सुलभ स्वच्छ भारत - वर्ष-2 - (अंक 14)

Page 1

बलिदान

14 स्वच्छता की प्रतीक्षा में नाइजीरिया

रूढ़िवादी दबाव में अमर शहादत

स्वच्छता

20 24

भाषा

विश्व तपेदिक दिवस 28

2030 तक टीबी मुक्त होगा भारत!

देव भाषा बन रही है विश्व भाषा

sulabhswachhbharat.com आरएनआई नंबर-DELHIN/2016/71597

वर्ष-2 | अंक-14 | 19 - 25 मार्च 2018

गांधी विचार की कसौटी और नरेंद्र मोदी ‘फुलफिलिंग बापू'ज ड्रीम- प्राइम मिनिस्टर मोदी'ज ट्रिब्यूट टू गांधी जी’ पुस्तक में इस बात के प्रेरक और प्रामाणिक हवाले हैं कि कैसे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी स्वच्छता से लेकर खादी और ग्रामोत्थान तक राष्ट्रपिता के वैचारिक आदर्शों पर लगातार खरे उतर रहे हैं


02

आवरण कथा

19 - 25 मार्च 2018

‘फुलफिलिंग बापू'ज ड्रीम- प्राइम मिनिस्टर मोदी'ज ट्रिब्यूट टू गांधी जी’ खास बातें पुस्तक की पहली प्रति राष्ट्रपति को भेंट की गई पुस्तक में पीएम के बापू को स्मरण करने वाले कई उद्गर संक​िलत हैं गांधी विचार को जमीन पर उतारने में पीएम को मिली सफलता का ब्योरा

21

एसएसबी ब्यूरो

वीं सदी के दूसरे दशक तक आते-आते भारत की वैश्विक पहचान महज तीसरी दुनिया के एक देश के तौर पर नहीं रह गई है। विकास और संपन्नता की दृष्टि से भारतीय जीवन और अर्थव्यवस्था आज दुनिया के आगे एक मॉडल है। पर शायद भारत के लिए महज यह पहचान और उन्नति ही काफी नहीं है। इस बात को नए दौर में सबसे ज्यादा संजीदगी के साथ अगर किसी ने समझा है तो वे हैं हमारे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी। उन्होंने अपने विचार और कार्यक्रमों की संगति महात्मा गांधी के जीवन, आदर्श और प्रेरणा के साथ हर संभव बैठाने की कोशिश की है। नतीजा यह कि स्वच्छता से लेकर खादी तक तमाम क्षेत्रों में उन्होंने कई ऐसे कदम उठाए हैं, जिससे ‘न्यू इंडिया’ में गांधी के ‘मेरे सपनों का भारत’ का अक्स झलके।

स्वच्छता से लेकर खादी तक तमाम क्षेत्रों में प्रधानमंत्री मोदी ने कई ऐसे कदम उठाए हैं, जिससे ‘न्यू इंडिया’ में गांधी के ‘मेरे सपनों का भारत’ का अक्स झलके

जीवन और सोच की धुरी

सत्ता के शीर्ष पर रहते हुए इस तरह की सोच और कार्य के प्रति प्रतिबद्धता दिखाना एक विलक्षण बात है। इस विलक्षणता के लिए नरेंद्र मोदी इतिहास में लंबे समय तक याद किए जाएंगे। सुलभ और ब्लूक्राफ्ट डिजिटल फाउंडेशन के साझे सहयोग से प्रकाशित पुस्तक ‘फुलफिलिंग बापू’ज ड्रीम- प्राइम मिनिस्टर मोदी’ज ट्रिब्यूट टू गांधी जी’ में इस विलक्षणता को काफी रोचक ढंग से प्रस्तुत किया गया है। इस पुस्तक के दो खंड हैं। पहले खंड में विभिन्न मौकों पर महात्मा गांधी के जीवन और विचारों से प्रधानमंत्री मोदी कितना प्रभावित हैं और इस कारण उन्होंने विभिन्न मौकों पर जो उद्गार व्यक्त किए हैं, इस बारे में प्रसंगों और संदर्भों का संकलन है। दूसरे खंड में गांधी जी के उन प्रेरक उद्गारों का संग्रह है, जो आज भी प्रासंगिक हैं और स्वयं मोदी जिनके बारे में समय-समय पर बात

करते रहे हैं। पुस्तक को पढ़ते हुए यह अनुभव करना काफी सुखद प्रतीत होता है कि एक ऐसे दौर में जब निजी और सार्वजनिक जीवन में गांधी विचार पूजन-स्मरण तक केंद्रित हो गया, वह एक राजनेता के जीवन और सोच की धुरी कैसे बना हुआ है।

जन-भागीदारी पर जोर

22 अगस्त, 2017 को प्रधानमंत्री जब ‘चैंपियंस ऑफ चेंज’ कार्यक्रम में बोल रहे थे तो उन्होंने महात्मा गांधी के सबसे बड़े योगदान के बारे में बात करते हुए कहा, ‘उन्होंने स्वाधीनता संग्राम को एक जन-आंदोलन बना दिया। वे देश में यह भाव पैदा करने में सफल हुए जिसमें हर महिला-पुरुष को यह लगे कि वह देश की आजादी के लिए संघर्ष कर रहे हैं।’ दरअसल, जन-भागीदारी वह कसौटी है, जिस पर नरेंद्र मोदी अपने विचार और उस पर अमल, दोनों को कसते हैं। यही वजह है कि स्वच्छता को उन्होंने एक सरकारी कार्यक्रम से आगे एक जन-आंदोलन बनाने का संकल्प दिखाया, जिसमें वे सफल भी रहे।

पहले स्वच्छता, फिर स्वाधीनता

किसी राष्ट्र के जीवन में स्वच्छता कैसे सबसे महत्वपूर्ण है, इसके लिए गांधी ने कई बार न सिर्फ प्रेरक उद्गार व्यक्त गए। बल्कि वे अपने जीवन में चंपारण से लेकर सेवाग्राम तक जहां-जहां भी गए स्वच्छता को अपने कार्यक्रम और प्रतिबद्धता का एक अनिवार्य हिस्सा बनाए रखा। 25 सितंबर 2016 को जब नरेंद्र मोदी ने अपने रेडियो कार्यक्रम ‘मन की बात’ में देशवासियों से मुखातिब हुए तो उन्होंने इस बात को दोहराया। उन्होंने राष्ट्रपिता द्वारा कही गई इस बात को देश को स्मरण कराया कि अगर उन्हें स्वाधीनता और स्वच्छता में से किसी एक का चुनाव करना हो, तो वे पहले स्वच्छता का चुनाव करेंगे बाद में स्वाधीनता का। ‘मोदी’ज ट्रिब्यूट टू गांधी जी’ पुस्तक में गांधी जी के इस तरह के और भी कई हवाले दिए


19 - 25 मार्च 2018

गए हैं, जिसमें पीएम मोदी उन्हें स्वच्छता की सबसे बड़ी प्रेरणा के तौर पर याद करते हैं।

अहिंसक प्रेरणा

‘फुलफिलिंग बापू’ज ड्रीम- प्राइम मिनिस्टर मोदी’ज ट्रिब्यूट टू गांधी जी’ की खासियत है कि यह पीएम मोदी के कई उद्गारों और पहलों को सामने रखते हुए, हमारे आगे उस विचार की प्रासंगिकता को दोहराता है कि जिसने एक सदी बाद भी दुनिया में विकास और उन्नति की अहिंसक प्रेरणा को न सिर्फ बहाल रखा है, बल्कि मोदी सहित दुनिया के कई बड़े राजनेताओं को आज भी इस बात की प्रेरणा दे रहा है कि कैसे वे अपने देश-समाज को सत्य, अहिंसा और करुणा के मार्ग पर आगे बढ़ने में मदद करें।

खादी की गंगा

अपनी आत्म कथा ‘सत्य के साथ मेरे प्रयोग’ में महात्मा गांधी ने कहा है, ‘1908 में ‘हिंद स्वराज’ में जब मैंने चरखे या हथकरघे को भारत में मुफलिसी को दूर करने की रामबाण दवा बताया था, तो मुझे याद नहीं कि तब तक मैंने कभी इन्हें देखा था। असल में 1915 में जब मैं दक्षिण अफ्रीका से भारत लौटा तब भी मैंने चरखा नहीं देखा था। 1917 में मेरे गुजराती मित्र मुझे भरुच शिक्षा सम्मेलन की अध्यक्षता करने के लिए वहां लेकर गए। यहीं मेरी मुलाकात एक विलक्षण महिला गंगा बेन मजूमदार से हुई, जिन्होंने ईमानदारी से चरखे की तलाश लगातार जारी रखने का वचन लेकर मेरा बोझ हल्का कर दिया।’ साफ है कि जब महात्मा गांधी दक्षिण अफ्रीका से भारत लौटे तो उन्होंने उससे पूर्व चरखा देखा तक नहीं था। मोदी ने गंगा बाई का स्मरण सौ साल बाद करते हुए न सिर्फ उनके अवदान को रेखांकित किया, बल्कि इस बहाने उन्होंने खादी और महिलाओं के बीच एक स्वाभाविक साझे को भी रेखांकित किया है।

खादी की बढ़ी लोकप्रियता

समय के चक्र के साथ एक समय ऐसा भी आया जब खादी की चमक फीकी पड़ने लगी। अपनी कुदरती रंगत और अनगढ़-सी बुनावट वाले खादी के धागों से बने वस्त्र एक बार फिर तब से लोगों के आकर्षण का केंद्र बने हुए हैं जब तीन साल पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आकाशवाणी पर अपने कार्यक्रम ‘मन की बात’ में खादी का जिक्र किया था। प्रधानमंत्री हमेशा लोगों से अनुरोध करते हैं कि वे अपने मित्रों को उपहार में फूलों

आवरण कथा

03

का गुलदस्ता भेंट करने की बजाय खादी की बनी वस्तुएं और पुस्तकें दें, क्योंकि फूल तो कुछ ही देर में मुरझा कर नष्ट हो जाते हैं। वे केंद्र, राज्य सरकारों और आम लोगों को इस बात का स्पष्ट संकेत देते हैं कि खादी को राष्ट्रीयता की भावना से बढ़ावा दिया जाना चाहिए। इस पुस्तक में स्वच्छता की तरह खादी को लेकर भी नरेंद्र मोदी और उनकी सरकार की प्रेरक पहलों के कई हवाले दिए गए हैं, जिन्हें पढ़कर कई बार ऐसा लगता है कि देश में खादी ग्रामोद्योग के लिए जिस तरह की प्रतिबद्धता इस सरकार के कार्यकाल में दिखी है, वैसी शायद ही कभी पहले देखी गई हो। और तो और पीएम मोदी खुद आज पूरी दुनिया में खादी के सबसे बड़े ब्रांड एंबेसेडर हैं।

सौ वर्ष बाद भी प्रासंगिक

गांधी का काल, उनके आदर्श और उनके आह्वान ने कई मामलों में एक शती लंबी यात्रा पूरी कर ली है। उनके विचारों के आदर्श ‘हिंद स्वराज’ पुस्तिका के रूप में दुनिया के सामने सबसे पहले 1909 में आए। चंपारण सत्याग्रह और साबरमती आश्रम के स्थापना के सौ साल तो हम मना ही रहे हैं, खादी को लेकर उनके प्रयोग के भी सौ वर्ष पूरे हो गए हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने दो अक्टूबर 2014 को जब स्वच्छ भारत मिशन की बात कही तो इसके पीछे उन्होंने गांधी को अपनी प्रेरणा, अपना आदर्श बताया। आज जब स्वच्छता अभियान देश में एक जनांदोलन की शक्ल ले चुका है, तो इस बात को रेखांकित करना ऐतिहासिक तौर पर जरूरी है कि राष्ट्रपिता ने प्रमुखता के साथ स्वच्छता का सार्वजनिक आह्वान सबसे पहले 14 फरवरी 1916 को किया था। यानी गांधी जी द्वारा दिए गए स्वच्छता के सबक ने भी एक शती से लंबी यात्रा पूरी कर ली है।

ग्रामोत्थान और ग्रामस्वराज

कमाल की बात यह है कि ग्रामोत्थान और ग्रामस्वराज की बात करने वाले महात्मा गांधी ने स्वच्छता को लेकर अपने संबोधन में भी गांव को याद किया और कहा कि गांवों की स्वच्छता के सवाल को बहुत पहले हल कर लिया जाना चाहिए था। श्रेय देना होगा प्रधानमंत्री मोदी को कि स्वच्छता जैसे बुनियादी सवाल को उन्होंने न सिर्फ अपनी सरकार, बल्कि भारतीय समाज का एक कोर एजेंडा बना दिया। स्वच्छता के संकल्प के साथ गांवों के स्वावलंबन का एक नया अध्याय ही देश में शुरू हो गया है। इस पुस्तक में संकलित कई उद्गारों से जाहिर होता है

इस पुस्तक की खासियत है कि यह पीएम मोदी के कई उद्गारों और पहलों को सामने रखते हुए, हमारे आगे उस विचार की प्रासंगिकता को दोहराता है जिसने एक सदी बाद भी दुनिया में विकास और उन्नति की अहिंसक प्रेरणा को बहाल रखा है


04

आवरण कथा

19 - 25 मार्च 2018

कि कैसे पीएम मोदी की प्राथमिकताओं में देश के गांवों का कायापलट का संकल्प शामिल है।

महिला अस्मिता

प्रधानमंत्री हमेशा लोगों से अनुरोध करते हैं कि वे अपने मित्रों को उपहार में फूलों का गुलदस्ता भेंट करने की बजाय खादी की बनी वस्तुएं और पुस्तकें दें, क्यों कि फूल तो कुछ ही देर में मुरझा कर नष्ट हो जाते हैं

यहां एक बात और जो बेहद महत्त्वपूर्ण है, वह यह कि दक्षिण अफ्रीका में महात्मा गांधी के दो दशक लंबे प्रवास को जिन वजहों से खासतौर पर याद किया जाता है, उसमें साम्राज्यवादी अंग्रेजों के द्वारा भारतीय समुदाय के बहुस्तरीय दमन-उत्पीड़न के खिलाफ अहिंसक तरीके से संघर्ष को आगे बढ़ाना सर्वप्रमुख है, पर बात दक्षिण अफ्रीका की हो या भारत लौटने के बाद चंपारण सत्याग्रह की, रचनात्मक कार्यक्रम गांधी जी के हर अभियान का अभिन्न हिस्सा रहा है। इस लिहाज से जहां स्वच्छता को बहुत महत्व दिया है, वहीं महिला अस्मिता की सुरक्षा के सवाल को भी अहम माना है। पीएम मोदी की खासियत यह रही कि उन्होंने महिला स्वावलंबन के लिए जहां कई कल्याणकारी कार्यक्रमों की घोषणा की, वहीं स्वच्छ भारत अभियान को भी महिला सशक्तिकरण के लिहाज से महत्वपूर्ण माना। इस बारे में उनके द्वारा व्यक्त उद्गारों और प्रयासों के कई उल्लेख इस पुस्तक में आए हैं। मसलन, 15 अगस्त 2014 को प्रधानमंत्री अपने संबोधन में कहते हैं, ‘हम 21वीं सदी में हैं। पर आज भी हमारी माताओं और बहनों, खासतौर पर जो गरीब परिवारों से आती हैं, उनके लिए स्वच्छता की कोई सुरक्षित व्यवस्था नहीं है।’ आगे इसी उद्गार में वे कहते हैं कि न सिर्फ घरों में, बल्कि स्कूलों में बालिकाओं के लिए शौचालय का निर्माण हमारे समय की सबसे बड़ी दरकार है। नरेंद्र मोदी सरकार ने दो अक्टूबर, 2019 तक यानी महात्मा गांधी 150वीं जन्मशती के अवसर तक खुले में शौच से मुक्त भारत का महत्वकांक्षी लक्ष्य निर्धारित किया तो इसे इस लिहाज से भी देखने की जरूरत है कि यह देश में लैंगिक समानता की दृष्टि से अब तक का सबसे बड़ा कदम है। ‘फुलफिलिंग बापू’ज ड्रीम- प्राइम मिनिस्टर मोदी’ज ट्रिब्यूट टू गांधी जी’ की एक विशेषता यह भी है कि यह गांधी और मोदी को सिर्फ विचार

और उद्गार की दृष्टि से एक धरातल पर लाकर नहीं खड़ा करती है, बल्कि वह इसके लिए हुए प्रयासों और सफलताओं का प्रामाणिक ब्योरा भी उपलब्ध कराती है। मसलन, देश के तीन लाख से ज्यादा गांव, 1683 शहर, 306 जिले और 10 राज्य अब तक ओडीएफ मुक्त हो चुके हैं। इसी तरह 2010-11 में जहां महज 917.26 करोड़ रुपए का खादी बिकती थी, वहीं 2016-17 में यह आंकड़ा 86.5 उछाल के साथ 2007.61 करोड़ पर पहुंच गया। इस समय देश में 1.42 लाख बुनकर और 8.62 लाख कातने वाले कारीगर हैं। एक अनुमान के अनुसार 9.60 लाख चरखों और 1.51 लाख करघों में खादी बनती है। इस लिहाज से खादी के बिक्री रिकार्ड को देखें तो नरेंद्र मोदी सरकार की पहल की सार्थकता और सफलता का पता चलता है। गांधी जी के संपूर्ण चिंतन और कार्यक्रमों में गांव और गरीब पर सबसे ज्यादा जोर रहा है। गांव, गरीब और युवाओं के प्रति पहले दिन से अपनी घोषित प्रतिबद्धता दिखाने वाली मोदी सरकार ने इस दिशा में जो कार्य किए हैं, वे वाकई उल्लेखनीय हैं। पुस्तक में इस बात का लेखा-जोखा भी आया है, जिसमें खासतौर पर यह बताया गया है कि जन-धन योजना के तहत देश के 30.97 गरीब लोगों के खाते खुले। इसी तरह उज्ज्वला योजना के तहत 3.31 करोड़ गरीब महिलाओं को रसोई गैस के सिलेंडर दिए गए।

न्यू इंडिया की सचित्र झांकी

इस पुस्तक के संदर्भ में बात करते हुए इसकी सुरुचिपूर्ण छपाई और साजसज्जा का जिक्र करना भी जरूरी है। यह पुस्तक शुष्क दस्तावेजीकरण भर नहीं है। इसमें विचार से लेकर संदर्भ तक सब कुछ इस तरह व्यक्त किया गया है, जैसे हम ‘न्यू इंडिया’ की निर्माण-यात्रा की सचित्र झांकी देख रहे हों। इसके लोकार्पण के माैके पर राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने कहा भी यह पुस्तक इस लिहाज से ऐतिहासिक महत्व की है कि इसने जहां गांधी विचार की प्रासंगिकता और चुनौती को हमारे सामने रखा है, वहीं कैसे इस प्रासंगिकता और चुनौती पर हमारे प्रधानमंत्री खरे उतर रहे हैं, उस बारे में भी पुस्तक में कई प्रामाणिक उल्लेख और संदर्भ हैं।


19 - 25 मार्च 2018

05

आवरण कथा

गांधी के सपनों को साकार कर रहे हैं पीएम राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद द्वारा -‘फुलफिलिंग बापू’ज ड्रीम- प्राइम मिनिस्टर मोदी’ज ट्रिब्यूट टू गांधी जी’ पुस्तक की प्रथम प्रति की स्वीकृति के अवसर पर दिए गए संबोधन का संपादित अंश

खास बातें पीएम ने स्वच्छता के प्रति गांधी जी के आग्रह को जनमानस से जोड़ा है स्वच्छता को सामाजिक अभियान बनाने में डॉ. पाठक का योगदान एक अग्रणी राष्ट्र के लिए स्वच्छता का होना बुनियादी शर्त है

रामनाथ कोविंद राष्ट्रपति

स पुस्तक की पहली प्रति को प्राप्त करके मुझे बहुत प्रसन्नता हो रही है। बापू के सपनों से जुड़ी यह किताब उनके ‘मेरे सपनों का भारत’ नामक पुस्तक की याद दिलाती है, जिसमें इसी शीर्षक से एक निबंध भी है। उस निबंध में गांधी जी ने कहा था, ‘मैं ऐसे भारत के लिए कोशिश करूंगा, जिसमें गरीब-से-गरीब लोग भी यह महसूस करेंगे कि यह उनका देश है, जिसके निर्माण में उनकी आवाज का महत्व है। मैं ऐसे भारत के लिए कोशिश करूंगा, जिसमें ऊंच और नीच वर्गों का भेद नहीं होगा... उसमें स्त्रियों को वही अधिकार होंगे, जो पुरुषों को होंगे।’ अपनी उस पुस्तक में गांधी जी ने ‘गांवों की सफाई’ और ‘राष्ट्र का आरोग्य’, ‘स्वच्छता और आहार’ जैसे विषयों पर अलग से अपने विचार व्यक्त किए थे। भारत को पूरी तरह स्वच्छ बनाना हर भारतवासी की जिम्मेदारी है, यह बात लगभग सौ साल पहले महात्मा गांधी ने खुद सफाई करते हुए सबको सिखाने की कोशिश की थी। आजादी के बाद के दौर में स्वच्छता को एक सुनियोजित सामाजिक अभियान के रूप में आगे बढ़ाने में डॉ. विन्देश्वर पाठक जी का सराहनीय योगदान रहा है। उन्होंने अपनी पीढ़ी की और अपने क्षेत्र के बहुत से लोगों की तथाकथित वर्ण, जाति और वर्ग से जुड़ी सोच से ऊपर उठते हुए मल के लिए सुविधा, प्रबंधन और निस्तारण के क्षेत्र में

स्वच्छ भारत अभियान के फलस्वरूप गांव-कस्बों के स्कूलों में बेटियों की पढ़ाई जारी रखने में मदद मिल रही है। स्वच्छता अभियान के द्वारा महिलाओं को गरिमा और न्याय दिलाने से जुड़ी कई अनदेखी समस्याओं का समाधान हो रहा है पहल की। जब स्वच्छता को महत्व नहीं दिया जाता था, उस दौर में उन्होंने स्वच्छता के क्षेत्र में काम करने के लिए अपनी संस्था ‘सुलभ इंटरनेशनल’ की स्थापना की, जिसे आज अंतरराष्ट्रीय ख्याति और सम्मान प्राप्त है। राष्ट्र के नैतिक तथा आध्यात्मिक पुनर्निमाण और प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण के अपने प्रयासों के द्वारा सद्गुरु जग्गी वासुदेव अपना अमूल्य योगदान दे रहे हैं। वे प्रकृति और मानवता के अटूट संबंध को समझाते हुए ‘ग्रीन हैंड्स’ और ‘वनश्री’ जैसे प्रयासों को आगे बढ़ा रहे हैं। उनके ‘रैली फॉर रिवर्स’ अभियान ने व्यापक स्तर पर जनचेतना जगाई, जिसका जल प्रबंधन पर प्रभावी असर पड़ेगा। प्रकृति का संरक्षण अध्यात्म की पहली सीढ़ी है, यह बात उनके प्रयासों में दिखाई देती है। स्वच्छता को एक राष्ट्रीय जन आंदोलन का रूप देते हुए देश के सामने गांधी जी की 150वीं पुण्य तिथि यानी 2 अक्टूबर, 2019 तक ‘स्वच्छ भारत मिशन’ का लक्ष्य देकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने गांधी जी के स्वच्छता के प्रति आग्रह को देश के जनमानस से जोड़ा है। उन्होंने इस मिशन के कार्यक्रमों के जरिए यह स्पष्ट किया है कि ‘स्वच्छ

भारत मिशन’ के सभी लक्ष्यों को प्राप्त करके ही राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के प्रति हम सच्ची श्रद्धा व्यक्त कर सकेंगे। यह सभी मानते हैं कि खुले में शौच करने से अनेक बीमारियां फैलती हैं। एक अनुमान के अनुसार ऐसी बीमारियों की वजह से भारत में रोज लगभग एक हजार बच्चों की मृत्यु होती है तथा बच्चों के शारीरिक और मानसिक विकास पर बुरा असर पड़ता है । इन बीमारियों से गरीब तबके के लोगों की कमाने की क्षमता भी कम हो जाती है। इसीलिए यह कहा जा सकता है कि स्वच्छता के लिए काम करना सही मायनों में गरीबों की सेवा करना है। बापू के सपनों को साकार करने की दिशा में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के प्रयास वास्तव में राष्ट्रपिता के प्रति सच्ची श्रद्धांजलि है। इस अर्थ में आज मुझे दी गई यह पुस्तक आजादी के बाद के भारत के विकास के उस महत्वपूर्ण पहलू को रेखांकित करती है, जो पिछले कुछ वर्षों में उभर कर सामने आया है। यह पहलू है- देश के विकास की प्रक्रिया को व्यापक जन-भागीदारी से जोड़ना, इसे जनआंदोलन का रूप देना, साधारण नागरिकों की व्यावहारिक जरूरतों को नीति और व्यवस्था में

केंद्रीय महत्व देना और नैतिक आदर्शों को दृढ़ता के साथ जन-जीवन में स्थापित करना। विकास के इस पहलू में महात्मा गांधी के विचार और कार्यपद्धतियां परिलक्षित होती हैं। समावेशी विकास के प्रयासों के कारण समाज के आर्थिक पिरामिड का सबसे नीचे का तबका आज अर्थव्यवस्था के मुख्य ढांचे से जुड़ गया है। महिलाएं और बेटियां अपनी रोजमर्रा की जिंदगी में बदलाव महसूस कर रही हैं। आज स्वच्छ भारत अभियान के फलस्वरूप गांव-कस्बों के स्कूलों में बेटियों की पढ़ाई जारी रखने में मदद मिल रही है। स्वच्छता अभियान के द्वारा महिलाओं को गरिमा और न्याय दिलाने से जुड़ी कई अनदेखी समस्याओं का समाधान हो रहा है। एक अग्रणी राष्ट्र के लिए स्वच्छता का होना बुनियादी शर्त है। प्रधानमंत्री ने स्वच्छता को उच्चतम प्राथमिकता दी है और इसे जन-आंदोलन का रूप दिया है। आजादी के बाद, राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के आदर्शों को बड़े पैमाने पर व्यावहारिक धरातल पर राष्ट्र-निर्माण के साथ जोड़ने का प्रधानमंत्री का प्रयास भारत की विकास यात्रा में एक निर्णायक बदलाव के रूप में सामने आता है। इस बदलाव को रेखांकित करने की दिशा में यह पुस्तक एक सराहनीय प्रयास है। गांधी जी ने कहा था, ‘मैं भारत को स्वतंत्र और बलवान बना हुआ देखना चाहता हूं।’ भारत को एक ‘बलवान’ देश के रूप में देखने के उनके सपने को साकार करने की दिशा में हमारा देश आज एक नई ऊर्जा के साथ आगे बढ़ रहा है। स्वच्छता, ग्रामोदय, महिला-कल्याण जैसे कुछ क्षेत्रों में बापू के बताए रास्तों पर चलने के प्रधानमंत्री के प्रयासों के बारे में यह पुस्तक जानकारी देती है। मैं इस पुस्तक के लेखन और प्रकाशन से जुड़ी ब्लूक्राफ्ट डिजिटल फाउंडेशन की टीम को बधाई देता हूं और इस पुस्तक की सफलता के लिए शुभकामनाएं देता हूं। जय हिंद।


04 06

आवरण कथा

19 - 25 मार्च 2018

सरल को उत्कृष्ट बनाते थे गांधी ‘फुलफिलिंग बापू'ज ड्रीम- प्राइम मिनिस्टर मोदी'ज ट्रिब्यूट टू गांधी जी’ पुस्तक के लोकार्पण के मौके पर सद्गुरु जग्गी वासुदेव के संबोधन का संपादित अंश

एसएसबी ब्यूरो

मारे प्यारे देश भारत ने कई महान ऋषि, संत, योगी, रहस्यवादी, राजा और सम्राट, पुरुष और महिलाओं को जन्म दिया है और इन लोगों ने अपने महान विजन, बहादुरी और बलिदान से देश की सेवा की। इन सभी महान लोगों में, एक मोहन दास करमचंद गांधी भी थे, जिन्हें हम ‘महात्मा’ के नाम से पूजते हैं और प्यार से ‘बापू’ बुलाते हैं। वे हमेशा से बाकी लोगों से अलग से थे और रहेंगे। वे एक ऐसे व्यक्तित्व थे, जिन्होंने साधारण को असाधारण में और सरल को उत्कृष्ट में बदल दिया। उन्होंने न केवल एक घृणित व्यवसाय को देश से खत्म करने की कोशिश की, बल्कि उन्होंने एक जरूरी विजन और प्रतिबद्धता के साथ देश की सेवा की। इस सब से बढ़कर उन्होंने देश के निर्माण के लिए खुद को कई साधारण, लेकिन अथाह आयामों से जोड़े रखा। अगर कोई हाथों के बिना ही युद्ध लड़ रहा हो तो उसे शौचालय को साफ रखने पर बात करने के लिए वक्त कहां मिलेगा? अगर कोई संगठित बलों द्वारा गंभीर रूप से पीड़ित किया जा रहा हो तो उसे महिलाओं की मुक्ति और दासत्व-मुक्ति पर बात करने के लिए कहां से वक्त मिलेगा? अगर आप अपने देश के बाहर अपने लोगों के लिए एक खतरनाक लड़ाई लड़ रहे हैं और यह जानते हैं कि अगर आपके प्रशंसक हैं, तो उससे ज्यादा निंदक भी हैं। ऐसे समय में आप आप कहां से इतनी उर्जा और वक्त पाते हैं कि उत्पीड़ित वर्ग की समस्याओं पर ध्यान दे सकें और दलितों के मुद्दों को इतने बड़े स्तर पर उठा सकें? बेशक, उनके भक्तों, प्रशंसकों और विरोधियों की संख्या बराबर अनुपात में है। लेकिन कोई भी उनकी उस निरंतर प्रतिबद्धता को अनदेखा नहीं

खास बातें देश ने अब तक हमने गांधी जी के कई सपनों को पूरा नहीं किया है गांधी जी के सपने और मूल्य एक बार फिर गुंजायमान हैं स्वच्छता अभियान पीएम का नहीं, बल्कि हर नागरिक का मिशन हो

कर सकता जिससे वह हर संस्कृति, राजनीतिक संबद्धता, राष्ट्रीयता और जाति में सबसे अलग दिखते हैं। लोग आज भी उनको नमन करते हैं, क्योंकि उन्होंने सत्य के रूप में जो देखा उसके लिए निरंतर प्रतिबद्ध रहे। हम हमेशा हर चीज के बारे में बहस कर सकते हैं, लेकिन किसी की सच्चाई के प्रति एक निरंतर प्रतिबद्धता को, जिसे आप सच्चाई के रूप में देखते हैं और जिसने देश और दुनिया की चेतना के लिए बहुत कुछ किया हो, पर सवाल नहीं उठा सकते। 2019 उनकी जयंती का 150 वां वर्ष है, लेकिन अब तक हमने उनके कई सपनों को पूरा नहीं किया है। स्वच्छता के बारे में यदि बात करें तो हम अभी भी वहां नहीं पहुंचे हैं, जो वे सोचते थे। महिलाओं के सशक्तिकरण के बारे में बात करें - हमने बहुत कुछ किया है, लेकिन अभी भी वह पर्याप्त नहीं हैं। देश में समानता के बारे में बात करें - हम अभी भी वहां नहीं हैं, जहां होना चाहिए। समावेशी अर्थशास्त्र के बारे में बात करें - हम अभी भी काफी पीछे हैं। लेकिन यह देखना शानदार है कि एक बार फिर महात्मा के सपनों और जिन मूल्यों को उन्होंने

वे भले ही महान प्रतिभा के इंसान नहीं थे, न ही वे सुपरमैन थे, लेकिन वे एक ऐसे व्यक्ति थे जो साधारण को असाधारण में बदलने में सक्षम थे। इस देश में हमें ऐसी ही सोच की जरूरत है खुद जिया, वे सब एक बार फिर राष्ट्र की चेतना में गुंजायमान हो रहे हैं। हमारे प्रधानमंत्री को धन्यवाद कि उन्होंने इसे आगे बढ़ाया और यह पुस्तक महात्मा के सपने की एक अभिव्यक्ति है। भले ही वे सपने अभी पूरे नहीं हुए हैं, लेकिन कम से कम वे एक बार फिर से इस देश की चेतना में आ रहे हैं, जो एक महत्वपूर्ण पहल है। अन्य सभी चीजें, भले ही हम एक साल के समय में पूरा नहीं कर पाए, लेकिन 'स्वच्छ भारत' अभियान के तहत इस देश को साफ रखना जरूर संभव है। यदि हम सभी यह समझ लें कि यह सिर्फ प्रधानमंत्री और भारत सरकार का मिशन नहीं है, बल्कि यह इस देश के हर नागरिक का मिशन होना चाहिए, तभी हम इसे संभव बना सकते हैं। यदि हर

भारतीय इसके लिए प्रतिबद्ध हो जाए तो यह एक ऐसा काम है जिसे हम आने वाले वर्षों में निश्चित रूप से पूरा कर सकते हैं। आइए हम इस प्रतिबद्धता के लिए कम से कम थोड़ा सा आश्वासन देते हैं। वे भले ही महान प्रतिभा के इंसान नहीं थे, न ही वे सुपरमैन थे, लेकिन वे एक ऐसे व्यक्ति थे जो साधारण को असाधारण में बदलने में सक्षम थे। इस देश में हमें ऐसी ही सोच की जरूरत है। यदि हम हर साधारण आयाम को एक असाधारण संभावना में कैसे बदलना है, जान लें तो हमारा उद्धार हो जाएगा। मुझे इस शानदार पुस्तक को रिलीज करने का सम्मान देने के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद! क्योंकि यह बहुत महत्वपूर्ण है कि ये मूल्य एक बार फिर से राष्ट्र की चेतना में आ रहे हैं।


19 - 25 मार्च 2018

आवरण कथा

स्वच्छ भारत का सपना पूरा होकर रहेगा

05 07

‘फुलफिलिंग बापू'ज ड्रीम- प्राइम मिनिस्टर मोदी'ज ट्रिब्यूट टू गांधी जी’ पुस्तक के लोकार्पण के मौके पर सुलभ प्रणेता डॉ. विन्देश्वर पाठक के संबोधन का संपादित अंश

खास बातें 1901 के कांग्रेस अधिवेशन में गांधी जी ने सफाई की थी 2 अक्टूबर, 2014 को पीएम दिल्ली की गलियों में सफाई की किताब में पीएम के कल्याणकारी कार्यों का समावेश

डॉ. विन्देश्वर पाठक

संस्थापक, सुलभ स्वच्छता एवं सामाजिक सुधार आंदोलन

ह एक सुखद आश्चर्य है कि स्वच्छता के दोनों पुरोधाओं राष्ट्रपिता महात्मा गांधी और माननीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का जन्म गुजरात में हुआ। एक ने स्वच्छ भारत की कल्पना की और कहा कि आजादी बाद में चाहिए, स्वच्छ भारत पहले। दूसरे ने संपूर्ण भारत को स्वच्छ बनाने का बीड़ा उठाया है। महात्मा गांधी ने 1901 में कांग्रेस के अधिवेशन में कलकत्ता में हाथ में झाडू उठाया था और आसपास की गंदगी एवं मल को साफ किया था। माननीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने वर्ष 2014 में लाल किले से स्वच्छता और शौचालय की बात की और कहा कि हर स्कूल में शौचालय होना चाहिए, क्योंकि इसकी कमी से लड़कियों को स्कूल जाने में कठिनाई होती है। उन्होंने यह भी आह्वान किया कि 2019 तक सभी घरों में शौचालय हो जाने चाहिए और कोई भी शौच के

लिए बाहर न जाए। वे गांधी जी के जन्म दिवस पर 2 अक्टूबर, 2014 को राजघाट से सीधी दिल्ली की गलियों में गए और स्वयं अपने हाथों से झाडू चलाया और सफाई की। काशी के अस्सी घाट, जिस पर 50 वर्षों से भी अधिक समय से मिट्टी जमी हुई थी, उसको उन्होंने कुदाल चलाकर स्वयं साफ किया। यह भी एक सुखद संयोग है कि इस महत्वपूर्ण पुस्तक की प्रथम प्रति को एक कर्मनिष्ठ गांधीवादी राष्ट्रपति के कर-कमलों से ग्रहण किया जाएगा। हम आपके प्रति अनुगृहीत हैं। हम परम पूजनीय सद्गुरु जग्गी वासुदेव जी के प्रति भी श्रद्धावनत हैं कि आप इस पुस्तक का लोकार्पण करके हमें अपना आशीर्वाद प्रदान करेंगे। इस किताब के प्रथम पृष्ठ पर जो फोटो छपी

है, उसमें माननीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, महात्मा गांधी की प्रतिमा को प्रणाम करके गांधी जी को यह आश्वासन देना चाहते हैं कि हे गांधी, मैं स्वच्छ भारत के आपके सपनों को साकार करके रहूंगा। आज सारे देश में स्वच्छता की लहर चल पड़ी है। अब लोग हर जगह को साफ रखना चाहते हैं और कोई भी चीज यत्र-तत्र फेंकना नहीं चाहते। एक परिवार में एक लड़की है, उसके घर में कोई सदस्य यदि कुछ इधर-उधर फेंक देता है तो वह उसे उठाकर कूड़ेदान में डाल देती है और कहती है कि गंदगी करेंगे तो मोदी जी देख लेंगे। प्रधानमंत्री के स्वच्छता का यह विचार छोटे-छोटे बच्चों में भी पहुंच गया है और सारा देश स्वच्छता की ओर अग्रसर हो रहा है। प्रधानमंत्री सिर्फ झाड़ू से सफाई ही नहीं चाहते, वे इसके माध्यम से

प्रधानमंत्री सिर्फ झाडू से सफाई ही नहीं चाहते, वे इसके माध्यम से स्वच्छता की संस्कृति को बदलना चाहते हैं, ताकि लोग स्वयं गंदा न करें और न किसी को करने दें

स्वच्छता की संस्कृति को बदलना चाहते हैं, ताकि लोग स्वयं गंदा न करें और न किसी को करने दें। माननीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देश को स्वच्छ बनाने के लिए भारतीयों के बीच स्वच्छता का दीप जलाया है। उन्होंने स्वच्छता की उस संस्कृति को पुनर्जीवित करने के लिए देशवासियों का आह्वान किया है, जो हड़प्पा सभ्यता के समय यहां थी। हम लोगों को अपनी पूरी शक्ति तथा साधन द्वारा प्रधानमंत्री का साथ देना चाहिए। देश को स्वच्छ बनाना है तथा खुले में शौच से मुक्त करना है। ...तो आएं, हम सभी सभ्य, सुसंस्कृत और स्वच्छ होकर भारत को सभ्य, सुसंस्कृत तथा स्वच्छ राष्ट्रों की कतार में अग्रणी बनाएं। हम सबके सम्मिलित प्रयास से स्वच्छ भारत का सपना पूरा होकर रहेगा। इस किताब का प्रकाशन बहुत अच्छे ढंग से किया गया है। इसमें प्रधानमंत्री के विभिन्न समाजकल्याणकारी कार्यों का समावेश किया गया है, जैसे- स्वच्छता ही सेवा है, जन भागीदारी, महिला सशक्तिकरण, अहिंसा एवं गौ सुरक्षा, गरीब महिलाओं को गैस सिलेंडर प्रदान करना, ग्रामोदय से भारत उदय, राष्ट्र के लिए खादी आदि। आशा है कि पाठकगण इस पुस्तक को पढ़कर लाभ ले सकेंगे और यह देख सकेंगे कि किस प्रकार महात्मा गांधी जी ने स्वच्छ भारत की कल्पना की थी और माननीय प्रधनमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी किस प्रकार से भारत को स्वच्छ बनाने में तन-मन-ध्न से लगे हैं, ताकि गांधी जी का सपना पूरा हो सके। मैं अपने को भाग्यशाली समझता हूं कि गांधी जी और प्रधनमंत्री जी पर आधरित इस पुस्तक के लोकार्पण में मुझे भी भाग लेने का मौका मिला है। एक बार पुनः मैं महामहिम जी के प्रति विनम्रतापूर्वक कृतज्ञता ज्ञापित करता हूं। बहुत-बहुत आभार एवं धन्यवाद।


08

आवरण कथा

19 - 25 मार्च 2018

वर्तमान से तय होता है भविष्य

‘फुलफिलिंग बापू’ज ड्रीम- प्राइम मिनिस्टर मोदी’ज ट्रिब्यूट टू गांधी जी’ पुस्तक के लोकार्पण कार्यक्रम में हितेश जैन के संबोधन का संपादित अंश

को पोरबंदर में सिर्फ एक व्यक्ति का दोअक्टूबर जन्म नहीं हुआ, बल्कि एक युग का जन्म

हुआ था। हम इस बात में दृढ़ विश्वास रखते हैं कि महात्मा गांधी आज भी वैसे ही प्रासंगिक हैं जैसे वह अपने समय में थे। लेकिन वह कैसे प्रासंगिक बने रहें? उन्हें प्रासंगिक बनाने

का एक तरीका यह है जब हम बापू के सपने को पूरा करते हैं और इस प्रकार हम उन्हें प्रासंगिक बनाते हैं। 2014 से हम उनके सपने को पूरा होने के तरीके को देख रहे हैं। लाल किले की प्राचीर से, खुले में शौच को खत्म करने के मिशन पर विचार किया गया था। 15 अगस्त 2014 को, और उसके बाद सितंबर में बापू के अधूरे सपने भारत छोड़ो और क्लीन इंडिया के बारे में एक बड़ा विचार रखा जाता है। वहीं से 'जनधन', खादी को बढ़ावा देने, विकास को अंतिम छोर तक पहुंचाने, जन भागीदारी और वित्तीय समावेशन के बारे में बातें करना जैसी कई सारी योजनाएं लांच की गईं और विभिन्न कार्यक्रमों को कार्यान्वित किया गया है। और जो व्यक्ति बहुत तेजी से मिशन बनाकर इन कार्यक्रमों को लागू कर रहा है, वह कोई और नहीं हमारे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी हैं। इस पुस्तक में,

हमने महात्मा गांधी के सार्वभौमिक विचारों और प्रधानमंत्री द्वारा किए गए कार्यों में उनके प्रतिबिंबों पर प्रकाश डाला है।

किताब के बारे में

यह पुस्तक दो भागों में विभाजित है - पहले भाग में गांधीवादी भावों और विचारों को सूचीबद्ध किया गया है। जबकि दूसरे हिस्से में प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी के विचारों और कार्यों में निहित गांधीवाद के विचारों को रेखांकित किया गया है। प्रत्येक विषय में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के गांधी जी के विचारों और जीवन के विभिन्न पहलुओं पर ध्यान देने के विचार शामिल हैं। पुस्तक का दूसरा भाग सरकार और नागरिकों के प्रभावी और सामूहिक निष्ठा के माध्यम से गांधी जी के दर्शन 'जन भागीदारी' की प्राप्ति का वर्णन करता है। गांधी जी ने स्वच्छता के पूर्ण महत्व पर भी बल दिया। इस सरकार ने उनके जीवन से प्रेरणा लेते हुए अपने एजेंडे का केंद्रीय बिंदु 'स्वच्छता' को बनाया है। इसने हमारे गांवों को खुले में शौच से मुक्ति (ओडीएफ) के लिए एक मिशन की तरह काम किया है।

किताब के दूसरे हिस्से में एक और महत्वपूर्ण भाग जो आप देखेंगे, वह खादी के बारे में है। गांधीजी ने कहा था कि खादी एक गरीब व्यक्ति के घर में उम्मीद की किरण लेकर आती है। हमारे प्रधानमंत्री मोदी ने उनकी इन बातों को ध्यान में रखते हुए गरीबों और जरूरतमंद लोगों को रोजगार देने वाले खादी उद्योग को पुनर्जीवित करने के लिए काम किया है। इसके परिणामस्वरूप खादी की बिक्री में अभूतपूर्व वृद्धि देखी गई है। अंत में,जैसा कि महात्मा गांधी ने कहा था, हमारा भविष्य इस पर पर निर्भर करता है कि हम वर्तमान में क्या करते हैं। यह तब होता है जब हम महात्मा गांधी के अधूरे सपने “स्वच्छ भारत” के बारे में सोचते हैं और यह सुनिश्चित करते हैं कि भारत इस तरह काम करे कि विकास अंतिम छोर तक पहुंचे। हम सौभाग्यशाली हैं कि हम उस युग में जी रहे हैं जहां प्रधानमंत्री के रूप में हमारे पास एक प्रेरणादायी नेतृत्व है, जो बापू के सपनों को जिंदा रखने की कोशिश कर रहे हैं और इस तरह बापू को जिंदा रखे हुए हैं। (निदेशक, ब्लू क्राफ्ट डिजिटल फाउंडेशन)

साकार हो रहा बापू का सपना ‘फुलफिलिंग बापू'ज ड्रीम- प्राइम मिनिस्टर मोदी'ज ट्रिब्यूट टू गांधी जी’ पुस्तक के लोकार्पण कार्यक्रम के आखिर में आभा कुमार द्वारा व्यक्त आभार ज्ञापन का संपादित अंश’

ज का दिन हमारे लिए विशेष है। आज महामहिम राष्ट्रपति महोदय की उपस्थिति में ‘फुलफिलिंग बापू’ज ड्रीम- प्राइम मिनिस्टर मोदी’ज ट्रिब्यूट टू

गांधी जी’ पुस्तक का लोकार्पण राष्ट्रपति भवन के इस अति-प्रतिष्ठित दरबार हॉल में सद्गुरु जी के कर-कमलों द्वारा संपन्न हुआ एवं पुस्तक की प्रथम प्रति महामहिम राष्ट्रपति महोदय को भेंट की गई। बापू के सपनों और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी द्वारा उनके सपनों को पूरा करने की सार्थक कोशिश की नायाब बयानी करती यह किताब, दोनों महान नेताओं के सपनों और ध्येय की अनुरूपता को बखूबी दर्शाती है। बापू की भांति प्रधानमंत्री मोदी का भी स्वप्न है कि राष्ट्र विकास और वैभव के पथ पर अग्रसर हो। गांधी जी के बताए हुए रास्तों पर चलते हुए प्रधानमंत्री ने ‘स्वच्छ भारत अभियान’ से लेकर ‘ग्राम उदय’ तक कई नीतियां लागू कीं। पूज्य बापू को श्रद्धांजलि देने का उनका यह तरीका अभूतपूर्व है। इन्हीं अभूतपूर्व बातों को इस ऐतिहासिक पुस्तक में संग्रहित किया गया है। मैं महामहिम राष्ट्रपति महोदय एवं परम

पूजनीय सद्गुरुजी का हार्दिक आभार व्यक्त करती हूं कि उन्होंने अपने व्यस्ततम दिनचर्या के बावजूद हमें अपना समय एवं स्नेह देकर अनुगृहीत किया। आपकी उपस्थिति हमारे संपूर्ण इतिहास के सबसे स्वर्णिम पलों में से है। यह हमें अनवरत बेहतर करने के लिए प्रेरित करेगी। हम आपके प्रति अपनी हार्दिक कृतज्ञता ज्ञापित करते हैं। इस पुस्तक की संकल्पना देश के माननीय प्रधानमंत्री के जनप्रिय, विकासमार्गी कार्यों एवं नीतियों से उपजी है। उनके द्वारा लागू की गई हर नीति अथवा योजना देश को गांधी जी के स्वप्नपथ पर कई कदम आगे लेकर गई है। संपूर्ण भारतवर्ष को समृद्धि एवं विकास की तरफ ले जाने वाले हमारे अति-जनप्रिय माननीय प्रधानमंत्री महोदय के हम हृदय से आभारी हैं। तमाम जन-कल्याणकारी नीतियों को वर्णित करती हुई यह विशेष कॉफी टेबल बुक प्रधानमंत्री

एवं उनके अति कुशल सहयोगियों की मेहनत का प्रत्यक्ष प्रमाण है। प्रधानमंत्री कार्यालय ने इस पुस्तक को एक प्रामाणिक रूप देने में अतिमहत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। यह उनका ही त्वरित और उपयुक्त सहयोग था कि हम पुस्तक को इस रूप में सामने ला पाए। सुलभ द्वारा अलवर और टोंक की हमारी पुनर्वासित बहनें आज ‘ब्राह्मण’ बनकर समाज में सिर उठाकर चलती हैं और स्वाभिमान से अपना जीवनयापन करती हैं। वृंदावन से पधारीं हमारी विधवा माताओं की राष्ट्रपति भवन में उपस्थिति ही इस बात को सिद्ध करती है कि महात्मा गांधी का सपना साकार हो रहा है। महामहिम राष्ट्रपति महोदय का इन्हें आशीर्वाद मिलना, हम सबका परम सौभाग्य है। मैं उन सभी व्यक्तियों का धन्यवाद ज्ञापन करती हूं, जिनके कठिन परिश्रम से इस कार्यक्रम का संचालन सफलतापूर्वक हो पाया है।


19 - 25 मार्च 2018

09

आवरण कथा

पुस्तक से महत्वपूर्ण उद्धरण

‘फुलफिलिंग बापू’ज ड्रीम- प्राइम मिनिस्टर मोदी’ज ट्रिब्यूट टू गांधी जी’ पुस्तक के साथ सबसे विलक्षण बात यह है कि यह एक तरफ जहां महात्मा गांधी के विचार और आदर्शों का प्रासंगिक तरीके से स्मरण कराती है, वहीं यह इस बात को भी रेखांकित करते हैं कि हमारे प्रधानमंत्री कैसे इन विचार और आदर्शों से प्रभावित हैं। पुस्तक में गांधीवादी आस्था और प्रेरणा के साथ प्रधानमंत्री द्वारा शुरू किए गए कार्यों का भी प्रामाणिक लेखा-जोखा दिया गया है

स्वच्छता ही सेवा

स्वाधीनता से भी ज्यादा महत्वपूर्ण है स्वच्छता

महात्मा गांधी मगनवाड़ी, वर्धा में सफाई कार्य करते हुए

महात्मा गांधी

क्या आप जानते हैं कि महात्मा गांधी क्या कहते थे? उन्होंने एक बार कहा था, ‘अगर मुझे स्वतंत्रता और स्वच्छता के बीच चयन करना हो, तो मैं पहले स्वच्छता और बाद में स्वतंत्रता का चुनाव करूंगा।’ गांधी जी के लिए स्वतंत्रता की तुलना में स्वच्छता अधिक महत्वपूर्ण थी। ये बातें सफाई का महत्व बताती हैं और हमें एक साथ आकर महात्मा गांधी के स्वच्छ भारत के सपने के बारे में सोचने के लिए प्रेरित करती हैं। उन्होंने हमें स्वाधीनता हासिल करने में मदद की। अब, हम सब मिलकर उनकी इच्छा को पूरी करने के लिए कार्य करें।*

नई दिल्ली में स्वच्छ भारत मिशन के शुभारंभ के मौके पर खुद हाथों में झाड़ू लेकर सफाई करते प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी

*25 सितंबर, 2016 को प्रसारित ‘मन की बात’ कार्यक्रम में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी


10

आवरण कथा

19 - 25 मार्च 2018

खादी फॉर नेशन एंड खादी फॉर फैशन

चरखे के लिए अनुनय, दरअसल श्रम की अस्मिता की पहचान के लिए आग्रह है। महात्मा गांधी महात्मा गांधी चरखा चलाते थे और खादी को जीवन जीने के तरीके के रूप में बढ़ावा देते थे

जब भी हम महात्मा गांधी के बारे में सोचते हैं, तो हमें जिस एक चीज की याद सहजता से आती है, वह है खादी। आपके परिवार के लोग विभिन्न ब्रांडों और कई तरह से बने कपड़े पहनते होंगे। क्या आपको इसमें खादी को भी शामिल नहीं करना चाहिए? मैं आपको केवल खादी पहनने के लिए नहीं कहता हूं। मेरे कहने का अभिप्राय बस यह है कि आप कम से कम खादी के एक उत्पाद का उपयोग करें, जैसे रूमाल या तौलिया, चादर, तकिया का कवर, पर्दा या कोई अन्य उपयोगी वस्त्र। यदि परिवार में सभी प्रकार के वस्त्रों के लिए प्रेम है, तो खादी को भी आपके संग्रह का हिस्सा होना ही चाहिए।* प्रथम राष्ट्रीय हैंडलूम दिवस(2015) के मौके पर आयोजित प्रदर्शनी को देखते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी

*3 अक्टूबर, 2014 को प्रसारित ‘मन की बात’ कार्यक्रम में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी


19 - 25 मार्च 2018

आवरण कथा

11

महिला सशक्तिकरण से महिलाओं के नेतृत्व में विकास

मैं न तो बेटे के जन्म के समय उत्सव मनाने का कोई कारण देखता हूं और न ही बेटी के जन्म के समय शोक मनाने की कोई वजह देखता हूं। दोनों भगवान के उपहार हैं। उनके पास जीने का एक समान अधिकार है और दुनिया के लिए दोनों ही समान रूप से जरूरी हैं। महात्मा गांधी

महिला स्वयंसेवकों को सत्याग्रह के लिए प्रेरित करते हुए महात्मा गांधी

हम 21 वीं सदी में हैं। फिर भी हमारी माताएं और बहनें, खासतौर पर जो गरीब परिवारों से आती हैं, उनके पास सुरक्षित स्वच्छता की सुविधा नहीं है। क्या यह हमें महिला अस्मिता के लिए सामूहिक तौर पर जागरूक नहीं करती है? स्वच्छता की सुरक्षित व्यवस्था न होने के कारण महिलाओं को बड़ी परेशानी का सामना करना पड़ता है। जिस तरह कठिनाइयों और स्वास्थ्य के लिहाज से जोखिम का वे सामना करती हैं, वह भयावह है। क्या हमें अपनी माताओं और बहनों के स्वास्थ्य और सम्मान की रक्षा के लिए शौचालयों की व्यवस्था नहीं करनी चाहिए? गरीबों को सम्मान दिया जाना चाहिए और यह कार्य सफाई सुनिश्चित करने और स्वच्छता की पहुंच के साथ शुरू होता है। इसीलिए मैं 2 अक्टूबर 2014 से स्वच्छ भारत मिशन का शुभारंभ करने जा रहा हूं। एक महत्वपूर्ण कार्य भारत के सभी स्कूलों में शौचालय बनाना, लड़कियों के लिए एक अलग शौचालय का निर्माण सुनिश्चित करना है। इससे लड़कियों को स्कूल छोड़ने के लिए मजबूर नहीं होना पड़ेगा।* वर्ष 2014 में लाल किले से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का प्रथम स्वतंत्रता दिवस संबोधन

*15 अगस्त, 2014 को 68वें स्वाधीनता दिवस समारोह में प्रधानमंत्री का संबोधन


12

आवरण कथा

19 - 25 मार्च 2018

ग्राम उदय से भारत उदय

स्वतंत्र भारत के पुनर्निर्माण की योजना में, गांवों की अभी तक जारी निर्भरता को समाप्त किया जाना चाहिए। इसी तरह शहरों का अस्तित्व ग्रामीण हित में ही होना चाहिए महात्मा गांधी ग्राम पंचायतों के लिए गांधी जी का संबोधन

महात्मा गांधी के ग्राम स्वराज के सपने को क्यों नजरअंदाज किया गया। आखिर क्या वजह है कि लोगों का गांवों से पलायन हो रहा है और वे शहरों में रहने को विवश हैं। क्या हम गरीब किसानों, दलितों और वंचित तबकों के लिए कुछ कर सकते हैं? ये सवाल किसी एक व्यक्ति या समूह से नहीं, बल्कि हर आदमी के लिए महत्वपूर्ण हैं।*

गुजरात के मुख्यमंत्री रहते हुए नरेंद्र मोदी किसानों के साथ चर्चा करते हुए

*भारत छोड़ो आंदोलन के 75 वर्ष पूरा होने पर नौ अगस्त, 2017 को संसद में प्रधानमंत्री का संबोधन


19 - 25 मार्च 2018

जेंडर

‘ठाकुर जी मेरे बच्चों को ये दिन न दिखाएं’

13

अपने दोनों पैरों से लाचार शांति देवी के जीवन में परेशानी तब शुरू हुई, जब उनके पति बैरागी हो गए। मेहनत करके बच्चों को पढ़ाया-लिखाया पर उन्होंने भी बाद में साथ छोड़ दिया। आखिरकार जिंदगी जीने की आस और ठौर वृंदावन में सुलभ की मदद से मिली

प्रियंका तिवारी

खास बातें

पने बच्चों की खुशी और उनकी ख्वाहिशों को पूरा करने के लिए एक मां अपने सभी सपने और खुशियों को त्याग देती है। पर वही बच्चे जब बड़े हो जाते हैं, तो उस मां की कद्र करना भूल जाते हैं। यहां तक कि मां की वृद्धावस्था में उनकी सेवा करने के बजाए उन्हें दर-दर की ठोकरें खाने के लिए छोड़ देते हैं। ऐसी ही दर्द भरी कहानी है शांति देवी की, जो वृंदावन के एक वृद्धा आश्रम में रह रहीं हैं।

वह न तो चल सकती हैं और न ही खुद से नित्य कर्म ही कर सकती हैं बेटी और दामाद ने वृंदावन में भटकने के लिए छोड़ दिया डॉ. विन्देश्वर पाठक ने एक बार फिर से जीने के लिए प्रेरित किया

दोनों पैर नाकाम

शांति के दोनों पैर लकवाग्रस्त हैं। वह न तो चल सकती हैं और न ही खुद से अपने नित्य कर्म ही कर सकती हैं। ऐसे में उनकी देखभाल आश्रम के कर्मचारियों द्वारा किया जाता है। शांति देवी कहती हैं कि वृंदावन धाम हम बेसहारा महिलाओं को सहारा देने वाला धाम है। यहां हम ठाकुर जी की कृपा से जी रहे हैं। ठाकुर जी और राधा रानी की कृपा से हम आज तक जिंदा हैं, वरना इस जिल्लत भरी जिंदगी से कब का छुटकारा मिल गया होता।

12 वर्ष की उम्र में शादी

पश्चिम बंगाल के मालदा की रहने वाली शांति कर्मकार की शादी 12 वर्ष की उम्र में ही हो गई थी। शांति देवी ने पांच बेटियों और एक बेटे को जन्म दिया, जिनमें बेटे और 2 बेटियों की मौत शैशवास्था में ही हो गई। पति मजदूरी करके अपने परिवार का भरण-पोषण करते थे, लेकिन आय कम होने और खर्च अधिक होने की वजह से वे परेशान हो गए और वह घर-बार छोड़कर साधु बन गए। पति के घर छोड़ने के बाद शांति देवी के सामने अपने बच्चों की परवरिश करने और भोजन का प्रबंध करने की चिंता सताने लगी।

अपनों की प्रताड़ना

बड़े बुजुर्ग कहते हैं कि एक बाप अपने बच्चों के प्रति बेरुखी दिखा सकता है, लेकिन एक मां कभी नहीं ऐसा कर सकती है। इस कहावत को शांति देवी ने चरितार्थ किया। पति के साधु बन जाने के बाद उन्होंने मजदूरी कर अपनी बेटियों की परवरिश की और उनका विवाह किया। अपनी जिम्मेदारियों से मुक्त हो शांति देवी ने सोचा कि अब वह चैन से घर में रहेंगी और मजदूरी करना छोड़ देंगी, लेकिन यह क्या जिन बेटियों की परवरिश के लिए उन्होंने अपना पूरा जीवन समर्पित कर दिया, वे बेटियां अब उन्हें अपने पास रखने से कतराने लगीं। वह कभी एक बेटी तो कभी दूसरी बेटी के यहां रहने लगीं। इतना ही नहीं, उन्हें दोनों वक्त खाना खाने के लिए भी काम करना पड़ता था। अपनी ही बेटी के घर में उन्हें झाड़ू-पोछा और खाना बनाना पड़ता था। ऐसा

सुलभ और लाल बाबा (डॉ. विन्देश्वर पाठक) ने हमें एक बार फिर से जीवन जीने के लिए प्रेरित किया। यदि लाल बाबा हम विधवाओं को सहारा नहीं देते तो हम आज भी नर्क भरी जिंदगी जीते ना करने पर उन्हें मार-डांट के साथ ही साथ खाना भी नहीं दिया जाता था।

बेटी-दमाद ने असहाय छोड़ा

हद तो तब हो गई, जब शांति देवी बीमार हो गईं और उनके दोनों पैर लकवाग्रस्त हो गए। उनकी सेवा करने के बजाय उनके बेटी-दामाद ने उन्हें वृंदावन में भटकने के लिए छोड़ दिया। पैरों से लाचार शांति देवी को वृंदावन में रहते हुए आज 30 साल हो गए हैं। वह बताती हैं कि जब उनके बेटीदामाद ने उन्हें वृंदावन में छोड़ा था तो उन्हें पता ही नहीं था कि वह कैसे और कहां रहेंगी। चल-फिर पाती तो कुछ मेहनत मजदूरी कर लेती, लेकिन पैरों से लाचार शांति देवी मंदिर के एक कोने में बैठी भजन गाया करतीं और प्रसाद में जो मिल जाता उसी से अपना पेट भरती थीं।

बस एक शाम भोजन

वह बताती हैं कि शुरुआत में तो एक टाइम का

खाना मिल जाता था और दूसरे टाइम के खाने का कोई ठिकाना नहीं होता था। तबीयत खराब होने पर कोई देख रेख करने वाला नहीं होता था। बीमारी के समय में खाने को भी कुछ नहीं मिलता था, क्योंकि ना वह भजन गा पाती और ना ही उन्हें प्रसाद मिलता। इससे बीमारी ठीक होने के बजाय लंबे समय तक रहती। इन सभी समस्याओं से परेशान शांति ने कई बार भगवान से अपनी मृत्यु की भीख भी मांगी, लेकिन भगवान की मर्जी के आगे किसकी चली है? रोज की परेशानियों और हालातों से लड़ते हुए शांति ने इसे ही अपनी किस्मत मान लिया था।

मां आखिर मां होती है

कभी परिवार के साथ रहने के सपने देखने वाली शांति देवी आज अपने घर-गांव वापस जाना नहीं चाहती हैं। वह कहती हैं कि उनके बेटी-दमाद वृंदावन घूमने आते और उनकी दुर्दशा भी देखते थे, लेकिन कभी उन्हें अपने साथ ले जाने की बात नहीं करते थे। परिवार होते हुए भी उससे दूर होने

और अपने ही बच्चों द्वारा दुत्कार दिए जाने का दुख उनकी आंखों में साफ झलकता है। अपनी आंखों से बहते आंसुओं को पोछते हुए शांति देवी कहती हैं कि ठाकुर जी सब देख रहे हैं, अब वही फैसला करेंगे। मेरा जीवन तो उनकी कृपा से जैस-तैसे बीत रहा है, लेकिन ठाकुर जी मेरे बच्चों को ये दिन न दिखाएं। कहते हैं कि मां आखिर मां होती है, बच्चे चाहे कितना भी अपमान कर लें लेकिन वह कभी बददुआ नहीं देतीं। शांति देवी भी अपने साथ हुई ज्यादती को भूल कर अपने बच्चों के लिए रोज दुआ करती हैं।

नई सुबह का आगाज

अंधेरे के बाद ही एक नई सुबह का आगाज होता है। ऐसी ही एक नई सुबह शांति देवी के जीवन में भी आई, जब सुलभ इंटरनेशनल सोशल सर्विस आर्गेनाइजेशन ने वृंदावन की विधवा माताओं को एक नई जिंदगी देने का बीड़ा उठाया। शांति कहती हैं कि वह इस आश्रम में पिछले तीन सालों से रह रही हैं, यहां सुलभ द्वारा उनकी पूरी देखभाल की जाती है। अब उन्हें भोजन और दवा के लिए दर-दर भटकना नहीं पड़ता है।

लाल बाबा की प्रेरणा

शांति कहती हैं कि हमने कभी सोचा भी नहीं था कि हमारी भी कोई सेवा करेगा। हमने तो अपने दुखों को ही अपनी किस्मत का लिखा मान लिया था, लेकिन सुलभ और लाल बाबा (डॉ. विन्देश्वर पाठक) ने हमें एक बार फिर से जीवन जीने के लिए प्रेरित किया। यदि लाल बाबा हम विधवाओं को सहारा नहीं देते तो हम आज भी नर्क भरी जिंदगी जीते। एक ऐसी जिंदगी, जिसमें न तो कोई हमसे मिलने आता और ना ही हमारे पास बैठता। इतना ही नहीं हमें देखकर लोग अपने रास्ते तक बदल लेते थे, लेकिन लाल बाबा की वजह से आज हम होली, दिवाली जैसे त्योहार भी मना पाते हैं और जीवन के हर रंग से रुबरू भी हो रहे हैं।


14

बलिदान

19 - 25 मार्च 2018

भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु के शहीदी दिवस (23 मार्च) पर विशेष

रूढ़िवादी दबाव में अमर शहादत

गांधी जी के कहने के बावजूद विलायती रूढिवादियों के गुस्से का शिकार होने से बचने के लिए लार्ड इरविन ने भगत सिंह और उनके साथियों को फांसी पर लटाकने का फैसला बरकरार रखा डॉ. भीमराव आंबेडकर

गत सिंह, सुखदेव और राजगुरू इन तीनों को अंततः फांसी पर लटका दिया गया। इन तीनों पर यह आरोप लगाया गया कि उन्होंने सैंडर्स नामक अंग्रेजी अफसर और चमनसिंह नामक सिख पुलिस अधिकारी की लाहौर में हत्या की। इसके अलावा बनारस में किसी पुलिस अधिकारी की हत्या का आरोप, असेंबली में बम फेंकने का आरोप और मौलमिया गांव में एक मकान पर डकैती डाल कर वहां लूटपाट एवं मकान मालिक की हत्या करने जैसे तीन चार आरोप भी उन पर लगे। इनमें से असेंबली में बम फेंकने का आरोप भगतसिंह ने खुद कबूल किया था और इसके लिए उन्हें और बटुकेश्वर दत्त नामक उनके एक सहायक दोस्त को उम्र कैद के तौर पर काला पानी की सदा सुनाई गई। सैंडर्स की हत्या भगत सिंह जैसे क्रांतिकारियों ने की ऐसी स्वीकारोक्ति जयगोपाल नामक भगत सिंह के दूसरे सहयोगी ने भी की थी और उसी बुनियाद पर सरकार ने भगत सिंह के खिलाफ मुकदमा कायम किया था। इस मुकदमें में तीनो ने भाग नहीं लिया था। हाईकोर्ट के तीन न्यायाधीशों के स्पेशल ट्रिब्यूनल का गठन करके उनके सामने यह मुकदमा चला और उन तीनों ने इन्हें दोषी घोषित किया और उन्हें फांसी की सजा सुना दी। इस सजा पर अमल न हो और फांसी के बजाए उन्हें अधिक से अधिक काला पानी की सजा सुनाई जाए ऐसी गुजारिश के साथ भगत सिंह के पिता ने राजा और वायसराय के यहां दरखास्त भी दी। अनेक बड़े-बड़े नेताओं ने और तमाम अन्य लोगों ने भगत सिंह को इस तरह सजा न दी जाए इसे लेकर सरकार से अपील भी की। गांधी जी और लॉर्ड इरविन के बीच चली आपसी चर्चाओं में भी भगत सिंह की फांसी की सजा का मसला अवश्य उठा होगा और लार्ड इरविन ने भले ही मैं भगतसिंह की जान बचाउंगा ऐसा ठोस वादा गांधीजी से न किया हो, मगर लार्ड इरविन इस संदर्भ में पूरी कोशिश करेंगे और अपने अधिकारों के दायरे में इन तीनों की जान बचाएंगे ऐसी उम्मीद गांधी जी के भाषण से पैदा हुई थी। मगर ये सभी उम्मीदें, अनुमान और गुजारिशें गलत साबित हुईं और बीते 23 मार्च को शाम 7 बजे इन तीनों को लाहौर सेंट्रल जेल में फांसी दी गई। ‘हमारी जान बख्श दें,’ ऐसी दया की अपील इन तीनों में से किसी ने भी नहीं की थी। हां, सूली पर चढ़ाने के बजाए हमें गोलियों से उड़ा दिया जाए ऐसी इच्छा भगत सिंह ने प्रकट की थी, ऐसी खबरें अवश्य आई हैं। मगर उनकी इस आखरी इच्छा का भी सम्मान नहीं किया गया।

‘हमारी जान बख्श दें,’ ऐसी दया की अपील इन तीनों में से किसी ने भी नहीं की थी। हां, सूली पर चढ़ाने के बजाए हमें गोलियों से उड़ा दिया जाए ऐसी इच्छा भगत सिंह ने प्रकट की थी न्यायाधीश के आदेश पर हुबहू अमल किया गया। ‘अंतिम सांस तक फांसी पर लटका दें’ यही निर्णय जज ने सुनाया था। अगर गोलियों से उड़ा दिया जाता तो इस निर्णय पर शाब्दिक अमल नहीं माना जाता। न्यायदेवता के निर्णय पर बिल्कुल शाब्दिक अर्थों में हुबहू अमल किया गया और उसके कथनानुसार ही इन तीनों को शिकार बनाया गया। अगर सरकार को यह उम्मीद हो कि इस घटना से ‘अंग्रेजी सरकार बिल्कुल न्यायप्रिय है, न्यायपालिका के आदेश पर हुबहू अमल करती है’, ऐसी समझदारी लोगों के बीच मजबूत होगी और सरकार की इसी ‘न्यायप्रियता’ के चलते लोग उसका समर्थन करेंगे तो यह सरकार की नादानी समझी जा सकती है। क्योंकि यह बलिदान ब्रिटिश

न्यायदेवता की शोहरत को अधिक धवल और पारदर्शी बनाने के इरादे से किया गया है, इस बात पर किसी का भी यकीन नहीं है। खुद सरकार भी इसी समझदारी के आधार पर अपने आप को संतुष्ट नहीं कर सकती है। फिर बाकियों को भी इसी न्यायप्रियता के आवरण में वह किस तरह संतुष्ट कर सकती है? न्यायदेवता की भक्ति के तौर पर नहीं, बल्कि विलायत के कंजर्वेटिव (राजनीतिक रूढिवादी) पार्टी और जनमत के डर से इस बलिदान को अंजाम दिया गया है, इस बात को सरकार के साथ साथ तमाम दुनिया भी जानती है। ऐसे समय में एक अंग्रेज व्यक्ति और अधिकारी की हत्या करने का आरोप जिस पर लगा हो और वह साबित भी हो चुका हो, ऐसे राजनीतिक क्रांतिकारी अपराधी को

अगर इरविन ने मुआफी दी होती तो इन राजनीतिक रूढिवादियों के हाथों बना बनाया मुददा मिल जाता। पहले से ही ब्रिटेन में लेबर पार्टी की सरकार डांवाडोल चल रही है और उसी परिस्थिति में अगर यह मसला राजनीतिक रूढ़िवादियों को मिलता कि वह अंग्रेज व्यक्ति और अधिकारी के हिंदुस्तानी हत्यारे को भी माफ करती है तो यह अच्छा बहाना वहां के राजनीतिक रूढिवादियों को मिलता और इंग्लैंड का लोकमत लेबर पार्टी के खिलाफ बनाने में उन्हें सहूलियत प्रदान होती। इस संकट से बचने के लिए और रूढिवादियों के गुस्से की आग न भड़के इसीलिए फांसी की इन सजा को अंजाम दिया गया है। यह कदम ब्रिटिश न्यायपालिका को खुश करने के लिए नहीं, बल्कि ब्रिटिश लोकमत को खुश करने के लिए उठाया गया है। अगर निजी तौर पर यह मामला लार्ड इरविन की पसंदगी-नापसंदगी से जुड़ा होता तो उन्होंने अपने अधिकारों का इस्तेमाल करके फांसी की सजा रदद करके उसके स्थान पर उमर कैद की सजा भगत सिंह आदि को सुनाई होती। विलायत की लेबर पार्टी के मंत्रिमंडल ने भी लार्ड इरविन को इसके लिए समर्थन प्रदान किया होता, गांधी इरविन करार के बहाने से इसे अंजाम देकर भारत के जनमत को राजी करना जरूरी था। जाते-जाते लार्ड इरविन भी जनता का दिल जीत लेते। मगर इंग्लैंड की अपने रूढ़िवादी बिरादरों और वहां के उसी मनोवृति की नौकरशाही के गुस्से का वह शिकार होते। इसीलिए जनमत की परवाह किए बगैर लार्ड इरविन की सरकार ने भगत सिंह आदि को फांसी पर चढ़ा दिया और वह भी कराची कांग्रेस के तीन चार दिन पहले। गांधी-इरविन करार को मटियामेट करने व समझौते की गांधी जी की कोशिशों को विफल करने के लिए भगत सिंह को फांसी और फांसी के लिए मुकर्रर किया समय, यह दोनों बातें काफी थी। अगर इस समझौते को समाप्त करने का ही इरादा लार्ड इरविन सरकार का था तो इस कार्रवाई के अलावा और कोई मजबूत मसला उसे ढूंढ़ने से भी नहीं मिलता। इस नजरिए से भी देखें तो गांधी जी के कथनानुसार सरकार ने यह बड़ी भूल की है, यह कहना अनुचित नहीं होगा। तात्पर्य यह कि जनमत की परवाह किए बगैर, गांधी-इरविन समझौते का क्या होगा, इसकी चिंता किए बिना विलायत के रूढिवादियों के गुस्से का शिकार होने से अपने आप को बचाने के लिए, भगत सिंह आदि को बली चढ़ाया गया यह बात अब छिप नहीं सकेगी यह बात सरकार को पक्के तौर पर मान लेनी (डॉ. आंबेडकर के नेतृत्व में निकलने चाहिए। वाले पाक्षिक अखबार ‘जनता’ में 13 अप्रैल 1931 को प्रकाशित आलेख का संपादित अंश)


19 - 25 मार्च 2018

15

विज्ञान

स्टीफन हॉकिंग

सिद्धांत से ज्यादा संवाद पर यकीन

स्टीफन हॉकिंग की सबसे अच्छी बात यह थी कि वे डायलॉग में विश्वास करते थे। बहस करना उनकी आदत में शामिल नहीं था

खास बातें

13 साल की उम्र में ही शांति की शादी हो गई थी पति की मौत के बाद काफी संघर्षमय हो गया था जीवन बच्चों को किसी तरह पढ़ाया, पर बच्चों ने मां को असहाय छोड़ा

वि

एसएसबी ब्यूरो

ज्ञान दुरूह नहीं, बल्कि खासा दिलचस्प है। हमारे दौर में इस बात को जिस शख्सियत ने अपने कार्य और विचार से सबसे प्रभावशाली तरीके से समझाया, वे थे महान वैज्ञानिक स्टीफन हॉकिंग। हॉकिंग ने विज्ञान के क्षेत्र में अपने काम से दुनियाभर में करोड़ों युवाओं को विज्ञान पढ़ने के लिए प्रेरित किया। अलबत्ता हॉकिंग ने विज्ञान की नजर से ही भगवान, पृथ्वी पर इंसानों का अंत और एलियनों के अस्तित्व पर अपनी बात पुरजोर अंदाज में रखी। यह निर्भीकता इसीलिए भी अहम है क्योंकि गैलिलियो की तरह हॉकिंग को भी इपने इन बयानों के लिए धार्मिक संस्थाओं की ओर से विरोध का सामना भी करना पड़ा था।

ईश्वर के अस्तित्व को नकारा

स्टीफन हॉकिंग ने अपनी किताब 'द ग्रांड डिजाइन' में भगवान के अस्तित्व को सिरे से नकारा है। उन्होंने एक नए ग्रह की खोज के बारे में बात करते हुए हमारे सौरमंडल के खास समीकरण और भगवान के अस्तित्व पर सवाल उठाया। साल 1992 में एक ग्रह की खोज की गई थी, जो हमारे सूर्य की जगह किसी अन्य सूर्य का चक्कर लगा रहा था। हॉकिंग ने इसका ही उदाहरण देते हुए कहा, ‘ये खोज बताती है कि हमारे सौरमंडल के खगोलीय संयोग- एक सूर्य, पृथ्वी और सूर्य के बीच में उचित दूरी और सोलर मास, सबूत के तौर पर ये मानने के लिए नाकाफी हैं कि पृथ्वी को इतनी सावधानी से इंसानों को खुश करने के लिए बनाया गया था।’ उन्होंने सृष्टि के निर्माण के लिए गुरुत्वाकर्षण के नियम को श्रेय दिया। हॉकिंग कहते हैं, ‘गुरुत्वाकर्षण वह नियम है, जिसकी वजह से ब्र�ांड अपने आपको शून्य से एक बार फिर शुरू

कर सकता है और करेगा भी। ये अचानक होने वाली खगोलीय घटनाएं हमारे अस्तित्व के लिए जिम्मेदार हैं। ऐसे में ब्र�ांड को चलाने के लिए भगवान की जरूरत नहीं है।’ हॉकिंग को इस बयान के लिए ईसाई धर्म गुरुओं की ओर से विरोध का सामना करना पड़ा।

चौंकाने वाला एलान किया था। उन्होंने कहा था, ‘मुझे विश्वास है कि इंसानों को अपने अंत से बचने के लिए पृथ्वी छोड़कर किसी दूसरे ग्रह को अपनाना चाहिए और इंसानों को अपना वजूद बचाने के लिए अगले 100 सालों में वो तैयारी पूरी करनी चाहिए जिससे पृथ्वी को छोड़ा जा सके।’

स्टीफन हॉकिंग ने दुनिया के सामने ब्र�ांड में एलियनों के अस्तित्व को लेकर कड़ी चेतावनी दी थी। उन्होंने अपने लैक्चर 'लाइफ इन द यूनिवर्स' में भविष्य में इंसानों और एलियन के बीच मुलाकात को लेकर अपनी राय रखी थी। भौतिक शास्त्र के इन महान वैज्ञानिक ने कहा था, ‘अगर पृथ्वी पर जीवन के पैदा होने का समय सही है तो ब्र�ांड में ऐसे तमाम तारे होने चाहिए जहां पर जीवन होगा। इनमें से कुछ तारामंडल धरती के बनने से 5 बिलियन साल पहले पैदा हो चुके होंगे।’ इस सवाल पर कि ऐसे में गैलेक्सी में मशीनी और जैविक जीवन के प्रमाण तैरते क्यों नहीं दिख रहे हैं। अब तक कोई पृथ्वी पर कोई क्यों नहीं आया और इस पर कब्जा क्यों नहीं किया गया, हॉकिंग ने कहा, ‘मैं ये नहीं मानता कि यूएफओ में आउटर स्पेस के एलियन होते हैं। मैं सोचता हूं कि एलियन का पृथ्वी पर आगमन खुल्लमखुल्ला होगा और शायद हमारे लिए ये अच्छा नहीं होगा।’

भारत के प्रसिद्ध वैज्ञानिक डॉ. जयंत विष्णु नार्लीकर ने कैंब्रिज यूनिवर्सिटी में हॉकिंग के साथ पढ़ाई की थी। इसके बाद साइंस से संबंधित कई ग्लोबल सम्मेलनों में दोनों की मुलाक़ात होती रही। डॉ. नार्लीकर के अनुसार, ‘कॉलेज के दिनों में वो स्टीफन हॉकिंग के साथ टेबल टेनिस के मैच भी खेल चुके हैं।’ कॉलेज की उन यादों पर उन्होंने कई दिलचस्प जानकारियां हॉकिंग के बारे में दी। उन्होंने बताया कि वे मुझसे साल दो साल जूनियर ही थे। वो बाकी आम स्टूडेंट्स की तरह ही थे। उस वक़्त कोई उनकी प्रतिभा के बारे में नहीं जानता था। लेकिन कुछ सालों के भीतर ही लोगों को ये अंदाजा हो गया था कि स्टीफन में कुछ खास बात है।

ब्र�ांड और एलियन

चौंकाने वाला एेलान

हॉकिंग ने पृथ्वी पर इंसानियत के भविष्य को लेकर

नार्लीकर की स्मृति में हॉकिंग

कैंब्रिज में हॉकिंग

डॉ. नार्लीकर के शब्दों में, ‘मुझे याद है कि ब्रिटेन की रॉयल ग्रीनविच शोध विद्यालय ने साल 1961 में एक साइंस सम्मेलन आयोजित किया था। वहां स्टीफन हॉकिंग से पहली बार मेरी सीधी मुलाकात हुई थी। उस वक्त वह ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी में पढ़ रहे थे। मैं एक छात्र ही था, लेकिन मुझे वहां

हॉकिंग ने अपनी किताब 'द ग्रांड डिजाइन' में भगवान के अस्तित्व को सिरे से नकारा है। उन्होंने एक नए ग्रह की खोज के बारे में बात करते हुए हमारे सौरमंडल के खास समीकरण और भगवान के अस्तित्व पर सवाल उठाया

एक लेक्चर देने के लिए बुलाया गया था। लेक्चर शुरू होने के कुछ देर बाद ही मैंने पाया कि एक स्टूडेंट है जो बहुत ज़्यादा सवाल कर रहा है। वो थे स्टीफन हॉकिंग। उन्होंने मुझ पर सवालों की बौछार कर दी थी। वो ब्र�ांड के विस्तार के बारे में जानना चाहते थे. वो जानना चाहते थे कि बिग बैंग थियोरी है क्या?’ हॉकिंग पीएचडी करने के लिए कैंब्रिज यूनिवर्सिटी गए थे। उस वक्त तक लोगों को समझ आ चुका था कि हॉकिंग के मस्तिष्क की क्षमता कितनी है। उनकी पीएचडी की थीसिस पढ़कर सब हैरान रह गए थे। अपनी थीसिस में ब्र�ांड के विस्तार के बारे में उन्होंने कई बेहद दिलचस्प बातें लिखी थीं। उन्होंने कैंब्रिज यूनिवर्सिटी में बतौर प्रोफेसर करीब 30 साल काम किया। ब्लैक होल पर उनकी रिसर्च को सबसे ज़्यादा पहचान मिली।

डायलॉग पर यकीन

उनकी सबसे अच्छी बात थी कि वे डायलॉग में विश्वास करते थे। बहस करना उनकी आदत में शामिल नहीं था। डॉ. नार्लीकर बताते हैं कि कैंब्रिज में उनके साथ मैंने विज्ञान के कई सिद्धांतों पर कई बार चर्चा की, लेकिन कभी हमारे बीच गर्म बहस नहीं हुई. हमने हमेशा एक दूसरे से सीखा ही। अपनी बीमारी की वजह से बीते कई सालों से स्टीफनलेक्चर नहीं दे पा रहे थे, लेकिन लोगों की जिज्ञासाओं और उनके सवालों के जवाब वे कई माध्यमों से देते रहे।’ हॉकिंग इस बात को जोर देकर कहते थे कि दुनिया किसी ईश्वर के इशारे पर नहीं चलती। भगवान कुछ नहीं है और संभावना है कि इस विश्व के अलावा भी कोई दुनिया हो। लोगों को हमेशा ये उनकी कल्पना ही लगी। स्टीफन के पास भी इसे साबित करने के लिए कोई पुख्ता सबूत नहीं थे। लेकिन उन्होंने अंत तक इसे साबित करने की कोशिश की। उनकी इस ललक का सम्मान किया जाना चाहिए।


16 खुला मंच

19 - 25 मार्च 2018

हो सकता है आप कभी न जान सकें कि आपके काम का क्या परिणाम हुआ, लेकिन यदि आप कुछ करेंगे नहीं तो कोई परिणाम हीं होगा

- महात्मा गांधी

प्रियंका तिवारी

अभिमत

लेखिका युवा पत्रकार हैं और देश-समाज से जुड़े मुद्दों पर प्रखरता से अपने विचार रखती हैं

बिन पानी सब सून

जल विज्ञान के विशेषज्ञ भारतवर्ष के जल चक्र की स्थिति पर हमें आगाह कर रहे हैं। हमें देश में नए शहरों को बसाने की इच्छा या तमन्ना को लेकर भी विवेकपूर्ण तरीके से​े सोचना होगा

रोजगार की बहार

देश की 55 प्रतिशत कंपनियों ने माना है कि वे अगले 12 महीनों में काफी नियुक्तियां करने जा रहे हैं

रोजगार के कई देशनएमेंअवसर खुले हैं

और आने वाले दिनों में ये मौके और बढ़ेंगे। रोजगार के हिसाब से नया वित्त वर्ष खुशखबरी लेकर आने वाला है। वित्त वर्ष 2018-19 के दौरान देश में नौकरियों की बहार होगी और हायरिंग 15-20 प्रतिशत बढ़ सकती है। जॉब मार्केट को लेकर हुए कई सर्वेक्षण और रिपोर्ट्स में रोजगार के प्रति सकारात्मक संकेत दिख चुके हैं। रिक्रूटमेंट फर्मों का अनुमान है कि बिजनेस आउटलुक बेहतर होने और जीडीपी विकास के चलते उद्योग जगत का आत्मविश्वास बढ़ने से ऐसा होगा। केली सर्विसेज, टीमलीज सर्विसेज, पीपलस्ट्रॉन्ग, आइकिया ह्यूमन कैपिटल सॉल्यूशंस और नौकरी सहित अन्य रिक्रूटमेंट और स्टाफिंग फर्मों ने कहा कि उन्हें सालभर पहले के मुकाबले हायरिंग बढ़ने के आसार हैं। हाल ही में विभिन्न क्षेत्रों की 791 कंपनियों के बीच किए गए मर्कर के इंडिया टोटल रिम्युनरेशन सर्वे के अनुसार 55 प्रतिशत कंपनियों ने माना कि वह अगले 12 महीनों में काफी नियुक्तियां करने जा रहे हैं। मर्कर के भारतीय कारोबार में प्रतिभा कंसल्टिंग और सूचना समाधान की प्रमुख शांति नरेश ने कहा कि भारतीय उद्योग में दोहरे अंक की वृद्धि जारी रहने की संभावना है। इस कारण देश में सकारात्मक आर्थिक माहौल है जिससे कंपनियों की नियुक्तियों में भी बढ़ोत्तरी होने की उम्मीद है। सरकार की मुद्रा योजना, कौशल विकास योजना, डिजिटल इंडिया और स्टार्टअप जैसी योजनाओं से युवाओं को रोजगार के हजारों उपलब्ध हो रहे हैं। रेलवे ने लोको पायलट और टेक्नीशियन समेत निचले स्तर के करीब 90 हजार पदों के लिए आवेदन मंगाया है। अच्छी बात यह है कि सरकार देश में पहली बार एक राष्ट्रीय रोजगार नीति बना रही है। रोजगार नीति आने से देश में प्रत्येक साल एक करोड़ रोजगार सृजन का रास्ता साफ हो जाएगा।

टॉवर

(उत्तर प्रदेश)

विश्व जल संरक्षण दिवस (22 मार्च) पर विशेष

द्योगिक क्रांति के बाद विकास के जितने भी चरण आएं हैं, उसमें पृथ्वी और प्रकृति पर विकास की गहरी मार झेलनी पड़ी है। सबने उसका एक साधन के तौर पर इस्तेमाल किया, नतीजतन उसकी अपनी स्वाभाविकता और संतुलन बिगड़ता चला गया। लिहाजा, बेमौसम बारिश, बारिश के दिनों में पानी कम गिरना और इन आपदाओं की आवृति दशक-दर-दशक बढ़ना प्रत्यक्ष रूप से नई जरूर है, लेकिन विशेषज्ञों ने दशकों पहले इसके बारे में आगाह करना शुरू कर दिया था। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर 80 और 90 के दशकों में कई गंभीर विमर्श इन संकटों को लेकर हो चुके हैं। हालांकि जलवायु परिवर्तन के नाम से जब भी इस संकट पर बात हुई वह भूताप] यानी ग्लोबल वार्मिंग के इर्द-गिर्द घूमती रही और इस तरह भूताप का मसला कार्बन उत्सर्जन करने वाले उद्यमों-उपक्रमों पर चिंता जताने के आगे ज्यादा नहीं बढ़ पाया। वैज्ञानिक अध्ययनों से निकले तथ्य बताते हैं कि पृथ्वी की रचना के साढ़े चार अरब साल का इतिहास उथलपुथल भरा रहा है। पृथ्वी के बड़े परिवर्तनों में संयोग रहा हो या अनुकूलन लायक परिस्थितियों से तालमेल बिठाने का मानवीय कौशल, पृथ्वी पर मानव की विकास यात्रा जारी रही। बीसवें सदी के अंत में हमारे संज्ञान में आया कि पृथ्वी का विकासक्रम कुछ नई चुनौतियां खड़ी कर गया है। उन्हीं में एक जलवायु परिवर्तन की विकट चुनौती है। जलवायु परिवर्तन के क्रमिक इतिहास पर गौर करें तो भूताप में परिवर्तन के कारण ग्लेशियरों के बनने-बिगड़ने की कहानी 54 करोड़ साल पीछे जाती है। तब से आज तक ग्लेशियर

साइकिल के कई दौर हुए हैं। इनमें सबसे नया अब से एक लाख बीस हजार साल पहले से लेकर अब से साढ़े ग्यारह हजार साल पहले का है। भूगर्भशास्त्री इसे जलवायु के इंटरग्लेशियर साइकिल के नाम से पढ़ते-पढ़ाते हैं। उनका अनुमान है कि पिछले बारह हजार साल पहले शुरू हुए होलोसीन दौर के बिल्कुल आखिरी दौर में यह पृथ्वी है। कुछ ही सदियों में यह चक्र भी पूरा होने को है। वैज्ञानिक तथ्यों के आधार पर उनका यह भी पूर्वानुमान है कि मौजूदा चक्र पूरा होने के बाद फिर हिमयुग की परिस्थितियां बनेंगी और यह भावी युग मौजूदा चक्र से काफी लंबा होगा बशर्ते मनुष्य उसमें दखलअंदाजी न करें। यानी हम पृथ्वीवासी इंटरग्लेशियर चक्र के अंतिम दौर में हैं और मौजूदा होलोसीन काल पृथ्वी के क्रमिक रूप से तप्त होने का दौर है। उम्र के लिहाज से हिमालय का कुछ नया या किशोर होना और अपनी रचना की प्रक्रिया के दौर से गुजरना इसके महत्व को ज्यादा ही बढ़ा देता है। फिर भारतवर्ष के लिए तो हिमालय प्रकृति की बड़ी कृपापूर्ण देन है। पृथ्वी पर मानव रूप के उद्गम से कोई बीस लाख साल बाद अस्तित्व में आया हिमालय वही है, जहां के ग्लेशियरों से गंगा और यमुना नदियां निकलती हैं। देश के आधे से ज्यादा भूभाग पर हुई बारिश का पानी ये नदियां ही धारण करती हैं। हिमालय के विकास की प्रक्रिया अभी जारी है हिमालय की भूआकृति बदल रही है। उसके भूदृश्य बार-बार नए आकार ले रहे हैं। उन्हीं के चलते जलवायु में बदलाव हो रहे हैं। इनमें एक खास बदलाव यह देखा गया है कि हिमालय

2030 तक औसत तापमान वृद्धि की दर 0.9 डिग्री सेल्सियस से बढ़कर 2.6 डिग्री सेल्सियस हो जाएगी। यह संकट मुख्य रूप से उत्तर भारत और हिमालयी क्षेत्र मे होगा


19 - 25 मार्च 2018 पर हिमपात की बजाय बारिश बढ़ रही है, स्थिति यह है कि काफी ऊंचाई पर भी बारिश होने लगी है। नतीजतन ग्लेशियरों का पिघलना भी बढ़ गया है। पिछले दशकों में हिमालय में आंधी के साथ भारी बारिश और बादल फटने की आवृत्तियां बढ़ने की घटनाएं दर्ज हुई हैं। इसका एक बड़ा कारण भूताप में बढ़ोत्तरी को माना गया है। जलवायु परिवर्तन के कारण बेमौसम बारिश और औसत बारिश का आंकड़ा बढ़ना एक समस्या है, लेकिन उतना ही बड़ा संकट सूखे का है जो जलवायु परिवर्तन के कारण ही भारत के कई भागों को चिंतित करता है। सूखा या देर से बारिश से तीसरी समस्या भूजल स्तर में गिरावट की खड़ी होती है। देश के सतही जल की मात्रा प्रति व्यक्ति मांग के लिहाज से जिस रफ्तार से कम हो रही है उसे भूजल से ही हम जैसे-तैसे संभाले हुए है। हमें देश में नए शहरों को बसाने की इच्छा या तमन्ना को लेकर भी ये विशेषज्ञ आगाह कर रहे हैं। हाल ही में किए गए अध्ययनों से यह भी पता चला है कि गर्म हवाओं की अवधि ज्यादा हो गई है। दिन ज्यादा गर्म होने लगे हैं। रात का औसत तापमान भी कुछ बढ़ गया है। लगे हाथ यहां हमें 2008 की आईपीसीसी की उस रिपोर्ट का जिक्र भी कर लेना चाहिए, जिसके मुताबिक मानसून के दिनों में कम बारिश और भूताप की प्रवृत्ति के कारण दक्षिण एशियाई देशों के दलदली इलाके सूखते जाने की बात है। इन्हीं निरंतर बदलावों के आधार पर अनुमान लगाया गया है कि 2030 तक औसत तापमान वृद्धि की दर 0.9 डिग्री सेल्सियस से बढ़कर 2.6 डिग्री सेल्सियस हो जाएगी। यह संकट मुख्य रूप से उत्तर भारत और हिमालयी क्षेत्र में होगा। निष्कर्ष यह निकलता है कि जलवायु बदलाव से प्रभावित होने वाले क्षेत्रों में हिमालय क्षेत्र ही संकट की सबसे ज्यादा चपेट में है इसका कारण वैज्ञानिक यह बताते है कि हिमालय भू-पारिस्थितिकीय रूप से भंगुर है। दूसरा प्रमुख कारण हिमालय क्षेत्र में बहुत ही तेजी से बढ़ती आबादी को सिद्ध किया गया है। 1991 से 2001 के बीच यहां की आबादी 25 फीसद बढ़ी, जबकि 2001 से 2006 के बीच यानी पांच साल में ही यह आंकड़ा 20 फीसद बढ़ गया। यानी हिमालय क्षेत्र में जनसंख्या वृद्धि का आंकड़ा 4 फीसद प्रतिवर्ष बैठता है। जनसंख्या वृद्धि का सीधा प्रभाव भूक्षरण और भूजल प्रदूषण पर पड़ रहा है। जल विज्ञान के विशेषज्ञ भारतवर्ष के जल चक्र की स्थिति पर हमें अलग से आगाह कर रहे हैं। हमें देश में नए शहरों को बसाने की इच्छा या तमन्ना को लेकर भी ये विशेषज्ञ आगाह कर रहे हैं। वे बता रहे हैं कि पृथ्वी पर जल संकट तो आसन्न है ही लेकिन भारतवर्ष तो पृथ्वी के उन देशों में है जो जल विपन्न देश की श्रेणी में आता है। ऊपर से जलवायु परिवर्तन के कारण सूखे की तीव्रता और बढ़ने का अंदेशा हमारे सामने है। आजादी के बाद से अब तक हमारी आबादी तीन गुनी हो चुकी है। भारत के पास प्रकृति प्रदत्त जल उतना ही है जितना 65 साल पहले था। दक्ष जल प्रबंधन और अपनी राजनीतिक सूझबूझ से जल प्रबंधन करते हुए हम यहां तक तो आ गए हैं, लेकिन निकट भविष्य में जल संसाधन और बाढ़ व सूखे जैसे संकटों से निपटने का कोई विश्वसनीय उपाय या व्यवस्था अब हमें सोचनी ही पड़ेगी।

खुला मंच

17

माता अमृतानंदमयी देवी

ल​ीक से परे

आध्यात्मिक गुरु

विनाश को सृजन में बदल सकती हैं महिलाएं औरतें कमजोर नहीं हैं और उन्हें कमजोर मानना भी नहीं चाहिए। उनके स्वाभाविक करुणा और सहानुभति ू की अक्सर गलत तरीके से व्याख्या की जाती है

र युग में साहसी महिलाओं का अस्तित्व रहा है, जो क्रांति की शुरुआत करने के लिए पुरुष समाज द्वारा बनाए गए पिंजरों को तोड़कर बाहर आई हैं। भारत में ही कई साहसी महिलाएं रह चुकी हैं, जैसे- रानी पद्मावती, हाथी रानी, मीराबाई और झांसी की रानी। इनमें से कोई भी महिला कमजोर नहीं थी। ये सभी वीरता, शौर्यता और पवित्रता की अवतार थीं। इनके समान ही कई नारियों का अस्तित्व दूसरे देशों में भी रहा है। उदाहरण के तौर पर फ्लोरेंस नाइटिंगेल, जॉन ऑफ आर्क और हेरिएट टबमेन का नाम लिया जा सकता है। वास्तव में पुरुष को खुद को न तो रक्षक और न ही सजा देने वाले की स्थिति में रखना चाहिए। उनका साथ औरतों के प्रति तत्परता और ग्रहणशीलता का होना चाहिए, जिससे महिलाओं को समाज की मुख्यधारा में अगुआ की भूमिका मिल सके। कई लोग पूछते हैं, ‘इस बात के लिए पुरुषों में अहंकार कैसे आया?’ वेदांत के अनुसार इसका मुख्य कारण माया हो सकता है, लेकिन केवल आधारभूत स्तर पर। इसका कोई दूसरा स्रोत भी हो सकता है। प्राचीन समय में मानव जाति जंगलों में, गुफाओं में या पेड़ पर घर बनाकर रहते थे। चूंकि पुरुष शारीरिक रूप से महिलाओं से अधिक बलवान थे, इसीलिए शिकार और जंगली जानवरों से परिवार को बचाने की जिम्मेदारी उनकी होती थी। महिलाएं मुख्य रूप से घर पर रहकर बच्चों की

सवचछता 11

08

18 'मैं वापस जाना राहती हूं, लेनकन अपने बच्चों के पास नहीं'

पुसतक अंश

फोटो फीरर 28

राय पर ररा्ष

सुलभ : सेवा

जेंडर के 48 वर्ष

दुननया की छत पर सवचछता

harat.com

sulabhswachhb

वर्ष-2 | अंक-13 | 12 आरएनआई नंबर-DELHIN

/2016/71597

- 18 मार्ष 2018

मक संवाद

नवश्व शांनत का आधयात् मौलाना वहीदुद्ीन खान

ज्ान लगता है नक आधयात्मक लोगचों में शानमल हैं, नजनहें आनंद और हमारे आज दुननया के उन कुछ मौलाना वहीदुद्ीन खान ऐसी दरकार जो हमें आत्मक दरकार का नाम है। एक हमारे समय की सबसे बडी और करुणा से भर देगा बययूरो बाहर की दुननया को प्ेम

मौ

एसएसबी

शुमार उन लाना वहीदुद्ीन खान का होता है, जो कुछ भारतीय उलेमाओं में र-सामुदाययक बहुलतावाद और अंत देते हैं। इसलाम को संबंधों पर सबसे जयादा जोर एक सतर पर खासी लेकर उनकी समझ जहां और नकारातमक अकादयमक है, वहीं वे यववादों ी परंपराओं की जुड रूय़ियों से आगे धम्म और उससे जाने की वकालत करते वयाखया करते हैं, उनहें माने दुओं और मुसलमानों के हैं। उनहोंने खास तौर पर यहं के कारण पैदा बीच धायम्मक-सांसककृयतक टकरावों की कोयशश हुए पाटने हुई दूररयों को यह कहते के बीच सैकडों वर्मों की है, इन दोनों महान धममों रहा है। इन दोनों ही से मेल-यमलाप और समनवय

खास बातें

मौलाना को इसलाम के साथ है धममों का भी तात्वक ज्ान

अनय

दानयक बहुलतावाद और अंतर-सामु संबंधचों पर सबसे जयादा जोर ड

मौलाना के प्शंसकचों में नवल्फ्े कांटवेल तसमथ शानमल

देखभाल और घर के काम-काज करती थीं। पुरुष घर पर भोजन और पहनने के लिए जानवर की खाल लाते थे। इस अनुसार उन्होंने खुद ही यह विचारधारा विकसित कर ली कि जीविका के लिए औरतें उनपर निर्भर हैं। इस तरह से औरतों ने भी पुरुषों को अपने रक्षक की तरह देखना शुरू कर दिया। शायद इसी तरह इस अहंकार का विकास हुआ होगा। औरतें कमजोर नहीं हैं और उन्हें कमजोर मानना भी नहीं चाहिए। उनके स्वाभाविक करुणा और सहानुभूति की अक्सर गलत तरीके से व्याख्या की जाती है और इसे उनकी कमजोरी समझा जाता है। अगर औरतें अपने भीतर की ताकत को समेट लें तो वो एक पुरुष से भी ज्यादा है। अगर हम अपनी आंतरिक शक्ति को अपने पक्ष में कर लें तो यह संसार स्वर्ग बन सकता है। युद्ध, संघर्ष और आतंकवाद समाप्त हो जाएगा। यह कहने की

आवश्यकता नहीं है कि प्यार और करुणा जीवन का एक अभिन्न अंग बन जाएगा। एक बार एक अफ्रीकी देश में युद्ध की घटना हुई। इस युद्ध में अनगिनत पुरुष मारे गए। औरतों की आबादी 70 प्रतिशत हो गई, लेकिन इस नुकसान से उन्होंने अपनी हिम्मत नहीं खोई। वो मिलकर एक हो गईं। व्यक्तिगत स्तर पर और समूह में उन्होंने छोटा-छोटा व्यापार करना शुरू कर दिया। उन्होंने अपने बच्चों और अनाथ बच्चों दोनों का पालन-पोषण करना शुरू कर दिया। जल्द ही उन्होंने खुद की स्थिति को सशक्त और बेहतर पाया। यह प्रमाणित करता है कि महिलाएं विनाश को पलट सकती हैं और गंभीरता के साथ विचार कर एक शक्ति बन सकती हैं। इस तरह की घटना के कारण ही लोग यह निष्कर्ष निकालते हैं, ‘अगर औरतें शासन करती हैं तो कई लड़ाइयों और दंगों को टाला जा सकता है।’ अगर औरतें एकजुट हो जाएं तो एक साथ मिलकर वो कई आश्चर्यजनक बदलाव इस समाज में ला सकती हैं। लेकिन पुरुषों को भी उन्हें एक साथ लाने के लिए प्रोत्साहित करना होगा। समाज को बचाने के लिए औरतों और पुरुषों को अपना हाथ मिलाना होगा, केवल तभी आने वाली पीढ़ी एक बड़ी आपदा से बच पाएगी। अगर वो हाथ मिलाते हैं तो इससे समाज और दुनिया की तरक्की होगी। हम सबों को इस लक्ष्य को पाने के लिए काम करना चाहिए।

सुलभ को बधाई!

विधवा माताओं की मदद

अवनीश कुमार समस्तीपुर, बिहार

शिशिर सिन्हा शकरपुर, नई दिल्ली

समाज में निचले तबके और हीन भावना से देखे जाने वाले लोगों के लिए पिछले कई दशको से निरंतर, अनवरत काम कर रहे सुलभ को 48 वें स्थापना दिवस की बधाई। सुलभ ने हम सब की जिंदगियों पर प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से प्रभाव डाला है। आज भी यदि आप किसी शहर-कस्बे के किसी सार्वजनिक स्थान पर हों और आपको अचानक टॉयलेट जाना पड़ जाएं तो सुलभ ही याद आता है। समाज में सुलभ के किए गए कई बड़े कार्यों में से आम आदमी के लिए यह बहुत बड़ा कार्य हैं, जिसने स्वच्छता के साथ लोगों को कई दूसरी सहूलियतें भी दी हैं।

हमारी सामाजिक परंपराओं में आज भी कई रूढ़ियां हैं। रूढ़ियों की इन बेड़ियों से विवाह संस्था भी मुक्त नहीं है। देश में विधवाओं की स्थिति देखें तो यह बात ज्यादा समझ में आती है। उनकी दुर्दशा पर समाज का भी कम ही ध्यान जाता है। ‘सुलभ स्वच्छ भारत’ को पढ़कर जाना कि सुलभ ने इस दिशा में बड़ा कार्य किया है। वृंदावन में विधवाओं की सुलभ जिस तरह मदद कर रहा है और इससे वहां विधवा माताओं की जिंदगी में जिस तरह उत्साह का संचार हुआ है, वह सराहनीय है।


18

फोटो फीचर

19 - 25 मार्च 2018

बापू के साकार होते सपने

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के संबोधन से लेकर आचरण तक पर महात्मा गांधी का प्रभाव स्पष्ट दिखाई पड़ता है। गांधी जी की तरह वे भी स्वच्छता और गांवों के विकास पर जोर देते हैं

सार्वजनिक सभा में महात्मा गांधी

2017 में वाराणसी, उत्तर प्रदेश में गांवों के पंचायत प्रतिनिधियों के साथ हल्के क्षणों में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी

चंपारण सत्याग्रह के शताब्दी समारोह के अवसर पर आयोजित प्रदर्शनी में राष्ट्रपिता को श्रद्धांजलि देते प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी नई दिल्ली में स्वच्छ भारत मिशन की घोषणा करते प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी


19 - 25 मार्च 2018

लंदन के दौरे के दौरान पौधारोपण करते महात्मा गांधी

फोटो फीचर

19

वाराणसी के अस्सी घाट पर सफाई अभियान में शरीक होते प्रधानमंत्री मोदी

झारखंड के रामगढ़ में एक आदिवासी महिला द्वारा हाथ से काता कपड़ा महात्मा गांधी को भेंट

विशाखापत्तनम में प्रधानमंत्री को खादी का स्मृति चिन्ह प्रस्तुत करती एक महिला बुनकर

लंदन में महात्मा गांधी के अभिवादन के लिए जुटी भारी भीड़

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का 2015 में चीन में भव्य स्वागत


20

स्वच्छता

19 - 25 मार्च 2018

स्वच्छता की प्रतीक्षा में नाइजीरिया

सबसे ज्यादा आबादी वाला अफ्रीकी देश नाइजीरिया शौचालयों की कमी की दृष्टि से पूरी दुनिया में तीसरे नंबर पर आता है। गरीबी और जल संकट ने वहां स्वच्छता के संकट को और बढ़ा दिया है

एसएसबी ब्यूरो

व उदारवाद और नई तकनीक के साथ लोकंतंत्र को लेकर प्रकट हुई वैश्विक ललक के बीच तीसरी दुनिया के देशों की स्थिति क्या है, यह समझना हो तो जिस देश को केस स्टडी के लिहाज से देखना सबसे सही होगा, वह है अफ्रीकी देश नाइजीरिया। नाइजीरिया अफ्रीका का सबसे अधिक जनसंख्या वाला देश है। इसकी आबादी 17 करोड़ से अधिक है। दूसरे नंबर पर मिस्र है, जिसकी आबादी साढ़े आठ करोड़ है। अफ्रीका में कम से कम 3000 जनजातीय समूह (कबीले) हैं। अकेले नाइजीरिया में ऐसे कबीलों की संख्या 370 से अधिक है।

भौगोलिक- सामाजिक स्थिति

फेडरल रिपब्लिक ऑफ नाइजीरिया या नाइजीरिया संघीय गणराज्य पश्चिम अफ्रीका का एक प्रमुख देश है। पूरे अफ्रीका महाद्वीप में इस देश की आबादी सबसे अधिक है। इसकी सीमाएं पश्चिम में

खास बातें नाइजीरिया में जनजातीय कबीलों की संख्या 370 से अधिक है नाइजीरिया में 39 फीसदी लोग खुले में शौच जाने को मजबूर हैं शौचालयों की कमी की दृष्टि से नाइजीरिया विश्व में तीसरे नंबर पर बेनीन, पूर्व में चाड, उत्तर में कैमरून और दक्षिण में गुयाना की खाड़ी से लगती हैं। इस देश के बड़े शहरों में राजधानी अबुजा, भूतपूर्व राजधानी लागोस के अलावा इबादान, कानो, जोस और बेनिन शहर शामिल हैं। मौजूदा सामाजिक और सांस्कृतिक

डब्ल्यूएचओ के आंकड़े कहते हैं कि इंडोनेशिया, पाकिस्तान, इथियोपिया, नाइजीरिया, सूडान, नेपाल, चीन, बुर्किना फासो, मोजांबिक और कंबोडिया जैसे देशों में लाखों लोग खुले में शौच करने के आदी हैं

परिप्रेक्ष्य में नाइजीरिया में महिलाओं और स्वच्छता की स्थिति सबसे खराब है। यह स्थिति इतनी खराब है कि संयुक्त राष्ट्र की विभिन्न संस्थाएं इस बारे में गंभीर प्रयास की वकालत बीते कई दशकों से कर रही हैं।

खुले में शौच करने के आदी

विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के आंकड़े कहते हैं कि इंडोनेशिया, पाकिस्तान, इथियोपिया, नाइजीरिया, सूडान, नेपाल, चीन, बुर्किना फासो, मोजांबिक और कंबोडिया जैसे देशों में लाखों लोग

खुले में शौच करने के आदी हैं। वैसे देशों की इस सूची में भारत का नाम भी शामिल है, पर 2014 के बाद से स्वच्छता जिस तरह भारत में सरकार और समाज दोनों का प्राइम एजेंडा बन गया है, उससे यहां हालात बहुत तेजी से बदले हैं।

महिलाओं पर असर

डब्ल्यूएचओ और यूनिसेफ ने इस बारे में कई बार आगाह किया है कि महिलाअों की स्थिति में सुधार का कदम तब तक सार्थक नहीं हो सकता, जब तक उनके लिए स्वच्छता और स्वास्थ्य


19 - 25 मार्च 2018

21

स्वच्छता

जल संकट ने नाइजीरिया के परंपरागत जनजातीय समाज के पूरे जीवन चक्र को तबाह करके रख दिया है। यहां स्वच्छता की चुनौती पर खरा तभी उतरा जा सकता है, जब लोगों की गरीबी के साथ जल संकट के बारे में कोई बड़ी पहल हो पहले नाइजीरिया ने खाद्य असुरक्षा दोसाल का संकेत देते हुए बोर्नो प्रदेश में ‘पोषण

आपातकाल’ घोषित किया और बताया कि इस क्षेत्र में रोजाना 80 बच्चों को जान से हाथ धोना पड़ रहा है। इस घोषणा ने दुनिया का ध्यान अपनी तरफ खींचा। पश्चिमी अफ्रीका में काम कर रहे दर्जन से ज्यादा मानवीय संगठनों ने संयुक्त बयान जारी करते हुए कहा कि जिहादी संगठन बोको हराम के साथ चल रहे संघर्ष के कारण 60 लाख से ज्यादा लोगों को इस क्षेत्र में गंभीर रूप से भुखमरी का सामना करना पड़ रहा है। गत वर्ष जनवरी में संयुक्त राष्ट्र के आपातकालीन राहत समन्वयक स्टीफन ओ’ ब्रायन ने सुरक्षा परिषद को सूचित किया कि पूर्वोत्तर नाइजीरिया, कैमरून, चाड और नाइजर के हिस्सों में बोको हराम के हिंसक और अमानवीय अभियान की वजह से मानवीय संकट गहरा होता जा रहा है।

‘मरु उद्यान’

दरअसल संकट की जड़ें जल संकट से जुड़ी हैं। सहारा रेगिस्तान के दक्षिणी किनारे पर स्थित चाड झील, इसके अर्द्ध शुष्क बेसिन में रहने वाले तीन करोड़ लोगों के लिए किसी मरु उद्यान की तरह है। यहां की हवा धूल भरी, भीषण और गर्म है। रेत के टीले और विरल वनस्पति इस इलाके की पहचान हैं। 1964 में जब झील के संरक्षण, प्रबंधन और तटीय देशों के बीच संसाधनों को साझा करने के लिए चाड झील बेसिन कमीशन स्थापित किया गया था, तब झील का पानी 26 हजार वर्ग किलोमीटर में फैला हुआ था। यानी दिल्ली से 22 गुना बड़ा क्षेत्र, जिसमें अफ्रीका की 8 प्रतिशत भूमि समाहित थी। यह झील आठ देशों के लोगों की आजीविका का आधार रही है जिनमें चाड, नाइजीरिया, अल्जीरिया, लीबिया, मध्य अफ्रीकी गणराज्य और सूडान शामिल हैं। लेकिन पिछले करीब 50 सालों में यह झील 90 प्रतिशत से अधिक सिमट चुकी है। अब जो बचा है वह तालाब और पोखरा से ज्यादा कुछ भी नहीं, जो 1500 वर्ग किलोमीटर में फैला है। इस स्थिति को खाद्य और कृषि संगठन ने पारिस्थितिकीय आपदा कहा है और आशंका जताई है कि सदी के

अंत तक यह झील विलुप्त हो सकती है।

झील पर मानवीय दबाव बढ़ा

अगस्त 2011 में ‘आईओपी साइंस’ जर्नल में प्रकाशित एक रिपोर्ट बताती है कि 1990 में शायद यह झील ज्यादा बारिश की वजह से उबर सकती थी, लेकिन ऐसा नहीं हो पाया। ब्रिटेन के लीड्स विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं ने 2014 में प्रकाशित अपने अध्ययन में बताया कि जहां एक तरफ भयानक सूखे और पानी की कमी की वजह से झील पर मानवीय दबाव बढ़ा है, वहीं दूसरी ओर तटवर्ती देश मौजूदा जल-समझौतों का पालन या ‘एलसीबीसी’ के साथ विचार-विमर्श किए बिना नदियों पर बांध बनाने का एकतरफा निर्णय लेते रहे और झील तक पानी पहुंचाने वाली नदियों का रुख मोड़ते रहे। नाइजीरिया ने तीन बांधों का निर्माण किया है और कोमाडूगू-योब नदी प्रवाह पर चौथा बांध बनाने की योजना है। इस नदी प्रणाली से झील को 2.5 प्रतिशत पानी मिलता है। झील की घटती तटरेखा इसके बेसिन में रह रहे लोगों को गम्भीर रूप से प्रभावित करते हुए खाद्य असुरक्षा शरणार्थियों में तो बदल ही रही है, उन्हें स्वच्छता की कोताही के कारण पैदा होने वाली समस्याएं भी लगातार अपनी चपेट में ले रही है। पूरी दुनिया में अस्वच्छता के कारण बीमार

स्वच्छता के आगे जल संकट

होने वाली महिलाओं और बच्चों की गिनती सबसे ज्यादा नाइजीरिया सरीखे अफ्रीकी मुल्क में ही है।

जल संकट से बढ़ी गरीबी

पानी की कमी से गरीबी की समस्या भी स्वाभाविक तौर पर पनपती है। नाइजीरिया इसका बड़ा भुक्तभोगी है। नवंबरर 2016 में ‘एमबायो’ जर्नल में प्रकाशित लीड्स के शोधकर्ताओं की रिपोर्ट कहती है कि बेसिन की जनसंख्या में 60 प्रतिशत किसान हैं जो पैदावार में कमी की मार झेल रहे हैं। उदाहरण के तौर पर, ज्वार की पैदावार सन 1960 में 32.8 लाख टन से घटकर 2010 के बाद सिर्फ 18 लाख टन रह गई है। जीआईडब्ल्यूए की रिपोर्ट बताती है कि क्षेत्र में वर्षा की कमी ने किसानों को सीधे तौर पर प्रभावित किया है, क्योंकि बेसिन में उगने वाली 95 फीसदी से अधिक फसलें परंपरागत और वर्षा आधारित हैं। नाइजीरिया के ‘नेशनल इंस्टीट्यूट फॉर फ्रेशवॉटर फिशरीज रिसर्च’ के एक अधिकारी सोलोमन आई ओवी का कहना है कि चाड झील का मछलीपालन अफ्रीका में सबसे बड़ा और सबसे उत्पादक मछली पालन है। इसके जरिए परम्परागत रूप से क्षेत्र के निवासियों को आय और खाद्य सुरक्षा मिल रही है। लेकिन उनका उत्पादन घटकर एक लाख टन रह गया है जो

सहारा रेगिस्तान के दक्षिणी किनारे पर स्थित चाड झील, इसके अर्द्ध शुष्क बेसिन में रहने वाले तीन करोड़ लोगों के लिए किसी ‘मरु उद्यान’ की तरह है। यहां की हवा धूल भरी, भीषण और गर्म है। रेत के टीले और विरल वनस्पति इस इलाके की पहचान हैं

1974 में 2.20 लाख टन था।

आजीविका पर मार

लीड्स का 2014 का अध्ययन चाड झील में बचे पानी और संसाधनों के आस-पास संघर्षों का विश्लेषण करता है। 1980 से 1994 के बीच लगभग 60 हजार नाइजीरियाई लोगों ने झील के घटते पानी का पीछा करते हुए बेसिन की कैमरून सीमा तक मछली पकड़ने के साथ फसलों की पैदावार और जानवर पालने का काम किया, जिससे समुदायों के बीच शत्रुता बढ़ी। 1983 में झील में द्वीपों के स्वामित्व को लेकर चाड और नाइजीरिया के बीच खूनी संघर्ष हुआ। 1980 में कोमाडुबू-योबे नदी प्रणाली के प्रवाह को लेकर नाइजीरिया और नाइजर में लड़ाई हुई। 1992 में झील के दक्षिणी-पश्चिमी किनारे पर बने टीगा और चलावा बांध से पानी के उपयोग को लेकर नाइजीरिया के ऊपरी और नाइजर के निचले समुदायों के बीच संघर्ष हुआ।

स्वच्छता कार्यक्रम की मुश्किल

साफ है कि जल संकट ने खासतौर पर नाइजीरिया के परंपरागत जनजातीय समाज के पूरे जीवन चक्र को तबाह करके रख दिया है। वे या तो शरणार्थी बनने को मजबूर हैं या फिर अपनी-अपनी जगहों पर अमानवीय जीवन जीने को विवश। पानी के संकट से उनके आगे आजीविका की बड़ी चुनौती खड़ी कर दी है। यही वजह है कि एेसे लोगों और एेसे क्षेत्रों में स्वच्छता कार्यक्रम चलाना भी आसान नहीं है। यहां स्वच्छता की चुनौती पर खरा तभी उतरा जा सकता है, जब लोगों की गरीबी के साथ जल संकट के बारे में कोई बड़ी पहल हो।


22

स्वच्छता

19 - 25 मार्च 2018

अफ्रीका, स्वच्छता और गांधी

स्वच्छता, शोषण-उत्पीड़न के खिलाफ अहिंसक संघर्ष का भी बड़ा मुद्दा बन सकता है, इस प्रयोग को दक्षिण अफ्रीका में गांधी जी ने अपने प्रवास के दौरान करके दिखाया

सुदर्शन अयंगर

हली बार गांधी जी ने स्वच्छता के मसले को दक्षिण अफ्रीका में भारतीय व्यापारियों को अपने-अपने व्यापार के स्थानों को साफ रखने के संबंध में उठाया था। भारतीय और एशियाई समुदाय की ओर से एक याचिकाकर्ता के रूप में दक्षिण अफ्रीका में दी गई एक याचिका में गांधी जी ने भारतीय व्यापारियों की स्वच्छता के प्रति उनके रवैये और व्यवहार का बचाव किया और उन्होंने सभी समुदायों से सफाई रखने के लिए लगातार अपील भी की थी। लार्ड रिपन स्वच्छता मामले में एक मुद्दे को एक याचिका में इस प्रकार उठाया गया था कि ट्रांसवाल में भारतीय स्वच्छता का पालन नहीं करते हैं और यह कुछ लोगों द्वारा गलत धारणा के आधार पर बनाया था। सेवाओं की पहुंच नहीं बढ़ती है। दरअसल, इस कमी या कोताही की वजह से औरतों को इसके कारण अपमान का सामना तो करना ही पड़ता है, उन्हें यौन शोषण का भी शिकार होना पड़ता है। यूनिसेफ का ही एक आंकड़ा है जिसमें कहा गया कि तकरीबन 50 फीसदी बलात्कार के मामले तब होते हैं, जब औरतें मुंह अंधेरे शौच के लिए निकलती हैं। ऐसे दूसरे अध्ययन भी हुए हैं जिनमें कहा गया है कि जिन औरतों को घरों में शौचालयों की सुविधा नहीं मिलती, उनके यौन शोषण के शिकार होने की आशंका तब अधिक होती है जब वे पब्लिक वॉशरूम या खुले मैदान के लिए निकलती हैं।

शौचालयों की कमी

‘वाटर एड्स- स्टेट ऑफ द वर्ल्ड्स टॉयलेट्स

(गांधीजी वाङ्मय, भाग 1, पृष्ठ 204) गांधी जी यह स्थापित करना चाहते थे कि भारतीयों को व्यापार का लाइसेंस इसीलिए नहीं दिया जा रहा था क्योंकि वह अंग्रेज व्यापारियों को कड़ी टक्कर दे रहे थे। दूसरे, उन्होंने यह तर्क भी दिया कि भारतीय व्यापारी और अन्य लोग सफाई रखने के आदी होते हैं। उन्होंने म्यूनिसिपल डॉक्टर विएले का उदाहरण दिया जिन्होंने भारतीयों को सफाई के प्रति सचेत और जागरूक बताया था। डॉक्टर वियेले ने भारतीयों को धूल और लापरवाही से होने वाली बीमारियों से मुक्त बताया था। (गांधी वाङ्मय, भाग-1 1969 संस्करण पृष्ठ 215) भारतीय व्यापारियों को व्यापार का लाइसेंस देने से इंकार क्यों किया जा रहा था उस संबंध में भी याचिका में दिए गए तर्क में बताया था कि यह व्यापारिक जलन की वजह से किया गया है।

भारतीय स्वभाव से मितव्ययी और शांत होते हैं। भारतीय व्यापारी जीवन के लिए आवश्यक वस्तुओं की कीमत कम रखते थे और उन्हें सस्ते दाम में बेचते थे जिससे श्वेत व्यापारियों के साथ वह भी प्रतिस्पर्धा में आ गए थे। दरअसल, गांधी जी ने समाजशास्त्र को समझा और स्वच्छता के महत्व को समझा। पारंपरिक तौर पर सदियों से सफाई के काम में लगे लोगों को गरिमा प्रदान करने की कोशिश की। इसीलिए उन्होंने 1914 तक अपने 20 वर्षों के प्रवास के दौरान साफ-सफाई रखने पर विशेष बल दिया। गांधी जी इस बात को समझते थे कि किसी भी इलाके में बहुत अधिक भीड़भाड़ गंदगी की एक मुख्य वजह होती है। दक्षिण अफ्रीका के कुछ शहरों में विशेष इलाकों में भारतीय समुदाय के लोगों को पर्याप्त जगह और ढांचागत सुविधाएं नहीं मुहैया कराई गई थी। गांधी जी मानते थे कि उचित स्थान, मूलभूत और ढांचागत सुविधाएं और स्वच्छ वातावरण उपलब्ध कराने की जिम्मेदारी नगरपालिका की है। उन्होंने इस संबंध में जोहांसबर्ग के चिकित्सा अधिकारी को एक पत्र भी लिखा था। उन्होंने पत्र में लिखा था- ‘मैं आपको भारतीयों के रहने वाले इलाकों की स्तब्ध कर देने वाली स्थिति के बारे में लिख रहा हूं। एक कमरे में कई लोग एक साथ इस तरह ठूंस कर रहते हैं कि उनके बारे में बताना भी मुश्किल है। इन इलाकों में सफाई सेवाएं अनियमित हैं और सफाई न रखने के संबंध में बहुत से निवासियों ने मेरे कार्यालय में शिकायत करके बताया है कि अब स्थिति पहले से भी बदतर हो गई है।’ (गांधी वाङ्मय, भाग-4, पृष्ठ 129) एक बार दक्षिण अफ्रीका में काले प्लेग का प्रकोप फैला। सौभाग्य से उसके लिए भारतीय

नाइजीरिया को वैसे तो इबोला मुक्त देश घोषित कर दिया गया था लेकिन उसे भी संयुक्त राष्ट्र द्वारा चेतावनी दी गई कि खुले में शौच की समस्या पर वह काबू पाए क्योंकि शरीर से निकलने वाले स्राव से यह बीमारी फैलती है

जिम्मेदार नहीं थे। यह जोहांसबर्ग के आसपास के क्षेत्र में सोने की खादानों वाले इलाके में फैला था। गांधी जी ने अपनी पूरी शक्ति के साथ, स्वेच्छा से और स्वयं के जीवन को खतरे में डालकर रोगियों की सेवा की। नगर चिकित्सक और अधिकारियों ने गांधीजी की सेवाओं की बहुत तारीफ की। गांधी जी चाहते थे कि लोग उस घटना से सबक लें। उन्होंने एक जगह लिखा था ‘इस तरह के कठोर नियमों पर निस्संदेह हमें गुस्सा आता है। परंतु हमें इन नियमों का मानना चाहिए क्योंकि इससे हम गलती दोहराएगें नहीं। हमें स्वच्छता और सफाई का मूल्य पता होना चाहिए...गंदगी को हमें अपने बीच से हटाना होगा...क्या स्वच्छता स्वयं ईनाम नहीं है? हाल ही में जो घटना हुई है यह हमारे देशवासियों के लिए एक सबक है।’ (गांधी वाङ्मय, भाग-4 पृष्ठ 146) हालांकि स्वच्छता के बारे में दक्षिण अफ्रीका में स्वच्छता को लेकर उनके प्रयोगों के 100 साल बाद भी हालात बहुत संतोषजनक नहीं है। दक्षिण अफ्रीका आज भी दुनिया के उन कुछ मुल्कों में शामिल है जहां ग्रामीण जनजातीय समाज अशिक्षा और गरीबी के कारण नितांत अस्वच्छकर स्थिति में रहने को विवश है। कहने की जरूरत नहीं कि यह विवशता खुले में शैच जाने की उनकी प्रवृति के तौर पर भी देखी जाती है। अच्छी बात यह है कि अब अन्य अफ्रीकी देशों के साथ दक्षिण अफ्रीका में भी सरकार के साथ विभिन्न संस्थाएं इस दृष्टि से महत्वपूर्ण कार्य कर रही हैं। इस दृष्टि से जो संस्था सबसे प्रमुखता के साथ वहां सक्रिय है और शौचालयों का निर्माण कर रही है, उसमें सुलभ इंटरनेशनल का नाम सबसे ऊपर है। स्वच्छता के क्षेत्र में सुलभ की साख और अनुभव को देखते हुए नाइजीरिया, दक्षिण अफ्रीका सहित विभिन्न अफ्रीकी मुल्कों की सरकारों ने यह कार्य करने की जिम्मेदारी दी है। 2017’ की रिपोर्ट में दुनियाभर में शौचालयों की उपलब्धता और उनकी स्थिति के बारे में चौंकाने वाले आंकड़े दिए गए हैं। इसके मुताबिक अफ्रीका महाद्वीप का सबसे ज्यादा आबादी वाला देश नाइजीरिया शौचालयों की कमी की दृष्टि से तीसरे नंबर पर आता है। गौरतलब है कि इस सूची में पहले दो देश वे हैं, जो आज विश्व अर्थव्यवस्था की एक तरह से धुरी बने हुए हैं। ये देश हैं भारत और चीन। अलबत्ता आबादी के कारण बड़े देश होने के कारण इन दोनों देशों की गिनती स्वच्छता सूचकांक में सबसे नीचे भले हो रही है, पर इनकी तुलना कम से कम नाइजीरिया जैसे देश से तो नहीं ही की जा सकती है।

इबोला का हमला

गत वर्ष ‘वर्ल्ड टॉयलेट डे’ के मौके पर संयुक्त


19 - 25 मार्च 2018

23

स्वच्छता

जैनाबू अबुबकर

स्वच्छता के लिए संघर्ष कर रही ‘आयरन लेडी’ चार बच्चों की मां जैनाबू 2009 में जल एवं स्वच्छता विभाग में निदेशक बनीं। उन्होंने तब से शौचालय निर्माण के निर्माण में सराहनीय कार्य किया है

खा

सतौर पर नाइजीरिया के ग्रामीण समुदायों में, खुले में शौच की स्थिति या प्रवृति स्वास्थ्य की दृष्टि से एक गंभीर समस्या है। यहां सरकार द्वारा नवगठित पानी और स्वच्छता विभाग की निदेशक जैनाबू अबुबकर को ‘आयरन लेडी’ कहा जाता है। जैनाबू खुले में शौचमुक्ति से और पानी के लिए लोगों की मदद करती हैं। चार बच्चों की मां जैनाबू नाइजीरिया के उत्तरी राज्य काटसीना में रहती हैं। 2009 में जैनाबू जल एवं स्वच्छता विभाग में निदेशक बनीं। उन्होंने तब से शौचालय निर्माण से भी बड़ा कार्य यह किया है कि उन्होंने लोगों को इस बारे में हर दृष्टि से जागरूक करने की कोशिश की कि खुले में शौच एक तरह से गंभीर बीमारियों को निमंत्रण है। जैनाबू ने स्वच्छता और स्वास्थ्य के लिहाज से पानी के महत्व को भी समझा और इसके भी स्वच्छ और किफायती इस्तेमाल करने के लिए काफी कार्य किया।

स्वच्छता के क्षेत्र में सुलभ की साख और अनुभव को देखते हुए नाइजीरिया, दक्षिण अफ्रीका सहित विभिन्न अफ्रीकी मुल्कों की सरकारों ने यह कार्य करने की जिम्मेदारी दी है। अफ्रीका में एक चौथाई जनसंख्या खुले में शौच जाती है और वहां डायरिया एक बड़ी समस्या है और पांच साल से कम उम्र के बच्चों की मौत का सबसे बड़ा कारण। दुनिया भर में हर ढाई मिनट में एक बच्चा इसलिए मारा जाता है क्योंकि या तो वह प्रदूषित पानी या फिर खराब सैनिटेशन से बीमार हो जाता है। महिलाओं को इसका सबसे बड़ा नुकसान उठाना पड़ता है। लड़कियां स्कूल में खराब सैनिटेशन के कारण स्कूल जाना बंद कर देती हैं। संयुक्त राष्ट्र के उपमहासचिव यान एलियसन कहते हैं, ‘खराब सैनिटेशन के कारण लड़कियों का स्कूल छूट जाता है। खुले में शौच के कारण अक्सर महिलाओं और लड़कियां यौन हिंसा का शिकार हो जाती है। दुनिया भर में बेहतर सैनिटेशन महिला सुरक्षा, सम्मान और समानता में अहम भूमिका निभाता है।’ राष्ट्र ने अपील की थी कि दुनिया भर में खुले में शौच जाना खत्म किया जाए और स्वच्छता का पूरी तरह ध्यान रखा जाए। संयुक्त राष्ट्र ने आशंका जताई कि पश्चिमी अफ्रीका में इबोला फैलने का एक कारण खुले में शौच भी हो सकता है। लाइबेरिया की आधी जनसंख्या इस बीमारी से जूझ रही है और वहां शौचालयों की कोई सुविधा नहीं है। सियेरा लियोन में भी एक तिहाई जनसंख्या के पास शौचालय नहीं हैं। दिलचस्प है कि नाइजीरिया को वैसे तो इबोला मुक्त देश घोषित कर दिया गया था लेकिन उसे भी चेतावनी दी गई कि खुले में शौच की समस्या पर वह काबू पाएं क्योंकि शरीर से निकलने वाले स्राव से ये बीमारी फैलती है।

संयुक्त राष्ट्र की नसीहत

संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट के मुताबिक दुनिया भर में करीब एक अरब जनसंख्या ऐसी है, जिसके पास शौचालय की सुविधा नहीं है। उप सहारा

इथोपिया, नाइजीरिया और मोजांबिक

ऐसा नहीं है कि हालात सुधरे नहीं हैं लेकिन सार्वजनिक शौचालयों या हर घर में शौचालय के अभियान अक्सर धन के अभाव के कारण अधूरे रह जाते हैं। हालांकि आज सिर्फ 10 देश ऐसे हैं जिनमें 80 फीसदी लोग खुले में शौच जाते हैं। इनमें से आधे भारत में हैं। इसके बाद इंडोनेशिया, नेपाल और चीन का नंबर आता है। अफ्रीका के नाइजीरिया में करीब 39 फीसदी लोग खुले में शौच जाने को मजबूर हैं। हालात इपिया, नाइजीरिया और मोजांबिक में भी अच्छे नहीं हैं। एलियसन कहते हैं, ‘खुले में शौच की समस्या को पूरी तरह खत्म करना सिर्फ अच्छी संरचना से नहीं हो सकता है। इसके लिए व्यवहार, सांस्कृतिक और सामाजिक तौर तरीकों को समझना भी जरूरी है।’

स्वच्छता पर कम खर्च

नाइजीरिया जैसे अफ्रीकी मुल्क में स्वच्छता को

लेकर चिंताजनक स्थिति इसलिए भी है क्योंकि वहां जनजातीय आबादी सबसे ज्यादा तो है ही, ऊपर से वह अमानवीयता के स्तर तक गरीबी का मार झेलने को अभिशप्त है। यह स्थिति तब और भयावह हो जाती है जब एेसे देशों की सरकारें स्वच्छता और स्वास्थ्य मद में सबसे कम खर्च करती हैं। स्वास्थ्य के सेक्टर में जीडीपी के प्रतिशत के तौर पर अगर सरकारी खर्च के आंकड़ा देखें तो नाइजीरिया में यह आंकड़ा महज 3.7 फीसदी का है। अन्य देशों की बात करें तो अमेरिका में यह आंकड़ा जीडीपी का 18 फीसदी, मलयेशिया में 4.2 फीसदी, चीन में 6, थाइलैंड में 4.1 फीसदी, फिलीपींस में 4.7 फीसदी, इंडोनेशिया में 2.8, श्रीलंका में 3.5 और पाकिस्तान में 2.6 फीसदी का है। अलबत्ता, स्वास्थ्य सेवा सुलभ होने के मामले में भारत की भी स्थिति बहुत अच्छी नहीं है और वह दुनिया के 195 देशों में 154वीं पायदान पर हैं। यहां तक कि यह बांग्लादेश, नेपाल, घानाऔर लाइबेरिया से भी बदतर हालत में है।

हैजे का प्रकोप

बात अकेले नाइजीरिया की करें तो स्वास्थ्य सेवाओं की अनदेखी और स्वच्छता की खस्ता स्थिति का खामियाजा यहां के लोगों को सबसे ज्यादा सरकार के उदासीन रवैए को लेकर भुगतना पड़ रहा है। कुछ वर्ष पूर्व नाइजीरिया में हैजे के प्रकोप ने इस तरह सिर उठाया कि देखते-देखते सैकड़ों लोग काल के गाल में समा गए। नाइजीरिया के स्वास्थ्य मंत्री ने नागरिकों से स्वच्छता और साफ-सफाई के मुद्दे को गंभीरता से लेने का आग्रह किया और नसीहत दी कि इस बात का ध्यान रखना सबसे जरूरी है कि लोग खुले में शौच न करें और स्वच्छ जल का उपयोग करें। बावजूद इस संजीदगी में नाइजीरिया सरकार एेसा कोई समयबद्ध संकल्प दिखाने में असमर्थ रही, जिससे लगे कि अगले


24

स्वास्थ्य

19 - 25 मार्च 2018

विश्व तपेदिक दिवस

2030 तक टीबी मुक्त होगा भारत!

विश्वव्यापी टीबी मरीजों की संख्या में भारत का पांचवां स्थान है। हमारे देश में प्रतिवर्ष 20 लाख लोग टीबी के रोगी बनते हैं जिनमें से 8.7 लाख मामले संक्रमण के कारण बनते हैं

खास बातें

पांच राज्यों में टीबी के उपचार हेतु विशेष योजना चल रही है देश में प्रतिवर्ष 20 लाख लोग टीबी के रोगी बनते हैं 8.7 लाख मामलों में संक्रमण के कारण लोग इसके शिकार होते हैं

एसएसबी ब्यूरो

पचार के लिहाज से तपेदिक यानी टीबी के खिलाफ मेडिकल साइंस ने बहुत पहले यह साफ कर दिया था कि इस रोग का इलाज संभव है और इसे किसी सूरत में लाइलाज न समझा जाए। पर इस रोग का कहर अब भी जारी है। खासतौर पर उन देशों में जहां बड़ी संख्या में लोग गरीब हैं और अस्वास्थ्यकर स्थितियों में रहने पर विवश है। दुर्भाग्य से भारत भी उन देशों में शामिल है। टीबी की इसी चुनौती को देखते हुए विश्व स्वास्थ्य संगठन ने मांग की है कि तपेदिक यानी टीबी पर संयुक्त राष्ट्र की एक आम बैठक बुलाई जाए। उसे ऐसा करने के लिए मजबूर होना पड़ा है, क्योंकि इस बीमारी से सबसे ज्यादा जूझ रहे देश इससे निपटने के लिए पर्याप्त इच्छाशक्ति नहीं दिखा रहे। टीबी के खिलाफ लड़ाई तब तक नहीं जीती जा सकती जब तक इससे सबसे ज्यादा ग्रस्त देश, जिनमें भारत भी है, अपनी सरकारी मशीनरी को प्रभावी तरीके से हरकत में नहीं लाते। टीबी की दर और इस बीमारी से होने वाली मौतों का आंकड़ा वैश्विक स्तर पर लगातार घट रहा था लेकिन, हाल में इसमें फिर बढ़ोत्तरी होने लगी है। यह बढ़ोत्तरी पहले लगाए गए अनुमान से कहीं अधिक है। इसकी मुख्य वजह है भारत में इस बीमारी के मरीजों की संख्या में तेज उछाल आया । 2014 में भारत में टीबी के 22 लाख मरीज थे। यह आंकड़ा 2015 में 28 लाख पहुंच गया। विडंबना यह है कि यह आंकड़ा भी अंतरिम है। नए सर्वे में मरीजों की तरह मौतों का यह आंकड़ा भी सर्वे के बात बढ़ सकता है। इस बढ़ोत्तरी की वजह यह भी है कि 2013 से 2015 के दौरान निजी स्वास्थ्य सेवा क्षेत्र की तरफ से टीबी के मामलों की सूचनाओं में 34

फीसदी बढ़ोतरी हुई है। वैसे यह भी सच है कि 2015 में प्राइवेट सेक्टर के डॉक्टरों द्वारा दी गई सूचनाएं ऐसी कुल सूचनाओं का 16 फीसदी ही थीं। 2012 में ये सूचनाएं दर्ज करना अनिवार्य कर दिया गया था लेकिन, 2015 में सरकारी और निजी क्षेत्र द्वारा टीबी के सिर्फ 17 लाख मामले सूचीबद्ध किए गए। इसीलिए कोई नहीं जानता कि बाकी 11 लाख मरीजों का क्या हुआ। टीबी के खिलाफ प्रभावी लड़ाई के लिए चलाए जा रहे कार्यक्रम के तहत हर मरीज को इलाज मिलना और उससे जुड़ी जानकारियां दर्ज की जानी जरूरी हैं। निजी अस्पतालों या डॉक्टरों के पास आने वाले टीबी के मरीजों में से 50 फीसदी दवाइयों का कोर्स सफलतापूर्वक पूरा नहीं करते। उधर, एक हालिया अध्ययन बताता है कि 2013 में अगर 19 लाख लोग टीबी की शिकायत लेकर सरकारी अस्पताल गए तो उनमें से सिर्फ 65 फीसदी ने पूरी दवाइयां लीं। इसके चलते दवाइयों के खिलाफ प्रतिरोधक क्षमता विकसित कर चुके टीबी के मरीजों की संख्या में बढ़ोतरी हो गई है जिससे इस बीमारी का इलाज महंगा और मुश्किल होता जा रहा है। इसने संकट को और गहरा दिया है। बच्चों के लिए सुरक्षित टीबी की दवा उपलब्ध कराने जैसे कई मायनों में राष्ट्रीय तपेदिक नियंत्रण कार्यक्रम अभी लक्ष्यों से पीछे चल रहा है। टीबी को काबू करने का काम तभी हो सकता है जब सब मोर्चों पर एक साथ जंग छेड़ी जाए। टीवी के खिलाफ वैश्विक लड़ाई तब तक नहीं जीती जा सकती जब तक भारत अपनी सीमाओं के भीतर इस लड़ाई में जीत हासिल नहीं करता। अभी तो आलम यह है कि विश्वव्यापी टीबी मरीजों की संख्या में भारत का पांचवां स्थान है। हमारे देश में प्रतिवर्ष 20 लाख लोग टीबी के रोगी बनते हैं, जिनमें से 8.7 लाख मामले संक्रमण के कारण बनते हैं। उनमें

से हर तीसरे व्यक्ति को टीबी का सही और समय पर इलाज नहीं मिल पाता है। इसी कारण हमारे देश में हर तीन मिनट में दो टीबी के मरीज मर जाते हैं। टीबी पर नियंत्रण के लिहाज से हिमाचल प्रदेश को एक मॉडल राज्य के तौर पर देखा जा सकता है। हिमाचल प्रदेश में 1997 में आरएनटीसीपी कार्यक्रम शुरू किया गया। इस कार्यक्रम के तहत प्रदेश में डॉट्स और माइक्रोसेकापिक सेंटर खोले गए, ताकि टीबी की प्रारंभिक जांच और सही कोर्स से एमडीआर-टीबी होने से रोका जाए। रोगियों को जागरूक करना, संक्रमण से बचने और इलाज के कोर्स को पूरा करने के लिए प्रेरित करना, इस रिवाइज्ड कार्यक्रम का मुख्य उद्देश्य था। हिमाचल में सबसे ज्यादा टीबी के रोगी जिला कांगड़ा में 2548 और उसके बाद जिला मंडी में 2358 रजिस्टर किए गए हैं। वर्ष 1997 से लेकर अभी तक रिवाइज्ड टयूबरक्यूलोसिस कंट्रोल कार्यक्रम के तहत हिमाचल प्रदेश मंू टीबी के आधुनिक इलाज के लिए कई तरह के सेंटर खोले गए। प्रदेश में एकमात्र स्टेट टीबी ट्रेनिंग एंड डेमोस्ट्रेशन सेंटर धर्मपुर में है। इसके अलावा एमडीआर-टीबी के इलाज के लिए नोडल ड्रग रेजिस्टेंट टीबी सेंटर (डीआरटीबीसी) धर्मपुर और राजेंद्र प्रसाद मेडिकल कालेज टांडा में है। प्रदेश के सभी 12 जिलों में 12 टीबी सेंटर हैं और सभी 72 ब्लॉक में टीबी यूनिट हैं। 2014 में धर्मपुर, सोलन में इंटरमीडिएट रेफरेंस लैबोरेटरी (आईआरएल) स्थापित की गई। इस लैब में टीबी की जांच की रिपोर्ट दो से तीन दिन में आ जाती है। पहले इस तरह की जांच के लिए रोगी के बलगम के सैंपल आगरा भेजे जाते थे, जिसकी रिपोर्ट आने में तीन महीने तक का समय लगता था। सीएसडीटी लैब यानी क्यूलटरी एंड ड्रग सेंसिटीविटी लैब सोलन के धर्मपुर और राजेंद्र प्रसाद मेडिकल कालेज, टांडा में है। इस लैब में टीबी के प्रभाव

को परखा जाता है। यह भी जांचा जाता है कि रोगी को ठीक होने के लिए किस तरह की दवाई ज्यादा प्रभावी साबित होगी। सीबीएनएएटी यानी कार्टिज बेस्ड न्यूक्लिक एसिड एंपलिफिकेशन टेस्टिंग की कुल नौ प्रयोगशालाएं प्रदेश में हैं। इन प्रयोगशालाओं में मरीज के सैंपल की रिपोर्ट दो घंटे में आ जाती है। अगर रोगी में टीबी का कीटाणु का सैंपल नेगेटिव आ रहा है या फिर डॉक्टर को संदेह हो कि टीबी है या नहीं, तो यह टेस्ट पूरी तरह से विश्वसनीय होता है। जब एमडीआर-टीबी के रोगी पर कोई भी दवाई असर नहीं कर रही होती है, तो फिर रोगी का टेस्ट सबसे आधुनिक तकनीक सेकेंड लाइन डीएसटी टेस्ट लिक्विड कल्चर लैब में किया जाता है। इस टेस्ट के लिए राज्य ने एम्स, दिल्ली के साथ अनुबंध किया है। हिमाचल प्रदेश सरकार ने प्रदेश को वर्ष 2025 तक टीबी मुक्त करने का लक्ष्य रखा गया है, जबकि देश में यह लक्ष्य वर्ष 2030 रखा गया है। इस लक्ष्य को हासिल करने के लिए चरणबद्ध तरीके से कई प्रयास किए जा रहे हैं। हाल ही में प्रदेश भर की विभिन्न टीबी प्रयोगशालाओं के लिए 24 सीनियर ट्रीटमेंट सुपरवाइजर और 40 प्रयोगशाला टेक्नीशियन टीबी कार्यक्रम के तहत नियुक्त किए गए हैं। देश भर के पांच राज्यों में टीबी के उपचार हेतु रोगियों के लिए दैनिक रूप से दवाई खिलाने की योजना चल रही है। इस योजना में हिमाचल भी शामिल है। इसके लिए राज्य के सभी स्वास्थ्य संस्थानों में उपचार एवं निगरानी केंद्र (डॉट्स) कार्यरत हैं, जिनके माध्यम से आशा कार्यकर्ता कार्य करेंगी। अब टीबी के रोगियों को भी पूरी गंभीरता से अपने इलाज के कोर्स को पूरा करना चाहिए, ताकि उनकी टीबी लाइलाज एमडीआर-टीबी का रूप धारण न कर ले। साथ ही संक्रमण को फैलने से रोकने के लिए डॉक्टर द्वारा दिए गए सभी निर्देशों का पालन करना चाहिए, ताकि यह किसी दूसरे स्वस्थ व्यक्ति को संक्रमित न कर दे।


19 - 25 मार्च 2018

25

गुड न्यूज

बिना ईंधन चलेगा ट्यूबवेल

गुजरात के नौवीं कक्षा पास पीएम वाघानी ने ऐसी तकनीक खोज निकाली है, जिससे बिना ईंधन के एलईडी चमकेगी और ट्यूबवेल चलेंगे

चमकेगी और पंखे ईंधनभी चलेंके बिनागे साथघरोंहीमें ट्यूएलईडी बवेल से सिंचाई भी हो

सकेगी। आने वाले दिनों में इससे सड़कों पर कार और बाइकें भी दौड़ेंगी। यह कुछ सपने जैसा ही लग रहा है। इस सपने को हकीकत में बदल दिया है कक्षा 9वीं पास पीएम वाघानी ने। उन्होंने एक ऐसा फार्मूला खोज निकाला है जिससे यह सब होगा वह भी बिना ईधन के। वधानी ने 5 एचपी का एक जनरेटर तैयार किया है। इसकी लागत महज 20 हजार रुपए है जबकि इतने पावर का जनरेटर 60 हजार से अधिक कीमत का मिलता है। वे जल्द अपने इसे जनरेटर को कामर्शियल प्रयोग के लिए उतारेंगे। इससे चार व्यक्ति के परिवार वाले घर का बिजली आपूर्ति आसानी से हो जाएगी। गुजरात के भाव नगर में रहने वाले पीएम वाघानी बताते हैं कि करीब 15 साल पहले उनके पड़ोस के परिवार में शादी के दौरान करंट लगने से इकलौते लड़के की मौत हो गई। हादसे से उन्हें गहरा सदमा लगा। उन्होंने प्रण लिया कि ऐसी तकनीक विकसित की जाए जिससे बिजली तो आए, लेकिन करंट न लगे। उनके परिवार में शुरू से ही बिजली के उपकरण बनाने का काम था, इसीलिए उन्हें तकनीक खोजने में ज्यादा परेशानी नहीं हुई। पांच साल जूझने के बाद उन्होंने फार्मूला खोज निकाला, जिसपर वह 10 साल से काम भी कर रहे हैं। अपनी वर्कशॉप में सफल प्रयोग के बाद उन्होने इसका फायदा लोगों तक पहुंचाने का बीड़ा उठाया है

वाघानी ने करीब 10 साल पहले एक ऐसा फार्मूला तैयार किया जो बिना ईधन के बिजली सप्लाई करता है। उन्होंने इसे बनाने के लिए एक एचपी की मोटर का प्रयोग किया। जिसे चलाने के लिए उन्होंने रस्सी का सहारा लिया। इसे उन्होंने अपने फार्मूले से जोड़ दिया। यह फार्मूला सिर्फ मैग्नेट और कैपेस्टर से तैयार किया गया। इस पूरी प्रक्रिया के बाद 6 एचपी की बिजली तैयार हुई। इसमें 1 एचपी की बिजली को रीसाइकिल प्रक्रिया के लिए रखा गया। वाघानी एनर्जी लिमिटेड के चीफ एक्जक्यूटिव ऑफिसर और शहर के मंगला विहार में रहने वाले अनिल उत्तम ने बताया कि जल्द यह जनरेटर लोगों के उपयोग के लिए बाजार

में उपलब्ध होगा। इसका उपयोग कर कार और बाइक भी चल सकेंगी। इस जनरेटर का ट्रायल पिछले कई सालों से चल रहा है। अनिल ने बताया कि यह जनरेटर सभी खतरों से मुक्त है। इसमें तार पकड़ने के बावजूद करंट लगने जैसी कोई संभावना नहीं है। साथ ही यह पूरी तरह शार्ट-सर्किट प्रूफ है। इससे आए दिन होने वाले हादसे भी पूरी तरह रुकेंगे। यह जनरेटर न सिर्फ बिजली की बचत करेगा, बल्कि चोरी से भी मुक्त रहेगा। अनिल ने बताया कि इस जनरेटर को निर्धारित जगह में सेट किया जाता है। इसे अगर दो से तीन फीट भी हिलाया गया तो यह लॉक हो जाता है। इसके बाद जनरेटर का कोई प्रयोग नहीं होता है।

यह जनरेटर काफी दूर बैठ कर भी चालू-बंद किया जा सकेगा। यह जीपीएस से जुड़ा रहेगा। इससे अगर भूलवश जनरेटर चालू छूट जाए या इससे जुड़ा कोई उपकरण चलता रह जाए तो कहीं से भी उसे बंद किया जा सकेगा। अनिल ने बताया कि इस फार्मूले का नाम वाघानी पावर हाउस रखा गया है। इसका नेशनल पेटेंट भी हो गया है। जल्द यह फार्मूला लोगों के लिए बाजार में भी उपलब्ध होगा। उन्होंने बताया कि इसका प्रदर्शन इसी माह कानपुर में किया जाएगा। लोगों की आवश्यकता के अनुसार इसकी अधिक क्षमता वाले जनरेटर भी तैयार होंगे। अनिल ने बताया कि बिजली उत्पन्न करने का ट्रायल पूरा हो चुका है। जल्द बिना ईधन वाला यह जनरेटर लोगों के प्रयोग के लिए बाजार में उपलब्ध कराने की तैयारी में है। कार और बाइक को भी बिना ईधन तैयार इंजन से चलाने का ट्रायल गुजरात में बनी कार्यशाला में चल रहा है। जल्द इसे भी कामर्शियल प्रयोग के लिए बाजार में उतारा जाएगा। एचबीटीयू में इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग विभाग के प्रोफेसर डॉ. युद्धवीर सिंह ने बताया कि मैग्नेट और कैपेस्टर के जरिए बिजली का उत्पादन किया जा सकता है। इसमें बिजली स्टोर कर जनरेटर की तरह कार्य कर सकता है। अगर इसे सही तरीके से मैनेज कर फार्मूला तैयार किया जाए तो जरूर बिजली उत्पन्न हो सकती है। आईआईटी के वैज्ञानिकों ने भी इस फार्मूले को देखने की इच्छा जताई है। (एजेंसी)

सुबह की जगह रात में नहाइए

डेली मेल ऑनलाइन की स्टडी का अध्ययन करके न्यूयॉर्क के डर्मटॉलजिस्ट इस निष्कर्ष पर पहुंचे हैं कि रात को नहाना सेहत के लिए ज्यादा फायदेमंद है

हाना एक दैनिक क्रिया है, जिसे अधिकतर लोग सुबह के समय या काम पर निकलने से पहले करते हैं। नहाने से एक ओर हमारे शरीर से गंदगी निकल जाती है, तो वहीं दूसरी ओर आपको

फ्रेश फील होने लगता है। हालांकि, कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि रात को नहाने से आपको अच्छी नींद आती है और कुछ दिन की अच्छी शुरुआत करने के लिए सुबह के समय नहाना बेहतर समझते हैं। डेली मेल ऑनलाइन ने कई स्टडी का अध्ययन करके न्यूयॉर्क के डर्मटॉलजिस्ट से इस विषय पर निष्कर्ष निकालने के लिए कहा। हालांकि, दोनों समय में नहाने के अपने-अपने फायदे और नुकसान हैं, लेकिन रात को नहाने से शरीर से दिनभर का पसीना, ऑयल और एलर्जी वाले तत्व निकलकर गहरी नींद मिलती है और त्वचा को दमकता हुआ बनाता है।

न्यूयॉर्क के डर्मटॉलजिस्ट डॉ. सामेर जबेर ने डेली मेल ऑनलाइन को बताया कि, रात के समय नहाने से दिनभर की धूल-मिट्टी और गंदगी साफ हो जाती है। क्योंकि इस गंदगी के साथ बिस्तर पर लेटने से आपकी नींद में खलल पड़ सकता है और त्वचा संबंधित एलर्जी भी हो सकती है। इसीलिए स्वस्थ रहने के लिए रात को सोने से पहले नहाना बहुत जरूरी है। इसके साथ ही वह कहते हैं कि, नहाने से ज्यादा जरूरी यह है कि आप रात को सोने से पहले चेहरे को धोएं, क्योंकि ऐसा नहीं करने से आपके तकिए पर दिनभर की गंदगी और तेल लग जाता है और आपके चेहरे पर मुंहासों का कारण बन सकता है। नहाने से शरीर का तापमान सामान्य होता है, जिससे आपको जल्दी और गहरी नींद आती है। अधिकतर स्टडी में बताया गया है कि, सोने से कम से कम 90 मिनट पहले नहाने से शरीर का तापमान सामान्य हो जाता है और गहरी नींद आती है। इसके

साथ ही शॉवर लेने से दिमाग में कॉर्टिसोल नामक स्ट्रेस हॉर्मोन का स्तर कम होता है और मानसिक स्वास्थ्य सुधरता है। रात में शरीर त्वचा की कोशिकाएं को खुद स्वस्थ बनाता है और मृत कोशिकाओं को हटाकर नई कोशिकाओं का उत्पादन करता है। इसलिए डॉ. जबेर रात को कम से कम चेहरा धोकर सोने की बात पर जोर देते हैं। हालांकि, रात को नहाना आपके काम को आसान कर सकता है। विशेषज्ञों की राय और रिसर्च के आधार पर रात को नहाना बेहतर विकल्प है, जिससे दिनभर की थकान और गंदगी साफ होकर हमें दमकती त्वचा और गहरी नींद मिलती है। हालांकि, दिन में दो बार नहाने से भी कोई खतरा नहीं है, यह आपकी पसंद पर निर्भर करता है। लेकिन नहाने के लिए गुनगुने पानी का इस्तेमाल ही करें और 10 मिनट से ज्यादा ना नहाएं। क्योंकि ऐसा करने से आपके शरीर का प्राकृतिक मॉइश्चर खो सकता है। (एजेंसी)


26

अध्यात्म

19 - 25 मार्च 2018

‘खुद को अनंत का हिस्सा मानें’

दिल्ली में आयोजित एक कार्यक्रम में आध्यात्मिक गुरु श्री श्री रविशंकर ने जीवन में सत्संग के महत्व को समझाया अयोध्या प्रसाद सिंह

‘जी

वन का रस आत्मीयता में है, अनौपचारिक ढंग से जीवन जीने में है। प्राणायाम, योग साधना और भक्ति-भाव के साथ गायन से आप जीवन की सारी परेशानियांे का हल पा सकते हैं और बेहतर तरीके से जीवन जी सकते हैं। गांधी जी ने सत्संग और कीर्तन के माध्यम से पूरे देश को एकजुट किया। भारत को स्वतंत्रता दिलाने में सत्संग का भी योगदान है।’ आर्ट ऑफ लिविंग के प्रणेता श्री श्री रविशंकर ने ये बातें दिल्ली के द्वारका में आयोजित एक कार्यक्रम में कहीं। इस कार्यक्रम में सुलभ इंटरनेशनल के संस्थापक डॉ. विन्देश्वर पाठक, पश्चिमी दिल्ली से सांसद प्रवेश वर्मा और पूर्वी दिल्ली से सांसद महेश गिरी भी मौजूद थे।

द्वारका में जीवन का सार

द्वारका का अर्थ बताते हुए श्री श्री ने कहा कि इसका अर्थ होता है– जहां कोई द्वार नहीं है, जहां कोई सीमा नहीं है। इस तरह अनंत का प्रतीक ही द्वारका है। इसके नाम में ही जीवन का रहस्य छिपा है। हम सब एक हैं, हमारे बीच कोई सीमा नहीं होनी चाहिए। मैं अनंत का हिस्सा हूं, यही मानकर चलना चाहिए। यही वेदांत है और यही हमारे दर्शन का सार भी है। श्री श्री ने कहा कि आत्मा का द्वार हमारी इंद्रियां हैं। हमारे जीवन में ज्ञान, ध्यान और सेवा तीन सबसे महत्वपूर्ण तत्व होने चाहिए, तभी हम जीवन का सही मायने में सदुपयोग कर पाएंगे, उसका आनंद ले पाएंगे। उन्होंने कहा कि यदि जीवन है तो परेशानियां आएंगी ही, लेकिन हमें इन परेशानियों से ऊपर उठना

खास बातें जीवन की सार्थकता को लेकर कई सारगर्भित बातें बताईं श्री श्री ने इस मौके पर आध्यात्मिक गुरु ने मंदिर विवाद पर अपना पक्ष रखा श्री श्री ने सुलभ प्रणेता डॉ. पाठक के कार्यों की तारीफ की

होगा। फिर अपनी चेतना को प्रफुल्लित कर उसे सकारात्मकता से भरा रखना होगा। उन्होंने ध्यान और सत्संग पर जोर देते हुए उपस्थित लोगों को ध्यान करवाया और श्लोकों के उच्चारण के साथ सत्संग करने के लिए कहा। उन्होंने बताया कि हाल ही में इंग्लैंड में हुए रिसर्च से यह बात सामने आई है कि संस्कृत के शब्दों का जब हम उच्चारण करते हैं तो हमारा न्यूरो-लिंगविस्टिक सिस्टम बहुत बेहतर ढंग से काम करता है। हमारा दिमाग भी बेहतर तरीके से काम करने लगता है।

पाठक जी के काम को सलाम

कार्यक्रम में सुलभ प्रणेता डॉ. पाठक की प्रशंसा करते हुए श्री श्री ने कहा कि पाठक जी ने समाज में बदलाव के लिए काम किया है। हम सभी को उनसे सीखना चाहिए। उन्होंने कहा कि पाठक जी ने समाज के उस तबके के लिए काम किया, जिसके बारे में कोई सोचता भी नहीं था। देश के निर्माण में हम सबको ऐसे ही काम करने की जरूरत है।

सच्चा मित्र कौन

श्री श्री ने सच्चे मित्र के अर्थ बताते हुए कहा कि सच्चा मित्र वही है, जो आपकी परेशानी को कम कर दे। आपकी परेशानी चाहे जितनी बड़ी हो, लेकिन जब आप अपने मित्र के पास उस परेशानी को लेकर जाएं और मित्र की बातों से आपको लगने लगे कि आपकी परेशानी तो बहुत छोटी थी, आप नाहक ही इसे बड़ा समझ रहे थे तो समझिए कि वही आपका सच्चा मित्र है।

हमारे जीवन में ज्ञान, ध्यान और सेवा तीन सबसे महत्वपूर्ण तत्व होने चाहिए, तभी हम जीवन का सही मायने में सदुपयोग कर पाएंगे, उसका आनंद ले पाएंगे – श्री श्री रविशंकर शांतिपूर्ण हल

उन्होंने राम मंदिर के मुद्दे पर इस कार्यक्रम में भी मुखर होकर अपना पक्ष रखा। उन्होंने कहा कि इस मुद्दे का हल शांति से ही निकलना चाहिए। यदि न्यायालय एक के पक्ष में फैसला देगा तो दूसरा पक्ष नाराज हो जाएगा और न्यायालय से उसका विश्वास भी उठ सकता है। साथ ही हो सकता है कि नाराज पक्ष उग्र होकर हिंसा का रास्ता अख्तियार कर ले। उन्होंने कहा कि यदि कोर्ट मस्जिद बनाने का फैसला दे भी दे तो कोई भारतवासी यह नहीं चाहेगा कि रामलला वहां से हटें। 500 साल से यह लड़ाई चल रही है और कोर्ट के एक निर्णय से यह लड़ाई बंद नहीं होगी। उन्होंने आगे कहा कि यदि कोर्ट मंदिर बनाने का आदेश दे दे और उसके करीब में कहीं मस्जिद बने तो भी यह लड़ाई चलती रहेगी। साथ ही उन्होंने कुरान के उस कथन पर भी प्रकाश डाला, जिसमें कहा गया है कि विवादित स्थल पर नमाज नहीं अदा की जा सकती क्योंकि वह कबूल ही नहीं होगी। अयोध्या का यह स्थान तो सबसे विवादित है, फिर यहां मस्जिद बन भी गई तो उस मस्जिद की नमाज कबूल कैसे होगी? श्री श्री ने कहा कि अयोध्या के स्थानीय मुसलमानों का कहना है कि यहां पहले से ही 22

मस्जिदें हैं। हमें अब एक और मस्जिद नहीं चाहिए। श्री श्री ने इस विवाद के समाधान का अपना फार्मूला रखते हुए कहा कि मुसलमानों को चाहिए कि वे विवादित एक एकड़ भूमि भगवान राम के भव्य मंदिर के लिए हिंदुओं को दें। इसी तरह हिंदुओं को चाहिए कि दूसरी जगह पर 5 एकड़ भूमि मस्जिद के लिए मुसलमान भाइयों को दें। इससे यह भी कहा जाएगा कि हिंदुओं और मुसलमानों के आपसी सौहार्द से भव्य मंदिर का निर्माण हुआ है। आने वाली पीढियां के बीच लड़ाई खत्म हो जाएगी। गांवगांव जश्न मनाया जाएगा। उन्होंने बताया कि इस देश में 10 लाख राम मंदिर हैं और हर मंदिर में जश्न मानेगा। लेकिन कुछ लोग एक इंच जमीन नहीं देंगे कहकर इस झगड़े को बनाए रखना चाहते हैं। उन्होंने दुर्योधन का जिक्र करते हुए कहा कि उसने भी कहा था कि हम एक इंच जमीन पांडवों को नहीं देंगे, फिर उसके बाद युद्ध हुआ। इस अवसर पर पश्चिमी दिल्ली से सांसद प्रवेश वर्मा ने श्री श्री का स्वागत करते हुए कहा कि आपके आने से हम सब को प्रेरणा मिलती है। उन्होंने कहा कि श्री श्री पूरी दुनिया में शांति का संदेश फैला रहे हैं। आपके सपनों को साकार करने के लिए हम अपने क्षेत्र में भी बेहतर तरीके से काम करेंगे।


19 - 25 मार्च 2018

27

भाषा

देव भाषा बन रही है विश्व भाषा वाराणसी में संस्कृत का पाठ पढने दुनिया के करीब सत्तर देशों के करीब दो सौ छात्र अपना डेरा डाले हैं

प्रो. भागीरथ प्रसाद त्रिपाठी ने एक ऐसी विधि तैयार की है जिसके जरिये बिना रटे सिर्फ 180 घंटे में कोई भी संस्कृत भाषा सीख सकता है। वह कहते हैं कि संस्कृत सीखने से दिमाग तेज हो जाता है और स्मरण शक्ति बढ़ती है। शायद इसी वजह से लंदन और आयरलैंड के कई स्कूलों में संस्कृत को अनिवार्य विषय बना दिया है। हमारे पौराणिक ग्रंथ संस्कृत भाषा में लिखे गए हैं। आश्चर्य की बात यह है कि संस्कृत में सबसे ज्यादा शब्द हैं। संस्कृत शब्दकोश में 102 अरब 78 करोड़ 50 लाख शब्द हैं। यहां शब्दों का विपुल भंडार है। जैसे हाथी के लिए ही संस्कृत में सौ से ज्यादा शब्द हैं। खास बात

दे

व भाषा कहलाने का सौभाग्य केवल संस्कृत को ही प्राप्त है। प्राकृत से उत्पन्न हुई यह भाषा है तो बहुत प्राचीन, लेकिन इसकी तमाम खूबियां इसे आज भी उतना ही प्रासंगिक बनाए रखती हैं। मसलन कहा जाता है कि संस्कृत जानने वाला दुनिया की कोई भी कठिन से कठिन भाषा भी आसानी से सीख सकता है। इसे कंप्यूटर के लिए भी सबसे माकूल भाषा माना गया है, क्योंकि इसमें जो उच्चारण होता है वही अक्षरश: लिपिबद्ध भी होता है। उच्चारण सुधारने के लिए भी संस्कृत के अभ्यास की सलाह दी जाती है। शायद यही वजह

खास बातें संस्कृत जानने वाला दुनिया की कोई भी कठिन भाषा भी सीख सकता है कंप्यूटर के लिए संस्कृत सबसे अनुकूल है, क्योंकि इसके उच्चारण अक्षरश: लिपिबद्ध होते हैं संस्कृत शब्दकोश में 102 अरब 78 करोड़ 50 लाख शब्द हैं

जर्मनी के 14शीर्ष विश्वविद्यालयों में संस्कृत पढ़ाई जाती है, जबकि चार ब्रिटिश विश्वविद्यालय भी संस्कृत शिक्षा से जुड़े हैं। इसकी लोकप्रियता के बाद अब स्विट्जरलैंड और इटली सहित तमाम देशों में भी अब संस्कृत पाठ्यक्रम शुरू होने जा रहे हैं

हैं कि हम भारतीय भले ही संस्कृत से कुछ मुंह मोड़ रहे हों, लेकिन विदेशियों में इस भाषा को सीखने का चलन बढ़ने पर है। इससे संस्कृत वैश्विक स्तर पर अपना प्रसार कर रही है। पूर्वी यूरोपीय राष्ट्र यूक्रेन के युवाओं का चौदह सदस्यीय जत्था इसी सिलसिले में वाराणसी के शिवाला में डेरा डाले हुए है। संस्कृत सीखने आए इन युवाओं में रियल स्टेट के कारोबारी, डॉक्टर तथा शिक्षक शामिल हैं। अनुमान है कि शहर में इस समय 70 अलग-अलग देशों के 190 छात्र संस्कृत सीख रहे हैं। कुछ साल पहले तक यह आंकड़ा 40 से 50 के दायरे में होता था, लेकिन फिलहाल अमेरिका के ही 35 छात्र यहां संस्कृत की दीक्षा ले रहे हैं। इसके अलावा म्यांमार, कोरिया, श्रीलंका तथा थाईलैंड के छात्र भी यहां हैं। वाराणसी आने वाले ये विदेशी युवा सर्टिफिकेट या डिप्लोमा कोर्स के बजाय तीन साल की डिग्री को ज्यादा तरजीह देते हैं। वे मानते हैं कि जो संस्कार और संस्कृति संस्कृत भाषा में है वह दुनिया की किसी अन्य भाषा में नहीं है। शिवाला स्थित वाग्योग चेतना पीठ के

यह है कि किसी और भाषा के मुकाबले संस्कृत में सबसे कम शब्दों में वाक्य पूरा हो जाता है। सुधर्मा संस्कृत का पहला अखबार भी था जो 1970 में शुरू हुआ था। आज भी इसका ऑनलाइन संस्करण उपलब्ध है। जर्मनी के 14शीर्ष विश्वविद्यालयों में संस्कृत पढ़ाई जाती है, जबकि चार ब्रिटिश विश्वविद्यालय भी संस्कृत शिक्षा से जुड़े हैं। इसकी लोकप्रियता के बाद अब स्विट्जरलैंड और इटली सहित तमाम देशों में भी अब संस्कृत पाठ्यक्रम शुरू होने जा रहे हैं। कर्नाटक के शिमोगा जिले का छोटा सा गांव मुतुरू की तो आम भाषा ही संस्कृत है। यहां के सभी लोग संस्कृत में बात करते हैं। गांव में बच्चों को दसवें वर्ष से वेदों का ज्ञान दिया जाता है। यहां के कई लोगों ने अपनी मेधा से देश-विदेश में खास मुकाम हासिल किया है। गांव के हर परिवार में से कम से कम एक सॉफ्टवेयर इंजीनियर बनता है। एक और दिलचस्प बात यह है कि मुतुरू गांव के घरों की दीवारों पर संस्कृत ग्रैफिटी पाई जाती है। दीवारों पर ‘मार्गे स्वच्छताय विराजाते, ग्राम सुजानाह विराजंते पाए जाते हैं।’ जैसे संस्कृत वाक्य अंकित हैं। इसका अर्थ है सड़क के लिए स्वच्छता उतनी ही महत्वपूर्ण है जितना की अच्छे लोग गांव के लिए।

वहीं भोपाल का दस सदस्यीय ‘ ध्रुव रॉक बैंड’ भी शास्त्रीय और पाश्चात्य संगीत में संस्कृत की जुगलबंदी कर रहा है। बैंड से जुड़े डॉ. संजय त्रिवेदी कहते हैं, ‘हमारा मकसद संस्कृत को आम भाषा बनाना है। इसे कुछ लोगों ने विशेष लोगों की भाषा बना दिया था। अब हमारी कोशिश इसे आम लोगों तक पहुंचाने की है।’ नासा से अंतरिक्ष में भेजे जाने वाले प्रक्षेपण यान में अगर किसी अन्य भाषा का प्रयोग किया जाए तो अर्थ बदलने का खतरा रहता है, लेकिन संस्कृत के साथ ऐसा नहीं है, क्योंकि संस्कृत के वाक्य उल्टे हो जाने पर भी अपना अर्थ नहीं बदलते। माना जाता है कि संस्कृत के पहले श्लोक की रचना महर्षि वाल्मीकि ने की थी। महर्षि वाल्मीकि ने काव्य रचना की प्रेरणा के बारे में खुद लिखा है कि वह प्रेमालीन क्रौंच युगल को निहार ही रहे थे तभी उनमें से एक पक्षी को किसी बहेलिया का तीर आकर लगा। उसकी वहीं मृत्यु हो गई। यह देखकर महर्षि बहुत दुखी और क्रोधित हुए। इस पीड़ा और क्रोध में अपराधी के लिए महर्षि के मुख से एक श्लोक निकला जिसे संस्कृत का पहला श्लोक माना जाता है। दुनिया की तमाम शख्सियतों नें अपने शरीर पर संस्कृत में टैटू गुदवाए हैं। वाराणसी के वकील श्यामजी उपाध्याय 38 वर्षो से संस्कृत में ही अपनी दलीलें पेश करते आ रहे हैं। संस्कृत के लिए इस योगदान पर 2003 में श्यामजी को मानव संसाधन विकास मंत्रलय ने उन्हें ‘संस्कृतमित्र’ नामक राष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित किया। सोलहवीं लोकसभा के गठन के बाद भाजपा के कई सदस्यों ने सांसद की शपथ भी संस्कृत में ली। एक दिलचस्प पहलू यह भी है कि संस्कृत दुनिया की इकलौती ऐसी भाषा है जिसे बोलने में जीभ की सभी मांसपेशियों का इस्तेमाल होता है। अमेरिकन हिंदू यूनिवर्सिटी के मुताबिक संस्कृत में बात करने वाला मनुष्य रक्तचाप, मधुमेह, कोलेस्ट्राल आदि रोगों से बेहतर तरीके से निपट सकता है। संस्कृत के उपयोग से तंत्रिका तंत्र भी सक्रिय रहता है। यह स्पीच थेरेपी से लेकर स्मरणशक्ति बढ़ाने में भी मददगार होती है। नफासत के शहर लखनऊ की एक निशातगंज सब्जी मंडी में सभी सब्जियां संस्कृत नामों के साथ बिकती हैं। संस्कृत को फिर से महत्ता देने के लिए बाबा साहेब डॉ. भीमराव आंबेडकर ने 1949 में इसे देश की भाषा बनाने का संविधान सभा में प्रस्ताव रखा था जो बहुत मामूली अंतर से पास नहीं हो पाया। पंडित जवाहरलाल नेहरू ने भी लिखा था कि भारत का सबसे बड़ा खजाना संस्कृत और उसका साहित्य है। (एजेंसी)


28

पुस्तक अंश

19 - 25 मार्च 2018

चाय पर चर्चा

चाय पर चर्चा’ एक राजनीतिक पहल के साथ-साथ लोगों के लिए एक भावनात्मक जुड़ाव का कारण भी था। एक तरफ, यह पहल नरेंद्र मोदी के विनम्र उद्भव को दिखाने के उद्देश्य से की गई थी। वहीं दूसरी तरफ, यह उन राजनीतिक प्रतिद्वंद्वियों, जिन्होंने उनकी विनम्र पृष्ठभूमि के बारे में निराधार टिप्पणी की थी, को खत्म करने के लिए थी। दोनों ही मुद्दों पर, इस पहल ने अभूतपूर्व सफलता अर्जित की।

अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस पर "चाय पर चर्चा" कार्यक्रम के दौरान नरेंद्र मोदी के साथ प्रसिद्ध महिलाएं।


19 - 25 मार्च 2018

पुस्तक अंश

29

धन्यवाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, मुझे यहां “चाय पर चर्चा” पर बुलाने के लिए। हमें ऐसे ही और कार्यक्रमों की व्हाइट हाउस में भी जरुरत है। बराक ओबामा राष्ट्रपति अमेरिका चेतन भगत और अन्य, मुंबई में “चाय पर चर्चा” के दौरान।

सेलिब्रिटी महिलाओं की “चाय पर चर्चा”। इस तस्वीर में हेमा मालिनी, जया बच्चन और सुषमा स्वराज अन्य लोगों के साथ।

300 यहरों में प्रसारण मोदी ने “चाय पर चर्चा” शुरू की जिसमें उन्होंने अपने गृह-राज्य में एक कप चाय के साथ शासन के बारे में सवालों पर जवाब दिए। इस कार्यक्रम का देश भर के 300 शहरों में, चाय के स्टॉलों और उनके श्रमिक वर्ग के ग्राहकों के लिए प्रसारण किया गया। एएफपी

8 मार्च, 2014: अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस के मौके पर “चाय पर चर्चा” कार्यक्रम के दौरान महिला सशक्तिकरण पर सवालों का जवाब देते हुए नरेंद्र मोदी।

(अगले अंक में जारी...)


30

सा​िहत्य कविता

राष्ट्र के माथे की बिंदी है ये हिंदी

संस्कृत की एक लाडली बेटी है ये हिंदी। बहनों को साथ लेकर चलती है ये हिंदी। सुंदर है, मनोरम है, मीठी है, सरल है, ओजस्विनी है और अनूठी है ये हिंदी । पाथेय है, प्रवास में, परिचय का सूत्र है, मैत्री को जोड़ने की सांकल है ये हिंदी । पढ़ने व पढ़ाने में सहज है, ये सुगम है, साहित्य का असीम सागर है ये हिंदी ।

तुलसी, कबीर, मीरा ने इसमें ही लिखा है, कवि सूर के सागर की गागर है ये हिंदी । वागेश्वरी का माथे पर वरदहस्त है, निश्चय ही वंदनीय मां-सम है ये हिंदी। अंग्रेजी से भी इसका कोई बैर नहीं है, उसको भी अपनेपन से लुभाती है ये हिंदी। यूं तो देश में कई भाषाएं और हैं, पर राष्ट्र के माथे की बिंदी है ये हिंदी।

19 - 25 मार्च 2018

अच्छे व्यवहार का रहस्य

म साधारण मनुष्य अक्सर किसी से नाराज हो जाते हैं या किसी को भला-बुरा कह देते हैं, पर संतो का स्वाभाव इसके विपरीत रहता है। संत तुकाराम का स्वभाव भी कुछ ऐसा ही था, वे कभी किसी पर क्रोध नहीं करते थे। आइए इस कहानी के माध्यम से जानते हैं कि आखिर संत तुकाराम के इस अच्छे व्यवहार का रहस्य क्या था। संत तुकाराम अपने आश्रम में बैठे हुए थे। तभी उनका एक शिष्य, जो स्वाभाव से थोड़ा क्रोधी था उनके समक्ष आया और बोला, 'गुरूजी, आप कैसे अपना व्यवहार इतना मधुर बनाए रहते हैं, ना आप किसी पर क्रोध करते हैं और ना ही किसी को कुछ भला-बुरा कहते हैं? ' संत बोले, ' मुझे अपने रहस्य के बारे में तो नहीं पता, पर मैं तुम्हारा रहस्य जानता हूं ! '

'मेरा रहस्य! वह क्या है गुरु जी? ', शिष्य ने पूछा। ' तुम अगले एक हफ्ते में मरने वाले हो! ', संत तुकाराम दुखी होते हुए बोले। शिष्य उदास हो गया उस समय से शिष्य का स्वाभाव बिलकुल बदल सा गया। वह हर किसी से प्रेम से मिलता और कभी किसी पर क्रोध नहीं करता। दे ख ते देखते संत की भ वि ष ्य व ा ण ी को एक हफ्ते पूरे होने को आए। शिष्य ने सोचा चलो एक आखिरी बार गुरु के दर्शन कर आशीर्वाद ले लेते हैं।वह उनके समक्ष पहुंचा और बोला, ' गुरु जी, मेरा समय पूरा

सीप की कीमत

क 6 वर्ष का लड़का अपनी 4 वर्ष की छोटी बहन के साथ बाजार से गुजर रहा था।अचानक उसे लगा की,उसकी बहन पीछे रह गई है। वह रुका, पीछे मुड़कर देखा तो जाना कि, उसकी बहन एक खिलौने के दुकान के सामने खड़ी किसी खिलौने को निहार रही है। वह आकर बहन से पूछता है, "कुछ चाहिए तुम्हे ?" लड़की एक गुड़िया की तरफ उंगली उठाकर दिखाती है। बच्चा उसका हाथ पकड़ता है, एक जिम्मेदार बड़े भाई की तरह अपनी बहन को वह गुड़िया खरद कर दे दिया। बहन गुड़िया पाकर बहुत

खुश हो गई । दुकानदार यह सब देख रहा था, बच्चे का व्यवहार देखकर वह आश्चर्यचकित भी हुआ .. अब वह बच्चा बहन के साथ काउंटर पर आया और दुकानदार से पूछा, "सर, कितनी कीमत है इस गुड़िया की ?" दुकानदार एक शांत व्यक्ती था, उसने जीवन के कई उतार चढ़ाव देखे। उन्होंने बड़े प्यार और अपनत्व से बच्चे से पूछा, "बताओ बेटे, आप क्या दे सकते हो?" बच्चा अपनी जेब से वो सारी सीपें बाहर निकालकर दुकानदार को देता है जो उसने थोड़ी देर पहले बहन के साथ समुद्र किनारे से चुन चुन कर लाया था । दुकानदार वो सब लेकर ऐसे गिनता है जैसे पैसे गिन रहा हो। सीपें गिनकर वो बच्चे की तरफ देखने लगा तो बच्चा बोला,"सर कुछ कम है क्या?" दुकानदार :-" नहीं- नहीं, ये तो इस गुड़िया

की कीमत से ज्यादा है, ज्यादा मैं वापिस देता हूं" यह कहकर उसने 4 सीपें रख ली और बाकी की बच्चे को वापिस दे दी। बच्चा बड़ी खुशी से वो सीपें जेब मे रखकर बहन के साथ चला गया। यह सब दुकान का नौकर देख रहा था, उसने आश्चर्य से मालिक से पूछा, " मालिक ! इतनी महंगी गुड़िया आपने केवल 4 सिपों के बदले में दे दी ?" दुकानदार हंसते हुए बोला, "हमारे लिए ये केवल सीप हैं, पर उस 6साल के बच्चे के लिए अतिशय मूल्यवान है। और अब इस उम्र में वो नही जानता की पैसे क्या होते हैं ? पर जब वह बड़ा होगा ना... और जब उसे याद आएगा कि उसने सिपों के बदले बहन को गुड़िया खरीदकर दी थी, तब उसे मेरी याद जरुर आएगी, वह सोचेगा कि, "यह दुनिया अच्छे मनुष्यों से भरा हुआ है।" यही बात उसके अंदर सकारात्मक दृष्टीकोण बनाने में मदद करेगी और वो भी अच्छा इंसान बनने के लिए प्रेरित होगा।

होने वाला है, कृपया मुझे आशीर्वाद दीजिए! ' 'मेरा आशीर्वाद हमेशा तुम्हारे साथ है पुत्र। अच्छा, ये बताओ कि पिछले सात दिन कैसे बीते? क्या तुम पहले की तरह ही लोगों से नाराज हुए? ' शिष्य बोला, 'नहीं-नहीं, बिलकुल नहीं। मेरे पास जीने के लिए सिर्फ सात दिन थे, मैं इसे बेकार की बातों में कैसे गंवा सकता था? मैं तो सबसे प्रेम से मिला, और जिन लोगों का कभी दिल दुखाया था उनसे क्षमा भी मांगी', संत तुकाराम मुस्कुराए और बोले, 'बस यही तो मेरे अच्छे व्यवहार का रहस्य है।' शिष्य समझ गया कि संत तुकाराम ने उसे जीवन का यह पाठ पढ़ाने के लिए ही मृत्यु का भय दिखाया था, उसने मन ही मन इस पाठ को याद रखने का प्रण किया और गुरु के दिखाए मार्ग पर आगे बढ़ा।

कविता

माता पिता का एहसान

मैं हूं, मेरा है, सब मुझ से है अपने पांव पे मैं खड़ा हुआ हूं ये है दुनिया का दस्तूर यारों कृप्या इस अहंकार को मारो,

भूल गए हम अपने माता पिता को जिन्होंने किया सब न्योछावर तुम पर इतने हैं उनके एहसान हम पर खड़ा हुआ तू उनके दम पर, भूल गया तू माता पिता की उंगली को जिससे है तेरी दुनिया सम्हली सौ सौ बार गिरा था तू सौ सौ बार सम्हाला तुझको, ख्वाइश तेरी, की हर पूरी समझी तेरी हर इक मजबूरी तुझको अपना नाम दिया तूने उन्हें बदनाम जग में किया, जा बता दे इस दुनिया को माता पिता की शक्ति को खड़ा किया माता पिता ने मुझको अपनी महनत से इस दुनिया में है नाम मेरा सिर्फ उन्हीं की रहमत से सिर्फ उन्हीं की रहमत से|


19 - 25 मार्च 2018

आओ हंसें

सु

जीवन मंत्र

जन्नत नहीं..!

भगवान: क्या वरदान चाहिए बच्चा? बच्चा: कृपया मुझे मेरी स्कूल लाइफ लौटा दो! भगवान: बेटा, मैंने तुम्हे वरदान मांगने को कहा, जन्नत नहीं!

31

इंद्रधनुष

डोकू -14

सबसे बड़ी जेल जिसके हम सब कैदी हैं वह इस बात का डर है कि लोग क्या कहेंगे

हिम्मत तो देखो...

पत्नी: मैंने तुम्हे बिना देखे शादी की। क्या तुम विश्वास कर

सकते हो? पति: ...और मेरी हिम्मत देखो कि मैंने देखने के बाद भी तुमसे शादी की।

रंग भरो

सुडोकू का हल इस मेल आईडी पर भेजेंssbweekly@gmail.com या 9868807712 पर व्हॉट्सएप करें। एक लकी व‌िजते ा को 500 रुपए का नगद पुरस्कार द‌िया जाएगा। सुडोकू के हल के ल‌िए सुलभ स्वच्छ भारत का अगला अंक देख।ें

महत्वपूर्ण दिवस • 21 मार्च नौरोज, विश्व वानिकी दिवस, विश्व कठपुतली दिवस, रंगभेद उन्मूलन हेतु अंतरराष्ट्रीय दिवस, विश्व कविता दिवस • 22 मार्च

विश्व जल दिवस • 23 मार्च विश्व मौसम विज्ञान दिवस, भगत सिंह- सुखदेव- राजगुरु का शहीदी दिवस, राम मनोहर लोहिया जन्म दिवस • 24 मार्च विश्व तपेदिक दिवस • 25 मार्च गणेशशंकर विद्यार्थी बलिदान दिवस

1. कमल (4) 4. समाचार-पत्र (4) 7. राज्यकाल (5) 8. रंगों से भरा हुआ (3) 9. चुनौती (4) 11. आगे (2) 13. आदी (3) 14. प्रार्थना करने वाला (2) 17. पैरों में पहनने वाला एक परिधान (4) 19. घुड़साल, पत्रिका (3) 20. हस्तमिलाप, विवाह की एक रस्म (5) 22. प्राविधि (4) 23. कुछ (4)

ऊपर से नीचे

वर्ग पहेली - 14 वर्ग पहेली-13 का हल

बाएं से दाएं

सुडोकू-13 का हल

1. बिसात पर खेला जाने वाला एक खेल (4) 2. रावण (4) 3. लार, चिपचिपा पदार्थ (2) 4. अकाल में फँसा हुआ (5) 5. रुकावट, व्यवधान (3) 6. ईख के रस की खीर (3) 10. स्थायी (3) 11.आवेदक (3) 12. जो कभी नष्ट न हो (3) 13. जो प्रमाणिक न हो (5) 15. हश्र (4) 16. सरोवर (4) 17. लागू, स्वीकृत (3) 18. जापान का (3) 21. अधिकार (2)

कार्टून ः धीर


32

न्यूजमेकर रोहित डे

19 - 25 मार्च 2018

‘नयन’ की उड़ान

रोहित डे ने एक ऐसा ड्रोन बनाया है, जो लोगों के घरों तक अखबार डिलीवर करेगा

गर मन में दृढ़ विश्वास हो और हौसले बुलंद हों तो मंजिल चाहे कितनी ही कठिन क्यों न हों, वो आसानी से मिल ही जाती है। ऐसे ही बुलंद हौसले की बदौलत बेंगलुरु के क्राइस्ट यूनिवर्सिटी के बी.ए फर्स्ट ईयर के छात्र रोहित डे ने एक कारनामा कर दिखाया है, जो विदेशों में पढ़ने वाले छात्र भी बिना ट्रेनिंग के करने की सोच भी नहीं सकते हैं। रोहित डे ने एक ऐसा ड्रोन बनाया है, जो लोगों के घरों तक अखबार डिलीवर करेगा। रोहित ने इस ड्रोन को ‘नयन’ नाम दिया है। इसका वजन 2.6 किलोग्राम है और लगभग 30 मिनट तक इससे काम लिया जा सकता है। रोहित ने पिछले कई वर्षों में कई ड्रोन बनाए हैं। उनके बनाए ड्रोनों

का इस्तेमाल सर्विलांस, एरियल फोटोग्राफी और फसल की मॉनिटरिंग का काम कर सकते हैं। ‘नयन’ इन्वर्टेड रोटर कांसेप्ट के आधार पर काम करता है और इसे स्मार्टफोन से कंट्रोल किया जा सकता है। रोहित ने पहले भी एक ड्रोन बनाया था, लेकिन वह इससे संतुष्ट नहीं थे। अब रोहित को लगता है कि ‘नयन’ अच्छी तरह से काम कर सकता है। ‘नयन’ को लेकर अपनी प्रेरणा के बारे में रोहित ने बताया कि ड्रोन के बारे में वे पहले से सुनते-पढ़ते रहते थे। उन्हें यह सब रोमांचक लगता था। आखिरकार उन्होंने इसकी तकनीक की बारीकी को समझा। 'नयन' को मिल रही सफलता से रोहित रोमांचित हैं और अब वे इस क्षेत्र में और भी कुछ बड़ा करना चाह रहे हैं।

यथार्थ एम.

11 वर्ष का एंथेमोलॉजिस्ट

बें

यथार्थ की उपलब्धि यह है कि वह महज 11 साल की उम्र में 215 देशों के राष्ट्रगान को याद कर चुका है

गलुरु के 11 साल के छात्र ने अपनी प्रतिभा और एक अनोखे शौक के बल पर प्रतिष्ठित लिम्का बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड्स में अपना नाम दर्ज कराया है। कम उम्र में यह मुकाम हासिल करने वाले यथार्थ एम. बेंगलुरु के एक स्थानीय स्कूल में 6वीं कक्षा के छात्र हैं। यथार्थ की उपलब्धि यह है कि वह अब तक में 215 देशों के राष्ट्रगान को याद कर चुका है। बड़ी बात यह कि इन सभी देशों में करीब 100 देश ऐसे हैं, जिनके राष्ट्रगान अंग्रेजी से इतर अन्य राष्ट्रीय भाषाओं में हैं। यथार्थ की मां शिल्पा ने बताया कि उनके बेटे ने अपने स्कूल की म्यूजिक टीचर से कुछ साल पहले देशों के राष्ट्रगान की धुन सिखाने का अनुरोध किया था। इस पर यथार्थ की म्यूजिक टीचर ने उन्हें जापान, श्रीलंका और नेपाल जैसे देशों के राष्ट्रगान को गाने का अभ्यास कराया और इन्हें गाना भी सिखाया। लेकिन जब यथार्थ ने कुछ अन्य देशों के

डाक पंजीयन नंबर-DL(W)10/2241/2017-19

राष्ट्रगान के संबंध में उनसे मदद मांगी तो म्यूजिक टीचर ने इसके लिए उन्हें मना कर दिया। इसके बाद यथार्थ खुद इंटरनेट की मदद से रोज करीब एक घंटे अलग-अलग देशों के राष्ट्रगान को सीखने लगे। शिल्पा ने बताया, ‘यथार्थ हर रोज मेरे पास आकर कुछ ऐसे देशों का नाम बताता था जो मैंने कभी सुने भी नहीं थे। वह मुझसे रोज अलग-अलग देशों के राष्ट्रगान की मांग करता और मैं भी उसे इनका प्रिंट निकालकर दे देती थी। शायद इसी का परिणाम है कि आज उसे 215 देशों के राष्ट्रगान याद हैं।’ यथार्थ का अगला लक्ष्य गिनिज बुक में अपना नाम दर्ज कराना है। सबसे ज्यादा राष्ट्रगान जानने का रिकॉर्ड अब तक कनाडा की रहने वाली 11 वर्षीय कैप्री एवरिट के नाम है, जो कि 76 देशों के राष्ट्रगान को गाना जानती हैं।

अनाम हीरो वर्णाली डेका

ही

्छाग्र असम की स्वच

असम की बेटी वर्णाली की पहल से 7 ग्राम पंचायतों के 20 गांव आठ महीने में खुले में शौच मुक्त हो गए

अधिकारों का ज्ञान और न ही अपने विकास को लेकर सजगता। घूंघट की ओट के बीच चौका-चूल्हा और रूढ़िवादी परंपराएं ही उनके लिए जीवन थी। लेकिन समय बदला और महिलाओं के प्रति समाज की सोच भी बदली। असम निवासी वर्णाली डेका ने ऐसा ही मुकाम हासिल किया। उन्होंने महिलाओं को स्वच्छता के प्रति जागरूक किया और उनकी सोच बदली। उत्तर प्रदेश में एटा के मारहरा ब्लॉक के गांवों में महिलाएं बस चूल्हा-चौका तक सीमित थीं, उनको न तो स्वच्छता की जानकारी थी और न ही अपने हक की। तभी वहां असम की मूल निवासी वर्णाली डेका उम्मीद की किरण बनकर आईं। उन्होंने स्वच्छ भारत मिशन से जुड़कर महिलाओं को स्वच्छता के साथ अधिकारों का ज्ञान कराया। यहां के गांव अचलपुर के सेंट मेरी स्कूल में रहकर काम करने वाली वर्णाली ने देखा कि गांव की महिलाएं बदलते दौर में भी काफी पिछड़ी हैं। उन्होंने स्वच्छ भारत मिशन में स्वच्छाग्रही बनकर महिलाओं को पहले खुले में शौच न जाने के लिए प्रेरित किया। उन्होंने 20-20 महिलाओं की टीमें बनाकर गांव में महिलाओं को जागरूक किया। इसका असर यह हुआ कि मारहरा ब्लॉक की सात ग्राम पंचायतों के 20 गांव आठ महीने में खुले में शौच मुक्त हो गए। डेका की पहल का असर यह हुआ कि अचलपुर की महिला रामश्री ने अपने गहने गिरवी रखकर शौचालय का निर्माण कराया। अब वर्णाली की टीमें गांवों में कैंप करती हैं और लोगों को जागरूक करती हैं। 20 गांवों में 20 महिला मंडलों को स्वयं सहायता समूह का रूप देकर शिक्षा, स्वच्छता और सफाई के मुद्दे पर अलख जगाई जा रही है। आलम यह है कि मौजूदा दौर में वर्णाली की टीम ने 1200 से अधिक लोग संगठित होकर समाज को नई दिशा दे रहे हैं।

आरएनआई नंबर-DELHIN/2016/71597; संयुक्त पुलिस कमिश्नर (लाइसेंसिंग) दिल्ली नं.-एफ. 2 (एस- 45) प्रेस/ 2016 वर्ष 2, अंक - 14


Turn static files into dynamic content formats.

Create a flipbook
Issuu converts static files into: digital portfolios, online yearbooks, online catalogs, digital photo albums and more. Sign up and create your flipbook.