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The Stranger...

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लेखिका: कल्पना डिमरी शर्मा

शीशे पर पड़ी बूँदों को देखकर आज भी वो सफ़र याद आता है, वो छोटी सी मुलाक़ात वो अनकही बात …

जैसे ही अवंतिका बस में चढ़ी , बस में बैठे लोग उसे घूर-घूर के देख रहे थे ,वो बस में देख रही थी कि वो कहाँ बैठे पूरी बस खचा-खच भरी हुई थी । बस कंडक्टर ने अवंतिका को बोला जहाँ जगह दिख रही है मैडम वहाँ बैठ जाओ । अवंतिका ने कंडक्टर को कहा “ भैय्या मेरी बस पहले ही छूट चुकी है , मुझे देहरादून से अपनी बस पकड़नी है मेरा सारा सामान, सारे दोस्त देहरादून पहुँच चुके हैं” अवंतिका अपने कॉलेज से मसूरी-धनौलटी ट्रिप पर आयी थी।


अवंतिका ने बस में जगह ढूँढने के लिए नज़र घुमाई तो देखा, दो की सीट पर तीन लोग बैठे है और तीन वाली सीट पर चार लोग बैठे है। अवंतिका ने फिर देखा कि एक शख़्स खिड़की वाली सीट पर बैठा खिड़की के शीशे पर पड़ी बूँदों से खेल रहा था और वो दो लोगों की सीट पर अकेले ही बैठा था , बग़ल वाली सीट पर उसने अपना बैग रखा था , देखते ही अवंतिका ने कंडक्टर को बोला “वो सीट तो ख़ाली हैं,” कंडक्टर ने बोला “मैडम उन भाईसाहब ने दो टिकट ली है, मैं कुछ नही बोल सकता।”

अवंतिका ने बस में बैठे लोगों को देखा जो अभी भी उसे घूर रहे थे, कोई उसकी फटी हुई जींस देख रहा था कोई उसके टैटू को देख रहा था कोई उसके घुंघराले बिखरे हुए बालों को देख रहा था तो कोई उसके स्टाइलिश हेड्फ़ोन को देख रहा था, ठण्ड से अवंतिका का चेहरा गुलाबी हो गया था और उसके सुनहरे बालों के कारण वो विदेशी लग रही थी ,अवंतिका को बस में बैठे लोगों से कोई उम्मीद नही दिख रही थी ना कंडक्टर से।

अवंतिका उस शख़्स का चेहरा तो नही देख पा रही थी क्यूँकि मफ़लर से आधा चेहरा छुपा था , पर उसकी कैप , उसकी जैकट से वो बाक़ी लोगो से अलग लग रहा था ,अवंतिका ने अंदाज़ा लगा लिया था कि वो उसकी मदद पक्का करेगा , अवंतिका बस की बीच वाली जगह से खिसक़ खिसक़ के अंदर जा रही थी ,आख़िर वो उस सीट तक पहुँच गयी और बड़ी मासूमियत से बोली आप ये बैग नीचे रख दीजिए मुझे बैठना है , पर उस शख़्स ने हेड्फ़ोन पहने हुए थे तो शायद सुना ही नही। 


अवंतिका ने सीट पर रखे बैग को उठाया और जैसे ही बैठने लगी तो उस शख़्स ने अपना बैग अवंतिका के हाथ से छीना और डाँट के बोला “ये क्या बदतमीज़ी है.आपकी हिम्मत कैसे हुई मेरा बैग उठाने की…” अवंतिका डर गयी और खड़े होकर बोली “I am sorry .. actually आपने सुना नही तो मैं बैग उठा कर बैठ रही थी , मेरी बस छूट गयी है मुझे देहरादून से अपने कॉलेज ट्रिप वाली बस पकड़नी है ,” एक साँस में पूरा क़िस्सा सुना दिया।

अवंतिका की बात सुनकर वो शख़्स अपनी सीट से उठा और अवंतिका को खिड़की वाली सीट दे दी और खुद खड़ा हो गया, अवंतिका और बैग अब उस सीट पर बैठें थे ।बस चल पड़ी वो शख़्स खड़े खड़े ही सफ़र कर रहा था अवंतिका का एक बार तो मन हुआ कि उस शख़्स को बोले कि वो बैग को नीचे रख दे और बैठ जाए पर उस बैग के कारण उसे डाँट पड़ चुकी थी तो अब उसकी हिम्मत नही हुई कुछ कहने की ।बग़ल में रखे बैग को देख कर सोच रही थी ऐसा क्या है इसमें?


अवंतिका खिड़की से बाहर पहाड़ों की, वादियों की फ़ोटो खींचने लगी, बीच बीच में दोस्तों से बात भी कर रही थी जो देहरादून में उसका इंतज़ार कर रहे थे। उसने एक बार फिर उस शख़्स को बैठने के लिए बोलना चाहा पर उसे देखकर ऐसा लग रहा था जैसे उसे अवंतिका से बात करने में कोई दिलचस्पी ही नही, वो हेड्फ़ोन पर कोई गाना सुन रहा था और गुनगुना भी रहा था … शायद …एक अज़नबी हसीना से ..कुछ कुछ ऐसा ही..उसकी आँखे बंद थी वो पोल पकड़ के खड़ा था, अवंतिका को चुप रहना ही ठीक लगा और वो फिर से खिड़की के बाहर देखने लगी।

तभी गाड़ी रुक गयी ,बारिश के कारण रास्ता बहुत टूट गया था। बस में बैठे बैठे लोग परेशान हो रहे थे। अवंतिका का फिर फ़ोन बजा, उसकी दोस्त पूछ रही थी कहाँ तक पहुँची ? अवंतिका ने बोला “ फिर से रास्ता टूट गया है थोड़ा टाइम लगेगा रास्ता ठीक होने में ,सोच रही हूँ बाहर जाके चाय पी लूँ ,बहुत ठंड लग रही है...” दूसरी तरफ़ से आवाज़ आयी “तू गाड़ी से बिलकुल नही उतरेगी, पिछली बार तू फ़ोटो खींचने उतरी थी याद है ना उतनी देर में रास्ता साफ़ हो गया था और हमारे ड्राइवर को गाड़ी निकालनी पड़ी थी, पीछे इतनी लम्बी गाड़ियों की लाइन लगी थी । इस बार कोई गलती नही चुप-चाप गाड़ी में बैठी रह..।” 


अवंतिका को याद आया उसकी बस ऐसे ही तो छूटी थी । अब तक बस के आधे से ज़्यादा लोग नीचे उतर चुके थे, अवंतिका फिर से बस से उतरने का सोच ही रही थी कि वो बैग वाले शख़्स ने चाय का कुल्हड़ अवंतिका को पकड़ा दिया , वो , उसे thank you बोल के कुछ और बात करने की कोशिश कर रही थी कि उस शख़्स ने फिर से हेड्फ़ोन लगा दिए और आँखे बंद कर ली। 

अभी बस ख़ाली थी तो वो सामने वाली सीट पर बैठ गया ,अवंतिका उसे देखने की कोशिश कर रही थी , उसके कपड़ों ,उसके बैग, उसके जूते देख कर वो यहाँ का लोकल तो नही लग रहा था शायद वो भी ट्रैकिंग के लिए आया था , पर अकेले? अवंतिका अपने आप से ही बात कर रही थी, …तभी रास्ता खुल गया और बस चल पड़ी, इस बार अवंतिका ने थोड़ी हिम्मत कर के फिर से बोला आप बैठ जाए बैग नीचे रख दें.. बस कुछ पलों के लिए दोनो की नज़रे मिली थी अवंतिका का चेहरा ठंड से और गुलाबी हो गया था वो कुल्हड़ से अपने हाथ गर्म कर रही थी वो शख़्स बस मुस्कुराया और दूसरी ओर देखने लगा । चेहरा तो अभी भी नही देख पायी थी वो ।पर उसकी आँखों में अलग ही कशिश थी जो अवंतिका को उसकी तरफ़ खींच रही थी।

देहरादून पहुँचते ही बस में हलचल शुरू हुई लोग अपना सामान निकाल रहे थे आवाज़ सुन कर अवंतिका की नींद खुली और उसने पूछा देहरादून आ गया ? कंडक्टर ने बोला “हाँ मैडम जाइए और अपनी बस पकड़ लीजिये फिर ना छूट जाए..।” अवंतिका उतरने लगी तो उसने देखा बग़ल में जो बैग रखा था ना वो वहाँ था ना वो शख़्स, वो कब उतरा और कहाँ उतरा? उसे पता क्यू नही चला वो कब सो गयी, सोचते सोचते वो बस से उतरी और फिर बस के अंदर पलट के देखा पर बस पूरी ख़ाली हो चुकी थी उसका मन हुआ कि वो कंडक्टर को पूछे पर तभी अवंतिका की दोस्त शेफाली भागते हुए उसकी तरफ़ आयी और बोली “अब जल्दी चल मैम बहुत ग़ुस्से में है” वो दोनो तेज तेज चलने लगे पर अवंतिका की नज़रे उसी शख़्स को ढूँढ रही थी वो उन्ही आँखो को ढूँढ रही थी जो कुछ पलों के लिए ही मिली थी, उसका नाम भी नही पूछा मैंने, वो कौन था कहाँ जा रहा था और उस बैग में क्या था जो इतना सम्भाल के रखा था इतने सारे सवाल उसके दिमाग में आ रहे थे तभी मैम की आवाज़ कान में पड़ी “अवंतिका तुम्हारी लापरवाही की वजह से हम सब यहाँ रुके है तब से …अब जल्दी करो” सब लोग बैठ गए और बस चल पड़ी । 


अवंतिका और शेफाली एक साथ बैठें। अवंतिका, शेफाली को अपने मोबाइल पर रास्ते में खींची हुई फ़ोटो दिखाने लगी, एक फ़ोटो
ऐसी थी जिस से लग रहा था जैसे बस में अवंतिका अकेले ही बैठी है , उसके बग़ल वाली सीट ख़ाली है, शेफाली बोली “हाय रे तेरी क़िस्मत तू अकेली बैठी थी,” अवंतिका हँसते हुए बोली “नही रे बैग के साथ बैठी थी” और पूरा क़िस्सा सुना दिया।

धीरे धीरे बस में सब लोग सोने लगे थे, शेफाली भी सो गयी थी पर अवंतिका को नींद नही आ रही थी, वो मोबाइल पर ट्रिप की फ़ोटो देखने लगी और जो फोटो ख़राब आयी थी, उन्हें डिलीट करने लगी। कुछ फ़ोटो दोस्तो को भेज रही थी ..पूरे दिन की थकान से उसे भी अब नींद आने लगी थी तभी अचानक उसे फ़ोटो में एक बैग दिखा, जो बिल्कुल वैसा था जैसा उसकी बग़ल वाली सीट पर रखा था।


उसने फिर से वो फ़ोटो देखी ये तो बस वाले आदमी का बैग है उसकी पूरी नींद भाग गयी। वो फिर से सारी फ़ोटो देखने लगी उसे बहुत सारी फ़ोटो में वो कैप, वो जैकेट, वो बैग दिखायी दिया पर किसी भी फ़ोटो में चेहरा नही दिख रहा था और बस में भी तो अवंतिका ने इतना ही नोटिस किया था। अवंतिका बार बार फ़ोटो देखने लगी जितनी ग्रूप फ़ोटो थी कहीं भी वो आदमी नही दिखायी दे रहा था ना उसका बैग ना उसकी कैप, ज़ूम करके भी नही ,पर जो भी अवंतिका की सेल्फ़ी वाली फ़ोटो थी उस में कहीं ना कहीं कोने में बैग आ जाता था या साइड से उस आदमी की कैप या पीछे से जैकेट… 

अवंतिका के दिमाग़ में ढेर सारे सवाल साथ आ रहे थे ये इत्तफ़ाक़ था या वो आदमी मेरा पीछा कर रहा था, लेकिन बस तो मेरी छूटी थी उसकी बस में तो मैं चढ़ी थी, और अगर वो पीछा कर रहा था तो उसने मुझ से बात क्यूँ नही की, जबकि मैने कोशिश भी की थी। उसने तो मुझ से नाम तक नहीं पूछा था पर उसने चाय देते समय मुझे अवंतिका कह कर पुकारा था oh! shit oh ! shit कौन था वो, मैने तो उसे नाम नही बताया था।


अवंतिका ने शेफाली को उठाया और सारी बाते बताने लगी, शेफाली आधे मन से उसकी बाते सुन रही थी क्यूँकि वो नींद में थी, शेफाली सोते सोते बोल रही थी “यार अभी सोने दे कोई तेरा पीछा नही कर रहा था कोई नही था।“

बस में सारे लोग सो रहे थे अवंतिका ने शेफाली को उठाने की कोशिश भी करी पर वो बुरी तरह से सो रही थी। बस जब दिल्ली पहुँची तो अवंतिका फिर से शेफाली को वही सब बाते बोलने लगी,

“वो मेरा पीछा कर रहा था उसकी आँखे मैं नही भूल पा रही ही हूँ।” 

“ कोई तेरा पीछा नही कर रहा था सारे ट्रिप पर तो हम साथ थे” 

“तूने फ़ोटो देखी ना” 

“हाँ देखी बस वाली फोटो में तो तू अकेली ही बैठी है”

“अरे मैंने तुझे बताया ना वो बैग था मेरी बग़ल वाली सीट पर”

“वो ही तो मैं बोल रही हूँ ये तेरा वहम है ऐसा कौन होता है जो बैग को सीट पर बैठाता है और खुद खड़े खड़े आता है एक लड़की के साथ बैठने का मौक़ा कौन गँवाता है. तू ना रहने दे”अवंतिका को चिढाते हुए शेफाली बोली।“

“और जो ट्रिप की मेरी फोटो में मेरे पीछे कोई आ रहा है उसका क्या”

“अरे कितने लोग घूमने आए थे आ गया होगा कोई फ़ोटो में …सारे ट्रिप पर तो हम साथ थे मैने तो नही देखा किसी को पीछा करते हुए ,तूने ना सपना देखा होगा बस में सोते सोते ” लेकिन अवंतिका ये मानने को तैयार नही थी कि ये सपना था , तभी उसे चाय वाली बात याद आयी , अवंतिका की एक आदत थी वो कभी भी रास्ते में कुछ नही फेंकती थी , शेफाली रुक तुझे में वो कुल्हड़ दिखाती हूँ वो अपने बैग में कुल्हड़ ढूँढने लगी फिर उसे याद आया वो बस में जब चढ़ी थी उसके पास सिर्फ़ मोबाइल ही था बैग तो था ही नही …


शेफाली, अवंतिका की नोवल पढ़ने की आदत से अच्छी तरह से वाक़िफ़ थी … “तू ना किताबों की दुनिया से बाहर निकल ..कोई नही था.. मुझे तो लग रहा है आजकल तू रोमांटिक किताब पढ़ रही है”।

अवंतिका बेचैन होने लगी “ऐसे कैसे हो सकता है वो फ़ोटो वाला आदमी और वो बस वाला आदमी एक ही तो था ..वो बैग, वो कैप वो जैकेट और वो गाना एक अजनबी हसीना वो शायद मेरे लिये तो नही गा था…”


रूम में पहुँचते ही शेफाली सो गयी। अवंतिका को लग गया शेफाली उसकी बात नही मानेगी…पर वो ये मानने को तैयार नही थी कि ये कोई वहम था, वो अभी भी मसूरी की वादियों में घुम रही थी ,वो पहेली सुलझाने में लगी थी। काश उस लड़के से उसका नाम पूछ लिया होता काश फ़ोन नम्बर ले लिया होता तो फेसबूक पर ढूँढ लेती और शेफाली को बताती कि वो कोई सपना नही था। 

5 साल हो गए उस बात को लेकिन आज भी जब बारिश की बूँदों को खिड़की के शीशे पर देखती हूँ तो वो ही शख़्स याद आ जाता है और ढेर सारे सवाल भी …  उसकी आँखों में जो कशिश थी वो तो आज भी मुझे याद है ,वो प्यारा सा अहसास, वो गर्म चाय, वो अधूरी मुलाक़ात, वो अनकही बात और वो अजनबी…

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