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माहनामा अबक़री मैगज़ीन
अक्टूबर 2016 के एहम मज़ामीन हहिंदी ज़बान में
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माहनामा अबक़री मैगज़ीन
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नवम्बर 2016 के एहम मज़ामीन
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हहिंदी ज़बान में दफ़्तर माहनामा अबक़री
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मज़ंग चोंगी लाहौर पाककस्ट्तान
contact@ubqari.org
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महमद ू मज्ज़ूबी चग़ ु ताई دامت برکاتہم
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एडिटर: शैख़-उल-वज़ाइफ़् हज़रत हकीम मह ु म्मद ताररक़
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मरकज़ रूहाननयत व अम्न 78/3 अबक़री स्ट्रीट नज़्द क़ुततबा मस्स्ट्िद
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फ़ेहररस्त एडिटर के क़लम से........................................................................................................................................ 3
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हाल ए हदल ................................................................................................................................................... 3 जो मैं ने दे खा सन ु ा और सोचा...................................................................................................................... 3
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मााँ को कौन ख़रीदे गा? ................................................................................................................................... 3 जेल में जा कर ज़ज़न्दगी बदली ..................................................................................................................... 6 हफ़्तवार दसस से इक़्तबास .............................................................................................................................. 6 दस ु ू करने वाली की गदस न मड़ ु गयी...................................................................... 10 ू रों के हालात की जुस्तज
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दस ू रों के हालात की जस् ु तज ु ू करने वाली की गदस न मड़ ु गयी...................................................................... 13
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काम्याबी, कामरानी और ख़द ु एतमादी पाने के गरु .................................................................................... 17
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सदस हवाओिं से बचने के बेह्तरीन गरु .......................................................................................................... 21
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ततब्बी मश्वरे ................................................................................................................................................ 25 ज़जस्मानी बीमाररयों का शाफ़ी इलाज .......................................................................................................... 25
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मेरी ज़ज़न्दगी कैसे बदली? ........................................................................................................................... 29
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अब्क़री की वेब साइट दे खते ही बन्द कर दी.............................................................................................. 29 क्या तम ु चाहते हो तम् ु हारे पास वसीअ ररज़्क़, घर और गाड़ी हो? ............................................................ 33 नफ़्स्याती घरे लू उल्झनें और आज़मद ू ह यक़ीनी इलाज ............................................................................... 36
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हकीम साहब! कोई ज़हर की पडु ड़या ही दे दो.............................................................................................. 47
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बाररश का पानी सेहत का जानी .................................................................................................................. 50
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बाररश के पानी से फ़स्टस पोज़ीशन लें .......................................................................................................... 54
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एडिटर के क़लम से
मााँ को कौन ख़रीदे गा?
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जो मैं ने दे खा सुना और सोचा
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हाल ए हदल
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हर तरफ़ ख़शु शयां, चहल पहल, हं सी मज़ाक़, ज़क़त बक़त शलबास एक बहुत ज़्यादा माल्दार और अमीर शख़्स
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की शादी स्ट्टे ि पर दल् ु हन, दल् ू हा और दल् ु हन के वाशलद वाशलदा ब्रािमान हैं। कुछ लोगों ने अपनी बारीक नज़र से महसूस ककया कक हर तरफ़ तो ख़शु शयों का सामान लेककन स्ट्टे ि पर उदासी अफ़्सुदतगी और मायूसी
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की कैकफ़यत है, वलीमा अपने आख़री मराहहल में था और खाने के खल ु ने का एअलान होने ही वाला था दल् ू हा
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ने स्ट्टे ि पर खड़े हो कर एक बुलन्द आवाज़ से सारे बारानतयों को अपनी तरफ़ मुतवज्िह ककया, उन की गरज्दार् आवाज़ ने सब ् को अपनी तरफ़ मुतवज्िह होने पर मज्बूर ककया। वो बोले: मेरी बात ग़ोर से सुनो,
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सब ् उनकी तरफ़ मुतवज्िह हुए, ख़ामोशी भी ख़ामोश हो गयी, वक़्त थम गया, उन के रवय्ये, लेह्िे और
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अंदाज़ ने मुस्ट्कराहटें एक पल में छीन लीं, उन का पुर इस्रार अंदाज़ था ही ऐसा स्िस ने सब ् मज्मअ को ख़ामोश होने पर मज्बूर कर हदया। अपनी वाशलदा के सर पर हाथ रख कर कहने लगे: मैं वाशलदा को बेचना
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चाहता हूूँ कोई है इस बूढ़ी का ख़रीदार? उन की आवाज़ क्या थी, बारानतयों पर बबिली गगर गयी, मेहमानों के अंग अंग और रूएूँ रूएूँ में संसनाहट दौड़ने लगी, चन्द लम्हों बाद किर कहने लगे: कोई है िो इस बूढ़ी का
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ख़रीदार हो? यानन मेरी वाशलदा का। तीन दफ़ा इस एअलान को दहु राया और तीन दफ़ा के बाद कहने लगे: आप भी है रान होंगे। बारानतयों को बोल्ने का मौक़ा इस शलए ना शमला कक सारा मज्मअ है रत में ऐसा िूबा कक
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उन की ज़बानों पर ताले लग गए उन की आंखें िटी की िटी रह गईं, किर ख़द ु ही दल् ू हा बोले: दरअसल हुआ ये कक पहली मुलाक़ात में मेरी बीवी ने मुझसे एक सवाल ककया, कक क्या मुझे आप की माूँ के साथ रहना होगा? मैं ने है रत से उस की तरफ़ दे खा उस की आंखों में संगहदली, सफ़्फ़ाकी और बेददी का एक मुकम्मल
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अक्स था मैं ख़ामोश हो कर कहने लगा: क्या मत्लब? कहने लगी: मत्लब वाज़ेह है मैं िवान हूूँ, आप िवान
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हैं िवानी की अपनी उमंगें, आसें और उम्मीदें होती हैं। हमेशा सुना ये है कक बूढ़े अपने बुढ़ापे की तदबीरें और
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तिब ु े बताते बताते िवानी के मज़े और एन्िॉयमें ट को ख़राब कर दे ते हैं। शलहाज़ा मैं तो आप के साथ रहना
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चाहूंगी लेककन सास के बग़ैर और दस ू रे लफ़्ज़ों में आप मेरे िीवन साथी हैं मैं आप से प्यार करती हूूँ और
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एहतराम करती हूूँ लेककन इस बढ़ ू ी के साथ मैं कभी ना रह सकंू गी। मेरा उस के घंघ ू ट की तरफ़ बढ़ा हाथ वहीं
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रुक गया, सारी रात कश्मकश, बेचन ै ी, बेकली, बेक़रारी में गुज़री, अब चकूं क मैं ने शादी कर ली है और हमारे
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हाूँ तलाक़ दे ना बहुत मआयब ू समझा िाता है , इस शलए मैं चाहता हूूँ कक मैं हूूँ, मेरी बीवी हो, हम हों हमारी
ख़शु शयां हों, प्यार हो और हमारी प्यारी नज़रें हों, हदल हो और हदलरुबाई हो, लम्हे हों और कैकफ़यात हों।
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शलहाज़ा मेरे हदल में एक प्रोग्राम आया कक इस बूढ़ी को घर से ननकाल दं ू तो कहां िाएगी, सारी उम्र मुझे दोनों
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हाथों से पाला, आि के हदन की आस में कक बेटे की शादी से सारी स्ज़न्दगी के दख ु ददत दरू हो िाएंगे। सोचा क्यूं ना इस को फ़रोख़्त कर दं ,ू वो पैसे अपनी बीवी को दं ग ू ा वो अंगूठी बनवा कर अपने हाथ में सिाए या
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चडू ड़यां बना कर अपनी कलाई में पहने और उस की छन छन उस के हदल की धड़कन को सदा स्ज़ंदा रखेगी,
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यूं उस बूढ़ी को चलो कोई एक या दो वक़्त खाना तो खखला दे गा, शलहाज़ा मैं इस बूढ़ी की बोली लगा रहा हूूँ किर उस ने अपना हाथ हटाया और अपनी उं गली माूँ के सर पर रख कर कहने लगा कोई सो रुपए में
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ख़रीदे गा, पांच सौ में लेगा, अपनी बोली को बढ़ाते हुए मज्मअ की तरफ़ नज़र की हज़ार रुपए, पांच हज़ार, दस हज़ार, अभी उस के लफ़्ज़ आगे बढ़ने ही थे कक मज्मअ में से एक बड़ी उम्र के फ़दत उठे और कहने लगे हाूँ
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मैं तय्यार हूूँ दस हज़ार दे ने पर, और वो फ़दत कौन थे? उस बढ़ ू ी के सगे भाई, और स्ट्टे ि पर आए और अपनी बहन का हाथ थामा और स्ट्टे ि से नीचे उतरे और हाल से बाहर ननकल गए। खाने धरे के धरे रह गए,
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मस्ट् ु कराहटों ने कफ़न पहन शलए, क़ह्क़हे दफ़न हो गए, चहल पहल पर खख़ज़ाूँ आ गयी, आसें उमंगें चाहतें और उम्मीदें सब ् शमट्टी में शमल गईं इस से ज़्यादा है रत ये थी कक दल् ु हन बबल्कुल मुत्मइन और अपने चेहरे पर मुस्ट्कराहट सिाए इत्मीनान से स्ट्टे ि पर बैठी सारे मज्मए को ख़ामोशी से दे ख रही थी दस ू रे लफ़्ज़ों में
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उसे स्ज़ल्लत या ख़फ़्त महसूस ना हुई दरअसल ये उस की फ़तह थी, कामरानी और शादमानी थी, हदल
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हदमाग़ की राहत थी। क़ाररईन! ये एक सच्ची कहानी है , आंखों दे खा वाकक़आ मैं ने आप के सामने बयान
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ककया, मझ ु े आप से कुछ और बातें भी करनी हैं, आखख़र वो सास शेरनी क्यंू बन िाती है बस्ल्क बबिरी शेरनी
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िब उस के सामने बहू हो, और वही सास मम्ता का रूप क्यूं धार लेती है िब उस के सामने बेटी हो, वही सास
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बहू का एक एक लक़् ु मा और एक एक क़दम उठा हुआ एक एक सांस गगनती है और वही सास अपनी बेटी के
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शलए कफ़दा कफ़दा होती है , और इश इश करती है , सुना है ससुराली मुआश्रा ज़ाशलम होता है , मुझे एक सास
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कहने लगी: मैं ने अपनी हर बहू को अपनी शादी से म्वाज़ना कर के घर में बसाया है , िब मैं िवान थी और
इस घर में आई थी उस वक़्त मेरी सास स्ज़ंदा थी, मेरी सास भी ररवायती सास थी। उस ने मेरे साथ वही
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लेह्िा, वही रवय्या, वही सख़्ती और वही अंदाज़ अस्ख़्तयार ककया। मैं सहती रही, सुनती रही लेककन अदब
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एहतराम को मैं ने कभी हाथ से ना िाने हदया। मुझे बेशुमार बीमाररयां उस कड़े माहौल की विह से लग गईं, मैं ने फ़ैसला ककया कक मैं हमेशा अपनी बहू के साथ ऐसा नहीं करूंगी, एक दाननश्वर ने बात शलखी है सेल्फ़
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मेि लोग दो में से एक हो िाते हैं या बहुत ज़्यादा नमत या बहुत ज़्यादा ज़ाशलम, क्यंकू क मआ ु श्रे के उतार
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चढ़ाव और रवय्यों ने उन्हें बहुत कुछ शसखाया होता है अब यही है या तो वो इन्तक़ाम ले या किर मुहब्बत रवादारी का अपने मातहतों और घर वालों के साथ सलूक करें । एक ये बहू है स्िस ने सास को फ़रोख़्त करा
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हदया और एक वो सास है स्िस ने बेटी को यानन बहू को ज़लील और रुस्ट्वा करना अपनी स्ज़न्दगी का शमशन और मक़्सद समझा और एक वो सास है स्िसे उस की सास ने ज़लील ककया लेककन उस ने अपनी बहूओं को
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रुस्ट्वा और ज़लील नहीं ककया। वो हर वक़्त यही कहती थी कोई हित नहीं अभी इन के सोने, खाने, पहन्ने, सेर व तफ़रीह करने और हं सी मज़ाक़ करने के हदन हैं यही वक़्त मेरे ऊपर भी आया था, मुझे मेरी सास ने ऐसा
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नहीं करने हदया उस ने मेरा दम घोंट हदया था पर मैं अपनी बहू का दम नहीं घोंटूंगी, सख ु का सांस लेना इन का हक़ है इन्हें ये हक़ ज़रूर दं ग ू ी। क़ाररईन! आइए मुआश्रे के इंसाफ़ और तवाज़ुन की स्ज़न्दगी पर चल्ने की कोशशश तो करें । अगर आप शौहर हैं तो काम्याब शौहर वही होता है िो माूँ और बीवी दोनों के साथ प्यार
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मुहब्बत और इंसाफ़ का तक़ाज़ा मुतवाज़ुन रखे। वो माूँ की मुहब्बत में बीवी को रगड़ा ना दे वो बीवी की
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मुहब्बत में माूँ बाप को बहन भाइयों को क़रीबी ररश्तेदारों को हमेशा के शलए भूल ना िाए। मुतवाज़ुन
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मआ ु श्रा ही स्ज़न्दगी की चहल पहल को बाक़ी रखता है । आइए! बेह्तरीन शौहर बन्ने की कोशशश करें और
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क़दम बढ़ाइए कक बेह्तरीन सास बन कर हदखाएं और अगला क़दम कक बेह्तरीन बहू का रूप धार लें।
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दसस रूहातनयत व अम्न
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माहनामा अब्क़री नवम्बर 2016 शुमारा नम्बर 125----------------pg3
शैख़ल् ु वज़ाइफ़ हज़रत हकीम मुहम्मद ताररक़ महमूद मज्ज़ूबी चग़ ु ताई دامت برکاتہم
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जेल में जा कर ज़ज़न्दगी बदली
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हफ़्तवार दसस से इक़्तबास
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आफ़फ़यत वाली हहदायत: बअज़ औक़ात बन्दे के साथ कई ऐसे मुआम्लात आते हैं कक बन्दा उन्हें समझ
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नहीं पाता। हमारे एक साथी हैं वो ककसी ग़ैर मुल्क में िेल में थे। वहां उन्हों ने छे माह में क़ुरआन पाक तिुम त ा व तफ़्सीर के साथ ख़त्म ककया और किर उन के अंदर बहुत तब्दीली और बड़ा इंक़लाब आया। इस
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शलए अल्लाह से दआ ु मांगनी चाहहए "इलाही तू बग़ैर स्ज़ल्लत व रुस्ट्वाई के, बग़ैर परे शानी के आकफ़यत के साथ अपनी नेअमत, तअल्लुक़ और अपनी मुहब्बत अता कर दे ।" िेल में िा कर स्ज़न्दगी बदली तो भी
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ठीक है, लेककन वो बड़ा करीम है िेल के बग़ैर भी स्ज़न्दगी का रुख़ बदल सकता है । आकफ़यत वाली नेअमत बड़ी मुस्श्कल से शमलती है और बड़ी आसानी से नछनती है । बरकत व आफ़फ़यत, दो एहम
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नेअमतें : दो चीज़ें इंतहाई एहम हैं एक "बरकत' और दस ू री "आकफ़यत" और हम इन दो चीज़ों के बग़ैर चल नहीं सकते। सारी दन्ु या के ख़ज़ाने हमें माल्दार नहीं कर सकते िब तक हमारा रब ना चाहे । हमारे बुज़ुगत साथी इशातद साहब िि के रीिर थे अभी ररटायर हो गए हैं बड़े तक़्वा वाले और बड़े अल्लाह
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वाले हैं। एक दफ़ा िि साहब ने इशातद साहब से कहा कक मेरी चालीस हज़ार तनख़्वाह बीस तारीख़ के बाद
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ख़त्म हो िाती है । इशातद साहब! आप की तनख़्वाह ककतने हदन ननकालती है ? इशातद साहब कहने लगे!
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मेरी आठ हज़ार तनख़्वाह में क़ुदरत ने इतनी बरकत रखी है कक मैं ने बच्चों की शाहदयां की हैं मोटर
साईकल भी ख़रीदी है । िि साहब है रान हो कर पछ ू ने लगे "ये कैसे मस्ु म्कन है ?" तो इशातद साहब ने कहा
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रब्बुल ्इज़्ज़त ने मेरे ररज़्क़ में बरकत िाल दी है । मेरा क़लम छे साल हो गए हैं अभी तक चल रहा है , पांच साल इस ित ू ी को हो गए हैं, कपड़े इतने साल परु ाने हैं। ये फ़लां चीज़ को इतना अरसा हो गया ये करीम
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की बरकत है और इस में आकफ़यत भी है कक अल्लाह ने इस को तोड़ा नहीं, मोड़ा नहीं और इस के अंदर अल्लाह ने नफ़ा वाली शसफ़्फ़त रखी है । सारी दन्ु या का माल हमें अमीर नहीं कर सकता सारी दन्ु या का
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पैसा हमारा क़ज़त उतार नहीं सकता, िब तक हमारा रब ना चाहे और हमारा क़ज़ात तब उतरे गा, हमारे
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ररज़्क़ में , माल में बरकत तब आएगी, हमारी मुस्श्कलें तब हल होंगी िब हमारा रब चाहे गा, ये सब ् एक
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ननज़ाम के तहत होता है और वो ननज़ाम बरकत वाला और आकफ़यत वाला ननज़ाम है स्िस से हमारा काम
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बनेगा वरना हमारा काम कभी नहीं बनेगा।
और जब आफ़फ़यत तिन गयी: मैं सफ़र से आया तो अपने ससुराल गया। मेरे अज़ीज़ मुझ से कहने लगे! हमारे पड़ोस में एक घर है । उस घर का माशलक पहले माल्दार था। अब बेचारा माज़रू है । गली में वील Page 7 of 56 www.ubqari.org
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चेयर पर बैठ कर सीख़ बनाता और बाज़ार में बेचता है । मैं ने कहा: चलें उस की इयादत कर लेते हैं। ढाई मले का घर वो भी ककराए का शलया हुआ। मुझे अंदर ले गए, मैं ने उन से अह्वाल के बारे में पूछा! िवाबन
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कहने लगे! कक "तक़रीबन १५ साल हो गए हैं बबस्ट्तर पर पड़ा हूूँ। पहले मेरी लक्ष्मी चोक में माशाअल्लाह नतक्का शॉप के नाम से दक ु ान थी एक हदन मैं बैठा हुआ था। दो नोिवान आये कढ़ाही खाने। उस वक़्त
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कढ़ाही िेढ़ सौ (१५०) की बनती थी। वो सौ (१००) दे ने लगे। मैं ने कहा िी िेढ़ सौ (१५०) की है । काफ़ी ले दे कर के िेढ़ सौ दे कर चले गए। थोड़ी दे र के बाद वो दोनों गाड़ी में आए और मुझे गोली मारी, गोली एक कंधे से दस ू रे कंधे पार हो गयी, मेरी रीढ़ की हड्िी मुताशसर हुई, उस के अंदर का हराम मग़ज़ कट गया
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था। इस विह से अस्ट्पताल में रहा। इस के बाद मेरी दक ु ान चल्ती तो रही लेककन मेरा पैसा खाने वाले
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दक ु ान का नफ़ा खाते रहे और मुझ से ख़ता ये हुई कक मैं सूद पर पैसा ले कर दक ु ान के बबल ् अदा करता
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रहा। कहने लगे! कुछ अरसे बाद वही दो नोिवान स्िन्हों ने मझ ु े गोली मारी थी, एक एक कर के क़त्ल हो
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गए। किर मैं ने एक साहब को अपनी दक ु ान पच्चास लाख में फ़रोख़्त की। उस ने मुझसे स्ट्टाम्प शलखवा
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शलया। मझ ु ब्बत दी। लेककन ु े भाई बना शलया। मेरी बीवी को बहन बना शलया। बहुत मरु व्वत की। बहुत मह
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बक़ाया के अट्ठाइस लाख मुझे नहीं हदए। कुछ अरसे के बाद उस का भी कहीं झगड़ा हुआ मुआम्ला कोटत में
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गया और वो अभी तक िेल में पड़ा हुआ है । मकाफ़ात ए अमल का शसस्ल्सला भी साथ शरू ु हो रहा है । अब
सूरतेहाल ये है कक बहुत ज़्यादा क़ज़े की अदायगी सर पर है । हालांकक मैं ने अक्सर क़ज़ात अदा भी कर
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हदया है । पच्पन लाख का मकान बेचा, पच्चास लाख की दक ु ान बेची, सारा समातया ख़त्म हो गया। क़ज़े में
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दक ु ान भी ख़त्म हो गयी। अभी तक मैं िेढ़ से पोने दो लाख का मक़रूज़ हूूँ। घर के कुछ अख़रािात हैं, अब टै क्सी है , बड़ा बेटा रात में और छोटा बेटा िो चौदह साल का है वो हदन में चलाता है और इस तरह
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स्ज़न्दगी का ननज़ाम चल रहा है । मैं ने पछ ू ा वेसे आप की आम्दनी ककतनी थी? कहने लगे: "उस वक़्त
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चौदह, पन्रह हज़ार मेरी रोज़ाना की आम्दनी थी, मेरी बेह्तरीन ररहाइश थी, बेह्तरीन गाडड़यां थीं, लेककन िब आकफ़यत का ननज़ाम नछन गया तो मेरा सब ् कुछ नछन गया।" मशशय्यत ख़द ु ावन्दी और हमारे इरादे :
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मैं ईद वाले हदन घर से कुछ अह्बाब की और कुछ ग़रीब लोगों की ख़ैर ख़ैररयत लेने ननकला, एक साहब की मेहरान कार थी उस में गया। मेरे दरू के ररश्तेदार थे, मैं दाननस्ट्ता उन के घर िाना नहीं चाहता था
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क्यूँकू क वो ग़रीब हैं, लेंगे कुछ नहीं और मरु व्वत में अच्छा ख़ासा ख़चात भी कर लेंगे। लेककन क़ुदरत बड़ी ताक़त्र है उन्ही के घर के सामने गटर में गाड़ी का टायर चला गया। अब िो साथी ननकालने लगे, तो
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ड्राइवर ने एक्सीलेटर पर दबाव बढ़ा कर िो वील घम ु ाया तो सारा कीचड़ उन के कपड़ों पर लग गया िो कार ननकलवा रहे थे। वहीं उनका बेटा कहीं खड़ा हुआ था। वो मुझे मामूँू मामूँू पुकारता हुआ आ गया। अब उस ने गटर में से गाड़ी भी ननकाल ली। मैं ने हदल ही हदल में कहा अल्लाह तो बड़ा क़ाहदर है । किर मैं ने
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उस से कहा चल भई घर िा कर पानी वाला पाइप लाओ और इन के कपड़े तो धो दो। इस तरह मुझे उन
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के घर िाना पड़ा। ख़ैर वो तो अल्लाह का ननज़ाम है । उन के घर गया तो अल्लाह पाक ने उन का एक
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मसला था वो अल्लाह ने हल ् फ़मात हदया। (िारी है )
(अनोखे रूहानी वज़ाइफ़् आए राज़ ए ववलायत पाने के शलए ख़त्ु बात अब्क़री मक ु म्मल सेट का
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दसस से फ़ैज़ पाने वाले
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मुतास्ल्लआ करें ।)
मोहतरम हज़रत हकीम साहब अस्ट्सलामु अलैकुम! अब्क़री ररसाला पहली मततबा मेरी अहशलया घर लाईं,
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अल्लाह उसे िज़ाए ख़ैर दे । तब से हम तमाम घरवाले अब्क़री के दीवाने हैं। अब्क़री से ही हमें आप के
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दसत रूहाननयत व अम्न के बारे में मालूम हुआ। आप का दसत या ररसाला अब्क़री स्िस शख़्स ने सुन और पढ़ शलया वो उस का रशसया हो िाता है , मैं ने ये तिुबात कई लोगों पर ककया है , स्िस को भी थोड़ा सा दसत
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मोबाइल पर सुना हदया वो अल्लाह के हुक्म से ऐसे दसत की तलब करता है कक बग़ैर दसत सुने वो रह ही
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नहीं सकता। एक नहीं दितनों आदशमयों को दे ख चक ु ा हूूँ और ऐसा राह रास्ट्त पर आता है कक किर भटकता नहीं। घरे लू मसाइल हल होते हैं, कारोबारी मस्ु श्कलात ख़त्म हुईं। ख़द ु मेरे साथ भी ऐसा ही हुआ था। आप
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के दसत से भरपूर फ़ैज़ शमल रहा है । बअज़ औक़ात हदल ऐसा करता है कक उड़ कर िनाब की ज़्यारत कर िाऊं और ख़यालात में भी आप छाए रहते हैं। (म ्-अ, पाकपतन)
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माहनामा अब्क़री नवम्बर 2016 शुमारा नम्बर 125----------------pg 4
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दस ु तज ु ू करने वाली की गदस न मड़ ु गयी ू रों के हालात की जस्
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(िैसे ही वो बद्द बख़्त शख़्स मस्स्ट्िद से बाहर ननकला, तो बबल्कुल ही अचानक एक पागल ऊंट कहीं से
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दबाया कक उस की पसशलयों की हड्डियां चरू चरू हो गईं और वो फ़ौरन ही मर गया)
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दौड़ता हुआ आया और उस को दांतों से वपछाड़ हदया और उस के ऊपर बैठ कर उस को इस क़दर ज़ोर से
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(अबू लबीब शाज़्ली)
अल्लाह को अपने प्यारों की तौहीन हर्गसज़ पसिंद नहीिं!: एक शख़्स हज़रत सअद बबन अबी वक़ास رضي هللا
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عنهके सामने सहाबा कराम رضوان هللا عليهم أجمعينकी शान में गस्ट् ु ताख़ी व बे अदबी के अल्फ़ाज़ बकने लगा।
आप رضي هللا عنهने फ़मातया कक तुम अपनी इस ख़बीस हरकत से बाज़ रहो। वरना मैं तुम्हारे शलए बद्द दआ ु
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कर दं ग ू ा। उस गुस्ट्ताख़ व बे बाक ने कह हदया कक मुझे आप की बद्द दआ ु की कोई परवाह् नहीं। आप की बद्द
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दआ ु से मेरा कुछ भी नहीं बबगड़ सकता। ये सुन कर आप رضي هللا عنهको िलाल आ गया और आप ने उस
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वक़्त ये दआ ु मांगी कक या अल्लाह अगर इस शख़्स ने तेरे प्यारे नबी ﷺ
के प्यारे सहाबा कराम رضوان
هللا عليهم أجمعينकी तौहीन की है तो आि ही इस को अपने क़हर व ग़ज़ब की ननशानी हदखा दे ताकक दस ू रों को
इस से इब्रत हाशसल हो। इस दआ ु के बाद िैसे ही वो बद्द बख़्त शख़्स मस्स्ट्िद से बाहर ननकला, तो बबल्कुल Page 10 of 56 www.ubqari.org
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माहनामा अबक़री मैगज़ीन
अक्टूबर 2016 के एहम मज़ामीन हहिंदी ज़बान में
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ही अचानक एक पागल ऊंट कहीं से दौड़ता हुआ आया और उस को दांतों से वपछाड़ हदया और उस के ऊपर बैठ कर उस को इस क़दर ज़ोर से दबाया कक उस की पसशलयों की हड्डियां चरू चरू हो गईं और वो फ़ौरन ही
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मर गया। ये मंज़र दे ख कर लोग दौड़ दौड़ कर हज़रत सअद رضي هللا عنهको मब ु ारक बाद दे ने लगे कक आप की दआ ु मक़्बूल हो गयी और सहाबा कराम का दश्ु मन हलाक हो गया। (दलाइल अल्नुबुव्वत ि३, स२०७,
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हुज्ितल् ु लाह अल- अल आलमीन ि२, स८६६)
चेहरा पीठ की तरफ़ फ़िर गया: एक औरत की ये आदत बद्द थी कक वो हमेशा हज़रत सअद् बबन अबी वक़ास رضي هللا عنهके मकान में झांक झांक कर् आप के घरे लू हालात की िुस्ट्तुिू ककया करती थी। आप ने बार बार
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उस को समझाया और मना ककया मगर वो ककसी तरह बाज़ नहीं आई। यहां तक कक एक हदन ननहायत
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िलाल में आप رضي هللا عنهकी ज़बान मुबारक से ये अल्फ़ाज़ ननकल पड़े कक "तेरा चेहरा बबगड़ िाए" इन
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अल्फ़ाज़ का ये असर हुआ कक उस औरत की गदत न घूम गयी और उस का चेहरा पीठ की तरफ़ हो गया।
(हुज्ितल् ु लाह अलअल ्आलमीन ि२ स ्८६६, बहवाला इब्न असाकर)
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क़ब्र में ततलावत: हज़रत अबू तल्हा बबन अब्दल् ु लाह رضي هللا عنهफ़मातते हैं कक मैं अपनी ज़मीन की दे ख भाल
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के शलए "ग़ाबा" िा रहा था तो रास्ट्ते में रात हो गयी। इस शलए मैं हज़रत अब्दल् ु लाह बबन उमरू बबन हराम رضي هللا عنهकी क़ब्र के पास ठहर गया िब कुछ रात गज़ ु र गयी तो मैं ने उन की क़ब्र में से नतलावत की
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इतनी बेह्तरीन आवाज़ सुनी कक इस से पहले इतनी अच्छी कक़रत अत मैं ने कभी भी नहीं सुनी थी। िब मैं मदीना मुनव्वरह् को लौट कर आया और मैं ने हुज़ूर अक़्दस ﷺसे इस का तज़्करह ककया तो आप ﷺने
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इशातद फ़मातया कक क्या ऐ अबू तल्हा! तुम को ये मालूम नहीं कक अल्लाह ने उन शहीदों की अरवाह को क़ब्ज़
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कर के ज़ब्रिद्द और याक़ूत की क़न्दीलों में रखा है और उन क़न्दीलों को िन्नत के बाग़ों में आवेज़ां फ़मात
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हदया है िब रात होती है तो ये रूहें क़न्दीलों से ननकाल कर उन के स्िस्ट्मों में िाल दी िाती हैं, किर सब ु ह को वो अपनी िगहों पर वापस लाई िाती हैं। (हुज्ितुल्लाह अलअल ्आलमीन ि२, स ्८७१ बहवाला इब्न
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मन्दह्) तब्सरह्: ये मसनद ररवायात इस बात का सबूत हैं कक हज़रात शुहदा कराम अपनी अपनी क़ब्रों में पूरे लवाज़्मात हयात के साथ स्ज़ंदा हैं।
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फ़ररश्ते घर के ऊपर उतर पड़े: ररवायत में है कक हज़रत उसैद बबन हुज़ैर رضي هللا عنهने नमाज़ तहज्िुद में
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सरू ह बक़रह की नतलावत शरू ु की। उसी घर में आप رضي هللا عنهका घोड़ा भी बन्धा हुआ था और घोड़े के क़रीब ही में उनका बच्चा यह्या भी सो रहा था। ये इंतहाई ख़श ु अल्हानी के साथ कक़रत अत कर रहे थे। अचानक उन का घोड़ा बबदकने लगा यहां तक कक उन को ख़तरह् मह्सस ू होने लगा कक घोड़ा उन के बच्चे को कुचल दे गा। चन ु ाचे नमाज़ ख़त्म कर के िब उन्हों ने सहन में आ कर ऊपर दे खा तो ये नज़र आया कक बादल
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के टुकड़े के मानन्द स्िस में बहुत से चराग़ रोशन हैं और कोई चीज़ उन के मकान के ऊपर उतर रही है । आप
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رضي هللا عنهने इस मंज़र से घबरा कर कक़रत अत मौक़ूफ़ कर दी और सुबह को िब बारगाह ररसालत ﷺमें
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हास्ज़र हो कर ये वाकक़आ बयान ककया तो रहमत ए दो आलम ﷺने इशातद फ़मातया कक ये फ़ररश्तों की
मक़ ु द्दस ् िमाअत थी िो तेरी कक़रत अत की विह से आस्ट्मान से तेरे मकान की तरफ़ उतर पड़ी थी अगर तू
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सुबह तक नतलावत करता रहता तो ये फ़ररश्ते ज़मीन से इस क़दर क़रीब हो िाते कक तमाम इंसानों को उन
का दीदार हो िाता। (दलाइल अल्नब ु व्ु वत ि३ स ्२०५, मष्कात शरीफ़ स ्१८४, फ़ज़ाइल क़ुरआन) इस
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ररवायत से साबबत होता है कक अल्लाह तआला के नेक बंदों की नतलावत सुनने के शलए आस्ट्मान से फ़ररश्तों की िमाअत ज़मीन की तरफ़ उतरती है । ये और बात है कक आम लोग फ़ररश्तों को दे ख नहीं सकते मगर
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गुफ़्तुगू भी कर सकते हैं।
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अल्लाह वालों में कुछ ख़ास ख़ास लोगों को फ़ररश्तों का दीदार भी नसीब हो िाता है बस्ल्क वो फ़ररश्तों से
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शहद की मज़क्खयों का पहरा: हज़रत आशसम बबन साबबत رضي هللا عنهने िंग बदर के हदन कुफ़्फ़ार मक्का
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के बड़े बड़े नामी गगरामी सरू माओं और नाम्वर सरदारों को मौत के घाट उतार हदया था इस शलए िब कुफ़्फ़ार मक्का को उन की शहादत की ख़बर शमली तो उन काकफ़रों के चन्द आदशमयों को इस शलए मक़ाम रिीअ में भेि हदया ताकक उन के बदन का कोई ऐसा हहस्ट्सा (सर वग़ैरा) काट कर लाएं स्िस से ये शनाख़्त Page 12 of 56 www.ubqari.org
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हो िाए कक वाक़ई हज़रत आशसम ( رضي هللا عنهशहीद) क़त्ल हो गए हैं चन ु ाचे चन्द कुफ़्फ़ार उन की लाश मुबारक की तलाश में मक़ाम रिीअ तक पुहंच गए मगर वहां िा कर उन काकफ़रों ने उस शहीद मदत की ये
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करामत दे खी कक लाखों की तअदाद में शहद की मस्क्खयों के झंि ु ने आप की लाश मब ु ारक के इदत गगदत इस तरह घेरा िाल रखा है स्िस से वहां तक ककसी का पुहंचना ही नामुस्म्कन हो गया है इस शलए कुफ़्फ़ार मक्का
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नाकाम व नामरु ाद हो कर मक्का वापस चले गए। (बख़ ु ारी स्िल्द२, स ्५६९ व्ज़रक़ानी स्िल्द २, स ्७३) लाजवाब टोटके का कोई एक फ़ायदा हो तो बताऊिं
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मोहतरम हज़रत हकीम साहब अस्ट्सलामु अलैकुम! मैं अब्क़री ररसाला बहुत शौक़ से पढ़ता हूूँ, मैं इंटरनेट पर हर माह ररसाला पढ़ता हूूँ और अब्क़री के फ़ैस बुक पर हदए गए टोटके और एअमाल से भरपूर फ़ायदा
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उठाता हूूँ। मेरे पास एक इंतहाई आसान टोटका है िो मैं अब्क़री के मेल एड्रेस पर मेल कर रहा हूूँ ता कक ये
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अब्क़री में छपा िाए और लाखों लोग इस से मुस्ट्तफ़ीद् हों। टोटका ये है कक एक खाने का चम्मच शसकात और
एक खाने का चम्मच शहद एक गगलास सादह पानी में अच्छी तरह शमला कर घोंट घोंट पी लें। इस टोटके का
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कोई एक फ़ायदा हो तो बताऊं। बद्द हज़्मी, क़ब्ज़, ब्लि प्रेशर, कोलेस्ट्रॉल, डिप्रेशन के शलए बहुत ही मफ़ ु ीद
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है । तक़रीबन हर घर में आि कल कोई ना कोई डिप्रेशन का मरीज़ मौिूद है ये टोटका डिप्रेशन के शलए इंतहाई लािवाब है । छै छै घंटे के वक़्फ़े के बाद एक गगलास दित बाला तरीक़े से पीएं। इन ् शा अल्लाह
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लािवाब फ़ायदा होगा। शतत ये है कक शहद और शसकात ख़ाशलस होना चाहहए। (फ़रुत ख़ ् रशीद)
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माहनामा अब्क़री नवम्बर 2016 शुमारा नम्बर 125----------------pg 5
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दस ू रों के हालात की जुस्तुजू करने वाली की गदस न मुड़ गयी
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(िैसे ही वो बद्द बख़्त शख़्स मस्स्ट्िद से बाहर ननकला, तो बबल्कुल ही अचानक एक पागल ऊंट कहीं से दौड़ता हुआ आया और उस को दांतों से वपछाड़ हदया और उस के ऊपर बैठ कर उस को इस क़दर ज़ोर से
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दबाया कक उस की पसशलयों की हड्डियां चरू चरू हो गईं और वो फ़ौरन ही मर गया)
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(अबू लबीब शाज़्ली)
अल्लाह को अपने प्यारों की तौहीन हर्गसज़ पसिंद नहीिं!: एक शख़्स हज़रत सअद बबन अबी वक़ास رضي هللا عنه
के सामने सहाबा कराम رضوان هللا عليهم أجمعينकी शान में गुस्ट्ताख़ी व बे अदबी के
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अल्फ़ाज़ बकने लगा। आप رضي هللا عنهने फ़मातया कक तुम अपनी इस ख़बीस हरकत से बाज़ रहो। वरना मैं तुम्हारे शलए बद्द दआ कर दं ग ु ू ा। उस गुस्ट्ताख़ व बे बाक ने कह हदया कक मुझे
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की कोई परवाह् नहीं। आप की बद्द दआ से मेरा कुछ भी नहीं बबगड़ सकता। आप की बद्द दआ ु ु
अल्लाह अगर इस शख़्स ने तेरे प्यारे नबी
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ये सुन कर आप رضي هللا عنهको िलाल आ गया और आप ने उस वक़्त ये दआ मांगी कक या ु
के प्यारे सहाबा कराम رضوان هللا عليهم أجمعين
ﷺ
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की तौहीन की है तो आि ही इस को अपने क़हर व ग़ज़ब की ननशानी हदखा दे ताकक दस ू रों को
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इस से इब्रत हाशसल हो। इस दआ के बाद िैसे ही वो बद्द बख़्त शख़्स मस्स्ट्िद से बाहर ननकला, ु तो बबल्कुल ही अचानक एक पागल ऊंट कहीं से दौड़ता हुआ आया और उस को दांतों से वपछाड़
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हदया और उस के ऊपर बैठ कर उस को इस क़दर ज़ोर से दबाया कक उस की पसशलयों की हड्डियां चरू चरू हो गईं और वो फ़ौरन ही मर गया। ये मंज़र दे ख कर लोग दौड़ दौड़ कर हज़रत
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सअद رضي هللا عنهको मब मक़्बल ु ारक बाद दे ने लगे कक आप की दआ ु ू हो गयी और सहाबा
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आलमीन ि२, स८६६)
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कराम का दश्ु मन हलाक हो गया। (दलाइल अल्नुबुव्वत ि३, स२०७, हुज्ितुल्लाह अल- अल
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चेहरा पीठ की तरफ़ फ़िर गया: एक औरत की ये आदत बद्द थी कक वो हमेशा हज़रत सअद् बबन अबी वक़ास رضي هللا عنهके मकान में झांक झांक कर् आप के घरे लू हालात की िुस्ट्तुिू ककया
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करती थी। आप ने बार बार उस को समझाया और मना ककया मगर वो ककसी तरह बाज़ नहीं आई। यहां तक कक एक हदन ननहायत िलाल में आप رضي هللا عنهकी ज़बान मुबारक से ये
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अल्फ़ाज़ ननकल पड़े कक "तेरा चेहरा बबगड़ िाए" इन अल्फ़ाज़ का ये असर हुआ कक उस औरत की गदत न घूम गयी और उस का चेहरा पीठ की तरफ़ हो गया। (हुज्ितुल्लाह अलअल ्आलमीन ि२ स ्८६६, बहवाला इब्न असाकर)
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क़ब्र में ततलावत: हज़रत अबू तल्हा बबन अब्दल् ु लाह رضي هللا عنهफ़मातते हैं कक मैं अपनी ज़मीन की
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दे ख भाल के शलए "ग़ाबा" िा रहा था तो रास्ट्ते में रात हो गयी। इस शलए मैं हज़रत अब्दल् ु लाह
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बबन उमरू बबन हराम رضي هللا عنهकी क़ब्र के पास ठहर गया िब कुछ रात गुज़र गयी तो मैं ने उन की क़ब्र में से नतलावत की इतनी बेह्तरीन आवाज़ सन ु ी कक इस से पहले इतनी अच्छी
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कक़रत अत मैं ने कभी भी नहीं सुनी थी। िब मैं मदीना मुनव्वरह् को लौट कर आया और मैं ने
हुज़ूर अक़्दस ﷺसे इस का तज़्करह ककया तो आप ﷺने इशातद फ़मातया कक क्या ऐ अबू तल्हा!
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तुम को ये मालूम नहीं कक अल्लाह ने उन शहीदों की अरवाह को क़ब्ज़ कर के ज़ब्रिद्द और याक़ूत की क़न्दीलों में रखा है और उन क़न्दीलों को िन्नत के बाग़ों में आवेज़ां फ़मात हदया है
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िब रात होती है तो ये रूहें क़न्दीलों से ननकाल कर उन के स्िस्ट्मों में िाल दी िाती हैं, किर
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सुबह को वो अपनी िगहों पर वापस लाई िाती हैं। (हुज्ितुल्लाह अलअल ्आलमीन ि२, स ्८७१
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बहवाला इब्न मन्दह्) तब्सरह्: ये मसनद ररवायात इस बात का सबत ू हैं कक हज़रात शह ु दा
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कराम अपनी अपनी क़ब्रों में पूरे लवाज़्मात हयात के साथ स्ज़ंदा हैं। फ़ररश्ते घर के ऊपर उतर पड़े: ररवायत में है कक हज़रत उसैद बबन हुज़ैर رضي هللا عنهने नमाज़ तहज्िुद में सूरह बक़रह की नतलावत शुरू की। उसी घर में आप رضي هللا عنهका घोड़ा भी बन्धा हुआ था और घोड़े के क़रीब
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ही में उनका बच्चा यह्या भी सो रहा था। ये इंतहाई ख़श ु अल्हानी के साथ कक़रत अत कर रहे थे। अचानक उन का घोड़ा बबदकने लगा यहां तक कक उन को ख़तरह् मह्सूस होने लगा कक घोड़ा
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उन के बच्चे को कुचल दे गा। चन ु ाचे नमाज़ ख़त्म कर के िब उन्हों ने सहन में आ कर ऊपर दे खा तो ये नज़र आया कक बादल के टुकड़े के मानन्द स्िस में बहुत से चराग़ रोशन हैं और
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कोई चीज़ उन के मकान के ऊपर उतर रही है । आप رضي هللا عنهने इस मंज़र से घबरा कर कक़रत अत मौक़ूफ़ कर दी और सुबह को िब बारगाह ररसालत ﷺ बयान ककया तो रहमत ए दो आलम ﷺ
में हास्ज़र हो कर ये वाकक़आ
ने इशातद फ़मातया कक ये फ़ररश्तों की मुक़द्दस ्
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िमाअत थी िो तेरी कक़रत अत की विह से आस्ट्मान से तेरे मकान की तरफ़ उतर पड़ी थी अगर
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तू सुबह तक नतलावत करता रहता तो ये फ़ररश्ते ज़मीन से इस क़दर क़रीब हो िाते कक तमाम
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इंसानों को उन का दीदार हो िाता। (दलाइल अल्नुबुव्वत ि३ स ्२०५, मष्कात शरीफ़ स ्१८४,
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फ़ज़ाइल क़ुरआन) इस ररवायत से साबबत होता है कक अल्लाह तआला के नेक बंदों की नतलावत
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सुनने के शलए आस्ट्मान से फ़ररश्तों की िमाअत ज़मीन की तरफ़ उतरती है । ये और बात है कक
आम लोग फ़ररश्तों को दे ख नहीं सकते मगर अल्लाह वालों में कुछ ख़ास ख़ास लोगों को
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फ़ररश्तों का दीदार भी नसीब हो िाता है बस्ल्क वो फ़ररश्तों से गुफ़्तुगू भी कर सकते हैं।
शहद की मज़क्खयों का पहरा: हज़रत आशसम बबन साबबत رضي هللا عنهने िंग बदर के हदन कुफ़्फ़ार मक्का
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के बड़े बड़े नामी गगरामी सूरमाओं और नाम्वर सरदारों को मौत के घाट उतार हदया था इस शलए िब
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कुफ़्फ़ार मक्का को उन की शहादत की ख़बर शमली तो उन काकफ़रों के चन्द आदशमयों को इस शलए मक़ाम
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रिीअ में भेि हदया ताकक उन के बदन का कोई ऐसा हहस्ट्सा (सर वग़ैरा) काट कर लाएं स्िस से ये शनाख़्त
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हो िाए कक वाक़ई हज़रत आशसम ( رضي هللا عنهशहीद) क़त्ल हो गए हैं चन ु ाचे चन्द कुफ़्फ़ार उन की लाश मुबारक की तलाश में मक़ाम रिीअ तक पुहंच गए मगर वहां िा कर उन काकफ़रों ने उस शहीद मदत की ये करामत दे खी कक लाखों की तअदाद में शहद की मस्क्खयों के झंि ु ने आप की लाश मब ु ारक के इदत गगदत इस
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तरह घेरा िाल रखा है स्िस से वहां तक ककसी का पुहंचना ही नामुस्म्कन हो गया है इस शलए कुफ़्फ़ार मक्का नाकाम व नामुराद हो कर मक्का वापस चले गए। (बुख़ारी स्िल्द२, स ्५६९ व्ज़रक़ानी स्िल्द २, स ्७३)
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लाजवाब टोटके का कोई एक फ़ायदा हो तो बताऊिं
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मोहतरम हज़रत हकीम साहब अस्ट्सलामु अलैकुम! मैं अब्क़री ररसाला बहुत शौक़ से पढ़ता हूूँ, मैं इंटरनेट पर हर माह ररसाला पढ़ता हूूँ और अब्क़री के फ़ैस बक ु पर हदए गए टोटके और एअमाल से भरपरू फ़ायदा उठाता हूूँ। मेरे पास एक इंतहाई आसान टोटका है िो मैं अब्क़री के मेल एड्रेस पर मेल कर रहा हूूँ ता कक ये
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अब्क़री में छपा िाए और लाखों लोग इस से मुस्ट्तफ़ीद् हों। टोटका ये है कक एक खाने का चम्मच शसकात और एक खाने का चम्मच शहद एक गगलास सादह पानी में अच्छी तरह शमला कर घोंट घोंट पी लें। इस टोटके का
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कोई एक फ़ायदा हो तो बताऊं। बद्द हज़्मी, क़ब्ज़, ब्लि प्रेशर, कोलेस्ट्रॉल, डिप्रेशन के शलए बहुत ही मुफ़ीद
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है । तक़रीबन हर घर में आि कल कोई ना कोई डिप्रेशन का मरीज़ मौिूद है ये टोटका डिप्रेशन के शलए इंतहाई लािवाब है । छै छै घंटे के वक़्फ़े के बाद एक गगलास दित बाला तरीक़े से पीएं। इन ् शा अल्लाह
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माहनामा अब्क़री नवम्बर 2016 शम ु ारा नम्बर 125----------------pg 5
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लािवाब फ़ायदा होगा। शतत ये है कक शहद और शसकात ख़ाशलस होना चाहहए। (फ़रुत ख़ ् रशीद)
काम्याबी, कामरानी और ख़द ु एतमादी पाने के गरु
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(आप स्ज़न्दगी की शाहराह पर सर उठा कर इस गहरे एतमाद से गाम्ज़न हों गोया आप अच्छी तरह िानती
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हैं कक आप ककधर िा रही हैं और ये कक आप को दन्ु या में कोई ग़म या कफ़क्र नहीं है । अपने आप को
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तस्क़्वय्यत पुहंचाएूँ: इल्म की अता कदत ह ताक़त और क़ुव्वत के एह्सास से बढ़ कर दन्ु या में कोई भी
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एह्सास नहीं है । ) (मह ु म्मद बबलावल, लाहौर)
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बुलन्द होसलगी हमारी स्ज़न्दगी में काम्याबी व कामरानी अता करने में ननहायत एहम ककरदार अदा करती है । इस के बर अक्स पस्ट्त हहम्मती और एतमाद की कमी हमारी काम्याबी को ना शसफ़त मश्कूक कर दे ती है
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बस्ल्क हमारी शस्ख़्सयत को ग़ैर मअ ु स्ट्सर और ग़ैर एहम भी बना दे ती है । इस से ये ज़ाहहर होता है कक काम्याबी व कामरानी ख़द ु एतमादी और बुलन्द होसलगी से मषरूत है । दस ू रे लफ़्ज़ों में स्ज़न्दगी के ककसी
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भी शअ ु बे में काम्याबी के हुसल ू के शलए हम में ख़द ु एतमादी और आला होसलगी का होना ज़रूरी है । इसी तरह शस्ख़्सयत की तामीर में ये ख़बू बयाूँ यक्सां ककरदार अदा करती हैं। आइए! दे खते हैं ये दौलत कैसे हाशसल की िा सकती है स्िस ् का कक कोई ननअमुल्बदल नहीं। सर उठा कर चशलए: हौसले को बुलन्द करने
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के शलए आप की िो सब ् से एहम कोशशश हो सकती है वो ये है कक दन्ु या दे खे कक आप ककतनी पुर एतमाद
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नज़र आती हैं। इस कक िाननब उठने वाला पहला क़दम ये है कक आप स्ज़न्दगी की शाहराह पर सर उठा कर
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इस गहरे एतमाद से गाम्ज़न हों गोया आप अच्छी तरह िानती हैं कक आप ककधर िा रही हैं और ये कक आप
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को दन्ु या में कोई ग़म या कफ़क्र नहीं है । अपने आप को तज़क़्वय्यत पुहिंचाएाँ: इल्म की अता कदत ह ताक़त और
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क़ुव्वत के एह्सास से बढ़ कर दन्ु या में कोई भी एह्सास नहीं है । आप अपने उन पहलओ ु ं की शनाख़्त करें
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स्िन्हें आप तस्क़्वय्यत पुहंचाना चाहती हैं और किर चल पड़ें। आटत , तारीख़, शसयासत, मुआशशयात, साइंस
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टे क्नोलॉिी ये सब ् उलम ू आप की दस्ट्तरस में आ सकते हैं। ककताबें उठाएं या इंटरनेट पर िाएं। सब ् आप के
अस्ख़्तयार में है । अपने अिंदर तवानाई पैदा करें : िब आप सांस अंदर लें तो तसव्वुर करें कक आप दन्ु या की
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सारी अच्छाइयां सांस के ज़ररए अंदर ले रही हैं और अपने स्िस्ट्मानी ननज़ाम को उन से गग़ज़ाइयत और
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ताज़ग़ी पुहंचा रही हैं। इस तरह अपने स्िस्ट्मानी ननज़ाम की तत्हीर के बाद िब सांस बाहर छोड़ें तो तसव्वुर करें कक आप उन सारी चीज़ों को सांस के ज़ररए बाहर ननकाल रही हैं िो मंफ़ी और फ़ज़ूल हैं। अब आप इस
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नई तवानाई के एह्सास से लत्ु फ़ अन्दोज़ हों। किर आप सांस अंदर् खींचें और कहें "मैं ताक़त्र हूूँ।" किर सांस
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बाहर छोड़ें और कहें "मैं ख़ब ू सूरत हूूँ" इस अमल को बार बार दहु राएं। आप अपनी रग व पै में नए ख़न ू की गहदत श को महसस ू करें गे। अपने अिंदर अच्िाई को महसस ू करें : अपने आप से और इस स्ज़न्दगी से िो आप
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बसर कर रही हैं मुहब्बत कीस्िये। िी हाूँ! ये बहुत अच्छी बात होगी और आप ऐसा कर सकती हैं। लेककन कोई विह नहीं कक आप के पास िो कुछ है उस पर कक़नाअत कीस्िये और कुछ पाने की उम्मीद उस चीज़ से
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भी हाथ ना धो लीस्िये, िो आप के पास मौिद ू है । ये ख़्वाहहश कक आप के शरीक हयात में वो ख़बू बयाूँ होतीं िो आप उस में दे खना चाहते हैं या वो कार िो आप ख़रीदने के ख़्वाहहश्मन्द थे या वो मकान स्िस के आप
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माशलक बन्ना चाहते थे। ये महरूशमयाूँ अपनी िगह लेककन एह्सास महरूमी और बे इतमीनानी पर ग़ाशलब आने और मुत्मइन होने से बढ़ कर कोई काम्याबी और कोई ख़श ु ी नहीं है । चस् ु त और सेहतमन्द महसूस करें : ख़द ु को चस्ट् ु त और सेहतमन्द महसूस करें सब ् से बड़ी तवानाई और
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एतमाद है िो आप अपने आप को अता कर सकती हैं। अपने अंदर मस्ट्बत तब्दीशलयां पैदा करें । रोज़ाना
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वस्ज़तश ककया करें । थोड़ी सी चहल क़दमी के शलए घर से ननकल िाया करें या घर में ही रह कर फ़्लोर
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एक्सरसाइज़ ् कर शलया करें । खाते वक़्त अपने साथ इिंसाफ़ करें : खाने बैठें तो ये सोच सोच कर कुढ़ते ना रहें कक आप खा खा कर मोटे हो रहे हैं बस्ल्क अपने आप को शसफ़त कफ़ट और स्स्ट्लम रखने के शलए खाइये। कहा
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िाता है कक स्स्ट्लम रहने के शलए खाना बहुत ज़रूरी है । माहहरीन का कहना है कक कच्ची खम् ु बीयाूँ, टमाटर
और सलाद के पत्ते िैसी गग़ज़ाएूँ चाबाने और हज़्म करने का अमल कैलोरीज़ ् को ज़ायअ कर दे ता है िबकक
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यही चीिें पका कर खाएं तो कैलोरीज़ ् में इज़ाफ़ा होता है । पुर सुकून रहें : ये ख़ब ू ी वाक़ई नायाब है अगर आप
अपने अंदर ये ख़ब ू ी पैदा करने में काम्याब हो िाएं तो स्ज़न्दगी की आधी से ज़्यादा परे शाननयों का ख़ात्मा हो
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िाएगा। ज़ेहनी इंतशार और कशीद्गी से ऐसे ऐसे अमराज़ लाहक़ होते हैं स्िन के बारे में हम िानते भी
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नहीं। थकन और गचड़गचड़ेपन का सबब भी यही ज़ेहनी तनाव और खखचाव है । िो लोग मुस्श्कल से मुस्श्कल
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हालात में भी ख़द ु को पुरसुकून रख सकते हैं वो ककसी भी सूरत्हाल से काम्याबी से ननकल सकते हैं।
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मुराक़बा: मुराक़बा पुर सुकून रहने की एक बेह्तरीन टे क्नीक है । सुबह के अव्वलीन पहर में मुराक़बा की कोशशश कीस्िये िब आप के चारों तरफ़ गहरा सक ु ू न होता है उठ कर बैठ िाइए और अपनी आंखें मंद ू लीस्िये। ककसी तसव्वुराती नुक़्ता पर तवज्िह मरकूज़ कर दीस्िए या किर अपने ज़ेहन को भटकने के शलए
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छोड़ दीस्िए यहां तक कक सारे ख़यालात ज़ेहन से ननकल िाएं और ज़ेहन बबल्कुल सपाट हो िाए अब आप ककसी ऐसी चीज़ का तसव्वुर कीस्िये स्िस से आप को सुकून का एह्सास होता हो। थोड़ी दे र के बाद आप को
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सक ु ू न अपने आप पर उतरता हुआ महसस ू होगा। थोड़ी दे र तक इस कैकफ़यत से लत्ु फ़ अन्दोज़ होती रहें किर महसूस करें कक सुकून का धारा आप के अंगूठों और उं गशलयों की नोक के ज़ररए आप के अंदर बहता चल्ता
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िा रहा है । आप ख़द ु को इस कैकफ़यत के सप ु द ु त कर दें िब आप इस कैकफ़यत से उभरें तो सक ु ू न के एह्सास को बाक़ी हदन तक अपने ऊपर हावी रहने दें ।
यूगा: यूगा स्िस्ट्म और ज़ेहन को यक्सां तौर पर पुर सुकून रखने का एक और एहम ज़रीया है । यूगा की मश्क़
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से आप ना शसफ़त अपने स्िस्ट्म और हदमाग़ पर कंरोल हाशसल कर सकती हैं बस्ल्क ये आप के अंदर ज़बदत स्ट्त
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क़ुव्वत इरादी पैदा कर सकता है । ककसी माहहर से यूगा सीखखए और हर सुबह इस की मश्क़ कीस्िये। इस
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मश्क़ से आप अपने अंदर एक है रत अंगेज़ और ख़श्ु गवार तब्दीली रोन्मा होती हुई महसूस करें गी। हल्के
फ़ेशल, मसाि और अरोमा थेरेपी की मदद से अपने ज़ेहनी तनाव को कम करने की कोशशश कीस्िये। ये
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तमाम मंफ़ी तवानाई से ननिात हदला कर आप को सुकून बख़्शने में मुआवन होगी।
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अपने नाज़ उठाएिं: आगे बढ़े , अपने नाज़ उठाएं! िी भर के अपने अरमान ननकालें। हम में से हर एक को गाहे
बगाहे मौि मस्ट्ती की ज़रूरत होती है । इस के शलए ख़द ु को अपने हदल की तरं ग पर छोड़ें। ककसी ब्यहू टशशयन
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के पास िाएं और हदन भर उस के माहहराना हाथों के तहत आराम करें । या किर अपनी पसंदीदह ककताब और वपस्क्नक बास्ट्केट उठाएं, बबला ककसी सबब उस हदन छुट्टी कर लें और पूरा हदन अपने पसंदीदह तरीन
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मुक़ाम पर गुज़ारें । थोड़ा सा एिवेंचर भी: अपनी स्ज़न्दगी में साथ ही अपनी फ़ैशमली की स्ज़न्दगी में थोड़ा सा
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एिवेंचर भी शाशमल कर लें। इस में कुछ नई चीज़ों का इज़ाफ़ा कर लें तन्हा या सब ् शमल कर एिवेंचर ना
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शसफ़त आप के कुल्वी ग़दद ू की रवानी में मददगार साबबत होता है बस्ल्क आप के अंदर तवानाई के अचानक िूट पड़ने का भी मुअस्िब होता है । इस कक़स्ट्म की इज्तमाई कोशशश आपस के तअल्लुक़ात पर तारी िमूद को तोड़ने और उन्हें एक नई स्ज़न्दगी अता करने में मआ ु ववन हो सकती है । इस के शलए आप छलांगें लगाने Page 20 of 56 www.ubqari.org
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या दौड़ने का मुक़ाबला करें , कार में तवील और पुर लुत्फ़ ड्राइव पर ननकल िाइये, िॉगगंग करें । वपस्क्नक मनाने चले िाएं कुछ भी करें इस से आप को ख़श ु ी और तम्मानीयत का एह्सास होगा। रात की अच्छी और
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भरपरू नींद आप की सेहत और कफ़टनेस के शलए इक्सीर है , एक थका हुआ ज़ेहन और थका हुआ स्िस्ट्म दोनों ही आप की सेहत के शलए नक़् ु सान्दह हैं। िब आप हश्शाश बश्शाश होंगी तो ख़द ु को बेहद्द पुर एतमाद
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महसस ू करें गी।
सदस हवाओिं से बचने के बेह्तरीन गुर
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माहनामा अब्क़री नवम्बर 2016 शुमारा नम्बर 125----------------pg 8
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(बअज़ ख़वातीन मख़् ु तशलफ़ बीमाररयों ख़स ु स ू न ददत वग़ैरा और नज़्ला िक ु ाम का इलाि घर पर ही कर्
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लेती हैं। सर ददत , बुख़ार, नज़्ला, ज़ुकाम में आम फ़रोख़्त होने वाली दवाइयां इस्ट्तमाल की िाती हैं। ये तरीक़ा भी मुनाशसब नहीं है । ननमोननया या इस िैसे दस ू रे अमराज़ िो सदी के मौसम में वबा की सूरत में
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(िॉक्टर बश्र ु ा सईद, इस्ट्लाम आबाद)
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िूट सकते हैं।)
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सेहत को बरक़रार रखने के शलए यंू तो हर मौसम में मख़् ु तशलफ़ अक़दामात करने की ज़रूरत होती है मगर
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हमारे पेश नज़र चकूं क मौसम समात है इस शलए दे खना ये है कक ख़वातीन ककन उसूलों को अपना कर अपनी सेहत बहाल रख सकती हैं। सहदत यों की सब ् से ज़्यादा पेश आने वाली बीमारी नज़्ला और ज़क ु ाम है िो ज़रा सी हरारत में तब्दीली के बाइस लाहक़ हो सकती है । इस शलए ज़रूरी है कक हरारत में तब्दीली से बचा
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िाए। सहदत यों में धद ुं की विह से कफ़ज़ा नम आलूद हो िाती है और ख़वातीन सुबह सवेरे घरे लू काम के शलए हहफ़ाज़ती तदाबीर के बग़ैर ही हदन का आग़ाज़ कर दे ती हैं। इस के इलावा धुएं और गदत के ज़रातत भी
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हवा को प्रागन्दा करते हैं और इस कफ़ज़ा में बच्चे भी सांस लेते हैं। बावची ख़ानों और दस ू रे कमरों में बारीक िाशलयों का मुनाशसब इंतज़ाम बहरहाल करना चाहहए। सहदत यों में अमूमन कमरों का दिात हरारत
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खल ु ी कफ़ज़ा की ननस्ट्बत बेह्तर होता है िबकक कमरों से बाहर सदी ज़्यादा होती है । सहदत यों में िब ख़वातीन बे एहत्याती से अपने कमरों से बाहर ननकलती हैं तो बाहर दो कफ़ज़ाओं में ना मुनाशसब फ़क़त की विह से मुख़्तशलफ़ बीमाररयों का शशकार होती हैं स्िस में सर ददत , िोड़ों का ददत और नज़्ला ज़ुकाम वग़ैरा
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शाशमल है । इस के इलावा िेिड़े इस फ़ौरी तब्दीली से मुताशसर होते हैं स्िस से सांस की बीमारी पैदा होने
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का ख़दशा भी हो सकता है । इस के इलावा ननमोननया की शशकायत भी पैदा हो िाती है । दमा के मरीज़ों
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का मज़त शशद्दत अस्ख़्तयार कर सकता है । बच्चों को सब ु ह स्ट्कूल की तय्यारी के शसस्ल्सले में बे एहत्याती
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की िाती है । बच्चे बबस्ट्तर से ननकलते ही बाथ रूम में घुस िाते हैं या बग़ैर िूतों और िुराबों के चल्ते
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किरते हैं या किर उन्हें नहला कर फ़ौरी तोशलये से ख़श्ु क कर के मन ु ाशसब शलबास नहीं पहनाया िाता।
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शहरों में ख़वातीन बबिली, गैस के हीटरों और दे हातों में कोयलों की अंगीठी के सामने बैठ कर काम काि
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करती हैं स्ट्वेटर बन ु ती हैं, सस्ब्ज़यां बनाती हैं, किर अचानक ककसी ज़रूरी काम के याद आने पर दिात हरारत की परवा ककये बग़ैर खल ु ी कफ़ज़ा में चली िाती हैं िो सेहत के शलए बेहद्द शमज़्र है या किर नूँगे पाओं
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घरे लू काम काि में लग िाती हैं। शाल या स्ट्वेटर इस्ट्तमाल नहीं करती हैं, स्िस से हवा लग सकती है । ना
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मुकम्मल गमत शलबास (ख़्वाह आप को सदी ना लग रही हो) आप को बीमार कर सकता है । स्िन ख़वातीन को शदीद सहदत यों में भी गमी का एह्सास होता है उन्हें अपना ब्लि प्रेशर चेक करवाना चाहहए और ब्लि
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प्रेशर ज़्यादा होने की सरू त में इलाि करवाना ज़रूरी है ।
स्िस्ट्मानी सेहत की हहफ़ाज़त के साथ साथ हमें ना मन ु ाशसब गग़ज़ाओं से भी परहेज़ करना चाहहए। ये महज़ मफ़रूज़ा है कक चाय और कॉफ़ी से कोई फ़क़त नहीं पड़ता। बअज़ ख़वातीन में ये ख़्याल पाया िाता है
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कक मौसम समात में गमत तासीर वाली ख़ोराक का इस्ट्तेमाल ज़्यादा करना चाहहए, ये बात ककसी हद्द तक तो दरु ु स्ट्त हो सकती है मगर हर चीज़ को एअतदाल में ही रख कर इस्ट्तमाल करना सेहत के शलए मुफ़ीद है ।
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सहदत यों में अचार से ख़ास तौर पर परहे ज़ करना चाहहए क्यंकू क अचार और खट्टी चीज़ें गले की रगों को पकड़ लेती हैं और बीमार होने का ख़दशा बढ़ िाता है । सस्ब्ज़यों और दालों में हयातीन की शमक़्दार काफ़ी
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होती है , इस का ज़्यादा इस्ट्तमाल सेहत के शलए मफ़ ु ीद है बअज़ ख़वातीन अपने बच्चों को नहलाने और ख़द ु भी नहाने से घबराती हैं और तीन चार हदन के बाद शसफ़त सर धो कर काम चला लेती हैं ये तरीक़ा भी सेहत के शलए नुक़्सान्दह साबबत होता है । नतीिा ये ननकलता है कक सर तो गीला हो िाता है िब कक
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स्िस्ट्म का बाक़ी हहस्ट्सा नम आलूद नहीं होता इस तफ़रीक़ से स्िस्ट्म की हरारत यक्सां नहीं रहती। बअज़
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ख़वातीन मुख़्तशलफ़ बीमाररयों ख़स ु ूसन ददत वग़ैरा और नज़्ला ज़ुकाम का इलाि घर पर ही कर लेती हैं।
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सर ददत , बख़ ु ार, नज़्ला, ज़क ु ाम में आम फ़रोख़्त होने वाली दवाइयां इस्ट्तमाल की िाती हैं। ये तरीक़ा भी
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मुनाशसब नहीं है । ननमोननया या इस िैसे दस ू रे अमराज़ िो सदी के मौसम में वबा की सूरत में िूट सकते
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हैं, से बचने के शलए हयातीन (ववटाशमन) का इस्ट्तमाल करते रहना मफ़ ु ीद है । ताहम बीमारी की शशद्दत की
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सूरत में अपने मुआशलि के मश्वरे के बग़ैर कोई भी दवाई इस्ट्तमाल करना नुक़्सान्दह हो सकता है ।
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क्यंकू क बअज़ औक़ात घरे लू इलाि बीमाररयों में तवालत पैदा कर सकते हैं। अगर घर पर इलाि ज़रूरी करना है तो नज़्ला ज़ुकाम के शलए िोशांदह् हर शलहाज़ से फ़ायदा पुहंचाता है और इस के कोई मा बाद
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असरात भी नहीं हैं। इस के इलावा ज़ेतून बहुत महफ़ूज़ और सेहत बख़्श गग़ज़ा है । इस में बहुत मक़वी
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अज्ज़ा पाए िाते हैं।
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सदस हवाओिं से बचने का बेह्तरीन नुस्ख़ा: ऐसी हालत में िहां सर और नाक वग़ैरा को सदत हवाओं से
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हत्ताउल ्इम्कान बचाए रखना हहफ़्ज़ मा तक़द्दम के तौर पर ज़रूरी है बस्ल्क उन के िल्द अज़ ् िल्द अज़ाला के शलए ज़ेल का नस्ट् ु ख़ा भी उन के शलए बे हद्द सोद्मन्द है । नस् ु ख़ा: सब्ज़ चाय चौथाई छोटा चम्चा, सब्ज़ इलाइची एक अदद, बाहदयाूँ ख़ताई चौथाई चम्चा, दार चीनी चार रत्ती, पानी एक पाओ, तीन चार
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अंदर िो शीरीं, हल्की सी चीनी शमला कर हदन में दो तीन मततबा हहफ़्ज़ मा तक़द्दम के तौर पर इस्ट्तमाल करें । अगर हो सके तो ख़मीरा गाओज़बान तीन या चार माशा हदन में तीन मततबा इस्ट्तमाल करें । अगर
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सर ददत तेज़ हो तो इस क़ह्वा में तीन माशे के क़रीब इस्ट्तख़द ू ोस का इज़ाफ़ा कर दें और सेहत्याब हो िाएं
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अगर हल्का सा बख़ ु ार भी साथ हो तो गल ु बनफ़्शा, उनाब, शमल्ठी का िोशांदह् पीएं गग़ज़ा नरम और बग़ैर गचकनाई के खाएं। एहत्याती तदाबीर: बच्चों को सदत हवा और सदत पानी से बचाएं। बच्चे के सीने को हवा से महफ़ूज़ रखें , सीने पर अंिे की ज़दी का तेल ननकाल कर हल्का सा हाथ रख कर तेल बेज़ा मलें। अगर अंिे का तेल मुयस्ट्सर ना हो तो रौग़न ज़ेतून का इस्ट्तमाल भी बे हद्द मुफ़ीद है । अगर ख़न ू साथ आ
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रहा हो तो उस की बेह्तर सूरत ये है कक फ़ौरी तौर पर ककसी क़रीबी क़ाबबल तरीन मुआशलि की मदद लें।
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अगर मुआशलि दरू हो तो कफ़क्र ना करें बस्ल्क इस एहत्याती तद्बीर को अस्ख़्तयार करें । मुआल्जा: वक़त
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नक़रह एक तोला, दम्मल ्अख़्वीं दो तोला, कहरबा शमई सईदह दो तोला, रूह गुलाब एक एक वक़त और
तोला तोला अक़त िाल कर खरल करते रहें िब तमाम रूह गल ु ाब ख़त्म हो िाए तब गोशलयां बराबर दाना
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मसूर तय्यार करें । बवक़्त ज़रूरत नफ़्सुल्दम और ऐसी खांसी स्िस में ख़न ू आ रहा हो हदन में चन्द
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ख़ोराकें ख़मीरा गाओज़बान में रख कर दें और क़ुदरत का कररश्मा दे खें।
चािंद सा बेटा पाने का है रान कुन आसान अमल
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मोहतरम हज़रत हकीम साहब अस्ट्सलामु अलैकुम! दो हफ़्ते पहले की बात है मैं ररवाज़ गाितन लाहौर में
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दो दोस्ट्तों के साथ बैठा बगतर खा रहा था तो अब्क़री के एअमाल के हवाले से बात शुरू हुई तो मेरे एक दोस्ट्त ने एक अिीब बात बताई उस ने कहा कक मेरा एक दोस्ट्त अमरीका में रहता है उस का मेरे पास फ़ोन
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आया उस ने कहा कक मैं बीस साल से बे औलाद था मैं ने और मेरी एहल्या ने अपना रूहानी और
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स्िस्ट्मानी इलाि करवाया िो मुस्म्कन हो सकता था िॉक्टरों ने मायूसी का एअलान कर हदया था। २०१५ में अब्क़री के है िर में एक अमल शलखा हुआ था बे औलाद लोगों के शलए: अमल ये था कक पांच सौ बार
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रोज़ाना सूरह कौसर बबस्स्ट्मल्लाह के साथ तवज्िह और ध्यान से पढ़ी िाए अवल व आखख़र तीन तीन बार दरूद शरीफ़ तो अल्लाह रब्बुल ्इज़्ज़त औलाद अता फ़मात दें गे। हम दोनों शमयां बीवी ने इस अमल को
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िॉक्टरों की मायस ू कुन बातों के बाविद ू पढ़ा अल्लाह रब्बल ु ्इज़्ज़त ने करम ् ककया और इस अमल की
(राशशद शम्सी, लाहौर)
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बरकत से हमें ख़श्ु ख़बरी शमली और अल्लाह ने हमें चांद सा बेटा हदया। अमल करें और लोगों तक िैलाएं।
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माहनामा अब्क़री नवम्बर 2016 शुमारा नम्बर 125-----------------pg 9
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ततब्बी मश्वरे
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ज़जस्मानी बीमाररयों का शाफ़ी इलाज
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(तवज्िह तलब अमूर के शलए पता शलखा हुआ िवाबी शलफ़ाफ़ा ह्मराह असातल करें और उस पर
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मुकम्मल पता वाज़ेह हो। िवाबी शलफ़ाफ़ा ना िालने की सूरत में िवाब असातल नहीं ककया िाएगा।
शलखते हुए इज़ाफ़ी गोंद या टे प ना लगाएं स्ट्टे पल्र्स वपन इस्ट्तमाल ना करें । राज़दारी का ख़्याल रखा
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िाएगा। शसफ़हे के एक तरफ़ शलखें। नाम और शहर का नाम या मुकम्मल पता और अपना मोबाइल फ़ोन
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नम्बर ख़त के आखख़र में ज़रूर तहरीर करें । )
सर के बाल र्गर रहे हैं: आप से मालूम करना था कक मेरी उम्र ३२ साल है और मेरे सर के बाल गगर रहे हैं
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स्िस की विह से मैं बहुत परे शान हूूँ और सफ़ेद भी हो रहे हैं, महरबानी फ़मात कर कोई दवाई या नस्ट् ु ख़ा
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बता दें ताकक मेरी ये परे शानी दरू हो िाए। (उस्ट्मान अली)
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मश्वरा: बादाम सात दाने, ककस्श्मश सुन्दरख़ानी इक्कीस दाने, नाश्ते में रोज़ाना खाएं। इक्सीरुल्बदन और रोशन हदमाग़ इस्ट्तमाल करें । सर पर रोग़न बादाम और ज़ेतून की माशलश करें ।
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ज़बान में लुक्नत: मेरे दोस्ट्त की उम्र २१ साल है वो हाकफ़ज़ क़ुरआन है और उस की ज़बान में लुक्नत है स्िस की विह से उस को नमाज़ में तक्लीफ़ होती है । (अल्हम्दशु लल्लाह और सलाम पर ज़बान नहीं
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चल्ती) उस ने टे स्ट्ट करवाए हैं कहते हैं कक एअसाबी कम्ज़ोरी है स्िस की विह से ये अल्फ़ाज़ अदा नहीं
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होते। बराह मेहरबानी कोई अच्छी सी दवा तज्वीज़ फ़रमाएूँ। (अ,अ)
मश्वरा: अगर आप आधा ककलो पानी में छै माशा सौंफ़ िोश दें , िब नतहाई पानी बाक़ी रह िाए तो उसे छान लें। इस में गाए का दध ू आधा ककलो और दो तोले शमस्री शमलाएं। दो वक़्त मरीज़ को वपलाते रहें । इन ् शा अल्लाह लुक्नत दरू हो िाएगी। अगर कई माह लगातार ये अमल करते रहें तो इन ् शा अल्लाह गूंगा
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बच्चा आहहस्ट्ता आहहस्ट्ता बोलना शुरू कर दे गा।
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पेशाब के ग़दद ू बढ़ गया है , स्िस का वज़न ५२ ग्राम ू से तनजात: मेरी उम्र ५५ साल है , मेरा पेशाब का ग़दद
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है , िॉक्टर साहहबान आपरे शन का मश्वरा दे ते हैं लेककन मैं आपरे शन से िरता हूूँ, इस शलए कोई नुस्ट्ख़ा
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ज़रूर बता दें । (ख़, नोश्की)
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इस्ट्तमाल करें । इन ् शा अल्लाह आपरे शन की नोबत ना आएगी।
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मश्वरा: आप अब्क़री दवाख़ाना से "पेशाब कंरोल कोसत" ले कर कुछ अरसा मुस्ट्तक़ल शमज़ािी से
बेटी का िोटा क़द्द: मेरी लड़की का क़द्द तक़रीबन सवा चार फ़ुट है । क़द्द बढ़ाने के शलए कोई नस्ट् ु ख़ा इनायत
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फ़रमाएूँ। ता दम मश्कूर रहूंगा। (न,व)
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मश्वरा: राउट मछली शुमाली इलाक़ा िात में आम शमलती है अगर वो ना भी शमले तो आम मछली के
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कांटे ले कर उस को कंघी बूटी (पंसाररयों के हाूँ शमल िाती है ) हम्वज़न ले कर उस में पीस कर शमला लें
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और सब ु ह शाम २ ता ४ रत्ती इस्ट्तमाल करें । अल्लाह के फ़ज़्ल से एक महीने में एक इंच क़द्द बढ़ िाएगा।
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माहनामा अबक़री मैगज़ीन
अक्टूबर 2016 के एहम मज़ामीन हहिंदी ज़बान में
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पेशाब तनकल जाता है: मोहतरम ् हज़रत हकीम साहब ! चल्ते किरते या उठते बैठते मेरा छोटा पेशाब ननकल िाता है िो चन्द क़तरों की सूरत में होता है लेककन कपड़े नापाक हो िाते हैं स्िस की विह से
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नमाज़ नहीं पढ़ सकता, इस का कोई मअ ु स्ट्सर हल बताएं। मश्कूर रहूंगा। (म ्,अ- सरगोधा)
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मश्वरा: आप अब्क़री दवा ख़ाना से "पेशाब कंरोल कोसत" मंगवा कर कुछ अरसा मस्ट् ु तक़ल शमज़ािी से इस्ट्तमाल करें । इस के इलावा इस्ट्पगोल की भूसी १ चाय वाली चम्मच १ गगलास पानी में शमला कर सुबह व शाम पी लें। गग़ज़ा में सस्ब्ज़यां पका कर रोटी से खाएं। शमचत मसाल्हा और खटाई से परहे ज़ करें । गग़ज़ा
bq
के बाद अक़त बाहदयान दो ओंस हदन में तीन बार पीएं।
एलजी का हल: मोहतरम हज़रत हकीम साहब अस्ट्सलामु अलैकुम! आप का माहनामा अब्क़री बहुत
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अच्छा शुमारा है मैं इस को अरसा नो माह से पढ़ रहा हूूँ इस में बहुत अच्छे टोटके और वज़ीफ़े हैं, अल्लाह
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पाक आप के इस नेक काम को हमेशा िारी रखे और ख़द ु ाए वाहहद आप की उम्र दराज़ फ़रमाए। आमीन!
मुझे एक बीमारी है िो अरसा पन्रह साल से है , मेरा नाक बन्द हो िाता है, छींकें आती है , नज़्ला ज़ुकाम
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रहता है और संघ ू ने की हहस्ट्स भी ख़त्म हो िाती है , िॉक्टसत कहते हैं कक नाक के ग़दद ू को एलिी है, मैं ने
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इस का बहुत इलाि करवाया है लेककन आराम नहीं आ रहा, मैं ने होम्योपैगथक, अंग्रेज़ी और बहुत सी दे सी दवाएं इस्ट्तमाल की हैं बअज़ उदय ू ात इस्ट्तमाल करने से मझ ु े वक़्ती तौर पर सक ु ू न रहता है लेककन िब
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कुछ अरसा दवाई खाने के बाद छोड़ दे ता हूूँ तो किर वेसे ही बीमारी ज़ोर पकड़ िाती है ये मुझे बादी चीज़ें खाने और घी और तेल में तली हुई चीज़ें खाने से ज़्यादा छींकें आती हैं और ज़ुकाम रहता है और धव ु ां, गदत
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व ग़ब्ु बार से भी ज़्यादा एलिी होती है । (बूटा, क़सूर)
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मश्वरा: एलिी के मरीज़ों के शलए ये एक ख़द ु ाई अत्या है । सरसों का तेल रोज़ाना सुबह और शाम चन्द
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क़तरे नाफ़, नाक के नथनों में और मक़अद के अंदर और बाहर लगाएं। मेरे पास बेशुमार ऐसे मरीज़ आए िो परु ानी खांसी यहां तक कक बच्चों की काली खांसी, परु ानी एलिी, दम्मा और हदमाग़ी कम्ज़ोरी में
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मुब्तला थे िब उन को ये तेल लगाने वाला नुस्ट्ख़ा बताया गया तो उन्हें यक़ीनी फ़ायदा हुआ। एक मरीज़ ने अपना तिुबात बयान ककया कक वो तेल २८ साल से लगा रहा है । उसे आि तक नज़्ला, ज़ुकाम, केरा,
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कानों, आंखों और हदमाग़ की ख़श्ु की बबल्कुल नहीं होती। कहने लगा मझ ु े आि तक हदमाग़ी कम्ज़ोरी, याद्दाश्त की कमी कभी नहीं होती। एक मरीज़ आया अरसा दराज़ से पुरानी खांसी में मुब्तला था। मैं ने भी
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उसे दवाएं दीं और वो बेशम ु ार मआ ु शलिीन से इलाि मआ ु ल्िा करवा चक ु ा था लेककन फ़ायदा नहीं हुआ। खांसी वक़्ती तौर पर कम हो िाती लेककन किर उस का एक दम दौरा पड़ता था। इस से मरीज़ ननढाल हो िाता। मैं ने उसे मज़्कूरह् तेल लगाने का अमल बताया। चन्द हफ़्ते ये अमल हुआ ही था कक मरीज़ ने
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शशफ़ायाबी की नवीद दी। ऐसी औरतें िो बच्चों की तालीमी तरक़्क़ी में ग़ैर मुत्मइन हैं उन्हें चाहहए कक वो
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बच्चों को शुरू से ही ये तेल वाला अमल शुरू करवा दें । है रत अंगेज़ फ़ायदा होता है।
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पाओिं का अगला हहस्सा सुन: मोहतरम हज़रत हकीम साहब अस्ट्सलामु अलैकुम! अल्लाह आप को ख़श ु व सलामत रखे। आमीन सम् ु म आमीन। अज़त खख़दमत ये है कक दो साल से ज़्यादा अरसा हो गया है कक मेरे
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पाओं के अगले हहस्ट्से यानन पंिे सुन हो चक ु े हैं ख़ास तौर पर उं गशलयां बहुत ज़्यादा, शलहाज़ा अपने
दवाख़ाना की या कोई िड़ी बहू टयां वग़ैरा बताएं आप की बड़ी मेहरबानी होगी। बन्दा आप के शलए और
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आप के बाल बच्चों को सारी उम्र दआ ु एं दे गा। इस वक़्त मेरी उम्र ६८ साल है और कमर में भी सख़्त ददत
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होता है स्िस की विह से चल्ना भी मुस्श्कल हो गया है । (राशशद ख़ान, वपशावर)
मश्वरा: आप भुने हुए चने नछल्के समेत, बादाम, ककस्श्मश ह्मव्ज़न ले लें। शमक्स कर लें। एक हाथ में
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स्ितने आ सकते हैं ले कर सुबह को खा लें और उतने ही रात को खा लें। कुछ अरसा मुस्ट्तक़ल शमज़ािी से
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इस्ट्तमाल करें इन ् शा अल्लाह आप का मसला हल हो िाएगा।
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महरबानी रहनुमाई फ़रमाएाँ: अज़त है कक बन्दा नाचीज़ काफ़ी अरसे से गुनाह कर रहा है और अपने हाथों से ख़द ु को तबाह कर रहा हूूँ, तीन माह बाद मेरी शादी है , मगर मैं ककसी क़ाबबल नहीं। अब्क़री ररसाला पढ़ा
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तो उम्मीद क़ाइम हुई इन ् शा अल्लाह मैं ठीक हो िाऊंगा। आप से हदल्ली इल्तिा करता हूूँ कक मेरी रहनुमाई फ़रमाएूँ। आप के शलए हमेशा दआ ु गो रहूंगा। (म ्,अ)
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मश्वरा: तौबा ही इलाि है । अच्छी गग़ज़ा खाएं, अंिा, शमचत, गमत मसाल्हा, मुग़त वग़ैरा से परहे ज़ रखें।
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उम्दह् अंगरू , ककस्श्मश, बादाम, ख़ाशलस मक्खन मफ़ ु ीद है । ठं िी चीज़ों बोतल, दध ू , दही, चावल, ठं िी सस्ब्ज़यों से परहे ज़ करें । बकरे का गोश्त और रोटी, कभी बकरे के गोश्त में सस्ब्ज़यां िाल कर पका शलया करें । सोसाइटी और माहौल की तब्दीली के शलए बुरे दोस्ट्तों की सुह्बत तकत कर दें ।
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मेरी ज़ज़न्दगी कैसे बदली?
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माहनामा अब्क़री नवम्बर 2016 शुमारा नम्बर 125----------------pg 14
अब्क़री की वेब साइट दे खते ही बन्द कर दी
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(क़ाररईन! हज़रत िी! के दस,्त मोबाइल (मेमोरी काित), नेट वग़ैरा पर सन ु ने से लाखों की स्ज़न्दगगयां बदल
रही हैं, अनोखी बात ये है चकूं क दसत के साथ इस्ट्म आज़म पढ़ा िाता है िहां दसत चल्ता है वहां घरे लू
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उल्झनें है रत अंगेज़ तौर पर ख़त्म हो िाती हैं, आप भी दसत सन ु ें ख़्वाह थोड़ा सन ु ें, रोज़ सन ु ें , आप के घर,
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गाड़ी में हर वक़्त दसत हो।)
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(कक़स्ट्त नम्बर १२)
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मोहतरम हज़रत हकीम साहब अस्ट्सलामु अलैकुम! अल्लाह आप को और आप की पूरी टीम को अपने मक़्सद में काम्याब करे और िज़ाए ख़ैर दे । मैं ने सात या आठ महीने पहले इत्तफ़ाक़ से फ़ैसबुक पर आप
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की साइट दे खी, बन्द कर दी मगर निाने कैसे आप का दसत लग गया सुना तो ऐसा लगा मैं िो तलाश कर रही थी मुझे वो शमला, अब मैं आप को अपना बताती हूूँ। मैं एक बहुत अच्छे खाते पीते घराने की बेटी हूूँ,
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दो भाई हैं, अब्बू का अपना कारोबार था, बहुत पैसा दे खा पर वाल्दै न ने ग़रू ु र करना नहीं शसखाया, मैं ने उन को हमेशा ग़रीबों की मदद करते दे खा, ररश्तेदारों का भी बहुत ख़्याल रखते। किर ऐसा हुआ कक अब्बू
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ने कारोबार के शलए एक बैंक से क़ज़त ले शलया, िब हम बड़े हुए यानन कुछ सालों के बाद अब्बू का तमाम कारोबार ख़त्म हो गया, बहुत नुक़्सान हुआ, पहले हम इसे िाद ू समझते थे मगर आप के दसत सुन कर
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अंदाज़ा हुआ कक सब ् बैंक के सद ू से हुआ है । अब्बू को दे ख कर लगता नहीं कक उन के पास इतना पैसा था पर अब भी मदद सब ् की करते हैं। ख़ैर मैं अपना बताऊं तो अम्मी मेरी लेह्िे की बहुत सख़्त थीं, मुझे प्यार भी बहुत करती मगर छोटी छोटी बातों पर हम सब ् को बहुत ज़्यादा मारती थीं, वो समझती थीं कक
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मैं सख़्ती करूूँगी तो ये बच्चे बबगड़ेंगे नहीं। वाक़ई ख़ानदान में सब ् हमारी तारीफ़ करते मगर मुझे ऐसा
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लगने लगा कक मुझ से कोई प्यार नहीं करता, ख़द ु एतमादी ख़त्म हो गयी, ख़द ु को बहुत बेकार समझने
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लगी, उन सब ् के बाविद ू मैं क्लास में अवल पोज़ीशन लेती और हर गेम में भी आगे रहती। लड़ककयां मझ ु
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से दोस्ट्ती करना चाहती पर मैं अकेली रहती। लोग मुझे मग़रूर समझने लगे, कोई नहीं िानता था कक मैं
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क्या सोचती हूूँ, बहुत छोटी उम्र में अल्लाह की मह ु ब्बत हदल में आ गयी, अल्लाह के क़रीब हो गयी, मेरे
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घर में नमाज़ की पाबंदी नहीं थी मगर मैं तहज्िुद भी पढ़ती थी और कुछ वज़ाइफ़् भी और बहुत यक़ीन
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से पढ़ती थी, िो दआ ु करती क़ुबल ू होती थी। अम्मी को िर लगना शरू ु हो गया कक वज़ाइफ़् पढ़ने की
विह से मुझे कुछ हो ना िाए, सब ् मुझे कहते तुम पागल हो िाओगी, छोटी थी िर गई तहज्िुद पढ़ना
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छोड़ दी, मैं ने नोट ककया कक मुझे एक दफ़ा दे ख कर ककसी को भी मैं अच्छी लगने लग िाती, अम्मी बहुत
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िरती थीं इस शलए कभी ककसी से बात नहीं बढ़ाई, किर मेरा इंिीननयररंग में एिशमशन हो गया यहां से मेरी बबातदी शुरू हो गयी। मेरा होस्ट्टल में एिशमशन करवाया, मैं कभी अकेले नहीं रही थी अम्मी से बहुत
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कहा आप लोग भी इधर शशफ़्ट हो िाएं वो नहीं माने, स्िस बेटी को कभी गेट नहीं खोलने हदया उसे दस ू रे
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शहर अकेले भेि हदया, ना कोई नसीहत की, ना कुछ समझाया शायद वो मुझे बहुत अक़्लमंद समझते थे वहां िो कुछ लड़ककयां थीं वो बहुत "बोल्ि" थीं, शरू ु में उन्हों ने मेरा काफ़ी मज़ाक़ बनाया कक तम ु अपनी
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आस्ट्तीनें भी ऊपर नहीं होने दे ती, कोई आई ब्रोज़ ् वग़ैरा नहीं बनाती, कोई पाइंचा ऊपर हो िाता तो ऐसे सही करती िैसे सामने मदत हों, अम्मी के आगे बहुत रोती कक आप लोग भी शहर चलें वो नहीं माने। किर
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आहहस्ट्ता आहहस्ट्ता मझ ु े वो सब ् अच्छा लगने लगा, मैं ने ख़द ु को बदलना शरू ु कर हदया, मेरा िब एिशमशन हुआ तो सब ् ने कहा कक इस का तो एिशमशन होना ही था और उस के बाद से मेरे सर में बहुत
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ददत रहने लगा, मेरी भी सब ् की तरह लड़कों से दोस्स्ट्तयां होने लगीं, ना कोई पछ ू ने वाला था, सब ् के साथ दस ू रे शहरों में हरप पर िाने लगी, िो बुरा लगता था सब ् अच्छा लगने लगा, किर लड़के मेरी तारीफ़ करते तो मुझे अच्छा लगता क्यूंकक मैं घर के माहौल की विह से ख़द ु को बहुत आम सा समझती थी, ऐसे ही
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कुछ लड़कों से दोस्ट्ती आगे तक बढ़ गयी किर एक लड़के ने मुहब्बत का इज़्हार ककया वो मेरा बहुत ख़्याल
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रखता, हमारा तअल्लुक़ काफ़ी बढ़ गया िो कक पांच साल तक रहा। किर मेरी मंगनी ख़ानदान में ही हो
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गयी उस के घर वाले नहीं माने कक वो और ज़ात के हैं। मगर हमारा तअल्लक़ ु ख़त्म नहीं हुआ, मगर ये
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अल्लाह ही की मदद थी कक हर् वक़्त तन्हाई के बाविूद अल्लाह ने मेरी इज़्ज़त बचाए रखी। एक और
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बात के इंिीननयररंग में आने के बाद मेरा हाफ़ज़ा कम्ज़ोर हो गया, मेरा पढ़ाई में हदल भी नहीं लगता था
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दस ू रा मुझे इतने शोर में पढ़ने की आदत नहीं थी तो मैं कोशशश भी करती तो कुछ समझ नहीं आता था
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और मेरी नमाज़ें भी कम होना शरू ु हो गयी हैं क़ुरआन पढ़ने लगती तो सर ददत से िटने लगता। इसी कैकफ़यत में चन्द साल बाद मेरी शादी हो गयी, बच्पन में ककये नेक एअमाल की ही बरकत थी कक मुझ
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िैसी गुनाहगार को अल्लाह ने इंतहाई अच्छे शोहर से नवाज़ा। अल्लाह ने नशेब व फ़राज़ से गुज़ारा
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अल्हम्दशु लल्लाह मैं साबबर शाककर रही, शादी के बहुत अच्छा दौर भी दे खा और एक वक़्त आया इंतहाई बुरा वक़्त भी दे खा। शादी के कुछ अरसे बाद मेरा मेरे शौहर से झगड़ा शुरू हो गया, हदन रात हमारे झगड़े
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में गज़ ु रते, शौहर की अपनी कॉस्ट्मेहटक्स की दक ु ान है , कारोबार हदन बहदन िब ज़वाल पज़ीर हुआ तो मैं
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ने चकूं क इंिीननयररंग की हुई थी इस शलए मैं ने एक फ़मत में िॉब कर ली। मेरी तनख़्वाह ठीक ठाक लगी और घर का गज़ ु ारह बहुत अच्छा होने लगा। मगर किर भी शौहर ने मेरा साथ ना हदया, मझ ु े गाशलयां दे ते,
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इंतहाई बुरा सलूक करते, दक ु ान के वक़्त के इलावा भी घर से बाहर रहते, हमें काफ़ी हदन हो िाते एक दस ू रे से बात ककये हुए, किर ऑकफ़स में अपने एक कॉलीग ने मुझे दोस्ट्ती का कहा मैं हालात से तंग थी
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मैंने उस से दोस्ट्ती कर ली, कुछ अरसे बाद वो सीररयस हो गया मझ ु से शादी करना चाहता था, एक बात कक मुझे निाने क्यूं शौहर बुरे लगने लग गए थे, उन से बहुत दफ़ा तलाक़ का मुताल्बा भी कर हदया, मेरे
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शलए ये तक्लीफ़्दह बात थी। मैं ने किर एक दफ़ा नमाज़ वग़ैरा छोड़ दी और गन ु ाहों की दल्दल में धंसती चली गयी, उस लड़के के साथ मेरे ररलेशन बढ़ते चले गए, कभी ज़मीर के हाथों उस को इग्नोर करती तो वो मेरे पाओं में गगर िाता और शससक शससक कर रोता, किर उस से बात शुरू कर दे ती। दो साल बाद मेरे
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ससुर ने हमें बेस्ल्ियम बुल्वा शलया, हम वहां शशफ़्ट हो गए, मेरे शौहर को वहां िॉब शमल गयी, मगर
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फ़ोन पर उस लड़के से राब्ता रहा, किर एक हदन मुझे अब्क़री की साइट शमली, िब आप के दसत सुने तो
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हदल में िो एक बेसक ु ू नी थी एक ख़ाली िगह थी मझ ु े सक ु ू न आ गया, मैं ने आप के सारे दसत सन ु ,े बहुत
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रोई, अल्लाह से तौबा की, उस लड़के को मना ककया कक आि के बाद बात ना करे उसे शादी के शलए राज़ी
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ककया, पर शादी कर के भी वो मझ ु से बात ु े मैसेि करता उस ने अपनी बीवी को भी मेरा बता हदया कक मझ
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करने से उसे मना ना करे । बीवी बेचारी कर भी क्या सकती है । मैं उस के िुनून से बहुत तंग थी, आप के
bq
दसत सन ु े तो रोई बहुत, अब मैं ने अपने नम्बरज़ तब्दील कर शलए हैं, ककसी से कोई राब्ता नहीं। अल्लाह से दआ ु करती हूूँ कक दोनों लड़के मुझे भूल िाएं। मैं ने दसत सुन कर बैतुल्ख़ला (बाथरूम) वाली दआ ु पढ़ना
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शुरू की तो शौहर से मुहब्बत बढ़ गयी, बहुत ग़स्ट् ु सा आता था कम हो गया, कफ़ल्में और टी वी दे खना बुरा
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लगने लग गया, अब तक मैं ने आप के सारे दसत सुन शलए हैं। दसत से वज़ू और तीन घोंट वाला अमल ककया तो पन्रह साल पुराना सर का ददत एक महीने में ठीक हो गया। अब अल्हम्दशु लल्लाह! मेरे घर् में
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सक ु ू न, बरकत और आकफ़यत है । (पोशीदह)
नाम और मक़ ु ाम की इत्तफ़ाक़न मम ु ासलत हो सकती है । माहनामा अब्क़री नवम्बर 2016 शम ु ारा नम्बर 125-----------------pg15 Page 32 of 56 www.ubqari.org
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क्या तम ु चाहते हो तम् ु हारे पास वसीअ ररज़्क़, घर और गाड़ी हो? (मज़ीद फ़मातया कक आि मैं तुम्हें एक अज़ीम तोह्फ़ा दे ना चाहता हूूँ? क्या तुम चाहते हो कक तुम्हारा
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मकान बड़ा और ख़ब ू सरू त हो? क्या तम ु चाहते हो कक तम् ु हारे पास गाड़ी हो? क्या तम ु मंशु सफ़ बन्ना
िी कह रहा था।)
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चाहते हो? क्या तुम हज्ि व उमरह् करना चाहते हो? मैं हज़रत िी की बातें सुन कर बस बेहदली से िी
(मसतला ननगार मुहम्मद अय्यूब शाहहद, तौंसा शरीफ़् )
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मैं उस वक़्त ज़माना ताशलब इल्मी में था िब उस मुबारक हस्ट्ती से मुलाक़ात हुई, मेरे हाथ में एक ककताब थी, उस अज़ीम हस्ट्ती ने फ़मातया कक ये क्या है ? मैं ने अज़त ककया कक हज़रत िी! "मेरी स्ट्लेबस बक ु है ।" ये
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पहली मुलाक़ात और काफ़ी अरसा बीत गया। एक हदन यूं हुआ कक हमारा सालाना इज्तमाअ था और उस
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इज्तमाअ में वो हस्ट्ती भी तश्रीफ़ लाने वाली थी, मह ु त्मम ् साहब ने मेरी ड्यट ू ी लगाई कक शअ ु बा िात का
तआरुफ़ कराना और हज़रत िी को शुअबा िात हदखाने हैं। पस मैं ने हज़रत िी को अपने इदारे के शुअबा
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िात हदखाए आखख़र में आप ने फ़मातया कक अपना मकान हदखाओ, मैं बहुत परे शान हुआ कक हज़रत के
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साथ बहुत से आदमी थे और मेरा मकान छोटा है , ख़ैर चप ु कर् के उन्हें अपने उस मकान में ले आया िो
हमारे तदरीसी सेंटर की तरफ़ से शमला हुआ था स्िस में एक कम्रह, एक चार पाई, एक टूटी हुई मेज़ और
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कुसी थी। मैं है रान था कक इतने ज़्यादा आदमी उस कमरे में कैसे समाएंगे लेककन िूंही मेरे मकान के दरवाज़े पर पुहंचे तो सब ् सागथयों को ये कह कर वापस भेि हदया कक आप िाएं और मैं अभी आया हूूँ।
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इदारे की तरफ़ से पैग़ाम आया कक खाना तय्यार है तो हज़रत िी ने फ़मातया मैं अभी आ रहा हूूँ। ख़ैर! आप
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मेरे उस मामूली मकान में उस चार पाई पर बैठ गए और अह्वाल पूछने लगे और फ़मातया कक तू वही
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(स्ट्लेबस की ककताब वाला) ताशलब इल्म है ? मैं है रान हुआ कक हज़रत पहली मल ु ाक़ात को भल ू े ही नहीं? मज़ीद फ़मातया कक आि मैं तुम्हें एक अज़ीम तोह्फ़ा दे ना चाहता हूूँ? क्या तुम चाहते हो कक तुम्हारा मकान बड़ा और ख़ब ू सूरत हो? क्या तुम चाहते हो कक तुम्हारे पास गाड़ी हो? क्या तुम मुंशसफ़ बन्ना Page 33 of 56 www.ubqari.org
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चाहते हो? क्या तुम हज्ि व उमरह् करना चाहते हो? मैं हज़रत िी की बातें सुन कर बस बेहदली से िी िी केह् रहा था। हज़रत िी बहुत उम्र रसीदह थे और मैं ये समझ रहा था बुढ़ापे की विह से ऐसा कह रहे
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हैं और ये कैसे मस्ु म्कन है । आखख़र हज़रत िी ने िोश से फ़मातया कक वज़ू के दरम्यान वाली मस्ट्नन ू दआ ु पढ़ते हो, मैं ने किर वही बेहदली से कहा कक िी पढ़ता हूूँ। फ़मातया: अब तक्बीर ऊला से नमाज़ पढ़ो और
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हर फ़ज़त नमाज़ के बाद इस दआ ु को तीन बार पढ़ और वज़ू करते वक़्त शरू ु से आखख़र तक मस ु ल्सल ये दआ ु पढ़नी है । "अल्लाहुम्मस्फ़फ़ली ज़ंबी व वस्स्ट्सअली फ़ी दारी व बाररक् ली फ़ी ररज़्क़ी" َْ
ْ
ْ َ ّٰ َ
( )الل ُھم اغ ِف ْر ِ ِْل ذن ِِب َو َو ِس ْع ِ ِْل ِ ِْف َدا ِر ْی َو ََب ِر ْک ِ ِْل ِ ِْف ِرز ِ ْقऔर फ़मातया कक अगर चालीस हदन के अंदर तुम उमरे पर ना गए
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तो मझ ु े गगला ज़रूर दे ना। ख़ैर! इज्तमाअ इख़्तताम को पह ु ं चा, हज़रत िी चले गए, और मैं ने इस वज़ीफ़ा
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को शुरू कर हदया और यक़ीन िाननए ठीक तीसवें हदन में हरम ् पाक में हास्ज़र था। अल्लाह तआला ने
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बड़ा और ख़ब ू सूरत घर अता फ़मातया। अल्लाह तआला की अता से हर साल गाड़ी का मॉिल तब्दील होता
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है । अगर गुनाहों की मुकम्मल मुआफ़ी चाहते हैं, घरे लू वुसअत, ररज़्क़ की बरकत, झगड़ों से हहफ़ाज़त
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और हज्ि व उमरह के ग़ायबाना अस्ट्बाब चाहते हो तो इस मस्ट्नून दआ ु को हर वज़ू के शुरू से आखख़र तक
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मुसल्सल पढ़ो और फ़ज़त नमाज़ के बाद तीन बार मुकम्मल यक़ीन से पढ़ो और बरकतें ही बरकतें दे खते
बयान की। मैं ने क़ाररईन अब्क़री के शलए शलख हदया।
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िाओ। तक्बीर ऊला का ख़ास एहतमाम करना है । दित बाला तहरीर एक अल्लाह वाले ने इज्तमाअ में
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इम्कान कभी ख़त्म नहीिं होता
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(मौलाना वहीदद्द ु ीन ख़ान)
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मग़ररब की तरफ़ िैली हुई पहाडड़यों के ऊपर सूरि िूब रहा था, आफ़्ताबी गोले का आधा हहस्ट्सा पहाड़ की
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चोटी के नीचे िा चक ु ा था और आधा हहस्ट्सा ऊपर हदखाई दे ता था। थोड़ी दे र के बाद पूरा सूरि उभरी हुई पहाडड़यों के पीछे िूब गया।
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माहनामा अबक़री मैगज़ीन
अक्टूबर 2016 के एहम मज़ामीन हहिंदी ज़बान में
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अब चारों तरफ़ अंधेरा छाने लगा। सूरि धीरे धीरे अपना उिाला समेटता िा रहा था। बज़ाहहर ऐसा मालूम होता था कक सारा माहौल गहरी तारीकी में िूब िाएगा। मगर ऐन उस वक़्त िब कक ये अमल हो
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रहा था, आस्ट्मान पर दस ू री तरफ़ एक और रोश्नी ज़ाहहर होना शरू ु हुई। ये बारहवीं का चांद था िो सरू ि के छुपने के बाद उस की मुख़ाशलफ़ शसम्त से चमकने लगा और कुछ दे र के बाद पूरी तरह रोशन हो गया।
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सरू ि की रोश्नी के िाने पर ज़्यादा वक़्त नहीं गज़ ु रा था कक एक नई रोश्नी ने माहौल पर क़ब्ज़ा कर शलया। "ये क़ुदरत का इशारा है " मैं ने अपने हदल में सोचा "कक एक इम्कान िब ख़त्म होता है तो उसी वक़्त दस ू रे इम्कान का आग़ाज़ हो िाता है , सूरि ग़रूब हुआ तो दन्ु या ने चांद से अपनी बज़्म रोशन कर
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ली। इसी तरह अफ़राद और क़ोमों के शलए भी उभरने के इम्कानात कभी ख़त्म नहीं होते। ज़माना अगर
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एक बार ककसी को गगरा दे तो ख़द ु ा की इस दन्ु या में मायूस होने का कोई सवाल नहीं। वो नए मवाकक़अ
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को इस्ट्तमाल कर के दब ु ारह अपने उभरने का समान कर सकता है ज़रूरी शसफ़त ये है कक आदमी
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दाननश्मन्दी का सबूत दे और मुसल्सल स्िद्द व िहद से कभी ना उक्ताए। ये दन्ु या ख़द ु ा ने अिीब
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इम्कानात के साथ बनाई है , यहां मादह फ़ना होता है तो वो तवानाई बन िाता है । तारीकी आती है तो उस
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के बतन से एक नई रोश्नी बरआमद हो िाती है । एक मकान गगरता है तो वो दस ू रे मकान की तामीर के
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शलए ज़मीन ख़ाली कर दे ता है । यही मआ ु म्ला इंसानी स्ज़न्दगी के वाकक़आत का है यहां हर नाकामी के
अंदर से एक नई काम्याबी का इम्कान उभर आता है । दो क़ौमों के मुक़ाबले में एक क़ौम आगे बढ़ िाए
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और दस ू री क़ौम पीछे रह िाए तो बात यहीं ख़त्म नहीं हो िाती। इस के बाद एक और अमल शुरू होता है ।
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बढ़ी हुई क़ौम के अंदर ऐश परस्ट्ती और सहूलत पसंदी आ िाती है । दस ू री तरफ़ बबछड़ी हुई क़ौम में मेहनत और स्िद्द व िहद का नया िज़्बा उठता है । इस का मत्लब ये है कक ख़द ु ा की इस दन्ु या में ककसी
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के शलए पस्ट्त हहम्मत या मायस ू होने का सवाल नहीं, हालात ख़्वाह बज़ाहहर ककतने ही ना मवाकफ़क़
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हदखाई दे ते हों, उस के आस पास के शलए एक नई काम्याबी का इम्कान मौिूद होगा। आदमी को चाहहए कक इस नए इम्कान को िाने उस को इस्ट्तमाल कर के अपनी खोई बाज़ी को दब ु ारह िीत ले।
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पथरी ख़ाररज, ददस गुदास दस सेकिंि में ख़त्म मोहतरम हज़रत हकीम साहब अस्ट्सलामु अलैकुम! मेरे पास एक आसान सा टोटका है मगर इस का
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कमाल इतना ज़बदत स्ट्त है कक इस्ट्तमाल करने वाला है रान रह िाता है । पथरी गुरदह व मसाना: बखड़ा एक
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पोदा है स्िसे शाख़ों, कांटों और िड़ों समेत पीस कर सफ़ूफ़् बना लें , चाय का आधा चम्मच पानी के साथ हदन में एक मततबा दें , पथरी ख़ाररि हो िाती है और मरीज़ को पता भी नहीं चल्ता। गुदे का शदीद ददत भी एक से दस सेकंि में ख़त्म हो िाता है । तीर बहदफ़ और आज़मद ू ह है । बअज़ अफ़राद क़ुव्वत बाह् के शलए भी यही टोटका इस्ट्तमाल करते हैं। अगर कोई रीह् का मरीज़ है तो वो भी यही टोटका इस्ट्तमाल करे , ये
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टोटका भूक भी बढ़ाता है । गशमतयों में शबतत बज़ूरी के साथ इस्ट्तमाल करें और सहदत यों में नीम गमत या
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ताज़ह पानी के साथ इस्ट्तमाल करें । लािवाब चीज़ और बारहा का आज़मूदह टोटका है , मरीज़ एक मततबा
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नफ़्स्याती घरे लू उल्झनें और आज़मूदह यक़ीनी इलाज परे शान और बद्द हाल घरानों के उल्झे ख़तूत और सुल्झे िवाब
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माहनामा अब्क़री नवम्बर 2016 शुमारा नम्बर 125----------------pg 16
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ज़रूर आज़माएूँ। (मसऊदल् ु हसन, पाकपतन शरीफ़ )
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जवाबी शलफ़ाफ़ा ज़रूर भेजें, मुकम्मल पता शलखा हुआ। जवाब में जल्दी ना करें । योरप जाने का शौक़: मेरी उम्र ३२ साल है एह्सास कम्तरी बढ़ता िा रहा है । मुझे बच्पन से योरप िाने
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का शौक़ था क्यूंकक मेरे ररश्तेदार वहां रहते हैं और िब आते िाते हैं तो उन को दे ख कर ख़द ु को फ़ज़ूल
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ख़्याल करता हूूँ वो हर शलहाज़ से मझ ु से अच्छी स्ज़न्दगी गज़ ु ार रहे हैं। मैं ने ग्रेिए ु शन ककया है और अब
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अबू ज़हबी में मज़्दरू ी कर रहा हूूँ। घर वाले शादी का केह् रहे हैं और मैं ने ठान ली है कक शसफ़त योरपी लड़की से शादी करूंगा। अगर गांव की लड़की का साथ शमला तो सारी स्ज़न्दगी डिप्रेशन में गज़ ु र िाएगी बहुत
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परे शान हूूँ और मैं ककसी को वज़ाहत से कुछ नहीं बता सकता ख़द ु कशी के ख़यालात आते हैं। (सास्िद, अबू ज़हबी)
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मश्वरा: अगर आप का ज़ेहन उदासी, एह्सास कम्तरी, मायूसी, नाकामी, पज़्मदत गी की तरफ़ माइल है तो
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दन्ु या के ककसी भी हहस्ट्से में रहें डिप्रेशन होने का इम्कान भी रहे गा। योरपी लड़की से शादी कर के योरप में ररहाइश की सहूलत ज़रूर हाशसल की िा सकती है लेककन डिप्रेशन से बचने की ज़मानत नहीं शमल सकती। क्यंकू क इस वक़्त भी आप के िम् ु ले ज़ाहहर कर रहे रहें कक ककसी हद्द तक डिप्रेशन है । मस्ट्लन ख़द ु कशी के ख़यालात आना मामूली बात नहीं है पहले डिप्रेशन से ननकलें इस के बाद शादी के शलए बेह्तर
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फ़ैसला करने के क़ाबबल होंगे। अगर माहहर नफ़्स्ट्यात से मुलाक़ात कर लें तो ज़्यादा बेह्तर होगा। इस
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तरह वो सारी बातें , ख़्वाहहशात, आरज़ूएूँ िो परे शानी का सबब हैं, एक क़ाबबल एतमाद फ़दत के सामने
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वज़ाहत से बयान करने का मौक़ा शमलेगा और इस के बाद यक़ीनन आप ख़द ु को बहुत बेह्तर महसूस
करें गे।
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नीिंद में झटका: मैं नींद में बोल्ता हूूँ, नींद में झटका लगता है , पढ़ते वक़्त ख़यालात इधर उधर भटकते हैं।
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कभी सोचता हूूँ बहुत अमीर हो गया हूूँ, कोशशश करता हूूँ कक कुछ ऐसा वेसा ना सोच,ूं किर भी ज़ेहन में ग़ैर
हक़ीक़ी बातें आ िाती हैं। (उमर अमीन, सक्खर)
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मश्वरा: नींद में बोलने वाले, चल्ने वाले, बे सुकून होते हैं, बेदारी के वक़्त का अच्छा इस्ट्तमाल, सेहतमन्द
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सरगशमतयां, मज़्हब से क़ुबतत, मस्ट्बत सोच और ख़्याल, हक़्क़ाइक़ का इराक और इस हवाले से बेह्तरीन अमल ना शसफ़त स्ज़न्दगी को काम्याबी की तरफ़ ले िाता है बस्ल्क शब व रोज़ भी सूँवर िाते हैं। िहां तक
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नींद में झटका लगने की बात है तो वाज़ेह ना हो सकी। अगर शसफ़त सोते हुए हल्की नींद में चोंक िाते हैं
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तब ये कैकफ़यत आम है और सोते में कई झटके लगते हैं उस वक़्त ये हालत तवज्िह तलब होगी।
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मुझे घबराहट होती है : मुझे लोगों में घबराहट होती है । वक़्त के साथ तन्हाई पसंद होता िा रहा हूूँ। बस अपना घर और अपना कमरा ही अच्छा लगता है , मेरी उम्र १९ साल है । प्राइवेट बी ए कर रहा हूूँ, शलखने
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पढ़ने के शलए मझ ु े हर सहूलत दस्ट्तयाब है मगर परे शान कुन ख़यालात आते रहते हैं। रात को िागता हूूँ, मेरे दोस्ट्त फ़ैसबुक का ज़्यादा इस्ट्तमाल करते हैं और मुझे गेम्स में हदल्चस्ट्पी है । वेसे में बबल्कुल नामतल
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हूूँ, ज़हीन भी हूूँ मगर लोगों से शमलने के शलए एतमाद की कमी पर परे शानी होती है (ि, लाहौर) मश्वरा: कॉलोस्म्बया यनू नवशसतटी की मेडिकल यनू नवशसतटी के तहत होने वाली तहक़ीक़ से अब ये बात साबबत हो गयी है कक वो टीन ऐि बच्चे िो रात को दे र से सोते हैं और रोज़ाना ८ घन्टे से कम नींद लेते हैं,
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डिप्रेशन का आसानी से शशकार हो िाते हैं। तन्हाई पसंदी, घबराहट, परे शान कुन ख़यालात, डिप्रेशन की
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इब्तदा को ज़ाहहर कर रहे हैं। मामूलात में मज़बूत इरादे के साथ तब्दीली लाएं। अच्छी सुह्बत के साथ
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मुआश्रती और मिशलसी स्ज़न्दगी में ऐसी ताक़त है िो नोिवानों को तारीक कमरों से बाहर रोश्नी और खल ु ी कफ़ज़ा में ख़श्ु हाल और स्ज़ंदा हदली की तरफ़ ले िाती है । इस से ना शसफ़त हौसला बल ु न्द होता है
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बस्ल्क ख़द ु एतमादी में इज़ाफ़े के साथ तामीरी ख़यालात पैदा होते हैं। मुझे यक़ीन है कक ये सब ् िानने के
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बाद आप अपने पास होने वाली हर सहूलत और ज़हानत से अच्छा फ़ायदा हाशसल करें गे।
हदमाग़ काम िोड़ दे ता है : अक्सर औक़ात मझ ु े सीहटयां सन ु ाई दे ती हैं। लगता है ये मेरे सर में बि रही हैं।
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इन की आवाज़ एक से दो शमनट तक आती रहती है कभी अचानक सर इस तरह सुन हो िाता है कक समझ में नहीं आता क्या करूूँ? कहीं िा रहा हूूँ या कोई काम कर रहा हूूँ तो हदमाग़ भी काम करना छोड़
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दे ता है । नज़र् कम्ज़ोर है । (दाननश, लाहौर)
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मश्वरा: सर में सीटी की आवाज़ महसूस हो, इस के साथ सर सुन होने की भी शशकायत रहे और भी
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शशकायात हों िो आप ने बयान की हैं तो ये समझ लेना चाहहए कक एअसाबी कम्ज़ोरी या बीमारी का इम्कान है । इस िाननब ग़फ़लत ना बरतें । ये तमाम शशकायात ककसी कक़स्ट्म के हदमाग़ी दौरे की विह से
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भी मुस्म्कन हैं। बअज़ दौरे बग़ैर बेहोशी और बग़ैर झटके लगे पड़ते हैं। इस दौरान हदमाग़ काम करना छोड़ दे ता है । ऐसी हालत में सक्ते की कैकफ़यत भी हो िाती है । थोड़ी दे र में िब दौरा ख़त्म होता है तो इंसान
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पहले की तरह हवास में आ िाता है । अक्सर लोगों को इस कैकफ़यत के बाद नींद भी आती है । नज़र
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कम्ज़ोर होने से सर में ददत होता है मगर सीहटयां सुनाई नहीं दे तीं।
नशा करता हूाँ: िागते हुए होश व हवास में मुझे महसूस होता है कक मेरे ऊपर पानी की बूंदें गगर रही हैं लेककन वो मझ ु े गीला नहीं कर रहीं। कभी लगता है आस पास बच्चे खेल रहे हैं। कई तरह की चीज़ें हैं स्िन
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को सूंघ कर नशा करता हूूँ। (मुहरत म, रावलवपंिी)
मश्वरा: सूंघ कर ककया िाने वाला नशा खा कर या पी कर करने वाले नशे से ज़्यादा ख़तरनाक होता है
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क्यूंकक नाक के ज़ररए वो बहुत तेज़ी से हदमाग़ तक पुहंच िाता है । नशे के आदी लोगों को ज़ेहनी मरीज़
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कहा िाए तो ग़लत ना होगा क्यूंकक उन का हदमाग़ आम लोगों की तरह काम करने के क़ाबबल नहीं रहता। यही विह है कक रवय्या भी बदलने में दे र नहीं लगती। पानी या बूंदों का विूद नहीं लेककन महसूस हो रही
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हैं, इसी तरह दस ै ी, ू री शशकायत भी है इन के इलावा भी दीगर अलामात मस्ट्लन घबराहट, बेख़वाबी, बेचन
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तष्वीश, ख़ौफ़ और शदीद ग़स्ट् ु सा भी ज़ाहहर हो सकता है । ख़द ु को नफ़्स्ट्याती अमराज़ से महफ़ूज़ रखने के शलए ज़रूरी है कक नशा कभी ना ककया िाए। ये ककसी भी एह्सास महरूमी या बेसक ु ू नी का मदावा नहीं
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होता। फ़ौरी तौर पर नशे की आदत से छुटकारा हाशसल करने की ज़रूरत है । आि कल तो तक़रीबन हर इलाक़े में ऐसे सेंटसत का क़्याम अमल में आ चक ु ा है िैसा ऐसे अफ़राद का इलाि ककया िाता है और बहुत
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से लोग इस मूज़ी आदत से छुटकारा पा चक ु े हैं।
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ब्लि प्रेशर: ज़रा सी बात पर मेरा ब्लि प्रेशर कम हो िाता है । यही मेरी बीमारी है और इस के शलए मुझे
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कोई दवा नहीं शमली। हालांकक ये ख़तरनाक बीमारी है । (सलीम)
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मश्वरा: अक्सर औक़ात कम्ज़ोरी की विह से ब्लि प्रेशर कम हो िाता है , ये कोई ख़तरनाक बीमारी नहीं है । ख़न ू का दबाव ककसी क़दर कम होना कफ़क्र की बात नहीं। ये शसफ़त उस वक़्त ख़तरनाक होता है िब
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कोई मरीज़ बेहोशी में बबस्ट्तर पर लेटा हो। अपनी सेहत का ख़्याल रखें , अच्छी गग़ज़ा लें , ग़ैर ज़रूरी
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कफ़करों से ज़ेहन को आज़ाद रखें। मिमूई सेहत पर अच्छा असर होगा।
माहनामा अब्क़री नवम्बर 2016 शुमारा नम्बर 125--------------pg 18 वाल्दै न के घर को मैका समझझए रे स्ट हाउस नहीिं
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(हर लड़की का रवय्या अपने माूँ बाप के घर आने के बाद मुख़्तशलफ़ हुआ करता है । शमसाल के तौर पर
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"न" वो िब भी अपने वाल्दै न के घर आती है कोई काम नहीं करती। आराम करती रहती है । उस के ख़्याल
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के मुताबबक़ मैका ऐसी िगह नहीं है िहां िा कर काम ककया िाए)
आप की शादी हो चक ु ी, आप अपने ससरु ाल में रहती हैं और िब फ़ुसतत शमलती है या मौक़ा शमलता है तो
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अपने वाल्दै न के पास भी आ िाती हैं और हर लड़की का रवय्या अपने माूँ बाप के घर आने के बाद
मख़् ु तशलफ़ हुआ करता है । शमसाल के तौर पर "न" वो िब भी अपने वाल्दै न के घर आती है कोई काम नहीं
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करती। आराम करती रहती है । उस के ख़्याल के मुताबबक़ मैका ऐसी िगह नहीं है िहां िा कर काम ककया िाए। वो उसे आराम करने की आइडियल िगह समझती है । लेककन "न" एक बन् ु यादी बात भल ू
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िाती है कक दन्ु या के हर ररश्ते की बुन्याद और उस का इज़्हार एक ख़ास हद्द तक हुआ करता है । यानन हर
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ररश्ते के शलए बदातश्त की एक हद्द हुआ करती है और ये मुआम्ला दो तफ़ात अफ़्हाम का हुआ करता है और
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उस की ख़श्ु ग्वारी उस वक़्त तक बरक़रार रहती है िब तक दोनों एक दस ू रे का एहतराम करें और एक
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दस ू रे के मुआम्लात में हदल्चस्ट्पी लें। "न" को अब ये भी सोचना चाहहए कक उस के मैके में उस के िाने के बाद एक और फ़दत का इज़ाफ़ा हो गया है यानन उस के भाई की बीवी। "न" को अब ये सोचना चाहहए कक उस की भाभी भी बबल ्आखख़र एक इंसान ही है । एक तो वो घर के काम करती ही रहती है किर "न" के आ
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िाने के बाद उस का और उस के बच्चों के काम का बोझ और भी बढ़ िाता है । क्यूंकक "न" अपने हहस्ट्से का काम भी उस के हवाले कर दे ती है और ये ककसी तरह भी मुनाशसब नहीं है । ये रवय्या शसफ़त "न" का
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नहीं है । उस का नाम तो शसफ़त शमसाल के तौर पर शलया गया है । इस कक़स्ट्म की और ना िाने ककतनी लड़ककयां हैं स्िन्हों ने अपने मैके को आराम घर समझ रखा है िहां वो शसफ़त अपनी थकन उतारने के शलए
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िाया करती हैं और यही ख़वातीन अपने मैके की कफ़ज़ा में तस्ल्ख़याूँ घोलने की स्ज़म्मा दार हुआ करती हैं और उन की विह से ररश्तों के दम्यातन दरारें पड़ने लगती हैं। एक तरफ़ ककसी लड़की या औरत को ये नहीं समझना चाहहए कक वो अब अपने घर में बबल्कुल अज्नबी बन गयी है । यानन अपने मैके में िहां अब उस
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का कोई अमल दख़ल नहीं है ऐसी बात नहीं है । बस्ल्क उसे ये सोचना और ख़्याल करना चाहहए कक अब
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उस की स्ज़म्मेदारीयाूँ इस शलहाज़ से बढ़ गयी हैं कक वो दो ख़ानदानों के दम्यातन तअल्लुक़ात को बहाल
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और ख़श्ु गवार रखने के शलए एक पल ु का काम कर रही है । एक वो घर िहां वो शादी से पहले रहा करती
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थी, और एक वो घर िहां वो शादी के बाद गयी है । यानन उस का मैका और उस का ससुराल। ये बात भी
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बबल्कुल दरु ू होता है । उस के माूँ ु स्ट्त है कक ककसी लड़की का ररश्ता उस के अपने मैके वालों से बहुत मज़बत
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बाप, भाई बहन, भाबबयाूँ, अज़ीज़, ररश्तेदार, कज़न वग़ैरा उस के इदत गगदत हुआ करते हैं। वो उन पर अपना
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हक़ समझा करती है । लेककन शादी के बाद सरू त्हाल में वाज़ेह तब्दीली आ िाती है । स्िस तरह कोई लड़की अपने शौहर के घर की माशलका हुआ करती है उसी तरह अब उस की भाभी उस के भाई के घर की
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माशलका है । ये ऐसी बात है स्िस को हर लड़की को समझ लेना चाहहए और इस हक़ीक़त को समझ लेने के
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बाद उसे बहुत ख़श ु हदली के साथ क़ुबूल भी कर लेना चाहहए क्यूूँकक इस में अक़्लमन्दी और भलाई है । ये एक ऐसा राज़ है स्िस को हल करने के शलए ककसी महारत की ज़रूरत नहीं है । "न" के बर अक्स एक दस ू री
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लड़की है "क़" वो बहुत हदनों के बाद मैके िाया करती है और िब भी िाती है उस का इस्ट्तक़बाल उस की
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भाभी बहुत गमत िोशी और खल ु े हदल के साथ करती हैं। इस शलए कक उस की कफ़त्रत और आदत "न" के बबल्कुल बर् अक्स है । (ककरन सल् ु ताना)
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अहल ख़ाना को ख़श ु रखना सीझखए एक काम्याब घर मदत और औरत दोनों की कोशशशों का नतीिा होता है क्यंकू क यही वो बन् ु यादी सतन ू हैं
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स्िन पर घर की इमारत खड़ी होती है । ख़द ु ानख़्वास्ट्ता उन दोनों में से कोई एक भी अपना ककरदार अदा
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करना छोड़ दे तो इमारत के क़ाइम रहने के इम्कानात ख़त्म हो कर रह िाते हैं। शलहाज़ा दोनों का अपने फ़राइज़ और स्ज़म्मा दाररयों के मुआम्ले में एह्सास होना अज़ ् हद्द ज़रूरी है । आइए! हम आप को चन्द तिावीज़ बताते हैं स्िन पर अमल पैरा हो कर शमयां बीवी एक काम्याब घर तश्कील दे सकते हैं। तहम्मल ु व बदासश्त से काम लेना: शादी शुदह स्ज़न्दगी में सब ् से पहले स्िस चीज़ से इंसान का वास्ट्ता पड़ता है वो
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यही दो अल्फ़ाज़ हैं। मदत या औरत दोनों को ऐसी बहुत सारी चीज़ों का सामना करना पड़ता है िो उन के
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शमज़ाि के बर अक्स होती हैं शलहाज़ा ख़द ु में तहम्मुल व बदातश्त का मादह पैदा कीस्िये क्यूंकक आप
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खख़लाफ़ शमज़ाि बात पर स्िस क़दर ज़्यादा ग़स्ट् ु से का इज़्हार करें गे मुआम्लात उसी क़दर पैचीदह् होते
चले िाएंगे। ये बात ज़ेहन में रखें कक अगर आप को घर बचाना है तो तहम्मल ु और बदातश्त से काम लेना
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पड़ेगा ख़्वाह ये मुआम्ला घर के ककसी फ़दत से ही मुतअस्ल्लक़ क्यूं ना हो? प्यार व मुहब्बत से बात
मनवाएाँ: बअज़ मदों और बअज़ ख़वातीन की ये आदत होती है कक वो हर काम में हुक्म चलाना अपना
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फ़ज़त समझते हैं। अगर आप में भी इसी तरह की कोई आदत है तो यक़ीन कीस्िये कक इस के नुक़्सानात का आि नहीं तो कल आप को सामना करना पड़ेगा शलहाज़ा इस आदत से फ़ौरी छुटकारा हाशसल करें ।
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याद रखें! आम हालात में प्यार की ज़बान सब ् से ज़्यादा असर अंगेज़ होती है । मुआज़रत करने में पहल
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करें : इंसान ख़ताकार है और शमयां बीवी भी इंसान ही हैं िो अगर ककसी मुआम्ले में उलझ िाएं और बात
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नाराज़गी तक पुहंच िाए तो ग़लती पर मुआज़रत करने को अपनी तहक़ीर ना िानें , मुआज़रत करने से
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कभी दस ू रे फ़दत की नज़र् में आप की इज़्ज़त कम नहीं होती बस्ल्क उस में इज़ाफ़ा ही होता है और अगर बग़ैर क़सरू के भी आप सल ु ह में पहल करती हैं तो ये भी आप के बड़ेपन का सबत ू है और ऐसी बात नहीं कक घर का कोई मदत आप के इस बड़ेपन को महसूस ना करे या नज़र अंदाज़ कर िाए। थोड़े में ख़श ु रहें :
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ख़ब ू तर की तलाश ने आि के इंसान का सुकून छीन शलया है । अक्सर घराने इसी विह से टूट िूट ू से ख़ब िाते हैं कक वो क़नाअत पसंद नहीं होते। क़ुदरत ने आप को स्िस क़दर नवाज़ा है उसी से ख़श ु और
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मत्ु मइन रहने की कोशशश करें । सब ् को वक़्त दें : कारोबार स्ज़न्दगी चलाने के शलए ये नहीं हो कक आप शसफ़त कारोबार या दफ़्तर के हो कर रह िाएं घर के दीगर अफ़राद भी आप की मुहब्बत, तवज्िह और
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वक़्त के ताशलब होते हैं शलहाज़ा बच्चों, बड़ों और बज़ त सब ् को स्ितना हो सके वक़्त दें । उन के दख ु ग ु ण ु सुख बांटें और उन की ख़शु शयों में शरीक हों। (मेहरीन फ़ानतमा)
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इन जैसा कोई नहीिं
ज़म्ज़म िैसा कोई पानी नहीं। ☆क़ुरआन पाक िैसी कोई ककताब नहीं। ☆हज़रत मुहम्मद ﷺिैसा कोई
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रसूल नहीं। ☆हज्ि िैसी कोई ज़्यारत नहीं। ☆इस्ट्लाम िैसा कोई मज़्हब नहीं। ☆मक्का, मदीना िैसा कोई
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शहर नहीं। ☆कल्मा िैसी कोई दौलत नहीं। ☆िुमा िैसा कोई हदन नहीं। ☆अब्क़री िैसा कोई ररसाला नहीं।
शैम्पू और टूथ ब्रश के नुक़्सानात
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(सुमैय्या अशरफ़, िड़ांवाला )
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पूरी साइंस कफ़त्रत की तरफ़ लौट रही है, आप के पास इंटरनेट, अपना मुशाहहदा, तहरीर, कोई भी ऐसी
शायअ होंगे। लाखों को नफ़अ होगा। (इदारा)
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चीज़ स्िस में शैम्पू और टूथ ब्रश के नक़् ु सानात शमले हों हमें ज़रूर भेिें। बारी आने पर आप के नाम से
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माहनामा अब्क़री नवम्बर 2016 शुमारा नम्बर 125----------------pg 19
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जोड़ों, घुटनों के ददस और ला इलाज बीमाररयों के शलए
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(ये अमल ख़ातूत ने ककया तो काफ़ी अरसे बाद शमली और मैं ने उन से पूछा कक बताइए आप का क्या हाल है , टांगों में ददत था स्िस की विह से नमाज़ नहीं पढ़ी िाती थी। पढ़ती तो थीं मगर कुसी पर बैठ कर। लेककन
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इस अमल की विह से अल्लाह पाक ने मझ ु े शशफ़ा दी और अब मैं सब ु ह की सेर को भी िाती हूूँ।)
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मोहतरम हज़रत हकीम साहब अस्ट्सलामु अलैकुम! मेरा एक दोस्ट्त बहुत ज़्यादा टें शन में रहता था, रात को नींद नहीं आती थी और िरावने ख़्वाब आते थे वो मुझ से ये अमल ले कर गया और किर मुझे बताने लगा कक अब टें शन भी कम हो गयी है और िरावने ख़्वाब भी नहीं आते और नींद भी परु सक ु ू न आती है । कहने लगा मैं ये नमाज़ के बाद पढ़ता हूूँ। रात को पढ़ते पढ़ते सो िाता हूूँ, स्िस से मुझे बहुत फ़ायदा हुआ और बताने लगा
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कक िो लोग मुझ से नफ़रत करते थे वो भी मुझ से मुहब्बत करने लगे हैं और अब िब भी वक़्त शमले मैं यही
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वज़ीफ़ा पढ़ता रहता हूूँ।
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َ َ َ ُ ُ ُ َْ ُ َ َْ )المالइन तीनों नामों का ववदत चल्ते किरते, वज़ीफ़ा ये है: "अल्माशलकु अल्क़ुद्दूसु अस्ट्सलामु" (ِک القد ْوس السَل ُم
ला इलाज बीमाररयों के शलए मुजरस ब अमल
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वज़ू बेवज़ू और हर नमाज़ के बाद इक्कीस मततबा पढ़ने से भी ये कमालात आप को हाशसल हो सकते हैं।
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िोड़ों, घुटनों के ददत और ला इलाि बीमाररयों के शलए स्िस ने भी पढ़ा अल्लाह ने उसे शशफ़ा दी। ये अमल
ख़ातूत ने ककया तो काफ़ी अरसा बाद शमली और मैं ने उन से पूछा कक बताइए आप का क्या हाल है , टांगों में
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ददत था स्िस की विह से नमाज़ नहीं पढ़ी िाती थी। पढ़ती तो थीं मगर कुसी पर बैठ कर। लेककन इस अमल
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की विह से अल्लाह पाक ने मुझे शशफ़ा दी और अब मैं सुबह की सेर को भी िाती हूूँ। एक और ख़ातूत को
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बताया उस ने भी ककया अल्लाह पाक ने मझ ु े इस अमल की बरकत से शशफ़ा दी। तरीक़ा अमल: नमाज़ फ़ज़ों के बाद अपना दाहहना हाथ अपने पेट पर रखें और अवल व आखख़र दरूद शरीफ़ ग्यारह बार और दम्यातन में ُ ُُ ُ َ َ (ِک ََیقد ْوس )َیمالग्यारह मततब पढ़ें और पढ़ते वक़्त अपनी बीमारी का परे शानी का
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"या माशलकु या क़ुद्दूसु"
तसव्वरु करें कक सब ् मसाइल हल हो रहे हैं।
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शुगर का ज़ख़्म एक आसान अमल से ठीक मोहतरम हज़रत हकीम साहब अस्ट्सलामु अलैकुम! मैं ने ये अमल माहनामा अब्क़री के गज़ ु श्ता एक शम ु ारे
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में पढ़ा था और अपने पास शहद और ज़ेतून और सरसों का तेल रखा उन पर सूरह काकफ़रून एक हज़ार एक
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मततबा पढ़ कर तेल पर दम ककया। मैं ने पढ़ा हुआ ज़ेतन ू का तेल अपने मामूँू को हदया। िो शग ु र के मरीज़ हैं उन को गगरने की विह से बाज़ू पर ज़ख़्म बन गया, िो बढ़ता गया। उन्हों ने वो ज़ेतून का तेल ज़ख़्म पर लगाना शरू ु कर हदया और शसफ़त चन्द हदनों के बाद ही ज़ख़्म बबल्कुल ठीक हो गया और अल्लाह पाक ने
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शशफ़ा दे दी।
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पेट्रोल ख़त्म मगर मोटर साईकल चल्ती रही
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मैं ने अब्क़री के एक गुज़श्ता शुमारे में सूरह क़ुरै श के बारे में पढ़ा, मैं और मेरे बच्चे दस ू रे शहर गए और िब
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वापस आ रहा था तो मोटर साईकल बन्द हो गयी, कहने लगा कक मैं ने चारों क़ुल शरीफ़ और सूरह क़ुरै श
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पढ़ना शरू ु कर दी और पेरोल पम्प से हम िेढ़ या दो ककलो मीटर दरू थे मैं ने मोटर साईकल स्ट्टाटत कर ली
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और सारा रास्ट्ते मोटर साईकल चलाते हुए मैं सूरह क़ुरै श पढ़ता रहा इस अमल की बरकत से मोटर साईकल
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चल्ती रही और ठीक पेरोल पम्प के पास आ कर मोटर साईकल रुक गयी। अब्क़री से शमला एक और
मुशाहहदा भी याद आ गया कक हमारे शहर में बाररश बहुत हुई स्िस की विह से एक दोस्ट्त की गाड़ी स्ट्टाटत
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नहीं हो रही थी, कभी होती किर अचानक बन्द हो िाती। शायद इंिन में पानी चला गया था मैं ने और मेरे
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साथी ने अवल व आखख़र दरूद शरीफ़ और सूरह क़ुरै श पढ़ कर उस की गाड़ी पर दम ककया तो वो स्ट्टाटत हो गयी और किर पानी में चल्ती रही और किर वो दोस्ट्त वापस आया तो उस से पूछा अब गाड़ी तो दब ु ारह बन्द
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नहीं हुई। कहने लगा: नहीं! ठीक चल्ती रही ये सब ् इस अमल की बरकत से हुआ। एलजी के शलए: पहले मुझे
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एलिी हो िाती थी, मैं कुछ खा पी लेता लेककन िब से दित ज़ेल अमल शुरू ककया, मुझे एलिी ना हुई, पूरा एक साल ना हुई स्िस को भी बताया उस को भी आराम आ गया। तरीक़ा कार: खाने के बाद अवल व आखख़र
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दरूद शरीफ़ एक मततबा सूरह क़ुरै श तीन मततबा पढ़ लें। सूरह क़ुरै श अगर पहली मततबा पढ़ें गे तो खाने में अगर ज़हर भी होगा तो वो भी असर नहीं करे गा, खाना बीमारी नहीं बनेगा, दस ू री दफ़ा पढ़ने से अल्लाह पाक
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अच्छे अच्छे दस्ट्तरख़्वान अता करे गा, तीसरी दफ़ा पढ़ने से अल्लाह पाक नस्ट्लों में ररज़्क़ दे गा।
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जाइज़ नेअमतों का मत ु ाल्बा
अबू मस्ु स्ट्लम फ़ाररस बबन ग़ाशलब, शैख़ अबू सईद अबू अल्ख़ैर फ़ज़्लल् ु लाह की खख़दमत में हास्ज़र हुए तो दम बख़द ु ा रासीदगी का चचात सुन कर उन से फ़ैज़्याब होने आए थे, ु रह गए, वो तो शैख़ की दरवेशी और ख़द
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लेककन यहां तो आलम ही दस ू रा था। शैख़ अबू सईद एक तख़्त पर गाओ तककए से टे क लगाए बैठे थे, एक पाओं अपनी दस ू री टांग पर बड़ी तमक्नत से रखा हुआ था, शलबास उम्दह् और बफ़त की तरह सफ़ेद था और
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एक बेष क़ीमत शमसरी चादर ओढ़ रखी थी। इधर अबू मुस्स्ट्लम का ये हाल कक बहुत मामूली कपड़े बदन पर
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थे और वो भी मेले कुचैले, स्िस्ट्म मुिाहहदे से दब्ु ला पत्ला और रं ग ज़दत हो रहा था। हदल में बेज़ारी के
िज़्बात पैदा हुए, अपने आप से कहने लगे: "मैं भी दव ु ेश हूूँ और ये भी दव ु ेश है , मैं ररयाज़त और मुिाहहदे से
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वपघला िा रहा हूूँ और ये बड़े ऐश और आराम से स्ज़न्दगी बसर कर रहा है " शायद चेहरे ने हदल के िज़्बात
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की ग़माज़ी की। अबू सईद भांप गए फ़मातया: "अबू मुस्स्ट्लम! तुम ने ककस ककताब में शलखा पाया है कक "साफ़ सथ ु रा रहना, अच्छी गग़ज़ा खाना और उम्दह् शलबास पहन्ना शअं ना िाइज़ और मम्नअ ू है ? और ये कहाूँ
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शलखा है कक उम्दह् शलबास पहन्ने और ख़श्ु हाली की स्ज़न्दगी बसर करने वाला दव ु ेश कहलाने का मुस्ट्तहहक़ नहीं है ? िब मैं ने अल्लाह की अता कदत ह नेअमतों का शुक्र अदा ककया और दामन ताअत हाथ से ना छोड़ा तो
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ख़द ु ा ने मुझे तख़्त पर बबठाया और मज़ीद नेअमतें अता कीं लेककन िब तुम ने महज़ अपने आप को दे खा
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और रहबाननयत अस्ख़्तयार कर के अल्लाह से उस की िाइज़ नेअमतों का मुताल्बा भी ना ककया तो नीचे
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बैठने और मेले कुचैले कपड़े पहन्ने के शसवा तम् ु हें कुछ नसीब ना हुआ। हमारे हहस्ट्से में मश ु ाहहदा आया और तुम्हारे हहस्ट्से में मुिाहहदा, लेककन मुशाहहदा, मुिाहहदे से बहुत बुलन्द चीज़ है ।" अबू मुस्स्ट्लम ख़ामोश बैठे सन ु रहे थे शमत व ननदामत से उन का सर झक ु गया था। उन्हें स्ज़न्दगी में पहली बार महसस ू हुआ कक ककसी Page 46 of 56 www.ubqari.org
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शख़्स के ज़ाहहर को दे ख कर उस के बानतन का फ़ैसला नहीं ककया िा सकता। ख़द ु ा का तक़रुत ब, रहबाननयत की स्ज़न्दगी बसर करने से हाशसल नहीं होता बस्ल्क अपने स्िस्ट्म व रूह और अहल व अयाल के तक़ाज़े और
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अल्लाह और उस के बन्दों के हक़ूक़ परू े करने से हाशसल होता है ।
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माहनामा अब्क़री नवम्बर 2016 शम ु ारा नम्बर 125-----------------pg 20
हकीम साहब! कोई ज़हर की पडु ड़या ही दे दो (वो कोई चीज़ ना खा सकता था और ना पी सकता था और उस के मुंह में शदीद ददत था। ददत की शशद्दत
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उस ् को बेचन ै ककये हुए थी हर मआ ु शलि से इलाि भी करा चक ु ा था, उदय ू ात खा खा कर अपना मैदा
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ख़राब कर चक ु ा था। मगर ददत रुकने का नाम ही नहीं ले रहा था। )
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(मुहम्मद अशतद ज़ुबैर, सरगोधा)
मोहतरम हज़रत हकीम साहब अस्ट्सलामु अलैकुम! मैं पेशे के शलहाज़ ् से एक हकीम हूूँ और अब्क़री
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ररसाला बहुत शौक़ से पढ़ता हूूँ। पास बहुत ज़्यादा तिब ु ातत व मश ु ाहहदात हैं िो मैं वक़्तन फ़वक़्तन
अब्क़री क़ाररईन के शलए शलखता रहता हूूँ। ये तहरीर भी इसी शसस्ल्सले की एक कड़ी है यक़ीनन इस
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तहरीर से क़ाररईन को भरपूर फ़ायदा होगा। क़ाररईन! मैं मामूल के मुताबबक मरीज़ दे खने में मसरूफ़ था,
एक बुज़ुगत मरीज़ आए और आते ही कहने लगे: "हकीम साहब! कोई ज़हर की पुडड़या ही दे दो" मैं उन की
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बात सुन कर बहुत है रान हुआ कक उस बुज़ुगत ने ये बात क्यूं कही? मैं ने उन की तरफ़ ख़स ु ूसी तवज्िह की
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और उन से उन के हालात के बारे में पछ ू ना शरू ु ककया तो उन्हों ने बताया कक अरसा पच्चीस साल से इस
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मज़त में मुब्तला हूूँ और बहुत ज़्यादा इलाि मुआल्िा करा चक ु ा हूूँ कहीं से अफ़ाक़ा की उम्मीद नज़र नहीं
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आ रही अब तो मैं बबल्कुल मायस ू हो चक ु ा हूूँ, मेरे मज़त का कोई इलाि नहीं है , इस मज़त के शलए अपनी िमा पूंिी ख़चत कर चक ु ा हूूँ, अब आप के पास आख़री उम्मीद ले कर आया हूूँ, उस की बातें मेरे हदल पर अिीब असर कर रही थीं और मैं अपने मत्तब की हर दवा को ग़ौर से दे खने लगा कक इन में से कोई ऐसी
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दवा है िो इस मरीज़ को शशफ़ा से हम ककनार कर दे । इस दौरान मैं ने अपनी इल्तिा रब्बे कायनात के सामने अज़त की कक या अल्लाह कोई बीमारी ऐसी नहीं है स्िस की दवा ना हो, इन सब ् दवाओं में असर
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िालने वाला तू है और तू ही इस मरीज़ को शशफ़ा दे ने वाला है और कोई उस को शशफ़ा नहीं दे सकता और तू ही मेरी इस मुआम्ला में मेरी रहनुमाई फ़मात ताकक इस मरीज़ की आस पूरी हो िाए और इंतहाई आज्ज़ी
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और इंकसारी से हदल ही हदल में दआ ु करने लगा और मरीज़ से सच्ची तौबा और अस्ट्तग़फ़ार पढ़ने के शलए कहा और उस मरीज़ को मैं ने एक दवाई बना कर दी िो कक दो अज्ज़ा पर मुश्तशमल थी क़ुबातन िाऊं उस ज़ात पर स्िस ने िड़ी बूहटयां पैदा फ़रमाईं और उन में शशफ़ाई असरात रखे और इंसान की ज़रूररयात
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को पूरा ककया। एक दवा िो कक अक्सर मैं बवासीर के मरीज़ों को बना कर हदया करता हूूँ वो दवा मुफ़रत द् है
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िो कक बहुत ही फ़ायदामन्द है । इस दवा में शसफ़त एक चीज़ का इज़ाफ़ा कर के दवा को बनाया गया और
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मरीज़ को हहदायत की कक सब ु ह व शाम एक गोली खाने के बाद एक माह इस्ट्तमाल कर के तश्रीफ़ लाएं।
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दवा इस्ट्तमाल कर के एक माह िब वो मरीज़ आया तो उस के स्िस्ट्म में बीमारी के बबल्कुल भी असरात
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नहीं थे और मरीज़ ् मत्ु मइन था मझ ु े और नतब्ब को अच्छे अल्फ़ाज़ में याद कर रहा था और वो दवा ये थी।
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मग़ज़ करं िोह और नोशादर हर एक तोला। तरकीब तय्यारी: दोनों दवाओं को अलैहहदह् अलैहहदह बारीक
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पीस कर खरल में िाल कर दाना नख़द ु के बराबर गोशलयां बनाएं। एक गोली सब ु ह व शाम ह्मराह पानी दें
क़ुदरत ख़द ु ा का कररश्मा दे खें। बवासीर ख़न ू ी व बादी, स्िस्ट्म की एलिी के शलए मुिरत ब और आज़मूदह
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दवा है । आइए अब आपको एक और मरीज़ की दास्ट्तान सुनाता हूूँ। दे खें कक क़ुदरत ने शशफ़ा कहां रखी है ।
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एक बार हज़रत मूसा कलीमुल्लाह السالم عليهने अल्लाह तआला से अज़त की कक या अल्लाह! िब शशफ़ा तू ख़द ु दे ता है तो इन मुआल्िों की क्या ज़रूरत? अल्लाह तआला ने इशातद फ़मातया: बेशक शशफ़ा तो मैं ही
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दे ता हूूँ ये मआ ु शलि तो अपने मक़ ु द्दर का ररज़्क़ खाते हैं और मेरे बन्दों को हौसला दे ते हैं, कभी भल ू कर
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भी ये तसव्वुर नहीं करना चाहहए कक कोई मुआशलि ककसी को शशफ़ा दे सकता है , शशफ़ा तो मंिाननब अल्लाह है । स्िस मरीज़ की बात आप को सन ु ाने लगा हूूँ वो कोई चीज़ ना खा सकता था और ना ही पी
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सकता था और उस के मुंह में शदीद ददत था। ददत की शशद्दत उस को बेचन ै ककये हुए थी हर मुआशलि से इलाि भी करा चक ु ा था, दवाएं खा खा कर अपना मैदा ख़राब कर चक ु ा था। मगर दद्त रुकने का नाम ही
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नहीं ले रहा था। मआ ु शलि पे मआ ु शलि बदले िा रहे थे ख़चत भी काफ़ी कर चक ु ा था, माशाअल्लाह वो ख़द ु भी मुआशलि थे, मेरे पास वो आए कक कोई इलाि बताएं मैं ने उन को कहा कक यक़ीन रखना पड़ेगा उन्हों
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ने कहा कक मक ु म्मल यक़ीन के साथ नस्ट् ु ख़ा इस्ट्तमाल ् करने के शलए तय्यार हूूँ। मैं ने उन से कहा कक चाय की पत्ती का क़ह्वा बना लो उस में नमक िालो और उस क़ह्वा से कुशलयाूँ करो स्िस पर उन्हों ने फ़ौरन अमल ककया और किर ख़श ु ी ख़श ु ी बताया कक कुशलयाूँ करने की दे र थी ददत ऐसे ग़ायब हुआ िैसे ददत कभी
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था ही नहीं। याद रखें! िब ककसी दवा से पेगचश ना ठीक हो रहे हों तो चाय की पत्ती को भी आज़मा कर
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दे खें फ़ौरन पेगचश रुक िाएंगे।
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शमस्ट्ल मश्हूर है कक बबछू का काटा रोए और सांप का काटा सौए। सुना है कक आि कल बबछू की भी
नतिारत हो रही है बड़ी क़ीमत में बबक रहा है । मेरे एक दोस्ट्त कहने लगे कक रात में बड़ी दआ ु की कक या
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अल्लाह! एक अदद् बबछू दे ताकक मैं अमीर हो िाऊं कहने लगे मुझे बबछू तो ना शमला सांप सामने आ
गया, स्िस से मैं िर गया। एक मेरे और दोस्ट्त हैं वो हहक्मत से मन् ु सशलक हैं, उन्हों ने मझ ु े बताया कक
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हमारे उस्ट्ताद के पास आदमी आया स्िस को सांप ने िस शलया था। उस्ट्ताद ने प्याज़ मंगवा कर उन को टुकड़े टुकड़े कर के मरीज़ को खाने के शलए हदए और कहा धप ू में बैठ कर खाओ िब स्िस्ट्म से पसीना
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आए और उस में प्याज़ िैसी ख़श्ु बू आना शुरू हो िाए प्याज़ खाना छोड़ दे ना। उस मरीज़ ने खाना शुरू
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ककए और उस के बाद उस को कभी तक्लीफ़ नहीं होती। िब कभी ऐसी सूरत पेश आ िाए तो कच्चे प्याज़
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का इस्ट्तमाल कसरत से करना चाहहए। क़ाररईन! उस से भी ज़्यादा क़ीमती राज़ इन ् शा अल्लाह मैं
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शलखता रहूंगा, ख़द ु भी पढ़ें और अपने दोस्ट्तों को अब्क़री के बारे में बताएं। इन ् शा अल्लाह हम सब ् शमल कर इसी तरह अब्क़री के ज़ररए मख़लक़ ू ए ख़द ु ा की खख़दमत करते रहें गे। ख़न ू की शदीद कमी एक र्गलास से ख़त्म Page 49 of 56 www.ubqari.org
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मोहतरम हज़रत हकीम साहब अस्ट्सलामु अलैकुम! मैं अब्क़री बहुत शौक़ से पढ़ता हूूँ। इस में मौिूद तमाम टोटके, नुस्ट्ख़ा िात और वज़ीफ़ा िात लािवाब होते हैं। मेरे पास भी एक इंतहाई लािवाब टोटका
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है िो मेरा अपना आज़मद ू ह है । ये १९५६ या १९५७ का वाकक़आ है , मझ ु े ख़न ू की कमी की शशकायत हो गयी, शमयांवाली में एक हकीम साहब थे, नाम मैं भूल गया हूूँ, उन्हों ने मुझे ख़न ू की कमी से ननिात का
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एक टोटका बताया था िो कक मैं तहरीर कर रहा हूूँ। एक गगलास ककन्नू या संगत्रह् का िस ू लें और उस में एक या िेढ़ छटांक बकरे की कलेिी का िूस ननकाल कर अच्छी तरह शमक्स कर के सुबह ननहार मुंह पी लें। एक हफ़्ता ये टोटका इस्ट्तमाल करें इन ् शा अल्लाह एक हफ़्ते के बाद ख़न ू की कमी बबल्कुल ख़त्म हो
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िाएगी। इस के इलावा अगर आप ने ककसी को ख़न ू हदया है तो ख़न ू दे ने के बाद एक या िेढ़ पाओ नीम
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गरम दध ू में एक चम्मच ख़ाशलस शहद, एक चम्मच रौग़न बादाम अच्छी तरह शमक्स कर के पी लें , इन ्
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शा अल्लाह एक घंटा में ख़न ू की कमी परू ी हो िाएगी। अगर गमी या कम्ज़ोरी की विह से पाख़ाना वाली
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िगह बाहर आ िाती हो तो इस का इलाि ये है कक दे हात में िब लस्ट्सी बनाते हैं तो किर उस को कपड़े से
िल्दी आराम आ िाता है । (फ़ास्ज़ल हुसैन, खान्क़ाह िोगरां)
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छान लेते हैं, उस का िो िोक (स्िस को दे हाती ज़बान में छिी बोल्ते हैं) होता है । वो खखलाया िाए तो
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माहनामा अब्क़री नवम्बर 2016 शुमारा नम्बर 125----------------pg 23
बाररश का पानी सेहत का जानी
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(फ़क़स्त नम्बर १)
(क़ाररईन! आप के शलए क़ीमती मोती चन ु कर् लाता हूूँ और छुपाता नहीं, आप भी सख़ी बनें और ज़रूर
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शलखें (एडिटर हकीम मुहम्मद ताररक़ महमूद मज्ज़ूबी चग़ ु ताई)
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बअज़ कफ़क़्हा फ़मातते हैं कक बाररश के क़तरे के साथ फ़ररश्ता उतरता है और ये बात तस्ट्दीक़ के साथ ककताबों में शलखी हुई है कक बाररश के पानी में शशफ़ा है ।
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बाररश के पानी के मुसल्सल तिुबातत व मुशाहहदात मेरे अपने भी और अब्क़री के पूरे आलम में बबखरे
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लाखों करोड़ों क़ाररईन ने इतने ज़्यादा हदए कक मैं ख़द ु है रान हो गया अब इस के मज़ीद इतने ज़्यादा तिुबातत िमा हो गए हैं िी चाहता है कक उन तमाम को समेट कर क़ाररईन की नज़र करूं। वाफ़क़आ नम्बर १: सऊदी अरब में दौरान सफ़र एक घर में अचानक यूं िाना हुआ यानन ऐसे कक एक
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दोस्ट्त को उन के घर छोड़ कर ख़द ु अगले सफ़र पर िाना था, मुझे कहने लगे: आप हमारे घर आइए, क्यूूँकक मुझे अपनी मंस्ज़ल और वापसी की िल्दी थी शलहाज़ा मैं ने मुआज़रत की, उन के इस्रार पर उन के
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ड्राइंग रूम में बैठा तो एक पानी की बोतल मेरे साथ रखी कहने लगे: आप से गुज़ाररश है कक ये दम कर दें ,
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मैं ने पूछा ये ज़म्ज़म है ? कहने लगे नहीं बाररश का पानी है । हुआ ये कक सेर व तफ़रीह की ननय्यत से हम ताइफ़ गए, हमें ककसी ने कहा यहां एक बुज़ुगत रहते हैं िो दआ ु भी दे ते हैं और एक दम ककया हुआ पानी
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दे ते हैं िो भी वो पानी वपये, वो सेहत्याब हो िाता है । हत्ता कक ककतनी भी ला इलाि बीमाररयां हों आि
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तक कोई एक केस ऐसा नहीं कक वो सेहत्याब ना हुआ हो। हमें बहुत इश्त्याक़ था कक हम उन के पास िाएं उन का मक ु म्मल पता ना शमला, तलाश करते करते हम उन तक पह ु ं च,े एक सादह से घर में वो रहते थे,
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पता चला कक हम िद्दह से आए हैं ख़श ु हुए, आने की ग़ज़त पूछी, हम ने वही सारी कहानी सुनाई कक आप एक दम ककया हुआ पानी दे ते हैं स्िस से लोग सेहत्याब होते हैं ला इलाि बीमाररयां ख़त्म होती हैं और
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बेशुमार लोगों को इस पानी से फ़ायदा हुआ, उठे , शमनरल वाटर की इस्ट्तमाल की हुई एक ख़ाली बोतल में
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भरा हुआ पानी हमारे हाथ में थमा हदया और साथ ही अपने अरबी के ख़ाशलस और शुस्ट्ता लेह्िे में फ़मातने
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लगे: ये शसफ़त आए शसफ़त बाररश का पानी है क्यूँकू क यहां बाररश ज़्यादा होती है और वो पानी मैं साफ़ सथ ु रे बततनों में इकट्ठा कर लेता हूूँ दरअसल ये अशत से दम ककया हुआ आता है और फ़ररश्ते इस को दम करते हैं क्यंकू क हर बाररश के क़तरे के साथ एक फ़ररश्ता होता है और बाररश के स्िस क़तरे के साथ फ़ररश्ता होगा Page 51 of 56 www.ubqari.org
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उस की बरकत से इस में रहमत, इस में शशफ़ा और ख़ैर में कौन शक कर सकता है ? ये मैं लोगों को क्यूं दे ता हूूँ? मेरी उम्र इस वक़्त ब्यासी साल है , मैं िब उनहत्तर (६९) साल का था तो मुझे अचानक फ़ाशलि
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हो गया, ज़बान बन्द हो गयी, एक आंख खल ु ी, एक आंख बन्द, मंह ु टे ढ़ा हो गया, मैं बोल्ता था लेककन मेरी बात ककसी को समझ नहीं आती थी, और चल नहीं सकता था, मेरा पेशाब पाख़ाना बबस्ट्तर पर ख़ता
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होने लगा। मेरे इलाि मआ ु ल्िे की मह ु म शरू ु हुई, ताइफ़ शहर के अस्ट्पताल में मझ ु े ले िाया गया, लेककन फ़ायदा ना हुआ, किर उस से बड़े अस्ट्पताल में और किर उस से बड़े अस्ट्पताल में , मुझे नींद की गोशलयां तो दे ते अच्छी गग़ज़ाएूँ दे ते, मुझे साफ़ सुथरा रखते पर मैं महसूस कर रहा था कक मैं वेसे का वैसा ही हूूँ, सेहत
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और तंदरु ु स्ट्ती मेरे क़रीब ही नहीं आई और मैं बेिान मुदतह और मेरी स्ज़न्दगी बबल्कुल ग़ैर मुतबाज़ुन, बस
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इसी कश्मकश में मेरे पोने दो साल गुज़र गए, एक दिा मेरे इलाक़े का एक बद्दू (दे हाती) मेरी इयादत
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करने आया, मझ ु से कहने लगा: क्यंू इतने बड़े बड़े इलाि में ख़द ु को खपा और थका रहा है , आ मैं तझ ु े वो
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इलाि बताऊं िो हमारे बड़े करते थे तू मस्ट्ल इलाि को तो भो गया और ग़ैर ज़रूरी इलाि की तरफ़ चल
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पड़ा। शशद्दत िज़्बात में उस ने मेरा गरे बाूँ पकड़ा क्यंकू क तक़रीबन मेरा हम उम्र था और मझ ु े खझंझोड़ कर
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कहने लगा तू सादह गग़ज़ाएूँ खाने वाला, सेहतमन्द स्ज़न्दगी गुज़ारने वाला, ज़ेतन ू , ऊंट का गोश्त, ऊंटनी
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का दध ू , िव की रोटी, सस्ब्ज़यां स्ज़न्दगी भर तेरी गग़ज़ा रहीं, तो कहां रं ग बरं गी गोशलयों के चक्कर में िंस गया? साथ ही पुराने से कपड़े के ठे ले से एक बोतल ननकाली और कहा ये बाररश का पानी है , मेरे पास
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स्ितना मुयस्ट्सर था मैं ले आया हूूँ घर तो बहुत है लेककन स्ितना मैं उठा सका, बस हदन रात ज़्यादा से
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ज़्यादा यही पी, इस के इलावा कोई पानी ना पी, पी इस यक़ीन के साथ आस्ट्मानों से उतरी असल में ये अल्लाह की रहमत है , आस्ट्मानों से उतरी असल में ये अल्लाह की बरकत है , आस्ट्मानों से उतरी असल में
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ये अल्लाह की शशफ़ा है और आस्ट्मानों से उतरी मस्ट्ल में ये उस करीम की अता है । बस इस तसव्वरु के
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साथ पी और ख़ास तसव्वुर ये भी हो कक बारोश के हर क़तरे के साथ रहमत का फ़ररश्ता उतरता है िहां रहमत होती है वहां बीमारी, िाद,ू बंहदश, असरात, नाकाशमयां, ला इलाि तकलीफ़ें, दख ु हगगतज़ हगगतज़
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और हगगतज़ नहीं होते। उस ने बाररश के पानी के बारे में मुझे इतने कामालात बताए इस की तासीर और फ़ायदा िानता तो था लेककन नामालूम एक तरफ़ बीमारी ने एक तरफ़ रोज़ रोज़ के इंिेक्शन और
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तकलीफ़ों ने मझ ु े इतना सताया हुआ था कक मेरा दरु ु स्ट्त हाथ बेसाख़्ता उस बोतल की तरफ़ बढ़ा, उस ने बोतल मेरे हाथ से ले ली और तीन घोंट पानी उस ने मेरे मुंह में उं िेल हदया, पानी क्या था? आबे हयात के
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घोंट थे, शशफ़ा का अमत ु ब्बतों में घल ु हुआ एक शीरह् था और परे शाननयां दरू करने के शलए ृ साग़र था, मह एक तयातक़, अब मेरा हदन रात बस यही कक मैं हदन रात यही पानी पीता रहा और मुसल्सल वपता रहा इस दौरान इलाि भी िारी रहा लेककन कुछ ही हफ़्तों के बाद मुझे एह्सास हुआ कक मुझे अब इलाि की
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इतनी ज़रूरत नहीं शलहाज़ा मैं ने अपने घर वालों को कहा कक मुझे अपने घर ले चलो, मेरी ननखरती हुई
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सेहत को कफ़क़्ह कर मेरे घर वालों ने भी अपना फ़ैसला बदला और मुझे घर ले आए। बस मैं था, रात
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बाररश का पानी था और मेरी स्ज़न्दगी थी। बहुत थोड़ा अरसा मैं ये पानी इस्ट्तमाल करता रहा, हत्ता कक मैं
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बबल्कुल सेहत्याब हो गया, अब मैं ने सोचा क्यूूँ ना मैं लोगों को ये शशफ़ा बांटना शुरू करूूँ। क्यूंकक लोगों
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का अमम ू ी यक़ीन दम वाले पानी पर है , बाररश के पानी पर नहीं। इस शलए मैं ने इसे दम वाला पानी
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कहना शुरू ककया, हालांकक ये अशत की रहमत का पानी है , फ़ररश्तों के दम का पानी है , फ़ररश्तों के साथ का
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पानी है और क़तरे क़तरे के साथ फ़ररश्तों की बरकत है । ये है मेरी स्ज़न्दगी! और ये है मेरी स्ज़न्दगी की सेहत की कहानी।
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वो फ़ैशमली कहने लगी: िब से ये बोतल हमारे घर आई है क्यूूँकक हमारे हाूँ िद्दह में बाररश नहीं होती, अब
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हम बाक़ाइदह् से पानी सऊदी अरब के उन शहरों से मंगवाते हैं िहां ज़्यादा बाररश होती है , केनें भर के हम
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ने रखी हुई हैं इसे िबल बारीक कपड़े से छान कर घर में हर पीने, वपलाने, पकाने, आटा गूंधने वग़ैरा में
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मुसल्सल इस्ट्तमाल कर रहे हैं। िब से ये पानी आया है उस वक़्त से हमारे घर में सुकून है , चैन है , राहत है , आपस में भाई चारह, मह ु ब्बत, उल्फ़त और हदल बस्ट्तगी है िो पहले घर भर में मस ु ीबतें , परे शाननयां, उल्झनें , मुस्श्कलात हर वक़्त रची बसी रहती थीं एक मुस्श्कल से ननकलते तो दस ू री, दस ू री से ननकलते तो
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तीसरी, मुसल्सल नाकाशमयां और परे शाननयां हमारा पीछा नहीं छोड़ती थीं बस पता नहीं पानी क्या है ? हाूँ! एक बात है हम ने भी पानी उसी ताइफ़ के अरबी बाबे के यक़ीन के साथ वपया और इस्ट्तमाल ककया।
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क़ाररईन! मेरे पास ् वाकक़आत का ताना बाना है वाकक़आत दर वाकक़आत हैं और मेरी स्ज़न्दगी इन्ही वाकक़आत के साथ बहुत ज़्यादा भरी हुई है , क्यूंकक मेरा मुशाहहदा है कक मैं िो चीज़ मख़लूक़ ए ख़द ु ा को
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बताता हूूँ मख़लक़ ू ए ख़द ु ा किर उस के तिब ु ातत मझ ु तक लौटाती है । बबल्कुल यही कैकफ़यत बाररश के पानी की भी है बाररश का पानी सेहत तंदरु स्ट्ती है , राहत और रहमत है शशफ़ा और बरकत है , और ग़ैबी ननज़ाम इस के साथ मुतवज्िह है , आइए! हम बाररश के पानी को ज़ायअ ना करें , बाररश के पानी को
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हमेशा इकट्ठा रखें ख़श्ु क, साफ़ बोतलों में भर कर महफ़ूज़ रखें अगर इस्ट्तमाल करते वक़्त बाररश के पानी
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में िाला महसूस हो उसे ख़राब ना समझें दब ु ारह छान कर इस्ट्तमाल कर सकते हैं। (िारी है )
बाररश के पानी से फ़स्टस पोज़ीशन लें
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माहनामा अब्क़री नवम्बर 2016 शुमारा नम्बर 125-----------------pg 24
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दब ु ारह शायअ ककया िा रहा है ।
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क़ाररईन! ये नतब्बी मज़्मून माचत २०११ के अब्क़री शुमारा में शायअ हो चक ु ा है , एहशमयत के पेश नज़र
(क़ाररईन! आप के शलए क़ीमती मोती चन ु कर लाता हूूँ और छुपाता नहीं, आप भी सख़ी बनें और ज़रूर
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शलखें। (एडिटर हकीम मह ु म्मद ताररक़ महमद ू मज्ज़ब ू ी चग़ ु ताई)
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कक़ल्ला डिरावर बरत सग़ीर के उन तारीख़ी मक़ ु ामात में से ही स्िन के बारे में यक़ीनी हक़्क़ाइक़ हैं, ये
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सहदयों पुराना कक़ल्ला आि भी अपनी शान व शौकत में वेसे है िैसे सहदयों पहले था कुछ अह्बाब का
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तक़ाज़ा था कक कक़ल्ला डिरावर दे खना है बन्दा ने मख़ ु शलस दोस्ट्त मशलक िान मह ु म्मद ज़ाहहद सेअज़त की उन्हों ने हम सफ़र होने का वादा ककया दौरान सफ़र मशलक साहब ने एक अनोखी बात बता कर चोंका हदया कक इस सेहरा के रहने वालों का चकूं क गुज़र बाररश के पानी से होता है कक तालाबों की शक्ल में िमा
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होता और मज्बूरन उन्हें यही पानी पीना पड़ता है । इस कक विह से उन की ज़हान्त, याद्दाश्त, अक़्ल व फ़रासत आम लोगों से कहीं ज़्यादा होती है इस का स्ज़ंदा सबूत ये है कक यहां के ताशलब इल्म स्िस क्लास
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में हों फ़स्ट्टत आते हैं कक ये बाररशी इलाक़े का ताशलब इल्म है यानन सेहरा का बाशन्दा है वो बग़ैर शतत के उसे दाख़ला दे ते हैं क्यूंकक वो इतना ज़हीन और फ़तीन होता है । क़ाररईन ये हक़ीक़त है और बहुत बड़ी
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हक़ीक़त है कक स्िस का बार बार तिब ु ात ख़द ु मेरा है कक बाररश का पानी इतनी एहम शशफ़ा है कक िहां स्िस्ट्मानी बीमाररयों के शलए शशफ़ा है वहां रूहानी बीमाररयों के शलए भी शशफ़ा है रूहानी बीमाररयों के शलए एक एहम तरीन अमल स्िस की हर करने वाले को इिाज़त है । रूहानी अमल अवल आखख़र दरूद शरीफ़
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८०० बार तस्ट्मया पढ़ कर एक बार या रोज़ाना दम करें । स्ितना ज़्यादा दम करें गे उतना ज़्यादा फ़ायदा
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होगा। इस अमल के करने वाले इतने ज़्यादा लोग और उन्हें ऐसी ऐसी ख़तरनाक बीमाररयों से फ़ायदा
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हुआ कक गम ु ान से बाहर है । हे पटाइहटस, कैंसर, दायमी नज़्ला व ज़क ु ाम अरसा दराज़ की बे ख़्वाबी, पेट
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और आंतों के अमराज़ मदों और औरतों के ननस्ट्वानी अमराज़ अल्ग़ज़त स्िस ने स्िस मक़्सद के शलए
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इस्ट्तमाल ककया उसी मक़्सद के शलए फ़ायदा हुआ और सो फ़ीसद हुआ। मअ ु तबर ककताबों में शलखा है कक
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पूरी दन्ु या में तीन पानी ऐसे हैं स्िन से शशफ़ा सो फ़ीसद है । एक ज़म्ज़म का पानी, दस ू रा वज़ू से बचा हुआ
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पानी, तीसरा बाररश का पानी। स्िस पानी में इतनी शशफ़ा हो ककसे यक़ीन ना हो कक वो पानी शशफ़ा नहीं
बन सकता। वाक़ई वही शशफ़ा है याद्दाश्त के शलए अक़्ल व फ़हम और फ़रासत पढ़ाने के शलए वो पानी
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इतना शशफ़ा बख़्श है । एक शख़्स अपने घर भर की बीमाररयों की दास्ट्तान ले कर आया ९ बच्चे और दो
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शमयां बोवी ग्यारह आदशमयों की कहानी सुनते सुनते बड़ा वक़्त हो गया िब वो चप ु हुआ तो मैं ने उसे अज़त ककया कक बाररश हो तो बड़े बड़े थाल छत पर रख दें किर वो बाररश का पानी बारीक कपड़े से छान कर
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ख़श्ु क सफ़ेद रं ग (सफ़ेद बोतल हो चाहे शीशा या प्लास्स्ट्टक ये लास्ज़म है ) कक बोतल में भर कर रख छोड़ें
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बस हदन रात सारा घर यही पानी पीए अगर और ज़्यादा शशफ़ा पानी है तो मज़्कूरह् बाला अमल इस पर पड़ लें। उन्हों ने ऐसा ही ककया और हदनों में शशफ़ायाबी की ख़श्ु ख़बरी सन ु ाई। व्व चकंू क टीचर थे एक
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अक्टूबर 2016 के एहम मज़ामीन हहिंदी ज़बान में
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शमडिल स्ट्कूल में पढ़ाते थे इस शलए उन्हों ने और लोगों को बताना शुरू ककया उन के तिुबे के मुताबबक़ ३०० से ज़ायद घरानों को मैं ने बाररश के पानी पर लगाया किर उन्हों ने और लोगों को बताया ना मालूम
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ककतने लोगों ने इस से शशफ़ा हाशसल की। अल्ग़ज़त क़ाररईन! आप ये अमल ज़रूर करें शमनरल वाटर में वो नहीं है िो सारी कायनात की बरकात व ववटाशमन्ज़ और शमनरल इस पानी में हैं। असातल हुआ एक ककताब
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में परह था कक एक अंग्रेज़ साइंसदान शसफ़त और शसफ़त बाररश का पानी पीता था उस के बक़ौल कफ़त्री स्ज़न्दगी और तवील उम्र पाने का राज़ बारोश के पानी में है मैं ने स्ज़न्दगी में बीमारी को कभी अपने क़रीब आते नहीं दे खा इस का राज़ बाररश का पानी है । आि मेरी उम्र ८७ साल है और मैं बज़ाहहर ४० साल का
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नज़र आता हूूँ इस कक विह बाररश का पानी है कभी कभी अगर मुझे पानी ज़्यादा मुयस्ट्सर हो तो मैं उस
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से ग़स्ट् ु ल भी करता हूूँ और ड्रॉपर में िाल कर आंखों में भी िालता हूूँ। नामालूम ककतने लोग हैं स्िन्हें मैं इस
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शशफ़ायाबी कक तरफ़ मत ु वज्िह करता हूूँ और उन का शकु क्रया वसल ू करता हूूँ।आखख़र में क़ाररईन आप
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भी सी तरह के तिुबातत मुशाहहदात िो बज़ाहहर आम चीज़ हो ज़रूर तहरीर करें आप की तहरीरों का
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हमेशा हज़रत हकीम साहब की दआ ु ओिं में रहने का गरु
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मन् ु तस्ज़र रहूंगा।
कॉपी बनाएं या िायरी स्िस में अपने रूहानी, नतब्बी तिब ु ातत, कैकफ़यात अपनी आज़माई हुईं या बड़े बढ़ ू ों
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के सुने हुए तिुबातत शलखें। रोज़ाना शलखें , चाहे एक या दो शसफ़हात ही क्यूं ना हों। कॉपी मुकम्मल होने पर हज़रत हकीम साहब دامت برکاتہمको गगफ़्ट करें । िाक के ज़ररए या दफ़्तर माहनामा अब्क़री में ख़द ु आ कर
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िमा करवाएं और हमेशा हज़रत हकीम साहब की दआ ु ओं में रहने का ज़रीया बन िाएं।
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माहनामा अब्क़री नवम्बर 2016 शम ु ारा नम्बर 125----------------pg 25
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