Monthly Ubqari Magazine August 2016 in hindi

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माहनामा अबक़री मैगज़ीन

जल ु ाई 2016 के एहम मज़ामीन हहिंदी ज़बान में

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माहनामा अबक़री मैगज़ीन

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अगस्त 2016 के एहम मज़ामीन

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हहिंदी ज़बान में दफ़्तर माहनामा अबक़री

मज़ंग चोंगी लाहौर पाककस्ट्तान

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महमद ू मज्ज़ूबी चग़ ु ताई ‫دامت برکاتہم‬

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एडिटर: शैख़-उल-वज़ाइफ़् हज़रत हकीम मह ु म्मद ताररक़

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मरकज़ रूहाननयत व अम्न 78/3 अबक़री स्ट्रीट नज़्द क़ुततबा मस्स्ट्जद

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फ़ेहररस्त माल कहा​ाँ से आया, कैसे आया और कहा​ाँ गया? .......................................................................................... 3

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अल्लाह रब्बल ु ्-इज़्ज़त को मनाने का राज़ .................................................................................................... 6 हफ़्तवार दसस से इक़्तबास .............................................................................................................................. 6

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मैं ने "जिन्नात का पैदाइशी दोस्त" से क्या फ़ैज़ पाया...? ........................................................................ 10 माहनामा अब्क़री अगस्ट्त 2016 शम ु ारा नम्बर ........................................................................................... 16 क़ाररईन के ततब्बी और रूहानी सवाल, ससफ़स क़ाररईन के िवाब................................................................. 33

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क़ाररईन की ख़ुसस ू ी और आज़मद ू ह तहरीरें .................................................................................................. 37

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एडिटर के क़लम से

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हाल ए हदल

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जो मैंने दे खा सुना और सोचा माल कहा​ाँ से आया, कैसे आया और कहा​ाँ गया?

एक बूढ़े शख़्स स्जस के सर का बाल बाल, भवें और हत्ता कक स्जस्ट्म के तमाम बाल सफ़ेद हो चक ु े थे। बदन

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पर मोटी मोटी झुररत यां और बल बता रहे थे या तो उस की उम्र ज़्यादा है या उस का ग़म ज़्यादा है । जब

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तहक़ीक़ की तो पता चला उम्र साठ साल से ज़्यादा नहीं, ग़म ने पचासी साल से ज़्यादा की उम्र का बना ददया

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है । मौसूफ़ सत्रह साल के थे, पाककस्ट्तान के सब से ज़्यादा माल्दार बन्ने के ललए ख़लीज तश्रीफ़ ले गए। घर

में ख़लु शयां थीं। मा​ाँs बाप ने आंसओ ु ं और ख़श ु ी के लमले जल ु े जज़्बात के साथ उन को रवाना ककया। स्ज़न्दगी के ददन रात गुज़रते गए किर कुछ कमाया और शादी हुई, इस तरह उन्तालीस साल ख़लीज के मुल्कों में

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गुज़ार कर मेरे सामने ख़ाली हाथ बैठे थे और मुआश्रे की लसतम ज़रीफ़ी औलाद की ना फ़मातनी, बीवी की हट

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धमी, फ़ज़ूल ख़ची और अपने कफ़ील की ख़यानत का रोना रो रहे थे। मैं उन के ग़म को दे खता आंसुओं के

ललए दटश्यू दे ता और उन के बढ़े हुए हद्द से ज़्यादा बुढ़ापे पर मुझे स्जतना तरस आ रहा था शायद स्ज़न्दगी में

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कभी आया होगा। सारी स्ज़न्दगी की पाँज ू ी सब से पहली जवानी होती है , दस ू रा समातया जवान बीवी, तीसरा

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समातया औलाद और चौथा समातया स्ज़न्दगी का सुकून। होता ये है जवानी जज़्बात कैकफ़यात के उतार चढ़ाव

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में माल सामने रख कर याँह ू ी गज़ ु र जाती है और यही हाल बीवी का होता है ये अपनी जगा तड़प्ता है वो अपनी

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जगा। अगला समातया औलाद, बाप की सर परस्ट्ती औलाद को इख़्लाक़, अदब और अच्छी सुह्बत दे ती है औलाद उस से महरूम हो कर कहा​ाँ से कहा​ाँ ननकल गयी और आख़री समातया सक ु ू न होता है बेरून मल् ु क गुज़ारने वाले शुगर, ब्लि प्रेशर, ददल के अमराज़, एअसाबी कमज़ोरी और तरह तरह की बीमाररयां और

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ख़ास तौर पर् टें शन में ज़रूर मुब्तला हो जाते हैं। वो सफ़ेद बालों से लब्रेज़ बूढ़ा मेरे सामने बबल्कुल यही सच्ची कहानी ललए अपने ग़म का कक़स्ट्सा सुनाए रो रहा था लेककन मैं क्या करूाँ? मुझे एक बात बार बार याद

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आ रही थी वो यही थी जो मझ ु े बेशम ु ार लोगों ने बताई कक हमारी स्ज़न्दगी में सक ु ू न, माल में बरकत और चैन इस ललए नहीं होता कक हम बीववयों को लससक्ता, तड़प्ता छोड़ कर चले जाते हैं और उन की आहें हमारा कुछ

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नहीं बचातीं। क़ाररईन! कुछ वाकक़आत आप की नज़र करता हूाँ मेरी एक दरख़्वास्ट्त है थोड़ा कमाएं लेककन बीवी बच्चों को अपनी स्ज़न्दगी का वक़्त और तवज्जह दें । ये मेरी आज की फ़ररयाद नहीं बहुत अरसा से ये फ़ररयाद और ये ग़म मैं आप के सामने कर् रहा हूाँ। आइये! कुछ ग़म ज़्दह् लोगों के ग़म मैं आप से बयान करूाँ

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इस ननय्यत से कक शायद उन माओं को एह्सास हो जो अपनी औलाद को माल और दौलत के ललए अंधी

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आाँखों से बेरून मुल्क धकेल दे ती हैं। अपनी बहू का कोई एह्सास या अपने पोते पोनतयों का कोई एह्सास

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नहीं होता। एक शख़्स स्जस को लोग हाजी नवाज़ कहते थे, बबल्कुल मस्ु फ़्लस सफ़ेद पॉश था। ख़लीज चला

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गया, ख़द ु गया, सारी स्ज़न्दगी गुज़ारी, जब आया झोललया​ाँ भरी हुई नोटों की, मुहल्ले में दो मंज़ला कोठी

लसफ़त उसी ने बनवाई, चार बेटे, दामादों को भी सेट ककया, माल स्जस तरह कमाया कैसे आया, ककस तरह

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आया लेककन आया और उस का अंजाम क्या हुआ अब सारे बेटे नशई हैं, एक बेटे ने अपने आप को जलाया,

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भयानक ज़ख़्म बनाए ता कक भीक मांगने के ललए सहूलत रहे । दस ू रा बेटा नशे की वजह से मर गया, दो बेटे नशई हैं, जायदाद कुछ नहीं सब बबक चक ु ी है , हाजी नवाज़ तरह तरह की बीमाररयों, तक्लीफ़ों, तंगदस्ट्ती

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और ग़रु बत सहते सहते आख़ख़रकार मर गया। वो शख़्स जो नोट ही नोट, माल ही माल, रे शमी ललबास,

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क़ीमती घडड़या​ाँ पहनता था, उसी शख़्स को लोगों की इम्दाद का हर वक़्त इंतज़ार रहता था। एक साहब ने ३०

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साल बेरून मुल्क गुज़ारे , ख़ूब नोट कमाए, सारी उम्र के बाद जब वापस आये तो कुछ अरसा बाद उन की बेटी ककसी के साथ भाग गई, उन के बेटे ने नशा करना शरू ु कर ददया और जवानी की हालत में मर गया, दो बेटे

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मज़दरू ी करते हैं, ख़द ु की टांगें मुड़ गयी हैं, चलने किरने से माज़ूर है । लमयां बीवी चार पाई पर अपनी स्ज़न्दगी की आख़री सा​ाँसें गगन रहे हैं। ना नोट रहे , ना दौलत रही, ना इज़्ज़त रही ना वक़ार रहा। ☆ एक हाजी

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साहब तक़रीबन २२ साल ख़लीज में मेहनत मज़दरू ी करते रहे , दज़ी थे, आाँखें जवाब दे गईं, वहीं पर दर बदर किर रहे हैं, वापसी के दटकट के ललए पैसे नहीं, अब कहते हैं कक बाईस साल बेरून मुल्क मज़दरू ी की अब जेब

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में एक पैसा नहीं, ककस मंह ु से वापस आऊं। घर में बीवी ने भैंस रखी हुई है उसी पर गज़ ु ारा करती हैं, बेटा बेरोज़गार घर बैठा है । एक साहब ने ज़मीन बेची, ख़लीज गए, तीन साल रहे , ख़ाली हाथ घर आए। आज तक

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किर कुछ नहीं कर पाए। एक साहब ने सारी स्ज़न्दगी ख़लीज में गज़ ु ारी, आख़ख़र मय्यत घर आई, घर में फ़ाक़ों का राज है । हाजी साहब २३ साल ख़लीज में रहे , पूरी फ़ैलमली को वहा​ाँ बुला ललया। दो शाददयां रचाईं। बच्चा जवान हुआ, बेदटयों ने वहां अपनी पसंद की शाददयां कीं। क़ज़त ले कर दब ु ई में कम्पनी शुरू की दामाद

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क़ाबबज़ हो गया। वहा​ाँ कुछ नहीं बचा, सदमे से वापस आये। अब हाजी साहब एक हज़ार रूपए में नोकरी कर

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रहे हैं। एक साहब ने सारी स्ज़न्दगी बाहर गुज़ारी मगर जब वापस आए तो कुछ नहीं बचा अब बुढ़ापे में

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मज़दरू ी कर रहे हैं। एक साहब बेरून मल् ु क ३२ साल लगा कर आए मगर जब वापस आए तो सब कुछ ख़त्म

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हो चक ु ा था। अब दर बदर की ठोकरें खा रहे हैं। एक कक़ल्लई गर का बेटा मा​ाँ की मौत पर ना पुहंच सका,

जवान बबन ब्याही बहनें, बीवी बेवगी की स्ज़न्दगी गज़ ु ारने पर मज्बरू और एक बेटा जो ददन रात जरायम

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और बद्द कारी में मुब्तला और वो साहब ख़द ु वहा​ाँ ख़लीज में अपनी मन मोजी स्ज़न्दगी में ददन रात गुज़ार

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रहे हैं। ना माल बचा, ना दौलत, ना दीन ना दन्ु या। एक साहब का सारा ख़ानदान बड़े गोश्त का काम करता

है । साल्हा साल से ख़लीज में हैं। दौलत है , माल है , लेककन वो दौलत और माल अय्यालशयों, शराब व कबाब

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और तरह तरह के जरायम पर लग रहा। अब तो माल भी ख़त्म होता जा रहा है । एक साहब तामीराती

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ठीकेदार का काम करते हैं मुझे बताने लगे (क्यूंकक मैं ने उन से ख़द ु काम कराया) कक इतने साल मैं ख़लीज में

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मज़दरू ी कर के आया हूाँ लेककन अब कुछ नहीं बचा और बअज़ औक़ात घर की ज़रूररयात पूरी नहीं होतीं। एक ननहायत ख़ानदानी और बड़े नाम के फ़दत मेरे पास आए ३२ साल बेरून मल् ु क गज़ ु ारे उन की ग़ैर मौजद ू गी में

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घर के बड़े ररश्तेदार सब मर गए, ककसी के जनाज़े में शालमल ना हो सके बस लसफ़त फ़ोन कर् दे ते थे, अब आलम ये है कक दौलत भी गयी और जो लोग हाजी साहब हाजी साहब कहते थे वो इज़्ज़त भी गयी। लाहौर में

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एक साहब स्जन के मुंह में हर वक़्त पान होता है , उन से मेरा तअल्लुक़ ऐसे बना कक मदीना मुनव्वरह् में साबबक़ा पाककस्ट्तान हाउस जो सब ्अ मसास्जद के क़रीब था उस से आगे पहाड़ी पर उन का घर था, ददन रात

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केबल के सामने बैठे रहते, मझ ु े ररहाइश के ललए लमन्नत कर के अपने पास ले गए। लेककन मेरी तबीअत और लमज़ाज वहां ना बन सका। ये बहुत पुरानी बात है , उस वक़्त वो वहां पच्चीस साल से रह रहे थे। वापसी

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की दटकट के पैसे नहीं थे। एक बाबा जी आख़री उम्र तस्ट्बीह ख़ाना गज़ ु ारने आए, पंद्रह साल क़तर में लगाए मौसूफ़ जेहलम से तश्रीफ़ लाते थे। बअज़ औक़ात जेहलम से लाहौर का ककराया नहीं होता था और इसी कस्ट्मपुसी में आख़ख़रकार फ़ौत हो गए। क़ाररईन! ये चन्द वाकक़आत हैं ऐसे सैंकड़ों हज़ारों वाकक़आत हमारे

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मुआश्रे में िैले हुए हैं ना मालूम लोगों को किर भी इब्रत और एह्सास नहीं होता। बीववयों का हक़ मारते हैं, मा​ाँ

दसस रूहातनयत व अम्न

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शैख़-उल ्-वज़ाइफ़् हज़रत हकीम मह ु म्मद ताररक़ महमद ू मज्ज़ब ू ी चग़ ु ताई ‫دامت برکاتہم‬

अल्लाह रब्बुल ्-इज़्ज़त को मनाने का राज़

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माहनामा अब्क़री अगस्त 2016 शम ु ारा नम्बर 122---------------pg 3

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और अपनी जान को सख ु और सक ु ू न नहीं दे ते। किर आख़ख़रकार यही कुछ है ना दीन ना दन्ु या!

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का हक़, बाप का हक़, औलाद का हक़, ररश्तेदारों की लसला रहमी और अपनी जान का हक़ ज़ायअ करते हैं

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हफ़्तवार दसस से इक़्तबास

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अल्लाह वालो! साललहीन के मज्मअ में जा कर इस सरू ह फ़ानतहा को कसरत से, परू ी तवज्जह और रुजअ ू

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क़ल्ब के साथ पढ़ा करो। नेक साललहीन के मज्मअ में इस को पढ़ने से इस की तासीर लमल जाएगी, मन के अंदर जो मरु ाद होगी लमल जाएगी, दन्ु या की हर मस्ु श्कल हल होगी और आख़ख़रत का हर मततबा और मक़ाम लमल कर रहे गा। हमारी ख़श ु क़क़स्मती: हम ककतने ख़श ु कक़स्ट्मत हैं यहां बैठ कर सूरह फ़ानतहा को पढ़ते हैं

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और इस का स्ज़क्र करते हैं। बहुत ख़श ु ु कक़स्ट्मत हैं वो अह्बाब जो कभी कभी यहां आते हैं और बहुत ख़श कक़स्ट्मत हैं वो अह्बाब जो हर जुमेरात को यहां आ कर इस मज्मअ में सूरह फ़ानतहा बार बार पढ़ते हैं, नेक

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लोगों के मज्मअ में ख़द ु ा जाने कौन अल्लाह का क़ुबत वाला है , अल्लाह का वली है , अल्लाह का नेक और सालेह बन्दा है स्जस को अल्लाह ने इस की तासीर दे रखी हो और उस की बरकत से अल्लाह हमें भी सूरह

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फ़ानतहा की तासीर अता फ़मात दें जो हमारे ललए इस्ट्म आज़म बन जाए।

हर मजु ककल का हल: जो शख़्स सरू ह फ़ानतहा को सरू ह यासीन की हर "मब ु ीन" पर बबस्स्ट्मल्लाह के साथ ११ मततबा, २१ मततबा या ४१ मततबा पढ़े किर सूरह यासीन मुकम्मल कर के आख़ख़र में किर ११ मततबा, २१ मततबा

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या ४१ मततबा पढ़ कर सज्दे में जाए और हाथ उठा कर अल्लाह से ज़ारी करे गा तो अल्लाह उस की मुस्श्कल

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हल कर दें गे। इन ् शा अल्लाह!!

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इमाम मक़ातल ‫ رحمة هللا عليه‬का क़ौल: इमाम मक़ातल ‫ رمحة هللا عليه‬ऐसे दव ु ेश बुज़ुगत थे स्जन्हें अल्लाह ने

सूरह फ़ानतहा की तासीर अता फ़रमाई थी, फ़मातते हैं: कक अगर ककसी को सूरह फ़ानतहा पढ़ने से फ़ायदा ना हो

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स्जस में यक़ीन शतत है , गुनाहों से बचना शतत है , ररज़्क़ हलाल का लुक़्मा शतत है अगर फ़ायदा ना हो तो

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क़यामत के ददन मेरा गरे बा​ाँ पकड़ ले। चालीस ददन तक रोज़ाना इस को यक़ीन से पढ़ें , चालीस ददन से पहले

पहले अल्लाह पाक उस की मुस्श्कल, उस की मुराद, उस की तमन्ना, उस की परे शानी और उस की हर्

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मस्न्ज़ल आसान फ़मात दें गे। खाने में बरकत: जो शख़्स खाना खाते हुए सरू ह फ़ानतहा को पढ़े गा उस का हर

सहाबा कराम

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लुक़्मा उस के ललए नूर बन जाएगा। खाना खाते हुए आप ख़ैर के कल्मात कह सकते हैं मेरे आक़ा ‫ ﷺ‬और ‫ رضوان هللا عليهم أجمعين‬की सुन्नत है अगर आप गुफ़्तग ु ू नहीं कर

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रहे तो सूरह फ़ानतहा को पढ़ें , इस का हर लुक़्मा नूर बन जाएगा, जन्नत का लुक़्मा बन जाएगा, इस नूर के

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लुक़्मे की वजह से अल्लाह पाक उस के ददल की स्ट्याही, ददल की कसाफ़त, ददल की बीमाररयों से लशफ़ा अता फ़मातएंगे! इस नूर के लुक़्मे की वजह से अल्लाह उस ् की बीनाई को, ज़ेहन को, समाअत को ताक़त अता फ़मातएंगे! इस नूर के लुक़्मे की वजह् से अल्लाह ज़ेहनी और स्जस्ट्मानी बीमाररयों से लशफ़ा अता फ़मातएंगे Page 7 of 47 www.ubqari.org

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और क़यामत के ददन इस नूर के लुक़्मे की वजह से अल्लाह उस का चेहरा नूरानी कर दें गे! ये सूरह फ़ानतहा की तासीर और बरकत है ।

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जिस्मानी बीमाररयािं: सूरह फ़ानतहा खाने के दौरान पढ़ने से खाना नूर बन जाता है और इस नूर के लुक़्मे की वजह से अल्लाह पाक इस खाने वाले की बीनाई में नरू अता फ़मातते हैं, इस नरू के लक़् ु मे की वजह से अल्लाह

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पाक उस के बाज़ुओं और टांगों में क़ुव्वत अता फ़मातते हैं। इस क़ुव्वत और तंदरु ु स्ट्ती की वजह से बन्दे को इबादत की तौफ़ीक़ अता फ़मातते हैं। मरते वक़्त कल्मा: सरू ह फ़ानतहा खाने के दौरान पढ़ने की वजह से खाने का हर लुक़्मा नूर बन जाता है और इस नूर की वजह से अल्लाह पाक अपना और अपने हबीब सवतरर कौनैन

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‫ ﷺ‬का नाम ज़बान पर अता फ़मातएंगे और मरते वक़्त इस नूर के लुक़्मे की वजह से अल्लाह पाक कल्मा

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नसीब फ़मातएंगे। सूरह फ़ानतहा की तासीर और बरकत की वजह से अल्लाह पाक उस को कल्मा नसीब

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फ़मातएंगे। अल्लाह रब्बुल ्-इज़्ज़त को मनाने का राज़: एक अमल मुझे मेरे शैख़ ने ख़स ु ूसी तौर पर अता

फ़मातया था जो आप की ख़ख़दमत में अज़त कर रहा हूाँ: "कक तन्हाई में बैठ कर जहां कोई ना हो वहां बैठ कर दो

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रकअत नस्फ़्फ़ल तौबा के पढ़ लें। अपने गुनाहों से तौबा कर लें और इस के बाद सूरह फ़ानतहा पढ़ें , अगर ददल

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की कैकफ़यत ना बदले तो दब ु ारह पढ़ें चन्द दफ़ा पढ़ने के बाद जब सरू ह फ़ानतहा की आयत "इय्याक नअबद ु ु

व इय्याक नस्ट्तईन"ु ( ‫ )إايك نعبد و إايك نستعني‬पर पोहं चें तो इस को दहु राएं, बहुत ज़्यादा आलशक़ाना अन्दाज़ में ,

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ववज्दान में , ग़म में , दख ु में , ददत में , सोज़ में , तड़प में , अल्लाह की मुहब्बत और ताक़त को सामने रख कर

पढ़ें । या अल्लाह मैं अज़त कर रहा हूाँ और तू मेरी सन ु रहा है , या अल्लाह मैं फ़ररयाद कर रहा हूाँ और तू मेरी

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फ़ररयाद को पुहंच रहा है , या अल्लाह मैं दख ु ी हूं तू मेरे ददत को जानता है , या अल्लाह! तेरा बन्दा हूाँ, मुहताज

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हूाँ, टूटी िूटी इबादत करता हूाँ, इस कैकफ़यत के साथ हल्की आवाज़ में या ऊंची आवाज़ में पढ़ें , ववज्दान की

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कैकफ़यत हो और किर खड़ा हो जाए, झोली उठा ले झोली उठाने में उसे रोना आ जाए और किर अल्लाह से मांगे: या अल्लाह! तेरे दर पर आया हूाँ तेरे दर के लसवा कहा​ाँ जाऊंगा, या अल्लाह! मेरी झोली ख़ाली है अल्लाह! तू इस को भर दे ।अल्लाह के सामने तड़प जाएं, अल्लाह के सामने रो कर, आज्ज़ी के साथ मांगें,

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आप यक़ीन जाननये फ़ररश्तों में कुहराम मच जाता है और अल्लाह से कहते हैं या अल्लाह! तेरा बन्दा तुझ से फ़ररयाद कर रहा है , तुझ से मांग रहा है , फ़ररश्ते अल्लाह पाक से लसफ़ाररश करते हैं और अल्लाह पाक बन्दे

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से राज़ी हो जाता है । जब अल्लाह राज़ी हो जाए किर बन्दे को ककसी के सहारे की ज़रूरत नहीं होती। अल्लाह वालो! अल्लाह को राज़ी कर लो अल्लाह को मना लो।

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अिंब्या ‫ عليه السالم‬की तौहीन: मेरे मोहतरम दोस्ट्तो! अंब्या कराम ‫ عليه السالم‬अल्लाह जल्ल शानुहू के बगतज़ीदह् बन्दे होते हैं। नब ु व्ु वत मेहनत से नहीं लमलती बस्ल्क नब ु व्ु वत और नबी का इंतेख़ाब मेरा रब ख़द ु फ़मातता है । बगतज़ीदह् हस्स्ट्तयों की तौहीन मेरे अल्लाह को पसंद नहीं। मेरा अल्लाह उन लोगों को ददत नाक अज़ाब और

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तकालीफ़ दे ता है जो उन की तौहीन करते हैं लेककन जो लोग अल्लाह वालों की आदात को अपनाते हैं, उन के

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जैसा बन्ने की कोलशश करते हैं अल्लाह पाक उन से राज़ी होता है और उन से ख़श ु होता है । (जारी है )

दसत से फ़ैज़ पाने वाले

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करें 】

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【अनोखे रूहानी वज़ाइफ़् और राज़ ववलायत पाने के ललए ख़त ु बात अब्क़री मुकम्मल सेट का मुतास्ल्लआ

मोहतरम हज़रत हकीम साहब अस्ट्सलामु अलैकुम! मैं हमेशा हर नमाज़ के बाद आप और आप की नस्ट्लों के

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ललए ख़ास तौर पर दआ ु करती हूाँ कक अल्लाह तआला हमेशा आप का मेहरबान साया हमारे सरों पर क़ाइम रखे। आमीन। मैं इन्टरनेट पर आप के दसत सुनती हूाँ। आप के दरूस ने तो मेरी स्ज़न्दगी ही बदल कर रख दी

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है , मैं घरे लू मसाइल में जकड़ी हुई थी, आप के दसत सुन कर अल्लाह से रो रो कर दआ ु मांगती हूाँ अल्लाह मेरे

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मसाइल हल कर रहा है , दसत सुनने के बाद महसूस होता है कक मेरी वपछली सारी स्ज़न्दगी तो बेकार गयी।

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इसी ललए मैं दसत में ददए गए एअमाल पूरे ख़ल ु ूस और तवज्जह ददल से करती हूाँ। दसत से सुन कर दस ू रों के ललए दआ ु एं करती हूाँ बे ज़बान जानवर, भक ू और प्यास की वजह से तड़प्ते बबलक्ते बच्चों के ललए, स्जन को खाने को नहीं लमलता, जो रात को फ़ुट पाथ पर सोते हैं उन सब ् के ललए दआ ु एं मांगती हूाँ स्जन के ररश्ते नहीं

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हो रहे उन के ललए दआ ु एं मांगती हूाँ। इस अमल की बरकत से मेरे मसाइल हल हो रहे हैं। अल्हम्दलु लल्लाह। मोहतरम हज़रत हकीम साहब! आप के ललए और आप की नस्ट्लों के ललए अल्लाह के हुज़ूर ख़स ु ूसी दआ ु

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करती हूाँ कक ऐ अल्लाह तआला उन पर अपना ख़ास करम कर दे क्यंकू क ये बन्दा तेरी मख़लक़ ू का ददत रखता है और उन के दख ु ों को समझता है । (सवेरा, मुल्कवाल)

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माहनामा अब्क़री अगस्त 2016 शुमारा नम्बर 122----------------pg 4

मैं ने "जिन्नात का पैदाइशी दोस्त" से क्या फ़ैज़ पाया...?

नेक जिन्नात ने इिंसानी शक्ल में मदद की

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सुख पाया--- उन की कहानी उन्ही की ज़बानी पढ़ें ।)

rg

bq

(ऐसे लोगों के मश ु ादहदात की सच्ची आप बीनतया​ाँ स्जन्हों ने "स्जन्नात का पैदाइशी दोस्ट्त" से स्ज़न्दगी का

w w

मोहतरम हज़रत हकीम साहब अस्ट्सलामु अलैकुम! मैं आप की ख़ैररयत के ललए ख़द ु ा से हमेशा दआ ु गो हूाँ, अब्क़री ररसाला पढ़ कर बहुत ख़श ु ी और फ़ायदा पाया। मैं "स्जन्नात का पैदाइशी दोस्ट्त ख़ास नम्बर" के

bq

ललए एक ज़बरदस्ट्त सच्चा वाकक़आ ललख रही हूाँ मुझे उम्मीद है आप अगस्ट्त २०१६ के शुमारे में ज़रूर

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शायअ करें गे। माहनामा अब्क़री से बहुत वज़ाइफ़् ककये स्जन का बहुत फ़ायदा हुआ लेककन अल्लामा लाहूती

परु इसरारी साहब का बताया हुआ वज़ीफ़ा करने की वजह से मैं इतनी है रान हूं कक आप को बयान नहीं कर

w

‫ا‬ सकती। मैं ने जून २०१३ के शुमारे में "स्जन्नात का पैदाइशी दोस्ट्त" में "या क़ाददरु या नाकफ़उ" (‫) اايقا ِد ُر ااي اَن ِف ُع‬

w

का वज़ीफ़ा ककया। मैं जब भी आटा गाँध ू ती हूाँ ४१ दफ़ा पढ़ती हूाँ, बच्चों को इक्तालीस दफ़ा पढ़ कर दम करती

w

हूाँ, सफ़र पर, काम करते वक़्त पढ़ती हूाँ। अब आती हूाँ असल वाकक़आ की तरफ़ मैं मल् ु तान अपने बहन के घर जाने के ललए तय्यार हुई, सफ़र बच्चों के साथ कदठन लग रहा था क्यूंकक शोहर पहले ही मुल्तान तश्रीफ़ ले ‫ا‬ ُ ‫ا‬ गए थे, सफ़र शरू ु कर ददया। सफ़र बहुत अच्छा ु होते ही "या क़ाददरु या नाकफ़उ" (‫ ) اايقا ِد ُر اايَن ِفع‬का ववदत शरू

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गुज़रा वहा​ाँ बहन के घर पुहंच,े खाना वग़ैरा खाया, कुछ दे र आराम ककया, तो मेरी भांजी कहने लगी कक ख़ाला आज बहाउद्दीन ज़कक्रया ‫ رمحة هللا عليه‬के मज़ार पर चलते हैं हम सब शाम के वक़्त तय्यार हो गए, ररक्शे पर

rg

‫ا ا‬ बैठते ही मैं ने "या क़ाददरु या नाकफ़उ" (‫)ايقا ِد ُر ااي اَن ِف ُع‬ का ववदत शरू ु कर ददया, हम वहा​ाँ गए मज़ार पर फ़ानतहा ख़्वानी की, साथ मौजद ू बा पदात जगा पर क़ुरआन ख़्वानी और नवाकफ़ल वग़ैरा पढ़ती रही। बच्चे क़रीबी पाकत

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में खेलते और झूले वग़ैरा लेते थे। आख़ख़र में कक़ल्लए की एक इमारत स्जस का नाम "दम दमा" है और इस जगा की ख़स ु लू सयत ये है कक वहां से सारा मल् ु तान शहर नज़र आता है , हम ने कहा हम वहां भी जाएंगे वो जगा हुकूमत ने ठे के पर् दी हुई है स्जस पर दटकट लगाई हुई है । हम तीन बहनें थीं, दो भांस्जयां और मेरे तीन

bq

बच्चे थे, हम ने अपने दटकट ललए, बक़ाया पैसे उन्ही के पास थे कक बच्चे पहले भागे तो वहां दटकट चेक

rg

करने वाले ने बद्द तमीज़ी करना शुरू कर दी कक आप लोगों ने दटकट तो ललए नहीं ककधर भागे जा रहे हो, हम

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ने कहा कक भाई हौसला करें इतनी बद्द तमीज़ी क्यूाँ कर रहे हैं? बक़ाया पैसे आप लोगों के पास हैं और दटकट

ये दे खें हमारे हाथ में हैं लेककन उस शख़्स को ना मालम ू क्या हुआ कहने लगा: आप दटकट ददखाएं भी तो मैं आप लोगों को "दम दमा" नहीं दे खने दं ग ू ा, इंतहाई ग़स्ट् ु से में उठा पहले बच्चों को धक्के ददए और बाद में

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बाक़ाइदह् हम बहनों को धक्के ददए, मैं मस ु ल्सल इसी वज़ीफ़े का ववदत करती रही हमें ग़स्ट् ु सा आया, मैं ने उस

bq

‫ا ا‬ शख़्स से कहा: हम तुम्हारे ख़ख़लाफ़ क़ानूनी चारह जोई करें गे। ख़ैर हम "या क़ाददरु या नाकफ़उ" (‫)ايقا ِد ُر ااي اَن ِف ُع‬

का ववदत करते हुए वहां से चल पड़े, आगे पुललस वाले खड़े थे हम ने उनको बताया तो उन्हों ने कहा कक ये ठीके

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दार लोग हैं हम उन को कुछ नहीं कह् सकते, मझ ु े शदीद ग़स्ट् ु सा इस बात पर आ रहा था कक उन्हों ने हम

w

औरतों के साथ बग़ैर वजह के इतनी बद्द सलूकी की, ववदत मेरी ज़बान पर जारी था। ऊपर से पुललस वालों ने

w

भी हमारा साथ नहीं ददया। ववदत के साथ साथ अब तो मेरी आाँखों से आंसू भी जारी हो गए। मैं बस यही सोच

w

रही थी कक आज इस ने हमारे साथ इतनी शदीद बद्द तमीज़ी की है आइंदा ककसी और के साथ करे गा या करता रहा होगा, इतना बद्द इख़्लाक़ शख़्स हम ने पहले कभी नहीं दे खा होगा। अचानक एक "वेल ड्रेस" शख़्स नुमूदार हुआ, उस के साथ दो बन्दे और भी थे। उन्हों ने इंतहाई अदब के साथ मुझे मुख़ानतब ककया:

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बाजी हम कब से आप को दे ख रहे थे, इस बन्दे ने आप के साथ इंतहाई बद्द तमीज़ी की है इस को इस की सज़ा ज़रूर लमलनी चादहए। कक़ल्लए के साथ ही १५ का काउं टर था वो हम सब को उधर ले गए, मैं और मेरी

rg

बड़ी बाजी बा पदात पलु लस चौकी के अंदर गईं, तमाम सरू त्हाल बताई और ये भी कहा हम इस की नोकरी या ररज़्क़ के दश्ु मन नहीं लेककन हमें इंसाफ़ ज़रूर लमलना चादहए ता कक आइंदा ये ककसी के साथ ऐसा सुलूक ना

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करे । उस पलु लस ऑकफ़सर ने भी कहा कक ये ग़ैर इख़्लाक़ी अमल है , फ़ौरन ऍफ़ आई आर काटो और गाड़ी फ़ौरन भेजो उस ने हम से क्वाइफ़ और पता, फ़ोन नम्बर पूछा तो हम परे शान कक हम औरतें होते हुए कैसे अपना नाम, पता ललखवाएं, जो बन्दा हमारे साथ गया था वो अचानक बोला: बाजी परे शान ना हों, मैं अपना

bq

नाम, पता ललखवाता हूाँ वो बहुत बड़ा कफ़नान्स ऑकफ़सर था, हम दफ़्तर से बाहर ननकले, ववदत जारी था

rg

लेककन मुझे ना मालूम ऐसे क्यूाँ महसूस हो रहा था कक वो इंसान नहीं बस्ल्क कोई नेक स्जन्न हैं क्यूंकक मैं

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अब्क़री ररसाला पढ़ती रहती हूाँ इतना मैं महसस ू ् कर सकती हूाँ कक ज़रूर ये अल्लाह की तरफ़ से मदद थी कक

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क्वाइफ़ के वक़्त अल्लाह ने हमारी इज़्ज़त बचानी थी और उस बन्दे को भेजना था। बाहर आ कर घास पर

मग़ररब की नमाज़ अदा की और उस ् कफ़नान्स ऑकफ़सर से मैं ने फ़ोन नम्बर ले ललया और कहा भाई अब

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हमारी तरफ़ से सारा मसला आप के सुपुदत अब हम दब ु ारह पुललस वाली जगा पर नहीं जाएंगे वो तीनों दोस्ट्त

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"दम दमा" की तरफ़ गए, हम दरू से दे ख रहे थे पलु लस वहा​ाँ आई हुई थी, उस शख़्स ने मआ ु कफ़यां मांगी, उस कफ़नान्स ऑकफ़सर से मुआज़रत की और कहा कक आइंदा कभी ऐसा बद्द इख़्लाक़ी वाला फ़ेअल ककसी के

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साथ नहीं करे गा, रात को मैं ने उस कफ़नान्स ऑकफ़सर को शोहर के मोबाइल से फ़ोन ककया और तमाम

w

सूरतेहाल मालूम की तो उस ने कहा कक मैं ने पुललस वालों से कहा कक इस ने मुआज़रत कर ली है । हमारा

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मक़्सद हमें अपने वज़ीफ़े की वजह से लमल गया कक आइंदा वो ककसी से बद्द इख़्लाक़ी नहीं करे गा।

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‫ا ا‬ मेरा "या क़ाददरु या नाकफ़उ" (‫)ايقا ِد ُر ااي اَن ِف ُع‬ पर इतना यक़ीन बढ़ गया है कक इस यक़ीन की वजह से नेक स्जन्नात इंसान की शक्ल में हमारी मदद को आए किर मैं ने अपनी भांस्जयों और बहनों को कहा कक दे खो ये इंसान नहीं बस्ल्क नेक स्जन्नात हैं।

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माहनामा अब्क़री अगस्त 2016 शुमारा नम्बर 122----------------pg 5

rg

मेरी बहनों और भांस्जयों ने कहा आंटी वाक़ई हम आप से इत्तफ़ाक़ करते हैं उसी ददन से मैं और सब बहनें मेरे बच्चे, भांस्जयां यही वज़ीफ़ा करते हैं जब भी मैं अकेली बैठती हूाँ इस वाकक़आ को याद कर के है रान होती

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हूाँ। मेरी तमाम क़ाररईन से इल्तजा है कक परू े यक़ीन से इस वज़ीफ़े को करें , कोई शक नहीं कक आप को अपना मक़्सद ना लमले मुझे करते हुए लसफ़त िेढ़ माह हुआ है और इतने अच्छे असरात हालसल हुए कक बयान से बाहर, बच्चे स्ज़द्द करते थे, लड़ते थे, इक्तालीस मततबा दम कर के पानी दे ती हूाँ, खाना खाते हुए मुसल्सल

bq

पढ़ते रहते हैं मुझे ख़श ु ी होती है कक मेरे छोटे छोटे बच्चों को इन दो अल्फ़ाज़ का शऊर है इसी की बरकत से

rg

अब मेरा कहना मानते हैं और लड़ते भी नहीं। मेरी इस तहरीर से क़ाररईन अगर अमल करें तो ज़रूर फ़ायदा

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पाएंगे, आप को ऐसा महसूस होगा कक आप के साथ कोई ताक़त है ये ववदत करते हुए आप ठीक लसम्त

अस्ख़्तयार करें गे। आप को अल्लाह के नेक बन्दों की ख़्वाब में ज़्यारत होगी जो कक इसी ववदत की वजह से

तक्लीफ़्दह आवाज़ें ख़त्म हो गईं

bq

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अक्सर मझ ु े हुई है । (शब्नम कामरान, कोट अद्दू)

मोहतरम हज़रत हकीम साहब अस्ट्सलामु अलैकुम! मैं अब्क़री ररसाला बहुत शौक़ से पढ़ती हूाँ। इस में

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मौजूद वज़ाइफ़् और नुस्ट्ख़ा जात ख़द ु भी करती हूाँ और दस ू रों को भी बताती हूाँ ख़ास तौर पर अल्लामा लाहूती

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पुर इसरारी का कॉलम "स्जन्नात का पैदाइशी दोस्ट्त" में ददए गए वज़ाइफ़् लाजवाब होते हैं। हमारे घर में एक

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अजीब वाकक़आ हुआ कक एक ददन मेरे कमरे में मग़ररब से शुरू हो कर एक मख़्सूस कीड़े की आवाज़ें आना

w

शुरू हो गईं और सारी रात मुसल्सल आती रहीं। ऐसा मुसल्सल तीन रात होता रहा, मैं सारी रात ना सो सकती। कुछ ददन आराम रहा किर वही अजीब सी आवाज़ आना शुरू हो जाती और मैं सारी रात ना सोती, ये काम इशा के बाद शुरू होता और फ़ज्र तक रहता। इस से अगले ददन जब वही आवाज़ आना शुरू हुई तो मैं ने

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कमरे में खड़े हो कर सात मततबा अज़ान पढ़ी और सात मततबा सूरह मुअलमनून की आख़री चार आयात पढ़ ُ ‫)اي اق اہ‬ ‫ ا‬पढ़ना शुरू कर ददया जब तक ददल में कर कमरे के चारों कोनों में िाँू क मारी और किर "या क़ह्हारु" (‫ار‬

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बेचन ै ी रही मैं "या क़ह्हारु" पढ़ती रही कक या अल्लाह अगर ये शैतानी क़ुव्वत है तो तेरे नाम की ताक़त से जल जाए और हमें कोई नुक़्सान ना पुंहचा सके और मुंह के बल गगरे । कुछ दे र पढ़ने के बाद ही वो ख़ौफ़नाक

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आवाज़ आना बन्द हो गयी और इस के बाद अल्हम्दलु लल्लाह किर कभी वो आवाज़ ् नहीं सुनी। किर मैं ने यही दजत बाला अमल परू े घर में रोज़ाना करना शरू ु कर ददया। हमारे घर में रोज़ झगड़े होते थे, लमज़ाजों में बहुत ज़्यादा तल्ख़ी होती थी, कोई ककसी से बात तक करना गवारा ना करता था मगर अब अल्हम्दलु लल्लाह

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घर के हालात में बहुत बेहतरी आई है । कभी कभी झगड़े हो भी जाते हैं मगर लमज़ाजों में तल्ख़ी बहुत कम हुई

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है । बहुत है रान होती हूाँ अक्सर महसूस होता है कक ये शायद ख़्वाब ही हो या किर कोई धोका हो लेककन हम

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वाक़ई कई बार एक साथ बैठ कर सब हाँसते, मुस्ट्कराते हैं, अक्सर बद्द गुमान होने लगती हूाँ लेककन किर

अब्क़री में मौजूद वज़ाइफ़् , अल्लाह का करम और हज़रत हकीम साहब ‫ دامت برکاتہم‬की तवज्जह याद आती

है तो ददल को समझा लेती हूाँ कक ये मुस्म्कन है और ऐसा हो भी रहा है । अल्लाह की रहमत भी हमारे घर आई

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है भाई के घर बेटी "अ" की सूरत में । अल्हम्दलु लल्लाह! "स्जन्नात के पैदाइशी दोस्ट्त" में मौजूद वज़ाइफ़् घर

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में सुकून ले आए हैं। (राकफ़आ कौसर, ख़ैरपुर मीसत)

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पाऊाँ पर चयूिंहिया​ाँ और शदीद ददस

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मोहतरम हज़रत हकीम साहब अस्ट्सलामु अलैकुम! अल्लाह तआला आप को और अब्क़री से जुड़े हर शख़्स को सेहत और लम्बी उम्र दे और इस ररसाले को ददन दग ु नी रात चस्ु नन तरक़्क़ी दे । मैं तक़रीबन छे माह से

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इस ररसाले को पढ़ रही हूाँ। मेरे ख़्याल में जो शख़्स ये ररसाला पढ़ ले उस को दन्ु या के बाक़ी तमाम रसाइल

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पढ़ना भूल जाएंगे। अगर हमारे मुल्क का हर शहरी इस ररसाले का मुतास्ल्लआ करे तो हमारे मुल्क के तमाम मसाइल ख़त्म हो जाएंगे और उस में अम्न व सुकून क़ाइम हो जाएगा। मोहतरम हज़रत हकीम साहब! मेरे साथ मसला ये था कक दो साल पहले रमज़ान से दो माह पहले मेरी अम्मी की वफ़ात हुई, उन की Page 14 of 47 www.ubqari.org

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वफ़ात के बाद मुझे िर लगना शुरू हो गया, भूक नहीं लगती थी, कुछ खाती पीती थी तो ददल ख़राब होने लगता, पट्ठों में शदीद ख़खचाव होता, भूक नहीं लगती थी, मुख़्तललफ़ िॉक्टरों की दवाएं इस्ट्तमाल की मगर

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कोई फ़क़त नहीं पड़ा, ककसी की मौत का या बीमारी का सन ु ती तो िर लगता। ख़द ु को ज़रा सी तक्लीफ़ होती मस्ट्लन पेट में , सर में ददत होता तो यूाँ लगता कक मुझे भी कोई बीमारी लगेगी तो मर जाऊंगी। पंखे के नीचे

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लेटती तो सोचती कक ये पंखा मझ ु पर गगरे गा तो मैं मर जाऊंगी। इस के बाद मेरे भाई मझ ु े एक अल्लाह वाले के पास ले कर गए उन्हों ने मुझे तीन दम ककये और पहन्ने के ललए एक तावीज़ ददया। उन के दम से मुझे कुछ फ़क़त पड़ा लेककन जब भी रमज़ान आता मेरी हालत किर वैसी ही हो जाती जबकक अब मेरी शादी हो चक ु ी

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है एक बेटा भी है ज़्यादा तर मेरे साथ यही मसला रहता। कभी कभार फ़क़त पड़ता था। दो माह पहले मेरे उल्टे

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पाऊाँ के अंगूठे में कभी सुई चभ ु ने का ददत होता था इस के बाद आदहस्ट्ता आदहस्ट्ता ददत िैलता िैलता वपंिली

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तक चला गया। बहुत से लोगों को ददखाया कोई कुछ कहता तो कोई कुछ। किर मैं ने अब्क़री दवाख़ाना से

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करामाती तेल इस्ट्तमाल ककया, स्जस से टांग का ददत तो ख़त्म हो गया मगर पाऊाँ का ददत वेसा ही था। अब

इस तरह दस ू रे पाऊाँ में भी ददत शरू ु हो गया। इस के साथ साथ पाऊाँ की एडड़यों में भी बहुत शदीद ददत होता,

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रात को जब अचानक उठती तो ज़मीन पर पाऊाँ नहीं रखे जाते, बैठ कर कोई काम करूाँ या पढ़ाँू तो पट्ठों में ऐसा

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महसस ू होता जैसे च्यंदू टया​ाँ चल रही हैं। इस के इलावा अकेले बैठ कर काम करते वक़्त या नमाज़ पढ़ते वक़्त

जब कोई पास मौजूद ना हो तो ऐसा लगता है कक जैसे मेरे पीछे कोई सांप िन िैलाए खड़ा है किर मैं थोड़ी

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थोड़ी दे र बाद पीछे दे खती हूाँ तो कोई नहीं होता। तक़रीबन दो माह से पाबंदी से नमाज़ और क़ुरआन पढ़ रही

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हूाँ। किर मैं ने अल्लामा लाहूती पुर इसरारी के मज़्मून "स्जन्नात का पैदाइशी दोस्ट्त" से दे ख कर "या

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ُ‫ا ا‬ ُ ‫ ) ااي اق اہ‬का अमल पढ़ना शुरू कर ददया और इस के साथ "या हय्यु" (‫ح‬ क़ह्हारु" (‫ار‬ ‫ )اي‬की एक तस्ट्बीह हर नमाज़ के बाद पढ़ती हूाँ। इस के इलावा "मुहम्मद-ु रत सूलुल्लाह" (‫ )حممد رسول هللا‬का एक सवा लाख मुकम्मल कर् रही

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ُ ‫)اي اق اہ‬ ‫ ا‬का नक़्श और हरूफ़ मक़ हूाँ तक़रीबन पच्चास हज़ार से ऊपर हो गया है । गले में "या क़ह्हारु" (‫ار‬ ु त्तआत

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फ़ोटो स्ट्टे ट करवा कर िाले हैं स्जस की वजह से मेरी हालत अब बहुत बेह्तर है और ददन बददन मैं बेहतरी की तरफ़ जा रही हूाँ। (नाददया, वाह कैंट)

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जिन्नात से मेरी मुलाक़ातें

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मोहतरम हज़रत हकीम साहब अस्ट्सलामु अलैकुम! अरसा दराज़ से आप का ररसाला पढ़ रही हूाँ और इस की बहुत सी अच्छी बातों से दस ू रे लोगों को भी मस्ट् ु तफ़ैज़ कर रही हूाँ। मेरी स्ज़न्दगी के ऐसे बहुत से तजब ु ातत और मुशादहदात हैं स्जन को अब्क़री

2016 शुमारा नम्बर 122----------------pg 6

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माहनामा अब्क़री अगस्ट्त

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मैं "स्जन्नात का पैदाइशी दोस्ट्त" के ख़ास नम्बर में बयान करना बहुत ज़रूरी है । इस से पहले मैं अपनी

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सुस्ट्ती और कादहली की वजह से लसफ़त सोच कर रह जाती थी मगर आज मैं ने ललखने की ठान ली है और इन ्

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शा अल्लाह अब ललखती ही रहूंगी। जनाब मोहतरम अल्लामा लाहूती परु इसरारी साहब! मैं आप से बहुत

ज़्यादा अक़ीदत रखती हूं इस ललए जब "अब्क़री" में पढ़ा कक "स्जन्नात का पैदाइशी दोस्ट्त ख़ास नम्बर" आ

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रहा है तो मैं ने सोचा क्यूाँ ना अपनी तहरीरों का लसस्ल्सला यहां से शुरू ककया जाए। स्जन्नात से मेरी सब से

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पहली मुलाक़ात "माइंि साइंसेज़" के हवाले से हुई, उस वक़्त मैं मज़्हब से बहुत दरू थी और फ़ैशन की दन्ु या

की ददल्दादह् थी। शम्मअ बीनी की मश्क़ के दौरान मुझे मोम बत्ती के शुअले में कुछ ख़ौफ़नाक शक्लें नज़र

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आईं, एक औरत ने अपना चेहरा स्ट्याह नक़ाब में छुपाया हुआ था किर मैं ने इस के बाद रात को अपने

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बबल्कुल क़रीब एक शख़्स को दे खा स्जस के मुंह पर बाल पड़े थे और ज़मीन तक आ रहे थे ये सब बातें मेरी

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स्ज़न्दगी में होती रहीं लेककन मैं ये सब समझने से क़ालसर थी। किर एक अंजाना ख़ौफ़ महसस ू होता रहा जैसे कोई मेरे साथ है लेककन नज़र नहीं आता था किर मैं ने सूरह बक़रह पढ़नी शुरू की तो कुछ हालात में बेहतरी

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आई किर अल्लाह के करम से इस्ट्लामी तालीमात पर अमल करना शुरू कर ददया। मेरे प्यारे बाबा जी अल्लामा लाहूती पुर इसरारी साहब स्जन से मैं शदीद रूहानी मुहब्बत करती हूाँ उन का ददया हुआ वज़ीफ़ा

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ُ ‫)اي اق اہ‬ ‫ ا‬पढ़ना शुरू ककया। स्जन्नात ख़्वाब में आते रहे मुझ से लड़ाइयां होती रहीं और ये जंग मैं "या क़ह्हारु" (‫ار‬ जीतती रही और वो हारते रहे । अब ये हाल है कक मैं ककसी स्जन्न भूत से नहीं िरती हूाँ। एक बेख़ौफ़ी मेरे अंदर

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आ गयी है । इस दौरान हमारे ख़ानदान पर अल्लाह का एक ख़ास फ़ज़्ल ये हुआ कक एक ननहायत नेक पाक ख़द ु ा तरस स्जन्न मेरे अब्बू के दोस्ट्त बन गए, मेरे वाललद ने भी सारी स्ज़न्दगी लोगों की बे लूस मदद की है ।

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अल्लाह ऐसे लोगों को ज़रूर अपने ख़ास इनआमात से नवाज़ता है । मेरे ललखने का मक़्सद ये है कक अच्छे स्जन्नात भी इस दन्ु या में हैं जो इंसानों से ज़्यादा इंसाननयत की फ़लाह व बहबद ू के ललए काम करते हैं, ये नेक बुज़ुगत लसफ़्त मेरे वाललद को नज़र आते हैं जब हम ककसी मुस्श्कल में गगरफ़्तार होते हैं ये हमें तसल्ली दे ते

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हैं, हमें अच्छी बातें बताते हैं, इस नेक स्जन्न बज़ ु ग ु त का लमशन मसास्जद और मदरसे तामीर करना है स्जन में

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स्जन्न व इन्स सब दीनी तालीमात से फ़ैज़्याब हो सकें। ये हमारी तरह मेहनत करते हैं और इंसानों के दख ु

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ददत में शरीक होते हैं लेककन अल्लाह की ये मख़लूक़ चाँ कू क आग से बनी है इस ललए उन बाबा जी को जब भी ककसी ने धोका दे ने की कोलशश की या उन के साथ बद्द तमीज़ी से पेश आया उस को नुक़्सान ज़रूर उठाना पड़ा। मेरे वाललद साहब के पास जब ये नेक बुज़ुगत आते हैं तो पहले कुछ आसार आने शुरू हो जाते हैं कक

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वाललद साहब को अंदाज़ा हो जाता है कक बाबा जी आने वाले हैं जैसे एक ख़ास शक्ल व सूरत की बबल्ली आ

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जाएगी स्जस से वाललद साहब समझ जाते हैं ये बुज़ुगत हमें बहुत प्यारे हैं। लमठाई के बहुत शौक़ीन हैं इस ललए

हम उन को मीठा लभज्वाते हैं, थोड़ा सा ले कर दआ ु पढ़ कर हमें खाने को दे दे ते हैं। बहुत से मवाकक़अ पर

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उन्हों ने हमें लमठाई ला कर दी है जो कक उन की ख़स ु ूसी दम की हुई होती है । मेरी बेटी को बहुत चाहते हैं और

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उस की शरारतों से ख़ब ू लत्ु फ़ अन्दोज़ होते हैं। उम्मीद है ये वाकक़आ आप ज़रूर ख़ास नम्बर में शायअ

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करें गे। मैं आइंदा भी अपने मुशादहदात तहरीर करती रहूंगी। बराहे मेहरबानी मेरा नाम शायअ नहीं

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कीस्जयेगा क्यूंकक ये बातें लसफ़त हज़रत हकीम साहब ‫ دامت برکاتہم‬की बुख़्ल ् लशकनी की वजह से ललख रही हूाँ, वरना हम ये बातें सीग़ा ए राज़ में रखते हैं। (स ्-स ्)

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माहनामा अबक़री मैगज़ीन

जल ु ाई 2016 के एहम मज़ामीन हहिंदी ज़बान में

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दरूद पाक ने ग़लत राहों से बचा सलया मोहतरम हज़रत हकीम साहब अस्ट्सलामु अलैकुम! अल्लाह आप को सेहत और तंदरु ु स्ट्ती वाली स्ज़न्दगी

rg

अता फ़मातए और आप को रूहाननयत के बुलन्द दरजात अता फ़मातए। आमीन! मोहतरम हज़रत हकीम साहब! अरसा छे या सात माह से आप का मैगज़ीन अब्क़री पढ़ रहा हूाँ और आप की तमाम रूहानी क्लास

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िाउन लोि कर के सुनी हैं और मैं ने "स्जन्नात का पैदाइशी दोस्ट्त" की दोनों स्जल्दें भी पढ़ी हैं। मैं बी कॉम का ताललब इल्म हूाँ। मझ ु े रूहानी दन्ु या दे खने और रूहानी राज़ मतलब जो इल्म सीना ब सीना चला आ रहा है उस इल्म को लेने और सीखने का बहुत शौक़ है । मैं अल्लाह पाक से दआ ु ककया करता था कक या अल्लाह

bq

मुझे ककताबी इल्म नहीं चादहए मुझे सीना ब सीना जो इल्म चलता आ रहा है वो चादहए अल्लाह ने मेरी

rg

दआ ु क़ुबूल की और मुझे माहनामा अब्क़री लमला, उस में मैं ने अल्लामा लाहूती पुर इसरारी साहब का

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लसस्ल्सला वार "स्जन्नात का पैदाइशी दोस्ट्त" की कक़स्ट्त पढ़ी जो मेरे ददल में घर कर गयी, किर मैं ने गुज़श्ता शम ु ारे नेट से िाउन लोि कर के पढ़े तो ददल को सक ु ू न लमल गया। मैं ने दरूद पाक जो "स्जन्नात का पैदाइशी

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दोस्ट्त" की अवल कक़स्ट्त में है वो पढ़ना शुरू कर ददया इस दरूद पाक की बरकत से अल्लाह ने मुझे ग़लत

bq

राहों से बचा ललया और मैं ने पांच वक़्त की नमाज़ शरू ु कर दी। दरूद पाक की कसरत से और मा​ाँ की दआ ु ओं की वजह से अल्लाह ने अब मुझे अपने आगे झुकने, सज्दा करने और क़ुरआन पाक की नतलावत करने की

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तौफ़ीक़ दी है । इसी दरूद पाक की वजह से मेरे बहुत से मसाइल हल हो रहे हैं। दरूद शरीफ़ ये है : "सल्लल्लाहु अला मुहम्मद्" ( ‫ ) محمد على هللا صلى‬मेरी दआ ु है अल्लाह सब को ज़्यादा से ज़्यादा दरूद पाक पढ़ने की

w

तौफ़ीक़ दे । आमीन। (मुहम्मद हबीब, ववहाड़ी)

w

या क़ह्हारु के फ़वाइद् व समरात

w

मोहतरम हज़रत हकीम साहब अस्ट्सलामु अलैकुम! मैं ररसाला अब्क़री बहुत शौक़ से पढ़ती हूाँ, इस में मौजूद वज़ाइफ़् ने मेरी बहुत सारी परे शाननयां ख़त्म कर दी हैं। ख़ास तौर पर अल्लामा लाहूती परु इसरारी का

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ُ ‫)اي اق اہ‬ ‫ ا‬ने मेरा बहत साथ ददया है । हमारे घर में सांप बहत ननकलते थे तो मैं बताया हुआ अमल "या क़ह्हारु" (‫ار‬ ु ु ने उन के ख़ात्मे के ललए "या क़ह्हारु" सुबह व शाम नयारह नयारह तस्ट्बीह अवल व आख़ख़र सात बार दरूद

rg

शरीफ़ के इलावा सारा ददन कसरत से पढ़ना शुरू कर ददया। सांप के ख़ात्मा के इलावा सब से बड़ा फ़ायदा मुझे ये हुआ कक इस की बरकत से अल्लाह तआला ने मुझे ज़ाललम और बे इंसाफ़ लोगों से बचा ललया। मेरा

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ररश्ता हमारे ररश्तेदारों में हुआ था, मुझे वो ररश्ता इंतहाई ना पसंद था अल्हम्दलु लल्लाह इस स्ज़क्र की बरकत से वो ररश्ता ख़त्म हो गया। वो लड़का आवारा केबल, टी वी का शौक़ीन और उस के ददल में ये था कक इस से जानवर पलवाऊंगा, जानवरों का चारह कटवाऊंगा, मेरे बड़े तीन बहन भाई ज़बरदस्ट्ती उन की ज़्यादती का

bq

लशकार हुए थे मेरी मा​ाँ राज़ी नहीं थी। अधरू ी तालीम छोड़ कर ज़बरदस्ट्ती शाददयां की थीं। अब बहनोई और

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भाभी ब्लैक मेल कर के मेरे साथ भी वही ज़्यादती करना चाहते थे। ज़बरदस्ट्ती ईदी ले कर आ जाते। कई

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दफ़ा इंकार ककया, किर ज़बरदस्ट्ती आ जाते, मेरे समेत घर का कोई फ़दत हत्ता कक घर का सरबराह मेरा बड़ा

भाई भी राज़ी नहीं था लेककन बहनोई कहते थे ये ररश्ता हमारी अना का मसला है ररश्ता तो हम ने लेना ही है । मैं रोती थी, दआ ु एं मांगती थी, मैं क़ुरआन पाक पढ़ी हुई हूाँ, दो चार स्ट्कूल की जमाअतें भी पढ़ी हैं। वो नमाज़,

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क़ुरआन, रोज़ा, तस्ट्बीह और दाढ़ी और शरीअत से दरू है , बद्द अख़लाक़ भी है , किर बस मुझे "या क़ह्हारु"

bq

ُ ‫)اي اق اہ‬ ‫ ا‬ने बचा ललया, वरना कोई रास्ट्ता ननजात का नज़र नहीं आ रहा था, जहां मेरा ररश्ता होना था वहां के (‫ار‬ सारे बच्चे ना स्ट्कूल पढ़े हैं ना क़ुरआन। गचट्टे अं पढ़ हैं, लेककन हमें म्हकूम बना कर और ग़ल ु ाम बना कर

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रखना चाहते थे लेककन इधर मैं ने "या क़ह्हारु" पढ़ा तो उन से छुटकारा लमला। मोहतरम हकीम साहब! मैं

w

बहुत ख़श ु हूाँ मेरी इस वट्टे सटे से जान छूट गयी। ये सब सो फ़ीसद "या क़ह्हारु" की बरकत है । (अ,स ्-ज)

w

बद्द समज़ाि शोहर ठीक हो गया

w

मोहतरम हज़रत हकीम साहब अस्ट्सलामु अलैकुम! अब्क़री मुझे पहली मततबा मेरी एक दोस्ट्त ने ददया। उस शम ु ारे में अल्लामा लाहूती परु इसरारी साहब के मज़्मन ू "स्जन्नात का पैदाइशी दोस्ट्त" में एक अमल "या

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ُ ‫)اي اق اہ‬ ‫ ا‬वाला ददया गया था। मैं ने और मेरी आंटी ने वो अमल अपनी पड़ोसन को पढ़ने के ललए क़ह्हारु" (‫ار‬ ददया उन को बहुत फ़ायदा हुआ उन के शोहर उन से बबल्कुल भी मुहब्बत नहीं करते और जब वो बीमार होती

rg

थीं तो उन्हें दवाई वग़ैरा तक नहीं ले कर दे ते और ना उन का हाल चाल पूछते थे जब से उन्हों ने ये अमल पढ़ना शुरू ककया तो बताती हैं कक इस अमल से अब मेरे शोहर मुझसे मुहब्बत करने लगे हैं और मेरा और

कर दे दे ते हैं। (श ्, श ्)

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बच्चों का बहुत ख़्याल रखते हैं। जब भी मुझे ककसी चीज़ की ज़रूरत होती है तो मेरे एक बार कहने पर ला

मआ ु शी मजु ककल हल हो गयी

rg

bq

मोहतरम हज़रत हकीम साहब अस्ट्सलामु अलैकुम! स्जस तरह आप दख ु ी इंसाननयत की ख़ख़दमत कर रहे

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इन ् शा अल्लाह अल्लाह तआला आप को ज़रूर अज्र दे गा। मोहतरम हज़रत हकीम साहब! मैं इस वक़्त

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बुढ़ापे की उम्र में हूाँ मैं आप के फ़मातन के मुताबबक़ ये ख़त ललख रही हूाँ क्यूंकक आप ने फ़मातया था कक अगर

ककसी को भी अब्क़री से लमलने वाले एअमाल से फ़ायदा हो तो मख़लूक़ की भलाई के ललए ज़रूर ललखें इस से

w w

ُ ‫)اي اق اہ‬ ‫ ا‬से लमला वो मैं आप की मख़लूक़ की हौसला अफ़ज़ाई होती है । जो मुझे अब्क़री और "या क़ह्हारु" (‫ار‬

bq

ख़ख़दमत में ललख रही हूाँ अगर कोई कमी बेशी हो जाए मुआफ़ कीस्जयेगा। मोहतरम हज़रत हकीम साहब!

ُ ‫ ا)اي اق اہ‬का अमल बताया था जब आप हमारे शहर में आए तो आप ने उस दसत में पढ़ने के ललए "या क़ह्हारु" (‫ار‬

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और साथ में इस के मुशादहदात व तजुबातत भी बयान फ़मातए थे। ये वज़ीफ़ा मुझे अपने हालात को दरु ु स्ट्त

w

करने के ललए बहुत अच्छा लगा और मैं ने ददल में सोचा कक वज़ीफ़ा तो छोटा सा लेककन इस के कमालात बड़े सुनने को लमले हैं चलो मैं भी इस वज़ीफ़े को अपनी मुस्श्कलात से ननजात का ज़रीया बनाती हूाँ। उस ददन से

w

अल्हम्दलु लल्लाह! मैं ने ये वज़ीफ़ा पढ़ना अपना मामूल बनाया हुआ है । इस का सब से बड़ा फ़ायदा मुझे ये

w

हुआ है कक कुछ अरसा पहले हम ने ये सोचा कक ज़ेवर बैंक में रखवा कर कुछ क़ज़ात ले कर कारोबार कर लेते हैं स्जस से हमारी ग़रु बत और घरे लू हालात ठीक हो जाएंगे लेककन ये सोच हमारी तबाही का बाइस बनी और

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बजाए फ़ायदे के हम रोज़ बरोज़ सूद की लअनत में जकड़ते गए, भाइयों ने हमारी जायदाद पर क़ब्ज़ा कर ललया, हम ककराया के मकान में आ गए घर में फ़ाक़ों की तरह हालात पैदा हो गए थे। अल्लाह का शुक्र अदा

rg

करती हूाँ कक स्जस ने पैदा ककया उस ने सबब भी बना ददया और आप के बताए हुए एअमाल और "या क़ह्हारु" के अमल की बरकत से अल्लाह पाक ने सूद के जक्कड़ और घरे लू मुआशी मसाइल से ननकाल

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ददया है और इस वज़ीफ़ा के पढ़ने से अल्लाह पाक की हम पर रहमत हुई है और मेरे काम बनना शरू ु हो गए हैं। (वाललदा अदनान, फ़ैसल आबाद)

या क़ह्हारु पढ़ा और जिन्नात की घर में आमद व रफ़त ख़त्म

rg

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मोहतरम हज़रत हकीम साहब अस्ट्सलामु अलैकुम! मैं अब्क़री ररसाला बहुत शौक़ से पढ़ती हूाँ। ख़ास तौर पर उस में मौजूद लसस्ल्सला वार कॉलम "स्जन्नात का पैदाइशी दोस्ट्त" मेरा पसंदीदह है । अब्क़री के एक

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ُ ‫)اي اق اہ‬ ‫ ا‬का अमल शुमारा में अल्लामा लाहूती पुर इसरारी साहब ने स्जन्नात से ननजात के ललए "या क़ह्हारु" (‫ار‬ बताया था। मुझे ये अमल बहुत अच्छा लगा। मैं ने अपनी परे शानीयों से ननजात के ललए या क़ह्हारु सुबह व

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शाम नयारह नयारह सो मततबा अवल व आख़ख़र सात मततबा दरूद शरीफ़ के साथ पढ़ना शुरू कर ददया। मुझे

bq

ُ ‫ ) ااي اق اہ‬वाला अमल शुरू बहुत तक्लीफ़ थी रात और ददन को बे सुकूनी थी, जब से ये वज़ीफ़ा "या क़ह्हारु" ( ‫ار‬

ककया तो इब्तदा में तो बहुत परे शानी बदातश्त करना पड़ी लेककन आदहस्ट्ता आदहस्ट्ता सब ् कुछ ठीक होना शुरू

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हो गया लेककन स्जन्नात मुख़्तललफ़ शक्लें अस्ख़्तयार करते और मुझे मुख़्तललफ़ कक़स्ट्म की बातें बना बना

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कर सुनाते थे, उन की शक्लें मुग़,त गधा, औरत व मदत , जानवर भैंस और ऊाँट वग़ैरा सी होती थीं और उन के बच्चे मुख़्तललफ़ बोललयां बोलते थे इब्तदा में तो कहते थे कक ये वज़ीफ़ा पढ़ना छोड़ दो, कभी नमाज़ को तकत

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करने का कहते थे लेककन अल्लाह तआला के फ़ज़्ल व करम से नमाज़ नतलावत और ये वज़ीफ़ा स्जसे

w

अब्क़री ररसाला में शायअ ककया गया था बाक़ाइदगी से पढ़ती हूाँ और अब एक माह चार ददन से ज़्यादा अरसा हो गया और अज़्म है कक ९१ ददन का ये वज़ीफ़ा परू ा करूाँगी इन ् शा अल्लाह! वज़ीफ़ा पढ़ने से पहले घर में स्जन्नात की आमद व रफ़्त का लसस्ल्सला मामूल था यहां तक कक रात में सोना भी हराम ककया हुआ Page 21 of 47 www.ubqari.org

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था अब अल्लाह तआला का लाख लाख शुक्र है कक रात को नींद बहुत सुकून की आती है और जो कभी कभी जोश वग़ैरा का जो दौरा पड़ता था वो भी ख़त्म हो गया है । अब माशा अल्लाह पाबन्दी के साथ तहज्जुद की नमाज़ भी अदा करती हूाँ। कभी कभी रात को िरावनी चीज़ें नम ु द ू ार हो जाती हैं लेककन क़ुदरती तौर पर

rg

ُ ‫)اي اق اہ‬ ‫ ا‬का ववदत जारी हो जाता है तो सुकून हो जाता है । (क़, म ्- नारोवाल) ज़बान पर "या क़ह्हारु" (‫ار‬

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मझ ु े जिन्नात से प्यार है !

मोहतरम हज़रत हकीम साहब और अल्लामा लाहूती परु इसरारी अस्ट्सलामु अलैकुम! मेरी दआ ु है कक आप जैसे इंसाननयत के ख़ख़दमत गारों, हमददों और मुख़ललसों को अल्लाह तआला सेहत की सलामती, ईमान की

rg

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दौलत और दश्ु मनों के शर से अपनी पनाह में रखते हुए लम्बी उम्र अता फ़मातए ता कक लोगों के साल्हा साल

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के बबगड़े हुए काम ददनों में साँवर जाएं और मुझ जैसे के ज़ख़्मों पर नमक की जगा महतम लगना शुरू हो

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जाए। आमीन सुम्म आमीन! मुझे आप के ररसाला अब्क़री में स्जस चीज़ ने सब ् से ज़्यादा मुतालसर ककया

और ख़त ललखने पर मज्बूर ककया है वो "स्जन्नात का पैदाइशी दोस्ट्त" है क्यूंकक मुझे क़ुदरती तौर पर इस

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मख़लूक़ से प्यार है और मेरी जुस्ट्तुजू है , ख़्वाब है उन से दोस्ट्ती करना और किर स्जस तरह आप इस

bq

मख़लूक़ से लमलने के बाद उन के मुतअस्ल्लक़ बताते हैं। यक़ीन करें मेरा शौक़ और बढ़ जाता है । इस में

मौजूद वज़ाइफ़् मैं बहुत शौक़ से करती हूाँ। इस में मौजूद वज़ाइफ़् ने मेरे बहुत से मसाइल हल कर ददए हैं।

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अल्हम्दलु लल्लाह अमल जारी हैं। आप अल्लाह तआला के नेक और सालेह बन्दे हैं अल्लाह तआला आप को

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लम्बी उम्र अता फ़रमाएाँ ता कक आप जैसे बुज़ुगों का साया हमेशा हमारे सरों पर क़ाइम रहे और हम सीधे

w

रास्ट्ते पर आप की रहनम ु ाई में चलते रहें । आमीन सम् ु म आमीन! (उज़्मा रानी- एबट आबाद)

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माहनामा अब्क़री अगस्त 2016 शुमारा नम्बर 122-----------------pg 8

िाद ू जिन्नात से छुिकारा समल रहा

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मोहतरम हज़रत अल्लामा लाहूती पुर इसरारी साहब अस्ट्सलामु अलैकुम! ररसाला अब्क़री में आप के ददए गए तहाइफ़् और तस्ट्बीहात जहां अवामुल्नास ् के ललए फ़ायदामन्द हैं वही​ीँ इन वज़ाइफ़् ने हमारी स्ज़न्दगी

rg

ُ ‫)اي اق اہ‬ ‫ ا‬का बदल िाली है । आज मैं क़लम उठाने के ललए इस ललए मज्बरू हुई हूाँ कक आप ने "या क़ह्हारु" (‫ار‬ वज़ीफ़ा बताया था। वो वज़ीफ़ा हम ने एक करोड़ दफ़ा पढ़ कर दहसार क़ाइम कर ललया है । तो मेरी छोटी बहन

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को अल्लाह तआला ने फ़हम व इदराक से नवाज़ा है और उसे स्जन्नात वग़ैरा नज़र आना शुरू हो गए। स्जन्नात और बद्द असरात हमारे घर में वपछले ५० साल से थे हमारी एक ररश्तेदार वपछले ५० साल से हमारे घर पर, बहन भाइयों पर और ररश्तेदारों पर काला जाद ू करवा रही हैं और अभी भी ये लसस्ल्सला जारी है , मेरी

bq

शादी के बाद भी हमारी एक ररश्तेदार ने काला जाद ू करवाना शरू ु कर ददया और मेरे बड़े बेटे की आाँखें बरु ी

rg

ُ ‫ ) ااي اق اہ‬का ववदत शुरू ककया तरह मुतालसर हुईं, उस की उम्र लसफ़त ६ साल है । हम सब ् घर वालों ने "या क़ह्हारु" (‫ار‬

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हुआ है और २५ लाख तक पढ़ ललया है । सूरह बक़रह भी बाक़ाइदगी से पढ़ी जा रही है , इस के भी ४१ ददन के

कई वज़ीफ़े मक ु म्मल कर ललए हैं। अल्लाह तआला ने आप की क़यादत में उम्मीद की ककरन पैदा की है कक

आप हमें काले जाद ू से ननजात ददलवा रहे हैं। अल्लाह पाक ने आप की वजह से हम पर नज़्र करम की है और

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हम मज़ीद चाहते हैं कक अल्लाह तआला हमेशा इन काले जाद ू के बद्द असरात और उन के करने वालों से हमें

bq

महफ़ूज़ रखे। आमीन! अल्लामा साहब! आप को अंदाज़ा नहीं है कक आप दख ु ी इंसाननयत की ककतनी

ख़ख़दमत कर रहे हैं। मेरा ये ख़त भी दख ु ी मा​ाँ का एक ऐसा ही ख़त है । मेरी नस्ट्लें आप के ललए दआ ु गो रहें गी,

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उम्मीद है कक आप इसी तरह हम जैसों पर नज़्र करम फ़मातते रहें गे। (लमस्ट्बाह ख़ाललद गुल)

w

या क़ह्हारु ने कमाल कर हदया

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मोहतरम हज़रत हकीम साहब अस्ट्सलामु अलैकुम! मैं अब्क़री ररसाला बहुत शौक़ से पढ़ती हूाँ इस में मौजद ू

w

वज़ाइफ़् पूरे यक़ीन के साथ करती हूाँ। मैं इस्ट्लाम आबाद में रहती हूाँ और मेरी अम्मी कराची में रहती हैं। जब ُ ‫ ) ااي اق اہ‬का वज़ीफ़ा पढ़ना शरू से मैं ने "या क़ह्हारु" (‫ار‬ ु ककया है मझ ु े िरावने ख़्वाब और ख़्वाब में िराने वाली

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चीज़ों ने तंग करना छोड़ ददया। वज़ीफ़ा शुरू करने से एक ददन पहले मैं ने ख़्वाब में दे खा कक मैं एक बहुत ही बड़ा घर है स्जस में कोई सामान नहीं है वो ख़ाली है उस के ग़स्ट् ु ल ख़ाने में मैं ग़स्ट् ु ल कर रही हूाँ, मुझे ऐसा

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एह्सास होता है कक यहा​ाँ कोई है , मैं जल्दी से ननकल कर अपनी गली में अम्मी के घर चली जाती हूाँ और उन को बताती हूाँ कक वहां कोई है , वो मेरी बात नहीं मानती और अम्मी और मेरी बहन मेरे साथ उस घर में आती

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है हम बहुत बड़े टी वी लाउन्ज में आते हैं, वो भी ख़ाली है , मझ ु े वहा​ाँ भी ऐसा ही महसस ू होता है और मैं चीख़ चीख़ कर आयत अल्कुसी पढ़ती ही जाती हूाँ मैं अम्मी और बहन मैन गेट पर खड़े हैं, बहन और अम्मी चप ु हैं मगर मैं आयत अल्कुसी पढ़ती जा रही हूाँ, गेट से टी वी लाउन्ज वाज़ेह नज़र आ रहा है और टी वी लाउन्ज में

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एक दम एक औरत नुमूदार होती है और मेरा हाथ पकड़ लेती है मैं बहुत ज़्यादा ही िती हूाँ लेककन आयत

rg

अल्कुसी और ज़्यादा जोश के साथ चीख़ कर पढ़ती रहती हूाँ। वो औरत कहती है कुछ भी कर लो तुम मेरा

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कुछ भी नहीं बबगाड़ सकती और वो मेरा हाथ छोड़ कर एक दस ू रे कमरे में चली जाती है और मझ ु े गेट से टी

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वी लाउन्ज में कुछ १७, १८ साल के लड़के और लड़ककयां गोल दायरे में कुलसतयों पर बैठ कर पता नहीं क्या

बातें कर रहे थे या खेल रहे थे नज़र आते हैं, किर मेरी आाँख खल ु गयी। जब से मैं ने ये ख़्वाब दे खा है इस के

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ُ ‫)اي اق اہ‬ ‫ ا‬का वज़ीफ़ा पढ़ना मज़ीद तेज़ कर ददया है और उस ददन के बाद से मुझे ना बाद से मैं ने "या क़ह्हारु" (‫ار‬

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तो कोई बुरा ख़्वाब आया है और ना ही ककसी और चीज़ ने तंग ककया है । दस या बारह ददन पहले रमज़ान में

मैं ने "या क़ह्हारु" का वज़ीफ़ा शरू ु ककया था पहली रात तो मझ ु े परू ी रात ही नींद नहीं आयी मैं जब सोती तो

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मुझे ऐसा लगता कोई मुझे धक्का मारता मैं उठ जाती थी, दस ू रे ददन मेरे पाऊाँ में शदीद तरीन ददत रहा। जब

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मैं ने "या क़ह्हारु" पढ़ा तो ददत बबल्कुल ख़त्म हो गया। अब मेरे साथ ऐसा ख़्वाब, या स्जन्नात वग़ैरा का कोई

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मसला नहीं है । (सबा ख़ान, इस्ट्लाम आबाद)

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माहनामा अब्क़री अगस्त 2016 शुमारा नम्बर 122-----------------pg 9 मौत का ख़ौफ़

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मोहतरम ् हज़रत हकीम साहब अस्ट्सलामु अलैकुम! मैं पहली बार ककसी इदारे में ख़त ललख रही हूाँ उम्मीद है कक मेरी कहानी आप अब्क़री में ज़रूर छापें गे। मेरा मसला कुछ यूाँ था कक मेरे शोहर हाकफ़ज़ क़ुरआन हैं और

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हमारी शादी को सात साल हो गए हैं, तीन बच्चे हैं दस ू रे बच्चे की पैदाइश के बाद एक रात मैं ने नमाज़ नहीं पढ़ी, कपड़े सही नहीं थे तो काफ़ी रात गुज़र चक ु ी थी, मेरी आाँख खल ु ी और मुझे िर लगने लगा ऐसा महसूस

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हुआ जैसे आस्ट्मान से कोई अाँधेरा मेरे ऊपर हावी हो रहा है और मझ ु े ख़यालात आने लगे कक अब तम् ु हारा टाइम पूरा हो गया है और अब तुम मर जाओगी इस ख़्याल में मेरी ऐसी हालत हुई कक बताने से बाहर है , बबल्कुल जैसे मौत का मंज़र मेरे सामने घूम रहा था और यक़ीनन अब मैं मर जाऊंगी, ऐसा ख़ौफ़ कक मेरा

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ब्लि प्रेशर लौ हो गया और मेरे हाथ पाऊाँ ठं िे, टांगें का​ाँप रही थीं, पेशाब ज़ोर का आया और मेरा ददल बैठने

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लगा। मेरे शोहर घर पर नहीं होते उन की ड्यूटी दस ू रे गा​ाँव में है , वो इमाम मस्स्ट्जद हैं और ददन को आठ बजे

उठाया और कहा मैं तो अब मरने वाली हूाँ मेरे शोहर को अभी बुलाओ।

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माहनामा अब्क़री अगस्त 2016 शुमारा नम्बर 122----------------pg 10

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आते हैं और दो बजे चले जाते हैं, मेरा चच्चा और भाई १४, १५ साल का वो दोनों सौए हुए थे मैं ने उन को

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वो तो मेरी हालत दे ख कर परे शान हो गए। किर बहुत ददलासे ददए लेककन उन की एक बात का भी असर मुझ पर होने वाला नहीं था। किर मेरा दे वर भी हाकफ़ज़ क़ुरआन है उस को मेरे चच्चा ले आए और उस ने मेरे

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क़रीब बैठ कर क़ुरआन पाक पढ़ना शुरू कर ददया और कहा कक अब सुकून से सो जाएं लेककन मेरी नींद उड़

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गई थी, मेरा सुकून उड़ चक ु ा था किर मैं ने बड़ी दहम्मत कर् के वज़ू ककया और नमाज़ पढ़ी और क़ुरआन पाक खोल कर पढ़ा तो कुछ मेरे ददल को तसल्ली हुई और मैं कुछ अपने क़ाबू में आई लेककन मेरी हालत सही नहीं

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थी आख़ख़र मैं ने क़ुरआन पाक को अपने लसरहाने रखा और सो गई किर ना जाने कब मुझे नींद आई उस ददन

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से ले कर आज तक इतने साल हो गए हैं लेककन कभी मझ ु े ददन को नींद नहीं आती, सारी दन्ु या थकने के बाद नींद के मज़े लेती है लेककन मैं जब भी ददन को सोने का इरादा करती हूाँ तो मुझे यही ख़्याल आता है कक अभी इज़राईल ‫ عليه السالم‬आएाँगे और फ़मातएंगे मैं तम् ु हारी रूह क़ब्ज़ करने आया हूाँ और तम ु मर जाओगी और Page 25 of 47 www.ubqari.org

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माहनामा अबक़री मैगज़ीन

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मेरी नींद उड़ जाती है । अब इस रमज़ान अल्मुबारक की २७वीं शब ् को जुमा मुबारक को मेरी दे वरानी स्जस की शादी को १० माह हुए थे और जो बेटी की पैदाइश के दौरान इंतक़ाल कर गयी उस सान्हे ने तो मुझे पागल

rg

कर ददया कक अचानक उस के ऊपर मौत आ गयी और वो दे खो ना कक उस ने कभी नमाज़ पढ़ी और ना कभी दप ु ट्टा सर पर ललया और ना ही क़ुरआन पाक को पढ़ा और किर भी वो मरी है तो कैसे महीने और ककस

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मब ु ारक रात और ककस हालत में किर जब मैं ने उस के कफ़न को हाथ लगाया और ग़स्ट् ु ल के वक़्त थोड़ा सा दे खा तो मैं क्या बताऊाँ जैसे मेरे ऊपर वही मंज़र छा गया, मेरी आाँखों से वो नहीं जाती मेरा ददल कांपने लगता और मैं बेहोशी के आलम में हो जाती। एक िर मेरे ज़ेहन से ना जाता कक क़ब्र में ना जाने क्या होगा?

bq

कैसे सवाल पूछेंगे और कैसे जवाब दें गे? उस का हाल अच्छा होगा या बुरा? बस ये मंज़र मुझे पागल कर दे ता

rg

है और मैं कहती हूाँ कक अब मैं मर जाऊंगी। हमारे घर में अब्क़री शुरू से आ रहा है , हम ने अल्लामा लाहूती

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ُ ‫)اي اق اہ‬ ‫ا‬ साहब की ककताब "स्जन्नात का पैदाइशी दोस्ट्त" घर में मंगवाईं हुई थी। इस ककताब में "या क़ह्हारु" (‫ار‬ का वज़ीफ़ा पानी वाला अमल मुझ पर मेरे शोहर ने ककया और मैं क्या बताऊाँ हकीम साहब! हाकफ़ज़ साहब

(मेरे शोहर) की दो तीन मततबा पढ़ते पढ़ते ऐसी हालत ख़राब हो गयी कक उन के हाथ रुकने लगे और ज़बान

w w

रुकने लगी लेककन उन्हों ने पढ़ना नहीं छोड़ा। ये वो चन्द ददनों से कर रहे हैं अब अल्हम्दलु लल्लाह मैं काफ़ी

bq

बेह्तर हूाँ। आज तक मेरा ककसी आलमल के ऊपर यक़ीन नहीं और अम्मी ने एक आलमल से पूछा तो उस ने कहा कक इस को स्जन्न नहीं बस्ल्क बड़ा दे व ् है इस के ज़ेहन में ख़यालात लाता है । मगर "या क़ह्हारु" के

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कफ़रोज़)

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अमल की वजह से अब मेरे ज़ेहन में ककसी कक़स्ट्म के ख़यालात बद्द नहीं आते। (हाकफ़ज़ धणी बख़्श- नोशेहरो

w

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अब्क़री के वज़ीफ़े से सुकून

मोहतरम हज़रत हकीम साहब अस्ट्सलामु अलैकुम! मैं अब्क़री ररसाला कुछ असे से पढ़ रहा हूाँ। इस में मौजूद वज़ाइफ़ ने मेरी स्ज़न्दगी से परे शाननयों को ख़त्म कर ददया है । कुछ अरसा पहले मुझे परे शाननयों ने

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ُ ‫)اي اق اہ‬ ‫ ا‬का वज़ीफ़ा ललखा हआ था। मैं ने अपनी घेरा हुआ था मैं ने अब्क़री पढ़ा, उस में "या क़ह्हारु" (‫ار‬ ु परे शाननयों से ननजात के ललए "या क़ह्हारु" पढ़ना शुरू कर ददया स्जस से मुझे बहुत ज़्यादा फ़ायदा हुआ।

rg

(मुहम्मद इनआमुल्लाह ख़ान)

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मोती मजस्िद में नवाक़फ़ल और ग़ैबी आवाज़

मोहतरम हज़रत हकीम साहब अस्ट्सलामु अलैकुम! मैं गज़ ु श्ता दो साल से आप का ररसाला और दसत सन ु रहा हूाँ। मैं बहुत से बुरे काम करता था जो मैं ने दसत और अब्क़री की वजह से छोड़ ददए मगर मैं एक लड़की से

bq

मह ु श्क़ा कई साल चला, आख़ख़रकार उस ने मझ ु े छोड़ कर ु ब्बत करता था उसे ना छोड़ सका। हमारा मआ

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ककसी और जगा शादी रचा ली। मेरे ददल को उस लड़की की वजह से सुकून नहीं लमल रहा था और मैं बहुत

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ज़्यादा बेसुकून था। इसी बेसुकूनी की वजह से मैं आप के दसत भी ना सुन सका। मगर घर में अकेले वक़्त में

जब भी वक़्त लमलता मैं दसत सुन लेता था, मगर कैकफ़यत वैसी की वैसी रहती। मैं ने इस हवाले से मोती

w w

मस्स्ट्जद में नवाकफ़ल पढ़े । कुछ ददन मैं मुसल्सल जाता रहा तो एक ददन मेरे अंदर से एक आवाज़ आई। "ऐ

अल्लाह के बन्दे इस दन्ु या में इंसान स्ज़न्दगी अल्लाह के उसल ू ों के मत ु ाबबक़ गज़ ु ारने आता है और तू ने

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क्या ककया अपनी मज़ी की स्ज़ंदगी गुज़ार दी जो गुनाहों से भरी हुई थी तू ने ख़द ु कशी कर के वो स्ज़न्दगी

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ख़त्म कर दी है अब ये वाली स्ज़न्दगी अल्लाह के उसल ू ों पर चला किर दे ख रब ककस तरह सक ु ू न दे ता है

अपना सब ् कुछ अल्लाह के हवाले कर दे और (व) जैसी लड़ककयां स्ज़न्दगी में आती रहती हैं। वो एक

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इम्तहान था जो गज़ ु र गया। अब अपना ध्यान लसफ़त अल्लाह और उस के रसल ू ‫ ﷺ‬की मह ु ब्बत पर लगा दे ।

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उस ददन के बाद मेरे ददल में अजीब सुकून पैदा हो गया। मुझे वो लड़की बबल्कुल भूल ही गयी। कभी उस का

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ख़्याल भी मेरे ज़ेहन में ना आया और मैं किर स्ज़न्दगी की तरफ़ लौट आया। इस के इलावा एक गुनाह था जो अक्सर मुझसे हो जाता था। मैं लाख कोलशश करता मगर चन्द ददन के परहे ज़ के बाद किर मुझ से वो अमल सज़तद हो जाता। मैं ने मोती मस्स्ट्जद में नवाकफ़ल अदा ककये और अल्लाह से दरख़्वास्ट्त की ऐ अल्लाह आप

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ने मुझे सीधी राह पर लगा ददया है तो मेरी ये आदत बद्द भी छुड़वा दे । अल्लाह के हुक्म से अब ये आदत तक़रीबन ख़त्म हो चक ु ी है । (प ्,अ)

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मोती मजस्िद में नूर और ख़कु बू

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मोहतरम हज़रत हकीम साहब अस्ट्सलामु अलैकुम! मैं अब्क़री ररसाला बहुत शौक़ से पढ़ती हूाँ। इस ररसाले में "स्जन्नात का पैदाइशी दोस्ट्त" मज़्मन ू मेरा सब ् से ज़्यादा पसंदीदह है । मैं ने अब्क़री में मोती मस्स्ट्जद का पढ़ा था। वपछले साल वहां जा कर नस्फ़्फ़ल पढ़े , पहले सज्दे में मुझे इतनी ज़्यादा रौशनी नज़र आई और मुझे बहुत ज़्यादा सुकून महसूस हुआ ददल चाह रहा था कक ये रौशनी कभी ख़त्म ही ना हो, फ़ौरन ऐसा हुआ

rg

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जैसे ककसी ने बटन बन्द कर ददया और रौशनी ख़त्म हो गयी। दो ददन बाद किर गयी तो इंतहाई लाजवाब

ख़श्ु बू मैं ने कभी कहीं और नहीं संघ ू ी। (सम ु ैरा, लाहौर)

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मोती मजस्िद में हर दआ ु क़ुबल ू हुई

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ख़श्ु बू आई। अब जब भी जाती हूाँ रौशनी तो उस के बाद नज़र नहीं आयी मगर ख़श्ु बू हर बार आती है ऐसी

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मोहतरम हज़रत हकीम साहब अस्ट्सलामु अलैकुम! मैं अब्क़री ररसाला बहुत शौक़ से पढ़ रही हूाँ ख़ास तौर

पर अल्लामा लाहूती पुर इसरारी साहब का मज़्मून "स्जन्नात का पैदाइशी दोस्ट्त" कभी नहीं छोड़ती।

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अल्हम्दलु लल्लाह! इस मज़्मन ू से बहुत ज़्यादा इस्ट्तफ़ादह् ककया है और सब ् से ज़्यादा नफ़ा मझ ु े मोती

मस्स्ट्जद में जा कर नवाकफ़ल पढ़ने से हुआ है , अल्लामा साहब की करम नवाज़ी है कक उन्हों ने अल्लाह की

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मख़लूक़ को ऐसे एअमाल बताए कक स्जन पर् काबतन्द हो कर लोग तकालीफ़् , दख ु ों और जाद ू से ननजात पाते

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हैं और उन्हें दआ ु एं दे ते हैं। मेरा बच्चा बेरोज़गार था, उस के इलावा भी काफ़ी मसाइल थे मैं ने मोती मस्स्ट्जद

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में जा कर नवाकफ़ल अदा ककये और अल्लाह से ख़ब ू रो रो कर दआ ु एं मांगीं अभी पंद्रह ददन हुए हैं कक मेरे बच्चे को एक प्राइवेट कम्पनी ने दब ु ई बल ु ा भी ललया है । मैं ने आज़माया है कक मैं ने अब तक मोती मस्स्ट्जद में जो भी दआ ु एं मांगी हैं अल्लाह ने क़ुबूल की हैं। अल्हम्दलु लल्लाह! (म ्-म ्-व)

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मोती मजस्िद के जिन्नात ने मेरी हहफ़ाज़त की

मोहतरम हज़रत हकीम साहब अस्ट्सलामु अलैकुम! अल्लाह तआला आप को सदा अपनी दहफ़्ज़ व अमान

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में रखे और बा बरकत लम्बी उम्र अता फ़मातए और अल्लाह तआला की अता कदत ह नवास्ज़शों से अब्क़री

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ररसाले को और हम पढ़ने वालों को नवाज़ते रहें । अल्लामा साहब का मज़्मून "स्जन्नात का पैदाइशी दोस्ट्त" बहुत शौक़ से पढ़ती हूाँ। इस में मौजूद वज़ाइफ़ ककये तो ख़्वाब में ख़ाना कअबा के पास हज़रत अबू बकर लसद्दीक़ ‫ رضي هللا عنه‬का दीदार नसीब हुआ और उन्हों ने मेरे सर पर अपना हाथ मुबारक रखा। ररसाले में

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मोती मस्स्ट्जद का अमल आने के बाद मैं ने मोती मस्स्ट्जद में जाना शुरू ककया, वहां मैं ने नवाकफ़ल अदा ककये

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और दआ ु ए ख़ैर की। कुछ ददनों बाद मैं घर काम के दौरान (आटा गूंधते हुए) जागती हालत में लसफ़त पल्कें

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झपकने पर दे खा कक दो छोटे क़द्द के साए एक बड़े क़द्द के साए को मेरा मसला बता रहे हैं और उस बड़े साए ने

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मेरी तरफ़ दे खा और उसी वक़्त मैं ने दे खा कक मेरे इदत गगदत सांप गददत श कर रहे हैं। दो छोटे क़द्द के साए बोने

मेरी परे शातनयािं, तहज्िुद और पैदाइशी दोस्त फ़ैज़

bq

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स्जन्नात और बड़े क़द्द का साया ऐसे महसूस हो रहा था जैसे मेरी दहफ़ाज़त कर रहे हैं। (स ्-श ्)

मोहतरम हज़रत हकीम साहब अस्ट्सलामु अलैकुम! आप दख ु ी लोगों की ख़ख़दमत कर रहे हैं अल्लाह आप के

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दरजात बुलन्द करे । मैं अब्क़री ररसाला बहुत शौक़ से पढ़ती हूाँ, ज़्यादा ख़श ु ी इस बात की है कक इस मैं

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वज़ाइफ़ बहुत आसान और कम वक़्त में हो जाने वाले हैं। मैं बहुत सी परे शाननयों, उल्झनों, बीमाररयों और बुराइयों में मुब्तला थी, गचड़गचड़ा पन और ग़स्ट् ु सा मुझ पर सवार रहता था, शायद टें शन की वजह से ऐसा

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था। हर कोई मझ ु े बबला वजह बरु ा कहता, लोग बग़ैर वजह से मझ ु े बरु ा समझने लगे जाते स्जस से मैं लोगों

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से दरू हो जाती और लमलना छोड़ दे ती। हालात अच्छे नहीं थे, जो थोड़े पैसे होते वो मैं आलमलों को दे आती, हर कोई जाद ू बताता, लेककन जाद ू ख़त्म कोई नहीं करता था। मैं ने ख़द ु तहज्जद ु में उठ कर वज़ाइफ़् पढ़े और रो रो कर दआ ु एं मांगीं तो मुझे ख़्वाब में तस्ट्बीहात नज़र आना शुरू हो गईं। मैं वो पढ़ने लग जाती तो Page 29 of 47 www.ubqari.org

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उस के जवाब में कोई और नज़र आती, इस तरह मेरी तमाम परे शाननयां ख़त्म हो गईं। घर लमल गया, दश्ु मनों से ननजात लमल गयी, कारोबार सही हो गया, बहन भाई जो बग़ैर वजह के मुझे छोड़ गए थे, लमलने

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लग गए। ऐसा चन्द बरस रहा। ना मालम ू वपछले साल से क्या हुआ कक मेरे साथ किर वही कैकफ़यात शरू ु हो गईं, मेरे कपड़े कट जाते, हर कोई मुझे दब ु ारह से बुरा भला कहना शुरू हो गया, अक्सर बीमार रहती, नमाज़

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पढ़ना भी मस्ु श्कल हो गया। मैं कफ़त्री तौर पर मज़हबी ज़ेहन की हूाँ मेरा ददल चाहता है कक मैं नमाज़ पढ़ाँू , क़ुरआन पाक पढ़ाँू लेककन चाहते हुए भी ऐसा नहीं कर सकती, नमाज़ें क़ज़ा होती रहती हैं। ऐसे मैं मुझे ककसी ने अब्क़री ददया, अब्क़री के वज़ाइफ़् ने मुझे बहुत सुकून ददया। ख़ास कर अल्लामा लाहूती साहब के मज़्मून

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ُ ‫)اي اق اہ‬ ‫ ا‬मैं ने सुबह व शाम नयारह नयारह "स्जन्नात का पैदाइशी दोस्ट्त" में ददया गया वज़ीफ़ा "या क़ह्हारु" (‫ار‬

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सो मततबा अवल व आख़ख़र सात सात मततबा दरूद शरीफ़ के साथ पढ़ा। इस के इलावा सारा ददन खल ु ा भी "या

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क़ह्हारु" पढ़ती हूाँ स्जस से मेरे हालात बहुत बेह्तर हो गए हैं और स्जस्ट्म बबल्कुल हल्का िुल्का हो गया है । इस के इलावा पैदाइशी दोस्ट्त मज़्मून में एक मततबा बग़दादी स्जन्न ने एक वज़ीफ़ा

ْ ‫اْ اْ ُ ا‬ "अस्ट्तस्फ़फ़रुल्लाहल ्अज़ीम ्" (‫هللا إ ل اع ِظ ْيم‬ ‫ )إستغ ِفر‬जो कक सत्तर लमनट तक मुसल्सल पढ़ना है , बताया था। मैं

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ने ये अमल ये सोच कर ककया कक शायद मेरे गन ु ाहों की वजह से मेरी परे शाननयां ख़त्म नहीं होतीं ये वज़ीफ़ा

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मोती मस्स्ट्जद के नवाकफ़ल और दीदार रसूल ‫ﷺ‬

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बहुत अच्छा रहा और इस के करने के बाद मुझे बहुत सुकून लमला। (म ्-ह्)

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मोहतरम हज़रत हकीम साहब अस्ट्सलामु अलैकुम! मैं घरे लू परे शाननयों, झगड़ों, बस्न्दशों और जाद ू स्जन्नात का लशकार थी। मेरा छोटा भाई घर में अब्क़री ले आया। मैं ने पढ़ा और किर उसे कहा कक ररसाले

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को हर माह लाज़्मी घर लाया करे । इस तरह हम मस्ट् ु तक़ल अब्क़री के क़ारी बन गए। मैं अल्लामा लाहूती परु

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इसरारी साहब का मज़्मून "स्जन्नात का पैदाइशी दोस्ट्त" बहुत शौक़ से पढ़ती हूाँ। अपने मसाइल के हल के ललए मैं ने इस में से दे ख कल्मे के पहले दहस्ट्से "ला इलाह इल्लल्लाहु" (‫ )ال إله إال هللا‬के चार ननसाब पढ़े हैं और

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"मुहम्मदरु त सूलल्लाह" (‫ )حممدرسول هللا‬के भी दो ननसाब पढ़े हैं। इस के इलावा एक दरूद शरीफ़ जो अब्क़री में छपा था "या वदद ू ु सस्ल्ल अला मुहम्मद् व आललही व अस्ट्हाबबही इन्नक रहीमुल्वदद ू "ु

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ُ ُ ْ ‫َع ُحم ا ام ْد او ٰإلِه اوإا ْ​ْااِه إِنا ا‬ ٰ ‫ ) ااي او ُد ْو ُد اصل ا‬का सोला लाख मततबा पढ़ा स्जस ददन मैं ने शरू ककया तो उस (‫َ ار ِ​ِ ْي ُم إل اود ْود‬ ु ِ ِ वक़्त मेरे कानों में एक औरत और बच्चों के रोने की आवाज़ आई लेककन किर बा रुअब मदातना आवाज़ आई

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"ख़ामोश" तो एक दम रोने की आवाज़ ख़त्म हो गयी। इस दरूद पाक से मुझे बहुत सुकून लमला। इस के इलावा कभी कभी घर में बैठे मोती मस्स्ट्जद की ननय्यत कर के नस्फ़्फ़ल भी पढ़ती हूाँ। दरूद पाक और मोती मस्स्ट्जद के नवाकफ़ल अदा करने के बाद मुझे हुज़ूर नबी करीम ‫ ﷺ‬की ज़्यारत भी नसीब हुई। इस के इलावा

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घर में कभी जवान लड़ककयां दे खती हूाँ जो मेरे पाऊाँ छू रही हैं, एक दफ़ा एक दम्यातना उम्र का मदत ग़न ु ूदगी की

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हालत में दे खा कक वो मझ ु े सलाम कर रहा है मैं सलाम का जवाब भी दे ती हूाँ और साथ ही ख़्याल आता है कक

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मैं तो पदत ह करती हूाँ ये ना मेहरम कौन है तो एक दम से वो हट जाता है । ख़्वाब में हज्र अस्ट्वद को बोसा भी ददया है और एक रात ख़्वाब में ख़द ु को पल ु लसरात पार करते दे खा है । एक ददन नमाज़ पढ़ने के बाद अभी

मुसल्ले पर ही थी कक दे खा मेरे दोनों कन्धों पर बहुत बड़ी शम्मा है और उस के साथ सब्ज़ रे शमी कपड़ा गोटे

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वाला ललप्टा हुआ है । ये सब ् चीज़ें मझ ु े दरूद पाक, कल्मा का ननसाब और मोती मस्स्ट्जद के नवाकफ़ल अदा

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करने के बाद नज़र आईं। अल्हम्दलु लल्लाह! इन वज़ाइफ़् की वजह से मेरे मसाइल हल हो रहे हैं। (श ्, ज)

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मोती मजस्िद, बुज़ुगस और मेरी कैक़फ़यात

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मोहतरम हज़रत हकीम साहब अस्ट्सलामु अलैकुम! मैं अब्क़री ररसाला तक़रीबन आठ माह से पढ़ रही हूाँ। इस ररसाले से मैं ने बहुत से वज़ाइफ़् पढ़े हैं स्जन के पढ़ने से मसले हल हुए हैं। मुझे "स्जन्नात का पैदाइशी

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दोस्ट्त" मज़्मन ू बहुत पसंद है । इस में से जब मैं ने "मोती मस्स्ट्जद" का अमल पढ़ा तो मैं नवाकफ़ल अदा करने

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मोती मस्स्ट्जद में गयी। हाजत के नवाकफ़ल अदा ककये, मुझे नस्फ़्फ़ल पढ़ते हुए बहुत अच्छी ख़श्ु बू आई थी। उस के चन्द ददन बाद मैं किर मोती मस्स्ट्जद गयी, नस्फ़्फ़ल हाजत पढ़े , तो किर बहुत तेज़ ख़श्ु बू आई, जब मैं ने दआ ु के बाद मुंह पर हाथ िैर कर आाँखें खोलीं तो सज्दे वाली जगा पर एक सफ़ेद् रं ग की तस्ट्बीह पड़ी हुई Page 31 of 47 www.ubqari.org

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थी स्जसे दे ख कर मैं है रान रह गयी, मस्स्ट्जद में मेरे लसवा और कोई नहीं था। मैं ने अल्लाह से दआ ु की ऐ अल्लाह अगर ये मेरे ललए है तो मुझे ख़श्ु बू आ जाए और वाक़ई उसी वक़्त तेज़ ख़श्ु बू आ गयी और मैं ने वो

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तस्ट्बीह उठा ली। नमाज़ के बाद मैं मस्स्ट्जद से बाहर आई तो मेरा भतीजा कहने लगा िूिो मैं ने हाथ धोने हैं तो हम वज़ू वाली जगा पर गए, अभी हम खड़े ही हुए थे कक "अल्लाह हू" की आवाज़ आई। मैं ने तेज़ी से मुड़

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के दे खा तो एक फ़क़ीर लम्बे सफ़ेद बालों वाले थे, मैं ने अपने भतीजे से कहा कक ये तो वही हैं स्जन को मैं ने रात ख़्वाब में दे खा था, मैं उन से ज़रूर लमलूंगी। किर हम उस फ़क़ीर के पास गए, तो मेरे भतीजे ने उन से अस्ट्सलामु अलैकुम कहा, तो मैं ने उन से कहा कक बाबा जी हमारे ललए दआ ु करें कक हमारी सारी मुस्श्कलात

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ख़त्म हो जाएं तो उन्हों ने मेरे सर पर हाथ रख कर कहा "अल्लाह बेहतरी करे गा।" उस फ़क़ीर से वही ख़श्ु बू

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आ रही थी जैसी मस्स्ट्जद के अंदर से आ रही थी। जहा​ाँ जहा​ाँ से मैं गुज़र रही थी वही ख़श्ु बू आ रही थी। जब

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उन्हों ने मेरे सर पर हाथ रखा तो मेरे परू े स्जस्ट्म में सन्सनी ख़ेज़ लहर उठी। मैं ने अपने भतीजे से कहा ये

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फ़क़ीर "नेक स्जन्न" हैं। तो मेरा स्जस्ट्म किर कांपने लगा, मेरे भतीजे ने मुझे कुसी पर बबठाया और मेरे ललए पानी लेने चला गया जब वो पानी ले कर आया तो वो फ़क़ीर भी उस के पीछे आने लगा था। बाद में वो एक

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दरख़्त के पास खड़ा हो कर हमें दे खने लगा और दे खे ही जा रहा था। मैं ने अपने भतीजे से कहा वो हमें दे ख

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रहा है उस ने भी उसे दे खा। बाद में पानी पी कर हम ने सामने दे खा तो एक सफ़ेद रं ग का िूल पड़ा हुआ था। उस की पांच पस्त्तयां हैं। पूरे शाही कक़ल्लए में इस तरह का िूल नहीं है । जब हम िूल को दे ख रहे थे तो

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फ़क़ीर हमें दे ख रहा था जब हम ने वो िूल उठाया तो फ़क़ीर् ग़ायब हो गया। हम ने बहुत उसे दे खा मगर वो

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ग़ायब हो गया। इस से भी ज़्यादा है रत की बात ये है कक कोई उस फ़क़ीर को नहीं दे ख रहा था सब ् लोग अपने

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आप में मगन थे। अल्लाह आप को जज़ाए ख़ैर दे । (पोशीदह्, क़सूर)

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कल्मा का तनसाब और परे शातनयािं ख़त्म मोहतरम हज़रत हकीम साहब अस्ट्सलामु अलैकुम! अल्लाह तआला की बरकतों और फ़ज़्ल के साथ आप बख़ैररयत रहें और अल्लाह तआला आप को सेहत व तंदरु ु स्ट्ती और लम्बी उम्र अता फ़मातए ता कक आप Page 32 of 47 www.ubqari.org

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अपनी आाँखों से अल्लाह तआला के इनआमात दे ख सकें और आप का साया मुबारक ता दे र तक हमारे साथ रहे । मैं ने माहनामा अब्क़री पढ़ा उम्मीद की ककरन नज़र आई, इस में जो आप ने वज़ाइफ़् वग़ैरा ललखे हैं उन

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के पढ़ने से बड़ी से बड़ी मस्ु श्कलात ख़त्म हो जाती हैं। इस ररसाले में "स्जन्नात का पैदाइशी दोस्ट्त" पढ़ा वो बहुत ही अच्छा लसस्ल्सला है । हमारे घर में बहुत ज़्यादा परे शाननयां थीं हम ने उन के हल के ललए उस में से

अहमद, कराची)

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दे ख कर कल्मा का ननसाब पढ़ना शरू ु कर ददया। इस के पढ़ने से हमारी मस्ु श्कलात ख़त्म हो रही हैं। (अतीक़

क़ाररईन के ततब्बी और रूहानी सवाल, ससफ़स क़ाररईन के िवाब

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माहनामा अब्क़री अगस्त 2016 शुमारा नम्बर 122----------------pg 13

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यक्दम ् घबराहि और पसीना: मोहतरम क़ाररईन अस्ट्सलामु अलैकुम! मैं अब्क़री बहुत शौक़ से पढ़ती हूाँ,

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मुझे दो मसले हैं। बराह मेहरबानी मुझे इन का मुअस्ट्सर हल बताइये। मसला नम्बर १: मेरी आाँखों का रं ग पीला है स्जस की वजह से मझ ु े बहुत शलमिंदगी का सामना करना पड़ता है । बराह मेहरबानी! मेरे ललए कोई

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बेह्तरीन नुस्ट्ख़ा बताइये ता कक मैं इस पीलेपन से जल्द् अज़ ् जल्द् ननजात पा सकाँू । मसला नम्बर २:

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मुझे तक़रीबन एक साल से यक्दम ् घबराहट होती है । पसीना आ जाता है । सख़्त सदी के मौसम में भी

ऐसा होता है । मुंह बहुत गमत और सुख़त हो जाता है । थोड़ी दे र बाद किर सदी लगना शुरू हो जाती है । ये

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तक्लीफ़ नमाज़ के दौरान और सोते वक़्त ज़्यादा होती है । (अमीरुस्न्नसा, अटक)

w

िवाब: अमीरुस्न्नसा! आप को दजत ज़ेल दो नुस्ट्ख़े भेज रही हूाँ यक़ीनन इस से आप भरपूर फ़ायदा

w

उठाएंगी। आप सब ु ह का नाश्ता अंगरू से करें । अंगरू पहले अच्छी तरह पानी से धो लें किर खाएं स्जस पानी

w

से अंगूर को धोएं पहले उस पानी को ख़ब ू अच्छी तरह जोश दे कर ठं िा कर लें , गग़ज़ा में ठं िी सस्ब्ज़यों का ज़्यादा इस्ट्तमाल करें । गोश्त, अंिा, मग़ ु ी, मछली है वानी गग़ज़ाएाँ तकत कर दें । तीन बड़े चम्मच ख़ाललस शहद, पांच बड़े चम्मच अस्ट्ली अक़त गुलाब से आत्शा, एक गगलास पानी में हल कर के क़द्रे ठं िा कर के पी

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ललया करें । ददन में दो बार काफ़ी है । सुबह व शाम जोहार लशफ़ा मदीना तीन तीन ग्राम पानी से िांक ललया करें । आाँखों में ख़ाललस अक़त गुलाब कुछ इस तरह िालें कक दाईं आाँख में तीन क़तरे और बाईं आाँख

rg

में दो क़तरे िालें। दस ू रे मसले का हल ये कक आप उम्दह् अस्ट्ली ख़मीरा गाओज़बान अंबरी जवाहरदार छे ग्राम सुबह खाएं। कुछ अरसा खाएं और फ़क़त ख़द ु दे खें। (अंबरीन शाह, लाहौर)

ar i.o

बाल तेज़ी से गगर रहे : मोहतरम क़ाररईन अस्ट्सलामु अलैकुम! मेरा मसला ये है कक मेरे बाल तेज़ी से गगर रहे हैं और ज़क ु ाम की वजह से बाल बहुत सफ़ेद हो रहे हैं। अज़ ् करम मेरे बालों के ललए कोई आसान घरे लू नुस्ट्ख़ा बताएं कक मेरे सफ़ेद बाल किर से काले हो जाएं। दस ू रा मसला: मेरी शादी का है कोई वज़ीफ़ा बताएं

rg

bq

कक जल्द अज़ ् जल्द मेरी शादी हो जाए। (त-ब, ख़श ु ाब)

w .u

िवाब: बहन! आप को एक आज़मूदह नुस्ट्ख़ा भेज रहा हूाँ यक़ीनन इस के इस्ट्तमाल से आप के बालों के

ar i.o

मसाइल हल हो जाएंगे। आम्ला, छोटी हरीड़, सीकाकाई, रीठा, बेरी के पत्ते और बाल्छड़ हर एक १२ ग्राम

ले कर २५० लमली ग्राम पानी में रात को लभगो दें । सुबह इस पानी में नतलों का तेल २०० लमली लीटर लमला

w w

कर हल्की आंच पर पकाएं जब पानी ननस्ट्फ़ रह जाए तो तेल को अलग कर के छान कर ककसी बोतल में

bq

भर लें। इस तेल को रात को हल्के हाथ से बालों की जड़ों में उाँ गललयों से मसाज करें । (इम्रान, कराची)

शादी के सलए: बहन आप सरू ह् आल इम्रान की पहली तीन आयात रोज़ाना ३१९ मततबा अवल व आख़ख़र

.u

सात मततबा दरूद शरीफ़ के साथ पढ़ें । अमल के बाद अल्लाह से शादी के ललए दआ ु करें । काम होने तक

w

अमल जारी रखें। इस अमल से बहुत से घर बस चक ु े हैं आप भी आज़माइये और दआ ु ओं में याद रखें।

w

इंतहाई आज़मूदह है । (मैमूना, फ़ैसल आबाद)

घुिनों में ददस : क़ाररईन! मेरी उम्र ६६ साल है , चन्द सालों से टांगों में ददत की तक्लीफ़ में मुब्तला हूाँ, इब्तदा

w

में लसफ़त घुटनों में ददत होता था बाद में कमर से नीचे सीरीन समेत टख़्नों तक दोनों टांगों की वपछली तरफ़ ददत होने लगा जो ता हाल जारी है । शरू ु शरू ु में ददत मामल ू ी था और वक़्फ़े वक़्फ़े से होता था मगर वक़्त

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गुज़रने के साथ उस में लशद्दत आती गयी और अब सरीन और उस से मुल्हक़ दोनों रानों के वपछले दहस्ट्से में हम वक़्त ददत होता है । ज़्यादा तक्लीफ़्दह बात ये है कक जब चलने लगता हूाँ तो चन्द क़दम चल लेने के

rg

बाद दोनों टांगें पैरों की जाननब से सन ु होना शरू ु हो जाती हैं और चन्द ही लम्हों में परू ी टांगें बबल्कुल शल ् और बेकार हो जाती हैं, आगे क़दम बढ़ाने के क़ाबबल नहीं रहतीं। बराह करम मेरी टांगों के इलाज के ललए

ar i.o

कोई तीर बहदफ़ दवा जो बन्द रगों को खोल दे । (ग़ल ु ाम नबी, गचत्राल)

िवाब: मेरे अंकल को भी इसी तरह का मसला था, मैं ने उन को दफ़्तर माहनामा अब्क़री से "कमर जोड़ों का ददत कोसत" ला कर कुछ अरसा मुस्ट्तक़ल लमज़ाजी से इस्ट्तमाल करवाए। इस के साथ साथ उन्हें कफ़ज़्यो

bq

थेरेपी भी करवाई। आप भी अब्क़री दवाख़ाना का कमर, जोड़ों का ददत कोसत कुछ अरसा मुस्ट्तक़ल लमज़ाजी

w .u

rg

से इस्ट्तमाल करें और कफ़ज़्यो थेरेपी ज़रूर करवाएं ताख़ीर की गुंजाइश नहीं। (अब्दरु त हमान, मुल्तान)

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मेरे दो मसले: मोहतरम अब्क़री क़ाररईन अस्ट्सलामु अलैकुम! दो मसले ललख रही हूाँ ककसी के पास कोई

आज़मूदह इलाज रूहानी या कोई टोटका हो तो बराह मेहरबानी ज़रूर बताएं। मेरा भांजा स्जस की उम्र तीन

w w

साल हो गयी है । लेककन अभी तक वो बोल नहीं रहा है । थोड़े थोड़े अल्फ़ाज़ अदा करता है लेककन कोई

bq

ख़ास ररस्ट्पांस नहीं दे ता। वेसे वो बबल्कुल नामतल है । वो बेरून मुल्क रहता है । उस की िॉक्टरी ररपोटत

बबल्कुल ठीक है कोई रूहानी इलाज, कोई टोटका कुछ भी हो तो ज़रूर बताएं। दस ू रा मसला मेरी कस्ज़न

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का है । उन की उम्र ४७ साल है , बच्पन से ही उन्हें िुल्बेहरी (बरस) का मज़त हो गया था। बहुत पुराना है ,

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कोई आज़मूदह इलाज बताएं। बहुत इलाज करवाया है । लेककन कोई भी फ़क़त नहीं हुआ। बहुत परे शान

w

स्ज़न्दगी गुज़ार रही हैं। (पल्वशा ख़ान, आज़ाद कश्मीर)

िवाब: पल्वशा! बच्चे को आप कुछ अरसा बत्तख़ के अंिे ख़खलाएं, एक ददन छोड़ कर एक ददन एक अंिा

w

ख़खला सकती हैं इन ् शा अल्लाह कुछ ही असे में बच्चा बोलना शुरू कर दे गा। लाजवाब टोटका है । िुल्बेहरी के ललए आप दफ़्तर माहनामा अब्क़री से बरस िुल्बेहरी कोसत मंगवाएं और एतमाद से कुछ अरसा

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इस्ट्तमाल करें । इन ् शा अल्लाह बहुत जल्द फ़क़त पड़ जाएगा। मैं भी यही कोसत वपछले आठ माह से इस्ट्तमाल कर रही हूाँ मुझे ६० फ़ीसद फ़क़त पड़ चक ु ा है । इस के इलावा आप हर नमाज़ के बाद एक तस्ट्बीह

rg

ُ ‫ا‬ ُ ُ ‫ا‬ "या ख़ाललक़ु या मस ु स्व्वरु या जमील"ु ( ‫ ) اايخالِق اايم اص ِو ُر ااي َج ِْيل‬पढ़ कर अपने बरस के ननशानात पर िाँू क मार ददया करें । (साददया शहज़ाद, रावलवपंिी)

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ग़ैर ज़रूरी बाल: मोहतरम क़ाररईन! मेरा मसला ये है कक मेरे सीने पर् ग़ैर ज़रूरी बाल हैं पहले तो चन्द एक ही थे मगर मैं ने तीन से चार मततबा ररमूव ककये तो ज़्यादा हो गए हैं, बराह मेहरबानी मेरे ललए कोई ऐसी दवाई या नस्ट् ु ख़ा तज्वीज़ करें ता कक मेरे ये बाल बबल्कुल ख़त्म हो जाएं ये काफ़ी बड़े हो रहे हैं और

bq

मुझे बहुत शलमिंदगी होती है। मेरी उम्र १८ साल है और क़द्द पांच फ़ुट है क्या मेरा क़द्द बढ़ सकता है । बराह

rg

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मेहरबानी मेरे दोनों मसाइल का हल मुझे ज़रूर बताएं। (स ्, श ्)

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िवाब: पंसारी से क़स्ट्त शीरीं ले कर बारीक पीस कर रख लीस्जए बाल साफ़ करने के बाद इस सफ़ूफ़् को

अच्छी तरह मललये ता कक मसामों में चला जाए। हर दस ू रे रोज़ बाल साफ़ कर के लगाइये हामोन्स का

w w

इलाज ज़रूर करवाइये, इस तरह के मसाइल हामोन्स की ख़राबी की वजह से होते हैं। क़द्द में इज़ाफ़े के

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ललए कुछ अरसा मुस्ट्तक़ल लमज़ाजी से अब्क़री दवाख़ाना का "क़द्द दराज़ कोसत" इस्ट्तमाल करें । (िॉक्टर सोबबया, लाहौर)

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क़ाररईन के सवाल क़ाररईन के िवाब

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"क़ाररईन के सवाल व जवाब" का लसस्ल्सला बहुत पसंद ककया गया ख़तूत का ढे र लग गया, मश्वरे से तय

w

हुआ वपछला ररकॉित पहले क़ाररईन तक पोहं चाया जाए जब तक ये ख़त्म नहीं होता उस वक़्त तक

w

साबबक़ा तरतीब कफ़ल्हाल कुछ अरसा के ललए मुअख़्ख़र् कर दी जाए। माहनामा अब्क़री अगस्त 2016 शुमारा नम्बर 122----------------pg 38

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क़ाररईन की ख़स ु स ू ी और आज़मद ू ह तहरीरें (क़ाररईन! आप भी बुख़्ल ् लशकनी करें आप ने कोई रूहानी, स्जस्ट्मानी नुस्ट्ख़ा, टोटका आज़माया हो और उस

rg

के फ़वाइद् सामने आए हों या आप ने कोई है रत ् अंगेज़ वाकक़आ दे खा या सन ु ा हो तो अब्क़री के लसफ़हात आप के ललए हास्ज़र हैं, अपने मामूली से तजुबे को भी बेकार ना समख़झए, ये दस ू रे के ललए मुस्श्कल का हल

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साबबत हो सकता है और आप के ललए सदक़ा ए जाररया। चाहे बे रब्त ही ललखें लसफ़हात के एक तरफ़ ललखें , नोक पलक हम ख़द ु ही संवार लेंगे।)

अल्लाह करीम से नक़द व नक़दी वाला मआ ु म्ला और बद्द नज़री

rg

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मोहतरम हज़रत हकीम साहब अस्ट्सलामु अलैकुम! मैं बाज़ार जाता तो बद्द नज़री हो जाती थी और कभी

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कभार अल्लाह करीम से नक़द व नक़दी वाला मुआम्ला भी हो जाता है यानन अच्छे , नेक अमल पर फ़ौरन

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ककसी नेअमत, ख़श ु ी का लमल जाना और ग़लती गन ु ाह करने पर मौक़ा पर नक़् ु सान या सज़ा का लमल जाना,

तो एक ददन बाज़ार में बद्द नज़री हुई तो छटी दहस्ट्स ने ख़तरे का अलामत बजा ददया, अब इस इंतज़ार में था

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कक अब कुछ ना कुछ सज़ा ज़रूर लमलेगी। मैं पैसे ननकलवाने ए टी एम ् मशीन गया जहा​ाँ पर ए टी एम ् काित,

bq

ए टी एम ् मशीन ने वापस करने से मुआज़रत कर ली। सोचा चलो आज बैंक बन्द है कल अम्ले से कह कर

ननकलवा लूंगा। अगले ददन बैंक गया तो मैिम ने कहा मोसूल होने वाले काड्तस में आप का काित नहीं है आप

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को कुछ दे र मशीन के पास इंतज़ार करना चादहए था, दे र से ननकलने पर ककसी और ने वसूल कर ललया होगा। काफ़ी सज़ा लमल चक ु ी थी वापस आ कर रात को तौबा अस्ट्तग़फ़ार ककया और ५५० मततबा "इन्ना

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‫ا ا‬ ‫ا‬ ललल्लादह व इन्ना इलैदह रास्जऊन (‫ ) إَِن ِلِل ِ اوإَِنإِل ْي ِه ارإ ِج ُع ْو ان‬पढ़ा। सब ु ह बड़े यक़ीन के साथ जा कर मैं ने अपना

w

काित मा​ाँगा। मैिम ने काित उठा कर दे ददया। उन्हें मैं ने अमल का भी बताया तो है रान रह गयी। बोली कक

w

आज सुबह एक आदमी लसक्योररटी गाित को दे कर गया है । जब भी बाज़ार जाता हूाँ तो कोलशश होती है कक बावज़ू जाऊं कक ऐसा कर लेने से बद्द नज़री नहीं होती। परु सक ु ू न तबीअत रहती है ककसी भी ग़लत काम को करने को ददल नहीं करता। ज़बान पर स्ज़क्र जारी रहता है । मैं अपने तमाम दोस्ट्तों से गुज़ाररश करता हूाँ कक Page 37 of 47 www.ubqari.org

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बाज़ार के ललए जाना हो तो लसफ़त वज़ू कर् लें। आप तमाम मुसीबतों, गुनाहों, तक्लीफ़ों से इन ् शा अल्लाह महफ़ूज़ रहें गे।

rg

िवानी बहकाती हो तो: जवानी बहुत बहकाती है , इस को लगाम, नकेल िालनी हो तो तमाम नोजवान दोस्ट्त ُ ُْ ‫ا‬ ‫ا‬ ‫ا ا ْا‬ "तऊज़" (अऊज़बु बल्लादह लमनश्शैताननरत जीलम) (‫ان إلر ِج ْي ِم‬ ु कर दें यक़ीन करें , ِ ‫ )إعوذ ِ​ِب لِل ِ ِ​ِم إلشیط‬पढ़ना शरू

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कुछ दे र पढ़ने से स्जस्ट्म के तमाम एअज़ा सुकून की हालत में आ जाएंगे और ददमाग़ से तमाम ख़रातफ़ात दरू हो जाएंगी। इस के इलावा ज़ेतून का तेल मक़अद में लगाने से ननज़ाम इन्हज़ाम की बहुत सी बीमाररयों से ननजात लमलती है । अल्हम्दलु लल्लाह! बारहा का आज़मद ू ह है । (पोशीदह्)

rg

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४५ साल से आज़मद ू ह दो नस् ु ख़े

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मोहतरम हज़रत हकीम साहब अस्ट्सलामु अलैकुम! ये १९६८ की बात है बन्दा ने मेदरक के बाद पोली

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टे स्क्नक इंस्स्ट्टट्यूट में दाख़ला ललया। दो माह बाद छुट्टी के ललए वाल्दै न से लमलने गा​ाँव पीर महल आया तो

वाललदा से अज़त की कक मुझे चन्द ददन बाद दस्ट्त लग जाते हैं उन्हों ने मुझे हाजी अली मुहम्मद साहब जो कक

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हकीम और दव ु ेश थे ररजाना स्ज़ल्ला लाइल पुर के पास भेज ददया। मैं ने मज़त बताया तो हकीम साहब ने

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काग़ज़ पर अपने हाथ से सात अश्या का नुस्ट्ख़ा तहरीर कर ददया कक पीस कर िक्की बना कर घर में रखें।

खाने के बाद तीन माशा लें। बन्दा के पास आज भी छ्यालीस साल बाद ये िक्की मौजद ू है । आज़माइश शतत

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है । हुवल ्-शाफ़ी: सौंफ़ पचास ग्राम, सुंढ पचास ग्राम, अज्वाइन पचास ग्राम, थेकड़ी नोशादर पचास ग्राम,

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काली लमचत पचास ग्राम, नमक स्ट्याह पचास ग्राम, क़ल्मी शोरा पच्चीस ग्राम। तमाम चीज़ें अच्छी तरह पीस

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कर िक्की बना लें। ख़ोराक: खाना खाने के बाद तीन माशा हमराह पानी एक हफ़्ता मुतवानतर खाएं।

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इिंडिया के हकीम ने बताया सुमास का लािवाब नुस्ख़ा: मेरे वाललद को इंडिया में ककसी हकीम साहब ने आाँख में िालने वाला सुमात का नुस्ट्ख़ा बताया था। उन्हों ने सारी स्ज़न्दगी हफ़्ता बाद एक दफ़ा लसलाई से आाँखों में िाला। ना कभी आाँख दख ु ी, ना ही ननगाह कम्ज़ोर हुई। वाललद साहब दज़ी थे। बुज़ुगत हो चक ु े थे मगर हाथ से

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सुई में धागा बड़े आराम से िाल ललया करते थे। मैं ने भी कई दफ़ा आाँख में िाला है थोड़ी दे र चभ ु ता है किर आाँख धल ु जाती है और चमक आ जाती है । रात को आाँख में िाल कर सो जाते थे। हफ़्ते में लसफ़त एक बार

rg

इस्ट्तमाल करते थे। नस् ु ख़ा: स्जस्ट्त ववलायती पाउिर दो तोले, सम ु ात तीन माशा, किटकड़ी बररया​ाँ तीन माशा, मुघां तीन माशा, समुन्दर झाग तीन माशा, सदत चीनी तीन माशा। तरीक़ा: इस को सुमे की तरह तय्यार

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ककया जाता है । एक माह लग जाता था, एक माह वपसाई करना है , तय्यारी के बाद हफ़्ते में एक दफ़ा रात को सोते वक़्त लसलाई आाँख में लगा कर सो जाएं, सुबह उठ कर पानी के छींटें मारें । (ज,र्) हमारे कुछ आज़मूदह नुस्ख़े ससफ़स क़ाररईन के सलए

rg

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मोहतरम हज़रत हकीम साहब अस्ट्सलामु अलैकुम! हमारा अब्क़री एक नायाब तोह्फ़ा है । स्जस्ट्मानी

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मसाइल हों या घरे लू उल्झनें , रूहानी मसाइल हों या दीनी मसाइल बच्चों की तबबतयत या गग़ज़ाई मश्वरे इस

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में ख़ैर ही ख़ैर है । मेरे पास इस के तमाम शुमारे महफ़ूज़ हैं जो कक एक ख़ज़ाने की तरह दहफ़ाज़त में पड़े हैं, कोई भी मसला दरपेश हो झट से ननकाल कर पढ़ लेते हैं अब ककसी के मश्वरे की ज़रूरत नहीं रहती। हम

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अब्क़री से ही मश ु ाव्रत करते हैं। अब्क़री ने हमें बहुत कुछ ददया है इस ललए हमारे पास भी कुछ आज़मद ू ह

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नुस्ट्ख़ा जात हैं जो मैं अब्क़री क़ाररईन को हद्या कर रही हूाँ यक़ीनन इस से लाखों का फ़ायदा और मेरे ललए सदक़ा जाररया होगा।

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झि पि सोहन हल्वा: सूजी एक कप, बेसन एक कप, चीनी एक कप, घी एक कप, अंिे छे अदद, काजू/बादाम

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हस्ट्बे तबीअत। तरकीब: चीनी को बारीक पीस लें , बग़ैर घी के बेसन भून लें , गोल्िन ब्राउन हो जाए तो पीस

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कर अलग कर लें। किर घी िाल कर सूजी को ख़ब ू भून लें। बेसन और सूजी को लमक्स कर लें अब इस में वपसी हुई चीनी, अंिे और काजू या बादाम लमक्स कर लें। लज़ीज़ हल्वा नाश्ते के ललए तय्यार है । नुस्ख़ा

w

कीसमया औलाद के सलए: वक़त चांदी एक दफ़्तरी, रूह केवड़ा एक शीशी, लमस्री एक पाओ, अक़त गुलाब एक पाओ, छोटी इलाइची दो तोले, तबाशीर दो तोले, सत ् गल ु ू दो तोले, संदल दो तोले, ज़हर मरू ा ख़ताई आठ

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माशे। सब ् अश्या को पहले ख़श्ु क पीस लें किर खरल में िाल कर अक़त गुलाब और रूह केवड़ा िाल कर खरल करें इतना खरल करें कक दो तीन ददन तक तमाम पानी ख़श्ु क हो जाए। किर लमस्री बारीक वपसी हुई उस ् में

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शालमल कर लें और चांदी के वक़त सारे इस में िाल कर खरल करते जाएं, इतना खरल करें कक बारीक ख़श्ु क पाऊिर बन जाएगा बोतल में िाल लें। दोनों लमयां बीवी ने नाश्ते से पहले यानन ननहार मुंह आधा आधा

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चम्मच दध ू के साथ इस्ट्तमाल करना है । इन ् शा अल्लाह अल्लाह लशफ़ा अता फ़मातएगा। ससफ़स मदस के सलए: माश की दाल आधा पाओ, बादाम इक्कीस अदद, छुहारे दो अदद, दध ू आधा ककलो। रात को कोरी हं डिया (लमट्टी का बततन) में दाल माश, बादाम और छुहारे पानी में लभगो दें । सुबह पीस कर शबतत

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माहनामा अब्क़री अगस्त 2016 शम ु ारा नम्बर 122---------------pg 40

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ददन पीना है ।

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बनाना है , किर चीनी िाल कर् सुबह ननहार मुंह पी लें। तमाम अश्या के तीन दहस्ट्से करने हैं। नोट: लसफ़त तीन

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िािंगों और िोड़ों में ददस के सलए: हुवल ्-शाफ़ी: कंड्यारी पचास ग्राम, कैप्सल ू १२ अदद। कंड्यारी को बारीक

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पीस लें और ज़ीरो साइज़ के बारह कैप्सूल भर लें। रोज़ाना एक कैस्प्सल रात को दध ू के साथ इस्ट्तमाल करें ।

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से खाएं। (रस्ज़या सल् ु ताना, कोट राधा ककशन)

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कमर और िोड़ों के सलए: आधा पाओ मेथ्रे कूट कर सफ़ूफ़् बना लें , एक छोटा चम्मच रात को नीम गमत दध ू

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आमद व ख़चस का दस्तूरुल ्अमल (उसूल) और महिं गाई का इलाि

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१) अख़राजात के ललए कोई जाइज़ ज़रीया मुआश अस्ख़्तयार करें और उस में तरक़्क़ी भी करें । २) हर आदमी की कुछ ना कुछ आम्दनी होती है इस ललए इस को अपनी ज़रूररयात पर तक़्सीम करें स्जस में इत्तफ़ाक़्या ख़चत का मद्द भी रखे लेककन फ़ज़ूललयात से बचे "कक स्जस क़दर जम जाएगा उस क़दर की आदत पड़

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जाएगी" इस तरह अपने ज़रूरी अख़राजात का बजट बना ललया करें और उस के अंदर रहते हुए ख़चत करें । ३) मुनालसब है कक आइंदा का ख़चत साबबक़ा आम्दनी से करें यानन मस्ट्लन जनवरी के आम्दनी से फ़रवरी का

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ख़चत करें और फ़रवरी की आम्दनी से माचत का। ४) मीज़ाननया (बजट) इस तरह बनाएं कक कुछ रक़्म बाक़ी बच कर पस अंदाज़ जमा भी हो सके जो सालाना ख़चत मस्ट्लन रमज़ान शरीफ़, ईदे न, ज़कात, क़ुरबानी,

ar i.o

मौसम समात की ख़ास चीज़ें, कपड़े और जत ू े वग़ैरा के काम आएं और कोई तक़रीब पेश नज़र हो, हज्ज करना हो या मकान बनाना हो तो इस से ज़्यादा पस ् अंदाज़ करें । ५) जो आदमी ललखना ना जानता हो वो पढ़े ललखे आदमी से बजट बनवाएं। ६) कभी कभी हफ़्तवार या पंद्रह ददन में अपने बजट की पड़ताल भी करें और जो

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कमी बेशी हो वो कर ललया करें । मस्ट्लन अगर कोई चीज़ ् महं गी हो गयी और आम्दनी इतनी नहीं बढ़ी तो

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कम ज़रूरी चीज़ मस्ट्लन ४ रूपए के बजाए ५ रूपए की होगी तो उस पर चार रूपए ही ख़चत करें । ७) अपने खाने

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पीने और मेहमान की ख़ानतर तवाज़अ ु करने में गंज ु ाइश से आगे ना बढ़ें और एअतदाल से काम लें। ८) वक़्त

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पड़ने पर तंगी बदातश्त करें , ककफ़ायत से गुज़ारा करें लेककन हत्ताउल ् इम्काम ककसी काम के ललए क़ज़त ना लें उधार से बचें और मांगने की आदत ना िालें। ९) स्जस तरह क़ज़त, उधार लेने से परहेज़ करें , इसी तरह क़ज़त

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उधार दे ने से भी एह्त्राज़ करें , क्यूंकक अक्सर लोगों में सफ़ाई मुआम्लात नहीं है , "और बद्द मुआल्गी से

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मआ ु श्रे की हालत जल्द ख़राब होती है ।" झट ू बोलते हैं वादा ख़ख़लाफ़ी करते हैं टाल मटोल करते हैं और बअज़

दफ़ा रक़्म हज़्म ही कर जाते हैं किर तअल्लुक़ात ख़राब होते हैं और रं स्जश पेश आती है । अल्बत्ता अगर लेने

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वाले वाक़ई हाजत मन्द हो, द्यानतदार हो और मुअतबर हो तो क़ज़त से उस की मदद करना ऐन सवाब है

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और मुह्लत दे ना इस से भी ज़्यादा सवाब है । हाथ का हुनर: साबुन बनाना, सुमात बनाना, मंजन बनाना,

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रोश्नाई बनाना, मेथी सुखा कर पैकेटों में बेचना, अम्चरू बनाना, छाललया काटना, बबस्स्ट्कट बनाना, तेल बनाना, अचार, चट्नी, मरु ब्बा बनाना, ललफ़ाफ़े बनाना, शबतत बनाना, कपड़े सीना, कपड़े रं गना, कपड़े

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छापना, स्ट्वेटर बुन्ना, कढ़ाई का काम करना, टोपी, रुमाल, जुराब, कमर बन्द बनाना वग़ैरा। इस के इलावा मग़ ु ीयां पालना गाडड़यां ख़रीद कर या मकान बना कर ककराए पर दे ना, घरों में सस्ब्ज़यां उगाना "वक़्त होने

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की सूरत में " हर आदमी को खाना पकाना, कपड़े धोना, पेवन्द लगाना और अपने जूते की मरम्मत करना भी आना चादहए। हफ़्तावारी हजामत "नाख़न ु , लबें" ख़द ु बनानी चादहयें। (उबैदल् ु लाह हक़्क़ानी, कोइटा)

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मजस्िद की ख़ख़दमत से मोह्के ख़त्म हो गए

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मोहतरम हज़रत हकीम साहब अस्ट्सलामु अलैकुम! मेरी ह्मसाई थीं, उन का बच्चा मैदरक में पढ़ रहा था। अचानक उस के चेहरे पर मोह्के ननकलना शरू ु हो गए, ये मज़त बढ़ना शरू ु हुआ। चेहरा हाथ बाज़ू और गदत न मोह्कों से भर गया। ह्मसाई अपने बच्चे को िॉक्टर के पास ले गईं, उदय ू ात इस्ट्तमाल करवाईं मगर अफ़ाक़ा ना हुआ। टोटके इस्ट्तमाल करते रहे अफ़ाक़ा ना हुआ। एक रोज़ एक फ़क़ीनी मांगने आ गयी। उस ने बच्चे के

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मोह्के दे खे तो कहने लगे ये बच्चा उदय ू ात से ठीक नहीं होगा। इस का इलाज मेरे पास शततया है , कर लो

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बच्चा ठीक हो जाएगा। फ़क़ीनी कहने लगी: सात जुमा ये अमल करना है । हर जुमा के ददन एक नई झाड़ू

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ख़रीद कर बच्चे को दें , ये जा कर मस्स्ट्जद की झाड़ू दे कर आए और झाड़ू मस्स्ट्जद में रख दे । हर जुमा को ये अमल ककया। तीसरे जुमे तक मोह्के ख़द ु बख़द ु झड़ गए। स्जस्ट्म साफ़ हो गया। मगर सात जुमे पूरे ककये।

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तमाम स्ज़न्दगी ये मज़त कभी दब ु ारह ना हुआ। अल्लाह मसास्जद की इबादात को क़ुबल ू करता है । उस बच्चे

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का मस्स्ट्जद में झाड़ू रखने और दे ने से यक़ीन इतना पुख़्ता हुआ कक वो कभी कभी मस्स्ट्जद की झाड़ू दे ता और

नई झाड़ू ख़द ु ही ख़रीद कर रख आता। जब इम्तहान होते तो वो मस्स्ट्जद की झाड़ू बाक़ाइदगी से दे ता उस का

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ररज़ल्ट बहुत अच्छा आता। बहुत बाक़ाइदगी से उस ने मस्स्ट्जद की ख़ख़दमत अपने स्ज़म्मा ले ली। हमेशा

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आला नम्बरों से काम्याब हुआ। मुलाज़्मत बहुत जल्द लमल गयी बग़ैर ककसी लसफ़ाररश के जब कभी उस बच्चे को नज़्ला या खांसी हो जाती तो मस्स्ट्जद जा कर घड़े में से पानी पीता और अपनी हस्ट्बे ख़चत के पैसों से

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पानी पीने वाला एक मटका मस्स्ट्जद में रख आता। इस अमल से उस की बीमारी ठीक हो जाती। कभी कभी

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वो मस्स्ट्जद में क़ुरआन पढ़ने वाले बच्चों के ललए टॉफ़ी या बबस्स्ट्कट ले जाता। एक बच्चे के सर में शदीद ददत होता उस की ननगाह कम्ज़ोर थी। िॉक्टर को चेक करवाया तो उस ने बादाम खाने को बताए। उस को कुछ ख़्याल आया बादाम ख़रीद कर उस बच्चे को दे आया। वो दव ु ेश ग़रीब था। अल्लाह की क़ुदरत के उस की Page 42 of 47 www.ubqari.org

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आाँखों में उन ददनों ख़ाररश थी। ख़ाररश की वजह से पढ़ने में बे हद्द तक्लीफ़ होती। जूंही उस बच्चे को बादाम ददए। दस ू रे ददन उस की आाँखों की ख़ाररश ख़त्म हो गयी। मस्स्ट्जद लसफ़त नमाज़ पढ़ने के ललए नहीं है बस्ल्क

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मस्स्ट्जद की ख़ख़दमत भी ककया करें । अल्लाह राज़ी होगा। (ज़ककया इक़्तदार, बहावलनगर)

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जिसे अल्लाह रखे उसे कौन चक्खे

ं मशीन में कपड़े धो रही ये वाकक़आ हमारे इलाक़े में २००७ में पेश आया। हुआ कुछ याँू कक एक औरत वालशग ं मशीन का ढक्कन भी खल थी, वो कहीं आगे पीछे हुई, इत्तफ़ाक़ से वालशग ु ा हुआ था मशीन में बबल्ली का बच्चा गगर गया। वो औरत वापस आई तो उस ने बबन दे खे मशीन में कपड़े िाल ददए और मशीन को चला

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ददया और अपने बाक़ी कामों में मसरूफ़ हो गयी। उस औरत ने पंद्रह बीस लमनट बाद जब मशीन का ढक्कन

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उठाया और दे खा बबल्ली का बच्चा बबल्कुल सही और स्ज़ंदा सलामत खड़ा था। कपड़े मुकम्मल धल ु े थे ु चक

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और वो बच्चा बबल्कुल तंदरु ु स्ट्त था। सच कहते हैं स्जसे अल्लाह रखे उसे कौन चक्खे। (मुहम्मद ज़ीशान

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आररफ़, क्लोरकोट)

पुर मुसरस त जज़न्दगी के ख़्वाहहकमन्द ज़रूर पढ़ें !

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हाररस बबन कल्दह अरब का एक मअरूफ़ हकीम हास्ज़क़ गुज़रा है वो कहा करता था कक जो शख़्स पुर

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मुसरत त स्ज़न्दगी का ख़्वादहश्मन्द हो उसे चादहए कक सुबह सवेरे जागे। क़ज़त से बचे। औरतों की मस्ज्लस से दरू रहे । ग़स्ट् ु से की हालत में खाना ना खाए। एक गग़ज़ा के हज़्म होने से पहले दस ू री गग़ज़ा का इस्ट्तमाल ना

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करे । सेहत की हालत में दवा को छुओ तक नहीं और बीमारी की अलामात नुमूदार हों तो उस के जड़ पकड़ने

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से पहले दवा कर लो। पानी के बारे में उस ने कहा कक पानी स्जस्ट्म के ललए लास्ज़म व मल्ज़ूम ् है लेककन इसे एअतदाल से इस्ट्तमाल करना चादहए और सो कर उठते ही पानी पीना नुक़्सान पोहं चाता है पानी साफ़ व शफ़्फ़ाफ़ पीना चादहए। (िॉक्टर नफ़ीस, मल् ु तान) Page 43 of 47 www.ubqari.org

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माहनामा अब्क़री अगस्त 2016 शुमारा नम्बर 122----------------pg 40 तीन दे सी िॉतनक और क़फ़िनेस

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(जो लोग वक़्त से पहले बढ़ ू ा ना होना चाहते हों, ददल, स्जगर, मैदे, पट्ठों और एअसाब के मरीज़ नहीं बनना

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चाहते अपनी याद्दाश्त, ताक़त और क़ुव्वत को हमेशा सदा बहार रखना चाहते हैं वो अपने स्जस्ट्म को पुर रौनक़ और परु बहार रख कर स्जस्ट्म को एक नई स्ज़न्दगी दे ना चाहते हैं, वो लोग मेरे इस टोटके को ज़रूर आज़माएाँ)

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(क़ाररईन! आप के सलए क़ीमती मोती चन ु कर लाता हूाँ और छुपाता नहीिं, आप भी सख़ी बनें और ज़रूर सलखें

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(एडि​िर हकीम मुहम्मद ताररक़ महमूद मज्ज़ूबी चग़ ु ताई)

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जब से फ़ास्ट्ट फ़ूड्ज़ ् और ब्रायलर ने हमारी स्ज़न्दगी में क़दम रखा है ना वो जवानी, ना वो ताक़त, वो हं सता

मस्ट् ु कराता चेहरा, ना वो आाँखों में चमक, ना वो हाथों में गगरफ़्त, ना वो चाल के अंदर क़ुव्वत और ताक़त,

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लेककन स्ज़न्दगी रवां दवां है और इस स्ज़न्दगी को क्या कहें गे स्जस स्ज़न्दगी में ताक़त की, जवानी की और

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क़ुव्वत की रमक़ ना हो। मेरा क़लम हमेशा कफ़त्रत के ललए उठा, मेरी ज़बान जब भी बोली कफ़त्रत के ललए बोली। मैं कफ़त्रत का हमेशा से मुत्तलाशी रहा हूाँ। कफ़त्रत मेरी ज़रूरत, कफ़त्रत मेरी चाहत और कफ़त्रत मेरी

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स्ज़न्दगी की हमेशा साथी रही, ताक़त और पावर का मअयार हमेशा हज़ारों सालों से घोड़ा रहा है स्जस को दस ू रे लफ़्ज़ों में "हॉसत पावर" कहते हैं, हॉसत के मायने घोड़ा, पावर के मायने ताक़त! क़ाररईन आप समझते हैं

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घोड़े की इस ताक़त को अगर परखें और दे खें तो इस की बुन्याद दरअसल चने हैं। एक पुराने घोड़े पालने वाले

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का मैं ने तज्ज़या सुना जो घोड़े को मारता है वो गधा है और जो गधे को नहीं मरता वो गधा है और दस ू रे बोल

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थे जो घोड़े को लसफ़त घास ख़खलाता है उसे कफ़त्रत का इल्म नहीं जो घोड़े को चने ख़खलाता है वो कफ़त्रत को जानता है । घोड़े की गग़ज़ा चने हैं, घोड़ा जब चने खाता है तो उस की क़ुव्वत ताक़त उस की एनजी हद्द से ज़्यादा बढ़ जाती है और वो बेशुमार मअरके सर अंजाम दे ता है जो बड़ी बड़ी क़ुव्वतें और ताक़तें कभी दे नहीं

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पातीं। आइये! हम आप को तीन कफ़त्रत के राज़ों से आगाह करें । ये कफ़त्रत के वो राज़ हैं जो बहुत ज़्यादा लोग पाने के मुत्तलाशी हैं। मुझे एक साहब लमले उन्हों ने ऐसे कफ़त्रत के राज़ स्जस से जवानी, ताक़त, क़ुव्वत,

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कफ़टनेस बेह्तरीन हो ऐसे तमाम राज़ों को उन्हों ने इकट्ठा कर के बैंक के लॉकर में रख ददया लेककन एक पैग़ाम भी साथ ददया कक जवानी ताक़त और कफ़टनेस की दहफ़ाज़त ऐसे की जाती है । आज कल बड़ी बड़ी

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महं गी तक़रीबात और फ़ंक्शन में आला से आला खानों की बन् ु याद जहा​ाँ बेह्तरीन डिशें हैं वहां लमज़ाज और ररवाज गुड़ की तरफ़् मुतवज्जह हो रहा है गुड़ का सादह शबतत, गुड़ के चावल, गुड़ और ज़ेतून का पका हुआ हल्वा और खाने के बाद गुड़ ये वो चीज़ें हैं स्जस की तरफ़ दन्ु या किर से मुतवज्जह हो रही है और तीसरी चीज़

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प्याज़ है मेरे वाललद साहब ‫ رحمة هللا عليه‬जो कक पुराने दौर के साइकोलॉजी में मास्ट्टर थे, तास्जर के साथ

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ज़मींदार भी थे और तबीब भी। वो फ़मातते थे: एक शख़्स मेरे पास आता था वो सो ककलो की बोरी एक हाथ से

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उठा कर कंधे पर रख लेता था उस के चेहरे पर ख़न ू ऐसे छलकता था शायद अभी उबल कर बाहर आ जाएगा।

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उस की ताक़त और क़ुव्वत यहां तक थी कक पुराने दौर की चस्क्कयों के पाट ख़ास तौर पर नीचे वाला पाट

सैंकड़ों मन वज़्नी होता था जब ककसी चक्की वाले ने अपनी चक्की की मरम्मत करनी होती थी और कई

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लोग लमल कर उस पाट को लसफ़त दहलाते थे, वो उसे बुलाते वो उस पाट को उठा कर एक तरफ़ रख दे ता और

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इस सारी ताक़त के ख़चत करने पर उस के माथे पर पसीना भी नहीं आता था। फ़मातते थे उस की सारी ताक़तों

का राज़ लसफ़त कच्चा प्याज़ था, बस वो अपनी हर खाने के साथ बहुत ज़्यादा कच्चा प्याज़ खाता था। आप

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भी खा सकते हैं आदहस्ट्ता आदहस्ट्ता उस की लमक़्दार बढ़ाएं। बस क़ाररईन ये तीन टॉननक आज मैं आप को

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दे ना चाहता हूाँ। पहला िॉतनक: चना और उस का इस्ट्तमाल ककताबों में ललखा है कक जब शाह जहान को क़ैद

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कर ददया तो उस ने एक फ़रमाइश की कक ठीक है मुझे क़ैद कर ददया है लेककन मुझे खाने में चने ज़रूर दें । वक़्त के बादशाह ने कहा मैं समझ गया कक अभी भी शाह जहान के लमज़ाज में शाही खानों की बू बाक़ी है ।

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यानन बादशाह ने चनों को शाही खाना शुमार ककया। दस ू री चीज़ गुड़ है : लेककन गुड़ वो जो िाकत हो बस्ल्क िाकत ब्राउन हो, स्जतना गड़ ु सफ़ेद होता जाएगा उतना ज़हरीला होता जाएगा और सफ़ेद होते होते सफ़ेद

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चीनी की शक्ल अस्ख़्तयार करता जाएगा यानन उस में केलमकल बहुत ज़्यादा बढ़ते चले जाएंगे स्जतना गुड़ सादह होगा उस की सफ़ेदी कम होगी बस्ल्क गहरा तेज़ रं ग होगा उतना मुफ़ीद होगा। तीसरी चीज़: प्याज़ है :

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अब आप ऐसा करें चने के आटे की रोटी लेककन चना वो हो जो नछल्के समेत हो, आटा पीस लें , दे सी घी लमला कर उस की रोटी बना कर प्याज़ क़ाट कर रोटी प्याज़ से खाएं और मज़े ले ले कर खाएं छोटे छोटे ननवाले हों,

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उस में प्याज िाल कर ख़ब ू चबा चबा कर खाएं, चाहें साथ गड़ ु भी खाते जाएं वरना बाद में हस्ट्बे तबीअत गड़ ु खाएं। क़ाररईन! अब आप ख़द ु गुमान करें इन तीन कफ़त्री क़ुव्वतों और ताक़तों की क्या ताक़त और क़ुव्वत होगी, क्या एनजी होगी और इस के अंदर क्या स्जस्ट्मानी, एअसाबी, पट्ठों की, मैदे और ददल व ददमाग़ की

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ताक़त होगी। जो लोग वक़्त से पहले बूढ़ा ना होना चाहते हों, ददल स्जगर, मैदे, पट्ठों और एअसाब के मरीज़

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नहीं बनना चाहते अपनी याद्दाश्त, ताक़त और क़ुव्वत को हमेशा सदा बहार रखना चाहते हों वो अपने स्जस्ट्म

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को परु रौनक़ और परु बहार रखना चाहते हैं वो अपने स्जस्ट्म को परु रौनक़ और परु बहार रख कर स्जस्ट्म को

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एक नई स्ज़न्दगी दे ना चाहते हैं, वो लोग मेरे इस टोटके को ज़रूर आज़माएाँ बस्ल्क अपनी स्ज़न्दगी का

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मामल ू बना लें।

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आप सोच नहीं सकते कक इन में क्या ताक़त होगी, इन में क्या क़ुव्वत होगी और इन में क्या एनजी होगी।

पुराने दौर के पेहल्वान सुबह का नाश्ता मक्खन से करते थे और दोपहर का खाना हमेशा चने की रोटी, प्याज़

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और गुड़ से करते थे बस्ल्क एक पेहल्वान ऐसा भी था स्जस ने पांच रोदटयां चने की खाईं पांच प्याज़ वड़े बड़े खाए, और तीन बड़ी िललयां गुड़ की खाईं और एक बड़ा ख़ब ू सूरत िकार ललया और ये उस की रोज़ाना की

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ख़ोराक थी। आप थोड़ी लमक़्दार लें लेककन ये चीज़ें ज़रूर लें और किर क़ुदरत की करामात दे खें।

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िनाब हािी मसऊद पारे ख की दयासहदली

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मोहतरम हाजी मसऊद पारे ख ने हस्ट्बे मामूल अपनी शफ़्क़त और सख़ावत को वसीअ करते हुए अपने घर हज़रत हकीम साहब के एअज़ाज़ में कराची के बड़े उल्लमा, सन ्अत कार और मीडिया

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के नुमाइंदों को मद्दऊ ककया। वहां हज़रत का तफ़्सीली दसत हुआ। दसत के बाद हज़रत हकीम साहब को एक ख़ास तल्वार (स्जस की धार नहीं है ) वो तल्वार जो हुज़ूर अक़्दस ् ‫ ﷺ‬की थी।

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(लमन्न व अं उस जैसी बनी हुई) वज़न, शक्ल और बनावट सो फ़ीसद उसी तल्वार की तरह परू ी मेहनत कर के बनाई गई है । दस ू रा: हुज़ूर ‫ ﷺ‬की सुख़त धाररयों वाली चादर "बुदतह यमानी" ख़ास

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उल्लमा की ज़ेर ननगरानी तय्यार की हुई, वो चादर जो हुज़ूर ‫ ﷺ‬ने इस्ट्तमाल फ़रमाई। बबल्कुल वैसी चादर साहब्ज़ादह् जनाब मौलाना अज़ीज़ुरतह्मान रहमानी के हाथों हद्या दी। तीसरा: चांदी की बनी हुई लसलाई सुमात िालने के ललए बबल्कुल इसी तरह जो हुज़ूर अक़्दस ् ‫ ﷺ‬ने इस्ट्तमाल

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फ़रमाई। ये तमाम चीज़ें और मज़ीद एक हद्या जनाब यह्या पोलानी ने अपने घर हज़रत हकीम

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साहब के एअज़ाज़ में तमाम उल्लमा कराम और मेमन एसोलसएशन के बड़े लोगों, सहाकफ़यों और

ककया।

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माहनामा अब्क़री अगस्त 2016 शुमारा नम्बर 122---------------pg 42

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एंकज़ ्त को मद्दऊ ककया। वहां हज़रत हकीम साहब को गग़लाफ़् कअबा का बड़ा टुकड़ा फ़्रेम गगफ़्ट

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