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गणितज्ञों का देश
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सशक्त हुआ किसान राष्ट्रीय गणित दिवस विशेष
फूल से महका जीवन
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सबसे रोमांचक जीत
राष्ट्रीय किसान दिवस पर गेंदा फूल ने बदला विशेष आयोजन मानपुर का जीवन
1981 में भारत की ऑस्ट्रेलिया पर करिश्माई जीत
sulabhswachhbharat.com आरएनआई नंबर-DELHIN/2016/71597
मार्वलस लीजेंड समिट
वर्ष-2 | अंक-01 | 18 - 24 दिसंबर 2017
‘स्वच्छता के अग्रदूत को सलाम’ राम नाइक लखनऊ में आयोजित ‘मार्वलस लीजेंड समिट’ में सुलभ प्रणेता डॉ. विन्देश्वर पाठक को ‘मार्वलस लाइफटाइम अचीवमेंट अवार्ड’ और ‘मार्वलस पर्सनैलिटीस ऑफ इंडिया-2017’ से नवाजा गया
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आवरण कथा
18 - 24 दिसंबर 2017
मार्वलस लाइफटाइम अचीवमेंट अवार्ड 'डॉ. पाठक हम सबके गौरव हैं' 'छात्र जीवन से ही हूं डॉ. पाठक के आंदोलन से प्रभावित' 'डॉ. पाठक ने समाज को दिखाया नया रास्ता'
खास बातें
उत्तर प्रदेश के राज्यपाल के हाथों सम्मानित होते डॉ. पाठक
सि
अयोध्या प्रसाद सिंह
तारों से सजी महफिल में सूरज की तरह चमकते सुलभ प्रणेता डॉ. विन्देश्वर पाठक। मौका था, उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ के इंदिरा गांधी प्रतिष्ठान में आयोजित ‘मार्वलस लीजेंड समिट’ का। ‘मार्वलस रिकार्ड्स बुक ऑफ इंडिया’ द्वारा अविरल फाउंडेशन के तत्वावधान में आयोजित समारोह में मुख्य अतिथि उत्तर प्रदेश के राज्यपाल राम नाइक ने समाज सेवा के क्षेत्र में उत्कृष्ट कार्यों के लिए सुलभ इंटरनेशनल के संस्थापक डॉ. पाठक को ‘मार्वलस लाइफटाइम अचीवमेंट अवार्ड’ से सम्मानित किया। साथ ही डॉ. पाठक को ‘मार्वलस पर्सनैलिटीस ऑफ इंडिया-2017’ से भी नवाजा गया। इस मौके पर विशिष्ट अतिथि राज्य के विधि एवं न्याय मंत्री ब्रजेश पाठक और प्रदेश की महिला एवं परिवार कल्याण मंत्री प्रो. रीता बहुगुणा जोशी भी उपस्थित थीं।
‘मार्वलस रिकार्ड्स बुक ऑफ इंडिया’ का 2017 संस्करण हुआ लांच
इस मौके पर ‘मार्वलस रिकार्ड्स बुक ऑफ इंडिया’ के तीसरे संस्करण का लोकार्पण मुख्य अतिथि राज्यपाल राम नाइक, कैबिनेट मंत्री रीता बहुगुणा जोशी, ब्रजेश पाठक, और सुलभ प्रणेता डॉ. विन्देश्वर पाठक ने किया। ‘मार्वलस रिकार्ड्स बुक ऑफ इंडिया’ हर साल देश में लोगों द्वारा विभिन्न क्षेत्रों में बनाए गए नेशनल रिकार्ड को संकलित और प्रकाशित करती है। साथ ही इस किताब में ‘मार्वलस पर्सनैलिटी ऑफ इंडिया’ चैप्टर में उन व्यक्तियों का संक्षिप्त विवरण एवं बायोडाटा प्रकाशित किया जाता है, जिन्होंने किसी भी क्षेत्र में उत्कृष्ट कार्य किया है।
सबसे ज्यादा शौचालय बनाने के लिए सलाम
मुख्य अतिथि राज्यपाल राम नाइक ने ‘मार्वलस रिकार्ड्स बुक ऑफ इंडिया’ के इस तरह के आयोजन पर खुशी जताई। उन्होंने डॉ. पाठक को सम्मानित करते हुए कहा कि सबसे ज्यादा शौचालय बनाने वाले सच में स्वच्छता के अग्रदूत हैं। उन्होंने सम्मानित सभी हस्तियों से कहा कि उन्हें उम्मीद है कि भविष्य में भी वो ऐसे ही काम करते रहेंगे। उन्होंने खुद का जिक्र करते हुए बताया कि 60 साल की उम्र में उन्हें कैंसर हुआ था और उससे ‘मार्वेलस रिकाॅर्ड बुक’ का लोकार्पण करते राम नाइक और डॉ. रीता बहुगुणा लड़कर वह जीते और आज भी आगे बढ़ते हुए काम कर रहे हैं। लखनऊ की तारीफ करते हुए उन्होंने कहा इस मौके पर उत्तर प्रदेश की महिला एवं परिवार कि मुंबई देश की आर्थिक राजधानी है, दिल्ली देश कल्याण मंत्री रीता बहुगुणा जोशी ने कहा कि डॉ. की राजनीतिक राजधानी, काशी देश की सांस्कृतिक पाठक सिर्फ भारत ही नहीं, बल्कि पूरी दुनिया का राजधानी और लखनऊ कला की राजधानी है। जाना-माना नाम है। उन्होंने कहा कि डॉ. पाठक उन्होंने यहां के अखबारों की भी प्रशंसा करते हुए की उपस्थिति हम सब के लिए गौरव का विषय है। कहा कि समाचार पत्रों में पूरा एक पेज कला को जोशी ने ‘मार्वलस रिकार्ड्स बुक ऑफ इंडिया’ के तीसरे संस्करण पर खुशी जताते हुए कहा कि भारत समर्पित होता है। जैसे बड़े देश में प्रतिभाओं की कमी नहीं है, बस डॉ. पाठक की उपस्थिति गौरव की जरुरत है उन्हें तराशने की। ‘मार्वलस रिकार्ड्स बुक बात ऑफ इंडिया’ ऐसा ही काम कर रही है।
स्वच्छता अभियान को गति
उत्तर प्रदेश के विधि एवं न्याय मंत्री ब्रजेश पाठक ने इस मौके को ऐतिहासिक बताते हुए कहा कि जिन लोगों को सम्मानित किया गया है, इन सभी ने अपने क्षेत्रों में आकाश की ऊचाईयों को छुआ है। उन्होंने अपने स्कूल के दिनों का जिक्र करते हुए कहा कि हम अपने पढ़ाई के दिनों से डॉ. पाठक के स्वच्छता के क्षेत्र में चलाए जा रहे आंदोलन को देखते आ रहे हैं। उन्होंने कहा कि डॉ. पाठक की मदद से ही लगातार स्वच्छता अभियान को गति मिलती रही है।
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आवरण कथा
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कार्यक्रम में शामिल गण्यमान्य लोग
डॉ. पाठक ने दी समाज को नई दिशा
इस मौके पर ‘मार्वलस रिकार्ड्स बुक ऑफ इंडिया’ के प्रधान सम्पादक डॉ. शशिकांत तिवारी ने डॉ. पाठक का स्वागत करते हुए कहा, ‘डॉ. पाठक ने समाज सेवा के क्षेत्र में देश के लोगों के सामने एक नजीर पेश की है।’ उन्होंने कहा कि डॉ. पाठक ने अपने काम से लोगों को एक नया रास्ता दिखाया है कि किस तरह से अगर हम चाहें तो अपने काम से समाज को एक नई दिशा दे सकते हैं। डॉ. पाठक की किताबों का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा कि डॉ. पाठक को पढ़ना भी एक सुखद अनुभव है।
‘मार्वलस रिकार्ड्स बुक ऑफ इंडिया’
इस संस्करण में महिला बाइकर एवं रिकार्डधारी पल्लवी फौजदार को भी जगह दी गई है। बाइकिंग के क्षेत्र में तीन विश्व रिकार्ड बनाने वाली पल्लवी फौजदार विश्व की पहली महिला हैं। दंगल फिल्म को भी पूरी दुनिया में 2000 हजार करोड़ रुपए कमाने वाली पहली भारतीय फिल्म के रूप में इस किताब में शामिल किया गया है। भारतीय क्रिकेट कप्तान विराट कोहली को क्रिकेट के तीनों प्रारूपों में 50 से अधिक औसत से रन बनाने के लिए जगह मिली है। साल की ‘मार्वलस पर्सनैलिटीस ऑफ इंडिया’
से सम्मानित व्यक्तियों को भी इस किताब में जगह दी जाती है। ‘मार्वलस पर्सनैलिटीस ऑफ इंडिया 2017’ अवार्ड फिल्मों एवं टेलीविजन, सार्वजनिक मामलों, शिक्षाविदों, विज्ञान प्रौद्योगिकी, खेल एवं साहसिक, कला और कला प्रदर्शन, सामाजिक कार्य, संगठन एवं कॉरपोरेट के क्षेत्र में उत्कृष्ट कार्य करने वाली विभूतियों को दिया गया। किताब के संपादक डॉ.शशिकांत तिवारी का कहना है कि इस प्रकार के उत्कृष्ट कार्य करने वाली विभूतियों को सम्मानित किए जाने से न केवल नई पीढ़ी को प्रेरणा मिलती है, बल्कि वे अच्छे कार्य करने को प्रेरित भी होते हैं। यही इस किताब का मुख्य उद्देश्य है।
अन्य हस्तियां भी हुईं सम्मानित
‘मार्वलस लाइफटाइम अचीवमेंट अवार्ड’ डा. पाठक के अलावा 4 अन्य लोगों को भी दिया गया। पद्मश्री सोमा घोष को कला और पूर्व क्रिकेटर चेतन शर्मा को खेल के क्षेत्र में उनके योगदान के लिए लाइफटाइम अचीवमेंट अवार्ड से
सम्मानित किया गया। इसके अतिरिक्त पद्म भूषण राजन साजन मिश्र को कला और उत्तर प्रदेश के पूर्व क्रिकेटर ज्ञानेंद्र पांडेय को खेल के क्षेत्र में उनके अमूल्य योगदान के लिए लाइफटाइम अचीवमेंट पुरस्कार दिया गया। ‘मार्वलस पर्सनैलिटीस ऑफ इंडिया 2017’अवार्ड सेरेमनी में भी मुख्य रूप से पद्मभूषण डॉ.विन्देश्वर पाठक को समाजसेवा के क्षेत्र में सम्मान के अलावा,पूर्व क्रिकेटर चेतन शर्मा को खेलों के क्षेत्र में, तीन तलाक के खिलाफ लड़ने वाली शाइस्ता अम्बर को समाज सेवा के क्षेत्र में, प्रेरणा स्कूल चलाने वाली उर्वशी साहनी को समाज सेवा के क्षेत्र में, अवध युनिवर्सिटी के उप-कुलपति मनोज दीक्षित को शिक्षा के क्षेत्र में, मशहूर वैज्ञानिक मनोज पटरिया को विज्ञान के क्षेत्र में सम्मानित किया गया। सिनेमा के क्षेत्र में योगदान के लिए बॉलीवुड के मशहूर अभिनेता राजीव खंडेलवाल, मशहूर गीतकार एवं लेखक मनोज मुंतसिर, जाने-माने निर्देशक संजीव जायसवाल, अभिनेत्री मीनाक्षी दीक्षित, अभिनेता रजनीश दुग्गल एवं कॉमेडियन राजीव निगम को सम्मानित किया गया। स्वास्थ्य क्षेत्र में योगदान के लिए डॉ. संकल्प जैन को सम्मान दिया गया। साथ ही इन विभूतियों जैसी कुल 31हस्तियों को ‘मार्वलस पर्सनैलिटीस ऑफ इंडिया 2017’ में सम्मानित किया गया।
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आयोजन
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अंतरराष्ट्रीय कृषि सम्मलेन
5वां एग्री हॉर्टी टेक मेला लखनऊ में आयोजित 5वें ‘अंतरराष्ट्रीय कृषि सम्मलेन - एग्री हॉर्टी टेक मेला’ में दुनिया भर की कंपनियों ने किसानों को उन्नत खेती की नवीनतम तकनीक की जानकरी दी
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अयोध्या प्रसाद सिंह
त्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में तीन दिवसीय 5वें ‘अंतरराष्ट्रीय कृषि सम्मलेन - एग्री हॉर्टी टेक मेला’ 12 दिसंबर से शुरू हुआ। मुख्य अथिति बिहार के कृषि मंत्री डॉ. प्रेम कुमार और विशिष्ट अतिथि सुलभ प्रणेता डॉ. विन्देश्वर पाठक ने दीप जला कर इस की शुरुआत की। उत्तर प्रदेश सरकार एवं पीएचडी चेंबर ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री की तरफ से आशियाना स्थित स्मृति उपवन में आयोजित इस मेले में आधुनिक तकनीक और नवीनतम मशीनों की जानकारी पाने के लिए देश भर से किसान जुटे। मेले में लगे अंतर्राष्ट्रीय हाल का उद्घाटन भी डॉ. प्रेम कुमार और सुलभ प्रणेता डॉ. पाठक ने किया। पहली बार एग्री हॉर्टी टेक में जापान कंट्री पार्टनर देश के रूप में सम्मलित हुआ है। जापान की 28 कंपनियों ने इस मेले में हिस्सा लिया है। प्रदर्शनी में कुल 84 राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय कंपनियां शामिल हुईं। इस मौके पर उत्तर प्रदेश कृषि विभाग के प्रमुख सचिव अमित मोहन प्रसाद, प्रमुख सचिव राजीव कुमार, इंडियन ऑयल के एग्जीक्यूटिव डायरेक्टर अविनाश वर्मा, अमूल के सीईओ नरेंद्र सिन्हा एवं पीएचडी चेंबर ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री के डायरेक्टर आरके सरन और प्रेसीडेंट अनिल खेतान भी मौजूद रहे।
मल से बनी खाद से खेती को संजीवनी
अनिल खेतान का संबोधन
इस अवसर पर डॉ. पाठक ने कहा कि जिस शौचालय का आविष्कार हमने किया उससे खुले में शौच की प्रथा समाप्त हो रही है और मैला ढोने की प्रथा भी खत्म हो रही है। उन्होंने शौचालय की तकनीक के बारे में बताते हुए कहा कि इस तकनीक में दो गड्ढों का प्रयोग होता है। जब एक गड्ढे का इस्तेमाल होता तो है दूसरा बंद रहता है। दो साल में पहले वाले गड्ढे का मल खाद में परिवर्तित हो जाता है। एक आदमी के मल से 1 साल में 40 किलोग्राम खाद तैयार होती है। इस खाद में नाइट्रोजन, पोटेशियम, और फास्फोरस होता है। यदि चूना मिला दिया जाए तो अति उत्तम खाद बनती है। इसका इस्तेमाल यदि आप खेतों में करते हैं तो मिट्टी की उर्वरा शक्ति बढ़ती है। यह खाद कृषि के लिए बहुत जरुरी है।
खास बातें एग्री हॉर्टी टेक में जापान बना कंट्री पार्टनर देश मेले में शामिल हुई 84 राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय कंपनियां एक आदमी के मल से 1 साल में 40 किलोग्राम खाद उन्होंने बताया कि इस खाद में कोई बदबू नहीं होती और इसे आसानी से प्रयोग में लाया जा सकता है। शौचालय से जो पानी निकलता है। उसको भी साफ करके इस्तेमाल में लाया जा सकता है। पानी में भी नाइट्रोजन, फास्फोरस और पोटेशियम होता है। इस पानी को खेतों में भी उपयोग में लाया जा सकता है। इसे नदियों में भी छोड़ा जा सकता है, क्योंकि इससे कोई प्रदूषण नहीं होगा। डॉ. पाठक ने बताया कि सुलभ ने पश्चिम बंगाल में आर्सेनिक क्षेत्र में खूब काम किया है और सबको साफ पानी मुहैया कराया है। यह पानी मात्र 50 पैसे लीटर मिलता है। उन्होंने महाराष्ट्र में सुलभ द्वारा बनवाए गए दुनिया के सबसे बड़े शौचालय ‘सुलभ शौचालय संकुल’ के बारे में भी बताया। इस शौचालय में 2858 सीट्स हैं। 4 लाख लोग इसका रोजाना इस्तेमाल कर सकते हैं। उन्होंने कहा कि इस शौचालय से बड़े पैमाने पर खाद तैयार की जा सकती है। डॉ. पाठक ने इस मौके पर बताया कि उन्होंने प्रधानमंत्री पर कुल 10 गीत लिखे हैं और अभी हाल ही में लिखा हुआ गीत “चलो चलो मेरे साथ, उठाओ झाड़ू अपने हाथ, साफ करो गंदगी को, साफ करो” गाकर सुनाया भी। प्रधानमंत्री मोदी की प्रशंसा करते हुए उन्होंने कहा कि गांधी के बाद मोदी ही एक मात्र व्यक्ति हैं, जिन्होंने स्वच्छता को गले लगाया है। वारणसी में उन्होंने अपने हाथ से शौचालय बनाया।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर लिखी अपनी किताब के साथ डॉ. पाठक
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आयोजन
डॉ. प्रेम कुमार का संबोधन
इससे पता चलता है कि वह स्वच्छता को कितना महत्त्व देते हैं।
हॉर्टी टेक से हाईटेक होंगे किसान
मुख्य अतिथि बिहार के कृषि मंत्री डॉ. प्रेम कुमार ने इस मौके पर कहा कि मुझे खुशी है कि उत्तर प्रदेश में इस तरह का आयोजन किया जा रहा है। उन्होंने कहा कि एग्री हॉर्टी टेक का उद्देश्य अत्याधुनिक कृषि और इससे जुड़े उद्योगों एवं बागवानी के क्षेत्र में जो नए-नए अनुसंधान हो रहे हैं उसे किसानों तक पहुंचाना है। उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री मोदी का लक्ष्य है कि किसानों की आय दुगुनी हो। इस लक्ष्य को सफल बनाने में इस मेले का योगदान रहेगा। अभी हमारे किसान भाई जिस तरह की पारंपरिक खेती कर रहे हैं, उससे आय दुगुनी नहीं की जा सकती, इसके लिए हमें अत्याधुनिक खेती करनी पड़ेगी। कुमार ने कहा कि हमें किसानों की लागत कम करनी पड़ेगी और उत्पादन बढ़ाना पड़ेगा। साथ ही बेहतर बाजार भी उपलब्ध करवाना होगा। देश की बड़ी आबादी गांवों में रहती है। देश का बहुत बड़ा हिस्सा कृषि पर ही निर्भर है, साथ ही अर्थव्यवस्था में भी इसका बहुत बड़ा योगदान है। उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड सहित कई राज्यों के लोगों की मुख्य आजीविका का साधन कृषि ही है।
इसीलिए यहां कृषि के क्षेत्र में अपार संभावनाएं भी हैं। उन्होंने बताया कि हमारे पास प्राकृतिक संसाधन भी हैं, हमारे किसान भी बहुत मेहनती हैं। सरकार लगातार कृषि की बेहतरी के लिए प्रयास कर रही है। उत्तर प्रदेश भी मुख्यमंत्री आदित्यनाथ के सानिध्य में तेजी से आगे बढ़ रहा है। लोगों में विश्वास है कि कुछ अच्छा हो रहा है। कृषि के क्षेत्र में उत्तर प्रदेश बहुत ही बेहतर कार्य कर रहा है। यह आयोजन निश्चित तौर पर किसानों को आधुनिक तकनीक की जानकारी पहुंचाएगा।
बिहार में बेहतर हुई खेती
कृषि मंत्री ने बताया कि बिहार में हम लोग जब पहला कृषि रोड मैप 2008 में लाए, तो उसके बेहतर परिणाम मिले। दूसरा कृषि रोड मैप 2012 में लाया गया। इससे भी उत्पादन एवं उत्पादकता में व्यापक प्रगति हुई। बिहार को किसानों के सहयोग से साल 2012 में चावल, साल 2013 में गेहूं और साल 2016 में मक्का के उत्पादन में उत्कृष्ट उपलब्धि के लिए भारत सरकार द्वारा राष्ट्रीय कृषि कर्मण पुरस्कार से नवाजा गया। गौरतलब है कि वर्ष 2012 में धान की 224 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तथा आलू के 729 क्विंटल प्रति हेक्टेयर पैदावार का विश्व कीर्तिमान भी स्थापित हुआ। आलू की पैदावार के क्षेत्र में भी बिहार ने विश्व रिकार्ड बनाया है। अब तीसरे कृषि
मानव मल से निर्मित खाद में नाइट्रोजन, पोटेशियम और फास्फोरस होता है। यदि चूना मिला दिया जाए तो यह अति उत्तम खाद बनती है। इसका इस्तेमाल यदि आप खेतों में करते हैं तो मिट्टी की उर्वरा शक्ति बढ़ती है। यह खाद कृषि के लिए बहुत जरूरी है
कई दुष्परिणाम भी सामने आ रहे हैं। रोड मैप की शुरुआत राष्ट्रपति डॉ. प्रेम कु म ार से सम्मान उन्होंने सिक्किम का उदाहरण देते राम नाथ कोविंद द्वारा 9 नवंबर प्राप्त करते अनिल खेतान हुए कहा कि सरकार का प्रयास है 2017 को शुरू किया जा चुका कि हम किसानों को जैविक खेती में है। 1 लाख 54 हजार करोड़ रुपए की लागत से और कृषि से संबंधित सरकार के अच्छा काम कर रहे राज्यों की तरह माहौल दे सकें। किसानों के लिए लागत कम कैसे हो, इसका प्रयास 12 विभागों के समन्वय से कार्य आगे बढ़ रहा है। किया जा रहा है।
जैविक खेती के लिए प्रोत्साहन
डॉ. प्रेम कुमार ने बताया कि बिहार में जैविक खेती को भी बढ़ावा दिया जा रहा है। जैविक खेती को प्रोत्साहन देना बिहार सरकार की प्राथमिकता में शामिल है। उन्होंने कहा कि हमारे देश का किसान जाने-अनजाने खेतों में रासायनिक खादों और कीटनाशक का इस्तेमाल करता है, उसके
मृदा परीक्षण और ट्रेनिंग पर ध्यान
डॉ. प्रेम कुमार ने कहा कि हम किसानों के लिए सायल हेल्थ कार्ड बना रहे हैं और किसानों के खेतों में मिट्टी की जांच करा रहे हैं। जिससे उन्हें पता हो कि क्या बोना उपयुक्त है और कितनी खाद का प्रयोग करना है ताकि उनका उत्पादन बढ़ सके। विश्व मृदा
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आयोजन
18 - 24 दिसंबर 2017 आर्सेनिक युक्त पानी का परिशोधन करने की तकनीक बताते डॉ. पाठक
दिवस के अवसर पर हमने 5 लाख किसानों अधिकतम प्रीमियम दर 5 फीसदी वार्षिक को सायल हेल्थ कार्ड कार्ड वितरित किया पर बीमा करवा सकते हैं। इससे किसानों डॉ. पाठक का संबोधन है। इसके बहुत ही अच्छे परिणाम आ रहे में नई आशा का संचार हुआ है। उन्होंने हैं। किसानों की आमदनी बढ़ाने के लिए कहा कि प्रधानमंत्री की यह पहल किसानों समन्वित कृषि प्रणाली अपनाकर बेहतर को प्राकृतिक आपदाओं से निपटने में काम किया जा सकता है। किसान एक ही कैंपस में मदद करेगी। इसकी अधिकतर राशि केंद्र और राज्य मछली पालन और खेती दोनों कर सकते हैं। साथ सरकार देगी और बहुत छोटा हिस्सा प्रीमियम के ही किसानों को ट्रेनिंग भी दी जा रही है। इस ट्रेनिंग रूप में किसान को देना होगा। उन्होंने लगातार बढ़ते के माध्यम से मशरूम की खेती, मछली पालन, वर्मी उत्पादन का हवाला देते हुए कहा कि भंडारण के कंपोस्ट आदि पाठ्यक्रम में शामिल किए गए हैं, क्षेत्र में भी बिहार सरकार कार्य कर रही है। उन्होंने जिसमें किसानों को ट्रेनिंग दी जा रही है। उम्मीद जताई कि ऐसे आयोजन बिहार में होंगे।
फसल बीमा है वरदान
उन्होंने प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना का जिक्र करते हुए कहा कि अब किसान कम पैसों में अपनी फसल का बीमा करवा सकते हैं। प्रधानमंत्री मोदी की यह पहल किसानों के लिए बहुत फायदेमंद साबित हो रही है। अब किसान खरीफ में अधिकतम 2 प्रतिशत तथा रबी के लिए अधिकतम 1.5 प्रतिशत और बागवानी और वाणिज्यिकक फसल के लिए
खेती-बाड़ी पर ध्यान
इस मौके पर उत्तर प्रदेश सरकार में कृषि विभाग के मुख्य सचिव अमित मोहन प्रसाद ने कहा कि किसान की आय बढ़ाने के तीन ही सूत्र हैं, लागत घटे, उपज बढ़े और उपज का उचित मूल्य मिले। साथ ही उपज का विविधिकरण भी बहुत जरुरी है। इसीलिए खेती-बाड़ी को महत्व दिया गया है। यानी खेती के साथ बागवानी पर भी ध्यान दें। उन्होंने मिलियन
डॉ. प्रेम कुमार को शौचालय तकनीक के बारे में बताते डॉ. पाठक
फार्मर्स स्कूल के बारे में कहा कि राज्य प्रतिभागियों के साथ भी भेंट की। में किसानों को ग्राम पंचायतों में ही कार्यक्रम में शामिल तकनीक से लेकर बीज तक खेती के बारे में सिखाया जाएगा। इस अतिथिगण के स्टाल अवसर पर पीएचडी चेम्बर के प्रेसिडेंट कृषि मेले में कृषि की आधुनिक अनिल खेतान ने कहा कि उत्तर प्रदेश के किसानों को एक प्लेटफार्म मिल सके यही इस तकनीक और किसानों को जापान, अमेरिका, इटली एग्री हॉर्टी टेक का मुख्य उद्देश्य है। साथ ही उन्होंने समेत कई देशों की बड़ी कंपनियां भी अपने उत्पादों बताया कि जापान की कई कंपनियां इस सम्मलेन की जानकारी देने के लिए आईं। प्रदर्शनी में कृषि के में आई हैं, जो भविष्य में उत्तर प्रदेश में इन्वेस्ट भी क्षेत्र में काम कर रही देश की नामचीन कंपनियों के साथ-साथ कई विदेशी कंपनियों ने भी स्टॉल लगाए। कर सकती हैं। इन कंपनियों ने किसानों को कृषि और कृषि क्षेत्र सुलभ का स्टाॅल आकर्षण का केंद्र के उपकरणों,पशुपालन, दुग्ध और बीज आदि के एग्री हॉर्टी टेक मेले में सुलभ का स्टाल विशेष क्षेत्र में हो रहे तकनीकी आधुनिकीकरण के बारे में आकर्षण का केंद्र रहा। शौचालय के लिए सबसे बताया। मेले में प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना के सस्ती और बेहतर तकनीक टू पिट पोर फ्लश का बारे में भी जानकारी दी गई। ग्रामीण बैंक नाबार्ड के प्रदर्शन आगुंतकों की उत्सुकता बढ़ाता रहा। सुलभ सहयोग अमानत सेवा संस्थान, इरादा फाउंडेशन, प्रणेता डॉ. पाठक की लिखी हुई किताबें भी स्टाॅल रिजवान हैंडलूम आदि ने अपने उत्पादों को प्रदर्शित पर उपलब्ध थी। लोगों ने उन्हें पढ़ने में रूचि दिखाई। किया। वहीं लार्सेन टर्बो, आईटीसी, इंडियन ऑयल, मुख्य अतिथि डॉ. प्रेम कुमार भी सुलभ के एसएमएस लखनऊ, पराग, कृषि विभाग-उत्तर स्टाल पर पहुंचे और तकनीक के बारे डॉ. पाठक प्रदेश, यूपी एग्रो आदि के स्टाल विशेष आकर्षण से जानकारी ली। डॉ. पाठक ने गुलदस्ता भेंट कर का केंद्र रहे। साथ ही स्टेट बैंक ऑफ इंडिया, पंजाब उनका सम्मान भी किया। साथ ही डॉ. पाठक ने नेशनल बैंक और बैंक ऑफ बड़ौदा की तरफ से मंत्री को प्रधानमंत्री मोदी पर लिखी अपनी किताब किसानों को ऋण बारे में जानकारी भी दी गई।
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संगोष्ठी
शहरीकरण और औद्योगिकीकरण से पर्यावरण की समस्या- डॉ. पाठक पर्यावरण संरक्षण की उपलब्धियां, संभावनाएं एवं चुनौतियां विषय पर आयोजित संगोष्ठी में बढ़ते प्रदूषण पर चिंताओं के साथ इससे बचने के तरीकों पर भी विस्तार से चर्चा हुई
खास बातें
पर्यवरण संरक्षण में योगदान देने वाले हुए सम्मानित पर्यावरण को स्वच्छ रखने में पेड़-पौधों का योगदान दिल्ली में हर तीसरा व्यक्ति प्रदूषित पानी पीने को मजबूर
प्रकृति का साथ जरूरी
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प्रियंका तिवारी
र्यावरण प्रदूषण आज के समय का सबसे ज्वलंत मुद्दा है, लेकिन इस समस्या के समाधान को इंगित कर उसे खुद में आत्मसात करना हम सभी के लिए जरुरी है। इस दुनिया का विनाश बम, शहरीकरण और औद्योगिकीकरण के कारण होगा। इन्हीं कारणों से पर्यावरण की समस्या दिनोंदिन बढ़ती जा रही है। यह बातें सुलभ प्रणेता डॉ. विन्देश्वर पाठक ने पर्यावरण संरक्षण की उपलब्धियां, संभावनाएं एवं चुनौतियां संगोष्ठी में कहीं। पर्यावरण संरक्षण की उपलब्धियां, संभावनाएं एवं चुनौतियां और गांधीवादी विचारों की प्रासंगिकता मुद्दे पर राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन पर्यावरण एवं भू-सूचना संस्थान एवं कैरियर प्लस एजुकेशन सोसायटी और गांधी स्मृति एवं दर्शन समिति द्वारा नई दिल्ली स्थित कॉन्स्टीट्यूशन क्लब में किया गया। इस दौरान पर्यावरण संरक्षण की दिशा में उल्लेखनीय योगदान देने वाले मनिषियों को ट्रॉफी, शॉल और पर्यावरण रत्न सम्मान प्रदान किया गया। इस मौके पर सुलभ स्वच्छता एवं सामाजिक सुधार आंदोलन के प्रणेता डॉ. विन्देश्वर पाठक, केंद्रीय कृषि कल्याण
राज्य मंत्री कृष्णा राज, राष्ट्रीय सफाई कर्मचारी आयोग के अध्यक्ष मनहर वालजी भाई जाला, शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास के राष्ट्रीय सचिव अतुल कोठारी, राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग की सदस्या स्वराज विद्वान, आचार्य शैलेन्द्र और युवा गीतकार गजेंद्र सोलंकी मौजूद रहे।
सब समझें अपनी जिम्मेदारी
डॉ. पाठक ने इस अवसर पर कहा कि प्रत्येक चीज एक डिजाइन पर निर्भर करता है, हम सभी एक डिजाइन के आधार पर ही जीवन जी रहे हैं। हम इस हॉल में बैठे हैं, इसका भी अपना एक डिजाइन है, वैसे ही हमारी संस्कृति का भी एक डिजाइन है, जिसकी वजह से पर्यावरण की समस्या बढ़ती जा रही है। इन डिजाइनों को तोड़ कर कुछ अलग कार्य करके ही इसमें सुधार लाया जा सकता है। डॉ. पाठक ने कहा कि पहली बार इस डिजाइन को महात्मा
गांधी ने तोड़ा था, उन्होंने कहा था कि अपना मैला सभी लोग स्वयं साफ करेंगे और दूसरी बार संविधान ने इस डिजाइन को तोड़ा, जिसके तहत सेना में किसी भी जाति वर्ग का व्यक्ति भर्ती हो सकता है। हमारे देश में एक डिजाइन बनाई गई है कि मैं रास्ते में पड़ी गंदगी को साफ नहीं करूंगा, क्योंकि मैं ब्राह्मण हूं और यह मेरा काम नहीं है। इसीलिए हमारे देश में गंदगी की समस्या बढ़ने का सबसे बड़ा कारण 99.5 प्रतिशत लोगों द्वारा गंदगी करना है और उस गंदगी को साफ करने वाले मात्र 0.5 प्रतिशत लोग हैं। हम सभी को इसके प्रति जागरुक होना होगा और अपनी जिम्मेदारी को समझना होगा तभी पर्यावरण प्रदूषण की समस्या को दूर किया जा सकता है। उन 0.5 प्रतिशत को नहीं, बल्कि 99.5 प्रतिशत लोगों को अपनी गंदगी स्वयं साफ करनी होगी और पर्यावरण संरक्षण के प्रति सजग होना होगा।
हमारे समाज में बरगद, पीपल जैसे पेड़ों की पूजा करने की प्रथा थी, जो अब शहरीकरण की वजह से दिखाई नहीं देती। यह सिर्फ आस्था नहीं, बल्कि प्रकृति से मनुष्यों के प्रेम को भी दर्शाता है
केंद्रीय कृषि कल्याण राज्य मंत्री कृष्णा राज ने कहा कि हम जितना प्रकृति के करीब रहेंगे उतना ही स्वस्थ रहेंगे और पर्यावरण संरक्षण की समस्या भी दूर होगी। पर्यावरण को स्वच्छ रखने के लिए पेड़ पौधों का होना आवश्यक है, जो कि हमारी धरती से विलुप्त होते जा रहे हैं। पहले हमारे समाज में बरगद, पीपल जैसे पेड़ों की पूजा करने की प्रथा थी, जो अब शहरीकरण की वजह से दिखाई नहीं देती। यह सिर्फ आस्था नहीं, बल्कि प्रकृति से मनुष्यों के प्रेम को भी दर्शाता है। उन्होंन कहा कि ‘ऊं’ पर रिसर्च नासा कर रहा है, लेकिन ‘ऊं’ एक शब्द नहीं है, बल्कि यह सृष्टि की ऊर्जात्मक संरचना है। यदि आप ध्यान से देखें तो मनुष्य का पूरा शरीर ही ‘ऊं’ की संरचना को प्रदर्शित करता है। कृष्णा राज ने डॉ. विन्देश्वर पाठक को ट्रॉफी, प्रशस्ति पत्र और शॉल देकर सम्मानित किया।
लोग पीते हैं गंदा पानी
शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास के राष्ट्रीय सचिव अतुल कोठारी ने कहा कि पर्यावरण में फैला प्रदूषण आज का सबसे बड़ा संकट है। इससे निपटने के लिए समाधान की आवश्यकता है। पर्यावरण संरक्षण पर आए दिन हमारे देश में संगोष्ठी का आयोजन होता रहता है, लेकिन इन संगोष्ठियों से पर्यावरण प्रदूषण बढ़ जाता है। क्योंकि पर्यावरण को संरक्षित करने की शुरुआत खुद से करनी होगी, हम सभी को उन चीजों का इस्तेमाल करना रोक देना चाहिए, जो पर्यावरण के साथ ही साथ हमारे स्वास्थ के लिए भी हानिकारक हैं। हमें प्लास्टिक बोतलों, डिस्पोजल ग्लास, प्लेट्स का इस्तेमाल नहीं करना चाहिए। क्योंकि प्लास्टिक हमारे स्वास्थ के साथ ही साथ
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संगोष्ठी
18 - 24 दिसंबर 2017
आधुनिकता ही हमारे देश में पर्यावरण के लिए संकट बन गया है। इससे समाधान के लिए हमें आधुनिकता को छोड़कर अपनी संस्कृति को अपनाने और प्रकृति से निकटता बनाने की आवश्यकता है
• डॉ सत्य प्रकाश मेहरा- राजपुताना सोसाइटी ऑफ नेचुरल हिस्ट्री • आर के गुप्ता- सीएमपी बागपोस्ट • संजय कश्यप- अनन्या फांउडेशन • राजेश गोयल- मौलिक भारत के संयोजक • मृत्युंजय कुमार- असिस्टेंट प्रोफेसर गलगोटिया यूनिवर्सिटी • कौशलेन्द्र कुमार- कौशल्या फांउडेशन के संस्थापक • अरुण तिवारी- वरिष्ठ पत्रकार • डॉ मनोज कुमार- महात्मा गांधी अंतर्राष्ट्रीय हिन्दी विश्वविद्यालय, वर्धा • निखिल सरोज- स्टार्टअप प्रेन्योर • गीता रौतेला- समाज सेविका • उषा शुक्ला- समाज सेविका • उषा ठाकुर- समाज सेविका • गीता रानी- समाज सेविका • विक्रान्त तोमड़े- पर्यावरण संरक्षण के लिए कार्य • डॉ सुमेश सिंह- वाइस चांसलर संगम विश्वविद्यालय भीलवाड़ा • डॉ राज्यवर्धन कुमार- असिस्टेंट प्रोफेसर केआर मंगलम विश्वविद्यालय गुड़गांव
पर्यावरण के लिए भी हानिकारक है। देश की राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में हर तीसरा व्यक्ति गंदा पानी पी रहा है। यह दिल्ली सरकार द्वारा कराए गए एक सर्वे के आंकड़े हैं। दिल्ली में प्रतिदिन 1 हजार 50 मिलियन गैलन पीने के पानी की आवश्यकता है, लेकिन 837 गैलन पानी ही उपलब्ध हो पाता है। जो पानी का संकट है यह पूरी दुनिया में है, लेकिन इसका समाधान क्या है, यह सबसे बड़ी समस्या बनी हुई है। दिल्ली में स्मॉग बढ़ने के बाद भी बारात निकलने पर लोग पटाखे जलाए बिना नहीं रह सके। ऐसे में यही कहा जा सकता है कि पर्यावरण को संरक्षित करने के लिए लोगों को जागरूक होना जरुरी है। हमें कौन सा विकास चाहिए इसके लिए देश की जनता को सोचना है। पीएम मोदी देश को विकास का राह पर ले जाने के लिए मेहनत कर रहे हैं, लेकिन जनता के साथ के बिना कुछ भी संभव नहीं है।
आधुनिकता से पर्यावरण समस्या
राष्ट्रीय सफाई कर्मचारी आयोग के अध्यक्ष मनहर वालजी भाई जाला ने कहा कि हमारे देश में दो लोग महत्वपूर्ण है एक देश के सैनिक, जो अपने जीवन की परवाह किए बिना देश की सीमा पर तैनात रहते हैं और देश की रक्षा करते हैं। दूसरे सफाईकर्मी, जो पूरे देश को स्वच्छ बनाने के लिए गंदगी को साफ करते हैं। स्वच्छता के लिए आयोग का गठन करने का कार्य पीएम मोदी ने किया। हमारा आयोग पूरे देश में स्वच्छता का कार्य करने वाले सफाई कर्मचारियों के लिए कार्य करता है। पर्यावरण संरक्षण आज की सबसे बड़ी समस्या
है और इस विषय पर चर्चा करने की ज्यादा से ज्यादा जरुरत है। हमारा देश अपनी परंपराओं के लिए जाना जाता था, जिसे हमारे ऋषियों ने बनाई थी। आज हम उन परंपराओं को भूल गए हैं और आधुनिकता की तरफ बढ़ गए हैं। ये आधुनिकता ही हमारे देश में पर्यावरण के लिए संकट बन गया है। इससे समाधान के लिए हमें आधुनिकता को छोड़कर अपनी संस्कृति को अपनाने और प्रकृति से निकटता बनाने की आवश्यकता है।
हमारे चारों तरफ है प्रदूषण
राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग की सदस्या स्वराज विद्वान ने कहा कि आज हमारे समाज की सबसे ज्वलंत समस्या पर्यावरण में फैला प्रदूषण है, जिससे निपटने के लिए हमें प्रकृति के सानिध्य में जाना ही होगा। भारत वर्ष की संस्कृति तो जल, अग्नि, पशु और पेड़ों को पूजने वाली थी, लेकिन आज हम अपनी संस्कृति को भूलकर आधुनिकता की तरफ बढ़ते जा रहे हैं। जैसे पहले हम कहते थे परमात्मा हमारे चारो तरफ हैं, वैसे ही आज प्रदूषण हमारे चारो तरफ फैला हुआ है। हमारे देश की नदियां भी पर्यावरण प्रदूषण के चपेट में आ गई हैं। इस पर्यावरण प्रदूषण को प्रकृति ही संतुलित कर रही है, क्योंकि हमारे देश की भौगोलिक संरचना ही ऐसी विधाता ने बनाई है। हम आप प्रदूषण फैलाने के सिवा कुछ नहीं कर रहे हैं। विद्वान ने कहा कि मैं व्यक्तिगत रूप से डॉ. पाठक से काफी प्रभावित हूं। हमने उनके कार्यों को देखा है, जो कि काफी सराहनीय है।
विशेष
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गणितज्ञों का देश है भारत
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भारतीय गणितज्ञों को ही यह श्रेय है कि उन्होंने गणित को नए दौर का का सबसे श्रेष्ठ विषय बना दिया
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राष्ट्रीय गणित दिवस (22 दिसंबर) पर विशेष एसएसबी ब्यूरो
ज दुनिया भारतीय गणितज्ञों द्वारा किए गए योगदान के लिए बहुत ऋणी है। भारतीय गणितज्ञों द्वारा किए गए सबसे महत्वपूर्ण योगदान में से एक दशमलव प्रणाली का परिचय और शून्य का आविष्कार था। इन गणितज्ञों को ही यह श्रेय है कि उन्होंने गणित को नए दौर का का सबसे श्रेष्ठ विषय बना दिया।
गणित दिवस
भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह
ने 22 दिसंबर 2012 को चेन्नई में महान गणितज्ञ श्रीनिवास अयंगर रामानुजन की 125वीं वर्षगांठ के मौके पर आयोजित एक कार्यक्रम में श्रीनिवास रामानुजम को श्रद्धांजलि देते हुए वर्ष 2012 को राष्ट्रीय गणित वर्ष एवं रामानुजन के जन्मदिन 22 दिसंबर को राष्ट्रीय गणित दिवस घोषित किया था।
रामानुजन
श्रीनिवास रामानुजन का जन्म 22 दिसम्बर 1887 को मद्रास से 400 किलोमीटर दूर ईरोड नगर में हुआ था। इनकी गणना आधुनिक भारत के उन व्यक्तियों में की जाती है, जिन्होंने विश्व में नए ज्ञान को पाने और
आर्यभट्ट
आर्यभट्ट ने स्थान मूल्य प्रणाली पर काम किया, जिसमें संख्याओं को चिन्हित करने और गुणों को व्यक्त करने के लिए पत्र का उपयोग किया गया। उन्होंने नौ ग्रहों की स्थिति की खोज की और कहा कि ये ग्रह सूर्य के चारों ओर घूमते हैं। उन्होंने एक वर्ष में 365 दिन की सही संख्या भी बताई।
खोजने की पहल की। रामानुजन की आरंभिक शिक्षा कुंभकोणम के प्राइमरी स्कूल में हुई। उसके बाद से वर्ष 1898 में उन्होंने टाउन हाई स्कूल में प्रवेश लिया और सभी विषयों में बहुत अच्छे अंक प्राप्त किए। यहीं पर रामानुजन को जीएस कार की गणित पर लिखी पुस्तक पढ़ने का अवसर मिला। इसी पुस्तक से प्रभावित हो उनकी रूचि गणित में बढ़ने लगी और उन्होंने गणित पर कार्य करना प्रारंभ कर दिया। युवा होने पर घर की आर्थिक आवश्यकताओं की आपूर्ति हेतु रामानुजन ने क्लर्क की नौकरी कर ली, जहां वह अक्सर खाली पन्नों पर गणित के प्रश्न हल किया करते थे। एक दिन एक अंग्रेज की नजर इन पन्नों पर पड़ गई, जिसने निजी रूचि लेकर उन्हें ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय के प्रो. हार्डी के पास भेजने का प्रबंध कर दिया। प्रो. हार्डी ने उनमें छिपी प्रतिभा को पहचाना, जिसके बाद उनकी ख्याति विश्व भर में फैल गई। इनकी गणित के क्षेत्र महत्वपूर्ण भूमिका है । श्रीनिवास रामानुजन के गणित पर लिखे लेख
सीआर राव
सीआर राव के रूप में लोकप्रिय रूप से जाने जाने वाले कैलींपूडी राधाकृष्ण राव ‘अनुमान सिद्धांत के लिए प्रसिद्ध हैं। पूरी दुनिया में उनकी गिनती एक एक जाने-माने सांख्यिकीविद के तौर पर की जाती है।
सत्येंद्र नाथ बोस
हरीश चंद्र
हरीश चंद्र अनंत आयामी समूह प्रतिनिधित्व सिद्धांत के लिए प्रसिद्ध हैं।
महालनोबिस
नरेंद्र करमरकर
प्रसन्ना चंद्र महालनोबिस भारतीय सांख्यिकी के संस्थापक हैं और राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण के भी संस्थापक रहे, जिसके लिए उन्हें अंतरराष्ट्रीय मान्यता प्राप्त भी है।
डीआर कापरेकर
डीआर कापरेकर ने अपने जीवनकाल में कई सिद्धांतों की खोज की, जिसमें संख्याओं की एक श्रेणी और उनके नाम पर स्थिर नाम शामिल है। किसी भी औपचारिक गणितीय शिक्षा के बिना उन्होंने बड़े पैमाने पर प्रकाशित किया और मनोरंजक गणित में बहुत अच्छी तरह से जाना जाता है।
तत्कालीन समय की सर्वोत्तम विज्ञान पत्रिका मं प्रकाशित होते थे। अथक परिश्रम के कारण रामानुजन अस्वास्थ्य रहने लगे और मात्र 32 वर्ष की आयु में ही उनका भारत में निधन हो गया।उनके निधन के पश्चात उनकी 5000 से अधिक प्रमेयों (थ्योरम्स) को छपवाया गया और उनमें से अधिकतर को कई दशक बाद तक सुलझाया नहीं जा सका। रामानुजन की गणित में की गई अदभुत खोजें आज के आधुनिक गणित और विज्ञान की आधारशीला बनी। संख्यासिद्धांत पर रामानुजन अद्भुत कार्य के लिए उन्हें ‘संख्याओं का जादूगर’ माना जाता है। रामानुजन को ‘गणितज्ञों का गणितज्ञ’ भी कहा जाता है। गणित के क्षेत्र में उनके महत्वपूर्ण योगदान में हार्डी-रामानुजन-लिटिलवुड सर्कल विधि, संख्या के सिद्धांत में संख्याओं के विभाजन में रोजर-रामानुजन ने अपनी एक अलग ही पहचान पाई। फिर असमानता के बीजगणित, अंडाकार कार्य, निरंतर भिन्न अंश, आंशिक रकम और हाइपरजेमेट्री श्रृंखला जैसे कई महत्वपूर्ण सिद्धांत दिए।
सत्येंद्र नाथ बोसे को अल्बर्ट आइंस्टीन के साथ उनके सहयोग के लिए जाना जाता है। बोस-आइंस्टीन सांख्यिकी और बोस-आइंस्टीन घनीभूत के सिद्धांत की आज भी चर्चा होती है। 1920 के दशक में क्वांटम यांत्रिकी पर उनके काम को महत्वपूर्ण माना जाता है।
नरेंद्र करमरकर अपने करमरकर के एल्गोरिदम के लिए जाना जाता है। इंस्टीट्यूट फॉर साइंटिफिक इन्फोर्मेशन के द्वारा उन्हें एक उच्च उद्धृत शोधकर्ता के रूप में सूचीबद्ध किया गया है।
महान भारतीय गणितज्ञ भास्कर
भास्कर वह व्यक्ति थे, जिन्होंने घोषित किया कि शून्य से विभाजित कोई भी संख्या अंतर्निहित है और यह कि कोई भी संख्या और अनंतता का योग भी अनंत है। वह अपनी पुस्तक ‘सिद्धांत सिरोमनी’ के लिए भी प्रसिद्ध है।
ब्रह्मगुप्त
आज तक हम लोग यही पढ़ते आए हैं कि शून्य के अविष्कारक आर्यभट्ट है, लेकिन ये सही नही हैं। शून्य का अविष्कार ब्रह्मगुप्त ने किया था। ब्रह्मगुप्त ने ‘ब्रह्मस्फूट’ तथा ‘खण्डखाधक’ नमक ग्रंथ लिखे थे। ‘ब्रह्मस्फुट सिद्धांत’ उनका सबसे पहला ग्रंथ माना जाता है, जिसमें शून्य का एक अलग अंक के रूप में उल्लेख किया गया है। यही नहीं इस ग्रंथ में ऋणात्मक अंकों और शून्य पर गणित करने के सभी नियमों का वर्णन भी किया गया है। हालांकि ब्रह्मगुप्त शून्य से भाग करने का नियम सही नहीं दे पाए थे।
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किसान दिवस
18 - 24 दिसंबर 2017
सशक्त हुआ किसान
भारत की समृद्धि और विकास में किसानों की भूमिका को नए सिरे से चिन्हित किया जा रहा है। इसके लिए नरेंद्र मोदी सरकार ने जो कदम उठाए हैं, उसके सुफल भी सामने आने लगे हैं
खास बातें देश की लगभग 60 फीसदी आबादी कृषि कार्यों से जुड़ी है देश का 47.48 प्रतिशत भू-भाग पर हाता है कृषि कार्य 33 फीसदी फसल नष्ट होने पर ही किसानों को फसल बीमा का लाभ
की फसलों और तिलहन के लिए और व्यावसायिक फसलों और फल व सब्जी के लिए 5 प्रतिशत का वार्षिक प्रीमियम देना है। प्रीमियम की शेष राशि में केंद्र और राज्य सरकार का बराबर-बराबर हिस्सा होता है।
खाद की किल्लत दूर
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प्रियंका तिवारी
रतीय जीवन और अर्थव्यवस्था शुरू से कृषि प्रधान रही है। बीते दो दशकों में इस यथार्थ से भले लोगों का ध्यान थोड़ा हटा है, पर जमीनी सच्चाई में इस दौरान भी बहुत फर्क नहीं आया है। भारत में विश्व के अन्य देशों की अपेक्षा सर्वाधिक भू-भाग पर खेती की जाती है। देश की कुल भूमि का 47.48 प्रतिशत भू-भाग कृषि कार्यों के लिए इस्तेमाल होता है। इसी तरह देश की लगभग 60 फीसदी जनसंख्या कृषि कार्यों से जुड़ी है। बावजूद इसके देश के सकल घरेलू उत्पादन में कृषि का योगदान ज्यादा से ज्यादा 13.5 फीसदी ही आंका गया है। राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण (2014) के अनुसार किसानों की औसत आय 6426 रुपए प्रति माह मात्र है। इस आय में 3078 रुपए कृषि से, 2069 रुपए मजदूरी-पेंशन, 765 रुपए पशुधन व 514 रुपए गैर-कृषि कार्यों से आंकी गई है। इसी तरह, आज भी 36 फीसदी किसान झोपड़ी-कच्चे मकान, 44 फीसदी कच्चे-पक्के मिश्रित मकानों में रहने को मजबूर हैं। वैसे यह तस्वीर का एक रूख भर है। बात करें मौजूदा दौर की तो किसानों की जिंदगी में बहुत बदलाव आया है। कुछ साल पहले तक कृषि क्षेत्र से पलायन का आंकड़ा जिस तेजी से बढ़ रहा था, वह अब न सिर्फ थमा है बल्कि कृषि आज
राष्ट्रीय विकास के रोडमैप में खासी अहमियत के साथ शामिल है। इस बदलाव में केंद्र की वर्तमान सरकार की भूमिका सबसे अहम है।
स्वामीनाथन ने की सराहना
वरिष्ठ कृषि और राष्ट्रीय किसान आयोग (एनसीएफ) के अध्यक्ष वैज्ञानिक एमएस स्वामीनाथन ने भी माना है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कृषि क्षेत्र में एक नई क्रांति ला रहे हैं। स्वामीनाथन ने कृषि नीतियों को लेकर प्रधानमंत्री मोदी की जमकर तारीफ की है। उन्होंने कहा कि सरकार ने कृषि आयोग की कई सिफारिशें लागू की हैं। प्रधानमंत्री मोदी गरीबोंकिसानों के चेहरे पर एक नई मुस्कान लाने में कामयाब रहे हैं। आयोग ने इससे पहले बेहतर बीज, सॉयल हेल्थ कार्ड, बीमा, सिंचित क्षेत्र की वृद्धि को लेकर कई सिफारिशें की थी, जिसे सरकार ने स्वीकार कर लिया है। स्वामीनाथन ने मोदी सरकार द्वारा कृषि विश्वविद्यालयों और निजी क्षेत्र के माध्यम से ग्रामीण महिलाओं के कौशल को बढ़ावा देने के
प्रयासों की भी सराहना की। स्वामीनाथन का साफ मानना है कि मौजूदा केंद्र सरकार देश में कृषि की हालत सुधारने के लिए प्रतिबद्ध है। इस सरकार ने बड़ी संख्या में ऐसे फैसले किए हैं।
प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना
किसानों की फसल को बीमा योजना से जोड़कर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने किसानों को ऐसा उपहार दिया है जिसे वे जीवन भर नहीं भूल सकते। अब किसानों को 50 फीसदी फसल नष्ट होने पर मुआवजा देने का किस्सा पुराना हो गया। महज 33 फीसदी फसल नष्ट होने पर ही फसल का बीमा मिलता है। कम प्रीमियम पर अधिकतम बीमा देने वाली प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना की खासियत है कि इस योजना में सभी खाद्य फसलें, तिलहन, वार्षिक व्यावसायिक या साग सब्जी का बीमा होता है। पहले की योजनाओं में कुछ फसलें और तिलहन का ही बीमा होता था। खरीफ की सभी फसलों और तिलहन के लिए अधिकतम 2 प्रतिशत एवं 1.5 प्रतिशत रबि
सरकार ने कृषि आयोग की कई सिफारिशें लागू की हैं। प्रधानमंत्री मोदी गरीबों-किसानों के चेहरे पर एक नई मुस्कान लाने में कामयाब रहे हैं - एमएस स्वामीनाथन
मोदी सरकार ने आते ही खाद की किल्लत दूर करने की रणनीति बनाई। जल्द ही सरकार को पता चल गया कि ये किल्लत कृत्रिम है और इसके पीछे खाद की कालाबाजारी है। इसे रोकने के लिए नीम कोटिंग यूरिया का प्रयोग शुरू किया। उसके बाद से खाद का उपयोग सिर्फ और सिर्फ खेती में होना सुनिश्चित हो गया। ऐसा होती ही खाद की कालाबाजारी रुक गई। अब किसानों को समय पर पर्याप्त मात्रा में यूरिया मिलता है। खाद की कमी नहीं रहती। मोदी सरकार ने समस्या का ऐसा समाधान निकाला है कि किसानों के चेहरे खिल उठे हैं।
न्यूनतम समर्थन मूल्य में वृद्धि
मोदी सरकार ने न्यूनतम समर्थन मूल्य में बढ़ोत्तरी कर किसानों को बड़ी राहत दी है। 2016-17 की खरीफ फसल की दालों में अरहर के समर्थन मूल्य को 4,625 रुपए से बढ़ाकर 5,050 रुपए प्रति क्विंटल कर दिया गया, उड़द के मूल्य को 4, 625 रुपए से बढ़ाकर 5,000 रुपए प्रति क्विंटल और मूंग के लिए 4,850 रुपए से बढ़ाकर 5,250 रुपए तक कर दिया गया है। बाकी फसलों का समर्थन मूल्य भी इसी तर्ज पर बढ़ा दिया गया। इससे किसानों की आमदनी में इतनी बढ़ोत्तरी हुई कि जीना आसान हो गया।
गन्ना किसानों का भुगतान
गन्ना उत्पादक किसानों को सालों से उनका बकाया नहीं मिल रहा था। मोदी सरकार ने किसानों का भुगतान सुनिश्चित करने के लिए 4,305 करोड़ रुपए
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किसान दिवस
किसानों की आय 2022 तक होगी दोगुनी
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सरकार ने लक्ष्य रखा है कि 2022 तक किसानों की आय दोगुनी की जाए। इस लक्ष्य को पाने के लिए सरकार ने कई कदम भी उठाए हैं
धानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में केंद्र सरकार किसानों की आय बढ़ाने के संकल्प के साथ आगे बढ़ रहा है। इसके तहत नई तकनीकों के उपयोग को बढ़ाने, फसल चक्र में परिवर्तन करने और कम लागत में खेती की जाए की जानकारी किसानों को दी जा रही है। सरकार ने लक्ष्य रखा है कि 2022 तक किसानों की आय दोगुनी की जाए। इस संकल्प के साथ कई आधारभूत योजनाओं को जमीन पर उतारा गया है, जो खेती-किसानी में सहायक सिद्ध हो रहा है। की वित्तीय मदद दी। इससे 32 लाख किसानों को फायदा हुआ। इस तरह से 2014-15 के 99.33 प्रतिशत और 2015-16 के 98.21 प्रतिशत किसानों को अपना बकाया रुपया वापस मिल चुका है। गन्ना किसानों के लिए मोदी सरकार वरदान बनकर आई।
लेवी प्रणाली समाप्त
धान की खरीद में लेवी प्रणाली खत्म कर मोदी सरकार ने किसानों को बड़ी राहत दी। अपनी उपज अब वे सीधे सरकारी केंद्रों पर बेच सकते हैं। कोई बिचौलिया नहीं, जो उन्हें परेशान करे। अब धान की न सिर्फ कीमत अच्छी मिलने लगी है, बल्कि कीमत की वसूली का रास्ता भी आसान हो गया है।
प्रधानमंत्री कृषि कौशल योजना
किसी भी कार्य का व्यावसायिक तथा व्यावहारिक प्रशिक्षण उस कार्य में प्रगति की संभावनाओं को कई
गुना बढ़ा देता है। प्रधानमंत्री कृषि कौशल योजना का मुख्य उद्देश्य कृषि से संबंधित विस्तृत प्रशिक्षण प्रदान करवाना है। विशेषकर ऐसे युवाओं को, जो बीच में पढ़ाई छोड़ चुके हैं अथवा खेती से विमुख हो रहे हैं। इस प्रशिक्षण द्वारा कुशल कामगारों को विकसित किया जाता है। इसके अंतर्गत पाठ्यक्रमों में सुधार करना, बेहतर शिक्षण और प्रशिक्षित शिक्षकों पर विशेष जोर दिया गया है। प्रशिक्षण में अन्यि पहलुओं के साथ व्यावहार कुशलता और व्ययवहार में परिवर्तन भी शामिल है।
प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना
हर खेत को पानी कभी भाजपा का नारा हुआ करता था। मोदी सरकार ने इसे साकार कर दिखाया है। प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना के तहत देश में 28.5 लाख हेक्टेयर खेत में पानी पहुंचाया गया है। 2016-17 में ‘पर ड्रॉप मोर क्रॉप’ के लक्ष्य
गन्ना किसानों को वर्षों से उनका बकाया नहीं मिल रहा था। मोदी सरकार ने किसानों का भुगतान सुनिश्चित करने के लिए 4,305 करोड़ रुपए की वित्तीय मदद दी
राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन
राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन (एनएफएसएम), केन्द्र प्रायोजित योजना के अंतर्गत 29 राज्यों के 638 जिलों में एनएफएसएम दाल, 25 राज्यों के 194 जिलों में एनएफएसएम चावल, 11 राज्यों के 126 जिलों में एनएफएसएम गेहूं और देश के 28 राज्यों के 265 जिलों में एनएफएसएम मोटा अनाज लागू की गई है, ताकि चावल, गेहूं, दालों, मोटे अऩाजों के उत्पादन और उत्पादकता को बढ़ाया जा सके। एनएफएसएम के अंतर्गत किसानों को बीजों के वितरण (एचवाईवी/ हाईब्रिड), बीजों के उत्पादन (केवल दालों के), आईएनएम और आईपीएम तकनीकों, संसाधन संरक्षण प्रौद्योगिकीयों/उपकणों, प्रभावी जल प्रयोग साधन, फसल प्रणाली जो किसानों को प्रशिक्षण देने पर आधारित है, को लागू किया जा रहा है।
राष्ट्रीय तिलहन और तेल मिशन
राष्ट्रीय तिलहन और तेल (एनएमओओपी) मिशन कार्यक्रम 2014-15 से लागू है। इसका उद्देश्य खाद्य तेलों की घरेलू जरूरत को पूरा करने के लिए तिलहनों का उत्पादन और उत्पादकता
को बढ़ाना है। इस मिशन की विभिन्न कार्यक्रमों को राज्य कृषि विभाग के जरिए लागू किया जा रहा है।
बागवानी विकास मिशन
बागवानी के समन्वित विकास के लिए मिशन (एमआईडीएच), केंद्र प्रायोजित योजना फलों, सब्जियों के जड़ और कंद फसलों, मशरूम, मसालों, फूलों, सुगंध वाले वनस्पति, नारियल, काजू, कोको और बांस सहित बागवानी क्षेत्र के समग्र विकास के लिए 2014-15 से लागू है। इस मिशन में ऱाष्ट्रीय बागवानी मिशन, पूर्वोत्तर और हिमालई राज्यों के लिए बागवानी मिशन, राष्ट्रीय बागवानी बोर्ड, नारियल विकास बोर्ड और बागवानी के लिए केन्द्रीय संस्थान, नागालैंड को शामिल कर दिया गया है।
परंपरागत कृषि विकास योजना
परंपरागत कृषि विकास योजना (पीकेवीवाई) को लागू किया जा रहा है, ताकि देश में जैव कृषि को बढ़ावा मिल सके। इससे मिट्टी की सेहत और जैव पदार्थ तत्वों को सुधारने तथा किसानों की आमदनी बढ़ाने में मदद मिलेगी।
भंडार गृह की सुविधा
किसानों द्वारा मजबूरी में अपने उत्पाद बेचने को हतोत्साहित करने और उन्हें अपने उत्पाद भंडार गृहों की रसीद के साथ भंडार गृहों में रखने के लिए प्रोत्साहित करने के लिए ऐसे छोटे और मझौले किसानों को ब्याज रियायत का लाभ मिलेगा, जिनके पास फसल कटाई के बाद के 6 महीनों के लिए किसान क्रेडिट कार्ड होंगे।
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किसान दिवस
18 - 24 दिसंबर 2017
किसानों की कमाई बढ़ाने के लिए कुछ और कदम सरकार ने कृषि उत्पाद और पशुधन विपणन (संवर्धन और सरलीकरण) अधिनियम 2017 को तैयार किया जिसे राज्यों के संबद्ध अधिनियमों के जरिए उनके द्वारा अपनाने के लिए 24.04.2017 को जारी कर दिया गया। यह अधिनियम निजी बाजारों, प्रत्यक्ष विपणन, किसान उपभोक्ता बाजारों, विशेष वस्तु बाजारों सहित वर्तमान एपीएमसी नियमित बाजार के अलावा वैकल्पिक बाजारों का विकल्प प्रदान करता है, ताकि उत्पादक और खरीददार के बीच बिचौलियों की संख्या कम की जा सके और उपभोक्ता के रुपए में किसान का हिस्सा बढ़ सके। न्यूनतम समर्थन मूल्य खरीफ और रबी दोनों तरह की फसलों के लिए अधिसूचित होता है जो कृषि आयोग की लागत और मूल्यों के बारे में सिफारिशों पर आधारित होता है। आयोग फसलों की लागत के बारे में आंकड़े एकत्र करके उनकी विश्लेषण करता है और न्यूनतम समर्थन मूल्य की सिफारिश करता है। देश में दालों और तिलहनों की फसलों को प्रोत्साहन देने के लिए सरकार ने न्यूनतम समर्थन मूल्य के ऊपर खरीफ 2017-18 के लिए बोनस की घोषणा की है। सरकार ने पिछले वर्ष भी दालों और तिलहनों के मामले में न्यूनतम समर्थन मूल्य के ऊपर बोनस देने की पेशकश की थी। सरकार न्यूनतम समर्थन मूल्य के अंतर्गत गेहूं और धान की खरीद करती है। सरकार ने राज्यों/ संघ शासित प्रदेशों के अनुरोध पर कृषि और बागवानी से जुड़ी उन वस्तुओं की खरीद के लिए बाजार हस्ताक्षेप योजना लागू की है, जो न्यूनतम समर्थन मूल्य योजना के अंतर्गत शामिल नहीं है। बाजार हस्ताक्षेप योजना इन फसलों की पैदावार करने वालों को संरक्षण प्रदान करने के लिए लागू की गई है, ताकि वह अच्छी फसल होने पर मजबूरी में कम दाम पर न बेचें।
के साथ सूक्ष्म सिंचाई योजना के तहत 15.86 लाख हेक्टेयर खेतों को सिंचाई के अंतर्गत लाया गया। खेती में यह योजना किसानों के लिए मददगार साबित हो रही है।
सॉयल हेल्थ कार्ड
किस जमीन पर कौन सी फसल होगी, किस जमीन की उर्वरा शक्ति कैसी है, इसकी जानकारी किसान को उपलब्ध कराने के लिए सरकार ने सॉयल हेल्थ कार्ड शुरू किया। मोदी सरकार ने फसलों के अनुसार इस योजना शुरुआत की है। इसकी मदद से किसानों को पता चल जाता है कि उन्हें किस फसल के लिए कितना और किस क्वालिटी का खाद उपयोग करना है। फसल की उपज पर इसका सकारात्मक असर पड़ा है। अभी तक 6.5 करोड़ किसानों को सॉयल हेल्थ कार्ड दिए जा चुके हैं।
डिजिटल इंडिया की पहल
मोदी सरकार ने उत्पादन बढ़ाने के साथ-साथ किसानों को उपज की सही कीमत मिले, इस दिशा में भी कोशिश की है। ई-नाम के रूप में देशव्यापी स्तर पर एक ऐसा ई-प्लैटफॉर्म तैयार किया गया है, जिनसे किसानों के साथ देश की कृषि मंडियां आपस में जुड़ी हैं। यहां किसान अपनी उपज को बेच सकता है। ई-नाम पर 250 मंडियां जुडी हुई हैं, जिस पर 36.43 लाख किसानों को सीधा फायदा हो रहा है। किसानों के साथ-साथ 84,631 व्यापारी
और 42,109 कमीशन एजेंट भी ई-नाम से जुड़े हैं। इससे किसानों के लिए बाजार की जरूरत पूरी हो गई है।
कृषि मौसम विज्ञान सेवा
मौसम विज्ञान से किसानों को लाभ पहुंचाने की नीति मोदी सरकार ने शुरू की है। मौसम विज्ञान से मिलने वाली सीधी सूचनाओं से किसानों को बहुत फायदा हुआ है। मौसम के बारे में किसानों को एसएमएस से मिलने वाली सूचना से हर दिन के काम को सही ढंग से करने में बड़ी मदद मिलती है। 2014 में 70 लाख किसानों तक एसएमएस के माध्यम से ये सूचनाएं पहुंचती थीं, वहीं आज 2 करोड़ 10 लाख किसानों तक सूचनाएं पहुंच रहीं हैं।
किसान चैनल
पंडित दीन दयाल उपाध्याय ने मंत्र दिया था- हर खेत को पानी और हर हाथ को काम। इसी अवधारणा को आगे बढ़ाते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी ने हल के पीछे चल रहे आदमी की सुध ली और देश को किसान चैनल की शुरुआत की। 26 मई 2015 को शुरू किया गया 24 घंटे का यह किसान चैनल कृषि तकनीक का प्रसार, पानी के संरक्षण और जैविक खेती जैसे विषयों की जानकारी देता है। इसमें किसानों को उत्पादन, वितरण, जोखिम, बचने के तरीके, खाद, बीज, वैज्ञानिक कृषि के बारे में पूरी जानकारी दी जाती है।
जैविक खेती पर जोर
जैविक उत्पादों की बढ़ती हुई मांग को देखते हुए सरकार जैविक खेती के विकास के लिए काम कर रही है। 2015 से 2018 तक 10000 समूहों के तहत 5 लाख एकड़ क्षेत्र को जैविक खेती के दायरे में लाया गया है। अब तक राज्य सरकारें 7186 समूहों के माध्यम से 3.59 लाख एकड़ भूमि को जैविक खेती के दायरे में ला चुकी हैं। देश के उत्तर पूर्वी राज्यों की भौगोलिक दशा को देखते हुए जैविक खेती पर विशेष बल दिया जा रहा है, जिसके लिए 2015 से 2018 तक 400 करोड़ की परियोजना चल रही है। 2015-17 तक 143.13 करोड़ रुपए दिए जा चुके हैं, जिनसे 2016-17 तक 1975 समूहों के माध्यम से 39,969 किसानों को जैविक खेती का काम कर रहे हैं।
ब्लू रिवोल्यूशन
देश में ब्लू रिवोल्यूशन के जरिए किसानों को आय के वैकल्पिक स्रोत उपलब्ध कराने के संकल्प से सरकार ने मत्स्य प्रबंधन और विकास के लिए अगले पांच साल में 3000 करोड़ रुपए की योजना दी है। 15000 हेक्टेयर अतिरिक्त क्षेत्र विकसित किया गया है। 2012-14 में मत्स्य उत्पादन जहां 186.12 लाख टन था, वहीं 2014-16 में 209.59 लाख टन हो गया।
ऋण सुविधा बढ़ी
खेती के लिए ऋण लेने की सुविधा बढ़ाई गई है। अब 10 लाख करोड़ ऋण किसानों को उपलब्ध कराए जा रहे हैं। इसके साथ-साथ जिन राज्यों में किसानों की आर्थिक स्थिति खराब है और ऋण लौटाने में दिक्कत हो रही है वहां स्थानीय सरकार से बातचीत कर रास्ता निकालने की कोशिश बढ़ी है। यूपी जैसे राज्यों ने किसानों के लिए बड़े पैमाने पर ऋण माफ कर दिया है।
राष्ट्रीय गोकुल मिशन
मिशन मोड में लागू की गई गोकुल योजना का उद्देश्य देश की पशुधन संपदा को संवर्धित करके किसानों की आर्थिक स्थिति सुधारना है। इससे देशज पशुधन के जेनेटिक स्टाक संवर्धित होगा और दूध उत्पादन भी बढ़ेगा। इस योजना में 14 गोगुल गांव स्थापित किए गए हैं। 41 बुल मदर फार्म का आधुनिकीकरण किया गया है। देश में दूध उत्पादन 155 मिलियन टन के पास पहुंच चुका है। इसी प्रकार इस क्षेत्र में युवाओं को शिक्षित और प्रशिक्षित करने के लिए पशुविज्ञान कॉलेजों की संख्या 36 से बढ़कर 52 तक पहुंच चुकी है। देश के प्रति व्यक्ति के लिए 2013-14 में जहां 307 ग्राम दूध उपलब्ध था, वहीं 2015-16 में बढ़कर 340 ग्राम हो गया।
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किसान दिवस
खेती-किसानी के सात दशक
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प्रधानमंत्री ने 2022 तक किसानों की आमदनी दोगुनी करने का लक्ष्य हमें दिया है, हम इस दिशा में काम कर रहे हैं
राधा मोहन सिंह
(केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण मंत्री) रोहिनी बरसै मृग तपै, कुछ कुछ अद्रा जाए कहै घाघ सुने घाघिनी, स्वान भात नहीं खाए, शुक्रवार की बादरी, रहे शनिचर छाए कहा घाघ सुन घाघिनी बिन बरसे ना जाए। जनकवि घाघ की ये लोकोक्तियां ग्रामीण जनजीवन में सदियों से प्रचलित हैं। इन्हीं के सहारे हमारे किसान भाई खेती-किसानी की व्यवस्था को सदियों तक समझते रहे और मौसम के आगमन, खेती से जुड़ी जरूरतों, फसल चक्र, उत्पादन आदि की जानकारी
प्राप्त करते रहे। लेकिन जैसे-जैसे जनसंख्या बढ़ी, खेती पर दबाव बढ़ा तो हमारे किसान भाइयों को खेती के साधनों जैसे उन्नत बीज, खाद, कीटनाशक सिंचाई सुविधाओं आदि की जरूरतें महसूस हुईं। स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद, भारत में कृषक समुदाय के लोगों की दशा सुधारने के उद्देश्य से कृषि क्षेत्र में बदलाव लाने के योजनाबद्ध प्रयास शुरू हुए। कृषि में नई जान फूंकने के इरादे से नीति निर्माताओं ने दोहरी नीति अपनाई। पहली, कृषि के विकास में संस्थागत बाधाओं को दूर करने के लिए भूमि सुधारों को लागू करना तथा दूसरा सिंचाई, बिजली और ग्रामीण क्षेत्रों में बुनियादी ढांचे के विकास में बड़े पैमाने पर पूंजी निवेश को बढ़ावा देना।
साठ के दशक में एक अन्य महत्वपूर्ण नीतिगत प्रयास के तहत कृषि मूल्य नीति भी लागू की गई, जो काफी कारगर सिद्ध हुई
20 फीट का गन्ना उगाते हैं सुरेश 19 फीट तक लंबे गन्ने पैदा करने वाले सुरेश एक एकड़ में 1000 क्विंटल गन्ने की पैदावार लेते हैं
म
हाराष्ट्र के एक किसान सुरेश कबाडे तो 19 फीट तक लंबे गन्ने पैदा कर लोगों कर दंग ही कर दिया है। सिर्फ लंबाई ही नहीं, बल्कि सुरेश एक एकड़ में 1000 क्विंटल गन्ने की पैदावार भी लेते हैं। दिलचस्प है कि महज नौवीं पास सुरेश कबाडे अपने अनुभव और तकनीक के सहारे खेती से साल में करोड़ों रुपए की कमाई भी करते हैं। दरअसल, मुंबई से करीब 400 किलोमीटर दूर सांगली जिले की तहसील वाल्वा में कारनबाड़ी के 48 साल के
विभाजन का दंश झेल रहा स्वतंत्र भारत जहां एक तरफ अनेक आर्थिक समस्याओं जैसे- बंगाल अकाल के पश्चात के प्रभाव, निम्न कृषि उत्पादकता, अत्यंत निम्न प्रति व्यक्ति खाद्य उपलब्धता, ग्रामीण ऋणग्रस्तता और बढ़ती हुई भूहीन श्रमिकों की संख्या, से जूझ रहा था, वहीं बिगडती राजनैतिक एवं सामाजिक परिस्थितियों के कारण व रोजगार अवसरों की अत्यंत कमी के कारण तीव्र औद्योगिकरण आवश्यक था। इसके अतिरिक्त कृषि की उद्योगों के प्रति सकारात्मक प्रतिक्रिया भी आवश्यक थी। अत: कृषि की स्थिति को सुधारने के लिए शीघ्रतम प्रयास करने आवश्यक थे। नियोजन काल के दौरान भारतीय सरकार ने खाद्य सुरक्षा के लिए प्रयास किए। प्रथम पंचवर्षीय योजना के दौरान 14.9 प्रतिशत कृषि के लिए आवंटित बजट धनराशि इस संदर्भ में अग्रणीय पहल थी। इसके अतिरिक्त सिंचित क्षेत्रों का बढ़ना एवं अन्य भूमि सुधार उपायों के माध्यम से कृषि उत्पादकता में वृद्धि दर्ज हुई। परंतु अनुकूल उत्पादन होने के बाद भी संभावनाएं वास्तविकता में रूपांतरित नहीं हुई। साठ के दशक में एक अन्य महत्वपूर्ण नीतिगत प्रयास के तहत कृषि मूल्य नीति भी लागू की गई, जो काफी कारगर सिद्ध हुई। इसी दशक के प्रारंभ में नीति निर्धारक ऐसी कृषि तकनीकियों की खोज में थे, जो ये रूपांतरण कर सकें और तभी यह तकनीकी ‘चमत्कारी बीजों’ के रूप में सामने आई, जो कि मैक्सिको में सफल हो चुकी थी। इस प्रकार भारतीय कृषि में हरित क्रांति के आगमन की पृष्ठभूमि तैयार हुई। यह क्रांति एचवाईवी, बीज, रसायन, कीटनाशकों एवं भू-मशीनीकरण पर आधारित थी। इस क्रांति ने भारतीय कृषि की कला को परिवर्तित कर दिया। 60 के दशक के मध्य से 80 के दशक के मध्य तक हरित क्रांति उत्तर पश्चिम राज्यों (पंजाब, हरियाणा, पश्चिमी यूपी) से लेकर दक्षिण भारतीय राज्यों तक फैल गई। 80 के दशक के प्रारंभ से ही
इस तकनीकी का प्रयोग मध्य भारत एवं पूर्वी राज्यों में भी मंदगति से होने लगा। हालांकि ज्वार, बाजरा, मक्के विशेषकर चावल एवं गेहूं के एचवाईवी बीजों के प्रयोग ने कृषि उत्पादकता को पर्याप्त तेजी प्रदान की, जिससे हरित क्रांति के प्रारंभिक दौर में गेहूं की उत्पादकता में 75 प्रतिशत की बढ़त दर्ज हुई। पर भारतीय मानसून अत्यधिक अनिश्चित, अनियमित एवं मौसम आधारित होने के करण एचवाईवी बीजों की अधिक सिंचाई एवं उर्वरकों की मांग को झेल पाने में असमर्थ रही। हरित क्रांति को और प्रभावी बनाने के लिए उच्च क्षमता, विश्वसनीय और कम ऊर्जा उपभोग करने वाले उपकरणों एवं मशीनों की भी आवश्यकता अनुभव हुई, जिन्हें सीमित संसाधनों से पूरा किया जाना कठिन था। हरित क्रांति की ‘जनसंख्या सिद्धांत’ के आधार पर समीक्षा के अनुसार कृषि उत्पादकता बढ़ी तो सही पर जनसंख्या वृद्धि की दर से कम, जिससे की आत्म पर्याप्तता की स्थिति प्राप्त नहीं की जा सकती थी। सिंचाई की विभिन्न तकनीक के बाद भी भारतीय कृषि मानसून पर निर्भर रही। 1979 और 1987 में खराब मानसून के कारण पड़े सूखे ने हरित क्रांति के दीर्घ कालीन उपयोगिता पर प्रश्न चिह्न लगा दिया। एचवाईवी बीजों के सीमित खाद्यान्नों के प्रयोग ने अंतर खाद्यान्न असंतुलन उत्पन्न किया। भारत के समस्त क्षेत्रों में हरित क्रांति के एक समान प्रयोग व परिणाम न होने के कारण अंतरक्षेत्रीय असंतुलन भी सामने आए। यद्यपि हरित क्रांति के सफलतम उल्लेखनीय परिणाम पंजाब, हरियाणा व पश्चिमी उत्तर प्रदेश में प्राप्त हुए। अन्य राज्यों में यह परिणाम संतोषजनक नहीं थे। मोदी सरकार किसानों के कल्याण में जुटी है। इससे किसानों के जीवन स्तर में बदलाव आ रहा है। प्रधानमंत्री ने 2022 तक किसानों की आमदनी दोगुनी करने का लक्ष्य हमें दिया है, हम इस दिशा में काम कर रहे हैं।
किसान सुरेश कबाडे अपने खेतों में ऐसा करिश्मा कर रहे हैं कि महाराष्ट्र, कर्नाटक, यूपी तक के किसान उनका अनुसरण कर रहे हैं। उनकी ईजाद की गई तकनीक का इस्तेमाल करने वालों में पाकिस्तान के भी कई किसान शामिल हैं। वे बताते हैं, ‘ये पेड़ी का गन्ना है। लंबाई 19 फीट और उसमें 47 कांडी (आंख) थीं। हमारे दूसरे खेतों में ऐसे ही गन्ने होते हैं।’ इससे पहले सुरेश 20 फीट का भी गन्ना उगा चुके हैं। करीब 30 एकड़ में आधुनिक तरीकों से खेती करने वाले सुरेश कबाडे पिछले कई वर्षों से लगातार एक एकड़ खेत में 1000 क्विंटल का उत्पादन लेते आ रहे हैं। सुरेश खास इसीलिए हैं, क्योंकि उत्तर प्रदेश में सबसे बेहतर उत्पादन करने वाला किसान 500 क्विंटल प्रति एकड़ की ही उपज ले पाता है, जबकि औसत उत्पादन 400 क्विंटल ही
है। अपनी तकनीक और तरीके के बारे में सुरेश बताते हैं, ‘बीज मैं खुद तैयार करता हूं। भारत में अभी भी ज्यादातर लोग 3-4 फीट पर गन्ना बोते हैं, मैं 5 से 6 फीट की दूरी और आंख की आंख की दूरी 2 से ढाई फीट रखता हूं। किसान खेतों में सीधे उर्वरक डाल देते हैं। मैं गन्ने के बीच कुदाली से जुताई कर जमीन में खाद डालता हूं।’ सुरेश महज नौंवी पास हैं लेकिन खेती को किसी वैज्ञानिक की तरह करते हैं। बात कमाई की करें तो सुरेश गन्ने से सालाना 50-70 लाख की कमाई करते हैं, जबकि हल्दी और केले को मिलाकर वो साल में एक करोड़ से ज्यादा की कमाई करते हैं। पिछले वर्ष उन्होंने एक एकड़ गन्ना बीज के लिए 2 लाख 80 हजार में बेचा था। 2016 में एक एकड़ गन्ने का बीज वो 3 लाख 20 हजार में भी बेच चुके हैं।
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किसान दिवस
18 - 24 दिसंबर 2017
कृषि क्षेत्र में महिलाएं पशुपालन में महिलाओं की भागीदारी 58 प्रतिशत और मछली उत्पादन में यह आंकड़ा 95 प्रतिशत तक है
भारत में कुल कामकाजी महिलाओं में से 84 प्रतिशत महिलाएं कृषि उत्पादन और इससे जुड़े कार्यों से जुड़ी हैं
23 राज्यों में कृषि,
वानिकी और मछली पालन में ग्रामीण महिलाओं के कुल श्रम की हिस्सेदारी 50 प्रतिशत है
चाय उत्पादन में लगने वाले श्रम में 47 प्रतिशत, कपास में 48.84 प्रतिशत, तिलहन में 45.43 प्रतिशत और सब्जियों के उत्पादन में 39.13 प्रतिशत का योगदान महिलाओं का है
जैविक खेती बना मंजुला का संबल
15 फसलें उगाती हैं वनिता
महाराष्ट्र की महिला किसान वनिता को लेकर सोशल मीडिया से लेकर पत्रिकाओं-अखबारों में काफी लिखा गया है
खे
ती-किसानी की दुनिया में भारतीय महिलाएं कैसे पहचान और सफलता की नई इबारत लिख रही हैं, इसकी मिसाल हैं महाराष्ट्र की महिला किसान वनिता बालभीम मनशेट्टी। वनिता को लेकर बीते दो सालों में सोशल मीडिया से लेकर पत्रिकाओंअखबारों में काफी लिखा गया है। कुछ न्यूज चैनलों पर अलग से उन पर फीचर स्टोरी भी दिखाई गई। वनिता एक साल में 15 फसलें उगाती हैं। उन्होंने 2014 में ‘एक एकड़ में खेती’ का फार्मूला अपनाया।
आज आलम यह है कि खेती के बूते उनकी पूरी गृहस्थी आर्थिक दृष्टि से सुरक्षित है। इस फार्मूले ने उन्हें आत्मनिर्भर किसान बना दिया है। महाराष्ट्र के उस्मानाबाद जिले के चिवड़ी गांव में रहने वाली वनिता की चार बेटियां हैं। उनकी सबसे बड़ी बेटी ग्रेजुएशन कर रही है, जबकि सबसे छोटी आठवीं कक्षा की छात्रा है। उनके पति बालभीम मनशेट्टी खेती के साथ-साथ ठेकेदारी भी करते हैं और घर का आधा खर्च वही वहन करते हैं, लेकिन पत्नी के सफल किसान होने पर उन्हें गर्व है। वह मानते हैं कि वनिता ने जिस आत्मविश्वास से खेती-किसानी का काम संभाला और सफल रहीं, वह काबिले-तारीफ है। वनिता के पास गाएं भी हैं। वह दूध बेचकर भी अच्छा-खासा कमा लेती हैं।
प्रमुख फसलों के उत्पादन में महिलाओं की भागीदारी 75 फीसदी तक है। बागवानी में यह आंकड़ा 79 प्रतिशत और फसल कटाई के बाद के कार्यों में 51 फीसदी तक ग्रामीण महिलाओं की भागीदारी है
छत्तीसगढ़, मध्यप्रदेश और बिहार में ग्रामीण महिलाओं की भागीदारी का प्रतिशत 70 प्रतिशत रहा है। इसके अलावा पश्चिम बंगाल, पंजाब, तमिलनाडु और केरल में महिलाओं की भागीदारी 50 फीसदी है। वहीं, मिजोरम, असम, अरुणाचल प्रदेश, छत्तीसगढ़ और नागालैंड में यह संख्या 10 प्रतिशत है
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मंजुला खेत में खुद हल-बक्खर चलाती हैं और फसल की निकाई-गुड़ाई खुद करती हैं
हाराष्ट्र की नंदुरबार जिले के वागशेपा गांव की मंजुला की जैविक खेती की चर्चा अब इलाके से बाहर भी हो रही है। मंजुला के पास 4 एकड़ जमीन है। उनका पति 10 साल पहले घर छोड़कर चला गया। उसके खुद का हार्ट बाल्व बदला गया है। इस कारण अब भी दवाएं लेनी पड़ती हैं। इन तमाम मुश्किलों के बावजूद मंजुला ने हार नहीं मानी और एक दिन खुद खेती करने की जिम्मेदारी अपने ऊपर ले ली। अपने दृढ़ निश्चय पर अमल करते हुए मंजुला ने सबसे पहले बचत समूह से कर्ज लेकर खेत में मोटर पंप लगाया। मिट्टी को उपजाऊ बनाने के लिए गोबर खाद खरीदकर डाली। सरकारी योजनाओं के पैसे से एक जोड़ी बैल खरीदा। मंजुला खेत में खुद हल-बक्खर चलाती हैं। फसल की निकाई-गुड़ाई करती हैं। सबसे पहले खेत में मक्का और ज्वार लगाया तो उत्पादन अच्छा हुआ। इस तरह उनका उत्साह और बढ़ गया। जैविक खेती से जगे भरोसे के बाद मंजुला फख्र के साथ बताती हैं कि उनके बाजू वाले खेतों
की फसल कमजोर होती है। पिछले साल उन खेतों में मक्का नहीं हुआ, पर हमारे खेत में हुआ। इसका कारण बताते हुए वह कहती हैं कि हमने जैविक खाद का इस्तेमाल किया, जबकि वे रासायनिक खाद डालते हैं।
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गुड न्यूज
टैक्सी चालकों को सुधारेगी एयरपोर्ट पुलिस नशे में धुत होकर खासकर महिला यात्रियों के साथ बुरा बर्ताव करने वाले टैक्सी ड्राईवरों को एयरपोर्ट पुलिस इन दिनों शालीनता का पाठ पढ़ा रही है
11 लाख बच्चे सीखेंगे कचरा प्रबंधन पांच हजार से अधिक सरकारी स्कूलों में चलाया जाएगा कोकाकोला इंडिया और अमेरिकन इंडिया फाउंडेशन का साझा अभियान आईएएनएस
बच्चों को कचरा प्रबंधन के प्रति स्कूलीजागरूक करने के लिए कोका-
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सत्यम
ल्ली के इंदिरा गांधी अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे पर अगले एक साल तक टैक्सी चालकों के लिए एक अभियान की शुरूआत की गई है। यह अभियान चालकों को नशे से छुटकारा दिलाने और आपराधिक गतिविधियों से दूर रखने के मकसद से पुलिस और एन्य संबंधित एजंसियों की ओर से की गई है। अभियान की सफलता इसीलिए मानी जा रही है, चूंकि शुरूआत में ही पांच सौ चालकों ने इसमें भाग लिया है। अभियान के पीछे का मकसद राष्ट्रीय राजधानी होने के कारण दुनिया भर से आने वाले पर्यटकों, यात्रियों के साथ टैक्सी चालकों के व्यवहार को शालीन दिखाना है। इससे अलावा कई बार चालकों के हाथों नशे में आपराधिक वारदात को अंजाम देना, महिला यात्रियों के साथ दुर्व्यवहार करना और अश्लील हरकतें करना शामिल है। दिल्ली पुलिस ने इस अभियान को महिला मुसाफिरों की सुरक्षा से जोड़कर देखा है। इंदिरा गांधी अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे के पुलिस उपायुक्त संजय भाटिया का मानना है कि एयरपोर्ट एक ऐसी जगह है जहां सबसे पहले यात्री आकर अपने गंतव्य तक के लिए टैक्सी किराए पर लेते हैं। टैक्सी चालकों का व्यवहार उन यात्रियों के लिए सदा याद रखने लायक होता जब वे सकुशल अपने घर या गंतव्य तक पहुंच जाते हैं। कभी-कभार इसी जगह होने वाली घटनाएं यात्रियों के लिए ऐसा नासूर बनती हैं, जिसे जिंदगी भर भुलाया नहीं जा सकता है। महिला यात्रियों के लिए उनके जीवन का यह क्षण कभी नासूर नहीं बने, इसीलिए पुलिस की यह पहल
है। पुलिस इस अभियान के बाद यह अध्ययन करेगी कि इस प्रकार की योजना से आपराधिक घटनाओं में कितनी कमी और फर्क आया है। टैक्सी चालकों के व्यवहार को परखा जाएगा और इसे वृहद रूप में प्रचारित-प्रसारित किया जाएगा। पुलिस उपायुक्त के मुताबिक शराब और अश्लील फोटो देखने (पोर्नोग्राफी) की लत से कई बार हमारे देश की भी बदनामी होती है। इस अभियान के तहत प्रतिदिन अलग-अलग बैच में टैक्सी ड्राइवरों की काउंसलिंग और डी एडिक्शन कराया जा रहा है। यह मुहिम एक साल तक चलेगी जिसमें एयरपोर्ट से टैक्सी चलाने वाले करीब 5000 टैक्सी ड्राइवर हिस्सा लेंगे। आगे सफलता मिलने पर इसे दूसरे अन्य चालकों पर भी आजमाया जाएगा। पुलिस उपायुक्त ने यह भी दावा किया कि कई टैक्सी ड्राइवर इस कार्यक्रम में शामिल होने के बाद अपनी बुरी लत छोड़ चुके हैं और इस मुहिम को सही ठहरा रहे हैं। टैक्सी ड्राइवर अमरेंद्र का कहना है कि मुझमें शराब छोड़ने के बाद बहुत बदलाव आया है। पहले सवारियां कई बार शिकायते करती थीं कि आपके मुंह से शराब की बदबू आ रही है। कई बार झगड़ा भी हो जाता था। कई बार हम सवारियों को तंग करने के लिए लंबा रास्ता ले लेते थे। लेकिन अब मैं अच्छा महसूस कर रहा हूं। सवारियों को भी हमसे कोई शिकायत नहीं है। टैक्सी ड्राइवर रोशन का कहना है कि इस प्रकार के कार्यक्रम बहुत जरूरी है। कार्यक्रम में शामिल होने के बाद हम बदलाव महसूस कर रहे हैं। हमारा कोई साथी सवारी से शराब पीकर बुरा बर्ताव करता है तो बदनामी सबकी होती है और अगर इस कार्यक्रम से हमें एक सबक
अभियान के तहत प्रतिदिन टैक्सी ड्राइवरों की काउंसलिंग और डी एडिक्शन कराया जा रहा है। यह मुहिम एक साल तक चलेगी जिसमें एयरपोर्ट से टैक्सी चलाने वाले करीब 5000 टैक्सी ड्राइवर हिस्सा लेंगे
खास बातें पूरे एक साल तक चलेगा यह अभियान यात्रियों से बेहतर व्यवहार करने की दी जा रही है सीख मनोवैज्ञानिक भी जुटे हैं इस अभियान में
मिलता है तो फिर दूसरे को भी हम इस प्रकार के व्यवहार नहीं करने की बातें कह सकते हैं। साल भर के बाद अभियान की सफलता और विफलता का आकलन किया जाएगा। इस बारे में मनोवैज्ञानिक मनोज सिन्हा कहते हैं कि यह अभियान मील का पत्थर साबित होगा। कभी-कभार एक छोटी घटना से पूरे देश की बदनामी तो होती ही है सुरक्षा का जिम्मा संभालने वाली पुलिस के लिए उसका खुलासा एक चुनौती भरा साबित होता है। सिन्हा ने बताया कि यह मनोवैज्ञानिक रूप से भी चालकों के लिए जरूरी है, चूंकि उनकी रोजी रोटी इस से चलती है। अगर वे एक बार बदनाम हो गए तो फिर सलाखों के पीछे उनकी जिंदगी गुजरेगी और उनके परिवार पर बुरा असर पड़ेगा। इसीलिए चालकों को यह बात भी आत्मीयता और गंभीरता से दोस्ताना अंदाज में बताने की जरूरत है। पुलिस उपायुक्त संजय भाटिया ने बताया कि इनके व्यवहार में सुधार के लिए प्रत्येक दिन करीब डेढ़ घंटे 50 टैक्सी चालकों को विशेष ट्रेनिंग दी जाएगी। इस दौरान उन्हें शॉर्ट फिल्म दिखाने के अलावा क्रियात्मक कार्य कराए जाएंगे। विशेषज्ञ उन्हें बुरी आदतें छोड़ने के लिए प्रेरित भी करेंगे।
कोला इंडिया ने अमेरिकन इंडिया फाउंडेशन (एआईएफ) के साथ मिलकर सपोर्ट माई स्कूल (एसएमएस) मिशन रिसाइक्लिंग शुरू करने की घोषणा की। इसके तहत पांच हजार से अधिक सरकारी स्कूलों के 11 लाख बच्चों को जागरूक करने का लक्ष्य रखा गया है। इस परियोजना का उद्देश्य भारत सरकार के स्वच्छता मिशन में योगदान देना है। इसके जरिए सही ढंग से कचरा जमा करने एवं कचरे के अलगाव पर ध्यान देना है, जिसमें पॉलीथीन टेरिफ्थेलैट (पीईटी) भी शामिल होगा। अमेरिकन इंडिया फाउंडेशन के सीईओ निशांत पांडेय ने कहा, ‘सपोर्ट माई स्कूल का उद्देश्य 10 राज्यों के 5000 स्कूलों तक पहुंचना है। इस अभियान के जरिए बच्चों को एक स्वच्छ तथा स्थायी भविष्य निर्माण करने का अवसर दिया जाएगा।’ सरकार के स्वच्छ भारत, स्वच्छ विद्यालय मिशन से जुड़ा यह कार्यक्रम समाज में तथा स्कूलों में कचरा प्रबंधन प्रणाली स्थापित करने या इसके लिए मदद करने के लिए काम करेगा। कार्यक्रम में पहले चरण में, कोका-कोला इंडिया ने अमेरिकन इंडिया फाउंडेशन (एआईएफ) के साथ भागीदारी करते हुए देशभर में 5000 से अधिक सरकारी स्कूलों के लगभग 11 लाख बच्चों तथा 1 लाख से अधिक नागरिकों के बीच सकारात्मक प्रभाव निर्माण करने का लक्ष्य रखा है। इसके अंतर्गत उन्हें सही ढंग से ठोस कचरा प्रबंधन करने के लंबी अवधि के फायदों के बारे में बताया जाएगा। कोका-कोला इंडिया एवं साउथ वेस्ट एशिया के अध्यक्ष टी. कृष्ण कुमार ने कहा, ‘इस पहल का उद्देश्य स्कूली बच्चों और समाज में कचरा अलग करने तथा रिसाइक्लिंग करने के सही तरीकों के बारे में जागरूकता का निर्माण करना है। बच्चे एक बेहतर भविष्य के लिए परिवर्तन के प्रतिनिधि हैं और उनके पास अपने समुदाय को जागरूक बनाने की क्षमता है।’ साउथ एशिया यूएन हैबिटेट के क्षेत्रीय टेक्निकल एडवाइजर भूषण तुलाधर ने कहा, ‘सपोर्ट माइ स्कूल (एसएमएस) अभियान के सभी भागीदारों को 'एसएमएस मिशन 1000' की सफलता के लिए हम बधाई देते हैं। यह काफी सराहनीय है कि इस अभियान ने क्षेत्र के 1100 स्कूलों में 400,000 से अधिक छात्रों तक पहुंचने में सफलता पाई है। हम इस पहल के अगले चरण - एसएमएस मिशन रिसाइक्लिंग को अपना समर्थन जारी रखने की उम्मीद करते हैं।’
16 खुला मंच
18 - 24 दिसंबर 2017
हजार योद्धाओं पर विजय पाना आसान है, लेकिन जो अपने ऊपर विजय पाता है, वही सच्चा विजयी है
- गौतम बुद्ध
राष्ट्रीय रोजगार नीति
पहली बार कोई सरकार एक राष्ट्रीय रोजगार नीति लेकर आ रही है
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जादी के बाद के सात दशकों में भारत ने कई क्षेत्रों में काफी विकास किया है। पर एक रोना जो अभी तक लगा हुआ है, वह यह कि आबादी के मुताबिक देश में अपेक्षित रोजगार सृजन किसी भी दौर में नहीं हो सका। पहली बार नरेंद्र मोदी सरकार एक राष्ट्रीय रोजगार नीति लेकर आ रही है। आगामी केंद्रीय बजट में इसकी घोषणा हो सकती है। रोजगार नीति आने से देश में प्रत्येक साल एक करोड़ रोजगार सृजन का रास्ता साफ हो जाएगा। इस नीति में सभी सेक्टरों को ध्यान में रखकर बनाया जा रहा है। नौकरी के सृजन के लिए समग्रता के साथ सरकार एक रोडमैप भी बना रही है। केंद्र की इस राष्ट्रीय रोजगार नीति के माध्यम से नियोक्ताओं को और अधिक रोजगार देने के लिए प्रोत्साहित किया जाएगा तो नौकरियों को आकर्षक बनाने के लिए सेक्टरों के अनुसार उद्यम से जुड़े नियमों और नीतियों में सुधार किया जाएगा। सरकार के वरिष्ठ अधिकारी का कहना है कि छोटे और मध्यम स्केल के उद्योग रोजगार सृजन के लिए महत्वपूर्ण हैं, क्योंकि ये सबसे महत्वपूर्ण रोजगार प्रदाता हैं। वर्तमान समय में देश में 40 करोड़ लोग नौकरी करते हैं, लेकिन केवल 10 प्रतिशत लोग ही संगठित क्षेत्र से जुड़े हैं। रोजगार नीति के माध्यम से अधिक से अधिक लोगों को संगठित क्षेत्र से जोड़ने का मकसद है, ताकि उन्हें न्यूनतम मजदूरी और पर्याप्त सामाजिक सुरक्षा मिल सके। इसके लिए सरकार आर्थिक, सामाजिक और श्रमिक नीतियों में संशोधन भी करेगी। राष्ट्रीय रोजगार नीति के तहत सभी सेक्टरों में रोजगार की संभावना तलाशी जाएगी। यही नहीं, हर सेक्टर में रोजगार के लिए एक टारगेट तय किया जाएगा। टारगेट पांच साल के लिए तय किया जाएगा, जिसे एक समय अंतराल पर मॉनीटर किया जाएगा। कहना नहीं होगा कि स्वतंत्र भारत में रोजगार की दिशा में पहली बार कोई सरकार इस तरह के रोडमैप के साथ काम कर रही है, जिसे अपेक्षित कामयाबी असंदिग्ध है।
टॉवर
(उत्तर प्रदेश)
डॉ. शीतल कपूर
अभिमत
लेखिका उपभोक्ता क्लब की संयोजक और दिल्ली विश्वविद्यालय के कमला नेहरू कॉलेज में एसोसिएट प्रोफेसर हैं
राष्ट्रीय उपभोक्ता दिवस (24 दिसंबर) पर विशेष
उपभोक्ता अधिकार को मिली धार
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उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 1986 बनने के बाद से उपभोक्ता संरक्षण भारत में गति पकड़ने लगा
श्वीकरण एवं भारतीय बाजार को विदेशी कंपनियों के लिए खोले जाने के कारण आज भारतीय उपभोक्ताओं की कई ब्रांडों तक पहुंच कायम हो गई है। हर उद्योग में, चाहे वह त्वरित इस्तेमाल होने वाली उपभोक्ता वस्तु (एफएमसीजी) हो या अधिक दिनों तक चलने वाले सामान हों या फिर सेवा क्षेत्र हो, उपभोक्ताओं की जरूरतों को पूरा करने के लिए राष्ट्रीय स्तर पर 20 से अधिक ब्रांड हैं। पर्याप्त उपलब्धता की यह स्थिति उपभोक्ता को विविध प्रकार की वस्तुओं एवं सेवाओं में से कोई एक चुनने का अवसर प्रदान करती है। लेकिन सवाल यह है कि क्या उपभोक्ता को उसकी धनराशि की कीमत मिल रही है? आज के परिदृश्य में उपभोक्ता संरक्षण क्यों जरूरी हो गया है? क्या खरीददार को जागरूक बनाएं की अवधारणा अब भी कायम है या फिर हम उपभोक्ता संप्रुभता की ओर आगे बढ रहे हैं? उपभोक्तावाद, बाजार में उपभोक्ता का महत्व और उपभोक्ताओं के बीच जागरूकता भारत में उपभोक्ता मामले के विकास में कुछ मील के पत्थर हैं। दरअसल किसी भी देश की अर्थव्यवस्था उसके बाजार के चारों ओर घूमती है। जब यह विक्रेता का बाजार होता है तो उपभोक्ताओं का अधिकतम शोषण होता है। जब तक क्रेता और विक्रेता बड़ी संख्या में होते हैं तब उपभोक्ताओं के पास कई विकल्प होते हैं। उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 1986 बनने से पहले तक भारत में विक्रेता बाजार था। इस प्रकार वर्ष 1986 एक ऐतिहासिक वर्ष था, क्योंकि उसके बाद से उपभोक्ता संरक्षण भारत में गति पकड़ने लगा था। 1991 में अर्थव्यवस्था के उदारीकरण ने भारतीय उपभोक्ताओं को प्रतिस्पर्धी कीमतों पर गुणवत्तापूर्ण उत्पाद पाने का अवसर प्रदान किया। उसके पहले सरकार ने हमारे अपने उद्योग जगत को सुरक्षा प्रदान करने के लिए विदेशी प्रतिस्पर्धा पर रोक लगा दी थी। इससे ऐसी स्थिति पैदा हुई जहां उपभोक्ता को बहुत कम विकल्प मिल रहे थे और गुणवत्ता की दृष्टि से भी हमारे उत्पाद बहुत ही घटिया थे। एक कार खरीदने के लिए बहुत पहले बुकिंग करनी पड़ती थी और केवल दो ब्रांड उपलब्ध थे। किसी को भी उपभोक्ता के हितों की परवाह नहीं थी और हमारे उद्योग को संरक्षण देने का ही रुख था। इस प्रकार इस कानून के जरिए उपभोक्ता संतुष्टि और
उपभोक्ता संरक्षण को मान्यता मिली। उपभोक्ता को सामाजिकआर्थिक-राजनीतिक प्रणाली का अपरिहार्य हिस्सा समझा जाने लगा, जहां दो पक्षों, यानी क्रेता और विक्रेता के बीच विनिमय का तीसरे पक्ष यानी कि समाज पर असर होता है। हालांकि बड़े पैमाने पर होने वाले उत्पादन एवं बिक्री में लाभ की स्वभाविक मंशा कई विनिर्माताओं एवं डीलरों को उपभोक्ताओं का शोषण करने का अवसर भी प्रदान करती है। खराब सामान, सेवाओं में कमी, जाली और नकली ब्रांड, गुमराह करने वाले विज्ञापन जैसी बातें आम हो गई हैं और भोले-भाले उपभोक्ता अक्सर इनके शिकार बन जाते हैं। 9 अप्रैल, 1985 को संयुक्त राष्ट्र महासभा ने उपभोक्ता संरक्षण के लिए कुछ दिशानिर्देशों को अपनाते हुए एक प्रस्ताव पारित किया था और संयुक्त राष्ट्र के महासचिव को सदस्य देशों खासकर विकासशील देशों को उपभोक्ताओं के हितों के बेहतर संरक्षण के लिए नीतियां और कानून अपनाने के लिए राजी करने का जिम्मा सौंपा था। उपभोक्ता आज अपने पैसे की कीमत चाहता है। वह चाहता है कि उत्पाद या सेवा ऐसी हो जो तर्कसंगत उम्मीदों पर खरी उतरे और इस्तेमाल में सुरक्षित हो। वह संबंधित उत्पाद की खासियत को भी जानना चाहता है। इन आकांक्षाओं को उपभोक्ता अधिकार का नाम दिया गया। 15 मार्च को विश्व उपभोक्ता दिवस मनाया जाता है। यह वही दिन है जब 1962 में अमेरिकी संसद कांग्रेस में उपभोक्ता अधिकार विधेयक पेश किया गया था। अपने भाषण में राष्ट्रपति जॉन एफ. केनेडी ने कहा था, ‘यदि उपभोक्ता को घटिया सामान दिया जाता है, यदि कीमतें बहुत अधिक है, यदि दवाएं असुरक्षित और बेकार हैं, यदि उपभोक्ता सूचना के आधार पर चुनने में असमर्थ है तो उसका डॉलर बर्बाद चला जाता है, उसकी सेहत और सुरक्षा खतरे में पड़ सकती है और राष्ट्रीय हित का भी नुकसान होता है।’ उपभोक्ता अंतरराष्ट्रीय
किसी भी देश की अर्थव्यवस्था उसके बाजार के चारों ओर घूमती है। जब क्रेता और विक्रेता बड़ी संख्या में होते हैं, तब उपभोक्ताओं के पास कई विकल्प होते हैं
18 - 24 दिसंबर 2017 (सीआई), जो पहले अंतरराष्ट्रीय उपभोक्ता यूनियन संगठन (आईओसीयू) के नाम से जाना जाता था, ने अमेरिकी विधेयक में संलग्न उपभोक्ता अधिकार के घोषणापत्र के तत्वों को बढाकर आठ कर दिया, जो इस प्रकार हैं- 1.मूल जरूरत 2.सुरक्षा 3. सूचना 4. विकल्प-पसंद 5. अभ्यावेदन 6. निवारण 7. उपभोक्ता शिक्षण और 8. अच्छा माहौल। सीआई एक बहुत बड़ा संगठन है और इससे 100 से अधिक देशों के 240 संगठन जुड़े हुए हैं। इस घोषणापत्र का सार्वभौमिक महत्व है, क्योंकि यह गरीबों और सुविधाहीनों की आकांक्षाओं का प्रतीक है। इसके आधार पर संयुक्त राष्ट्र ने अप्रैल, 1985 को उपभोक्ता संरक्षण के लिए अपना दिशानिर्देश संबंधी एक प्रस्ताव पारित किया। यह अधिनियम उपभोक्ताओं को अनुचित सौदों और शोषण के खिलाफ प्रभावी, जनोन्मुख और कुशल उपचार उपलब्ध कराता है। अधिनियम सभी सामानों और सेवाओं, चाहें वे निजी, सार्वजनिक या सहकारी क्षेत्र की हों, पर लागू होता है बशर्ते कि वह केंद्र सरकार द्वारा अधिकारिक गजट में विशेष अधिसूचना द्वारा मुक्त न कर दिया गया हो। अधिनियम उपभोक्ताओं के लिए पहले से मौजूदा कानूनों में एक सुधार है क्योंकि यह क्षतिपूर्ति प्रकृति का है, जबकि अन्य कानून मूलत: दंडाधारित है और उसे विशेष स्थितियों में राहत प्रदान करने लायक बनाया गया है। इस अधिनियम के तहत उपचार की सुविधा पहले से लागू अन्य कानूनों के अतिरिक्त है और वह अन्य कानूनों का उल्लंघन नहीं करता। अधिनियम उपभोक्ताओं के छह अधिकारों को कानूनी अमली जामा पहनाता है वे हैं- सुरक्षा का अधिकार, सूचना का अधिकार, चुनाव का अधिकार, अपनी बात कहने का अधिकार, शिकायत निवारण का अधिकार और उपभोक्ता शिक्षा का अधिकार। अधिनियम में उपभोक्ताओं के हितों की रक्षा के लिए सलाहकार एवं न्याय निकायों के गठन का प्रावधान भी है। इसके सलाहकार स्वरूप के तहत केंद्र, राज्य और जिला स्तर पर उपभोक्ता सुरक्षा परिषद आते हैं। परिषदों का गठन निजी-सार्वजनिक साझेदारी के आधार पर किया जाता है। इन निकायों का उद्देश्य सरकार की उपभोक्ता संबंधी नीतियों की समीक्षा करना और उनमें सुधार के लिए उपाय सुझाना है। अधिनियम में तीन स्तरों जिला, राज्य और राष्ट्रीय स्तरों पर जिला फोरम, राज्य उपभोक्ता शिकायत निवारण आयोग और राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग जैसे अर्द्धन्यायिक निकाय मशीनरी का भी प्रावधान है। फिलहाल देश में 621 जिला फोरम, 35 राज्य आयोग और एक राष्ट्रीय आयोग है। जिला फोरम उन मामलों में फैसले करता है जहां 20 लाख रूपए तक का दावा होता है। राज्य आयोग 20 लाख से ऊपर एक करोड़ रूपए तक के मामलों की सुनवाई करता है जबकि राष्ट्रीय आयोग एक करोड़ रूपए से अधिक की राशि के दावे वाले मामलों की सुनवाई करता है। ये निकाय अर्द्धन्यायिक होते हैं और प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों से संचालित होते हैं। उन्हें नोटिस के तीन महीनों के अंदर शिकायतों का निवारण करना होता है और इस अवधि के दौरान कोई जांच नहीं होती है, जबकि यदि मामले की सुनवाई पांच महीने तक चलती है तो उसमें जांच भी की जाती है।
प्रियंका तिवारी
खुला मंच
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लेखिका युवा पत्रकार हैं और देश-समाज से जुड़े मुद्दों पर प्रखरता से अपने विचार रखती हैं
लीक से परे
वैष्णव जन तो तेने कहिए...
कृष्ण भक्ति से सराबोर भक्तों की लंबी श्रृंखला में नरसी मेहता निश्छल और चरम भक्ति के प्रतीक हैं
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दोलनों की धरती भारतवर्ष में एक आंदोलन भक्त कवियों-संतों द्वारा लाया गया। यह आंदोलन था देश में भक्ति के माध्यम से नैतिकता और उदारता को उदात्त स्तर तक पहुंचाने का। यह आंदोलन तारीखों में भले कई सदी पीछे छूट गया हो, पर इसकी अनुगूंज आज भी सुनाई देती है। भक्त कवियों के गाए भक्ति पद भारतीय परंपरा की सबसे पवित्र धारा है, जो किसी न किसी रूप में आज भी प्रवाहित है। इनमें से कई पद तो जीवन में नैतिकता की साखी बन गए हैं। ऐसा ही एक पद है‘वैष्णव जन तो तेने कहिए।’ इस भजन के रचियता हैं 15वीं शताब्दी के महान संत कवि नरसी मेहता। यह भजन राष्ट्रपिता महात्मा गांधी का प्रिय भजन नरसी मेहता जयंती (19 दिसंबर) पर विशेष था। दरअसल, महज इस भजन का ही नहीं, बल्कि हैं। उनके भक्ति रस से आप्लावित भजन आज भी नरसी मेहता के भावों और विचारों का भी गांधी जी जनमानस को ढांढस बंधाते हैं, धर्म का पाठ पढ़ाते हैं पर गहरा प्रभाव था। प्रायः ऐसा माना जाता है कि अस्पृश्यता से पीड़ित और जीवन को पवित्र बनाने की प्रेरणा देते हैं। उनके लोगों के लिए ‘हरिजन’ शब्द पहली बार गांधीजी ने भजनों में जीवंत सत्य का दर्शन होता है। नरसी का प्रयोग किया था, लेकिन वास्तविकता यह है कि इस जन्म 15वीं शताब्दी में सौराष्ट्र के एक नागर ब्राह्मण शब्द का पहली बार प्रयोग नरसी मेहता ने ही किया परिवार में हुआ था। उनके पिता का नाम कृष्णदास था। स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान यह भजन जन-जन और माता का नाम दयाकुंवर था। बचपन में ही माँ की जुबान पर था। न केवल यह भजन, बल्कि उनकी पिता स्वर्गवासी हो गए थे। बालक नरसी बाल्यकाल में गूंगे थे। आठ वर्ष हर भक्ति रचना इतनी सशक्त, सुरूचिपूर्ण है कि उससे न केवल आध्यात्मिक, बल्कि मानसिक तृप्ति के नरसी को उनकी दादी एक सिद्ध महात्मा के मिलती है। उनके भजनों में गोता लगाने पर शक्ति पास लेकर गई। महात्मा ने बालक को देखते ही एवं गति पैदा होती है, सच्चाई का प्रकाश उपलब्ध भविष्यवाणी की कि भविष्य में यह बालक बहुत होता है, जो हममें सच्चा संकल्प और कठिनाइयों पर बड़ा भक्त होगा। जब दादी ने बालक के गूंगे होने कि बात बताई तो महात्मा ने बालक के कान में विजय पाने की दृढ़ता एवं साहस देता है। कृष्ण भक्ति में सराबोर भक्तों की लंबी श्रृंखला कहा कि बच्चा! कहो ‘राधा-कृष्ण’ और देखते ही में नरसी मेहता निश्छल और चरम भक्ति के प्रतीक देखते नरसी ‘राधा-कृष्ण’ का उच्चारण करने लगा।
लेखन देता है ऊर्जा
- 17 दिसंबर 2017 वर्ष-1 | अंक-52 | 11 /2016/71597 आरएनआई नंबर-DELHIN
harat.com
sulabhswachhb
16 खुला पन्ा
लौहपुरुर का अनुशासन
सांगठदनक अनुशासन और एकजुटता के सरिार
30
20 सविेशी आंिोलन
कही अनकही
मदलक का दसतारा
गेनू का बदलिान
मनोज कुमार से भेंट ने बिल िी दकसमत
सविेशी के दलए मर दमटे बाबू गेनू
चम आधी िुदनया ने लहराया पर तक तमाम क्ेत्रों में अपने वर्ष रक्ा से लेकर राजनीदत िेश में आधी िुदनया भारतीय मदहलाओं ने इस । इस मायने में 2017 िमखम का लोहा मनवाया ऐदतहादसक तौर पर साक्ी रहा है के बिले पररदृशय का
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एसएसबी बयूरो
खास बातें इंदियन नेवी में पहली बार पायलट दनयुक्त हुई
मदहला
पहली दनम्षला सीतारमण िेश की मंत्ी बनीं पूण्षकादलक मदहला रक्ा ी दिल्लर ने हररयाणा की बेटी मानुर जीता दमस वरि्ड का ताज इस बात को भी महत्र् पि पूिा धयान दे िहे हैं, बक्लक समार्ेशी हो औि इसमें दे िहे हैं कक इसका ररित् हो। शायद यही र्िह है मकहलाओं की भूकमका अहम को कई क्ेत्ों कक आि भाित में मकहला प्रकतकनकधतर् है। में सममानिनक पहरान कमली
रिसर्च ने मेरिका की सर्वे संस्ा पीउ रिपोर्ट में कुछ साल पहले अपनी एक आकििी कहा ्ा कक 20र्ीं सदी के दुकनया नहीं दशक से लेकि अब तक कितना ांगी की उडान की मकहलाओं के शुभ मकहला की ी ने पहली बाि ककसी बदली है, उतनी दुकनया भि सात-आठ इंकडयन नेर् से आि । है है। इस गौिर् को आया बदलार् िीर्न में ति पायलर पद के कलए की तिकिण का िो कनयुक् नाम है शुभांगी दशक पहले मकहला सशक् किने र्ाली ऑकफसि का आि कामयाबी हाकसल अनंत ऊंराइंयों र्ैक्विक संघर्च हुआ ्ा, र्ह शुभांगी अब आकाश की मेिीराइम है। आधी दुकनया सर्रूप। नाम का सफिनामा नए उड़ाएंगी। शुभांगी सर्रूप के बदलार् आया है में एयिक्ाफर कर्मान उड़ाएंगी। शुभांगी उत्ति प्रदेश ंस की किंदगी में सबसे जयादा रिकानकायस तक समय े ब लं उनहें बरपन से कर्वि के उन कहससों में, िो कर्मानों को उड़ाने को तमन्ा िहे हैं। बात किें की हैं। कदल्ी की आस्ा, कर्कास की मुखयधािा से बाहि ्ी। शुभांगी के अलार्ा नई सशक्तिकिण के एक ही िल की शक्ति माया को भाित की तो भाित में मकहला पुद्ुरेिी की रूपा औि के कलिे ही में दौि (एनएआई) के ोलन करोिेर से एक सुलेि िाष्टीय आंद ा की नेर्ल आमा्चमेंर इंसपे बनने का इस कसलकसले के नौसेन िा रुके ्े। आिादी के बाद देश की पहली मकहला अकधकािी म सग्च िुड़ते शािा में सा् सफलता के औि भी सर्कण्च गौिर् हाकसल हुआ है। डि श्ीधि र्ॉरियि ने रले गए। दकक्णी नेर्ल प्रर्तिा कमां ी देश के मौिूदा प्रधानमंत् भांगी नौसेना में पहली पायलर को बताया, ‘र्ैसे तो शु पहले भी मकहला सशक्तिकिण ना की एकर्एशन बांर में िते हैं। हैं, लेककन नौसे दे से कर्मान में निि औि नई ल कबलकु कनयंत्ण अकधकािी किण के कबना र्ायु यातायात पि मकहलाएं काम कि र्े कहते हैं, ‘नािी सशक्ति ‘पय्चर्ेक्क’ अकधकािी के तौि िा है। र्ैसे अब यह नौसेना के हक्यािों मानर्ता का कर्कास अधू की हैं।’ एनएआई शािा पि नहीं िह गया, बक्लक रु एर्ं आकलन की मुद्ा र्ीमेन डेर्लपमेंर का औि गोला-बारूद के ऑकडर ने कहा कक रािों है।’ प्रधानमंत्ी मोदी के है। कमांडि र्ॉरियि होती ािी र्ीमेन-लीड डेर्लपमेंर का द किममे पि तैनात ककए िाने औि समाि के सति अकधकारियों को ड्ूरी पि ये कर्राि देश में सिकाि औि सफलता के तौि मकहला उनकी रुकनंदा शािाओं में प्रकशक्ण कदया मकहलाओं की बढी भागीदािी से पहले ी न कसफ्फ देश के कर्कास पि निि आते हैं। प्रधानमंत्
सुलभ स्वच्छ भारत ने सिर्फ स्वच्छता की लौ ही नहीं जलाई है, बल्कि सकारात्मक खबरों के साथ बेहतर जानकारी भी हम सब तक पहुंचाई है। मीडिया के गिरते दौर में जहां हर तरफ नकारात्मक खबरों का दौर है, सुलभ ने हर क्षेत्र से समाज के लिए बेहतर करने वालों की बातें हम तक पहुंचाई। साथ ही हर बार अखबार का प्रगतिशील लेखन हमें उर्जा से भर देता है। हर सोमवार हमें इंतजार रहता है कि नए अंक में क्या नया होगा। उम्मीद करता हूं कि सुलभ स्वच्छ भारत की हर बार कुछ नया देने की कोशिश लगातार जारी रहेगी और हम कभी निराश नहीं होंगे। ललित बंसल, मुिनरका, दिल्ली
बालक नरसी बचपन से ही साधु-संतों की सेवा किया करते थे और जहां कहीं भजन-कीर्तन होता था, वहीं जा पहुंचते थे। रात को भजन-कीर्तन में जाते तो उन्हें समय का ख्याल न रहता। रात को देर से घर लौटते तो भाभी की प्रताड़ना सुननी पड़ती। एक दिन पारिवारिक परेशानियों एवं झंझटों से तंग आकर नरसी घर छोड़कर चले गए। वे जूनागढ़ से निकलकर जंगल की ओर चल दिए। जूनागढ़ रैवतक पहाड़ की तलहटी में बसा हुआ है। गिरनार का जंगल शेर-चीते आदि हिंसक जानवरों के लिए प्रसिद्ध है। उसी घने जंगल में वह घूमते रहे। शायद वे चाहते थे कि कोई शेर या चीता आ जाए और उन्हें खत्म कर दे। इतने में उन्हें एक मंदिर दिखाई दिया। मंदिर टूटा-फूटा था, परंतु उसमें शिवलिंग अखंड था। कई वर्षों से उसकी पूजा नहीं हुई थी। शिवलिंग को देखकर नरसी के हृदय में भक्ति को स्रोत फूट पड़ा। नरसी बड़े सरल थे। नम्रता की मूर्ति थे। किसी के भी भले-बुरे से उन्हें कोई सरोकार न था। संसार से विरक्त थे, परंतु दिल बड़ा कोमल था। ऊंच-नीच का भाव उनके मन में कभी नहीं आया। वह ब्रह्म और माया की ‘अखंड रासलीला’ के भावों को अपनी मधुर वाणी में सदा गाते थे और कृष्ण-भक्ति का प्रचार करते थे। उन्होंने ब्रह्म और माया का भेद नहीं किया। वह कहते थे, ‘ब्रह्म लटकां करे ब्रह्मपासे’माया भी ब्रह्म का ही रूप है। जो भक्त हैं, वे अपनी सच्ची स्थिति का अनुभव करते हैं, क्योंकि उनका अंतःकरण निर्मल होता है, पवित्र होता है। नरसी ऐसे ही भक्त थे, ज्ञानी थे। वे भारतीय आध्यात्मिक एवं धार्मिक जगत के भक्त सम्राट थे, उनकी जैसी भक्ति इतिहास की विरल घटना है।
बना नियमित पाठक
अखबार पढ़ना बचपन से मेरी आदत है, लेकिन मुख्य धारा की मीडिया की खबरें पढ़कर मन निराशा में डूबने लगा था। तभी अचानक एक दिन सुलभ स्वच्छ भारत पर नजर गई और पहली खबर व मुख्य पृष्ठ के डिजाईन से ही यह मन को भा गया। तब से मैं इसका नियमित पाठक हूं। पूरे हफ्ते अखबार को कई बार पढ़ता हूं और हर बार कुछ नया सा लगता है। आधी दुनिया यानी महिलाओं के ऊपर केंद्रित अबकी बार की प्रति न सिर्फ दिल को भा गई, बल्कि इससे कुछ कर बेहतर करने की प्रेरणा भी मिली। हरविंदर सिंह, बरेली, उत्तर प्रदेश
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18 - 24 दिसंबर 2017
पग-पग... प्रकृति
भारतीय जीवन और परंपरा में प्रकृति का साथ कोई नई बात नहीं है। कहते भी हैं कि यह देश ऋषि और कृषि का देश रहा है। आज विकास और आधुनिकता के बीच भी भारतीय जीवन की यह परंपरागत स्वाभाविकता देखी जा सकती है। इस जीवन में जहां एक तरफ जहां आजीविका के लिए प्रकृति से जुड़ाव है तो वहीं पर्यावरण संरक्षण की सीख भी शामिल है। फोटो ः जयराम
18 - 24 दिसंबर 2017
आमतौर पर कृषक सरल प्रकृति के होते हैं। पर इस सरलता के साथ वे मेहनतकश भी होते हैं। वे साधारण तरीके से खेती, बागवानी और दूसरे कार्य करते हैं। अच्छी बात यह है कि यह कार्य लोग किसी दबाव में नहीं बल्कि आंतरिक चाव के साथ करते हैं।
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गुड न्यूज
18 - 24 दिसंबर 2017
‘मेहरम’ के बिना हज की इजाजत का सकारात्मक असर महिलाओं को अधिकार संपन्न बनाने की दिशा में नरेंद्र मोदी सरकार ने उठाया महत्वपूर्ण कदम
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एसएसबी ब्यूरो
द्रीय अल्पसंख्यक मामलों के मंत्री मुख्तार अब्बास नकवी ने कहा है कि मुस्लिम महिलाओं के ‘मेहरम’ (पुरूष साथी) के बिना हज पर जाने पर लगे प्रतिबंध को सरकार द्वारा हटाने के फैसले के बेहद सकारात्मक परिणाम निकले हैं, क्योंकि देश भर की महिलाएं मेहरम के बिना हज पर जाने के लिए बड़ी संख्या में आवेदन कर रही हैं। निजी टूर ऑपरेटरों के लिए एक पोर्टल की शुरूआत करते हुए नकवी ने कहा कि मेहरम के बिना मुस्लिम महिलाओं को हज पर जाने की इजाजत देने के सरकार के फैसले का देश भर में स्वागत हुआ है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में सरकार द्वारा महिलाओं को अधिकार संपन्न बनाने की दिशा में यह
महत्वपूर्ण कदम है। उन्होंने कहा कि हज 2018 के लिए आवेदन की प्रक्रिया शुरू हो चुकी है। इसके लिए 13 दिसंबरर तक 1000 से अधिक महिलाएं आवेदन कर चुकी हैं। नई हज नीति के अनुसार 45 वर्ष से अधिक उम्र की महिलाएं जो पुरूष साथी के बिना हज पर जाना चाहती हैं, उन्हें 4 या अधिक महिलाओं के समूह में हज यात्रा पर जाने की इजाजत दी गई है। नकवी ने कहा कि अल्पसंख्यक मामलों के मंत्रालय ने प्राइवेट टूर ऑपरेटरों के लिए पहली बार पोर्टल शुरू किया है, ताकि हज से जुड़ी संपूर्ण प्रक्रिया पूरी तरह पारदर्शी हो सके। यह पोर्टल प्रधानमंत्री के डिजिटल इंडिया कार्यक्रम को आगे बढ़ाने के लिए विकसित किया गया है। इस पोर्टल से प्राइवेट टूर ऑपरेटरों और हज यात्रियों के अनेक
अल्पसंख्यक मामलों के मंत्रालय ने प्राइवेट टूर ऑपरेटरों के लिए पहली बार पोर्टल शुरू किया है, ताकि हज से जुड़ी संपूर्ण प्रक्रिया पूरी तरह पारदर्शी हो सके
मुद्दों का समाधान हो सकेगा। इस पोर्टल के जरिए प्राइवेट टूर ऑपरेटर आवश्यक दस्तावेजों के साथ ऑनलाइन आवेदन कर सकते हैं। आवेदनों की जांच अल्पसंख्यक मामलों के मंत्रालय का हज डिवीजन करेगा। इसके बाद ऑनलाइन ड्रा निकाला जाएगा और कोटा आवंटित किया जाएगा। इस पोर्टल का उद्देश्य देश भर के प्राइवेट टूर ऑपरेटरों द्वारा पेश की जाने वाली दरों, पैकेजों और सुविधाओं का विवरण दर्शाना है। अत: इससे हज यात्रियों के पास न केवल अपने क्षेत्र के, बल्कि देश के किसी भी अन्य भाग से अपनी पसंद का ऑपरेटर चुनने का विकल्प होगा। पोर्टल और उसके विभिन्न भागों का सरलता से संचालन करने के लिए यह फैसला किया गया है कि इन ऑपरेटरों से हज 2018 के लिए ऑनलाइन और हाथ से आवेदन आमंत्रित किए जाएंगे। एक तरफ निजी टूर ऑपरेटरों के लिए समूची प्रक्रिया को सरल और पारदर्शी बनाया गया है, जबकि दूसरी तरफ यह स्पष्ट निर्देश दिया गया है कि निजी टूर ऑपरेटरों के जरिए जाने वाले हज यात्रियों के लिए सुविधाओं में किसी भी प्रकार की विसंगतियों को बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। अल्पसंख्यक मामलो के मंत्रालय ने इस संबंध में कड़े उपाय किए हैं। नकवी ने कहा कि हज के लिए अब तक 2 लाख 63 हजार से अधिक लोगों ने आवेदन दिए हैं, जिनमें से करीब 1 लाख 38 हजार आवेदन ऑनलाइन किए गए हैं। इससे समूची हज प्रक्रिया को डिजिटल बनाने के अल्पसंख्यक मामलों के मंत्रालय के फैसले को बल मिला है। इसके अलावा हज के लिए लोग मोबाइल एप्प से भी आवेदन कर रहे हैं। हज समिति और प्राइवेट टूर ऑपरेटरों के बीच कोटा का वितरण पिछले वर्ष की तरह रखा गया है। हज 2018 के लिए नई हज नीति के अनुसार संचालित होगा। सऊदी अरब सरकार ने वर्ष 2017 में भारत का हज कोटा बढ़ाकर 1 लाख 70 हजार 25 कर दिया था।
इलेक्ट्रिक ट्रक से घटेगा उत्सर्जन
इलेक्ट्रिक सेमी ट्रकों के लॉन्च होने के बाद पेप्सिको ने दिया बड़ा ठेका
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प्सी और लेस चिप्स की निर्माता कंपनी पेप्सिको ने तेल खपत में कटौती के लिए अमेरिकी वाहन निर्माता टेस्ला द्वारा हाल ही लांच किए गए 100 इलेक्ट्रिक सेमी ट्रकों का ठेका दिया है। यह ठेका पेप्सिको के वाहनों में अमेरिकी बेड़े के एक प्रतिशत का प्रतिनिधित्व करता है। इसके साथ ही यह 2030 तक अपनी आपूर्ति श्रृंखला में करीब 20 प्रतिशत उत्सर्जन घटाने की योजना का भी हिस्सा है। इलेक्ट्रिक सेमी ट्रकों के 16 नवंबर को लॉन्च होने के बाद से पेप्सिको ने इनका सबसे बड़ा ठेका दिया है। टेस्ला के मुख्य कार्यकारी अधिकारी इलॉन मस्क ने ट्रकों के शुभारंभ के मौके पर बैटरी-चालित ट्रकों के 2019 तक तक सड़कों पर उतरने का वादा किया था। मस्क ने कहा था कि सेमी ट्रक एक बार चार्ज होने के बाद 800 किलोमीटर तक चलने में सक्षम हैं और इसकी लागत डीजल से भी कम होगी। (एजेंसी)
जलवायु संबंधी लक्ष्यों पर 9 अरब यूरो खर्च करेगा ईयू पेरिस जलवायु परिवर्तन समझौते की दूसरी सालगिरह पर ईयू ने की बड़ी घोषणा
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आईएएनएस
रोपीय संघ (ईयू) ने जलवायु संबंधी लक्ष्यों को हासिल करने के लिए जलवायु वित्त योगदान के तौर पर नौ अरब यूरो देने की घोषणा की है। पेरिस
जलवायु परिवर्तन समझौते की दूसरी सालगिरह के अवसर पर ईयू की ओर से पहली बार बड़ी घोषणा की गई है। पेरिस जलवायु समझौते के मुताबिक, संबद्ध निवेश तीन लक्षित क्षेत्रों में है, जिनमें शहरों की दीर्घकालिक व्यवस्थाएं, दीर्घकालिक ऊर्जा समाधान और संपर्क व स्थायी कृषि, ग्रामीण उद्यमी और कृषि व्यवसाय शामिल हैं। संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन कार्यकारी सचिव पैट्रिसिया एसपिनोसा ने एक बयान में कहा, ‘पेरिस समझौता और यूएनएफसीसीसी जलवायु कन्वेंशन जलवायु परिवर्तन को काबू में करने का एक मात्र
रास्ता है और इस वन प्लैनेट समिट का अभिप्राय यह बताना है कि समझौते के उद्देश्यों से वित्तीय तंत्र किस प्रकार जुड़ा हुआ है।’ दिलचस्प है कि 26.3 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर से ज्यादा की परिसंपत्तियों के प्रबंधन वाले दुनिया के 225 सबसे असरदार सांस्थानिक निवेशकों ने विश्व में सबसे ज्यादा ग्रीनहाउस गैस का उत्सर्जन करने वाले कॉरपोरेट कंपनियों को शामिल करने के लिए एक सहयोगपूर्ण पहल शुरू की, ताकि ये कंपनियां जलवायु परिवर्तन पर कार्रवाई के लिए कदम उठाएं। पेरिस समझौते की दूसरी वर्षगांठ पर निवेशकों के नेतृत्व में व उनके द्वारा विकसित और दूनियाभर के पांच साझेदार संगठनों द्वारा समर्थित व संयोजित
'क्लाइमेट एक्शन 100+' के रूप में यह पहल शुरू की गई है। अमेरिका का सबसे बड़ा पब्लिक पेंशन फंड और 'क्लाइमेट एक्शन 100+' के प्रतिभागी, कैलिफोर्निया पब्लिक इंप्लॉइज रिटायमेंट सिस्टम के बोर्ड सदस्य बेट्टी टी. यी ने समिट में पैनल के बीच बातचीत के दौरान इसकी घोषणा की। 'प्लैनेट वन समिट' में 6.3 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर की संयुक्त पूंजी वाली 237 अन्य कंपनियों ने जलवायु संबंधी वित्तीय खुलासे पर सार्वजनिक तौर पर टास्क फोर्स को मदद करने की प्रतिबद्धता जाहिर की। अक्टूबर में फ्रांस के सबसे बड़े बैंक बीएनपी पारिबास ने घोषणा की थी कि वह डामर व रेत परियोजनाओं व कंपनियों को फंड देना बंद कर देगा।
18 - 24 दिसंबर 2017
हिमाचल में प्राकृतिक चिकित्सा व योग अस्पताल
ओडिशा में सोशल मीडिया की निगरानी
शूलिनी विश्वविद्यालय के तहत 80 लाख रुपए के अनुदान के साथ बनेगा यह अस्पताल
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द्र सरकार ने हिमाचल प्रदेश के सोलन शहर में शूलिनी विश्वविद्यालय को 80 लाख रुपए के अनुदान के साथ एक 100-बिस्तर के प्राकृतिक चिकित्सा और योग अस्पताल को स्थापित करने की मंजूरी दे दी है। योग और प्राकृतिक चिकित्सा अनुसंधान (सीसीआरएनएन) की केंद्रीय परिषद ने विश्वविद्यालय को एक संदेश के माध्यम से 100बिस्तर वाले अस्पताल की स्थापना के लिए 80 लाख रुपए की वित्तीय सहायता दी है। विश्वविद्यालय ने अगले शैक्षणिक सत्र से यूजीसी द्वारा मंजूर पांच साल के बैचलर ऑफ नेचुरोपैथी और योगिक विज्ञान
(बीएनआईएस) पाठ्यक्रम शुरू करने का भी प्रस्ताव रखा है। विश्वविद्यालय के कुलपति पी.के. खोसला ने कहा, ‘आयुष मंत्रालय के योग और प्राकृतिक चिकित्सा में अनुसंधान केंद्रीय परिषद ने शूलिनी विश्वविद्यालय में योग और प्राकृतिक चिकित्सा के योगानंद मेडिकल स्कूल को मंजूरी दे दी है।’ यह अस्पताल, क्षेत्र में अपने तरह का पहला विश्वविद्यालय है, जो एक वर्ष के समय में बनकर तैयार हो जाएगा। यह स्वास्थ्य और भलाई के लिए नैसर्गिक दवाओं की सहायता से योग विज्ञान के ज्ञान और प्रथाओं को प्रदान करेगा। (एजेंसी)
सर्वाधिक देखी जाने वाली वेबसाइटें असुरक्षित दुनिया की शीर्ष 1000 वेबसाइटों में से हर वर्ष 10 के हैक होने की संभावना है
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पकी पसंदीदा इंटरनेट वेबसाइट पर आपका विवरण कितना असुरक्षित है, यह बताते हुए एक शोध में कहा गया है कि इंटरनेट पर सबसे ज्यादा देखी जाने वाली शीर्ष 1000 वेबसाइटों में से हर वर्ष 10 के हैक होने की संभावना है। अमेरिका में कैलिफोर्निया के सैन डिएगो विश्वविद्यालय के प्रोफेसर और इस शोध के वरिष्ठ लेखक एलेक्स सी स्नोरेन ने कहा, ‘कोई भी इससे उपर नहीं है। न कंपनियां, न देश, यह होने जा रहा है। बस प्रश्न यह
है कि कब होगा।’ स्नोरेन के पीएचडी छात्रों में से एक और शोध के पहले लेखक जो डीबलासियो ने कहा कि एक प्रतिशत शायद ज्यादा न लगे, लेकिन दुनिया में इंटरनेट पर लाखों बेवसाइट हैं, जिसका मतलब है कि हर वर्ष लाखों वेबसाइट हैक हो सकती है। डीबलासियो ने कहा, ‘बड़ी दुकानों का एक प्रतिशत स्वामित्व किसी अन्य के पास चला जाना डरावना है।’ यह पता लगाने के लिए कि वेबसाइट कब हैक होती है, कंप्यूटर वैज्ञानिकों ने एक उपकरण बनाया और उसका सफलतापूर्वक परीक्षण किया। यह उपकरण अपने से जुड़े ई-मेल अकाउंट की गतिविधियों की निगरानी करता है। टीम ने लंदन में एसीएम इंटरनेट मिजर्मेन्ट कॉन्फ्रेंस में उपकरण को प्रस्तुत किया। इस उपकरण का नाम ट्रिप वायर है। (एजेंसी)
गुड न्यूज
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लोगों की शिकायतों का प्रबंधन करने के लिए ओडिशा सरकार की पहल
डिशा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक ने सोशल मीडिया शिकायत निगरानी तंत्र की शुरुआत की। सोशल मीडिया पर नवीन पटनायक के फॉलोअर लगातार बढ़ रहे हैं। राज्य सरकार को उम्मीद है कि यह सरकार व जनता के बीच संबंधों को मजबूत करेगी। ओडिशा सरकार ने कहा कि वह सरकार व लोगों के बीच मजबूत संबध बनाएगी। इस तंत्र में एक वेब पोर्टल व एक मोबाइल एप्प शामिल होगा। लोगों की शिकायतों का सक्षमता के साथ प्रबंधन करने के लिए सरकार का यह आंतरिक तंत्र है। शिकायत निवारण तंत्र की शुरुआत करते हुए मुख्यमंत्री ने कहा कि वह निजी तौर पर सोशल मीडिया पर लोगों की शिकायतों को देख रहे अधिकारियों के प्रदर्शन की निगरानी करेंगे। पटनायक
ने कहा कि अधिकारियों से उम्मीद है कि वे शिकायतों पर आदर्श रूप से 24 घंटे के भीतर प्रतिक्रिया देंगे। शिकायत निवारण में बेहतरीन प्रदर्शन करने वाले अधिकारियों को हरे रंग से चिन्हित किया जाएगा और जिनका प्रदर्शन औसत से नीचे रहेगा उन्हें लाल से चिन्हित किया जाएगा। (एजेंसी)
मेले में बनेंगे 16000 शौचालय
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इलाहाबाद में माघ मेले की तैयारियों में स्वच्छता का रखा जाएगा पूरा खयाल
लाहाबाद मेला क्षेत्र में 16 हजार शौचालय बनाए जाएंगे। इनमें से पांच हजार पब्लिक और 11 हजार शौचालय प्राइवेट होंगे। माघ मेला कार्यों की समीक्षा के दौरान कमिश्नर डॉ. आशीष गोयल ने यह बात कही। उन्होंने कहा कि स्वच्छ भारत मिशन के तहत कहा कि मेले में साफ- सफाई व्यवस्था एवं कूड़े के सही प्रबंधन पर अधिकारियों को विशेष तौर पर अपना ध्यान देना होगा। कमिश्नर ने मेला क्षेत्र में शौचालयों का ले आउट निर्धारित कर क्षेत्र का आवंटन जल्द करने का आदेश प्रभारी मेला अधिकारी राजीव राय को दिए। यूपीएचएसएसपी की सलाहकार सलोनी गोयल ने भी मेले में साफ- सफाई की व्यवस्था एवं सालिड वेस्ट मैनेंजमेंट के तहत क्षेत्र को साफ- सुथरा रखने की बात कही। जिस पर कमिश्नर ने सालिड वेस्ट मैनेजमेंट के तहत 40 ट्राली, 63000 बैग इत्यादि की व्यवस्था से जल्द से जल्द कराने के साथ सफाई कर्मियों की उपस्थिति बायोमेट्रिक मशीनों से लेने के निर्देश
दिए। इसके अलावा बताया कि आरएफ टेग लगाकर कर मेले में कार्य कर रहे सफाई कर्मियों के कार्यों की मानिटिरिंग की जाएगी। मेला क्षेत्र में साफ- सफाई एवं शौचालयों को नियमित रूप से स्वच्छ रखा जाएगा। उन्होंने कहा कि मेला क्षेत्र को साफ- सुथरा रखा जाना हमारी प्राथमिकताओं में है। साफ- सफाई के कार्यों मे लगे अधिकारी एवं कर्मचारी इस बात विशेष ध्यान रखें कि मेला क्षेत्र में साफ- सफाई में किसी प्रकार की लापरवाही किसी भी स्तर पर क्षम्य नहीं होगी। उन्होंने कहा कि दिए गये दायित्वों का निर्वाहन पूरी कर्तव्य निष्ठा एवं ईमानदारी से करें। (एजेंसी)
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पहल
18 - 24 दिसंबर 2017
मेट्रो ब्रिज के नीचे पढ़ते नौनिहाल
दिल्ली में अक्षरधाम मेट्रो स्टेशन के पुल के नीचे चलता है 'फ्री स्कूल अंडर द ब्रिज'। यह स्कूल दिन में दो पालियों में चलता है
पु
रीतू तोमर
ल के ऊपर सरपट दौड़ती मेट्रो और इसके शोर के बीच पढ़ते बच्चे। ये नजारा है अक्षरधाम मेट्रो स्टेशन के पुल के नीचे बने 'फ्री स्कूल अंडर द ब्रिज' का। यह स्कूल पिछले 11 वर्षो से गरीब बच्चों को उनका भविष्य संवारने के लिए निशुल्क शिक्षा मुहैया करा रहा है। किसी ने ठीक कहा है कि शिक्षा स्कूल की चारदिवारी की मोहताज नहीं है। एक अदद कोशिश कई बच्चों का भविष्य संवार सकती है और इसी कोशिश को अमलीजामा पहना रहे हैं राजेश कुमार शर्मा। यह वही शख्स हैं, जिन्होंने शिक्षा को गरीब बच्चों के बीच ला खड़ा किया है। मेट्रो के पिलर के नीचे टाटपट्टियों पर बैठे बच्चे इस खुले माहौल में पढ़ते हुए खुश हैं, क्योंकि यहां आम स्कूलों की तरह बंदिशें नहीं हैं। छठी कक्षा के छात्र राहुल कहता है, ‘यहां पढ़ना अच्छा लगता है। स्कूलों की तरह यहां टोका-टाकी नहीं होती। हम आराम से पढ़ पाते हैं।’ इस स्कूल का सफर किन परिस्थितियों में शुरू हुआ? इस सवाल पर राजेश ने कहा, ‘मैंने बहुत
खास बातें 2006 में शुरू हुआ गरीब बच्चों को मुफ्त शिक्षा देने वाला अनूठा स्कूल अब तक इस स्कूल से 500 से 550 बच्चे पढ़कर निकल चुके हैं स्कूल की दीवारों पर आकर्षक नक्काशी की गई है
वाले हर शख्स को आकर्षित करती है। इसके बारे में बताते हुए राजेश कहते हैं, ‘दिल्ली स्मार्ट आर्ट संस्था ने खुद से पहल कर नक्काशी की है।’ मूल रूप से हाथरस के रहने वाले राजेश का कहना है कि हालांकि हमारा स्कूल पंजीकृत नहीं है, जिस वजह से हमें सरकार या किसी मेट्रो के पिलर के नीचे टाटपट्टियों पर बैठे बच्चे इस भी संस्था से अनुदान नहीं खुले माहौल में पढ़ते हुए खुश हैं, क्योंकि यहां मिलता है और इसका मुझे आम स्कूलों की तरह बंदिशें नहीं हैं अफसोस भी नहीं है। वे आगे कहते हैं, ‘हालांकि, कुछ लोग जरूर आर्थिक मदद करते रहते हैं और उन्हीं की सहायता से स्कूल मिल पाता है।’ पिछले 11 सालों से चल रहे स्कूल को लेकर चल रहा है। बच्चों को समय-समय पर स्टेशनरी का सामान, कपड़े, सर्दियों के मौसम में स्वेटर और राजेश बहुत अनुशासित हैं। यहां दो पालियों में मोजे दिए जाते हैं। मिड-डे मील के नाम पर बच्चों कक्षाएं लगती हैं। पहली पाली में सुबह नौ बजे को रोजाना बिस्किट दिए जा रहे हैं। चूंकि स्कूल से 11 बजे तक लड़के पढ़ने आते हैं, जबकि दो पंजीकृत नहीं है, इसीलिए सरकारी अनुदान नहीं बजे से चार बजे तक चलने वाली दूसरी पाली में लड़कियां पढ़ने आती हैं। इसके पीछे के गणित के बारे में पूछने पर वह बताते हैं, ‘हमारे यहां पढ़ने वाले काफी बच्चे स्कूल भी जाते हैं। सरकारी स्कूल में दूसरी पाली में लड़कों का स्कूल लगता है, इसीलिए सुबह यहां पहली पाली में लड़कों को बुलाया जाता लक्ष्मीचंद घर पर कुछ बच्चों को ट्यूशन देते हैं और उसके बाद पूरा है, जबकि सरकारी स्कूलों में पहली पाली में पढ़ने दिन इस स्कूल में बच्चों को पढ़ाते हैं वाली लड़कियां यहां स्कूल से सीधे दूसरी पाली में जेश कुमार की लगन देखकर कई शिक्षक यह पूछने पर कि क्या उन्हें नहीं लगता आकर पढ़ती हैं।’ स्वेच्छा से उनसे जुड़कर यहां बच्चों को कि बच्चों को शिक्षा देने के बदले थोड़ा बहुत स्कूल के भविष्य के बारे में पूछने पर राजेश पढ़ाने आते हैं। मौजूदा समय में ऐसे तीन शिक्षक पारिश्रमिक भी मिलना चाहिए? इसके जवाब में कहते हैं, ‘न यह स्कूल मैंने कुछ सोचकर शुरू किया इस अनौपचारिक रूप स्कूल से जुड़े हैं और इनमें लक्ष्मीचंद कहते हैं, ‘मुझे ही नहीं, बल्कि मेरे था और न ही इसके भविष्य को लेकर असमंजस से एक हैं, लक्ष्मीचंद जो पिछले आठ वर्षों से परिवार को भी लगता है कि थोड़ा बहुत तो मिलना में हूं। यह जिंदगी एक युद्धक्षेत्र है, यहां हर शख्स निशुल्क सेवाएं दे रहे हैं। लक्ष्मीचंद घर पर कुछ ही चाहिए। इस बात पर मेरी बीवी से खटपट भी अपना किरदार निभा रहा है। इस किरदार को निभाने बच्चों को ट्यूशन देते हैं और उसके बाद पूरा दिन होती है, लेकिन क्या करें जब संसाधन नहीं होंगे की जब तक क्षमता रहेगी, तब तक निभाता रहूंगा, इस स्कूल में बच्चों को पढ़ाते हैं। तो क्या करें।’ जिस दिन 'मन' जवाब दे देगा, सब छोड़कर चला जाऊंगा।’
दिमाग लगाकर यह स्कूल नहीं खोला। मैं मानता हूं कि इस काम के लिए ईश्वर ने मुझे चुना। इन गरीब बच्चों को कुछ ऐसी चीज देना चाहता था, जो इन्हें ताउम्र याद रहे। पहले सोचा कि टॉफी या चॉकलेट दूं, लेकिन बाद में सोचा कि इन गरीब बच्चों को पढ़ाऊं, ताकि ये जिंदगीभर इसे याद रख सकें।’ पेशे से दुकानदार 45 वर्षीय राजेश बताते हैं, ‘मैंने इस स्कूल की शुरुआत वर्ष 2006 में की। उस समय सिर्फ दो छात्र ही पढ़ने आते थे, लेकिन अब यह संख्या बढ़कर 250 के पार हो गई है।’ राजेश कहते हैं कि जब उन्होंने इस स्कूल की शुरुआत की थी, तो मेट्रो प्रशासन को कुछ आपत्तियां थीं, लेकिन बाद में उनकी लगन देखकर मेट्रो प्रशासन ने खुद ही ब्लैकबोर्ड बनाने की मंजूरी दे दी। वर्ष 2006 में शुरू हुए स्कूल से अब तक 500 से 550 बच्चे पढ़कर निकल चुके हैं। वे कहते हैं, ‘मेरे पहले दो छात्र अब 12वीं कक्षा पार कर चुके हैं और सुना है कि अच्छे कॉलेज में उनका एडमिशन हो गया है।’ इस खुले स्कूल की दीवारों पर आकर्षक नक्काशी की गई है, जो बच्चों के साथ यहां आने-
लक्ष्मीचंद का निस्वार्थ साथ
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मिशन ओडीएफ 15 दिन में 15 हजार शौचालय
मंगल सूत्र बेचकर बनाया शौचालय बिहार की अतरवासी देवी ने घर की इज्जत बचाने के लिए मंगल सूत्र बेच कराया टॉयलेट का निर्माण
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धानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने कहा था पहले शौचालय फिर देवालय। शौचलाय, जीवन में कितना अहम है, इसकी मिसाल बिहार के कैमूर में देखने को मिली। कैमूर जिले की एक महिला ने अपना मंगलसूत्र बेचकर घर में शौचालय का निर्माण कराया है। महिला का नाम अतरवासी देवी है। उन्होंने मंगल सूत्र को बेचकर घर में शौचालय बना डाला। गांव से लेकर जिले तक अतरवासी देवी की चर्चा है।
मामला भभुआ प्रखंड के शिवपुर गांव का है। अतरवासी देवी खेतो में काम कर अपने परिवार का पेट भरती हैं। उन्होंने कहा कि घर में शौचालय नहीं था। घर की महिलाएं खुले में शौच करने जाती थी, बहुत खराब लगता था। उसने अपने पति से सलाह ली कि मजदूरी से घर में शौचालय तो बनेगा नहीं, क्यों न मंगल सूत्र बेचकर घर में शौचालय बना दिया जाए। इस पर पति की पहले सहमति नहीं बनी। पति हरेंद्र यादव ने कहा सुहागिन महिला के लिए मंगलसूत्र जरूरी है। पति की मौत के बाद ही महिला गले का मंगल सूत्र
छोड़ती हैं। अतरवासी ने समझाया कि इज्जत से बढ़ कर निशानी नहीं होती, फिर वह मान गए। इसके बाद अतरवासी देवी ने मंगल सूत्र बेच दिया और घर में शौचालय बना दिया। पंचायत की मुखिया ने इसे दूसरों के लिए मिसाल बताया। जिलाधिकारी राजेश्वर प्रसाद सिंह ने कहा कि ऐसी महिला को हम मंच पर सम्मानित करेंगे। क्योंकि वे दूसरे लोगों के लिए आदर्श हैं। (एजेंसी)
कालका में दो मोबाइल शौचालय शौचालय की मांग पर कालका प्रशासन ने दस सीट वाले दो मोबाइल टॉयलेट लगवाए
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रियाणा में कालका शहर के लोगों की शौचालय की मांग को देखते हुए प्रशासन ने कालका शहर में दो जगह मोबाइल टॉयलेट रखवा दिए हैं, जिससे लोगों को सुविधा होगी। एसडीएम कालका डॉ. ऋचा राठी ने बताया कि लोगों की मांग को देखते हुए कालका के भैरो की सेर मंडी में 10-10 सीटर वाले दो मोबाइल टॉयलेट रखवा दिए गए हैं। उन्होंने बताया कि उक्त शौचालयों का इस्तेमाल कोई भी निशुल्क कर सकता है। इन शौचालयों में पानी की टंकी भी है, जिसका कनेक्शन जन-स्वास्थ्य
विभाग की पाइप लाइन से लिया गया है। उन्होंने बताया कि उन्होंने कालका के लिए 10 सीटर के 5 ,एक एक सीटर के 10 मोबाइल शौचालयों की मांग की थी। 1 सीट वाले दो मोबाइल शौचालय एसडीएम दफ्तर में भी लगवाए जाएंगे। एसडीएम ने लोगों से सुझाव मांगते हुए कहा है कि वह बताएं कि शहर में कहा कहां मोबाइल शौचालय रखाए जा सकते हैं। उन्होंने कहा कि लोग अपना सुझाव एसडीएम कार्यालय नगर निगम कार्यालय में लिखित मौखिक रूप से दे सकते हैं। वहीं, इस प्रोजेक्ट को हैंडल कर रहे नगर निगम के जेई मनीष ने बताया कि कालका में और भी मोबाइल शौचालय लगाए जाने पर विचार किया जा रहा है। उक्त शौचालय स्वच्छ भारत मिशन के तहत लगवाए जा रहे हैं। उन्होंने बताया कि शौचालयों में पानी, साबुन समेत हर तरह की सुविधा है। शौचालय से निकलने वाले वेस्ट का कनेक्शन सीवरेज से किया गया है। (एजेंसी)
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स्वच्छता
झारखंड के खूंटी जिले में 15 दिनों में 15 हजार शौचालय बनाने की मुहिम में अब तक करीब पांच हजार शौचालय बन चुके
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दिन में 15 हजार शौचालय कोई साधारण बात नहीं है, किसी जिले के लिए। आज तक देश के किसी भी जिले में शौचालय निर्माण के लिए इतना बड़ा लक्ष्य नहीं बनाया गया। लेकिन खूंटी जिले के डीसी डॉ. मनीष रंजन कुछ अलग सोच के साथ काम कर रहे हैं। वे कहते हैं चुनौतियां ही हम पर बेहतर बनने का दबाव डालती है। ढलानों पर दौड़ का अभ्यास करने वाले ओलंपिक नहीं जीता करते। डीसी की ऐसी ही पंक्तियां उनकी टीम में जोश भरने का काम कर रहीं हैं। अब उनके टीम मेंबरर्स जिला, प्रखंड और पंचायत स्तर के सभी पदाधिकारियों और कर्मियों में एक जोश भर रहा है। अब इस मिशन को अधिकारी-कर्मी अपना व्यक्तिगत मिशन मान कर कामों में जुटे हुए हैं। डीडीसी मृत्युंजय कुमार बर्नवाल, एसी रंजीत लाल, एसडीएम प्रणव कुमार पॉल, पीएचईडी के ईई आनंद कुमार सिंह भी डीसी के कदम से कदम मिलाकर चल रहे हैं। यही कारण कि सभी पदाधिकारी और कर्मी भोर होते ही गांवों की ओर कूच कर रहे हैं। इस मिशन से ना सिर्फ शौचालय निर्माण का मिशन पूरा होता नजर आ रहा है, बल्कि अधिकारियों
और कर्मियों के कार्यशैली में एक बदलाव आ रही है, जो उनकी आदत बनती जा रही है। इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता कि आने दिनों में अन्य योजनाओं के क्रियान्वयन में वे इसी कार्यशैली का इस्तेमाल कर जिले को विकास के पथ पर तेजी से लेकर बढ़ेंगे। खूंटी में शौचालय निर्माण की गति इतनी तेज कर दी गई है कि राज्य के हर जिलों को खूंटी काफी पीछे छोड़ता जा रहा है। रविवार तक 7031 शौचालयों का निर्माण कर 6159 शौचालय बनाकर दूसरे स्थान पर रहने वाले हजारीबाग जिले को खूंटी ने काफी पीछे धकेल दिया है। वहीं पश्चिमी सिंहभूम 5838 शौचालय बनाकर तीसरे स्थान पर रहा। मिशन 15 दिन 15 हजार शौचालय का पीछा करते हुए खूंटी जिले में ग्यारह दिनों में 4800 शौचालयों का निर्माण कर लिया गया है। अब चार दिनों में 10200 शौचलयों का निर्माण करना है। यह लक्ष्य पूरा हो ना हो, लेकिन जिला प्रशासन ट्रैक पर दौड़ रहा है, इस साल के अंत तक खूंटी खूले में शौच के कलंक से जरूर मुक्त हो जाएगा। मुरहू प्रखंड के सुरूंदा, मारंगटोली, बगमा, हेठगोवा, सेल्दा, मलियदा, बारीटोला, लोआडीह, हांसा, गजगांव आदि गांवों में यह देखने को मिला कि जिन लोगों के शौचालय बन चुके हैं, वे उसका इस्तेमाल कर रहे हैं। जिनका अभी बनकर तैयार नहीं हुआ है, वे युद्धस्तर पर अपना शौचालय निर्माण कार्य पूरा करने में जुटे हैं। सुबह साढ़े छह बजे ही गांव के युवा ठेला रिक्सा पर ईंट लादकर चढ़ाई पर चढ़ते पसीने-पसीने नजर आए। (एजेंसी)
बस में महिला शौचालय
ठाणे महानगर पालिका खराब बसों का इस्तेमाल महिलाओं के लिए शौचालय बनाने में करेगी
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नपा परिवहन सेवा भंगार में पड़ी बसों की मरम्मत कर उनका महिला शौचालय के रूप में उपयोग करेगी। इसके अलावा, ठाणे शहर में
दुपहिया ऐम्बुलेंस की भी शुरुआत की जाएगी। इस बात की जानकारी मनपा आयुक्त संजीव जयसवाल ने दी। दरअसल ठाणे मनपा के 2 दिवसीय 'मनपा अधिकारी परिषद' में शौचालय और ऐंबुलेंस बनाने का निर्णय मनपा आयुक्त संजीव जयसवाल ने लिए। इसके तहत एनडीआरएफ की तर्ज पर ठाणे शहर में ठाणे डिजास्टर रेस्पॉन्स फोर्स का गठन करने का निर्णय लिया गया था। मनपा आयुक्त संजीव जयसवाल ने बताया कि महिलाओं के शौचालय बनने से महिलाओं को किसी तरह की परेशानी की समस्या नहीं होगी। आमतौर पर घर से बाहर निकलने वाली महिलाओं को टॉयलेट की काफी समस्या झेलनी पड़ती है (एजेंसी)
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सांइस एंड टेक्नोलॉजी
18 - 24 दिसंबर 2017
मलेरिया परजीवी के जीन में बदलाव से दवाएं बेअसर
रामसेतु सिर्फ कोरी कल्पना नहीं
एक साइंस चैनल ने दावा किया है कि रामसेतु के वैज्ञानिक प्रमाण हैं
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मसेतु के अस्तित्व को लेकर अक्सर बहस होती रहती है। हिंदूवादी संगठन जहां दावा करते हैं कि यह वही रामसेतु है, जिसका जिक्र रामायण और रामचरितमानस में है, वहीं एक पक्ष ऐसा भी है जो इसे केवल एक मिथ या कल्पना करार देता है। अब एक साइंस चैनल ने तथ्यों के साथ दावा किया है कि रामसेतु पूरी तरह कोरी कल्पना नहीं हो सकता है, क्योंकि इस बात के प्रमाण हैं कि भारत और श्री लंका के बीच स्थित इस बलुई रेखा पर मौजूद पत्थर करीब 7000 साल पुराने हैं।
भूविज्ञानी ऐलन लेस्टर के मुताबिक, 'हिंदू धर्म में भगवान राम द्वारा ऐसे ही एक सेतु के निर्माण का जिक्र है। इस पर शोध करने पर पता चला कि बलुई धरातल पर मौजूद ये पत्थर कहीं और से लाए गए हैं।' हालांकि ये पत्थर कहां से और कैसे आए, यह आज भी एक रहस्य है। पुरातत्वविद चेल्सी रोज कहती हैं, 'जब हमने इन पत्थरों की उम्र पता की, तो पता चला कि ये पत्थर उस बलुई धरातल से कहीं ज्यादा पुराने हैं, जिस पर ये मौजूद हैं।' ये पत्थर करीब 7000 साल पुराने हैं, वहीं जिस बलुई धरातल पर ये मौजूद हैं वह महज 4000 साल पुराना है। चैनल का दावा है कि इस स्टडी से स्पष्ट होता है यह ढांचा प्राकृतिक तो नहीं है, बल्कि इंसानों द्वारा बनाया गया है। चैनल के मुताबिक, कई इतिहासकार मानते हैं कि इसे करीब 5000 साल पहले बनाया गया होगा और अगर ऐसा है, तो उस समय ऐसा कर पाना सामान्य मनुष्य के लिहाज से बहुत बड़ी बात है। (एजेंसी)
'मंगल' से जुड़े राज से हटा पर्दा एक अध्ययन से पता चला है कि मंगल ग्रह का वायुमंडल सौर हवाओं के प्रभावों से पूरी तरह सुरक्षित है
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गल ग्रह का वायुमंडल सौर हवाओं के प्रभावों से पूरी तरह सुरक्षित है। धरती की तरह दो चुंबकीय ध्रुवों की गैरमौजूदगी के वाबजूद इसपर सौर हवाओं का कोई प्रभाव नहीं पड़ता है। एक नए अध्ययन में यह बात सामने आई है। वर्तमान में मंगल ग्रह एक ठंडा और शुष्क ग्रह है, जिसकी सतह पर धरती के वायुमंडलीय दवाब से एक प्रतिशत कम दवाब है। हालांकि ग्रह की कई भूगर्भीय विशेषताएं यह दिखाती हैं कि यहां करीब तीन से चार अरब साल पहले एक हाइड्रोलॉजिकल चक्र सक्रिय था। उस वक्त एक सक्रिय हाइड्रोलॉजिकल चक्र को ज्यादा गर्म जलवायु और एक घने वायुमंडल की जरूरत रही
होगी जो एक बेहद गहरा ग्रीनहाउस प्रभाव पैदा कर सकने में सक्षम हो। एक आम कल्पना में माना जाता है कि सौर हवाओं ने मंगल के वायुमंडल को धीरे-धीरे खत्म कर दिया और ग्रीनहाउस प्रभाव को बढ़ा दिया होगा जिससे अंतत: हाइड्रोलॉजिकल चक्र नष्ट हो गया हो। स्वीडन की उमिया यूनिवर्सिटी के रॉबिन रैमस्टेड ने बताया कि मंगल पर धरती की तरह चुंबकीय ध्रुव नहीं होते, लेकिन सौर हवाएं ऊपरी वायुमंडल में तरंगे बनाती हैं, जिससे कि यहां एक तरह का चुंबकीय क्षेत्र (इंड्यूस्ड मैग्नेटोस्फेयर) बन जाता है। उन्होंने बताया कि लंबे अर्से तक यह माना जाता रहा है कि स्वत: पैदा नहीं होने वाला यह चुंबकीय क्षेत्र मंगल के वायुमंडल को सुरक्षित रखने में पर्याप्त नहीं है। रैमस्टेड ने कहा कि हालांकि हमारे प्रमाण कुछ और दर्शाते हैं। पूर्व की अवधाराणाओं के उलट यह दर्शाते हैं कि यह चुंबकीय क्षेत्र भी मंगल के वायुमंडल को सौर हवाओं के प्रभाव से सुरक्षित रखता है। (एजेंसी)
भारतीय शोधकर्ताओं ने पाया है कि मलेरिया के परजीवी के जीन में होने वाले बदलाव के कराण दवाओं की प्रतिरोधक क्षमता कम हो रही है
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उमाशंकर मिश्र
लेरिया फैलाने वाले परजीवी में दवाओं के प्रति बढ़ती प्रतिरोधक क्षमता इस खतरनाक बीमारी के उन्मूलन में सबसे बड़ी बाधा है। भारतीय शोधकर्ताओं ने छत्तीसगढ़ के जनजातीय क्षेत्र बैकुंठपुर में मलेरिया परजीवी के जींस में होने वाले रूपांतरणों का पता लगाया है, जो दवाओं के प्रति प्रतिरोधक क्षमता विकसित होने के लिए जिम्मेदार माने जाते हैं। शोधकर्ताओं द्वारा किए गए अध्ययन में मलेरिया के उपचार में उपयोग होने वाली दवाओं में शामिल क्लोरोक्वीन के प्रति उच्च प्रतिरोधी जीनोटाइप और सल्फाडॉक्सीन-पाइरीमेथमीन के प्रति मध्यम एवं उभरते प्रतिरोधी जीनोटाइप पाए गए हैं। एक अच्छी खबर यह है कि आर्टीमिसिनिन आधारित थैरेपी के प्रति मलेरिया के परजीवी जींस में रूपांतरण नहीं पाया गया है। जनजातीय बहुल छत्तीसगढ़ के बैकुंठपुर जिले के जनकपुर सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र में यह अध्ययन किया गया है। मलेरिया परजीवी प्लैजीमोडियम फैल्सीपैरम के छह जींस (पीएफसीआरटी, एमडीआर1, डीएचएफआर, डीएचपीएस, एटीपीएएसई6 और के-13 प्रोपेलर) में होने वाले रूपांतरण का अध्ययन करने के बाद शोधकर्ता इस नतीजे पर पहुंचे हैं। जबलपुर स्थित राष्ट्रीय जनजाति स्वास्थ्य अनुसंधान संस्थान के शोधकर्ताओं के नेतृत्व में यह अध्ययन किया गया है। अध्ययन के दौरान 6,718 लोगों की स्क्रीनिंग गई थी, जिसमें से 352 मरीज मलेरिया से ग्रस्त मरीज पाए गए। इनमें 271 मरीज मलेरिया के परजीवी प्लैजीमोडियम फैल्सीपैरम और 79 मरीज प्लैजीमोडियम विवैक्स से संक्रमित थे। जबकि दो मरीज इन दोनों परजीवियों से संक्रमित पाए गए। प्लैजीमोडियम फैल्सीपैरम से संक्रमित मरीजों में से पॉलिमेरेज चेन रिएक्शन के लिए पॉजिटिव पाए गए 180 मरीजों को अध्ययन में शामिल किया गया है। अध्ययनकर्ताओं की टीम में शामिल प्रियंका पटेल ने बताया कि जिन छह जींस का हमने अध्ययन किया है, वे मलेरिया के उपचार मे उपयोग होने वाली दवाओं के प्रति प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ावा
देने के लिए जिम्मेदार माने जाते हैं। हम देखना चाहते थे कि जनजातीय क्षेत्र जैसे दूरदराज के पिछड़े इलाके, जहां मलेरिया के कारण मौतों के मामले अधिक पाए जाते हैं, वहां इसके परजीवी में किस हद तक रूपांतरण हुआ है और उपचार के लिए उपयोग होने वाली दवाएं उन पर कितना असर करती हैं। वरिष्ठ शोधकर्ता डॉ. प्रवीण के. भारती के अनुसार, मलेरिया परजीवी में प्रतिरोधक क्षमता विकसित हो जाने के कारण इसके उपचार में उपयोग होने वाली दवाएं बेअसर होने लगती हैं। अध्ययन में मलेरिया परजीवी के जींस में हुए रूपांतरण के स्तर का पता लगाया गया है। हमें ऐसे तथ्य मिले हैं, जो इस बीमारी के उपचार के लिए प्रभावी रणनीति तैयार करने में मददगार साबित हो सकते हैं। मलेरिया प्रोटोजोआ समूह के परजीवी प्लैजिमोडियम फैल्सीपैरम द्वारा फैलता है। प्लैजिमोडियम फैल्सीपैरम को मलेरिया के अधिकतर मामलों के लिए जिम्मेदार माना जाता है। केवल चार प्रकार के प्लैजिमोडियम परजीवी मनुष्य को प्रभावित करते है, जिनमें प्लैजिमोडियम फैल्सीपैरम तथा प्लैजिमोडियम विवैक्स सर्वाधिक खतरनाक माने जाते हैं। इसके अलावा प्लैजिमोडियम ओवेल तथा प्लैजिमोडियम मलेरिये भी इन्सान को प्रभावित करते हैं। मलेरिया के परजीवी का वाहक मादा एनफ्लीज मच्छर है। इसके काटने पर मलेरिया के परजीवी लाल रक्त कोशिकाओं में प्रवेश कर जाते हैं और उनकी संख्या बढ़ने लगती है, जिससे रक्तहीनता (एनीमिया) के लक्षण उभरने लगते हैं। गंभीर मामलों में रोगी की मौत तक हो जाती है। राष्ट्रीय जनजाति स्वास्थ्य अनुसंधान संस्थानके अलावा अध्ययन में कतर स्थित वील कॉर्नेल मेडिसिन कॉलेज, कॉर्नेल यूनिवर्सिटी, कतर फाउंडेशन, छत्तीसगढ़ के जनकपुर स्थितसामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र, डिब्रूगढ़ स्थित पूर्वोत्तर के रीजनल मेडिकल रिसर्च सेंटर, इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च, चंडीगढ़ स्थित पोस्ट ग्रेजुएट इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल एजुकेशन ऐंड रिसर्च और महाराष्ट्र के सिंबॉयसिस स्कूल ऑफ बायोमेडिकल सांइसेज के शोधकर्ता शामिल थे। अध्ययनकर्ताओं की टीम में प्रियंका पटेल और प्रवीन के. भारती के अतिरिक्तदेवेंद्र बंसल, नाजिया अली, राजीव रमन, प्रद्युम्न महापात्रा, राकेश सहगल, जगदीश महंत, अली एस. सुल्तान और नीरू सिंह शामिल थे। अध्ययन के नतीजे शोध पत्रिका साइंटिफिक रिपोर्ट्स के ताजा अंक में प्रकाशित किए गए हैं।
18 - 24 दिसंबर 2017
गेंदा फूल से महका मानपुर का जीवन
कभी हथकरघे के लिए, तो कभी शिक्षा के लिए आर्थिक रूप से पिछड़े मानपुर के जीवन को गेंदा फूल ने बदल कर रख दिया संजीव /पटना
हिंसामहात्माको बुछोड़द्ध कीअहिंधरतीसापरकाइनपाठदिनों शांपढ़ानेति वऔराले
सुकून का परचम फिर से लहराने लगा है। और ऐसा हुआ है फूलों खेती से। मानपुर का पटवा टोली आज अपनी राष्ट्रीय पहचान कायम कर चुका है। गया शहर के कुछ ही दूरी पर एक कस्बा है मानपुर, जो पहले काफी पिछड़ा और गरीब हुआ करता था। वही मानपुर इन दिनों फूलों के बाजार का सरताज बन गया है।
मानपुर की मांग और पूछ काफी बढ़ गई है। यहां के किसान गेंदा फूल की खेती कर कोलकाता की फूल मंडी को भी चुनौती दे रहे हैं। किसानों को फूलों की खेती से कम समय व पूंजी में अच्छी आमद हो जा रही है। बिना सरकारी सहायता के किसान अपनी मेहनत से खेतों में फूल उगा रहे हैं। पारंपरिक खेती के साथ वैकल्पिक खेती से कम समय में नकद आमदनी हो जा रही है। ऐसी ही एक महिला किसान रानी सिन्हा हैं, जो जमीन के एक छोटे से टुकड़े से हजारों की कमाई कर रही हैं, रानी की मानें तो प्रति कट्ठा वो आठ
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पर्यावरण
हजार रुपए प्रति महीने के हिसाब से कमा रही हैं। हर कट्ठे जमीन से महीने में तीन से चार बार फूल तोड़े जाते हैं। इन्ही वजहों से इन दिनों मानपुर का भुसुंडा गांव सुर्खियों में है। कल तक जो रानी फकीरी की जिंदगी जीती थी और आज उसके फूल उत्पादन का रकबा काफी बढ़ गया है। पहले वो पारंपरिक तरीके से खेती करती थीं, साथ ही उसे बाहर से आए फूलों के बाजार से स्पर्धा भी करनी पड़ती थी, पर अब नजारा बदला है। कई तरह की मदद के बाद तकनीक में सुधर हुआ, कुछ बाहर के उत्पादकों से इसके नए तरीके सीखे, जिसके सहारे रानी सच में फूलों की रानी बन गईं। अब रानी सिर्फ अपने लिए ही नहीं, बल्कि आसपास के दूसरे किसानों को भी फूल के पैदावार के नुस्खे बताती हैं। बाहर के बाजार से कैसे मुकाबला हो, किस तरह की वेराइटी का पैदावार होना चाहिए, खरीदारों की मांग क्या है, कौन सा मौसम किस फसल के लिए बढ़िया होगा इन सारी बातों पर अब रानी रिसर्च भी करती हैं। रानी ने बहुत ही सही समय में इस व्यवसाय को चुना है, जगह भी काफी माकूल है, गया में विश्व प्रसिद्ध विष्णु मंदिर सहित कई तीर्थ स्थल है, नजदीक ही बोध गया का मंदिर है। ऐसे में यहां स्थानीय स्तर पर फूलों की खपत अच्छी है, इसके अलावा नजदीक ही हावड़ा बाजार और उसके साथ रेल की अच्छी कनेक्टिविटी की वजह से फूल अच्छी कीमतों पर बिक जाते हैं। अब आलम ये है की यहां के किसान हाईब्रिड गेंदा का भरपूर उत्पादन करने लगे हैं। रानी की ही तरह बबलू भी उन्नत किसान की कैटोगरी में उभरे हैं। खुद बबलू स्वीकार करते हैं कि रानी की बदौलत ही आज उसका क्षेत्र फूलों का गांव बन गया है। गया में उत्पादित फूलों का बाजार अब काफी बड़ा हो गया है। मेन रेल लाइन की वजह से जहां एक तरफ फूलों को बनारस समेत विंध्याचल आदि जगहों पर भेजे जाते हैं, वही बिहार के भी पटना सहित दूसरे शहरों से अच्छा संपर्क होने की वजह से फूलों की कीमत खूब मिल जाया करती है। गया में अब लखनपुरा, भदेजा, बोधगया, खिरियावां जैसी जगहों पर अब खूब खेती की जा रही है।
हरिद्वार - ऋषिकेश में प्लास्टिक पर प्रतिबंध
रा
ष्ट्रीय हरित अधिकरण (एनजीटी) ने उत्तराखंड के धार्मिक शहरों हरिद्वार व ऋषिकेश में प्लास्टिक पदार्थो के प्रयोग, बिक्री, उत्पादन और संग्रहण पर रोक संबंधी 2015 के अपने आदेश को फिर दोहराया है। एनजीटी ने इन नियमों की अनदेखी करने वालों पर 5,000 रुपए का जुर्माना लगाने का आदेश दिया है। प्रतिबंध में पॉली बैग, खाद्य व अन्य सामग्रियों की पैकिंग के लिए इस्तेमाल किए जाने वाले सामान समेत हर प्रकार के प्लास्टिक के सामान पर प्रतिबंध लगाया गया है। एनजीटी के अध्यक्ष न्यायमूर्ति स्वतंत्र कुमार की अध्यक्षता वाली पीठ ने जुलाई व दिसंबर 2015 में, गंगा के तटों की दयनीय हालत पर चिंता जताई थी और अधिकारियों को फटकार लगाई थी। प्राधिकरण ने उस समय नदी को प्रदूषण-मुक्त बनाने के लिए कई आदेश दिए थे। हालांकि, उसके बाद भी प्लास्टिक सामग्रियों का प्रयोग लगातार चलता रहा।प्राधिकरण के पहले दिए आदेश का उद्देश्य गंगा को प्रदूषणमुक्त बनाना भी था, ताकि श्रद्धालु गंगा में डुबकी लगा सकें और नदी से स्वच्छ पानी ले जा सकें। (आईएएनएस)
एंटेनटिव एआई ने जीता जियो-इनोवेशन पुरस्कार
'जियो-इनोवेशन' प्रतियोगिता उन स्टार्टअप्स के लिए है, जो जीआईएस प्रौद्योगिकी आधारित उद्यम में हैं
की प्रमुख जियोग्राफिक इंफोर्मेशन सिस्टम देश(जीआईएस) सॉफ्टवेयर और समाधान प्रदाता
एसरी इंडिया ने विज्ञान मंत्रालय के विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग (डीएसटी) के साथ साझेदारी में
'जियो-इनोवेशन' प्रतियोगिता का आयोजन किया था, जिसमें एंटेनटिव एआई को विजेता घोषित किया गया है। 'जियो-इनोवेशन' प्रतियोगिता उन स्टार्टअप्स के लिए है, जो जीआईएस प्रौद्योगिकी
आधारित उद्यम में हैं। इसमें क्रमश: दूसरे और तीसरे स्थान पर ग्रे-रूट्स टेक्नॉलजी और सारथा लैब रही है। इस प्रतियोगिता के अंतिम दौर में कुल 13 कंपनियां पहुंची थी। इसके साथ ही 'एमएप योर वे' प्रतियोगिता का भी आयोजन किया गया, जो जियोस्पेटियल या एसरी के एआरसीजीआईएस प्रौद्योगिकी से जुड़े संस्थानों के छात्रों के लिए था। इसके तहत उन्हें मोबाइल या वेब के लिए एप्लिकेशन विकसित करने की चुनौती दी गई। एसरी इंडिया के अध्यक्ष
अगेंद्र कुमार ने कहा, ‘हम भारत में जीआईएस को बढ़ावा देने का लगातार प्रयास कर रहे हैं। इसके तहत हम यूजर्स को सेवाएं और मंच प्रदान करते हैं, जिससे उन्हें इस प्रौद्योगिकी के लाभ की जानकारी प्राप्त करने में मदद मिलती है। 'एमएप योर वे' और 'जियोइनोवेशन' प्रतियोगिता अभिनव जीआईएस आधारित समाधान विकसित करने के लिए एक विशिष्ट मंच मुहैया कराता है, जिसका लक्ष्य वास्तविक जीवन की चुनौतियों का समाधान करना है।’ (एजेंसी)
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दिलचस्प
18 - 24 दिसंबर 2017
यहां होती है जहरीले सांपों की खेती चीन का एक गांव पूरी दुनिया में स्नेक फार्मिंग के लिए जाना जाता है गांव का हर आदमी साल में औसतन 30 हजार सांप तैयार करता है
ची
न में एक अजीब किस्म की खेती चल रही है जिसके बारे में आपको शायद मालूम भी नहीं होगा। आप समझ रहे होंगे कि हम अनाज फसल बुआई की बात कर रहे हैं, लेकिन ऐसा नहीं है। यहां तो सांपों की खेती की जा रही है। दिलचस्प यह है कि ये कोई मामूली सांप नहीं, बल्कि बड़े विषैले सांप हैं, जिनके काटने पर आदमी पानी तक न मांगे। दरअसल, चीन के खेतों में बड़ी तादात में सांपों का पाला जाता है। यहां लोग जहरीले सांपों की खेती करते हैं और वो भी लाखों की संख्या में। चीन का एक गांव जिसका नाम जिसिकियाओ है वहां हर साल 30 लाख जहरीले सांप पैदा किए जा रहे हैं। चीन के जिसिकियाओ गांव में बाकायदा
स्नैक फार्मिंग की जाती है। इस गांव की कुल आबादी एक हजार के आसपास है। गांव का औसतन हर शख्स पूरे साल में लगभग 30 हजार सांप पैदा करता है। यहां पाले जाने वाले सांपों में विशाल अजगर, खतरनाक कोबरा और जहरीले वाइपर सहित कई जानलेवा सांप शामिल हैं। स्थानीय लोगों को जिस सांप से सबसे ज़्यादा डर लगता है वो है फाइव स्टेप स्नेक, इसका नाम फाइव स्टेप रखे जाने के पीछे बड़ी दिलचस्प कहानी है। आम लोगों का मानना है कि इस सांप के काटने के बाद इंसान महज पांच कदम चल पाता है और उसकी मौत हो जाती है। यहां सांप की खेती उनके मांस और शरीर के अन्य अंगों के लिए की जाती है। सांप का मीट चीन में शौक से खाया जाता है। साथ ही सांपों के शरीर के अंगों का उपयोग दवाओं के निर्माण में भी होता है। जिसिकियाओ गांव
इंसानों से भी तेज है कबूतरों का दिमाग
पूरे विश्व में स्नेक फार्मिंग के कारण जाना जाता है। हालांकि यहां पहले चाय, जूट और कपास की खेती होती थी, लेकिन आज यहां प्रमुख कार्य सांप की खेती है। यहां स्नेक फार्मिंग की शुरुआत गांव के ही एक किसान यांग होंगचैंग ने की थी। यह किसान जब युवा था, तो एकबार गंभीर रूप से बीमार पड़ गया। इलाज के लिए उसे सांप की जरूरत थी, इसके लिए उसने एक जंगली सांप को पकड़ा। बस तभी उन्हें सांप से जुड़े कारोबार का ख्याल आया। फिर इस शख्स ने सांप पालना शुरू किया। जब गांव वालों ने देखा कि इस काम से होंगचैंग की आमदनी बढ़ रही है तो गांव के दूसरे किसानों ने भी यही तरीका अपनाया।
आज गांव में सौ स्नेक फॉर्म्स हैं। मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक यहां लकड़ी और शीशे के छोटे-छोटे बक्सों में सांप पाले जाते हैं। जब सांप के बच्चे अंडों से निकल कर बड़े हो जाते हैं तो उन्हें एक जगह से दूसरी जगह ले जाने के लिए प्लास्टिक के थैलों का प्रयोग किया जाता है। सांप जब बड़े-बड़े हो जाते हैं तो फार्म हाउस से उन्हें बूचड़ खाने ले जाया जाता है, जहां सबसे पहले इनके जहर को निकाला जाता है और फिर इनका सर काट दिया जाता है। इसके बाद सांपों को काटकर उसका मीट निकालकर अलग रख लिया जाता है। चमड़े को अलग सुखाया जाता है। सांप के मीट से दवा बनाई जाती है, जबकि चमड़ों से बैग बनाए जाते हैं। (एजेंसी)
कबूतरों के बारे में जितना हम सोचते-समझते हैं, वे उससे कहीं ज्यादा समझदार होते हैं। एक शोध में यह बात सामने निकलकर आई है कि कबूतरों के पास इंसानों से कहीं अधिक तेज बुद्धि होती है
में कबूतरों को 'संदेशवाहक' ज्ञातकेहोबतौरप्राचीनकाल इस्तेमाल किया जाता था। दरअसल,
इनकी सबसे बड़ी खासियत 'टाइम' और 'स्पेस मैनेजमैंट' की है। शायद इसीलिए ऐसा किया जाता था।बोफिन नामक शोधकर्ता बताते हैं कि कबूतरों की याददास्त गजब की होती है। वे एक बार जिस चीज को देख लेते हैं, उसे भूलते नहीं है। शोधकर्ता बताते हैं कि इसीलिए वे एक इंसानी दिमाग से कहीं ज्यादा चीजों को याद रख पाते हैं। शोध में यह बात भी सामने आई है कि कबूतर अपने दिमाग में एक आम इंसान से कहीं ज्यादा डाटा स्टोर कर सकते हैं। यहां तक कि वे स्टीफन हॉकिंग को भी इस मामले में पीछे छोड़ सकते हैं। इस बात से आप अंदाजा लगा सकते हैं कि कबूतर अपने दिमाग में कितना डाटा स्टोर कर सकते हैं। अमेरिका के लोवा विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों ने अलग-अलग पक्षियों पर एक प्रयोग किया, जिनमें
सबसे सफल प्रयोग कबूतरों पर रहा। एक कबूतर को एक कंप्यूटर स्क्रीन पर पहले दो से आठ सेकंड के लिए 6 सेमी से 24 सेमी तक की क्षैतिज रेखाएं दिखाई गई। इसके बाद कबूतर के सामने अलग-अलग साइन सिंबल रखे गए जिनमें से कबूतर को कंप्यूटर स्क्रीन पर पहले दिखाए गए सिंबल की पहचान करनी थी। इस प्रयोग में निर्णय लेने में सबसे कम समय कबूतर ने लिया। इसका मतलब यह हुआ कि निर्णय लेने में कबूतर ज्यादा समय नहीं लेते। अक्सर तुरंत निर्णय लेने की स्थिति में इंसान फेल हो जाते हैं, लेकिन कबूतर बेहद कम समय में सही निर्णय लेते हैं। इस शोध में भी यह स्पष्ट हो गया है कि कबूतरों का मूल्यांकन करने का तरीका सबसे तेज है। कहते हैं कि पक्षियों में कबूतरों के अलावा यह खूबी मछलियों में भी पाई जाती है। (एजेंसी)
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अपना खाना खुद बनाता है ये चिंपांजी
ह फसाना नहीं, हकीकत है कि कांजी नाम का चिंपांजी हर वो काम कर सकता है जिसके बारे में हम सोच भी नहीं सकते। कांजी अमेरिका के आइओवा में रहता है। जानकारी के मुताबिक उसके पास एक लेक्जीग्राम नाम की एक डिवाइस है, जिसकी मदद से वो जो भी चाहता है लोगों को प्वांइट करके बता देता है। यहीं नहीं कांजी आसानी से आग भी जला देता है। कांजी करीब 37 साल का हो चुका है और वो अंग्रेजी में कहीं गई बात को समझ भी लेता है। इसे करीब 3 हजार शब्दों की जानकारी है। कांजी इतना समझदार है कि जो भी लोग उससे मिलने आते हैं वो उनसे बात भी कर लेता है। वो अपना मूड भी लेक्जीग्राम में बने कई फोटोज देखकर लोगों को बता देता है। अगर उसे कोई फल खाना है तो वो उसे लेक्जीग्राम डिवाइस पर ही टच करके बता देता है। उसे टच स्क्रीन डिवाइस भी पसंद है और उन्हें भी चलाने की कोशिश करता रहता है। (एजेंसी)
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दिलचस्प
बंदर नहीं एक समुद्री जीव हैं हमारे पूर्वज
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जीव-विज्ञानियों का दावा है कि 'समुद्री स्पंज' इंसानों और दूसरे जीवों के सबसे पुराने पूर्वज रहे होंगे
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ज्ञानिकों के इस दावे से मानव विकास से जुड़ी सबसे बड़ी बहस सुलझती नजर आ रही है। जीव-विज्ञानी मानते हैं कि इंसानों के पूर्वज बंदर नहीं, बल्कि कोई और है। दरअसल, दुनिया में इंसानों और अन्य जीवों के प्राचीन इतिहास को लेकर समय-समय पर वैज्ञानिक तथ्य सामने आते रहे हैं। एक नए अध्ययन की मानें तो इंसानों का पूर्वज एक समुद्री जीव था। असल में पहले के जीव-विज्ञानियों इस बात का दावा करते रहे हैं कि 'समुद्री स्पंज' इंसानों और दूसरे जीवों के सबसे पुराने पूर्वज रहे होंगे। यही नहीं इन वैज्ञानिकों ने समय-समय पर तर्क पेश किए कि इसके माध्यम से मानव विकास से जुड़ी जीव-विज्ञान की सबसे बड़ी बहस सुलझत सकती है। समुद्री स्पंज एक अमेरूदंडी, पोरीफेरा संघ का समुद्री जीव है। यह मीठे एवं खारे पानी में पाया जाता है। यह जीव एक कालोनी बनाकर अपने आधार से चिपके रहते
एक डिवाइस की मदद से कांजी नाम का चिंपांजी हर वह काम करता है जिसके बारे में अंदाजा नहीं लगाया जा सकता
हैं। यह एक मात्र ऐसे जीव हैं जो चल फिर नहीं सकता। ये लाल एवं हरे आदि कई रंगो के होते हैं। इनका शरीर पौधों की तरह शाखा-प्रशाखा युक्त होता है। इनके शरीर पर छोटे-छोटे छिद्र होते हैं जिससे होकर जल इनके शरीर में प्रवेश करता है, इसे ऑस्टिया कहते हैं। इनके अग्रभाग पर एक बड़ा छिद्र होता है, जिससे जल बाहर निकलता है, इसे उस्कुलम कहते हैं। इसका शरीर जेलिफिश जैसा होता है। ब्रिटेन की यूनिवर्सिटी ऑफ ब्रिस्टल के रिसर्चरों ने अपने नए शोध में इस भ्रम की स्थिति के कारण की पहचान की गई और खुलासा किया गया कि स्पंज ही सबसे पुराने पूर्वज हैं। इन शोधकर्ताओं ने 2015 और 2017 के बीच जारी किए गए सभी प्रमुख जीनोमिक डेटासेटों का विश्लेषण किया था।
यूनिवर्सिटी ऑफ ब्रिस्टल के डेविड पिसानी ने बताया, 'तथ्य यह है कि स्पंज या कॉम्ब जेली में से कौन पहले आया, इसके बारे में परिकल्पना तंत्रिका तंत्र एवं पाचन तंत्र प्रणाली जैसी प्रमुख जंतु प्रणालियों के विकास से जुड़े पूर्णत: अलग इतिहास की तरफ इंगित करता है। पिसानी ने कहा, पशुओं के विकास क्रम की जड़ में
शाखा के सही क्रम को जानना हमारे अपने विकास और पशुओं की शारीरिक संरचना के अहम पहलुओं के मूल रूप को समझने की बुनियादी जरूरत है। (एजेंसी)
यहां बंदर करते हैं वेटर का काम
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जापान के एक रेस्त्रां में बंदर भैया आपकी टेबल पर ऑर्डर लेने आते हैं। आपका स्वागत करते हैं और आपको टेबल तक पहुंचाते हैं
पान के एक रेस्टो.रेंट ने ये साबित कर दिखाया कि बंदर कितने समझदार होते हैं। यह रेस्त्रां टोकियो में है। यहां का खाना ही नहीं, बल्कि वेटर भी पर्यटकों को आकर्षित करते हैं। कायाबुकिया तावर्न नामक इस रेस्तरां की खासियत यह है कि यहां वेटर का काम इंसान नहीं, बल्कि बंदर करते हैं। यहां काम करने वाले दो बंदरों ने कस्टमर सर्विस का स्वरूप ही बदल दिया है। जापान में जानवरों पर होने वाले अत्याचार के खिलाफ बड़े सख्त नियम हैं। ऐसे में इन बंदरों से काम लेने के लिए रेस्तरां के मालिक काओस ओत्सुका ने सरकार से अनुमति ले रखी है। हालांकि, वे इन बंदरों से दिन में सिर्फ दो घंटे ही काम ले सकते हैं। ये बंदर यूनिफॉर्म पहनकर ऐसे रहते हैं, जैसे यहां के सर्विस स्टाफ रहते हैं। इनके नाम यात चेन और फुकु चेन हैं। ये दोनों बंदर न केवल मेन्यू कार्ड लाकर देते हैं, बल्कि ऑर्डर लेने के बाद खाना भी सर्व करते हैं। ग्राहक के आते ही यात चेन उसे जापानी परंपरा के अनुसार मेज तक लेकर जाता है। फिर फुकु चेन ग्राहक को हाथ पोंछने के लिए गरम तौलिया देता है। ये ग्राहकों का मनोरंजन भी करते हैं। (एजेंसी)
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खेल
18 - 24 दिसंबर 2017
भारतीय टेस्ट क्रिकेट की सबसे रोमांचक जीत
एसएसबी ब्यूरो
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दुनिया की नंबर वन टीम और लक्ष्य 143 रनों का, लेकिन 1981 के मेलबर्न टेस्ट में भारत ने चमत्कार करते हुए ऑस्ट्रेलिया को हराया
केट भले दुनिया के कई और मुल्कों में खेला जाता हो, पर जैसी दीवानगी इस खेल को लेकर भारत में है, वैसी शायद ही कहीं और देखने को मिले। भारत में क्रिकेट खेल से ज्यादा एक जुनून का नाम है। ज्यादातर बड़े क्रिकेटर बहुत ही साधारण पृष्ठभूमि से निकलकर देश के लिए खेले। यही वजह है कि जब-तब इन खिलाड़ियों ने स्टेडियम में ऐसा कुछ कर दिखाया कि उसके बारे में सुनकर-सोचकर आज भी रोमांच होता है। कल्पना कीजिए किसी टीम को भारत के खिलाफ जीतने के लिए मात्र 143 रन बनाने हों और इसके बावजूद भारत की क्रिकेट टीम 59 रनों से वह मैच जीत गई हो और वह भी विदेश में। इस करिश्मे को अंजाम दिया गया था 1981 के मेलबर्न टेस्ट में। इस मैच में ही अंपायर के फैसले से नाराज सुनील गावस्कर ने करीब-करीब वॉक आउट ही कर दिया था। अगर वह ऐसा कर देते तो न सिफ उन पर कम से कम पांच साल तक क्रिकेट खेलने पर प्रतिबंध लगता, बल्कि भारत की पूरी टीम पर भी प्रतिबंध के बादल मंडराने लगते। दिलचस्प है कि इस बड़े विवाद के बावजूद भारत ये मैच जीतने में सफल रहा। सुनील गावस्कर के नेतृत्व में ऑस्ट्रेलिया गई भारतीय क्रिकेट टीम सिडनी में पहला टेस्ट हार गई। एडिलेड का दूसरा टेस्ट भी भारत हारते-हारते बचा। तीसरा टेस्ट विश्व प्रसिद्ध मेलबर्न क्रिकेट ग्राउंड में था। मेलबर्न की पिच उस जमाने में स्पिनर्स को मदद देने के लिए मशहूर हुआ करती थी। लेकिन
भारत के दोनों चोटी के स्पिनर दिलीप दोषी और शिवलाल यादव चोटिल थे। भारत ने इसके बावजूद दोनों को खिलाने का फैसला किया। ऑस्ट्रेलिया ने टॉस जीता और भारत को पहले बल्लेबाजी करने के लिए आमंत्रित किया। उस सुनील गावस्कर और गुंडप्पा विश्वनाथ दोनों ही खराब फॉर्म में चल रहे थे। उस जमाने में गैरी सोबर्स मेलबर्न में ही रहा करते थे। वह भारतीय ड्रेसिंग रूम में आए और उन्होंने विश्वनाथ को सलाह दी कि वह तब तक कोई स्क्वायर कट न खेलें, जब तक उनके चालीस रन न हो जाएं। विश्वनाथ ने उनकी सलाह पर पूरा ध्यान दिया और परिणाम रहा विश्वनाथ की फॉर्म में वापसी। दूसरे छोर से विकेट गिरते रहे, लेकिन विश्वनाथ ने क्लासिक सेंचुरी मार कर ही दम लिया। व ि श्व न ा थ की सेंचुरी के बावजूद भ ा र त की टीम 237 के साधारण स ्को र पर आउट हो गई। ऑस्ट्रेलिया ने इसका तगड़ा जवाब देते हुए 419 रन ठोके। भारत ने दूसरी पारी में इस श्रृंखला में पहली बार एक अच्छी शुरुआत की। चेतन चौहान और सुनील गावस्कर जमकर खेले। आखिरकार गावस्कर उस फॉर्म में वापस आ रहे थे जब 1977 में उन्होंने जेफ टामसन के खिलाफ लगातार तीन टेस्टों में तीन शतक लगाए थे। लेकिन तभी एक अप्रत्याशित घटना घटी। डेनिस लिली की अंदर आती गेंद गावस्कर के पैड पर लगी और ऑस्ट्रेलियाई खिलाड़ियों की
भारत के दोनों चोटी के स्पिनर दिलीप दोषी और शिवलाल यादव चोटिल थे। भारत ने इसके बावजूद दोनों को खिलाने का फैसला किया
खास बातें ऑस्ट्रेलिया को भारत के खिलाफ जीतने के लिए 143 रन बनाने थे इस मैच में गावस्कर को अंपायर ने गलत तरीके से आउट दिया था इस तारीखी मैच को भारत ने 59 रनों से जीता था
जबरदस्त अपील पर अंपायर वाइटहेड ने उन्हें एलबीडब्लू आउट दे दिया। गावस्कर को यह फैसला इतना नागवार गुजरा कि वह पवेलियन लौटते समय दूसरे छोर पर खड़े चेतन चौहान को भी अपने साथ ले जाने लगे। चौहान बाउंड्री लाइन तक उनके साथ गए भी, लेकिन भारतीय टीम के मैनेजर ग्रुप कैप्टेन शाहिद अली खां दुर्रानी ने बिल्कुल बाउंड्री लाइन पर आ कर चेतन चौहान को वापस खेलने भेजा। दुर्रानी बताते हैं, ‘अगर चौहान भी गावस्कर के साथ बाहर आ जाते तो भारत को यह मैच गंवाना पड़ता और इन दोनों खिलाड़ियों पर कम से कम पांच साल का प्रतिबंध लगता। तब न तो गावस्कर का विश्व रिकॉर्ड होता, न उनके ग्यारह हजार रन होते और न ही उनके 34 शतक होते। सारे टेस्ट खिलाड़ियों का करियर खत्म हो जाता, क्योंकि पांच साल का समय इतना लंबा होता है कि कोई भी खिलाड़ी इतने लंबे समय तक अपनी फॉर्म बरकरार नहीं रख सकता। गावस्कर अपनी इस हरकत के लिए माफी मांग चुके हैं, लेकिन साथ में उनका यह भी कहना है कि वे उस समय आउट नहीं थे। गेंद उनके बल्ले का मोटा किनारा लेते हुए पैड पर लगी थी। चेतन चौहान भी आज तक उस घटना को नहीं भुला पाए हैं। भारत ने अपनी दूसरी पारी में 324 रन
बनाए, लेकिन फिर भी यह कोई ऐसा स्कोर नहीं था जिससे जीत की कोई उम्मीद बंधती हो। ऑस्ट्रेलिया को डेढ़ दिनों में जीत के लिए 143 रन बनाने थे। तब तक कपिल देव भी जख्मी हो चुके थे। करसन घावरी और संदीप पाटिल ने भारतीय गेंदबाजी की शुरुआत की। 11 के स्कोर पर घावरी ने डाइसन को पवेलियन की राह दिखाई और फिर उसी स्कोर पर उन्हेंने ग्रेग चैपल को क्लीन बोल्ड कर दिया। करसन घावरी बताते हैं, ‘एक दिन पहले ही गावस्कर और हमने मिल कर ग्रेग चैपल को आउट करने का प्लान बनाया था। प्लान यह था कि जैसे ही वह आएंगे उनका बाउंसर से स्वागत किया जाएगा। मैंने पहली गेंद उन्हें बाउंसर ही करने की कोशिश की। लेकिन मेलबर्न की पिच इतनी खराब थी कि मेरी पूरी कोशिश के बावजूद गेंद उठी ही नहीं। उसने एक क्रैक पर टप्पा खाया और ग्रेग चैपल जब तक अपना बल्ला नीचे लाते, उनका स्टंप दूर जा गिरा।’ दिन समाप्त होते-होते दिलीप दोषी ने ग्रेम वुड्स को भी पवेलियन की राह दिखा दी। चौथे दिन का खेल समाप्त होने तक स्कोर था तीन विकेट पर 24 रन। उस रात भारतीय खिलाड़ी सो नहीं सके। घायल कपिल देव दो घंटे बाद का अलार्म लगा कर सोने चले गए। दो घंटे बाद जब अलार्म बजा तो उन्होंने पेन किलिंग इंजेक्शन लिया। उसके बाद उन्होंने हर दो घंटे का अलार्म लगाया और हर बार इंजेक्शन लिया। यह प्रक्रिया पूरी रात चलती रही। अगले दिन सबसे पहले आउट हुए किम ह्यूग्स। दिलीप दोषी ने उन्हें लांग हॉप फेंकी। वह उसे स्क्वायर कट करने गए। गेंद तेजी से निकली और उनके स्टंप्स बिखेर गई। दूसरे छोर पर कपिल देव शॉर्ट रन अप के साथ गेंदबाजी कर रहे थे। पहले उन्होंने ब्रूस यार्डली को बोल्ड किया और फिर बॉर्डर को किरमानी के हाथों कैच कराया। इस तरह ऑस्ट्रेलिया की टीम मात्र 83 रनों पर सिमट गई और भारत ने 59 रनों से टेस्ट जीत कर सीरीज 1-1 से बराबर कर ली। इस जीत में टीम के करीब-करीब हर खिलाड़ी का हाथ था। इस तारीखी जीत को लेकर दुर्रानी कहते हैं, ‘आप विश्वास करिए कुछ समय के लिए हम स्तब्ध थे। लेकिन जिस तरह से हमें विकेट मिलते जा रहे थे हमारी उम्मीदें बढ़ती जा रही थी। हमारे साथ हमारे उच्चायुक्त केडी शर्मा बैठे हुए थे। जैसे ही मैच खत्म हुआ ऑस्ट्रेलियाई खिलाड़ियों की हालत देखते ही बनती थी। कुछ देर के बाद हमें अंदाजा हुआ कि हम वास्तव में मैच जीत गए हैं।’
18 - 24 दिसंबर 2017
कही अनकही
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एक किशोर कई अफसाने
ई-बहनों में सबसे छोटे नटखट आभास कुमार गांगुली उर्फ किशोर कुमार का रुझान बचपन से ही पिता के पेशे वकालत की तरफ न होकर संगीत की ओर था। महान अभिनेता एवं गायक केएल सहगल के गानों से प्रभावित किशोर कुमार उनकी ही तरह के गायक बनना चाहते थे। सहगल से मिलने की चाह लिए किशोर कुमार 18 वर्ष की उम्र मे मुंबई पहुंचे, लेकिन उनकी इच्छा पूरी नहीं हो पाई। उस समय तक उनके बड़े भाई अशोक कुमार बतौर अभिनेता अपनी पहचान बना चुके थे।
भाई की इच्छा
अशोक कुमार चाहते थे कि किशोर नायक के रूप में अपनी पहचान बनाएं, लेकिन खुद किशोर कुमार को अदाकारी की बजाय पार्श्व गायक बनने की चाह थी, जबकि उन्होंने संगीत की प्रारंभिक शिक्षा कभी किसी से नहीं ली थी। बॉलीवुड में अशोक कुमार की पहचान के कारण उन्हें बतौर अभिनेता काम मिल रहा था।
ओपी नैय्यर की तारीफ
किशोर कुमार को अपने जीवन में वह दौर भी देखना पड़ा, जब उन्हें फिल्मों में काम ही नहीं मिलता था। तब वह स्टेज पर कार्यक्रम पेश करके अपना जीवनयापन करने को मजबूर थे। बंबई में आयोजित एक ऐसे ही एक स्टेज कार्यक्रम के दौरान संगीतकार ओपी नैय्यर ने जब उनका गाना सुना तो उन्होंने भाव विह्वल होकर कहा कि महान प्रतिभाएं तो अक्सर जन्म लेती रहती हैं, लेकिन किशोर कुमार जैसा पार्श्व गायक हजार वर्ष में केवल एक ही बार जन्म लेता है। उनके इस कथन का समर्थन उनके साथ बैठी आशा भोंसले ने भी किया।
रफी लेते थे एक रुपया
किशोर कुमार ने कई अभिनेताओं को अपनी आवाज दी, लेकिन कुछ मौकों पर मोहम्मद रफी ने उनके लिए गीत गाए थे। दिलचस्प बात यह है कि मोहम्मद रफी, किशोर कुमार के लिए गाए गीतों के बदले सिर्फ एक रुपया पारिश्रमिक लिया करते थे।
संन्यास का था इरादा
वर्ष 1987 मे किशोर कुमार ने निर्णय किया कि वह फिल्मों से संन्यास लेने के बाद वापस अपने गांव खंडवा लौट जाएंगे। वह अक्सर कहा करते थे कि दूध, जलेबी खाएंगे, खंडवा में बस जाएंगे, लेकिन उनका यह सपना अधूरा ही रह गया। 13 अक्तूबर 1987 को किशोर कुमार को दिल का दौरा पड़ा और वह इस दुनिया से विदा हो गए।
नहाना और गाना
किशोर कुमार संगीत प्रेमियों के राजा कैसे बन गए, इसकी बेहद मजेदार कहानी है। किशोर अपने बड़े भाई अशोक कुमार के मुंबई स्थित घर में छुट्टियां बिताने पहुंचे थे। एक दिन अशोक कुमार के घर अचानक संगीतकार सचिन देव बर्मन पहुंच गए, उन्होंने बैठक में किसी के गाने की आवाज सुनी तो अशोक कुमार से पूछ बैठे 'कौन गा रहा है?' अशोक कुमार ने जवाब दिया- ‘मेरा छोटा भाई है। जब तक गाना नहीं गाता, उसका नहाना पूरा नहीं होता है।’ सचिन दा पहली दफा किशोर की आवाज से इस तरह रूबरू हुए थे, बाकी की कहानी पूरी दुनिया जानती है, सचिन देव बर्मन ही थे, जिन्होंने किशोर की प्रतिभा को पहचाना और भारतीय संगीत को एक ऐसा नगीना दिया जिसकी चमक आज भी कायम है।
दोगुना मेहनताना वसूला
किशोर कुमार के सबसे मशहूर किस्सों में शामिल है पैसे को लेकर उनकी चाहत। कहते हैं किशोर दा किसी पर अपना पैसा छोड़ते नहीं थे और इसे लेकर कई किस्से भी मशहूर हैं। फिल्म 'प्यार किए जा' में कॉमेडियन महमूद ने किशोर कुमार, शशि कपूर और ओम प्रकाश से ज्यादा पैसे वसूले थे। किशोर को यह बात अखर गई। इसका बदला उन्होंने महमूद से फिल्म 'पड़ोसन' में लिया दोगुना पैसा लेकर।
30 कविता
स्वच्छता दूत सुनीता मिश्रा
आओ बच्चों तुम्हें सुनाएं फिर से नई कहानी इसमें ना कोई राजा है, ना ही कोई रानी वैशाली के एक लड़के से आओ तुम्हें मिलाएं कैसे बना स्वच्छता दूत वो तुमको हम बतलाएं। गांधी के सपने को कैसे उसने अपना बनाया स्वच्छ रहे भारत ये अपना सबको सपना दिखाया सम्मानित जीवन जीने का उसने पाठ पढ़ाया स्वच्छ रहो और स्वस्थ रहो ये राह नई दिखलाया। महिलाओं को निजता का अधिकार उन्हें बतलाया शौचालय हो हर घर में ये बात उन्हें समझाया महिलाओं की खातिर विन्देश्वर ने बीड़ा उठाया उस बालक ने बड़े-बड़ों को ऐसा कर दिखलाया। धीरे-धीरे उसने देखो ‘टू-पिट’ मॉडल बनाया ये है कितना सरल अनोखा उपयोगी बतलाया धरती भी सोना उगलेगी इसका भान कराया मानव मल से खाद बनाकर दुनिया को दिखाया। बायो गैस से विद्युत का उत्पादन उसने कराया हर घर में उजियारा हो ये राह नई दिखलाया मानव मल से देखो उसने दरवाजा बनवाया बॉल बनाकर देखो उसने तुम पर प्यार लुटाया। हर घर में शौचालय हो ये नारा उसने लगाया स्वच्छता की राह पकड़ कर देश का मान बढ़ाया शौचालय अधिकार हमारा सबको ये बतलाया मानवता की खातिर जिसने अपना जीवन लगाया। विधवाओं माताओं को जीवन जीना सिखाया वृंदावन में हंस कर होली उनके संग मनाया बाल्मीकि बच्चों को उसने हंसकर गले लगाया उनकी शिक्षा की खातिर स्कूल बनाया। ईश्वर का उपहार है ये तुमको मैं आज बताऊं श्रद्धा से उनके आगे मैं अपना शीश झुकाऊं।
ग
सृजन
18 - 24 दिसंबर 2017
लोक कथा
जनी के बादशाह का नियम था कि वह रात को भेष बदलकर गजनी की गलियों में घूमा करता था। एक रात उसे कुछ आदमी दिखाई दिए तो वह भी उनकी तरफ बढ़ा। चोरों ने देखा तो वे ठहर गए और उससे पूछने लगे –भाई, तुम कौन हो और रात के समय किसलिए घूम रहे हो? बादशाह ने कहा –मैं भी तुम्हारे जैसा रोजी की तलाश में निकला हूं। यह सुनकर चोर बड़े खुश हुए और कहने लगे –यह बहुत अच्छा हुआ जो तुम हमसे आ मिले। चलो, किसी बड़े आसामी के घर चोरी करें। जब वे चलने लगे तो उनमें से एक ने कहा– पहले हम एक-दूसरे के हुनर को जान जाएं और जो ज्यादा हुनरमंद हो उसे नेता बनाएं। यह सुनकर हर एक ने अपनी-अपनी खूबियां बताई। एक बोला – मैं कुत्तों की बोली पहचानता हूं। वे जो कुछ कहें, उसे मैं अच्छी तरह समझ लेता हूं। दूसरा कहने लगा – मेरी आंखों में ऐसी ताकत है कि जिसे अंधेरे में देख लूं, उसे फिर कभी नहीं भूल सकता और दिन के देखे को अंधेरी रात में पहचान सकता हूं। तीसरा बोला – मुझमें ऐसी ताकत है कि मजबूत दीवार में सेंध लगा सकता हूं और यह काम मैं ऐसी फुर्ती और सफाई से करता हूं कि सोनेवालों की आंखें नहीं खुलती। चौथा बोला – मेरी सूंघने की ताकत इतनी खास है कि जमीन में गड़े हुए धन को मिट्टी सूंघकर ही बता सकता हूं। मैंने इस काम में इतनी कामयाबी पाई है कि मेरे दुश्मन भी मेरी बड़ाई करते हैं। पांचवे ने कहा – मेरे हाथों में ऐसी ताकत है कि ऊंचे-ऊंचे महलों पर बिना सीढ़ी के चढ़ सकता हूं और ऊपर पहुंचकर अपने साथियों को भी चढ़ा सकता हूं। इस तरह जब सब लोग अपने-अपने हुनर बता चुके तो नए चोर से बोले –तुम भी अपना कमाल बताओ। बादशाह कहने लगे – मुझमें ऐसा इल्म है कि मैं गुनाहों को माफ कर सकता हूं। अगर हम
नई किताब
ीता से स पुनर्परिचय
भा
एसएसबी ब्यूरो
रतीय जीवन परंपरा में धार्मिक कथाअों या पौराणिकता का विनियोग सबसे ज्यादा है। ईश्वर के रूपों से लेकर उनके किस्से हमारे जीवन में आज भी नैतिकता का रंग भरते हैं। इनमें राम, कृष्ण और शिव जैसे किरदार को लेकर तो भारतीय जनमानस सर्वाधिक आस्थावान है। बात करें महिला पात्रों की तो इसमें जो नाम सबसे पहले ध्यान में आता है, वह है सीता। वाल्मीकि रामायण और तुलसीदास
चोर बादशाह
लोग चोरी करते पकड़े जाएं तो अवश्य सजा पाएंगे, लेकिन मेरी दाढ़ी में यह खूबी है कि उसके हिलते ही सारे गुनाह माफ हो जाते हैं। बादशाह की यह बात सुनकर सबने एक सुर में कहा – भाई तू ही हमारा नेता है। हम सब तेरी ही इशारों पर काम करेंगे, ताकि अगर कहीं पकड़े जाएं तो बख्शे जा सकें। इस तरह मशवरा करके ये लोग वहां से चले। जब बादशाह के महल के पास पहुंचे तो कुत्ता भूंका। चोर ने कुत्ते की बोली पहचानकर साथियों से कहा यह कह रहा है कि बादशाह पास ही हैं, इसीलिए होशियार होकर चलना चाहिए। मगर उसकी बात किसी ने नहीं मानी। जब नेता आगे बढ़ता चला गया तो दूसरों ने भी उसके संकेत की कोई परवाह नहीं की। बादशाह के महल के नीचे पहुंचकर सब रुक गए और वहीं चोरी करने का इरादा किया। दूसरा चोर उछलकर महल पर चढ़ गया और फिर उसने बाकी चोरों को भी खींच लिया। महल के भीतर घुसकर सेंध लगाई गई और खूब लूट हुई। लूट के बाद चलने की तैयारी हुई। बादशाह ने सबका नामधाम पूछ लिया था। चोर माल-असबाब लेकर चंपत हो गए।
उपन्यास : सीता : मिथिला की योद्धा लेखक : अमीश अनुवादक : उर्मिला गुप्ता प्रकाशक : यात्रा कीमत : 299 रुपए की रामचरित मानस की सीता को हम, राजा जनक की बेटी, भगवान राम की पत्नी और लव-कुश की मां के रूप में ही ज्यादा जानते हैं। पौराणिक कथाअों और पात्रों को आधुनिक संदर्भ में पेश करने वाले अमीश ने सीता को लेकर जो अौपन्यासिक ताना-बाना बुना है , उसमें सीता के साथ महिला सशक्तिकरण का आधुनिक पक्ष काफी बेहतर तरीके से उभरा है। धार्मिक पात्रों को एक नए, सजीव और विश्वसनीय रूप में देखने, जानने और पढ़ने की इच्छा रखने वालों के लिए यह एक बेहतरीन उपन्यास है।
बादशाह ने अपने मंत्री को आज्ञा दी कि तुम अमुक स्थान में तुरत सिपाही भेजो और चोरों को गिरफ्तार करके मेरे सामने हाजिर करो। मंत्री ने फौरन सिपाही भेज दिए। चोर पकड़े गए और बादशाह के सामने पेश किए गए। जब इन लोगों ने बादशाह को देखा तो जान गया कि रात चोरी में बादशाह हमारे साथ था। सब साहस करके आगे बढ़े और बादशाह के सामने सजदा किया। बादशाह ने उनसे पूछा – तुमने चोरी की है? सबने एक साथ जवाब दिया –हां, हूजर। यह अपराध हमसे ही हुआ है। बादशाह ने पूछा –तुम लोग कितने थे? चोरों ने कहा –हम कुल छ: थे। बादशाह ने पूछा –छठा कहां है? चोरों ने कहा –अन्नदाता, गुस्ताखी माफ हो। छठे आप ही थे। बादशाह ने चोरों से फिर पूछा –अच्छा, अब तुम क्या चाहते हो? चोरों ने कहा –अन्नदाता, हममें से हर एक ने अपना-अपना काम कर दिखाया। अब छठे की बारी है। अब आप अपना हुनर दिखाएं, जिससे हम अपराधियों की जान बचे। यह सुनकर बादशाह मुस्कराया और बोला – अच्छा! तुमको माफ किया जाता है। आगे से ऐसा काम मत करना।
18 - 24 दिसंबर 2017
आओ हंसें
चांद और तारे
एक गंजा जा रहा था। एक लड़के ने उसे मजाक में छेड़ा- आज तो दिन में भी चांद दिख रहा है। गंजे ने फुर्ती से उस लड़के के सिर पर जोर का डंडा मारा और बोला- ले, तारे भी देख ही ले।
फोटोग्राफर
फोटोग्राफरमैडम जी, क्या आप तस्वीर खिंचवाने को तैयार हैं? मैं तस्वीर लूं? अच्छा, एक...दो... बीच ही में मैडम जी बोल उठीं- जरा ठहरिए, मैं कपड़ों में थोड़ा सेंट लगा आऊं।
सु
जीवन मंत्र
रंग भरो
यातायात के नियमों को तोड़कर सड़क पार कर रही बूढ़ी औरत को रोक कर पुलिसकर्मी ने कहा'मैं कब से सीटी बजा रहा हूं। तुम रुकी क्यों नहीं? बूढ़ी औरत बोली - 'बेटा, तुम्ही बताओ, भला यह उम्र सीटी सुनकर रुकने की है? अगर दुनिया में कुछ कर दिखाना है तो मेरी बात मान हाथी के ऊपर शीर्षासन करके फोटो खिंचवा उस फोटो को उल्टा लटका और दुनिया को दिखा
महत्वपूर्ण दिवस
• 18 दिसंबर अल्पयसंख्यसक अधिकार दिवस (भारत), मदनमोहन मालवीय जयंती, गुरु घासीदास जयंती (छत्तीसगढ़), मद्य निषेध दिवस, अंतरराष्ट्रीय घुमंतू दिवस
• 19 दिसंबर नरसिंह मेहता जयंती • 20 दिसंबर अंतरराष्ट्रीय मानव एकता दिवस • 22 दिसंबर राष्ट्रीय गणित दिवस
• 23 दिसंबर
किसान दिवस (भारत) (चौधरी चरण सिंह जन्म दिवस), स्वामी श्रद्धानंद बलिदान दिवस
• 24 दिसंबर राष्ट्रीय उपभोक्ता दिवस
डोकू -01
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रिश्ते तितली जैसे होते हैं जोर से पकड़ो तो मर जाते हैं छोड़ दो तो उड़ जाते हैं अगर प्यार से पकड़ो तो अपना रंग छोड़ जाते हैं..!!
यातायात के नियम
फोकट की सलाह
इंद्रधनुष
सुडोकू का हल इस मेल आईडी पर भेजें-
ssbweekly@gmail.com
1- नीला 2-हरा
3-भूरा
4-गुलाबी
या 9868807712 पर व्हॉट्सएप करें। एक लकी विजेता को 500 रुपए का नगद पुरस्कार दिया जाएगा। सुडोकू के हल के लिए सुलभ स्वच्छ भारत का अगला अंक देखें।
वर्ग पहेली - 01 बाएं से दाएं:
1. दोषी; कसूरवार (4) 4. अच्छे लक्ष्णों वाला (4) 6. जल्दी करना; उतावली करना; थकवाना; पराजित कराना (4) 7. शुभ्र; धवल; चांदी (3) 9. पुराने जमाने का कोतवाल (5) 10. स्वीकार करना; स्वीकृति देना; मान लेना (3,2) 12. शरीर को सुगठित करने के लिए किया जाने वाला नियमित श्रम (3) 13. बहन जैसा संबंध (4) 15. विरोध प्रदर्शन में काम न करना (4) 16. देवताओं से प्राप्त सिद्धि (4)
ऊपर से नीचे:
1. अनश्वरता (4) 2. राहत हेतु प्राप्त आर्थिक सहायता (3,4) 3. धैर्य (2) 4. अस्तित्व में आना; कार्य का संपन्न किया जाना; उपस्थिति (2) 5. पृथ्वी के नीचे के सात लोकों में से छठा (4) 8. सरकारी देख रेख में होने वाला व्यापार (4,3) 9. स्नान करना (3) 10. विष्णु के शरीर से निकला कल्पित पुरुष; मायाजाल की अनुरक्ति (4) 11. किसी मत का पोषण; सहमति (4) 13. शक्ति; ताकत (2) 14. किश्ती; नौका (2)
वर्ग पहेली का हल अगले अंक में।
32 न्यूजमेकर
डाक पंजीयन नंबर-DL(W)10/2241/2017-19
18 - 24 दिसंबर 2017
अनाम हीरो
गुरबीर सिंह ग्रेवाल
कैंसर पीड़ितों का सपना
न्यू जर्सी के ग्रेवाल
न्यू जर्सी के गवर्नर फिल मर्फी ने गुरबीर सिंह ग्रेवाल को अटार्नी जनरल के लिए नामित किया
अ
मेरिका के न्यू जर्सी प्रांत में प्रमुख सिख-अमेरिकी वकील गुरबीर सिंह ग्रेवाल को अगले अटार्नी जनरल के तौर पर नामित किया गया है। ग्रेवाल सरकारी वकील हैं जो पहले न्यूयॉर्क और न्यू जर्सी में बतौर सहायक अमेरिकी अटार्नी सेवा दे चुके हैं। न्यू जर्सी के निर्वाचित गवर्नर फिल मर्फी ने ग्रेवाल को अटर्नी जनरल के लिए नामित किया गया था। इस नामांकन के साथ ग्रेवाल पहले ऐसे सिख-अमेरिकी होंगे जो राज्य में अटार्नी जनरल की कमान संभालेंगे। ग्रेवाल ने कहा कि उन्होंने उस देश को वापस लौटाने के लिए सेवा देने का फैसला किया है, जिसने उन्हें और दूसरे प्रवासी परिवारों को बहुत कुछ दिया है। उन्होंने कहा, 'मैं लोगों को यह भी दिखाना चाहता था कि मैं और मेरे जैसे दूसरे लोग भले ही अलग दिखते हों या अलग तरह से पूजा-पाठ करते हों, लेकिन हम सब इस देश की सेवा के लिए प्रतिबद्ध हैं।' ग्रेवाल को अटार्नी जनरल नामित किए जाने के फैसले का साउथ एशियन बार एसोसिएशन ने स्वागत किया है।
कंचनमाला पांडे
पैरा स्विमर ने रचा इलतिजीतहनाे वसाली
लखनऊ की सपना उपाध्याय कैंसर पीड़ित गरीब बच्चों के बेहतर इलाज का सपना साकार कर रही हैं
दू
सरों की सेवा और मदद करना लखनऊ के आशियाना कॉलोनी सेक्टर-एच में रहने वाली सपना उपाध्याय से बखूबी सीखा जा सकता है। सपना कैंसर से जूझ रहे गरीब परिवार के बच्चों के इलाज में 16 साल से मदद कर रही हैं। इलाज के दौरान खून की जरूरत पर घरवालों को इधर-उधर न भटकना पड़े, इसके लिए हर महीने रक्तदान शिविर लगवाती हैं। गरीब परिवार की महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाने के लिए कुटीर उद्योग में भी मदद करती हैं और कैंसर से जंग जीत चुके 160 बच्चों की पढ़ाई का खर्च भी उठाती हैं। सपना के पति बिजनेसमैन हैं और बेटी एमिटी यूनिवर्सिटी में पढ़ रही है। उन्हें दूसरों की मदद का खयाल 16 साल पहले आया, जब बेटी को अचानक एक दिन बुखार आ गया। अस्पताल में बेटी के इलाज के दौरान गंभीर बीमारियों से जूझ रहे गरीब परिवार के बच्चों को देखा तो उनकी मदद का संकल्प लिया। बेटी के स्वस्थ होने के बाद मुहिम शुरू की। बाल रोग विभाग में आईसीयू प्रभारी डॉ. योगेश गोविल से जरूरतमंद परिवारों की जानकारी मांगी। उनके आग्रह पर एक दिन डॉ. गोविल ने फोन किया। उनके बताने पर एक गरीब परिवार के लिए दवाओं का इंतजाम किया। सपाना बताती हैं कि डॉ. गोविल अक्सर गरीब परिवारों की जानकारी देने लगे और मैं उनकी मदद करने लगी। इस बीच कैंसर विशेषज्ञ डॉ. अर्चना कुमार को इस बारे में पता चला तो उन्होंने कैंसर पीड़ित बच्चों की मदद के लिए प्रेरित किया। उनके सुझाव पर ही ईश्वर चाइल्ड फाउंडेशन बनाकर कैंसर पीड़ित बच्चों के लिए काम शुरू किया।
शिप में गोल्ड मेड न य पि ैं च ग ं स्विमि बन गई हैं पैरा दर्श आ ी क चों च् ब े रक कंचनमाला देश भ चैंपियनशिप ें वर्ल्ड पैरा स्विमिंग
ली ने मैक्सिको म ें तब आया जब उस गोल्ड मेडल जीतने वाली भारत की पह म ों य र्खि ु स ें म ल हा म में नमाला देश चनमाला पांडे का ना गपुर की कंचनमाला इस चैंपियनशिप ल किया। आज कंच र ले तो सि हा न स्था ना ा। ीर्ष य श ें दि म क ट ें में इतिहास रच 200 मीटर मेडले इव र मुश्किलों के बावजूद अगर कोई प्रण स्प बातें े क वर्ग 1 -1 एस ने ा तैराक हैं। कंचनमाल ूम रही हैं और बता रही हैं कि अभाव औ और अपने संघर्ष के बारे में कई दिलच प घ ीच ब े क ा उदाहरण देती है रा स्विमिंग चैंपियनशि पन पै ्ड अ भर में बच्चों द ु वर्ल ख ो ह क व ा ए ाल लि े नम है। इसक कार्यरत कंच , ‘मैंने अच्छे सफलता पा सकता या (आरबीआई) में ीतने की उम्मीद नहीं थी। वह बताती है गर वर्ल्ड डि इं फ ऑ क ैं ब ्व र ज शेयर करती है। रि ेकिन गोल्ड मेडल ज और मेडल जीतने की आशा भी थी। म है। वह ल ी, थ र रू ज म्मीद ी उ में मेडल जीतने की मेक्सिको में अच्छे प्रदर्शन की उम्मीद थ त रहा।’ कंचनमाला ब्लाइंड पैरा स्वीमर उसे कि ुझे की। से तैयारी की थी। म में गोल्ड मेडल हासिल करना आश्चर्यच ंपिक कमेटी ने इनकी कोई मदद नहीं ाल र ट ें पै ी इव े क स ै जब भारत चैंपियनशिप ज भी चर्चा में आई थी, तब े ल पह े स ीप थी। नश य चैंपि स्विमिंग करनी पड़ी र क े ल ार ध उ े स पै र देश के बाह
कं
आरएनआई नंबर-DELHIN/2016/71597; संयुक्त पुलिस कमिश्नर (लाइसेंसिंग) दिल्ली नं.-एफ. 2 (एस- 45) प्रेस/ 2016 वर्ष 2, अंक - 1