सुलभ स्वच्छ भारत - वर्ष-2 - (अंक 17)

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अभिमत

बापू, बिहार और सत्याग्रह

16 स्वतंत्र भारत में स्वच्छाग्रह

ल​ीक से परे

17

27

पुस्तक अंश

मोदी के विजन और विकास की झलक

नमन

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बापू को नमन...

गांधी और मैं

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आरएनआई नंबर-DELHIN/2016/71597

वर्ष-2 | अंक-17 | 09 - 15 अप्रैल 2018

यह ऐतिहासिक संयोग है कि चंपारण की जिस भूमि पर गांधी जी ने भारत में सत्याग्रह का प्रयोग किया, उसी चंपारण के बेतिया शहर में डॉ. पाठक एक मलिन बस्ती में जाकर रहे और वहीं से सुलभ स्वच्छता आंदोलन के बीज अंकुरित हुए। विचार और आदर्श की एेसी प्रेरक समानता तारीख में कम ही नजर आती है


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गांधी और मैं

गां

धी स्वप्नद्रष्टा थे, भविष्यद्रष्टा और समाजद्रष्टा भी, इसीलिए उनके विचार और उनका आचार आज भी हर किसी के लिए अनुकरणीय हैं। छोटे काम से बड़ा लक्ष्य प्राप्त करने का जैसा गुण और विवेक उनके पास था, आज तक के इतिहास में वैसा किसी एक व्यक्ति में देखा नहीं गया। मैला ढाेने की कुप्रथा के विरुद्ध पहली आवाज उन्होंने उठाई। इस आवाज के पीछे सामाजिक बदलाव और समरसता का एक बड़ा लक्ष्य था, जिसे वे अपने जीवन में प्राप्त नहीं कर पाए। लेकिन स्वच्छता का जो बीज गांधी जी ने बोया, उसे सिर्फ अंकुरित ही नहीं, पल्लवित और पुष्पित भी होना था और वह हुआ सुलभ संस्थापक डॉ. विन्देश्वर पाठक के अथक परिश्रम और प्रयास से। यह ऐतिहासिक संयोग है कि चंपारण की जिस भूमि से गांधी जी ने नील किसानों को अंग्रेजों के शोषण चक्र से मुक्ति का बिगुल फूंका, उसी भूमि पर डॉ. विन्देश्वर पाठक ने स्वच्छता और सामाजिक बदलाव का पहला अध्याय लिखा। चंपारण से निकली गांधी जी की आवाज अंग्रेजी दमन चक्र के अंत की कहानी बनी, तो दूसरी तरफ डॉ. पाठक के स्वच्छता आंदोलन ने देश से न सिर्फ ​िसर पर मैला ढोने की कुप्रथा को समाप्त किया,​ बल्कि इस काम से जुड़े लोगों के पुनर्वास आजीविका और सामाजिक जुड़ाव की

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पटकथा भी लिखी। आज अगर देश आजाद है, तो उसके पीछे गांधी जी की बड़ी भूमिका है। उसी तरह अगर 2 अक्टूबर, 2019 तक पूरे देश को हम स्वच्छ देखना चाहते हैं, तो इस लक्ष्य के पीछे सुलभ और डॉ. पाठक के दशकों लंबे अभियान की महति भूमिका होगी।

मैला ढोने (स्कैविंजिंग) की पृष्ठभूमि

प्राचीन समय से ही, हाथों से मैला ढोने की कुप्रथा भारत में अस्तित्व में रही है। मानव मल की नंगे हाथों से सफाई करने की कुप्रथा न केवल अमानवीय, बल्कि स्वास्थ्य विरोधी भी है। शुष्क शौचालयों को साफ करने और मानव मल हाथ से ढोने और उनका निपटान करने वाले लोग स्कैवेंजर के रूप में जाने जाते हैं। उन्हें अछूत समझा जाता है। मैला ढोने की कुप्रथा प्राचीन, मध्ययुगीन और ब्रिटिश काल के

भारत में प्रचलित थी। लेकिन समकालीन भारत के कुछ इलाकों में यह कुप्रथा अभी भी बदस्तूर जारी है। मैला ढोने वाले अछूत लोगों को सिर्फ अपमान मिलता था और इसका लंबा इतिहास रहा है। यहां तक कि जिनके घरों में वे मैला ढोते थे, वहां भी उन्हें अपमानित किया जाता था। उन्हें सूर्योदय से पहले ही कमाऊ शौचालय साफ करना पड़ता था, ताकि कोई भी उन्हें देख या छू न सके। मध्ययुगीन काल में उन्हें गले के चारों ओर घंटियां पहनने के लिए मजबूर किया गया, ताकि घंटियों की आवाज सुन कर लोग खुद ही दूर हो जाएं। यहां तक कि उन्हें भोजन या पानी देने के दौरान भी लोग उनसे उचित दूरी बनाए रखते थे। उन्हें गांव या शहर से दूर ही रहना पड़ता था। उनके बच्चे केवल सुअरों के साथ ही खेल सकते थे। उनके लिए शिक्षा और धर्म के दरवाजे बंद थे। उनके बच्चे स्कूल या मंदिर में प्रवेश पाने के हकदार नहीं थे।

शुष्क शौचालयों को साफ करने और मानव मल हाथ से ढोने और उनका निपटान करने वाले लोग स्कैवेंजर के रूप में जाने जाते हैं। उन्हें अछूत समझा जाता है। मैला ढोने की कुप्रथा प्राचीन, मध्ययुगीन और ब्रिटिश काल के भारत में प्रचलित थी। लेकिन समकालीन भारत के कुछ इलाकों में यह कुप्रथा अभी भी बदस्तूर जारी है। मैला ढोने वाले अछूत लोगों को सिर्फ अपमान मिलता था और इसका लंबा इतिहास रहा है

खास बातें मैला ढोने की कुप्रथा का देश में प्राचीन काल से प्रचलन गांव में रहने के दौरान मैं भी खुले में शौच के लिए जाता था जीवन के आरंभिक 18 वर्ष बिहार के एक गांव में बिताए

मेरा बचपन

मैंने अपनी जिंदगी के आरंभिक 18 वर्ष बिहार के वैशाली जिले में स्थित रामपुर गांव में बिताए। वैशाली वही जगह है, जहां दुनिया का पहला लोकतांत्रिक गणराज्य फला-फूला। 1943 में मेरे जन्म के समय, मेरे गांव में कुल सात जातियां थीं। सामाजिक अनुक्रम में देखें तो सबसे पहले ब्राह्मण आते थे, फिर क्षत्रिय, फिर यादव, उसके बाद पिछड़े वर्ग में आने वाले कारीगर और फिर दलित के रूप में माने जाने वाले अनुसूचित जातियों के दुसाध, चमार और डोम थे। अनुसूचित जाति को दो वर्गों में विभाजित किया गया था: 'अपवित्र' और 'अस्पृश्य'। भारत की आजादी से पहले उन्हें इन्हीं नामों से बुलाया जाता था। दुसाध और चमार को जहां अपवित्र जातियां माना जाता था, वहीं डोम के साथ अछूत (अस्पृश्य) की तरह व्यवहार किया जाता था। आजादी के बाद अस्पृश्यता समाप्त कर दी गई और कोई भी जाति अपवित्र या अस्पृश्य नहीं मानी गई। अब गांव के लोग दुसाध और चमार को छू सकते थे, क्योंकि ये जातियां खेती करने, मवेशियों की देखभाल और अन्य कार्यों में मदद करती थीं। चमार पशुओं के शवों को गांव से बाहर ले जाते थे और उन्हें दफन करते थे। वे जूते और चप्पल की मरम्मत भी करते थे। लेकिन गांव में कोई भी व्यक्ति न तो उनके हाथों से पीने के पानी को स्वीकार करता था और न ही उनके साथ भोजन करता था। क्योंकि उन्हें अपवित्र समझा जाता था। पिछड़ी जाति में आने वाले यादव मवेशियों को पालते थे और गांव वालों को दूध और दूध से बने घी, दही जैसे उत्पादों को बेचते थे। उंची जातियां सामाजिक रूप से उनके साथ घुल-मिल गईं और अक्सर कई अवसरों पर उनके साथ भोजन भी करती थीं। यह बहुत ही अजीब बात है कि डोम जिन्हें अछूत समझा जाता था, वे उंची जातियों को सींक की बनी हुई वस्तुएं और टोकरी (जिन्हें स्थानीय भाषा में चलनी, सूप, डगरा आदि


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नाटक के एक दृश्य में एक नवविवाहिता को चित्रित किया जा रहा है, जिसे उसके ससुराल में उसके पति द्वारा कमाऊ शौचालय की सफाई के लिए मजबूर किया जा रहा है

नाटक के एक अन्य दृश्य में दर्शाया जा रहा है कि कैसे एक स्कैवेंजर लड़के पर एक सांड हमला करता है और कोई भी उसे बचाने नहीं आता

कहा जाता है) दिया करते थे, लेकिन फिर भी उन्हें अछूत समझा जाता था और कोई उन्हें नहीं छूता था। डोम कुएं से पानी नहीं निकाल सकते थे और उन्हें कुएं या तालाब के पास खड़े होकर तब तक प्रतीक्षा करनी पड़ती थी, जब तक कि कोई नेक इंसान कुएं से पानी निकालने आए और उनके घड़े को भर दे। उनके घड़े साधारणतया लोहे के बने होते थे, जिससे कि उंची जातियों के लिए मिट्टी से बने घड़े में और उनके घड़े में अंतर पैदा किया जा सके। यह विडंबना ही है कि उंची जातियों द्वारा जिंदगी भर अछूत समझे जाने वाले डोम ही व्यक्ति की मृत्यु के बाद चिता के लिए अग्नि प्रदान कराते थे, जिससे मृतक का पुत्र या अन्य कोई मुखाग्नि देता था। क्योंकि यह माना जाता था कि अगर ऐसा नहीं हुआ तो मरने वाले को न ही मोक्ष मिलेगा और न ही स्वर्ग में स्थान। यह सब समझ से परे है, लेकिन गांवों की यही परंपरा थी। जिस घर में मैं रहता था वह बड़े आंगन के साथ एक बड़ा घर था। हमारे घर प्रायः बहुत से लोग आते थे, लेकिन जब कोई डोम औरत, बांस से बनी वस्तुओं को देने के लिए घर आती थी तो मेरी दादी उस रास्ते को पानी से साफ करती थीं, जिस रास्ते चलकर वह डोम औरत आती थी। एक बच्चे के रूप मैं जानना चाहता था कि क्यों मेरी दादी ऐसा तभी करती हैं, जब वह डोम औरत घर में आती है, तब क्यों नहीं जब कोई और आता है। लोग बताया करते थे कि चूंकि वह स्त्री अछूत है और जिस रास्ते पर वह चलती है अशुद्ध हो जाता है, इसीलिए दादी उसे शुद्ध करने के लिए पानी से साफ किया करती थीं। एक बच्चे के रूप में मैं यह भी जानने को उत्सुक रहता था कि अछूत को छूने के बाद क्या होगा? इसी उत्सुकता की वजह से मैं अक्सर चोरी-छुपे उसे छू लेता था। लेकिन एक दिन जब वह डोम स्त्री हमारे घर से वापस जा रही थी और मेरी दादी रास्ते में पानी छिड़क रही थीं। तभी मेरी दादी ने मुझे उस स्त्री को छूते

स्कूलों में शौचालय न होने की वजह से लड़कियां स्कूल जाने में कोई उत्साह नहीं दिखाती थीं। दस्त (डायरिया) और पानी की कमी (डीहाइड्रेशन) के कारण कई बच्चे मर जाते थे। दस्त की वजह से मेरी बहन के बेटे की भी मौत हो गई थी। मैं पड़ोसी गांव के एक स्कूल में पढ़ने जाता था, क्योंकि मेरे गांव में कोई ऊपरी प्राथमिक और माध्यमिक स्कूल नहीं था। उस पड़ोसी गांव में, मकान मालिक के यहां कमाऊ शौचालय था जिसे 'अस्पृश्य' स्कैवंेजर साफ किया करते थे। शौचालय उसी सड़क के पास बना हुआ था जहां से मुझे गुजरना होता था। कभी-कभी हम एक महिला को देखते थे जो उस शौचालय की सफाई कर मानव मल को अपने सिर पर रखकर दूसरे स्थान पर फेंकने के लिए ले जाती थी। उस जगह से इतनी बदबू आती थी कि हमें वहां से गुजरने के दौरान अपनी नाक को बंद करना पड़ता था। उस महिला स्कैवेंजर का परिवार गांव के बाहरी इलाके में रहता था। कोई भी उसके परिवार से मेल-जोल नहीं रखता था और उन्हें बहुत ही क्रूर सामाजिक अलगाव के साथ रहना पड़ रहा था। मैं एक समृद्ध परिवार में पैदा हुआ था। परिवार की यह समृद्धि 1955 तक ही रही जब स्वदेशी दवाओं के डाॅक्टर मेरे पिता अपनी डॉक्टरी छोड़कर परिवार की देखभाल के लिए गांव लौट आए। हमारे बड़े परिवार में 16 सदस्य और छह नौकर थे, इस तरह कुल मिलाकर 22 लोग थे। परिवार की आय घट रही थी, शुरुआत में मेरे पिता ने धन जुटाने के लिए जमीन के हिस्से को गिरवी रखना शुरू कर दिया, लेकिन

हुए देख लिया। यह देखने के बाद दादी ने खूब हंगामा किया। दादी ने बताया कि कैसे अब मैं परिवार में नहीं रह सकता। पूरा परिवार गुस्से में था, किसी ने भी भोजन ग्रहण नहीं किया। सब बेहद गंभीर और निराश हो गए। पुजारी को इस समस्या के समाधान के लिए बुलाया गया। लंबे विचार-विमर्श के बाद, पुजारी ने सलाह दी कि मेरे लिए शुद्धिकरण अनुष्ठान का आयोजन होगा। इसके लिए, गंगा जल के साथ गाय का गोबर और गौमूत्र को मेरे मुंह में ठूंसा जाना था और मुझे शुद्ध होने के लिए उसे निगलना था। मैं बहुत बुरी तरह से रो रहा था, लेकिन इसका कोई फायदा नहीं हुआ। यह घटना मेरे लिए दुस्वप्न की तरह थी। यह घटना हमेशा मुझे यह सोचने पर मजबूर करती रही कि क्या ऐसी समस्या का कोई समाधान है? जब मैं गांव में रहता था, मैं भी अन्य गांव वालों की तरह खुले में शौच के लिए जाया करता था, क्योंकि मेरे घर सहित किसी भी गांव में शौचालय नहीं था। बिना शौचालय के, सबसे ज्यादा परेशानियां महिलाओं को होती थीं। मेरी मां, दादी और चाचियों को सुबह 4 बजे तक उठकर खुले में शौच के लिए जाना पड़ता था, क्योंकि सूर्योदय के बाद और सूर्यास्त से पहले वे शौच के लिए नहीं जा सकती थीं। अधिकतर महिलाओं को ​िसर में दर्द होने लगता था, क्योंकि उन्हें दिन के वक्त शौच को रोक कर रखना पड़ता था। गांव की महिलाएं जब देर शाम या सुबह जल्दी खुले में शौच के लिए जाती थीं, तो कभी-कभी उन्हें आपराधिक हमलों और सर्पदंश का भी सामना करना पड़ता था।

मैंने बिना किसी कारण के सपने देखना शुरू कर दिया कि मुझे अब नौकरी नहीं करनी चाहिए, बल्कि मुझे कुछ ऐसा करना चाहिए जिसके लिए मुझे इस दुनिया में अपना निशान छोड़ने वाले व्यक्ति के रूप में जाना जाए

अंततः उन्होंने जमीन बेचना शुरू कर दिया। इस प्रकार, परिवार की आर्थिक स्थिति दिन-प्रतिदिन बिगड़ती रही। मैंने 1960 में मैट्रिक परीक्षा पास की और उच्च शिक्षा के लिए गांव छोड़कर अपने जिले मुजफ्फरपुर में आ गया। मैंने युवा छात्रों को निजी ट्यूशन देना शुरू कर दिया, जिससे भोजन और आवास पर हो रहे खर्चों को पूरा करने में मुझे सहायता मिलने लगी। मेरे पिता कॉलेज की फीस और अन्य खर्चों के भुगतान के लिए मुझे कुछ पैसे दिया करते थे। मैं एक वर्ष के लिए मुजफ्फरपुर में रुका और उसके बाद पटना के बिहार नेशनल कॉलेज में प्रवेश लेने के लिए पटना चला आया। मेरे चाचा, जो एक छोटी सी चाय की दुकान चलाते थे, ने मुझे आवास और भोजन मुहैया कराया और मेरे पिता भी मुझे मदद देते रहे। लेकिन कॉलेज में प्रवेश पाना बहुत ही मुश्किल था, क्योंकि प्रवेश की तारीख खत्म हो गई थी और कक्षाएं भी शुरू हो चुकी थीं। सभी ने यह कह कर मुझे हतोत्साहित किया कि मेरा नामांकन नहीं हो पाएगा, लेकिन मैंने अपनी कोशिशें जारी रखीं। मैंने साहस जुटाकर कॉलेज के प्रिंसिपल, डॉ. डीपी विद्यार्थी से मुलाकात की। उन्होंने धैर्यपूर्वक मुझे सुना और विश्वविद्यालय से पहले की कक्षा की मार्कशीट मांगी। मैंने उन्हें अपनी मार्क-शीट दिखा दी। उन्होंने विश्वविद्यालय में दाखिले के प्रभारी प्रोफेसर से मुझे प्रवेश देने के लिए कहा। प्रोफेसर ने प्रिंसिपल को बताया कि सभी सीटें पहले ही भर चुकी हैं और उन्होंने पहले ही 9 अतिरिक्त छात्रों की दाखिले की अनुमति दे रखी है। इसके अलावा कक्षाएं एक महीने पहले ही शुरू हो चुकी थीं और इसमें संदेह था कि कुलपति इस दाखिले के लिए अपनी अनुमति देंगे। प्रिंसिपल ने प्रोफेसर से कहा कि वे मेरे प्रवेश के लिए आदेश दे रहे हैं- चाहे कुलपति सहमत हों या नहीं और यदि कुलपति कोई सवाल उठाएंगे तो वह मुझसे पूछेंगे न कि प्रोफेसर से। इस तरह मुझे बीएन


04 कॉलेज में प्रवेश मिला। प्रिंसिपल के रूप में भगवान ने मेरी मदद की, अन्यथा वहां प्रवेश मिलना असंभव था। अगले साल बीए भाग -1 की परीक्षाओं में, मैंने अपने कॉलेज में छात्रों के बीच प्रथम स्थान प्राप्त किया और मुझे 1962 से 1964 तक अगले दो सालों के लिए 14 रुपए प्रति माह छात्रवृत्ति से सम्मानित किया गया। यह छात्रवृत्ति एक प्रतिष्ठित व्यक्ति सर गणेश दत्त सिंह के नाम पर थी। मैंने समाजशास्त्र (ऑनर्स) लिया। छह महीने बाद जब एक नए विषय अपराध विज्ञान (क्रिमिनोलॉजी) की शुरुआत की गई, तो मैंने समाजशास्त्र में एक समूह पेपर के रूप में अपराध विज्ञान लिया। दोनों टर्मिनल परीक्षाओं में मैंने सबसे ज्यादा अंक प्राप्त किए, लेकिन स्नातक की अंतिम परीक्षा में क्रिमिनोलॉजी के पेपर में खराब अंकों के कारण मैं प्रथम श्रेणी नहीं ला पाया। इससे मेरे जीवन में एक निर्णायक मोड़ आया। यद्यपि स्नातकोत्तर पाठ्यक्रम विभाग के प्रमुख, डॉ. नर्मदेश्वर प्रसाद ने मुझे अपने स्नातकोत्तर अध्ययन जारी रखने के लिए कहा और यह समझाया कि यदि मैं अपनी पढ़ाई जारी नहीं रखता हूं तो मैं प्राध्यापक नहीं बन पाऊंगा। लेकिन मैंने गांव वापस जाने का फैसला किया। गांव के स्कूल, जहां से मैंने अपनी मैट्रिक परीक्षा पास की थी, के मुख्याध्यापक ने मुझे स्कूल में शामिल होने के लिए कहा, क्योंकि एक शिक्षक के छह महीने के लिए छुट्टी पर जाने से वहां एक अस्थायी पद ​रिक्त था। उन्होंने यह भी आश्वासन दिया कि वह यह सुनिश्चित करेंगे कि मुझे विद्यालय में स्थायी नौकरी मिल जाए। इसीलिए मैंने 80 रुपए के मासिक वेतन पर छह महीने के लिए स्कूल की शिक्षक के रूप में सेवा की। और फिर मैंने यह काम छोड़ दिया और 5 रुपए प्रति दिन के वेतन पर पतरातू थर्मल पावर स्टेशन में काम करने लगा। पहले बिहार मंे आने वाला यह स्टेशन अब झारखंड राज्य में है। मुझे उम्मीद थी कि बाद में मैं सतर्कता अधिकारी के रूप में नियुक्त हो जाउंगा। मैं एक साल के लिए पतरातू में ही काम करता रहा, लेकिन सतर्कता अधिकारी का पद नहीं मिलने से निराशा महसूस कर रहा था। इसी वजह से मैंने पतरातू वाली नौकरी छोड़ दी। उस समय, मैंने बिना किसी कारण के सपने देखना शुरू कर दिया कि मुझे अब नौकरी नहीं करनी चाहिए, बल्कि मुझे कुछ ऐसा करना चाहिए जिसके लिए मुझे इस दुनिया में अपना निशान छोड़ने वाले व्यक्ति के रूप में जाना जाए। हालांकि मुझे बिलकुल भी नहीं पता था कि अपने इस सपने को साकार करने के लिए क्या करना चाहिए। इस बीच, जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के एक प्रोफेसर मुझे देखने आए और कहा कि नोबेल पुरस्कार विजेता रवींद्रनाथ टैगोर ने कहीं लिखा था, "ऐसी स्थिति में पिछले जन्मों की प्रतिछाया वर्तमान की समस्याओं को हल करने में मदद करती है।" इसीलिए मैंने नौकरी छोड़ दी और अपने पिता के साथ काम करना शुरू कर दिया। मेरे पिता आयुर्वेदिक डॉक्टर थे और दवाएं तैयार करते थे। मैं दरभंगा,

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09 - 15 अप्रैल 2018 मुहैया कराई थी और उन्होंने ही बिल पास किया था, इसीलिए मेरे साथ कार्यालय जाना उनके लिए उपयुक्त नहीं था। अगर किसी को भी इस बारे में पता चलता कि वे मुझसे परिचित हैं, तो उन्हें ठीक नहीं समझा जाएगा। मैंने अपमानित और कमजोर महसूस किया। मैंने उसी दिन दवाओं को बेचने का कारोबार करना छोड़ दिया और कुछ और करने का निर्णय लिया। यदि कोई व्यक्ति सामान्य व्यवसाय कर रहा है और वह किसी के साथ चल नहीं सकता और किसी के साथ देखा नहीं जा सकता, तो उस कार्य में कोई गरिमा नहीं है। इसीलिए मैंने अपने पिता से कहा कि मैं उस काम को नहीं करूंगा। मेरे पिता कारण सुनकर आश्चर्यचकित हुए और मुझे काम करने के लिए राजी करने की कोशिश की, लेकिन मैंने वह नौकरी छोड़ दी। मेरे जीवन का अगला अध्याय मध्य प्रदेश के एक विश्वविद्यालय से संबंधित है, जहां स्नातकोत्तर स्तर पर अपराध विज्ञान पढ़ाया जाता था। मैंने वहां प्रवेश के लिए आवेदन किया था और प्रवेश मिल गया। इसीलिए मैंने अपने पिता से प्रवेश और अन्य खर्चों के लिए पैसा लिया और सागर विश्वविद्यालय में प्रवेश के लिए मध्य प्रदेश की यात्रा पर निकल पड़ा। यह मेरी पहली लंबी दूरी की ट्रेन यात्रा थी, मुझे नहीं पता था कि कोई व्यक्ति ट्रेन में सोते हुए यात्रा कर सकता है। मैंने इसके बारे में किसी से ज्यादा पूछताछ करने की कोशिश भी नहीं की। मैंने लखनऊ का टिकट खरीदा और सोचा कि लखनऊ पहुंचने पर मैं किसी से पूछ लूंगा कि मध्य प्रदेश में सागर विश्वविद्यालय कैसे जाना है। यह अजीब लग सकता है, लेकिन यही मेरे जीवन की सच्ची कहानी है।

मधुबनी, जयनगर, मुजफ्फरपुर, मोतिहारी, बेतिया, आदि जिले में दूरदराज के कस्बों में दवाओं को बेचा करता था। कभी-कभी, मुझे अपने सिर पर विभिन्न बीमारियों की दवाओं की बोतल रखकर और 10 किलो दवाएं अपने दोनों हाथों में लटकाकर, 10 से 15 किमी प्रति दिन चलना पड़ता था। कभी-कभी अगर रास्ते में मुझे कोई बैलगाड़ी दिख जाती थी तो मैं इन दवाइयों को उस पर रख देता था। उन मुश्किल दिनों में मैंने चीनी सहकारी संघ की विभिन्न शाखाओं में भी दवाएं बेचनी शुरू कर दी। एक बार फिर से, मेरे जीवन में एक निर्णायक मोड़ आया जब मोतीपुर शुगर यूनियन के प्रभारी अधिकारी ने

मुझे सहायता देना शुरू कर दिया। कभी-कभी मैं उनके घर जाया करता था और रिक्शे से उनके साथ ‘कंबाइंड बिल्डिंग’ में जाया करता था, जहां मुजफ्फरपुर के विभिन्न सरकारी विभागों का कार्यालय था। ‘कंबाइंड बिल्डिंग’ के द्वार पर पहुंचने पर, वे मुझसे नीचे उतरने और थोड़ी देर बाद कार्यालय में आने के लिए कहते थे। जब मैं कार्यालय पहुंचता था, तो वह मुझसे पूछते कि मैंने कब आने के लिए कहा था। यह मुझे आश्चर्यचकित कर देता था, क्योंकि मैं उनके घर से रिक्शे पर साथ ही आता था। एक दिन मैंने उनसे पूछा कि उन्होंने ऐसा सवाल मुझसे क्यों पूछा। उन्होंने उत्तर दिया कि चूंकि मैंने उनके कार्यालय में दवाइयां

यह मेरी पहली लंबी दूरी की ट्रेन यात्रा थी, मुझे नहीं पता था कि कोई व्यक्ति ट्रेन में सोते हुए यात्रा कर सकता है। मैंने इसके बारे में किसी से ज्यादा पूछताछ करने की कोशिश भी नहीं की। मैंने लखनऊ का टिकट खरीदा और सोचा कि लखनऊ पहुंचने पर मैं किसी से पूछ लूंगा कि मध्य प्रदेश में सागर विश्वविद्यालय कैसे जाना है। यह अजीब लग सकता है, लेकिन यही मेरे जीवन की सच्ची कहानी है

एक यात्रा की शुरुआत

महनार रेलवे स्टेशन पर, मैंने लखनऊ का टिकट खरीदा और ट्रेन में सवार हो गया। रास्ते में मेरे जिले वैशाली का जिला मुख्यालय और रेलवे जंक्शन, हाजीपुर था। जैसे ही ट्रेन कुछ समय के लिए रुकी, मैं एक कप चाय के लिए नीचे उतर गया। यहां मैं दो परिचित व्यक्तियों से मिला, एक हमारे परिवारिक मित्र श्री ध्रुव नारायण सिंह और दूसरे मेरे चचेरे भाई श्री चंद्र मोहन झा, जो अब मेरे साथ ही काम करते हैं। दोनों स्टेशन पर अखबार खरीदने के लिए आए थे। उन्होंने पूछा कि मैं कहां जा रहा हूं, मैंने उन्हें अपनी सागर की यात्रा के बारे में बताया। श्री सिंह ने मुझे बताया कि गांधी संग्रहालय में 600 रुपए प्रति माह के वेतन पर सचिव का एक पद है और यह पद स्थायी था। उस समय एक प्राध्यापक का वेतनमान 450 रुपए प्रति माह था। इसीलिए उन्होंने मुझे इस यात्रा को रोककर, पटना जाकर पद ग्रहण करने के लिए कहा। मैं उनकी सलाह को स्वीकार करने के लिए तैयार नहीं था, लेकिन उन्होंने जिद करके मेरा सामान ट्रेन से बाहर निकाला और मुझे पटना ले गए। पटना में गांधी संग्रहालय भवन के भीतर, बिहार गांधी जन्म शताब्दी उत्सव समिति से संबंधित एक कार्यालय था। इस समिति का गठन


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1969 में महात्मा गांधी के जन्म शताब्दी वर्ष के विकल्प नहीं बचता था। इसके बाद, श्री राजेंद्र करता था। वे बहुत अधिक शराब पीते थे। मैंने उत्सव की तैयारी करने के लिए किया गया था। लाल दास ने मुझे दो पुस्तकें दीं, एक खुद उनके उन्हें पीने से रोकने के लिए सुझाव दिया। मैंने श्री ध्रुव नारायण सिंह के परिचित श्री सरयू प्रसाद, द्वारा हिंदी में लिखी गई थी और दूसरी विश्व उनसे यह भी कहा था कि वे इतना ज्यादा ताश समिति के महासचिव थे। श्री सिंह ने श्री प्रसाद से स्वास्थ्य संगठन द्वारा प्रकाशित ‘ग्रामीण क्षेत्रों (प्लेकार्ड) न खेलें। उनके साथ रहते हुए, एक मुझे सचिव का काम देने के लिए कहा। बहुत ही और छोटे समुदायों के लिए मलमूत्र निपटान’ सुबह मैंने देखा कि एक नव-विवाहित लड़की को उसके सास-ससुर और उसका पति कस्बे आश्चर्यचकित होकर, श्री प्रसाद ने उनसे पूछा के नाम से थी। में जाकर कमाऊ शौचालयों को साफ करने के समाजशास्त्र में हमें सिखाया गया था कि कि किसने उन्हें सचिव के खाली पद के बारे में बताया है और कहा कि यहां कोई पद खाली नहीं यदि आप किसी समुदाय के लिए काम करना लिए मजबूर कर रहे थे। वह बहुत बुरी तरह से है। मैंने नौकरी की तलाश में पटना में 10 दिन चाहते हैं, तो आपको उस समुदाय के लोगों के रो रही थी, क्योंकि वह कस्बे में जाकर शौचालय बिताए और इसके बाद जब मैंने प्रवेश को लेकर साथ घनिष्ठता बनानी होगी, ताकि उन्हें जान साफ करने के लिए बिलकुल भी तैयार नहीं थी। सागर विश्वविद्यालय के रजिस्ट्रार से बात की तो सकें और उनकी समस्याएं समझ सकें। यह एक उसका मर्मभेदी रुदन सुनकर, मैं वहां गया और मुझे बताया गया कि सीट भरी जा चुकी हैं और ऐसा सबक था, जिसने मुझे एक स्कैवेंजर की हस्तक्षेप करते हुए परिवार के सदस्यों को उसे अब मुझे नहीं आना चाहिए। इसीलिए मेरे पास मदद से ‘स्कैवेंजर कॉलोनी’ में रहने के लिए मजबूर न करने के लिए राजी करने की कोशिश अब कोई विकल्प नहीं था, सिवाय इसके कि मैं प्रेरित किया। एक स्वतंत्रता सेनानी और भारत की। मैंने कहा कि अगर वह जाने के लिए तैयार गांधी जन्म शताब्दी उत्सव समिति में नौकरी की के पूर्व उप-प्रधानमंत्री जगजीवन राम के नाम नहीं है और शौचालय साफ नहीं करना चाहती तलाश की कोशिशें जारी रखूं। अंत में, मुझे समिति में हिंदी से अंग्रेजी और अंग्रेजी से हिंदी में अनुवाद के लिए एक अनुवादक की बिना वेतन के नौकरी मिल गई। मैंने उस पद को स्वीकार कर लिया। इस अवधि के दौरान, जो धन मैं कॉलेज में प्रवेश के लिए जा रहा था, खर्च हो गया। हालांकि, चार महीने बाद मेरे प्रदर्शन पर विचार करते हुए, मुझे महात्मा गांधी के आदर्शों को किताबों, पुस्तिकाओं, बैज, पोस्टर आदि के माध्यम से प्रचार के प्रभारी के रूप में 200 प्रति माह के वेतन पर नियुक्त किया गया। बाद में, मुझे ‘स्कैवेंजर्स मुक्ति सेल’ में स्थानांतरित कर दिया गया। यहीं से, मेरी यात्रा का दूसरा अध्याय शुरू हुआ। महासचिव श्री सरयू प्रसाद और ‘स्कैवेंजर्स मुक्ति सेल’ के आयोजक श्री राजेंद्र लाल दास बिहार की राजधानी पटना के गांधी मैदान के पास पहला सार्वजनिक सुलभ शौचालय परिसर ने मुझसे शुष्क शौचालयों को साफ कर मानव मल को सिर पर ढोने वाले स्कैवेंजर्स पर बनी स्कैवेंजर कॉलोनी में जब मैं रहने के तो उसे मजबूर न करें। उन्होंने मुझे सुना जरूर, की प्रतिष्ठा और मानवाधिकारों की बहाली के लिए आ रहा था, तो मुझे पूरा यकीन नहीं था कि लेकिन सहमत नहीं हुए, उन्होंने पलटकर मुझसे लिए काम करने को कहा। यह महात्मा गांधी के क्या मैं अपने इस प्रयास को जारी रखूं? क्योंकि ही पूछ लिया कि यदि वह मैला नहीं ढोएगी मेरे पिता बहुत परेशान थे और उन्हें लगता था तो वह कल से कुछ पैसे कमाने के लिए क्या सपनों में से भी एक था। मैंने श्री प्रसाद से कहा कि मैं एक रूढ़िवादी कि ब्राह्मण और शौचालय एक साथ नहीं आ करेगी। यहां तक कि अगर वह सब्जियां बेचने ब्राह्मण परिवार से हूं और मैंने उन्हें अपने बचपन सकते। तब तक मेरा विवाह भी हो गया था और जाए तो कौन उससे खरीदेगा? क्योंकि उसे तो की कहानी सुनाई, जब मैंने एक डोम महिला को मेरे ससुर बहुत गुस्से में थे। उन्होंने मुझे एक अछूत समझा जाता है। मेरे विरोध के बावजूद, छू लिया था और इसके लिए मेरे दादी ने मुझे ऐसी भाषा में लताड़ा जिसे मैं दोहराना भी नहीं उन्होंने उसे कमाऊ शौचालयों को साफ करने गोबर, गोमूत्र और गंगाजल को निगलने के लिए चाहता। ब्राह्मण समुदाय के लोगों ने भी मेरा के लिए भेजा। इस घटना के कुछ दिनों बाद, मैं अपने मजबूर कर दिया था। दूसरे, मैंने उनसे पूछा कि मजाक उड़ाया और मुझे अपमानित किया। यह मैं लोगों से कमाऊ शौचालयों का इस्तेमाल न स्थिति मेरे लिए पूरी तरह से प्रतिकूल थी और सहकर्मियों के साथ बाजार जा रहा था। हमने करने के लिए कैसे कहूं, जब तक कि मैं कमाऊ अछूत मैला ढोने वालों के जीवन को बदलने के देखा कि लाल कमीज पहने हुए एक 10 या 11 शौचालयों के विकल्प देने की स्थिति में नहीं हूं। लिए मेरी पहल के लिए कोई भी सराहना नहीं साल के लड़के पर एक सांड हमला कर रहा था। जब लोग उसे बचाने के लिए भागे, भीड़ में साथ ही यह तथ्य भी दिया कि मैं कोई इंजीनियर कर रहा था। वैसे भी, मैं स्कैवेंजरों की कॉलोनी, बेतिया से कोई चिल्लाया कि लड़का अछूत कॉलोनी में नहीं हूं तो मैं कैसे विकल्प खोज सकता हूं। श्री प्रसाद ने जवाब दिया कि उन्हंे नहीं पता कि गया और तीन महीने के लिए वहां रहा। इस दौरान रहता है और इसके बाद कोई भी उसे बचाने नहीं मैं ब्राह्मण हूं या इंजीनियर, लेकिन मुझमें कुछ मुझे उनके जन्म, संस्कृति, मूल्यों, नैतिकता आदि आया। मैं और मेरा दोस्त उसे अस्पताल ले गए, अलग उत्साह देखा और सोचा कि मैं यह काम के बारे में पता चला। मैं उनके साथ रहता था, लेकिन तब तक लड़का मर चुका था। इस घटना कर सकता हूं। अब मेरे पास कोई भी बहाना या बातचीत करता था और उन्हें शाम को पढ़ाया के बाद से ही, मैंने गांधी का सपना-स्कैवेंजरों को

इस अमानवीय और अस्वास्थ्यकर उपजीविका से मुक्त कराने की शपथ ले ली। गांधी ऐसे पहले व्यक्ति थे, जिनका ध्यान स्कैवेंजर्स की दुर्दशा की तरफ गया था। वह चाहते थे कि स्कैवेंजर्स इस अमानवीय कार्य से मुक्त हों और उम्मीद जताई कि उनकी गरिमा और प्रतिष्ठा की बहाली के साथ, समाज में अन्य लोगों की बराबरी पर उन्हें लाया जाए। गांधी यहां तक चाहते थे कि एक मैला ढोने वाले समुदाय से आने वाली कोई महिला भारत की राष्ट्रपति बने। स्वच्छता के जीवन भर प्रचारक रहे गांधी जी ने एक बार कहा था कि देश की राजनीतिक स्वतंत्रता की तुलना में स्वच्छता अधिक महत्वपूर्ण है। हालांकि, गांधी जी के जीवनकाल के दौरान, इस मोर्चे पर कुछ ज्यादा नहीं किया जा सका। गांधी जी के बाद, इस समस्या का समाधान जानने के लिए कई समितियां बनाई गईं। हर समिति ने स्कैवेंजर्स के रहने और जीवन-यापन की स्थिति में सुधार के लिए सुझाव दिए, लेकिन इस समस्या का समाधान कोई नहीं दे सका। कॉलोनी में रहने के दौरान, मैंने श्री राजेंद्र लाल दास द्वारा लिखी गई पुस्तक और 1958 में डब्ल्यूएचओ द्वारा प्रकाशित ‘ग्रामीण क्षेत्रों और छोटे समुदायों के लिए मलमूत्र का निपटान’ का गहन अध्ययन किया। मैं डब्लूएचओ की किताब के इस वाक्य से काफी प्रभावित हूं जिसमें कहा गया है, "यहां यह कहना उपयुक्त होगा कि पूरे विश्व में लैट्रिन डिजाइनों के विभिन्न समूहों में से, स्वच्छ गड्ढे वाले शौचालय सबसे व्यावहारिक और सार्वभौमिक रूप से लागू होने वाले रूप में उभर कर आते हैं।"

सुलभ आंदोलन का जन्म

बिहार के तत्कालीन मुख्यमंत्री श्री दरोगा प्रसाद राय और स्थानीय स्वशासन मंत्री श्री शत्रुघ्न शरण सिंह की सलाह पर साल 1970 में मैंने सुलभ शौचालय संस्थान की स्थापना की, जिसे अब एक गैर-लाभकारी स्वैच्छिक सामाजिक सेवा संगठन के रूप में ‘सुलभ इंटरनेशनल सोशल सर्विस ऑर्गेनाइजेशन’ के नाम से जाना जाता है। उनकी राय के अनुसार, अकेले सरकार या गैर सरकारी संगठनों द्वारा सामाजिक कार्यक्रम लागू नहीं किए जा सकते हैं। हम इस बात से सहमत थे कि गैर-सरकारी संगठनों को विकास के लक्ष्य हासिल करने और सामाजिक कार्यक्रमों को लागू करने के लिए सरकारी एजेंसियों के साथ मिलकर काम करना चाहिए। सुलभ की स्थापना के बाद, मैंने संगठन को चलाने के लिए 70,000 रुपए के सरकारी अनुदान के लिए आवेदन किया। इस बीच श्री दरोगा प्रसाद राय की सरकार गिर गई और नई सरकार आई। अनुदान के लिए


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आवरण कथा

09 - 15 अप्रैल 2018 सोचा। मुझे रेलवे प्लेटफार्म पर सोना पड़ता था और पैसे की कमी के कारण अक्सर खाना नहीं मिल पाता था। सरकार द्वारा न ही कोई भी अनुदान दिया गया और न ही कोई काम मिला। मैं अपने जीवन के एक हताशा के दौर से गुजर रहा था और टूटने की कगार पर था। 1973 में मैंने, तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी को एक पत्र लिखकर मैला ढोने वालों की मुक्ति से संबंधित स्थिति के बारे में बताने के लिए, बिहार विधानसभा के एक सदस्य को मनाया। साथ ही इस पत्र में समस्या पर व्यक्तिगत रूप से ध्यान देने के लिए अनुरोध भी किया। एक पखवाड़े के भीतर ही श्रीमती गांधी ने उन्हें जवाब दिया कि वे इस मामले पर अपना व्यक्तिगत ध्यान देने के लिए मुख्यमंत्री को लिख रहीं हैं। यद्यपि सरकार ने श्रीमती गांधी के पत्र का

1974 में सुलभ ने पटना शहर में कमाऊ शौचालयों के सुलभ शौचालयों में रूपांतरण का काम मैंने शुरू किया। स्थानीय स्वशासन विभाग, जो सुलभ को सरकार, स्थानीय निकायों और लाभार्थियों के बीच काम करने के लिए एक उत्प्रेरक कर्ता के रूप में पहचान देने पर विचार कर रहा था; ने मेरे प्रस्ताव को अप्रैल 1974 में मंजूरी दे दी मेरा आवेदन स्थानीय स्वशासन से योजना और फिर वित्त के पास भेजा गया, लेकिन इसका कोई फायदा नहीं हुआ। साल 1971 में, आईएएस अधिकारी श्री रामेश्वर नाथ, स्थानीय स्व-शासन विभाग में शामिल हुए और मुझसे मिलने के लिए बुलाया। मैंने उनसे मुलाकात की और उन्होंने कहा कि उन्होंने मेरे कागजात देखे हैं और वे यह महसूस करते हैं कि स्वच्छता और सामाजिक सुधार के लिए सुलभ कार्यक्रम का देश में बहुत प्रभाव पड़ेगा। लेकिन वह मेरे अनुदान मांगने के निर्णय में एक बड़ा खतरा देखते हैं। उन्होंने कहा कि इसकी बहुत अधिक संभावना है कि वित्त विभाग सवाल उठाएगा और अनुदान के लिए मेरे अनुरोध पर आपत्ति जताएगा। और अगले साल जब मैं एक और अनुदान के लिए फिर से आवेदन करूंगा, तो शायद मुझे काफी देर के बाद एक और 50,000 रुपए का अनुदान मिल जाए। उन्होंने स्पष्ट रूप से कहा कि अनुदान के आधार पर भविष्य में कार्यक्रम बहुत सफल नहीं हो पाएगा। इसीलिए उन्होंने सुझाव दिया कि अनुदान मांगने के बजाय मुझे कार्यक्रम के कार्यान्वयन के लिए पैसा लेना चाहिए और फिर बचत से मुझे संगठन चलाना चाहिए। मैंने श्री नाथ की सलाह मानते हुए, सरकार से, कुछ अनुदान देने के बजाय सुलभ को कुछ

काम देने के लिए आवेदन किया। चूंकि इस मामले के निर्णय में समय लग रहा था और मुझे धन की बहुत जरूरत थी, मैंने अपने दम पर कुछ संसाधन जुटाए। मैंने अपने गांव में कुछ जमीन और पत्नी के गहने बेच दिए, साथ ही संगठन चलाने के लिए दोस्तों से ऋण भी लिया। मेरे जीवन का यह दौर बहुत तनावपूर्ण था और कभी-कभी मैंने आत्महत्या करने के बारे में भी

संज्ञान लेते हुए, इस पर कार्य करना शुरू कर दिया, लेकिन नौकरशाही की लालफीताशाही में फंसकर यह मुद्दा फिर से कहीं खो गया। इस प्रकार, मैला ढोने वालों की समस्या अनसुलझी रही। हालांकि, अगस्त 1973 में, आशा की एक किरण फिर से दिखाई दी। मैं कुछ अधिकारियों से मिलने के लिए आरा शहर गया था और वहां

मैंने आरा नगर पालिका के कार्यकारी अधिकारी श्री आर. के नाम का एक बोर्ड देखा। मैंने कमरे में प्रवेश किया तो उन्होंने मुझसे पूछा कि मैं क्या कर रहा हूं। मैंने उन्हें अपने कार्यक्रम के लिए सरकार द्वारा फंड मंजूर करवाने के प्रयासों के बारे में बताया, साथ ही यह भी कि सरकार ने अब तक इस मामले में स्थानीय निकायों (नगर पालिकाओं या नगर निगमों) को कोई आदेश नहीं दिया है। इस प्रकार, इस समय मैं बिना किसी काम के हूं। यह सुनकर, उन्होंने मुझे आरा नगरपालिका के कार्यालय परिसर में प्रदर्शन के लिए दो शौचालय बनाने के वास्ते 500 रुपए दिए। मैंने शौचालयों का निर्माण किया। जब नगर पालिका के अध्यक्ष श्री राम विलास सिंह प्रदर्शन परियोजना को देखने आए, वह बहुत ही खुश हुए। वे एक स्वतंत्रता सेनानी थे और मैला ढोने वालों को अमानवीय कार्य से मुक्ति के महात्मा गांधी के सपने से पूरी तरह अवगत थे। आरा शहर में इस तरह के शौचालय बनाने और मौजूदा कमाऊ शौचालयों को सुलभ टू पिट फ्लश शौचालयों में बदलने के कार्यकारी अधिकारी के प्रस्ताव से अध्यक्ष पूरी तरह सहमत थे। जब मैंने स्वच्छता के लिए अपना काम शुरू किया, तो शहरी और ग्रामीण दोनों ही क्षेत्रों में भारत में स्थिति बहुत निराशाजनक थी। केवल कुछ कस्बों में ही सीवेज व्यवस्था का प्रावधान था और बहुत कम लोग सेप्टिक टैंक का इस्तेमाल कर रहे थे। बड़े पैमाने पर प्रचलित दो व्यवस्थाएं जो बहुत ही गंदी थीं खुले में शौच के लिए जाना और नंगे हांथों से मैला ढोना। मैं अकेले ही, लाभार्थियों के दरवाजे पर जा-जाकर उन्हें कमाऊ लै​िट्रन की जगह सुलभ शौचालय बनवाने के लिए प्रेरित और शिक्षित करता था। लेकिन लोग इस तकनीक को स्वीकार करने के लिए तैयार नहीं थे और मैं निराशा महसूस कर रहा था। अंत में, आरा नगर पालिका के एक निगम पार्षद, श्री सुरेश प्रसाद सिंह, मेरे बचाव में आए और उन्होंने मुझे अपने घर के कमाऊ शौचालयों को सुलभ फ्लश शौचालयों में परिवर्तित करने के लिए कहा। उनके घर में सुलभ शौचालयों के कामकाज को देखने के बाद, उनके पड़ोसी भी शौचालय बनवाने लगे और फिर शहर के लोग अपने घरों में कमाऊ शौचालयों को सुलभ शौचालयों में परिवर्तित करने के लिए समूह में आने शुरू हो गए। इस प्रकार, बिहार में कमाऊ शौचालय के रूपांतरण का काम शुरू हुआ। इसके बाद, पड़ोसी शहर बक्सर के कार्यकारी अधिकारी को इस योजना के बारे में पता चला और मुझे वहां भी ऐसी परियोजनाओं को लागू करने के लिए कहा। और फिर बक्सर में भी काम शुरू हुआ। साल 1974 में सुलभ ने पटना शहर में कमाऊ शौचालयों के सुलभ शौचालयों में रूपांतरण का काम मैंने शुरू किया। स्थानीय स्व-शासन विभाग, जो सुलभ को सरकार, स्थानीय निकायों और लाभार्थियों के बीच काम करने के लिए एक


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आवरण कथा

उत्प्रेरक कर्ता के रूप में पहचान देने पर विचार कर रहा था, ने मेरे प्रस्ताव को अप्रैल 1974 में मंजूरी दे दी। सरकार ने सभी स्थानीय निकायों को एक परिपत्र भेजा, जिसमें कहा गया कि मैला ढोने वालों को अमानवीय कार्य से मुक्ति दिलाने के उद्देश्य से, कमाऊ शौचालयों के सुलभ शौचालय में रूपांतरण के लिए सुलभ संस्थान की सहायता ली जाए। इसके बाद, यह कार्यक्रम पूरे बिहार राज्य में शुरू किया गया।

टू पिट पोर फ्लश तकनीक

1970 में, मैंने दो गड्ढे वाले पोर फ्लश के कई डिजाइनों का आविष्कार कर उन्हें विकसित किया, जिसे बाद में सुलभ शौचालय के रूप में लोकप्रिय बनाया। विभिन्न डिजाइन नीचे दिए नई दिल्ली में सुलभ बायोगैस संयंत्र के साथ 'भुगतान एवं उपयोग' आधार पर सार्वजनिक सुलभ शौचालय गए हैं। पहला डिजाइन दो-गड्ढे वाला शौचालय (चित्र 1) है। गड्ढ़े घुमावदार हैं और गड्ढे से 15' की दूरी बनाए रखी जानी चाहिए। • विभिन्न भौतिक और भौगोलिक स्थितियों में दोनों गड्ढों के बीच कम से कम 1 मीटर की खुले कुओं से शौचालयों का निर्माण 30 फीट दूर भी निर्माण किया जा सकता है । दूरी रखी गई है, ताकि यह सुनिश्चित हो सके होना चाहिए। संक्षेप में कहें, तो यदि शौचालयों • अगर निर्माण के दौरान उचित सावधानी और कि गड्ढे को साफ करके, उर्वरक निकालने के को कुछ सावधानियों के साथ बनाया जाता है, सुरक्षा उपायों को किया जाता है तो यह स्वास्थ्य समय, पानी तल पर न रहे और गड्ढा पूरी तरह तो भू-जल प्रदूषण का कोई भी मामला सामने संबंधी खतरों से मुक्त है और सतह या भूजल को से सूखा रहे। दूसरे डिजाइन में, पानी एक गड्ढे नहीं आएगा। प्रदूषित नहीं करता है। जब मैं न े बिहार की राज्य सरकार को सु ल भ से दूसरे तक नहीं जाता है ताकि सूखा उर्वरक • घरों के ऊपरी मंजिलों पर भी निर्माण किया बाहर निकाला जा सके (चित्र 2)। यह डिजाइन के दो-गड्ढे वाले शौचालय के डिजाइन को जा सकता है। उस क्षेत्र में उपयोग किया जाता है जहां कम प्रस्तुत किया, तो शुरू में सरकार को कुछ संदेह • गड्ढा आम तौर पर तीन साल के विच्छेदन स्थान होता है। संकीर्ण लेन में, गड्ढों को एक था और वह तकनीक को पहचान देने के लिए अंतराल के लिए तैयार किए जाते हैं, लेकिन यदि दिशा में रखा जाता है और दूसरा गड्ढा पाइप तैयार नहीं थी। लेकिन चर्चा के बाद, बिहार कोई चाहे तो इसे लंबे समय तक के लिए भी से जुड़ा होता है। यदि वहां पर पैन की तुलना में सरकार ने स्थानीय निकायों और नगरपालिकाओं तैयार किया जा सकता है या कम करके दो साल कम जगह है और पानी की सील विभाजन की को एक सर्कुलर भेजा और कमाऊ शौचालयों के लिए भी तैयार कर सकते हैं। दीवार पर ही रखी गई है और विभाजन की दीवार को सुलभ शौचालयों में रूपांतरण के आदेश • रखरखाव आसान और सरल है, साथ ही 1'3 की बनी है। तो कम से कम जगह में भी, दिए। इस समय तक, गांधी जन्म शताब्दी उत्सव लागत भी कम है। सुलभ शौचालयों का निर्माण किया जा सकता समिति की अवधि खत्म हो गई थी और इसे • फ्लशिंग के लिए केवल एक लीटर पानी है, यहां तक कि एक घर के बरामदे में भी। लोग खत्म करना था। की जरूरत होती है, जबकि पारंपरिक फ्लश ढंके हुए गड्ढे का उपयोग मार्ग के रूप में कर शौचालय में 10 से 12 लीटर पानी की जरूरत सकते हैं, क्योंकि इससे बदबू नहीं आती है, कुछ सुलभ टू पिट पोर फ्लश शौचालय होती है। भी दिखाई नहीं देता है और कोई भी गैस पाइप के फायदे • से​िप्टक टैंक टॉयलेट सिस्टम की तुलना में उपलब्ध नहीं होती है। लोग विभिन्न उद्देश्यों • स्वच्छता और तकनीकी रूप से उचित, और यहां कम जगह की आवश्यकता होती है। जैसे-खाद्यान्न की सफाई, खाना पकाना आदि के सामाजिक-सांस्कृतिक रूप से स्वीकार्य। • गड्ढों की सफाई या कीचड़ के निपटान के लिए भी गड्ढे पर रखे स्लैब का उपयोग करना • स्थानीय स्तर पर उपलब्ध सामग्री के साथ लिए मैला ढोने वालों की जरूरत नहीं होती है। पसंद करते हैं। कई बार, गड्ढे पर बने स्लैब के आसानी से निर्माण संभव, सस्ता और सबकी यह खुद घर के मालिक द्वारा किया जा सकता ऊपर एक छोटी सी दुकान खोल दी जाती है। पहुंच में। है। एक पाइप के साथ जुड़ा यह शौचालय घर के • घर की जरूरतों और सामर्थ्य के हिसाब से, • बेहतर उर्वरक और अनुकूलक मिट्टी को ऊपरी मंजिल पर भी बनाया जा सकता है, साथ डिजाइनों और विनिर्देशों (स्पेसिफिकेशन) को उपलब्ध कराता है। ही इसे वहां भी बनाया जा सकता है जहां पानी संशोधित किया जा सकता है। • जब क्षेत्र में सीवर उपलब्ध हो तो उससे का जल स्तर अधिक हो। • मच्छरों, कीड़े और मक्खियों के प्रजनन को आसानी से इसे जोड़ा जा सकता है। उच्च जल-स्तर वाले क्षेत्र में, अच्छी तरह से समाप्त करता है। • अधिक फ्लशिंग से बचने के लिए, एक कम कार्य करने के लिए गड्ढे का ऊपरी भाग, पानी के जल-स्तर से दो फीट ऊपर होना चाहिए। गड्ढे के ऊपरी भाग को जल-स्तर के बराबर कुछ समय पहले, सार्वजनिक शौचालयों को पृथ्वी पर नरक माना जाता था। नहीं बनाया जाना चाहिए। जहां भी पानी की इसीलिए जब लोगों ने ‘भुगतान और उपयोग’ के आधार पर सार्वजनिक आपूर्ति पाइपलाइनों के माध्यम से होती है, वहां शौचालय चलाने के विचार के बारे में सुना, तो उन्होंने इसे गंभीरता से नहीं पानी के प्रदूषण का कोई खतरा नहीं होता है। यदि पानी का स्रोत नलकूप (ट्यूबवैल) है, तो लिया और सोचा कि शौचालय के उपयोग के लिए कोई भी भुगतान नहीं करेगा

07 वॉल्यूम फ्लशिंग सिस्टर्न (कुंड) जोड़ा जा सकता है। विद्यालयों में शौचालय सुविधाओं की अनुपस्थिति ने लड़कियों की स्कूलों में उपस्थिति कम कर दी और इसके परिणामस्वरूप लड़कियां विद्यालयों को छोड़ने लगीं। स्कूलों में शौचालय सुविधाएं प्रदान करने के मेरे प्रयासों से इसमें कमी आई है। शौचालय सुविधाओं के प्रावधान से सबसे ज्यादा फायदा महिलाओं को हुआ है। इतने सालों में, सुलभ ने 15 लाख से अधिक कमाऊ शौचालयों का रूपांतरण किया है। पिछले 40 सालों में, जिन क्षेत्रों और घरों में सुलभ शौचालय के प्रयोग किए जा रहे हैं, वहां पीलिया का कोई भी मामला दर्ज नहीं किया गया है। यह तकनीक पूरी तरह से सुरक्षित और स्वच्छ है और स्वच्छ शौचालयों की सभी मांगों को पूरा करती है।

सार्वजनिक शौचालय परिसर

साल 1974 में, एक आईएएस अधिकारी श्री राजदेव नारायण सिंह पटना नगर निगम में एक प्रशासक के रूप में आए। शहर को साफ करने की शपथ लेने के बाद, वह अलग-अलग स्थानों पर सार्वजनिक शौचालयों का निर्माण और उसकी उचित देखभाल चाहते थे। एक सुबह, जब मैं उनके घर पर बैठा हुआ था, तो उन्होंने पटना में रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया के कार्यालय के पास एक सार्वजनिक शौचालय बनाने के लिए निगम के मुख्य अभियंता से पूछा। आरबीआई भवन, गांधी मैदान के पास स्थित है। गांधी मैदान एक बड़ा मैदान है जहां पांच लाख से ज्यादा लोग इकट्ठा हो सकते हैं। उसी दिन, श्री सिंह ने मुझे शाम 3 बजे उसी स्थान पर आने के लिए आमंत्रित किया। जैसे ही मैं उस स्थान पर पहुंचा, मैंने उन्हें अपने मुख्य अभियंता को एक दिन में एक सार्वजनिक शौचालय के निर्माण का निर्देश देते हुए सुना। मुख्य अभियंता भौचक्का था और उसने ऐसा करने में अपनी असमर्थता व्यक्त करते हुए कहा कि एक दिन में सार्वजनिक शौचालय का निर्माण करना असंभव है। व्यवस्थापक श्री सिंह ने मेरी तरफ देखते हुए पूछा कि क्या मैं यह कर सकता हूं। कुछ सेकंड के लिए, मैंने इस मामले पर सोचा और महसूस किया कि यह एक बहुत अच्छा मौका है जिसे मुझे हाथ से जाने नहीं देना चाहिए। इसीलिए मैंने अपनी तत्परता व्यक्त करते हुए कहा, ‘हां, मैं यह कर सकता हूं।’ यह सुनकर, उन्होंने मुझे बताया कि निगम भूमि और निर्माण की लागत प्रदान करेगा, लेकिन रखरखाव का खर्च नहीं देगा, साथ ही इस पर उन्होंने सुझाव दिया कि मुझे सार्वजनिक शौचालय की ‘भुगतान और उपयोग’ के आधार देखभाल करनी चाहिए। भारतीय लोगों को शौचालयों के उपयोग के लिए भुगतान करने की आदत में नहीं थे। साल 1878 में, हालांकि बंगाल की तत्कालीन ब्रिटिश


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सरकार द्वारा ‘भुगतान और उपयोग’ के आधार पर सार्वजनिक शौचालयों के रखरखाव के लिए, एक अधिनियम पारित किया गया था, लेकिन यह सफल नहीं रहा। मेरा स्वच्छता कार्य शुरू होने से पहले, भारत में धार्मिक और पर्यटन केंद्रों सहित सार्वजनिक स्थलों पर कोई सार्वजनिक सुविधा नहीं थी। निम्नलिखित उपाख्यान केवल शौचालयों की कमी ही नहीं, बल्कि उनके बारे में कोई जागरुकता न होने के बारे में भी बताता है। हमारे यहां शौचालय की क्या स्थिति रही है, यह बताने के लिए मैं आपको एक मनोरंजक कहानी बताना चाहता हूं। ये वे दिन थे, जब हमारे यहां सार्वजनिक शौचालय की सुविधाएं नहीं थीं। एक अंग्रेज महिला ने भारत आने की योजना बनाई, उसने एक साधरण से अतिथिगृह में रहने के लिए अपना नाम लिखवाया, वह व्यवस्था स्थानीय स्कूल शिक्षक ने अपने घर में ही कर रखी थी। उसे महिला को यह चिंता थी सुलभ ने महाराष्ट्र के शिरडी में दूसरे सबसे बड़े शौचालय का निर्माण और रख-रखाव किया है, इसमें 148 शौचालय, ड्रेसिंग रूम, बेबी सिटिंग, स्तनपान कराने की सुविधा और 108 बाथरूम हैं। साथ ही तीर्थयात्रियों के सामान रखने के लिए 2,300 लॉकर भी हैं। यह परिसर बायोगैस संयंत्र में मानव-मल से बनी बिजली से प्रकाशित होता है। 50,000 व्यक्ति इन सुविधाओं का रोजाना उपयोग कर सकते हैं

आवरण कथा

09 - 15 अप्रैल 2018

महाराष्ट्र के पंढरपुर में कि उस घर में पश्चिमी शैली का यह बात आपके लिए दिलचस्पी दु निया का सबसे बड़ा सु ल भ जलप्रवाही शौचालय यानी डब्ल्यू. की हो सकती है कि मेरी बेटी का सी. (वाॅटर क्लोजेट) है या नहीं। सार्वजनिक शौचालय परिसर विवाह डब्ल्यू.सी. वाले घर में ही उसने स्कूल के शिक्षक को हुआ था, वह वहीं अपने पति से खत लिखकर यह जानकारी मांगी कि वैसा मिली थी। शौचालय (डब्ल्यू.सी.)घर में है या नहीं। शिक्षक वह एक शानदार घटना थी। हर सीट के अंग्रेजी में पारंगत नहीं थे। उन्होंने स्थानीय पादरी पास 10 लोग थे। उनके चेहरे पर उभरे भावों से पूछा कि क्या वह डब्ल्यू.सी. का अर्थ जानते को देखना अद्भुत लगता था। कुछ दिनों से मेरी हैं। दोनों उसका अर्थ जानने के लिए कुछ देर पत्नी बीमार रही है और वह हाल में वहां नहीं तक माथापच्ची करते रहे और आखिर मंे इस जा सकी है। आखिरी बार वह सालभर पहले नतीजे पर पहुंचे कि शायद महिला यह जानना वहां गई थी, इससे उसे काफी तकलीफ है। यह चाहती है कि घर के करीब में ‘वेसाइड चैपल’ जानकर आपको खुशी होगी कि वहां बहुत-से (गिरजाघर) है या नहीं। उनके दिमाग में यह लोग अपना दिन का भोजन लेकर आते हैं और बात नहीं आई कि उस शब्द का अर्थ शौचगृह उसका आनंद उठाते हैं। भी हो सकता है। अतः उसने उस अंग्रेज महिला कुछ दूसरे लोग हैं, जो आखिरी मिनट तक को लिखा: प्रतीक्षा करते हैं, लेकिन ठीक समय पर पहुंच परम आदरणीया, जाते हैं। मैं सिफारिश करूंगा। चूंकि वहां साज मुझे आपको यह सूचना देते हुए प्रसन्नता भी रहता है, चारो ओर मधुर ध्वनियां सुनाई हो रही है कि डब्ल्यू.सी. घर से 9 मील की देती हैं। अतः आप वहां बृहस्पतिवार को जाने दूरी पर स्थित है। वह चीड़ के वृ​ृक्षों के मध्य की योजना बनाएं। हाल में वहां पर एक घंटी स्थित है। उसके चारों ओर मनोभावन दृश्य हैं। लगाई गई है, जो किसी के वहां प्रवेश होने के उसमें 229 लोग बैठ सकते हैं और वह रविवार साथ ही बजने लगती है। हम वहां एक बाजार एवं बृहस्पतिवार को खुला रहता है। गर्मी के लगाने का सोच रहे हैं, ताकि सभी के लिए वहां महीनों में बहुत-से लोगों के आने की संभावना है, पर अच्छी सीटों की व्यवस्था हो सके, जिसकी अतः मेरा सुझाव है कि आप कुछ जल्द ही आ सख्त जरूरत है। मैं उस क्षण की प्रतीक्षा कर जाएं। बहरहाल, खड़ा होने के लिए वहां काफी रहा हूं, जब मैं खुद आपको लेकर वहां जाऊंगा जगह है। लेकिन यदि आप वहां नियमित रूप से और ऐसी जगह पर बिठाऊंगा, जहां से आप सभी जानेवाले लोगों में हैं तो थोड़ा कष्ट हो सकता है। लोगों को दिखाई दे सकें।

हार्दिक अभिवादन के साथ, स्कूल मास्टर।’ आपको यह जानकर आश्चर्य नहीं होगा कि वह महिला कभी भारत नहीं आई। तो भारत में स्वच्छता की ऐसी ही स्थिति थी। हमें इसमें अभी भी काफी बदलाव लाने की आवश्यकता है। कुछ समय पहले, सार्वजनिक शौचालयों को पृथ्वी पर नरक माना जाता था। इसीलिए जब लोगों ने ‘भुगतान और उपयोग’ के आधार पर सार्वजनिक शौचालय चलाने के विचार के बारे में सुना, तो उन्होंने इसे गंभीरता से नहीं लिया, और सोचा कि शौचालय के उपयोग के लिए कोई भी भुगतान नहीं करेगा। जब मैंने मूत्रालय और स्नानागार की सुविधाओं के साथ पहला सार्वजनिक शौचालय बनाया, तो मैंने हाथ धोने के लिए साबुन पाउडर भी प्रदान किया, क्योंकि भारतीय शौच के बाद हाथ धोने के लिए पानी का उपयोग करते हैं। इसके परिणामस्वरूप, पहले दिन ही, पांच सौ लोगों ने शौचालयों का इस्तेमाल किया और सुविधा के लिए भुगतान किया। पटना के कई प्रतिष्ठित लोग सुबह शौचालयों के उपयोग के लिए भुगतान करने वाले लोगों को देखने के लिए आते थे। दूसरे शब्दों में कहें, तो इस साधारण विचार ने बहुत अच्छी तरह से काम किया और 1974 में, पटना के कुछ हिस्सों के साथ-साथ, बिहार के अन्य शहरों में भी कमाऊ शौचालयों के सुलभ शौचालयों में रूपांतरण की मांग में वृद्धि हुई। पूरे बिहार में, लोगों ने शौचालयों के उपयोग के लिए ‘भुगतान और उपयोग’ प्रणाली को अपनाना शुरू कर दिया था। मैंने एक और पहल की सार्वजनिक शौचालय को लेकर मैंने मानव-मल के निपटान के लिए एक पिट लै​िट्रन का भी अध्ययन किया, जिसमें प्रति व्यक्ति प्रति साल 8 फुट 3’ के हिसाब से जगह थी। इसने छह महीने के लिए अच्छी तरह से काम किया। लेकिन उसके बाद यह अक्सर भरना शुरू हो गया, क्योंकि नीचे सतह पर मानव- मल खाद में परिवर्तित हो जाता था। इसीलिए, ऐसे गड्ढे वाले शौचालयों का देखरेख करना मुश्किल हो गया। मैं बाद में सेप्टिक टैंकों के निर्माण की ओर अग्रसर हुआ,


09 - 15 अप्रैल 2018 लेकिन सार्वजनिक शौचालयों में पोर-फ्लश (पानी डालना) के प्रावधान के कारण वो भी अक्सर भर जाते थे। मानव-मल बहुत जल्द जमा हो जाता था और सेप्टिक टैंक लगातार भरता रहता था। इसीलिए मैंने मानव-मल के निपटान के लिए उपयुक्त तकनीक की खोज करना शुरू कर दिया। 1978 में, भारत सरकार, डब्ल्यूएचओ और यूनिसेफ द्वारा पटना में एक राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन किया गया, जिसमें भारत सरकार के अधिकारियों, राज्य सरकारों के सचिवों और मुख्य अभियंताओं और राज्य और केंद्र सरकार के अन्य विशेषज्ञों ने भाग लिया। वे घर-घर व्यक्तिगत शौचालय और सार्वजनिक स्थानों पर और सार्वजनिक शौचालय के कामकाज को देखने के लिए गए। शौचालय देखने के बाद भारत में पहली बार, यह सिफारिश की गई कि बिहार में लागू कार्यक्रम भारत के अन्य राज्यों में भी लागू किया जाए। इस प्रकार सुलभ नवाचारों का प्रसार, बिहार से शुरू होकर, देश के अन्य हिस्सों में फैलने लगा। 1979 में, यूएनडीपी प्रकाश में आया और सात सालों तक यह कम लागत वाली स्वच्छता की योजनाओं और गड्ढे-शौचालयों से पानी की स्थिति का मूल्यांकन करता रहा। उसने कम लागत वाली स्वच्छता की योजनाओं के लिए नियमावली तैयार की और इसे अंतरराष्ट्रीय एजेंसियों और एशिया, अफ्रीका और लैटिन अमेरिका के देशों में वितरित किया। 1980 में, यूनिसेफ ने कलकत्ता (अब कोलकाता) में यूएनडीपी द्वारा आयोजित अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी को वित्त-पोषित किया और उन्होंने इस परियोजना में रुचि लेना शुरू कर दिया। अब तक, सुलभ ने 8,500 से अधिक सार्वजनिक शौचालयों का निर्माण किया है, साथ ही अन्य गैर-सरकारी संगठनों और सरकारों ने भारत में कई और सार्वजनिक शौचालय स्थापित किए हैं। अब लोग शौचालय के उपयोग को लेकर भुगतान के लिए आदी हो चुके थे। सुलभ शौचालयों में लोगों और विदेशी पर्यटकों के लिए उपलब्धता और पहुंच को लेकर काफी सुधार हुआ है। राज्य सरकारों और नगर निगम निकायों के निर्देश पर कमाऊ शौचालयों को सुलभ शौचालयों में परिवर्तित करके, बड़ी संख्या में स्कैवेंजर्स (120,000 से अधिक मैला ढोने वाले) को मुक्त कराया गया है। अब तक, भारत के 26 राज्यों और चार केंद्रशासित प्रदेशों के 1687 शहरों/कस्बों में 1620 स्थानीय निकायों में 15 लाख बकेट शौचालयों को सुलभ शौचालयों में सुलभ द्वारा परिवर्तित किया गया है। व्यक्तिगत घरों और सार्वजनिक स्थानों पर बनाए गए सुलभ शौचालयों का रोजाना 2 करोड़ लोग उपयोग करते हैं। भारत में कई धर्मों और जाति-व्यवस्था की उपस्थिति के कारण, जाति और धार्मिक तनाव के मामले अक्सर दर्ज होते हैं। हालांकि, सुलभ सार्वजनिक शौचालय

(बाएं) तत्कालीन राज्यसभा सांसद और अब विदेश मामलों की कैबिनेट मंत्री सुषमा स्वराज द्वारा वित्त-पोषित, मध्य प्रदेश के होशंगाबाद के सेठानी घाट पर स्थित सुलभ शौचालय परिसर

ऐसा स्थान है, जो राष्ट्रीय एकीकरण का प्रतिनिधित्व कर और उसे बढ़ावा देते हैं। अब तक, एक भी ऐसा मामला दर्ज नहीं किया गया है जहां हिंदू या मुस्लिम, ऊपरी या निचली जातियों या पूर्व-अस्पृश्य सदस्यों ने सार्वजनिक शौचालय का इस्तेमाल करने से मना कर दिया हो क्योंकि 'अन्य' भी शौचालयों का इस्तेमाल करते हैं।

वितरण तंत्र

प्रौद्योगिकी का विकास महत्वपूर्ण था, लेकिन समान रूप से महत्वपूर्ण यह भी था कि वितरण तंत्र को अपनाकर इस तकनीक को लोगों तक पहुंचाना, ताकि उनके घरों में कमाऊ शौचालयों को सुलभ शौचालयों में परिवर्तित किया जा सके। आम तौर पर, जब लाभार्थी नगरपालिका निकायों में जाते हैं, तो उन्हें सब्सिडी और ऋण प्राप्त करने के लिए समय लगता है और उन्हें संबंधित अधिकारियों और क्लर्कों से उत्पीड़न का सामना करना पड़ता है। इसीलिए लोग नगर निगम के निकायों में जाने को लेकर हतोत्साहित रहते हैं। इस समस्या से निपटने के लिए, बिहार सरकार ने फैसला किया कि सुलभ के सामाजिक कार्यकर्ता लाभार्थियों के घर-घर जाकर, उनके कमाऊ शौचालयों को परिवर्तित करने के लिए उन्हें प्रेरित और शिक्षित कर, मनाएंगे। अफगानिस्तान के काबुल में सुलभ शौचालय परिसर

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आवरण कथा

(ऊपर) अंदर का दृश्य - झारखंड के देवघर में अत्याधुनिक सुविधाओं के साथ सुलभ शौचालय परिसर

सामाजिक कार्यकर्ता घर वालों को कमाऊ शौचालयों की वजह से बदबूदार वातावरण के कारण स्वास्थ्य के खतरों के बारे में बताते हैं। वे लोगों को बताते हैं कि सुलभ शौचालयों को साफ करने के लिए किसी स्कैवेंजर्स की आवश्यकता नहीं होगी और किसी भी प्रकार की गंदगी, बदबूदार पर्यावरण और स्वास्थ्य का खतरा नहीं होगा। इस प्रकार की सूचना से, लाभार्थी अपने कमाऊ शौचालयों को बदलने के लिए सहमत हो गए। फिर उन सब ने फार्म भरें और नगरपालिका निकायों और लाभार्थियों के बीच आवश्यक समझौते पर हस्ताक्षर किए और सुलभ को उनकी ओर से नगरपालिका निकाय से पैसे लेने के लिए अधिकृत किया। उसके बाद सुलभ सामाजिक कार्यकर्ता, नगरपालिका कार्यालयों में जाते हैं, प्रक्रियाओं का पालन करते हुए आवश्यक औपचारिकताओं को पूरा करते हैं। तब लाभार्थियों की ओर से वे धन प्राप्त करते हैं। सामग्री एकत्र की जाती है, फिर मजदूरों और श्रमिकों को इकठ्ठा किया जाता है। तब जाकर सुलभ कार्यकर्ता, लाभार्थियों के परिसर में शौचालय का निर्माण कराते हैं। भ्रष्टाचार के प्रबल मत के बीच में, सुलभ ने घर के शौचालयों का निर्माण करते समय, तैयार आकलन के मुताबिक ही उत्तम सामग्री का उपयोग करने के लिए सावधानी बरतता है और

निर्माण की निगरानी भी करता है। लाभार्थियों की संतुष्टि पर डाक या मेल के माध्यम से पूछताछ की जाती है और लाभार्थियों को गारंटी कार्ड दिए जाते हैं। कार्ड में लिखा गया है कि यदि दो वर्ष की अवधि के दौरान कुछ भी गड़बड़ी होती है या निर्माण में कोई खराबी आ जाती है, तो उसे निशूल्क ठीक किया जाएगा। इस तरह से, बिहार में कमाऊ शौचालयों का सुलभ शौचालयों में रूपांतरण शुरू हुआ। सभी लाभार्थी, नगरपालिका निकाय और सरकारी रूपांतरण कार्य से पूरी तरह संतुष्ट थे और इसने सरकार और सामान्य जनता के साथ सुलभ की बेहतर पहचान विकसित की। पहले बताए गया वितरण तंत्र, अभी भी अस्तित्व में है। इस प्रक्रिया से यह सुनिश्चित किया जा सका कि शिकायत केवल बहुत ही छोटी संख्या में प्राप्त की जाती है, जिन्हें जल्द से जल्द ठीक कर दिया जाता है। राज्य सरकारों द्वारा कमाऊ शौचालयों को सुलभ डिजाइन में परिवर्तित करके और नगरपालिका निकायों के प्रयासों से लाखों स्कैवेंजर्स मुक्त हुए हैं। अब तक 15 लाख कमाऊ शौचालयों को देश के विभिन्न हिस्सों में विभिन्न नगरपालिका निकायों में सुलभ ने परिवर्तित किया है।

महाराष्ट्र के पंढरपुर में विश्व का सबसे बड़ा शौचालय घर

बुनियादी शौचालय सुविधाओं की कमी के कारण अस्वास्थ्यकर परिस्थितियां, अन्य स्थानों की तुलना में भारत के तीर्थ केंद्रों पर अधिक भयावह होती है, इसका मुख्य कारण है कि वह तीर्थयात्रियों के लिए पवित्र स्थान होता है। सार्वजनिक और धार्मिक स्थानों पर शौचालयों के

बायोगैस संयंत्र, काबुल


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आवरण कथा

09 - 15 अप्रैल 2018 में शौच से मुक्त बना के माननीय प्रधानमंत्री के सपनों को पूरा करने का प्रयास कर रहा है।

बायोगैस प्रौद्योगिकी

नई दिल्ली में सुलभ बायोगैस संयंत्र

पटना में स्ट्रीट लाइट जलाने के लिए बायोगैस का इस्तेमाल

बायोगैस को बिजली में परिवर्तित करने वाला इंजन

खाना पकाने के लिए बायोगैस का प्रयोग

निर्माण के लिए सुलभ ने अपने प्रयासों को जारी रखते हुए, हाल ही में महाराष्ट्र के जिला सोलापुर में स्थित सबसे लोकप्रिय तीर्थ नगरों में से एक पंढरपुर को चुना। विठोबा या विठ्ठल, भगवान विष्णु के अवतार, पंढरपुर के देवता हैं और इनका मंदिर भीमा नदी के तट पर स्थित है। इस मंदिर में आषाढ़ी एकदशी यात्रा के दौरान 12 लाख से अधिक तीर्थयात्री आते हैं। आषाढ़ी एकदशी यात्रा और अन्य यात्राओं और एक महीने में दो आरतियों के दौरान, हर साल करीब एक करोड़ तीर्थयात्री, पवित्र विठ्ठल मंदिर में आते हैं। खुले सुलभ एफ्लूएंट टेक्नोलॉजी संयंत्र

में शौच से मुक्ति, विशेषकर धार्मिक स्थानों पर, के लिए माननीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के आह्वान पर, सुलभ यहां महाराष्ट्र सरकार के सहयोग में दुनिया के सबसे बड़े शौचालय परिसर का निर्माण कर रहा है। आषाढ़ी एकादशी की पवित्र पृष्ठभूमि में, बढ़ती हुई भीड़ और तीर्थयात्रियों के लिए पर्याप्त शौचालयों और अन्य सुविधाओं की कमी से पंढरपुर बहुत दूषित हो जाता है और एक दयनीय और गंदे शहर में तब्दील हो जाता है। महाराष्ट्र सरकार ने पंढरपुर की गंदी हालत का संज्ञान लिया और तीर्थयात्रा विकास योजना

की शुरुआत की जिसके लिए सुलभ इंटरनेशनल ने चरणवार कार्यान्वयन का प्रस्ताव दिया जो कि सरकार द्वारा अनुमोदित कर दिया गया। साल 2015 में आषाढ़ी यात्रा के पहले ही सुलभ इंटरनेशनल ने पहला चरण (434 सीटों) पूरा कर लिया और इस सुविधा का उपयोग दो लाख से ज्यादा तीर्थयात्रियों ने किया। दूसरे चरण (983 सीटों) को 2016 की आषाढ़ी यात्रा से पहले ही संचालन में ले आया गया और इसका उपयोग 4.5 लाख से अधिक तीर्थयात्रियों ने किया। आगामी तीसरा चरण (1,441 सीटें) 2017 की आषाढ़ी यात्रा से पहले पूरा कर लिया गया। अनुमान है कि उसके बाद हर साल 6.5 लाख से अधिक तीर्थयात्री इसका उपयोग करेंगे। बुनियादी शौचालय और बाथरूम की सुविधा के साथ-साथ लॉकर रूम, चेंजिंग रूम और चिकित्सा सहायता आदि सुविधाएं तीर्थयात्रियों को प्रदान की गई हैं। संक्षेप में, सुलभ ने अभी तक पंढरपुर में 1,417 शौचालय इकाइयों सहित आठ शौचालय परिसर का निर्माण किया है। लगभग 1.5 लाख लोग हर रोज शौचालय का उपयोग कर रहे हैं। 2,858 शौचालय इकाइयों के साथ 23 शानदार शौचालय परिसरों का, शौचालय, स्नानघर और मूत्रालय के साथ निर्माण होगा। शारीरिक रूप से दिव्यांग लोगों के लिए विशेष शौचालय होंगे, जबकि वीआईपी लोगों के लिए भी 397 शौचालय होंगे। विशेष यात्रा के अवसर पर लगभग चार लाख भक्त इन शौचालयों का उपयोग करने में सक्षम होंगे। इसके अलावा, लॉकर्स, ड्रेसिंग रूम और चिकित्सा उपचार सुविधा के साथ, सैकड़ों तीर्थयात्री इस परिसर में एक साथ स्नान कर सकते हैं। सुलभ इस प्रकार पंढरपुर में साफ और स्वच्छ वातावरण बनाने की कोशिश कर रहा है। इस प्रकार, सुलभ पवित्र धार्मिक स्थलों के आसपास के स्थानों को खूबसूरत और खुले

सुलभ के सार्वजनिक शौचालयों के इस्तेमाल ने मुझे सेप्टिक टैंक से बायोगैस निपटान प्रौद्योगिकी की ओर ले जाने के लिए प्रेरित किया, जहां बायोगैस डाइजेस्टर (भूमिगत निर्माण) सार्वजनिक शौचालय से जुड़ा होता है और मानव-मल का प्रवाह गुरुत्वाकर्षण के माध्यम से इसमें बहता है। एक तैरते हुए गुंबद (फ्लोटिंग डोम) जैसा बायोगैस डायजेस्टर सबसे पहले इस्तेमाल किया गया था। गैसों का प्रचुर मात्रा में खाना बनाने और रोशनी के लिए उत्पादन किया गया। लेकिन इसमें गड़बड़ गंध आने से हुई, क्योंकि मानवमल, अपघटन के बाद तैरकर ऊपर आ जाता था। इसके अलावा सर्दियों में कम तापमान होने पर, बायोगैस उत्पादन में बहुत तेजी से कमी आई। इसीलिए मैं एक और डिजाइन के लिए खोज करता रहा। आखिरकार, मैंने डिजाइन में कुछ बदलाव के साथ, स्थिर गुंबद बायोगैस डाइजेस्टर का इस्तेमाल किया। जहां सेप्टिक टैंक आयताकार होता है, बायोगैस डायजेस्टर गोल होता है, वहीं बायोगैस गुंबद में जाती है। पहले दिन, 30 से 40 किलो गाय के गोबर को डाइजेस्टर के अंदर रखने की जरूरत होती है, जिसके 30 दिनों के बाद मानव-मल का विघटन शुरू हो जाता है और बायोगैस पैदा होनी शुरू होती है। यह बायोगैस मेंटल लैंप जलाने के लिए, खाना पकाने के लिए, जाड़ों के दौरान किसी के शरीर को गर्म रखने के लिए इस्तेमाल में लाई जा सकती है। साथ ही इसे बिजली की आपूर्ति और सड़क पर प्रकाश व्यवस्था के लिए ऊर्जा में परिवर्तित किया जा सकता है। 200 ऐसे बायोगैस डाइजेस्टर्स को भारत के विभिन्न हिस्सों में सार्वजनिक शौचालयों से जोड़ा गया है। भूटान में भी एक सार्वजनिक शौचालय का निर्माण और रखरखाव सुलभ ने किया है। अफगानिस्तान की युद्धग्रस्त राजधानी काबुल में, बायोगैस डाइजेस्टर्स और सुलभ एफ्लूएंट टेक्नोलॉजी (एसईटी) संयंत्रों के साथ पांच सार्वजनिक शौचालय बनाए गए हैं। शौचालयों का उपयोग करने के फायदे से लोगों को जागरुक बनाने के लिए जागरूकता कार्यक्रम आयोजित किया गया। सार्वजनिक शौचालय वहां कुशलता से कार्य कर रहे हैं, यहां तक कि 2007 की भारी सर्दियों के दौरान जब तापमान -30 डिग्री सेल्सियस कम हो गया, तब भी शौचालय अच्छे से कार्य कर रहे थे। सुलभ के डिजाइन किए हुए शौचालय कश्मीर की राजधानी श्रीनगर में भी बेहतर तरीके से काम कर रहे हैं, तब भी जब

सुलभ भूटान में भी एक सार्वजनिक शौचालय का निर्माण और रख-रखाव कर रहा है। अफगानिस्तान की अशांत राजधानी काबुल में, बायोगैस डाइजेस्टर्स और सुलभ एफ्लूएंट टेक्नोलॉजी संयंत्रों के साथ पांच सार्वजनिक शौचालय बनाए गए हैं


09 - 15 अप्रैल 2018

नई दिल्ली में सुलभ स्वास्थ्य केंद्र

नई दिल्ली में सुलभ स्वास्थ्य केंद्र के अंदर का दृश्य

1984-85 में तापमान -14 डिग्री सेल्सियस नीचे चला गया था। इसीलिए यह प्रौद्योगिकी न केवल उष्णकटिबंधीय गर्म मौसम के लिए उपयुक्त हैं, बल्कि ठंडे जलवायु क्षेत्रों के लिए भी असरदार है। बायोगैस को ऊर्जा में परिवर्तित करने के लिए, पहले इंजन 20: 80% के अनुपात के साथ डीजल और बायोगैस पर चलाया जाता था। हमने आगे शोध किया और अब इसे बैटरी सिस्टम में स्थानांतरित कर दिया गया है, जहां इंजन 100% बायोगैस पर चलाया जाता है।

सुलभ एफ्लूएंट टेक्नोलॉजीट (एसईटी) प्रौद्योगिकी

बायोगैस डाइजेस्टर से निकलने वाले पानी को सुलभ प्रवाह उपचार प्रौद्योगिकी, जिसमें एक अवसादन कक्ष, एक रेत निस्पंदन टैंक, वायुमिश्रण टैंक, सक्रिय चारकोल और अंत में अल्ट्रा

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आवरण कथा

पश्चिम बंगाल के मधुसुदनकाटी गांव में सुलभ सुरक्षित पेयजल की व्यवस्था। यहां जल एक स्थानीय तालाब से लिया जाता

वायलेट (यूवी) किरणों के माध्यम से गुजारा जाता है। अपशिष्ट जल की बायोकेमिकल ऑक्सीजन डिमांड (बीओडी) कम से कम 10 मिलीग्राम/एल तक कम हो जाती है। यह शुद्ध पानी फास्फोरस, नाइट्रोजन और पोटाश युक्त है और कृषि उत्पादकता बढ़ाने के लिए एक अच्छा पोषक तत्व भी है। यह फूलों की खेती में और रसोई के बगीचों में भी एक उर्वरक के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है। यह तकनीक सेप्टिक टैंक प्रणाली की तुलना में कहीं ज्यादा बेहतर है। इसीलिए मैं सुझाव देता हूं कि बिना सीवर वाले क्षेत्रों में, आवासीय कालोनियों, ऊंची इमारतों, स्कूलों, कॉलेजों, अस्पतालों आदि में, सेप्टिक टैंकों की बजाय बायोगैस डाइजेस्टर का उपयोग मानव-मल के निपटान के लिए किया जाना चाहिए। इस तकनीक में मानव-मल का परिशोधन उसी जगह हो जाता है और यह स्थायी विकास का सबसे

सुलभ शौचालय में फ्लश करने के लिए प्रति व्यक्ति प्रति एक बार में केवल एक लीटर पानी की आवश्यकता होती है, जबकि सेप्टिक टैंक प्रणाली में पानी की आवश्यकता लगभग 10 लीटर और सीवर प्रणाली में इससे भी ज्यादा होती है

नई दिल्ली के पालम में सुलभ जल एटीएम की सुविधा का इस्तेमाल स्थानीय लोग करते हैं

अच्छा उदाहरण है। मेरे द्वारा विकसित दोनों प्रौद्योगिकियां, न केवल विकासशील देशों के लिए, बल्कि विकसित देशों के लिए भी उपयुक्त हैं, क्योंकि सुलभ के घरेलू शौचालयों में निर्मित गैसों को जमीन और गड्ढे की मिट्टी द्वारा अवशोषित कर लिया जाता है। उन्हें वातावरण में बाहर निकलने की अनुमति नहीं होती है। बायोगैस डायजेस्टर में भी सभी गैसों का उत्पादन (मीथेन, कार्बन, नाइट्रोजन, हाइड्रोजन सल्फाइड और अन्य) को वातावरण में प्रवेश करने की अनुमति नहीं होती है, लेकिन ज्वलनशील गैसों को विभिन्न उपयोगों के लिए जलाया जा रहा हैं। दोनों सुलभ टेक्नोलॉजी, पहले ग्लोबल वार्मिंग को कम करने के लिए मदद करती हैं, क्योंकि वे वातावरण में प्रदूषण को कम करने में सहायता करती हैं। दूसरे, दोनों प्रौद्योगिकियों में पानी संरक्षित होता है। सुलभ शौचालय में फ्लश करने के लिए प्रति व्यक्ति प्रति एक बार में केवल एक लीटर पानी की आवश्यकता होती है, जबकि सेप्टिक टैंक प्रणाली में पानी की आवश्यकता लगभग 10 लीटर और सीवर

प्रणाली में इससे भी ज्यादा होती है। इस तरह दुनियाभर में इन प्रौद्योगिकियों का प्रयोग कर, बड़ी मात्रा में पानी को बचाया जा सकता है। तीसरा, दोनों प्रौद्योगिकियां फास्फोरस, नाइट्रोजन और पोटाश युक्त जैव-उर्वरक बनाती हैं और ये खेतों की उत्पादकता बढ़ाने के लिए एक अच्छा पोषक तत्व हैं। उनका उपयोग बागवानी, फलों की खेती आदि के लिए भी किया जा सकता है। दोनों प्रौद्योगिकियां एक स्वच्छ शौचालय की सभी शर्तों को पूरा करती हैं। इसीलिए, यह प्रौद्योगिकियां सार्वभौमिक रूप से उपयुक्त हैं। संक्षेप में, यह कहा जा सकता है कि संयुक्त राष्ट्र के मिलेनियम डेवलपमेंट लक्ष्यों को विभिन्न स्थानीय स्थितियों के हिसाब से कुछ संशोधनों के साथ, अपनाई गई इन प्रौद्योगिकियों के इस्तेमाल से ही हासिल किया जा सकता है। सीवेज और सेप्टिक प्रणालियों के आधार पर, मिलेनियम विकास लक्ष्यों को प्राप्त नहीं किये जा सकते थे।

सुलभ अनुसंधान एवं विकास प्रयोगशाला सुलभ में अपशिष्ट जल उपचार विधियों, कम


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आवरण कथा

09 - 15 अप्रैल 2018

पश्चिम बंगाल के मेदीनिपुर में सुलभ सुरक्षित पेयजल। यहां जल कुएं से लिया जाता है पश्चिम बंगाल के हरिदासपुर के इस्कॉन में सुलभ सुरक्षित पेयजल। यहां जल कुएं से निकाला जाता है

सुलभ इस पानी को बोतलबंद रूप में दे रहा है जिसे सुलभ सेफ ड्रिंकिंग वाटर के नाम से जाना जाता है। यह पश्चिम बंगाल में 50 पैसे प्रति लीटर के मूल्य पर उपलब्ध है नमूने की एक बड़ी संख्या का परीक्षण करना और निर्वासित जल निकासी की गुणवत्ता के बारे में प्रमाणपत्र प्रदान करना।

सुलभ स्वास्थ्य केंद्र: सब तक पहुंचने की एक पहल

सुलभ आदर्श स्वास्थ्य केंद्र, सुलभ शौचालय परिसर का एक हिस्सा है। डब्ल्यूएचओ के विचार पर आधारित 'हेल्थ फॉर ऑल' के लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए यहां एक संपूर्ण स्वास्थ्य अवधारणा का अभ्यास किया जाता है। स्वास्थ्य केंद्र में निम्नलिखित सुविधाएं हैं: • सामान्य जनता के लिए पूरे दिन डॉक्टरों के द्वारा नि:शुल्क परामर्श। भूजल में आर्सेनिक के प्रदूषण के शिकार लोगों की पीड़ा सुनते हुए • आवश्यक दवाओं का वितरण डॉ. पाठक। सुलभ इनके बचाव के लिए आया और पश्चिम बंगाल के मात्र 5 रुपए के सांकेतिक भुगतान मधुसुदनकटी गांव में एक जल उपचार संयंत्र स्थापित कर उसने स्वच्छ पर, अगर कोई भुगतान करने के और सस्ता पीने का पानी उपलब्ध कराया लिए तैयार हैं तो, अन्यथा मुफ्त में ही लागत वाली स्वच्छता प्रौद्योगिकियों, विकास वितरित की जाती हैं। और बायोगैस डाइजेस्टर प्रणाली के सुधार आदि • सेनेटरी नैपकिन वेंडिंग मशीन जो कि कम में अनुसंधान और नवाचार करने के लिए परीक्षण लागत वाली सैनिटरी नैपकिन प्रदान करती है। सुविधाओं के साथ एक अच्छी तरह से सुसज्जित • कंडोम का वितरण, ओरल कॉन्ट्रेसेप्टिव और पूरी तरह से कार्यात्मक प्रयोगशाला है। गोलियां (ओसीपी), ओरल रिहाइड्रेशन सॉल्ट इन बातों के अलावा, यह प्रयोगशाला कई मायनों (ओआरएस), आयरन, फोलिक आदि। में अलग और विशेष है, जैसे दिल्ली प्रदूषण • एसिड और कैल्शियम की गोलियां बिलकुल नियंत्रण बोर्ड के आदेश पर दिल्ली में विभिन्न मुफ्त में। उद्योगों के सुलभ एफ्लूएंट टेक्नोलॉजी संयंत्रों से • दिल्ली सरकार के पल्स पोलियो सेंटर के रूप

में भी कार्य करता है।

पश्चिम बंगाल में सुलभ शुद्ध पानी और दिल्ली में वाटर एटीएम

सुलभ शुद्ध पेयजल, सुलभ की नवीनतम तकनीकी पहल है। इस सुलभ तकनीक द्वारा नदियों, तालाबों, कुओं, जल निकायों और नलों से निकले अशुद्ध पानी को शुद्ध किया जाता है और यह शुद्ध पानी मानव उपभोग के लिए पूरी तरह सुरक्षित होता है। सुलभ ने पश्चिम बंगाल के छह स्थलों, उत्तर 24 परगना, मुर्शिदाबाद जिले के मुर्शिदाबाद, नाडिया के मायापुर, दक्षिण 24 परगना के सुवसग्राम, उत्तर 24 परगना के इस्कॉन हरिदासपुर और पश्चिम मेदिनीपुर में चाकसुलतान में जल उपचार संयंत्र स्थापित किए हैं। कच्चे पानी को मायापुर और मुर्शिदाबाद में गंगा नदी से निकाला जाता है, जबकि मधुसुदनकाटी में स्थानीय तालाब से पानी लिया जाता है। पश्चिम मेदिनीपुर के हरिदासपुर, चाकसुलतान और मिर्जापुर में, पानी कुंए से निकाला जाता है। सुलभ जल उपचार संयंत्र में शुद्धिकरण के बाद, नदी/तालाब/कुएं का पानी शुद्ध हो जाता है, जोकि पीने के लिए बिल्कुल सुरक्षित होता है। सुलभ इस पानी को बोतलबंद रूप में दे रहा है, जिसे सुलभ सेफ ड्रिंकिंग वाटर के नाम से जाना जाता है। यह पश्चिम बंगाल में 50 पैसे प्रति लीटर के मूल्य पर उपलब्ध है। मधुसुदनकाटी के निवासियों के लिए, जो कई वर्षों से त्वचा और कुए से निकले भूजल में आर्सेनिक होने के कारण कई अन्य बीमारियों

से पीड़ित थे, यह संयंत्र काफी मददगार साबित हुआ है। सुलभ जल उपचार संयंत्र की शुरुआत के बाद, निवासियों को साफ सुलभ जल प्राप्त हो रहा है। आर्सेनिक के जहर से प्रभावित लोगों के स्वास्थ्य में काफी सुधार हुआ है। सुरक्षित पीने के पानी की आपूर्ति के अलावा, सुलभ जल संयंत्र से सटे स्वास्थ्य केंद्र में आर्सेनिक विषाक्तता से पीड़ित लोगों का इलाज भी कर रहा है। नई दिल्ली में सुलभ परिसर के प्रवेश द्वार पर, सुलभ जल एटीएम में शुद्ध पीने का पानी 1 रुपए प्रति लीटर में उपलब्ध है।

विदेशी पेशेवरों की ट्रेनिंग

2005 और 2006 में सुलभ ने 14 अफ्रीकी देशों (जैसे इथियोपिया, मोजांबिक, युगांडा, कैमरून, बुर्किना फासो, केन्या, नाइजीरिया, सेनेगल, घाना, जांबिया, तंजानिया, कोटे-डी आइवर, माली और रवांडा) से पेशेवरों को दोनों प्रकार के शौचालयों के निर्माण की तकनीक और रखरखाव का प्रशिक्षण दिया। सुलभ ने मोजांबिक, इथियोपिया और बांग्लादेश में परामर्श कार्य भी शुरू किया है और 50 देशों में काम शुरू करने का प्रस्ताव रखा है जहां स्वच्छता सुविधाओं की कमी है।

शौचालयों का सुलभ अंतरराष्ट्रीय म्यूजियम

नई दिल्ली के सुलभ परिसर में शौचालयों का एक आकर्षक संग्रहालय है। दुनिया में अपनी तरह के एक अलग, सुलभ इंटरनेशनल म्यूजियम ऑफ टॉयलेट्स में 2500 ई.पू. के शौचालयों के ऐतिहासिक विकास का विवरण देने वाली कलाकृतियों, चित्रों और वस्तुओं का दुर्लभ संग्रह है। भारत और विदेशों से बड़ी संख्या में आगंतुकों ने इस संग्रहालय में दिलचस्पी दिखाई है और इसे जानकारीपूर्ण, शिक्षा पूर्ण और आकर्षक पाया है। अब तक 30 लाख से ज्यादा लोग हमारी


09 - 15 अप्रैल 2018 वेबसाइट के माध्यम से यहां आ चुके हैं, और 10,000 से अधिक लोग इस संग्रहालय को देखने के लिए व्यक्तिगत रूप से यहां आए हैं। संग्रहालय में एकत्र किए जाने वाले विभिन्न वस्तुओं स्वच्छता प्रौद्योगिकी, शौचालय से संबंधित रिवाजों और शिष्टाचार से जुड़े घटनाक्रमों का कालक्रम दिया है और शताब्दियों से कई देशों की स्वच्छता संबंधी परिस्थितियों और विधायी प्रयासों पर प्रकाश डाला है। संग्रहालय में 1145 ईस्वी से समकालीन समय तक उपयोग में रहे शौचालयों, मूत्रालय बर्तन, शौचालय फर्नीचर, बिडे और फ्लश टॉयलेट का एक प्रभावशाली प्रदर्शन है। संग्रहालय का उद्देश्य, छात्रों और इच्छुक लोगों को शौचालयों के विकास में ऐतिहासिक प्रवृत्तियों के बारे में शिक्षित करना और पूर्व और समकालीन दुनिया में उपयोग में आने वाले डिजाइनों, सामग्रियों और प्रौद्योगिकियों के बारे में शोधकर्ताओं को सूचना प्रदान करना है। साथ ही यह नीति-निर्माताओं और स्वच्छता विशेषज्ञों को दुनिया भर में इस क्षेत्र में पहले किए गए प्रयासों को बेहतर ढंग से समझने में सहायता करता है, जिससे कि वे अतीत से सीख सकें और स्वच्छता क्षेत्र की वर्तमान समस्याओं को हल कर सकें। सुलभ इंटरनेशनल टॉयलेट म्यूजियम को टाइम मैगजीन द्वारा विश्व के 10 सबसे अजीब संग्रहालयों में से तीसरा (3) स्थान दिया गया है।

सुलभ पब्लिक स्कूल

सुलभ पब्लिक स्कूल, नई दिल्ली के सुलभ सुलभ अंतरराष्ट्रीय शौचालय संग्रहालय के अंदर का दृश्य

परिसर में ही स्थित है। यहां, 60 फीसदी बच्चे दलित समुदाय से हैं और 40 फीसदी अन्य समुदाय से आते हैं। यह अंग्रेजी माध्यम का स्कूल अपनी तरह का पहला ऐसा स्कूल है, जहां दलित बच्चे सिर्फ मुफ्त शिक्षा ही नहीं पाते हैं, बल्कि किताबें, ड्रेस आदि सहित सभी सुविधाएं मुफ्त पाते हैं। इस मॉडल स्कूल में, शौचालय शिक्षकों

आवरण कथा

और छात्रों द्वारा खुद ही साफ किए जाते हैं, कोई दूसरा नहीं करता। महात्मा गांधी चाहते थे कि सभी लोगों को खुद ही अपने शौचालय को साफ करना चाहिए और स्कूल वही करता है।

सुलभ स्कूल सैनिटेशन क्लब

सुलभ ने एक स्कूल सैनिटेशन क्लब स्थापित किया है। दूसरी गतिविधियों के अलावा, इस क्लब

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में, स्कूल की लड़कियों को साधारण मटेरियल के साथ सेनेटरी नेपकिन बनाना सिखाया जाता है। क्लब ने स्कूल में ही वेंडिंग मशीन भी लगाई है, जहां इस्तेमाल की हुई सेनेटरी नेपकिन इंसीनेरेटर में आसानी से नष्ट हो जाती हैं।

सुलभ व्यावसायिक प्रशिक्षण केंद्र

नई दिल्ली के सुलभ परिसर में व्यावसायिक प्रशिक्षण केंद्र भी है। यह केंद्र युवा छात्रों को, मुख्य रूप से समाज के कमजोर वर्गों के, टेलरिंग (सिलाई), सौंदर्य-देखभाल, कंप्यूटर, फैशनडिजाइनिंग, कढ़ाई, स्टोनोग्रफी (टाइपिंग), इलेक्ट्रॉनिक्स जैसे व्यवसायों में दो साल का प्रशिक्षण देता है। यह ध्यान देने योग्य है कि एक भी ऐसा छात्र नहीं है, जो यहां से बाजार के अनुकूल विषयों में प्रशिक्षण प्राप्त करने के बाद लौट आया हो और कहा हो कि उसे नौकरी नहीं मिली है। उन सभी को रोजगार मिलता है, क्योंकि यहां दिए गए प्रशिक्षण व्यापक और प्रभावी हैं। सुलभ व्यावसायिक प्रशिक्षण केंद्र, संघर्षशील पृष्ठभूमि के युवा लोगों को रोजी-रोटी कमाने और एक सार्थक जीवन जीने का तरीका

सुलभ इंटरनेशनल टॉयलेट म्यूजियम को टाइम मैगज़ीन द्वारा विश्व के 10 सबसे अजीब संग्रहालयों में से तीसरा स्थान दिया गया है। संग्रहालय में 1145 ई से समकालीन समय तक उपयोग में रहे शौचालयों, मूत्रालय बर्तन, शौचालय फर्नीचर, बिडे और फ्लश टॉयलेट को आकर्षक तरीके से प्रदर्शित किया गया है


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09 - 15 अप्रैल 2018

मिस इंडिया 2016 की दूसरी रनर-अप रहीं पंखुड़ी गिडवानी सैनिटरी नैपकिन वेंडिंग मशीन को प्रयोग करके देखती हुई

नई दिल्ली में सुलभ पब्लिक स्कूल के छात्र प्रातःकालीन प्रार्थना करते हुए

दिखाकर बेहतर उम्मीद देता है।

स्कैवेंजेर्स की मुक्ति और पुनर्वास

हजारों स्कैवेंजेर्स (120,000 अब तक) को उनके अपमानित और अमानवीय व्यवसाय से मुक्त करने के बाद, मैंने उनके पुनर्वास के लिए पटना, नई दिल्ली आदि में व्यावसायिक प्रशिक्षण केंद्र खोले। मैंने राजस्थान के अलवर में 'नई दिशा' की स्थापना की, जहां मुक्त स्कैवेंजेर्स को शिक्षा के साथ-साथ उनको स्व-रोजगार देने के लिए कढ़ाई, सौंदर्य-देखभाल, खाने योग्य पापड़, नूडल्स, आदि जैसे विभिन्न व्यापारों में व्यावसायिक प्रशिक्षण भी दिया जाता है। उनके द्वारा बनाए गए खाने योग्य सामान को अब वही स्थानीय लोग खरीदते हैं, जिनके यहां वो शौचालय साफ करने जाते थे। यह लोगों के रवैये में बहुत बड़ा परिवर्तन है। हाल ही में, एक ब्राह्मण ने एक अस्पृश्य स्कैवेंजर व्यक्ति को अपनी बेटी के विवाह में आमंत्रित किया। उसने, उससे एक उपहार भी स्वीकार किया और उसे अपने परिवार के सदस्यों के साथ भोजन भी करवाया। यह भारत

हजारों स्कैवेंजेर्स (अब तक 120,000) को उनके अपमानित और अमानवीय व्यवसाय से मुक्त करने के बाद, मैंने उनके पुनर्वसन के लिए व्यावसायिक प्रशिक्षण केंद्र खोले। साथ ही मैंने राजस्थान के अलवर में 'नई दिशा' की स्थापना की

के 5000 साल के इतिहास में पहले कभी भी नहीं हुआ था। मैंने यह सब केवल शांतिपूर्ण तरीके से किया और यह एक मूक क्रांति हो रही है, जो यहां जगह की बाधा के कारण पूरी तरह से नहीं बताई जा सकती। सुलभ ने समाज के कुलीन वर्ग के साथ पूर्व-स्कैवेंजेर्स के सामाजिक संवाद और संपर्क के लिए कार्यक्रमों को आयोजित किया और उन्हें कुलीन वर्गों के साथ मिलाने के लिए महत्वपूर्ण जगहों पर ले गए। भारत के पूर्व-प्रधानमंत्री, डॉ. मनमोहन सिंह, पूर्व राष्ट्रपति श्रीमती प्रतिभा देवीसिंह पाटिल और कांग्रेस की शीर्ष नेता श्रीमती सोनिया गांधी ने श्रोता के रूप में सभी को सुना और समझा। उन्हें 2 जुलाई, 2008 को संयुक्त राष्ट्र में 'सैनिटेशन फॉर सस्टेनेबल डेवेलपमेंट' सम्मलेन में भाग लेने के

सुलभ स्कूल सैनिटेशन क्लब की एक लड़की सेनेटरी नैपकिन को नष्ट करते हुए, जो जलने के बाद राख में परिवर्तित हो जाएगी

लिए आमंत्रित किया गया। उन्होंने संयुक्त राष्ट्र के मंच से श्रोताओं को भी संबोधित भी किया और यूएन भवन के अंदर एक फैशन शो 'मिशन सेनिटेशन' में भाग लिया। बाद में वे न्यूयॉर्क में ‘स्टैच्यू ऑफ लिबर्टी’ भी गए, ताकि दुनिया को बता सकें कि वे अब अस्पृश्य नहीं हैं। सुलभ स्वच्छ भारत अभियान के लिए प्रतिबद्ध है और यह संगठन व्यक्तिगत घरों और स्कूलों में शौचालय निर्माण में अग्रणी है। हाल ही में, सुलभ को वाराणसी में ‘अस्सी घाट’ साफ करने का कार्य दिया गया, जो कि गाद और कीचड़ से लगभग 15 फीट की उंचाई तक ढंका हुआ था। इसे रिकार्ड समय में साफ किया गया और करीब 50 सीढ़ियों की फर्श से कीचड़ और मिट्टी को साफ किया गया। अब यह भक्तों और

पर्यटकों द्वारा हर रोज इस्तेमाल किया जा रहा है। घाट पर नावें चलने लगी हैं, जो अब सुलभ स्वयंसेवकों द्वारा चलाई जा रही है। अक्टूबर 2015 में, स्वच्छ अस्सी घाट के लिए सफाई (SAFAIGIRI) पुरस्कार, वाराणसी (भारत के माननीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का एक ड्रीम प्रोजेक्ट) के लिए श्रीमती उषा चौमड़ को प्रस्तुत किया गया। चौमड़ पूर्वस्कैवेंजर हैं और अब नई दिल्ली के होटल ताज पैलेस में इंडिया-टुडे ग्रुप द्वारा सुलभ सोसाइटी की प्रेसिडेंट बनाई गई हैं।

अस्पृश्यता और नहीं (अप्रैल 13, 2015)

डॉ. बाबासाहेब भीमराव आंबेडकर की 150 वीं जयंती के अवसर पर सुलभ द्वारा आयोजित राष्ट्रीय समारोह ‘अस्पृश्यता और नहीं’ (अनटचाबिलिटी नो मोर) के आयोजन के अवसर पर पूर्व अस्पृश्यों के साथ भोजन किया। इस अवसर पर उच्च जातियों और अस्पृश्य व्यक्तियों के परिवारवालों ने एक-दूसरे को अभिवादन किया और एक-दूसरे के हाथों से खाया। यह पहली बार आयोजित हुआ एक ऐतिहासिक अवसर था।

डॉ. पाठक और माननीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, भारत के प्रधानमंत्री का स्वच्छ भारत अभियान एक नए उल्लेखनीय विकास में, वर्तमान नई दिल्ली में सुलभ स्कूल सैनिटेशन क्लब की सदस्य सैनिटरी नैपकिन बनाती हुई


09 - 15 अप्रैल 2018 प्रधानमंत्री माननीय नरेंद्र मोदी ने जोर-शोर से यह रेखांकित किया है कि गंदगी से आजादी के बिना भारत एक महान राष्ट्र नहीं बन सकता है। उन्होंने ‘स्वच्छ भारत अभियान’ को शुरू किया, जिसका उद्देश्य एक राष्ट्रीय मिशन के रूप में भारत की गलियों, सड़कों और बुनियादी ढांचे को 2019 तक स्वच्छ बनाना है। मिशन का केंद्रीय घटक, शौचालयों का निर्माण करना है। हर स्कूल में शौचालयों के तुरंत निर्माण के अतिरिक्त, अक्टूबर 2019 तक ग्रामीण भारत में 12 करोड़ शौचालयों का निर्माण करने की भी इसकी योजना है। इसका उद्देश्य हर घर को शौचालय प्रदान करना है और इस तरह खुले में शौच से मुक्ति पानी है। अस्वास्थ्यकर शौचालयों से पोर-फ्लश शौचालयों में रूपांतरण और हाथ से मैला ढोने की प्रथा का उन्मूलन, मिशन के उद्देश्य का अभिन्न अंग है। प्रधानमंत्री की स्वच्छता योजना ने राष्ट्रव्यापी उत्साह पैदा किया है। डॉ. पाठक अपने संगठन सुलभ के साथ, जोकि इस क्षेत्र में एक बेहतर विशेषज्ञता और शानदार काम का रिकॉर्ड रखता है, इस मिशन में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं। सुलभ ने हरियाणा राज्य के हिरमिथला गांव जैसे कई गांवों को गोद लिया है और उन्हें खुले में शौच से मुक्त बना रहे हैं। कई अन्य स्थानों की तरह यहां भी, सुलभ ने सार्वजनिक और घरेलू शौचालय बनाए हैं। उदाहरण के लिए पंजाब में सुलभ ने 12,000 व्यक्तिगत शौचालयों और देश के विभिन्न राज्यों के स्कूलों में लगभग 7,000 शौचालय बनाए हैं।

वृंदावन की विधवाएं

सुप्रीम कोर्ट ने अपने एक आदेश में राष्ट्रीय सेवा विधिक प्राधिकरण (एनएएलएसए) को सुलभ से संपर्क कर यह पता करने के निर्देश दिए कि क्या सुलभ वृंदावन में चार सरकारी आश्रमों में रहने वाले पीड़ित विधवाओं की मदद के लिए आगे आ सकता है? नतीजतन, मैं सुलभ के अपने सहयोगियों के साथ, वृंदावन की विधवाओं के लिए साल 2012 से काम कर रहा हूं और उन्हें सभी संभव राहत प्रदान कर रहा हूं। विधवाओं की सामान्य स्थिति में परिवर्तन के साथ-साथ, वित्तीय सहायता देने के साथ उनके लिए हर संभव कल्याणकारी कार्यों में सुलभ शामिल है। हम 800 विधवाओं को प्रति माह 2000 रुपए की आर्थिक मदद कर रहे हैं, साथ ही उन्हें चिकित्सा और एंबुलेंस जैसी सुविधाएं भी प्रदान कर रहे हैं। हम उन्हें माला-आभूषण, अगरबत्ती बनाने, टेलरिंग इत्यादि में व्यावसायिक प्रशिक्षण भी दे रहे हैं, ताकि उन्हें आत्मनिर्भर बना सकें। विधवाओं को अंग्रेजी, हिंदी और बांग्ला भी पढ़ाया जा रहा है। उनके जीवन में खुशियां लाने के लिए, सुलभ ने होली, दुर्गा-पूजा, दिवाली और क्रिसमस जैसे त्योहारों को उनके साथ मनाना शुरू किया। सुलभ उन्हें दिल्ली, कोलकाता, आगरा आदि शहरों की यात्राओं के लिए भी समय-समय पर ले जाता है। विधवाओं के जीवन में एक यादगार पल तब आया, जब वे माननीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मिलीं और उनकी कलाई पर राखी बांधी।

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आवरण कथा

नई दिल्ली में सुलभ व्यावसायिक प्रशिक्षण केंद्र के एक ट्रेड की छात्राएं, सिलाई करते हुए

वाराणसी की विधवाएं

वृंदावन की तरह ही वाराणसी की विधवाओं को भी हमने अपनाया। मैंने 150 विधवाओं की पहचान की, जिन्हें 2000 रुपए हर माह वित्तीय सहायता दी जाती है। इस तरह हमने वाराणसी में विधवाओं की पुरानी और दकियानूसी परंपराओं के खिलाफ अपना दूसरा अभियान शुरू किया। विधवाओं की बुनियादी जरूरतों को पूरा करने के अलावा, सुलभ ने वाराणसी में दर्दनाक स्थितियों में रहने वाली गरीब विधवाओं की समस्याओं की जांच और लोगों को इसके बारे में जागरुकता पैदा करने में महत्वपूर्ण योगदान दिया है।

गांव देवली-बनी ग्राम, उत्तराखंड की विधवाएं

जून 2013 में उत्तराखंड में आई प्राकृतिक आपदा से कारण, कई ग्रामीण और तीर्थयात्री बेघर हुए। सुलभ ने जरुरतमंदों और उन महिलाओं की ओर सहायता का हाथ बढ़ाया, जो विधवा हो चुकी थीं। सुलभ ने विधवाओं और घर के वृद्ध सदस्यों को 2000 रुपए प्रति माह की आर्थिक सहायता प्रदान की, साथ ही हर बच्चे को भी 1000 रुपए दिए। यह सहायता देवली-बनी ग्राम पंचायत के छह गांवों के 155 तबाह हुए निवासियों को दी गयी। सुलभ ने निर्णय किया है कि इस गांव के 300 और परिवारों को हर माह 1000 रुपए की

आगे आर्थिक सहायता दी जाएगी। महिलाओं और विधवाओं के लिए व्यावसायिक प्रशिक्षण कार्यक्रम भी शुरू किया गया जिसमें मोमबत्ती बनाने, सिलाई, दीया-बाती बनाने और बुनियादी शिक्षा प्रदान करने के लिए प्रशिक्षण दिया जाता है। व्यावसायिक प्रशिक्षण केंद्र पर ट्रेनिंग के लिए 12 कंप्यूटर, 25 सिलाई मशीन और अन्य उपकरण प्रदान किए गए। केंद्र आठ ट्रेड्स में महिलाओं और अन्य लोगों को प्रशिक्षण प्रदान करता है, जिनमें सिलाई, बुनाई, मशीन द्वारा कढ़ाई, कम्प्यूटर शिक्षा, शॉर्टहैड टाइपिंग, मोमबत्ती बनाना, अगरबत्ती (धूप) बनाना, बट्टी (कपास) बनाना, पेपर प्लेट और दोना बनाना शामिल है। कंप्यूटर साक्षर बनाने के अलावा, यह केंद्र प्रशिक्षुओं को बुनियादी शिक्षा भी प्रदान करता है। सुलभ का मुख्य उद्देश्य, इन गांवों में महिलाओं और अन्य लोगों को व्यावसायिक प्रशिक्षण प्रदान करना है, ताकि वे एक जीविका चलाने के लिए आवश्यक कौशल प्राप्त कर सकें। मोम, धागा, गैस, तेल, पेन, पेंसिल, पेपर, कपास, किताबें, सीडी, स्टेशनरी, रिबन आदि जैसी सामग्रियों को मुफ्त में प्रदान किया जाता है। ‘सुलभ इंटरनेशनल सेंटर फॉर एक्शन सोशियोलॉजी,’ उन्हें आय का एक वैकल्पिक स्रोत प्रदान करने के लिए प्रशिक्षण दे रहा है, साथ ही विभिन्न ट्रेडों में स्व-रोजगार देने के लिए

अक्टूबर 2015 में, वाराणसी के बेहद गंदे अस्सी घाट की सफाई के लिए सुलभ की उषा चौमड़ को ‘सफाईगिरी पुरस्कार’ दिया गया

सक्षम बनाकर उनका पुनर्वास कर रहा है।

भाग्य को पुन: लिखना

2013 में आई केदारनाथ त्रासदी की शिकार एक युवा विधवा, विनीता का राकेश से पुनर्विवाह किया गया। प्रतीकात्मक रूप से, शादी समारोह 16 अक्टूबर, 2017 को वृंदावन में गोपीनाथ मंदिर में आयोजित किया गया था। भारत के अस्पृश्य लोगों के सम्मान और अधिकार बहाल करने के लिए सुलभ ने लगातार सकारात्मक प्रयास किया है। इसके साथ ही भारतीय समाज के हाशिए पर रहने वाली विधवाओं के प्रति सामाजिक सहयोग और स्वीकृति को करुणा और अपनत्व के साथ जागृत करने के लिए सतत प्रयत्नशील रहा। इन्हीं के प्रयासों के कारण, वृंदावन में रहने वाली बड़ी संख्या में बुजुर्ग विधवाओं ने 2013 के केदारनाथ की बाढ़ में अपने पति को खोने वाली एक महिला के पुनर्विवाह उत्सव में सक्रिय रूप से भाग लेकर इतिहास रचने के लिए तैयार थीं। उत्तर प्रदेश के वृंदावन के गोपीनाथ बाजार में स्थित गोपीनाथ मंदिर में 16 अक्टूबर, 2017 को यह ऐतिहासिक विवाह उत्सव मनाया गया। भारत में वैधव्य, अक्सर एक महिला के जीवन में एक दुखद पल के रूप में वर्णित किया जाता है, एक ऐसी घटना जिसमें उसकी पहचान अपने पति की मृत्यु के साथ ही दूर छीन जाती है। लेकिन सुलभ के मानवीय हस्तक्षेप ने विधवाओं के जीवन में एक नई आशा का संचार किया है। उन्हें न केवल आवश्यक सामग्री की सहायता प्रदान की गई, बल्कि उन्हें अपने पैरों पर खड़े होने की नैतिक शक्ति भी प्रदान की है। इससे


16 खुला मंच

09 - 15 अप्रैल 2018

मेरा धर्म सत्य और अहिंसा पर आधारित है, सत्य मेरा भगवान है और अहिंसा उसे पाने का साधन - महात्मा गांधी

ग्रामीण भारत की स्वच्छ तस्वीर

ग्रामीण इलाके के लोगों की आदत में तेजी से बदलाव आ रहा है और शौचालय का उपयोग करने में वे किसी से पीछे नहीं हैं

स्व

च्छता की दिशा में बढ़े भारतवासियों के कदम अब मंजिल से ज्यादा दूर नहीं हैं। प्रधानमंत्री ने दो अक्टूबर 2019 तक पूरे भारत को स्वच्छ और सुंदर बनाने का संकल्प लिया है। दिलचस्प है कि स्वच्छ भारत अभियान में सबसे ज्यादा उत्साह के साथ ग्रामीण भारत हिस्सा ले रहा है। यह इस अभियान की एक बड़ी उपलब्धि है। ग्रामीण स्वच्छता सर्वेक्षण से इस दावे की पुष्टि हुई है कि ग्रामीण इलाकों में जिन घरों में शौचालय है, वहां ज्यादातर लोग इसका इस्तेमाल कर रहे हैं। साफ है कि ग्रामीण इलाके के लोगों की आदत में तेजी से बदलाव आ रहा है और शौचालय का उपयोग करने में वे किसी से पीछे नहीं हैं। एक स्वतंत्र सर्वेक्षण एजेंसी द्वारा किए गए राष्ट्रीय वार्षिक ग्रामीण स्वच्छता सर्वेक्षण 2017-18 के अनुसार ग्रामीण क्षेत्रों में शौचालय का उपयोग 93.4 फीसदी होने की पुष्टि हुई है, यानी जिन घरों में शौचालय उपलब्ध हैं, उनमें से 93.4 फीसदी उसका उपयोग भी करते हैं। सर्वेक्षण एजेंसी ने जिन गांवों को खुले में शौच से मुक्त घोषित और सत्यापित किया गया है, उनमें से 95.6 फीसदी गावों के खुले में शौच मुक्त होने की भी पुष्टि की है। यह सर्वेक्षण मध्य-नवम्बर 2017 और मध्य-मार्च 2018 के बीच किया गया। इसके अंतर्गत 6136 गांवों के 92040 घरों का स्वच्छता संबंधी विषयों पर सर्वेक्षण किया गया। सर्वेक्षण के अंतर्गत गांवों के स्कूल, आंगनवाड़ी एवं सामुदायिक शौचालयों का भी सर्वेक्षण किया गया। सर्वेक्षण के नतीजे इस बात को जताने के लिए पर्याप्त हैं कि स्वच्छ भारत मिशन ने न सिर्फ अब तक करोड़ों लोगों के व्यवहार परिवर्तन करने में सफलता हासिल की है, बल्कि इसने खासौतर पर ग्रामीण भारत की तस्वीर बदलकर रख दी है। इस मिशन के तहत अब तक 6.5 करोड़ शौचालयों का निर्माण कराया जा चुका है और 3.38 लाख गांव और 338 ज़िले अब तक खुले में शौच से मुक्त घोषित हुए हैं। देश में 9 राज्य और 3 केंद्र शासित प्रदेश खुले में शौच मुक्त घोषित किए जा चुके हैं।

टॉवर

(उत्तर प्रदेश)

अभिमत

कुमार प्रशांत

प्रख्यात गांधीवादी कार्यकर्ता और गांधी शांति प्रतिष्ठान, नई दिल्ली के अध्यक्ष

बापू, बिहार और सत्याग्रह

गांधी ने बिहार आकर अपना वह हथियार मांजा-परखा जो दक्षिण अफ्रीका में तैयार हुआ था। बिहार ने गांधी को पाकर वह हथियार चलाना सीखा, जिसे सत्याग्रह कहते हैं

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अप्रैल 1917 ! सुबह के करीब 10 बजे हैं और एक रेलगाड़ी अभी-अभी पटना जंक्शन पर आ कर थमी है। एक नया आदमी स्टेशन पर उतरता है, जिसे न पटना जानता है और न जिसने कभी पटना को जाना-देखा है। नाम है मोहनदास करमचंद गांधी! मोहनदास करमचंद गांधी नाम का यह आदमी राजकुमार शुक्ल नाम के उस आदमी को भी बहुत थोड़ा जानता है, जो उसे कलकत्ता से साथ ले कर पटना आया है। राजकुमार शुक्ल भी इस मोहनदास करमचंद गांधी को बहुत थोड़ा जानते हैं। हां, वे इतना जरूर जानते हैं कि यह आदमी गुजराती है, लेकिन देश में जो कुछ लोग उसे जानते हैं वह सुदूर के देश दक्षिण अफ्रीका के कारण जानते हैं जहां इस आदमी ने ‘कुछ किया’ है। क्या किया, क्यों और कैसे किया, यह राजकुमार शुक्ल भी नहीं के बराबर ही जानते हैं और दोनों यह भी नहीं जानते हैं कि पटना में उन्हें जाना कहां है ! मोहनदास करमचंद गांधी को तो पटना कहां है यही नहीं मालूम था और राजकुमार शुक्ल को पटना में कौन, क्या है यह नहीं मालूम था। राजकुमार अपने मेहमान मोहनदास को ले कर पहुंचते हैं अपने बड़े वकील साहब के घर। घर के बाहर की तख्ती पर लिखा है: राजेंद्र प्रसाद ! राजेंद्र प्रसाद बहुत बड़े और बड़े कमाऊ वकील थे लेकिन देश जिस राजेंद्र प्रसाद को जानता है उसका अभी जन्म नहीं हुआ है। और किस्सा यह कि वे राजेंद्र प्रसाद भी न तो घर पर थे, न पटना में थे। नौकरों ने बताया कि वकील साहब पुरी गए हुए हैं। एकदम अजनबी-से शहर में, एक अजनबी आदमी के घर के बरामदे में, दो अजनबी-से आदमी एक अजनबी-सी रात गुजारने को अभिशप्त थे। अब तक मोहनदास समझ चुके थे कि राजकुमार भोले आदमी हैं जिनकी गठरी में व्यावहारिक बातें कम होती हैं। अपनी डायरी खंगाल कर मोहनदास ने एक नाम निकाला- मजहरुल हक! पटना के नामी वकील और मुस्लिम लीग के राष्ट्रीय मंत्री। लेकिन मोहनदास के लिए उनका परिचय दूसरा भी था- वे कभी लंदन में मोहनदास के सहपाठी रहे थे। मोहनदास ने उनको खबर भिजवाई तो हक साहब अपनी मोटर में भागे आए और मोहनदास को अपने घर ले आए। घर तो क्या, कोठी कहें हम। मोहनदास कोठी

से ही हिचक गए, जीवन-शैली की तकड़-भड़क ने और भी परेशान किया। जब बताया कि राजकुमार उन्हें चंपारण ले जा रहे हैं तो बारी हक साहब के बिदकने की थी क्यों यह सारी मुसीबत मोल लेनी जैसा कुछ कहा उन्होंने। वे अपने इंग्लैंड वाले दोस्त मोहनदास को इस परेशानी से बचाना चाहते थे। मोहनदास को उनका रवैया और उनकी दिखावटी जीवन-शैली पची नहीं और उन्होंने कुछ ऐसा कहा कि हक साहब कट कर रह गए। आगे की कहानी जैसे चलती है, उसे वैसे ही चलने को छोड़ कर हम सीधा मुजफ्फरपुर पहुंचते हैं जहां मोहनदास को घेर कर बैठे हैं बिहार व देश के नामी वकील साहबान। बाबू ब्रजकिशोर प्रसाद भी हैं, राजेंद्र प्रसाद भी हैं, रामनवमी प्रसाद भी हैं, सूरजबल प्रसाद, गया बाबू भी हैं। ...और भी कई लोग हैं। चंपारण में चल रही तिनकठिया प्रथा और उससे किसानों का हो रहा अकल्पनीय शोषण- सारे महानुभाव इससे परिचित थे। कैसे परिचित नहीं होते! ये सभी इन्हीं शोषित-पीड़ितवंचित किसानों के मुकदमे भी तो लड़ते थे। न्याय दिलाना इनका पेशा ही था। मोहनदास को बड़ी हैरानी हुई कि ऐसे मृतप्राय किसानों से ये सारे साहबान हजारों रुपयों की फीस वसूलते थे। तर्क उनका सीधा था : घोड़ा घास से दोस्ती करेगा तो खाएगा क्या! लेकिन मोहनदास हमसे चाहते क्या हैं? यह सवाल था, जो कहे-अनकहे सारे माहौल पर पसरा हुआ था। मोहनदास ने कहा कि हमें ये मुकदमे लड़ना ही बंद कर देना चाहिए। इनसे लाभ बहुत कम होता है। जब इतना भय हो, इतना शोषण हो तो कचहरियां कितना काम कर सकती हैं! ...तो पहला काम है लोगों का भय दूर करना! दूसरी बात है यह संकल्प कि ‘तिनकठिया’ बंद न हो तब तक चैन से नहीं बैठना है। इसीलिए वहां चंपारण के किसानों के बीच लंबे समय तक रहना पड़ेगा और जब जरूरत पड़े तब जेल जाने की तैयारी रखनी पड़ेगी। मोहनदास चुप हुए तो सारा माहौल चुप हो गया। चेहरे पर सबके एक ही बात लिखी थी- यह तो अजीब ही तरह का आदमी है। हम मुकदमा लड़ते हैं, यही क्या कम है। अब हम ही मुकदमा भी लड़ें, इनके बीच जा कर भी रहें,

चंपारण मोहनदास का वाटर-लू हो सकता था, लेकिन गांधी ने उसे बना दिया अंग्रेजी साम्राज्यवाद का वाटर-लू ! जब परदा उठा था तब तो गांधी अकेले दिखे थे। पर वहां से सफर शुरू हुआ तो नापते-नापते गांधी ने इतना कुछ नाप लिया कि इतिहास का हर मंच छोटा पड़ने लगा


09 - 15 अप्रैल 2018 इनके लिए जेल भी जाएं! कोई खानदानी आदमी कभी जेल जाता है क्या? सबकी तरफ से जवाब ब्रजकिशोर बाबू ने दिया- हम आपके साथ रहेंगे, आपका बताया काम भी करेंगे। जिसके पास जितना समय है, वह भी देंगे। जेल जाने वाली बात एकदम नई है। हम उसकी हिम्मत बनाएंगे। वे हिम्मत बनाते रहे और मोहनदास बात बनाने निकल पड़े। जो जहां, जिस भी तरह चंपारण से जुड़ा था, वे उन सबसे मिलने, बात करने में लगे थे। और सबसे जरूरी था कमिश्नर साहब से यह अनुमति पाना कि मोहनदास चंपारण जा सकते हैं। मोहनदास को यह जितना जरूरी लग रहा था, कमिश्नर के लिए भी यह उतना ही साफ था कि यह कतई जरूरी नहीं है कि एक बाहरी आदमी चंपारण की शांति-व्यवस्था भंग करने पहुंच जाए। दोनों की टेक साफ थी। मोहनदास ने बड़ी मासूमियत से अपने वकील साहबानों से कहा- ‘कमिश्नर साहब जो भी कहें, मैं चंपारण जाऊंगा!’ सारे वकील साहबान हैरानी से मोहनदास को देख रहे थे। मोहनदास ने एक पत्र लिखा कमिश्नर साहब के नाम- चाहता तो था कि आपकी अनुमति ले कर जाऊं; अब बिना अनुमति जा रहा हूं। मोहनदास ने मन-ही-मन हिसाब लगाया कि क्या मेरे हिसाब से पहले ही मुझे जेल जाना होगा ? 15 अप्रैल 1917 ! शाम के चार बजे मोहनदास मोतिहारी स्टेशन पहुंचे ! इतिहास ने आगे बढ़ कर परदा उठा दिया। सामने था छोटा-सा मोतिहारी का रेलवे स्टेशन, भाप छोड़ती इंजन की सूं-सूं, अटपटी और अजनबी-सी हालत में खड़े मोहनदास और अपार जन! मुझे मालूम नहीं कि इतिहास में कभी, कहीं ऐसी अटपटी स्थिति में कोई ऐसा नाटक खेला गया हो, जिसने इतिहास को ही बदल डाला हो! लेकिन यह सौ साल पहले ऐसा हुआ था- इतिहास ने आगे बढ़कर मोहनदास करमचंद गांधी का हाथ थामा और बिहार के हाथ में धर दिया ! यहां से आगे बहुत कुछ बदला- मोहनदास करमचंद गांधी इतना बदले कि नाम, धाम, काम, वस्त्र, जीवन, बोली-बानी, साथी-संगाती सब बदलते गए। नाम भी कट-छंट कर रह गया सिर्फ गांधी। फिर वह भी नहीं रहा। रह गए सिर्फ बापू! चंपारण मोहनदास का वाटर-लू हो सकता था, लेकिन गांधी ने उसे बना दिया अंग्रेजी साम्राज्यवाद का वाटर-लू! जब परदा उठा था तब तो गांधी अकेले दिखे थे। पर वहां से सफर शुरू हुआ तो नापते-नापते गांधी ने इतना कुछ नाप लिया कि इतिहास का हर मंच छोटा पड़ने लगा और जिस यात्रा के प्रारंभ में वे अकेले थे, उसी यात्रा में वे अकेले-एकांत के एक पल के लिए तरसने लगे। गांधी ने बिहार आकर खुद को खोजा। बिहार ने गांधी को पाकर खुद को पहचाना! गांधी ने बिहार आकर अपना वह हथियार मांजा-परखा जो दक्षिण अफ्रीका में तैयार हुआ था। बिहार ने गांधी को पाकर वह हथियार चलाना सीखा, जिसे सत्याग्रह कहते हैं। बिहार के लोगों ने गांधी से पूछा था- हमसे आप क्या चाहते हैं? गांधी ने बिहार से पूछा था- आप क्या कर सकेंगे? इस सवाल-जवाब के सौ साल बाद बिहार पूछ रहा है: आप हमसे क्या चाहते हैं? जवाब देने वाला कोई गांधी कहीं है क्या?

ल​ीक से परे

खुला मंच

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अरुण जेटली केंद्रीय वित्त मंत्री

स्वतंत्र भारत में स्वच्छाग्रह

स्वच्छ भारत मिशन, प्रधानमंत्री मोदी के शब्दों में कहें तो तेजी से एक जनांदोलन का रूप लेता जा रहा है। खुले में शौच करने वालों की संख्या काफी कम हो गई है

हते हैं, जिस विचार का समय आ गया हो, उसे कोई रोक नहीं सकता! एक रक्तरंजित विश्वयुद्ध की पृष्ठभूमि में, जब हिंसा ही युग की पहचान हुआ करती थी, भारत ने अहिंसक सविनय अवज्ञा आंदोलन के जरिए, सत्याग्रह के जरिए स्वतंत्रता हासिल की। पूरा देश महात्मा के आह्वान के पीछे आ गया और अपनी स्वतंत्रता के रूप में भारत ने संसार के सामने एक मिसाल पेश की। यह एक ऐसा विचार था, जिसका समय आ चुका था। उसी तरह आज, जब भारत का नाम खुले में शौच करने वालों की सबसे बड़ी तादाद के साथ इसके लिए बदनाम देशों की सूची में सबसे ऊपर है, 2 अक्टूबर 2019 तक पूर्ण स्वच्छता प्राप्ति के लक्ष्य के साथ प्रधानमंत्री द्वारा किया गया स्वच्छ भारत का आह्वान एक ऐसा विचार है, जिसका समय आ गया है।

खुले में शौच की परंपरा

2 अक्टूबर 2019 तक पूर्ण स्वच्छता प्राप्ति के लक्ष्य के साथ प्रधानमंत्री द्वारा किया गया स्वच्छ भारत का आह्वान एक ऐसा विचार है, जिसका समय आ गया है माता अमृतानंदमयी का योगदान

खुले में शौच जाने की परंपरा मानव सभ्यता के प्रारंभ जितनी ही पुरानी है। भारत के करोड़ों लोगों के लिए यह सदियों से जीवन शैली का हिस्सा है। 1980 के दशक से ही हमारे यहां सारी सरकारें राष्ट्रीय स्वच्छता कार्यक्रम संचालित करती आ रही हैं, लेकिन 2014 तक केवल 39 प्रतिशत भारतीयों को ही शौच की सुरक्षित सुविधा उपलब्ध थी। कारण यह कि शौचालय तक लोगों की पहुंच होना कोई ढांचागत समस्या नहीं है।

बड़ी चुनौती

रुपए बचाए। यह बचत दवाओं पर होने वाले खर्च में आई कमी तथा समय व जीवन बचने से हासिल हुई। इसके अलावा समुचित ठोस व द्रव्य कचरा प्रबंधन से अच्छी मात्रा में धन प्राप्ति की भी संभावना है। इसमें यह भी बताया गया है कि स्वच्छता से होने वाला प्रति परिवार आर्थिक लाभ 10 वर्षों के समेकित निवेश (सरकारी व अन्य स्रोतों द्वारा किए गए खर्च तथा परिवार द्वारा लगाए गए पैसे) का 4.7 गुना है। जाहिर है, स्वच्छता उम्मीद से ज्यादा फायदा देने वाला निवेश है। स्वच्छ भारत मिशन पर केंद्र व राज्य सरकारें पांच वर्षों में 20 अरब डॉलर खर्च करने वाली हैं। इसके अलावा निजी क्षेत्र, विकास एजेंसियों, धार्मिक संगठनों और नागरिकों की ओर से भी इसके लिए राशि आ रही है।

इस मामले में लोगों का व्यवहारगत रवैया और सामाजिक-सांस्कृतिक संदर्भ कहीं ज्यादा बड़ी भूमिका निभाता है। 60 करोड़ों लोगों के व्यवहार को प्रभावित करना एक ऐसी चुनौती है, जिसका सामना करने की अभी तक संसार में किसी ने कोशिश भी नहीं की है। यह उपलब्धि केवल एक सघन, समयबद्ध हस्तक्षेप के जरिए ही हासिल की जा सकती है, जिसका नेतृत्व सर्वोच्च स्तर से किया जा रहा हो, और जिसमें समाज व सरकार के सभी अंग मिल-जुल कर सक्रिय हों। स्वच्छ भारत मिशन के स्वच्छाग्रह ने राष्ट्र की कल्पना को ठीक उसी तरह आकृष्ट किया है, जिस तरह दशकों पहले महात्मा के सत्याग्रह ने किया होगा!

अस्वच्छता और बीमारियां

स्वच्छता के महत्व को दस्तावेजी रूप पहले ही दिया जा चुका है। इसके प्रभाव से डायरिया जैसी बीमारियों में आने वाली कमी बाल मृत्यु दर को नीचे लाती है। इससे स्त्रियों की सुरक्षा और उनकी गरिमा सुनिश्चित होती है। स्वच्छता की कमी से होने वाला नुकसान उससे कहीं ज्यादा है, जितना यह ऊपर से नजर आता है। विश्व बैंक का एक अध्ययन बताता है कि मुख्यत: स्वच्छता की कमी के चलते भारत के 40 फीसदी बच्चों का शारीरिक और बौद्धिक विकास नहीं हो पाता। हमारी भावी कार्यशक्ति का इतना बड़ा हिस्सा अपनी पूर्ण उत्पादक क्षमता ही हासिल न कर सके, यह हमारी मुख्य शक्ति, हमारे जनसंख्या बल के लिए एक गंभीर खतरा है। इस समस्या को सुलझाना आर्थिक महाशक्ति बनने से जुड़ी हमारी विकास कार्यसूची का आधार बिंदु होना चाहिए। वर्ल्ड बैंक का भी अनुमान है कि स्वच्छता के अभाव से भारत को उसकी जीडीपी के 6 फीसदी का नुकसान होता है।

हर परिवार ने 50,000 रुपए बचाए

यूनिसेफ के एक अध्ययन के मुताबिक खुले में शौच से मुक्त गांवों में हरेक परिवार ने साल में 50,000

स्वच्छ भारत कोष द्वारा विशेष सफाई परियोजनाओं के लिए 660 करोड़ रुपए की राशि इकट्ठा की गई और उसे जारी भी कर दिया गया। यह राशि लोगों के व्यक्तिगत योगदान और कंपनियों व संस्थानों की मदद से जुटाई गई। इसमें सबसे ज्यादा 100 करोड़ रुपए का व्यक्तिगत योगदान धार्मिक नेता माता अमृतानंदमयी का रहा। कई निजी कंपनियों ने अपने सीएसआर फंड से स्कूलों में सफाई की व्यवस्था की है। हालांकि स्वच्छ भारत मिशन में अब भी निजी क्षेत्र की रचनात्मकता और नवाचार के लिए पर्याप्त संभावनाएं मौजूद हैं। भारत सरकार के सभी मंत्रालय और विभाग अपने-अपने क्षेत्रों में स्वच्छता को प्रमुखता देने के लिए प्रयास कर रहे हैं और वे इस पर एक निश्चित राशि खर्च करने को लेकर प्रतिबद्ध हैं।

एक जनांदोलन

स्वच्छ भारत मिशन, प्रधानमंत्री मोदी के शब्दों में कहें तो तेजी से एक जनांदोलन का रूप लेता जा रहा है। खुले में शौच करने वालों की संख्या काफी कम हो गई है। हम सब मिलकर स्वच्छ भारत मिशन की सकारात्मक ऊर्जा को और फैलाते जाएंगे। अपनीअपनी आस्तीनें चढ़ाइए और गांधी जी के सपनों का भारत, स्वच्छ भारत बनाने के अभियान में जुट जाइए। आप ये पंक्तियां पढ़ रहे हैं तो आगे बढ़ें और अपने हिस्से का कर्तव्य पूरा करें।


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आवरण कथा

09 - 15 अप्रैल 2018

गांधी और मैं

एक स्कैवेंजर महिला, शुष्क शौचालयों से मानव-मल की सफाई करती हुई

बिहार के आरा में जिंदगी बदल देने वाली घटना: डॉ. पाठक मैला ढोने वाले स्कैवेंजरों के साथ कमाऊ शौचालयों से मानव-मल को हाथों से साफ करने के बाद अपने सिर पर मैला ढोते हुए

एक नए उल्लेखनीय विकास में, वर्तमान प्रधानमंत्री माननीय नरेंद्र मोदी ने जोर-शोर से यह रेखांकित किया कि गंदगी से आजादी के बिना भारत एक महान राष्ट्र नहीं बन सकता है। उन्होंने ‘स्वच्छ भारत अभियान’को शुरू किया, जिसका उद्देश्य एक राष्ट्रीय मिशन के रूप में भारत की गलियों, सड़कों और बुनियादी ढांचे को 2019 तक स्वच्छ बनाना है

भारत की लंबे समय से कष्ट झेल रही विधवाओं को एक नया जीवन प्राप्त हुआ। ये विधवाएं अब एक उद्देश्य के साथ जीवन जी रही हैं। साथ ही वे मानव और ईश्वर, दोनों के संरक्षण में खुश और सुरक्षित हैं। हमने एक नई सामाजिक संस्कृति बनाई है जो गरीबों को गले लगाती है और श्रम की गरिमा की प्रशंसा करती है। दबे-कुचलों लोगों के लिए उनका असीम प्यार, असंख्य और वास्तविक तरीकों में अभिव्यक्ति होता है। कोई आश्चर्य नहीं कि जो लोग उन्हें जानते हैं, वो कसम खाते हैं कि डॉ. पाठक

असहाय लोगों की मदद करने के लिए पैदा हुए हैं।

प्रकाशन

डब्ल्यूएचओ ने सुलभ के बारे में साहित्य प्रकाशित किया है और उन्हें बड़े पैमाने पर वितरित किया है। यूएन-हैबिटैट ने 1987 में एक केस स्टडी, 'इंटरनेशनल साल ऑफ शेल्टर' के नाम से प्रकाशित किया था और इसे विभिन्न देशों (तालिका 1) में वितरित किया। 2003 में, यूएनडीपी ने अपनी मानव विकास रिपोर्ट में अंतरराष्ट्रीय एजेंसियों और


09 - 15 अप्रैल 2018

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आवरण कथा

21 दिसंबर, 2008: एक मंदिर में प्रवेश के साथ स्कैवेंजरों का सपना पूरा हुआ, अस्पृश्यता की प्रथा के कारण उनका शताब्दियों तक मंदिर में प्रवेश पर प्रतिबंध था

डॉ. पाठक के साथ पूर्व स्कैवेंजर महिलाएं और लड़कियां अजमेर शरीफ दरगाह पर प्रार्थना करती हुई

डॉ. पाठक के साथ पूर्व स्कैवेंजर महिलाएं और लड़कियां नई दिल्ली के सेक्रेड हार्ट कैथेड्रल चर्च में प्रवेश करती हुई

डॉ. पाठक के साथ पूर्व स्कैवेंजर महिलाएं और लड़कियां नई दिल्ली के गुरुद्वारा बंगला साहिब में प्रवेश करती हुई

सिलाई

पापड़ बनाना

शिक्षा

सौंदर्य की देखभाल

पूर्व स्कैवेंजर महिलाएं और लड़कियां इलाहाबाद के कुंभ मेले में आस्था की डुबकी लगाती हुई


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आवरण कथा

09 - 15 अप्रैल 2018

8 नवम्बर, 1988: तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी नई दिल्ली के नाथद्वारा मंदिर की यात्रा के बाद, पूर्व स्कैवेंजरों के बच्चों के साथ

राजस्थान के अलवर के पूर्व स्कैवेंजरों के साथ, भारत के तत्कालीन माननीय प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह

नई दिल्ली में संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (यूपीए) की अध्यक्ष माननीय सोनिया गांधी के लिए कविता पाठ करती हुई पूर्व स्कैवेंजर लक्ष्मी नंदा

पूर्व महिला स्कैवेंजरों से बातचीत करते हुए भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के तत्कालीन उपाध्यक्ष राहुल गांधी

भारत की तत्कालीन माननीय राष्ट्रपति प्रतिभा देवीसिंह पाटिल, राजस्थान के अलवर के पूर्व स्कैवेंजरों के साथ। ये महिलाएं पहले तो मल साफ करती थीं और अब बुनियादी शिक्षा और प्रशिक्षण के बाद स्व-रोजगार और गरिमा के साथ जीवन जी रही हैं

25 जुलाई, 2008: नई दिल्ली, राष्ट्रपति भवन: भारत की तत्कालीन माननीय राष्ट्रपति प्रतिभा देवीसिंह पाटिल पूर्व स्कैवेंजर उषा चौमड़ को सुलभ इंटरनेशनल सोशल सर्विस ऑर्गनाइजेशन के अध्यक्ष बनने पर बधाई देते हुए


09 - 15 अप्रैल 2018

आवरण कथा

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अस्पृश्यता को विदा: अमोला पाठक और डॉ. पाठक: जगदंबिका पाल, सांसद; राजनाथ सिंह, केंद्रीय गृह मंत्री, भारत सरकार, और उषा चौमड़

उषा चौमड़, एक पूर्व महिला स्कैवेंजर और अब सुलभ इंटरनेशनल सोशल सर्विस संगठन की अध्यक्ष, नई दिल्ली में माननीय राजनाथ सिंह के साथ भोजन करती हुईं

सामूहिक भोजन: ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र सहित समाज के सभी वर्गों के लोग एक साथ भोजन करते हुए और इस तरह डॉ. आंबेडकर का सपना पूरा हुआ

2 जुलाई, 2008: पूर्व महिला स्कैवेंजरों ने न्यूयॉर्क में संयुक्त राष्ट्र में मॉडल के साथ रैंप-वाक किया और अपना हैंडमेड काम दिखाया। इससे पूर्व स्कैवेंजरों के उद्धार में मदद मिली।

अन्य राष्ट्रों द्वारा सुलभ प्रौद्योगिकियों के उपयोग की सिफारिश की थी। यूएनडीपी ने 2006 में फिर से अपनी मानव विकास रिपोर्ट में भारत में सार्वजनिक शौचालयों के सफल कामकाज और आत्मनिर्भरता के बारे में लिखा। स्टैनफोर्ड और कैलिफोर्निया विश्वविद्यालयों में सुलभ प्रौद्योगिकियों को पढ़ाया जा रहा है। सुलभ प्रौद्योगिकियों और तरीकों का अध्ययन करने के बाद, भारतीय प्रबंधन संस्थान, अहमदाबाद के एक छात्र ने सुलभ स्वच्छता और सामाजिक सुधार आंदोलन के बारे में मूल्यांकन कर, एक केस स्टडी तैयार की। एशियाई विकास बैंक और अशोक फाउंडेशन ने भी सुलभ के काम पर दस्तावेज तैयार किए हैं। भारत के पूर्व राष्ट्रपति स्वर्गीय डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम ने अपनी पुस्तक में यह भी लिखा है कि कैसे सुलभ स्वच्छता तकनीकों और तरीकों ने भारतीय स्वच्छता परिदृश्य को बदल दिया है।


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आवरण कथा

09 - 15 अप्रैल 2018

डॉ. पाठक द्वारा उज्जैन में सिंहस्थ कुंभ के दौरान क्षिप्रा नदी के पवित्र जल में डुबकी लगाने के लिए दलितों, वृंदावन और वाराणसी की विधवाओं को लाने की बड़ी पहल की गई। हिंदुओं के धार्मिक-सामाजिक मुख्यधारा में दबे-कुचले लोगों को बिना भेदभाव के शामिल करने की दिशा में एक बड़ा कदम

वृंदावन व वाराणसी की विधवाओं तथा अलवर और टोंक की पूर्व महिला स्कैवेंजरों के साथ डॉ. पाठक ने दिव्य महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंगम मंदिर में प्रार्थना की

आध्यात्मिक गुरु अवधेशानंद गिरि जी महाराज ने उज्जैन में पूर्व स्कैवेंजरों के साथ वृंदावन और वाराणसी की विधवाओं को आशीर्वाद दिया

आध्यात्मिक गुरु अवधेशानंद गिरी जी महाराज और योग गुरु बाबा रामदेव उज्जैन में डॉ. पाठक के साथ

भारत में वैधव्य, अक्सर एक महिला के जीवन में एक दुखद पल के रूप में वर्णित किया जाता है, एक ऐसी घटना जिसमें उसकी पहचान अपने पति की मृत्यु के साथ ही दूर छीन जाती है। लेकिन डा. पाठक के मानवीय कार्यों ने एक नई आशा का संचार किया है। एंजेलिना जोली और बिल गेट्स के साथ सार्वजनिक जीवन में दुनिया के शीर्ष 50 विभिन्न लोगों के बीच मुझे जगह दी। मुझे 2016 में नई दिल्ली में डब्ल्यूएचओ पब्लिक हेल्थ चैंपियन अवार्ड मिला और 14 अप्रैल, 2016 को न्यूयॉर्क ग्लोबल लीडर्स डायलॉग ने ‘2016 मानवतावादी पुरस्कार’ प्रदान किया। न्यू यॉर्क ग्लोबल लीडर्स डायलॉग ज्यूरी ने कहा, "डॉ. पाठक एक महान मानवतावादी हैं, जिन्होंने दशकों से लाखों साथी मानवों के जीवन की गुणवत्ता को बेहतर किया है। वह एक सामाजिक नेता के आदर्श उदाहरण हैं, जिन्हें अन्य राष्ट्रों द्वारा अनुसरण करने की आवश्यकता है।" न्यूयॉर्क शहर के मेयर श्री बिल द ब्लैसिओ ने 14 अप्रैल, 2016 को ‘डॉ. विन्देश्वर पाठक दिवस’ के रूप में घोषित किया है। हाल ही में, नई दिल्ली में स्वच्छता के क्षेत्र में योगदान के लिए सीएनएन – न्यूज 18 ने मुझे ‘इंडियन ऑफ द ईयर – आउटस्टैंडिंग अचीवमेंट’ पुरस्कार प्रदान किया।

सुलभ विजन और मिशन

सामूहिक भोजन: वृंदावन और वाराणसी की विधवाओं और पूर्व महिला स्कैवेंजरों के साथ भोजन करते हुए डॉ. पाठक और हिंदू पुजारी

पुरस्कार और मान्यता

भारत सरकार द्वारा मुझे स्वच्छता और सामाजिक सेवा क्षेत्र में काम करने के लिए 1991 में सर्वोच्च नागरिक पुरस्कारों में से एक 'पद्म भूषण' से सम्मानित किया गया। 1992 में मुझे पर्यावरण के लिए अंतरराष्ट्रीय सेंट फ्रांसिस पुरस्कार (केनीटिकल ऑफ आल क्रिएचर) मिलने के समय, परम पूज्यनीय पोप जॉन पॉल द्वितीय भी उपस्थिति रहे। 1996 में, इस्तांबुल में आयोजित हैबिटैट 2 सम्मलेन में यूनाइटेड नेशन्स सेंटर फॉर ह्यूमन सेटलमेंट्स (मानव अधिवासन हेतु संयुक्त

उज्जैन में पूजा करतीं हुई पूर्व महिला स्कैवेंजर

राष्ट्र केंद्र-यूएनसीएचएस) ने सुलभ प्रौद्योगिकी को वैश्विक शहरी बेहतरीन कार्यप्रणाली में से एक घोषित किया। यूएन हैबिटैट और दुबई म्युनिसिपलिटी ने पर्यावरण में सुधार के लिए 'लागत प्रभावी और उपयुक्त स्वच्छता प्रणाली' के लिए साल 2000 में ‘दुबई अंतरराष्ट्रीय पुरस्कार’ से सुलभ को सम्मानित किया। जून, 2009 में संयुक्त राष्ट्र में दूसरे वार्षिक आईआरईओ पुनर्नवीकरणीय ऊर्जा पुरस्कार, सुलभ को प्रदान किया गया। मुझे स्टॉकहोम इंटरनेशनल वाटर वीक द्वारा साल 2009 के

‘स्टॉकहोम वाटर प्राइज’ और 2013 में यूनेस्को, पेरिस में ‘लीजेंडे डे ला प्लानेटे कांग्रेस फाउंडटूर ज्यूक्स इकोलॉजी’ पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। कम लागत वाले शौचालय डिजाइन करने के लिए मुझे टाइम पत्रिका द्वारा पर्यावरण के नायकों में से एक के रूप में चुना गया, इस डिजाइन ने हमारे गृह को सहायता की है जिससे लाखों लोगों को बेहतर स्वच्छता मिली है और अनगिनत स्कैवेंजेर्स को मानव-मल साफ करने से मुक्ति दिलाई है। द इकोनोमिस्ट ने नवंबर 2015 में अमेरिका के राष्ट्रपति बराक ओबामा,

अगले कुछ दशकों के लिए सुलभ के लिए मेरा विजन और मिशन भारत अन्य विकासशील देशों में साफ-सफाई और सुरक्षित पेयजल की कमी की विशाल समस्या से जुड़ा हुआ है। आज, दुनिया में 2.4 बिलियन से ज्यादा लोगों तक स्वच्छता की पहुंच नहीं है और 1.1 बिलियन से अधिक लोग सुरक्षित पेयजल से महरूम है। हमने जो कुछ किया है और समस्या के इन आयाम के प्रकाश में करने का जो इरादा है वह सामाजिक वैज्ञानिक पहलुओं के साथ जुड़ा हुआ है। सुलभ के काम में सामाजिक सुधारों का मसौदा उतना ही महत्वपूर्ण है जितना तकनीकी पहलु, जैसे-कचरा और मलमूत्र निपटान के डिजाइन और तकनीकें। मैला ढोने वाले कर्मियों के मानवाधिकारों की बहाली और उनके लिए सामाजिक गरिमा, स्कैवेंजिंग का पूरी तरह से खात्मा, समाज से अस्पृश्यता का पूरी तरह उन्मूलन, शहरी और ग्रामीण इलाकों में मानवमल निपटान की एक सुरक्षित व्यवस्था को बढ़ावा देने के साथ-साथ हमारे प्राकृतिक जल स्रोतों की सुरक्षा सुनिश्चित करना आदि, हमारे भविष्य के सपने और विजन का आधार हैं।


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आवरण कथा

22 मई, 2015: नई दिल्ली के विज्ञान भवन में माननीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को गुलदस्ता भेंट करते हुए डॉ. पाठक

उज्जैन में सिंहस्थ महाकुंभ के दौरान क्षिप्रा नदी में दलित साधुओं के साथ पवित्र डुबकी लगाते हुए भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष माननीय अमित शाह

मुझे एक ही जिंदगी में दो जीवन जीने के मौके मिले है। पहला जीवन भगवान ने दिया था, जबकि दूसरा जीवन मुझे डॉ. विन्देश्वर पाठक ने दिया उषा चौमड़ अध्यक्ष, सुलभ इंटरनेशनल (5 अक्टूबर, 2016) माननीय प्रधानमंत्री से 'सफाईगिरी पुरस्कार' प्राप्त करती उषा चौमड़

पहले अछूत ... अब ब्राह्मण - पीली साड़ियों में अपने पुनर्जन्म के साथ पूर्व महिला स्कैवेंजरों के साथ सुलभ संस्थापक डॉ. विन्देश्वर पाठक


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आवरण कथा

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“मुझे स्टॉकहोम इंटरनेशनल सुलभ का प्रभाव वाटर वीक द्वारा साल 2009 के यह प्रमाणित किया जा चुका है कि धरती की 71 फीसदी सतह पर पानी है, जिसमें से केवल 0.6% ‘स्टॉकहोम वाटर प्राइज’ और सतह ही जल निकायों जैसे कि झीलों और नदियों 2013 में यूनेस्को, पेरिस में ‘लीजेंडे के आकार में है। इन आंकड़ो से पता चलता है कि जल के इस अल्प प्रतिशत को प्रदूषण और डे ला प्लानेटे कांग्रेस फाउंडटूर जयूक्स इकोलॉजिके’ पुरस्कार से बर्बाद होने से बचाना कितना महत्वपूर्ण है। यहां से, सुलभ ने ऐसे उपकरणों को डिजाइन किया सम्मानित किया गया था। जो प्रदूषण को रोकते हैं। यह ध्यान में रखते हुए मुझे ‘टाइम’ पत्रिका द्वारा कि मेरे द्वारा विकसित प्रौद्योगिकियां पेटेंट से मुक्त हैं, कोई भी संगठन या देश उन्हें मुफ्त में अपना पर्यावरण के नायकों में से एक सकता है। इस तरह दूसरी जगहों पर भी न केवल के रूप में चुना गया” पानी और स्वच्छता के मिलेनियम विकास लक्ष्यों

राजस्थान के अलवर की पूर्व महिला स्कैवेंजरों के साथ स्वीडन के महामहिम प्रधानमंत्री फ्रेड्रिक रेनफेल्ड और उनकी पत्नी फिलीपा और डॉ. पाठक,

राजस्थान के अलवर के पूर्व स्केवेंजर्स के साथ सुलभ परिसर के दौरे पर, भारत में बेल्जियम के राजदूत महामहिम जीन एम डेबूट

5 जनवरी 2009: एक अप्रतिम दोपहर का भोजन और एक अद्भुत अनुभव जब माननीय राजमोहन गांधी ने सुलभ परिसर, नई दिल्ली के लॉन में पूर्व स्कैवेंजर्स इस अवसर पर पूजारियों के साथ उन परिवारों के भी सदस्य मौजूद थे, जहां ये महिलाएं पहले सफाई का कार्य करती थीं

सुलभ परिसर में अपनी यात्रा के दौरान बेल्जियम की राजकुमारी माथिल्ड, राजस्थान के अलवर की पूर्व महिला स्कैवेंजर लक्ष्मी नंदा के साथ हाथ मिलाते हुए

एच. ई. टिमोथी जे रोमर, यू.एस.ए. के भारत में राजदूत और सैली रोमर और डॉ. पाठक पूर्व स्केवेंजर्स के साथ, जो सुलभ इंटरनेशनल द्वारा मुक्त और पुनर्वासित किए गए हैं

राजस्थान के अलवर और टोंक और उत्तर प्रदेश के नेकपुर और गाजियाबाद की पूर्व महिला स्कैवेंजरों के साथ ग्रुप फोटो खिंचाते हुए अमेरिका के राजदूत महामहिम रिचर्ड राहुल वर्मा और डॉ. पाठक

को हासिल किया जा सकता है, बल्कि मानव स्वास्थ्य के अधिकार, गरीबी उन्मूलन आदि संबंधी लक्ष्य भी प्राप्त किए जा सकते हैं। सुलभ एक गैर-सरकारी संगठन (एनजीओ) है, जिसका कार्य सफल रहा है और उसका एक बड़ा प्रभाव भी रहा है, क्योंकि यह सरकारी एजेंसियों के साथ काम करता है। इसकी राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर व्यापक स्वीकृति है। सामाजिक गरिमा को बहाल करने और स्वास्थ्य में सुधार के अलावा, सुलभ शौचालयों में ऐसा अंतनिर्हित (इन बिल्ट) तंत्र है जो ग्रीनहाउस प्रभाव को कम करता है। गड्ढे में मलमूत्र के अपघटन के दौरान उत्पादित गैसें वातावरण में शामिल नहीं होती हैं, बल्कि वे मिट्टी में अवशोषित हो जाती हैं। इस प्रकार, यह ग्लोबल वार्मिंग को रोकता है और पर्यावरण को भी सुधारता है। मुझे यह भी पता चला है कि कोई भी इनोवेशन, पहल या कार्यान्वयन, लोगों की आवश्यकता और मांगों के आधार पर होना चाहिए। उनकी व्यापक और बड़े पैमाने पर स्वीकार्यता और सामाजिक प्रासंगिकता होनी चाहिए। उन्हें उपयुक्त रूप से सामाजिक परिदृश्य को ध्यान में रखना चाहिए और अलग-अलग परिस्थितियों के अनुकूल होना चाहिए। मेरे द्वारा विकसित प्रौद्योगिकियों से 2.4 बिलियन लोगों की बेहतर स्वच्छता तक पहुंच होगी, जिससे उन्हें सुरक्षा और गरिमा के साथ शौचालयों का उपयोग करने में मदद मिलेगी। स्वच्छता के मुद्दे को उच्च स्तर की शिक्षा तक लाने और इसे तकनीकी रूप से इस क्षेत्र के पेशेवरों के लिए सुलभ बनाने के लिए, मेरे मार्गदर्शन में सुलभ ने स्वच्छता की सुलभ एन्सायक्लोपीडिया (विश्वकोश) तैयार की है। स्वच्छता क्षेत्र को अधिक आकर्षक, तकनीकी और पेशेवर बनाने के लिए, मैंने एक स्वच्छता विश्वविद्यालय की स्थापना का सूत्रपात किया है, क्योंकि मैंने यह महसूस किया है कि स्वच्छता तकनीकी और साथ ही सामाजिक- दोनों रूप में चुनौती है। सामाजिक, आर्थिक और सांस्कृतिक पहलुओं की विविधता और जटिलता की वजह से एक विविधतापूर्ण समाज में समस्याओं को दूर करना अधिक चुनौतीपूर्ण है। समस्याओं के आकार दुनिया के विभिन्न क्षेत्रों में व्यापक रूप से भिन्न-भिन्न होते है। स्वच्छता विश्वविद्यालय विभिन्न क्षेत्रों/समाजों में समस्याओं को दूर करने में बहुत मदद करेगा। इस प्रकार, हमारा विजन


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आवरण कथा

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विधवा जीवन की चुनौती

उत्तर प्रदेश के वृंदावन में सुलभ इंटरनेशनल द्वारा आयोजित सामूहिक भाज के दौरान वृंदावन की विधवाएं

नई दिल्ली में 'रक्षा बंधन' के अवसर पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को 'राखी' बांधती हुई वृंदावन की विधवाएं

और मिशन मिलेनियम विकास लक्ष्यों के साथ हाथ मिलकर आगे बढ़ना है।

भारत में स्वच्छता की पहुंच

खुली जगहों पर शौच भारत में अभी प्रचलित है, लेकिन सुलभ इंटरनेशनल के पथप्रदर्शक काम ने यह दिखाया है कि मानव-मल का सुरक्षित और सामाजिक रूप से स्वीकार्य तरीके से भी निपटान किया जा सकता है। सुलभ का दृष्टिकोण स्थानीय सरकारों की साझेदारी पर आधारित है, जो सामुदायिक भागीदारी द्वारा समर्थित है, और इससे ग्रामीणों और गरीब शहरी मलिन बस्तियों में पर्यावरणीय गुणवत्ता में काफी सुधार हुआ है। मानव-मल के उसी स्थान पर निपटान के

लिए, लीच पिट्स (जो ठोस को रोककर, द्रव्य बह जाने दे) के साथ पोर-फ्लश वाटर सील शौचालय वाला सुलभ का यह समाधान, कम लागत वाला है। प्रौद्योगिकी गरीब लोगों के लिए सस्ती है, क्योंकि इसके डिजाइन विभिन्न आय स्तरों के अनुरूप हैं। अन्य शौचालयों द्वारा इस्तेमाल किए गए 10 लीटर की तुलना में, इसमें फ्लशिंग को केवल एक लीटर पानी की आवश्यकता होती है। इसके अलावा, यह व्यवस्था कभी सीमा से बाहर नहीं जाती है क्योंकि इसमें दो गड्ढ़े हैं, इसीलिए एक का जब उपयोग किया जा रहा हो तब दूसरा साफ किया जा सकता है। शौचालय, स्थानीय स्तर पर उपलब्ध सामग्री के साथ आसानी से बनाया जा सकता है और इसका रख-रखाव भी

शौचालयों द्वारा इस्तेमाल किए गए 10 लीटर की तुलना में, इसमें फ्लशिंग को केवल एक लीटर पानी की आवश्यकता होती है

वृंदावन की विधवाओं को अंग्रेजी, हिंदी और बांग्ला पढ़ना-लिखना और सिखाना वृंदावन के बाद डॉ. पाठक ने वाराणसी की विधवाओं को अपनाया


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आवरण कथा

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डॉ. पाठक द्वारा, उत्तराखंड के देओली-भनी ग्राम की असहाय विधवाओं को सिलाई मशीनों दी गई

उत्तराखंड के ग्रामीणों को चिकित्सा सुविधा प्रदान की गई

आसान है। इसमें उन्नयन के लिए भी उच्च क्षमता है, क्योंकि यह क्षेत्र में आने वाली सीवर प्रणाली से आसानी से जोड़ा जा सकता है। वर्ष 1970 से, घरों में 1.5 मिलियन से अधिक शौचालयों का निर्माण किया जा चुका है। इसके अतिरिक्त, "भुगतान और उपयोग" व्यवस्था के आधार पर 8,500 सार्वजानिक शौचालयों को स्थापित किया जा चुका है, जिनकी मुलाजिमों

डॉ. पाठक द्वारा उत्तराखंड के देओली-भनी ग्राम की विधवाओं को कंप्यूटर प्रशिक्षण दिया जा रहा है

वर्ष 2013 में आई केदारनाथ त्रासदी की शिकार एक युवा विधवा विनीता का राकेश के साथ पुनर्विवाह

द्वारा पूरे 24 घंटे देखभाल की जाती है और यहां हाथ धोने के लिए साबुन भी प्रदान किया जाता है। सार्वजनिक शौचालयों में स्नान करने और कपड़े धोने और बच्चों, विकलांग और गरीब लोगों के लिए मुफ्त सेवाएं मुहैया कराने की सुविधाएं भी शामिल हैं। इसके परिणामस्वरूप 20 मिलियन से अधिक लोगों को कम-लागत में बेहतर स्वच्छता मिली है और 50,000 नौकरियों

भी पैदा हुई हैं। सुलभ के घर-घर अभियान ने लाखों लोगों को मुफ्त स्वास्थ्य शिक्षा प्रदान की है। संगठन, स्थानीय लोगों को अपने शौचालयों का निर्माण खुद करने के लिए प्रशिक्षित करता है, साथ ही झोपड़ियों और अन्य क्षेत्रों में शुल्क-आधारित सामुदायिक शौचालयों को स्थापित करने और देख-रेख में मदद करता है।

स्वच्छता की समस्या का विस्तार और आकर बहुत बड़ा है, लेकिन 50 लाख से अधिक प्रतिबद्ध स्वयंसेवकों के परिवार के साथ, सुलभ ने खुद को इस चुनौतीपूर्ण कार्य के लिए लगातार समर्पित कर रखा है। इस प्रकार, यह जानते हुए कि "हमें सोने से पहले मीलों चलना है”, हम महात्मा गांधी के सपने को पूरा करने का लगातार प्रयास कर रहे हैं।

सुलभ स्वच्छता रथ: सफाई का वाहक

18 नवंबर 2014 को, विश्व शौचालय दिवस के अवसर पर सुलभ द्वारा आयोजित तीन दिवसीय ‘अंतरराष्ट्रीय शौचालय उत्सव’ के दौरान, ‘सुलभ स्वच्छता रथ’ का शुभारंभ किया गया। ‘स्वच्छ भारत अभियान’ के तहत शौचालय के सबसे बड़े चलते हुए मॉडल के समर्थन से, विभिन्न कार्यक्रम आयोजित किए गए। रथ, नवीनतम आडियो-विजुअल गैजेट से लैस है। यह सुलभ स्वच्छता सूचना शिक्षा और संचार वाहन के रूप में देश भर में यात्रा कर रहा है और स्वच्छ भारत और सुलभ स्वच्छता आंदोलन के संदेश को आगे बढ़ा रहा है।


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पुस्तक अंश

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के विजन और विकास कार्यक्रमों की झलक नरेंद्र मोदी का विजन भारतीय जनता पार्टी की वेबसाइट पर स्पष्ट रूप से व्यक्त किया गया है: "सब का साथ, सब का विकास"। यह विजन भारत की समृद्ध सामाजिक-सांस्कृतिक विविधता की विरासत, हमारे मानव संसाधन की शक्ति तथा युवाओं और महिलाओं की आकांक्षाओं पर आधारित है। ब्रांड इंडिया की अवधारणा उन सभी क्षेत्रों को शामिल करती है, जिनके पास भारत को वैश्विक शक्ति बनाने की क्षमता है। भारत की इंद्रधनुषीय अवधारणा सात महत्वपूर्ण केंद्रीय क्षेत्रों की कल्पना करती है - संस्कृति, कृषि, महिलाएं, प्राकृतिक संसाधन, युवा शक्ति, लोकतंत्र और ज्ञान - जो भारत को विकसित राष्ट्र बनाने के लिए सभी पहलों का व्यापक विषय होगा। अंत में, मोदी ने भारत को उच्च विकास पथ पर वापस लाने और अच्छे प्रशासन को पेश करने के लिए, एक आठ सूत्री महत्वपूर्ण विकास मॉडल को रेखांकित किया, जिसमें प्रत्येक पहल को विस्तृत तरीके से बताया गया। इस प्रकार, उन्होंने अपने विजन वाक्य में वर्णित सभी पहलुओं के साथ कई पहल और आंदोलन शुरू किए हैं।

मेक इन इंडिया

इस पहल का दायरा भारत में कारोबार स्थापित करने के लिए विदेशी कंपनियों को आकर्षित करने तक ही सीमित नहीं, बल्कि घरेलू कंपनियों को देश में उत्पादन को बढ़ाने के लिए प्रोत्साहित करना भी है।

12 अप्रैल, 2015: जर्मनी के हनोवर में हनोवर मेसे इंडस्ट्रियल ट्रेड फेयर के उद्घाटन के दौरान बोलते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी

रेंद्र मोदी ने कुशल और योग्य भारतीय युवाओं के लिए अधिक रोजगार के अवसर पैदा करने के लिए, 2014 के आम चुनावों के पहले और चुनाव के दौरान भारत में विदेशी निवेश लाने के लिए वादा किया था। देश के बीमार विनिर्माण क्षेत्र को पुनर्जीवित करने के लिए उनकी आक्रामक पहल ने, न केवल बड़े घरेलू व्यापारिक समुदाय के


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पुस्तक अंश

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‘मेक-इन-इंडिया’ निश्चित रूप से एक उत्कृष्ट पहल है।

इसे साथ शुरू करने के लिए बहुत सी कार्रवाई की आवश्यकता होगी। व्यापार करने में आसानी की सुविधा के लिए कुछ प्रावधान होने चाहिए।’

आदि बुरर्जोरजी गोदरेज

चेयरमैन, गोदरेज ग्रुप

‘मेक इन इंडिया’ पहल के मुख्य क्षेत्र

महाराष्ट्र के चाकण में महिंद्रा फैक्ट्री में असेंबली लाइन पर महिंद्रा नेविस्टर ट्रक के एक इंजन का ढांचा लगाते हुए एक श्रमिक

भीतर, बल्कि पूरे विश्व में बेहतर प्रतिक्रिया पाई। विशेष रूप से अनिवासी भारतीय (एनआरआई), अब अपनी मातृभूमि में निवेश करने और इसके विकास के एजेंडे के निर्माण के लिए तैयार हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 25 नवंबर 2014 को नई दिल्ली के विज्ञान भवन में एक समारोह में मेक इन इंडिया कार्यक्रम की शुरुआत की। इसके माध्यम से भारत को एक वैश्विक विनिर्माण केंद्र बनाने के लिए रोजगार, विकास और आवश्यक कौशल वृद्धि के लिए प्रोत्साहन प्रदान करने की पहल की गई है। शुरुआत में, अर्थव्यवस्था के पच्चीस क्षेत्रों को लक्षित करने का प्रस्ताव है और आने वाले समय में इसमें तेजी से वृद्धि की जाएगी। सरकार ने पिछले एक साल में देश में कारोबार करने और विदेशी निवेश को

आकर्षित करने के लिए प्रक्रियाओं को आसान बनाने के साथ, कारोबारी माहौल में सुधार के लिए कई कदमों की घोषणा की है। एकल-खिड़की की मंजूरी, न्यूनतम प्रक्रियाएं और लाल फीताशाही को कम करना, नई नीतियों की स्थायी पहचान बनी हैं। नवाचार को बढ़ावा देना, बौद्धिक संपदा की रक्षा करना और कौशल विकास में वृद्धि करना कार्यक्रम के अन्य उद्देश्य हैं। 'मेक इन इंडिया' के अंतर्गत नई पहल से गति बढ़ेगी जिसके साथ नियमों के तहत काम होंगे और उद्यमियों को अपेक्षित पारदर्शिता प्रदान की जाएगी। इस अवधारणा को आगे बढ़ाने के लिए, सरकार ने पर्यावरण मंजूरी और आयकर आनलाइन दाखिल करने में सहायता की है। औद्योगिक लाइसेंस की वैधता तीन साल तक बढ़ा दी गई है, भले ही विभाग के प्रमुख का अनुमोदन के लिए निरीक्षण करना आवश्यक हो। सरकार ने एफडीआई मानकों के

मीडिया और एंटरटेनमेंट

फार्मास्युटिकल्स

सूचना प्रौद्योगिकी और व्यवसाय प्रक्रिया प्रबंधन विमानन

निर्माण रसायन

विद्युत मशीनरी

रक्षा विनिर्माण खनन

जैव प्रौद्योगिकी

नवीकरणीय ऊर्जा

चेयरमैन, जेएसडब्ल्यू ग्रुप

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की परिकल्पना है कि मध्य अवधि के दौरान विनिर्माण

स्पेस

तेल और गैस

कल्याण

सड़क और राजमार्ग

पर्यटन और अतिथि सत्कार

उदारीकरण की दिशा में एक बड़ी पहल की है। आधारभूत सुविधाओं को उन्नत करके और अत्याधुनिक प्रौद्योगिकी का उपयोग करके, सरकार अन्वेषकों और रचनाकारों के बौद्धिक संपदा अधिकारों में सुधार और रक्षा करेगी।

ऑटोमोबाइल पुर्जे

बंदरगाह और नौ-परिवहन

खाद्य प्रसंस्करण

‘हम एक अधिक आबादी वाले देश हैं, जहां श्रम की लागत कम है और गुणवत्ता वाले उत्पाद तैयार करने की क्षमता अधिक है। हमारे पास वो सभी मौके हैं, जिनके साथ एक देश को एक अग्रणी वैश्विक विनिर्माण शक्ति बनना चाहिए।’ सज्जन जिंदल

ऑटोमोबाइल

राष्ट्रीय विनिर्माण क्षेत्र के लिए विजन

रेलवे थर्मल पावर चमड़ा

वस्त्र और कपड़े इलेक्ट्रॉनिक सिस्टम क्षेत्र की वृद्धि 12% से 14% सालाना तक बढ़ाई जाए, 2022 तक देश के सकल घरेलू उत्पाद में विनिर्माण की हिस्सेदारी 16% से बढ़कर 25% की जाए, 2022 तक 10 करोड़ अतिरिक्त रोजगार पैदा किए जाएं, ग्रामीण प्रवासियों और शहरी गरीबों के बीच समावेशी विकास के लिए उपयुक्त कौशल मंच तैयार करना, निर्माण में घरेलू मूल्य संवर्धन और तकनीकी गहराई में वृद्धि, भारतीय विनिर्माण क्षेत्र की वैश्विक प्रतिस्पर्धा में वृद्धि करना और स्थायी विकास सुनिश्चित करना।


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पुस्तक अंश

06 अक्टूबर, 2015:बेंगलुरु में बोश फैसिलिटी (Bosch Facility) के दौरे के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और जर्मन चांसलर एंजेला मार्केल

29 प्रधानमंत्री मोदी द्वारा 'मेक इन इंडिया' पहल के लिए "शून्य दोष-शून्य प्रभाव (जीरो डिफेक्टजीरो इफेक्ट)" नारा गढ़ा गया। इस नारे के अनुरूप इस पहल में उच्च गुणवत्ता मानकों को बनाए रखने और पर्यावरण पर प्रभाव को कम करने का एक बड़ा उद्देश्य है। इस पहल का उद्देश्य पूंजी और तकनीकी निवेश को भी आकर्षित भी करना है। इसके तहत उत्पाद की गुणवत्ता में अधिकतम ध्यान दिया जाएगा ताकि वह वैश्विक बाजार में अस्वीकार न हो पाए।

‘मेरा मानना है कि किसी भी विनिर्माण क्षेत्र में शासन जितना कम होगा, क्षेत्र उतनी ही तेजी से प्रगति करेगा।’

मनोहर पर्रिकर पूर्व रक्षा मंत्री

‘मेक-इन-इंडिया’, भारत में सही दिशा में एक कदम है और इसके सभी उपायों का उद्देश्य अर्थव्यवस्था में वस्तु और सेवाओं की मांग को प्रोत्साहित करना है।’

रवि उप्पल सीईओ और एमडी जिंदल स्टील एंड पावर

'मेक इन इंडिया' पहल की संभावना 'मेक इन इंडिया' पहल में, चीन और संयुक्त राज्य अमेरिका दोनों को पीछे छोड़ते हुए प्रत्यक्ष विदेशी निवेश के लिए

विश्व स्तर पर एक शीर्ष गंतव्य में भारत को परिवर्तित करने की क्षमता है।

3 जनवरी 2016: कर्नाटक के तुमकुर में एचएएलएस की नई हेलीकाप्टर विनिर्माण सुविधा से जुड़े प्रोजेक्ट का अवलोकन करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी


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पुस्तक अंश

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'मेक इन इंडिया' एक आंदोलन है, जो विकास के प्रकाश को जलाता है और 125 करोड़ भारतीयों की प्रतिभा, कौशल और नवीन उत्साह को बढ़ावा देता है।

'मेक इन इंडिया' एक मिशन है, सिर्फ एक नारा नहीं। हम इस पर काम कर रहे हैं। मैं हमेशा कहता हूं कि यदि आप मैराथन दौड़ रहे हैं, तो धावक के रूप में न चलें। सुरेश प्रभु केंद्रीय मंत्री

नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री

'मेक इन इंडिया' वीक

उपलब्धियां सरकार और उद्योगों के बीच भागीदारी। सुनिश्चित आसान व्यापार: व्यापार करने में आसानी से भारत की स्थिति 142 से बढ़कर 130 हो गई। मेक इन इंडिया के बाद, विदेशी प्रत्यक्ष निवेश (इक्विटी इन्फ्लो) में 46% की वृद्धि।

ट्वीट तुमकुर में एचएएल मैन्यूफैक्चरिंग यूनिट एक साधारण यूनिट नहीं होगी, यह एक ऐसी यूनिट होगी जिसकी तरफ पूरी दुनिया का ध्यान जाएगा। अब यह सुनिश्चित करने का समय है कि भारतीय सशस्त्र बलों के हथियार और उपकरण दुनिया में सबसे अच्छे हैं। तुमकुर में निर्मित हेलीकॉप्टर दूरस्थ स्थानों में तैनात सैनिकों की सेवा करेंगे।

भारत सरकार ने मुंबई में 13 से 18 फरवरी, 2016 तक "मेक इन इंडिया सप्ताह" का आयोजन किया। यह मेगा इवेंट लोगों को, वह सभी नीतियां और साझेदारी को दिखाने के लिए डिजाइन किया गया था, जो भारत की नई विनिर्माण क्रांति को आगे बढ़ा रही है। भारत की वाणिज्यिक राजधानी की जीवंत पृष्ठभूमि, इसे देश के विनिर्माण क्षेत्र का सबसे बड़ा शो बनाता है। यह शो केंद्रीय स्तर पर विनिर्माण, डिजाइन और नवाचार लाने में सफल रहा। 102 देशों के

प्रतिनिधित्व के साथ, लगभग में आठ लाख लोगों ने इसमें भाग लिया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मुंबई के बांद्रा कुर्ला परिसर में "मेक इन इंडिया" केंद्र का उद्घाटन करके इस इवेंट को शुरू किया। 17 राज्य प्रदर्शनियों और स्वीडन, जर्मनी और दक्षिण कोरिया सहित कई देशों के पैविलियन 20,000 वर्ग मीटर केंद्र पर बनाए गए। इस कार्यक्रम में सेमिनार, सीईओ की बैठकें, राउंड टेबल कांफ्रेंस और नेटवर्किंग अवसर शामिल थे।

आईआईटी और अन्य संस्थान युवा लोगों के लिए नवीनता का स्रोत हैं। इनके अलावा भी हमें नवाचार को प्रोत्साहित करने के लिए अनुसंधान केंद्रों की जरूरत है। रतन टाटा टाटा ग्रुप के एमेरिटस चेयरमैन


09 - 15 अप्रैल 2018

आओ हंसें

जीवन मंत्र

किडनी फेल डॉक्टर संता से: आपकी किडनी फेल हो गई है। संता पहले बहुत रोया.. फिर आंसू पूछते हुए बोला.. कितने नंबर से? पैंट की सिलाई संता- पैंट की सिलाई कितने की है? टेलर-150 रुपए की। संता- और निक्कर... टेलर- 50 रुपए। संता- चल निक्कर सिल दे और लंबाई पैरों तक निकालियो।

सु

रंग भरो सुडोकू का हल इस मेल आईडी पर भेजेंssbweekly@gmail.com या 9868807712 पर व्हॉट्सएप करें। एक लकी व‌िजते ा को 500 रुपए का नगद पुरस्कार द‌िया जाएगा। सुडोकू के हल के ल‌िए सुलभ स्वच्छ भारत का अगला अंक देख।ें

12 अप्रैल

जलियांवाला बाग नरसंहार दिवस (1919) 14 अप्रैल

अग्निशमन दिवस, भीमराव आंबेडकर स्मरण दिवस • •

15 अप्रैल

गुरु नानक देव जयंती

सुडोकू-16 का हल

17 अप्रैल

विश्व हीमोफीलिया दिवस, सर्वपल्ली डॉ. राधाकृष्णन स्मृति दिवस, तात्या टोपे स्मृति दिवस

वर्ग पहेली - 17

1. शब्दों के अर्थ आदि बताने वाला ग्रंथ (4) 4. पान रखने का पात्र (4) 6. राजाओं की गौरवगाथा का गायक (4) 8. कूड़ा-करकट (3) 10. शृंखला (3) 12. तरबूज (3) 14. पूजना (4) 15. वन में रहने वाला (4) 16. किनारा (3) 18. नमूना, थोड़ी सी चीज जो ग्राहक को देखने के लिये दी जाय (3) 19. चमकीला, तीखा (3) 21. मलहम, घाव पर लगाने वाला लेप (4) 23. रोज़े का महीना (4) 24. हानि (4)

वर्ग पहेली-16 का हल

बाएं से दाएं

ऊपर से नीचे

डोकू -17

कोशिश करना कभी न छोड़ें गुच्छे की आखिरी चाबी भी ताला खोल सकती है

महत्वपूर्ण दिवस • •

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इंद्रधनुष

1. सैकड़ा (3) 2. धुधं , धुमस (3) 3. तीर (2) 4. तुषार (2) 5. प्रतिलिपि, टीपना (3) 7. बोलने की शक्ति या गति (3) 9. ब्रह्मा (5) 11. कटुता (5) 12. मन से उत्पन्न, इच्छा, अभिलाषा (3) 13. क्षत्रियों का संबोधन, रनवास, अंतःपुर (3) 17. लहर (3) 18. किसी स्थान या वस्तु की सीमा के पार (3) 19. प्रकाश, आभा (3) 20. दुष्कर (3) 21. जी, अंतःकरण (2) 22. ठोड़ी (2)

कार्टून ः धीर


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नमन

डाक पंजीयन नंबर-DL(W)10/2241/2017-19

09 - 15 अप्रैल 2018

बापू को नमन...

5 दिसंबर 2012: राजस्थान के अलवर और टोंक की पूर्व महिला स्कैवेंजर्स, दक्षिण अफ्रीका के डरबन स्थित फीनिक्स आश्रम में डॉ. पाठक के साथ महात्मा गांधी को श्रद्धांजलि अर्पित करती हुईं (दाएं) महात्मा गांधी के सपने को पूरा करने के बाद नई दिल्ली में राजघाट स्थित उनकी समाधि पर श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए डॉ. पाठक और पूर्व महिला स्कैवेंजर्स लंदन में महात्मा गांधी की प्रतिमा को नमन करते हुए डॉ. विन्देश्वर पाठक

गांधी पीस फाउंडेशन, अटलांटा, जा​र्जिया, यूएसए में गांधी की प्रतिमा पर माल्यार्पण करते हुए डॉ. पाठक

नई दिल्ली में गांधी की प्रतिमा के समक्ष, डॉ. पाठक और राजस्थान के अलवर और टोंक की पूर्व महिला स्कैवेंजर

आरएनआई नंबर-DELHIN/2016/71597; संयुक्त पुलिस कमिश्नर (लाइसेंसिंग) दिल्ली नं.-एफ. 2 (एस- 45) प्रेस/ 2016 वर्ष 2, अंक - 17


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