2030 तक भारत मलेरिया मुक्त!
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नृत्य प्रेम खींच लाया भारत
राष्ट्रमंडल खेलों में छाया भारत
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उषा चौमड़ जैसे लोगों को लाने में पाल के किनारे रखा इतिहास 50 साल लग गए-डॉक्टर पाठक
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sulabhswachhbharat.com आरएनआई नंबर-DELHIN/2016/71597
स्वामी चिदानंद सरस्वती
सेवा और स्वच्छता का अध्यात्म
स्वामी चिदानंद सरस्वती एक ऐसे आध्यात्मिक गुरु व संत हैं, जिन्होंने न सिर्फ अपने ज्ञान, उपदेश और सेवा कार्यों से दुनियाभर में अपने साथ भारतीय आध्यात्मिक ज्ञान के लिए आदर और आस्था को उल्लेखनीय रूप में बढ़ाया, बल्कि पर्यावरण और स्वच्छता को लेकर वे असीम प्रतिबद्धता के साथ कई बड़े अभियान चला रहे हैं
वे
एसएसबी ब्यूरो
दांत की शिक्षा के साथ आध्यात्मिक ज्ञान की जिस ऊंचाई को भारत ने अतीत में प्राप्त किया है, हमारे ऋषियों और आचार्यों ने उसे मौजूदा दौर में भी भारतीय गौरव का आधार बनाए रखा है। अहिंसा, योग, शांति और सेवा की राह से भटके लोगों को भारतीय गुरुओंआचार्यों से जहां एक बड़ा समाधान मिलता है, वहीं यह सीख भी दुनिया भर में पहुंचती है कि भौतिकवादी होड़ में शामिल रहते हुए मनुष्य भले और कुछ भी पा ले, पर वह अपने जीवन और मनुष्यता को तो कतई एक सार्थक अर्थ नहीं ही दे पाएगा। स्वामी चिदानंद सरस्वती एक ऐसे ही आध्यात्मिक गुरु व संत हैं, जिन्होंने अपने ज्ञान, उपदेश और सेवा कार्यों से दुनियाभर में अपने साथ भारतीय आध्यात्मिक ज्ञान के लिए आदर और आस्था को उल्लेखनीय रूप में बढ़ाया है। वे ऋषिकेश में स्थित परमार्थ निकेतन आश्रम के संस्थापक अध्यक्ष हैं। इसके साथ ही वे भारतीय संस्कृति शोध प्रतिष्ठान, ऋषिकेश तथा पिट्सबर्ग के हिंदू-जैन मंदिर के भी संस्थापक एवं अध्यक्ष हैं। उनकी प्रेरणा से 2012 में हिंदू धर्म का विश्वकोश निर्मित हुआ। हिंदू धर्म का यह विश्वकोश हिंदू धर्म एवं
वर्ष-2 | अंक-19 | 23 - 29 अप्रैल 2018
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आवरण कथा
23 - 29 अप्रैल 2018
इससे संबंधित अनेकानेक विषयों को समग्रता में समेटता है। यह ग्यारह भागों में है और अंग्रेजी भाषा में है। यह विश्वकोश 7184 पृष्ठों का है, जिनमें मंदिरों, धार्मिक स्थानों, विचारकों, कर्मकांडों एवं त्योहारों का विवरण रंगीन चित्रों के साथ दिया गया है। 25 वर्षों के निरंतर प्रयास तथा 2000 से अधिक विद्वानों के योगदान से यह विश्वकोश निर्मित हुआ है। इसके संपादक डॉ. कपिल कपूर हैं। यह विश्वकोश केवल हिंदू धर्म तक ही सीमीति नहीं है, बल्कि कला, इतिहास, भाषा, साहित्य, दर्शन, राजनीति, विज्ञान तथा नारी विषयों को भी इसमें स्थान दिया गया है। पूज्य स्वामी जी ने संस्कृत और दर्शनशास्त्र में मास्टर डिग्री और साथ कई भाषाओं में प्रवीणता हासिल की है। वे ग्लोबल इंटरफेथ वाश एलायंस (जीवा) के सह-संस्थापक हैं। यह दुनिया की पहली ऐसी अंतरराष्ट्रीय पहल है, जो विश्व के सभी धर्मों को एकजुट करती है। इस एलायंस का लक्ष्य दुनिया भर में हर बच्चे को सुरक्षित जीवन देने के लिए जीवन-रक्षक जल और स्वच्छता की सुविधा सुनिश्चत करना है।
नौ वर्ष की अखंड साधना
स्वामी चिदानंद सरस्वती के जीवन का एक ही उद्देश्य है- ‘मानवता और ईश्वर की सेवा’। मानवता और ईश्वर की सेवा करने के लिए बहुत
खास बातें संस्कृत और दर्शनशास्त्र में मास्टर डिग्री और कई भाषाओं में प्रवीणता सन् 2012 में हिंदू धर्म का विश्वकोश के प्रकाशन का श्रेय स्वामी जी की जीवनी ‘बाई गॉड्स ग्रेस’ की दुनियाभर में ख्याति
स्वामी जी की प्रेरणा से 2012 में हिंदू धर्म का विश्वकोश निर्मित हुआ। यह ग्यारह भागों में है और अंग्रेजी भाषा में है। 25 वर्षों के निरंतर प्रयास तथा 2000 से अधिक विद्वानों के योगदान से यह विश्वकोश निर्मित हुआ है। इसके संपादक डॉ. कपिल कपूर हैं ही कम उम्र में स्वामी जी अपना घर त्याग दिया था। हिमालय पर अपनी युवावस्था बिताने वाले स्वामी चिदानंद सरस्वती ने यहीं लंबे समय तक मौन और ध्यान का अभ्यास किया। नौ वर्ष की अखंडित साधना और मौन के बाद 17 वर्ष की आयु में वे वापस आए और अपने गुरु के कहने पर उन्हीं के समान अकादमिक शिक्षा प्राप्त की।
‘बाई गॉड्स ग्रेस’
परमार्थ निकेतन के परमाध्यक्ष और गंगा एक्शन परिवार के संस्थापक स्वामी चिदानंद सरस्वती की जीवनी ‘बाई गॉड्स ग्रेस’ को दुनिया के नंबर एक पुस्तक विक्रेता अमेजन डाट कॉम ने हिंदू धर्म पर आधारित 17 हजार पुस्तकों में नंबर एक का दर्जा दिया है। अन्य वर्ग की पुस्तकों में भी यह पुस्तक
शीर्ष सौ पुस्तकों में शामिल है। अधिकृत तौर पर यह पुस्तक अब बेस्टसेलर नंबर वन हो गई है। ‘बाई गॉड्स ग्रेस’ वर्ष 2012 में अमेरिका के कैलिफोर्निया स्थित पब्लिशिंग कंपनी मंडला पब्लिशिंग द्वारा प्रकाशित और लोकार्पित की गई थी। 300 पृष्ठ की इस पुस्तक की प्रस्तावना परम पूज्य दलाई लामा ने लिखी है। इस पुस्तक में स्वामी जी के भारत के जंगलों में साधना करते हुए बीते बचपन से लेकर संयुक्त राष्ट्र के पोडियम तक पहुंचने की यात्रा का वर्णन है।
प्रेरणा का निकेतन
स्वामी चिदानंद सरस्वती का परमार्थ निकेतन आश्रम भारत के सबसे बड़े इंटरफेथ और आध्यात्मिक
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गुरु ज्ञान-1
गुरु-शिष्य परंपरा और सत्संग
किसी का स्वयं के साथ टिके रहने की अवस्था ही आजादी है और सत्संग इसी आजादी के मार्ग को प्रशस्त करता है
कि
स्वामी चिदानंद सरस्वती
सी गुरु के साथ केवल एक भौतिक संगति को सत्संग नहीं माना जा सकता है। सत्संग का वास्तविक अर्थ शिष्य का ज्ञान की खोज में उसकी भागीदारी और समान रूप से उसके गुरु की भागीदारी से जुड़ा होता है जो अपने शिष्य को ज्ञान की तलाश में राह दिखाता है। इसीलिए उपनिषद की कथा में हम देखते हैं कि किस प्रकार नचिकेता यम को उत्तर देने का हठ करता है। उद्दालक को भी हम श्वेतकेतु से ‘स्वयं’ की प्रकृति को दोहराते हुए देखते हैं। उद्दालक जीव और ब्रह्म के बीच समीकरण दिखाने के लिए नौ चित्रण प्रस्तुत करते हैं, जो उस करूणा का साक्ष्य है, जो वैदांतिक गुरुओं का उनके शिष्य के प्रति था। संक्षेप में, यह एक गुरु और उनकी दी हुई शिक्षा की अर्थपूर्ण भागीदारी है, जो सत्संग कहलाता है। बृहदअरण्यक उपनिषद में याज्ञवल्क्य
पूर्णता शब्द का प्रयोग कृष्ण के द्वारा हुआ है, जिसका अर्थ है बार-बार समीक्षा के द्वारा सवालों के जवाब को तलाशना। गुरु को अपना संदेह जताकर हम अपने मन के भीतर के ज्ञान के बक्से को खोल रहे हैं मैत्रेयी को सत्संग के सिद्धांत की व्याख्या आजादी के साधन के रूप में करते हैं। वह कहते हैं कि सुनना पहला चरण है, जो किसी का नेतृत्व सहज रूप से उस प्रतिबिंब की तरह करता है, जिसके द्वारा शुद्ध मन वास्तविक रूप में स्वयं का अनुभव करता है। सुनना या श्रवण उन कारणों पर बार-बार जोर डालता है कि
संस्थानों में से एक है। उनकी दिव्य प्रेरणा और नेतृत्व में परमार्थ निकेतन दुनिया भर के लोगों के लिए ज्ञान और सेवा का परमधाम बन गया है। परमार्थ निकेतन एक आधुनिक आश्रम है। यहां आने और रहने वालों के लिए यह एक आध्यात्मिक स्वर्ग की तरह है। यहां योग से स्वास्थ्य तक के लिए
दिमाग आत्म चिंतन की राह में बिल्कुल नया है और इन प्रक्रियाओं के लिए इसके पास कोई योग्यता नहीं है। लेकिन शिक्षा के प्रकाश में इसे विचारशील बनाया जा सकता है, जिसमें सुनना भी शामिल है। आप खुद से लगातार प्रश्न कर सच को जान सकते हैं और उस गुरु की सेवा करके भी जो ‘स्वयं’ की सच्चाई को जानते हैं। यहां सेवा का अर्थ ‘खुद’ को जानने से संबंधित सभी प्रश्नों का जबाव ढूंढ़ने मं खुद की भागीदारी से है। इसका अर्थ गुरु की शिक्षा के द्वारा ज्ञान की तलाश करना भी है। ऋषियों द्वारा बताए अनुसार जीवन जीना ही सर्वोच्च सेवा है और जिसमें एक अपूर्ण नश्वर एक पूर्ण व्यक्ति के सामने प्रस्तुत हो सके। पूर्णता शब्द का प्रयोग कृष्ण के द्वारा हुआ है, जिसका अर्थ है बारबार समीक्षा के द्वारा सवालों के जवाब को तलाशना। गुरु को अपना संदेह जताकर हम अपने मन के भीतर के ज्ञान के बक्से को खोल रहे हैं। एक आदर्श गुरु तुरंत अपने शिष्य के संदेह को पहचान लेते हैं और उसे दूर कर देते हैं। संदेह को दूर करने के दौरान, गुरु अति सूक्ष्म रूप से शिष्य के सोच के ढ़ांचे या स्वरूप को वापस से संगठित या उसे सही क्रम में ले आते हैं। इस प्रकार यह हिंदुओं की एक सदियों पुरानी परंपरा है, जो शिक्षक और शिक्षा के बीच के संवाद को प्रोत्साहित करता है और जिसे सही रूप में सत्संग कहा जाता है। बुद्धिमत्ता से जुड़ाव से इंद्रियों के सुख से अलगाव तक, यह एक मोड़ है जो इस भ्रम से आजादी दिलाता है कि यह दुनिया एक सच है। जब वास्तविकता की झूठी भावना चली जाती है तो दिमाग स्वयं में टिका रहता है। किसी का स्वयं के साथ टिके रहने की अवस्था ही आजादी है। इस प्रकार सत्संग आजादी के मार्ग को प्रशस्त करता है।
विभिन्न तरह की सुविधाएं उपलब्ध हैं। दिलचस्प यह कि यह सब कुछ आध्यात्मिक प्रेरणा के साथ होता है। यही कारण है कि शांति से लेकर आरोग्य के लिए भटकने वालों को यहां आकर एक दैवीय संतोष प्राप्त होता है। यह संतोष ही इस आश्रम की वैश्विक ख्याति का सबसे बड़ा आधार है। स्वामी
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आवरण कथा
गुरु ज्ञान-2
आत्मा में ईश्वर का वास
भगवान हमसे अलग नहीं हैं। उनकी बाहर खोज करना व्यर्थ तो है ही, यह एक बड़ा अज्ञान भी है। हम अपनी आत्मा की गहराइयों में जितना डूबते हैं, भगवान हमारे उतने ही करीब होते हैं
य
स्वामी चिदानंद सरस्वती
ह सुंदर कहानी एक साधक की है जिसने भगवान की खोज में हर जगह यात्रा की ताकि वह उस दिव्य स्रोत, दिव्य शांति और दिव्य सच को पा सके। अंत में काफी वर्षों की तलाश करने के बाद और भगवान को अपने करीबा ना पाकर, उसने हार मान ली। जंगल में एक पेड़ के नीचे बैठकर वह जोर-जोर से रोने लगा और कहने लगा, ‘हे भगवान! आप मुझसे इतनी दूर कैसे हो सकते हैं? मैं आपके बिना मर रहा हूं। मैंने आपको कहां-कहां नहीं तलाशा लेकिन आप मुझे कहीं नहीं मिले। मैं अब इस पेड़ के नीचे तब तक बैठा रहूंगा जब तक मेरी सांसें मेरा शरीर नहीं छोड़ देतीं, क्योंकि अब मैं आपके बिना एक दिन भी जीवित नहीं रह सकता हूं।’
‘मेरे प्यारे दोस्त! जिस तरह से मैं पानी में ही रह रही हूं और मेरी पानी की चाह तुम्हें व्यर्थ लग रही है, बिल्कुल उसी तरह तुम भी भगवान में जीवित हो और तुम्हारी चाह मुझे व्यर्थ लग रही है’
आंसू साधक की आंखों से बहकर उसके गालों पर गिरने लगे। वह अपना सिर पेड़ के विपरीत टिकाकर मौत की प्रतीक्षा करने लगा। उसी पल पेड़ के पास की नदी से एक मछली रोती, तड़पती उछल कर बाहर आई। मछली चिदानंद सरस्वती को इस बात का श्रेय जाता है कि उन्होंने अपने आध्यात्मिक ज्ञान और प्रतिबद्ध सेवा भाव से संतोष के इस आधार को न सिर्फ बढ़ाया है, बल्कि अज्ञान और भौतिकवादी द्रोह में फंसी दुनिया के लिए वे इस आश्रम के क्रिया-कलापों के जरिए एक सकारात्मक संदेश भी देने में सफल हुए हैं।
पर्यावरण सुरक्षा के लिए मॉडल
परमार्थ निकेतन का जिस तरह संचालन किया जाता है, वह स्वच्छता और पर्यावरण सुरक्षा के लिहाज
का रुदन साधक को उसके दुख से बाहर खींच लाया और उसने मछली की ओर ध्यान दिया। ‘मेरी प्यारी मछली! क्या हुआ?’, उसने पूछा। मछली ने रोते-रोते जवाब दिया, ‘पानी! मुझे पानी की जरूरत है! मैं पानी के बिना जीवित नहीं रह सकती हूं, लेकिन मुझे पानी कहीं मिल नहीं रहा। मैं अवश्य ही मर जाऊंगी।’ साधक ने अविश्वनीय ढ़ंग से मछली को देखा और कहा, ‘लेकिन मेरी प्यारी मछली, तुम तो नदी में रहती हो। नदी भी तो पानी ही है। तुम कैसे कह सकती हो कि तुम्हें पानी नहीं मिला? पानी तो तुम्हारे आसपास ही है। तुम्हारे शरीर का हर भाग पानी में डूबा हुआ है। अगर तुम पानी की सतह पर बुरी तरह फड़फड़ाना बंद करो और नदी की गहराई में जाओ तो तुम्हें जितना पानी चाहिए, वो सब मिलेगा।’ अचानक से मछली ने फड़फड़ाना और रोना बंद कर दिया और उसकी आवाज बिल्कुल मृदुल हो गई। ‘मेरे प्यारे दोस्त! जिस तरह से मैं पानी में ही रह रही हूं और मेरी पानी की चाह तुम्हें व्यर्थ लग रही है, बिल्कुल उसी तरह तुम भी भगवान में जीवित हो और तुम्हारी चाह मुझे व्यर्थ लग रही है। जैसे मेरा हर गिल पानी में डूबा हुआ है, वैसे ही तुम्हारी हर कोशिका भगवान में डूबी हुई है। जैसे नदी कुछ और नहीं, बल्कि पानी ही है, उसी तरह यह संसार कुछ और नहीं, बल्कि भगवान ही है। तुम्हारे जैसे ही मेरे आंसू मुझे गलत साबित नहीं करते। तुमने मुझे नदी की गहराई में जाने की सलाह दी, जहां मुझे पानी मिलेगा। मैं भी तुम्हें अपनी आत्मा की गहराई में जाने की सलाह देती हूं, जहां तुम्हें भगवान मिलेंगे।’
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आवरण कथा
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अहंकार और दांपत्य
गुरु ज्ञान-3
मैं
हमारे जीवन के दिन सीमित हैं और उस दिन के हर घंटे के लिए खर्च की जाने वाली ऊर्जा भी सीमित है। हमें इतनी सारी ऊर्जाएं केवल अपनी इच्छाओं को पूरा करने में और झगड़ने में व्यर्थ नहीं करना चाहिए
स्वामी चिदानंद सरस्वती
हमेशा एक शिकायत सुनता हूं, ‘हम छोटीछोटी बातों पर झगड़ते रहते हैं। हर बात पर बहस हो जाती है।’ इन झगड़ों का मुख्य कारण केवल अहंकार है। झगड़े के दौरान पति और पत्नी दोनों अपने-अपने मन में सोच लेते हैं कि वो बेहतर तरीके से सबकुछ समझते और जानते हैं और इसीलिए वो हर काम को ‘अपने तरीके से’ करने का निर्णय ले लेते हैं। इस तरह का फैसला किसी को भी संतुष्टि नहीं देता और न ही इस तरह के फैसले से बहस की समाप्ति होती है। हमारा अहंकार हमेशा यह सोचता है कि मैं हमेशा सही हूं और इसीलिए आसपास के लोगों को वही करना चाहिए जो मैं कहता हूं। युगल अक्सर छोटी-छोटी बातों पर लड़ना शुरू करते हैं, जो बाद में एक बड़ी तकरार में तब्दील हो जाती है। अगर आप वाकई में उस झगड़े को बीच में रोककर पूछें, ‘आखिर आप किस मुद्दे पर लड़ रहे हैं?’ तो शायद दोनों को इसका जवाब पता नहीं होगा। जीवन जीने का यह कोई तरीका नहीं है। हम झगड़ा करने या शिकायतों में से एक मॉडल की तरह है। इसी वर्ष जनवरी में उत्तराखंड के मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह ने निकेतन में ठोस कचरा निस्तारण हेतु ईको फ्रेंडली किल वेस्ट मशीन का उद्घाटन किया। इस सिस्टम के साथ निकेतन का पूरा परिसर जीरो वेस्ट एरिया बन गया है। ऋषिकेश स्थित परमार्थ निकेतन की भौगोलिक स्थिति काफी रमणीय और आध्यात्मिक साधना की दृष्टि से अपेक्षित रूप से शांत है। हिमालय की गोद में गंगा के किनारे स्थित यह आश्रम आज शांति और आध्यात्मिक खोज में लगे दुनिया भर के पिपासु लोगों का सर्वप्रिय ठिकाना है। इसकी स्थापना 1942 में संत सुकदेवानंद जी महाराज (1901–1965) ने की थी। 1986 से स्वामी चिदानंद सरस्वती इसके अध्यक्ष एवं आध्यात्मिक मुखिया हैं। यह आश्रम आरंभ में अनाथ और गरीब बच्चों के लिए बनाया गया, पर धीरे-धीरे आश्रम की गतिविधियों का विस्तार होता गया। आज यहां जहां
इतना समय बर्बाद कर देते हैं कि हम भूल जाते हैं कि हम एक-दूसरे से प्यार करते हैं। भगवान ने हमें जो दिया है, उन बातों के लिए हम उनका शुक्रिया अदा करना भूल जाते हैं। एक बार ऑस्ट्रेलिया में मैं एक लेक्चर प्रोगाम के लिए कार से जा रहा था। कार एक ट्रैफिक सिग्नल पर आकर रुक गई। हमारे कार
हमारा अहंकार हमेशा यह सोचता है कि मैं हमेशा सही हूं और इसीलिए आसपास के लोगों को वही करना चाहिए जो मैं कहता हूं। युगल अक्सर छोटी-छोटी बातों पर लड़ना शुरू करते हैं, जो बाद में एक बड़ी तकरार में तब्दील हो जाती है की खिड़कियां बंद थी, फिर भी हमारे आगे की कार से कुछ शोरगुल की आवाज आ रही थी। सामने एक बड़ी सी कार थी, जिसके पीछे की सीट पर दो खूबसूरत बच्चे बैठे थे। उन्होंने बहुत
अच्छे और नए कपड़े पहन रखे थे। बच्चे उन कपड़ों में बहुत जंच रहे थे, लेकिन वो भय से कांप रहे थे और उनके आंखों से आंसुओं की धारा बह रही थी। सामने की सीट पर उनके माता-पिता बैठे थे, जो एक-दूसरे पर इतनी तेज आवाज में चिल्ला रहे थे कि उनकी आवाज हमें भी सुनाई दे रही थी। उनके पास एक खूबसूरत कार थी, खूबसूरत बच्चे थे और वो अच्छे स्वास्थ्य के मालिक भी थे, लेकिन फिर भी एक-दूसरे पर चिल्ला रहे थे। चिल्लाने की वजह क्या थी? शायद वह मुद्दा बहुत ही छोटा होगा। शायद वह इसीलिए गुस्सा होगा क्योंकि उसकी पत्नी ने तैयार होने में बहुत वक्त लगा दिया होगा और इस कारण वो 15 मिनट लेट हो गए होंगे या वह महिला इसीलिए गुस्सा हुई होगी क्योंकि उसने अपने पति से टाई पहनने को कहा होगा और उसने ऐसा नहीं किया होगा... या फिर शायद महिला के पति ने पिछले सिग्नल पर बाईं ओर गाड़ी मोड़ दी होगी, जबकि उस महिला को सीधा रास्ता ज्यादा सही लग रहा होगा। इन लाखों चीजों में से वह एक कारण कुछ भी हो सकता है, लेकिन मुझे इस बात का यकीन था कि यह उनके साथ पहली बार नहीं हो रहा होगा।
क्या हम एक गहरी सांस लेकर अपने अहंकार को खत्म कर आगे नहीं बढ़ सकते? क्या हर अवसर पर खुद पर इतना जोर डालना आवश्यक है? क्या एक क्षण के लिए भी हम किसी और के फैसले के साथ आगे नहीं बढ़ सकते? हमारे शरीर को सीमित मात्रा में जरूरी ऊर्जाएं प्रदान की गई हैं। हमारे जीवन के दिन सीमित हैं और उस दिन के हर घंटे के लिए खर्च की जाने वाली ऊर्जा भी सीमित है। हमें इतनी सारी ऊर्जाएं केवल अपनी इच्छाओं को पूरा करने में और झगड़ने में व्यर्थ नहीं करना चाहिए। मैंने एक बार बहुत ही खूबसूरत उक्ति पढ़ी थी, ‘अपनी पत्नी के साथ तर्क ‘जीतने’ जैसी कोई चीज नहीं होती। अगर आपने उस बहस में जीत हासिल की है तो वास्तव में आपने जीत नहीं, बल्कि अपनी पत्नी का दर्द, क्रोध और निंदा हासिल किया है।’ हम काम करते हैं और खुद पर उन इच्छाओं के लिए जोर डालते हैं जो हम पाना चाहते हैं। हालांकि हमें अपनी इच्छाओं के लिए जीने या काम करने के बजाय अच्छाई, दूसरों की और इस धरती पर बसे हरेक जीवों की भलाई के लिए जीना चाहिए।
एक तरफ बच्चों को पारंपरिक शिक्षा के साथ ही वेदों की शिक्षा भी दी जाती है, वहीं योग कक्षाएं, ध्यान शिविर से लेकर आरोग्याभ्यास जैसी कई प्रवृतियां एक साथ संचालित होती हैं।
गंगा आरती
परमार्थ निकेतन की गंगा आरती बेहद प्रसिद्ध है। ठंडी बहती हवा के बीच हजारों दीपकों की झिलमिलाती रोशनी को देखना अद्भुत अनुभव है। आश्रम के भीतर प्रवेश करते ही बाईं ओर बड़ी सुंदर मूर्तियां हैं, जो पौराणिक कथाओं के आधार पर बनाई गई हैं। दाईं ओर देवताओं की विशाल मूर्तियों का परावर्तित प्रतिबिंब है, उनके चारों ओर लगे दर्पणों में देखकर मन हर्षित हो उठता है। परमार्थ निकेतन आश्रम में दैनिक गतिविधियों सुबह सार्वभौमिक प्रार्थना, दैनिक योग और ध्यान की कक्षाओं, दैनिक सत्संग और व्याख्यान कार्यक्रम, कीर्तन, सूर्यास्त में एक विश्व प्रसिद्ध
हिमालय पर अपनी युवावस्था बिताने वाले स्वामी चिदानंद सरस्वती ने यहीं लंबे समय तक मौन और ध्यान का अभ्यास किया। नौ वर्ष के अखंडित साधना और मौन के बाद 17 वर्ष की आयु में वे वापस आए और अपने गुरु के कहने पर उन्हीं के समान अकादमिक शिक्षा प्राप्त की
गंगा आरती, के रूप में अच्छी तरह से प्राकृतिक चिकित्सा और आयुर्वेदिक उपचार और प्रशिक्षण शामिल हैं। परमार्थ आश्रम ऋषिकेश का सबसे बड़ा आश्रम है। इसमें एक हजार से भी अधिक कक्ष हैं। आश्रम में प्रतिदिन प्रभात की सामूहिक पूजा, योग एवं ध्यान, सत्संग, व्याख्यान, कीर्तन और
सूर्यास्त के समय गंगा-आरती होती है। ऋषिकेश के रामझूला इलाके में स्थित परमार्थ निकेतन की गंगा आरती दुनियाभर में मशहूर है। ऐसा शायद ही कोई महीना होता होगा, जब यहां गंगा आरती में शामिल होने के लिए कोई सेलेब्स नहीं पहुंचता। मशहूर एक्ट्रेस दीपिका पादुकोण से लेकर ब्रिटेन के प्रिंस चार्ल्स तक यहां आरती देखने आ चुके हैं। यहां तक
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धर्म का पालन
कि राष्ट्रपति रामनाथ कोविद भी यहां की मां गंगा की आरती के प्रशंसक हैं। अपने इस अनुभव को लेकर उन्होंने कहा, ‘वह मां गंगा की भव्य आरती में गए हैं और वहां रहे हैं, मां गंगा के तट पर जाकर मन दिव्यता से ओत-प्रोत हो जाता है। यह आरती शांति प्रदान करने वाली है।’
गुरु ज्ञान-4
आश्रम में कल्पवृक्ष
इसके अलावा निकेतन में प्राकृतिक चिकित्सा, आयुर्वेद चिकित्सा एवं आयुर्वेद प्रशिक्षण आदि भी दिए जाते हैं। आश्रम में भगवान शिव की 14 फुट ऊंची प्रतिमा स्थापित है। आश्रम के प्रांगण में 'कल्पवृक्ष' भी है, जिसे 'हिमालय वाहिनी' के विजयपाल बघेल ने रोपा था। यहां आने वाले लोगों को शांत व आध्यात्मिक माहौल में ठहराने की व्यवस्था करने के साथ परमार्थ निकेतन में हमेशा ऐसी कई गतिविधियां होती रहती हैं, जिसके कारण यहां ठहरने की आस्थावान श्रद्धालुओं में ललक काफी बढ़ जाती है। परमार्थ निकेतन आयुर्वेदिक और संगीत द्वारा भी उपचार करता है। परिसर में एक स्कूल भी स्थित है जिसका प्रबंधन और संचालन निकेतन के घोषित आदर्शों के मुताबिक किया जाता है।
शिवालय के साथ शौचालय
इस वर्ष फरवरी में देहरादून में आयोजित उत्तराखंड
राज्य विज्ञान प्राद्योगिकी सम्मेलन में स्वामी चिदानंद सरस्वती ने कहा कि देश में शिवालय के साथ शौचालय भी बनने चाहिए। देहरादून स्थित ग्राफिक एरा विश्वविद्यालय में आयोजित कार्यक्रम में स्वामी चिदानंद ने जोर देकर कहा कि प्रदूषण और जनसंख्या पर कड़ाई से रोक लगनी चाहिए।
ग्रीन क्रीमेटोरियम
उन्होंने गंगा के किनारे शवों को जलाने की परंपरा पर आपत्ति जताते हुए कहा कि इस पवित्र नदी शवदाह से होने वाले प्रदूषण से बचाना हमारे समय की सबसे बड़ी दरकार है। इसके लिए उन्होंने ग्रीन क्रीमेटोरियम को बढ़ावा देने पर जोर दिया। स्वामी जी ने कहा कि स्वच्छता की जिम्मेदारी सबकी है और सबको इसके लिए प्रतिबद्धता के साथ कार्य करने की जरूरत है। हमें ऐसी भक्ति नहीं चाहिए जिससे मन का मैल तो न ही धुले उलटे हमारे आसपास प्रदूषण फैले और पर्यावरण को नुकसान पहुंचे।
सभी परंपराओं का आदर
अमेरिकन यहूदी कमेटी की ओर से गत वर्ष परमार्थ निकेतन के अध्यक्ष स्वामी चिदानंद सरस्वती महाराज व जीवा की अंतरराष्ट्रीय महासचिव
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आवरण कथा
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स्वामी चिदानंद सरस्वती
क बार भयानक सूखा पड़ा। सारी फसल नष्ट हो गई और जमीन बंजर हो गई। किसानों ने हार मान ली और बीजों को न बोने का फैसला लिया। फसल बुवाई का यह चौथा साल था जब बारिश नहीं हुई थी। किसान उदास होकर बैठ गए। वो ताश खेलकर या कोई और काम कर अपना समय बिताने लगे। हालांकि एक किसान था, जिसने धैर्य के साथ बीजों को बोया और अपने जमीन की देखभाल भी करता रहा। दूसरे किसान रोजाना यह कहकर उसका मजाक उड़ाते थे कि वह निर्रथक ही अपनी फलरहित और बंजर जमीन की देखभाल कर रहा है। जब वो उनसे उसकी इस बेवकूफी भरी दृढ़ता का कारण पूछते तो वह कहता, ‘मैं एक किसान हूं और अपनी जमीन की देखभाल करना
साध्वी भगवती सरस्वती को सम्मानित किया गया। कमेटी के न्यूयार्क स्थित अंतरराष्ट्रीय मुख्यालय में अंतर-धार्मिक एवं अंतर-समूह संबंध पर आयोजित कार्यक्रम में अमेरिकन यहूदी कमेटी (एजेसी) के निदेशक रबाई नोम ई. मारंस ने स्वामी चिदानंद सरस्वती व साध्वी भगवती के हिंदू एवं यहूदी समुदाय के बीच सद्भावना एवं भाईचारे की भावना विकसित करने के प्रयास की प्रशंसा की। एजीसी के सदस्यों ने अपनी भारत यात्रा के दौरान स्वामी चिदानंद सरस्वती की अगुआई में इंटरफेथ कार्यक्रमों और वाराणसी में संपन्न देव दीपावली पर्व की यादों को ताजा किया। इस मौके पर स्वामी चिदानंद सरस्वती ने कहा कि अंतर-धार्मिक सद्भावना भारतीय आध्यात्मिक परंपरा की बुनियाद है। परंपरा हमें सिखाती है कि हम न केवल अपनों को, बल्कि सभी को सम्मान दें और सभी परंपराओं का आदर करें। उन्होंने कहा कि लघु समुदाय होने के बावजूद यहूदी समुदाय का इतिहास बाधाओं पर विजय प्राप्त करने का महान इतिहास है। यह सभी के लिए प्रेरणा की बात है। आज साथ-साथ कार्य करने, सेवा करने, वाटर सेनिटेशन एवं हाईजीन के लिए मिलकर प्रयास करने की जरूरत है।
सेवा और प्रेम
इसी तरह गत वर्ष ही दिसंबर में ऑल इंडिया काउंसिल ऑफ ह्यूमन राइट्स लिबर्टीज एंड सोशल जस्टिस (एआइएचएलएस) ने स्वामी चिदानंद सरस्वती सरस्वती को ‘ग्लोबल पीस अवार्ड’ से
हम अपने दायित्व और कर्तव्य से अगर भागते हैं तो फिर इसका मतलब है कि हम अपने धर्म की राह से भटक रहे हैं। फल की आशा छोड़ हमें बस अपने धर्म का पालन करना चाहिए और उसमें बीज बोना मेरा धर्म है। बारिश हो या न हो, इससे मेरा धर्म नहीं बदलता। मेरा धर्म मेरा धर्म है और मैं अवश्य ही इसका पालन करुंगा, भले ही इसका फल मुझे मिले या न मिले।’ दूसरे किसान उसके इस बेकार के प्रयास पर हंसने लगे। फिर वो अपनी बंजर जमीन
‘मैं एक किसान हूं और अपनी जमीन की देखभाल करना और उसमें बीज बोना मेरा धर्म है। बारिश हो या न हो, इससे मेरा धर्म नहीं बदलता। यह मेरा धर्म है और मैं अवश्य ही इसका पालन करूंगा, भले ही इसका फल मुझे मिले या न मिले’
और बारिश रहित आसमान का विलाप कर अपने-अपने घर चले गए। हालांकि जब वह किसान विश्वास के साथ अपना जवाब दे रहा था, तभी एक बादल वहां से गुजर रहा था। बादल ने किसान के सुंदर शब्दों को सुना और महसूस किया, ‘वह सही है। जमीन की देखभाल करना और बीजों को रोपना उसका धर्म है और अपने में संग्रहित पानी को धरती पर बरसाना मेरा धर्म है।’ उसी पल, किसान के संदेश से प्रेरित होकर बादल ने खुद में जमा सारे पानी को बारिश के रूप में किसान की भूमि के उपर छोड़ दिया। इस बादल ने धर्म का यह संदेश दूसरे बादलों तक पहुंचाना भी जारी रखा और जिस कारण वो भी बारिश कर अपना-अपना धर्म निभाने लगे। जल्द ही सारे बादल जमीन पर बारिश करने लगे और इससे किसान की खेती भरपूर रूप से हुई।
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आवरण कथा
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संस्थाएं और अभिक्रम
स्वामी चिदानंद सरस्वती का जीवन और कार्य काफी व्यापक है। उन्होंने अध्यात्म के साथ मानव कल्याण के लिए कई अभिनव व संस्थानिक पहल की है। ऐसे ही कुछ अभिक्रम और संस्थाएं जिसे स्वामी जी ने शुरू की हैं, वे हैं
परमार्थ निकेतन
स्वामी चिदानंद सरस्वती और परमार्थ निकेतन की ख्याति एक-दूसरे से जुड़ी हुई है। स्वामी जी का यह आश्रम ऋषिकेश में है। यह ऋषिकेश का सबसे बड़ा आश्रम है। इसमें 1000 से भी अधिक कक्ष हैं। आश्रम में प्रतिदिन पूजा योग-ध्यान, सत्संग, व्याख्यान और कीर्तन के कार्यक्रम होते हैं। निकेतन द्वारा सूर्यास्त के समय गंगा-आरती का देशविदेश में आकर्षण है और इसे देखने लोग खासतौर पर आते हैं। इसके अलावा यहां प्राकृतिक चिकित्सा, आयुर्वेद चिकित्सा से जुड़े कई अभिक्रम भी चलाए जाते हैं।
इंडियन हैरिटेज रिसर्च फाउंडेशन (आईएचआरएफ)
आईएचआरएफ एक गैर लाभकारी प्रतिष्ठान है, जिसकी स्थापना स्वामी चिदानंद सरस्वती ने मानव कल्याणार्थ विविध कार्यों के लिए की है। हिंदू विश्वकोश का प्रकाशन इस प्रतिष्ठान का एक बड़ा कार्य है। इसके अलावा प्रतिष्ठान तिब्बत औऱ मानसरोवर में आश्रम और मेडिकल क्लिनिक चलाता है।
इंटरफेथ ह्यूमैनिटेरियन नेटवर्क / प्रोजक्ट होप
यह आपदा प्रबंधन की दिशा में स्वामी चिदानंद सरस्वती की एक बड़ी देन है। इसके जरिए खासतौर पर 2004 में दक्षिण भारत में आए सुनामी, 2013 में उत्तराखंड में आई प्रलयंकारी बाढ़ के अलावा 2015 में नेपाल मंय आए भूकंप के दौरान मानवीय सेवा के अल्पकालिक औऱ दीर्घकालिक कई योजनाएं सपलतापूर्वक चलाई गईं।
अंतरराष्ट्रीय योग उत्सव
यह स्वामी चिदानंद सरस्वती का एक सालाना कार्यक्रम है। इसके तहत ऋषिकेश में स्थिति परमार्थ निकेतन में 1-7 मार्च तक अंतरराष्ट्रीय योग उत्सव मनाया जाता है, जिसमें देश-विदेश के कम से कम 1200 प्रतिभागी शरीक होते हैं। हिमालय की गोद में और गंगा के तट पर योग के इस वैश्विक आयोजन की लोकप्रियता पूरी दुनिया में है। इसमें शरीक होने वालों के लिए यह जीवन का सबसे प्रशांतकारी और प्रेरक अवसर बन जाता है। सम्मानित किया है। उन्हें यह सम्मान विश्व में शांति का संदेश प्रसारित करने के लिए मिला है। इस मौके पर स्वामी चिंदानंद की शिष्या साध्वी भगवती सरस्वती को ‘शांति राजदूत सम्मान’ से सम्मानित किया गया है। एआइएचएलएस ने सम्मान देने हेतु दिल्ली में एक विशिष्ट समारोह का आयोजन किया। इस अवसर पर स्वामी जी ने कहा कि मानव जीवन का मूल उद्देश्य जरूरतमंदों की सेवा करना और समाज में प्रेम और सद्भावना के साथ ही शांति की स्थापना करना है। इस दौरान उन्होंने समारोह में मौजूद अतिथियों से शांति स्थापना करने का संकल्प
भी कराया। कार्यक्रम में अहिंसा विश्व भारती के संस्थापक डॉ. लोकेश मुनी और अखिल भारतीय इमाम संगठन के प्रमुख डॉ. उमर अहमद इलियासी भी उपस्थित थे।
टेम्स और गंगा
ब्रिटिश पार्लियामेंट के हाउस आफ लार्डस में एनआरआई इंस्टीट्यूट ने स्वामी चिदानंद सरस्वती महाराज को विशेष
गंगा एक्शन परिवार (गैप)
यह गंगा नदी की स्वच्छता और इसके अविरल प्रवाह को सुनिश्चित करने के लिए बनाया गया लोगों का एक ऐसा वैश्विक समूह है, जो सॉलिड-वेस्ट से लेकर वेस्ट वाटर मैनेजमेंट के जरिए गंगा की अविरलता और स्वच्छता के लिए बड़ा प्रयास कर रहा है।
डिवाइन शक्ति (डीएसएफ)
फाउंडेशन
डीएसएफ की स्थापना महिलाओं और बच्चों की मातृत्व भाव से सेवा और विकास के लिए की गई है। यह संस्था वैसे बच्चों की भी देखभाल, शिक्षण और स्वरोजगार की पूरी जिम्मेदारी लेती है, जो लावारिस हैं। संस्था इस कार्य को करने के लिए जहां कई फ्री-स्कूलों का संचालन कर रही है, वहीं प्रायोजन के जिए कई इस तरह के स्कूल चलाए भी जा रहे हैं। इसके अलावा संस्था कई अनाथालाय और गुरुकुल भी चला रही है। साथ ही वोकेशनल ट्रेनिंग, ग्राम विकास कार्यक्रम, निशुल्क स्वास्थ्य शिविर और पशुसेवा जैसी कई गतिविधियां भी चलाई जा रही हैं।
सम्मान प्राइड ऑफ इंडिया अवार्ड- 2017 से सम्मानित किया गया। टेम्स नदी के तट पर ब्रिटिश पार्लियामेंट में स्वामी जी को यह 11 खंडों के महाग्रंथ हिंदू धर्म विश्वकोश के निर्माण के साथ मानवता, पर्यावरण, शिक्षा और स्वास्थ्य के क्षेत्र में अमूल्य योगदान के लिए दिया गया। सम्मान समारोह में खासतौर पर उनके द्वारा शौचालय निर्माण और शुद्ध
जलापूर्ति के लिए चलाए गए जागरूकता अभियान का जिक्र किया गया। इस अवसर पर स्वामी चिदानंद सरस्वती ने कहा कि अब प्रत्येक आदमी को जल, पर्यावरण तथा प्रकृति के महत्व को समझना होगा। टेम्स भी कभी प्रदूषित नदी के रूप में जानी जाती थी, परंतु ब्रिटिश गवर्नमेंट और वहां की जनता के प्रयत्नों से आज टेम्स का कायाकल्प हो गया है। इसी प्रकार हिंदुस्तान में भी गंगा के लिए सारे हिंदुस्तानियों को मिलकर कोशिश करने की आवश्यकता है।
23 - 29 अप्रैल 2018
आयोजन
सेवा ने किया सेवा करने वालों का सम्मान
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दिल्ली में सेवा द्वारा आयोजित आनंदोत्सव में सुलभ प्रणेता डॉ. पाठक को ‘बिहार गौरव सम्मान’ से विभूषित किया गया
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अयोध्या प्रसाद सिंह
तारों से सजी एक शाम और उस शाम में ध्रुव तारे की तरह चमकते सुलभ प्रणेता डॉ. विन्देश्वर पाठक। मौका था, नई दिल्ली के एनडीएमसी कन्वेंशन सेंटर में सोशल इंपावरमेंट विलेजर्स एसोिसएशन (सेवा) के तत्वाधान में आयोजित आनंदोत्सव एवं बिहार गौरव सम्मान का। सेवा द्वारा आयोजित इस समारोह में मुख्य अतिथि केंद्रीय वित्त राज्य मंत्री शिव प्रताप शुक्ल ने समाज सेवा के क्षेत्र में उत्कृष्ट कार्यों के लिए सुलभ इंटरनेशनल के संस्थापक डॉ. विन्देश्वर पाठक को ‘बिहार गौरव सम्मान’ से सम्मानित किया। इस मौके पर डॉ. पाठक के अलावा कई अन्य हस्तियों को भी सम्मानित किया गया, जिसमें पूर्व आईपीएस आमोद कंठ, बिहार के जहानाबाद से सांसद डॉ अरुण कुमार, मारवाह स्टूडियो के संस्थापक संदीप मारवाह, निठारी कांड का खुलासा करने वालीं उषा ठाकुर और अंतरराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त कथक नृत्यांगना बहनें नलिनी व कमलिनी प्रमुख हैं। इस मौके पर सेवा के संस्थापक सचिव राकेश कुमार ने सभी सम्मानित सदस्यों का स्वागत किया। साथ ही इस अवसर पर बिहार की क्षेत्रीय भाषाओं में गीत संगीत का आयोजन भी किया गया।
भारत ही नहीं पूरी दुनिया में नाम
इस अवसर पर मुख्य अतिथि केंद्रीय वित्त राज्य मंत्री शिव प्रताप शुक्ल ने सुलभ प्रणेता डॉ. पाठक की प्रशंसा करते हुए कहा कि पाठक जी का नाम सिर्फ भारत में ही नहीं पूरी दुनिया में विख्यात है। उनके द्वारा सुलभ के माध्यम से किए जा रहे कामों को पूरी दुनिया पहचानती है। उन्होंने कहा कि जब पाठक जी ने अपने काम की शुरुआत की होगी तब कितनी आलोचनाओं का सामना किया होगा, हम सोच भी नहीं सकते। लेकिन आज पाठक जी अपने कार्यों से सेवा के ब्रांड एंबेसडर बन चुके हैं।
वित्त राज्य मंत्री ने सम्मान पाने वाले सभी लोगों की सराहना करते हुए कहा कि आज सेवा द्वारा सेवा करने वालों का सम्मान हुआ है। उन्होंने कहा कि समाज में स्थान बेहतर काम करने से ही बनता है और आज सम्मानित लोगों ने महान काम किया है। वित्त राज्य मंत्री ने कहा कि महान हस्तियों को सम्मानित करके से मैं भी सम्मानित हो गया हूं। लोगों से आग्रह करते हुए उन्होंने कहा कि हम सभी समाज के निर्माण में भूमिका निभाएंगे तो बेहतर राष्ट्र बनेगा। समाज सेवा करने वालों के सम्मान में बोलते हुए उन्होंने कहा कि लेखक, कवि और सेवा का कार्य करने वाले कभी नहीं मरते हैं, उनकी भूमिका हमेशा बनी रहती है।
आंबेडकर के सिद्धांतों को पूरा किया
इस अवसर पर बिहार गौरव सम्मान से सम्मानित सुलभ प्रणेता डॉ. पाठक ने मैला ढोने जैसे घृणित कार्य को खत्म करने के लिए किए गए संघर्षों के बारे में बताया। उन्होंने ‘कास्ट बाय च्वाइस’ यानी अपनी मर्जी से जाति के चुनाव जैसे सुलभ की पहलों के बारे में बताया। उन्होंने कहा कि जब कोई अपनी मर्जी से धर्म का चुनाव कर सकता है तो जाति का चुनाव क्यों नहीं कर सकता। उन्होंने कई उदहारण देते हुए कहा कि हमने दलितों को ब्राह्मण बनाया और इससे सामाजिक सद्भावना का संचार हुआ है। उन्होंने देश के पहले के सामाजिक ताने-बाने पर प्रहार करते हुए कहा कि हम जाति में विश्वास नहीं करते हैं। हमारे लिए बस मानवता ही सब कुछ है। उन्होंने गांधी का उदहारण देते हुए कहा कि बापू ने कहा था कि हम या तो छुआछूत चुनेंगे या हिन्दू धर्म। इसीलिए आज हम सबको
जरूरत है समाज में सबको साथ लेकर चलने की। डॉ. पाठक ने कहा कि सुलभ हमेशा से समाज के सबसे निचले पायदान पर बैठे व्यक्ति के लिए काम करता आया है।
भावनाएं और सोच, सबसे खूबसूरत
इस अवसर पर मीडिया दिग्गज और एशियन अकादमी ऑफ फिल्म एंड टेलीविजन के अध्यक्ष संदीप मारवाह ने कहा कि इस दुनिया में दो सबसे खूबसूरत चीजें है, आपकी भावनाएं और आपकी सोच। ये दोनों चीजें हर शख्स के अंदर हैं और इन्हीं से इंसान महान बनता है। उन्होंने कहा कि किसी भी मुकाम पर पहुंचना आसन नहीं होता, बहुत मेहनत और संघर्ष करना पड़ता है। इसीलिए सभी सम्मानित लोगों को बधाई।
संगीत की ताल को डॉ. पाठक का सलाम
इस अवसर पर अंतरराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त कथक नृत्यांगना बहनें नलिनी व कमलिनी दत्त के इंस्टीट्यूट की छात्राओं ने पुराने क्लासिकल गीतों पर मनमोहक नृत्य पेश किया। उनके नृत्य ने दर्शकों को आनंद-
जब पाठक जी ने अपने काम की शुरुआत की होगी तब कितनी आलोचनाओं का सामना किया होगा, हम सोच भी नहीं सकते। लेकिन आज पाठक जी अपने कार्यों से सेवा के ब्रांड एंबेसडर बन चुके हैं - शिव प्रताप शुक्ल
विभोर कर दिया। सधे हुए कदमों के साथ उनकी भाव-भंगिमाएं ऐसी थीं कि दर्शक नजर ही नहीं हटा पा रहे थे। डॉ. पाठक ने नृत्य की शानदार प्रस्तुति पर नलिनी व कमलिनी की सराहना करते हुए नृत्यांगनाओं को दो लाख रुपए का पुरस्कार दिया।
हमारी संस्कृति को जोड़कर रखें
“शहर की आड़ में सपना चला गया, गैरों की चाह में अपना चला गया, हम पूछते ही रह गए रास्तों से उस शख्स का पता, जो अभी तक यहां था कहां चला गया” कथक नृत्यांगना नलिनी ने अपनी इन पंक्तियों को सुनाते हुए संस्कृति को जोड़कर रखने की बात कही। उन्होंने बिहार प्रांत के लोगों की सराहना करते हुए कहा कि हम जहां जाते हैं लोग ढेर सारा प्यार देते हैं, क्योंकि हमने अपनी संस्कृति को बचाकर रखा है और इससे लोगों को जोड़ा है। उन्होंने डॉ. पाठक को पुरस्कार के लिए धन्यवाद दिया। उन्होंने कहा कि डॉ. पाठक जैसे उदार और सहज व्यक्ति बिरले ही मिलते हैं, ये जिस क्षेत्र को लेकर सोचते हैं और काम करते हैं कोई सोच भी नहीं सकता। समारोह की शुरुआत गणेश वंदना से हुई। इसके बाद मुख्य अतिथि शिव प्रताप शुक्ल के साथ डॉ. पाठक ने दीप जलाकर समारोह का आगाज किया। साथ ही इस अवसर पर बिहार की क्षेत्रीय भाषाओं में गीत-संगीत की प्रस्तुति ने लोगों का खूब मनोरंजन किया।
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विशेष
23 - 29 अप्रैल 2018
विश्व नृत्य दिवस (29 अप्रैल) पर विशेष
नृत्य प्रेम खींच लाया भारत
इलियाना आज किसी परिचय की मोहताज नहीं हैं। वह भारत के प्राचीन ओडिसी शास्त्रीय नृत्य और आदिवासी नृत्य छऊ की बड़ी जानकार और गुरु हैं। उन्होंने खुद को अब इन दोनों नृत्य-कला के प्रचार-प्रसार में समर्पित कर दिया है
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एसएसबी ब्यूरो
रतीय प्रतिभाएं आज दुनियाभर में अपनी प्रतिभा और कौशल का लोहा मनवा रही हैं। पर इसके साथ एक दुखद पक्ष यह भी है कि लोगों में यह धारणा बनती जा रही है कि प्रतिभाओं के लिए विदेशों में ज्यादा बेहतर अवसर हैं। यही कारण है कि भारतीय प्रतिभाओं का पलायन एक नई समस्या बनकर उभरी है। समाजशास्त्रीय अध्ययन में इस समस्या को ‘ब्रेन ड्रेन’ सिंड्रोम कहा गया है। पर यह स्थिति मौजूदा संदर्भ में तथ्यात्मक तौर पर भले थोड़ी चिंतानजनक लगे पर ऐतिहासिक तौर पर ऐसा नहीं रहा है। ऐसे लोगों का लंबा इतिहास है जिनका जन्म तो विदेश में हुआ पर उन्हें भारतीय संस्कृति, यहां का अध्यात्म और यहां के लोग इतने रास आए कि वे अपने देश को छोड़कर भारत के होकर रह गए। ऐसे लोगों में सबसे दिलचस्प चरित्र है मीरा बहन का। मीरा बहन
कई कारणों से याद की जाती है, पर जो वजह सबसे दिलचस्प है, वह यह कि वह भारतीय नहीं थीं। उन्हें गांधी की प्रिय शिष्या के तौर पर देखा गया। उनका मूल नाम मिस स्लेड था और वह एक ब्रिटश सेना अधिकारी की बेटी थीं। भारत और यहां के लोग उन्हें इतना पसंद आया कि वह यहीं की होकर रह गईं। बाद में उनके इस इरादे को गांधी के सान्निध्य ने और पक्का कर दिया। गांधी ने ही उन्हें भारतीय नाम दिया- मीरा बहन। दरअसल, यह सिलसिला आज भी खत्म नहीं हुआ है। भारत की संस्कृति और यहां के लोग कई विदेशी लोगों को इतना रास आता है कि वे न सिर्फ भारत में रहने लग जाते हैं, बल्कि पूरी तरह भारतीय
रंग में रंग जाते हैं। ऐसी ही एक महिला है इलियाना चितारीस्ती। इलियाना मूल रूप से इतालवी हैं पर अब भारत ही उनके लिए सब कुछ है। वह आज ओडिसी और आदिवासी नृत्य छऊ की देश की बड़ी नृत्यांगनाओं में से एक है।
इटली की हैं इलियाना
इलियाना का जन्म इटली के बेर्गमो शहर में हुआ। उनके पिता सेर्विनो चितारीस्ती अपने जमाने के मशहूर राजनेता थे। वे क्रिस्चियन डेमोक्रेसी पार्टी से सांसद भी थे। इलियाना का जब जन्म हुआ था तो इटली में बदलाव का दौर शुरू हो चुका था। नई पीढ़ी रूढ़िवादी परंपराओं, रीति-रिवाजों और
इलियाना का जब जन्म हुआ था तो इटली में बदलाव का दौर शुरू हो चुका था। नई पीढ़ी रूढ़िवादी परंपराओं, रीति-रिवाजों और दकियानूसी खयालों से समाज को मुक्ति दिलाना चाहती थी
खास बातें गुरु केलुचरण महापात्र से सीखा ओडिसी नृत्य पहले रंगमंच के क्षेत्र से जुड़ी थीं इलियाना कई बार के भारत दौरे के बाद यहीं आकर बस गईं दकियानूसी खयालों से समाज को मुक्ति दिलाना चाहती था। रूस में आई क्रांति का भी गहरा असर इटली के युवाओं के मन मस्तिष्क पर पड़ा था।
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बड़ी नर्तकी के साथ बेहतरीन लेखिका भी
इलियाना ने कला-संस्कृति, दर्शन जैसे विषयों पर कई सारे लेख लिखे हैं। उन्होंने कई किताबें भी लिखी हैं। वह आत्मकथा भी लिख चुकी हैं
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लियाना एक उम्दा कलाकार होने के साथ के लिए शानदार नृत्य निर्देशन कर चुकी हैं। एक सक्रीय और बेहतरीन लेखिका भी हैं। अपने जीवन की सबसे बड़ी उपलब्धि के बारे उन्होंने कला-संस्कृति, दर्शन जैसे विषयों पर में पूछे जाने पर वे कहती हैं कि सबसे बड़ी कई सारे लेख लिखे हैं। उपलब्धि अभी प्राप्त उन्होंने कई किताबें भी अपने जीवन की सबसे बड़ी करना शेष है, लेकिन लिखी हैं। वह आत्मकथा ‘पद्मश्री’ जैसा प्रतिष्ठित उपलब्धि के बारे में पूछे जाने भी लिख चुकी हैं। भारत पुरस्कार पाना निश्चित सरकार उन्हें ‘पद्मश्री’ पर वे कहती हैं कि सबसे बड़ी रूप से एक महत्वपूर्ण सम्मान से भी नवाज उपलब्धि अभी शेष है, लेकिन उपलब्धि है। भारत के चुकी है। इलियाना ने ‘पद्मश्री’ जैसा प्रतिष्ठित बारे में बात करते हुए फिल्मों के लिए भी बहुत ही भावुक पुरस्कार पाना निश्चित रूप से इलियाना नृत्य-निर्देशन किया है। हो जाती हैं। वह कहती एक महत्वपूर्ण उपलब्धि है हैं ‘भारत महान देश है। अपर्णा सेन द्वारा निर्देशित फिल्म ‘युगांतर’ में उनके यह मेरा सौभाग्य है कि शानदार नृत्य-निर्देशन यहां के लोगों ने मुझे पूरी के लिए उन्हें राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार मिला तरह से स्वीकार कर लिया है। मुझे भारत-भर था। वह एमएफ हुसैन की बहुचर्चित फिल्म में बहुत प्यार मिला। ओडिशा के लोगों ने भी ‘मिनाक्षी : ए टेल ऑफ थ्री सिटीज’ और मुझे बहुत प्यार दिया। मैं तो भारत की संस्कृति गौतम घोष की ‘अबार अरण्ये’ जैसी फिल्मों में पूरी तरह से रम चुकी हूं।’ बदलाव के लिए इटली में जो जन-आंदोलन शुरू हुआ था उसमें सबसे सक्रिय भूमिका विद्यार्थियों की थी। स्त्रीवादी आंदोलन ने भी गति पकड़ ली थी। परिवर्तन की आहटों ने इलियाना को भी अंदर से झकझोर दिया। वह थोड़ी बागी स्वभाव की हो गई। उसने अपनी मर्जी से अपना जीवन जीने का तय किया। जीवन में मौलिकता की यह ललक ही उन्हें भारतीय कला-संस्कृति और अध्यात्म से जोड़ गई। वह 1974 में मुंबई आईं। तब वह शोधार्थी थीं और उसके शोध का विषय दर्शन-शास्त्र था। रंगमंच से भी उन्हें बेहद प्यार हो गया था। जब वह मुंबई के चर्चगेट पर उतरी थीं, तब उन्हें इस बात का जरा भी अनुमान नहीं था कि वे भारतीय कला-संस्कृति
में कुछ इस तरह से रम-रमा जाएंगी कि वह भारत में ही हमेशा के लिए बस जाएंगी।
भारतीय नृत्य में बड़ा नाम
इलियाना आज किसी परिचय की मोहताज नहीं हैं। भारतीय नृत्य-कला की दुनिया में वह लब्धप्रतिष्ठित व्यक्तित्व हैं। वह भारत के प्राचीन ओडिसी शास्त्रीय नृत्य और आदिवासी नृत्य छऊ की बड़ी जानकार और गुरु हैं। उन्होंने खुद को अब इन दोनों नृत्य-कला के प्रचार-प्रसार में समर्पित कर दिया है। भारत को अपना देश और यहां की संस्कृति को अपनी संस्कृति बताने वाली इलियाना बताती हैं कि उन्हें बचपन से की नृत्य का शौक
इलियाना वह दिन कभी नहीं भूल सकती जब पहली बार वे गुरु केलुचरण महापात्र से मिली थीं। उन्हें याद है कि पहली बार जब वे गुरुजी के घर उनसे नृत्य सीखने की इच्छा लेकर पहुंचीं, तब वह पश्चिमी परिधान में थीं
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विशेष
छऊ नृत्य की माहिर नर्तकी
उन्होंने गुरु हरि नायक से मयूरभंजी छऊ नृत्य सीखा और भुवेनश्वर के संगीत महाविद्यालय से आचार्य की उपाधि भी हासिल की
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डिशा में अपने प्रवास के दौरान इलियाना मयूरभंजी छऊ के प्रति भी आकर्षित हुईं। छऊ भारत का एक आदिवासी नृत्य है जो पश्चिम बंगाल, ओडिशा और झारखंड राज्यों मे काफी लोकप्रिय है। इस आदिवासी नृत्यकला के मुख्य रूप से तीन प्रकार हैं– सेरैकेल्लै (झारखंड) छऊ, मयूरभंजी (अडिशा) छऊ और पुरुलिया (पश्चिम बंगाल) छऊ। ओडिसी शास्त्रीय नृत्य में पारंगत होने के बाद इलियाना ने मयूरभंजी छऊ में दक्षता हासिल करने की कोशिश शुरू की। उन्होंने गुरु हरि नायक से मयूरभंजी छऊ नृत्य सीखा और भुवेनश्वर के संगीत महाविद्यालय से आचार्य की उपाधि भी हासिल की। बड़ी बात यह भी है कि इलियाना ने न सिर्फ ओडिसी शास्त्रीय नृत्य और छऊ नृत्य सीखा, बल्कि ओडिसी रहन-सहन, संस्कृति और भाषा को भी अपना बना लिया। वह बताती हैं, ‘मेरे लिए ओड़िया भाषा सीखना बहुत जरूरी हो गया था। गुरु केलुचरण महापात्र से नृत्य सीखने के दौरान मैं कटक में जिस परिवार के यहां गेस्ट बनकर ठहरी थी उनके यहां एक के सिवाय किसी को भी अंग्रेजी नहीं आती थी। जिस लड़के को अंग्रेजी आती थी वो भी किसी तरह से मैनेज करता। चूंकि घर के सभी लोग ओड़िया ही जानते थे मुझे भी भाषा सीखनी पड़ी।’ इलियाना ने नृत्य-संगीत के जरिए पूरब
इलियाना ने न सिर्फ ओडिसी शास्त्रीय और छऊ नृत्य सीखा, बल्कि ओडिसी रहन-सहन, संस्कृति और भाषा को भी अपना बना लिया
और पश्चिम को जोड़ने की भी सफल कोशिश की हैं। उन्होंने ओडिसी और छऊ नृत्यों में पश्चिमी नृत्य-कलाओं के कुछ महत्वपूर्ण अंगों को जोड़कर उसे अंतरराष्ट्रीय मंच पर स्थापित किया। मयूरभंजी छऊ नृत्य-शैली में ग्रीक माइथोलॉजी यानी यूनानी पौराणिक कथाओं को ‘इको नद नारसिसिस’ नामक नृत्य-नाटिका में पेश करने के लिए इलियाना को 1985 में मुंबई के ईस्ट वेस्ट डांस एनकाउंटर में बहुत सराहा गया। ऐसे प्रयोग उन्होंने कई सारे किए हैं। इलियाना ने नृत्य-संगीत-रंगमंच-चित्रकला जैसी कलाओं से जुड़े विचारों के आदान-प्रदान के लिए 1996 में ‘आर्ट विजन अकादमी’ नाम से एक संस्था की भी शुरुआत की। इसी संस्था के जरिया इलियाना लोगों को ओडिसी और छाऊ नृत्य-कला का शिक्षण और प्रशिक्षण भी दे रही हैं।
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था। वह खुलकर नाचना चाहती थीं। वह बैले ग्रुप का हिस्सा बनना चाहती थीं। लेकिन परिवार ने उन्हें इसकी इजाजत नहीं दी। फिर क्या था, इलियाना ने बागी तेवर अपना लिया और वही करना शुरू किया जो उन्हें अच्छा लगने लगा। भारत को लेकर अपने अनुभव को लेकर वह कहती हैं, ‘भारत आने के कई सारे मकसद थे। लेकिन, सबसे बड़ा मकसद था भारत को देखना और समझना।’
इतालवियों का भारत प्रेम
इलियाना ने यह भी बताया कि 70 और 80 के दशक में इटली के कई सारे कवियों और लेखकों ने लोगों को दर्शन और आध्यात्म के लिए पूरब की ओर रुख करने को प्रेरित किया था। इलियाना भी उन्हीं लोगों में से एक थीं। अपनी पहली भारत-यात्रा के दौरान इलियाना ने खजुराहो, बनारस जैसे धार्मिक, सांस्कृतिक, आध्यात्मिक और ऐतिहासिक शहरों की यात्रा की। उन्होंने अपना काफी समय नेपाल में भी बिताया। अपनी पहली यात्रा में इलियाना भारत की कला-संस्कृति और लोगों से बहुत प्रभावित हुई थीं। भारत से लौटते वक्त ही उन्होंने फैसला कर लिया था वे दोबारा भारत वापस आएंगी। लेकिन उन्हें भारत वापस आने में तीन साल से ज्यादा का समय लग गया।
पहले रंगमंच, फिर नृत्य
वह 1978 में दूसरी बार भारत आईं। उन दिनों वह रंगमंच के रंग में रंगी हुईं थीं। बतौर रंगमंच कलाकार उन्होंने कई सारे प्रयोग भी करने शुरू कर दिए। वह बताती हैं, ‘जब मैं दूसरी बार भारत आई तब मैं अपने शरीर के साथ प्रयोग कर रही थी। भाव-भंगिमाएं समझने की कोशिश में थी।’ इटली में इलियाना ने एक बार केरल का शास्त्रीय नृत्य कथकली देखा था। कथकली नृत्य देखने के बाद उन्हें अहसास हुआ कि भारत की ये प्राचीन नाट्य-कला अपने आप में परिपूर्ण है। उन्होंने यह भी महसूस किया कि भारतीय नृत्य-कला में पूरी कहानी कहने की क्षमता है। जब उसने कथकली के बारे में जाना तो वह इससे जुड़ी भाव-भंगिमाओं का व्याकरण समझना और सीखना चाहने लगीं। कथकली कलाकारों की भाव-भंगिमाओं से वह बहुत प्रभावित हुई थीं। यह वह समय भी था जब वह दर्शन-शास्त्र की पढ़ाई
दुनिया के कई देशों में ओडिसी और छऊ नृत्य-कला का प्रदर्शन कर लाखोंकरोड़ों लोगों को इलियाना अपना प्रशंसक बना चुकी हैं। उन्होंने देश और दुनिया के कई सारे सांस्कृतिक और कला उत्सवों-समारोहों में हिस्सा लेकर उनकी शोभा बढ़ाई है कर रही थीं। दरअसल, भारतीय दर्शन को बेहतर ढंग से समझने और कथकली से अपने रंगमंच के लिए कुछ नया सीखने के इरादे के साथ इलियाना दूसरी बार भारत आईं।
केरल, कथकली और इलियाना
इस तरह इलियाना ने केरल में कथकली नृत्य सीखना शुरू किया। केरल में रहकर कथकली सीखने का उनका अनुभव बेहद रोमांचकारी रहा। इलियाना ने अपने कुछ साथियों के साथ केरल में तीन महीने तक कथकली नृत्य सीखने के लिए एक वर्कशॉप अटेंड किया था। कथकली सीखने के लिए इलियाना को तड़के उठना पड़ता और देर रात तक अभ्यास में लगे रहना पड़ता। इलियाना कहती हैं, ‘शुरू से ही मेरी एक आदत रही है। मैं जो कोई काम अपने हाथ में लेती हूं, उसे पूरा मन लगाकर करती हूं। बेमन से मैं कोई काम नहीं करती। मैंने कथकली भी ऐसे ही सीखी। मैंने खुद को कथकली के लिए समर्पित कर दिया था।’
बढ़ता गया भारत प्रेम
इलियाना यहीं नहीं रुकीं, वह जैसे-जैसे इलियाना भारतीय नृत्य-कलाओं और दर्शन के बारे में सिखती-समझती गईं, वैसे-वैसे भारत के प्रति उनका प्रेम, सम्मान और आकर्षण लगातार बढ़ता चला गया। इस तरह उन्होंने फैसला कर लिया कि जितना मुमकिन होगा, उतना वह भारतीय कलाओं और संस्कृति के बारे में सिखेंगीं। ओडिसी से इलियाना के जुड़ने का किस्सा भी दिलचस्प है। संयुक्ता
पाणिग्रही अपने जमाने की बहुत की लोकप्रिय कलाकार थीं। संयुक्ता ओडिसी के क्षेत्र में आने वाली पहली ओड़िया महिला थीं। इलियाना एक दिन संयुक्ता पाणिग्रही से मिलीं। संयुक्ता ने इलियाना को गुरु केलुचरण महापात्र के बारे में बताया। केलुचरण महापात्र उन दिनों दुनिया-भर में मशहूर थे और उन्हें ओडिसी नृत्य का सबसे बड़ा जानकार और गुरु माना जाता था।
केलुचरण की शिष्या
केलुचरण महापात्र के बारे में जानकारी हासिल करने के बाद इलियाना अपने देश इटली लौट गईं। 1979 में वह तीसरी बार भारत आईं। भारत आते ही वह ओडिशा में गुरु केलुचरण महापात्र के यहां गईं। इलियाना वह दिन कभी नहीं भूल सकती जब पहली बार वे गुरु केलुचरण महापात्र से मिली थीं। उन्हें याद है कि पहली बार जब वे गुरुजी के घर उनसे नृत्य सीखने की इच्छा लेकर पहुंची तब वह पश्चिमी परिधान में थीं। इलियाना की वेशभूषा, भाषा और उनके हावभाव देखकर वहां मौजूद सभी लोगों को बहुत ताज्जुब हुआ था। वह बताती हैं, ‘सबसे ज्यादा हैरान गुरु की पत्नी हुई थीं, वे मुझे गुरूजी की शिष्य-मंडली में शामिल करने की इच्छुक भी नहीं दिखाई दे रही थीं। लेकिन मेरी खुशनसीबी थी कि मुझे गुरु केलुचरण महापात्र जैसे महान व्यक्ति ने अपना शिष्य बना लिया।’ इलियाना ने जब गुरु केलुचरण महापात्र से ओडिसी नृत्य सीखना शुरु किया तो उनका विचार था कि छह महीने वह नृत्य का ज्ञान लेकर इटली
लौट जाएंगी। लेकिन वह नृत्य में इतना तल्लीन हो गईं कि ये छह माह कई साल में बदल गए। पूरे 6 साल तक इलियाना भारत में ही रहीं और भारतीय शास्त्रीय नृत्य को आत्मसात करने में ही अपना सारा समय बिताया। इलियाना में नृत्य के लिए आवश्यक प्रतिभा होने के साथ-साथ मेहनत करने का जबरदस्त माद्दा था। गुरु केलुचरण महापात्र भी अपनी इस विदेशी शिष्या की मेहनत, लगन और ईमानदारी देखकर काफी प्रभावित हुए थे। देखतेदेखते इलियाना के नृत्य का सौंदर्य लोगों के सिर चढ़कर बोलने लगा। आगे चलकर इलियाना ने भारत के सभी छोटे-बड़े शहरों में अपने नृत्य का प्रदर्शन किया।
भुवनेश्वर में स्थायी निवास
आज इलियाना ओडिसी और छऊ नृत्य के एक सशक्त हस्ताक्षर के रूप में अपनी पहचान रखती हैं। दुनिया-भर में उनकी पहचान ओडिसी और छऊ नृत्य की एक बड़ी कलाकार, विद्वान और गुरु के रूप में है। दुनिया के कई देशों में वे ओडिसी और छऊ नृत्य-कला का प्रदर्शन कर लाखों-करोड़ों लोगों को अपना प्रशंसक बना चुकी हैं। इलियाना ने देश और दुनिया के कई सारे सांस्कृतिक और कला उत्सवों-समारोहों में हिस्सा लेकर उनकी शोभा बढ़ाई है। आज ओडिशा की राजधानी भुवनेश्वर में ही उनका स्थायी निवास है। भुवनेश्वर में वे लोगों को ओडिसी और छऊ नृत्य भी सीखा रही हैं। इलियाना के शिष्यों की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है। दुनिया के अलग-अलग हिस्सों से भारत आने वाले कई विदेशी सैलानी और शोधार्थी यहां की संस्कृति से प्रभावित होकर यहीं के रंग में रंग जाते हैं, लेकिन जिस तरह से इलियाना ने खुद को भारतीय रंग में रंग गई हैं, वैसी मिसाल वाकई बहुत कम देखने को मिलती है। मीरा बहन जैसी महिलाओं की परंपरा में निस्संदेह इलियाना एक बड़ा नाम है।
23 - 29 अप्रैल 2018
'जूतों के अस्पताल में आपका स्वागत है'
रक्तदान के लिए जागरुकता फैलाने वाले किरण
सिंपल ब्ल्ड के संस्थापक किरण वर्मा रक्तदान के प्रति जागरुकता फैलाने के लिए पूरे देश की पैदल यात्रा पर निकले हैं
भा
रत में हर साल 12,000 से भी ज्यादा लोग खून की कमी के चलते अपनी जान गंवा देते हैं, जबकि 6,00,000 यूनिट खून ब्लड बैंक और अस्पतालों के बीच तालमेल न होने के कारण बर्बाद हो जाता है। इस अंतर को खत्म करने और लोगों को रक्तदान के बारे में जागरूक करने के लिए 33 साल के किरण वर्मा पैदल यात्रा कर रहे हैं। किरण जो कि सिंपल ब्लड संस्था के संस्थापक भी हैं,ने इसी साल 26 जनवरी से अपना सफर श्रीनगर की लाल चौक से शुरू किया। श्रीनगर से चलकर अब तक वह 6000 किलोमीटर का सफर पैदल तय कर चुके हैं। वह अब तक उदयपुर, वडोदरा, चेन्नै और बेंगलुरु पहुंच चुके हैं। अब वह केरल पहुंचे हैं। उनका लक्ष्य ज्यादा से ज्यादा लोगों को रक्तदान के लिए बनाए गए डेटाबेस से जोड़ने का है, जिससे की जरूरत के समय पर खून मिल सके। वह कहते हैं कि वह अपने सफर के दौरान कम से कम 1.5 लाख लोगों को डेटाबेस से जोड़ना चाहते हैं। वह लोगों को
गुड न्यूज
रक्तदान को व्यापार बना चुके दलालों से बचने के लिए भी सतर्क करते हैं। किरण हमेशा से समाज के लिए कुछ करना चाहते थे। वह बताते हैं कि पहली बार उन्होंने अपने टीचर को जरूरत पड़ने पर खून दिया था, यह सोचकर कि उन्हें मार्क्स अच्छे मिलेंगे लेकिन टीचर के परिवार का व्यवहार देखकर उनका रक्तदान के प्रति नजरिया बदल गया। उसके बाद से वह रक्तदान करते हैं और अपनी जानकारी लोगों को देते हैं, ताकि खून की जरूरत पड़ने पर वह मदद कर सकें। हालांकि, दिसंबर 2016 में उन्हें पता लगा कि किस तरह से खून की जरूरत का गलत फायदा उठाया जाता है। उन्होंने बताया, 'एक महिला ने नई दिल्ली के सरकारी अस्पताल से मुझसे संपर्क किया। रक्तदान के बाद मैं उस परिवार से मिला तो पता चला कि उसके लिए उन्होंने पैसे दिए थे। मुझे यह जानकर हैरैनी हुई कि परिवार की एक महिला खून खरीदने के लिए पैसों का इंतजाम करने को देह-व्यापार में उतर गई थी जबकि हम मुफ्त में रक्तदान कर रहे थे। जिस व्यक्ति ने मुझसे संपर्क किया था वह दलाल था।' उस वक्त किरण को सिंप्ली ब्लड शुरू करने का आइडिया आया और जनवरी 2017 में यह शुरू हो गया। इस ऐप के जरिए डोनर्स का डेटाबेस रखने के अलावा सबसे नजदीकी डोनर का पता भी लगाती है। इससे जरूरतमंद व्यक्ति को सीधे अपने नजदीकी डोनर के बारे में पता चल जाता है। लॉन्च होने के बाद से यह ऐप 11 देशों में 2,000 डोनेश्नस का जरिया बन चुका है। (एजेंसी)
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हरियाण के नरसी राम के जूतों के मरम्मत की दुकान चलाने का तरीका उद्योगपति आनंद महिंद्र को इतना पसंद आया कि वे उनके मुरीद बन गए
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रियाणा में जींद की पटियाला चौक पर जूते-चप्पलों की मरम्मत करने वाले एक शख्स नरसी राम रोजाना कुछ सौ रुपए कमाकर अपने घर का पेट पालते हैं। उन्हें शायद पता नहीं था कि उनकी एक नायाब कार्यशैली देश के दिग्गज उद्योगपति मुरीद हो जाएंगे और कहने को यह मजबूर हो जाएंगे कि इस शख्स को आईआईएम की टीचिंग फैकल्टी का दर्जा मिलना चाहिए। दरअसल, नरसी ने लोगों का ध्यान आकर्षित करने के लिए बोर्ड लगाया है'डॉ. नरसी राम- जख्मी जूतों का अस्पताल'। नरसी ने अपने बैनर में अस्पताल की तर्ज पर कई तरह की जानकारी दे रखी है। मसलन लिखा है कि ओपीडी सुबह 9 से दोपहर 1 बजे, लंच दोपहर 1 से 2 बजे और शाम 2 से 6 बजे तक अस्तपाल खुला रहेगा। आगे लिखा है- 'हमारे यहां सभी प्रकार के जूते जर्मन तकनीक से ठीक किए जाते हैं।'
नरसी की तस्वीर वॉट्सऐप के जरिये मिलने पर महिंद्रा ग्रुप के चेयरमैन हैरान रह गए हैं। इस अनोखे मार्केटिंग स्टाइल पर महिंद्रा ने ट्वीट किया- 'इस व्यक्ति को आईआईएम में टीचिंग फैकल्टी में होना चाहिए।' यही नहीं, महिंद्रा ने यहां तक कह डाला कि अगर नरसी अभी भी यह काम करते हों तो वह उनके 'स्टार्टअप' में निवेश भी करना चाहेंगे। निवेश की बात भले ही अभी दूर हो, लेकिन महिंद्रा ग्रुप की टीम ने नरसी को फूल और मोमेंटो भिजवाया है। उन्हें महिंद्रा कंपनी के ट्रैक्टर पर बैठा कर सारे शहर में भी घुमाया गया। महिंद्रा का ट्वीट कई सौ बार रीट्वीट हो चुका है और इसे हजारों लाइक मिल चुके हैं। कोई ट्वीट कर आनंद महिंद्रा को इस मोची का पता बता रहा है तो कोई उनके इस ट्वीट की प्रशंसा कर रहा है। (एजेंसी)
डेंगू की आयुर्वेदिक दवा बाजार में जल्द आएगी
डें
भारतीय वैज्ञानिकों ने एक ऐसी आयुर्वेदिक दवा विकसित की है, जिससे डेंगू मरीजों का सफल ईलाज किया जा सकेगा
गू का डंक हर वर्ष देश के हजारों लोगों के जीवन को मुश्किल में डाल देता है, लेकिन भारतीय वैज्ञानिकों ने एक ऐसा नुस्खा खोज निकाला है, जिससे डेंगू के असर को खत्म किया जा सकेगा। वैज्ञानिकों ने डेंगू के इलाज के लिए एक आयुर्वेदिक दवाई विकसित करने का दावा किया है। आयुष मंत्रालय की स्वायत्त इकाई केंद्रीय आयुर्वेदीय विज्ञान अनुसंधान परिषद और कर्नाटक के बेलगांव के क्षेत्रीय अनुसंधान केंद्र-आईसीएमआर के वैज्ञानिकों का दावा है कि
अगले साल से यह दवाई बाजार में मरीजों के लिए उपलब्ध हो जाएगी। इसे डेंगू के लिए बनी पहली दवा बताया जा रहा है। सीसीआरएएस के महानिदेशक प्रोफेसर वैद्य के.एस. धीमान ने बताया कि यह दवाई सात ऐसी जड़ी-बूटियों से बनाई गई है, जिनका इस्तेमाल आयुर्वेद में सदियों से होता आ रहा है। इसके शुरुआती अध्ययन मेदांता अस्पताल, गुड़गांव और चिकित्सीय रूप से इसके सुरक्षित होने का अध्ययन बेलगांव और कोलार में हुआ। (एजेंसी)
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स्वास्थ्य
23 - 29 अप्रैल 2018
विश्व मलेरिया दिवस (25 अप्रैल) पर विशेष
2030 तक भारत मलेरिया मुक्त!
भारत अभी मलेरिया के पूर्ण उन्मूलन के लक्ष्य से दूर जरूर है, पर हम इस दिशा में तेजी से आगे बढ़ रहे हैं
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एसएसबी ब्यूरो
लंका और भारत का संबंध न सिर्फ भौगोलिक, बल्कि सांस्कृतिक और ऐतिहासिक तौर पर खासा नजदीकी है। श्रीलंका भारत के मुकाबले काफी छोटा मुल्क है। पर इस छोटे मुल्क ने कम से कम एक क्षेत्र में इतनी बड़ी कामयाबी हासिल की है कि भारत के लिए भी रोल मॉडल बन गया है। श्रीलंका ने पांच सितंबर, 2016 को एक बड़ी कामयाबी हासिल की। इस दिन विश्व स्वास्थ्य संगठन ने श्रीलंका को मलेरिया मुक्त देश घोषित कर दिया। दक्षिण-पूर्व एशिया में मालदीव के बाद मलेरिया मुक्त घोषित होने वाला श्रीलंका दूसरा देश है। मालदीव 1984 में मलेरिया मुक्त हुआ था। दिलचस्प है कि न सिर्फ श्रीलंका, बल्कि मालदीव भी भारत के साथ भौगोलिक और सांस्कृतिक तौर पर काफी गहरे जुड़ा है। बहरहाल बात करें अपने देश में मलेरिया उन्मूलन की तो यह संकट काफी बड़ा है। अच्छी बात यह है कि भारत सरकार इस दिशा में काफी प्रतिबद्धता के साथ काम कर रही है और उसने वर्ष 2030 तक का भारत को मलेरिया मुक्त करने का लक्ष्य घोषित कर रखा है। पर यह समस्या कितनी बड़ी है और इस पर विजय पाना कितना चुनौती भरा है, इसका अंदाजा इस तथ्य से लगाया जा सकता है कि दक्षिण एशिया में मलेरिया के 70 फीसदी मामले और मलेरिया से होने वाली 69 फीसदी मौतें भारत में होती हैं। 80 फीसदी से ज्यादा मलेरिया के मामले ऐसे 20 फीसदी लोगों के बीच है, जो उच्च जोखिम की श्रेणी में आते हैं। भारत अभी मलेरिया के पूर्ण उन्मूलन के लक्ष्य
खास बातें दक्षिण एशिया में मलेरिया से होने वाली 69 फीसदी मौतें भारत में 2016 में देशभर में डेंगू से 229 लोगों की जान गई मलेरिया से होने वाली 90 फीसदी मौतें ग्रामीण क्षेत्रों में होती हैं
दिया गया, बल्कि इस बीमारी के मुख्य कारण अमीबिक पैरासाईट को पूरी तरह से समाप्त करने का लक्ष्य बनाया गया।
पैरासाईट पर लगाम
विश्व स्वास्थ्य संगठन का लक्ष्य है कि 2030 तक 35 देशों को मलेरिया फ्री करने का, जिसमें भारत और इंडोनेशिया भी शामिल हैं। अगर यह लक्ष्य पूरा करना है तो अगले 15 साल तक फंडिंग को तिगुना करना पड़ेगा से दूर जरूर है, पर हम इस दिशा में तेजी से आगे बढ़ रहे हैं। केंद्र और राज्यों के स्तर से मच्छर जनित बुखार को रोकने के लिए की जा रही कोशिशों का असर मलेरिया पर काबू करने की दिशा में साफ दिख रहा है। केंद्र सरकार की ओर से उपलब्ध कराए गए आंकड़े के अनुसार गत तीन-चार वर्षों के दौरान मलेरिया के मामलों और इससे होने वाली मौतों की संख्या में अमूमन कमी देखी गई है, लेकिन डेंगू एवं चिकनगुनिया के मामलों और इससे होने वाली मौत की संख्या में तेज वृद्धि हुई है, जो चिंताजनक है।
आंकड़ो में घट-बढ़
पिछले वर्ष लोकसभा में बताया कि 2014 में देश भर में मलेरिया के 11,02,205 मामले सामने आए थे, जो 2016 में घटकर 1,05905 हो गया, हालांकि 2015 में यह संख्या बढ़कर 11,69,261 हो गई थी। मलेरिया से हुई मौत के राष्ट्रीय आंकड़ो पर गौर करें तो पता चलता है कि इसमें कमी आई है। 2014 में मलेरिया से 562 मौत हुई तो 2015 में 384 और 2016 में 242 मौतें हुईं। डेंगू के मामलों में स्थिति इसके बिल्कुल उलट है। 2014 में देश भर में डेंगू के 40571 मामले दर्ज
किए गए थे, जो 2015 में बढ़कर 99913 हो गए। 2016 में डेंगू के 114812 मामले सामने आए। 2014 में डेंगू से 137 लोगों की मौत हुई थी, लेकिन 2015 में यह आंकड़ा बढ़कर 220 हो गया। 2016 में देशभर में डेंगू से 229 लोगों की जान गई। 2014 में चिकनगुनिया के 16049 मामले दर्ज किए गए, जो साल 2015 में बढ़कर 27553 मामले हो गए हैं। 2016 में चिकनगुनिया के 62631 मामले सामने आए थे।
श्रीलंका का उदाहरण
भारत कैसे मलेरिया मुक्त होगा, इसके लिए श्रीलंका की मिसाल सबसे अहम है। बीसवीं सदी के मध्य तक श्रीलंका मलेरिया से सबसे ज्यादा प्रभावित देशों में से एक था। विश्व स्वास्थ्य संगठन की रिपोर्ट के अनुसार 2015 मलेरिया के कारण दुनिया भर में लगभग चार लाख से भी ज्यादा लोगों की मृत्यु हुई थी। सत्तर, अस्सी और नब्बे के दशक में मलेरिया के मामलों में चिंताजनक बढ़त दर्ज किए जाने के बाद से ही श्रीलंका में इस बीमारी के खिलाफ बड़े स्तर पर अभियान चलाया गया। नब्बे के दशक में मलेरिया के खिलाफ नीति में बदलाव करते हुए श्रीलंका में न केवल मच्छरों की रोकथाम पर ध्यान
साथ ही यह सुनिश्चित किया गया कि यह पैरासाईट वापस न पनप पाए। मलेरिया से प्रभावित इलाकों में नियमित रूप से कैंप लगाए गए और मोबाइल क्लीनिक की व्यवस्था की गई। इस बीमारी से पीड़ित लोगों और बीमारी से उबर रहे लोगों पर भी लगातार नजर रखी गई। नतीजतन, 2005 में श्रीलंका में केवल 1000 मलेरिया के मामले दर्ज किए गए और 2012 में श्रीलंका में एक भी मलेरिया का मामला दर्ज नहीं किया गया। श्रीलंका ने 90 के दशक में संक्रमण रोकने के लिए मलेरिया उन्मूलन अभियान में बदलाव किया। इसके तहत मच्छर रोधी नियंत्रण के बदले परजीवी नियंत्रण की रणनीति अपनाई। नतीजा यह हुआ कि 1999 के बाद मामलों में तेजी से गिरावट आई। साफ-सफाई का ध्यान रखा गया। खासकर सड़कों के किनारे जहां मच्छर आसानी से पनपते हैं। दूरदराज इलाकों से लोगों को इलाज मुहैया कराया गया। उच्च जोखिम वाले स्थानों पर खास ध्यान देते हुए शीघ्र उपचार की व्यवस्था की गई जिससे मौतें कम हुईं। श्रीलंका में स्वास्थ्य मंत्रालय ने मलेरिया उन्मूलन के लिए अभियान चलाया। इसके मुताबिक बुखार के सभी मामलों में मलेरिया की जांच की गई। मलेरिया से ग्रस्त देशों की यात्रा से आने वाले लोगों में इसके लक्षणों की जांच की गई। शांति मिशन पर तैनात सशस्त्र बलों, प्रवासियों, पर्यटकों और तीर्थयात्रियों की भी नियमित जांच की गई। मलेरिया रोधी अभियान के तहत अलग से 24 घंटे की हॉटलाइन सेवा शुरू की गई, जिसके तहत संक्रतित रोगियों की पहचान कर उनको त्वरित इलाज मुहैया कराया जाता है।
भारत तीसरे नंबर पर
भारत मलेरिया से सबसे ज्यादा प्रभावित 15 देशों में भारत तीसरे नंबर पर आता है। 2016 में भारत में 4 लाख से भी ज्यादा मलेरिया के मामले सामने आए हैं, जिनमें 100 से भी ज्यादा लोगों की मौत हो चुकी है। 2030 तक मलरिया से पूरी तरह से निजात पाने के लिए भारत को भी श्रीलंका से सीख लेते हुए, इस बीमारी के खिलाफ मजबूत इच्छाशक्ति के साथ अभियान चलाना होगा।
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स्वास्थ्य
मलेरिया मुक्त यूरोप
मलेरिया : वैश्विक आकलन
यूरोप में 1995 में मलेरिया के 90 हजार 712 मामले सामने आए थे, लेकिन दो दशक में यह गिनती शून्य हो गई
मलेरिया प्रभावित क्षेत्र साथ ही यह भी तय करना होगा कि मलेरिया से सबसे ज्यादा प्रभावित इलाकों में सामुदायिक स्तर पर लोगों से संवाद स्थापित किया जाए और इस लड़ाई में उन्हें भी शामिल किया जाए। यह काम समयबद्ध योजना और दीर्घ इच्छाशक्ति के साथ करा होगा। क्योंकि भारत में जाने कब से मलेरिया से मुक्ति के प्रयास चल रहे हैं। बाकायदा इसके लिए विभाग बने हुए हैं, कर्मचारी तैनात हैं और बजट भी है। पूरे देश को छोड़ अकेले दिल्ली की बात करें तो यहां के तीनों निगमों में चार हजार कर्मचारी इसके लिए तैनात हैं।
फंडिंग तिगुनी करनी होगी
पूरी दुनिया में 320 करोड़ लोग मलेरिया के खतरे के बीच रहते हैं। संयुक्त अरब अमीरात, मोरक्को, मालदीव, आर्मिनिया, तुर्कमेनिस्तान जैसे कई देश हैं, जिन्होंने पिछले सात-आठ सालों में मलेरिया से मुक्ति पाई है। विश्व स्वास्थ्य संगठन का लक्ष्य है कि 2030 तक 35 देशों को मलेरिया फ्री करने का, जिसमें भारत और इंडोनेशिया भी शामिल हैं। संगठन का कहना है कि अगर यह लक्ष्य पूरा करना है तो अगले 15 साल तक फंडिंग को तिगुनी करनी पड़ेगी।
दो पत्रकारों की खोजी रपट
हैदराबाद के फ्रीलांस पत्रकार विवेकानंद नेमाना और डब्ल्यूएनवाईसी रेडियो के लिए काम करने वाली पत्रकार अंकिता राव ने एक लंबी रपट लिखी है। विवेकानंद और अंकिता ने भारत में मलेरिया उन्मूलन से संबंधित तमाम आंकड़ो का गहराई से अध्ययन कर बताया है कि 2014 में मलेरिया नियंत्रण के बजट का 90 फीसदी हिस्सा प्रशासनिक कार्यों में ही खर्च हो गया। दवा, मच्छरदानी और छिड़काव के लिए 10 प्रतिशत ही बजट बचा, जबकि इस बीमारी से भारत की अर्थव्यवस्था को हर साल करीब 13000 करोड़ रुपए का नुकसान हो रहा है। देश के आदिवासी इलाकों में तो मलेरिया का भयानक आतंक है। दोनों पत्रकारों का कहना है कि किसी को पुख्ता तौर पर पता नहीं है कि मलेरिया से हर साल कितनी मौतें होती हैं। 2015 में
मलेरिया मुक्त क्षेत्र
मलेरिया से मरने वालों का सरकारी आंकड़ा 300 है, जबकि ब्रिटेन का प्रतिष्ठित हेल्थ जर्नल लांसेट का अनुमान है कि भारत में हर साल 50,000 लोग मलेरिया से मर जाते हैं।
डेंगू का डंक
विश्व स्वास्थ्य संगठन की रिपोर्ट पर भरोसा करें तो हर सात में से एक भारतीय को मलेरिया का खतरा रहता है, जबकि डेंगू का प्रतिशत इससे कुछ कम है। देश में मलेरिया से होने वाली कुल मौतों में 90 फीसदी ग्रामीण क्षेत्रों में होती है। इसके उलट डेंगू का प्रकोप शहरों में अधिक रहता है। देश में हर साल एडीज मच्छरों से फैलने वाला डेंगू सैकड़ों जिंदगियां तबाह कर रहा है। पिछले कुछ वर्षों से डेंगू ने कई राज्यों में पैर पसार लिए हैं, पर दिल्ली में यह बीमारी कहर बरपाती रही है। डेंगू के मच्छर बरसात के साथ अपना असर दिखाना शुरू कर देते हैं। डेंगू की अंतरराष्ट्रीय विशेषज्ञ नीना वालेचा का मानना है कि पिछले कई दशकों में डेंगू के मरीजों की संख्या तीस गुना बढ़ गई है। अमेरिका की ब्रांडेस यूनिवर्सिटी के डोनाल्ड शेपर्ड के अक्टूबर 2014 में जारी शोध पत्र के अनुसार भारत विश्व में सबसे अधिक डेंगू प्रभावित देशों मे शामिल है। एक आंकड़े के मुताबिक 2012 में दक्षिण एशिया क्षेत्र में डेंगू के लगभग दो लाख नब्बे हजार मामले दर्ज हुए थे, जिसमें करीब 20 प्रतिशत की भागीदारी अकेले भारत की थी। देश में केंद्र सरकार की ओर से संचालित 10 ऐसे संस्थान हैं, जो महामारी-विज्ञान, चिकित्सकीय अध्ययन, रोग निदान, रोग नियंत्रण और टीका विकास शोध के कामों में लगे हैं। इंटरनेशनल सेंटर फॉर जेनेटिक इंजीनियरिंग एंड बायोटेक्नोलॉजी के वैज्ञानिकों के अनुसार ‘देश को डेंगू रोधी टीका विकसित करने में अभी चार-पांच साल और
लगेंगे।’ वैसे एक अध्ययन और चल रहा है जिसके तहत यह देखा जा रहा है कि मच्छरों में आनुवांशिक बदलाव करके किस प्रकार से डेंगू को रोका जा सकता है। डेंगू के बड़े पैमाने पर फैलने के लिए भारत में सबसे ज्यादा अनुकूल दशाएं हैं, मसलन जनसंख्या वृद्धि, जनसंख्या घनत्व, अनियोजित शहरीकरण और रोगवाहक कीट का घनत्व आदि। एसा नहीं है कि डेंगू की वजह गरीबी और अविकसित ग्रामीण इलाके ही हैं। पिछले साल मुंबई में डेंगू के लक्षणों वाले मरीजों की सबसे ज्यादा संख्या पॉश इलाकों से थी। सर्वे मंे पाया गया था कि मुंबई के पॉश इलाकों से 50 फीसदी डेंगू के मरीज थे,जबकि झुग्गी झोपड़ी से 10 फीसदी और चॉल से 40 फीसदी डेंगू के लक्षण वाले मरीज मिले थे। जिन इलाकों में ऊंची-ऊंची इमारतें हैं, वहां मच्छरों का असर ज्यादा है।
वैश्विक स्थिति
विश्व मलेरिया रिपोर्ट (2013) के अनुसार कुल 103 देशों की 3.4 बिलियन आबादी मलेरिया के खतरे वाले स्थानों में निवास करती है। विश्व में प्रतिवर्ष मलेरिया की 207 मिलियन घटनाएं प्रकाश में आती हैं। मलेरिया मानवता के सामाजिक-आर्थिक ढांचे को गंभीर रूप से प्रभावित करता है। इस रोग के कारण अफ्रीका के सकल घरेलू उत्पाद में 12 बिलियन अमेरिकी डॉलर की क्षति के साथ आर्थिक वृद्धि में 1.3 प्रतिशत तक की गिरावट देखी जाती है।
बेअसर प्रतिरोध
मच्छरों की अब ऐसी प्रजातियां पैदा हो गई हैं, जिन पर सामान्य कीटनाशकों का कोई प्रभाव नहीं पड़ रहा है। उनमें प्रतिरोधक क्षमता पैदा हो गई है, इसीलिए बाजार में बिकने वाली मच्छर-मार टिकिया या रसायनों का उन पर असर नहीं हो रहा है। पिछले
देश में केंद्र सरकार की ओर से संचालित 10 ऐसे संस्थान हैं, जो महामारीविज्ञान, चिकित्सकीय अध्ययन, रोग निदान, रोग नियंत्रण और टीका विकास शोध के कामों में लगे हैं
द
रअसल, जिस दौर में भारत दुनिया की बहुत बड़ी ताकत होने का सपना देख रहा है, उसी दौर में मच्छरों ने उसकी नाक में दम कर रखा है। इसके उलट पड़ोसी देश श्रीलंका दक्षिण-पूर्व एशिया में मालदीव के बाद मलेरिया मुक्त होने वाला दूसरा देश बन गया है। इसके अलावा संयुक्त अरब अमीरात, मोरक्को, आर्मिनिया, तुर्कमेनिस्तान जैसे कई देश हैं, जिन्होंने पिछले सात-आठ सालों में मलेरिया से मुक्ति पाई है। हाल ही में पूरे यूरोप क्षेत्र को भी मलेरिया मुक्त घोषित किया गया है। यह दुनिया में पहला क्षेत्र है,जिसे मलेरिया मुक्त घोषित किया गया है। यूरोप में 1995 में मलेरिया के 90 हजार 712 मामले सामने आए थे, लेकिन दो दशक में यह गिनती शून्य हो गया। हम आजादी के पहले और उसके बाद से लगातार मलेरिया और डेंगू की रोकथाम के लिए अभियान चला रहे हैं पर लक्ष्य से अभी दूर हैं। सरकार के लक्ष्य के मुताबिक भारत को मलेरिया मुक्त होने में अभी एक दशक से ज्यादा का समय लगेगा, लेकिन डेंगू और चिकनगुनिया की नई चुनौती को लेकर तो अभी कोई लक्ष्य भी तय नहीं है। कुछ दशकों में औषधियों के खिलाफ भी प्रतिरोधक क्षमता विकसित होने से इलाज मुश्किल होता जा रहा है। इसीलिए भी इन रोगों से मरने वालों की संख्या लगातार बढ़ रही है।
हो सकते हैं सफल
प्रधानमंत्री मोदी ने स्वच्छ भारत का नारा यूं ही नहीं दिया है, इस नारे को अमल में लाने का भार हम पर भी है। श्रीलंका से मलेरिया मुक्ति की खबर हमारे भीतर भी सपनों को जगाती है। अगर इस मुद्दे पर पूरा देश मिलकर उठ खड़ा हो तो यकीनन ठीक उसी तरह हम कामयाब हो सकते हैं, जैसे पोलियो के मामले में हमने पा ली है।
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आयोजन
23 - 29 अप्रैल 2018
ऑथर्स गिल्ड ऑफ इंडिया का 43वां वार्षिक अधिवेशन
विविध भाषाओं के अनेक साहित्यकार सम्मानित
कानपुर में ऑथर्स गिल्ड ऑफ इंडिया का 43वां वार्षिक अधिवेशन आयोजित किया गया जिसमें 39 पुस्तकों को लोकार्पित किया गया
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डॉ. संदीप कुमार शर्मा
थर्स गिल्ड ऑफ इंडिया का 43वां अधिवेशन कानपुर में केंद्रीय हिंदी संस्थान, आगरा, दैनिक समाचार-पत्र ‘अमर उजाला’ और दुर्गाप्रसाद विद्यानिकेतन, कानपुर के संयुक्त तत्त्वावधान में 24-25 मार्चको संपन्न हुआ। 24 मार्च को देश के विभिन्न क्षेत्रें से आए विविध भाषाओं के वरिष्ठ साहित्यकारों, लेखकों, कवियों और मीडिया विशेषज्ञों के इस समागम समरोह के मुख्य अतिथि थे उत्तर-प्रदेश सरकार में कैबिनेट मंत्री सत्यदेव पचौरी। मुख्य अतिथि प्रसिद्ध ज्योतिषाचार्य पंडित ए.के. दुबे पद्मेश, प्रवीण कुमार मिश्र, विद्यानिकेतन की प्राचार्या शैलजा त्रिपाठी और ऑथर्स गिल्ड ऑफ इंडिया की उपाध्यक्ष डॉ. सरोजनी प्रीतम, महासचिव डॉ. एस.एस. अवस्थी और वरिष्ठ लेखक डॉ. श्याम सिंह ‘शशि’ ने दीप प्रज्वलित कर अधिवेशन का शुभारंभ किया। डॉ. एस.एस. अवस्थी ने कहा कि ऑथर्स गिल्ड ऑफ इंडिया देश की एकमात्र ऐसी साहित्यिक संस्था है, जिसके सदस्य बहुभाषी हैं और वे अपनीअपनी भाषाओं में उत्कृष्ट कार्य करने में संलग्न हैं। इसके अलावा दूसरा सबसे बड़ा पहलू यह है कि ऑथर्स गिल्ड ऑफ इंडिया एकमात्र ऐसी संस्था है, जिसे अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी मान्यता मिली हुई है। डॉ. अवस्थी ने अपने वक्तव्य में ऑथर्स गिल्ड ऑफ इंडिया के प्रेसिडेंट डॉ. विन्देश्वर पाठक के सामाजिक कल्याण, स्वच्छता और साहित्यसंबंधी कार्यों का उल्लेख करते हुए उन्हें ‘वैश्विक सामाजिक नेता’कहा। उद्घाटन-समारोह के बाद विचार-गोष्ठी का आयोजन हुआ, जिसका विषय था,‘हिंदी और
मीडिया’। इसके पहले सत्र की अध्यक्षता जबलपुर के डॉ. गार्गी शरण मिश्र ‘मराल’ ने की। ‘हिंदी और मीडिया’ पर अपने विचार व्यक्त करते हुए केरल से पधारे डॉ. षोरनूर कार्तिकेयन ने कहा कि आज मीडिया में हिंदी भाषा के बढ़ते चलन से अहिंदी भाषी लोगों को हिंदी भाषा सीखने में मदद मिली है। उन्होंने बड़े ही गर्व के साथ कहा कि मैंने पहली बार हिंदी में शोध-पत्र प्रस्तुत किया है और मुझे अपार प्रसन्नता हो रही है। दिल्ली के डॉ. बी.एल. गौड़ ने हिंदी और मीडिया पर अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि समाचार-पत्रें में हिंदी भाषा के अनेक रूप देखने को मिल रहे हैं। कुछ अखबारों ने हिंदी की बजाय हिंग्लिश को अपना लिया है। गोवा की सुमन सामंत ने कहा कि आज टीवी चैनलों के जरिए हिंदी ने पूरे देश में एक अलग जगह बना ली है। डॉ. मुनिराज ने कहा कि देश में क्षेत्रीय भाषाओं और अंग्रेजी भाषा के मुकाबले हिंदी भाषा के चैनल ज्यादा लोकप्रिय हैं। डॉ. गार्गी शरण मिश्र ‘मराल’ ने अपने अध्यक्षीय संबोधन में कहा कि हिंदी के समर्थन में स्वर बुलंद होने लगे हैं । यह एक अच्छा संकेत है। अधिवेशन में ‘हिंदी और मीडिया’ सत्र में वक्ताओं ने मीडिया में हिंदी के प्रयोग और प्रचलन पर अपने विचार रखे। आगरा की डॉ. शैलबाला अग्रवाल ने वैश्विक मीडिया में हिंदी के विस्तार पर संतोष व्यक्त किया। आकाशवाणी-केंद्र, दिल्ली के निदेशक अरुण पासवान ने अपने वक्तव्य में हिंदी के विकास में फिल्मों के योगदान का उल्लेख किया। इस सत्र का संचालन सुलभ इंटरनेशनल के प्रतिनिधि और कवि-लेखक डॉ. अशोक कुमार ज्योति ने किया। अपने वक्तव्य में विविध भारतीय भाषाओं में शब्दों की साम्यता की ओर सदन का ध्यान आकृष्ट करते हुए उन्होंने कहा कि हमारी
सभी भाषाओं के शब्दों में काफी समानता है, इसीलिए हम सब एक सूत्र से बंधे हुए हैं। हमारी यह सांस्कृतिक एकता सदैव बरकरार रहनी चाहिए। उन्होंने कहा कि हमें इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि हिंदी भाषा का रूप विकृत न हो। राष्ट्रीय अधिवेशन में विचार-समागम का तीसरा सत्र दिल्ली से पधारे डॉ. हरिसिंह पाल की अध्यक्षता में शुरू हुआ। डॉ. रमेश कटारिया ने अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि हिंदी का अंतरराष्ट्रीय स्वरूप अलग ही अंदाज में हुआ है। आप हिंदी के साथ अंग्रेजी के शब्दों का इस्तेमाल उचित नहीं मानते। दिल्ली से आए डॉ. राधेश्याम बंधु ने कहा कि मीडिया में भाषा को दूषित करने का काम बहुत तेजी से हुआ है। अभिव्यक्ति के स्तर पर बढ़ रही आक्रामकता और हिंसा अनेक प्रकार से व्यक्ति एवं समाज को विकृत कर रही है। इस दिशा में शुद्ध लेखन और स्वस्थ मनोवृत्ति को व्यक्त करनेवाली भाषा का इस्तेमाल होना अत्यावश्यक है। नागपुर की डॉ. नेहा भंडारकर ने अपनी बात कुछ इस प्रकार से रखी कि जब भी बात मीडिया की होती है तो हम सिर्फ अखबार और टी वी चैनलों तक ही सीमित रह जाते हैं, जबकि आज मीडिया के मायने बदल गए हैं। दिल्ली के लेखक डॉ. संदीप कुमार शर्मा ने मीडिया में काम करने के अपने अनुभव साझा करते हुए कहा कि युवा पीढ़ी भाषा के मर्म को समझने में नाकामयाब है, क्योंकि उसे शैक्षिक स्तर पर भाषा की शुद्धता सीखाई ही नहीं जा रही। दिल्ली आकाशवाणी के डॉ. हरिसिंह पाल ने अपने अध्यक्षीय संबोधन में कहा कि आकाशवाणी आज भी भाषा की गरिमा बनाए हुए है। तीसरे सत्र के बाद बहुभाषी काव्य-गोष्ठी सुप्रसिद्ध कवयित्री डॉ. सरोजनी प्रीतम की अध्यक्षता में आयोजित हुआ। हिंदी के प्रमुख रूप से डॉ. सुरेश ढींगरा, डॉ. अहिल्या मिश्रा, डॉ. रमा द्विवेदी, सुधा,
प्रदीप गौतम, अमरेंद्र नारायण, डॉ. कामकोटि, कुंतला देवी दत्ता, अरुण पासवान, ए. कीर्तिवर्धन, देवा प्रसाद मायला, बालकृष्ण महारज, मधु शुक्ल, लक्ष्मण डेहरिया, डॉ. अर्चना झा, कृष्ण द्विवेदी, डॉ. अमी आधार निडर, डॉ. कृष्ण कुमार, सरोज गुप्ता, दीनदयाल सोनी, प्रभा गुप्ता, प्रदीप मिश्रा, जी परमेश्वर, अरविंद श्रीवास्तव, डॉ. अशोक कुमार ज्योति इत्यादि ने अपने कविता-पाठ से सभी का दिल जीत लिया। उद्घाटन-समारोह में साहित्य में उत्कृष्ट योगदान के लिए अनेक साहित्यकारों को सम्मानित किया गया। इनमें अंग्रेजी लेखन के लिए डॉ. ऋतु सूद, मलयालम के लिए डॉ. षोरनूर कार्तिकेयन, कोंकणी के लिए डॉ. कृष्णी वाल्के, पंजाबी के लिए, नरेंद्र परिहार और तमिल के लिए डॉ. पी.के. बालसुब्रमण्यम प्रमुख थे। दुर्गाप्रसाद विद्यानिकेतन की ओर से सभी आमंत्रित साहित्यकारों को शाल ओढ़ाकर सम्मानित किया गया। चौथे सत्र की अध्यक्षता दिल्ली विश्वविद्यालय के पीजी डीएवी महाविद्यालय के प्राचार्य डॉ. मुकेश अग्रवाल ने की और मंच-संचालन का दायित्व दिल्ली विश्वविद्यालय के सत्यवती महाविद्यालय के प्राचार्य डॉ. विजय शंकर मिश्र ने संभाला। डॉ. मिश्र ने कहा कि मीडिया की जिम्मेदारी हम अध्यापकों से ज्यादा है, क्योंकि हम युवाओं को शिक्षित करते हैं और मीडिया उन युवाओं का व्यवसायीकरण करके लाभ कमाते हैं। ऐसे में कहीं न कहीं युवा पीढ़ी अपनी साख बनाने के लिए भाषा के साथ न्यायोचित व्यवहार नहीं कर पाती। ऐसे मुद्दों पर भी ध्यान देने की जरूरत है।अपने अध्यक्षीय संबोधन में डॉ. मुकेश अग्रवाल ने कहा कि मीडिया में हिंदी के बढ़ते प्रभाव ने युवाओं को रोजगार के अवसर दिए हैं।
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विरासत
विश्व विरासत सूची में असम का मैदाम यूनेस्को की विश्व विरासत सूची में अब असम के मैदाम यानी अहोम्स को दफनाने वाली घाटियों को शामिल किया गया है
सूर्य के करीब पहुंचने की तैयारी में नासा
सूर्य की प्रचंड ताप और विकिरण को झेलते हुए इस मिशन से विज्ञान की मौलिक गुत्थियां सुलझाने में मदद मिलेगी कि सौर वात किससे चालित होती है
म
राजीव
दीवार और पश्चिम में एक धनुषाकार प्रवेश द्वार द्वारा मजबूत बन रहा है। आखिरकार टीले को पौधों की एक परत द्वारा कवर किया जाएगा, जो क्षेत्र को एक लचीले परिदृश्य में बदलने के लिए पहाड़ियों के एक समूह की याद दिलाता
की अवधि में निर्माण के लिए लकड़ी का इस्तेमाल प्राथमिक सामग्री के रूप में किया ध्ययुगीन काल के दौरान से ही असम गया था, लेकिन 18 वीं शताब्दी के बाद से में अहोम्स को दफनाने वाली घाटियों पत्थर और विभिन्न आकारों के जले ईंटों का को 'मैदाम' कहा जाता है। केंद्रीय आंतरिक कक्षों में प्रयोग किया गया था। विभिन्न संस्कृति राज्य मंत्री ने संसद को सूचित आकार के पत्थर, टूटे हुए पत्थर और ईंटों किया कि मैदाम को यूनेस्को ने विश्व विरासत को अधिरचना के निर्माण के लिए इस्तेमाल स्थलों की सूची में शामिल किया है। किया गया था, जबकि उप-संरचना के इस सूची में पूर्वोत्तर के अन्य स्थललिए बड़े पत्थरों के स्लैब का उपयोग किया अपतानी सांस्कृतिक लैंडस्केप, नामदाफा गया। राष्ट्रीय उद्यान और असम की माजुली को शाही मैदाम विशेष रूप से सिबासागर दुनिया के सबसे बड़ी नदियों वाले द्वीपों में के पास चराइडीओ में पाए जाते हैं, जबकि से एक माना जाता है। हालांकि अब तक दूसरे मैदाम जोरहाट और डिब्रूगढ़ कस्बों के केवल दो स्थानों काजीरंगा नेशनल पार्क और बीच के क्षेत्र में बिखरे हुए हैं। संरचनात्मक मानस वन्यजीव अभ्यारण्य को ही पूर्वोत्तर से रूप से एक मैदाम में एक या एक से अधिक प्रतिष्ठित टैग दिया गया है। कक्षों के साथ वाल्ट होते हैं। साल 2015 में चीन से अपने स्थानांतरण के बाद ताईभारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण ने खुदाई के दौरान अहोम ने अपनी पहली राजधानी पटकाई शिवसागर जिले के एक मैदाम से एक पुरुष पहाड़ियों की चोटी पर स्थापित की और इसे खोपड़ी के साथ कई महिला खोपड़ियां प्राप्त चे-राय-दोई या चे-तम-दोई की थी। एएसआई ने अहोम चीन से अपने स्थानां त रण के बाद ताई-अहोम ने अपनी पहली नाम दिया, जिसका अर्थ राजा के वंशजों से रक्त के उनकी भाषा में "पहाड़ के राजधानी पटकाई पहाड़ियों की चोटी पर स्थापित की और इसे नमूने डीएनए टेस्ट कराने के ऊपर एक चमकदार शहर" लिए इकट्ठा किए, ताकि चे-राय-दोई या चे-तम-दोई नाम दिया, जिसका अर्थ उनकी है। चे-राय-डोई या चोरेडॉओ यह पता लग सके कि खुदाई भाषा में "पहाड़ के ऊपर एक चमकदार शहर" है का परिदृश्य उस समुदाय के में निकली हड्डियां अहोम बीच अपनी पवित्रता को शाही परिवारों की हैं या नहीं। बरकरार रखना है, जहां राजपरिवार की दिवंगत है। यूनेस्को ने विश्व धरोहर स्थल के रूप में इस आत्माएं पहुंचती हैं। उनके गुंबददार घाटियों की खुदाई से पता चला कि प्रत्येक गुंबददार स्थान को घोषित करने के लिए दस मानदंड अनूठी व्यवस्था कई शताब्दियों तक तक जारी कक्ष के केंद्र में एक मंच बना है, जिसमें राजा निर्धारित किए हैं। मैदाम को संयुक्त राष्ट्र की रही, जब तक कई ताई-अहोम्स ने हिंदू व्यवस्था के मृत शरीर को दफनाया गया था। इसके एजेंसी के मानदंड के तहत नामित किया गया के अंतिम संस्कार को नहीं अपनाया था। आलावा मृतक द्वारा अपने जीवन के दौरान है, जो कि एक पारंपरिक मानव निपटान, मैदाम एक गुंबददार और दो मंजिला कक्ष इस्तेमाल की गई कई वस्तुओं जैसे- शाही भूमि उपयोग या समुद्र के उपयोग का उत्कृष्ट हैं, जिसमें एक धनुषाकार मार्ग के माध्यम से प्रतीक चिन्ह, लकड़ी या हाथीदांत या लोहे से उदाहरण है, जो कि संस्कृति का प्रतिनिधित्व प्रवेश किया जाता है। ईंटों और पृथ्वी के ऊपर बनी वस्तुएं, सोने के पेंडेंट, सिरेमिक वेयर, करता है या पर्यावरण के साथ मानव संपर्क, अर्धगोलक कीचड़ की परतें रखी गई है, जहां हथियार, कपड़े उनके शव के साथ दफन खासकर जब यह अपरिवर्तनीय परिवर्तन के टोंस का आधार एक बहुभुज पैर की अंगुली- किए गए थे। 13 से 17 वीं शताब्दी के बीच प्रभाव के तहत कमजोर हो गया है।
सू
र्य के करीब पहुंचने की मानव की पहली तैयारी में अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा अपना 'पार्कर सोलर प्रोब' जुलाई में लांच करने जा रहा है। 'पार्कर सोलर प्रोब' को फ्लोरिडा स्थित नासा के केनेडी स्पेस सेंटर से लांच कांप्लेक्स-37 से भेजा जाएगा। अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी ने एक बयान में कहा कि दो घंटे का लांच विंडो 31 जुलाई को सुबह चार बजे खुलेगा और उसके बाद 19 अगस्त तक हर दिन सुबह चार बजे से थोड़ा पहले खुलेगा। अंतरिक्ष के लिए रवाना होने के बाद अंतरिक्ष यान सीधा सूर्य के प्रभामंडल यानी कोरोना में पहुंचेगा, जोकि सूर्य के काफी करीब है जहां अब तक कोई मानव निर्मित वस्तु नहीं पहुंच पाई है। सूर्य की सतह से कोरोना की दूरी 38 लाख मील दूर है। सूर्य की प्रचंड ताप और विकिरण को झेलते हुए इस मिशन से विज्ञान की मौलिक गुत्थियां सुलझाने में मदद मिलेगी कि सौर वात किससे चालित होती है। यहां वात से अभिप्राय सूर्य से निकलने वाले पदार्थ से है जिससे ग्रहीय वातावरण का निर्माण होता है और पृथ्वी के नजदीक अंतरिक्ष के मौसम पर प्रभाव डालता है। मैरीलैंड स्थित जॉन्स हॉपकिंस अप्लायड फिजिक्स लेबोरेटरी के पार्कर सोलर प्रोब के प्रोजेक्ट मैनेजर एंडी ड्राइजमैन ने कहा, "यह दूसरा सबसे महत्वपूर्ण फ्लाइट पार्कर सोलर प्रोब है। हम फ्लोरिडा में इसे सुरक्षित अंजाम देने को लेकर उत्साहित हैं और अंतरिक्ष यान के लांच से पहले के कार्य में जुटे हुए हैं।" (एजेंसी)
16 खुला मंच
23 - 29 अप्रैल 2018
मैं इस बात को स्वीकार करने के लिए तैयार था कि मैं कुछ चीजें नहीं बदल सकता। - अब्दुल कलाम
अनुपम मिश्र
अभिमत
प्रसिद्ध पर्यावरणविद और बहुचर्चित पुस्तक ‘आज भी खरे हैं तालाब’ के लेखक
विश्व पुस्तक दिवस (23 अप्रैल) पर विशेष
पाल के किनारे रखा इतिहास
जिस किसी ने भी तालाब बनाया, वह महाराज या महात्मा ही कहलाया। एक कृतज्ञ समाज तालाब बनाने वालों को अमर बनाता था और लोग भी तालाब बनाकर समाज के प्रति अपनी कृतज्ञता ज्ञापित करते थे
भारत की बात
यह जनभागीदारी नहीं तो और क्या है कि एक आह्वान पर सवा करोड़ लोग गैस सब्सिडी छोड़ देते है। एक आह्वान पर 40 लाख से अधिक बुजर्ग ट्रेन टिकट की सब्सिडी छोड़ देते हैं
इ
स बात का गवाह बना कि भारत आज किन बदलावों को आत्मसात करता हुआ तेजी से आगे बढ़ रहा है। विकास का एक ऐसा ताना बाना देश में बुना जा रहा है, जिसमें हर नागरिक की पूरी भागीदारी है। भारत की ये बातें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सबके साथ साझा की और इस का गवाह बना सेंट्रल लंदन का ऐतिहासिक वेस्टमिंस्टर सेंट्रल हॉल। महात्मा गांधी की इसी सीख के सहारे प्रधानमंत्री ने बदलाव की नई इबारत लिखनी शुरू की, यह सब जानना एक प्रेरक अनुभव से गुजरने की तरह था। गांधी जी ने कहा था कि किसी भी नीति की सफलता को देखना है तो यह देखें कि आखिरी छोर पर बैठे व्यक्ति को उसका कितना फायदा पहुंच रहा है। गांधी जी ने लोगों को जैसे जोड़ा और कहा कि आप टीचर हैं तो अच्छी तरह पढ़ाओ, आजादी मिलेगी। सफाई कर सकते हो करो,आजादी मिलेगी। ओर आजादी का आंदोलन जनांदोलन बन गया। ठीक उसी रास्ते पर चलते हुए नरेंद्र मोदी ने स्वच्छता अभियान को जनांदोलन बना दिया। यह जनभागीदारी और जनांदोलन नहीं तो और क्या है कि एक आह्वान पर सवा करोड़ लोग गैस सब्सिडी छोड़ देते है। एक आह्वान पर 40 लाख से अधिक बुजर्ग ट्रेन टिकट की सब्सिडी छोड़ देते हैं। सच यही है कि गांधी जी ने जिस भावना से पूरे देश को जोड़ा आज वही भावना एक बार फिर सक्रिय है। इसीलिए देश के हर कोने में बेहतर सोच ओर विचार की फसलें लहलहा रही है। अगर एक गरीब महिला अपना मंगल सूत्र शौचाल के लिए बेच देती है, तो यह सामान्य नहीं बहुत बड़ी बात है। और सबसे बड़ी बात यह कि इस तरह की सारी मिसालें समाज के उस वर्ग के द्वारा प्रस्तुत की जा रही हैं, जो सदियों से उपेक्षित रहा है। इसी जनभागीदारी की वजह से करीब 3 लाख गांव खुले में शौचमुक्त हो गए हैं। अब 4 करोड़ परिवारों को बिजली मुहैया कराने की है। आजादी के बाद से अब तक सरकारें आईं और गई, लेकिन देश में उम्मीदों की हवा इस तरह नहीं चली। आज अगर देश का हर नागरिक आगे बढ़ कर देश के विकास में अपना योगदान देने को उत्सुक है, तो समझिए बदलाव की प्रक्रिया शुरू होई है। सोच बदली है तो बेहतर समाधान भी मिलेगा।
टॉवर
(उत्तर प्रदेश)
‘अ
च्छे-अच्छे काम करते जाना’, राजा ने कूड़न किसान से कहा था। कूड़न, बुढ़ान, सरमन और कौंराई थे चार भाई। चारों सुबह जल्दी उठकर अपने खेत पर काम करने जाते। दोपहर को कूड़न की बेटी आती, पोटली में खाना लेकर।
अच्छे काम करते जाना
एक दिन घर से खेत जाते समय बेटी को एक नुकीले पत्थर से ठोकर लग गई। उसे बहुत गुस्सा आया। उसने अपनी दरांती से उस पत्थर को उखाड़ने की कोशिश की। और फिर बदलती जाती है इस लंबे किस्से की घटनाएं बड़ी तेजी से। पत्थर उठाकर लड़की भागी-भागी खेत पर आती है। अपने पिता और चाचाओं को सब कुछ एक सांस में बता देती है। चारो भाइयों की सांस भी अटक जाती है। जल्दी-जल्दी सब घर लौटते हैं। उन्हें मालूम पड़ चुका है कि उनके हाथ में कोई साधारण पत्थर नहीं है, पारस है। वे लोहे की जिस चीज को छूते हैं, वह सोना बनकर उनकी आंखों में चमक भर देती है। पर आंखों की यह चमक ज्यादा देर तक नहीं टिक पाती। कूड़न को लगता है कि देर-सबेर राजा तक यह बात पहुंच ही जाएगी और तब पारस छिन जाएगा। ...तो क्या यह अच्छा नहीं होगा कि वे खुद जाकर राजा को सब कुछ बता दें।
किस्सा आगे बढ़ता है। फिर जो कुछ घटता है, वह लोहे का नहीं, बल्कि समाज को पारस से छुआने का किस्सा बन जाता है। राजा न पारस लेता है, न सोना। सब कुछ कूड़न को वापस देते हुए कहता है, ‘जाओ इससे अच्छे-अच्छे काम करते जाना, तालाब बनाते जाना।’
पाटन में चार बड़े तालाब
यह कहानी सच्ची है, ऐतिहासिक है- नहीं मालूम। पर देश के मध्य भाग में एक बहुत बड़े हिस्से में यह इतिहास को अंगूठा दिखाती हुई लोगों के मन में रमी हुई है। यहीं के पाटन नामक क्षेत्र में चार बहुत बड़े तालाब आज भी मिलते हैं और इस कहानी को इतिहास की कसौटी पर कसने वालों को लजाते हैं- चारों तालाब इन्हीं चारों भाइयों के नाम पर हैं। बुढ़ागर में बूढ़ा सागर है, मझगवां में सरमन सागर है, कुआंग्राम में कौंराई सागर है तथा कुंडम गांव में कुंडम सागर।
सरमन सागर
सन् 1907 में गजेटियर के माध्यम से इस देश का 'व्यवस्थित' इतिहास लिखने घूम रहे अंग्रेज ने भी इस इलाके में कई लोगों से यह किस्सा सुना था और फिर देखा-परखा था इन चार
इधर-उधर बिखरे ये सारे आंकड़े एक जगह रखकर देखें तो कहा जा सकता है कि इस सदी के प्रारंभ में आषाढ़ के पहले दिन से भादो के अंतिम दिन तक कोई 11 से 12 लाख तालाब भर जाते थे
23 - 29 अप्रैल 2018 बड़े तालाबों को। तब भी सरमन सागर इतना बड़ा था कि उसके किनारे पर तीन बड़े-बड़े गांव बसे थे। और तीनों गांव इस तालाब को अपने-अपने नामों से बांट लेते थे। पर वह विशाल ताल तीनों गांवों को जोड़ता था और सरमन सागर की तरह स्मरण किया जाता था। इतिहास ने सरमन, बुढ़ान, कौंराई और कूड़न को याद नहीं रखा, लेकिन इन लोगों ने तालाब बनाए और इतिहास को किनारे पर रख दिया था। देश के मध्य भाग में, ठीक हृदय में धड़कने वाला यह किस्सा उत्तर-दक्षिण, पूरब-पश्चिमचारों तरफ किसी न किसी रूप में फैला हुआ मिल सकता है और इसी के साथ मिलते हैं सैकड़ों, हजारों तालाब। इनकी कोई ठीक गिनती नहीं है। इन अनगिनत तालाबों को गिनने वाले नहीं, इन्हें तो बनाने वाले लोग आते रहे और तालाब बनते रहे।
सबने बनवाए तालाब
किसी तालाब को राजा ने बनाया तो किसी को रानी ने, किसी को किसी साधारण गृहस्थ ने, विधवा ने बनाया तो किसी को किसी आसाधारण साधु-संत ने- जिस किसी ने भी तालाब बनाया, वह महाराज या महात्मा ही कहलाया। एक कृतज्ञ समाज तालाब बनाने वालों को अमर
तालाब की परंपरा
समाज और उसके सदस्यों के बीच इस विषय में ठीक तालमेल का दौर कोई छोटा दौर नहीं था। एकदम महाभारत और रामायण काल के तालाबों को अभी छोड़ दें तो भी कहा जा सकता है कि कोई पांचवी सदी से पंद्रहवीं सदी तक देश के इस कोने से उस कोने तक तालाब बनते ही चले आए थे। कोई एक हजार वर्ष तक अबाध गति से चलती रही इस परंपरा में पंद्रहवीं सदी के बाद कुछ बाधाएं आने लगी थीं, पर उस दौर में भी यह धारा पूरी तरह से रुक नहीं पाई, सूख नहीं पाई। समाज ने जिस काम को इतने लंबे समय तक बहुत व्यवस्थित रूप में किया था, उस काम को उथल-पुथल का वह दौर भी पूरी तरह से मिटा नहीं सका। अठारहवीं और उन्नीसवीं सदी के अंत तक भी जगह-जगह पर तालाब बन रहे थे।
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और उसमें भी सबसे सूखे माने जाने वाले थार के रेगिस्तान में बसे हजारों गांवों के नाम ही तालाब के आधार पर मिलते हैं। गांवों के नाम के साथ ही जुड़ा है ‘सर’। सर यानी तालाब। सर नहीं तो गांव कहां? यहां तो आप तालाब गिनने के बदले गांव ही गिनते जाएं और फिर इस जोड़ में 2 या 3 से गुणा कर दें।
दिल्ली में 350 तालाब
महाभारत और रामायण काल के तालाबों को अभी छोड़ दें तो भी कहा जा सकता है कि कोई पांचवी सदी से पंद्रहवीं सदी तक देश के इस कोने से उस कोने तक तालाब बनते ही चले आए थे लेकिन फिर बनाने वाले लोग धीरे-धीरे कम होते गए। गिनने वाले कुछ जरूर आ गए पर जितना बड़ा काम था, उस हिसाब से गिनने वाले बहुत ही कम थे और कमजोर भी। इसीलिए ठीक गिनती भी कभी हो नहीं पाई। धीरे-धीरे टुकड़ों में तालाब गिने गए, पर सब टुकड़ों का कुल मेल कभी बिठाया नहीं गया। लेकिन इन टुकड़ों की झिलमिलाहट पूरे समग्र चित्र की चमक दिखा सकती है। लबालब भरे तालाबों को सूखे आंकड़ो में समेटने की कोशिश किस छोर से शुरू करें? फिर से देश के बीच के भाग में वापस लौटें।
वरुण देवता का प्रसाद
बनाता था और लोग भी तालाब बनाकर समाज के प्रति अपनी कृतज्ञता ज्ञापित करते थे।
खुला मंच
आज के रीवा जिले का जोड़ौरी गांव है, कोई 2500 की आबादी का, लेकिन इस गांव में 12 तालाब हैं।
मधुबनी के रंग में रंगया रेलवे स्ेशन
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तब सत्याग्रह अब सवच्याग्रह
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अरुणयाचल में सवच्तया कया
कवरयासत की रक्षया और सबक
सू्योद्
harat.com
sulabhswachhb
/2016/71597 आरएनआई नंबर-DELHIN
सेवा के 17 वर्ष
अक्षय पात्र
अक्ष् पयात्र
- 22 अप्रैल 2018 वर्ष-2 | अंक-18 | 16
सबसे बडया सककूली ककचन समस्या को हल करने बडी समस्या रही है। इस कया पौष्टिक खयानया कखलयानया में हर सुबह डेढ़ लयाख सककूली बच्चों के कलए सककूली बच्चों को दोपहर र में ‘अक्ष् पयात्र’ की रसोई भर में ककए जया रहे हैं में जु्या है अक्ष् पयात्र। ज्पु स्या की तरफ से इस तरह के और भी प््यास देश सं इस । है जयातया भोजन पकया्या
खयास बयातें
बच्चों अक्ष् पयात्र रोजयानया 16 लयाख करयातया है को पौष्टिक खयानया मुहै्या स्यानचों पर देश के दस रयाज्चों में 22 अक्ष् पयात्र की कवशयाल रसोई संस्याओं सरकयार के सया् कई अन् कया अक्ष् पयात्र को सह्ोग
शि
के कया्नी हो, ्हयां हर कयाम सयाफ करनया हो ्या कफर सबजी ज कक्या चयाहे आ्या गूं्नया हो, चयावल न धोए तो हया् से जयाते हैं, पर उनहें भयाप से स्रलयाई हैं। बत्ष ल शुद्ध हो कलए अलग-अलग मशीनें कमलने वयालया खयानया कबलककु जयातया है, तयाकक बच्चों को
एसएसबी ब्ूरो
की भूख क्षा की दरकषार पर पेट है, पर इस हमेिषा ही भषारी पड़ती रही है देि की समस्षा कषा तोड़ शिकषालषा पषात्र’ िे। ्ह कोशिि एक अिोखी संस्षा ‘अक्् शिशक्त करिे से जुड़ी देि के तमषाम बच्चों को ऐसी आपिे कभी क्षा । है इच्षािक्ति कषा भी िषाम 40 से 60 हजषार रोशट्षां मिीि देखी है जो घंटे में घी से चुपड़ भी डषाले? बिषािे के सषा्-सषा् उनहें देखे हैं, शजिमें तीि क्षा कभी आपिे ऐसे पतीले हो? क्षा आपिे कोई हजषार लीटर दषाल तै्षार हर सुबह डेढ़ से दो ऐसषा रसोईघर देखषा है जो षा पकषा कर उसे 40 से लषाख बच्चों के शलए खषाि
इसी के आसपास है ताल मुकेदान। आबादी है बस कोई 1500 की, पर 10 तालाब हैं गांव में। हर चीज का औसत निकालने वालों के लिए यह छोटा-सा गांव आज भी 150 लोगों पर एक अच्छे तालाब की सुविधा जुटा रहा है। जिस दौर में ये तालाब बने थे, उस दौर में आबादी और भी कम थी। यानी तब जोर इस बात पर था कि अपने हिस्से में बरसने वाली हरेक बूंद इकट्ठी कर ली जाए और संकट के समय में आसपास के क्षेत्रों में भी उसे बांट लिया जाए। वरुण देवता का प्रसाद गांव अपनी अंजुली में भर लेता था।
सर नहीं तो गांव कहां?
और जहां प्रसाद कम मिलता है? वहां तो उसका एक कण, एक बूंद भी भला कैसे बगरने दी जा सकती थी। देश में सबसे कम वर्षा के क्षेत्र जैसे राजस्थान
विशेष लेख करते हैं प्रभावित
‘सुलभ स्वच्छ भारत’ के वैसे तो सभी लेख प्रेरणादायक होते हैं लेकिन इसके विशेष लेख अपनी अलग छाप छोड़ जाते हैं। मैं इस अखबार का नियमित पाठक हूं, हमें इस बार का विश्व पृथ्वी दिवस पर प्रकाशित विशेष लेख पृथ्वी ‘प्रकृति और गांधी’ काफी प्रभावी लगा। इस लेख में लेखक ने बड़े ही सुदृढ़ता से प्रकृति के प्रति गांधी की संवेदनाओं को चित्रित किया है, जो कि काफी सराहनीय है। समाज के प्रत्येक मुद्दों और पहलुओं से अपने पाठकों को रूबरू कराने वाला यह समाचार पत्र समाज के प्रति अपने उत्तरदायित्वों का निर्वहन बखूबी कर रहा है। संतोष नारायण, दिल्ली
जहां आबादी में गुणा हुआ और शहर बना, वहां भी पानी न तो उधार लिया गया, न आज के शहरों की तरह कहीं और से चुरा कर लाया गया। शहर ने भी गांवों की तरह ही अपना इंतजाम खुद किया। अन्य शहरों की बात बाद में, एक समय की दिल्ली में कोई 350 छोटे-बड़े तालाबों का जिक्र मिलता है। गांव से शहर, शहर से राज्य पर आएं। फिर रीवा रियासत लौटें। आज के मापदंड से यह पिछड़ा हिस्सा कहलाता है। लेकिन पानी के इंतजाम के हिसाब से देखें तो पिछली सदी में वहां सब मिलाकर कोई 5000 तालाब थे।
मद्रास प्रेसिडेंसी में 53,000 तालाब
नीचे दक्षिण के राज्यों को देखें तो आजादी मिलने से कोई सौ बरस पहले तक मद्रास प्रेसिडेंसी में 53,000 तालाब गिने गए थे। वहां 1885 में सिर्फ 14 जिलों में कोई 43,000 तालाबों पर काम चल रहा था। इसी तरह मैसूर राज्य में उपेक्षा के ताजे दौर में 1980 तक में कोई 39,000 तालाब किसी न किसी रूप में लोगों की सेवा कर रहे थे। इधर-उधर बिखरे ये सारे आंकड़े एक जगह रखकर देखें तो कहा जा सकता है कि इस सदी के प्रारंभ में आषाढ़ के पहले दिन से भादो के अंतिम दिन तक कोई 11 से 12 लाख तालाब भर जाते थेऔर अगले जेठ तक वरुण देवता का कुछ न कुछ प्रसाद बांटते रहते थे। क्योंकि लोग अच्छे-अच्छे काम करते जाते थे। (अनुपम मिश्र की 1993 में छपी पुस्तक 'आज भी खरे हैं तालाब' कम पर्यावरण के साथ रचनात्मक लेखन की दृष्टि से असाधारण कृति है। जाने कितनी भाषाओं में कितनी-कितनी बार इस किताब के संस्करण छपे। इसी पुस्तक का संपादित अंश)
सभी तबकों से जुड़ने वाला अखबार
‘सुलभ स्वच्छ भारत’ न सिर्फ स्वच्छता के लिए, बल्कि समाज के पिछड़े व दबे-कुचले लोगों के लिए भी बहुत कुछ करने की ख्वाहिश जगाता है। इस अखबार को पढ़ने के बाद मेरी ही तरह बहुत से लोगों को यह अहसास हुआ है। यही इस अखबार की सबसे बड़ी कामयाबी है। ‘सुलभ स्वच्छ भारत’ ने लोगों में जो जागरूकता फैलाई है, ऐसे उदहारण बहुत कम देखने को मिलते हैं। हमारी यही ख्वाहिश है कि ‘सुलभ स्वच्छ भारत’ की पूरी टीम इसी तरह समाज के सभी तबकों के लिए काम करती रहे और उन्हें जागरुक करती रहे। नंदन त्रिपाठी रायपुर, छत्तीसगढ़
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फोटो फीचर
23 - 29 अप्रैल 2018
जाल फिर फेंक रे मछेरे...
‘एक बार और जाल फेंक रे मछेरे...जाने किस मछली में बंधन की चाह हो’...तिरुवनंतपुरम् के शंखमुखम् बीच पर हजारों मछुआरे इसी उम्मीद में हर दिन अपना जाल बिछाते हैं। लेकिन यह सिर्फ मछलियों का शहर भर नहीं है...
फोटो : िशप्रा दास
23 - 29 अप्रैल 2018
भगवान विष्णु इसी ऐतिहासिक शहर में विश्राम करते हैं। पद्मनाभम् मंदिर तिरुवनंतपुरम् की सबसे बड़ी पहचान है। कोवलम बीच पर उगते सूरज का स्वागत... जाल... मछलियां और विश्राम की मुद्रा में भगवान विष्णु...
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विकास
23 - 29 अप्रैल 2018
गरीबों को घर देने में यूपी सबसे अव्वल
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के लिए यह क्षण बहुत ही गर्व की बात रही, जब ग्रामीण विकास मंत्रालय ने इस डेटा को जारी किया
उ
एस शुक्ल
त्तर प्रदेश गरीब परिवारों के लिए 2800 से ज्यादा घरों का निर्माण करा कर प्रधान मंत्री आवास योजना-ग्रामीण (पीएमएजी) के तहत पूरे देश में सबसे आगे हो गया है लेकिन, दुर्भाग्यवश, उत्तर प्रदेश अक्टूबर, 2018 तक खुले में शौच मुक्त (ओडीएफ) बनाने के अपने लक्ष्यों के बहुत पीछे है। जब ग्रामीण विकास मंत्रालय ने इस डेटा को जारी किया मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के लिए यह गर्व की बात रही। ग्रामीण विकास राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभारी) महेंद्र सिंह ने कहा कि राज्य ने ग्रामीण इलाकों में गरीब परिवारों के लिए 7,71,073 घरों का निर्माण करके सिर्फ 9 महीने में 85 प्रतिशत लक्ष्य हासिल कर लिया है। महेंद्र सिंह ने एक संवाददाता सम्मेलन में बताया कि प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत अब तक 10 हजार करोड़ रुपए से अधिक की धनराशि व्यय की गई है, जिसे सीधे लाभार्थियों के खाते में पहुंचा दिया गया है। मंत्री ने बताया कि प्रधानमंत्री आवास योजना की शुरूआत 20 नवंबर, 2016 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आगरा से किया था। वर्ष 2016-17 और 2017-18 दोनों वर्षों के समेकित लक्ष्यों के अधीन एक ही वर्ष 2017-18 में आवासों का निर्माण पूरा कर लिया गया है। उन्होंने बताया कि पहले उत्तर प्रदेश आवास निर्माण में सबसे निचले पायदान पर था, लेकिन राज्य सरकार के प्रयासों से अब प्रथम स्थान पर आ गया है। यह दो कारणों से उत्तर प्रदेश के लिए यह एक ऐतिहासिक उपलब्धि रही- पहला, समाजवादी पार्टी के शासनकाल के दौरान वर्ष 2016-2017 में उत्तर प्रदेश इस सूची के सबसे नीचले पायदान पर था। दूसरा, राज्य द्वारा योजना के कार्यान्वयन से
प्राप्त लक्ष्य 85 प्रतिशत है, जो पीएमए-जी के तहत राष्ट्रीय औसत 34 प्रतिशत की तुलना में दोगुने से भी अधिक है। हालांकि उत्तर प्रदेश के मुकाबले दूसरे राज्य आधे अंक के निशान से नीचे नहीं थे, जिसे अक्सर भ्रष्टाचार और केंद्रीय योजनाओं के खराब कार्यान्वयन के कारण 'उल्टा प्रदेश' कहा जाता है। छत्तीसगढ़ और मध्य प्रदेश ने क्रमशः दूसरे और तीसरे स्थान पर केवल 47 प्रतिशत और 45 प्रतिशत ही लक्ष्य हासिल किए हैं। लक्ष्य बहुत मुश्किल था, क्योंकि केंद्र सरकार ने 2016-17 और 2017-18 के लिए एक समेकित लक्ष्य हासिल करने के लिए सभी राज्यों को निर्देश दिया था। उत्तर प्रदेश के लिए यह लगभग असंभव था, क्योंकि अखिलेश यादव शासनकाल के दौरान इस योजना पर कोई काम नहीं किया गया था। समाजवादी पार्टी सरकार ने राज्य के हिस्से से दी जाने वाली 40 प्रतिशत निधि उपलब्ध नहीं कराई, नतीजतन इस केंद्रीय योजना का क्रियान्वयन नहीं हो पाया। हालांकि, जब 19 मार्च 2017 को योगी आदित्यनाथ ने राज्य के मुख्यमंत्री पद का कार्यभार संभाला, तब उन्होंने प्रधान मंत्री की प्रमुख योजना में व्यक्तिगत रुचि ली। उन्होंने राज्य के ग्रामीण विकास मंत्री, सभी सांसदों, विधायकों और राज्य ग्रामीण विकास विभाग के अधिकारियों के साथ समीक्षा बैठकें आयोजित कीं और युद्ध स्तर पर ग्रामीण क्षेत्रों में गरीब परिवारों के लिए घर बनवाने का काम शुरू करने का निर्देश दिया। उन्होंने अपने सभी मंत्री सहयोगियों और सांसदों
को निर्देश दिया कि वे पीएमए-जी योजनाओं के तहत चुने गए गरीब परिवारों को व्यक्तिगत रूप से उनके घरों की चाबियां देने के लिए अपने निर्वाचन क्षेत्रों में आयोजन करें। 12 मार्च 2018 को अपने संसदीय निर्वाचन क्षेत्र वाराणसी के अंतिम दौरे के दौरान प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने उत्तर प्रदेश में पीएमए-जी को सफल बनाने में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के प्रयासों की काफी सराहना की। पीएम मोदी ने अपने लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र में इस योजना के तहत चयनित परिवारों को घरों की चाभियां सौंपते हुए कहा कि सीएम योगी ने ग्रामीण अवास योजना को एक मिशन और बेघर गरीबों को छत प्रदान करना अपनी सरकार की पहली प्राथमिकता बनाई है। मुझे आश्चर्य है कि पिछले छह महीनों में करीब 5 लाख आवास का निर्माण किया जा चुका है। हालांकि उत्तर प्रदेश पीएमए-जी में एक मील का पत्थर हासिल कर चुका है, लेकिन यह स्वच्छ भारत मिशन के लक्ष्य को हासिल करने के लिए बड़ी चुनौती का सामना कर रहा है। जबकि स्वच्छ भारत मिशन प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी की सबसे प्रमुख योजनाओं में से एक है। मार्च 2018 तक 75 जिलों में से सिर्फ 10 जिलों को ही खुले में शौचमुक्त (ओडीएफ) घोषित किया गया है। राज्य भर में 1.25 लाख किलोमीटर सड़कें बनाने की तरह ही योगी सरकार को अक्टूबर 2018 की निर्धारित समयसीमा से पहले ओडीएफ का लक्ष्य हासिल करने में असफल होने पर इसी तरह की शर्मिंदगी का सामना करना पड़ सकता है। हालांकि इसके लिए मुख्यमंत्री ने समय सीमा बढ़ा दी है, लेकिन तीन महीने के बाद भी राज्य भर की सड़कें खराब स्थिति में ही दिख रही हैं। सरकार के लिए सबसे खतरनाक इन 10 ओडीएफ जिलों से आने वाली रिपोर्ट हैं। इनमें से ज्यादातर जिलों में लक्ष्य हासिल करने के लिए अधिकारियों ने शौचालय निर्माण के झूठे आंकड़े दिए हैं। जैसे शामाली जिले में, एक दर्जन से अधिक गांव हैं, जिन्हें शौचालय निर्माण के बिना ही ओडीएफ घोषित किया गया है। इसी तरह की रिपोर्ट बिजनौर, हापुड़ और मेरठ जिलों से भी प्राप्त हुई है। इन दस ओडीएफ जिलों में लगभग 3.98 लाख शौचालयों का निर्माण किया गया है, जबकि वास्तविकता इन आंकड़ो से भिन्न है। ग्रामीण विकास मंत्रालय ने पहले ही शौचालय निर्माण के सभी आंकड़ो को देखते हुए सभी राज्यों को चेतावनी दे दी है। यह कार्य इतने जल्दी संपन्न हो जाना असंभव है। इसके लिए मुख्यमंत्री योगी ने प्रगति की समीक्षा के लिए राज्य के शेष 65 जिलों में जिला मजिस्ट्रेट, पंचायती राज विभाग के अधिकारियों के साथ वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए
राज्य ने ग्रामीण इलाकों में गरीब परिवारों के लिए 7,71,073 घरों का निर्माण करके सिर्फ 9 महीने में 85 प्रतिशत लक्ष्य हासिल कर लिया है
एक उच्च स्तरीय बैठक की और ओडीएफ लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए एक रणनीति पर चर्चा की। बैठक के दौरान योगी आदित्यनाथ ने डीएम और अधिकारियों को इस लक्ष्य को समय सीमा तक हासिल करने की चेतावनी दी है। हालांकि पंचायती राज विभाग के अधिकारियों ने कहा कि लक्ष्य को प्राप्त करने में जो देरी हो रही है, वह केंद्र सरकार द्वारा निधि जारी करने में होने वाली देरी के कारण है। गैरकानूनी खनन बंद होने के बाद मौरंग, बालू और कुचल पत्थरों जैसे निर्माण सामग्री की कीमतों में तीन से चार गुना वृद्धि हुई है। एक वरिष्ठ पंचायती राज विभाग के अधिकारी ने कहा कि पैसे उतने ही मिले, जितने आवंटित किए गए थे, लेकिन सामान की कीमतें आसमान छू रही हैं। हम इस आवंटित धन के साथ मंत्रालय के निर्देश पर शौचालय कैसे बनाएं? उन्होंने कहा कि हम निर्माण सामग्री की कीमतों में बढ़ोत्तरी के कारण इस योजना के तहत निर्धारित समय से लगभग छह महीने पीछे हैं और धन जारी करने में देरी की जा रही है। एक साल बाद भी, ओडीएफ योजना सीतापुर जिले के एक दलित-बहुल गांव तक नहीं पहुंच पाई, जो राज्य की राजधानी लखनऊ से सिर्फ 120 किलोमीटर दूर है। 1300 से अधिक की आबादी होने के बावजूद सीतापुर जिले के पेरिसवा ब्लॉक के तहत आने वाले पुलरिया गांव को अभी तक इस योजना का एक भी शौचालय नहीं मिला है। स्वतंत्रता के 70 साल हो जाने और इस योजना को लगभग चार साल पहले से लॉन्च होने के बाद भी ग्रामीणों को अभी भी खुले में शौच करने के लिए जाना पड़ता है। ग्राम प्रधान राम सागर ने कहा कि कुछ फंड पिछले साल आए थे, लेकिन उन्हें अन्य गांवों में शौचालय बनाने के लिए दे दिया गया। इसके लिए हमने फिर से अधिकारियों से संपर्क किया है, लेकिन अब तक कोई भी अधिकारी हमारे गांव में सर्वेक्षण के लिए नहीं आया है जब ग्रामीणों ने इस मामले के बारे में सीडीओ डीके तिवारी को बताया तो वह हैरान थे। हालांकि उन्होंने ग्रामीणों को सर्वेक्षण के लिए एक टीम भेजने का आश्वासन दिया। ग्रामीणों ने विरोध प्रदर्शन के बाद प्रतापगढ़ जिले के रानीगंज तहसील के बाबूपट्टी में शौचालय निर्माण शुरू किया था, जो सिर्फ तीन महीने पहले शुरू हुआ था। यह गांव बॉलीवुड मेगास्टार और स्वच्छ भारत मिशन के ब्रांड एंबेसडर अमिताभ बच्चन का है। उनके पिता हरिवंश राय बच्चन का जन्म इसी गांव में हुआ था। ये दोनों उदाहरण सुझाव देने के लिए पर्याप्त है कि मुख्यमंत्रियों की प्रत्यक्ष निगरानी के बावजूद, ओडीएफ योजना अभी तक उत्तर प्रदेश में सही तरीके से क्रियान्वित नहीं हो पाई है। बाकी बचे 65 जिलों को सिर्फ सात महीनों में ओडीएफ बनाना बहुत मुश्किल लग रहा है, लेकिन यह असंभव नहीं है। योगी सरकार को अक्टूबर 2018 तक उत्तर प्रदेश ओडीएफ बनाने की समय सीमा का और विस्तार करना होगा।
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मिसाल
पर्यावरण के अनूठे रखवाले
पर्यावरण के बढ़े खतरे के बीच लोगों ने इसे बचाने के लिए अपने-अपने स्तर पर कई अभिनव व सफल प्रयोग शुरू कर दिए हैं
खास बातें
प्रसिद्ध कार्टूनिस्ट और लेखक आबिद सुरती पानी बचाने में जुटे हैं बलबीर सिंह सीचेवाल को उनके गांव वाले ‘इको बाबा’ कहते हैं कुछ गांव पेड़ों की रक्षा के लिए सामूहिक अभियान चला रहे हैं
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एसएसबी ब्यूरो
र्यावरण संकट का मुद्दा जहां एक तरफ लगातार गहराता जा रहा है, वहीं इसे बचाने के लिए कुछ ऐसे प्रयोग भी हो रहे हैं, जो प्रेरक के साथ उम्मीद बढ़ाने वाली हैं। ऐसी कोशिशें करनेवाले अकेले भी हैं तो पूरे-के-पूरे गांव भी मिलकर यह काम कर रहे हैं। आइए जानते हैं ऐसे ही कुछ लोगों के बारे में-
क्या आपका नल टपकता है?
हर संडे जब लोग छुट्टी के मूड में वीकेंड प्लान कर रहे होते हैं, सुबह-सुबह 80 साल का एक बुजुर्ग मुंबई के मीरा रोड पर एक कांप्लेक्स के हर अपार्टमेंट का दरवाजा खटखटाकर एक ही सवाल पूछते हैं- क्या आपका नल टपक रहा है? अगर जवाब 'ना' मिलता है तो वह माफी मांगकर अगले दरवाजे की ओर बढ़ जाते हैं। जवाब 'हां' मिलता है तो उनके साथ मौजूद प्लंबर और वॉलंटियर अंदर जाकर टपकता नल ठीक कर देते हैं। यह सज्जन हैं आबिद सुरती, जिनकी पहचान लेखक और कार्टूनिस्ट के रूप में है। वह 80 किताबें लिख चुके हैं। सुरती मानते हैं कि पानी की एक-एक बूंद कीमती है और टपकते नल और पाइपलाइन ठीक कर हम हजारों लीटर पानी बचा सकते हैं। सुरती की इस सोच के पीछे उनके बचपन की यादें जुड़ी हैं। वह सुबह-सुबह 4 बजे मां को पानी के लिए कतार में खड़े हुए और लोगों को पानी की बूंद-बूंद
के लिए लड़ते देखते थे। बकौल सुरती, 'जब भी मैं नल टपकते देखता हूं तो बचपन की घटनाएं याद आ जाती हैं।' 2007 में उन्होंने कहीं खबर पढ़ी कि अगर किसी टपकते नल से प्रति सेकंड एक बूंद पानी भी गिरे तो हर महीने एक हजार लीटर पानी बर्बाद हो जाएगा। यह बात उनके मन में बैठ गई। सुरती ने 'ड्रॉप डेड' नामक एनजीओ बनाया। पहले ही साल उन्होंने मीरा रोड पर 414 घरों के नल फ्री में ठीक कराकर 4 लाख लीटर से भी ज्यादा पानी बचाने में अपना योगदान दिया। हालांकि यह काम इतना आसान भी नहीं था। शुरू में घरवाले और दोस्तरिश्तेदार भी खुश नहीं हुए। वे कहते थे कि कुछ बूंदें बचाकर क्या होगा? फिर आमतौर पर घर के दरवाजे महिलाएं खोलती थीं और अनजान पुरुषों को देखकर दरवाजा बंद कर लेती थीं। ऐसे में सुरती ने एक फीमेल वॉलंटियर को भी साथ लेना शुरू किया। उनका दावा है कि बरसों से की जा रही इन कोशिशों से कम-से-कम एक करोड़ लीटर पानी बचाने में उन्होंने योगदान दिया है। इस योगदान को देखते हुए सुपरस्टार अमिताभ बच्चन ने उन्हें अपने टीवी शो में बुलाकर उनके फाउंडेशन को 11 लाख रुपए की सहायता राशि दी। सुरती कहते हैं कि अगर आप ईमानदारी से कोई अच्छा काम करना चाहें तो पूरी कायनात आपकी मदद करने लग जाती है।
इको बाबा
गांव वाले उन्हें संत बुलाते हैं, लेकिन दुनिया के
आबिद सुरती ने 'ड्रॉप डेड' नामक एनजीओ बनाया। पहले ही साल उन्होंने मीरा रोड पर 414 घरों के नल फ्री में ठीक कराकर 4 लाख लीटर से भी ज्यादा पानी बचाने में अपना योगदान दिया
दूसरे देशों में उन्हें 'इको बाबा' के नाम से जाना जाता है। हम बात कर रहे हैं पर्यावरण प्रेमी बलबीर सिंह सीचेवाल की, जिन्होंने पंजाब में मर रही नदी काली बीन को फिर से जिंदा करने का काम किया। कई शहरों व गांवों का गंदा पानी और कूड़ा काली बीन नदी में डाला जाता था। इस वजह से यह नदी गंदे नाले में तब्दील हो रही थी। नदी से आती बदबू की वजह से किनारे से गुजर रहे लोगों को नाक पर रुमाल रखना पड़ता था, लेकिन सीचेवाल के प्रयासों से आज इसके किनारे लोग पिकनिक मानते हैं। काली बीन नदी होशियारपुर जिले में 160 किमी एरिया में बहती है। इसी नदी के किनारे 500 साल पहले गुरु नानक देव को आत्मज्ञान हासिल हुआ था। लोगों की लापरवाही और प्रशासन की बेरुखी की वजह से यह ऐतिहासिक नदी करीब-करीब खत्म हो गई थी। साल 2000 में संत सीचेवाल ने इस नदी को साफ करने का संकल्प लिया। अपने साथियों और स्वयंसेवकों के साथ मिलकर इसके तटों को ठीक किया और नदी के किनारे-किनारे सड़कें बनाईं। सीचेवाल ने लोगों को कूड़ा कहीं और डालने के लिए राजी किया तो नदी में मिलने वाले गंदे नालों का रुख भी मोड़ा गया। शुरुआत में लोग उनका मजाक उड़ाते थे, लेकिन धुन के पक्के संत ने किसी की परवाह नहीं की। धीरे-धीरे लोग खुद उनके साथ जुड़ते गए। उनके संकल्प और मेहनत से नदी को जिंदगी वापस मिल गई। टाइम मैगजीन ने उन्हें 2008 में दुनिया भर से चुने गए '30 हीरोज ऑफ इन्वाइरनमेंट' में शामिल किया तो पूर्व राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम से लेकर ऐक्टर आमिर खान तक उनकी तारीफ कर चुके हैं। संत सीचेवाल अब गंगा सफाई अभियान में भी योगदान दे रहे हैं। मध्य प्रदेश के रतलाम जिले में एक छोटा-सा गांव है करमदी। दूसरे गांवों की तरह ही यहां भी ढेर सारे पेड़-पौधे हैं, लेकिन
यहां के लोगों के लिए ये पेड़ों से कुछ बढ़कर हैं। वे पेड़-पौधों को अपने घर का सदस्य मानकर उनकी देखभाल करते हैं। ये पेड़-पौधे किसी के माता-पिता हैं तो किसी के भाई-बहन। लोग घर के किसी सदस्य के देहांत पर भी पेड़ लगाते हैं और फिर परिजनों की तरह ही इनकी देखभाल करते हैं। किसी तरह के संकट या तकलीफ के वक्त लोग पेड़ों के सामने प्रार्थना करते हैं। वजह है, लोगों का इन पेड़ों से जुड़ा विश्वास। लोग रक्षाबंधन, होली, दिवाली और दूसरे त्योहार पेड़-पौधों के साथ भी मनाते हैं। पेड़ों को अहमियत देने का एक और उदाहरण मिलता है बिहार के भागलपुर जिले में। यहां के गांव धरहरा में जब किसी घर में बेटी जन्म लेती है तो उस परिवार के सदस्य गांव में 10 पौधे लगाते हैं। बरसों पहले शुरू हुई यह परंपरा अब वहां की पहचान बन गई है। यह पूरा गांव पेड़ों से भरा हुआ है। यही नहीं, बेटियों के जन्मदिन मनाने के दौरान भी परिवार के लोग इन पेड़ों का जन्मदिन मनाना नहीं भूलते। बच्चियों के साथ ही ये पेड़ भी बड़े होते हैं और आगे जाकर परिवार के लिए कमाई का जरिया भी बनते हैं। ऐसी ही एक मिसाल है राजस्थान के झालावाड़ जिले का गजवाड़ा गांव। यहां कोई पेड़ नहीं काट सकता। पेड़ों की रक्षा के लिए बाकायदा रातभर पहरा दिया जाता है। यहां के अनपढ़ लोगों को भी पर्यावरण का महत्व बखूबी पता है। वे लोग जुनून के साथ रात-दिन पेड़ों की रक्षा के लिए जुटे रहते हैं। यह सिलसिला करीब 30 साल पहले शुरू हुआ। उस वक्त गजवाड़ा गांव में कई किलोमीटर तक सागवान के पेड़ों का जंगल फैला हुआ था। सागवान की लकड़ी की बढ़ती मांग के चलते लालची लोगों ने यहां के पेड़ काटने शुरू कर दिए। तब गांव के कुछ बुजुर्ग पेड़ों को बचाने आगे आए। तब से यह सिलसिला लगातार जारी है। यहां किसी को पेड़ काटने नहीं दिया जाता। अगर कोई पेड़ काटते हुए पकड़ा जाता है तो उस पर जुर्माना लगाया जाता है। अच्छी बात यह है कि इस गांव से प्रेरणा लेकर आसपास के गांवों में भी पेड़ों को बचाने की कोशिशें शुरू हो गई है।
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स्वच्छता
23 - 29 अप्रैल 2018
20 हजार गांवों में मनेगा स्वच्छ भारत दिवस
शौचालय के लिए बेच दी गाय बिहार के गया जिले की एक महिला ने शौचालय के लिए अपनी वह गाय बेच दी, जिससे घर की रोटी चलती थी
छत्तीसगढ़ की सभी दस हजार 971 ग्राम पंचायतों के लगभग बीस हजार गांवों स्वच्छ भारत दिवस मनाने की तैयारी
रा
ष्ट्रव्यापी ग्राम स्वराज अभियान के तहत छत्तीसगढ़ की सभी दस हजार 971 ग्राम पंचायतों के लगभग बीस हजार गांवों स्वच्छ भारत दिवस मनाया जाएगा। मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह ने प्रदेश के सभी पंच-सरपंचों और ग्रामीणों से स्वच्छ भारत दिवस के आयोजनों में सक्रिय भागीदारी की अपील की है। ऐसी ग्राम पंचायतें, जो अब तक खुले में शौचमुक्त (ओडीएफ) घोषित नहीं हो पाई हैं, उनमें स्वच्छता के लिए ग्रामीणों के सहयोग से जनआंदोलन चलाया जाएगा। पंचायत और ग्रामीण
विकास मंत्री अजय चंद्राकर ने भी इन आयोजनों में पंचायत प्रतिनिधियों और आम जनता से सहयोग का आह्वान किया है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सर्वोच्च प्राथमिकता वाले स्वच्छ भारत मिशन के शुरू होने के लगभग साढ़े तीन वर्ष के भीतर छत्तीसगढ़ की दस हजार 971 ग्राम पंचायतों में से दस हजार 725 ग्राम पंचायतें खुले में शौचमुक्त (ओडीएफ) होने की स्थिति में आ चुकी हैं। इन ग्राम पंचायतों के 18 हजार 769 गांव भी ओडीएफ ग्राम बनने की स्थिति में आ गए हैं। राज्य के नक्सल प्रभावित इलाकों की ग्राम पंचायतों को भी ओडीएफ घोषित करने के लिए जनसहयोग से लगातार प्रयास किए जा रहे हैं। यह मिशन राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की जयंती पर दो अक्टूबर 2014 से शुरू हुआ है। उनकी 150वीं जयंती पर दो अक्टूबर 2019 तक इस मिशन के तहत पूरे देश को खुले में शौच की प्रथा से मुक्त करने का लक्ष्य है। मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह ने इस मिशन में प्रदेशवासियों के भरपूर सहयोग को देखते हुए छत्तीसगढ़ को राष्ट्रीय लक्ष्य से एक वर्ष पहले की दो अक्टूबर 2018 तक 'उज्जर-सुग्घर हमर छत्तीसगढ़' के रूप में शत-प्रतिशत ओडीएफ बनाने का लक्ष्य तय किया है। (आईएएनएस)
जेलों में महिला कक्षपालों के लिए बनेगा शौचालय
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च्छ भारत स्वस्थ भारत के तहत खुले में शौच से मुक्ति अभियान में जब लोगों को जागरूक किया जाने लगा तो तर्क और बहाने भी साथ-साथ चलने लगे। पक्का मकान तो है, पर शौचालय नहीं। क्यों नहीं? जवाब होता है, पैसा नहीं है। लेकिन, तेतरी देवी जैसी वृद्ध महिला इसकी सफलता के उस ध्वजवाहक के रूप में खड़ी हैं, जो समाज को आईना दिखा रही हैं। उन्होंने घर की इज्जत को दूध से ज्यादा जरूरी समझा। इसीलिए अपनी
बि
हार के केंद्रीय, मंडल व उप काराओं में महिला कक्षपालों के लिए शौचालय सह स्नानागार के निर्माण किया जाएगा। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के समक्ष महिला कक्षपालों के लिए निर्मित होनेवाले शौचालयों की डिजाइन की प्रस्तुतीकरण दी गई। केंद्रीय, मंडल व उप काराओं में महिला कक्षपालों के लिए शौचालय सह स्नानागार के निर्माण से संबंधित प्रस्तुतीकरण महानिरीक्षक,
पास बहू आई। तेतरी देवी कहती हैं कि बहू ने भी शौचालय पर जोर दिया। वह खुद इसे समझ रही थीं, पर पैसे का अभाव था। बहू ने अपना जेवर दिया तो मना कर दिया कि यह उसकी अमानत है। फिर गाय बेचने का फैसला किया। गाय चली गई तो अब पति को दूध नहीं दे पाती हैं। वह कहती हैं कि गाय तो फिर आ जाएगी, शौचालय जरूरी था। जागरूकता अभियान वाले भी बोलते थे तो अच्छा नहीं लगता था। (एजेंसी)
एंजाइम दिलाएगा प्रदूषण से निजात वैज्ञानिकों ने ऐसा एंजाइम तैयार किया है जो प्लास्टिक को खत्म करने में सहायक है
नीतीश कुमार ने दिया बिहार के जेलों में महिला कक्षपालों के लिए शौचालय निर्माण की प्रक्रिया शुरू करने का निर्देश
कारा एवं सुधार सेवाएं आनंद किशोर द्वारा दिया गया। चार मॉडल पर चर्चा की गई। मुख्यमंत्री ने निर्देश दिया कि महिलाओं की संख्या को देखते हुए शौचालय-सह-स्नानागार की संख्या का सही आकलन किया जाए। उन्होंने निर्देश देते हुए कहा कि निर्माण गुणवत्तापूर्ण हो। शौचालय बनाने के क्रम में यह ध्यान देने की जरुरत है कि शौचालय देसी एवं विदेशी दोनों शैली की बननी चाहिए। इस मौके पर गृह विभाग के प्रधान सचिव आमिर सुबहानी, पुलिस महानिदेशक-सह-अध्यक्ष बिहार पुलिस भवन निर्माण निगम सुनील कुमार, मुख्यमंत्री के प्रधान सचिव चंचल कुमार, मुख्यमंत्री के सचिव अतीश चंद्रा आदि उपस्थित थे। (एजेंसी)
गाय बेच दी। वह गाय उनकी आय का जरिया थी। बिहार के गया जिले में बाराचट्टी प्रखंड की सरमां पंचायत में एक गांव है तेवारीचक। तेतरी देवी यहीं की रहने वाली हैं। उनकी उम्र 70 वर्ष के करीब है। आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं है। इंदिरा आवास योजना से बने घर में पति और बेटे-बहू के साथ रह रही हैं। वह जीविका समूह की अध्यक्ष भी हैं। बेटे की शादी की तो घर में मैट्रिक
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ज्ञानिकों ने पर्यावरण प्रदूषण के लिए जिम्मेदार एक बड़ी समस्या के निदान में कामयाबी पाई है। उनका दावा है कि, उन्होंने एक ऐसा एंजाइम बनाया है जो आम तौर पर प्रदूषण पैदा करने वाले प्लास्टिक को खत्म कर सकता है। इस एंजाइम के विकास से पॉलीथीन टेरिफ्थेलैट (पीईटी ) से बने करोड़ों टन बोतलों का पुनर्चक्रण मुमकिन हो सकता है, जो अपने इस्तेमाल के बाद सैकड़ों साल तक पर्यावरण में बनी रहती हैं। ब्रिटेन के पोर्ट्समाउथ विश्वविद्यालय एवं और
अमेरिकी ऊर्जा मंत्रालय के राष्ट्रीय अक्षय ऊर्जा प्रयोगशाला ( एनआरईएल ) के अनुसंधानकर्ताओं ने पीईटीएस एंजाइम की संरचना का अध्ययन किया और उसकी कार्यप्रणाली को समझने का प्रयत्न किया। हाल में विकसित यह एंजाइम पीईटी को नष्ट करने में सक्षम बताया जा रहा है। वैज्ञानिकों का कहना है अनजाने में ही इस एंजाइम के खोज में सफलता मिल गई। इस खोज में वैज्ञानिकों को सफलता जापान के रिसाइकिल केंद्र में प्लास्टिक खाने वाले प्राकृतिक जीवाणु पर शोध के दौरान मिली। शोधकर्ताओं का कहना है कि अब वह इसमें और सुधार कर रहे हैं ताकि औद्योगिक तौर पर इसका इस्तेमाल कर प्लास्टिक को नष्ट किया जा सके। पोर्ट्समाउथ विश्वविद्यालय के शोधकर्ता मैकगेहान का कहना है कि प्लास्टिक की समस्या से सभी प्राणी जूझ रहे हैं। इसको लेकर अरसे से वैज्ञानिक समुदाय प्लास्टिक के निपटान के लिए तकनीक के विकास के लिए प्रयास कर रहा था। (एजेंसी)
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जेंडर
हरिदासी
हरिदासी को वृंदावन का सहारा वृंदावन इतना भाया कि वापस जाने का मन ही नहीं हुआ- हरिदासी
ज
प्रियंका तिवारी
ब राधा रानी ने जीवन में कष्ट ही लिखा है तो उनकी शरण में रह कर ही उसे सहा जाए। अगर जीवन में सुख होता तो राधा रानी हमारे पति और पुत्र को नहीं छीनतीं। हमें बेसहारा और दर दर की ठोकरें खाने को नहीं छोड़ देतीं। यह कहानी है वृंदावन के शारदा आश्रम में रहने वाली हरिदासी की। हरिदासी कहती हैं कि सभी के उलाहनों से और रोज- रोज की प्रताड़ना से तंग आकर हम राधा रानी की शरण में आ गए। ऐसा नहीं है कि परिवार में सिर्फ पति और बच्चे ही थे। और लोग भी थे, लेकिन हमने सबको छोड़ दिया। मैं उन पर बोझ नहीं बनना चाहती थी।
बीमारी ने छीना पति
त्रिपुरा की रहने वाली हरिदासी पति और बच्चे की मौत के बाद वृंदावन आ गई और यहां पर सबसे पहले भजन मंडली में शामिल हुई। वह भी दूसरी माताओं की तरह ही भजन कीर्तन कर अपनी जीविका चलाने लगी। उन्हें वृंदावन इतना भाया की वह फिर लौट कर त्रिपुरा नहीं गई और यहीं राधा रानी और मीरा बाई का भजन कीर्तन करने लगी। हरिदासी कहती हैं कि उनकी शादी 16 साल की उम्र में हो गई थी। पति एक स्कूल में चपरासी का काम करते थे। 17 साल की उम्र में एक बच्चा हुआ। हरिदासी अपने जीवन से काफी खुश थी, लेकिन उनकी ये खुशी शायद उनकी किस्मत को रास नहीं आई। पति बीमार रहने लगे। उनकी बीमारी का कुछ पता नहीं चल पाया और उनकी मृत्यु हो गई। अभी हरिदासी पति के गम से उबरी भी नहीं थी
कि उनके बच्चे की भी मृत्यु हो गई। इसके बाद वह काफी दुखी रहने लगी। हालांकि हरिदासी की दो बहनें हैं, लेकिन पति की मृत्यु के बाद किसी ने भी उनकी सुध नहीं ली। ससुराल में भी सभी लोगों का बर्ताव उनके प्रति काफी खराब रहने लगा। इन सभी बातों से वह हमेशा दुखी रहती थी।
पड़ोसियों के साथ आई वृंदावन
हरिदासी को पता चला कि उनके पड़ोस से कुछ लोग वृंदावन जा रहे हैं तो उन्होंने भी उनके साथ वहां जाने का विचार किया। उसके बाद वह वृंदावन आई और यहीं की होकर रह गई। हरिदासी के गांव के लोग जब वापस जाने लगे तो उन्होंने उनसे भी चलने को बोला, लेकिन वह उनके साथ वापस नहीं गई, बल्कि यहीं भगवान की शरण में रहने का फैसला किया।
एक्सीडेंट में टूटे हाथ-पैर
वृंदावन में हरिदासी ठाकुर जी, राधा रानी और मीराबाई के मंदिरों में भजन करती और उससे मिलने वाले प्रसाद से भोजन करती थी। हरिदासी कहती है कि वह अपनी इसी दिनचर्या में व्यस्त रहती थी, उन्हें लगा था कि वह अब यहां सुकुन से रह सकेंगी, लेकिन एक दिन उनका एक्सीडेंट हो गया, जिसमें उनके हाथ और पैर टूट गए। अब उन्हें ज्यादा दिक्कतों का सामना करना पड़ा, क्योंकि यहां उनकी देखभाल करने वाला कोई नहीं था। और ना ही उनके पास पैसे थे, जो वह अपना इलाज किसी अच्छे हॉस्पिटल में करा सकें।
कई दिनों तक रहना पड़ा भूखा
हालांकि किसी स्थानीय व्यक्ति ने उन्हें हॉस्पिटल
पहुंचाया और दवा दिलवाई। उसके बाद वह उन्हें तुलसी वन आश्रम छोड़ गया। आश्रम में आने के बाद उन्हें काफी दिक्कतें होने लगी। वह अब ना तो पहले की तरह चल फिर सकती थी और ना ही मंदिरों में जा कर भजन कर सकती थी। इससे सबसे बड़ी समस्या उनके भोजन पर आई, इस दौरान उन्हें कई दिनों तक भूखे रहना पड़ा। हरिदासी कहती हैं कि मैं दर्द से कराहती रहती थी, लेकिन कोई भी उनका हाल जानने नहीं आया। उन्होंने कहा कि इसी तरह कुछ समय बीते उसके बाद हमने कोशिश की और पास के मंदिर में भजन करने जाने लगी। उससे मिलने वाले प्रसाद से अपना पेट भरती थी।
पाठक बाबा ने समझा दुख
हरिदासी ने कहा कि 3 साल पहले जब पाठक बाबा (डॉ. विन्देश्वर पाठक) ने उन जैसी वृंदावन में रहने वाली विधवा महिलाओं की सुध ली तो लोगों का
तांता लग गया। जबकि इसके पहले कोई भी उनकी तरफ नजर उठा कर नहीं देखता था। हरिदासी कहती हैं कि पाठक बाबा हम विधवाओं का हाल जानने के लिए हमसे मिलने आए और हमारे दुख को समझा। पाठक बाबा हमें तुलसी वन आश्रम से शारदा आश्रम ले आए। अब हम सभी विधवा बहनें एक दूसरे के साथ यहीं भजन कीर्तन करती हैं और टीवी देख कर अपना समय व्यतीत करती हैं।
अपने हाथों से बनाती हैं खाना
आज भी हरिदासी अपने हाथों से खाना बनाती हैं, बर्तन धोती हैं। पूछने पर कहती हैं कि कोई एक या दो दिन तक ही बना कर देगा रोज- रोज तो नहीं देगा। और अगर देगा भी तो चार बातें सुनाएगा। इसीलिए मैं अपने हाथों से ही खाना बना लेती हूं। किसी और को परेशान करने से क्या फायदा...
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स्वास्थ्य
23 - 29 अप्रैल 2018
सेहत के लिए बटुए को रखें संभालकर
‘मेंस हेल्थ’ में छपी एक रिपोर्ट के मुताबिक बटुए को पैंट की पिछली जेब में रखने की आदत स्वास्थ्य की दृष्टि से काफी घातक है। यह दिक्कत शुरू होती है सियाटिक नर्व के साथ, जो ठीक हिप ज्वाइंट के पीछे होती है
खास बातें मोटा पर्स रखने से रीढ़ की हड्डी या स्पाइन में टेढ़ापन आ सकता है बटुए को रखने की गलत आदत से रीढ़ की हड्डी पर दबाव पड़ता है हल्का वॉलेट रखना स्वास्थ्य की दृष्टि से फायदेमंद
स
एसएसबी ब्यूरो
वेरे नहाकर तैयार हुए, बाल ठीक किए, घड़ी पहनी, मोबाइल चेक किया और कंघी-पर्स रखकर दफ्तर या दुकान जाने के लिए तैयार। दुनिया के ज्यादातर पुरुषों की सुबह कुछ इसी तरह गुजरती है। मोबाइल फोन के अलावा इन सभी में एक और ऐसी चीज है, जिसे भूल जाएं तो दिन भर बड़ा अधूरा सा लगता है, वो है पर्स या बटुआ। इस पर्स में रुपए-पैसे, फोटो, क्रेडिट-डेबिट कार्ड, ड्राइविंग लाइसेंस और दूसरे जरूरी पहचान पत्र सहेजे जाते हैं। जाहिर है कि इतनी सारी चीज एक ही जगह पर रखी जाती हैं तो पर्स के जिम्मे काफी जिम्मेदारी भी होती है। इसी वजह से वह काफी मोटा भी हो जाता है। ...और ये पर्स कहां रखा जाता है तो ज्यादातर पीछे वाली जेब में। यही
पर्स जितना ज्यादा मोटा होगा, शरीर उतना ज्यादा एक तरफ झुकेगा और उतना ही ज्यादा दर्द होगा। लेकिन दिक्कत यह है कि मोटे पर्स को आगे वाली जेब में भी रखना मुश्किल होता है, क्योंकि ऐसा करने से आगे भी दर्द हो सकता है आदत खतरनाक बन सकती है। अगर आप कुछ पलों के लिए पर्स पीछे वाली जेब में रखते हैं, तो इससे कोई खास दिक्कत नहीं होनी चाहिए। लेकिन अगर वह पूरा दिन या फिर कई घंटे आपकी बैकपॉकेट में आराम फरमाता है तो आपको सोचने की जरूरत है। ‘मेंसहेल्थ’ में एक रिपोर्ट छपी थी, जिसमें यूनिवर्सिटी ऑफ वाटरलू के प्रोफेसर ऑफ स्पाइन बायोमेकेनिक्स स्टुअर्ट मैकगिल ने बताया कि पर्स कुछ देर के लिए रखने के लिए होता है, लेकिन
दर्द से कैसे निपटें
बटुआ कैसे रखना चाहिए?
पैसे रखने वाली क्लिप या फिर पतले स्टाइल वाला वॉलेट रख सकते हैं, जो आसानी से आगे वाली पॉकेट में समा जाए। ऐसा बटुआ भी खरीद सकते हैं, जिसके साथ चाबियां जोड़कर रखी जा सकें। ऐसा करने से जब कभी आप बटुआ पीछे वाली जेब में रखकर बैठना चाहेंगे तो चाबी चुभेंगी और आप उसे आगे रखने के लिए मजबूर होंगे। अगर आप खाकी पेंट या ड्रेस पेंट पहनते हैं तो उसका बटन बंद कर लीजिए ताकि पीछे वॉलेट रखने की आदत ही न बने। अगर संभव हो तो बटुआ रखना ही
अगर आप कार्ड, बिल और सिक्कों के गठ्ठर पर कई घंटे बैठेंगे तो इससे हिप ज्वाइंट और कमर के निचले हिस्से में दर्द होने लगेगा। यह दिक्कत शुरू होती है सियाटिक नर्व के साथ, जो ठीक हिप ज्वाइंट के पीछे होती है। मोटा पर्स रखने की वजह से यही तंत्रिका बटुए और हिप के बीच में दबती है और मुसीबत खड़ी हो सकती है। यह गंभीर मामला इसीलिए है, क्योंकि दर्द भले हिप से शुरू होता है, लेकिन ये पैरों के निचले तक भी जा सकता है।
छोड़ दीजिए। बहुत से ऐसे लोग हैं जो पतले कार्डहोल्डर और पैसा आगे की जेब में रख लेते हैं। अपने बटुए या फिर मोबाइल फोन को पीछे वाली जेब से निकालकर रखिए और इसे एक चैलेंज के रूप में देखिए।
घुटने मोड़ें और जमीन पर लेट जाएं। घुटने नीचे ले जाते वक्त दाईं तरफ ले जाएं, जबकि कंधे और हिप जमीन पर बनाए रखें और बाईं ओर ले जाएं। इससे आपको कमर के निचले हिस्से काफी आराम महसूस होगा। जमीन पर लेट जाएं और घुटनों को छाती से लगा लें और पैरों का बाहरी हिस्सा पकड़ लें। कमर के ऊपरी हिस्से को आधार बनाकर रोल करें और आप देखेंगे कि पीठ का दर्द काफी हद तक ठीक हो रहा है।
डॉ. मैकगिल ने पीठ के दर्द को स्टडी करने के लिए एक प्रयोग किया जिसमें एक हिप के नीचे छोटे आकार के वॉलेट रखा। पिछली जेब में मोटा पर्स रखने की वजह से पेल्विस (कूल्हा) भी एक तरफ झुका रहता है जिसकी वजह से रीढ़ की हड्डी पर और ज्यादा दबाव पड़ता है। सीधे बैठने के बजाय कमर के निचले हिस्से में इंद्रधनुष जैसा आकार बन जाता है। यह भी कि पर्स जितना ज्यादा मोटा होगा, शरीर उतना ज्यादा एक तरफ झुकेगा और उतना ही ज्यादा दर्द होगा। लेकिन दिक्कत यह है कि मोटे पर्स को आगे वाली जेब में भी रखना मुश्किल होता है, क्योंकि ऐसा करने से आगे भी दर्द हो सकता है। कुछ डॉक्टरों का कहना है कि सिर्फ मोटा पर्स रखने से रीढ़ की हड्डी या स्पाइन में टेढ़ापन आ जाएगा, ये भले सच न हो लेकिन अगर स्पाइन में पहले से कोई दिक्कत है तो ये काफी मुसीबत ला सकता है। दिल्ली के प्राइमस अस्पताल में हड्डियों के डॉक्टर कौशल कांत मिश्रा से जब पूछा गया कि क्या पिछली जेब में पर्स रखने से क्या दिक्कत होती है, तो उन्होंने कहा, ‘आदर्श स्थिति में कोई समस्या नहीं होनी चाहिए। अगर स्पाइन सामान्य है तो कोई दिक्कत नहीं होगी। लेकिन इस मामले में रीढ़ की हड्डी का सामान्य होना जरूरी है।’ क्या फिर यह मान लिया जाए कि पिछली जेब में मोटा पर्स रखने से कोई दिक्कत नहीं होगी, उन्होंने कहा, ‘ऐसा भी नहीं है। अगर आप कुछ वक्त के लिए ऐसा करते हैं तो कोई बात नहीं, लेकिन अगर कई घंटे ऐसा करते हैं तो दर्द तो होगा ही।’ बातचीत के क्रम में इस बारे में उन्होंने आगे बताया, ‘अगर कई घंटे कोई बटुआ पीछे वाली जेब में रखकर बैठता है तो इससे रीढ़ की हड्डी का आकार नहीं बदलेगा, लेकिन साइटिका जरूर हो सकता है।’ डॉ. मिश्रा ने बताया, ‘यह रेडिएटिंग पेन होता है मतलब ऐसा दर्द जो एक ही जगह न होकर, बार-बार लोकेशन बदलता है।’
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सुलभ
उषा चौमड़ जैसे लोगों को समाज की मुख्यधारा में लाने में मुझे 50 साल लग गए-डॉक्टर पाठक सुलभ ग्राम में डॉ. विन्देश्वर पाठक दिवस समारोह पूर्वक मनाया गया। इस अवसर पर बाबा साहब आंबेडकर को भी याद किया गया
हा
संजय त्रिपाठी
ल ही में स्वयं को ब्राह्मण घोषित करनेवाली अलवर और टोंक की राजकुमारियों, अतिथि कवियों के साथ 14 अप्रैल को डॉ. बाबा साहेब आंबेडकर के 127वें जन्म दिन पर सुलभ ग्राम में स्थित आंबेडकर की प्रतिमा पर माल्यार्पण कर सुलभ संस्थापक डॉ. विन्देश्वर पाठक और अमोला पाठक ने अपनी श्रद्धांजलि व्यक्त की। साथ में वृंदावन की माताएं भी थीं। दीप-प्रज्वलन के बाद कार्यक्रम की शुरुआत सुलभ संगीत विभाग द्वारा प्रस्तुत गीत ‘जय भीम राव बाबा’ से हुई। आज के दिन ही 2016 को न्यूयॉर्क के मेयर, बिल द ब्लासियो ने न्यूयॉर्क में डॉ. विन्देश्वर पाठक दिवस मनाया था। सुलभ ने भी उस दिन को याद करते हुए डॉ. विन्देश्वर पाठक दिवस मनाया। सुलभ पब्लिक स्कूल की बच्चियों ने उनके सम्मान में ‘स्वच्छ बनाया भारत, आपने दिया नया पैगाम, विन्देश्वर पाठक जी आपने बड़ा किया
है काम, सुलभ को दुनिया करे सलाम,’ गीत गाकर सबका मन मोह लिया। इसके बाद अमोला पाठक और सुलभ के अध्यक्ष एस.पी. सिंह ने माला और गुलदस्ते के साथ डॉ. पाठक का स्वागत किया। हिंदुस्तानी भाषा अकादमी के अध्यक्ष सुधाकर पाठक और सविता चड्ढा, विजय शर्मा, भूपेंद्र सेठी और विजय कुमार राय ने भी डॉ. पाठक को सम्मानित किया। अखिल भारतीय सर्वभाषा समन्वय समिति की ओर से मधु मिश्रा ने डॉ. पाठक का स्वागत किया। मधु मिश्रा ने ही ‘सुलभ को दुनिया करे सलाम’... गीत की रचना की है। इस अवसर पर ‘हिंदुस्तानी भाषा अकादमी के अध्यक्ष सुधाकर
पाठक ने कहा कि मुझे इस बात का गर्व है कि मुझे डॉ. पाठक का सानिध्य प्राप्त है। इस अवसर पर आयोजित ‘शुचिता काव्य-पर्व’ के कवियों डॉक्टर कौशल पंवार, पंकज झा, जमीर हापुड़ी, डॉ. राहुल, राम अवतार बैरवा, सुनहरी लाल ‘तुरंत’, डॉ. भुवनेश सिंहल और पंडित सुरेश नीरव को डॉ. विन्देश्वर पाठक ने सम्मानित किया। कौशल पंवार ने अपनी कविता ‘भंगी महिला’ से ‘शुचिता काव्य पर्व’ का आगाज किया। इस कविता में एक भंगी महिला का चित्रण किया गया था जो िसर पर मैला ढोने का काम करती थी। उसी वर्ग से आने वाली उषा चौमड़ जो कभी स्वयं इस कार्य से जुड़ी थीं, आज इस मंच पर सुलभ के अध्यक्ष के रूप में विराजमान थीं। अपने स्वागत भाषण में सुलभ के अध्यक्ष एस.पी. सिंह ने कहा कि आज हम दो महापुरुषों का दिवस मना रहे हैं। दलितों के हित में जो लड़ाई आंबेडकर ने शुरू की उसे जीतने का काम डॉ. पाठक ने किया। उषा चौमड़ ने अपनी कहानी सुनाते हुए बताया कि किस तरह डॉ. विन्देश्वर पाठक ने उन्हें उनके घृणित कार्य से मुक्त कर समाज की मुख्यधारा से जोड़ा। उन्होंने कहा कि जो पंडित या ब्राह्मण हमारे साए से भी दूर रहते थे आज हमारा उनके साथ उठना-बैठना है। आज मैं खुद को ब्राह्मण महसूस करती हूं। वरिष्ठ पत्रकार राहुल देव जो किसी कारणवश इस कार्यक्रम में उपस्थित नहीं हो सके उन्होंने अपना शुभकामना संदेश लिखकर भेजा जिसे सुलभ की ओर से डॉ. अशोक कुमार ज्योति ने पढ़कर सुनाया। अपने संदेश में उन्होंने कहा कि इस दिवस को शुचिता दिवस कहना मैं अत्यंत सार्थक मानता हूं। इस अवसर पर डॉ. विन्देश्वर पाठक ने कहा कि भारतरत्न डॉ. भीम राव आंबेडकर कहते थे छुआछूत तब तक समाप्त नहीं होगी जब तक सभी लोग एक साथ मंदिर में जाकर पूजा नहीं करेंगे, एक साथ तालाब में स्नान नहीं करेंगे, एक
दलितों के हित में जो लड़ाई आंबेडकर ने शुरू की उसे जीतने का काम डॉ. पाठक ने किया। उषा चौमड़ ने अपनी कहानी सुनाते हुए बताया कि किस तरह डॉ. विन्देश्वर पाठक ने उन्हें उनके घृणित कार्य से मुक्त कर समाज की मुख्यधारा से जोड़ा
साथ कुंए का पानी नहीं पीएंगे और एक साथ बैठकर खाना नहीं खाएंगे। गांधी का भी कहना था इस देश में एक ही रहेगा या तो हिंदू या छुआछूत। गांधी जी का यह भी मानना था कि जब तक ये मैला ढोने का काम करते रहेंगे इनके साथ कोई खाना नहीं खाएगा, इसकी उन्होंने कोशिश भी की लेकिन सफल नहीं हुए। डॉ. विन्देश्वर पाठक ने कहा कि छुआछूत और िसर पर मैला ढोने वाले के लिए किसने क्या क्या कहा यह कहानी चलती ही रहती जब तक मैं तकनीक का आविष्कार नहीं करता। मुझे 15 साल समाज को यह समझाने में लग गए कि ये लोग भी आप ही की तरह हैं। मैंने आंबेडकर की उन चारों बातों पर अमल किया। आज आपके सामने जो पूर्व स्कैवेंजर महिलाएं बैठी हैं, मैंने उन्हें पवित्र नदियों में स्नान करवाया, उन्हें देश के प्रतिष्ठित मंदिरों में ले गया। ब्राह्मणों के साथ बैठकर इन्होंने खाना खाया। बाबू जगजीवन राम ने भी इन्हें मंदिरों में ले जाने का प्रयास किया था, लेकिन वे सफल नहीं हो सके। उन्होंने कहा कि हमें आत्मनिरीक्षण करने की जरूरत है। सरकार के भरोसे समाज की कमियां दूर होंगी यह संभव नहीं है। हमें खुद भी पहल करनी होगी। उषा चौमड़ जैसी महिलाओं को समाज की मुख्यधारा में लाने में मुझे 50 साल लग गए। इन 50 साल में हमने कभी घृणा की बात नहीं की। अहिंसा के मार्ग पर चलकर ही हमने इन्हें समाज की मुख्यधारा से जोड़ा। इनकी पीड़ा समझाने के लिए मैंने भी िसर पर मैला ढोया है। इस अवसर पर मैं न्यूयॉर्क के मेयर बिल द ब्लासियो को भी धन्यवाद देता हूं जिन्होंने मेरे नाम से दिवस मनाया था। आप सभी को यह दिवस मनाने के लिए बहुतबहुत धन्यवाद। दूसरे सत्र में शुचिता काव्य-पर्व आयोजित किया गया। सुनहीर लाल ‘तुरंत’ की कविता ‘हम भी कुछ रंग जमाने का हुनर रखते हैं/रंग पे रंग चढ़ाने का हुनर रखते हैं’ की कविता को भरपूर सराहना मिली। राम अवतार बैरवा ने हास्य शैली में अपनी कविता सुनाई। कार्यक्रम का संचालन कर रहे वरिष्ठ कवि पंडित सुरेश नीरव ने श्रोताओं और कवियों के अनुरोध पर अपनी कविता ‘कश्मीर जैसा हुस्न, कारगिल सी अदाएं /बंकर सी आंखों वाली को आदाब अर्ज है’ सुनाई। इनके अलावा अन्य कवियों ने शुचिता पर केंद्रीत अपनी कविता का पाठ किया।
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पुस्तक अंश
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जन धन योजना
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नबीशा बेगम (ऊपर) एक नौकरानी के रूप में काम करती हैं। उनके पति ठेका मजदूर हैं और उनके दो स्कूल जाने वाले बच्चे हैं। आईडीबीआई बैंक द्वारा उस क्षेत्र में आयोजित एक वित्तीय साक्षरता शिविर के माध्यम से खोला गया पीएमजेडीवाईखाता उनका पहला बैंक खाता है। बैंक खाता खोलने से पहले, फिजूलखर्ची के कारण उसकी कमाई का एक बड़ा हिस्सा बर्बाद हो रहा था। पीएमजेडीवाई खाता खोलने के बाद, उसने नियमित बचत करके अपनी बैंकिंग आदतों में सुधार किया है।
अगस्त, 2014 को देश को संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने प्रधानमंत्री जन धन योजना (पीएमजेडीवाई) के शुभारंभ की घोषणा की। उन्होंने तब पीएमजेडीवाई को समयबद्ध तरीके से सभी के लिए वित्तीय समावेशन प्राप्त करने की दिशा में एक बड़ा कदम बताया था। 28 अगस्त, 2014 को औपचारिक रूप से लॉन्च की गई यह योजना ओवरड्राफ्ट
सुविधाओं, बीमा कवर, पेंशन सेवाओं, आर्थिक गतिविधि के लिए क्रेडिट कार्ड की उपलब्धता और देश के हर नागरिक के लिए रुपे डेबिट कार्ड के साथ बैंक खाता खोलने की पेशकश करती है। इसका मुख्य उद्देश्य प्रत्येक घर के लिए कम से कम एक बुनियादी बैंकिंग खाते के साथ सार्वभौमिक बैंकिंग सुविधाएं सुनिश्चित करना है।
इससे पहले बैंक के दरवाजे केवल अमीर लोगों के लिए खुले थे। हमने इसे बदलने का फैसला किया। जन धन योजना केवल इस दिशा में नई शुरुआत है, जिसके माध्यम से गरीब और पिछड़े बैंक की योजनाओं का लाभ उठा पाएंगे। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी
इस योजना से लाभार्थियों के खातों को सभी सरकारी लाभों के लिए सम्मिलित कर सरकार की प्रत्यक्ष लाभ स्थानांतरण (डीबीटी) योजना को एक बड़ा सहारा देने की भी योजना है। यह योजना नरेंद्र मोदी के इस दृढ़-विश्वास का एक परिणाम है कि बैंकिंग प्रणाली से बाहर रहने वाले लोगों को आधुनिक वित्तीय प्रणाली में उपलब्ध सभी लाभों से बाहर रहना पड़ता है। इस प्रकार यह योजना
पीएमजेडीवाई को शानदार शुरुआत मिली: इसके दो उदाहरण-
म
रिअप्पा थेवर के पुत्र एम. मरिवेल ने अपना खाता 19.09.2014 को सेंट्रल बैंक ऑफ इंडिया में खुलवाया। 03.01.2015 को दिल का दौरा पड़ने से उनकी मृत्यु हो गई। उनके परिवार के सदस्यों ने बैंक शाखा का दौरा किया और उनकी मृत्यु के बारे में जानकारी दी। शाखा प्रबंधक ने 48 घंटे के भीतर उनके दावे को क्रियान्वित कर दिया और पीएमजेडीवाई योजना के तहत जीवन बीमा राशि के 30, 000 रुपए मृतक की पत्नी के बचत खाते में आ गए।
प्रेस विज्ञिप्त- पीएमजेडीवाई द्वारा जारी वित्तीय समावेशन के लिए एक साधन है, जो सरकार की प्राथमिकता बन चुकी है। लाखों लोगों ने पीएमजेडीवाई खातों को पहले ही खुलवा लिया है। खातों के आंकड़े,प्रधानमंत्री द्वारा बैंकों के लिए निर्धारित महत्वाकांक्षी मानकों से अधिक जा रहे हैं। खातों के आधार पर, लाखों बैंक मित्र, बीमा सुरक्षा और जीवन बीमा ज्योति नीतियां जारी की गई हैं।
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पुस्तक अंश
प्रधानमंत्री मुद्रा योजना कें
द्रीय वित्त मंत्रालय ने प्रधानमंत्री मुद्रा योजना (पीएमएमवाई) के तहत नए उद्यमियों को बढ़ावा देने के लिए राज्य संचालित बैंकों द्वारा ऋण के लिए 1.22 लाख करोड़ रुपए दिए जाने का लक्ष्य रखा है। इसके माध्यम से जो फंड प्राप्त नहीं कर पाते हैं, उन्हें वित्त-पोषित किया जाएगा। इससे पहले, इस वर्ग को ऋण देने के लिए कोई संस्थागत तंत्र नहीं था और ऋण बहुत ही उच्च लागत पर मिलता था। इस योजना के माध्यम से, जमीनी उद्यमियों को उनकी व्यावसायिक गतिविधि के आधार पर सस्ता क्रेडिट मिलेगा।
प्र
धानमंत्री ने सोसायटी के फंड न प्राप्त कर पाने वाले वर्ग को ऋण सुविधा देने के लिए माइक्रो यूनिट्स डेवलपमेंट एंड रीफिनेंस एजेंसी लिमिटेड (मुद्रा) को लॉन्च किया। असंगठित क्षेत्र में 5.7 करोड़ उद्यमी हैं, जिनके पास 11 करोड़ नौकरियां हैं। इस प्रकार, आर्थिक ढांचे के निचले भाग पर समाज के ऋण न प्राप्त कर पाने वाले ये वर्ग हैं, जिन्हें शोषक साहूकारों पर निर्भर रहना पड़ता है। मुद्रा योजना में सार्वजनिक क्षेत्र के वाणिज्यिक बैंकों और ग्रामीण बैंकों सहित 120 भागीदारों की परिकल्पना की गई है। वित्तीय वर्ष 2015-16 में, भारतीय
समाज के इन फंड न प्राप्त कर पाने वाले वर्गों के लिए 1.22 लाख करोड़ रुपए की कुल राशि निर्धारित की गई थी। ऋण की तीन श्रेणियां हैं; शिशु –50,000 रुपए तक, किशोर –5, 00, 000 रुपए तक और तरुण –10, 00, 000 तक। यह योजना अगले कुछ वर्षों तक जारी रहेगी। योजना के लिए छह करोड़ लाभार्थियों का लक्ष्य रखा गया हैं जिन्हें भारत के छोटे उद्यमियों में विकसित करने की आवश्यकता है। इन सभी को डेबिट कार्ड जारी किए जाएंगे, जिससे कि एटीएम के माध्यम से पैसे निकाल सकें।
मुद्रा योजना ने युवाओं की उड़ान में पंख जोड़े हैं। अवसर प्रदान करके उन्हें आत्म निर्भर बनाते हुए, वे अपने भविष्य को अपने आप लिखने में सक्षम होंगे और इससे मजबूत और समृद्ध भारत का सपना पूरा हो जाएगा। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (अगले अंक में जारी...)
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खेल
23 - 29 अप्रैल 2018
राष्ट्रमंडल खेलों में छाया भारत राष्ट्रमंडल खेलों के इतिहास में इस बार भारत ने तीसरा सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन किया। भारतीय खिलाड़ियों ने कुल 66 मेडल अपने नाम किए
हा
ल में संपन्न राष्ट्रमंडल खेलों में भारतीय खिलाड़ियों ने जबरदस्त प्रदर्शन किया। राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री से लेकर सचिन तेंदुलकर और अमिताभ बच्चन तक ने भारतीय एथलीटों की कामयाबी पर उन्हें बधाइयां दी। भारत ने इस बार 26 स्वर्ण, 20 रजत और 20 कास्य पदक जीते हैं। यह राष्ट्रमंडल खेलों के इतिहास में भारत का तीसरा सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन है।
इस बार कुल 66 पदकों के साथ भारतीय दल पदक तालिका में तीसरी पायदान पर रहा। कॉमनवेल्थ खेलों के इतिहास में भारत का ये तीसरा सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन है। भारत के बाहर पहली बार भारत ने इतनी कामयाबियां हासिल की हैं। भारत को पदक दिलाने वाले एथलीटों में से कुछ तो ऐसे थे, जिनसे पदक की भरपूर उम्मीद थी, लेकिन कई ऐसे भी थे जिन्होंने सभी को चौंकाते हुए स्वर्ण पदक पर कब्जा किया।
बैडमिंटन
रैंक 1 2 3 4 5
राष्ट्रमंडल खेल 2018 तीसरे नंबर पर रहा भारत
देश ऑस्ट्रेलिया इंग्लैंड भारत कनाडा न्यूजीलैंड
बैडमिंटन एक ऐसा खेल है जिसमें भारत ने लगातार अच्छा प्रदर्शन किया है। लंदन ओलंपिक में सायना नेहवाल के कांस्य पदक और रियो ओलंपिक में पीवी सिंधु के रजत पदक की दमक यहां भी कायम रही। भारतीय खिलाड़ियों को कड़ी चुनौती देने वाले चीन के खिलाड़ी थे नहीं, इसीलिए सिंगल्स का स्वर्ण पदक सायना नेहवाल के खाते में आया। सायना ने पीवी सिंधु को हराकर स्वर्ण पदक जीता। टीम इवेंट में भी भारतीय बैडमिंटन टीम ने देश को सोना दिलाया। ऐसा नहीं कि चीन के खिलाड़ियों के खिलाफ भारतीय खिलाड़ियों को कामयाबी नहीं मिली है, लेकिन सच यही है कि चीन के खिलाड़ी मेडल के रास्ते में रोड़ा जरूर बनते रहे हैं। बैडमिंटन में भारत को दो स्वर्ण, तीन रजत और एक कांस्य पदक मिला।
स्वर्ण 80 45 26 15 15
रजत 59 45 20 40 16
कांस्य 59 46 20 27 15
कुल 198 136 66 82 46
एथलेटिक्स
एथलेटिक्स में भारत को तीन पदक हासिल हुए। नीरज चोपड़ा ने जैवलिन थ्रो में भारत को स्वर्ण पदक दिलाया, वहीं सीमा पूनिया ने डिस्कस थ्रो में रजत और नवदीप ढिल्लो ने कांस्य जीता।
23 - 29 अप्रैल 2018
इ
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खेल
कुश्ती
स खेल में सुशील कुमार का लोहा पूरी दुनिया मानती है। दो बार ओलंपिक मेडलिस्ट रहे सुशील कुमार ने काफी समय बाद किसी बड़े मंच पर अपना जलवा दिखाया। फाइनल में उन्होंने पलक झपकते ही स्वर्ण पदक अपने कब्जे में कर लिय ा । ओलंपिक के दौरान सुशील कुमार की दावेदारी को लेकर बहुत बवाल हुआ था। नरसिंह यादव के साथ उनका विवाद बहुत बुरी शक्ल ले चुका था। ऐसे में जब उन्होंने मैट पर वापसी की तो उनसे काफी उम्मीदें थीं। जिस पर वे खरे भी उतरे। इसके अलावा विनेश फोगाट ने भी स्वर्ण पदक पर कब्जा किया।
वेटलिफ्टिंग
इस खेल में तो शुरूआत से ही भारतीय एथलीट छाए रहे। संजिता चानू, सतीश शिवलिंगम, पूनम यादव और एस मीराबाई चानू ने स्वर्ण पदक जीता।
टेबल टेनिस
मुक्केबाजी
टेबिल टेनिस में इस बार महिला खिलाड़ी स्टार बनीं। मनिका बत्रा ने सिंगल्स के अलावा टीम इवेंट में भी भारत को सोना दिलाया। इन कामयाबियों ने भारत को खेलों की दुनिया की एक बड़ी ताकत के तौर पर स्थापित किया है।
कुछ नाकामियां भी
सिर्फ एक लिहाज से इस बार राष्ट्रमंडल खेलों में भारत के लिए अच्छे नहीं रहे। किसी को उम्मीद नहीं थी कि हॉकी में भारत की पुरूष और महिला टीमें खाली हाथ वापस आएंगी। हॉकी के अलावा थोड़ी निराशा निशानेबाज गगन नारंग से रही जो खाली हाथ लौटे।
सुशील कुमार की तरह ही खेलप्रेमियों को मैरीकॉम से भी काफी उम्मीदे थीं। वापसी के बाद वह पहली बार किसी बड़े खेल में भारत की नुमाइंदगी कर रही थीं। उन्होंने भी स्वर्ण पदक जीतकर बताया कि उनमें अभी दमखम बाकी है। विकास कृष्णन और गौरव सोलंकी भी जीत हासिल करके आए।
निशानेबाजी
निशानेबाजी भी भारत के मजबूत खेलों में रहा है। एथेंस ओलंपिक में जो शुरुआत राज्यवर्धन सिंह राठौर ने की थी, वह सिलसिला लगातार मजबूत हुआ है। कॉमनवेल्थ खेलों की तुलना ओलंपिक से करना ठीक नहीं है, लेकिन कॉमनवेल्थ खेलों में इस बार भारत का दबदबा रहा। निशानेबाजी में भारत को 16 मेडल मिले। इसमें सात स्वर्ण पदक थे। लंदन ओलंपिक्स में कांस्य पदक जीतने वाले गगन नारंग ने भले ही निराश किया, लेकिन मनु भाकर और अनीश भानवाला में स्वर्ण पदक जीतकर सभी को चौंका दिया।
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सािहत्य
23 - 29 अप्रैल 2018
कविता
सच्ची सुंदरता प्रियंका नहीं है। हाथों की सच्ची सुंदरता उसके काम करने में हैं। सबको राजा की बात जंच गई और वो लड़की विजेता बन गई।
मंजू
इंसान
ना दरगाह में,ना मंदिर में, इंसानियत बिकती नहीं है दुकानों पर, ऐ शख्स अगर अपनी राह में, किसी कमजोर को देखना तो, हाथ जरूर बढ़ाना उसकी तरफ, शायद मुस्करा दे वो पल, भर के लिए तुझे देखकर। पल भर शिकस्त है तेरे इन आंसुओं की, खुश हूं देखके कि तू फिर भी मुस्कराता है , जमीन पर रखने के लिए कोई चादर नहीं है तेरे पास, आसमान की गोद में रखके भी सुकून से रहता है। मोहब्बत कभी तूने की नहीं पर, आते जाते सभी पे मरता है तू हर पल यहीं , रास्तों में ढूंढता है हर राह तू पर फिर भी हर राह भटकता है हर घड़ी, ना कर इतना गुरुर तू खुद पर यहीं आया था यहीं मिल जाएगा, कुछ लम्हें साथ लाया था बस इन्हीं को ले जाएगा। आंसुओं की कीमत को पहचान ले यहां, मोल तो इनका नहीं है कुछ यहां , खुश रह के थोड़ा जीना तो सीख ले, ना जाने कब इस मिट्टी में मिल जाएगा।
ए
क राज्य में राजा ने घोषणा करवाई की जिसके हाथ सबसे सुंदर होंगे उनको इनाम मिलेगा। सबको जैसे इस बात का पता चला सब हाथ की सेवा में लग गया। कोई रोज दिन में चार बार हाथ धोता, कोई हल्दी चंदन का लेप लगता, कइयों ने तो काम करना ही बंद कर दिया की कही हाथ खराब न हो जाए। पूरा राज्य ही अपने हाथ को सुंदर बनाने में लग गया। फिर निर्णय का दिन आ पंहुचा सभी राजदरबार में अपने हाथ को दिखाने पहुंचे। सबके हाथ चमक रहे थे, राजा ने सभी को
कविता
हाथ आगे करने को बोला। सब अपने हाथ आगे करके खड़े हो गए। अब सबके हाथों की जांच शुरू हुई । तभी एक बच्ची भागी भागी आई और कतार में हाथ आगे करके खड़ी हो गई और बोली माफ़ कर दें महाराज खेत से आने में थोड़ी देर हो गई। राजा ने सभी का हाथ हाथ देखा फिर अपना निर्णय सुनाया, इस प्रितयोगिता की विजेता वो लड़की है। सब कुतुहल से भर उठे... आखिर ऐसा कैसे हो सकता है उसके हाथ तो गंदे और खुरदुरे हैं... फिर भी उसको कैसे पुरस्कार मिल गया। तब राजा ने कहा मेरा निर्णय कोई गलत
सच्चा प्रेम सोमलता
ए
क आदमी ने एक सुंदर लड़की से शादी की। शादी के बाद दोनों की जिंदगी बहुत प्यार से गुजर रही थी। वह उसे बहुत प्यार करता था। लेकिन कुछ महीनों के बाद लड़की को चर्म रोग हो गया और धीरे-धीरे उसकी खूबसुरती जाने लगी। वह डरने लगी कि वह बदसूरत हो गई तो उसका पति उसे कम प्यार करने लगेगा और
वह यह बर्दाश नहीं कर पाएगी। इस बीच पति को एक दिन काम से बाहर जाना पड़ा। काम खत्म करके वह वापस लौट रहा था उसका एक्सीडेंट हो गया। उसमें उसकी दोनों आंखें चली गईं। लेकिन उसके बाद भी उन दोनों की जिंदगी अच्छे से चलने लगी। पत्नी लगातार बदसूरत होती जा रही थी। जिसको पति
देख नहीं पा रहा था। वह उसे उसी तरह प्यार करता रहा। एक दिन लड़की की मौत हो गई। पति अब अकेला हो गया था। वह शहर छोड़कर जाना चाहता था। जब वह जाने लगा तो किसी ने पुकारा तुम बिना सहारे के अकेले कैसे चल पाओगे। इतने साल तो तुम्हारी पत्नी तुम्हारी मदद किया करती थी। पति ने जवाब दिया दोस्त! मैं अंधा नहीं हूं। मैं बस अंधा होने का नाटक कर रहा था। क्योंकि यदि मेरी पत्नी को पता चलता कि मैं उसकी बदसूरती देख सकता हूं तो यह उसे उसके रोग से ज्यादा दर्द देता। इसीलिए मैंने इतने साल अंधे होने का दिखावा किया वह बहुत अच्छी पत्नी थी, मैं बस उसे खुश रखना चाहता था। सीख- खुश रहने के लिए हमें भी एक दूसरे की कमियों के प्रति आंखे बंद कर लेनी चाहिए और उन कमियों को नजर अंदाज कर देना चाहिए
सुंदरता
धनलक्ष्मी
खूबसूरती क्या है, क्या सुंदर शरीर क्या नीरज नयन, या संगमरमरी बाहें या लरजते ओंठ, या फिर लतिका-सा रूप? दार्शनिक नजर में खूबसूरती सिर्फ एक दृष्टिकोण है कला पूर्णता को खूबसूरती कहती है एक अंधे की खूबसूरती उसकी मन की आंखों से देखना है एक गूंगे की खूबसूरती उसके संकेतों में बोलने में है एक बहरे की खूबसूरती उसकी आंखों के इशारों में छिपी होती है एक गरीब की खूबसूरती उसके श्रम से कमाई रोटी में होती है। औरत की खूबसूरती उसकी सहनशीलता में होती है एक मर्द की खूबसूरती उसके पौरूष में छिपी होती है एक बच्चे की खूबसूरती उसकी स्निग्ध हंसी में होती है जीवन की खूबसूरती प्रेम में है मृत्यु की खूबसूरती जीवन में निहित है। खूबसूरती के मानक और पैमाने कितने भौतिक और वासनामय सौंदर्य अस्तित्व में होता है और अस्तित्व में विकृतियां हैं इसीलिए सौंदर्य की परिभाषा सिर्फ देह के इर्द-गिर्द घूमती है सत्य संघर्ष और सृजन से निकला सौंदर्य ही शाश्वत होता है।
23 - 29 अप्रैल 2018
आओ हंसें
पेपर
मम्मी : पेपर कैसा था ? बेटा : पतला सा और सफेद रंग का था ! मम्मी गुस्से में बेटे को... दे थप्पड़ पे थप्पड़ !
दो टेस्ट
संता की मां की तबीयत खराब हुई। वह मां को अस्पताल लेकर गया। डॉक्टर ने कहा कि दो टेस्ट होंगे। संता जोर-जोर से रोने लगा। बह बोला, अभी तो स्कूल के टेस्ट दिए हैं। अब मां बीमार हुई तो फिर से टेस्ट। मेरे साथ यह क्या हो रहा है। डॉक्टर पूरी बात समझकर जोर-जोर से हंसने लगा।
सु
जीवन मंत्र
रंग भरो सुडोकू का हल इस मेल आईडी पर भेजेंssbweekly@gmail.com या 9868807712 पर व्हॉट्सएप करें। एक लकी विजेता को 500 रुपए का नगद पुरस्कार दिया जाएगा। सुडोकू के हल के लिए सुलभ स्वच्छ भारत का अगला अंक देख।ें
• 23 अप्रैल विश्व पुस्तक दिवस अथवा विश्व पुस्तक कॉपीराइट दिवस, अंग्रेजी भाषा दिवस • 25 अप्रैल विश्व मलेरिया दिवस • 29 अप्रैल विश्व नृत्य दिवस
सुडोकू-18 का हल
वर्ग पहेली - 19
वर्ग पहेली-18 का हल
1. लोकोक्ति (4) 5. अरण्य (2) 6. कुचलना (3) 7. पेंदे में जमा पदार्थ (4) 8. निरा, बिलकुल (3) 9. आजीविका (2) 10. कमल के बीज (5) 12. कमरा (2) 13. प्रति (2) 14. सीमा (2) 16. शासन, सरकार (2) 17. बहीखाते रखने का पात्र (5) 18. सुंदरता, चमक (2) 19. पक्का मार्ग (3) 20. जगाने वाला (4) 21. वर्ण, शब्द की इकाई (3) 23. रंज दुख (2) 24. तरफदारी (4)
ऊपर से नीचे
डोकू -19
कोई भी महान व्यक्ति अवसरों की कमी के बारे में शिकायत नहीं करता है
महत्वपूर्ण दिवस
बाएं से दाएं
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इंद्रधनुष
1. कदम से कदम मिलाकर चलना (3,2) 2. स्थिति, तबीयत (2) 3. जंगल (2) 4. बदल, लौट (3) 5. बड़ का पेड़ (4) 7. गरम होना (3) 8. सजावट, चमक (3) 11. महत्व (3) 12. डग (3) 14. गला (2) 15. निरंतर लगातार (5) 16. सभा सदस्य (4) 17. कठोर (3) 19. चौकन्ना (3) 21. आँख (2) 22. रात (2)
कार्टून ः धीर
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न्यूजमेकर रिनु
स्वच्छता की बेटी
कक्षा दो में पढ़ने वाली रिनु ने अपने स्कूल के पास रहने वाले सभी परिवारों को शौचालय बनवाने के लिए प्रेरित किया
स्व
च्छता को लेकर चल रहे देशव्यापी अभियान में बच्चे किसी से पीछे नहीं हैं। कुछ बच्चे तो इस अभियान को इस तरह आगे बढ़ा रहे हैं कि सुनकर आश्चर्य और रोमांच दोनों होता है। ऐसी ही एक बच्ची है मध्य प्रदेश के अलीराजपुर की रिनु। वह सात वर्ष की है, पर जिस उत्साह के साथ वह अपने इलाके में स्वच्छता अभियान को आगे बढ़ा रही है, वह काबिले तारीफ है। कुछ अरसे पहले सबसे पहले वह तब चर्चा में आई जब मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान ने ट्वीट किया कि आलीराजपुर जिले की सात वर्षीय रिनु ने स्वच्छता के लिए जो काम किया, वह सभी के लिए प्रेरणादायी है। रिनु ने इलाके के गैरूघाटी के लगभग सभी परिवारों को न केवल शौचालय बनवाने के लिए प्रेरित किया, बल्कि स्वच्छता के संकल्प को भी साकार किया। दिलचस्प है कि रिनु गैरूघाटी आश्रम में कक्षा 2 में पढ़ती है और एक आंख से दिव्यांग है। वह बड़ा भावटा गांव की निवासी है। रिनु व उसके आश्रम की बच्चियां सुबह सीटी और डंडा लेकर पेट्रोलिंग तक करती हैं और देखती हैं कि कोई खुले में शौच के लिए तो नहीं जा रहा है। अगर कोई मिलता है तो उसे समझा दिया जाता है। गैरूघाटी के 88 परिवारों में से 84 ने शौचालय बनवाकर उनका इस्तेमाल शुरू कर दिया है।
23 - 29 अप्रैल 2018
ड्रोन ब्वॉय का कमाल लुधियाना के 13 वर्षीय आर्यमन वर्मा ने यंगसे ्ट ड्रोन डेवलपर का खिताब अपने नाम किया
जॉर्ज राकेश बाबू
फिक्र ी क ों ग ो ल ा बेसहार इवेंट मैनेजर से सामुदायिक डॉक्टर बने हैदराबाद के राकेश बाबू ने सड़क पर पड़े बीमार बुजर्गों की मदद करने की ठानी है
आ
र्यमन वर्मा एक बार फिर से इंडिया बुक ऑफ रिकार्ड्स में अपना नाम दर्ज करवाने में सफल रहे हैं। लुधियाना के 13 वर्ष के इस प्रतिभाशाली लड़के ने 70 फीट तक उड़ सकने वाला क्वॉडकॉप्टर यानी फ्लाइंग ड्रोन तैयार कर यंगेस्ट ड्रोन डेवलपर का खिताब अपने नाम कर लिया है। आर्यमन नौ साल की उम्र में लाइन फॉलोअर रोबोट बनाकर इंडिया बुक ऑफ रिकार्ड्स में पहले ही नाम दर्ज करवा चुका है। कुछ समय पहले ही उसने इस ड्रोन तैयार करना शुरू किया था। इस फ्लाइंग ड्रोन में कैमरा, जीपीएस गाइडेड मिसाइल, ग्लोबल पोजिशनिंग सिस्टम (जीपीएस), नेविगेशन सिस्टम और सेंसर भी लगाए जा सकते हैं। आर्यमन की मां डिंपल ने बताया कि इस ड्रोन को कृषि और सिंचाई के साथ खनन के लिए भी इस्तेमाल में लाया जा सकता है। आर्यमन वर्ल्ड एजुकेशनल रोबोटिक्स चैंपियनशिप में लगातार दो बार गोल्ड मेडल हासिल कर चुका है। आर्यमन ने बताया कि इस क्वॉडकॉप्टर फ्लाइंग ड्रोन का इस्तेमाल समाज में भलाई के काम के लिए करना चाहता है। वह बचपन से ही साइंस और टेक्नोलॉजी से जुड़े होने के कारण नए प्रोजेक्ट्स तैयार करता रहा है।
चोटी पर तिरंगा
7 साल के मासमू ने अफ्रीका के हिमालय पर गाड़ा तिरंगा झंडा सभी को हैरान कर दिया। समन्यु ने अफ्रीका के तंजानिया के माउंट किलिमंजारो चोटी पर तिरंगा फहराया है। किलिमंजारो ऐसा पर्वत है, जहां ठंड की वजह से अच्छे-अच्छे घबरा जाएं, लेकिन समन्यु ने इस पर जीत हासिल कर ली है। यह चोटी समुद्र तल से 5,895 मीटर ऊंची है और समन्यु ने बीते 2 अप्रैल
अनाम हीरो
आर्यमन वर्मा
समन्यु पोथुराजु
के 7 साल के समन्यु पोथुराजु हैदराबाद ने ऐसा कारनामा कर दिखाया है, जिसने
डाक पंजीयन नंबर-DL(W)10/2241/2017-19
को यह मुकाम हासिल किया। समन्यु को इस कारनामे के बाद दुनियाभर में सराहा जा रहा है। समन्यु ने अपनी इस कामयाबी के बारे में मीडिया से बात करते हुए कहा, ‘जब मैंने चढ़ाई शुरू की तो बारिश हो रही थी और रास्ता पत्थरों से भरा हुआ था। मैं डरा हुआ था और मेरे पैरों में तेज दर्द हो रहा था, लेकिन इसके बावजूद मैंने बाकी की चढ़ाई पूरी की।’ समन्यु ने कहा, ‘मुझे बर्फ पसंद है
और इसीलिए मैंने किलिमंजारो चुना।’ समन्यु अफ्रीका की इस चोटी पर जाने वाले दुनिया के सबसे कम उम्र के पर्वतारोही हैं। इस कठिन सफर में समन्यु की मां लवन्या कोच भी साथ थीं। समन्यु ने यह सफर पांच दिनों में पूरा किया। समन्यु मई तक 10 चोटियों पर चढ़ाई का रिकॉर्ड बनाना चाहता है।
आ
जकल लोग एकल परिवार के प्रभाव में आकर अपने मां-बाप से दूर होते जा रहे हैं। जबकि उस उम्र में उन्हें सबसे ज्यादा लोगों के साथ की जरूरत होती है। इस स्थिति को देखते हुए इवेंट मैनेजर से सामुदायिक डॉक्टर बने हैदराबाद के राकेश बाबू ने सड़क पर पड़े बीमार बुजर्गों की मदद करने की ठानी है। उन्होंने पहले एक छोटा सा क्लिनिक खोला, लेकिन आज अलवाल, वारंगल और एलर में स्थित तीन शाखाओं के साथ एक पूर्ण विकसित बेसहारा लोगों का घर है। राकेश बाबू खुशी से बताते हैं कि जल्द ही पूरे राज्य के हर जिले में ऐसे ही घर खोले जाएंगे। जॉर्ज राकेश बाबू ने मार्च 2011 में अपने सह-संस्थापक सुनीता जॉर्ज और यसुकला के साथ मिलकर औपचारिक तौर पर 'गुड स्मार्टियन इंडिया' नाम से एक ट्रस्ट रजिस्टर कराया। ये ट्रस्ट चिकित्सकीय प्रशिक्षित व्यक्तियों का एक बहुत छोटा समूह है। इस ट्रस्ट के लोगों ने बिना किसी पैसों के 300 से अधिक बीमार बुजुर्गों व बेसहारा लोगों की मदद की है, जिन्हें सड़क पर मरने ले लिए छोड़ दिया गया था। यहां से ठीक होने के बाद ज्यादातर लोग अपने परिवारों के साथ फिर से मिल जाते हैं। राकेश बाबू ने सेवा के इस क्षेत्र में उतरने का फैसला तब किया, जब उन्होंने एक तमिल पुजारी की गुमनाम मौत के बारे में पता चला। यह वह पुजारी था, जिसे वह कई वर्षों से जानते थे। इन्हीं पुजारी ने एक अनाथालय भी चलाया था। कई चुनौतियों, बाधाओं और परिवार या रिश्तेदारों से कोई समर्थन न मिलने के बावजूद पुजारी ने अपने आनाथालय में 60 से अधिक अनाथ बच्चों को बेहतर जीवन दिया था। पुजारी की मौत ने राकेश बाबू को झकझोर कर रख दिया। किसी ने भी उस बूढ़े आदमी के शरीर को दफनाने में मदद नहीं कि जिसने 60 अनाथ बच्चों को जीवन दिया। इस घटना से आहत होकर उन्होंने फैसला किया कि वह किसी भी उस व्यक्ति को जिन्हें अकेला छोड़ दिया गया है, अज्ञात मृत्यु नहीं मरने देंगे।
आरएनआई नंबर-DELHIN/2016/71597; संयुक्त पुलिस कमिश्नर (लाइसेंसिंग) दिल्ली नं.-एफ. 2 (एस- 45) प्रेस/ 2016 वर्ष 2, अंक - 19