Akhand Jyoti 1979

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चा हए साहसी, िज मेदार

यग ु नमाण योजना, शतसू ी काय म म बँट हुई है । वे यथा थान, यथाि थ त, यथासंभव कायाि वत भी कए जा रहे ह, पर एक काय म अ नवाय है और वह यह क इस वचारधारा को जन-मानस म अ धका धक गहराई तक व ट कराने, उसे अ धका धक यापक बनाने का काय म परू त परता के साथ जार रखा जाए। हम थोड़े यि त

यग ु को बदल डालने के लए पया त नह ं ह। धीरे -धीरे सम त मानव समाज को स भावना स प न एवं स माग माग बनाना होगा और यह तभी संभव है जब यह वचारधारा गइराई तक जन-मानस म व ट कराई जा सके। इस लए अपने आस-पास के े म इस काश को यापक बनाए रखने का काय तो प रवार के यि त को करते ह रहना होगा।

येक बु ध

अ य कोई काय म कह ं चले या न चले, पर यह काय तो अ नवाय है क इस वचारधारा से अ धका धक लोग को भा वत करने के लए नरं तर समय, म, तन एवं मन लगाया जाता रहे । जो ऐसा कर सकते ह, िजनम ऐसा करने

क व ृ उ प न हो गई है , उ ह हम अपना उ रा धकार कह सकते ह। धन नह ं, ल य हमारे हाथ म है , उसे परू ा करने का उ रदा य व भी हमारे उ रा धकार म कसी को मल सकता है । उसे लेने वाले भी कोई बरले ह ह गे। इस लए उनक खोज तलाश आरं भ करनी पड़ रह है ।


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