Monthly Ubqari Magazine November 2015 in hindi

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माहनामा अबक़री मैगज़ीन के नवम्बर के 2015 के एहम मज़ामीन हहिंदी ज़बान में

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माहनामा अबक़री मैगज़ीन

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2015 के एहम के नवम्बर

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हहिंदी ज़बान में

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दफ़्तर माहनामा अबक़री

मज़ंग चोंगी लाहौर पाककस्ट्तान

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मरकज़ रूहाननयत व अम्न 78/3 अबक़री स्ट्रीट नज़्द क़ुततबा मस्स्ट्िद

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महमूद मज्ज़ूबी चुग़ताई ‫دامت برکاتہم‬

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एडिटर: शैख़-उल-वज़ाइफ़् हज़रत हकीम मुहम्मद ताररक़

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माहनामा अबक़री मैगज़ीन के नवम्बर के 2015 के एहम मज़ामीन हहिंदी ज़बान में

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फ़ेहररस्त एडिटर के क़लम से हाल ए हदल जो मैं ने दे खा सुना और सोचा अरब पती का जनाज़ा: ......................... 3 दसस रूहाननयत व अम्न ............................................................................................................................ 7 शैख़-उल-वज़ाइफ़् हज़रत हकीम मुहम्मद ताररक़ महमूद मज्ज़ब ू ी चुग़ताई‫ دامت برکاتہم‬................................ 7

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दसस से फ़ैज़ पाने वाले ............................................................................................................................ 10 हहफ़ाज़त क़ुरआन का सच्चा ना क़ाबबल ए फ़रामोश वाक़्या: ................................................................... 11

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मोजद ू ह डिप्रेशन और परु सुकून रहने का नब्वी (‫ )ﷺ‬नस् ु ख़ा: .................................................................. 16 नवम्बर में जान बनाने के जान्दार सुनहरी उसूल: .................................................................................. 19

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क़ाररईन के नतब्बी और रूहानी सवाल, ससफ़स क़ाररईन के जवाब: ............................................................. 23

क़ाररईन के सवाल क़ाररईन के जवाब: .................................................................................................... 27

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नतब्बी मश्वरे .......................................................................................................................................... 27 जजस्मानी बीमाररयों का शाफ़ी इलाज: ..................................................................................................... 27

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अल्लाहु-स्समद् पढ़ कर फू​ूँक मारी और नामुजम्कन मुजम्कन हो गया: ..................................................... 31 ख़ब ू सूरत नहीिं! नेक व सालेह बहू ढूिंडिये , सुकून पाइए: ............................................................................ 35

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मन ् की हर मुराद पाने का आज़मूदह वज़ीफ़ा: ........................................................................................ 43 घरे लू मसाइल का इिंसाइक्लो पेडिया ........................................................................................................ 44

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दोस्त जजन्नी और उस की सुहानी यादें .................................................................................................. 47

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हर नेअमत माूँ के क़दम चूमने से समली: ............................................................................................... 50

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तहदीदी नामा ने मक्कार आसमलीन से जान छुड़वा दी: .......................................................................... 54 मोटापे को ननकाल बाहर फैंकने के ख़्वाहहष्मन्द! अभी पढ़ें : .................................................................... 58 इस्लाह मुआश्रा के ससजल्सले में बड़ी रुकावट:.......................................................................................... 61

बे समसाल हुस्न और लाजवाब सेहत पाइए आसान टोटकों से ................................................................. 65

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एडिटर के क़लम से हाल ए हदल जो मैं ने दे खा सन ु ा और सोचा अरब पती का जनाज़ा: इंसान सारी स्ज़न्दगी सीखता चला आ रहा है और क्या तक़्दीर् का ननज़ाम है यू​ूँ थोड़ा सा सीखा और कुछ ससखाने के क़ाबबल हुआ अिल का पैग़ाम बहुत तेज़ी से उस का तआक़ुब करने लगा। २३ ददसम्बर २००१

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में बाक़ाइदा अम्र इलाही से ऐसे अस्ट्बाब बने कक मैं ने अपना दिकाना मुस्ट्तक़ल लाहौर रखा और मुझे शैख़ हज़रत ख़्वािा सय्यद मह ु म्मद अब्दल् ु लाह हज्वेरी

‫ رحمۃہللا علیہ‬की वो पैशग ं ोई स्ज़ंदा होती नज़र आई।

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इस दहिरत से पहले भी और इस दहिरत के बाद भी, स्िस घर से सब से ज़्यादा मुझे तालीफ़ क़ल्बी समली

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२८ ससतम्बर २०१५ बरोज़ पीर उस अज़ीम मह ु ससन का इन्तेक़ाल हुआ। अभी हज्ि की हाज़री से वापसी हुई थी कक सीधा उन के घर पोहंचा, कफ़न में सलपटी बबल्कुल ख़ामोश उस अरब पती की मय्यत रखी,

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मुझे कुछ पैग़ाम दे रही थी, लोग समझ रहे थे कक मैं ख़ामोश बेिा हू​ूँ, मैं ख़ामोश नहीं बेिा था मेरे अंदर

सोचें , िज़्बात, ख़्यालात और एह्सासात का एक तलातुम था और समुन्दर की मौिें थीं िो मेरे ददल व

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ददमाग़ पर मुसल्सल टकरा कर हर दफ़ा एक अनोखा पैग़ाम छोड़े चली िा रही थीं, ये सफ़ेद चादरों में सलप्टा अज़ीम मुहससन िो पैग़ाम छोड़ रहा था और िो मेरी सोचों, समझ, शऊर, अक़्ल, एह्सास, फ़ेह्म

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फ़रासत और साल्हा साल के मुशादहदे ने ननचोड़ सलया वो दरअसल ये था। पहले दौर में सुना था बड़ी बदू ियां दआ ु एं दे ती थीं कक अल्लाह तझ ु े सात बेटे अता फ़मातए! उस अज़ीम मह ु ससन के सात बेटे हैं लेककन

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वो आदमी नहीं हैं बस्ल्क इंसान हैं स्िन्हों ने बाप की तवील अलालत में ऐसे ख़ख़दमत की िैसे गुलाब के

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फूलों को संभाल और संवार के रखा िाता है। अगर आदमी होते तो मझ ु े ख़ख़दमत की उम्मीद ना होती

बस्ल्क वो बाप को ककसी गाओशाला (ओल्ि होम) में छोड़ने का मश्वरा करते या कफर बाप की स्ज़ंदा मय्यत कभी इस घर, कभी उस घर िोकरें खाती रहती िो कक मुआश्रे में हमें रोज़ाना ऐसे वाक़्यात सुनने को समलते हैं या कफर अगर शमत ही शमत में घर रहती भी तो एक अस्ज़य्यत नाक मौत बाप मरता, मैं ने िब उस अज़ीम मुहससन का चेहरा दे खा मौत के आसार नज़र नहीं आ रहे थे और मौत की तक्लीफ़ और

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कबत चेहरे की ककसी लकीर से अयां नहीं थी बस्ल्क ईमान की मौत और ख़ख़दमत की मौत चेहरे की हर हर लकीर और हर हर बाल से वाज़ेह नज़र आ रही थी। हर बेटे ने िी भर ख़ख़दमत का हक़ अदा ककया, ददन और रात को बारी के साथ िागने का शेड्यल ू था, अपनी िवानी की नींद और िवानी की कमाई बाप पर लगाई नहीं बस्ल्क बहाई और वो अज़ीम बाप भी क्या था स्िस की नेककयाूँ तो बहुत सारी हैं पर एक नेकी

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मझ ु े ख़द ु सबक़ दे गई है वो था ररज़्क़ हलाल और मआ ु म्लात में एह्​्यात। उस शख़्स की मआ ु म्लाती स्ज़न्दगी ऐसी अपने तो अपने ग़ैर भी तारीफ़ ककये बबना ना रह सके। कारोबार की इब्तदा में एक कारोबारी

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शरीक थे, फ़ॉत होने के बाद उस शरीक की बेदटयों और ख़ान्दान को ऐसा संभाला कक वो बाप की महरूमी

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और िुदाई को ऐसे िैसे भूल गयी हों, मुझे उन्हों ने ख़ुद बताया कक स्िस तरह अपने बेटों को हज्ि कराया उसी तरह हमें हज्ि कराया, स्िस तरह उन्हें हक़ ददया, उसी तरह हमें हक़ ददया बस्ल्क बेटों से कहीं

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ज़्यादा हमें ददया। ये वो लफ़्ज़ थे िो उन की स्ज़न्दगी में कारोबारी पाटत नर के घर वालों ने मुझे बताए। वो समज़ाि के दबंग थे, मुआम्लात के खरे थे और सलबास के उिले थे। मैं समझता हू​ूँ कक ये ररज़्क़ हलाल

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औलाद को ऐसा समला कक सात बेटे और दो बेदटयां तबबतयत के आला मक़ ु ाम तक पोहंचे। मैं िनाज़े में सात बेटों पर नज़र िालता और कभी दोनों शरीफ़ और बा हया दामादों पर तो मुझे एह्सास होता एक है

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हक़ खाना, एक है हक़ दे ना और एक है झक ु ता दे ना। मरहूम ने झक ु ता ददया और रब ने कफर उन्हें उतना

झुकता ददया कक बअज़ औक़ात मुझे अपने पहले और बाद के हालात तफ़्सील से बताते और हैरत सी होती

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और हैरत ऐसी होती कक क्या वाक़ई ऐसा होता है। ये ररज़्क़ हलाल िो नस्ट्लों को ददया वो उन के िवान

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पोते और पोती और कफर पड़ पोतों में भी वाज़ेह नज़र आ रहा। ररज़्क़ की बरकत से एक बेटा हक़ की राहों पर चला गया और उस सुहैल बेटे ने सब को ऐसी स्ज़ंदा और ताबबंदा राहों पर लगाया स्िन राहों ने आदमी

से इंसान बना ददया। उन की हर हर ख़ब ू ी ना क़ाबबल बयान है। िब २००२ में पहले तस्ट्बीह ख़ाना लाहौर (वो तस्ट्बीह ख़ाना भी था, ररहाइश भी, मेहमान ख़ाना भी और स्क्लननक भी) की बुन्याद रखी गयी चन्द आदमी दआ ु में शासमल थे मरहूम दो ककलो समिाई का िब्बा बांटने के सलए लाए, मैं अक्सर उन से अज़त

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ककया करता हू​ूँ कक पूरे वल्ित में अबक़री के लाखों करोड़ों िो क़ुरआन व सुन्नत और मसाइल व मुस्श्कलात और उल्झनों से ननकलने का फ़ैज़ान पा रहे हैं वो उस दो ककलो समिाई के िब्बे की करामत है। वो उस वक़्त नहीं बटा था बस्ल्क वो समिाई मख़लक़ ू को आसाननयां फैलाने की शक्ल में क़यामत तक इन शा अल्लाह बटती चली िाएगी। िहाूँ मेरे और दस ू रे ख़ख़दमत और साथ दे ने वालों को इस का समरह और

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ससला समलेगा वहां मरहूम को एक ढे र सारा अिर और िज़ा और सदक़ा ए िाररया का ससस्ल्सला समलेगा, और समल रहा है। मेरी अहल्या मुझे बताने लगीं स्िसे सुन कर मैं चोंक पड़ा, घर में कोई वाही तबाही शोर

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शराबा और बे तरतीब मय्यत पर रोने का बे ढं ग अंदाज़ स्िसे इस्ट्लाम और मुआश्रे ने हमेशा ना पसन्द

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ककया है, बबल्कुल नहीं था हर आूँख अश्कबार हर ददल और िी ससस्स्ट्कयों से लब्रेज़ लेककन सब कुछ

इख़्लाक़ और शरीअत की हुदद ू में , रोना कोई बुज़ददली नहीं बस्ल्क अपनी बीवी, बेटी, बेदटयों और बेटों की

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मौत पर अल्लाह के हबीब ‫ ﷺ‬भी रोये लेककन इस ख़ान्दान ने इतने अज़ीम मह ु ससन की मौत पर ये एक

इख़्लाक़ी रीत ररवायत स्ज़ंदा कर के ददखा दी, बेटे अश्कबार हैं, ससस्स्ट्कयां हैं, लेककन कुछ ऐसा अंदाज़ नहीं

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कक दस्ट्यों बीस्ट्यों आदमी उन को संभालने के सलए बे चैन हों और घर में बेशम ु ार औरतें एक औरत को संभाल रही हों और बार बार एक मय्यत पर गगर रही हो और चालीस घर दरू उस ख़ातून की आवाज़ें ज़ब्त

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से सुन रहे हों। ये मंज़र दे खने को ना समला। क़ाररईन! ये मेरे आप के सलए सबक़ हैं मेरी हर तहरीर तारीफ़

नहीं होती लेककन उस के अंदर कुछ सबक़ और कुछ राज़ समझने वालों के सलए होते हैं। इस से कहीं

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ज़्यादा अनोखी बात कक बेटे ने िनाज़ा पिाया, मैं सोचता रहा ताररक़! ऐ काश तेरी भी औलाद ऐसी हो

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और इन शा अल्लाह अल्लाह ने चाहा तो होगी और तेरी भी मय्यत तेरे बेटे के सामने हो। क़ाररईन! इस सारे मज़्मून में िहाूँ मैं अपने मुहससन का तज़्करह भुलाना नहीं चाहता वहां कुछ सबक़ भी आप को दे ना चाहता हू​ूँ स्िस में पहला सबक़: ररज़्क़ हलाल और मआ ु म्लात की पाकीज़गी। दस ू रा सबक़: सात बेटे और दो बेदटयों की आला तबबतयत और उन में इंसाननयत और बेह्तरीन अच्छे मुआम्लात और इख़्लाक़। तीसरा सबक़: मौत तो सब के साथ रहे गी और है पर मय्यत पर कैसे रोना है और कैसे उस को घर से रुख़सत

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करना है ? आंसुओं, आहों, ससस्स्ट्कयों के साथ या बे ढब और बे तरतीब ग़म के अंदाज़ के साथ। चौथा सबक़: ऐ काश! ककसी की औलाद इतनी अहल हो कक वो भी बाप का िनाज़ा पिाने के क़ाबबल हो। मैं अभी भी सोचता हू​ूँ तो मझ ु े वो मह ु ससन उन की बातें उन का लेह्िा और उन के मआ ु म्लात की सच्चाई बस आूँखों के सामने घूमती चली िाती है और कफर एक िं िी आह भर कर कहता हू​ूँ कक या अल्लाह! तिम्मुल

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इलाही शम्सी को अपने ख़ास िवार रहमत में िगा अता फ़मात आमीन सम् ु म आमीन! उस मह ु ससन का अह्सान मेरे ऊपर क़ज़त है शायद मैं दन्ु या में कभी भी ना उतार सकू​ूँ। इस सलए मैं उस मुहससन को

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अरबपनत कहता हू​ूँ क्यू​ूँ? वो ख़ुद स्िन के पास और उन की नस्ट्लों के पास इतनी आला ससफ़ात हों वो

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यक़ीनन बे क़ीमत है।

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यक़ीनन अरबपनत हैं और अगर माली तौर पर अरबपनत होने के बाविूद भी अगर ये ससफ़ात नहीं हैं तो वो

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माहनामा अबक़री नवम्बर 2015 शम ु ारा नंबर 113___________________pg3

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दसस रूहाननयत व अम्न शैख़-उल-वज़ाइफ़् हज़रत हकीम मह ु म्मद ताररक़ महमद ू मज्ज़ब ू ी चग़ ु ताई‫دامت برکاتہم‬ नूर बसीरत और नूर बसारत में फ़क़त:

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(हफ़्तवार दसत से इक़्तबास)

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(हज़रत िी के हर दसत में गूंगे हज़रात साथ लाएं। दसत का इशारों में तिुम त ा होगा।) नूर बसीरत और नूर बसारत में फ़क़त: ददल की आूँख से दे खना नूर बसीरत है और ज़ादहरी आूँख से दे खना

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नूर बसारत है और ददल की आूँख के हुसूल के सलए अपने आप को ककसी फ़क़ीर की ग़ल ु ामी में मुकम्मल

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सच्चाई से दे ना होगा। नफ़्स की ख़्वादहशात को ख़्म करना होगा। उस फ़क़ीर पर एतमाद करते हुए उस के हर मश्वरे पर अमल करना होगा। उस के बाद ही नूर बसीरत से आप मुनव्वर हो सकेंगे।

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मुसशतद हज्वेरी ‫ رحمة هللا عليه‬का फ़मातन: मेरे हज़रत सय्यद मुहम्मद अब्दल् ु लाह हज्वेरी ‫ رحمة هللا عليه‬फ़मातते

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थे: स्िस का मसु शतद उस को ककसी काम से रोक ना सके और उस को िांट ना सके या उस को ककसी चीज़ से मना ना कर सके और उस को ककसी काम का हुक्म ना कर सके तो वो मुरीद समझ ले कक वो अभी

कच्चा है और कच्चा घड़ा कोई हैससय्यत नहीं रखता। पक्का तब होता है िब मश ु क़्क़तों की आग में आता

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है। ककसी चीज़ से रोकना समज़ाि के ख़ख़लाफ़ तो है मगर रोकने से, मना करने से समज़ाि टूटता है। मना

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करने से अपना शरीका टूटता है और अपनी फ़ेसमसलयां टूटती हैं, अपने ररवाि टूटते हैं, अंदर के समज़ाि टूटते हैं, िब ये सब टूटते हैं तो कफर घड़े को आग समलती है और उस आग से वो घड़ा पक्का होता है। सड़ा हुआ आसशक़ और घड़ा: एक सड़ा हुआ आसशक़ िा रहा था एक हसीना के सर पर घड़े को दे ख कर कहने लगा: "वाह घड़े तू हम से भी अच्छा है कक हसीनाओं के सर का ताि बना हुआ है।" घड़ा कहने लगा:

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"मेरे ताि बन्ने के पीछे मेरी मुशक़्क़तों को भी दे ख।" इंसान कहता है मैं मुशक़्क़तें भी ना करू​ूँ और हसीनाओं के सर का ताि भी बन िाऊं। इब्राहीम बबन अधम ‫ رحمة هللا عليه‬का अपने वज़ीर को िवाब: इब्राहीम बबन अधम ‫ رحمة هللا عليه‬ने अपने वज़ीर की बात सन ु कर अपनी सई ु दरया में फैंक दी और फैंक कर कहने लगे " ऐ मछसलयों स्िस रब को

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तुम मानती हो, उस रब को मैं भी मानता हू​ूँ, मुझे मेरी सुई वापस कर दो"। अल्लाहु अक्बर! िो अल्लाह

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का हो िाता है, अल्लाह उस का हो िाता है। सारी मछसलयाूँ मंह ु के अंदर सइ ु यां ले कर पानी की सतह पर

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आईं। कोई सोने की सुई ले कर आई, कोई चांदी की सुई ले कर आई, एक मछली लोहे की सुई ले कर आई।

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इब्राहीम बबन अधम ‫ رحمة هللا عليه‬कहने लगे हाूँ मेरी सुई ये है। कफर अपने वज़ीर की तरफ़ मुड़े स्िस ने

वापस ररआया में िाने के सलए कहा था, उन से फ़मातने लगे: अब बता बड़ी बादशाहत कोनसी है? वो वज़ीर

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कहने लगा हाूँ वाक़ई आप की बादशाहत बड़ी है। अरे अल्लाह वालो! सच कह रहा हू​ूँ स्िस को अल्लाह के

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साथ बातें करना नसीब नहीं हुईं तो समझ लो रब नाराज़ है। वो तुम से बात करना पसन्द नहीं करता वो

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तुम्हारी कुछ सुन्ना पसन्द नहीं करता स्िस को रब के साथ राज़ व न्याज़ नसीब हो िाए वो शख़्स ख़ुश

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कक़स्ट्मत है, मब ु ारक बाद का मस्ट् ु तदहक़ है। नरू बसीरत की रौशनी दे खने के बाद वो वज़ीर कहने लगा मझ ु े

अब पता चला इब्राहीम बबन अधम ‫ رحمة هللا عليه‬कक आप की बादशाहत बहुत बड़ी है। आप का तख़्त बहुत

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बड़ा है। आप ने बल्ख़ की हुकूमत छोड़ी है। बल्ख़ चीचननयां को कहते हैं, उस का नाम कोहक़ाफ़ भी है।

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कोहक़ाफ़ को अल्लाह ने बहुत हुस्ट्न व िमाल ददया है। इब्राहीम बबन अधम ‫ رحمة هللا عليه‬ने बल्ख़ की

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हुकूमत अल्लाह की रज़ा के सलए छोड़ी, ककसी ग़रज़ और तमआ के सलए नहीं छोड़ी।

फ़क़ीर की बात को सुन लें िो अल्लाह के सलए हुकूमत को छोड़ेगा। हुकूमत से मुराद ताि व तख़्त नहीं बस्ल्क ज़ाती अख़्तयारात हैं िैस:े झट ू पर इक़्तदार था मैं झट ू बोल सकता था, धोके पर इक़्तदार था मैं धोका दे सकता था, फ़रे ब पर इक़्तदार था मैं फ़रे ब कर सकता था, चोरी पर इक़्तदार था मैं चोरी कर सकता था, हराम पर इक़्तदार था मैं हराम काम कर सकता था, ककसी के क़ब्ज़ा पर इक़्तदार था मैं क़ब्ज़ा Page 8 of 68 www.ubqari.org

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कर सकता था, मुझे फ़ैशन पर इक़्तदार था फ़ैशन कर सकता था, मुझे ना फ़मातनी पर इक़्तदार था मैं ना फ़मातनी कर सकता था, मुझे तुकी बा तुकी िवाब दे ने पर इक़्तदार था मैं िवाब दे सकता था मगर या अल्लाह! मैंने तेरी ख़ानतर ये सब नहीं ककया। तो ऐसा शख़्स क़यामत के ददन इब्राहीम बबन अधम ‫رحمة هللا‬ ‫ عليه‬के साथ खड़ा हो िाएगा कक उसे इक़्तदार हाससल था मगर उस ने अल्लाह तआला के सलए अपना

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ज़ाती इक़्तदार क़ुबातन ककया। इक़्तदार छोटा भी होता है और इक़्तदार बड़ा भी होता है, कोई पांच बन्दों का हाककम है, कोई पचास बन्दों का हाककम है, कोई इलाक़े का हाककम है , कोई शहर का हाककम है, कोई

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बड़ा हो।

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मुल्क का हाककम है, कोई आलम का हाककम है , हाककम तो हाककम होता है चाहे वो हाककम छोटा हो या

तस्ट्बीह ख़ाना में आने वाले लोग: ककसी शअ ु बे के बड़े अफ़्सर हैं, यहाूँ दसत सुनते हैं और उस दसत के बाद

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अल्लाह पाक ने बातें करने का सलीक़ा अता फ़मात ददया। बड़े माल्दार थे। बड़ी गाडड़यां थीं, बड़ा तख़्त था,

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बड़ी हुकूमत थी। बहुत इक़्तदार था। कहने लगे: "अगर आप मुसशतद ना होते तो मैं ये बात कभी ना बताता

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कक मेरी िेब में इतने पैसे नहीं थे कक मैं वैन का ककराया अदा करता। एक स्ट्टॉप से दस ू रे स्ट्टॉप के सलए

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वैगन दस रूपए लेती है और मेरे पास दस रूपए भी नहीं थे। मैं गल् ु शन रावी से अकेला पैदल चल पड़ा, पसीने से शराबोर हो गया लेककन मैं ने कहा कक मैं ने दसत में ज़रूर िाना है बस इस सलए मुझे दे र हो

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गयी।" ये एक हक़ीक़त है कक आप हज़रात की क़ुरबानी की बरकत से अल्लाह पाक लोगों की ददल व

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ददमाग़ और दीन व दन्ु या में इंक़लाब पैदा कर रहा है। घरों के घरों की बसात पलट रही है। एक साहब के

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पास ककसी की अमानत ५० हज़ार रूपए थे उस के वो पैसे रास्ट्ते में चोरी हो गए तो उस ने अल्लाह से बातें

कीं और अल्लाह से अज़त ककया या अल्लाह मेरी कोई ज़ाती ग़रज़ नहीं कफर ये पचास हज़ार रूपए क्यू​ूँ गुम हुए? इतनी रक़म में कहाूँ से मुहय्या करू​ूँगा? इसी उधेड़ पन में था कक अल्लाह की मदद आई। वहां मौिूद एक शख़्स ने मझ ु े अपनी िेब से पचास हज़ार रूपए ननकाल कर ददए और कहने लगे "ये रक़म मैं ने एह्​्यातन अपने एक दो अज़ीज़ों के सलए रखी थी।" हालाूँकक ऐसा बबल्कुल नहीं था उस शख़्स ने फ़रे ब

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ककया था। ये तो बस मेरे मौला का करम था कक वो चुराई हुई रक़म वापस करने पर मज्बूर हो गया। उस के ददल की दन्ु या पलट गयी, अल्लाह ने उस के ददल में िाल ददया कक लूटी हुई रक़म वापस कर, ये मेरा द्यान्तदार बन्दा, इस पर इम्तेहान आ गया है , मझ ु से बातें कर के अपने मसाइल हल करवाता है। (िारी

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है)

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मत ु ासलआ करें ||

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||अनोखे रूहानी वज़ाइफ़् और राज़ ए ववलायत पाने के सलए "ख़ु्बात अबक़री" मुकम्मल सेट का

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दसस से फ़ैज़ पाने वाले:

मोहतरम हज़रत हकीम साहब अस्ट्सलामु अलैकुम! मैं वपछले दस माह से माहनामा अबक़री का क़ारी हू​ूँ,

bq

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गुज़श्ता साल ईद-उल-कफ़त्र के बाद आप के दसत में सशरकत के सलए तस्ट्बीह ख़ाना आया। आप का दसत सुना तो गुज़रे वक़्त को याद कर के रोना आया कक वपछली स्ज़न्दगी बेकार ही गुज़री है और ददल में

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ख़्याल आया कक यही वो िगा है िहाूँ से अब्दी ख़ुश्यां बाूँट सकते हैं। दसत सुनने के बाद ख़ूब ज़ार व क़तार

रोया और अल्लाह से तौबा की। कफर िो बाद में इ्मीनान और ख़ुशी महसूस हुई वो ना क़ाबबल ए बयान

w

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है। अल्हम्दसु लल्लाह! दसत में हर िुमेरात सशरकत होती है और अपने मसाइल के हल के सलए ख़ूब दआ ु एं

w

करता हू​ूँ। मेरी एक ककयातना की दक ु ान है िो तीन दफ़ा बन्द हो चुकी थी, हालात ददन ब ददन ख़राब हो रहे थे, बीमाररयां अलग परे शां रखती थीं मगर िब से दसत में सशरकत कर रहा हू​ूँ अल्लाह ररज़्क़ में बरकत दे रहा है, दक ु ान की सेल में ना क़ाबबल ए यक़ीन हद्द तक इज़ाफ़ा हो रहा है स्िस ने ख़ुद मुझ को भी हैरान कर ददया है। पहले िो भी थोड़ा बहुत कमाता था वो बीमाररयों की नज़र हो िाता था मगर अब

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अल्हम्दसु लल्लाह! घर में बीमाररयां ना होने के बराबर है। अब दो माह हो गए हैं हम ककसी िॉक्टर के पास भी नहीं गए। (साकक़ब रहमान, लाहौर)

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हहफ़ाज़त क़ुरआन का सच्चा ना क़ाबबल ए फ़रामोश वाक़्या:

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माहनामा अबक़री नवम्बर 2015 शम ु ारा निंबर 113_____________pg4

(मैं ने रोते रोते कहा मामू​ूँ िान इस में मेरा क़ुरआन पाक है िो मैं ऊपर िा कर हर रोज़ पिती थी और वहां रख दे ती थीं,

bq

मामू​ूँ िान ये क़ुरआन पाक मेरे अब्बा िान ने दे हली से ला कर ददया था और मुझे क़ुरआन पाक ख़्म करने पर मेरे

bq

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(ख़-ब, लाहौर)

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अब्बा िान ने मुझे तोह्फ़ा ददया था।)

मोहतरम हज़रत हकीम साहब अस्ट्सलामु अलैकुम! मैं २०१० से अबक़री को बहुत शौक़ से पि रही हू​ूँ।

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पहले पहल तो मैं बेटी के हाूँ िाती तो वहां पिती मगर अब मैं ने अपने घर में लगवा सलया है। बड़ी दे र से मुझे एक वाक़्या, क़ुरआन की दहफ़ाज़त ख़ुद अल्लाह करते हैं, याद था। ददल करता था कक अबक़री में

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सलखू​ूँ मगर कफर अपनी तशहीर की विह से रुक िाती लेककन अब बार बार ये पिा कक अपने बीते

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वाक़्यात नतब्बी या रूहानी अबक़री में सलखें नोक पलक हम ख़द ु संवार लें गे तो मेरे में भी दहम्मत पैदा हुई

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और आि क़लम उिा ही सलया। ये मेरी स्ज़न्दगी का िीता िागता वाक़्या है :- ये १९४५ की बात है हम उस वक़्त पंिाब इंडिया िालंधर के एक बहुत ही ख़ब ू सरू त गाूँव में रहते थे, ये मेरे नंदहयाल का गाूँव था चंकू क मेरे वासलदै न बच्पन ही में वफ़ात पा गए थे तो मैं अपनी नानी के हाूँ रहती थी। उन ददनों सावन भादं ू का मौसम था तो पैशन गोई हुई कक अब की बार बहुत ज़्यादा बाररशें होंगी और स्तर घंटे तक लगातार बाररश हो सकती है। लोग इस ख़बर को मामल ू ी समझ कर अपने कामों में लगे रहे । बरसात उरूि पर थी Page 11 of 68 www.ubqari.org

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कक अचानक एक ददन सुबह अज़ान फ़ज्र के बाद हल्की बूंदा बांदी शरू ु हुई और इसी तरह मुसल्सल तीन ददन तीन रातें होती रही तो इधर उधर से वक़्तन फ़वक़्तन ख़बरें आती रहीं कक फ़लां िगा मकान ज़मीन बोस हो गया, फ़लां िगा दीवार गगर गयी, फ़लां की छत गगर गयी। मज़ीद एक ददन के बाद लोगों के कच्चे मकान तो गगर ही रहे थे पक्के मकानों के गगरने की ख़बरें भी आने लगीं। लोग नस्फ़्फ़ल, अज़ान,

rg

दआ ु एं, तौबा मगर उस वक़्त ऐसे महसस ू होता था िैसे तौबा का दरवाज़ा ही बन्द हो चक ु ा है। इतने में अचानक हमारे घर में दराड़ पड़ती नज़र आई तो हम सब भाग कर गली में चले गए और दे खते ही दे खते

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पल भर में मकान का वपछला दहस्ट्सा तमाम का तमाम बाहर खेत में गगर गया। आगे का दहस्ट्सा स्िसे वो

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लोग दलान बोलते थे बहुत बड़ा था वो रह गया। मज़ीद चन्द घन्टों के बाद बाररश बन्द हुई तो हम लोग दे ख कर रोने लगे, अल्लाह का शक्र ु है कक सब की िानें बच गयीं मगर इतना सदमा था कक एक पल में

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मोहताि हो गए, ना आटा, ना गंदम ु , ना चावल, ना कुछ खाने की चीज़, सब कुछ नीचे दब चुका था। अब मरहला था कक मल्बा ककस तरह उिाया िाए ता कक नीचे नक़्दी, और ज़ेवरात वग़ैरा ननकाले िा सकें।

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मगर एक मसला दरपेश था वो ये कक िबल स्ट्टोरी मकान था समट्टी की दीवार कच्ची थी नीचे से ले कर

ऊपर तक तमाम का तमाम घर गगर चुका था मगर एक दीवार िबल स्ट्टोरी कच्ची समट्टी की गीली

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बबल्कुल सीधी खड़ी थी उस के ऊपर एक अल्मारी लगी थी। अब मसला ये था कक ये दीवार ककस तरह गगराई िाए ता कक अगले दहस्ट्से पर असर ना पड़े। ग़ज़त वहां स्ितने लोग खड़े थे अपनी तदबीरें लड़ा रहे थे,

w

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इतने में मामूँू िान मेरे पास आए और कहा बेटा दआ ु मांगो ता कक ये दीवार सही तरह गगराई िा सके मैं

w

ने रोते रोते कहा: मामूँू िान इस में मेरा क़ुरआन पाक है िो मैं ऊपर िा कर हर रोज़ पिती थी और वहां

रख दे ती थीं, मामूँू िान ये क़ुरआन पाक मेरे अब्बा िान ने दे हली से ला कर ददया था और मुझे क़ुरआन पाक ख़्म करने पर मेरे अब्बा िान ने मझ ु े तोह्फ़ा ददया था। बस कफर क्या था मामूँू िान ने िा कर सब को ये बात बता दी, लोग िौक़ दर िौक़ दे खने आने लगे, सारा गाूँव बस्ल्क इदत गगदत के गाूँव के लोग आने लगे और अल्लाह तआला की शान, क़ुरआन की अज़्मत का बयान हर ज़बान पर था वो लोग हैरान थे,

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अकेली कच्ची दीवार नीचे से ले कर ऊपर तक खड़ी रहना ये मुअज्ज़ा है। अब इस को स्िस तरह हो सके बचाया िाए। अब एक तद्बीर सोची गयी और दो लम्बी सीदियों को मंगवा कर उन को आपस में रस्स्ट्सयों में बाूँधा गया और दीवार के साथ खड़ा कर ददया गया अब मसला ये था कक बोझ से दीवार गगर ना िाए और इसी तरह दो तीन मज़ीद घन्टे गुज़र गए, कोई भी चिने की दहम्मत ना कर रहा था। कफर अचानक

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एक नोिवान ननकला और अल्लाह का नाम ले कर चिने लगा, लोगों ने दआ ु एं शरू ु कर दीं कक या अल्लाह रहम करम कर ये लड़का क़ुरआन पाक उतारने िा रहा है, बस दे खते ही दे खते वो ऊपर गया और अल्मारी

rg

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बड़ी एह्यात से खोली और मेरा प्यारा क़ुरआन सर पर रखा और आदहस्ट्ता आदहस्ट्ता नीचे आ गया और

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लोगों ने भाग कर ख़ुशी से उसे गले लगा सलया, हर बन्दा क़ुरआन मिीद को चूम रहा था और एक दस ू रे को दे रहा था, पूरा गाूँव क़ुरआन पाक की अज़्मत को बयान कर रहा था और अल्लाह का शक्र ु अदा कर

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रहा था। अभी सब लोग घरों को भी ना गए थे मैं भी अपने अब्बा िान की वादहद ननशानी को ले कर अपने ररश्तेदार के घर पोहंची भी ना थी कक एक धड़म से आवाज़ आई और वो दीवार ख़ुद ही नीचे गगर गयी।

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सब्ु हानल्लाह! सब्ु हानल्लाह! की गूँि ू सारा गाूँव यक ज़बान हो कर बोल रहा था। अल्लाह की क़ुदरत के

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बि ू ी औरत हू​ूँ।

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गुन गा रहा था। तो क़ाररईन! ये एक ऐन सच्चा वाक़्या है मेरी उम्र उस वक़्त १४ साल थी, और अब मैं एक

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इस्लाम और रवादारी पैग़म्बर ‫ ﷺ‬इस्लाम का ग़ैर मुजस्लमों से हुस्न सलूक:

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(कक़स्ट्त नंबर १०१)

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(बहैससय्यत मस ु ल्मान हम स्िस बा इख़्लाक़ नबी ‫ ﷺ‬के पेरोकार हैं उन का ग़ैर मस्ु स्ट्लमों से क्या

पिें ।) (इब्न ज़ैद सभकारी)

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समसाली सलूक था, आप ने साबबक़ा अक़्सात में पिा अब उन के िान्वरों से हुस्ट्न सलूक के चंद वाक़्यात

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एक शख़्स हुज़ूर पुर नूर ‫ ﷺ‬की बारगाह अक़्दस में चादर ओिे हुए हास्ज़र हुआ और उस के हाथ में कोई चीज़ थी स्िसे उस ने चादर से ढक रखा था उस ने कहा या रसूलल्लाह ‫ ! ﷺ‬मैं दरख़्तों के एक झंिे के

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पास से गुज़रा तो वहां मैं ने पररंदों के बच्चों की चूं चूं सुनी। मैं ने उन्हें पकड़ सलया और अपनी चादर में

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रख सलया। ये दे ख कर उन बच्चों की माूँ (बबस्ल्बलाती) आई और मेरे सर पर चक्कर काटने लगी, मैं ने

उसे ददखाने के सलए चादर हटाई (वो बच्चों की सूरत दे ख कर) उन पर गगर पड़ी। मैं ने उन सब को अपनी चादर में लपेट सलया। अब वो सब (माूँ और बच्चे) मेरे पास हैं। हुज़ूर ‫ ﷺ‬ने (ये सुन कर) इशातद फ़मातया:

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क्या तुम उन बच्चों से उन की माूँ की मुहब्बत पर तअज्िुब करते हो। क़सम है उस ज़ात की स्िस ने मुझे

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सच्चाई के साथ भेिा इस में कोई शक नहीं कक अल्लाह तआला अपने बन्दों पर पररंदों के बच्चों की माूँ के रहम से ज़्यादा रहम करने वाला है (कफर आने वाले से मुख़ानतब हो कर इशातद फ़मातया) ले िाओ इन बच्चों को और इन्हें वही​ीँ रख कर आओ िहाूँ से तुम ने इन्हें पकड़ा है और इन की माूँ को भी इन के साथ ले िाओ, चन ु ाचे वो शख़्स उन्हें ले कर लोट गया। (अबू दाऊद)

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("पैग़म्बर इस्ट्लाम ‫ ﷺ‬का ग़ैर मस्ु स्ट्लमों से हुस्ट्न सलक ू " अब तमाम वाक़्यात ककताबी शकल में ज़रूर पिें , गगफ़्ट करें और "ग़ैर मुस्स्ट्लमों की इबादत गाहें , उन के हुक़ूक़ और हमारी स्ज़म्मा दाररयां" ककताब उदत ू

१५ साल से आज़मूदह हाज़्मा की फक्की:

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और इंस्ललश में पिना हगगतज़ ना भल ू ें!)

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मोहतरम हज़रत हकीम साहब अस्ट्सलामु अलैकुम! अल्लाह तआला आप को सेहत के साथ लम्बी उम्र दे और आप ऐसे ही ख़ल्क़ ख़ुदा की ख़ख़दमत करते रहें । मेरे पास हाज़्मा की फक्की का नुस्ट्ख़ा है िो मैं और

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मेरे घरवाले अरसा पंद्रह साल से इस्ट्तेमाल कर रहे हैं और ककसी भी कक़स्ट्म का पेट ददत, बद्द हज़्मी, सीने में

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िलन, खट्टी िकारें आती हों तो फक्की का एक चम्चा पानी से इस्ट्तेमाल करने से अल्लाह तआला के

फ़ज़्ल से आराम आ िाता है। नुस्ट्ख़ा ये है : हुवल ्-शाफ़ी: मग़ज़ सौंफ़ पांच तोला, ज़ीरा सफ़ेद पांच तोला,

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िंगली हरीड़ सािे सात तोला, सब्ज़ हरीड़ सािे सात तोला, कचूर पांच तोला, अज्वाइन ् दे सी अिाई तोला, नोशादर िीकरी पांच तोला, सूँूढ पांच तोला, समचत काली पांच तोला, नमक काला, सफ़ेद नमक और मीिा

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(मुहम्मद अली, लाहौर)

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सोिा एक एक खाने का चम्मच। कूट कर सफ़ूफ़ बना लें । खाने के बाद एक छोटा चम्मच इस्ट्तेमाल करें ।

माहनामा अबक़री नवम्बर 2015 शम ु ारा निंबर 113_________________pg7

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मोजद ू ह डिप्रेशन और परु सुकून रहने का नब्वी (‫ )ﷺ‬नस् ु ख़ा: (आप को मालूम है कक हुज़ूर ‫ ﷺ‬ने ग़स्ट् ु सा करने से मना ककया है , इसे शैतान का असर क़रार ददया है,

कफर भी ग़स्ट् ु सा िं िा ना हो तो पानी पी लो।)

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(इन्तख़ाब: ननसार अहमद, हसन अब्दाल)

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आप ‫ ﷺ‬ने मस ु ल्मानों को हुक्म ददया है , ग़स्ट् ु सा आए और खड़े हो तो बैि िाओ, बैिे हो तो लेट िाओ,

हज़रत अबू हुरैरा ‫ رضی هللا عنہ‬फ़मातते हैं कक एक शख़्स हुज़ूर नबी करीम ‫ ﷺ‬की ख़ख़दमत अक़्दस में

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हास्ज़र हुआ और अज़त की कक या रसूलल्लाह ‫ ﷺ‬नसीहत फ़मातइये और ज़्यादा लम्बी नसीहत ना

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फ़मातइये। गोया कक नसीहत की भी दरख़्वास्ट्त की और साथ में ये शतत लगा दी कक वो नसीहत मुख़्तसर

हो, लम्बी चौड़ी ना हो और हुज़ूर अक़्दस ‫ ﷺ‬ने इस शतत पर ना गवारी का इज़्हार नहीं फ़मातया और हुज़ूर ‫ا اْ ا‬

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ْ ْ ‫" ) َلتغض‬ग़स्ट् अक़्दस ‫ ﷺ‬ने उस को ये मख़् ु तसर नसीहत फ़मातई कक (‫ب‬ ु सा मत करो"। अगर आदमी इस

मुख़्तसर नसीहत पर अमल करे तो शायद सैंकड़ों बस्ल्क हज़ारों गुनाहों से उस की दहफ़ाज़त हो िाए।

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गुनाहों के दो मुहरतक, ग़स्ट् ु सा और शह्वत: इस सलए कक दन्ु या में स्ितने गुनाह होते हैं चाहे वो हुक़ूक़अल्लाह से मुतअस्ल्लक़ हों या हुक़ूक़ुल ्-इबाद से। अगर इंसान ग़ौर करे तो ये नज़र आएगा कक

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तमाम गुनाहों के पीछे दो िज़्बे कारफ़मात होते हैं। एक ग़स्ट् ु सा, दस ू रे शह्वत। शह्वत अरबी ज़बान का

लफ़्ज़ है स्िस के असल मआने हैं "ख़्वादहश नफ़्स" मसलन ् ददल ककसी चीज़ के खाने को चाह रहा है , ये

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खाने की शह्वत है या ककसी ना िाइज़ काम के ज़ररए इंसान अपनी नफ़्सानी ख़्वादहषात की तकमील करना चाह रहा है। ये भी शह्वत है, सलहाज़ा बहुत से गन ु ाह तो शह्वत से पैदा होते हैं और बहुत से गन ु ाह ग़स्ट् ु से से पैदा होते हैं तो अभी इस की तफ़्सील अज़त करू​ूँगा, सलहाज़ा िब ये फ़मातया कक "ग़स्ट् ु सा मत करो" अगर आदमी इस नसीहत पर अमल कर ले तो इस के नतीिे में आधे गुनाह ख़्म हो िाएंगे।

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ग़स्ट् ु सा एक कफ़तरी चीज़ है: यू​ूँ तो अल्लाह तआला ने "ग़स्ट् ु सा" इंसान की कफ़तरत में रखा है, कोई इंसान ऐसा नहीं है स्िस के अंदर ग़स्ट् ु से का मादा ना हो और अल्लाह तआला ने दहक्मत के तहत ् ही ये मादा इंसान के अंदर रखा है यही मादा है कक अगर इंसान उस पर कंरोल कर ले और उस पर क़ाबू कर ले तो कफर यही मादा इंसान को बे शम ु ार बलाओं से महफ़ूज़ रखने का एक ज़रीया है।

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ग़स्ट् ु से के नतीिे में होने वाले गुनाह: लेककन अगर यही ग़स्ट् ु सा क़ाबू में ना हो तो इस के नतीिे में िो गुनाह

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पैदा होते हैं, वो बे शम ु ार हैं, चन ु ाचे ग़स्ट् ु से ही से "तकब्बरु " पैदा होता है, ग़स्ट् ु से से "हसद" पैदा होता है, ग़स्ट् ु से

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से "बुग़्ज़" पैदा होता है, ग़स्ट् ु से से "अदावत" पैदा होती है और इन के इलावा ना िाने ककतनी ख़राबबयां हैं

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िो इस ग़स्ट् ु से से पैदा होती हैं िबकक ये ग़स्ट् ु सा क़ाबू में ना हो और इंसान के कंरोल में ना हो। मसलन ्:

अगर ग़स्ट् ु सा क़ाबू में नहीं था और वो ग़स्ट् ु सा ककसी इंसान पर आ गया अब अगर स्िस शख़्स पर ग़स्ट् ु सा

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आया है वो क़ाबू में नहीं था और वो मातहत है तो इस ग़स्ट् ु से के नतीिे में उस को तक्लीफ़ पोहंचाएगा या

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उस को मारे गा या उस को िांटे गा, उस को गाली दे गा, उस को बुरा भला कहे गा, उस का ददल दख ु ाएगा

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और ये सब गुनाह हैं िो ग़स्ट् ु से के नतीिे में उस से सर ज़द होंगे इस सलए कक दस ू रे को ना हक़ मारना बहुत

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बड़ा गन ु से के नतीिे में गाली दे दी तो हदीस में हुज़रू अक़्दस ‫ ﷺ‬ने इस के बारे ु ाह है। इसी तरह अगर ग़स्ट्

में फ़मातया: "मुसल्मान को गाली दे ना बद्द तरीन फ़सक़ है और उस का क़्ल करना कुफ़्र है"। (बुख़ारी) इसी

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तरह अगर ग़स्ट् ु से के नतीिे में दस ू रे को तअन व तश्नीह कर दी स्िस से दस ू रे इंसान का ददल टूट गया

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और उस की ददल शस्ु क्न हुई तो ये भी बहुत बड़ा गुनाह है, ये सब गुनाह उस वक़्त हुए िब ऐसे शख़्स पर

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ग़स्ट् ु सा आया िो आप का मातहत था। "बुग़्ज़" ग़स्ट् ु से से पैदा होता है : और अगर ऐसे शख़्स पर ग़स्ट् ु सा आ गया िो आप का मातहत नहीं है और वो आप के क़ाबू में नहीं है तो ग़स्ट् ु सा के नतीिे में आप उस की ग़ीबत करें गे। मसलन: स्िस पर ग़स्ट् ु सा आया वो बड़ा है और सादहब ए इक़्तदार है, उस के सामने उस को कुछ कहने की िरु तत नहीं होती, ज़बान नहीं खल ु ती तो ये होगा कक उस के सामने तो ख़ामोश रहें गे लेककन िब वो नज़रों से ओझल होगा तो उस की बुराइयां बयान करना शरू ु कर दें गे और उस की ग़ीबत करें गे,

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अब ये ग़ीबत उसी ग़स्ट् ु से के नतीिे में हो रही है और बअज़ औक़ात ये होता है कक इंसान दस ू रे की ककतनी भी ग़ीबत कर ले मगर उस का ग़स्ट् ु सा िं िा नहीं होता बस्ल्क ग़स्ट् ु से के नतीिे में ये ददल चाहता है कक उस को तक्लीफ़ पोहंचाऊं, मगर चूँकू क वो सादहब ए इक़्तदार और बड़ा है इस सलए उस पर क़ाबू नहीं चलता। इस के नतीिे में ददल के अंदर एक घुटन पैदा होगी और ददल चाहता है कक उस को तक्लीफ़ पोहंचाऊं या

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उसे ख़द ु ब ख़द ु तक्लीफ़ पोहंच िाए, ये "बग़्ु ज़" है िो एक मस्ट् ु तक़ल गन ु ाह है िो इसी ग़स्ट् ु से के नतीिे में पैदा हुआ। "हसद" ग़स्ट् ु से से पैदा होता है:और अगर स्िस शख़्स पर ग़स्ट् ु सा आ रहा है और उस को तक्लीफ़

rg

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पोहंचने के बिाए राहत और ख़ुशी हाससल होगी उस को कहीं से पैसे ज़्यादा समल गए या उस को कोई बड़ा

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मन्सब समल गया तो अब ददल में ये ख़्वादहश हो रही है कक ये मन्सब उस से नछन िाए, ये माल व दौलत, ये रुपया व पैसा ककसी तरह उस के पास से ज़ायअ हो िाएं, ख़्म हो िाएं। ये हसद भी इसी ग़स्ट् ु से के

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नतीिे में पैदा हो रहा है। बहर हाल स्िस शख़्स पर ग़स्ट् ु सा आ रहा है अगर उस पर क़ाबू चल िाए तो भी बे शम ु ार गुनाह इस के ज़ररए साददर हो िाते हैं और अगर क़ाबू ना चले तो भी बे शम ु ार गुनाह इस के ज़ररए

bq

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साददर होते हैं। ये सब गन ु ाह इस "ग़स्ट् ु से" के क़ाबू में ना रहने के नतीिे में पैदा हो रहे हैं। अगर ग़स्ट् ु सा क़ाबू

में होता तो इंसान इन सारे गुनाहों से महफ़ूज़ रहता। चुनाचे क़ुरआन करीम में अल्लाह तआला ने नेक

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मस ु ल्मान वो हैं िो ग़स्ट् ु से को पी िाते हैं और ु ल्मानों की तारीफ़ करते हुए इशातद फ़मातया: यानन नेक मस लोगों से ग़स्ट् ु से को दर गुज़र करते हैं (आल इम्रान: १३४) इस सलए कक ग़स्ट् ु सा पीने के नतीिे में ये सारे

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ग़स्ट् ु सा के नुक़्सानात:

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गुनाह सर ज़द नहीं होंगे।

आप को मालूम है कक हुज़ूर ‫ ﷺ‬ने करने से मना ककया है, इसे शैतान का असर क़रार ददया है , आप ‫ﷺ‬ ने मस ु ल्मानों को हुक्म ददया है , ग़स्ट् ु सा आए और खड़े हो तो बैि िाओ, बैिे हो तो लेट िाओ, कफर भी ग़स्ट् ु सा िं िा ना हो तो पानी पी लो। आि नतब्ब के मादहरीन कहते हैं ग़स्ट् ु सा करने से इंसान की ताक़त ख़्म हो िाती है। बड़ी बदू ियां माओं को ग़स्ट् ु से और ग़म की हालत में बच्चे को दध ू वपलाने से मना करती हैं, Page 18 of 68 www.ubqari.org

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क्योंकक इस से बच्चे की स्ज़न्दगी ख़तरे में रहती है , या कफर ग़स्ट् ु से के असरात बच्चे में आते हैं। अमरीका के एक साइंस दान रे ि फ़ॉबबत ववस्ल्लयम्ज़ का कहना है "ग़स्ट् ु सा, बुग़्ज़ और कीना रखने वाले अफ़राद िल्द मर िाते हैं, ग़स्ट् ु से से इंसानी ददल को वही नक़् ु सान पोहंचता है िो तम्बाकू नोशी और हाई ब्लि प्रेशर से पोहंचता है"। ग़स्ट् ु सा और बुग़्ज़ से ददल के दौरे पड़ते हैं। इसी तरह लालच में मुब्तला बे चैन और बे सब्र

rg

अफ़राद भी हद्द से ज़्यादा बिी हुई तमन्नाओं और आरज़ओ ू ं की विह से अपनी स्ज़न्दगी का गचराग़ गल ु कर लेते हैं। इस के उलट िो लोग अपने एअसाब पर क़ाबू रखते हैं और स्िन के समज़ाि में बदातश्त,

rg

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शगुफ़्तगग, क़नाअत और सब्र शक्र ु का मादा होता है वो स्ज़न्दगी के हालात का मुक़ाब्ला बेह्तर तौर पर

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कर सकते हैं। ग़स्ट् ु से वाले, बे चैन रहने वाले, ज़रूरत से ज़्यादा आरज़ू मन्द अफ़राद ददल के अमराज़ में ज़्यादा मुब्तला पाए गए हैं। इस सलए आि से आप भी पक्का इरादा करें कक आइन्दा ग़स्ट् ु सा नहीं करें गे

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और कभी आ िाए तो नबी ‫ ﷺ‬की सन् ु नत तालीम के मत ु ाबबक़ अमल करें गे, बैि िाएंगे, लेट िाएंग,े

bq

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पानी पी कर उसे िं िा कर लें गे।

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माहनामा अबक़री नवम्बर 2015 शम ु ारा निंबर 113______________pg 8

नवम्बर में जान बनाने के जान्दार सुनहरी उसूल:

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(बअज़ ख़वातीन अपने बच्चों को नहलाने और ख़ुद भी नहाने से घबराती हैं और तीन चार ददन के बाद ससफ़त सर धो कर काम चला लेती हैं ये तरीक़ा भी सेहत के सलए नुक़्सान्दह साबबत होता है। नतीिा ये

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ननकलता है कक सर तो गीला हो िाता है िब कक स्िस्ट्म का बाक़ी दहस्ट्सा नम ् आलद ू नहीं होता इस तफ़्रीक़ से स्िस्ट्म की हरारत यक्सां नहीं रहती।) (सासमआ रहमान, इस्ट्लाम आबाद)

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सेहत को बरक़रार रखने के सलए यू​ूँ तो हर मौसम में मख़् ु तसलफ़ इक़्दामात करने की ज़रूरत होती है मगर हमारे पेश नज़र चूंकक मौसम समात है इस सलए दे खना ये है कक ख़वातीन ककन उसूलों को अपना कर अपनी सेहत बहाल रख सकती हैं। सददत यों की सब से ज़्यादा पेश आने वाली बीमारी नज़्ला और ज़क ु ाम है िो ज़रा सी हरारत में तब्दीली के बाइस लाहक़ हो सकती है । इस सलए ज़रूरी है कक हरारत में तब्दीली से बचा

rg

िाए। सददत यों में धंद ु की विह से कफ़ज़ा नम ् आलद ू हो िाती है और ख़वातीन सब ु ह सवेरे घरे लू काम के सलए दहफ़ाज़ती तदाबीर के बग़ैर ही ददन का आग़ाज़ कर दे ती हैं। इस के इलावा धुवें और गदत के ज़रातत भी

rg

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हवा को प्रागंदह करते हैं और इस कफ़ज़ा में बच्चे भी सांस लेते हैं। बावची ख़ानों और दस ू रे कमरों में बारीक

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िासलयों का मुनाससब इंतज़ाम बहर हाल करना चादहए। सददतयों में अमूमन कमरों का दिात हरारत खुली

कफ़ज़ा की ननस्ट्बत बेह्तर होता है िबकक कमरों से बाहर सदी ज़्यादा होती है। सददत यों में िब ख़वातीन बे

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एह्​्याती से अपने कमरों से बाहर ननकलती हैं तो बाहर दो कफ़ज़ाओं में ना मुनाससब फ़क़त की विह से

मुख़्तसलफ़ बीमाररयों का सशकार होती हैं स्िस में सर ददत , िोड़ों का ददत और नज़्ला ज़ुकाम वग़ैरा शासमल

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है। इस के इलावा फैफड़े इस फ़ौरी तब्दीली से मत ु ाससर होते हैं स्िस से सांस की बीमारी पैदा होने का

ख़दशा भी हो सकता है। इलावा अस्ज़ं ननमोननया की सशकायत भी पैदा हो िाती है। दम्मा के मरीज़ों का

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मज़त सशद्दत अख़्​्यार कर सकता है। बच्चों को सब ु ह स्ट्कूल की तय्यारी के ससस्ल्सले में बे एह्​्याती की

िाती है। बच्चे बबस्ट्तर से ननकल्ते ही बाथ रूम में घुस िाते हैं या बग़ैर िूतों और िुराबों के चलते कफरते

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हैं या कफर उन्हें नेहला कर फ़ौरी तौसलये से ख़ुश्क कर के मुनाससब सलबास नहीं पहनाया िाता। शहरों में

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ख़वातीन बबज्ली, गैस के हीटरों और दीहातों में कोयलों की अंगेिी के सामने बैि कर काम काि करती हैं स्ट्वीटरें बुनती हैं, सस्ब्ज़याूँ बनाती हैं, कफर अचानक ककसी ज़रूरी काम के याद आने पर दिात हरारत की परवा ककये बग़ैर खल ु ी कफ़ज़ा में चली िाती हैं िो सेहत के सलए बे हद्द मज़्र ु हैं या कफर नंगे पाऊूँ घरे लू काम काि में लग िाती हैं। शॉल या स्ट्वेटर इस्ट्तेमाल नहीं करती हैं, स्िस से हवा लग सकती है। ना मुकम्मल

गरम सलबास (ख़्वाह आप को सदी ना लग रही हो) आप को बीमार कर सकता है। स्िन ख़वातीन को

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शदीद सददत यों में भी गमी का एह्सास होता है उन्हें अपना ब्लि प्रेशर चेक करवाना चादहए और ब्लि प्रेशर ज़्यादा होने की सूरत में इलाि करवाना ज़रूरी है। स्िस्ट्मानी सेहत की दहफ़ाज़त के साथ साथ हमें ना मन ु ाससब गग़ज़ाओं से भी परहे ज़ करना चादहए। ये महज़ मफ़रूज़ा है कक चाय और कॉफ़ी से कोई फ़क़त नहीं पड़ता। बअज़ ख़वातीन में ये ख़्याल पाया िाता है कक मौसम समात में गरम तासीर वाली ख़ोराक का

rg

इस्ट्तेमाल ज़्यादा करना चादहए, ये बात ककसी हद्द तक तो दरु ु स्ट्त हो सकती है मगर हर चीज़ को एअतदाल में ही रख कर इस्ट्तेमाल करना सेहत के सलए मुफ़ीद है। सददत यों में अचार से ख़ास तौर पर

rg

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परहे ज़ करना चादहए क्योंकक अचार और खट्टी चीज़ें गले की रगों को पकड़ लेती हैं और बीमार होने का

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ख़दशा बि िाता है। सस्ब्ज़यों और दालों में हयातीन की समक़्दार काफ़ी होती है , इस का ज़्यादा इस्ट्तेमाल सेहत के सलए मुफ़ीद है। बअज़ ख़वातीन अपने बच्चों को नहलाने और ख़ुद भी नहाने से घबराती हैं और

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तीन चार ददन के बाद ससफ़त सर धो कर काम चला लेती हैं ये तरीक़ा भी सेहत के सलए नुक़्सान दह साबबत होता है। नतीिा ये ननकलता है कक सर तो गीला हो िाता है िब कक स्िस्ट्म का बाक़ी दहस्ट्सा नम ् आलूद

bq

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नहीं होता इस तफ़्रीक़ से स्िस्ट्म की हरारत यक्सां नहीं रहती। सफ़ाई सथ ु राई तो हर मौसम में सेहत के सलए मुफ़ीद है कक सर धोने की बिाए हफ़्ते में कम अज़ कम दो तीन बार ज़रूर नहा सलया िाए। हालांकक

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मादहरीन सददत यों में भी रोज़ाना दोपेहेर के वक़्त नहाने को सेहत की अलामत क़रार दे ते हैं। बअज़ ख़वातीन मुख़्तसलफ़ बीमाररयों ख़ुसूसन ददत वग़ैरा और नज़्ला ज़ुकाम का इलाि घर पर ही कर लेती हैं।

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सर ददत, बुख़ार, नज़्ला, ज़ुकाम में आम फ़रोख़्त होने वाली उदय ू ात इस्ट्तेमाल की िाती हैं। ये तरीक़ा भी

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मुनाससब नहीं है। ननमोननया या इस िैसे दस ू रे अमराज़ िो सदी के मौसम में वबा की सूरत में फूट सकते हैं, से बचने के सलए हयातीन (ववटासमन) का इस्ट्तेमाल करते रहना मुफ़ीद है। ताहम बीमारी की सशद्दत की सरू त में अपने मआ ु सलि ् के मश्वरे के बग़ैर कोई भी दवाई इस्ट्तेमाल करना नक़् ु सान दह हो सकता है क्योंकक बअज़ औक़ात घरे लू इलाि बीमाररयों में तवालत पैदा कर सकते हैं। अगर घर पर इलाि ज़रूरी करना है तो नज़्ला ज़क ु ाम के सलए िोशांदा हर सलहाज़ से फ़ायदा पोहंचाता है और इस के कोई मा बाद

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असरात भी नहीं हैं। इस के इलावा ज़ैतून बहुत महफ़ूज़ और सेहत बख़्श गग़ज़ा है। इस में बहुत मक़वी अज्ज़ा पाए िाते हैं। अरबों के बहुत से खानों में ज़ैतून का इस्ट्तेमाल ककया िाता है। इस का तेल सलाद और चटननयों में भी िालते हैं िो उन्हें ख़श्ु बद ू ार बना दे ता है और ज़ाइक़ा भी दो बाला कर दे ता है िब कक हमारे हाूँ इसे ससफ़त मासलश के सलए इस्ट्तेमाल ककया िाता है। बअज़ लोग सददतयों में अन्िों का इस्ट्तेमाल

rg

बिा दे ते हैं या बअज़ अंिे का इस्ट्तेमाल बबल्कुल नहीं करते। एक लाख अफ़राद पर होने वाली तहक़ीक़ से पता चला है कक रोज़ाना एक अंिा सेहत के सलए ननहायत मुफ़ीद है। बहर हाल हद्द से ज़्यादा अंिों का

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इस्ट्तेमाल मुनाससब नहीं है। ज़्यादा सस्ब्ज़याूँ या ससफ़त दालें इस्ट्तेमाल करना और गोश्त का इस्ट्तेमाल तकत

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कर दे ना भी नुक़्सान दह है। इंसान कफ़तरी तौर पर गोश्त खाना पसंद करता है। इस तरह संगतरों, माल्टों का इस्ट्तेमाल भी इस मौसम में मुफ़ीद है। कनािा और बतातननया में की गयी तहक़ीक़ के मुताबबक़

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मादहरीन ने बताया कक ऑरें ि िूस स्िस्ट्म में एच िी एल को बिाता है िो कक इंसान के सलए मुफ़ीद है।

ख़ास तौर पर ददल के मरीज़ों के सलए तो बहुत मुफ़ीद है। स्िस्ट्म में एल िी एल कोलेस्ट्रोल को कंरोल भी

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करता है। बअज़ लोग सददत यों में ववटासमन्स का ज़्यादा इस्ट्तेमाल करते हैं। अमरीकी मादहरीन का कहना है कक ववटासमन्स की बहुत ज़्यादा समक़्दार इस्ट्तेमाल करने से सेहत के मसाइल पैदा हो सकते हैं।

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अमरीका के इंस्स्ट्टट्यट ू ऑफ़ मेडिकल साइंस ने लोगों को मश्वरा ददया है कक वो ववटासमन्स की गोसलयों के इस्ट्तेमाल में कमी लाएं। ररपोटत में कहा गया है कक रोज़ाना स्ितने ववटासमन्स की ज़रूरत होती है सेहत

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मन्द अफ़राद को अपनी रोज़ मरह गग़ज़ा में इतने ववटासमन्स समल िाते हैं। लोगों को रोज़ाना ऐसी चीज़ें

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खानी चादहयें स्िन में क़ुदरती तौर पर ववटासमन की काफ़ी समक़्दार हो। ववटासमन सी संगत्रा, माल्टा, आलू, स्ट्रॉबेरी और सब्ज़ प्तों वाली तरकाररयों में वाकफ़र समक़्दार में मौिूद होता है। अल्ब्त बीमार लोगों को अपने मआ ु सलि ् के मश्वरे से ववटासमन्स की गोसलयां इस्ट्तेमाल करनी चादहयें या कफर कम्ज़ोर अफ़राद को ये भी कहा गया है कक रोज़ाना दो हज़ार समली ग्राम से ज़्यादा ववटासमन नहीं लेना चादहए क्योंकक बहुत ज़्यादा ववटासमन सी इसहाल का सबब बन सकता है। लोगों को ववटासमन ई के सलए

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मुनाससब समक़्दार में मूंग फली, बादाम और ख़ुश्क मेवािात इस्ट्तेमाल करने चादहयें लेककन गोसलयों की सूरत में ववटासमन ई रोज़ाना एक हज़ार समली ग्राम से ज़ाइद नहीं लेना चादहए। गोसलयों की सूरत में बहुत ज़्यादा ववटासमन ई लेने से स्िस्ट्म के अंदर ज़ाइद ख़न ू बन्ने के इम्कानात बि सकते हैं। बअज़ लोग सददत यों में पानी का इस्ट्तेमाल बहुत कम कर दे ते हैं। बहुत कम अफ़राद को ये इल्म होता है कक स्िस्ट्म

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पानी की कमी का सशकार हो रहा है। प्यास में इंसान की ज़ेहनी कारकददत गी मत ु ाससर होती है, इस सलए सददत यों में पानी का इस्ट्तेमाल कम या तकत कर के ख़ुद को ननत ् नई बीमाररयों से बचाना आप के अपने

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हाथ में है। पानी के कम इस्ट्तेमाल से ख़ून की नासलयां तंग हो िाती हैं और ददल को स्िस्ट्म में ख़ून

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पोहंचाने के सलए ज़्यादा मेहनत करना पड़ती है इस सलए सददत यों में मुनाससब समक़्दार में पानी का

इस्ट्तेमाल आप की अच्छी सेहत के सलए ज़रूरी है। ख़ास तौर पर िोड़ों के ददत , ब्लि प्रेशर के मरीज़ पानी

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का इस्ट्तेमाल तकत ना करें ।

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माहनामा अबक़री नवम्बर 2015 शम ु ारा निंबर 113__________________pg9

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क़ाररईन के नतब्बी और रूहानी सवाल, ससफ़स क़ाररईन के जवाब: चेहरे पर भूरे नतल: मोहतरम क़ाररईन अस्ट्सलामु अलैकुम! मेरा मसला ये है कक मेरे चेहरे पर भूरे रं ग के नतल

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नुमा दाग़ हैं िो छूने पर महसूस भी नहीं होते स्िन्हें फ़्रैकल कहा िाता है। अगर क़ाररईन को इस का बेह्तर

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हल मालूम हो तो बराहे मेहरबानी बता दें । दआ ु गो रहूंगी। (एस-के, मरवत)

िवाब: बस्च्चयों के स्िस्ट्म के अंदरूनी ननज़ाम में उम्र के बिने से तब्दीसलयां आया करती हैं। इन कफ़तरी तब्दीसलयों की विह से बअज़ औक़ात उन का असर चेहरे की स्िल्द पर ज़ादहर होता है। बअज़ औक़ात साल दो साल बाद ख़ुद ब ख़ुद ये कील मुहासे ग़ायब हो िाते हैं मगर बअज़ बस्च्चयों (और बच्चों) में ये बहुत ददनों तक भी रह िाते हैं। आप आलू बख़ ु ारा तीन दाने, गल ु मंिी तीन ग्राम, सौंफ़ छे ग्राम। इन तीनों को एक

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गगलास पानी में िोश दें । कफर छान लें , सुबह ननहार मुंह दो तीन हफ़्ते ये ननबाती दवा पी लें । इस से फ़ायदा होगा, इन नतलों पर लगाने के सलए दही की बालाई अच्छी चीज़ है। (रहमाना कौसर, रावलवपंिी) बाज़ुओं पर बाल: मोहतरम क़ाररईन! मेरा मसला ये है कक मेरे बाज़ुओं पर बहुत मोटे मदों की तरह बाल हैं िो बहुत बरु े लगते हैं, क्या बालों को साफ़ करना गन ु ाह तो नहीं, मैं इन बालों को साफ़ कर सकती हू​ूँ? और मझ ु े

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इन बालों का मुअस्ट्सर इलाि भी बताएं। मेरा दस ू रा मसला ये है कक मेरी आूँखें हर वक़्त सूझी हुई लगती हैं

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और चेहरे पर भी कभी सि ू न हो िाती है स्िस ददन चावल खाती हू​ूँ उस ददन सि ू न और ज़्यादा हो िाती है ,

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पुर)

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उस ददन साफ़ ददखाई भी नहीं दे ता। आप मेरे मसाइल का हल बता दें । बड़ी मेहरबानी होगी। (नाददया, हरी

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िवाब: ग़ैर ज़रूरी बालों के मसाइल अमूमन उन ख़वातीन को होते हैं स्िन के हामोंज़ में ख़राबी पैदा हो गयी

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हो। आप दफ़्तर माहनामा अबक़री से "पोशीदह कोसत" ले कर चन्द माह मुस्ट्तक़ल समज़ािी से इस्ट्तेमाल

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करें । इन शा अल्लाह इस के इस्ट्तेमाल से आप के ला तअदाद मसाइल हल हो िाएंगे। दस ू रा मसला के हल के सलए आप दफ़्तर माहनामा अबक़री से िोहर सशफ़ा मदीना और स्तर सशफ़ाएं िब्बी में दी गयी दहदायात

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के मुताबबक़ इस्ट्तेमाल करें । (मुहम्मद शकूर, कराची)

सांवला रं ग: मोहतरम हज़रत हकीम साहब अस्ट्सलामु अलैकुम! आप का अबक़री ररसाला हमें बहुत पसंद

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है, हम ने उस से दीनी मालम ू ात और बहुत से वज़ाइफ़् हाससल ककये हैं। मेरा एक मसला है िो मैं "क़ाररईन के

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सवाल क़ाररईन के िवाब" मैं पेश कर रही हू​ूँ। मेरा और मेरी कज़न का रं ग सांवला है स्िस की विह से लोगों

की बातें और ताने सुनने पड़ते हैं। आप कोई टोटका बताएं स्िस से हमारा रं ग सफ़ेद हो िाए और कोई क्रीम या साबुन भी बताऐं स्िस से स्िस्ट्म और चेहरे का रं ग सफ़ेद हो िाए। टोटका ज़्यादा मेहंगा ना हो। अल्लाह तआला आप को दन्ु या व आख़ख़रत दोनों में काम्याबी दे । सारी स्ज़न्दगी दआ ु एं दें गी। (न-र, इस्ट्लाम आबाद)

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िवाब: मेरी बहन ये नुस्ट्ख़ा मेरी बीवी का आज़मूदह है आप भी आज़माइए ननहायत सस्ट्ता और कार आमद है। अबक़री िन्वरी २०१४ में ये नुस्ट्ख़ा छप चुका है। नुस्ट्ख़ा दित ज़ेल है:हुवल ्-शाफ़ी: कलौंिी पाउिर ४० ग्राम, स्ललसरीन ख़ासलस १०० ग्राम, अक़त गुलाब १०० ग्राम, लीमों का रस १०० ग्राम। इन तमाम अज्ज़ा को आपस में समला कर लोशन तय्यार करें । हल्के हाथों के साथ ससफ़त रात

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चोधवीं के चाूँद की तरह रोशन हो िाएगा।

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सोते वक़्त इस्ट्तेमाल करें । सुबह उि कर चेहरा धो लें । इन शा अल्लाह चन्द ददन इस्ट्तेमाल से आप का चेहरा

पाऊूँ में ददत: क़ाररईन! मेरी अम्मी को पाऊूँ के ददत का आज़ात लाहक़ है, ददन के वक़्त काम काि के दौरान उन

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को ये तक्लीफ़ नहीं होती लेककन काम के बाद आराम के दौरान यानन रात के वक़्त उन के पाऊूँ में सख़्त ददत

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महसूस होता है। ददत के साथ साथ पाऊूँ पर सुख़त ननशानात ज़ादहर हो िाते हैं िैसे ख़ून िम गया हो। ये ददत

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दबाने से िीक होता है। अम्मी ज़्यादा तक्लीफ़ की विह से अपने पाऊूँ चार पाई पर ज़ोर ज़ोर से मारती हैं।

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तब थोड़ा अफ़ाक़ा होता है। बराह मेहरबानी कोई टोटका, नुस्ट्ख़ा या रूहानी वज़ीफ़ा बता दें । (उमर फ़ारूक़, स्ज़ल्ला करक)

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िवाब: आप अपनी वासलदा को नीम गरम दध ू में दो अदद छोटी इलाइची िाल कर उस के साथ सब्ज़ हरीड़ (हरड़) दो अदद इस्ट्तेमाल करें ना ससफ़त पाऊूँ की ददत बेह्तर होगी बस्ल्क और दस ू रे अवाररज़ से भी ननिात

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(आसशक़ हुसैन, लाहौर)

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समलेगी। इन शा अल्लाह कुछ अरसा इस्ट्तेमाल से आप की वासलदा बफ़ज़ल ख़ुदा सेहतमंद हो िाएंगी।

२- अपनी वासलदा से कहें कक रात सोने के सलए िब बबस्ट्तर पर िाएं तो ३३ मततबा सुब्हानल्लाह ( ‫) حبسانْهللا‬, ३३ मततबा अल्हम्दसु लल्लाह ( ‫ ) احلمدْهلل‬और ३४ मततबा अल्लाहु अक्बर् (‫ ) هللاْأكرب‬पि कर हाथों पर दम कर के पाऊूँ पर मलें।

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बे ज़रर गगल्टी: क़ाररईन! मेरी उम्र ४३ साल है, शादी शद ु ह हू​ूँ, मेरे बाएं कान के साथ चेहरे की तरफ़ दािी वाली िगा पर एक गगल्टी है, िॉक्टरज़ कहते हैं कक ये बे ज़रर है, ये गगल्टी तक़रीबन चार साल पुरानी है िो ना तो बि रही है और ना ही कम हो रही है, इस में ददत भी नहीं होता और अगर उस को ऊपर नीचे, दाएं बाएं हरकत दें तो ये बा आसानी हरकत करती है। मुझे िल्द अज़ िल्द इस का इलाि बताएं। (मुहम्मद हुमायू​ूँ अश्रफ़,

rg

मल् ु तान)

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िवाब: हुमायूँू भाई! मेरी बग़ल में इसी तरह की बे ज़रर सी गगल्टी थी, स्िस की विह से मैं बहुत परे शान

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रहा। कफर मुझे मेरे एक दोस्ट्त ने एक वज़ीफ़ा बताया कक हर नमाज़ पिने के बाद सांस रोक कर सात मततबा ‫ا‬

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"या क़ाबबज़ु या माननउ" (‫ ) اَیقا ِبض اَْی امان ُِْع‬पि कर ऊूँगली पर दम कर के गगल्टी पर मला करो। तक़रीबन छे माह हो गए हैं मैं ये वज़ीफ़ा कर रहा हू​ूँ, और मेरी गगल्टी स्तर फ़ीसद ख़्म हो गयी है। आप भी यही अमल शरू ु

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करें इन शा अल्लाह आप की गगल्टी भी ख़्म हो िाएगी। (मुहम्मद िावेद ख़ान, अटक)

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छोटे बच्चे की शग ु र: मोहतरम हज़रत हकीम साहब अस्ट्सलामु अलैकुम! िूंदह अबक़री से तआरुफ़ हुआ तो सच्चे वाक़्यात और नुस्ट्ख़ा िात मेरे अंदर हुल्चल मचाने लगे, मैं माहनामा अबक़री में अपने आज़मूदह

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नुस्ट्ख़ा िात व वज़ाइफ़् भेिती रहती हू​ूँ। िब से आप ने फ़ॉन कर के नुस्ट्ख़ा की तस्ट्दीक़ की आप की अज़्मत मेरे ददल में और ज़्यादा बैि गयी कक ककस तरह तस्ट्दीक़ शद ु ह और सही नुस्ट्ख़े सलखते हैं, थोड़ा सा भी शक हो

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िाए तो तस्ट्दीक़ करते हैं, ककस मुस्श्कल से आप ने मुझ से राब्ता ककया ये आप की सच्चाई और अज़्मत की

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समसाल है। मोहतरम हज़रत हकीम साहब! मेरा क़ाररईन से सवाल है कक मेरा एक नन्हा सा पोता है वो ससफ़त

(ज़-ख़)

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दो साल का है, उसे शग ु र हो गयी है , उसे अभी से इंसोलीन लग रही है। क़ाररईन से इस का हल मतलब ू है।

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िवाब: मोहतरमा! आप तमाम घरवाले नमाज़ की पाबन्दी करें । सारा ददन बच्चे के क़रीब सूरह रह्मान लगा कर रखें ता कक बच्चे के कानों में हर वक़्त सूरह रह्मान की नतलावत की आवाज़ िाती रहे । इन शा

क़ाररईन के सवाल क़ाररईन के जवाब:

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अल्लाह कुछ ही अरसे में फ़क़त आप ख़द ु दे खेंगे। (ह,त)

"क़ाररईन के सवाल व िवाब" का ससस्ल्सला बहुत पसंद ककया गया ख़ुतूत का ढे र लग गया, मश्वरे से तय

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हुआ वपछला ररकॉित पहले क़ाररईन तक पोहंचाया िाए िब तक ये ख़्म नहीं होता उस वक़्त तक

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साबबक़ा तरतीब कफ़ल्हाल कुछ अरसा के सलए मुअख़्ख़र कर दी िाए।

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माहनामा अबक़री नवम्बर 2015 शम ु ारा निंबर 113________________pg13

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नतब्बी मश्वरे

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जजस्मानी बीमाररयों का शाफ़ी इलाज:

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(तवज्िह तलब अमूर के सलए पता सलखा हुआ िवाबी सलफ़ाफ़ा हमराह अरसाल करें और उस पर

w

मुकम्मल पता वाज़ेह हो। िवाबी सलफ़ाफ़ा ना िालने की सूरत में िवाब अरसाल नहीं ककया िाएगा। सलखते हुए इज़ाफ़ी गोंद या टे प ना लगाएं स्ट्टे पलरज़ वपन इस्ट्तेमाल ना करें । राज़दारी का ख़्याल रखा

िाएगा। सफ़हे के एक तरफ़ सलखें । नाम और शहर का नाम या मुकम्मल पता और अपना मोबाइल फ़ॉन नंबर ख़त के आख़ख़र में ज़रूर तहरीर करें ।)

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मरहम आनतष्क: मैं अमरीका में रहता हू​ूँ, आप अंदाज़ा नहीं कर सकते कक यहाूँ इलाि ककतना मेहंगा है। मामूली नज़्ला ज़ुकाम का इलाि अगर िॉक्टर के पास करवाने िाएं तो कम से कम पांच सो िॉलर का ख़चात है िो पाककस्ट्तानी रूपए में दे ख लें ककतने बनते हैं तो बड़े अमराज़ का स्ट्पेशसलस्ट्ट से इलाि करवाने का ख़चात तो ककसी के बस में नहीं होता है, इस सलए यहाूँ लोग ज़्यादा तर अपना इलाि ख़ुद करते हैं।

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मसला दरपेश है कक ये खल ु ा और उरयां मआ ु श्रा है , इस सलए उन्हें बहुत बरु े और बड़े मज़त हैं, हमारे पाककस्ट्तानी उन से वो बुरी बीमाररयां ले लेते हैं और उन बीमाररयों का इलाि ककसी के पास नहीं है।

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स्ट्पेशसलस्ट्ट के पास भी नहीं तो असल में आप मुझे आनतष्क का इलाि सलख दें । (फ़, न्यू यॉकत)

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मश्वरा: आनतष्क का इलाि एक फ़ास्ज़ल पिे सलखे तबीब ही का काम है हर ककसी को इस में हाथ नहीं िालना चादहए। क्योंकक ग़ैर तबीब तो इस की तश्ख़ीस भी नहीं कर सकता, इलाि तो दरू की बात है।

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अल्ब्त एक मरहम का नुस्ट्ख़ा सलख दे ते हैं। अगर वाक़ई आनतष्क हो तो बेरूनी इस्ट्तेमाल से फ़ायदा होता

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है, नुस्ट्ख़ा ये है। गदत चोब चीनी दो माशा, शंग्रफ़ तीन तोला, तोतयाए दहंदी शस्ट् ु ता छे तोला, बारीक गदत की

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तरह सफ़ूफ़ बना कर दे सी अंिे को गरम भूभल में गरम कर के ज़दी ननकाल कर उस ज़दी में समला दें और

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ज़ख़्म को साफ़ कर के मरहम की तरह लगाएं।

वेहशत और ज़अफ़ क़ल्ब (ददल की कम्ज़ोरी): अरसा दराज़ से सलकोररया की मरीज़ा हू​ूँ। पानी की तरह

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रूपए बहा कर भी इस मज़त से ननिात नहीं समली। सलकोररया की दवाएं खा खा कर और बहुत सी तक्लीफ़ें

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पैदा हो गईं। बच्पन में ननमोननया हो गया था, िॉक्टरों ने एलिी बताई और कहा बच्ची बड़ी होगी तो ख़ुद

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ब ख़ुद अच्छी हो िाएगी। मगर बक़ाइदा दम्मा हो गया, हाथ पैर िलते हैं, शदीद वेहशत तारी हो िाती है। ददल सख़्त कम्ज़ोर हो गया है। आप मुझे सलकोररया, वेहशत और ददल की कम्ज़ोरी का इलाि बताएं, मगर ऐसा इलाि बताएं िो कम ख़चत कर के ककया िा सके। (रे हाना, गि ु रात)

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मश्वरा: ख़मीरा मरवारीद तीन माशा सुबह व शाम खाएं मगर ये सही नुस्ट्ख़े से अस्ट्ली बना हुआ होना ज़रूरी है, ककसी पुराने दयान्तदार तबीब का अपना बनाया हुआ ख़रीद कर इस्ट्तेमाल करें । इन शा अल्लाह आप की तीनों सशकायात का ये आसान, सस्ट्ता और मस्ट् ु तक़ल हल है। सेलान रहम: काफ़ी अरसा से सलकोररया की सशकायत है बअज़ औक़ात तो शदीद तक्लीफ़ हो िाती है।

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सेलान के साथ शदीद कम्ज़ोरी हो गयी, स्िस्ट्म हड्डियों का ढांचा बन गया है , ददमाग़ी कम्ज़ोरी भी हो

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गयी। चल्ना कफरना, काम काि मस्ु श्कल से होता है। (र,ि-कोरं गी)

मश्वरा: सुबह मािून सुपारी पाक छे ग्राम आधी प्याली दध ू से खाएं। शाम को असर के वक़्त सदा िवानी

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अगध चम्मच खाएं। सदा िवानी का नुस्ट्ख़ा ये है। खोपरा ख़ुश्क, छुवारे , ककस्श्मश सुन्दरख़ानी, मग़ज़

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दवा है।

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अख़रोट, चीनी सब दवाएं हम्वज़न कूट कर रख लें । इन शा अल्लाह सशफ़ा होगी ये बहुत उम्दा गग़ज़ाई

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अिीब कम्ज़ोरी: सलखते हुए शमत आ रही है मगर शरई अम्र है इलाि बहुत करवाया है, फ़ायदा नहीं हुआ,

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मसला हक़ ज़ोस्ियत के बाद स्िस्ट्म में रै शा तारी होने का है। (म-ए- अबू ज़हबी)

मश्वरा: मािून मोमयाई दो माशा दध ू के साथ सुबह ननहार मुंह खाएं। कुछ अरसा इस्ट्तेमाल करें कफर

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कमाल ख़द ु दे खें।

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नतश्नगी: मेरा भैंसों का बाड़ा है, बारह सो भैंसों को संभालता हू​ूँ। वपछली गसमतयों में दोपेहेर को रोज़ाना

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काम करने की विह से गमी लग गयी थी, आप ने सलखा कक कच्चा आम गरम राख में दबा कर पकने पर उस का शबतत बना कर पीना मुफ़ीद है। मुझे इस से फ़ायदा हुआ मगर प्यास नहीं गयी, ज़बान ख़ुश्क रहती है और हर वक़्त पानी पीने को ददल करता है। पेशाब कम आता है मगर मेरे ख़ून और पेशाब के स्ितने टे स्ट्ट िॉक्टरों ने कराए वो सब नामतल हैं, मेरा ददमाग़ भी कम्ज़ोर हो गया है , ख़ोराक िीक िाक है , मगर

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वज़न कम हो गया, मुझे ना ब्लि प्रेशर है, ना शग ु र है , स्िस्ट्म गरम रहता है लोग कहते हैं तुम्हें बुख़ार है मगर थमातमीटर में बुख़ार नहीं आता। पेशाब ज़दत आता है ददल बहुत धड़कता है। (शहबाज़, शेख़ू पूरह) मश्वरा: अक़त नीलोफ़र चार औंस में एक औंस शबतत नीलोफ़र समला कर पीएं। शाम को भी पी सकते हैं, धप ू से बचें । अंिा, मग़ ु ी, मछली ज़्यादा समचत मसाल्हों से परहे ज़ करें ।

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मंह ु पक िाता है: मेरी उम्र ३४ साल है , वपछले दो सालों से मझ ु े मैदे की तक्लीफ़ है, कभी पेट में गरमाइश ्

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होती है, इस तक्लीफ़ की विह से मेरा मुंह पक िाता है स्िस की विह से ज़बान की ऊपर वाली तह ख़राब होती है स्िस की विह से मुंह में ददत होता है, कभी मुंह में छाले भी हो िाते हैं, काफ़ी दवा खाने के बाद

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िीक होता हू​ूँ लेककन कफर तक्लीफ़ हो िाती है। इस्ट्पग़ोल भी इस्ट्तेमाल करता हू​ूँ, क़ब्ज़ नहीं है , कभी भी

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सर में ददत होता है , मैं छासलया गुटका भी इस्ट्तेमाल नहीं करता। (शऐ ु ब, हैदर आबाद)

मश्वरा: गग़ज़ा के बाद िवाररश शाही छे ग्राम दोपेहेर रात को खाएं, क्था अस्ट्ली, दाना इलाइची ख़ोदत,

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बारीक पीस कर मंह ू , मक्खन, सस्ब्ज़याूँ, रोटी खाएं। तीन हफ़्ते के बाद ु के छालों पर नछड़कें। दल्या, दध

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सलखें । उम्मीद है इन शा अल्लाह अफ़ाक़ा होगा।

बुरी आदत: ये मसला मेरी एक दोस्ट्त का है , वो बच्पन से बुरी आदत में मुब्तला थी, सत्रह या अिारह साल

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की उम्र में वो आदत तो छूट गयी, कफर बे ख़्वाबी की सशकायत शरू ु हो गयी अब उस की उम्र २८ साल है

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और शादी क़रीब है और सलकोररया के साथ टांगों और कमर में ददत भी रहता है। (क,श)

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मश्वरा: वो बुरी आदत तो िाती रही मगर उस की याद बाक़ी है और यही असल मज़त है। िब आदत ख़्म हो गयी तो बात ख़्म हो गयी। रात गयी बात गयी। अब उसे भूल िाएं, ये असल इलाि है। बाक़ी रहा सलकोररया तो वो कम्ज़ोरी की विह से है , कम्ज़ोरी गग़ज़ा की कक़ल्लत की विह से है। गग़ज़ा की कमी को दरू करें । अच्छी उम्दा गग़ज़ा मुसल्सल बाक़ाइदगी से शदीद भूक रख कर खाती रहें , मगर वक़्त पर खाएं। सब ु ह को एक वक़्त मािन ू सप ु ारी आधी चम्मच खा सलया करें । एक माह के बाद दवा बन्द कर दें , मगर Page 30 of 68 www.ubqari.org

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माहनामा अबक़री मैगज़ीन के नवम्बर के 2015 के एहम मज़ामीन हहिंदी ज़बान में

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गग़ज़ा मुसल्सल िारी रखें , बस काफ़ी है। अल्ब्त शादी की उम्र हो तो शादी हो िानी चादहए। इस में ताख़ीर से अमूमन लड़ककयों की सेहत ख़राब हो िाती है।

कम्ज़ोरी दरू करने का बा कमाल नुस्ट्ख़ा:

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मोहतरम हज़रत हकीम साहब अस्ट्सलामु अलैकुम! मैं माहनामा अबक़री बहुत शौक़ से पिती हू​ूँ और इस में मौिूद वज़ाइफ़् व नुस्ट्ख़ा िात से ख़ूब फ़वाइद उिाती हू​ूँ। एक नुस्ट्ख़ा हमारा आज़मूदह है िो दित है।

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हुवल ्-शाफ़ी: बादाम आधा पाव, इस्ट्पग़ोल का नछल्का तीन तोला, समस्री तीन तोला, कमर कस तीन तोला, तबाशीर तीन तोला, छोटी इलाइची दस रुपए। इन सब को कूट कर फक्की बना लें । रात को सोते वक़्त

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मम्ताज़ ्, भक्कर)

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एक चम्मच दध ू के साथ खाएं। इन शा अल्लाह चन्द ददनों में लािवाब फ़क़त महसस ू होगा। (मुनीबा

माहनामा अबक़री नवम्बर 2015 शम ु ारा निंबर 113_______________pg14

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अल्लाहु-स्समद् पढ़ कर फूँू क मारी और नामुजम्कन मुजम्कन हो गया:

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(हम तीनों ख़ुदा के कररश्मे का इंतज़ार करने लगे और बबल्कुल स्ट्टॉप के एक तरफ़ हो कर खड़े हो गए।

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मेरी बहन आगे की तरफ़ लपकी तो मैं ने पीछे से उस को पकड़ कर खड़ा कर ददया उस को बहुत ग़स्ट् ु सा आया कहने लगी कक ख़ुद तो आगे बिती नहीं हो और मुझे भी आगे नहीं होने दे ती। अगले ही लम्हे मैं ने दे खा कक एक कररश्मा हुआ।) (रुख़साना, इस्ट्लाम आबाद)

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मोहतरम हज़रत हकीम साहब अस्ट्सलामु अलैकुम! अल्लाह आप को ख़ुश रखे और काम्याबबयों से हमककनार करे । आप के बताए हुए वज़ाइफ़् और माहनामा अबक़री की इबादात िो हर माह छपती हैं वो मक ु म्मल तौर से अदा करती हू​ूँ, ददल म्ु मइन है कक मस्ु श्कलात का मक ु म्मल हल इन शा अल्लाह ज़रूर ननकलेगा। मोहतरम हज़रत हकीम साहब! आप का एक दसत हम ने नेट से िाउनलोि कर के सुना स्िस में

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आप ने सब लोगों को दावत दी है कक वो अबक़री के सलए कुछ सलखें तो मैं तो आप को अपना "दआ ु के मुअज्ज़ाना असरात" पर मुश्तसमल एक वाक़्या सलखती हू​ूँ:- मोहतरम हज़रत हकीम साहब! मैं ने

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माहनामा अबक़री में एक मततबा पिा था "अल्लाहु-स्ट्समद्" (‫ )هللاْالصمد‬के कमालात, तो मैं ने इस को कुछ

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इस तरह आज़्माया। वपछले साल मह ु रतम के महीने में , मैं और मेरी छोटी बहन और भाई (हम इस्ट्लाम

आबाद में रहते हैं) इस्ट्लाम आबाद से फ़तह िंग अपनी शादी शद ु ह बहन के घर गए। दस मुहरतम को हम

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वहां से वापस आ रहे थे िब गाड़ी से हम फ़तह िंग शहर में बस स्ट्टॉप पर पोहंचे तो बस स्ट्टॉप पर बहुत ज़्यादा रश था। दस मुहरतम का ददन था और इतवार था। लोग िो छुदटयाूँ गुज़ार कर अपने कारोबार पर

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या घरों में वापस िा रहे थे और ऐसा रश था कक हर एक समनट में तीन गाडड़यां आती थीं और मस ु ाकफ़र लपक कर बस की तरफ़ िाते थे और कुछ मुसाकफ़र बस में बैिते और बाक़ी आपस में गुथम गुथा हो कर

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पीछे हट िाते थे। अब मैं और मेरी बहन हर दफ़ा ही सोचते कक इस दफ़ा हम आगे बि कर सवार हो

िाएंगे िैसे ही आगे बिते तो आदसमयों और औरतों को आपस में गुथम गुथा होता दे खते तो कफर पीछे

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हट कर खड़ी हो िातीं, मैं मुसल्सल तस्ट्बीह पर दरूद शरीफ़ "सल्लल्लाहु अला मुहम्मद्" ( ‫) صىلْهللاْىلعْحممد‬

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पि रही थी और ददल ही ददल में अल्लाह रब्बल ु ्-इज़्ज़त से दआ ु कर रही थी। हम दोनों बहनें मस ु ल्सल कोसशश के बाविूद भी बस में सवार ना हो सके। इस दफ़ा मैं ने सोचा कक अब हम गाड़ी की तरफ़ नहीं िाएंगे, इन शा अल्लाह गाड़ी ख़ुद हमारी तरफ़ आएगी और मैं ने इक्कीस मततबा "अल्लाहु-स्ट्समद्" ( ْ‫هللا‬ ‫ ) الصمد‬पि कर स्िस तरफ़ से गाड़ी ने आना था उस तरफ़ फूँू क मार दी और ख़ब ू तवज्िह, ध्यान लगा कर

अल्लाह रब्बुल ्-इज़्ज़त से दआ ु की कक हमें फ़ौरी सहूलत से गाड़ी समल िाए। हम तीनों ख़ुदा के कररश्मे

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का इंतज़ार करने लगे और बबल्कुल स्ट्टॉप के एक तरफ़ हो कर खड़े हो गए। मेरी बहन आगे की तरफ़ लपकी तो मैं ने पीछे से उस को पकड़ कर खड़ा कर ददया, उस को बहुत ग़स्ट् ु सा आया कहने लगी कक ख़ुद तो आगे बिती नहीं हो और मझ ु े भी आगे नहीं होने दे ती। अगले ही लम्हे मैं ने दे खा कक एक कररश्मा हुआ, अगली गाड़ी िो भरे हुए बस स्ट्टॉप को छोड़ कर हम तीन मुसाकफ़रों की तरफ़ आ कर रुकी और हम उन

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तमाम मस ु ाकफ़रों से काफ़ी दरू खड़े थे कफर भी वो सब लोग भागते हुए गाड़ी की तरफ़ आए और आ कर कंिेक्टर को पकड़ा मगर गाड़ी के ड्राईवर ने अंदर से दरवाज़ा लॉक कर सलया और गाड़ी ने मज़ीद आगे आ

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कर के हम तीनों को इशारा ककया कक अगले दरवाज़े से गाड़ी में बैि िाओ। मेरी बहन और भाई हैरान रह

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गए कहने लगे कक हम ने तो इस गाड़ी को रुकने का भी इशारा नहीं ककया और उस ने ख़ुद ही हमें गाड़ी में बबिा सलया और बाक़ी मुसाकफ़र दे खते ही रह गए और हम आराम से गाड़ी में सहूलत के साथ बैि गए।

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कफर बाक़ी मुसाकफ़र सवार हुए और हम आराम से घर आ गए। कफर मैं ने अपने बहन भाई को बताया कक

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ख़्वारी उिानी पड़ती।

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हड्िी इंसान की टूटी हो या िान्वर की यक्सां मुफ़ीद:

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ये ससफ़त दआ ु और "अल्लाहु-स्ट्समद्" ( ‫ ) هللاْالصمد‬की बरकत से हुआ वरना िाने वहां हमें और ककतनी

मोहतरम हज़रत हकीम साहब अस्ट्सलामु अलैकुम! मेरे पास नुस्ट्ख़ा है िो हड्िी िोड़ने के सलए लािवाब

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है। हुवल ्-शाफ़ी: चन्द्रस ककसी भी पंसारी से ले कर उस को पहले तवे पर रख कर खल कर लें यानन चन्द्रस

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को िब गरम तवे पर रखें गे उस का फूल सा बनेगा कफर उस को पीस कर बारीक पाउिर बना लें । एक

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चम्मच छोटा चाय वाला सब ु ह ननहार मंह ु मक्खन, कैप्सल ू या कफर हल्वे में रख कर नो से दस ददन इस्ट्तेमाल करें कफर नो से दस ददन का वक़्फ़ा दे कर कफर उतने ही ददन इस्ट्तेमाल करें । हड्िी चाहे ककसी इंसान की टूटी हो या िान्वर की यक्सां मफ़ ु ीद है। िान्वर के सलए समक़्दार बिा दें और उन्हें मक्खन के साथ रोटी में रख कर या कफर दध ू के साथ नाल में रख कर दे सकते हैं और अगर चन्द्रस में हम थोड़ी सी सुख़त कफटककरी समला दें तो और भी फ़ायदा होगा। (फ़-कौसर, ससंध) Page 33 of 68 www.ubqari.org

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तरक़्क़ी के मवाकक़अ: (यहाूँ िो मेरे दोस्ट्त और ररश्तेदार हैं वो सब कह रहे हैं कक तुम ने बहुत नादानी की कक तुम अमरीका छोड़ कर दहंदस्ट् ु तान आ गए।)

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(मौलाना वहीदद्द ु ीन ख़ान)

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एक मस्ु स्ट्लम नोिवान हैं, उन के कुछ ररश्तेदार अमरीका में रहते हैं, वो अमरीका गए, वहां तालीम हाससल

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की। दो साल तक अमरीका मुलाज़्मत भी की। कफर उन्हें ख़्याल आया कक अपने मुल्क में आएं और यहाूँ

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अपनी स्ज़न्दगी की तामीर करें । तो वो दहंदस्ट् ु तान वापस आ गए। उन से मेरी मुलाक़ात हुई तो उन्हों ने कहा कक मैं दहंदस्ट् ु तान वापस आ कर ज़ेहनी इंतशार में मुब्तला हो गया हू​ूँ। यहाूँ िो मेरे दोस्ट्त और

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ररश्तेदार हैं वो सब कह रहे हैं कक तुम ने बहुत नादानी की कक तुम अमरीका छोड़ कर दहंदस्ट् ु तान आ गए।

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वहां तुम को तरक़्क़ी के बड़े बड़े मवाकक़अ समल सकते थे। यहाूँ तो तुम्हारे सलए कोई स्ट्कोप नहीं। मैं ने

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िवाब ददया कक आप के दोस्ट्त और ररश्तेदार सब उल्टी बातें कर रहे हैं। मैं कहता हू​ूँ कक दहंदस्ट् ु तान में

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स्ट्कोप नहीं, इसी सलए तो यहाूँ स्ट्कोप है। दहंदस्ट् ु तान में आप के सलए तरक़्क़ी के वो तमाम मवाकक़अ हैं िो अमरीका में हैं बस्ल्क यहाूँ आप अमरीका से भी ज़्यादा बड़ी तरक़्क़ी कर सकते हैं। असल ये है कक तरक़्क़ी

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का तअल्लक़ ु दो चीज़ों से है। एक ख़ािी मवाकक़अ दस ू रे अंदरूनी इम्कानात। ख़ािी मवाकक़अ से मरु ाद वो

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मवाकक़अ हैं िो आप के विूद के बाहर ख़ािी दन्ु या में पाए िाते हैं। अंदरूनी इम्कानात से मुराद वो

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कफ़तरी इस्ट्तअदाद है िो आप के ज़ेहन और आप के स्िस्ट्म के अंदर अल्लाह तआला ने रख दी है। आम

तौर पर लोगों की ननगाह दन्ु या के ख़ािी मवाकक़अ पर होती है इस सलए वो कह दे ते हैं कक फ़लां मुल्क में मवाकक़अ हैं और फ़लां मुल्क में मवाकक़अ नहीं हैं। मगर तरक़्क़ी के सलए इस से भी ज़्यादा एह्म्यत उन सलादहयतों की है िो कफ़तरत से हर आदमी को समली हुई हैं कोई भी आदमी इन से ख़ाली नहीं है। िब स्ज़न्दगी की मुस्श्कलें आदमी को चैलेंि करती हैं तो उस की छुपी हुई सलादहयतें ज़ादहर होने लगती हैं।

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हालात का झटका उन्हें िगा कर मुतहरतक कर दे ता है। ये बेदारी ककसी इंसान की स्ज़न्दगी में उस की तरक़्क़ी के सलए बहुत ज़्यादा एह्म्यत रखती है। अमरीका में ये स्ट्कोप है कक वहाूँ ख़ािी मवाकक़अ मौिूद हैं। दहंदस्ट् ु तान में ये स्ट्कोप है कक यहाूँ चैलेंि की सरू त हाल पाई िाती है िो आदमी की कफ़तरी सलादहयतों को आख़री हद्द तक िगा दे ती है और पहले स्ट्कोप के मुक़ाब्ले में दस ू रा स्ट्कोप बबला शब ु ा कहीं ज़्यादा

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माहनामा अबक़री नवम्बर 2015 शम ु ारा निंबर 113______________pg16

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क़ीमती है।

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ख़ूबसूरत नहीिं! नेक व सालेह बहू ढूिंडिये, सुकून पाइए:

(माहनामा अबक़री ऐसा ररसाला है स्िसे ख़वातीन की बड़ी तअदाद के इलावा मदत हज़रात भी शौक़ से पिते

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हैं। एक बहन होने के नाते मैं उन तमाम भाइयों से गुज़ाररश करती हू​ूँ कक ननकाह एक पाकीज़ह बंधन और सुन्नत नब्वी ‫ ﷺ‬है। इसे ससफ़त और ससफ़त दन्ु यावी आराइश व ज़ेबाइश ् और हुस्ट्न व दौलत का हुसूल मत

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समझें।)

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(आज्ज़ा बुश्रा ज़हरा, मूछ म्याूँवली)

मोहतरम क़ाररईन! और वो मुअस्ज़्ज़ज़ माएं बहनें (स्िन के बेटे बहुत अच्छी नोकरी करते हैं) आि ये आज्ज़ा आप से एक छोटा सा सवाल करने हास्ज़र हुई है कक आप अपने घर के सलए एक बहू की तलाश कर रही हैं या एक सिे सिाए शो पीस की? स्िस के क़द्द की लम्बाई इतनी हो कक वो ख़द ु को आप से भी बड़ा समझने लगे स्िस की ज़ुल्फ़ों की रं गत ऐसी हो कक इतराती कफरे , स्िस की आूँखें इतनी ख़ूबसूरत हों कक आप

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का बेटा उन में िूब कर अपनी माूँ का चेहरा भूल िाए। ये सच मेरी हर माूँ, बहन को कड़वा ज़रूर लगेगा मगर सच तो होता ही कड़वा है !!! आज्ज़ा ख़ुद इन हालात से गुज़री है कक लड़के की माूँ बहनें िब दे खती थीं तो एक्स रे का गम ु ान होता था। ज़रा सोगचये! क्या उस लड़की की इज़्ज़त नफ़्स नहीं होती स्िस को आप की नज़रें ही ये एह्सास ददला दे ती हैं कक वो ख़ूबसूरत नहीं तो कफर गुनेहगार है!!! क्या ख़ूबसूरती (लड़की की)

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अच्छी स्ज़न्दगी और फ़मा​ांबदातर बीवी और अच्छी बहू होने की गारें टी है? आज्ज़ा का तिब ु ात है कक अक्सर आम सी शक्ल व सूरत वाली बीवी और बहू बहुत फ़मा​ांबदातर साबबत हुई कक पूरे ख़ान्दान की स्ज़न्दगी को

rg

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िन्नत बना गयी और औलाद को नेक सीरत िबकक अक्सर हसीन, अमीर, फ़ैशन एबल लड़की हमेशा

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आईने में ख़ुद को संवारती हुई और रूि कर मेके बेिी हुई और बुराई फैलाती हुई दे खी है। आज्ज़ा के आस

पास ऐसी बहुत सी कहाननयां बबखरी पड़ी हैं स्िन्हें बयान करू​ूँ तो वक़्त और ससफ़हात उन की नज़र हो िाएं।

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अगर इस हक़ीर की ये बातें आप को ककसी शक में िाल रही हैं या आप ग़लत फ़ेह्मी का सशकार हो रही हैं तो आइये ! ज़रा बाक़ी दीनी व दन्ु यावी मसाइल की तरह इस (दे खने में आम मगर परखने में ख़ास) मसले का

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हल भी क़ुरआन व हदीस में से तलाश करते हैं। नबी करीम ‫ ﷺ‬का इशातद है कक "औरतों से उन के हुस्ट्न की बबना पर ननकाह ना करो, हो सकता है कक उन का हुस्ट्न उन्हें तबाही में िाल दे , औरतों से उन के माल्दार होने

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की बबना पर ननकाह ना करो हो सकता है कक उन की दौलत व सवतत उन में सरकशी पैदा कर दे । औरतों से ससफ़त उन की दीन्दारी की विह से शादी करो, अगर कोई दीन्दार औरत ऐसी हो कक उस का कान और नाक

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कटे हुए हों तो वो भी दस ू री औरतों से अफ़्ज़ल है" (बहवाला इस्ट्लामी कफ़क़्क़ा)

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नबी करीम ‫ ﷺ‬ने नेक बीवी को शौहर के सलए ख़ज़ाना क़रार ददया है। इस सलए हज़रत इब्न अब्बास ‫ رضی هللا عنہ‬से ररवायत है कक हुज़ूर नबी करीम ‫ ﷺ‬का इशातद है : "क्या मैं तुम्हें ना बतला दूँ ू कक मदत का

सब से उम्दा ख़ज़ाना क्या है? सालेह और नेक बीवी, ऐसी कक शौहर उसे दे खे तो उस की तबीअत ख़श ु हो, अगर शौहर कहीं िाए तो वो (उस के माल व आबरू) की दहफ़ाज़त करे और शौहर उसे कोई बात कहे तो वो उसे मानने में कोई तामल ु ना करे " (बहवाला इस्ट्लामी कफ़क़्क़ा) इंसान को अश्रफ़-अल ्-मख़्लक़ ू ात का लक़ब Page 36 of 68 www.ubqari.org

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उस की अक़्ल व फ़रासत की विह से ददया गया है अगर वो चाहे तो उसे इस्ट्तेमाल कर के अपनी दन्ु या व आख़ख़रत संवार सकता है। "अक़्ल से बि कर कोई फ़ायदा मन्द दौलत नहीं" (हदीस नब्वी ‫ ﷺ‬क़ुरआन पाक में इशातद ख़द ु ावन्दी है "इन बातों से ससफ़त वही लोग सबक़ लेते हैं िो दाननश मन्द हैं" (बक़रह) अक्सर माएं और ख़ुद मदत हज़रात लड़ककयों को उन की ककसी ना ककसी कमी या ख़ामी की विह से मुस्ट्तरद कर दे ते हैं।

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तो उन से मेरी दरख़्वास्ट्त है कक लड़की की सरू त और स्ट्टे टस के बिाए उस की नेक सीरती और फ़मा​ांबदातरी पर तवज्िह दें और उसे मुस्ट्तरद होने का दख ु ना दे कर उसे अपने घर की इज़्ज़त बनाएं और कफर दे खें आप

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का घर िन्नत और आप की स्ज़न्दगी गुल्ज़ार कैसे बनती है (क्योंकक ये भी आज्ज़ा का तिुबात है)।

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माहनामा अबक़री ऐसा ररसाला है स्िसे ख़वातीन की बड़ी तअदाद के इलावा मदत हज़रात भी शौक़ से पिते हैं। एक बहन होने के नाते मैं उन तमाम भाइयों से गुज़ाररश करती हू​ूँ कक ननकाह एक पाकीज़ह बंधन और

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सुन्नत नब्वी है। इसे ससफ़त और ससफ़त दन्ु यावी आराइश व ज़ेबाइश ् और हुस्ट्न व दौलत का हुसूल मत समझें।

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दित बाला अहादीस तवज्िह से पि कर सबक़ हाससल करें और अमल कर के दन्ु या व आख़ख़रत में ख़श ु ी,

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आसूदगी और सुरख़ुरूही हाससल करें । मोहतरम क़ाररईन! कुछ अच्छे काम ऐसे होते हैं िो अच्छे से अच्छे

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इंसान को भी मस्ु श्कल लगते हैं और हर अच्छा इंसान सोचता है कक मझ ु से ये ना होगा चलो कोई और कर लेगा। अच्छाई की इब्तदा हमेशा मुस्श्कल होती है मगर इंतहा सुकून व इ्मीनान की शक्ल अख़्यार कर

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लेती है। अगर मेरा कोई अच्छा भाई इस अच्छाई की इब्तदा करे और ककसी नेक सीरत, ग़रीब दीन्दार, ख़ुश

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अख़्लाक़ मगर आम सूरत लड़की की तलाश करना चाहे तो उस की अच्छी सोच को सब अिीब लॉस्िक

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समझ कर ऊूँगली उिाएंगे और बहुत कम लोग साथ दें गे मगर क्या यही ऊूँगली उिाने वाले लोग कल को

आप के साथ अंिाम में शरीक होंगे ? िब एक दीन से ना वाकक़फ़ फ़ैशन एबल, मग़रूर लड़की आप के बच्चों की परवररश इस्ट्लामी उसूलों पर ना कर सके, आप की स्ज़न्दगी भी अिीरन कर दे और आप की औलाद को आख़ख़रत में ननिात का ज़रीआ बनाने की बिाए दन्ु या व आख़ख़रत में परे शानी और रुस्ट्वाई का सामान बना दे ? हदीस नब्वी ‫ ﷺ‬है "तुम में से सब से अच्छे वो लोग हैं िो अपनी बीववयों के हक़ में सब से अच्छे हों"

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क़ुरआन पाक में अल्लाह अज़्ज़ ् व िल ् ने अपने समझ लेने वाले और ग़ौर करने वाले बन्दों के सलए वाज़ेह आयात बयान फ़मात दी हैं स्िन में से एक बहुत सबक़ आमूज़ आयत दित ज़ेल है िो मेरे मुसल्मान भाइयों की स्ज़न्दगी संवार दे गी और वो इस पर अमल करते हुए िो उन के रब ने उन के नसीब में सलख ददया है उस पर क़नाअत कर लें और अगर उन की शरीक हयात कम सूरत या ककसी ख़ामी व कमी में मुब्तला है तो उसे

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अपने रब की रज़ा ख़श्ु नोदी और अपनी आख़ख़रत में ननिात का ज़रीआ व वसीला समझ लें । आयत मब ु ारका दित है : "हो सकता है कक एक चीज़ तुम्हें ना लवार हो और वही तुम्हारे सलए बेह्तर हो और हो सकता है कक

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एक चीज़ तुम्हें पसंद हो और वही तुम्हारे सलए बुरी हो। अल्लाह िानता है तुम नहीं िानते" याद रख़खये! िब

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रब राज़ी हो िाता है तो मोसमन की तलब उस के ससवा कुछ रहती ही नहीं! और रब राज़ी तब होता है िब उस के बन्दों के हुक़ूक़ पूरी स्ज़म्मा दारी से अदा ककये िाएं। हर ररश्ते का हक़, फ़ज़त समझ कर अदा करें और हर

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और बन्दों को ख़ुश अख़्लाक़ी से ख़ुश रखें और ख़ुद भी ख़श ु रहें । नींद में हज़ारों नेककयाूँ कमाएं:

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फ़ज़त को अदा करना अपना मामूल बना लें । स्ज़न्दगी आसान और आसूदह हो िाएगी। रब को इबादत से

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साइंस कहती है कक एक तंदरु ु स्ट्त इंसान नींद के दौरान बीस से पच्चीस सांस एक समनट में लेता है तो इस तरह समसाल के तौर पर अगर एक इंसान सोते वक़्त उन्नीस सांस एक समनट में ले तो वो एक घंटे में

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(१९×६०) यानन (११४०) सांस लेगा। अब अगर वो ददन में आि घंटे सोए तो (११४०×८) यानन ९१२० सांस

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लेगा। हमारे प्यारे नबी करीम ‫ ﷺ‬इशातद फ़मातते हैं: "िब कोई सोने से पहले "बबस्स्ट्मल्लादह-र्-रह्मानन-र्-

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‫ا‬ ‫ِ ا‬ ٰ ْ ‫الر‬ ‫ْح ِن‬ ْ‫ ) ِب ْس ِمْهللا‬पि लेता है तो अल्लाह फ़ररश्तों को हुक्म फ़मातता है कक उस की हर सांस पर रहीसम" ( ْ‫ْالرح ِْی ِم‬

नेकी सलखो" (ककताब: तुह्फ़त-अल ्-अमराद, ससफ़हा ८२) दोस्ट्तो! अगर हम सोने से पहले चाहे ददन में सोएं या रात को या सफ़र में िब भी सोएं तो बबस्स्ट्मल्लाह मक ु म्मल पि लें तो हज़ारों नेककयाूँ कमा सकते हैं। (सअद अब्दल् ु लाह, चक्वाल)

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माहनामा अबक़री नवम्बर 2015 शम ु ारा निंबर 113________________pg19

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अमराज़ चश्म से मायस ू शहद को आज़्माएं!

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(आूँख में ददत हो, तक्लीफ़ हो, आूँखों की वबा हो, आशोब चश्म या कोई भी ख़तरनाक वबा, नज़र कम्ज़ोर

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हो, ऐनक के शीशे मोटे और बि गए हों, आप मायूस हो गए हैं और आप समझ्ते हैं कक इस का हल ससफ़त

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सारी स्ज़न्दगी माज़ूरी ही है। हगगतज़ नहीं! आप मायूस ना हों!)

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[क़ाररईन! आप के सलए क़ीमती मोती चुन कर लाता हू​ूँ, और छुपाता नहीं, आप भी सख़ी बनें और ज़रूर

सलखें (एडिटर हकीम मह ु म्मद ताररक़ महमद ू मज्ज़ब ू ी चग़ ु ताई)

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सलख रहा हू​ूँ।

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ये बहुत परु ानी बात है लेककन मैं अपनी याद्दाश्तों को मक ु म्मल समोते हुए ननहायत एतमाद से ये बात

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मेरे नाना ‫ رحمۃ ہلل عليہ‬अपने पेशे के बा कमाल और बेसमसाल मुआसलि ् थे। इंसानों के नहीं िान्वरों में सब

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से आला और बेह्तरीन िान्वर यानन घोड़ों के थे। एक बार मैं ने अिीब बात दे खी, उन के पास एक छोटी

सी बोतल थी और हाथ में सुमात िालने वाली ससरादह और बोतल में िालते और घोड़े की आूँख में िालते िैसे घोड़े को सुमात िाल रहे हैं। मैं क़रीब िा कर खड़ा हो गया, उन की स्ज़न्दगी में अनोखे अनोखे कारनामे मुझे अक्सर दे खने को समलते और वो आि मेरे एह्सास में इतने उतर चुके हैं कक वो कारनामे वाक़ई

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कारनामे थे िो कमाल और तिुबातत की हद्द से आगे ननकले हुए थे अब भी वो मैं ने कारनामे स्िस को बताए बहुत हैरत अंगेज़ तिुबात, मुशादहदा और इस का फ़ायदा हुआ। मुझे पता चला स्िस घोड़े की आूँख ख़राब होती है, उस की आूँख में कोई चीज़ चुभ िाए, िाला पड़ िाए, नज़र कम आता हो, आूँखों से पानी बेहता हो या कोई मछर, कंकर इतना पड़े कक आूँख में ख़राश पैदा हो

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िाए तो मेरे नाना घोड़े की आूँखों में शहद िालते। एक दफ़ा फ़मातने लगे: घोड़ा और बेटा ये बहुत नाज़ुक

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अंदाज़ से पल्ते हैं। बेटी मरते मरते बच िाती है और बेटे के सलए महनत और मश ु क़्क़त ज़्यादा है और बेटे

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से वफ़ा कफर मुक़द्दर में है और कफर फ़मातने लगे कक मैं ने शहद को इंसान की आूँख और घोड़े की आूँख में

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बहुत आज़्माया है। मुझे ४७ साल हो गए हैं शहद को आज़्माते आज़्माते िब भी इंसानी आूँख मुताससर

होती है मैं ने फ़ौरन शहद को इस्ट्तेमाल ककया और शहद ने मुझे हमेशा लब्बैक कहा। ये बात आि भी मेरे

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कानों में स्ज़ंदा और ताबबन्दा गूँि ू रही है। मेरे नाना ‫ رحمۃ ہلل عليہ‬१९७३ में फ़ॉत हुए। ये बात ७३ से कुछ

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बहुत ही पहले की थी। उस वक़्त से ले कर आि तक ये बात याद भी है और इस के बार बार तिुबे भी हुए

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हैं। क़ाररईन! शहद मैं अल्लाह िल्ल शानुहू ने सशफ़ा रखी है िो चीज़ सशफ़ा है उस का पीना भी सशफ़ा, उस

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का लगाना भी सशफ़ा। ये बात तो आप के भी तिब ु े में आई होगी। परु ाने से परु ाना ज़ख़्म ककसी दवा से कभी िीक ना होता हो उस को सुबह व शाम शहद की पट्टी की िाए तो ज़ख़्म ख़राब नहीं होता भर भी

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िाता है ह्ता कक ननशान नहीं छोड़ता। ककतने ऐसे िो झल ु स गए, िल गए उन्हें शहद बतौर मरहम

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इस्ट्तेमाल करवाया, शहद से उन को बहुत तिुबातत और फ़ायदे नसीब हुए और उन के ज़ख़्म ख़्म हुए

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ह्ता कक ननशान तक ख़्म हो गए। आप ससफ़त सोते हुए एक ससलाई दाईं आूँख में और एक बाईं आूँख में

हल्की सी शहद बस लगा कर सो िाएं, इब्तदाई ददनों में आप को बहुत मामूली सी िलन महसूस होगी लेककन इस से िो आूँख से पानी ननकलेगा आंसुओं की शक्ल में वो आप की आूँख को धो कर रख दे गा। ककसी ने हज़रत इमाम िाफ़र साददक़ ‫ رحمتہ ہلل عليہ‬िो अह्ले बैत ‫ رضوان هللا عليہم اجمعين‬के शेहनशाह थे से पूछा हज़रत आूँख से बहने वाला पानी यानन आंसू नम्कीन क्यू​ूँ होता है ? वो बहुत बड़े हकीम और दाना

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थे फ़मातने लगे असल में आूँख दरअसल चबी से बनी हुई है और अल्लाह ने चबी की दहफ़ाज़त के सलए नमक रख ददया है अगर नमक ना होता आूँख और इदत गगदत सारा ननज़ाम पानी बह कर गल कर ख़्म हो िाता है। क़ाररईन! चबी की दहफ़ाज़त का दस ू रा इंतेज़ाम शहद भी तो है ना! नमक अल्लाह ने आूँख के अंदर कफ़तरी रख ददया है और शहद आूँख के अंदर हर रोज़ सोते हुए ससलाई की शक्ल में लगानी पड़ेगी।

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मेरे पास एक नहीं बेशम ु ार केस ऐसे आए ख़द ु मैं रोज़ाना सोते हुए लगाने की कोसशश करता हू​ूँ अपने बच्चों और बीवी की आूँखों में भी शहद लगाता हू​ूँ। अब तो मेरे बच्चे बड़े शौक़ से शहद का बततन ला कर मेरे

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सामने रख दे ते हैं और ससलाई मेरे हाथ में पकड़ा दे ते हैं कुछ दे र के सलए तो आूँखें बन्द ककये बेिे रहते हैं

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लेककन उस के बाद उन की फ़्रेश और चमक्दार और माशा अल्लाह कुशादह आूँखें बता रही होती हैं शहद ने आूँखों को धो ददया बस्ल्क मोिूदह कफ़ज़ाओं और हवाओं में फैले ताबकारी, कीमयावी और केसमकल के

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असरात इस का हल ससफ़त अब शहद ही है िो मरहम की शक्ल में आूँख में लग िाता है। अब आूँख में कोई भी पानी की शक्ल में चीज़ िालें गे वो बहुत थोड़ी रह कर बाक़ी बह िाएगी लेककन ये मरहम की शक्ल में

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िो चीज़ आूँख में िालें गे वो आूँख में बहुत दे र अपना सशफ़ाई असर घोलती रहे गी। आूँख में ददत हो,

तक्लीफ़ हो, आूँखों की वबा हो, आशोब चश्म या कोई भी ख़तरनाक वबा, नज़र कम्ज़ोर हो, ऐनक के शीशे

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मोटे और बि गए हों, आप मायस ू हो गए हैं और आप समझ्ते हैं कक इस का हल ससफ़त सारी स्ज़न्दगी माज़ूरी ही है। हगगतज़ नहीं! आप। मायस ू ना हों! बस्ल्क आप फ़ौरन शहद की तरफ़ मुतवज्िह हों अगर एक

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सहूलत आप को मुयस्ट्सर हो शहद का छ्ता ककसी दरख़्त से उतरा हुआ बग़ैर ननचोड़ा हुआ वो आप िब्बे

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में िाल कर कफ़्रि में रख लें । बग़ैर कफ़्रि के भी रख सकते हैं और ससलाई इस में चुभो कर आूँखों में िालें ।

इस का फ़ायदा और कमाल हैरत अंगेज़ तौर पर ज़्यादा है बबल्फ़ज़त ये ना भी समले तो कोई सा भी शहद ख़ासलस आप बस महफ़ूज़ रखें और रोज़ाना आूँखों में लगाएं। एक बार ककसी दस ू रे मल् ु क दौराने सफ़र एक साउथ अफ़्रीक़ा का फ़दत समला, मैं बेिा हुआ था मेरे पास मेरे एक िान्ने वाले उसे लाए, उस शख़्स की उम्र कोई साि के क़रीब होगी, उस के पास रुमाल था और हर वक़्त वो आूँखों का रे प करता मालम ू हुआ, उस

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की आूँखों से पानी बह रहा था और कई सालों से ये पानी रुकता नहीं, कई बार सितरी करा चुका लेककन आूँखों का पानी नहीं रुकता अब तो नज़र बहुत कम हो गयी है क़रीब से बहुत कोसशश कर के वो दे खता है तो उसे नज़र आता है। मैं ने उसे ताकीद की कक बस सब छोड़ दें और वेसे भी वो सब चीज़ों से थक चक ु ा था और ससफ़त और ससफ़त शहद इस्ट्तेमाल करें । और शहद रोज़ाना एक ससलाई सोते वक़्त मुकम्मल भर कर

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क्योंकक उस की आूँखों का मसला ज़्यादा था इस सलए मैं ने इस को भर कर सलखा िो साहब मझ ु े समलवाने लाए कुछ माह के बाद उन का फ़ॉन आया कक मेरा उस शख़्स से राब्ता है वो आधे से ज़्यादा बेह्तर और

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सेहतमंद हो गया है और उस को बहुत ज़्यादा, बहुत ज़्यादा फ़ायदा हुआ है और बहुत ज़्यादा नफ़ा हुआ है

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उस की आूँखों का मसला बहुत बेह्तर बस्ल्क बहुत ज़्यादा बेह्तर हो गया है।

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लौ ब्लि प्रेशर का काम्याब इलाि:

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मोहतरम हज़रत हकीम साहब अस्ट्सलामु अलैकुम! मैं आप के ररसाला और बक् ू मस्ट् ु तफ़ैज़ ु स से ख़ब ू ख़ब

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होती हू​ूँ। कुतब में ख़ास तौर पर "मुझे सशफ़ा कैसे समली?" िो मैं ने दफ़्तर माहनामा अबक़री से ख़रीदी थी। उस ने मेरा सब से बड़ा मसला हल कर ददया। मझ ु े लौ ब्लि प्रेशर का मज़त था, स्िस ने मेरा िीना

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अिीरन कर ददया था। इस में से दे ख कर एक नुस्ट्ख़ा इस्ट्तेमाल ककया तो अब मैं सो फ़ीसद तंदरु ु स्ट्त हू​ूँ। नुस्ट्ख़ा ये है:- एक कप गरम पानी में एक लीमों का रस और दो चाय के चम्मच शहद समला कर एक

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अट्टक)

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चुटकी वपसी हुई लौंग के साथ घोंट घोंट पीना है। बे समसाल है और मेरा आज़मूदह है। (अस्ट्फ़ा सफ़ीरा,

माहनामा अबक़री नवम्बर 2015 शम ु ारा निंबर 113_________________pg24

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मन ् की हर मरु ाद पाने का आज़मद ू ह वज़ीफ़ा: (ख़ाला ने एक वज़ीफ़ा बताया और कहा इन शा अल्लाह ये मुिरतब वज़ीफ़ा तुम इसे आज़्माओ, तुम समयां बीवी नतब्बी सलहाज़ से तंदरु ु स्ट्त हो तो क़ुदरत ज़रूर इस वज़ीफ़े से मेहरबान होगी। हम ने घर िा कर वज़ीफ़ा शरू ु कर ददया। इक्तालीस ददन का वज़ीफ़ा था, अभी पच्चीस ददन ही गुज़रे थे, ख़ुदावन्द करीम

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(मुहम्मद फ़ारान अशतद भट्टी, मुज़फ़्फ़र गि)

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की मेहरबानी हो गई।)

एक शादी की तक़रीब में एक मुअस्ज़्ज़ज़ सी ख़ातून तीन माह की बच्ची को दध ू वपला रही थी, दस ू री

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ख़ातन ू री वो खड़ी ू ने पछ ू ा बहन आप के ककतने बच्चे हैं? वो बोली दो बेदटयां हैं, एक तो यही है गोद में , दस

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है सहे सलयों के साथ गुलाबी सूट वाली। दस ू री ख़ातून ने पूछा बच्चों के दरम्यान इतना वक़्फ़ा एक माशा

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अल्लाह अिारह उन्नीस साल की है और एक ससफ़त तीन माह की है। क्या विह है ? बहन विह क्या होनी

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है ख़ुदा की रज़ा, मेरी पहली बेटी शादी के िेि साल बाद पैदा हुई। इस के बाद दो तीन साल तो मैं ने भी परवाह नहीं की कक अल्लाह तआला दे गा लेककन िब बड़ी बच्ची पांच साल की हो गयी कफर तो मैं ने भी

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इलाि शरू ु कर ददया, कई िॉक्टरों को चेक करवाया, हकीमों का इलाि ककया। मन्नतें मुरादें भी मानी लेककन नतीिा वही ढाक के तीन पात। कहीं से भी ददल की कली ना ख़खली। बड़ी बेटी की शादी कर दी, घर

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में समयां बीवी अकेले रह गए, अब ददल तो बहुत चाहता था कक एक ददल बहलाने का ख़खलौना हो। हम

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दोनों समयां बीवी नामतल थे एक बच्ची इस चीज़ का सबत ू थी, हम अभी बूिे भी नहीं हुए थे कक बच्चा पैदा

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कर के शसमांदा होते। एक ददन फ़ैसल आबाद से बज़रीआ रे न अपने मैके मज़ ु फ़्फ़र गि आ रही थी। रे न में एक बुज़ुगत ख़ातून बैिी थीं, लम्बा सफ़र था, गप शप शरू ु हो गयी, ख़ाला ने बच्चों के मुतअस्ल्लक़ पूछा, (बि ू ी ख़ातन ू स्िन को मैं ने ख़ाला कहना शरू ु कर ददया था) ख़ाला को उदासी से बताया कक एक बेटी थी, ब्याह ददया, अब हम हैं और हमारी तन्हाई। ख़ाला ने एक वज़ीफ़ा बताया और कहा इन शा अल्लाह ये मुिरतब वज़ीफ़ा तुम इसे आज़्माओ, तुम समयां बीवी नतब्बी सलहाज़ से तंदरु ु स्ट्त हो तो क़ुदरत ज़रूर इस Page 43 of 68 www.ubqari.org

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वज़ीफ़े से मेहरबान होगी। हम ने घर िा कर वज़ीफ़ा शुरू कर ददया। इक्तालीस ददन का वज़ीफ़ा था, अभी पच्चीस ददन ही गुज़रे थे, ख़ुदावन्द करीम की मेहरबानी हो गयी, हमारी ख़ुशी का कोई दिकाना ना रहा, अब ये बच्ची मेरी गोद में है। वज़ीफ़ा दित ज़ेल है :- नए चाूँद की पहली िम ु ेरात स्िसे नो चंदी िम ु ेरात कहते हैं से वज़ीफ़ा सुबह फ़ज्र से ही शरू ु कर दें । वज़ीफ़ा ये है ख़ातून िब भी पानी वपए उस पर सात बार

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दरूद इब्राहीमी पिे । पानी बोतल में नहीं रखना बस्ल्क स्िस वक़्त भी पानी पीना है उसी वक़्त उस पर दरूद इब्राहीमी पिना है। पूरे इक्तालीस ददन। शतत ये है कक इस दौरान दरूद इब्राहीमी के बग़ैर एक बू​ूँद भी

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नहीं पीनी। अगर भूल कर बग़ैर दरूद इब्राहीमी के पानी पी सलया है तो वज़ीफ़ा ख़्म। दब ु ारह शरू ु करें । वो

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बहन कहने लगीं: मैं तो कुछ ज़्यादा ही वहमी हो गयी थी हर पीने वाली चीज़ यानन बोतल, चाय, शबतत हर चीज़ पर दरूद इब्राहीमी पि कर पीती रही। वेसे तो ये वज़ीफ़ा ससफ़त औरत के सलए है लेककन अगर साथ

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ख़ावन्द, अफ़्सर, ज़ासलम को मेहरबान करने का वज़ीफ़ा:

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फूँू क मार दें इन शा अल्लाह मन ् की मुराद समल िाएगी।

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मदत भी शासमल हो िाए तो सोने पर सुहागा है। बस स्ितनी दफ़ा पानी पीएं उस पर दरूद इब्राहीमी पि कर

ज़बर को ज़ेर कर। ज़ेर को पेश कर।

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या अल्लाह रहम कर। रहम का सहम कर। ज़ासलम को ज़ेर कर। दश्ु मन को दरू कर। प्थर को पानी कर।

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घरे लू मसाइल का इिंसाइक्लो पेडिया

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ररश्ते के हुसूल का अन्मोल वज़ीफ़ा:

‫ا‬

ُ

‫ا‬

‫ا‬ ‫ )اعُ ْوذ ِِْبهللِ ِ ا‬१०० मततबा। ْ ِ ‫ِْمْالش ْی ٰط ِنْالر ِج ْی‬ बाद नमाज़ फ़ज्र "अऊज़ु बबल्लादह समन-श्शैतानन-र्-रिीसम" (‫م‬

अस्ट्तग़फ़ार १०० मततबा "अस्ट्तस्ग़्फ़रुल्लाह-ल्लज़ी ला इलाह इल्ला हुव-ल ्-हय्यु-ल ्-क़य्यूमु व अतूबु इलैदह" ‫ا‬

ُ‫ا‬

‫ْا‬

ْ

‫ا‬

‫ا‬

‫ا‬

ْ‫ا ا‬

‫)ا ْستغف ُر ا‬। कफर परे ददन में लयारह सो मततबा दरूद ख़ख़ज़्रा "सल्लल्लाह अला (‫هللاْال ِذ ْیَْلْا ِٰل اہْاَِل ُْھ اواحلا ُیْالق ُی ْو ُم اْوا ُْت ُبْاِل ْی ِْہ‬ ِ ू ु ٓ‫ُ ا ا‬

‫ا‬

ٰ ‫ْهللا ا‬ ُ ‫اصّل‬ हबीबबही सस्य्यददना मुहम्मददं-व्व आसलही व सस्ह्बही व बारक व सल्लम" (ْ ٖ‫ْىلع اْح ِب ْی ِبہٖ اْس ِی ِد اَنْحمام ٍدْوالِہ‬

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‫ا ا ا ا ا‬ ُ ‫ا‬ ْ ‫ )و‬बाद नमाज़ मग़ररब सज्दे की हालत में १०० मततबा "या लतीफ़ु" (‫ف‬ ‫َص ِبہٖ ْو اِب ار‬ ْ‫ک اْو اسل ام‬ ْ ‫ ) اَیل ِط ْی‬और कफर ददल

की गेहराई से अल्लाह अज़्ज़ व िल ् की बारगाह में दआ ु करे । इन शा अल्लाह ४१ ददन में ररश्ता तय हो िाएगा। नमाज़ की पाबन्दी शतत है। ख़श्ु गवार नींद के सलए आज़मद ू ह फ़ामल ूत ा:

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१- मग़ज़ बादाम दस अदद, मग़ज़ कद्दू शीरीं, मग़ज़ तरबूज़, तुख़्म ख़श्ख़ाश, मग़ज़ ख़्यारीन दस दस

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ग्राम, इलाइची ख़ोदत पांच ग्राम। आधा ककलो दध ू में घोट कर छान कर मीिा समला कर ननहार मुंह पी लें ।

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२- लािोरद मग़सोल ५० ग्राम, तबाशीर (अस्ट्ली बांस वाला) २० ग्राम, इलाइची ख़ोदत १० ग्राम। सफ़ूफ़ बना कर ५०० समली ग्राम वाला कैप्सूल रोज़ाना बवक़्त असर खाएं। ३- ब्रह्मी ५० ग्राम, असगंध २० ग्राम,

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इलाइची ख़ोदत १० ग्राम, सफ़ूफ़ बना कर ५०० समली ग्राम वाला कैप्सल ू भर लें एक कैप्सल ू सब ु ह व शाम। ४- संदल सफ़ेद अस्ट्ली २० ग्राम, कश्नीज़ २० ग्राम, छोटी चन्दन २० ग्राम तमाम उदय ू ात का सफ़ूफ़

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तय्यार कर के २५० से ५०० समली ग्राम कैप्सल ू भर कर रात सोते वक़्त इस्ट्तेमाल करें । ५- बादाम रोग़न अस्ट्ली ५० समली लीटर, रोग़न कद्दू ५० समली लीटर, रोग़न ख़श्ख़ाश १०० समली लीटर सब को समला लें ।

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नुस्ट्ख़ा बराए कक्रे या आूँख के दाने:

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रात को सोते वक़्त सर पर और पाऊूँ के तल्वों पर लगाएं।

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अक्सीर सुमात ख़ुद तय्यार करें । तरीक़ा: दो ककलो आम्ले ले कर उन के अंदर एक सेर पानी िाल कर उन्हें

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उबाल लें । िब पानी चौथाई दहस्ट्सा रह िाए तो अम्लों का गद ू ा और घट ु सलयां ननकाल कर फैंक दें । पानी को ख़ुश्क करें ह्ता कक वो रुब्ब बन िाए। अब इस रुब्ब को ख़ुश्क कर के कपड़ छान कर लें । रात को एक एक ससलाई आूँखों में िाल कर सो िाएं। (बहवाला: माहनामा अबक़री स्िल्द नंबर ६)

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||अबक़री की साबबक़ा फ़ाइलों से मोती चुनें: घरे लू ना चाकक़यों, ररज़्क़ की तंगी, परे शाननयों से ननिात के सलए और सददयों से छुपे सदरी राज़ों और नतब्बी मालूमात से मुकम्मल तौर पर इस्ट्तेफ़ादह के सलए अबक़री के गुज़श्ता सालों के तमाम ररसाला

स्िस्ट्मानी, नफ़्स्ट्याती मुआसलि ् साबबत होंगे।

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क़ीमत फ़ी स्िल्द ५००/- रूपए इलावा िाक ख़चत||

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िात मस्िल्द दीदा ज़ेब फ़ाइल की सरू त में दस्ट्तयाब हैं। ये ररसाला िात आप की नस्ट्लों के सलए रूहानी,

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शदीद तरीन खािंसी का काम्याब तरीन शबसत:

मोहतरम हज़रत हकीम साहब अस्ट्सलामु अलैकुम! अल्लाह तआला से दआ ु गो हू​ूँ कक आप इस तरह ही

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दख ु ी इंसाननयत की मदद करते रहें । मैं ने आप को २०१३ में ख़त सलखा था आप ने चालीस दसत सुनने को

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कहा था िो मैं सुन रहा हू​ूँ, मुझे इन से बहुत फ़ायदा हुआ। मैं एक खांसी के शबतत का नुस्ट्ख़ा भेि रहा हू​ूँ िो

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भी इस को इस्ट्तेमाल करे गा बहुत फ़ायदा होगा। हुवल ्-शाफ़ी: बनफ़्शा एक तोला, ख़्मी ख़बाज़ी एक

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तोला, तख़् ु म कसस ू एक तोला, तख़् ु म बांसा एक तोला, नीलोफ़र एक तोला, फूल गल ु ाब एक तोला, कूज़ह समस्री एक तोला, उनाब दस दाने, समल्िी एक तोला, लसोडड़यां एक तोला। इन सब को रात को दे गची में

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एक ककलो पानी िाल कर सभगो दें , सब ु ह चल् ू हे पर रख दें िब पानी ख़श्ु क हो कर आधा रह िाए तो नीचे

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उतार कर िं िा करें और ददन में दो दफ़ा खाने वाला चम्मच पीएं। (मुहम्मद वक़ास, लाहौर)

माहनामा अबक़री नवम्बर 2015 शम ु ारा निंबर 113_______________pg 26

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दोस्त जजन्नी और उस की सह ु ानी यादें (मैं बड़ा हैरान था ये सब क्या है। चन्द ददनों के बाद मैं रात को सोया हुआ था कक कमरे में ख़ूब रौशनी हुई और ननहायत ख़ब ू सरू त परी आई। कमरे में हर तरफ़ ख़श्ु बू फेल गयी। उस परी ने मझ ु से कहा कक उस चड़ ु ेल से तुम्हारी िान मैं ने छुड़वाई है अब तुम सुकून से इस घर में रह सकते हो।)

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(पोशीदह)

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मोहतरम हज़रत हकीम साहब अस्ट्सलामु अलैकुम! उम्मीद है समज़ाि बख़ैर होंगे चन्द माह क़ब्ल ककसी दोस्ट्त के हाथ में माहनामा अबक़री दे खा तो बे साख़्ता ख़्याल पैदा हुआ कक ये भी ऐसे ही आम सा ररसाला है

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मगर िब मैं ने सरसरी लापरवाही से इस का सवतरक़ खोला तो सवतरक़ पर मौलाना मह ु म्मद कलीम

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ससद्दीक़ी ‫ دامت برکاتہم‬और उस के एडिटर के बॉक्स में शैख़-उल ्-वज़ाइफ़् हज़रत हकीम मुहम्मद ताररक़

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महमद ू मज्ज़ब ू ी चग़ ु ताई ‫دامت برکاتہم‬का नाम दे खा तो तसल्ली हो गयी कक ये तो हमारे बड़ों के पवतरदह हैं

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और लोगों की इस्ट्लाह के िज़्बे से सरशार हैं। अल्लाह करीम आप की सलादहयतों में मज़ीद िला बख़्शे और बानतल के हम्लों से बचाए। आमीन! अब मैं मुस्ट्तक़ल माहनामा अबक़री का क़ारी हू​ूँ और होकर को कह कर

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ररसाला घर लगवाया हुआ है। इस तहरीर से मक़्सूद ये है कक मैं भी कुछ मवाद माहनामा अबक़री के क़ाररईन की ख़ख़दमत में भेिना चाहता हू​ूँ। ख़ास तौर पर "कोहक़ाफ़ से आई परी से ख़ुश्गवार मुलाक़ातें " की

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कहानी पि कर। वाक़्या कुछ यू​ूँ है कक दौरान मुलाज़्मत मेरी तश्कील बालाकोट् हुई, मुझे वहां एक फ़्लैट

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समला स्िस में मैं सुबह को िाता और शाम को आ िाता। तीन चार ददनों के बाद मुझे महसूस हुआ कक यहाूँ

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मेरे इलावा भी कोई अनदे खी मख़्लक़ ू रहती है। कभी बततन पड़ा पड़ा ख़द ु ब ख़द ु गगर िाता, कभी ख़खड़की ख़द ु ब ख़ुद खुलती और बन्द हो िाती। एक ददन मैं ने दहम्मत कर के उस से बात की तो उसी रात मेरे ख़्वाब में एक ननहायत बद्द सरू त चड़ ै आई और उस ने मझ ु ल ु े धम्की दी कक फ़ौरन इस घर को छोड़ दो। चन्द हफ़्ते उस चुड़ल ै ने मुझे ख़ूब तंग ककया, मगर कफर हैरान कुन तौर पर उस कमरे में िैसे सुकून सा आ गया। ना बततन गगरता, ना मेरे ख़्वाब में कोई चुड़ल ै आती। ना मुझे कोई धम्की दे ता। मैं बड़ा हैरान था ये सब क्या है? चन्द Page 47 of 68 www.ubqari.org

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ददनों के बाद मैं रात को सोया हुआ था कक कमरे में ख़ूब रौशनी हुई और ननहायत ख़ूबसूरत स्िन्ननी आई। कमरे में हर तरफ़ ख़ुश्बू फेल गयी। उस स्िन्ननी ने मुझ से कहा कक उस चुड़ल ै से तुम्हारी िान मैं ने छुड़वाई है अब तम ु सक ु ू न से इस घर में रह सकते हो। कफर उस स्िन्ननी से मेरी मल ु ाक़ातें शरू ु हो गईं और वो हर रोज़ मेरे ख़्वाब में आती। मुझे स्िन्नात की बातें बताती। मैं बड़ा ख़ुश था। मेरे ककसी अज़ीज़, दोस्ट्त ररश्तेदार

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को कोई मसला होता मैं उस से हल करवा लेता। बहुत सी बीमाररयों परे शाननयों और िाद ू टोने का तोड़ उस ने मुझे चन्द ददनों में कर के दे ददया। इस दौरान स्िन्नात के हवाले से मेरी मालूमात में बहुत इज़ाफ़ा हुआ।

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उस स्िन्ननी से मेरा तअल्लुक़ तक़रीबन तीन साल तक रहा। सारी सारी रात वो मेरे पास रहती सुबह िब

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मेरी आूँख खुलती तो कमरा ख़ुश्बू से भरा होता। मेरी नींद पूरी ना होती थी और ददन ब ददन मेरी सेहत भी ख़राब होती िा रही थी। कफर मुझे एक अल्लाह वाले समले, उन्हें मैं ने अपना स्िन्ननी से तअल्लुक़ के

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मुतअस्ल्लक़ सब कुछ सच सच बता ददया। कफर उन्हों ने मुझे वो िगा छोड़ने को कहा और कहा फ़ौरी तौर

पर उस से अलैदहदह हो िाओ और मैं अमल करता हू​ूँ एक तो तुम्हारे पास कभी नहीं आएगी और अगर कभी

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आ भी गयी तो उसे अपने पास आने से मना कर दे ना। वो ददन और आि का ददन वो स्िन्ननी दब ु ारह मेरे

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पास कभी नहीं आई। मोहतरम हकीम साहब! मेरा नाम हगगतज़ शायअ ना कीस्ियेगा। चमक्ती, दमक्ती और रौशनी जैसी रोशन जजल्द पाएिं:

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मोहतरम हज़रत हकीम साहब अस्ट्सलामु अलैकुम! अल्लाह करीम आप को, अबक़री की पूरी टीम को

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स्ज़न्दगी, तंदरु ु स्ट्ती और दीन की नेअमत से माला माल करे । आमीन सुम्म आमीन। मेरा एक आज़मूदह

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टोटका है िो मैं क़ाररईन अबक़री की ख़ख़दमत में पेश कर रही हू​ूँ स्िन ख़वातीन का रं ग मांद रहता है, ये टोटका मेरी नानी िान बनाती थीं, बच्पन ही से हमें मल्ती थीं। आप यक़ीन करें ककसी भी ब्यूटी पॉलतर की आि तक ज़रूरत नहीं पड़ी। हुवल ्-शाफ़ी: एक चम्मच मलाई, दो चम्मच सख ू ा आटा, एक लीमों, इन चीज़ों में थोड़ा सा दध ू िाल कर समक्सचर बनाएं और िब भी

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फ़ाररग़ हों थोड़ा सा हाथ पर रखें और चेहरे , बाज़ू, पाऊूँ पर मल्ती िाएं और हल्का ख़ुश्क होने पर रगड़ दें । गन्दगी, मेल सारी ननकल िाएगी। बाद में ककसी साबुन से धोने की भी ज़रूरत नहीं। हस्ट्बे मामूल िब भी हाथ धोते हैं तब ही धोएं और चमक्ती, दमक्ती और रौशनी िैसी ख़ब ू सरू त स्िल्द पाएं। (फ़लक अम्िद, बोरे वाला)

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मनाकक़बे अहल बैत अ्हार ‫رضوان ہللا اجمعین‬

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(इन्तख़ाब: कम्मी अह्मदपुरी)

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हज़रत ज़र (बबन हुबेश) ‫ رضی ہللا تعالی عنہ‬से ररवायत है कक हज़रत अली ‫ رضی ہللا تعالی عنہ‬ने फ़मातया: क़सम है उस ज़ात की स्िस ने दाने को फाड़ा (और उस से अनाि और ननबातात उगाये) और स्िस ने

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िान्दारों को पैदा ककया, हुज़ूर नबी उम्मी ‫ ﷺ‬का मुझ से अहद है कक मुझ से ससफ़त मोसमन ही मुहब्बत

करे गा और ससफ़त मन ु ाकफ़क़ ही मझ ु से बग़्ु ज़ रखेगा।" (मस्ु स्ट्लम, ननसाई, इब्न हब्बान) हज़रत अब्दल् ु लाह

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बबन मसऊद ‫ رضی ہللا تعالی عنہ‬ररवायत करते हैं कक हुज़ूर नबी अकरम ‫ ﷺ‬ने फ़मातया: "अल्लाह तआला ने मझ ु े हुक्म ददया है कक मैं फ़ानतमा ( ‫ رضی هللا عنہا‬का ननकाह अली (‫ )رضی ہللا تعالی عنہ‬से कर दूँ ।ू "

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(नतब्रानन) हज़रत िाबबर ‫ رضی ہللا تعالی عنہ‬बयान करते हैं कक ग़ज़्वा ख़ैबर के रोज़ हज़रत अली ‫رضی ہللا‬ ‫ تعالی عنہ‬ने कक़लए पर चि गए और उसे फ़तह कर सलया और ये आज़मूदह बात है कक उस दरवाज़े को

‫ ﷺ‬तश्रीफ़ लाए तो हज़रत अली ‫ رضی ہللا تعالی عنہ‬समट्टी पर सो रहे थे।

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करते हैं कक हुज़ूर नबी करीम

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चालीस आदमी समल कर उिाते थे। (इमाम इब्न अबी शैबा) हज़रत अबू तुफ़ैल ‫ رضی ہللا تعالی عنہ‬बयान

आप ‫ ﷺ‬ने फ़मातया: तू सब नामों में से अबू तरु ाब का ज़्यादा हक़ दार है तू अबू तरु ाब है। (नतब्रानन) अमल के ख़ात्मा से पहले मल ु ाज़्मत पाएिं: मोहतरम हज़रत हकीम साहब अस्ट्सलामु अलैकुम! मेरे पास एक अमल है मल ु ाज़्मत के हुसल ू का, िो कक बन्दा को उस के दोस्ट्त ने बताया था, ख़ुद भी ककया और स्िस को भी बताया फ़ायदा हुआ। अमल रोज़ाना Page 49 of 68 www.ubqari.org

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करना है इक्तालीस ददन रोज़ाना। फ़ज्र के बाद इक्कीस मततबा दरूद पाक, चारों क़ुल और कफर आख़ख़र में इक्कीस मततबा दरूद पाक और दरम्यान में चारों क़ुल। असर: अवल व आख़ख़र तेईस मततबा दरूद पाक और दरम्यान में चारों क़ुल। मग़ररब: अवल व आख़ख़र चोबीस मततबा दरूद पाक और दरम्यान में चारों क़ुल। इशा: अवल व आख़ख़र पच्चीस मततबा दरूद पाक और दरम्यान में चारों क़ुल। ये अमल इक्तालीस

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ददन का है। मगर अल्लाह के हुक्म से मल ु ाज़्मत पहले भी समल िाती है। (असदल् ु लाह, लाहौर)

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हर नेअमत माूँ के क़दम चम ू ने से समली:

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माहनामा अबक़री नवम्बर 2015 शम ु ारा निंबर 113________________pg 28

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(आटा गूंदना, रोटी बनाना, बततन धोने, अम्मी को वज़ू करवाना, नमाज़ पिवानी, खाना ख़खलाना वग़ैरा।

अल्ग़ज़त वो तमाम काम िो घर में एक औरत सर अंिाम दे ती है , मैं करता था और मेरी वासलदा हमेशा की

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तरह मुझे बेहद्द दआ ु एं दे ती थीं।)

मोहतरम हज़रत हकीम साहब अस्ट्सलामु अलैकुम! मेरी उम्र २१ साल है मैं डिप्लोमा का तासलब इल्म हू​ूँ

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अल्हम्दसु लल्लाह! नाज़रह क़ुरआन माूँ बाप ने बच्पन में ही पिा ददया था और ख़द ु ा का शक्र ु है कक

नतलावत की भी वही तौफ़ीक़ दे ता है। अबक़री पि कर और आप की चन्द ककताबें पि कर अब तो और भी

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िज़्बा और शौक़, लगन पैदा हो गयी है और उन सब में मेरी ननय्यत यही होती है कक या अल्लाह! तू मुझे

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अपना क़ुबत अता फ़मात और करम है उस ज़ात का कक वो हर मोड़ पर मेरा साथ दे ता है। मैं अपनी स्ज़न्दगी के कुछ राज़ अबक़री क़ाररईन से शेयर करना चाहता हू​ूँ ता कक और लोगों को भी तौफ़ीक़ हो और वो भी वो कुछ पाएं िो मैं ने पाया है: मेरे मेदरक के सालाना बोित के इम्तहानात थे मेरी वासलदा िो कक २००४ से बीमार हैं, फ़ासलि की मरीज़ा हैं और समगी की भी बीमारी है , उन ददनों (यानन िब मेरे पेपर हो रहे थे) वो बहुत ज़्यादा बीमार थीं तो मैं घर के सारे काम करता था, अम्मी, अबू और भाई के कपड़े धोने, (हम बस

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दो भाई है , भाई मुझ से बड़े हैं और वो मुल्तान में होते हैं) आटा गूंदना, रोटी बनाना, बततन धोने, अम्मी को वज़ू करवाना, नमाज़ पिवानी, खाना ख़खलाना वग़ैरा। अल्ग़ज़त वो तमाम काम िो घर में एक औरत सर अंिाम दे ती है, मैं करता था और मेरी वासलदा हमेशा की तरह मझ ु े बेहद्द दआ ु एं दे ती थीं। आप यक़ीन िाननये कक मेरे पेपर बबल्कुल अच्छे नहीं हुए थे लेककन मेरे अल्लाह की करम नवाज़ी दे खें िब ररज़ल्ट

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आया तो मैं ने परू े कॉलेि में पहली पोस्ज़शन हाससल की। मझ ु े यक़ीन नहीं हो रहा था कक मैं पास हो गया हू​ूँ बस्ल्क पोस्ज़शन ले ली है। बस कफर तो मैं अम्मी के पैरों में गगर गया, ख़ख़दमत तो पहले भी करता था

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अब और ज़्यादा ख़ख़दमत करने लगा। अल्हम्दसु लल्लाह! अम्मी मुझे अब भी बहुत दआ ु एं दे ती हैं। कफर

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अल्लाह ने मुझे हर चीज़ सब से पहले दी। मैं अपने तमाम कज़नों में सब से छोटा हू​ूँ लेककन सब से पहले गुज़श्ता साल मेरी शादी हो गयी, अल्लाह ने मुझे सुन्नत रसूल ‫ ﷺ‬दािी शरीफ़ रखने की तौफ़ीक़ दी,

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गुनाहों से दरू कर ददया अपने दीन के रास्ट्ते में क़ुबूल कर सलया। अल्हम्दसु लल्लाह! अल्लाह क़ुबूल फ़मातए और अब म्यूस्ज़क, टी वी, गाने वग़ैरा इन सब से नफ़रत हो गयी है। अल्हम्दसु लल्लाह! सुन्नती सलबास

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पहनता हू​ूँ, छोटी सी उम्र में अल्लाह रब्बल ु ्-इज़्ज़त ने बहुत ज़्यादा नेअमतों से नवाज़ ददया और िब मैं अपनी वासलदा के पैरों को चूमता हू​ूँ तो बहुत सुकून समलता है। अल्हम्दसु लल्लाह! अल्लाह ने कभी पैसों की

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कमी नहीं होने दी बस्ल्क मैं स्ितना सदक़ा करता हू​ूँ मझ ु े दो गन ु ा क्या सात गन ु ा ज़्यादा समल िाता है ये

सब मैं अपनी तारीफ़ नहीं कर रहा अपनी स्ज़न्दगी के वो तमाम हालात आप को बता रहा हू​ूँ िो अभी तक

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ककसी को नहीं बताए लेककन वासलदा वाला कक़स्ट्सा सब को बताता हू​ूँ और कहता हू​ूँ कक माूँ बाप की

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ख़ख़दमत करो कफर दे खो तुम कहाूँ से कहाूँ िाते हो। आप को भी इिाज़त दे रहा हू​ूँ। मेरी वासलदा वाला कक़स्ट्सा बग़ैर मेरा नाम शायअ ककये अबक़री ररसाले में छाप दें ता कक और लोग भी अमल कर सकें। हर परे शान और आसूदह हाल के सलए तीर बहदफ़ आज़मूदह अमल: मोहतरम हज़रत हकीम साहब अस्ट्सलामु अलैकुम! कभी कभार एक अल्लाह वाले बहुत ही बुज़ुगत

शस्ख़्सयत की ख़ख़दमत में हाज़री का मौक़ा समलता है। चन्द एक वज़ाइफ़् िो हज़रत मद् स्ज़ल्लPage 51 of 68 www.ubqari.org

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अल ्आली ने मस्ज्लस में मुख़्तसलफ़ लोगों से फ़मातए वो दित करता हू​ूँ:- हज़रत ने फ़मातया कक हर काम और ‫ا‬

‫ا‬

ُ ) का एक लाख दफ़ा तमाम घर के अफ़राद का एक िाइज़ मक़्सद के सलए "अल्लाहु-स्ट्समद"ु (‫هللاْالص ام ُ ْد‬

िगा मज् ु तमा हो कर पिना अक्सीर है और हाित को परू ा करता है। मझ ु े एक िान्ने वाले ने बताया कक हमारा एक ज़रूरी काम ककसी तरह से हल नहीं हो रहा था। हज़रत ने फ़मातया कक एक लाख दफ़ा "अल्लाहु‫ا‬

‫ا‬

rg

ُ ) पिें अभी तीन दहस्ट्से पिा था कक अल्लाह ने काम हल फ़मात ददया। हम ने ख़द घर में स्ट्समद"ु (‫هللاْالص ام ُ ْد‬ ु

मख़् ु तसलफ़ िाइज़ मक़ासद के हल के सलए हज़रत के इशातद पर पिा। अल्लाह ने काम्याबी अता फ़मातई। ‫ا‬

rg

ar i.o

ُ ‫اَی‬ वज़ीफ़ा िो हज़रत हर परे शान, आसूदह हाल को अता फ़मातते हैं:- "या अल्लाहु या रह्मानु या रहीमु" (ْ‫هللا‬

i.o

ٰ ْ ‫ ) اَی ار‬हर नमाज़ के बाद १०१ मततबा पिना है और रोज़ बरोज़ िुमा असर ता मग़ररब एक ही िगा ْ‫ْح ُن اَْی ارح ِْی ُم‬

पर यक्सई ू से ला तअदाद मततबा पिें । हमारा हम्साया अरसे से ददमाग़ी अमराज़ का सशकार चला आ रहा

ar

bq

था। हज़रत की ख़ख़दमत में ले गए। हज़रत ने फ़मातया कक हर नमाज़ के बाद उस के सर पर हाथ रख कर ‫ا‬ ‫ا‬ ٰ ْ ‫ْالر‬ ِ‫ ) ِب ْس ِمْهللا‬पिें । अल्लाह तआला ने उसे हैरत एक तस्ट्बीह "बबस्स्ट्मल्लादह-र्-रह्मानन-र्-रहीसम" (‫م‬ ْ ِ ‫ْح ِنْالرح ِْی‬

bq

अबक़री समला हर परे शानी हुई ख़त्म:

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अंगेज़ तरीक़े से सुकून अता फ़मातया। (मुहम्मद उस्ट्मान ग़नी, िोहर आबाद)

मोहतरम हज़रत हकीम साहब अस्ट्सलामु अलैकुम! मैं ने अबक़री की बदौलत क्या पाया। स्ज़न्दगी के ऐसे

w

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मसले कक स्िन से लगता था कक शायद सारी स्ज़न्दगी ननिात मुस्म्कन ना हो वो हल हुए। बंददश, िाद ू वग़ैरा ख़्म हुआ। बहुत से नफ़्स्ट्याती मसले ख़्म हुए कक िो आि कल के नोिवानों में आम हैं। बहुत

w

ज़्यादा बन्ने संवरने का शौक़ ख़्म हुआ। अब साफ़ सुथरा मगर सादह रहने को ददल करता है। अल्हम्दसु लल्लाह! गुज़श्ता रमज़ान तस्ट्बीह ख़ाना में गुज़ारा और इस रमज़ान में दािी मुबारक रख ली है। अब अल्लाह इस की लाि रखने की भी तौफ़ीक़ अता फ़मातए। एक अन्िाना ख़ौफ़, िर था िो कक अबक़री के मुतासलआ के बाद ख़्म हो गया। मैं पहले हर वक़्त ख़याली पुलाओ बनाता रहता था उस का ससस्ल्सला

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भी अल्हम्दसु लल्लाह ख़्म हो चुका है। ररज़्क़ की परे शानी (बेरोज़गारी) ख़्म हुई और अल्लाह पाक ने सहूलत वाला ररज़्क़ अता ककया। अल्हम्दसु लल्लाह शादी हुई और ऐसी बीवी, ससुराल समला कक स्िस की मझ ु े ख़्वादहश थी। शादी के पहले ही साल अल्लाह ने औलाद से नवाज़ा िबकक हमारे ख़ान्दान में िल्दी औलाद नहीं होती। मुझे एह्सास कम्तरी से भी ननिात समली है िैसा कक पहले शल्वार क़मीस पहनते हुए

rg

शमत आती थी लेककन अब ऐसा नहीं है। (रज़ा बशीर, गचन्योट)

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अबक़री ने नाक़स आसमलीन से जान छुड़वा दी: मोहतरम हज़रत हकीम साहब अस्ट्सलामु अलैकुम! बन्दा

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का अबक़री ररसाला के साथ तअल्लुक़ तक़रीबन एक साल से है। बन्दा को अमसलयात सीखने का शौक़

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था और इस के सलए मुख़्तसलफ़ आसमलों और कुतब से इस्ट्तेफ़ादह भी ककया लेककन ख़ानतर ख़्वाह फ़ायदा

नहीं हुआ मगर िब से अबक़री पिना शरू ु ककया बहुत फ़ायदा हुआ, सब से बड़ा फ़ायदा ये हुआ कक नाक़स

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आसमलीन से िान छूट गयी। अल्हम्दसु लल्लाह! बन्दा कई माह से आप के दसत में हाज़री दे रहा है और ُ

‫ا‬

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आप के बताए हुए कई वज़ाइफ़् भी कर रहा है। "या सलामु या हफ़ीज़ु" (‫ظ‬ ْ ‫ ) اَی اسَل ُم اَْی اح ِف ْی‬एक तस्ट्बीह सुबह व

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शाम लाज़मी पिता हू​ूँ, सारा ददन ऐसा गुज़रता है िैसे मेरे दाएं बाएं कोई है िो मेरी दहफ़ाज़त कर रहे हैं

w .u

इस के इलावा सूरह कौसर भी सारा ददन पिता रहता हू​ूँ। इस के इलावा एक अमल करता हू​ूँ:- सुबह व शाम अवल व आख़ख़र दरूद शरीफ़ तीन तीन मततबा, दरम्यान में सूरह फ़ानतहा सात मततबा सूरह इख़्लास ् सात

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मततबा इस का सवाब अस्ट्हाब कहफ़ की रूह को हदया करता हू​ूँ कफर इस के बाद अस्ट्हाब कहफ़ के नाम ले

w

w

कर स्िस बीमार पर दम करता हू​ूँ अल्लाह रब्बुल ्-इज़्ज़त उस को सशफ़ा अता फ़मातते हैं। (ि,र-लाहौर)

माहनामा अबक़री नवम्बर 2015 शम ु ारा निंबर 113______________pg32

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तहदीदी नामा ने मक्कार आसमलीन से जान छुड़वा दी: (क़ाररईन! अबक़री में छपे या ककसी भी अमल, वज़ीफ़े के करने से आप को िाद ू स्िन्नात से छुटकारा समला हो या आप पर ककया गया िाद ू टूटा हुआ हो तो वो मक ु म्मल अमल और उस की मक ु म्मल रूदाद तफ़्सील के साथ दफ़्तर माहनामा अबक़री में भेस्िए। आप का ये अमल लाखों के सलए फ़ायदा मन्द

rg

साबबत होगा और आप के सलए सदक़ा ए िाररया होगा।)

rg

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(श, क़)

मोहतरम हज़रत हकीम साहब अस्ट्सलामु अलैकुम! मैं वपछले छे माह से अबक़री की क़ारी हू​ूँ, अल्लाह

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तआला आप को िज़ा ए ख़ैर दे िो आप अल्लाह तआला की मज़ी से लोगों के मसाइल हल करते हैं और

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अल्लाह तआला आप को दन्ु या व आख़ख़रत में आप की सोचों से बि कर आप को अता फ़मातए। आमीन!

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हम ने िब से होश संभाला तब से बंददशों और िाद ू में नघरे हुए थे। मेरे वासलदै न इलाि करा करा के थक

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चुके थे। उल्टा नुक़्सान ही होता, घर के हालात और तंग हो िाते। मेरा ददल इतना घबराता िैसे फटने लगा हो और ऐसे महसूस होता कक िाद ू उतरने की बिाए और हो रहा है। हम कफर इलाि करवाना छोड़

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दे ते लेककन कामों में बंददश होने की विह से मेरे वासलदै न ककसी और आसमल के पास िाना शरू ु कर दे ते स्िन में से एक आसमल ने मुझे फ़ॉन पर दम करने के बहाने मुझ से बातें और दोस्ट्ती करनी शरू ु कर दी

w

और मुझे पता ही नहीं चला और मैं उन की इज़्ज़त ही करती रही। मेरी ज़बान में भी तीन साल से बंददश

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थी बातें िीक करती लेककन अरबी नहीं पिी िाती इस विह से मेरी आंटी ने मुझे "मंस्ज़ल" पिने के सलए

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दी, पांच ददन ही पिी तो "मंस्ज़ल" की बरकत से वो आसमल बरु ा लगने लग गया। हम ने फ़ौरन उस से राब्ता ख़्म कर ददया। कफर उस ने हमें इतना तंग ककया कक मैं बता नहीं सकती। हम ने उसे अल्लाह का वास्ट्ता ददया कफर उस ने हमारी िान छोड़ी। कफर एक साल के बाद मेरी फूफी एक आसमल को ले कर हमारे घर आईं उस आसमल ने कहा कक (न) को चार सो और बाक़ी घरवालों को एक सो स्िन्न गचमटे हुए हैं। चन्द ही ददनों में मेरी हालत मज़ीद ख़राब हो गयी, अम्मी ने उसे मेरी हालत बताई तो कहने लगा कक (न) Page 54 of 68 www.ubqari.org

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को फ़ॉन पर दम करवा सलया करें मैं पहले ही िरी हुई थी सलहाज़ा हम ने उधर से भी राब्ता ख़्म कर सलया। कफर दो तीन माह बाद ककसी और आसमल के बारे में मेरे अबू को पता चला स्िस के बारे में मशहूर था कक बहुत अच्छा इंसान है , बग़ैर पैसों के काम करता है और फ़ौरन काम हो िाते हैं। कफर उस के पास गए, उस ने कहा कक आप के घर आना है , कफर ही आप के काम सही होंगे , आप के घर बहुत बड़ी बला है

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िो आप को हर वक़्त परे शान रखती है और हर काम में रुकावट िालती है और वो (न) को गचमटी हुई है और वो मज़्हब की ईसाई है स्िस विह से (न) की ज़बान में बंददश है और उस की शादी भी नहीं होने दे

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रही और एक बात और अिीब कही कक चोबीस घंटे में एक मततबा (न) का चेहरा तब्दील होता है लेककन

i.o

मेरे घरवालों को और ना ही मुझे कभी कोई स्िन्न नज़र आया और ना ही मेरा चेहरा तब्दील होते दे खा

गया और ना ही मुझे कभी ककसी कक़स्ट्म का दौरा पड़ा है और ये भी कहा कक अपने घर ककसी आसमल को

ar

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नहीं आने दे ना (न) का मसला संगीन है कफर वही आसमल मुझे और मेरी छोटी बहन को अपनी बेदटयां

बना कर गया। चार ददन ज़रा सुकून समला कफर वेसे ही हालात हो गए िैसे पहले आसमलों की तरह होते

bq

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थे। घर में लड़ाई झगड़े शरू ु हो गए, हर कोई ख़ास कर मेरे साथ लड़ता झगड़ता, आि महीने तक ऐसे ही

होता रहा और आसमल लारे लगाता रहा कक सारे काम हो िाएंगे लेककन कुछ ना हुआ और घर के हालात

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मज़ीद बबगड़ गए। कफर मैं ने ख़द ु ही "अबक़री" में से तहदीदी नामा सलख कर घर में लगाया तावीज़ बना कर सब ने गलों में बांधे। कफर तहदीदी नामा की बरकत की विह से पता चला कक उस आसमल ने ही

w

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हमारे घर के हालात मज़ीद ख़राब ककये थे। मगर अब अल्हम्दसु लल्लाह इस तहदीदी नामा की बरकत से

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हमारे घर में सुकून आ गया है , मेरी तबीअत भी ख़राब नहीं होती। लड़ाई झगड़े, िर लगना सब ख़्म हो गया है और ख़ास कर हमारी नाम ननहाद झूटे मक्कार आसमलों से िान छूट गयी है। तहदीदी नामा मुबारक दित ज़ेल है: "हाज़ा ककताबु-स्म्मन ् मुहम्मदद-र्-रसूसलल्लादह रस्ब्बल ्-आलमीन० इला मं-य्यत्रुक़ु-द्दार समन-ल ्-उम्मारर वज़्ज़व्ु वारर इल्ला ताररक़ं-य्यत्रक़ ु ु बबख़ैरर अम्मा बअद फ़इन्न लना व लकुम ् कफ़ल्हस्क़्क़ साअतन ् फ़इन ् Page 55 of 68

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कुंत आसशक़-म्मसू लअन ् औ फ़ास्िरन ् फ़हाज़ा ककताबुं-य्यस्न्तक़ु अलैना व अलैकुम ् बबल्हस्क़्क़ इन्ना कुन्ना नस्ट्तस्न्सख़ु मा कुन्तुम ् तअमलून व रुसुलुना यक्तुबून मा तम्कुरून० उत्रुकू सादहब ककताबी हाज़ा वन्तसलक़ू इला अबदनत-ल ्अस्ट्नासम व इला मं-य्यज़ ्अमु अन्न मअल्लादह इलाहन ् आख़र ला इलाह इल्ला त न हा-मीम ् ला यून्सरून हा-मीम ् ऐन ्हुव० कुल्लु शैइन ् हासलकुन ् इल्ला वज्हहू लहुल ्-हुक्मु व इलैदह तुिऊ

rg

सीन ्-क़ाफ़् तफ़रतक़ अअदाउल्लादह व बलग़त ् हुज्ितल् ु लादह व ला हौल व ला क़ुव्वत इल्ला बबल्लादहल ्असलस्य्य-ल ्अज़ीसम फ़सयक्फ़ीकहुमु-ल्लाहु व हुव-स्ट्समीउ-ल ्अलीमु०"

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‫ٰ ا ا ٌ ِ ْ ُ ا ا‬ ‫ا ْ ا ا ْ ا ٰ ا ْ اْ ُ ُ ا ا ِ ا ُ ا ا ُ ا ا ا ً ا ُ ا‬ ‫ْخب ْ​ْی اْا اما اْب ْعد اْفا اِن اْل انا اْو اْل ُک ْمِْف ْ​ْاحلاق اْس ا‬ ‫اع ًۃ اْفا ِْنْکُ ْن ا‬ ْ‫ت‬ ْ ‫ِْمْحمام ِدْر ُس ْو ِلْهللاِْر ِبْالعال ِم‬ ‫ھذاْکِتاب‬ ِ ‫ارقاْی ْط ُرق‬ ِ ‫اِٰلِْمْیطرقْالدارِْمْالعم‬o ‫ی‬ ِ ‫ارْوالزو ِارْاَِلْط‬ ِ ِ ‫ا‬

‫ا‬

‫اا‬

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‫ا‬

‫ا ْا‬

ُ

ْ

‫ٰ ا‬ ‫ا‬ ْ ‫ِْم‬ ُ ‫ّْی ا‬ ْ ‫ام اْوا ِٰٰل ا‬ o‫َعْان ا ْ​ْم اعْهللاِْا ِٰل ًہاْا اخ ارَلْا ِٰل اہْاَِل ُْھ ا ْو‬ ِ ‫اوان اط ِلق ْواْاِٰلْع ابدۃِْاَل ْصن‬

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ُ ُ ٓ ٌ ‫َْشْ ٍئ ْٰھال‬ ْ ُ ‫ِکْا اَِل اْو ْج اہ ٗہ اْلہُ ْ​ْاحل ُ ْک ُم اْوا اِل ْی ِہ‬ ‫ْ​ْت اج ُع ْو ان ْٰا ْ ا‬ ْ ‫کا‬ ُ ‫مِی اَْلیُ ْن ا‬ ْ‫َص ْو انْح‬

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‫ا‬ ‫ا ً ُ ْ ً اْ ا ً اٰ ا ا ٌ اْ ُ ا اْ ا ا ا اْ ُ ْ ْ ا ا ُ ا اْ ا ْ ُ ا ُْ ُ ْ ا ْ ا ُْ ا ا ُ ُ ُا ا ْ ُ ُْ ا ا ا‬ ‫اَْ ُک ُر ْو ا ْ ُ ْ ُ ُ ْ ا ا ا‬ ْ‫اِبْ ْٰھذا‬ ‫اجراْفہذاْکِتابْین ِطقْعلیناْوعلیکم ِِْبحل ِقْاَِنْکناْنستن ِسخْماکنتمْتعملونْورسلناْیکتب ْونْم‬ ِ ‫ع‬ ِ ‫اشقاْمولِعاْاوف‬ ِ ‫اْتکواْصاحِبْکِت‬o ‫ن‬

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ख़ुश कलामी एक जाद:ू

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‫ا ا ا ُاا ا‬ ‫ا ْ ا‬ ُ‫ٓ ٓ ٓ ٓ اا ا ا ا ْ ا ُ اااا ْ ُا‬ ْ ْ ْ ‫ا‬ ْ o‫م‬ ‫مْعسقْتفرقْاعدْائْهللاِْوبلغ‬ ْ ُ ‫تْحۃْهللا ِ اْوَل اح ْول اْوَلْقوۃْاَِل ِ ْ​ِْبهللاِْال اع ِ ِّلْال اع ِ​ِ ْی ِمْف اس ایک ِف ْیک ُہ ُمْهللاُ اْو ُھ اوْالس ِم ْی ُعْال اع ِل ْی‬

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(कभी दस ू रों की ना मुकम्मल बात को मुकम्मल करने में उज्लत ना कीस्िये सब्र से काम लीस्िये ता कक

w

(आसलया शहबाज़, मल् ु तान)

w

वो ख़द ु से अपना िम् ु ला मक ु म्मल कर सके। इस से आप की इज़्ज़त बिे गी।)

एक मादहर ए नफ़्स्ट्यात ने अपनी ककताब में सलखा है कक एक मततबा एक शख़्स ने बातों बातों में मझ ु े बताया कक भाई इस स्ज़न्दगी से तंग आ गया हू​ूँ। इस स्ज़न्दगी का क्या हाससल, स्िधर भी िाता हू​ूँ मेरी ज़ात ग़ैर ददल्चस्ट्प और ग़ैर ददल्कश होती है। मुझ से कोई मुख़ानतब नहीं होता। कोई मुझसे हमददी या

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मुहब्बत नहीं करता। मैं ने उसे सम्झाया कक आप ककसी शख़्स की स्ज़न्दगी में दहस्ट्सा लें, बज़ादहर वक़्ती तौर पर आप उस के ख़ुशी व ग़म के शरीक नहीं हो सकते लेककन िैसे िैसे आप उस के क़रीब होंगे आप दख ु ददत के साथी बन िाएंगे और ऐसा होना कफ़तरी है। लेककन अगर आप कोसशश करें तो दस ू रे लोग आप की ज़ात में ददल्चस्ट्पी ले सकते हैं बस एक ज़रा तक्लीफ़ की ज़रूरत है और ख़ास तौर पर आप का अंदाज़

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गफ़् ु तग ु ू ददल्चस्ट्प और सल् ु झा हुआ हो, बस! कोई बात नहीं अगर आप हक्लाते हों या गफ़् ु तग ु ू के दौरान में रुकते हों और इस में भी कोई हित नहीं अगर आप के बअज़ िुम्ले ना मुकम्मल होते या उन में गगरामर

rg

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की ग़लनतयां बाक़ी रह िाती हैं तो याद रख़खये अमूमी अग़्लात बोलते बोलते ख़ुद ही ख़्म हो िाते हैं।

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अपनी बातों पर कभी भी बहुत ज़्यादा ज़ोर ना दें और इस का ख़्याल रख़खये कक दस ू रों को भी कुछ बोलना है। बअज़ मोज़ूअ पर गुफ़्तुगू करने के सलए बहुत ज़्यादा मुहतात बन्ने की ज़रूरत नहीं और कभी ना

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सोगचये कक इस मोज़ूअ पर अगर आप ने बोलने की कोसशश की तो सामईन को इस से सदमा होगा कभी

दस ू रों की ना मुकम्मल बात को मुकम्मल करने में उज्लत ना कीस्िये सब्र से काम लीस्िये ता कक वो ख़ुद

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से अपना िम् ु ला मक ु म्मल कर सके। इस से आप की इज़्ज़त बिे गी। कभी भी आप को एक मोज़अ ू से

उक्ताना नहीं चादहए बाविूद ये कक मोज़ूअ नघसा वपटा हो और आप मोज़ूअ में तब्दीली के ख़्वाहाूँ हैं,

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गफ़् ु तग ु ू के दौरान में कभी अपनी शस्ख़्सयत बल ु ंद करने या ितलाने की कोसशश ना कीस्िये सामईन ख़द ु ही आप की गुफ़्तुगू सुनने के बाद आप की शस्ख़्सयत का अंदाज़ा लगा सकते हैं। गुफ़्तुगू में बड़ा िाद ू है

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इसे याद रख़खये और ज़ेहन नशीन रख़खये कक ये ख़ूबी यक्तफ़ात नहीं होती। गुफ़्तुगू का मज़ा उसी वक़्त है

w

कक िब कक मुख़ानतब भी उसी सहर आफ़्रीनी का मासलक है, ज़्यादा से ज़्यादा इंसानों से अच्छी अच्छी

बातें कीस्िये और कफर कुछ अिब नहीं कक आप ददन ब ददन अपने अंदाज़ गुफ़्तुगू में महासन पैदा करते िाएंगे इन शा अल्लाह।

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माहनामा अबक़री नवम्बर 2015 शम ु ारा निंबर 113_____________pg41

मोटापे को ननकाल बाहर फैं कने के ख़्वाहहष्मन्द! अभी पढ़ें : (ऐसी सस्ब्ज़याूँ स्िन में क़ुदरती तौर पर पेशाब आवर अज्ज़ा मौिूद होते हैं मोटापे को रफ़अ करने में

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मुआवन साबबत होती हैं और एक मततबा चबी पैदा करने वाली ख़सलयों तक रसाई हाससल कर लें तो उन में

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(मंसूर अली बैग)

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फैंकते हैं।)

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टूट फूट का अमल शरू ु हो िाता है और ये तमाम तर इज़ाफ़ी चबी को आप के स्िस्ट्म से बाहर ननकाल

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एक मअरूफ़ मादहर गग़ज़ा का कहना है कक अगर स्िस्ट्म को मुहय्या ककये िाने वाले हरारों पर कोई हद्द ना लगाई िाए तब भी कम गचकनाई, कम ननशास्ट्ते और बअज़ मख़्सस ू कक़स्ट्म के अनाि का इस्ट्तेमाल

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वज़न घटाने में मुआवन साबबत हो सकता है"। बहुत सारे लोग इस दन्ु या में ऐसे भी िन्म लेते हैं स्िन में

दस ू रों के बर अक्स चबी पैदा करने वाले ख़सलयों की तअदाद बहुत ज़्यादा होती है और उन के सलए वज़न

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को कम करना इंतहाई ददक़्क़त तलब और बअज़ हालात में नामुस्म्कन हो िाता है ताहम रसीले फल या उन का िूस, सेब, स्ट्रॉबेरी या लेह्सन का इस्ट्तेमाल चबी पैदा करने वाले ख़सलयों के अफ़आल में ककसी

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हद्द तक दरु ु स्ट्तगी पैदा कर सकता है और इंसानी स्िस्ट्म मोटापे से महफ़ूज़ रहते हुए मुतनासुब, ददल्कश और ख़ुश्नुमा ददखाई दे सकता है। सस्ब्ज़याूँ और ऐसे खाने स्िन के अज्ज़ाए तकीबब में रे शे दार ननबातात

w

शासमल हों तो ये भी मोटापे के ख़ख़लाफ़ िंग में ननहायत एहम ककरदार अदा कर सकते हैं। ऐसी सस्ब्ज़याूँ स्िन में क़ुदरती तौर पर पेशाब आवर अज्ज़ा मौिूद होते हैं मोटापे को रफ़अ करने में मुआवन साबबत होती हैं और एक मततबा चबी पैदा करने वाली ख़सलयों तक रसाई हाससल कर लें तो उन में टूट फूट का अमल शरू ु हो िाता है और ये तमाम तर इज़ाफ़ी चबी को आप के स्िस्ट्म से बाहर ननकाल फैंकते हैं। रे शे

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दार गग़ज़ाएूँ आूँतों या अंतडड़यों के ननज़ाम पर गहरे असरात मततब करती हैं। दन्ु या भर के मादहर गग़ज़ा इस बात पर मु्तकफ़क़ हैं कक ववटासमन सी का इस्ट्तेमाल स्िस्ट्म की चबी को ना ससफ़त कम करता है बस्ल्क उस की तहलील में भी नम ु ायां ककरदार अदा करता है िबकक वाज़ेह तौर पर ये स्िस्ट्म में मौिद ू कोलेस्ट्रोल की समक़्दार को अदम तवाज़ुन का सशकार नहीं होने दे ता और ख़सलयों को उस के बे िा दबाओ

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से बचाता रहता है। सेब और स्ट्रॉबेरी के इलावा बेर और गोंदनी में प्रोटीन की वाफ़र समक़्दार मौिद ू होती है िो कक पानी को िज़्ब कर के ख़सलयों को चबी या मोटापे के असरात से पाक कर दे ता है। अगर कोई

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ar i.o

इस बात की ख़्वादहश रखता है कक अपने स्िस्ट्म से मोटापे को ननकाल बाहर फैंके तो उस के सलए क़ुदरती

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तरीक़ा मौिूद है और ज़ेर नज़र फ़ेहररस्ट्त वाज़ेह कर रही है कक वो कौन सी चीज़ें हैं स्िन के खाने या पीने

से आप मोटापे से बचाओ कर सकते हैं। सस्ब्ज़याूँ: कोसशश करें कक स्िस हद्द तक मुस्म्कन हो ताज़ह और

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कच्ची सस्ब्ज़याूँ इस्ट्तेमाल करें िबकक भाप में तय्यार की हुई या िूस की शक्ल में भी सस्ब्ज़याूँ ज़्यादा

सोदमन्द साबबत होती हैं। गोभी या करम कल्ला: इस का इस्ट्तेमाल ग़दद ू को ज़बरदस्ट्त िज़्बे या तग़ीब

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के ज़ररए अपने काम पर आमादा करता है ख़ास तौर पर लब्लबा को िहाूँ हामोंज़ की अफ़्ज़ाइश ् स्िस्ट्म के दटश्यूज़ की सफ़ाई में मददगार साबबत होती है, इस से गुदों के अफ़आल में भी दरु ु स्ट्तगी पैदा होती है िो

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कक ज़्यादा पानी िारी करने लगते हैं। गोभी और करम कल्ले में गंधक और आयोिीन की ख़ासी समक़्दार

होती है स्िस की विह से ना ससफ़त मैदे बस्ल्क आूँतों की सफ़ाई का अमल दरु ु स्ट्तगी के साथ काम करता है

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िबकक प्ते की दरम्यानी रग में सूिन या वरम ् के ख़ख़लाफ़ िंग भी िारी रहती है। गािर: ये केरोदटन की

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फ़राह्मी का सब से एहम ज़रीया है िो कक ववटासमन ए की एक कक़स्ट्म है और स्ज़ंदा उज़्व्यों और ख़सलयों में मज्मूई ककसमयाई तब्दीसलयों के अफ़् आल में तेज़ी पैदा करती है िबकक स्िस्ट्म के दीगर ननज़ाम भी

इस का फ़ायदा उिाते हैं। अज्वाइन: हमारे हाूँ अज्वाइन ् का इस्ट्तेमाल अमम ू न मसाल्हों या दवाइयों में ककया िाता है लेककन ये दल्दसल मक़ामात पर उगने वाला एक ऐसा पोदा है स्िस के िंिल कच्चे या पका कर खाए िाते हैं और इस में कैस्ल्शयम वाफ़र समक़्दार में मौिद ू होती है स्िस से अंदरूनी ग़दद ू की रे स्ज़श

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को तवानाई हाससल होती है िबकक मैलनेसशयम और आयरन की विह से ख़ून में क़ुव्वत पैदा होती है। खीरा या ककड़ी: इस में गंधक और सससलकॉन (एक ग़ैर अन्सर) की आमेस्ज़श होती है स्िस की विह से गद ु ों में यरू रक एससि की सफ़ाई होती रहती है। खीरे या ककड़ी में पोटै सशयम की भी बहुत बड़ी समक़्दार होती है और ये एक ऐसा िुज़ है िो कक ग़दद ू के अफ़आल में िोश व िज़्बा पैदा करता है और ख़सलयों से

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मोटापे के असरात को खें च ननकालता है। लेह्सन: स्िस्ट्म में क़ुदरती तौर पर मस्ट्टित ऑइल पैदा करने की सलादहयत रखता है स्िस की विह से पूरे स्िस्ट्म के अंदरूनी ननज़ाम की सफ़ाई मुस्म्कन होती है। रे शे दार

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गग़ज़ाएूँ आम तौर पर इस के हुसूल के १६ एहम ज़राए हैं। साबुत अनाि या ग़ल्ला: िैसे कक भूसी, हयातीन

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के माख़ज़ के तौर पर इस्ट्तेमाल ककया िाने वाला गंदम ु का िसम ूत ा, िई का आटा या दल्या और रई (एक गग़ज़ाई पोदा िो कक अमूमन मवेसशयों के चारे के तौर पर इस्ट्तेमाल होता है ) सस्ब्ज़याूँ: भाप पर तय्यार

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करदह कच्ची हों तो ज़्यादा बेह्तर है। िड़ों वाली सस्ब्ज़याूँ: मसलन गािर, शकरक़न्द और सशल्िम वग़ैरा। फल बीिों समेत: स्ट्रॉबेरी, ब्लैक बेरी, इन्िीर और या सख़्त नछल्कों वाली सस्ब्ज़याूँ स्िस में

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टमाटर और बेंगन भी शासमल हैं। फसलयां: सब्ज़ फसलयां, मटर, सीम, लोबबया और ख़श्ु क फसलयों के

इलावा दालें भी। बीि और मग़ज़: ये बशमूल सूरि मुखी के बीि, अख़रोट और मूंग फली वग़ैरा से हाससल

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की िा सकती हैं। याद रखें कक मोटापा तमाम अमराज़ की िड़ है और इस से बचाओ बेश्तर अमराज़ से छुटकारे के मुतरादफ़ है। दवाओं का इस्ट्तेमाल और बअज़ अक़्साम की वस्ज़तशें भी इस से ननिात ददला

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सकती हैं लेककन क्या ये बेह्तर नहीं है कक मुनाससब गग़ज़ा के इस्ट्तेमाल और खाते पीते हुए इस से पीछा

िाए।

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छुड़ा सलया िाए और खाना पीना छोड़ कर इस से महफ़ूज़ रहने के ख़्याल को यक्सर मुस्ट्तरतद कर ददया

मेरी तालीफ़ात और उन की वज़ाहत: अब तक आने वाली मेरी स्ितनी भी तालीफ़ात हैं उन के हवाला िात हक़ीक़त, सबबे तालीफ़ ये सब क़ाररईन तक पोहंचाने की एक कोसशश है मैं हर ककताब का हवाला दं ग ू ा कक ककताब ककन हवाला िात से Page 60 of 68 www.ubqari.org

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समल कर एक ककताब बनी है। अगर मेरी ककसी ककताब में ग़लती हो, इ्तला दें , शक्र ु गुज़ार हू​ूँगा। ककताब नंबर २१: पथरी िाइलससज़ इलाि नब्वी ‫ صلى هللا عليه وسلم‬और िदीद साइंस: दौराने स्क्लननक गुदे, िाइलससज़ और पथरी के मरीज़ों के इज़ाफ़े ने मझ ु े मज्बरू ककया कक क्यूँू ना एक ऐसी िासमअ ककताब तालीफ़ की िाए िस में गुदों के अमराज़ और पथरी का साइंसी और रूहानी दोनों तरह का काम्याब इलाि

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ददया िाए। िब इस ककताब की पहली अशाअत शायअ हुई तो हज़ारों गद ु ों और पथरी के अमराज़ में मुब्तला घर बेिे सशफ़ा याब हुए स्िस का इज़्हार उन्हों ने मुझ से बबल्मुशाफ़ा मुलाक़ात, टे ली फ़ॉन, ख़ुतूत

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और ई मैल्ज़ के ज़ररए ककया। इस ककताब की अब तक तीन काम्याब अशाअत शायअ हो चुकी हैं। इस

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ककताब की तय्यारी में स्िन अफ़राद की तहरीरों से इस्ट्तेफ़ादह ककया गया उन के नाम दित हैं। मुहम्मद ज़फ़र आददल- मुहम्मद अज़्हर ररज़्वी- हकीम राहत नसीम सोहदववत- िनाब अली नाससर ज़ैदी- िॉक्टर

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सुहैब अहमद बट- हकीम िावेद बैग- अब्दल् ु लाह ख़ावर- प्रोफ़ेसर हकीम ख़ासलद मुबीन ख़ान- अबू सारमिॉक्टर दाऊद अहमद शाहीन- सय्यद साददक़ अब्दाली- िॉक्टर सय्यद अताउरतहीम- िॉक्टर ख़ासलद

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महमद ू िंिआ ु - िॉक्टर सय्यद ख़ासलद ग़ज़नवी- प्रोफ़ेसर हकीम मह ु म्मद यन ू स ु - िॉक्टर शौकत

अमानल्लाह- स्िन रसाइल से इस्ट्तेफ़ादह ककया गया उन के नाम दित हैं। नतब्ब व सेहत- दहकायत- तबीब

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हास्ज़क़- हमददत सेहत- उदत ू िाइिेस्ट्ट- रहनम ु ाए सेहत- क़ौमी सेहत- नतब्ब नब्वी- नोट: अगर कोई हवाला

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ग़लती से रह िाए तो ज़रूर इ्तला दें , मैं हर पल इस्ट्लाह का मुहताि हू​ूँ।

माहनामा अबक़री नवम्बर 2015 शम ु ारा निंबर 113______________pg42

इस्लाह मुआश्रा के ससजल्सले में बड़ी रुकावट: दाई इस्लाम हज़रत मौलाना मह ु म्मद कलीम ससद्दीक़ी ‫دامت برکاتہم‬

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(फलत) (हज़रत मौलाना ‫ دامت برکاتہم‬आलम ए इस्लाम के अज़ीम दाई हैं जजन के हाथ पर तक़रीबन ५ लाख से ज़ाइद अफ़राद इस्लाम क़ुबूल कर चुके हैं। उन की नाम्वर शहरा आफ़ाक़ ककताब "नसीम हहदायत के झोंके" पढ़ने के क़ाबबल है।)

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घर के सभी लोग इकिे थे, बज़्म अमीन के सब लोग िमा थे, उस का नंबर आया तो उस ने इस्ट्लाह

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मुआश्रा के उन्वान पर तक़रीर करना शरू ु की, उस ने कहा मुआश्रे की इस्ट्लाह इस सलए नहीं हो रही है कक हर आदमी को इस की कफ़क्र है कक मआ ु श्रे की इस्ट्लाह कैसे हो? इस की कफ़क्र बबल्कुल नहीं कक मेरी

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इस्ट्लाह कैसे हो? नन्ही सी बच्ची की इस तक़रीर ने पूरे ख़ान्दान को ख़झंझोड़ ददया, इस हक़ीर को उस की तक़रीर सुन कर िहाूँ अपने इस ख़्याल पर एतमाद बिा वहीं ददल की गेहराई से ये ननकला: ( ْ‫احلمدهللْالذی‬

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‫) ھداَنْلہاذاْوماْکناْلھنتدیْلوَلْانْھداَنْهللا۔‬। अल्लाह तआला ने कैसा प्यारा दीन अता फ़मातया कक स्ज़न्दगी की

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चोलों को िीक रखने के सलए दावत को फ़ज़त मन्सबी क़रार ददया, समल्लत अगर दावत को मक़्सद बना ले तो ख़ैर के ददहाने अल्लाह तआला खोल दे ते हैं। इस ख़्याल से कक घर में दावत का माहोल बने, बच्चों और

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बस्च्चयों में दावती शऊर बेदार हो, ख़ान्दान में हर घर में इस का ससस्ल्सला शरू ु ककया गया कक हफ़्ता में

एक मस्ज्लस घर के अफ़राद की हो और उस में घर का हर फ़दत ककसी मोज़ूअ पर तक़रीर करे । इस का

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फ़ायदा ये होगा कक हर फ़दत को कुछ याद करने और दीन के बारे में मालम ू ात का शौक़ होगा और िब वो

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दस ू रों के सामने कहें गे तो कफर ख़ुद उन के अंदर दीन पर अमल की तौफ़ीक़ बिे गी, ईद वग़ैरा के मौक़े पर

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िब सब ख़ान्दान के लोग िमा होते हैं स्िस में ये ससस्ल्सला होता है। वासलद मोहतरम के नाम से उस का नाम बज़्म अमीन, बज़्म अमीन ब वग़ैरा रख ददए गए दावती पस मंज़र में बच्चे ऐसे ऐसे पराया में मुख़्तसलफ़ मोज़ूआत पर बात करते हैं कक हैरत होती है, ऐसी ही तक़रीर उस बच्ची ने भी की है, वाक़ई ये बात बड़ी कलीदद है कक इस्ट्लाह मआ ु श्रा की सारी कोसशश बेसद ू इस सलए है कक हर आदमी को इस्ट्लाह मुआश्रा की कफ़क्र है, अपनी इस्ट्लाह और ख़ुद अमल से बे न्याज़ हो कर इस्ट्लाह मुआश्रा की कोई कोसशश Page 62 of 68 www.ubqari.org

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सोदमन्द नहीं हो सकती है। इब्लीस लईन स्िस का नाम अज़ाज़ील था। िब उस को अपनी इबादात और मक़्बूसलयत पर ग़रू ु र हुआ तो अल्लाह तआला की तरफ़ से एलान हुआ कक हम एक बन्दा को रान्दा ए दरगाह करने वाले हैं। सारे फ़ररश्ते थरा गए हर एक घबरा कर अज़ाज़ील के पास आता था कक हमारे वास्ट्ते दआ ु करें कक अल्लाह तआला हमें रान्दा ए दरगाह ना करे । इब्लीस बड़े नाज़ से कहता आप कफ़क्र ना करें ,

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मैं अल्लाह से आप के सलए दआ ु करू​ूँगा, उस के ददल में ये ख़्याल भी ना आया कक मैं भी रान्दा ए दरगाह हो सकता हू​ूँ। इस सलए अपने को इस्ट्लाह हाल से बे न्याज़ समझ्ता रहा। ये शैतानी िबलत है िो हमें

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इस्ट्लाह हाल से महरूम ककये हुए है बस हर एक को दस ू रों की इस्ट्लाह की कफ़क्र है। इस्ट्लाह मुआश्रा की

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कोसशश करने वाले मुक़रतरीन के ज़हन अक्सर अपनी इस्ट्लाह हाल की कफ़क्र से ख़ाली हैं। तक़रीर व वेअज़ सुन कर ननकलने वाले लोग ये सरगोशी करते ननकलते हैं कक फ़लां हािी साहब ने ये बताया, दे खा

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मौलाना साहब क्या फ़मात रहे थे और वो साहब क्या करते हैं, अपने हाल का मुहास्ट्बा और अपनी इस्ट्लाह की कोसशश और कफ़क्र मफ़्क़ूद होती िा रही है स्िन मस्स्ट्लहीन ने दन्ु या में इस्ट्लाह हाल का तज्दीदी

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कारनामा अंिाम ददया वो दस ू रों को वेअज़ अपने हाल की इस्ट्लाह के सलए कहते थे। हकीमल ु ्-उम्मत फ़मातते थे िब मैं अपने अंदर ककसी चीज़ की कमी दे खता हू​ूँ तो दो चार वेअज़ इस मोज़ूअ के कह लेता हू​ूँ

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गोया वो दस ू रों को वेअज़ व नसीहत इस सलए करते थे कक कहने से ख़द ु की इस्ट्लाह हो िाएगी इस्ट्लाह मुआश्रा में िान पैदा करने के सलए ये सोच कक मैं सब से ज़्यादा इस्ट्लाह का मुहताि हू​ूँ। शाह कलीद है।

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टोटकों की भरमार:

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काश हमें इस की कफ़क्र हो!

(काली समचत लें और संदल के साथ रगड़ कर चेहरे पर लेप मल लीस्िये दो चार रोज़ ऐसा करने से चेहरे से दाने ख़्म हो िाएंगे।)

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चोरी से दहफ़ाज़त के सलए: "या िलील"ु (‫ل‬ ْ ‫ ) اَی اج ِل ْی‬दस बार पि कर िो अपने माल व अस्ट्बाब और रक़म वग़ैरा पर दम करे , इन शा अल्लाह अज़्ज़ ् व िल ् चोरी से महफ़ूज़ रहे गा। आफ़त से ननिात के सलए: "या ُ

वकीलु" (‫ل‬ ْ ‫ ) اَی اْوک ِْی‬७ बार रोज़ाना असर के वक़्त िो पि सलया करे इन शा अल्लाह अज़्ज़ ् व िल ् आफ़त से पनाह पाएगा। मुसल्मान भाई की पसंद का ख़्याल: िो चीज़ तू अपने सलए पसंद नहीं करता वो ककसी

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मुसल्मान भाई के सलए भी पसंद ना कर। ज़्यारत क़ुबूर:

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☆ ज़्यारत क़ुबूर के सलए िा, ख़ुद इब्रत हाससल कर और मग़कफ़रत मुस्स्ट्लमीन के सलए दआ ु कर। चेहरे के

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दाने: काली समचत लें और संदल के साथ रगड़ कर चेहरे पर लेप मल लीस्िये दो चार रोज़ ऐसा करने से

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चेहरे से दाने ख़्म हो िाएंगे। क़ब्र व आख़ख़रत में अज़ाब से दहफ़ाज़त: "या मुह्सी" (‫ص‬ ْ ْ ِ ْ‫ ) اَیحم‬एक हज़ार

मततबा िो कोई हर शब ् िुमा पि सलया करे इन शा अल्लाह अज़्ज़ ् व िल ् क़ब्र व क़यामत के अज़ाब से

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महफ़ूज़ होगा। तीन बातों में तवक़ुफ़् मत करो: (१) नमाज़ में िब उस का वक़्त हो िाए। (२) िनाज़ा में

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िब तय्यार हो िाए। (३) बेवह के ननकाह में िब उस का िोड़ समल िाए। सख़ी का मुक़ाम: सख़ी अल्लाह

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से क़रीब है, िन्नत से क़रीब है लोगों से क़रीब है और आग से दरू है। सर ददत ख़्म कैसे हो?: सर की

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ज़ैतून के तेल से मासलश कीस्िये या प्याज़ काट लीस्िये और उसे सूँनू घये इस तरह करने से सर का ददत

ُ ख़्म हो िाएगा। िाद ू से ननिात के सलए: "या मम ْ ُ ‫ ) اَیُْم ِْی‬७ बार रोज़ाना पि कर िो अपने ऊपर ु ीतु" ( ‫ت‬

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दम कर सलया करे इन शा अल्लाह अज़्ज़ ् व िल ् िाद ू असर नहीं करे गा। बख़ील का अंिाम: बख़ील

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अल्लाह से दरू है िन्नत से दरू है लोगों से दरू है और दोज़ख़ से नज़्दीक है। ☆ सब्र ईमान से ऐसे समला

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हुआ है िैसे सर स्िस्ट्म से। क़ै से ननिात: ज़्यादा क़ै आती हो तो सफ़ेद ज़ीरा ज़रा सी चीनी में समला कर

थोड़े से पानी में घोल कर पी लें । इस से काफ़ी फ़ायदा हाससल होगा। छींकें रोकना आसान: सब्ज़ धन्या संघ ू ने से ज़्यादा छींकें आना बन्द हो िाती हैं। इस का पानी ननकाल कर संघ ू ने से भी ऐसा ही असर होता है।

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||मज़ीद रूहानी व स्िस्ट्मानी टोटके पाने के सलए आि ही दफ़्तर माहनामा अबक़री से ककताब "अबक़री लाया अनोखे और लािवाब टोटके" (स्िल्द अवल, दोयम) लाइए, आज़मूदह टोटके पाइए।

माहनामा अबक़री नवम्बर 2015 शम ु ारा निंबर 113_______________pg43

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बे समसाल हुस्न और लाजवाब सेहत पाइए आसान टोटकों से

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(ताज़ह फल, मत ु वाज़न ु गग़ज़ा, दही और मक्खन इस्ट्तेमाल करें । रोज़ाना बालों में लकड़ी की बनी हुई कंघी इस्ट्तेमाल करें क्योंकक इस से बालों की वस्ज़तश होती है। नहाने के बाद बालों को तोसलये से अच्छी तरह

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ख़श्ु क करें और कफर तेल लगाएं, गीले बालों में तेल हगगतज़ ना लगाएं)

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(वप्रंससपल (र) ग़ल ु ाम क़ाददर हराि, झंग)

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हुस्ट्न व सेहत, कफ़टनेस के मोज़ूअ पर दित ज़ेल उन्वानात के तहत ज़रूरी मालूमात पेश की िाती हैं। कील मह ु ासे और छाईयां दरू करना: बअज़ नोिवान लड़कों और लड़ककयों को सन ् बलग़ ू त में चेहरे पर कील

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ननकल आते हैं अगर उन कीलों को ज़ख़्मी कर ददया िाए तो ये चेहरे की स्िल्द पर दाग़ छोड़ िाते हैं, उन

के इलाि के सलए दित ज़ेल नुस्ट्ख़ों पर अमल करें । १- दवा ख़ाना अबक़री की "मरहम सुकून" चेहरे पर

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लगाई िाए। २- कलौंिी, बगत मेहूँदी, स्ट्नामकी, हब्बररशाद सअतर के १२ ग्राम एक लीटर फ़्रूट ससरका में

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हल करने के बाद गरम कर लें । िं िा होने पर छान लें और चेहरे के मुतासरह दहस्ट्से पर लगाएं। २- कलौंिी

तीस ग्राम, कक़स्ट्त शीरीं स्तर ग्राम, बगत कास्ट्नी सात ग्राम सब को पीस कर सफ़ूफ़ बनाएं और खाने के आधा घन्टा बाद छे ग्राम ख़ोराक सुबह व शाम खाएं। ४- िामुन का शबतत मुतवातर इस्ट्तेमाल करें । ५लीमों को काट कर चेहरे पर मला िाए तो कील मह ु ासे िीक हो िाते हैं। ६- हल्दी पीस लें, पानी में घोल कर तीन बार रोज़ाना दाग़ों पर लगाएं। ७- कच्चे नायतल का दध ू सोते वक़्त चेहरे पर लगाएं और एक हफ़्ता

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मुसल्सल ये अमल करें । ८- बकरी का दध ू बकसरत इस्ट्तेमाल में लाएं। ९- कील मुहासे, हाज़्मा की ख़राबी, ख़ून की ख़राबी और चन्द दीगर वुिूहात की बबना पर ननकलते हैं, संगतरे के नछल्के सुखा कर बारीक पीस लें और पानी में गंध ू कर रात को सोते वक़्त चेहरे पर लगाएं, नेज़ तीन ककन्नू रोज़ाना खाएं। चेहरे की रं गत ननखारना: क़ुदरत ने इस ज़मीन पर बेशम ु ार ऐसी अश्या तख़्लीक़ फ़मातई हैं स्िन के

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इस्ट्तेमाल से बेश्तर स्िस्ट्मानी नक़ाइस दरू हो िाते हैं। अल्लाह तआला ने इंसान को अक़्ल सलीम की

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दौलत से माला माल ककया है ता कक वो ऐसी अश्या का खोि लगाए कक उन के इस्ट्तेमाल से स्िस्ट्मानी

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नक़ाइस दरू करे और चेहरे को ख़ूबसूरत व ददल्कश बनाने में काफ़ी हद्द तक काम्याब रहे । चन्द अह्​्याती

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तदाबीर दित की िाती हैं। १- खाना सादह और ज़ोद् हज़म खाए। २- िब तक हक़ीक़ी भूक ना लगे खाना ना खाए और अभी कुछ भूक बाक़ी हो कक खाने से हाथ उिा ले। ३- मसाले और चटपटी व तुश त अश्या से

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परहे ज़ करे । ४- स्िस्ट्मानी सेहत का ख़ास ख़्याल रखा िाए, ग़स्ट् ु ल और मासलश को अपना मामल ू बनाएं।

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५- सुबह की सेर और वस्ज़तश को अपने ऊपर लास्ज़म कर लें । ६- गेरो समले पानी में चार क़तरे रोग़न

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कलौंिी शासमल करें और रात सोने से क़ब्ल चेहरे पर लगाएं, सुबह उि कर मुंह धो लें ।

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गगरते बालों को महफ़ूज़ करना: ताज़ह फल, मुतवाज़ुन गग़ज़ा, दही और मक्खन इस्ट्तेमाल करें । रोज़ाना बालों में लकड़ी की बनी हुई कंघी इस्ट्तेमाल करें क्योंकक इस से बालों की वस्ज़तश होती है। नहाने के बाद

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बालों को तोसलये से अच्छी तरह ख़ुश्क करें और कफर तेल लगाएं, गीले बालों में तेल हगगतज़ ना लगाएं।

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सददत यों में हफ़्ते में एक दो बार मछली ज़रूर खाएं। रोज़ाना रात को सोते वक़्त लयारह अदद बादाम की

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गरी खाएं। अबक़री दवाख़ाना से तय्यार करदह नतब्ब नब्वी ‫ ﷺ‬हे यर ऑइल से मासलश करें इलावा अस्ज़ं ये नुस्ट्ख़ा िात इस्ट्तेमाल करें । हुवल ्-शाफ़ी: कलौंिी ६ ग्राम, मेहूँदी के प्ते ६ ग्राम दोनों को अच्छी तरह पीस लें , इन का सफ़ूफ़ २०० ग्राम ससरका में हल कर के बालों पर लगाएं। २- हुवल ्-शाफ़ी: कलौंिी को िला कर उस की राख, ज़ैतून के तेल में हल कर के गंि पर लगाई िाए। ३- मूली का पानी सर पर मलते रहें । ४- प्याज़ का रस और शहद समला कर रोज़ाना गंि पर लगाएं, नए बाल उग आएूँगे। ५- रोग़न कलौंिी की Page 66 of 68 www.ubqari.org

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मासलश करें । ६- मदत हज़रात एक माह तक मुतवातर रोज़ाना सर पर उस्ट्तरा कफरवाएं, कफर सुबह व शाम रोग़न ज़ैतून मलें, नए बाल उग आएूँगे। मोटापा ख़्म कर के स्ट्माटत और ददल्कश बनें : हर शख़्स की ये कफ़तरी ख़्वादहश होती है कक उस का स्िस्ट्म स्ट्माटत और ददल्कश हो, स्िस्ट्म से फ़ाल्तू चबी ख़्म कर के मोटापे को कंरोल ककया िा सकता है।

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ननशास्ट्ता और मीिी गग़ज़ाओं के बकसरत इस्ट्तेमाल से मोटापा आ िाता है। गचकनी और मुग़न त गग़ज़ाएूँ

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मोटापे का मोिब बनती हैं, महनत मश ु क़्क़त के काम ना करने और वस्ज़तश ना करने से इंसान मोटापे का

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सशकार हो िाता है। मोटापे से बचने के सलए सादह और ज़ोद हज़म गग़ज़ा खाएं। खाना आदहस्ट्ता आदहस्ट्ता

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और चबा चबा कर खाएं िब तक भूक ना लगे खाना ना खाएं और अभी भूक बाक़ी हो कक खाने से हाथ

खें च लें । हल्की वस्ज़तश और चहल क़दमी करें । नमक और नम्कीन अश्या से परहे ज़ करें , खाने में गोश्त

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कम और सलाद ज़्यादा इस्ट्तेमाल करें । सस्ब्ज़यों का ज़्यादा इस्ट्तेमाल मोटापा दरू करने में एहम ककरदार

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अदा करता है। सुबह ननहार मुंह नीम गरम पानी में एक लीमों का रस िालें और चम्मच शहद की समला

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कर बबला नाग़ा इस्ट्तेमाल करें । फ़ाल्तू चबी वपघल िाएगी। हुवल ्-शाफ़ी: लाख दाना, स्ट्याह ज़ीरा और

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कलौंिी हम्वज़न ले कर पीस लें और कैप्सल ू भर लें । नाश्ते से क़ब्ल एक कैप्सल ू खा लें । अबक़री दवाख़ाना से रूहानी फक्की ले कर उस का इस्ट्तेमाल करें । अपना बी-एम ्-आई मालम ू करें , इस को मालूम

वज़न (ककलो ग्राम में)

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करने का फ़ामल ूत ा ये है : बॉिी मास इंिेक्स (बी-एम ्-आई)

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क़द×क़द (मीटर में)

याद रखें आप कक आप का बी-एम ्-आई २० से २५ की रें ि में है तो आप नामतल हैं। २६ से ३० दिे में मोटापे की हदद ू में दाख़ख़ल हो चुके हैं। ३१ से ३५ दिे में शदीद मोटापे का सशकार हैं। ३६ या इस से ज़ाइद दिात मुहलक मोटापे की ननशांदही करता है। ये भी याद रहे कक िूंही आप का बी एम ् आई २६ दिे में या ऊपर

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माहनामा अबक़री मैगज़ीन के नवम्बर के 2015 के एहम मज़ामीन हहिंदी ज़बान में

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दाख़ख़ल हुआ तो दित ज़ेल बीमाररयां आप के इस्ट्तक़बाल के सलए दौड़ कर आती हैं। अमराज़ क़ल्ब। हाई ब्लि प्रेशर। शग ु र। कोलेस्ट्रोल में ज़्यादती। वप्ते की पथरी। स्िगर की ख़राबी। नाफ़ की हननतया। बवासीर। रहम का सरतान। यरू रक एससि का बिना वग़ैरा। बरस दरू करना: बरस के सफ़ेद धब्बे इंसानी शस्ख़्सयत को गहना दे ते हैं। उन को दरू करने के सलए बाथू का सालन खाएं। ड्रॉपर के ज़ररए बाथूं (बथवे)

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का पानी दाग़ों पर लगाएं या हल्दी बारीक पीस कर ख़ासलस शहद में समलाएं। रोज़ाना सब ु ह व शाम बरस के दाग़ों पर लगाएं या चन्द खिूरें घुटली समेत िलाएं। इन का सफ़ूफ़ बरस के दाग़ों पर ददन में एक

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मततबा लगाएं। क़द बिाना: छोटा क़द, बअज़ औक़ात शस्ख़्सयत पर असर अंदाज़ होता है बबल्ख़ुसस ू िब

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छोटे क़द के साथ पेट बिा हुआ हो। क़द बिाने के सलए चन्द नुस्ट्ख़ा िात पेश ककये िाते हैं। १- अबक़री

दवाख़ाना का "क़द दराज़ कोसत" आज़्माया गया है एक कोसत से दो इंच के लग भग क़द बि िाता है। २-

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तुख़्म सरस, अज्वाइन ् दे सी, हम्वज़न पीस कर आधा चम्मच पानी के साथ हर खाने के बाद पांच माह तक इस्ट्तेमाल करें । ३- साग में अदरक शासमल करें , उस के खाने से क़द और वज़न दोनों बिते हैं। ४-

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राउट मछली या आम मछली के कांटे ले कर हम्वज़न कंघी बट ू ी में समला कर रगड़ें। सब ु ह व शाम दो या

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चार र्ती इस्ट्तेमाल करें । एक महीने में एक इंच क़द बि िाएगा।

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माहनामा अबक़री नवम्बर 2015 शम ु ारा निंबर 113________________pg 47

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