िकिशनजी किे बारे मे बताइए ? िकिशनजी से संपर्किर तो किाफी पर्हले से था , उस पर्िरचय किो िमत्रता नहीं किहा जा सकिता। उनसे वास्तिवकि संपर्किर १९८० मे हुआ । हांलािकि पर्ाटी मे हम लोग साथ थे । १९४८ मे किांग्रेस से िनकिल किर सोशिलस्ट पर्ाटी बनी । बाद मे सोशिलस्ट पर्ाटी और आचायर किृपर्लानी किी प्रजा सोशिलस्ट पर्ाटी िकि िमलाकिर पर्ाटी बनाई गई , लेिकिन यह ज्यादा नहीं चल पर्ाया । १९५५ मे राममनोहर लोिहया ने िफर सोशिलस्ट पर्ाटी बनाई । उस समय मै और िकिशनजी दोनो उसमे थे । क्या िकिशनजी से सांगठनिनकि – वैचािरकि एकिजुटता किी मुिलोश्किलो पर्र बातचीत होती थी ? बातचीत तो होती ही थी । समाजवादी आन्दोलन मे शुर से िबखराव किी समस्या रही । समान िवचार रखने वाले लोगो किो एकि जगह किरने मे भारी मेहनत किरनी पर्ड़ती थी और इसकिे बावजूद स्थाियत्व संिदग्ध रहता था । समाजवादी आन्दोलन मे शुर मे आने वाले लोगो किे िलए सत्ता एकि माध्यम था िलोजसकिे जिरए उनकिा उद्देश्य था समाज किो बदलना , लेिकिन जब बाद मे आपर्सी झगड़े बढ़े तो लोग सत्ता मे चले गये लेिकिन िकिशनजी उन लोगो मे थे , जो िहंदस् ु तान मे समाजवादी िवचारधारा किो लेकिर पर्ाटी बनाना चाहते थे। बाद मे उन्होने राजनीितकि संगठनन बनाया उसमे दस साल तकि चन ु ाव नहीं लड़ने किी बात थी । पर्हले किाम किरना िफर उसकिे आधार पर्र एकि पर्ाटी बनाने किी बात थी । इसमे व्यावहािरकि तौर पर्र किाफी मुिलोश्किले रहीं । बहुत लोग समय- समय पर्र अलग होते गए, लेिकिन िकिशनजी उन लोगो मे से थे जो िलोजन्होने प्रयास किरना छोड़ा नहीं । वे दमा किे मरीज थे इसकिे बावजूद वे पर्रू े दे श मे घम ू किर किाम किरते रहे । इधर जब वे ज्यादा अस्वस्थ होने लगे तो मैने उनसे किहा िकि अब आपर्किो नहीं घूमना चािहए, लेिकिन वे सिक्रिय रहना चाहते थे । जब समाजवादी आन्दोलन किे बहुतेरे लोग मौकिापर्रस्ती और सत्तापर्रस्ती किी ओर जा रहे थे , वह समाजवादी िवचारधारा किी पर्ाटी बनाने किी किोिशश किरते रहे । एकि संगठननकितार होने किे अलावा िकिशनजी किी एकि बौिद्धिकि किी भूिमकिा थी, वतरमान भारतीय राजनीित किे पर्िरपर्ेक्ष्य मे उनकिी क्या जगह है ? आज भारतीय राजनीित मे एकि ऐसा अबौिद्धिकि वातावरण है िकि िलोजनकिा नाम राजनीित मे ज्यादा उछलता है , वे पर्ढ़ने – िलखने वाले लोग नहीं है । उनकिे िकिए हुए किा क्या पर्िरणाम होगा वे यह नहीं सोचते। िकिशनजी सोचनेिचंतन किरने वाले व्यिलोक्त थे । वे दृष्टिलोष्ट किी जरूरत किो समझते थे । इसिलए उनकिी बौिद्धिकिता किी िनस्संदेह वतरमान राजनीित किे वातावरण मे एकि प्रेरकि भूिमकिा हो सकिती है । वस्तुतः िकिशनजी किी जो पर्ष्ृ टभूिम थी उसमे समाजवादी आंदोलन मे ऐसे लोग थे जो यह जानते थे िकि तात्किािलकि स्वाथो से चािलत होने वाली घटनाओं किी जगह सोच-समझ किर समाज किो चलाने किा उद्देश्य होना चािहए । माक्सर ने इतना िलखा ,लेिनन ने इतना िलखा
,ट्राटस्किी किो लोग ‘पर्ेन’ किहते थे , वह इतना िलखता था। रोज़ा लक्सम्बगर थीं उसने किैिपर्टल पर्र ‘ द एक्युमलेशन ऑफ किैिपर्टल’ नामकि महत्वपर्ूणर िकिताब िलखी िलोजसकिी भूिमकिा प्रिसद्धि अथरशास्त्री जोन रॉबिबन्सन ने िलखी थी। िहन्दस् ु तान मे भी नरे न्द्रदे व ने ‘बौद्धिधमर दशरन’ नामकि िवख्यात ग्रंथ किी रचना किी । ज्यादा तो नहीं पर्र जेपर्ी ने भी
िलखा । यह दरअसल िवचार िवमशर किी एकि अच्छी पर्रं पर्रा थी । िकिशनजी इस िवचार िवमशर किी पर्रं पर्रा मे थे । वह मानते थे िकि िकिसी किाम किे िलए दृष्टिलोष्ट किो होना जरूरी है। अभी शून्यता किी िलोस्थित है , अंधकिार किी िलोस्थित है । अभी किे राजनीितज्ञो किो िवचार से किोई मतलब नहीं है । इस िडिजनरे शन (अधःपर्तन) किो िकिशनजी किैसे दे खते थे ? वह इसकिे किठनोर आलोचकि थे । पर्हले किाम किरने किी , खुद किो िडिक्लास किरने किी पर्रं पर्रा थी । अब तो भोगवाद है । आजादी किे बाद एकि ऐसा सत्तावादी समूह पर्ैदा हुआ है , जो भयानकि भोगवादी है । लालू प्रसाद इसकिे उदाहरण है । वह नारा किुछ दे ते है लेिकिन उनकिी मंशा सत्ता भोगने किी है । एकि समय वह समाजवादी यव ु जन सभा किे अध्यक थे । उनकिी बेटी किी शादी थी।रे िडियो सुनते हुए मैने सुना, बीबीसी किा िरपर्ोटर र किह रहा था िकि िपर्छले सौ सालो मे ऐसी भव्य शादी नहीं हुई । तो यह राजाओं – महाराजाओं किी नकिल किरना … यह पर्तन है । मल ु ायम िसंह ने भी ऐसा ही िकिया। मायावती किो दे िखए । अब तो यह तय हो गया िकि आपर् सत्ता मे पर्हुंच किर सामंतो किी तरह आचरण किरते है । जमरनी मे फासीवाद किा उत्थान इसी तरह हुआ था । नारा गरीबो किे िलए और िहत रका अमीरो किी । ऐसा यहां भी है । गरीबो किे साथ िकिस तरह किा जुल्म नहीं हो रहा है , आजकिल । अभी राजनीित मे आपर्रािधकि िकिस्म किे लोगो किा प्रभुत्व है । उनकिे हाथ मे किानून है , लाठनी है। वे किमजोरो पर्र किानून थोपर्ते है और खुद उससे मुक्त है । िकिशनजी इन चीजो किी आलोचना तो किरते ही थे , साथ ही इसकिो खत्म किरने वाली वैकििलोल्पर्कि राजनीित किे पर्कधर थे । इतने िनराशाजनकि माहौल मे मूल्यो किी सुनता किौन है ? किब ऐसी चीजो किा असर होता है ? सब किुछ किेवल नेगेिटव होता तो हम आशा छोड़ दे ते । दबाव मे सरकिार किो किुछ शमर किे मारे किरना पर्ड़ता है । संगिठनत राजनीितकि प्रिक्रिया किे रूपर् मे तो सब िनगेिटव िदखाई पर्ड़ता है , पर्र किहीं किोई घटना होती है तो लोग सड़कि जाम किर दे ते है । ऐसी चीजो से एकि भावना बनी है िकि आम जनो किो आपर् उपर्ेित कत नहीं छोड़ सकिते । जैसे औरतो पर्र घरे लू िहंसा किे िखलाफ जो बात उठनी या सच ू ना किे अिधकिार किी जो बात है वह उसी दबाव किा नतीजा है । भीतर-भीतर लोकितांत्रीकिरण किी एकि प्रिक्रिया चल रही है । इससे सत्ताधारी वगर किे उत्तरदाियत्व किो महसूस किरने किा नतीजा नहीं मान सकिते , बिलोल्कि उस दबाव किा नतीजा मानते है जो अनेकि जन आन्दोलनो से बनता है । इसीमे उपर्योिगता िदखती है िकि लोकि शिलोक्त किे दबाव से किुछ लोकितांत्रीकिरण हुआ है । गोहाना मे जो हुआ (दिलतो किे घर जला दे ने किी घटना) उस पर्र जो प्रितिक्रिया अभी है , वैसे बहुत पर्हले नहीं होती , तो यह इस जागरूकिता किा नतीजा है । िकिशनजी और उनकिे जैसे दस ू रे लोग इन साधारण चीजो किी संभावना किो समझते थे और इसीिलए उन्हे महत्वपर्ण ू र मानते थे। लेिकिन ऐसे लोग क्या अकिेले नहीं पर्ड़ते जा रहे है ?
अकिेले पर्ड़ रहे है ऐसा मै नहीं किहूंगा । जो िदखाई दे ता है िसफर उसे सच मान लेने से ऐसा सोचा जा सकिता है । लेिकिन जो धत ू र लोग सत्ता मे है उनकिी उपर्िलोस्थित मे यिद ऐसा किानन ू बन रहा है िकि सच ू ना किा अिधकिार सबकिो िमले , मिहलाओं पर्र िहंसा रकिे, तब इसकिे पर्ीछे जो शिलोक्तयां है वे किहां से आ रही है ? तब आपर् नहीं किहे गे िकि ऐसे लोग अकिेले पर्ड़ते जा रहे है । मनमोहन िसंह किो किहीं से सपर्ना तो नहीं आया बिलोल्कि उन्हीं शिलोक्तयो किा दबाव था । वास्तव मे आपर्किी बातो मे दम है । िनरथरकि नहीं हो सकितीं , बात अंतिरक मे खो नहीं जातीं । लोिहया ने किहा था ,’मेरी बाते मेरे मरने किे बाद लोग समझेगे । घोड़ा अपर्नी अगली पर्ीढ़ी किे िलए किुछ नहीं छोड़ता लेिकिन आदमी छोड़ता है । िवचार किभी नहीं मरता । डिायलॉबग चलता रहता है । बुिद्धिजीिवयो किी क्या भूिमकिा है ? आिखर जब आपर् मानते है िकि किोई चीज महत्वपर्ण ू र है , तो वह स्थािपर्त होनी चािहए । बनारडिर शा ने किहा है िकि दिु नया किा सारा महान सािहत्य प्रोपर्ोगंडिा है । अगर किोई बौिद्धिकि है तो उसकिी जवाबदे ही बन जाती है िकि वह साहस किे साथ अपर्नी बात रखे ,किम्युिनकिेट किरे । हम जो सोचते है िकि वह लोगो किे िवपर्रीत हो सकिता है , लेिकिन उसकिी प्रितिक्रिया किो झेलते हुए भी आपर्किो किहना होगा। ऐसी बात किहने किा क्या मतलब है , िलोजसे पर्हले से लोग मानते रहे हो । धारा किे िवपर्रीत चलना कितरव्य है नहीं तो बौिद्धिकि होने किा किोई मतलब नहीं है । िकिशनजी इसकिे श्रेष्ठन उदाहरण थे । किोई भी िवचार किैसे फैलता है यह दे खना होगा । िकिशनजी िवकिल्पर् किे बारे मे क्या सोचते थे ? िवकिल्पर्हीनता किे िवरद्धि जो उनकिा जोर था, उसकिा पर्िरपर्ेक्ष्य वही था िकि यह जो
ग्लोबलाइजेशन है ,
साम्राज्यवाद है ,वह अंितम सत्य नहीं है , इसकिा िवकिल्पर् है । १९८९ मे फूकिो ने ‘इितहास किा अंत’ किर िदया
,सोिवयत संघ किे पर्तन किे बाद । इसकिे बाद सैमुएल हिलोन्टं ग्टन किी िकिताब आई ‘सभ्यताओं किा संघष’र’ , िलोजसमे खासकिर इस्लाम किो किेन्द्र मे रखा गया । फूकिो किहता है िकि किहीं किोई िवरोध नहीं है ,लेिकिन
१९९१ मे अमेिरकिा
युद्धि मे उलझ गया । अमेिरकिी वचरस्ववाद किी बौिद्धिकि तरफदारी साम्राज्यवाद किो और ग्लोबलाइजेशन किो उिचत बताती है लेिकिन समाजवादी जन पर्िरष’द किी मान्यता रही है िकि गोबलाइजेशन समाधान नहीं बिलोल्कि समस्या है । वह इसकिे िखलाफ अलग व्यवस्था किी बात किरती है , इसिलए िकिशनजी हमेशा एकि िवकिल्पर् किी बात किरते थे , िलोजसकिे बारे मे उनकिी स्पर्ष्ट समझ थी। उन्होने अपर्नी िकिताब किा नाम भी रखा – ‘िवकिल्पर्हीन नहीं है दिु नया’ । िकिशनजी छोटे आन्दोलनो किो एकिजट ु किरने किे िलए लगातार सिक्रिय रहते थे । उनकिे बीच मतभेदो किो खत्म किरने या किम किरने किे िलए वे क्या किरते थे ? सवरप्रथम जो चीज है वह है आम लोगो किी िचन्ता । वह इसकिे आगे किी सारी बाते इसी किो ध्यान मे रख किर किरते थे । िबहार मे उन्होने माले किो साथ लेने किी बात किही , जबिकि उससे वैचािरकि मतभेद हो सकिते थे। मै खुद माले किा आलोचकि रहा हूं । मेरी आलोचना थी िकि रूस व चीन किे ऐितहािसकि अनुभवो से इसने सीखा नहीं । चीन
मे १९४९ मे क्रिांित शुर हुई। वहां किी िलोस्थित तब दस ू री थी । आज भारत मे ऐसा नामुमिकिन है , क्योिकि सत्ता किे पर्ास हिथयार बड़े है । िहंसा किी राजनीित खुद किो पर्रािलोजत किरने वाली होती है । इससे शासन तंत्र किो बहाना िमल जाता है जो खुद बड़ा िहंसकि है । लेिकिन आज किी व्यवस्था और नौकिरशाही इतनी अमानवीय हो गई है िकि उसकिा प्रितरोध िहंसा से नहीं िकिया जा सकिता ।इसिलए माले किे साथ किे मतभेदो से ज्यादा जरूरी सवाल यह रहता है िकि पर्हले एकिजट ु ता बने । मैने खद ु माले किी इसकिे िलए प्रशंसा भी किी िकि उसकिे लोग दिलतो – िपर्छड़ो किे बीच जा किर किाम भी किर रहे है । हमारी मान्यता है िकि जो छोटी राजनीितकि इकिाइयां है , वे जनतांित्रकि होगी । बड़ा ढांचा बनाएंगे तो नौकिरशाही रहे गी और वह िफर संवेदनहीन हो जाएगी । वह खुद किी सुिवधा बनाए रखती है लेिकिन आम लोगो किी , नीचे किे लोगो किी समस्या पर्र ध्यान नहीं दे गी । िकिशनजी किहते थे िकि हमारी समझ यह होनी चािहए िकि नौकिरशाही जो असंवेदनशील हो गई है , उसकिे ऊपर्र जो लुटेरे राजनीितकि नेता है , उन पर्र रोकि लगे । इसकिे िलए छोटे -छोटे जनान्दोलनो किी आपर्सी एकिजुटता किा महत्व वे समझते थे । गांधीजी किे प्रित उनकिी सोच बड़ी सकिारात्मकि थी , ऐसा क्यो ? अंितम दौर मे वे गांधीजी किे िवचारो से प्रभािवत थे । गांधीजी किो ज्यादा पर्ढ़ने लगे थे । गांधीजी से पर्रू ी दिु नया किा स्वरूपर् बदल सकिता है । पर्ेट्रोिलयम किे दाम किी बात ले । किोई यह नहीं किहता िकि आिखर इतनी मोटरे क्यो ? एकि अथरशास्त्री था ई.एफ. शूमाखर । वह जमरन था । वह किींस किा िशष्य था । उसने एकि िकिताब िलखी ‘स्मॉबल इज ब्युिटफुल’ । इसमे उसने छोटी इकिाइयो किी तरफदारी किी थी । िद्वतीय िवश्वयुद्धि किे बाद इंग्लैण्डि मे जब लेबर पर्ाटी सत्ता मे आई तो उसे किोयला उद्योग किे राष्ट्रीयकिरण किे समय एडिवाइजर बनाया गया था । उसने ध्यान िदया था िकि किोई भी अथरशास्त्री पर्ंज ू ी और आय किो नजरअन्दाज किरकिे नहीं चल सकिता । जब हम धरती किी बात किरे , तो किोयला पर्ानी किो आय नहीं किहे गे । यह पर्ूवर किी जमा रािश है , वह चुकि सकिती है। उससे सदा किे िलए इंतजाम नहीं हो सकिता । गांधीजी ने किहा था िकि दिु नया मे हर आदमी किी जरूरत किो पर्ूरा किरने लायकि किाफी चीजे है , लेिकिन एकि व्यिलोक्त किी लोलुपर्ता किो वह पर्ूरा नहीं किर सकिती है । शूमाखर ने गांधीजी किो किोट िकिया था । िकिशनजी गांधीजी किे इस महत्व किो नोट किर सकिते थे । वह किहते थे िकि हम लोग िलोजन समस्याओं से आज टकिरा रहे है उनकिे बारे मे २०वीं सदी किे शुर मे गांधीजी ने हमारा ध्यान खींचा था । आइंस्टाइन ने उनकिे बारे मे िकितनी बड़ी बात किही थी । गांधीजी अप्रासंिगकि नहीं है । िकिशनजी ने उनकिा महत्व समझाने किी किोिशश किी। अंत मे िकिशनजी किे बारे मे अपर्नी तरफ से किुछ और किहना चाहे गे ? और किुछ तो नहीं , यही किहूंगा िकि उनमे किाफी धैयर था । हम लोग बहुत-सी चीजो किो लेकिर उत्तेिलोजत हो जाते है। ऐसा उनमे िदखाई नहीं दे ता था । संवेदनशील होने किी वजह से पर्ॉबिलिटकिल आदमी लेिकिन उन्हे मैने ऐसा नहीं दे खा ।
जल्द िरएक्ट किरता है ,