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अमेरिका के गांवों में सुलभ का मैजिक
‘एग्जाम वारियर्स’ स्वच्छता की जापानी संस्कृति
स्वच्छ भारत अभियान समारोह
बच्चे 'वरियर’ नहीं, 'वारियर’ बनें 09
स्वच्छता
खेल
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‘उड़न परी’ को हराने वाली एथलीट
sulabhswachhbharat.com आरएनआई नंबर-DELHIN/2016/71597
बाबा रामदेव महान संत महान योगी महान समाजसेवी एक महान और यशस्वी जीवन को लेकर दूसरा महान व्यक्ति क्या अनुभव करता और सोचता है, यह जानना हर किसी के लिए प्रेरक अनुभव से गुजरने जैसा है। महान समाज सुधारक और सुलभ प्रणेता डाॅ० विन्देश्वर पाठक ने योगगुरु बाबा रामदेव के संदर्भ में अपने मूल्यवान और अनुभव-सिद्ध विचार प्रकट किए हैं
वर्ष-2 | अंक-09 | 12 - 18 फरवरी 2018
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दु
आवरण कथा
विन्देश्वर पाठक (पीएच.डी., डी.लिट्.)
निया के मेले में हर मनुष्य भ्रमण करता है। अपनी अनंत इच्छाओं और आकांक्षाओं के साथ अपनी भूमिका निभाता है। लेकिन इस मेले में कुछ ऐसे लोग भी होते हैं, जो घूमने के बजाय मेले में आए हुए लोगों की सेवा करना पसंद करते हैं। लोगों की सेवा करने वाले ये लोग सामान्य नहीं, महान होते हैं। योग गुरु बाबा रामदेव ने अपना पूरा जीवन लोगों की सेवा के लिए पूरी तरह अर्पित कर दिया है। सही अर्थों में वे एक महान संत, महान योगी और महान समाजसेवी हैं।
कैसे बनते हैं महान संत?
किसी व्यक्ति के लिए महान संत बन पाना आसान नहीं है। इसके लिए अपनी इच्छाओं और लालसाओं को सिर्फ नियंत्रित ही नहीं करना होता है, बल्कि
खास बातें
कठिन साधना से गुजर कर ही कोई महान संत बन पाता है बाबा रामदेव ने योग की धूमिल परंपरा को फिर से रेखांकित किया कई लोगों ने योग टीवी के जरिए एकलव्य की तरह बाबा से सीखा योग
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उपलब्ध प्राकृतिक संसाधनों का न्यूनतम उपभोग भी करना होता है। जिसने भी अपनी इच्छाओं पर नियंत्रण कर लिया और प्राकृतिक संपदाओं का सबसे कम उपभोग किया, वही संत कहलाने के योग्य होता हैं। योग गुरु बाबा रामदेव की कठिन जीवन यात्रा इस बात का प्रमाण है। बाबा रामदेव सादगी और त्याग की प्रतिमूर्ति है। वे जमीन पर सोते हैं, कम वस्त्र पहनते हैं, कम खाते हैं और अविवाहित रहकर, अपनी इच्छाओं को नियंत्रित कर वे समाज की सेवा के लिए पूरी तरह से समर्पित हैं। इसीलिए वे एक महान संत हैं।
महान योगी
वैदिक काल से भारत की समृद्ध और वैभवशाली योग परंपरा रही है। योग का ज्ञान लोगों को हजारों साल पहले से है। देश में योगियों की परंपरा भी योग के साथ ही रही है। लेकिन विगत कुछ कालखंड में लोग योग से विलग हो गए। योग की प्राचीन और महान परंपरा धूमिल हो गई। लेकिन बाबा रामदेव ने योग की इस धूमिल हो चुकी परंपरा को फिर से रेखांकित किया और देश ही नहीं, बल्कि इसे विश्व स्तर पर भी स्थापित किया। आज अगर दुनिया भर में योग दिवस मनाया जाता है और योग को उसकी खोई प्रतिष्ठा फिर से मिली है, तो उसके पीछे बाबा रामदेव की बड़ी भूमिका रही है।
एकलव्य की तरह सीखा योग
योग से निरोग होने का पाठ बाबा रामदेव ने ही सबको पढ़ाया है। इसके लिए उन्होंने सिर्फ बातें नहीं की, बल्कि लोगों को योग करना भी सिखाया। देश और दुनिया में ऐसे करोड़ों लोग हैं, जिन्होंने बाबा रामदेव के शिविरों में हिस्सा लिया, लेकिन उससे भी बड़ी संख्या उन लोगों की है, जिन्होंने
आज अगर दुनिया भर में योग दिवस मनाया जाता है और योग को उसकी खोई प्रतिष्ठा फिर से मिली है, तो उसके पीछे बाबा रामदेव की बड़ी भूमिका रही है एकलव्य की भांति योगगुरु को प्रतिदिन टीवी चैनल्स पर अभ्यास करते देख योग का ज्ञान प्राप्त किया। जो टीवी नहीं देख सके वे लोग योग की सीडी, वीडियो देखकर योग करते हैं। आज देश में ही नहीं पूरे विश्व में प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रुप से योगगुरु बाबा रामदेव का प्रभाव एक समान रूप से पड़ा है, इसीलिए वह एक महान योगी हैं।
पतंजलि की दवाएं
पिछले 15-20 दिनों से मेरे पैर में दर्द हो रहा था, जिससे मैं काफी परेशान था, तो मैंने बाबा रामदेव की गिलोय घनवटी की दो गोली खाई। दवा खाने के दो ही घंटे बाद मुझे आराम मिल गया। मैंने पहली बार पतंजलि के उत्पाद का सेवन किया और मैं इससे काफी प्रभावित हुआ। इससे पहले पैर के दर्द से परेशान होकर मैंने अपने ज्योतिषाचार्य एस भट्टाचार्य को भी दिखाया, तो उन्होंने कहा कि ऐसा कुछ नहीं है, आप एक बार चेकअप करा लें। बाबा रामदेव जैसा महान व्यक्ति इस काल में नहीं हुआ, जिसने सांसारिक सुखों का त्याग कर समाज सेवा के लिए अपने जीवन को समर्पित कर दिया। उनकी इस सफलता से लोग ईष्या करने लगे हैं और लोग यह भी कहने लगे हैं कि वे अब एक व्यापारी हो गए हैं। बाबा रामदेव अपने लिए तो कुछ नहीं कर रहे हैं, उनके उत्पादों से जो भी पैसा आता है वह ट्रस्ट को जाता है, और यह ट्रस्ट समाजहित में कार्य करता है। व्यापारी वह होता है जो स्वयं के लिए
कार्य करे, लेकिन बाबा रामदेव जो भी कार्य कर रहे हैं, वह देशहित व लोकहित में है।
पर्याप्त यश के भागी हैं बाबा
बाबा रामदेव ने योग और आयुर्वेद के क्षेत्र में जितना सराहनीय कार्य किया है, कहीं न कहीं उनको उसका पूरा यश नहीं मिला है। उनकी चर्चा करते हुए अक्सर लोग अनावश्यक प्रसंगों का जिक्र ज्यादा करते हैं। लेकिन नील आर्मस्ट्रांग और शरलॉक होम्स की दो घटनाओं से इसे अच्छी तरह से समझा और जाना जा सकता है। जब नील आर्मस्ट्रांग चांद से लौट कर आए तो लोगों ने उनसे पूछा, ‘आपको तो बहुत अच्छा लग रहा होगा?’ नील आर्मस्ट्रांग ने जवाब दिया कि ‘चांद पर जाना जरूर एक सुखद अनुभूति रही, लेकिन अगर मुझे पता होता कि चांद से लौटने के बाद मित्रगण मुझसे बोलना बंद कर देंगे, तो मैं चांद पर कभी नहीं जाता।’ इसी तरह शरलॉक होम्स की एक आपबीती है। शरलॉक के यहां दोपहर में एक डाकिया पत्र लेकर आया। शरलॉक ने उसे पढ़ा और फिर रख दिया। यह सब बगल में बैठे उनके मित्र देख रहे थे तो उन्होंने शरलॉक होम्स से पूछा, ‘आपने पत्र पढ़ने के बाद कोई प्रतिक्रिया नहीं दी।’ शरलॉक ने तब कहा कि ‘एक मर्डर हो गया है और सरकार चाहती है कि मैं इसका पता लगाऊं।’ उनके दोस्त ने कहा कि ‘यह तो अच्छी बात है, फिर तुम पता
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आवरण कथा
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100 करोड़ की लागत से बन रहा टीवी सीरियल
यो
गगुरु बाबा रामदेव की जिंदगी का संघर्ष जल्द ही पर्दे पर दिखेगा। बाबा रामदेव की जिंदगी पर जल्द ही डिस्कवरी चैनल पर धारावाहिक प्रसारित होगा। इस धारावाहिक के निर्माण पर करीब 100 करोड़ रुपए खर्च हुए हैं। इस सीरियल का नाम ‘स्वामी रामदेव: एक संघर्ष’ है। इस धारावाहिक में बाबा रामदेव की गरीबी में बीते बचपन से लेकर योग गुरु और बड़े उद्यमी बनने तक के सफर की दास्तां है। बाबा रामदेव खुद इस धारावाहिक को लेकर काफी उत्साहित हैं। उन्होंने कहा कि इसके जरिए उन्होंने टेलीविजन चैनलों काे शीर्षासन करा दिया है। क्योंकि देश के टॉप 10 टीवी चैनल कहानियां ही दिखाते हैं, उसमें थोड़ी सी प्रेरणा होती है, मगर इस धारावाहिक में मैक्सिमम प्रेरणा होगी, मिनिमम एंटरटेनमेंट।
शुद्ध संन्यासी
इस धारावाहिक को लेकर बाबा रामदेव ने कहा, ‘जीते जी अपनी कहानियों को दिखाना एक और संघर्ष को बुलावा देना है, लेकिन मैं इसके लिए तैयार हूं।’ उन्होंने तर्क दिया कि उन्होंने हमेशा धारा के खिलाफ जीवन बहना सीखा है। खुद को देसी और शुद्ध संन्यासी बताते हुए रामदेव ने कहा कि उनको लेकर दुनिया तमाम बातें कहतीं हैं, मगर इससे वे बेपरवाह रहते हैं। उन्होंने कभी खुद को छोटी जाति का माना ही नहीं। बाबा रामदेव ने बताया कि गांव में उनके ही रिश्ते के लोग उनकी मां के साथ क्रूरता करते थे। थोड़ा बड़े होने पर स्वामी रामदेव ने खुद आवाज उठानी शुरू की और हरिद्वार आ गए।
नमन बने बाबा
इस सीरियल में बाबा रामदेव के बचपन का किरदार राष्ट्रीय पुरस्कार प्राप्त बाल कलाकार नमन जैन निभाने वाले हैं। वहीं अभिनेता क्रांति प्रकाश इस शो में युवा रामदेव की युवक की भूमिका में नजर आएंगे। धारावाहिक के प्रमोशन के सिलसिले में दिल्ली पंहुचे बाबा ने बताया कि लगाओ।’ इस पर शरलॉक ने कहा, ‘मैं सरकार का काम नहीं करता।’ मित्र ने पूछा, ‘क्यों?’ शरलॉक ने कहा कि ‘हम पता लगाएंगे, और सरकार इसे अपने नाम से प्रस्तुत कर देगी।’ मित्र ने कहा कि
हरिद्वार में शुरुआती दिनों के दौरान उन्हें एक दफा 50 से भी ज्यादा लोगों ने घेरकर मारने की कोशिश की। इस दौरान उन्होंने हमलावरों से बचने के लिए चप्पल उठा ली और फिर जमकर उनका मुकाबला किया।
जीवन के कई पहलू उजागर
अपने जीवन पर आधारित टीवी सीरियल की प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान योगगुरु बाबा रामदेव ने खुद से जुड़े कई पहलुओं को उजागर किया। उन्होंने कहा कि उनका बचपन संघर्षों और मुश्किलों में बीता है, इतना ही नहीं उन्होंने सात बार मौत को भी करीब से देखा है। ये सब कहानियां उन्हें टीवी सीरियल के माध्यम से देखने को मिलेगी।
तिरस्कार को बनाया ताकत
एक और घटना का जिक्र करते हुए रामदेव ने बताया कि एक बार गलती से एल्युमिनियम पात्र में उबला दूध पी लिया था। इस वजह से उनके शरीर में आर्सेनिक का जहर फैल गया। सैकड़ों उल्टियां हुईं। अपने जीवन के बारे में बात करते हुए स्वामी रामदेव ने कहा, 'मैंने हर विरोध और तिरस्कार को अपनी ताकत बनाया। मेरे सफर में मेरे गुरु आचार्य वार्ष्णेय हमेशा साथ रहे।' रामदेव ने कहा कि वह अनपढ़ माता-पिता के बेटे हैं और पैदल चलकर सरकारी स्कूल में पढ़ने जाते थे।
स्पेशल स्क्रीनिंग
दिल्ली के छत्रसाल स्टेडियम में सीरियल की स्पेशल स्क्रीनिंग रखी गई है, जिसमें बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह और वित्तमंत्री अरुण जेटली को आमंत्रित किया गया। वहीं राजनीति में आने के सवाल पर रामदेव ने कहा, 'राजनीति मेरे लिए राष्ट्रधर्म है, लेकिन मैं कभी भी कोई राजनीतिक ओहदा नहीं लूंगा, यह मेरी भीष्म प्रतिज्ञा है। मेरा देश सुरक्षित रहे, यह मैं अवश्य चाहूंगा। कुछ हासिल करने का मेरा कोई मकसद नहीं है।' ‘सरकार तुम्हारी प्रशंसा तो करेगी ही।’ इस बात पर शरलॉक ने कहा, ‘यहां दूसरों कि प्रशंसा करने में व्यक्ति की जीभ कट जाती है। यदि कोई किसी की प्रशंसा कर रहा हो तो समझना कि जिसकी प्रशंसा
यह तथ्य है कि भारतवर्ष के लोग दो शब्द अच्छा उस व्यक्ति के लिए नहीं कह सकते, जो देश और समाज के लिए महान कार्य कर रहा है की जा रही है उससे ज्यादा महान व्यक्ति प्रशंसा करने वाला है। इस समाज में दूसरे की प्रशंसा करना बड़ा कठिन काम है।’ शरलॉक की बातों से मैं पूर्णतया सहमत हूं, क्योंकि यह मेरा व्यक्तिगत अनुभव भी रहा है। हमने टू-पिट शौचालय तकनीक का आविष्कार 1968 में किया। सरकार टू-पिट का इस्तेमाल तो करती है, इस तकनीक की प्रशंसा तो करती है, लेकिन ‘सुलभ’ का नाम नहीं लेती। देश की पूर्ववर्ती सरकार ने ईर्ष्यावश 1986-2008 तक वन-पिट शौचालयों का निर्माण कराया, जिसमें खर्च हुए जनता की गाढ़ी कमाई के पैसे पूरी तरह डूब गए, क्योंकि उसका कोई लाभ लोगों को मिला नहीं। इसीलिए अब मौजूदा सरकार ने टू-पिट तकनीक को अपना लिया है।
प्रशंसनीय हैं योगगुरु के कार्य
आज हम दुनिया से पीछे इसीलिए हैं, कि हम अपनी संस्कृति को और उनको आगे बढ़ाने वालों की प्रशंसा नहीं करते हैं, बल्कि उसके कार्यों को
भी संशय भरी नजरों से देखते हैं। यही हमारी सबसे बड़ी विडंबना है। रामचरितमानस में तुलसीदास ने कहा है‘बार बार गहि चरन संकोची। चली बिचारि बिबुध मति पोची॥ ऊंच निवासु नीचि करतूती। देखि न सकहिं पराइ बिभूती।।’ यानी प्रशंसा, सराहना और यश देने में अकसर लोगों को संकोच होता है। यह तथ्य है कि भारतवर्ष के लोग दो शब्द अच्छा उस व्यक्ति के लिए नहीं कह सकते, जो देश और समाज के लिए महान कार्य कर रहा है। हम सभी लोगों को बाबा रामदेव के कार्यों की प्रशंसा करनी चाहिए, क्योंकि वह शुद्ध दवा, अनाज और इसके साथ ही लाखों लोगों को रोजगार भी मुहैया करा रहे हैं। उनके कार्यों से समाज को और लोगों को लाभ हो रहा है। ऐसी महान विभूतियां धरती पर कभी-कभी ही आती हैं। निश्चय ही ऐसी विभूतियां प्रशंसा की पात्र है।
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आवरण कथा
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हरियाणा के रामकृष्ण दुनिया के रामदेव
बाबा रामदेव का जन्म भले एक साधारण परिवार में हुआ और उनका बचपन भी अत्यंत साधारण रहा, पर इस साधारण पृष्ठभूमि से ही एक असाधारण संत के जन्म की कथा शुरू होती है
यो
गगुरु बाबा रामदेव की प्रसिद्धि निस्संदेह आज की तारीख में काफी है, पर उनके प्रारंभिक जीवन के बारे में ज्यादा सामग्री उपलब्ध नहीं है। उन्होंने जब-तब अपने आरंभिक जीवन के बारे में जरूर कुछ बातें कही हैं और इसी के आधार पर हम उनके शुरुआती जीवन का एक स्थूल रेखाचित्र खींच पाते हैं।
प्रखर छात्र
संभवत: उनका जन्म 1965 में हरियाणा के महेंद्रगढ़ जिले में अलीपुर के नारनौल गांव के एक सामान्य परिवार में हुआ। मातापिता ने उनका नाम रामकृष्ण यादव रखा। उनकी जीवनी ‘योगगुरु स्वामी रामदेव’ के अनुसार उन्होंने गांव के विद्यालय में पांचवीं कक्षा तक अध्ययन किया और एक प्रखर छात्र के रूप में अपना स्थान बनाया। इसके बाद वे निकट के गांव शहजादुर के विद्यालय में दाखिल हुए और आठवीं कक्षा तक अध्ययन किया। चूंकि गांव में बिजली की व्यवस्था नहीं थी, अत: उन्होंने किरोसिन से जलने वाले लैंप की रोशनी में अध्ययन किया। उनके पिता द्वारा खरीदी गई पुरानी पाठ्य पुस्तकें ही उनकी पाठ्य सामग्री होती थीं। उनके परिवार में उनके माता-पिता, भाई और बहन थे, पर अब उन सभी के साथ उनका संबंध कुछ खास नहीं रह गया है।
बचपन का प्रभाव
रामदेव के बचपन ने उनके भविष्य के जीवन पर एक चिरस्थायी प्रभाव डाला था। जब वे काफी छोटे थे, उनके शरीर का बायां हिस्सा पक्षाघात से ग्रस्त हो गया। उनके अनुसार, योग के माध्यम
खास बातें
योग और आयुर्वेद को लोकप्रिय बनाने का सर्वाधिक श्रेय रामदेव को 2003 से आस्था टीवी ने हर सुबह रामदेव का योग दिखाना शुरू किया योगाभ्यास पुराना उल्लेख प्राचीनतम उपनिषद- वृहदअरण्यक में है
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आवरण कथा
किशोर रामदेव के आध्यात्मिक जीवन में पहला निर्णायक मोड़ तब आया जब उन्होंने आठवीं कक्षा तक पढ़ाई पूरी करने के बाद घर छोड़ दिया और हरियाणा के रेवाड़ी जिले के किशनगढ़ घसेदा के खानपुर गांव में आचार्य बलदेव द्वारा स्थापित गुरुकुल से जुड़ गए से ही उन्होंने अपने शरीर की संपूर्ण सक्रियता प्राप्त की और पूर्णत: स्वस्थ हो सके। ऐसा प्रतीत होता है कि रामदेव की पक्षाघात पीड़ित दशा और योग द्वारा इसके उपचार ने उन्हें जीवन के लय-ताल के प्रति एक दूसरा रुख अपनाने को प्रेरित किया। इस असामान्य अनुभव ने उन्हें अपने जीवन को एक ऐसे पथ पर ले जाने को प्रेरित किया, जो उन्हें ज्ञान की तह और उनके जीवन के वास्तविक उद्देश्यांे की ओर ले जा सकता था। शीघ्र ही यह युवक परिवार, समाज और औपचारिक शिक्षा के बंधनों से परे सामाजिक रूप से लाभदायी भूमिका के एक नए आयाम की खोज करने के लिए जिज्ञासु हो गया। जैसा वे बाद में स्मरण करते हैं- ‘मैंने जीवन के आरंभ में ही यह सीखा कि हमारे देश में स्वास्थ्य, शिक्षा और संपत्ति वितरण में गहन असंतुलन है।’ इस प्रकार समस्त रुकावटों और अनिश्चितताओं के साथ इस बालक की तीर्थ-यात्रा शुरू हुई।
आठवीं में छोड़ दी पढ़ाई
किशोर रामदेव के आध्यात्मिक जीवन में पहला निर्णायक मोड़ तब आया जब उन्होंने आठवीं कक्षा तक पढ़ाई पूरी करने के बाद घर छोड़ दिया और हरियाणा के रेवाड़ी जिले के किशनगढ़ घसेदा के खानपुर गांव में आचार्य बलदेव द्वारा स्थापित गुरुकुल से जुड़ गए। आचार्य ने अपने नए शिष्य को पाणिनि के संस्कृत व्याकरण और वेद एवं उपनिषद के ज्ञान से परिचय करवाया। इसी समय, उन्होंने गहन आत्मानुशासन और ध्यानमग्नता का
अभ्यास भी शुरू किया। यद्यपि वे आर्यसमाज के साथ औपचारिक रूप से नहीं जुड़े थे, फिर भी इस दौरान वे स्वामी दयानंद के आदर्शों से अत्याधिक प्रभावित थे। रामकृष्ण ने संसार से वैराग्य ले लिया और संन्यासी का चोगा पहना तथा ‘स्वामी रामदेव’ के नाम से लोकप्रिय हुए। वे बताते हैं, ‘मैं किसी अन्य की प्रेरणा अथवा प्रभाव के चलते संन्यासी नहीं बना। जब मैं चार साल का था, तब से ही मैं संन्यासी बनना चाहता था। मुझमें कभी भगोड़ी मानसिकता नहीं थी।’ वे हरियाणा के जींद जिला चले गए, जहां वे आचार्य धर्मवीर के गुरुकुल कल्व में शामिल हो गए और हरियाणा के ग्रामवासियों को योग की शिक्षा देने लगे।
हिमालय यात्रा
किंतु रामदेव की खोज अभी पूरी नहीं हुई थी। पूर्ववर्ती आध्यात्मिक गुरुओं की भांति रामदेव के भटकते मन ने उन्हें हिमालय जाने को प्रेरित किया, जहां उन्होंने अनेक आश्रमों का भ्रमण किया- वहां के मनीषियों द्वारा अभ्यास किए जा रहे योग व ध्यानमग्नता की अपनी समझदारी और दक्षता बढ़ाते हुए। गंगोत्री ग्लेशियर के निकट गुफा में गहन ध्यानमग्नता में तल्लीन रहने के दौरान उन्हें इच्छित प्रबुद्धता का बोध हुआ, जिसने उन्हें उनके जीवन के वास्तविक मिशन, जिसको समग्र रूप से जानने का प्रयास वे वर्षों से कर रहे थे, का ज्ञान दिया, ‘जब मैं हिमालय में था, गहन चिंतन किया
करता था, मेरे अंदर आंतरिक संघर्ष चल रहा था। मैं सोचता था, मैं यहां क्या कर रहा हूं? संन्यासी बंधुत्व-मानवता के कल्याण के लिए है। यदि मेरा जीवन इस स्थान पर समाप्त हो जाता है, तब थोड़ाबहुत जो ज्ञान मुझमें है, वह मेरे साथ समाप्त हो जाएगा।’ वहीं उनकी मुलाकात अपने भविष्य के सहयोगियों आचार्य बालकृष्ण और आचार्य कर्मवीर के साथ हुई, जो उनके द्वारा शीघ्र ही स्थापित किए जाने वाले मिशन के बहुमूल्य सहयोगी बनने वाले थे। इसी स्थान पर उनकी मुलाकात अपने भविष्य के अन्य सहयोगियों आचार्य मुक्तानंद और आचार्य वीरेंद्र के साथ भी हुई।
स्वामी शंकरदेव के शिष्य
1993 में रामदेव ने हिमालय छोड़ा और हरिद्वार आ गए। सन 1995 में वे कृपालु बाग आश्रम के अध्यक्ष स्वामी शंकरदेव के शिष्य बन गए। यह आश्रम क्रांतिकारी से आध्यात्मिक गुरु बने स्वामी कृपालु देव द्वारा सन 1932 में स्थापित किया गया था। मेवाड़, राजस्थान में यति किशोर चंद्र के नाम से जन्मे यह संन्यासी सक्रिय स्वंतत्रता सेनानी थे। वे बंगाल के क्रांतिकारियों द्वारा स्थापित विप्लव दल के सदस्य थे और उत्तरी भारत में ‘युगांतर’ एवं ‘लोकांतर’ नामक समाचार-पत्रों के वितरण की जिम्मेदारी उन पर थी। ये समाचार-पत्र स्वंतत्रता सेनानियों के मुखपत्र थे और ब्रिटिश सरकार द्वारा प्रतिबंधित थे। ब्रिटिश सरकार ने इन समाचार-पत्रों के प्रकाशन स्थल का पता लगाने और इनके वितरण
को रोकने का भरपूर प्रयास किया, पर विफल रही। किशोर चंद्र ने प्रसिद्ध क्रांतिकारी रास बिहारी बोस (जो लॉर्ड हार्डिंग बम प्रकरण में शामिल थे और जिनके ऊपर ब्रिटिश सरकार ने 3 लाख रुपए का इनाम रखा था) सहित अनेक स्वतंत्रता सेनानियों को शरण दी थी। हरिद्वार में प्रथम सार्वजनिक पुस्तकालय स्थापित करने का श्रेय किशोर चंद्र को जाता है। इस पुस्तकालय में लगभग 3,500 पुस्तकों का संग्रह था। उन्होंने राष्ट्रवादी ढांचे के अधीन शिक्षा प्रदान करने के लिए क्षेत्र में अनेक विद्यालयों की स्थापना की और नवयुवकों के बीच स्वतंत्रता संग्राम की ठोस जमीन तैयार की। इस अवधि के दौरान किशोर चंद्र ने संन्यास ले लिया और स्वामी कृपालु देव के नाम से पुकारे जाने लगे। वे बाल गंगाधर तिलक, मदन मोहन मालवीय, मोतीलाल नेहरू, महात्मा गांधी चितरंजन दास, गणेश शंकर विद्यार्थी, वीजे पटेल, हकीम अजमल खां, जवाहरलाल नेहरू, श्यामा प्रसाद मुखर्जी, पुरुषोत्तम दास टंडन और गुरुकुल कांगड़ी विश्वविद्यालय के संस्थापक स्वामी श्रद्धानंद के करीबी सहयोगी थे। वे सब प्राय: उनके आश्रम में आया करते थे।
1995 से जारी योगयात्रा
स्वामी कृपालु देव ‘विश्व ज्ञान’ नामक पत्रिका प्रकाशित करते थे, जो स्वतंत्रता आंदोलन का मुखपत्र था। उन्होंने 'वेद गीतासार', 'जीवन मुद्रा गीता' और 'आत्मब्रह्म बोधमाला' सहित अनेक पुस्तकों की रचना की। सौ वर्ष की आयु में 1968 में उनकी मृत्यु हो गई। उनकी मृत्यु के बाद स्वामी शंकरदेव उनके उत्तराधिकारी बने। 1995 में अपने गुरु से दीक्षा प्राप्त करने के बाद बाबा रामदेव ने लोगों के बीच योग और इसके चिकित्सकीय लाभों के प्रचार-प्रसार का कार्य छोटे स्तर पर आरंभ किया। योग और आयुर्वेद के महत्व पर तैयार परचों का वितरण करते हुए वे हरिद्वार की सड़कों पर घूमा करते थे। शीघ्र ही उन्होंने मानव शरीर पर योग का प्रयोग शुरू किया और पांच वर्षों से भी अधिक समय में विस्तारपूर्वक किए गए शोध के उपरांत उन्होंने अपना योग स्वास्थ्य सिद्धांत स्थापित किया, जो अब विश्व-प्रसिद्ध है। 2002 में अपनी पहली सार्वजनिक सभा में बाबा रामदेव ने इस सिद्धांत को प्रकट किया। 2003 में योग उपचार कैंपों को शुरू किया गया और अगले साल प्रथम आवासीय कैंप लगाया गया। ऐसा लगता है कि व्यापक तैयारी के बाद रामदेव ने अपने आगमन की घोषणा की। ऐसा बताया जाता है कि उन्होंने अंग्रेजी भाषा सीखी और सुयोग्य एलोपैथिक डॉक्टरों से अनेक रोगों के उपचार तरीकों और आधुनिक चिकित्सा विज्ञान की शिक्षा ग्रहण की। जैसा उनके बाद के संभाषण में दिखता है, कि चिकित्सीय शब्दावली और रोगों की प्रकृति एवं ड्रग-थेरेपी पर उनकी पकड़ और ज्ञान अंपरपार है।
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आयोजन
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स्वच्छ भारत अभियान समारोह
अमेरिका के गांवों में भी दो गड्ढे वाले सुलभ मैजिक शौचालय की मांग : डॉ. विन्देश्वर पाठक
हरियाणा लोक प्रशासन संस्थान, गुरुग्राम एवं भारतीय लोक प्रशासन संस्थान, हरियाणा क्षेत्रीय शाखा के संयुक्त तत्त्वावधान में आयोजित हुआ ‘स्वच्छ भारत अभियान के अंतर्गत ‘स्वच्छ गुरुग्राम, स्वच्छ हरियाणा’ विषयक एकदिवसीय सेमिनार
डॉ. अशोक कुमार ज्योति
‘पि
छले दिनों जब मैं अमेरिका गया तो वहां के लोगों ने कहा कि उनके यहां भी सुलभ मैजिक शौचालय बनवाया जाए।’ जब मैंने पूछा, ‘अमेरिका तो एक समृद्ध राष्ट्र है और यहां तो सबकुछ बहुत अच्छा है, फिर यहां सुलभ मैजिक शौचालय की जरूरत क्यों है?’ तब उन्होंने बताया कि अमेरिका के शहरों में तो सीवर लाइन की सुविधा है, पर गांवों में सेप्टिक टैंक वाले शौचालय हैं, इसीलिए मानव-मल को खाद में बदल देनेवाली सुलभ मैजिक शौचालय की तकनीक उनके लिए फायदेमंद होगी और मल का सुरक्षित निपटान हो जाएगा। इसीलिए आज सुलभ मैजिक शौचालय वैश्विक जरूरत बन गया है। देश को स्वच्छ और सुंदर बनाने में हमारी सुलभ मैजिक शौचालय की तकनीक बहुत कारगर साबित हो रही है।’ ये बातें सुलभ-स्वच्छता एवं सामाजिक सुधारआंदोलन के संस्थापक पद्मभूषण डॉ. विन्देश्वर पाठक ने ‘हरियाणा लोक प्रशासन संस्थान,’ गुरुग्राम एवं ‘भारतीय लोक प्रशासन संस्थान,’ हरियाणा क्षेत्रीय शाखा के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित
‘स्वच्छ भारत अभियान के अंतर्गत स्वच्छ गुरुग्राम, स्वच्छ हरियाणा’ विषयक एकदिवसीय सेमिनार में ‘राष्ट्र-निर्माण में योगदान : सुलभ की पहल’ विषय पर बतौर मुख्य वक्ता के रूप में कहीं। अपने वक्तव्य में डॉ. विन्देश्वर पाठक ने देश में स्वच्छता के परिदृश्य और उस कार्य में विशेष रूप से जुड़े एक वर्ग-विशेष के लोगों के ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य को श्रोताओं के समक्ष प्रस्तुत किया। अपने प्रारंभिक वक्तव्य में उन्होंने मंच पर उपस्थित जी. प्रसन्ना कुमार को रेखांकित करते हुए कहा कि बिहार के बाद सबसे पहले हरियाणा के भिवानी शहर में आज से 42-43 वर्ष पहले सुलभ इंटरनेशनल ने शौचालय-निर्माण का कार्य किया था, जब ये भिवानी नगर निगम के अधिकारी थे और इन्हीं लोगों के सहयोग तथा समाज के अनुकूल तकनीक के
कारण आज हम पूरे देश एवं विश्व के अनेक भागों में कार्य कर रहे हैं। डॉ. पाठक ने कहा कि हरियाणा अपने विकास के लिए हमेशा से तत्पर रहा है और इसीलिए इस राज्य ने इतना विकास किया है। उन्होंने कहा कि हरियाणा के विकास में यहां के राजनीतिज्ञों और अधिकारियों का समान योगदान रहा है। डॉ. विन्देश्वर पाठक ने देश में खुले रूप में शौच जाने की परंपरा का उल्लेख करते हुए कहा कि ‘हमारे यहां ‘देवी पुराण’ में उल्लेख है कि अपने घर से तीर छोड़ने पर वह जितनी दूर जाकर गिरे, वहां शौच करना चाहिए। शौच करने से पहले वहां पहले गड्ढा खोदना चाहिए, उसमें खर-पतवार डालना चाहिए, फिर शौच करना चाहिए और उसपर फिर खर-पतवार डालकर उसे मिट्टी से ढंक देना चाहिए। उन्होंने कहा कि इसीलिए
अमेरिका के शहरों में तो सीवर लाइन की सुविधा है, पर गांवों में सेप्टिक टैंक वाले शौचालय हैं, इसीलिए मानव-मल को खाद में बदल देनेवाली सुलभ मैजिक शौचालय की तकनीक उनके लिए फायदेमंद होगी और मल का सुरक्षित निपटान हो जाएगा
खास बातें आज सुलभ मैजिक शौचालय वैश्विक जरूरत बन गया है गांधी जी चाहते थे कि देश का राष्ट्रपति कोई स्कैवेंजर बने स्कैवेंजर्स की मैंने जाति बदली और उन्हें ब्राह्मण बनाया खुले रूप में शौच जाने की प्रथा हमारे यहां आज तक कायम है। धर्मग्रंथों की चर्चा करते हुए उन्होंने कहा कि शौचालय साफ करनेवाले को हमारे यहां ‘चांडाल’ कहा गया और ‘यजुर्वेद’ के 30वें मंडल में ‘चांडाल’ शब्द की चर्चा है। पालि-साहित्य के ‘थेरी गाथा’ में भगवान बुद्ध और उनके शिष्य आनंद की वार्ता के क्रम में ‘चांडाल’ वर्ग का उल्लेख है।
12 - 18 फरवरी 2018 पालि में इसे ‘पौलकस्य’ कहा गया है। संदर्भ है कि एक दिन भगवान बुद्ध अपने शिष्य आनंद के साथ जा रहे थे तो मार्ग में एक व्यक्ति उनको देखकर छुप गया और दुबक कर बैठ गया। इस पर बुद्ध ने आनंद से पूछा कि यह व्यक्ति हमें देखकर ऐसा क्यों कर रहा है? तब आनंद ने बताया कि यह मैला साफ करनेवाला ‘पौलकस्य’ है, इसीलिए स्वयं को अछूत समझकर आपसे दूर हो गया है। तब भगवान बुद्ध ने उसे अपने पास बुलाया, उससे बात की और अपना आशीर्वाद दिया। उन्होंने बताया कि इस ‘चांडाल’ जाति का मूल ब्राह्मण है। डॉ. पाठक ने बताया कि जब मुसलमान शासकों ने हमारे देश पर कब्जा कर लिया और यहां रहने लगे तो उनकी महिलाएं ज्यादा पर्दे में रहती थीं और वे शौच के लिए बाहर नहीं जाती थीं। इसीलिए उनके घरों में बाल्टीनुमा खुला शौचालय बना और मल की सफाई के लिए हिंदू कैदियों को रखा गया, जिनमें अधिकतर राजपूत की कई उपजातियों के थे। उन्होंने अमृतलाल नागर के उपन्यास ‘नाच्यौ बहुत गोपाल’ का उल्लेख करते हुए कहा कि यह उपन्यास एक स्कैवेंजर महिला पर केंद्रित है और इसमें बताया गया है कि मुसलमानों द्वारा राजपूतों की 29 उपजातियों को स्कैवेंजर बना दिया गया, जिनके जाति-शीर्षक आज भी वे ही हैं। उनके द्वारा मानव-मल की सफाई हाथों से करने के कारण उन्हें अछूत की श्रेणी में रख दिया गया। बाल्टीनुमा शौचालय की यह कुप्रथा बाद में हिंदू परिवारों में भी शुरू हो गई और इसकी सफाई के लिए स्कैवेंजर्स को लगाया गया। ब्रिटिश के आने पर यहां बड़े-बड़े घर तो बने, पर उनमें भी शौचालय की व्यवस्था नहीं थी। हमारे यहां सबसे पहले 1870 में कलकत्ता में सीवर लाइन की व्यवस्था शुरू हुई, लेकिन वह भी आंशिक रूप से। आज भारत में 7,935 शहर हैं, जिनमें मात्रा 732 शहरों में सीवर हैं। सीवर सिस्टम से न मैला ढोने की प्रथा समाप्त हो सकती थी और न ही खुले रूप में शौच जाने की प्रथा। यह प्रणाली बहुत महंगी है और इसे सभी जगह लगाना संभव नहीं है। इसीलिए अफ्रिका, लैटिन अमेरिका आदि देशों में स्वच्छता की बहुत कमी है। दूसरा है, सेप्टिक टैंक की व्यवस्था उन्होंने कहा कि देश में गंदगी की समस्या का बड़ा कारण यह रहा कि हमारे यहां ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र तथा शूद्र में भी अन्य जातियों के लोग गंदगी नहीं साफ करेंगे। शूद्र में भी सिर्फ वाल्मीकि वर्ग के लोग ही सफाई करेंगे यानी 99.9 प्रतिशत लोग गंदा करते हैं और साफ करनेवाले मात्रा 0.001 प्रतिशत हैं। गंदगी करनेवाले ने खुद को साफ करने की जिम्मेदारी से अलग रखा। इस समस्या पर सबसे पहले गांधी जी का ध्यान गया। उन्होंने ट्रेंच लैट्रिन बनवाया और टट्टी पर मिट्टी देने की बात की। गांधी जी ने कहा कि स्कैवेंजर्स को समाज में समान अधिकार मिलना चाहिए। उनके सामाजिक उन्नयन के लिए वे चाहते थे कि इस देश का राष्ट्रपति कोई स्कैवेंजर बने। डॉ. पाठक ने कहा कि मैं गांधी जी के सपनों को पूरा करने के लिए कार्य कर रहा हूं। मैं उनकी इच्छा के अनुकूल किसी को देश का राष्ट्रपति तो नहीं बना सकता, लेकिन सुलभ द्वारा पुनर्वासित अलवर की स्कैवेंजर महिला उषा चौमड़ को मैंने सुलभ इंटरनेशनल का प्रेसिडेंट बनाया है।
उन्होंने कहा कि अब ये स्कैवेंजर नहीं, बल्कि ब्राह्मण हैं। मैंने इनकी जाति बदल दी है और इन्हें ब्राह्मण बना दिया है। समाज में जब धर्म परिवर्तन की व्यवस्था है, तो जाति बदलने की भी व्यवस्था होनी चाहिए। लोगों ने जब मुझसे प्रश्न किया कि आपने इन्हें ब्राह्मण ही क्यों बनाया, तो मैंने उन्हें कहा कि आप चाहें तो कोई भी जाति रख लें, लेकिन उसमें आपका सर नहीं झुकता हो। जिस भी जाति में जाने पर आपकी नजर नहीं झुके, सर नहीं झुके, उसे आप स्वीकार लें तो ये छुआछूत की कुप्रथा समाप्त हो जाएगी। इसी क्रम में उन्होंने अलवर और टोंक शहरों में कैसे स्कैवेंजर महिलाओं को मैला ढोने के घृणित कार्य से निकालकर उन्हें पढ़ाया-लिखाया, खाने-पीने की चीजें बनाना सिखाया, मंदिरों में प्रवेश करवाया, गंगा-स्नान करवाया, कुंभ स्नान करवाया और समाज की मुख्यधारा से जोड़ा, इन सब बातों की संक्षिप्त चर्चा की। इसी दौरान उन्होंने वृंदावन, वाराणसी और उत्तराखंड में विधवाओं के कल्याण के लिए सुलभ द्वारा किए जा रहे कार्यों और देश के विभिन्न भागों में निजी घरों में बनवाए जा रहे शौचालयों का भी उल्लेख किया। डॉ. पाठक ने कहा कि बाबासाहेब भीमराव आंबेडकर ने छुआछूत खत्म करने के चार उपाय बताते हुए कहा था कि जब सबलोग एक साथ मंदिर जाएंगे, एक साथ तालाब में स्नान करेंगे, एक साथ कुएं से पानी भरेंगे और एक साथ बैठकर खाना खाएंगे, तभी छुआछूत समाप्त होगी। संसद में जाने से या विधायक बन जाने से छुआछूत समाप्त नहीं होगी। सुलभ-संस्थापक डॉ. पाठक ने कहा कि हमने अलवर और टोंक शहरों में ऊंची जाति के लोगों तथा स्कैवेंजर्स को एक साथ बैठाकर खाना खिलाया और मंदिरों में प्रवेश करवाया। छुआछूत को पूरी तरह से खत्म करने के लिए एक फॉर्मूला देते हुए डॉ. पाठक ने कहा कि आज देशभर में 6,46,000 गांव हैं। हर गांव में एक ब्राह्मण रहता-ही-रहता है। वे दलितों के घरों में जाएं, उनके यहां पूजा करवाएं, उनसे प्रसाद लें, उनके यहां खाना खाएं, तो छुआछूत अपने आप समाप्त हो जाएगी। उन्होंने कहा कि मैं अपने गांव में सभी जातियों को एक साथ बैठाकर खाना खिलाता
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मैला ढोने की कुप्रथा की समाप्ति और छुआछूत को खत्म करने के लिए मैंने दो गड्ढे वाली सुलभ मैजिक शौचालय तकनीक का आविष्कार किया हूं और जो नहीं खाना चाहते हैं, उनसे हाथ जोड़कर कहता हूं कि आप जाएं। डॉ. पाठक ने अपने वक्तव्य को आगे बढ़ाते हुए कहा कि ‘गांधी के बाद स्कैवेंजर्स की दशा में सुधार लाने के लिए कोई आगे नहीं आया। अनेक लोगों ने कुछ-कुछ पहल तो की, पर वह कोई बड़ा परिवर्तन लाने में सफल नहीं हुए। वर्ष 1968 में मैं बिहार गांधी जन्म शताब्दी समारोह समिति से जुड़ गया, जिसमें मुझे भंगी मुक्ति समिति में कार्य दिया गया। मैं समाजशास्त्रा का विद्यार्थी रहा हूं, जिसमें कहा गया है कि जिस समुदाय के लिए काम करें, उससे संपर्क करें, उसके साथ रहें, तभी उसके लिए कोई निदान निकाला जा सकता है। इसीलिए मैं बिहार के बेतिया शहर में स्कैवेंजर्स की बस्ती में रहने चला गया। जब मैं 22 वर्ष का था, उसी समय मेरी शादी हो चुकी थी। यह बात जब मेरे ससुर को पता चली तो वे बहुत नाराज हुए। उन्होंने कहा कि मैं आपका चेहरा नहीं देखना चाहता हूं। और कहा कि यदि हम ब्राह्मण न होते तो अपनी बेटी की शादी किसी और से कर देते। आप समझ सकते हैं कि मुझपर क्या बीती होगी। मैंने उन्हें कहा था कि मैं इतिहास का पन्ना पलटने चला हूं या तो मैं सफल हो जाऊंगा या कहीं गुम हो जाऊंगा। बेतिया में रहते हुए वहां की दो घटनाओं से मैं बहुत मर्माहत हुआ। एक घटना में, एक नई नवेली दुल्हन को उसकी सास जबरदस्ती उसे मैला ढोने के कार्य पर भेज रही थी, पर बहू नहीं जाना चाहती थी। जब मैंने उसका विरोध किया तो सास ने मेरे सामने एक बड़ा प्रश्न रख दिया कि यदि यह मैला नहीं ढोएगी तो क्या करेगी? यदि यह कल से सब्जी बेचेगी तो क्या कोई उसे खरीदेगा? मैं उस समय निरुत्तर हो गया था। दूसरी घटना में, लाल कमीज पहने एक लड़के को सांड घसीटकर मार रहा था। कुछ लोग उसे बचाने के लिए दौड़े, किंतु भीड़ से
आवाज आई कि यह लड़का स्कैवेंजर की बस्ती का है तो सब पीछे हट गए। मैं उसे अस्पताल ले गया, पर उसकी जान नहीं बच पाई।’ इन घटनाओं से डॉ. पाठक ने स्कैवेंजर्स के लिए कुछ ठोस और जमीनी कार्य करने की ठानी। डॉ. पाठक ने बताया कि मैला ढोने की कुप्रथा की समाप्ति और छुआछूत को खत्म करने के लिए उन्होंने दां गड्ढे वाली सुलभ मैजिक शौचालय तकनीक का आविष्कार किया। इसमें एक बार में एक गड्ढे का उपयोग किया जाता है और एक गड्ढा स्टैंड बॉय में रखा जाता है। जब पहला गड्ढा भर जाता है तो दूसरे का उपयोग किया जाता है और इस दौरान डेढ़-दो साल में पहले गड्ढे का मल खाद में बदल जाता है। इसीलिए इसको साफ करने के लिए किसी स्कैवेंजर की जरूरत नहीं पड़ती है। इस प्रकार हमने बाल्टीनुमा शौचालय की जगह सुलभ मैजिक शौचालय की तकनीक दी, जिससे समाज की एक बड़ी समस्या का समाधान संभव हुआ। उन्होंने बताया कि हमने देशभर में 15 लाख शौचालय बनवाए हैं, जो आज भी ठीक से चल रहे हैं। उन्होंने कहा कि हम सरकार के अधिकारियों से मिलकर कार्य करते हैं। शौचालय के लिए फॉलोअप आवश्यक है। शौचालय बनवाने के लिए सरकार बैंकों से कर्ज उपलब्ध करवाए, तभी लक्ष्य को पूरा किया जा सकता है। डॉ. पाठक ने कहा कि सुलभ ने लगभग 9000 सार्वजनिक शौचालय बनवाए हैं और उनका उपयोग प्रतिदिन लगभग 2 करोड़ लोग कर रहे हैं। उन्होंने महाराष्ट्र के पंढरपुर में स्थित विश्व के सबसे बड़े सुलभ सार्वजनिक शौचालय के बारे में बताते हुए कहा कि उस शौचालय का उपयोग प्रतिदिन लगभग 4 लाख लोग करते हैं। उन्होंने बताया कि जब हमने सबसे पहले पटना में सुलभ सार्वजनिक शौचालय
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देश में गंदगी की समस्या का बड़ा कारण यह रहा कि हमारे यहां ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र तथा शूद्र में भी अन्य जातियों के लोग गंदगी नहीं साफ करेंगे। शूद्र में भी सिर्फ वाल्मीकि वर्ग के लोग ही सफाई करेंगे यानी 99.9 प्रतिशत लोग गंदा करते हैं और साफ करने वाले मात्रा 0.001 प्रतिशत बनवाया तो लोग कहते थे कि बस और रेल में टिकट न खरीदकर चलनेवाले बिहारी मानसिकता के बीच इस शौचालय के लिए कौन पैसा देगा। पर हमने जब शुरू किया तो 10 पैसे शुल्क देकर पहले ही दिन लगभग 500 लोगों ने उसका उपयोग किया। उन्होंने सुलभ सार्वजनिक शौचालय से बायोगैस और उसमें उपयोग जल को शुरू कर पुनः उपयोग में लाने की वैज्ञानिक सुलभ तकनीक का उल्लेख करते हुए कहा कि शहरों को स्वच्छ रखने और जल-संरक्षण के लिए हमारी ये दोनों तकनीकें कापफी कारगर हो रही हैं। उन्होंने सुलभ द्वारा 50 पैसे प्रति लीटर पीने लायक शोधित शुद्ध जल पश्चिम बंगाल में और 1 रुपए प्रति लीटर दिल्ली में उपलब्ध कराने के सुलभ जल संयंत्रा और जल एटीएम मशीन का भी उल्लेख किया। सुलभ-संस्थापक ने बताया कि गांधी के बाद सबसे अधिक किसी ने स्वच्छता और शौचालय की बात की है तो वह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी हैं। अब बच्चा-बच्चा स्वच्छता पर ध्यान दे रहा है। डॉ. पाठक ने कहा कि अभी एक लाख शौचालय तत्काल बन सकते हैं, जिनमें छह लाख लोगों को रोजगार मिलेगा और इसके निर्माण में जो राजमिस्त्री और मजदूर कार्य करेंगे, उन्हें भी काम मिलेगा। उन्होंने कहा कि हमें इस धारणा को खत्म करना होगा कि जितना बड़ा आदमी, उतना कम काम। अब सबको काम करना होगा। जब नागरिक, संस्था और सरकार मिलकर काम करेंगे, तभी स्वच्छता तक पहुंच संभव है। कार्यक्रम के प्रारंभ में अपने स्वागत भाषण में हरियाणा लोक प्रशासन संस्थान के महानिदेशक जी. प्रसन्ना कुमार ने कहा कि स्वच्छ गुरुग्राम, स्वच्छ हरियाणा और स्वच्छ भारत बनाने के लिए हमें स्वच्छता अपने घर से शुरू करनी होगी। उन्होंने कहा कि मैं सुलभ और डॉ. पाठक को पिछले 42 वर्षों से जानता हूं, जब मैंने इनके द्वारा भिवानी में शौचालय बनवाया था। उन्होंने उपस्थित प्रतिभागियों
से अनुरोध किया कि आप दिल्ली स्थित सुलभ के परिसर में जरूर जाएं, जहां आप देखेंगे कि स्वच्छता अभियान के लिए कितना काम किया जा रहा है। इस अवसर पर अपने वक्तव्य में गुरुग्राम नगर निगम के आयुक्त वी. उमाशंकर ने कहा कि स्वच्छता एक व्यक्तिगत व्यवहार है, पर इसका असर समुदाय पर पड़ता है। उन्होंने कहा कि पहले शौचालय को सार्वजनिक बुनियादी ढांचे के रूप में नहीं देखा गया था, पर आज यह सामुदायिक जरूरत बन गया है। पहले हर गांव अपने-अपने कूड़ों का निष्पादन करता था, पर अब गांव जब शहर बन गए तो कूड़ों का निष्पादन कठिन हो गया है। उन्होंने कहा कि शहरों में सुविधाओं की बहुत जरूरत है, सुविधाएं हो भी जाती हैं, पर उनका रखरखाव बहुत जरूरी हो जाता है। उन्होंने आगे कहा कि यह जरूरी है कि शहर को साफ रखने के लिए हम सार्वजनिक जगहों पर नहीं थूकें, सार्वजनिक जगहों पर कूड़ा न फेंके। यदि हम मेट्रो स्टेशन को साफ-सुथरा रख सकते हैं तो रेलवे स्टेशनों को क्यों नहीं! उन्होंने कहा कि यदि शहर को सुंदर बनाना है तो वह स्वच्छता से ही संभव होगा। उन्होंने लोगों से आह्वान किया कि स्वच्छता को एक अभियान की तरह लेना होगा। सुलभ इंटरनेशनल की प्रेसिडेंट और पुनर्वासित स्कैवेंजर महिला उषा चौमड़ ने अपने जीवन में आए बदलाव को रेखांकित करते हुए कहा कि मैंने अपने इस जीवन में ही दो-दो जिंदगी जी है। हमने पहले जहां मैला ढोकर नरक की जिंदगी जी, वहीं सुलभ द्वारा ब्राह्मण बना दिए जाने और समाज की मुख्यधारा में शामिल कर दिए जाने पर स्वर्ग की जिंदगी जी रही हूं। उन्होंने कहा कि मुझे मैला ढोने से तो मुक्ति मिली ही, घूंघट से भी मुक्ति मिली है। उन्होंने डॉ. विन्देश्वर पाठक द्वारा उनके जीवन को इस तरह बदल दिए जाने पर अपनी कृतज्ञता ज्ञापित करते हुए कहा कि मैंने गांधी जी को तो नहीं देखा, लेकिन हमारे लिए तो डॉ. पाठक जी ही
गांधी हैं और हमारे लिए भगवान हैं। उषा चौमड़ ने कहा कि अलवर में आज बदलाव आ गया है। जो ब्राह्मण पहले हमसे छुआछूत करते थे, वे आज अपने घरों में होनेवाली शादियों में हमें बुलाते हैं, प्रेम से बैठाते हैं, अपने साथ खाना खिलाते हैं और उपहार देते-लेते हैं। अपने देश की स्वच्छता के संबंध में उषा चौमड़ ने कहा कि मैं कई देशों में गई हूं और वहां की साफ-सफाई देखती हूं तो मन प्रसन्न हो जाता है। उसी तरह की साफ-सफाई हमें अपने देश में भी रखनी चाहिए। हरियाणा के मेवात क्षेत्रा के हिरमथला गांव की सरपंच शकुंतला देवी ने बताया कि उनके घर में पहले शौचालय नहीं था तो वे अपनी बहू-बेटियों को खुले में शौच कराने बाहर लेकर जाती थीं, तब उन्हें बहुत दिक्कतों का सामना करना पड़ता था। जब सुलभ ने उनके गांव के हर घर में शौचालय बनवा दिया है तो अब उनकी दिक्कत तो दूर हुई ही, उनका पूरा गांव भी स्वच्छ हो गया है। गुरुग्राम औद्योगिक संघ के अध्यक्ष और हरियाणा लोक प्रशासन संस्थान के सदस्य जे. मंगला ने कहा कि वे डॉ. पाठक के जीवन और कार्यों के बारे में जानकर बहुत प्रसन्न हैं। उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्रा नरेन्द्र मोदी ने स्वच्छता को जो गति दी है, उससे लगता है कि कुछ-कुछ काम हो रहा है। उन्होंने गुरुग्राम शहर को स्वच्छ रखने के बाधक तत्त्वों का उल्लेख करते हुए कहा कि सरकारी स्तर पर उनमें सुधार करने की जरूरत है और स्वच्छता के लिए हम सबको मिलकर काम करना होगा। ‘आई एम गुरुग्राम’ संस्था की सहसंस्थापिका लतिका ठकराल ने गुरुग्राम शहर के वजीराबाद में पारस अस्पताल के निकट के नाले की सफाई और उसे ढंकने के अपने कार्यों को एक प्रस्तुतीकरण के द्वारा प्रतिभागियों को बताया। उन्होंने बताया कि जब हमने नाले की सफाई शुरू की तो आसपास के लोगों को यह असंभव लगता था, पर हमने लगभग 100 ट्रक प्लास्टिक और अन्य कचरे को उठाकर उसकी सफाई की और उसका सौंदर्यीकरण किया तथा अरावली के क्षेत्रों के पेड़पौधों को भी उसके ऊपर बने 2.2 किलोमीटर के ढक्कन के ऊपर लगाए। उन्होंने बताया कि वर्षा का पानी भी नाले में ठीक तरीके से चला जाए, उसकी व्यवस्था भी की गई। ठोस कचरा प्रबंधन के क्षेत्रा में कार्य करनेवाली वैश्विक संस्था ‘इको ग्रीन कंपनी’ के प्रतिनिधि सुरेंद्र
शर्मा ने अपने प्रस्तुतीकरण में बताया कि गुरुग्राम नगर निगम के साथ मिलकर उनकी कंपनी की गाड़ियां घर-घर जाकर कचरा उठाती हैं और उनका निष्पादन अच्छे तरीके से किया जाता है। उन्होंने गुरुग्राम के बंधवारी इलाके में कचरा निष्पादन के लिए बनाए जा रहे आधुनिक केंद्र के बारे में भी जानकारी दी, जो बिल्कुल ढंका रहेगा और उसमें से किसी भी प्रकार की गंध नहीं आएगी। साथ ही निष्पादन के दौरान जो गैस उत्पन्न होगी, उसे भी जलाकर छोड़ा जाएगा, जो पर्यावरण के लिए हानिकारक नहीं होगी। इस तरह गुरुग्राम शहर को स्वच्छ रखने की एक बड़ी परियोजना का निर्माण हो रहा है। अपने अध्यक्षीय वक्तव्य में भारतीय लोक प्रशासन संस्थान, हरियाणा क्षेत्राय शाखा के अध्यक्ष एवं वरिष्ठ आईएएस अधिकारी एम.सी. गुप्ता ने कहा कि हम गंदगी नहीं फैलाएं, तभी हम अपने गुरुग्राम, हरियाणा और फिर देश को स्वच्छ बना सकते हैं। उन्होंने कहा कि सफाई के लिए सिर्फ सरकार ही नहीं, बल्कि हम सभी जिम्मेदार हैं। उन्होंने कहा कि एनजीओ की तरफ से जो कार्य किए जा रहे हैं, वे प्रशंसनीय हैं। उन्होंने आगे कहा कि डॉ. विन्देश्वर पाठक जी ने बहुत कायदे से सुलभ शौचालय को स्वच्छता और सामाजिक विसंगतियों को दूर करने के लिए जोड़ा है। हम यदि स्वच्छता को सामाजिक न्याय से जोड़ें तो बहुत परिवर्तन आएगा। उन्होंने ने कहा कि पहले की सामाजिक मान्यताओं में अब बहुत परिवर्तन आया है। बचपन में जब हम शौच के लिए जाते थे तो वह बहुत अशोभनीय होता था, किंतु अब बदलाव आया है, उसमें डिग्नीटी आई है। उन्होंने कहा कि जैसे ईमानदारी एक मानसिक व्यवहार है, उसी तरह स्वच्छता भी एक उच्च मानसिक व्यवहार है। हमें शपथ लेनी चाहिए कि हम गंदगी नहीं फैलाएंगे, कूड़ा नहीं फैलाएंगे और अपने इलाके को स्वच्छ रखेंगे, आज की सबसे बड़ी जरूरत यही है। उन्होंने आगे कहा कि प्रधानमंत्रा नरेन्द्र मोदी का सपना, सपना ही न रह जाए, इसके लिए हम सबको प्रयास करना चाहिए। कार्यक्रम का संयोजन डॉ. मनवीर और अनुजा तथा सफल संचालन सुभाषिणी यादव ने किया। संस्थान की वरिष्ठ प्राध्यापिका और प्रशिक्षण-समन्वयक नीरजा मलिक ने धन्यवादज्ञापन किया और कहा कि स्वच्छता की शुरुआत हमें अपने बच्चों से करनी चाहिए, जिससे एक बड़ा बदलाव आएगा।
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पुस्तक समीक्षा
पुस्तक समीक्षा
बच्चे 'वरियर’ नहीं, 'वारियर’ बनें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की पुस्तक ‘एग्जाम वारियर्स’ में छात्रों को परीक्षा से नहीं डरने को लेकर कई उपयोगी टिप्स
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धानमंत्री नरेंद्र मोदी ने दो फरवरी, 2016 को ‘मन की बात’ में परीक्षा और शिक्षा को लेकर कई सारी बातें कही थीं। उनका मुख्य जोर इस बात पर था कि शिक्षा सीखने का नाम है और परीक्षा को लेकर खौफ बच्चों में देखा जाता है, वह अनुचित है। इसी मौके पर उन्होंने परीक्षा को लेकर कुछ लोगों के सुझाव का जिक्र किया था। उनके ही शब्दों में, ‘तमिलनाडु के मिस्टर कामत ने बहुत अच्छे दो शब्द दिए हैं। वे कहते हैं कि स्टूडेंट्स 'वरियर’ न बनें, 'वारियर’ बनें।’ अब इसी शब्द को लेकर ‘एग्जाम वारियर्स’ नाम से बच्चों के लिए उनकी पुस्तक आ गई है। यह पुस्तक ऐसे समय आई है जब परीक्षाओं का वक्त नजदीक है। बच्चों को इस तनाव से लड़ने के लिए तमाम विशेषज्ञ नुस्खे देते हैं। पर इस बार ये नुस्खे उन्हें पीएम मोदी की तरफ से काफी सकारात्मक ढंग से मिलेंगे। ‘एग्जाम वारियर्स’ को अनोखे अंदाज में और मंत्रों की शक्ल में लिखा गया है। साथ ही यह 'इंटरएक्टिव' भी है। छात्र इस पुस्तक को चाव से पढ़ें इसीलिए इसमें कई
‘एग्जाम वारियर्स’ को अनोखे अंदाज में और मंत्रों की शक्ल में लिखा गया है। साथ ही यह 'इंटरएक्टिव' भी है
हम चुनाव से नहीं बच्चे परीक्षा से न डरें
‘एग्जाम वारियर्स’ पुस्तक के लोकार्पण के अवसर पर विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने पुस्तक के अंश पढ़कर सुनाया
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धानमंत्री मोदी की पुस्तक ‘एग्जाम वारियर्स’ के लॉन्चिंग के दौरान विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने बच्चों को एग्जाम में स्ट्रेस से बचने के लिए 'चुनाव' का उदाहरण दिया। उन्होंने पुस्तक में लिखे टिप्स का जिक्र करते हुए 'एग्जाम से डरो नहीं' कि जगह 'चुनाव से डरो नहीं' कह दिया। जिसके बाद प्रोग्राम में उपस्थित लोग जमकर ठहाके लगाने लगे। इस मौके पर सुषमा ने बच्चों को पुस्तक में परीक्षा को लेकर दिए गए टिप्स भी सुनाए। उन्होंने एक वाकया भी सुनाया और कहा कि मैं ही कई बार बच्चों को कह देती थी कि एग्जाम से डरो नहीं। भगवान को प्रणाम करो और जाओ। मुझे
गतिविधियां भी शामिल की गई हैं, जिनका छात्र अभ्यास करके न सिर्फ तनाव से मुक्ति पा सकते हैं, बल्कि परीक्षा के लिए तैयारियां भी कर सकते हैं। पीएम मोदी के ऐप्प से इस पुस्तक के कई खास फीचर्स को अनलॉक किया जा सकता है। पुस्तक
जवाब मिलता था यदि भगवान को एग्जाम देना पड़े तो वे भी डरने लगें। एग्जाम ऐसी चीज है, लेकिन आज यहां खड़ा होकर भगवान नहीं एक इंसान, वो भी साधारण नहीं इस देश के पीएम कह रहे हैं कि परीक्षा का खौफ सिर पर उठाने की कोई जरूरत नहीं है। इसके बाद विदेश मंत्री समझाने लगती हैं कि हम खुद कहते हैं कि चुनाव से डरो मत। प्रधानमंत्री मोदी भी यही कहते हैं कि मैं चुनाव से नहीं डरता। तुम परीक्षा से नहीं डरो। प्रधानमंत्री कहते हैं कि हमें यह परीक्षा हर पांच साल बाद देनी पड़ती है। लोकसभा पहले भंग हो जाए तो और पहले परीक्षा देनी पड़ती है। में छात्रों का कम्युनिटी बनाने के लिए मार्गदर्शन भी किया गया है। एक ऐसे दौर में जब परीक्षा को खौफ और फोबिया के तौर पर देखा जाता है। घर से लेकर स्कूल-कॉलेज तक परीक्षा के दौरान हर तरफ एक भय का माहौल व्याप्त
रहता है, नरेंद्र मोदी की इस पुस्तक के आने से छात्रों पर ही नहीं उनके अभिभावकों और शिक्षकों पर भी एक रचनात्मक प्रभाव पड़ेगा। इस पुस्तक में 10वीं और 12वीं की बोर्ड परीक्षा देने वाले छात्रों की परेशानियों पर फोकस किया गया है। पीएम ने इसमें बताया है कि ‘नॉलेज’ हमेशा ‘एग्जाम मार्क्स’ से ज्यादा अहम होती है। पुस्तक के साथ एक अच्छी बात यह है कि उसे सीधे संवाद करने के अंदाज में लिखा गया है। इसमें कई उदाहरण दिए गए हैं। साथ ही स्टूडेंट्स को योग और फिजिकल एक्टिविटीज की जरूरत भी समझाई गई है। पुस्तक का प्रकाशन पेंग्विन बुक्स ने किया है। इसकी कीमत 100 रुपए रखी गई है।
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स्वच्छता
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स्वच्छता की जापानी संस्कृति
जापान जितना आधुनिक देश है उतना ही पारंपरिक भी। खासतौर पर स्वच्छता को लेकर जापान में परंपरा और आधुनिक तकनीक का शानदार मेल देखने को मिलता है
खास बातें सूजी परंपरा के तहत बच्चे स्कूल में स्वच्छता का पाठ सीखते हैं यहां महिलाअों में घर को स्वच्छ रखने की पारंपरिक समझ है आज जापान में इंटेलिजेंट टॉयलेट तक बनाए जा रहे हैं
जा
एसएसबी ब्यूरो
पान के जनजीवन, परंपरा और इतिहास के साथ जो एक बात बहुत गहरी जुड़ी है, वह है शौचालय। शौचालय के एक कमरे को लेकर जापान में सोच और व्यवहार की न जाने कितनी आदतें जुड़ी हैं। जापान अपने हाई-टेक, डेरीएर-वाशिंग, ट्यूशीवार्मिंग शौचालयों के लिए प्रसिद्ध है। ये सब अब जापानी संस्कृति का महत्वपूर्ण हिस्सा हैं। जापान के प्रसिद्ध ब्रांड ‘टोटो’ ने जापान के चार मुख्य द्वीपों के दक्षिणी हिस्से में इनसे जुड़ा 60 मिलियन डॉलर का एक संग्रहालय बनाया है। जापान में स्वच्छता एक एेसी सार्वजनिक सेवा है, जिसके साथ सभी जुड़े हैं। इसकी जिम्मेदारी सबके ऊपर है। एेसा बिल्कुल नहीं है कि स्वच्छता को लेकर वहां समाज के हाशिए के लोग ही चिंता करते हैं। यह बड़ी बात है। दुनिया भर में स्वच्छता को लेकर हुए सभ्यतागत विकास में इस तरह की सामूहिक उत्तरदायित्व की बात एक तो कहीं देखने को नहीं मिलती है और न ही इस तरह के किसी दरकार को जापान की तरह और कहीं लोक स्वीकृति
हासिल हुई है। जापान में स्वच्छता को लेकर हुए सभ्यतागत विकास में जो एक बात गौर करने की है, वह यह कि वहां के लोग तकनीकी सुधार के साथ इस दिशा में आगे बढ़ते रहे हैं। यह एक अंतर है जापान की स्वच्छता की संस्कृति और बाकी दुनिया में। ब्रश, झाड़ू और कपड़े के पोछे के पारंपरिक इस्तेमाल से बहुत पहले यहां के लोग काफी आगे निकल गए हैं। यही वजह है कि जापानी जीवनशैली बहुत पहले से पूरी दुनिया में सर्वाधिक अनुशासित मानी जाती है। आज इस अनुशासन के साथ जहां स्वच्छता के प्रति जागरूक निष्ठा की परंपरा जुड़ी है, वहीं आधुनिक दौर में इस परंपरा का स्मार्ट तकनीकी विकास भी दिखता है। स्वच्छता को लेकर जापानी परंपरा की बात करें तो सबसे पहले हमें यह देखना होगा कि वहां बच्चों में
कैसे स्वच्छता के संस्कार आते हैं। जापान में जब से स्कूली शिक्षा का विकास हुआ है, वहां इससे जुड़ी स्वच्छता की संस्कृति भी विकसित हुई है। यह एक बड़ी बात है। स्कूलों में स्वच्छता से जुड़े क्रियाकलाप वहां महज अनिवार्य रूप से नहीं, बल्कि स्वाभाविक तौर पर जुड़े हैं। वे हर दिन इसके लिए 15 मिनट से लेकर आधे घंटे का समय निकालते हैं।
'सूजी' और 'जोकिन'
जापान के स्कूलों में एक काम बहुत ही निराला होता है, जो बच्चों के बाद के जीवन के लिए काफी उपयोगी सिद्ध होते हैं। इस काम को ‘सूजी’ कहते हैं। दरअसल, सूजी सफाई करने की बहुत पुरानी जापानी परंपरा है। इस परंपरा का निर्वाह हर छात्र स्कूल की आखिरी घंटी के बाद खुशी-खुशी करता
जापान में महिलाएं सफाई के संदर्भ में सिर्फ पुस्तकों के अध्ययन से संतुष्ट नहीं होतीं। वे गृह प्रबंधन के सिलसिले में साप्ताहिक व्याख्यानों में हिस्सा लेती हैं। यह लेक्चर करिजुमा शुफू या करिश्माई गृहिणी देती हैं, जिनकी ख्याति फिल्मी सितारों से कम नहीं होती
है। ‘सूजी’ की तरह एक और परंपरा ‘जोकिन’ है। इसमें स्कूली छात्र अपने हाथ से ‘जोकिन’ (सफाई का कपड़ा) सिलते हैं। ये कपड़े कक्षा की पिछली दीवार में लगे हुए छोटे-छोटे हुकों पर टंगे रहते हैं। कोने में झाड़ू, बाल्टी और पोछे भी रखे रहते हैं। जैसे ही स्कूल की छुट्टी के लिए घंटी बजती है। छात्र अपना-अपना जोकिन उठाकर मेज, कुर्सी और खिड़कियों को साफ करते हैं। जब कक्षा का एक सत्र पूरा हो जाता है तो सफाई का मुख्य कार्य, जिसे ‘ओ-सूजी’ कहते हैं, आयोजित किया जाता है। इसमें कई घंटे लगते हैं और पूरा स्कूल साफ किया जाता है। अक्सर छात्र सोचते हैं कि इस कार्य के लिए वैक्यूम क्लीनर या सफाई कर्मचारियों का प्रयोग क्यों नहीं किया जाता, लेकिन उन्हें जल्द ही समझ में आ जाता है कि यह उनकी शिक्षा का ही हिस्सा है, जिससे वे सफाई के महत्व और उसके तरीके को समझ जाते हैं।
घर में स्वच्छता
जापानी सामाज में लैंगिक असमानता जैसी समस्या बहुत पहले से नहीं रही है। इसका असर वहां स्वच्छता की घरेलू संस्कृति पर भी स्पष्ट दिखता
12 - 18 फरवरी 2018
फ्लश की आवाज पर पानी का पता नहीं
आज जापानी टॉयलेट यूरोप और अमेरिका में हाथों हाथ बिक रहे हैं। जापानी कंपनियों ने अब एसे टॉयलेट बना लिए हैं, जिनमें प्रयोगकर्ता के मूत्र की जांच तक अपने आप हो जाती है
मी
डिया सेंटर से वापस मैं कमरे में आया। नागर तैयार हो रहे थे। उनके बाद मैं भी नहाने घुस गया। बाथरूम बहुत ही शानदार था। सबसे आश्चर्य की बात थी कि कमोड अत्याधुनिक था। देखने में तो यह एकदम साधारण था मगर यह वास्तव में कंप्यूटराइज्ड था। आज सुबह भी और कल भी जल्दी-जल्दी में इस तरफ ध्यान नहीं दिया था। कमोड पर तरह तरह के रंग-िबरंगे बटन लगे थे, जिनमें जापानी में कुछ लिखा था। यह एेसा लग रहा था जैसे कोई कंट्रोल पैनल हो। इन बटनों को देखकर मेरे मन में जिज्ञासा हुई कि आखिर इनका मतलब क्या है। एक बटन दबाया तो फ्लश हो गया मगर पानी नहीं निकला। पूरे बाथरूम में जोर-जोर से फ्लश की आवाज आ रही थी पर पानी का कहीं पता नहीं था। मैं घबरा गया कि कहीं मैंने कुछ गडबड़ तो नहीं कर दी। उस बटन को वापस दबाया तो आवाज आनी बंद हो गई। वापस दबाया तो फिर फ्लश होने की आवाज आने लगी, वापस बटन दबाया तो बंद हो गई। बाहर निकला तो मेरी निगाह टेबल पर पड़ी कुछ पत्रिकाओं पर पड़ी, इनमें एक पत्रिका पर कमोड की फोटो छपी थी, मैंने उसे उठाया तो पता चला कि एक जापानी कंपनी है-टोटो, यह अत्याधुनिक बाथरूम के सामान तथा कमोड आदि बनाती है। अंदर बाथरूम में लगे कमोड के बारे में इस पत्रिका में पूरी जानकारी थी। दरअसल इस कंपनी ने ये अत्याधुनिक कंप्यूटराईज्ड कमोड हाल ही जारी किए थे और इनके बारे में विषद जानकारी इस पत्रिका में अंग्रेजी में दी गई थी।
है। इस असर में घर में स्त्री-पुरुष कार्य के विभाजन की भी एक दिलचस्प परंपरा वहां विकसित हुई है। जिस तरह बाकी देशों में घर के काम महिलाअों को मजबूरी में करना पड़ता है, जापान में वह सभ्यतागत शील का हिस्सा है। स्कूल सूजी का पाठ महिलाएं कैसे अपने घरों में दोहराती हैं, यह इसका बेहतरीन उदाहरण है। यह सीख दरअसल उनके बाकी जीवन की प्रस्तावना समान होती है। इस किस्म की
अभी थोड़ी देर पूर्व ही जिस बात को जानने के लिए मैं परेशान हो रहा था उसके बारे में भी इस पत्रिक में जानकारी थी। दरअसल वह बटन जो मैंने दबाया था और फिर जोर की आवाज आने लगी थी, उसका मकसद यह है कि कई व्यक्ति शौच करते हुए जो अवांछित आवाजें निकालते हैं, बाहर का व्यक्ति उन्हें सुनकर अटपटा महसूस नहीं करें। इसीलिए यह व्यवस्था की गई है। आप शौच कर रहे हैं और आपको संकोच महसूस हो रहा है तो यह बटन दबा दो तो आप निस्संकोच हो कर अपना काम कर सकेंगे। इसी तरह एक बटन कमोड की सीट गर्म करने के लिए है। हमारे यहां तो इतनी ठंड नहीं पड़ती मगर जहां बहुत ठंड पड़ती है, वहां लोग शौच करते हुए ठंड से अकड़ जाते हैं, ऐसे में एक बटन दबाने मात्र से सीट गर्म हो जाती है। एक बटन दबाने से शौच करने के बाद आपके पीछे पानी का छिड़काव हो जाता है, जिससे सारी गंदगी साफ हो जाती है। एक अन्य बटन दबाने से गर्म-गर्म हवा आपके पीछे से आती है। इससे टिश्यू पेपर की भूमिका बिल्कुल समाप्त हो है। इन बटनों के बारे में जानकार मुझे प्रसन्नता हुई, क्योंकि पिछले तीन
मानसिकता ने जापान में गृहकार्य पर आधारित एक पूरी संस्कृति को विकसित किया है। आप जापान के किसी भी स्टोर में कदम रखें, तो आप पाएंगे कि पूरी की पूरी शेल्फ स्वछता को समर्पित है। किताबों में पाइप किस तरह साफ करें, जैसे विषयों पर भी पूरे-पूरे अध्याय होते हैं। पुस्तकों में यह भी दर्ज होता है कि किस देश में सफाई के कौन-कौन से तरीके अपनाए जा रहे हैं और उनमें क्या एेसा है, जिसे
जापान में तोते तक को शौच करने का सही तरीका सिखाया जा रहा है। इसकी जरूरत वे लोग समझेंगे, जिन्होंने अपने घर में कोई पक्षी पाला होगा
दिनों से वहां मैं टिश्यू पेपर ही इस्तेमाल कर रहा था और परेशान हो गया था, क्योंकि इसकी आदत मुझे नहीं। भारत के साधारण होटलों के बाथरूमों में तो फिर भी मग्गे मिल जाते हैं, बड़े होटलों और विदेशों तथा हवाई जहाजों में कहीं मग्गे नहीं होते। ये टायलेट अपने आप साफ हो जाते हैं। ज्यों ही व्यक्ति सीट से उठता है, अपने आप फ्लश चल जाता है। इन पर कीटनाशक दवाओं की एेसी परत लगी होती है जो कीटाणुओं का तुरंत खात्मा कर देती है। अन्य बटनों से कमोड का ढक्कन व सीट अपने आप खुल जाता था। पुरूषों का बटन, ढक्कन व सीट दोनों खोलता था जबकि स्त्रियों का बटन सिर्फ ढक्कन खोलता था। जापान अत्याधुनिकता का परचम लहराने में दुनिया में सदैव सबसे आगे रहता है। इसीलिए व्यक्ति के रोजमर्रा के जीवन की एक महत्वपूर्ण क्रिया को सुविधाजनक बनाने में भी वे पीछे नहीं हैं। आज जापानी टॉयलेट यूरोप और अमेरिका में हाथों हाथ बिक रहे हैं। जापानी कंपनियों ने अब एसे टॉयलेट बना लिए हैं, जिनमें प्रयोगकर्ता के मूत्र की जांच तक अपने आप हो जाती है। कई कमोड रिमोट कंट्रोल के साथ भी आते हैं, जिसे बैठकर हाथ में ले लिया जाता है और सुविधानुसार बटन दबाए जाते हैं। टोटो कंपनी ने इसी तरह वाशलेट भी बनाए हैं। ये तब काम आते हैं, जब आप यात्रा में हों या आसपास टॉयलेट नहीं हो। घर से चलने के पूर्व इनमें पानी भर लिया जाता है, इनके साथ फोल्डिंग फव्वारा नोजल लगा होता है, जिसको खोलकर दबाने से तेज गति से पानी निकलता है। इस तरह के वाशलेट आजकल बहुत प्रसिद्ध हो रहे हैं। (‘प्रातःकाल’ के प्रधान संपादक सुरेश गोयल का ब्लॉग)
सीखा जा सकता है।
करिजुमा शुफू
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स्वच्छता
न सिर्फ किताबों में, बल्कि जनसाधारण के स्तर पर भी पूरी दुनिया में यह बहस आम है कि शौचालय को साफ करते समय स्वीडन का तरीका अपनाया जाए, जिसमें सिरके में डूबी रुई का प्रयोग होता है या ‘बशीकी’, जो कि जापान का परंपरागत तरीका है। जपान में महिलाएं सफाई के संदर्भ में सिर्फ पुस्तकों के अध्ययन से ही संतुष्ट नहीं होतीं। वे गृह प्रबंधन के सिलसिले में साप्ताहिक व्याख्यानों में हिस्सा लेती हैं। ये व्याख्यान 'करिजुमा शुफू' या करिश्माई
गृहिणी देती हैं, जिनकी ख्याति फिल्मी सितारों से कम नहीं होती। इन व्याख्यानों में बताया जाता है कि फुटोमोमिन (पुरानी रुई) की जगह जो लोग अपने पवित्र घरों में रसायन के पोछे इस्तेमाल करते हैं, उन्हें शर्म आनी चाहिए। बावजूद इसके गृहकार्य से कम ही जापानी महिलाएं आनंदित होती हैं। वास्तव में वे हमेशा स्वच्छता के लिए हाईटेक तरीके तलाशती रहती हैं। तभी जापान को 'कादिन रिकोकू' कहा जाता है यानी अप्लायसेंस पर निर्मित राष्ट्र। जापानी महिलाएं अपने गृहकार्य को नहीं छोड़ती हैं और न ही बाहर की मदद लेती हैं। उनका मानना है कि सूजी (स्वच्छता) से आत्मा को तेज मिलता है। यह भी कि कोई महिला इसको जितना करेगी, उतना ही वह स्वर्ग के करीब हो जाएगी।
मिशी (राह)
जापानी समझ और परंपरा में गृहकार्य शिगोटो (नौकरी) नहीं है, जिसे कैश से बदला जा सके। यह ‘मिशी’ (राह) है, जो आखिरकार आत्मज्ञान और अंदरूनी शक्ति की ओर ले जाता है। इस पृष्ठभूमि में यह आशा करना गलत न होगा कि स्वच्छता को हर जगह शिक्षा का हिस्सा बनाना चाहिए और इसे हम धार्मिक कार्य के रूप में इसे अपने जीवन में उतार लें। हम अपने धर्मस्थलों को स्वच्छ रखते हैं और बिना शरीर की सफाई और मन की शुद्ध के उनमें प्रवेश नहीं करते। काश, यही संजीदगी हम अपने घरों के संदर्भ में भी अपनाएं और उन्हें मंदिर, मस्जिद, गिरिजाघर और गुरुद्वारा समझकर साफ रखें तो स्वच्छ विश्व का सपना साकार होगा।
तोतों को भी प्रशिक्षण
भारत में 2014 से स्वच्छता का राष्ट्रीय अभियान 2014 में शुरू हुआ है। इससे स्थिति में तेजी से बदलाव आ रहा है। पर आज भी शौचालय की उपलब्धता और उसके इस्तेमाल को लेकर कई तरह की समस्याएं हैं। जापान में स्थिति इससे बिल्कुल भिन्न है। वहां तोते तक को शौच करने का सही तरीका सिखाया जा रहा है। सुनने में यह अजीब लग सकता है, लेकिन इसकी जरूरत वे लोग समझेंगे, जिन्होंने अपने घर में कोई पक्षी पाला होगा। क्योंकि छोटा सा पिंजड़ा बहुत जल्दी गंदा हो जाता है और इसे साफ करना आसान काम नहीं होता है। जापान में इसी परेशानी को समझते हुए चिड़ियों के लिए शौचालय बनाकर, अपने घरों में उन्हें इसकी ट्रेनिंग दी जा रही है।
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स्वच्छता
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अब जैविक शौचालय की तकनीक
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जापान की एक गैर सरकारी संस्था ने जैविक शौचालय विकसित करने में सफलता हासिल की है
दे और बदबूदार सार्वजनिक शौचालयों से निजात दिलाने के लिए जापान की एक गैर सरकारी संस्था ने जैविक शौचालय विकसित करने में सफलता हासिल की है। ये खास किस्म के शौचालय गंधरहित तो है ही, साथ ही पर्यावरण के लिए भी सुरक्षित हैं। संस्था द्वारा विकसित किए गए जैविक शौचालय ऐसे सूक्ष्म कीटाणुओं को सक्रिय करते हैं, जो मल इत्यादि को सड़ने में मदद करते हैं। इस प्रक्रिया के तहत मल सड़ने के बाद केवल नाइट्रोजन गैस और पानी ही शेष बचते हैं, जिसके बाद पानी को पुनःचक्रित (रीसाइकिल) कर शौचालयों में इस्तेमाल किया जा सकता है। संस्था ने जापान की सबसे ऊंची पर्वत चोटी ‘माउंट फूजी’ पर इन शैचालयों को स्थापित किया है। गौरतलब है कि गर्मियों में यहां आने वाले पर्वतारोहियों द्वारा इस्तेमाल किए जाने वाले सार्वजनिक शौचालयों के चलते पर्वत पर मानव मल इकट्ठा होने से पर्यावरण दूषित हो रहा है। इस प्रयास के बाद माउंट फूजी पर मौजूद सभी 42 शौचालयों को जैविक-शौचालयों में बदल दिया गया है। इसके अलावा सार्वजनिक इस्तेमाल के लिए पर्यावरण के लिए सुरक्षित आराम-गृह भी बनाए गए हैं। इकोजैनमल एक ऐसी वस्तु है जो हमारे पेट में तो पैदा होती है पर जैसे ही वह हमारे शरीर से अलग होती है तो हम उस तरफ देखना या उसके बारे में सोचना भी पसंद नहीं करते। आंकड़े बताते हैं कि फ्लश लैट्रिन के आविष्कार के 100 साल बाद भी आज दुनिया में सिर्फ 15 प्रतिशत लोगों के पास ही आधुनिक विकास का यह प्रतीक पहुंच पाया है और फ्लश
फ्लश टायलेट की सोच गलत है, इसने पर्यावरण का बहुत नुकसान किया है और अब हमें विकेंद्रित समाधान की ओर लौटना होगा - स्टॉकहोम एनवायरनमेंट इंस्टीट्यूट लैट्रिन होने के बावजूद भी इस मल का 95 प्रतिशत से अधिक आज भी बगैर किसी ट्रीटमेंट के नदियों के माध्यम से समुद्र में पहुंचता है।
फ्लश टायलेट की सोच गलत
स्टॉकहोम एनवायरनमेंट इंस्टीट्यूट दुनिया की प्रमुखतम पर्यावरण शोध संस्थाओं में से एक है। इस संस्था के उप प्रमुख योरान एक्सबर्ग कहते हैं कि फ्लश टायलेट की सोच गलत है, इसने
जापानी समझ और परंपरा में गृहकार्य शिगोटो (नौकरी) नहीं है जिसे कैश से बदला जा सके। यह ‘मिशी’ (राह) है, जो आखिरकार आत्मज्ञान और अंदरूनी शक्ति की ओर ले जाता है जो लोग कामयाब हो जा रहे हैं, वे अपनी फोटो भी सोशल मीडिया पर शेयर कर रहे हैं। ट्विटर ऐसी तस्वीरों से भरा पड़ा है। जापान में तो सोशल मीडिया इस ट्रेंड को देखते हुए अनऑफिशियल टॉयलेट-डे मना रहा है। उन्होंने तो इसके लिए 10 नवंबर की तारीख भी तय कर ली है। जापान टाइम्स में छपी खबर के मुताबिक नवंबर 10 और 11 को ‘आईआई ट्वॉयर’ पढ़ा जाता है, जिसका मतलब होता है ‘नाइस टॉयलेट’।
इंटेलिजेंट टॉयलेट्स
जापान में इंटेलिजेंट टॉयलेट्स की एक नई खेप तैयार हो रही है। इस सीरीज के ट्वॉयलेट्स पुराने से कहीं ज्यादा दिमाग वाले हैं, बहुत काम कर
सकते हैं। यहां तक कि आपके शूगर की बीमारी और ब्लड प्रेशर के बारे में भी ये मददगार हैं। अगर आप इंटेलिजेंट टॉयलेट इस्तेमाल कर रहे हैं तो आपको कुछ नहीं करना है, बस अपने दिन की सामान्य शुरुआत करनी है और नित्य कर्म करना है। आप जैसे ही इंटेलिजेंट टॉयलेट का इस्तेमाल करेंगे, वह अपनी तकनीक का इस्तेमाल करने लगेगा। आपका ब्लड प्रेशर, शूगर, यूरीन टेस्ट सब कर लेगा। यही नहीं, इनके नतीजे यह आपके निजी कंप्यूटर में सेव कर देगा। आपको बस कंप्यूटर का बटन दबाना है और ये डाटा अपने डॉक्टर को ईमेल कर देनी है। जापान में टोटो कंपनी के लिए इस टॉयलेट का डिजाइन जापान के आर्किटेक्ट हाउस दाइवा ने
पर्यावरण का बहुत नुकसान किया है और अब हमें अपने आप को और अधिक बेवकूफ बनाने के बजाय विकेंद्रित समाधान की ओर लौटाना होगा। सीधा सा गणित है कि एक बार फ्लश करने में 10 से 20 लीटर पानी की आवश्यकता होती है। यदि दुनिया के 6 अरब लोग फ्लश लैट्रिन का उपयोग करने लगे तो इतना पानी आप लाएंगे कहां से और इतने मानव मल का ट्रीटमेंट करने के लिए प्लांट कहां लगाएंगे? मानव मल में पैथोजेन होते बनाया। टोटो के अकिहो सुजूकी बताते हैं, ‘हमारे चेयरमेन को यह आइडिया तब आया, जब वे एक अस्पताल में गए थे। वहां उन्होंने चेक अप के लिए लोगों को लाइन में लगे देखा। उन्होंने सोचा कि अगर इस तरह की टेस्ट घर पर हो जाए तो अच्छा होगा।’ टोटो के इंजीनियरों ने टॉयलेट के बेसिन में इस तरह की तकनीक लगाई है जो तापमान बता सकती है और एक कलाई पट्टी बनाई है, जो ब्लड प्रेशर नापेगी। सुजूकी ने कहा, ‘अभी का मॉडल ये सब जांच आपके कंप्यूटर में फीड कर देगा। अगला मॉडल ऐसा बनाया जाएगा जो ये सारे परीक्षण सीधे डॉक्टर को मेल कर देगा।’ फिलहाल इस तरह के टॉयलेट की कीमत 4,000 से 5,500 डॉलर यानी करीब दो लाख रुपए है। जापान पहले भी इस तरह के अजूबे टॉयलेट्स बना चुका है। स्वच्छता को ध्यान में रखते हुए उसने ऐसे टॉयलेट बनाए हैं, जिसकी सीट और ढक्कन अपने आप उठ जाते हैं, ताकि इसकी सफाई की जा सके। कुछ टॉयलेट ऐसे हैं, जिनमें फ्लश ऑटोमेटिक है या सीट को गर्म या ठंडा किया जा सकता है। कुछ ऐसे भी हैं कि आप वॉशरूम में
हैं, जो संपर्क में आने पर हमारा नुकसान करते हैं। इसीलिए मल से दूर रहने की सलाह दी जाती है। पर आधुनिक विज्ञान कहता है कि यदि पैथोजेन को उपयुक्त माहौल न मिले तो वह थोड़े दिन में नष्ट हो जाता है और मनुष्य का मल उसके बाद बहुत अच्छे खाद में परिवर्तित हो जाता है, जिसे कंपोस्ट कहते हैं। वैज्ञानिकों के अनुसार एक मनुष्य प्रतिवर्ष औसतन जितने मल-मूत्र का त्याग करता है, उससे बने खाद से लगभग उतने ही भोजन का निर्माण होता है, जितना उसे साल भर जिंदा रहने के लिए जरूरी होता है। यह जीवन का चक्र है। रासायनिक खाद में भी हम नाइट्रोजन, फास्फोरस और पोटेशियम का उपयोग करते हैं। मनुष्य के मल एवं मूत्र उसके बहुत अच्छे स्रोत हैं। विकास की असंतुलित अवधारणा ने हमें मल को दूर फेंकने के लिए प्रोत्साहित किया है, फ्लश कर दो उसके बाद भूल जाओ। रासायनिक खाद पर आधारित कृषि हमें अधिक दूर ले जाती दिखती नहीं है। हम एक ही विश्व में रहते हैं और गंदगी को हम जितनी भी दूर फेंक दें वह हम तक लौटकर आती है।
सुलभ तकनीक
गांधी जी अपने आश्रम में कहा करते थे गड्ढा खोदो और अपने मल को मिट्टी से ढक दो। आज विश्व के तमाम वैज्ञानिक उसी राह पर वापस आ रहे हैं। इस दिशा में सबसे बड़ी तकनीकी पहल सुलभ संस्था की तरफ से की गई है। सुलभ प्रणेता डॉ. विन्देश्वर पाठक ने टू-पिट पोर फ्लश टॉयलेट की तकनीक को पूरा दुनिया में लोकप्रिय बनाया है। जैसे ही घुसते हैं तो सीट का ढक्कन खुद खुल जाता है और तो और वह यह भी जान लेगा कि वॉशरूम में घर की महिला आई है या पुरुष।
नियोरेस्ट-एनएक्स टॉयलेट
जापान हर चीज में आगे है चाहे वो आर्किटेक्चर की बात करें या फिर किसी टैक्नोलॉजी की। जापान हर चीज में अपनी स्मार्टनेस दिखा ही देता है। ऐसा ही कुछ जापानियों ने दुनिया का सबसे बेहतरीन टॉयलेट बनाकर कर दिखाया है। जापान की टॉयलेट बनाने वाली कंपनी टोटो ने एक ऐसा खास टॉयलेट बनाया है, जिसके इस्तेमाल के समय आप रिमोट की मदद से म्यूजिक सुन सकते हैं। इस आधुनिक टॉयलेट में स्वत: सुखाने व धोने के लिए मशीन लगी हुई है। इस टॉयलेट में अन्य सुविधाएं भी हैं। इस टॉयलेट का नाम नियोरेस्ट-एनएक्स है। दिखने में खूबसूरत होने के साथ-साथ इस टॉयलेट की बिना बोर्डर वाली शेप होने की वजह से पानी की बर्बादी बहुत कम होगी और जो टोटो के टर्ननाडो फ्लशिंग के साथ मिलकर शौचालय अल्ट्रा क्लीन रखता है।
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स्वच्छता
कचरापुर की पहचान अब सफाईपुर
दिल्ली का पुराना इलाका निजामुद्दीन सूफी संत हजरत निजामुद्दीन औलिया की दरगाह के लिए मशहूर है, पर यहां हाल तक कचरे का अंबार था। स्थानीय बच्चों के प्रयास से इलाके में अब सफाई की नई बयार बह रही है
खास बातें
मलिन बस्तियों के बच्चों ने स्वच्छता का बीड़ा उठाया बच्चों की पहल को एकेटीएफसी के समर्थन से काफी बल मिला शौचालय निर्माण से लेकर रंगरोगन को लेकर अभियान
दे
मुदिता गिरोत्रा
श की राजधानी दिल्ली की एक मलिन बस्ती के बच्चों ने सामूहिक प्रयास से स्वच्छ व स्वास्थ्यवर्धक परिवेश बनाने व आर्थिक रूप से सबल बनने के प्रति लोगों में जो जागरूकता फैलाई है, वह अन्य क्षेत्रों के लिए मिसाल बन सकती है। मुस्लिम बहुल इलाका हजरत निजामुद्दीन सूफी संत हजरत निजामुद्दीन औलिया की पवित्र दरगाह के लिए दुनियाभर में मशहूर है, लेकिन यहां स्थित मलिन बस्ती के पास कचरे का अंबार लगने के कारण इसे बाहर से आनेवाले लोग कचरापुर कहने लगे थे। लेकिन बच्चों के प्रयास से इलाके में ऐसा जादुई बदलाव आया कि कचरापुर की पहचान अब सफाईपुर से होने लगी है। इस जादुई बदलाव के बारे में बस्ती में रहने वाली 10 वर्षीय चांदनी कहती है कि कचरापुर के नाम से इलाके के बच्चे आहत थे, इसीलिए उन्होंने इसका कायापलट करने का व्रत लिया। यहां गंदी बस्ती के दक्षिणी छोर पर जर्जर व खस्ताहाल मगर पक्की ईंटों के मकानों के साथ एक खुला नाला है, जिसे बारापुला कहा जाता है। आंरभ में यह यमुना की सहायक नदी थी, जो कालांतर में गंदे नाले में तब्दील हो गई है। यह नाला घुमावदार रास्ते से मध्य दिल्ली से चलकर पूर्वी दिल्ली तक आठ किलोमीटर का सफर तय करता है। मल-मूत्र और कचरों से आनेवाली बदबू और उसमें अवारा सूअरों की मटरगस्ती से पूरा इलाका बदहाल था। लेकिन आज यहां कूड़े का ढेर नहीं, बल्कि हरा-भरा पार्क है, जहां तंग गलियों और
संकुल मकानों में निवास करने वाली औरतें और बच्चे खुली हवा मंू सांस ले पाते हैं। खास बात यह है कि यहां स्वच्छता व हरियाली लाने में इनकी अपनी मेहनत ही रंग लाई। वह जगह, जहां कभी लोग कूड़ा-कचरा फेंकते थे और वह बीमारी का घर था, वह अब बच्चों के लिए खेल का मैदान और बुजुर्गों के लिए सैरगाह व सुस्ताने का मनपसंद ठिकाना बन गया है। इस जादुई बदलाव में बस्ती के बच्चों का महत्वपूर्ण योगदान रहा और इनकी मदद में खड़ा हुआ आगा खां ट्रस्ट फॉर कल्चर (एकेटीएफसी)। एकेटीएफसी की पहल और मलिन बस्तियों के बच्चों की मेहनत रंग लाई और सामूहिक प्रयास से आया यह मौन बदलाव न सिर्फ भौतिक रूप से देखने को मिल रहा है, बल्कि इसमें आर्थिक व सांस्कृतिक पहलू भी शामिल है। 11 वर्षीय अब्बास ने बताया, ‘कचरापुर या मलबापुर में कोई रहना नहीं चाहता है। इसीलिए सफाईपुर हमारी ट्रेन का अंतिम पड़ाव है।’ वह अपनी सफाई एक्सप्रेस के बारे में बता रहा था, जो इलाके के बच्चों के लिए हर सप्ताह खेला जाने वाला एक लोकप्रिय खेल है। एककेटीसी के कार्यकर्ताओं ने इनके बीच खेल के रूप में सफाई अभियान की शुरुआत की है, जिसे निमामुद्दीन बस्ती अर्बन रिन्युअल इनिशिएटिव कहा जाता है। यह परियोजना 2007 में आरंभ हुई, लेकिन बारापुला फ्लाईओवर निर्माण के कारण इसे रोक दिया गया। दोबारा 2012 में इसे शुरू किया गया। अब्बास ने कहा, ‘यह इलाका पहले गंदा हुआ करता था और यहां मच्छर पलते थे। लोग घरों का कचरा यहां जमा करते थे। अब यह साफ-सुथरा
2008 में यहां एक आधारभूत सर्वेक्षण करवाया गया था, इसके मुताबिक यहां 25 फीसदी लोगों के घरों में शौचालय नहीं है
है और हम यहां लुकाछिपी, आइस वाटर, गिल्ली डंडा, क्रिकेट व अन्य खेल खेलते हैं।’ अब्बास को लगता है कि यहां और सफाई की जरूरत है और यहां के निवासियों को इसके लिए कोशिश करनी चाहिए। नाले के साथ लगे घरों का बाहरी हिस्सा पहले बिखरे खंडहर-सा मालूम पड़ता था, लेकिन अब रंग-रोगन हो जाने से उनका सौंदर्यीकरण हो गया है। एकेटीसी की कार्यक्रम निदेशक ज्योत्सना लाल ने कहा, ‘रंग-रोगन इस परियोजना का सबसे अहम हिस्सा है। कंगूरों अर्थात मकान के बाहरी हिस्सों के रंग-रोगन के पीछे कई अनकही कहानियां हैं।’ लाल ने कहा, ‘बस्ती के सभी 144 घर मुख्य सीवर से जुड़े हुए थे, जो क्षतिग्रस्त हो गया था और दिल्ली जल बोर्ड की मदद से उसे बउला जाना था। घरों के पास कोई कूड़ेदान नहीं था और लोग नाले के पास कचरा डालते थे।’ लेकिन अब यहां घर-घर से कचरा जमा किया जाता है और नाले को भी चार फुट गहरा करके उसकी सफाई की गई है। बच्चों ने यहां लोगों को इस कार्य के लिए तैयार किया। उन्होंने लोगों से वचन लिया कि वे कचरा नाले के पास नहीं डालेंगे। चांदनी ने बताया, ‘हमने कचरा नहीं फैलाने का संकल्प लिया और अपने माता-पिता व अन्य लोगों से भी कोई कचरा यहां नहीं डालने का आग्रह किया है। अनेक लोग इससे सहमत हैं, जबकि कई सहमत नहीं भी हैं, लेकिन हम उनको स्वच्छता के महत्व के बारे में समझाने की कोशिश कर रहे हैं।’ वर्ष 2008 में यहां एक आधारभूत सर्वेक्षण करवाया गया था, जिसमें यहां के लोगों की बदहाली उजागर हुई थी। लाल ने कहा, ‘सर्वेक्षण के नतीजे चौंकाने वाले थे। इसमें यह बात प्रकाश में आई कि इन लोगों की अनदेखी हो रही है और यहां 25 फीसदी लोगों के घरों में शौचालय नहीं हैं।’ इसके बाद यहां नवीनीकरण परियोजना के तहत
मौजूदा सुविधाओं की मरम्मत व नवीनीकरण का काम शुरू हुआ। नए शौचालय बनाए गए, जिनका उपयोग अब दरगाह में आने वाले पर्यटक भी करते हैं। शौचालय का प्रबंध रहमान निगरानी समूह के द्वारा किया जा रहा है। इस परियोजना के तहत बस्ती के सभी भागों में ठोस कचरे का प्रबंधन किया जाता है, जिसमें समुदाय की महती भूमिका है और दक्षिण दिल्ली महानगर निगम की भी इसमें भागीदारी है। नवीनीकरण व आकर्षक नजारे और स्वास्थ्यवर्धक माहौल के साथ-साथ यहां आए बदलाव के अन्य पहलू भी हैं, जिनमें सांस्कृतिक व आर्थिक आयाम भी जुड़े हैं। आजीविका कार्यक्रम के तहत आगा खां ट्रस्ट निजामुद्दीन निवासी महिलाओं को सशक्त बना रहा है। यहां एक संसाधन केंद्र खोला गया है, जिसमें लोगों को विविध सरकारी योजनाओं का लाभ पाने के लिए उनकी पात्रता सुनिश्चित करने और उन योजनाओं से जोड़ने का प्रयास किया जा रहा है। इंशा-ए-नूर, आकर्षक कढ़ाई, सांझी चित्रकारी और क्रोशिया से कढ़ाई की मिसाल है। जायकाए-निजामुद्दीन, एक महिला स्वयं सहायता समूह की ओर से चलाई जाने वाली रसोई है, जिसमें स्वास्थ्यवर्धक व पोषक तत्वों से भरपूर स्नैक्स व लजीज मुगलई व्यंजन तैयार किए जाते हैं और ऑर्डर लेकर उसकी डिलीवरी की जाती है। रहनुमाई नामक संसाधन केंद्र लोगों को विभिन्न सरकारी योजनाओं व सुविधाओं का हक दिलाने के लिए उनसे जोड़ने का काम करता है। यहां इलाके के लोगों के लिए महत्वपूर्ण दस्तावेज व कागजात तैयार किए जाते हैं, जिससे उनका सशक्तीकरण हो रहा है। रहनुमाई में लोगों को नौकरियों व उच्च शिक्षा हासिल करने संबंधी जानकारी मिलती है। सैर-एनिजामुद्दीन नामक एक और स्वयं सहायता समूह है, जिसमें निजामुद्दीन की सांस्कृतिक विरासत का प्रचार-प्रसार किया जाता है। इस समूह के सदस्य 700 साल पुरानी विरासत से पर्यटकों व स्कूली विद्यार्थियों को रूबरू कराते हैं।
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मिसाल
12 - 18 फरवरी 2018
किशोरी नेहा ने बुनी आकाशगंगा की कहानी 15 साल की नेहा गुप्ता की लिखी पहली किताब में निकोल ग्रेस की कहानी है, जिसे उसके पिता जब उसका ग्रह विनाश के कगार पर होता है, तब उसे धरती पर भेजते हैं
खास बातें
किताब से हुई आमदनी को नेहा चिल्ड्रन फाउंडेशन का अनुदान सातवीं कक्षा में पढ़ने के दौरान ही ब्लॉग लिखना शुरू कर दिया लेखक होने के साथ नेहा एक अच्छी निशानेबाज भी है
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विष्णु मखीजानी
ह शून्य से जुड़कर समय के पार चली गई और परिणाम ‘कुछ और’ सामने आया। 15 साल की नेहा गुप्ता की लिखी पहली किताब में निकोल ग्रेस की कहानी है, जिसे उसके पिता जब उसका ग्रह विनाश के कगार पर होता है, तब उसे धरती पर भेजते हैं, जो उस ग्रह यानी ब्रिजन की एकमात्र जीवित सदस्य है, जो पड़ोसी आकाशगंगा एंड्रमेडा में एक ग्रह है। जैसा कि वह खुद को धरती पर रहने के अनुकूल ढालने की मशक्कत करती है और अपने स्कूल और ग्रह के लिए अपना योगदान देने की कोशिश करती है, यह एक बेहद होशियार लड़की की चार से 14 साल की यादगार तस्वीरों के साथ की कहानी है। निकोल के दोस्त अमांडा, सारा और आयुष उसे एक अनाधिकृत क्षेत्र की यात्रा करने में मदद करते हैं और इस प्रक्रिया में वे अपने स्कूल को संकट से बचाते हैं और दुनिया को अंतरिक्ष यात्रा का एक नया तरीका भी देते हैं। मुंबई के जमनाबाई नरसी इंटरनेशनल स्कूल में 10वीं कक्षा में पढ़ने वाली एक छात्रा द्वारा लिखी किताब की बिक्री से हुई आमदनी को अनुदान के रूप में दिए जाने को भले ही मुट्ठी भर कहें, लेकिन वह चिल्ड्रन फाउंडेशन को अनुदान देती है, ताकि देश के भविष्य बच्चों का जीवन संवर सके।
नेहा का मानना है कि किशोर साधारण नहीं होते, जैसा कि उन्हें समझा जाता है। जरूरत पड़ने पर वे खुद को साबित करने में पीछे नहीं हटते। वे चुनौतियां भी पसंद करते हैं और क्या सही व क्या गलत है, इस चीज को ध्यान में रखते हैं। नेहा ने बताया, ‘शुरुआत में यह मन में कहानी की एक रूपरेखा तैयार करने जैसा था, तो जब भी कोई विचार आया, मैं लिख लेती। बाद में मुझे जब भी समय मिलता, मैं उन विचारों को विस्तार देती। लेकिन किताब लिखने के अंतिम चरणों में, जिसे पूरा करना सबसे मुश्किल होता है, मैंने हर दिन एक शब्द सीमा तक पहुंचना सुनिश्चित किया। वास्तव में, अनुशासन की वजह से मुझे किताब पूरी करने में मदद मिली।’ यह पूछे जाने पर कि इस पुस्तक का कैसे आना हुआ? नेहा ने कहा, ‘मैं हमेशा से पढ़ने की शौकीन रही हूं और पढ़ने के प्रति मेरा प्यार लिखने की इच्छा के रूप में बदल गया। सातवीं कक्षा में पढ़ने के दौरान मैंने ब्लॉग लिखना शुरू कर दिया और जैसे मैं बड़ी होती गई, मुझे अहसास हुआ
कि मैं उस कहानी के साथ बड़ी हुई हूं। फिर मैंने सोचा कि किताब को वास्तव में बस एक बड़े ब्लॉग की तरह होना चाहिए, तो नौवीं कक्षा में गर्मियों की छुट्टियों के दौरान मेरे जेहन में एक विचार आया कि कैसे दूसरे ग्रह की रहने वाली लड़की खुद को हाईस्कूल में पढ़ने वाली छात्रा के रूप में ढालेगी, मैं इससे बेहद रोमांचित हो गई। मैंने इस कहानी को पूरा करने का मन बना लिया और लिखना शुरू कर दिया।’ नेहा के इस प्रयास को उनकी स्कूल की प्रमुख जैस्मीन मधानी ने भी सराहा। मधानी ने प्रस्तावना में लिखा कि किताब का शीर्षक लगभग बिल्कुल सही है, क्योंकि ‘डिफरेंट’ (अलग हटकर) एक ऐसा शब्द है, जिसे कोई लेखिका के बारे में बताने के लिए इस्तेमाल में ला सकता है। नेहा ने जब से स्कूल में प्रवेश लिया है, तब से ‘ईमानदार’, ‘कर्तव्यनिष्ठ’ और ‘मेहनती’ जैसे शब्द उसके रिपोर्ट कार्ड का हिस्सा रहे हैं। उन्हें निशानेबाजी में दिलचस्पी है। नेहा समय बर्बाद नहीं
नेहा ने जब से स्कूल में प्रवेश लिया है, तब से ‘ईमानदार’, ‘कर्तव्यनिष्ठ’ और ‘मेहनती’ जैसे शब्द उसके रिपोर्ट कार्ड का हिस्सा रहे हैं। उन्हें निशानेबाजी में दिलचस्पी है। नेहा समय बर्बाद नहीं करती।
करती। यह पूछे जाने पर कि क्या वह एक और किताब लिख रही है, नेहा ने कहा, ‘वास्तव में अभी तक एक और किताब लिखने के बारे में नहीं सोचा है, लेकिन जब मैं शशि थरूर से मिली, उन्होंने मुझसे कहा कि मुझे जरूर लिखते रहना चाहिए, इसीलिए अगर समय और विचार सही मालूम पड़ेगा, तो निश्चित रूप से मैं इस चुनौती को स्वीकार करूंगी।’ उन्होंने कहा, ‘फिलहाल, मैं अपनी 10वीं बोर्ड की परीक्षा पर ध्यान दे रही हूं। किसी दिन, मैं भारत के लिए पिस्टल शूटिंग (निशानेबाजी) में ओलंपिक पदक जीतने की ख्वाहिश रखती हूं।’ इस महीने की शुरुआत में राष्ट्रीय राजधानी के दौरे पर आईं नेहा ने कैलाश सत्यार्थी से मुलाकात की और अपने इस अनुभव को बहुत अच्छा बताया। उन्होंने कहा, ‘सत्यार्थी से मिलकर बहुत अच्छा लगा। मैं ज्यादातर चुप रही और उन्हें इस बात का अहसास हो गया, जिस पर उन्होंने कहा कि तुम्हें और बोलना चाहिए। सच्चाई यह है कि मैं 10 करोड़ बच्चों के जरिए 10 करोड़ के अभियान के लिए कैलाश सत्यार्थी के चिल्ड्रन (बाल) फाउंडेशन की ब्रांड एंबेसडर बनकर बेहद सम्मानित महसूस कर रही हूं। अपनी किताब की बिक्री से योगदान देने के अलावा मैं अपनी किताब के जरिए जहां भी पहुंच सकती हूं, युवाओं को संगठित करने की उम्मीद करती हूं।’ इसमें कोई हैरानी की बात नहीं कि नोबेल पुरस्कार विजेता और कैलाश सत्यार्थी चिल्ड्रन फाउंडेशन नेहा को ‘बदलाव लाने वाली युवा’ कहते हैं।
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जेंडर
संघर्ष से ‘प्रीति’ ने दिलाया मुकाम
बिहार के एक सामान्य पृष्ठभूमि से चलकर रंगमंच और लोकगीतों की लोकप्रिय दुनिया का सफर तय करने वाली प्रीति सुमन की जिंदगी एक मिसाल है
खास बातें
लोकगीत व अभिनय के बाद बिहार के लिए कुछ करने का इरादा लोकगीतों में फूहड़ता की बढ़ी मांग पर प्रीति ने जताया क्षोभ साहित्य अभिरुचि से एलबमों के लिए गीत लिखने की मिली प्रेरणा
बि
मनोज पाठक
हार के सीतामढ़ी के बेलाम छपकौनी गांव की रहने वाली प्रीति सुमन का नाम अभिनय, गायन, और निर्देशन में अगर कोई जाना पहचाना नाम बन जाए, तो आपको आश्चर्य होगा। लेकिन आज प्रीति ने मुंबई से लेकर दिल्ली तक में विभिन्न क्षेत्रों में अपनी कला दक्षता का लोहा मनवाया है। उनका कहना है कि प्रतिभा से इन क्षेत्रों में एक मुकाम बनाने की जद्दोजहद तो करनी पड़ती है, परंतु अगर कलाकार अनवरत काम करता रहे और धैर्य रखे तो देर-सबेर उसे सफलता जरूर मिलेगी। लोकगायिका के रूप में खासकर मैथिली भाषा के गाए प्रीति के गीत खासे लोकप्रिय हुए हैं। वैसे तो प्रीति सोनी चैनल के 'महावीर हनुमान', जी टीवी पर 'अम्मा' सीरियल में अभिनय तथा डीडी बिहार पर मैथिली सीरियल, 'और सब ठीक छइ', एस़ एऩ झा के 'गजबै दुनिया' और सावधान इंडिया, क्राइम पेट्रोल, एक था राजा एक थी रानी, पेशवा बाजीराव, संतोषी मां, मशाल, सीरियलों में सहायक निर्देशक में काम कर अपनी सफलता के झंडे छोटे पर्दे पर
गाड़ चुकी हैं। इसी दौरान उन्होंने हिंदी फिल्म 'मेक इन इंडिया' में अभिनय का भी मौका मिला और उसमें भी एक ग्रामीण महिला की भूमिका को बखूबी निभाया। प्रीति इन दिनों मुंबई से अपने गांव बेलाम छपकौनी आई हैं। उन्होंने बातचीत में कहा, ‘मैंने जो कुछ सीखा वह अपने पिता से सीखा और बेहतर करने की सफर की ओर अग्रसर हूं।’ प्रीति के फिल्मी करियर की शुरुआत लेखन से हुई, जब वह मुजफ्फरपुर के एमडीडीएम कॉलेज में पढ़ रही रही थीं, उस समय उनकी उम्र 15 साल रही होगी। कॉलेज की
सहेलियां कविताएं लिखती थीं, उन्हें सुनती थीं। इस कसौटी पर अपने को जांचा तो पाया कि अभिव्यक्ति उनकी तुलना में उससे बेहतर है। वहीं से गीत, गजल लिखने का दौर आरंभ हुआ। वे कहती हैं कि घर में ही उनको अभिनय और निर्देशन के बारीकियों को समझने का मौका मिला। प्रीति के पिता गजेंद्र मोहन प्रसाद रंगकर्म से जुड़े थे और गांव तथा आसपास के क्षेत्रों में नाटक करवाते रहे हैं। प्रीति बताती हैं कि वे अपने गांव बेलाम छपकौनी में भी कई नाटकों का मंचन किया। इसमें अंधेर नगरी चौपट राजा, सामा चकेवा शामिल हैं।
आज भी समाज यह कबूल नहीं करता था कि बेटियां मंच पर आए। प्रारंभ में मेरा भी विरोध हुआ, लेकिन हौसले नहीं डिगे। अपने बुलंद हौसले के कारण अपने सफर को जारी रखा और 2008 में दिल्ली चली गई – प्रीति सुमन
प्रीति का मानना है, ‘आज भी समाज यह कबूल नहीं करता था कि बेटियां मंच पर आए। प्रारंभ में मेरा भी विरोध हुआ, लेकिन हौसले नहीं डिगे। अपने बुलंद हौसले के कारण अपने सफर को जारी रखा और 2008 में दिल्ली चली गई।’ प्रीति दिल्ली में साहित्यक परिवेश, अभिनय के क्षेत्र के समझने की कोशिश की। इस कोशिश के दौर में संजीवनी आडियो, वीडियो कंपनी ने गीत लिखने का मौका दिया, लेकिन यहां भी अलग तरीके की चुनौतियां थीं। बकौल प्रीति, ‘अलबम वाले चाहते थे कि वह मौजूदा दौर में लोकगीतों के नाम पर अश्लीलता और फूहड़ता का जो आलम है, उसी धारा में वह बहकर लिखे, लेकिन मुझे कतई यह मंजूर नहीं था। मैंने स्पष्ट कह दिया। यहां गीतों के अलबम की कड़ी में ‘कांवड़ जगहे पर’, ‘माई के महिमा’ और ‘सिया के बारात’ अलबम आए।’ प्रीति का कहना है कि लोक संगीत के लिहाज से लोगों ने इन गीतों को खूब पसंद किए। हिंदी, भोजपुरी, मैथिली में कई अलबम के लिए गीत लिख चुकी प्रीति बिहार शताब्दी वर्ष के लिए भी गीत तैयार की थी। इसके अलावे मैथिली और हिंदी में तीन अलबम के लिए उन्होंने न सिर्फ गीत लिखे, बल्कि स्वयं अपनी आवाज दी। प्रीति कहती हैं कि 'हे मइया जागू न भेलइ बिहान', 'दूल्हा बेचन आइल देखू ई सारा बाराती' गीतों को लोगों ने खूब पसंद किया। कई पुरस्कार और सम्मान प्राप्त कर चुकीं प्रीति अभिनय के अतिरिक्त कई पत्र पत्रिकाओं में कविताएं भी लिखती रही हैं। 2014 में दिल्ली इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल के बुक में कविता लिखने का मौका मिला। संस्कार चैनल के लिए भी प्रीति ने गीत लिखे हैं। प्रीति अपने आगे के सफर के विषय में कहती हैं, ‘मेरा सपना बिहार के लिए कुछ करने और यहां के विषयों खासकर यहां की समस्याओं को लेकर फिल्म बनाने की है।’ उनका मानना है कि काम में समर्पण हो तो मंजिल मिल ही जाती है। अभी तो लंबा सफर है जीवन का पड़ाव बहुत कुछ सीख देता है।
16 खुला मंच
12 - 18 फरवरी 2018
एक देश की महानता प्रेम और बलिदान के अपने आदर्शों में निहित है, जो आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करती रहती है
अभिमत
प
देश में कॉरपोरेट या सरकारी दान की तुलना में व्यक्तिगत दानदाताओं की संख्या बढ़ी है
रोपकार करने से पुण्य मिलता है। परोपकार करने की परंपरा पुरातन है। लेकिन खास यह है कि आजकल परोपकार का पुण्य लूटने वालों की संख्या देश में लगातार बढ़ रही है। पंचतंत्र की एक है जिसमें एक बुजुर्ग व्यापारी युवा व्यापारी को सफल जीवन के लिए चार गुणों को अपनाने की सलाह देता है। एक, तुम्हें पैसा कमाना सीखना चाहिए। दो, फिर इसे संरक्षित रखना सीखना चाहिए- तीन, यह मालूम होना चाहिए कि इसे कैसे खर्च करें- और आखिर में, इसे देना सीखना चाहिए। धनी लोगों की अपनी समस्या होती है। वे अपने बच्चों को इतना पैसा देना चाहते हैं कि वे जो चाहे सीख सकें। पर वे इतना भी नहीं देना चाहते कि वे कुछ भी करें ही नहीं। अमेरिका के अमीर परिवारों में से एक के बेटे जॉन डी. रॉकफेलर ने कहा है, ‘मुझे शुरुआत से ही काम करने, पैसा बचाने और दान देने का प्रशिक्षण मिला है।’ भारत मानव विकास सूचकांक पर 130वें स्थान पर है। धनी भारतीय गरीबों की जिंदगी में सुधार लाने के लिए बहुत कुछ कर सकते हैं। वे कभी सरकार की जगह नहीं ले सकते। किंतु श्रेष्ठतम एनजीओ को देकर बेहतर काम कर सकते हैं। कई कंपनियां मूल्यवान काम करने में सीएसआर लॉ (जिसके तहत कंपनी को 50 फीसदी फंड डेवलपमेंट चैरिटी को देना होता है) का इस्तेमाल कर रही हैं। आप इसे कुछ भी कहें- परोपकार, चैरिटी, स्वेच्छा दान, लेकिन देश के लोग इससे बहुत कुछ सीख सकते हैं और सीख रहे हैं। इसीलिए देश में परोपकार की भावना इन दिनों तेजी से बढ़ी है। प्रतिष्ठित बैन/दसरा इंडिया फिलैंथ्रॉपी रिपोर्ट 2017 के अनुसार पिछले पांच वर्षों में विदेशी या कॉरपोरेट दान अथवा सरकारी कल्याण कार्यक्रमों में फंडिंग की तुलना में व्यक्तिगत स्तर पर निजी दान अधिक तेजी से बढ़ा है। रिपोर्ट के अनुसार 2001 में 6000 करोड़ से छह गुना बढ़कर 2016 में 36,000 करोड़ रुपए हो गया। सरकार कल्याणकारी कार्यक्रमों पर 1,50,000 करोड़ रुपए खर्च करके सबसे अधिक योगदान दे रही है। यदि यह ट्रेंड जारी रहता है तो निजी स्तर पर की गई परोपकारिता भविष्य में शिक्षा और स्वास्थ्य के क्षेत्र में सुधार लाने के साथ गरीबी मिटाने में अपनी भू्मिका निभाएगी।
टॉवर
(उत्तर प्रदेश)
युवा पत्रकार और स्तंभकार
आध्यात्मिक प्रयोग और परमहंस
- सरोजिनी नायडू
परोपकाराय पुण्याय
मनीषा यादव
जै
रामकृष्ण परमहंस जयंती (18 फरवरी) पर विशेष
रामकृष्ण परमहंस के जीवन को यदि तीन शब्दों में व्यक्त करना हो, तो वे होंगे- त्याग, सेवा और साधना। यदि दो शब्द और जोड़ने हों तो वे शब्द होंगे- प्रयोग और समन्वय
से यूनान में सुकरात के लिए प्लेटो और जेनोफन ने किया। कुछकुछ वैसा ही रामकृष्ण परमहंस के बारे में भी हुआ। आज हम रामकृष्ण परमहंस को जिस रूप में जानते हैं, वह शायद वैसा नहीं होता, यदि केशवचंद्र सेन और विवेकानंद ने दुनिया को उनके जीवन और विचारों के बारे में इस रूप में बताया न होता। लेकिन असली गुरुओं की यही सहजता, सरलता और गुमनामी ही उनकी महानता होती है। आत्मप्रचार से दूर वे अपनी साधना और मानव सेवा में लगे रहते हैं। रामकृष्ण परमहंस के जीवन को यदि तीन शब्दों में व्यक्त करना हो, तो वे होंगे- त्याग, सेवा और साधना। यदि दो शब्द और जोड़ने हों तो वे शब्द होंगे- प्रयोग और समन्वय। यह कहने में संकोच नहीं होना चाहिए कि उनका जीवन और व्यक्तित्व रहस्यमयी रहा। उनकी जीवन-शैली और उनका व्यवहार अच्छे-अच्छों की भी समझ से बाहर का था। यह सब इतना अजीब था कि ज्यादातर लोग उन्हें पागल तक समझते थे। कुछ ने तो उनके दिमाग का इलाज कराने तक की कोशिश की। लेकिन ढाका के एक मानसिक चिकित्सक ने उनकी युवावस्था में ही एक बार कहा था कि असल में यह आदमी एक महान योगी और तपस्वी है, जिसे दुनिया अभी समझ नहीं पा रही है। और यह भी कि किसी चिकित्सकीय ज्ञान से उसका इलाज नहीं किया जा सकता था। उस वैद्य ने सच ही कहा होगा। जिस तरह कबीर की धुन, रैदास की भक्ति और मीरा की लगन को मनोवैज्ञानिक तरीके से समझना संभव नहीं था, ठीक उसी तरह रामकृष्ण के कथित पागलपन को भी पांडित्य बुद्धि से समझना असंभव था। लेकिन इसके प्रयास होते रहते थे। जो कोई भी ऐसा प्रयास करने जाता, वह रामकृष्ण की सरलता, निश्छलता, शुद्धता-पवित्रता, बालसुलभ भोलेपन, निःस्वार्थता और त्याग से इतना अभिभूत हो जाता कि अपना सारा पांडित्य भूलकर
उनके पैरों पर गिर पड़ता। गहन से गहन दार्शनिक सवालों के जवाब भी वे अपनी पांडित्यविहीन सरल भाषा में इस तरह देते कि सुनने वाला तत्काल ही उनका मुरीद हो जाता। इसीलिए दुनियाभर की तमाम आधुनिक विद्या, विज्ञान और दर्शनशास्त्र पढ़े महान लोग भी जब दक्षिणेश्वर के इस निरक्षर परमहंस के पास आते, तो अपनी सारी विद्वता भूलकर उसे अपना गुरु मान लेते थे। रामकृष्ण बहुत छोटे ही थे जब उनके पिता का देहांत हो गया। जीविकोपार्जन के लिए पुरोहिती के अलावा कोई चारा न था, सो बालपन में ही किसी मंदिर में इसी काम में लगा दिए गए। लेकिन कथित धर्म-विषयक बातों को लेकर पुरोहितों का आपसी मतभेद और टकराव उन्हें अच्छा नहीं लगता था। पुराणों की कपोल कथाएं भी उन्हें प्रभावित नहीं करती थीं। उन्हें लगने लगा था कि यदि धर्म और ईश्वर जैसी कोई चीज है, तो उसे मनुष्य की अनुभूति पर भी खरा उतरना चाहिए। उन्हें लगा कि ईश्वर यदि है तो उसे वे अपनी आंखों से देखकर रहेंगे। ईश्वर को देखने का यह विचार पहले तो एक जिद की शक्ल में आया, लेकिन वह बाद में एक भक्तिपूर्ण खोज में बदल गया। वे ईश्वर को ढूंढ़ने लगे और उसके लिए तड़पने लगे। उसकी खोज में मंदिर की पुरोहिती छोड़कर पास के एक निर्जन जंगल में जाकर रहने लगे। ईश्वर-दर्शन की बेचैनी और अधीरता बढ़ने लगी थी और उनका व्यवहार असामान्य होने लगा था। इसी असामान्य व्यवहार को किसी ने धर्मोन्माद का नाम दिया, तो किसी ने पागलपन का। रामकृष्ण को वेदांत के माध्यम से यह समझ में आया कि सारे जीव आत्मतत्व हैं और आत्मा के बीच लिंग का कोई भेद नहीं है। अब यह बात उनके मन में समा गई कि स्त्री-पुरुष का भेद तो केवल शरीर के स्तर पर ही है, आत्मा
रामकृष्ण को वेदांत के माध्यम से यह समझ में आया कि सारे जीव आत्मतत्व हैं और आत्मा के बीच लिंग का कोई भेद नहीं है
12 - 18 फरवरी 2018 के स्तर पर नहीं। और यदि सचमुच ऐसा है तो मैं ऐसी साधना क्यों न करूं जिससे स्त्री-पुरुष का भेदभाव ही पूरी तरह से नष्ट हो जाए। फिर क्या था। उन्होंने इसकी प्रायोगिक साधना शुरू कर दी। इसके लिए सबसे पहले उन्होंने अपने आपको पुरुषत्व से उबारना चाहा। रामकृष्ण यह सोचने लगे कि वे स्वयं पुरुष नहीं, बल्कि स्त्री हैं। वे महिलाओं के जैसे ही कपड़े पहनने लगे, उन्हीं की तरह बोलने लगे। पुरुषों की तरह का सारा काम छोड़ दिया और महिलाओं के बीच ही जाकर रहने लगे। एक समय ऐसा भी आया जब वे स्त्री-पुरुष का भेद पूरी तरह से भूल गए। अपनी पत्नी सारदामणि को भी वे मां ही कहा करते थे। जब दोनों का विवाह हुआ था तो रामकृष्ण 22 साल के थे और सारदामणि पांच साल कीं। यानी रामकृष्ण से 17 वर्ष की छोटी। सारदामणि को अपने विवाह के बारे में कुछ भी याद न था। हां, इतना जरूर याद था कि विवाह जब हुआ था तब खजूर के फल पकते हैं, क्योंकि विवाह के दस दिनों के भीतर ही वे खजूर के पेड़ों से पके फल चुनने जाया करती थीं। यहां पाठकों को भ्रमित नहीं होना चाहिए कि वह आजकल की तरह का विवाह था। वह उस समय की प्रचलित बाल-विवाह प्रथा के हिसाब से एक संस्कार मात्र था। स्वयं रामकृष्ण जैसे भोले के लिए तो वह एक खेल के जैसा ही था। इस तरह रामकृष्ण का सारा जीवन अध्यात्मसाधना के प्रयोगों में बीता। इसी प्रक्रिया में उन्हें उस सत्य का साक्षात्कार भी हो गया, जिसे वे ढूंढ़ते फिर रहे थे। इस बात को वे उतनी ही सरलता और आत्मविश्वास के साथ बताया भी करते थे। वे लगातार कई घंटों तक समाधि में लीन हो जाते थे। चौबीस घंटे में बीस-बीस घंटों तक वे उनसे मिलनेवाले लोगों का दुख-दर्द सुनते और उसका समाधान भी बताते। यही सेवा उनके जीवन का उद्देश्य बन गया था। संग्रह के नाम पर उनके पास कुछ भी न था। अपने शरीर तक से वितृष्णा हो चुकी थी। रामकृष्ण के सबसे प्रिय शिष्य विवेकानंद ने न्यूयॉर्क की एक सभा में अपने गुरु के बारे में एक ओजपूर्ण व्याख्यान दिया था, जो बाद में ‘मेरे गुरुदेव’ के नाम से प्रकाशित भी हुआ। विवेकानंद ने इसमें कहा था- ‘एक अत्यंत महत्वपूर्ण और आश्चर्यजनक सत्य जो मैंने अपने गुरुदेव से सीखा, वह यह है कि संसार में जितने भी धर्म हैं वे कोई परस्परविरोधी और वैरभावात्मक नहीं हैं- वे केवल एक ही चिरंतन शाश्वत धर्म के भिन्न-भिन्न भाव मात्र हैं। इसीलिए हमें सभी धर्मों को मान देना चाहिए और जहां तक हो उनके तत्वों में अपना विश्वास रखना चाहिए।’ इसी सभा में विवेकानंद ने आगे कहा‘श्रीरामकृष्ण का संदेश आधुनिक संसार को यही है— मतवादों, आचारों, पंथों तथा गिरजाघरों और मंदिरों की अपेक्षा ही मत करो। प्रत्येक मनुष्य के भीतर जो सार वस्तु अर्थात ‘धर्म’ विद्यमान है इसकी तुलना में ये सब तुच्छ हैं।’ वास्तव में, रामकृष्ण की जीवन-यात्रा और जीवन-संदेशों का इससे सुंदर निचोड़ कुछ भी नहीं निकाला जा सकता, जैसा विवेकानंद ने निकाला है। आज तरह-तरह की हिंसक संघर्षों में फंसी दुनिया को उबारने की ताकत शायद ऐसे ही विचारों में है।
लीक से परे
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प्रियंका तिवारी
खुला मंच
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लेखिका युवा पत्रकार हैं और देश-समाज से जुड़े मुद्दों पर प्रखरता से अपने विचार रखती हैं
महर्षि दयानंद सरस्वती जयंती (12 फरवरी) पर विशेष
नवभारत के निर्माण की प्रेरणा
महर्षि दयानंद का चिंतन वेदों से नि:सृत मानव कल्याण का राष्ट्रशास्त्र है जिसमें मतवाद का दुराग्रह नहीं है
वीं शताब्दी के पुनर्जागरण आंदोलन मे महर्षि दयानंद सरस्वती का राष्ट्र चिंतन परवर्ती भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन के चिंतन की आधारशिला बना। महर्षि दयानंद के राष्ट्र-चिंतन का आधार वेद था, जिन्हें महर्षि ने सभी सत्यविद्याओं की पुस्तक घोषित किया। किसी भी विषय के व्यापक विचारविमर्श के बाद ही उसके क्रियान्वयन और उसके परिणाम की अभिव्यक्ति होती है और यही चिंतन अन्त:वैश्वीकरण के रूप में युगानुरूप राष्ट्रीय आंदोलन की बहुआयामी प्रवृत्तियों को अभिव्यक्त करता रहा है। महर्षि दयानंद सरस्वती के समक्ष विभिन्न प्रकार की चुनौतियां थीं। एक ओर ब्रिटिश साम्राज्य की आधीनता, तो दूसरी ओर भारतीय समाज में आई सामाजिक और धार्मिक विकृतियां। महर्षि दयानंद सरस्वती को दोधारी तलवार से सामना करना था। यह कार्य निश्चय ही एक ओर अधार्मिक, अमानवीय और अंधविश्वासी परंपराओं को ध्वस्त करना था, तो दूसरी ओर नवनिर्माण की आधारशिला पर विश्वग्राम की आधारशिला की संकल्पना को पूर्ण करना था। महर्षि दयानंद सरस्वती की राष्ट्रदृष्टि कालजयी तथा सकारात्मक सोच के साथ प्रतिरोध-प्रतिकार के बाद भी नवसंरचना की बुनियाद पर टिकी थी, यही कारण था कि 1875 में आर्य समाज की स्थापना के बाद महर्षि दयानंद ने स्वराज्य, स्वदेश और स्वभाषा का शंखनाद किया था। यद्यपि कांग्रेस की स्थापना उपर्युक्त तीनों मान्यताओं के लिए नहीं हुई थी, फिर भी 1905 में गोपाल कृष्ण गोखले ने कांग्रेस के प्रस्ताव में स्वदेशी को स्वीकार किया और 1906 में स्वराज्य को लेकर प्रस्ताव दादा भाई
महर्षि दयानंद सरस्वती का राष्ट्रचिंतन हमारे मत देने के मौलिक अधिकारों को पुष्ट करता है, जिसमें छुआछूत और भ्रष्ट आचरण के निषेध की बात कही गई है नौरोजी की अध्यक्षता में स्वीकार किया गया। ‘स्वभाषा’ (आर्य भाषा या हिंदी) को महात्मा गांधी ने कालांतर में कांग्रेस के प्रस्ताव में स्वीकार किया। महर्षि दयानंद सरस्वती का यह कथन स्वदेश के प्रति उनकी तीव्र उत्कंठा को स्पष्ट करता है- ‘छह पैसे का चाकू वही काम करता है तो सवा रुपए का विदेशी चाकू क्यों खरीदा जाए।’ यह कथन परवर्ती भारतीय राष्ट्रीय एवं स्वदेशी आंदोलन का प्रबल उद्घोष बना। महर्षि दयानंद सरस्वती का राष्ट्र-चिंतन आज भी उतना ही प्रासंगिक है, क्योंकि यह धर्म या
संप्रदाय पर आधारित नहीं है। यह वेदों से नि:सृत मानव कल्याण का राष्ट्रशास्त्र है, जिसमें मतवाद का दुराग्रह नहीं है। जातिवाद का विध्वंसकारी मतवाद नहीं है, अपितु यह लोकतंत्र की स्वत: उद्भुत विचार-पद्धति है, जिसके विमर्श की आज महती आवश्यकता है। आर्य समाज स्वतंत्रता से पूर्व जिन उद्देश्यों के लिए समर्पित था, स्वतंत्रता के बाद भी उनकी महत्वपूर्ण आवश्यकता थी। आर्य समाज एक सशक्त राजनीतिक संगठन के रूप में अन्य राजनीतिक दलों की तरह भले ही प्रस्तुत ना हुआ हो, लेकिन देश के विभिन्न क्षेत्रों में आर्यजन अपनी उल्लेखनीय कार्यक्षमता का परिचय दे रहे हैं। देश में आज जिस तरह की लोकतांत्रिक चुनौतियां हैं, उसमें स्वामी दयानंद के विचार काफी प्रासंगिक हैं। महर्षि दयानंद सरस्वती के राष्ट्र चिंतन का उल्लेख उनकी कालजयी पुस्तक ‘सत्यार्थ प्रकाश’ में है। इसके मुताबिक आर्यजनों को मताधिकार का विवेक सम्मत तरीके से और बिना किसी भेदभाव व पूर्वाग्रह में आए बिना करना चाहिए। महर्षि दयानंद सरस्वती का राष्ट्र-चिंतन हमारे मत देने के मौलिक अधिकारों को पुष्ट करता है, जिसमें वेद, भारतीय संस्कृति, भाषा, जातिविहीन समाज-व्यवस्था को जहां महत्वपूर्ण बताया गया है, वहीं छुआछूत और भ्रष्ट आचरण के निषेध की बात कही गई है। इस दृष्टि से देखें तो उनके विचारों के आलोक में आगे बढ़ते हुए हम नवभारत का न सिर्फ निर्माण कर सकते हैं, बल्कि अपने देश को नैतिक और आध्यात्मिक रूप से पूरी दुनिया में एक बार फिर यशस्वी भी बना सकते हैं।
सामाजिक बदलाव का सूत्रधार
मोदी की जीवनी
सुरेश चांद, दिल्ली
कविता वर्मा गोंडा, उत्तर प्रदेश
स्वतंत्रता संग्राम में बड़ी भूमिका निभाने के बाद राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ देश को एक सूत्र में पिरोने और सामाजिक बदलाव के लिए कार्य करने लगा। नए अंक में संघ के कार्यों को रेखांकित करने वाली रिपार्ट बेहद अच्छी थी।। ग्रामोदय से राष्ट्रोदय का सपना संघ अपने कार्यों के माध्यम से साकार कर रहा है। समाज के निचले तबके को मुख्यधारा में लाने के लिए उसके द्वारा चलाए विभिन्न कार्यक्रमों को उसके अनुषांगिक संगठन पूरी निष्ठा से कर रहे हैं।
सुलभ स्वच्छ भारत का नियमित पाठक हूं। हाल ही में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की जीवनी का धारावहिक प्रकाशन आप लोगों ने आरंभ किया है। यह सच में बहुत अच्छा कदम है। जो मंहगी किताब खरीदने में असमर्थ हैं, वह व्यक्ति भी इसके माध्यम से प्रधानमंत्री के प्रेरक जीव को जान और समझ सकता है। उम्मीद करता हूं कि सुलभ स्वच्छ भारत ऐसे ही देश के महानायकों की कहानियां हम तक पहुंचाएगा।
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फोटो फीचर
12 - 18 फरवरी 2018
जब पराजित होता है अंधेरा
सत्य से असत्य, हिंसा से प्रेम और अंधकार से प्रकाश के शाश्वत संघर्ष की गाथा है – रामायण। एक ऐसा महाकाव्य जो सदियों से जन जन को प्रकाश पथ का अनुसरण करने को प्रेरित करता है फोटोः जयराम
12 - 18 फरवरी 2018
रामायण दुनिया के कई देशों की साझी विरासत है। हर कहीं इसकी प्रस्तुति का अपना अलग रंग है, अलग तरीका, लेकिन जो एक बात हर प्रस्तुति में साझी है, वह है– सत्य और समर्पण की भावना
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पुस्तक अंश
12 - 18 फरवरी 2018
द मेकिंग ऑफ मोदी द मेकिंग ऑफ गुजरात
अक्टूबर 2001 में, नरेंद्र मोदी ने गुजरात के मुख्यमंत्री के रूप में अपने कार्यकाल की शुरुआत की। उनका यह सफर 12 साल से अधिक समय तक लगातार चला। इस सफर पर विराम तब लगा जब उन्होंने मई, 2014 में देश के प्रधानमंत्री का पद ग्रहण किया। मुख्यमंत्री के रूप में, उन्होंने न केवल अपनी राजनीतिक निपुणता का प्रदर्शन किया, बल्कि वे विकास के एक अद्वितीय चैंपियन के रूप में भी उभरे। गुजरात के आर्थिक विकास की शानदार कहानी देश के अन्य सभी राज्यों के लिए अनुकरणीय उदाहरण बन गई। बिजली और पानी की आपूर्ति में कैसे सुधार किया जा सकता है। साथ ही कैसे बेहतर सड़कों और बुनियादी ढांचे के कारण तेजी से विकास करके लोगों को सशक्त बनाया जा सकता है। गुजरात मॉडल के नाम से प्रसिद्ध विकास की इस गाथा का ताना-बाना नरेंद्र मोदी ने ही बुना।
गुजरात नरेंद्र मोदी की कर्मभूमि है। कर्मभूमि एक हिंदी शब्द है जिसका अर्थ उस भूमि से है, जहां कोई व्यक्ति रहता है, काम करता है और योगदान देता है। साथ ही यह वह भूमि भी है जहां से व्यक्ति को भावनात्मक और आध्यात्मिक रूप से बहुत गहरा लगाव होता है। मोदी जहां पैदा हुए, पले-बढ़े, वही उनकी कर्मभूमि भी है। गुजरात के मुख्यमंत्री के रूप में कार्यभार संभालने से पहले, उन्होंने अपनी पार्टी के केंद्रीय संगठन में विभिन्न भूमिकाओं में पूरी क्षमता के साथ काम किया, लेकिन उनका दिल हमेशा गुजरात में रमा रहा।
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01 में हुए उप-चुनाव में दो विधानसभा सीटों पर हार के बाद, गुजरात के मुख्यमंत्री केशुभाई पटेल ने पद से इस्तीफा दे दिया। राजनीति के उभरते सितारे नरेंद्र मोदी को पार्टी ने राज्य में मुख्यमंत्री का पदभार ग्रहण करने को कहा। कम समय में ही, दिसंबर 2002 में होने वाले राज्य विधानसभा चुनावों में बहुमत के साथ जीत हासिल कर भाजपा के लिए एक बेहतर माहौल बनाना उनका प्रमुख काम था। राष्ट्रीय स्तर पर 15 साल के कार्यकाल के बाद नरेंद्र मोदी के लिए गुजरात वापसी आवश्यक हो गयी थी। गुजरात भाजपा के लिए बहुत महत्वपूंर्ण राज्य था। किंतु प्रदेश में पार्टी की हालत अच्छी नहीं थी और यह केंद्रीय नेतृत्व के लिए सबसे बड़ी चिंता थी। पार्टी को किसी ऐसे व्यक्ति की जरूरत थी जो अंदरूनी कलह को दूर कर सरकार का प्रभावी ढंग से नेतृत्व कर सके। केंद्रीय नेतृत्व की कसौटी पर नरेंद्र मोदी बिलकुल खरे उतरे। अन्य प्रदेशों और राष्ट्रीय स्तर पर भाजपा के शानदार रणनीतिकार के रूप में, मोदी सिक्के के दोनों पहलुओं को देख चुके थे। इसीलिए पार्टी ने सर्वसम्मति से नरेंद्र मोदी को गुजरात भेजने का निर्णय किया। राजकोट-2 विधानसभा क्षेत्र से विधायक के रूप में निर्वाचित होकर नरेंद्र मोदी गुजरात विधानसभा में पहुंचे और मुख्यमंत्री के रूप में अपना दावा पेश किया। उन्होंने कांग्रेस के अश्विन मेहता को हराया। विधानसभा चुनावों के लिए पार्टी को तैयार करने की बड़ी जिम्मेदारी के साथ उन्होंने मुख्यमंत्री का कार्यभार संभाला। लेकिन उनके कार्यकाल की शुरुआत बहुत अच्छी नहीं रही। 27 फरवरी, 2002 को गोधरा में एक भयानक घटना घटी जिसमें संदिग्ध मुस्लिमों ने अयोध्या से गोधरा लौट रहे हिंदू कार सेवकों की ट्रेन की बोगियों को कथित तौर पर जला दिया। इस भयावह घटना में साठ लोगों की जलकर मौत हो गई। जब यह अफवाह फैलनी शुरू हुई कि इस घटना के पीछे मुसलमानों का हाथ है, तो एक सांप्रदायिक विवाद उठ खड़ा हुआ जिसमें कई और लोगों को अपनी जान गंवानी पड़ी। नरेंद्र मोदी ने इस स्थिति को नियंत्रित करने के लिए तमाम जरुरी कदम उठाए। कई जगहों पर कर्फ्यू लगाया गया, कठोर अनुशासनात्मक कदम उठाए गए, सामान्य िस्थति बहाल करने के लिए देखते ही गोली मार देने के आदेश दिए गए। हालांकि, विपक्षी दलों ने मोदी पर सांप्रदायिक अशांति के लिए जिम्मेदार होने का आरोप लगाया। लेकिन आखिरकार, कई वष� बाद सुप्रीम कोर्ट द्वारा नियुक्त विशेष जांच दल (एसआईटी) ने उन्हें दोषमुक्त करार दिया। 2013 में न्यायिक स्तर पर इस केस को बंद कर दिया गया।
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पुस्तक अंश
मोदी का प्रयास हमेशा से कुछ नया और बेहतर करने का रहा है। गुजरात इसका एक उदाहरण है और इसे देखने के लिए लोगों को वहां जाना चाहिए।
कानून और व्यवस्था नियंत्रण में है, लोग आजादी से घूम रहे हैं। अब मुझे किसी को हफ्ता नहीं देना पड़ता है। सरकार से संबंधित चीजें सरल और पारदर्शी हो गई हैं। मैं अपने व्यवसाय पर स्वतंत्र रूप से ध्यान केंद्रित कर सकता हूं। मैं भले ही मोदी को पसंद न करूं, लेकिन मैं उनके लिए ही वोट दूंगा।
रतन टाटा, पूर्व चेयरमैन, टाटा संस
जाकिर हुसैन, मालिक, वाउ (WOW) - मुगल फूड रेस्तरां, अहमदाबाद
गुजरात को पूरी तरह से बदल देना
अक्टूबर 2001 में जब मोदी को सरकार की अगुवाई करने के लिए गुजरात भेजा गया तब राज्य की अर्थव्यवस्था खस्ताहाल थी। 26 जनवरी 2001 को कच्छ और भुज के इलाकों में आए भूकंप से हुई तबाही सरकार के सामने एक और बड़ी चुनौती बन कर खड़ी हो गई। रणनीतिकार और संगठन के जादूगर नरेंद्र मोदी के सामने भूकंप से तबाह हुए क्षेत्रों के आर्थिक पुनरुत्थान, पुनर्निर्माण और पुनर्वास की सबसे बड़ी चुनौती थी। भूकंपग्रस्त इलाकों में किए गए बड़े पैमाने पर पुनर्निर्माण और पुनर्वास के साथ उन्होंने, राज्य विधानसभा चुनावों के लिए बचे हुए 14 महीनों, में विकास की एक बड़ी तस्वीर पेश की। इस तस्वीर में सिर्फ सामाजिक-आर्थिक असंतुलन को साधा ही नहीं, बल्कि बहुआयामी विकास संबंधी पहल भी थी। दिसंबर 2002 के विधानसभा चुनावों में नरेंद्र मोदी की कड़ी मेहनत ने भाजपा को पूर्ण बहुमत से जीत दिला दी। भाजपा को राज्य की 182 में से 117 सीटें मिली।
भूकंप से तबाह कच्छ और भुज क्षेत्रों का पुनर्वास और पुनर्निर्माण
भूकंप का केंद्र कच्छ में था, इसीलिए उसे सबसे ज्यादा नुकसान हुआ। साथ ही सिर्फ 20 किलोमीटर दूर भुज को भी भारी तबाही झेलनी पड़ी। भूकंप के झटके अहमदाबाद तक में तबाही के मंजर छोड़ गए। अहमदाबाद में लगभग 50 बहु-मंजिला इमारतें ढह गईं और सैकड़ों लोग मारे गए। भारत सरकार ने इस त्रासदी से प्रभावित लोगों के संख्या 15 लाख बताई, जिनमें 19, 772 लोगों की मौत हुई, 166,000 घायल हुए और 600,000 लोग बेघर हो गए। 348,000 घर नष्ट हो गए और 844,000 घर क्षतिग्रस्त हुए। आधिकारिक आकलन के अनुसार 1.3 अरब डॉलर का प्रत्यक्ष आर्थिक नुकसान हुआ, जबकि अन्य अनुमानों के
गुजरात के पूर्व मुख्यमंत्री केशुभाई पटेल के साथ नरेंद्र मोदी
मुताबिक 5 अरब डॉलर से अधिक का नुकसान इस आपदा से हुआ। नरेंद्र मोदी ने अक्टूबर 2001 में मुख्यमंत्री के रूप में पदभार ग्रहण करने के बाद, अपनी पूरी ऊर्जा उन भूकंप प्रभावित क्षेत्रों में लगाई, जहां सबसे अधिक नुकसान हुआ था। वे यह समझ चुके थे कि वित्तीय संस्थानों की सहायता के बिना इन चुनौतियों से नहीं निपटा जा सकता है। इसीलिए उन्होंने विश्व बैंक, एशियाई विकास बैंक और कई गैर सरकारी संगठनों से सहायता ली और यह सुनिश्चित किया कि यह काम लोगों की आवश्यकताओं को ध्यान में रखते हुए किया जाए। साथ ही स्थायी बस्ती बनाने के लिए एक व्यवहारिक योजना भी हो। मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी के गतिशील नेतृत्व
के कराण, 124,000 घरों की एक बस्ती सिर्फ चार साल के कम समय में बन कर तैयार हो गयी। जबकि विश्व बैंक ने इस कार्य के लिए लगभग 10 वर्षों का अनुमानित समय निर्धारित किया था। तेज और मजबूत पुनर्निर्माण सुनिश्चित करने के लिए मुख्य योजना • ग्राम समुदाय द्वारा लिए गए स्थानांतरण या यथास्थान पुनर्निर्माण के विकल्प ने न्यूनतम स्थानांतरण सुनिश्चित किया। • सरकार द्वारा वित्तीय, सामग्री और तकनीकी सहायता से निर्माण • रिकॉर्ड समय में घोषित आवास सहायता पैकेज • निर्माण और मरम्मत के लिए लोगों
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का मार्गदर्शन करने के लिए दिशा निर्देश तैयार किए गए निर्माण सामग्री के लिए उत्पाद शुल्क में छूट दी गई बहु-खतरा प्रतिरोधी पुनर्निर्माण अनिवार्य बना दिया गया तकनीकी मार्गदर्शन प्रदान करने और निर्माण की निगरानी के लिए, इंजीनियर्स नियुक्त किए गए तीन किश्तों में भुगतान किए गए दूसरी और तीसरी किश्त इंजीनियरों द्वारा सत्यापन और प्रमाणीकरण के बाद ही दी गई
चुनावी जीत के बाद विकास के लिए निरंतर गति
मोदी ने इस चुनावी जीत का जश्न मनाने में समय बर्बाद नहीं किया। नई सरकार के शपथ लेने के तुरंत बाद, उन्होंने गुजरात के एकीकृत विकास के लिए पांच-स्तरीय रणनीति वाली ‘पंचामृत योजना’ बनाई। इसके बाद पानी की प्रत्येक बूंद को बचाने के लिए ‘टपक (ड्रिप) सिंचाई प्रणाली’ का आक्रामक प्रचार किया गया। आज मोदी की इस पहल के कारण, गुजरात में पांच लाख से अधिक हेक्टेयर भूमि ड्रिप सिंचाई के तहत आती है। जल प्रबंधन के लिए उनकी सरकार के प्रयासों के परिणामस्वरूप गुजरात में कृषि क्षेत्र में लगातार 10 प्रतिशत की वृद्धि हुई है, जो राष्ट्रीय औसत तीन प्रतिशत की तुलना में बहुत अधिक है। शहरों और गांवों को पीने का पानी उपलब्ध कराया गया, जिससे लोगों को पानी लाने के लिए मीलों चलने से मुक्ति मिली। नरेंद्र मोदी ने नर्मदा (सरदार सरोवर) बांध की ऊंचाई को 121.9 मीटर तक बढ़ाने के लिए सामाजिक कार्यकर्ताओं की भारी आलोचना झेली, लेकिन वे अडिग रहे। उनके इस कदम से गुजरात को काफी फायदा मिला। उन्होंने सौर ऊर्जा चालित विलवणीकरण (डिसैलिनेशन) संयंत्रों से औद्योगिक उपयोग के लिए समुद्री जल का उपयोग करने के लिए एक कार्यक्रम भी शुरू किया। ऊर्जा शक्ति योजना के माध्यम से, गुजरात भारत के एकमात्र ऐसे राज्य के रूप में उभरा है, जिसके कस्बों और गांवों को चौबीसो घंटे बिजली मिलती है। तेजी से बढ़ती हुई ग्रामीण अर्थव्यवस्था ने शहरी इलाकों में ग्रामीण प्रवास को कम करने में योगदान दिया। राज्य सरकार के अतिरिक्त ऊर्जा के आश्वासन ने गुजरात को एक आकर्षक उद्योग स्थल बना दिया। गुजरात ने उद्योगों और घरों में गैस की आपूर्ति के लिए एक गैस ग्रिड विकसित कर लिया। तब से, राज्य हाइड्रोकार्बन अन्वेषण में शामिल रहा है और गैस आधारित अर्थव्यवस्था में विकसित करने के लिए लगातार प्रयास कर रहा है। गुजरात की व्यापक ऊर्जा नीति, प्रचुर मात्रा में स्वच्छ ऊर्जा प्रदान करने पर केंद्रित है।
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पंचामृत योजना
मोदी मॉडल "पांच शक्तियों" पर केंद्रित जल शक्ति, वाटर पॉवर
जन शक्ति: मानव संसाधन शक्ति (पॉवर ऑफ ह्यूमन रिसोर्स) रक्षा शक्ति: डिफेंस पॉवर ऊर्जा शक्ति: एनर्जी पॉवर ज्ञान शक्ति: नॉलेज पॉवर
गुजरात में वृक्षारोपण अभियान की अगुवाई करते नरेंद्र मोदी
नरेंद्र मोदी की कुछ महत्वपूर्ण परियोजनाएं
शिशु मृत्यु दर को कम करने के लिए - चिरंजीवी योजना स्वच्छता और वृक्षारोपण को प्रोत्साहित करने के लिए - निर्मल गुजरात हर गांव को बिजली प्रदान करने के लिए - ज्योतिग्राम योजना
गुजरात में स्कूल जाने वाली लड़कियों के साथ नरेंद्र मोदी
कृषि अनुसंधान प्रयोगशालाएं प्रदान करने के लिए - कृषि महोत्सव आदिवासी क्षेत्रों के विकास के लिए - वनबंधु कल्याण योजना खेल और खिलाड़ियों को प्रोत्साहित करने के लिए - खेल महोत्सव महिला उद्यमियों को क्रेडिट लिंक उपलब्ध कराने के लिए - मिशन मंगलम
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एक महत्वपूर्ण जीवन स्रोत के रूप में पानी के बारे में मोदी के विचारों ने लाखों लघु बांधाें के निर्माण के जरिए स्थानीय जल संरक्षण के प्रयासों को पेश किया और समर्थन दिया। उन्होंने जल संरक्षण और इसके उचित उपयोग के लिए गुजरात में जल संसाधनों की ग्रिड बनाने के लिए "सुजलाम सुफलाम" योजना शुरू की। यह छोटी नदियों और धाराओं को जोड़ने की योजना थी। उनके एकीकृत दृष्टिकोण के परिणामस्वरूप गुजरात जैसे सूखे राज्य में भूजल का स्तर सुधर गया।
गुजरात के गांधी आश्रम में विधायकों, सांसदों और राज्य के आध्यात्मिक प्रमुखों के साथ एक सार्वजनिक बैठक में नरेंद्र मोदी
गुजरात में एक नहर का उद्घाटन करते हुए नरेंद्र मोदी
राज्य नौकरशाही को प्रशिक्षित करने के लिए – कर्मयोगी योजना गुणवत्ता शिक्षा के प्रचार के लिए – गुणोत्सव और वंचे गुजरात मुस्लिम समुदाय तक पहुंचने के लिए - सद्भावना मिशन बेटी बचाने के लिए - बेटी बचाओ अभियान
बाल स्वास्थ्य के लिए निवारक और उपचारात्मक सेवाएं प्रदान करने के लिए - मातृ वंदना महिला साक्षरता और शिक्षा को प्रोत्साहित करने के लिए - कन्या केलवानी योजना छोटी नदियों और धाराओं को जोड़ने और जल ग्रिड बनाने के लिए - सुजलाम सुफलाम
राज्य प्रशासक के रूप में अपने कार्यकाल की शुरुआत के बाद से, नरेंद्र मोदी ने जन शक्ति या मानवीय संसाधन के मूल्यों को पहचाना और उनका उपयोग किया। 13 वर्षों के अपने मुख्यमंत्रित्व काल में, उन्होंने मानव-संबंधित सूचकांकों में खामियों को दूर करने के कई सफल प्रयास किए। स्कूलों से ड्राप आउट को रोकने के लिए जोरदार अभियान चलाए, लड़कियों की शिक्षा को प्रोत्साहित किया। इसके लिए उपहारों की नीलामी के माध्यम से पैसों का योगदान करके व्यक्तिगत रूप से उन्होंने एक उदाहरण स्थापित किया। उनकी सरकार के लोकप्रिय "गुणोत्सव और वंचे गुजरात" अभियानों ने शिक्षा की गुणवत्ता और पढ़ने की आदतों की आवश्यकताओं का खूब प्रचार किया। शिशु मृत्यु दर को कम करने और आपातकालीन चिकित्सा सहायता प्रदान करने के लिए "चिरंजीवी योजना" और 108 आपातकालीन सेवाओं जैसी पहलों के माध्यम से सार्वजनिक स्वास्थ्य को महत्व दिया गया। "निर्मल गुजरात" के तहत स्वच्छता और वृक्षारोपण शुरू किए गए। सार्वजनिक वितरण प्रणाली (पीडीएस) के माध्यम से सूक्ष्म पोषक तत्वों वाले अनाज की आपूर्ति सुनिश्चित की गई। वहीं मध्याह्न भोजन योजना (मिड डे मील) के साथ गरीबी रेखा के नीचे आने वाले (बीपीएल) परिवारों और स्कूल जाने वाले बच्चों के बीच कुपोषण की जांच शुरू कर दी। शारीरिक गतिविधियों और खेलों को प्रोत्साहित करने के लिए "खेल महाकुंभ" शुरू किया गया। गुजरात की विशाल और उपेक्षित जनजातीय आबादी के लिए, नरेंद्र मोदी ने "वन बंधु कल्याण योजना" का शुभारंभ किया। इसका
उद्देश्य आदिवासी क्षेत्रों में पूरी तरह से विकास करना था। महिलाओं को आजीविका प्रदान करने के लिए उन्हें ऋण मुहैया कराने वाले "मिशन मंगलम" की शुरुआत की गई। प्रतिस्पर्धी दुनिया में ज्ञान और सुरक्षा सफलता की कुंजी हैं। इसी को ध्यान में रखते हुए, दूरदर्शी नरेंद्र मोदी ने गुजरात के लोगों के ज्ञान और कौशल को बढ़ाने के लिए योजनाएं बनाने पर अपना अधिकतर समय व्यतीत किया। पंडित दीनदयाल पेट्रोलियम यूनिवर्सिटी फॉर रिसर्च इन एनर्जी, चिल्ड्रेन्स यूनिवर्सिटी, इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ टीचर ट्रेनिंग, फॉरेंसिक साइंस यूनिवर्सिटी, रक्षाशक्ति यूनिवर्सिटी, कामधेनु यूनिवर्सिटी और लॉ यूनिवर्सिटी जैसे संस्थान स्थापित किए गए। विनिर्माण क्षेत्र की बढ़ती जरूरतों को पूरा करने के लिए गुणवत्तापूर्ण तकनीकी शिक्षा को ध्यान में लाया गया। नरेंद्र मोदी के कार्यकाल में कई आईटीआई, पॉलीटेक्निक और इंजीनियरिंग कॉलेजों की स्थापना और उनका उन्नयन किया गया। उद्योग और तकनीकी शिक्षा के बीच तालमेल हासिल करना प्रमुख व स्पष्ट उद्देश्य था। कौशल विकास कार्यक्रमों को प्रशिक्षण के लिए लाया गया और परंपरागत शिक्षा मॉडल से अलग माना गया। राज्य की नौकरशाही को प्रशिक्षित करने के लिए "कर्मयोगी" कार्यक्रम शुरू किया गया। इन सभी पहल के परिणामस्वरूप गुजरात में लगभग सभी गांव अब ब्रॉडबैंड नेटवर्क से जुड़े हैं। सूचना प्रौद्योगिकी का प्रभावी ढंग से शासन में उपयोग किया जा रहा है और राज्य को उसकी ई-गवर्नेंस पहल के लिए कई पुरस्कार प्राप्त हुए हैं। सुरक्षा मोर्चे पर, नरेंद्र मोदी ने गुजरात की तटीय सीमा को मजबूत करने और घुसपैठ को रोकने के लिए केंद्रीय रक्षा मंत्रालय के साथ
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सद्भावना मिशन
मोदी ने राज्य में मुिस्लमाें तक पहुंचने के प्रयास में 2011 के उत्तरार्द्ध और 2012 की शुरुआत में सदभावना मिशन (सद्भावना) का आयोजन किया। उन्होंने इस विश्वास के साथ कई उपवास किए कि इस कदम से शांति, एकता और सद्भाव के माहौल वाला गुजरात और बेहतर बनेगा। यह मिशन अहमदाबाद में 17 सितंबर, 2011 को शुरू हुआ। कुल मिलाकर, उन्होंने आठ शहरों और 26 जिलों में 36 उपवास किए।
काम किया। आतंकवाद पर उनकी शून्य सहिष्णुता (जीरो टॉलरेंस) काफी प्रसिद्ध है और उसकी व्यापक रूप से सराहना की जाती है। मुख्यमंत्री के रूप में कई अवसरों पर, उन्होंने रक्षा संबंधी विनिर्माण के लिए गुजरात को एक केंद्र बनाने का उत्साह दिखाया।
ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मजबूत बनाने के लिए
कृषि उत्पादन के संदर्भ में, गुजरात के कच्छ, सौराष्ट्र और अन्य उत्तरी हिस्सों में भूजल की बेहतर आपूर्ति के कारण काफी सुधार हुआ। सूक्ष्म सिंचाई के इस्तेमाल को बढ़ाने और कुशल बिजली आपूर्ति के साथ, खेतों को
उपलब्ध कराने के प्रयास भी किए गए। 2001-2007 की अवधि के दौरान गुजरात की कृषि विकास दर में 9.6% की वृद्धि हुई। 2001-2010 के बीच गुजरात में यौगिक वार्षिक वृद्धि दर 10.97 प्रतिशत तक पहुंच गई, जो भारत के सभी राज्यों में सबसे ज्यादा थी। ग्रामीण क्षेत्रों में बिजली आपूर्ति व्यवस्था में आए क्रांतिकारी परिवर्तन ने कृषि को आगे बढ़ने में मदद की। बुनियादी ढांचा क्षेत्र में, अकेले 2008 में ही 500,000 संरचनाओं का निर्माण गुजरात में देखा गया, जिसमें से 113,738 लघु बांध थे। 2010 में, 112 तहसीलों में से 60 ने अपने सामान्य भूजल स्तर को वापस पा लिया। इससे आनुवांशिक रूप से संशोधित बीटी कॉटन का
17 सितंबर 2011 को अहमदाबाद के गुजरात यूनिवर्सिटी कन्वेंशन सेंटर में मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी का अभिवादन करते मुस्लिम नेता
उत्पादन बढ़ा। नरेंद्र मोदी के शासन में गुजरात सरकार ने राज्य की विद्युत वितरण प्रणाली को बदल दिया, खेती और ग्रामीण क्षेत्र को सर्वाधिक लाभ दिया गया। ज्योतिग्राम योजना अथवा गांवों की प्रकाश व्यवस्था का विस्तार किया गया। कृषि बिजली को ग्रामीण बिजली के अन्य रूपों से अलग कर दिया। निर्धारित सिंचाई की मांग को पूरा करने के लिए कृषि बिजली कम लागत पर वितरित की गई। कुल मिलाकर, गुजरात के ग्रामीण इलाकों में बिजली आपूर्ति स्थिर है।
व्यापार और निवेश के चैंपियन के रूप में नरेंद्र मोदी
2003 और 2015 के बीच, नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में सात "वाइब्रेंट गुजरात" सम्मेलन आयोजित किए गए। गुजरात सरकार के तत्वावधान में आयोजित इन द्विवार्षिक निवेशक सम्मेलन का उद्देश्य व्यापार जगत
के उद्यमियों, निवेशकों, निगमों, विचारकों, नीतियों को एक साथ लाना था। इन सम्मेलनों को गुजरात में व्यवसाय के अवसरों को समझने और तलाशने के लिए प्लेटफार्म के रूप में प्रचारित किया गया। साल 2003 में 28 सितंबर से 2 अक्तूबर के बीच हुए पहले सम्मेलन के लिए, औद्योगिक विस्तार ब्यूरो ने गुजरात सरकार के लिए नोडल एजेंसी के रूप में कार्य किया। उसने भारत सरकार के साथ मिलकर संयुक्त राष्ट्र औद्योगिक विकास संगठन (यूएनआईडीओ), भारतीय वाणिज्य और उद्योग संघ (एफआईसीसीआई) और भारतीय उद्योग परिसंघ (सीआईआई) के सहयोग से गुजरात के दो प्रमुख वाणिज्यिक शहरों- अहमदाबाद और सूरत में इस सम्मलेन का आयोजन किया। अहमदाबाद में औद्योगिक निवेश, एग्रो प्रसंस्करण, बायोटेक फार्मा, प्राकृतिक गैस और तेल, बुनियादी ढांचा, खनन, पर्यटन, ऐपर्ल, रत्न और आभूषण क्षेत्र मुख्यता निवेश
12 - 18 फरवरी 2018 के केंद्र में रहे। जबकि सूरत में वस्त्र, रत्न और आभूषण के उद्योग पर फोकस रहा। अंत में, 14 अरब अमरीकी डाॅलर के मूल्य के साथ 76 समझौताें पर हस्ताक्षर किए गए। नरेंद्र मोदी द्वारा मुख्यमंत्री के रूप में सौंपी गई वाइब्रेंट गुजरात सम्मेलन की विरासत गुजरात में आज भी जारी है। सम्मेलन के 2013 और 2015 में हुए छठे और सातवें संस्करणों ने राज्य की बढ़ती ताकत, प्रगतिशील मूल्यों और प्रशासन को बेहतर बनाने के लिए की गई पहलों को दर्शाया। साथ ही निवेशकों के अनुकूल वातावरण, कला और संस्कृति को प्रदर्शित करने के साथ राज्य में बेहतर संभावनाओं को भी दर्शाया गया। 2017 में आठवां संस्करण 10 से 13 जनवरी के बीच गुजरात की राजधानी गांधीनगर स्थित महात्मा मंदिर में आयोजित किया गया। इसका प्रमुख उद्देश्य "सशक्त आर्थिक और सामाजिक विकास" पर केंद्रित था। इसने दुनिया भर से कॉरपोरेट जगत के नेताओं के साथ राज्यों, सरकारों और संस्थानों के प्रमुखों को एक ऊर्जावान और उत्साहजनक बातचीत के लिए एक मंच पर साथ आने में मदद की। गुजरात के मुख्यमंत्री के रूप में, नरेंद्र मोदी ने विदेशों की कई यात्राएं की। इन सब में सबसे प्रमुख थी-चीन की यात्रा। जहां उन्होंने सामाजिक-आर्थिक प्रगति के मॉडल पर विशेष ध्यान दिया।
गुजरात के पर्यटन क्षेत्र को बढ़ावा देने के लिए, मोदी ने बॉलीवुड के सुपरस्टार अमिताभ बच्चन को ब्रांड एंबेसडर बनाया। अमिताभ बच्चन ने इसके लिए कोई भी शुल्क नहीं लिया। उनकी आवाज में "खुशबू गुजरात की" प्रचार अभियान ने गुजरात में पर्यटन की विकास दर चार प्रतिशत प्रतिवर्ष बढ़ा दी। यह इस क्षेत्र के लिए राष्ट्रीय विकास दर की तुलना में दोगुना था।
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एक राज्य के रूप में गुजरात की छाप निरंतर और सुसंगत विकास प्रणाली वाले सिस्टम की हो गई। इसके परिणामस्वरूप विश्व बैंक ने लगातार दो वर्षों तक कारोबारी सुगमता के मामले में गुजरात को सर्वश्रेष्ठ भारतीय राज्य के रूप में समर्थन दिया।
व्यापार करने की मोदी शैली: न्यूनतम परेशानियां, अधिकतम
राज्य में निवेश की गति को बढ़ाने के लिए 2003 में शुरू हुए ‘वाइब्रेंट गुजरात ग्लोबल सम्मेलन’ देश की सबसे महत्वपूर्ण अंतरराष्ट्रीय व्यापारिक घटनाओं में से एक के रूप में स्थापित हो चुका है।
10 जनवरी, 2011 को गुजरात के गांधीनगर स्थित महात्मा मंदिर में वाइब्रेंट गुजरात ग्लोबल शिखर सम्मेलन के उद्घाटन समारोह के दौरान मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी
2 जून, 2010 को नैनो कार के लोकार्पण (रोलआउट) समारोह में टाटा समूह के अध्यक्ष रतन टाटा के साथ नरेंद्र मोदी
परिणाम
2007 में अहमदाबादमें वाइब्रेंट गुजरात ग्लोबल इन्वेस्टर्स समिट के समारोह में टाटा समूह के चेयरमैन रतन टाटा, रिलायंस इंडस्ट्रीज लिमिटेड के चेयरमैन मुकेश अंबानी और अन्य के साथ मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी
पश्चिम बंगाल सरकार और टाटा मोटर्स के बीच सिंगूर में टाटा नैनो संयंत्र की स्थापना के लिए साल 2008 में बातचीत निष्फल हो गई। 3 अक्टूबर 2008 को पश्चिम बंगाल के मुख्यमंत्री बुद्धदेव भट्टाचार्य के साथ बैठक के बाद रतन टाटा ने नैनो परियोजना को पश्चिम बंगाल के बाहर स्थानांतरित करने की घोषणा की। टाटा ने तृणमूल कांग्रेस की अध्यक्ष ममता बनर्जी की अगुवाई में विपक्ष द्वारा सिंगूर परियोजना के खिलाफ आंदोलन को लेकर अपनी निराशा जताई और और इसी वजह से यह कदम उठाया। तब नरेंद्र मोदी ने रतन टाटा को एक एसएमएस भेजा, जिसमें लिखा था: सुस्वागतम! (गुजरात में आपका स्वागत है!)। मोदी ने टाटा को गुजरात में अपने मोटर वाहन संयंत्र को स्थापित करने के लिए आमंत्रण दिया। साथ ही टाटा समूह के अध्यक्ष को गुजरात में नैनो संयंत्र को स्थानांतरित करने के लिए राजी भी कर लिया। गुजरात के साणंद में नया कारखाना बनाने में सिर्फ 14 महीने लगे, जबकि सिंगुर में
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स्वागत शिकायत निवारण प्रणाली
महीने के हर चौथे गुरुवार को आयोजित
मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी ने गुजरात को वैश्विक नक्शे पर उभार कर भारत और भारतीयों को गौरवान्वित किया है। ... अपने स्वर्ण जयंती
स्वागत कार्यालय में 9 से अपराह्न 12 बजे के बीच ऑनलाइन शिकायत आवेदन पंजीकृत होते हैं संबंधित अधिकारियों को तुरंत विवरण उपलब्ध होते हैं
वर्ष में, गुजरात आज स्वर्ण भूमि की तरह चमक रहा है। इसका श्रेय नरेंद्र भाई के दूरदर्शी, प्रभावी और भावपूर्ण नेतृत्व को जाता है ... 21 वीं सदी का गुजरात एक उभरते हुए सुपर पावर के एक राष्ट्र के रूपांतरण का प्रतीक है।
अधिकारी 12 बजे से दोपहर 3 बजे के बीच प्रतिक्रियाएं और सूचनाएं दर्ज करते हैं मुख्यमंत्री और वरिष्ठ अधिकारी 3 बजे आवेदक के साथ बातचीत करते हैं वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से जिला अधिकारी उपस्थिति होते हैं मुख्यमंत्री द्वारा दिए गए सभी निर्देश उसी दिन दर्ज किए जाते हैं सभी मामले उसी दिन या समयबद्ध तरीके से निपटाए जाते हैं 28 महीने लगे थे। गुजरात विकास के रास्ते पर तेजी से चल रहा था, वहीं मोदी के अंदर भी उनका रचनात्मक व्यक्तित्व बिना थके काम कर रहा था। वे समय की रेत पर अपने पैरों के निशान छोड़ते हुए, एक के बाद एक मील का पत्थर स्थापित करते रहे और गुजरात का चेहरा
बच्चन की आवाज में "खुशबू गुजरात की" प्रचार अभियान ने गुजरात में पर्यटन की विकास दर चार प्रतिशत प्रतिवर्ष बढ़ा दी। यह इस क्षेत्र के लिए राष्ट्रीय विकास दर की तुलना में दोगुनाी थी।
अहमदाबाद में गुजरात इंटरनेशनल फाइनेंस टेक सिटी (गिफ्ट) के स्केल माडल का निरीक्षण करते हुए नरेंद्र मोदी
भी बदलते रहे ।
गुजरात मॉडल की अद्वितीय सफलता
आज, गुजरात ई-गवर्नेंस, निवेश, गरीबी उन्मूलन, बिजली उत्पादन, विशेष आैद्योगिक क्षेत्रों का निर्माण, सड़क विकास और वित्तीय अनुशासन जैसे कई क्षेत्रों में भारत का अग्रणी राज्य है। गुजरात के विकास की कहानी सभी तीन मुख्य क्षेत्रों - कृषि, उद्योग और सेवाओं के विकास पर आधारित है। इस मजबूत विकास के पीछे नरेंद्र मोदी का गतिशील नेतृत्व और उनक प्रेरक मंत्र "सबका साथ, सबका विकास" है। जोकि लोगों के हित और सक्रिय बेहतर
शासन व्यवस्था (पी2जी2) पर जोर देता है। नरेंद्र मोदी द्वारा स्थापित नवीन विचारों ने समयबद्ध तरीके से गुजरात में बहु-आयामी विकास शुरू किया। उनके शानदार नेतृत्व में, गुजरात ने दुनिया भर से कई पुरस्कार और प्रशंसा प्राप्त की। जिसमें आपदा न्यूनीकरण के लिए यूएन सासाकावा पुरस्कार, शासन में नवाचार के लिए लोक प्रशासन और प्रबंधन - राष्ट्रमंडल संघ पुरस्कार (सीएपीएएम), ई-गवर्नेंस के लिए यूनेस्को पुरस्कार और सीएसआई पुरस्कार प्रमुख हैं। नरेंद्र मोदी ने एक प्रशासक के रूप में अपनी प्रतिष्ठा स्थापित की है। पार्टी के अभूतपूर्व चुनावी प्रदर्शन ने,न केवल उनको देश के सबसे प्रभावशाली नेताओं में से एक के रूप में बनाई,
मुकेश अंबानी, अध्यक्ष और प्रबंध निदेशक, रिलायंस इंडस्ट्रीज लिमिटेड
मुख्यमंत्री के रूप में, नरेंद्र मोदी ने कुछ चीजें करने के लिए असाधारण ऊर्जा दिखाई।
नरेंद्र मोदी द्वारा उठाए गए कदमों की वजह से भारत का विकास बहुत तेजी से होगा। जिम योंग किम, अध्यक्ष, विश्व बैंक
बल्कि देश के प्रधानमंत्री के संभावित उम्मीदवार के रूप में उनकी स्थिति को और मजबूत किया। गुजरात में बारह वर्षों के उनके कार्यकाल ने राज्य को आर्थिक और सांस्कृतिक रूप से आगे बढ़ाने में बहुत मदद की। नरेंद्र मोदी को लगातार तीन वर्षों तक जनता द्वारा सर्वश्रेष्ठ मुख्यमंत्री के रूप रेखांकित किया गया। इसी से उनके नेतृत्व और उपलब्धियों का अंदाजा लगाया जा सकता है। गुजरात में, नरेंद्र मोदी भाजपा के पर्याय बन गए। जुलाई 2007 तक, मोदी ने गुजरात के मुख्यमंत्री के रूप में लगातार 2,063 दिन पूरे किए। इस तरह राज्य में मुख्यमंत्री पद पर रहने का रिकॉर्ड नरेंद्र मोदी के नाम ही है।
(अगले अंक में जारी...)
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खेल
‘उड़न परी’ को हराने वाली एथलीट
उस दौर में जब पीटी उषा का बड़ा नाम था, अश्विनी नचप्पा ने 1991 के एशियन गेम्स के 400 मीटर दौड़ में उनसे आगे निकलकर रोमांचित कर दिया था
खास बातें अश्विनी कुछ तेलुगु फिल्मों की नायिका भी रही हैं अपने ऊपर बनी फिल्म में स्वयं निभाई भूमिका 1988 के सिओल ओलंपिक में नाटकीय तरीके से शामिल हुईं
भा
अश्विनी को पता चला कि अश्विनी को रिजर्व में कर दिया गया। पीटी उषा को शामिल कर लिया गया था। 4×400 मी रिले दौड़ में भारत की टीम पहले ही दौर में बाहर हो गई। 1992 ओलंपिक खेलों में एक चोट की वजह से ट्रायल नहीं दे पाईं और रिटायरमेंट ले लिया। इसी बीच अश्विनी को 1990 में अर्जुन पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया।
एसएसबी ब्यूरो
रतीय एथेलिटिक्स के इतिहास में अस्सी-नब्बे के दशक में ट्रैक-फील्ड पर पीटी उषा का नाम सबसे बड़ा था। उस जमाने में जिस खिलाड़ी ने 2 बार पीटी उषा को पीछे छोड़ा, उसका नाम था अश्विनी नचप्पा। अश्विनी उस दौरान फिल्मों में भी गईं और वापस आकर फिर से नेशनल मेडल भी जीते। उस दौर में पीटी उषा, अश्विनी नचप्पा और शाइनी विल्सन इन तीन धाविकाओं को देखने के लिए भीड़ टूट पड़ती थी। लेकिन अश्विनी को भारत में पहली बार पहचान मिली 1991 के ओपन नेशनल गेम्स में 400 मीटर दौड़ में पीटी उषा से आगे निकलकर दिखाने के बाद। इस जीत को अश्विनी का तुक्का माना गया, लेकिन इसके कोई 2 हफ्तों बाद नई दिल्ली में एक अंतरराष्ट्रीय टूर्नामेंट में अश्विनी एक बार फिर पीटी उषा से आगे रहीं। दिल्ली में हुई इस दौड़ में अश्विनी नंबर 2 और पीटी उषा नंबर 3 पर रहीं। पहला स्थान एक रूसी खिलाड़ी के नाम रहा।
1991 के एशियन गेम्स के दो हफ्ते बाद बाद दिल्ली में एक अंतरराष्ट्रीय टूर्नामेंट में अश्विनी एक बार फिर पीटी उषा से आगे रहीं। दिल्ली में हुई इस दौड़ में अश्विनी नंबर 2 और पीटी उषा नंबर 3 पर रहीं
मिठाई ने बनाया एथलीट
अश्विनी का खेलों में कैसे आना हुआ, इसकी भी दिलचस्प कहानी है। अश्विनी ने अपना बचपन कोलकाता में बिताया था, जहां पिताजी बिड़ला रेयॉन में नौकरी करते थे। कुछ दिनों बाद अश्विनी, इनकी बहन पुष्पा और मां बेंगलुरु आ गए। बेंगलुरु में श्री कांतीरावा स्टेडियम के ठीक सामने उनका आवास था। उन दिनों भारत के ट्रिपल जंप के खिलाड़ी और एशियन गेम्स के गोल्ड मेडलिस्ट मोहिंदर सिंह गिल वहीं थे। गिल साहब मैदान का एक चक्कर लगाने बच्चे को एक मिठाई देते थे। मिठाइयों के लिए अश्विनी और पुष्पा चक्कर लगाती-लगाती एथलीट बन गईं और टॉफियों की जगह ट्रॉफियों ने ले ली।
बेंगलुरु में ट्रायल के बाद 21 साल की उम्र में 1988 सिओल ओलंपिक के लिए चयन हो गया।
सिओल ओलंपिक ट्रायल
अश्विनी बताती हैं, ‘1988 के सिओल ओलंपिक ट्रायल में रिले टीम के 4 खिलाड़ियों के चयन के लिए कुल 6 खिलाड़ियों में चुनाव होना था। मुकाबले से ठीक पहले दिन आखिरी ट्रायल होना था। ट्रायल के वक्त पीटी उषा और उनके कोच नहीं आए और अधिकारियों ने तय किया कि शाम को फिर ट्रायल लेंगे।’ शाम के वक्त अश्विनी के साथ 2 और खिलाड़ी हॉकी टीम का मैच देखने चली गईं। वापस आने पर
स्पोर्ट्स एक्टिविस्ट भी अश्विनी ने क्लिन स्पोर्ट्स इंडिया नाम से एक संस्था बनाई है
खि
लाड़ी, एक्टर, कोच, अध्यापक, बैंककर्मी बनने के बाद अश्विनी स्पोर्ट्स एक्टिविस्ट भी बन गई हैं। अश्विनी ने क्लीन स्पोर्ट्स इंडिया नाम से एक संस्था बनाई है। इसमें साथ और कभी-कभी एक-दूसरे के
खिलाफ खेलने वालीं कुछ औस खिलाड़ी भी आई हैं। अश्विनी का मानना है कि खेलों में राजनीति भी होती है, पर आपको इसे भूलकर अपनी खेल प्रतिभा को बढ़ाने पर ध्यान देना चाहिए। अश्विनी के पति दत्ता कारोम्बियाह भारत की जूनियर हॉकी टीम के खिलाड़ी रहे हैं। अश्विनी की दो बेटियां हैं और दोनों बैडमिंटन खेलती हैं। इसको कहते हैं स्पोर्ट्स फैमिली।
फिल्मी करियर
अपने फिल्मी करियर में अश्विनी ने सिर्फ गिनी-चुनी तेलुगू फिल्में कीं। इनमें इंस्पेक्टर अश्विनी अच्छीखासी हिट रही। इस फिल्म के लिए अश्विनी को आंध्र सरकार से बेस्ट न्यूकमर एक्टर का पुरस्कार भी मिला। धोनी की तरह अश्विनी ने अपनी अनटोल्ड स्टोरी पर फिल्म बनाई थी। बस अंतर यह था कि इसमें खुद अश्विनी ने एक्टिंग की थी। 1991 में आई आत्म कथात्मक फिल्म का नाम भी अश्विनी ही था। फिल्मों में आने के बाद लगा कि खेल खत्म हो गया है। लेकिन अश्विनी ने 1992 के कोलकाता नेशनल्स में चार गोल्ड मेडल जीते – 100 मीटर, 200 मीटर, 400 मीटर और 4×400 मीटर।
खेल अकादमी
हालांकि अश्विनी की इच्छा एयर-हॉस्टेस जैसे करियर आजमाने की भी थी पर स्पोर्ट्स कोटे से विजया बैंक में नौकरी मिल गई। नौकरी छोड़ने के बाद अश्विनी नचप्पा ने साल 2004 में अपने पति के नाम पर खुद की खेल अकादमी शुरू कर दी। अश्विनी का मानना है कि खेल भी जरूरी है और पढ़ाई भी। वह कहती हैं,‘खेल छोड़ने के बाद मेरा करियर इसीलिए कामयाब रहा कि मैं पढ़ाई कर पाई। मेरे साथ खेलने वाले कुछ खिलाड़ी इतने खुशकिस्मत नहीं थे। इसीलिए मैंने स्पोर्ट्स और स्कूल दोनों एक ही में शुरू किए।’ अश्विनी के स्कूल से निकले सबसे अच्छे खिलाड़ियों के लिए प्रतिष्ठित कॉलेजों में दाखिले की भी व्यवस्था है और ये स्कूल हॉकी के गढ़ कर्नाटक के कूर्ग में है।
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पर्यटन
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नेवादा की अविश्वसनीय सड़कें अमेरिका के नेवादा में 6 अविश्वसनीय राजमार्ग व सड़कें हैं। इन सड़कों के माध्यम से आप अमेरिका के इस सुंदर प्रांत की अकल्पनीय दुनिया देख सकते हैं
ने
जयंत के. सिंह
वादा इलाका क्षेत्रफल के लिहाज से संयुक्त राज्य अमेरिका का सातवां सबसे बड़ा और जनसंख्या के लिहाज से 34वां बड़ा राज्य है। अपने शानदार कैसीनो, बेहतरीन होटलों और अनूठे लाइफस्टाइल के लिए दुनिया भर में चर्चित
खास बातें अमेरिका का सातवां सबसे बड़ा राज्य है नेवादा नेवादा में ही अमेरिकी की सबसे एकांत सड़कें हैं नेवादा के साथ जुड़ा एक और बड़ा आकर्षण है लास वेगास
लास वेगास नेवादा में ही स्थित है। नेवादा को लास वेगास के अलावा एक और चीज के लिए दुनिया भर में जाना जाता है और वह है यहां की विशालकाय, एकांत और बेहतरीन सड़कें। नेवादा में सड़क यात्रा के लिए 6 अविश्वसनीय राजमार्ग व सड़कें हैं। अगर आप सिर्फ लास वेगास के लिए नेवादा जाने की योजना बना रहे हैं तो कैसीनो के इस शानदार शहर के अलावा आपको अनंत सरीखी दिखतीं नेवादा की लुभावनी और सर्पीली सड़कों पर जरूर यात्रा करनी चाहिए। इन सड़कों के माध्यम से आप अमेरिका के इस सुंदर प्रांत की अकल्पनीय दुनिया देख सकते हैं।
सबसे एकांत सड़क
नेवादा में अमेरिकी की सबसे एकांत सड़कें हैं, जहां से गुजरना किसी बहादुरी से कम नहीं। नेवादा में पांच से अधिक ऐसे राजमार्ग हैं, जिनका निर्माण एक परियोजना के तहत किया गया है। ये राजमार्ग शानदार तरीके से बनाए गए हैं और इन पर यात्रा करना एक अद्भुत अनुभव प्रदान करता है, जहां रफ्तार के साथ-साथ रोमांच भी है। ये सड़कें आपको अमेरिका के लिए दिल में प्यार भर देंगी। जैसा कि नाम से पता चलता है, यह राजमार्ग शोर
से दूर, शांत और खूबसूरत है। इसके अलावा, कार्सन सिटी से ईली तक की यह तीन दिन की सड़क यात्रा में बहुत से स्थान देखने को मिलते हैं, जैसे चर्चिल वाइनयार्डस, पक्षियों को देखने के लिए स्टिलवॉटर नेशनल वाइल्ड लाइफ रफ्यूज आदि। 600 फुट ऊंची रेत के टीले से बना सैंड माउंटेन रीक्रिएशन एरिया, जो सड़क के किनारे बंजारों और फोटोग्राफरों से घिरा हुआ है। ये सारे
स्थल यात्रा के प्रमुख आकर्षण हैं। फिर आता है मिडलीगेट स्टेशन, मॉन्स्टर बर्गर का घर, जिसे आप बिना देखे नहीं रहना चाहेंगे, क्योंकि इतना स्वादिष्ट बर्गर आपने कभी भी नहीं खाया होगा। स्पेंसर हॉट स्प्रिंग्स में प्राकृतिक रूप से गरम पानी में जमीन के नीचे पुल में खुद को भिंगोएं। देश के सबसे खूबसूरत और एकांत पार्कों में से एक- ग्रेट बेसिन नेशनल पार्क के साथ अपनी अद्भुत सड़क
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पर्यटन
यात्रा समाप्त करें ।
फ्री-रेंज आर्ट हाईवे
इस सड़क यात्रा पर आपको कुछ अनोखे और बड़े पैमाने पर ऐसी फ्री-रेंज कला देखने को मिलेंगी, जो आपने पहले कभी नहीं देखी होंगी। लास वेगास से तोनोपाह तक की अपनी दो दिवसीय यात्रा की शुरूआत बड़े पैमाने पर रंगीन पब्लिक आर्टवर्क, सात जादुई पहाड़ों की यात्रा से करें, जिसमें पेंट किए गए, स्थानीय पत्थरों से बने 30 से 35 फीट ऊंचे सात फ्लोरोसेंट टोटेम शामिल हैं। गोल्डवेल ओपन एयर संग्रहालय और राइलाइट घोस्ट टाउन का भी एक चक्कर लगाएं। कुछ अद्भुत पारंपरिक अमेरिकी व्यंजनों के लिए मिस्पाह होटल के अंदर पिटमैन कैफे और कुछ बारबेक्यू और ब्रियरी क्राफ्ट बियर के लिए टोनोपाह ब्रूइंग कंपनी और ब्रियरी क्राफ्ट बियर जाएं। केंद्रीय नेवादा के समृद्ध इतिहास के बारे में जानने के लिए, टोनोपाह ऐतिहासिक खनन पार्क और केंद्रीय नेवादा संग्रहालय के साथ इस यात्रा की समाप्ति करें।
ग्रेट बेसिन राजमार्ग
वेगास से एली के लिए यह पांच दिवसीय यात्रा में अमेरिका के इससे अधिक अद्भुत अनुभव नहीं जोड़े जा सकते हैं। वैली ऑउ फायर स्टेट पार्क के साथ अपनी यात्रा शुरू करें और इस क्षेत्र की घाटियों के बीच से जाती ट्रेल्स की खोज करते हुए पेट्रोग्लीफ्स-प्राचीन रॉक कला के बारे में जानें। मछली पकड़ने और लंबी पैदल यात्रा के लिए केशरे-रयान स्टेट पार्क और बीवर डैम स्टेट पार्क पर जाएं। अगले दिन तंग सिल्टस्टोन घाटियों की खोज के लिए कैथ्रेडल गोर्ज स्टेट पार्क जाएं। फिर
पियोचे शहर में, पुराने जेल और पुराने हवाई ट्रामवे को देखने के लिए मिलियन डॉलर कोर्ट हाउस और बूट हिल कब्रिस्तान देखने जाएं। वार्ड चारकोल ओवन स्टेट पार्क में फोटो खिंचाने के अवसर को न जाने दें, जिसमें मधुमक्खियों के छत्तों के आकार के ओवन होते हैं, जिसमें 1870 के अंत में लकड़ी का कोयला बनाया जाता था। एली के दो सबसे बड़े सामुदायिक कार्यक्रमों व्हाइट पाइन फायर और आईस शो, और द ग्रेट बाथटब रेस के मेजबान, केव लेक स्टेट पार्क जरूर जाएं। फिर तारों को देखने के लिए अपनी प्रमुख स्थिति के लिए प्रसिद्ध ग्रेट बेसिन नेशनल पार्क के साथ अपनी सड़क यात्रा समाप्त करें ।
आपको अनंत सरीखी दिखतीं नेवादा की लुभावनी और सर्पीली सड़कों पर जरूर यात्रा करनी चाहिए। इन सड़कों के माध्यम से आप अमेरिका के इस सुंदर प्रांत की अकल्पनीय दुनिया देख सकते हैं एक्सट्राटेरेस्टियल हाईवे
एक्सट्राटेरेस्टियल हाईवे (अलौकिक राजमार्ग) के जरिए लास वेगास से तोनोपाह तक की दो दिन की यात्रा एलियंस, अंतरिक्ष-यानों, यूएफओ और एरिया-51 से जुड़ी जानकारी और रोमांच भरी हो सकती है। इस दौरान आप राष्ट्रीय परमाणु परीक्षण म्यूजियम में प्रसिद्ध एरिया-51 के बारे में जानें, ईटी फ्रेश जर्की के मस्त विदेशी म्यूरल के साथ फोटो खिंचवाएं, एलियन रिसर्च सेंटर उपहार की दुकान और लिटिल एलेइन (सड़क के किनारे की एक दुकान), जिसमें एक बार, रेस्तरां और एक मोटल भी है पर रुकें। अपनी यात्रा की समाप्ति टोनोपाह के ऐतिहासिक खनन पार्क और सेंट्रल नेवादा संग्रहालय के साथ करें।
बर्नर बायवे
बर्नर बायवे के जरिए रेनो शहर में बर्नर बुटीक्स में जाकर और बर्निंग मैन की आत्मा के बारे में जानने के साथ रेनो से ब्लैक रॉक डेजर्ट तक अपनी यात्रा शुरू करें। द जेनरेटर में कलात्मक चित्र बनाएं और एक रचनात्मक समुदाय का हिस्सा बनें। पिरामिड झील तक अवश्य ड्राइव करें, क्योंकि यह मार्ग राज्य के सबसे अच्छे प्राकृतिक मार्गों में से एक है। ब्रूनोस कंट्री क्लब में खाना खाएं और अनजाने
जंगल परिदृश्य के अनुभव के लिए गुरु रोड और ब्लैक रॉक डेजर्ट के साथ अपनी यात्रा पूरी करें।
द रूबीज रूट
इस सड़क के साथ एल्को में अपनी यात्रा शुरू करें, जो अपने चरवाहा और खेती की परंपराओं के लिए जाना जाता है। लैमोइल कैन्यन सीनिक बायवे के ऊपरी भाग में हाइकर्स के लिए कई ट्रेल्स हैं। इसके अलावा सर्दियों के दौरान, रूबी पर्वत हेलीअनुभव पर हेली स्कीइंग के लिए लमोइले के छोटे समुदाय की यात्रा करें। अगले दिन आश्चर्यजनक सुंदर दृश्यों, मछली पकड़ने, नौकायन और वन्य जीवन देखने के लिए एंजेल झील, जर्बिज और रूबी झील राष्ट्रीय वन्यजीव अभ्यारण की यात्रा करें। नेवादा के पास आपको देने के लिए इसके अलावा भी काफी कुछ है। यह अमेरिका के सबसे दुर्गम राज्यों में से एक है, लेकिन यहां के कई शहर ऐसे हैं, जहां की जीवनशैली बेहतरीन है और अमेरिका के दूसरे प्रांतों के लोग भी यहां आकर रहना चाहते हैं। नेवादा जितना वीरान दिखता है, उतना है नहीं। लास वेगास इसका प्रतिनिधित्व करता है, तो वहां तक जाने के लिए बनाई गईं बेहतरीन सड़कें यहां आने वालों के मन में रोमांच से भर देती हैं।
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सािहत्य
12 - 18 फरवरी 2018
कहानी
कविता
ए
आओ ये प्रण करें
क बार की बात है। जापान के जनरल नबुंगा ने अपने शत्रुओं पर आक्रमण करने का फैसला लिया। उसके पास कुछ ही सैनिक थे और शत्रुओं के पास ढेरों सैनिक। नबुंगा को खुद पर पक्का भरोसा था की वह जीत जाएगा लेकिन उसके सैनिक बहुत डरे हुए थे। वे लड़ाई करने के लिए आगे बढ़े और रास्ते में ‘शिंटो श्राइन’ नामक एक जगह पर विश्राम करने के लिए रुके। वहां रूक कर नबुंगा ने भगवान से प्रार्थना की और फिर बाहर आकर अपने सैनिकों से बोला, हम ‘टॉस’ करेंगे। अगर हेड आया तो समझो हमारी जीत पक्की और अगर टेल आया तो समझो हम हार जाएंगे। चलो देखते हैं। हमारे भाग्य में क्या है। यह कह कर उसने सिक्का उछाला। सिक्का जमीन पर गिरा तो हेड था। यह देख कर उसके सैनिकों का हौसला बढ़ गया। उसके सैनिकों को यह पक्का विश्वास हो गया कि परमात्मा
पूजा लूथरा
गणतंत्र दिवस पर आओ ये प्रण करें स्वतंत्र भारत को एक नया आयाम देगें। राष्ट्र विरोधी गतिविधियों को त्याग के अब सोने की चिड़िया फिर देश को उपनाम देंगे बेटियां अब नहीं अजन्मी रहेंगी, हर जगह विचरण करेंगी। नाम ऊंचा देश का अब वह करेंगी। साथ उनको हर क्षेत्र अब ले के चलेंगे। रोटी कपड़ा मकान अब स्वप्न नहीं बात अपनी आजादी से अब कह सकेंगे। स्वच्छ भारत सिर्फ एक कोरी कल्पना नहीं घर-घर को अब हम मंदिर कह सकेंगे। प्रहरी देश के चैन से अब रह सकेंगे विश्व शांति का हम एक नया संदेश देंगे। गणतंत्र दिवस पर आओ ये प्रण करें स्वतंत्र भारत को एक नया आयाम देगें।
ाओ। यह हते जा रहे थे खूब ख क ा ल महि एक ो र्ज बर्नार्ड शॉ क । किया। भोजन तुम्हारे लिए ही है ने भोजन पर आमंत्रित ा करते कार कर ोगों ने यह शॉ को ऐस स्वी ल ण त्र मं आ ा क उस ने शॉ ों वह व्यस्त देख पूछा कि आप यह क्या कर लिया, जबकि उन दिन उन्हें महिला े हैं। चल रहे थे। जिस दिन भी वे रह दिन मंत्रण उस ा, थ ा ान ज ां के यह ॉ बोले दरअसल नि श मय स भी र है। कार्य में व्यस्त थे। फि मेरे परिधान को मिला , ीं नह । े े च झ मु पहुं र घ े क जो निकालकर वह उस गई, इसीलिए मैं तो वही कर रहा हूं हो न्न प्रस र क ख दे ्हें महिला उन को देखकर मुझे करना चाहिए। लेकिन उनके पहनावे ां चुप्पी ली मेरी गाड़ी उनके ऐसा कहने पर वह खिन्न हो गई और बो और परिधान ण देनेवाली में अभी वापस जाइए छा गई। इधर निमंत्र उठानी पड़ी। बदलकर आइए। ड़ी में महिला को शर्मिंदगी गा ॉ श र हक क । है ठीक सी भी व्यक्ति ही समय बाद वह जान गई की कि छ ु क । गए े ल च र क ठ बै से कन उसकी योग्यता नकर आए। वह कीमती परिधान पह र जितने का मूल्यां की उसकी औ किया जाना चाहिए न वे भोजन स्थल पर गए ो उन सबक भी पकवान बने थे, ा से। लिया। वह वेशभूष अपने कपड़ों पर डाल
जॉ
हमारे साथ है। इसीलिए वह पूरे जोश और जुनून से दुश्मन का सफाया करने के लिए कदम आगे बढ़ाने लगे। लड़ाई के मैदान में जब शत्रु हार की कगार पर था, तब एक सैनिक ने नबुंगा से कहा, ‘ भाग्य को कोई नहीं बदल सकता’, यह सुनकर नबुंगा मुस्कराया और कहा, हां, तुम बिल्कुल ठीक कह रहे हो।, यह कहने के बाद नबुंगा ने मुस्कुराते हुए उस सैनिक को टॉस वाला सिक्का दिखाया। वह सिक्का दोनों तरफ से हेड ही था। फिर नबुंगा ने सैनिक से पूछा, अब बताओ भाग्य कौन बनाता है। हम ही हमारे भाग्य के निर्माता हैं, इसीलिए कभी किसी के कहने पर पीछे मत हट जाना, जीत और हार हमारे ही हाथों में ही है। जीवन के हर पहलु के निर्माता हम ही हैं और कोई नहीं। भाग्य जैसी कोई चीज नहीं होती, इस पर विश्वास मत करो।
कविता
कहानी
योग्यता है मूल्यवान
भाग्य
आजादी
अलग-अलग गली कूचों में लोग कौन गिनता है साथ खड़े हों रहने वाले, देश तभी बनता है बड़ी-बड़ी हम देश प्रेम की बात किए जाते हैं वक्त पड़े तो अपनों के भी काम नहीं आते हैं सरहद की रखवाली तो सेना अपनी करती है पर अंदर सड़कों पर लड़की चलने में डरती है युवा शक्ति का नारा सुनने में अक्सर आता है सही दिशा भी किसी युवा को नहीं दिखा पाता है खेत हमारी पूंजी है और फसल हमारे गहने क्यों किसान फिर कहीं लगे हैं जान स्वयं की लेने। थाल सजा है कहीं, परंतु भूख नहीं लगती है किसी की बेटी भूख के मारे रात-रात जगती है क्या इतने सालों में ये आजाद वतन अपना है क्या यही सपना था हमारा जो फूल सूख कर बिखर गया वह फिर से नहीं खिलेगा जो समय हाथ से निकल गया वह वापस नहीं आएगा मंजिल दूर नहीं, राही जब कर ले अटल इरादा अपना हाथ उठाकर खुद से आज करो ये वादा शपथ ग्रहण कर आजादी का उत्सव हम मनाते देश बुलाता है आओ कुछ काम तो इसके आते
12 - 18 फरवरी 2018
आओ हंसें
जीवन मंत्र
रबड़ टिंकू (बुद्धू से) : बुद्धू, किसी चीज का लंबा-सा नाम बताओ। बुद्धू : रबड़। टिंकू : यह तो बहुत छोटा हैं। बुद्धू : लेकिन इसे खींचकर जितना चाहे लंबा कर सकते हैं। डॉक्टर और दावत बच्चे ने डॉक्टर से कहा: डॉक्टर साहब! कल आप हमारे यहां दावत में नहीं आए। डॉक्टर : नहीं आया तो अच्छा ही रहा। बच्चे ने पूछा : क्यों? डॉक्टर : दावत खाकर लौटने वाले मरीजों को कौन देखता?
सु
डोकू -09
मेहनत एक सुनहरी चाबी है। यह आपके भाग्य के दरवाजे खोल देती है।
रंग भरो सुडोकू का हल इस मेल आईडी पर भेजेंssbweekly@gmail.com या 9868807712 पर व्हॉट्सएप करें। एक लकी विजेता को 500 रुपए का नगद पुरस्कार दिया जाएगा। सुडोकू के हल के लिए सुलभ स्वच्छ भारत का अगला अंक देख।ें
पापा का डर मनोज : पापा! आप अंधेरे से डरते है ? पापा : नहीं बेटा। मनोज - बादल, बिजली और शोर से ? पापा - बिल्कुल नहीं । मनोज - इसका मतलब है पापा, आप मम्मी को छोड़कर किसी से भी नहीं डरते हैं।
बाएं से दाएं
सुडोकू-08 का हल
वर्ग पहेली - 09
1. तेजस्वी (5) 2. इंद्रिय सुख (3) 3. जूता सीने वाला (2) 4. प्रति (2) 5. गर्मी, सूर्य (3) 6. पुरातन (3) 8. धूप (3) 9. समझौता (2) 11. वर्षा ऋतु (3) 12. ऊँगली का एक भाग (2) 14. तिलक लगा कर उत्तराधिकारी निश्चित करना (5) 16. चोटी (3) 17. शिव (3) 19. नाई (3) 20. वर्तमान में, तत्काल बाद (2) 21. घायल (2)
वर्ग पहेली-08 का हल
1. प्रभाव में आया हुआ (4) 3. समय की छूट (4) 6. किले की चार दीवारी (3) 7. समानार्थक (5) 8. प्रतिष्ठा (2) 9. साधु (2) 10. लीपना पोतना (4) 13. राजा (4) 15. दूल्हा (2) 17. मस्सा (2) 18. कुरूप एवं कुविचार वाली स्त्री (5) 20. जिससे मिलकर शब्द बनते हैं (3) 22. मीठा पेय (4) 23. तहत, के आधीन (4)
ऊपर से नीचे
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इंद्रधनुष
कार्टून ः धीर
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न्यूजमेकर
डाक पंजीयन नंबर-DL(W)10/2241/2017-19
12 - 18 फरवरी 2018
अनाम हीरो सिकांतो मंडल
सेवा की गरिमा
स्कूली छात्र सिकांतो ने कचरा इकट्ठा करने वाली बनाई अनूठी मशीन और उसे पेटेंट भी करा लिया
झारखंड की आईएस अधिकारी गरिमा सिंह ने लिया आंगनबाड़ी को गोद, खुद के पैसे से बदल डाली उसकी सूरत
आ
ईएस गरिमा सिंह इन दिनों फिर चर्चा में हैं। झारखंड के हजारीबाग जिले में बतौर डिस्ट्रिक्ट सोशल वेलफेयर ऑफिसर काम कर रहीं गरिमा ने यहां की एक आंगनबाड़ी को गोद लेकर अपने बचत के पैसों से उसकी सूरत ही बदल डाली। दीवारों पर कार्टून, अंग्रेजी और हिंदी के कैरेक्टर्स, बच्चों को आकर्षित करने वाली पेंटिंग करवाई। इसके अलावा अंदर कारपेट, स्पोर्ट्स के सामान, कुर्सी और टेबल भी लगवा दिए। इन सब पर करीब 50 हजार रुपए खर्च हुए हैं। उन्होंने जिस तरह ये सारे कार्य सेवा भाव के साथ आत्मसंतोष के लिए किए, जो प्रशंसनीय तो है ही, अनुकरणीय भी है। यही कारण है कि आज गरिमा की चर्चा अखबारों-टीवी चैनलों से लेकर सोशल मीडिया
में खूब हो रही है। उनकी इसी चर्चा से यह जानकारी भी सामने आई कि वह आईएएस से पहले आईपीएस रह चुकी हैं। यूपी के बलिया जिले की रहने वाली गरिमा ने पहली बार 2012 में सिविल सर्विस की परीक्षा दी और वो आईपीएस बन गईं। इसके बाद वह लखनऊ में 2 साल तक अंडर ट्रेनी एएसपी के तौर पर तैनात रहीं। उनकी दूसरी तैनाती झांसी में एसपी सिटी के तौर पर हुई। ड्यूटी के बीच समय निकालकर उन्होंने आईएएस की तैयारी की। ड्यूटी पर जाने से पहले रोज सुबह वह परीक्षा की तैयारी करती थीं। यही नहीं, रविवार छुट्टी का दिन भी उनका अध्ययन में ही बीतता था। 2015 के यूपीएससी फाइनल में उन्होंने 55वीं रैंक हासिल किया था।
दीपांजलि डालमिया
छोटी उम्र, बड़ा मुकाम फो
’
र य ्पा स ं इ ‘ ा य कि स्वच्छता ने
गरिमा सिंह
दिल्ली की स्वास्थ्य उद्यमी दीपांजलि का नाम भी फोर्ब्स की '30 अंडर 30' की सूची में शामिल
र्ब्स इंडिया ने हाल में ही '30 अंडर 30' की सूची जारी की है। इस सूची में वे नाम हैं, जो भारत को नई दिशा में ले जाने बड़ी भूमिका निभा रहे हैं। फोर्ब्स ने 15 श्रेणियों को ध्यान में रखते हुए यह सूची बनाई है। इस सूची में भूमि पेडनेकर, साहिल नायक, क्षितिज मारवा, रंजन बोरडोली, गौरव मुंजाल, रोमन सैनी, हिमेश सिंह, रोहित रामसुब्रमण्यन और जसप्रीत बुमराह जैसी 30 हस्तियां के बीच दीपांजलि डालमिया को भी स्थान दिया गया है। दीपांजलि डालमिया ने हेल्थ केयर कंपनी ‘हेडे केयर’ के नाम से शुरू की है। दो साल के अंदर ही उन्होंने और उनकी कंपनी ने बड़ा मुकाम हासिल कर लिया है। 26 साल की दीपांजलि पहले मैनहटन में फाइनेंिशयल कंसल्टेंट के तौर
पर काम करती थीं। पर उन्हें जब इस बात का एहसास हुआ कि वे इस काम के लिए नहीं बनी हैं तो उन्होंने नौकरी छोड़ भारत का रुख किया। यहां आकर उन्होंने अपनी हेल्थ केयर कंपनी शुरू की। दो साल के अंदर ही उन्होंने और उनकी कंपनी ने बड़ा मुकाम हासिल कर लिया है। गौरतलब कि दिल्ली में उद्यम चला रही दीपांजलि ने जिस ब्रांड को आज स्वास्थ्य सेवा के क्षेत्र में बड़ा ब्रांड बना दिया है, वह एक सेनेटरी नैपकिन का नाम है। दीपांजलि कहती हैं कि हमारे दो घर होते हैं, एक अपना शरीर और दूसरा पर्यावरण। हेडे सेनेटरी नैपकिन एक बॉयो फाइबर उत्पाद है और इसकी इसी खासियत ने इसे महिलाओं के बीच इसे लोकप्रिय बना दिया है।
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थुरा के जय गुरुदेव संस्था स्कूल में पढ़ने वाले सिकांतो मंडल के स्कूल में आमतौर पर सभी लड़कियां स्कूल परिसर में झाड़ू लगाकर सफाई करती थीं और लड़के कूड़ा इकट्ठा कर उसे ठिकाना लगाते थे। इस स्थिति को देखकर सिकांतो के मन में एक मशीन बनाने का विचार आया। उसे यह देखकर बुरा लगता था कि पढ़ने की जगह बच्चे स्कूल की सफाई में लग जाते हैं। सिकांतो ने बताया कि इस तरीके को वह खत्म करना चाहता था। उसने पहले अपने आइडिया पर काम किया फिर उसे अपने शिक्षकों को भी दिखाया। सकारात्मक परिणाम मिलने के बाद उसने इंस्पायर अवार्ड के लिए भी अपने प्रोजेक्ट को भेजा। इंस्पायर अवार्ड योजना एक ऐसी राष्ट्रीय स्तर की योजना है, जिसमें कक्षा छह से दसवीं तक एक– एक बच्चे का चयन कॉलेज स्तर पर किया जाता है। सिकांतो के मुताबिक, ‘मुझे हैरानी हुई कि मेरे प्रोजेक्ट को शामिल कर लिया गया था और इतना ही नहीं मेरे खाते में 5,000 रुपए भी भेज दिए गए।’ कचरा इकट्ठा करने वाली मशीन बनाने में सिकांतो को लगभग डेढ़ महीने लग गए। उसने पहले शुरूआती मॉडल तैयार किया फिर उसके बाद उसमें कुछ गलतियां भी दिखीं जिसे दूर किया गया। सिकांतो ने बताया कि मेरी गाड़ी की खासियत यह है कि इसे पूरी तरह से हाथ से चलाया जाएगा और यह चलाने में काफी आसान और हल्की भी है। इसमें किसी भी तरह की बैटरी या तेल की जरूरत नहीं होगी। सिकांतो ने इस गाड़ी का पेटेंट भी करा लिया है।
आरएनआई नंबर-DELHIN/2016/71597; संयुक्त पुलिस कमिश्नर (लाइसेंसिंग) दिल्ली नं.-एफ. 2 (एस- 45) प्रेस/ 2016 वर्ष 2, अंक - 9