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शशि कान्त सुमन
मैं एक दौड़ में शामिल हूं, तमाम भीड़ के साथ, मेरे चारो तरफ लोगों का भागता हुजूम है, मैं कहां हूं ,कुछ पता नहीं क्योंकि भीड़ को भेद पाने वाली नज़र अभी पायी नहीं | लोगों का पता नहीं- कमोवेश मेरे लिये यह दौड़ अन्धी नहीं। लोग एक दूसरे को धकियाते,बतियाते गिरे हुये को लतियाते इस अंतहीन दौड़ में शामिल हैं। मैं भी दौड़ता हूं- कभी निर्लिप्त भाव से, कभी लिप्त होकर कभी गिरे हुये को बचाकर कभी पैतरा बद