دھواں سارے پس منظروں کو سمیٹے ہوئے اور سڑک ٗ جس کا کوئی سرا ہی نہیں چل رہا ہوں بہت مدّتوں سے یونہی کوئی آگے نہ پیچھے ٗ بہت دور تک
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यि सड़क और मैं
कोई आगे न पीछे , बह़ुत दरू तक इक सडक, और मैं ...... बस ये तस्वीर, माहौि का कैन्वस बे-हद ओ बे-करां रात का कोयिा, आग का राज़दां जो हदखाई नहीं दे रहा.....वो धआ ़ु ं सारे पस-मंज़रों को समेटे ह़ुए और सडक.....जजसका कोई लसरा ही नहीं चि रहा हूूँ बह़ुत मद् ़ु दतों से यूूँ ही कोई आगे न पीछे ..... बह़ुत दरू तक ......!!!
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خالی پن
مقبرے میں ساری پرتیں رفتہ رفتہ اُٹھ رہی ہیں اور سرہانے کے تعیّن کے لئے بے نام کتبہ دو ِسروں کے درمیاں بھٹکا ہوا ہے حرف کیڑوں کی طرح بکھرے پڑے ہیں جسم اُٹھنا چاہتا ہے پھر سے جینا چاہتا ہے سوچتا ہے روح ٗ جو مدفن کی پرتوں میں کہیں تحلیل ہو کر رہ گئی ہے کھینچ کر کیسے نکالے اپنے گنبد میں اُسے پھر کیسے ڈالے کاغذوں کے اَن گنت اوراق اب بکھرے ہوئے ہیں قبر کا منہ گویا پورا کھل چکا ہے ساری پرتیں ٗ سب َو َرق اب ہٹ چکے ہیں جسم اب اُٹھنے کی کوشش کر رہا ہے سانس لینے کی خلش سے ہانپتا ہے روح لیکن ٗ صفحہ در صفحہ کہیں بھٹکی ہوئی ہے سر سے لے کر پاؤں تک اُڑتا ہو ا بے نام کتبہ راستے میں گر گیا ہے
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ख़ालीपन
इक तवीि सन्नाटा
तवीि - िम्बा
जजस के शोर की तह में
मआन्वी - बह़ुअथी
बेतक ़ु े से बेहंगम और रूह से आरी िफ़्ज़ लभनलभनाते हैं इजज़्तराब का मारा
रूहे मआन्वी इन में फंू कने की कोलशश में और हाूँप जाता है पर वो असूए महशर जजस के दो ककनारों के बीच दम ननकि जाए ख़त्म ही नहीं होता अन्दरून की है बत क़ुछ सपाट िफ़्ज़ों की बे-महि सदाओं से बे-लिबास होती है
है बत - भय
और मह ़ु ीब सन्नाटा
बे-महि -बेमतिब बात म़ुहीब—स्नेही, दोस्त
और मूँह ़ु पर आता है जानदार िफ़्ज़ों के इन्तज़ार में कोई हदि में जो भी कहता हो
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دھیرے دھیرے شام کی رنگت سیاہی پی رہی ہے جسم تھک کر پھر سے واپس گر رہا ہے کاغذوں کی ساری پرتیں روح کے اجزا کے دم سے پھڑ پھڑاتی تہ میں گرتے جسم کو پھر تہ بہ تہ مستور کرتی جا رہی ہیں قبر کا منہ بند ہوتا جا رہا ہے لفظ کیڑوں کی طرح اب جسم کی جانب چلے ہیں رات گہری ہو رہی ہے مقبرہ بکھرا ہوا ہے مضمحل بے نام کتبہ بیچ میں اوندھا پڑا ہے کاغذوں کی قبر بھی اب سو رہی ہے۔
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मूँह ़ु से क़ुछ नहीं कहता इन्तज़ार करता है और हांफने वािा अपने सच्चे िफ़्ज़ों में लसफू इतना कहता है ज़ेहन आज बंजर है सोच के सभी क़ालिब धडकनों से आरी हैं आज हाथ खािी हैं िफ़्ज़ भि ू आया हूूँ आज क़ुछ नहीं कहना ......!!!
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کرائے کا گھر
جب سے میں اِس گھر میں آیا باہر جانے کو دروازہ ڈھونڈ رہا ہوں وحشت کے عالم میں دیواروں سے سر ٹکراتا ہوں اس کے کمروں ٗ اس کے کونے ک ُھدروں میں چھپ جاتا ہوں اور پھر اپنی ہی آواز پہ میں پاگل ہوجاتا ہوں جب سے میں اس گھر میں آیا آئینوں کو ڈھونڈ رہا ہوں اپنے عکس بنا کر خود ہی دیواروں کو چوم رہا ہوں اس کے چور دریچوں سے اکثر دنیا کو تکتا ہوں اور اِن چور دریچوں سے اپنی آواز سنا کر دنیا بھر میں حشر اُٹھا دیتا ہوں۔۔۔ جب سے میں اِس گھر میں آیا سوچ رہا ہوں جب یہ گھر بوسیدہ ہو کر ٹوٹ گرے گا کیا میں بھی اِس کے ملبے میں دَب جاؤں گا !
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फकराए का घर
जब से मैं इस घर में आया बाहर जाने को दरवाज़ा ढूंढ रहा हूूँ वहशत के आिम में दीवारों से सर टकराता हूूँ इस के कमरों, इस के कोने ख़ुदरों में छ़ुप जाता हूूँ और कफर अपनी ही आवाज़ पे मैं पागि हो जाता हूूँ जब से मैं इस घर में आया आइनों को ढूंढ रहा हूूँ अपने अक्स बना कर खद ़ु ही दीवारों को चम ू रहा हूूँ उस के चोर दरीचों से अक्सर दऩु नया को तकता हूूँ और इन चोर दरीचों से अपनी आवाज़ सन ़ु ा कर दऩु नया भर में हि उठा दे ता हूूँ ..... जब से मैं इस घर में आया सोच रहा हूूँ जब ये घर बोसीदा हो कर टूट चगरे गा क्या मैं भी इस के मिबे में दब जाऊूँगा .....!!!
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پانچویں بُعد بھال وہ کیا تھا لہو ٗ بدن ٗ دل ٗ دماغ ٗ آنکھیں وہ دھونکنی جس کے دم سے شعلے مچل رہے تھے مگر وہ شعلے کہاں تھے ٗ کیوں تھے ٗ اور اب کہاں ہیں ! اُس آگ کا میں اگر تھا ایندھن تو پھر جال دو ! ابھی تو پورا بدن ہے باقی ابھی تو ایندھن پڑا ہوا ہے یہ دل کی دھڑکن کو کیا ہوا ہے یہ ہتھکڑی جیسے برقی آلے تو چل رہے ہیں یہی تھا سب کچھ ؟ میں جسم ٗ مٹّی ٗ اور آگ ٗ پانی ٗ ہوا ٗ سے باہر نہیں تھا کچھ بھی تو اب میں کیا ہوں ! بدن مرا سرد کیوں ہوا ہے نہ درد ہے اب نہ رنگ باقی حس و حرکت پڑا ہوا ہوں بے ّ اگر سبھی کچھ وہی ہے ٗ جو تھا تو ایسا کیا تھا جو اب نہیں ہے ؟
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पांचिीं दरू ी भिा वो क्या था िहू, बदन, हदि, हदमाग़, आूँखें
वो धोंकनी जजस के दम से शोिे मचि रहे थे मगर वो शोिे कहाूँ थे, क्यूँू थे और अब कहाूँ हैं ! उस आग का मैं अगर था ईंधन तो कफर जिा दो ! अभी तो परू ा बदन है बाक़ी अभी तो ईंधन पडा ह़ुआ है
ये हदि की धडकन को क्या ह़ुआ है
ये हथकडी जैसे बरक़ी आिे तो चि रहे हैं यही था सब क़ुछ ? मैं जजस्म, लमट्टी और आग, पानी, हवा से बाहर नहीं था क़ुछ भी तो अब मैं क्या हूूँ !
बरक़ी - पवद्य़ुतीय
बदन मेरा सदू क्यूँू ह़ुआ है
बे-हहस्स ओ हरकत - गनतहीन
न ददू है अब न रं ग बाक़ी
बे-हहस्स ओ हरकत पडा ह़ुआ हूूँ अगर सभी क़ुछ वही है , जो था
तो ऐसा क्या था जो अब नहीं है ?
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रं ग और नरू
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फ़ैसल अज़ीम
زمستاں سخت ٗ سفّاک خود میں سمٹ کر چٹختی ہوئی برف اور منجمد جسم و جاں رات ٗ جذبوں کی قبروں پہ کتبے کے مانند اٹکی ہوئی ہاتھ ک ُھرچے ہوئے ٗ سانس اُکھڑی ہوئی لفظ گویا سماعت کے پردے سے ٹکرا کے چپکے ہوئے برف پر چار و ناچار پیروں کی جمتی ہوئی انگلیاں ہڈّیوں کی دراڑوں میں گھستی ہوا خون تک راہ پانے کی کوشش میں ٹوٹی فصیلوں پہ یلغار کرتی ہوئی دل بقا کے لئے خود سے لڑتا ہوا خون پیتا ہوا اور اُگلتا ہوا کیسا بحران ہے ٗ دم نکلتا نہیں سرد موسم کسی طور ٹلتا نہیں جس قدر ہو سکے گرتے پیڑوں کی شاخیں جالتے رہو آگ بجھنے نہ دو۔
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ज़लमस्तां
(जाड़े का मौसम)
सख्त, सफ़्फाक ख़द ़ु में लसमट कर चटख़ती ह़ुई बफू और म़ुन्जलमद जजस्म ओ जां रात जज़्बों की क़िों पे क़ुतबे के माननंद अटकी ह़ुई हाथ खऱु चे ह़ुए, साूँस उखडी ह़ुई िफ़्ज़ गोया समाअत के परदे से टकरा के चचपके ह़ुए बफू पर चारो-नाचार पैरों की जमती ह़ुई उूँ गलियाूँ हड्डडयों की दराडों में घ़ुसती हवा खन ू तक राह पाने की कोलशश में टूटी फसीिों पे यिगार करती ह़ुई हदि बक़ा के लिए खद ़ु से िडता ह़ुआ ख़न ू पीता ह़ुआ और उगिता ह़ुआ कैसा बोहरान है , दम ननकिता नहीं सदू मौसम ककसी तौर टिता नहीं जजस क़दर हो सके चगरते पेडों की शाखें जिाते रहो आग ब़ुझने न दो !!!
म़ुन्जलमद - स्तजम्भत समाअत - स़ुनना
चारो-नाचार - असहाय फसीिों - चार दीवारी यिगार - आक्रमण बोहरान— संकट
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منفی عالمت
فضا پر مردنی چھائی ہوئی ہے ستاروں کی ضیا بھی ماند ہے یا دل کا پردہ آنکھ کو بہکا رہا ہے منظروں کو جا بجا دُھندال رہا ہے سوچ پر ٗ چہروں پہ ٗ ناموں پر کوئی منفی عالمت ثبت ہے تو کیوں رگوں میں خون بن کر ٗ زہر کیوں گردش میں رہتا ہے کوئی لہجہ ٗ کوئی شیریں بیاں دل کو نہیں چھوتا مریض ِ دل ہو کیا آزار ہے کوئی کہ جو ہنسنے نہیں دیتا؟ گماں نے جڑ پکڑ لی ہے کہ اپنے آپ سے بھی بد گمانی ہے کسی کی کیا خود اپنی بات بھی اچھی نہیں لگتی وہی منفی عالمت اپنے چہرے پر بھی چسپاں ہے وہ کوئی زخم ہے گویا بصارت کا جہاں دیکھو ٗ وہی منفی عالمت ہے خدایا کیا قیامت ہے !
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ूरं ग और नर
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मनफ़ी अलामत मनफ़ी अलामत - नकरात्मक फज़ा पर मद ़ु ू नी छाई ह़ुई है लसतारों की जज़या भी मांद है या हदि का पदाू आूँख को बहका रहा है मंज़रों को जा ब जा ध़ुंदिा रहा है सोच पर, चेहरों पे, नामों पर कोई मनफी अिामत सब्त है तो क्यूूँ रगों में खन ू बनकर, ज़हर क्यूँू गहदूश में रहता है कोई िहजा, कोई शीरीं बयां हदि को नहीं छूता मरीज़े-हदि हो क्या आज़ार है कोई कक जो हूँसने नहीं दे ता ? गम ़ु ां ने जड पकड िी है कक अपने आप से भी बदगम ़ु ानी है ककसी की क्या ख़ुद अपनी बात भी अच्छी नहीं िगती वही मनफी अिामत अपने चेहरे पर भी चस्पां है वो कोई ज़ख्म है गोया बसारत का जहाूँ दे खो ! वही मनफी अिामत है ख़़ुदाया क्या क़यामत है !!!
जा ब जा - सवूत्र शीरीं - मीठा आज़ार - बीमारी/शरीर के अंग बसारत - अविोकन
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Adhocism
جتنا کھایا ٗ کھایا ! اور پھر جتنا بچا تھا تھرمو پور کے اک ڈبے میں رکھا اُس کو ؔ اور عرصے سے گتّے کے ڈبوں ٗ کاغذ کی پلیٹوں ٗ پالسٹک کے چمچوں کے بیچ پڑا ہوں ڈبہ کھول کے تھوڑا تھوڑا اپنے آپ کو چکھ لیتا ہوں۔۔۔ اور تنگ آکر ڈبہ روز بدل لیتا ہوں.....
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Adhocism
जजतना खाया, खाया ! और कफर जजतना बचा था उस को थमोकोि के इक डब्बे में रक्खा और अरसे से गत्ते के डब्बों, काग़ज़ की प्िेटों प्िाजस्टक के चमचों के बीच पडा हूूँ डब्बा खोि के थोडा थोडा अपने आप को चख िेता हूूँ ..... और तंग आ कर डब्बा रोज़ बदि िेता हूूँ .....
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مکرر نشر ّ ِ محفل ختم ہوئی دھیرے دھیرے تازہ آوازوں کا شور تھما بھیڑ چھٹی اور آخر میں بس اپنا آپ بچا پھر اپنے بوجھل قدموں سے گھر کی راہ چلے جانے کیوں ایسے میں اکثر اپنے قدموں کی آہٹ شکوہ بن جاتی ہے اور پھر جتنا منہ پھیرو تنہائی ہر اک سمت سے اپنا آپ دکھاتی ہے جتنا اُس کو پیٹھ دکھاؤ وہ اک ضدّی ہر پہلو سے سامنے آتی ہے اس سے نظر مالنا مشکل ٗ اور چرانا بھی اور دل سے اک انجانا سا بوجھ ہٹانا بھی کچھ بے نام سے جذبے دل پر چوٹ لگاتے ہیں گھر کی دیواروں پر آئینے بن جاتے ہیں
فیصل عظیم رنگ اور نور
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नश्रे-मुकरद र नश्रे-मक ु रद र—बार बार घोषणा महकफि ख़त्म ह़ुई धीरे धीरे ताज़ा आवाज़ों का शोर थमा भीड छटी और आखखर में बस अपना आप बचा कफर अपने बोझि क़दमों से घर की राह चिे “ जाने क्यूूँ ऐसे में अक्सर ” अपने क़दमों की आहट लशकवा बन जाती है और कफर जजतना मूँ़ुह फेरो तन्हाई हर इक लसम्त से अपना आप हदखाती है जजतना उसको पीठ हदखाओ वो इक जज़द्दी हर पहिू से सामने आती है उससे नज़र लमिाना मज़ु श्कि, और चऱु ाना भी और हदि से इक अंजाना सा बोझ हटाना भी क़ुछ बेनाम से जज़्बे हदि पर चोट िगाते हैं घर की दीवारों पर आईने बन जाते हैं !!!
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रं ग और नरू
رنگ اور نور
फ़ैसल अज़ीम
عھایات میں چاہتی ہوں اپنے آپ کو لکھ دینا آسمان کے نیلے رنگ پر سمندر کی لہراتی لہروں پر ہریالی کو پہن کر ہوا کے ہر جھونکے میں اڑنا چاہتی ہوں میں پھولوں کی خوشبوؤں میں گھل مل کر اپنی پرواز کے ہر پنکھ کو ایک نیا رنگ دے دینا چاہتی ہوں وقت کی آواز کے قطروں سے کچھ نغمے چرا کر سر میں سانسوں کے کچھ گیت بٹھا دینا چاہتی ہوں اوس کی ہر بوند کے بطن میں چھسی اپنی پرواز کو ایک نیا گھر دینا چاہتی ہوں ! یا خدا ! یا خدا یا تو مجھے وہ قلم دے دے جو مجھے ان سب میں لکھ ڈالے یا وہ زباں عطا کر جو مجھے زمین کی جڑوں سے جوڑدے اور آسمان کی حدوں کے پار پھیال دے یا پھر کہہ دے کہ یہ کائنات تیری بھی نہیں ،میری بھی نہیں میں اس کی باشندہ نہیں تو میرا خدا بھی نہیں
یھا چوپنا رنگ اور نور
ूरं ग और नर
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इनायात
मैं चाहती हूूँ अपने आप को लिख दे ना
आसमान के नीिे रं ग पर समर ़ु की िहराती िहरों पर हररयािी को पहन कर
हवा के हर झोंके में उडना चाहती हूूँ मैं फूिों की खश ़ु बओ ू ं में घि ़ु लमिकर अपनी परवाज़ के हर पंख को एक नया रं ग दे दे ना चाहती हूूँ वक़्त की आवाज़ के कतरों से क़ुछ नगमे च़ुराकर सऱु ों में साूँसों के क़ुछ गीत ब्रबठा दे ना चाहती हूूँ ओस की हर बूँद ू में छ़ुपे गभूगह ृ में अपनी परवाज़ को नया घर दे ना चाहती हूूँ या ख़ुदा, या खद ़ु ा, या तो मझ ़ु े वो किम दे दे जो मझ ़ु े इन सब में लिख डािे
वो ज़ब ़ु ाूँ दे जो मझ ़ु े ज़मीन की जडों से जोडे और आसमानी हदों के पार फैिा दे
या कफर कह दे कक यह क़ायनात तेरी भी नहीं, मेरी भी नहीं मैं इसकी बालशंदा भी नहीं तू मेरा ख़ुदा भी नहीं।
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रं ग और नरू
رنگ اور نور
मीना चोपड़ा
بس اتھا ہی کچھ اچھا پڑھنا ،سننا ہو تو دھرا پہ کھلتے پھولوں کی مہک کو ! آکاش کے ستاروں میں پڑھ لو بہک بہک بہتی ہوا کی بھینی بھینی ٹھنڈ ! لہر لہر سانسوں کے تاروں پر سن لو تستی دھوپ میں چلتے ہوۓ ،ڈھلتے ہوۓ اور جلتے ہوۓ ڈگر ڈگر پیروں کے نشاں ! قدم قدم موت کی سڑ
کے آغاز پر رکھ دو
! پھر زندگی کو ہاتھوں میں تھامو اور اں سے نکلتی آہٹوں کی گونج کو سانسوں کے ترنم میں بٹھا کر ! سن سکو تو سن لو ! پڑھ سکو تو پڑھ لو کچھ اچھا پڑھنا سننا ہو تو گزرتے لمحوں کے شور و غل کو توڑتے ! لمحوں کے فاصلوں میں چھسی چسی کو سنو گنگناتی زندگی میں ابھرتے لے تال کی رفتار کو پل پل ڈوبتے قیامت کے سروں میں ! سن سکو تو سن لو ! پڑھ سکو تو پڑھ لو
یھا چوپنا رنگ اور نور
ूरं ग और नर
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बस इतना िी क़ुछ अच्छा पढ़ना सन ़ु ना हो तो धरा पे खखिते फूिों की महक को आकाश के लसतारों में पढ़ िो बहक-बहक बहती हवा की भीनी ठं डक िहर-िहर साूँसों के तारों पे सन ़ु िो। तपती धूप में चिते ह़ुए, ढिते ह़ुए और जिते ह़ुए डगर-डगर पैरों के ननशाूँ
क़दम-क़दम मौत की सडक के आगाज़ पर रख दो कफर जज़न्दगी को हाथों में थामो और इनसे ननकिती आहटों की गूँज ू को सांसो के तरनम् ़ु म में ब्रबठा कर सन ़ु सको तो सन ़ु िो पढ़ सको तो पढ़ िो। क़ुछ अच्छा पढ़ना सन ़ु ना हो तो गज़ ़ु रते िम्हों के शोरोगि ़ु को तोडती इन्ही िम्हों के फासिों में छ़ुपी च़ुप्पी को सन ़ु ो गन ़ु गन ़ु ाती जज़ंदगी में उभरते िय-ताि की गनत को पि-पि डूबते प्रिय के सऱु में पढ़ सको तो पढ़ िो सन ़ु सको तो सन ़ु िो।
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रं ग और नरू
رنگ اور نور
मीना चोपड़ा
دیوں کی کی جلتی مدھم سی تھرتھراتی لو پر اپنی آنکھوں کی روشنی کے بہکتے شبدوں کو ٹکا دو اور پھر انہیں روشن ہوۓ شبدوں سے ابھرتی کہانی کو دیوں کی جگمگاہٹ کے تلے پھیلے بے زباں اندھیرے سایوں کی زبانی ! سن سکو تو سن لو ! پڑھ سکو تو پڑھ لو دیوالی کی اس جگمگاتی روشنی کو ! دیا دیا پڑھ لو ! دھواں دھواں سن لو پل پل امڈتی زندگی کو اپنی انجلی میں بھر کر ! گھونٹ گھونٹ ہونٹوں سے لگا لو نظر نظر خاموشی ! لمحہ لمحہ پڑھ لو ! لمحہ لمحہ جی لو
یھا چوپنا رنگ اور نور
ूरं ग और नर
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दीयों की जिती मद्धम सी थरथराती िौ पर अपनी आूँखों की रौशनी के बहकते िफ़्ज़ों को हटका दो और कफर इन्ही रौशन ह़ुए िफ़्ज़ों से उभरती कहानी को दीयों की जगमगाहट के तिे फैिे बेज़ब ़ु ां अूँधेरे सायों की ज़ब ़ु ानी सन ़ु सको तो सन ़ु िो पढ़ सको तो पढ़ िो। हदवािी की इस जगमगाती रौशनी को दीया-दीया पढ़ िो ध़ुआ-ं ध़ुआं सन ़ु िो । पि-पि उमडती जज़ंदगी को अंजिी में अपनी भरकर घट ूं -घट ूं होंठो से िगा िो नज़र-नज़र ख़ामोशी िम्हा-िम्हा पढ़ िो िम्हा िम्हा जी िो।
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رنگ اور نور
मीना चोपड़ा
صاف آرمانی جھلک
میں ڈھہتے ہوۓ
مندروں،مسجدوں اور گرجوں کی دیواروں میں جڑتی رہی ہوں مسلسل روشنی کی گونج کے کچھ ذرے تاکہ ان کی کرچیں آنکھوں میں بھر کر سر اٹھا کر دیکھ سکوں میں ٹوٹتے گنبدوں کے چھور پر شان سے کھلتے روشندانوں کے اس پار آسمانوں کی جھانکتی ہوئی صاف آسمانی جھلک اور اس میں بہتے ہوۓ آنسوؤں کی تقدیریں زار زار اتار کر رکھ لوں انہیں ،اپنی انہیں آنکھوں میں بانٹ کر بند کر لوں انہیں ،سبھی جھروکوں ،کواڑوں اور کھڑکیوں میں ڈھک کے رکھ لوں انہیں اپنی پلکوں کے کے جھسکتے لمحوں کے بیچ کے پھسلتے فاصلوں میں
یھا چوپنا رنگ اور نور
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साफ़ आसमानी सी झलक
मैं ढहते ह़ुये मैं मंहदरों मजस्जदों और चगजों की हदवारों में जडती रही हूूँ मस ़ु ल्सि रौशनी की गज ूं के क़ुु्छ जरे भर के जजनकी ककरच को आूँखों में उठा के सर को दे ख सकूँू मैं टूटते गम् ़ु बजों के छोर पर शान से ख़ुिते आसमानों की झांकती ह़ुई साफ आसमानी सी झिक और उसमें बहते ह़ुए आंसओ ़ु ं की तकदीरें ! ज़ार-जार उतार के रख िूँ ू इन्हें अपनी इन्ही आूँखों में , बाूँट कर बंद कर िूं इन्हें सभी झरोखों, ककवाडों और खखडककयों में , ढक के रख िूँ ू
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رنگ اور نور
मीना चोपड़ा
انہیں فاصلوں میں جہاں بہتی ہوئی مسلسل روشنی کی کرچیں آنکھوں میں چبھ کر پانی کی دھار بن کر آج بھی نکلتی ہیں انہیں پلکوں کے تلے کہیں میری زمین پر بوند بوند آج بھی گرا کرتی ہیں خون خون ہو کر ٹسکتی ہیں
یھا چوپنا رنگ اور نور
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इन्हें अपनी पिकों के झपकते िम्हों के बीच के कफसिते फासिों में , उन्हीं फासिों में जहाूँ बहती ह़ुई मस ़ु िसि रोशनी की ककरच चभ ़ु के आूँखों में पानी की धार बनकर आज भी ननकिती है उन्ही पिकों के तिे, कहीं मेरी ज़मीन पर बूँद ू -बूँद ू आज भी चगरा करती है |
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رنگ اور نور
मीना चोपड़ा
پرارتھھا
ایک گونج جو مندروں کی گھنٹیوں سے اٹھی تھیں گرجوں کی دیواروں میں گھٹی تھیں مسجدوں کے گنبدوں میں گونجتی ہوئی کہیں دور بیابانوں میں کھو گئی تھیں لیکن کسی سنسان سی پگڈنڈی کے کنارے کسی غریب کی ٹوٹی ہوئی جھونسڑی میں ایک ننھا سا دیا مدھم سی روشنی دیتا جلتا رہا ....جلتا رہا
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प्रार्दना
एक गूँज ू जो मंहदरों की घंहटयो से उठी थी चगरजों की दीवारों में घटी
थी
मजस्जदों
गूंजती ह़ुई
के ग़ुम्बंदो
में
कहीं दरू ब्रबयाबानो में खो गई थी िेककन
ककसी स़ुनसान सी पगडण्डी के ककनारे ककसी गरीब की टूटी ह़ुई झोंपडी में एक नन्हा सा दीया मद्धम सी रोशनी दे ता जिता रहा -जिता रहा!
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मीना चोपड़ा
بدلتا وقت بدلتے گھروں کے بیچ بہت کچھ ردی ہو جاتا ہے کچھ آسانی سے .کچھ جبرا نکل آتا ہے ،نکال دیا جاتا ہے صہ کچھ بچا کھچا ح ّ شو کیس کو سجاتی تنہا کتابیں بھی ہیں جو صرف فیس بک پر چڑھی میری فوٹو کے پیچھے کی نمائش بنتی ہیں کچھ لیونگ روم کی کافی کے ٹیبل کی شوبھا بڑھاتی ہیں زندگی جوان میں بستی تھی وہ اب لیپ ٹاپ پررکھی ونڈو سے جھانکتی ہے آئی پیڈ میں بس چکی ہے ای بک میں پڑھی جاتی ہے عادی سی ہو چکی ہے یہ تبدیلی بھاتی ہے مجھ کو نشیلی بھی ہے پھر بھی کیا کریں کاغذ کے ٹوٹتے رشتے کا درد نہیں جاتا بدلتا وقت ہمیشہ گھور کر دیکھا کرتا ہے یاد دالتا ہے اور پھرعادت بن جاتا ہے
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बदलता िक़्त बदिते घरों के बीच
बह़ुत क़ुछ रद्दी हो जाता है क़ुछ आसानी से, क़ुछ ज़बरन
ननकि जाता है , ननकाि हदया जाता है
क़ुछ बचा खच ़ु ा हहस्सा शो केस को सजाती तनहा ककताबें भी हैं जो लसफू फेसबक ़ु पर चढ़ी
मेरी फोटो के पीछे की नम ़ु ाइश बनती हैं क़ुछ लिपवंग रूम की कॉफी टे बि की शोभा को बढ़ाती हैं जज़ंदगी जो उनमे बसती थी
वह अब िैपटॉप पर रक्खी पवंडो से झांकती है आईपैड में बस चक ़ु ी है ईबक ़ु में पढ़ी जाती है
आभासी सी हो च़ुकी है
ये बदिाव भाता है बह़ुत मझ ़ु को नशीिा भी है कफर भी
क्या करें
कागज़ से टूटते ररश्ते का ददू नहीं जाता बदिता वक़्त हमेशा घरू कर दे खा करता है याद हदिाता है
और कफर आदत हो जाता है ।
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मीना चोपड़ा
عر صے رے گو نجتی آ وا ز
کھو جا ہے کبھی تم نے اپنی کھو ئی ہو ئی پہچا ن کو ا ند ھیر ی سیا ہ ٹھنڈ ی را تو ں کی کھلتی ہو ئی پر تو کے تلے ڈھکی ہو ئی میر ی کو کھ کی سلگتی پر تو ں میں- صور کے اس ا حسا س کو ت ّ کیا محسو س کیا ہے کبھی تم نے جہا ں ایک اجنمی کو ری سفید آ گ کی لسٹو ں میں لسٹا میرا کسکسا تا نا ز
سا جسم؎
کئی ٹو ٹتے خوا بو ں میں الجھا رہا تمہا ری با ہو ں میں کبھی اد ھیڑ تا رہا اور کبھی بنتا رہا بھٹکتی سا نسو ں کے بھٹکتے ہو ئے سسنے- لمحو ں کو لمحو ں میں تال شتا ہو ا وہی ایک آ زا د سا لمحہ اس مو ت کے آ غا ز کو د ھو نڈ تا رہا
یھا چوپنا رنگ اور نور
ूरं ग और नर
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अरसे से गाँज ू ती आिाज़ —
खोजा है कभी तम ़ु ने अपनी खोई ह़ुई पहचान को अूँधेरी, लसयाह, ठं डी रातों की ख़ुिती ह़ुई परतों के तिे ढकी ह़ुई मेरी कोख की सि ़ु गती परतों में । तसव्वऱु ू के उस एक एहसास को क्या महसस ू ककया है कभी तम ़ु ने जहाूँ एक अजन्मी कोरी सफेद आग की िपटों में लिपटा मेरा कूँपकपाता नाज़क ़ु सा जजस्म कई टूटते ख्वाबों में उिझा रहा तम् ़ु हरी बाहों में कभी उधेडता रहा और कभी बन ़ु ता रहा भटकती साूँसो के भटकते ह़ुए सपने। िम्हों को िम्हों में तिाशता ह़ुआ वही एक आज़ाद सा िम्हा
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رنگ اور نور
मीना चोपड़ा
جس میں کا ئنا ت کے آ غو ش سے اترا ہو ا یک انجا نا سا آ غو ش تمہا را با ند ھتا رہا میر کھلتی ہو ئی پر تو ں کے پل پل پگھلتے ا نترال کو- پو جھتی ہو ں میں تم سے کبھی ڈھو نڈ ی ہیں تم نے عبا دت میں جھکی نظروں میں میر ی بر سو ں سے بچھڑ ی ہو ئی وہی فر یا د جنمو ں سے جنمو ں تک بہتی رہی محبت بھر ی آ نکھو ں کی جھکی پلکو ں میں جھسکتی ہو ئی ایک پکا ر صد یو ں سے جو جھتی صر ف تمہا رے لئے صد یو ں سے بنی ہمیشہ وہی تمہا ری
یھا چوپنا رنگ اور نور
ूरं ग और नर
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उस मौत के आगाज़ को ढूढ़ता रहा जजसमे कायनात के आगोश से उतरा ह़ुआ एक अनजाना सा आगोश तम् ़ु हारा बाूँधता रहा मेरी ख़ुिती ह़ुई परतों के पि-पि पपघिते अन्तराि कोपछ् ू ती हूूँ मैं तम ़ु से कभी ढूढ़ी है तम ़ु ने इबादत में झक ़ु ी नज़रों में मेरी बरसों से ब्रबछ्डी ह़ुई वही फररयाद जन्मो से जन्मो तक बहती रही मह ़ु ोब्बत भरी आूँखों की झ़ुकी पिकों में झपकती ह़ुई एक पक ़ु ार सहदयों से जझ ू ती लसफू तम् ़ु हारे लिये सहदयों से बनी हमेशाूँ से वही तम् ़ु हारी -मैं एक अरसे से गूँज ू ती आवाज़।
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رنگ اور نور
मीना चोपड़ा
بہتی خالؤں کا وہ آوارہ ٹکنا
کبھی دیکھا تھا اسے پلک جھسکتی روشنی کے بیچ کہیں چھپ چھساتے ہوۓ جہاں آکاش کے سینے میں الجھے سراب ڈھلتی شام کے قدموں میں دم توڑ دیتے ہیں اور کبھی ہوا کے جھونکوں میں لسٹے پتوں کی سرسراہٹ میں اس کی مدھم سی آواز بھی سنی تھی میں نے اور کبھی یہ اسی بھینی ہوا کے جھونکے سا چھو کر نکل گیا تھا مجھے ہلکے سے کبھی پھول پھول میں اس کی خوشبو بھی چنی تھی میں نے کبھی اس نے مجھے اپنی بانہوں میں قید کر کے جکڑ کےرکھ لیا تھا اپنے سینے کی اتھاہ تڑپ کے چنگل میں بہتی خالؤں کا وہ آوارہ ٹکرا
یھا چوپنا رنگ اور نور
ूरं ग और नर
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बिती खलाओं का िो आिारा टुकड़ा
कभी दे खा था इसे और कभीयह उसी भीनी हवा के झोंके सा छू कर ननकि गया था मझ ़ु े हिके से कभी फूि - फूि में इसकी ख़ुशबू भी च़ुनी थी मैंने! कभी इसने मझ ़ु े अपनी बाूँहों में कैद करके जकड के रख लिया था अपने सीने की असीम तडप के च़ुंगि में बहती खिाओं का वो आवारा ट़ुकडा पि-पि मेरे साथ चिता भी रहा जिता भी रहाजजसे संजो के रख लिया एक हदन मैंने हदि की हर एक धडकन में
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रं ग और नरू
رنگ اور نور
मीना चोपड़ा
پل پل میرے ساتھ چلتا بھی رہا جلتا بھی رہا جسے سنجو کر رکھ لیا ایک دن میں نے دل کی ہر ایک دھڑکن میں اور محسوس کیا اس کی خوشبو کو لگاتار بہتے پلوں کے جھرمٹ میں دیکھا ہے آج اسے پہلی بار من کے صاف درپن میں سنا ہے آج اسے زمین کی ابھری سانسوں کی لگاتار تھرتھراہٹ میں چھسا لیا ہے اسے ہر پل کے بہتے ہوۓ ہر ایک رنگ میں بہتی خالؤں کا وہ آوارہ ٹکڑا گھل چکا ہے شیرینی سا میرے جیون کے اورل مشرن میں
یھا چوپنا رنگ اور نور
ूरं ग और नर
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और महसस ू ककया उसकी ख़ुशबू को बहते पिों के अपवरत झ़ुरमट ़ु में । दे खा है आज उसे पहिी बार मन के स्पष्ट्ट दपूण में सन ़ु ा है आज उसे ज़मीन की उभरती साूँसों के ननरन्तर स्पंदन में छ़ुपा लिया है इसे हर पि के बहते ह़ुए हर एक रं ग में । बहती खिाओं का वो आवारा ट़ुकडा घि ़ु चूका है लमिी सा मेरे जीवन के अपवरि लमिण मे।
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रं ग और नरू
मीना चोपड़ा رنگ اور نور
اپھی تصویر جھے آپ بھانی ہوگی اپنی تصویر مجھے آپ بنا نی ہو گی ۔نظم
میرے فنکار مجھے خوب ترا شا تو نے آ نکھ نیلم بدن چا ندی کا یا قات کے لب یہ ترے ذوق طلب کے بھی ہیں معیار عجب پا ئو ں میں میرے یہ پا زیب سجا دی تو نے نقرئی تا ر میں آواز گند ھا دی تو نے یہ جوا ہر سے جڑی قیمتی مورت میری اپنے سامان تعیش میں لگا دی تو نے میں نے مانا کہ حسیں ہے ترا شہکا ر مگر تیرے شہکار میں مجھ جیسی کو ئ بات نہیں تجھ کو نیلم سے نظر آتی ہیں آ نکھیں میری
نسیم رید رنگ اور نور
ूरं ग और नर
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अपनी तस्िीर मझ ु े आप बनानी िोगी
मेरे फनकार ! मझ ़ु े खब ू तराशा तन ू े आूँखें नीिम की बदन चांदी का याकूत के िब ये तेरे ज़ौक़े-तिब के भी हैं मय्यार अजब पांव में मेरे ये पाज़ेब सजा दी तन ू े नक़ ़ु रई तार में आवाज़ मंढा दी तन ू े ये जवाहर से जडी क़ीमती मरू त मेरी अपने सामाने-तअय्यश ़ु में िगा दी तन ू े मैं ने माना कक
याकूत - माखणक
ज़ौक़े-तिब - पसंद मय्यार- ग़ुण/ ह़ुनर
हसीं है तेरा शहकार मगर तेरे शहकार में
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रं ग और नरू
ऩुक़रई - स़ुनहरा
सामाने-तअय्य़ुश -पविालसता शहकार - किात्मक
नसीम सय्यद رنگ اور نور
درد کے ان میں سمندر نہیں دیکھے تو نے تو نے جب کی لب رخسار کی خطا طی کی جو ورق لکھے تھے دل پر نہیں دیکھے تو نے میرے فنکار ترے ذوق ترے فن کا کمال میرے پندار کی قیمت نہ چکا پا ئے گا تو نے بت یا تو راشے یا ترا شے ہیں خدا تو بھال کیا مری تصویر بنا پا ئے گا تیر ے اوراق س یہ شکل مٹا نی ہو گی اپنی تصویر مجھے آ پ بنا نی ہو گی ہو ش بھی ،جرائت گفتار بھی بینا ئ بھی جرائت عشق بھی ہے ضبط کی رعنا ئ بھی
نسیم رید رنگ اور نور
ूरं ग और नर
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मझ ़ु जैसी कोई बात नहीं तझ ़ु को नीिम सी नज़र आती हैं आूँखें मेरी ददू के इनमें समद ़ुं र नहीं दे खे तन ू े तन ू े जब की िब ओ रुख्सार की खत्ताती की जो वरक़ हदि पे लिखे थे नहीं दे खे तन ू े मेरे फनकार ! तेरे ज़ौक तेरे फन का कमाि
खत्ताती - हस्तलिपप
मेरे पपंदार की क़ीमत
वरक़ - पन्ना
न चक ़ु ा पाएगा
ज़ौक
तन ू े बत ़ु ही तो तराशे
- स्वाद
पपंदार - आत्म सम्मान
या तराशे हैं ख़़ुदा तू भिा क्या मेरी तस्वीर बना पाएगा
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रं ग और नरू
नसीम सय्यद رنگ اور نور
جتنے جو ہر ہیں نمو کے مری تصویر میں ہیں دیکھ یہ رنگ جو تا زہ مری تصویر میں ہیں
نسیم رید رنگ اور نور
ूरं ग और नर
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तेरे अवराक़ से ये शक्ि लमटानी होगी अपनी तस्वीर मझ ़ु े आप बनानी होगी होश भी ज़ुरूत-े गफ़् ़ु तार भी बीनाई भी ज़ुरूत-े इश्क़ भी और ज़ब्त की रानाई भी जजतने जौहर हैं नम ़ु ू के मेरी तामीर में हैं दे ख ! ये रं ग
अवराक़ - पन्ने
जो ताज़ा
ज़ुरूते-ग़ुफ़्तार - बोिने का
मेरी तस्वीर में है !!!!
साहस
बीनाई - दे खने की ताकत जऱु ू ते-इश्क़ - प्रेम का साह्स रानाई - स़ुन्दरता ऩुमू - पवकाश
तामीर - ननमाूण
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रं ग और नरू
नसीम सय्यद رنگ اور نور
یں نے ان رب چنیوں کے پر کھول ایے
میں نے ان سب چڑیون کے پر کھول دیئے ۔ نظم خوف کی چھو ٹی چھوٹی چڑیاں میرے بچسن سے جو مجھ مین قید پڑی تھیں تا کیدوں کی جنکے پروں میں گر ہیں لگی تھیں میں نے ان سب چڑیون کے پر کھو ل دئے
نسیم رید رنگ اور نور
ूरं ग और नर
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मैं ने उन सब चचड़ड़यों के पर खोल हदये
खौफ की छोटी छोटी चचडडयाूँ मेरे बचपन से जो म़ुझ में क़ैद पडी थीं ताकीदों के जजन के परों में चगरहें पडी थीं मैं ने उन सब चचडडयों के पर खोि हदये !!!
ताकीदों - याद हदिाना
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रं ग और नरू
नसीम सय्यद رنگ اور نور
تمہارے بس یں یہ کب ہے !
تم ہماری لکھنے والی انگلیوں کی شمعیں گل کر دو ہمارے قدو قا مت کو کتر کے دھجی دھجی کر کے ردی کا غذوں میں کوڑے کرکٹ میں دبا دو ہماری بات د یواروں میں چنوا دو تمہارے بس میں ہے ھم جا نتے ہیں ما نتے ہیں سب تمہارے بس میں ہے لیکن ہماری سو چ پر تاال لگا تے اور اپنی چا بیوں کے بھا ری گچھے میں یہ چا بی ڈال کے مٹھی دبا لیتے کہیں تہہ میں سمندر کی اچھال آ تے تمہارے بس میں یہ کب ہے ؟
نسیم رید رنگ اور نور
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तम् ु िारे बस में ये कब िै ! तम ़ु हमारी लिखने वािी उूँ गलियों की शमएं गि ़ु कर दो हमारे क़द ओ क़ामत को कतर के धज्जी धज्जी कर के रद्दी क़ाग़ज़ों में कूडे करकट में दबा दो हमारी बात दीवारों में च़ुनवा दो तम् ़ु हारे बस में है हम जानते हैं
क़द ओ क़ामत - व्यजक्तत्व
हम मानते हैं सब तम् ़ु हारे बस में है िेककन हमारी सोच पर तािा िगाते और अपनी चालभयों के भारी गच् ़ु छे में ये चाभी डाि के मठ् ़ु ठी दबा िेते कहीं तह में समन्दर की उछाि आते तम् ़ु हारे बस में ये कब है !!!
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नसीम सय्यद رنگ اور نور
بھور کرن نوبت باجی تھی
بھور کرن نو بت با جی تھی دھو پ شگن گھنگھرو چھنکے تھے انگنا ئی میں اس کو نے تک ِ اس کو نے سے ُ پون کی پا ئل چہک رہی تھی تو آ یا تھا تو آ یا تو بھو بل میں دبکی چنگا ری سر
کے تھو ڑا با ہر آ ئی
ہم دونوں کے ہو نٹو ں پر سر شا ر سی چپ کو جو ڑ جو ڑ کے چنگا ری نے آ گ بنا ئی آ گ کی تر چھی سی بو چھا ر میں بھیگتی خو شیا ں پنکھ چھسکتی نا چ رہی تھیں
نسیم رید رنگ اور نور
ूरं ग और नर
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भोर फकरन नौबत बाजी र्ी
भोर ककरन नौबत बाजी थी धूप शगन ़ु घघ ़ुूँ रू छनके थे अंगनाई में इस कोने से उस कोने तक पवन की पायि चहक रही थी तू आया था तू आया तो भब ू ि में दब ़ु की चचंगारी सरक के थोडा बाहर आई हम दोनों के होंठों पे सरशार सी च़ुप को जोड जोड के चचंगारी ने आग बनाई आग की नतरछी बोछारों में भीगती ख़ुलशयाूँ पंख झपकती नाच रही थीं
भब ू ि - गमू राख सरशार - ख़ुशी
तू आया था ......
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नसीम सय्यद رنگ اور نور
تو آیا تھا تو آ یا تو عشق کی گبرو چھا ئوں سے ٹک کے خو ابوں کے سوندھے کلہڑ می ہم دونوں نے گھو نٹ گھو نٹ اپنے کو پیا تھا اپنا جیون ذا ئقہ ہو نٹوں نے چکھا تھا ایک سانس نے ھم دونوں کی سا ری عمر کو جی ڈاال تھا تو آیا تھا
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तू आया तो इश्क़ की गबरू छाूँव से हटक कर ख्वाबों के सोंधे क़ुल्हड में हम दोनों ने घट ूँू घट ूँू अपने को पपया था अपना जीवन ज़ायक़ा होंटों ने चख्खा था एक साूँस ने हम दोनों की सारी उम्र को जी डािा था तू आया था .....!!!
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नसीम सय्यद رنگ اور نور
تو بھی رویا تھا الک ! آرٹ گیلری تیری اور یہ اسکی تصویریں بے رحم ر وا جوں کی مکڑیو ں کے جا لو میں نیم جا ں منا ظر کی ڈھیر پر سے کوڑے کے روٹی چنتے بچوں کی شہر کےسلم نامی بے نصب ٹھکا نوں کی کتنی بے وقعت ہیں یہ جب تلک پکاسو سا کوئی ا بھو
مصور ان کھا ئے ڈھانچوں کو
پینٹنگ میں نا جڑ دے کیمر ہ کو ئی جب تک ا ان سلم ٹھکا نو ں کو او سکر میں نا د ھر دے آج کی نمائش میں نامور مصور کے
نسیم رید رنگ اور نور
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तू भी रोया र्ा माललक ! दे खा तन ू े क़ुछ मालिक ! आटू गैिरी तेरी और ये उस की तस्वीरें बेरहम ररवाजों की मकडडयों के जािों में नीम-जां मनाजज़र की ढे र पर से कूडे के रोटी च़ुनते बच्चों की शह्र के स्िम नामी बे-नसब हठकानों की ककतनी बे-वकअत हैं ये जब तिक पपकासो सा कोई एक मस ़ु जव्वर इन ु् भख ू खाए ढांचों को पें हटंग में ना जड दे कैमरा कोई जब तक इन ु् स्िम हठकानों को ऑस्कर में ना धर दे आज की नम ़ु ाइश में
नीम-जां - अधमरा मनाजज़र - मंजर बे-नसब - खानदान ना हो मस ़ु जव्वर - चचत्रकार नामवर - प्रख्यात
नामवर मस ़ु जव्वर के 93
रं ग और नरू
नसीम सय्यद رنگ اور نور
فن پہ اونچی بولی کا وہ جو ا
تماشہ تھا
تونے دیکھا تھا مالک؟ میرے بھوکے ہاتھوں میں کوڑے والی روٹی کا وہ جو ایک ٹکڑا تھا سوکھے پھول کے جیسا وہ جو میرا چہرہ تھا آج کی نمائش میں کتنا قیمتی تھا وہ آج ا
مصور نےمیری گندی بستی کے
غم زدہ سلم نے جو صرف چند لمحوں کا افتخا ر جیتا تھا تو نے دیکھا تھا ما لک ؟ تو بھی تھا وہاں مالک؟ تو بھی رویا تھا مالک
نسیم رید رنگ اور نور
ूरं ग और नर
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फन पे ऊंची बोिी का वह जो इक तमाशा था तन ू े दे खा था मालिक ! मेरे भख ू े हाथों में कूडे वािी रोटी का वो जो एक ट़ुकडा था सख ू े फूि के जैसे वो जो मेरा चेहरा था आज की नम ़ु ाइश में ककतना क़ीमती था वो आज एक मस ़ु जव्वर ने ककतना मंहगा बेचा था मेरी गन्दी बस्ती के ग़मज़द: स्िम ने जो लसफू चंद िम्हों का इजफ़्तख़ार जीता था तन ू े दे खा था मालिक ? तू भी था वहाूँ मालिक ?
ग़मज़दा - दख ़ु ी
तू भी रोया था मालिक ? 95
रं ग और नरू
رنگ اور نور
नसीम सय्यद
خزاں کی آ د کا جشن ہوگا ہوا ئیں ہ َچ رنگی چنر یوں کو سکھا رہی ہیں سہا گنیں مو سموں کی سبزہ پہ سا ت رنگو ں سے جھلمال تے شگن کے چھا پے لگا رہی ہیں کٹو رے بھر کے گال ل کے کو ئی رکھ گیا ہے فضا ئیں ہر سبز پہر ہن کو تلک سے ،سیندور سے ،حنا سے سجا رہی ہیں سمیک و میسل ،جنیسر و بر چ رنگ کھیلیں گے مے اچھا لیں گے ،رقص ہو گا بہا ر کے جا تے مو سموں کو سال متی کی دعا ئیں ہو نگی خزا ں کی آ مد کا جشن ہو گا
نسیم رید رنگ اور نور
ूरं ग और नर
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खखज़ां की आमद का जश्न िोगा (उत्तरी अमेररका की खखज़ां)
हवाएं पचरं गी च़ुनररयों को सख ़ु ा रही हैं सह ़ु ाचगने मौसमों के सब्ज़ा पे सात रं गों से खझिलमिाती शगन ़ु के छापे िगा रही हैं कटोरे भर के गि ़ु ाि के
सब्ज़ा - हररयािी
कोई रख गया है फज़ाएूँ हर सब्ज़ पैरहन को नतिक से, लसन्दरू से और हहना से सजा रही हैं *समीक ओ मेपि ज़ुनीपर ओ ब्रिच रं ग खखिेंगे मय उछािेंगे, रक्स होगा बहार के जाते मौसमों को सिामती की दआ ़ु एं होंगी खखज़ां की आमद का जश्न होगा !!!
*समीक, मेपल, जन ु ीपर, ब्रिच = पेड़ों के नाम
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रं ग और नरू
नसीम सय्यद رنگ اور نور
جی کرتا ہے
اس کے تنے سے ٹیک لگا کے جینے کو اس کا سا یہ اور
میں بھر کے پینے کو
اپنی مٹی اس کی جڑوں میں بونے کو جی کرتا ہے اس کی چھا ئوں کے پیچھے پیچھے اپنے سا رے صحرا پار نکل جا نے کو یا پھر اپنی پور پور سے پتھر میں ڈھل جا نے کو جی کرتا ہے
نسیم رید رنگ اور نور
ूरं ग और नर
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जी करता िै सोचों के सन ू े आंगन में गम ़ु सम ़ु सा जो एक शजर है उस के तने से टे क िगा कर जीने को, उसका साया ओक में भर कर पीने को, अपनी लमटटी उस की जडों में भरने को जी करता है ...... उस की छाूँव के पीछे पीछे अपने सारे सेहरा पार ननकि जाने को या कफर अपनी पोर पोर से पत्थर में ढि जाने को !!!
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रं ग और नरू
नसीम सय्यद رنگ اور نور
پھی یں انوپ میں جب شاخ پر گھر بسانے کی بات کرتی ہوں پسند نہیں آتی اسے میری بات جب آکاش میں پھیلے دھوپ کو باندھنے کا خواب دیکھتی ہوں تو بادلوں سے ڈرانے لگتا ہے وہ اڑنے کی خواہش سے پہلے ہی وہ چن چن کر میرے پنکھ گنتا ہے دھرتی پر بھی دوڑوں تو ناپتا ہے میرے قدم اور پھر جب میں بھاگتی ہوں تو پیچھے سے آواز دیتا ہے مگر میں نہیں سنتی اور اکیلے جوجھتی ہوں پہنتی ہوں الزام اوڑھتی ہوں گالیاں پھر بھی سر اونچا کر خود کو پہچاننے کی کوشش کرتی ہوں کیا وہی ہوں میں ؟ ....چٹان ،پتھر ،دیوار اب کچھ اثر نہیں کرتا میں نے طے کئے راستے حاصل کی ہیں منزلیں جہاں میں اڑ سکتی ہوں شاخ پر گھر بسایا ہے میں نے اور دھوپ میری مٹھی میں ہے
انشی رنگ اور نور
ूरं ग और नर
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मुट्ठी में धुप
मैं जब शाख़ पर घर बसाने की बात करती हूूँ पसंद नहीं आती उसे मेरी वह बात, जब आकाश में फैिे
धप ू को बाूँधने के स्वप्न दे खती हूूँ, तो बादिों का भय हदखा जाता है वह, उडने की ख़्वाहहश से पहिे ही
वह च़ुन-च़ुन कर मेरे पंख चगनता है , धरती पर भी दौडने को मापता है पग-पग, और कफर जब मैं भागती हूूँ, तो पीछे से आवाज़ दे ता है , मगर मैं नहीं सन ़ु ती और अकेिे जझ ू ती हूूँ,
पहनती हूूँ दोष, ओढ़ती हूूँ गालियाूँ, और कफर भी सर ऊूँचा कर
ख़ुद को पहचानने की कोलशश करती हूूँ क्या वही हूूँ मैं? चट्टान, पत्थर, दीवार ... अब क़ुछ असर नहीं करता... मगर मैंने तय ककये हैं रास्ते पाई है मंजज़ि जहाूँ मैं उड सकती हूूँ, शाख़ पर घर बसाया है मैंने और धप ू मेरी मट् ़ु ठी में है ...
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रं ग और नरू
رنگ اور نور
मानोषी
کوششیں
کہتے ہیں کوششیں کامیاب ہوتی ہیں کتنی کوششیں ہم نے بھی کیں یاد ہے وہ ہمارا چھسنا چاند سے اپنی اپنی چھتوں پر اسے نہ دیکھنے کی کوشش میں کھڑکی بھی تو بند کر لی تھی میں نے کہ وہی چاندنی تمہاری آنکھوں سے چھن کر مجھ تک پہنچتی ہوگی ! اور وہ شام جس شام ہم ملے تھے آسماں کا نیال رنگ اور ہمارے پیالوں کی کافی کا کتھئی رنگ آنکھوں میں سما گیا تھا ......اسے مٹانے کی کوشش ! دیکھو آج بھی تو آ جاتی ہے وہ شام خوابوں میں ڈوبتے ہوۓ سورج کا پتا دینے ؟ تمہیں شاید یاد نہ ہو مگر مجھے یاد ہے وہ آدھی رات کو اٹھ کر ستاروں کے کارواں میں ایک ستارہ بن کر
انشی رنگ اور نور
ूरं ग और नर
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कोलििें
कहते हैं कोलशशें कामयाब होती हैं ककतनी कोलशशें हमने भी कीं... याद है वह हमारा छ़ुपना चांद से, अपने-अपने छतों पर? उसे न दे खने की कोलशश? खखडकी भी तो बंद कर िी थी मैंने कक वही चाूँदनी तम् ़ु हारी आूँखों से छन कर मझ ़ु तक पह़ुूँचती होगी। और वो शाम? जजस शाम हम लमिे थे आसमां का रं ग और हमारे प्यािों की कॉफी का कत्थई रं ग जो आूँखों में समा गया था, उसे लमटाने की कोलशश... दे खो! आज भी तो आ जाती है वह शाम ख्वाबों में डूबते ह़ुये सरू ज का पता दे ने? तम् ़ु हें न हो याद शायद पर मझ ़ु े है याद, वह आधी रात को उठ कर लसतारों के कारवां में एक लसतारा बन
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रं ग और नरू
رنگ اور نور
मानोषी
تمہارے ساتھ ساتھ چلنا تمہیں احساس نہیں مگر میں چلتی تھی تمہارے آنگن میں دیکھ آتی تھی تمہیں سوتے ہوۓ تمہارے خوابوں میں ان سونے چاندی کے پیڑ پتوں کو چھو آتی تھی انہیں سرہانے رکھ کر سونے کی کوشش کی تھی نیند نہیں آئی تھی اس رات ........پھر کسی رات اور سنو وہ الل پھول جو دہکتے ہیں آج بھی تم نے جنھیں سینچا تھا اپنے پیار سے آج بھی میرے باغ میں مہکتے ہیں بتاؤ کسسے مٹا دوں خوشبو کو ہوا سے جانتی ہوں خوشبو کے پر ہوتے ہوتے ہیں اسے باندھا نہیں جا سکتا پھر بھی یہ لگاتار کوششیں .....ناکام کوششیں کون کہتا ہے کوششیں کامیاب ہوتی ہیں ؟
انشی رنگ اور نور
ूरं ग और नर
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तम् ़ु हारे साथ-साथ चिना मेरा, तम् ़ु हें अहसास नहीं मगर मैं चिती थी तम् ़ु हारे आंगन में , दे ख आती थी तम् ़ु हें सोते ह़ुये तम् ़ु हारे ख्वाबों में , उन सोने-चांदी के पेड पत्तों को छू आती थी, उसे लसरहाने रख सोने की कोलशश की थी नींद नहीं आई उस रात, कफर ककसी रात... और सन ़ु ो! वो िाि फूि जो दहकते हैं आज भी तम ़ु ने जजन्हें सींचा था अपने प्यार से, आज भी मेरे बगीचे में महकते हैं, कैसे लमटा दूँ ू ख़ुश्बू हवा से बताओ! जानती हूूँ ख़ुश्बू का बसेरा नहीं। उसे कहां बाूँध सकंू गी मैं, पर ये कोलशशें...नाकाम कोलशशें! कौन कहता है कोलशशें कामयाब होती हैं?
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रं ग और नरू
رنگ اور نور
मानोषी
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موسالدھار بارش
کل کی شام بہت بھاری تھی موسالدھار بارش میں کہیں بہت کچھ بھیگ رہا تھا ہر پنکھڑی پر جمی تھی کئی پرانے ادھڑے لمحوں کی داستان ایک چھوٹا سا لمجہ ٹسک پڑا کسی پنکھڑی کے کونے سے بہت سنبھال کر رکھا تھا میں نے اس لمحے کو بکھر گئی وہ بوند آج کہ اس بوند کے پیچھے پیچھے بوندوں کا ایک کارواں چل پڑا تھا ایک رکا ہوا سیالب باندھ توڑ کر ٹوٹ پڑا تھا کہ بہت دنوں بعد بارش ہوئی تھی موسالدھار بارش.......
انشی رنگ اور نور
ूरं ग और नर
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मूसलाधार बाररि.....
कि की शाम बडी भारी थी मस ू िाधार बाररश में कहीं बह़ुत क़ुछ भीग रहा था हर पंख़ुडी पर जमा थी कई पऱु ाने उधडॆ िम्हों की दास्तां एक छोटा सा िम्हा टपक पडा ककसी पंखड ़ु ी के कोने से, बडा सहे ज कर रखा था मैने उस िम्हें को, नछतर गयी वो बद ंू आज कक उस बद ूं के पीछे बद ूं ों का लसिलसिा जो चि पडा, एक रुका ह़ुआ सैिाब बाूँध तोड कर टूट पडा, कक बह़ुत हदनो बाद बाररश ह़ुई थी मस ू िाधार बाररश....
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रं ग और नरू
رنگ اور نور
मानोषी
میرے ساتھ ہو تم ...وہی تم
آج پھر ایک سفر میں ہوں آج پھر کسی منزل کی تالش میں
کسی کا پتا ڈھونڈنے نکال ہوں آج پھر سب کچھ وہی ہے وہی سست راستے جو بھور کی اللی کے ساتھ رنگ بدلتے ہیں وہی بھیڑ جو دھیرے مصروف راستوں کے ساتھ مصروف ہو جاتی ہے وہی الل بتیاں جو گھنٹوں انتظار کراتی ہیں وہی پیلی گاڑیاں جو ر ر کر چلتی ہیں کبھی ہوا سے بات کرتی ہیں تو کبھی ساتھ چلتی اپنی سہیلیوں سے سرگوشیاں انہیں میں سے ایک میں بیٹھا میں .....وہی وہی پیچھے کی خالی سیٹ پر کسی ہاتھ کو انجانے میں ڈھونڈتا سا راستے بھر ڈھونڈتی ہیں آنکھیں وہی پاؤ بھاجی واال ٹھیال اس کالے بڑے توے پر سبزیوں کے ساتھ تمہاری آنکھوں میں حیرت کے رنگ اور وہی آئس کریم ....ڈیری ملک والی مگر آج بندھا پالی تھین کا ایک بیگ
انشی رنگ اور نور
ूरं ग और नर
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मेरे सार् िो तुम...ििी तुम
आज कफर एक सफर में हूूँ... आज कफर ककसी मंजज़ि की तिाश में , ककसी का पता ढूूँढने ननकिा हूूँ, आज कफर... सब क़ुछ वही है ... वही सस् ़ु त रास्ते
जो भोर की िालिमा के साथ रं ग बदिते हैं, वही भीड
जो धीरे -धीरे व्यस्त होते रास्तों के साथ व्यस्त हो जाती है , वही िाि बपत्तयाूँ
जो घंटों इंतज़ार करवाती हैं, वही पीिी गाडडयाूँ
जो रुक-रुक कर चिती हैं,
कभी हवा से बात करती हैं,
तो कभी साथ चिती अपनी सहे लियों से कानाफूसी, उन्हीं में से एक में बैठा मैं, वही...
वही पीछे की ख़ािी सीट,
और वही मेरा दायाूँ हाथ सीट पर
ककसी हाथ को अनजाने ही ढूूँढता सा... रास्ते भर ढूूँढती हैं आूँखें
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रं ग और नरू
رنگ اور نور
मानोषी
ہے سب وہی مگر آج بس ایک ہی چمچ چھوٹی سی ،وہی لکڑی کی ....لیکن ایک وہی تڑا مڑا آسماں آج بھی شاید آج بھی برس پڑے کوئی بادل پھٹ کر پھر شاید بنیں راستے میں کوئی پوکھر جہاں مل جاۓ ایک تیرتی کاغذ کی ناؤ وہ ایک چھوٹا سا مندر جو اچانک ہی مل گیا تھا کھلے برستے بادلوں کے نیچے وہی شیو لنگ اور اور ہمارا ساتھ ساتھ ہاتھ جوڑنا تمہاری شردھا ...اور میرا تمہارا من رکھنا آج میں اکیلے کھڑا ہوں بنا ہاتھ جوڑے وہ لمبی سڑ سڑ کے پاس بڑی سی پانی کی کھال وہی ہوا وہی دھوپ وہی خوشبو ہر جگہ وہی سب کچھ بس تم نہیں ہو پر ہو تو تم وہیں میرے ساتھ ہو تم وہی تم زندگی کے کھاتے میں دو اور دو کا حساب کبھی دس تو کبھی شونیہ ہزار پلوں کا لمبا حساب
انشی رنگ اور نور
ूरं ग और नर
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वही पावभाजी वािा ठे िा,
उस कािे बडे तवे पर सजब्ज़यों के साथ त़ुम्हारी आूँखों के आश्चयू का लमिण,
और वही आइस्क्रीम... डेयरी लमल्क वािी,
मगर आज बूँधा है पािीथीन का एक ही बैग... है सब वही,
मगर आज बस एक ही चम्मच,
छोटी सी, वही...िकडी की...पर बस एक... वही त़ुडा-म़ुडा आसमां आज भी...
शायद आज भी बरस पडे कोई बादि फट कर, कफर शायद बनें रास्ते में कोई पोखर
जहाूँ लमि जाये एक तैरती कागज़ की नाव, वह छोटा सा मंहदर,
जो अचानक ही लमि गया था ख़ुिे बरसते बादिों के नीचे,
वही लशवलिंग और हमारा साथ-साथ हाथ जोडना... त़ुम्हारी िद्धा... और मेरा त़ुम्हारा मन रखना... आज मैं अकेिे खडा हूूँ, ब्रबना हाथ जोडे... वह िंबी सडक,
सडक के पास बडी सी पानी की खाि, वही हवा, वही धूप,
वही खश़्ु ब,ू
हर जगह वही सब क़ुछ। बस नहीं हो, तो तम ़ु ... 111
रं ग और नरू
رنگ اور نور
मानोषी
ایک لمبی سی کتاب چند امیدیں کچھ ٹنگے سسنے دو آنسو ایک بند مسکان اور الجھا سا انت لئے ختم ہونے آتی ہے اور پھر پڑھے ہوۓ پرانے پنے بے رخی کے ساتھ اڑتے ہیں انہیں پھر پڑھنے کی کوشش ہر پنے کو گننے کی کوشش میں مڑ جاتے ہیں صفحات پھٹ جاتا ہے ادھر ادھر ٹھیک سے نہیں پڑھا جاتا کچھ بھی اور رہ جاتا ہے ایک مشہور ناول ادھورا دنیا کی دکان کی تا پر بھولی کہانی بن جانے کے لئے !.....ایک دن
انشی رنگ اور نور
ूरं ग और नर
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पर हो तो...त़ुम वही...
मेरे साथ हो त़ुम...वही त़ुम. जज़ंदगी के खाते में
दो और दो का हहसाब,
कभी दस तो कभी शून्य..
हज़ार पिों का िंबा हहसाब...। एक िंबी सी ककताब...। चंद उम्मीदें
क़ुछ टं गे सपने दो आंसू
एक बंद म़ुस्कान
और उिझा सा अंत लिये ख़त्म होने आती है ।
और कफर पढ़े ह़ुये प़ुराने पन्ने बेरुख़ी के साथ उडते हैं...
उन्हें कफर से पढने की कोलशश,
हर पन्ने को चगनने की कोलशश में म़ुड जाते हैं सफ़्हे ,
फट जाता है इधर-उधर
ठीक से नहीं पढ़ा जाता क़ुछ भी, और रह जाता है एक मशहूर उपन्यास दऩु नया की दक ़ु ान की ताक पर
भूिी कहानी बन जाने के लिये एक हदन....।
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रं ग और नरू
رنگ اور نور
मानोषी
عمر کے اس پناو پر آ کر
عمر کے اس پڑاو پر آ کر نکلتا ہوں جس شام میں گھر سے اپنے سات سمندر پار
اپنے پردیس کے ٹھکانے پر لوٹ آنے کو
دیکھتا ہوں ریل گاڑی کے ڈبے کی کھڑکی سے جھانک کر اپنے گھر لوٹتے سورج کو سائکل پر سوار کارخانے سے گھر واپس آتے مزدور اپنے بسیروں کی طرف لوٹتے ہوۓ پنچھی اور دھول میں سنے دن بھر میدان میں کھیل کر گھر لوٹتے گاؤں کے بچے اور پھر دیکھتا ہوں نظر اٹھا کر کھڑکی کے اسی کنارے سے .......آسمان میں نکلتا چاند
رمیر الل ’رمیر‘ رنگ اور نور
ूरं ग और नर
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उम्र के इस पड़ाि पर उम्र के इस पडाव पर आकर ननकिता हूूँ जजस शाम मैं घर से अपने सात समन् ़ु दर पार अपने प्रवासी हठकाने पर िौट आने को, दे खता हूूँ रे िगाडी के डडब्बे की खखडकी से झाूँककर अपने घर िौटते सरू ज को
साईककि पर सवार हो
कारखाने के वापस घर को आते मजदरू
अपने बसेरों की तरफ िौट कर जाते पंछी और धि ू में सने
हदन भर मैदान में खेि कर घर िौटते गांव के बच्चे और कफर दे खता हूूँ नजर उठा खखडकी के उसी ककनारे से आसमान में आता चाूँद... पछ ू ना चाहता हूूँ उससे मैं..
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रं ग और नरू
رنگ اور نور
समीर लाल ’समीर’
پوچھنا چاہتا ہوں اس سے سب کے گھر لوٹتے وقت اس کے آنے کا سبب کہ خود کو سمجھا سکوں شاید کہ خود کو کچھ راحت دال سکوں شاید
رمیر الل ’رمیر‘ رنگ اور نور
ूरं ग और नर
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सबके घर िौटते वक्त उसके आने का सबब कक खद ़ु को क़ुछ समझा सकूँू शायद!!! कक खद ़ु को क़ुछ राहत हदिा सकूँू शायद!!
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रं ग और नरू
رنگ اور نور
समीर लाल ’समीर’
اانورے روھے /اانوری چاہتیں میرے کمرے کی کھڑکی سے نظر آتا وہ اونچا پہاڑ بچسن گزر گیا سوچتے ہوۓ پہاڑ کے اس پار ہوگا کیسا ایک نیا سنسار جانے کیسے ہونگے لوگ کیا تم جیسے ہونگے ؟ یا مجھ جیسے ہونگے ؟ آج اتنے برسوں بعد پہاڑ کے اس پار بیٹھا سوچتا ہوں اس پار کو جس پار گزرا تھا میرا بچسن کچھ دھندلی دھندلی سی تصویروں کے درمیاں یاد کرنے کی کوشش کہ کیسا تھا وہاں کا سنسار کیسے تھے وہ لوگ کیا تم جیسے تھے ؟ کیا مجھ جیسے تھے ؟ اسی کشمکش میں الجھا دور زمین کو آسمان سے ملتے دیکھ کر اگ آتا ہے ایک نیا خیال کہ آسمان کے اس پار
رمیر الل ’رمیر‘ رنگ اور نور
ूरं ग और नर
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अधूरे सपने- अधूरी चाितें !! मेरे कमरे की खखडकी से हदखता वो ऊूँचा पहाड
बचपन गज ़ु रा सोचते कक पहाड के उस पार होगा
कैसा एक नया संसार... होंगे जाने कैसे िोग... क्या तम ़ु से होंगे?
क्या मझ ़ु से होंगे?
आज इतने बरसों बाद
पहाड के इस पार बैठा
सोचता हूूँ उस पार को जजस पार गज़ ़ु रा था मेरा बचपन...
क़ुछ धध ़ुूँ िी धध ़ुूँ िी सी स्मनृ त लिए याद करने की कोलशश में कक कैसे था वहाूँ का संसार.. कैसे थे वो िोग... क्या तम ़ु से थे?
क्या मझ ़ु से थे?
इसी द्वन्द में उिझा उग आता है
एक नया ख्याि जहन में मेरे दरू
क्षक्षनतज को छूते आसमान को दे ख...
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रं ग और नरू
رنگ اور نور
समीर लाल ’समीर’
جہاں جانا ہے ہمیں ایک روز کیسا ہوگا وہ نیا سنسار جانے کیسے ہونگے وہاں کے لوگ کیا تم جیسے ہونگے ؟ یا مجھ جیسے ہونگے ؟ جب وہاں پہنچونگا تب کون جانے کہہ پاونگا وہاں کی باتیں اسی طرح یا بنا رہیگا یہ طلسم یوں ہی اننت تک بچے رہینگے ادھورے سسنے اس زندگی کے جانے کب تک ....جانے کہاں تک تب سوچتا ہوں کیسے جینا ہے کسی کو کو کیا سکھانا وقت کے ساتھ ہر سوچ بدل جاتی ہے
رمیر الل ’رمیر‘ رنگ اور نور
ूरं ग और नर
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कक आसमान के उस पार
जहाूँ जाना है हमें एक रोज
कैसा होगा वो नया संसार...
होंगे जाने कैसे वहाूँ के िोग... क्या तम ़ु से होंगे?
क्या मझ ़ु से होंगे?
पह़ुूँच़ुंगा जब वहाूँ...
कौन जाने कह पाऊूँगा तब वहाूँ की बातें ..
क़ुछ ऐसे ही या कक
बनी रहे गी वो नतिजस्म यूूँ ही अनन्त तक
अनन्त को चाह लिए!! बच रहें गे अधूरे सपने इस जजन्दगी के जाने कब तक...जाने कहाूँ तक... तब कहता हूूँ.. “कैसे जीना है ककसी को ये लसखाना कैसा वक्त के साथ में हर सोच बदि जाती है ”
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रं ग और नरू
رنگ اور نور
समीर लाल ’समीर’
یاا کرو وہ رات
یاد کرو وہ رات وہ آخری مالقات جب تھامتے ہوۓ میرا ہاتھ کہا تھا تم نے لکھ دیتی ہوں میں اپنی سانسوں سے اپنا نام ہتھیلی پر تمہاری پھر ..... کر دی تھی تم نے اپنی ہتھیلی میرے سامنے کہ لکھ دوں میں میں بھی اپنا نام اس پر سانسوں سے اپنی کہا تھا تم نے سانسوں سے لکھی عبارت کبھی مٹتی نہیں کبھی دھلتی نہیں چاہے آنسوؤں کا سیالب بھی اتر آے اں پر وہ درج رہتی ہیں خوشبو بن کر ہر دم ....ہر لمحہ ساتھ ہمارے
رمیر الل ’رمیر‘ رنگ اور نور
ूरं ग और नर
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याद करो िो रात.. याद करो वो रात..
वो आखखरी मि ़ु ाकात..
जब थामते ह़ुए मेरा हाथ हाथों में अपने कहा था तम ़ु ने... लिख दे ती हूूँ
मैं अपना नाम
हथेिी पर तम् ़ु हारी
सांसों से अपनी ... कफर ...
कर दी थी तम ़ु ने..
अपनी हथेिी सामने मेरे .. कक लिख दूँ ू मैं भी
अपना नाम उस पर सांसों से अपनी..... कहा था तम ़ु ने...
सांसों से लिखी इबारत.. कभी लमटती नहीं.. कभी ध़ुिती नहीं..
चाहें आसओ ूँू ं का सैिाब भी उतर आये उन पर.. वो दजू रहती हैं
ख़ुशबू बनी हरदम.. हर िम्हा... साथ में हमारे .....
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रं ग और नरू
समीर लाल ’समीर’ رنگ اور نور
آج برسوں بعد گزرے کل کو پڑھنے کے لیا کھول دی ہے میں نے اپنی مٹھی اسی خوشبو کے آغوش میں ہے میری زندگی ایک بار پھر بہت قریب ہے زندگی !!!!احساس ہے تمہیں میں زندگی کی کتاب میں یوں اپنا پسندیدہ کالم لکھتا ہوں لکھ دیتا ہوں تمہارا نام اور پھر تم کو سالم لکھتا ہوں
رمیر الل ’رمیر‘ رنگ اور نور
ूरं ग और नर
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आज बरसों बाद जब...
बांचने को कि अपना...
खोि दी है मैने.... मट् ़ु ठी अपनी..... तब...हथेिी से उठी...
उसी ख़ुशबू के आगोश में ... ए जजन्दगी!!..
एक बार कफर .....अपने बह़ुत करीब.... अहसासा है तम् ़ु हें !!.... “मैं जज़न्दगी की ककताब में , यूूँ अपना पसंदीदा किाम लिखता हूूँ..
लिख दे ता हूूँ तम् ़ु हारा नाम, और कफर तम ़ु को सिाम लिखता हूूँ......”
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रं ग और नरू
رنگ اور نور
समीर लाल ’समीर’
باغباں
میری نظمیں جب اگتی ہیں تب تمہری "واہ" کی بارش سینچتی ہے انہیں تمہاری انگلیاں پکڑ کر کھڑی ہوتی ہیں وہ تمہارے کاندھے پر چڑھ کر ناپتی ہیں اونچائیاں تم سی بھی زیادہ اور بناتی ہیں اپنی پہچان تم سے الگ بھال دی جاتی ہو تم ہر بار ہمیشہ کی طرح پہچان پاتی ہے وہ زمین ! اس نظم کے نام اتنا سب سہ کر بھی تم آج پھر کھڑی ہو ویسے ہی مسکراتے ہوۓ میری اگلی نظم کو سینچنے اپنی "واہ" کے ساتھ ! ! کتنی عجیب ہو تم
رمیر الل ’رمیر‘ رنگ اور نور
ूरं ग और नर
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बागबां मेरी नज़्में जब ऊगती हैं
तब तम् ़ु हारी वाह की बाररश सीचतीं हैं उन्हें ..
पकड कर ऊूँगलियाूँ तम् ़ु हारी खडी होती हैं वो नापती हैं ऊूँचाई
तम ़ु से भी ज्यादा
चढ़कर काूँधे पर तम् ़ु हारे
और बनाती है अपनी पहचान त़ुमसे अिग...
भ़ुिा दी जाती हो त़ुम हर बार
हमेशा की तरह
पहचान पाती है वो जमीं उस नज़्म के नाम!!
इतना सब सह कर भी तम ़ु आज कफर खडी हो
वैसे ही म़ुस्कराते ह़ुए मेरी अगिी नज़्म को सीचनें.. अपनी वाह के साथ!!
-ककतनी अजीब हो त़ुम!!
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रं ग और नरू
رنگ اور نور
समीर लाल ’समीर’
ایک پوٹلی الکاا
ایک پوٹلی الفاظ جو چنے تھے تمہیں یاد کرتے اور پھر لسیٹ کر چھوڑ آیا تھا تمہارے ڈر پر اس شام ....جب بجتی تھی شہنائی کی دھن مجھے یہ بتانے کہ تم چل پڑی ہو اپنے ساجن کے سنگ ایک نئی دنیا بسانے ایک نئی دنیا سجانے آج سنا کہ وقت کی تھسیڑ نہ سہ پائی وہ پوٹلی اور بکھر چلے ہیں میرے وہ الفاظ ایک غزل کی شکل میں پریت کی دنیا میں لوگ جھومتے ہیں ،گنگناتے ہیں اسے سن کر ،اسے پڑھ کر مگر نہ جانے کیوں اتنے برسوں بعد بھی مجھے تڑپاتے ہیں وہ ساری ساری رات مجھے ستاتے ہیں وہ
رمیر الل ’رمیر‘ رنگ اور نور
ूरं ग और नर
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एक पोटली लफ्ज़
एक पोटिी िफ्ज़ जो च़ुने थे तम् ़ु हें याद करते
और कफर िपेट कर छोड आया था तम् ़ु हारे दर पर.. उस शाम..जब बजती थी शहनाई की धन ़ु मझ ़ु े बताने....
कक तम ़ु चि पडी हो अपने साजन के संग एक नई दऩु नया बसाने...
अपनी एक नई दऩु नया सजाने... आज सन ़ु ा कक वक्त की थपेड न सह पाई वो पोटिी और ब्रबखर चिे हैं वो मेरे िफ्ज़ एक गज़ि की शक्ि में ... प्रीत की दऩु नया में
िोग झूमते हैं गन ़ु गन ़ु ाते हैं उसे सन ़ु कर उसे पढ़क्रर. मगर न जाने क्यूँू
इतने बरसों बाद भी मझ ़ु े तडपाते हैं वो!! सारी सारी रात
मझ ़ु े सताते हैं वो!!
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रं ग और नरू
رنگ اور نور
समीर लाल ’समीर’
بن جاؤ یری کتاب کا عھوان ا بن جاؤ میری کتاب کا عنوان جو ہے ٥٦٣پنوں کی سال کے دنوں کی گنتی اور یہ نمبر جانے کیوں ایک سے ہیں لگے ہے جوں کرتی ہو دل کی دھڑکن اور ہاتھ گھڑی میں ٹک ٹک چلتی سیکنڈ کی سوئی جگلبندی اور اس کا ہر پنا .......خالی مگر بھرا بھرا سا .......نہیں لکھی گئی عبارتوں سے
پھر بھی کچھ لکھے جانے کے انتظار میں خوب بکے گی یہ کتاب ہاتھوں ہاتھ بک پانا ہی چاہت ہے
رمیر الل ’رمیر‘ رنگ اور نور
ूरं ग और नर
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बन जाओ मेरी
बन जाओ मेरी पस् ़ु तक का शीषूक....
जो है ३६५ पन्नों की... वषू के हदन की चगनती और यह संख्या.. जाने क्यूूँ एक से हैं... िगे है ज्यूँू करती हों हदि की धडकन
और हाथ घडी में हटक हटक चिती सैकेंड की सई ़ु जग ़ु िबंदी...
और इसका हर पन्ना... खािी... मगर भरा भरा सा अलिखखत इबारतों से.. कफर भी.. क़ुछ लिखे जाने के इन्तजार में ... खूब ब्रबकेगी यह पस् ़ु तक... हाथों हाथ
ब्रबक पाना ही चाहत है और ब्रबक जाना ही मंजजि..
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रं ग और नरू
رنگ اور نور
समीर लाल ’समीर’
اور بک جانا ہی منزل وہی تب بن جاتا ہے مانک اس کے مشہور ہونے کا کہ کتنا بک پاۓ
ہر ہندوستانی جوڑ سکے گا خود کو اس سے اور پڑھ سکے گا ہر پنے پر اپنی کہانی جو کبھی لکھی نہ گئی مگر پڑھی گئی الکھوں بار اور اب بھی انتظار میں ہے اپنے لکھے جانے کے !بولو !بنوگی میری کتاب کا عنوان ؟ ہاں کہو تو عنوان رکھ دوں گا !!! تم
رمیر الل ’رمیر‘ رنگ اور نور
ूरं ग और नर
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वही तब बन जाता है मानक उसकी िोकपप्रयता का.. कक ककतना ब्रबक पाये.. हर हहन्दस् ़ु तानी जोड सकेगा
ख़ुद को इससे... और पढ सकेगा हर पन्ने पर अपनी कहानी.... जो कभी लिखी न गई... मगर पढ़ी गई है िाखों बार और अब भी इन्तजार मे है अपने लिखे जाने के... बोिो.. बनोगी.. मेरी पस् ़ु तक का शीषूक?? हाूँ कहो तो शीषूक रख दूँ ग ू ा.... तम ़ु !!!
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रं ग और नरू
رنگ اور نور
समीर लाल ’समीर’
اکثر ال کرتا ہے یرا ا اکثر دل کرتا ہے میرا چلوں! بادلوں کے پار چلوں دیکھوں! کہاں رہتا ہے وہ چاند جو جھانکتا ہے اپنی کھڑکی سے میری کھڑکی میں ساری رات چلوں! اں پہاڑوں کے پار چلوں دیکھوں! کہاں سے آتا ہے سورج جسے دیکھ میرا چاند چھپ جاتا ہے جانے کس پردے کی اوٹ میں
چلوں! ندی کی گہرائی میں چلوں ملوں! اں مچھلیوں سے جن کے ساتھ بھی رہتا ہے ایک چاند اس رات جھیل میں دیکھا تھا اسے چلوں! گلی کے اس موڑ تک چلوں دیکھوں! اس کونے والے مکان کو جہاں رہتی ہو تم اور ساتھ دکھتی ہے ........چاند کی پرچھائیں
رمیر الل ’رمیر‘ رنگ اور نور
ूरं ग और नर
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अक्सर हदल करता िै मेरा
अक्सर हदि करता है मेरा चिूँ ,ू बादिों के पार चिूँ ू
दे ख,ूूँ कहाूँ रहता है वो चाूँद
जो झाूँकता है अपनी खखडकी से मेरी खखडकी में सारी रात
चिूँ ,ू उन पहाडों के पार चिूँ ू दे ख,ूूँ कहाूँ से आता है सरू ज जजसे दे ख मेरा चाूँद छ़ुप जाता है
जाने ककस परदे की ओट में चिूँ ,ू नदी की गहराई में चिूँ ू लमिूँ ,ू उन मछलियों से
जजनके साथ भी रहता है एक चाूँद
उस रात झीि में दे खा था उसे चिूँ ,ू गिी के उस मोड तक चिूँ ू दे ख,ूूँ उस कोने वािे मकान को जहाूँ रहती हो तम ़ु ..
और साथ हदखती है चाूँद की परछाई...
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रं ग और नरू
رنگ اور نور
समीर लाल ’समीर’
نا ادھر کھلے نا پریت جھری نا نگاہیں ملیں نا اقرار ہوا مخملی خوابوں میں دھڑکا میری پلکوں کا دل تیرے ہونٹوں نے جب میری موندی آنکھوں کو چھوا .٢ ٹوٹے رشتوں کی مردہ جڑیں دل کی زمین سے اکھاڑ نہیں پائی ڈرتی ہوں کہیں ا اور درد نہ اگ آۓ ٥ جانتی ہوں بے وفا ہو تم پھر بھی توڑا نہ تم سے رشتہ کہیں مر نہ جایں میری کویتایں
کرشھا ور ا رنگ اور نور
ूरं ग और नर
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ना अधर ख़ुिे ना प्रीत झरी
ना ननगाहें लमिीं
ना इकरार ह़ुआ मखमिी ख़्वाबों में धडका मेरी पिकों का हदि
तेरे होंठों ने जब मेरी मूँद ़ु ी आूँखों को छ़ुआ । 2 टूटे ररश्तों की
मत ृ जडें हदि की ज़मीन से उखाड नहीं पाई डरती हूूँ कहीं इक और
ददू ना उग आए। 3 जानती हूूँ बेवफा हो तम ़ु कफर भी तोडा ना तम ़ु से ररश्ता
कहीं मर ना जाएं मेरी कपवताएं।
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रं ग और नरू
رنگ اور نور
कृष्णा िमाद
٤ کون کمبخت لکھتا ہے پلے سے وہ تو پل پل جنم لیتے احساسات کو شبدوں کی پوشا سے قلم سجاۓ ،سنوارے اور بدگمانی اتراۓ کہ لکھ دی کویتا ٣ آکاش کو نہارتے میرے اکیلےپن کے لمحے کچھ نہ نیا بونے لگتے ہیں شونیہ میں اگ آتے ہیں وچاروں کے انکر کھلنے لگتے ہیں شبدوں کے پھول اپنے سیاہ خون سے سینچ کر قلم سجا دیتا ہے پنوں کے سینے پر اور کھیلنے لگتے ہیں شبد کویتا کویتا
کرشھا ور ا رنگ اور نور
ूरं ग और नर
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4
कौन कम्बख्त लिखता है पल्िे से
वह तो पि-पि जन्मते अहसासों को शब्दों की पोशाक से किम सजाए-संवारे और
बदगम ़ु ानी इतराए कक लिख दी कपवता । 5
व्योम को ताकते मेरे एकाकीपन के िम्हे क़ुछ ना क़ुछ नया
बोने िगते हैं शन् ू य में उग आते हैं पवचारों के अंक़ुर फूटने िगते हैं
शब्दों के फूि सींच के किम अपने स्याह रक्त से सजा दे ती है पष्ट्ृ ठ के वक्ष पर
और खेिने िगते हैं शब्द कपवता-कपवता ।
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रं ग और नरू
رنگ اور نور
कृष्णा िमाद
روھے
تل تل گھٹتی رہی پل پل مٹتی رہی محبت کی تمازت میں گھٹنے میں بھی آنند کا احساس ہوتا رہا سسنے خود بہ خود سجنے لگے اور آشایں بے پر اڑان بھرنے لگیں وشواس بن بوۓ ہی پنستا گیا تیجوں کی جھولوں سی خوشیاں جھولنے لگیں بہاروں نے تو جیسے میرے آنگن میں ڈیرہ ہی ڈال لیا آنند سے شرابور پلوں کو میں پوری طرح جی بھی نہ پائی تھی کہ اچانک پلوں نے کروٹ بدلی بےوقت سرسا سا منہ کھولے پہنچ گیا وقت کی چوکھٹ پر اور نگلنے لگا دپ دپ کرتی ایک ایک خوشی کو میں بے سہارا
کرشھا ور ا رنگ اور نور
ूरं ग और नर
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स्िप्न
नति-नति घटती रही पि-पि लमटती रही प्रेम की उष्ट्मा में घटने में भी आन्नद की अनभ ़ु नू त होती रही स्वप्न स्वत: सजने िगे और आशाएं बेपर उडान भरने िगीं पवश्वास ब्रबन बोए ही पनपता गया तीजों के झूिों सी ख़ुलशयां झूिने िगीं बहारों ने तो जैसे मेरे पररसर में डेरा ही डाि लिया आनन्द से सराबोर पिों को मैं पण ू या जी भी ना पाई थी कक ू त सहसा पिों ने करवट बदिी अहदन, सऱु सा सा मूँह ़ु बाएं पह़ुूँच गया वक्त की दे हरी पर
िीिने िगा मेरे दीप-दीप करते एक-एक आमोद को
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रं ग और नरू
رنگ اور نور
कृष्णा िमाद
پتجھڑ کے پتو کی طرح بے وجود سی کھڑی رہ گئی کوروں سے ڈھلکتی نمی بہانے لگی میرے اندر کے دکھ کو سسکیوں نے تھام لیا میرے کنٹھ کا دامن گھبرا کر جھٹ سے آنکھوں نے کساٹ کھولے یہاں وہاں تاکا خود کو موجود پایا شکر ہے سسنا ہی تھا !!!کوئی حقیقت نہیں
کرشھا ور ا رنگ اور نور
ूरं ग और नर
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मैं ननस्सहाय पतझड के पत्तों की भाूँनत अनजस्तत्व सी खडी रह गई कोरों से ढ़ुिकती तरिता बहाने िगीं मेरी अंतर व्यथा को लससककयों ने थाम लिया था मेरे कंठ का दामन घबरा कर झट से आूँखों ने कपाट खोिे यहाूँ-वहाूँ ताका स्वयं को जस्थर पाया शक्र ़ु है सपना ही था कोई हकीकत नहीं।
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रं ग और नरू
رنگ اور نور
कृष्णा िमाद
رشتے
رشتے جڑتے ہیں
احساسات کی اندیکھی شریانوں سے نظر نہ آنیوالی پریت بندھن کی ڈوری جوڑی جاۓ نہ توڑی ٹوٹ جایں تو دل پر ایسے زخم لگایں کہ نہ بھریں کبھی پل بھر میں ایسی ہو دوری جیسے ندیا کے پاٹ خود غرضی کے کیڑے جب پنسنے لگیں دل میں تو کتریں ناز
رشتوں کو
جب تک حواس واپس آیں تب تک اڑ جاتی ہے رشتوں سے میٹھی خوشبو بکھر جاتا ہے سب کچھ پل پل ٹیس اٹھتی ہے دل میں کتنی بھی کوشش کریں نہیں سمٹتی ہیں پھر سے بکھری کرچیں ٹکڑے ٹکڑے رشتوں سے جب تب
کرشھا ور ا رنگ اور نور
ूरं ग और नर
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ररश्ते
ररश्ते ज़ुडते भावना तंतओ ़ु ं से अदृष्ट्य होती प्रीत बंध की डोरी ज़ुड,े जाए ना तोडी टूट जाएं तो हदि में ऐसा करें आघात पि भर में ऐसी हो दरू ी ज्यों नहदया के पाट स्वाथू कीट जब पिे ह्रदय में क़ुतरे कोमि संबध ं जीवन में जब होश कफरे तब तक उड जाती ररश्तों से मद ृ ़ु गंध पि-पि टीस उठे ह्रदय में भीतर को झकझोरे ककतना भी प्रयास करें
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रं ग और नरू
رنگ اور نور
कृष्णा िमाद
ایسا مواد رسنے لگے جو سڑ سڑ کر ناسور بن جاۓ پریت بھرے جل سے بھرتے رہو رشتوں کے گھڑے مٹے وشاد ملے اپنوں کے تمہیں نت نیے بھج بندھن رشتے مہکتے رہینگے ایسے جیسے چندن ون
کرشھا ور ا رنگ اور نور
ूरं ग और नर
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ककरचें ना ज़ुडें कफर जोडे
खंडडत ररश्तों से जब-तब ऐसा रीसे मवाद
सड-सड कर नासूर बनें प्राणों को करे हताश प्रीत पगे जि से ररश्तों का
भरते रहो उदं चन लमटे पवषाद
लमिे अपनों का
त़ुमको ननत भ़ुज-बंधन ररश्ते महक रहें गे ऐसे
ज्यों महके चंदन वन।
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रं ग और नरू
رنگ اور نور
कृष्णा िमाद
بول وال ُکچھ تو بول
بول موال ُکچھ تو بول تیرا بندہ تو بول بول کے تھک گیا تو کچھ بولتا ہی نہیں تیرا بندہ تجھ سے گہرا سچ مانگتا ہے تو کچھ بتاتا ہی نہیں تو کچھ بولتا ہی نہیں تیرا بندہ تیرے سامنے یوں گڑگڑاتا ہے جیسے بچہ باپ کی الش کے سامنے گرگڑاتا ہے بچہ باپ کی الش کے سامنے روئے چال جاتا ہے َمرے باپ کو بار بار جھنجھوڑتا ہے َمرا باپ کچھ نہیں بتاتا موال تو بھی کچھ نہیں بتاتا تیرے اونچے اونچے درخت سرد تیز ہواؤں میں جھولتے ہیں تیری ہلتی زمین زلزلہ التی ہے تیرے سمندروں کے پانی سب کچھ بہا لے جاتے ہیں لیکن تو خود کچھ نہیں بتاتا تو خودکیوں نہیں بولتا تو اپنے بندے کو بتا کہ تو زندہ ہے تو اپنے بندے کو حوصلہ دے کہ تو َمرے باپ سے مختلف ہے تو موت سے مختلف ہے
طاہر ارلم گورا رنگ اور نور
ूरं ग और नर
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बोल मौला ! कुछ तो बोल !
बोि मौिा ! क़ुछ तो बोि ! तेरा बंदा तो बोि बोि के थक गया तू क़ुछ बोिता ही नहीं तेरा बंदा तझ ़ु से गहरा सच माूँगता है तू क़ुछ बताता ही नहीं तू क़ुछ बोिता ही नहीं तेरा बंदा तेरे सामने यूूँ चगडचगडाता है जैसे बच्चा बाप की िाश के सामने चगडचगडाता है बच्चा बाप की िाश के सामने रोए चिा जाता है मरे बाप को बार बार खझंझोडता है मरा बाप क़ुछ नहीं बताता मौिा ! तू भी तो क़ुछ नहीं बताता तेरे ऊूँचे ऊूँचे दरख़्त सदू तेज़ हवाओं में झूिते हैं तेज़ हहिती ज़मीन ज़िज़िा िाती है तेरे समन् ़ु दरों के पानी सब क़ुछ बहा िे जाते हैं िेककन तू खद ़ु क़ुछ नहीं बताता तू ख़ुद क्यूूँ नहीं बोिता तू अपने बंदे को बता कक तू जज़ंदा है तू अपने बंदे को हौसिा दे कक तू मरे बाप से मख़् ़ु तलिफ है
म़ुख़्तलिफ -अिग
तू मौत से मख़् ़ु तलिफ है !!!
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रं ग और नरू
ताहिर असलम गोरा رنگ اور نور
ُ سنو سمندر کی بات بھی ُ ت ُُم تو بگلوں کی طرح ٹھنڈے پانی پر تیر نہیں سکتے
اور پھر پر پھڑپھڑا کے تیز یخ ہواؤں میں اُڑ نہیں سکتے تُم تو تین سویٹر پہنے سمندر کنارے خشک پتھر پر بیٹھے سارا منظر دیکھ رہے ہو تُم جب ُرت بدلی ہے تو سمندر کنارے آئے ہو دیکھنا دستانوں سے باہر تمہارے ہاتھ اس نظم کو لکھتے جم نہ جائیں اپنے بیگ سے ٹوپی نکال سر پر لے لو تمہاری داڑھی کے بال سردی سے ہنس رہے ہیں ابھی تو برف گرنے کے دن نہیں آئے تُم کیا بگلوں کو حیرت سے دیکھ رہے ہو یہ تو تُمہاری آنکھوں کے سامنے اُڑتے ہیں اور دور پانی میں اُتر کر پھر خود کو پانی کے حوالے کر دیتےہیں یہ بگلے اس طرح تیرتے ہیں جس طرح اُڑتے ہیں بگلے اپنے آپ کو پانیوں کے حوالے کر دیتے ہیں ہیں،ہواؤں کے ُ سپرد کر دیتے تُم اُن کو ٹھنڈے پانیوں پر تیرتے
طاہر ارلم گورا رنگ اور نور
ूरं ग और नर
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समुंदर की बात भी सुनो !
तम ़ु तो बगिों की तरह ठं डे पानी पर तैर नहीं सकते और कफर पर फडफडा के यख़ - एक
तेज़ यख़* हवाओं में उड नहीं सकते
ख़़ुश्क - सूखा
तम ़ु तो तीन स्वेटर पहने समद ़ुं र ककनारे ख़़ुश्क पत्थर पर बैठे सारा मंज़र दे ख रहे हो
बादबानी - पाि
जब रुत बदिी है तो तम ़ु समद ़ुं र ककनारे आए हो दे खना ! दास्तानों से बाहर तम् ़ु हारे हाथ इस नज़्म को लिखते जम न ु् जाएूँ अपने बैग से टोपी ननकाि सर पर िे िो ! तम् ़ु हारी दाढ़ी के बाि सदी से हूँस रहे हैं अभी तो बफू चगरने के हदन नहीं आए तम ़ु क्या बगिों को है रत से दे ख रहे हो ये तो तम् ़ु हारी आूँखों के सामने उडते हैं और दरू पानी में उतर कर कफर खद ़ु को पानी के हवािे कर दे ते हैं ये बगिे इस तरह तैरते हैं जजस तरह उडते हैं बगिे अपने आप को पाननयों के हवािे कर दे ते हैं, हवाओं के सप ़ु द ़ु ू कर दे ते हैं तम ़ु उन को ठं डे पाननयों पर तैरते
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रं ग और नरू
*सदू
ताहिर असलम गोरा رنگ اور نور
اور یخ ہوا میں اُڑتے دیکھ کر سردی سے ُدہرے ہوئے جاتے ہو وہ دیکھو ُدور بادبانی کشتی پانی کو پرکار کی طرح کاٹتی چلی جا رہیہے اُس پرکار سے پرے دور آسمان پانی کے ساتھ ُگنبد بناتا نظر آتا ہے یہ سب ُکچھ تُمہاری آنکھ کے لئے دھوکہ ہے،حقیقت ُکچھ اور ہے چھوڑو حقیقت کو،تُم تو سمندر کو دیکھنے یعنی ُمجھے دیکھنے آئے ہو تُم تو قدرت کا یعنی نیچر کا تماشہ کرنے آئے ہو تُم قدرت کا تماشہ دیکھنے کی اتنی تاب نہیں رکھتے جاؤ جا کر کافی پیو اور اس سنسان یخ کنارے سے اُٹھ کر دور ٹہلتے لوگوں میں جا ملو
طاہر ارلم گورا رنگ اور نور
ूरं ग और नर
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और यख़ हवाओं में उडते दे ख कर यख़ - एक
सदी से दोहरे ह़ुए जाते हो
ख़़ुश्क - सूखा
वो दे खो ! दरू बादबानी कश्ती पानी को
बादबानी - पाि
प्रकार की तरह काटती चिी जा रही है
उस प्रकार से परे , दरू आसमान पानी के साथ गब ं़ु द बनाता नज़र आता है ये सब क़ुछ तम् ़ु हारी आूँख के लिए धोखा है , हक़ीक़त क़ुछ और है छोडो ! हक़ीक़त को, तम ं़ु र को दे खने ़ु तो समद यानी मझ ़ु े दे खने आए हो तम ़ु तो क़़ुदरत का यानी नेचर का तमाशा करने आए हो तम ़ु क़़ुदरत का तमाशा दे खने की उतनी ताब नहीं रखते जाओ ! जा कर काफी पपयो ! और इस सन ़ु सान यख़ ककनारे से उठ कर दरू टहिते िोगों में जा लमिो !!!
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रं ग और नरू
ताहिर असलम गोरा رنگ اور نور
وقت کی کوئی کل سیدھی نہیں
کونسی گھڑی کا وقت درست ہےیاد نہیں پڑتا ایک گھڑی دو تین منٹ آگے ہے ایک گھڑی ایک منٹ اور چند سیکنڈ پیچھے ہے ایک گھڑی ان دونوں کے کہیں درمیان میں ہے اصل میں کسی گھڑی کا وقت درست نہیں گھڑیوں کی سوئیوں کو جماتے وقت درست وقت کو جاتی ٓ اہمیت نہیں دی ٍ ایک دو منٹ کے فرق کے اندازاً وقت کو کافی سمجھا جاتا ہے کبھی عین درست وقت درکار ہوتا ہے بگ بین کی گھڑی جیسا ٹائم بم پر فٹ وقت جیسا رش میں سے بھاگ کر دفتر پہنچنے جیسا سوئیوں پر سوئیاں چڑھے منظر جیسا لیکن وقت ایک سا نہیں رہتا سوئیوں پر سے سوئیاں اُتر جاتی ہیں ٹائم بم پھٹ جاتاہے بگ بین کی ٹن ٹن بج جاتی ہے پھر وقت ایک دو منٹ آگے پیچھے ہو جاتا ہے کبھی وقت ایک دو صدیاں سرک جاتا ہے
طاہر ارلم گورا رنگ اور نور
ूरं ग और नर
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िक्त की कोई कल सीधी निीं
कौन सी घडी का वक्त दरु ़ु स्त है याद नहीं पडता एक घडी दो तीन लमनट आगे है एक एक लमनट और चंद सेकेण्ड पीछे है एक घडी इन दोनों के कहीं दरम्यान है अस्ि में ककसी भी घडी का वक्त दरु ़ु स्त नहीं घडडयों की सई ू यों को जमाते वक्त दरु ़ु स्त वक्त को अहलमयत नहीं दी जाती एक दो लमनट के फक़ू के अंदाज़न वक्त को काफी समझा जाता है कभी ऐन दरु ़ु स्त वक्त दरकार होता है ब्रबग बैन की घडी जैसा टाइम बम पर कफट वक्त जैसा रश में से भाग कर दफ़्तर पह़ुूँचने जैसा सइ ़ु यों पर सइ ़ु यां चढ़े मन्ज़र जैसा िेककन वक़्त एक सा नहीं रहता सई ू यों पर से सई ू यां उतर जाती हैं टाइम बम फट जाता है ब्रबग बैन की टन टन बज जाती है
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रं ग और नरू
ताहिर असलम गोरा رنگ اور نور
پھر کوئی سٹینڈرڈوقت نہیں رہتا گھڑی ساز آنکھوں پر عدسہ چڑھائے گھڑی کے باریک پرزے ڈھونڈنے لگتا ہے گھڑی ساز وقت کو آگے پیچھے سے واپس ال کر درست ہے سوئیوں پر رکھنا چاہتا سوئیاں سرکتی رہتی ہیں سوئیاں تھرکتی رہتی ہیں سوئیوں کو سرکنے سے وقت بھی روک نہیں سکتا سوئیوں کو تھرکنے سے گھڑی ساز بھی روک نہیں سکتا
طاہر ارلم گورا رنگ اور نور
ूरं ग और नर
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कफर वक्त एक दो लमनट आगे पीछे हो जाता है कभी वक्त एक दो सहदयाूँ सरक जाता है कफर कोई स्टैंडडू वक्त नहीं रहता घडीसाज़ आूँखों पर िेन्स चढाए घडी के बारीक पज़ ़ु े ढूूँढने िगता है घडीसाज़ वक्त को आगे पीछे से वापस िा कर दरु ़ु स्त सई ू यों पर रखना चाहता है सई ू याूँ सरकती रहती हैं सई ू याूँ चथरकती रहती हैं सई ू यों सरकने से वक्त भी रोक नहीं सकता सई ू यों को चथरकने से घडीसाज़ भी रोक नहीं सकता !!!
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रं ग और नरू
ताहिर असलम गोरा رنگ اور نور
زمانہ اور میں ایک ساتھ چل نہیں سکتے
کبھی چار قدم آگے ہوتا ہوں
اور کبھی چار قدم پیچھے میں زمانے کے ساتھ چل نہیں سکتا اور نہ زمانہ میرے ساتھ چلتا ہے کشتی کے چپوؤں کی طرح میرے قدم کبھی آگے ہوتے ہیں اور کشتی پیچھے کبھی قدم پیچھے ہوتے ہیں اور کشتی آگے
اس طرح کشتی تو چل سکتی ہےمیں نہیں چل سکتا لیکن میں اسی طرح چل رہا ہوں نہ چل سکنے کے باوجود چل رہا ہوں اور چلتا جا رہا ہوں اور چلتا رہوں گا
طاہر ارلم گورا رنگ اور نور
ूरं ग और नर
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ज़माना और मैं एक सार् निीं चल सकते कभी चार क़दम आगे होता हूूँ और कभी चार क़दम पीछे मैं ज़माने के साथ चि नहीं सकता और न ज़माना मेरे साथ चिता है कश्ती के चप्पओ ़ु ं की तरह मेरे क़दम कभी आगे होते हैं और कश्ती पीछे कभी क़दम पीछे होते हैं और कश्ती आगे इस तरह कश्ती तो चि सकती है मैं नहीं चि सकता िेककन मैं इसी तरह चि रहा हूूँ न चि सकने के बावजूद चि रहा हूूँ और चिता जा रहा हूूँ और चिता रहूूँगा !!!
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रं ग और नरू
ताहिर असलम गोरा رنگ اور نور
سال بھر کی ُامیدیں
ہر روز ایک نئی اُمید لے کر سوتا ہوں سال میں تین سو دس کے قریب ُامیدیں جمع ہوتی ہیں پچاس پچپن کے قریب ُ چھٹیاں ہوتی ہیں کسی سال کوئی اُمید نہیں ملتی جیسے خشک سالی کا سال ہو اُس خشک سالی میں اکٹھی کی ہوئی اُمیدیں کہیں خرچ ہو جاتی ہی ُ کبھی اکٹھی کی ہوئی امیدیں گرجاتی ہیں اور کبھی راہ چلتے تیز ہوا کے ساتھ اُڑجاتی ہیں بہت ساری اُمیدیں پانی کے ُبل ُبلے کی طرح ہاتھ لگاتے جاتی ہیں ختم ہو ُ اُمیدوں کے گرنے ،اڑنے اور ختم ہونے کا ُدکھ نہیں ہوتا اُمیدوں کا ایک کارخانہ کہیں لگا ہے جہاں سے اُمیدیں مسلسل آ رہی ہیں
جیسے ان دیکھی صداکسی کو کہیں سے آ تی ہے جیسے انجانی ہوا پیچھے سے چلی آ تی ہے صدا کدھر سے جاتی ہے ،ہو ا کدھر جاتی ہے کوئی سوچتا نہیں،کوئی دیکھتا نہیں مجھے کسی سے پوچھنا ہے اُمیدوں کے اس جہان کو کب تک آباد رکھنا ہے مجھے کسی سے پوچھنا ہے اُمیدوں کے اس جہان میں کب تک آباد رہنا ہے
طاہر ارلم گورا رنگ اور نور
ूरं ग और नर
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साल भर की उम्मीदें
हर रोज़ एक नई उम्मीद िे कर सोता हूूँ साि में तीन सौ दस के क़रीब उम्मीदें जमा होती हैं पचास पचपन के क़रीब छ़ुट्हटयाूँ होती हैं ककसी साि कोई उम्मीद नहीं लमिती
ख़़ुश्कसािी - सूखा
जैसे ख़़ुश्कसािी* का साि हो
पड जाना
उस ख़श़्ु कसािी में इकठ्ठी की ह़ुई उम्मीदें कहीं ख़चू हो जाती हैं
कभी इकठ्ठी की ह़ुई उम्मीदें चगर जाती हैं और कभी राह चिते तेज़ हवा के साथ उड जाती हैं बह़ुत सारी उम्मीदें पानी के बि ़ु बि ़ु े की तरह हाथ िगाते ख़त्म हो जाती हैं उम्मीदों के चगरने, उडने,
और ख़त्म होने का दिः़ु ख नहीं होता
उम्मीदों का एक कारख़ाना कहीं िगा है जहाूँ से उम्मीदें मस ़ु िसि आ रही हैं
जैसे अनदे खी सदा ककसी को कहीं से आती है जैसे अनजानी हवा पीछे से चिी आती है
सदा ककधर से जाती है , हवा ककधर से आती है कोई सोचता नहीं, कोई दे खता नहीं
मझ ़ु े ककसी से पछ ू ना है , उम्मीदों के इस जहान को कब तक आबाद रखना है
मझ ़ु े ककसी से पछ ू ना है , उम्मीदों के इस जहान में कब तक आबाद रहना है !!!
*स़ुखा
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रं ग और नरू
ताहिर असलम गोरा رنگ اور نور
آسمان سجا ہو تو اچھا لگتا ہے
چاہے ہولی کے رنگوں سے چاہے پرندوں کی ڈاروں سے چاہے بسنت کی رنگ برنگی پتنگوں سے کبھی کبھی آسمان شام ڈھلے کھانے کے دھوئیں سے بھی سج جاتا ہے اور کبھی کبھی نیچے سے اُٹھنے والی موسیقی آسمان پر چھا جاتی ہے اور جب کبھی بادل دھمال ڈالتے ہیں بادلوں کی کالی چٹی چادریں اُتھل پتھل ہوتی ہیں یا پھر صرف کالے گوڑھے بادلوں میں نہ پکڑائی دینے والی بجلی کی لپک اور چمک پھر کبھی گوڑھے بادلوں کی چادر کی اوٹ سے سورج کی شرمیلی دھوپ اوریا ہواؤں کی اپنی لہریں ہیں جس میں ہوائی جہاز کشتیوں کی طرح ڈولتے ٓ کالی سیاہ رات میں بے ترتیب ستاروں کا رقص اور چاندنی رات میں چاند کی اپنی جوبن کبھی سیاہ رات میں گوڑھے بادلوں کی بارش اور اس کی دھمک
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ूरं ग और नर
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आसमान सजा िो तो अच्छा लगता िै चाहे होिी के रं गों से हो चाहे पररंदों की डारों से चाहे बसंत की रं ग ब्रबरं गी पतंगों से कभी कभी आसमान शाम ढिे खाने के ध़ुएूँ से भी सज जाता है और कभी कभी नीचे से उठने वािी मौसीक़ी आसमान पर छा जाती है और जब कभी बादि धमाि डािते हैं बादिों की कािी चचट्टी चादरें उथि पथ ़ु ि हो जाती हैं या कफर लसफू कािे गढ़ ू े बादिों में न ु् पकडे जाने वािी ब्रबजिी की िपक और चमक या कफर कभी गढ़ ू े बादिों की चादर की ओट से सरू ज की शमीिी धप ू और या हवाओं की अपनी िहरें जजस में हवाई जहाज़ कजश्तयों की तरह डोिते हैं कािी लसयाह रात में बे-ततीब लसतारों का रक्स और चाूँदनी रात में चाूँद का अपना जौबन कभी लसयाह रात में गाढ़े बादिों की बाररश और उस की धमक
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रं ग और नरू
ताहिर असलम गोरा رنگ اور نور
یا پھر سیاہ برفانی رات میں برف کی چمکیلی چادر اور جب آسمان کئی کئی دن برف کی تہیں بچھاتا ہے اور زمین اور اپنے درمیان ہر چیز کو برف بناتا ہے اسی طرح آسمان پہاڑوں کے اوپر طرح طرح کے رنگ دکھالتا ہے کبھی پہاڑوں کو اپنے اندر لے جاتا ہے اور کبھی دور سے ُمنہ چڑاتا ہے آسمان سجا ہو تو اچھا لگتا ہے چاہے دور اونچے میناروں سے یا اونچی عمارتوں سے چاہے جہاز کی سانپ جیسی لکیر سے اور چاہے قوس قزاح کی سیڑھی سے آسمان سجا ہو تو اچھا لگتا ہے آسمان خالی ہو تو خالی جہان جیسا لگتا ہے
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ूरं ग और नर
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या कफर लसयाह बफाूनी बफू की चमकीिी चादर और जब आसमान कई कई हदन बफू की तहें ब्रबछाता है और ज़मीन और अपने दरम्यान हर चीज़ को बफू बनाता है उसी तरह आसमान पहाडों के ऊपर तरह तरह के रं ग हदखिाता है कभी पहाडों को अपने अंदर िे जाता है और कभी दरू से मूँह ़ु चचढ़ाता है असमान सजा हॊ तो अच्छा िगता है चाहे दरू ऊंचे मीनारों से या ऊंची इमारतों से चाहे जहाज़ की सांप जैसी िकीर से और चाहे *कौसे क़़ुज़ाह की सीढ़ी से आसमान सजा हो तो अच्छा िगता है आसमान ख़ािी हो तो ख़ािी जहान िगता है !!!
*इन्रधनश ़ु
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रं ग और नरू
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نئے شہر ایسے قبول نہیں کرتے
نئے شہر طرح طرح سے ڈراتے ہیں نئے راہیوں کو انجان بناتے ہیں اپنی سڑکوں پر وحشیوں کی طرح دوڑاتے ہیں اور جان بوجھ کرراہیں بند کر دیتے اور سمتیں بھالتے ہیں نئے آنے والوں کو رات کے وقت ڈراتے ہیں کسی انجان گلی کے ُ سنسان رستے پر بالتے ہیں راہ میں بھیانک شکل کے کارخانے دکھاتے ہیں کارخانوں کی اُونچی چمنیاں بھوتوں کی طرح گھیرا ڈالتی ہیں نئے آنے والے اُن چمنیوں کے گرد گھومتے رہ جاتے ہیں دور نظر آنے والی ُپر رونق سڑک اگلے موڑ پر غائب ہو جاتی ہے اگلے موڑ پر اچانک ایک تاریک میدان وحشی سمندر کی طرح نمودار ہوتا ہے تاریک میدان کے بعد اچانک سڑک کسی گہری کھائی کی طرف جاتی ہے گہری کھائی کے خوف سے نکل کر سڑک اوپر یوں جاتی ہے جیسے آسمان کے سوا اس سڑک کی کوئی منزل نہیں سمان کے پاس ایک تیز شور واال دریا پڑتا ہے نئے شہر ایسے قبول نہیں کرتے نئے راہیوں کو ڈراتے ہیں
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ूरं ग और नर
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नये ििर ऐसे कुबल ू निीं करते नये शहर तरह तरह से डराते हैं नये राहहयों को अंजान बनाते हैं अपनी सडकों पर वहलशयों की तरह दौडाते हैं और जान बझ ू कर राहें बंद कर दे ते हैं और सम्तें(१) भि ़ु ा दे ते हैं नये आने वािों को रात के वक्त डराते हैं ककसी अंजान गिी के सन ़ु सान रस्ते पर बि ़ु ाते हैं राह में भयानक शक्ि के कारख़ाने हदखाते हैं कारख़ानों की ऊूँची चचमननयां भत ू ों की तरह घेरा डािती हैं नये आने वािे उन चचमननयों के चगदू घम ़ु ते रह जाते हैं दरू नज़र आने वािी पऱु -रौनक़ सडक अगिे मोड पर गायब हो जाती है अगिे मोड पर अचानक एक तारीक मैदान वहशी समन् ़ु दर की तरह (२)नमद ू ार होता है (३)तारीक मैदान के बाद अचानक सडक ककसी गहरी खाई की तरफ जाती है गहरी खाई के खौफ से ननकि कर
(३)अन्धेरा
सडक उपर यूूँ जाती है
(१)हदशाएं
जैसे आसमान के लसवा उस सडक की कोई मंजज़ि नहीं
(२)हदखना
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रं ग और नरू
ताहिर असलम गोरा رنگ اور نور
اپنی سڑکوں پر وحشیوں کی طرح دوڑاتے ہیں نئے آنے والوں کو تھکا دینے کے بعد دو طرفہ ُدکانوں کی سڑک پر لے آتے ہیں خوف کے انجان سفر سے نکال کر دو بازوؤں کے اندر آرام پہنچاتےہیں
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ूरं ग और नर
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आसमान के पास एक तेज़ शोर वािा दररया पडता है नये शहर ऐसे क़ुबि ू नहीं करते नये राहहयों को डराते हैं अपनी सडकों पर वजह्शयों की तरह दौडाते हैं नये आने वािों को थका दे ने के बाद दो तरफा दक ़ु ानों की सडक पर िे आते हैं खौफ के अंजान सफर से ननकाि कर दो बाज़ओ ़ु ं के अंदर आराम पह़ुंचाते हैं !!!
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دیکھیں کونسی زمین ُانہیں جھیلتی ہے؟
جن کے پاس اپنی زمین نہ رہے جن کے پاس اپنا یقین نہ رہے خدا کی یہ زمین مختلف لوگوں کے لئے بَٹی ہوئی ہے ایک سرزمین سے نکلنے والے دوسری سرزمین پر پناہ لیتے ہیں اور دوسری سرزمین پناہ دیتی ہے ایک جیسی یہ زمین مختلف لوگوں کے لئے یوں بَٹی ہوئی نہ ہو تو مختلف لوگ مختلف لوگوں کو ہڑپ کر جائیں
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दे खें ! कौन सी ज़मीन उन्िें झेलती िै !
जजन के पास अपनी ज़मीन न रहे जजन के पास अपना यक़ीन ु् न रहे ख़़ुदा की ये ज़मीन मख़ ़ु तलिफ िोगों के लिए बटी ह़ुई है एक सरज़मीन से ननकिने वािे दस ू री सरज़मीन पर पनाह िेते हैं और दस ू री सरज़मीन पनाह दे ती है एक जैसी ये ज़मीन मख़ ़ु तलिफ िोगों के लिए यूूँ बटी ह़ुई न ु् हो तो मख़ ़ु तलिफ िोग मख़ ़ु तलिफ िोगों को हडप कर जाएूँ !!!
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रं ग और नरू
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آدمی روبوٹ ہی تو ہے
کون کہتا ہے کہ آ دمی روبوٹ نہیں آدمی روبوٹ ہی تو ہے آنکھوں کے اوپر ُ جڑے ہوئے شیشے منظر بدل دیتے ہیں جب معدہ اچھا کام کرتا ہے ُ ،پرانے منظر نئے ہو جاتے ہیں آدمی اچھی طرح سو لے تو بوسیدہ رستے اچھے لگنے لگتے ہیں یہ پروگرامنگ ہی ایسی ہے آنکھیں جن پر آ دمی کو بڑا ناز ہوتا ہے آدمی آنکھوں دیکھی ہر شے کو سچا سمجھتا ہے جب آنکھوں کے شیشے پیچھے تہہ در تہہ لینس آگے پیچھے ہوتے ہیں آدمی کی آنکھ کیمرے کی آنکھ بن جاتی ہے جس طرح کیمرہ لینس بدل بدل کر اور اپرچر چھوٹے بڑے کر کے دیکھتا ہے اسی طرح آدمی کی آنکھ رنگ برنگے لینسوں کے ساتھ رنگ ہے برنگی ہوتی رہتی آدمی روبوٹ ہی تو ہے آدمی کہتا ہے آدمی روبوٹ نہیں آدمی خوشی میں لُڑھک جاتا اور ُغصے میں لرز جاتا ہے آدمی کھاتا پیتا ،سوتا جاگتا ،ہنستا روتا ہے آدمی روبوٹ ہی تو ہوا
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ूरं ग और नर
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आदमी रोबोट िी तो िै
कौन कहता है कक आदमी रोबोट नहीं आदमी रोबोट ही तो है आूँखों के उपर ज़ुडे ह़ुए शीशे मंज़र बदि दे ते हैं
मेदा -पेट
जब मेदा अच्छा काम करता है , पऱु ाने मंज़र नये हो जाते हैं आदमी अच्छी तरह सो िे तो *बोसीदा रस्ते अच्छे िगने िगते हैं ये प्रोग्रालमंग ही ऐसी है
आूँखें जजन पर आदमी को बडा नाज़ होता है आदमी आूँखों दे खी हर शय को सच्चा समझता है जब आूँखों के शीशे पीछे तह दर तह िेंस आगे पीछे होते हैं आदमी की आूँख कैमरे की आूँख बन जाती है जजस तरह कैमरा िेंस बदि बदि कर और एप्रचर छोटे बडे कर के दे खता है उसी तरह आदमी की आूँख रं ग ब्रबरं गे िेंसों के साथ रं ग ब्रबरं गी होती रहती है आदमी रोबोट ही तो है आदमी कहता है आदमी रोबोट नहीं आदमी ख़श ़ु ी में िढ़ ़ु क जाता है और ख़श ़ु ी में िरज़ जाता है आदमी खाता-पीता, सोता-जगता, हूँसता-रोता है आदमी रोबोट ही तो है !!!
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रं ग और नरू
*टूटे -फूटे
ताहिर असलम गोरा رنگ اور نور
غزل ()1
مجلس ِِ غم ،نہ کوئی بزم ِِطرب ،کیا کرتے آوارہء شب ،کیا کرتے گھر ہی جاسکتے تھے ِ
یہ تو اچھا کیا تنہائی کی عادت رک ّھی تب اِسے چھوڑ دیا ہوتا تو اب کیا کرتے
روشنی ،رنگ ،مہک ،طائر ِ خوش لحن ،صبا تُو نہ آتا جو چمن میں تو یہ سب کیا کرتے
دل کا غم دل میں لیے لوٹ گئے ہم چپ چاپ کوئی سنتا ہی نہ تھا شور و شغب کیا کرتے
بات کرنے میں ہمیں کون سی دشواری تھی اُس کی آنکھوں سے تخاطب تھا سو لب کیا کرتے
کچھ کیا ہوتا تو پھر زعم بھی اچھا لگتا ہم زیاں کار تھے ،اعالن ِِ نسب کیا کرتے
عرفان رتار رنگ اور نور
ूरं ग और नर
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ग़ज़ल (1)
मजलिसे-ग़म न कोई बज़्मे-तरब क्या करते घर ही जा सकते थे आवार ए शब क्या करते
यह तो अच्छा ककया तन्हाई की आदत रक्खी तब उसे छोड हदया होता तो अब क्या करते
रौशनी, रं ग, महक, ताइर ए खश ़ु -िह्न सबा तू न आता जो चमन में तो ये सब क्या करते हदि का ग़म हदि में लिए िौट गये हम चप ़ु चाप कोई स़ुनता ही न था शोर ओ शग़ब क्या करते बात करने में हमें कौन सी दश़्ु वारी थी उसकी आूँखों से तख़ात़ुब था सो िब क्या करते क़ुछ ककया होता तो कफर ज़ोम भी अच्छा िगता सबा - हवा
हम जज़याूँ-कार थे ऐिान ए नसब क्या करते
शोर ओ शग़ब - शोर ग़ुि 175
रं ग और नरू
رنگ اور نور
इरफ़ान सत्तार
دیکھ کر تجھ کو سرہانے ترے بیمار ِِ جنوں جاں بلب تھے ،سو ہوئے آہ بلب ،کیا کرتے
تُو نے دیوانوں سے منہ موڑ لیا ،ٹھیک کیا ان کا کچھ ٹھیک نہیں تھا کہ یہ کب کیا کرتے
یہی ہونا تھا جو عرفان ترے ساتھ ہ ُوا منکر ِِ میر بھال تیرا ادب کیا کرتے
ताइर - पररंदा
खश ़़ु -िह्न - सऱु ीिी आवाज
عرفان رتار رنگ اور نور
ूरं ग और नर
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दे ख कर त़ुझ को सरहाने तेरे बीमारे -ज़ुनूं जां-बिब थे, सो ह़ुए आह-बिब, क्या करते तूने दीवानों से मूँ़ुह मोड लिया, ठीक ककया इन का क़ुछ ठीक नहीं था कक ये कब क्या करते यही होना था जो इरफान तेरे साथ ह़ुआ मन् ़ु करे -मीर भिा तेरा अदब क्या करते
मजलिसे-ग़म - गमगीन महकफि बज़्मे-तरब - ख़ुशी की महकफि
आवार ए शब -रात की आवारगी मन् ़ु करे -मीर -मीर को ना मानने वािा ज़ोम - - ककसी से बात करना जज़याूँ-कार - बबाूद, नाकारा तख़ात़ुब - बोिना
जां-बिब - जो मरने के करीब हो आह-बिब - होठों पर आह हो 177
रं ग और नरू
رنگ اور نور
इरफ़ान सत्तार
غزل ()2 ایک تاریک خال ،اُس میں چمکتا ہ ُوا میں یہ کہاں آگیا ہستی سے سرکتا ہ ُوا میں شعلہ ِ جاں سے فنا ہوتا ہوں قطرہ قطرہ اپنی آنکھوں سے لہو بن کے ٹپکتا ہ ُوا میں آگہی نے مجھے بخشی ہے یہ نار ِ خود سوز اک جہنّم کی طرح خود میں بھڑکتا ہ ُوا میں منتظر ہوں کہ کوئی آکے مکمل کردے چاک پر گھومتا ،بل کھاتا ،درکتا ہ ُوا میں
مجمع ِ اہل ِ حرم نقش بدیوار اُدھر اور اِدھر شور مچاتا ہ ُوا ،بکتا ہ ُوا میں
میرے ہی دم سے ملی ساعت ِ امکان اِسے وقت کے جسم میں دل بن کے دھڑکتا ہوا میں بے نیازی سے مری آتے ہوئے تنگ یہ لوگ اور لوگوں کی تو ّجہ سے بدکتا ہ ُوا میں
رات کی رات نکل جاتا ہوں خود سے باہر
عرفان رتار
اپنے خوابوں کے تعاقب میں ہمکتا ہ ُوا میں رنگ اور نور
ूरं ग और नर
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ग़ज़ल (2) एक तारीक ख़िा, उस में चमकता ह़ुआ मैं ये कहाूँ आ गया हस्ती से सरकता ह़ुआ मैं शोि ए जाूँ से फना होता हूूँ क़तरा क़तरा अपनी आूँखों से िहू बन के टपकता ह़ुआ मैं आगही ने मझ ़ु े बख्शी है ये नारे -खद ़ु सोज़ इक जहन्नम ़ु की तरह ख़ुद में भडकता ह़ुआ मैं मन् ़ु तजज़र हूूँ कक कोई आ के मक ़ु म्मि कर दे चाक पर घम ू ता, बि खाता, दरकता ह़ुआ मैं मजमा ए अह्िे हरम नक्श ब दीवार उधर और इधर शोर मचाता ह़ुआ, बकता ह़ुआ मैं मेरे ही दम से लमिी साअते-इमकान उसे वक्त के जजस्म में हदि बन के धडकता ह़ुआ मैं बे-ननयाज़ी से मेरी तंग ये आते ह़ुए िोग और िोगों की तवज्जो से ब्रबदकता ह़ुआ मैं
ख़िा - शून्य
रात की रात ननकि जाता हूूँ ख़़ुद से बाहर अपने ख़्वाबों के तआक़़ुब में ह़ुमकता ह़ुआ मैं 179
रं ग और नरू
رنگ اور نور
इरफ़ान सत्तार
ایسی یکجائی ،کہ مٹ جائے تمیز ِ من و تُو مجھ میں ک ِھلتا ہ ُوا تُو ،تجھ میں مہکتا ہ ُوا میں
اک تو وہ حسن ِ جنوں خیز ہے عالم میں شہود اور اک حسن ِ جنوں خیز کو تکتا ہ ُوا میں ایک آواز پڑی تھی کہ کوئی سائل ِ ہجر؟ آن کی آن میں پہنچا تھا لپکتا ہ ُوا میں ہے کشید ِ سخن ِ خاص ودیعت مجھ کو گھومتا پھرتا ہوں یہ عطر چھڑکتا ہوا میں راز ِ حق فاش ہ ُوا مجھ پہ بھی ہوتے ہوتے خود تک آہی گیا عرفان بھٹکتا ہ ُوا میں तमीज़े मन ओ तू - एक दस ू रे की पहचान, शहूद - गवाही, ह़ुस्ने-ज़ुनूं खेज़ - बह़ुत हसीन आगही - जानना, नारे -ख़ुद - अपना नारा िगाना, सोज़-जिना
बे-कशीद - अकू ना ननकािा ह़ुआ स़ुख़ने-ख़ास -खास बात
यक्जाई - इकठा होना साइिे-हहज्र - ज़ुदाई का ककनारा म़ुन्तजज़र - इंतजार,
म़ुकम्मि - पूरा करना चाक - फटा ह़ुआ, दरकता - चटखना
वदीअत - पवरासत
عرفان رتار رنگ اور نور
ूरं ग और नर
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ऐसी यक्जाई कक लमट जाए तमीज़े मन ओ तू मझ ़ु में खखिता ह़ुआ त,ू तझ ़ु में महकता ह़ुआ मैं इक तो वो ह़ुस्ने-जन ़ु ंू खेज़ है आिम में शहूद और इक ह़ुस्ने-ज़ुनूं खेज़ को तकता ह़ुआ मैं एक आवाज़ पडी थी कक कोई साइिे-हहज्र आन की आन में पह़ुंचा था िपकता ह़ुआ मैं बे-कशीद:-सख़ ़ु ने-ख़ास वदीअत मझ ़ु को घम ू ता कफरता हूूँ ये इत्र नछडकता ह़ुआ मैं राज़े-हक़ फाश ह़ुआ मझ ़ु पे भी होते होते ख़द ़ु तक आ ही गया इरफान भटकता ह़ुआ मैं
तआक़़ुब - पीछा करना बे-ननयाज़ी - अवहे िना, तवज्जो - ध्यान दे ना
साअते-इमकान - उम्मीद के साथ मजमा ए अह्िे हरम - हरम की भीड नक्श ब दीवार - दीवार का लिखा
शोि ए जाूँ - रूह की आग
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रं ग और नरू
رنگ اور نور
इरफ़ान सत्तार
غزل ()3
ہوکر وداع سب سے ،سبک بار ہو کے رہ جانا ہے کب خبر نہیں ،تیّار ہو کے رہ یہ لمحہ بھر بھی دھیان ہٹانے کی جا نہیں دنیا ہے تیری تاک میں ،ہشیار ہو کے رہ خطرہ شب ِ وجود کو مہر ِ عدم سے ہے سب بے خبر ہیں ،تُو ہی خبردار ہو کے رہ شاید اتر ہی آئے خنک رنگ روشنی چل آج رات خواب میں بیدار ہو کے رہ کس انگ سے وہ لمس ُکھلے گا ،کسے خبر تُو بس ہمہ وجود طلبگار ہو کے رہ تُو اب سراپا عشق ہ ُوا ہے ،تو لے دعا جا سر بسر اذیّت و آزار ہو کے رہ شاید کبھی اِسی سے اٹھے پھر ترا خمیر بنیاد ِ خواب ِ ناز میں مسمار ہو کے رہ کچھ دیر ہے سراب کی ن ّ ظارگی مزید کچھ دیر اور روح کا زنگار ہو کے رہ اب آسمان ِ حرف ہ ُوا تا اُفق سیاہ اب طمطراق سے تُو نمودار ہو کے رہ
عرفان رتار رنگ اور نور
ूरं ग और नर
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ग़ज़ल (3)
हो कर पवदा सब से सब ़ु क ़ु -बार हो के रह जाना है कब ख़बर नहीं तैयार हो के रह ये िम्हा भर भी ध्यान हटाने की जा नहीं दऩु नया है तेरी ताक में होलशयार हो के रह खतरा शबे-वजूद को मह ़ु रे -अदम से है सब बे-ख़बर हैं तू ही ख़बरदार हो के रह शायद उतर ही आए ख़न ़ु क ़ु रं ग रौशनी चि आज रात ख़्वाब में बेदार हो के रह ककस अंग से वो िम्स ख़ुिग े ा, ककसे ख़बर तू बस हमा वजूद तिबगार हो के रह तू अब सरापा इश्क़ ह़ुआ है तो िे दआ ़ु जा सर ब सर अज़ीयत ओ आज़ार हो के रह शायद कभी इसी से उठे कफर तेरा ख़मीर बन् ़ु यादे -ख़्वाबे-नाज़ में लमस्मार हो के रह क़ुछ दे र है सराब की नज़्ज़ारगी मज़ीद क़ुछ दे र और रूह का ज़ंगार हो के रह अब आसमाने-हफू ह़ुआ ता उफ़ुक़ लसयाह अब तम ़ु तराक़ से तू नम ़ु द ू ार हो के रह 183
रं ग और नरू
इरफ़ान सत्तार رنگ اور نور
بس اک نگاہ دُور ہے خواب ِ سپردگی تُو الکھ اپنے آپ میں انکار ہو کے رہ وہ زمزمے تھے بزم ِ گماں کے ،سو اب کہاں یہ مجلس ِ یقیں ہے ،عزادار ہو کے رہ
اندر کی اونچ نیچ کو اخفا میں رکھ میاں احوال ِ ظاہری میں تو ہموار ہو کے رہ مروت اٹھائے گا کیسے بھال تُو بار ِ ّ محفل ہے دوستوں کی ،سو عیّار ہو کے رہ بے قیمتی کے رنج سے خود کو بچا کے چل بازار ِ دلبری میں خریدار ہو کے رہ فرمانروائے عقل کے حامی ہیں سب یہاں شاہ ِ جنوں کا تُو بھی وفادار ہو کے رہ تُو ہجر کی فضیلتیں خود پر دراز رکھ خود اپنی راہ ِ شوق میں دیوار ہوکے رہ لوگوں پہ اپنا آپ سہولت سے وا نہ کر عرفان ،میری مان لے ،دشوار ہو کے رہ
رنگ اور نور
ूरं ग और नर
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वो ज़म्ज़मे थे बज़्मे-गम ़ु ां के, सो अब कहाूँ ये मजलिसे-यकीं है अज़ादार हो के रह
अंदर की ऊूँच-नीच को अख़्फा में रख लमयाूँ अह्वािे-ज़ाहहरी में तू हमवार हो के रह कैसे भिा तू बारे -मऱु व्वत उठाएगा
महकफि है दोस्तों की सो अय्यार हो के रह बे-क़ीमती के रं ग से ख़़ुद को बचा के रख बाज़ारे -हदिबरी में ख़रीदार हो के रह
फमाू-रवा ए अक्ि के हामी हैं सब यहाूँ शाहे -ज़ुनूं का तू भी वफादार हो के रह
तू हहज्र की फज़ीितें ख़ुद पर दराज़ रख
ख़ुद अपनी राहे -शौक़ में दीवार हो के रह िोगों पे अपना आप सहूित सेवा न ु् कर इरफान मेरी मान िे दश़्ु वार हो के रह
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रं ग और नरू
इरफ़ान सत्तार رنگ اور نور
अख़्फा -छ़ुपा ह़ुआ, अह्वािे-ज़ाहहरी -- हदखाई दे ने वािा, हमवार - बराबर आना सरापा - शख्सीयत, अज़ीयत - तकिीफ, आज़ार - दिः़ु ख
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रं ग और नरू
رنگ اور نور
बारे -मऱु व्वत -हहचककचाहट का बोझ, अय्यार - चािाक
फमाू-रवा - बादशाह, शाहे -ज़ुनूं - ज़ुनन ू का बादशाह
सराब - मग ृ तष्ट्ृ णा, नज़्ज़ारगी - दे खना, ज़ंगार - नीिा
थोथा (जहर), उफ़ुक़ - क्षक्षनतज, तम ़ु तराक़ - शानो शौकत, नम ़ु द ू ार - जाहहर होना ज़म्ज़मे - खल़ु शयां
मजलिसे-यकीं - यकीन की महकफि अज़ादार - पवपरीत ख़मीर - कफतरत,
बन् ़ु यादे -ख़्वाबे-नाज़ - अच्छे ख्वाब की बन ़ु ीयाद, लमस्मार - तोड दे ना फज़ीितें - सम्मान दराज़ - िंबा
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रं ग और नरू
رنگ اور نور
غزل ()4
کوئی مال ،تو کسی اور کی کمی ہوئی ہے سو دل نے بے طلبی اختیار کی ہوئی ہے جہاں سے دل کی طرف زندگی اُترتی تھی نگاہ اب بھی اُسی بام پر جمی ہوئی ہے ہے انتظار اِسے بھی تمہاری خوشبو کا؟ ہوا گلی میں بہت دیر سے ُرکی ہوئی ہے تم آگئے ہو ،تو اب آئینہ بھی دیکھیں گے ابھی ابھی تو نگاہوں میں روشنی ہوئی ہے ہمارا علم تو مرہ ُون ِ لوح ِ دل ہے میاں کتاب ِ عقل تو بس طاق پر دھری ہوئی ہے بناؤ سائے ،حرارت بدن میں جذب کرو کہ دھوپ صحن میں کب سے یونہی پڑی ہوئی ہے نہیں نہیں ،میں بہت خوش رہا ہوں تیرے بغیر یقین کر کہ یہ حالت ابھی ابھی ہوئی ہے وہ گفتگو جو مری صرف اپنے آپ سے تھی تری نگاہ کو پہنچی ،تو شاعری ہوئی ہے
عرفان رتار رنگ اور نور
ूरं ग और नर
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ग़ज़ल (4)
कोई लमिा तो ककसी और की कमी ह़ुई है सो हदि ने बे-तिबी इजख़्तयार की ह़ुई है
जहाूँ से हदि की तरफ जज़न्दगी उतरती थी ननगाह अब भी उसी बाम पर जमी ह़ुई है है इंनतज़ार इसे भी तम् ़ु हारी खश ़ु बू का हवा गिी में बह़ुत दे र से रुकी ह़ुई है तम ़ु आ गए हो तो अब आईना भी दे खेंगे अभी अभी तो ननगाहों में रौशनी ह़ुई है हमारा इल्म तो मरहूने-िौहे -हदि है लमयाूँ
ककताबे-अक्ि तो बस ताक़ पर धरी ह़ुई है बनाओ साए, हरारत बदन में जज़्ब करो कक धप ू सहन में कब से यूँू ही पडी ह़ुई है नहीं नहीं मैं बह़ुत ख़ुश रहा हूूँ तेरे बगैर
यक़ीन कर कक ये हाित अभी अभी ह़ुई है वो गफ़् ़ु तगू जो मेरी लसफू अपने आप से थी तेरी ननगाह को पह़ुंची तो शायरी ह़ुई है बे-तिबी - जजसमें कोई चाह ना हो
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रं ग और नरू
मरहूने- अह्सान मंद
رنگ اور نور
इरफ़ान सत्तार
غزل ()5 ترے جمال سے ہم ُرونما نہیں ہوئے ہیں چمک رہے ہیں ،مگر آئینہ نہیں ہوئے ہیں بر کت دھڑک رہا ہے تو اک اِسم کی ہے یہ َ وگرنہ واقعے اِس دل میں کیا نہیں ہوئے ہیں بتا نہ پائیں ،تو خود تم سمجھ ہی جاؤ کہ ہم بال جواز تو بے ماجرا نہیں ہوئے ہیں ترا کمال ،کہ آنکھوں میں کچھ ،زبان پہ کچھ ہمیں تو معجزے ایسے عطا نہیں ہوئے ہیں یہ مت سمجھ ،کہ کوئی تجھ سے منحرف ہی نہیں ابھی ہم اہل ِ ُجنوں لب ُکشا نہیں ہوئے ہیں بنام ِ ذوق ِ سخن خود نمائی آپ کریں ہم اِس مرض میں ابھی مبتال نہیں ہوئے ہیں ہمی وہ ،جن کا سفر ماورائے وقت و وجود ہمی وہ ،خود سے کبھی جو رہا نہیں ہوئے ہیں خود آگہی بھی کھڑی مانگتی ہے اپنا حساب ُجنوں کے قرض بھی اب تک ادا نہیں ہوئے ہیں کسی نے دل جو دکھایا کبھی ،تو ہم عرفان اُداس ہوگئے ،لیکن خفا نہیں ہوئے ہیں
عرفان رتار رنگ اور نور
ूरं ग और नर
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ग़ज़ल (5)
तेरे जमाि से हम रुनम ़ु ा नहीं ह़ुए हैं चमक रहे हैं मगर आईना नहीं ह़ुए हैं धडक रहा है तो इक इस्म की है ये बरकत
वगरना वाककए इस हदि में क्या नहीं ह़ुए हैं बता न पाएं तो खद ़ु तम ़ु समझ ही जाओ कक हम ब्रबिा जवाज़ तो बे-माजरा नहीं ह़ुए हैं
तेरा कमाि कक आूँखों में क़ुछ, ज़बान पे क़ुछ हमें तो मोजज़े ऐसे अता नहीं ह़ुए हैं
ये मत समझ कक कोई तझ ़ु से मन्हाररफ ही नहीं अभी हम अहिे-जन ़ु ंू िब-क़ुशा नहीं ह़ुए हैं बनामे ज़ौक़े-सख़ ़ु न खद् ़ु नम ़ु ाई आप करें
हम इस मरज़ में अभी मब़्ु तिा नहीं ह़ुए हैं हमी वो जजनका सफर मावरा ए ओ वज ़ु ूद हमी वो ख़ुद से कभी जो ररहा नहीं ह़ुए हैं
ख़ुद-आगही भी खडी मांगती है अपना हहसाब जन ़ु ंू के क़ज़ू भी अब तक अदा नहीं ह़ुए हैं
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रं ग और नरू
رنگ اور نور
इरफ़ान सत्तार
عرفان رتار رنگ اور نور
ूरं ग और नर
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ककसी ने हदि जो हदखाया कभी तो हम इरफान उदास हो गए िेककन ख़फा नहीं ह़ुए हैं
मन्हाररफ -इंकार करना, अहिे-ज़ुनूं - वो िोग िब-क़ुशा - बात करने वािा मोजज़े - अचंभा
इस्म - नाम जवाज़ - सबब
मावरा - बेतिब खद् ़ु नम ़ु ाई - हदखावा, मब़्ु तिा - चगरफ़्तार
इरफ़ान सत्तार 193
रं ग और नरू
رنگ اور نور
غزل ()6
تیری یاد کی خوشبو نے بانہیں پھیال کر رقص کیا کل تو اک احساس نے میرے سامنے آکر رقص کیا اپنی ویرانی کا سارا رنج بھال کر صحرا نے میری دل جوئی کی خاطر خاک اُڑا کر رقص کیا پہلے میں نے خوابوں میں پھیالئی درد کی تاریکی پھر اُس میں اک جھلمل روشن یاد سجا کر رقص کیا دیواروں کے سائے آکر میری جلو میں ناچ اُٹھے میں نے اُس پُر ہول گلی میں جب بھی جاکر رقص کیا
اُس کی آنکھوں میں بھی کل شب ایک تالش مجسم تھی میں نے بھی کیسے بازو لہرا لہرا کر رقص کیا اُس کا عالم دیکھنے واال تھا جس دم اک ہ ُو گونجی پہلے پہل تو اُس نے کچھ شرما شرما کر رقص کیا رات گئے جب ستاٹا سرگرم ہ ُوا تنہائی میں دل کی ویرانی نے دل سے باہر آکر رقص کیا
رنگ اور نور
ूरं ग और नर
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ग़ज़ल (6)
तेरी याद की ख़श ़ु बू ने बाहें फैिा कर रक्स ककया
कि तो इक एहसास ने मेरे सामने आ कर रक्स ककया अपनी वीरानी का सारा रं ज भ़ुिा कर सहरा ने
मेरी हदिजोई की ख़ानतर ख़ाक उडा कर रक्स ककया पहिे मैं ने ख़्वाबों में फैिाई ददू की तारीकी
कफर इस में इक खझिलमि रौशन याद सजा कर रक्स ककया दीवारों के साये आ कर मेरी जजिौ में नाच उठे
मैं ने उस प़ुरहौि गिी में जब भी जा कर रक्स ककया उस की आूँखों में भी कि शब ु् एक तिाश मज ़ु स्सम थी मैं ने भी कैसे बाज़ू िहरा िहरा कर रक्स ककया
उस का आिम दे खने वािा था जजस दम इक हू गूँज ू ी पहिे पहि तो उस ने क़ुछ शमाू शमाू कर रक्स ककया हदिजोई - हदि बहिाना
प़ुरहौि - खौफ़्नाक
म़ुजस्सम - पूरा 195
रं ग और नरू
इरफ़ान सत्तार رنگ اور نور
دن بھر ضبط کا دامن تھامے رکھا خوش اسلوبی سے رات کو تنہا ہوتے ہی کیا وجد میں آکر رقص کیا مجھ کو دیکھ کے ناچ اُٹھی اک موج بھنور کے حلقے میں نرم ہوا نے ساحل پر اک نقش بنا کر رقص کیا بے خوابی کے سائے میں جب دو آنکھیں بے عکس ہوئیں خاموشی نے وحشت کی تصویر اٹھا کر رقص کیا کل عرفان کا ذکر ہ ُوا جب محفل میں ،تو دیکھو گے یاروں نے ان مصرعوں کو دہرا دہرا کر رقص کیا
عرفان رتار رنگ اور نور
ूरं ग और नर
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रात गये जब सन्नाटा सरगमू ह़ुआ तन्हाई में हदि की वीरानी ने हदि से बाहर आ कर रक्स ककया हदन भर ज़ब्त का दामन थामे रखा खश ़ु उस्िीबी से
रात को तन्हा होते ही क्या वज्द में आ कर रक्स ककया म़ुझ को दे ख के नाच उठी इक मौज भूँवर के हल्क़े में
नमू हवा ने साहहि पर इक नक्श बना कर रक्स ककया बे-ख़्वाबी के साये में जब दो आूँखें बे-अक्स ह़ुईं ख़ामोशी ने वहशत की तस्वीर उठा कर रक्स ककया कि इरफान का जज़क्र ह़ुआ जब महकफि में , तो दे खोगे यारों ने इन लमसरों को दोहरा दोहरा कर रक्स ककया
ख़ुशउस्िीबी - अच्छी तरह, वज्द -हाित
बेे-अक्स - जजसकी परछाईं ना हो
इरफ़ान सत्तार 197
रं ग और नरू
رنگ اور نور
مجھے اک شکل دے دو"
مجھے گر چاھتی ہو دل سے جا ناں مجھے سا نسوں میں اپنی گرم رکھو – مججھے ہو نٹوں پہ اپنے راگنی دو ' مجھے آنکھو ں میں اپنی روشنی دو ' مجھے سجدوں میں اپنے بند گی دو ' مجھے اپنی فضا میں تا زگی دو ' مجھے اپنی وفا میں زندگی دو ' مجھے دن رات رات کی سب بیڑ یوں سے پا
کر دو '
مجھے تو ڑو مڑوڑو دل کی اپنی نرم مٹی سے ' نئ ا ا
شکل دے دو ۔۔۔۔۔۔۔۔
ایسی شکل جو میری نہ تیری '
نہ جس میں غم کے آنسو ' خو شی کی بدلی بارش ' ا
ایسی روشنی اور راگنی اور زند گی بس ۔۔۔۔
کہ جیسے وقت سا را تھم گیا ہو ' کوي نغمہ کسی پر بت کے پیچھے ' کوي ہلکی سریلی با نسری کی تا ن جیسے ' فضا میں پھوار سی کم کم پڑی ہو '
جاوید اانش رنگ اور نور
ूरं ग और नर
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मझ ु े एक िक्ल दे दो
मझ ़ु े गर चाहती हो हदि से जाना, मझ ़ु े साूँसों में अपने गमू रखो, मझ ़ु े होठों पे अपने रागनी दो, मझ ़ु े साूँसों में अपनी रौशनी दो, मझ ़ु े सजदों में अपनी जज़ंदगी दो, मझ ़ु े हदन रात की बेररयों से पाक कर दो, मझ ़ु े अपनी फज़ा में ताज़गी दो, मझ ़ु े वफा में अपनी बंदगी दो, मझ ़ु े तोडो मरोडो , हदि के अपनी लमट्टी से दोबारा शक्ि दे दो, एक ऐसी शक्ि जो मेरी ना तेरी, ना जजस में गम के आूँस,ूं खश ़ु ी की बदिी बाररश, एक ऐसी रौशनी और राचगनी और जज़न्दगी, के जैसे वक़्त सारा थम गया हो, कोई नगमा ककसी पवूत के पीछे , कोई हल्की सऱु ीिी बांसऱु ी की तान जैसे
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रं ग और नरू
जािेद दाननि رنگ اور نور
مجھے تم دیکھتی ہو – تمہیں میں دیکھتا ہوں ' سفر سب ز ند گی کا ' ازل سے اور ابد تک ' ہوا کچھ بھی نہی ہے ' ابھی آ نکھیں کھلی ہیں ۔۔۔۔۔۔
جاوید اانش رنگ اور نور
ूरं ग और नर
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फजां में फ़ुवार कम कम पडी हो, तम् ़ु हें मैं दे खता हूूँ, सफर सब जज़ंदगी का, अज़ि से और आबाद तक, ह़ुआ क़ुछ भी नहीं अभी आूँखें ख़ुिी हैं।
अज़ि - हमेशा
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रं ग और नरू
जािेद दाननि رنگ اور نور
میں کہ تیر ا پہال لمس نہی تھا !
میں کہ تیر ا پہال لمس نہی ت نہ تو میری پہلی خشبو میں نہ تیرا مستقبل تھا ، نہ تو میری سنگ ہدایت ، پھر بھی ہم اک جان دو قالب اک دوجے میں جاری ساری – عجب سفر کے سا تھی ہیں، ماضی حال اور مستقبل سے بے بہرہ ہیں ، فردا اور امروز کا جھگڑا بے معنی ہے ، منزل موسم بیتی باتیں – گناہ ثواب اور جنت دوزخ سب ماضی ہے ، وفا جفا سب بھول چکے ہیں ، چاہت اک فطری جذبہ ہے ، بس ہم اس جذ بے کی خاطر ، منزل سے کچھ آ گے جا ئیں ، اس سے پہلے وقت کہیں کچھ رک سا جاۓ ، آو ہم اک خوا ب بچایں ، تم چاہو تو مجھ سے پھر اک گیت لکھا و ، جب تک قلم میں اللی جاگے نا م تیرا میں لکھتا جاوں ، کبھی تیرا دل رکھ لینے کو -
جاوید اانش رنگ اور نور
ूरं ग और नर
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मैं फक तेरा पिला लह्मम्स निीं र्ा...
मैं कक तेरा पहिा िह्म्स नहीं था, ना तू मेरी पहिी खश ़ु ब,ू मैं ना तेरा मस् ़ु तकब्रबि था, ना तू मेरी संग -इ- हहदायत, कफर भी हम एक जान दो कालिब एक दज ू े में
जारी सारी अजाब सफर के साथी हैं,
माजी हाि और मस् ़ु तकब्रबि से - बे बहरा हैं, फदाू और इम्रज ू का झगडा बेमानी है , मंजज़ि मौसम बीती बातें , गन ़ु ाह सवाब और ज़न्नत दोज़ख सब माज़ी हैं वफा ज़फा सब भि ू चक ़ु े हैं चाहत - एक कफतरी जज़्बा है बस हम इस जज़्बे की ख़ानतर मंजज़ि से क़ुछ आगे जाएूँ, इससे पहिे
-वक़्त क़ुछ रुक सा जाये,
आओ हम एक ख्वाब बचाएं, तम ़ु चाहो तो, मझ ़ु से कफर एक गीत लिखाओ, जब तक किम में िािी जागे
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रं ग और नरू
رنگ اور نور
जािेद दाननि
کبھی ادب میں جی لینے کو - میں پھر لکھوں۔۔۔۔۔۔۔۔۔ تو میری سانسوں کی رم جھم ، میں تیرے ہونٹوں کی گرمی ، تو میری آ نکھوں میں روشن ، میں تیری دھڑ کن میں شامل ، تجھ سے میری تحریریں زندہ ۔ ۔ ۔
جاوید اانش رنگ اور نور
ूरं ग और नर
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नाम तेरा मैं लिखता जाऊं, कभी तेरा हदि रख िेने को कभी आदाब में जी िेने को मैं कफर लिखूं, तू मेरी साूँसों की ररमखझम में तेरे होठों की गमी तो मेरी आूँखों में
रौशन
मैं तेरी धडकन में शालमि तझ ़ु से मेरी तहरीरें जज़ंदा.....
िह्म्स -स्पशू म़ुस्तकब्रबि - भपवष्ट्य संग -इ- हहदायत,हहदायत का पत्थर कालिब - हदि सवाब - नेकी का लसिा
तहरीरें - लिखा ह़ुआ
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रं ग और नरू
رنگ اور نور
जािेद दाननि
ارشن
میں خفتہ گہر سمند ر کا تو شور مچا تی ند ی میں جا تی رات کا کو کب تو صبیح صبح سا ون کی میں چپ فطرت بنجا رہ تو دھیمے سروں کی سرگم میں برف دھو پ کا ما را تو اگن اگن برفیلی میں چند ن من جنگل کا تو پروا سن سن کر تی میں نفس نفس انگا رہ تو پور پور کی ٹھنڈ مین منجھا ہوا نو ٹنکی تو کوری اور کتا بی میں کندن کندن کندنی تو مدھر مدھر سو گندھنی میں سرل سجیال شاہ بلوط تو کومل شیتل چھا ونی اۓ کنول کتابی کامنی اۓ کھینچے نین ڈوروں والی اۓ مگن مست مستا نی آ من درپن پر دستک دے آ شاعر کو ا درشن دے !!!
جاوید اانش رنگ اور نور
ूरं ग और नर
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दिदन
मैं ख़ुफ्ता गोहर समद ़ुं र का, तू शोर मचाती नदी..... मैं जाती रात का कौकब, तू सबीह सब ़ु ह सावन की, मैं च़ुप कफतरत बंजारा, तू धीमे सऱु ों की सरगम, मैं बरफ धूप का मारा, तू अगन बफीिी, मैं चन्दन मन जंगि का, तू परू वा सन सन करती, मैं नफस नफस अंगारा, तू पोर पोर की ठं डक, मैं मंजा ह़ुआ नौटं की, तू कोरी और ककताबी.... मैं कं़ु दन कं़ु दन क़ुन्दनी, तू मध़ुर मध़ुर सौगंधनी, मैं सरि सजीिा शाह बित ू , तू कोमि शीति छावनी, ए कमाि ककताबी कमनी, ए खींचे नैन दरू ों वािी ए मगन मस्त मस्तानी, आ मन दपूण पर दस्तक दे आ शायर को एक दशून दे !!
ख़ुफ्ता - सोया ह़ुआ गोहर - मोती होने तक कौकब -लसतारे सबीह - तस्वीर नफस - सांस शाह बिूत - एक पेड का नाम
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रं ग और नरू
رنگ اور نور
जािेद दाननि
فلک پر چاند آدھا ہی سہی
فلک پر چاند آدھا ہی سہی دامن میں رات تو پوری ہے اتنے ہی قریب ہیں ہم درمیاں جتنی دوری ہے کیوں کر حاصل ہو اسے خوشی دنیا کی گر یہ محبت ہے اسے درد ملنا ضروری ہے مجھے گلہ ہے ،نہیں ہے ،پر ہے بہت تجھ سے چھسانا تیری جتانا میری مجبوری ہے خود نظر آنے کو جانے کتنی کتنی بار میں نے اپنی آنکھوں پر تیری نظریں بکھیری ہیں
پونم چھدرا ' ھو' رنگ اور نور
ूरं ग और नर
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फ़लक पर चााँद आधा िी
फिक पर चाूँद आधा ही सही ... दामन में रात तो परू ी है उतने ही करीब हैं हम .... दलमूयाूँ जजतनी दरू ी है क्यों कर हालसि हो इसे ख़श ़ु ी दऩु नया की गर ये मह ़ु ब्बत है इसे ददू लमिना ज़रूरी है मझ ़ु े चगिा है , नहीं है , पर है बह़ुत तझ ़ु से छ़ुपाना तेरी जताना मेरी मजबरू ी है ख़ुद नज़र आने को जाने ककतनी ककतनी बार मैंने अपनी आूँखों पर तेरी नज़रें ब्रबखेरीं हैं
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रं ग और नरू
رنگ اور نور
पन ू म चंद्रा 'मन'ु
گر ی کی اوپہر یں گرمی کی دوپہر میں جو سایا دے وہ درخت ہو تم بچوں کی کتاب میں جو اپنا بچسن ڈھونڈے وہ "استاد" ہو تم دنیا سے لڑنے کا ....رگوں میں خون بن کر بہنے کا جذبہ ہو تم اپنے کھلونوں کو ہر وقت تراشنے کے لئے جو ہاتھوں میں ہر وقت گیلی مٹی لئے رہتا ہے وہ کمہار ہو تم اپنے ادھورے خوابوں کو پورا جینے کے لئے خود کی نیند کو باندھ کر جو پھینک دے وہ حوصلہ ہو تم آنے والے کل کی نیو رکھنے والے کارندے ہو تم اس دنیا کو خود سے بھی زیادہ اونچائی سے دکھانے کے لئے کاندھوں پر بچوں کو لئے پھرنے والے معمار ہو تم اگر گھر جنت ہے تو اس کا آسمان ہو تم کسی خاندان کی بنیاد ہو تم باپ ہو تم
پونم چھدرا ' ھو' رنگ اور نور
ूरं ग और नर
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गमी की दोपिर में "गमी की दोपहर में जि कर जो साया दे वो दरख़्त हो
बच्चो की ककताबों में जो अपना बचपन ढूंढे वो “उस्ताद” हो त़ुम
दऩु नया से िडने का...रगों में खन ू बन कर बहने का ज़ज्बा त़ुम हो
अपने खखिौनों को हर वक़्त तराशने के लिए... हाथों में गीिी लमटटी लिए रहता है वो क़ुम्हार हो त़ुम
अपने अधरू े खवाबों को पूरा जीने के लिए ख़द ़ु की नींद को बाूँध कर जो फैंक दे वो हौसिा त़ुम हो
आने वािे कि की नींव रखने वािे काररंदे हो तम ़ु
खद ़ु से भी ज्यादा ऊूँचाई से दे ख पायें इस दऩु नया को.... इसलिए बच्चो को काूँधों पर लिए कफरते हो गर घर जन्नत है
तो उसका आस्मां तम ़ु हो पपता हो तम ़ु ....
ककसी भी खानदान की ब़ुननयाद लसफू त़ुम हो
.......लसफू त़ुम"
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रं ग और नरू
رنگ اور نور
पन ू म चंद्रा 'मन'ु
٤تمہاری " بے آواز " باتیں
تمہاری " بے آواز " باتیں کتنا شور کرتی ہیں میرے خیالوں میں آ تو جاتے ہو پابندی سے وقت پر مگر چلے جاتے ہو کبھی ٹھہر جاؤ تو کوئی بات بنے آفتاب کے جیسے جلتے ہو ...ڈھلتے ہو کبھی ہواؤں پر ابر بن کر پگھلتے ہو تنہائی پر اوس کی طرح جم کر بکھر جاؤ تو کوئی بات بنے کہیں دور بیٹھ کر کاغذوں پر پھیلی روشنائی سے سنتے ہو میری کہانی کبھی اپنی داستاں بھی سناؤ تو کوئی بات بنے غور سے سنتے ہیں دوست میرے دل کا درد اس درد پر کبھی تم بھی داد دو تو کوئی بات بنے
پونم چھدرا ' ھو' رنگ اور نور
ूरं ग और नर
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तम् ु िारी "बेआिाज़" बातें
"तम् ़ु हारी "बेआवाज़" बातें …. ककतना शोर करती हैं
मेरे ख्यािों में सोचते ह़ुए भी … बोिते हो तम ़ु आते तो बह़ुत हो वक़्त पर … पाबंदी पहिे ब्रबना कभी आकर न जाओ … …तो कोई बात बने न ठहरते हो … न चिते हो आफताब के जैसे …
जिते ढिते हो कभी हवाओं पर …
अि बन कर पपघिते हो तन्हाई पर
ओस की मालिंद जमकर ब्रबखर जाओ … तो कोई बात बने
कागजों पर ब्रबखरी …
रौशनाई से स़ुनते हो …
मेरी कही कभी बैठकर …
अपनी जज़न्दगी भी स़ुनाओ तो कोई बात बने स़ुनते हैं
दोस्त गौर से मेरे हदि की कही “ददू ” पर त़ुम्हारी भी "दाद" हो …तो कोई बात बने
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रं ग और नरू
पन ू म चंद्रा 'मन'ु رنگ اور نور
پہر کو " پگھلنا"
پہر کو "پگھلنا " نہیں سکھایا تم نے صدیوں سے ایک کروٹ ہی بیٹھا ہے بس برف ہی رنگ بدلتی ہے اس کا سردیوں میں دھوپ پڑنے پر ...انتظار میں سکڑی آنکھوں کو اور چھوٹا کر جاتی ہے جمے ہوئی اشک اور دھوپ سے مال رنگ بکھر جاتا ہے سفید زمین پر جیسے کوئی پینٹر کچھ نہ سمجھ میں آنے پر رنگوں کے ٹرے الٹ دیتا ہے خالی کینوس پر اور کاغذ پر پڑی بوندوں کو ان کے آخری پڑاو تک چلتے دیکھتا رہتا ہے اس پنے کو پتھر بنا کر جڑوا لیتا ہے اپنے کاریگر ہاتھوں سے بیتی ہوئی زندگی اور آنیوالے کل کے بیچ کی ایک کڑی کی طرح سنبھال لیتا ہے دیوار پر دل کے ایک کونے میں ایسی ڈھیر ساری تصویریں ٹانگ رکھی ہیں میں نے
پونم چھدرا ' ھو' رنگ اور نور
ूरं ग और नर
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पिर को “वपघलना” निीं लसखाया
सहदयों से एक करवट ही बैठा है ... बस बफू ही …रं ग बदिती है इसका ……… सहदू यों में .... धप ू पडने पर ... इंतज़ार में लसक़ुडी आूँखों को …… और छोटा कर जाती है ... जमे ह़ुए अश्क और धूप से लमिा रं ग ब्रबखर जाता ... सफेद ज़मीन पर वो जैसे कोई पेंटर क़ुछ... न समझ आने पर ... रं गों की रे उडेि दे ता है ...खािी कैनवास पर ... और कागज़ पर पडी बद ूं ों को उनके ………. आखखरी पडाव तक चिते दे खता रहता है ............ उस पन्ने को पत्थर बना कर .. जडवा िेता है अपने कारीगर हाथों से ..... पपछिी बीती जज़न्दगी और आने वािे कि के बींच की… एक कडी की तरह संभाि िेता है हदवार पर ... हदि के “उस” कोने में
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रं ग और नरू
पन ू म चंद्रा 'मन'ु رنگ اور نور
نام بھی دیے ہیں اور وقت بھی لکھ رکھا ہے روز کی زندگی ان تصویروں سے ہو کر ہی آگے بڑھتی ہے صبح کا اخبار بھی وہی ہے اور چائے کا پیالہ بھی کبھی آؤ تو دکھا دوں تمہیں ویسے سنبھل کر آنا تمہیں دیکھ کر دیواروں پر جمے ہوۓ یہ پہر پگھلنے نہ لگیں بہاؤ سے پکے راستے بھی مٹی کے ہو جاتے
ہیں
پونم چھدرا ' ھو' رنگ اور نور
ूरं ग और नर
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ऐसी ढे र सारी तस्वीरें टांग रखीं हैं मैंने ... नाम भी हदए हैं और ……… वक़्त भी लिखा है .......... रोज़ की जज़न्दगी उस ताज़ा तस्वीर से हो कर ही आगे बढती है .......... सब ़ु ह का अखबार भी वही है .......... और चाय का प्यािा भी .......... कभी आओ तो हदखा दूँ ू तम् ़ु हे .... वैसे संभि कर आना .......... तम् ़ु हें दे ख कर ये दीवारों पर जडे ह़ुए “पहर” पपघिने न िगें ................ बहाव से पक्के रास्ते भी लमटटी के हो जाते हैं"……..
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रं ग और नरू
पन ू म चंद्रा 'मन'ु رنگ اور نور
تم کو چاہا ہے ال رے رراہا تم کو چاہا ہے دل سے سراہا تم سے ہوں میں ,مری زندگی ہو لوگ جاتے ہیں مندر یا مسجد منتیں مانگتے ہیں خدا سے کنڈلی پنڈتوں کو دکھا کر بچنا ہیں چاہتے ہر بال سے میں نہ پڑھتا دھرم کی کی کتابیں ا
تمہیں بس مری بندگی ہو
تم جو ہو ساتھ ہمدم ہمارے جوجھ سکتا ہوں میں تو قضا سے پیار میرا بڑا پا
سچا
پھر ڈروں کیوں کسی بددعا سے تم کو چاہا ہے دل سے سراہا تم سے ہوں میں مری زندگی ہو عشق وہ شے ہے محبوب میرے جس کے آگے زمانہ جھکا ہے راہ کانٹوں سے پوری تھی لیکن کب محبت مسافر رکا ہے
رنگ اور نور
ूरं ग और नर
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तुम को चािा िै हदल से सरािा
तम ़ु को चाहा है हदि से सराहा। तम ़ु से हूं मैं, मेरी जज़न्दगी हो॥ िोग जाते हैं मंहदर या मजस्जद, मन्नतें
मांगते हैं खद ़ु ा से।
कं़ु डिी पंडडतों को हदखाकर, बचना हैं चाहते हर बिा से॥ मैं न पढता धरम की कक़ताबें। इक तम् ़ु ही बस मेरी बंदगी हो॥ तम ़ु जो हो साथ हमदम हमारे , जझ ू सकता हूं मैं तो क़ज़ा से। प्यार मेरा बडा पाक, सच्चा, कफर डरूं क्यों ककसी बददआ ़ु से॥ तम ़ु को चाहा है हदि से सराहा। तम ़ु से हूं मैं, मेरी जज़न्दगी हो॥ इश्क़ वो शय है मह्बब ू मेरे, जजसके आगे ज़माना झक ़ु ा है ।
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रं ग और नरू
رنگ اور نور
दे िेन्द्र लमश्रा
تم کو چاہا ہے دل سے سراہا تم سے ہوں میں مری زندگی ہو لب تمہارے ہلیں جو ذرا سے بھاو میں نے پڑھے سب تمہارے نین جھک کر اٹھے جب بھی جانم جیوں فلک سے اتر آۓ تارے تم کو چاہا ہے دل سے سراہا تم سے ہوں میں مری زندگی ہو
ایوندر شرا رنگ اور نور
ूरं ग और नर
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राह कांटों से परू ी थी िेककन , कब मोहब्बते मस ़ु ाकफर रुका है ॥ तम ़ु को चाहा है हदि से सराहा । तम ़ु से हूं मैं, मेरी जज़न्दगी हो।। िब तम् ़ु हारे हहिे जो ज़रा से, भाव मैने पढे सब तम् ़ु हारे । नैन झक ़ु कर उठे जब भी जानम ज्यों फिक से उतर आये तारे ॥ तम ़ु को चाहा है हदि से सराहा। तम ़ु से हूं मैं मेरी जज़न्दगी हो॥
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रं ग और नरू
رنگ اور نور
दे िेन्द्र लमश्रा
مہکتا میرا گلستاں سدا رہتا
مہکتا میرا گلستاں سدا رہتا دہکتا دریا جگت سے وداع لیتا ترا دویدھا میرا من طرز پاتا تیاگ کی ہر ترنم میں لرز جاتا جگت کی ہر لہر کو چسکے سے تکتا چاہ کر بھی چسک وہ اس سے نہ پاتا گیتی کی ہر پریتی میں پرانوں کو لکھتا پرتیتی کی ہر پریتی میں پرانوں کو لکھتا پرتیتی کی ریتی میں وہ نا مچلتا پرلے کو کو نت لے دے وہ چال چلتا لے ولے کر برہم میں نشواس بھرتا آش کے ہر پاش کو پرشوانس دیتا شوانس کے ہر نیاس کو وشواس دیتا مرگ بنا مروبھومی میں وہ چال چلتا ترو بنا تنمے ہوا وہ کبھی رہتا کیٹ کی ہر کریتی میں رنگ کھال دیتا پریتی کی ہر پرنیتی میں سرشٹی بڑھاتا ماتر تکتا مکتی بھرتا بھکتی کرتا من میرا مایوس نا ہے کبھی ہوتا مدھو' کو مہکا
پھرا کر مود کرتا
گوپال بگھیل مدھو
اور نور سمرپت مالک کو نت یہرنگ کرتا جگت
ूरं ग और नर
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मिकता मेरा गलु लस्तााँ सदा रिता महकता मेरा गल़ु िस्ताूँ सदा रहता,
दहकता दररया जगत से पवदा िेता; तरा दप़ु वधा से मेरा मन तजू पाता,
त्याग की हर तरन्नम ़ु में िरज़ जाता । जगत की हर िहर को च़ुपके से तकता, चाह कर भी चचपक वह उससे न पाता;
गीनत की हर प्रीनत में प्राणों को िखता, प्रतीनत की रीनत में वह ना मचिता ।
प्रिय को ननत िय हदये वह चिा चिता, िय पविय कर बह् ृ म में ननश्वास भरता; आश के हर पाश को प्रश्वास दे ता,
श्वाूँस के हर न्यास को पवश्वास दे ता । मग ृ बना मरु भलू म में वह चिा चिता, तरु बना तन्मय ह़ुआ वह कभी रहता; कीट की हर कक्रयनत में रं ग खखिा दे ता, प्रीनत की हर प्रणनत में सजृ ष्ट्ट बढ़ाता ।
मात्र तकता मज़ु क्त भरता भज़ु क्त करता, मन मेरा मायस ू ना है कभी होता;
समपपूत मालिक को ननत यह जगत करता, 'मध'़ु को महका फ़ुरा कर मोद करता ।
223
रं ग और नरू
رنگ اور نور
गोपाल बघेल 'मधु
پریتی کی جو گیتی تھی تم نے سنائی پریتی کی جو گیتی تھی تم نے سنائی بھاو کی سریتا ہردے میں بہائی ہلس کر میرے ہردے وہ باڑھ الئی جگت کا جھرنا دکھا وہ رنگ الئی سوشیتل سوچچھند سر وہ رہی گائی سروت کا استتو وہ دیتی دکھائی سہج ساتو
وہ جگ میں پھرائی
پرکرتی کی ہر کرتی کو وہ راس آئی سرستا کی سرحدوں وہ رہی سوہی وکلتا کے ہر قدم پر رہی موہی ووشتا میں سوپن بن آیا کری وہ کٹلتا میں شیلتا الیا کری وہ کبھی بن جیو کی وہ سہچری سی سشمنا اب کے عجب ہلچل کری تھی سوکچھم بن کر کبھی پھر وہ چل پڑی تھی گربھ جاکر جیو نوتن بن پڑی تھی پریتی کے سندر چھند من من میں سہائی اکھل جگ کو دے کبھی ار میں وداعی مدھو' کو دیتے کبھی دھونی نج سنائی' پریتی کے نو سنچرن کی لے پرائی
رنگ اور نور
ूरं ग और नर
224
प्रीनत की जो गीनत र्ी तम ु ने सन ु ाई, प्रीनत की जो गीनत थी तम ़ु ने सन ़ु ाई, भाव की सररता हृदय मेरे बहाई;
ह़ुिस कर मेरे हृदय वह बाढ़ िाई, जगत का झरना हदखा वह रं ग िाई । सश ़ु ीति स्वच्छन्द सऱु वह रही गाई, स्रोत का अजस्तत्व वह दे ती हदखाई;
सहज साजत्वक भाव वह जग में फ़ुराई,
प्रकृनत की हर कृनत को वह रास आई । सरसता की सरहदों वह रही सोही,
पवकिता के हर क़दम पर रही मोही;
पववशता में स्वप्न बन आया करी वह, क़ुहटिता में शीिता िाया करी वह ।
कभी बन कर जीव की वह सहचरी सी, सष्ट़्ु मना सबके अजब हिचि करी थी;
सक्ष् ू म बन कर कभी कफर वह चि पडी थी, गभू जाकर जीव नत ू न बन पडी थी ।
प्रीनत के सऱु छन्द मन मन में सह ़ु ाई,
अखखि जग को दे कभी उर में पवदाई; 'मध़ु' को दे ते कभी ध्वनन ननज सन ़ु ाई, प्रीनत के नव संचरण की िय पऱु ाई ।
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रं ग और नरू
رنگ اور نور
गोपाल बघेल 'मधु
ہدایتوں کی گٹھری باندھی گٹھری ڈھیر ساری ہدایتوں کی تونے کرنا حفاظت جان سے بڑھکر پوٹلی نہیں عزت ہے ہماری للی !!سات پھیرے نہیں ،سات جنموں کا سمبندھ ہے
ہوئی بھری من بوجھل قدموں سے وداع بڑے جتن سے ،خوب کوشش سے دل پہ رکھی سانجھ سویرے کی تاکا جھانکی ہر موسم میں دھوپ دکھائی لسیٹی ،سہیجی کومل پرتوں میں تھک گئی کرتے ....کرتے حفاظت کھا گئی اس کو دنیا داری کی دیمک کھوکھلے ہوۓ سب وچن گلیاتے گندھیاتے سمبندھ پھینک آئی باہر گھر کی صفائی میں پا گئی اپنے کو للی
پونم کسلیول رنگ اور نور
ूरं ग और नर
226
हिदायतों की गठरी
बांधी गठरी ढे र सारी हहदायतों की तन ू े , करना हहफाज़त जान से बढ़ कर , पोटिी नहीं इज्ज़त है हमारी ,िल्िी, सात फेरे नहीं सात जन्मों का संबध ं है ॥ ह़ुई भारी मन बोखझि कदमों से पवदा , बडे जतन से ,खूब यत्न से हदि पे रक्खी , सांझ – सवेरे की तांका- झांकी , हर मौसम मे धूप हदखाई , िपेटी – सहे जी कोमि परतों मे , थक गयी करते – करते हहफाजत , खा गयी इसको दऩु नयादारी की दीमक, खोखिे ह़ुये सब वचन , गलियाते- गंचधयाते संबध ं , फेंक आई बाहर घर की सफाई मे , पा गयी अपने को िल्िी ....
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रं ग और नरू
رنگ اور نور
पन ू म कासलीिाल
پتا کو اب سمجھ سکتی ہوں کیسے وداع کیا ہوگا اپنے دل کے ٹکڑے کو کیسے جدا کیا ہوگا جیون جینے کی کال سدا مسکرانے کی ادا تم سے ہی تو پائی ہے آپ کے آشیش نے ہر راہ سرل بنائی ہے چھپ گیے ہو ان تاروں کے بیچ جو کبھی تم نے دکھالے تھے جانتی ہوں تم ہو ...یہیں کہیں میرے ہمیشہ آس پاس قسمت ہے میری کہ آپ بنے میرے پتا .....میرے بنیادی سنسکار اور
مانیتا
پونم کسلیول رنگ اور نور
ूरं ग और नर
228
वपता को
अब समझ सकती हूूँ , कैसे पवदा ककया होगा , अपने हदि के ट़ुकडे को, कैसे ज़ुदा ककया होगा | जीवन जीने की किा , सदा मस् ़ु क़ुराने की अदा , तम ़ु से ही तो पाई है | आपके आशीष ने , हर राह सरि बनायीं है | छ़ुप गए हो उन तारों के बीच , जो कभी तम ़ु ने मझ ़ु े हदखिाये थे | जानती हूूँ तम ़ु हो यहीं - कहीं , मेरे हमेशा आस - पास | | ककस्मत है मेरी की आप बने मेरे पपता, मेरी बऩु नयाद , संस्कार और मान्यता .....
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रं ग और नरू
رنگ اور نور
पन ू म कासलीिाल
وقت جب مجھ سے ملنے آو پریہ وقت مٹھی میں دبا لینا کندھے پر تمہارے سر رکھ کر دیکھونگی چاند کا دھیرے دھیرے آنا میں کس کر تھام لونگی تمہاری مٹھی لے کر ہاتھوں میں ہاتھ تمہارا دونوں مل کر روک لینگے پوروں سے پھسلتا وقت ہمارا سینے پر تمہارے سر رکھ کر دیکھونگی چاند کا دھیرے دھیرے جانا جب مجھ سے ملنے آو پریہ وقت مٹھی میں دبا لینا جب آنکھوں میں آنکھیں جھانکیں گی تب وقت وہیں تھم جایگا دیکھ کے سانسوں کا ملن یہ چاند بھی جل جاۓ گا عشق وقت کا محتاج نہیں اس لمحے میں میں نے جانا جب مجھ سے ملنے آو پریہ وقت مٹھی میں دبا لینا ........
پونم کسلیول رنگ اور نور
ूरं ग और नर
230
िक़्त
जब म़ुझसे लमिने आओ पप्रय , वक़्त म़ुट्ठी में दबा िाना |
कंधे पर त़ुम्हारे लसर रखकर ,
दे खग ूूँ ी की चाूँद का धीरे - धीरे आना |
मैं कस कर थाम िूँ ूगी त़ुम्हारी म़ुठ्ठी , िेकर हाथों में
हाथ तम् ़ु हारा |
दोनों लमिकर रोक िेंगे ,
पोरों से कफसिता वक़्त हमारा | सीने पर त़ुम्हारे लसर रखकर ,
दे खग ूूँ ी चाूँद का धीरे - धीरे जाना | जब म़ुझसे लमिने आओ पप्रय , वक़्त मठ् ़ु ठी में दबा िाना |
जब आूँखों में ऑ ंखें झाूँकेंगी,
तब वक़्त वहीीँ थम जाएगा , दे ख के साूँसों का लमिन ,
यह चाूँद भी जि जाएगा ,
इश्क वक़्त का मोहताज़ नहीं , इस िम्हें में मैनें जाना ,
जब म़ुझसे लमिने आओ पप्रय , वक़्त म़ुठ्ठी में दबा िाना |
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रं ग और नरू
رنگ اور نور
पन ू म कासलीिाल
آپ کی آنکھیں آپ کی آنکھوں میں بیحد پیار ہے زندگی ہے ! زندگی کا سار ہے جھیل سی نیلی نشیلی نرگسی آپ کی آنکھوں میں نت تہوار ہے بے زباں ہوں لگے جب زباں عشق آنکھوں سے گرجتا یار ہے کیا دوا دارو دیوانے کی صنم آنکھیں ہونا چار ہی اپچار ہے کیوں کروں کوشش رجھانے کی تمہیں دل سے جب دل کا جڑا ہر تار ہے شیشہ دل میں سجی تصویر_یار ہیر ،رانجھے کو ہوا دیدار ہے آ ! سما سانسوں میں تو میں جی آٹھوں روح مجھ مجروح کی تو یار ہے ناخدا سے خاص ہے خواہش مری لے چلے جس پار میرا یار ہے
رھدیپ تیاگی رنگ اور نور
ूरं ग और नर
232
आपकी आाँखें आपकी आूँखों में बेहद प्यार है । जजंदगी है जजंदगी का सार है ।। झीि सी नीिी नशीिी नरचगसी आपकी आूँखों में ननत त्यौहार है ।| बेजब ़ु ां होने िगे जब जब जब ़ु ां
इश्क आूँखों से गरजता यार है ॥ क्या दवा दारू दीवाने की सनम आूँखे होना चार ही उपचार है ॥ क्यों करूूँ कोलशश ररझाने की तम् ़ु हें
हदि से जब हदि का ज़ुडा हर तार है ॥ शीशा ए हदि में सजी तस्वीर ए यार हीर रांझे को ह़ुआ दीदार है ॥ आ समा साूँसों में ,तो मैं जी उठूूँ
रूह म़ुझ मजरूह की तू यार है ॥ नाख़द ़ु ा से खास है ख्वाहहश मेरी िे चिे जजस पार मेरा यार है ॥
233
रं ग और नरू
संदीप त्यागी رنگ اور نور
غزل
ہاں ! وہی آج پھر اکیالپن چھا رہا زندگی پہ بن کے کفن کھویا کھویا سا خود میں رہتا ہوں کھوجتا ہوں میں خود میں اپناپن سانس چلتی ہے ،دل دھڑکتا ہے ہو گیا الپتہ مگر جیون اس کو شاید ہی یاد آتا ہو وہ مالقات وہ دلوں کا ملن عمر بھر ساتھ ساتھ چلنے کے قسمیں ،وعدے عجیب وہ پل چھن گر نگل کر مجھے یہ تنہائی دے سکے اس کو کچھ سکون و امن تو مجھے دیپ سا ہی جلنے دو جلتے 'سندیپ' سے جہاں روشن
رھدیپ تیاگی رنگ اور نور
ूरं ग और नर
234
ग़ज़ल
हाूँ वही आज कफर अकेिापन
छा रहा जजंदगी पे बनके कफन ।। खोया खोया सा खद ़ु में रहता हूूँ। खोजता हूूँ मैं ख़ुद में अपनापन॥ साूँस चिती है हदि धडकता है । हो गया िापता मगर जीवन।। उसका ख्वाब ओ खयाि कैसे न हो । जजसका आदी ही हो गया हो ज़हन ।। उसको शायद ही याद हो या न हो वो मि ़ु ाकात दो हदिों का लमिन ।। उम्रभर साथ साथ चिने के कस्मे वादे अजीब वो पिछन ।। गर ननगिकर मझ ़ु े ये तनहाई दे सके उसको क़ुछ सक ़ु ंू नो अमन ।। तो मझ ़ु े दीप सा ही जिने दो जिते संदीप से जहाूँ रौशन ।।
235
रं ग और नरू
संदीप त्यागी رنگ اور نور
غزل
جسم تو بس لباس ہے یارو مجھ کو خود کی تالش ہے یارو خود ہی خود کا وجود پہچانوں خود سے خواہش یہ خاص ہے یارو فلسفے اوروں کے قبول نہیں گہری خود ہی میں پیاس ہے یارو آزمائش بغیر علم_کتب صرف کوری قیاس ہے یارو جو نہ تدبیر_تجربات کرے وہ کوئی زندہ الش ہے یارو کس پیمبر نے دقیانوسی کا نہ کیا پردہ فاش ہے یارو الؤں ایمان کیوں اماموں پر دل میں قرآن_خاص ہے یارو
رھدیپ تیاگی رنگ اور نور
ूरं ग और नर
236
ग़ज़ल
जजस्म तो बस लिबास है यारों। मझ ़ु को ख़ुद की तिाश है यारों।। ख़ुद ही ख़ुद का वज़ूद पहचानूँ।ू ख़ुद से ख्वाहहश ये खास है यारों॥ फिसफे औरों के क़ुबि ़ु नहीं गहरी ख़ुद ही में प्यास है यारों आजमाइश बग़ैर इल्म ए क़ुतब ़ु होता कोरी कयास है यारों ॥ जो ना तदबीर ए तज़ुबाूत करे शख्स वो जजंदा-िाश है यारों॥ ककस पयम्बर ने दककयानस ू ी का ना ककया पदाूफाश है यारों॥ िाऊूँ इमान क्यों इमामों पर हदि में क़ुरआन ए खास है यारों॥
237
रं ग और नरू
संदीप त्यागी رنگ اور نور
غزل
کیا نہیں کچھ کہہ رہی ہیں آپ کی خاموشیاں کھول دل کی تہہ رہی ہیں آپ کی خاموشیاں کھو گئے الفاظ مطلب گم لبوں سے ہو گئے چپ نہ پھر بھی رہ رہی ہیں آپ کی خاموشیاں ہیں سلگتے ہونٹ جلتی تشنگی آنکھوں میں اب کیا بخوبی دہ رہی ہیں آپ کی خاموشیاں عشق کا طوفاں جواں علم_کتب سے کب دبا خود بہ خود ہی ڈھہ رہی ہیں آپ کی خاموشیاں کیا ضرورت ہے زبان_خاص کی اب آپ کو چشم_تر سے بہہ رہی ہیں آپ کی خاموشیاں شاعری میں عاشقی اور عاشقی میں شاعری اٹھ ورہ سے یہ رہی ہیں آپ کی خاموشیاں
رھدیپ تیاگی رنگ اور نور
ूरं ग और नर
238
ग़ज़ल
क्या नहीं क़ुछ कह रहीं हैं आपकी खामोलशयाूँ।
खोि हदि की तह रहीं हैं आपकी खामोलशयाूँ।। खो गये अल्फाज मतिब गम ़ु िबों से हो गये।
चप ़ु न कफर भी रह रहीं हैं आपकी खामोलशयाूँ।। हैं सि ़ु गते होठ जिती नतश्नगी आूँखों में ये क्या बखब ू ी दह रहीं हैं आपकी खामोलशयाूँ।
इश्क का तफ ू ाूँ जवाूँ इल्मे क़ुतब ़ु से कब दबा।
ख़ुद ब ख़ुद ही ढह रहीं हैं आपकी खामोलशयाूँ। क्या जरूरत है जब ़ु ाने खास की तम ़ु को भिा। चश्मेतर से बह रहीं हैं आपकी खामोलशयाूँ॥
शायरी में आलशकी और आलशकी में शायरी।
उठ पवरह से यह रहीं हैं आपकी खामोलशयाूँ ॥ होश रखना मस् ़ु तककि अच्छा मह ़ु ब्बत में नहीं।
आगोश ए उल्फत िह रहीं हैं आपकी खामोलशयाूँ॥
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रं ग और नरू
संदीप त्यागी رنگ اور نور
پہچان
میرے بارے اتنا ہی پتہ ہے جتنا آپ نے مجھے میری بابت کہا ہے اور آپکو میرے بارے بس اتنا ہی علم ہے جتنا میں نے خود کو ..........آپکے آگے رکھا ہے آپ نے میرے ووہار کو سوے-پرگٹا کہا سوے-وشلین کہا پر وہ میرے اتل کی پرمانکتا نہیں آپ نے میرے شبدوں کو ہی وہ سب کچھ سمجھ لییا جو اکثر .........میں سوچتا ہوں
جسبیر کلراوی رنگ اور نور
ूरं ग और नर
240
पिचान
मझ ़ु े अभी मेरे बारे उतना ही पता है जजतना आपने ..मझ ़ु े मेरे बाबत ़ु कहा है और आपको मेरे बारे बस उतना ही इल्म है जजतना मैंने ख़ुद को आपके आगे रखा है .......... आपने मेरे व्यवहार को स्व-प्रगटा कहा स्व-पवश्िेषण कहा पर वो मेरे अति की प्रमाखणकता नहीं आपने मेरे शब्दों को ही वो सब क़ुछ समझ लिया जो अक्सर मैं सोचता हूूँ ......... 241
रं ग और नरू
رنگ اور نور
जसबीर कालरवि
آپ نے بس میرا چہرہ پڑھ پڑھ پتہ نہیں کیا کچھ سوچ لییا... کیا کچھ سمجھ لییا... پر میری آتما کا کورا کاغذ کوئی نہیں پڑھ سکا لوگ آتے رہے جاتے رہے........ اور یہ کورا کاغذ ساری عمر مجھ کو خود کو ........نہارتا رہا پر آج میں آپ سب کو بتاتا ہوں کہ میں اپنے ....دھراتل میں کہیں نیچے بہت اکیال ہوں
جسبیر کلراوی رنگ اور نور
ूरं ग और नर
242
आपने बस मेरा चेहरा पढ़ पढ़ पता नहीं ...क्या क़ुछ सोच लिया ...क्या क़ुछ समझ लिया पर मेरी आत्मा का कोरा कागज़ कोई नहीं पढ़ सका िोग आते रहे ........जाते रहे और यह कोरा कागज़ सारी उम्र मझ ़ु को ख़ुद को ननहारता रहा ........ पर आज मैं आप सब को बताता हूूँ कक मैं अपने ....धराति में कहीं नीचे बह़ुत अकेिा हूूँ वहां.... ककसी के लिए भी
243
रं ग और नरू
رنگ اور نور
जसबीर कालरवि
وہاں.... کسی کے لئے بھی کوئی پرویش-دوارش نہیں ........کوئی راستا نہیں میں اس اکیل پن کے دھراتل سے کہیں نیچے ایک خزانہ ڈھونڈھ رہا ہو جو......جنم -جنم میں ہی دفنا تا رہا پر پتہ نہیں کب ؟کہا ں؟ کیسے؟ میں اسکا کا اتا-پتہ بھول گیا ہو......... مجھے پتہ ہے جب ...مین نے وو ..خزانہ ڈھونڈھ لییا تو آپ مجھے اتنا جان سکوگے جتنا مجھے میرے بارے پتہ ہے ۔
جسبیر کلراوی رنگ اور نور
ूरं ग और नर
244
कोई प्रवेश-द्वार नहीं कोई रास्ता नहीं ........ मैं इस अकेिेपन के धराति से कहीं नीचे एक खज़ाना ढूंढ रहा हूूँ जो......जन्म- जन्म मैं ही दफनाता रहा पर पता नहीं कब ?कहाूँ ? कैसे? मैं उसका का अता-पता भि ू गया हूूँ......... मझ ़ु े पता है जब ...मैंने वो ..खज़ाना ढूंढ लिया तो आप मझ ़ु े उतना जान सकोगे जजतना मझ ़ु े मेरे बारे पता है ।
245
रं ग और नरू
رنگ اور نور
जसबीर कालरवि
چپ کی اپنی آواز ہوتی ہے چپ کی اپنی پہچان ہوتی ہے جب بھی کبھی .....ہم چپ کو بولتے ہیں ...تو اپنے ہی بھیتر کوئی گرہ .کھولتے ہیں ۲۔۔ چپ جب یاترا پر ہوتا تو کئی ترنگوں سے گھرا ہوتا ہوا پانی آگدھرتیآکاش شبد ہمیشہ شور کے ساتھ چلتانہ جانے کتنی بھاشاؤں میں ... ڈھلتا شبد کی۔۔۔اورجا پورے برہمنڈ میں پڑی ہوتی شبد جہاں رکتا وہاں چپ کھڑی ہوتی...
جسبیر کلراوی رنگ اور نور
ूरं ग और नर
246
चुप
चप ु —1 च़ुप की अपनी आवाज़ होती है च़ुप की अपनी पहचान होती है जब भी कभी .....हम च़ुप को बोिते हैं तो ... अपने ही भीतर कोई चगरह खोिते हैं . चुप—2 शब्द जब यात्रा पर होता तो कई तरं गों से नघरा होता हवा पानी 247
रं ग और नरू
رنگ اور نور
जसबीर कालरवि
جسبیر کلراوی رنگ اور نور
ूरं ग और नर
248
आग धरती आकाश ...शब्द हमेशा छोर के साथ चिता ना जाने ककतनी भाषाओीँ में ढिता ...शब्द की उजाू परू े िहमांड में पडी होती ...शब्द जहाूँ रुकता वहां च़ुप खडी होती .
जसबीर कालरवि 249
रं ग और नरू
رنگ اور نور
غزل
دل کا جلنا تو آج کل کم ہے ۔ پھر بھی آنکھوں میں تیرتا غم ہے ۔ زخم ایسا مال مجھے ان سے ، زخم سوکھا تو داغ کو غم ہے ۔ دن ڈھلے ہی دیا جالیا تھا ، اب تلے اسکے روشنی کم ہے ۔ عمر بھر ڈھونڈھتے رہے جسکو ، اسکو میری تالش کا غم ہے ۔ اب تو ' جسبیر ' بچ نہیں سکتا ، اب تو اسکے رقیب میں دم ہے ۔
جسبیر کلراوی رنگ اور نور
ूरं ग और नर
250
ग़ज़ल
हदि का जिना तो आज कि कम है । कफर भी आूँखों में तैरता गम है । ज़ख़्म ऐसा लमिा मझ ़ु े उनसे , ज़ख़्म सख ू ा तो दाग को गम है । हदन ढिे ही दीया जिाया था , अब तिे उसके रोशनी कम है । उम्र भर ढूंढ़ते रहे जजसको , उसको मेरी तिाश का गम है । अब तो ' जसबीर ' बच नहीं सकता , अब तो उसके रकीब में दम है ।
251
रं ग और नरू
رنگ اور نور
जसबीर कालरवि
چر لن
کب آییگی وھ رات ہٹھیلی جب سوریال وادیہ ہوگا سانسوں کی کسمیت مہک سے گاان پلکت حاس ھو گا مینک سے ملنے چکوری کی اوران پوری ھوں گی تریکائیں جھلمالتی بادلوں کے پاس ھوں گی شبنم میں بھیگی سی راتیں کی مدھر برسات ھو گی آغوش میں جب چاند ھو گا آسمان کا اوڑھ سایہ نینو میں سسنے سجے تھے ان سے ا
ملالکات ھو گی
کچھ انوکھی بات ھو گی پیر کی سوگات ھو گی یامنی کی چاندنی میں چر ملن کی رات ھو گی ایک انوکھی بات ھو گی
رویتا اگروال "کوی" رنگ اور نور
ूरं ग और नर
252
चचर - लमलन"
कब आयेगी वह रात हठीिी ? जब सऱु ीिा वाद्य होगा
सांसों की क़ुसल़ु मत महक से गात पि ़ु ककत हास होगा मयंक से लमिने चकोरी की उडानें पण ू ू होंगी
ताररकाएूँ खझिलमिाती बादिों के पास होंगी
शबनम में भीगी सी यादों की मधऱु बरसात होगी
आगोश में जब चाूँद होगा आसमान का ओढ़ साया नयनों में सपने सजे थे
उनसे एक मि ़ु ाकात होगी क़ुछ अनोखी बात होगी प्यार की सौगात होगी यालमनी की चांदनी में
चचर लमिन की रात होगी एक अनोखी बात होगी
चचर लमिन की रात होगी |
253
रं ग और नरू
सविता अग्रिाल "सवि"
رنگ اور نور
رویکار.
نییا پر میں بیٹھ اکیلی ، نکلی ھوں النے اپسہاڑ، بھو ساگر میں بھنور بڑے ہیں ، دوبھر اٹھنا انکا بھر، نہ کوئی مانجھی نہ پٹوار ، کھڑی ہوں ساگر میں منجھدھار ، پھر بھی جوان ہے سوکر.......... رہوں میں کنٹک بھرمار ، انگنت جلتے ہیں انگار ، ابھیشاپوں کا ہے بھندار، وریشتی کی پڑتی بشار، منزل میری دور اپسار، پھر بھی جوان ہے سوکر........... کوئی نہیں انمان شنغر، نہ کوئی پریت نہ منہارر، نہ گیندا نہ گلنار ، سج نہ کوئی نہ سر تال، ٹوٹ رہے سنجام کے تر ، سرجن کروں میں وارم وار ، پھر بھی جوان ہے سوکر............ دکھ درد کی ہے بھرمار، ملتا نہ کوئی ہے اببچر ،
رویتا اگروال "کوی" رنگ اور نور
ूरं ग और नर
254
स्िीकार नैया पर मैं बैठ अकेिी
ननकिी हूूँ िाने उपहार भव-सागर में भंवर बडे हैं दभ ू र उठना इनका भार
ना कोई मांझी ना पतवार
खडी मैं सागर में मंझधार
कफर भी जीवन है स्वीकार । राहों में कंटक भरमार
अगखणत जिते हैं अंगार अलभशापों का है भंडार
पग-पग पर लमिती है हार वजृ ष्ट्ट की पडती बौछार मंजज़ि मेरी दरू अपार
कोई नहीं उन्माद शग ंृ ार
ना कोई प्रीत, ना मनह ़ु ार ना गें दा है ना गि ़ु नार
साज ना कोई ना स्वर-ताि टूट रहे संयम के तार
सज ृ न करूं मैं बारम्बार
ददू-द:़ु खों की है भरमार
लमिता ना कोई है उपचार आूँचि के झीने हैं तार
ककूश नयनों की है मार
255
रं ग और नरू
सविता अग्रिाल "सवि"
رنگ اور نور
آنچل جھنے ہے تار، کرکش نینو کی ہے مار، کھڑی ھوں پیاسی نہ جلدھر ، گنتی رھت رتیں چار ، من کا چھٹا ہے ادھار، پھر بھی جوان ہے سوکر............ ہو رہے ہیں نو اویشکار ، سکچایا نو کا ویسٹر ، کتنا بھی کر لو اوپکار، ہوتا پھر بھی اتیاچار ، کروں من میں کے بار ،
تر
کیوں نکلی النے ااوپہر ، جھوٹھا ،متھیا ہے سنسارر، جھوٹھا متھیا ہے سنسرر،ا پھر بھی جوان ہے سوکر.............
رویتا اگروال "کوی" رنگ اور نور
ूरं ग और नर
256
खडी हूूँ प्यासी, ना जिधार चगनती रहती ऋतए ़ु ूँ चार मन का छूटा है आधार हो रहे नव आपवष्ट्कार
सक़ुचाया नभ का पवस्तार
ककतना भी कर िो उपकार होता कफर भी अत्याचार
तकू करूूँ मन में कई बार क्योँ ननकिी िाने उपहार झूठा-लमथ्या है संसार
झूठा-लमथ्या है संसार |
257
रं ग और नरू
सविता अग्रिाल "सवि"
رنگ اور نور
رلگتی رہی یں
سیلی کاٹھور ٹھوٹھ رشت سی لڑکی کی طرح چہلے میں نہیں کسی کوئلے کے کن میں سلگتی رہی میں سلگتی یہی میں آجان شتھل پیرٹ لمحوں کے بیچ در بدر بھٹکتی راہیں بناتی پیروں کے نشاں بناتی اور مٹاتی رہی میں مٹتاتی رہی میں خوفنا
اندھیری راتوں میں
روشنی کی اس میں کسی دیسک میں نہیں باتی کی نو
میں جلتی رہی میں
جلتی رہی میں دھک دھک چلتی پسللوں کی گرفت میں اوپر سے نیچے نیچے سے اوپر رکعت رنجت دھمنیوں میں چلتی رہی میں چلتی رہی میں آنسوں کی لمبی دھر میں نہ بہکر نینوں کے کوروں میں دبی ڈبکی بیٹھی سسکتی رہی میں سسکتی رہی میں یوں ہی جوان بھر جلتی بغتی سلگتی رہی میں سکگاتی رہی میں
رویتا اگروال "کوی" رنگ اور نور
ूरं ग और नर
258
सुलगती रिी मैं
सीिी कठोर, ठूूँठ रुष्ट्ट सी िकडी की तरह चल् ू हे में नहीं, ककसी कोयिे के कण में सि ़ु गती रही मैं सि ़ु गती रही मैं
अजान, लशचथि, पीडडत िम्हों के बीच दर बदर भटकती, राहें बनाती
पैरों के ननशाूँ बनाती और लमटाती रही मैं लमटाती रही मैं
ख़ौफनाक अंधेरी रातों में
रौशनी की आस में , ककसी दीपक में नहीं बाती की नोंक में जिती रही मैं जिती रही मैं
धक-धक चिती पसलियों की चगरफ़्त में ऊपर से नीचे, नीचे से ऊपर
रक्त रं जजत धमननयों में चिती रही मैं चिती रही मैं
आूँसओ ़ु ं की िम्बी धार में न बहकर नयनों के कोरों में दबी दब ़ु की बैठी लससकती रही मैं लससकती रही मैं
यूूँ ही जीवन भर जिती बझ ़ु ती सि ़ु गती रही मैं सि ़ु गती रही मैं
259
रं ग और नरू
सविता अग्रिाल "सवि" رنگ اور نور
غزل ()1
صنم جب سے پردہ اٹھانے لگے ہیں قدم در قدم پاس آنے لگے ہیں بہت اڑچنیں راہ میں تھیں مگر اب ہوۓ مہرباں ،دل لبھانے لگے ہیں کسی دن تو ہونا تھا یہ بھی ضروری بھلے اس میں کتنے زمانے لگے ہیں وہ چلمن اٹھا کے جو دیکھا نظارہ تو پھر ہوش میرے ٹھکانے لگے ہیں وہ دلبر ہمارا ،وہ رہبر ہمارا کہاں کے کہاں یہ نشانے لگے ہیں یہ جیون ڈگر ایک ٹیڑھی ڈگر ہے یہاں سب کے " نرمل " فسانے لگے ہیں
نر ل ردنو رنگ اور نور
ूरं ग और नर
260
ग़ज़ल (1)
सनम जबसे पदाू उठाने िगे हैं क़दम दर क़दम पास आने िगे हैं अडचने बह़ुत राहों में थी मगर अब मेहरबां ह़ुये, हदि ि़ुभाने िगे हैं
कभी ना कभी, था ये होना ज़रूरी भिे इसमें ककतने ज़माने िगे हैं जो चचिमन के उठने का दे खे नज़ारा तो कफर होश उसके हठकाने िगे हैं वो हदिवर हमारा वो रहबर हमारा कहाूँ के कहाूँ, ये ननशाने िगे हैं ये जीवन डगर एक टे ढ़ी डगर है यहाूँ सबके ननमूि, फसाने िगे हैं...
261
रं ग और नरू
رنگ اور نور
ननमदल लसद्धू
غزل ()2
جب سے اندر جھانک رہا ہوں ہستی اپنی آنک رہا ہوں دنیا نے جو ہنس کر بانٹے ان زخموں کو ٹانک رہا ہوں یہ بھی میرا ،وہ بھی میرا من کے گھوڑے ہانک رہا ہوں آدھی رات کو الو دیکھے نیند کی گولی پھانک رہا ہوں قد لمبا ہے چادر چھوٹی ادھر ادھر سے ڈھانک رہا ہوں زیادہ "نرمل" اکڑو مت ہر دم تجھ کو جھانک رہا ہوں
نر ل ردنو رنگ اور نور
ूरं ग और नर
262
ग़ज़ल (2)
जब से अन्दर झाूँक रहा हूूँ हस्ती अपनी आूँक रहा हूूँ दऩु नया ने जो हं स कर बांटे
उन ज़ख़्मों को टाूँक रहा हूूँ ये भी मेरा, वो भी मेरा मन के घोडे हाूँक रहा हूूँ आधी रात को उल्िू दे खे
नींद की गोिी फाूँक रहा हूूँ क़द िम्बा है चादर छोटी इधर-उधर से ढाूँक रहा हूूँ ज़्यादा ननमूि अकडो मत हरदम तझ ़ु को झाूँक रहा हूूँ
263
रं ग और नरू
رنگ اور نور
ननमदल लसद्धू
ارا /
درد دریا کی طرح بہتا نہیں ہے درد کی گہرائی کوئی پاتا نہیں ہے کتنا بھی ڈھونڈو پر تھاہ تو ملتی نہیں ہے درد کیوں اٹھتا کوئی کہتا نہیں ہے آسماں ہے یا کہ سمندر کون جانے ان سوالوں کا جواب کیوں کوئی دیتا نہیں ہے درد میں ڈوبی ہوئی ایک شام کہتی ہے خدارا حال میرا پوچھنے اب کوئی بھی آتا نہیں ہے ہے اسی کا نام دنیا ٹھیک کہتے ہیں سبھی دوسرے کا غم سمجھنا سب کو تو آتا نہیں ہے درد سے رشتہ مرا کیوں کر دیا دوستوں مثنوی سی بھی ہنسی اب کوئی دکھالتا نہیں ہے
بھگوت شرن رنگ اور نور
ूरं ग और नर
264
ददद
ददू ददू
दररया की
की
तरह
गहराई
कोई
बहता नहीं है
पाता
नहीं है
ककतना भी ढूंढोेे पर थाह तो लमिती नहीं ददू
क्यूं उठता
आस्मां है
कोई
या कक
कहता
नहीं
समन्दर कौन
है ।
है
जाने
इन सवािो का जवाब क्यूं कोई दे ता नही है ।
ददू में डूबी ह़ुई एक शाम कहती है ख़ुदारा हाि मेरा पछ ू ने अब कोई भी आता नही है । है
इसी का
नाम दनू नयां ठीक कहते है
सभी
दस ू रे का ग़म समझना सबको तो आता नही है । ददू से ररश्ता मेरा क्यूं कर हदया दोस्तों
मसनवी सी भी हं सी अब कोई हदखिाता नही है ।
265
रं ग और नरू
भगित िरण رنگ اور نور
خاکہ
میں خاکہ کھنچ تو لیتا ہوں ایک تصویر کا کوئی رنگ بھرتا نہیں ہے اس میں تقدیر کا جو بھی بھرتا ہوں وہ بھی تو اتر جاتا ہے ایسے کیوں ہوتا ہے مصور کی تدبیر کا رنگ پھیکے نہیں پھر بھی کچھ گم صم ہے بس یہی حال ہے ا
بے لکھی تحریر کا
میری دنیا میں کیوں خلش خلش ہے یارب پڑھ نہیں پاتا ہوں لکھا کاتب_تقدیر کا وہ جو لکھتا ہے سب جان کر ہی لکھتا ہے ایسا کہنا ایک رمتے ہوۓ پیر فقیر کا کوئی تو رنگ ہوگا جو اس پر چڑھ جاۓ ختم قصہ ہو اس بچاری بے زباں تصویر کا میری کوششیں ناکام نہ ہوں اے مالک کسی بھٹکے ہوۓ پہ ظرف نہ آے تقدیر کا
بھگوت شرن رنگ اور نور
ूरं ग और नर
266
खाका
मै खाका खींच तो िेता हूं एक तस्वीर का कोई रं ग भरता नहीं है इसमे तक़दीर का। जो भी भरता हूं वो भी तो उतर जाता है ऎसा क्यों होता है मस ़ु ब्बीर की तदबीर का । रं ग फीके नहीं कफर भी क़ुछ गम ़ु बस यही हाि है
सम ़ु हैं
एक बेलिखी तहरीर का।
मेरी दऩु नयां मे क्यूं ख़लिस ख़लिस है
यारब
पढ़ नहीं पाता हूं लिखा कानतबे तक़दीर का। वो जो लिखता है सब जान कर ही लिखता है ऎसा कहना है
एक रमते ह़ुये पीर फक़ीर का।
कोई तो रं ग होगा जो इस पर चढ़जाये
ख़त्म ककस्सा हो इस बेचारी बेज़व ़ु ां तस्वीर का। मेरी कोलशसें नाकाम ना हो ऎ मालिक
ककसी भटके ह़ुये पे ज़फू न आये तक़दीर का।
267
रं ग और नरू
भगित िरण رنگ اور نور
انھت ہا بھارت ہم میں سے کئی کرن اور بھیشم تھے دروناچاریہ اورگرو کرپاچاریہ تھے لیکن ہواؤں کے بہاؤ نے ہمیں ال کر دریودھن کے ساتھ کھڑا کر دیا اب ہم سب گنوں کے ہوتے نہ دان کر سکینگے نہ نئی شستھ کھا سکینگے تیروں کے نشان بھی غلط ہوتے جاینگے نہ چاہتے ہوۓ بھی ہم اندھے اور بہرے کہالینگے دھیان سے سوچو تو بہت کچھ تھا ہم میں لیکن ہاۓ رے ! یہ لمحوں کا بہاؤ ہمیں بنایا ہے آدمی سے راکھشش ہم کہاں تھے ؟ کہاں تک گرتے جاینگے ؟ جب جب ہم نے صرف خود غرض لمحوں کو اپنے پاس آنے ،ٹھہرنے دیا ہے تب وہ ہمیں چھل کر چال گیا ہے ہمیں ایسے خیمے میں چھوڑ کر جہاں سے خواہش ہونے کے باوجود ہم اسے چھوڑ نہ پاینگے گھر گھر میں یہی تو ہو رہا ہے ہر من میں یہی تو ہو رہا ہے
بھونشوری پانڈے رنگ اور نور
ूरं ग और नर
268
अनंत मिाभारत
हममें से कई कणू और भीष्ट्म थे रोण और गरु ़ु कृपाचायू थे ककन्त़ु हवाओं के बहाव ने हमें िा कर दय ़ु ोधन के साथ खडा कर हदया। अब हम सब गण ़ु ों के होते, ना दान कर सकेगें , ना शपथ नई खा सकेंगे, बाणों के ननशाने भी गित होते जाएूँगे, ना चाह के भी हम अन्धे व बहरे कहिाएूँगे ।। ध्यान से सोचो तो था बह़ुत क़ुछ हम में , ककन्त़ु हाय रे ये क्षणों का बहाव हमें बनाया है मानव से दानव, हम कहाूँ थे, कहाूँ तक चगरते जाएूँगे। जब जब हमने केवि स्वाथू क्षणों कोअपने पास आने, ठहरने हदया है , तब तब वो हमे छि कर चिा गया है , हमे ऐसे लशपवर में छोड कर, जहाूँ से इच्छा होने पर भी, हम उसे ना छोड पायेंगे । घर घर में तो यही हो रहा है , 269
रं ग और नरू
رنگ اور نور
भि ु नेश्िरी पांडे
کون کہتا ہے مہا بھارت ہو چکا ہے دن رات یہاں ابھی تک تو ہو رہا ہے ! میں تو چسکے سے چلی آئی ہوں مادھو اپنے سبھی گنوں کو چھوڑ کر شستھ تو میں نے لے لی ہے تمہاری شرن چھایا کی کوئی اور شستھ کہاں کام آئی ہے اس مان ابھیمان ساگر جو پار کر آئی ہوں تم نے تو دیکھ ہی لیا ہے !! میں کہاں سے کہاں آئی ہوں
بھونشوری پانڈے رنگ اور نور
ूरं ग और नर
270
हर मन में तो यही हो रहा है , कौन कहता है महाभारत हो चक ़ु ा है , हदन-रात ये यहाूँ, अभी तक तो हो रहा है । मैं तो च़ुपके से चिी आई हूूँ माधौ, सब गण ़ु ों-पवशेषताओं को छोड कर, शपथ तो मैने िे िी है , तम् ़ु हारी शरणागनत की, कोई और शपथ कहाूँ काम आई है , इस मानालभमान सागर को पार कर आई हूूँ, तम ़ु ने तो दे ख ही लिया है , मैं कहाूँ से कहाूँ आई हूूँ।।
271
रं ग और नरू
भि ु नेश्िरी पांडे رنگ اور نور
دھڑکنوں پر دھڑکنیں .
کوئی پوچھے میری دھڑکنوں سے ان دھڑکنوں کی کہانی جو دب سی جاتی ہے تمہاری آہٹ سے تمہارے خیال ہی سے ہاتھ بالوں سے الجھ الجھ جاتے ہیں اسی الجھن میں بیٹھی درپن کے آگے باتیں کرتی ہوں درپن سے تمہاری کبھی مسکرا کر خود کو کبھی تمہیں دیکھتی ہوں کچھ سنگار نہیں کر پاتی ہر جگہ تمہیں ہی پاتی ہوں بندی کہاں سجاؤں ...وہی تمہارا چمبن ہے جھمکے پہن پانا تو اور دوبھر ہے الج سے کان الل ہو آۓ ہیں گالوں کی اللی بے حال ہے ! آنکھوں سے جھڑتے آنسو ...کاجل کہاں سجاؤں اللی آ گئی ہے ہونٹوں کی رسیلی رنگت پر انگلیاں کانسنے لگتی ہیں کنگن پہن نہیں پاتی کالئی پر تمہاری کالئی ہے کلسنا ناچ اٹھتی ہے میری مانگ تم نے چمبنوں سے سجائی ہے
بھونشوری پانڈے رنگ اور نور
ूरं ग और नर
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धडकनों पर धड़कनें
कोई पछ ू े मेरी धडकनों से, इन धडकनों की कहानी, जो दब सी जाती है तम् ़ु हारी आहट से, तम् ़ु हारे खयाि से ही हाथ बािों से उिझ उिझ जाते हैं। इसी उिझन में बैठी दपूण के आगे खद ़ु बातें दपूण से करती हूूँ तम् ़ु हारी, कभी मस् ़ु क़ुरा कर ख़ुद को कभी तम् ़ु हें दे खती हूूँ, शग ंृ ार क़ुछ कर पाती नहीं हूूँ, हर जगह तम् ़ु हें ही पाती हूूँ, ब्रबंदी कहाूँ सजाऊूँ, वहीं तम् ़ु हारा चम् ़ु बन है । झ़ुमके पहन पाना तो दभ ू र है , िज्जा से कान- िाि हो आये हैं, कपोिों की िािी बेहाि है , आूँखों से झरते आूँस,ू --काजि कहाूँ सजाऊूँ। अरुणाभ हैं होठों की रं गत रसीिी, अूँगल़ु ियाूँ काूँपने िगती हैं, कंगन पहन नहीं पाती,
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रं ग और नरू
भि ु नेश्िरी पांडे رنگ اور نور
اب مجھ سے وینی تو گونتھی نہ جاۓ گی تمہاری خوشبو بالوں میں لہرائی ہے !ہونٹوں کی باتیں تو آنکھوں سے پوچھو ! اس نےالج سے پلکیں جھکائی ہیں ہونٹوں کے ملنے سے اور دور ہونے سے ! یہ کیسی قیامت آئی ہے دل کے دروازے پر یہ کیسی دستک ہے کوئی دیکھو تو ! دھڑکنوں میں دھڑکنیں سمائی ہیں لو ! وہ آ بھی گئے دلہن سج بھی نہ پائی ہے !!تن میں من میں موگرے کی مہک سی چھائی ہے
بھونشوری پانڈے رنگ اور نور
ूरं ग और नर
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किाई पर तम् ़ु हारी किाई है । कल्पना नाच उठती है , मेरी माूँग तम ़ु ने चम् ़ु बनों से सजाई है । अब मझ ़ु से वेणी तो गूँथ ू ी ना जायेगी, तम् ़ु हारी खश ़ु बू बािों में िहराई है , होंठों की बातें तो, आूँखों से पछ ू ो, िज्जा से उसने पिकें झ़ुकाई हैं। होंठों के लमिने, और दरू होने से, ये कैसी क़यामत आई है । हदि के दरवाज़े पर ये कैसी दस्तक है , कोई दे खो तो, धडकनों में धडकने समाई हैं, िो वो आ भी गये, दि ़ु हन सज भी न पाई है , दे ह में , मन में , मोंगरे की महक सी छाई है ।।
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रं ग और नरू
भि ु नेश्िरी पांडे رنگ اور نور
ال کچھ گم صم ،کچھ حیران سا ہے اپنے گھر میں مہمان سا ہے کیا کیا سہا اور کیا سہنا ہے دل کیوں آج انجان سا ہے تھا اجنبی شہر یہ پہلے بھی تنہائی زہر تھی پہلے بھی درد_دل پہ کوئی دستک دیگا جانے کیوں ایسا گمان سا ہے گمنامی میں کٹا ہے سفر منزل کے قریب ملے رہبر وہ نام مرا سن کر رویا جو لگتا سخت چٹان سا ہے خود بھی تو راہ سے ہے بھٹکا ایمان کی اس سے بات ہو کیا خود کو ہی یہ تڑپاتا ہے کیسا یہ بے ایمان سا ہے دل ہے بے چین اکیلے میں تنہا ہے اور بھی میلے میں خود کو سمجھانے بیٹھا ہے کیسا پاگل نادان سا ہے
جگموہن رھگا رنگ اور نور
ूरं ग और नर
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हदल क़ुछ गम ़ु -सम ़ु क़ुछ है रान सा है अपने घर में मेहमान सा है,
क्या-क्या सहा और क्या सहना है हदि क्यों आज अन्जान सा है ।
था शहर यह अजनबी पहिे भी तनहाई ज़हर थी पहिे भी ,
ददे -हदि पे कोई दस्तक दे गा
जाने क्यों ऐसा गम ़ु ान सा है । गम ़ु नामी में कटा है सफर
मंजज़ि के करीब लमिे रह-बर, वोह नाम मेरा सन ़ु कर रोया
जो िगता सख्त चट्टान सा है ।
ख़ुद भी तो राह से है भटका
इम्मान की इस से बात हो क्या, ख़ुद को ही यह तडपाता है
कैसा यह बे - ईमान सा है ।
हदि है बे -चैन अकेिे में
तन्हा है और भी मेिे में , खद ़ु को समझाने बैठा है
कैसा पागि नादान सा है । 277
रं ग और नरू
رنگ اور نور
जगमोिन संघा
گھت کے آیام پرکرتی جب تولیکا چالتی ہے تو لکھتی گنت کے آیام یہی رچنا ویدوں کا آدھار جیون کے رہسیہ کھولتا ہے گنت گیان نیایہ سمتا ،مہت کا سدھانت گنت سکھالتا سہج ودھان تلنا سے رہت ،اپنے آپ میں پورن گنت کا ہر ایک سمیکرن گنت جوڑ کر گنا کرے اور وبھاجن گھٹا کر سادھیہ گنت کے یہ سدھانت چالتے ہیں برہمانڈ یہی دن رات یدی شونیہ نہ ہو تو آدی نہ سمجھیں اننت نہ ہو تو ایشور کو نہ سمجھیں واد ،وواد رہت ،وگیانوں کا وگیان سبھی پنتھوں سے الگ وسودھیو کٹنبکم' ایکم ستیم کا بھان' گنت گیان ہی کر دیگا کلیان
راج اہیشوری رنگ اور نور
ूरं ग और नर
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गखणत के आयाम प्रकृनत जब तूलिका चिाती है तो लिखती गखणत के आयाम यही रचना वेदों का आधार जीवन के रहस्य खोिता है गखणत ज्ञान न्याय समता, मह्त लसद्धांत गखणत लसखिाता सहज पवधान ति ़ु ना से रहहत, अपने आप में पण ू ू गखणत का हर एक समीकरण गखणत जोड कर ग़ुणां करे और पवभाजन घटा कर साध्य गखणत के यह लसद्धांत चिाते हैं िह्माण्ड यही हदन रात यहद शून्य न हो तो आहद न समझें अनंत न हो तो ईश्वर को न समझें गखणत भारत की दे न महान करे गी ननरं तर उज्ज्वि पथ ज्ञान वाद-पववाद रहहत, पवज्ञानों का पवज्ञान सभी पंथों से लभन्न, एक हदन ननजश्चत ही 'वस़ुधैव क़ुट़ुंबकम', 'एकं सत्यं' का भान गखणत ज्ञान ही कर दे गा कल्याण |
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रं ग और नरू
राज मािे श्िरी رنگ اور نور
An e-collection of Hindi & Urdu poetic talent of Canada
aur रं ग और नरू
Colours & Radiance
رنگ اور نور
Edited and compiled by
Nasim Syed, Meena Chopra, Anil Purohit रं ग और नूर
280
رنگ اور نور
SB