सुलभ स्वच्छ भारत (अंक 52)

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वर्ष-1 | अंक-52 | 11 - 17 दिसंबर 2017

आरएनआई नंबर-DELHIN/2016/71597

sulabhswachhbharat.com

16 खुला पन्ना

लौहपुरुष का अनुशासन

सांगठनिक अनुशासन और एकजुटता के सरदार

20 स्वदेशी आंदोलन

30 कही अनकही

गेनू का बलिदान

मलिक का सितारा

मनोज कुमार से भेंट ने बदल दी किस्मत

स्वदेशी के लिए मर मिटे बाबू गेनू

आधी दुनिया ने लहराया परचम भारतीय महिलाओं ने इस वर्ष रक्षा से लेकर राजनीति तक तमाम क्षेत्रों में अपने दमखम का लोहा मनवाया। इस मायने में 2017 देश में आधी दुनिया के बदले परिदृश्य का ऐतिहासिक तौर पर साक्षी रहा है

खास बातें इंडियन नेवी में पहली बार महिला पायलट नियुक्त हुई निर्मला सीतारमण देश की पहली पूर्णकालिक महिला रक्षा मंत्री बनीं हरियाणा की बेटी मानुषी छिल्लर ने जीता मिस वर्ल्ड का ताज

एसएसबी ब्यूरो

मेरिका की सर्वे संस्था पीउ रिसर्च ने कुछ साल पहले अपनी एक रिपोर्ट में कहा था कि 20वीं सदी के आखिरी दशक से लेकर अब तक जितना दुनिया नहीं बदली है, उतनी दुनिया भर की महिलाओं के जीवन में बदलाव आया है। आज से सात-आठ दशक पहले महिला सशक्तिकरण का जो वैश्विक संघर्ष हुआ था, वह आज कामयाबी के नए सफरनामा का नाम है। आधी दुनिया की जिंदगी में सबसे ज्यादा बदलाव आया है विश्व के उन हिस्सों में, जो लंबे समय तक विकास की मुख्यधारा से बाहर रहे हैं। बात करें भारत की तो भारत में महिला सशक्तिकरण के एक से एक सुलेख राष्ट्रीय आंदोलन के दौर में ही लिखे जा चुके थे। आजादी के बाद इस सिलसिले के साथ सफलता के और भी स्वर्णिम सर्ग जुड़ते चले गए। देश के मौजूदा प्रधानमंत्री महिला सशक्तिकरण को बिल्कुल नई नजर से देखते हैं। वे कहते हैं, ‘नारी सशक्तिकरण के बिना मानवता का विकास अधूरा है। वैसे अब यह मुद्दा वीमेन डेवलपमेंट का नहीं रह गया, बल्कि वीमेन-लीड डेवलपमेंट का है।’ प्रधानमंत्री मोदी के ये विचार देश में सरकार और समाज के स्तर पर महिलाओं की बढ़ी भागीदारी और सफलता के तौर पर नजर आते हैं। प्रधानमंत्री न सिर्फ देश के विकास

पर पूरा ध्यान दे रहे हैं, बल्कि इस बात को भी महत्त्व दे रहे हैं कि इसका चरित्र समावेशी हो और इसमें महिलाओं की भूमिका अहम हो। शायद यही वजह है कि आज भारत में महिला प्रतिनिधित्व को कई क्षेत्रों में सम्मानजनक पहचान मिली है।

शुभांगी की उड़ान

इंडियन नेवी ने पहली बार किसी महिला की नियुक्ति पायलट पद के लिए की है। इस गौरव को हासिल करने वाली ऑफिसर का नाम है शुभांगी स्वरूप। शुभांगी अब आकाश की अनंत ऊंचाइंयों में एयरक्राफ्ट उड़ाएंगी। शुभांगी स्वरूप मेरीटाइम रिकानकायसंस विमान उड़ाएंगी। शुभांगी उत्तर प्रदेश की हैं। विमानों को उड़ाने को तमन्ना उन्हें बचपन से ही थी। शुभांगी के अलावा नई दिल्ली की आस्था, पुद्दुचेरी की रूपा और केरल की शक्ति माया को नौसेना की नेवल आर्मामेंट इंस्पेक्टोरेट (एनएआई) शाखा में देश की पहली महिला अधिकारी बनने का गौरव हासिल हुआ है। दक्षिणी नेवल प्रवक्ता कमांडर श्रीधर वॉरियर ने बताया, ‘वैसे तो शुभांगी नौसेना में पहली पायलट हैं, लेकिन नौसेना की एविएशन ब्रांच में पहले भी वायु यातायात नियंत्रण अधिकारी और विमान में ‘पर्यवेक्षक’ अधिकारी के तौर पर महिलाएं काम कर चुकी हैं।’ एनएआई शाखा पर नौसेना के हथियारों और गोला-बारूद के ऑडिट एवं आकलन की जिम्मेदारी होती है। कमांडर वॉरियर ने कहा कि चारों महिला अधिकारियों को ड्यूटी पर तैनात किए जाने से पहले उनकी चुनिंदा शाखाओं में प्रशिक्षण दिया


02 आवरण कथा

11 - 17 दिसंबर 2017

कृष्णा सोबती को ज्ञानपीठ सम्मान

हिंदी की दिग्गज कथाकार कृष्णा सोबती ने समय और समाज को केंद्र में रखकर अपनी रचनाओं में एक युग को जिया है

हिंदीहस्ताक्षरसाहित्यकृष्णाकी सशक्त सोबती

को 53वां ज्ञानपीठ पुरस्कार दिया जाएगा। सोबती को उनके उपन्यास ‘जिंदगीनामा’ के लिए वर्ष 1980 का साहित्य अकादमी पुरस्कार मिला था। उन्हें 1996 में अकादमी के उच्चतम सम्मान साहित्य अकादमी फेलोशिप से भी नवाजा गया था। इसके अलावा उन्हें पद्मभूषण, व्यास सम्मान, शलाका सम्मान से भी नवाजा जा चुका है। उन्होंने अपने लेखन से हिंदी की कम से कम दो पीढ़ियों को रचनात्मक संवेदना से जोड़ा है। उनके कालजयी उपन्यासों में ‘सूरजमुखी अंधेरे के’, ‘दिलोदानिश’, ‘जिंदगीनामा’, ‘ऐ लड़की’, ‘समय सरगम’, ‘मित्रो मरजानी’, ‘जैनी मेहरबान सिंह’, ‘हम हशमत’, जाएगा। शुभांगी को हैदराबाद में वायु सेना अकादमी में प्रशिक्षण दिया जाएगा, जहां सेना, नौसेना और वायु सेना के पायलटों को प्रशिक्षण दिया जाता है।

मिग-21 उड़ाने का हौसला

इससे पहले देश में पहली बार तीन महिलाएं वायुसेना

के लड़ाकू विमानों की पायलट बन चुकी हैं। अवनी चतुर्वेदी, भावना कांत और मोहना सिंह को सफल प्रशिक्षण के बाद कमीशन दिया गया। ये तीनों देश की पहली महिलाएं हैं, जिन्हें वायुसेना के लड़ाकू विमानों के पायलट के तौर पर कमीशन दिया गया है। सभी बाधाओं को पार कर भारतीय वायु सेना के इतिहास में अपना नाम दर्ज करने वाली अवनी, भावना और मोहना को कर्नाटक के बिदार में तीसरे स्तर के प्रशिक्षण को पूरा करने के बाद अगले साल सुखोई और तेजस जैसे लड़ाकू विमान उड़ाने दिए जाएंगे। भारतीय वायुसेना की पहली तीन महिला फाइटर पायलट को सबसे पहले मिग-21 बाइसन विमानों को उड़ाने का मौका मिलेगा। इस वर्ष वायुसेना दिवस के मौके पर एयर चीफ मार्शल बीएस धनोआ ने इसका एलान किया और कहा कि इन लड़ाकू विमानों को उड़ाने से महिला फाइटर पायलटों के कौशल में निखार आएगा। एयर चीफ मार्शल ने कहा कि भारतीय वायुसेना की तीनों महिला फाइटर पायलट ने अपना प्रशिक्षण काल लगभग पूरा कर

‘बादलों के घेरे’ ने कथा साहित्य को अप्रतिम ताजगी और स्फूर्ति प्रदान की है। हाल में प्रकाशित ‘बुद्ध का कमंडल लद्दाख’ और ‘गुजरात पाकिस्तान से गुजरात हिंदुस्तान’ भी उनके लेखन के उत्कृष्ट उदाहरण हैं। 18 फरवरी 1924 को गुजरात (वर्तमान पाकिस्तान) में जन्मी सोबती साहसपूर्ण रचनात्मक अभिव्यक्ति के लिए जानी जाती हैं। उनके रचनाकर्म में निर्भिकता, खुलापन और भाषागत प्रयोगशीलता स्पष्ट परिलक्षित होती है। 1950 में कहानी ‘लामा’ से साहित्यिक सफर शुरू करने वाली सोबती स्त्री की आजादी और न्याय की पक्षधर हैं। उन्होंने समय और समाज को केंद्र में रखकर अपनी रचनाओं में एक युग को जिया है। लिया है। उन्हें जल्द ही लड़ाकू विमानों पर तैनाती दी जाएगी। तीनों महिला पायलटों अवनि चतुर्वेदी, भावना कंठ और मोहना सिंह को सबसे पहले मिग21 बाइसन विमानों के स्क्वार्डन में तैनात किया जाएगा। मध्य प्रदेश के सतना की रहने वाली अवनी के परिवार के सदस्य सैन्य अधिकारी हैं और उसे इस लक्ष्य को हासिल करने के लिए सेना में भर्ती अपने भाई से प्रेरणा मिली। अवनी हमेशा से उड़ना चाहती थी और इसीलिए वह अपने कॉलेज के फ्लाइंग क्लब में शामिल हुईं। वहीं, बिहार के दरभंगा की रहने वाली भावना का बचपन से ही विमान उड़ाने का सपना था। प्रथम स्तर का प्रशिक्षण पूरा करने के बाद भावना ने लड़ाकू श्रेणी को चुना। 'इंडियन ऑयल कॉरपोरेशन' में अधिकारी की बेटी भावना का हमेशा से लड़ाकू पायलट बनने और देश की सेवा करने का सपना था। राजस्थान के झुंझुनु निवासी मोहना के दादा 'एविएशन रिसर्च सेंटर' में फ्लाइट गनर थे और उनके पिता आईएएफ में वारंट अधिकारी हैं। अपने परिवार की देश की सेवा करने वाली विरासत को आगे ले जाने के लिए मोहना काफी उत्साहित हैं।

पहली पूर्णकालिक महिला रक्षा मंत्री

निर्मला सीतारमण ऐसी पहली पूर्णकालिक महिला रक्षा मंत्री बनी हैं, जिन्होंने अत्यंत चुनौतियों और

बेसहरा बच्चों की मां डॉ. शशि नायर

‘सलाम बालक ट्रस्ट’ की प्रमुख डॉ. नायर को बेसहारा बच्चों के जीवन को निखारने के लिए जमनालाल बजाज पुरस्कार से सम्मानित किया गया

ई क्षेत्रों में उल्लेखनीय योगदान के लिए तीन लोगों व एक संस्था को इस साल के जमनालाल बजाज पुरस्कार से सम्मानित किया गया। जिन तीन लोगों को इस सम्मान से नवाजा गया है, उनमें राजस्थान की जानी मानी सामाजिक कार्यकर्ता शशि त्यागी, दिल्ली की डॉ. प्रवीण नायर और फिलिस्तीन के डॉ. जियाद मिदूख व छत्तीसगढ़ में कार्यरत ‘जन स्वास्थ्य सहयोग’ नामक संस्था को पुरस्कार स्वरूप प्रशस्तिपत्र व दस-दस लाख रुपए नकद दिए गए। मुंबई के एक पांच सितारा होटल में आयोजित पुरस्कार समारोह में केंद्रीय वित्तमंत्री अरुण जेटली ने यह पुरस्कार प्रदान किए। सामाजिक कार्यकर्ता त्यागी को ग्रामीण इलाकों में रचनात्मक कार्य के जरिए गांववालों के जीवन में सुधार लाने व महिला सशक्तिकरण के लिए यह पुरस्कार प्रदान किया

गया है। ‘सलाम बालक ट्रस्ट’ की प्रमुख डॉ. नायर को बेसहारा बच्चों के जीवन को निखारने के लिए यह सम्मान प्रदान किया गया है। इस मौके पर सामाजिक कार्यकर्ता त्यागी ने कहा कि उनकी लगातार मेहनत के चलते अब राजस्थान के थार इलाके में वंचित लोगों तक पानी व दूसरी चीजे पहुंच पाई हैं। उन्होंने गरीब व पिछड़े वर्ग के घरों में पानी की टंकियां बनवाई, जिसमें साल भर का पानी इकट्ठा होता है। ग्रामीण विकास विज्ञान समिति (ग्राविस) के माध्यम से लोगों तक स्वास्थ्य सुविधाएं पहुंचाने का कार्य किया है। डॉ. त्यागी ने कहा कि जिस तरीके से थार में पानी की समस्या का समाधान किया है, उसका इस्तेमाल कर महाराष्ट्र के विदर्भ व मराठवाड़ा की पानी की किल्लत का भी समाधान संभव है। उन्होंने बताया कि महाराष्ट्र की दो संस्थाएं उनके संपर्क में हैं। दिलचस्प है कि डॉ. नायर स्ट्रीट चाइल्ड पर 1988 में अपनी फिल्मकार बेटी मीरा नायर द्वारा बनाई गई फिल्म ‘सलाम बांबे’ से प्रेरित हो फुटपाथों पर जीवन बीताने वालों बच्चों के लिए कार्य करने लगीं। डॉ. नायर का कहना है कि इन बच्चों में प्रतिभा बहुत है, बस उसे निखारने की जरूरत है।

नारी सशक्तिकरण के बिना मानवता का विकास अधूरा है। वैसे अब यह मुद्दा वीमेन डेवलपमेंट का नहीं रह गया, बल्कि वीमेन-लीड डेवलपमेंट का है – नरेंद्र मोदी संवेदनशीलता से भरे इस पद की कमान संभाली है। जिस इकाई के कंधों पर देश की सीमाओं की सुरक्षा से जुड़े दिशानिर्देशों का दायित्व हो, उसका प्रत्येक निर्णय देश की अस्मिता के लिए अत्यधिक महत्व का होता है। निर्मला सीतारमण ने इस कमान को पूरी सामर्थ्य और साहस के साथ थामा है। विदेश मंत्री का पद ऐसे ही संवेदनशील पदों में से एक है, जहां पर पदासीन व्यक्ति देश की छवि और नीतियों का पूरे विश्व में प्रतिनिधित्व करता है। इस समय में यह स्थिति और भी विशेष इसीलिए भी हो जाती है, क्योंकि वर्तमान में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में पूरे विश्व में भारत एक नई पहचान के साथ सामने में आ रहा है। इस दायित्व को संभाल रही विदेश मंत्री सुषमा स्वराज का अब तक का कार्यकाल यह सिद्ध करता है कि संवेदनशीलता, मानवीयता, त्वरित

निर्णय लेने की क्षमता के मामले में उनका कोई जोर नहीं। इसके साथ ही यह भी जाहिर होता है कि विदेश मंत्री के रूप में उनका चुनाव प्रधानमंत्री द्वारा लिया गया कितना सूझ-बूझ और दूरदर्शिता से भरा निर्णय रहा है।

सीसीएस में स्थान

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के कार्यकाल में लिया गया एक और निर्णय महत्वपूर्ण है। यह पहला ऐसा अवसर है, जहां कैबिनेट कमेटी ऑन सिक्योरिटी (सीसीएस) में पहली बार दो महिला मंत्रियों को शामिल किया गया है। इस कमेटी में प्रधामंत्री के अलावा वित्त मंत्री, रक्षा मंत्री और विदेश मंत्री शामिल होते हैं।

कैबिनेट में 6 महिलाएं


11 - 17 दिसंबर 2017

आवरण कथा

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भारत की अग्निपुत्री डॉ. टेसी थॉमस

‘अग्नि पुत्री’ के नाम से मशहूर टेसी भारत के मिसाइल प्रोजेक्ट्स की अगुआई करने वाली पहली महिला हैं

डि

फेंस रिसर्च एंड डिवेलपमेंट ऑर्गनाइजेशन (डीआरडीओ) के एडवांस सिस्टम लेबोरेटरी की डायरेक्टर टेसी थॉमस को देश की पहली मिसाइल वीमेन कहा जा रहा है। ‘अग्नि पुत्री’ के नाम से मशहूर टेसी भारत के मिसाइल प्रोजेक्ट्स की अगुआई करने वाली पहली महिला हैं। पूर्व राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम को मिसाइल मैन ऑफ इंडिया कहा जाता है। हाल में टेसी ने हैदराबाद में आयोजित ग्लोबल आंत्रप्रेन्योर समिट को भी संबोधित किया। इस समिट में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की बेटी इवांका ट्रंप ने भी हिस्सा लिया था। टेसी का जन्म केरल के अलाप्पुझा में साल 1963 में हुआ था। उनके पिता एक छोटे व्यवसायी थे और मां हाउस वाइफ थीं। उन्होंने कलीकट यूनिवर्सिटी से इलेक्ट्रिकल में बीटेक किया है। इसके बाद पूना यूनिवर्सिटी से एमई (गाइडेड मिसाइल) किया। वह ऑपरेशंस मैनेजमेंट में एमबीए और मिसाइल गाइडेंस में पीएचडी कर चुकी हैं। साल 1988 में डॉ टेसी थॉमस ने डीआरडीओ ज्वाइन किया, जहां उन्होंने डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम के साथ काम किया। टेसी बलिस्टिक मिसाइल की एक्सपर्ट हैं। बिजनेसमैन आनंद महिंद्रा कहते हैं कि टेसी को किसी बॉलीवुड एक्टर से ज्यादा मशहूर होना

चाहिए। भारत की 3500 किमी तक मार करने वाली अग्नि- 4 मिसाइल के सफल परीक्षण के बाद से ही डॉ. टेसी थॉमस को अग्नि पुत्री के नाम से संबोधित किया जाने लगा था। अग्नि-2 से अग्नि-5 तक के सभी संस्करणों को विकसित करने में डॉ. टेसी थॉमस की महत्वपूर्ण भूमिका रही है। किसी संस्करण में इन्हें असिस्टेंट डायरेक्टर तो किसी में एसोसिएट डायरेक्टर तो कभी एडिशनल डायरेक्टर के रूप में काम करने का मौका दिया गया है और अग्नि -5 के संस्करण के लिए इन्हें मिशन-डायरेक्टर के रूप में कार्य करने का मौका दिया गया, जिसे इन्होंने सफलता के साथ पूरा किया है। अग्नि मिसाइल परियोजना देश की एक बहुत बड़ी वैज्ञानिक परियोजना है, जिसमे देश की दर्जनों प्रयोगशाला शामिल है। इसमें एक हजार से भी ज्यादा वैज्ञानिक शामिल है। डॉ. थॉमस कभी काम से नहीं थकने वाली वैज्ञानिक हैं। एक महिला वैज्ञानिक होने के नाते किसी भी प्रकार की विशेष छूट या सुविधा का वह हर समय विरोध करती हैं। उनका मानना है कि विज्ञान में प्रतिभा सर्वश्रेष्ठ होती है, यहां कोई जेंडर कमजोर या मजबूत नहीं होता, बल्कि प्रतिभा ही उसे मजबूत बनाती है। 2013 में भुवनेश्वर में आयोजित भारतीय विज्ञान कांग्रेस

के अधिवेशन को संबोधित करते हुए तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने डॉ. टेसी थॉमस को भारत की ‘वैज्ञानिक रत्न’ की संज्ञा देते हुए ही देश की महिलाओं को विज्ञान के क्षेत्र में आकर काम करने का आह्वान किया था। डॉ. टेसी थॉमस की तुलना उन्होंने नोबेल पुरुस्कार विजेता विजेता मैडम क्यूरी से की थी। डॉ. टेसी थॉमस को अनेक पुरस्कारों से सम्मानित किया जा चुका है। डॉ. थॉमस एक का दूसरा रूप और भी है। वह एक कुशल गृहिणी भी हैं, जब भी वह घर होती है तो कम से कम एक समय खुद खाना बनाती हैं।

नाविक सागर परिक्रमा

नाविक सागर परिक्रमा नामक यह मिशन आईएलएसवी नौका तारिणी के द्वारा पूरा होगा और इस मिशन पर निकली हैं नौसेना की 6 साहस से भरी महिला अधिकारी। इस मिशन से जुड़ी सभी सदस्य महिलाएं हैं। यह बहुत बड़े साहस का प्रमाण है। इस दल को प्रधानमंत्री मोदी की शुभकामनाओं के रूप में उनका विश्वास प्राप्त है। इस दल का नेतृत्व

लेफ्टिनेंट कमांडर वर्तिका जोशी कर रही हैं।

चीन से मिली हार का बदला भी चुका लिया।

इस वर्ष भारतीय महिला हॉकी टीम ने एशिया कप में शानदार प्रदर्शन करते हुए फाइनल में चीन को 5-4 से हराकर खिताब अपने नाम कर लिया। इस जीत के साथ भारतीय टीम ने विश्व कप 2018 के लिए भी क्वालीफाई कर लिया है। इस खिताबी मुकाबले का फैसला शूटआउट से हुआ। इससे पहले मैच का निर्धारित समय खत्म होने पर दोनों टीमें 1-1 से बराबर थीं। भारतीय महिला टीम का यह दूसरा एशिया कप खिताब है। इससे पहले भारत ने 2004 में इस प्रतिष्ठित खिताब को अपने नाम किया था जब उसने जापान को 1-0 से मात दी थी। इस जीत के साथ ही भारतीय टीम ने 2009 में इस टूर्नमेंट के खिताबी मुकाबले में

17 साल के इंतजार के बाद इस वर्ष भारत की मानुषी छिल्लर मिस वर्ल्ड चुनी गईं। चीन के समुद्र तटीय शहर सान्या में आयोजित मिस वर्ल्ड प्रतियोगिता में मानुषी ने खिताब अपने नाम किया। इससे पहले साल 2000 में प्रियंका चोपड़ा मिस वर्ल्ड बनी थीं।

एशिया कप हॉकी पर

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के मंत्रिमंडल के 27 सदस्यों में से 6 सदस्य महिलाएं हैं। देश की स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद से यह पहला ऐसा अवसर है, जब सदन में इतने बड़े स्तर पर महिला सदस्यों की भागीदारी सुनिश्चित की गई है

आईटीएलओएस में पहली भारतीय महिला

अंतरराष्ट्रीय लॉ एक्सपर्ट नीरू चड्ढा आईएलओएस की पहली भारतीय महिला सदस्य के रूप में चुनी गई हैं

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अग्नि- 4 मिसाइल के सफल परीक्षण के बाद से ही डॉ. टेसी थॉमस को अग्नि पुत्री के नाम से संबोधित किया जाने लगा था प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की कैबिनेट के 27 सदस्यों में से 6 सदस्य महिलाएं हैं। देश की स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद से यह पहला ऐसा अवसर है, इतने बड़े स्तर पर महिला सदस्यों की भागीदारी सुनिश्चित की गई है। ये सदस्य हैं- सुषमा स्वराज, निर्मला सीतारमण, मेनका गांधी, स्मृति ईरानी, उमा भारती और हरसिमरत कौर बादल।

नीरू चड्ढा

कामयाबी का सौंदर्य

हरियाणा में पैदा हुईं 20 साल की मानुषी ने इससे पहले मिस इंडिया-वर्ल्ड का खिताब जीता था। इस बार मिस वर्ल्ड प्रतियोगिता में कुल 121 सुदंरियों ने भाग लिया। प्रतियोगिता में मिस मैक्सिको एंड्रिया मेजा दूसरे स्थान पर और इंग्लैंड की स्टेफनी

रतीय महिलाओं की सबलता और सफलता आज पूरी दुनिया में देखी जा सकती है। उन्होंने हर क्षेत्र में अपने उद्यम और प्रतिबद्धता को साबित किया है। ऐसी ही उपलब्धि हासिल करने वालों में नीरू चड्ढा का नाम जुड़ गया है। संयुक्त राष्ट्र में भारत को एक बड़ी उपलब्धि हासिल कराते हुए अंतरराष्ट्रीय लॉ एक्सपर्ट नीरू चड्ढा को इंटरनेशनल ट्रिब्यूनल फॉर द लॉ ऑफ द सी (आईटीएलओएस) की पहली भारतीय महिला सदस्य के रूप में चुना गया है। संयुक्त राष्ट्र की यह न्यायिक इकाई समुद्र से जुड़े कानूनों पर फैसला करती है। वह 21 सदस्यीय अदालत में स्थान पाने वाली पहली भारतीय महिला न्यायाधीश हैं। नीरू चड्ढा प्रख्यात वकील हैं और विदेश मंत्रालय की चीफ लीगल एडवाइजर बनने वाली पहली भारतीय महिला थीं। आईटीएलओएस में उनका चयन नौ सालों के लिए किया गया है। आईटीएलओएस का गठन 1996 में किया गया था और इसका केंद्र जर्मनी के हैमबर्ग में हैं। नीरू चड्ढा एशिया प्रशांत समूह से एकमात्र उम्मीदवार थीं, जिन्हें पहले दौर के मतदान में चुना गया। इस दौरान 168 देशों ने मतदान किया। चड्ढा को 120 वोट मिले, जो एशिया प्रशांत समूह में सबसे ज्यादा है। यह सफलता अंतरराष्ट्रीय कानून के मामलों में भारत की वैश्विक स्थिति की सराहना एवं समुद्र संबंधी कानून से जुड़े समकालीन मामलों में वार्ताकार एवं वकील के तौर पर नीरू की विशेषज्ञता को दर्शाता है।

हिल तीसरे स्थान पर रहीं। पिछले साल अमेरिका के वॉशिंगटन डीसी में आयोजित मिस वर्ल्ड प्रतियोगिता में प्यूर्तो रिको की स्टेफनी डेल वेल विजेता बनी थीं। डेल ने मानुषी को मिस वर्ल्ड का ताज पहनाया। मानुषी छठी भारतीय हैं, जिन्होंने मिस वर्ल्ड का खिताब जीता है। 1966 में मिस वर्ल्ड का खिताब जीतने वाली पहली भारतीय महिला रीता फारिया थीं। इसके बाद 1996 में ऐश्वर्या राय, 1997 में डायना हेडन, 1999 में युक्ता मुखी और साल


04 आवरण कथा

11 - 17 दिसंबर 2017

2000 में प्रियंका चोपड़ा ने यह खिताब अपने नाम किया था। मानुषी के खिताब जीतने के बाद भारत ने सबसे ज़्यादा मिस वर्ल्ड खिताब जीतने वाले वेनेजुएला की बराबरी कर ली है। प्रतियोगिता के अंतिम पांच प्रतिभागियों में मिस इंडिया मानुषी छिल्लर, मिस मैक्सिको एंड्रिया मेजा, मिस इंग्लैंड स्टेफनी हिल, मिस फ्रांस ऑरोरे किचनिन और मिस केन्या मेगलाइन जेरुटो शामिल रहीं। प्रतियोगिता के आखिरी चरण में मानुषी से पूछा गया कि उनके हिसाब से कौन सा पेश सबसे ज्यादा तनख्वाह देने

के लायक है। इसके जवाब में उन्होंने कहा, ‘मेरा मानना है कि मां को सबसे ज्यादा सम्मान देना चाहिए और जब आप तनख्वाह की बात करते हो तो यह सिर्फ पैसों के लिए नहीं होता, बल्कि किसी के प्रति प्यार और सम्मान है, जो आप उसे देते हो। मां मेरे लिए हमेशा से सबसे बड़ी प्रेरणास्रोत रही हैं।’ मानुषी आगे कहती हैं, ‘सभी माताएं अपने बच्चों के लिए बहुत सारी कुर्बानियां देती हैं। इसीलिए मेरा मानना है कि यह मां हैं जिन्हें सबसे ज्यादा तनख्वाह मिलनी चाहिए।’

तनुश्री पारीक

बीएसएफ की महिला कॉम्बेट ऑफिसर

25 वर्षीया तनुश्री पारीक बीएसएफ के पांच दशक से ज्यादा के इतिहास में ‘कॉम्बेट ऑफिसर’ बनने वाली पहली महिला हैं

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छ उपलब्धियां ऐसी होती हैं, जो हासिल करने वाले के अपने जीवन में ‘मील का पत्थर’ तो होती ही हैं, दूसरे लाखों लोगों के लिए प्रेरणा का सबब भी बनती हैं। 25 वर्षीया तनुश्री पारीक की उपलब्धि भी कुछ ऐसी ही है। वह सीमा सुरक्षा बल (बीएसएफ) के पांच दशक से ज्यादा के इतिहास में ‘कॉम्बेट ऑफिसर’ बनने वाली पहली महिला हैं। ‘कॉम्बेट ऑफिसर’ यानी वह भारतीय सीमा की रक्षा में प्रत्यक्ष योगदान देंगी और जरूरत पड़ी तो आमने-सामने दुश्मनों से दो-दो हाथ भी करेंगी। परंपरागत रूप से सेना और अर्धसैनिक बलों में महिलाओं को फील्ड में ड्यूटी पर नहीं रखा जाता, लेकिन पिछले कुछ सालों से नियमों में बदलाव कर महिलाओं को फील्ड में तैनात किया जाने लगा है। अभी कुछ माह पहले ही 2016 में भारतीय वायुसेना ने तीन महिलाओं को पहली बार जेट फाइटर पायलट ढाई लाख से के रूप में चुना था। ज्यादा क्षमता राजस्थान के बीकानेर वाले बीएसफ की तनुश्री पारीक ने की स्थापना भी इस सिलसिले को आगे बढ़ाते हुए 1965 में हुई थी, लेकिन यहां इतिहास रचा है।

महिलाओं को ‘ऑपरेशन ड्टयू ी’ के लिए आवेदन करने की अनुमति 2013 में दी गई है

वर्तमान में ढाई लाख से ज्यादा क्षमता वाले सीमा सुरक्षा बल की स्थापना 1965 में हुई थी, लेकिन यहां महिलाओं को ‘ऑपरेशन ड्यूटी’ के लिए आवेदन करने की अनुमति 2013 में दी गई है। चार चरणों की कठिन भर्ती प्रक्रिया का सामना करने के बाद तनुश्री 2014 में बीएसएफ की पहली ‘महिला असिस्टेंट कमांडेंट’ के रूप में चुनी गईं। अपने साथ प्रशिक्षण प्राप्त करने वाले 67 प्रशिक्षु अधिकारियों की पासिंग आउट परेड का नेतृत्व भी 25 वर्षीया तनुश्री ने ही किया था। अपनी इस उपलब्धि से उत्साहित तनुश्री का कहना था, ‘मैं इतनी रोमांचित थी कि परेड के लिए मैंने खुद को दुगुने उत्साह के साथ तैयार किया। मुझे लगता है कि लड़कियों को कठिन कार्यों में सक्रिय रूप से हिस्सा लेने का समय आ गया है।’ उनकी पहली तैनाती पंजाब में भारतपाकिस्तान सीमा पर होने वाली है। तनुश्री ने आज इस मुकाम तक पहुंचने के लिए बहुत कड़ी मेहनत की है। 13 माह की बेहद कड़ी ट्रेनिंग के दौरान उन्होंने युद्ध कौशल, खुफिया सूचनाएं जुटाने और सीमा की सुरक्षा से जुड़े दूसरे कार्यों का प्रशिक्षण हासिल किया। अपनी टे्रनिंग के दौरान अपनी असाधारण उपलब्धियों के लिए उन्होंने ‘ड्रिल’, ‘ऑलराउंड बेस्ट ट्रेनी’ और ‘पब्लिक स्पीकिंग’ के तीन पुरस्कार भी हासिल किए। तनुश्री का मानना है कि अगर जिंदगी में कोई लक्ष्य निर्धारित कर लें और उसे हासिल करने के लिए पूरी तरह जुट जाएं तो असंभव कुछ नहीं हैं। उनका कहना है, ‘मेरा मानना है कि किसी पर निर्भर मत होइए। अपनी जिंदगी में अपना मुकाम हासिल करके आदमी को जो खुशी होती है, उससे एक अलग प्रकार का आत्मविश्वास आता है।’ उनका मानना है कि सैन्य बलों में जाने से जीवन में अनुशासन आता है। इसमें कोई संदेह नहीं कि आज तनुश्री भारत की बहुत सारी युवतियों के लिए रोल मॉडल बन चुकी हैं। बीएसएफ में तनुश्री पारीक जैसी महिलाओं के जाने से सीमा की सुरक्षा में दिनरात तैनात इस सैन्य बल की क्षमताओं में निश्चित रूप से इजाफा होगा।

मानुषी मेडिकल स्टूडेंट हैं और मेडिसिन में स्नातक की पढ़ाई कर रही हैं। उनका सपना कार्डियक सर्जन बनकर ग्रामीण इलाकों में गैर लाभकारी अस्पतालों की श्रृंखला खोलना है। मानुषी को आउटडोर गेम पसंद है। वह सक्रिय तौर पर पैराग्लाइडिंग, बंजी जंपिंग और स्कूबा डाइविंग में भाग लेती हैं। मानुषी एक प्रशिक्षित शास्त्रीय नृत्यांगना भी हैं। उन्हें स्केच बनाने और चित्रकारी करने का शौक है। खिताब जीतने के बाद अपने आधिकारिक ट्विटर हैंडल से मानुषी ने लिखा, ‘लगातार प्यार बनाए रखने, सहयोग और दुआएं देने के लिए सभी लोगों का शुक्रिया। यह भारत के लिए है।’ मानुषी के खिताब जीतने पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर

और पूर्व मिस वर्ल्ड व अभिनेत्री प्रियंका चोपड़ा ने उन्हें बधाई दी। स्वदेश लौटने पर मानुषी छिल्लर ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मुलाकात की। मानुषी जब प्रधानमंत्री मोदी से मिलीं तो उन्होंने प्रधानमंत्री से अपनी भविष्य की योजनाओं को लेकर भी चर्चा की। इस दौरान मानुषी का पूरा परिवार भी साथ था। इस मुलाकात के दौरान पीएम मोदी ने मानुषी छिल्लर की जमकर

नीता अंबानी

आईओसी की भारतीय महिला सदस्य 52 वर्षीय नीता अंबानी 70 वर्ष की उम्र तक इस पद पर बनी रहेंगी

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ता अंबानी इस वर्ष अंतरराष्ट्रीय ओलिंपिक समिति (आईओसी) की पहली भारतीय महिला सदस्य बन गईं। रियो में अंतरराष्ट्रीय ओलिंपिक समिति की 129वें सम्मेलन में उनका चुनाव किया गया। आईओसी सदस्यों की भर्ती की स्वतंत्र चयन प्रक्रिया अपनाती है, जो ओलंपिक एजेंडा 2020 की सिफारिशों पर आधारित है। नीता अंबानी अपनी इस कामयाबी पर कहती हैं,

‘आईओसी द्वारा चुने जाने से मैं वास्तव में अभिभूत हूं। यह विश्व स्तर पर भारत के बढ़ते महत्व की पहचान है। यह भारतीय महिलाओं की पहचान है।’ ओलिंपिक चार्टर और आईओसी नियमों के अनुसार जिस श्रेणी के तहत अंबानी के नाम पर विचार किया गया, वह उन स्वयंसेवकों के लिए है, जो आईओसी और ओलिंपिक अभियान का अपने देश में प्रतिनिधित्व करेंगे। इस साल जून में आईओसी की कार्यकारी बोर्ड ने उन्हें इस पद के लिए नामित किया था। भारतीय उद्योगपति मुकेश अंबानी की पत्नी नीता इस पद के लिए नामांकित होने वाली पहली भारतीय महिला भी थीं। 52 वर्षीय नीता 70 वर्ष की उम्र तक इस पद पर बनी रहेंगी। सर दोराबजी टाटा आईओसी में भारत की प्रतिनिधित्व करने वाले पहले भारतीय थे।

भवानी देवी

देश की गोल्डन गर्ल

तलवारबाजी में स्वर्ण पदक जीतने वाली भारत की पहली खिलाड़ी बन गई हैं भवानी देवी

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रत की भवानी देवी ने तलवारबाजी में इस साल इतिहास रच दिया है। आईसलैंड के रेकजाविक में स्वर्ण जीतकर अब वह तलवारबाजी में स्वर्ण पदक जीतने वाली भारत की

पहली खिलाड़ी बन गई हैं। उन्होंने आईसलैंड के रेकजाविक में हुई तुरनोई सेटेलाइट तलवारबाजी चैंपियनशिप में स्वर्ण पदक अपने नाम किया। फाइनल मुकाबले में भवानी देवी ने ग्रेट ब्रिटेन की सारा जेन हैम्पसन को 15-13 से शिकस्त दी। चेन्नई की इस महिला तलवारबाज ने इससे पहले सेमीफाइनल मैच में ब्रिटेन की ही एक अन्य तलवारबाज जेसिका कोरबी को 15-11 से हराया था।


11 - 17 दिसंबर 2017

आवरण कथा

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पहली बार चार हाईकोर्ट का नेतृत्व महिला जजों के हाथ में भारत के न्यायिक इतिहास में पहली बार चार बड़े और सबसे पुराने उच्च न्यायालयों की जिम्मेदारी महिला जजों के जिम्मे है

इंदिरा बनर्जी

मुख्य न्यायाधीश मद्रास हाईकोर्ट

जस्टिस जी रोहिणी

स साल 31 मार्च को इंदिरा बनर्जी के मद्रास हाईकोर्ट का मुख्य न्यायाधीश बनने से पहले मुंबई, दिल्ली और कोलकाता में मुख्य न्यायाधीश के पदों की जिम्मेदारी महिला जज निभा रही हैं। 24 सितम्बर 1957 को जन्मीं जस्टिस इंदिरा बनर्जी ने कलकत्ता यूनिवर्सिटी कॉलेज ऑफ लॉ से कानून की डिग्री हासिल की। 1985 में उन्होंने वकील के रूप में अपना करियर शुरू किया और 2002 में कलकत्ता हाईकोर्ट में पहली बार उन्हें स्थायी जज नियुक्त किया गया। अगस्त 2016 में उनका दिल्ली हाईकोर्ट ट्रांसफर कर दिया गया और फिर प्रोन्नत करते हुए, मद्रास हाईकोर्ट का मुख्य न्यायाधीश बनाया गया। इंदिरा बनर्जी समेत मद्रास हाईकोर्ट में छह महिला जज हैं, जबकि पुरुष जजों की संख्या 53 है।

तारीफ की और कहा कि ‘बेटी ने भारत का नाम रोशन किया है।’ इस मुलाकात के बाद पीएम मोदी ने अपने ट्वीट में लिखा, ‘आज मानुषी छिल्लर और उनके परिवार से मुलाकात की। उनकी इस उपलब्धि पर मैं उन्हें बधाई देता हूं।’ इस के बाद मानुषी ने भी ट्वीट कर प्रधानमंत्री मोदी को धन्यवाद दिया और लिखा, ‘आदरणीय प्रधानमंत्री जी हमसे मिलने और अपना समय देने के लिए धन्यवाद।’

अमेरिका में प्रीत की धूम

भारतवंशी प्रीत दीदबल अमेरिका की पहली सिख महिला मेयर चुनी गई हैं। उन्हें कैलिफोर्निया के यूबा

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मुख्य न्यायधीश दिल्ली हाईकोर्ट

ध्र प्रदेश के विशाखापत्तनम में 14 अप्रैल 1955 में पैदा हुईं जी रोहिणी विज्ञान की छात्रा रही हैं और लॉ की डिग्री हासिल करने के बाद 1980 में हैदराबाद हाईकोर्ट में वकालत शुरू की। 1995 में आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट में सरकारी वकील के रूप में उनकी नियुक्त हुई। 2001 में आंध्रप्रदेश हाईकोर्ट में एडिशनल जज बनीं और इसके अगले साल उन्हें स्थायी जज बनाया गया। दो साल पहले अप्रैल 2014 में वो दिल्ली हाईकोर्ट की मुख्य न्यायाधीश के रूप में नियुक्त हुईं। यहां 35 पुरुष जजों के मुकाबले, मुख्य न्यायाधीश समेत सिर्फ 9 महिला जज हैं। यहां भी वरिष्ठता क्रम में नंबर दो पर महिला जज जस्टिस गीता मित्तल हैं।

शहर का मेयर नियुक्त किया गया है। कैलिफोर्निया सिटी काउंसिल ने इस पद के लिए उन्हें सबसे योग्य उम्मीदवार माना। प्रीत 2014 में युबा सिटी काउंसिल की सदस्य बनी थीं और फिलहाल डिप्टी मेयर पद पर काबिज हैं। वह स्नातक तक पढ़ाई करने वाली अपने परिवार की पहली सदस्य हैं। गौरतलब है कि अमेरिका में कई सिख पुरुष पहले ही मेयर बन चुके हैं। पिछले महीने ही रवि भल्ला को न्यूजर्सी के होबोकन शहर का मेयर चुना गया था। सिख संगत के जयदीप सिंह कहते हैं, ‘किसी अपने जैसे और समान धर्म वाले व्यक्ति को इस देश में अहम पद पर देखना प्रेरणादायक और

जस्टिस निशिता म्हात्रे

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मुख्य न्यायाधीश कलकत्ता हाईकोर्ट

955 में जन्मीं निशिता म्हात्रे ने अपनी शुरुआती पढ़ाई पुणे से की। विज्ञान से स्नातक करने के बाद उन्होंने मुंबई के गवर्नमेंट लॉ कॉलेज से लॉ की डिग्री हासिल की। बार काउंसिल ऑफ महाराष्ट्र एंड गोवा के तहत उन्होंने बांबे हाईकोर्ट में 1978 में वकालत शुरू की। 2001 में उन्हें बांबे हाईकोर्ट में एडिशनल जज नियुक्त किया गया और इसके दो साल बाद ही उन्हें स्थायी जज बना दिया गया। 2012 में उन्हें कलकत्ता हाईकोर्ट का जज बनने के चार साल बाद दिसंबर 2016 में उन्हें कलकत्ता हाईकोर्ट में कार्यकारी मुख्य न्यायधीश के पद पर नियुक्त किया गया।

र्नाटक के बेल्लारी में पांच दिसंबरर 1955 को जन्मीं जस्टिस मंजुला चेल्लूर ने 1977 में लॉ की डिग्री बेंगलुरू के रेनुकाचार्य लॉ कॉलेज से हासिल की। जब 1978 में उन्होंने बेल्लारी में वकालत शुरू की तो वो यहां वो पहली महिला वकील थीं। फरवरी 2000 में वो कर्नाटक हाईकोर्ट में जज नियुक्त हुईं। वो यहां जज बनने वाली भी पहली महिला थीं। इसी साल अगस्त में उन्हें अस्थायी जज बनाया गया। 2011 में उन्हें केरल हाईकोर्ट का कार्यकारी मुख्य न्यायाधीश बनाया गया और फिर 2012 में मुख्य न्यायाधीश के रूप में नियुक्त हुईं। 2014 में जब वो कलकत्ता हाईकोर्ट की मुख्य न्यायाधीश बनीं तो वो यहां पहली महिला मुख्य न्यायाधीश थीं। पिछले साल 22 अगस्त को उन्हें बांबे हाईकोर्ट का मुख्य न्यायाधीश बनाया गया।

उत्साहजनक है। यह सिलसिला जारी है।’ युबा शहर में सिखों की बड़ी आबादी है। एक अनुमान के मुताबिक अमेरिका में करीब पांच लाख सिख रहते हैं।

डब्ल्यूडब्ल्यूडब्ल्यूई में कविता

मंजुला चेल्लूर

मुख्य न्यायाधीश बांबे हाईकोर्ट

महिला रेसलर कविता देवी ने वर्ल्ड रेसलिंग इंटरटेनमेंट के महिला विंग में स्थाेन बनाकर बड़ी उपलब्धि हासिल की है। कविता ऐसी पहली भारतीय महिला हैं, जिन्हें डब्ल्यूडब्ल्यूडब्ल्यूई में शामिल होने का मौका मिला है। कविता को महिला विंग में शामिल करने की घोषणा डब्ल्यूडब्ल्यूडब्ल्यूई

चैम्पियन जिंदर महल ने की। कविता देवी के बारे में महल ने कहा, ‘मैं डब्ल्यूडब्ल्यूडब्ल्यूई की महिला विंग में कविता का स्वागत करता हूं। यहां उनके पास मौका है कि वह डब्ल्यूडब्ल्यूडब्ल्यूई में भारत की ओर से चैंपियन बन सकती हैं।’ गौरतलब है कि स्कू​ूली दिनों में कबड्डी खेलने वाली कविता ने डब्ल्यूडब्ल्यूडब्ल्यूई के हैवीवेट चैंपियन 'द ग्रेट खली' से कोचिंग ली है। कविता देवी कुछ समय पहले ही सूट-सलवार और चुन्नीक पहनकर रेसलिंग रिंग उतरी थीं। उस समय 34 साल की कविता की फाइट का पहला विडियो डब्ल्यूडब्ल्यूडब्ल्यूई ने अपनी ऑफिशल


06 आवरण कथा

11 - 17 दिसंबर 2017

एक ग्रह को मिला सहिति पिंगली का नाम

सहिति ने वॉटर टेस्टिंग एक एप्लीेकेशन डेवलप किया है। इसी बात पर खुश होकर एमआईटी लिंकन लेबोरेटरी ने एक ग्रह को सहिति का नाम दे दिया है

नारी शक्ति पुरस्कार 33 महिलाओं को

भारत सरकार महिलाओं की उपलब्धियों और योगदान के मद्देनजर महिलाओं और संस्थानों को नारी शक्ति पुरस्कार प्रदान करती है

स वर्ष अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस 2017 के अवसर पर तत्कालीन राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने 33 महिलाओं को नारी शक्ति पुरस्कार से सम्मानित किया। भारत सरकार महिलाओं की उपलब्धियों और योगदान के मद्देनजर महिलाओं और संस्थानों को नारी शक्ति पुरस्कार प्रदान करती है। यह पुरस्कार उन नामित लोगों को प्रदान किए जाते हैं, जिन्होंने महिला सशक्तिकरण के लिए काम किया हो। 'बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ' मुहिम के लिए राजस्थान को सर्वश्रेष्ठ राज्य के तौर पर चुना गया। महिला एवं बाल विकास विभाग की ओर से बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ योजना के बेहतरीन क्रियान्वयन में किए गए बेहतरीन प्रयास व नवाचार तथा लिंगानुपात में सुधार के लिए राजस्थान को सर्वश्रेष्ठ राज्य के रूप में चुना गया। ‘बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ’ की मूल संकल्पना भारत सरकार के महिला एवं बाल विकास विभाग वेबसाइट पर रिलीज किया था। कविता इस विडियो में न्यूजीलैंड की रेसलर डकोटा काई के साथ फाइट करती नजर आईं। उन्हों्ने कीवी रेसलर डकोटा का जोरदार मुकाबला किया था।

परिणीति बनीं एंबेसडर

बॉलीवुड अभिनेत्री परिणीति चोपड़ा ऑस्ट्रेलियाई पर्यटन के लिए काम करने वाली पहली भारतीय महिला एंबेसडर बन गई हैं। टूरिजम ऑस्ट्रेलिया (टीए) के मुताबिक, ‘हाल ही में ऑस्ट्रेलियाई पर्यटन को बढ़ावा देने में योगदान के लिए ऑस्ट्रेलियाई

के तत्वाधान में पाली जिले में संचालित मिशन पूर्ण शक्ति से ली गई है। ईसरो के महत्वाकांक्षी 104 सेटेलाइट लांच में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाली तीन महिला साइंटिस्ट सुभा वेरियर, बी कोडायनायग्य और अनट्टा सोननी को भी इस पुरस्कार से सम्मानित किया गया। 20 साल की उम्र में डीजल ट्रेन चलाने वाली एशिया की पहली महिला मुमताज काजी को भी पुरस्कृत किया गया। कुपोषण को लेकर जागरुकता फैलाने वाली मोटरसाइक्लिस्ट पल्लवी फौजदार को नारी शक्ति पुरस्कार दिया गया। पश्चिम बंगाल की अनोयारा खातुन का नाम भी इस सूची में शामिल था. 50 नाबालिग बच्चों को शादी और 85 बच्चियों को तस्करी से बचाने के लिए उन्हें यह सम्मान दिया गया। पुरस्कृत होने वालों की सूची में देश की पहली ग्राफिक नोवेलिस्ट अमरुता पाटिल का नाम भी शामिल था।

महा-वाणिज्यदूत टोनी ह्यूबर ने परिणीति को 'फ्रेंड ऑफ ऑस्ट्रेलिया' (एफओए) बनाया है।’ परिणीति एफओए पैनल का हिस्सा बनने वाली पहली भारतीय महिला एंबेसडर होंगी। परिणीति से पहले प्रसिद्ध शेफ संजीव कपूर और क्रिकेट कमेंटेटर हर्षा भोगले भी भारतीयों को ऑस्ट्रेलिया घूमने जाने के लिए प्रोत्साहित करने की इस भूमिका को निभा चुके हैं। अपनी नई भूमिका में चोपड़ा ऑस्ट्रेलिया को एक पर्यटन गंतव्य के रुप में प्रचारित करेंगी।

लोकसभा की पहली महिला महासचिव

मध्य प्रदेश काडर की वरिष्ठ आईएएस अधिकारी स्नेहलता श्रीवास्तव लोकसभा की पहली महिला महासचिव बनी हैं। लोकसभा में यह पहला अवसर होगा जब महासचिव जैसे सर्वोच्च पद पर महिला आसीन होंगी। यह भी दिलचस्प संयोग है कि इस समय लोकसभा अध्यक्ष भी महिला हैं। हालांकि राज्यसभा में रमा देवी महासचिव का पद संभाल चुकी हैं।

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थ्वीा से लाखों प्रकाश वर्ष दूर एक छोटा सा ग्रह है, जिसे अब सहिति पिंगली के नाम से जाना जाएगा। सहिति ने कुछ ऐसा किया कि सम्मान में ग्रह को उसका नाम दिया जा रहा है। 16 साल की सहिति पिंगली बेंगलुरु में पढ़ती हैं। सहिति ने अपने शहर की एक झील को प्रदूषित होने से बचाने का नया उपाय खोज निकाला है, जिसके सम्मान में एमआईटी लिंकन लेबोरेटरी ने एक ग्रह को सहिति का नाम दे दिया। एमआईटी

को छोटे ग्रहों के नामकरण करने का दर्जा मिला है। इससे पहले सहिति इंटरनेशनल साइंस फेयर (आईएसईएफ) में शामिल हुईं थीं। जहां अर्थ एंड इनवॉयरमेंटल साइंस कैटेगरी में सहिति को दूसरा पुरस्कार मिला, जिससे खुश होकर एमआईटी ने सहिति के नाम पर ग्रह का नाम रखने का विचार किया। सहिति ने एक एप्लीकेशन डेवलप किया है, जो वॉटर टेस्टिंग के लिए डेटा इकट्ठा करता है। यह मोबाइल बेस्ड एप्प इलेक्ट्रॉनिक सेंसर पर काम करता है। जिसकी मदद से वॉटर सैंपल के फिजिकल और कैमिकल पैरामीटर को मापा जा सकता है। इस एप में कलर रिकगनाइजेशन और मैपिंग सॉफ्टवेयर भी इनबिल्ट है।

इस वर्ष भारतीय महिला हॉकी टीम ने एशिया कप में शानदार प्रदर्शन करते हुए फाइनल में चीन को 5-4 से हराकर खिताब अपने नाम कर लिया

गौरतलब है कि वर्ष 1982 बैच की आईएएस श्रीवास्तव हाल ही में केंद सरकार के न्याय विभाग के सचिव पद से सेवानिवृत हुई थीं। उन्हें वित्त मंत्रालय और नाबार्ड में वरिष्ठ पदों पर कार्य करने का अनुभव है। उनका कार्यकाल 30 नवंबर 2018 तक का होगा।

नवाबों की शहर की मेयर

उत्तर प्रदेश निकाय चुनाव हर बार से इतर इस बार कुछ खास मायने रखता है। इस चुनाव में नवाबों के शहर लखनऊ ने एक नया इतिहास बनाया है। करीब सौ साल बाद लखनऊ में मेयर के पद पर कोई महिला आसीन हुई है। 1916 में उत्तर प्रदेश म्युनिसिपल एक्ट बनने के बाद नवाबों के शहर लखनऊ को इन 100 सालों में पहली बार एक मेयर पद पर एक महिला आसीन हुई। लखनऊ मेयर पद पर बीजेपी की संयुक्ता भाटिया ने जीत दर्ज की है। इस सीट पर बीजेपी, बीएसपी, एसपी, कांग्रेस आप सहित सभी पार्टियों ने महिला उम्मीदवार खड़े किए थे। इसका कारण यह था कि इस सीट को महिलाओं के लिए आरक्षि‍त कर दिया गया था। किसी भी महिला की जीत एक रिकार्ड ही बनता।

अनूठी कामयाबी का शिखर

अरुणाचल प्रदेश की निवासी अंशू जामसेन्पा ने इस वर्ष रिकॉर्ड पांचवीं बार दुनिया की सबसे ऊंची चोटी माउंट एवरेस्ट पर चढ़ाई कर एक नया इतिहास रचा है। वह ऐसा करने वाली पहली भारतीय महिला पर्वतारोही हैं। इसके अलावा अंशू ने पांच दिनों के भीतर दो बार माउंट एवरेस्ट की चढ़ाई पूरी की। उन्होंने इससे पहले इसी साल 16 मई को दुनिया की सबसे ऊंची चोटी की चढ़ाई चौथी बार पूरी की थी। दो बच्चों की मां अंशू ने मई 2011 में दो बार माउंट एवरेस्ट की चढ़ाई की थी और इसके बाद 18 मई 2013 को उन्होंने तीसरी बार फिर इसे फतह किया था।


महिला क्रिकेटरों का दमखम

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आवरण कथा

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भारतीय महिला टीम के अब तक के सफर को देखते हुए लग रहा है कि यह खेल को आगे ले जाने का बिल्कुल सही समय है- झूलन गोस्वामी

खास बातें वर्ल्ड कप फाइनल मैच में इंग्लैंड से नौ रन से हारी भारतीय टीम जीत के लिए 229 रन के लक्ष्य था भारत के सामने श्रबसोल को शानदार गेंदबाजी के लिए मैन ऑफ द मैच चुना गया

एसएसबी ब्यूरो

स वर्ष भारतीय महिला क्रिकेट टीम ने शानदार प्रदर्शन किया। क्रिकेट के ऐतिहासिक लॉर्ड्स मैदान पर भारतीय टीम को विश्व कप के फाइनल मुकाबले में मेजबान इंग्लैंड टीम के हाथों 9 रनों से हार का सामना जरूर करना करना पड़ा। पर जिस तरह से महिला भारतीय क्रिकेट टीम ने पूरे विश्व कप में बेहतरीन खेल दिखाया उससे उन्होंने सभी क्रिकेट प्रेमियों का दिल जीत लिया। विश्व कप में भारतीय टीम के फाइनल तक के सफर में अनुभवी तेज गेंदबाज झूलन गोस्वामी ने अहम भूमिका निभाई। महिला क्रिकेट पर बयान देते हुए झूलन ने कहा, ‘भारतीय महिला टीम के अब तक के सफर को देखते हुए लग रहा है कि यह खेल को आगे ले जाने का बिल्कुल सही समय है।’ फाइनल मुकाबले के बाद झूलन ने लंदन में मीडिया से बातचीत में कहा, ‘यह महिला क्रिकेट में निवेश करने का सही समय है।’ उन्होंने कहा, ‘मैं यहां से महिला क्रिकेट में नया उदय देखती हूं। इस समय महिला क्रिकेट सही राह पर है और यहां से एक नए सफर की शुरुआत होगी।’ झूलन ने कहा, ‘मैं मैच के बारे में बात नहीं करना चाहती। हमें चारों ओर से सराहाना मिल रही है, यह हमारे लिए अच्छा अहसास है। लेकिन अगर हम फाइनल जीत जाते तो बात अलग होती। हम जिस तरह से फाइनल हारे, उससे हम दुखी हैं। अगली बार हम अच्छा करने की कोशिश करेंगे। इस टूर्नामेंट में सभी खिलाड़ियों ने अच्छा प्रदर्शन किया और सभी को अपने आप पर गर्व करना चाहिए।’ आपको बता दें कि इंग्लैंड के खिलाफ फाइनल मुकाबले

में बेहतरीन गेंदबाजी का प्रदर्शन करते हुए झूलन ने 23 रन देकर तीन विकेट चटकाए थे, जिसके कारण भारत ने इंग्लैंड टीम को 228 रनों पर सात विकेट पर ही सीमित कर दिया था। भारत के सामने जीत के लिए 229 रनों का लक्ष्य था लेकिन पूरी टीम 219 के स्कोर पर सिमट गई। रोमांचक मोड़ पर पहुंचे मुकाबले में भारत ने अपने 6 विकेट सिर्फ 23 रनों पर गंवा दिए जिसके कारण टीम इंडिया को हार का सामना करना पड़ा।

स्टार क्रिकेटरों की शाबासी

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने रेडियो कार्यक्रम 'मन की बात' में भारतीय महिला क्रिकेट टीम की सराहना की। मोदी ने कहा कि भले ही महिला टीम वर्ल्ड कप फाइनल में हारी हो, लेकिन उसने देशवासियों का दिल जीत लिया। प्रधानमंत्री ने बताया कि वर्ल्ड कप की समाप्ति के बाद, जब वो महिला खिलाड़ियों से मिले, तो उन्होंने कहा था कि वे अपने दिमाग से असफल होने की बात निकाल दें। भले ही आपने मैच जीता हो या नहीं, आपने निश्चित तौर पर देशवासियों का दिल जीत लिया। पीएम मोदी ने कहा, 'मैं उनके चेहरे पर तनाव देख सकता था। मैंने कहा, ‘देखिए, यह मीडिया का युग है। इस कारण उम्मीदें इस स्तर पर पहुंच गई हैं कि अगर कोई पहले से तय सफलता हासिल नहीं करता है, तो यह निराशा यहां तक कि असंतोष में तब्दील हो जाती है।’ इंग्लैंड के हाथों महिला विश्व कप फाइनल में हारने पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी मोदी ने ट्विटर पर लिखा, ‘ हमारे क्रिकेटरों ने आज सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन किया । उन्होंने विश्व कप में जबर्दस्त कौशल और संयम का प्रदर्शन किया । हमें टीम पर गर्व है।’

भारतीय महिला टीम की पूर्व कप्तान झूलन गोस्वामी ने ऑस्ट्रेलिया की कैथरीन फिट्जपैट्रिक को पछाड़ कर वनडे क्रिकेट में सबसे ज्यादा विकेट लेने वाली महिला खिलाड़ी बनने का रिकॉर्ड इस साल अपने नाम कर लिया है। झूलन के 153 वनडे मैचों में अब 181 विकेट हो गए हैं। 34 वर्षीय झूलन ने दक्षिण अफ्रीका में खेली जा रही चार देशों की सीरीज के मैच में तीन विकेट हासिल कर कैथरीन का रिकॉर्ड तोड़कर नया मुकाम हासिल किया। झूलन के नाम अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट के तीनों प्रारुपों वनडे, टेस्ट और टी-20 को मिलाकर कुल 271 विकेट दर्ज हैं। वह महिला क्रिकेट की सबसे तेज गेंदबाज मानी जाती हैं और 2002 से भारतीय टीम की प्रमुख खिलाड़ी हैं। झूलन महिला क्रिकेट में सबसे ज्यादा विकेट लेने वाली गेंदबाद भी हैं। उन्हें 2007 में आईसीसी ने वर्ष की सर्वश्रेष्ठ महिला खिलाड़ी भी चुना था। उन्हें भारत सरकार ने 2010 में अर्जुन अवॉर्ड और दो साल बाद पद्मश्री से नवाज चुकी है।

पीएम मोदी की सराहना

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि भले ही महिला टीम वर्ल्ड कप फाइनल में हारी हो, लेकिन उसने देशवासियों का दिल जीत लिया

वर्ल्ड कप जीतने से चूकने पर सचिन तेंदुलकर ने कहा, ‘आप सभी का दर्द समझ सकता हूं। पूरे टूर्नामेंट में आपने अच्छा खेला पर कई बार जीत किस्मत में नहीं होती।’ वीरेंद्र सहवाग ने ट्वीट किया,‘सभी लड़कियों पर गर्व है। आज किस्मत ने साथ नहीं दिया, लेकिन भारत में महिला क्रिकेट की किस्मत बदल गई। आप सभी को धन्यवाद। आपके जज्बे को नमन।

झूलन ने रचा इतिहास

शांता का सम्मान

भारतीय महिला क्रिकेट टीम की पहली कप्तान शांता रंगास्वामी को भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड (बीसीसीआई) सम्मानित किया। इस सम्मान को पाने वाली वो पहली महिला क्रिकेट खिलाडी बनीं।

लौह महिला मैरी

मैरी कॉम ने इस वर्ष एशियन बॉक्सिंग चैंपियनशिप में गोल्ड मेडल जीतकर फिर दिखाया दम

एसएसबी ब्यूरो

ज किसी परिचय की मोहताज नहीं हैं। उन्होंने पूरे विश्व में अपनी प्रतिभा का लोहा मनवाया है। वह ऐसी महिला हैं जिसने बताया कि मां बन जाने के बाद एक लड़की की जिंदगी सिर्फ बच्चों या घर गृहस्थी तक सीमित नहीं रहती, बल्कि वह अपने सपनों को जीने और उन्हें साकार करने का हक भी रखती है। संघर्षों के बावजूद उन्होंने कभी हार नहीं मानी। बॉक्सिंग के बारे में कहा जाता रहा है कि यह भारतीय महिलाओं के बस की बात नहीं। इस पूर्वाग्रह को न सिर्फ उन्होंने तोड़ा बल्कि विश्व विजेता और ओलंपियन भी बनीं। इन दिनों कहा जा रहा था कि मैरी का करियर अब ढलान पर है, लेकिन उन्होंने फिर अपने आलोचकों को करारा जवाब दिया है। मैरी कॉम ने 48 किलोग्राम भार वर्ग में एशियन बॉक्सिंग चैंपियनशिप में आठ नवंबर को गोल्ड मेडल जीता। इस खिताबी मुकाबले में मैरी कॉम ने उत्तर कोरिया की किम ह्यांग-मी को हराया। पांच बार की विश्व चैंपियन और वर्तमान राज्यसभा सांसद बॉक्सर एमसी मैरी कॉम ने एशियन बॉक्सिंग चैंपियनशिप टूर्नामेंट में जापानी बॉक्सर को हराकर फाइनल में जगह बनाई थी। मैरी कॉम की यह सफलता पूरे देश और खासतौर पर महिलाओं के लिए गर्व की बात है। स्पष्ट है कि अगर आप में समर्पण, त्याग, हौसला और दृढ़ इच्छाशक्ति है तो कोई भी आपको आगे बढ़ने से नहीं रोक सकता। लंदन ओलंपिक की ब्रांज मेडल विजेता मैरी कॉम ने एशियाई मुक्केबाजी चैम्पियनशिप में पांचवी बार गोल्ड जीता है। मैरी कॉम ने हालांकि इस टूर्नामेंट में 48 किलोग्राम वर्ग में पहली बार स्वर्ण पदक जीता है। मणिपुर की स्टार मुक्केबाज मैरी कॉम की इस कामयाबी का इस लिहाज से भी महत्व है कि उन्होंने करीब एक साल बाद मुक्केबाजी रिंग में वापसी की। इससे पहले मैरी कॉम ने 2014 में इंचियोन में हुए एशियाई खेलों के 51 किलोग्राम वर्ग में गोल्ड मेडल जीता था। ऐसा करने वाली वह पहली भारतीय महिला थीं।


08 आवरण कथा इन महिलाओं ने भी खींचा ध्यान 11 - 17 दिसंबर 2017

यूट्यूब स्टार लिली सिंह

यूनिसेफ की नवनिर्वाचित राजदूत लिली की वीडियो वेबसाइट पर लगभग 11.9 मिलियन लोग हैं

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निसेफ ने भारतीय मूल की कनाडाई यूट्यूब स्टार लिली सिंह को अपना वैश्विक सद्भावना राजदूत नियुक्त किया है। यूट्यूब पर लिली को 'सुपर वूमन' के नाम से जाना जाता है। वह अपनी कुछ हिंदी वीडियो के साथ यूट्यूब पर आती हैं और वह अपने वीडियो, ब्लॉगों और चैनल के माध्यम से ज्यादा से ज्यादा हिंदी को बढ़ावा दे रहीं हैं। इसके लिए वह अपने इंग्लिश ब्लॉग, वीडियो और चैनल में उपशीर्षक हिंदी में ही डालने का अधिकतर प्रयास करती हैं, जिससे उनके चैनल की पहुंच ज्यादा से ज्यादा लोगों तक हो। यूनिसेफ द्वारा चलाई जा रही योजना यूथ फॉर चेंज स्वास्थ्य, स्वच्छता, बाल श्रम और लिंग समानता जैसे मुद्दों पर कार्रवाई करने के लिए अपने साथियों और समुदायों को एकजुट करतीं हैं। लिली ने कहा कि मुझे सद्भावना राजदूत के रूप में शामिल करने और हर बच्चे तक पहुंचने के अपने मिशन में मेरी आवाज का उपयोग करने के लिए मैं यूनिसेफ की बहुत आभारी हूं। यूनिसेफ की नवनिर्वाचित राजदूत लिली की वीडियो वेबसाइट पर लगभग 11.9 मिलियन लोग हैं। वह इसका इस्तेमाल संगठन के काम को दिखाने के लिए करेंगी और साथ ही बच्चों के अधिकारों के लिए काम करने के लिए लोगों से आग्रह भी करेंगी। इस 28 वर्षीय लड़की ने सोशल मीडिया पर एक नई पहल की शुरुआत कर दी है, जिसका उद्देश्य लड़कियों और बच्चों के अधिकारों के लिए कार्य करना है।

ब्रिटेन में छाई प्रीत

प्रीत कौर गिल ब्रिटेन में उन 11 सांसदों में से एक हैं, जो गृह मंत्रालय का कार्य देख रही हैं न के संसदीय चयन समिति में पहली बार सिख महिला सांसद प्रीत कौर गिल को चुना गया है। चयन ब्रिटेसमिति गृह कार्यालय के कामकाज का निरीक्षण करती है। प्रीत लेबर पार्टी की सांसद हैं और इन्होंने

बर्मिंघम एबेस्टन सीट से वर्ष 2017 में चुनाव जीता है। प्रीत उन 11 सांसदों में से एक हैं, जो गृह मंत्रालय के क्रियाकलाप को देख रही हैं। लेबर पार्टी की सांसद कैथ वैज नौ साल के लिए इस चयन समिति की अध्यक्ष थीं, लेकिन पिछले साल सितंबर में उन्हें ड्रग्स के आरोपों के कारण पद छोड़ना पड़ा। प्रीत गिल ने कहा कि चयन समिति में चुने जाने के बाद वह बेहद खुश हैं। संसद के भंग होने के बाद इस समिति को निरस्त कर दिया गया था, लेकिन अब पुन: इसे बहाल किया गया है। उन्होंने बताया कि मैं जांच के काम में रुचि रखती हूं और विशेषकर बच्चों के यौन शोषण के मामले को देखूंगी। प्रीत ने बताया कि उन्होंने दिल्ली में स्ट्रीट चिल्ड्रेन पर बहुत काम किया है। 11 सांसदों वाली इस समिति के एक अन्य 44 वर्षीय सदस्य ने कहा, ‘इस चुनाव से पहले हमारे पास एक भी सिख सांसद नहीं था। इसीलिए सिख का कोई प्रतिनिधि नहीं था।’ ब्रिटिश सिखों के लिए ऑल पार्टी पार्लियामेंट्री ग्रुप (एपीपीजी) का नेतृत्व के लिए भी गिल को चुना गया है। यह ग्रुप भारत और ब्रिटेन के सांसदों और लोगों के बीच सहयोग व समझौतों को आगे बढ़ाने के लिए काम करता है।

जैविक खेती में ‘पूर्वी’ बयार

दबंग लेडी संयुक्ता

बहादुर आईपीएस अफसर संयुक्ता ने 15 महीने में ही 16 आतंकियों को मार गिराया और 64 से ज्यादा को हिरासत में लिया

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ल के दौर में कई ऐसी महिला पुलिस अधिकारी उभर कर सामने आई हैं, अपनी बहादुरी और कर्तव्यनिष्ठा का परिचय देते हुए भ्रष्टाचार और आतंकवाद पर नकेल कस रखी है। ऐसी बहादुर और ईमानदार महिला पुलिस अधिकारी हैं संयुक्ता पराशर। उन्होंने असम में पिछले कई सालों से आतंकवाद के खिलाफ मोर्चा संभाल रखा है। जिन्हें असम की पहली महिला आईपीएस अधिकारी होने का गौरव भी प्राप्त है। संयुक्ता को बचपन से ही खेल-कूद में बेहद दिलचस्पी थी। संयुक्ता स्कूली दिनों से ही अपने राज्य में आतंवादियों व भ्रष्टाचारियों के कहर से बेहद चिंतित थी। इसीलिए उन्होंने अच्छी रैंक लाने के बावजूद भी असम में ही काम कर अपने राज्य की तस्वीर सुधारने का फैसला किया। 2008 में संयुक्ता की पहली पोस्टिंग माकुम में असिस्टेंट कमांडेंट के तौर पर हुई, लेकिन कुछ ही महीनों के बाद उन्हें उदालगिरी में हुई बोडो और बांग्लादेशियों के बीच की जातीय हिंसा को काबू करने के लिए ट्रांसफर कर दिया गया। अपने ऑपरेशन के महज 15 महीने में ही इन्होंने 16 आतंकियों को मार गिराया और 64 से ज्यादा आतंकियों को अपनी हिरासत में ले लिया। संयुक्ता चार वर्षीय बच्चे की मां हैं, लेकिन इसके बावजूद आतंकियों के छक्के छुड़ाने में माहिर हैं।

पूर्वी व्यास आज जैविक खेती के क्षेत्र में महिला शक्ति को साबित करने वाली रोल मॉडल हैं

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रत में कृषि कार्यों से महिलाएं पारंपरिक तौर पर जुड़ी रही हैं। महिला सशक्तीकरण के लिहाज से यह बड़ी बात है। ऐसी ही एक महिला हैं पूर्वी व्यास। ऑस्ट्रेलिया की वेस्टर्न सिडनी यूनिवर्सिटी से पर्यावरण प्रबंधन में स्नातक करने वाली पूर्वी व्यास की जिंदगी उनके एक फैसले ने पूरी तरह बदल दी। अब वह पूरी तरह से जैविक किसान बन चुकी हैं। वह अगली पीढ़ी के किसानों और युवाओं को सिखा रही हैं कि किस तरह खेती करके भी अच्छी जिंदगी बिताई जा सकती है। 1999 में अपना पोस्ट ग्रेजुएशन पूरा करने के बाद पूर्वी ऑस्ट्रेलिया से लौटकर भारत आ गईं। उन्होंने कुछ गैर सरकारी संगठनों के साथ मिलकर स्थिरता और विकास के लिए काम करना शुरू कर दिया। 2002 में उन्हें प्रसिद्ध पर्यावरणविद् बीना अग्रवाल के साथ एक प्रोजेक्ट पर किसान समुदाय के लिए काम करने का पहला मौका मिला। इस रिसर्च के लिए वह दक्षिणी गुजरात के नेतरंग और देडियापाड़ा जैसे आदिवासी इलाकों में गईं। यहां रहते हुए उन्हें समझ में आया कि शहर में रहने वाले लोगों की पर्यावरण के प्रति गंभीरता की बातों और उनके रहन-सहन में पर्यावरण को शामिल करने के बीच कितनी गहरी खाई है। पूर्वी व्यास आज जैविक खेती करने वाली सफल किसान तो हैं ही, साथ ही उनके पास एक डेयरी फार्म भी है।


11 - 17 दिसंबर 2017

इंद्राणी जूनियर नोबेल

मिलावटखोरी के खिलाफ अनुपमा

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जूनियर नोबेल कहे जाने वाले अमे​िरका की रीजेनेरोन साइंस टैलेंट सर्च प्रतियोगिता में इस बार भारतीय मूल के छात्रों का रहा दबदबा

आईएएस अफसर अनुपमा ने महज 15 महीने में ऐसी कार्रवाई की कि केरल के मिलावटखोर उनके नाम से थर-थर कांपने लगे

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ष्टाचार को खत्म करके ईमानदारी से काम करने की कवायद देश के प्रधानमंत्री मोदी तब से कर रहे हैं, जब से उनकी केंद्र में सरकार बनी है। इसी कवायद को केरल की आईएएस ऑफिसर टी वी अनुपमा आगे बढ़ा रही हैं। अनुपमा ने कार्यभार संभालते ही ऐसा कमाल कर दिखाया कि महज 15 महीने में केरल के मिलावटखोर उनके नाम से थर-थर कांपने लगे। बता दें कि यह एक संयोग ही है कि जब केंद्र में मोदी की सरकार बनी, तो उसी दौरान केरल में आईएएस अनुपमा को फूड सेफ्टी कमिश्नर बनाया गया। उसके बाद कार्यभार संभालते ही अनुपमा ने मिलावटखोरों पर नकेल कसने के लिए एक अभियान की शुरुआत की। अनुपमा ने राज्य के कई फल और सब्जी मंडियों में छापेमारी कराई। इस छापेमारी के दौरान उन्हें 300 फीसदी तक कीटनाशक पदार्थ मंडियों से प्राप्त हुए। जनता की सेहत के साथ हो रहे इस खतरनाक खेल को देख कर अनुपमा दंग रह गईं। उन्होंने फैसला लिया कि वह इन मिलावटखोरों को सबक जरूर सिखाएंगी। कई बड़े ब्रांड की कराई जांच इसके साथ ही उन्होंने केरल के पेस्टीसाइड लॉबी के खिलाफ जंग छेड़ दी। इसके तहत तमाम खाद्य पदार्थों में मिलावट की जा रही थी। अनुपमा ने कई बड़े ब्रांड के हल्दी, धनिया, मसाले, मिर्च पाउडर के सैंपलों की जांच कराई। यह जांच उन्होंने पूरे राज्य में कराई और इसके साथ ही उन्होंने एक बड़े ब्रॉन्ड को यह कह कर प्रतिबंधित कर दिया कि उसके बने उत्पादों में वह पदार्थ अधिक मात्रा में मिला हुआ है, जिसकी अनुमति नहीं है। 750 व्यापारियों पर दर्ज करवाया मुकदमा महज 15 महीने में इस तेज-तर्रार महिला आईएएस ऑफिसर ने 6 हजार से ज्यादा नमूने भरवाए और दोषी पाए जाने वाले 750 व्यापारियों पर मुकदमा भी दर्ज करवाया। इससे केरल में चल रहे मिलावटखोरी के अरबों के व्यापार की नींव हिल गई। अनुपमा का खौफ मिलावटखोरों में इस कदर बैठ गया कि वे सोच में पड़ जाते हैं कि ना जाने कब वह अपनी टीम के साथ आ धमकेंगी और गड़बड़ी मिलते ही जेल में बंद कर देंगी। अनुपमा की इस तेज कार्रवाई के चलते कई व्यापारियों ने तुरंत मिलावटखोरी से तौबा कर ली।

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रती मूल की 17 वर्षीय अमेरिकी छात्रा इंद्राणी दास को इस साल के रीजेनेरोन साइंस टैलेंट सर्च पुरस्कार से नवाजा गया है। इसे साइंस का जूनियर नोबेल कहा जाता है। यह पुरस्कार अमेरिका में हाई स्कूल के विज्ञान और गणित के छात्रों की प्रतियोगिता के विजेता को दिया जाता है। इंद्राणी को न्यूरोलॉजी के क्षेत्र में उनके प्रोजेक्ट के लिए यह पुस्कार दिया गया है। इंद्राणी के प्रोजेक्ट में मानव मस्तिष्क में चोट लगने के बाद होने वाले नुकसान का इलाज करने का नया तरीका बताया गया है। वह बताती हैं उन्हें तो यकीन ही नहीं हो रहा है कि उन्हें जूनियर नोबेल पुरस्कार मिला है। उनके ही शब्दों में, ‘जब यह पुरस्कार मुझे मिला तो मुझे तो बहुत अचंभा हुआ था, मुझे तो अब भी यकीन नहीं होता। मैं तो बार-बार उस लम्हे को याद करती हूं, लेकिन मैं अपने को बहुत भाग्यशाली समझती हूं। मेरे माता पिता ने तो पूरा पुरस्कार समारोह टीवी पर देखा था, उन्हें भी यकीन नहीं आ रहा था कि मुझे पुरस्कार मिला।’ इस वैज्ञानिक प्रतियोगिता में शामिल होने वाले छात्रों ने कैंसर समेत कई जानलेवा बीमारियों से लेकर जलवायु परिवर्तन से निपटने के विभिन्न तरीकों का प्रदर्शन किया था। वैसे इस प्रतियोगिता में भारतीय मूल के छात्रों का ही डंका बजा। इसमें भारतीय मूल के ही छात्र अर्जुन रमानी तीसरे नंबर पर रहे। इसके अलावा इस प्रतियोगिता में पहले 10 विजेताओं में से 5 भारतीय मूल के युवा हैं। पहले नंबर की विजेता इंद्राणी दास को 250,000 अमेरिकी डॉलर भी इनाम में मिले, जबकि तीसरे नंबर पर आने वाले अर्जुन रमानी को 150,000 डॉलर मिले। इंद्राणी न्यू जर्सी के ओराडेल में रहती हैं और करीब के हैकेनसैक इलाके में अकादमी फॉर मेडिकल साइंस टेक्नोलोजी की छात्रा हैं।

प्रताड़ना के खिलाफ जसविंदर

‘छोटी’ को बड़ा सम्मान

आवरण कथा

बिहार की दलित बेटी छोटी कुमारी को शिक्षा और सेवा में क्षेत्र में उनके कार्य के लिए मिला अंतरराष्ट्रीय सम्मान

माज के अंतिम पायदान पर माने जाने वाले मुसहर समाज के लोगों की मदद करने वाली बिहार के भोजपुर जिले की 20 वर्षीय छोटी कुमारी सिंह को स्विट्जरलैंड स्थित वीमेंस वर्ल्ड समिट फाउंडेशन ने ग्रामीण परिवेश में महिलाओं द्वारा किए जाने वाले रचनात्मक कार्यों की श्रेणी में सम्मानित किया है। दिलचस्प है कि छोटी खुद सवर्ण जाति से आती हैं। बावजूद इसके उन्होंने वर्ष 2014 में अपने गांव रतनपुर में मुसहर समुदाय के लोगों को शिक्षा देना और सामाजिक स्तर पर उनकी सहायता करनी शुरू करने का साहसिक फैसला लिया। उन्हें इसकी प्रेरणा आध्यात्मिक और मानवतावादी माता अमृतानंदमयी देवी (अम्मा) के प्रतिष्ठित अमृतानंदमयी मठ द्वारा संचालित एक कार्यक्रम में शामिल होने के बाद मिली थी। अभी तक मुसहर समुदाय के 108 बच्चों को ट्यूशन देने में कामयाब रही छोटी का कहना है कि ज्यादातर भूमिहीन श्रमिकों के रुप में काम करने वाले उसके गांव के मुसहर समुदाय के लोग बेहद गरीब हैं। छोटी ने एक स्वयं सहायता समूह भी शुरू किया, जिसमें इस समुदाय की हर महिला एक महीने में 20 रुपए बचाकर घर-आधारित गतिविधियों को शुरू करने के लिए बैंक खाता में जमा करती है।

पारिवारिक उत्पीड़न और विवाह को लेकर होने वाली ज्यादतियों से महिलाओं को बचाने में जुटी हैं जसविंदर

ज भी कुछ इलाकों में लड़कियों को शादी के लिए मजबूर किया जाता है। महिलाओं को इस प्रताड़ना से बचाने की लंबी लड़ाई 52 साल की जसविंदर संघेरा लड़ रही हैं। जसविंदर का एक गैर-सरकारी संगठन ‘कर्मा निर्वाण’ है। यह संगठन अपमानजनक संबंध में फंसी या दबाव में की जाने वाली शादी से बचाने और महिलाओं के साथ होने वाले किसी भी तरह के अपराध के खिलाफ उनकी मदद करता है। जसविंदर एक अत्यधिक प्रशंसित अंतरराष्ट्रीय स्पीकर और अदालतों की एक विशेषज्ञ सलाहकार भी हैं। जसविंदर को ‘दबाव में किए जाने वाले विवाह के मुद्दे’ को सार्वजनिक क्षेत्र में लाने के लिए जाना जाता है। ब्रिटेन के पूर्व प्रधान मंत्री डेविड कैमरन ने कहा कि उनके काम ने ‘दबाव में किए जाने वाले विवाह के मुद्दे’ पर मेरा ध्यान खींचा। उनकी पहली पुस्तक ‘शेम’, जिसमें जसविंदर ने अपने अनुभवों का वर्णन किया है और दूसरी ‘डाटर्स ऑफ शेम’ में उन हजारों महिलाओं के बारे में लिखा है, जिन्होंने चैरिटी के लिए दान किया था। उनके संस्मरण 'शेम' टाइम्स के शीर्ष 10 बेस्टसेलर में से एक था। जसविंदर ने कहा कि ब्रिटेन से सैकड़ों लड़कियां शादी करने के लिए प्रत्येक वर्ष भारत या पाकिस्तान भेजी जाती हैं। यह शादी उनकी मर्जी के खिलाफ होती है। यह सांस्कृतिक मूल्यों को बनाए रखने के अलावा कुछ भी नहीं है। यह ब्रिटेन में उनके पतियों के पासपोर्ट को सुरक्षित करने का गलत तरीका है। अपने घर से बाहर निकल कर विभिन्न पार्कों में कई रात गुजारने के बाद जसविंदर को इस क्रूरता से लड़ने के लिए एक आदर्श वाक्य मिला।


10 पर्यावरण

11 - 17 दिसंबर 2017

बिटिया के साथ फलते-फूलते हैं पेड़ बिहार के अनूठे गांव धरहरा में बेटी का जन्म समृद्धि और सौभग्य की तरह होता है। जन्म के साथ लगाए पौधे के साथ इस गांव की बेटियां पलती-बढ़ती हैं

खास बातें बेटी बचाने की अनूठी परंपरा है धरहरा गांव की जन्म के साथ ही लगाए जाते हैं फलदार वृक्ष प्रदेश सरकार ने धरहरा को घोषित किया आदर्श गांव

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संजीव / पटना

हार से होकर गुजरने वाले राष्ट्रीय राजमार्ग-31 पर नवगछिया से थोड़ा आगे, मदनपुर चौक से नीचे उतरकर तीनटंगा जाने वाले रास्ते पर करीब चार किलोमीटर आगे बढ़ने पर एक साइन-बोर्ड मिलता है। इस पर लिखा है, 'विश्वविख्यात आदर्श ग्राम धरहरा में आपका हार्दिक स्वागत है।' यह गांव विश्वविख्यात है या नहीं यह तो तय नहीं है, लेकिन इतना जरूर है कि यह पिछले कुछ सालों से चर्चा में है। ऐसा हुआ है धरहरा की एक खास परंपरा के कारण। इस गांव में बेटियों के जन्म पर कम-से-कम दस पेड़ लगाने की परंपरा है। यह परंपरा कब शुरू हुई इसे लेकर भी कई मत हैं। भारतीय समाज में बेटी और बेटे को लेकर अधिकतर परिवारों की मानसिकता एक जैसी होती है। जहां बेटे के जन्म पर तो खुशियां मनाई जाती हैं वहीं दूसरी ओर बेटी के जन्म होने पर कुछ घरों में उदासी छा जाती है। लेकिन इस कड़वी हकीकत में धीरे-धीरे ही सही बदलाव आ रहा है। बिहार के भागलपुर जिले के धरहरा गांव में लोग लड़की के जन्म को एक समृद्धि के तौर पर देखते हैं और जन्म के बाद गांव में ही एक आम का पेड़ लगा दिया जाता है। ये लड़कियां जब बड़ी हो जाती हैं तो आम के उस पेड़ को अपनी सहेली मानती हैं और उसकी देखभाल करती हैं। गांव के लोगों की इस पहल से दो-दो फायदे हो रहे हैं। एक तो समाज की बेटियों के प्रति जो

मानसिकता पहले थी उसमें बदलाव आ रहा है वहीं गांव का पर्यावरण भी तेजी से समृद्ध हो रहा है। ये आम के पेड़ जब बड़े होकर फल देने लगते हैं तो माता-पिता उसे बेचकर बेटी की पढ़ाई-लिखाई और शादी के लिए पैसों को जमा कर देते हैं। बिहार के सीएम नीतीश कुमार भी इस गांव आ चुके हैं। 2010 में जब वे यहां आए थे तो गांव की एक बेटी लवी का जन्म हुआ था। सीएम ने उसके नाम पर एक आम का पेड़ लगाया था। सात साल बाद आज वह पेड़ फल देने लगा है। धरहरा गांव बिहार के प्रमुख शहर भागलपुर से करीब 25 किलोमीटर दूर है। स्वास्थ्य केंद्र के रिकॉर्ड से पता चला कि गांव में जिस अंतिम बच्ची का जन्म हुआ है, उसके माता-पिता कंचन देवी और बहादुर सिंह हैं। हमारे पूर्वजों के समय आस-पास के गांवों में बेटियों के जन्म के समय ही उन्हें अक्सर मार दिया जाता था। इसकी एक बड़ी वजह दहेज का खर्च था। इस दंपति ने बताया कि अपनी चार महीने की बेटी स्वाति के नाम पर उन्होंने एक पेड़ आंगन में लगाया है। उन्होंने बताया कि वे अपने बड़ी बेटी के नाम पर पूरे 10 पेड़ लगा चुके हैं। गांव के निवासी शंकर दयाल सिंह कहते हैं कि

हमारे पूर्वजों के समय आस-पास के गांवों में बेटियों के जन्म के समय ही उन्हें अक्सर मार दिया जाता था। इसकी एक बड़ी वजह दहेज का खर्च था। शंकर दयाल के मुताबिक, ''ऐसे में उनके गांव के पूर्वजों ने यह रास्ता निकाला कि बेटी का स्वागत तो किया जाएगा, लेकिन उसके लालन-पालन, शिक्षा और दहेज का खर्च जुटाने के लिए उनके जन्म के समय फलदार पेड़ लगाए जाएंगे।'' साल 2010 में पहली बार एक स्थानीय अखबार के माध्यम से इस परंपरा को बाहर के लोगों ने जाना। इसके बाद बिहार के तत्कालीन मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने इस गांव की परंपरा की प्रशंसा की और इसे पूरे प्रदेश में अपनाने की अपील की। तब से यह गांव चर्चा में आ गया। साल 2010 से 2013 के बीच बतौर मुख्यमंत्री नीतीश हर साल पर्यावरण दिवस के आसपास यहां आकर एक बच्ची के नाम पर एक पौधा भी लगाते रहे। इस गांव के एक किसान राकेश रमण कहते हैं कि पर्यावरण संरक्षण, भ्रूण हत्या रोकथाम जैसी बातें हमने सुनी थीं, लेकिन हमारा कम खर्चीला तरीका इस दिशा में इतना प्रेरणादायी भी है, इसका भान हमें नहीं था। गांव में 'आशा' के रूप में काम करने वाली नीलम सिंह बताती हैं कि इस परंपरा ने ही

मजदूर वचनदेव दास के पास रहने के अलावा जमीन नहीं है। उसने अपनी दोनों बेटियों के जन्म के बाद गांव की ठाकुरबाड़ी में पेड़ लगाकर गांव की परंपरा निभाई

उन्हें एक लावारिस बच्ची को अपनाने का हौसला दिया। वे कहती हैं कि धरहरा के लिए बेटी धरोहर है। लेकिन भूमिहीनों का अलग ही दर्द है। मजदूर वचनदेव दास कहते हैं कि मेरे पास रहने के अलावा जमीन नहीं है। मैंने अपनी दोनों बेटियों के जन्म के बाद गांव की ठाकुरबाड़ी में पेड़ लगाकर गांव की परंपरा निभाई। वचनदेव जैसे लोग परंपरा तो निभा लेते हैं, लेकिन सार्वजनिक स्थान में पेड़ लगाने के कारण इन पेड़ों से उन्हें बेटी के लालन-पालन में कोई मदद नहीं मिलती। राजकुमार पासवान बताते हैं कि बगीचे लायक जमीन नहीं रहने के कारण उन्होंने घर के आंगन में ही पेड़ लगाकर इस परंपरा को निभाया। एक तरफ जहां बिहार के कई गांवों में लड़कियों को भेदभाद सहना पड़ता है वहीं इस गांव की लड़कियों के साथ आज तक किसी तरह के उत्पीड़न की कोई खबर सामने नहीं आई है। जिले के एसपी शेखर कुमार बताते हैं कि इस गांव में महिलाओं के साथ गलत व्यवहार की कोई रिपोर्ट नहीं आती है। इस पहल का असर आंकड़ो में भी साफ झलकता है। एक तरफ जहां भागलपुर का लिंगानुपात 1000 पुरुषों पर सिर्फ 879 महिलाएं हैं वहीं धरहरा गांव में यह अनुपात 957 है। डाक विभाग भागलपुर के अधीक्षक दिलीप झा ने बताया कि धरहरा की परंपरा से प्रभावित होकर इस गांव को सूबे का पहला सुकन्या ग्राम बनाने की ठानी है। इसको लेकर धरहरा की 535 लड़कियों के खाते खोलने की प्रक्रिया शुरू कर दी है। अब तक 100 लड़कियों के खाते खोले जा चुके हैं। अधीक्षक ने कहा कि यहां की बेटियां और उनके नाम पर लगाए गए फलदार वृक्ष अनमोल हैं। गांव में बेटियों की संख्या भी सर्वाधिक है। इसीलिए इस गांव को सुकन्या ग्राम बनाने के लिए चयनित करने की योजना है। पर्यावरण संरक्षण और महिला अधिकार के प्रति जागरूकता फैलाने के लिए 2010 में ही बिहार के सीएम नीतीश कुमार ने इस गांव को मॉडल विलेज घोषित किया था। आज इस गांव में 1200 एकड़ एरिया आम और लीची के पेड़ों से घिरा हुआ है।


ग्रामीण महिलाएं करेंगी इंटरनेट से कमाई इंटरनेट क्रांति के साथ महिलाओं की अाजीविका को जोड़कर गूगल ने सराहनीय पहल की है

11 - 17 दिसंबर 2017

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एसएसबी ब्यूरो

टरनेट क्रांति का दौर आज हर ओर है। कहीं इसके जरिए शिक्षा दी जा रही है तो कहीं लोग इससे लंबा चौड़ा कारोबार कर रहे हैं। दफ्तरी दुनिया की कल्पना तो इंटरनेट के बगैर की ही नहीं जा सकती है। ऐसे में गूगल ने ग्रामीण महिलाओं को इसका लाभ दिलाने की अनूठी पहल की है। गूगल की तरफ से भारत में ग्रामीण महिलाओं को इंटरनेट साथी के तौर पर प्रशिक्षण दिया जा रहा है। ये महिलाएं गांवों में जाकर दूसरी महिलाओं को इंटरनेट सिखाएंगी। इसकी शुरुआत दो साल पहले हुई और अब तक इस योजना से लाभ लाखों महिलाओं की जिंदगी बदल चुकी है। इस पहल का उद्देश्य ग्रामीण भारत में महिलाओं में डिजिटल साक्षरता को बढ़ावा देना तो है ही, इसके जरिए आर्थिक रूप से महिलाअों को आर्थिक रूप से सशक्त बनाना भी है। इससे ग्रामीण भारत में इंटरनेट साथियों के लिए आय सृजन के नये अवसर पैदा होंगे। पिछले साल अगस्त में उत्तर प्रदेश के 33 जिलों की 40 लाख से ज्यादा ग्रामीण महिलाओं को इसके जरिए जोड़ने का प्रयास किया गया था। इस कार्यक्रम के तहत न केवल महिलाओं को सूचना हासिल करने और सेवाओं का लाभ उठाना बताया जा रहा है, बल्कि उन्हें सामाजिक और आर्थिक रूप से भी सशक्त बनाया जा रहा है। दुनिया की सबसे बड़ी और प्रमुख टेक्नॉलजी कंपनियों में से एक गूगल भारत में इंटरनेट साथी प्रोग्राम के जरिए महिलाओं को रोजगार देकर उन्हें सशक्त बनाने की दिशा में काम कर रही है। इस काम में उसे टाटा ट्रस्ट

का भी सहयोग मिल रहा है। इसकी शुरुआत जुलाई 2015 में हुई और इसका उद्देश्य ग्रामीण भारत में महिलाओं में डिजिटल साक्षरता को बढ़ावा देना है। कंपनी ने इस कार्यक्रम के तहत अब तक 30,000 इंटरनेट साथिनों को प्रशिक्षण दिया है, जिसका असर देश में 1.2 करोड़ महिलाओं पर हुआ है। भारत दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा इंटरनेट यूजरबेस वाला देश है। लेकिन यहां महिला और पुरुष के बीच भेद भी काफी होता है। इंटरनेट साथी योजना के तहत कंपनी ग्रामीण महिलाओं के साथ सक्रियता के साथ काम कर रही है ताकि गांवों में इंटरनेट सेवा मुहैया कराई जा सके। टाटा ट्रस्ट की मदद से गूगल ग्रामीण इलाकों में महिलाओं को साइकल, मोबाइल, टेबलेट और प्रशिक्षण सामग्री दे रही है। इन महिलाओं को इंटरनेट साथी के तौर पर प्रशिक्षण दिया जा रहा है। ये महिलाओं गावों में जाकर दूसरी महिलाओं को इंटरनेट सिखाएंगी। गूगल की मार्केटिंग हेड सपना चड्ढा ने बताया कि ग्रामीण क्षेत्रों में महिलाओं द्वारा इंटरनेट का इस्तेमाल एक चुनौती है। उन्होंने कहा कि इंटरनेट साथी कार्यक्रम का हिस्सा बनी महिलाओं का मानना है कि प्रशिक्षण के बाद उनकी सामाजिक व आर्थिक स्थिति में बदलाव आया है। उन्होंने कहा, इनमें से अनेक ने खुद का कारोबार स्थापित किया। इससे हमें एक ऐसा टिका ढांचा बनाने की प्रेरणा मिली जो कि इंटरनेट साथिनों के लिए रोजगार के अवसर सृजित करे। टाटा ट्रस्ट ने फाउंडेशन फोर रूरल आंत्रप्रेन्योरशिप डेवलपमेंट फ्रेंड स्थापित किया है। यह संस्थान कंपनियों व संस्थानों को इंटरनेट साथिनों

गूगल ने इस कार्यक्रम के तहत अब तक 30,000 इंटरनेट साथिनों को प्रशिक्षण दिया है, जिसका असर देश में 1.2 करोड़ महिलाओं पर हुआ है

दो साल पहले गूगल ने की थी इस अनूठी पहल की शुरुआत गूगल की इस पहल में टाटा ट्रस्ट भी साझीदार यूपी में 40 लाख महिलाओं को इस पहल से जोड़ने का प्रयास की सेवाओं के इस्तेमाल में मदद करेगा। चड्ढा ने कहा कि इससे ग्रामीण भारत में इंटरनेट साथियों के लिए आय सृजन के नये अवसर पैदा होंगे। पिछले साल अगस्त में उत्तर प्रदेश के 33 जिलों की 40 लाख से ज्यादा ग्रामीण महिलाओं को इसके जरिए जोड़ने का प्रयास किया गया था। उत्तर प्रदेश सरकार ने टाटा ट्रस्ट और गूगल की मदद से इन जिलों के 27,000 गांवों में 40 लाख महिलाओं को इंटरनेट चलाने का प्रशिक्षण देने की योजना बनाई थी। इन महिलाओं को इंटरनेट साथी कार्यक्रम से जोड़ते हुए यह प्रशिक्षण दिया जा रहा है। खास बात यह है कि इंटरनेट का प्रशिक्षण देने के लिए गांवों की महिलाओं को ही चुना गया। टाटा ट्रस्ट के इनोवेशन हेड गणेश नीलम ने कहा, 'इस कार्यक्रम के तहत न केवल महिलाओं को सूचना हासिल करने और सेवाओं का लाभ उठाने के बताया जा रहा है बल्कि उन्हें सामाजिक और आर्थिक रूप से भी सशक्त बनाया जा रहा है।' गूगल इंडिया इन महिलाओं को छह महीने तक प्रतिमाह 1000 रुपए दे रही है। गूगल इंडिया की मार्केटिंग प्रमुख सपना चड्ढा ने कहा, 'ये महिलाएं सूचना देकर ग्रामीणों को भी बदल सकती हैं। वे बदलाव की वाहक बन सकती हैं।'

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पालनहार किसान

किसान पति-पत्नी ने 1990 में एक दिव्यांग बच्चे को गोद लेने का फैसला किया। लगभग तीन दशक के बाद आज वे 51 बच्चों के माता-पिता हैं

खास बातें

जंेडर

भी-कभी किसी के साथ कोई ऐसी बात हो जाती है जो उसकी जिंदगी की दिशा बदल देती है। ऐसा ही कुछ हुआ मुजफ्फरनगर के एक दंपती के साथ। किसान पति-पत्नी को जब कोई संतान नहीं हुई तो उन्होंने 1990 में एक दिव्यांग बच्चे को गोद लेने का फैसला किया। लगभग तीन दशक के बाद आज वे 51 बच्चों के माता-पिता हैं और सभी के लिए एक मिसाल कायम कर रहे हैं। शामली के कुदाना गांव की मीना राणा की शादी 1981 में बागपत के वीरेंद्र राणा से हुई थी। शादी के 10 साल बाद भी उनको कोई संतान नहीं हुई। बाद में पता चला कि मीणा कभी मां नहीं बन सकतीं। दोनों साल 1990 में शुक्रताल में आकर रहने लगे। यहां उन्होंने एक साल के बच्चे को गोद लिया और उसका नाम रखा मांगेराम। लेकिन उनकी किस्मत ने एक बार फिर मजाक किया और पांच साल बाद मांगेराम चल बसा। दंपती ने उम्मीद नहीं छोड़ी और बेसहारा बच्चों को अपने साथ लाकर रखने लगे। उन्हें शुक्रताल में एक आठ बीघा जमीन डोनेशन में मिली जिस पर वह अनाथाश्रम चलाते हैं। इसी में एक स्कूल भी है। इस वक्त यहां 46 बच्चे हैं। कई ऐसे रहे जो बड़े होकर, नौकरी करने बाहर चले गए। कइयों की शादी हो गई। यह सब पूरा किया जा सका आर्थिक मदद से। मीना कहती हैं कि उन्हें इस बात से फर्क नहीं पड़ता कि बच्चे हिंदू हैं या मुस्लिम। वह कहती हैं, 'मुझे सिर्फ इतना पता है कि ये मेरे बच्चे हैं। हमारा ध्यान इनकी पढ़ाई पर है।' इस वक्त यहां रह रहे बच्चों में से 19 लड़कियां हैं और 27 लड़के। इनमें से कई दिव्यांग हैं। अनाथाश्रम में एक अच्छी रसोई, बड़े कमरे और एक बड़ा सा खेल का मैदान है। वीरेंद्र ने बताया कि शुक्रताल ग्राम पंचायत ने उन्हें बड़ा प्लॉट दिया। उन्होंने बताया कि अपनी कई बड़ी जरूरतों के लिए उन्हें चंदे पर निर्भर रहना पड़ता है। उनके पड़ोसी उन्हें गेहूं जैसा जरूरी सामान देते हैं। यहां रही 22 साल की ममता अब जिले के एक कॉलेज में पोस्ट ग्रेजुएट कर रही हैं। वह कहती हैं कि उन्हें नहीं पता कि अगर मीना और वीरेंद्र उनका ध्यान नहीं रखते तो उनका भविष्य क्या होता। ममता अब अनाथाश्रम में ही काम करती हैं। शुक्रताल के प्रधान सुशील शर्मा का कहना है कि मीना और वीरेंद्र जो कर रहे हैं, वह बहुत से लोग नहीं कर सकते। (एजेंसी)


12 पहल

11 - 17 दिसंबर 2017

अब किराए पर साइकिल की सवारी आईआईटी कानपुर से किराए पर साइकिल की सवारी कराने की ओला कंपनी कर चुकी है शुरुआत

खास बातें चीन में ऐसी ही सर्विस प्रदान करने वाली लगभग 40 कंपनियां हैं ‘पेडल’ नाम से शुरू की है ओला ने साइकिल शेयरिंग की सेवा सफलता मिली तो कंपनी इस सर्विस का बेहतर वर्जन लेकर आएगी

उसी तरह से साइकल भी किराए पर ले सकते हैं।'

30 मिनट की सवारी मुफ्त

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एसएसबी ब्यूरो

हनों के कारण प्रदूषण के कारण देश की राजधानी सहित तमाम शहरों में हवा दमघोंटू होती जा रही है। ऐसे में कई तरह की पहल की दरकार महसूस की जा रही है। ऐसी ही एक पहल है साइकिल की सवारी को प्रोत्साहन देना। चीन में साइकिल शेयरिंग का कारोबार करोड़ों डॉलर के आसपास है। बिजनेस इनसाइडर की रिपोर्ट के मुताबिक चीन में ऐसी ही सर्विस प्रदान करने वाली लगभग 40 कंपनियां हैं। भारत में ऐसी ही एक पहल की है कैब सर्विस प्रदान करने वाली प्रमुख कंपनी ओला ने।

पेडल सर्विस

ओला अब पर्यावरण अनुकूल सवारी मुहैया कराने जा रहा है। इस सर्विस का नाम है ‘पेडल’, जिसे अभी पायलट प्रोजेक्ट के तौर पर आईआईटी कानपुर परिसर में ट्रायल रन किया जा रहा है। ओला भारत में अपनी प्रतिद्विंदी कंपनी ऊबर के साथ टक्कर ले रही है। हालांकि भारत में यह प्रयोग एकदम नया है, लेकिन चीन जैसे देशों में एप्प के माध्यम से किराए पर साइकिल की सवारी का चलन पुराना हो चुका है। ओला ने हाल ही में एक अरब डॉलर का फंड जुटाया है, जिसे वह इस प्रोजेक्ट पर खर्च करेगी।

शिक्षण संस्थाओं पर फोकस

यह सर्विस अभी सिर्फ देश के शिक्षण संस्थानों में ही उपलब्ध होगी, लेकिन आने वाले समय में हो सकता

है कि इसे आम जनता के लिए भी खोल दिया जाए। इस सर्विस को शुरू करने के पीछे के मकसद के बारे में ओला ने बताया कि कई बार हमें कम दूरी का सफर करना पड़ता है जहां पैदल जाना थोड़ा कठिन होता है, लेकिन कार या बाइक बुक करने का मतलब नहीं बनता। उस स्थिति में पेडल जैसी सर्विस कारगर साबित होगी।

पायलट प्रोजेक्ट की कामयाबी

अगर यह पायलट प्रोजेक्ट सफल रहता है, तो आनेवाले महीनों में ओला इस सर्विस का और बेहतर वर्जन पेश कर सकता है। ओला का कहना है , 'माना जा रहा है कि युवाओं के बीच साइकल के लोकप्रिय होने की गुंजाइश है, लिहाजा आम लोगों के बीच इसे पॉप्युलर बनाने से पहले कैंपस में इस सर्विस का टेस्ट किया जाएगा।' उन्होंने कहा कि आईआईटी कानपुर में पेश की गई ओला की मौजूदा साइकिलों में बेहतर सिक्यॉरिटी फीचर्स नहीं हैं, लेकिन अगले लॉट में क्यूआर कोड और जीपीएस ट्रैकिंग की व्यवस्था रहने की उम्मीद है।

खुश हैं छात्र

आईआईटी कानपुर के छात्र ओला की इस सर्विस

से बेहद खुश नजर आ रहे हैं। उनका कहना है कि इससे कैंपस में घूमना आसान और सुलभ हो जाएगा। इन साइकिलों में जीपीएस, क्यूआर कोड और स्मार्ट लॉक जैसे फीचर्स जोड़े जाएंगे। इसके अलावा कुछ और बेहतरीन सुरक्षा व्यवस्था के साथ नई साइकिलें लाई जाएंगी। ओला के एक अधिकारी ने बताया कि टेक्नॉलजी के जरिए हर सवार द्वारा साइकिल के इस्तेमाल पर नजर होगी और इसमें लोगों साइकिल की चोरी या इसके नुकसान को लेकर ज्यादा सावधानी बरतेंगे।

ओफो और मोबइक की तरह सेवा

ओला चीन में इसी तरह की सर्विस प्रदान करने वाली कंपनी ओफो और मोबइक सर्विस की तरह ही काम करेगी। चीन की ये दोनों कंपनियां यूएस और यूरोप के साथ ही एशिया के कई देशों में अपने बिजनेस का विस्तार कर रही हैं। इन्होंने पिछले 12 महीने में लगभग 2 अरब डॉलर का फंड जुटाया है। ओला ने बताया है कि इस सर्विस में इस्तेमाल की जाने वाली साइकिलें भारत में ही निर्मित होंगी। ओला के एक अधिकारी ने बताया कि आईआईटी कैंपस में अभी 500-600 साइकिलें उपलब्ध हैं। स्टूडेंट्स ओला ऐप के जरिए जिस तरह से कैब बुक करते हैं,

टेक्नॉलजी के जरिए हर सवार द्वारा साइकिल के इस्तेमाल पर नजर होगी। साइकिल की चोरी या इसके नुकसान को लेकर भी तमाम तरह की सावधानियां बरती जा रही हैं

आईआईटी कानपुर में छात्रों को ट्रायल रन के तहत 30 मिनट के लिए साइकिल की सवारी मुफ्त मुहैया कराई जाती है। इस पर काफी सब्सिडी है, लिहाजा ओला पेडल सर्विस के रफ्तार पकड़ने तक इस तरह की छूट का लाभ छात्रों को देता रहेगा। पहले 30 मिनट की मुफ्त सवारी के बाद अगले 30 मिनट के लिए कॉस्ट फिलहाल सिर्फ 5 रुपए है। कंपनी की ओर से दी गई जानकारी के मुताबिक इसमें दी जाने वाली साइकिलें पंक्चर प्रूफ होंगी और उनकी चेन नहीं उतरेगी।

चीन में साइकिल शेयरिंग

ओला के अलावा सेल्फ ड्राइविंग कार सर्विस प्रदान करने वाली कंपनी जूमकार ने भी हाल ही में ‘पेडल’ नाम से एक सर्विस लांच की है जिसके तहत 2017 के अंत में 10,000 साइकिलें मार्केट में उतारने की योजना है। चीन में साइकिल शेयरिंग का कारोबार करोड़ों डॉलर के आसपास है। चीन में इस तरह की सेवाएं देने वाली कई कंपनियां जरूर हैं, पर हाल ही में वहां पर कई स्टार्टअप्स ने अपना बिजनेस बंद भी कर दिया है। इसके पीछे कई कारण बताए जाते हैं। फॉर्च्यून पत्रिका में छपी एक रिपोर्ट के मुताबिक साइकिल कैब का विकल्प कभी नहीं बन सकती। इसके अलावा वहां एक कंपनी वुकोंग की लगभग 90 फीसदी साइकिलें चोरी भी हो चुकी।

सावधानी और सुरक्षा

भारत में इस तरह की आशंका के प्रति ओला कंपनी पहले से सचेत हैं। कंपनी का कहना है कि टेक्नॉलजी के जरिए हर सवार द्वारा साइकिल के इस्तेमाल पर नजर होगी। साइकिल की चोरी या इसके नुकसान को लेकर भी तमाम तरह की सावधानियां बरती जा रही हैं।


11 - 17 दिसंबर 2017

समारो​​ह

अमृत महोत्सव में बरसा शब्दों का अमृत

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गाेवा की राज्यपाल और हिंदी की वरिष्ठ लेखिका डॉ. मृदुला सिन्हा के अमृत महोत्सव के अवसर पर उनके उपन्यास ‘अहिल्या उवाच’ का हुआ लोकार्पण

प्र

खास बातें अयोध्या प्रसाद सिंह

ख्यात साहित्यकार और गोवा की राज्यपाल डॉ. मृदुला सिन्हा के अमृत महोत्सव के अवसर पर दिल्ली के कांस्टिट्यूशन क्लब में उनके उपन्यास ‘अहिल्या उवाच’ का लोकार्पण किया गया। इस अवसर पर मृदुला सिन्हा पर केंद्रीत पुस्तक ‘सहजता की भव्यता’ और स्वयं सेवी संस्थाओं पर केंद्रित प्रभात प्रकाशन की हिंदी मासिक पत्रिका ‘पांचवां स्तम्भ’ की ग्यारहवीं वर्षगांठ पर प्रकाशित विशेषांक का भी लोकार्पण उत्तर प्रदेश के राज्यपाल राम नाइक द्वारा किया गया। इस समारोह में सुलभ प्रणेता डॉ. विन्देश्वर पाठक, राष्ट्रीय पुस्तक न्यास के अध्यक्ष बल्देव भाई शर्मा और वरिष्ठ पत्रकार अवधेश कुमार सहित कई विशिष्ट व्यक्ति भी मौजूद थे।

मैंने संघर्ष नहीं सिर्फ मेहनत की

डॉ. मृदुला सिन्हा ने इस मौके पर कहा कि मैंने अपने जीवन में संघर्ष नहीं सिर्फ मेहनत की है। उन्होंने अपने उपन्यास ‘अहिल्या उवाच’ पर प्रकाश डालते हुए कहा कि पुरुष कई रूपों में स्त्री के जीवन में आता है, अहिल्या के जीवन में भी पुरुष तीन रूपों में आए। एक ने उसके साथ छल किया, दूसरे ने उसे पति के रूप में अपनाया और फिर एक युवा पुरुष ने उसे मुक्ति दी। ‘सहजता की भव्यता’ के बारे में उन्होंने कहा कि इसमें लोगों ने जो भी मेरे बारे में लिखा है उससे मेरे ऊपर जिम्मेदारी और बढ़ गई है। साथ ही आने वाले सालों में मुझे क्या-क्या करना है, ये सब भी मुझे एक पाठ्यक्रम के रूप में बता दिया गया है। मैं यह संकल्प लेती हूं कि अभी और मेहनत करूंगी।

मृदुला जी सभी के लिए प्रेरणा

उत्तर प्रदेश के राज्यपाल राम नाइक ने इस मौके पर कहा कि मृदुला जी सभी के लिए प्रेरणा हैं। उन्होंने कहा कि जो भी जिम्मेदारी मृदुला जी को मिलती है उसे वे बहुत अच्छे से निभाती हैं। राम नाइक ने बताया कि मृदुला जी ने गोवा में एक नया चलन शुरू किया है कि जो भी उनसे मिले वो उन्हें फूल की जगह फल दे। और मिले हुए फलों को वह उन गरीबों में बांट देती हैं, जिन्हें खाने को नहीं मिलता। उन्होंने मृदुला जी के अपने ऊपर सहृदय अहसान की बात करते हुए कहा कि महाराष्ट्र में एक प्रतिष्ठित दैनिक अखबार ने मुझे अपने संस्मरण लिखने के लिए मुझसे कहा। मैंने उन संस्मरणों को ‘चरैवेतीचरैवेती’ नाम से एक किताब का भी रूप दिया और उसकी प्रस्तावना हिंदी में मृदुला जी ने लिखी है। साथ उन्होंने बताया कि हिंदी किताब सबसे ज्यादा बिकी। इसके लिए मैं इनका आभारी हूं।अपने उन दिनों को याद करते हुए, जब मृदुला सिन्हा उनके साथ महाराष्ट्र में महिला मोर्चा की अध्यक्ष के रूप में काम करती थीं, राम नाइक ने कहा कि जहां आज मृदुला जी अपनी लगन और मेहनत से जहां तक पहुंची हैं वह सच में असाधारण है।

किताब पढ़ने से जीवन होगा सुखमय

सुलभ प्रणेता डॉ. विन्देश्वर पाठक ने कहा कि मृदुला जी गोवा की महामहिम तो हैं ही, मेरी गुरुमाता भी हैं। उनके प्रति हमारे ह्रदय में अगाध श्रद्धा है। उन्होंने मृदुला जी की सहृदयता और साधारण व्यक्तित्व की बात करते हुए कहा कि बड़े इंसान का मतलब हमारे समाज में कम हंसना, कम बोलना और साधारण जीवन छोड़ देना होता है, लेकिन मृदुला जी इससे

इतर छठ के गीत गातीं हैं और सबसे सरस बात करते हुए शिक्षा भी देती हैं। उन्होंने कहा कोई भी इंसान राज्यपाल जैसे पद पर पहुंच कर ऐसी हिम्मत नहीं करेगा। उन्होंने समारोह में ही घोषणा करते हुए कहा कि मैं आज ही 1000 पुस्तकें खरीद रहा हूं और अपने सुलभ में सभी काम करने वाले युवाओं को यह किताब पढ़ने के लिए दूंगा जिससे कि उनका दांपत्य जीवन सुखमय बीते।

समन्वय की तरफ है स्त्री विमर्श

दिल्ली विश्वविद्यालय की प्रोफेसर कुमुद शर्मा ने मृदुला सिन्हा के साहित्य पर प्रकाश डालते हुए कहा कि वर्तमान संदर्भों में मिथकीय चरित्रों और पौराणिक व्याख्यानों में स्त्री की कथा मृदुला जी का प्रमुख विषय रहा है। इसीलिए वह भारतीय संस्कृति की उत्सवधर्मिता और सनातन सरोकारों को अपनी भाषिक सरंचना में ढालकर स्त्री जीवन की कथा को कहती रही हैं। उन्होंने कहा कि मृदुला का जी स्त्री का विमर्श विखंडन की तरफ़ न होकर, समन्वय की तरफ है। उन्होंने बताया कि ‘अहिल्या उवाच’ आज का स्त्री संकट भी है। इस किताब के केंद्र बिंदु में हैं- नर नारी के उलझते रिश्ते हैं। इसके द्वारा मृदुला जी ने आज की पीढ़ी से संवाद किया है। उन्होंने कहा कि मिथक का नवाचार करना सबसे कठिन काम है, लेकिन मृदुला जी ने यह काम बखूबी किया है। साथ ही उन्होंने आग्रह किया कि हर युवक को यह पुस्तक दी जानी चाहिए जिससे कि हमारा समाज सुधरेगा। एक पाठक नैतिक संवेदन की अंतर्दृष्टि और मानवीय विवेक, संवेग की उम्मीद लेखक से जरूर करता है। मृदुला सिन्हा जी की रचनाएं इन सभी पहलुओं पर खरा उतरती हैं।

मृदुला जी ने गोवा में एक नया चलन शुरू किया है कि जो भी उनसे मिले सहजता से मिलती है खुशी राष्ट्रीय पुस्तक न्यास के अध्यक्ष और ‘सहजता की वो उन्हें फूल की जगह फल दे। और मिले हुए फलों को वह उन गरीबों भव्यता’ के प्रधान संपादक बल्देव भाई शर्मा ने कहा में बांट देती हैं, जिन्हें खाने को नहीं मिलता कि किसी एक ग्रंथ में मृदुला जी के समग्र व्यक्तित्व

मृदुला सिन्हा पर केंद्रित पुस्तक ‘सहजता की भव्यता’ का लोकार्पण हिंदी मासिक पत्रिका ‘पांचवां स्तंभ के पूरे हुए 11 वर्ष उत्तर प्रदेश के राज्यपाल राम नाइक ने किया लोकार्पण को समेटना बहुत कठिन काम है। उन्होंने कहा कि खुशी सिर्फ सहजता से मिलती है और सहजता सिर्फ संतों को मिलती है। मृदुला जी का जीवन भारत की ऋषि परंपरा का जीवंत उदहारण है, इसीलिए इस पुस्तक का नाम सहजता की भव्यता रखा गया है। ‘पांचवां स्तम्भ’ की प्रधान संपादक संगीता सिन्हा ने इस मौके पर पत्रिका की यात्रा के बारे में बताते हुए कहा कि 27 नवम्बर 2006 को ‘पांचवां स्तम्भ’ का लोकार्पण हुआ था। पत्रिका अब 11 वर्ष पूरे कर रही है। यह महज पत्रिका नहीं, बल्कि विचार का आंदोलन है। इसकी शुरुआत से ही मृदुला जी इससे जुड़ी रही हैं। पत्रिका का उद्देश्य स्वयंसेवी संस्थाओं के उत्कृष्ट कार्यों की रिपोर्ट, सामजिक समस्याओं के समाधान तथा सरकार और समाज के सकारात्मक कार्यों को प्रकाशित करना रहा है। उन्होंने बताया कि ग्रामीण क्षेत्रों में पत्रिका की मांग ज्यादा होती है। रिसर्च करने वाले छात्रों के लिए यह पत्रिका बहुत ही उपयोगी रही है। ‘पांचवां स्तम्भ’ पत्रिका से लंबे समय से जुड़े रहे पत्रकार अवधेश कुमार ने कहा कि एक ऐसे समय में जब मांग थी कि पत्रिकारिता ऐसी हो जो लोगों को स्वतः प्रेरणा दे कि देश और समाज में सकारात्मक काम करने की चेतना विकसित हो सके और संघर्ष का भाव भी पैदा हो, यह काम इस पत्रिका ने बखूबी किया है।


14 विविध

11 - 17 दिसंबर 2017

स्कूबा डाइविंग सूट पहन गोते लगाती मक्खी ‘पर्सन ऑफ द इयर’ बना सेल्फी वाला बंदर कैलिफोर्निया की मोनो झील में अल्काली मक्खियां पानी में छपाछप गोते लगाती हैं

क्या

आपने कभी सुना है कि 'मक्खी' स्कूबा डाइविंग सूट पहन सकती है ? ये सुनकर ही किसी को भी उलझन हो सकती है, या फिर यूं कहिए कि लोग इसे कोरी बकवास समझ लेंगे। दरअसल, पूरी दुनिया का यही सोचना है कि सिर्फ इंसान ही स्कूबा डाइविंग सूट पहनता है। अगर आप भी ऐसा सोचते हैं तो बताना चाहेंगे कि ये गलत अवधारणा है। इसे हम इस बात से आसानी से समझ सकते हैं कि दुनिया में कई बार सर्वमान्य चीजें भी गलत साबित हुई हैं। इसकी गवाही आपको इतिहास बखूबी दे सकता है। ये मक्खी भी इस सर्वमान्य सच के लिए अपवाद बन गई है। यूं तो इस मक्खी को 'स्कूबा डाइविंग फ्लाई' कहा जा रहा है लेकिन इसका असल नाम है 'अल्काली मक्खी'। आपको ये जानकर अचंभा होगा कि 'अल्काली मक्खी' स्कूबा डाइविंग सूट पहन कर पानी में छपाछप गोते लगाने में सक्षम है। इसे आप प्रकृति का चमत्कार ही समझें कि ये मक्खी अपने लिए ऐसा सूट तैयार कर पाने में सक्षम है। सबसे

ज्यादा हैरानी तो आपको इस बात पर होगी कि ये मक्खी अपने इस सूट की मदद से पानी के भीतर सांस भी ले सकती है। कैलिफोर्निया की मोनो झील में इस विचित्र मक्खी को पाया गया है। शोधकर्ताओं ने इस मक्खी पर शोध में पाया कि ये मक्खी गोताखोरी में माहिर है और यह अन्य मक्खियों से बिल्कुल अलग है। इसके शरीर पर पंखों की जगह भारी मात्रा में बाल मौजूद हैं, जो झील के अत्यधिक क्षारीय पानी का सामना करने में भी सक्षम हैं। यह समुद्र के तीन गुना खारे पानी के भीरत भी गोताखोरी कर सकती है। दरअसल, ये मक्खी अपने चारों और वायु का एक बुलबुला तैयार कर पाने में सक्षम है, जिसके भीतर वह खुद भी समा सकती है। मक्खी के शरीर पर मौजूद बाल इस कार्य में उसकी मदद करते हैं। ये पानी के भीतर गोता लगाते ही मक्खी के लिए ऐसा बुलबुला तैयार कर देते हैं जो उसके लिए बाहरी फेफड़े का काम करते हैं। मक्खी पानी के भीतर सांस लेने में भी कामयाब है। ये मक्खी पानी के भीतर जाकर अंडे दे सकती है। (एजेंसी)

पेटा ने सेल्फी से चर्चा में आए इंडोनेशिया के बंदर को 'पर्सन ऑफ द इयर' घोषित किया है

वाली सेल्फी दांतलेनदिखाने े के बाद सुर्खियों में

आए इंडोनेशिया के बंदर को पशु अधिकारों के लिए काम करने वाले समूह ने 'पर्सन ऑफ द इयर' घोषित किया है। पशु अधिकारों के लिए काम करने वाली संस्था पीपुल फॉर द एथिकल ट्रीटमेंट ऑफ ऐनिमल्स (पेटा) ने ही इस बंदर की सेल्फी का मामला उठाया था। पेटा ने नारुतो नामक इस बंदर को सम्मानित करते हुए यह कहा कि काले रंग का यह बंदर एक जीव है ना कि कोई वस्तु । इस बंदर ने अमेरिका के कॉपीराइट मामले में ऐतिहासिक घटना को जन्म दिया है। वर्ष 2011 में सुलावेसी द्वीप पर बंदर नारुतो ने ब्रिटिश नेचर फटॉग्रफर डेविड स्लेटर के लगाए एक कैमरे की लेंस की ओर घूरते हुए कैमरे का बटन दबा दिया था। डेविड प्रकृति एवं इससे जुड़ी वस्तुओं की तस्वीरें लेते हैं। यह तस्वीर तेजी से वायरल होने लगी थी और पेटा ने इसके खिलाफ मुकदमा दायर कर दावा किया था कि 6 साल के नारुतो को अपनी तस्वीर का रचनाकार औए मालिक घोषित करना चाहिए। पेटा के संस्थापक इनग्रिड नेवकिर्क ने कहा कि नारुतो की ऐतिहासिक सेल्फी ने उस विचार को

चुनौती दी कि व्यक्ति कौन है और कौन नहीं है। ऐसा पहली बार है जब इस पशु को किसी की संपत्ति घोषित करने के बजाय उसे संपत्ति का मालिक घोषित करने की मांग करते हुए कोई मुकदमा दायर किया गया है। फिलहाल इस मुकदमे से अंतरराष्ट्रीय कानूनी विशेषज्ञों के बीच पशुओं के लिए उनके व्यक्तित्व की पहचान और वे अपनी संपत्ति के मालिक हो सकते हैं या नहीं, इसे लेकर एक बहस छिड़ गई। सितंबर में अदालत के फैसले के साथ मामले में इस बात पर सहमति बनी कि डेविड भविष्य में बंदर की सेल्फी के इस्तेमाल या उसकी बिक्री से होने वाली कमाई का 25 प्रतिशत हिस्सा इंडोनेशिया में इन बंदरों की रक्षा में मदद के लिए देंगे। (एजेंसी)

'हिममानव' का रहस्य जल्द होगा उजागर बफेलो विश्वविद्यालय में हो रहे शोध से उम्मीद है कि येती का रहस्य जल्द सबके सामने आ जाएगा

हुत जल्द ही 'हिममानव' से जुड़े रहस्य से पर्दा उठने वाला है। इसके लिए एक विश्वविद्यालय में शोधकार्य शुरू कर दिया गया है। अभी तक जिन सैम्पल के आधारों पर येती के होने के दावे किए जाते रहे हैं, शोधकर्ताओं ने उन्हें टेस्ट के लिए लिया है। इसमें कुछ बाल, एक हड्डी है। साथ ही येती के पदचिन्हों को भी जांच का आधार बनाया गया है। सदियों से हिममानव यानी 'येती' के होने के दावे किए जाते रहे हैं। समय-समय पर लोगों ने धरती पर येती के होने की बात को कबूला है। यहां तक कि

कई लोगों ने प्रमाण भी दिए कि वह ऊंचे-बर्फीले पहाड़ों पर रहते हैं। कई शेरपा भी इस बारे में लोगों को इनके किस्से-कहानियां सुनाते रहे हैं। पर्वतारोही एडमंड हिलेरी ने अपनी हिमालय यात्रा के दौरान बर्फ के पहाड़ पर बड़े-बड़े पदचिह्न देखे थे। वह देखकर उन्हें हैरानी हुई। क्योंकि वह किसी साधारण इंसान के पैर के साइज से कहीं बड़े निशान थे। उन्हें लगा ये उसी रहस्यमयी जीव के पैरों के निशान थे, जैसा किस्से कहानियों में उन्हें सुनने को मिला था। इसीलिए उन्होंने इसकी तस्वीरें

खींचकर दुनिया के सामने पेश कर दी। इसके बाद तो येती की खोज और भी ज्यादा तेज हो गई। लेकिन हकीकत ये है कि अभी तक इनके होने का कोई पुख्ता प्रमाण नहीं मिला है। इधर, बफेलो विश्वविद्यालय की रिसर्च में इस रहस्य से जल्द पर्दा उठाए जाने की बात की जा रही है। शोधकर्ताओं का कहना है कि जिन सैम्पल को लेकर लोग येती के होने के दावे करते रहे हैं वह एक भूरे भालू के बाल हो सकते हैं। तिब्बत में बर्फ के पहाड़ों पर मिले इन सैम्पल की जांच के बाद तस्वीर साफ हो जाएंगी। शोधकर्ताओं ने बालों को डीएनए परीक्षण व हड्डी के टुकड़े की जांच के लिए लिया है। वैज्ञानिकों का मत है कि ये ध्रुवीय भालुओं से काफी कुछ मिलते-जुलते हैं। ये

जानकारी भी मिली है कि भालू की इस प्रजाती का अस्तित्व केवल भारत में हिमालय पर्वतश्रृंखला तक ही सिमटकर रहा है। अब यह प्रजाती खतरे में है। इसीलिए इसके बारे में ज्यादा जानकारी जुटाई नहीं जा सकती। इससे पहले ब्रिटिश वैज्ञानिक शोध में इस बात का जिक्र किया गया था कि हिमालय के मिथकीय हिम मानव 'येति' भूरे भालुओं की ही एक उप-प्रजाति के हो सकते हैं। उन्होंने इन नमूनों के परीक्षण के लिए अत्याधुनिक तकनीक का इस्तेमाल किया है। कहा ये भी जा रहा है कि येती ध्रुवीय भालू और भूरे भालू का संकर हो सकते हैं। बिना प्रमाण के येति के रहस्य से पर्दा उठाना कुछ विवादास्पद था। इसीलिए अब तक ऐसा नहीं किया जा सका। (एजेंसी)


11 - 17 दिसंबर 2017

यूएएन की मदद से कई खातों को एक कर पाएंगे लोग

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शन मैनेज करने वाली संस्था ईपीएफओ ने अपने 4.5 करोड़ से ज्यादा सदस्यों के लिए एक नई सुविधा शुरू की है। इसके तहत अब लोग अपने कई पीएफ अकाउंट्स को मौजूदा एूएएन (यूनिवर्सल पॉर्टेबल अकाउंट नंबर) की मदद से एक कर सकेंगे। कर्मचारी भविष्य निधि संगठन (ईपीएफओ)

इन गायाें का दूध निकालना नहीं आसान

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गायों की ऐसी कई नस्लें हैं जिनका दूध निकालना किसी अकेले के बस की बात नहीं है

रत में गाय की पूजा की जाती है। इसके अलावा गाय भारत की अर्थव्यस्था की रीढ़ भी रही है। इसीलिए इसे बहुत उपयोगी पशु माना जाता है। शहरीकरण की ओर बढ़ रहे भारत में आज भी गांव में लोग गाय पालना पसंद करते हैं, क्योंकि उन्हें इससे शुद्ध दूध तो मिलता ही है साथ ही ये आजीविका का बड़ा साधन भी है। इसीलिए लोग अब गाय खरीदने से पहले ये देखते हैं कि कौनसी नस्ल की गाय सबसे ज्यादा दूध देती है। आज हम बात करेंगे ऐसी नस्ल वाली गाय की जो इतना दूध देती है कि उसे निकालने के लिए 4 लोगों की जरूरत पड़ती है। भारत की इस अनोखी गाय की नस्ल का नाम है 'गीर'। एक रिपोर्ट के मुताबिक ये गाय प्रतिदिन 50 से 80 लीटर दूध देती है। इस गाय के नाम के साथ 'गीर' इसीलिए जुड़ा क्योंकि ये गाय गुजरात के गीर में पाई जाती है। इस गोवंश का मूल स्थान

काठियावाड़ बताया जाता है। इसकी दूध देने की क्षमता के कारण ये नस्ल विश्व विख्यात हो चुकी है। इसकी नस्ल आपको विश्व के कई देशों में देखने को मिल जाएगी। पंजाब में एक ऐसी गाएं आ चुकी हैं, जिसका दूध निकालने के लिए एक नहीं, दो नहीं, बल्कि 4 लोग लगते हैं। जी हां, यह बिल्कुल सच है, क्योंकि यह गाय प्रति दिन 61 किलो दूध देती है। सबसे अधिक ब्रासिल और इजरायल के लोग इस नस्ल की गाय को पालना पसंद करते हैं। बता दें गीर गाय सालाना 2000 से 6000 लीटर दूध देने की क्षमता रखती है। वहीं दूसरे नंबर पर आती है साहिवाल गाय जो 2000 से 4000 लीटर दूध देती है। तीसरे स्थान पर लाल सिंधी गाय है। हालांकि ये गाय भी 2000 से 4000 लीटर दूध देती है, लेकिन पशु नस्ल जानने वाले इसे तीसरे स्थान पर ही आंकते हैं। चौथे स्थान पर राठी, पांचवे पर थरपार्कर और छठे स्थान पर कांक्रेज है। (एजेंसी)

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टॉयलेट के लिए भिड़ी बहू

ईपीएफओ ने दी नई सुविधा

के सदस्य इस सुविधा के तहत एक बार में अपने 10 पुराने अकाउंट्स को एूएएन के साथ एक खाते में समायोजित कर सकेंगे। गौरतलब है कि इस समय ईपीएफओ के सदस्यों को वेबसाइट पर यूएएन के जरिए अलग-अलग ट्रांसफर क्लेम करना पड़ता है। अब इस सुविधा का लाभ लेने के लिए लोगों को अपना यूएएन ऐक्टिवेट करना होगा, जो बैंक खातों और आधार व पैन से जुड़ा हो। दरअसल, यह 'एक कर्मचारी, एक ईपीएफओ अकाउंट' की दिशा में बढ़ता हुआ कदम है। एक अधिकारी के अनुसार, ईपीएफओ ने इस हफ्ते अपने 120 से ज्यादा कार्यालयों को इससे संबंधित निर्देश जारी किए हैं। (एजेंसी)

गुड न्यूज

मध्य प्रदेश के हरदा में टॉयलेट के लिए परिवार से लड़ गई अंजुम तो पुलिस ने घर में बनवाया टॉयलेट

ध्य प्रदेश के हरदा जिले में 17 लोगों के परिवार में एक ही टॉयलेट था। यूज करने के लिए लाइन लगती थी। नई नवेली बहू अंजुम ने अपनी परेशानी पति इरफान और ससुर ईदा खान को बताई दोनों ने एडजस्ट करने कहा। पर नई नवेली बहू ने टॉयलेट के लिए विद्रोह कर दिया। घर वाले नहीं माने तो बहू अंजुम ने पति इरफान समेत ससुर व सास के खिलाफ थाने में रिपोर्ट लिखा दी। पुलिस की पहल पर अंजुम को टॉयलेट मिल गया और उसका परिवार भी टूटने से बच गया। जांच अधिकारी हेड कांस्टेबल संजय ठाकुर ने बताया कि बहू अंजुम के परिवार को 20 दिन तक काउंसिलिंग करनी पड़ी तब वह टॉयलेट बनवाने के लिए तैयार हुए। इसके बाद हमने टॉयलेट निर्माण कराया। इससे पहले अंजुम शादी के बाद जब ससुराल पहुंची तो घर में टॉयलेट की समस्या से जुझना पड़ा। इतना बड़ा परिवार और टॉयलेट एक। काम ही नहीं चल रहा था। ऐसे में बहू और अन्य सदस्यों के बीच टॉयलेट का विवाद बढ़ता गया। अंजुम ने ससुराल वालों से अपने लिए अलग टॉयलेट की मांग की है। जिससे घर में विवाद बढ़ता गया। अंजुम ने पति इरफान और ससुर ईदा खान से टॉयलेट बनवाने को कहा। उन्होंने अंजुम को एडजस्ट करने की बात कह कर मामले को टालने की कोशिश की, लेकिन अंजुम

के शौचालय की मांग पर अड़े रहने के कारण विवाद बढ़ गया, यह इतना बढ़ा कि अंजुम ने ससुर व परिवार वालों के खिलाफ थाने में मारपीट की रिपोर्ट करा दी। मामला एक परिवार का होने की वजह से पुलिस ने बारीकी से जांच की, जिसमें विवाद का कारण बहू द्वारा टॉयलेट की मांग करना निकला। पुलिस ने दोनों पक्षों को बैठाकर मामले का हल निकाला। अंजुम के पति-ससुर नए टॉयलेट के निर्माण के लिए राजी हुए, जिसमें पुलिस भी आर्थिक मदद देने को तैयार हो गई। फिलहाल टेम्पररी टॉयलेट बनाया गया है। जबकि पक्का टॉयलेट निर्माण चल रहा है। शौचालय निर्माण से खुश अंजुम का कहना है कि अब घर में सब खुश हैं, क्योंकि पुलिस की वजह से उनका परिवार टूटने से बच गया। इस मामले को सुलझाने और आर्थिक मदद करने वाले हरदा थाने के हेड कांस्टेबल संजय ठाकुर का कहना है कि जब यह मामला आया तब उन्होंने इसकी जांच-पड़ताल करना शुरू कर दी, और सामने आया कि, नया शौचालय बनाना ही समस्या का हल होगा। उन्होंने बताया कि 20 दिनों तक परिजनों के बीच सहमति बनाई गई और टॉयलेट निर्माण कराया गया। अंजुम के खिलाफ भी थाने में शिकायत करने वाली अंजुम की सास नजमा भी अब खुश है। (एजेंसी)

रोज संभालते हैं ट्रैफिक

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पेशे से वकील धर्मवीर एक बार ट्रैफिक में फंसे तो उन्होंने यह ठान लिया कि वे दूसरों की मुश्किलें आसान करेंगे

शे से वकील धर्मवीर 6 साल पहले एक बार जाम में ऐसा फंसे कि उन्होंने ठान लिया कि वह इसे दूर करने के लिए कुछ ठोस करेंगे। उस दिन से वह रोज 2 घंटे भीड़भाड़ वाले क्षेत्रों में ट्रैफिक संभालते हैं। इसके अलावा वह ट्रैफिक पुलिस को भी सहयोग देते हैं। वह अपने खर्चे से सड़कों पर गड्ढों को भर रहे हैं। धर्मवीर ने बताया कि करीब 6 साल हले वह रात को दिल्ली से आ रहे थे। इफ्को चौक पर भीषण जाम लगा था, वहां कोई पुलिसकर्मी भी नहीं था। परिवार उनका इंतजार कर रहा था। बच्चे बार-बार फोन कर पूछ रहे थे कि कब आएंगे। जाम में होने की वजह से वह कोई ठोस जवाब नहीं दे सकते थे। इसी बीच वह कार से उतरे और ट्रैफिक को चलाना शुरू कर दिया। थोड़ी देर में रास्ता साफ हो गया। उस दौरान

काफी लोगों ने उनके प्रयास को सराहा। उसी दिन ठान लिया कि रोज ट्रैफिक पुलिस को सहयोग करूंगा। धर्मवीर ने बताया, 'गुड़गांव में सबसे बड़ी समस्या जाम और गड्ढों की है। इन्हें हर कोई देखता है, लेकिन ध्यान नहीं देता। मैं 6 वर्षों से इन दो कार्यों के लिए समर्पित हूं। इसमें मेरा साथ मेरा परिवार भी देता है।' धर्मवीर जिस रोड में गड्डे खतरनाक होते हैं उसे अपने स्तर पर भरने का काम करते हैं। अपनी सैलरी का एक हिस्सा वह इस काम पर खर्च करते हैं। जैकबुपरा, न्यू रेलवे रोड, ओल्ड रेलवे रोड पर उन्होंने काम किया है। सड़कों की बदहाल स्थिति को लेकर उन्होंने सीएम विंडो पर भी शिकायत दी है। सोशल नेटवर्किंग साइट पर भी वह अधिकारियों को हालात से रूबरू कराते रहते हैं। (एजेंसी)


16 खुला मंच

11 - 17 दिसंबर 2017

यह सच है कि पानी में तैरने वाले ही डूबते हैं, किनारे पर खड़े रहने वाले नहीं। पर एेसे लोग कभी तैरना भी सीख नहीं पाते हैं

अभिमत

लेखक वरिष्ठ शोधकर्ता, समीक्षक और स्तंभकार हैं

सरदार पटेल स्मृति दिवस (15 दिसंबर) पर विशेष

लौहपुरुष का अनुशासन

- सरदार वल्लभभाई पटेल

मनरेगा की सफलता

प्रियदर्शी दत्ता

स्व-अनुशासन का मंत्र गांधी ने दिया था, लेकिन राष्ट्रीय आंदोलन के लिए बेहद जरूरी सांगठनिक अनुशासन और एकजुटता सरदार पटेल लेकर आए

ईईजी की हालिया रिपोर्ट में मनरेगा से गरीब परिवारों की आय में 11 प्रतिशत की बढ़ोत्तरी दर्ज की गई है

नरेगा योजना भले नरेंद्र मोदी सरकार के दौर में शुरू नहीं हुई थी, पर इस सरकार ने इस योजना को ग्रामीण भारत में आर्थिक सशक्तिकरण के एक बड़े उपक्रम के तौर पर जारी रखा। सरकार की यह नीतिगत सोच सही भी साबित हो रही है। इंस्टीट्यूट ऑफ इकोनॉमिक ग्रोथ (ईईजी) की हालिया रिपोर्ट के अनुसार मनरेगा के अंतर्गत कराए गए विविध कार्यों की सहायता से गरीब परिवारों की आय में 11 प्रतिशत की बढ़ोत्तरी दर्ज की गई है। इसके अतिरिक्त खेतों की कुल उत्पादकता में भी 32 फीसदी की बढ़त दर्ज हुई है। 29 राज्यों के 30 जिलों में 1160 ग्रामीण परिवारों को इस सर्वेक्षण के लिए चुना गया था। इस अध्ययन के अनुसार, ग्रामीण क्षेत्रों के अनाज उत्पादन में 11.5 प्रतिशत और सब्जी के उत्पादन में 32.3 प्रतिशत की बढ़त हुई है। यह स्थिति मनरेगा के अंतर्गत कराए जाने वाले विविध कार्यों में गरीब परिवारों की भागीदारी सुनिश्चित करने के कारण हुई है, जो प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की प्राथमिकता सूची में सर्वोपरि है। मनरेगा की इस सफलता को समझने के साथ सरकार द्वारा इश दिशा में उठाए गए अन्य कदमों को भी देखना होगा, तभी हम सरकार की पहल का समन्वित मूल्यांकन कर सकेंगे। इस दौरान समावेशी वित्तीय विकास जैसी कई योजनाएं, जैसे जनधन योजना सहित लगभग दर्जन-भर से अधिक योजनाएं गरीबों के हितों को ध्यान में रखकर बनीं और व्यावहारिक रूप से कार्यान्वित भी की गईं। उदाहरण के तौर पर, अटल पेंशन योजना और जीवन और दुर्घटना बीमा योजना आदि। यह न केवल न्यूनतम आर्थिक स्थिति वाले परिवारों को ध्यान में रखकर बनाई गईं, बल्कि इनसे जुड़े उनके आर्थिक लाभ भी सुनिश्चित किए गए। मनरेगा जैसी योजना पर जो भ्रष्टाचार का आरोप लग रहा था, उसे रोकने के लिए भी मौजूदा सरकार ने कारगर कदम उठाए हैं।

टॉवर

(उत्तर प्रदेश)

रीब 100 साल पहले अहमदाबाद में जब महात्मा गांधी और सरदार पटेल दोनों मिले तो उम्मीद थी की राजनीति पर गरम बहस होगी, लेकिन यहां तो धर्म-कर्म पर काफी देर तक चर्चा होती रही। पर 41 साल के बेहद सख्त मिजाज के बैरिस्टर में उस मुलाकात के बाद कुछ बेहद स्थायी बदलाव आए। गांधी के शब्द उनके कानों में तब तक गूंजते रहे, जब तक वो सत्याग्रह आंदोलन में खुद शामिल नहीं हो गए। हालांकि बेहद व्यावहारिक इंसान होने की वजह से अपने झुकाव के बावजूद खुलकर आंदोलन में 1917 में जाकर शामिल हुए। उसी साल चंपारण आंदोलन के बाद गांधी देश के राजनीतिक मसीहा बन चुके थे। बैरिस्टर उसके बाद गांधी के विश्वासपात्र बन गए और आगे चलकर धीरे-धीरे गांधी के दायां हाथ हो गए। जो भी गांधी सोचते या रणनीति बनाते, बैरिस्टर उसको हूबहू पूरा करते। बैरिस्टर ने अपना यूरोपीय सूट-बूट जलाकर खादी का धोती-कुर्ता पहनने लगे। उस बैरिस्टर का नाम था सरदार वल्लभभाई झावेरीभाई पटेल (1875-1950), भारत के लौहपुरुष। सरदार पटेल लेउवा पटेल समुदाय से थे। माना जाता है कि उनके पूर्वज लड़ाके थे, लेकिन फिलहाल ये समुदाय के कार्य में लगे थे। इस समुदाय की शौर्यता और कठिन परिश्रम का इतिहास रहा है। किसान परिवार के पटेल का बचपन भी खेतीबाड़ी के माहौल में बीता। कानूनी और राजनीतिक क्षेत्र में शीर्ष मुकाम तक पहुंचने के बावजूद वे खुद को हमेशा किसान बताते। पटेल के परिवार में उनके तीन भाई और एक

बहन थी। जिनमें से एक भाई विट्ठलभाई जावेरीभाई पटेल (1873-1933), लॉ बार, सेंट्रल लेजिस्लेटिव एसेंबली के पहले भारतीय प्रेसिडेंट (स्पीकर) बने। अहमदाबाद नगर निगम का चुनाव जीतने (19171928) के बाद से ही सरदार पटेल में एक कुशल राजनेता की छवि नजर आने लगी। वे अपनी प्रतिभा से ना सिर्फ ब्रिटिश नौकरशाही को धराशाई कर रहे थे, बल्कि उन्हों ने शहर के आम नागरिकों की जरूरतों के हिसाब से कई रचनात्मक कार्यों की भी पहल की। निगम के प्रेसिडेंट रहते हुए (1924-1928) एकबार 'स्वच्छ भारत' का भी एक अनोखा उदाहरण पेश किया था। स्वयंसेवकों के साथ मिलकर पटेल ने अहमदाबाद की गलियों में झाड़ू लगाए और कूड़ा फेंका, जिसकी शुरुआत वहां की हरिजन बस्ती से हुई। 1917 में जब अहमदाबाद में प्लेग फैला तो स्वयंसेवकों के साथ पटेल 24 घंटे लगे रहे। पीड़ितों के घर जाकर उनसे और उनके परिजनों से बात करते। लोकमान्य तिलक ने जैसे 1896 में प्लेग के दौरान किया था वैसे ही पटेल संक्रमण का खतरा उठाते हुए कार्य करते रहे। लगातार कार्य की वजह से पटेल के स्वास्थ्य पर बेहद बुरा असर पड़ा। लेकिन इस दौरान आम जनता के नेता की उनकी छवि और मजबूत हो गई। लगभग उसी दौरान खेड़ा सत्याग्रह (1918) से पटेल की नेतृत्व क्षमता और मजबूत हुई और ये सत्याग्रह आगे जाकर बारदोली सत्याग्रह (1928) में बदल गया। हालांकि खेड़ा (गुजरात) आंदोलन में कर रियायत की जो मांगे थी वो पूरी तो नहीं हुई, लेकिन इसके दो बेहद

1930 अमेरिकी पत्रकार जॉन गुंथर ने पटेल को 'कांग्रेस का सर्वोत्कृष्ट' नेता करार दिया था। उसके मुताबिक पटेल फैसले लेने वाले, व्यावहारिक और किसी भी मिशन को पूरा करने वाले शख्स थे


11 - 17 दिसंबर 2017 अहम प्रभाव पड़े। पहला, जमीन का कर तय करने में किसानों को भी एक पक्ष के रूप में स्वीकारा गया और इस विषय पर गांधी और पटेल एकसाथ आए। एक दशक बाद गुजरात 23 जुलाई 1927 को मूसलधार बारिश की वजह से भयंकर बाढ़ से जूझने लगा। पटेल ने बाढ़ पीड़ितों को बचाने और उनके पुनर्वास के लिए जोरदार अभियान चलाया, इसी अभियान से राष्ट्रीय स्तर पर उनकी एक मजबूत नेतृत्वकर्ता की पहचान बनी। बॉम्बे सरकार (गुजरात तब बॉम्बे प्रेसिडेंसी का हिस्सा था) ने अवॉर्ड के लिए उनके नाम का प्रस्ताव भेजा, लेकिन पटेल ने विनम्रता से उसे ठुकरा दिया। बारदोली (1928) में विशाल जीत के बावजूद ऐसी विनम्रता पटेल की पहचान थी। वे दिसंबर 1928 में कलकत्ता कांग्रेस के चुनाव में खड़ा नहीं होना चाहते थे। बार-बार आग्रह किए जाने के बाद वे गुजरात से आए लोगों के बीच खड़े हुए, लेकिन उसके बाद भी संबोधित करने मंच पर आने के लिए उन्हें धक्का देना पड़ा। बारदोली (जिलासूरत) पटेल का कुरुक्षेत्र रहा है। उनके नेतृत्व में चलाया गया सफल कर विरोधी अभियान का नतीजा यह हुआ कि ब्रिटिश हुकूमत तीन महीने के भीतर फैसले को वापस लेने पर मजबूर हुई। सांगठनिक कुशलता के आधार पर इस आंदोलन की तुलना सिर्फ महाराष्ट्र में बाल गंगाधर तिलक के चलाए अकाल राहत आंदोलन (1896) से ही की जा सकती है। पटेल ने सैन्य तैयारी की तर्ज पर इस सत्याग्रह आंदोलन को खड़ा किया, लेकिन ये पूरी तरह से अहिंसक आंदोलन था। पटेल खुद आंदोलन के सेनापति थे, उनके बाद विभाग पति आते जो कि सैनिकों का कामकाज देखते थे। इस आंदोलन की रणभूमि में 92 गांवों के 87,000 किसान शामिल थे। घुड़सवार संदेशवाहकों, भजन गायकों और छपाखानों की मदद से उन्होंने एक वृहद सूचना तंत्र तैयार किया। बारदोली में उनकी सफलता ने पूरे ब्रिटेश साम्राज्या का ध्यान खींचा। लेकिन सबसे बड़ा सम्मान तो उन्हें बारदोल तालुका के नानीफलोद के एक किसान ने दिया। कुवेरजी दुर्लभ पटेल ने भरी सभा में कहा कि ‘पटेल आप हमारे सरदार हैं।’ पटेल का बेहद अनुशासित होकर कार्य करने का तरीका विलक्षण था। स्व-अनुशासन का मंत्र गांधी ने दिया था, लेकिन आंदोलन के लिए बेहद जरूरी सांगठनिक अनुशासन और एकजुटता को पटेल लेकर आए। पटेल का राजनीतिक सफर ठीक उसी समय शुरू हुआ, जब भारतीय राजनीति आंदोलन का रूप ले चुकी थी। 1930 में एशियाई राजनीति पर काफी सर्वे कर चुके अमेरिकी पत्रकार जॉन गुंथर ने पटेल को 'कांग्रेस का सर्वोत्कृष्ट' नेता करार दिया था। उसके मुताबिक पटेल फैसले लेने वाले, व्यावहारिक और किसी भी मिशन को पूरा करने वाले शख्स थे। स्वतंत्र भारत के पहले गृहमंत्री के तौर पर पाकिस्तान से विस्थापित हुए हिंदू और सिख शरणार्थियों के पुनर्वास कार्य कराने के साथ ही देश में सिविल सेवा की शुरुआत का श्रेय भी उन्हीं को जाता है। आईसीएस फिलिप मैसन ने एक बार कहा था कि पटेल एक जन्मजात प्रशासक हैं और उन्हें कोई कार्य करने के लिए पुराने अनुभव की जरूरत नहीं है।

ल​ीक से परे

यू

प्रियंका तिवारी

खुला मंच

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लेखिका युवा पत्रकार हैं और देश-समाज से जुड़े मुद्दों पर प्रखरता से अपने विचार रखती हैं

एक नोबेल संस्था है यूनिसेफ

यूनिसेफ की पहचान ऐसी वैश्विक संस्था के रूप में है, जो दुनिया भर में बच्चों के बेहतर भविष्य के लिए काम करती है

निसेफ की स्थापना तो खैर 11 दिसंबर, 1946 को ही न्यूयॉर्क में हो गई थी, पर इसने 1959 में पूरी ध्यान का ध्यान तब खींचा जब संयुक्त राष्ट्र महासभा ने बच्चों के अधिकारों की घोषणा की और जिसे दुनिया के कई देशों ने अपनाया। बच्चों की शिक्षा, स्वास्थ्य और सुरक्षा को लेकर यह दुनिया की पहली अंतरराष्ट्रीय घोषणा थी। यूनिसेफ के योगदान को तब और पहचान मिली, जब उसे 1965 में नोबेल शांति पुरस्कार से नवाजा गया। इस पुरस्कार को स्वीकार करते हुए कार्यकारी निदेशक हेनरी लेबुइज ने समिति से कहा, ‘आपने हमें नई ताकत प्रदान की है।’ आज यूनिसेफ की पहचान ऐसी वैश्विक संस्था के रूप में है, जो दुनिया भर में बच्चों के बेहतर भविष्य के लिए काम करता है। वर्ष 1949 में यूनिसेफ ने भारत में अपने काम की शुरुआत की। बहुत ही कम लोगों को मालूम होगा कि भारत के पहले पेनिसिलिन प्लांट, पहले डीडीटी प्लांट के निर्माण और भारत की श्वेत क्रांति में यूनिसेफ का अहम योगदान है। बात करें यूनिसेफ के स्थापना से जुड़े उद्देश्यों की तो दूसरे विश्व युद्ध के बाद यूरोप में बच्चों की बदहाल स्थिति को देखते हुए संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा दिसंबर, 1946 में यूनाइटेड नेशंस इंटरनेशनल चिल्ड्रेंस इमरजेंसी फंड (यूनिसेफ) की स्थापना की गई। इसका उद्देश्य युद्ध से प्रभावित बच्चों के जीवन को संवारना और सुरक्षित बनाना था, ताकि विध्वंस के शिकार समाज का पुनर्निर्माण किया जा सके और एक नई आशा का संचार किया जा सके। यूनिसेफ की स्थापना के साथ ही संयुक्त राष्ट्र की मूल प्रकृति के अनुसार यह घोषणा की गई कि यह संगठन बच्चों

यूनिसेफ दिवस (11 दिसंबर) पर विशेष को सहायता प्रदान करने में जाति, धर्म, राष्ट्रीयता, राजनीतिक विचारधारा आदि किसी भी आधार पर भेदभाव नहीं करेगा। इसी भावना के तहत यूनिसेफ के पहले कार्यकारी निदेशक मॉरिस पेट ने अपनी नियुक्ति के लिए शर्त रखी कि संगठन के द्वारा सभी बच्चों को सहायता प्रदान की जाएगी, जिसमें मित्र और पूर्व के शत्रु देशों के बच्चे भी शामिल होंगे। यूनिसेफ यह मानता है कि प्रत्येक बच्चा स्वास्थ्य, सुरक्षित बचपन आदि के समान अधिकार के साथ पैदा होता है। इसका मिशन सभी बच्चों पर केंद्रित है, जिसमें बच्चों के मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य के साथ-साथ शिक्षा, सामाजिक संरक्षण, सुरक्षित पेयजल एवं स्वच्छता आदि शामिल है। यूनिसेफ यह भी मानता है कि गरीबी, बीमारी और भुखमरी का चक्र वैश्विक विकास में बाधा है और यह बच्चों के मानवाधिकारों का उल्लंघन है। बच्चों के अधिकार यूनिसेफ के कार्यों को ऐसे विश्व के निर्माण के लिए दिशा प्रदान करता है, जहां सभी

सभी से जुड़ा अखबार

‘सुलभ स्वच्छ भारत’ न सिर्फ स्वच्छता के लिए, बल्कि समाज के पिछड़े व दबे-कुचले लोगों के लिए भी बहुत कुछ करने की ख्वाहिश जगाता है। इस अखबार को पढ़ने के बाद मेरी ही तरह बहुत से लोगों को यह अहसास हुआ है। यही इस अखबार की सबसे बड़ी कामयाबी है। ‘सुलभ स्वच्छ भारत’ ने लोगों में जो जागरूकता फैलाई है, ऐसे उदहारण बहुत कम देखने को मिलते हैं। हमारी यही ख्वाहिश है कि ‘सुलभ स्वच्छ भारत’ की पूरी टीम इसी तरह समाज के सभी तबकों के लिए काम करती रहे और उन्हें जागरुक करती रहे। नवीन सरीन, दिल्ली

बच्चों के पास समान अवसर उपलब्ध हों। समानता आधारित दृष्टिकोण पीछे छूट चुके बच्चों की प्रगति को गति प्रदान करने के लिए आवश्यक है। यह न केवल नैतिक अनिवार्यता है, बल्कि रणनीतिक आवश्यकता भी है। यूनिसेफ के हजारों साहसी, समर्पित लोगों ने लगातार विश्व के कठिन और दुर्गम जगहों पर कमजोर और वंचित बच्चों तक पहुंचने के लिए दुनिया भर की सरकारों, साझेदारों, दानकर्ताओं, अन्वेषकों, सद्भावना राजदूतों और बच्चों के अधिकारों की वकालत करने वालों के साथ मिलकर काम किया है। इन सभी लोगों ने हमारे सामूहिक लक्ष्य, यानी बच्चों के लिए संसाधन उपलब्ध कराने में सहायता प्रदान की है और लगातार उत्साहवर्द्धन किया है। नई सहस्राब्दी में यूनिसेफ ने बच्चों की जरूरतों को विश्व के एजेंडे पर प्रमुखता से रखना जारी रखा है। 2002 में संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा बच्चों पर आयोजित विशेष सत्र अपनी तरह का पहला आयोजन था, जो कि विशेश रूप से बच्चों पर केंद्रित था और जिसमें युवाओं को आधिकारिक प्रतिनिधि के रूप में शामिल किया गया था। 2015 में जब सहस्राब्दी विकास लक्ष्य की समाप्ति हुई तो यूनिसेफ और साझेदारों ने बाल केंद्रित दूसरे वैश्विक लक्ष्य की वकालत की। सतत विकास लक्ष्य के तहत सभी लड़कियों और लड़कों को संरक्षण और सामाजिक समावेशीकरण को शामिल किया गया है। यह यूनिसेफ और उनके साझेदारों के प्रयासों का ही परिणाम है। दुनिया में अब यह समझ बढ़ रही है कि वंचित बच्चों के लिए न्यायपूर्ण व्यवस्था और सामाजिक और आर्थिक विकास के बीच सीधा संबंध है।

प्रभावशाली विशेषांक

‘सुलभ स्वच्छ भारत’ के वैसे तो सभी अंक प्रेरणादायक होते हैं, लेकिन इसके विशेषांक अपनी अलग छाप छोड़ जाते हैं। मैं इस अखबार का नियमित पाठक हूं, हमें इसबार का अंतरराष्ट्रीय दिव्यांग दिवस का विशेष अंक काफी प्रभावी लगा। इसमें प्रकाशित ‘बदल रही दिव्यांगों की दुनिया’ लेख में लेखक ने बड़े मार्मिक भाव से शारीरिक रुप से अक्षम भाई बहनों की संवेदनाओं को चित्रित किया है, जो कि काफी सराहनीय है। समाज के प्रत्येक तबके से जुड़ा यह समाचार पत्र समाज के प्रति अपने उत्तरदायित्वों का निर्वहन बखूबी कर रहा है। इसके लिए हम पूरी टीम को साधुवाद देते हैं। रत्नेश शुक्ल, गाजियाबाद, उत्तर प्रदेश


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11 - 17 दिसंबर 2017

जीवन की नई राह

ग्लोबल वार्मिंग अब दुनिया के लिए भावी खतरा नहीं, बल्कि एक अनुभव है। इसके कारण समुद्री तूफान, जंगली आग से लेकर कई तरह की आफत रोज की खबर हो गई है। इस संकट ने स्वच्छ ऊर्जा की वैश्विक दरकार को काफी बढ़ा दिया है फोटो ः पिक्साबे


11 - 17 दिसंबर 2017

फोटो फीचर

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स्वच्छ ऊर्जा की बढ़ी दरकार ने कम दूरी के आवागमन के लिए साइकिल की लोकप्रियता को काफी बढ़ा दिया है। लोग दफ्तर जाने से लेकर अपने दूसरे कार्यों के लिए साइकिल के उपयोग की तरफ बढ़ रहे हैं। साइकलिंग का बढ़ा आकर्षण लोगों की स्वास्थ्य चिंता से भी जुड़ा है। इसके अलावा इलेक्ट्रिक वाहनों की तरफ भी लोगों का झुकाव तेजी से बढ़ रहा है। पवन चक्की, सौर ऊर्जा से लेकर बायोगेस के इस्तेमाल के प्रति बढ़ा लोगों का रूझान यह दिखाता है कि ग्लोबल वार्मिंग का खतरा अगर बढ़ा है, तो इससे निपटने का विवेक भी लोगों में जगा है


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11 - 17 दिसंबर 2017

स्वदेशी दिवस (12 दिसंबर) पर विशेष

गेनू का बलिदान और स्वदेशी आंदोलन

स्व

12 दिसंबर 1930 भारत के स्वदेशी आंदोलन का अत्यंत महत्वपूर्ण दिन है। इसे पूरा देश स्वदेशी दिवस के रूप में मनाता है। इसी दिन बाबू गेनू ने अपना बलिदान दिया था

एसएसबी ब्यूरो

देशी आंदोलन भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन का एक महत्वपूर्ण आंदोलन, सफल रणनीति व दर्शन था। स्वदेशी का अर्थ है- 'अपने देश का'। इस रणनीति के लक्ष्य ब्रिटेन में बने माल का बहिष्कार करना तथा भारत में बने माल का अधिकाधिक प्रयोग करके साम्राज्यवादी ब्रिटेन को आर्थिक हानि पहुंचाना व भारत के लोगों के लिए रोजगार सृजन करना था। यह ब्रितानी शासन को उखाड़ फेंकने और भारत की समग्र आर्थिक व्यवस्था के विकास के लिए अपनाया गया साधन भी था। वर्ष 1905 के बंग-भंग विरोधी जनजागरण से स्वदेशी आंदोलन को बहुत बल मिला। यह 1911 तक चला और गांधी जी के भारत में पदार्पण के पूर्व सभी सफल आंदोलनों में से एक था। अरविंद घोष, रवींद्रनाथ ठाकुर, वीर सावरकर, लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक और लाला लाजपत राय स्वदेशी आंदोलन के मुख्य उद्घोषक थे। आगे चलकर यही स्वदेशी आंदोलन महात्मा गांधी के स्वतंत्रता आंदोलन का भी केंद्र-बिंदु बन गया। उन्होंने इसे ‘स्वराज की आत्मा’ कहा। 12 दिसंबर 1930 भारत के स्वदेशी आंदोलन का अत्यंत महत्वपूर्ण दिन है। इसे पूरा देश स्वदेशी दिवस के रूप में मनाता है। इसी दिन बाबू गेनू ने अपना बलिदान दिया था। देशप्रेम की भावना के वशीभूत होकर कभी-कभी सामान्य सा दिखाई देने वाला व्यक्ति भी बहुत बड़ा काम कर जाता है। ऐसा ही बाबू गेनू के साथ हुआ। गेनू का जन्म 1908 में पुणे जिले के ग्राम महालुंगे पडवल में हुआ था. इस गांव से कुछ दूरी पर ही शिवनेरी किला था, जहां छत्रपति शिवाजी महाराज का जन्म हुआ था। लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक और महात्मा गांधी के स्वदेशी और बहिष्कार आंदोलन से प्रेरित बाबू गेनू कांग्रेस को चार आने देने वाले एक मामूली सदस्य थे। वह विदेशी वस्तुओं से भरी लॉरी को रोकते हुए शहीद हो गया और स्वदेशी आह्वान के लिए प्रथम बलिदानी होने का गौरव प्राप्त किया। उस समय की अंग्रेज सरकार देश को आर्थिक दृष्टि से लूट रही थी। इंग्लैंड में चलने वाली फैक्ट्रियों का उत्पादन बढ़ाने हेतु आवश्यक कच्चे माल के लिए भारत के संसाधनों का दोहन किया जाता था। अंग्रेजों की इस कुटिल चाल को विफल करने के लिए लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक और महात्मा गांधी ने स्वातंत्र्य संग्राम में स्वदेशी अपनाने और विदेशी माल का बहिष्कार करने का प्रबल अभियान चलाया था। स्वदेशी और बहिष्कार का सत्याग्रह देश की अस्मिता का प्रतीक बन गया था। बाबू गेनू ने पूरी शक्ति से इस स्वदेशी आंदोलन में भाग लिया। गेनू के माता-पिता खून–पसीना एक करके खेती

लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक और महात्मा गांधी के स्वदेशी और बहिष्कार आंदोलन से प्रेरित बाबू गेनू कांग्रेस को चार आने देने वाले एक मामूली सदस्य थे किया करते थे। गांव की जमीन बंजर थी। परिवार में भोजन की समस्या रहती थी। बाबू गेनू के पिता इलाज के अभाव में चल बसे। बाबू बचपन से ही कुशाग्र बु​िद्ध के थे। एक बार पढ़ते ही उन्हें सारी बातें समझ में आ जाती थीं। लेकिन आर्थिक संकट के कारण उनका स्कूल जाना संभव नहीं था। कालांतर में बाबू राष्ट्रीय विचारधारा के एक मुस्लिम व्यक्ति के संपर्क में आए जो शिक्षक थे। बाबू उन्हें चाचा कहकर संबोधित करते थे। उन्होंने बाबू को समझाया कि, जिस मिट्टी में हम बड़े हुए हैं उसी की संतान हैं। अपने देश

को अंग्रेजों की दासता से मुक्त कराना हमारा परम कर्तव्य है। चाचा ने बाबू को अंग्रेजों की बर्बरता उनकी आक्रामकता तथा अन्याय के विषय में भी विस्तार से चर्चा की। उन्होंने ही बाबू को महात्मा गांधी का शिष्य बनवाया। 1926 -27 में बाबू कांग्रेस के वालेंटियर बन गए। 1928 में ‘साइमन कमीशन’ विरोधी आंदोलन में बाबू ने अपने संगठन के साथ बढ़चढ़ कर हिस्सा लिया। 3 फरवरी, 1928 को बाबू ने एक बड़ा जूलुस आयोजित किया। उस दिन पूरे मुम्बई सहित दिल्ली, कलकत्ता, पटना, चेन्नई आदि शहरों में भी जोरदार

प्रदर्शन हुए। लाहौर के प्रदर्शनों में पुलिस लाठीचार्ज में लाला लाजपत राय घायल हो गए और उनकी मृत्यु हो गई। महात्मा गांधी के सत्याग्रह आंदोलन में भी बाबू जेल गए। जेल में ही उन्हें अपनी मां के निधन का समाचार मिला। बाबू ने अपने मित्रों से कहा कि, अब मैं पूरी तरह से मुक्त हो गया हूं, भारत माता को मुक्त कराने के लिए कुछ भी कर सकता हूं। अक्टूबर 1830 में बाबू गेनू, प्रह्लाद और शंकर के साथ जेल से बाहर आए। बाबू ने घर-घर जाकर स्वदेशी का प्रचार-प्रसार प्रारंभ कर दिया। दीपावली, 1930 के बाद विदेशी माल के बहिष्कार का आंदोलन पूरे देश में फैल गया। बाबू गेनू ने सभी स्वयंसेवकों से मिलकर तय किया कि विदेशी वस्तुएं ले जाने वाले ट्रकों को रोकेंगे। 12 दिसंबर को सत्याग्रह का दिन तय था। 12 दिसंबर 1930 को शुक्रवार था। मुंबई के कालवादेवी रोड पर विदेशी कपड़ों से भरी लॉरियां, ट्रक आदि को रोकने का निश्चय किया गया। मुंबई के मुलजीजेठा मार्केट से विदेशी कपड़े जाने थे, जिनको रोकने की जिम्मेदारी मुम्बई शहर की कांग्रेस पार्टी ने बाबू गेनू और उनके तानाजी पथक संगठन को सौंपी। अंग्रेजों को इसकी जानकारी थी। इसीलिए उसने पुलिस बल को पहले ही बुला लिया था। प्रातः साढ़े दस बजे से ही सत्याग्रहियों की टोलियां जयघोष करती हुई आने लगीं। बाबू गेनू के नेतृत्व में तानाजी पथक भी आया। विदेशी माल से भरे ट्रक दौड़ने लगे। विदेशी कपड़ों से भरी हुई लारी आ रही थी। बाबू ने लारी रूकवाने का प्रयास किया। कड़े पुलिस बंदोबस्त के बावजूद घोई सेवणकर नामक युवक लारी के सामने तिरंगा लेकर लेट गया। ड्राइवर ने ब्रेक लगाया और गाड़ी रूक गई। भारत माता की जय और वंदे मातरम के नारों ने जोर पकड़ लिया। भीमा घोंई से तुकाराम मोहिते तक यह क्रम चलता रहा। धीरे– धीरे पुलिस का गुस्सा बढ़ता गया। पुलिस ने बल प्रयोग प्रारंभ कर दिया। सत्याग्रहियों का जोर भी बढ़ रहा था। तभी लॉरी के सामने स्वयं बाबू गेनू आ गया। क्रुद्ध पुलिस का नेतृत्व कर रहे अंग्रेज सार्जेंट ने आदेश दिया, लॉरी चलाओ, ये मर भी गए तो कोई बात नहीं। ड्राइवर भारतीय था उसका नाम बलवीर सिंह था। उसने लॉरी चलाने से मना कर दिया। अंग्रेज सार्जेंट ने स्वयं लॉरी चलानी प्रारम्भ कर दी। लॉरी बाबू गेनू के ऊपर से गुजर गई। वह गंभीर रूप से घायल हो गया। पूरी सड़क बलिदानी खून से लाल हो गई। अंतिम सांसे ले रहे बाबू को निकट के अस्पताल में भर्ती करवाया गया जहां सायंकाल उनकी मृत्यु हो गई। बाबू की अंतिम यात्रा के दिन पूरा मुम्बई बंद रहा। उसकी याद में उसके गांव महालुंगे पडवल में प्रतिमा स्थापित की गई है। प्रत्येक वर्ष 12 दिसंबर का दिन बाबू गेनू की स्मृति दिवस के साथ स्वदेशी दिवस के रूप में तब से ही मनाया जाता है।


11 - 17 दिसंबर 2017

ऊर्जा

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राष्ट्रीय ऊर्जा संरक्षण दिवस (14 दिसंबर) पर विशेष

ऊर्जा पथ पर देश

सौर ऊर्जा का उत्पादन मौजूदा 20 गीगावॉट से बढ़ाकर वर्ष 2022 तक 100 गीगावॉट करने का लक्ष्य है

एसएसबी ब्यूरो

नुष्य की आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए प्राकृतिक संसाधनों के दोहन से उत्पन्न हुई जलवायु परिवर्तन की समस्या से निपटने के लिए भी मोदी सरकार कदम उठा रही है, ताकि ऊर्जा की जरूरतें भी पूरी हों और प्रकृति का संरक्षण भी साथ-साथ जारी रहे। माना जा रहा है लेड बल्ब का इस्तेमाल इस दिशा में अपने-आप में बहुत बड़ा कदम है। इसके प्रयोग से सालाना 8 करोड़ टन कार्बन उत्सर्जन को रोका जा सकता है। इसके साथ-साथ 4 हजार करोड़ रुपए की सालाना बिजली की बचत भी होगी। इसके साथ-साथ केंद्र सरकार नवीकरणीय ऊर्जा पर भी जोर दे रही है। इसके तहत सौर ऊर्जा का उत्पादन मौजूदा 20 गीगावॉट से बढ़ाकर साल 2022 तक 100 गीगावॉट करने का लक्ष्य है। सबसे बड़ी बात है कि पर्यावरण की रक्षा के लिए सरकार 2030 तक देश के सभी वाहनों को इलेक्ट्रिक वाहनों में बदल देने का लक्ष्य लेकर काम में जुटी है। इससे सालाना 10 हजार करोड़ रुपए से अधिक जीवाश्म ईंधन की बचत होगी। सरकार की ओर से कराए गए एक रिसर्च के अनुसार 2030 तक राजस्थान की केवल एक प्रतिशत भूमि से पैदा हुई सौर ऊर्जा से देशभर के सभी वाहनों के लिए पर्याप्त ईंधन का इंतजाम हो सकता है। 26 मई 2014 को प्रधानमंत्री मोदी के शपथ ग्रहण के समय तक देश में बिजली की हालत बहुत ही खराब थी। सभी डिस्कॉम कंपनियां घाटे में चल रही थीं, लेकिन प्रधानमंत्री मोदी के कुशल नेतृत्व में तीन साल पहले भयंकर बिजली संकट से गुजरने वाला देश आज बिजली निर्यात भी करने लगा है।

पवन ऊर्जा की दर रिकार्ड निचले स्तर पर पहुंच गई है। इस बीच, देश में पवन ऊर्जा की दर घटकर 2.64 रूपए यूनिट के रिकार्ड निचले स्तर पर पहुंच गई है। नवीन और नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय की ओर से भारतीय सौर ऊर्जा निगम लिमिटेड (एसईसीआई) द्वारा दूसरी पवन ऊर्जा बोली में यह दर लगाई गई है। इस वर्ष फरवरी में पहली पवन ऊर्जा बोली में लगाई गई 3.64 प्रति यूनिट की दर से यह काफी कम है। एक हजार मेगावॉट की क्षमता के मुकाबले एसईसीआई को 2892 मेगावॉट क्षमता के लिए कुल 12 बोली मिली। कुल एक हजार मेगावॉट क्षमता के सौर ऊर्जा परियोजनाओं के लिए 5 विजेताओं का चयन किया गया। 250 मेगावॉट के लिए रिन्यू पावर ने 2.64 रू., 200 मेगावॉट के लिए औरेंज सिरोंज ने 2.64 रू., 250 मेगावॉट के लिए आईनोक्स विड में 2.65 रू., 250 मेगावॉट के लिए ग्रीन इन्फ्रा ने 2.65 रू और 50 मेगावॉट के लिए अडानी ग्रीन ने 2.65 रूपए की बोली लगाई। इन परियोजनाओं पर कार्य एसईसीआई द्वारा सफल बोली धारकों को कार्यपत्र देने की तिथि के 18 महीनों के अंदर पूरा करना होगा। तीन साल पहले देश अभूतपूर्व बिजली संकट झेल रहा था। लेकिन ऐसा पहली बार हुआ है कि अब देश में खपत से अधिक बिजली उत्पाद होने लगा है। केंद्रीय विद्युत प्राधिकरण के अनुसार भारत ने पहली बार वर्ष 2016-17 ( फरवरी 2017 तक) के दौरान नेपाल, बांग्लादेश और म्यांमार को 579.8 करोड़ यूनिट बिजली निर्यात की, जो भूटान से आयात की जाने वाली करीब 558.5 करोड़ यूनिटों की तुलना में 21.3 करोड़ यूनिट अधिक है। 2016 में 400 केवी लाइन क्षमता (132 केवी क्षमता के

भारत ऊर्जा क्षेत्र में आत्मनिर्भर ही नहीं बना है, सौर ऊर्जा के क्षेत्र में एक बहुत बड़ा बाजार के रूप में उभर कर सामने आया है

साथ संचालित) मुजफ्फरपुर – धालखेबर (नेपाल) के चालू हो जाने के बाद नेपाल को बिजली निर्यात में करीब 145 मेगावाट की बढ़ोत्तरी हुई है। मोदी सरकार की नीतियों के कारण आज देश में पारंपरिक और गैर-पारंपरिक ऊर्जा का भी भरपूर उत्पादन होने लगा है। सबसे बड़ी बात भारत इस क्षेत्र में आत्मनिर्भर ही नहीं बना है, सौर ऊर्जा के क्षेत्र में एक बहुत बड़ा बाजार बन कर सामने आया है। ऊर्जा क्षेत्र में इस कायापलट के पीछे उन योजनाओं के क्रियान्यवन में बेहतर तालमेल रहा है जिस पिछले तीन सालों में सरकार ने लागू किया है। ऊर्जा क्षेत्र की छोटी-छोटी समस्याओं को दूर करने के लिए लागू की गई इन योजनाओं से बहुत बड़े परिणाम सामने आए हैं। देश के हर घर को चौबीसों घंटे बिजली देने का लक्ष्य 2022 है। लेकिन जिस गति से काम चल रहा है उससे अब यह प्राप्त कर लेना आसान लगने लगा है, पहले यह कल्पना भी नहीं की जा सकती थी कि देश में ऐसा भी हो सकता है। मोदी सरकार ने अगले साल अक्टूबर तक देश के सभी गांवों में बिजली पहुंचा देने का वादा किया है। दीन दयाल उपाध्याय ग्राम ज्योति योजना के तहत जिस गति से ग्रामीण विद्युतीकरण का काम हो रहा है उससे यह असंभव सा लगने वाला काम संभव लग रहा है। तीन साल पहले मोदी सरकार के गठन के समय देश के 18,452 गांव बिजली से वंचित थे। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक हजार दिन के भीतर इन गांवों के हर घर तक बिजली पहुंचाने का वादा किया था। योजना की गति का अंदाजा इसी से लगाय जा सकता है कि यूपी में सिर्फ छह गांव बचे हैं, जहां बिजली नहीं पहुंची है और बिहार के 319 गांवों का रोशन होना बाकी है। सरकार द्वारा उठाए गए कदमों का असर है कि देश में लगातार बिजली उत्पादन में बढ़ोत्तरी हो रही है। इसकी दो बड़ी वजहें हैं। एक तरफ वितरण में होने वाला नुकसान कम हुआ है। दूसरी ओर सफल कोयला एवं उदय नीति से उत्पादन बढ़ा है। जैसे- 2013-14 में बिजली उत्पादन 96,700 करोड़ यूनिट हुआ था, जो 2014-15 में बढ़कर 1,04,800 करोड़ यूनिट हो गया। ये दौर आगे भी जारी रहा और 2015-16 में बिजली उत्पादन 1,10,700 करोड़ यूनिट हो गया, जिसकी वजह ऊर्जा नुकसान में 2.1 प्रतिशत की कमी रही। ऊर्जा नुकसान 2015-16 में जहां 2.1 प्रतिशत थी जो अब घटकर 0.7 प्रतिशत (अप्रैल-अक्टूबर, 2016) रह गई है। 2015-16 की

खास बातें देश में खपत से अधिक बिजली का उत्पादन होने लगा है 2030 तक वाहनों को इलेक्ट्रिक वाहनों में बदलने का लक्ष्य पवन ऊर्जा की दर घटकर 2.64 रुपए प्रति यूनिट पर आ गई है तुलना में अब राष्ट्रीय पीक पावर डिफिसिट घटकर आधा यानी 1.6 प्रतिशत रह गया है। नरेंद्र मोदी सरकार की कोयला नीति काम करने लगी है। इसके चलते देश अब ऊर्जा संकट से लगभग उबर चुका है । पिछली यूपीए सरकार की गलत कोयला नीति की वजह से अधर में फंसे दर्जनों ताप बिजली घरों में फिर से काम शुरू होने की उम्मीद बढ़ गई है। हाल ही में ‘शक्ति’ नाम से एक नई कोल लिंकेज पॉलिसी को मंजूरी दी गई है जो नए ताप बिजली घरों को आसानी से कोयला ब्लॉक उपलब्ध कराएगा। साथ ही पुराने एवं अटके पड़े बिजली घरों को भी कोयला उपलब्ध हो सकेगा। सरकार ने 10 नए नए स्वदेशी न्यूक्लियर पावर प्लांट के निर्माण का फैसला किया है। सबसे बड़ी बात ये है कि ये काम अपने वैज्ञानिक करेंगे और कोई भी विदेशी मदद नहीं ली जाएगी। इन दस नए स्वदेशी न्यूक्लियर पावर प्लांट से 7,000 मेगावाट बिजली पैदा की जा सकेगी। इसके अतिरिक्त 202122 तक 6,700 मेगावाट परमाणु ऊर्जा पैदा करने के लिए अन्य न्यूक्लियर पावर प्लांट के निर्माण का भी काम चल रहा है। इस समय देश में कुल 22 न्यूक्लियर पावर प्लांट बिजली पैदा कर रहे हैं, जिनसे कुल 6,780 मेगावाट बिजली पैदा हो रही है। वर्गीकृत विज्ञापन


22 स्वास्थ्य

11 - 17 दिसंबर 2017

अब होगा पुरानी दवाओं का नया इस्तेमाल

कुपोषण मुक्त भारत की तैयारी

राष्ट्रीय पोषण मिशन के तहत 9046.17 करोड़ रुपए खर्च किए जाएंगे। इस कार्यक्रम से 10 करोड़ से ज्यादा लोगों को लाभ पहुंचेगा

श को कुपोषण से मुक्त करने के लिए राष्ट्रीय देपोषण मिशन की स्थापना को मंजूरी दे दी गई।

अगले तीन वर्षों के लिए मिशन के तहत 9046.17 करोड़ रुपए खर्च किए जाएंगे। इस कार्यक्रम से 10 करोड़ से ज्यादा लोगों को लाभ पहुंचेगा। इससे सभी राज्यों और जिलों को चरणबद्ध रूप से यानी 201718 में 315 जिले, वर्ष 2018-19 में 235 जिले तथा 2019-20 में शेष जिलों को शामिल किया जाएगा। छह वर्ष से कम आयु के बच्चों और महिलाओं के बीच कुपोषण के मामले से निपटने के लिए सरकार

ने कई योजनाएं लागू की हैं। इन योजनाओं के बावजूद देश में कुपोषण तथा संबंधित समस्याओं का स्तर ऊंचा है। योजनाओं की कोई कमी नहीं है, लेकिन आम लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए योजनाओं को एक-दूसरे के साथ तालमेल स्थापित करने में कमी देखने में आई है। राष्ट्रीय पोषण मिशन (एनएनएम) सुदृढ़ व्यवस्था स्थापित करके इस कार्यक्रम के जरिए ठिगनेपन, अल्प पोषाहार, रक्त की कमी तथा जन्म के समय बच्चे के वजन कम होने के स्त‍र में कमी के उपाय तलाशे जाएंगे। इससे बेहतर निगरानी, समय पर कार्यवाही के लिए सावधानी जारी करने में तालमेल बिठाने तथा निर्धारित लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए मंत्रालय और राज्यों/संघ शासित क्षेत्रों को कार्य करने, मार्गदर्शन एवं निगरानी करने के लिए प्रोत्साहित किया जाएगा। (एजेंसी)

वायु प्रदूषण से बच्चों पर असर यूनिसेफ ने देश में बढ़ रहे वायु प्रदूषण स्तर पर जताई चिंता

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निसेफ की एक रिपोर्ट में बताया गया कि भारत सहित दक्षिण एशिया में वायु प्रदूषण से 1.2 करोड़ शिशुओं के मानसिक विकास पर असर पड़ सकता है। रिपोर्ट ऐसे समय में आई है जब दिल्ली और उत्तर भारत के कई राज्य वायु प्रदूषण के गंभीर संकट से जूझ रहे हैं। यूनिसेफ की भारत में संचार प्रमुख एलेक्जेंड्रा वेस्टरबीक ने कहा कि वायु प्रदूषण के संकट से लाखों भारतीयों बच्चे प्रभावित हो रहे हैं। रिपोर्ट के मुताबिक दक्षिण एशिया में वायु प्रदूषण के कारण एक साल से कम उम्र के करीब 1.22 करोड़ बच्चों का मानसिक विकास प्रभावित हो सकता है।

रिपोर्ट में कहा गया है कि प्रदूषणकारी तत्वों से दिमाग के तक क्षतिग्रस्त हो सकते हैं और संग्यानात्मक विकास कमतर हो सकता है। इससे पता चलता है कि जन्म के 1,000 दिनों के भीतर वायु प्रदूषण, अपर्याप्त पोषण एवं उोजना और हिंसा की चपेट में आने से बच्चों के विकसित हो रहे दिमाग पर असर पड़ने के साथ उनका शुरूआती विकास प्रभावित हो सकता है। रिपोर्ट के मुताबिक दक्षिण एशिया में बच्चों की ऐसी सबसे ज्यादा संख्या है जो प्रदूषण से सर्वाधिक प्रभावित क्षेत्रों में रहते हैं, ऐसी जगहों पर जहां वायु प्रदूषण अंतरराष्ट्रीय स्तरों से छह गुना ज्यादा है। एलेक्जेंड्रा ने कहा कि बच्चों के साफ हवा में सांस लेने के अधिकार एवं उनके स्वास्थ्य पर वायु प्रदूषण के खतरनाक असर को लेकर जागरूकता का प्रसार करना यूनिसेफ की प्राथमिकता में शामिल है। (एजेंसी)

दवा बाजार में आने वाली है क्रांति, भारतीय मूल के वैज्ञानिक कर रहे हैं पुरानी दवाओं के नए इस्तेमाल पर रिसर्च निकाले जा सकते हैं। बट ने कई किताबें लिखी हैं और उन्हें ओबामा प्रशासन से तारीफ भी मिली थी। हालांकि बट का दृष्टिकोण बिल्कुल स्पष्ट है। उनका कहना है कि शोधकर्ताओं को पेपर्स प्रकाशित करने के दायरे से निकलकर बीमारियों के इलाज के तरीके ढूंढने होंगे।

बट का तर्क

क्या

होगा, अगर अवसाद में दी जाने वाली दवा से फेफड़ों के कैंसर का इलाज संभव हो जाए? क्या होगा, अगर पैरासाइट्स को खत्म करने वाली दवा से सचमुच में लिवर कैंसर का इलाज होने लगे? हृदय रोग में दी जाने वाली दवा से क्या आप हेयर ग्रोथ की समस्या से छुटकारा पा सकते हैं? भारतीय मूल के वैज्ञानिक डॉ. अतुल बट का मानना है कि ऐसा हो सकता है। उपरोक्त उदाहरण सही हैं, लेकिन समस्या यह है कि लोग दवाओं के अलग-अलग इस्तेमाल से चूक जा रहे हैं। बट यूनिवर्सिटी ऑफ कैलिफॉर्निया के इंस्टीटयूट फॉर कंप्यूटेशनल हेल्थ साइंसेज के डायरेक्टर हैं। सैन फ्रांसिस्को शहर में स्थित इस इंस्टीटयूट में 41 फैकल्टी मेंबर्स, 100 अन्य स्टाफ, रिसर्च फेलोज और ग्रैजुएट स्टूडेंट्स हैं। गौर करने वाली बात है कि अतुल और उनकी टीम को फेसबुक के संस्थापक मार्क जकरबर्ग और उनकी पत्नी प्रिसिला चैन की ओर से 1 करोड़ डॉलर का गिफ्ट मिला है। बट के काम में सहयोग के तौर पर यह धनराशि मिली है। बट एक रिसर्च की पद्धति पर काम कर रहे हैं, जिसे वह 'डेटा रिसाइक्लिंग' कहते हैं। सरल शब्दों में कहें, तो उनका फोकस इस बात पर है कि दवाओं को गलती से लेने के बजाय सार्वजनिक रूप से मौजूद डेटा का इस्तेमाल कर कैसे लिया जाए। बट का मानना है कि सार्वजनिक रूप से 'ट्रि​िलयन पॉइंट्स ऑफ डेटा' मौजूद हैं, जिसकी मदद से लोगों की स्वास्थ्य से जुड़ी कई समस्याओं का समाधान किया जा सकता है। उनके अनुसार एफडीए द्वारा मंजूर की गई दवाओं को नई बीमारियों के इलाज में इस्तेमाल करने की जरूरत है। यही नहीं, मरीजों को स्वस्थ और सुरक्षित रखने के लिए भी दवाओं के अलग-अलग इस्तेमाल के तरीके

पब्लिक डेटा को पहले से ही काफी उच्च क्वॉलिटी का कहा जा रहा है, लेकिन हमारे पास डेटा का अंबार है। बट नासा का उदाहरण देकर कहते हैं कि जैसे- स्पेस एजेंसी एक साल में इतनी तस्वीरें लेती है कि उसके पास इतने खगोलविद भी नहीं जो सभी को देख सकें। वैज्ञानिक डेटा के साथ एक और समस्या है कि उसका इस्तेमाल विशिष्ट केस के लिए ही किया जाता है। कैंसर के इलाज के लिए मौजूद डेटा को कैंसर के ही इर्द-गिर्द होकर देखा जाता है, जबकि इसी डेटा का इस्तेमाल उन बीमारियों के इलाज के लिए भी किया जा सकता है, जिसका कैंसर से दूरदूर तक कोई लेना-देना नहीं हो। आईसीएचएस ऐसे डेटा का व्यापक इस्तेमाल करने की दिशा में आगे बढ़ रही है। बट कहते हैं कि जकरबर्ग से मिली मदद का इस्तेमाल फैकल्टी की भर्ती, सॉफ्टवेयर बनाने के साथ ही इंस्टिट्यूट के भीतर डेटा इंफ्रास्ट्रक्चर के लिए किया जाएगा।

ऐसे समझें यह काम

वास्तव में बट दवा की री-पोजिशनिंग करने की कोशिश कर रहे हैं। उनका मकसद पुरानी दवा से नई या दूसरी बीमारी को ठीक करना है। इसका मतलब बाजार में कोई नई दवा लाना नहीं है, बस पुरानी दवा जो हमारे पास है उसका नया इस्तेमाल ढूंढना है। यह बिल्कुल नई और क्रांतिकारी सोच है। गौरतलब है कि फार्मा इंडस्ट्री नई दवाओं के अनुसंधान पर अरबों डॉलर खर्च करती है और यह प्रक्रिया दशकों तक चलती है। जबकि मरीजों के पास इतना समय भी नहीं होता है। बट और उनकी टीम को उम्मीद है कि इसका सकारात्मक असर होगा। बट कहते हैं कि कई दवाएं पेटेंट की प्रक्रिया में अटकी हैं। सभी प्रक्रियाओं को पूरा करने के बाद दवाएं 3-5 साल में मरीजों के लिए उपलब्ध होंगी। पुरानी दवाओं के नए इस्तेमाल से काफी फायदा होगा। (एजेंसी)


लंदन में नमामि गंगे रोड शो को समर्थन

11 - 17 दिसंबर 2017

भारतीय कॉरपोरेट्स ने गंगा के किनारों पर सुविधाएं विकसित करने के लिए 5 बिलियन डॉलर से भी अधिक देने का वादा किया

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युक्त गणराज्य में भारतीय कॉरपोरेट्स, एनआरआई और पीआईओज ने नमामि गंगे अभियान के तहत ही घाटों, नदियों के अहातों, श्मशान घाटों और पार्कों जैसी सुविधाएं जुटाने के लिए 5 बिलियन डॉलर से भी अधिक राशि देने का निश्चय किया है। लंदन में आयोजित एक रोड़ शो में जल संसाधन, नदी विकास तथा गंगा पुनरोद्धार, सड़क परिवहन एवं राजमार्ग तथा नौवहन मंत्री नितिन

गडकरी ने व्यावसायिक अग्रणियों से गंगा सफाई अभियान में भाग लेने का निवेदन किया। रोड शो का आयोजन गंगा सफाई राष्ट्रीय अभियान तथा संयुक्त गणराज्य में भारतीय उच्च आयोग द्वारा किया गया। जिन महत्वपूर्ण समझौता ज्ञापनों पर जिन्होंने हस्ताक्षर किए, उनमें पटना में गंगा नदी पर घाटों और सुविधाओँ हेतु वेदांता समूह के अनिल अग्रवाल, कानपुर के लिए फोरसाइट समूह के रवि मल्होत्रा,

ताइवान में रिकार्ड तोड़ दिखा इंद्रधनुष

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इवान की राजधानी ताइपे में रिकॉर्ड नौ घंटे तक इंद्रधनुष देखा गया। चीन के संस्कृति विश्वविद्यालय के वायुमंडलीय विज्ञान विभाग में प्रोफेसर चाउ कुन-हसुआन ने बताया कि यह अद्धभुत था। ऐसा लग रहा था कि यह आसमान की तरफ से तोहफा है। यह बहुत ही कम देखने को मिलता है। चाउ और दूसरे प्रोफेसर, लियू चिंग-हुआंग ने विभाग के छात्रों और परिसर स्थित समुदाय की सहायता से इंद्रधनुष के दस्तावेज बनाने के प्रयासों का नेतृत्व किया।

उनके अवलोकन, चित्रों और वीडियो रिकॉर्डिग से पता चलता है कि इंद्रधनुष सुबह 6.57 से लेकर शाम 3.55 बजे तक दिखा। इंद्रधनुष करीब आठ घंटे और 58 मिनट तक लोगों को दिखाई दिया। यदि इसकी पुष्टि कर दी जाती है तो यह गिनीज वर्ल्ड रिकॉर्डस में दर्ज पिछले रिकॉर्ड को तोड़ देगा। गिनीज वर्ल्ड रिकॉर्डस के मुताबिक 14 मार्च, 1994 को इंग्लैंड के यॉर्कशायर में सबसे लंबे समय तक स्थायी इंद्रधनुष देखा गया था, जिसका समय छह घंटे के रूप में दर्ज किया गया था। गिनीज वेबसाइट के मुताबिक इंद्रधनुष को आमतौर पर एक घंटे से भी कम समय तक देखा जाता है। चाउ ने कहा कि ताइपे के यांगमिंग्सान पर्वत श्रृंखला पर सर्दियों में इस तरह की वायुमंडलीय स्थिति सामान्य है, जहां परिसर स्थित है। इस कारण यह लंबे समय तक देखे जाने वाले इंद्रधनुष के लिए एक आदर्श स्थान बन रहा है। (एजेंसी)

हरिद्वार के लिए हिंदुजा समूह, कोलकाता के लिए इंडो रामा समूह के प्रकाश लोहिया शामिल हैं। परियोजनाओं का विकास, निर्माण तथा परिचालन इन कॉरपोरेट्स द्वारा अपने सीएसआर कार्यकलापों के अंतर्गत किया जाएगा। लंदन वाटर केल्टिक रेनुएबल्स, मेडिफार्म, एनएचवी प्रौद्योगिकियां सहित कई कंपनियों के साथ नदी सफाई हेतु नवीन प्रौद्योगिकियों के लिए समझौता ज्ञापनों पर भी हस्ताक्षर किए गए। इनके अलावा बहुत सी कंपनियों और व्यक्तियों ने 200 से अधिक परियोजनाओं की सूची में से, जिनके लिए निजी धन जुटाने की मांग की गई थी, कुछ परियोजनाएं अपने हाथ में लेने की सहमति दी। घाटों, श्मशान घाटों, जलाशयों, पार्कों, स्वच्छता सुविधाओं, जन सुविधाओं और नदी अहातों के विकास की, जिनके लिए अधिक धन राशि की आवश्यकता है, 10 हजार करोड़ रूपए से भी अधिक की परियोजनाएं हैं। 2500 करोड रूपए से भी अधिक की परियोजनाएं जिनके लिए निजी स्रोतों से धन जुटाने की आवश्यकता है, एक पुस्तिका के रूप में भी प्रकाशित की गई हैं और स्वच्छ गंगा राष्ट्रीय अभियान (एनएमसीजी) की वेबसाइट पर ई-बुकलेट के रूप में भी उपलब्ध हैं। सरकार व्यापारिक समुदाय से निवेदन कर रही है कि वे अपनी इच्छा की परियोजनाओं में धन लगाकर नदी सफाई के नामामि गंगे अभियान में योगदान दें। (एजेंसी)

अंतरराष्ट्रीय

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मोनालिसा की सबसे छोटी पेंटिंग

वैज्ञानिकों ने लियोनार्दो दा विंची की प्रसिद्ध पेंटिंग मोनालिसा की सबसे छोटी प्रति डीएनए तकनीक से बनाई

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ज्ञानिकों ने इतालवी कलाकार लियोनार्दो दा विंची की मशहूर कलाकृति मोनालिसा की सबसे छोटी प्रति डीएनए की मदद से तैयार की है। अमेरिका के कैलिफॉर्निया इंस्टिट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी के अनुसंधानकर्ताओं ने एक ऐसा सस्ता तरीका खोजा है जिसके जरिए डीएनए एकत्र होकर खुद को एक क्रम में सजा लेते हैं। यह क्रम इस तरह से व्यवस्थित होता है कि इसके पैटर्न को पूरी तरह अपनी रुचि के अनुसार ढाला जा सकता है। इससे ऐसा कैनवस तैयार होता है जो किसी भी किस्म की छवि को प्रदर्शित कर सकता है। डीएनए को मूलतः जीवित चीजों की अनुवांशिक सूचनाएं पता लगाने में इस्तेमाल किया जाता है, लेकिन यह रसायनों का एक ढांचा बनाने में भी समर्थ है। (एजेंसी)

रोबोट बना नेता, लड़ेगा चुनाव

न्यूजीलैंड में साल 2020 के आखिर में आम चुनाव होंगे। गेरिट्सन का मानना है कि तब तक सैम एक प्रत्याशी के तौर पर मैदान में उतरने के लिए तैयार हो जाएगा

वै

ज्ञानिकों ने दुनिया का पहला कृत्रिम बुद्धि वाला राजनीतिज्ञ विकसित किया है जो आवास, शिक्षा, आव्रजन संबंधी नीतियों जैसे स्थानीय मुद्दों पर पूछे गए सवालों के जवाब दे सकता है. इतना ही नहीं, उसे 2020 में न्यूजीलैंड में होने वाले आम चुनाव में उम्मीदवार बनाने की तैयारियां भी जोरों पर हैं. इस आभासी राजनीतिज्ञ का नाम ‘सैम’ (एसएएम) रखा गया है और इसके रचनाकार न्यूजीलैंड के 49 वर्षीय उद्यमी निक गेरिट्सन हैं। उन्होंने कहा कि ऐसा लगता है कि फिलहाल राजनीति में कई पूर्वाग्रह हैं ... प्रतीत होता है कि दुनिया के देश जलवायु परिवर्तन एवं समानता जैसे जटिल मुद्दों का हल नहीं निकाल पा रहे हैं। कृत्रिम बुद्धि वाला राजनीतिज्ञ फेसबुक मैसेंजर के जरिए लोगों को प्रतिक्रिया देना लगातार सीख रहा है। गेरिट्सन मानते हैं कि एल्गोरिदम में मानवीय पूर्वाग्रह असर डाल सकते हैं, लेकिन उनके विचार से पूर्वाग्रह प्रौद्योगिकी संबंधी समाधानों में चुनौती नहीं हैं। ‘टेक

इन एशिया’ की खबर में कहा गया है कि प्रणाली भले ही पूरी तरह सटीक न हो, लेकिन यह कई देशों में बढ़ते राजनीतिक एवं सांस्कृतिक अंतर को भरने में मददगार हो सकती है। न्यूजीलैंड में साल 2020 के आखिर में आम चुनाव होंगे। गेरिट्सन का मानना है कि तब तक सैम एक प्रत्याशी के तौर पर मैदान में उतरने के लिए तैयार हो जाएगा। (एजेंसी)


24 गुड न्यूज

11 - 17 दिसंबर 2017

शिक्षा और स्वावलंबन का पाठ पढ़ा रही हैं महिलाएं अशिक्षा और गरीबी को चुनौती दे रही हैं आधुनिक लक्ष्मीबाई

आईएएनएस

पहली आजादी झांसीकी काजंगजिक्रकी आएनायिकाऔर रानीउसमेंलक्ष्मी बाई की

चर्चा न हो, ऐसा संभव नहीं है। यहां की तासीर ही कुछ ऐसी है कि महिलाएं संघर्ष में सबसे आगे नजर आती हैं। यहां के गरीब तबके की बालिकाओं ने अशिक्षा और गरीबी के खिलाफ ऐसी जंग शुरू की है, जिसका कारवां लगातार बढ़ता जा रहा है।

यहां के सीपरी बाजार क्षेत्र में चलने वाला सरस्वती संस्कार केंद्र द्वारा वाकई नए तरह के संस्कार देने का काम कर रहा है। यहां गरीब और समाज के उपेक्षित वर्ग की बालिकाओं और बालकों को शिक्षा और स्वावलंबी बनने का पाठ पढ़ाया जा रहा है। कई ऐसी युवतियां हैं, जो महज पांच वर्ष की आयु में इस केंद्र से जुड़ीं और आज वे न केवल दूसरों को शिक्षित व प्रशिक्षित कर रहीं हैं, बल्कि अपने परिवार को भी आर्थिक संबल देने में सफल हो

राई का तेल दिमाग के लिए हानिकारक अमेरिका में एक शोध से पता चला है कि राई का तेल आदमी के दिमाग के लिए हानिकारक है

रो

जाना दो चम्मच राई का तेल खाने से आपकी याददाश्त और सीखने की क्षमता पर असर पड़ सकता है, साथ ही अल्जाइमर्स रोग से पीड़ित लोगों का इससे वजन भी बढ़ सकता है। एक शोध में यह दावा किया गया है। चूहों पर किए गए इस अध्ययन में कहा गया कि वेजिटेबल ऑयल के लंबे समय तक सेवन से दिमाग को नुकसान पहुंच सकता है। हालांकि राई के तेल को स्वास्थ्यकारी खाद्य तेल माना जाता है।

जिन चूहों को राई के तेल में पकाए गए खाद्य पदार्थ दिए गए, उनका वजन सामान्य भोजन करनेवाले चूहों की तुलना में ज्यादा पाया गया। राई के तेल में अक्सर सब्जियां तली जाती हैं। शोधकर्ताओं का दावा है कि लगातार छह महीनों से अधिक समय तक राई के तेल का सेवन करने से कामकाजी लोगों के याददाश्त को नुकसान पहुंचता है, साथ ही अल्पकालिक याददाश्त के साथ ही सीखने की क्षमता को भी नुकसान पहुंचता है। अमेरिका के पेन्सिलवेनिया में स्थित टेंपल विश्वविद्यालय के प्रोसेसर डोमेनिको प्रेटिको ने कहा कि हालांकि राई का तेल एक वेजिटेबल तेल है, फिर भी हमें इसे स्वास्थ्यवर्धक कहने से पहले थोड़ी सावधानी बरतनी चाहिए। प्रेटिको ने कहा कि शोध के निष्कर्षो से पता चलता है कि राई के तेल को अन्य तेलों जितना गुणकारी नहीं माना जाना चाहिए। (आईएएनएस)

रही हैं। रेखा बाघरी ऐसे समुदाय से आती हैं, जिसका गुजरात से नाता है, वहां यह जाति अनुसूचित जाति की श्रेणी में है। घुमंतू वर्ग से संबद्ध रेखा जब महज पांच साल की थी, तभी से उसने इस संस्कार केंद्र में आना शुरू किया। केंद्र के सहयोग से वह स्नातक तक की पढ़ाई पूरी कर चुकी है, और वह सिलाई में भी दक्ष हो चुकी है। रेखा बताती है कि सेवा समर्पण समिति द्वारा संचालित केंद्र से जुड़ने के बाद मेरी जिंदगी बदलने का क्रम शुरू हो गया था। मैं पढ़ी, अब कपड़ों की सिलाई करती हूं, इसके जरिए मिलने वाले पारिश्रमिक से परिवार की बड़ी मदद करने में सफल हो रही हूं। मेरे पिता ठेला लगाकर पुराने कपड़े बेचते हैं। रेखा की इच्छा है कि वह अन्य ऐसे बच्चों को भी शिक्षा और रोजगार के हुनर सिखाए, जिससे वे अशिक्षा के अंधकार और गरीबी के दुष्चक्र से बाहर आएं। रेखा अपने इस काम में भी लगी हुई है। वह महिलाओं के कपड़ों की सिलाई तो करती ही है, लड़कियों को प्रशिक्षण देती है और पढ़ाती भी है। सेवा समर्पण समिति के राजकुमार द्विवेदी बताते हैं कि वे जब शिक्षक हुआ करते थे, तब लगभग 17 वर्ष पूर्व गरीब दो बालिकाओं ने पढ़ने की इच्छा जताई। इनकी इच्छा पूरी करने के लिए यह केंद्र शुरू किया, जब पत्नी की नौकरी लग गई, तो सरकारी नौकरी छोड़कर पूरी तरह समाज सेवा के क्षेत्र में आ गए। एक तरफ शिक्षा जागृति लाने में मददगार हो रही है, वही रोजगार के अवसर भी उपलब्ध कराए जा रहे हैं। द्विवेदी के मुताबिक, सुबह पढ़ाई, उसके बाद चार घंटे सिलाई, संगीत कक्षा और स्वास्थ्य

सुविधा का दौर इस केंद्र में चलता है। यहां आने वाले अधिकांश बच्चे गरीब व झुग्गी झोपड़ियों की बस्ती के होते हैं। सिलाई करने वाले को चार घंटे के बदले 40 रुपए और प्रति पेटीकोट पांच रुपये अलग से दिए जाते हैं। एक भी पेटीकोट नहीं सिला तो भी 40 रुपए मिलना तय है। पूजा ने 12वीं तक की पढ़ाई इसी केंद्र के जरिए पूरी कर ली है। दिव्यांग होने के बावजूद वह सिलाई का भी काम करती है। वह बताती है कि उसके पिता बसंत फेरी लगाकर सामान बेचते हैं। वह सिलाई के जरिए अर्जित राशि से परिवार की मदद करने में सफल हो रही है। द्विवेदी के मुताबिक, यहां से कई व्यापारी महिलाओं के ब्लाउज और पेटीकोट बनवाकर ले जाते हैं, कई ऐसे लोग हैं जो वृद्धाश्रम सहित अन्य स्थानों पर दान में देने के लिए बने हुए कपड़े ले जाते हैं। इससे होने वाली आय से सिलाई के काम में लगी युवतियों को स्वावलंबी बनने का मौका मिल रहा है। बताया है कि इस केंद्र से जुड़ी 14 युवतियों की शादी कराई जा चुकी है। यह समिति अपने केंद्र से जुड़ी युवतियों की शादी में भरपूर मदद करती है। झांसी की रानी लक्ष्मीबाई ने आजादी की लड़ाई में हिस्सा लेकर इस क्षेत्र को नई पहचान दिलाने के साथ अपने जीवन की आहूति दी थी। ओर आज यहां की युवतियां 'आधुनिक लक्ष्मीबाई' बनकर अशिक्षा और गरीबी को खत्म करने की लड़ाई लड़ रही हैं। यह लड़ाई लंबी चलेगी। कई परिवारों की तो इन आधुनिक लक्ष्मीबाइयों ने तस्वीर ही बदल दी है, मगर उनका लक्ष्य बदलाव की रोशनी दूर तक बिखेरने का है।

बनेंगे सामुदायिक शौचालय

बिहार के मुंगेर शहर के आधे दर्जन वार्डों में होगा सामूहिक शौचालय का निर्माण

को खुले में शौच मुगेमुं रक्तशहर(ओडीएफ) करने के

लिए निगम प्रशासन ने कमर कस ली है। ओडीएफ को लेकर शहर के आधे दर्जन वार्डों में 46.42 लाख की लागत से सामुदायिक शौचालय के निर्माण करने की योजना बनाई गई है। जिन लोगों के पास निजी शौचालय के जमीन नहीं है, वैसे व्यक्ति खुले में शौच नहीं जाएं। इसके लिए स्वच्छ भारत अभियान के तहत वार्ड नंबर 3, 4, 16, 33, 36 एवं 45 में सामुदायिक शौचालय का निर्माण के लिए निविदा प्रक्रिया पूर्ण कर ली है। मुख्यमंत्री आदर्श निकाय प्रोत्साहन योजना में नगर निगम मुंगेर शामिल होने के लिए शहर के वार्डों को खुले में शौच मुक्त करने

के लिए पूरी ताकत झोंक दी है। निगम प्रशासन द्वारा वैसे स्थानों को चिह्नित कर सामुदायिक शौचालय निर्माण करा रही है, जहां के लोगों को भूमि नहीं है और वे अपने घर शौचालय नहीं बनवा सकते हैं। उस स्थानों पर सामुदायिक शौचालय का निर्माण लोगों को खुले में शौच से मुक्ति दिलाएगा। इसके लिए नगर निगम ने निविदा की प्रक्रिया पूरी कर ली है। आज भी शहरी क्षेत्र का एक बड़ा तबका खुले में शौच करने को विवश हैं और आज भी नगर निगम के कर्मचारी वार्ड-वार्ड घूम कर शौचालय निर्माण का आवेदन कलेक्शन कर रहे हैं, जबकि निगम प्रशासन हाल के दिनों में 18 वार्डों को ओडीएफ घोषित करने जा रही है। (एजेंसी)


11 - 17 दिसंबर 2017

हिजाब नहीं बना विमान उड़ाने में बाधक

गुड न्यूज

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कमर्शियल पायलट सईदा सल्वा फातिमा जल्द ही एक एयरलाइन में काम करने जा रही हैं

मोहम्मद शफीक

क दशक पहले एक कार्यक्रम में पूछे गए सवाल पर जब एक बेकरी में काम करने वाले की बेटी ने बड़ी ही सहजता के साथ कहा था कि मैं पायलट बनना चाहती हूं, तब उसके सपनों को पंख लगने शुरू हुए थे और अब हिजाब पहनने वाली वही सईदा सल्वा फातिमा एक एयरलाइन ज्वाइन करने जा रही है। वह भारत में कमर्शियल पायलट का लाइसेंस यानी सीपीएल धारण करने वाली चार मुस्लिम महिलाओं में एक है। न्यूजीलैंड में मल्टी-इंजन का प्रशिक्षण लेने और बहरीन में टाइप-रेटिंग के बाद हैदराबाद की इस महिला को अब नागरिक उड्डयन

महानिदेशक यानी डीजीसीए के अनुमोदन का इंतजार है, जिसके बाद वह एयरबस ए-320 उड़ाने में सक्षम हो जाएगी। सईदा का यह सफर कोई आसान नहीं था। उसके रास्ते में कई मुश्किलें आईं, लेकिन अपनी ख्वाहिश पूरी करने के लिए वह यह सब झेलती हुई आगे बढ़ती रही। निम्न मध्यम वर्ग की पृष्ठभूमि से आने वाली सल्वा अपने पूरे प्रशिक्षण के दौरान भारत और विदेशों में हिजाब पहनती रही। फातिमा ने बताया कि मैं हमेशा इसे अपने सिर पर वर्दी के ऊपर पहनती थी। हिजाब को लेकर मुझे कभी कोई समस्या नहीं आई। बहरीन स्थित गल्फ एविएशन एकेडमी में हिजाब पहनने को लेकर उनकी तारीफ की गई

और एकेडमी की पत्रिका में उनकी तस्वीर भी छापी। सल्वा चाहती हैं कि यह भ्रांति दूर हो कि विमानन जैसे क्षेत्रों में हिजाब एक बाधा है। सल्वा अपने स्कूल के दिनों से ही विमानन उद्योग से संबंधित आलेखों का संकलन करती थी और विभिन्न विमानों की तस्वीरें भी रखती थीं। लोग उसके सपनों की बात सुनकर हंसते थे। बारहवीं पास करने के बाद उर्दू दैनिक सियासत की ओर से इंजीनियरिंग प्रवेश के लिए करवाई जा रही कोचिंग में उन्होंने दाखिला ले लिया। कोंचिग के दौरान अखबार के संपादक जाहिद अली खान ने उससे पूछा कि वह क्या बनना चाहती हैं तो उन्होंने तुरंत जवाब दिया 'पायलट'। खान उनके आत्मविश्वास को देखकर चकित थे। उन्होंने अपने मित्रों व परोपकारियों के साथ मिलकर सल्वा को 2007 में आंध्र प्रदेश एविएशन एकेडमी में दाखिला दिलवा दिया। वह तीन बार नेविगेशन पेपर में विफल रहीं, लेकिन जाहिद खान की ओर से मिल रहे प्रोत्साहन से वह अपने लक्ष्य को हासिल करने के प्रयास में जुटी रही। पांच साल बाद उन्होंने सेसना 152 एयरक्राफ्ट से 200 घंटों की उड़ान पूरी की जिसमें 123 घंटे अकेले विमान उड़ाने का अनुभव भी शामिल है। 2013 में कर्मशियल पायलट का लाइसेंस

अब कंपनियों को देनी होगी 24 घंटे बिजली

हासिल करने के बाद उन्हें मालूम हुआ कि बड़े हवाई जहाज उड़ाने के लिए मल्टी इंजिन ट्रेनिंग व टाइप रेटिंग के लिए बहुत पैसों की जरूरत होती है। वह उस समय 24 साल की थीं और माता-पिता ने उन्हें शादी करने के लिए कहा। उनके सामने कोई और विकल्प नहीं था। उन्हें भरोसा नहीं था कि वह इतने पैसों का प्रबंध कर पाएंगी। वह गर्भवती थीं, जब तेलंगाना सरकार ने मल्टी इंजन ट्रेनिंग व टाइप रेटिंग के लिए उन्हें 36 लाख रुपए की वित्तीय मदद देने की घोषणा की। एक साल बाद उन्होंने मल्टी इंजन प्रशिक्षण के लिए तेलंगाना एविएशन एकेडमी में दाखिला ले लिया। लेकिन वहां कोई वायुयान नहीं था। जब सरकार ने जीएमआर एविएशन एकेडमी को पैसा दिया और उनका प्रशिक्षण शुरू होने वाला था तभी एक दुर्घटना के कारण वायुयान गिर गया। और भी कई तरह की समस्याएं आईं। सल्वा ने बताया कि फिर उन्होंने सरकार से प्रशिक्षण के लिए विदेश भेजने की विनती की। वह न्यूजीलैंड गई जहां उन्होंने 15 घंटे तक एक मल्टी-इंजन विमान उड़ाया। बहरीन के गल्फ एविएशन एकेडमी में सल्वा को एयरबस पर टाइपरेटिंग करने का मौका मिला। सल्वा का कहना है कि जो भी एयरलाइन उन्हें पहले नौकरी का प्रस्ताव देगी, वह उसे स्वीकार कर लेंगी। सल्वा का अपने जैसी अन्य लड़कियों के लिए यह संदेश है कि स्पष्ट लक्ष्य और सकारात्मक सोच के साथ आगे बढ़ें। मेहनत और लगन कभी बेकार नहीं जाती।

प्रस्तावित बिजली संशोधन विधेयक में वितरण कंपनियों के लिए 24 घंटे बिजली देना होगा बाध्यकारी

रकार देश में सभी घरों को सातों दिन 24 घंटे भरोसेमंद बिजली उपलब्ध कराने के लिए जरूरी कदम उठा रही है। इसे प्रस्तावित बिजली संशोधन विधेयक में वितरण कंपनियों के लिए बाध्यकारी बनाया जाएगा। इसका पालन नहीं करने पर संबंधित विद्युत वितरण कंपनियों पर जुर्माना भी लगेगा। इसे मार्च 2019 से लागू करने की योजना है। बिजली और नवीन एवं नवीकरणीय ऊर्जा मंत्री आर के सिंह ने कहा, 'हम मार्च 2019 से चौबीसों घंटे और सातों दिन बिजली उपलब्ध कराना बाध्यकारी बनाने के लिए मंत्रिमंडल में जाएंगे। तकनीकी खामी या प्राकृतिक आपदा जैसी स्थिति को छोड़कर बिजली कटौती की अनुमति नहीं होगी। इसका उल्लंघन करने वालों पर जुर्माना लगेगा।' उन्होंने कहा, हमने सौभाग्य योजना शुरू की है जिसके तहत हर घर तक बिजली पहुंचाई जानी है। इसे हमने दिसंबर 2018 तक पूरा करने का लक्ष्य रखा है। इसके साथ ही हम मार्च 2019 से 24

घंटे सातों दिन बिजली उपलब्ध कराने की व्यवस्था करेंगे। मंत्री ने कहा, 'बिजली वितरण कंपनियों को अगर किसी इलाके का काम मिला है तो उसके लिए उन्हें शत प्रतिशत जरूरत के हिसाब से बिजली खरीद समझौता (पीपीए) करना होगा। यह कानून संशोधन का हिस्सा होगा।' यह पूछे जाने पर कि क्या इसके लिए ग्राहकों को अधिक शुल्क देना होगा, मंत्री ने कहा कि नहीं, इसका शुल्क पर कोई असर नहीं होगा। सिंह ने कहा कि बिजली शुल्क अधिक होने का एक बड़ा कारण चोरी और तकनीकी एवं वाणिज्यिक (एटीऐंडसी) नुकसान है। इसमें कमी लाने के लिए कदम उठाये जा रहे हैं। उन्होंने बताया, 'बिजली मंत्रालय ने कुछ राज्यों की पहचान की है जहां एटीऐंडसी नुकसान 21 प्रतिशत से अधिक है। उसमें कमी लाने के लिए हम उन्हें पत्र लिख रहे हैं। इन राज्यों में जम्मू कश्मीर, बिहार, झारखंड, ओडिशा, पश्चिम बंगाल, राजस्थान और उत्तर प्रदेश समेत अन्य शामिल हैं।

पत्र में इन राज्यों से मार्च 2019 तक एटीऐंडसी नुकसान को 15 प्रतिशत से नीचे लाने को कहा गया है और इसके लिए कुछ सुझाव दिए गए हैं।' मंत्री ने कहा कि बिजली चोरी रोकने के लिए स्मार्ट मीटर और प्रीपेड मीटर को बढ़ावा दिया जा रहा है। इन मीटरों से बिजली खपत और बिल के बारे में कंपनी के साथ-साथ ग्राहकों को सही जानकारी मिलेगी तथा खपत के हिसाब से बिल का भुगतान होगा। इससे वितरण कंपनियों की स्थिति मजबूत होगी। गौरतलब है कि हाल में बिजली मंत्रालय के अधीन आनेवाली एनर्जी इफीशिअंशी सर्विसेज लि. (ईईएसएल) ने 50 लाख स्मार्ट मीटर की खरीद की प्रक्रिया पूरी की है। एक सवाल के जवाब में सिंह ने कहा, राज्यों के बीच ट्रांसमिशन सिस्टम बेहतर है पर राज्यों के अंदर ट्रांसमिशन को मजबूत करने की जरूरत है। डिस्ट्रब्युशन नेटवर्क और राज्यों के अंदर ट्रांसमिशन को मजबूत करना है। उन्होंने कहा, 'हम

ग्रामीण विद्युतीकरण कार्यक्रम, आरएपीडीआरपी (रीस्ट्रक्चर्ड एक्सलरेटेड पावर डिवेलपमेंट ऐंड रिफॉर्म प्रोग्राम), डीडीयूजीजेवाई (दीनदयाल उपाध्याय ग्राम ज्योति योजना) और आईपीडीएस (इंटीग्रेटेड पावर डिवेलपमेंट स्कीम) के तहत मीटर, केबल, और ट्रांसफॉर्मर के लिए राज्यों को फंड उपलब्ध करा रहे हैं। कोई अंतर रहता है तो उसे पूरा करने पर विचार करेंगे।' (एजेंसी)


26 स्वास्थ्य

11 - 17 दिसंबर 2017

बिना रोए नवजात सहते हैं दर्द

संक्रमण रोकने में जीका सुरक्षित

तनाव का तेज दर्द होने के बावजूद नवजात बच्चे रोते नहीं हैं

वजात भी तनाव महसूस करते हैं, लेकिन वे इसे रोकर जताते नहीं हैं। एक नए शोध में यह बताया गया है कि तनाव के दौरान नवजात का मस्तिष्क दर्द के लिए बहुत तेज प्रतिक्रिया देता है, लेकिन ऐसे बच्चे फिर भी रोकर इसे जताते नहीं हैं। शोध के निष्कर्ष सुझाते हैं कि तनाव बच्चे की मस्तिष्क गतिविधि और उसके व्यवहार के बीच एक स्पष्ट अलगाव पैदा करता है। तनावग्रस्त बच्चे दर्द पर प्रतिक्रिया नहीं कर पाते

हैं, जिसके कारण बच्चे की देखरेख करने वाले को उसके दर्द के बारे में महसूस नहीं होता है। शोधकर्ताओं ने सुझाव दिया है कि इस प्रकार ऐसे बच्चों को समझने के लिए अलग-अलग तरीकों की पहचान जरूरी है। यूनिवर्सिटी कॉलेज लंदन से लौरा जोन्स ने कहा कि जब नवजात शिशुओं को एक दर्दनाक प्रक्रिया का अनुभव होता है, तो उनके मस्तिष्क की गतिविधि और रोने और मुंह बनाने जैसी उनकी व्यवहारिक प्रतिक्रियाओं में वृद्धि होती है। उन्होंने कहा कि जो बच्चे तनाव में होते हैं, उनका मस्तिष्क अधिक प्रतिक्रिया देता है। लेकिन इन बच्चों की मस्तिष्क गतिविधि उनके व्यवहार से मेल नहीं खाती है और ऐसा तनाव के कारण होता है। इन निष्कर्षों के लिए शोधकर्ताओं ने स्वस्थ्य नवजात बच्चों का अध्ययन किया था और ईईजी तकनीक व चेहरे के हावभाव से बच्चों के दर्द में होने वाली प्रतिक्रियाओं का आकलन किया था। यह शोध 'करंट बायोलॉजी' पत्रिका में प्रकाशित हुआ है। (आईएएनएस)

अब कुछ मिनट में होगी डीएनए की पहचान

नुसंधानकर्ताओं ने एक ऐसी सॉफ्टवेयर प्रणाली विकसित की है, जिसका इस्तेमाल महज कुछ मिनट में व्यक्ति के डीएनए और कोशिकाओं के सटीक पहचान में किया जा सकता है। ‘ईलाइफ’ जर्नल में प्रकाशित एक अध्ययन के मुताबिक इस तकनीक के व्यापक इस्तेमाल हो सकते है। हालांकि इसका सबसे त्वरित उपयोग कैंसर के प्रयोगों में संक्रमित कोशिकाओं की पहचान करने में किया जा सकता है। अमेरिका के कोलंबिया विश्वविद्यालय के यानीव एरलिच ने कहा कि हमारा तरीका समाज के लाभ के लिए तैयार प्रौद्योगिकी के नये मार्ग प्रशस्त करना है। उन्होंने कहा कि हम कैंसर अनुसंधान में कोशिका की पहचान करने की

क्षमता और नए उपचारों की खोज में तेजी आने की संभावना को लेकर बहुत उत्साहित हैं। यह सॉफ्टवेयर ‘मिनआयन’ पर काम करेगा। क्रेडिट कार्ड के आकार का उपकरण अपने सूक्ष्म छिद्रों के जरिये विभिन्न डीएनए को अपनी ओर खींचता है। इसके बाद वह न्यूक्लियोटाइड या डीएनए के अक्षरों ए टी सी जी के क्रम का विश्लेषण करता है। विभिन्न तरह के जीवाणुओं और विषाणुओं के अध्ययन के लिए इस उपकरण का विकास किया गया था, लेकिन इसमें बहुत अधिक गलतियां होने और अनुक्रम में बहुत ज्यादा अंतर होने के कारण अब तक इसका प्रयोग मानवीय कोशिकाओं के न्यूक्लियोटाइड के अध्ययन तक सीमित है। (एजेंसी)

अमेरिकी वैज्ञानिकों ने ऐसा जीका टीका विकसित किया है जो संक्रमण रोकने में कारगर है

मेरिकी वैज्ञानिकों ने दो प्रारंभिक क्लीनिक परीक्षणों में एक प्रायोगिक जीका टीका विकसित किया है, जो घातक वायरस द्वारा संक्रमण को रोकने में सुरक्षित और भरोसेमंद है। लांसेट पत्रिका में प्रकाशित निष्कर्षों में दिखाया गया है कि स्वस्थ वयस्कों में यह एक प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया को प्रेरित करता है। अमेरिकी राष्ट्रीय स्वास्थ्य संस्थान का हिस्सा नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ एलर्जी और इंफेक्शियस डिसीज (एनआईएआईडी) के वैज्ञानिकों द्वारा विकसित किए गए जांच टीके में डीएनए का एक छोटा और गोल आकार का टुकड़ा शामिल है, जिसे प्लाज्मिड कहा जाता है। वैज्ञानिकों ने प्लाज्मिड में जीन डाला, जो कि जीका वायरस की सतह पर पाए जाने वाले दो प्रोटीनों को सांकेतिक रूप से दर्ज करता है। शोधकर्ताओं ने पाया कि जब टीके को

महिलाएं होती हैं अधिक मजबूत कनाडा में हुए शोध से पता चला है कि महिलाएं पुरुषों से ज्यादा मजबूत होती हैं

जनवरी में नजर आएंगे तीन सुपरमून

नासा का कहना है कि 1 और 31 जनवरी का फिर दिखेगा सुपरमून

गर आप फुल मून की खगोलीय घटना का दीदार करने से चूक गए हैं तो चिंता की बात नहीं, क्योंकि 'सुपरमून' एक बार फिर 1 जनवरी और 31 जनवरी, 2018 को नजर आएगा। सुपरमून को फुल मून भी कहा जाता है। इस दौरान चंद्रमा अपनी कक्षा में पृथ्वी के निकटतम बिंदु पर होता है। चूंकि चंद्रमा की कक्षा अंडाकार है, जिसका एक हिस्सा (एपोजी- चंद्रमा की कक्षा का वह बिंदु जिस पर वह पृथ्वी से सर्वाधिक दूर है) दूसरे हिस्से (पेरिजी- ग्रह की कक्षा का वह बिंदु जिस पर वह ग्रह पृथ्वी से निकटतम होता है) की तुलना में पृथ्वी

से लगभग 50,000 किलोमीटर दूर है। नासा के गोडार्ड स्पेस फ्लाइट सेंटर के एक शोध वैज्ञानिक ने कहा कि सुपरमून उन लोगों के लिए एक शानदार अवसर है, जो चंद्रमा के बारे में जानना और उसका अन्वेषण करना चाहते हैं। दिसंबर के फुल मून को पारंपरिक रूप से 'कोल्ड मून' भी कहा जाता है। पिछले दिनों निकला फुल मून 2017 का पहला और एकमात्र सुपरमुन था, जो सामान्य चंद्रमा से सात फीसदी बड़ा और 15 प्रतिशत चमकीला था। इसके बाद यह एक और 31 जनवरी को भी नजर आएगा। (आईएएनएस)

मांसपेशियों में इंजेक्ट किया गया तो शरीर में प्रोटीन बनना शुरू हुआ और कणों के रूप में इकट्ठा होने लगा। यह कण जीका वायरस की नकल करते हैं और शरीर की प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया को बढ़ाते हैं। क्लीनिकल परीक्षण के लिए, शोधकर्ताओं ने दो अलग-अलग प्लाज्मिड विकसित किएवीआरसी288 और वीआरसी5283। इन दोनों को अलग-अलग परीक्षणों में जांचा गया। वैज्ञानिकों ने अंतिम टीके के चार सप्ताह बाद प्रतिभागियों से प्राप्त रक्त के नमूनों का विश्लेषण किया। एनआईएआईडी के निदेशक एंथनी फौसी ने कहा कि प्रारंभिक रिपोर्टों के अनुसार, गर्भावस्था के दौरान जीका संक्रमण का कारण जन्म दोष हो सकता है। एनआईएआईडी के वैज्ञानिकों ने तेजी से एक डीएनए आधारित प्लेटफॉर्म का इस्तेमाल करते हुए पहला जांच जीका टीका बना दिया और एक वर्ष से भी कम समय में स्वस्थ वयस्कों में प्रारंभिक अध्ययन शुरू किया। फौसी ने कहा कि एनआईएआईडी ने इसके दूसरे चरण के परीक्षण को शुरू किया है, ताकि निर्धारित किया जा सके कि क्या यह जीका वायरस के संक्रमण को रोक सकता है। आज जारी किए गए भरोसेमंद पहले चरण के आंकड़े निरंतर विकास का समर्थन करते हैं। (आईएएनएस)

पु

रुष सभी किस्म के व्यायाम को करने के मामले में महिलाओं से अधिक फिट होते हैं। इस लोकप्रिय धारणा को चुनौती देते हुए एक अध्ययन से यह जानकारी मिली है कि महिलाओं में एरोबिक व्यायाम के दौरान पुरुषों की तुलना में ऑक्सीजन को प्रोसेस करने की क्षमता अधिक होती है, जो उन्हें अधिक मजबूत बनाती है। इस अध्ययन के निष्कर्षो से पता चलता है कि ऑक्सीजन की तेज प्रोसेसिंग से महिलाओं के शरीर की कोशिकाओं को एरोबिक व्यायाम के दौरान कम तनाव झेलना होता है, जिनमें कार्डियो, स्पिनिंग, दौड़ना, तैरना, चलना, घूमना

जैसे व्यायाम शामिल हैं, जिनमें ऊर्जा के उत्पादन के लिए ऑक्सीजन की जरूरत होती है। शोध के मुख्य लेखक और कनाडा के ओंटोरियो स्थित वाटरलू विश्वविद्यालय के प्रोफेसर थॉमस बेल्ट्रेम ने कहा कि ये निष्कर्ष लोकप्रिय धारणा के विपरीत हैं कि पुरुषों के शरीर प्राकृतिक रूप से अधिक एथलेटिक होते हैं। इसी विश्वविद्यालय के एक अन्य शोधकर्ता रिचर्ड ह्यूगसन ने कहा कि हमने पाया कि महिलाओं की मांसपेशियां रक्त से तेजी से ऑक्सीजन ग्रहण करने में सक्षम होती हैं, जो वैज्ञानिक भाषा में कहें तो, यह संकेत करता है कि उनकी एरोबिक प्रणाली कहीं अधिक बेहतर है। यह शोध एप्लाइड साइकोलॉजी, न्यूट्रिशन, एंड मेटबॉलिज्म नामक जर्नल में प्रकाशित हुआ है। शोध में पाया गया है कि व्यायाम के दौरान महिलाओं के पूरे शरीर में ऑक्सीजन पुरुषों की तुलना में 30 फीसदी अधिक तेजी से अवशोषित होता है। (आईएएनएस)


11 - 17 दिसंबर 2017

अमेरिकी नागरिकता लेने में भारत नं. 2

यूनेस्को की लिस्ट में कुंभ मेला

अमेरिका की सरकार ने बीते एक साल के दौरान 46 हजार से भी ज्यादा भारतीयों को अमेरिकी नागरिकता दी है

मेरिकी नागरिकता हासिल करने में भारतीय दूसरे स्थान पर हैं। अमेरिका के होमलैंड सुरक्षा विभाग (डीएचएस) द्वारा जारी किए गए इस साल के डेटा से पता चलता है कि इस मामले में केवल मैक्सिको ही भारत से आगे है। टाइम्स ऑफ़ इंडिया के मुताबिक अमेरिका की सरकार ने एक अक्टूबर 2015 से 30 सितंबर 2016 के बीच कुल 46, 100 भारतीयों को अमेरिकी नागरिकता दी है। रिपोर्ट के मुताबिक कुल 7.53 लाख लोगों को नागरिकता दी गई, जिसमें भारतीयों की संख्या छह प्रतिशत है। अमेरिकी नागरिकता हासिल करने की कोशिशों में उछाल देखने को मिल रहा है। इस साल नौ

लाख 70 हजार से ज्यादा लोगों ने इसके लिए आवदेन किया है। पिछले साल के मुकाबले यह 24 प्रतिशत ज्यादा है। ‘न्यू अमेरिकन्स’ नाम की एक रिपोर्ट बताती है कि जून 2017 तक अमेरिकी नागरिकता के लिए सात लाख से ज्यादा लोगों के आवेदन विचाराधीन थे। दो साल पहले इनकी संख्या चार लाख थी। अमेरिका में आम तौर पर ग्रीन कार्ड हासिल कर चुके लोग ही नागरिकता के लिए आवेदन कर सकते हैं। ग्रीनकार्ड एक तरह का परमिट है जिसके बाद बाहर का कोई व्यक्ति अमेरिका मे लंबे समय तक रहकर काम कर सकता है। लेकिन ट्रंप प्रशासन की अमेरिकियों को रोजगार में प्राथमिकता देने की नीति के चलते ग्रीन कार्ड ले चुके दूसरे देशों के नागरिक अब यहीं की नागरिकता लेने की कोशिश में लगे हुए हैं। ‘एशियन अमेरिकन्स अडवांसिंग जस्टिस’ एक गैर-लाभकारी संगठन है। इसके अध्यक्ष जॉन सी यांग बताते हैं कि अमेरिका की नागरिकता की कीमत को सबसे ज्यादा भारतीय समझते हैं। जॉन का कहना है, ‘यहां की नागरिकता मिलने के बाद कुछ निश्चित बुनियादी अधिकार मिल जाते हैं, जिनमें वोट देने का अधिकार भी शामिल है। इसी के कारण लोग यहां की नागरिकता चाहते हैं।’ (एजेंसी)

चांद से टपका धरती पर सोना

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एक अध्ययन से पता चला है कि धरती के शुरुआती दिनों में एक चांद के टकराने से आया सोना

स सोने के आभूषण आप और हम इतनी खुशी से पहनते हैं वह धरती पर आया कहां से? इस सवाल का जवाब ढूंढने के लिए वैज्ञानिकों ने कई अध्ययन किए और इसको लेकर कई अवधारणाएं मौजूद हैं। लेकिन एक नए अध्ययन के बाद एक और दावा किया गया है। स्टडी की माने तो पृथ्वी के निर्माण के शुरुआती समय में ही इससे एक चांद के आकार का भूमंडलीय पिंड टकराया, जिसकी वजह से धरती पर सोना और प्लैटिनम जैसे बहुमूल्य धातु पहुंचे। अध्ययन करने वाली टीम के मुताबिक इस टक्कर के बाद पृथ्वी पर आने वाले धातुओं की मात्रा पहले के अनुमानों से ज्यादा है और इसके प्रभावों ने पृथ्वी को गहराई से बदल दिया। ग्रहों के टकराव हमारे सौर मंडल के गठन के मुख्य हिस्सा रहे हैं। वैज्ञानिक लंबे समय तक ऐसा मानते रहे हैं कि चांद के निर्माण के बाद, पृथ्वी ने अपनी रचना के शुरुआती समय में लंबे समय तक पिंडों से टकराव के बाद धमाके झेले हैं। यह धमाके 3.8 अरब साल पहले बंद हुए थे। इस समय को 'लेट अक्रीशन' कहा गया है। इस दौरान चंद्रमा के आकार वाले बड़े

भूमंडलीय पिंडों से टकराव की वजह से व्यापक रूप में धातु और चट्टान बनाने वाले खनिज धरती की सतह और आंतरिक भाग में पहुंचे। ऐसा माना जाता है कि धरती के मौजूदा भार का 0.5 प्रतिशत हिस्सा इन टकरावों की वजह से धरती पहुंची चीजों की वजह से है। नए अध्ययन से पता लगता है कि कैसे भयानक टक्करों की वजह से धरती पर धातु पहुंचा। नासा की मदद से साउथवेस्ट रिसर्च इंस्टिट्यूट और यूनिवर्सिटी ऑफ मैरीलैंड के शोधकर्ताओं ने यह अध्ययन किया है। यह स्टडी नेचर जियोसाइंस जर्नल में छपी है। (आईएएनएस)

अंतरराष्ट्रीय

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हिंदुओं के बड़े तीर्थ मेले कुभ को ग्लोबल इनटैन्जिबल कल्चरल हेरिटेज लिस्ट में शामिल किया गया है

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ग के बाद मोदी सरकार ने प्रसिद्ध कुंभ मेले की ओर दुनिया का ध्यान आकर्षित कराते हुए इसे यूनेस्को की लिस्ट में शामिल कराने की दिशा में कदम बढ़ाया। इसके साथ ही हिंदुओं के इस बड़े तीर्थ मेले को ग्लोबल इनटैन्जिबल कल्चरल हेरिटेज लिस्ट में शामिल कर लिया गया है। इस बात की जानकारी फ्रांस स्थिति भारतीय दूतावास में भारतीय राजदूत विनय क्वात्रा ने दी।

विनय ने ट्विटर पर लिखा कि भारत को बधाई हो। कुंभ मेले को यूनेस्को की इनटैन्जिबल कल्चरल हेरिटेज लिस्ट में शामिल कर लिया गया है। बता दें कि भारत ने पहले 2016 में योग को इनटैन्जिबल हेरिटेज के तौर पर शामिल करवाने के लिए नामित किया था। कुंभ मेले का आयोजन न ा सि क - त्र यं ब क े श्वर (गोदावरी नदी के किनारे), प्रयाग (इलाहाबाद), हरिद्वार (गंगा नदी के किनारे) और उज्जैन में क्षिप्रा नदी के किनारे होता है। महाकुंभ का आयोजन प्रत्येक 12 साल में होता है, जबकि प्रयाग और हरिद्वार में प्रत्येक 6 साल बाद अर्द्ध कुंभ का आयोजन होता है। कुंभ मेले में देश भर से लाखों की संख्या में श्रद्धालु आते हैं। (एजेंसी)

विश्व धरोहर स्थल सूची में दूसरे स्थान पर ताजमहल

यूनेस्को संयुक्त राष्ट्र का एक ऐसा संगठन है, जो सांस्कृतिक और प्राकृतिक विरासत स्थलों को सूचीबद्ध करता है

मो

हब्बत की निशानी और दुनिया के सात अजूबों में शामिल ताजमहल अब यूनेस्को विश्व धरोहर स्थलों की सूची में दूसरे स्थान पर आ गया है। यह बात एक सर्वे में सामने आई है। जिसमें ताजमहल को दुनिया के धरोहरों में दूसरा स्थान दिया गया है। सर्वे में कंबोडिया का अंकोरवाट मंदिर पहले स्थान पर है। दुनिया भर से प्रतिवर्ष करीब लाखों लोग ताजमहल का दीदार करने भारत आते हैं। -सर्वे में राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय पर्यटकों की प्रतिक्रिया के आधार पर विश्वभर के सर्वश्रेष्ठ यूनेस्को सांस्कृतिक और प्राकृतिक धरोहर स्थलों की एक सूची जारी की है। इसमें अंकोरवाट की निर्माण प्रक्रिया और इतिहास के बारे में दिलचस्प तथ्यों का ब्यौरा है। इस सूची में प्रदर्शित अन्य स्मारकों में पेरू में दक्षिण अमेरिका के माचू पिचू, ब्राजील के इगाजु

नेशनल पार्क, इटली का सासी ऑफ मटेरा, इजरायल का यरूशलम और तुर्की में इस्तांबुल के ऐतिहासिक क्षेत्रों को शामिल किया गया है। -ताजमहल यूपी के आगरा शहर में स्थित एक विश्व धरोहर मकबरा है। इसका निर्माण मुगल सम्राट शाहजहां ने अपनी पत्नी मुमताज महल की याद में करवाया था। -ताजमहल मुग़ल वास्तुकला का उत्कृष्ट नमूना है। साल 1983 में ताजमहल को यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल में शामिल किया गया था। (एजेंसी)


28 स्वास्थ्य

11 - 17 दिसंबर 2017

ताकि बच्चे झूठ न बोलें !

अपने माता-पिता से बार-बार 'न' सुनकर बच्चे झूठ बोलने या फिर अपने माता-पिता से चीजें छिपाने लगते हैं आईएएनएस

च्चा पूछता है, 'मॉम, क्या मैं बारिश में खेलने जाऊं?', 'क्या मैं आइसक्रीम खा लूं?' 'क्या मैं अपने दोस्तों के साथ ट्रैकिंग पर जाऊं?', इन सब प्रश्नों के लिए मां का क्या जवाब होगा, हम सभी जानते हैं। मां जरूर कहेगी 'नहीं' और बच्चा मायूस हो जाएगा। मांएं अपने बच्चों के लिए सर्वश्रेष्ठ चाहती हैं, इसीलिए वे सुरक्षा के प्रति बहुत सावधान रहती हैं। उनका पूरा ध्यान इस बात पर रहता है कि उनके बच्चे सेहतमंद रहें, उचित खाना खाएं, समय पर सोएं, स्कूल में अच्छा परफॉर्म करें। उनकी सावधानियों की सूची अंतहीन है। बारबार डॉक्टर के क्लीनिक में जाने से बच्चे के पूरे विकास में भी बाधाएं आती हैं।

एक अनूठा रिश्ता

दरअसल, मां और बच्चे का रिश्ता निहायत अनूठा होता है, इसमें प्यार और जिम्मेदारी दोनों का अहसास भरा होता है। मां के प्यार में बच्चे जहां अपनी सुरक्षा भी महसूस करते हैं, वहीं मांएं बच्चों को सिर्फ प्यार नहीं करतीं, बल्कि उनके लिए हर तरह के हित की चिंता करती हैं। नए दौर में मांओं की भूमिका और बढ़ गई हैं। परिवार में सदस्यों की संख्या काफी कम हो गई है, ज्यादातर परिवार का आकार मां-पिता और बच्चों तक सीमित हो गई है। ऐसे में जहां एक तरफ ज्यादातर मांएं बच्चों की शारीरिक सेहत के प्रति बहुत सावधान होती हैं, तो वहीं दूसरी तरफ वे बच्चों के मानसिक स्वास्थ्य पर ज्यादा ध्यान नहीं देतीं। अपनी सावधानी में मांएं इस कदर मशगूल हो जाती हैं कि यह भूल जाती हैं कि उनके व्यवहार का बच्चों पर क्या प्रभाव पड़ रहा है।

बदलते मौसम में चिंता

तेजी से बदलते मौसम देख मांएं चिंतित हो जाती हैं। उनके पास केवल एक विकल्प बचता है और वो है अपने बच्चों की दैनिक गतिविधियों को नियंत्रित करके उन्हें सेहतमंद आहार के लिए मजबूर करना। इसके लिए उन्हें खाने-पीने की कई चीजों को न कहना पड़ता है। बार-बार 'न' सुनने का बच्चों के

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जो बच्चे अपने माता-पिता से लगातार उपेक्षित रहते हैं, वे स्वभाव से बहुत ज्यादा अंतर्मुखी हो जाते हैं। उनमें आत्मविश्वास की कमी तथा व्यक्तित्व असुरक्षित होता है मनोविज्ञान पर क्या असर पड़ता है और बार-बार मना करने पर बच्चों के संपूर्ण विकास एवं उनके व्यक्तित्व पर क्या असर पड़ेगा, इस बारे में आइए, मनोवैज्ञानिक की राय जानें।

माता-पिता से सीखते हैं बच्चे

मनोवैज्ञानिक डॉ. सपना जरवाल कहती हैं, ‘बच्चे बहुत संवेदनशील होते हैं। वे अपने माता-पिता को देखकर सीखते हैं, जिससे उनके व्यक्तित्व का विकास होता है। अपने माता-पिता से बार-बार 'न' सुनकर बच्चे झूठ बोलने या फिर अपने माता-पिता से चीजें छिपाने लगते हैं। इससे उनके आत्मविश्वास को नुकसान पहुंचता है और वे सामाजिक रूप से अलग रहने लगते हैं।’ उन्होंने कहा, ‘इन चीजों से मां और बच्चे के बीच संबंध खराब हो सकते हैं, इसलिए यह जरूरी है कि मां को एहसास हो कि असली समस्या बच्चे की मांग

भारत को मिला पहला 'वी केयर' प्रोजेक्ट वी केयर प्रोजेक्ट स्वच्छता के लिए आईपीसीए की स्वैच्छिक पहल है

ईपीसीए ने भारत में अनोखा वीई सीएआरई (वी केयर-वेस्ट एफीशिएंट कलेक्शन एंड री-साइक्लिंग) प्रोजेक्ट शुरू किया है। आईपीसीए को रीसाइकिल न किए जाने वाले प्लास्टिक वेस्ट के नियंत्रण और मल्टी लेयर्ड प्लास्टिक (एमएलपी) के प्रसंस्करण के निर्देश मिले थे। आईपीसीए ने यह

प्रोजेक्ट सीपीसीबी के अतिरिक्त निदेशक एस. के, निगम और दिल्ली स्थित में गाजीपुर में वेस्ट टु एनर्जी प्लांट के ईडीएम रणबीर सिंह की मौजूदगी में शुरू किया। इस अवसर पर ईडीएमसी के कमिश्नर रणबीर सिंह ने कहा कि हर स्थानीय प्रशासन प्लास्टिक वेस्ट मैनेजमेंट (पीडब्ल्यूएम) नियम 2016 के तहत कूड़े

नहीं, बल्कि उनका कमजोर प्रतिरोधी तंत्र है, जिस कारण वे बार-बार बीमार पड़ते हैं।’ डॉ. सपना के मुताबिक, ‘माताएं बच्चों को 'न' इसलिए कहती हैं कि वे उनके संपूर्ण विकास के लिए फिक्रमंद होती हैं। कामकाजी माताओं के बच्चे कई बार उनकी निगरानी के बिना खाते-पीते हैं, जिस कारण माताओं के लिए यह सुनिश्चित करना बहुत मुश्किल हो जाता है कि उनके बच्चे को सभी जरूरी पोषक तत्व प्राप्त हों।’

100 प्रतिशत आरडीए जरूरी

तिष्ठित न्यूट्रिशनिस्ट डॉ. नीति देसाई ने इस सिलसिले में कई मांओं बातचीत की है। वे बताती हैं, ‘अक्सर मांएं मेरे पास अपने बच्चों के स्वास्थ्य के प्रति चिंतित अवस्था में आती हैं, क्योंकि उनका बच्चा अनियमित आहार लेता है और अक्सर बीमार पड़ जाता है। मांओं को हर चीज के लिए अपने बच्चों के पीछे भागना पड़ता है और फिक्रमंद मां होने के कारण उन्हें कई सारी चीजों के लिए न कहना पड़ता है।’ उन्होंने कहा कि बार-बार 'न' कहने से बच्चों के व्यवहार पर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है। अनियमित आहार लेने की आदत अधिकांश बच्चों में समय के साथ बदल जाती है और बाद में उनके आहार में आवश्यक पोषक तत्व शामिल हो जाते हैं। तब डाइनिंग टेबल पर आहार को लेकर डांट-डपट की संभावनाएं भी खत्म हो जाती हैं। डॉ. नीति ने कहा कि सबसे अच्छा समाधान यह है कि बच्चों को ऐसा मल्टीविटामिन/ मल्टीमिनरल सप्लीमेंट दिया जाए, जो उन्हें कुछ पोषक तत्वों का 100 प्रतिशत आरडीए प्रदान करे, जो न केवल आहार में अनुपस्थित पोषक तत्वों की कमी को पूरा करे, बल्कि बच्चे की प्रतिरोधी क्षमता का भी विकास करे।

शोधकर्ताओं को पता चला है कि जो बच्चे अपने माता-पिता से लगातार उपेक्षित रहते हैं, वे स्वभाव से बहुत ज्यादा अंतर्मुखी हो जाते हैं। उनमें आत्मविश्वास की कमी तथा असुरक्षित व्यक्तित्व होता है। कई बच्चे निर्णय लेने में असमर्थ रहते हैं, क्योंकि वे यह तय नहीं कर पाते कि वे जो कर रहे हैं, वह सही है या गलत। उनका सामाजिक कौशल काफी खराब होता

है और वयस्क होने पर अपने कार्यस्थल पर टीम के अच्छे सदस्य नहीं कहलाते। मजबूत बच्चों की मां को कम चिंता होती है, इसलिए प्रसन्नचित्त, सकारात्मक एवं मजबूत बच्चे का विकास होने दीजिए। अच्छा प्रतिरोधी सिस्टम सेहतमंद शरीर के साथ सेहतमंद मस्तिष्क भी प्रदान करता है। इसीलिए स्वयं में बदलाव करें और 'यस मॉम' बनकर अपने बच्चों में मजबूत प्रतिरोधी शक्ति का विकास कर उन्हें स्वतंत्रतापूर्वक विकसित होने से न रोकें।

का वैज्ञानिक प्रबंधन और प्लास्टिक वेस्ट को ठिकाने लगाना सुनिश्चित कर रहा है। ईडीएमसी ने जीएनसीटीडी को पूर्वी दिल्ली नगर निगम के उपनियम 2017 को लागू करने का प्रस्ताव दिया है। इस कार्य को पूरा करने के लिए ईडीएमसी ने भारतीय प्रदूषण नियंत्रण संगठन के साथ मिलकर वी केयर प्रोजेक्ट को लॉन्च किया है। वी केयर प्रोजेक्ट आईपीसीए की स्वैच्छिक पहल है और ईडीएमसी पर कोई वित्तीय भार नहीं डालती। यह प्लास्टिक मुक्त माहौल बनाना तो सुनिश्चित करती ही है, साथ ही इससे गाजीपुर में प्लास्टिक वेस्ट को

री-साइकिल कर उपयोगी पदार्थ बनाए जा सकते हैं। सीपीसीबी में प्लास्टिक वेस्ट मैनेजमेंट के निदेशक और नोडल ऑफिसर एस. के. निगम ने कहा कि प्लास्टिक की कई परतों में पैकेजिंग (एमएलपी) को एकत्र करना, उसे अलग करना, उसका ट्रीटमेंट करना और उसका डिस्पोजल करना काफी मुश्किल है। अब तक किसी संस्था को इस दिशा में सफलता नहीं मिली है। सीपीसीबी ने आईपीसीए से विचारविमर्श के बाद एमएलपी उपभोक्ताओं, ब्रांड ओनर्स और ईडीएमसी की सहायता से एक पायलट स्टडी प्रोजेक्ट लॉन्च किया है। (एजेंसी)

उपेक्षा से अंतर्मुखी हो रहे बच्चे


11 - 17 दिसंबर 2017

तेल के डिब्बों से बनाया कचरा निकालने की मशीन

हर में प्रदूषित पानी की इकाइयों को स्वच्छ करने के लिए नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ डिजाइन के छात्र ने एक ऐसी डिवाइस तैयार की है, जो पानी से कचरा बाहर करने में मदद करती है। बेकार चीजों का इस्तेमाल करके गोंगा नवीन कुमार नाम के छात्र ने एक ऐसी मशीन तैयार की है, जिसमें न तो ईंधन की जरूरत होती है और यह किफायती और पर्यावरण के अनुकूल भी है। दिलचस्प बात यह है कि इस मशीन को तेल के खाली डिब्बे, साइकल के कुछ पार्ट्स, प्लास्टिक और लकड़ी की मदद से तैयार किया गया है। प्रोजेक्ट डिजाइन में द्वितीय वर्ष के 24 वर्षीय छात्र ने इसे गोंगा स्किमबाइक नाम दिया है। गोंगा का

कहना है, 'नदियों की सफाई के लिए मशीनें हैं। लेकिन वह बहुत बड़ी हैं और डीजल से चलती हैं। आकार की वजह से उनका इस्तेमाल झीलों में नहीं किया जा सकता है। इसके अलावा ईंधन की वजह से वातावरण भी प्रदूषित होता है। इस प्रोजेक्ट के लिए हमारे पास सीमित पैसा था, इस बात को ध्यान में रखकर मैंने पुरानी चीजों का इस्तेमाल करते हुए इस मशीन को तैयार किया। उदाहरण के तौर पर मैंने तेल के खाली डिब्बों का इस्तेमाल किया है, जो कि अक्सर रसोईघरों में प्रयोग किए जाते हैं, इन खाली डिब्बों की वजह से मशीन बिना किसी मेहनत और सुरक्षापूर्वक पानी पर तैरती रहती है।' गोंगा ने इस मशीन को तैयार करने के लिए

समुद्र को कचरा-मुक्त करने की योजना मुंबई महानगर पालिका ने समुद्र को कचरा मुक्त बनाने के लिए एक विशेष कार्य योजना तैयार की है

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कचरे को साफ करने की योजना को शीघ्र अंजाम दिया जाएगा। कचरे के कारण मुंबई के सारे समुद्र तट गंदे हो रहे हैं और पानी की रंग भी बदल रहा है। मुंबई जिन नदियों के कारण जीवन पाता था, वे भी गंदगी के भंडार बन चुके हैं। आम तौर पर लोग अपने घरों के कचरे को चुपके-चुपके ओशिवारा, दहिसर, मीठी जैसी प्रमुख नदियों में बहा देते हैं। इस वजह से बारिश के मौसम में ज्यादा संकट बढ़ जाता है। ये नदियां जहां-जहां समुद्र से मिलती हैं, वहां कचरों को जमा कर देती हैं। लेकिन महानगर निगम ने इससे निपटने की एक नई कार्य योजना बनाई है ताकि समुद्र को कचरा-मुक्त किया जा सके। हालांकि कहा जा रहा है कि यह काम आसान नहीं है, क्योंकि दूसरे स्थानों से बहकर आने वाले कचरे को नियंत्रित करना मुश्किल है। लेकिन तट पर घूमने आने वाले पर्यटकों की लापरवाही के कारण जो कचरे फैलते हैं, उसे रोकने में कामयाब हुआ जा सकता है। उन्हें

जागरूक और सावधान किया जाएगा। मनपा ने इस कार्य को बहुत गंभीरता से लिया है। कई विकल्पों पर विचार के बाद यह सुनिश्चित किया है कि पहले चरण में विशेष तरह के झाडू की मदद से पहले तैरने वाले कचरे को जमा किया जाएगा। ये झाड़ू नदी और नालों के बीच इस तरह बांधे जाएंगे कि बहने वाले कचरे उसमें फंस जाए। इसे फिर मशीन के माध्यम से एक किनारे जमा किया जाएगा। इससे सैकड़ों टन कचरा समुद्र में जाने से बच जाएगा। इसकी सफलता के बाद आगे विस्तार दिया जाएगा। मनपा इस योजना पर भी विचार कर रही है कि शहर के नालों और नदियों से बहकर आने वाले कचरे को जालीदार दीवार बनाकर रोकने की कोशिश की जाए ताकि समुद्र में जाने का उसे मौका ही नहीं मिले। उल्लेखनीय है कि समुद्र तटों की सफाई में निजी संस्थाएं ज्यादा योगदान कर रही हैं। अमिताभ बच्चन, शिल्पा शेट्टी आदि भी इसमें सहयोगी रुख अपना रहे हैं। लेकिन सामाजिक कार्यकर्ता अफरोज शाह ने अपने साथियों के साथ तटों की सफाई का अपना एक रूटीन ही बना लिया है। खुद मुख्यमंत्री इस योजना पर मनपा अधिकारियों और तकनीकी विशेषज्ञों के बीच कई राउंड की बातचीत हो चुकी है और आम सहमती बना ली गई है। उम्मीद की जा रही है कि मार्च से इसकी शुरुआत भी हो जाएगी। मनपा के अतिरिक्त आयुक्त विजय सिंघल ने उम्मीद जताई कि इस योजना से समुद्र में जाने वाले कचरे को रोका जा सकेगा। (मुंबई ब्यूरो)

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22 लाख से अपडेट होंगे शौचालय

सोलन के जोनल अस्पताल का सेनेटरी सिस्टम को अपडेट किए जाने की तैयारी

नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ डिजाइन के छात्र नवीन कुमार ने एक ऐसी डिवाइस तैयार की है, जो पानी से कचरा बाहर करने में मदद करती है

स्वच्छता

साइकल के कुछ पार्ट्स का भी इस्तेमाल किया है। जिसकी वजह से इस मशीन की कीमत 30 हजार रुपए है, लेकिन फिलवक्त जिन मशीनों का इस्तेमाल नदियों की सफाई के कार्यों में किया जा रहा है, उनकी कीमत करोड़ों रुपए है। गोंगा का कहना है कि इस मशीन का परीक्षण हमने हाल ही में घूमा झील में किया था। यह सिर्फ पानी में संभलकर तैरती ही नहीं है, बल्कि यह मुहानों से कचरा भी बाहर करती है। (एजेंसी)

शौचालय नहीं तो कुंवारा घूम रहा कलफू वाराणसी के कलफू के घर से रिश्ता इसीलिए लौट गया कि उसके घर शौचालय नहीं है

र में शौचालय नहीं होने से दो परिवारों के बीच रिश्ते जुड़ने से पहले ही टूट गए। लड़का पसंद होने के बाद लड़की पक्ष के लोग शादी की बात पक्की करने उसके घर आए थे। स्वागत-सत्कार के बीच जब लड़के के घर शौचालय न होने की जानकारी लड़की पक्ष वालों को हुई तो भड़क गए। उन्होंने रिश्ते से इनकार कर दिया। लड़के पक्ष की मनुहार के बावजूद बात नहीं बनी। मामला काशी विद्यापीठ ब्लॉक से महज 200 मीटर की दूरी पर स्थित शिवदासपुर के पंचवटी नगर का है। घर के मुखिया नंदलाल के दो बेटे हैं। नंदलाल की पत्नी मंजू देवी का बीमारी के चलते तीन साल पहले निधन हो गया था। उनके बड़े बेटे कलफू की शादी के लिए मंडुवाडीह से लोग रिश्ते की बात करने आए हुए थे। ट्राली चलाकर मुश्किल से घर चला पाने वाले नंदलाल ने बताया कि सोचा था कि बहू आ जाएगी तो कम से कम दो वक्त भोजन समय पर मिलने लगेगा। कोई घर संभालने वाला हो जाएगा लेकिन शौचालय न होने से अरमान पूरा नहीं हो पाया। लड़का पसंद होने के बाद लोग घर आए थे, लेकिन उन्हें पता चला कि घर में शौचालय नहीं है तो वे नाराज हो गए और ऐसे घर में अपनी बेटी की शादी करने से इंकार कर दिया। नंदलाल ने बताया कि उसके पास सामर्थ्य नहीं है कि वह शौचालय बनवा पाए। (एजेंसी)

सो

लन के जोनल अस्पताल का सेनेटरी सिस्टम अपडेट किया जाएगा। इस रेनोवेशन कार्य का जिम्मा बीएसएनएल को दिया गया है। बीएसएनएल की टीम सोलन अस्पताल के पुराने भवन निरीक्षण कर चुकी है। सेनेटरी सिस्टम रेनोवेशन पर 22 लाख रुपए खर्च किए जा रहे हैं। इससे सोलन क्षेत्रीय अस्पताल में पुराने हो चुके टायलेट्स सेनेटरी सिस्टम का जीर्णोद्धार होगा। अस्पताल में सेनेटरी सिस्टम का बुरा हाल है। खासकर पुरानी बिल्डिंग में टायलेट्स जाना मुश्किल है। कई वार्डों में तो पुरुष और महिलाओं के लिए एक ही टायलेट है। इस स्थिति को सुधारने के लिए अस्पताल प्रशासन सेनेटरी सिस्टम को अपडेट करवा रहा है। अस्पताल में सोलन के अलावा शिमला सिरमौर जिलों से भी लोग भी इलाज के लिए आते हैं। यहां रोजाना 1500 से अधिक की ओपीडी रहती है। लोगों को यहां पर शौचालयों में गंदगी की शिकायत हमेशा रहती है। यहां के शौचालय भी काफी पुराने हो चुके हैं, जबकि मरीजों की संख्या काफी बढ़ रही है। अब अस्पताल प्रशासन ने इसे आधुनिक तरीके से बनाने का निर्णय लिया है। जोनल अस्पताल की तीनों मंजिलों में बने शौचालयों का रेनोवेशन किया जाएगा। क्षेत्रीय अस्पताल सोलन में बने शौचालय काफी पुराने हो चुके हैं और इनमें हर समय गंदगी और बदबू फैली रहती है। इसके अलावा सीवरेज पाइपों का भी बुरा हाल है और जगह-जगह लीकेज होती रहती है। अस्पताल में सबसे नीचे आपातकालीन सेवाएं हैं और इसके साथ ही शौचालय भी बना है। इसके ऊपरी मंजिल में ओपीडी है और शौचालय भी बने हुए हैं। तीसरी मंजिल में वार्ड हैं और यहां रोगियों को रखा जाता है। यहां हर वार्ड में शौचालय बने हुए हैं, सभी शौचालयों से दुर्गंध आती है। इन सभी को अब रेनोवेट किया जाएगा। इसके तहत इनमें नई टाइलें, पाइप वॉश बेसिन और टॉयलेट शीट भी बदली जाएंगी। इसके अलावा ऑर्थो वार्ड के शौचालय को बैरियर फ्री बनाया जाएगा, जिससे स्पेशल रोगियों को भी लाभ होगा। इसमें आधुनिक शीट के अलावा ऐसे उपकरण लगाए जाएंगे, जिससे स्पेशल रोगियों को भी आसानी होगी। (एजेंसी)


30 कही अनकही

11 - 17 दिसंबर 2017

इस्मत के कारण चमकी कल्पना इस्मत चुगतई ने कल्पना को देखा तो उन्हें उनके अंदर ग्लैमरस अभिनेत्री की संभावनाएं नजर आई

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एसएसबी ब्यूरो

ल 11 फिल्मों का सफर, लेकिन बेहद रंगीन, चमकीला और हां सुरीला भी। लगभग 45 साल पहले ठहर गया यह सफर। हम बात कर रहे हैं कल्पना मोहन की।1962 में चीन से युद्ध ने भारत में हताशा और ग़ुस्से का माहौल बना दिया था, लेकिन उसी दौर में शंकर-जयकिशन के संगीत से सजी एक फिल्म

'प्रोफेसर' ने हंगामा मचा दिया। पचास साल बाद भी इस फिल्म के गीत ‘खुली पलक में झूठा गुस्सा बंद पलक में प्यार...’ भुलाया नहीं जा सका है। कल्पना का संबंध कश्मीर से था, वहीं उनका जन्म हुआ। उनके पिता अवनी मोहन स्वतंत्रता सेनानी थे। जवाहर लाल नेहरू के नजदीकी होने के साथ वो अखिल भारतीय कांग्रेस समिति के सदस्य भी थे। कल्पना ने बचपन से ही शौक में कथक सीखना शुरू किया धीरे-धीरे उनकी

प्रस्तुतियों की सराहना होने लगी। जवाहर लाल नेहरू उनके प्रशंसक थे और उनका उत्साह बढ़ाते रहते थे। कथक में पारंगत होकर उन्होंने अक्सर राष्ट्रपति भवन में होने वाले जलसों में नृत्य किया। ऐसे ही एक जलसे में अभिनेता बलराज साहनी और उर्दू की नामवर लेखिका इस्मत चुगतई ने कल्पना को देखा तो उन्हें उनके अंदर ग्लैमरस अभिनेत्री की संभावनाएं नजर आई। उन्होंने कल्पना को मुंबई आने की सलाह दी। कल्पना ने मुंबई जाने और वहां फिल्मों में

काम करने की इच्छा पिता को बताई तो उन्होंने कोई ऐतराज नहीं किया। उनके मुंबई पहुंचने पर इस्मत चुगताई ने उनके अभिभावक की भूमिका अदा की। इस्मत के पति और फिल्मकार शाहिद लतीफ उन दिनों एक कहानी पर काम कर रहे थे। इस्मत ने शाहिद से कहा कि अगर वो फिल्म बनाते हैं तो कल्पना को अभिनेत्री के रूप में मौका दें। जल्द ही शाहिद लतीफ ने 'पिकनिक' नाम से वह फिल्म शुरू की जिसमें कल्पना के हीरो थे मनोज कुमार।

ऐसे चमका वर्मा मलिक का सितारा बेरोजगारी के दौर में फंसे वर्मा मलिक की भेंट जब मनोज कुमार से हुई तो उनकी किस्मत ही बदल गई

में शादियों में दो फिल्मी गीत अनिवार्य रूप से हिंदीबजतेभाषीहै।समाज विदाई के समय मोहम्मद रफी का गाया गीत 'बाबुल

की दुआएं लेती जा' और बारात के समय मोहम्मद रफी का ही गया गीत 'आज मेरे यार की शादी है'। पंजाबी फिल्मों में गीत लिखकर करियर शुरू करने वाला यह गीतकार एक समय में वक्त की धुंध में खो गया, क्योंकि हिंदी फिल्मों में आकाश पाने की जद्दोजहद करते करते वर्मा मलिक हताश हो चुके थे। अकसर अचानक एक घटना जीवन की धारा बदल देती है और वर्मा मलिक के साथ भी ऐसा ही हुआ। दरअसल, फिल्म 'दिल और मोहब्बत' के लिए ओपी नैयर के संगीत निर्देशन में लिखा गीत 'आंखों की तलाशी दे दे मेरे दिल की हो गई चोरी' लोकप्रिय भी हुआ, लेकिन वर्मा मलिक को हिंदी फिल्मों के गीत लिखने के और मौके नहीं मिले। बेरोजगारी का दौर लंबा होने लगा तो वर्मा मलिक गुमनाम से हो गए। उन्होंने काफी भागदौड़ की मगर कोई फायदा नहीं हुआ। उस समय मनोज कुमार कल्याण जी के साथ बैठे हुए थे। मनोज कुमार वर्मा मलिक को जानते थे और उनके पंजाबी गीतों के प्रशंसक भी थे। मनोज कुमार ने वर्मा मलिक से पूछा कि क्या नया लिखा है वर्मा ने उन्हें तीन चार गीत सुनाए। ‘इकतारा बोले तुन-तुन’ मनोज को यह गीत पसंद आ गया और उन्होंने अपनी

फिल्म 'उपकार' के लिए गीत चुन लिया, लेकिन बदकिस्मती से उपकार में इस गीत की सिचुएशन नहीं निकल पाई। मनोज कुमार न ये गीत भूले न ही वर्मा मलिक को भूल पाए। उन्होंने अपनी अगली फिल्म 'यादगार' के लिए इस गाने को सामाजिक परिप्रेक्ष्य में लिखने को कहा तो वर्मा मलिक ने गीत को इस तरह बदल दिया- ‘बातें लंबी मतलब गोल, खोल न दे कहीं सबकी पोल इकतारा बोले तुन तुन।’ फिल्म 'यादगार' हिट हुई और यह गाना भी। फिल्मों में एक हिट से किस्मत बदल जाती है। वर्मा मलिक के साथ भी ऐसा ही हुआ। इसके बाद वर्मा के हाथ में काम ही काम आ गया। सफलता और लोकप्रियता के उजाले ने निराशा और हताशा के अंधेरे को खत्म कर दिया। रेखा की पहली फिल्म 'सावन भादो' में वर्मा के लिखे गीत 'कान में झुमका चाल में ठुमका...’ ने कई साल तक धूम मचाए रखी। इसके बाद 'पहचान', 'बेईमान', 'अनहोनी', 'धर्मा', 'कसौटी', 'विक्टोरिया न. 203', 'नागिन', 'चोरी मेरा काम', 'रोटी कपड़ा और मकान', 'संतान', 'एक से बढ़कर एक', जैसी फिल्मों में हिट गीत लिखने वाला ये गीतकार जिंदगी को भरपूर अंदाज में जीने लगा। फिल्मफेयर ट्रॉफी ने दो बार वर्मा मलिक के हाथों को चूमा। पहली बार 'पहचान' और फिर फिल्म 'बेइमान' के लिए।


11 - 17 दिसंबर 2017

अफ्रीकी लोक-कथा

लोक कथा

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अनानसी और जादू की हांडी

नानसी जहां रहता था वहां बहुत भीषण अकाल पड़ा। अनानसी और उसका परिवार भूख से बेहाल हो गया। एक दिन जब अनानसी उदास मन से समुद्र की ओर देख रहा था तब उसने समुद्र के बीचोंबीच अचानक एक खजूर का पेड़ पानी में से ऊपर उठते देखा। अनानसी ने तय किया कि वह किसी भी तरह उस पेड़ तक पहुंचेगा और उसपर चढेगा। क्या पता पेड़ में उसके लिए कुछ खजूर लगे हों! अब, वहां तक जाना ही बड़ी समस्या थी। लेकिन हर समस्या का समाधान हो ही जाता है। अनानसी जब सागरतट पर पहुंचा तो उसने वहां एक टूटी हुई नौका पड़ी देखी। नौका को कामचलाऊ ठीक करके उसने खेना शुरू कर दिया। पेड़ तक पहुँचने के अनानसी के पहले छः प्रयास असफल हो गए। हर बार ताक़तवर थपेडों ने उसकी नौका को सागरतट पर ला पटका, लेकिन अनानसी ने हार नहीं मानी। अपने सातवें प्रयास में वह पेड़ तक पहुंचने में कामयाब हो गया। नौका को उसने पेड़ से बांध दिया और पेड़ पर चढ़ने लगा। पेड़ पर कुछ खजूर लगे थे जो उस वक्त के लिए काफी थे। अनानसी खजूर तोड़-तोड़कर उन्हें नौका में गिराने लगा, लेकिन एक भी खजूर नौका में नहीं गिरा। सारे समुद्र के पानी में गिरकर डूब गए। पेड़ पर सिर्फ एक ही खजूर बचा रह गया। अनानसी ने उसे बड़ी सावधानी से नौका में फेंका, लेकिन वह भी पानी में गिरकर डूब गया। बेचारे अनानसी ने खजूरों के लिए इतनी मेहनत की लेकिन उसे एक भी खाने को नहीं मिला। अनानसी बहुत दुखी हो गया। वह खाली हाथ घर नहीं जाना चाहता था। अपने जीवन से निराश होकर उसने आत्महत्या करने के लिए समुद्र में छलांग लगा दी। उसे यह देखकर बहुत आश्चर्य हुआ कि डूबकर मरने के बजाय वह सागरतल तक सुरक्षित चला गया और वहां खड़ा हो गया। उसने वहां एक झोपड़ी देखी। झोपड़ी में से एक बूढ़े बाबा निकलकर बाहर आए। उन्होंने अनानसी से पूछा कि वह वहां क्यों आया है। अनानसी ने अपनी दर्द भरी दास्तान बूढ़े बाबा को सुना दी और बाबा ने अनानसी के प्रति बहुत सहानुभूति दिखाई।

बाबा झोपड़ी के भीतर गए और लोहे की एक हांडी लेकर बाहर आए। उन्होंने वह हांडी अनानसी को दे दी और कहा कि वह अब कभी भूखा नहीं रहेगा। इस हांडी से तुम जितना खाना चाहे निकाल सकते हो – इससे यह कहना ‘जो कुछ तुम अपने पुराने मालिक के लिए करती थी वही तुम मेरे लिए करो।’ . अनानसी ने हांडी के लिए बाबा का शुक्रिया अदा किया और वहां से चल पड़ा। अनानसी हांडी को एक बार परखकर देखना चाहता था। अपनी नौका में बैठकर उसने हांडी से कहा – ‘हांडी, हांडी, जो कुछ तुम अपने पुराने मालिक के लिए करती थी वही तुम मेरे लिए करो’ – इतना कहते ही हांडी सबसे स्वादिष्ट पकवानों से भर गई. अनानसी ने मरभुख्खों की तरह लजीज खाना खाया और आनंद मनाया। जब वह अपने गांव पहुंचा तो सबसे पहले उसके मन में घर जाकर अपने परिवार को हांडी से भरपूर खाना खिलने का विचार आया। लेकिन एक स्वार्थी विचार ने भी उसे घेर लिया – “लेकिन कहीं ऐसा न हो की हांडी की दिव्यशाक्तियां जल्दी ही चुक जाएं और मैं पहले की तरह खाने को तरसने लगूं. नहीं, नहीं, मैं तो हांडी को सिर्फ अपने लिए ही छुपाकर रखूंगा और रोज जी भरके बढ़िया खाना खाऊंगा।‘ उसने हांडी को छुपा दिया। वह घर पहुंचा और ऐसा दर्शाया जैसे वह भूख से मरा जा रहा है। दूर-दूर तक किसी के पास अनाज का एक दाना भी नहीं था। अनानसी के बीबी-बच्चे भूख से बेहाल हो रहे थे, लेकिन उसने उनकी कोई परवाह नहीं की। अपने घर के एक कमरे में उसने हांडी को छुपाया हुआ था। वह वहां रोज जाता और दरवाजा बंद करके हांडी से खूब सारा बढ़िया खाना जी भर के खाता। उसके बीबीबच्चे सूखकर कटखने हो गए, लेकिन अनानसी मोटा होता गया। घर के दूसरे लोग अनानसी पर शक करने लगे। अनानसी के बेटे कवेकू के पास एक जादुई ताकत थी और वह पलक झपकते ही अपने आप को किसी भी जीव में बदल सकता था। वह एक मक्खी बन गया और अपने पिता के इर्दगिर्द मंडराने लगा। भूख लगने पर अनानसी कमरे में गया और उसने हांडी से निकलकर

बढ़िया खाना खाया। फिर पहले की भांति हांडी को छुपाकर वह बहार निकलकर खाने की तलाश करने का नाटक करने लगा। जब वह गांव से दूर चला गया तब कवेकू ने हांडी को बाहर निकाला और अपनी मां और भाईबहनों को खाने के लिए बुलाया। उन सबने उस दिन इतना अच्छा खाना खाया कि उन्हें अनानसी पर बहुत गुस्सा आने लगा। श्रीमती अनानसी अपने पति को सबक सिखाना चाहती थी इसलिए वह हांडी लेकर गांव के एक मैदान में गई ताकि वहां सभी को बुलाकर खाना खिला सके। हांडी ने कभी भी इतना खाना नहीं बनाया था, इसीलिए वह बहुत गरम हो गई और पिघलकर बह गई। अब कुछ नहीं हो सकता था। भूख लगने पर अनानसी वापस अपने कमरे में आया और उसने हांडी की तलाश की। उसे हांडी नहीं मिली। वह समझ गया कि किसी ने हांडी को ढूंढ लिया है। उसका पहला शक अपने परिवार पर गया और उसने अपने बीबी-बच्चों को सजा देने के बारे में सोचा। अनानसी ने किसी से कुछ नहीं कहा और अगली सुबह का इंतजार करने लगा। सूरज निकलते ही वह सागरतट की और चल दिया और टूटी नौका में बैठकर वह उसी खजूर के पेड़ की ओर चला। इस बार नाव बिना किसी रूकावट के

अपने आप पेड़ तक जाकर ठहर गई। अनानसी नौका को पेड़ से बांधकर पेड़ पर चढ़ने लगा। पहले की भांति पेड़ पर फल लगे हुए थे। अनानसी ने फल तोड़कर उन्हें संभालकर नौका में फेंका और सारे फल ठीकठीक नौका में ही गिरे। एक भी फल पानी में नहीं गिरा। यह देखकर अनानसी ने नौका से सारे फल उठाए और उन्हें जानबूझ कर पानी में फेंक दिया और फेंकते ही समुद्र में छलांग लगा दी। पहले की भांति वह बूढ़े बाबा की झोपड़ी तक पहुंचा और उन्हें सारी बात बता दी। बाबा ने भी पहले की भांति अनानसी से सहानुभूति जताई। इस बार बाबा झोपडी के भीतर गए और अंदर से एक डंडा लेकर आए। उन्होंने डंडा अनानसी को दे दिया और दोनों ने एक दूसरे से विदा ली। नौका में बैठते ही अनानसी ने डंडे की ताकत जांचने के लिए उससे कहा – ‘डंडे, डंडे, जो कुछ तुम अपने पुराने मालिक के लिए करते थे वही तुम मेरे लिए करो’. इतना सुनते ही डंडे ने अनानसी को दनादन मार-मारके लाल-नीला कर दिया। अनानसी किसी तरह डंडे से बचकर पानी में कूद गया और अपनी नौका और डंडे को वहीँ छोड़कर वापस अपने गांव आ गया। घर पहुँचने पर उसने अपने बीबी-बच्चों से अपने बुरे आचरण के लिए माफी मांगी और वादा किया कि वह उनके प्रति हमेशा दयालुता और स्नेह रखेगा।

छोटी चींटी, बड़ी चींटी

खलील जिब्रान

धू

प में लेटे एक आदमी की नाक पर तीन चींटियों का मिलन हुआ। एकदूसरे को नमस्ते कहने के बाद जातीय-रिवाज के अनुरूप उसी जगह रुककर वे बातें करने लगीं। पहली ने कहा, ‘ये पहाड़ और मैदान एकदम बांझ हैं, मैंने देख लिया है। पूरा दिन घूमते निकल गया, एक दाना तक नहीं मिला।‘ दूसरी बोली, ‘कोना-कोना छान मारा, मुझे भी कुछ नहीं मिला। मुझे तो लगता है कि हमारे यहां जिसे चलती-फिरती नाजुक और बांझ जमीन कहा जाता है, यह वही है।‘ तीसरी चींटी ने भी अपना सिर उठाया। बोली, ‘दोस्तो, हम इस समय महाशक्तिशाली बहुत बड़ी चींटी की नाक पर खड़े हैं। इसका शरीर इतना बड़ा है कि हम उसे पूरा-का-पूरा देख नहीं सकते।

इसकी परछाई भी इतनी बड़ी है कि हम उसे नाप नहीं सकते। इसकी आवाज इतनी तेज है कि हम उसे सुन नहीं सकते। यह दुनिया-जितनी बड़ी चींटी है।‘तीसरी चींटी की इस बात को सुनकर बाकी दोनों ने एक-दूसरी को देखा और जोर-से हंस पड़ीं। उसी क्षण आदमी ने करवट बदली। नींद में उसका हाथ उठा और नाक को खुजाने लगा। तीनों चींटियां उसकी उंगलियों से कुचल गईं।


32 अनाम हीरो

डाक पंजीयन नंबर-DL(W)10/2241/2017-19

11 - 17 दिसंबर 2017

अनाम हीरो

शहीदों के समीर

अल्ट्रा मैराथन धावक समीर सिंह शहीदों के परिवार के लिए 15 हजार किमी की दौड़ में लेंगे हिस्सा

पने लिए तो सभी जीते हैं, लेकिन कोई भी व्यक्ति दूसरों के बारे में नहीं सोचता है। खासकर उनके लिए जो सीमा पर निस्वार्थ भाव से देश की सुरक्षा करते हैं और अपनी जान भारत माता की सेवा में गवां देते हैं। लेकिन आज भी कुछ लोग हैं जो इनके लिए सोचते हैं और कुछ भी करने के लिए हमेशा तत्पर रहते हैं। इन्हीं में से हैं अल्ट्रा मैराथन के धावक समीर सिंह, जो शहीदों के परिवार के लिए 15 हजार किलो मीटर की दौड़ में हिस्सा लेंगे, ताकि इन परिवारों के लिए सहायता राशि जुटा सकें। बता दें कि यह दौड़ सरकार की एक पहल का हिस्सा है। इस पर समीर ने कहा कि उन्हें भारत सरकार की पहल पर भारत के वीर के तहत दौड़ में शामिल होने का

हेमप्रभा की गीता

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गजों और पत्थरों पर लिखी भगवद्गीता तो आपने बहुत देखी होगी, लेकिन कपड़े पर बुनी हुए गीता के बारे में जानकर आपको भी आश्चर्य होगा। जी हां असम की एक महिला बुनकर ने कपड़े पर अंग्रेजी और संस्कृत में गीता बुन कर इतिहास रच दिया है। हेमप्रभा असम के डिब्रूगढ़ में रहती है और उनका काम कपड़ों की बुनाई-सिलाई करना है। हालांकि हेमप्रभा ने कपड़े पर संस्कृत में गीता की 500 चौपाईयां और अंग्रेजी में एक पाठ को बुना है। हेमप्रभा ने पिछले साल दिसंबर में यह

समीर सिंह

निमंत्रण मिला है। यह एक वेबसाइट है, जो शहीदों के खाते में सीधे दान देने की अनुमति देती है। बता दें कि यह दौड़ अगले महीने के पहले सप्ताह में शुरू होगी, जिसमें समीर 15 हजार किलोमीटर की दौड़ में हिस्सा लेंगे। समीर ने कहा कि मैं इस निमंत्रण को स्वीकार कर बहुत खुशी महसूस कर रहा हूं। प्रयास के अंतर्गत 45 वर्षीय सिंह को उम्मीद है कि वह भारत के वीर पोर्टल पर शहीदों के परिवारों के लिए ऑनलाइन चंदा जुटा पाएंगे। उन्होंने कहा कि वह प्रायोजकों से भी वित्तीय मदद की मांग करेंगे। समीर इस दौड़ को अमृतसर की वाघा बॉर्डर से शुरू करेंगे और पंजाब के विभिन्न स्थानों से गुजरेंगे। इस दौड़ का समापन भी वाघा बॉर्डर पर ही होगा। इस दौरान अर्द्धसैनिक बलों के कुछ सैनिक भी उनके साथ दौड़ में शामिल होंगे।

न्यूजमेकर असम की हेमप्रभा कपड़े पर बनती हैं गीता और शंकरदेव गुणमाला के पद

काम शुरू किया था, जो अब तक जारी है। ऐसा नहीं है कि हेमप्रभा ने पहली बार कोई पद कपड़े बुना हो। इससे पहले भी हेमप्रभा ने शंकरदेव गुणमाला के छह पदों को 17 इंच चौड़े और 80 फीट लंबे मूंगा सिल्क के कपड़े पर 9 महीने में बुना था। उन्होंने बताया कि 9 महीने की कड़ी मेहनत के बाद मैंने कपड़े पर गुणमाला को बुना। मेरे इस काम को पूरे राज्य में सराहना मिली। अब मैं संस्कृत व अंग्रेजी में भगवद्गीता उकेर रही हूं। हालांकि हेमप्रभा ने सरकार से अपने काम को संग्रहित करने के लिए एक म्यूजियम की मांग की है।

जुंदे की जंग

सीरियाई बाल शरणार्थियों के अधिकारों को सुनिश्चित करने के प्रयासों के लिए मुहम्मद अल जुंदे को अंतरराष्ट्रीय बाल शांति पुरस्कार

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रिया के 16 वर्षीय किशोर मुहम्मद अल जुंदे को इस साल के अंतरराष्ट्रीय बाल शांति पुरस्कार से सम्मानित किया गया। जुंदे को यह पुरस्कार सीरियाई बाल शरणार्थियों के अधिकारों को सुनिश्चित करने के प्रयासों के लिए दिया गया। बता दें कि दुनियाभर में बाल अधिकारों की पैरवी के लिए गठित किड्स राइट्स संगठन को गठित किया गया है। यह संगठन 2005 से लगातार हर साल किसी बच्चे को अंतरराष्ट्रीय बाल शांति पुरस्कार से सम्मानित करता है। हमेशा युद्ध से पीड़ित रहने वाले सीरिया से पलायन कर जुंदे अपने परिवार के साथ लेबनान में रहते हैं। वहां वह एक शरणार्थी शिविर में स्कूल चलाते हैं। इस स्कूल में करीब 200 बच्चों को शिक्षा मुहैया कराई जा रही है। जुंदे को यह पुरस्कार नोबेल विजेता मलाला यूसुफजई ने दिया। इस मौके पर मलाला ने बताया कि मुहम्मद अल जुंदे यह बात जानते हैं कि सीरिया का भविष्य बच्चों पर और उनका भविष्य शिक्षा पर निर्भर है। तमाम मुसीबतों के बावजूद अल जुंदे और उनका परिवार कई बच्चों को स्कूल जाने में मदद कर रहा है। मलाला ने आगे कहा कि इस समय दुनियाभर में करीब 2.8 करोड़ बच्चे विस्थापित हैं। अकेले सीरिया युद्ध से ही करीब 25 लाख बच्चे शरणार्थी जीवन व्यतीत करने को मजबूर हैं।

आरएनआई नंबर-DELHIN/2016/71597; संयुक्त पुलिस कमिश्नर (लाइसेंसिंग) दिल्ली नं.-एफ. 2 (एस- 45) प्रेस/ 2016 वर्ष 1, अंक - 52


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