सुलभ स्वच्छ भारत - वर्ष-2 - (अंक 05)

Page 1

05

08

फेम इंडिया की सूची में डॉ. पाठक

गरीब-बेसहारों की ऊषा

एशिया पोस्ट सर्वे

व्यक्तित्व

कही अनकही 29

10

पुस्तक मेला किताबों के लिए उमड़ी भीड़

राज कपूर आए सिमी ग्रेवाल के घर

sulabhswachhbharat.com आरएनआई नंबर-DELHIN/2016/71597

पूरे साल नौकरियों की बहार

वर्ष-2 | अंक-05 | 15 - 21 जनवरी 2018

अच्छी नौकरी या रोजगार की उम्मीद लगाए बैठे देश के युवा बेरोजगारों का सपना जल्द ही पूरा होने जा रहा है। सरकार की योजनाओं और कई सर्वे के नतीजे बताते हैं कि 2018 रोजगार का साल होगा

कें

एसएसबी ब्यूरो

द्र सरकार की नीतियों के चलते इस साल युवाओं को नौकरियों के बंपर मौके मिलने का सिलसिला जारी रहेगा। इस साल शुरू से ही नौकरी के अवसरों में स्थिति काफी सुखद होने वाली है। वर्ष 2018 के दौरान देश में नई भर्तियों में वृद्धि की संभावना है। विभिन्न क्षेत्रों की 791 कंपनियों के बीच किए गए मर्कर के इंडिया टोटल रिम्युनेरेशन सर्वे के अनुसार 55 प्रतिशत कंपनियों ने माना कि वह अगले 12 महीनों में और नियुक्तियां करने जा रहे हैं। मर्कर के भारतीय कारोबार में प्रतिभा कंसल्टिंग और सूचना समाधान की प्रमुख शांति नरेश ने कहा कि भारतीय उद्योग में दोहरे अंक की

खास बातें 791 कंपनियों के बीच हुए इंडिया टोटल रिम्युनेरेशन सर्वे का अनुमान अगले 12 महीनों में 55 प्रतिशत कंपनियां करेंगी बंपर भर्ती रोजगार आउटलुक सर्वे के मुताबिक भर्तियों में होगी तेजी


02

आवरण कथा

15 - 21 जनवरी 2018 है। इस बार आईटी सेक्टर के अलावा दूसरे क्षेत्रों में नौकरियों के अवसर ज्यादा सृजित हुए हैं। यह इस बात का संकेत है कि सरकार ने जो योजनाएं शुरू की हैं, जमीनी स्तर पर अब उनका असर दिखने लगा है। अब देशभर में ज्यादातर सेक्टरों में एक समान तरीके से विकास हो रहा है, और युवाओं को नौकरियां भी मिल रही है। आने वाले महीनों में इसी तरह रोजगार और नौकरी के मौके बढ़ेंगे।

निर्माण, ऑटो, बैंकिंग में ज्यादा मौके

नौकरी डॉट कॉम के चीफ सेल्स ऑफिसर वी सुरेश का कहना है कि इस बार आईटी सेक्टर नहीं, बल्कि निर्माण, इंजीनियरिंग, ऑटो, औद्योगिक उत्पाद, एडमिनिस्ट्रेशन, इंश्योरेंस, फाइनेंशियल सर्विस, कंटेंट राइटर और बैंकिंग सेक्टर में नौकरियों में अच्छी-खासी बढ़ोत्तरी देखने को मिल रही है।

छोटे शहरों में भी बढ़ी नौकरी जब भी नौकरियों की बात होती है, तो सामने आता है कि युवाओं को सबसे ज्यादा नौकरियां आईटी सेक्टर में मिल रही हैं, लेकिन इस बार यह ट्रेंड बदला हुआ है वृद्धि जारी रहने की संभावना है। इस कारण देश में सकारात्मक आर्थिक माहौल है, जिससे कंपनियों की नियुक्तियों में भी बढ़ोत्तरी होने की उम्मीद है। इससे पहले भी जॉब मार्केट को लेकर हुए कई सर्वेक्षण और रिपोर्ट्स में रोजगार के प्रति सकारात्मक संकेत दिख चुके हैं। सरकार की मुद्रा योजना, कौशल विकास योजना, डिजिटल इंडिया और स्टार्टअप जैसी योजनाओं से युवाओं को रोजगार के हजारों उपलब्ध हो रहे हैं।

बढ़ रहे हैं रोजगार

हाल ही में हुए एक सर्वे के मुताबिक भी नए साल में युवाओं को नौकरियों के बंपर मौके मिलने का सिलसिला जारी रहेगा। मैन पॉवर ग्रुप के रोजगार आउटलुक सर्वे के मुताबिक नए वर्ष की पहली तिमाही (जनवरी-मार्च 2018) में कर्मचारी भर्तियों में तेजी बने रहने की उम्मीद है। यह सर्वे पूरे देश में 4,500 से अधिक नियोक्ताओं के बीच आयोजित किया गया था। इस सर्वे में तमाम सेक्टरों में काम कर रही शीर्ष कंपनियों को शामिल किया गया था। इस सर्वे में कहा गया है कि पिछली तिमाही की तुलना में मौजूदा तिमाही में नौकरी चाहने वालों के लिए ज्यादा मौके सृजित होंगे।

जॉब मार्केट के अच्छे दिन

सर्वे के अनुसार केंद्र सरकार की तरफ से लगातार उद्योग जगत को बढ़ावा देने की कोशिश की जा रही है, इसी के चलते जॉब मार्केट के अच्छे दिन आ रहे हैं। सर्वे के मुताबिक जनवरी-मार्च की अवधि के दौरान सर्विस, माइनिंग, कंस्ट्रक्शन, मैन्युफैक्चरिंग, ट्रांस्पोर्टेशन और यूटिलिटी जैसे सभी क्षेत्रों में रोजगार में वृद्धि की संभावना है। सर्विस सेक्टर में सबसे ज्यादा 27 फीसदी से ज्यादा रोजगार के मौके सृजित

होने की उम्मीद है। वहीं फायनेंस सेक्टर में 15 फीसदी, बीमा क्षेत्र में 19 फीसदी और रीयल इस्टेट सेक्टर में 20 फीसदी नए रोजगार पैदा होने की उम्मीद है। इसी प्रकार शिक्षा, रिटेल, ट्रांसपोर्टेशन और यूटिलिटी सेक्टर में भी बड़ी संख्या में नौकरी के मौके मिलने की संभावना है। 2017 की आखिरी तिमाही की तुलना में हर क्षेत्र में इस तिमाही में 5 फीसदी तक ज्यादा रोजगार मिलने की संभावना जताई जा रही है।

नौकरियों की बहार

मोदी सरकार की नीतियों की वजह से जहां कंपनियों का बिजनेस बढ़ रहा है, वहीं युवाओं के रोजगार में भी खासी बढ़ोत्तरी देखने को मिल रही है। सरकार ने मेक इन इंडिया, स्किल इंडिया, कौशल विकास जैसी योजनाओं को लागू किया है। आज इन योजनाओं का असर दिखने लगा है। नौकरी डॉट कॉम की एक रिपोर्ट के अनुसार भारत में आईटी, एफएमसीजी, बीपीओ, बैंकिंग, निर्माण जैसे सेक्टर में नौकरियों की बहार आई हुई है।

असरदार योजनाएं

जब भी नौकरियों की बात होती है, तो सामने आता है कि युवाओं को सबसे ज्यादा नौकरियां आईटी सेक्टर में मिल रही हैं, लेकिन इस बार यह ट्रेंड बदला हुआ

27%

सर्विस सेक्टर

19%

बीमा क्षेत्र

कहां कितनी नौकरी

20%

15%

फायनेंस सेक्टर

रीयल इस्टेट सेक्टर

यह केंद्र सरकार की नीतियों का ही असर है कि रोजगार के अवसर सिर्फ बड़े शहरों तक ही सीमित नहीं रहे हैं, बल्कि छोटे शहरों में नौकरी के समान अवसर पैदा हो रहे हैं। रिपोर्ट के मुताबिक आठ मेट्रो शहरों में से सात में नौकरी के अवसर बढ़े हैं, इसके अलावा छोटे शहरों में नौकरियां बढ़ रही है। अगर अनुभव के आधार पर देखें तो फ्रेशर से लेकर तीन साल के एक्सपीरियेंस वाले युवाओं को 21 फीसदी ज्यादा नौकरी मिली है। वहीं 16 साल से ज्यादा तजुर्बे वाले पेशेवरों को भी 21 फीसदी ज्यादा नौकरी के मौके मिले हैं। यह साफ हो गया है कि देश में अब रोजगार के अवसर बढ़ रहे हैं और युवाओं को अपनी मनचाही नौकरी मिल रही है। देश की अर्थव्यवस्था को मजबूत करने और युवाओं को रोजगार उपलब्ध कराने के लिए सरकार ने ‘मेक इन इंडिया’ योजना की शुरुआत की थी। यही वह योजना है जो रोजगार के क्षेत्र में क्रांति लाने की ताकत रखती है। हाल ही में नीति आयोग के महानिदेशक (डीएमईओ) और सलाहकार अनिल श्रीवास्तव ने कहा था कि ‘मेक इन इंडिया’ के जरिए 2020 तक 10 करोड़ नए रोजगार के अवसर पैदा होंगे। उन्होंने कहा कि हम चौथे तकनीकी रेवोल्यूशन के दौर से गुजर रहे हैं। सरकार मेक इन इंडिया के जरिए 2020 तक 10 करोड़ युवाओं को रोजगार देने के मिशन के साथ काम कर रही है। मेक इन इंडिया का मुख्य उद्देश्य बेरोजगारी दूर करना है। मेक इन इंडिया के तहत भारत में शुरू होने वाले उद्योगों के लिए बड़ी संख्या में प्रशिक्षित युवाओं की जरूरत होगी। युवाओं को तकनीकी रूप से दक्ष बनाने के लिए कौशल विकास मंत्रालय द्वारा कई कार्यक्रम चलाए जा रहे हैं जिसके तहत युवाओं को प्रशिक्षित किया जा रहा है।

25 प्रतिशत होगा प्रत्यक्ष निवेश

केंद्र सरकार का लक्ष्य मेक इन इंडिया के तहत भारत को विश्व में निर्माण क्षेत्र का केंद्र बनाना है। इसके साथ-साथ देश के भीतर ही उन्नत प्रौद्योगिकी और तकनीकी से निर्माण क्षेत्र में विकास पर ध्यान केंद्रित किया जा रहा है। एक अनुमान है कि 2022 आते-आते देश के जीडीपी में मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर की हिस्सेदारी 25 प्रतिशत हो जाएगी।


15 - 21 जनवरी 2018

आवरण कथा

03

मजबूत होगी अर्थव्यवस्था

मेक इन इंडिया के पूर्णतया मूर्त रूप लेने से देश की अर्थव्यवस्था को मजबूती मिलेगी। युवाओं को देश में रोजगार मिलेगा और विदेशी आयात में कमी आएगी। विदेशी मुद्रा की बचत होगी और सरकारी कोष को मजबूती मिलेगी। रक्षा उत्पादों के देश में बनने के बाद रक्षा सौदों की लागत घटेगी और बिचौलियों से बचा जा सकेगा। कंपनियों से मिलने वाले करों से राज्य सरकार की आय बढ़ेगी और देश के हर भाग में रोजगार की उपलब्धता बढ़ेगी। भारतीय कंपनियों के उत्पादों की सीधी टक्कर अब विदेशी कंपनियों के उत्पादों से होगा और देश की जनता को इस प्रतिद्वंदिता का लाभ मिलेगा। रोजमर्रा के जरूरत की चीजों के दाम घटेंगे और गुणवत्ता बेहतर होगी।

पहली बार बन रही रोजगार नीति

केंद्र सरकार देश में पहली बार एक राष्ट्रीय रोजगार नीति बना रही है। आगामी केंद्रीय बजट में इसकी घोषणा हो सकती है। रोजगार नीति आने से देश में प्रत्येक साल एक करोड़ रोजगार सृजन का रास्ता साफ हो जाएगा। इस नीति में सभी सेक्टरों को ध्यान में रखकर बनाया जा रहा है। नौकरी के सृजन के लिए समग्रता के साथ सरकार एक रोडमैप भी बना रही है। केंद्र की इस राष्ट्रीय रोजगार नीति के माध्यम से नियोक्ताओं को और अधिक रोजगार देने के लिए प्रोत्साहित किया जाएगा, तो नौकरियों को आकर्षक बनाने के लिए सेक्टरों के अनुसार उद्यम से जुड़े नियमों और नीतियों में सुधार किया जाएगा। रोजगार नीति में प्रत्येक सेक्टर के लिए अलगअलग लक्ष्य रोजगार नीति के माध्यम से अधिक से अधिक लोगों को संगठित क्षेत्र से जोड़ना है, ताकि उन्हें न्यूनतम मजदूरी और पर्याप्त सामाजिक सुरक्षा मिल सके। इसके लिए सरकार आर्थिक, सामाजिक और श्रमिक नीतियों में संशोधन भी करेगी। राष्ट्रीय रोजगार नीति के तहत सभी सेक्टरों में रोजगार की संभावना तलाशी जाएगी। सेक्टर वाइज रोजगार के लिए एक टारगेट तय किया जाएगा। टारगेट पांच साल के लिए तय किया जाएगा, जिसे एक समय अंतराल पर मॉनीटर किया जाएगा। स्टार्टअप इंडिया उन लोगों के लिए फायदेमंद है जो लोग अपना खुद का कारोबार शुरू करना चाहते हैं। इसके तहत कारोबार शुरू करने की इच्छा रखने

राष्ट्रीय रोजगार नीति के तहत सभी सेक्टरों में रोजगार की संभावना तलाशी जाएगी। सेक्टर वाइज रोजगार के लिए एक टारगेट तय किया जाएगा। टारगेट पांच साल के लिए तय किया जाएगा, जिसे एक समय अंतराल पर मॉनीटर किया जाएगा वाले लोगों को आर्थिक मदद दी जाती है और साथ ही उन्हें टैक्स में छूट भी मिलती है। इस योजना के तहत अब तक 1,81,119 मोड्यूल का पंजीकरण हो चुका है। इसकी शर्तों में ये भी शामिल किया जा रहा है कि कितने लोगों को रोजगार मिलेगा। डिजिटल इंडिया की योजना से युवाओं के लिए रोजगार के नये अवसर पैदा हुए। सरकार के हर क्षेत्र में ई- क्रांति के कदम से स्वास्थ्य के क्षेत्र में गांवों और गैर महानगरीय शहरों को नये उत्पाद और सेवा देने वाले युवाओं को रोजगार के अवसर उपलब्ध हो रहे है। इसी तरह पर्यटन के क्षेत्र में भी डिजिटल क्रांति ने नये बाजार खोलकर युवाओं को रोजगार के काफी अवसर दिए हैं।

छोटे कारोबारियों को मदद करने के लिए इस योजना के अंतर्गत 10 लाख रुपए तक के लोन दिए जाते हैं। इस योजना के तहत तीन तरह के लोन दिए जाते हैं। शिशु योजना के तहत 50 हजार रुपए तक के लोन दिए जाते हैं, किशोर योजना के तहत 50 हजार रुपए से 5 लाख रुपए तक के लोन दिए जाते हैं। जबकि तरुण योजना के तहत 5 लाख रुपए से 10 लाख रुपए तक के लोन दिए जाते हैं। मुद्रा बैंक से देश के करीब 5 करोड़ 77 लाख छोटे कारोबारियों को फायदा हुआ है। छोटी मैन्युफैक्चरिंग यूनिट और दुकानदारों को इससे लोन मिलता है। इसके साथ ही सब्जी वालों, सैलून, खोमचे वालों को भी इस योजना के तहत लोन दिए जाने का प्रावधान है। इससे रोजगार सृजन करने और देने वालों की संख्या में भारी बढ़ोत्तरी हुई है। कौशल विकास योजना के लिए 21 मंत्रालयों और 50 विभागों में फैले कौशल विकास कार्य को एक ही मंत्रालय के अधीन लाया गया है। अगले चार साल में एक करोड़ युवकों को प्रशिक्षित करने के लिए 12,000 करोड़ रुपए के बजट के साथ प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना शुरू की गई। इसमें 20 लाख से अधिक युवक पहले ही लाभान्वित हो चुके हैं। इसके तहत देशभर में फैले हुए 978 रोजगार कार्यालय राष्ट्रीय कॅरियर सेवा पोर्टल में एकीकृत किए गये हैं।

15 करोड़ श्रम दिवसों का रोजगार

देश के युवाओं को रोजगार के अवसर उपलब्ध कराने के लिए सरकार कृत-संकल्प है। इस संकल्प

की सिद्धि के लिए किसी भी प्रकार के कदम उठाने में वह पीछे नहीं हटी है और लगातार ऐसे फैसले ले रही है, जिनसे सभी को रोजगार के अवसर मिलें और सबका विकास सुनिश्चित हो सके। इसी को ध्यान में रखते हुए, 83 हजार किलोमीटर के राजमार्गों के निर्माण और चौड़ीकरण की योजना को लागू करने के लिए 7 लाख करोड़ रुपए की योजना को मंजूरी दे दी गई है। इस योजना के लागू होने से 15 करोड़ श्रम दिवसों का रोजगार युवाओं को मिलेगा। मौजूदा केंद्र सरकार के गठन के बाद से देश में राजमार्गों के निर्माण कार्यों में तेजी आई है। 2016-17 के दौरान प्रतिदिन अब तक की सबसे तेज गति से राष्ट्रीय राजमार्गों का निर्माण किया गया। प्रति दिन 22 किमी. राजमार्गों का निर्माण हुआ, जो 2015-16 में 16 किमी. प्रतिदिन था, वहीं यूपीए सरकार के दौरान साल 2014-15 में 12 किमी. और 2013-14 में 11 किमी. रहा था। सीआईआई और ग्लोबल मैनेजमेंट कंसल्टिंग कंपनी बोस्टन कंसल्टिंग ग्रुप की रिपोर्ट से यह अनुमान सामने आया है कि आने वाले पांच वर्षों में भारत की मीडिया और एंटरटेनमेंट इंडस्ट्री में सात से आठ लाख नौकरियां निकलने जा रही हैं। रिपोर्ट के मुताबिक ग्रामीण क्षेत्रों में मीडिया और मनोरंजन की सामग्रियों को लेकर रुझान काफी बढ़ा है, जिसके चलते इस सेक्टर में रोजगार के अवसर काफी बढ़ने वाले हैं। सीआईआई के डायरेक्टर जनरल चंद्रजीत बनर्जी ने कहा कि डिजिटल प्लेटफॉर्म का काफी विस्तार हो रहा है और इस सेक्टर में इतने अवसर बनने जा रहे हैं जितने पहले कभी नहीं बने। विशेष रूप से रचनाकार, कथाकार और टेक्नोलॉजी मुहैया कराने वालों के लिए बहुत सारे मौके उभरेंगे। मतलब साफ है कि केंद्र सरकार के प्रयासों और उसकी असरदार योजनाओं के कारण देश के युवा बेरोजगारों के अच्छे दिन बेहद करीब आ गए हैं।


04

रेलवे

15 - 21 जनवरी 2018

बदल रहा है रेल का चेहरा

रेल मंत्रालय देश की रेल व्यवस्था के कायाकल्प में पूरी तरह जुटा हुआ है। गति से लेकर तकनीक और सुरक्षा से लेकर स्वच्छता हर स्तर पर रेलवे की तस्वीर बदली जा रही है।

खास बातें 45000 कोचों में सुधार के लिए मिशन रेट्रो-फिमेंट 2,367 मार्ग किलोमीटर के इलेक्ट्रिक ट्रैक्शन की रिकॉर्डिंग 2,148 किलोमीटर पुरानी रेल पटरियां बदली गई

रे

एसएसबी ब्यूरो

ल मंत्रालय ने सुरक्षा मानकों पर तेजी से काम किया है। जहां तकनीक की जरूरत है, रेल मंत्रालय तकनीक का इस्तेमाल करने में पीछे नहीं है। हाल ही में रेल मंत्री पीयूष गोयल ने कहा कि रेलवे स्टेशनों पर यात्रियों की भीड़ को मैनेज करने के लिए ड्रोन कैमरे का इस्तेमाल किया जाएगा। केंद्र सरकार की पहल का ही असर है कि पिछले वर्ष की तुलना में चालू वित्त वर्ष में समान अवधि के दौरान एक अप्रैल 2017 से 30 नवंबर 2017 के बीच ट्रेन हादसों में काफी कमी आई है। ट्रेन हादसों की संख्या 85 से घटकर 49 रह गई है। रेल पटरी के नवीनीकरण के काम में भी तेजी आई। चालू वित्त वर्ष में नवंबर 2017 तक 2,148 किलोमीटर पुरानी रेल पटरियों को बदला जा चुका है। अब तक 2,367 मार्ग किलोमीटर के इलेक्ट्रिक ट्रैक्शन की रिकॉर्डिंग की गई। रेल परिचालन की गति बढ़ाने के लिए अर्ध हाई स्पीड और हाई स्पीड ट्रैक को लेकर काम जारी है। यात्रियों की सुविधा और सुरक्षा पर भी तेजी से जो काम हो रहा है। उसका असर अब दिखने लगा है। देश में पहला स्वदेश निर्मित 12 कोच की पहली ब्रॉड गेज वातानुकूलित ईएमयू मुंबई उपनगरीय क्षेत्र में शुरू हो गया है। 45000 कोचों में सुधार करने के लिए मिशन रेट्रो-फिमेंट की शुरुआत की गई है। जीपीएस सिस्टम को लगाया गया है। टिकट बुकिंग से लेकर ट्रेन को ट्रैक करने के लिए मोबाइल ऐप्प की लांचिंग की गई है। देरी से चलने वाली ट्रेनों की जानकारी के लिए एसएमएस सेवा की शुरुआत

की गई। रेलवे के कामकाज में सुधार करने के लिए रेलवे बोर्ड ने काम करने के व्यापक स्पेक्ट्रम को कवर करने के लिए जनरल मैनेजर (जीएम), डिवीजनल रेलवे मैनेजर (डीआरएम) और क्षेत्रीय अधिकारियों को पर्याप्त वित्तीय और प्रशासनिक अधिकार दिए हैं। ट्रेन आने में देरी होने पर रेल यात्रियों को एसएमएस के जरिए इसकी सूचना देने की शुरुआत 3 नवंबर, 2017 से हुई। अब तक यह व्यवस्था सभी राजधानी, शताब्दी, तेजस, गतिमान ट्रेनों के अलावा जनशताब्दी, दुरंतो और गरीब रथ ट्रेनों के लिए भी शुरू हो गई है। यह सेवा अब तक 250 ट्रेनों के लिए उपलब्ध है। सभी मेल और एक्सप्रेस ट्रेनों में प्रतीक्षा सूची के यात्रियों को आरक्षित सीट उपलब्ध कराने के लिए अल्टरनेट ट्रेन को विकल्प के तौर पर व्यवस्थित करने की प्रक्रिया 1 अप्रैल, 2017 से शुरू की है। वरिष्ठ नागरिकों, दिव्यांग व्यक्तियों के लिए एसी 3 क्लास में दो बर्थ और स्लीपर में 4 बर्थ की व्यवस्था की गई है। ट्रेन आने में देरी होने पर रेल यात्रियों को एसएमएस के जरिए इसकी सूचना देने की शुरुआत 3 नवंबर, 2017 से हुई। अब तक यह व्यवस्था सभी राजधानी, शताब्दी, तेजस, गतिमान ट्रेनों के अलावा जनशताब्दी, दुरंतो और गरीब रथ ट्रेनों के लिए भी शुरू हो गई है। यह सेवा अब तक 250 ट्रेनों के लिए उपलब्ध है। सभी मेल और एक्सप्रेस ट्रेनों में प्रतीक्षा सूची के यात्रियों को आरक्षित सीट उपलब्ध कराने के लिए अल्टनेट ट्रेन को विकल्प के तौर पर व्यवस्थित करने की प्रक्रिया 1 अप्रैल, 2017 से शुरू की है। वरिष्ठ नागरिकों, दिव्यांग व्यक्तियों के लिए एसी 3

रेलवे के कामकाज में सुधार करने के लिए रेलवे बोर्ड ने काम करने के व्यापक स्पेक्ट्रम को कवर करने के लिए अधिकारियों को पर्याप्त वित्तीय और प्रशासनिक अधिकार दिए हैं

क्लास में दो बर्थ और स्लीपर में 4 बर्थ की व्यवस्था की गई है। बेहतर प्रकाश और यात्री सुरक्षा के लिए मार्च 2018 तक सभी स्टेशनों पर 100% प्रतिशत एलईडी प्रकाश व्यवस्था की शुरुआत की गई। अब तक 3,500 से अधिक स्टेशनों पर एलईडी लाइट का काम पूरा हो चुका है। सभी रेलवे प्लेटफार्मों पर मोबाइल और लैपटॉप के लिए चार्जिंग प्वाइंट की व्यवस्था की जा रही है। यात्रियों को कीड़ों से मुक्त रखने के लिए रेलवे स्टेशनों पर कीट पकड़ने वाली मशीनों की व्यवस्था की जा रही है। आईआरसीटीसी रेल कनेक्ट ने एक नया मोबाइल एेप्प लांच किया। आधार से जुड़े यूजर आईडी को एक महीने में 12 ई-टिकट बुक करने की अनुमति दी गई, जबकि गैर आधार यूजर आईडी के लिए 6 टिकट बुक करने का प्रावधान है। यात्रियों की सुविधा के लिए नया इंटीग्रेटेड मोबाइल ऐप्प ‘रेल सुरक्षा’ को लांच किया गया। इसके माध्यम से रेल ई-टिकट बुकिंग, अनारक्षित टिकट, शिकायत प्रबंधन, क्लीन कोच, यात्री पूछताछ आदि की व्यवस्था की गई है। टिकट के भुगतान के लिए आरक्षण काउंटर पर यूपीआई / बीएचआईएम ऐप्प का उपयोग कर सकते हैं। ई-टिकटिंग वेबसाइट के लिए भी इसका इस्तेमाल कर सकते हैं। 14 राजधानी और 15 शताब्दी ट्रेनों की परियोजना स्वर्ण के तहत यात्री सुविधा में सुधार करने के लिए पहचान की गई। इसके तहत उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिए ‘कर्मचारी व्यवहार’ को एक महत्वपूर्ण पैरामीटर के रूप में पहचाना गया था। इन प्रमुख ट्रेनों के अग्रिम पंक्ति के कर्मचारियों को खानपान, प्रबंधन और सफाई जैसे विभिन्न पहलुओं में प्रशिक्षित किया गया था। हाईस्पीड रेल ट्रैक के लिए स्वर्णिम चतुर्भुज मार्ग पर काम जारी – रेलवे के मुख्य मार्गों (दिल्ली – मुंबई, दिल्ली – हावड़ा, हावड़ा – चेन्नई, चेन्नई – मुंबई, दिल्ली – चेन्नई और हावड़ा – मुंबई) पर

जो बाधाएं हैं, उसे दूर करने के लिए एक सड़क का नक्शा विकसित किया गया है। यह कदम स्थाई बुनियादी ढांचा, चल ढांचे और संचालन प्रथाओं के कारण उठाया गया है। इसमें दो मार्गों के लिए परियोजनाएं यानी नई दिल्ली-मुंबई सेंट्रल (वड़ोदरा-अहमदाबाद सहित) और नई दिल्लीहावड़ा (कानपुर-लखनऊ सहित) 160/200 किमी प्रति घंटे की गति बढ़ाने के लिए वित्तीय वर्ष 201718 के कार्य योजना में शामिल किया गया है। इस पर लगभग 18,000 करोड़ रुपए खर्च होने हैं। ट्रेन की गति बढ़ाने के लिए बाड़ लगाने, लेवल क्रॉसिंग हटाने, ट्रेन सुरक्षा चेतावनी प्रणाली (टीपीडब्लूएस), मोबाइल ट्रेन रेडियो संचार (एमटीआरसी), स्वचालित और मैकेनाइज्ड डायग्नोस्टिक सिस्टम इत्यादि पर काम हो रहा है, जिसके कारण सुरक्षा और विश्वसनीयता में वृद्धि होती है। इससे प्रीमियम राजधानी प्रकार की ट्रेनों हावड़ा राजधानी के लिए यात्रा का समय 17 घंटे के बजाय 12 घंटा हो जाएगा और साथ ही मुंबई राजधानी के 15 घंटे 35 मिनट की जगह कम होकर 12 घंटे की यात्रा अवधि हो जाएगी। लोको की स्थापना से एमईएमयू / डीईएमयू ट्रेनों के साथ ही लोकल ट्रेनों की तुलना में एमईएमयू ट्रेनों की गति में 20 किमी प्रति मील की औसत वृद्धि हुई है। दिल्ली-चंडीगढ़ (244 किमी) रूट पर 200 किमी प्रति घंटे की गति से यात्रियों की ट्रेनों की गति बढ़ाने को लेकर नई दिल्ली-चंडीगढ़ कॉरिडोर की व्यवहार्यता और कार्यान्वयन की अंतिम रिपोर्ट का अध्ययन किया जा रहा है। नागपुर – सिकंदराबाद (575 किमी) रूट पर जून 2016 से काम जारी है। इस पर निर्धारित कार्यक्रम के अनुसार काम चल रहा है। चेन्नई – काजीपेट रूट पर ट्रेन परिचालन की गति बढ़ाने के लिए अध्ययन जारी है। सुरक्षा मानकों पर काम से हादसों में आई भारी कमी – रेल मंत्रालय सुरक्षा मानकों पर भी नियमित रूप से काम करने का असर है कि चालू वित्तीय वर्ष में एक अप्रैल, 2017 से 30 नवंबर, 2017 के दौरान ट्रेन हादसों की संख्या 85 से घटकर 49 रह गई। दुर्घटनाओं को रोकने के लिए सभी क्षेत्रीय रेलवे पर सुरक्षा मुहिम चलाई गई थी। रात के निरीक्षणों और अधिकारियों और पर्यवेक्षकों द्वारा नियमित रूप से जांच, दरार वाले स्थानों की समीक्षा, बार-बार और गहन फुटप्लेट निरीक्षण आदि पर जोर दिया गया।


05

स्वच्छता

15 - 21 जनवरी 2018

फेम इंडिया की सूची में डॉ. पाठक

वि

एशिया पोस्ट सर्वे के 100 प्रभावशाली की सूची में प्रमुख स्थान पर हैं सुलभ इंटरनेशनल के संस्थापक डॉ विन्देश्वर पाठक

श्व विख्यात समाजसेवी 73 वर्षीय डॉ. विन्देश्वर पाठक ने स्वच्छता, मानवाधिकार, पर्यावरण और समाज सेवा के क्षेत्र में कार्य से देश दुनिया में बड़ी पहचान बनाई है। इनके कार्य को सिर्फ स्वच्छता तक सीमित मानना बेमानी होगा। बिहार के कुलीन पारंपरिक ब्राह्मण परिवार जन्म होने के बावजूद अस्पृश्य माने जाने वाले भंगी समुदाय के लिए किए गए उनके कार्य अतुलनीय हैं, जो उन्हें सुलभ इंटरनेशनल के संस्थापक से ज्यादा एक समाजशास्त्री के रूप में वैश्विक रूप में प्रतिष्ठित करते हैं। महात्मा गांधी व डॉ. आंबेडकर की विचारधारा के पक्षधर डॉ. पाठक स्नातक की पढ़ाई पूरी कर बिहार

गांधी सेनटेनरी सेलिब्रेशन कमेटी से जुड़े। इस दौरान की गई यात्राओं में उन्हें मैला ढोने वाले लोगों की समस्या को जानने समझने का मौका मिला। इसके बाद 1970 में उन्होंने सुलभ इंटरनेशनल की स्थापना की। दशकों से स्वच्छता, व सामाजिक छुआछूत को ले कर किए जा रहे सुलभ इंटरनेशनल के कार्य आज विश्व की जरूरत बन गए हैं। उनके द्वारा किए गए समाज विकास के कार्यों की विशेषता का अंदाजा इसा बात से लगाया जा सकता है कि न्यूयॉर्क के मेयर ने 14 अप्रैल 2016 को ‘विन्देश्वर पाठक डे’ के तौर पर घोषित किया। समाज सेवा के विशिष्ट कार्यों के लिए पद्मभूषण अवार्ड से सम्मानित डॉ. पाठक को राष्ट्रीय-

अंतरराष्ट्रीय स्तर पर 60 से ज्यादा अवार्डों से नवाजा जा चुका है। 2003 में डॉ. पाठक का नाम विश्व के 500 उत्कृष्ट सामाजिक कार्य करने वाले व्यक्तियों की सूची में प्रकाशित किया गया। डॉ. पाठक को एनर्जी ग्लोब पुरस्कार भी मिल चुका है। उन्होंने पर्यावरण के क्षेत्र में काम करने के लिए प्रियदर्शिनी पुरस्कार एवं सर्वोत्तम कार्यप्रणाली के लिए दुबई अंतरराष्ट्रीय पुरस्कार भी प्राप्त किया है। देश-दुनिया में बड़ी पहचान बनाने वाले डॉ. पाठक बिहारी अस्मिता और पहचान के एशिया पोस्ट सर्वे के 100 प्रभावशाली व्यक्तियों की सूची में प्रमुख स्थान बनाने में सफल रहे। (एजेंसी)

अब वातानुकूलित शौचालय का लें आनंद झारखंड के जमशेदपुर में पहला वातानुकूलित सार्वजनिक सुलभ शौचालय का निर्माण हुआ

सु

लभ इंटरनेशनल और जुस्को ने मिलकर शहरवासियों को वातानुकूलित शौचालय सह स्नानघर (एयरकंडीशन टॉयलेट-बाथरूम) की सुविधा दी है। कदमा मेन मार्केट में 2000 वर्गफीट में बनाए गए 15 सीटर एसी टॉयलेट में छोटे बच्चों और दिव्यांग के लिए भी एक-एक टॉयलेट दिया गया है। दिव्यांग की सुविधा के लिए रेलिंग व वॉश बेसिन भी है। पांच यूरिनल यूनिट व 05 स्नानघर भी बनाए गए हैं। इस सामुदायिक शौचालय को ठंडा रखने के लिए तीन एयर कंडीशनर लगाए गए हैं। टॉयलेट के बाहर एक वेटिंग लाउंज है। इसमें करीब 15 लोगों के बैठने की व्यवस्था रहेगी। इसकी देखरेख सुलभ

इंटरनेशनल के जिम्मे रहेगी। इसके निर्माण में कुल 50 लाख रुपए खर्च हुए हैं। यह झारखंड-बिहार का पहला वातानुकूलित सामुदायिक शौचालय है। कदमा मेन मार्केट में पहले से टाटा स्टील का एक शौचालय था। यह काफी समय से बंद पड़ा था। कंपनी से निर्देश मिलने के बाद जुस्को ने शौचालय को तोड़कर नया वातानुकूलित सामुदायिक शौचालय बनवाया है। जमशेदपुर सुलभ इंटरनेशनल के सचिव संजय झा ने कहा कि जुस्को और सुलभ इंटरनेशनल मिलकर शहर में कई और जगह वातानुकूलित टॉयलेट बनाएगी। डालडा लाइन, बारीडीह, गोलमुरी आदि मार्केट को इसके लिए देखा जा रहा है। (एजेंसी)

'स्वच्छ आदत स्वच्छ भारत' की ब्रांड एंबेसडर काजोल स्व

काजोल ने स्वच्छ भारत अभियान में योगदान को अपने लिए फख्र की बात बताया

च्छता संबंधी मामलों से जुड़ी मौतों को रोकने की सक्रिय समर्थक अभिनेत्री काजोल 'स्वच्छ आदत स्वच्छ भारत' पहल की एडवोकेसी एंबेसडर नियुक्त हुई हैं। काजोल ने ट्विटर के जरिए लोगों से स्वच्छता दूत बनने और स्वच्छ भारत अभियान में योगदान देने का आग्रह किया। काजोल ने कहा, ‘हिंदुस्तान यूनिलीवर की पहल ‘स्वच्छ

आदत स्वच्छ भारत' हाथ मुंह बम' के लिए एडवोकेसी एंबेसडर के रूप में चुना जाना बड़े सम्मान की बात है। मैं लोगों से स्वच्छता दूत बनने और बेहतर कल के निर्माण में योगदान देने का आग्रह करती हूं।’ काजोल के पति व अभिनेता अजय देवगन ने उनकी इस उपलब्धि पर खुशी जाहिर की है। (एजेंसी)


06

स्वच्छता

15 - 21 जनवरी 2018

महिला जागरूकता के बूते स्वच्छता

उत्तर प्रदेश के संतकबीर नगर की अंजनी के प्रयासों से उनके मायके और ससुराल की महिलाओं को मिला शौचालय

स्ती की रहने वाली और संतकबीरनगर में स्वच्छ भारत अभियान की ब्रैंड एंबेसडर अंजनी मल्लाह महिलाओं की आदर्श बन चुकी हैं। अंजनी ने न केवल संघर्ष करते हुए 125 शौचालय बनवाए, बल्कि वह महिलाओं को शौचालय न होने पर ससुराल छोड़ने की बजाय हक के लिए लड़ने की प्रेरणा दे रही हैं। अंजनी की ही देन है कि उनके ससुराल और मायके के गांव की महिलाएं आज खुले में शौच जाने की बजाय शौचालय का इस्तेमाल कर रही हैं। अंजनी को यह बदलाव लाने में थोड़ा वक्त जरूर लगा, लेकिन आज वह अपने मिशन में कामयाब हैं। अंजनी की ही बदौलत उनके ससुराल संतकबीरनगर जिले के मेडरापार गांव में जिला प्रशासन ने 150 शौचालय बनवाने की नई लिस्ट भी जारी कर दी है। अंजनी बताती हैं कि उनका बचपन से बड़ी ऐथलीट बनने का सपना था। जब पिता के रिटायर होने के बाद वह उत्तराखंड से अपने बस्ती

के गांव रानीपुर आई तो शौचालय नहीं होने के कारण खुले में शौच जाना पड़ता था, जिससे काफी शर्मिंदगी उठानी पड़ती थी। जब वह सुबह गांव की सड़कों पर प्रैक्टिस करने निकलतीं तभी खुले में शौच करते लोग उनसे मिलते, जिससे परेशानी और बढ़ जाती। अंजनी ने बताया कि इसके बाद उनकी शादी संतकबीरनगर जिले के मेडरापार गांव में हुई। ससुराल में भी शौचालय नहीं था। यहां भी खुले में जाना पड़ता, जिसे बर्दाश्त नहीं कर पाई। इसके बाद गांव की कुछ महिलाओं को साथ लेकर अधिकारियों से मिलीं, लेकिन किसी भी अधिकारी ने उनपर घ्यान नहीं दिया। उन्होंने फिर धरना प्रदर्शन का रास्ता अपना लिया। आखिर में उनकी लड़ाई रंग लाई और उस समय डीएम रहे सरोज कुमार ने मेडरापार में 75 शौचालय बनवाने का आदेश दिया। अंजनी बताती हैं कि इसके बाद उन्होंने अपने मायके रानीपुर पहुंचकर भी शौचालय के लिए अधिकारियों के सामने प्रदर्शन

किया, जिसका परिणाम रहा कि ससुराल के साथ ही मायके रानीपुर में भी 50 शौचालय बनवाने के आदेश हुए। अंजनी एक अच्छी ऐथलीट भी हैं। सीमित संसाधन होने के बावजूद वह कई नेशनल लेवल की मैराथन दौड़ में हिस्सा ले चुकी हैं। इन्हीं

खूबियों की वजह से उन्हें पिछले साल अक्टूबर में स्वच्छ भारत अभियान के तहत संतकबीरनगर जिले का ब्रैंड एंबेसडर बनाया गया। अंजली महिलाओं को शौचालय बनवाने के लिए प्रेरित कर रही हैं। (एजेंसी)

उडुपी बना खुले में शौच-मुक्त उडुपी कर्नाटक का पहला खुले से मुक्त जिला बन गया है

जी उलगनाथन/बेंगलुरु

त्तर कर्नाटक का उडुपी जिला खुले में शौच मुक्त पहला जिला बन गया है। यहां का सुंदर कृष्ण मंदिर कृष्ण भक्तों के लिए हमेशा से लोकप्रिय रहा है। यह मंदिर शहर मंगलुरु से लगभग 50 किमी दूर अरब सागर के करीब है और इसके तट पर बहुत से रिसॉर्ट भी हैं। मुख्यमंत्री सिद्धारमैया ने कहा कि उडुपी को राज्य के पहले खुले में शौच मुक्त जिले के रूप में घोषित किया गया है। अगले साल 2 अक्टूबर तक पूरे कर्नाटक को खुले में शौच मुक्त घोषित कर दिया जाएगा। इस योजना के अंतर्गत सरकार गांवों में शौचालय बनाने और राज्य के हर गांव

और मंडल में सामुदायिक शौचालय बनाने के लिए मदद कर रही है। उन्होंने कहा कि हमारा उद्देश्य कर्नाटक को भुखमरी मुक्त राज्य बनाना है। अन्न भाग्य, वासथि भाग्य, क्षिर भाग्य और कृषि भाग्य जैसी परियोजनाएं इस लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए महत्वपूर्ण भूमिका निभाएंगी। ये विभिन्न योजनाएं हैं, जिनके तहत गरीब परिवारों को मुफ्त चावल और बहुत ही कम कीमत पर आवश्यक

कमोडिटीज मिलते हैं। पिछले साल 31 अक्टूबर को करीब 200 इंदिरा कैंटीन का उद्घाटन बेंगलुरु में किया गया, जो कि 10 रुपए से कम में नाश्ते और चावल की कुछ किस्में प्रदान करता है। हालांकि केंद्रीय शहरी विकास मंत्रालय द्वारा आईटी कैपिटल बेंगलुरु को अभी तक ओपन डेफिकेशन फ्री नहीं करने की आलोचना करने के कुछ दिन बाद ही उन्होंने इसकी घोषणा की है। स्वच्छ भारत मिशन के संयुक्त सचिव प्रवीण प्रकाश ने राज्य के शीर्ष नौकरशाहों के साथ एक समीक्षा बैठक के बाद कहा था कि शहर की सड़कों पर स्वच्छता ओपन डेफिकेशन फ्री (ओडीएफ) शहरों की सूची से पार कर गई है। पड़ोसी राज्य शहरी इलाकों में खुले में शौच मुक्त हो रहे हैं, जबकि कर्नाटक में केवल 28 शहरों और कस्बों में से तीन ही ओडीएफ हैं। इन तीन शहरों में मैसूर, मंगलुरु और उडुपी हैं। बेंगलुरु इसके पास भी नहीं आ रहा है। प्रकाश ने कहा कि बेंगलुरु के पास गूगल मैप आधारित

लगभग 500 शहर और कस्बे 100 प्रतिशत ओडीएफ हो चुके हैं। केरल 100 प्रतिशत ओडीएफ बनने की ओर बढ़ रहा है तो वहीं दिल्ली, मुंबई और चेन्नई पहले से 100 प्रतिशत ओडीएफ है

शौचालय लोकेटर कब होगा? प्रकाश ने कहा कि देश के लगभग 500 शहर और कस्बे 100 प्रतिशत ओडीएफ हासिल कर चुके हैं। केरल 100 प्रतिशत ओडीएफ बनने की ओर बढ़ रहा है तो वहीं दिल्ली, मुंबई और चेन्नई ने पहले ही 100 प्रतिशत ओडीएफ होने का लक्ष्य हासिल कर लिया है। उन्होंने कहा कि आंध्र प्रदेश में जीरो ओडीएफ 110 शहरी क्षेत्रों में, गुजरात में 178, महाराष्ट्र में 100 और तमिलनाडु में 40 हैं। एसबीएम के निदेशक ने कहा कि केंद्र सरकार ने 2019 तक ओडीएफ भारत बनाने का लक्ष्य रखा है। केंद्र सरकार पूरे भारत में 5 जून से अनिवार्य स्रोत पर अलग करने जा रही है। स्वच्छ भारत उपक्रम के पीछे तर्क समझाते हुए प्रकाश ने बताया कि केंद्र सरकार ने तीन वर्षों में 30,000 करोड़ रुपए एकत्र किए हैं, जो सालाना 10,000 करोड़ रुपए तक आंका गया है। उन्होंने कहा कि एसबीएम पर वार्षिक खर्च शहरी क्षेत्रों के लिए 2,000 करोड़ रुपए और ग्रामीण इलाकों के लिए 8,000 रुपए है। इसके अलावा 10,000 करोड़ रुपए जल निकायों के प्रदूषण को रोकने के लिए सीवेज के इलाज और रीसाइक्लिंग के लिए निर्धारित किए गए हैं।


15 - 21 जनवरी 2018

07

जानकारी

रोबोट खत्म कर देंगे इंसान का वजूद ? अल्फा जीरो का दिमाग है इंसानों से भी तेज। शतरंज से लेकर मेडिकल की दुनिया में है सबसे तेज

वै

ज्ञानिकों का कहना है कि टैबी स्टार ब्रह्मांड काइस सवाल पर कई बार बहस छिड़ चुकी है कि क्या वाकई रोबोट इस धरती से इंसानों का वजूद खत्म कर सकते हैं? नई-नई तकीनीकें और वैज्ञानिकों के नए-नए आविष्कारों से ये सवाल और गहराता जा रहा है। वहीं कई लोग ऐसे भी हैं जो इसके विपरीत सोच रखते हैं। इनका मानना है कि इंसान की जिंदगी में केवल मशीन ही इंकलाब ला सकती है और यह तब संभव होगा जब ऐसी-ऐसी मशीनें बनाई जाएं जो इंसानों के काम को आसानी से कम कर दें। इस सोच को रखने वाले मशीनों से प्यार करते हैं और वे हमेशा किसी न किसी नए एक्सपेरिमेंट में लगे रहतें हैं। इंसान की जिंदगी में मशीनी इंकलाब के दौर में अब ऐसे निर्माण किए जाने लगे हैं जहां इंसानों की बुद्धिमता की जरूरत वाले कामों को भी मशीनों से कराया जाए। हाल ही में एक ऐसा ही एक्सपेरिमेंट सामने आया है जिसने पूरी दुनिया को चौंका दिया है। ज्ञात हो इसी साल ऑक्सफॉर्ड अकादमी के एक प्रोफेसर मिशेल वुलड्रिज ने चेताया था कि जल्द ही ऐसा समय आने वाला है जब मशीने इतनी जटिल हो जाएंगी कि इंजीनियर खुद नहीं समझ पाएंगे कि वे आगे कैसे काम करेंगी। जी हां, इस एक्सपेरिमेंट में कुछ ऐसा ही हुआ है। दरअसल, एक मशीन ने अपनी बुद्धिमता से शतरंज के खेल में इंसानों को भी पीछे छोड़ दिया है। जी हां, इस मशीन ने शतरंज के खेल में ऐसी चाल चली जो पिछले 1500 साल में किसी ने नहीं चली थी। कहा जा रहा है कि पिछले 1500 सालों में किसी भी इंसानी दिमाग ने चेक बोर्ड में नहीं सिखा होगा। एआई के इस कंप्यूटर प्रोग्राम ने साबित कर दिया कि वह विश्व का सर्वश्रेष्ठ चेस चैंपियन है। इस कंप्यूटर प्रोग्राम का नाम 'अल्फाजीरो' है। यही नहीं इस नए प्रोग्राम ने पुराने विजेताओं को कहीं दूर पीछे छोड़ दिया है। अल्फाजीरो महज 4 घंटे में शतरंज का खेल सिखा देता है। ये एक ऐसा प्रोग्राम है जो बहुत आसानी से आपको खेल के नियम समझा देता है और ये भी बता देता है कि आप अपने ही आप से कैसे ये खेल जीत सकते हैं। अल्फाजीरो हमें महज 240 मिनट की प्रैक्टिस में इस खेल को खेलने के तरीके के साथ-साथ नई टैक्टिस

मछलियों के साथ तैरगे ा रोबोट भी सिखा सकता है। इसमें इंसानी दिमाग को कैसे हराया जाए यह सिखाया गया है। गैरी कास्पारोव, जो साल 1997 में आईबीएम सुपर कंप्यूटर डीप ब्लू के आगे हार गए थे। उस वक्त कहा गया था कि मशीनों में ये ताकत होती है जो इंसानी नॉलेज को पीछे छोड़ देती है। पिछले साल साल 6 दिसंबर अल्फाजीरो ने चेस की दुनिया में पांव जमाया और छा गया।

क्या है 'अल्फाजीरो'

'अल्फाजीरो' एक यूके कंपनी के दिमाग की उपज है। यह प्रोग्राम लंदन में जन्मा है। इसका नाम डीपमाइंड है। ये कंप्यूटर प्रोग्राम बनाता है जो अपने ही लिए काम करते हैं। अल्फाजीरो को एल्गोरिदम भी कहते हैं। ये एक तरह के गणित के निर्देश हैं, जो कोई भी सवाल का जवाब देते हैं।

प्रॉब्लम सॉल्विंग पावर

सिर्फ इतना ही नहीं 'अल्फाजीरो' के पास प्रॉब्लम सॉल्विंग पावर है, जो गति और समय के साथ-साथ अपनी बुद्धि को तीन गुना बढ़ाती जाती है। चेस में साबित हो गया है कि इस प्रोग्राम की सोच इंसानी दिमाग से ज्यादा तेज है।

पा

अब पानी में मछलियों के साथ डुबकी लगाएगा रोबोट जानें क्या है और खासियत

नी में मछलियों की दुनिया कैसी होती है आखिर वो आपस में क्या और कैसे बात करती है। ये कुछ ऐसी चीजें हैं जिनके बारे में हर कोई जानना चाहता है। हाल ही में वैज्ञानिकों ने अपनी खोज में एक ऐसे रोबोट को बनाया है जो उनके साथ ही पानी में डुबकियां लगा सकता है। मिली जानकारी के अनुसार स्विटजरलैंड के इकोल पॉलिटेक्निक फेडरल ने एक खोज की है। इस शोधकर्ता का नाम डे लौसेन है। उन्होंने एक ऐसा रोबोट बनाया है जो मछलियों के साथ तैर सकता है। यहां तक की मछलियां आपस में कैसे बात करती हैं ये भी सीख सकता है।ये रोबोट मछली

सुलझा अंतरिक्ष का 'अद्भुत रहस्य' वैज्ञानिकों ने नहीं, बल्कि बच्चों ने अंतरिक्ष के साठ साल साल पुराने रहस्य से पर्दा उठाया

मेडिकल में भी कमाल

ऐसा भी कहा जा रहा है कि एआई कोई भी मेडिकल बीमारी की जांच में सबसे तेज है। जी हां, इस दिशा में भी इस मशीन का उपयोग किया जा चुका है। लंदन के एक अस्पताल एनएचएस, यूनिवर्सिटी कॉलेज और हॉस्पिटल, मुरफील्ड आई हॉस्पिटल में भी इसका ट्रायल हो चुका है। यूसीएलएच में एआई ने एक ऐसे सिस्टम बनाया है जो ये पता लगाया कि आपके दिमाग और गर्दन में कैंसर है या नहीं। इससे साबित हो गया कि यह मशीन चेस पर ही अपनी सफलता नहीं दिखाता है, बल्कि इंसानों की जिंदगी और मौत के बारे में भी बताती है। यही नहीं यह मशीन प्रोग्राम इंसानों से पहले कैंसर के निदान में सक्षम है। डॉक्टरों की टीम को कैंसर के रेडिएशन के बारे में पता लगाने में 4 घंटे से भी ज्यादा का समय लगता है, वहीं इस मशीन को महज 1 घंटे का समय लगता है। (एजेंसी)

की तरह ही दिखता है। जिसकी लंबाई 7 सेंटीमीटर है। गौर करने वाली बात ये है कि शोधकर्ताओं ने इसके अध्ययन के लिए जेब्रा मछली का चुनाव किया। इस मछली का चुनाव करने के पीछे एक खास वजह थी। ये मछलियों की सबसे स्वस्थ प्रजाति है। इनका समूह तेजी से दिशा बदलता है और उतनी ही तेजी से इधर से उधर चला जाता है।इस खास रोबोट को बनाने के लिए वैज्ञानिकों ने पशुओं से प्रेरणा ली है। उनका मानना है कि पशुओं के साथ रोबोट के इंटरेक्शन से शोधकर्ताओं को जीव विज्ञान और रोबोटिक्स के बारे में जानने में सहायता मिलेगी। (एजेंसी)

खिरकार अंतरिक्ष का 60 साल पुराना रहस्य सुलझ गया है। आप इस रहस्य के बारे में जानकर तो हैरान रह ही जाएंगे, लेकिन उससे भी ज्यादा चकित तो तब रह जाएंगे जब ये जानेंगे कि ये गुत्थी किसी वैज्ञानिक ने नहीं, बल्कि बच्चों ने सुलझाई है।

पृथ्वी के विकिरण बेल्ट में कुछ एनर्जेटिक (ऊर्जावान) और संभावित हानिकारक कणों के स्रोत के एक 60 साल पुराने रहस्य को जूते के डिब्बे के आकार वाले एक सैटेलाइट के डेटा के इस्तेमाल का अध्ययन कर सुलझा लिया गया है। यह छात्रों द्वारा बनाया गया था। अमेरिका के बोल्डर में कोलोराडो यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर जिनलिन ली ने कहा कि यह परिणाम पृथ्वी के भीतर के विकिरण बेल्ट में एनर्जेटिक इलेक्ट्रॉनों को दर्शाते हैं। यह मुख्य रूप से अपने आंतरिक किनारे के पास सुपरनोवा के विस्फोट से पैदा हुई कास्मिक किरणों द्वारा बने हैं। पृथ्वी की इस विकिरण बेल्ट को ‘वैन एलन बेल्ट’ के रूप में भी जाना जाता है। यह ऐसी एनर्जेटिक (ऊर्जावान) कणों की परतें होती हैं जो ग्रहों पर चुंबकीय क्षेत्र द्वारा संघटित होती हैं। ली ने कहा कि आखिरकार हमने 60 साल पुराने रहस्य को सुलझा लिया है। (एजेंसी)


08

व्यक्तित्व

15 - 21 जनवरी 2018

गरीब-बेसहारों की ऊषा

बिहार से आकर नोएडा में ऊषा ठाकुर ने न सिर्फ अपना आशियाना बनाया, बल्कि वंचित और शोषित बच्चियों का आशियाना भी बसाया प्रियंका तिवारी

स बदलते दौर में एक तरफ लोगों की संवेदनाएं जहां खत्म होती जा रही हैं। वहीं कुछ ऐसे भी लोग हैं, जो देश और समाज के प्रति अपने उत्तरदायित्वों को बखूबी निभा रहे हैं। इन्हीं लोगों में से एक है ऊषा ठाकुर, जिन्होंने ना सिर्फ पर्यावरण, बल्कि महिलाओं और समाज के पिछड़े तबके के लोगों के लिए सराहनीय कार्य किया है। समाज के प्रति किए गए उल्लेखनीय कार्यों के लिए उन्हें कई पुरस्कारों से सम्मानित भी किया

खास बातें

मानव पूर्त न्यास संस्था का संचालन करती हैं ऊषा वंचितों के हक के लिए सदैव तत्पर रहती हैं ऊषा महिलाओं और लड़कियों को स्ववलंबी भी बनाती हैं

गया है। ऊषा जब नोएडा आईं तो उन्होंने सोचा भी नहीं था कि उनके जीवन का मकसद इस कदर बदल जाएगा और तमाम परेशानियों का सामना करते हुए वह गरीब महिलाओं, बच्चों और पुरुषों के लिए उल्लेखनीय कार्य करेंगी। ऊषा बताती हैं कि हमें तो अब याद भी नहीं कि हमने समाज सेवा के कार्य को कब से शुरु किया है। हां वह बच्ची जरुर याद है, जिसके लिए हमने पहली लड़ाई लड़ी थी। ऊषा ठाकुर वैसे तो बिहार की रहने वाली है, लेकिन 25 साल पहले वह नोएडा आ गई और यहीं रहने लगीं। यहां इन्होंने समाज में फैली असमाजिकता, महिलाओं और बच्चियों के प्रति लोगों की निदंनीय सोच को देखा तो उन्होंने इन सबके खिलाफ आवाज उठाने और शोषित महिलाओं, बच्चियों को इंसाफ दिलाने का बीड़ा उठाया। अपने इस कार्य को आगे बढ़ाने के लिए उन्होंने मानव पूर्त न्यास नामक एक संस्था की स्थापना की। आज वह इस संस्था के माध्यम से समाज के गरीब तबके और पर्यावरण संरक्षण के क्षेत्र में उल्लेखनीय कार्य कर रही हैं। ऊषा अपनी संस्था के माध्यम से पिछड़े तबके की महिलाओं को स्वावलंबी बनाने और कन्या भ्रूण हत्या को रोकने के क्षेत्र में भी कार्य कर रही हैं। इसके तहत वह और उनकी टीम गरीब और कम पढ़ी

लिखी महिलाओं को रोजगारपरक बनाने के लिए जागरुक करती हैं और उन्हें पापड़, अचार, मसाले, सिलाई-कताई इत्यादि बनाना सिखाती हैं। इसके साथ ही वह उन महिलाओं को समाज में अपनी भूमिका और अपने महत्व को समझने के लिए जागरुक भी कर रही हैं। इतना ही नहीं ऊषा ठाकुर ने माफिया के चंगुल से 40 लड़कियों को बचाया और उन्हें मां का प्यार व सम्मान भी दिया। उन लड़कियों को पढ़ाया लिखाया और उन्हें स्वावलंबी बनाया। आज वह लड़कियां अपने पैरों पर खड़ी हैं और अपने घरों में सुकुन से जीवन जी रही हैं। तेजाब पीड़ित लड़कियों को मोटिवेट किया और उन्हें इस समाज से जोड़ने के अथक प्रयास किए ताकि वह भी इस समाज का हिस्सा बन सके।

उत्तरदायित्वों को समझने से बदलेगा समाज -ऊषा ठाकुर सामाजिक कार्यकर्ती और मानव पूर्त न्यास संस्था की संस्थापक ऊषा ठाकुर से महिलाओं और पर्यावरण को उत्कृष्ठ बनाने के क्षेत्र में किए गए उनके उल्लेखनीय कार्य के बारे में प्रियंका तिवारी से हुई उनकी बातचीत के प्रमुख अंश

आप महिलाओं को स्वावलंबी बनाने और समाज को बदलने के क्षेत्र में कब से कार्य कर रही हैं?

मुझे याद ही नहीं है कि हमने यह कार्य कब शुरु किया था, हां मैं यहां 25 साल पहले आई थी, तब यहां असामजिक तत्व खुलेआम घूमा करते थे, जिनपर कोई कार्रवाई नहीं होती थी। ये गुंडे गरीब महिलाओं और बच्चियों के साथ छेड़छाड़ और कुकर्म करते थे और कोई भी इनके खिलाफ आवाज नहीं उठाता था। इन सब बातों से मैं काफी द्रवित हुई और इन दरिंदों को सबक सिखाने और महिलाओं को जागरुक करने का बीड़ा उठाया।

पर्यावरण के क्षेत्र में भी आपने उत्कृष्ट कार्य किया है, जिसके लिए हाल ही में आपको पर्यावरण रत्न सम्मान से

सम्मानित किया गया। इस बारे में आप क्या कहना चाहेंगी?

पर्यावरण को स्वच्छ और हरा-भरा रखने की जिम्मेदारी हम सभी की है, जिसे हम भूलते जा रहे हैं। हम अपनी संस्था के माध्यम से नोएडा, ग्रेटर नोएडा, तिगड़ी गांव और नोएडा एक्सप्रेसवे के ज्यादातर इलाकों में वृक्षारोपण का कार्य करवाया है। हम अपने परिवेश को हरा-भरा रखने के लिए हर साल लगभग 10 हजार वृक्षारोपण कराते हैं। एक बार मैं शाहजहां रोड जैसे पॉश इलाके से गुजर रही थी तो देखा कि रोड के किनारे मजदूर महिलाएं अपने मासूम बच्चों को सुलाया था। उन बच्चों के ऊपर मक्खियां बैठ रही थी और तेज धूप पड़ रही थी, जिसे देखने के बाद हमने वृक्षारोपण कराने का फैसला लिया और हर साल लगभग 10 हजार वृक्षारोपण कराते हैं, ताकि पर्यावरण के

साथ-साथ उन मजदूर बच्चों का धूप से बचाव हो सके। हमने वृक्षारोपण का कार्य युद्ध स्तर पर किया ताकि हमारा पर्यावरण हरा भरा रहे।

नोएडा क्षेत्र में महिलाओं और गरीबों के साथ होने वाले क्राइम की घटनाओं को उजागर करने और आरोपियों को सजा दिलाने के क्षेत्र में आपने सराहनीय कार्य किया है। इसके बारे में कुछ बताएं? शुरू में ऑटो रिक्शा वाले यहां लगातार आत्महत्या कर रहे थे, जब हमने सुना तो इसके तह तक जाने के लिए अपनी टीम के साथ कार्य करना शुरू किया। तब हमारे सामने आया कि आत्महत्या करने वाले ऑटो रिक्शा चालकों ने लोन लेकर बालाजी से रिक्शा खरीदा था और बालाजी ने उन्हें बिना लाइसेंस व टूटी हालत में

रिक्शा देते थे। फिर पुलिस की चेकिंग में पकड़े जाने पर रिक्शा वापस उन्हें नहीं मिलता था, बल्कि बालाजी कंपनी पहुंच दिया जाता था। इसी वजह से लोन व बेरोजगारी की वजह से ज्यादातर ऑटो रिक्शा चालकों ने आत्महत्या कर ली थी। जो बचे थे उनको हमने बालाजी से मुआवजा दिलवाया, ताकि वे कोई छोटा मोटा रोजगार कर सकें। इसके बाद यहां पर ऑटो चालकों की आत्महत्याएं रूकीं। इसके अलावा नोएडा से लगे गांवों और इलाकों में बच्चियों और लड़कियों के साथ रेप की घटनाएं बहुत होती थीं। उन बच्चियों का डॉक्टर इलाज भी नहीं करते थे। हमने उनका इलाज करवाया उनकी कांउसलिंग की। उसके बाद हमने तेजाब से जलाई गई लड़कियों से मिली उनके खो चुके आत्मविश्वास को जगाने का काम किया, ताकि वह समाज


15 - 21 जनवरी 2018

में सिर उठा कर जी सकें और किसी दूसरे पर डिपेंडेंट ना रहें।

कहता था जागते रहो, जागते रहो... उसी तरह हमें भी जागना होगा और लोगों को जागाना होगा ताकि समाज को बदला जा सकता है।

2016 में संज्ञान में आए देश के सबसे बड़े हत्याकांड निठारी कांड को उजागर करने में आपका महत्वपूर्ण योगदान रहा है। उस दौरान किस तरह की समस्याओं का सामना आपको करना पड़ा था?

निठारी कांड में हमने लगातार 3 साल तक लड़ाई लड़ी। इस दौरान हमें जान से मारने की धमकी मिली, जब आरोपी मुझे डराने में कामयाब नहीं हुए तो मेरी मां को डराया धमकाया। लेकिन मैं इन सबसे विचलित नहीं हुई, क्योंकि मेरा मानना है कि अगर हम सच्चे हैं तो किसी से डरने की जरुरत नहीं है। हालांकि निठारी कांड में पहली लड़की रिम्पा हल्दर की मौत हुई। इस हत्याकांड में पुलिस ने अपनी छानबीन में दिखाया कि रिम्पा ने रिक्शे में एक चिट्ठी छोड़ी थी, जिसमें हिंदी में लिखा था कि मैं अपने दोस्त के साथ भाग रही हूं। मैं कुछ दिन में नेपाल से बच्चा लेकर आऊंगी। उसके बाद ही मुझे शक हो गया कि लड़कियां भाग नहीं रही है। इसके पीछे कुछ और ही कारण है। क्योंकि रिम्पा को हिंदी लिखने पढ़ने नहीं आती थी। हालांकि इसके बाद जून तक लगातार लड़कियां गायब होती रहीं। फिर हमने पुलिस से संपर्क किया आस-पास के इलाके में छानबीन करवाई। तब जाकर देश के सबसे बडे हत्याकांड निठारी कांड का खुलासा हुआ। हालांकि निठारी कांड को दबाने के लिए पुलिस और राजनीतिक लोगों ने पूरी कोशिश की। नोएडा के एल-5 सेक्टर 11 से हमने माफिया के चंगुल से 40 लड़कियों को छुड़वाया और 2 सालों तक अपने पास रखा। उन्हें मोटिवेट किया, पढाया और सभी को सेटल्ड किया। आज वह लड़कियां अपने घरों में सुकुन

09

व्यक्तित्व

आधुनिकता के इस दौर में भी लड़के और लड़कियों में भेदभाव किया जाता है। इस संदर्भ में आपके क्या विचार हैं?

से जी रही हैं। हमने ग्रेटर नोएडा, टिगरी गांव, मेरठ, गाजियाबाद और देहरादून से 500 बच्चों को छुड़वाया, जिन्हें जबरदस्ती ईसाई बनाया जा रहा था। उन बच्चों को उनके माता-पिता से मिलवाया।

समाज के बदलते माहौल के बारे में आप क्या कहना चाहेंगी?

आज समाज को जो माहौल है, वह बहुत ही चिंता जनक है। आज के माहौल में अगर महात्मा गांधी आते तो लोग उन्हें मूर्ख कहते, जिन्होंने बिहार में एक महिला को फटे कपड़ों में देखा तो अपनी पगड़ी उसे तन ढकने के लिए दे दी थी। आज

का माहौल ऐसा है कि एक मामूली आदमी को भी गनमैन, बड़ी गाड़ी और कीमती फोन चाहिए। कोई भी उन गरीब तबके के बारे में नहीं सोचना चाहता है। आज के इस माहौल को हम सब को मिलकर बदलना होगा। हमें अपनी संस्कृति और योग की तरफ लौटना होगा और सड़क किनारे ठिठुरने वाले भाई-बहनों के बारे में सोचना होगा तभी हमारा समाज बदल सकता है। यदि प्रत्येक व्यक्ति समाज के प्रति अपने उत्तरदायित्वों को समझें और उसका निर्वहन करें तो हमारे इस समाज को बदलने में ज्यादा समय नहीं लगेगा। जैसे हमारे बचपन में गांवों में चौकीदार रात में

आज महिलाओं और लड़कियों के प्रति लोगों की सोच बदली है। आज गांवों में भी लोग अपने बेटे के साथ ही साथ बेटियों को भी पढ़ा लिखा रहे हैं और उन्हें स्वावलंबी बना रहे हैं। हालांकि इसका प्रतिशत अभी बहुत ही कम है। इसे और बढ़ाने की आवश्यकता है। शहरों की तरह हमारे गांव भी तरक्की कर रहे हैं। जिस दिन हर क्षेत्र में लड़का और लड़की को बराबरी का दर्जा दे दिया जाएगा, उस दिन भारत अपने आप आगे बढ़ जाएगा। हम प्रगति की ओर अग्रसर है, लेकिन हमें अधिक से अधिक जागरुक होने की आवश्यकता है। हमें एक अंधविश्वासी मानसिकता से निकलना होगा। लड़कियों को सेल्फ डिफेंस की ट्रेनिंग शुरू से ही देनी चाहिए। उन्हें गर्ल्स स्कूल में पढाने के बजाय ब्वॉयज स्कूल में पढाना चाहिए ताकि वह हर परिस्थिति का सामना करने के लिए तैयार रहें। कभी भी लड़कियों को किसी भी बात को लेकर डराना नहीं चाहिए बल्कि उन्हें बोल्ड बनाना चाहिए। इसके साथ ही जनसंख्या नियंत्रण पर भी सरकार और लोगों को विचार करना चाहिए। हमारे देश की जनसंख्या बढ़ती जा रही है, जिसका आने वाले समय में हम सभी को काफी नुकसान उठाना पड़ सकता है। इसके साथ ही बाहर से आने वाले लोगों जैसे बांग्लादेशीयों पर रोक लगाई जानी चाहिए, तभी हमारा देश उन्नती की ओर बढ़ेगा और तरक्की कर सकेगा।

खिलौना बनाने की मशीन के लिए पुरस्कार

आंध्र प्रदेश के एक कॉलेज के छह छात्रों की टीम ने सस्ती लागत में खिलौने बनाने की मशीन ईजाद करने के लिए राष्ट्रीय पुरस्कार जीता

आं

ध्र प्रदेश के एसआर इंजीनियरिंग कॉलेज, वारंगल के छह छात्रों की टीम ने ग्रामीणों के लिए सस्ती लागत में खिलौने बनाने की मशीन ईजाद करने के लिए राष्ट्रीय स्तर का एक पुरस्कार जीता है। टीम ने मदुरै के त्यागराज कॉलेज ऑफ इंजीनियरिंग में आयोजित इंजीनियरिंग शिक्षा के क्षेत्र में एडवांसमेंट और लर्निग इंजीनियरिंग शिक्षा के लिए इंडो यूनिवर्सल के सहयोग द्वारा आयोजित सामुदायिक समस्या का समाधान करने की प्रतियोगिता में प्रथम

पुरस्कार जीता। एसआरईसी ने कहा कि एसआरईसी के छात्रों को कम लागत में एक प्रभावी स्वचालित खिलौना मशीन विकसित करने के लिए पुरस्कार दिया गया, जिससे उत्पादकता चार गुना बढ़ जाती है। हिस्सा लेने वाले देश भर के 30 कॉलेजों को एक विशेष समस्या या चुनौती का समाधान पेश करने के लिए कहा गया था। प्रतिभागियों ने पास के एक गांव का दौरा किया और विभिन्न समस्याओं को जाना और कई विचारों के बाद

इस मशीन का प्रयोग करके स्थानीय खिलौना निर्माता रोजाना 40 खिलौने बनाने में सक्षम हैं

आखिरकार खिलौना निर्माताओं के लिए कम लागत वाले समाधान के साथ आए। टीम में पॉल विनीत रेड्डी, के.एनोश, एस. सीरीहसा, एमडी इमरान अहमद, के. श्रीचरण और डी. विनय शामिल थे। टीम ने कहा, ‘हमने एक कम लागत वाली स्वचालित मशीन विकसित की और इसका प्रयोग करके स्थानीय खिलौना निर्माता रोजाना 40 खिलौने बनाने में सक्षम हैं, जो परंपरागत तरीके से अधिकतम 10 खिलौने बनाने की उत्पादकता में वृद्धि करता है।’ स्वचालित खिलौना बनाने वाली मशीन में एक ग्राइन्डर, कन्वेयर बेल्ट, रोलर, ब्लॉक कटर, डाइ पंच और एक भट्ठी होगी। (एजेंसी)


10

पुस्तक मेला

15 - 21 जनवरी 2018

किताबों के लिए उमड़ी भीड़

26वें विश्व पुस्तक मेले में इस बार 1500 स्टॉलों के साथ 800 प्रकाशक हिस्सा ले रहे हैं

खास बातें दुनिया की 500 से अधिक श्रेष्ठ पुस्तकें उपलब्ध मेले का थीम 'पर्यावरण और जलवायु परिवर्तन' है यूरोपीय संघ को सम्मानित अतिथि देश का गौरव

ज्ञा

एसएसबी ब्यूरो

न की दृष्टि से भारत शुरू से एक अग्रणी देश रहा है। जब किताबों का प्रचलन पूरे विश्व में हो गया, तब एक ऐसे मंच की तलाश शुरू हुई जहां पर विश्व की तमाम लोकप्रिय किताबें, सुप्रसिद्ध लेखक और प्रकाशक एकत्रित हों। सबमें प्रत्यक्ष वैचारिक आदान हो। इससे किताब से जुड़े सभी लोगों को

एक प्लेटफार्म भी मिल जाएगा और प्रकाशकों को पाठकों की रूचि जानने, समझने का मौका मिल सकेगा और वे बेहतर किताबें छापने के लिए उत्साहित हो सकेंगे। इससे प्रकाशक, पाठक गण दोनों लाभान्वित होंगे। विश्व पुस्तक मेला उसी सोच की देन है। विश्व पुस्तक मेला बुद्धिजीवियों के लिए राष्ट्रीय त्योहार से कम नहीं है। नई दिल्ली विश्व पुस्तक मेला उन सभी लोगों के लिए सबसे रोमांचक अवसर है, जो किसी न किसी रूप में पुस्तकों से जुड़े हुए हैं। इसके आयोजन की

तीन प्रसिद्ध स्वीडिश किताबें हिंदी में

वि

जिम्मेदारी नेशनल बुक ट्रस्ट पर है। यह एक स्वायत्त संस्था है और किताबों को बढ़ावा देने की दिशा में काम करता है। मेले के सहआयोजक भारतीय व्यापार संवर्धन संगठन है, जिन्हें आईटीपीओ के नाम से जाना जाता है। यह वाणिज्य मंत्रालय, भारत सरकार के तत्वावधान में काम करता है। यह देश के व्यापार और उद्योग की तेजी से विकास के लिए एक उपयुक्त मंच प्रदान करता है और भारत के व्यापार के विकास में एक प्रमुख भूमिका निभाता है। 26वां विश्व पुस्तक मेला दिल्ली के प्रगति

मैदान में चल रहा है। जलवायु परिवर्तन विषय पर लोगों को जागरूक करने के लिए इस बार मेले का थीम 'पर्यावरण और जलवायु परिवर्तन' रखा गया है। इस विषय पर दुनियाभर में प्रकाशित 500 से अधिक श्रेष्ठ पुस्तकें यहां उपलब्ध हैं। इसके अलावा साहित्य, इतिहास, कला-संस्कृति, दर्शनशास्त्र, समाजशास्त्र, ज्योतिष, अध्यात्म, बाल साहित्य, खेल, व्यंजन समेत विभिन्न विषयों पर ढेरों किताबें प्रदर्शित की गई हैं। इस बार मेले में 40 देशों से 800 से अधिक प्रकाशक हिस्सा ले रहे हैं। कड़ाके की ठंड के बावजूद विश्व पुस्तक मेले के पहले दिन ही बड़ी तादाद में पुस्तक प्रेमी मेला परिसर पहुंचे। आगे के दिनों में भी भीड़ का यह सिलसिला कायम रहा। इस वर्ष पर्यावरण संरक्षण के संदेश के साथ पुस्तक मेले का शुभारंभ हुआ है। प्रगति मैदान में होने वाले

इन पुस्तकों का विमोचन स्वीडन के राजदूत क्लास मोलिन और स्वीडिश लेखिका जुज्जा वीसलेंडर ने किया

श्व पुस्तक मेले के चिल्ड्रेंस पवेलियन में बच्चों के लिए वो पल यादगार बन गया, जब बच्चों की तीन प्रसिद्ध स्वीडिश किताबों को हिंदी में लॉन्च किया गया। इन पुस्तकों का विमोचन स्वीडन के राजदूत क्लास मोलिन और स्वीडिश लेखिका जुज्जा वीसलेंडर ने किया। विमोचित की की गई पुस्तकें हैं- ‘मेरा फार्ट मम्मा मू’ और ‘क्राकन्सा गेर’ (कव्वा बोला ना)। दोनों पुस्तकें जुज्जा वीसलेडर द्वारा लिखित और स्वेन नोर्डक्विस्ट द्वारा चित्रित हैं। तीसरी पुस्तक है- ‘काले ओच एल्सा’ (किट्टू और इला) जो जैनी एवं जेसस वैरोना द्वारा लिखित है। मम्मा मू सीरीज बोलने वाली गाय और उसके सबसे अच्छे दोस्त कौवे के बारे में है, जो पास ही के जंगलों में रहता है। इस सीरीज को दुनिया भर के बच्चे पसंद करते हैं और इसे 30 से ज्यादा भाषाओं में अनुवादित किया जा चुका है। मम्मा मू सीरीज

के 10 टाइटल हैं- इनमें से भारत में 8 टाइटल हिंदी में और 2 अंग्रेजी में उपलब्ध हैं। मिस जुज्जा वीसलेंडर ने कहा, ‘मैं नई दिल्ली के इस पुस्तक मेले में आना चाहती थी और मम्मा मू एंड क्रॉ को लेकर बच्चों का उत्साह देखना चाहती थी। ए एंड ए बुक ट्रस्ट अब इस सीरीज में सातवां और आठवां अंक जारी कर रही है। पुस्तक को 30 से ज्यादा भाषाओं में अनुदित किया जा चुका है और मुझे उम्मीद है कि इसे कई अन्य भारतीय भाषाओं में अनुवाद किया जाएगा।’ जुज्जा स्वीडिश भाषा में बच्चों की पुस्तकें लिखती हैं तथा स्वीडिश चिल्ड्रंस बुक एकेडमी की सदस्य भी हैं। मम्मा मू उनकी सबसे लोकप्रिय सीरीज हैं, जो कई भाषाओं में युरोप में भी लॉन्च की जा चुकी है। इन कहानियों को रेडियो शो और बच्चों की फिल्मों में भी पेश किया जाता है। पुस्तकों को कई पुरस्कार और सम्मान मिल चुके हैं।


15 - 21 जनवरी 2018

11

पुस्तक मेला

इस ‘बुकचोर’ पर सबका दिल आया

मेले के हॉल नंबर 10 में ‘बुकचोर’ का स्टॉल दूर से ही लुभाता है। बांस से बनी बुकशेल्फ रह-रहकर पाठकों के कदम रोक लेती हैं

प्र

रीतू तोमर

गति मैदान में चल रहे विश्व पुस्तक मेले में ‘बुकचोर’ सुर्खियां बटोर रहा है। नाम पर मत जाइए, यहां चोरी की पुस्तकें नहीं मिलती हैं, बल्कि पुरानी किताबों को औने-पौने दामों पर बेचा जाता है। मेले के हॉल नंबर 10 में ‘बुकचोर’ का स्टॉल दूर से ही लुभाता है। बांस से बनी बुकशेल्फ रहरहकर पाठकों के कदम रोक लेती हैं। ‘बुकचोर’ के प्रबंधक भावेश शर्मा ने इस अतरंगी नाम के बारे में पूछने पर आईएएनएस को बताया, ‘हम कुछ ऐसा इस मेले में इस बार 1500 स्टॉलों के साथ 800 प्रकाशक हिस्सा ले रहे हैं। वीडियो संदेश के जरिए मेले के उद्घाटन करते हुए केंद्रीय मानव संसाधन मंत्री प्रकाश जावडेकर ने कहा, ‘जिस तरह जीवन जीने के लिए भोजन चाहिए, थकान दूर करने के लिए विश्राम चाहिए, ठीक उसी तरह जिंदगी क्यों जिएं और कैसे जिएं, इसके लिए पुस्तकें चाहिए। पुस्तकें इंसान के जीवन का उन्नयन करती हैं।’ जावडेकर ने इस वर्ष मेले की थीम ‘पर्यावरण तथा जलवायु परिवर्तन की प्रासंगिकता तथा अनिवार्यता’ पर कहा, ‘हम 21वीं सदी में एक उधार की जिंदगी जी रहे हैं, क्योंकि एक पृथ्वी मनुष्य को जितना दे सकती है, हम उससे ज्यादा ले रहे हैं। इसीलिए पर्यावरण का संतुलन बनाना बहुत बड़ी चुनौती है। इसके लिए विश्व को एकजुट होकर कार्य करना होगा।’ उन्होंने ईंधन चालित वाहनों के स्थान पर साइकिल या पैदल

नाम चाहते थे, जिससे लोगों में उत्सुकता बने। लोग सर्च करें कि यह है क्या। इसलिए यह नाम रखा गया।’ वह कहते हैं, ‘हमारा लक्षित पाठक वर्ग युवा है। फिक्शन और नॉन फिक्शन श्रेणियों में महंगी से महंगी पुरानी किताबों को हम काफी कम दाम में बेचते हैं।’ ‘बुकचोर’ ने अक्टूबर 2015 में संचालन शुरू किया था और इतने कम समय में पुरानी किताबों के शौकीन पाठकों की संख्या तेजी से बढ़ती जा रही है। भावेश कहते हैं, ‘अक्टूबर 2015 में कामकाज शुरू करने के बाद से अब तक हमारे पाठकों की संख्या पांच लाख है। हमारे चलने, प्लास्टिक का कम-से-कम इस्तेमाल करने की अपील की। जावडेकर ने इस बात पर प्रसन्नता व्यक्त करते हुए कहा इस बार मेले में यूरोपीय संघ सम्मानित अतिथि है। उन्होंने बताया, ‘मेले में यूरोपीय संघ के 35 लेखक भाग ले रहे हैं जो पुस्तक-प्रेमियों से बातचीत करेंगे।’ पुस्तक मेले के सम्मानित अतिथि देश का गौरव दिए जाने पर यूरोपीय संघ के भारत में राजदूत टोमाश कोजलौस्की ने इस सम्मान को भारत एवं यूरोपीय संघ के बीच मजबूत व्यापारिक, सांस्कृतिक और साहित्यिक संबंधों की कड़ी बताया। टोमाश कोजलौस्की ने भारत और यूरोपीय संघ के देशों की पर्यावरण की चुनौतियों से जूझने की प्रतिबद्धता को दोहराते हुए कहा, ‘इस दिशा में दोनों तरफ से कई महत्वपूर्ण कदम उठाए जा रहे हैं।’ यूरोपीय संघ के राजदूत टोमाश कोजलौस्की ने बतौर विशिष्ट अतिथि प्रौद्योगिकी के दौर में

पाठक अरुणाचल प्रदेश से लेकर केरल तक हैं। हमारी वेबसाइट बुकचोर डॉट कॉम से भी किताबें बुक की जा सकती हैं। इसके साथ ही हमारा एक एप भी है, जिसकी मदद से आप आसानी से पुरानी किताबें बुक कर सकते हैं।’ ‘बुकचोर’ अंग्रेजी की पुरानी किताबें ही बेचता है। मसलन, 'फिफ्टी शेड्स ट्रिलॉजी' का मूल्य 1, 499 रुपए है लेकिन बुकचोर से इसे सिर्फ 258 रुपये में ही खरीदा जा सकता है। 'मेन आर फ्रॉम मार्स एंड वुमेन आर फ्रॉम वीनस' की मूल कृति 499 रुपए की है, लेकिन बुकचोर पर इसे 175 रुपए में भी किताबों की भूमिका को अहम बताया। उन्होंने कहा कि इंटरनेट या प्रौद्योगिकी कभी भी किताबों का स्थान नहीं ले सकती। किताबें प्रौद्योगिकी से कहीं अहम हैं और हर युग में ज्ञान बढ़ाने का काम करती हैं। नई दिल्ली विश्व पुस्तक मेले के उद्घाटन अवसर पर विशिष्ट अतिथि पर्यावरणविद् सुनीता नारायण ने मेले की थीम पर अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा, ‘जलवायु परिवर्तन का सबसे अधिक प्रभाव भारत के गरीब और छोटे किसानों पर पड़ रहा है। इस विषय पर अनेक कार्यशालाएं, संगोष्ठियां तो आयोजित हो रही हैं, परंतु आवश्यकता है उनके कार्यान्वयन की।’ एनबीटी के अध्यक्ष बल्देव भाई शर्मा ने कहा, ‘पर्यावरण एक ऐसा विषय है जिसपर ज्यादा ध्यान देने की जरूरत है। हमें इस विषय पर ज्यादा फोकस करने की जरूरत है और अपने बेहतर भविष्य के प्रति अधिक जागरूकता पैदा

खरीदा जा सकता है। ‘बुकचोर’ पाठकों के साथ-साथ कई खुदरा विक्रेताओं से पुरानी किताबें लेता है। इसके लिए बाकायदा उसकी वेबसाइट पर जाकर पुरानी किताबें देने का विकल्प है। भावेश कहते हैं, ‘हम पाठकों से अपील करते हैं कि वे जिन किताबों को पढ़ चुके हैं या जो किताबें उनके किसी काम की नहीं है, वे हमें दे दें। इसके अलावा लंदन से भी पुरानी किताबों को हम इकट्ठा करते हैं।’ ‘बुकचोर’ की फिलहाल एक ही रिटेल शॉप है, जो सोनीपत में है, जबकि इसका सारा कारोबार ऑनलाइन ही होता है। करनी है। पर्यावरण हितैषी सामग्री जैसे बांस, बेंत, जूट और अन्य का उपयोग करके खासतौर से थीम पैवेलियन बनाया गया है।’ पुस्तक मेले में खासतौर पर बाल मंडप बनाया गया है। यहां बाल साहित्य और उससे जुड़ी गतिविधियां ही नहीं होंगी, बल्कि लेखक बच्चों के साथ बातचीत भी करेंगे। इसके साथ में यूरोपीय संघ के सदस्य देशों का विशेष मंडप बनाया गया है। मेले में थीम आधारित एक कैलेंडर का विमोचन भी किया गया। मेले के दौरान कई पुस्तकों के विमोचन के साथ विभिन्न विषयों पर कई परिचर्चाएं आयोजित की गईं हैं। मेले में पाठकों को अपने प्रिय लेखकों से भी मिलने का सौभाग्य मिल रहा है। बच्चों के साथ युवाओं में खासतौर पर पुस्तक मेले का क्रेज नजर आ रहा है। लोग साहित्य के साथ विभिन्न विषयों से जुड़ी किताबों को देखने और खरीदने में दिलचस्पी दिखा रहे हैं।


12

गुड न्यूज

15 - 21 जनवरी 2018

एफडीआई नीति हुई और ज्यादा उदार निवेश संबंधी कैबिनेट के फैसले से विदेशी निवेश का प्रवाह बढ़ेगा जो निवेश, आय और रोजगार में उल्लेखनीय योगदान करेगा

कें

द्र सरकार ने अहम क्षेत्रों में एफडीआई नीति में सुधार को और आगे बढ़ाते हुए कई बड़े कदम उठाए है। कैबिनेट ने एफडीआई नीति में कई संशोधनों को मंजूरी दे दी है। इन संशोधनों का मकसद एफडीआई नीति को और ज्यादा उदार और सरल बनाना है, जिससे देश में कारोबार करने में और आसानी हो। कैबिनेट के इस फैसले से विदेशी निवेश का प्रवाह बढ़ेगा जो निवेश, आय और रोजगार में उल्लेखनीय योगदान करेगा। केंद्र सरकार ने ज्या‍दातर क्षेत्रों में 100 प्रतिशत तक एफडीआई की अनुमति दी है। इसके साथ ही सरकार ने हाल के महीनों में रक्षा, निर्माण क्षेत्र के विकास, बीमा, पेंशन, अन्य वित्तीय सेवाओं,

प्रसारण, नागरिक उड्डयन, फार्मास्यूटिकल्स, ट्रेडिंग जैसे कई क्षेत्रों में एफडीआई संबंधी नीतिगत सुधार लागू किए हैं। इन कदमों के कारण देश में एफडीआई के प्रवाह में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है। वर्ष 2014-15 के दौरान कुल मिलाकर 45.15 अरब अमेरिकी डॉलर का निवेश हुआ है, जबकि वर्ष 2013-14 में यह निवेश 36.05 अरब अमेरिकी डॉलर का हुआ था। वर्ष 2015-16 के दौरान देश में कुल मिलाकर 55.46 अरब अमेरिकी डॉलर का प्रत्यक्ष विदेशी निवेश हुआ। वित्त वर्ष 2016-17 में कुल मिलाकर 60.08 अरब अमेरिकी डॉलर का प्रत्यक्ष विदेशी निवेश प्राप्त हुआ, जो अब तक का सर्वकालिक उच्चतम स्‍तर है। ईज ऑफ डुइंग बिजनेस, मेक इन इंडिया,

75

15 0

2013-14

45.15*

30

36.05*

45

55.46*

निवेश

60

2014-15

वर्ष

2015-16

60.08*

बढ़ता निवेश

2016-17

*आंकड़े (अरब डॉलर में)

जीएसटी, इंफ्रास्ट्रक्चर, बिजली, में सुधार के बाद सरकार ने महसूस किया कि देश में इससे भी ज्यादा विदेशी निवे श को आकर्षित करने की क्षमता है, जिसे एफडीआई व्यवस्था को और ज्यादा उदार एवं सरल बनाकर प्राप्त किया जा सकता है। इसीलिए सरकार ने एफडीआई नीति में संशोधन करने का निर्णय लिया।

सिंगल ब्रांड रिटेल कारोबार

सिंगल ब्रांड रिटेल कारोबार में एफडीआई के लिए सरकारी मंजूरी की अब कोई आवश्यकता नहीं है। सिंगल ब्रांड रिटेल से संबंधित वर्तमान एफडीआई नीति के तहत स्वत: रूट के जरिए 49 प्रतिशत एफडीआई और सरकारी मंजूरी रूट के जरिए 49 प्रतिशत से ज्यादा और 100 प्रतिशत तक एफडीआई की अनुमति दी गई है। सिंगल ब्रांड रिटेल स्टोर के लिए घरेलू सामान खरीदने की शर्तों में ढील दी गई है। अब पहले साल से ही 30 फीसदी लोकल सोर्सिंग की जरूरत नहीं होगी। पांच वर्षों की अवधि पूरी होने के बाद हर साल सीधे अपने भारतीय परिचालन हेतु 30 प्रतिशत की प्राप्ति से जुड़े मानकों को पूरा करना अनिवार्य होगा।

नागरिक उड्डयन

विदेशी एयरलाइनों को अनुसूचित और गैर-अनुसूचित हवाई परिवहन सेवाओं का संचालन करने वाली भारतीय कंपनियों की पूंजी में सरकारी मंजूरी रूट के तहत निवेश करने की अनुमति दी गई है। यह निवेश इन कंपनियों की पूंजी के 49 प्रतिशत की सीमा तक की जा सकती है। अभी तक विदेशी एयरलाइंस एयर इंडिया में निवेश नहीं कर सकती थीं। अब इस पाबंदी को समाप्त करने और विदेशी एयरलाइनों को एयर इंडिया में मंजूरी रूट के तहत 49 प्रतिशत

एनसीआर में जल्द दस्तक देगा ट्रंप टॉवर

को

भारत के लग्जरी आवासीय बाजार में सुस्ती के बावजूद इस परियोजना ने बिक्री के सभी रिकॉर्डों को तोड़ दिया है

लकाता में पिछले साल ट्रंप टॉवर के लॉन्च के बाद इसके भारतीय डेवलपर ने बुधवार को 600 फीट लंबे रिहायशी इमारत में घरों की बिक्री जल्द शुरू करने की घोषणा की। गोल्फ कोर्स एक्सटेंशन रोड पर बन रही इमारत भारत में अपने आप में पुणे, मुंबई और कोलकाता के बाद चौथी है। एम3एम इंडिया और त्रिबिका डेवलपर

ने बताया, ‘भारत के लग्जरी आवासीय बाजार में सुस्ती के बावजूद इस परियोजना ने बिक्री के सभी रिकॉर्डों को तोड़ दिया है।’ डेवलपर परियोजना के लिए भारी मांग की संभावना जता रहे हैं। ट्रंप संगठन के कार्यकारी उपाध्यक्ष डोनाल्ड ट्रंप जूनियर ने कहा, ‘बेहतरीन बनावट, खूबसूरत आंतरिक संरचना का विकल्प और भव्य सुविधाजनक खाली स्थान

के साथ हमारा मकसद गुरुग्राम को ट्रंप ब्रांड और लग्जरी लिविंग का सर्वक्षेष्ठ देना है।’ ग्लास लगा गृह मुख, आकर्षक लाइनों और एक भव्य रूप के साथ यह इमारत ट्रंप शैली का प्रतिबिंब है। सभी कमरों में फ्लोर से छत तक की खिड़कियां हैं। हर आवास का एक निजी एलीवेटर है, जबकि एक तिहाई आवासों में 22 फीट की डबल ऊंचाई वाले कमरे होंगे। (एजेंसी)

त क निवेश करने की अनुमति देने का निर्णय लिया गया है। लेकिन एयर इंडि‍या का व्यापक स्वामित्व एवं प्रभावकारी नियंत्रण आगे भी भारतीय हाथों में ही निहित होगी।

निर्माण क्षेत्र का विकास

कैबिनेट में यह निर्णय लिया गया है कि रीयल एस्टेट ब्रोकिंग सेवा का वास्ता रीयल एस्टेट व्यवसाय से नहीं है, इसीलिए इसमें स्वत: रूट के तहत 100 प्रतिशत एफडीआई संभव है।

पावर एक्सचेंज

पंजीकृत पावर एक्सचेंज में स्वत: रूट के जरिए 49 प्रतिशत एफडीआई की अनुमति दी गई है। एफआईआई/एफपीआई के निवेश को केवल द्वितीय बाजार तक सीमित रखा गया था। अब एफआईआई/एफपीआई को प्राथमिक बाजार के जरिए भी पावर एक्सचेंजों में निवेश करने की अनुमति देने का निर्णय लिया गया है।

फार्मास्यूटिकल्स

फार्मास्यूटिकल्स क्षेत्र से जुड़ी एफडीआई नीति में अन्य बातों के अलावा इस बात का उल्लेख किया गया है कि एफडीआई नीति में चिकित्सा उपकरणों की जो परिभाषा दी गई है वह दवा एवं कॉस्मेटिक्स अधिनियम में किए जाने वाले संशोधन के अनुरूप होगी। इसलिए एफडीआई नीति से दवा एवं कॉस्मेटिक्स अधिनियम का संदर्भ समाप्त करने का निर्णय लिया गया है। इसके अलावा, एफडीआई नीति में दी गई ‘चिकित्सा उपकरणों’ की परिभाषा में संशोधन करने का भी निर्णय लिया गया है। (एजेंसी)


15 - 21 जनवरी 2018

संस्था

...ताकि हर जरूरतमंद को मिले रक्त

13

देश में रक्त की कमी को दूर करने की कोशिश एक अभियान में रूपांतरित हो गई है। इसमें सिर्फ सरकार और रेड क्रॉस ही सक्रिय नहीं है, बल्कि ‘मिलियनजीनी’ जैसी संस्थाएं भी जुटी हुई हैं

खास बातें

खू

‘मिलियनजीनी’ जरुरतमंदों को खून उपलब्ध कराती है

आनंद भारती/मुंबई

ब्लड डोनर्स का अच्छा मिलियनजीनी ऐप्प से जुड़े हैं लाखों कमी से जूझ रहे लोगों को नेटवर्क है। मिलियनजीनी गंभीरता से देखा। उनकी डोनर न के रिश्ते को लेकर न जाने कितने का निश्चय है, ‘रक्त की परेशानी देखकर ये लोग किस्से-कहानियां समाज में मौजूद हैं। कमी झेलने वाले लोगों और भी परेशान हो गए। कितनी फिल्में बन चुकी हैं और उससे को हर तरह से मदद तब इनके चेहरे पर एक कुछ युवाओं ने मिल कर शुरू जुड़े संवादों की गिनती तो और भी मुश्किल है। करना।’ दुविधा आ गयी थी कि किया यह अभियान इसका दूसरा चेहरा यह भी है कि खून की होली इस ऐप्प को जमीन क्या वे अपने निश्चय को खेलने वालों की भी कमी नहीं है। जब भी मन पर उतारा है देश के सफल कर पाएंगे? सबकी हिंसक होता है तो खून का टपकना और टपकाना अलग-अलग स्थानों के आंखों में पैदा हुआ यह उसकी पहली शर्त बन जाता है। मुहावरा भी है कि युवाओं ने। वे सभी आपस में मिले। उनके सामने सवाल ही धीरे-धीरे ताकत बनता चला गया। इसमें आंखों में खून उतर आया। इस सभ्यता का सबसे एक घटना घटी। इसी ग्रुप के एक साथी के पिता को राम सोलंकी, सीबी थॉमस, गोविंद माली, नयनप्रिया, बड़ा अभिशाप यह है कि दुनिया में जीवन को बचाने हार्ट अटैक आया। उनकी बाय पास सर्जरी के समय विश्वजीत शर्मा, सूरज पाढ़ी सहित और भी कुछ के लिए जितने खून की जरुरत है, उससे ज्यादा खून ब्लड का संकट आ गया। इसीलिए कि उनका ब्लड लोग हैं। इन सभी ने जीवन में एक जोखिम उठाया, दंगे-फसाद, छोटी-छोटी लड़ाई और युद्ध में बह जा रेयर ग्रुप का था। चैन्ने जैसे सुविधायुक्त महानगर में ताकि देश-समाज का कुछ भी तो भला हो सके। रहा है। यह एक अजीब विरोधाभास है कि बेवजह इस दिक्कत ने सभी दोस्तों को सोचने के लिए बाध्य इसका दफ्तर अभी चैन्ने और मुंबई में है, बहने वाला खून की चिंता देशों की प्राथमिकता कर दिया कि अगर इस शहर में ऐसी दिक्कत है तो जिसका और भी विस्तार किया जा रहा है। मुंबई में नहीं है लेकिन खून की कमी को दूर करने की बाकी छोटे-छोटे शहरों में क्या हो रहा होगा। इसी स्थित अपने ‘मिलियनजीनी’ के दफ्तर में इन लोगों कोशिश एक अभियान में रूपांतरित हो गई है। इसमें चिंता ने इन दोस्तों को एक रास्ता दिखा दिया कि से बात करते हुए यह पता लगा कि लोग मदद तो सिर्फ सरकार और रेड क्रॉस ही सक्रिय नहीं है, निजी ब्लड के मामले में इमरजेंसी सेवा की शुरुआत की करना चाहते हैं, लेकिन लोगों को पता ही नहीं चल संस्थाएं भी प्राण-पण से जुटी हुई हैं। जा सकती है। सभी कई बार मिले, सोचा-विचारा पाता है कि कब और किसकी मदद करें। इसीलिए इसी कड़ी में ‘मिलियनजीनी’ का भी नाम और काम को अंजाम दिया। उन्होंने अपने निश्चय ये लोग आपातकालीन स्थिति में लोगों को जोड़ने शामिल हो चुका है। इस नाम का मतलब है, ‘हर को मुकाम देने में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ी। उनके का प्रयास कर रहे हैं। मिलियनजीनी की मान्यता इंसान दूसरे इंसान की सहायता कर सकता है’। यह सामने प्रधानमंत्री की ‘स्किल इंडिया’, ‘स्टार्ट अप है कि हर काम सरकार ही करे, यह जरुरी नहीं है। संस्था मुसीबत के समय एक-दूसरे के साथ-साथ इंडिया’ और ‘डिजिटल इंडिया’ का सपना भी था। सरकार पर निर्भरता हमें आगे बढ़ने और कुछ नया इमरजेंसी एजेंसियों को भी जोड़ती है। मिलियनजीनी यह उन्हें अच्छा अवसर की तरह लगा। करने से रोकती है। जितना हम देश या समाज के एक मोबाइल ऐप्प है, जिसपर देश भर के किसी जब इन सभी ने ब्लड बैंक के बारे में स्टडी लिए कर सकते हैं, वह तो कर लें। ‘आखिर क्यों भी हिस्से में लोग अपनी खून की जरुरत को आसान करना शुरू किया तो हैरान हो गए कि कितनी सरकार को ही स्वच्छता का पाठ पढ़ाना पड़ रहा है, तरीके से बता सकते हैं और लाखों डोनर से एक चिंताजनक स्थिति है। ऑनलाइन सर्वे किया, पेपर यह तो हमारी जिम्मेदारी है। सफाई से माहौल अच्छा पल में जुड़ सकते हैं। यह ऐप्प रक्तदान को बढ़ावा क्लिपिंग्स, सरकारी और गैरसरकारी संस्थाओं की रहता है और हम स्वस्थ होते हैं। यह जो निर्भरता तो देता ही है, रक्तदाताओं को नजदीक के रक्तदान रिपोर्टों का अध्ययन किया, चिकित्सकों-विशेषज्ञों से की मानसिकता है, यह हमें ही बदलना होगा।’ केंद्रों का पता-ठिकाना भी बताता है। इसके पास मिले। फिर सबने अस्पतालों, नर्सिंग होम में रक्त की मिलियनजीनी ने यही सोचकर एक बड़ी जिम्मेदारी ली है कि वह ब्लड की समस्या झेल रहे देश के मिलियनजीनी एक ऐसा प्लेटफॉर्म है जो आम जनता को आपात स्थिति में अपने साधारण से साधारण लोगों को चिंतामुक्त करेगा। मिलियनजीनी एक ऐसा प्लेटफॉर्म है जो आम आस पास के लोगों को मदद के लिए प्रेरित करता है। यह संदेश भी देता है कि जनता को आपात स्थिति में अपने आस पास के कम से कम मुसीबत के समय ही सही, हम एक-दूसरे का हाथ थामें लोगों को मदद के लिए प्रेरित करता है। यह संदेश

भी देता है कि कम से कम मुसीबत के समय ही सही, हम एक-दूसरे का हाथ थामें। इसीलिए इस नाम से एक मोबाइल एप्लिकेशन बनाया गया है जिसके माध्यम से किसी की भी किसी समय मदद की जा सकती है। यह नाम इसीलिए रखा गया है क्योंकि इसमें एक विश्वास छिपा हुआ है कि हर इंसान किसी के लिए भी जीनी हो सकता है। यह एक अंग्रेजी शब्द है जिसका मतलब है मदद करने वाला। एक रिसर्च के अनुसार, हर देश में उसकी जनसंख्या के 5 प्रतिशत को रक्तदान करना चाहिए ताकि मांग और पूर्ति के बीच संतुलन बना रहे। लेकिन भारत इस आंकड़े से बहुत दूर है। यहां हर साल 6 करोड़ यूनिट ब्लड की जरुरत है जबकि आपूर्ति सिर्फ साढ़े तीन करोड़ यूनिट ही हो पाती है। मिलियनजीनी इस अंतर को समाप्त करने में अपना योगदान कर रही है। यह एप्लीकेशन प्लेस्टोर से आसानी से डाउनलोड किया जा सकता है। जब भी किसी को ब्लड की जरूरत हो, वे ब्लडग्रुप, यूनिट्स और किस अस्पताल में चाहिए, बता सकता है। मात्र एक क्लिक से कोई भी सैकड़ों लोग से जुड़ जाएंगे जो आपकी मदद के लिए अस्पताल या ब्लड बैंक में आ जाएंगे। इसमें जरूरतमंद के लोकेशन के साथ-साथ अन्य डिटेल्स भी मिल जाएंगे। इस कारण संपर्क करने में कोई भी दिक्कत नहीं आएगी। इस एप्लीकेशन में आपको आस-पास के ब्लड कैंप, हेल्थ कैंपस की भी जानकारी मिलती रहेगी जिससे ज्यादा से ज्यादा लोग लाभ उठा सकते हैं। इसमें ब्लड बैंकों को जोड़ने की कोशिश हो रही है। आप चाहें तो अपने समय और जरुरत के हिसाब से रक्तदान भी कर सकते हैं जो किसी की जिंदगी बचाने के काम आ सकता है। यह रक्तदान अभियान का हिस्सा भी है जो बताता है कि जब भी आप कभी आपका रक्तदान करते हैं, वह किसी न किसी को जीने का अवसर देता है। इसमें एक दिन आप खुद, आपके परिवार का कोई सदस्य, करीबी रिश्तेदार, मित्र और आपका कोई प्रिय भी हो सकता है।


14 उ

प्रदेश

15 - 21 जनवरी 2018

बच्चों को खोजने का शतक

उत्तर प्रदेश पुलिस में कार्यरत इंस्पेक्टर सुनील दत्त दुबे अब तक सौ गुमशुदा बच्चों को खोज चुके हैं

त्तर प्रदेश के इटावा की माटी में पले-बढ़े सुनील दत्त दुबे ने यूपी पुलिस में खाकी वर्दी पहनने के बाद अपराधी तो तमाम पकड़े, लेकिन इससे इतर उन्होंने गुमशुदा बच्चों को खोजकर उनके घरवालों से भी मिलाने का काम किया। मेरठ कोतवाली में तैनाती के दौरान गुमशुदा बच्चों को खोजकर घरवालों से मिलाने की मुहिम शुरू करने वाले इस इंस्पेक्टर ने दो दिन पहले ऐसे बच्चों को खोजने की सेंचुरी लगा दी है। सूबे के आठ जिलों के 33 थानों पर तैनाती के दौरान अपने सेवाकाल में सौवें गुमशुदा बच्चे की बरामदगी का काम भदोही के गोपीगंज कोतवाली में किया। गोपीगंज के पूरेटीका गांव के एक और बालक को तलाश कर उन्होंने बच्चों को ढूंढ निकालने का शतक बना डाला है। भदोही के गोपीगंज थाने पर तैनाती के दौरान इंस्पेक्टर सुनील दत्त दुबे अकेले इस जिले में अगस्त 2017 से अब तक 10 गुमशुदा बच्चों को मिला उनके घरवालों से मिलवा चुके हैं। बच्चों की गुमशुदगी

के मामले में चंद समय में उन्हें ढूंढ निकालने में हासिल महारत ने उन्हें तमाम माता-पिता की दुआएं दिलाई हैं। सुनील का यह सफर वर्ष 1995 में मेरठ से शुरू हुआ था। गुमशुदा बच्चों की तलाश की यह मुहिम 'आपरेशन तलाश' को वे मेरठ, जौनपुर, मीरजापुर, सोनभद्र, भदोही समेत कुल आठ जिलों के 33 थानों पर सफलतापूर्वक अंजाम तक पहुंचा चुके हैं। वर्तमान में गोपीगंज थाने में तैनात इंस्पेक्टर

ने पूरेटीका निवासी नन्हकू बिंद के पुत्र अविनाश उर्फ गौरी नामक (13 वर्ष) को तलाश किया है। यह रेकॉर्ड इसीलिए भी मायने रखता है क्योंकि सुरक्षा के साथ ही तमाम मामलों में पुलिस की जिम्मेदारी लगातार बढ़ी है। बड़ी बात यह भी है कि बच्चों की बरामदगी का यश बटोरने वाले इस इंस्पेक्टर ने क्राइम कंट्रोल और जन सामान्य की समस्याओं के समाधान में भी पूरा योगदान दिया है। सोनभद्र मे तैनाती के दौरान एंटी रोमियो टीम में हुलिया बदलकर फिल्मी अंदाज में कई मजनुओं को सलाखों के पीछे पहुंचाया। बच्चों की गुमशुदगी के मामले के केस हैंडल करने में वह मेरठ के पूर्व एएसपी रणविजय सिंह से काफी प्रेरित हैं, जिन्होंने अब तक करीब चार सौ मामलों में सफलता का कीर्तिमान बनाया है। सुनील ने बताया कि एसएसपी इस तरह के केस पूरी रुचि से हैंडल करते रहे हैं। इस दौरान बच्चों के लिए कार्य करने वाली तमाम संस्थाओं का सराहनीय सहयोग मिलता रहा है। (एजेंसी)

क्राउड-फंडिंग से 7 करोड़ रुपए जुटाएंगे वांगचुक उद्यमी सोनम वांगचुक का लक्ष्य एचएआईएल के पहले स्कूल की स्थापना के लिए 26 जनवरी तक क्राउड-फंडिंग के जरिए सात करोड़ रुपए जुटाने का है

द्दाख में रहनेवाले शिक्षा सुधारवादी, प्रवर्तक और उद्यमी सोनम वांगचुक का लक्ष्य हिमालयन इंस्टीट्यूट ऑफ अल्टरनेटिव्स, लद्दाख (एचएआईएल) के पहले स्कूल की स्थापना के लिए 26 जनवरी तक क्राउडफंडिंग के जरिए सात करोड़ रुपए जुटाने का है। वांगचुक ‘3 इडियट्स’ फिल्म के चरित्र फुंगसु वांगडु की प्रेरणा देने के लिए जाने जाते हैं, यह चरित्र आमिर खान ने निभाया था। एचआईएएल का लक्ष्य हिमालय क्षेत्र के विभिन्न देशों के युवाओं को पहाड़ में रहनेवालों के सामने मौजूद मुद्दों से विशेषरूप से शिक्षा, संस्कृति और पर्यावरण के क्षेत्र के मुद्दों से निपटने के लिए अनुसंधान और विकास (आरएंडडी) में शामिल करना है। इस विश्वविद्यालय का लक्ष्य ‘परंपरागत सोच के दायरों को तोड़ने, लोगों के जीवन के लिए प्रासंगिक होने, और ज्ञान के व्यवहारिक उपयोग के माध्यम से सीखने के लिए प्रेरित करना’ भी है। वांगचुक के मुताबिक, अब तक क्राउड-फंडिंग के जरिए 4.6 करोड़ रुपए जुटाए जा चुके हैं।

वांगचुक ने कहा, ‘हमें उम्मीद है कि क्राउड-फंडिंग का लक्ष्य इस साल 28 जनवरी तक पूरा हो जाएगा। उसके बाद कॉरपोरेट से सात करोड़ रुपए इकट्ठा करने का लक्ष्य रखा गया है।’ वांगचुक ने कहा कि आगामी विश्वविद्यालय के पहले स्कूल - स्कूल ऑफ इंटेग्रेटेड माउंटेन डेवलपमेंट के लिए कुल 14 करोड़ रुपए की जरूरत है। कॉरपोरेट फंडिंग को लेकर, वांगचुक ने कहा, ‘उनकी टीम विश्वविद्यालय में योगदान के लिए भारतीय रेल के साथ बातचीत कर रही है।’ अपनी निजी क्षमता से वांगचुक ने कुल विश्वविद्यालय परियोजना में करीब 2.5 करोड़ रुपए का योगदान दिया है, जिसमें उन्हें रोलेक्स अवार्ड पुरस्कार में मिला धन और उनके व्याख्यान दौरों से प्राप्त धन शामिल है। अनुमान है कि इस विश्वविद्यालय को अपनी पूर्ण क्षमता प्राप्त करने में 12 साल लगेंगे, जबकि इसका पहला चरण साल 2020 तक पूरा हो जाएगा, जिसकी कुल लागत 150 करोड़ रुपए से अधिक होगी। (एजेंसी)

केरल के स्कूलों में अब केवल लैपटॉप

केरल में सरकारी स्कूलों में डेस्कटॉप नहीं खरीदें जाएंगे, उनकी जगह केवल लैपटॉप की ही खरीद की जाएगी

के

रल सरकार ने आदेश दिया है कि अब से सरकारी स्कूलों में डेस्कटॉप नहीं खरीदें जाएंगे, उनकी जगह केवल लैपटॉप की ही खरीद की जाएगी। यह आदेश शिक्षा विभाग की प्रौद्योगिकी समीति की सिफारिशों के अनुरूप लिया गया है। स्कूलों की प्रौद्योगिकी संबंधी जरूरतों पर नजर रखने वाली केरल सरकार के निकाय इंफ्रास्ट्रक्चर एंड टेक्नोलॉजी फॉर एजुकेशन के उपाध्यक्ष के. अनवर सादात ने बताया कि लैपटॉप में पोर्टेबिलिटी, पॉवर बैकअप और न्यूनतम ऊर्जा खपत जैसी कई विशेषताएं होती हैं। आदेश के परिणामस्वरूप 4,775 स्कूलों की 45 हजार कक्षाओं में इस वित्तीय वर्ष के अंत यानी 31 मार्च तक 60,250 लैपटॉप और 43,750 प्रोजेक्टर की सप्लाई की जाएगी। (आईएएनएस)

प्रतिभावानों को मिल रही पेटेंट की सुविधा

विज्ञान और तकनीकी विषयों सहित ज्ञान-विज्ञान के किसी भी क्षेत्र में अपने आविष्कारों को पेटेंट करवाने के लिए छत्तीसगढ़ में विशेष सुविधा

आईएएनएस/वीएनएस

त्तीसगढ़ के प्रतिभावान छात्रों व नागरिकों के आविष्कारों को पेटेंट करने की सुविधा मिल रही है। विज्ञान और तकनीकी विषयों सहित ज्ञानविज्ञान के किसी भी क्षेत्र में अपने आविष्कारों को पेटेंट करवाने के लिए मार्ग दर्शन सहित अन्य जरूरी सुविधाएं दी जा रही हैं। विधानसभा मार्ग स्थित विज्ञान केंद्र में इसके लिए पेटेंट सुविधा केंद्र की स्थापना की गई है। परिषद के अधिकारियों ने कहा कि पेटेंट सुविधा केंद्र में छत्तीसगढ़ राज्य के शोधार्थी अपने अनुसंधान कार्यों से अर्जित बौद्धिक संपदा को सुरक्षित रखने तथा पेटेंट करवाने के लिए आवेदन कर सकते हैं। उन्हें आवश्यक मार्गदर्शन भी दिया जा रहा है। पेटेंट से संबंधित आवेदन पत्रों का समुचित परीक्षण करने के बाद उन्हें मुंबई स्थित पेटेंट कार्यालय को अग्रेषित किया जाता है। अधिकारियों ने कहा कि पेटेंट सुविधा केंद्र में कॉपी राइट, ट्रेडमार्क, डिजाइन, भौगोलिक

संकेतक (जीआई) और अन्य बौद्धिक संपदा अधिकारों के लिए सर्च रिपोर्ट बनवाने के लिए भी सहायता दी जा रही है। इतना ही नहीं बल्कि पेटेंट सुविधा केंद्र मंस उच्च शिक्षा संस्थाओं और औद्योगिक संस्थाओं को उनकी संस्थाओं की बौद्धिक संपदा नीति बनाने के लिए भी प्रोत्साहित किया जा रहा है। छत्तीसगढ़ विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी परिषद ने इसके लिए समय-समय पर व्याख्यान मालाओं और जागरूकता कार्यक्रमों का भी आयोजन किया है। राज्य के विश्वविद्यालयों और तकनीकी संस्थाओं को उनके पेटेंट योग्य नवीन शोध कार्यों के लिए भी इस सुविधा केंद्र के जरिए जानकारी और सहायता दी जा रही है। इस संबंध में विस्तृत जानकारी परिषद की वेबसाइट सीजीसीओएसटी डॉट एनआईसी डॉट इन पर अपलोड की जा सकती है। आविष्कारों का पेटेंट करवाने के इच्छुक शोधार्थी इसके लिए परिषद के वैज्ञानिक डॉ. अमित दुबे से संपर्क कर सकते हैं। इसके अलावा छत्तीसगढ़ विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी परिषद से भी संपर्क किया जा सकता है।


15 - 21 जनवरी 2018

किसानों के लिए अलग बिजली फीडर लाइन ​िवद्युत मंत्रालय से कहा गया है कि वह जुलाई, 2018 यानी अगले छह महीने के भीतर पूरे देश में किसानों के लिए अलग फीडर लाइन बनाने का काम पूरा करे

कें

एसएसबी ब्यूरो

2022 तक किसानों की आय दोगुनी करने के लिए ग्रामीण इलाकों में निर्बाध बिजली पहुंचाना बेहद जरूरी है। इसी मकसद से देश में ‘पीएम सहज बिजली हर घर योजना’ लांच की गई है। इसका फायदा खास तौर पर ग्रामीण इलाकों में होगा,

गुजरात और महाराष्ट्र जैसे राज्यों में किसानों के लिए अलग बिजली फीडर की व्यवस्था पहले ही हो चुकी है और इसके काफी बेहतर परिणाम देखने को मिले हैं

जुलाई तक देश के किसानों को मिलेगी सुविधा

2015 से लागू है ‘दीनदयाल उपाध्याय ग्राम ज्योति योजना’

कृषि विकास दर को गति

किसानों की आय दोगुनी

खास बातें

गत वर्ष देश में ‘पीएम सहज बिजली हर घर योजना’ लांच की गई

द्र सरकार ने अपनी यह प्राथमिकता पहले दिन ही तय कर दी थी कि वह किसानों और युवाओं के कल्याण पर खासतौर जोर देगी। इसी प्राथमिकता के तहत केंद्र सरकार कृषि और किसानों की बेहतरी के लिए तमाम कार्यक्रम चला रही है। सरकार ने 2022 तक देशभर के किसानों की आय दोगुनी करने का लक्ष्य निर्धारित किया है। इस लक्ष्य को हासिल करने के लिए केंद्र सरकार लगातार प्रयास कर रही है। कृषि की विकास दर को रफ्तार देने के लिए पशुधन, डेयरी, पॉल्ट्री और मत्स्य पालन को भी खूब प्रोत्साहन दिया जा रहा है। कृषि क्षेत्र की प्रगति और किसानों को उनकी मेहनत का पूरा फायदा दिलाने के लिए तमाम योजनाएं चलाई जा रही है। सॉयल हेल्थ कार्ड, प्रधानमंत्री कृषि कौशल योजना, प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना, नीम कोटेड यूरिया, खाद सब्सिडी का सीधे खाते में भुगतान, प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना, किसानों को सस्ता कृषि कर्ज, कृषि ऐप्प की लांचिंग, ई-कृषि मंडी, ई- पशुहाट, आर्गेनिक खेती को बढ़ावा जैसी तमाम योजनाएं हैं जो देशभर में चलाई जा रही है। खेती-किसानी में बिजली का अहम योगदान होता है, क्योंकि खेतों में ट्यूबबेल चलाने, सिंचाई के लिए बिजली जरूरी है। सरकार इस बात को बाखूबी समझती है। हालांकि किसानों के लिए बिजली की अलग फीडर लाइन पर पिछले डेढ़ दशक से चर्चाएं हो रही हैं, लेकिन अब सरकार ने इस पर अमल की प्रक्रिया शुरू की है। बताया जा रहा है कि सरकार ने इसके लिए समय सीमा भी तय कर दी है। बिजली मंत्रालय से कहा गया है कि वह जुलाई, 2018 यानी अगले छह महीने के भीतर पूरे देश में किसानों के लिए अलग फीडर लाइन बनाने का काम पूरा करे। सरकार के इस निर्देश पर अमल लाने के लिए अब उत्तर प्रदेश, बिहार, ओडिशा, राजस्थान समेत कई राज्यों को बहुत तेजी से काम करना पड़ेगा।

15

विकास

लेकिन किसानों को बिजली का असली फायदा देने के लिए अब फीडर लाइन को अलग किया जाएगा। गुजरात और महाराष्ट्र जैसे राज्यों में किसानों के लिए अलग बिजली फीडर की व्यवस्था पहले ही हो चुकी है और इसके काफी बेहतर परिणाम देखने को मिले हैं।

बिजली सब्सिडी सीधे बैंक में

अलग बिजली फीडर होने से किसानों को बिजली सब्सिडी सीधे बैंक खाते में देने की व्यवस्था शुरू करने में भी काफी आसानी होगी। साथ ही किसानों को समय पर पर्याप्त बिजली आपूर्ति भी सुनिश्चित होगी। जाहिर है कि बिजली के क्षेत्र में एनडीए सरकार का रिकार्ड काफी बेहतर रहा है। वर्ष 2015

में ‘दीनदयाल उपाध्याय ग्राम ज्योति योजना’ और सितंबर 2017 में लांच की गई ‘पीएम सहज बिजली हर घर योजना’ से दिसंबर 2018 तक हर घर को बिजली कनेक्शन मिलने की उम्मीद है। इससे ग्रामीण इलाकों में बिजली पहुंचने का मकसद भी पूरा होगा।

2,90,000 करोड़ रुपए खर्च

ग्रामीण और कृषि क्षेत्र के समग्र विकास के लिए सरकार विशेष रूप से ध्यान दे रही है। केंद्रीय वित्त मंत्री अरूण जेटली ने कहा है कि केंद्र सरकार ग्रामीण और कृषि क्षेत्र पर 2,90,000 करोड़ रुपए खर्च कर रही है। 5 जनवरी को लोकसभा में कृषि से जुड़े सवालों के जवाब देते हुए वित्तमंत्री अरुण जेटली ने कहा कि कृषि क्षेत्र को सहयोग की जरूरत

पड़ती है। सरकार ग्रामीण एवं कृषि क्षेत्र पर विशेष ध्यान दे रही है और कृषि क्षेत्र के लिए 2,90,000 करोड़ रुपए दिए गए हैं। वित्तमंत्री जेटली ने कहा कि इस वित्त वर्ष में उर्वरक पर 70,000 करोड़ रुपए की सब्सिडी दी गई है, ताकि किसानों को अधिक से अधिक राहत मिल सके। कृषि क्षेत्र में सुधार को गति देने पर सरकार की कड़ी नजर है। खेती को रफ्तार देने और किसानों की माली हालत को मजबूत बनाने दिशा में गहन विचार-विमर्श के लिए ‘एग्रीकल्चर-2022’ का आयोजन किया जा रहा है। इसमें कृषि क्षेत्र में सार्वजनिक के साथ निजी निवेश बढ़ाने पर जोर दिया जाएगा। कृषि क्षेत्र पर सरकार के इस रुझान का असर आगामी आम बजट में देखने को मिलेगा। इस माह के अंत तक दिल्ली में ‘एग्रीकल्चर-2022’ सम्मेलन आयोजित करना प्रस्तावित है। इसमें सभी राज्यों के साथ देश के कृषि विशेषज्ञों और किसान प्रतिनिधियों को हिस्सा लेने का मौका मिलेगा।


16 खुला मंच

15 - 21 जनवरी 2018

यह न पूछें कि देश आपके लिए क्या कर सकता है, यह पूछें कि आप देश के लिए क्या कर सकते हैं - जॉन एफ. कैनेडी

अभिमत

हृदयनारायण दीक्षित

लेखक उत्तर प्रदेश विधानसभा के अध्यक्ष और वरिष्ठ स्तंभकार हैं

फास्ट फूड के जमाने में भारतीय भोजन

'आहार' व्यक्तित्व का आधार है। आहार का चयन प्राय: हमारा निर्णय होता है। लेकिन अस्तित्व के अन्य घटकों की तरह आहार पर भी देशकाल का प्रभाव होता है

सुरक्षित आधार

सरकार आधार की सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम करने में जुट गई है

क्रांति के देशलिएमें डिजिटल आधार कार्ड की

दरकार को लेकर देश में एक तरह से आम सहमति है। बीचबीच में आधार को लेकर कुछ सवाल उठे भी हैं तो वह इसकी सुरक्षा को लेकर। आधार डाटा लीक होने की खबरों के बीच सरकार इसकी सुरक्षा के लिए पुख्ता इंतजाम करने की तैयारी में जुट गई है। इसके तहत यूआईडीएआई हर आधार कार्ड की एक वर्चुअल आईडी तैयार करने का मौका देगी। इससे आपको जब भी अपनी आधार डिटेल कहीं देने की जरूरत पड़ेगी तो आपको 12 अंकों के आधार नंबर की बजाय 16 नंबर की वर्चुअल आईडी देना होगा। यूआईडीएआई के मुताबिक वर्चुअल आईडी जनरेट करने की यह सुविधा 1 जून से अनिवार्य हो जाएगी। यूआईडीएआई ने कहा है कि एक मार्च से यह सुविधा आ जाएगी और 1 जून से यह अनिवार्य हो जाएगी। इसका मतलब यह है कि 1 जून से सभी एजेंसियों को इसे लागू करने के लिए व्यवस्था करना अनिवार्य होगा। इसके बाद कोई भी एजेंसी वर्चुअल आईडी स्वीकार करने से इनकार नहीं कर सकती है। यूआईडीएआई के मुताबिक केवाईसी की जरूरत भी सीमीत होगी। इससे संबधित एजेंसियों को भी आधार डिटेल की एक्सेस नहीं होगी। ये एजेंसियां भी सिर्फ वर्चुअल आईडी के आधार पर सब काम निपटा सकेंगी। वर्चुअल आईडी की जो नई व्यवस्था है, उसके तहत यूजर जितनी बार चाहे उतनी बार वर्चुअल आईडी जनरेट कर सकेगा। यह आईडी सिर्फ कुछ समय के लिए ही वैलिड रहेगी। इसके साथ ही यूआईडीएआई ये सुविधा भी देगा कि आप खुद अपना वर्चुअल आईडी जनरेट कर सकें। इस तरह आप अपनी मर्जी का एक नंबर चुनकर सामने वाली एजेंसी को सौंप सकते हैं। इससे न सिर्फ आपकी आधार डिटेल सुरक्षित रहेगी, बल्कि आप अपने मोबाइल नंबर की तरह इस आईडी को भी आसानी से याद रख सकेंगे। जाहिर है कि इन नए कदमों के साथ न सिर्फ आधार की सुरक्षा से जुड़ा संशय दूर होगा बल्कि इसकी व्यवस्था भी पूरी तरह सुचारु हो जाएगी।

टॉवर

(उत्तर प्रदेश)

भू

ख स्वाभाविक इच्छा है। यह हमारी योजना का परिणाम नहीं है। भोजन बिना शरीर नहीं चलता। सो प्रकृति ने हम सबके शरीर में 'भूख' नाम की इच्छा ग्रंथि जोड़ी है। पीछे सप्ताह कोहरे की एक रात में मैं अपने सहायक दल के साथ उत्तर प्रदेश में प्रवास पर था। सड़क के किनारे ढाबे की खोज में था। स्थानीय पुलिस ने मुझे एक सुंदर होटल तक पहुंचाया। ठेठ ग्रामीण क्षेत्र में भी मैनेजर ने अंग्रेजी टाइप बातें की। उसने अंग्रेजी टाइप भाषा में खाद्य पदार्थो के नाम बताए। मेरा भाषा ज्ञान दगा दे रहा था। टमाटर को पानी में उबाल कर मसाला मिलाकर बने रस को 'टोमैटो सूप' कहना उचित है। पर इसके गाढ़ेपन का राज क्या? मन में प्रश्न उठे कि इसमें कुछ मिलाया तो नहीं गया? उसने पिज्जा जैसी अनेक चीजों का प्रस्ताव किया। यह सर्दी में भी गर्मी का अहसास था। गांव देहात में भी इटली, इंग्लैंड और अमेरिका की अनुभूति थी। पिज्जा के बारे में सुना है कि यह भोजन से बचे अवशेषों को गरीबों को खिलाने के लिए एक ब्रेड पर रखा गया उच्छिष्ट होता था। मन खिन्न लेकिन भूख जीती। ऐसे ऊटपटांग खाद्य पदार्थो का बिल दिल धड़काने वाला था। दुख हुआ। भारत में भी भारतीय भोजन का अभाव था। 'आहार' व्यक्तित्व का आधार है। आहार का चयन प्राय: हमारा निर्णय होता है। लेकिन अस्तित्व के अन्य घटकों की तरह आहार पर भी देशकाल का प्रभाव होता है। ठंडी जलवायु वाले देशों में शरीर के ताप को विशेष स्तर पर बनाए रखने की जरूरत होती है। ऐसे देशों में अधिक ऊष्मा देने वाले आहार का चलन होता है। प्राचीन भारत में आहार की दृष्टि से व्यापक चिंतन हुआ है। अन्न ही काया का निर्माता है, इसी से ऊर्जा है, इसी से प्राण और जीवन भी। डॉ. सत्यकेतु ने ‘प्राचीन भारतीय इतिहास का वैदिक युग’ में वैदिक समाज के खानपान का विवेचन किया है। वे लिखते हैं, ‘वैदिक युग में आर्यो के मुख्य भोज्य पदार्थ अन्न, कंद, मूल, फल, दूध और धृत

थे। प्रधानतया ब्रीहि, यव, तिल माश-उड़द, सरसों और गन्ने का उल्लेख मिलता है, जिन्हें कृषि द्वारा उत्पन्न किया जाता है। तंदुल का उल्लेख भी वैदिक साहित्य में है जो चावल है। उबाले गए तंदुलों को 'ओदन' कहते थे।’ उन्होंने ऋग्वेद (8.77.10) के हवाले ‘क्षीरपाकमोदनम’दूध में पकाए चावल का भी उल्लेख किया है। छान्दोग्य उपनिषद् में आहार को मुक्तिदाता कहा है। कहते हैं कि आहार शुद्धि से सत्व-सिद्धि होती है। सत्व सिद्धि से सुंदर स्मृति मिलती है। स्मृति से तत्व ज्ञान मिलता है और तत्वज्ञान से मुक्ति मिलती है। भोजन की गुणवत्ता के साथ भोजन शैली पर भी विचार जरूरी है। प्राचीन काल में भोजन की संख्या पर भी विचार हुआ था। शतपथ ब्राह्मण व तैत्तिरीय ब्राह्मण के अनुसार तब भोजन दो बार किया जाता था। ऋग्वैदिक काल में बैठकर भोजन की परंपरा थी। ऋग्वेद में भोजन की स्तुति भी की गई है। ब्रह्म पुराण के अनुसार हाथी, घोड़ा, गाड़ी, मंदिर, बिस्तर पर भोजन नहीं करना चाहिए। सामूहिक भोजन के शिष्टाचार भी प्राचीन साहित्य में हैं। जैसे पंक्ति में प्रथम स्थान पर आग्रह के बाद ही बैठना चाहिए। सबके साथ ही उठना चाहिए। भविष्य पुराण में निषिद्ध भोजन के उल्लेख हैं। लहसुन, प्यास आदि को 'स्वभावदुष्ट' बताकर मना किया गया है। गंदे हाथों से परोसा गया, कुत्तों आदि से छुआ गया भोजन किया दुष्ट कहा गया है। बासी, दरुगध युक्त भोजन या बच्चा देने के 10 दिन के भीतर का गोदूध ‘कालदुष्ट’ कहा गया है। भोजन की दृष्टि से शरीर, मन, बुद्धि और प्रज्ञा के निर्माण में अन्न की भूमिका है। तैत्तिरीय उपनिषद् की 'भृगुवल्ली' में वरुण द्वारा पुत्र भृगु को दिया गया उपदेश है। भृगु ने पिता वरुण से ब्रह्म की जिज्ञासा की। वरुण ने कहा, ‘अन्न, प्राण, नेत्र, कान, मन और वाणी ब्रह्म प्राप्ति के द्वार हैं।’ भृगु ने निश्चय किया ‘अन्न ब्रह्म है - अन्नं ब्रह्ममेति व्यजानत। प्राणी अन्न से बढ़ते हैं। मृत्यु के बाद अन्न क्षेत्र

ज्ञान-विज्ञान में हम दुनिया से प्रेरित नहीं होते, लेकिन उनके भोजन, हैप्पी क्रिसमस या हैप्पी न्यू इयर का पट्टा बांधे आधुनिक हो जाने की गलतफहमी में रहते हैं


15 - 21 जनवरी 2018 पृथ्वी में समा जाते हैं।’ अन्न महत्वपूर्ण है। भौतिकवादी उपनिषद् साहित्य को अंध आस्थावादी, भाववादी बताते हैं। यहां अन्न भौतिक पदार्थ है, ऋषि अनुभूति में ब्रह्म है। बहुत प्रीतिकर मंत्र में कहते हैं ‘यह व्रत संकल्प है कि अन्न की निंदा न करें - अन्नं न निन्द्यात। अन्न ही प्राण है। प्राण ही अन्न है। यह शरीर भी अन्न है। शरीर और प्राण का अंतर्संबंध है। अन्न ही अन्न में प्रतिष्ठित है। जो यह जान लेता है, वह महान हो जाता है महान्भवति, महानकीत्र्या।’ फिर बताते हैं ‘यह व्रत है कि अन्न का अपमान न करें - अन्नं न परिचक्षीत, तद् व्रतम्। जल अन्न है। जल में तेज है, तेज जल में प्रतिष्ठित है, अन्न में अन्न प्रतिष्ठित है। जो यह जानते हैं वे महान होते हैं, कीर्तिवान होते हैं।’ फिर कहते हैं ‘यह व्रत है कि खूब अन्न पैदा करें अन्नं बहुकुर्वीत। पृथ्वी अन्न है, आकाश अन्नाद है। आकाश में पृथ्वी है, पृथ्वी में आकाश है। जो यह बात जानते हैं वे अन्नवान हैं, महान बनते हैं।’ अन्न भोजन है। इस उपनिषद् का अंतिम मंत्र बड़ा प्यारा है- ‘यह व्रत है कि घर आए अतिथि की अवहेलना न करें। तमाम रीति से अन्न का प्रबंध करें। अतिथि से श्रद्धापूर्वक कहें - अन्न तैयार है। इस कार्य को ठीक से करने वाले के घर अन्न रहता है, मध्यम तरह से करने वाले के घर मध्यम और साधारण रीति से इस कार्य करने वाले के घर साधारण अन्न भंडार ही रहता है।’ यहां आहार का अर्थ अन्न है। उत्तरवैदिक काल का खूबसूरत ग्रंथ हैप्रश्नोपनिषद्। यहां अन्न को प्रजापति ब्रह्म बताया गया है– ‘अन्नं वै प्रजापति।’ चरक संहिता में आहार को जीवों का प्राण कहा गया है- ‘वह अन्न-प्राण मन को शक्ति देता है, शरीर की सम्पूर्ण धातुओं व बल वर्ण और इन्द्रियों को प्रसन्नता देता है।’ आहार शुद्धि का ध्यान रखा जाना चाहिए। बताते हैं ‘भोजन से उदर पर दबाव न पड़े, हृदय की गति पर अवरोध न हो, उदर में क्रूरता न हो, इंद्रियां भी तृप्त रहें।’ गीता में सत्व, रज और तम के अनुसार भोजन को तीन प्रकार का बताया गया, लेकिन चरक की स्थापना है, ‘सत्व, रज और तम के प्रभाव में मन तीन तरह का दिखाई पड़ता है परंतु वह एक है।’ मन बड़ा कारक है। मनोनुकूल स्थान पर भोजन करने के अतिरिक्त लाभ हैं। ‘मन-अनुकूल स्थान पर भोजन से मानसिक विकार नहीं होते। मन के अनुकूल स्थान और मनोनुकूल भोजन स्वास्थ्यवर्धक हैं।’ आधुनिक काल में भोजन संबंधी समूचा प्राचीन ज्ञान ही खारिज कर दिया गया है। फास्ट फूड का जमाना है। मांसाहार के नए तरीके आए हैं। शराब की खपत बढ़ी है। इसी का परिणाम है कि नए-नए रोग बढ़े हैं। तनाव बढ़े हैं। क्रोध बढ़ा है, क्रोधी बढ़े हैं। हम भारतवासी छोटे नकलची हैं। हम दूसरे देशों की वैज्ञानिक शोध, अध्ययन और ज्ञान विज्ञान की नकल नहीं करते। ज्ञान-विज्ञान में हम दुनिया से प्रेरित नहीं होते, लेकिन उनके भोजन, हैप्पी क्रिसमस या हैप्पी न्यू इयर का पट्टा बांधे आधुनिक हो जाने की गलतफहमी में रहते हैं। हमारी इन्हीं कमजोरियों का लाभ बाजार के घाघ उठाते हैं और हम ठगे जाते हैं। अंग्रेजी टाइप बातें सुनकर। आधुनिक होना ही है तो पढ़ाई लिखाई को अद्यतन बनाना चाहिए और संस्कारों को पुननर्वा शक्ति देनी चाहिए।

प्रियंका तिवारी

खुला मंच

17

लेखिका युवा पत्रकार हैं और देश-समाज से जुड़े मुद्दों पर प्रखरता से अपने विचार रखती हैं

ल​ीक से परे

शेर-ए-सिंध की शहादत

संसद के प्रवेश द्वार पर अमर शहीद हेमू कालाणी की प्रतिमा देश के लिए प्राणों की आहूति देने वाले भारत के इस सच्चे सपूत हेमू कालाणी को एक विनम्र श्रद्धांजलि है

भा

रत का स्वाधीनता संघर्ष कई क्रांतिकारियों संग्राम के क्रिया-कलापों में हिस्सा लेना शूरू कर की कुर्बानी की एक ऐसी रक्तिम दास्तान दिया। अत्याचारी फिरंगी सरकार के खिलाफ है, जिन्होंने देश के लिए कुछ भी करने का ऐसा छापामार गतिविधियों एवं उनके वाहनों को जलाने जज्बा दिखाया कि उसके बारे में जानकर रोमांच में हेमू सदा अपने साथियों का नेतृत्व करते थे। हेमू और गौरव से दिल भर आता है। ऐसे ही एक अमर ने अंग्रेजों की एक ट्रेन ,जिसमें क्रांतिकारियों का क्रांतिकारी रहे हेमू कालाणी। संसद के प्रवेश द्वार पर दमन करने के लिए हथियार एवं अंग्रेजी अफसरों अमर शहीद हेमू कालाणी की प्रतिमा देश के लिए का खूखार दस्ता था, उसे सक्खर पुल में पटरी की प्राणों की आहूति देने वाले भारत के इस सच्चे सपूत फिश प्लेट खोलकर गिराने का कार्य किया था, हेमू कालाणी के प्रति विनम्र श्रद्धांजलि है। सिंध की जिसे अंग्रेजों ने देख लिया था। 1942 में क्रांतिकारी माटी के इस वीर सपूत को शेर-ए-सिंध कहा गया। हौसले से भयभीत अंग्रेजी हुकूमत ने हेमू की उम्रकैद 18 अक्टूवर 1983 को देश की प्रधानमंत्री इंदिरा को फांसी की सजा में तब्दील कर दिया। पूरे भारत गांधी एवं शहीद हेमू कालाणी की माताजी जेठी बाई में सिंध प्रदेश में सभी लोग एवं क्रांतिकारी संगठन कालाणी की उपस्थिति में इस महान क्रांतिकारी पर हैरान रह गए और अंग्रेज सरकार के खिलाफ विरोध जब डाक टिकट जारी किया था। प्रकट किया। हेमू को जेल में अपने साथियों का गुलामी की जंजीरों में जकड़ी भारत माता को नाम बताने के लिए काफी प्रलोभन और यातनाएं दी आजाद कराने में हेमू कलाणी की शहादत को गईं। बावजूद उन्होंने मुंह नहीं खोला और फांसी पर खुदीराम बोस के साथ याद किया जाता है। भारत मां झूलना बेहतर समझा। के इन दोनों वीर सपूतों ने देश की आजादी के लिए बताते हैं कि फांसी की खबर सुनकर हेमू बहुत ही कम उम्र में फांसी के फंदे को चूम लिया कालाणी का वजन आठ पौंड बढ़ गया। वीर हेमू था। हेमू का जन्म अविभाजित भारत के सिंध प्रदेश की मां ने अपने आंसुओं को रोकना चाहा, लेकिन के सक्खर जिले में 23 मार्च 1924 को हुआ था। ममतामयी आंखों से आंसू छलक आए | ममता उनके पिता का नाम श्री वेसुमल एवं दादा और निडरता का नजारा देख दूसरे अन्य का नाम मेघराम कालाणी था। हेमू बचपन हेमू कालाणी बलिदान दिवस (21 जनवरी) पर विशेष कैदी रो दिए पर हेमू की आंखों में एक से साहसी तथा विद्यार्थी जीवन से ही अनोखी चमक थी। मां की चरण वंदना क्रांतिकारी गतिविधियों में सक्रिय रहे। हेमू जब मात्र दिया था और उसके उत्साह को देखकर प्रत्येक करते हुए हेमू ने कहा- ‘माँ मेरा सपना पूरा हुआ, 7 वर्ष के थे तब वह तिरंगा लेकर अंग्रेजो की बस्ती सिंधवासी में जोश आ गया था। हेमू समस्त विदेशी अब जननी भारत को आजाद होने से कोई नहीं में अपने दोस्तों के साथ क्रांतिकारी गतिविधियों का वस्तुओं का बहिष्कार करने के लिए लोगों से रोक सकता।’ 21 जनवरी 1943 को इस किशोर नेतृत्व करते थे। 1942 में 19 वर्षीय इस किशोर अनुरोध किया करते थे। शीघ्र ही सक्रिय क्रांतिकारी क्रांतिकारी को फांसी दे दी गई। इस तरह भारत की क्रांतिकारी ने ‘अंग्रेजो भारत छोड़ो’ के नारे के साथ गतिविधियों में शामिल होकर उन्होंने हुकूमत को आजादी में शहीद होने वालों में एक नाम और जुड़ अपनी टोली के साथ सिंध प्रदेश में तहलका मचा उखाड़ फेंकने के संकल्प के साथ राष्ट्रीय स्वतंत्रता गया।

17

प्रेरक

18

बवकास बबहार के सभी गांवों तक पहुंची बबजली

टूटी बजंदगी को बद्या काव्यम्य अर्ष

30

बाल साबहत्य

28

कही अनकही

बंटी की आइसक्ीम

हरर काका बन गए संजीव

harat.com

sulabhswachhb

बाघ संरक्षण की बडी पहल

वर्ष-2 | अंक-04 | 08

- 14 जनवरी 2018

/2016/71597 आरएनआई नंबर-DELHIN

में ्ययूपी का पहला पीलीभीत टाइगर ररजव्ष करनरे का बनण्ष्य टाइगर रेस्क्ययू सेंटर सराबपत

श्रवण शुक्ा

त्री ्योगरी त्तर प्रदेश के मुख्यमं ररजर्व आददत्यनाथ ने परीलरीभरीत टाइगर टर रेस्क्ययू सें में राज्य का पहला टाइगर है, तादक दशकाररी सथादपत करने का दनर्व्य दल्या रालरी समस्याओं जानररों से मनुष्यों को होने दें बता दक दपछले को खतम दक्या जा सके। लखरीमपुर खरीररी और एक साल में परीलरीभरीत के तेंदुए के हमलों से बहराइच दजलों में बाघ और मौत हो चुकी है। कररीब आधा दज्वन लोगों की ों की तो इस दौरान बात करें दपछले चार महरीन ज्यादा मामले सामने एेसे हमलों के एक दज्वन से आए हैं। संरक्षक एसके इस बारे में मुख्य रन्यजरीर क्षेत् तरीन दजलों में उपाध्या्य ने बता्या दक ्यह फैला हुआ है। इसमें 703 दकलोमरीटर के दा्यरे में के नरीचे आने राले परीलरीभरीत बाघ अभ्यारण्य ्यह है दक ्यहां पैच क्षेत्ों में एक बडरी समस्या हैं, ्यहरी भोजन में चौडाई दकमरी हैं, जो 3 से 5 बाघों और तेंदुए को की तलाश में भटकने राले प्ररेश करने के दलए आददम आबादरी के क्षेत् में माग्व प्रदान करता है।

खास बातें

बाघरेस्क्ययू सेंटर सरे इुंसानों पर रोक तेंदुए के हमलरे पर लगरेगी की एक बीतरे चार महीनरे में हमलरे दज्षन घटनाएं हो चुकी हैं त्र गन्रे की

पीलीभीत का ्यह पयूरी क्षरे खरेती के बलए मशहूर

टाइगर रेस्क्यू सेंटर

राष्ट्रीय पशु बाघ को बचाने की मुहिम बचपन से ही देख रहा हूं। बाघ सरंक्षण की पहलों ने सिर्फ बाघ को ही नहीं बचाया है, बल्कि पर्यावरण को बेहतर बनाने की दिशा में भी बड़ा फायदा पहुंचाया है। अबकी बार की प्रति में उत्तर प्रदेश के पीलीभीत टाइगर रिजर्व में राज्य का पहला टाइगर रेस्क्यू सेंटर स्थापित करने की खबर पढ़ी। इसकी जरुरत काफी समय से महसूस की जा रही थी। क्योंकि आए दिन बाघ आबादी वाले क्षेत्रों में जाकर लोगों पर हमला कर रहे थे। उम्मीद है कि इस पहल से लोगों को बड़ी राहत मिलेगी। सुरेंद्र नागर, पीलीभीत, उत्तर प्रदेश

संजीव जैसा कोई नहीं

संजीव कुमार मेरे पसंदीदा अभिनेता रहे हैं। चाहे फिल्म ‘शोले’ में उनका ठाकुर वाला रोल हो या फिल्म ‘आंधी’ में जेके का किरदार हो, उन्होंने बेहद संजीदगी से अपने हर अभिनय को जिया। इसीलिए ‘हरि काका बन गए संजीव’ आलेख पढ़कर बहुत खुशी मिली। उनकी जिंदगी के कई अनछुए पहलुओं के बारे में पता चला। उनके अभिनय में जैसी विविधता थी शायद ही अब किसी और एक्टर में देखने को मिले। काश वो कुछ दिन और जीते तो उनकी कुछ और यादगार फिल्में हम तक पहुंचती। उनके किस्सों को हम तक पहुंचाने के लिए, बहुत बहुत साधुवाद! राकेश बुंदेला, लखनऊ, उत्तर प्रदेश


18

सेना को सलाम!

थलसेना दिवस देश के उन बहादुर जवानों को सैल्यूट करने का मौका है, जिन्होंने देश की सुरक्षा के लिए अपनी जान तक की परवाह नहीं की फोटो रिसर्चः जयराम

फोटो फीचर

15 - 21 जनवरी 2018


15 - 21 जनवरी 2018

फोटो फीचर

हर वर्ष 15 जनवरी को मनाया जाने वाला थलसेना दिवस लेफि्टनेंट जनरल केएम करिअप्पा के सैन्य नेतृत्व और वीरता को भी याद करने का अवसर है, जिन्होंने आजादी के बाद भारतीय सेना की कमान संभाली

19


20

स्वच्छता

15 - 21 जनवरी 2018

कचरे से लाखों रुपए कमाता है मैसूर देश का सबसे स्वच्छ और कर्नाटक का हेरिटेज शहर कहा जाने वाला मैसूर अपने यहां निकलने वाले कई टन कचरे से लाखों रुपए बना रहा है

खास बातें एमसीसी को 6 लाख रुपए की रॉयल्टी मिलती है स्वच्छता रैंकिंग में पहला स्थान पा चुका है मैसूर मैसूर शहर में नौ रिसाइकिल सेंटर बनाए गए हैं

अलग-अलग किस्म का कचरा

सफाई कर्मी रोजाना 400 पुशकार्ट और 170 ऑटो से कचरा ढोकर उन्हें यहां पहुंचाते हैं। इन सेंटरों पर कचरे को अलग किया जाता है। उसमें बोतल, धातु, जूते और प्लास्टिक कप को कबाड़ियों के हाथों बेच दिया जाता है। बाकी कचरे को कंपोस्ट बनाकर किसानों को भेज दिया जाता है।

200 टन कंपोस्ट का उत्पादन

मैसूर सिटी कॉर्पोरेशन के एक अधिकारी ने बताया कि कचरे के सेंटर पर हर रोज 200 टन कंपोस्ट का उत्पादन होता है। एमसीसी के पूर्व कमिशनर सीजी बेटसुरमत ने बताया कि इससे एमसीसी को 6 लाख रुपए की रॉयल्टी मिलती है और सूखे कचरे से भी पैसे मिलते हैं। मैसूर में 100 प्रतिशत कचरे को घरघर जाकर ही इकट्ठा किया जाता है। इसके साथ ही लगभग 80 प्रतिशत कचरे को रिसाइकिल करने से पहले अलग कर लिया जाता है।

एसएसबी ब्यूरो

चरे का निपटान आज स्वच्छता के लिए बड़ी चुनौती है। पर कचरे से कमाई भी हो सकती है, यह मिसाल पेश किया है देश का सबसे स्वच्छ शहर मैसूर ने। मैसूर सिटी कॉरपोरेशन के एक अधिकारी ने बताया कि कचरे के सेंटर पर हर रोज 200 टन कंपोस्ट का उत्पादन होता है। एमसीसी के पूर्व कमिशनर सीजी बेटसुरमत ने बताया कि इससे एमसीसी को 6 लाख रुपए की रॉयल्टी मिलती है और सूखे कचरे से भी पैसे मिलते हैं।

हर रोज 402 टन कचरा

मैसूर में हर रोज 402 टन कचरा उत्पन्न होता है जिसका आधा कचरा कंपोस्ट में तब्दील कर दिया जाता है। यही वजह है कि लगातार दो साल से भारत के सबसे स्वच्छ शहरों में मैसूर का नाम सबसे ऊपर रहता है।

समस्या से आगे कमाई

हर शहर में कचरे की समस्या काफी आम होती है। अकसर शहरी प्रशासन और नगर पालिका इस समस्या का समाधान खोजने में विफल हो जाते हैं। लेकिन मैसूर में नगरपालिका प्रशासकों ने यह दिखा दिया कि सही नीति बनाकर तकनीक के जरिए शहर को साफ सुथरा बनाया जा सकता है। कर्नाटक का हेरिटेज शहर कहा जाने वाला मैसूर अपने यहां निकलने वाले कई टन कचरे आज से लाखों रुपए बना रहा है।

स्वच्छता में मैसूर की साख

कूड़े और कचरे के ढेर से गंदगी फैलती है और फिर उससे बीमारियां। लेकिन मैसूर इस मामले में बाकी शहरों से काफी अलग है। केंद्र सरकार ने दो साल पहले देश के टॉप 10 स्वच्छ शहरों का ऐलान किया था, जिसमें मैसूर को पहला स्थान मिला था। लेकिन मैसूर ने इस मुकाम को एक दिन में हासिल नहीं किया। इसके लिए कई सारी योजनाएं बनाई गईं और उन्हें लागू भी किया गया।

मैसूर में 100 प्रतिशत कचरे को घर-घर जाकर ही इकट्ठा किया जाता है। इसके साथ ही लगभग 80 प्रतिशत कचरे को रिसाइकिल करने से पहले अलग कर लिया जाता है तीन ‘आर’ का मंत्र

देश के तमाम शहरों में स्वच्छता को लेकर सबसे बड़ी मुसीबत कचरे का बड़े पैमाने पर जमा होना और फिर उसके निपटान की समस्या है। लेकिन मैसूर में नगरपालिका प्रशासकों ने यह दिखा दिया है कि सही नीति बनाकर तकनीक के जरिए शहर को साफ सुथरा बनाया जा सकता है। स्वच्छ भारत मिशन के तहत तीन ‘आर’ का मंत्र दिया गया है, जिसके तहत रिफ्यूज, रिड्यूस और रीसाइकिल करने की बात कही गई थी। हालांकि अब उसमें रीयूज का भी विकल्प जोड़ दिया गया है। मैसूर में घर-घर से कचरे को इकट्ठा किया जाता है। शहर

में सभी को घरों में दो तरह के डस्टबिन रखने को कहा गया है।

कचरे से कंपोस्ट

यहां डस्टबिन में सूखा कचरा अलग और गीले कचरे को अलग रखने को कहा जाता है। एक से कंपोस्ट बनाई जा सकती है, वहीं दूसरे डब्बे में फेंका गया कचरा कंपोस्ट के लायक नहीं होता है। हर रोज सुबह कचरा इकट्ठा करने वाले लोग सीटी बजाते हुए आते हैं और हर घर से कचरा इकट्ठा करते हुए चले जाते हैं। शहर में नौ रिसाइकिल सेंटर और 47 सूखे कचरे को इकट्ठा करने के सेंटर बनाए गए हैं।

6,000 शौचालय बनाए गए

मैसूर में सार्वजनिक सेवाओं का इस्तेमाल एकदम आदर्श तरीके से होता है। यहां सारे पब्लिक टॉयलेट अच्छे से काम कते हैं और इतना ही नहीं मैसूर में खुले में शौच की समस्या भी नहीं है। इसका सारा श्रेय स्वच्छ भारत अभियान और वहां के लोगों के साथ ही नीति निर्माताओं को भी जाना चाहिए। मैसूर में स्लम पुनर्वास कार्यक्रम भी चलता है, जिसके तहत लगभग 6,000 शौचालय बनवाए गए हैं। इसी कारण शहर में खुले में शौच की समस्या का भी अंत हो गया।

एफएम रेडियो का योगदान

शहर को साफ बनाने में संचार साधनों ने भी काफी योगदान दिया है। यहां के एफएम स्टेशनों पर गानों के साथ ही साफ-सफाई से जुड़े प्रोग्राम भी चलाए जाते हैं। इससे शहर के लोगों में जागरूकता उत्पन्न होती है।


स्वास्थ्य

15 - 21 जनवरी 2018

ठीक हो सकता है सर्वाइकल कैंसर

21

भारत में ग्रीवा कैंसर के लगभग 1,22,000 नए मामले सामने आते हैं, जिसमें लगभग 67,500 महिलाएं होती हैं

हा

आईएएनएस

ल के आंकड़े बताते हैं कि 15 से 44 वर्ष की आयु में भारतीय महिलाओं में कैंसर से होने वाली मौतों का दूसरा सबसे आम कारण गर्भाशय-ग्रीवा या सर्वाइकल कैंसर के रूप में उभरा है। अगर समय पर इलाज शुरू हो जाए, तो इस रोग से मुक्ति पाई जा सकती है। भारत में ग्रीवा कैंसर के लगभग 1,22,000 नए मामले सामने आते हैं, जिसमें लगभग 67,500 महिलाएं होती हैं। कैंसर से संबंधित कुल मौतों का 11.1 प्रतिशत कारण सर्वाइकल कैंसर ही है। यह स्थिति और भी खराब इसीलिए हो जाती है कि देश में मात्र 3.1 प्रतिशत महिलाओं की इस हालत के लिए जांच हो पाती है, जिससे बाकी महिलाएं खतरे के साए में ही जीती हैं। सर्वाइकल कैंसर सर्विक्स की लाइनिंग, यानी यूटरस के निचले हिस्से को प्रभावित करता है। सर्विक्स की लाइनिंग में दो तरह की कोशिकाएं

होती हैं- स्क्वैमस या फ्लैट कोशिकाएं और स्तंभ कोशिकाएं। गर्भाशय ग्रीवा के क्षेत्र में जहां एक सेल दूसरे प्रकार की सेल में परिवर्तित होती है, उसे स्क्वेमो-कॉलमर जंक्शन कहा जाता है। यह

ऐसा क्षेत्र है, जहां कैंसर के विकास की सबसे अधिक संभावना रहती है। गर्भाशय-ग्रीवा का कैंसर धीरे-धीरे विकसित होता है और समय के साथ पूर्ण विकसित हो जाता है। हार्ट केयर फाउंडेशन ऑफ इंडिया (एचसीएफआई) के अध्यक्ष पद्मश्री डॉ. केके अग्रवाल ने बताया कि सर्वाइकल कैंसर ज्यादातर मानव पैपीलोमा वायरस या एचपीवी के कारण होता है। लगभग सभी ग्रीवा कैंसर एचपीवी में से एक के साथ दीर्घकालिक संक्रमण के कारण

गर्भाशय-ग्रीवा कैंसर को ऐसे रोकें

• हर तीन वर्ष में एक पेप टेस्ट करवाएं, क्योंकि समय पर पता लगने से इलाज में आसानी होती है। • धूम्रपान छोड़ दें, क्योंकि सिगरेट में निकोटीन और अन्य घटकों को रक्त की धारा से गुजरना पड़ता है और यह सब गर्भाशय-ग्रीवा में जमा होता है, जहां वे ग्रीवा कोशिकाओं के विकास में बाधक बनते हैं। धूम्रपान प्रतिरक्षा तंत्र को भी दबा सकता है। • फल, सब्जियों और पूर्ण अनाज से समृद्ध स्वस्थ आहार खाएं, मगर मोटापे से दूर रहें।

अच्छी सेहत के लिए कॉफी!

होता है। उन्होंने कहा कि एचपीवी संक्रमण यौन संपर्क या त्वचा संपर्क के माध्यम से फैलता है। कुछ महिलाओं में गर्भाशय-ग्रीवा की कोशिकाओं में एचपीवी संक्रमण लगातार बना रहता है और इस रोग का कारण बनता है। इन परिवर्तनों को नियमित ग्रीवा कैंसर स्क्रीनिंग (पैप परीक्षण) द्वारा पता लगाया जा सकता है। पैप परीक्षण के साथ, गर्भाशय ग्रीवा से कोशिकाओं का एक सतही नमूना नियमित पेल्विक टेस्ट के दौरान एक ब्रश से लिया जाता है और कोशिकाओं के विश्लेषण के लिए प्रयोगशाला में भेजा जाता है। सर्वाइकल कैंसर के कुछ लक्षणों में शामिल हैयोनि से असामान्य रूप से खून बहना, रजोनिवृत्ति या यौन संपर्क के बाद योनि से रक्तस्राव, सामान्य से अधिक लंबे समय मासिक धर्म, अन्य असामान्य योनि स्राव, और यौन संसर्ग के दौरान दर्द के बीच रक्तस्राव। डॉ. अग्रवाल ने आगे बताया, ‘सर्वाइकल कैंसर को अक्सर टीकाकरण और आधुनिक स्क्रीनिंग तकनीकों से रोका जा सकता है, जो गर्भाशय ग्रीवा में पूर्वकाल परिवर्तन का पता लगाता है। गर्भाशय-ग्रीवा के कैंसर का उपचार कई कारकों पर निर्भर करता है, जैसे कि कैंसर की अवस्था, अन्य स्वास्थ्य समस्याएं। सर्जरी, विकिरण, कीमोथेरेपी या तीनों को मिलाकर भी इस्तेमाल किया जा सकता है।’

कॉफी का जो लोग फायदा गिनाते हैं, उनके मुताबिक कॉफी दिल की बीमारी को दूर करने के लिए काफी फायदेमंद है

एसएसबी ब्यूरो

मारे आस-पास बहुत लाेग एेसे हैं, कॉफी पीना बेहद पसंद करते हैं। लेकिन कुछ लोग कॉफी पीना स्वास्थ्य के लिए सही नहीं समझते। पर एेसा कतई नहीं है। जी हां, काॅफी पीने से आपके स्वास्थ्य को कई लाभ होते हैं। शायद बहुत कम लाेग जानते होंगे कि कॉफी पीने से आपका वजन कम होता है। बता दें कि इसमें मौजूद कैफीन शरीर में उपस्थित वसा को कम करती है। कॉफी चर्बी को बढ़ने से रोकने में बहुत लाभकारी होती है। अगर आप भी जल्दी वजन कम करना चाहते है तो रोजाना कॉफी पीएं। वैसे इस बात को लेकर डॉक्टरों की जमात एकमत नहीं है। कैफीन का सेवन स्वास्थ्य पर कई बुरा असर भी डालता है, एेसी भी डॉक्टरों की राय है। कॉफी का जो लोग फायदा गिनाते हैं उनके

मुताबिक कॉफी दिल की बीमारी को दूर करने के लिए काफी फायदेमंद होती है। कॉफी पीने से दिल की बीमारी होने का खतरा कम हो जाता है। अगर आप एक दिन में 3 कप कॉफी पीते हैं तो किसी भी प्रकार की दिल की कोई बीमारी नहीं हो सकती है। कॉफी त्वचा संबंधित कैंसर को दूर करने के लिए बेहद लाभकारी है। एक दिन में तीन कप कॉफी पीने से त्वचा के कैंसर होने का खतरा बहुत ज्यादा कम हो जाता है। इसीलिए आप भी दिन में एक बार कॉफी का सेवन जरूर करें। कॉफी स्टैमिना बढ़ाने में बहुत ज्यादा मददगार है। इसमें मौजूद कैफीन की वजह से रक्त में फैटी एसिड का निर्माण होता है, जो भारी काम करने में या फिर देर तक दौड़ने के लिए इंसान का स्टैमिना बढ़ा देती है। इसके अलावा कॉफी से त्वचा के भी कांतिमय होने की बात कई अध्ययनों में सामने आई है।


22

पहल

15 - 21 जनवरी 2018

विदेशी प्रोफेसर सिखा रहे सस्ते मकान बनाना

आदिवासियों को प्राकृतिक साधनों से ही आत्मनिर्भर बनाने के लिए मेक्सिको के एक प्रोफेसर ने मुहिम शुरू की है

प्र

आईएएनएस-वीएनएस

वरुण दाइटम के ट्रेनिंग देने की जानकारी पोस्ट की थी। इसे पढ़कर स्कॉटलैंड की महिला जिनका नाम इंडिया है, वो भी जगदलपुर पहुंच गईं। इंडिया अभी भारत के दौरे पर हैं। इंडिया ने कहा कि बस्तर जैसे इलाके में ऐसे ट्रेनिंग सेशन की जानकारी के बाद वो खुद को नहीं रोक पाई और यहां आ गई। उन्होंने कहा कि सोशल मीडिया और अन्य माध्यमों से जो जानकारी मिली बस्तर उसके ठीक उलट है। उन्होंने कहा कि उनके माता-पिता अक्सर भारत भ्रमण के लिए आते थे। उन्हें भारत इतना पसंद था कि उन्होंने मेरा नाम ही इंडिया रख दिया।

कृति के बीच रहने वाले बस्तर के आदिवासियों को प्राकृतिक साधनों से ही आत्मनिर्भर बनाने के लिए मेक्सिको के एक प्रोफेसर ने मुहिम शुरू की है। भारतीय मूल के प्रो. वरुण दाइटम और स्कॉटलैंड की प्रोफेसर इंडिया स्थानीय इंजीनियरों को कम खर्च में ईको फ्रेंडली मकान, डोम और अन्य निर्माण का प्रशिक्षण दे रहे हैं। ये दोनों ही इंजीनियर खुद गारा और मिट्टी अपने हाथों से तैयार करते हैं। वरुण मेक्सिको की आईटीइएसएम यूनिवर्सिटी में पढ़ाते हैं। वे पिछले कई दिनों से लाइवलीहुड कॉलेज में जिला पंचायत के इंजीनियरों और अन्य लोगों को मिट्टी और रेत से दीवार और छत की ढलाई के गुर सीखा रहे हैं। इस निर्माण को स्पैनिश वॉल्ट भी कहा जाता है। पहले चरण में मास्टर ट्रेनर तैयार किए जा रहे हैं। ये गांव-गांव जाकर महिला समूहों और अन्य लोगों को इन निमार्णों की जानकारी देंगे।

स्पैनिश वॉल्ट के तहत मकान, दुकान, रेस्टोरेंट के साथ अन्य प्रकार के सभी निर्माण मिट्टी की जुड़ाई से किए जाते हैं। इसके लिए गीली मिट्टी और रेत का मिश्रण तैयार किया जाता है मिट्टी और रेत के मिश्रण से ढलाई की जाती है। ये मकान पूरी तरह ईको फ्रेंडली होने के साथ मौसम के अनुकूल भी रहते हैं। इनके निर्माण में कंक्रीट के निर्माण की अपेक्षा 40 प्रतिशत खर्च कम होता है।

स्पैनिश वॉल्ट

स्पैनिश वॉल्ट के तहत मकान, दुकान, रेस्टोरेंट के साथ अन्य प्रकार के सभी निर्माण मिट्टी की जुड़ाई से किए जाते हैं। इसके लिए गीली मिट्टी और रेत का मिश्रण तैयार किया जाता है। छत की ढलाई और बेस के लिए ईंटें भी ऐसे ही बनाई जाती हैं, लेकिन ईंटों को भट्टे में पकाया नहीं जाता है। मिट्टी और रेत इसे मजबूती देते हैं। इसके बाद मिट्टी और रेत के मिश्रण से दीवार खड़ी की जाती है। छत में भी

पहले भी आ चुके हैं बस्तर

मेक्सिको की आईटीइएसएम यूनिवर्सिटी के प्रो. वरुण दाइटम मूलत: बेंगलुरू के रहने वाले हैं। वे पिछले पांच सालों से मेक्सिको में हैं। हाल में वे छुटिट्यों में भारत आए हुए थे। इस दौरान उन्होंने जिला पंचायत सीईओ रितेश अग्रवाल की एक

प्र

पोस्ट पढ़ी जिसमें लिखा था कि यदि कोई बस्तर में आकर यहां के लोगों को नया कुछ सिखाना चाहता है तो उनका स्वागत है। इस पोस्ट को पढ़ने के बाद उन्होंने गूगल सर्च किया तो यहां एनएमडीसी और नक्सलियों से संबंधित जानकारी ही ज्यादा मिली। इसके बाद भी वे बस्तर आए और यहां तीन दिनों का ट्रेनिंग सेशन चलाया। इसके बदले में उन्होंने कोई फीस नहीं ली।

स्कॉटलैंड से आईं इंडिया

सोशल मीडिया में सीईओ रितेश अग्रवाल ने प्रो.

खुद कर रहे निर्माण

अभी पहले चरण में जिला पंचायत के इंजीनियरों को स्पैनिश वॉल्ट बनाने की ट्रेनिंग दी जा रही है। तीन दिनों से इंजीनियर खुद मिट्टी और रेत का गारा बना रहे है और खुद ही दीवार और ढलाई का काम कर रहे हैं। बस्तर में शहरी क्षेत्र को छोड़ दिया जाए तो आज भी बड़ी संख्या में ग्रामीण मिट्टी के मकान में रहते हैं। ऐसे में यहां स्पैनिश वॉल्ट के सफल होने की ज्यादा संभावनाएं हैं। मिट्टी के मकान यहां के कल्चर में शामिल है। ऐसे में गांवगांव में महिला समूह को इसका प्रशिक्षण दिलवा कर इससे व्यावसायिक फायदे भी उठाए जा सकते हैं। महिलाओं को इस निर्माण की बारीकी सिखाने के बाद इन्हें आर्थिक मदद भी उपलब्ध कराया जाएगा। इस काम के लिए उन्हीं महिलाओं को चुना जाएगा, जो गांव-गांव में गारे से मकान बनाने के लिए मजदूरी का काम करती हैं।

खाद-बीज की होम डिलिवरी

इफको की इस नई पहल से खाद-बीज से जुड़ी किसानों की समस्या का घर बैठे समाधान होगा

मुख उर्वरक सहकारी इफको ने अपने डिजिटल मंच इंडियन को-ऑपरेटिव डिजिटल प्लेटफॉर्म (आईसीडीपी) के माध्यम से अपने कृषिगत आदान मसलन खाद, बीज को घर-घर तक पहुंचाने की सेवा शुरू करने की घोषणा की है। इफको द्वारा जारी बयान के मुताबिक, इसका मकसद नवीनतम तकनीकी साधनों से एक सक्षम आपूर्ति श्रृंखला तंत्र की सहक्रिया द्वारा ग्रामीण भारत के किसानों तक आधुनिक ई-कॉमर्स के फायदों एवं अनुभवों को पहुंचाना है जो देश के बाकी हिस्सों की पहुंच से बाहर हैं। इफको की तरफ से कहा गया है कि किसानों को अब आवश्यक कृषिगत आदान की पूरी श्रृंखला मिलेगी, जैसे पूर्णत: पानी में घुलनशील उर्वरक, कृषिरसायन, जैव-उर्वरक, बीज, पौधों को विकसित करने वाले संरक्षक और अन्य कृषि आधारित उत्पाद। ये उत्पाद 5 किलोग्राम तक की थैली या बोतलों की पैकेजिंग में उपलब्ध होंगे और बगैर किसी अतिरिक्त मूल्य के किसानों के दरवाजे तक पहुंचाए जाएंगे।

पारंपरिक उर्वरकों, जैसे यूरिया, डीएपी, एनपीके, इत्यादि ऑनलाइन नहीं बेचे जाएंगे। आईसीडीपी में उद्योग-जगत में अपनी तरह की यह अनोखी पहल है। वह दूर-दराज के उन ग्रामीण क्षेत्रों तक वितरण सेवाएं उपलब्ध कराएगी, जहां ई-कॉमर्स के अग्रणी किरदार मौजूदा परिदृश्य में अपने सामान नहीं पहुंचा पाते हैं। इफको के प्रबंध निदेशक डॉ. यूएस अवस्थी ने कहा, ‘किसान हमारे डिजिटल मंच से कृषिगत आदान को फोन अथवा कंप्यूटर के सिर्फ एक क्लिक के जरिए खरीद पाएंगे। इस दिशा में आईसीडीपी काम कर रही है। इसका उद्देश्य है कि ज्यादा से ज्यादा किसान डिजिटलीकरण का लाभ उठाएं।’ उन्होंने कहा, ‘हमने किसानों के बीच प्रशिक्षण और जागरूकता-निर्माण अभियान भी शुरू किया है, जहां वे ऑनलाइन व डिजिटल भुगतान गेटवे के उपयोग के बारे में सीख सकते हैं। यहां उन्हें नकद रहित रहने के लाभ की शिक्षा भी मिलेगी। इससे आगे जाते हुए, हमारी योजना यह है कि इस मंच को एक सफल डिजिटल बाजार में

बदल दें, जहां किसान और सहकारी समितियां, दोनों अपने उत्पाद ऑनलाइन खरीद-बेच सकें, बिचैलिये के दुष्चक्र के बगैर, जो कि उनकी लाभ का एक बड़ा हिस्सा खा जाते हैं।’ सरकार की डिजिटल पहल और कैशलेस मुहिम के अनुरूप, इफको ने हाल ही में एक नया पोर्टल शुरू किया है- इंडियन को-ऑपरेटिव डिजिटल प्लेटफॉर्म। इस पोर्टल का लक्ष्य किसानों या उपभोक्ताओं और इफको तथा इसकी समूह कंपनियों के बीच संवाद स्थापित करने और कारोबार करने के लिए एक डिजिटल मंच प्रदान करना है। आईसीडीपी की सदस्यता सभी किसानों के लिए नि:शुल्क उपलब्ध है। इफको आईसीडीपी पर अपनी सभी 36,000 सहकारी समितियों के साथ ही इसके 5 करोड़ सदस्यों व किसानों को एक साथ लाने और उन्हें आपस में जोड़ने का लक्ष्य रखती है। यह पोर्टल 13 प्रमुख भारतीय भाषाओं में उपलब्ध है और इसमें 2.5 करोड़ लोगों की मेंबरशिप है। (एजेंसी)


15 - 21 जनवरी 2018

23

ग्राम स्वावलंबन

बंजर भूमि पर बसा मॉडल गांव

एक इंजीनियर ने महज 30 निवासियों को प्रेरित करके बंजर भूमि को सुखद हरित क्षेत्र में बदल दिया

खास बातें

प्रोटो विलेज अपने आत्मनिर्भर मॉडल के कारण मशहूर है लोग वर्षाजल संरक्षण के साथ सौर ऊर्जा का प्रयोग करते हैं प्रोटो विलेज के किसान वैज्ञानिक तरीके से खेती करते हैं

भावना अकेला

मेरिका के पूर्व राष्ट्रपति जॉन एफ केनेडी ने कहा था- ‘एक व्यक्ति भी बदलाव ला सकता है, इसीलिए हर किसी को परिवर्तन लाने के लिए कोशिश करनी चाहिए।’ शायद केनेडी के इस अविस्मरणीय कथन से ही प्रेरित भारत के एक इंजीनियर ने महज 30 निवासियों को प्रेरित करके बंजर भूमि को सुखद हरित क्षेत्र में बदल दिया। बेंगलुरु से 120 किलोमीटर दूर आंध्र प्रदेश के अनंतपुर जिले का छोटे सा गांव, जिसे पहले बहुत कम लोग जानते थे, आज अपने आत्मनिर्भर मॉडल के कारण मशहूर हो गया है। करीब एक दर्जन परिवारों की निवास भूमि इस गांव के लोग ऑर्गेनिक फसल उगाते हैं और पवन ऊर्जा का इस्तेमाल कर अपनी लगभग बिजली की जरूरतों को पूरा करते हैं। गांव के निवासी वर्षाजल का संरक्षण करते हैं और सौर ऊर्जा से चालित पंपों से अपने घरों में पानी की आपूर्ति करते हैं। यही नहीं, गांव में वाई-फाई की सुविधा भी है, जिसका उपयोग करके किसानों को उद्यम के अवसरों की जानकारी मिलती है। गांव में बच्चों के लिए अपना पाठ्यक्रम है, जिसमें रटंत विद्या की जगह उनके कौशल विकास पर ध्यान दिया जाता है। भारत के अधिकांश गांवों में जहां आज भी मूलभूत सुविधाओं का अभाव है वहां आंध्र प्रदेश के दक्षिणी भाग में स्थित इस गांव में देहाती पृष्ठभूमि को लोगों ने जल संरक्षण और बिजली उत्पादन, लैंगिक पूर्वाग्रह के खात्मे और यहां तक की जाति उन्मूलन में मिसाल पेश की है। इन्होंने गांव में दीर्घकालीन विकास का प्रतिमान स्थापित किया है।

चट्टानी भूमि में पानी की कमी के कारण इस अर्ध बंजर भूमि में खेती करना दुष्कर हो गया था। लिहाजा निराश होकर ज्यादातर लोग अपनी रोजी-रोटी के लिए गांव से पलायन कर गए थे। लेकिन, 39 वर्षीय कल्याण अक्कीपेड्डी ने सब कुछ बदल दिया। कल्याण जनरल इलेक्ट्रिक (जीई) के फायनेंस व मार्केटिंग डिवीजन में बड़े पद पर थे, जिसे छोड़कर जानकारी की तलाश में भारत के गांवों के दौरे पर निकले पड़े। इसी क्रम में वह अनंतपुर जिले के टेकुलोडु गांव पहुंचे और यहां के किसानों के साथ मिलकर काम करने लगे। यात्रा के दौरान वह आदिवासियों के सादगी भरे जीवन से प्रभावित और प्रेरित हुए। उन्होंने टेकुलोडु गांव में एक किसान परिवार का प्रशिक्षु बनकर खेती की जानकारी हासिल की, वैज्ञानिक पद्धति से खेती का काम शुरू किया और सौर तथा पवन ऊर्जा जैसे प्राकृतिक संसाधनों का उपयोग किया। उनके प्रयासों से किसान परिवार की मासिक आय 7,000 से 14,000 रुपए मासिक हो गई। 2013 में उन्होंने टेकुलोडु से कुछ किलोमीटर की दूरी पर 12.5 एकड़ का एक प्लॉट खरीदा, जिसका नाम उन्होंने प्रोटो विलेज रखा, प्रोटो विलेज अर्थात एक आदर्श गांव की प्रतिकृति। यह गांव रायलसीमा इलाके में स्थित उनके गृह शहर हिंदूपुर के पास जंगल के अंचल में है। उनकी अवधारणा थी कि एक आदर्श गांव बनाया जाए, जो पूरी तरह स्वायत्त व स्थायी विकास का मानक हो। कल्याण ने बातचीत में कहा, ‘जनजातीय समाज में मैंने जो देखा उससे मैं बहुत ज्यादा प्रेरित हुआ। उनकी अक्लमंदी उन्हें अपने परिवेश के साहचर्य में रहने का अवसर देती है।

अक्कीपेड्डी ने गांववालों के साथ मिलकर वैज्ञानिक पद्धति से खेती करना शुरू किया और महज चार साल में बंजर भूमि को प्रेरणाप्रद प्रतिमान के रूप में बदल दिया

मैंने इस तरह के जीवन को तीन सामान्य सिद्धांत के जरिए दिखाने का फैसला किया जो था- जमीन, वायु और जल के प्रति गहरा सम्मान, एक दूसरे पर निर्भरता और उसके फलस्वरूप आत्मनिर्भरता।’ अक्कीपेड्डी ने गांववालों के साथ मिलकर वैज्ञानिक पद्धति से खेती करना शुरू किया और दीर्घकालिक प्रगति की सोच के साथ कार्य करते हुए उन्होंने महज चार साल में बंजर भूमि को प्रेरणाप्रद प्रतिमान के रूप में बदल दिया। यह गांव आत्मनिर्भर है और यहां पर्यावरण की दृष्टि से दीर्घकालीन अनुकूलता है। साथ ही, समाज में समावेशिकताव सामंजस्य है। अक्कीपेड्डी ने कहा, ‘हम ऐसी जगह पर रहना चाहते हैं जहां ज्ञान बसता हो।’ प्रोटो विलेज के निवासियों ने शुरुआत में वर्षाजल के संग्रहण के लिए निचले इलाके में आठ तालाब बनाए और उसका नेटवर्क तैयार किया। अक्कीपेड्डी ने बताया, ‘हालांकि इलाके में बारिश कम होती है लेकिन 90 मिनट की अच्छी बारिश में सारे तालाब भर जाते हैं और इनमें महीनों तक पानी जमा रहता है, जिसका उपयोग पड़ोस के गांवों के सैकड़ों लोग करते हैं।’ उन्होंने बताया, ‘स्थानीय प्राधिकरणों की ओर से किसानों से तालाब खुदवाने के लिए कहा गया था, लेकिन उन्हें इस कार्य में कोई लाभ नहीं दिखा। जब उन्होंने देखा कि हम किस प्रकार वर्षाजल का संरक्षण करते हैं तो वे इससे प्रेरित हुए और अब प्रशासन के पास तालाब बनाने की मांग बढ़ गई है।’ यह गांव अनूठा है। यहां सामुदायिक रसोई में सभी के लिए एक साथ खाना पकता है। पूरा गांव एक संयुक्त परिवार की तरह रहता है और पुरुष भी बच्चों की देखभाल करते हैं। दूसरे गांव से आकर प्रोटो विलेज में बसी 28 वर्षीय लक्ष्मी ने बताया, ‘दूसरे गांवों में औरतें अपने घरों में बंद रहकर खाना पकाती हैं और बच्चे पालती हैं। यहां मुझे बहुत कुछ सीखने व करने की आजादी है, क्योंकि बच्चों की देखभाल करने के लिए और लोग हैं।’

अक्कीपेड्डी ने बताया, ‘गांव के निवासी फसल, सब्जी, फल और फूल उगाते हैं। कुछ लोग बढ़ई का काम करते हैं तो साबुन, घर बनाने व अन्य संबंधित कार्य करते हैं। शाम में संगीत, नृत्य और नाटक में शामिल होने के साथ-साथ हम बैठकर इस बात पर चर्चा करते हैं कि उस दिन हमने क्या सब सीखा।’ जापान की 'इकीगई' परिकल्पना, जिसका अभिप्राय है 'अस्मिता की चेतना'। यह इस गांव के लोगों के बीच एक प्रचलित दर्शन है और गांव में शिक्षण केंद्र का नाम भी इकीगई है। अक्कीपेड्डी की पत्नी शोभिता केडलाया ने बताया, "शुरुआत में बड़ी उम्र के लोग जो पढ़ना-लिखना नहीं जानते थे, कुछ सीखने में संकोच करते थे। लेकिन, अब हम उन्हें बच्चों के साथ बातचीत करते देखते हैं। यहां सीखने के लिए कोई उम्र या लैंगिक पूर्वाग्रह नहीं है।" शोभिता गांव के लिए पाठ्यक्रम बनाती हैं। इस गांव में बच्चों के लिए शिक्षा की एक पद्धति है, जिसमें कक्षा के अतिरिक्त घर बनाने, अपने शिक्षा केंद्र के नियम बनाने, मवेशियों की देखभाल करने और सॉफ्टवेयर के कोड तक जानने की शिक्षा दी जाती है। गांव के समाज का मकसद नौ मूलभूत जरूरतों की पूर्ति करना है, जिनमें भोजन, जल, आश्रय, वस्त्र, स्वास्थ्य सेवा, ऊर्जा, संपर्क, व्यापार, शिक्षा और आपदा प्रबंधन हैं। इनकी पूर्ति दीर्घकालीन उद्देश्य से की जाती है। प्रोटो विलेज में एक ग्रामीण आर्थिक जोन (आरईजेड) भी है जहां इलाके के किसान व अन्य लोग उद्यम की परिकल्पना पर कार्य कर सकते हैं। अक्कीपेड्डी ने बताया कि गांव में मुर्गी पालन के अलावा बकरी और भेड़ पालन के लिए किसानों को प्रेरित किया गया है। आरईजेड की तरफ से उनको उद्यम करने के लिए मदद दी जाती है। गांव की ओर से अब ग्रामीण युवाओं के लिए फेलोशिप भी दी जाती है, ताकि वे अध्ययन के बाद वापस अपने गांव में काम कर सकते हैं। अक्कीपेड्डी ने कहा, ‘हम देशभर के उन लोगों के लिए सपोर्ट सिस्टम तैयार करना चाहेंगे जो अपने जिलों में प्रोटो विलेज स्थापित करना चाहते हैं।’


24

साइंस एंड टेक्नोलॉजी

15 - 21 जनवरी 2018

पृथ्वी से काफी मिलता जुलता है टाइटन

अंतरिक्ष विज्ञानियों ने शनि के चंद्रमा टाइटन का एक वैश्विक मानचित्र तैयार किया है और पाया कि इसकी भौगोलिक विशेषताएं पृथ्वी से काफी मिलती जुलती हैं

ना

सा के कसीनी अंतरिक्षयान से प्राप्त डेटा का इस्तेमाल करते हुए अंतरिक्ष विज्ञानियों ने शनि के चंद्रमा टाइटन का एक वैश्विक मानचित्र तैयार किया है और पाया कि इसकी भौगोलिक विशेषताएं पृथ्वी से काफी मिलती जुलती हैं। इन मानचित्र में विभिन्न स्रोतों से जुटाई गई टाइटन की सभी स्थलाकृतियों को शामिल किया गया है। इसमें टाइटन पर नए पहाड़ों समेत कई नयी स्थलाकृतियों का खुलासा हुआ। इनमें से कोई पहाड़ 700 मीटर से अधिक की ऊंचाई का नहीं है। यह मानचित्र टाइटन की स्थलाकृतियों की ऊंचाई एवं गहराई का भी वैश्विक चित्रण करता है, जिससे वैज्ञानिक यह पुष्टि कर पाए कि टाइटन

के भूमध्यरेखा क्षेत्र में मौजूद दो स्थान वास्तव में गड्ढे हैं जो संभवत: या तो काफी पुराने हैं, या सूखे हुए समुद्र अथवा क्रायोवोल्कैनिक प्रवाह हैं। इसमें खुलासा हुआ है कि टाइटन के बारे में हमारी पहले की जो समझ थी उसकी तुलना में यह काफी हद तक चपटा और कहीं अधिक समतल है, साथ ही इसके आवरण की मोटाई में भी पहले की तुलना में अधिक भिन्नता है। अमेरिका में कॉरनेल यूनिवर्सिटी से पॉल कोरलाइंस ने कहा, ‘‘कार्य का मुख्य बिंदु था कि वैज्ञानिक समुदाय इस्तेमाल के लिए एक मानचित्र तैयार करें।’’ यह मानचित्र टाइटन के जलवायु का प्रतिरूपण करने वालों, टाइटन के आकार एवं गुरुत्वाकर्षण के अध्ययन एवं अंदरूनी प्रतिरूपों की जांच के साथ जमीन की आकृति के रूपों का अध्ययन करने की इच्छा रखने वालों के लिए महत्वपूर्ण होगा। अनुसंधानकर्ताओं ने यह भी पाया कि टाइटन के तीन समुद्र समान समतल सतह साझा करते हैं। इसका तात्पर्य है कि पृथ्वी के महासागर के समान ही समुद्र स्तर का निर्माण करते हैं। (एजेंसी)

विश्व का सबसे बड़ा सौर ताप संयंत्र

दक्षिण आस्ट्रेलिया में दुनिया का सबसे बड़ा सौर ताप संयंत्र का निर्माण होगा

आईएएनएस

क्षिण आस्ट्रेलियाई सरकार ने दुनिया के सबसे बड़े सौर-ताप विद्युत संयंत्र के निर्माण के लिए मंजूरी दे दी है। समाचार एजेंसी सिन्हुआ की रिपोर्ट के अनुसार, संयंत्र को सौर ऊर्जा कंपनी सोलर रिजर्व द्वारा बनाया जाएगा। इसका निर्माण 2018 में शुरू होगा और इसकी लागत 50.9 करोड़ डॉलर आंकी गई है। दक्षिण आस्ट्रेलिया के कार्यकारी ऊर्जा

मंत्री क्रिस पिक्टन ने कहा कि संयंत्र से 650 निर्माण कार्य और 50 अन्य पदों पर नौकरियां पैदा होंगी। पिक्टन ने कहा कि यह शानदार है कि सोलररिजर्व को इस विश्व की बड़ी परियोजना को आगे बढ़ाने की मंजूरी मिली है जो हमारे विद्युतीकृत रेल, अस्पतालों और स्कूलों तक स्वच्छ, प्रेषणीय नवीकरणीय ऊर्जा की आपूर्ति करेगा। उन्होंने यह भी कहा कि दक्षिण आस्ट्रेलिया तेजी से भंडारण के साथ नवीकरणीय ऊर्जा के विकास का वैश्विक केंद्र बन रहा है। अगले कुछ वर्षों में कई अन्य परियोजनाओं के भी शुरू होने की उम्मीद है। यह संयंत्र आठ घंटे तक ऊर्जा के पूर्ण भंडारण के साथ 90,000 घरों में बिजली आपूर्ति करने में सक्षम होगा।

डूडल के जरिए हरगोविंद खुराना को श्रद्धांजलि

गू

नोबेल पुरस्कार विजेता हरगोविंद खुराना को उनकी 96वीं जयंती गूगल ने किया याद

गल ने अपने डूडल के जरिए भारतीय मूल के अमेरिकी बॉयोकेमिस्ट व नोबेल पुरस्कार विजेता हरगोविंद खुराना का उनकी 96वीं जयंती पर सम्मान किया है, जो डीएनए अणुओं का रासायनिक संश्लेषण करने के लिए पहले वैज्ञानिक के रूप में जाने जाते हैं। खुराना का जन्म रायपुर में हुआ था, जो वर्तमान में पाकिस्तान के कबीरवाला में पड़ता है। वह परिवार के पांच बच्चों में सबसे छोटे थे। उनके पिता गणपत राय खुराना ब्रिटिश भारतीय प्रशासन में चुंगी क्लर्क के रूप में काम करते थे। गांव के करीब 100 लोगों में से सिर्फ खुराना परिवार साक्षर था। खुराना भारत में 1945 तक रहे और फिर लिवरपूल यूनिवर्सिटी से पीएचडी की डिग्री लेने के लिए आगे की पढ़ाई पढ़ने इंग्लैंड चले गए, जिसके

बाद उन्हें भारत सरकार से फैलोशिप मिल गई। खुराना 1952 से 1960 तक यूनिवर्सिटी ऑफ ब्रिटिश कोलंबिया में शिक्षक के रूप में सेवारत रहे, जहां उन्होंने जैविक रूप से दिलचस्प फॉस्फेट एस्टर और न्यूक्लिक एसिड के क्षेत्र में काम शुरू किया, जिसके लिए उन्हें नोबेल पुरस्कार प्राप्त हुआ। वर्ष 1966 में उन्होंने अमेरिका की नागरिकता ले ली और प्रतिष्ठित राष्ट्रीय विज्ञान पदक से भी सम्मानित हुए। वर्ष 1968 में उन्हें शरीर विज्ञान या मेडिसिन में मार्शल डब्ल्यू. नीरेनबर्ग और रॉबर्ट डब्ल्यू हौली के साथ नोबेल पुरस्कार मिला। नवंबर 2011 में अमेरिका के मेसाच्युसेट्स में खुराना का 89 वर्ष की उम्र में देहांत हो गया। उनके परिवार में उनके बच्चे जूलिया और डेविल हैं। (एजेंसी)

गुप्त पेलोड के साथ जुमा रवाना

स्पेस एक्स ने अंतरिक्ष यान 'जुमा' को पृथ्वी की कक्षा में स्थापित किया

ने नए साल की रहस्यमय शुरुआत स्पेसएक्स की है और एक सरकारी अंतरिक्ष यान 'जुमा'

को पृथ्वी की कक्षा में रवाना किया है। यह अंतरिक्ष यान किस तरह का पेलोड लेकर गया है, इसके बारे में जानकारी नहीं दी गई है। स्पेसएक्स का फॉल्कन 9 रॉकेट एक महीने की देरी के बाद अमेरिका के फ्लोरिडा के केप कनावेरल एयर फोर्स स्टेशन से रवाना हुआ, जिसके पेलोड की जानकारी गुप्त रखी गई है। जुमा ने इस पेलोड को कहां स्थापित किया है, इसकी जानकारी भी गुप्त रखी गई है। यहां तक

अमेरिकी सरकार के कौन से विभाग या मंत्रालय ने इस अभियान के लिए धन दिया है, इसकी जानकारी भी कंपनी ने नहीं दी है। स्पेसएक्स एक अंतरिक्ष अन्वेषण कंपनी है, जिसके प्रमुख टेस्ला के मुख्य कार्यकारी अधिकारी एलन मस्क हैं। कंपनी ने पहले पिछले नवंबर में जुमा अभियान को निर्धारित किया था। नासा के मुताबिक, जुमा ने लो-अर्थ ऑर्बिट में अपने पेलोड को स्थापित कर दिया। धरती की सतह से 1,200 मील की ऊंचाई से कम की कक्षा को लो-अर्थ ऑर्बिट कहा जाता है। (एजेंसी)


15 - 21 जनवरी 2018

विविध

'सगुन' के साथ करें कमाई

25

'सगुन' ऐप्प पारस्परिक संपर्क का वन स्टॉप समाधान के साथ यूजर्स को कमाई करने का मौका भी देता है

आईएएनएस

जकल सोशल नेटवर्किंग ऐप्प का इस्तेमाल अपने परिजनों और मित्रों से जुड़े रहने के लिए हर कोई करता है। लेकिन प्रत्येक सोशल नेटवर्किंग एप की अपनी सीमाएं होती हैं। अलग-अलग ऐप्स पर लोगों का अलग-अलग समूह होता है। इसे देखते हुए नया 'सगुन' ऐप्प लॉन्च किया गया है, जो पारस्परिक संपर्क का वन स्टॉप समाधान मुहैया कराता है। साथ ही यह यूजर्स को कमाई करने का मौका भी देता है। 'सगुन' ऐप्प लॉन्च करते हुए अभिनेत्री श्रद्धा कपूर ने कहा, ‘मैं इस खोजपरक प्रोजेक्ट से जुड़कर बहुत ज्यादा उत्साहित हूं, जो कि व्यस्त जीवनशैली से परेशान आज के लोगों की जरूरतों को पूरा करते हैं। मेरा मानना है कि 'सगुन' दुनिया भर में दोस्तों एवं सगे-संबंधियों से सहजता से जुड़ने का एक आसान तरीका है। मुझे भरोसा है कि यह एप लोगों को परिजनों एवं दोस्तों से मजबूत संबंध बनाने और बहुत कुछ करने में मदद करेगा।’ सोशल स्टार्टअप 'सगुन' ने एक बयान में कहा कि नया ऐप्प परिजनों, मित्रों और सहकर्मियों के बीच घनिष्ठता लाने में मदद करता है और जब वे आपस में घुलते मिलते हैं, तो कमाते भी हैं। यह

फीचर इसे दूसरे सोशल मीडिया मंचों से अलग करता है। यह कंपनी के उद्देश्य कनेक्ट (जुड़ना), शेयर (साझा करना) और अर्न (कमाना) को प्रमाणित करता है। ऐप्प के लॉन्च की घोषणा के साथ ही 'सगुन' ने डेबिट या क्रेडिट कार्ड के जरिए कंपनी के तीसरे दौर की फंडिंग में निवेश करने हेतु

माई डे

भारतीय उपभोक्ताओं को आमंत्रित किया है। 'सगुन' के संस्थापक और आर्किटेक्ट गोविंद गिरी ने कहा, ‘हम 'सगुन' ऐप्प की घोषणा कर रोमांचित हैं। हमने गौर किया है कि मौजूदा सोशल प्लेटफॉम वैश्विक यूजर्स की जरूरतें पूरी नहीं कर पाते और हमें पूरा भरोसा है कि इस शून्य को भरने

सगुन की खासियत

इस मंच पर अपनी समय-सारणी, कार्य करने की सूची और उनको बार-बार याद दिलाने की व्यवस्था कर आप अपनी उत्पादकता बढ़ा सकते हैं और अपने जीवन को सरल बना सकते हैं। इन गतिविधियों को अपने मित्रों से साझा कर मिलने का समय निर्धारत करें।

मूड टॉक

मूड टॉक एक चैट फीचर है, जो यूजर्स को शब्दों के बदले 'मूड' यानी कि 'मिजाज' से संवाद की अनुमति देता है। यह उस समय आप कैसा महसूस कर रहे है, इसकी अभिव्यक्ति करने की सुविधा

देगी। यूजर्स पहले से ही तैयार मूड लगा सकते हैं, जैसे कि खुशी, दुख, बीमार, वगैरह और 24 घंटे बाद तय मूड खुद-ब-खुद हट जाएगा।

सीबेट

सीबेट यानी कि गोपनीयता, जो यूजर्स को विभिन्न विचारों और समुदायों के अंदर गोपनीयता बनाए रखते हुए सीखने, ढूंढ़ने और अनुभव प्राप्त करने की अनुमति देती है। यूजर्स अपने राज सार्वजनिक कर सकते हैं, लोगों से सलाह भी पा सकते हैं, लेकिन कोई उन्हें पकड़ नहीं पाएगा। यहां तक कि वे एक-दूसरे को गोपनीय संदेश भी भेज सकते हैं, जो पढ़ने के बाद मिट जाएगा।

हरे कछुए हो सकते हैं विलुप्त

समुद्र के बढ़ते तापमान के कारण ग्रेट बैरियर रीफ में पाए जाने वाले हरे कछुए के विलुप्त होने का खतरा मंडराने लगा है

स्ट्रेलिया के ग्रेट बैरियर रीफ में मौजूद हरे रंग के समुद्री कछुए समुद्र के बढ़ते तापमान के कारण विलुप्त हो सकते हैं। अमेरिका के राष्ट्रीय समुद्री और वायुमंडलीय प्रशासन (एनओएए) और पर्यावरण एवं विरासत संरक्षण विभाग के आस्ट्रेलियाई वैज्ञानिकों द्वारा किए गए शोध में पाया

गया कि लगभग दो दशकों से हरे रंग के नर कछुओं की संख्या तेजी से घट रही है। ग्रेट बैरियर रीफ के ठंडे दक्षिणी क्षेत्रों में हरे रंग के मादा कछुओं की संख्या 65 से 69 प्रतिशत के बीच है, जबकि रीफ के गर्म उत्तरी सिरे में हरे रंग के मादा कछुओं की आबादी 87 से 99.8 प्रतिशत

के बीच है। एनओएए में जैविक समुद्री शोधकर्ता कैमरन एलन ने कहा कि समुद्री कछुए का लिंग उस तापमान पर निर्भर करता है, जिस पर अंडे का विकास होता है और यह देखते हुए कि गर्म तापमान

'सगुन' दुनियाभर में दोस्तों एवं सगेसंबंधियों से सहजता से जुड़ने का एक आसान तरीका है – श्रद्धा कपूर में 'सगुन' मदद करेगा।’ उन्होंने कहा, ‘हमारे सोशल ऐप्प इस तरह से तैयार किए गए हैं कि ये यूजर्स के रोजमर्रा के जीवन में कुछ न कुछ जोड़ते हैं। यूजर्स 'सगुन' परिवार का एक सदस्य है। कंपनी जो कुछ कमाएगी, उसका लाभांश उन्हें मिलेगा। हम सोशल स्मार्टकार्ड लांच करने की भी योजना बना रहे हैं, जो यूजर्स की खरीदारी व उपहार देने संबंधी जरूरतें पूरी करेगा और ये सब करते वक्त वे वित्तीय पुरस्कार भी अर्जित करेंगे। इससे सोशल गिफ्टिंग की अवधारणा बदलेगी और लोगों के संबंधों में सुधार आएगा। वे अपने प्रियजनों के साथ बिताए गए हर पल को ताउम्र याद रखेंगे।’ उन्होंने बताया कि सगुन एक ऐसा संसार रचने को तैयार है, जहां हर कोई सामाजिक होने से पैसे कमाएगा। कंपनी सोशल मीडिया के मुद्रीकरण का मार्ग प्रशस्त करना चाहती है, ताकि उसके यूजर्स अपने चहेतों और मित्रों से जुड़ने के दौरान तथा रोजमर्रा की जिंदगी के अनुभव बांटने के साथ वित्तीय पुरस्कार भी प्राप्त करें। में अधिक मादाएं पैदा होती हैं। हम चिंतित हैं कि जलवायु परिवर्तन के कारण ही यह प्रभाव पड़ रहा है। एलन ने कहा कि समुद्री कछुओं के जन्म के लिए उपयुक्त तापमान 29 डिग्री सेल्सियस है। इस तापमान पर 50 प्रतिशत नर और 50 प्रतिशत मादा का जन्म होता है। एलन ने आगे कहा कि लगभग एक से दो डिग्री सेल्सियस का अंतर भी सभी मादाओं के लिए खतरा हो सकती है और शायद इससे उनकी भ्रूणिक मृत्यु भी हो सकती है। एलेन के अनुसार, ग्रेट बैरियर रीफ का तापमान औसत तापमान से अधिक है। (आईएएनएस)


26

परंपरा

15 - 21 जनवरी 2018

सर्दियों में अब नहीं मिलते किस्सागो

कश्मीर के हाथ से जैसे किस्सागोई की विरासत फिसलती जा रही है। हड्डियों को जमा देने वाली ठंड में घाटी के बच्चों को खासकर यह गर्म रखा करती थी

ये

शेख कय्यूम

वे कहानियां थीं, जो बच्चों को सुनाई जाती थीं। सर्द रातें जितनी लंबी और स्याह होती जाती थीं, उतनी ही इन कहानियों का रहस्य पैना होता जाता था। लेकिन, अब यह गुजरे जमाने की बात होती जा रही है। हाड़ कंपा देने वाली ठंड में बड़े-बुजुर्ग, माएं सुनाती थीं बर्फीले आदमी की कहानी, उन चुड़ैलों की कहानियां जो बच्चों को उठा ले जाती हैं, शैतानों से लड़ते राजकुमारों की कहानियां और फिरदौसी की दसवीं सदी के ईरानी पहलवान रुस्तम और उसके बेटे सोहराब की कहानी..अब कश्मीरी इन सभी की कमी महसूस कर रहे हैं। टेलीविजन और थिएटर से आज के समय में मिलने वाला मनोरंजन शायद कभी भी पूरी तरह से

त्तर प्रदेश सरकार ने 'स्कूल चलो अभियान' की तर्ज पर युवाओं को पॉलिटेक्निक से जोड़ने के लिए 'पॉलिटेक्निक चलो अभियान' की शुरुआत की है। अभियान का मकसद युवाओं को पॉलिटेक्निक स्कूलों और उनके फायदे के बारे में बताने के साथसाथ उन्हें रोजगार लायक तैयार करना है। अभियान के जरिए अधिकारियों का दावा है कि इससे छात्रों को पॉलिटेक्निक स्कूलों तक लाने में बड़ी मदद मिलेगी। व्यावसायिक एवं प्राविधिक शिक्षा विभाग के प्रमुख सचिव एवं सूबे के वरिष्ठ आईएएस अधिकारी भुवनेश कुमार ने बताया कि सरकार पहली बार स्कूल चलो अभियान की तर्ज पर पॉलिटेक्निक चलो अभियान चला रही है। इसकी शुरुआत हो चुकी है। यह फरवरी के पहले सप्ताह तक चलेगा। पॉलिटेक्निक चलो अभियान के बारे में भुवनेश कुमार ने बताया कि दरअसल पॉलिटेक्निक शिक्षा को लेकर

उस कला की जगह न ले सके, जो बिस्तर पर सुनाई जाने वाली कहानियों की शक्ल में कश्मीरियों को सदियों तक बहलाती रहीं। बात छिड़ते ही हबीबुल्ला को एकदम से अपना बचपन याद आ गया। उन्होंने कहा कि नानी-दादी जब उन चुड़ैलों की कहानी सुनाती थीं, जो जाड़े के मौसम में बच्चों को उठा ले जाती हैं और पहाड़ों की गुफाओं में बंद कर देती हैं, तो फिर शायद ही कोई बच्चा ऐसा होता था जो अंधेरी रात में निकलने की हिम्मत जुटा सके। हबीबुल्ला ने कहा कि तब जिंदगी में सहूलियतें आज के मुकाबले कम थीं, लेकिन सुकून ज्यादा था।

उन्होंने कहा कि जब मैं छोटा था, उस वक्त घाटी के किसी गांव में बिजली नहीं थी। मां लकड़ी से चूल्हा जलाती थी और हम उसकी गर्मी में अपनी मां के साथ बैठ जाते थे। कोई दिया, डिबरी या लालटेन ही रोशनी का सहारा हुआ करती थी। अधिकांश घरों में माएं और नानी-दादियां एक से बढ़कर एक किस्से सुनाती थीं कि कैसे राक्षसों से लड़कर किसी राजकुमार ने राजकुमारी को रिझाया था। हबीबुल्ला ने कश्मीर की उस परंपरा को भी याद किया जब चिल्ला कलां (21 दिसंबर से शुरू होने वाले सबसे भीषण जाड़ों वाले 40 दिन) में कहानियां सुनाने वाले गांवों में आया करते थे। इन कहानियों को सुनाने वालों का आना अपने आप में एक बड़ी बात हुआ करती थी। आमतौर से गांव का सबसे संपन्न परिवार इनकी मेजबानी करता था। हबीबुल्ला ने बताया कि रात के खाने के बाद, करीब-करीब पूरा गांव ही किस्सा सुनाने वाले के मेजबान के घर इकट्ठा हो जाता था। सभी लोगों को कहवा पिलाया जाता था। वह पहले एक छोटी कहानी से शुरू करता, कि कैसे एक राजकुमार लकड़ी के घोड़े पर बैठकर दूर राक्षस की गुफा से राजकुमारी को छुड़ाता है। उसके बाद वह फिरदौसी के फारसी में लिखे महाकाव्य शाहनामा से रुस्तम और उसके बेटे सोहराब की दर्द भरी कहानी सुनाता था। ये कहानियां हबीबुल्ला ने करीब सत्तर साल पहले सुनी थीं। उन्हें आज भी यह सब याद हैं। उन्होंने कहा कि बात सिर्फ मनोरंजन की नहीं होती थी, कहानियों से नैतिक सीख भी मिलती थी कि क्या सही है और क्या गलत। उन्होंने बताया कि कहानियां सुनाने वाला

हबीबुल्ला उन तमाम कश्मीरियों में से एक हैं जिनका मानना है कि अपने अतीत से ताल्लुक तोड़ने से एक खुशहाल जिंदगी नहीं मिला करती

'पॉलिटेक्निक चलो अभियान'

युवाओं को रोजगार के लिए तैयार करने के लिए उत्तर प्रदेश सरकार ने 'पॉलिटेक्निक चलो अभियान' की शुरूआत की है बच्चों के भीतर जागरूकता का आभाव है। सामान्यता यदि किसी छात्र को पॉलिटेक्निक में प्रवेश लेना होता है तो वह पहले 10वीं के बाद इंटरमीडिएट पास करता है और फिर दूसरी चीजों में जुड़ जाता है। दो तीन साल का समय व्यतीत करने के बाद फिर अचानक उसका झुकाव पॉलिटेक्निक की तरफ होता है। तब तक काफी देर हो चुकी होती है। उन्होंने कहा कि हमारी कोशिश है कि पॉलिटेक्निक चलो अभियान के माध्यम से स्कूलों में जाकर बच्चों को पॉलिटेक्निक के बारे में बताया जाए। इसके लिए पॉलिटेक्निक विभाग की

टीम हर जिलों में स्थित हाईस्कूल और इंटरमीडिएट स्कूलों में जाकर इस अभियान के बारे में बच्चों को बताएगी। इसमें जिलाधिकारियों से भी सहयोग करने का अनुरोध किया गया है। अधिकारियों से कहा गया है कि पॉलिटेक्निक की टीम स्कूलों का दौरा करेगी और विभाग की तरफ से चलाए जा रहे अभियान के बारे में छात्रों को बताएगी ताकि वे 10वीं के बाद ही पॉलिटेक्निक में प्रवेश लेने के लिए प्रेरित हो सकें। इससे सरकारी पॉलिटेक्निक विद्यालयों में छात्रों की संख्या में इजाफा होगा और समय रहते छात्रों को

खास बातें

किस्सागोई की कश्मीर में एक खास परंपरा रही सर्द रातों में किस्सों का रोमांचक सहारा कश्मीर में अब खत्म हो रही है यह परंपरा अपने कटे-फटे थैले में कहानियों की किताबें रखे रहता था। अगर सुनने वालों में से कोई कहानी की प्रमाणिकता पर सवाल उठाता था, तो वह झट से इन किताबों को पेश कर देता था। कश्मीर की पुरानी पीढ़ी के लोग अपने वक्त को नहीं भूल पाते। उनका कहना है कि आज का वक्त अपनी तमाम सुविधाओं के बावजूद अतीत की मासूमियत का मुकाबला नहीं कर सकता। हबीबुल्ला ने बताया कि तब बर्फ भी ज्यादा पड़ती थी। सभी रास्ते बंद हो जाते थे। गांव कई महीनों तक अलगथलग पड़ जाते थे। गांव ही दुनिया हो जाता था। लेकिन, हम पहले से इंतजाम रखते थे। इन हालात में हम आत्मनिर्भर रहते थे। आज कुछ भी कम पड़े, तो बाजार से ही मिलता है। तब जिंदगी में सुकून था। किसी को नींद नहीं आने या डिप्रेशन की बीमारी नहीं होती थी। हरी घास पर वो नींद आती थी, जो आज मखमल के बिस्तर पर नहीं आती। हबीबुल्ला उन तमाम कश्मीरियों में से एक हैं जिनका मानना है कि अपने अतीत से ताल्लुक तोड़ने से एक खुशहाल जिंदगी नहीं मिला करती। प्रशिक्षित किया जा सकेगा। प्लेसमेंट की व्यवस्था के बारे में पूछने पर उन्होंने कहा कि विभाग इसका भी पूरा ख्याल रखेगा। इसके लिए विभाग ने अलग से एक रणनीति तैयार की है। इसके तहत हम सरकारी पॉलिटेक्निक विद्यालयों को एक एक लाख रुपए देंगे जो बाहर से कम्पनियों को लाने पर खर्च कर सकेंगे। उन्होंने बताया कि विभाग की तरफ से पहले 10 पॉलिटेक्निक विद्यालयों को प्रयोग के तौर पर एक-एक लाख रुपये दिए जाएंगे, लेकिन यदि इसके अपेक्षित परिणाम मिले तो इसे और विस्तृत स्तर पर चलाया जाएगा और इसका लाभ और स्कूलों को भी दिया जाएगा। भुवनेश कुमार ने हालांकि स्पष्ट तौर पर कहा कि इसमें निजी पॉलिटेक्निक विद्यालयों को शामिल नहीं किया गया है। वह अपने स्तर पर यह रकम खर्च कर प्लेसमेंट का इंतजाम कर सकते हैं। (आईएएनएस)


15 - 21 जनवरी 2018

27

व्याख्यान

शंकर स्मृति व्याख्यान-2017

देश की अर्थव्यवस्था सुदृढ़ हो रही हैः गोपाल कृष्ण अग्रवाल

पूर्व सांसद और प्रसिद्ध साहित्यकार डॉ. शंकर दयाल सिंह की स्मृति में नई दिल्ली में पिछले दिनों व्याख्यान का आयोजन किया गया

पू

डॉ. अशोक कुमार ज्योति

र्व सांसद और साहित्यकार डॉ. शंकर दयाल सिंह की स्मृति में उनके जन्मदिवस के अवसर पर 27 दिसंबर 2017 को नई दिल्ली के इंडिया इंटरनेशनल सेंटर में शंकर स्मृति व्याख्यान-2017 का आयोजन किया गया। व्याख्यान का विषय था,‘भारतीय अर्थव्यवस्थाः परिदृश्य एवं चुनौतियां’ और मुख्य वक्ता थे प्रसिद्ध अर्थशास्त्री एवं बैंक ऑफ बड़ौदा के निदेशक गोपाल कृष्ण अग्रवाल। कार्यक्रम के मुख्य अतिथि थे सांसद राजीव प्रताप रूडी, विशिष्ट अतिथि थीं प्रसिद्ध कवयित्री डॉ. सरोजनी प्रीतम और कार्यक्रम की अध्यक्षता की प्रसिद्ध शिक्षाविद् एवं डीपीएस सोसाइटी के पूर्व अध्यक्ष नरेंद्र कुमार ने। कार्यक्रम के आरंभ में रश्मि सिंह ने मंचस्थ अतिथियों और सभागार में उपस्थित श्रोताओं का स्वागत किया। भाजपा सांसद राजीव प्रताप रूडी ने डॉ. शंकर दयाल सिंह के कर्तृत्व के बारे में कहा कि उन्होंने न केवल 30-32 किताबें हिंदी में लिखीं, बल्कि वे जीवन-भर देश और दुनिया में हिंदी के लिए कार्य करते रहे। उन्होंने कहा कि देश के अनेक भागों में हिंदी का प्रचलन है, किंतु अभी भी कुछ भागों में इसकी कमी खलती है। इसके लिए प्रयास किया जाना चाहिए, क्योंकि पूरे देश में संपर्कभाषा के रूप में हिंदी ही सबसे उपयुक्त है। उन्होंने कहा कि कार्यक्रम का विषय बहुत ही प्रासंगिक है। कार्यक्रम की विशिष्ट अतिथि प्रसिद्ध कवयित्री

और ‘हंसिका’ विधा को प्रचलित करनेवाली लेखिका डॉ. सरोजनी प्रीतम ने अपने हंसाने वाले अंदाज में ही अपना वक्तव्य शुरू किया। उन्होंने कहा कि जब हम अर्थव्यवस्था के परिदृश्य और चुनौतियों की बात करते हैं तो मुझे शंकर दयाल सिंह जी की इस मायने में याद आई कि हम जो लेखक हैं, वो अर्थ-व्यवस्था करते हैं, चुनौतियों का सामना करते हैं। शब्दों की शल्यक्रिया शंकर दयाल सिंह जी बहुत खूबसूरती से किया करते थे। उन्होंने डॉ. शंकर दयाल सिंह के साथ बिताए अनेक संदर्भों की चर्चा की और हिंदी तथा हिंदी-साहित्यकारों के प्रति उनके अवदान को रेखांकित किया। उनकी लेखनी के संबंध में बताते हुए उन्होंने कहा कि शंकर दयाल जी ने अनुभूति राजनीतिक जीवन से ली। ‘भारतीय अर्थव्यवस्था परिदृश्य एवं चुनौतियां’ विषय पर अपना व्याख्यान देते हुए गोपाल कृष्ण

सरकार हेल्थ इंश्योरेंस को बढ़ावा दे रही है, इससे देशवासियों के स्वास्थ्य को ठीक रखने में मदद मिलेगी और अर्थव्यवस्था में सुधार होगा

अग्रवाल ने कहा कि वर्तमान समय में भारत की अर्थव्यवस्था अच्छी हुई है तथा यह और भी सुदृढ़ होती जा रही है। उन्होंने भारतीय अर्थव्यवस्था में कृषि और उद्योग के महत्व को रेखांकित करते हुए उनके विविध आयामों का सार्थक उल्लेख किया। उन्होंने आय में असमानता, कृषि से उपयुक्त आय, औद्योगिक क्षेत्रों द्वारा मांग के अनुरूप निर्माण और व्यवस्थित वितरण, रोजगार की सीमितता इत्यादि समस्याओं को अर्थव्यवस्था की चुनौतियों के रूप में बताया। उन्होंने कहा कि वर्तमान सरकार ने इस तरह की चुनौतियों से निपटने के लिए अनेक कदम उठाए हैं, जिनमें जीएसटी और स्टार्टअप को बढ़ावा जैसे निर्णय काफी कारगर साबित हो सकते हैं। उन्होंने कहा कि भूमि-अधिग्रहण को ठीक करने की भी आवश्यकता है, जो कि सरकार के ध्यान में है। गोपाल कृष्ण अग्रवाल ने कहा कि वर्तमान सरकार हेल्थ इंश्योरेंस को बढ़ावा दे रही है, इससे देशवासियों के स्वास्थ्य को ठीक रखने में मदद मिलेगी और अर्थव्यवस्था में सुधार होगा। सरकार द्वारा पूरे देश के इन्फ्रास्ट्रक्चर के क्षेत्र में किए जा रहे अनेक कार्यों को एक सकारात्मक पहलू के रूप में देखते हुए उन्होंने कहा कि तकनीकों का प्रयोग करते हुए देश की अर्थव्यवस्था को उत्तरोत्तर सुदृढ़ किया जा सकता है। उन्होंने सरकार के अनेक उपायों की चर्चा की और वर्तमान अर्थव्यवस्था को संतोषजनक बताया। प्रसिद्ध शिक्षाविद् एवं डीपीएस सोसाइटी के पूर्व अध्यक्ष नरेंद्र कुमार ने कहा कि डॉ. शंकर दयाल सिंह के राजनीतिक व्यक्तित्व और उनके साहित्यिक योगदान को देखते हुए ऐसा नहीं कहा जा सकता कि वे सिर्फ हिंदी के व्यक्ति थे, बल्कि उनका लेखन वैश्विक है। उनके विचार आज भी प्रासंगिक हैं और वे सबके लिए प्रेरणादायक हैं।

खास बातें डॉ. सिंह ने लेखन के साथ हिंदी के विकास का काम किया शब्दों की शल्यक्रिया में माहिर थे शंकर दयाल सिंह जी डॉ. सिंह ने अर्थव्यवस्था पर दिया था आखिरी व्याख्यान बिहार, दिल्ली और देश के अन्य भागों से पधारे डॉ. शंकर दयाल सिंह के करीबी मित्रों और पारिवारिक सदस्यों के साथ अनेक समाजसेवियों, साहित्यकारों एवं पत्रकारों ने अपनी उपस्थिति से शंकर स्मृति व्याख्यान-2017 समारोह को सफल बनाया। कार्यक्रम का संचालन डॉ. शैली भाषांजलि ने किया। धन्यवाद-ज्ञापन किया डॉक्टर सिंह के सुपुत्र रंजन कुमार सिंह ने। उन्होंने स्मरण दिलाया कि डॉ. शंकर दयाल सिंह ने सन 1995 में अपना आखिरी व्याख्यान ‘अर्थव्यवस्था’ पर ही दिया था और आज का यह व्याख्यान उसी की अगली कड़ी के रूप में देखा जाएगा। उन्होंने अपने छोटेसे वक्तव्य को बहुत ही आत्मीय ढंग से प्रस्तुत किया और सभागार का दिल जीत लिया। उनका यह अंदाज बरबस ही डॉ. शंकर दयाल सिंह के व्यक्तित्व के एक अनमोल पक्ष ‘आत्मीयतापूर्ण व्यवहार’ की याद को ताजा कर गया।


28

दिलचस्प

15 - 21 जनवरी 2018

रंग बदलने में माहिर मछली

अब बनाइए अपनी 14 फीट ऊंची मूर्ति जैसी तस्वीरें

इंडोनेशिया के आस पास पीई जाने वाली फ्रॉगफिश अपना रंग ऐसे बदलती हैं कि आपकी आंखें धोखा खा जाए

ल पल में रंग बदलने में माहिर गिरगिट के बारे में तो सब को पता है, लेकिन समुद्र में एक ऐसी मछली है जो गिरगिरट की तरह अपना रंग बदलती है। इसका नाम है 'हेयरी फ्रॉगफिश'। यह समुद्र के तल में रेत, मूंगा-चट्टानों आदि में छिपने के लिए आमतौर पर 330 फीट की गहराई में रहती है।

इंडोनेशिया के आस पास इंडो-पेसिफिक क्षेत्र में इसकी अनेक प्रजातियां पाई जाती हैं। फ्रॉगफिश की लंबाई एक से पंद्रह इंच तक होती है। इसके पूरे शरीर पर बालों की तरह दिखने वाले कांटे होते हैं, जिन्हें 'स्पिन्यूल' कहा जाता है। स्पिन्यूल इसे वातावरण के हिसाब से रंग बदलने में सहायता करते हैं। इसके छोटे शरीर के बीच में 18 से 23 कशेरुकाएं होती हैं, जिनके बीच ऊपर की ओर मुंह होता है। यह कभीकभार जरूरत पड़ने पर ही तैरती हैं। पेल्विक पंखों के डिजाइन इनके चलने की स्थिति को दर्शाते हैं, जो असल में जोड़ों की तरह पैर की उंगलियां होती हैं। इसकी कुछ प्रजातियां खतरे को भांप कर पानी को अपने अंदर भरकर खुद को फुला लेने में माहिर होती हैं। रंग बदलने पर यह पीली, भूरी, हरी, काली और लाल भी हो सकती है। यह अपनी ही प्रजाति की मछलियों का शिकार करती है। (एजेंसी)

रहस्यमय तारे पर क्या सचमुच हैं एलियन?

ब्रह्मांड के सबसे रहस्यमयी तारे पर एलियन के होने की संभावना को वैज्ञानिकों ने खारिज नहीं किया

वै

ज्ञानिकों का कहना है कि टैबी स्टार ब्रह्मांड का सबसे रहस्यमयी तारा है और यह धूल कणों की वजह से असामान्य ढंग से मंद और उज्जवल होता है। साथ ही वैज्ञानिकों ने इस सिद्धांत को खारिज कर दिया कि इस रहस्यमयी अस्थिर तारे के पीछे एलियंस नहीं है। केआईसी 8462852 या टैबी स्टार सूर्य की तुलना में लगभग 50 प्रतिशत बड़ा है और 1000 डिग्री अधिक गर्म है। यह अन्य तारों की तरह ही मंद और तेज रूप से चमकता रहता है। इस तारे के असामान्य प्रकाश को कई सिद्धांतों से समझा

गया है, जिसमें एक एलियन मेगास्ट्रक्जर भी शामिल है, जो स्टार की कक्षा में है। अमेरिका के लुसियाना स्टेट यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर ताबेथा बोयाजिआन ने कहा कि स्टार के मध्यम और तेज चमकने का कारण ज्यादा संभव धूल हो सकता है। नए आंकड़ो से पता चलता है कि प्रकाश के विभिन्न रंग अलग-अलग तीव्रता से अवरुद्ध किए जा रहे हैं। इसीलिए हमारे और तारे के बीच जो कुछ भी गुजर रहा है, वह अपारदर्शी नहीं है। (एजेंसी)

सेल्फी का जमाना अब जल्द ही खत्म होने वाला है, क्योंकि 'न्यू आर्ट इंस्टॉलेशन' नामक नई तकनीक के सहारे सेल्फी को 14 फीट ऊंची 3डी मूर्ति में बदला जा सकता है

हियो के कोलंबस में 'न्यू आर्ट इंस्टॉलेशन' नामक तकनीक के जरिए एक साधारण से फोन से ली गई सेल्फी को 14 फीट ऊंची 3डी मूर्ति में बदला जा सकता है। इस आर्ट इंस्टॉलेशन को स्थायी तौर पर कोलंबस कंवेंशन सेंटर में स्थापित

किया गया है। इसमें कोलंबस कॉलेज ऑफ आर्ट एंड डिजाइन के सहायक प्राध्यापक मैथ्यू मॉर का अहम योगदान है। इस आर्ट इंस्टॉलेशन को लगाने का खर्च करीब 1.4 मिलियन डॉलर है। इसे बनाने में 3,000 अत्यधिक चमकीली एलईडी पट्टियों प्रयोग किया गया है, जो सिर के आकार की मूर्ति के चारों ओर नाक सहित बखूबी से लिपटी हुई हैं। यहां आने वाले दर्शक इसकी सहायता से विशाल सेल्फी का अनुभव कर सकते हैं। इसके लिए वहां बने फोटो बूथ में जाना होता है। 29 हाई-डेफिनेशन कैमरों की मदद से आपकी तस्वीरें ली जाएंगी, जिनसे आपकी एक उम्दा 3डी सेल्फी को इस सिर के माध्यम से प्रस्तुत किया जाएगा। इसे आप फोन से कनेक्ट कर सेल्फी ले सकते हैं। इसमें एक लाख हेडशॉट्स स्टोर किया जा सकता है। (एजेंसी)

हर वक्त गुनगुनाती है हमारी धरती

हमारी धरती न सिर्फ गुनगुनाती है, बल्कि हर पल कांपती भी है। अब वैज्ञानिक इस रहस्य को उजागर करने की दिशा में सक्रिय हैं

वै

ज्ञानिक धीरे-धीरे धरती की रहस्यमय गुनगुनाहट का रहस्य सुलझा रहे हैं। अब तक माना जाता था कि धरती ठोस और स्थित है। पर हालिया शोधों में खुलासा हुआ है कि धरती हर वक्त कांपती, सिकुड़ती और फैलती रहती है। हम भी इसके साथ हिलते रहते हैं। समुद्री लहरों का कारण भी उसकी तली की कंपकंपाहट है। कोलंबिया यूनिवर्सिटी के भूकंप वैज्ञानिक स्पैर वेब धरती हर वक्त घंटी की तरह बजती रहती है। हालांकि पैरों की नीचे इसकी कंपकंपाहट को महसूस करना और इसकी धीमी गुनगुनाहट को कान से सुनना नामुमकिन है, क्योंकि यह किसी पुराने टीवी की आवाज को दस हजार गुना धीमा करने जितनी आवाज करती है। वेब के मुताबिक धरती की यह गुनगुनाहट हर जगह है। अंटार्कटिका और अल्जीरिया में इन अल्ट्रा लो फ्रिक्वेंसी को रिकार्ड किया गया है। अमेरिकी जियोफिजिकल यूनियन ने घोषणा की है कि हिंद महासागर की तलहटी में भी इस फ्रिक्वेंसी को रिकार्ड किया गया।

कारण पता नहीं

वैज्ञानिकों को धरती की इस कंपकंपी और आवाज का कारण पता नहीं है। कुछ थ्योरी में समुद्री लहरों

के टकराव, समुद्र की कंपकंपाहट और वातावरण में गति को इसका कारण बताया जाता है। अभी वैज्ञानिक इन आवाजों को सिर्फ सुनने में लगे हैं। हर बार यह ज्यादा साफ होती जा रही है। हालांकि इसकी फ्रिक्वेंसी अलग-अलग होती है।

भूकंप के बाद महीनों कांपती धरती

वेब के मुताबिक 2011 में जापान में आए भयानक भूकंप के बाद पूरी धरती एक महीने से ज्यादा समय तक हिलती रही। धरती के दूसरे हिस्से तक में इसका असर रहा। पूरी दुनिया कुछ सेंटीमीटर ऊपर और नीचे हो रही थी। हालांकि यह सब इतना धीमा था कि लोगों को कुछ महसूस नहीं हुआ। यह भूकंपीय तरंग 2 से 7 मिलीहर्ट के बीच में होती है। यह मनुष्य की सुनने की क्षमता से हजारों गुना धीमी होती है। (एजेंसी)


15 - 21 जनवरी 2018

29

कही अनकही

राज कपूर आए सिमी ग्रेवाल के घर

अपनी नायिकाओं को लेकर राज कपूर कितने सजग रहते थे, इसका प्रमाण इस बात से मिलता है कि वे सिमी ग्रेवाल को काम देने उनके घर गए

सि

आनंद भारती

मी ग्रेवाल उस दिन हैरान-परेशान हो गई, जब देखा कि महान फिल्मकार राज कपूर उनके घर तक चलकर आए। उन दिनों वे ‘मेरा नाम जोकर’ बनाने की तैयारी कर रहे थे। दुनिया जानती है कि राज जी की फिल्मों में बाकी जितनी खासियत हो, लेकिन वे संगीत और हीरोइनों के मामले में कोई समझौता नहीं करते थे। खासकर वे अपनी हीरोइनों को इस तरह तराशते थे कि देखने वालों की आंखें चौंधिया जाए। सीन और संवाद के साथ उनकी ड्रेस का कांबिनेशन खुद करते थे। यह नर्गिस, वैजंतीमाला से लेकर मंदाकिनी और डिंपल कपाडिया तक देखा जा सकता है। इसके बीच में सिमी ग्रेवाल भी हैं। सिमी छोटी थीं, जब उनके दोस्त ‘आवारा हूं, गर्दिश में हूं, आसमान का तारा हूं....’ गाना गाया करते थे। सिमी ने अपने पिता से पूछा था कि उनके दोस्त रात-दिन यही गाना क्यों गाया करते हैं? तब पिता ने हंसते हुए कहा था कि

किसी दिन तुम्हें उस आवारा से मिलवाएंगे तब बात समझ में आ जाएगी। एक दिन सिमी के पिता जमशेदपुर के रतन हाल में उसे ‘आवारा’ दिखाने ले गए। फिल्म को देखते हुए सिमी इस कदर खो गई कि ‘द एंड’ के बाद भी उसी परदे को ताकती रह गई, मानो उसके पीछे राज कपूर बैठे हुए हों। सिमी अपनी पढाई के लिए इंग्लैंड चली गई। जब लौटी तो फिल्मों में काम करने का फैसला किया। मुंबई आकर संघर्ष करने लगी। लेकिन राज कपूर के लिए पैदा हुई दीवानगी बरकारार थी। एक दिन उन्होंने चांस लेकर राज कपूर को अपना गलत नाम बताकर फोन कर दिया। बातें इतनी दिलचस्प रही कि यह रोज का सिलसिला बन गया। राज साहब ने एक दिन मिलने के लिए बुला लिया, चर्चगेट के पास गेलार्ड होटल में। सिमी ने उस पहली मुलाकात को यादगार बनाने के लिए राज कपूर को अपनी लिखी एक कविता और गुलाब का फूल भेंट किया। वे बहुत खुश हुए और ‘मिलते रहा करो’ कहकर चले गए।

श्री

सिमी ने कभी यह जाहिर नहीं होने दिया कि वह उनके साथ काम करना चाहती है। लेकिन सिमी को यह पता था कि उनके लायक कभी किसी फिल्म में रोल आएगा तो वे जरुर याद करेंगे। वह मौका आ गया। एक शाम सिमी के घर का फोन बजा। सिमी की मम्मी ने फोन उठाया। उधर से आवाज आई ‘मैं राज कपूर बोल रहा हूं, क्या मिसेज ग्रेवाल से बात हो सकती है?’ बात हुई, लेकिन सिमी की मां को आश्चर्य हुआ कि राज साहब उनसे क्यों मिलना चाहते हैं? उन्होंने सिमी से जानना चाहा तो उसने अनभिज्ञता जाहिर की। अगले दिन राज साहब शाम को फूलों का गुलदस्ता लिए मिलने आ गए। हाथ जोड़ते हुए विनम्र भाव के साथ कहा, ‘अगर आप इजाज़त

दें तो आपकी इस बेटी को मैं अपनी फिल्म में हीरोइन लेना चाहता हूं।’ सिमी और उनकी मां के लिए यह हैरान करने वाली बात थी। वे चाहते तो अपने ऑफिस में बुला सकते थे, लेकिन अपनी हीरोइन लेकर कर उनके मन में जो सम्मान का भाव रहता था, यह उसका परिचय था। सिमी ‘मेरा नाम जोकर’ में पहले भाग की नायिका बनी। रोल मेरी नाम की एक टीचर का था। उसमें सिमी पर एक गाना फिल्माया गया था, ‘तीतर के दो आगे तीतर, तीतर के दो पीछे तीतर....’. वह भी एक इतिहास है। गाने के अंत में सूर्यास्त का दृश्य शिमला में शूट करने में चौदह दिन लग गए थे। जब तक राज साहब संतुष्ट नहीं हुए, शूटिंग को रोका नहीं।

चपल आंखों का इतिहास

श्रीदेवी हिंदी सिनेमा की उन नायिकाओं में हैं, जिनको ट्रेंड सेटर कहा जाता है

देवी की निजी जिंदगी के बारे में चाहे कितने किस्से-कहानियां हों, लेकिन यह भी सच है कि अस्सी के दशक के अंत में हिंदी सिनेमा में जब बदलाव की नई इबारत लिखी जाने लगी तो उनकी फिल्म ‘चांदनी’ ने उसमें अहम भूमिका निभाई। सत्तर के दशक में आतंक, हिंसा, ह्त्या, बलात्कार वाली फिल्मों का जो दौर शुरू हुआ, वह अस्सी के दशक पर भी काबिज होता गया। लेकिन इसी बीच ‘कयामत से कयामत तक’ और ‘चांदनी’ जैसी एक-दो फिल्में भी बनीं, जिसने अपनी सफलता से बता दिया कि नकलीपन ज्यादा दिनों तक टिका नहीं रह सकता है। इंडस्ट्री को प्रेम-कहानियों को इमोशनल अंदाज में पेश करना ही होगा। रोमांटिक फिल्मों के शहंशाह और कोमल स्पर्श से रोमांचित कर देने वाले निर्माता-निर्देशक यश चोपड़ा ने तब श्रीदेवी को लेकर ‘चांदनी’ बनाई। एक साफ-सुथरी फिल्म ने उस माहौल को पलटकर रख दिया। चांदनी के प्रेमी थे ऋषि कपूर। उस प्रेमी ने जब ‘चांदनी ओ मेरी चांदनी ...’ गाया तो दर्शक भी रोमांटिक हो गए। श्रीदेवी की अभिनय-प्रतिभा, उसकी मस्ती और शोखियों को देखकर लोग झूम उठे। एक सीधी सी कहानी थी कि चांदनी और रोहित, दो प्रेमी परिस्थितिवश एक-दूसरे से अलग हो जाते हैं। चांदनी की जिंदगी में कोई और आ जाता है, लेकिन वह पहले प्यार

को भूल नहीं पाती। अंत में रोहित और चांदनी मिल जाते हैं। कहानी में कोई बहुत बड़ी उथल-पुथल नहीं थी, लेकिन यश चोपड़ा ने श्रीदेवी की खूबसूरती और शोखियों को इस रूमानी अंदाज में परोसा कि लोग सिनेमा घरों पर टूट पड़े, जबकि वह समय वीडियो फिल्मों का था। यश चोपड़ा ने जब ‘लम्हे’ की योजना बनाई तो ‘चांदनी’ यानी श्रीदेवी को ही इस फिल्म के लिए चुना। इस फिल्म की कहानी भी ‘चांदनी’ की तरह सीधी-सादी थी। तब वह एक बड़ा नाम बन चुकी थीं। उनकी हिट फिल्मों की कतार लग गई थी। उस समय उनके बारे में लिखा गया था कि हेमा मालिनी अगर दर्शकों के दिल में सौम्य धड़कन बनकर मौजूद हैं तो श्रीदेवी तेज धड़कन बन गई हैं। उन्होंने इतिहास रचा अपनी चपल आंखों और मांसल थिरकन से। इसका असर सिर्फ उनके करियर और टिकट खिड़कियों पर ही नहीं हुआ, बल्कि उन्होंने नई पीढी की लड़कियों को भी रोमांचित कर दिया। फिल्मों में हर आने वाली अभिनेत्री श्रीदेवी ही बनना चाहती थी। वैसी ही अदा, वही मुस्कान, वही चपलता और वही कामयाबी पाना चाहती थी। उन लड़कियों को क्या मालूम कि श्रीदेवी को हवा हवाई और चांदनी बनने में कई साल लग गए। ‘सोलहवां सावन’ से उनका सफर शुरू हुआ था, जो ‘हिम्मतवाला’, ‘सदमा’ से गुजरता हुआ यहां तक पहुंचा था। आज भी लोग श्रीदेवी को चांदनी के रूप में याद करते हैं। इस फिल्म का एक गाना ‘मेरे हाथों में नौ नौ चूड़ियां हैं...’ आज भी वेडिंग सांग्स की सूची में सबसे ऊपर है। दिलचस्प है कि फिल्म के टाईटल सांग ‘चांदनी ओ चांदनी...’ में श्रीदेवी ने अपनी आवाज भी दी थी।


30

बाल साहित्य

15 - 21 जनवरी 2018 तेनालीराम की कहानी

लाल पंखों वाला मोर

हाराज कृष्णदेव राय को अदभूत व विलक्षण वस्तुएं एकत्रित करने का शौक था। अत: दरबारियों में होड़ लगी रहती थी कि वे दुर्लभ से दुर्लभ वस्तुएं महाराज की सेवा में प्रस्तुत करें और पुरस्कार पाएं। कुछ दरबारी मौका पाकर महाराज को ठगने से भी नहीं चूकते थे। ऐसे ही एक दिन एक दुष्ट दरबारी ने एक अनोखी चाल चली| वह लाल पंखों वाला एक जिंदा मोर लेकर महाराज की सेवा में हाजिर हुआ और बोला – ‘महाराज! मैंने मैसूर के घने जंगलों से आपके लिए एक अनूठा मोर मंगवाया है।’ कृष्णदेव ने लाल पंखों वाले उस मोर को देखकर बड़ा आश्चर्य किया कि यह कुदरत का कैसा करिश्मा है। वाकई अजूबा है। उन्होंने तुरंत आज्ञा दी कि मोर को राज उद्यान में हिफाजत से रखवाया जाए। फिर दरबारी से पूछा कि उस मोर कि खोज आदि पर उसका कितना धन खर्च हुआ? दरबारी बोला- ‘कुल तीस हजार|’ महाराज ने आज्ञा दी कि राजकोष से तीस हजार अशर्फियां इस दरबारी को अदा किया जाए। दरबारी को और भला क्या चाहिए था। उसके लिए तो यह तीस हजार अशर्फियां भी किसी ईनाम से कम नहीं थी। इन्हें पाने के लिए उसने केवल सौ अशर्फियां ही खर्च की थीं। तेनालीराम ने भी मोर को देखा था, मगर उसे यह बात हजम नहीं हो रही

"मे

न पाईप के मुंह पर कोई पत्थर बुरी तरह फंसा है उस्ताद!" वीरे ने बांस की कोल्ची से कुछ टटोलते

हुए कहा । "तो कूद जा। कूदे बिना पत्थर न निकलेगा। टैम खराब करने का कोई फायदा न है।" उसके सुपरवाइजर और उस्ताद

थी कि मोर कुदरती लाल पंखों वाला हो सकता है। उसने दरबारी की तरफ देखा, दरबारी कुटिल भाव से उसकी ओर देखकर मुस्करा रहा था। तेनालीराम को समझते देर नहीं लगी कि यह अवश्य ही कोई चाल है। बस, दूसरे ही दिन तेनालीराम ने उस रंग विशेषज्ञ को खोज निकाला, जिसने मात्र सौ अशर्फियां में उस मोर के पंख रंगे थे। वह चित्रकार राजधानी कि सीमा पर स्थिर एक गांव में रहता था और वह मस्त-मौला किस्म का व्यक्ति था। तेनालीराम ने चार मोर मंगवाकर उन्हें पहले मोर कि भांति रंगवाया और चार दिन बाद ही उन्हें दरबार में लेकर हाजिर हो गया और राजा से कहा– ‘महाराज! हमारे दरबारी मित्र ने तीस हजार अशर्फियां खर्च करके लाल पंखों वाला मोर मंगवाया, मगर मैं मात्र चार सौ अशर्फियों में चार वैसे ही मोर आपकी सेवा में हाजिर कर रहा हूं।’ राजा ने हैरानी से पहले उन मोरों को देखा, फिर सवालिया नजर से तेनालीराम और उसके साथ आए व्यक्ति को देखने लगे। वह दरबारी जिसने तीस हजार अशर्फियों में वह मोर राजा को भेंट दिया था, उसकी तेनालीराम के साथ आए व्यक्ति को देखकर उसकी सिट्टीपिट्टी गुम हो गई। यदि अवसर मिलता तो वह वहां से निकल भागता, मगर भागकर जाता भी कहां?

मटरू ने सीवर के खुले मेनहोल की तरफ इशारा करके कहा। "हाड़ कंपा देने वाली ठण्ड है उस्ताद..?" वीरे ने कांपते हुए कहा। "चुप रह, छोटेछोटे बच्चों का मुंह देखकर कुछ बोला कर। उन्हें भूखा मारेगा क्या? काम नहीं करेगा तो उन्हें खिलाएगा क्या ? आज की दिहाड़ी टूट जाएगी ...ले ठंड की दवाई ...।" उस्ताद ने रसभरी देशी दारू का एक पौव्वा जेब से निकाल कर वीरे की तरफ बढ़ा दिया। वीरे के बुझे ह्रदय की आंखों में रसभरी देखते ही विशेष प्रकार की लौ जल गई । जीभ लपलपते हुए उसने एक ही सांस में पौव्वा खाली कर दिया। उस्ताद ने कमर में रस्सा बांध दिया। कमर कसे वीरे ने कांटे,

तेनालीराम के साथ आया व्यक्ति वही चित्रकार था, जिसे सौ अशर्फियां देकर उसने मोर के पंख रंगवाए थे। राजा ने मोर उद्यान में भिजवा दिए। फिर तेनालीराम से पूछा- ‘तेनालीराम यह मजरा क्या है?’ तेनालीराम बोला – महाराज! यदि आप इन मोरों की छटा से प्रसन्न होकर किसी को कोई पुरस्कार देना चाहते हैं तो इस चित्रकार को दें, यह पुरस्कार का सच्चा अधिकारी है।’ इस तरह

तेनालीराम ने उन्हें पूरी बात बता दी। अपने आप को ठगे जाने की बात सुनकर महाराज आग-बबूला हो उठे। उन्होंने तुरंत उस दरबारी को दो माह के लिए उसके पद से निलंबित कर दिया तथा तीस हजार अशर्फियों के साथ बतौर जुर्माना दस हजार अशर्फियां राजकोष में जमा करने का आदेश दिया। फिर चित्रकार को ईनाम देकर विदा किया और तेनालीराम को भी सम्मानित किया।

विसर्जन

कोल्ची, खपची को पैर से ठोकर मारते हुए वीर की भंति मेन होल में छलांग लगा दी। उस्ताद ने गली में खड़े होकर दोनों हाथ उठाकर मुनादी कर दी। "भाइयों, लड़का सीवर में उतर चुका है। कोई भी अपने घर की लैट्रिंन -बाथरूम में न जाए।" इतना करकर उसने रस्से का दूसरा सिरा अपनी कमर में बांधा और लापरवाही से खड़ा होकर वह बीड़ी सुलगाने लगा। जिस घर के सामने मेनहोल में वीरे उतरा था, उसी घर का एक बिगड़ैल लड़का देर से सोकर उठा था। आंखें मलते हुए वह सीधे लैट्रिंन की तरफ भागा। उसके पिता ने लाख मना किया, पर वह मल विसर्जन की तीब्रता को कंट्रोल न कर सका। घरेलू पाईप से होता हुआ विसर्जित मल सीवर के उसी मेनहोल में जा गिरा जहां वीरे पूरी मेहनत से पाईप लाइन के मुंह पर फंसा पत्थर हटा रहा था। उसके सिर पर गिरता हुआ मल वीरे के मुंह की तरफ बढ़ा। वीरे चिल्लाया। "अरे..कौन है बे, ये नामुराद। आदमी जानवर से भी बदतर हो गया है क्या !!! जब

मर्जी पूंछ उठा देता है ...।" चिल्लाने के क्रम में मल का कुछ हिस्सा वीरे के मुंह में चला गया। मटरू ने मौके की नजाकत समझते हुए झट से जेब में हाथ डाला। उसने उस्तादी दिखाते हुए एक झटके से शीशी का ढक्कन खोलकर फेंका और खुद साष्टांग लेटकर खुद को सिर के बल आधा मेनहोल में लटकाते हुए काम छोड़कर सीधे खड़े होकर बड़बडाते हुए वीरे के मुंह में रसभरी की शीशी लगा दी। दैनिक घुट्टी पिलाते हुए मटरू बोला। "उसे माफ कर दो भाई। बात की गहराई समझो, तुम्हारे पापी पेट का सवाल है, कुछ चीजें प्राकृतिक होती हैं। कभी -कभी कंट्रोल नहीं हो पाती। आज तुझे सौ रुपए अलग से इनाम दूंगा।" उस्ताद ने तीर निशाने पर चलाया। घट -घट पौव्वा पीता वीरे जैसे अपना क्रोध और क्षोभ भी पी गया। सौ का नोट और मासूम बच्चों की सूरत आंखों में बसाए वीरे के मन का मैल भी विसर्जित हो गया हो। -अखिलेश द्विवेदी "अकेला"


15 - 21 जनवरी 2018

आओ हंसें

सु

जीवन मंत्र

फेल होने की किस्मत

जिंदगी में आगे बढ़ना है तो बहरे बन जाओ। कुछ लोगों को छोड़ कर ज्यादातर लोग तो मनोबल गिराने वाले ही होते हैं।

पिता- बेटा, कोई बात नहीं। तुम्हारी किस्मत में फेल होना ही लिखा था। बेटा- जी, पापा। यह तो अच्छा हुआ कि मैंने पूरा साल पढ़ा नहीं वरना सारी मेहनत बेकार हो जाती।

31

इंद्रधनुष

डोकू -05

...इसीलिए पृथ्वी गोल शिक्षक- पृथ्वी के गोल होने का मुझे तीन कारण बताओ| पप्पू- क्योंकि मेरे पिताजी कहते हैं, मेरी मां कहती है और तीसरे आप कह रहे हो। हो गया ना तीन कारण ।

रंग भरो सुडोकू का हल इस मेल आईडी पर भेजेंssbweekly@gmail.com या 9868807712 पर व्हॉट्सएप करें। एक लकी व‌िजते ा को 500 रुपए का नगद पुरस्कार द‌िया जाएगा। सुडोकू के हल के ल‌िए सुलभ स्वच्छ भारत का अगला अंक देख।ें

क्लास में लेट

सुडोकू-04 का हल

क्लास में पिंटू देर से आया। मास्टरजी ने कहा- तुम क्लास में पूरे 30 मिनट लेट हो। पिंटू- सर, मैं आपकी क्लास के लिए लेट नहीं आया हूं। मैं तो अगले क्लास के लिए जल्दी आया हूं।

यश रघुवंशी फरीदाबाद, हरियाणा

पेपर मतलब...

महत्वपूर्ण दिवस

• 15 जनवरी थल सेना दिवस

• 21 जनवरी मणिपुर स्थापना दिवस मेघालय स्थापना दिवस त्रिपुरा स्थापना दिवस वीर हेमू कालाणी बलिदान दिवस

बाएं से दाएं

वर्ग पहेली - 05

1. गंदगी (4) 3. खींचने की स्थिति (3) 5. संदश े , खबर (4) 6. नायक, अगुआ (4) 7. प्राप्त (3) 10. सतुआ (2) 11. आवाज, ध्वनि (3) 12. शख ृं ला, दरवाजे की कुड ं ी (3) 13. निर्धन (2) 15. बिना (3) 18. रोटी बेलने के लिये प्रयुक्त सूखा आटा (4) 19. मार और पिटाई (4) 21. गहरा नीला (3) 22. गणेश (4)

ऊपर से नीचे

1. स्याही (2) 2. कड़ी निगरानी, कैद (5) 3. आकर्षण (3) 4. चारो तरफ (3) 5. रसीला (3) 8. ऊपर तक (भरा हुआ) (4) 9. सप्ताह का अंतिम दिन (4) 12. साँस रुक जाना (5) 14. धोखा, छल (3) 16. बर्फ से ढँकी, बर्फ-सी ठंडी (3) 17. द्रव्य पदार्थ (3) 20. दंश (2)

वर्ग पहेली-04 का हल

मम्मी- पेपर कैसा था? बेटा- पतला सा था। सफेद रंग का था। दे.थप्पड़ पे थप्पड़!

सुडोकू 04 के लकी व‌िजते ा


सिनेमा

अनाम हीरो

ी र ा व ं स े स ्पे प ग ल ो ग बच्चों की जिंदगी 49 वर्षीय श्रीनिवास ने अपने तीन बच्चों की जिंदगी गोलगप्पे बेचकर कामयाबी के अलग-अलग मुकाम तक पहुंचाया

15 - 21 जनवरी 2018

श्रीनिवास राठौर

गर आपके इरादे मजबूत हैं तो आपको मंजिल पाने से कोई रोक नहीं सकता। कड़ी मेहनत व दृढ़ निश्चय से व्यक्ति कुछ भी हासिल कर सकता है। इस बात को गोलगप्पे का ठेला लगाने वाले 49 वर्षीय श्रीनिवास राठौर से साबित कर दिया है। उन्होंने अपने तीन बच्चों की जिंदगी गोलगप्पे बेचकर ही संवार दी है। श्रीनिवास की बड़ी बेटी वकील है तो दूसरे नंबर का बेटा यूपी पुलिस में दारोगा है। वहीं, तीसरा बेटा दिल्ली में ऐथलीट है। तीनों बच्चे अपने पैरों पर खड़े हो चुके हैं। श्रीनिवास कहते हैं कि उनके बच्चे अब उन्हें गोलगप्पे का ठेला लगाने से मना करते हैं, लेकिन वह बिना ठेला लगाए नहीं रह सकते। वह बच्चों से कहते हैं कि इसी गोलगप्पे के ठेले ने तुम्हारे भविष्य को संवारा है, इसे कैसे छोड़ दूं। मूल रूप से मध्यप्रदेश के ग्वालियर के रहने वाले श्रीनिवास पिछले 24 सालों से गाजियाबाद के विजयनगर क्षेत्र के कैलाशनगर में परिवार के साथ रह रहे हैं। श्रीनिवास सालों पहले रोजगार की तलाश में गाजियाबाद आए थे। करीब एक महीने तक उन्हें कोई काम नहीं मिला। इसके बाद उन्होंने गोलगप्पे और टिक्की का ठेला लगाने का फैसला किया। काम चल निकला तो उन्होंने उसे ही अपनी आजीविका बना ली। श्रीनिवास गली-गली घूमकर गोलगप्पे और आलू टिक्की (चाट) बेचते हैं। शहर के लोग उनके गोलगप्पे और टिक्की के मुरीद हैं। लोग रोजाना उनके आने का इंतजार करते हैं। दिनभर में गोलगप्पे और चाट बेचकर श्रीनिवास करीब 500 रुपये की कमाई कर लेते हैं। श्रीनिवास ने बताया कि उनके 3 बच्चे हैं। कमाई कम होने की वजह से वह अपने बच्चों को निजी स्कूल में नहीं पढ़ा सके। तीनों बच्चों की पढ़ाई सरकारी स्कूल में ही हुई है। बच्चों ने भी पिता की आर्थिक स्थिति को समझा और पूरी लगन से पढ़ाई की। श्रीनिवास ने बड़ी बेटी नीतू (29) को वकालत की पढ़ाई कराई और उसकी शादी कर दी। वहीं, दूसरे नंबर का बेटा प्रमोद राठौर (24) यूपी पुलिस में दारोगा है। वर्तमान में उसकी तैनाती मुजफ्फरनगर में है। जबकि तीसरे नंबर का बेटा मोहित (21) दिल्ली में रहकर पढ़ाई कर रहा है और एथलीट है।

न्यूजमेकर मुकुल एवं दीप्तांशु मालवीय

रा

रैपर पिकर ब्रदर्स

दो सगे भाइयों मुकुल एवं दीप्तांशु मालवीय ने रैपर उठाने वाला अनूठा उपकरण बनाया है

जस्थान में सिरोही के दो सगे भाइयों मुकुल एवं दीप्तांशु मालवीय ने अपने नवाचार में रैपर उठाने वाला उपकरण बनाया है। रैपर पिकर मशीन बनाने का विचार उनके दिमाग में उस समय आया जब इन दोनों भाईयों ने बस स्टैंड पर झाड़ू लगाते एक व्यक्ति को बार-बार झुककर वहां बिखरे पाउच, कागज के टुकड़े और वेफर्स के खाली पैकेट को उठाते देखा। उन्हें लगा कि ऐसे कचरे को उठाने के लिए हर बार झुकना उसके लिए कितना मुश्किल होता होगा। यदि कोई स्वचालित मशीन या उपकरण बना लिया जाए तो यह श्रमसाध्य कार्य आसान हो सकता है और उन्होंने बना ली रैपर पिकर मशीन। मुकुल और दीप्तांशु ने बताया कि स्टील बॉडी की यह मशीन बनाकर उन्होंने राष्ट्रीय नव प्रवर्तन प्रतिष्ठान को भेजी थी। वहां से उनका नाम राष्ट्रपति द्वारा सम्मानित किए जाने वालों के लिए भेजा गया तथा बाद में इसके लिए उन्हें चुन भी लिया गया। अपने मशीन को लेकर दोनों भाइयों ने एमसीआई म्युनिसिपल कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया से डील भी की है। इन मशीनों की बिक्री पर उन्हें रॉयल्टी मिलेगी।

न्यूजमेकर जाह्नवी मगांती

32

डाक पंजीयन नंबर-DL(W)10/2241/2017-19

मालवीय बंधु कहते हैं कि लोग स्नेक्स खाते हैं, वेफर्स, चॉकलेट, बिस्कुल, फ्रूट केक, पानी के पाउच आदि का इस्तेमाल करते हैं और उनके रैपर्स को इधर-उधर डाल देते हैं। इस कचरे को बाद में हाथ से उठाना पड़ता है। अभी तक बाजार में ऐसी कोई मशीन नहीं है जो इस काम को स्वचालित ढंग से कर सके। मोटरचालित हमारी यह मशीन इस कार्य को बखूबी करती है जो सफाई के लिए उपयोगी साबित होगी। आठ से दस हजार रुपए निर्माण लागत वाली यह मशीन स्वच्छ भारत मिशन में अपना कमाल दिखा सकती है।

पैरों से पेंटिंग का वर्ल्ड रिकॉर्ड

गिनीज व‌र्ल्ड रिकॉर्ड में शामिल होने की कोशिश के तहत हैदराबाद की एक लड़की जाह्नवी ने अपने पैर से 140 वर्गमीटर क्षेत्र पर पेंटिंग की है

च्चों में उत्साह काफी ज्यादा होता है। इसी उत्साह में वे कई बार ऐेसा कुछ कर जाते हैं कि दुनिया दांतों तले अंगुली दबाने पर मजबूर हो जाती है। ऐसा ही कुछ कर दिखाया है हैदराबाद की 18 वर्षीया लड़की जाह्नवी मगांती ने। गिनीज व‌र्ल्ड रिकॉर्ड में शामिल होने की कोशिश के तहत हैदराबाद की एक लड़की जाह्नवी ने अपने पैर से 140 वर्गमीटर क्षेत्र पर पेंटिंग की है। जाह्नवी का दावा है कि उसने पैर से सबसे बड़ी पेंटिंग बनाने का रिकॉर्ड बना लिया है। जाह्नवी ब्रिटेन की यूनिवर्सिटी ऑफ वार्विक की छात्रा है और उसने वर्तमान 100 वर्गमीटर पेंटिंग के रिकॉर्ड को तोड़ा है। दिलचस्प है कि जाह्नवी एक कलाकार होने के साथ-साथ नृत्यांगना, शास्त्रीय गायिका और राष्ट्रीय स्तर की बास्केटबॉल खिलाड़ी भी है। उनमें नृत्य करते-करते पेंटिंग करने की विशेष प्रतिभा भी है। हाल ही में उसने नृत्य करते-करते अपने पैर से कमल का फूल और मोर के पंखों की पेंटिंग बनाई थी। अपनी नई कामयाबी को लेकर जाह्नवी और उसके परिवार के लोगों के साथ उसके तमाम जानने वाले काफी रोमांचित हैं। वे इसे गौरवपूर्ण मान रहे हैं कि उनके बीच की एक लड़की ने इस तरह का असाधारण कार्य कर दिखाया।

आरएनआई नंबर-DELHIN/2016/71597; संयुक्त पुलिस कमिश्नर (लाइसेंसिंग) दिल्ली नं.-एफ. 2 (एस- 45) प्रेस/ 2016 वर्ष 2, अंक - 5


Turn static files into dynamic content formats.

Create a flipbook
Issuu converts static files into: digital portfolios, online yearbooks, online catalogs, digital photo albums and more. Sign up and create your flipbook.