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माहनामा अबक़री मैगज़ीन के अगस्त के एहम मज़ामीन हहिंदी ज़बान में
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माहनामा अबक़री मैगज़ीन
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के अगस्त के एहम मज़ामीन
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दफ़्तर माहनामा अबक़री
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हहिंदी ज़बान में
मज़ंग चोंगी लाहौर पाककस्ट्तान
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मरकज़ रूहाननयत व अम्न 78/3 अबक़री स्ट्रीट नज़्द क़ुततबा मस्स्ट्िद
एडिटर: शैख़-उल-वज़ाइफ़् हज़रत हकीम मह ु म्मद ताररक़ महमद ू मज्ज़ब ू ी चग़ ु ताई دامت برکاتہم
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माहनामा अबक़री मैगज़ीन के अगस्त के एहम मज़ामीन हहिंदी ज़बान में
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फ़ेहररस्त
अच्छे इख़्लाक़ अपनाने वाले के दरजात ........................................................................................................ 4
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हाल ए हदल ................................................................................................................................................... 4 मेरी तीन गज़ ु ाररशात...................................................................................................................................... 4
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दर्स रूहाननयत व अम्न.................................................................................................................................. 7 हम दन्ु या में कययूँ और ककर् ललए आये? ...................................................................................................... 7
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दर्स र्े फ़ैज़ पाने वाले .................................................................................................................................... 9 बग़ैर कश्ती के र्मन् ु दर पार करने वाले ...................................................................................................... 11
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तीन घट ूँय पपयो बे कफ़क्र जजयो:..................................................................................................................... 13
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माललश! बच्चों के बेशम ु ार अमराज़ का आर्ान इलाज ............................................................................... 14
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हर आफ़त, तकलीफ़, क़त्ल व ग़ारत र्े बचने का आर्ान नस् ु ख़ा .............................................................. 17
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पैग़म्बर ﷺइस्लाम का ग़ैर मजु स्लमों र्े हुस्न र्लक य ............................................................................. 19
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चेहरे के दाग़ और बालों के ललए आज़मद य ह टोटके ...................................................................................... 19 हज़रत शाह तरु त फ़क़ीर رحمت ہللا علیہके मस् ु तनद रूहानी वज़ाइफ़् ............................................................... 21
माओिं की परे शानी अब हुई बबल्कुल ख़त्म: ................................................................................................. 24
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जजस्मानी बीमाररयों का शाफ़ी इलाज .......................................................................................................... 25 उज्ली, रोशन और ख़यबर्रय त आूँखें! आप की भी हो र्कती हैं .................................................................... 29 १२ हदन में हर जाइज़ मक़्र्द परय ा .............................................................................................................. 31
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खाने के ललए जीना या जीने के ललए खाना................................................................................................ 33 बीमारी, झगड़े, जाद य जजन्नात के ललए वज़ीफ़ा दरूद ................................................................................... 36 इजम्तहान में फ़स्टस डिवीज़न के ललए ........................................................................................................... 38
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क़ाररईन की ख़ुर्र् य ी और आज़मद य ह तहरीरे .................................................................................................. 40 मह ु ब्बतें बािंहटए, मह ु ब्बतें पाइए: ................................................................................................................... 44 आएिं टोटके आज़माएिं और फैलाएिं! ............................................................................................................... 45
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अबक़री में टोटका र्ेकशन का क़याम: ........................................................................................................ 46 ररश्तों की र्ाल्हा र्ाल परु ानी बिंहदश चिंद हदनों में ख़त्म ............................................................................ 47 अब हर जाइज़ तमन्ना होगी परय ी (इन शा अल्लाह): ................................................................................. 48
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कक़स्मत ख़ुद बनाइये.................................................................................................................................... 49
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उफ़् ! ये जज़न्दगी का ना पाइदार र्फ़र ........................................................................................................ 51 हरमैन में नैककयों के पहाड़ .......................................................................................................................... 53
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अल्लामा र्ाहब के वज़ाइफ़् र्े मजु श्कलात का अज़ाला................................................................................ 55
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तालय में ख़राश हो या ज़बान मह ुिं पर छाले र्ब ठीक ................................................................................. 57
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ढे रों बीमाररयों के ललए मेरा आज़मद य ह नस् ु ख़ा.............................................................................................. 58
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गम् ु शद ु ह चीज़, फ़दस और र्मासया पाने का वज़ीफ़ा ....................................................................................... 59
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२० र्ाल परु ाना ललकोररया ठीक: ................................................................................................................. 62
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अच्छे इख़्लाक़ अपनाने वाले के दरजात हज़रत अबू उमामा رضی ہللا عنہररवायत करते हैं कक रसूलल्लाह ﷺने इशातद फ़मातया: मैं उस शख़्स के
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ललए िन्नत के अतराफ़ में एक घर (ददलाने) की स्ज़म्मा दारी लेता हूूँ िो हक़ पर होने के बाविूद भी झगड़ा छोड़ दे और उस शख़्स के ललए िन्नत के दरम्यान में एक घर (ददलाने) की स्ज़म्मा दारी लेता हूूँ िो मज़ाक़ में भी झट ू ना बोले और उस शख़्स के ललए िन्नत के बल ु ंद तरीन दिात में एक घर (ददलाने)
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की स्ज़म्मा दारी लेता हूूँ िो अपने इख़्लाक़ अच्छे बना ले। हज़रत अबू ददातअ رضی ہللا عنہसे ररवायत है
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कक मैं ने रसल ू ल्लाह ﷺको ये इशातद फ़मातते हुए सन ु ा: स्िस शख़्स को भी (ककसी की तरफ़ से) स्िस्ट्मानी तक्लीफ़ पोहं चे किर वो उस को मुआफ़ कर दे तो अल्लाह तआला इस की विह से एक दिात
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बल ु ंद फ़मात दे ते हैं और एक गन ु ाह मआ ु फ़ फ़मात दे ते हैं। (नतलमतज़ी) ☆हज़रत अबू हुरैरा رضی ہللا عنہ
ररवायत करते हैं कक रसूल अकरम ﷺने इशातद फ़मातया: हज़रत मूसा बबन इम्रान علیہ السالمने अल्लाह
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तआला की बारगाह में अज़त ककया: ऐ मेरे रब! आप के बन्दों में आप के नज़्दीक ज़्यादा इज़्ज़त वाला कौन
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है ? अल्लाह तआला ने इशातद फ़मातया: वो बन्दा िो बदला ले सकता हो और किर मुआफ़ कर दे । (बेहक़ी)
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☆हज़रत अब्दल् ु लाह बबन उमर رضی ہللا عنہماररवायत करते हैं कक रसूलल्लाह ﷺने इशातद फ़मातया:
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बन्दा (ककसी चीज़ का) ऐसा कोई घूूँट नहीं पीता िो अल्लाह तआला के नज़्दीक ग़स्ट् ु से का घूूँट पीने से
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बेह्तर हो स्िस को वो महज़ अल्लाह तआला की रज़ा के ललए पी िाए। (मस्ट्नद् अहमद)
हाल ए हदल
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जो मैंने दे खा र्न ु ा और र्ोचा
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मेरी तीन गुज़ाररशात एडिटर के क़लम र्े
अपनी भरपूर ताक़त, िवानी, क़ुव्वत, एनिी और शबाब स्िस के २५ साल सऊदी अरब ररयाल तलाश करते करते गज़ ु र गए, लाखों कमाया और ख़ब ू कमाया लोगों ने दाद दी कक माल पैसा और चीज़ें बहुत आ
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रही हैं। किर कोलशश की कक पाककस्ट्तान में बेटे को सेटल करूूँ और उस को यहाूँ बबज़ननस ददलाऊं उस को उस दौर के तीस लाख भेिे। िब ककसी के पास तीस हज़ार होता था तो उसे लोग बहुत मालदार कहते थे हुआ ये कक उस की स्ज़न्दगी से तीन चीज़ें हट गईं पहली चीज़ माूँ बाप की वो दआ ु एं स्िन को िवानी ही में
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छोड़ कर ये ररयाल तलाश करने गया था, उसे पल पल में , साूँसों साूँसों में , लम्हे लम्हे में माूँ बाप की दआ ु ओं की अशद्द ज़रूरत थी और माूँ बाप ही थे स्िन्हों ने उसे तरक़्क़ी, काम्याबी, बरकतों और बहारों के ज़ीने तय कराने थे। उन की दआ ु ओं से यक्सर महरूम रह गया, कभी कभी पूछ लेता था किर एक वक़्त
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आया पूछने का भी वक़्त ना लमला। अफ़्सोस कक दोनों के िनाज़े में भी शरीक ना हो सका। िो दस ू रा
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नुक़्सान हुआ वो िवान बीवी की आहें , स्िस की लससकती, उभरती और ननखरती िवानी, िज़्बात, चाहतें , ख़्वादहशात, उमंगें, उम्मीदें अंदर ही अंदर रह गईं और हसरतें िूब िूब कर किर उभरती थीं और
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उभर उभर कर किर िूबती थीं लेककन उसे एक ही धन ु सवार थी कक मैं ने मालदार बन्ना है , दौलत इकट्ठी
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करनी है , मालदार बन कर साल दो साल के बाद चंद हफ़्तों के ललए आता वो िो साल दो साल की िुदाई
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बिाए इस के कक सच्ची तलब बन िाती, वो लड़ाई, बद्द गम ु ानी शक व शब ु ा में बदल िाती, यूँू ये हफ़्ते
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एक दस ू रे से दरू नफ़रतों, उल्झनों और िुदाई में गुज़रता और ये शख़्स किर अरब चला िाता। बीवी की
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तन्हाइयों की ठं िी साूँसें इस को खा िातीं और वो ठं िी साूँसें इस के मस्ट् ु तस्क़्बल को दरअसल वीरान कर
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रही थीं और ये समझ रहा था कक मैं तरक़्क़ी कर रहा हूूँ। क़ाररईन! याद रखें चंद फ़ीसद बीववयां ऐसी होंगी
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िो बद्द दआ ु एं नहीं दे तीं, आहें दे ती हैं। याद रखखयेगा! आहें बद्द दआ ु ओं से ु एं दे ती होंगी अक्सररयत बद्द दआ ज़्यादा असर रखती हैं और उन का असर बअज़ औक़ात इंसान और बअज़ औक़ात नस्ट्लों तक चलता है ,
उसको बीवी की आहें लगती और उल्झाती रहीं लेककन उस पर वही एक धन ु सवार थी कक मैं ने माल
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कमाना है , दौलत कमानी है और चीज़ें बनानी हैं और तीसरा नुक़्सान और घाटा ये हुआ कक बीवी घर में नस्ट्लों की मेअमार और शौहर बाहर से नस्ट्लों के ललए छतरी, िब छतरी हट िाती है तो मेअमार की कोई है लसय्यत नहीं रहती स्िस औलाद पर बाप का साया नहीं होता, बहुत कम है कक उन के इख़्लाक़, आमाल,
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मुआश्रत और तहज़ीब बेह्तर हो सके वरना अक्सर वो इख़्लाक़ मुआश्रत और तहज़ीब से दरू हो कर नंगी स्ज़न्दगी और बग़ावत पर उतर आते हैं और मआ ु शरे की उस स्ज़न्दगी को पसंद करते हैं िो कक मआ ु शरे की बहुत बद्द तरीन स्ज़न्दगी होती है । बस उस शख़्स के ज़वाल का सबब ये तीन बातें बनीं। माूँ बाप की
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दआ ु ओं से महरूमी, बीवी की आहें और लसस्स्ट्कयां और औलाद की तरबबयत में कमी। और ये कमी आदहस्ट्ता आदहस्ट्ता बढ़ती चली गयी िो कमाता था औलाद को दे ता था और औलाद को बना बनाया माल बग़ैर मेहनत और मश ु क़्क़त के िो लमला उन के अंदर क़ददातनी तो पहले ही ख़त्म हो चक ु ी थी बाप के क़ुबत
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ने मुहब्बत दी ना थी, क़ुबत ही ना रहा तो बाप की ख़न ू पसीने की कमाई का एह्सास भी ना रहा। तो बाप माल भेिता रहा, ना तिब े ारी दौलत की ज़्यादती, उठती िवानी, िज़्बात और छतरी बबल्कुल नहीं। ु क बस किर क्या था सब कुछ लुट गया आि उस शख़्स को घर से ननकले ३५ साल हो गए हैं, पच्चीस साल
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भरपूर कमाई की पर हालसल कुछ ना हुआ। और अब साल्हा साल से पांच छे सो ररयाल की नोकरी में
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बुढ़ापे की स्ज़न्दगी एक शख़्स की चौकीदारी में गुज़ार रहा और अपनी हसरतों पे बैठ कर आंसू बहाता है , मेरी औलाद नाफ़मातन ननकली, मेरी औलाद ने मेरी माल व दौलत और चीज़ों की क़दर नहीं की। उसे अपने
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वाललदै न के साथ बीती स्ज़न्दगी भूल गयी उस ने अपने वाललदै न के साथ क्या ककया था? याद रखखयेगा
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स्ज़न्दगी में मकाफ़ात और िैसा बोना वैसा काटना ये हमेशा रहा है । हाूँ रब करीम है , ककसी के ललए
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मआ ु फ़ी का इंतज़ाम और मआ ु फ़ी का ऐलान कर दे उस से कौन पछ ू सके? लेककन ये मकाफ़ात का
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ननज़ाम सदा चलेगा, मैं लसफ़त उन माल कमाने वालों की खख़दमत में िो घर से दरू दरहम दीनार ररयाल
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पाउं ि, यरू ो, िॉलर और क़ीमती करें सी ख़ब ू कमाई। ररज़्क़ हलाल कमाना और ररज़्क़ हलाल के ललए
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मेहनत करना ना ऐब है ना मैं मना करता हूूँ लेककन आप की खख़दमत में इतनी दरख़्वास्ट्त ज़रूर करूूँगा
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कक इन तीन चीज़ों का अगर ख़्याल रख सकते हैं तो ज़रूर रखखयेगा अगर नहीं रख सकते तो बराहे करम!
लौट आएं ये आने दो आने वाला पाककस्ट्तानी रुपया लाखों के िॉलर ररयाल और दीनार से कहीं बेह्तर है स्िस का अंिाम परे शानी मसाइल और मुस्ककलात हैं। क़ाररईन! मैं कभी कभी आप को इस मोज़ूअ पर
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छे ड़ता हूूँ और याद दहानी कराता हूूँ, उम्मीद है मेरी बातों पर आप तवज्िह करें गे क्योंकक हर चीज़ माल दौलत और नस्ट्लों को नहीं संवारती कुछ और सबब भी होते हैं। स्िस से माल दौलत और चीज़ें बनती हैं। बेरून मल् ु क स्ितने भी लोग ररज़्क़ रोज़ी के ललए गए हैं उन की खख़दमत में मेरी ये तीन गज़ ु ाररशात हमेशा
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रहीं, अक्सर लोगों की आूँखों पर शीशे होते हैं वो शायद मेरी गुज़ाररशात को ना पढ़ें हत्ता कक सुन्ना भी गवारा ना करें लेककन हक़ीक़त सदा आककार होती है और हक़ीक़त हक़ीक़त होती है । माहनामा अबक़री अगस्त 2015 शम ु ारा निंबर 110_____________Page No 3
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दर्स रूहाननयत व अम्न हम दन्ु या में कययूँ और ककर् ललए आये?
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शैख़-उल-वज़ाइफ़ हज़रत हकीम मुहम्मद ताररक़ महमयद मज्ज़यबी चुग़ताईدامت برکاتہم
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हफ़्तवार दर्स र्े इक़्तबार्
फ़लाह पाने वाले: एक ख़ातन ू ा कक मेरा बच्चा िब स्ट्कूल िाता है तो मेरा ददल ू ने एक अल्लाह वाले से पछ
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हर वक़्त उस में अटका रहता है । तो उस अल्लाह वाले ने फ़मातया: "क्या कैकफ़य्यत होती है ?" ख़ातून ने
अज़त ककया: "हज़रत हर पल मेरा ददल उस की कैकफ़य्यतों में अटका रहता है कक अब सो रहा होगा या िाग
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रहा होगा, कहीं चोट तो नहीं लगी, कहीं गगर तो नहीं पड़ा, कहीं खाना, प्यास, पेशाब की कैकफ़य्यत होगी
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तो छोटा बच्चा है , अगर पेशाब आया तो कौन अस्ट्तंिा कराएगा, अगर भूक लगी तो कौन खाना
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खखलाएगा, अगर प्यास लगी तो कौन प्यास बुझाएगा, कौन क्या करे गा हर वक़्त उस में ही ददल अटका
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रहता है ।" तो अल्लाह वाले ने फ़मातया: "मैं ने तुझे अल्लाह, अल्लाह लसखा ददया है आि के बाद तेरा ददल
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अल्लाह की ज़ात की तरफ़ ऐसे ही अटका रहे गा िैसे तेरा ददल तेरे बच्चे के बारे में रहता है ।" तो स्िस का
ददल अल्लाह की ज़ात आली की तरफ़ ऐसे ही अटका रहे गा वो फ़लाह पाएगा।
अल्लाह जजन के क़रीब आता है : ऐसा फ़दत बज़ादहर दन्ु या में होगा लेककन उस का ददल अल्लाह की ज़ात
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आली की तरफ़ ऐसा अटका हुआ होगा िैसे बच्चे की तरफ़ उस की माूँ का ददल अटका हुआ होता है और माूँ हर पल बच्चे के साथ ना होते हुए भी साथ होती है । हम ने अल्लाह को दे खा नहीं लेककन अल्लाह हमारे
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साथ है । उसी तरह बच्चा हम से दरू है और हम ने बच्चे को दे खा नहीं लेककन बच्चा दरू होते हुए भी हमारे साथ है । किर माूँ ख़्याल ही ख़्याल में उस का बोसा ले रही होती है , उसे अपनी बाूँहों में ले रही होती है , तसव्वुर ही तसव्वुर में उस को नेहला रही होती है , तसव्वुर ही में उस को बुला रही होती है , तसव्वुर ही में उस को पहना रही होती है , तसव्वुर ही में उस को खखला रही होती है । किर ऐसे ही अल्लाह की ज़ात आली
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का तसव्वुर हो िाता है । अल्लाह की मुहब्बत और अल्लाह का तअल्लुक़ ददल में रच बस िाता है । किर उस के ललए मेहनत कर के, मुशक़्क़त कर के, मुिादहदा कर के िब बन्दा इस कैकफ़य्यत में पोहं चता है तो किर अल्लाह उस के क़रीब आ िाता है ।
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ज़रूररयात जज़न्दगी और हलाल व हराम ज़राए: अब अल्लाह पाक िल्ल शानह ु ू ने बन्दे के साथ सारी ज़रूररयात लगा दी हैं। खाना खाना ज़रूरत, पानी पीना ज़रूरत, कपड़ा पेहेन्ना ज़रूरत स्ज़न्दगी का
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ननज़ाम ज़रूरत है । ये सब अल्लाह ने इंसान के साथ लगा ददया है । अब अल्लाह पाक फ़मातते हैं ये बता कक तू हलाल की स्ज़न्दगी में िाएगा या हराम की स्ज़न्दगी में िाएगा। किर अल्लाह ने उस को ढील दे दी। ये
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हराम के रास्ट्ते हैं। ये हलाल के रास्ट्ते हैं दोनों बता ददए। हराम के रास्ट्तों में ज़ादहरन चमक और लज़्ज़त बहुत नज़र आ रही होती है लेककन हलाल के रास्ट्तों के अंदर ज़ादहरं कांटे नज़र आते हैं, उन हलाल के
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रास्ट्तों के अंदर बज़ादहर ख़कु की नज़र आती है , उन रास्ट्तों के अंदर ज़ादहरं कोई चमक नज़र नहीं आती।
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थोड़े अरसे के ललए ददया है । इक़्तदार भी थोड़ा अरसा ददया।
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अल्लाह पाक ने लसफ़त दो रास्ट्ते ददए हैं और उन दोनों रास्ट्तों पर अख़्तयार भी दे ददया है और अख़्तयार भी
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हर उरूज को ज़वाल है : ये हक़ीक़त तवज्िह तलब है !!! इंसान अपने फ़न में फ़न्कार भी होता है , ककसी
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सब्िेक्ट में स्ट्पेशललस्ट्ट भी होता है , अपने फ़न में यक्ता भी होता है , कोई कारीगर है स्ितनी उम्र बढ़ती
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िाएगी कारीगरी में यक्ता होता िाएगा, इधर फ़न में यक्ता होता है । इधर फ़न में उरूि पाता है तो उधर मोत का फ़ररकता दरवाज़ा खटखटाता है । कहीं ये दावा ना कर बैठे कक सब कुछ में ही हूूँ। किर वो कारीगर
और उस की दास्ट्ताूँ ख़त्म हो िाती है । किर नया बन्दा आता है । वो कभी िूबता है , तो कभी उभरता है ,
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किर उस का लसतारा चमकता है , किर वो उस्ट्ताद केहे ल्वाता है , किर वो अपने फ़न में बाकमाल हो िाता है । किर यूूँ होता है कक मोत का फ़ररकता उस का दरवाज़ा खटखटाता है । अज़ल से ये तारीख़ ऐसे ही चलती आ रही है ।
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कया हम दन्ु या में इर् ललए आते हैं?:
अब ये हमारे ललए लम्हा कफ़क्र ये है कक क्या हम यहाूँ बच्चे पैदा करने की मशीन, माल कमाने की मशीन, नोट छापने की मशीन, एक गाड़ी से दस ू री, एक प्लाट से दस ू रा प्लाट क्या हम इस ललए आते हैं? हम
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ककस ललए आये हैं? एक पैग़ाम है और ये मेरे ललए भी है आप के ललए भी है , मैं भी इस का मोह्ताि हूूँ आप भी इस के मोह्ताि हैं, पैग़ाम ये है कक हम ककस ललए आये हैं दन्ु या में ? क्यूूँ आये हैं दन्ु या में ?
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कया मुर्ल्मान और काकफ़र की जज़न्दगी में कुछ फ़क़स नहीिं?: काकफ़र से पूछा क्यूूँ आया? कहने लगा इस ललए आया कक बड़ा हो िाऊं, ललहाज़ा खेलते खेलते बड़ा हो गया। इस के बाद माूँ बाप ने ककसी कस्ट्ब में लगा ददया, पहले पढ़ाने में लगाया, किर कारोबार में लगाया
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इस के बाद शादी कर दी, शादी के बाद बच्चे हो गए, किर बूढ़ा हो कर मर गया बस स्ज़न्दगी ख़त्म। मुसल्मान भी सोचे कक क्या उस की स्ज़न्दगी के ददन रात भी ऐसे ही गुज़रने चादहए? तो किर काकफ़र और
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मुसल्मान की स्ज़न्दगी में कोई फ़क़त ही नहीं रहा? सुबह उठते ही काकफ़र सोचता है कक आि का ददन कैसे
मर् ु ल्मान की जज़न्दगी में इजम्तयाज़ कैर्े आएगा?:
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ना रहा?
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गुज़रे गा? सुबह उठते ही मुसल्मान सोचता है आि का ददन कैसे गुज़रे गा? कोई फ़क़त रहा? कोई फ़क़त भी
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फ़मातया कक िब कोई मस ु ल्मान सब ु ह उठते ही दन्ु या को, माल को, चीज़ों को, अस्ट्बाब को सोचता है तो
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एक फ़ररकता िो दाएं तरफ़ होता है वो आवाज़ दे ता है कक ऐ अल्लाह के बन्दे मेरे अल्लाह को सोच,
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अल्लाह की सोच दामन गीर कर कक मैं आि के ददन अल्लाह को कैसे राज़ी करूूँगा। उस वक़्त एक शैतान िो इंसान के बाएं तरफ़ होता है वो आवाज़ दे ता है ख़्याल करना अल्लाह को ना सोचना, अल्लाह की ना
सोचना। दन्ु या को सोच, िो तू सोच रहा है बबल्कुल ठीक सोच रहा है । मुसल्मान फ़ररकते की आवाज़ को नहीं सुन सकता, वो शैतान की आवाज़ को भी नहीं सुन सकता, फ़ररकता अपनी ड्यूटी पूरी करता है शैतान
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अपनी ड्यूटी पूरी करता है । (िारी है )
दर्स र्े फ़ैज़ पाने वाले
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मोहतरम हज़रत हकीम साहब अस्ट्सलामु अलैकुम! हम ने अबक़री ररसाला पढ़ा बहुत अच्छा लगा, अबक़री ररसाला अपने ररकतेदारों को भी हदया ककया वो भी अब हर माह बाक़ाइदगी से ररसाला ले रहे हैं। इस ररसाले की विह से हम सब में बड़ी तब्दीललयां आ गईं हैं। ख़ास कर आप के दसत सुन्ने से तो ददल की
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दन्ु या ही बदल गयी, हम सब आप के ललए दआ ु एं करते हैं। हम पहले अूँधेरे में थे हमें रौशनी लमल गयी। मुझे ३० साल से रात को नींद का मसला था, सारी सारी रात िागती नींद ना आती थी, किर उठ कर आप के दसत सन् ु ना शरू ु कर दे ती थी, अिब सक ु ू न लमलता, आदहस्ट्ता आदहस्ट्ता दसत सन ु ते सन ु ते ही नींद आ
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िाती। पहले नींद की दवाई के बग़ैर नींद ना आती थी अब बग़ैर ककसी दवाई के पुरसुकून सोती हूूँ। दसत की विह से हमारे घर में सक ु ू न आ गया है , बहुत से कारोबार व मआ ु शी मसाइल हल हुए हैं। मेरा सारा घर आप से बहुत मुहब्बत और अक़ीदत रखते हैं और अल्लाह तआला का शुक्र अदा करते हैं, अगर हमें
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अबक़री और आप का दसत ना लमलता ना िाने इस वक़्त हम ककस हाल में होते, उस रहमान ने हमें आप
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से लमला ददया ये सब उस की नज़रे करम है वरना हम इस क़ाबबल कहाूँ थे। (वाललदा नसीम अख़्तर)
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माहनामा अबक़री अगस्त 2015 शुमारा निंबर 110________________Page No 4
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बग़ैर कश्ती के र्मन् ु दर पार करने वाले (र्मुन्दर ने उन्हें अल्लाह के हुकम र्े पार करा हदया ये इर् तरह र्मुन्दर पर चल रहे थे जैर्ा कक नरम
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रे त पर चला जाता है । ऊिंटों के पैर नहीिं नघस्ते थे और घोड़े र्वारों के रकाब तक पानी नहीिं पोहिं चता था और ये मर्ाफ़त कश्ती के ललए एक हदन रात की थी।) (अबय लबीब शाज़्ली)
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क़ैस बबन हिाि ने स्िन साहब से ये ररवायत सुनी है वो नक़ल करते हैं िब हज़रत उमरू बबन अल ्आस ् رضی ہللا عنہने लमस्र फ़तह ककया तो उन के पास अहल लमस्र उस महीना में आये स्िस को 'बोना' उन की
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ज़बान में कहते हैं, बोना अज्मी ज़बान में एक महीने का नाम है और उन से कहा ऐ अमीर! हमारे इस नील के ललए एक तरीक़ा है इस में पानी बग़ैर इस तरीक़े के नहीं रहता है , उन से पूछा कक वो तरीक़ा क्या है ?
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उन्हों ने कहा िब इस महीने की बारहवीं रात गज़ ु र िाती है तो हम एक ऐसी कंु वारी लड़की की तरफ़
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क़सद करते हैं िो अपने माूँ बाप की इक्लोती होती है , उस के माूँ बाप को हम राज़ी कर लेते हैं और उसे
हम ज़ेवर और ललबास फ़ाख़्रह से िहाूँ तक हो सकता है , मज़ ु य्यं करते हैं, किर हम उस लड़की को दयातए
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नील में िाल दे ते हैं तो उन से हज़रत इब्न अल ्आस ् رضی ہللا عنہने फ़मातया ये बात इस्ट्लाम में नहीं हो
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सकती, इस्ट्लाम हर उस रस्ट्म को गगरा दे ता है िो इस से पहले है , चन ु ाचे अहल लमस्र इन तीन महीनों में
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बोना और अबीब और लमस्री में ठहरे रहे , दयातए नील बबल्कुल भी िारी ना हुआ यहाूँ तक कक उन लोगों ने िलावतनन का इरादा ककया, िब ये बात हज़रत इब्न अल ्आस ् رضی ہللا عنہने दे खी तो हज़रत उमर رضی ہللا عنہके पास इस बात को ललखा, हज़रत उमर رضی ہللا عنہने उन्हें िवाब ददया कक तुम ने ये
बात ठीक कही कक इस्ट्लाम अपने से पहली रस्ट्मों को लमटा दे ता है , मैं तुम्हारे पास ये परचा भेिता हूूँ िब
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तम् ु हारे पास मेरा ख़त पोहं चे तो उस पचे को नील के अंदर िाल दे ना, िब हज़रत उमर رضی ہللا عنہका ख़त इब्न अल ्आस ् رضی ہللا عنہके पास आया उस परचा को खोल कर पढ़ा तो उस पचे में लसफ़त इतना
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मज़्मन ू था: अल्लाह के बन्दे उमर अमीरुल मोअलमनीं की तरफ़ से अहल लमस्र के दयातए नील के ललए, अमाबाद! अगर तू अपनी तरफ़ से िारी होता था तो मत िारी हो और अगर अल्लाह वादहद क़ह्हार ने तझ ु को िारी ककया था तो हम अल्लाह वादहद क़ह्हार से सवाल करते हैं कक तझ ु को िारी कर दे " हज़रत इब्न अल ्आस رضی ہللا عنہने ये परचा दयातए नील में उस रोज़ से एक ददन पहले स्िस में कक ये लोग
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लड़की को भें ट चढ़ाते थे, िाल ददया। उधर अहल लमस्र िलावतनन का और लमस्र से चले िाने का इस ललए इरादा ककये हुए थे कक उन की मुआश का मुआम्ला दयातए नील के बग़ैर दरु ु स्ट्त ना हो सकता था। भें ट चढ़ाने वाले ददन िब लोगों ने सब ु ह दे खा कक अल्लाह पाक ने दयातए नील का पानी सोला हाथ ऊंचा बहा
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ददया है । और ये बुरा तरीक़ा अहल लमस्र से हमेशा के ललए ख़त्म हो गया। (और आि तक दयातए नील नहीं सख ू ा) उरवतल ु अइम्मा मोला बनी सअद ने बयान ककया कक अबू रे हाना समन् ु दर में सवार हुए और ये नबी करीम ﷺके सहाबी हैं ये लसलाई का काम करते थे उन की सुई समुन्दर में िा पड़ी तो उन्हों ने
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कहा ऐ रब! मैं तुझे क़सम दे ता हूूँ कक तू मेरी सुई ज़रूर वापस कर दे , वो सुई सतह समुन्दर पर ज़ादहर हुई
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और उन्हों ने उसे उठा ललया।
हज़रत अबू हुरैरा رضی ہللا عنہने बयान ककया कक िब नबी करीम ﷺने हज़रत अला बबन हुज़्रमी
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رضی ہللا عنہको तहरै न भेिा तो मैं भी उन के पीछे गया मैं ने उन से तीन बातें दे खीं मैं नहीं िानता कक
उन में से कौनसी ज़्यादा अिीब है ? िब हम समन् ु दर के ककनारे पोहं चे उन्हों ने कहा अल्लाह का नाम लो
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और इस में घुस िाओ, चन ु ाचे हम ने अल्लाह का नाम ललया और उस में उतर गए और उस से पार हो गए
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और हमारे ऊंटों के तल्वे तक भी तर नहीं हुए थे। एक ररवायत में है कक हज़रत अला رضی ہللا عنہने
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मुसल्मानों से कहा कक हमारे साथ दारे न चलो ता कक हम उन दकु मनों से ग़ज़्वा करें िो वहां हैं, मुसल्मानों
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ने फ़ौरन इस की तय्यारी की, हज़रत अला رضی ہللا عنہउन को ले कर चले और समन् ु दर के ककनारे आ गए ता कक कस्कतयों में सवार हों तो दे खा कक मसाफ़त बहुत बईद है , दकु मनों तक ककती के ज़ररए नहीं पोहं च सकते हैं, दकु मन भाग िाएंगे ये अपने घोड़ों समेत समुन्दर में कूद पड़े और कह रहे थे "या अहतम-र्-
रादहमीन या हकीमु या करीमु या अहद ु या समद ु या हय्यु या मुह्यु या क़य्यूमु या ज़ल ्-िलालल वल ्-
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इक्रालम। ला इलाह इल्ला अन्त या रब्बना"
ا ْ ا ا ْ ا ا یا ْ ا ا ا ْ ُ ا ا ْ ُ ا ا ا ُ ا ا ا ُ ا ا ی ُ ا ُ ْ ُ ا ا ی ُ ُ ا ا ْ ا ا ا ْ ْ ا ا َ یا ا ( َیارَح الر م ) امَل امل ا امل ات ا اَی ار یَ اا الکر م اِحمْی َیحکمیم َیک مریم َیاحد َیَصد َیح َیُمی َیقیوم َیذااْلال مل و م
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और सारे लककर को हुक्म ददया कक घुस िाएं चन ु ाचे सारे लककर ने ऐसा ही ककया समुन्दर ने उन्हें अल्लाह के हुक्म से पार करा ददया ये इस तरह समुन्दर पर चल रहे थे िैसा कक नरम रे त पर चला िाता है । ऊंटों के पैर नहीं नघस्ट्ते थे और घोड़े सवारों के रकाब तक पानी नहीं पोहं चता था और ये मसाफ़त ककती
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के ललए एक ददन रात की थी। इस समुन्दर को दस ू रे ककनारे तक पार ककया और अपने दकु मनों से लड़े और उन पर ग़ाललब आ गए और उन का माल ग़नीमत िमा ककया इस के बाद वापस आये तो समुन्दर को एक दस ू री िाननब से पार कर रहे थे कक अपनी पहली िगा पर लौट आये और ये सब बात एक ही में हुई। इस
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के बाद िब हम लौटे और उन के साथ चले, ज़मीन के एक िंगल में , और हमारे पास पानी नहीं था हम ने उन से इस बात की लशकायत की उन्हों ने दो रकअत नमाज़ पढ़ी इस के बाद दआ ु की तो अचानक ढाल के बराबर एक अब्र नुमूदार हुआ किर उस अब्र ने अपनी मशकेँ लटका दीं तो हम ने वपया और ऊंटों को
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वपलाया और उन की वफ़ात हो गयी, हम ने उन को रे त में दफ़न ककया, हम थोड़ी दरू तक चले थे कक हम
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ने कहा कक दररंदे आएूँगे और उन को खा िाएंगे, हम िो उन की क़ब्र की तरफ़ वापस हुए तो उन को क़ब्र में ना दे खा। एक ररवायत में ये इज़ाफ़ा है िब हम को उन मकअबर कसरा के गवनतर ने दे खा तो उस ने
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कहा ख़द ु ा की क़सम हम उन का मुक़ाबला ना करें गे तो वो एक ककती में बैठ कर फ़ारस चला गया।
तीन घयट ूँ पपयो बे कफ़क्र जजयो:
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(हयातुल सहाबा दहस्ट्सा दहु म '१०')
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मोहतरम हज़रत हकीम साहब अस्ट्सलामु अलैकुम! मैं अबक़री ररसाले वपछले काफ़ी अरसे से मुसल्सल
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पढ़ रही हूूँ, हमने अपनी मुस्ककलात के हल के ललए आप को ख़त ललखा था आप ने हमें कुछ अमल करने
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को बताए थे। आप के बताए हुए तमाम वज़ाइफ़् पर हमने अमल ककया है , माशाअल्लाह हमारी काफ़ी परे शाननयां ख़त्म हो गयी हैं मैं ने वज़ू वाला अमल ककया है िो कक इस तरह कक वज़ू करने के बाद आप उसी नल्के से तीन घूूँट पानी पीएं, पहले घूूँट पर अल्लाह शाफ़ी, दस ु रे घूूँट पर अल्लाह काफ़ी और तीसरे घूूँट पर अल्लाह मुआफ़ी कहें । कोलशश करें कक ये पानी खड़े हो कर पीएं। मेरे बहुत से मसाइल िो हल नहीं
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हो रहे थे वो वज़ू के तीन घूँट ू पानी वाले अमल से हल हो गए। मेरी िो िो हाितें थीं वो इस अमल ने परू ी कर दीं। आप का बे हद्द शुकक्रया कक आप के ददए गए अमल से हमारी मुस्ककलात ख़त्म हो गयी हैं।
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अल्लाह आप को इस का अिर अज़ीम ज़रूर दे गा। (लमलसज़ नरू मह ु म्मद, सक्खर) माहनामा अबक़री अगस्त 2015 शम ु ारा निंबर 110______________Page No. 5
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माललश! बच्चों के बेशम ु ार अमराज़ का आर्ान इलाज (बच्चों की माललश उर् वक़्त तक जारी रखें जब तक वो कई र्ाल के ना हो जाएिं। अगर आप मज़ीद हहम्मत करें तो बच्चों के स्कयल जाने की उम्र के बाद भी मस्र्ाज के मामयल को कम अज़ कम उर् वक़्त
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तक जारी रखें जब तक कक वो इर्े बदासश्त कर र्कें।) (प्रोफ़ेसर उमाइमा इस्म्तयाज़)
बच्चों की स्िल्द और बालों को ख़स ु ूसी तवज्िह और दे ख भाल की ज़रूरत होती है ता कक मज्मूई सेहत के
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साथ उन की स्िल्द और बाल भी इब्तदा ही से सेहतमंद रहें लेककन बेकतर माएूँ इस बारे में ज़्यादा मालूमात नहीं रखतीं। ललहाज़ा िहाूँ मुख़्तललफ़ रसाइल में ख़वातीन की स्स्ट्कन और हे यर केअर के बारे में
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बेशुमार मज़ामीन ललखे िाते हैं इसी तरह बच्चों के ललए भी इस बारे में मज़ामीन ललखे िाने चादहयें ता कक माएूँ उन से रहनम ु ाई हालसल कर सकें। यही विह है कक इन सतरू में आि नोननहालों की नरम व
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नाज़ुक स्िल्द और बालों की दहफ़ाज़त के ललए कुछ मकवरे पेश ककये िा रहे हैं। हमारे हाूँ आम तौर पर
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होता कुछ यूँू है कक िैसे ही घर में ककसी नो मोलद ू का इज़ाफ़ा होता है , ख़ान्दान और मोहल्ले पड़ोस की
तमाम तर ख़वातीन इस के बारे में अपने अपने मकवरों से नवाज़ने के ललए आ पोहं चती हैं। इस तरह माूँ
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मज़ीद परे शां हो िाती है कक ककस के मकवरे पर अमल ककया िाये और ककस के मकवरे पर नहीं। सो आि
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कल ये सूरत हाल है कक अगर माूँ के पास कोई मददगार मौिूद हुआ तो कुछ रोज़ तक नो ज़ाएदा बच्चे का
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मस्ट्साि वग़ैरा कर ललया िाता है वरना नहीं िबकक बच्चों को शीर ख़्वारी की उम्र के बाद भी मस्ट्साि, स्स्ट्कन केअर और हे यर केअर की ज़रूरत होती है । स्िल्द हमारे स्िस्ट्म का हस्ट्सास तरीन दहस्ट्सा है और बच्चों की स्िल्द मज़ीद नरम व नाज़ुक होती है इस ललए शुरू ही से उन की दहफ़ाज़त करें और स्िल्द के
साथ बालों की दे ख भाल को मामल ू का दहस्ट्सा बना लें। इस तरह बच्चे िंू िंू बड़े होंगे उन्हें ख़द ु भी इन
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चीज़ों की एहलमयत का अंदाज़ा होने लगे गा और नोिवानी की दहफ़ाज़त के आदी हो चक ु े होंगे। दस ू री विह ये है कक बच्पन ही से इन बातों पर तवज्िह दे ने के नतीिे में स्िल्द और बाल चकंू क सेहतमंद रहें गे
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ललहाज़ा वो मुख़्तललफ़ मसाइल का लशकार होने से बचे रहें गे। इस तरह के बेकतर मसाइल बच्पन ही में अपनी िड़ें बना लेते हैं और किर नोिवानी की उम्र को पोहं चने तक ये मसाइल पख़् ु ता हो िाते हैं। लमसाल के तौर पर स्िल्द के मसामात का बंद हो िाना वग़ैरा। ये सब ऐसे मसाइल हैं स्िन से ज़रा सी तवज्िह की बदौलत इब्तदा ही में ही बचा िा सकता है । स्िल्द की दहफ़ाज़त: बच्चों की माललश उस वक़्त तक
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िारी रखें िब तक वो कई साल के ना हो िाएूँ। अगर आप मज़ीद दहम्मत करें तो बच्चों के स्ट्कूल िाने की उम्र के बाद भी मस्ट्साि के मामूल को कम अज़ कम उस वक़्त तक िारी रखें िब तक कक वो इसे बदातकत कर सकें। मस्ट्साि के दौरान बच्चों को उन की ददल्चस्ट्पी के मत ु ाबबक़ बातों में लगाएं ता कक वो उस से
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िान छुड़ाने की कोलशश ना करें । हक़ीक़त ये है कक इस तरह एक साथ वक़्त गुज़ारने की सूरत में माूँ और बच्चे के दरम्यान मह ु ब्बत और क़ुरबत में मज़ीद इज़ाफ़ा होता है । िब बच्चे ज़रा और बड़े हो िाएं तो उन्हें ललटा कर मस्ट्साि करने के बिाए बेठा भी सकती हैं। इस दौरान आप उन्हें कोई खखलौना पकड़ा दें
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या कोई अच्छी सी कहानी सुना दें । यूूँ वो मगन रहें गे और आप इत्मीनान से अपना काम अंिाम दे
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सकेंगी। इस से एक फ़ायदा ये भी है कक माललश के दौरान आप को बच्चों के स्िस्ट्म का िाइज़ा लेते रहने का मोक़आ लमलेगा। ललहाज़ा उन के स्िस्ट्म पर कोई ग़ैर मामूली उभार, दाना, िूँसी या धब्बा दे खें तो
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फ़ौरन िॉक्टर के पास ले िाएूँ। एक और एहम बात कक मस्ट्साि के वक़्त बच्चे की प्राइवेसी का ख़ास तौर
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से ख़्याल रखें। घर के तमाम अफ़राद या मेहमानों के सामने उस का मस्ट्साि करना शुरू ना हो िाएं।
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मस्ट्साि के ललए माककतट में बहुत से अच्छे बेबी ऑइल दस्ट्तयाब हैं। उन में से कोई ऐसा ऑइल मन् ु तखख़ब
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कर लें स्िस से बच्चा एलिी महसूस ना करे । उस तेल में ज़ाफ़रान के कुछ रे शे िाल कर रख दें ता कक उस
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की ख़बू बयों में मज़ीद इज़ाफ़ा हो िाए। गलमतयों में बच्चों को ककसी हल्के साबन ु से दब ु ारह नेहलाएं। गलमतयों
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में आने वाला पसीना बच्चों की स्िल्द के मसामात बंद कर दे ता है ललहाज़ा उन्हें बाक़ाइदगी से ककसी
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अच्छे साबन ु नहलाने से स्िल्द की ख़ानतर ख़्वाह सफ़ाई मस्ु म्कन ु के साथ नहलाना ज़रूरी है । बग़ैर साबन नहीं इस तरह बच्चे गमी दानों का लशकार हो सकते हैं। उन के नहाने का पानी गरम या ज़्यादा ठन्िे के
बिाए मुअतदल रखें। हफ़्ते में एक बार नहलाने से पहले ताज़ह िलों और सस्ब्ज़यों के गूदे से बच्चों का
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मस्ट्साि करें । इस मक़्सद के ललए टमाटर, खीरा, गािर और केला बेह्तरीन है । इस दौरान बच्चों को िलों और सस्ब्ज़यों के इस मल्ग़ब ू े से खेलने की इिाज़त भी दें ता कक वो ख़श ु ी ख़श ु ी मस्ट्साि करवाएं। गलमतयों में भी स्िल्द को ठं िक पोहं चाने के ललए दही का इस्ट्तेमाल भी कर सकते हैं। इस के इलावा धप ू के वक़्त
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िब भी बच्चों को बाहर ले िाएं तो उन्हें कोई अच्छा हीट और सन ् ग्लासेज़ पहनाएं। बालों की दहफ़ाज़त: बच्चों के बालों में व्क़्तन फ़वक़्तन तेल की माललश ज़रूर करें । सर में तेल लगाने के दौरान भी बच्चों को ककसी ना ककसी मकग़ल ु े में उल्झा कर रखें। सर के मस्ट्साि से बच्चे सुकून महसूस करते हैं और किर इस
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के आदी हो िाते हैं। हे यर ऑइल की बहुत सी अक़्साम माककतट में दस्ट्तयाब हैं ता हम आप ख़कु बू वाले तेल के बिाए सादह और ख़ाललस तेल मुन्तखख़ब करें । ददन में कम अज़ कम दो बार बच्चों के बालों में कंघा या ब्रश करें ता कक ये सल् ु झे हुए और चमक्दार रहें । बच्चों के बाल अगर उल्झे हुए हों तो उन्हें कई दहस्ट्सों में
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बाूँट लें और एक हाथ से थाम कर दस ू रे हाथ से आदहस्ट्ता आदहस्ट्ता सुल्झाएं। इस तरह बाल कम से कम टूटें गे और बच्चे को ददत भी नहीं होगा। बच्चे िंू िंू बड़े हों उन के बालों को नरम, चमक्दार और घना बनाने के ललए हे यर मास्ट्क लगाएं। हस्ट्बे ज़रूरत दहना, सीका काई और आमला पौिर ले कर थोड़े से तेल
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में लमलाएं और दस लमनट के ललए बालों में लगा रहने दें किर सर धल ु ा दें । अगर आप के बच्चे के बाल
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बहुत ज़्यादा ख़कु क हैं तो पहले बालों में तेल लगाएं लेककन िब तक मास्ट्क लगा हो बच्चे को अपनी ननगरानी में रखें। ददन के वक़्त बाहर ले िाते वक़्त कैप वग़ैरा पहनाएं और एक से िेढ़ माह के बाद उन के
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बाल बा क़ाइदगी से तुकवातएं ता कक ये सेहतमंद रहें और ख़श ु नुमा ददखाई दें । बच्चों को बड़ों की प्रोिक््स
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लगाने से गुरेज़ करें िैसे की ऑइल, क्रीम या परफ़्यूम वग़ैरा। इन चीज़ों में मौिूद केलमकल्ज़ बच्चों की
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स्िल्द और बालों के ललए नक़् ु सानदह होते हैं। उन के बाल ख़कु क करने के ललए हे यर ड्रायर का इस्ट्तेमाल
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ना करें लेककन अगर सदी के बाइस या ककसी तक़रीब के ललए ड्रायर लगाना ज़रूरी हो तो उसे लो सेदटंग
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पर और बालों से ख़ासा दरू रखें। गीले बालों में कंघा ना करें क्योंकक इस तरह बाल बहुत ज़्यादा टूटते हैं
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और उन की लचक ख़त्म हो िाती है । चमक्दार साफ़ शफ़्फ़ाफ़ स्िल्द और घने सेहतमंद बाल शस्ख़्सयत
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को ख़श ु नम ु ा और परु कलशश बनाने का बाइस होते हैं ललहाज़ा इस तरह बच्चे के एतमाद में भी इज़ाफ़ा होता है । मंदिात बाला तमाम तिावीज़ लड़कों और लड़ककयों के ललए यक्सां मुफ़ीद हैं ता हम अगर आप
अमल ना करें ।
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का बच्चा ग़ैर मामूली हस्ट्सास स्िल्द का माललक है तो अपने िॉक्टर के मकवरे के बग़ैर ककसी तज्वीज़ पर
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हर आफ़त, तकलीफ़, क़त्ल व ग़ारत र्े बचने का आर्ान नस् ु ख़ा (एक दम हिं गामा हुआ, क़त्ल की धमककयाूँ दी जा रही थीिं, गहरी नीिंद र्े वापर्ी हुई, दे खा तो कोच रुकी हुई, ड्राईवर र्ीट र्े ग़ायब, दर् य री कोच के ड्राईवर ने बहुत ग़लीज़ गुफ़्तुगय की, ये तो ग़नीमत था कक जजर्
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कोच में राक़मा थी उर् ड्राईवर ने काफ़ी तहम्मुल लमज़ाजी का मुज़ाहहरा ककया) (ज़ककया इक़्तदार, बहावल्नगर)
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अक्सर सफ़र का इत्तफ़ाक़ होता है िब से सूरह कहफ़ सफ़र में पढ़ना शुरू की है बेशुमार अनहोने वाक़्यात
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दे खे, अल्लाह तआला लसफ़त सूरह पढ़ने से ककस तरह बचाता है । हर आफ़त, मुसीबत और क़त्ल व ग़ारत से महफ़ूज़ रखता है । अमम ू न कोच में सफ़र के दौरान सरू ह कहफ़ पढ़ती हूूँ, कोच की रवानगी से दस
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लमनट क़ब्ल कोच में बैठ िाती हूूँ, सूरह पढ़ चक ु ने के बाद पूरी कोच पर तीन मततबा िूँू क मार दे ती हूूँ और
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ज़ेहन में ये तसव्वरु होता है कक स्िस तरह अल्लाह ने असहाब कहफ़ को हर मस ु ीबत से बचाया था ऐसा
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ही हमें भी दौरान सफ़र हर मुसीबत से बचा ले। अमूमन सूरह पढ़ने के बाद पुरसुकून हो िाती हूूँ, घर में
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मसरूफ़ होती हूूँ तमाम काम समेटने की िल्दी होती है , थकन ले कर कॉस्ट्टर में बैठ िाती हूूँ, सरू तें पढ़ती
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और नींद का दटकट होता है , ये दटकट गहरी नींद सुला दे ता है कहाूँ स्ट्टॉप आया है , या नहीं आता, नींद तो
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नॉन स्ट्टॉप होती है । आि भी ऐसा ही था। एक दम हंगामा हुआ, क़त्ल की धमककयाूँ दी िा रही थीं, गहरी
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नींद से वापसी हुई, दे खा तो कोच रुकी हुई, ड्राईवर सीट से ग़ायब, दस ू री कोच के ड्राईवर ने बहुत ग़लीज़ गुफ़्तुगू की, ये तो ग़नीमत था कक स्िस कोच में राक़मा थी उस ड्राईवर ने काफ़ी तहम्मुल लमज़ािी का
मज़ ु ादहरा ककया, सल ु ह करते हुए वापस कोच में आ गया, बाक़ी लोग भी आ कर अपनी सीटों पर
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बबरािमान हो गए। ड्राईवर ने गाड़ी स्ट्टाटत ही की थी कक दस ू रा ड्राईवर तेज़ी से अपनी गाड़ी को इतना क़रीब लाया कक हमारी गाड़ी को टक्कर मार कर तबाह कर दे िो मंज़र राक़मा दे ख रही थी वो ख़ौफ़नाक था, गाड़ी के पख़तच्चे उड़ते दे ख रही थी, किर क्या होगा? राक़मा सोच भी रही थी और रो भी रही थी, रब से
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दआ ु मांगने की लशद्दत थी, इन्ही सेकंिों में मलाइका हमारी गाड़ी ननकाल कर ले गए थे क्योंकक ये ककसी इंसान के बस का रोग नहीं था। यही सोचती रही काश! दस ू रे बस में भी ककसी मुसाकफ़र ने सूरह कहफ़ पढ़ ली होती तो ऐसा ना होता। स्िस क़दर लोग ड्राइववंग करते हैं िो लोग पायलट हैं, रे न के ड्राईवर हैं, कोलशश कर के सूरह कहफ़ पढ़ कर ड्राइववंग सीट पर बैठें दन्ु या का सफ़र ड्राइववंग करते गुज़र िाता है । Page 17 of 62 www.ubqari.org
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माहनामा अबक़री मैगज़ीन के अगस्त के एहम मज़ामीन हहिंदी ज़बान में
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फ़ुरसत के मुन्तस्ज़र ना रहें । िब ये सूरह पढ़ें गे तो ख़द ु ब ख़द ु वक़्त में बरकत होगी। तमाम ड्राइववंग करने वाली बहनों से दरख़्वास्ट्त करूंगी इन शा अल्लाह वो सूरह कहफ़ पढ़ कर ड्राइववंग करें इस सूरह के पढ़ने के कमालात दे खें और अबक़री में ललख कर भेिें ता कक सब लोग इस सरू ह को पढ़ा करें । अिर आप
ललखी है , अल्लाह करे क़ारी इस पर अमल करें ।
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को भी लमलेगा। ये सूरह पढ़ने से परे शाननयां ख़त्म हो िाती हैं और वक़्त में बरकत होती है , हक़ीक़त
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दर् य रा वाक़्या: आि भी सफ़र के ललए रवानगी थी, घरे लू मसरूकफ़यात ज़्यादा थीं, यूूँ स्ट्टैंि पर िाने में कुछ दे र हो गयी, किर अपनी सीट पर िा कर बैठ गयी, िाते ही अपना पंि सूरह खोला और सूरह कहफ़
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पढ़ने लगी, चार रुकूअ ही पढ़े थे कक कोच में इस क़दर सवाररयां आईं कक सीटों के दरम्यान इंसानों की दीवार लग गयी, शीशों के सामने बहुत मोटे परदे पड़े हुए थे, मुझे एक बार पंि सूरह बंद करना पड़ा,
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अल्फ़ाज़ नज़र ही नहीं आ रहे थे, िूं ही मैं ने पढ़ना बंद ककया मुझे महसूस हुआ गाड़ी कफ़ज़ा में
क़लाबास्ज़याूँ खा रही है , फ़ौरन ख़्याल आया सरू ह पढ़ना बंद कर दी है इस ललए अल्लाह की रहमत दरू हो
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गयी है । िल्दी से परदे हटाए पंि सूरह खोला और किर सूरह पढ़ने लगी, िूं ही सूरह पढ़नी शुरू की बस
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की क़लाबास्ज़याूँ रुक गईं, बहुत सक ु ू न से सफ़र होने लगा, परू ी सरू ह मक ु म्मल की, किर परू े सफ़र में कोई
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परे शानी ना हुई, िब सूरह पढ़नी बंद की, मलाइका को बे हद्द ना गवार गुज़रा बस क़लाबास्ज़याूँ खाने
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लगी, ये सोच कर बे हद्द ख़श ु ी हुई लसफ़त सरू ह पढ़ने से मलाइका साथ रहते हैं। ये ककतनी ख़श ु नसीबी है और इब्लीस दरू हो िाता है , िहाूँ इब्लीस ना हो वहां कभी झगड़ा नहीं होता, वहां तो अम्न ही अम्न है ।
सफ़र करते दो घंटे गुज़र चुके थे मगर ना टी वी, ना िेक, राक़मा ने अपनी साथी बहन से कहा िो हमसफ़र थीं, ये स्ज़न्दगी में पहली गाड़ी दे खी है स्िस में टी वी नहीं है । वरना तमाम सफ़र बहुत तक्लीफ़
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में कटता। हमसफ़र बहन कह रही थीं टी वी तो मौिूद है , चलाया नहीं है । सामने ननगाह िाली तो वाक़ई टी वी लगा हुआ था। ख़श ु ी की बात ये है कोई फ़दत बस में बोलता ही नहीं। सोते हुए और अल्लाह का स्ज़क्र करते हुए सफ़र गुज़रता है । स्ज़न्दगी गुज़ारने का मज़ा अल्लाह की अताअत में है । हर सफ़र में बा
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क़ाइदगी से सरू ह पढ़ती हूूँ। मोहतरम क़ाररईन! आप भी ये सरू ह पढ़ा करें किर इस के कमालात दे खें।
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इस्लाम और रवादारी
पैग़म्बर
ﷺ
इस्लाम का ग़ैर मुजस्लमों र्े हुस्न र्लयक
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(कक़स्त निंबर १००) (इब्न ज़ेब लभकारी) (बहै लर्य्यत मुर्ल्मान हम जजर् बा अख़्लाक़ नबी ﷺके पैरोकार हैं उन का ग़ैर मुजस्लमों र्े कया लमर्ाली र्लक य था, आप ने र्ाबबक़ा अक़्र्ात में पढ़ा अब उन के जान्वरों र्े हुस्न र्लक य के चिंद वाक़्यात
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पढ़ें ।)
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जान्वरों के मुआम्ले में अल्लाह र्े िरो: हुज़ूर नबी करीम ﷺएक ऊूँट के पास से गुज़रे कक (कम्ज़ोरी की विह से) उस का पेट कमर से लग गया था, इस पर हुज़ूर ﷺने इशातद फ़मातया: इन बेज़बान िान्वरों के
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मुआम्ले में अल्लाह से िरा करो, िब ये अच्छी हालत में हों तो इन पर सवारी ककया करो और िब अच्छी
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हालत में हों तब ही छोड़ ददया करो। (अबू दाऊद) बबल्ली की विह से दोज़ख़ लमली: हज़रत इब्न उमर
رضی ہللا عنہماने फ़मातया कक हुज़ूर पुर नूर ﷺने इशातद फ़मातया कक एक औरत एक बबल्ली की विह से
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दोज़ख़ में दाखख़ल हुई, उस ने उसे बाूँध ददया, ना उसे खाना खखलाया और ना उसे खोला कक वो कीड़े मकोड़े
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खा ले। (बुख़ारी व मुस्स्ट्लम)
चेहरे के दाग़ और बालों के ललए आज़मयदह टोटके
मोहतरम हज़रत हकीम साहब अस्ट्सलामु अलैकुम! मैं पहली बार ककसी शम ु ारे में ख़त ललख रही हूूँ। हम
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तक़रीबन दो साल से अबक़री पढ़ रहे हैं, ये बहुत मुफ़ीद ररसाला है , इस ललए अपने आज़मूदह टोटके क़ाररईन के ललए ललख रही हूूँ क्योंकक ककसी का भला होगा तो उस के वसीले से अल्लाह हमारा भी भला कर दे गा। चेहरे के दाग़ धब्बों के ललए: घेक्वार (एलोवेरा) सुबह व शाम दस से पंद्रह लमनट चेहरे पर मलें
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और एक इंच का टुकड़ा पानी से ननगल लें। इस से आप का चेहरा दाग़ धब्बों से साफ़ हो कर चाूँद की तरह रोशन हो िायेगा। आज़मूदह है । र्र के बालों के ललए: हुवल ्-शाफ़ी: रीठा, आमला, लसका काई तीनों हर एक पचास ग्राम, मेथी दाना, कलौंिी दोनों एक एक चम्मच, नीम और बेरी के पत्ते लमक्स कर के एक
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मुट्ठी। इन सब अकया को छे ककलो पानी में हफ़्ता भर लभगो दें । आठवें ददन धीमी आग पर चार पांच घंटे पकाएं। ठं िा कर के ननथार के बोतलों में भर लें। एक ददन के वक़्फ़े से दो से तीन घंटे बालों में लगाएं और सादह पानी से धो लें। लसफ़त गलमतयों में इस्ट्तेमाल करें । सददत यों में नतस्ब्ब नबवी हे यर ऑइल लगाएं, लकड़ी
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का कंघा इस्ट्तेमाल करें । बालों की चमक, दमक और लम्बाई ख़द ु दे खें। (बन्दी ए ख़द ु ा,मुल्तान)
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माहनामा अबक़री अगस्त 2015 शुमारा निंबर 110__________Page No. 7
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हज़रत शाह तरु त फ़क़ीर رحمت ہللا علیہके मस् ु तनद रूहानी वज़ाइफ़् (अगर दो शख़्र् या दो भाई या बहन भाई आपर् में नाराज़ हों और बात चीत ना करते हों तो एक अनार ले
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कर दाने ननकाल कर एक बतसन में रख लें और बावज़य र्रय ह ताररक़ (प ३०) परय ी र्रय ह छब्बीर् मतसबा पढ़
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हर कक़स्म की हाजत पयरा होने का अमल:
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कर उन दानों पर दम कर के दोनों तरफ़ के आदलमयों को खखला दें ।)
अगर कोई शख़्स ककसी मक़्सद में काम्याबी चाहता है या उस की कोई ज़रूरत है िो पूरी नहीं होती उस के
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ललए इशा की नमाज़ के बाद बावज़ू सात मततबा सूरह यासीन शरीफ़ (प २२) पढ़ें । एक मततबा सूरह पूरी
पढ़ने के बाद अपने मक़्सद में काम्याबी या ज़रूरत के परू ा होने की दआ ु मांगें। किर दस ू री मततबा सरू ह पढ़
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कर दआ ु मांगें इस तरह सात मततबा सूरह यासीन पढ़ कर सात ही मततबा दआ ु मांगें यानन हर मततबा पढ़
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काम्याबी हालसल होगी।
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हर कक़स्म के इम्तहान में काम्याबी के ललए:
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कर हर मततबा दआ ु मांगें। चंद ददन अमल करने की बरकत से इन शा अल्लाह तआला मक़्सद में
अगर कोई स्ट्कूल, कॉलेि या यूननवलसतटी का ताललब इल्म हो वो इम्तहान में काम्याबी के ललए हर नमाज़
के बाद बावज़ू १६ मततबा सूरह इख़्लास पढ़े और किर अल्लाह तआला से अपनी काम्याबी की दआ ु मांगे।
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इन शा अल्लाह तआला इम्तहान में ज़रूर काम्याबी होगी। ये अमल ककसी नोकरी या बाहर के मुल्क िाने के ललए इंटरव्यू के ललए भी कार आमद है ।
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ररश्तों की बिंहदश खोलना:
अगर ररकतों की बंददश लगा दी गयी हो और लड़का लड़की बूढ़े हो रहे हों िहाूँ बात लगती है इन्कार हो िाता है । अवल तो ररकते आते नहीं अगर आते हैं तो वापसी िवाब नहीं लमलता। ऐसी सरू त में सरू ह
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वत्तीन (प ३०) मुकम्मल रोज़ाना बावज़ू साठ मततबा बाद नमाज़ फ़ज्र पढ़ें । चालीस ददन अमल करें इन शा अल्लाह तआला चालीस ददन के अंदर अंदर काम हो िायेगा।
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हालर्दों के शर र्े हहफ़ाज़त: अगर हालसद शरारत करते हों, आवाज़ें कस्ट्ते हों, तरह तरह से सताते हों तो उन की शरारत को ख़त्म करने के ललए रोज़ाना बाद नमाज़ फ़ज्र और बाद नमाज़ मग़ररब बावज़ू इक्कीस इक्कीस मततबा सरू ह
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फ़लक़ और सूरह नास पढ़ कर उन के शर से दहफ़ाज़त की दआ ु करें । इन शा अल्लाह तआला शरारत करने
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वाले हालसद चंद ददन में शरारत से बाज़ आ िाएंगे और उन का अंिाम बुरा होगा। तूँब्य: ये अमल इंतहाई मज्बूरी में करें अगर ककसी को बबला विह नुक़्सान पोहं चाने के ललए करें गे तो
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र्फ़र बख़ैर व ख़ब य ी तय होना और वापर्ी बख़ैर व ख़ब य ी हो:
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ख़तरा है कक ख़द ु नुक़्सान में मुब्तला हो िाएंगे।
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अगर कोई शख़्स सफ़र के इरादे से कहीं क़रीब या दरू िा रहा है और चाहता है कक वो हर कक़स्ट्म के हादसे
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से महफ़ूज़ रहे और चोर िाकू लुटेरे उसे नुक़्सान ना पोहं चाएं उस का सफ़र आसानी और ख़ैर व ख़ब ू ी के
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साथ तय हो िाए और वो ख़ैररयत के साथ वापस घर आ िाए तो उस के ललए बावज़ू पांच मततबा आयतअल ्-कुसी पढ़ कर घर से बाहर क़दम ननकाले। इन शा अल्लाह तआला सफ़र के दौरान हर कक़स्ट्म के
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हादसे और नक़् ु सान से महफ़ूज़ रहे गा और ख़ैररयत से घर लोट आएगा।
दो बाहहलम नाराज़ आदलमयों में र्ल ु ह कराना:
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अगर दो शख़्स या दो भाई या बहन भाई आपस में नाराज़ हों और बात चीत ना करते हों तो एक अनार ले कर दाने ननकाल कर एक बततन में रख लें और बावज़ू सूरह ताररक़ (प ३०) पूरी सूरह छब्बीस मततबा पढ़ कर उन दानों पर दम कर के दोनों तरफ़ के आदलमयों को खखला दें । इन शा अल्लाह तआला फ़ौरन नाराज़गी ख़त्म हो िाएगी। Page 22 of 62 www.ubqari.org
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घर र्े लड़ाई झगड़ा ख़त्म करना: अगर घर के तमाम अफ़राद आपस में लड़ते झगड़ते रहते हों और घर में मह ु ब्बत व प्यार का माहोल
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ख़त्म हो चक ु ा हो तो उस के ललए अवल व आखख़र ग्यारह ग्यारह बार दरूद शरीफ़ पढ़ें और दरम्यान में ُ ُ ا "या वदद ग्यारह सो बार पढ़ कर गड़ ू "ु ()َی اود ْود ु या चीनी पर दम कर के रख लें। चीनी को शरबत या चाय में
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िाल कर सब घरवालों को वपला दें या गुड़ है तो उसे सब घरवालों को खखला दें या हल्वे में िाल कर खखला दें और थोड़ा सा गुड़ या चीनी आग में िला दें । इन शा अल्लाह तआला बहुत िल्द आपस में मुहब्बत पैदा
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हो िाएगी।
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मह ु ब्बत) के ललए: ु ब्बत ज़ौजैन (लमयािं बीवी में मह
अगर दोनों लमयां बीवी में ना इत्तफ़ाक़ी रहती है , आपस में हर वक़्त इख़्तलाफ़ पैदा होता रहता है तो उस
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के ललए दोनों लमयां बीवी का पुराना मुस्ट्तमल (पहना हुआ कपड़ा स्िस को धोया ना गया हो) कपड़े के ْ ْ ا ا ْاا ا टुकड़े ले लें और बावज़ू चालीस मततबा "या ज़ल्िलालल वल ्इक्रालम" (ام الک ار م )َیذااْلال مل و مपढ़ कर दोनों टुकड़ों
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पर दम कर दें । एक कोरा नया लमट्टी का गचराग़ ले कर उस में सरसों का तेल िाल कर उन दोनों कपड़ों को
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लमला कर बत्ती बना कर गचराग़ िलाएं। इन शा अल्लाह तआला दोनों में बहुत िल्द इख़्तलाफ़ात ख़त्म
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हो कर मह ु रत ब अमल है । ु ब्बत पैदा होगी, मि
पयरे या आधे र्र का ददस :
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अगर ककसी शख़्स के पूरे या आधे सर में ददत रहता हो तो उस के सर पर हाथ रख कर तीन बार या सात बार ये दआ ु पढ़ कर सर पर दम करें । अगर ग़ैर औरत है तो दरू से परदे के पीछे पढ़ कर उस औरत की तरफ़ मुंह कर के दम करें । अमल पढ़ने के दौरान औरत अपना हाथ सर पर रख ले। "बबस्स्ट्मल्लादह ख़ैरर-
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ल ्-अस्ट्मा-इ। बबस्स्ट्मल्लादह रस्ब्ब-ल ्-अस्ज़त वस्ट्समा-इ। बबस्स्ट्मल्लादह-ल्लज़ी इस्ट्मह ु ू बरकत-ंु व्व लशफ़ा-उन ्। बबस्स्ट्मल्लादह-ल्लज़ी बबयददही लशफ़ा-उन ्। बबस्स्ट्मल्लादह-ल्लज़ी ला यज़ुरुत मअस्स्ट्मही शैउन ् कफ़ल ्-अस्ज़त व ला कफ़स्ट्समा-इ व हुव-स्ट्समीउल ्-अलीम।ु
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ا ٓا ْ ْ اْا ا ی ْ ا ْ م ا یا ْ اْس ٗ ا اَبکا ٌۃ یاوش اف ٓ ٌءَ ب ْسم ہللام یاالذ ْی َ ایدہ ش اف ٓ ٌءَ ب ْسم ہللام یاالذ ْی الیا ُ یُ ا ُ ْ الس ام ٓ مءَ ب ْسم ہللام یالذ ْی ْ اْس ٖ ا َش ٌء مِف ْس مءَ مب ْس مم ہللام ر مب الرض و ْی ال ض امع م م م مٖ م م مب ْس مم ہللام خ م م م م م م م م م ْ ا ْ ا یا ا ٓ ا ُ ا یا َالس مم ْی ُع ال اعلم ْی ُم ال ْر مض اول مِف السم مء وھو
क़ज़स र्े जल्द ननजात के ललए:
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क़ज़त से िल्द ननिात हालसल करने के ललए ये दआ ु हुज़ूर अकरम हज़रत मुहम्मद मुस्ट्तफ़ा صلی ہللا علیہ وآلہ وسلمकी तालीम फ़मातई हुई है । इस दआ ु को हर नमाज़ के बाद एक सो बार रोज़ाना पढ़
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ललया करें । इन शा अल्लाह तआला िल्द ही सारा क़ज़त अदा हो िाएगा। अमल शतत है , वो दआ ु ये है:
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"अल्लाहुम्म-स्क्फ़नी बबहलाललक अन ् हरालमक व अस्नननी बबफ़स्ज़्लक अम्मन ् लसवाक। ا َ ی ُ یا ْ ْ ا ا ا ا ْ ا ا ا ا ا ْ ْ ا ْ ا ا یا ع ْن س او ا َاک اللھم اک مف مِن مِباللمک َع حراممک واغ ما مِن مَفض ملک م
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माओिं की परे शानी अब हुई बबल्कुल ख़त्म:
मोहतरम हज़रत हकीम साहब अस्ट्सलामु अलैकुम! अबक़री माशाअल्लाह बहुत अच्छा ररसाला है ,
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अल्लाह आप को इस का अिर दे और काम्याबी अता करे । हम आप सब के ललए हर वक़्त दआ ु गो रहते
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हैं। मैं पहली दफ़ा ककसी ररसाले में ललख रही हूूँ। मैं एक ऐसा तरीक़ा बताने लगी हूूँ स्िस से उन माओं को
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बहुत फ़ायदा होगा स्िन के बच्चे दध ू नहीं पीते। तरीक़ा ये है : सफ़ेद नतल ले कर उस में नतल से आधे
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वज़न के बराबर बादाम, कूज़ा लमस्री, सौंफ़ (भन ू कर) िाल दें और ब्लेंिर में िाल कर पीस लें और सब ु हव
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शाम एक एक चम्चा खखला दें । सफ़ेद नतल से कैस्ल्शयम की कमी दरू होती है िो कक हमें दध ू से हालसल होती है । (शीज़ा ताररक़, फ़ैसल आबाद)
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माहनामा अबक़री अगस्त 2015 शम ु ारा निंबर 110___________Page No 11
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नतब्बी मश्वरे जजस्मानी बीमाररयों का शाफ़ी इलाज
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(तवज्जह तलब अमयर के ललए पता ललखा हुआ जवाबी ललफ़ाफ़ा हमराह अरर्ाल करें और उर् पर मक ु म्मल पता वाज़ेह हो। जवाबी ललफ़ाफ़ा ना िालने की र्रय त में जवाब अरर्ाल नहीिं ककया जाएगा। ललखते हुए इज़ाफ़ी गोंद या टे प ना लगाएिं स्टे पलरज़ पपन इस्तेमाल ना करें । राज़दारी का ख़्याल रखा
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निंबर ख़त के आखख़र में ज़रूर तहरीर करें ।)
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जाएगा। र्फ़हे के एक तरफ़ ललखें। नाम और शहर का नाम या मक ु म्मल पता और अपना मोबाइल फ़ॉन
मेरे मज़स पर ग़ौर फ़मासए:ूँ बन्दा अपने मज़त से बहुत परे शां है स्िस की विह से पढ़ाई में भी नुक़्सान से
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बचने के ललए मेरी आप से गज़ ु ाररश है कक मेरे मज़त पर ज़रा ग़ौर फ़मातएूँ। मेरी कमर और घट ु नों में अक्सर ददत रहता है , दरअसल में गुज़कता एक दो साल से बहुत बड़ी ग़लती करता रहा स्िस ग़लती के नुक़्सान
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और गुनाह का पता नहीं था ये तो अल्लाह का करम है कक मेरे हाथ में आप का ररसाला आ गया स्िस की
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विह से मुझे काफ़ी हद्द तक फ़ायदा हुआ लेककन अब दित ज़ेल चीज़ें महसूस करता हूूँ। सर और कमर में
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को ददत रहता है । (पोशीदह, नवाब शाह)
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ददत , आूँखों में रात को ददत होता है । तीन हफ़्तों में मैं ने आज़माया कक एक हफ़्ता सही गुज़रता है बाक़ी रात
जवाब: िो गग़ज़ाएूँ बता रहे हैं वही गग़ज़ाएूँ मस्ट् ु तक़ल इस्ट्तेमाल करें बाक़ी बतौर इलाि, िवाररश शाही,
ख़मीरा गाओज़बान सादह, िवाररश कमोनी ककसी अच्छे दवा ख़ाने की ले कर और ऊपर ललखी हुई
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तरकीब के मत ु ाबबक़ इस्ट्तेमाल करें दो माह मस्ट् ु तक़ल करें ।
जज़न्दगी अज़ाब हो गयी: मेरी उम्र १४ साल है सात साल क़ब्ल मझ ु े टाइफ़ाइि हुआ था स्िस के बाद स्ज़न्दगी अज़ाब हो गयी है , मुसल्सल इलाि और दवाओं पर िी रही हूूँ। कुछ ददन ठीक रहती हूूँ किर वही
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हालत हो िाती है । एफ़ ए के बाद तालीम को भी ख़ैर बाद कहना पड़ा, इस तरह तमाम मंसूबे धरे के धरे रह गए। मेरा ददल कम्ज़ोर हो गया है कोई बात बदातकत नहीं कर सकती, हाथ पाऊूँ ठन्िे बफ़त की तरह रहते हैं और बे तहाशा पसीना आता है । ददल धड़कता है सर चकराता है सारा स्िस्ट्म बे िान हो िाता है । चलने
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किरने से टांगों में शदीद ददत महसूस होता है । ठं िी चीज़ खाने से स्िस्ट्म ददत करता है और गरम चीज़ खाने से ददल धड़कने लगता है । पेशाब की ज़्यादती, मुंह सूखा, पानी कड़वा लगता है , नाख़न ु पीले हैं। (आइशा, कराची)
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जवाब: सफ़ूफ़ तबाशीर ककसी भी अच्छे क़ाबबल एतमाद तबीब से ख़रीद लें। ददन में तीन बार आधा चाय का चम्मच गग़ज़ा से एक घंटा पहले पानी से िांक लें। गग़ज़ा में कद्दू का इस्ट्तेमाल ज़्यादा करें । आराम करें ,
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गमी या धप ू से बचें २१ ददन के बाद अपनी कैकफ़य्यत दब ु ारह ललखें।
बबासद जवानी: मेरी उम्र २२ साल है ग़ैर शादी शुदह हूूँ ग़लत सोसाइटी की विह से िवानी बबातद कर ली।
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अब शादी नज़्दीक है , दो साल से बुरे काम छोड़ ददए हैं लेककन सेहत और िवानी वापस नहीं आई। गग़ज़ा
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िुज़्व बदन नहीं बनती, कमर और टांगों में ददत होता है । कोई अच्छा सा इलाि बताएं। (बबलाल, क़सूर)
होगी और अपने वक़्त पर िवानी भी आएगी।
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जवाब: अच्छी उम्दह मुतवाज़ुन गग़ज़ा खाएं। खेल कूद में दहस्ट्सा लें , ग़म व कफ़क्र से दरू रहें । सेहत बहाल
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मर्ला नहीिं बता र्कती: बच्पन में कुछ ग़लत दोस्ट्तों की सह ु बत की विह से बरु ी आदत में िूँस गयी थी,
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िवानी की दे हलीज़ पर क़दम रखते ही मैं अपनी वो आदात ख़त्म कर चक ु ी हूूँ लेककन उस ग़लत आदत की
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विह से मैं बीमारी में मब्ु तला हो गयी हूूँ। बार बार ग़स्ट् ु ल करना पड़ता है स्िस से काफ़ी शलमिंदगी होती है
मैं ये मसला ककसी को बता भी नहीं सकती लेककन बहुत परे शान हूूँ। (ग़,श)
जवाब: अस्ट्ली मूस्ट्ली सफ़ेद, मूस्ट्ली स्ट्याह हम्वज़न, इन दोनों के वज़न के बराबर िूल मखाने किर इन
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तीनों दवाओं के बराबर चीनी कूट कर बारीक सफ़ूफ़ बना लें , आधा चम्मच ये सफ़ूफ़ नीम गरम दध ू के साथ सुबह व शाम िांक लें। इक्कीस ददन के बाद दब ु ारह हाल ललखें , परे शानी की कोई बात नहीं। शादी भी नज़्दीक है : मेरा क़द ५ फ़ुट नो इंच और उम्र २३ साल है । मेरी स्िसामत बहुत पतली है , ख़स ु ूसं
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मेरी कलाइयां बहुत कम्ज़ोर हैं। मैं सात साल से वेस्ल्िंग का काम करता हूूँ, इस काम में अच्छी ख़ासी वस्ज़तश भी हो िाती है । मेरी ख़ोराक भी ठीक है , भक ू लगती है और कोई बीमारी भी नहीं है मगर हर हफ़्ते
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बाद मुझ से ग़लत हरकत हो िाती है । मैं चाहता हूूँ कक ककसी तरह मुझसे ये हरकत छूट िाये क्योंकक मेरी शादी भी नज़्दीक है । (यूसुफ़, रावलवपंिी) जवाब: इस का आसान हल शादी है , शादी के बाद इन शा अल्लाह आप की स्िस्ट्मानी हालत ठीक हो
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िायेगी।
थोड़ा र्ा जजस्म बनाओ: मेरी उम्र तक़रीबन २४ साल है , बक़ोल वाललदा मोहतरमा के िब में २२ ददन का
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था तो मैं ने दध ू पीना छोड़ ददया, बाद में बाज़ारी दध ू भी ठीक तरह से नहीं वपया। बच्पन में पेट से कीड़े भी काफ़ी लमक़दार में ननकले हैं ताहम अब पेशाब टे स्ट्ट करवाया, िॉक्टर ने कहा अब पेट में कीड़े नहीं हैं।
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उस वक़्त से अब तक मैं काफ़ी ज़्यादा कम्ज़ोर हूूँ, खाया हुआ ठीक तरह हज़म नहीं होता। मेदा, स्िगर
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ठीक नहीं रहता, ख़न ू की कमी है , गैस और क़ब्ज़ की लशकायत रहती है , चेहरा भी काफ़ी पतला है, स्िस्ट्म
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के िूलने और मोटा होने का कोई अच्छा सा नुस्ट्ख़ा ललख दें , घरवाले मंगनी का सोच रहे हैं, कहते हैं थोड़ा
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सा स्िस्ट्म बनाओ। (रे हान, ओकाड़ा)
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जवाब: उम्दह अस्ट्ली िवाररश िालीनोस तीन ग्राम सुबह, दोपेहेर, रात को गग़ज़ा के बाद खाएं। सफ़ूफ़
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नमक सल ु ेमानी सोते वक़्त पानी से िांक लें। इस की लमक़दार ख़ोराक तबीब से मालम ू करें , स्िन से आप
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ये ख़रीदें गे, गग़ज़ा में बादाम, ककस्कमश, शहद ख़ाललस नाकते में लें , पराठे से परहे ज़ करें अल्बत्ता गरम
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रोटी पर ख़ाललस दे सी घी िाल कर खा सकते हैं। बकरे का गोकत रोटी सेहत बनाने के ललए उम्दह गग़ज़ा है , दे सी घी में भून कर खाएं। रोटी भी खाएं, मीठे अंगूर, आम बहुत मुफ़ीद हैं। वाललद के ललए मश्वरा: मैं अपने वाललद के बारे में मकवरा चाहता हूूँ। उन की उम्र तक़रीबन ४५ साल है ,
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मोत्या का ऑपरे शन हुआ था स्िस में उन की आूँखों में लेंज़ िाल ददए गए। ऑपरे शन से पहले उन की आूँखों से बहुत कम पानी बेहता था लेककन अब उन की आूँखों से पानी बहुत ज़्यादा बेहता रहता है । उन्हों
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ने बहुत से टोटके इस्ट्तेमाल ककये हैं लेककन फ़ायदा नहीं हो रहा। स्िस्ट्मानी सेहत भी बहुत कम्ज़ोर हो रही है । (वक़ास, कराची)
जवाब: ख़मीरा गाओज़बान सादह छे ग्राम सब ु ह व शाम खाएं। अस्ट्ली उम्दह अक़त गल ु ाब से आनतशा आूँखों में िालें। नज़र का काम अभी ना करें और आराम ज़्यादा करें । Page 27 of 62 www.ubqari.org
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मोशन: मेरी उम्र १८ साल है , मेरा मसला ये है कक िल्द ही मोशन लग िाते हैं। गज़ ु कता साल अगस्ट्त तक मेरा पेट ख़ासा बेह्तर था किर अचानक ख़राब हो गया और तब से ले कर अब तक इस साल अगस्ट्त तक यही मसला है कक वक़्फ़ा वक़्फ़ा से मोशन आते हैं। वपछले दो माह से कम्ज़ोरी इतनी बढ़ गयी है कक टांगों
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से िान ननकल गयी है । ददल की धड़कन तेज़ हो गयी, इस के इलावा मुझे गैस की लशकायत भी है । (अ,अ, इस्ट्लाम आबाद)
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जवाब: आप को ये दे खना चादहए कक खाने में क्या बे एहत्याती हो िाती है स्िस की विह से आप को मोशन लग िाते हैं। आप अबक़री दवा ख़ाना की पेगचश लशफ़ा दवा इस्ट्तेमाल करें इन शा अल्लाह इस से
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आप को इस मज़त से बहुत िल्द फ़ायदा होगा।
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माहनामा अबक़री अगस्त 2015 शुमारा निंबर 110__________Page No.14
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उज्ली, रोशन और ख़ब य र्रय त आूँखें! आप की भी हो र्कती हैं (आूँखों की हहफ़ाज़त और दे ख भाल में पहली बात उन के आराम का ख़्याल रखना चाहहए। आूँखों को आराम पयरी नीिंद होने र्े हालर्ल होता है जजर् तरह र्ोने र्े जजस्म के दर् य रे एअज़ा आराम हालर्ल करते हैं
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और उन की तवानाई बहाल हो जाती है इर्ी तरह र्ोने र्े आूँखों को आराम व र्ुकयन लमलता है ।)
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(शैख़ अब्दल ु हमीद आबबद, कामयनके)
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एक ननहायत छोटे कैमरे का तसव्वुर करें िो बफ़त के एक छोटे टुकड़े से ज़्यादा नहीं मगर इस क़दर मज़्बूत है कक ये ता हयात आप का साथ दे सकता है । िब आप इस कैमरे से तस्ट्वीरें खेंचने के ललए तय्यार हों तो
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इस बात की कफ़क्र ना करें कक आप इस कैमरे के ललए मेमोरी काित ख़रीदना भल ू गए हैं या उस की बेरी लो
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हो िायेगी, क्योंकक इस कैमरे में ना ख़त्म होने वाला मेमोरी काित मौिूद है । ये कैमरा रं गीन तसावीर
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उतारता है और अरबों तसावीर उतार सकता है । ये कैमरा लसफ़त सात तस्ट्वीर ही नहीं खेंचता बस्ल्क
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मुतहरक तस्ट्वीरें भी उतारता है , इस से एक घंटे में ३६ हज़ार तस्ट्वीरें खेंची िा सकती हैं। हर चंद कक आप
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को नामस्ु म्कन अमल मालम ू हो मगर ये हक़ीक़त है । ये कैमरा आप की आूँख है , आूँखें अल्लाह की इंसान
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को अता करदह नेअमतों में से चेहरे बस्ल्क पूरे स्िस्ट्म का सब से है रत अंगेज़ दहस्ट्सा हैं। ये अगरचे सख़्त
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गचकनाई से बनी हुई हैं लेककन इन का बुन्यादी काम दे खना है , दे खने के इलावा इन का एक और काम भी है इस पर अक्सर लोग ग़ोर नहीं करते और वो है तासुरात का इज़्हार। आूँखें तासुरात को बहुत बेह्तर तरीक़े से मुंतक़ल करती हैं मसलन ख़श ु ी, ख़ौफ़, अफ़्सोस, मायूसी और उम्मीद का इज़्हार, आूँखों से ही
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होता है । रौशनी िब आूँखों पर पड़ती है तो ये मेहराब और दरीचे यानन क़रीने के रास्ट्ते अंदर िाती है । क़रीना एक शफ़्फ़ाफ़ शै है िो आूँख के ढे ले के सामने इसी तरह आवेज़ां है िैसे कलाई की घड़ी के सामने शीशा होता है । क़रीने के अक़ब ् में ख़द ु कार मत ु हरक पदात आटोस है । आूँखों के ढे लों का ये परू ा ननज़ाम
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दरीचे, परदे , अदसे छे छोटे फ़ीते की शकल के अज़्लात की वरद से हरकत में रहता है । इस के तुफ़ैल आप की नज़र बबल्कुल उस मक़ाम पर पड़ती है िहाूँ आप चाहते हैं। आप ने अक्सर बीनाई से महरूम लोगों को कहते सुना होगा "आूँखें रखने वालो आूँखें बड़ी नेअमत हैं" ये सो फ़ीसद सही है , बअज़ नेअमतें वाक़ई बहुत
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क़ीमती होती हैं ललहाज़ा इन की दहफ़ाज़त क़ीमती चीज़ों ही की तरह होनी चादहए। आूँखों की दहफ़ाज़त क़ीमती चीज़ों ही की तरह होनी चादहए। आूँखों की दहफ़ाज़त और दे ख भाल में पहली बात इन के आराम का ख़्याल रखना चादहए। आूँखों को आराम परू ी नींद होने से हालसल होता है स्िस तरह सोने से स्िस्ट्म के
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दस ू रे एअज़ा आराम हालसल करते हैं और उन की तवानाई बहाल हो िाती है इसी तरह सोने से आूँखों को आराम व सक ु ू न लमलता है । उन की थकन दरू होती है । दस ू रा तरीक़ा वही है िो दीगर एअज़ा की दहफ़ाज़त और इलाि के ललए ककया िाता है यानन मुतवाज़ुन गग़ज़ा में मछली, कलेिी, अंिा, दही, िल, पत्तों वाली
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सस्ब्ज़याूँ और ऐसी तमाम अकया शालमल हैं स्िन में ववटालमन ऐ शालमल हो। ये तमाम अकया आूँखों की
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दहफ़ाज़त में मुआवन साबबत हुई हैं और उन की ख़ब ू सूरती बरक़रार रखती हैं। आूँखों की थकन और स्ट्याह हल्क़े दरू करने के ललए खीरे को गोल काट कर उस के क़त्ले आूँखों पर रखें। रूई के छोटे छोटे गोले दध ू में
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लभगो कर दस लमनट के ललए किि में रख कर ठन्िे कर लें और किर आूँखों पर पांच से सात लमनट तक
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रखें इस से आूँखों के अतराफ़ की स्िल्द को सुकून लमलता है । आूँखों को सेहतमंद रखने के ललए उन की
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वस्ज़तश भी ज़रूरी है अगर लसफ़त दो तीन तरीक़ों से ही वस्ज़तश कर ली िाए तो आूँखों की सेहत पर बहुत
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अच्छा असर पड़ेगा। ये वस्ज़तशें बहुत आसान हैं। मसलन सर को िुंबबश ददए बग़ैर आूँखों को गोल गोल
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घम ु ाएं। ये अमल एक वक़्त में दो तीन लमनट से ज़्यादा ना करें । किर ददन के ककसी और वक़्त में इसे
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दहु रा सकते हैं। दस ू रा तरीक़ा ये है कक पहले एक नुक्ते पर नज़रें िमा कर दे खें और किर सर को दहलाए
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बग़ैर फ़ौरन ही दस ू रे नक् ु ते पर नज़र िमा लें। इस अमल को दो तीन लमनट से ज़्यादा ना करें और ददन में कम अज़ कम तीन बार दोहराएं। तीसरी वस्ज़तश पहली दो वस्ज़तशों से भी आसान है। ककसी िगा िहाूँ पर ताज़ह हवा हो, सुबह के वक़्त गहरी गहरी साूँसें ली िाएं ता कक स्िस्ट्म में ऑक्सीिन की कमी पूरी हो
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सके। ऑक्सीिन की कमी से िहाूँ हमारे स्िस्ट्म की सेहत ग़ैर मुअतदल हो िाती है वहां आूँखें भी मुतालसर होती हैं। ये बुझी बुझी सी लगती हैं िो कम्ज़ोरी की अकासी करती हैं लेककन अगर स्िस्ट्म को परू ी ऑक्सीिन लमले तो मज्मई ू सेहत की बहाली के साथ आूँखों में सेहतमंदी की चमक दमक और
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तवानाई की झलक भी नज़र आएगी और यही अलामतें आूँखों को ख़ब ू सूरत बनाने में मुआवन साबबत होती है । आप इंसान के स्िस्ट्म के ककसी भी दहस्ट्से का तसव्वरु करें आप को यही नज़र आएगा कक हर िगा ननहायत ख़ब ू सूरत है , एक मोज़ूं साूँचा तय्यार ककया गया है स्िस का नाम इंसान है और स्िस के
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तमाम अनासर ननहायत चाबुकदस्स्ट्त से अपने अफ़आल अंिाम दे रहे हैं। यानन वुस्स्ट्त कान की मख़फ़ी हड्डियां, बालों के अंदरूनी दहस्ट्सों के मुख़्तललफ़ अफ़आल, एक छोटे ख़ललए की पुर इसरार अंदरूनी दन्ु या ये सब एक ननज़ाम का दहस्ट्सा हैं िो सब लमल कर बादहलम तौर पर काम कर रहे हैं स्िसे समझने से
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इंसानी ज़ेहन और दाननकवरों के ददमाग़ भी क़ालसर हैं। इस तमाम तफ़्सील से ये बात वाज़ेह हो िाती है कक ये सब कुछ हादसाती तौर पर नहीं हुआ बस्ल्क सन् ु ने वाला कान और दे खने वाली आूँख को ख़ाललक़ ने
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तककील व तख़्लीक़ ककया है और इंसान क़ाददर मुतल्लक़ की तख़्लीक़ का ननहायत आला नमूना है ।
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१२ हदन में हर जाइज़ मक़्र्द पयरा
मोहतरम हज़रत हकीम साहब अस्ट्सलामु अलैकुम! मैं अबक़री ररसाला बड़े शौक़ से पढ़ती हूूँ और इस में
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अमल नंबर १: "या बदीअल ्-अिाइबु बबल ्-ख़ैर या बदीउ"
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के ललए ललख रही हूूँ:-
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मौिूद वज़ाइफ़् व नुस्ट्ख़ा िात से भरपूर फ़ायदा उठाती हूूँ। मेरे पास दो आज़मूदह अमल हैं िो मैं क़ाररईन
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१२०० मततबा इशा की नमाज़ के बाद ककसी भी िाइज़ मक़्सद के ललए पढ़ें । बारह ददन तक और पढ़ कर सो िाएं। कोई मक़्सद भी हो बारह ददन में पूरा हो िाता है । मेरे अबू मक़ामी इंिस्ट्री में काम करते हैं २०११ में उन की नोकरी का कुछ मसला आ गया और सारे मल ु ाज़मीं तीन महीने तक हड़ताल में बैठ गए
और उस वक़्त अबू को तनख़्वाह भी बहुत कम लमलने लगी। किर मुझे ककसी ने ये वज़ीफ़ा बताया मैं ने
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दित बाला अमल यक़ीन व एतमाद से करना शुरू कर ददया, अमल पूरा होने से भी पहले अल्लाह रब्बुल ्इज़्ज़त ने इतना पैचीदह और बड़ा मसला हल कर ददया और उन लोगों ने हड़ताल ख़त्म कर दी। पूरे तीन
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महीने बाद, अगर ककसी से पीछा छुड़वाना हो तो भी ये अमल लािवाब है । अमल नंबर २: कोई नागगहानन मस ु ीबत आ िाए या कैसी भी परे शानी हो "हस्ट्बन ु ल्लाहु व ननअमल ्-वकील"ु ْ ُ ُ )ح ْس ُب اا ا (ہللا او مت ْع ام ال اوک م ْیل
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पढ़ना शुरू कर दें और हज़ारों की तअदाद में पढ़ते रहें िब तक आप को ये यक़ीन ना हो िाए कक मुस्ककल टल गयी है और यक़ीन करें वो मुस्ककल किर दब ु ारह आप के सामने कभी नहीं आएगी। थकन र्े ननजात: मुझे िब भी शदीद थकन का एह्सास होता है मैं अबक़री में ददया गया मुराक़बा करना
थकन ऐसे ग़ायब होती है िैसे कभी थी ही नहीं।
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(साअददया अज़ीज़)
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शरू ु कर दे ती हूूँ, अभी रौशनी का तसव्वरु करती हूूँ तो ऐसा महसस ू होता है कक िाद ू हो गया, ददत और
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माहनामा अबक़री अगस्त 2015 शुमारा निंबर 110___________Page No.18
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खाने के ललए जीना या जीने के ललए खाना बअज़ लोग लर्फ़स जीते ही खाने के ललए हैं और बअज़ लोग खाना लर्फ़स इर् ललए खाते हैं कक र्ाूँर्ों की जज़न्दगी रवािं दवािं रहे , याद रखें नतब का उर्यल र्ुबह का नाश्ता बादशाहों की तरह, दोपेहेर का खाना
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अयाल दारों की तरह और रात का खाना मुजफ़्लर्ों और ग़रीबों की तरह
(क़ाररईन! आप के ललए क़ीमती मोती चन ु कर लाता हयूँ और छुपाता नहीिं, आप भी र्ख़ी बनें और ज़रूर
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ललखें (एडिटर हकीम मुहम्मद ताररक़ महमयद मज्ज़यबी चग़ ु ताई))
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इंसानी तारीख़ बताती है कक क़ोमों की तक़दीरों का ननज़ाम हमेशा दस्ट्तरख़्वानों पर बना है । अब से पहले आप िॉक्टर के पास इलाि मआ ु ल्िे के ललए िाते थे तो हमारे सवाल पर कक िॉक्टर साहब क्या खाएं?
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िॉक्टर फ़ौरन कहता: सब कुछ खाओ, ये हकीमों ने ऐसे पाबंददयां लगा रखी हैं। आि वही िॉक्टर है स्िस
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की मेज़ पर गग़ज़ाओं का एक चाटत और केललन्िर पड़ा होता है और उस चाटत और केललन्िर के मत ु ाबबक़
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गग़ज़ाएूँ बताते हैं, ये ना खाओ इस में यूररक एलसि है , ये खाओ इस में एनिी है , ये खा लो, ये छोड़ दो।
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आि िॉक्टर ख़द ु स्ट्त ु भरपरू हकीम बन गया है । क्य? ूूँ बेवक़्त और ज़्यादा खाना इंसान को कभी भी तंदरु
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नहीं करता और इंसान बीमार होता है । नेपोल्यन बोनापाटत ने कहा था मैं ने क़ोमों को खा कर ज़्यादा मरते
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दे खा है भूक से कम मरते दे खा है । इस मुल्क के अज़ीम दाननकवर, हमददत , मुत्तक़ी, मुख़ललस ् और नेक
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मुआललि ् यानन हकीम सईद शहीद رحمت ہللا علیہस्क्लननक कर रहे थे एक मादहर तालीम उन के पास आये पूछा हकीम साहब ककस मज़त के मरीज़ हैं? मरीज़ों की लगी क़तार की तरफ़ इशारा कर के हकीम
साहब बोले ये, िो इन से पहले आये थे, वो िो इन के बाद आएंगे ये सब खाने के मरीज़ हैं। यानन ज़्यादा
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खाने से तरह तरह की बीमाररयों में मुब्तला हो गए हैं। बअज़ लोग लसफ़त िीते ही खाने के ललए हैं और बअज़ लोग खाना लसफ़त इस ललए खाते हैं कक साूँसों की स्ज़न्दगी रवां दवां रहे । याद रखें ! नतब का उसल ू सुबह का नाकता बादशाहों की तरह, दोपेहेर का खाना अयाल दारों की तरह और रात का खाना मुस्फ़्लसों
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और ग़रीबों की तरह। हाूँ रात का खाना खाना ज़रूर है पर मस्ु फ़्लसों और ग़रीबों की तरह और ये मस्ु फ़्लसों और ग़रीबों की तरह खाना इंसान को सदा सेहत मंद और िवान रखता है और ये सेहत मंदी और िवानी बाक़ी रहना बाक़ी रखना एक बहुत बड़ा कमाल है । आइये! मैं आप को स्ज़न्दगी की चंद लमसालें दे ता हूूँ स्िन्हों ने अपनी स्ज़न्दगी का लमशन लसफ़त खाना ही बनाया था और आखख़र में मेरी गुज़ाररश यही होगी Page 33 of 62 www.ubqari.org
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कक स्ज़न्दगी को खाने, चटख़ारे , चस्ट्का, ज़ाइक़ा और बार बी क्यू के नाम पर ज़ायअ ना करें । मेरे पास एक मेडिकल कॉलेि के वप्रंलसपल आये मौसूफ़ ररटायर बेह्तरीन स्ज़न्दगी गुज़ार रहे हैं प्रोफ़ेसर ऑफ़ मेडिलसन थे, मैं ने उन से पछ ू ा अपनी स्ज़न्दगी के तिब ु ातत में बीमाररयों की विह बता सकते हैं क्योंकक स्ितने
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मेडिकल कॉलेि अब हैं पहले नहीं थे, मेडिकल स्ट्टोर स्ितने अब हैं पहले नहीं थे, बीमाररयां और मरीज़ स्ितने अब हैं पहले नहीं थे। शायद मेरा सवाल अभी परू ा ही नहीं हुआ था बे साख़्ता बोले इस सब की विह दरअसल "बेकरी" है , हर वो चीज़ िो बेकरी से लमलती है वो आलूदगी, ज़हर, और बीमारी है । आि
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आप का मुल्क का क़ानून बन िाये िॉक्टर साहब अपनी ठं िी सांस लेते हुए बोले कक तमाम बेकररयां बंद
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और पूरे मुल्क में बेकरी का कोई सामान नहीं बनेगा िॉक्टर साहब दावे से कहने लगे कक नव्वे फ़ीसद बीमाररयां ख़त्म हो िाएूँगी। चंद लमसालें मुलादहज़ा फ़मातएूँ खाने की। गामा पेहल्वां की रोज़ाना ख़ोराक छे
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गैलन दध ू , तीन सेर ताज़ह मक्खन, दो बकरों का गोकत, बीस पाउं ि बादाम, िलों की तीन टोकररयाूँ
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महारािा पदटयाला दे ता था। उस वक़्त के गवनतर िनरल ख़्वािा नास्ज़मुद्दीन को दरख़्वास्ट्त दी कक मुझे
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ख़ोराक दी उन्हों ने गवनतर पंिाब को दरख़्वास्ट्त भेिी। उस वक़्त के गवनतर पंिाब सर िांलसस ने
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दरख़्वास्ट्त मुस्ट्तरद कर दी। ☆ ओकाड़ा के क़रीब एक शख़्स उन्नीस िोंगे सालन के खा िाता था। एक
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चोधरी साहब स्ितने ददन के ललए सफ़र पर िाते, कोई शख़्स उतने ददन का सब ु ह व शाम का खाना दे ता
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किर उस को बैठ कर खाता किर आगे चल्ता। ☆ एक शख़्स चख़ी यानन कूँु वें की खद ु ाई में बहुत सादहब
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कमाल था, बीस आदलमयों का खाना इकट्ठा परू े ददन में खा गया। किर वो कहता था कक मझ ु े ना छे ड़ें,
अकेला काम करता था। कूँु वें में से लमट्टी मनों के दहसाब से एक चख़ी में ननकलती थी और वो अकेला ये सब काम करता था। ☆ नवाब ऑफ़ बहावल्पुर का एक मज़ादहया मुलास्ज़म था स्िस का क़द छोटा था
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और उसे पुकारने में "लड्िू" कहते थे। एक मततबा नवाब साहब के सामने दस ् ककलो मीठे चावल खा गया। ☆ सरगोधा की तरफ़ एक साहब सो रोदटयां रोज़ाना खाता है वरना मिबूरी में बीस पच्चीस खा कर गज़ ु ारा कर लेता है । ☆ दीहात में शादी थी, उन्हों ने पंद्रह ककलो चावल तोल कर ददए कक शादी वाले घर दे
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आओ, वो रास्ट्ते ही में खा गया। बुन्यादी तौर पर ककसान था, चावल खाने के बाद खेतों में अपने काम में लग गया, िब वापस शाम को घर आया तो घरवालों ने कहा वो चावल कहाूँ हैं? कहा वो तो मैं ख़द ु सारे खा गया। ☆ मैं सेहरा में गया, रहीम यार ख़ान के क़रीब वहां एक साहब का तज़्क्रह सुना, दे खने वाले ने
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बताया कक ब्यालीस अंि,े बारह ककलो गोकत, पचास रोटी एक ननशस्ट्त में बैठ कर खाने की शतत थी, दस हज़ार रूपए इनाम था, वरना दस हज़ार दे ना था। वो शख़्स शतत िीत गया। वेसे वो शख़्स तीन चार ककलो दध ू आम पी िाता है । ☆ सेहरा में एक मख़ ु ललस ् ने वाक़्या सन ु ाया कक हम ने दहरन लशकार ककया, हम दो
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आदमी थे वो भी हमराह था, बारह पंद्रह ककलो का दहरन अकेला भून कर खा गया। मैं ने भी कुछ खाया। ☆ रमज़ान-उल-मब ु ारक में अफ़्तारी के मौकक़आ पर एक शख़्स ने रोज़ा अफ़्तार ककया। होटल वाला थक गया और आस्िज़ आ गया। चूँकू क बूफ़े लसस्ट्टम था, रोक नहीं सकता था। लेककन उसे वख़्त पड़ गया दस
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बारह बन्दों का खाना आसानी से खा गया। िब हाथों से खाते खाते थक िाता प्लेट से िायरे क्ट मुंह लगा
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कर खाना शुरू कर दे ता। ☆ वपशावर में एक साहब ककन्नू इस तरह खाते कक आधा ककन्नू तोड़ कर नछल्का समेत खा िाते, इस तरह मुस्ट्तक़ल बे शुमार ककन्नू खाते। एक दफ़ा च्यूंटी से बड़ा काला मकोड़ा
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वो उसे हटाते वो बार बार आता, आखख़रकार उसे ननवाले में रख कर खा गए। उस शख़्स को लोग सादह
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कहते थे। खाते हुए कहता कक बहन मेरी मरी है , और मुग़ी की टांगें कोई और खाए इतना बड़ा ज़ुल्म। मुग़ी
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की कोई टांग चाहे स्ितनी बेशम ु ार हों नहीं छोड़ता था और खा िाता था। ☆ एक और साहब हर कक़स्ट्म का
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खाना खाते हैं और खाते िाते हैं। अगर अच्छा ना लगे तो उस को क़ै कर के किर खाना शुरू कर दे ते हैं। ☆
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एक साहब कफ़नी यानन खीर की सारी दे ग चाट िाते हैं और बाईस नान भी साथ खाते हैं। ☆ वपशावर में
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एक लमयां साहब दावत में आये, ख़ब ू खाया पता चला कक फ़लां िगा खाना अच्छा है तो वो उल्टी कर के
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किर वहां चले गए। ☆ ग़ल्ला मंिी में और बाज़ारों में पल्लेदार (पांिी) यानन मज़्दरू बहुत खाते हैं, और
अक्सररयत बहुत ज़्यादा खाती है । ☆ एक अल्लाह वाले फ़मातने लगे बहुत बड़े दस्ट्तरख़्वान पर हमारे
दोस्ट्त ने बहुत खाया, इतना कक लोग है रान, उठते हुए ठं िी सांस भरी पूछा कक ख़ैररयत तो है ? कहा कक
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दख ु इस बात का है कक ये बच क्यूूँ गया?
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बीमारी, झगड़े, जाद य जजन्नात के ललए वज़ीफ़ा दरूद (जब उस्ताद ने दम ककया तो हाज़री हो गयी, थोड़ी दे र के बाद जजन्नात भाग गए। मरीज़ दम वाला पानी, तावीज़ और कुछ चीज़ें ले कर घर चले गए। दो हदन के बाद इतवार को र्ुबह के वक़्त लड़की पर कफर
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हाज़री हो गयी, आूँखें बाहर को ननकल आईं।)(आफ़्ताब अहमद उफ़स इर्रार अली)
मोहतरम हज़रत हकीम साहब अस्ट्सलामु अलैकुम! आप का ररसाला लािवाब और बे लमसाल है स्िस में
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दन्ु या के तमाम मसाइल का हल मौिूद है , आप की नज़रे करम से आि मैं क़ाररईन की खख़दमत में एक ऐसा अमल ले कर हास्ज़र हुआ हूूँ िो तमाम मुस्ककलों के ललए मुिरत ब है , तमाम बीमाररयां, लड़ाई झगड़े,
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िाद ू स्िन्नात के ललए एक एटम बम और लमज़ाइल से कम नहीं है स्िन हज़रात के बानतन की सफ़ाई हो
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िो कक हक़ीक़त पर मुबनन है । ये वज़ीफ़ा मुझ को मेरे उस्ट्ताद से लमला था।
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वो अन्वार तिस्ल्लयात और मश ु ादहदात भी दे खेंगे, इन शा अल्लाह। इस वज़ीफ़े का एक वाक़्या सन ु लें
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वाक़्या यूूँ हुआ कक एक ददन एक मरीज़ा स्िस को आसेब वग़ैरा था वो मेरे उस्ट्ताद से दम करवाने आई,
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िब उस्ट्ताद ने दम ककया तो हाज़री हो गयी, थोड़ी दे र के बाद स्िन्नात भाग गए। मरीज़ दम वाला पानी,
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तावीज़ और कुछ चीज़ें ले कर घर चले गए। दो ददन के बाद इतवार को सुबह के वक़्त लड़की पर किर
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हाज़री हो गयी, आूँखें बाहर को ननकल आईं, चेहरा पुर कलशश और नूरानी सा हो गया िब बाहर गयी तो
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गली में झगड़ा हो रहा था, पता नहीं क्या मुआम्ला था कक सब लड़के एक दम इधर उधर गगर गए। बाद में मोहल्ले में मशहूर हो गया कक इस लड़की में स्िन्न आता है , माएूँ इतवार को बच्चों को घरों से ना
ननकलने दे तीं, किर वो उस्ट्ताद के पास ले कर आये, काफ़ी अफ़राद थे। उस्ट्ताद ने पढ़ाई की तो स्िन्न
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हास्ज़र हो गया और बताया कक मेरा नाम यूसुफ़ है, मैं ईसाई हूूँ, उदत न शहर में हमारी हुकूमत है , मेरी वाललदा परू े मल् ु क (उदत न) पर हुकूमत करती है और बहुत कुछ बताया। चंद नस्ट् ु ख़ा वग़ैरा क़ुरआनी बाद में ललख कर ददए। तआरुफ़ के बाद उस्ट्ताद ने पूछा कक इस लड़की को छोड़ना है या नहीं? यूसुफ़ ने कहा कक
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नहीं मैं इस के बालों पर आलशक़ हूूँ, मक़ ु ाबला शरू ु हो गया, यस ू फ़ ु मक ु ालशफ़ा ईसाइयत पढ़ता था स्िस के पढ़ने से बड़े बड़े आलमलों के छक्के छूट िाते हैं मगर उस्ट्ताद सात या ग्यारह मततबा ये वज़ीफ़ा पढ़ कर उूँ गललयों पर दम कर के उस के माथे पर िेर दे ते। चालीस लमनट के बाद उस ने मुंह पर हाथ रख कर कहा कक हाकफ़ज़ साहब पढ़ाई बंद कर दो, उस्ट्ताद ने कहा कक बात मान लो मगर उस ने इन्कार कर ददया और Page 36 of 62 www.ubqari.org
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किर मुक़ाबला िारी हो गया। यूसुफ़ है रान हो गया कक मेरी सब से ताक़त्वर पढ़ाई इस के हाथ िेरने से ज़ायअ हो िाती है । दस लमनट बाद यूसुफ़ ने हार मान ली, मगर अंदर से िर गया और कहने लगा मेरी वाललदा मस ु ल्मान होने पर राज़ी नहीं है । मैं वाललदा की हुक्म अदल ू ी नहीं कर सकता हूूँ मगर मैं आइन्दा
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इस लड़की को तंग नहीं करूूँगा। किर लड़की पानी तावीज़ वग़ैरा ले कर चली गयी, दो महीने के बाद किर आना िाना शरू ु कर ददया। उस ने मवक्कलात से कहा कक सब को उठा लाओ। मवक्कलात ने पता कर के बताया कक वो तअदाद में हम से दग ु ने हैं। उस्ट्ताद के हुक्म से स्िन्नात व मवक्कलात ने ऐसी वदी पहनी
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स्िस से स्िन्नात, स्िन्नात की नज़र से ग़ायब हो िाते हैं, बाद में िा कर उदत न मुल्क के इदत गगदत बैठ गए
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और दो ददन के बाद काम्याबी के साथ वापस आये। किर उस्ट्ताद ने इस अमल की बदौलत तमाम
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अब अमल मुलादहज़ा फ़मातएूँ।
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स्िन्नात को वालसल िहन्नुम कर ददया। बाद में चंद ददन के बाद लड़की हमेशा के ललए तंदरु ु स्ट्त हो गयी।
सब से पहले अलैदहदह कमरे में बैठ कर अगरबत्ती वग़ैरा िलाएं। सरू ह फ़ानतहा, आयत-अल ्-कुसी, चारों
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क़ुल ् तीन तीन मततबा पढ़ कर दहसार बनाएं। किर वज़ीफ़ा ३३३३ मततबा पढ़ें । पढ़ने के दस, ग्यारह लमनट
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के बाद दहसार से ननकल आएं। कमरा अलग हो, िाए नमाज़ तस्ट्बीह और वक़्त मक़ ु रत र हो। सद ू वाले घर
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की चीज़ और खाना सख़्ती से मना है । हर कक़स्ट्म का गोकत भी चालीस ददन तक सख़्ती से मना है ।
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चालीस ददन के बाद रोज़ाना एक सो एक मततबा बाद नमाज़ इशा ववदत में रखें। ये अमल तब करें िब सब सो िाएं रात दस बिे के बाद घबराना नहीं है । इन शा अल्लाह आप ख़द ु दे खेंगे कक स्ज़न्दगी कैसे स्ज़ल्लतों से ननकल कर सुकून व आराम में बदल िाएगी। हर काम के ललए हस्ट्बे मंशा दम से या तावीज़ बना कर
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इस्ट्तेमाल में लाएं।:
सल्लल्लाहु अला हबीबबही सस्य्यददना मुहम्मददन ् व आललही व सस्ह्बही व सल्लम। یا
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َ ہللا ا ُ ) اصّل ْ لَع احب ْیب ٖ اس یید اَن ُم ا یمد اوا مل ٖ او ا (َص مب ٖ او اسل ام ٍ م م م م
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अल्लाह तबारक व तआला हम सब को इस वज़ीफ़े से फ़ैज़ हालसल करने की तौफ़ीक़ फ़मातए। आमीन!
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घरे लय मर्ाइल का इिंर्ाइकलो पेडिया
१- सुबह ३१३ बार इय्याक नअबुद ु व इय्याक नस्ट्तईनु ک تا ْع ُب ُد اوا یامَی ا )ا یامَی ا ُ ْ ک ن ا ْس ات مع (ْی
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इजम्तहान में फ़स्टस डिवीज़न के ललए
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२- रात को ३१३ बार "या मुसस्ब्बबल ्-अस्ट्बाब ् (बाद नमाज़ इशा)
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ا ُ ا ی ا ْا (ب ال ْس اب ْب )َیمس مب
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चूँकू क मैं ने वज़ीफ़ा नंबर दो को मेदरक में आज़्माया था और मैं मेदरक में बड़ी आसानी के साथ फ़स्ट्टत
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डिवीज़न में काम्याब हुआ था इस ललए मैं ने सोचा कक इस को दब ु ारह शरू ु करूूँ और कम अज़ कम बी एस
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हुस्न व जमाल हालर्ल करने के नायाब टोटके:
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करवाया और सब बड़े अच्छे नंबरों से काम्याब हुए)
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सी में नाकाम ना हूूँ। (और िो ताललब इल्म मेरे पास पढ़ते हैं मैं ने उन को भी यही वज़ीफ़ा इस्ट्तेमाल
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☆ दध ू की बालाई में थोड़ा सा शहद लमला कर चेहरे पर मस्ट्साि करें इस से चेहरा साफ़ और मुलायम हो िाता है । ☆ रात को सोने से क़ब्ल तीन लीमों के रस में ज़ाफ़रान की दो नतररयां हल करें और इस में एक चम्मच रोग़ने ज़ैतून लमला कर चेहरे पर मलें। ☆ पोदीने के पत्ते उबाल कर ठं िा कर लें रोज़ाना ननहार मुंह
इस का चौथाई कप वपएूँ। ☆ ताज़ह दध ू से मत ु वातर चंद ददन मंह ु धोने से रं गत ननखर आती है । ☆ एक
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अंिा तोड़ कर उस की ज़दी ककसी प्याले में अलग कर लें और उस में रोग़ने बादाम दो चाय के चम्मच, लीमों का अक़त एक चाय का चम्मच शालमल कर लें किर उन सब चीज़ों को अच्छी तरह िैंटें कक झाग बन
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िाए किर आदहस्ट्ता आदहस्ट्ता चेहरे पर मलें दस बारह लमनट तक चेहरे पर लगा रहने दें किर नीम गरम पानी से चेहरा धो लें , चेहरे के ललए बहुत मफ़ ु ीद है । ☆ ख़रबज़ ू े के बीि नछलकों के बग़ैर पानी में पीस कर लेप करें , बहुत फ़ायदा मंद हैं। ☆ ताज़ह दही चेहरे पर मलने से चेहरे की स्ट्याही दरू हो िाती है । ☆ सफ़ेद
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सरसों और नतलों को दध ू के साथ बारीक पीस कर रात को रोज़ाना चेहरे पर लगाएं। ☆ ख़कख़ाश बारीक पीस कर चेहरे पर मलें तो चेहरा ख़ब ू सूरत ननकल आता है । (बहवाला: स्िल्द नंबर ६)
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अबक़री की र्ाबबक़ा फ़ाइलों र्े मोती चन ु ें :
(घरे लू ना चाकक़यों, ररज़्क़ की तंगी, परे शाननयों से ननिात के ललए और सददयों से छुपे सदरी राज़ों और
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नतब्बी मालम ू ात से मक ु म्मल तौर पर इस्ट्तेफ़ादह के ललए अबक़री के गज़ ु कता सालों के तमाम ररसाला िात मस्िल्द दीदा ज़ेब फ़ाइल की सूरत में दस्ट्तयाब हैं। ये ररसाला िात आप की नस्ट्लों के ललए रूहानी,
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स्िस्ट्मानी, नफ़्स्ट्याती मुआललि ् साबबत होंगे।
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क़ीमत फ़ी स्िल्द ५००/- रूपए इलावा िाक ख़चत)
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क़ाररईन की ख़र् ु र् य ी और आज़मद य ह तहरीरे (क़ाररईन! आप भी बुख़ल ु शुकनी करें आप ने कोई रूहानी, जजस्मानी नुस्ख़ा, टोटका आज़्माया हो और उर् के फ़वाइद र्ामने आये हों या आप ने कोई है रत अिंगेज़ वाक़्या दे खा या र्ुना हो तो अबक़री के
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लर्फ़हात आप के ललए हाजज़र हैं, अपने मामयली र्े तजुबे को भी बेकार ना र्मखझये, ये दर् य रे के ललए मुजश्कल का हल र्ाबबत हो र्कता है और आप के ललए र्दक़ा जाररया। चाहे बे रब्त ही ललखें लर्फ़हात के
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आज़मयदह नतब्बी होश रबा नुस्ख़ा जात:
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एक तरफ़ ललखें , नोक पलक हम ख़द ु ही र्िंवार लेंगे।)
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मोहतरम हज़रत हकीम साहब अस्ट्सलामु अलैकुम! मेरे पास चंद नतब्बी नस्ट् ु ख़ा िात हैं िो कक तमाम के
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तमाम कई बार के आज़मूदह हैं। मैं ये तमाम नुस्ट्ख़ा िात क़ाररईन की नज़र करता हूूँ:-
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बढ़ा हुआ पेट कम करने का शानदार नुस्ख़ा: ये नुस्ट्ख़ा मुझे एक िलों के ख़वास वाले ररसाले से लमला था,
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बेरी की लाख एक ता िेढ़ माशा से ले कर छे माशा तक इस्ट्तेमाल करें , सब ु ह एक वक़्त अक़त मकोह पांच
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तोला और अक़त सौंफ़ पांच तोला के हमराह और परहे ज़ आलू, बड़ा गोकत, उबले हुए चावल, गचकनाई तली
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हुई अकया से। िल वग़ैरा खाएं, गंदम ु की ख़ाललस रोटी सब्ज़यात शोरबा वाला छोटा गोकत इस्ट्तेमाल करें । दो या तीन हफ़्तों के मुसल्सल इस्ट्तेमाल से बदन की चबी वपघल िाती है । मोटापा कम कर के बदन असली हालत में बहाल करने में ये नुस्ट्ख़ा अपना िवाब नहीं रखता। स्िन अफ़राद की तोंद ननकल िाती है वो ये नुस्ट्ख़ा इस्ट्तेमाल करें । सुबह सेर करें और रात खाने के बाद भी कम अज़ कम घंटा या दो घंटे
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लाज़मी पैदल वाक करें । बढ़ा हुआ पेट कम होना शुरू हो िाता है और इक्कीस ददनों में पेट अपनी तबई हालत में आ िाएगा। िाइदटंग करने की कोई ज़रूरत नहीं है हद्द दिात आसान नस्ट् ु ख़ा है ।
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रिं गत र्ख़ ु स व र्पीद करने के ललए: गलमतयों का मौसम चल रहा है, ननहार मंह ु आड़ू पका हुआ एक अदद खा लें, आधा घंटे बाद एक गगलास दध ू पी लें, एक महीने में रं गत ककमीरी सेब की तरह सुख़त व सपीद हो िाएगी कोई क्रीम वग़ैरा इस्ट्तेमाल करने की नोबत हरगगज़ ना आएगी, हर साल ऐसा ही करें । इस के
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इलावा चट ु की वपसी हुई कलौंिी खा कर आधा चम्मच ज़ैतून का रोग़न पी लें इस की भी यही तासीर है । रं गत सुख़ी माइल सफ़ेद हो िाएगी। माहवारी में बाक़ाइदगी के ललए: तुल्सी के बीि एक चम्चा छोटा एक गगलास पानी में उबालें और आधा
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गगलास रह िाए तो उतार कर ठं िा होने पर पी लें , माहवारी में बाक़ाइदगी पैदा हो िाएगी, दो माह ऐसा ददन में ककसी भी वक़्त कर सकते हैं।
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अकर्ीर मैदा: दार चीनी, छोटी इलाइची (दाना इलाइची होना चादहए), सूंठ हम्वज़न सफ़ूफ़ कर लें , खाना खाने से पहले सुबह दोपेहेर शाम दो चट ु की ताज़ह पानी से खाएं, किि का ठं िा पानी ना हो, ननज़ाम हज़म
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की ज़बरदस्ट्त इस्ट्लाह होती है और मैदा मज़्बूत हो िाता है । हर चीज़ खाया वपया हज़म हो कर बार बार
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भूक लगती है । ज़ाती आज़मूदह है ।
क़ुव्वत बाह के ललए नुस्ख़ा जात: हुवल-शाफ़ी: असगंदना गोरी ८ माशा लें , आधा ककलो दध ू में ख़ब ू उबालें
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िब दध ू िेढ़ पाव रह िाए लमस्री लमला कर पी लें। ददनों में चेहरा सख़ ु त कर दे ता है और क़ुव्वत बाह इस
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क़दर कक तबीअत पर क़ाबू पाना मुस्ककल हो िाता है । सुबह के वक़्त वपएं और िेढ़ माह तक इस्ट्तेमाल करें
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लेककन इस का नािाइज़ हरगगज़ इस्ट्तेमाल ना करें , असगंद आम बट ू ी है , पंिाब में वीरानों, दयातई इलाक़ों
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नहरों के ककनारे बकसरत पाई िाती है । इसे आक्सन बूटी भी कहते हैं।
क़ुव्वत बाह के ललए लाजवाब: बारहा का आज़मूदह, कभी ख़ता नहीं गया। पहले हफ़्ते में ही फ़ायदा
ज़ादहर कर दे ता है । हर कक़स्ट्म की खोई हुई ताक़त बहाल कर दे ता है । क़ुव्वत बाह के शाकी अफ़राद के ललए तोह्फ़ा ख़ास है । नुस्ट्ख़ा बड़े बड़े नुस्ट्ख़ों का मुक़ाबला करता है और चालीस रोज़ में िवान मदत बना
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दे ता है , ममस्ट्क में लािवाब है अज्ज़ा भी क़लील क़ीमत में पंसारी से लमल िाते हैं। तरकीब यूूँ है :- हुवलशाफ़ी: मूस्ट्ली सफ़ेद, सअलब लमस्री, तुख़्म रे हान तीनों हम्वज़न लें। मूस्ट्ली सफ़ेद और सअलब लमस्री
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अलग अलग पीस कर बक़्या तुख़्म रे हान वेसे ही सालम लमला दें , याद रहे तुख़्म रे हान नहीं पीसना। सुबह एक चम्चा यानन छे माशा सफ़ूफ़ ले कर दध ू आधा ककलो में िाल कर पकाएं, िब दध ू गाढ़ा हो िाए यानन िेढ़ पाव रह िाए उतार लें, लमस्री हस्ट्बे ज़ाइक़ा लमला कर नीम गरम पी लें।
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पाऊूँ की ख़ब य र्यरती के ललए: पाऊूँ की ख़ब ू सूरती के ललए गरम पानी में दो चम्चा अंगूरी या कोई भी लसरका िालें क़ाबबले बदातकत नीम गरम होने पर पाऊूँ १५ लमनट िुबोये रखें , पाऊूँ ख़कु क कर के किर ज़ैतून के तेल से माललश करें । पाऊूँ और एदढ़यां इस क़दर साफ़ हो िाएंगी गोया आप ज़मीन पर उतरे ही नहीं, हफ़्ते में
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एक या दो दफ़ा ये अमल दोहराएं। मुजश्कलात का आख़री हल:
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हाकफ़ज़ इब्न हिर رحمت ہللا علیہ, इमाम हाककम رحمت ہللا علیہ, इमाम अबू ज़कररया رحمت ہللا علیہ, इमाम इब्राहीम رحمت ہللا علیہऔर मज़ीद छे अइम्मा कराम رحمھم ہللاका आज़मूदह मुिरत ब अमल स्िस के बारे
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में हाकफ़ज़ इब्न हिर رحمت ہللا علیہफ़मातते हैं कक इस अमल की सनद ढूूँढने ना लग िाना बस्ल्क इस को
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पूरे यक़ीन से कर लो और मुस्ककल टलवा लो। मैं ने इस का तिुबात ककया तो सो फ़ीसद नफ़ा हालसल हुआ। तरीक़ा अमल: ककसी भी वक़्त बारह रकअत सलातुल ्-हाित एक ही सलाम की ननय्यत से शुरू कर के हर
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दो रकअत के बाद तशहद बेठना है , किर आख़री रकअत के तशहद में सलाम िेरने से पहले सिदे में गगर
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के सात मततबा सूरह फ़ानतहा, सात मततबा आयत-अल ्-कुसी, दस मततबा चौथा कल्मा और एक बार दित
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ज़ेल दआ ु पढ़ें :
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"अल्लाहुम्म इन्नी अस ्अलक ु बबमआकक़दद-ल ् इस्ज़्ज़ लमन ् अलशतक व मन् ु तह-रत ह्मनत लमन ् ककताबबक
वस्स्ट्मक-ल ् अअज़लम व िदद्दक-ल ् अअला व कललमानतक-त्ताम्मनत"
ْ ی ْ ا ْ ا ا ُ ْ ا ا یا ْ ا ْ ا ا ا ْ ا ْ ا ْ ا ا ا ی ا ْ ا ْ َ ا ا ا ا یا ا ا َی ا ی ا ا ُ ا (َالت یمۃم اْسک العظ مم وج مدک اللَع وَک مم تمک )الل ُھ یم ا ممِن ا ْسئلک مِبا اع مق مد ال مع مز مِم عر مشک وماَتی الرِح مۃ مِم کمت مَک و م
हनीफ़, क़सरू )
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इस के बाद अपनी दआ ु मांगें अपनी हाित बयान करें । किर सिदे से उठ कर सलाम िेर दें । (मुहम्मद
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भटका शौहर राह रास्त पर आ गया:
मोहतरम हज़रत हकीम साहब अस्ट्सलामु अलैकुम! मैं अरसा दो, तीन साल से अबक़री ररसाला पढ़ रही हूूँ और उस में शालमल वज़ाइफ़् से फ़ैज़याब होती हूूँ और मेरे बहुत से मुआम्लात में इस से बेह्तरी आई है , मैं ददल से आप की मककूर कक आप के ररसाले की विह से लोगों को घर बेठे अपने मसाइल का हल लमल Page 42 of 62 www.ubqari.org
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िाता है । अल्लाह आप को िज़ा ए ख़ैर दे । आमीन!। मेरी शादी को तक़रीबन १७ साल होने वाले हैं, आि से तक़रीबन तीन साल पहले मेरे शौहर की एक औरत से शनासाई हुई लेककन मैं बेख़बर रही और वो शनासाई नािाइज़ तअल्लुक़ात तक बढ़ गयी। तक़रीबन िेढ़ साल पहले मेरे शौहर ने ख़द ु ही अपनी
नोइय्यत कैसी थी और उन की इिाज़त से मैं ने
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ग़लती का एअत्राफ़ कर ललया और मुझ से मदद मांगी, मैं नहीं िानती थी कक उन के तअल्लुक़ात की
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अबक़री से तमाम मस्ु ककलात के हल के ललए वज़ीफ़ा "ला हौल व ला क़ुव्वत इल्ला बबल्लादह"
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ا ا ا ُ ا ا یا ()ل اح ْول اول ق یوۃ امل مِبّٰلل م
वाला कल्मा खल ु मांगती रही तक़रीबन एक साल के ु ा पढ़ना शरू ु कर ददया और अल्लाह से मदद की दआ
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अरसे के दौरान उस औरत से मेरे शौहर के तअल्लुक़ात कैसे रहे ये ना मालूम है , बक़ोल मेरे शौहर के मैं
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उस औरत से ननिात हालसल कर रहा हूूँ और तक़रीबन तीन माह पहले वो औरत ये शहर छोड़ कर और
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शौहर के इल्म में लाए बग़ैर रात के अूँधेरे में हमारी स्ज़न्दगी से दरू चली गयी, हमारी स्ज़न्दगी में सुकून
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आ गया और हमारी इज़्ज़त से उस औरत से िान छूट गयी, ये सब इस कल्मा की बदौलत और अल्लाह
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की मदद के बग़ैर नामुस्म्कन था। मोहतरम हज़रत हकीम साहब! मेरा नाम पोशीदह रखखयेगा। (पोशीदह)
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शग ु र ख़त्म करने के लाजवाब वज़ीफ़े और काम्याब नस् ु ख़े:
मोहतरम हकीम साहब अस्ट्सलामु अलैकुम! मेरे पास शग ु र ख़त्म करने के आज़मद ू ह नस्ट् ु ख़ा िात और वज़ाइफ़् हैं िो मैं अबक़री क़ाररईन की नज़र करता हूूँ। यक़ीनन क़ाररईन उन से भरपूर फ़ायदा उठाएंगे।
शग ु र ख़त्म करने का नस्ट् ु ख़ा नंबर १: अनार दाना एक पाव, संठ ू एक पाव, पोदीना एक पाव। इन तमाम
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अकया को कूट कर सफ़ूफ़ बना लें। ख़ोराक: एक चम्मच खाने के बाद सुबह, दोपेहेर, शाम, पानी के साथ इस्ट्तेमाल करें । नुस्ट्ख़ा नंबर २: कलौंिी २० ग्राम, कोड़तमा २० ग्राम, गोंद कीकर २० ग्राम, तुख़्म सरस २०
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ग्राम, तुख़्म िामुन २० ग्राम। इन तमाम अकया को कूट छान कर सफ़ूफ़ बना लें। ख़ोराक: सुबह व शाम आधा चम्मच पानी के साथ इस्ट्तेमाल करें । नुस्ट्ख़ा नंबर ३: "रूहानी िक्की" (ये िक्की दफ़्तर माहनामा अबक़री से लसफ़त २० रूपए में लमल िाती है ) चौथाई चम्मच ददन में तीन या चार बार ख़ाललस शहद के साथ इस्ट्तेमाल करें । नुस्ट्ख़ा नंबर ४: शहद ख़ाललस एक ककलो, कलौंिी २०० ग्राम, कलौंिी को पीस कर Page 43 of 62 www.ubqari.org
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शहद में लमक्स कर दें । ख़ोराक: एक चम्मच चाय वाला सुबह ननहार मुंह और शाम सोते वक़्त इस्ट्तेमाल करें । गलमतयों में एक चम्मच एक कप पानी में घोल कर इस्ट्तेमाल करें । हुज़ूर नबी करीम ﷺने इशातद फ़मातया: कलौंिी हर बीमारी का इलाि है , लसवाए मोत के (बुख़ारी व मुस्स्ट्लम) अबू नईम ने उम्मुल-
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मोअलमनीन हज़रत आइशा लसद्दीक़ा رضی ہللا عنہاसे ररवायत ककया है कक " हुज़ूर नबी अक्रम ﷺके नज़्दीक शहद बहुत प्यारा और अज़ीज़ था, हुज़ूर नबी अक्रम ﷺको शहद इस ललए ज़्यादा महबूब था
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कक अल्लाह तआला िल्ल शानुहू ने फ़मातया है कक "इस में लशफ़ा है "
शुगर र्े ननजात के वज़ीफ़ा जात: वज़ीफ़ा नंबर १: ख़तरनाक बीमारी में हज़रत अय्यूब علیہ السالمकी दआ ु
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िो अल्लाह ने क़ुबल ु ा पढ़ें । "रस्ब्ब इन्नी मस्ट्सननय-ज़्ज़रु ु त ू फ़मातई। आप भी हर बीमारी में इसे रोज़ाना खल
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ُ ا ی ی ْ ا یا ا ی ُ ی الض او اا ْت ا اا ْر اَحُ َ ی ِح ْ ا )ر مب ا ممِن مس مِن ( 38ْی )(التبی ء الر م م
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व अंत अहतमु-रातदहमीन (अल ्-अंबबया ८३)
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वज़ीफ़ा निंबर २: बाद नमाज़ इशा सूरह क़ुरै श एक सो ग्यारह बार पढ़ने से मूज़ी अमराज़, ददत गुरदा,
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फ़ाललि, शग ु र और बवासीर से ननिात लमल िाती है । वज़ीफ़ा नंबर ३: हर कक़स्ट्म की बीमाररयों और
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परे शाननयों के ललए सूरह फ़ानतहा पढ़ें क्योंकक हज़रत मुहम्मद मुस्ट्तफ़ा ﷺका फ़मातन आलीशान है । ये
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सूरह हर बीमारी से लशफ़ा है । (अल-हदीस) िब तक परे शानी या बीमारी ख़त्म ना हो िाये ये सूरह लशफ़ा
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बार बार रोज़ाना पढ़ें । वज़ीफ़ा नंबर ४: सब ु ह की सन् ु नतें और फ़ज्र की फ़ज़त नमाज़ के दरम्यान िो कोई ُ )َی ا َ ْ ہللا اَی ار اबीमार के लसरहाने खड़े हो कर पढ़े गा। शख़्स एक सो इक्कीस मततबा "या अल्लाहु या रह्मानु" (ِح ُن सात ददन में कैसा ही सख़्त मज़त हो मरीज़ तंदरु ु स्ट्त हो िाएगा। अगर मोत मुक़द्दर है तो ख़ात्मा बबल्ख़ैर
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होगा। मस्ु ककल िल्द आसान हो िाएगी। (ये अमल बज़ ु ग ु ों का मि ु रत ब है ) वज़ीफ़ा नंबर ५: हुज़रू नबी अक्रम ﷺने हज़रत अबू हुरैरा رضی ہللا عنہसे (िब वो बीमार थे) इशातद फ़मातया: उठो और नमाज़ पढ़ो
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क्योंकक नमाज़ में लशफ़ा है । (इब्न मािा)
मह ु ब्बतें बािंहटए, मह ु ब्बतें पाइए: मुहब्बत कैसा ख़ब ू सूरत लफ़्ज़ है, िो शब्नम से ज़्यादा पाकीज़ह मुअत्तर व मोअतबर एह्सास ललए हुए है , इस में बहुत ज़्यादा ताक़त है । ज़ादहरी तौर पर मह ु ब्बत करने वाला सब कुछ लट ु ाता है मगर हक़ीक़त Page 44 of 62 www.ubqari.org
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में वही सब कुछ पाता है । महबूब अच्छा हो तो अच्छाई पाता है , महबूब बुरा हो तो बुराई पाता है । मुहब्बत में क़ुव्वत िाज़्बा और क़ुव्वत परवाज़ दोनों यक्िा हैं हालांकक दोनों मुतज़ाद क़ुव्वतें हैं। याद रहे कक लोहे से ज़्यादा ताक़त आग में और आग से ज़्यादा ताक़त पानी में और पानी से ज़्यादा ताक़त हवा में और हवा
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से ज़्यादा ताक़त इख़्लास में और इख़्लास क्या है ? मुहब्बत की एक ख़ब ू सूरत अदा है । इस ललए सब से पहले और सब से ज़्यादा मह ु ब्बत अल्लाह तआला के साथ, किर उस से ज़्यादा मह ु ब्बत िान ए दो आलम शाहकार ए कायनात हुज़ूर नबी करीम ﷺके साथ और किर तमाम अंब्या علیہ السالم, अहले बैत
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)(رضوان ہللا علیہم اجمعین, सहाबा अक्राम ) (رضوان ہللا علیہم اجمعین, मलाइका के साथ, किर उन के साथ
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स्िन के साथ अल्लाह तआला ने हुक्म ददया और अल्लाह के महबब ू हुज़रू नबी करीम ﷺने हुक्म ददया है उस के बाद पक्का लॉक लगा दे ना है । मगर एक ज़ाललम ताला और भी है िो सच्ची मुहब्बत को ददल में
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दाखख़ल नहीं होने दे ता यानन "बे मुहब्बत ददल" (बंिर और शोर ज़मीनों िैसे) अल्लाह मेहरबान ही ये ताले
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खोल दे । ये क़फ़ल स्ज़क्र अल्लाह और कसरत दरूद और कसरत अस्ट्तग़फ़ार से खल ु ें गे। "अल्लाहुम्म-फ़्तह् ُ ُ ا َی ا ْ ا ْ ا ا अक़्फ़ाल क़ुलूबबना" ( )الل ُھ یم اف ات ْح اقف ل قل ْو مَ اا। मोअलमन की असल मुहब्बत रब्बुल ्-आलमीन के साथ है इस
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मुहब्बत में कोई शरीक नहीं होना चादहए। इस के बाद मोअलमन की असल मुहब्बत फ़ख़्र दो आलम ﷺ
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के साथ है । इस में मख़्लूक़ में से कोई भी शरीक नहीं होना चादहए। िैसी मुहब्बत हमें रसूल पाक ﷺसे
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हो ऐसी ककसी और से ना हो। ना माूँ से, ना बाप से, ना औलाद से, ना माल से, ना हकाम से, मह ु ब्बत ख़द ु
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एक ताक़त्वर चीज़ है । इस ललए मुहब्बत को ख़्वादहशात, शेहवात और वक़्ती मफ़ादात पर नहीं लगाना चादहए। इस ताक़त को हालसल कर के ऊंची परवाज़ और बड़ी मंस्ज़ल हालसल करना चादहए। लेला मिनंू
की मुहब्बत को दे खें सच्ची थी लेककन थी बेकार। किर भी ताक़त दे खें कक आि तक हर ज़बान पर
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तज़्करह है । एक बेकार मह ु ब्बत ने मिनूँू और लेला को यादगार बना ददया। बहुत दआ ु करनी चादहए कक
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हमारी मुहब्बत का रुख़ ककसी ग़लत तरफ़ ना हो िाए। (मास्ट्टर मुहम्मद अय्यूब शादहद, तोंसा शरीफ़)
आएिं टोटके आज़माएिं और फैलाएिं! मोहतरम हज़रत हकीम साहब अस्ट्सलामु अलैकुम! मैं अबक़री ररसाला बड़े शौक़ से पढ़ती हूूँ, हर माह इस अबक़री का बे चैनी से इंतज़ार रहता है । आप ने अबक़री टोटका सेक्शन के ललए अपने आज़मूदह टोटके Page 45 of 62 www.ubqari.org
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मांगे थे और टोटके भी ऐसे स्िन में उदय ू ात का इस्ट्तेमाल ना होता हो तो मेरे पास मेरा आज़मूदह एक टोटका गमी के बुख़ार के ललए है । अगर गमी का बुख़ार हो तो नाख़न ु ों पर "आक" का दध ू लगाएं, ददन में
(नाहीद कौसर)
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(इर् कारे ख़ैर में आप भी हहस्र्ा दार बनें )
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अबक़री में टोटका र्ेकशन का क़याम:
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चंद बार दो से तीन ददन ऐसा करने से बख़ ु ार उतर िाता है । ननहायत मि ु रत ब और आज़मद ू ह टोटका है ।
क़ाररईन! बअज़ औक़ात लाइलाि बीमाररयों में िहाूँ बड़ी बड़ी उदय ू ात और महं गे इलाि नाकाम हो िाते
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हैं वहां छोटे छोटे टोटके कार गर साबबत होते हैं स्िन्हें बज़ादहर कोई एहलमयत नहीं दी िाती तो क़ाररईन आप मुस्ट्तक़ल बड़े बूढ़ों के वो टोटके सुने या आज़माये हुए ज़रूर ललखें , अबक़री ने एक टोटका सेक्शन
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क़ाइम ककया है ता कक मख़्लूक़ की खख़दमत हो और इंसाननयत को नफ़ा पोहं च।े नोट: ऐसे टोटके भेिें
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स्िन में उदय ू ात का इस्ट्तेमाल ना हो और कहीं ऐसा ना हो कक टोटकों वाली ककताब उठा कर सारे टोटके
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ललख कर भेिें ऐसा हरगगज़ ना करें । लसफ़त आज़मूदह और सीने का राज़ टोटके ही भेिें।
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माहनामा अबक़री अगस्त 2015 शुमारा निंबर 110___________Page No.36
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ररश्तों की र्ाल्हा र्ाल परु ानी बिंहदश चिंद हदनों में ख़त्म (कफर हम बहनों ने एक अख़्बार में र्े दे ख कर र्यरह ययनुर् की आयत निंबर ८१ रोज़ाना एक हज़ार एक मतसबा पानी पर दम कर के पढ़ना शुरू कर दी और घर में नछड़कना शुरू ककया, ९० रोज़ तक। इर् दौरान
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भाई का एक जगा ररश्ता तय हो गया और उर् की शादी हो गयी।)
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मोहतरम हज़रत हकीम साहब अस्ट्सलामु अलैकुम! अल्लाह तआला आप को ख़श ु रखे और िज़ा ए ख़ैर दे , आप की विह से हमें अबक़री िैसा शानदार मैगज़ीन लमला। मेरी बड़ी बहन की शादी को तीन साल हो
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गए, शादी के लसफ़त पंद्रह ददन बाद दोनों लमयां बीवी के सर में शदीद ददत रहने लगा और मेरी बहन के तो कपड़े भी ख़द ु ऐसे कट िाते िैसे क़ैन्ची से कट लगाए हों। वो हर वक़्त बीमार रहने लगी। बहुत ु ब ख़द
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इलाि करवाया मगर मज़त बढ़ता गया िंू िंू दवा की वाला दहसाब हो रहा था। किर ककसी के कहने पर एक
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बुज़ुगत के पास गए तो उन्हों ने बताया कक आप दोनों लमयां बीवी पर ककसी ने बहुत सख़्त िाद ू ककया है ।
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उन्हों ने एक अमल बताया स्िस के करने से मेरी बहन पर ककया गया सख़्त तरीन िाद ू ख़त्म हो गया।
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वो अमल ये था कक रोज़ाना २१ दफ़ा मंस्ज़ल और एक मततबा सूरह बक़रह पढ़ो, वो पढ़ती थी तो सुकून
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लमलता था। शादी के नो माह बाद उम्मीद से हुई तो नो माह यही अमल पढ़ती रही तो अल्लाह पाक ने एक बेटी अता की। किर कुछ अरसा उस ने ये अमल करना छोड़ ददया तो हालसदों ने दब ु ारह िाद ू करवा ददया, माशा अल्लाह मेरी बहन आललमा है और शादी से पहले भी शरई पदात करती थी। िब बेटी नो माह
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की हुई तो उस को दब ु ारह डिप्रेशन हो गया हर एक को अपना दकु मन समझती थी, हर वक़्त रोते रहना, ख़द ु कुशी की कोलशश करना। हम उसे अपने घर ले आये और उस का काफ़ी िॉक्टरी इलाि भी करवाया, नफ़्स्ट्याती अमराज़ के स्ट्पेशललस्ट्ट िॉक्टरों को भी ददखाया मगर फ़क़त ना पड़ा। किर एक मततबा अबक़री में
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अफ़हलसब्तुम और अज़ान( )افحسبتم اور اذانका अमल पढ़ा। हम सब घरवालों ने रोज़ाना ये अमल हर दो घंटे के बाद ककया, लसफ़त तीन ददन अमल ककया तो वो ठीक हो गयी और अपने घर चली गयी। (ह-म-अ) ररश्तों की बिंहदश व जाद य ख़त्म:
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मोहतरम हज़रत हकीम साहब अस्ट्सलामु अलैकुम! हम अबक़री ररसाला वपछले तक़रीबन िेढ़ साल से मुसल्सल पढ़ रहे हैं। अल्हम्दलु लल्लाह! इस ररसाले से हमारे बहुत से नतब्बी व रूहानी मसाइल हल हो रहे हैं। हमने शरू ु ही से अपने घर में मसाइल ही मसाइल, झगड़े ही झगड़े दे खे हैं। मगर िब हमारा भाई बड़ा
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हुआ तो उस की शादी का मसला खड़ा हो गया, हम ने तक़रीबन पांच साल उस के ररकते की तलाश में लगाए मगर उस का अगर कहीं ररकता हो भी िाता तो मंगनी तक बात िाती इस के बाद कोई ना कोई रुकावट पड़ िाती है । हमने कहीं से पता करवाया तो हमें बताया गया कक आप के तमाम भाई बहनों पर
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शदीद कक़स्ट्म की बंददश और िाद ू ककया गया है । हत्ता कक हमारे तमाम बहन भाइयों में से ककसी का भी
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ररकता कहीं भी ना हो सका। इस दौरान बाक़ी बहन भाइयों के भी ररकते दे खे, एक बहन का ननकाह ककया तो सात ददन के अंदर ख़त्म हो गया। कहीं भी कोई बात ना बनी, अगर कोई ररकता हम बहनों या भाइयों
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में से ककसी का आता तो ऐसा ख़राब कक हमें सुन कर रोना आ िाता। किर हम बहनों ने एक अख़्बार में से
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दे ख कर सूरह यूनुस की आयत नंबर ८१ रोज़ाना एक हज़ार एक मततबा पानी पर दम कर के पढ़ना शुरू
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कर दी और घर में नछड़कना शरू ु ककया, ९० रोज़ तक। इस दौरान भाई का एक िगा ररकता तय हो गया
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और उस की शादी हो गयी और घर का माहोल भी बेह्तर होना शुरू हो गया। मोहतरम हकीम साहब मेरा
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नाम ना ललखखयेगा। (पोशीदह)
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(क़ाररईन! अबक़री में छपे या ककर्ी भी अमल, वज़ीफ़े के करने र्े आप को जाद य जजन्नात र्े छुटकारा लमला हो या आप पर ककया गया जाद य टयटा हो तो वो मुकम्मल अमल और उर् की मुकम्मल रूअदाद तफ़्र्ील के र्ाथ दफ़्तर माहनामा अबक़री में भेजजए। आप का ये अमल लाखों के ललए फ़ायदामिंद र्ाबबत
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होगा और आप के ललए र्दक़ा जाररया होगा।)
अब हर जाइज़ तमन्ना होगी पयरी (इन शा अल्लाह):
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मोहतरम हज़रत हकीम साहब अस्ट्सलामु अलैकुम! मैं क़ाररईन के ललए एक आज़मद ू ह वज़ीफ़ा ललख रही हूूँ। ये वज़ीफ़ा मैंने स्िस िाइज़ मक़्सद के ललए भी पढ़ा वो पूरा हुआ। अमल: फ़ज्र की दो सुन्नतों, ज़ुहर की दो सन् ु नतों और इशा की दो सन् ु नतों में छे सरू तें पढ़नी हैं। पहली रकअत में सरू ह काकफ़रून, सरू ह
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नसर, सूरह लहब और दस ू री रकअत में सूरह इख़्लास, सूरह फ़लक़, सूरह नास। स्िस िाइज़ मक़्सद के ललए भी पढ़ें इन शा अल्लाह वो पूरा होगा। ये वज़ीफ़ा करें और अपनी हर िाइज़ तमन्ना पूरी करवाएं और मझ ु े दआ ु ओं में ज़रूर याद रखें। (अ-स, चकवाल)
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कक़स्मत ख़ुद बनाइये
(इर् के इलावा आप के पार् वो क़ुव्वत है जजर् के ज़ररये आप अपनी मोजयदह हालत में भी तब्दीली ला
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र्कते हैं) (र्ोकफ़या, लाहौर)
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अगर आप मुस्ककलात के सामने अपनी कक़स्ट्मत का रोना हमेशा रोते रहते हैं तो आप को याद रखना चादहए कक आि अपनी स्ज़न्दगी में िो कुछ हैं उस के ललए ख़द ु सो फ़ीसद स्ज़म्मेदार हैं। आप ने अपनी
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कक़स्ट्मत को अपने हाथों से बनाया है । आप के माज़ी ने आप के ज़माना हाल को और ज़माना हाल आप के
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मुस्ट्तक़बबल को बनाएगा। आप ने माज़ी में िो कुछ ककया है , उस के िल को आप आि इस्ट्तेमाल कर रहे
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हैं। अगर आप अपने ज़माना हाल को मन ु ज़्ज़म अमल में रखने के ललए रहें तो मस्ट् ु तक़बबल अब आप के
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हाथ में है इस ललए आने वाली मुसीबतों को कभी ना कोसें बस्ल्क सच्चाइयों का हौसले से सामना करें ।
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अपनी स्ज़न्दगी के बारे में ख़द ु को स्ज़म्मेदार समझना चादहए और ये महसूस करना कक आप के ख़यालात, अल्फ़ाज़ और काम ही आप के मुस्ट्तक़बबल की बुन्याद हैं स्ज़न्दगी के बारे में आप के नुक्ता
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नज़र में एक एहम तब्दीली ला सकता है ।
इस के इलावा आप के पास वो क़ुव्वत है स्िस के ज़ररये आप अपनी मोिूदह हालत में भी तब्दीली ला सकते हैं आप को कक़स्ट्मत का ग़ल ु ाम बने रहने की ज़रूरत नहीं। मख़् ु तललफ़ मज़ादहमतों के खख़लाफ़
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मुसस्ब्बत ख़यालात, पुख़्ता फ़ैसले और क़ुव्वत इरादद से की गयी हक़ीक़ी कोलशशों के ज़ररये आप कक़स्ट्मत की क़ुव्वतों पर फ़तह पा सकते हैं। अगर आप अपने आप को ख़द ु ा के सामने ख़द ु सप ु द ु त कर दें तो कक़स्ट्मत के चक्कर से ख़द ु को आज़ाद करना और भी आसान हो िाता है क्योंकक तब आप को हर क़दम पर
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मलकूनत मदद हालसल होने लगेगी। इस तरह कक़स्ट्मत के चक्कर में , ख़रीदे हुए ग़ल ु ाम की तरह हमेशा चक्कर काटने रहना ज़रूरी नहीं। आप मैं इस चक्कर से बाहर ननकलने और इस के क़ाबू पाने में होने के बिाए इस को ही क़ाबू में करने की क़ुव्वत है । िैसे ही आप के शऊर की सतह ऊपर उठती है आप के ऊपर
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कक़स्ट्मत की ग्रफ़त ढीली होती िाती है । यही विह है कक रूहानी इल्म के हालमल अकख़ास को कक़स्ट्मत का ख़ौफ़ नहीं होता। वो एक सतह पर होते हैं िहाूँ दन्ु यावी चीज़ें और हालात उन्हें मुतालसर नहीं करते, बस्ल्क वो ख़द ु उन्हें मत ु ालसर करते हैं। कक़स्ट्मत के चक्कर को घम ु ाने वाला हैंिल उस के हाथों में होता है स्िस से
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वो ज़रूरी हालात को बदल सकते हैं। कक़स्ट्मत उन की खख़दमत गार होती है और वो उस के माललक। वो
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हमारी तरह कक़स्ट्मत के ग़ल ु ाम नहीं होते और ना ही कक़स्ट्मत उन की माललक होती है ।
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माहनामा अबक़री अगस्त 2015 शम ु ारा निंबर 110__________Page No .41
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उफ़् ! ये जज़न्दगी का ना पाइदार र्फ़र
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दाई इस्लाम हज़रत मौलाना मुहम्मद कलीम लर्द्दीक़ी ( دامت برکاتہمफलत) (हज़रत मौलाना دامت برکاتہمआलम ए इस्लाम के अज़ीम दाई हैं जजन के हाथ पर तक़रीबन ५ लाख र्े
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ज़ाइद अफ़राद इस्लाम क़ुबल य कर चक ु े हैं। उन की नाम्वर शहरा आफ़ाक़ ककताब "नर्ीम हहदायत के
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झोंके" पढ़ने के क़ाबबल है ।)
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गाड़ी में बेठे सागथयों से िो अचानक ककसी चीज़ के गाड़ी के सामने आ िाने के बाद लगाए ब्रेक के झटके
से बेदार हुए थे, ये हक़ीर एक एक कर के मालूम करने लगा आप कहाूँ िा रहे हैं? दो ने कहा: आप के साथ
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िा रहे हैं, मैंने पूछा कहाूँ? बोले सोनी पत ्, एक साहब स्िन को रास्ट्ते में उतरना था उन्हों ने उस मंस्ज़ल
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का नाम ललया। ये हक़ीर अपनी याद दहानन के तौर पर िो कुछ दे र से चली ज़ेहन की कसेट की विह से
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ददल व ददमाग़ पर सवार था, बोला क्या आप लोगों का क़ुरआन मिीद पर ईमान नहीं है ? क़ुरआन मिीद
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तो फ़मात रहा है : "बेशक हमारी ही तरफ़ इन का लौटना है किर हमारे ही पास इन का दहसाब है " (अल ्-
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ग़ालशयह: २४,२५) दे ल्ही से सोनी पत ् के कार के सफ़र में ज़रा से झटके ने िैसे इन नींद में मदहोश
सागथयों को बेदार कर ददया था, इस हक़ीर को ग़फ़लत की स्ज़न्दगी के सफ़र में अचानक इस झटके से इस तरफ़ तवज्िह हुई। सोनी पत ् शहर में बस्ट्ती के लोगों का मकवरा मतलब ू था, इस हक़ीर ने अपने एक
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स्ज़म्मेदार को फ़ॉन ककया, फ़लां फ़लां सादहबान को ज़रूर बुला लें , उन्हों ने उस में से दो सादहबान के बारे में बताया कक उन में से एक का इन्तेक़ाल दो साल क़ब्ल और एक का िेढ़ साल क़ब्ल हो गया है , अचानक िैसे ज़ेहन में एक झटका लगा हो, सोनी पत ् में इब्तदा में साथ दे ने वाले और तअल्लुक़ रखने वालों की
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ज़ेहन में फ़ेहररस्ट्त बनाने लगा, िो हमारी तरह स्ज़न्दगी के प्लान बनाते थे, और उन में से बहुत ख़ैर के कामों के भी ख़ाके बनाते थे। किर आस पास की बस्स्ट्तयों के उन लोगों से होते हर, ददल व ददमाग़ अपनी बस्ट्ती और अपने अज़ीज़ों, रफ़ीक़ों की तरफ़ मुन्तकक़ल होता गया िो हमारे साथ रहते थे और हो सकता है
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माहनामा अबक़री मैगज़ीन के अगस्त के एहम मज़ामीन हहिंदी ज़बान में
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कक हमारी ही तरह इस दन्ु या में लम्बी मुद्दत तक रहने की उम्मीद पर ख़ाके बनाते रहे हों मगर उन की स्ज़न्दगी का सफ़र ख़त्म हो गया, अचानक ऐसा लगा कक साथ रहने वाले अक्सर लोग इतने शफ़ीक़ और इनायत करने वाले बड़े, बबला इस्ट्तहक़ाक़ इनायत फ़मातने वाले ककतने अकाबरीन, अपनी दौलत, मनासब
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और शान पर फ़ख़्र करने वाले ककतने लोग, िो अपनी अपनी सतह से इस दन्ु या में एक वक़ार, शान और मक़बलू लयत और मक़ाम रखते थे, इस ज़मीन का दहस्ट्सा बन गए अब या उन की स्ज़न्दगी एक कक़स्ट्सा पारीना बन गयी या उन की यादें स्ज़न्दगी गुज़ारने का दहस्ट्सा हो गईं। नबी रहमत ﷺने कैसा होकयार
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फ़मातया है : "दन्ु या में ऐसे रहो िैसे मुसाकफ़र या रास्ट्ता पार करने वाला" उफ़् ! ऐसी ना पाइदार स्ज़न्दगी,
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और ख़्वाब की तरह ख़त्म होने वाली स्ज़न्दगी के सफ़र को आदमी ने सफ़र समझने के बिाए ऐसा दठकाना और मुस्ट्तक़र बना कर कैसी हमाक़त की है , ये दन्ु या की ना पाइदार स्ज़न्दगी स्िस में इंसान
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उतर िाता है ।
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चलती रे ल गाड़ी की तरह पैदा होने के बाद सवार हो िाता है और स्िस का गर आया, मोत के रास्ट्ते से
आधी सदी की हमारी मुख़्तसर स्ज़न्दगी में ककतने सवार बस्ल्क ककतने हमारे सामने सवार हो कर उतर
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कर चले गए, ककतने लोगों को अपने सामने उतरता चढ़ता दे ख कर और अपने हाथों ककतने िनाज़ों को
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नेहला कर, कफ़ना कर और दफ़ना कर, और नहलाते दफ़नाते दे ख कर और िनाज़ों में रोज़ रोज़ शरीक हो
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कर भी आदमी इस तरह स्िए िैसे वो इसी दन्ु या का मकीन है , कैसी हमाक़त है । और इंसान ग़फ़लत में स्ज़न्दगी के इस नापाइदार सफ़र में ना िाने कैसे कैसे तवील ख़्वाब दे खता है ख़श ु कक़स्ट्मत हैं वो लोग
स्िन को कोई अचानक ब्रेक का झटका बेदार कर दे ता है और वो स्ज़न्दगी के इस सफ़र को, सफ़र समझ कर बेदारी के साथ अपने हक़ीक़ी घर आखख़रत की तय्यारी के ललए गज़ ु ारने लगते हैं, यही लोग हैं िो
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होकयार हैं और यही लोग हैं स्िन की हयात लोगों के ललए मशअल राह और मीनारा ए नूर बन िाती है । िो हमेशा के घर आखख़रत की तय्यारी के ललए होकयार और दन्ु या के धोके के सफ़र की ना पाइदारी के ललए ख़बरदार रहता है ये इंसान की स्ज़न्दगी की चल ू ों की ठीक रखने की शाह कुलीद है , काश! हम उन
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ख़श ु कक़स्ट्मत होकयार समझदार लोगों में शालमल हों!!!
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अहले जन्नत की चार ननशाननयाूँ १- मस्ट् ु कराता चेहरा। २- नरम ज़बान। ३- रहम करने वाला ददल। ४- अता करने वाला हाथ।
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चार अूँधेरे चार चचराग़:गन ु ाह अूँधेरा है , तोबा अस्ट्तग़फ़ार इस का गचराग़। दन्ु या की मह ु ब्बत अूँधेरा, तक़्वा इस का गचराग़। क़ब्र अूँधेरा, कल्मा इस का गचराग़। पुल लसरात अूँधेरा, यक़ीन इस का गचराग़।
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हरमैन में नैककयों के पहाड़
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(माइदा बतयल, छनन स्याल मोड़)
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(तुम्हारा र्र का हलक़ कराना र्ो हर बाल के बदले एक नेकी और गुनाहों की मुआफ़ी है और तुम्हारा इर्
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के बाद तवाफ़ (ज़्यारत) करना इर् हाल में तवाफ़ करना होगा कक कोई गुनाह ना होगा)
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हज़रत अब्दल् ु लाह बबन उमर عنہما ہللا رضیकी ररवायत है कक आप ﷺमस्स्ट्िद लमना में तशरीफ़ फ़मात
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थे क़बीला सक़ीफ़ और अंसार में से दो शख़्स आप ﷺकी खख़दमत में आए और कहा ऐ अल्लाह के
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रसल ू ﷺहमें इन अमरू के बारे में बताइये (चन ु ाचे आप ﷺने ख़द ु उन के सवालों को िान ललया और
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फ़मातया तम ु अपने घर से बैतल् ु लाह ु इन सवालों के िवाब के ललए आए) आप ﷺने फ़मातया िब तम (हज्ि) के इरादे से ननकलो गे तो तुम्हारी ऊंटनी का क़दम स्ितना उठे गा और बैठेगा उस के बदले नेकी ललखी िाएगी और गुनाह मुआफ़ होंगे और तवाफ़ के बाद दो रकअत का सवाब ख़ानदान इस्ट्माइल के ग़ल ु ाम की आज़ादी के बराबर सवाब पाओगे और सफ़ा व मरवा की सई का सवाब सत्तर ग़ल ु ाम की
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आज़ादी के लमस्ट्ल पाओगे और तुम्हारे वक़ूफ़ अरफ़ा के वक़्त अल्लाह पाक आसमाने दन्ु या पर उतर आते हैं और तुम्हारी विह से फ़ररकतों पर फ़ख़्र फ़मातते हैं और कहते हैं दरू दराज़ की मसाफ़त तय कर के परागंदाह हाल मेरे बन्दे मेरे पास आए हैं मुझ से िन्नत की उम्मीद करते हुए पस अगर तुम्हारे गुनाह रे त
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की लमक़दार के बराबर, या बाररश के क़तरों की लमक़दार या समन् ु दर की झाग की मानंद (यानन इस क़दर कक शुमार से बाहर) तो उसे मुआफ़ कर दं ग ू ा। चलो कूच करो, मेरे बन्दे अरफ़ात से तुम बख़्शे बख़्शाए हो गए और उस की भी स्िस की तम ु शफ़ाअत करोगे और तम् ु हारा कंकरी मारना सो हर कंकरी िो तम ु
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मारोगे हलाक करने वाले बड़े बड़े गुनाहों का कफ़्फ़ारा है और तुम्हारा क़ुरबानी करना पस वो तुम्हारे रब के नज़्दीक सवाब का ज़ख़ीरा है और तुम्हारा सर का हलक़ कराना सो हर बाल के बदले एक नेकी और गुनाहों की मआ ु फ़ी है और तम् ु हारा इस के बाद तवाफ़ (ज़्यारत) करना इस हाल में तवाफ़ करना होगा कक कोई
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गुनाह ना होगा। फ़ररकते आएूँगे तुम्हारे दोनों कन्धों के दरम्यान हाथ रखेंगे िो चाहे आइन्दा अमल करो। गज़ ु कता गन ु ाहों की मआ ु फ़ी हो गयी।
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(तग़ीब व तहीब, ि२, स १७६, अल्क़ुरा स ३२, नतब्रानी कबीर, इब्न हब्बान)
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मक़बयल इबादात, फ़ज़ाइल, रूहानी नुस्ख़े और बहुत कुछ--- इर् ककताब में पढ़ें !
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"हरमैन में नैककयों के पहाड़"
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हज्ज पर जाने वाले अपने लम्हात को क़ीमती र्े क़ीमती बनाएिं और दर् य रों को भी ये अन्मोल तोह्फ़ा दें ।
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माहनामा अबक़री अगस्त 2015 शुमारा निंबर 110___________Page No. 43
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माहनामा अबक़री मैगज़ीन के अगस्त के एहम मज़ामीन हहिंदी ज़बान में
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अल्लामा र्ाहब के वज़ाइफ़् र्े मजु श्कलात का अज़ाला (इर् अमल को करने के ललए बहुत ज़रूरी है कक तर्व्वुर ककया जाए कक अल्लाह तआला हमें दे ख रहा है ऐर्ा महर्यर् होता है कक पयरी कायनात हालत र्ुकयन में है । हदल व हदमाग़ को बहुत र्ुकयन लमलता है ।
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आूँखें बिंद कर के हदल में ऐर्े दआ ु की जाए जैर्े हम अल्लाह रब्बुल ्-इज़्ज़त र्े हम कलाम हैं।) मोहतरम हज़रत हकीम साहब अस्ट्सलामु अलैकुम! अबक़री में क़ाररईन के ददल्चस्ट्प ख़तूत पढ़ कर मुझे
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भी ललखने का शौक़ पैदा हुआ कक मैं ककस तरह अबक़री के नुस्ट्ख़ा िात और वज़ाइफ़् से मुस्ट्तफ़ीद हुई। मोहतरम हज़रत हकीम साहब! मैं अबक़री ररसाले की २००९ से बाक़ाइदह क़ारी हूूँ। मैं ने अबक़री के
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तमाम साब्क़ा शुमारे संभाल कर रखे हुए हैं। अबक़री की क़ारी होने के साथ साथ मैंने इसे अपने तमाम अहल व अयाल, ररकतेदारों और लमलने वालों में भी मत ु आरुफ़ करवाया और अपने अबक़री शम ु ारे उन्हें
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पढ़ने को ददए इस तरह वो लोग भी मुस्ट्तक़ल अबक़री के क़ारी हो गए हैं। अबक़री मालूमात का वसीअ
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ख़ज़ाना है , हम घर बेठे अपनी स्िस्ट्मानी व रूहानी मसाइल दरू कर सकते हैं। अबक़री लमलने के बाद एक तअय्युन हो गया है कक हम ने कौन से आमाल करने हैं? स्ज़न्दगी के मामूलात कैसे गुज़ारने हैं, स्ज़न्दगी
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की मुस्ककलात, तक्लीफ़ों, परे शाननयों, बीमाररयों में कौन से आमाल करने हैं। मैं ने कई वज़ीफ़े और
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नुस्ट्ख़ा िात ख़द ु भी ककये उन से फ़ायदा हालसल ककया और अपने िान्ने वालों को भी करने को कहा। मैंने
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अबक़री में से कई आमाल, वज़ीफ़े, नुस्ट्ख़ा िात अपनी स्ज़न्दगी में शुरू ककये तो स्ज़न्दगी की परे शाननयां भी अल्लाह रब्बुल ्-इज़्ज़त ने आसानी से दरू फ़मात दीं। हमें कभी ककसी आलमल के पास िाने की ज़रूरत ही पेश नहीं आती अबक़री ख़द ु एक "आलमल" है , हमें सब आमाल करने हैं। अल्लाह रब्बुल ्-इज़्ज़त इस
कार ए ख़ैर में आप सब को इस का अिर इन शा अल्लाह दन्ु या व आखख़रत में ज़रूर दें गे। आमीन!
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मोहतरम हज़रत हकीम साहब, मोहतरम अल्लामा लाहूती पुरइसरारी साहब और आप इदारा के तमाम अफ़राद बेशक दख ु ी मख़्लक़ ू की खख़दमत कर रहे हैं, अल्लाह सब्ु हान व तआला इस नेक लमशन में आप
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सब लोगों की मदद करे । आमीन! स्िन्नात का पैदाइशी दोस्ट्त मेरा सब से ज़्यादा पसंदीदह मज़्मून है , इस में ददए गए वज़ाइफ़् मैं ने ककये और इस से मस्ट् ु तफ़ीद भी हुई हूूँ। स्िन्हें मैं क़ाररईन से शेयर करना चाहती हूूँ।
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२०१३ में अल्लामा लाहूती पुर इसरारी साहब का वज़ीफ़ा "सुब्बूहुन ् क़ुद्दूसुन ् रब्बना व रब्बुल ्- मलाइकनत वरूतदह"
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ُ ُ ی ُ ْ ٌ ُ ی ُ ْ ٌ ا یا ا ا ا ی ُ ْ ا ا ا ا ی الر ْو مح سبوح قدوس رَا ورب المالئمک مۃ و
शायअ हुआ था। अल्लामा साहब ने इस वज़ीफ़े के बे शुमार फ़वाइद ललखे थे। मैं ने इसे अपनी बीमारी के ललए शुरू ककया। मुझे एलिी, छींकें, नज़्ला व ज़ुकाम, पॉललन एलिी, ख़कु बुओं से एलिी, लमट्टी, धल ू से
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एलिी थी िो इस्ट्लाम आबाद की आब व हवा की विह से दम्मा में तब्दील हो गयी। यहाूँ मौसम बहार में पॉललन एलिी शदीद होती है । मैं ने "दम्मा" से ननिात के ललए ये वज़ीफ़ा ककया। अल्हम्दलु लल्लाह! मैं
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बयान नहीं कर सकती कक मुझे ककतनी लशफ़ा लमली। अब मैं बबल्कुल तंदरु ु स्ट्त हूूँ। इस वज़ीफ़े में दित मुराक़बा मैं ने एक मख़्सूस वक़्त रख कर पुरसुकून अंदाज़ में शुरू ककया। माहोल बबल्कुल पुरसुकून हो ता
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कक ध्यान ककसी और तरफ़ ना िाए, बेह्तरीन वक़्त रात का होता है । इस अमल से ना लसफ़त दम्मा की
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तक्लीफ़ ख़त्म हुई बस्ल्क साथ दस ू री स्िस्ट्मानी तकालीफ़ भी दरू हो गईं। अमल शुरू करने से पहले मैं
दआ ु करती थी ना लसफ़त अपनी सेहत व तंदरु ु स्ट्ती के ललए बस्ल्क अपने अहल व अयाल की लशफ़ा याबी के
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ललए भी। है रत अंगेज़ नताइि लमले लेककन सब से पहले वज़ीफ़ा में एअतक़ाद बहुत ज़रूरी है और ललखे
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तरीक़े से ककया िाए। शौहर को दरपेश मस्ु ककलात फ़ौरी दरू : मैं अल्लामा लाहूती परु इसरारी साहब ही का
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ददया गया सूरह तक्वीर की पहली चार आयात का अमल ककया। ख़द ु ा के फ़ज़ल व करम से अल्लाह के
कलाम में बड़ी बरकत है । वो काम ख़ैररयत से हो गया। इसी अमल को करने के ललए बहुत ज़रूरी है कक तसव्वुर ककया िाए कक अल्लाह तआला हमें दे ख रहा है ऐसा महसूस होता है कक पूरी कायनात हालत ए सुकून में है । ददल व ददमाग़ को बहुत सुकून लमलता है । आूँखें बंद कर के ददल में ऐसे दआ ु की िाए िैसे
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हम अल्लाह रब्बल ु ्-इज़्ज़त से हम कलाम हैं। सरू ह तक्वीर का अमल दित ज़ेल है : "इज़्ज़-कशम्सु कुस्व्वरत ्० व इज़-न्नुिूमुन ्-कदरत ्० व इज़ल ्-स्िबालु सुस्य्यरत ्० व इज़ल ्-इशारु उस्त्तलत ्० (अल्तक्वीर १
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ता ४)
ْ ُ ا ْ ا ا یُ ُ ُ ْ ا ا ا ْ ا ا ا ا ْ ا ْ ا یا اْل اب ُل ُس ی ا )4ات1 (التکوریo ْ او امذا ال معش ُر ُع ی مطلo ْی ْت و امذا مo و امذا الاج ْوم اتکدرتo امذا الشم ُس ک یمورت م
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ये आयात ताक़ एअदाद में पढ़ सकते हैं तीन दफ़ा, सात दफ़ा, ग्यारह दफ़ा, स्ितना ज़्यादा पढ़ें गे उतना ज़्यादा फ़ायदा होगा। चंद ददन, चंद हफ़्ते और चंद महीने ज़रूर पढ़ें । दो नजफ़्फ़ल हाजत का अमल: दो नस्फ़्फ़ल हाित वाले वज़ीफ़े में भी बड़ी बरकत है । िब भी कोई काम करना हो हत्ता कक आप को बाज़ार
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शौवपंग के ललए भी िाना है तो पहले नस्फ़्फ़ल हािात पढ़ कर किर दरूद इब्राहीमी आगे पीछे पढ़ कर दआ ु "ला इलाह इल्लल्लाहु-ल ् हलीमल ु ्-करीमु सब्ु हानल्लादह रस्ब्बल ्-अलशतल ्-अज़ीलम अल्हम्द ु ललल्लादह रस्ब्बल ्-आलमीन अस ्अलुक मूस्िबानत रह्मनतक व अज़ाइम मस्नफ़रनतक वल ्-ग़नीमत लमन ् कुस्ल्ल
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बररिं व्व-स्ट्सलामत लमन ् कुस्ल्ल इस्स्ट्मल्ला तदअ ली ज़ंबं इल्ला ग़फ़ततहू व ला हम्मन ् इल्ला फ़रत ज्तहू व ला
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हाितन ् दहय लक ररज़न ् इल्ला क़ज़ैतहा या अहतम-रातदहमीन"
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ا ٓ َ ا یا ُ ْ ا ْ ُ ْ ا ْ ُ ُ ْ ا ا ا ی ْ ا ْ م ْ ا ْ ا ْ ا ْ ُ َ ی ا ی ْ ا ا ْ ا ا ْ ا ُ ا ُ ْ ا ا ْ ا ا ا ا ا ا ا ْ ا ا ا ْ ا ْ ا ا م ْ ُ ی ُ م یٍَب (ل امل امل ہللا اْللمیم الک مریم بُس ن ہللام ر مب العرش الع مظی مم اْلمد مّٰلل مر مب الع ل ممْی اس لک مو مجب مت رِح متک وعزائمم مغ مفرتمک والغ مایمۃ ِم م یا یا ا ا ا م ْ ُ ی ْ یا ا ا ْ ْ ا ْ ً یا ا ا ْ ا ٗ ا ا ا ی ً یا ا یا ْ ا ٗ ا ا ا ا ً م ا ا ا ً یا ا ا ْ ا ا ا ا ْ ا ا یا الر ماِح ْ ا )مْی ُ امث ٍم ل تدع مِل ذتب امل غفرت ول ھم امل فرجت ول ح جۃ ھ لک مرا امل قضیَت َی ارَح والسالمۃ ِم م
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दआ ु कर के उस काम को ददल में ला कर दआ ु करें । ख़द ु ा का लाख लाख शक्र ु है कक िब भी नस्फ़्फ़ल
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हािात पढ़ कर कोई काम ककया वो बहुत अच्छी तरह मुकम्मल हुआ और काम्याबी लमली अगर कोई
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मामल ू ी काम भी करना हो तो पहले नस्फ़्फ़ल हािात ज़रूर पढ़ें ।
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तालय में ख़राश हो या ज़बान मिंह ु पर छाले र्ब ठीक
मोहतरम हज़रत हकीम साहब अस्ट्सलामु अलैकुम! उम्मीद है आप ख़ैररयत से होंगे, मैं ने आप का
ररसाला अबक़री पढ़ा इस में बहुत अच्छी और फ़ायदा मंद बातें ललखी हुई हैं और उन पर मैं अमल भी कर
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रही हूूँ, आप लोगों की खख़दमत कर रहे हैं, अल्लाह तआला आप को इस का अिर व सवाब दे । आमीन! एक मततबा मेरा मोबाइल ख़राब हो गया, मैं ने सच्चे ददल से सरू ह अलम नश्रह् पढ़ी और मोबाइल पर दम ककया तो मेरा मोबाइल बबल्कुल ठीक हो गया, अब मुझे अबक़री ररसाले में ललखे हुए आमाल पर पक्का
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यक़ीन हो गया है । मैं यहाूँ अपना एक आज़्माया हुआ टोटका भी ललखना चाहूंगी। नस्ट् ु ख़ा ये है :- अगर छोटे या बड़े बच्चों के मुंह और ज़बान पर छाले ननकल आते हैं, बअज़ औक़ात नज़्ला की विह से तालू में
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ख़राश होना शुरू हो िाती है तो ऐसी सूरत में ददन में दो या तीन बार ठं िा मक्खन कोई भी हो वेसे ब्लू बैंि हो तो ज़्यादा बेह्तर है । मुतासरह िगा पर लगाएं, बहुत िल्द मज़त ठीक हो िाएगा। (इरम, रावलवपंिी)
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ढे रों बीमाररयों के ललए मेरा आज़मयदह नुस्ख़ा मोहतरम हज़रत हकीम साहब अस्ट्सलामु अलैकुम! मैं तक़रीबन तीन चार साल से माहनामा अबक़री की क़ारी हूूँ, मैं हर महीने इस ररसाले का लशद्दत से इंतज़ार करती हूूँ। इस से पहले मैं ने कहीं ख़त नहीं ललखा
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अब पहली मततबा िसारत कर रही हूूँ। मेरे पास एक नुस्ट्ख़ा है िो कक हकीम साबबर मुल्तानी साहब का है , नाम भी इस का हुब साबबर है । हुवल-शाफ़ी: हं ज़ल (तमा), गंधक आमला सार, राई। ये तीनों चीज़ें
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हम्वज़न ले कर पीस लें। किर गोललयां बना लें या किर कैप्सल ू भर लें। ये चीज़ मैदे, शग ु र, ख़न ू को पतला करने, दांतों की तकालीफ़ और बहुत सारी बीमाररयों के ललए इस में लशफ़ा है , ये मेरा अपना ज़ाती तिुबात
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है । अल्लाह तआला आप को िज़ा ए ख़ैर अता फ़मातए। (शब्नम कफ़रदौस, मल् ु तान)
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माहनामा अबक़री अगस्त 2015 शम ु ारा निंबर 110___________Page No. 47
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गम् ु शद ु ह चीज़, फ़दस और र्मासया पाने का वज़ीफ़ा मेरा मर्ला ये था कक मेरे शौहर के कुछ औरतों के र्ाथ नाजाइज़ तअल्लुक़ात थे और ये र्ब अरर्ा दराज़ र्े चल रहा है, शायद शादी र्े पहले र्े ही। मेरी शादी को ८ र्ाल हो गए हैं। मेरे दो बच्चे हैं। मेरे शौहर का
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अपना कारोबार है ।
(क़ाररईन! हर माह हज़रत हकीम साहब دامت برکاتہمका रूहानी राज़ों से लबरे ज़ मुंफ़ररद अंदाज़ पदढ़ए।
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(एडिटर के क़लम से))(कक़स्त निंबर १५)
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रोज़ाना की िाक चेक करते हुए "या रस्ब्ब मूसा या रस्ब्ब कलीम बबस्स्ट्मल्लादह-र्-रह्मानन-र्-रहीलम" ا م یا ْ َ یا َ ا)َی ار یب موٰس اَی ار میب َک ْمیم مب ْس مم ہللا الرِح من (الر مح ْی مم م
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के मज़ीद तिुबातत व मुशादहदात सामने आए िो मैं क़ाररईन की नज़र कर रहा हूूँ। मेरी कोलशश है कक मैं
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ज़्यादा से ज़्यादा इस वज़ीफ़े के फ़वाइद आप तक पोहं चाऊं ता कक आप को भी अगर कोई मस्ु ककल,
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परे शानी हो तो आप भी इस वज़ीफ़े के कमालात से फ़वाइद हालसल कर सकें।
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शौहर राह रास्त पर:
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मोहतरम हज़रत हकीम साहब अस्ट्सलामु अलैकुम! सब से पहले तो आप के ललए बहुत सारी दआ ु एं ख़द ु ा
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तआला आप का साया शफ़्क़त हम सब "अबक़री" पढ़ने वालों पर क़ाइम दाइम रखे और आप को उम्र
खख़ज़्र अता फ़मातए। मैं गुज़कता ३ साल से अबक़री पढ़ रही हूूँ और इस ररसाला की विह से अल्लाह तआला ने मेरे घर में ख़ैर व बरकत भर दी है । इस को पढ़ने से हर मसला का हल लमल िाता है । हर माह
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इस का बे चैनी से इंतज़ार रहता है ।
मोहतरम हज़रत हकीम साहब! मेरा एक मसला है िो कक मैं काफ़ी अरसा से आप से बयान करना चाह
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रही थी, किर उस की रहनम ु ाई मुझे अबक़री में मौिूद ववदत "या रस्ब्ब मूसा या रस्ब्ब कलीम बबस्स्ट्मल्लादहर्-रह्मानन-र्-रहीलम"
ا م یا ْ َ یا َ ا)َی ار یب (الر مح ْی مم موٰس اَی ار میب َک ْمیم بم ْس مم ہللا الرِح من م
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से लमल गयी। मेरा मसला ये था कक मेरे शौहर के कुछ औरतों के साथ नािाइज़ तअल्लुक़ात थे और ये सब अरसा दराज़ से चल रहा है , शायद शादी से पहले से ही। मेरी शादी को आठ साल हो गए हैं। मेरे दो बच्चे हैं। मेरे शौहर का अपना कारोबार है । हमारे घर में बहुत अम्न व सक ु ू न है , अल्हम्दलु लल्लाह अल्लाह
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का ददया सब कुछ है , ककसी कक़स्ट्म की मुआशी परे शानी नहीं। बस इसी बात (शौहर की बे राह रवी) पर हम दोनों लमयां बीवी में झगड़ा रहता था। मैं बहुत कोलशश करती थी कक इन बातों को नज़रअंदाज़ कर दं ू लेककन अक्सर औक़ात तो मुझ से बदातकत नहीं होता था, मेरा िी चाहता कक सब कुछ छोड़ दं ू या सब को
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आग लगा दं ।ू लसफ़त इसी मसला ने मेरी स्ज़न्दगी को िहन्नुम बनाया हुआ था। मैं लसफ़त ये चाहती थी कक
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मेरे घर का माहोल ख़राब ना हो मेरे शौहर राह रास्ट्त पर आ िाएं। किर इस से ज़्यादा परे शानी ये होना शुरू हो गयी कक कुछ अरसा पहले हमारे घर में पानी के छींटे आना शुरू हो गए िो कक सुबह तक़रीबन
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आठ बिे और नो बिे के दरम्यान घर के सहन में मौिूद होते। इस बात ने मुझे और परे शानी में मुब्तला
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कर ददया। मुझे यक़ीन था कक हो ना हो ये सब उन ग़लत कक़स्ट्म की औरतों के करतूत हैं क्योंकक उन की
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नज़र मेरे शौहर से ज़्यादा मेरे शौहर के कारोबार पर है , वो लाल्ची औरतें मेरे शौहर से ननकाह करना
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मस ू ा या रस्ब्ब कलीम बबस्स्ट्मल्लादह-र्-रह्मानन-र्-रहीलम"
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चाहती हैं मगर मेरे शौहर रज़ामंद नहीं। मैं ने यक़ीन के साथ अबक़री ररसाला में से दे ख कर "या रस्ब्ब
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ا م یا ْ َ یا َ ) اَی ار یب (الر مح ْی مم موٰس اَی ار میب َک ْمیم بم ْس مم ہللا الرِح من م
पढ़ना शरू ु कर ददया। मैंने ये अमल पांच माह मस ु ल्सल ककया है और अल्हम्दलु लल्लाह अब भी कर रही
हूूँ। पांच माह के बाद अल्लाह का शुक्र है कक मैं मुत्मइन हो गयी हूूँ। मेरे शौहर का रवय्या बहुत बदल गया है , उन का ददल उन ग़लीज़ औरतों से बद्दज़न हो गया है । हमारे घर में वो पानी के छींटे भी अब नहीं गगरते
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और ना ही हमारा आपस में कोई झगड़ा होता है । इस वज़ीफ़े ने सब मसाइल से छुटकारा ददला ददया है । ये सब इस वज़ीफ़े की तस्ट्बीहात का कमाल है कक वो औरतें अपने ग़लीज़ मक़्सद में काम्याब नहीं हुईं।
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दर् लाख ख़द ु घर आ कर दे गया:
मोहतरम हज़रत हकीम साहब अस्ट्सलामु अलैकुम! अल्लाह तआला आप को सदा सलामत रखे और आप के तस्ट्बीह ख़ाना को ता क़यामत शाद व आबाद रखे। आमीन!। आप के दसत भी सन ु ती हूूँ, आप िो दसत में
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फ़ज़ाइल बताते हैं वो भी हम बड़े ज़ोक़ शौक़ से करते हैं। हमारे साथ एक मसला था कक मेरे शौहर के कारोबारी मुआम्लात में ककसी ने उन के दस लाख दबा ललए, तक़रीबन एक साल हुआ चाहता था मगर वो पैसे दे ने का नाम ही नहीं ले रहा था, मेरे शौहर के पास कोई सबत ू भी ना था कक उस ने पैसे ललए हैं। हम
या रस्ब्ब कलीम बबस्स्ट्मल्लादह-र्-रह्मानन-र्-रहीलम"
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सब घर वाले बहुत परे शां थे, इसी दौरान आप का दसत नेट पर सुन रहे थे तो आप ने दसत में "या रस्ब्ब मूसा
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ا م یا ْ َ یا َ ا)َی ار یب موٰس اَی ار میب َک ْمیم بم ْس مم ہللا الرِح من (الر مح ْی مم م
के फ़ज़ाइल बताए। हमें ऐसा महसस ू हुआ कक िैसे ये दसत आप ख़ास हमारे ललए ही दे रहे हैं। हम ने आप
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ا م یا ْ َ یا َ ا)َی ار یب موٰس اَی ار میب َک ْمیم مب ْس مم ہللا الرِح من (الر مح ْی مم م
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के बताए हुए वज़ीफ़े "या रस्ब्ब मूसा या रस्ब्ब कलीम बबस्स्ट्मल्लादह-र्-रह्मानन-र्-रहीलम"
सारा ददन खल ु ा पढ़ना शुरू कर ददया। ये वज़ीफ़ा करते हुए चार माह हुए थे कक उस बन्दे ने ख़द ु मेरे शौहर
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से राब्ता ककया और कुछ ददनों बाद ख़द ु घर आ कर दस लाख रूपए दे गया। हम सब ऐसे है रान कक हमें
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समझ ना आई कक ये क्या हो गया। ये सब इसी वज़ीफ़े का कमाल था कक एक शख़्स िो पैसे दे ने से ही
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इनकारी था ख़द ु घर आ कर हमें दस लाख िैसी बड़ी रक़म पकड़ा गया। मैं आप के दसत से सुन कर सूरह
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कौसर भी सारा ददन पढ़ती हूूँ अल्हम्दलु लल्लाह! घर में बहुत बरकत है , ककसी भी कक़स्ट्म की मोहतािी नहीं
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है ।
(क़ाररईन! मैं आप के र्ीने की अमानत आप तक पोहिं चा रहा हयूँ, आप को इर् वज़ीफ़े र्े जो फ़ायदा पोहिं चे,
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ज़रूर अमानत र्मझ कर मझ ु े ललखें , इिंतज़ार रहे गा। एडिटर!)
ग़ज़ब का नस् ु ख़ा ख़ज़्ज़ाब ्:मोहतरम हज़रत हकीम साहब अस्ट्सलामु अलैकुम! मैं ने अबक़री ररसाला एक बुक स्ट्टाल पर लगा दे खा, मैंने सरसरी तौर पर दे खा तो ख़रीद ललया और घर ला कर िब पढ़ा तो पढ़ता ही
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गया। क्या ग़ज़ब का ररसाला ननकाला है आप ने। ये नस्ट् ु ख़ा अबक़री में शायअ हुआ था, ननहायत लािवाब और आज़्माया हुआ है । हुवल-शाफ़ी: मेहूँदी दस रूपए की, काला पत्थर पांच रूपए का पीस लें। लौंग सात अदद, कलौंिी पांच या छे बड़ी चट ु ककयां। सरसों का तेल थोड़ा सा। अंिे की ज़रददयां दो अदद। नीम गरम
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पानी से घोल कर रख दें , दो घन्टे बाद सर पर लगाएं, सूखने पर सर धो लें। लािवाब रं ग आप के बालों पर चम्केगा। (ब,ि)
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२० र्ाल पुराना ललकोररया ठीक: मोहतरम हज़रत हकीम साहब अस्ट्सलामु अलैकुम! अल्लाह तआला आप को ता क़यामत शाद व आबाद रखे। मुझे गुज़कता बीस साल से ललकोररया था, एक मततबा आप ने दसत में बताया था कक सूरह हशर की
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आख़री आयत हर वक़्त खुला पढ़ने से पोशीदह बीमारी ठीक हो िाती है । मैं ने कुछ अरसा मुस्ट्तक़ल लमज़ािी से यही आयत हर वक़्त खल ु ा पढ़ी तो अल्लाह तआला का लाख लाख शुक्र है कक मेरी बीमारी
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ठीक हो गयी और अब मैं बबल्कुल तंदरु ु स्ट्त हूूँ। (ज़,ब- वाह कैंट)
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