विशेष
08
आधुनिक भारत का महानतम संस्कृति-पुरुष
जेंडर
मदर इंडिया 2018
12
अभिमत स्वच्छता और सेहत के साथ समाज सुधार
16
पुस्तक
26
‘बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ’ योजना
sulabhswachhbharat.com
वर्ष-2 | अंक-21 | 07 - 13 मई 2018
आरएनआई नंबर-DELHIN/2016/71597
पीएम मोदी का चीन दौरा
सौहार्द और सफलता की यात्रा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का यह चार वर्ष में चौथा चीन दौरा था। इसके साथ ही वह सबसे ज्यादा बार चीन जाने वाले भारतीय प्रधानमंत्री बन गए। इस बार उनकी चीन यात्रा अनौपचारिक थी, इसीलिए दोनों देशों के नेता ‘लोडेड एजेंडा’ की बजाय नितांत अनौपचारिक और सहज माहौल में मिले। नतीजतन, परस्पर सौहार्द व भरोसे को लेकर दोनों देशों के बीच कई अहम सहमतियां बनीं और कई बड़े फैसले भी हुए
02 04 वै
आवरण कथा
07 - 13 मई 2018
एसएसबी ब्यूरो
श्विक शक्ति संतुलन से लेकर कूटनीति तक, चाहे जिस लिहाज से देखें, ग्लोब का वह हिस्सा हमें सर्वाधिक महत्वपूर्ण दिखेगा, जहां दुनिया की सबसे बड़ी आबादी रहती है। वैश्विक आर्थिक तंत्र का मौजूदा और भावी दारोमदार भी इसी हिस्से में आने वाले दो देशों पर है। दरअसल, हम बात कर रहे हैं वैश्विक रूप से दक्षिण एशिया की बढ़ी हैसियत और इस बहाने भारत और चीन के बढ़े ग्लोबल महत्व की। यही वजह है कि सीमा और क्षेत्रीय विवाद के कई पेंचीदा संदर्भों के बीच दोनों देशों के नेता लगातार एकदूसरे के साथ संवाद बनाए रखने का प्रयास करते रहते हैं। यह प्रयास इस दृष्टि से भी जरूरी है कि आज दोनों ही देशों का नेतृत्व दो अत्यंत सशक्त और दूरदर्शी राजनेताओं के हाथों में है। यही वजह है कि जब दोनों देशों के नेता हाथ मिलाते हैं और बातचीत की मेज पर आमने-सामने होते हैं तो यह पूरी दुनिया के लिए एक बड़ी खबर होती है। प्रधानमंत्री मोदी का यह चार वर्ष में चौथा चीन दौरा था। इसके साथ ही वह सबसे ज्यादा बार चीन जाने वाले भारतीय प्रधानमंत्री बन गए। दिलचस्प है कि इस बार जब प्रधानमंत्री चीन की यात्रा पर गए तो उनकी यह यात्रा औपचारिक नहीं थी, इसीलिए दोनों देशों के नेता ‘लोडेड एजेंडा’ के साथ नहीं, बल्कि नितांत अनौपचारिक और सहज माहौल में मिले। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और चीन के राष्ट्रपति शी चिनफिंग ने अपनी 'अनौपचारिक' मुलाकात के पहले दिन दोनों देशों के रिश्तों को दिल-से-दिल तक पहुंचाने के लिए कई दौर की बातचीत की और दोनों देशों में रहने वाली दुनिया की करीब 40 फीसदी आबादी की बेहतरी के लिए मिलकर काम करने का संकल्प जताया। चीन के वुहान शहर में आयोजित इस अनौपचारिक मुलाकात को भारत एवं चीन के बीच दशकों से कायम अविश्वास के माहौल को बदलने की कोशिश के तौर पर देखा जा रहा है। प्रधानमंत्री मोदी इस अनौपचारिक शिखर वार्ता में शिरकत करने के लिए चीन के इस मध्यवर्ती शहर में जब तड़के पहुंचे तो मेजबान राष्ट्रपति ने हुबेई प्रांतीय संग्रहालय में प्रधानमंत्री मोदी का विधिवत स्वागत किया। पीएम मोदी के स्वागत में चीनी कलाकारों के दल ने सांस्कृतिक कार्यक्रम भी
खास बातें
प्रधानमंत्री मोदी का चार वर्ष में चौथा चीन दौरा उनकी दो दिवसीय चीन यात्रा औपचारिक नहीं थी भारत और चीन की साझी आबादी 2.6 अरब है
आज भारत और चीन दोनों ही देशों का नेतृत्व दो अत्यंत सशक्त और दूरदर्शी राजनेताओं के हाथों में है। यही वजह है कि जब दोनों देशों के नेता हाथ मिलाते हैं और बातचीत की मेज पर आमने-सामने होते हैं तो यह पूरी दुनिया के लिए एक बड़ी खबर होती है प्रस्तुत किए। उसके बाद दोनों नेताओं की अकेले में बातचीत हुई। बाद में दोनों नेता अपने प्रतिनिधियों के साथ भी बैठक में शामिल हुए। दोनों तरफ से छह-छह शीर्ष अधिकारी इस प्रतिनिधिमंडल स्तर की बैठक में शरीक हुए। शी ने मशहूर ईस्ट लेक के किनारे बने सरकारी अतिथिगृह में प्रधानमंत्री मोदी के सम्मान में भोज भी दिया। पीएम मोदी ने प्रतिनिधिमंडल स्तर की वार्ता के दौरान कहा कि इस तरह की अनौपचारिक बैठकों की दोनों देशों के बीच एक परंपरा बननी चाहिए। इसके लिए उन्होंने चीनी राष्ट्रपति को 2019 में भारत में इसी तरह की एक अनौपचारिक बैठक का न्योता भी दिया। मोदी ने कहा, ‘अगर 2019 में हम भारत में इस तरह की अनौपचारिक शिखर बैठक कर सकें तो मुझे खुशी होगी।’ शी ने भरोसा जताया कि दोनों देशों के नेता समय-समय पर इसी तरह मिलते रहेंगे। पीएम मोदी ने कहा कि दुनिया की 40 प्रतिशत आबादी के लिए काम करने की जिम्मेदारी भारत और चीन के ऊपर है और दोनों देशों के पास अपने लोगों और विश्व की भलाई के लिए एक साथ
मिलकर काम करने का एक बड़ा मौका है। उन्होंने यह भी कहा कि इतिहास के 2000 वर्षों तक भारत और चीन मिलकर वैश्विक अर्थव्यवस्था को गति और ताकत देते रहे और लगभग 1600 वर्षों तक उनका ही दबदबा बना रहा। चीनी राष्ट्रपति शी ने जिस तरह दोनों देशों के रिश्ते को बेहतर बनाने में दिलचस्पी दिखाई, उसकी खुशी और संतोष को जाहिर करते हुए पीएम मोदी ने कहा कि भारत के लोग गौरवान्वित महसूस कर रहे हैं कि राष्ट्रपति शी ने राजधानी से बाहर आकर दो बार उनकी अगवानी की। प्रधानमंत्री ने कहा, ‘शायद मैं ऐसा पहला भारतीय प्रधानमंत्री हूं जिसकी अगवानी के लिए आप दो बार राजधानी से बाहर आए।’ इस मौके पर चीनी राष्ट्रपति ने कहा कि दोनों देशों ने हाल के वर्षों में करीबी साझेदारी कायम की और सकारात्मक प्रगति की है। उन्होंने कहा, ‘पिछले पांच वर्षों में हमने बहुत कुछ हासिल किया है। भारत और चीन दोनों देशों की संयुक्त आबादी 2.6 अरब है, जिसमें विकास के लिए जबर्दस्त क्षमता है। इन दोनों देशों का प्रभाव इस क्षेत्र और
विश्व में बहुत तेजी से बढ़ रहा है। मैं उम्मीद करता हूं कि हम आम समझ विकसित कर सकेंगे और चीन-भारत संबंधों को अगले स्तर पर ले जाने में मदद कर सकें।’ प्रधानमंत्री मोदी की वर्ष 2014 में सत्ता में आने के बाद से चीन की यह चौथी यात्रा है। दो महीने बाद वह एक बार फिर चीन की यात्रा करने वाले हैं। वह नौ जून से 10 जून तक किंगदाओ शहर में आयोजित होने वाले एससीओ सम्मेलन में भाग लेने जा सकते हैं। चीन यात्रा के दूसरे दिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग के बीच अनौपचारिक मुलाकात के दौरान दोनों नेताओं ने ईस्ट लेक गेस्टहाउस कांप्लेक्स स्थित झील के किनारे चहलकदमी की और कई अहम मुद्दों पर आमने-सामने बातचीत की। दोनों नेताओं के बीच ये सम्मेलन के आखिरी दौर की चर्चा रही। इस शिखर वार्ता में द्विपक्षीय संबंधों में सुधार के लिए आम सहमति बनी। साथ ही रणनीतिक खासकर सीमा पर शांति बनाने रखने के लिए प्रभावी कदम उठाने पर भी दोनों देश सहमत हुए। दोनों नेताओं की बातचीत में न तो किसी प्रोटोकॉल की परवाह दिखी और न ही कोई झिझक। आलम यह रहा कि दुनिया ने देखा कि कैसे दोनों नेता बेतकल्लुफी के साथ नौका विहार किया और हाथ में हाथ डालकर बेफिक्र घूमते दिखे। गौरतलब है कि दो देशों के बीच संबंध को
07 - 13 मई 2018
आवरण कथा
यात्रा के मुकाम
03
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को दो दिवसीय अनौपचारिक चीन यात्रा को लेकर जहां एक तरफ कई बातें हो रही हैं, वहीं विदेश मंत्रालय ने इस बारे में तथ्यात्मक जानकारियां शेयर की हैं। मंत्रालय द्वारा उपलब्ध कराई गई सूचनाओं और भारतीय संदर्भ में उसके महत्व को देखते हुए लगता है कि यह यात्रा अनौपचारिक भले हो पर इसका असर भविष्य में औपचारिक तो होगा ही, यह पूरे प्रशांत क्षेत्र के लिए तारीखी महत्व का साबित होगा गंभीर मुद्दों पर सकरात्मक असर
भारत के विदेश सचिव विजय गोखले ने कहा कि मोदी और शी के बीच चली महत्वपूर्ण बैठकों से उन बहुत से गंभीर मुद्दों पर सकरात्मक प्रभाव पड़ेगा, जिसने एशिया के दो पड़ोसी देशों के बीच बैचेनी बढ़ाई हुई है। गोखले ने दो दिनों में मोदी और शी के बीच चली छह चरण वार्ता पर प्रेस को संबोधित करते हुए कहा, ‘दोनों नेताओं ने माना कि भारत-चीन सीमा क्षेत्र में शांति बनाए रखना महत्वपूर्ण है और फैसला किया कि वे अपनी अपनी सेनाओं को संपर्क मजबूत करने और विश्वास व आपसी समझ बनाने के लिए रणनीतिक मार्गदर्शन जारी करेंगे।’
अंतरराष्ट्रीय मुद्दे
दोनों ही देशों के नेता इस बात को लेकर सहमत थे कि दोनों देश एक-दूसरे की संवेदनशीलताओं, चिंताओं और आकांक्षाओं का सम्मान करते हुए शांतिपूर्ण बातचीत के माध्यम से आपसी मतभेदों को दूर करने में सक्षम हैं। दोनों नेताओं ने द्विपक्षीय संबंधों को बढ़ाने के लिए भारत-चीन सीमा क्षेत्र में अमन व शांति बनाए रखने की अहमियत पर बल दिया।
पीएम मोदी और शी जिनपिंग ने अपनी-अपनी सेना को दोनों पक्षों के बीच सहमति के आधार पर विश्वास बहाली के विभिन्न उपायों को शीघ्र अमल में लाने का निर्देश दिया। दोनों पक्षों के बीच सीमा क्षेत्रों की घटनाओं को रोकने के लिए आपसी व समान सुरक्षा के सिद्धांत को अमल में लाने, मौजूद संस्थागत व्यवस्था को मजबूती प्रदान करने और सूचना साझा करने के तंत्र को लेकर सहमति बनी।
प्रगाढ़ बनाने के लिए प्रधानमंत्री मोदी भी इस तरह ही राष्ट्रप्रमुखों की मेजबानी करते दिखे हैं। वजह यही है कि तेजी से बदलती विश्व रणनीति में भारत बड़े ही संतुलन और सामंजस्य के साथ अपनी अलग छवि के साथ पहचान बना रहा है। यात्रा के दौरान प्रधानमंत्री मोदी और चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग दोनों देशों के बीच रणनीतिक बातचीत को और सुदृढ़ करने पर सहमत हुए। साथ ही चीन के भारत के मानवतावादी विचार पर भी ध्यान दिया और आतंकवाद को दोनों देशों के लिए खतरा भी माना।
दोनों नेताओं ने सरहदी इलाकों में हालात के प्रबंधन और बचाव के लिए वर्तमान संस्थागत तंत्र को मजबूत करने का फैसला किया है। दोनों देशों के नेताओं का मानना है कि सीमा वार्ता पर दोनों देशों के विशेष प्रतिनिधियों को निष्पक्ष, उचित और परस्पर स्वीकार्य हल की तलाश करने के लिए अपने प्रयासों को तेज करना होगा।
परस्पर मुद्दों का सम्मान
दोनों देशों के प्रमुखों के बीच कई दौर की बैठकों में आतंकवाद, जलवायु परिवर्तन व अन्य अंतरराष्ट्रीय मुद्दे छाए रहे, जिन पर दोनों नेताओं का एक समान नजरिया था। रणनीतिक व दीर्घकालिक परिप्रेक्ष्य में भारत-चीन संबंधों की प्रगति की समीक्षा भी प्रधानमंत्री मोदी और राष्ट्रपति शी ने की है।
साझा सूचना तंत्र
सीमा विवाद का हल
गोखले ने बताया, ‘भारत और चीन ने अफगानिस्तान में एक संयुक्त आर्थिक परियोजना पर काम करने को लेकर सहमति जताई।’ दोनों देशों का परस्पर संबंध तो मजबूत होगा ही, साथ ही भारतीय उपमहाद्वीप में विकास का नया जोर बढ़ेगा।
सीमा पर विश्वास बहाली
इस यात्रा के दौरान प्रधानमंत्री मोदी और राष्ट्रपति शी दोनों ने ही अपनी-अपनी सेना को सीमा मामलों के प्रबंधन में आपसी विश्वास बहाली के विभिन्न उपायों को अमल में लाने की दिशा में भरोसा व तालमेल बनाने के लिए एक-दूसरे से संवाद बढ़ाने का रणनीतिक निर्देश जारी किया।
निर्यात पर रजामंदी
यात्रा के दौरान द्विपक्षीय व्यापार और निवेश बातचीत का अहम हिस्सा रहा। प्रधानमंत्री मोदी और राष्ट्रपति शी ने इस बात को रेखांकित किया कि व्यापार संतुलित व दीर्घकालिक होना चाहिए। हमें दोनों अर्थव्यवस्थाओं की पूरकता का लाभ उठाकर अपने व्यापार और निवेश को बढ़ाना चाहिए। प्रधानमंत्री ने भी व्यापार को संतुलित करने की अहमियत का जिक्र किया और कहा कि चीन को कृषि जनित उत्पादों व औषधियों का निर्यात किया जा सकता है।
पीएम मोदी ने प्रतिनिधिमंडल स्तर की वार्ता के दौरान कहा कि इस तरह की अनौपचारिक बैठकों की दोनों देशों के बीच एक परंपरा बननी चाहिए। इसके लिए उन्होंने चीनी राष्ट्रपति को 2019 में भारत में इसी तरह की एक अनौपचारिक बैठक का न्योता भी दिया संवाद और आपसी समझ के लिहाज से इस अनौपचारिक यात्रा का फलक कितना बड़ा और सघन था इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि इस दौरान दोनों नेताओं की गंगा सफाई
अफगानिस्तान में परियोजना
समेत कई ऐसे मुद्दों पर बातचीत हुई, जिसके बारे में मीडिया भी पहले से कोई कयास नहीं लगा पाया था। यात्रा को लेकर विदेश मंत्रालय ने जानकारी दी कि दोनों नेताओं के बीच सीमा पर तनाव को कम
आतंकवाद पर समान नजरिया
प्रधानमंत्री मोदी और राष्ट्रपति शी ने माना कि आतंकवाद से उन्हें एक समान खतरे हैं और दोनों ने एक बार फिर इसकी कड़ी निंदा की। उन्होंने आतंकवाद से मुकाबला करने के मसले पर सहयोग को लेकर अपनी प्रतिबद्धता जाहिर की।
करने को लेकर सहमति दिखी और दोनों ने कहा कि वे अपनी सेनाओं को स्ट्रैटेजिक गाइडेंस देंगे। विदेश मंत्रालय के सचिव विजय गोखले ने बताया कि दोनों नेताओं के बीच व्यापार संतुलन और आतंकवाद को लेकर भी बातचीत हुई। उन्होंने बताया कि दोनों देशों के नेताओं ने आतंकवाद से लड़ने के प्रति प्रतिबद्धता जताई है। खुद चीनी राष्ट्रपति इस यात्रा को आत्मीयता और परस्पर संबंधों की प्रगाढ़ता को लेकर कितना महत्व दे रहे थे, इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि पीएम मोदी के सम्मान में दिए गए
04
आवरण कथा
07 - 13 मई 2018
चीन मान चुका है भारत का लोहा
भारत-चीन संबंधों के इतिहास में 2014 के बाद जो नए पन्ने जुड़े हैं, उसमें जहां दोनों देशों का वैश्विक रूप से बढ़ा सामर्थ्य अहम है, वहीं यह भी महत्वपूर्ण है कि चीन ने खुद आगे बढ़कर भारत की ताकत को सलाम किया है साहसिक फैसले लेने वाले नेता
न
रेंद्र मोदी ने जिस तरह 2014 में सार्क देशों के नेताओं की उपस्थिति में प्रधानमंत्री पद की शपथ ली, वह यह दिखाने के लिए काफी था कि देश का नेतृत्व अब ऐसे नेता के हाथों में है जो भारत की साख और ताकत को भारतीय सीमा से बाहर एक बड़ी स्वीकृति दिलाना चाहता है। आज विश्व बिरादरी में भारत की बढ़ती साख का परिणाम है कि चीन भारत का संवाद की मेज पर स्वागत करने के लिए हर समय लालायित रहता है। गौरतलब है कि आपसी मनमुटाव के बीच भी चीन ने भारत को अपना प्राकृतिक साथी कहा है और बार-बार यह दोहराया है कि आपसी मतभेदों से अधिक अहम हमारे साझा हित हैं। इसी को आगे बढ़ाते हुए चीन के वुहान शहर में दोनों देशों के शीर्ष नेता न सिर्फ मिले, बल्कि तमाम द्विपक्षीय मुद्दों के साथ ही अंतरराष्ट्रीय मुद्दों पर भी चर्चा की। आमतौर पर चीन बहुपक्षीय सम्मेलन ही बीजिंग से बाहर आयोजित करता है। जाहिर है कि चीन ने पीएम मोदी के हालिया दौरे को काफी अहम माना।
‘मोदी डॉक्ट्रिन’
जनवरी 2018 में चाइना इंस्टीट्यूट ऑफ इंटरनेशनल स्टडीज (सीआईआईएस) के उपाध्यक्ष रोंग यिंग ने कहा कि पिछले तीन साल से ज्यादा समय में भारत की कूटनीति काफी मजबूत हुई है। इस दौरान भारत ने एक अलग ‘मोदी डॉक्ट्रिन’ बनाई है। इसकी वजह से भारत एक महाशक्ति के तौर पर उभरा है और तभी से यह लग रहा था कि चीन भारत के साथ संबंधों को आगे ले जाने का इच्छुक है। दरअसल, मोदी सरकार पर यह अब तक चीनी थिंक टैंक का अपनी तरह का पहला लेख था। सीआईआईएस के मुताबिक, प्रधानमंत्री मोदी के तीन वर्षों के कार्यकाल के दौरान भारत और चीन के संबंधों में सधी हुई मजबूती आई है। लेख में कहा गया था, ‘चीन और भारत के बीच सहयोग तथा प्रतिस्पर्धा दोनों की स्थितियां हैं। चीन के लिए भारत काफी महत्वपूर्ण पड़ोसी और
संरक्षणवाद के खिलाफ लड़ने तथा वैश्वीकरण का समर्थन करने की जरूरत है। इसके लिए चीन भारत और अन्य देशों के साथ काम करना चाहता है।’
‘ब्रांड मोदी’ का वर्ष
चीनी मीडिया ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को भाजपा के तरकश का ऐसा हथियार करार दिया, जिसे परास्त करने का हौसला फिलहाल किसी में नहीं है। प्रधानमंत्री मोदी की छवि साहसिक और निर्णायक फैसले लेने वाले नेता की है। सिन्हुआ के आलेख के मुताबिक पीएम मोदी ने विमुद्रीकरण का फैसला लिया, पूरे देश में एक समान कर के लिए वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) को लागू किया। इतना ही नहीं, पीएम मोदी ने कालेधन के खिलाफ अभियान छेड़ा और जिन राज्यों में भाजपा की सरकार है, वहां भ्रष्टाचार के खिलाफ जोरशोर से अभियान भी चलाया जा रहा है।
विदेशी कंपनियों की पसंद भारत
अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था में सुधार के लिए अहम साझेदार है।’ लेख में इस बात को भी जोर देकर कहा गया है कि ‘पुराने प्रशासन की तुलना में मोदी डॉक्ट्रिन ने दक्षिण एशिया में भारत के प्रभाव को बढ़ाने की कोशिश की। पाकिस्तान को लेकर भारत सख्त है। मोदी सरकार को पीओके से भारत के खिलाफ काम कर रहे आतंकियों के बेस पर हमला करने में थोड़ी भी हिचकिचाहट नहीं हुई।’
दावोस में तारीफ
जनवरी महीने में ही चीन ने दावोस में विश्व आर्थिक मंच में दिए गए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के भाषण का स्वागत किया था। चीन ने खुलकर प्रधानमंत्री के भाषण को सराहा। दावोस में प्रधानमंत्री मोदी ने संरक्षणवाद को आतंकवाद की तरह ही खतरनाक बताया। भाषण की प्रशंसा करते हुए चीन के विदेश मंत्रालय की प्रवक्ता हुवा चुनयिंग ने कहा, ‘हमने प्रधानमंत्री मोदी का संरक्षणवाद के खिलाफ भाषण सुना। वैश्वीकरण समय का ट्रेंड है और यह विकासशील देशों के साथ सभी देशों के हितों को पूरा करता है।
चीन की सरकारी प्रेस एजेंसी सिन्हुआ ने वर्ष 2017 को ब्रांड मोदी का साल घोषित किया था। एजेंसी ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की तारीफ करते हुए उनकी नेतृत्व क्षमता को आकर्षित करने वाला एक विशेष आलेख जारी किया था। भारत में मोदी लहर का जिक्र करते हुए इस आलेख में कहा गया है कि इस वर्ष जितने भी राज्यों में चुनाव हुए हैं, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी बीजेपी के स्टार प्रचारक, भीड़ को खींचने वाले और विरोधियों के हमलों को कुंद करने वाले नेता साबित हुए हैं।
चीन के सरकारी अखबार ग्लोबल टाइम्स लिख चुका है कि भारत विदेशी कंपनियों के लिए खूब आकर्षण बन रहा है। अखबार ने एक लेख में कहा गया है कि कम लागत में उत्पादन धीरे-धीरे चीन से हट रहा है। अखबार ने लिखा कि भारत सरकार ने देश के बाजार के एकीकरण के लिए जीएसटी लागू किया है। यह अंतरराष्ट्रीय निवेशकों को आकर्षित करने वाला है। इस नई टैक्स व्यवस्था से ‘मेक इन इंडिया’ पहल को बढ़ावा मिलने की उम्मीद है, क्योंकि इसमें राज्य और केंद्र के विभिन्न करों को मिला दिया गया है। लेख में कहा गया है कि आजादी के बाद के सबसे बड़े आर्थिक सुधार जीएसटी से फॉक्सकॉन जैसी बड़ी कंपनी भारत में निवेश करने के अपने वादे के साथ आगे बढ़ेंगी।
भारत की कूटनीतिक शक्ति
एक दौर वह भी था जब भारत विश्व की महाशक्तियों के भरोसे रहता था। आज भारत बोलता है तो दुनिया सुनती है। बीते साढ़े तीन सालों में कई चीजें ऐसी हुई हैं, जिससे यह बात साबित होती है कि भारत को कोई हल्के में नहीं ले सकता। विशेषकर चीन को अब यह समझ आ गया है कि जब तक प्रधानमंत्री मोदी हैं, तब तक वह भारत पर अपनी शर्तें थोप नहीं सकता। चीन को यह भी स्पष्ट संदेश दिया जा चुका है कि भारत अपने हित को सर्वोपरि मानता है और देश हित से वह कतई समझौता नहीं करने जा रहा है।
07 - 13 मई 2018
जब जिनपिंग ने चलाया चरखा
भा
05
आवरण कथा
चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग 2014 में भारत दौरे पर आए तो अपनी यात्रा की शुरुआत अहमदाबाद से की। वे यहां पीएम मोदी के साथ साबरमती आश्रम देखने पहुंचे और चरखा भी चलाया
रत-चीन रिश्ते में तब एक नई गरमाहट तब आई, जब चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग सितंबर, 2014 में भारत दौरे पर आए। प्रोटोकाल छोड़ कर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने तब अपने गृह प्रदेश गुजरात में शी जिनपिंग का भव्य स्वागत किया। दरअसल, राष्ट्रपति पद का कार्यभार संभालने के एक वर्ष बाद चीनी नेता ने अपनी पहली भारत यात्रा की शुरुआत अहमदाबाद से की। अहमदाबाद में कारोबारी कामकाज पूरा करने के बाद दोनों नेताओं ने साबरमती नदी के तट पर ढलते सूरज के बीच साबरमती रिवरफ्रंट पर शाकाहारी गुजराती भोजन का लुत्फ उठाया। दरअसल, मोदी ने शी की इस यात्रा को अलग रूप प्रदान करने का प्रयास किया और अहमदाबाद में शी और उनकी पत्नी के लिए बेहतरीन मेजबान की भूमिका निभाई। शी विशिष्ट प्रतिनिधिमंडल के साथ एयर चाइना के विशेष विमान से अहमदाबाद पहुंचे थे। शी जब यहां के हयात होटल आए, तो वहां मोदी ने उनकी अगवानी की। इस दौरान शी और उनकी पत्नी के स्वागत में शहर में विभिन्न स्थानों पर बड़े-बड़े होर्डिंग लगाए गए थे, जो चीनी, गुजराती और अंग्रेजी भाषा में थे।
भी हुई। चीनी अतिथियों के लिए इस यात्रा को यादगार बनाने के लिए इस दौरान पारंपरिक गरबा, लोक नृत्य, तबला बादन जैसे सांस्कृतिक कार्यक्रमों का भी आयोजन किया गया।
महात्मा गांधी के साबरमती आश्रम देखने के बाद मोदी, चीनी राष्ट्रपति और उनकी पत्नी के साथ साबरमती रिवरफ्रंट पहुंचे। रिवरफ्रंट पर शी और मोदी गुजराती स्टाइल में बने झूले पर साथ बैठे और दोनों नेताओं के बीच कुछ देर बातचीत
चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग अहमदाबाद पहुंचने के कुछ समय बाद भारतीय पहनावे में दिखाई दिए। दरअसल, उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा उपहार में दी गई खादी जैकेट पहन रखी थी। शी जब साबरमती आश्रम गए तो उन्होंने अपनी
गुजराती संस्कृति में ढले शी
दोपहर के भोज के लिए जो मेन्यू कार्ड तैयार किया गया, उसे तिरंगे से सजाया गया था। इस पर राष्ट्रीय पक्षी मोर के चित्र को भी दर्शाया गया था। इस यात्रा का एक बड़ा हासिल दोनों ही मुल्कों के लिहाज से यह रहा कि दोनों शीर्ष नेता पीपल-टूपीपल संबंधों को मजबूत करने के लिए सांस्कृतिक
संकेत के तौर पर देखा गया और इसकी चर्चा भारतीय ही नहीं, बल्कि चीनी मीडिया में भी हुई।
चीनी भाषा में अनुदित गीता भेंट
खादी जैकेट में शी
आदान-प्रदान को बढ़ाने पर भी सहमत हुए। साथ ही दोनों के बीच व्यापार संतुलन को लेकर भी बातचीत हुई। यही नहीं, सूत्रों की मानें तो दोनों ही देश मिलकर अफगानिस्तान में साझा आर्थिक परियोजना भी शुरू कर सकते हैं। प्रधानमंत्री मोदी और चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग की 24 घंटों के
सफेद शर्ट के ऊपर चमकती क्रीम रंग की खादी जैकेट पहन रखी थी। चीनी राष्ट्रपति और मोदी ने आश्रम में हृदय कुंज में कुछ मिनट बिताए जहां शी ने चरखा चलाया। साबरमति आश्रम में शी और उनकी पत्नी के भ्रमण के दौरान जहां पीएम मोदी एक गाइड की भूमिका में नजर आए, वहीं महात्मा गांधी के आश्रम और वहां चल रही गतिविधियों में विदेशी मेहमानों ने विशेष रूप से दिलचस्पी दिखाई। खासतौर पर जब आश्रम में जब उन्होंने चरखा चलाया तो इसकी तस्वीर को एक सकारात्मक
दौरान 6 बार हुई इन मुलाकातों से एक बात तो तय है कि दोनों ही देशों की आपसी सहमति और सहयोग एशिया के साथ-साथ विश्व को भी एक नया दृष्टिकोण दे सकता है। चीन की दो दिवसीय यात्रा पूरी करके प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी स्वदेश लौट आए हैं और अब उनकी
जब चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने महात्मा गांधी के साबरमती आश्रम का दौरा किया, तो वहां उन्हें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने चीनी भाषा में अनुदित गीता की प्रति भेंट की। इससे पहले साबरमती नदी तट पर स्थित इस शांतिपूर्ण आश्रम के द्वार पर मोदी और गुजरात की तत्कालीन मुख्यमंत्री आनंदी बेन पटेल ने शी की अगवानी की। मोदी एवं आनंदी ने उन्हें सूत की माला भेंट की और वे आश्रम में उनके साथ विभिन्न कक्षों में गए। महात्मा गांधी और उनकी पत्नी कस्तूरबा गांधी ने यहां 12 साल बिताए थे। बाद में शी ने वहां गांधीजी की प्रतिमा पर श्रद्धांजलि अर्पित की। मोदी ने इस अवसर पर चीनी राष्ट्रपति को हिंदी एवं अंग्रेजी में गांधीजी द्वारा लिखी गई कृतियों के बारे में भी बताया। शी ने आश्रम की आंगुतक पुस्तिका में चीनी भाषा में अपनी टिप्पणी लिखी। वे गांधीजी के निजी कक्ष हृदयकुंज भी गए और उनकी मूर्ति को सूत की माला पहनाई। पीएम मोदी ने इस मौके पर शी को स्मृति चिह्न प्रदान किए जिनमें गांधीजी पर पुस्तकें और चित्र शामिल थे। इस दौरान साबरमती आश्रम न्यास ने चीनी राष्ट्रपति को उस चरखे की प्रतिकृति भेंट की जिसे गांधीजी ने पुणे के समीप यरवदा जेल में इस्तेमाल किया था। शी को उस मूल प्रमाण पत्र की प्रति भी दी गई, जो गांधीजी को 1915 में दक्षिण अफ्रीका में चीन मूल के लोगों ने दी थी।
यात्रा को लेकर मीडिया से लेकर सोशल मीडिया पर एक समीक्षाओं का दौर है। दिलचस्प यह कि इन तमाम समीक्षाओं में इस बात की अहमियत को स्वीकार किया गया है कि एक अनौपचरिक किस्म की यात्रा भी कैसे दो मुल्कों के संबंधों को सद्भाव की तरफ आगे ले जा सकती है। इस यात्रा के दौरान
06
आवरण कथा
07 - 13 मई 2018
संबंध, सरोकार और यात्रा
भा
रत और चीन दुनिया की सबसे पुरानी सभ्यताएं ही नहीं, बल्कि तेजी से विकास करती दुनिया की दो बड़ी अर्थव्यवस्थाएं भी हैं। भारत और चीन के रिश्ते समय-समय पर संघर्ष और सहयोग दोनों के गवाह बने। हालांकि 1962 के युद्ध ने ‘हिंदी-चीनी भाई-भाई’ के नारे को काफी हद तक खामोश कर दिया। सीमा विवाद को लेकर दोनों देशों के बीच अब भी कुछ मतभेद हैं, लेकिन आपस में इनके व्यापारिक रिश्ते फल-फूल रहे हैं।
चीन जाने वाले छठे पीएम हैं मोदी
नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने से पहले 67 वर्ष में पांच प्रधानमंत्रियों ने चीन का दौरा किया था। इनमें जवाहरलाल नेहरू, राजीव गांधी, नरसिंह राव, अटल बिहारी वाजपेयी और मनमोहन सिंह शामिल हैं।
मनमोहन का रिकॉर्ड टूटा
पीएम मोदी सबसे ज्यादा चौथी बार चीन का दौरा करने वाले पहले प्रधानमंत्री हैं। उनसे पहले पहले मनमोहन सिंह तीन बार चीन गए थे।
प्रोटोकॉल तोड़ा
नरेंद्र मोदी ऐसे पहले पीएम हैं जिनके लिए चीनी राष्ट्रपति जिनपिंग ने प्रोटोकॉल तोड़कर अनौपचारिक बातचीत की है। अभी तक मोदी की आधिकारिक मुलाकात
पंचशील नमो मंत्र
साझा संकल्प
विज
न
रिश्ते
संव ेबहतर
ाद
स
ान
मजबूत
मान
सम
च सो
अ
प्रधानमंत्री ली केकियांग से होती रही थी। केकियांग के बाद वे जिनपिंग से मिलने जाते थे।
11वीं बार वार्ता
मोदी-जिनपिंग के बीच इस बार 11वीं बार बातचीत हुई। इससे पहले पीएम मोदी सबसे ज्यादा 8 बार अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा से मिले थे।
जून में फिर चीन दौरा
प्रधानमंत्री मोदी इस साल जून में एक बार फिर शंघाई को-ऑपरेशन ऑर्गेनाइजेशन की बैठक में शामिल होने चीन जाएंगे। इसके अलावा वे वहां जी-20 और ब्रिक्स सम्मेलन में हिस्सा लेने जा चुके हैं, जबकि 4 साल में चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग सिर्फ एक बार भारत आए हैं।
55वीं बार विदेश यात्रा
भारत के साथ पूरी दुनिया को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को एक ऐसे स्टेट्समैन के रूप में देखा जाता है, जो अंतरराष्ट्रीय संबंधों के मामले में न सिर्फ दूरदर्शी समझ के नेता हैं, बल्कि उन्होंने द्विपक्षीय और बहुपक्षीय संबंधों के लिहाज से अपने अब तक के कार्यकाल में कई तारीखी सुलेख लिखे हैं। यही कारण है कि वे लगातार विदेश दौरे पर रहते हैं। पीएम बनने के बाद नरेंद्र मोदी ने चीन जाकर 47 महीने में 55वीं बार विदेश दौरा किया है।
पंचशील की नई व्याख्या
पने दौरे के दौरान पीएम नरेंद्र मोदी ने चीन के सामने 21वीं सदी के पंचशील की नई व्याख्या पेश की। उन्होंने कहा, ‘अगर हम समान विजन, मजबूत रिश्ते, साझा संकल्प, बेहतर संवाद और समान सोच के पांच सिद्धांतों वाले पंचशील के रास्ते पर चलें तो इससे विश्व शांति, स्थिरता और समृद्धि आएगी।’ इस पर चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने कहा कि उनका देश मोदी के बताए पंचशील के इन नए सिद्धांतों से प्रेरणा लेकर भारत के साथ सहयोग एवं काम करने को तैयार है। इससे पहले चीन और भारत के बीच पंचशील समझौते को लेकर 31 दिसंबर, 1953 और 29 अप्रैल, 1954 को बैठकें हुई थीं, जिसके बाद बीजिंग में इस पर हस्ताक्षर हुए थे। तब इस सिद्धांत के तहत आपसी सहमति के आधार पर ये पांच बातें तय की गईं थीं1. एक दूसरे की अखंडता और संप्रभुता का सम्मान 2. परस्पर आक्रमकता से बचना
3. एक दूसरे के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप नहीं करना 4. समान और परस्पर लाभकारी संबंध 5. शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व
07 - 13 मई 2018
प्र
आवरण कथा
07
‘मोदीमय’ हुआ चीनी मीडिया
धानमंत्री नरेंद्र मोदी और राष्ट्रपति शी जिनपिंग के बीच वुहान शहर में हुई अनौपचारिक शिखर वार्ता को लेकर चीन की मीडिया में जबरदस्त उत्साह और जोश देखा गया। चीनी समाचार पत्रों को राष्ट्रपति शी चिंनपिंग से कहीं अधिक भारत के प्रधानमंत्री से उम्मीदें हैं। चीन की मीडिया ने उम्मीद जताई कि इस शिखर वार्ता से भारत और चीन के रिश्तों में एक नए युग की शुरुआत होगी। चीनी मीडिया में प्रधानमंत्री मोदी पर विशेष लेख और समाचार तस्वीरों के साथ प्रकाशित किए गए। चीन के समाचार पत्रों का इस तरह मोदीमय हो जाना एक सुखद आश्चर्य है। आइए, मोदीमय हुए चीन के समाचार पत्रों पर एक नजर डालते हैंचीन का प्रतिष्ठित ‘चाइना डेली’ ने आशाओं से भरे लेख में लिखा कि प्रधानमंत्री मोदी की इस यात्रा से दोनों देशों के रिश्तों में एक जबरदस्त सुधार होने की संभावना है। भारत के तिरंगे और चीन के राजकीय निशान की तस्वीर के साथ यह लेख प्रकाशित किया है। चीन सरकार के मुख पत्र माने जाने वाले ‘ग्लोबल टाइम्स’ ने भारतीय हाथी और चीन के पांडा को एक दूसरे से हाथ मिलाते हुए कार्टून के साथ लेख प्रकाशित किया। लेख कहता है
कि भारतीय प्रधानमंत्री मोदी और राष्ट्रपति शी जिनपिंग की अनौपचारिक शिखर वार्ता से भारतचीन के रिश्तों में एक नए युग की शुरुआत होगी। इस नए युग की शुरुआत करने के पीछे के कारणों पर भी विस्तार से चर्चा है। प्रधानमंत्री मोदी और राष्ट्रपति शी जिनपिंग की हाथ मिलाते हुए तस्वीर के साथ ‘न्यू चाइना’ ने भारत में चीन के राजदूत के हवाले से खबर प्रकाशित की है। रिपोर्ट कहती है कि प्रधानमंत्री मोदी के इस अनौपचारिक शिखर वार्ता से दोनों देशों के बीच व्यापार और एकता अधिक मजबूत होगी। चीन के प्रभावशाली समाचारपत्र ‘सिन्हुआ’ ने प्रधानमंत्री मोदी और शी जिनपिंग की वार्ता से भारत-चीन के संबंधों को मिलने वाली सकारात्मक दिशा पर विशेष लेख प्रकाशित किया। ‘चाइना डेली’ ने प्रधानमंत्री मोदी की यात्रा से दोनों देशों के व्यापार पर पड़ने वाले सकारात्मक प्रभाव की खबर को वाणिज्य पेज पर प्रकाशित किया। चीनी सरकार के मुखपत्र ‘ग्लोबल टाइम्स’ ने भी प्रधानमंत्री मोदी की यात्रा से दोनों देशों के व्यापारिक संबधों पर पड़ने वाले सकारात्मक प्रभावों की खबर वाणिज्य पेज पर प्रकाशित की। साफ है कि प्रधानमंत्री मोदी की चीन यात्रा ने चीन में एक नई आशा का संचार कर दिया है।
भूगोल, आबादी और आर्थिक क्षमता के लिहाज से चीन हमारा ऐसा ऐतिहासिक पड़ोसी देश है, जिसके साथ हमारे सांस्कृतिक संबंध भी हजारों वर्ष पुराने हैं और दोनों देशों की संस्कृतियां भी प्राचीनतम हैं न तो कोई समझौता हुआ है और न ही कोई संयुक्त वक्तव्य जैसा प्रपत्र जारी हुआ, जबकि आपसी समझ के स्तर पर दोनों ही देशों में नई उम्मीद पैदा हुई । इस यात्रा का कोई घोषित एजेंडा था भी नहीं, बल्कि इसे दोनों देशों के मध्य विभिन्न मुद्दों पर
आपसी सहमति बनाने की तरफ एक प्रयास के रूप में देखा जा रहा था। चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग के आजीवन पद पर बने रहने पर चीनी कम्युनिस्ट पार्टी की स्वीकृति के बाद पीएम मोदी की उनके साथ वार्ता कई
प्रधानमंत्री मोदी के इस अनौपचारिक शिखर वार्ता से दोनों देशों के बीच व्यापार और एकता अधिक मजबूत होगी
मायनों में महत्वपूर्ण है। 2006 में देश के तत्कालीन रक्षामंत्री के तौर पर चीन की सात दिवसीय यात्रा करने वाले पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी का बीजिंग की धरती पर दिया गया यह बयान वर्तमान दौर का शिलालेख बन चुका है कि ‘आज का भारत 1962 का भारत नहीं है’ तब प्रणब मुखर्जी ने कहा था कि 21वीं सदी को एशिया की सदी बनाने के लिए यह बहुत जरूरी है कि भारत और चीन मिल कर आपसी सहयोग करते हुए अपने-अपने विकास का रास्ता तय करें। अहम बात यह है कि भूगोल,
आबादी और आर्थिक क्षमता के लिहाज से चीन हमारा ऐसा ऐतिहासिक पड़ोसी देश है, जिसके साथ हमारे सांस्कृतिक संबंध भी हजारों वर्ष पुराने हैं और दोनों देशों की संस्कृतियां भी प्राचीनतम हैं। मोदी की यात्रा से दोनों देशों के बीच यदि आपसी संबंधों की पेचीदगियां समझ कर उन्हें सुलझाने का रास्ता बनता है तो निश्चित रूप से भारत और चीन मिलकर दुनिया में शांति और सह-अस्तित्व का वह मार्ग पुनः खोल सकते हैं जिसके लिए भारत जाना जाता है।
08
विशेष
07 - 13 मई 2018
रवींद्रनाथ टैगोर जयंती (7 मई) पर विशेष
आधुनिक भारत का महानतम संस्कृति-पुरुष कविता और संगीत ये दोनों ऐसे गुण थे, जो टैगोर में जन्मजात थे इसीलिए उन्होंने बड़े होकर लिखा भी ‘मुझे ऐसा कोई समय याद नहीं, जब मैं गा नहीं सका’
ए
एसएसबी ब्यूरो
क संस्कृति-पुरुष किस तरह किसी देश की चेतना की आधुनिक मनोभूमि को न सिर्फ रच सकता है, बल्कि उससे आगे स्वाधीनता और उच्च मानवीय भावबोध का प्रखर वाहक बन सकता है, कविगुरु रवींद्रनाथ टैगोर इसकी सबसे बड़ी मिसाल हैं। उन्होंने जहां एक तरफ भारतीय दर्शन और चिंतन परंपरा को विचार, विमर्श और बोध के नए वैश्विक संदर्भों के बीच रेखांकित और सम्मानित किया, वहीं उन्होंने प्रकृति से लेकर मानवता तक के लिए दुनिया को एक आधुनिक व संवेदनशील नजरिया दिया। उन्हीं के शब्द हैं‘मेरा घर सब जगह है, मैं इसे उत्सुकता से खोज रहा हूं। मेरा देश भी सब जगह है, इसे मैं जीतने के लिए लड़ूंगा। प्रत्येक घर में मेरा निकटतम संबंधी रहता है, मैं उसे हर स्थान पर तलाश करता हूं।’
शायद यह कोई तलाश ही थी कि वह अक्सर अपनी खिड़की से प्रकृति को घंटों एक टक निहारते रहते। उन्हें प्रकृति स्वयं से बात करती हुई प्रतीत होती। लगता जैसे खुला नीला आकाश, चहचहाते पक्षी, हरियाली, शीतल पवन और प्रकृति की हर वस्तु उसे अपने पास बुला रही है। वे कल्पना की मोहक दुनिया में खो जाते। यह उनका प्रकृति के प्रति आकर्षण और संवेदना ही थी कि महज आठ वर्ष की आयु में ही वे कविताएं रचने लगे। उस समय किसी ने सोचा भी नहीं था कि बड़ा होकर यह बालक महान साहित्यकार, चित्रकार और विचारक रवींद्रनाथ टैगोर के नाम से विश्व विख्यात होगा। टैगोर का जन्म 7 मई सन 1861 को कोलकाता
में हुआ था। उनके पिता देवेंद्रनाथ टैगोर व माता शारदा देवी उन्हें प्यार से ‘रवि’ कहकर पुकारते थे। उन दिनों बच्चों के लिए मनोरंजन के कोई विशेष साधन नहीं थे। इसीलिए नन्हा रवि अपनी कल्पना की दुनिया में ही मस्त रहता जिसमें उनके मित्र, राजकुमार, जादुगरनियां, परियां व राक्षस होते। प्रकृति से रवि को इतना प्रेम था कि सुबह उठते ही वह बगीचे की ओर भाग जाते और ओस से गीली हरी घास का स्पर्श करते। बगीचे में पत्तों पर पड़ती सूर्य की पहली किरण और ताजा खिले फूलों की महक उसका मन मोह लेती। 1868 में उन्हें विद्यालय में प्रवेश दिलाया गया, पर उन्हें वहां का परिवेश कारागार की तरह लगता। इस तरह शिक्षा की औपचारिक और सपाट दुनिया
1915 में अंग्रेजों द्वारा उन्हें ‘सर’ की उपाधि दी गई। अप्रैल 1919 में जलियांवाला बाग हत्याकांड हुआ। इस बर्बर हत्याकांड के विरोध में उन्होंने अंग्रेज सरकार द्वारा प्रदान की गई ‘सर’ की उपाधि का त्याग कर दिया
खास बातें टैगोर का जन्म 7 मई सन 1861 को कोलकाता में हुआ था 1883 में उनका विवाह मृणालिनी देवी से हुआ पत्नी की सहमति से ही की शांति निकेतन की स्थापना से वे दूर होते गए और आकार लेता चला गया 20वीं सदी के सबसे बड़े कवि और संस्कृति-पुरुष का व्यक्तित्व, उनकी रचना और चिंतन की मुक्त दुनिया। कविता और संगीत ये दोनों ऐसे गुण थे, जो
07 - 13 मई 2018
विशेष
विश्व कल्याण के हिमायती
क
हर विषय में टैगोर का दृष्टिकोण परंपरावादी कम और तर्कसंगत ज्यादा हुआ करता था, जिसका संबंध विश्व कल्याण से होता था
विगुरु मानवता को अंध देशभक्ति से कहीं ज्यादा ऊंचे स्थान पर रखते थे। नोबेल पुरस्कार विजेता अमर्त्य सेन ने अपनी किताब ‘आरगुमेंटिव इंडियन’ में टैगोर संबंधित एक अध्याय ‘टैगोर और उनका भारत’ में टैगोर के राष्ट्रीयता और देशभक्ति से जुड़े विचारों का वर्णन किया है। प्रस्तुत है उसी अध्याय के कुछ संपादित अंश – ‘सामाजिक कार्यकर्ता और पादरी सीएफ एंड्रूयज, महात्मा गांधी और टैगोर के करीबी मित्रों में से एक थे। एंड्रूयज इन दोनों के बीच की चर्चा का वर्णन करते हुए बताते हैं– ‘दोनों के विचार कई मुद्दों पर बंटे हुए रहते थे। चर्चा का पहला विषय होता था मूर्ति पूजा। गांधी इसके पक्षधर थे, क्योंकि उन्हें लगता था कि जनता इतनी जल्दी किसी भी निराकार, अमूर्त रूप को स्वीकार करने के लायक नहीं हैं। वहीं टैगोर जनता को हमेशा बच्चा समझे जाने के पक्ष में नहीं रहते थे। गांधी यूरोप का उदाहरण देते थे, जहां झंडे को आराध्य समझकर काफी कुछ हासिल किया गया। टैगोर इससे सहमत नहीं दिखते थे। दूसरा मुद्दा राष्ट्रीयता का होता था, गांधी इसका बचाव करते थे। वह कहते थे कि अंतरराष्ट्रीयता को हासिल करने के लिए राष्ट्रीयता से गुजरना जरूरी है। जिस तरह शांति को हासिल करने के लिए युद्ध से गुजरना आवश्यक है।’ टैगोर के मन में गांधी जी के लिए बहुत आदर था, लेकिन वह उनसे कई बातों पर उतनी ही असहमति भी दिखाते थे। राष्ट्रीयता, देशभक्ति, सांस्कृतिक विचारों की अदलाबदली, तर्कशक्ति ऐसे ही कुछ मसले थे। हर विषय में टैगोर का दृष्टिकोण परंपरावादी कम और तर्कसंगत ज्यादा हुआ करता था, जिसका संबंध विश्व कल्याण से होता था। आजादी से जुड़े आंदोलनों को टैगोर का पूरा समर्थन था, लेकिन देशभक्ति को लेकर उनके मन में कुछ संदेह भी थे। टैगोर मानते थे कि देशभक्ति ‘चारदीवारी’ से बाहर विचारों से जुड़ने की आजादी से हमें रोकती है, साथ ही दूसरे देशों की जनता के दुख दर्द को समझने की स्वतंत्रता को भी सीमित कर देती है। आजादी के प्रति उनके जुनून में उस परंपरावाद का विरोध भी शामिल था, जो उनके मुताबिक, किसी को भी अपने अतीत का बंदी बना लेता है। आजादी की लड़ाई के दौरान होने वाले आंदोलनों में अतिरेक राष्ट्रवादी रुख की टैगोर हमेशा निंदा करते थे। यही वजह थी कि वह समकालीन राजनीति से खुद को दूर भी रखते थे। वह आजाद भारत की कल्पना करते थे, लेकिन वह यह भी मानते थे कि घोर राष्ट्रवादी रवैये और स्वदेशी भारतीय परंपरा की चाह में पश्चिम को पूरी तरह नकार देने से कहीं न कहीं हम खुद को सीमित कर देंगे। यही नहीं, स्वदेशी की इस अतिरिक्त चाह में हम अलग-अलग शताब्दी में भारत पर अपनी छाप छोड़ चुके ईसाई, यहूदी, पारसी और इस्लाम धर्म के प्रति भी असहिष्णु रवैया पैदा कर लेंगे। टैगोर लगातार अपने लेखन में अंध देशभक्ति की आलोचना करते नजर आते थे। 1908 में ही वैज्ञानिक जगदीश चंद्र बोस की पत्नी अबला बोस की एक आलोचना का जवाब देते हुए उन्होंने इस मामले में अपना रुख साफ कर दिया था। टैगोर ने लिखा ‘देशभक्ति
हमारा आखिरी आध्यात्मिक सहारा नहीं बन सकता, मेरा आश्रय मानवता है। मैं हीरे के दाम में ग्लास नहीं खरीदूंगा और जब तक मैं जिंदा हूं मानवता के ऊपर देशभक्ति की जीत नहीं होने दूंगा।’ टैगोर का उपन्यास ‘घर-बाहर’ भी देशभक्ति की रुमानियत पर आधारित है। इस कहानी में नायक निखिल सामाजिक सुधार और महिला सशक्तिकरण के लिए आवाज उठाता है, लेकिन राष्ट्रवाद को लेकर थोड़ा नरम पड़ जाता है। उसकी प्रेमिका विमला, उसके इस रुख से नाराज हो जाती है। वह चाहती है कि निखिल भी अंग्रेज़ों के खिलाफ नारे लगाए और अपनी देशभक्ति का परिचय दे। इस बीच विमला को निखिल के दोस्त संदीप से प्यार हो जाता है, जो बहुत अच्छा भाषण देता है और एक देशभक्तिपूर्ण योद्धा की तरह नजर आता है। विमला के इस फैसले के बावजूद निखिल अपने विचार नहीं बदलता और कहता है ‘मैं देश की सेवा करने के लिए हमेशा तैयार हूं, लेकिन मेरी पूजा का हकदार सत्य है।’ कहानी में आगे संदीप उन लोगों की तरफ नाराजगी जताता है, जो आंदोलन में भाग नहीं ले रहे हैं और उनकी दुकानों पर हमला करने की योजना बनाता है। विमला को संदीप की राष्ट्रवादी भावनाओं और इन हिंसक गतिविधियों के बीच का धागा समझ आता है। निखिल अपनी जान पर खेलकर पीड़ितों को बचाता है और इस तरह विमला का राजनीति के प्रति प्रेम खत्म होता है। टैगोर के इस उपन्यास की कई खेमों आजादी की लड़ाई के दौरान होने में निंदा हुई, लेकिन कुछ वाले आंदोलनों में अतिरेक राष्ट्रवादी विचारकों ने इसे एक रुख की टैगोर हमेशा निंदा करते थे। ‘चेतावनी’ बताया, जो पक्षपातपूर्ण रवैये से यही वजह थी कि वह समकालीन राष्ट्रवाद के नाम पर राजनीति से खुद को दूर भी रखते थे भटकाव की तरफ इशारा करता है।
09
10
विशेष
07 - 13 मई 2018
जीवन में परिवर्तन लाने वाले विचार
रवींद्रनाथ टैगोर ने कविताएं लिखने के साथ ही सफल जीवन जीने को लेकर भी कई विचार दिए हैं। उनके कई ऐसे विचार जो आपके जीवन में बड़ा परिवर्तन ला सकते हैं
आइए हम यह प्रार्थना न करें कि हमारे ऊपर खतरे न आएं, बल्कि यह प्रार्थना करें कि हम उनका निडरता से सामना कर सकें। सिर्फ खड़े होकर पानी को ताकते रहने से आप समुद्र को पार नहीं कर सकते।
आश्रय के एवज में यदि आश्रितों से काम ही लिया गया, तो वह नौकरी से भी बदतर है। उससे आश्रयदान का महत्व ही जाता रहता है।
प्रत्येक शिशु यह संदेश लेकर आता है कि ईश्वर अभी मनुष्यों से निराश नहीं हुआ है।
फूल की पंखुड़ियों को तोड़ कर आप उसकी सुंदरता को इकठ्ठा नहीं कर सकते।
हमेशा तर्क करने वाला दिमाग धार वाला वह चाकू है, जो प्रयोग करने वाले के हाथ से ही खून निकाल देता है।
बर्तन में रखा पानी हमेशा चमकता है और समुद्र का पानी हमेशा गहरे रंग (अस्पष्ट) का होता है। लघु सत्य के शब्द हमेशा स्पष्ट होते हैं, महान सत्य मौन रहता है।
केवल प्रेम ही वास्तविकता है, यह महज एक भावना नहीं है। यह एक परम सत्य है जो सृजन के हृदय में वास करता है।
मैंने स्वप्न देखा कि जीवन आनंद है। मैं जागा और पाया कि जीवन सेवा है। मैंने सेवा की और पाया कि सेवा में ही आनंद है।
किसी बच्चे की शिक्षा अपने ज्ञान तक सीमित मत रखिए, क्योंकि वह किसी और समय में पैदा हुआ है।
चंद्रमा अपना प्रकाश संपूर्ण आकाश में फैलाता है, परंतु अपना कलंक अपने ही पास रखता है।
जिस तरह घोंसला सोती हुई चिड़िया को आश्रय देता है, उसी तरह मौन तुम्हारी वाणी को आश्रय देता है।
तर्कों की झड़ी, तर्कों की धूल और अंधबुद्धि, ये सब आकुल-व्याकुल होकर लौट जाती हैं। किन्तु विश्वास तो अपने अंदर ही निवास करता है, उसे किसी प्रकार का भय नहीं है।
देश का जो आत्माभिमान, हमारी शक्ति को आगे बढ़ाता है, वह प्रशंसनीय है। पर जो आत्माभिमान हमें पीछे खींचता है, वह सिर्फ खूंटे से बांधता है, यह धिक्कार योग्य है।
बीज के हृदय में प्रतीक्षा करता हुआ विश्वास जीवन में एक महान आश्चर्य का वादा करता है, जिसे वह उसी समय सिद्ध नहीं कर सकता।
जो आत्मा शरीर में रहती है, वही ईश्वर है और चेतना रूप से विवेक के द्वारा शरीर के सभी अंगों से काम करवाती हैं। लोग उस अंतर्देव को भूल जाते हैं और दौड़-दौड़ कर तीर्थों में जाते हैं।
कट्टरता सच को उन हाथों में सुरक्षित रखने की कोशिश करती है जो उसे मारना चाहते हैं।
उच्चतम शिक्षा वह है, जो हमें सिर्फ जानकारी ही नहीं देती, बल्कि हमारे जीवन में समस्त अस्तित्व के साथ सद्भाव भी लाती है।
हर एक कठिनाई जिससे आप मुंह मोड़ लेते हैं, एक भूत बन कर आपकी नींद में बाधा डालेगी।
07 - 13 मई 2018
11
विशेष
नोबेल ‘गीतांजलि’ रवींद्रनाथ टैगोर को 1913 में साहित्य के लिए नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया। साहित्य के क्षेत्र में नोबेल पाने वाले वे अकेले भारतीय हैं
उनके गीतों में से एक ‘आमार सोनार बांग्ला’ बांग्लादेश का राष्ट्रीय गीत है और उन्हीं का गीत ‘जन-गन-मन अधिनायक जय हे’ हमारा राष्ट्रगान है टैगोर में जन्मजात थे। उन्होंने बड़े होकर लिखा भी ‘मुझे ऐसा कोई समय याद नहीं, जब मैं गा नहीं सका।’ उनके माता-पिता ने जब देखा की रवि छोटी उम्र में ही कविता रचने लगा है तो वे बहुत खुश हुए।17 वर्ष की उम्र में टैगोर को उच्च शिक्षा प्राप्त करने के लिए उनके परिवार ने इंग्लैंड भेज दिया। उन्होंने लंदन विश्वविद्यालय से कानून की पढ़ाई की, लेकिन 1880 में बिना डिग्री लिए भारत लौट आए। हालांकि वहां से चित्रकारी और लेखन में और अधिक निपुण होकर भारत लौटे। 1883 में उनका विवाह मृणालिनी देवी से हुआ। यह समय उनके लिए पारिवारिक अनुशासन से मुक्त होकर अपने मुताबिक जीने का भी था। उनके पिताजी ने कहा, ‘रवि, मैं सोचता हूं कि की अब तुम अपनी जमींदारी संभालने योग्य हो गए
मेरे बादल में मादल बजे - रवींद्रनाथ टैगोर
बादल मेघे मादल बाजे, गुरु गुरु गगन माझे। मेघ बादल में मादल बजे,
गगन में सघन सघन वो बजे।। उठ रही कैसी ध्वनि गंभीर,
हृदय को हिला-झुला वो बजे। डूब अपने में रह-रह बजे।।
गान में कहीं प्राण में कहीं— कहीं तो गोपन थी यह व्यथा
आज श्यामल वन छाया बीच फैलकर कहती अपनी कथा। गान में रह-रह वही बजे।।
(मूल बांगला से वरिष्ठ कवि प्रयाग शुक्ल द्वारा अनुवादित)
हो, तो तुम्हारा क्या विचार है?’ टैगोर यह सुनकर खुश हो गए, क्योंकि वे हमेशा ही प्रकृति के बीच रहना पसंद करते थे। इसीलिए वे अपने गांव चले गए। यह उनके जीवन का पहला अवसर था जब वे ग्रामीण जनता और परिवेश के इतने अधिक निकट आए। उन्होंने अनुभव किया कि भारत की प्रगति के लिए गांव-देहात का विकास आवश्यक है। वे अपने काश्तकारों से इतना प्रेम करते थे कि वे लोग उनके बारे में कहा करते थे, ‘हमने पैगंबर को तो नहीं देखा, लेकिन अपने बाबू मोशाय को देखा है।’ टैगोर ने जब देखा कि गरीब और अशिक्षित किसान अंधविश्वासों में जकड़े हुए हैं तो उन्होंने उनके लिए एक स्कूल खोलने का निश्चय किया। उन्होंने पत्नी से पूछा, ‘हमारे पास पश्चिम बंगाल में बोलपुर के निकट कुछ भूमि है। वहां स्कूल खोलने के बारे में तुम्हारे क्या विचार हैं?’ ‘यह अत्यंत पवित्र कार्य होगा’, मृणालिनी बोलीं। हालांकि इसके बाद मृणालिनी ने टैगोर को थोड़ा छेड़ते हुआ कहा- ‘लेकिन मैंने तो सुना है कि आपने तो कभी स्कूल में पढ़ना पसंद ही नहीं किया।’ तब टैगोर बोले, ‘हां, सच है, लेकिन मैंने ऐसे स्कूल को खोलने की योजना बनाई है, जो चारदिवारों से घिरा नहीं होगा।’ वास्तव में उन्होंने जिस प्रकार से स्कूल की कल्पना की उसे साकार भी किया। गुरुदेव 1901 में सियालदह छोड़कर बोलपुर आ गए। प्रकृति की गोद में पेड़ों, बगीचों और एक लाइब्रेरी के साथ टैगोर ने शांति निकेतन की स्थापना की। आज विश्व भारती (शांति निकेतन) के रूप में एक ऐसा शैक्षणिक परिसर हमारे सामने है, जहां कक्षाएं खुले वातावरण में वृक्षों के नीचे लगती हैं। टैगोर ने यहीं अपनी कई साहित्यिक कृतियां लिखीं थीं और यहां मौजूद उनका घर ऐतिहासिक महत्व का है। 28 दिसंबर 1921 को इस अनूठे शैक्षणिक परिसर को देश को समर्पित करते हुए रवींद्रनाथ टैगोर ने कहा-यह एक ऐसा स्थान है जहां संपूर्ण विश्व एक ही घोंसले में घर बनाता है। टैगोर की रचनात्मक प्रतिभा बहुमुखी थी। उनके चिंतन, विचारों, स्वपनों व आकांक्षाओं की अभिव्यक्ति उनकी कविताओं, कहानियों,
वि
उपन्यासों, नाटकों, गीतों और चित्रों में होती है। उनके गीतों में से एक ‘आमार सोनार बांगला’ बांग्लादेश का राष्ट्रीय गीत है और उन्हीं का गीत ‘जन-गन-मन अधिनायक जय हे’ हमारा राष्ट्रगान है। 1915 में अंग्रेजों द्वारा उन्हें ‘सर’ की उपाधि दी गई। अप्रैल 1919 में जलियांवाला बाग हत्याकांड हुआ। इस बर्बर हत्याकांड के विरोध में उन्होंने अंग्रेज सरकार द्वारा प्रदान की गई ‘सर’ की उपाधि का त्याग कर दिया। टैगोर मातृभाषा के प्रबल पक्षधर थे। उनका कहना था- ‘जिस प्रकार मां के दूध पर पलने वाला बच्चा अधिक स्वस्थ और बलवान होता है, वैसे ही मातृभाषा पढ़ने से मन और मस्तिष्क अधिक मजबूत बनते हैं।’ समाज को अपने देश की महान विरासत की याद दिलाने के लिए टैगोर ने भारतीय इतिहास की कीर्तिमय घटनाओं तथा प्रसिद्ध भारतीय व्यक्तियों के बारे में कविताएं तथा कहानियां लिखीं। 7 अगस्त 1941 को उन्होंने अंतिम सांस ली। उन्होंने समृद्ध व उत्कृष्ट जीवन जिया। उनके द्वारा लिखे अंतिम शब्द थे‘अपने भीतरी प्रकाश से ओत-प्रोत, जब वह सत्य खोज लेता है। कोई उसे वंचित नहीं कर सकता, वह उसे अपने साथ ले जाता है अपने निधि-कोष में, अपने अंतिम पुरस्कार के रूप में।’
श्वविख्यात महाकाव्य ‘गीतांजलि’ की रचना के लिए रवींद्रनाथ टैगोर को 1913 में साहित्य के लिए नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया। साहित्य के क्षेत्र में नोबेल जीतने वाले वे अकेले भारतीय हैं। टैगोर ने ही गांधी जी को ‘महात्मा’ की उपाधि दी थी, जो बाद में लोकप्रिय हुआ। ईश्वर और इंसान के बीच मौजूद संबंध उनकी रचनाओं में विभिन्न रूपों में उभर कर आता है। साहित्य की शायद ही ऐसी कोई विधा
टैगोर ने करीब 2,230 गीतों की रचना की है। खासतौर पर अंग्रेजी अनुवाद के बाद उनकी रचनाएं पूरी दुनिया में मशहूर हुईं और सराही गईं
है, जिनमें उनकी रचना न हो- गान, कविता, उपन्यास, कथा, नाटक, प्रबंध, शिल्पकला, सभी विधाओं में उनकी रचनाएं विश्वविख्यात हैं। उनकी रचनाओं में गीतांजलि, गीतालि, गीतिमाल्य, कथा ओ कहानी, शिशु, शिशु भोलानाथ, कणिका, क्षणिका, खेया आदि प्रमुख हैं। उन्होंने कई किताबों का अनुवाद अंग्रेजी में किया। अंग्रेजी अनुवाद के बाद उनकी रचनाएं पूरी दुनिया में मशहूर हुईं और सराही गईं। रवींद्रनाथ टैगोर ने करीब 2,230 गीतों की रचना की। आज रवींद्र संगीत बांग्ला संस्कृति का अभिन्न हिस्सा है। टैगोर के संगीत को उनके साहित्य से अलग नहीं किया जा सकता। हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत की ठुमरी शैली से प्रभावित ये गीत मानवीय भावनाओं के कई रंग पेश करते हैं। अलगअलग रागों में गुरुदेव के गीत यह आभास कराते हैं मानो उनकी रचना उस राग विशेष के लिए ही की गई थी।
12
जंेडर
07 - 13 मई 2018
मातृ दिवस पर विशेष
मदर इंडिया 2018 मातृत्व और करुणा को लेकर हर दौर और संस्कृतियों में एक विशिष्ट बोध रहा है। पर यह बोध तब एक चिंता में बदल जाता है, जब हम देखते हैं कि महिलाओं की स्थिति स्वास्थ्य से लेकर शिक्षा तक अब भी बहुत अच्छी नहीं है
कि
एसएसबी ब्यूरो
सी को अगर यह शिकायत है कि परंपरा, परिवार, संबंध और संवेदना के लिए मौजूदा दौर में स्पेस लगातार कम होते जा रहे हैं, तो उसे नए बाजार बोध और प्रचलन के बारे में जानकारी बढ़ा लेनी चाहिए। जो सालभर हमें याद दिलाते चलते हैं कि हमें कब किसके लिए ग्रीटिंग कार्ड खरीदना है और कब किसे किस रंग का गुलाब भेंट करना है। बहरहाल, बात उस दिन की जिसे मनाने को लेकर हर तरफ चहल-पहल है। मदर्स डे वैसे तो आमतौर पर मई के दूसरे रविवार को मनाने का चलन है। पर खासतौर पर स्कूलों में इसे एक-दो दिन पहले ही मना लिया गया, ताकि हफ्ते की छुट्टी बर्बाद न चली जाए। रही बात भारतीय मांओं की स्थिति की तो गर्दन ऊंची करने से लेकर सिर झुकाने तक, दोनों तरह के तथ्य सामने हैं। कॉरपोरेट दुनिया में महिला बॉसों की गिनती अब अपवाद से आगे कार्यकुशलता और क्षमता की एक नवीन परंपरा का रूप ले चुकी है। सिने जगत में तो आज बकायदा एक पूरी फेहरिस्त है, ऐसी अभिनेत्रियों की जो विवाह के बाद करियर को अलविदा कहने के बजाय और ऊर्जा-उत्साह से अपनी काबिलियत साबित कर रही
हैं। देश की राजनीति में भी बगैर किसी विरासत के महिला नेतृत्व की एक पूरी खेप सामने आई है। पर गदगद कर देने वाली इन उपलब्धियों के बीच जीवन और समाज के भीतर परिवर्तन का उभार अब भी कई मामलों में असंतोषजनक है। आलम यह है कि मातृत्व को सम्मान देने की बात तो दूर देश में आज तमाम ऐसे संपन्न, शिक्षित और जागरूक परिवार हैं, जहां बेटियों की हत्या गर्भ में ही कर दी जाती है। खासकर हरियाणा, राजस्थान जैसे कुछ सूबों में बालिका भ्रूण हत्या की समस्या काफी रही है। इसी समस्या को देखते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ‘बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ’ अभियान की शुरुआत की। संतोष की बात यह है कि बेटियों को लेकर नजरिया बदलने वाला यह आंदोलन देश में एक नई जागृति लेकर आया है। नतीजतन, समाज और परिवार में महिलाओं की स्थिति में धीरे-धीरे ही सही, पर सकारात्मक परिवर्तन आ रहा है। यह परिवर्तन शिक्षा से लेकर स्वास्थ्य तक के आंकड़ो में दिखाई देता है। राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण की गत वर्ष जारी रिपोर्ट में
महिलाओं की स्थिति को लेकर कुछ खुशखबरी थी तो कुछ चिंताएं भी। सर्वेक्षण में प्रजनन, बाल और शिशु मृत्यु दर, परिवार नियोजन पर अमल, मातृ और शिशु स्वास्थ्य, पोषण, स्वास्थ्य सेवाओं की गुणवत्ता आदि का विवरण है।
शिक्षा में सुधार
इस रिपोर्ट के अनुसार शिक्षा में महिलाओं की भागीदारी बढ़ी है। शिक्षण संस्थानों तक लड़कियों की पहुंच लगातार बढ़ रही है। एक दशक पहले हुए सर्वेक्षण में शिक्षा में महिलाओं की भागीदारी 55.1 प्रतिशत थी, जो बढ़कर 68.4 तक पहुंच गई है। यानी इस क्षेत्र में 13 फीसदी से अधिक की वृद्धि दर्ज की गई है।
बाल विवाह में कमी
बाल विवाह की दर में गिरावट को भी महिला स्वास्थ्य और शिक्षा के लिहाज से महत्वपूर्ण माना जा रहा है। कानूनन अपराध घोषित किए जाने तथा सामाजिक तौर पर लगातार जागरुकता फैलाने के
यूनिसेफ के अनुसार भारत में प्रसव के दौरान होने वाली मौतें पहले से घटी हैं, लेकिन यह अब भी बहुत ज्यादा हैं। देश में हर साल लगभग 45 हजार महिलाओं की मौत प्रसव के दौरान हो जाती है
खास बातें बाल विवाह 2005-06 में 47.4 से घटकर 2015-16 में 28.8 प्रतिशत 2015 में ‘बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ’ अभियान की शुरुआत हुई बैंकिंग व्यवस्था में स्त्रियों की भागीदारी सबसे ज्यादा बढ़ी है बावजूद बाल विवाह का चलन अब भी बरकरार है। वैसे, संतोष की बात है कि इसमें गिरावट आ रही है। 18 वर्ष से कम उम्र में शादी 2005-06 में 47.4 प्रतिशत से घटकर 2015-16 में 28.8 रह गई है। इस कमी का सीधा फायदा महिला स्वास्थ्य के आंकड़ो पर भी पड़ा है।
बैंक संभाल रही महिलाएं
सर्वेक्षण के आंकड़ो के अनुसार बैंकिंग व्यवस्था में स्त्रियों की भागीदारी बढ़ी है। एक दशक पहले सिर्फ 15 प्रतिशत महिलाओं के पास अपना बैंक खाता था। नवीनतम आंकड़ो के अनुसार अब 53 प्रतिशत
07 - 13 मई 2018
13
जेंडर
मदर्स डे का इतिहास और परंपरा
म
मदर्स डे हर साल अलग-अलग देशों में अलग-अलग तारीखों पर मनाया जाता है। भारत में मदर्स डे मई महीने के दूसरे रविवार को मनाया जाता है। भारत में मदर्स डे इस बार 14 मई को मनाया जाएगा
दर्स डे हर साल मां के सम्मान में मनाया जाता है। मदर्स डे मनाने का चलन नार्थ अमेरिका से शुरू हुआ। इस दिन बच्चों द्वारा अपनी मां को सम्मान दिया जाता है। यह दिन समाज में मां के प्रभाव को बढ़ाने के लिए मनाया जाता है। मदर्स डे हर साल हर अलग-अलग देशों में अलग-अलग तारीखों पर मनाया जाता है। भारत में मदर्स डे मई महीने के दूसरे रविवार को मनाया जाता है। भारत में मदर्स डे इस बार 14 मई को मनाया जाएगा। मदर्स डे सबसे पहले ग्रीक और रोम में मनाया गया था। इसके बाद यूके में मदर्स डे रविवार के दिन मनाया गया। आज कम से कम 46 देशों में यह विशेष दिवस मनाया जाता है। इस दिन के लिए हमें इतिहास का शुक्रगुजार होना चाहिए कि एक दिन मां और उसके मातृत्व के सम्मान में मनाने का मौका मिला। मदर्स डे से जुड़ी कुछ बातें बेहद दिलचस्प हैं। पुराने समय में ग्रीस में मां को सम्मान देने के लिए पूजा का रिवाज था। कहा जाता है कि स्य्बेले ग्रीक देवताओं की मां थीं, उनके सम्मान में यह दिन मनाया जाता था। यह दिन त्योहार के रूप में मनाया जाता था। क्रिश्चियन इस दिन को वर्जिन मैरी के सम्मान के रूप में मनाते हैं। इसके अलावा इंग्लैंड में मदर्स डे सेलिब्रेट में करने के पीछे एक और इतिहास जुड़ा हुआ है। वर्ष 1600 में इंग्लैंड में क्रिश्चियन लोग वर्जिन मैरी की पूजा करते थे। इसके अलावा
युगोस्लाविया
युगोस्लाविया में मदर्स डे का चलन 19वीं शताब्दी तक बिल्कुल खत्म हो गया था हालांकि मदर्स डे मनाने की आधुनिक शुरुआत का श्रेय अमेरिकी महिलाओं, जूलिया बार्ड होवे और ऐना जार्विस को जाता है।
वर्जिनिया
वर्जिनिया में मदर्स डे की शुरुआत वेस्ट एना जार्विस के द्वारा समस्त माताओं के लिए खासतौर पर की गई, ताकि उनके पारिवारिक एवं उनके आपसी संबंधों को सम्मान मिले। यह दिवस अब दुनिया के हर कोने में अलग-अलग दिनों में मनाया जाता है। फूल और उपहार देकर उन्हें ट्रिब्यूट देते थे। यूएस में यह दिन एक ऑफिशयल इवेंट के रूप मनाने का फैसला किया गया। वर्जिनिया में मदर्स डे की शुरुआत एना जार्विस के द्वारा समस्त माताओं के सम्मान के लिए खासतौर पर की गई थी। वह शादीशुदा नहीं थी और न ही उनका कोई बच्चा था। वह अपनी मां एना मैरी रविस जार्विस से प्रेरित थी। अपनी माता की मृत्यु के बाद मां को प्यार और सम्मान जताने के लिए उन्होंने के इस दिन को मनाने की शुरूआत की। अब यह
मदर्स डे से जुड़ी कुछ बातें बेहद दिलचस्प हैं। पुराने समय में ग्रीस में मां को सम्मान देने के लिए पूजा का रिवाज था। कहा जाता है कि स्य्बेले ग्रीक देवताओं की मां थीं, उनके सम्मान में यह दिन मनाया जाता था महिलाएं बैंकों से जुड़ चुकी हैं।
घर में बढ़ा सम्मान
शिक्षा और जागरुकता का असर घरेलू हिंसा पर भी पड़ा है। अब इस तरह के मामले पहले से कम हुए हैं। रिपोर्ट के अनुसार वैवाहिक जीवन में हिंसा झेल रही महिलाओं का प्रतिशत 37.2 से घटकर 28.8 प्रतिशत रह गया है। सर्वे में यह भी पता चला कि गर्भावस्था के दौरान केवल 3.3 प्रतिशत को ही हिंसा का सामना करना पड़ा।
संपत्ति की मालकिन
इस सर्वेक्षण से यह भी सामने आया है कि 15 से 49 साल की उम्र में 84 प्रतिशत विवाहित महिलाएं घरेलू फैसलों में हिस्सा ले रही है। इससे पहले 2005-06 में यह आंकड़ा 76 प्रतिशत था। ताजा आंकड़ो के अनुसार लगभग 38 प्रतिशत महिलाएं अकेली या
किसी के साथ संयुक्त रूप से घर या जमीन की मालकिन हैं।
और प्रयास की जरूरत
महिला सशक्तिकरण की दिशा में देश में प्रगति हुई है लेकिन बहुत से ऐसे क्षेत्र हैं जहां और प्रयासों की जरूरत है। लिंगानुपात के मोर्चे पर देश ज्यादा प्रगति नहीं कर पाया है। पिछले पांच वर्षों में जन्म के समय लिंगानुपात मामूली रूप से सुधरकर प्रति एक हजार लड़कों पर 914 लड़कियों से बढ़कर 919 हो गया है। शहरी भारत में यह आंकड़ा 899 ही है। हरियाणा में लिंगानुपात 836 है, जबकि पड़ोसी पंजाब का 860 है। मध्य प्रदेश में लिंगानुपात 960 से गिरकर 927 तक पहुंच गया है। दादरा नगर हवेली में लिंग अनुपात सबसे अधिक 1013 है।
स्वास्थ्य सेवाओं का विस्तार
दिन दुनिया के कोने-कोने में अलग-अलग दिन मनाया जाता है। जिन कुछ और देशों में मदर्स डे मनाने को लेकर विशिष्ट परंपरा और इतिहास है, वे हैं-
बोलिविया
बोलिविया दक्षिणी अमेरिका का एक देश है। यहां 27 मई को मदर्स डे मनाया जाता हैं। यहां मदर्स डे का मतलब कोरोनिल्ला युद्घ को स्मरण करना है। दरअसल 27 मई 1812 को यहां के कोचाबाम्बा शहर में युद्ध हुआ। कई महिलाओं का स्पेनिश सेना द्वारा कत्ल कर दिया गया। ये सभी महिलाएं सैनिक होने के बावजूद मां भी थीं। इसीलिए 8 नवंबर 1927 को यहां एक कानून पारित किया गया कि यह दिन मदर्स डे के रूप में मनाया जाएगा। शहरी क्षेत्रों में स्वास्थ्य सेवाओं का विस्तार हुआ है, इसीलिए इस प्रसूति मौतों के मामलों में कमी आई है। हालांकि गांवों की स्थिति अभी ज्यादा नहीं बदली है। यूनिसेफ के अनुसार भारत में प्रसव के दौरान होने वाली मौतें पहले से घटी हैं, लेकिन यह अब भी बहुत ज्यादा हैं। देश में हर साल लगभग 45 हजार महिलाओं की मौत प्रसव के दौरान हो जाती है।
सुधारनी होगी स्वास्थ्य सेवा
स्वास्थ्य सेवा की स्थिति इतनी बदतर है कि मात्र 53 फीसद प्रसव ही अस्पतालों में होते हैं। ऐसे में जो बच्चे जन्म भी लेते हैं, उनकी भी स्थिति अच्छी नहीं है। पांच साल की उम्र तक के बच्चों में 43 फीसद बच्चे अंडरवेट हैं। टीयर-2 देशों की बात करें तो सर्वाधिक बाल कुपोषित बच्चे भारत में ही हैं। ऐसी दुरावस्था में हमारी सरकार अगर मदर्स डे महिलाओं की स्थिति को बेहतर बनाए जाने की दरकार को न
ब्रिटेन
ब्रिटेन में कई प्रचलित परम्पराएं हैं जहां एक विशिष्ट रविवार को मातृत्व और माताओं को सम्मानित किया जाता है, जिसे मदरिंग संडे कहा जाता था। 1912 में एना जार्विस ने 'सेकंड संडे इन मे' और 'मदर डे' कहावत को ट्रेडमार्क बनाया तथा मदर डे इंटरनेशनल एसोसिएशन गठित किया जाता है।
चीन
चीन में मातृ दिवस के दिन उपहार के रूप में गुलनार का फूल बच्चे अपनी मां को देते हैं। ये दिन गरीब माताओं की मदद के लिए 1997 में निर्धारित किया गया था। खासतौर पर लोगों को उन गरीब माताओं की याद दिलाने के लिए जो ग्रामीण क्षेत्रों, जैसे कि पश्चिम चीन में रहती थीं। सिर्फ दोहराए जाने का अवसर है, बल्कि यह इस दिशा में और सार्थक कदम उठाने की प्रेरणा का भी दिवस है।
डॉक्टरी सलाह
डॉक्टर महिलाओं की सेहत को लेकर जागरुकता बढ़ाने पर जोर देते हैं। स्त्री रोग विशेषज्ञ डॉ. रमा कहती हैं कि स्वास्थ्य सुविधाओं के थोड़े और विस्तार से और जागरुकता अभियान के जरिए प्रसव के दौरान होने वाली मौतों में कमी लाई जा सकती है। डॉ. ईशा वर्मा कहती हैं कि अधिकतर महिलाएं रक्त अल्पता से पीड़ित हैं। अपने परिवार के स्वास्थ्य को लेकर ज्यादा चिंतित रहने वाली महिलाएं अगर खुद पर ध्यान देने लग जाए तो परिवार का स्वास्थ्य अपने आप अच्छा हो जाएगा। वह कहती हैं, ‘आखिरकार महिला ही तो परिवार का केंद्र है।’
14
गुड न्यूज
07 - 13 मई 2018
जनधन से वर्ल्ड बैंक धन्य-धन्य
प्र
वर्ल्ड बैंक ने जनधन योजना की तारीफ करते हुए कहा कि वित्तीय समावेशन की वैश्विक वृद्धि में भारत के योगदान सबसे ज्यादा है
धानमंत्री नरेंद्र मोदी ने वित्तीय समावेशन को बढ़ावा देने का अपना मजबूत इरादा जता दिया था। आज उसके परिणाम देश को विश्वस्तरीय गौरव दिला रहे हैं। वर्ल्ड बैंक द्वारा जारी की गई ग्लोबल फाइंडेक्स की ताजा रिपोर्ट के अनुसार 2014 तक सिर्फ 53 प्रतिशत भारतीयों के पास बैंक खाते थे, जबकि 2017 तक 80 प्रतिशत भारतीय बैंक खाताधारी हो चुके थे। यानी देश में हर पांच में से चार लोगों ने बैंक खाता खोला है। जाहिर है कि 2014 में ही मोदी सरकार सत्ता में आई थी जिसके बाद यह तेजी आई है। रिपोर्ट में वित्तीय समावेशन की वैश्विक वृद्धि में भारत के योगदान को दर्शाया गया है। बिल एंड मिलिंड गेट्स फाउंडेशन की फंडिंग से शुरू की गई ग्लोबल फाइंडेक्स युवाओं की बचत, कर्ज, भुगतान के तरीकों और रिस्क मैनेजमेंट के आंकड़ो पर नजर रखती है। उसके आंकड़ो के मुताबिक 2011 में सिर्फ 35 प्रतिशत भारतीयों के पास बैंक खाते थे। इसके साथ ही रिपोर्ट भारत में बैंक खातों, डेबिट कार्ड और मोबाइल कनेक्शन की उपलब्धता को दिखाती है, जो भविष्य में खातों के इस्तेमाल में
सुधार करने में महत्वपूर्ण निभाएगी। ग्लोबल फाइंडेक्स के आंकड़ो से जुड़ी इस रिपोर्ट में जन धन योजना की सफलता का विशेष उल्लेख किया गया है, जिसकी शुरुआत व्यापक स्तर पर जनसामान्य को औपचारिक बैंकिंग सिस्टम से जोड़ने के लिए की गई। मार्च 2018 तक जन धन योजना के अंतर्गत खोले गए खातों की संख्या 31.44 करोड़ तक जा पहुंची जो संख्या साल भर पहले 28.17 करोड़ थी। बैंकों के करेंट और सेविंग अकाउंट्स को जोड़ें तो मार्च 2017 में इनकी कुल संख्या 157.1 करोड़ थी, जो दो साल पहले 122.3 करोड़ थी। दुनिया भर में बैंक खातों की संख्या में हुई बढ़ोत्तरी में जन धन योजना का योगदान सबसे बड़ा है। 2014 से 2017 के बीच विश्व भर में करीब 51.4 करोड़ बैंक खाते खुले। इस अवधि में भारत में जन धन के तहत खुले बैंक खातों का इसमें करीब 55% योगदान है। खास बात यह भी है कि जन-धन के खाते खोलने में महिलाओं की हिस्सेदारी बड़ी है। रिपोर्ट के मुताबिक भारत में कैश की जगह
बैंक अकाउंट के जरिए लेनदेन में काफी बढ़ोत्तरी हुई है। लेनदेन में आया यह एक ऐसा व्यावहारिक बदलाव है जिससे सरकार का कर राजस्व बढ़ सकता है। आने वाले समय में मजदूरी, कृषि उत्पाद और जनोपयोगी सेवाओं के लिए भी डिजिटल भुगतान का तरीका निकाला जा सकता है। वर्ल्ड बैंक के ग्लोबल फाइंडेक्स डेटाबेस 2017 के मुताबिक भारत में वित्तीय सेवाओं तक महिलाओं की पहुंच में बड़ी तेजी आई है। ऐसा आधार कार्ड पर सरकार के जोर देने से संभव हुआ
जूट के थैले बांटने वाला 'बैगमैन'
प
यूपी के प्रोफेसर बीआर सिंह पिछले दस वर्षों से प्लास्टिक के थैलों का उपयोग रोकने के लिए जूट के थैले बांट रहे हैं
र्यावरण के लिए घातक साबित हो रही पॉलिथीन के इस्तेमाल को रोकने के लिए लखनऊ के गोमतीनगर निवासी प्रोफेसर बीआर सिंह दस साल से जागरुकता अभियान चला रहे हैं। इसके तहत वह लोगों को पॉलिथीन का उपयोग बंद करने और कपड़े, जूट और कागज के बैग इस्तेमाल करने के लिए प्रोत्साहित कर रहे हैं। निर्माण निगम से साल 2004 में मैनेजिंग डायरेक्टर पद से रिटायर होने के बाद प्रोफेसर बीआर सिंह ने जूट बैग को बढ़ावा देना शुरू किया। गोमतीनगर के विरामखंड-5 में घर-घर जाकर जूट से बने बैग लोगों को बांटने लगे। कुछ दिनों में उनके साथ कॉलोनी के दूसरे बुजुर्ग भी शामिल हो गए। बीआर सिंह कहते हैं कि लखनऊ में करीब 400 करोड़ पॉलीबैग्स का उपयोग हर माह किया जाता है। इससे जमीन, पानी और हवा सब प्रदूषित होती है। इसका खमियाजा आने वाली
पीढ़ी को उठाना पड़ेगा। उनका कहना है कि पॉलिथीन सड़कों से नालों में जाता है, जो शहर का ड्रेनेज सिस्टम चौपट करता है। जानवर भी पॉलिथीन खा जाते हैं। इन सब को रोकने के लिए ही उन्होंने लोगों के घर-घर जाकर जूट के थैले के फायदे
बताने शुरू किए। वह लोगों को अपनी गाड़ी या स्कूटर में हमेशा एक कपड़े का बैग रखने और खाने-पीने की चीजें कागज के प्लेटों में लेने के लिए जागरूक करते हैं। साथ ही वह लोगों को पॉलिथीन के उपयोग के खतरे भी बताते हैं। उन्होंने बॉयोडिग्रेडेबल (स्वाभाविक तरीके से नष्ट होने वाला) कपास या जूट बैग के इस्तेमाल को बढ़ावा दिया। उनका मानना है कि ऐसा करने से शहर में आधे से ज्यादा कूड़े का संकट खत्म हो जाएगा। मौजूदा वक्त में प्रोफेसर बीआर सिंह एक बड़े निजी कॉलेज में डायरेक्टर पद पर रहते हुए भी कॉलेज के छात्रों को प्राकृतिक संसाधनों से बने थैले को उपयोग करने की सलाह देते हैं। दुकानों पर जूट के बैग की संख्या बढ़ाने के लिए इसका उत्पादन भी अपने खर्चे पर करवाते हैं। कॉलोनी के लोग भी उनकी मुहिम में साथ देते हैं। (एजेंसी)
है, क्योंकि इसके जरिए खाताधारियों की संख्या में भारी बढ़ोत्तरी आई है। देश में आज करीब 83% पुरुष और 77% महिलाओं के पास बैंक खाते हैं। यानि आधार के जरिए बैंकिंग सुविधाओं तक पहुंच के मामले में ना सिर्फ अमीर और गरीब का फर्क कम हुआ है बल्कि जेंडर गैप भी बेहद कम हुआ है। गौर करने वाली बात है कि तीन साल पहले बैंक खाता रखने वाले पुरुषों और महिलाओं की संख्या में 20 अंकों का अंतर था जो अब मात्र छह रह गया है। (एजेंसी)
अमेजन के जंगलों में नई प्रजातियों की खोज
नई प्रजातियों की खोज के लिए वैज्ञानिकों को पहली बार वहां तक जाने की अनुमति मिली , जहां कोई नहीं जाता
अ
मेजन के जंगल अपने आप में किसी पहेली से कम नहीं हैं। समझा जाता है कि वहां हर दूसरे दिन किसी पौधे या जानवर की नई प्रजाति मिलती है। ऐसी ही कुछ नई प्रजातियों का पता लगाने गए वैज्ञानिकों को वहां बहुत बड़ी कामयाबी मिली। इन वैज्ञानिकों को ब्राजील के सबसे ऊंचे पहाड़ के पास के इलाको में जाने का मौका दिया गया जहां बहुत लोग नहीं जाते। (एजेंसी)
07 - 13 मई 2018
स्वास्थ्य
जैविक तरीके से बढ़ेगा अश्वगंधा का गुण
15
अश्वगंधा भारत के राष्ट्रीय औषधीय पादप बोर्ड द्वारा घरेलू और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सबसे अधिक मांग वाली चुनी गए 32 पहले औषधीय पौधों में से एक है
भा
रतीय, अफ्रीकी और यूनानी पारंपरिक चिकित्सा पद्धतियों में तीन हजार से ज्यादा सालों से अश्वगंधा का उपयोग हो रहा है। भारतीय वैज्ञानिकों ने एक ताजा अध्ययन में पाया है कि जैविक तरीके से उत्पादन किया जाए तो अश्वगंधा के पौधे की जीवन दर और उसके औषधीय गुणों में बढ़ोत्तरी हो सकती है। शोध के दौरान सामान्य परिस्थितियों में उगाए गए अश्वगंधा की अपेक्षा वर्मी-कंपोस्ट से उपचारित अश्वगंधा की पत्तियों में विथेफैरिन-ए, विथेनोलाइड-ए और विथेनोन नाम के तीन विथेनोलाइड्स जैव-रसायनों की मात्रा लगभग 50
से 80 प्रतिशत ज्यादा पाई गई है। ये बायो केमिकल अश्वगंधा के गुणों में बढ़ोत्तरी के लिए जिम्मेदार माने जाते हैं। अमृतसर स्थित गुरु नानक देव विश्वविद्यालय और जापान के नेशनल इंस्टिट्यूट ऑफ एडवांस्ड इंडस्ट्रियल साइंस एंड टेक्नोलॉजी के वनस्पति वैज्ञानिकों द्वारा किया गया यह अध्ययन प्लॉस वन नामक शोध पत्रिका में प्रकाशित किया गया है। अश्वगंधा की सरल, सस्ती और पर्यावरणअनुकूल खेती और उसके औषधीय गुणों के संवर्धन के लिए गोबर, सब्जी के छिलकों, सूखी पत्तियों और जल को विभिन्न अनुपात में मिलाकर बनाए
गए वर्मी-कंपोस्ट और उसके द्रवीय उत्पादों वर्मीकंपोस्ट-टी और वर्मी-कंपोस्ट-लीचेट का प्रयोग किया गया है। बुवाई से पूर्व बीजों को वर्मी-कंपोस्टलीचेट और वर्मी-कंपोस्ट-टी के घोल से उपचारित करके संरक्षित किया गया है और बुवाई के समय वर्मी-कंपोस्ट की अलग-अलग मात्राओं को मिट्टी में मिलाकर इन बीजों को बोया गया। अध्ययन में शामिल वैज्ञानिकों के अनुसार इन उत्पादों के उपयोग से कम समय में अश्वगंधा के बीजों के अंकुरण, पत्तियों की संख्या, आकार, शाखाओं की सघनता, पौधों के जैव-भार, वृद्धि, पुष्पण और फलों के पकने में प्रभावी बढ़ोत्तरी दर्ज की गई है। वरिष्ठ शोधकर्ता डॉ. प्रताप कुमार पाती ने बताया कि 'अश्वगंधा की जड़ और पत्तियों को स्वास्थ्य के लिए गुणकारी पाया गया है। इसकी पत्तियों से 62 और जड़ों से 48 प्रमुख मेटाबोलाइट्स की पहचान की जा चुकी है। अश्वगंधा की पत्तियों में पाए जाने वाले विथेफैरिन-ए और विथेनोन में कैंसर प्रतिरोधी गुण होते हैं। हर्बल दवाओं की विश्वव्यापी बढ़ती जरूरतों के लिए औषधीय पौधों की पैदावार बढ़ाने के वैज्ञानिक स्तर पर गहन प्रयास किए जा रहे हैं। अश्वगंधा उत्पादन में वृद्धि की हमारी कोशिश इसी कड़ी का हिस्सा है। अश्वगंधा भारत के राष्ट्रीय औषधीय पादप बोर्ड
द्वारा घरेलू और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सबसे अधिक मांग वाली चुनी गए 32 पहले औषधीय पौधों में से एक है। विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के चुने गए औषधीय पौधों के मोनोग्राफ में भी अश्वगंधा को उसकी अत्यधिक औषधीय क्षमता के कारण शामिल किया गया है। अश्वगंधा में गठिया, कैंसर और सूजन जैसी बीमारियों के अलावा प्रतिरक्षा नियामक, कीमो और हृदय सुरक्षात्मक प्रभाव को ठीक करने वाले गुण भी होते हैं। इन चिकित्सीय गुणों के लिए अश्वगंधा में पाए जाने वाले एल्केलोइड्स, फ्लैवेनॉल ग्लाइकोसाइड्स, ग्लाइकोविथेनोलाइड्स, स्टेरॉल, स्टेरॉयडल लैक्टोन और फिनोलिक्स जैसे रसायनों को जिम्मेदार माना जाता है। अश्वगंधा की पैदावार की प्रमुख बाधाओं में उसके बीजों की कम जीवन क्षमता और कम प्रतिशत में अंकुरण के साथ-साथ अंकुरित पौधों का कम समय तक जीवित रह पाना शामिल है। औषधीय रूप से महत्वपूर्ण मेटाबोलाइट्स की पहचान, उनका जैव संश्लेषण, परिवहन, संचयन और संरचना को समझना भी प्रमुख चुनौतियां हैं। डॉ. प्रताप कुमार पाती के अनुसार वर्मी-कंपोस्ट के उपयोग से अश्वगंधा की टिकाऊ और उच्च उपज की खेती और इसके औषधीय गुणों में संवर्धन से इन चुनौतियों से निपटा जा सकता है। (एजेंसी)
खूब खाएं, आने वाली है पचने वाली मूंगफली
भा
रतीय और अमेरिकी वैज्ञानिकों के एक शोध में ऐसे जींस की पहचान की गई है, जो मूंगफली की अधिक पाचक किस्में विकसित करने में मददगार हो सकते हैं। वैज्ञानिकों के अनुसार मूंगफली की ये किस्में खनिजों की कमी से होने वाले कुपोषण को दूर करने का जरिया बन सकती हैं। वैज्ञानिकों ने मूंगफली में साइटिक एसिड के संश्लेषण से एएचपीआईपीके1, एएचआईपीके2 और एएचआईटीपीके1 नामक जींस की पहचान की है। वैज्ञानिकों के मुताबिक इन जींस के उपयोग से कम साइटिक एसिड वाली मूंगफली की किस्में बनाई जा सकती हैं। गुजरात के जूनागढ़ में स्थित मूंगफली अनुसंधान निदेशालय, हैदराबाद के भारतीय चावल अनुसंधान संस्थान तथा भारतीय तिलहन अनुसंधान संस्थान और अमेरिका की फ्लोरिडा एग्रीकल्चर एंड मैकेनिकल यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों को एक संयुक्त अध्ययन
इस खोज से विकासशील देशों में कुपोषण से लड़ने के लिए कम लागत में निम्न साइटिक एसिड वाली मूंगफली की फसल तैयार की जा सकेगी
में यह सफलता मिली है। प्रमुख शोधकर्ता डॉ. बीसी अजय ने बताया कि पहचान किए गए जींस की मदद से मूंगफली की निम्न साइटिक एसिड वाली आनुवांशिक किस्में बनाई जा सकती हैं। हालांकि, इन किस्मों के विकास के लिए आवश्यक उपकरण और जीनोमिक संसाधन हमारे पास अभी उपलब्ध नहीं हैं। यदि ऐसा संभव हुआ तो विकासशील देशों में खनिजों की कमी से होने वाले कुपोषण से लड़ने के लिए कम लागत में निम्न साइटिक एसिड वाली मूंगफली की फसल तैयार की जा सकेगी। मूंगफली में मौजूद खनिजों की अधिक मात्रा की वजह से इसे एक संपर्ण आहार माना जाता है। मूंगफली में 2-3 प्रतिशत तक खनिज होते हैं। इसको आयरन, पोटेशियम, कैल्शियम, सोडियम और मैग्नीशियम का अच्छा स्रोत माना जाता है। इसमें मैंगनीज, तांबा, जस्ता और बोरान की भी कुछ मात्रा
पाई जाती है। इसमें प्रोटीन की मात्रा मांस की तुलना में 1.3 गुना, अंडों से 2.5 गुना एवं फलों से आठ गुना अधिक होती है. मूंगफली में मौजूद विभिन्न प्रकार के 30 विटामिन और स्वास्थ्य के लिए फायदेमंद खनिज कुपोषण से लड़ने में मददगार हो सकते हैं। मूंगफली में पाए जाने वाले साइटिक एसिड जैसे तत्व पाचन के समय आयरन और जिंक के अवशोषण में रुकावट पैदा करते हैं। मूंगफली में साइटिक एसिड 0.2-4 प्रतिशत होता है और इसके जीनोटाइपों में साइटिक एसिड की मात्रा में बहुत अधिक विविधता देखी गई है। गेंहूं, मक्का एवं जौ की तुलना में उच्च साइटिक एसिड और अरहर, चना, उड़द एवं सोयाबीन की अपेक्षा मूंगफली में निम्न अकार्बनिक फॉस्फोरस पाया जाता है। मनुष्यों में साइटिक एसिड या फाइटेट को पचाने में असमर्थता के कारण मूंगफली के सेवन से पाचन
में समस्या हो जाती है और ये शरीर से पाचन हुए बिना ही बाहर निकल जाते हैं। इस तरह अवांछित साइटिक एसिड पर्यावरण में प्रदूषण और जल यूट्रोफिकेशन यानी जल में पादप पोषकों की मात्रा को बढ़ावा देते हैं। साइटिक एसिड के जैव-संश्लेषण में शामिल जींस को आणविक प्रजनन या जीनोमिक सहायता प्रजनन प्रक्रियाओं द्वारा अप्रभावी बनाकर अन्य प्रचलित अनाजों जैसे मक्का, बाजरा और सोयाबीन की निम्न साइटिक एसिड वाली ट्रांसजेनिक किस्में बनाई जा चुकी हैं, परंतु मूंगफली के लिए अभी इस तरह के प्रयास बहुत सीमित हैं। अध्ययनकर्ताओं का मानना है कि निम्न साइटिक एसिड वाली मूंगफली का विकास समय की मांग है। यदि मूंगफली में साइटिक एसिड की मात्रा को कम किया जा सके तो इसके अन्य पोषक तत्वों का पूरा लाभ उठाया जा सकता है। (एजेंसी)
16 खुला मंच
07 - 13 मई 2018
सत्य के मार्ग पर चलते हुए कोई दो ही गलतियां कर सकता है, पूरा रास्ता तय न करना या यात्रा की शुरुआत ही न करना
अभिमत
स्वच्छता और सेहत के साथ समाज सुधार
- महात्मा बुद्ध
बुजुर्गों की फिक्र
प्रधानमंत्री वय वंदन योजना (पीएमवीवीवाई) के अंतर्गत निवेश की सीमा बढ़ाकर 15 लाख रुपए करने का फैसला बुजुर्गों के लिए बड़ी राहत भरी खबर है
डॉ. विन्देश्वर पाठक
जलवायु परिवर्तन की जो खतरनाक परिणति लगातार सामने आती जा रही है, उसने पर्यावरण और मानवता दोनों के भविष्य को साझे तौर पर संकट में ला दिया है। इस मुद्दे पर जितना भी मंथन हो और जितने भी तरह के सुझाव आएं, वे सब कीमती हैं
बी
सवीं शती के आखिरी दशक में पूरी दुनिया में उत्तर आधुनिकता को लेकर एक नई बहस शुरू हुई थी। सभ्यता और विकास को लेकर यह औद्योगिक क्रांति के बाद इस लिहाज से महत्वपूर्ण स्थिति थी, जब दुनिया भर की सरकारें और समाज इस बात को केंद्र में रखकर विमर्श कर रही थीं कि परंपरा और परिवार से लेकर संस्कृति और विकास तक के बीच मानवता का स्पेस आगे कितना बढ़ने-घटने वाला है। उस दौर में पूरी दुनिया में भारतीय समाज को इस लिहाज से आदर्श स्थिति में माना गया था, क्योंकि यहां लोक और परंपरा के साथ आधुनिकता का सबसे सुंदर समन्वय देखने को मिलता है। आज यही समन्वय हमारी सरकार भी अपनी नीतियों और फैसलों में दिखा रही है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में केंद्र सरकार ने बुजुर्गों को सामाजिक सुरक्षा प्रदान करने के लिए बड़ा कदम उठाया है। कैबिनेट ने प्रधानमंत्री वय वंदन योजना (पीएमवीवीवाई) के अंतर्गत निवेश की सीमा बढ़ाकर 15 लाख रुपए करने का फैसला किया है। गौरतलब है कि यह उस देश की सरकार का फैसला है, जो दुनिया का सबसे युवा देश है। पीएम मोदी की अध्यक्षता में कैबिनेट ने प्रधानमंत्री वय वंदना योजना के तहत निवेश सीमा को 7.5 लाख रुपए से दोगुना कर 15 लाख रुपए करने के साथ इसकी सदस्यता की समय सीमा को 4 मई, 2018 से बढ़ाकर 31 मार्च, 2020 करने की भी मंजूरी दे दी है। इस तरह वरिष्ठ नागरिकों को व्यापक सामाजिक सुरक्षा कवर सुलभ करा दिया गया है। सरकार के इस कदम से वरिष्ठ नागरिकों को हर माह 10,000 रुपए पेंशन मिलने का रास्ता साफ हो गया है। पीएमवीवीवाई को एलआईसी के जरिए क्रियान्वित किया जा रहा है, ताकि वृद्धावस्था में सामाजिक सुरक्षा प्रदान की जा सके और इसके साथ ही 60 साल एवं उससे अधिक उम्र के बुजुर्गों को बाजार की अनिश्चित स्थितियों के कारण ब्याज आमदनी में किसी भी भावी कमी से सुरक्षा प्रदान की जा सके।
टॉवर फोनः +91-120-2970819
(उत्तर प्रदेश)
प
र्यावरण का संदर्भ औपचारिक नहीं रह गया है, बल्कि यह वैश्विक स्तर पर सभी लोगों को चिंतित कर रहा है, प्रभावित कर रहा है। खासतौर पर जलवायु परिवर्तन की जो खतरनाक परिणति लगातार सामने आती जा रही है, उसने पर्यावरण और मानवता दोनों के भविष्य को साझे तौर पर संकट में ला दिया है। लिहाजा, इस विषय पर अगर कोई विचार कर रहा है और इस दिशा में सकर्मक तरीके से कार्य करने की प्रतिबद्धता दिखा रहा है, तो वह सराहना का पात्र है। इस मुद्दे पर जितना भी मंथन हो और जितने भी तरह के सुझाव आएं, वे सब कीमती हैं, ये हमारे समय की दरकार और चुनौती के लिए मार्गदर्शक हो सकते हैं। हम सब लोग पर्यावरण-स्वच्छता और सार्वजनिक स्वास्थ्य के बढ़े महत्व के बारे में पहले से परिचित हैं। साथ ही हम इस बात से भी अवगत हैं कि स्वच्छ और स्वस्थ पर्यावरण का निर्माण सुनिश्चित करने के लिए निजी और सामूहिक स्तर पर प्रयास होने चाहिए। हम इस बारे में सुलभ द्वारा किए गए कार्यों और पहलों के माध्यम से कई प्रेरक अनुभवों को आपस में बांट सकते हैं। इस बारे में हम आगे और बात करें इससे पहले यह समझ लेना जरूरी
है कि सुलभ मुख्य रूप से हाथ से मैला साफ करने की अमानवीय प्रथा को समाप्त करने को लेकर प्रतिबद्ध है। इसके साथ ही हमारी प्रतिबद्धता खुले में शौच की परंपरा और अभ्यास को समाप्त करने को लेकर है, क्योंकि इसके कारण लोग कई जानलेवा बीमारियों के शिकार होते हैं। इन कार्यों को करते हुए सुलभ का जोर गैर परंपरागत ऊर्जा संसाधनों का अधिकाधिक इस्तेमाल, अपशिष्ट कचरे और पानी के शुद्धिकरण जैसे कार्यों पर भी है। स्वच्छता और स्वास्थ्य के क्षेत्र में हमारे द्वारा कई स्तरों पर किए गए राष्ट्रव्यापी कार्यों और पहलों से अवगत कराने से पहले मैं अपने जीवन के शुरुआती दिनों के उन अनुभवों को साझा करना चाहूंगा, जिन्होंने मुझे स्वच्छता दूत के साथ समाज सुधारक के तौर पर आजीवन कार्य करने के प्रेरित किया। इन घटनाओं ने जिस तरह मुझे अंदर तक झकझोरा, उसी का नतीजा है कि देश में पर्यावरण-स्वच्छता और सार्वजनिक स्वास्थ्य के क्षेत्र की चुनौतियों से निपटने को लेकर मेरी एक विवेक-सम्मत और रणनीतिक समझ विकसित हुई। मैं आपको बिहार के वैशाली जिलांतर्गत एक ऐसे गांव की तरफ लिए चलता हूं, जहां 1950 के दशक में न सिर्फ मेरा जन्म हुआ, बल्कि वहीं काफी समय बीता
जीवन के आरंभिक अनुभवों ने मुझे यह बात भली-भांति समझा दी कि सार्वजनिक स्वास्थ्य, मानवाधिकार, महिला सुरक्षा के अलावा सामाजिक सशक्तिकरण के मुद्दे आपस में एक-दूसरे से गहरे जुड़े हैं
07 - 13 मई 2018 भी। कहने को तो मेरा जन्म एक बड़े घर में हुआ, जिसका आहाता भी काफी बड़ा था पर उस घर में कोई शौचालय नहीं था। मैंने बचपन में कई बार ऐसे दृश्य देखे हैं, जब मैं या तो बिछावन पर आधी नींद या जागने की स्थिति में होता था तो बाहर महिलाओं की आवाजें, उनकी चहलकदमी की आहटें आती थीं। यह सब इसीलिए होता था क्योंकि घर की सभी महिलाओं पर यह दबाव होता था कि वह सूर्योदय से पहले हर हालत में शौच-कर्म से निवृत हो लें। मैं देखता था कि ऐसे में जबकि घर के ज्यादातर लोग सोए रहते थे, महिलाएं अलग-अलग बर्तनों में पानी भर रही हैं और इस जल्दी में हैं कि कैसे जल्द से जल्द बाहर जाकर शौच-कर्म से निपटकर घर वापस आ जाएं। यह दबाव या स्थिति कितनी पीड़ादायी थी कि कई बार जब कोई महिला बीमार भी होती थी, वह मिट्टी के एक बर्तन में शौच करने को विवश थीं। उन दिनों महिलाओं की क्या स्थिति रहती होगी, इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता था कि फिर दिनभर महिलाएं शौच-कर्म के लिए बाहर नहीं जा सकती थीं। इसका असर महिलाओं के स्वास्थ्य पर सीधा पड़ता था और वे आए दिन सिरदर्द और दूसरी शारीरिक परेशानियों को झेल रही होती थीं। फिर यह हालत तो मैंने एक सामान्य ग्रामीण परिवार की बताई, आप कल्पना कर सकते हैं उस दौर में गांवों में रहने वाले उन गरीब परिवारों की महिलाओं की स्थिति की कि उन्हें तब क्या-क्या सहना-भुगतना पड़ता था। यही नहीं, बचपन में मैंने ये असभ्य दृश्य खूब देखे हैं जब गांव के पुरुष दिन के समय भी खुले में शौच करने के लिए बेपरवाह तरीके से निकल जाते थे। तब गांवों में इसके लिए एक नियत जगह होती थी, जहां सभी शौच के लिए जाते थे। जब मैं थोड़ा बड़ा हुआ तो अपने आसपास के पर्यावरण को लेकर ज्यादा जागरूक हुआ। मैंने महसूस किया कि हम जिन हालात और परिवेश में रह रहे हैं, वह न सिर्फ काफी अस्वच्छ है, बल्कि स्वास्थ्य की दृष्टि से काफी खतरनाक भी। हालात ऐसे थे कि शुष्क शौचालयों की भी संख्या काफी कम थी और वे काफी दूरी पर थे। इसीलिए आमतौर पर सभी लोग खुले में शौच करने के लिए मजबूर थे। खुले में शौच की इस समस्या का असर लोगों की सेहत पर सीधा पड़ता था। जहां लोग एक तरफ कई तरह संक्रामण की चपेट में आते थे, वहीं अस्वच्छता के कारण कई और दूसरी तरह की स्वास्थ्य समस्याएं जानलेवा साबित होती थीं। दरअसल, यह त्रासदी अकेले एक गांव या कस्बे की नहीं है। यह समस्या तब देश के 7 लाख गांवों, शहरों और महानगरों की सम्मिलित रूप से थी, क्योंकि सभी अस्वच्छता की समस्या से अपने-अपने स्तर पर कहीं न कहीं जूझ रहे थे। अस्वच्छ हालात या स्वच्छता की शौचालय जैसी बुनियदी सुविधा के बगैर रहना कहीं न कहीं जिंदगी को को जान-बूझकर खतरे में डालने जैसा है। यह खतरा सबसे ज्यादा बच्चों को नुकसान पहुंचाता है। ऐसा इसीलिए क्योंकि बच्चे संक्रमण व कोलेरा और डिसेंट्री जैसी बीमारियों का शिकार आसानी से हो जाते हैं। उन दिनों ऐसी बीमारियों से भी नवजात या बच्चों की मौत की खबरें आए दिन आती रहती थीं, जिन बीमारियों का उपचार संभव
पर्यावरण और स्वच्छता के सबक के साथ आई सामाजिक जागरुकता न सिर्फ हमारे प्रयासों का प्रतिफल है, बल्कि हमारे लिए यही ‘सुलभ मार्ग’ भी है है। शौचालय या स्वच्छता की कमी का असर जिस तरह महिलाओं पर पड़ता था, वह सबसे ज्यादा पीड़ादायी और अमानवीय था। महिलाएं दिन के समय शौच के लिए पुरुषों की तरह कहीं बाहर नहीं जा सकती थीं, वे इसके लिए दिन ढलने या सुबह होने से पहले की बेला के इंतजार में रहती थीं। ऐसे में उनकी शारीरिक और मानसिक स्थिति क्या होती होगी, इसकी तो कल्पना करके ही मन सिहर जाता है। महिलाओं के लिए तब दिन का समय ही मुश्किल भरा नहीं था, बल्कि अंधकार या रात में जब भी वे शौच के लिए घर से दूर कहीं खुले में निकलती थीं, तो सांप-बिच्छुओं के साथ कई दूसरे कीड़ों के काटने का खतरा रहता था। जब हम महिलाओं की इस समस्या की बात कर रहे हैं तो हमें यह भी समझना होगा कि शौचालयों की कमी के कारण अंधेरे में बाहर निकलने की मजबूरी के कारण जहां एक तरफ वे बड़ी शारीरिक पीड़ा सह रही होती थीं, वहीं छेड़छाड़ से लेकर बलात्कार तक के खतरों का उन्हें सामना करना पड़ता था। आज इस तरह के खतरे महिलाओं के लिए जरूर कम हो गए हैं, पर इस तरह के हालात आज भी कई ग्रामीण और कस्बाई इलाकों में आज भी देखने को मिल जाते हैं। यहां इस बात को खासतौर पर समझने की जरूरत है कि शौचालयों का अभाव महिला अस्मिता की सुरक्षा के साथ गहरे तौर पर जुड़ा है। हमारा समाज जहां एक तरफ परंपरागत सोच और सांचे में बंधा है, वहीं इसकी प्रकृति पुरुषवादी भी है, लिहाजा महिलाओं की यह समस्या यहां और भी गंभीर बन जाती है। स्थिति की यह समझ हमारे लिए इस बात को समझने में काफी मददगार साबित हुई कि विशेष रूप से महिलाओं के हालात और समस्याओं को केंद्र में रखते हुए स्वच्छता योजनाएं न सिर्फ बनाई जानी चाहिए, बल्कि इसके लिए हर स्तर पर जागरुकता भी लानी होगी। इसके साथ ही जीवन के शुरुआती अनुभवों ने हमें स्वच्छता की समस्याओं से जुड़े सामाजिक आयामों को बखूबी समझने का मौका दिया। हमने देखा कि देश के ग्रामीण और कुछ शहरी क्षेत्रों में ऐसे लाखों खुले गड्ढ़े वाले शौचालय हैं, जो न सिर्फ अस्वच्छ हैं, बल्कि इनकी सफाई के लिए जो तरीके प्रचलित हैं, वे काफी अमानवीय हैं। इन शौचालयों की सफाई और फिर मैलों को किसी दूसरे पर स्थान पर ले जाने का कार्य एक खास जाति के लोग करते थे और समाज में उनके खिलाफ काफी भेदभाव का बर्ताव होता था। यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि आज भी देश के कुछ हिस्सों में मौनुअल स्कैवेंजिग की प्रथा कायम है, जबकि इस तरह के कार्य का संवैधानिक निषेध तो ही समाज में भी इसको लेकर काफी जागरुकता आई है। सुलभ आंदोलन को इस बात को श्रेय जाता है कि उसने इस अमानवीय प्रथा को समाप्त करने के लिए न सिर्फ शुरुआती पहल की, बल्कि आज उसकी कोशिशों की वजह से यह समाप्त होने के
कगार पर है। जीवन के आरंभिक अनुभवों ने मुझे यह बात भली-भांति सिखाई कि सार्वजनिक स्वास्थ्य, मानवाधिकार, महिला सुरक्षा के अलावा सामाजिक सशक्तिकरण के मुद्दे आपस में एक-दूसरे से गहरे जुड़े हैं। इसीलिए जब मैं सामाजिक और स्वच्छता के क्षेत्र में कार्य करना शुरू किया तो मेरे मन में इन तमाम मुद्दों को लेकर एक समन्वित समझ थी। मैं इस बात को समझ चुका था कि मनुष्य और पर्यावरण समस्या को लेकर अलग-अलग कुछ भी सोचना या करना सही नहीं है। इसी समझ और पृष्ठभूमि के साथ स्नातक होने के बाद मैं बिहार गांधी जन्म शताब्दी समिति के साथ एक स्वयंसेवक के तौर पर 1968-69 में जुड़ा। इस समिति में अलग से एक प्रकोष्ठ था, जो अस्पृश्यों या स्कैवेंजर्स को उनके परंपरागत काम से मुक्त कराकर पुनर्वासित करने और उनके मानवाधिकारों को हर लिहाज से बहाल करने के लिए बनाया गया था। इस समिति ने मुझे स्कैवेंजिंग की एक बेहतर, उपयोगी औऱ किफायती तकनीक विकसित करने का कार्य सौंपा था। मेरा जन्म एक ब्राह्मण परिवार में हुआ था और मैं मेरे लिए यह सब अचानक करना और सोच पाना आसान नहीं था। गौरतलब है कि इससे पहले मैनुअल स्कैवेंजिंग और स्वास्थ्य समस्याओं को साझे तौर पर देखने का विवेक नहीं दिखाई पड़ता था। जबकि इसके कारण पर्यावरण को जहां एख तरफ काफी नुकसान पहुंच रहा था, इससे कई तरह की संक्रामक बीमारियां फैल रही थीं, वहीं दूसरी तरफ सामाजिक भेदभाव और अस्पृश्यता जैसी समस्याएं भी बढ़ रही थीं। मैं कोई इंजीनियर या साइंटिस्ट नहीं था कि एक बेहतर टॉयलेट सिस्टम का आविष्कार करता, पर मैं मन ही मन यह दृढ़ निश्चय कर चुका था कि मैनुअल स्कैवेंजिंग जैसी अमानवीय प्रथा को दूर करके रहूंगा, ताकि इसके कारण सामाजिक गैरबराबरी का दंश पीढ़ियों से भोग रहे लोगों को समाज की मुख्यधारा से जोड़ सकूं, उन्हें उनके हिस्से का सम्मान और अधिकार दिलवा सकूं। इस तरह इस दिशा में प्रतिबद्ध भाव से लगा गया और विश्व स्वास्थ्य संगठन के इसी विषय पर एक हैंडबुक की मदद से 1968 में टू-पिंट पोर फ्लश के रूप में एक ऑनसाइट टॉयलेट सिस्टम का आविष्कार करने में सफल हुआ। अच्छी बात यह थी कि इस टॉयलट सिस्टम को स्थानीय संसाधनों के साथ और काफी कम पैसे में बनाया जा सकता था। यह तकनीक जहां एक तरफ मैनुअल स्कैवेंजिंग की समस्या को दूर करने में सहायक था, वहीं यह खुले में शौच की प्रवृति को रोकने में भी मददगार था। इस सफलता के बाद मैंने सुलभ की स्थापना की। मुझे सुलभ टॉयलेट सिस्टम को सामाजिक स्वीकृति दिलाने के लिए काफी संघर्ष करना पड़ा। पर एक बार जब यह इस तकनीक के फायदे समझ में आ गए तो सरकार से लेकर नगर निगमोंपालिकाओं ने इसे अपनाना और बढ़ावा देना शुरू
खुला मंच
17
कर दिया। इस स्वीकृति और सफलता के बाद हम शहरी क्षेत्रों सामुदायिक शौचालयों का पे एंड यूज मॉडल लेकर आए, जो काफी लोकप्रिय हुआ। आज देशभर में सुलभ की 1733 शाखाएं हैं और हमारा विस्तार 26 प्रदेशों में है। हम चार केंद्र शासित प्रदेशों में भी अपनी सेवाएं दे रहे हैं। इस तरह हमारी सेवा और उपस्थिति का विस्तार देश के 551 जिलों में है। हम अब तक 15,00,000 परिवारों में सुलभ शौचालयों के साथ 9000 सुलभ सामुदायिक शौचालयों का निर्माण कर चुके हैं। 2,00,00,000 से ज्यादा लोग रोजाना सुलभ डिजायन पर आधारित बने टॉयलेट्स का इस्तेमाल करते हैं। यही नहीं, आज हम देश से बाहर अफगानिस्तान, दक्षिणपूर्व एशिया, अफ्रीका और लैटिन अमेरिकी देशों में स्वच्छता का नया सर्ग लिख रहे हैं। सुलभ टॉयलेट तकनीक को जहां बीबीसी हॉरिजन ने दुनिया के पांच विशिष्ट आविष्कारों में शुमार किया है, वहीं इसे यूनिसेफ और यूएन-हैबिटेट के अलावा भारत, चीन बांग्लादेश, वियतनाम तथा दक्षिण अफ्रीका आदि की सरकारों ने अपनाया है। आज सुलभ देश के ग्रामीण क्षेत्रों में खुले में शौच की समस्या को दूर करने के लिए विशेष रूप से सक्रिय है। स्थान और परिवेश के लिहाज से जरूरी तकनीकी दरकार के हम देश के 436 जिलों में ग्रामीण स्वच्छता का कार्यक्रम चला रहे हैं। हमने 24 भाषाओं में स्वच्छता को लेकर उपयोगी सामग्री प्रकाशित की है। इसी तरह जल शुद्धिकरण के क्षेत्र में भी हम सक्रिय हैं और सुलभ तकनीक के जरिए नदियों-तालाबों के प्रदूषित जल को शुद्ध करके उसे मानवीय उपयोग के लायक बना रहे हैं। सुलभ ने पश्चिम बंगाल के सीमावर्ती जिले 24 परगना में पांच जगहों पर सुलभ वाटर ट्रीटमेंट प्लांट स्थापित किए हैं। दिलचस्प है कि जल शुद्धिकरण की सुलभ तकनीक काफी किफायती है और इससे 50 पैसे के न्यूतम खर्च पर शुद्ध पेयजल मिल जाता है। आखिर में जिस एक बात का मैं जिक्र करना चाहूंगा, वह यह कि सुलभ के लिए पर्यावरण सुरक्षा या स्वच्छता कोई इकहरा कार्यक्रम नहीं है। इसीलिए हमने इस बात की भी भरपूर चिंता की कि जिन लोगों को हम मैनुअल स्कैवेंजिग जैसे अमानवीय कार्य से मुक्त करा रहे है, उनका सही मायनों में पुनर्वास हो, उनके मानवाधिकार न सिर्फ कथित तौर सुनिश्चित हों, बल्कि उन्हें समाज की मुख्यधारा में शामिल कराया जाए। इस कारण हमने उनकी आजीविका की चिंता करते हुए कई प्रशिक्षण कार्यक्रम शुरू किए। इसी तरह उनके बच्चों की बेहतर शिक्षा के लिए दिल्ली और पटना में स्कूल खोले, जहां उनके बच्चे बाकी आम बच्चों के साथ गुणवत्तापूर्ण शिक्षा प्राप्त कर सकें। हमारे लिए यह कार्य स्वच्छता या पर्यावरण सुधार से ज्यादा सामाजिक पुनरोत्थान का है। लिहाजा, सामाजिक परंपरा और अज्ञान के कारण जो लोग मैनुअल स्कैवेंजिग जैसा अमानवीय कार्य करने को विवश हैं, उन्हें हम एक सम्मानजनक जिंदगी देने के लिए हर स्तर पर सक्रिय हैं। पर्यावरण और स्वच्छता के सबक के साथ आई सामाजिक जागरुकता न सिर्फ हमारे प्रयासों का प्रतिफल है, बल्कि हमारे लिए यही ‘सुलभ मार्ग’ भी है।
18
फोटो फीचर
07 - 13 मई 2018
बुद्ध का देश, बुद्ध का संदेश
एक एेसे दौर में जब हिंसा और आतंक की चुनौती काफी बढ़ गई है, भारत दुनिया भर में शांति और अहिंसा का संदेश देने की शपथ पर कायम है। बुद्ध और गांधी के देश की यह छवि और भूमिका दुनिया भर में सराही जाती है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने दिल्ली के इंदिरा गांधी इंडोर स्टेडियम में बुद्ध जयंती समारोह में कहा, ‘भारत जैसी विरासत की समृद्धि कहीं और देखने के नहीं मिलती है। भारत से जितने भी धर्म निकले हैं सबके केंद्र में मानव कल्याण ही है। तमाम कठिनाइयों के बावजूद हमारी धरोहर बची हुई है। हम गर्व से ये बात कह सकते हैं कि हिंदुस्तान कभी भी आक्रांता नहीं रहा है।’
फोटो : िशप्रा दास
07 - 13 मई 2018
इस मौके पीएम मोदी तथा अन्य गणमान्य अतिथियों ने पवित्र अवशेषों के दर्शन किए, जिन्हें खासतौर से समारोह के लिए राष्ट्रीय संग्रहालय से लाया गया था। इस समारोह में केंद्रीय संस्कृति मंत्री महेश शर्मा और केंद्रीय गृह राज्यमंत्री किरेन रिजीजू भी मौजूद रहे। गौरतलब है कि 2015 में बुद्ध जयंती को राष्ट्रीय पर्व के तौर पर मनाए जाने की घोषणा की थी
फोटो फीचर
19
20
जेंडर
07 - 13 मई 2018
पाबीबेन के हुनर से मिली कच्छ को नई पहचान
ब्रेन ट्यूमर पीड़िता बनी ब्यूटी क्वीन
कच्छ की कला के सहारे आज पाबीबेन 20 लाख रुपए सालाना के टर्नओवर वाला व्यवसाय खड़ा कर चुकी हैं और देश ही नहीं, विदेशों में भी अपने हुनर का डंका बजा चुकी हैं
सोनिया सिंह उन सभी के लिए एक मिसाल हैं जो ब्रेन ट्यूमर जैसी बीमारी से ग्रस्त हैं
खास बातें एक रुपए के लिए घरों में पानी भरती थीं पाबीबेन आज पाबी बैग और पाबी जरी की पहचान पूरी दुनिया में बनी
अ
अमेरिका, जर्मनी, ब्रिटेन, दुबई जैसे देशों में है उनके उत्पादों की मांग
ममता अग्रवाल
रब सागर के तट पर बसे गुजरात के कच्छ की पहचान अगर प्राचीन सिंधु सभ्यता को लेकर है, तो आधुनिक कला-संस्कृति, कारीगरी और हुनर भी उसकी पहचान है। बात जब हुनर की आती है तो जेहन में पाबीबेन का नाम आता है, जिन्होंने कच्छ की कला को दुनिया में पहचान दिलाई। कच्छ के अनजार तालुका की पाबीबेन महज चौथी कक्षा तक पढ़ी हैं। जनजातीय राबारी समुदाय की इस महिला के सामने एक तरफ चुनौतियों का आसमान था, तो दूसरी ओर अपनी कला के हुनर से दुनिया जीत लेने की उमंग भी। वह आज 20 लाख रुपए सालाना के टर्नओवर वाला व्यवसाय खड़ा कर चुकी हैं और देश ही नहीं, विदेशों में भी अपने हुनर का डंका बजा चुकी हैं। पाबीबेन के जीवन में एक समय ऐसा भी आया, जब उनके पिता के देहांत के बाद उनकी मां के सिर पर अचानक दो बेटियों के परवरिश की जिम्मेदारियां आ पड़ी। मां का बोझ हल्का करने के लिए वह महज एक रुपए में लोगों के घरों में पानी भरने का काम किया करती थीं। पहले महिला कला उद्यमों में से एक 'पाबीबेन डॉट कॉम' की सफल यात्रा शुरू करने वाली पाबीबेन कहती हैं, 'होश संभालने पर जब मां की जिम्मेदारियों का अहसास हुआ तो उस समय मैं उनका हाथ बंटाने के लिए दूसरों के घरों में लिपाईपुताई और पानी भरने का काम किया करती थी। उस समय मुझे दूसरों के घरों में एक गैलन पानी भरने के ऐवज में सिर्फ एक रुपया मिलता था। फिर
मैंने अपनी मां से अपनी परंपरागत कढ़ाई का काम सीखा और आज मेरा यह काम इतना आगे बढ़ चुका है कि न सिर्फ मैं खुद अपने पैरों पर खड़ी हुई हूं, बल्कि अपने गांव की अन्य महिलाओं को भी आर्थिक रूप से संपन्न बनने में मदद करने का प्रयास कर रही हूं।' कच्छ के आदिवासी ढेबरिया राबारी समुदाय में परंपरा रही है कि समुदाय की लड़कियों को अपनी शादी के दहेज में ले जाने वाला पूरा सामान - लहंगे, ब्लाउज, चादरें, सोफा कवर, दरियां, दूल्हे के कपड़े, तोरण आदि खुद अपने हाथों से कढ़ाई करके तैयार करना होता था। लेकिन इस महीन कारीगरी में इतना समय लगता था कि दहेज तैयार करने के चक्कर में उनकी शादियों में देर हो जाती थी। इसे देखते हुए समुदाय के बुजुर्गो ने इस कारीगरी और रिवाज पर रोक लगा दी। पाबीबेन बताती हैं, 'समुदाय के इस फैसले से हम ढेबरिया महिलाओं को लगा कि इस प्रकार तो यह कला ही विलुप्त हो जाएगी। समुदाय के नियमों को तोड़े बिना इस कला को बचाने और इसे आगे बढ़ाने के लिए हमने एक नया तरीका खोज निकाला और हाथ की कढ़ाई के स्थान पर रेडीमेड चीजों के इस्तेमाल से मशीन की मदद से खूबसूरत और कलात्मक सामान तैयार करना शुरू किया, जिसे 'हरी जरी' का नाम दिया गया।' पाबीबेन महिलाओं के एक संगठन के साथ जुड़ गईं और उन्हें जल्द ही मास्टर कारीगर बना दिया गया। ढेबरिया समुदाय में पहली बार पाबीबेन ने रिबन और लेस वगैरह के खूबसूरत संयोजन का प्रयोग किया, जिसे 'पाबी जरी' का नाम दिया गया। पाबीबेन का हुनर तब परवान चढ़ा, जब उन्होंने
खास पहचान बना चुके पाबी बैग 'द अदर एंड ऑफ द लाइन' और 'लक बाय चांस' जैसी हॉलीवुड और बॉलीवुड फिल्मों में भी नजर आ चुके हैं
अपनी शादी में शामिल हुए कुछ विदेशी मेहमानों को अपने हाथों बना बैग भेंट में दिया। वह बताती हैं, 'मैं सोच में पड़ गई थी कि अपनी शादी में आए विदेशी मेहमानों को भेंट में क्या दूं, फिर मैंने अपने हाथों का बना बैग उन्हें भेंट किया। उन्हें वह बैग इतना पसंद आया कि उन्होंने उसे पाबीबैग नाम दे दिया।' इस भेंट से पाबी का हुनर केवल कच्छ या भारत तक ही सीमित नहीं रहा, बल्कि उन विदेशियों के जरिए उनके हुनर का जादू विदेशों में भी फैल गया। पाबीबेन का व्यवसाय आज दुनिया के कई देशों में फैल चुका है और उनके क्लाइंट्स की लिस्ट में नामी गिरामी नाम शामिल हैं, जिनमें ताज ग्रुप ऑफ होटल्स, वस्त्र, देश के कई रिजॉर्ट, म्यूजियम, डिजाइनर आदि शामिल हैं। अमेरिका, जर्मनी, कोस्टा रिका, ब्रिटेन, दुबई जैसे कई देशों में उनके उत्पादों की मांग हैं। पाबीबेन कहती हैं, 'मेरे काम को आगे बढ़ाने में मेरे पति लक्ष्मणभाई राबारी ने मेरा बहुत हौसला बढ़ाया। अब मैं चाहती हूं कि मैं अपने गांव की अन्य हुनरमंद युवतियों और महिलाओं को भी आर्थिक रूप से आगे बढ़ने में मदद करूं। आज मेरे काम के साथ मेरे गांव की 50-60 महिलाएं जुड़ चुकी हैं। मेरा मकसद है कि मैं अपने साथ 500 महिलाओं को जोड़ पाऊं।' खास पहचान बना चुके पाबीबैग 'द अदर एंड ऑफ द लाइन' और 'लक बाय चांस' जैसी हॉलीवुड और बॉलीवुड फिल्मों में भी नजर आ चुके हैं। अपने खास हुनर और उद्यमिता के जरिए गांव की महिलाओं को आर्थिक रूप से सशक्त बनने में मदद के लिए पाबीबेन को जानकीदेवी बजाज पुरस्कार से सम्मानित किया जा चुका है। इसके अलावा हाल ही में उन्हें दिल्ली में स्नाइडर इलेक्ट्रिक द्वारा प्रेरणा अवार्ड से भी नवाजा गया।
मर का शिकार बन जाने के बाद किसी ब्रेभीन ट्यूआदमी की जिंदगी लगभग खत्म हो जाती
है। वह यह मान बैठता है कि अब उसकी जिंदगी में कुछ बचा नहीं है। लेकिन 31 साल की सोनिया सिंह उन सबके लिए एक बड़ी और प्रेरक मिसाल हैं, जो ब्रेन ट्यूमर जैसी घातक बीमारी से पीड़ित हैं। इस जानलेवा बीमारी से पीड़ित होने के बाद सोनिया सिंह ने अपने हौसलों को बीमार नहीं होने दिया। और लगातर इस बीमारी से जूझते हुए कर्नाटक ब्यूटी क्वीन का खिताब हासिल किया। पांच साल पहले एक दिन सोनिया को सिर और कंधों में तेज होने लगा। इसके बाद उन्हें भोजन निगलने में भी दिक्कत आने लगी। दर्द लगातार न होकर बीच-बीच में होता रहता था। इसके बाद जनवरी 2013 सोनिया बीजीएस ग्लोबल ग्लेनईगल्स अस्पताल में डॉ. एनके वेंकटरमन से मिलीं। यहां जांच में सामने आया कि उन्हें दिमाग में मेडॉलरी सिस्टिक ट्यूमर है। सोनिया उस वक्त तीन महीने की बच्ची की मां भी थीं। उन्होंने अपनी बीमारी को कमजोरी नहीं बनने दिया और हर चरण में खुद को मजबूत बनाती गईं। डॉ. वेंकटरमण ने बताया, 'ट्यूमर ब्रेन स्टेम में स्थित था जिस वजह से इसके ऑपरेशन में मुश्किलें आ रही थीं। अक्सर लोगों को पता चलता है कि वह ब्रेन ट्यूमर जैसी गंभीर बीमारी से पीड़ित हैं तो वह डिप्रेशन में चले जाते हैं, लेकिन सोनिया ने साहस के साथ इसका मुकाबला किया। उन्होंने अपनी व्यक्तित्व तक में बदलाव किया। वह जीवन के प्रति बेहद सकारात्मक रहने लगीं और अपनी खुद की कंपनी भी शुरू कर दी।' उन्होंने कहा कि सौभाग्यवश ट्यूमर कैंसर संबंधी नहीं था। उन्होंने मिसेज इंडिया कर्नाटक 2018 में भाग लिया। सोनिया ने बताया, 'ब्यूटी कॉन्टेस्ट के दौरान हाई हील्स पहनकर चलना आसान नहीं था। ट्यूमर दिमाग के हिस्से में स्थित था जो रीढ़ की हड्डी की ऐक्टिविटी को नियंत्रित करता है। हील्स पहनकर चलना मेरे लिए दर्दभरा था। कई घंटे तक खड़े रहने से पैरों में सूजन आ जाती थी और नींद पूरी न होने के चलते प्रतियोगिता के दौरान मेरे चेहरे में भी सूजन आ गई थी।' सोनिया पहले एक एयरहोस्टेस थीं अब मोटिवेशनल स्पीकर और आंत्रप्रिन्योर हैं। (एजेंसी)
07 - 13 मई 2018
वैज्ञानिकों ने कैसे बदली आम आदमी की जिंदगी
क
21
लोकार्पण
‘इंडियन साइंस ट्रांसफॉर्मिंग इंडिया’ नामक पुस्तक में भारत की इन वैज्ञानिक उपलब्धियों को छोटी-छोटी कहानियों के रूप में पेश किया गया है। देश के वैज्ञानिकों के सबसे बड़े संगठन भारतीय राष्ट्रीय विज्ञान अकादमी (इन्सा) द्वारा प्रकाशित इस पुस्तक का नई दिल्ली में लोकार्पण किया गया उमाशंकर मिश्र
ई बार प्रश्न उठते हैं कि भारत में विज्ञान ने आम लोगों के लिए क्या किया है और देश के विकास में इसकी कैसी भूमिका रही है। आजादी के बाद भारत ने विज्ञान और तकनीक के क्षेत्र में कई उपलब्धियां हासिल की हैं, जो जीवन को प्रतिदिन प्रभावित करती हैं, पर इनके बारे में लोगों को अधिक जानकारी नहीं है। ज्यादातर चर्चाएं अंतरिक्ष और परमाणु ऊर्जा तक ही सीमित रही हैं। सूरत को हीरा कटाई के प्रमुख औद्योगिक केंद्र के रूप में स्थापित करने वाली लेजर मशीन से लेकर पीवीसी (पॉलिविनाइल क्लोराइड) के उपयोग से रक्त के रखरखाव को आसान बनाने, लोकतंत्र की शुचिता बनाए रखने वाली अमिट स्याही के निर्माण, प्लांट टिश्यू कल्चर तकनीक, जेनेरिक दवाओं के निर्माण और सूचना प्रौद्योगिकी क्षेत्र में स्थापित होने तक भारत की वैज्ञानिक उपलब्धियों की लंबी फेहरिस्त है। ‘इंडियन साइंस ट्रांसफॉर्मिंग इंडिया’ नामक एक नई पुस्तक में भारत की इन वैज्ञानिक उपलब्धियों को छोटी-छोटी कहानियों के रूप में पेश किया गया है। देश के वैज्ञानिकों के सबसे बड़े संगठन भारतीय राष्ट्रीय विज्ञान अकादमी (इन्सा) द्वारा प्रकाशित इस पुस्तक का नई दिल्ली में लोकार्पण किया गया। पुस्तक का संपादन भारतीय विज्ञान शिक्षा एवं अनुसंधान संस्थान, पुणे से जुड़े प्रो. एलएस शशिधर ने किया है। पुस्तक में जिन विज्ञान लेखकों ने अपना योगदान दिया है, वे हैं अदिता जोशी, दिनेश सी. शर्मा, कविता तिवारी और निसी नेविल । पुस्तक में विज्ञान और प्रौद्योगिकी आधारित उपलब्धियों 11 कहानियां हैं, जो बताती हैं कि स्वतंत्रता के बाद भारत एक तरफ गरीबी, खाद्यान्न सुरक्षा और बाहरी आक्रमण की चुनौतियों से जूझते हुए शासन करना सीख रहा था तो दूसरी ओर वैज्ञानिक प्रगति के पथ पर भी लगातार बढ़ रहा था। हर वैज्ञानिक उपलब्धि के पीछे वैज्ञानिक नवाचार और उद्यम की कई छोटी-बड़ी कहानियां हैं, जो पिछले 70 वर्षों में भारतीय विज्ञान की प्रगति को व्यक्त करती हैं। इन्सा के अध्यक्ष प्रो. अजय कुमार सूद के अनुसार,“इस पुस्तक में पेश की गई कहानियां बदलाव की यात्रा से जुड़े मील के पत्थरों में शामिल रही हैं। पुस्तक में उन कहानियों को शामिल किया गया है, जो बहुत लोगों तक नहीं पहुंच सकी हैं। किस्सागोई के अंदाज में इन कहानियों को लिखा
गया है, जिससे पुस्तक की रोचकता बढ़ जाती है। इन कहानियों में कोई बड़े नायक नहीं हैं। विपरीत हालातों में मूलभूत तथा प्रयुक्त विज्ञान में शोध और विज्ञान एवं गणितीय शिक्षा का अनुसरण करने की हमारी सामाजिक जिजीविषा के कारण ऐसा संभव हो सका है।” पुस्तक में शामिल ज्यादातर कहानियां उन्नतशील नवाचार, स्वदेशीकरण, प्रौद्योगिकी विकास और उनके अनुप्रयोगों से जुड़ी हैं। देश की प्रगति, समाज, अर्थव्यवस्था और जीवन की गुणवत्ता में सुधार में विज्ञान के योगदान से जुड़े कई महत्वपूर्ण विवरण इस पुस्तक में देखने को मिल सकते हैं। पुस्तक में शामिल कहानियां भारत की बड़ी वैज्ञानिक उपलब्धियों के बारे में नहीं हैं और न ही वे किसी भी शानदार वैज्ञानिक सफलता का प्रतिनिधित्व करती हैं। इनमें से ज्यादातर कहानियां उन्नतशील नवाचार, स्वदेशीकरण, प्रौद्योगिकी विकास और उनके अनुप्रयोगों से जुड़ी हैं। देश की प्रगति, समाज, अर्थव्यवस्था और जीवन की गुणवत्ता में सुधार में विज्ञान के योगदान से जुड़े कई महत्वपूर्ण विवरण इस पुस्तक में देखने को मिल सकते हैं। वैज्ञानिक विकास के क्रम में कुछ नवाचारों ने भी बड़ी व्यावसायिक सफलताओं को जन्म दिया है। गुजरात के दो नवाचारी उद्यमियों अरविंद पटेल और धीरजलाल कोटाड़िया द्वारा बनाई गई लेजर-
आधारित हीरा कटाई मशीन का देसी संस्करण इसका उदाहरण है। भारत में यह मशीन उस समय बनी, जब इसे आयात करने का खर्च करीब 60-70 लाख रुपए था और कारोबारियों के लिए इतना पैसा खर्च करना आसान नहीं था। लेजर मशीन के आने के बाद अब सूरत के परंपरागत हीरा कटाई और पॉलिशिंग कारोबार का नक्शा बदल गया है। हीरे की कटाई और पॉलिशिंग के कारोबार में आज भारत की हिस्सेदारी 70 प्रतिशत से अधिक है। वर्ष 2016 में पॉलिश और कटाई किए गए हीरे के निर्यात से भारत ने 16.91 अरब अमेरिकी डॉलर अर्जित किए थे, जो देश से होने वाले रत्नों और आभूषण निर्यात का 52 प्रतिशत से अधिक था। इसी तरह शांता बायोटेक्नीक की कहानी भी है, जिसने हैदराबाद स्थित कोशकीय एवं आण्विक जीवविज्ञान केंद्र जैसे सार्वजनिक शोध संस्थानों के सक्रिय सहयोग एवं समर्थन से भारत में पुनर्संयोजक डीएनए प्रौद्योगिकी का नेतृत्व किया। वर्ष 1997 में इस कंपनी द्वारा 50 रुपए की किफायती लागत में हेपेटाइटिस-बी वैक्सीन बेचना परिवर्तनकारी साबित हुआ, जब अन्य बहुराष्ट्रीय कंपनियां इसके लिए 750-850 रुपए पर तक वसूल रही थीं। पुस्तक के संपादक प्रो. शशिधर के मुताबिक यह पुस्तक विज्ञान और प्रौद्योगिकी आधारित इस तरह की अन्य उपलब्धियों का प्रतिनिधित्व करती
पुस्तक में विज्ञान और प्रौद्योगिकी आधारित उपलब्धियों 11 कहानियां हैं, जो बताती हैं कि स्वतंत्रता के बाद भारत एक तरफ गरीबी, खाद्यान्न सुरक्षा और बाहरी आक्रमण की चुनौतियों से जूझते हुए शासन करना सीख रहा था तो दूसरी ओर वैज्ञानिक प्रगति के पथ पर भी लगातार बढ़ रहा था
है। शिक्षण से जुड़े लोगों में मूलभूत विज्ञान और उसके अनुप्रयोगों के बारे में समझ विकसित करने, विश्वविद्यालयों तथा संस्थानों में शोध वातावरण बनाने और विज्ञान को शैक्षिक विषय के रूप में लेने से झिझकने वाले लोगों को इस पुस्तक से जरूर प्रेरण मिलेगी। दूध उत्पादन और वितरण में क्रांतिकारी बदलाव करने वाले अमूल, आईटी क्रांति, जेनेरिक दवा उद्योग और बासमती पर वैश्विक पेटेंट के संघर्ष में डीएनए फिंगरप्रिंटिंग तकनीक के जरिए भारत की विजयगाथा के बारे में तो बहुत से लोगों को पता है। पर, इनके पीछे छिपे वैज्ञानिक और प्रौद्योगिकी के योगदान के बारे में कम ही लोग जानते हैं। वर्ष 1980 में केरल के श्री चित्रा तिरुनल इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज ऐंड टेक्नोलॉजी के वैज्ञानिकों द्वारा रक्त के रखरखाव के लिए विकसित किए गए बैग जैसी कई अपेक्षाकृत अज्ञात उपलब्धियों की जानकारी भी इस पुस्तक में दी गई है। रक्त के बैग के आगमन से पहले, रक्त को बोतलों में रखा जाता था। इससे बोतल टूटने के कारण रक्त के असुरक्षित होने और संक्रमण की आशंका रहती थी। इस रक्त बैग का उत्पादन और विपणन करने वाली पेनपोल नामक कंपनी की वैश्विक उत्पादन में आज 38 प्रतिशत हिस्सेदारी है। इसी तरह, तटीय इलाकों में झींगा पालन करने वाले किसानों के लिए चेन्नई स्थित केंद्रीय खारा जलजीव पालन अनुसंधान संस्थान द्वारा विकसित की गई एक डायग्नोस्टिक किट वरदान साबित हुई है। इस किट की मदद से रोगजनक वायरसों की पहचान आसान हो गई, जिसने तमिलनाडु और आसपास के राज्यों में झींगा उत्पादन उद्योग को एक नया जीवन दिया है।
22
स्वास्थ्य
07 - 13 मई 2018
आमदनी का जरिया बन सकती हैं झारखंड की सब्जियां शोधकर्ताओं ने झारखंड के स्थानीय आदिवासियों द्वारा उपयोग की जाने वाली ऐसी पत्तेदार सब्जियों की 20 प्रजातियों की पहचान की है, जो पौष्टिक गुणों से युक्त होने के साथ-साथ भोजन में विविधता को बढ़ावा दे सकती हैं
ग
रीब और पिछड़ा माने जाने वाले झारखंड जैसे राज्यों के जनजातीय लोग कई ऐसी सब्जियों की प्रजातियों का उपभोग अपने भोजन में करते हैं, जिनके बारे में देश के अन्य हिस्सों के लोगों को जानकारी तक नहीं है। भारतीय शोधकर्ताओं ने झारखंड के स्थानीय आदिवासियों द्वारा उपयोग की जाने वाली ऐसी पत्तेदार सब्जियों की 20 प्रजातियों की पहचान की है, जो पौष्टिक गुणों से युक्त होने के साथ-साथ भोजन में विविधता को बढ़ावा दे सकती हैं। पोषण एवं खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने में भी सब्जियों की ये स्थानीय प्रजातियां मददगार हो सकती हैं। सब्जियों की इन प्रजातियों में शामिल लाल गंधारी, हरी गंधारी, कलमी, बथुआ, पोई, बेंग, मुचरी, कोईनार, मुंगा, सनई, सुनसुनिया, फुटकल,
गिरहुल, चकोर, कटई/सरला, कांडा और मत्था इत्यादि झारखंड के आदिवासियों के भोजन का प्रमुख हिस्सा हैं। जनजातीय लोगों द्वारा भोजन में सबसे अधिक उपभोग लाल गंधारी, हरा गंधारी और कलमी का होता है। वहीं, गिरहुल का उपभोग सबसे कम होता है। अध्ययनकर्ताओं ने रांची, गुमला, खूंटी, लोहरदगा, पश्चिमी सिंहभूमि, रामगढ़ और हजारीबाग समेत झारखंड के सात जिलों के हाट में सर्वेक्षण कर वहां उपलब्ध विभिन्न मौसमी सब्जियों की प्रजातियों के नमूने एकत्रित किए हैं। इन सब्जियों में मौजूद पोषक तत्वों, जैसे- विटामिनसी, कैल्शियम, फॉस्फोरस, मैग्निशयम, पोटैशियम, सोडियम और सल्फर, आयरन, जिंक, कॉपर एवं मैगनीज, कैरोटेनॉयड्स और एंटीऑक्सीडेंट गुणों
का पता लगाने के लिए नमूनों का जैव-रासायनिक विश्लेषण किया गया है। विटामिन, खनिज और एंटीऑक्सीडेंट गुणों से भरपूर जनजातीय इलाकों में पाई जाने वाली ये पत्तेदार सब्जियां स्थानीय आदिवासियों के भोजन का अहम हिस्सा होती हैं। इनमें प्रचुर मात्रा में कैल्शियम, मैग्निशयम, आयरन, पोटैशियम जैसे खनिज तथा विटामिन पाए गए हैं। विटामिन, खनिज और एंटीऑक्सीडेंट गुणों से भरपूर जनजातीय इलाकों में पाई जाने वाली ये पत्तेदार सब्जियां स्थानीय आदिवासियों के भोजन का अहम हिस्सा होती हैं। इनमें प्रचुर मात्रा में कैल्शियम, मैग्निशयम, आयरन, पोटैशियम जैसे खनिज तथा विटामिन पाए गए हैं। इन सब्जियों में फाइबर की उच्च मात्रा होती है, जबकि कार्बोहाइड्रेट एवं वसा का स्तर बेहद कम पाया गया है।
क्या आम खाने से बढ़ता है वजन? सुबह शाम नाश्ते के साथ आम खाने से होता है ज्यादा फायदा
ग
र्मी का मौसम आते ही छ ुट्टि य ां , अलसाई
दोपहर और आम की मीठी यादें ताजा होने लगती हैं। लेकिन बच्चों और वृद्धों के इस पसंदीदा फल में मौजूद शर्करा की मात्रा के कारण इसे वजन बढ़ने का कारण माना जाता है, जिसके चलते आम के शौकीनों के मन में अकसर यह दुविधा होती है कि क्या आम खाने से वास्तव में वजन बढ़ता है? वरिष्ठ पोषण और स्वास्थ्य विशेषज्ञ सौम्या शताक्षी ने आम खाने के तरीकों और तथा इसे खाने के दौरान याद रखने वाली बातें बताई हैं।
अध्ययन के अनुसार इन सब्जियों की उपयोगिता के बावजूद इन्हें गरीबों एवं पिछड़े लोगों का भोजन माना जाता है और व्यापक रूप से कृषि चक्र में ये सब्जियां शामिल नहीं हैं। जबकि, सब्जियों की ये प्रजातियां खाद्य सुरक्षा, पोषण, स्वास्थ्य देखभाल और आमदनी का जरिया बन सकती हैं। एक खास बात यह है कि बेहद कम संसाधनों में इनकी खेती की जा सकती है। बरसात एवं गर्मी के मौसम में विशेष रूप से जनजातीय समुदाय के लोग खाने योग्य विभिन्न प्रकार के पौधे अपने आसपास के कृषि, गैर-कृषि एवं वन्य क्षेत्रों से एकत्रित करके सब्जी के रूप में उपयोग करते हैं। इन सब्जियों को विभिन्न वनस्पतियों, जैसे- झाड़ियों, वृक्षों, लताओं, शाक या फिर औषधीय पौधों से प्राप्त किया जाता है। सब्जियों को साग के रूप में पकाकर, कच्चा या फिर सुखाकर खाया जाता है। सुखाकर सब्जियों का भंडारण भी किया जाता है, ताकि पूरे साल उनका भोजन के रूप में उपभोग किया जा सके। अलगअलग स्थानों पर विभिन्न मौसमों में भिन्न प्रकार की सब्जियां उपयोग की जाती हैं। इनकी पत्तियों, टहनियों और फूलों को मसालों अथवा मसालों के बिना पकाकर एवं कच्चा खाया जाता है। भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के पटना एवं रांची स्थित पूर्वी अनुसंधान परिसर के शोधकर्ताओं द्वारा किया गया यह अध्ययन शोध पत्रिका करंट साइंस में प्रकाशित किया गया है। अध्ययनकर्ताओं में अनुराधा श्रीवास्तव, आर.एस. पैन और बी.पी. भट्ट शामिल थे। (एजेंसी)
‘आम’ की खास बातें
आम एक संपूर्ण आहार नहीं है, लेकिन विटामिन ए, लौह, कॉपर और पोटैशियम जैसे विभिन्न पोषक तत्वों की खान है। आम ऊर्जा देने वाला भोजन है जो शरीर को प्रचुर मात्रा में शर्करा उपलब्ध कराता है जिससे शरीर के ऊर्जा स्तर को बढ़ाने में सहायता मिलती है और यह आपको दिन भर स्फूर्तिवान रखता है। यह विटामिन सी का भंडार है जो शरीर की प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाता है और इसमें फाइबर भी प्रचुर मात्रा में पाया जाता है। बहुत ज्यादा आम खाना भी स्वास्थ्य के लिए हानिकारक साबित हो सकता है। एक मध्यम आकार के आम में लगभग 150 कैलोरीज पाई जाती हैं। आवश्यकता से अधिक कैलोरी ग्रहण करने से वजन बढ़ेगा ही। खाना खाने के बाद आम खाने से संपूर्ण कैलोरी की मात्रा बढ़ जाती है। इससे बचने के लिए हम अपने सुबह और शाम के नाश्ते के समय आम ले सकते हैं। (आईएएनएस)
07 - 13 मई 2018
23
जेंडर
कमला गिरि
दुख ही जीवन की कथा रही कमला ने भी यही कही पहले पति और फिर बेटे की प्रताड़ना, जीवन के अंतहीन दुखों को सहती कमला गिरि ने चैन की सांसें वृंदावन में ही ली
मेरी शादी कर दी। शादी के शुरुआती साल तो अच्छे से बीते, लेकिन कमला को क्या पता था कि एक दिन उनका पति उन्हें छोड़ कर किसी और से शादी कर लेगा। हालांकि कमला तब तक दो बच्चों की मां बन चुकी थी। कमला बताती हैं कि उनके पति खेतों में काम करते थे, लेकिन दूसरी शादी करने के बाद उन्होंने सारी जायदाद अपनी दूसरी पत्नी के नाम कर दी। कमला और उनके बच्चों को कुछ भी नहीं दिया। दूसरी शादी करने के बाद कभी पति ने कमला का हाल नहीं पूछा और ना ही कभी उनकी गलती बताई। कमला ने कई बार अपने पति से बात करने की कोशिश की और बच्चों का हवाला भी दिया, लेकिन उनके पति पर कोई प्रभाव नहीं पड़ा। उन्होंने कमला के साथ-साथ अपने बच्चों की तरफ से भी मुंह मोड़ लिया। लोगों के घरों में काम करके किसी तरह उन्होंने अपने बच्चों की परवरिश की। बेटे और बेटी दोनों की शादी की। कमला ने सोचा था कि अब वह लोगों के घरों में काम नहीं करेंगी घर पर रहेंगी और अपने बेटे के बच्चों की देखभाल करेंगी, लेकिन शादी के बाद कमला के दोनों बच्चों के व्यवहार में काफी परिवर्तन आ गया।
खाना नहीं देती थी बहू
नि
प्रियंका तिवारी
पति होने के बावजूद भी एक बेवा कि तरह जीवन जीना पड़े तो इससे बड़ा कष्ट किसी महिला के लिए कुछ भी नहीं हो सकता है। यह कहानी है वृंदावन के शारदा आश्रम में रहने वाली कमला गिरि की। कमला का जीवन दूसरी महिलाओं से अलग इस मायने में है कि एक तरफ पति ने उन्हें छोड़ दिया तो दूसरी तरफ बेटे-बहू ने भी मुंह मोड़ लिया। कमला को आजतक समझ नहीं आया कि आखिर उनकी गलती क्या है? किस बात की सजा उन्हें मिल रही है? हालांकि अपने दुखों से अकेले जूझती कमला किसी तरह अपना जीवन जी रही हैं, लेकिन उन्हें बार
बार परिवार के दूसरे सदस्यों से मिलने वाले उलाहनों ने काफी तोड़ दिया। एक तरफ पति के छोड़ने का गम तो दूसरी तरफ बेटे-बहू की नफरत से दुखी होकर कमला ने अकेले रहने का फैसला किया और वृंदावन चली आईं।
पति ने कर ली दूसरी शादी
कमला कहती हैं कि बहुत ही छोटी उम्र में मां-बाप ने
कमला की बेटी अपने घर में काफी खुश है। हालांकि वह कभी भी मां का हाल जानने की कोशिश नहीं करती है, तो वहीं बेटा और बहू भी कमला का ध्यान नहीं रखते थे, बल्कि उसे मारते-पीटते थे। बेटे-बहू के साथ-साथ उनके बच्चे भी अपनी दादी को मारते थे और कभी भी सीधे मुंह बात नहीं करते थे। कमला कहती हैं कि बेटा-बहू खुद खाना खा लेते थे और कमला को खाने के लिए पूछते नहीं थे। वह खाएगी या नहीं, वह बीमार है तो इलाज होगा या नहीं, इन सब बातों का ध्यान भी नहीं रखते थे।
बेटे को जायदाद का है दुख
हालांकि उनका बेटा पिता की जायदाद ना मिलने की वजह से नाराज रहता और कमला से कभी भी सीधे मुंह बात नहीं करता। कमला हमेशा यही सोचती रहती कि आखिर उनकी क्या गलती है। जो कुछ भी किया
जब कमला से पूछा कि यदि उनके बेटा उन्हें घर बुलाए तो जाएंगी तो उन्होंने कहा कि आखिर बेटा है मेरा जरूर जाऊंगी। मैंने तो उसे उसकी गलतियों के लिए कब का माफ कर दिया है। ठाकुर जी उसे हमेशा खुश रखें
उनके पति ने किया। उन्होंने तो कभी नहीं कहा कि वह अपनी जायदाद का हिस्सा बेटे को ना दें, लेकिन उनके बेटे को यही लगता है कि जो भी हुआ है उसमें कमला की ही गलती है।
चचेरी बहन के साथ आई वृंदावन
कमला कहती हैं कि इन सभी बातों से मैं हमेशा दुखी रहती थी। उसी दौरान मेरी चचेरी बहन वृंदावन से आई थी। उसे जब मेरे दुख के बारे में पता चला तो उसने मुझते कहा कि बहन तुम मेरे साथ वृंदावन चलो। यहां की इस जिल्लत भरी जिंदगी से तो अच्छा है कि तुम वहां भगवान की भक्ति करो और दो रोटी सुकुन से खाओ। उसके बात सुन कर मुझे एक आस जगी और मैं उसके साथ वृंदावन आ गई।
वृंदावन में मिलती है शांति
यहां आने के बाद मैंने ठाकुर जी और राधारानी के मंदिरों में भजन गाना शुरू किया और उससे मिलने वाले प्रसाद से भोजन करती थी। वृंदावन आने के बाद मुझे काफी सुकुन और मन को शांति मिली, जिसकी वजह से मैं फिर लौट कर अपने घर वापस नहीं गई। कमला कहती हैं कि ना तो कभी उनके बेटे ने बुलाया और ना ही वह चाहते हैं कि कमला उनके साथ रहे। इसीलिए हमने भी कभी उनसे कोई शिकायत नहीं की।
बेटे-बहू को किया माफ
कहते हैं कि मां आखिर मां होती है। बच्चे उस पर कितनी भी ज्यादती क्यों ना कर लें, वह उन्हें माफ कर ही देती है और हमेशा उनके लिए दुआ करती रहती है। जब कमला से पूछा कि यदि उनके बेटा उन्हें घर बुलाए तो जाएंगी तो उन्होंने कहा कि आखिर बेटा है मेरा जरूर जाऊंगी। मैंने तो उसे उसकी गलतियों के लिए कब का माफ कर दिया है। ठाकुर जी उसे हमेशा खुश रखें। कमला बताती हैं कि उन्हें वृंदावन आए 3 साल हो गए हैं। वह यहां शारदा आश्रम में दूसरी विधवा महिलाओं के साथ रहती हैं। वह कहती हैं कि उन्हें यहां कोई कष्ट नहीं है। वह अपनी सखियों के साथ भजन-कीर्तन करती है और अपने हाथों से खाना बना कर खाती हैं। वह कहती हैं कि यहां रहकर उन्हें काफी अच्छा लगता है, अब खाने के लिए इंतजार नहीं करना पड़ता और ना ही किसी की उलाहना और मार-पीट सहनी पड़ती है। कमला अपने जीवन के बचे दिन वृंदावन में शांति और सुकुन से गुजारा चाहती हैं।
24
विज्ञान
07 - 13 मई 2018
देश हुआ रौशन
आजादी तो सात दशक पूर्व मिल गई थी, लेकिन अंधेरे से देश को आजाद कराने में काफी विलंब हुआ। आखिरकार वह गौरवशाली दिन आया जब देश का हर गांव रौशन हुआ
28
अप्रैल को शाम 5.30 बजे का समय भारतीय इतिहास में सुनहरे अक्षरों में दर्ज हो गया है। मणिपुर के लाइसंग गांव में जब बिजली पहुंची तो इसके साथ देश में एक नया इतिहास रचा गया। देश के प्रत्येक गांव तक बिजली पहुंचाने का का सपना पूरा हो गया, वो भी तय समय से पहले। इस उपलब्धि का ऐलान करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ट्वीट में कहा कि, ‘28 अप्रैल 2018 को भारत की विकास यात्रा में एक ऐतिहासिक दिन के रूप में याद किया जाएगा। कल हमने एक वादा पूरा किया, जिससे भारतीयों के जीवन में हमेशा के लिए बदलाव आएगा। मुझे इस बात की प्रसन्नता है कि अब भारत के हर गांव में बिजली सुलभ होगी।’ प्रधानमंत्री ने एक अन्य ट्वीट में कहा, ‘मैं सशक्त भारत को हकीकत बनाने की दिशा में जमीन पर कार्य करने वाले सभी लोगों के प्रयासों को सलाम करता हूं जिसमें अधिकारियों की टीम, तकनीकी कर्मी और अन्य लोग शामिल हैं। उनका यह प्रयास आने वाले वर्षों में हमारी
पीढ़ियों को बहुत फायदा पहुंचाएगा।’ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 15 अगस्त 2015 को लालकिला से एक हजार दिन के भीतर देश के सभी गांवों को रौशन करने के लक्ष्य की घोषणा की थी। उस समय देश के कुल 18,452 गांवों में बिजली नहीं पहुंची थी। ये ऐसे गांव थे, जहां आजादी के करीब 70 साल बाद भी बिजली नहीं पहुंची थी। इसके लिए दीन दयाल उपाध्याय ग्राम ज्योति योजना शुरू की गई, जिसके तहत 987 दिन में ही लक्षय को पूरा कर लिया गया। देश के हर गांव में बिजली पहुंचाने की दिशा में क्रांतिकारी बदलाव लाने वाली दीनदयाल उपाध्याय ग्राम ज्योति योजना के तहत 75,893 करोड़ के बजट का आवंटन किया गया था। अब बिजली से रौशन होने वाले कुल गांवों की संख्या 597,464 हो गई है। नेशनल पॉवर ग्रिड से जुड़ने वाला आखिरी गांव लाइसंग मणिपुर के सेनापति जिले में है। सरदार हिल्स पर बसा हुआ यह एक छोटा सा गांव है। इस गांव की आबादी मात्र 65 हैं। लाइसंग में 19 परिवारों के कुल 65 लोग रहते
हैं। इनमें 31 पुरुष और 34 महिलाएं हैं। लाइसंग की तरह दूरदराज के कई गांवों तक बिजली पहुंचाने में काफी मशक्कंत करनी पड़ी। कई गांवों में तो बिजली उपकरण सिर पर रखकर ले जाने पड़े। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 25 सितंबर, 2017 को प्रधानमंत्री सहज बिजली हर घर योजना ‘सौभाग्य’ की शुरुआत की। इसके तहत मार्च 2019 तक सभी घरों को बिजली उपलब्ध कराने का लक्ष्य रखा गया है। इस योजना का फायदा उन लोगों को मिलेगा जो पैसों की कमी के चलते अभी तक बिजली कनेक्शन नहीं ले पाए हैं। इसके तहत गरीब परिवारों को बिजली कनेक्शन मुफ्त उपलब्ध कराया जाता है। इस योजना पर 16 हजार करोड़ रुपए से ज्यादा का खर्च आएगा। सरकार ने 2018-19 के बजट में 2750 करोड़ रुपए ‘सौभाग्य’ के लिए दिए गए हैं। यह उन चार करोड़ परिवारों के घर में नयी रोशनी लाने के लिए है, जिनके घरों में आजादी के 70 साल के बाद भी अंधेरा है। केंद्र सरकार की नीतियों के चलते आज पारंपरिक और गैर-पारंपरिक ऊर्जा का भी भरपूर उत्पादन होने लगा है। सबसे बड़ी बात भारत इस क्षेत्र में आत्मनिर्भर ही नहीं बना है, सौर ऊर्जा के क्षेत्र में एक बहुत बड़ा बाजार उभर कर सामने आया है। उर्जा क्षेत्र में इस कायापलट के पीछे उन योजनाओं के क्रियान्यवन में बेहतर तालमेल रहा है जिस पिछले चार सालों में सरकार ने लागू किया है। उर्जा क्षेत्र की छोटी-छोटी समस्याओं को दूर करने के लिए लागू की गई इन योजनाओं से बहुत बड़े परिणाम सामने आए हैं। देश के हर घर को चौबीसों घंटे बिजली देने का लक्ष्य 2022 है, लेकिन जिस गति से काम चल रहा है उससे अब यह प्राप्त कर लेना आसान लगने लगा है, पहले यह कल्पना भी नहीं की जा सकती थी कि देश में ऐसा भी हो सकता है।
स्कूलों की 75 फीसदी कक्षाएं हुईं हाईटेक
आगामी शैक्षणिक सत्र में केरल की सभी कक्षाएं हाईटेक बन जाएंगी
के
रल के 4,775 सरकारी माध्यमिक स्कूलों की 45,000 कक्षाओं में से करीब 75 फीसदी को लैपटॉप, प्रोजेक्टरों, स्पीकर व दूसरे उपकरणों के साथ हाईटेक बनाया गया है। जून में शुरू होने वाले अकादमिक वर्ष के साथ बाकी के स्कूल इसी के अनुकूल अपनी कक्षाएं बनाने का पालन करेंगे। यह पहल सरकार के सार्वजनिक शिक्षा कायाकल्प मिशन का हिस्सा है और इसका एक सरकारी कंपनी केरल इंफ्रास्ट्रक्चर एंड टेक्नोलॉजी फॉर एजुकेश्न (काइट) द्वारा क्रियान्वयन किया जा रहा है। काइट के उपाध्यक्ष के. अनवर सदात ने कहा कि कुल 34,500 कक्षाओं को पहले ही लैपटॉप, मल्टी मीडिया प्रोजेक्टरों, प्रोजेक्टर सीलिंग माउंटिंग किट, यूएसबी स्पीकर व स्क्रीन के अलावा तेज रफ्तार का ब्राडबैंड इंटरनेट उपलब्ध कराया जा चुका है। काइट ने विभिन्न उपकरणों को चलाने के लिए एक लाख से ज्यादा शिक्षकों का प्रशिक्षण भी शुरू किया है। (आईएएनएस)
आकार बदलने वाले प्लास्टिक उत्पाद विकसित
वै
अमेरिका के वैज्ञानिकों ने 3 डी प्रिंटर की सहायता से ऐसा प्लास्टिक तैयार किया है जो अपने आप आकर बदल सकता है
ज्ञानिकों ने प्लास्टिक की एक ऐसी समतल वस्तु बनाने के लिए किफायती 3 डी प्रिंटर का इस्तेमाल किया है जिसे जब गर्म किया जाता है तो वह गुलाब, नाव और यहां तक कि खरगोश जैसे पहले से निर्धारित आकार में ढल जाती है। अमेरिका में कार्नेगी मेलोन विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं ने बताया कि खुद-ब-खुद अपना आकार बदलने वाली प्लास्टिक की ये वस्तुएं मोड़कर रखने लायक फर्नीचर बनाने
की दिशा में पहला कदम है। ऐसे फर्नीचर जिन्हें हीट गन की मदद से अंतिम आकार दिया जा सकता है। विश्वविद्यालय में शोध कर रहे ब्योंगवॉन ने कहा, 'यह सॉफ्टवेयर नई कर्व-फोल्डिंग थिअरी पर आधारित है जो मुड़े हुए क्षेत्र की मुड़ने की गतिविधि दिखाती है।' खुद से मुड़ने वाली वस्तुएं ठोस 3 डी वस्तुओं के मुकाबले ज्यादा तेजी से बनती है और इनके उत्पादन में कम लागत आती है। इन वस्तुओं
का इस्तेमाल कर नाव के ढांचे और अन्य फाइबरग्लास उत्पादों को उनके आकार में ढालना किफायती हो सकता है। प्लास्टिक को नरम बनाने के लिए उसे गर्म पानी में रखना पर्याप्त होता है लेकिन उसे पिघलाने के लिए गर्म पानी में रखना पर्याप्त नहीं होता और यही से प्लास्टिक को मोड़ने की
प्रक्रिया शुरू होती है।
(एजेंसी)
07 - 13 मई 2018
मंगल पर नया यान भेजेगा नासा मंगल की अंदरुनी संरचना का अश्ययन करने के लिए नासा जल्द ही एक नया यान भेजेगा
अ
मेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा जल्द ही लाल ग्रह पर एक नया अंतरिक्ष यान भेज रहा है जो मंगल की अंदरूनी संरचना का गहराई से अध्ययन कर यह पता लगाएगा कि किस तरह से चट्टानी ग्रह और उनके चंद्रमाओं का निर्माण होता है। पहली बार अंतरिक्ष यान को अमेरिका के पश्चिमी तट से प्रक्षेपित किया जाएगा। अमेरिका के अधिकतर इंटरप्लैनिटरी मिशन फ्लॉरिडा के कैनेडी स्पेस सेंटर (केएससी ) से उड़ान भरते हैं। जो कि देश के पूर्वी तट पर स्थित है। 5 मई को वॉन्डनबर्ग एयरफोर्स बेस से पहला
ऐतिहासिक इंटरप्लैनिटरी मिशन लॉन्च होगा। इस 57.3 मीटर लंबे यूनाइटेड लॉन्च अलाइंस ऐटलस 5 रॉकेट में नासा के सीस्मिक इन्वेस्टिगेशन्स का इस्तेमाल करते हुए इंटीरियर एक्सप्लोरेशन, जियोडसी तथा हीट ट्रॉन्सपोर्ट (इनसाइट) लैंडर होंगे जो मंगल के उत्तरी गोलार्द्ध में स्थित एलेसियम प्लेनीशिया क्षेत्र की निगरानी करेगा। इनसाइट लैंडर मंगल की अंदरूनी संरचना का अध्ययन कर यह पता लगाएगा कि किस प्रकार से पृथ्वी तथा चंद्रमा सहित चट्टानी ग्रहों का निर्माण हुआ। (एजेंसी)
विज्ञान
25
स्पेस में बन रहा है लग्जरी होटल
'ओरियन स्पैन' नामक अमेरिकी कंपनी स्पेस में लग्जरी होटल बनाने जा रही है। इसमें एक रात के लिए आपको करीब पांच करोड़ खर्च करने होंगे
श घूमना अगर आपको सामान्य लगता है देश-विदे तो भविष्य आपके लिए कुछ नया लेकर आ रहा
है। दरअसल, 2022 तक स्पेस में एक ऐसा लग्जरी होटल बनाने का दावा किया जा रहा है जिसमें कोई भी जाकर रह सकेगा। हालांकि, इसके लिए आपको अभी से तैयारियां शुरू करनी होंगी, क्योंकि यात्रा करवाने वाली कंपनी इसके लिए करोड़ों रुपए वसूलेगी। अमेरिका के टेक्सस राज्य की कंपनी 'ओरियन स्पैन' इसकी तैयारियों में लगी है। इस स्टार्टअप ने घोषणा की है कि वह स्पेस का पहला लग्जरी होटल बनाने जा रहे हैं जो 2021 में लॉन्च होगा और 2022 तक आम लोगों के लिए खुल जाएगा। जानकारी के मुताबिक, होटेल में दो क्रू मेंबर और
चार यात्रियों के लिए जगह होगी। पूरी यात्रा कुल 12 दिन की बताई जा रही है। कंपनी ने वेबसाइट पर बुकिंग शुरू भी कर दी है। ओरियन स्पैन की वेबसाइट के मुताबिक, पूरी यात्रा पर 9.5 मिलियन डॉलर (तकरीबन 61 करोड़ रुपए) खर्च होंगे। यानी एक रात के लिए पांच करोड़ रुपए से ज्यादा का खर्च आएगा। इसमें से तकरीबन 51 लाख रुपए जमा के तौर पर रखें जाएंगे। यह यात्रा पूरी होने पर वापस दे दिए जाएंगे। इन्हें एडवांस बुकिंग के लिए समझा जा सकता है। अगर यात्रा किसी वजह से कैंसल करवानी पड़ी तो यह पैसा वापस मिल जाएगा। ओरियन स्पैन ने होटल को अयूरोरा स्टेशन नाम दिया है। इसे बड़े प्राइवेट जेट के कैबिन जितना बड़ा बनाया गया है। बता दें कि पिछले साल रूस ने भी ऐसा ही प्लान बनाया था। उन्होंने अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन पर लग्जरी होटल बनाने की बात कही थी। हालांकि, अभी उस योजना के बारे में किसी को ज्यादा कुछ नहीं पता। ओरियन स्पैन ने भी यह साफ नहीं किया है कि होटेल में यात्रियों को किस तरह की सुविधाएं मिलेंगी। (एजेंसी)
एवं परिवार कल्याण मंत्री जगत प्रकाश नड्डा ने एससीएसआईसीओएएन 2017-18 की स्मारिका में एक संदेश में कहा है, 'जब 'आयुष्मान भारत' का परिचालन सुचारु हो जाएगा, तब 'विकलांगों के अधिकार अधिनियम 2016' के तहत विकलांगता से राहत देने के लिए इस योजना में स्टेम सेल थेरेपी को शुमार करने पर विचार किया जाएगा।' ड्रग कंट्रोलर जनरल (इंडिया) डॉ. एस. ईश्वरा रेड्डी ने कहा, 'स्टेम सेल आधारित दवाओं के विनियमन प्रदान करने के लिए औषधि एवं प्रसाधन
सामग्री नियम, 1945 को संशोधित करने का प्रस्ताव है। वहीं स्टेम सेल आधारित दवाओं को स्टेम सेल थेरेपी से सीमांकित किया जाता है, न कि इलाज कर रहे चिकित्सक की भूमिका पर अतिक्रमण करने के लिए।' यह सम्मेलन विभिन्न न्यूरोलॉजिकल, बाल चिकित्सा, ऑथोर्पेडिक, कार्डियक, त्वचाविज्ञान संबंधी विकारों में स्टेम सेल अनुप्रयोग के साथ-साथ स्टेम सेल थेरेपी की एंटी- एजिंग क्षमता का एक समूह था। (आईएएनएस)
स्टेम सेल का बढ़ता बाजार
वैश्विक स्टेम सेल बाजार 9.2 फीसदी की दर से वृद्धि कर रही है और 2025 तक 15.63 अरब अमेरिकी डॉलर तक पहुंचने की उम्मीद है
वै
ज्ञानिकों और डॉक्टरों ने स्टेम सेल उपचार को लेकर भारतीय राजपत्र (गजट) का स्वागत किया और राजपत्र में कुछ संशोधनों का सुझाव दिया है। भारतीय स्टेम सेल सोसाइटी के अध्यक्ष डॉ. आलोक शर्मा ने कहा कि नए भारतीय राजपत्र के साथ अब सेलुलर थेरेपी को स्वास्थ्य देखभाल में बदलाव के लिए बड़ी प्रगति के रूप में मान्यता मिली है। उन्होंने कहा कि वैश्विक स्टेम सेल बाजार 9.2 फीसदी की दर से वृद्धि कर रही है और 2025 तक यह 15.63 अबर अमेरिकी डॉलर तक पहुंचने की उम्मीद है। स्टेम सेल सोसाइटी ऑफ इंडिया द्वारा 2829 अप्रैल को यहां आयोजित सोसाइटी के चौथे अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन में शर्मा ने कहा, 'ओरियन स्पैन' चार अप्रैल, 2018 को प्रकाशित भारत के राजपत्र के अनुसार औषधि एवं प्रसाधन सामग्री नियम 1945 में संशोधन के रूप में निम्नलिखित सुधारों को शामिल करने का सुझाव दिया जाता है। इस राजपत्र के अनुसार यह प्रस्तावित किया जाता है कि मिनिमली
मैनिपुलेटेड स्टेम सेल को 'एक ड्रग' (औषधि) नहीं माना जाएगा, इसीलिए उसे औषधि एवं प्रसाधन सामग्री नियम से बाहर रखा जाएगा।' डॉ. शर्मा ने कहा, 'मरीजों के शरीर से ली गई कोशिकाओं या ऊतकों को शरीर से बाहर द्विगुणित किए बिना, तत्काल अमल में लाने के लिए सफाई और अलगाव के अधीन रखा जाता है, जिसे मिनिमली मैनुपलेटेड सेल्स (न्यूनतम रूप से छेड़छाड़ की गई कोशिकाओं) के रूप में जाना जाता है। यह 'स्टेम सेल थेरेपी' है, जो शल्य चिकित्सकों (सर्जन) या चिकित्सकों के अधिकार के तहत है, इसके विपरीत 'स्टेम सेल ड्रग्स' एक उत्पाद या एक दवा होगी।' उन्होंने कहा, 'जापान, कोरिया और अमेरिका जैसे देशों में हालिया सुधारों के बाद ये परिवर्तन बेहद प्रगतिशील हैं। यह संशोधन भारत में सेल थेरेपी के विकास की सुविधा प्रदान करेगा और वर्तमान में असाध्य बीमारियों से पीड़ित लाखों मरीजों को यह उपचार उपलब्ध हो सकेगा।' स्वास्थ्य
26
पुस्तक अंश
07 - 13 मई 2018
‘बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ’ योजना
सिर्फ महिलाओं का विकास ही पूरा विकास नहीं है। आज, हमें ‘महिला विकास’ से ‘महिलाओं द्वारा विकास’ की तरफ बढ़ना है।
ह
नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री
हरियाणा के पानीपत में ‘बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ’ योजना के शुभरंभ के अवसर पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी एक लड़की को ‘सुकन्या समृद्धि खाता पास बुक’ देते हुए
रियाणा के पानीपत में 22 जनवरी, 2015 को लॉन्च हुई “बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ” योजना (सेव गर्ल चाइल्ड, एजुकेट गर्ल चाइल्ड इनिशिएटिव) का उद्देश्य महिला भ्रूण हत्या के घृणित कार्य को समाप्त करना है जिसका प्रचलन ग्रामीण भारत के अधिकांश हिस्सों में है। साथ ही महिला विकासोन्मुख कल्याण सेवाओं के बारे में जागरुकता पैदा करने और यह सुनिश्चित करने के लिए कि इन सेवाओं को कुशलता से लागू किया जाए, भी इस योजना के उद्देश्यों में शामिल है।
मुझे गर्व है कि अपने पहले वर्ष में ही सरकार ने इस पहल की शुरुआत की है। मुझे इस योजना से बहुत उम्मीद है। क्या आपने कभी ऐसी स्थिति के बारे में सोचा है जहां आप कार्यालय में थकाऊ दिन के बाद घर वापस आते हैं और आपको मुस्कुराती हुई मां या पत्नी नहीं मिले? क्या यह प्राकृतिक या मनपसंद होगा यदि स्कूल, कॉलेज, बसें और कार्यस्थल पर केवल पुरुषों का ही प्रभुत्व हो! हम चंद्रमा और मंगल तक पहुंच
गए हैं, लेकिन दुख की बात है कि कुछ लोग अभी भी बेटी को बोझ समझते हैं। सिर्फ बच्चे के रूप में लड़की को अपनाना पर्याप्त नहीं है,
बल्कि उसे उचित शिक्षा भी दी जानी चाहिए। बच्चा पहला सबक मां से ही सीखता है। इसीलिए अगर मां शिक्षित है, तो बच्चे का पालन-पोषण बेहतर होगा। अगर हम एक प्रगतिशील-प्रबुद्ध भारत की तलाश में हैं, तो पुरुषों और महिलाओं को एक साथ आगे बढ़ना होगा। माधुरी दीक्षित नेने अभिनेत्री
07 - 13 मई 2018
पुस्तक अंश
सुकन्या समृद्धि खाता योजना
य
ह योजना 22 जनवरी, 2015 को शुरू की गई थी। इस योजना के तहत 10 साल से कम उम्र की लड़की के लिए उसके माता-पिता या कोई भी कानूनी अभिभावक डाकघर या
देश को महिला भ्रूण-हत्या के संकट का एहसास होना चाहिए,अन्यथा आने वाली पीढ़ियों को बहुत बड़ी समस्या का सामना करना होगा। लोग शिक्षित बहू तो चाहते हैं, लेकिन अपनी बेटियों को शिक्षित करने से पहले कई बार सोचते हैं। यह कैसे हो सकता है? किसी को भी लड़की को मारने का अधिकार नहीं है। डॉक्टरों को गर्भ में लिंग निर्धारण अथवा परीक्षण नहीं करना चाहिए। यह सोच कि केवल एक बेटा ही
बुढ़ापे में माता-पिता का खयाल रखेगा गलत है। पीछे देखने और दोषारोपण करने की जरूरत नहीं है। चलो जागते हैं और इस अभिशाप से छुटकारा पाने के लिए मिलकर काम करते हैं। एक समाज जो लड़कियों का सम्मान नहीं कर सकता, वह कभी भी विकसित नहीं हो सकता है। हमारा मंत्र ‘बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ’ है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, कार्यक्रम के लॉन्च होने के दौरान
एक लड़की के जन्म का जश्न मनाया जाना चाहिए। मैं प्रधानमंत्री मोदी का शुक्रिया अदा करती हूं कि उन्होंने इस मुद्दे को गंभीरता से उठाया और ‘बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ’ के महत्व के बारे में बात की। मेनका गांधी केंद्रीय महिला एवं बाल विकास मंत्री
27
प्राधिकृत बैंक शाखा में एक बचत खाता खुलवा सकता है। खाता कम से कम 1000 रुपए की जमा राशि के साथ खुलवाया जा सकता है। इसका मुख्य उद्देश्य लड़कियों की सुरक्षा और उनके जीवन स्तर में सुधार करना है।
28
पुस्तक अंश
07 - 13 मई 2018
स्वर्ण योजना
5 नवंबर, 2015: नई दिल्ली में स्वर्ण योजना का शुभारंभ करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी
5 नवंबर, 2015: नई दिल्ली में स्वर्ण योजना का शुभारंभ करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी
पीएम लाइफ इंश्योरेंस स्कीम
22 जनवरी, 2016: उत्तर प्रदेश के लखनऊ में भारतीय माइक्रो क्रेडिट द्वारा आयोजित रिक्शा संघ कार्यक्रम में लाभार्थियों को विभिन्न सामाजिक सुरक्षा योजनाएं वितरित करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी
अगर एक ऐसे शब्द में नरेंद्र मोदी के बचपन की विशेषताओं को समेटें और जो बाकी जिंदगी भी उनके साथ रहा, तो यह है संकट में लोगों की ‘सेवा’ करना। पिछले कुछ वर्षों में, उन्होंने एक अनोखा रास्ता अख्तियार किया है जो उन्हें मानवता की सेवा के लिए एक बड़े मिशन की तलाश में पूरे भारत में ले गया।
पीएम सुरक्षा बीमा योजना
प्रधानमंत्री सुरक्षा बीमा योजना एक 'सुरक्षा ढाल' है। यह मुश्किल समय में गरीबों को बचाने की हमारी प्रतिबद्धता का हिस्सा है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी
सामाजिक सुरक्षा योजनाएं
9 मई, 2015: कोलकाता के नजरूल मंच पर बंगाल के राज्यपाल केशरी नाथ त्रिपाठी और पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की उपस्थिति में सामाजिक सुरक्षा योजनाओं के लाभार्थियों को बीमा पॉलिसी देते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी
शेष अगले अंक में जारी...
07 - 13 मई 2018
सम्मेलन
जल, जंगल और जमीन पर चिंतन
29
जम्मू केंद्रीय विश्वविद्यालय ने जलवायु परिवर्तन को लेकर जुड़े सामाजिक सरोकार और इस मुद्दे पर भावी दृष्टि को लेकर दो दिवसीय राष्ट्रीय सम्मेलन का आयोजन किया
ज
एसएसबी ब्यूरो
म्मू केंद्रीय विश्वविद्यालय के पर्यावरण विज्ञान विभाग ने जलवायु परिवर्तन और इससे जुड़े सामाजिक सरोकार तथा इस मुद्दे पर भावी नजरिए को लेकर दो दिवसीय राष्ट्रीय सम्मेलन का आयोजन किया गया। सम्मेलन के मुख्य अतिथि सुलभ इंटरनेशनल के संस्थापक डॉ. विन्देश्वर पाठक थे। इस अवसर पर विश्वविद्यालय के उप-कुलपति प्रोफेसर अशोक एमा के अलावा, आईजीपी जम्मू, डॉ. एसडी सिंह जामवाल, प्रोफेसर केके शर्मा, प्रोफेसर नील रतन, प्रोफेसर एनके त्रिपाठी डीन स्कूल ऑफ लाइफ साइंसेज, सीयू जम्मू, डॉ. प्रशांत श्रीवास्तव (बीएचयू), प्रो मिलाप शर्मा (जेएनयू), डॉ आरपी सिंह (बीएचयू), अनिल सिंह (अध्यक्ष, सुलभ, जम्मू-कश्मीर राज्य), एजीएम एसबीआई, अजय शर्मा जैसे गणमान्य व्यक्ति उपस्थित थे। डॉ. विन्देश्वर पाठक ने स्वच्छता के समाजशास्त्र को लेकर सम्मेलन में अपनी बातें रखीं। साथ ही उन्होंने सुलभ इंटरनेशनल द्वारा किए जा रहे कार्यांे और जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए सर्वोत्तम पर्यावरणीय उपायों की भी चर्चा की। भारत के साथ-साथ दुनियाभर में सुलभ इंटरनेशनल द्वारा अर्जित की गई उपलब्धियों और योगदान पर एक वृत्तचित्र का भी कार्यक्रम के
दौरान प्रदर्शन किया गया। डॉ. पाठक ने युवा शोधकर्ताओं, प्रतिभागियों और छात्रों को कुछ अलग सोचने और पर्यावरण विज्ञान के क्षेत्र में पारंपरिक कार्य करने के बजाय कई वैकल्पिक समाधान खोजने के लिए प्रोत्साहित किया। उन्होंने प्रतिभागियों को ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में पर्यावरणीय स्वच्छता, स्वास्थ्य और स्वच्छता के क्षेत्र में सुलभ इंटरनेशनल द्वारा की जा रही विभिन्न गतिविधियों के बारे में बताया। उन्होंने सुलभ की टू पिट पोर फ्लश शौचालय प्रौद्योगिकी के बारे में बताया, जो स्थायी विकास की सभी स्थितियों को पूरा करता है और ग्लोबल वार्मिंग को कम करने में मदद करता है। इसीलिए विकसित देशों में भी जलवायु परिवर्तन के संतुलन में यह तकनीक मददगार है। उन्होंने इस तकनीक के बारे में बताया कि कैसे इसमें एक समय में एक गड्ढे का उपयोग किया जाता है और दूसरा गड्ढा स्टैंडबाय के रूप में रहता है। जब पहला गड्ढा भर जाता है, तो उसे बंद कर दिया जाता है और दूसरे गड्ढे का उपयोग शुरू हो जाता है। दो साल बाद पहले भरे
गड्ढे में मानव मल, मिट्टी में मौजूद बैक्टीरिया की मदद से उर्वरक के रूप में परिवर्तित हो जाता है। इस उर्वरक में पौधे के लिए बेहतर पोषक तत्वों का एक अच्छा मिश्रण होता है। इस उर्वरक में 1.8प्रतिशत नाइट्रोजन, 1.6प्रतिशत फास्फोरस और 1प्रतिशत पोटेशियम होता है, यदि इसमें थोड़ा चूने मिलाकर उपयोग किया जाए तो और भी बेहतर है। उत्पादकता बढ़ाने के लिए खेतों में इसका प्रयोग किया जा सकता है। इसका उपयोग फूलों, पौधों और फलों के पेड़ों के लिए किया जा सकता है। डॉ. पाठक ने कहा कि घरों में सुलभ शौचालय के लीच पिट (टू पिट) के डिजाइन के कारण उत्पादित कार्बन डाइऑक्साइड गैस मिट्टी में ही फैल जाती है और वातावरण में नहीं घुलती। बायोगैस उत्पादन के दौरान मानव अपशिष्ट के अवायवीय पाचन के कारण, मीथेन गैस का उत्पादन होता है, जिसका प्रयोग विभिन्न उद्देश्यों के लिए किया जाता है जैसे - खाना पकाने, हीटिंग या बिजली उत्पादन आदि के लिए। इस तरह से मीथेन भी वातावरण में नहीं छोड़ी जाती है। डॉ. पाठक ने यह भी बताया कि दो गड्ढे वाले शौचालय की तकनीक के नवाचार ने भारत में एक नवीन कम लागत वाली स्वच्छता प्रौद्योगिकी की शुरुआत की है। उन्होंने अछूत स्कैवेंजर्स की मुक्ति और पुनर्वास के बारे में भी बात की। साथ ही उन्होंने वंचित लोगों को स्वच्छता सुविधाओं का प्रावधान, वृंदावन और वाराणसी की विधवाओं को दुख और अलगाव के जीवन से मुक्त करने जैसे
डॉ. पाठक ने सुलभ की टू पिट पोर फ्लश शौचालय प्रौद्योगिकी के बारे में बताया जो स्थायी विकास के सभी मानकों को पूरा करता है और ग्लोबल वार्मिंग को कम करने में मदद करता है
सुलभ के कार्यों के बारे में भी बताया। डॉ. पाठक ने बताया कि सुलभ पश्चिम बंगाल में आर्सेनिक प्रभावित लोगों को सुरक्षित पेयजल उपलब्ध करा रहा है, साथ ही मानव अपशिष्ट के पुनर्चक्रण से गंध मुक्त बायोगैस पैदा की जा रही है, जो आवश्यक पोषक तत्वों और प्रदूषण मुक्त ऊर्जा के साथ स्वच्छ पानी भी प्रदान करता है। जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए सुलभ इंटरनेशनल द्वारा अपनाए गए सर्वोत्तम, स्वच्छ और हरित पर्यावरण के उपायों को दर्शाने वाली एक फोटो प्रदर्शनी भी विश्वविद्यालय परिसर में लगाई गई। सभी जीवित प्राणियों की दृष्टि से देखें तो पर्यावरण के स्वास्थ्य-अनुकूल और जीवनसहायक होने की आवश्यकता है। वायु, जल, मिट्टी, जंगल और संवेदनशील पारिस्थितिक तंत्र के प्रदूषण और शोषण के कारण पर्यावरण को अपने व्यवहार को बदलने के लिए मजबूर होना पड़ा है। इस समय आवश्यकता है कि प्राकृतिक संसाधनों का अत्यधिक दोहन न करके पर्यावरणीय स्थिरता पर बल दिया जाए। दीर्घकालिक पर्यावरणीय गुणवत्ता, पर्यावरणीय स्थिरता के माध्यम से ही हासिल की जा सकती है। जलवायु परिवर्तन,प्राणियों के स्वास्थ्य और आजीविका के लिए कई जोखिम पैदा करता है। स्थायित्व और जलवायु अनुकूलन के विभिन्न आयामों को बेहतर ढंग से समझने और जलवायु परिवर्तन के परिणाम को जानने के लिए, जलवायु परिवर्तन के मानवीय-सामजार्थिक-पर्यावरणीय गतिशीलता को बेहतर ढंग से समझना होगा। इस राष्ट्रीय सम्मेलन का उद्देश्य पर्यावरणीय प्रदूषण, आपदाओं, जीवाश्म ईंधन के विकल्पों, नई प्रौद्योगिकियों के माध्यम से संसाधनों में हो रही गिरावट को कम करना और अन्य प्रासंगिक मुद्दों को उठाना था।
30
सािहत्य
07 - 13 मई 2018
आत्म तृप्ति
कविता
माता - पिता दिव्या
देखते ही देखते जवान मां-बाप बूढ़े हो जाते हैं, सुबह की सैर में कभी चक्कर खा जाते है, सारे मोहल्ले को पता है,पर हमसे छुपाते है , दिन प्रतिदिन अपनी खुराक घटाते हैं, और तबियत ठीक होने की बात फोन पे बताते हैं, ढीली हो गए कपड़ों को टाइट करवाते हैं, देखते ही देखते जवान मां-बाप बूढ़े हो जाते हैं। हर साल बड़े शौक से अपने बैंक जाते है, अपने जिंदा होने का सबूत देकर हर्षाते हैं, जरा सी बढी पेंशन पर फूले नहीं समाते हैं, और फिक्स डिपॉजिट रिन्यू करते जाते हैं, खुद के लिए नहीं हमारे लिए ही बचाते हैं, देखते ही देखते जवान मां-बाप बूढ़े हो जाते हैं। चीजें रख के अब अक्सर भूल जाते हैं, फिर उन्हें ढूंढने में सारा घर सर पे उठाते हैं, और एक दूसरे को बात बात में हड़काते हैं, पर एक दूजे से अलग भी नहीं रह पाते हैं, एक ही किस्से को बार बार दोहराते हैं, देखते ही देखते जवान मां-बाप बूढ़े हो जाते हैं। चश्में से भी अब ठीक से नहीं देख पाते हैं, बीमारी में दवा लेने में नखरे दिखाते हैं, हर त्योहार पर हमारे आने की बाट देखते हैं, अपने पुराने घर को नई दुल्हन सा चमकाते हैं, हमारी पसंदीदा चीजों की ढेर लगाते हैं, हर छोटी बड़ी फरमाईश पूरी करने के लिए मां रसोई और पापा बाजार दौड़े चले जाते हैं, देखते ही देखते जवान मां-बाप बूढ़े हो जाते हैं।
ए
सुनीता
क बार की बात है। किसी गांव में एक ब्राह्मण रहता था और उसके चार पुत्र थे। उन चारो में आपस में बहुत ही प्रेम और लगाव था। उन चारों में से तीन ने शास्त्रों का ज्ञान लिया था, लेकिन चौथे ने किसी भी शास्त्र का ज्ञान नहीं लिया। बिना शास्त्र के ज्ञान के भी वह बहुत ही अधिक बुद्धिमान था। उनके पिता ने चारो भाइयों से कहा,दृ तुम सभी शहर चले जाओ और अपनी बुद्धि के बल पर धन इकट्ठा कर लाओ। अपने पिता की आज्ञा लेकर चारो भाई अगले ही दिन शहर के लिए निकल गए। रास्ते में एक भाई बोला, हम तीनो के पास तो शास्त्रों का ज्ञान है। हम तीनों तो इस ज्ञान के बल पर धन इकट्ठा कर लेंगे। लेकिन हमारा चौथा भाई तो अनपढ़ और बेवकूफ है। यह शहर में क्या करेगा। कुछ ऐसी ही बाते करकर वे तीनो भाई उन पर हंसने लगे। रास्ते में एक जंगल आया। जब वे चारो उस जंगल से गुजर रहे थे। तभी रास्ते में उन्हें
ल
सिमरन
स्सी का ऑर्डर देकर हम सब आराम से बैठकर एक दूसरे की खिंचाई और हंसी मजाक में लगे ही थे कि एक लगभग 70 साल की माताजी कुछ पैसे मांगते हुए मेरे सामने हाथ फैलाकर खड़ी हो गईं। उनकी कमर झुकी हुई थी, चेहरे की झुर्रियों में भूख तैर रही थी। उनको देखकर मन मे न जाने क्या आया कि मैने जेब मे सिक्के निकालने के लिए डाला हुआ हाथ वापस खींचते हुए उनसे पूछ लिया, दादी लस्सी पियोगी? मेरी इस बात पर दादी कम अचंभित हुईं और मेरे मित्र अधिक, क्योंकि अगर मैं उनको पैसे देता तो बस 5 या 10 रुपए ही देता, लेकिन लस्सी तो 35 रुपए की एक है। इसीलिए लस्सी पिलाने से मेरे गरीब हो जाने की और उस बूढ़ी दादी के द्वारा मुझे ठग कर अमीर हो जाने की संभावना बहुत
घमंड
बहुत सारी हड्डियां पड़ी हुई मिली। तीनो भाइयों ने सोचा की हमे अपनी विद्या को आजमा कर देख लेना चाहिए। उन तीनो ने अपने चौथे भाई से कहा, अरे मुर्ख आज हम तुझे अपनी विद्या की ताकत को दिखाते है। पहले भाई ने अपनी विद्या का प्रयोग करते हुए। जमीन पर पड़ी उन हड्डियों से एक ढांचा तैयार कर दिया। दूसरे भाई ने अपनी विद्या का प्रयोग करते हुए। हड्डियों से बने उस ढांचे पर मांसए खाल और रक्तसंचार की व्यवस्था कर दी। तीसरे भाई ने कहा, अब मैं अपनी विद्या का प्रयोग करके इसमें जान डाल दूंगा। जिसके बाद यह फिर से जीवित हो जाएगा। यह देखकर चौथा भाई बोला , रुक
अधिक बढ़ गई थी! दादी ने सकुचाते हुए हामी भरी और अपने पास जो मांग कर जमा किए हुए 6.7 रुपए थे वो अपने कांपते हाथों से मेरी ओर बढ़ाए। मुझे कुछ समझ नही आया तो मैने उनसे पूछा, ये किस लिए? इनको मिलाकर मेरी लस्सी के पैसे चुका देना बाबूजी ! भावुक तो मैं उनको देखकर ही हो गया था। रही बची कसर उनकी इस बात ने पूरी कर दी! एकाएक मेरी आंखें छलछला आईं और भरभराए हुए गले से मैंने दुकान वाले से एक लस्सी बढ़ाने को कहा। उन्होने अपने पैसे वापस मुट्ठी मे बंद कर लिए और पास ही जमीन पर बैठ गईं। अब मुझे अपनी लाचारी का अनुभव हुआ क्योंकि मैं वहां पर मौजूद दुकानदार, अपने दोस्तों और कई अन्य ग्राहकों की वजह से उनको कुर्सी पर बैठने के लिए नहीं कह सका! डर था कि कहीं कोई टोक ना दे,कहीं किसी को एक भीख मांगने वाली बूढ़ी महिला के उनके बराबर में बिठाए जाने पर दिक्कत न हो। लस्सी कुल्लड़ों मे भरकर हम सब मित्रों और बूढ़ी दादी के हाथों मे आते ही मैं अपना कुल्लड़
पकड़कर दादी के पास ही जमीन पर बैठ गया, क्योंकि ऐसा करने के लिए तो मैं स्वतंत्र था। इससे किसी को आपत्ति नहीं हो सकती थी। हां! मेरे दोस्तों ने मुझे एक पल को घूरा, लेकिन वो कुछ कहते उससे पहले ही दुकान के मालिक ने आगे बढ़कर दादी को उठाकर कुर्सी पर बैठा दिया और मेरी ओर मुस्कुराते हुए हाथ जोड़कर कहा,ऊपर बैठ जाइए साहब! मेरे यहां ग्राहक तो बहुत आते हैं किंतु इंसान कभी कभार ही आता है। अब सबके हाथों मे लस्सी के कुल्लड़ और होठों पर सहज मुस्कुराहट थी। बस एक वो दादी ही थीं, जिनकी आंखों मे तृप्ति के आंसू, होंठों पर मलाई के कुछ अंश और दिल में सैकड़ों दुआएं थीं! न जानें क्यों जब कभी हमें 10,20 या50 रुपए किसी भूखे गरीब को देने या उसपर खर्च करने होते हैं तो वो हमें बहुत ज्यादा लगते हैं, लेकिन सोचिए कि क्या वो चंद रुपए किसी के मन को तृप्त करने से अधिक कीमती हैं? ’दोस्तों, जब कभी अवसर मिले ऐसे दयापूर्ण और करुणामय काम करते रहें, भले ही कोई अभी आपका साथ दे या ना दे या समर्थन करे ना करे। सच मानिए इससे आपको जो आत्मिक सुख मिलेगा वह अमूल्य है ।’
कविता
जीना इसी का नाम है रश्मि रेखा
जाओ। ऐसा मत करो। यह एक मरा हुआ शेर है। अगर तुम इसमें जान डाल दोगें तो यह जीवित हो जाएगा और फिर यह हम सब को मार देगा। यह सुनकर तीनो भाई बोले,दृ तुम हमे अपनी विद्या का सफल प्रयोग करने से क्यों रोक रहे हो। तुम हमसे जलते हो। यह सब सुनकर चौथा भाई बोला, ठीक है। तुम सब मिलकर अपनी विद्या का सफल प्रयोग करो। लेकिन पहले मुझे इस पेड़ पर चढ़ जाने दो। इसके बाद तुम सब जो चाहो कर लेना। इतना कहकर वह पेड़ पर चढ़ गया। इसके बाद तीसरे भाई ने अपनी विद्या का प्रयोग करके उस शेर में जान डाल दी। उस शेर ने जीवित होते ही तीनो भाइयो को मार डाला और वहां से चला गया। दोस्तों, इस कहानी से मैं आपको ये समझाना चाहता हूं। की आपको कभी भी अपने ज्ञान पर घमंड नहीं करना चाहिए। अगर आपने ऐसा किया तो यह आपके विनाश का कारण बन सकता है।
यह मत कहो कि जग में, था कठिन है यह जिंदगी जीना भी एक कला है जिंदगी कि इस कशमकश में हर बार कोई न कोई जला है बचपन की दोस्ती नजदीकियां दूरियों में बदल जाती हैं अंधेरा क्या छाता है परछाईयां दगा दे जाती हैं टूटता है विश्वास तो चनक सी सीने में होती है यूं तो पोंछ लेते हैं हम आंसुओं को पर वह जख्म तो सदा हरी होती है मतलबपरस्तों से भरी है ये दुनिया इस मतलब को समझ लेना है करोड़ों की भीड़ में तू तो बस एक छोटा सा खिलौना है टूटने पर टूटना नहीं छूटने पर छुटना नहीं मिल जाएंगे अपने लाखों यहां बस आंखों को अपनी मूंदना नहीं आंखें खुली रखना, बाहें फैलाए रखना, छलकनी चाहिए खुशी चेहरे से क्योंकि यही तो जिंदगी का नाम है आखिर जीना इसी का नाम है।
07 - 13 मई 2018
आओ हंसें
वजन और ग्रह
यदि आपका वजन पृथ्वी पर 100 किलो है तो मंगल ग्रह पर यह 38 किलो होगा और चांद पर बस 16.6 किलो। मतलब... आप मोटे बिलकुल नहीं हैं, बल्कि गलत ग्रह पर है। इसे कहते हैं- भार वही, सोच नई।
पहले फांसी
सिपाही: चल भाई, तेरी फांसी का समय हो गया। कैदी: पर मुझे तो फांसी 20 दिन बाद होने वाली थी। सिपाही: जेलर साहब कह कर गए हैं कि तू उनके गांव का है, इसलिए तेरा काम पहले।
सु
जीवन मंत्र ठोकर खाकर भी न संभले तो मुसाफिर का नसीब। वरना पत्थरों ने तो अपना फर्ज निभा ही दिया था।
सुडोकू का हल इस मेल आईडी पर भेजेंssbweekly@gmail.com या 9868807712 पर व्हॉट्सएप करें। एक लकी विजते ा को 500 रुपए का नगद पुरस्कार दिया जाएगा। सुडोकू के हल के लिए सुलभ स्वच्छ भारत का अगला अंक देख।ें
• 8 मई विश्व रेडक्रॉस दिवस, विश्व थैलेसिमिया दिवस • 11 मई राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी दिवस, अंतराराष्ट्रीय नर्स दिवस • मई का दूसरा रविवार विश्व मातृ दिवस (मदर्स डे)
सुडोकू-20 का हल
वर्ग पहेली - 21
वर्ग पहेली-20 का हल
1.उर्दू कवि सम्मेलन (4) 5.तम्बाकू (2) 6.नमस्कार, अभिवादन (3) 7.निरुत्तर(4) 8.उर्दू कविता (3) 9.खून (2) 10.राजनीति सम्बंधी (5) 12.अन्न में लगने वाला कीड़ा (2) 13.प्रत्येक, शिव का एक नाम (2) 14.घूम, बदलाव, तह (2) 16.स्त्री, पत्नी (2) 17.खोजबीन (5) 18.वायु, वात (2) 19.अभिनय, गद्य की एक विधा (3) 20.नख कतरनी (4) 21.निज (3) 23.त्रुटि (2) 24.अधिकता (4)
ऊपर से नीचे
डोकू -21
रंग भरो
महत्वपूर्ण दिवस
बाएं से दाएं
31
इंद्रधनुष
1.स्मित करना (5) 2.घर, स्थान (2) 3.मृत्य का देवता (2) 4.दानेदार रेत, तोते की एक प्रजाति (3) 5.जबरदस्ती (4) 7.योग्य (3) 8.चालाक, धूर्त (3) 11.पीहर(3) 12.डपट धमकी भरा अंदाज (3) 14.लुभावना (2) 15.खतरे से भरा हुआ (5) 16.जंगल की आग (4) 17.नदी (3) 19.एक पौराणिक मुनि (3) 21.ज्यादती (2) 22.दूर, अलग (2)
कार्टून ः धीर
32
न्यूजमेकर
07 - 13 मई 2018
अनाम हीरो
अनुदीप दुरिशेट्टी
चंदन कुमार माइती
अथक मेहनत ने बनाया टॉपर
यू
लाफ खि े क ी र ्क स बाल त संघर्ष ा क क शिक्ष एक
28 वर्षीय अनुदीप दुरिशेट्टी ने सिविल सेवा के अपने आखिरी प्रयास में टॉप रैंक हासिल किया है
पीएससी की ओर से घोषित किए गए सिविल सर्विस फाइनल रिजल्ट 2017 में टॉप करने वाले 28 वर्षीय अनुदीप दुरिशेट्टी ने अपने आखिरी प्रयास में यह रैंक हासिल किया है। तेलंगाना के जगितल जिले में स्थित मेटपल्ली के रहने वाले अनुदीप के पिता डॉ. मनोहर नार्थ पावर डिस्ट्रीब्यूशन कंपनी लिमिटेड, तेलंगाना में सहायक मंडल अभियंता के पद पर कार्यरत हैं। वहीं उनकी मां डॉ. ज्योति गृहणी हैं। अनुदीप डुरीशेट्टी ने बिट्स-पिलानी से इलेक्टॉनिक्स एंड इंस्ट्रुमेंटशन में ग्रेजुएशन किया है। वर्तमान में वह भारतीय राजस्व सेवा (आईआरएस) में असिस्टेंट कमिश्नर पद पर तैनात हैं। अनुदीप का फेसबुक प्रोफाइल देखने से पता चलता है कि वे स्विस टेनिस स्टार रोजर फेडरर के बहुत बड़े प्रशंसक हैं। अनुदीप का कहना है कि जब मैं इंजीनियरिंग की पढ़ाई कर रहा था, उसी समय मुझे सिविल सर्विस में दिलचस्पी पैदा हुई। मैंने काफी पढ़ाई की लेकिन पहले प्रयास में सफलता नहीं मिली। इसके
बाद हैदराबाद में बतौर सॉफ्टवेयर इंजीनियर के तौर पर गूगल में नौकरी शुरू कर दी। इस दौरान मैंने सिविल सेवा की परीक्षा की तैयारी जारी रखी। अनुदीप ने यूपीएससी की परीक्षा दूसरी बार साल 2013 में दी। इसमें उनका चयन बतौर आईआरएस हुआ। अपनी सफलता के बारे में बात करते हुए अनुदीप ने कहा कि आईएएस बनने का मेरी कोशिश इसके बाद भी नहीं रुकी। साथ ही मैंने तैयारी करते हुए यूपीएससी की परीक्षा दी, लेकिन अगले दो प्रयास भी खाली गए। इस बार मेरा आखिरी प्रयास था। उन्होंने कहा, ‘यह सफर पूरी तरह रोमांचक रहा और तथ्य ये है कि मैं अब एक टॉपर हूं।’ यूपीएससी की परीक्षा पिछले साल 28 अक्टूबर को आयोजित की गई थी। ये परीक्षा भारतीय प्रशासनिक सेवा, भारतीय विदेश सेवा, भारतीय पुलिस सेवा और केंद्रीय सेवाओं और अन्य सरकारी विभाग के 980 पदों के लिए आयोजित की गई थी।
पवन कुमार चामलिंग
राज्य छोटा कार्यकाल बड़ा
राज्य के मुख्यमंत्री रहते हुए पवन चामलिंग देशलगातारके एक23 छोटेसालसे4 महीने और 17 दिन से मुख्यमंत्री की कुर्सी पर
हैं। सबसे लंबे समय तक सीएम पद पर रहने का यह नया रिकॉर्ड है। इससे पहले ये रिकॉर्ड पश्चिम बंगाल के मुख्यमंत्री और सीपीएम के नेता दिवंगत ज्योति बसु के नाम था, लेकिन 28 अप्रैल 2018 के बाद यह रिकॉर्ड चामलिंग के नाम दर्ज हो गया है। अभी उनका कार्यकाल मई 2019 तक है। चामलिंग का जन्म 22 सितंबर, 1950 को सिक्किम के एक छोटे और बेहद पिछड़े गांव यंगयंग में हुआ था। 1972 में राजनीति में आने से पहले वह किसान और प्रथम श्रेणी के ठेकेदार रह चुके हैं। चामलिंग 1973 में सक्रिय राजनीति से जुड़े गए थे। अपने राजनीतिक कॅरियर की शुरूआत में वे सिक्किम प्रजातंत्र पार्टी के सदस्य बने।
डाक पंजीयन नंबर-DL(W)10/2241/2017-19
सिक्किम के मुख्य मंत्री पवन कुमार चामलिंग ने भारत के इतिहास में सबसे अधिक समय तक सीएम बने रहने का रिकॉर्ड बना लिया है सिक्किम की राजनीति में कई अच्छे-बुरे दौर से गुजरने के बाद चामलिंग ने 1993 में सिक्किम डेमोक्रेटिक फ्रंट की स्थापना की। 1994 के चुनावों में जीतने के बाद सिक्किम डेमोक्रेटिक फ्रंट पहली बार सत्ता में आई। दिलचस्प है कि 2009 में हुए विधानसभा चुनावों में उनकी पार्टी राज्य की कुल 32 सीटों में से 32 जीतने में कामयाब रही थी। देश के 29 राज्यों के सीएम द्वारा चुनावी हलफनामे में दिए गए ब्यौरे पर गौर किया जाए तो शिक्षा के लिहाज से सिक्किम के मुख्यमंत्री चामलिंग सबसे अधिक शिक्षित हैं। चामलिंग के पास डॉक्टरेट की उपाधि है। देश के 39 फीसदी मुख्यमंत्री ग्रेजुएट हैं और 32 फीसदी प्रोफेशनल्स हैं। 16 फीसदी मुख्यमंत्री पोस्ट ग्रेजुएट हैं और सिर्फ 10 फीसदी मुख्यमंत्री ही ऐसे हैं, जिन्होंने हाई स्कूल भी पास नहीं किया।
शिक्षा की व्यवस्था और कानूनी मदद से बच्चों की खरीद-बिक्री और बाल विवाह के खिलाफ काम कर रहे हैं शिक्षक चंदन कुमार माइती
द
क्षिण 24 परगना पश्चिम बंगाल के उन जिलों में शामिल है, जो एक खास लेकिन शर्मनाक वजह से चर्चित है। यहां मानव तस्करी के काले कारोबार को धड़ल्ले से अंजाम दिया जाता है। यहां के बच्चों, उसमें भी विशेषकर लड़कियों को उत्तर भारतीय राज्यों में बेच दिया जाता है, जहां अधेड़ों के साथ उनकी शाद कर दी जाती है। इसी जिले में स्थित है कृष्णचंद्रपुर हाई स्कूल, जिसके प्रधानाचार्य चंदन कुमार माइती ने इस समस्या से निपटने को लेकर कई साहसिक पहल की है। माइती बताते हैं कि उन्हें एक बार किसी गुमनाम व्यक्ति का पत्र मिला, जिसमें लिखा था कि मेरे स्कूल में पढ़ने वाली दसवीं कक्षा की एक छात्रा की किसी सरकारी योजना से प्राप्त सहायता राशि की मदद से शादी की जा रही है। इस पर माइती ने तत्काल जरूरी कदम उठाते हुए प्रशासनिक अधिकारियों की मदद से वह शादी रुकवाई। इसके बाद से तो वे ढूंढ-ढूंढकर ऐसे बच्चों की मदद करने लगे, जिन्हें वास्तव में उनकी जरूरत थी। ऐसा ही एक और बच्चा था, जिसने अपने परिवार की गरीबी के कारण स्कूल आना छोड़ दिया था और अपने पिता के साथ खेतों में मजदूरी करता था। माइती उसे वापस स्कूल ले आए और व्यवस्था की कि उसे कभी दोबारा स्कूल न छोड़ना पड़े। कुछ दिनों पहले की ही बात है कि उन्होंने पंद्रह साल की एक बच्ची को अपने स्कूल के हॉस्टल में जगह दी है। माइती खासतौर पर बेटियों की कम उम्र में शादी या उनकी खरीद-फरोख्त को सीधा शिक्षा से जोड़कर देखते हैं। उन्हें लगता है कि शिक्षा से ही समाज में ऐसी जागरुकता आएगी जिससे लोग अपने बच्चों के भविष्य को किसी मजबूरी में दांव पर नहीं लगाएंगे।
आरएनआई नंबर-DELHIN/2016/71597; संयुक्त पुलिस कमिश्नर (लाइसेंसिंग) दिल्ली नं.-एफ. 2 (एस- 45) प्रेस/ 2016 वर्ष 2, अंक - 21