Pravin abhishek (9)

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वर्ष8 अंक 21 n 1-15 नवंबर 2015 n ~ 25

दीपावली ववशेषांक

शब्दो् का समय

कहानियां । कनिताएं । आत्मकथ्य । संस्मरण । डायरी । धरोहर



www.shukrawaar.com

वर्ष 8 अंक 21 n 1 से 15 नवंबर 2015 स्वत्वािधकारी, मुद्क एवं प्​्काशक क्​्मता सिंह िंपादक अंबरीश कुमार िंपादकीय िलाहकार मंगलेश डबराल फोटो िंपादक पवन कुमार

दीपावली ववशेष

िंपादकीय िहयोगी

सववता वम्ा​ा अंजना वसंह अिनल चौबे (रायपुर) पूजा िसंह (भोपाल) अिवनाश िसंह (िदल्ली) अिनल अंशुमन (रांची) कुमार प्​्तीक अजय कुमार पांडे

कला

प्​्वीण अिभषेक

महाप्​्बंधक

एस के वसंह +91.8004903209 +91.9793677793 gm@shukrawaar.com

िबजनेि हेड

शरद कुमार शुक्ला +91. 9651882222

ब्​्ांिडंग

कॉमडेज कम्युिनकेशन प्​्ा़ िल़

26 | शब्दो्का समय

कहासनयां, कसवताएं, िंस्मरण, आत्मवृत्, यात्​्ा: फणीश्​्रनाथ रेणु, हसरशंकर परिाई, स्वेतिाना सनकोिायेसवच, सवष्णु खरे, नरेश िक्िेना, िीिाधर जगूड्ी, इल्बार रल्बी, रवी्द्वम्ास, िंजीव, मदन कश्यप, पंकज चतुव्ेदी, कुमार अंबुज, िंजय कुंदन, नीिेश रघुवंशी, मोसनका कुमार, अनुज िुगुन, रीता दाि राम, आत्मा रंजन.

8 | स्वायत्​्बनाम समर्पषत

िव्​्ोच्​् न्यायािय ने िरकार के राष्​्ीय न्यासयक आयोग का प्​्स्ाव खािरज करके एक सववाद और बहि को पैदा कर सदया है.

12 | स्वर्षकाल बनाम जंगलराज

प्​्िार प्​्बंधक

यती्द् कुमार ितवारी +91. 9984269611, 9425940024

भाजपा जंगिराज का जुमिा उछाि रही है, िेसकन इि भ्​्ामक प्​्चार के बावजूद सबहार के मतदाता िोकतंत् की राह सदखाने के सिए तैयार है्.

yatendra.3984@gmail.com

सिसध िलाहकार शुभांशु वसंह

shubhanshusingh@gmail.com

+91. 9971286429 सुयश मंजुल

िंपादकीय काय्ा​ालय

एमडी-4/304, सहारा ग्​्ेस, जानकीपुरम लखनऊ, उत्​्र प्​्देश-226021 टेलीफैक्स : +91.522.2735504 ईमेल : shukrawaardelhi@gmail.com www.shukrawaar.com

DELHIN/2008/24781 स्वत्वािधकारी, प्क ् ाशक और मुदक ् क्म् ता सिंह के सिए नोवा पब्लिकेशन एंड िप्ट्ं ि्,स प्िॉट 9-10, िेकट् र-59, फेज-2, फरीदाबाद, हसरयाणा िे मुस्दत एवं दूिरी मंसजि, ल्ाी-146, हसरनगर आश्म् , नयी सदल्िी-110014 िे प्क ् ासशत. िंपादक : अंबरीश कुमार (पीआरल्ाी अिधसनयम के तहत िमाचारो्के चयन के ि​िए िजम्मेदार) िभी कानूनी िववादो्के ि​िए न्याय क्​्ेत्िदल्िी होगा.

18 | सोने की बढ्ती चमक

22 | ज्ायका बनाम बदज्ायका

72 | स्वप्नलोक-सी धरती पर

76 | भव्यता का नया अध्याय

सपछिे छह महीने मे्िोने की कीमत मे्भारी उतार-चढ्ाव आया है. िेसकन खरीदारो्के आशावादी र्ख िे इिकी मांग सफर िे बढ्गयी है.

िुंदरता के सिहाज िे ब्सवट्जरिै्ड के िभी शहर बेजोड्है्. स्वप्निोक जैिे इि देश मे्एक अनोखी शांसत हर जगह व्याप्त सदखती है.

दीवािी पर घरो्मे्समठाई का आना जर्री होता है और इिी के िाथ नकिी और समिावटी समठाइयो्का बाजार भी गम्सहो जाता है.

छोटे बजट के सफल्मो् के िाथ-िाथ अब बड्ेबजट की सफल्मो् का नया दौर भी शुर् हो गया है. कम िे कम छह ऐिी सफल्मे् आने वािी है्.

शुक्वार | 1 िे 15 नवंबर 2015

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आपकी डाक

बदल गया है बॉलीिुड

जाये कहां रकसान

हाि मे् ही के्द् िरकार ने अपने के्द्ीय कम्सचासरयो्के सिए बोनि आसद का एिान कर सदया. इि खबर को टीवी पर देखने के दौरान ही ‘शुक्वार’ पस्​्तका मेरे हाथ मे्थी. थोड्ी देर बाद जब पस्​्तका खोिा तो इिमे्छपा एक िेख ‘इि अकाि वेिा मे्’ मुझे कचोटने िगा. इि त्योहार के मौिम मे्िरकार ने सकिानो्के बारे मे् क्यो् नही् िोचा. पूरे देश का पािन पोषण करने वािे सकिान आसखरकार उपेस्कत क्यो् रहते है्. सचन्यम समश्​् के इि िेख मे् सकिानो् के सिए कई िुझाव भी सदये गये है्. इिमे् अकाि और िूखे िे िड्ने की कई योजनाओ् के बनाने के बारे मे् जानकारी भी दी गयी है. हमारी िरकार कृसष को घाटे का िौदा बनाने पर िगी है. ऐिा िरकार की नीसतयो् िे िगता है. बेहतर होता प्​्धानमंत्ी अपने अन्नदाता िुखी भव के बात को जमीनी शक्ि देते. आशीष कन्नौरजया, छपिा (रिहाि)

कूड्ा खाती गाय

सफरदौि खान का िेख ‘सियाित के सिए गाय’ अक्टूबर के दूिरे अंक मे् पढ्ा. मै्ने गाय को अपने आिपाि की गसियो्मे्कूड्ा खाते देखा है. कई गाय तो मरने की अवस्था मे्बेढंग पड्ी रहती है. गाय हम िबको स्​्पय है. सफरदौि जी के िेख मे् मुब्सिम शािको् की गाय के प्​्सत ईमानदारी िाफ सदखाई देती है. अक्िर शहरो्मे् िोग गाय को दूध सनकािने के बाद छोड्देते है.् वह कई घरो् का बचाखुचा, िड्ा-गिा फि िब्लजयां आसद खाकर शाम को अपने मासिक के यहां चिी जाती है. इतना ही नही् आवारा गाय के बछड्े सदनभर हमारे िड्को् पर िोगो् 4

शुक्वार | 1 िे 15 नवंबर 2015

सफल्मे्िमाज का आईना रही है्. बदिते िमाज मे् बॉिीवुड का चेहरा भी बदिा. इिकी िोच पर भी िमाज और तकनीक के बदिाव का अिर िाफ सदखा है. सफल्मी दुसनया की पड्ताि करता अक्टूबर का दूिरा अंक पढ्कर सफल्मो् की बदिती र्परेखा का पता चिा. सफल्मो् मे् नयी तकनीक और कहासनयो् को िेकर युवा सनद्​्ेशक सकतने िजग है यह पता चिा. पुरानी सफल्मो् मे् तकनीकी का आभाव था. िेसकन हमारे नये सनद्​्ेशक इन चीजो्पर ज्यादा ध्यान देते नजर आ रहे है्. हसर मृदुि का िेख ‘एक ऊंची उड्ान’ के जसरये युवा सनद्​्ेशको्की िोच

का पता चिा. पटकथाकार िंजय चौहान के िेख िे कहानी की अहसमयत का िही हाि जाना. वास्​्व मे्सकिी भी सफल्म के सिए कहानी का अहम स्थान होता है. अच्छी सफल्मो्की कहानी भी अपने आप मे्खाि होती है. इन िब के बीच िुरो् के िाज भी बदिते जमाने मे् कैिे तकनीकी ने बदि सदया असमत स्​्तवेदी का िेख ‘िुरो् का नया दौर’ िाफ बतिाता है सक अब िब कुछ मधुर कंठ के भरोिे नही्है. गाने का चुनाव भी ‘िांग बै्क’ के जसरये होता है.

की मार खाते रहते है्. गाय एक उपयोगी पशु है. इि बात को िभी मानते है. इनके मासिको्को इनकी िही देखभाि करनी चासहए.

िे पय्ासवरण िंरक्​्ण की तरफ की इशारा करता रहा. मुकेश नौसटयाि की कहानी अपने आप मे् पसरपूण्स िगी. कहानी का अंत एक िन्न खामोशी सिये हुए था. जो बहुत कुछ िोचने को मजबूर करता है.

रशवेश शुक्ला, गोिखपुि( उत्​्ि प्​्देश)

नेपाल से कटुता

भारत िे नेपाि के िंबंध हमेशा िे मधुर रहे है्. िेसकन हाि के सदनो् मे् दोनो् देशो् मे् कई मुद्े पर तल्खी बढ्ती सदखी. उद्​्व प्याकुरेि का सिखा ‘नाकेबंदी का सनसहताथ्स’ कई तरह के िंकेत देता सदखायी सदया. भारत-नेपाि के सरश्तो् मे् आयी खटाि की वजह मधेिी आंदोिन रहा. पर इि मुद्े को दोनो्देश िहज ढंग िे हि कर िकते थे. भारत को यह िही तरह िे िमझना चासहए नेपाि हमारा एक शांसत स्​्पय पड्ोिी है जो चीन और पासकस्​्ान िे कम िक्​्म है. ऐिे मे् नेपाि को िेकर ज्यादा टािमटोि िे बचना चासहए. नेपाि ने अपनी व्यवस्थाएं भारत को ध्यान मे्रखकर की है. इन हािात मे् भारत को अपने इि पड्ोिी का पूरा खयाि रखना चासहए. भिे ही यह प्​्िंग हाि सफिहाि मंद पड् गया हो , िेसकन भसवष्य मे् इिका ध्यान रखना होगा. रनरशकांत जमारनया, गाजीपुि( उत्​्ि प्​्देश)

कहानी की सच्​्ाई

पहाड्ो्के बुग्याि की कहानी ‘खतरा’ अक्टूबर के दूिरे अंक मे् अच्छी िगी. हमेशा िे प्​्कृसत को िोगो् ने छेड्ने की कोसशश की है. कहानी के जसरये िेखक ने िच्​्ाई िे र्बर् कराया. कैिे कबीिे को बेदखि कर िरकारी कम्सचासरयो् ने वहां अपनी जगह बनायी िाफ सदखायी देता है. खतरा कहानी शीष्सक कई तरह

पंकज अग्​्हरि, िायपुि(छत्​्ीसगढ्)

िामरकशोि प्​्जापरत, भोपाल(मध्य प्​्देश)

धम्षकी राजनीरत

अंसतम पन्ना पर ई श्​्ीधरन का सिखा िेख ‘धम्स राजनीसत नही्’ भारतीय राजनीसत की दशा को बया करता सदखा. इिने कई तरह िे धम्स के सनजी होने की बात पुख्ता की. मेट्ो मैन श्​्ीधरन अपने काम के सिए जाने जाते रहे है.् उनका यश एक कत्सव्यसनष्​् असभयंता के तौर पर है. पर अक्टबू र अंक मे्छपा यह िेख कई तरह िे धम्स की पोि खोिता है. नये तरह िे धम्स की पड्ताि का यह चेहरा बहुत कुछ सिखाता नजर आया. रकसलय िस्​्ोगी, भरिंडा (पंजाि)

पाठको्से रनवेदन

शुक्वार मे्प्​्कािशत सरपोट्​्ो्और रचनाओ्पर पाठको्की प्​्सतसक्​्या का स्वागत है़ आप अपने पत्​्नीचे िदए गए पते पर या ई-मेि िे भेज िकते है् एमडी-4/304, िहारा ग्​्ेि, जानकीपुरम, िखनऊ उत्​्र प्​्देश-226021 टेिीफैक्ि : +91.522.2735504 ईमेि : shukrawaardelhi@gmail.com



मास् राजपाट ट हेड

पलटवार

व्यंग्यरित्​्: इिफान

रमलो मगर प्यार से

पहिे वे एनएिजी के कमांडो रह चुके थे. जब िुसरंदर सिंह ने सकरण सरसजजू को अपना पसरचय सदया तो उन्हो्ने मुस्कुराते हुए कहा सक आपिे समिकर अच्छा िगा. यह भी क्या िंयोग है सक सदल्िी पुसि​ि ने िुसरंदर सिंह के सखिाफ एनडीएमिी के एक कम्सचारी के िाथ मारपीट करने और फज्​्ी सडग्​्ी होने का मामिा दज्सकर रखा है. सदल्िी पुसि​ि के्द् िरकार के अधीन है.

घोड्ेके बदले हाथी

िुंदर नक्​्ाशी की गई थी. वे इिे पाकर बहुत खुश हुए और उनिे कहने िगे सक आपने तो मेरे मन की बात पढ् िी. मेरी बेटी ने मुझिे कहा था सक मेरे सिए भारत िे हाथी िेकर आना. अब वह इिे देखकर खुश हो जायेगी.

सदल्िी मे्भाजपा और दूिरे नेताओ्के बीच भिे ही टकराव चिता हो. पर बाहर वे एक दूिरे िे बड्े प्यार िे समिते है्. हाि ही मे् नेशनि सिक्योसरटी गाड्सि के 31वे् स्थापना सदवि पर एनिीआर के मनेिर मे्एक िमारोह आयोसजत सकया गया. इिमे् गृह राज्यमंत्ी सकरण सरसजजू और आप सवधायक िुसरंदर सिंह दोनो् ही आमंस्तत थे. मािूम हो सक राजनीसत मे्आने के

वेक ् यै ा नायडू का जवाब नही्. वे अपनी तुकबंदी िे पत्​्कारो् के चेहरो् पर तो मुस्कान िाते ही रहते है्. हाि ही मे् उन्हो्ने कुछ ऐिा कर सदखाया सजि​िे भारत की यात्​्ा पर आये स्वीडन के शहरी सवकाि मंत्ी मेहमेत कपिान भी प्​्िन्न हो गये. कपिान ने उन्हे् उपहार मे् एक स्​्कस्टि का घोड्ा सदया. जब वे चिने िगे तो उन्हे् नायडू ने सरटन्स सगफ्ट के र्प मे् िकड्ी का हाथी सदया सजि पर काफी

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शुक्वार | 1 िे 15 नवंबर 2015

शाह का राहु योग

सबहार नतीजे आने के पहिे िे ही भाजपा अध्यक्​् असमत शाह की जन्म कुंडिी पर पाट्​्ी मे् चच्ास शुर् हो गयी है. पाट्​्ी नेताओ् की बात पर भरोिा करे् तो महात्मा गांधी, सवंस्टन चस्चसि, अब्​्ाहम सिंकन और नेपोसियन मे् एक बड्ी िमानता है. इनकी तरह असमत शाह की कुंडिी मे् भी राहु 10वे् घर मे् है. दिवे् मे् राहु के मायने है सक ये व्यब्कत अपनी कड्ी मेहनत और दृढ् इच्छा शब्कत िे जीवन मे् ऊंचाइयां हासि​ि करेग् ,े िेसकन सशखर पर पहुच ं जाने के बाद िंबे िमय तक उि उपिब्लध का आनंद नही् िे िके्गे. इिसिए िब सबहार नतीजो् और उिके बाद पाट्​्ी मे् होने वािे बदिाव की अटकिे् िगा रहे है्. इिीसिए वे सवधानिभा चुनाव के दौरान प्​्चार बीच मे् ही छोड्कर एक सदन के सिए अपने गांव मानिा आ गये, जहां उनके पूव्सजो् का बनवाया हुआ मंसदर है. वहां उन्हो्ने पाट्​्ी की जीत के सिए सवशेष पूजा अच्सना करवायी. इि मंसदर मे् उनकी इतनी आस्था है सक जब वे जेि मे्थे तब नवरात्​्मे्उनके बेटे ने उनकी ओर िे वहां पूजा करवायी थी.


संमास् पादकीय ट हेड

थाली से बाहर दाल प्

अंबरीश कुमार

बारह राज्यो् मे् आठ हजार से ज्यादा छापे मारे गये जजसमे् करीब पचासी हजार टन दलहन जब्त की गयी. सबसे ज्यादा करीब 58 हजार टन महाराष्​् मे् जब्त की गयी, जहां भाजपा-जिवसेना की सरकार है.

ध ् ानमंत्ी नरेद् ्मोदी सजन आकष्क स नारो्पर िवार होकर ित्​्ा मे्आये थे उिमे्िे एक नारा ' बहुत हुई महंगाई की मार, अबकी बार मोदी िरकार' काफी मशहूर हुआ था. पर दुभा्गस य् िे गरीब िे अमीर आदमी के रोजमर्ास के भोजन का सहस्िा दाि अब आम िोगो् की थािी िे बाहर होती जा रही है. सपछिे कई महीनो्िे अरहर की दाि की कीमतो्ने पचाि िाि का सरकॉड्स तोड सदया है. मोदी की यही छसव बनायी गई थी सक वे एक कुशि प्​्शािक है्. अपने कडे फैि​िो् की वजह िे देश मे् िुशािन िे आये्गे. बाकी िब वादे छोड भी दे् तो प्याज और दाि ने उनके राज मे्जो सरकॉड्स बनाया है, वह िुशािन के दायरे मे् तो नही् आता. प्याज तीन महीने िे ज्यादा िमय तक पचाि िे अस्िी र्पये के भाव रही तो अरहर की दाि िवा दो िौ र्पये सकिो तक गयी. इनकी जमाखोरी भी हुई. िबिे ज्यादा जमाखोरी उन राज्यो्मे्पायी गयी जहां भाजपा का राज रहा. इिसिए के्द् िरकार इि मामिे मे् दूिरे दिो् की राज्य िरकारो् पर तोहमत िगा कर बच नही् िकती. अरहर की दाि िमूचे उत्​्र भारत मे् एक िमय हर हाि मे् भोजन का सहस्िा होती है. अपवाद है तो सिफ्फ हसरयाणा, पंजाब और पस्​्िमी उत्​्र प्​्देश का एक सहस्िा. दस्​्कण मे् भी िांभर मे् दाि जर्र रहती है. दाि मे् खािकर अरहर दाि की मांग िबिे ज्यादा रहती है. इिकी कीमत भी िबिे ज्यादा होती है. सपछिे िाि अरहर की फि​ि बहुत कमजोर थी और दाि का िंकट पैदा होगा यह भी िभी को पता था. खािकर व्यापासरयो् को तो यह जानकारी पहिे िे होती है. पर के्द्िरकार इि बात को िेकर िापरवाही करती रही. के्द् िरकार ने अरहर की दाि के िंकट को गंभीरता िे सिया ही नही्. वन्ास अरहर की दाि के आयात का फैि​िा िमय पर होता और जमाखोरो्पर कार्सवाई भी. अक्तूबर के अंत तक देश के बारह राज्यो् मे् आठ हजार िे ज्यादा छापे मारे गये सजिमे् करीब पचािी हजार टन दिहन जल्त की गयी. इिमे् िबिे ज्यादा दाि करीब 58 हजार टन अकेिे महाराष्​्मे्जल्त की गयी, जहां भाजपासशविेना की िरकार है. अब इि कार्सवाई का श्​्ेय भी हम उन्हे्दे िकते है्. पर जमाखोरो्को िंरक्​्ण कहां ज्यादा समि रहा था. इि​िे इिका भी पता चिता है. सबहार चुनावो् मे् दाि मुद्ा

बनी तब इतनी तेजी िे इि मामिे मे् कार्सवाई की गयी वन्ास तो दाि और महंगी होती. िोशि मीसडया पर िबिे ज्यादा चुटकुिे भी अरहर दाि को िेकर गढे गये तो 'हरहर मोदी ' का जवाबी नारा बना ' अरहर मोदी'. के्द् िरकार की िाख जब बुरी तरह प्​्भासवत हुई तब जाकर िरकार चेती. इि​िे मोदी िरकार के िुशािन के दावे पर भी िवासिया सनशान िगा है. यहां तक सक कन्फ़ड े रेशन ऑफ आि इंसडया ट्ड ्े ि्सयानी कैट को भी िरकार िे खुदरा श्​्ृंखिा चिाने वािी कंपसनयो् पर नजर रखने की गुजासरश करनी पडी. कैट ने इन कंपसनयो् की जमाखोरी की सनगरानी के सिए सवत्​् मंत्ािय को पत्​् भी सिखा. इि िबिे यह िाफ़ हो गया सक के्द् िरकार ने िमय रहते न तो जमाखोरी के सखिाफ कोई कडी कार्सवाई की और न ही िमय पर दाि का आयात सकया. यह क्या महज िापरवाही थी या जानबूझ कर सकया गया, सजिके चिते कई कंपसनयो् को बडा फायदा पहुच ं ा. कई बार िरकार के देरी िे होने वािे फैि​िो् का फायदा भी बडे व्यापासरक घराने िेते है्. इिका ध्यान िरकारो् को रखना चासहए. दूिरा उदाहरण प्याज का था सजिकी कीमत अस्िी िे िेकर िौ र्पये तक गयी. व्यापार जगत मे्िभी जानते थे प्याज का िंकट होने वािा है. पर इिके सिए भी देरी िे िारे कदम उठाये गये. दाि हो या प्याज दोनो् गरीब के सिए जर्री है. मजदूर तो दाि रोटी सिफ्फप्याज नमक के िाथ खा िेता है. दो सकिो दाि भी एक छोटे िे गरीब पसरवार के सिए महीने भर चि जाता है. ऐिे मे्प्याज और दाि अगर िौ र्पये िे िवा दो िौ र्पये सकिो के भाव पहुंच जायेगी तो वे पसरवार कैिे अपना भोजन कर पाये्गे. अरहर की दाि महंगी हुई तो गरीब पसरवार की थािी िे अरहर की दाि बाहर हो गयी. उिकी जगह चना,मिूर जैिी दाि आ गयी है. पर इनका भाव भी कम नही्है. अरहर के बाद उडद और मूंग की फि​ि इि बार कमजोर है. उत्र् प्द् श े मे्उडद की उपज मे्47 फीिद और मूंग की उपज मे् 34 फीिदी की सगरावट आने की आशंका है. ऐिे मे्िरकार को इि मुद्ेपर गंभीरता िे सवचार करना चासहए, जो महंगाई पर काबू रखने के वायदे के िाथ ित्​्ा n मे्आयी थी. ambrish2000kumar@gmail.com शुक्वार | 1 िे 15 नवंबर 2015

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देशकाल

न्याय: स्वायत्​् बनाम समर्पित अर्ण कुमार न्​्िपाठी

रा

जग िरकार के ित्​्ा मे् आने के कुछ ही िमय बाद 13 राज्यपािो् ने इस्​्ीफे दे सदये. आि्​्य्सहोता है सक क्या यह िारे इस्​्ीफे स्वेच्छा िे सदये गये थे. इिी के िाथ एनडीए िरकार के शपथ िेने के िाथ महत्​्वपूण्स िंस्थाओ् मे् उच्​् पदो् पर बैठे तमाम िोगो् के इस्​्ीफे हुए. इनमे् िे कुछ िोगो् के काय्सकाि चंद महीने बचे थे. कुछ के एक महीने िे भी कम थे. इस्​्ीफा देने वािे िोगो्मे्असखि भारतीय िेवाओ्के वे नौकरशाह थे जो राष्​्ीय िंस्थानो् के सनदेशक, चेयरमैन और राष्​्ीय शोध िंस्थानो् के शीष्स पदो् पर सवद्​्मान थे. यह सटप्पणी न तो हाि मे् पुरस्कार िौटाने वािे (कसथत वामपंथी) िेखको् की तरफ िे की गयी है और न ही कसथत मुख्य सवपक्​्ी दि कांग्ेि की तरफ िे, न ही यह सटप्पणी भारतीय जनता पाट्​्ी के नाराज नेता शांताकुमार, मुरिी मनोहर जोशी की तरफ िे आयी है. यह सटप्पणी राष्​्ीय न्यासयक सनयुब्कत आयोग को रद्​् करने 8

शुक्वार | 1 िे 15 नवंबर 2015

का फैि​िा देने वािी िुप्ीम कोट्सकी उि पांच िदस्यीय िंवैधासनक पीठ के जज की तरफ िे की गयी है सजिने बहुमत िे फैि​िे का नेतृत्व सकया. यह बात कहने वािे न्यायमूस्तस जेएि खेहकर यही् नही् र्के बब्लक उन्हो्ने जहां मौजूदा व्यवस्था मे् पक्​्पाती सनयुब्कतयो् की तरफ उंगिी उठायी, वही्भाजपा के ही वसरष्​् नेता आडवाणी के एक इंटरव्यू का हवािा देते हुए आपातकाि के आिन्न खतरे की ओर िे आगाह भी सकया. न्यायमूस्तस खेहकर ने पाट्​्ी और पसरवार के िोगो् को दी जाने वािी मौजूदा सनयुब्कतयो् पर िवाि उठाते हुए िाफ कहा सक िंसवधान मे् पद-पुरस्कार व्यवस्था नही्है. यानी इि देश मे् वह िंरक्​्ण व्यवस्था िागू नही्है सजिके तहत कोई भी पाट्​्ी(चुनाव मे् मदद करने वािे) िमथ्सको्, दोस्​्ो् और िंबंसधयो् को पदो् िे नवाजती है. न्यायमूस्तस खेहकर ने कहा सक न्यायपासिका मे्जो सनयुब्कतयां की जाये्उिमे् जो प्​्सतभाएं उपिल्ध है् उनमे् िे िव्सश्ेष् का चयन सकया जाना चासहए. उनके बारे मे् जो

सव्​्ोच्​् न्यायालय ने सरकार के राष्​्ीय न्याजयक आयोग का प्​्स्ाव खािरज करके एक जववाद और बहस को पैदा कर जदया है. और जवधाजयका और न्यायपाजलका के जलए आमनेसामने के हालात बन गये है्. मापदंड है् वे िरकार बदिने के िाथ नही् बदिने चासहए. जबसक गैर न्यासयक सनयुबक् तयो् मे्िरकार बदिने के िाथ यही हो रहा है. रोचक बात है सक न्यायपासिका की तरफ िे िागू की गई कािेसजयम प्​्णािी के बारे मे् ठीक यही सटप्पणी ित्​्ा पक्​्की तरफ िे की जा रही है. जहां अटान्​्ी जनरि मुकुि रोहतगी ने कॉिेसजयम प्​्णािी की आिोचना मे् कहा था सक कॉिेसजयम प्ण ् ािी सिफ्फएक ही सिद्ा्तं पर चि रही है सक आप मेरी पीठ खुजिाओ और मै्आप की. इि बीच सवत्​्मंत्ी अर्ण जेटिी ने कहा सक कॉिेसजयम प्​्णािी की सनयुब्कत तो सजमखाना क्िब की तरह ही होती है. अहिमसत जताने वािे न्यायमूस्तस जे चेिमेश्र ने भी कािेसजयम प्​्णािी मे्पारदस्शसता की कमी का तक्फ सदया है. बब्लक इि मामिे मे् इि प्​्णािी को कायम करने वािे न्यायमूस्तस वम्ास की उि सटप्पणी का सजक्​्भी है सजन्हो्ने इिमे्िुधार की िख्त जर्रत जताई थी. सनयुब्कत प्​्णािी की ईमानदारी, पारदस्शसता के बारे मे् चिी इि बहि िे अिग सजन बड्े


देश की ससंद औि सव्​्ोच्​् न्यायालय: अरिकािो् पि रववाद

खतरो् की ओर इशारा है वे न्यायपासिका की आजादी िे आगे िोकतंत्के अस्​्सत्व तक जाते है्. न्यायमूस्तस खेहकर कहते है्सक कोई हम पर एकतरफा सनष्कष्स सनकािने का आरोप िगाये इि​िे पहिे उन कारणो् को दज्स करना चासहए सजनके नाते इि नतीजे पर पहुंचा गया है. एक अखबार(इंसडयन एक्िप्​्ेि) ने िािकृष्ण आडवाणी का इंटरव्यू इि कैप्शन के िाथ प्​्कासशत सकया था- 26 जून 1975 को आपातकाि िागू सकये जाने के अविर पर. उनके सवचार भयानक र्प िे (ब्सथसतयो्को) उजागर करने वािे थे. उन्हो्ने अपनी राय व्यक्त की थी सक सजन ताकतो् ने िोकतंत् का गिा घो्टा था वे आज पहिे िे ज्यादा ताकतवर है्. खेहकर आडवाणी के हवािे िे कहते है् सक मीसडया की िोकतंत् और नागसरक असधकारो् के सिए कोई वास्​्सवक प्​्सतबद्​्ता नही् है. जबसक नागसरक िमाज िे उि िमय उम्मीद जगी थी जब अन्ना हजारे के नेततृ व् मे्भ्ष ् ्ाचार के सवर्द् आंदोिन खड्ा हुआ था. पर उिका भी अंत सनराशा मे् हुआ. इि​िे आगे अदाित कहती है सक यह उच्​् न्यायपासिका ही है जो नागसरको् के मौसिक असधकारो् की सहफाजत कर िकती है. राष्​्ीय न्यासयक सनयुब्कत आयोग के गठन िंबध ं ी कानून यानी िंसवधान के 99 वे्िंशोधन को खासरज करते हुए सजन चार जजो्के बहुमत ने फैि​िा िुनाया उनमे् िे एक जज मदन बी िोकुर ने यहां तक कहा सक अगर राष्​्ीय न्यासयक सनयुब्कत आयोग मे् काय्सपासिका के िदस्य हो्गे तो मौजूदा िरकार को देखते हुए यह िंदेह पैदा होता है सक वे सकिी िमिै्सगक

व्यब्कत को िुप्ीम कोट्सया हाई कोट्सके जज के र्प मे्सनयुक्त करे्गे. उनका कहना था सक इि िरकार मे्यौसनक र्झान को िेकर सजि तरह का पूव्ासग्ह सदखाई देता है उि​िे िगता नही्सक ऑस्ट्ेसिया या दस्​्कण अफ्​्ीका जैिे देशो् की तरह यहां िमिैस्गक िमुदाय(एिजीबीटी) का कोई िदस्य जज बन पायेगा. यहां पर न्यायपासिका ने अपनी दिीि को िंसवधान के बुसनयादी ढांचे के सिद्​्ांत पर आधासरत सकया है. इि सिद्​्ांत का प्​्सतपादन 1973 मे्िुप्ीम कोट्सकी िबिे बड्ी िंवधै ासनक पीठ की तरफ िे सदये गये केशवानंद भारती के

फैि​िे मे् सकया गया था. परमपूज्य केशवानंद भारती केरि के इंडीर मठ के वसरष्​्पुजारी थे. उन्हो्ने भूसम िुधार िंबंधी राज्य के कानून को चुनौती देते हुए यासचका दायर की थी. इि मामिे मे्िुप्ीम कोट्सने िात और छह जजो्के सवभाजन के िाथ फैि​िा सदया था. िेसकन िंसवधान की बुसनयादी िंरचना वािे आदेश पर तेरह मे्िे नौ जजो्के हस्​्ाक्र् थे. चार के नही्. इि आदेश मे् कहा गया था सक िंिद को िंसवधान की हर धारा को बदिने का असधकार है. यहां तक सक वह मौसिक असधकारो् मे् भी िंशोधन कर िकती है. यह असधकार उिे िंसवधान का अनुच्छेद 368 देता है. िेसकन िंिद एक काम जो नही्कर िकती वो यह सक वह िंसवधान के बुसनयादी ढांचे को नही् बदि िकती. कॉिेसजयम प्​्णािी बनाम एनजेएिी के इि फैि​िे मे्बहुमत का िारा फैि​िा िंसवधान के बुसनयादी ढांचे के सिद्​्ांत पर ही के्स्दत है. आयोग को खासरज करने वािे िभी जजो् ने िाफ कहा है सक अगर जजो्की सनयुबक् त आयोग करेगा तो िंसवधान के बुसनयादी ढांचे का उल्िंघन होगा. इिकी वजह है क्यो्सक िुप्ीम कोट्स के िामने सजतने मुकदमे आते है् उनमे् िबिे ज्यादा मामिो् मे् तो के्द् िरकार एक पक्​्कार होता है. ऐिे मे् वह कैिे सनष्पक्​् सनयुब्कत कर िकती है और प्​्सतबद्​् न्यायपासिका कैिे तटस्थ रह िकती है. दूिरी तरफ िरकार, सवधासयका और अिहमसत का फैि​िा देने वािे न्यायमूस्तस चेिमेश्र के अपने तक्फहै्. इन तक्​्ो्मे्है सक न्यायपासिका की स्वायत्​्ता कायम रखने का अकेिा सजम्मा न्यायपासिका का ही नही्है. सफर

असहमत न्यायमूर्तष चेलामेश्र की राय जजो्की सनयुबक् त पर अकेिे न्यायपासिका का सवशेषासधकार नही्होना चासहए. इिमे्िरकार और नागसरक िमाज की दखि होनी चासहए. काॅिेसजयम प्​्णािी मे् दोष देखते हुए उन्हो्ने कहा सक इिमे्सकिी तरह की जवाबदेही नही्है और कई मौको्पर यह नाकाम रही है. उन्हो्ने कहा सक देश ने न्यासयक सनयुब्कत के मामिे मे्कई अस्​्पय सववाद देखे है्सजि​िे िगता है सक दूिरे और तीिरे जजो् के सनण्सयो् के माध्यम िे अस्​्सत्व मे् आई काॅिेसजयम प्​्णािी स्वायत्​् और िक्​्म न्यायपासिका हासि​ि करने की श्​्ेष् प्​्णािी नही् है. काॅिेसजयम प्​्णािी पारदश्​्ी नही् है और भारत के मुख्य न्यायाधीश और िरकार के बीच जो पत्​्ाचार होता है वह िबिे ज्यादा गोपनीयता के िाथ रखा जाता है. पारदस्शसता तास्कफकता का एक आयाम है. सनयुब्कत की प्​्स्कया मे्पारदस्शसता की ज्यादा जर्रत है. काॅिेसजयम प्​्णािी धुंध मे्रहती है और उि तक जनता की पहुंच नही्है, न ही उिका कोई इसतहाि व सरकाड्ससकया जाता है. बि िमय- िमय पर कुछ चीजे्िीक हो जाने िे बाहर आती है्. उन दस्​्ावेजो्तक उिी की पहुंच होती है जो भारत का मुख्य न्यायाधीश बनता है. वरना ज्यादातर जज भी सनयुब्कत की िच्​्ाई जान नही् पाते. न्यायपासिका जनता के हक की अकेिी िंरस्​्कका होने का दावा नही् कर िकती. ऐिी तमाम घटनाएं है् जहां पर न्यायपासिका नागसरक असधकारो्की रक्​्ा मे्नाकाम रही है. अगर हम काय्सपासिका को जजो्की चयन प्​्स्कया िे अिग करते है्तो उि मौसिक सिद्​्ांत िे सवमुख हो्गे सक िोकतंत्मे्िरकार जनता िे चुने हुए प्​्सतसनसध चिाते है्. शुक्वार | 1 िे 15 नवंबर 2015

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देशकाल

सव्​्ोच्​् न्यायालय के मुख्य न्यायािीश न्यायमूर्ति दत्​्ू: न्यायपारलका सव्​्ोपरि जजो् की सनयुब्कत भारत के मुख्य न्यायाधीश िे गैरहासजर रहे. कुि समिाकर मुख्य सवपक्​्ी कॉिेसजयम प्​्णािी के तहत करे्गे यह बात दि कांग्ेि िमेत 26 दिो्ने न्यासयक सनयुब्कत कही् भी िंसवधान मे् उब्लिसखत नही् है. आयोग का िमथ्सन सकया था. इिके बाद 20 िंसवधान के अनुच्छेद 124 और 217 मे्है सक राज्यो् ने इि कानून को अनुमोसदत सकया. िुप्ीम कोट्सऔर हाई कोट्सके जजो्की सनयुब्कत हािांसक िुप्ीम कोट्स ने िरकार िे यह िवाि राष्​्पसत भारत के मुख्य न्यायाधीश और कुछ सकया था सक इि कानून को अनुमोसदत करने िे वसरष्​् जजो् की ि​िाह िे करे्गे. िेसकन जब पहिे सकतने राज्यो् ने बहि की थी. इि तरह मुख्य न्यायाधीश की सनयुब्कत का मामिा होगा का िवाि आयोग का सवरोध करने वािे वकीि तो मुख्य न्यायाधीश की ि​िाह को नही् माना राम जेठमिानी भी उठाते है्. वे कहते है् सक जायेगा. ज्यादातर जन प्​्सतसनसधयो् को दोनो् प्​्णासियो् पर इंसदरा गांधी के शािन और सवशेषकर का फक्फही नही्मािूम. आपातकाि के अनुभवो्, बाबरी मब्सजद सवध्वि ं पर कांग्ेि सजिने पहिे इि सवधेयक का की रोशनी मे्िाि 1981 िे शुर्होकर 1993 िमथ्सन सकया था अब वह बदिी हुई ब्सथसतयो् मे् उभरी कॉिेसजयम प्​्णािी के सवर्द् मे्अिग राग अिाप रही है. कांग्ेि के प्​्वक्ता सवधासयका और काय्सपासिका एकजुट है. रणदीप सिंह िुरजेवािा का कहना है सक सवशेषकर जब िाि 2014 मे् िंिद के दोनो् भारतीय राष्​्ीय कांग्ेि एनजेएिी के मुद्े पर िदनो्िे 99वां िंसवधान िंशोधन कानून पाि माननीय अदाित के फैि​िे का स्वागत करती हुआ तब तो िभी दिो् मे् िव्सिम्मसत थी. यह है. न्यायपासिका की आजादी हमारे िोकतंत्का कानून जब 14 अगस्​्2014 को राज्यिभा मे् मुखय् मुद्ा है. उि पर सकिी प्क ् ार का िमझौता आया तो इिके पक्​् मे् 179 िदस्यो् ने मत नही्हो िकता. पर इि​िे भी आगे जाकर वे जो सदया. सिफ्फएक िदस्य राम जेठमिानी ने इि राजनीसतक बात करते है् वह बेहद अहम है. कानून का पूरी तरह िे सवरोध सकया और उनका कहना है सक एनजेएिी का सनण्सय परोक्​् मतदान मे् सहस्िा नही् सिया. जो भाजपा िे र्प िे िरकार मे् सवश्​्ाि की कमी को सनष्कासित है. उिके एक सदन पहिे िोकिभा पसरिस्​्कत करता है. क्यो्सक िरकार ने सपछिे मे्367 िदस्यो्ने इि सबि के पक्​्मे्मतदान 17 महीनो् मे् िंस्थागत स्वायत्​्ता और सकया. सकिी िदस्य ने सवरोध मे् मतदान नही् िंवैधासनक िुरक्​्ा को कमजोर सकया है. सकया. ज्यादातर िदस्य मतदान के िमय िदन हािांसक कांग्ेि के ही नेता और वसरष्​्

वकीि असभषेक मनु सिंघवी ने इि फैि​िे पर हैरानी जताते हुए उम्मीद जतायी है सक िुप्ीम कोट्सअगिी िुनवाई मे्कॉिेसजयम प्​्णािी की कसमयो्को दूर करेगा. जबसक भारतीय जनता पाट्​्ी के नेता इि फैि​िे को न्यायपासिका बनाम सवधासयका की िड्ाई बनाकर पेश कर रहे है्. वे राजनीसतक दिो्को इि आधार पर गोिबंद करना चाह रहे है् सक इि​िे िंिद की िंप्भुता खतरे मे पड् जायेगी. इि फैि​िे ने देश के राजनीसतक ित्​्ा पक्​्और सवपक्​्को अजीब ब्सथसत मे्डाि सदया है. कांगि ्े ने न्यासयक सनयुबक् त आयोग बनाने की तैयारी की थी िेसकन वह िफि नही् हुई. िेसकन जब भारतीय जनता पाट्​्ी ने इिे पासरत करवाने की कोसशश की तो कांग्ेि ने इिका िमथ्सन सकया. िेसकन अब देश भर मे् बने अिसहष्णुता के माहौि और उि​िे उपजे िांप्दासयक माहौि को देखते हुए कांग्ेि को एनडीए िरकार को दरसकनार करने का इि​िे बड्ा मौका और नही् समि िकता. उि दौरान कसपि सिल्बि इि कानून को न्यायपासिका की स्वायत्​्ता के आधार पर चुनौती देने की बात करते थे. पर सिल्बि ने नैसतक आधार पर वैिा नही्सकया. भूसम असधग्​्हण कानून मे् िंशोधन के अिफि प्​्याि के बाद मोदी के नेतृत्व मे्काम कर रही एनडीए िरकार के सिए यह दूिरा बड्ा झटका है. हािांसक िारे चैनि और अखबार वािे दादरी, फरीदाबाद, किूरी की पुस्क के सवमोचन पर कुिकण्​्ी के चेहरे पर स्याही पोतने, गोमांश खाने-गोरक्​्ा करने, आरक्ण ् पर पुनस्वसचार करने और नीतीश के तांस्तक पूजन पर चच्ास करने और हल्िा मचाने मे् िगे है्, िेसकन िुप्ीम कोट्स ने इि फैि​िे िे देश मे् िंवैधासनक टकराव और भ्​्म की सबिात सबछा दी है. िाथ ही अपनी स्वायत्​्ता के िाथ िोकतंत्के एक मात्​्िंरक्​्क होने की ताि भी ठो्क दी है. यह इतना गंभीर मामिा है सक इिे आिानी िे टािा नही् जा िकता. यह आगे आने वािे िमय मे् हमारी व्यवस्था के िमीकरणो्को पसरभासषत करेगा. िन अस्िी के दशक मे् जहां कांग्ेि पाट्​्ी खड्ी थी, आज वहां भाजपा है. यह अपने सिए

काॅलेरजयम क्या है

राष्​्ीय न्यारयक रनयुक्कत आयोग क्या है

● भारत के मुख्य न्यायाधीश की अध्यक्​्ता मे्बना पांच वसरष्​्जजो्का एक पैनि जजो्की सनयुब्कत की सिफासरश करता है. ● िरकार चुने गये नाम पर आपस्​्त कर िकती है िेसकन िीजेआई उिी नाम को दोबारा भेज िकता है और ऐिे मे्उि व्यब्कत की सनयुब्कत होनी ही है. ● यह प्​्णािी 1993 िे िागू है जबिे सनयुब्कत मे् न्यायपासिका को प्​्ाथसमकता दी गई.

यह भारत के मुख्य न्यायाधीश की अध्यक्​्ता मे् एक छह िदस्यीय पैनि बनाए जाने का प्​्स्ाव था सजिमे्िुप्ीम कोट्सके दो वसरष्​्जजो् के अिावा , के्द्ीय कानून मंत्ी और दो प्​्मुख िोग रखे जाने थे. ● प्​्मुख व्यब्कतयो् का नामांकन िीजेआई, प्​्धानमंत्ी, िोकिभा मे् सवपक्​्या िबिे बड्ी पाट्​्ी के नेता िे पैनि द्​्ारा सकया जाना था. ● अगर पैनि के दो िदस्य सकिी के नाम पर आपस्​्त कर दे्तो उिकी सनयुब्कत नही्होनी चासहए.

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तानाशाही के रवर्द्

वित्​् और सूचना प्​्सारण मंत्ी अर्ण जेटली से वि​िेक कुमार की बातचीत: सुप्ीम कोर्ट के इस फैसले के बारे मे् आपकी क्या राय है? अदालत के इस फैसले का मकसद राजनेताओ् को नीचा ददखाना है. यह न केवल संदवधान के बुदनयादी ढांचे बल्कक संसदीय लोकतंत् को भी नीचा ददखाता है. शीर्ट न्यायालय का कहना है दक जजो् की राजनीदतक दनयुल्कत रोकने के दलए यह कदम उठाना जर्री है? अदालत का यह कहना गलत है दक सुप्ीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश के साथ-साथ न्यादयक दनयुलक् त आयोग मे् प्ध ् ानमंत्ी, कानून मंत्ी और चुने गये दो दवदशष्​् व्यल्कतयो् सदहत नेता दवपक्​् के रहने से जजो् की दनयुल्कत पूरी तरह राजनीदतक हो जायेगी और जज नेताओ् के प्द् त कृतज्​्ाता जतायेग ् .े चुनाव आयोग के सदस्यो् और सीएजी के दनयुल्कत भी सरकार ही करती है् तो क्या इससे इन संस्थाओ् की दवश्​्सनीयता समाप्त हो जाती है. एक न्यायाधीश ने यहां तक कहा दक खुद लालकृष्ण आडवाणी तक आपातकाल का खतरा जता चुके है्? अगर कोई नेता महसूस करता है दक आपातकाल के खतरे है्, तो यह नही् माना जा सकता है दक इन खतरो् से केवल सुपीम कोर्ट ही बचा सकता है. यह नही् भूलना चादहए दक जब 70 के दशक के मध्य मे् आपातकाल लगाया गया था तब राजनेताओ् ने लड्ाई लड्ी थी और सुप्ीम कोर्ट ने घुरने रेक ददये थे. इसदलए अदालत का यह कहना दक वही अकेली देश को आपातकाल से बचा सकती है, इदतहास के दहसाब से गलत है. इस फैसले की सबसे बड्ी खामी क्या है? इस फैसले की सबसे बड्ी खामी यह है दक यह संदवधान के ढांचे को व्यापक पदरप्​्ेक्य मे् अनदेखी करता है. यह जहां एक ओर न्यायपादलका की स्वतंत्ता को संदवधान प्​्दत्​् एक अहम गुण मानता है वही् ये भूल जाते है् दक संदवधान के मूल ढांचे मे् कुछ और भी आवश्यक तत्व है्. उसमे् दूसरा तत्व चुनी हुई सरकार होती है जो दक लोगो् की इच्छा का प्​्दतदनदधत्व करती है. लोकतंत् कुछ लोगो् की तानाशाही नही् हो सकता है. दशवसेना ने दजस तरह से सुधी्द् कुलकण्​्ी के चेहरे पर कादलख पोती और बीसीसीआई दफ्तर पर हमला हुआ उस बारे मे् आपका क्या कहना है?

िमस्पसत न्यायपासिका की तिाश मे् है. दूिरी तरफ उि दौरान जहां भाजपा या जनिंघ खड्ा था आज वहां कांग्ेि है. कांग्ेि चाहे तो मुद्े को धार दे िकती है. इि बहाने गैर भाजपावाद का नया सवमश्स पैदा कर िकती है. िेसकन क्या 39वे् िे िेकर 42वे् िंसवधान िंशोधन तक न्यायपासिका की स्वायत्​्ा िे तानाशाही का खेि खेिने वािी और एडीएम जबिपुर बनाम मध्य प्​्देश िरकार के फैि​िे के तहत आपातकाि मे्मौसिक असधकारो्की मुअत्​्िी को जायज ठहराने वािी कांगि ्े पाट्​्ी क्या अपने अतीत िे हटकर बाहर आ पायेगी? यह िही है सक मोदी नीत एनडीए-2 की िरकार यूपीए-2 की तरह भ्ष ् ्ाचार करने और उिे मुद्ा बनने देने

सही ददशा मे् सोचने वाले सभी वग्​्ो् को ऐसे तरीको् से दूरी बनानी चादहए. समान आचरण के मापदंड सभी पर लागू होते है्. तमाम भाजपा नेता भी उल-जलूल बयान देते दफर रहे है्. उनके बारे मे् आप क्या कहे्गे? पार्​्ी अध्यक्​् ने ऐसे लोगो् की कड्ी दखंचाई की है. प्ध ् ानमंत्ी नरेद् ् मोदी ने भी इस बारे मे् अपने दवचार व्यक्त कर ददये है्. ऐसे रास्​्े अपनाने वालो् को भी आत्मदचंतन करना चादहए दक क्या इससे वे लोकतंत् की गुणवत्​्ा को बढ्ा रहे है् या वास्​्व मे् एक देश के र्प मे् दुदनया के सामने भारत की दवश्​्सनीयता कम कर रहे है्. जो लोग तोड्-फोड् पर उतर आते है् उनसे कैसे दनपरा जाये ? मै् महसूस करता हूं दक यह बेहद जर्री है दक तोड्-फोड् का सहारा लेने वाले लोगो् की कड्ी आलोचना की जानी चादहए. सही ददशा मे् सोचने वाले सभी वग्​्ो को ऐसे रास्​्ो् और तरीको् से दूरी बनानी चादहए. जो लोग ऐसे रास्​्ो् को अपना रहे है्, उन्हे् आत्मदचंतन करने की जर्रत है दक क्या वे इससे भारतीय लोकतंत् की गुणवत्​्ा बढ्ा रहे है् या दुदनया के समक्​् एक देश के र्प मे् भारत की दवश्​्सनीयता को कम कर रहे है्.

िे बचेगी. इिके सिए वह िीएजी िे िेकर िीवीिी और न्यायपासिका जैिी िंस्थाओ् को अपने पक्​् मे् भी करना चाहेगी. पर दूिरा और अहम िवाि है सक क्या वह अपने िंघ पसरवार के िंगठनो्को अल्पिंख्यको्के मानवासधकारो् का हनन करने और देश मे् तनाव व सहंिा फैिाने िे रोक पायेगी? अभी तक के जो िंकेत सदख रहे है् उिके तहत आने वािे िमय मे्भ्​्ष्ाचार िे बड्ा मुद्ा देश के िंसवधान के धम्सस नरपेकत् ा जैिे बुसनयादी मूल्यो्और नागसरक असधकारो्का बनने वािा है. न्यायपासिका ने उिकी िंरक्​्क बनने का दावा सकया है. हािांसक कुछ सदन पहिे गुजरात के ही असधकारी िंजीव भट्​् की यासचका को

खासरज करने वािी अदाित इि मामिे पर सकतना और गंभीर र्ख अपनाती है यह तो िमय ही बतायेगा. पर न्यायािय ने एक बात जर्र िासबत कर दी है सक न्यासयक िमीक्​्ा के हक के तहत वह सवधासयका िे कम कानून बनाने की हकदार नही् है. िाथ ही यह भी िाफ कर सदया है सक िोकतंत् की रक्​्ा का सजम्मा महज सवधासयका और काय्सपासिका पर नही्छोड्ा जा िकता. मीसडया और नागसरक िमाज पर तो कतई नही्. क्या यह एनडीए िरकार के मंस्तयो् के शल्दो् मे् जनता िे न चुने गये असधकासरयो् की तानाशाही है या िंघ पसरवार के सशकंजे और उिके िामने िाचार राजनीसतक दिो् िे भारतीय िोकतंत्की रक्​्ा की नयी राह? n शुक्वार | 1 िे 15 नवंबर 2015 11


मास् विहार ट हेड

िुनाव प्​्िाि के दौिान नीतीश कुमाि का जनसंपक्क: िढ्ी हुई उम्मीद

स्वर्णकाल बनाम जंगलराज उन्मिलेश

ि बार सबहार सवधानिभा चुनाव मे् सजि एक जुमिे का िबिे असधक इस्​्ेमाि हुआ, वह है-‘जंगिराज’. भाजपा ने तो इिे अपना अहम चुनावी मुद्ा बनाया सक ‘महागठबंधन’ के जीतने का मतिब होगासबहार मे् ‘जंगिराज’ की वापिी. उिके मुतासबक नीतीश कुमार भिे ही गठबंधन के मुखय् मंत्ी हो्, ित्​्ा की मुखय् शब्कत िािू प्ि ् ाद यादव ही हो्गे, जो जंगिराज का प्​्तीक है्.’ मीसडयाकस्मसयो् और प्​्सतपक्​्ी-राजनीसतज्​्ो् के बाद इधर कुछ िेखक-इसतहािकारो्मे्भी िािू प्​्िाद यादव और राबड्ी देवी के शािनकाि को इिी जुमिे िे बुिाने का फैशन िा चि गया है. अभी कुछ सदनो् पहिे इसतहािकार रामचंद् गुहा ने िािू-राबड्ी राज के सिए इिी शल्दका 12 शुक्वार | 1 िे 15 नवंबर 2015

इस्​्ेमाि सकया. िवाि उठना िासजमी है सक सजि पैमाने पर उन्हो्ने इि काय्सकाि को ‘जंगिराज’ का सवशेषण सदया, क्या वे पैमाने देश के दूिरे राज्यो् मे् मौजूद नही् है्, सजन्हे् उन्हो्ने शायद ही कभी जंगिराज के र्प मे् देखा गया हो ? सफर यह सवशेषण सिफ्फ सबहार के सिए क्यो्? यह इसतहािकार की तथ्यआधासरत िोच है या मनोगत व्याख्या ? इि ‘जंगिराज’ के सवशेषण को िही और जायज ठहराने के सिए रामचंद् गुहा ने अपने िेख मे् एक बहुचस्चसत हत्याकांड का सजक्​् सकया है. वह नृशंि हत्या थी- पटना सवश्​्सवद्​्ािय की प्​्ोफेिर और इसतहािकार पासपया घोष की. तीन सदिंबर, 2006 को हुई इि नृशि ं हत्या के सिए गुहा ने िािू-राबड्ी के ‘जंगिराज’ को सजम्मेदार ठहराया. बीते 17 अक्तूबर को सदल्िी िसहत कई राज्यो्िे छपने

जबहार मे् भाजपा जंगलराज का जुमला उछाल रही है, लेजकन इस भ्​्ामक प्​्चार के बावजूद जबहार के मतदाता लोकतंत् की राह जदखाने के जलए तैयार लगते है्. वािे एक अखबार मे् उन्हो्ने पासपया के नामोल्िेख के बगैर मसहिा इसतहािकार हत्याकांड की चच्ास की है. सनिंदेह, यह िंदभ्स इसतहािकार पासपया घोष की हत्या का ही है, क्यो्सक उि दौर मे् पासपया के अिावा सकिी अन्य इसतहािकार की पटना मे् हत्या नही् हुई. िेसकन गुहा सजि हत्याकांड का सजक्​् कर रहे है्, वह िािू-राबड्ी के ‘जंगिराज’ के दौरान हुआ ही नही्. आि्​्य्सजनक है सक पेशेवर इसतहािकार होने के बावजूद गुहा ने िन 2006 के दौरान हुए पासपया हत्याकांड को ‘िािूराबड्ी जंगिराज’ के दौरान हुआ बता सदया, जबसक उि वक्त नीतीश कुमार की िरकार थी! अपने िेख मे् िल्धप्​्सतष्​् इसतहािकार ने सबहार भाजपा और तत्कािीन उपमुख्यमंत्ी िुशीि मोदी की भी जमकर तारीफ की है. िेख की मूि प्​्स्थापना वही है, जो अपवादो्


को छोड् दे् तो इन सदनो् आमतौर पर सबहार के िवण्स सहंदू, िमृद् शहरी या गांव के िवण्सभूस्वामी की सदखती है. रामचंद्गुहा की तरह वे भी नीतीश और भाजपा गठबंधन जारी रहने के पैरोकार है्. नीतीश-िुशीि यानी जद(यू) - भाजपा गठबंधन न होने िे आहत गुहा अपना दुख इन शल्दो् मे् कहते है्, ‘मुझे सबहार के िोगो्और सबहार राज्य िे बहुत िगाव है, इिसिए मै् कुछ महीनो् की घटनाओ् को बहुत दुख िे देखता रहा हूं. एक राज्य, सजिमे् नीतीश कुमार-िुशीि मोदी की जुगिबंदी बहुत कुछ कर िकती थी, वह उनके अिगाव का फि भुगत रहा है. िव्​्ेक्ण बता रहे है् सक यह कांटे का चुनाव है. चुनाव मे्जो भी जीते, सबहार की जनता पहिे ही हार चुकी है.’ शोकाकुि गुहा इि बात िे दुखी है्सक नीतीश ने जंगिराज की ‘अमंगि शब्कतयो्’ िे क्यो् हाथ समिा सिया! यह िेख इि बात का ठोि प्​्माण है सक एक सवद्​्ान इसतहािकार भी तथ्य और ठोि िाक्​्यो्की अवहेिना करके हमारे जैिे िमाज मे् सकि तरह जासतगत-वण्सगत पूव्ासग्हो् या पूव्ासग्ह भरी दिीिो् िे प्​्भासवत हो िकता है! यही नही्, वह अपनी िेक्युिर िोच के उिट वण्सगत आग्​्हो् के दबाव मे् िांप्दासयकता की िबिे प्​्सतसनसध राजनीसतक शब्कत मानी जाने वािी सियािी जमातो् को भी िुशािन की शाबािी दे िकता है! ऐिे िोग बंगिुर् िे बसिया, पसटयािा िे पटना, मदुरै िे मुजफ्फरपुर, नैनीताि िे नािंदा और वाराणिी िे वैशािी तक फैिे हुए है्. कई भाषाओ् के

अखबारो्मे्छपे अपने िेख मे्गुहा आगे कहते जैिे नृशंि हत्याकाडो् की पृष्भूसम मे् रणवीर है्, ‘अगर महागठबंधन जीतता है तो नीतीश िेना के िाथ राजनीसतज्​्ो् की समिीभगत आसद कुमार मुख्यमंत्ी हो्गे. राजग ने सकिी को की जांच के सिए पूव्सवत्​्ी राबड्ी देवी िरकार ने मुख्यमंत्ी पद का उम्मीदवार नही् बनाया है गसठत सकया गया था. 2. भूसम िुधार के सिए िेसकन वे जीते तो शायद अपने िव्श स ष ्े ्व्यब्कत स्वयं नीतीश िरकार की गसठत डी बंदोपाध्याय को मुख्य़मंत्ी बनाये्गे. िेसकन नीतीश कुमार कमेटी की सिफासरशो्पर अमि का मामिा 3. और िुशीि मोदी समिकर जो कर िकते थे, सशक्​्ा मे्िुधार के सिए मुचकुंद दुबे कमेटी की वह अकेिे-अकेिे नही् कर िकते.’(‘जनता सरपोट्सकी सिफासरशे्िागू करना. यह तीनो्काम पहिे ही हार चुकी है’, ‘सहन्दुस्ान’, 17 नही्हो िके. हमारी जानकारी है सक इन तीनो् मामिो् अक्तूबर, 2015). सबहार मे् भी एक तबका कह रहा है सक मे् भाजपा के कई दबंग मंस्तयो् ने िरकारी नीतीश अच्छे है् पर उन्हो्ने िािू िे क्यो् हाथ फैि​िे को रोका और उिमे् िुशीि मोदी समिाया? दरअि​ि, ये वही् वग्स है्, जो हर स्वयं भी शासमि थे. जद (यू) के कुछ हाित मे् भाजपा के जसरये सबहार की ित्​्ा पर मंस्तयो्-सवधायको्का भी इि िाबी को िमथ्सन अपना वच्सस्व बरकरार रखना चाहते है्. उन्हे् समिा. नीतीश कमजोर पड्गये और यह तीनो् िग रहा है सक नीतीश-िािू गठबंधन के सफर काम नही् हो िके, जो सबहार का भाग्य बदि स ाि िे ित्​्ा मे् आने पर उनका वह वच्सस्व कायम िकते थे. इिके पहिे िािू के पहिे काय्क नही् रहेगा. वह अपने प्​्भाव की ऐिी िरकार मे्भी भूसम-िुधार जैिे मुद्े पर ज्यादा कुछ नही् चाहते है् जो शंकरसबघा, बथानी टोिा और हुआ. उि िरकार को भी भूसव् ासमयो्की मजबूत िक्​्मणपुर बाथे जैिे नृशंि हत्याकांडो्के सिए िाबी िे िमझौता करना पड्ा था. ऐिे मामिो् सजम्मेदार रणवीर िेना और उिके आकाओ्को मे् भाजपा के सवरोध की वजह जानना राकेट िगातार माफ करती रहे. वह ऐिी िरकार िाइंि की गुत्थी जानने जैिा नही् है. सबहार मे् चाहते है्, सजिके तहत भूसम िुधार की कोई भी अब िवण्सिमुदायो्, खािकर भूस्वासमयो्और िाथ्सक कोसशश कामयाब न हो िके. क्या गुहा िमृद् िोगो् की नुमाइंदगी भाजपा ही कर रही को नही् मािूम सक सबहार मे् िुशीि मोदी की है. उिने 90 के बाद बड्ी चतुराई िे कांग्ेि िे अगुवाई वािी भाजपा के मंस्तयो् और उनिे उिका यह स्थान छीन सिया. ऐिी ब्सथसत मे् अनुप्ेसरत कुछ अफिरो् के कुचक्​् और दबाव क्या रामचंद्गुहा अपने िेख मे्वच्सस्वादी वग्स के चिते ही नीतीश िरकार राज्य के तीन बड्े की आवाज नही्बनते सदख रहे है्? अंत मे् सफर ‘जंगिराज’ के जुमिे की मामिो्मे्ठोि फैि​िा नही्िे िकी? यह तीन मामिे थे- 1. अमीरदाि आयोग, जो तरफ िौटते है्. यह िही है सक िािू-राबड्ी ् ािसनक स्र् पर बहुत बुरे शंकरसबघा, िक्​्मणपुर बाथे और बथानी टोिा राज के कुछ बरि प्श भाजपा की िुनावी सभा मे् हेमा मािलनी: ग्लैमि के िावजूद

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विहार

थे. िेसकन एक िच यह भी है सक िन 199094 के बीच िािू िरकार ने दसित-सपछड्ो्आसदवासियो्(झारखंड तब सबहार का सहस्िा था) मे् गजब का भरोिा पैदा सकया. िामंती उत्पीड्न मे् कमी आयी. उन्हे् खेती योग्य जमीन नही् समिी, आस्थसक तौर पर भी कोई बड्ी मदद नही् समिी. िेसकन एक भरोिा समिा सक पहिे की कांग्ेिी िरकारो् िे यह कुछ अिग सकस्म की िरकार है. उन्हो्ने अपने को ‘इम्पॉवड्स’ महिूि सकया. अल्पिंख्यक िमुदाय ने भी बेहतर माहौि का एहिाि सकया. राज्य िरकार, प्​्शािसनक सनकायो्, सजिा बोड्​्ो्, सनगमो्, ठेको्, सशक्​्ण िंस्थानो्और अन्य इकाइयो्मे्दसितसपछड्ो्-अल्पिंख्यको् की नुमाइंदगी बढ्ी. ‘सदब्गवजयी रामरथ’ पर िवार देश भर मे् घूम रहे िािकृष्ण आडवाणी जब सबहार पहुंचे तो िािू ने उन्हे्यह कहते हुए सगरफ्तार कर सिया सक यह ‘दंगा-रथ’ है, िांप्दासयक िद्​्ाव के हक मे् इिे रोका गया. इि तरह के कुछ बड्े िकारात्मक कदम तो उठे. िेसकन िमावेशी सवकाि, आधारभूत िंरचनात्मक सनम्ासण और बदिाव के बड्े एजे्डे नही् सिये गये. इिके बावजूद िोग खुश थे. िन 1995 के चुनाव मे् िािू को समिे प्​्चंड बहुमत का यही राज था. दूिरे काय्सकाि 14 शुक्वार | 1 िे 15 नवंबर 2015

मे् िरकार िे िोगो् की ठोि आस्थसक अपेक्ाये् बढ्ी्. इि सदशा मे् जो कदम जर्री थे, वे भी नही्उठाये जा िके. िािू के जेि जाने के बाद उनकी पत्नी राबड्ी देवी, सजनके पाि राजनीसत या प्​्शािन मे्एक सदन का भी अनुभव नही्था, मुख्यमंत्ी बनी् और इि तरह ित्​्ा की चाबी िािू के दो िािो् और पिंदीदा अफिरो् के पाि आ गयी. उत्पात और खुराफात की शुर्आत यही्िे हुई. प्​्शािसनक भ्​्ष्ाचार और अपराध मे् बढ्ोत्​्री हुई. उनके दोनो् िािो् ने अंधेरगद्​्ी मचा दी. िेसकन यह कहना सक शाम ढिते ही पटना या सबहार के अन्य़ शहरो् मे् िोगो् का आवागमन ठप्प हो जाता था या सक दूकानो्मे्आये सदन िामानो्की िूट होती रहती थी या सक सकिी िड्की को कही् िे भी उठा सिया जाता था, असतशयोब्कतपूण्स है. इि तरह की बाते्सिफ्फकुछ वग्स-वण्ससवशेष के सनसहतस्वाथ्​्ी तत्व ही कहते है्. सबहार अपराध-मुक्त पहिे भी नही् था. आज भी नही् है. िेसकन एकेडेसमक्ि, शीष्स अफिरशाही और मीसडया मे्प्भ् ावी खाि िोगो् के िहयोग िे ‘जंगिराज’ का जुमिा देखतेदेखते राष्व् य् ापी प्च ् ार पा गया. आज महाराष्,् कन्ासटक, हसरयाणा, मध्य प्​्देश, छत्​्ीिगढ्या यूपी मे् िेखको् िे िेकर आम िोगो् की सनशानदेही के िाथ हत्याएं या उन पर हमिे हो

पिना मे् महागठिंिन के रवज्​्ापन: िेतहाशा प्​्िाि रहे है्. क्या इनके प्​्शािन को भी ‘जंगिराज’ कहा जा रहा है? सबहार पहिे मुख्यमंत्ी श्​्ीकृष्ण सिंह के राज मे् तो दसित-सपछड्ो् को ठीक िे जीने और अपने को व्यक्त करने की भी आजादी नही्थी. सियाित और िरकार मे्इन वग्​्ो् की नुमाइंदगी नगण्य थी. जासतवाद और भ्​्ष्ाचार का इि कदर बोिबािा था सक तत्कािीन कांग्ेि अध्यक्​् अबुि किाम आजाद को अपनी ही पाट्​्ी की िरकार और श्​्ीकृष्ण सिंह के सखिाफ गांधी-नेहर्-राजे्द् प्ि ् ाद को सरपोट्सिौ्पनी पड्ी थी. जुलम् ो- सितम के बारे मे् पुराने शाहाबाद के ‘आयरकांड’ की कहानी रो्गटे खड्ी करती है. बाद के सदनो्के कांगि ्े ी शािन मे्र्पिपुर चंदवा, अरवि और दनवारसबहटा जैिे अिंखय् दसित-आसदवािी हत्याकांड सि​िसि​िा बन गये. हर िाि चार-पांच बड्ेहत्याकांड होते थे. पर मीसडया और एकेडेसमक्ि के बड्ेपंसडत उि काि को सबहार का ‘स्वण्रस ाज’ या ‘स्वण्क स ाि’ कहते है्. अब इिे क्या कहे्गे? इसतहािकार इन बातो्को िमझे्या ना िमझे,् आम िोग िमझते है्. सबहार मे्इि वक्त एक इसतहाि बनता नजर आ रहा है. हम िबको सबहार के आम िोगो्के सववेक पर भरोिा करना चासहए, सजन्हो्ने वक्तबेवक्त देश को हमेशा रास्​्ा सदखाया है... n ‘सबहार शोज द वे!’


पिना मे् वामदलो् का संयुक्त सम्मेलन: पहली िाि संगरठत िसहत बेखौफ नागसरक जीवन मुहैया कराने को देने का वादा भी है. धनबि और बाहुबि आधासरत वत्समान चुनावी प्​्णािी की जगह िमानुपासतक चुनाव प्​्णािी के अिावा वास्​्ासवक िोकतंत्की स्थापना के सिए अन्य जमीनी और आंदोलन की राजनीजत वाले वामदलो् का मोच्ाष कई सीटो् सवकल्पो् की तिाश पर भी जोर सदया गया है. घोषणा-पत्​् मे् स्पष्​् तौर िे है सक भाजपा पर मुख्य दलो् को चुनावी मात देते जदखाई दे रहा है. शािन के थोपे जा रहे फािीवादी-िांप्दासयक देने की अपीि की जा रही है. इि राजनीसतक उन्माद का मुकाबिा देश की िंप्भुताअनिल अंशुमि हुंकार मे् वाम दिो् ने जनपक्​्ीय सवकाि का स्वाविंबन को नष्​् करने वािी कॉरपोरेट न सदनो् सबहार मे् चुनावी मौिम पूरे शबाब वैकब्लपक एजे्डा मतदाताओ् के िमक्​् पेश परस्​् नीसतयो् के सखिाफत िे अिग होकर पर है. भिे ही कुदरती मौिम की मार िे सकया है. सजिमे्अविरवादी गठबंधन िरकारो् िंभव नही्है. िनद रहे सक के्द्की नरे्द्मोदी पूरा प्​्देश िुखाड् और अकाि की चपेट मे् है की िूट की राजनीसत के िफाये के सिए वाम िरकार आज सजन जन सवरोधी नीसतयो्को आगे िेसकन चुनावी जुमिेबाजी िे िेकर भाषणो् मे् दिो् को चुनने की अपीि की गयी है. वाम बढ्ा रही है उन्हे् देश पर थोपने की शुर्आत गािी-गिौज की बाढ्िी आयी हुई है. आिम ल्िॉक का मानना है सक चूंसक सबहार आज भी कांग्ेि शािन ने ही की है. े है जहां खेती-सकिानी इि हेसिकॉप्टर चुनावी प्​्चार की तड्कयह है सक िोकतंत् के महाप्सव मे् मोदी-शाह एक कृसष आधासरत प्द् श के सवकाि के सिए भू स म और कृ स ष िु ध ार, भड्क, महंगी-िक्जरी गास्डयो्के कासफिो्के और िािू प्​्िाद िरीखे बड्े महारथी चुनाव आयोग की निीहतो् को ठे्गा सदखाते नजर आ जमीनो् के जबरन असधग्​्हण पर रोक, िाथ भाड्े पर िाये गये काय्सकत्ासओ् के हुजूम रहे है्. दूिरी तरफ चुनावी चच्ास िे वाम दि मुकम्मि सिंचाई व्यवस्था, बंटाईदार कृषको् िे बि धनबि की राजनीसत को ही बि समिा गायब िे नजर आते है्. िेसकन जमीनी और को िमुसचत िरकारी िहयोग और फि​िो् की है. वाम दिो्ने इि राजनीसत की जगह जनबि आंदोिन की राजनीसत वािे वामदि कई िीटो् उसचत मूल्य पर खरीद जैिे िवािो्के कारगर को अपनी ताकत माना है. घर-घर घूमकर आम पर मुख्य दिो्को चुनावी मात देते सदख रहे है्. िमाधान के सबना न तो राज्य की बदहािी िोगो् िे चुनाव खच्स जुटाकर, गांव-गांव पदसबहार के चुनावी सियाित मे्वाम दि इि िुधरेगी और न ही यहां िे होने वािे भीषण यात्​्ा, जनिभा-ग्​्ामिभा और जमीनी जन गोिबंदी के असभयानो् मे् िैकड्ो् काय्सकत्ास बार एकजुट होकर चुनाव िड्रहे है्. िभी वाम पिायन को रोका जा िकता है. इिी प्​्कार कृसष आधासरत पारंपसरक सदन-रात जुटे हुए है्. इि बार का सबहार चुनाव दिो् ने वाम ल्िॉक का आवामी गठबंधन बनाया है. इिके तहत पहिी बार राज्य की िभी उद्​्ोगो् पर जोर वािे औद्​्ौसगकरण िे िबके क्या पसरणाम देता है िे भी असधक महत्वपूण्सहै सवधान िीटो् पर भाकपा-मािे, िीपीआई और सिए रोजगार, आजीसवका और िामासजक सक सबहार के िोग अपने बेहतर भसवष्य के सिए िीपीएम िसहत आरएिपी, फारवड्सल्िॉक और िुरक्​्ा, िहकासरता के सवस्​्ार के िाथ-िाथ कौन िा रास्​्ा चुनते है्. सबहार मे् वामपंथ को भी अपने जनप्​्भाव एियूिीआई ने िाझा वामपंथी उम्मीदवार उतारे स्वास्थय् -सशक्​्ा और भोजन के असधकार इत्यासद के मु द ् ो ् को िागू करने को प् ा ् थसमकता दी को नये आधार और सवस्​्ार देने की जर्रत है. है्. इिमे्भाकपा मािे और िीपीआई के िौ-िौ िीटो्पर िीपीएम तै्तासि​ि िीट और शेष िीटो् गयी है. सपछड्ी सबहारी मानसिकता के इिके तहत वाम दि जनता तक सकतना पहुंच मसहमामंडन की जगह प्​्गसतशीि-िामासजक पाते है तो खुद को िोगो्िे सकतना जोड्पाते है्. पर दूिरे वामपंथी दि चुनाव िड्रहे है्. स , िबके सिए न्याय और िमान यह भी इन चुनावो् के जसरये देखना होगा. जो इि बार वाम दिो् का नारा ‘न मोदी न चेतना के सनम्ाण नीतीश कुमार- सबहार को है वामपंथ की अविर, हर घर को िस्​्ा सबजिी-पानी, वाम राजनीसत के सिए एक नयी खुराक के तौर n दरकार’ के जसरये िोगो्िे वाम दिो्को वोट भ्​्ष्ाचारमुक्त शािन और अपराध सनयंत्ण पर होगा.

अवाम भरोसेवाम इ

शुक्वार | 1 िे 15 नवंबर 2015 15


उत्​्र प्​्देश

अरखलेश यादव: अहम कदम

फोिो: पवन कुमाि

कुछ तो हुई सफ़ाई दागी और जनकम्मे मंज्तयो् को हटाकर अजखलेि यादव ने बड्ा कदम उठाया है, हालांजक अभी कई मोच्​्ो पर बहुत कुछ करना बाकी है. अंबरीश कुमार

सब

हार के नतीजो्िे पहिे ही उत्​्र प्​्देश मे् बख्ासस्गी शुर् हो गयी है. मुख्यमंत्ी असखिेश यादव ने सजि तरह बहुत िे मंस्तयो् को बख्ासस् सकया है उि​िे िोगो् का यह भ्​्म टूटता सदख रहा है सक िूबे को कई मुख्यमंत्ी चिा रहे है्. इि फैि​िे िे प्​्देश मे् राजनैसतक गम्​्ी बढने िगी है. गौरतिब है सक उत्​्र प्​्देश के राज्यपाि राम नाईक ने गुरव् ार 29 अक्तबू र को मुख्यमंत्ी असखिेश यादव के प्​्स्ाव पर पांच कैसबनेट और तीन राज्य मंस्तयो् को पद मुक्त कर सदया. मंस्तमंडि िे हटाये गये मंस्तयो् के सवभाग का सजम्मा मुख्यमंत्ी को िौ्प सदया गया है. मुख्यमंत्ी के प्​्स्ताव पर राजा महे्द् असरदमन सिंह मंत्ी स्टांप और न्याय शुल्क पंजीयन व नागसरक िुरक्​्ा, अंसबका चौधरी मंत्ी सपछड्ा वग्स व सवकिांग कल्याण, सशव कुमार बेसरया मंत्ी वस्​्व रेशम उद्​्ोग, नारद राय मंत्ी खादी व ग्​्ामोद्​्ोग और सशवाकांत ओझा मंत्ी प्​्ासवसधक सशक्​्ा को उनके पद िे हटा सदया है. इिके अिावा आिोक कुमार शाक्य राज्यमंत्ी प्​्ासवसधक सशक्​्ा, योगेश प्​्ताप सिंह राज्यमंत्ी बेसिक सशक्​्ा, भगवत शरण गंगवार राज्यमंत्ी (स्वतंत् प्​्भार) िूक्म, िघु एवं मध्यम उद्​्म 16 शुक्वार | 1 िे 15 नवंबर 2015

व सनय्ासत प्​्ोत्िाहन को भी मंत्ी पद िे पदमुक्त कर सदया गया है. मंत्ािय िे िफाई तो हुई है पर अभी पूरी तरह िे नही्हुई है. बहरहाि यह असखिेश िरकार का अब तक का बडा फैि​िा था सजिने उन्हे् मुख्यमंत्ी के तौर पर ठीक िे स्थासपत कर सदया है. िाि 2012 के सवधान िभा चुनाव मे्इि िंवाददाता ने बुंदेिखंड िे िेकर पूव्ा​ा्चि तक असखिेश यादव का प्​्चार असभयान देखा था. तब भी मीसडया का बडा वग्स उनके चुनाव असभयान को गंभीरता िे नही्िे रहा था. सदल्िी तो दूर िखनऊ के मीसडया ने भी कोई खाि कवरेज उन्हे्नही्दी थी. यह अपवाद तब टूटा जब मासफया डीपी यादव को पाट्​्ी िे चुनाव िडाने िे इंकार करने वािी एक सटप्पणी आयी थी सजि​िे वे चच्ास मे्आये. असखिेश यादव के मुखय् मंत्ी बनने के बाद िे ही सवपक्​्उत्र् प्द् श े मे्पांच मुख्यमंत्ी का जुमिा उछाि रहा है. यह िभी जानते है्सक असखिेश यादव के मुखय् मंत्ी होने के बावजूद कई फैि​िो् मे् पाट्​्ी और पसरवार का दबाव रहता था. नौकरशाही तक न सिफ्फ बंटी हुई थी बब्लक उिके चिते िरकार की िाख भी प्​्भासवत हुई. इि दौरान कानून व्यवस्था को िेकर एक नही् कई बार िरकार िांित मे्फंिी तो कई बार फंिाई भी गयी. कामकाज का असडयि तरीका

िमाजवासदयो्के एक सहस्िे की पुरानी पहचान रहा है. इिका नुकिान भी कई बार िमाजवादी पाट्​्ी को उठाना पडा है. इिका रोचक उदाहरण है िैफई महोत्िव है, जो हर िाि सदिंबर मे् होता है जब प्द् श े शीत िहर की सगरफ्त मे्होता है. हर िाि शीत िहर के िमय ठंड िे बहुत िे िोगो्की जान जाती है. ऐिे मे्ठंड िे िोगो् की मौत पर िैफई महोत्िव पर ही सनशाना िाधा जाता है. िमाजवादी पाट्​्ी के इि महोत्िव का मीसडया कवरेज भी देखते बनता है. हर बार शीत िहर िे होने वािी मौतो् को िैफई महोत्िव के नाच गाने िे जोडा जाता है. िरकार िफाई देती रहती और अपनी सकरसकरी कराती. यसद वे इि महोत्िव को बहुत छोटे स्र् पर सबना सकिी तडक भडक के करे तो इि​िे बच िकते है् िेसकन वे इिकी सचंता ही नही् करते. इिी तरह मुजफ्फरनगर दंगो् की जानकारी समिने के बाद नौकरशाही ने उिे गंभीरता िे नही्सिया और न ही पाट्​्ी के नेतृत्व ने. इिका खासमयाजा िोकिभा चुनाव मे् िमाजवादी पाट्​्ी को ठीक िे भुगतना पडा. इिी तरह िरकार के कई मंत्ी दोनो् हाथ िे उगाही मे् जुटे रहे पर िमाजवादी पाट्​्ी के मुसखया मुिायम सिंह यादव बार-बार चेतावनी तो देते पर कोई कार्सवाई नही् करते. इिी तरह नौकरशाही बेिगाम हुई तो उिे भी किा नही् गया. िबिे ज्यादा सदक्​्त इि िरकार को कानून व्यवस्था के मोच्​्ेपर उठानी पडती रही है. पर इि िबके बीच भी मुख्यमंत्ी असखिेश यादव ने कई महत्वपूण्सपहि की और सवकाि का एक एजंडा उत्​्र प्​्देश मे् सदखने भी िगा. यह बात अिग है सक महीने दो महीने मे्जब वे कोई बडी पहि करते तो कोई सबगड्ैि मंत्ी या अफिर िब पर पानी फेर देता. चाहे झीन बाबू हो या पंसडत सिंह या सफर कोई और. बावजूद इिके अमौिी हवाई अड्​्ेिे आने वािे िोगो्को बदिते प्​्देश की झिक समिने िगी. मेट्ो का काम सजि रफ़्तार िे हुआ वह सदखने िगा है. स्वास्थय् के क्त्े ्मे्भी कई बडे कदम उठाये गये तो मसहिा िुरक्​्ा को िेकर शुर् हुई 1090 जैिी योजना भी िराही गयी. आगरा एक्िप्ि ्े वे सवकाि की एक नयी कड्ी है. िखनऊ देश का अकेिा बडा शहर है जहां माि एवेन्यू िे जानकी पुरम तक िाइसकि का खूबिूरत रास्​्ा नजर आता है. यह िब शहरी बदिाव सदखता है. यह जर्र है सक ग्​्ामीण अंचि मे् सकिानो् की खेती-बारी को िेकर अभी कई योजनाएं जमीनी स्​्र पर उतारी जानी है्. गन्ना सकिानो् का िवाि गंभीर है. पर इन मंस्तयो्को एक िाथ हटाकर एक कड्ा िंदेश देने की कोसशश की गयी है. इिसिए इिे ' मुख्यमंत्ी' असखिेश यादव का बडा फैि​िा माना जा रहा है. सनस्​्ित ही यह बदिाव की उम्मीद भी जगा रहा है. n


साक्​्ात्कार

नयी पहचान का छत्​्ीसगढ् छत्​्ीसगढ् के मुख्यमंत्ी डॉ. रमन वसंह से अवनल चौबे की बातचीत: छतीसगढ् मे् पय्टरन क्त ्े ् के दवकास को लेकर सरकार ने जो कदम उठाये, दपछले एक दशक मे् उनका क्या असर नजर आता है? बस्​्र से लेकर दबलासपुर और बलरामपुर तक हरे-भरे जंगलो्, पहाड्ो्, नदी-नालो् और प्​्ाकृदतक झरनो् से पदरपूण्ट छत्​्ीसगढ् का समूचा पदरदृश्य पय्टरको् के दलए आकर्टण का के्द् है. चाहे दचत्​्कोर का दवश्​् प्​्दसद्​् जलप्​्पात हो या दफर महानदी के दकनारे दसरपुर मे् छठवी्-सातवी् शताब्दी के दवश्​् प्​्दसद्​् मंददर और बौद्​् स्मारक. राज्य की प्​्ाकृदतक और पुराताल्तवक धरोहर पय्रट न को बढ्ावा देने के दलए काफी महत्वपूणट् है. हमारे यहां वन दवभाग के अंतग्टत दो राष्​्ीय उद्​्ान, आठ अभ्यारण्य और तीन राईगर दरजव्ट ल्सथत है्. नया रायपुर मे् दवशाल जंगल सफारी का दनम्ाटण दकया जा रहा है. सैलादनयो् को आकद्रटत करने के दलए क्या कुछ नयी योजनाये् शुर् की जा रही है् ? हमने राज्य के परंपरागत वाद्रटक मेलो् को जनता के सहयोग से महोत्सव का र्प ददया है. हाल के कुछ वर्​्ो् मे् रादजम कुंभ, दशवरीनारायण महोत्सव, भोरमदेव महोत्सव, बारसूर और दचत्क ् ोर महोत्सव जैसे सालाना आयोजनो् को राज्य और राष्​्ीय स्​्र पर नई पहचान दमली है और इनके माध्यम से भी सैलानी इधर आकद्रटत हो रहे है्. राज्य सरकार ने पय्टरन दवभाग के दलए चालू वर्ट 2015-16 मे् 75 करोड् 36 लाख र्पये का बजर ददया है, वही् इस वर्ट केन्द्ीय पदरयोजनाओ् के दलए केन्द् से हमे् 101 करोड् र्पये के प्​्स्ावो् पर सैद्ांदतक सहमदत दमली है. इन पदरयोजनाओ् के तहत प्​्देश के प्​्मुख पय्टरन स्थलो् को मेगा-ईको रूदरस्र सद्किर और ईको-रूदरज्म डेल्सरनेशन के र्प मे् दवकदसत करने की पहल की जाएगी. महानदी के तर पर दसरपुर मे् वर्ट 2013 से वाद्रटक राष्​्ीय नृत्य एवं संगीत महोत्सव की शुर्आत की गयी है. राजधानी रायपुर के स्वामी दववेकानंद दवमानतल सदहत देश के कई शहरो् मे् पय्टरक सूचना के्द् बनाये गये है्ै. बस्​्र मे् दशहरा बहुत ही परंपरागत त्यौहार है, इस मौके पर आने वाले पय्टरको् के दलए कुछ खास सुदवधाये् दी जा रही है क्या? वास्​्व मे् दशहरे का एक अनूठा स्वर्प हमारे छत्​्ीसगढ् के बस्​्र अंचल मे् देखने को दमलता है. जगदलपुर मे् मनाया जाने वाला बस्​्र दशहरा दुदनया की सबसे लंबी अवदध तक चलने वाला त्यौहार है. लगभग 75 ददनो् तक दवदभन्न धाद्मटक दवदध दवधानो् के साथ यह मनाया जाता है. इसमे् पूरे बस्​्र अंचल के सभी वग्​्ो् के लोग बड्े उत्साह और उमंग के साथ माई दंतेश्री के प्​्दत अपनी आस्था प्​्कर करते है् और दमलजुल कर यह त्यौहार मनाते है्. बस्​्र का दशहरा भी सैलादनयो् के दलए आकर्टण का केन्द् होता है. वहां दशहरा देखने के दलए आने वाले सैलादनयो् को बेहतर सुदवधा दमले, इस ददशा मे् भी राज्य सरकार हर संभव प्​्यास कर रही है. छत्​्ीसगढ् मे् दनवेश की क्या ल्सथदत है और यह दकस रफ्तार से बढ् रहा है? पय्टरन के साथ-साथ राज्य मे् औद्​्ोदगक दवकास की भी व्यापक संभावनाये् मौजूद है्. हमने उद्​्ोगो् मे् पूंजी दनवेश को प्​्देशवादसयो् के रोजगार से जोडऩे को सव्​्ोच्​् प्​्ाथदमकता दी है. माननीय प्​्धानमंत्ी नरे्द् मोदी के द्​्ारा घोदरत 'मेक-इन-इंदडया' के सपने को साकार करने के दलए छत्​्ीसगढ् सरकार की नई पंचवर्​्ीय उद्​्ोग नीदत (वर्ट 2014-2019) हमने लागू की है. इसमे् प्द् श े के मूल दनवादसयो् को रोजगार के अदधक से अदधक अवसर ददलाने के दलए भी कई महत्वपूण्ट प्​्ावधान दकये गये है्. राज्य की नई उद्​्ोग नीदत मे् पूंजी दनवेश को आकद्रटत करने के दलए चालू वर्ट 201516 के बजर मे् पंूजीगत अनुदान और ब्याज अनुदान की रादश मे् वृद्द की

गयी है और इसके दलए 90 करोड् र्पये का प्​्ावधान दकया गया है. छत्​्ीसगढ् मे् सूखे से दनपरने के दलए क्या उपाय दकये जा रहे है् ? इस वर्ट सावन और भादो मे् छत्​्ीसगढ् मे् माॅनसून काफी कमजोर रहा. हमारी सरकार ने प्​्देश मे् नजरी आंकलन के आधार पर 93 तहसीलो् को सूखा प्​्भादवत घोदरत दकया गया. इन प्​्भादवत तहसीलो् मे् आगामी आदेश तक राजस्व वसूली स्थदगत की गयी है. दकसानो् को डीजल पंपो् के दलए 02 हेक्रेयर की दर से अदधकतम 2 हजार से 4 हजार र्पये तक का डीजल अनुदान भी ददया जा रहा है. दवदभन्न प्​्ादधकरणो् के माध्यम से 4 हजार दकसानो् को दसंचाई के दलए दबजली कनेकश ् न देने 22 करोड् 68 लाख र्पये मंजरू दकये गये. दसंचायी पंपो् के लंदबत दबजली कनेकश ् नो् के मामलो् का दनराकरण करने की काय्टवाही की जा रही है. सभी पंचायतो् के हर गांव मे् जर्रतमंद लोगो् के दलए 01 ल्कवंरल अनाज सुरद्​्कत रखने का आदेश भी जारी कर ददया गया है, तादक दकसी को भी भूखा ना रहना पड्े. महात्मा गांधी नरेगा के तहत्ा इन तहसीलो् के गावो् मे् अदधक से अदधक संख्या मे् रोजगारमूलक काय्ट शुर् करने के दनद्​्ेश ददये गये है्. बस्​्र के एक दहस्से मे् माओवाददयो् का दबदबा बढ्ता जा रहा है, सरकार उस पर दकस तरह दनयंत्ण करे्गे? आपका यह आकलन गलत है दक बस्र् के एक दहस्से मे् माओवाददयो् का दबदबा बढ् रहा है. सच्​्ाई यह है दक के्द् और राज्य के बेहतर समन्वय, स्थानीय जनता के सहयोग और सुरक्​्ा बलो् की तत्परता और सद्​्ियता के फलस्वर्प बस्​्र मे् माओवाद की समस्या एक छोरे से इलाके तक सीदमत रह गयी है. सरकार की दवकास योजनाओ्, दशक्​्ा सुदवधाओ्, रोजगार प्​्दशक्​्ण और कौशल उन्नयन के दलये आजीदवका कॉलेज जैसी दवदभन्न पदरयोजनाओ् के सफल द्​्ियान्वयन से बस्​्र की जनता मे् और खासकर युवाओ् मे् नक्सदलयो् से मोह भंग होता जा रहा है. माओवाददयो् मे् जो नौजवान समाज की मुखय ् धारा मे् लौरना चाहते है्, उनके दलये सरकार के पास क्या योजना है ? हमने ऐसे नौजवानो् के दलए बेहतर पुनव्ाटस पैकेज बनाया है और उस पर बेहतर ढंग से अमल भी दकया जा रहा है. n शुक्वार | 1 िे 15 नवंबर 2015 17


दीपावली मास्ट हेववशे ड ष

सोने की बढ्ती चमक

हमारे देि मे् सोने और उसके आभूरणो् का आकर्षण कभी कम नही् होता. जपछले छह महीने मे् सोने की कीमत मे् भारी उतार-चढ्ाव आया है. लेजकन इसके बावजूद त्यौहारी मौसम मे् खरीदारो् के आिावादी र्ख के कारण इस पीली धातु की मांग जिर से बढ् गयी है. मोनिका गुप्ता

रा

जधानी सदल्िी मे्रहने वािी मीता दत्​्ा के सिए िोने की खरीदारी दशहरे िे शुर् होकर दीपाविी पर खत्म होती है, िेसकन इि बार उनके सिए एक और मौका है, जब वह इि चमकीिी धातु की असधक िे असधक खरीदारी कर िकती है्. हर दीपाविी मे् िोने के सिके् खरीदने वािी मीता इि बार अपनी शादी के सिए भी स्वण्स आभूषण खऱीदने वािी है्. मीता के अनुिार, मैन् े िभी गहनो्के सडजाइन चुनकर दे सदये है्और दीपाविी के मौके पर मुझे िभी मेरे पिंद के गहने समि जाये्गे. इिी तरह िुमन के सिए दीपाविी का त्योहार एक ऐिा मौका है जब वह अपने िोने के सिक्​्ो् को िगातार बढ्ाती है. अब तक हर दीपाविी मे् एक िोने का सिक्​्ा खरीदने वािी िुमन के पाि इि बार बीि सिके् हो जाये्गे. इि पीिी धातु को खरीदने का भिे ही िभी के पाि अिग-अिग 18 शुक्वार | 1 िे 15 नवंबर 2015

कारण हो, िेसकन इिका आकष्सण िाि-दर िाि बढ्ता ही जा रहा है, इि बात िे इंकार नही् सकया जा िकता. अपने भसवष्य की जर्रतो्के अिावा िोना सनवेश के र्प मे् भी हाथो्-हाथ सिया जा रहा है. बा़जार हमेशा मांग और आपूसत् स के मानदंडो् के अनुिार सनवेश का पैमाना तय करता है. िेसकन, भारतीय िमाज भावनात्मक सनवेश के एक असिसखत सिद्​्ांत का अि्​्ेिे पािन करता आ रहा है. यही वजह है सक दुसनया भर मे्िोने की मांग घटने के बावजूद इि त्यौहारी मौिम मे् इि पीिी धातु की चमक भारत मे्बरकरार है. सहंदू िमाज मे्नवरात्​्के िाथ ही दीपाविी के मौके पर भी िोने और चांदी की खरीदारी का सरवाज रहा है. ऐिी मान्यता है सक देवी दुग्ास अपने भक्तो्को हर तरह की मुिीबत िे बचाती है्. नवरात्​् के अंत मे् िम्वत् के मौके पर िोग इिी मान्यता को ध्यान मे् रखते हुए िोने की खरीदारी करते है् और मां दुग्ास िे यह अपेक्ा

रखते है्सक आस्थसक मुिीबत िे मां उनकी रक्​्ा करे्गी. इन त्यौहारो्के मौको्पर महाराष्,् गुजरात और दस्​्कण भारत के राज्यो्मे्िोने की खरीदारी िबिे ज्यादा होती है. देश के प्​्ख्यात आभूषण कारोबारी काल्पसनक चौकिी मानते है् सक सपछिे िाि की तुिना मे् भिे ही इि िाि आस्थसक माहौि बहुत ज्यादा उत्िाही नही् है, सफर भी बाजार मे् िोने की मांग बनी हुई है. व्यापार जगत इि िाि िोने की सबकवािी मे् 5-7 फीिद के बीच की ब़ढोतरी की उम्मीद कर रहा है. सपछिे िाि आठ अगस्​्को जहां िोने की कीमत 29,080 र्पये प्​्सत दि ग्​्ाम पहुंच गयी थी, वही् इि िाि 27,200 र्पये के आिपाि है. बाज्ार को उम्मीद है सक आने वािे सदनो् मे् कीमते् और बढ्े्गी, इिसिए सनवेश के सिहाज िे अभी िोना खरीदना फायदे का िौदा रहेगा. दूिरी ओर, िमृद्राज्यो्की चकाचौ्ध भरी


सोना पहले ससऱफआभूषण की जऱरत पूरी करने का जसरया था, वही़अब यह सनवेश का एक सुरस़​़ित जसरया भी बन गया है. सजंदगी जहां इि महंगी धातु के आकष्सण का के्द् सबंदु है, वही् आसथक्फ र्प िे कमज्ोर भारतीय ग्​्ामीण क्​्ेत्ो् मे् घटती मांग िे दुसनया भर के िोना कारोबासरयो् की नी्द उड् गयी है. वल्ड्स गोल्ड कॉउंसि​ि की इि िाि दूिरी सतमाही मे्आयी एक सवस्त्ृ सरपोट्समे्कहा गया है सक सपछिे िाि की तुिना मे्इि िाि भारत मे् 34.6 टन कम िोने की सबक्​्ी हुई. िाि 2014 की दूिरी सतमाही मे् जहां 152.6 टन िोने के जवाहरात की खपत हुई थी, वही् इि िाि की दूिरी सतमाही मे्यह आंकड्ा 118 टन रहा. सरपोट्सके मुतासबक भारत मे्दूिरी सतमाही के दौरान खराब फि​ि की मार का अिर िोने पर भी पड्ा. इि त्​्ािदी ने गांव मे् िोने की खरीद को कम कर सदया. ग्​्ामीण भारत कुि खपत का 52 फीिद िोना खरीदता है. इि सिहाज िे खेतो्पर पड्नवे ािी प्​्ाकृसतक आपदा का िोने की खरीद पर िीधा अिर पड्ता है. शहरो् मे् बड्े सनवेशको् िे अिग घरेिू मसहिाओ् के अपनी छोटी बचत िे िोना खरीदने का चिन आम है. शहरी मध्य वग्स ज्यादातर िोने के गहनो् की खरीदारी या तो

शादी के मौको्पर काम आने के सिए करता है या सफर सनवेश के सिहाज िे खरीदारी करता है. यही वजह है सक बढ्ती कीमत के बावजूद अच्छे सरटन्स की आि मे् िोग िोने की खरीदारी मे् सदिचस्पी िे रहे है्. वैिे, कम पैिो् के िाथ सनवेश या शादी मे् देने के उद्​्ेश्य िे िोना खरीदने के इच्छुक िोग हल्के और पतिे गहने ही असधक खरीदते है्, सजिके चिते आभूषण बाजार गुिजार तो रहता है, िेसकन उि अनुपात मे्सबकवािी नही्हो पाती. पेशे िे वकीि मधु को अपने बेटे की शादी मे् बहू के सिए गहनो् के ऑडर्स करने प़डे तो मजबूरन वजन कम रखवाना पड्ा. मधु कहती है्, शादी के सिए जर्री जेवरात तो बनवाने ही पड्े्गे. मै्ने िोच रखा था सक पचाि ग्​्ाम िोने का हार बनवाऊंगी, िेसकन ब़ढती कीमत के कारण मुझे तीि ग्​्ाम के हार का ही ऑडर्सदेना पड्ा. इिी तरह चूड्ी, मंगि​िूत्, बाजूबंद, मांग टीका, अंगूठी िभी के वजन मे् कटौती करनी पड्ी. देश के कई जाने-माने िोना कारोबारी यह मानते है्सक जो ग्​्ाहक खरीदारी के सिए कीमते् कम होने का इंतजार कर रहे थे, उन्हो्ने खरीदारी शुर् कर दी है. बाजार मे् उत्िाह भी है. िेसकन, यह उत्िाह सफिहाि ब़डे शहरो् तक ही िीसमत नजर आ रहा है. वैिे, सजन खरीदारो् के सिए िोना पहिे सिफ्फआभूषण की जर्रत पूरी करने का जसरया था, वही्अब यह सनवेश का एक िुरस्​्कत जसरया भी बन गया है. गोल्ड बेस्ड फंड की आिान उपिल्धता भी गोल्ड इटीएफ मे् सनवेश को

क्ीमतो्मंे उतार-चढ्ाव वष्स चांदी िोना 2006 17,000 11,200 2007 20,000 12,500 2008 22,000 14,700 2009 22,025 15,894 2010 26,852 19,713 2011 55,896 26,516 2012 56,783 31,732 2013 53,081 29,485 2014 42,838 27,262 2015 37,395 27,153 चांदी प्स्त सकिोग्​्ाम और िोना प्स्त दि ग्​्ाम (र्पये मे्) आसकष्सत कर रही है. िेसकन, इि सिके् का दूिरा पहिू यह है सक आज भी घोसषत र्प िे िोने के भंडार के मामिे मे् भारत काफी पीछे है. जून 2015 तक भारत के पाि सिफ्फ557 टन िोना मौजूद था. हकीकत यह है सक इि​िे ज्यादा िोना हर िाि भारत मे्सवसभन्न माध्यमो् िे आयात होता है. दरअि​ि, भारत मे् िोना खरीद कर उिे घर पर रख िेने की परंपरा रही है. ज्यादातर िोग स्वण्सआभूषणो्को िहेज कर रखते है्, तासक सवपरीत पसरब्सथसतयो् मे् यह काम आये. यही वजह है सक के्द् िरकार ने हाि ही मे् स्वण्स मुद्ीकरण योजना शुर् करने की बात कही है. इिी िाि नवंबर के महीने िे पीली िातु का िढ्ता िाजाि: संस्कृरत का अंग

शुक्वार | 1 िे 15 नवंबर 2015 19


दीपावली ववशेष

आरि्र क्यो्है दीवानगी

पर िोना खरीदना शुभ माना जाता है. इन्ही् मौको् पर िोने का िंगसठत और िामूसहक क्​्य होता है.

सामारजक पक्​्

वैवासहक रस्मो् मे् उपहार स्वर्प िोने के गहने देना भारतीय िमाज मे् दीघ्सस थ ् ायी र्प िे जमा हुआ है. शासदयो्के मौको्पर खरीदे जानेवािे िोने के आभूषण भारतीय बाजार मे् सबकनेवािे कुि िोने का पचाि फीिद सहस्िा होता है. पसरवारो्मे्िोने की खरीदारी तब ही शुर्हो जाती है, जब सकिी के घर एक बेटी पैदा होती है. तोहफे के र्प मे्िोने को ‘स्​्ीधन’ भी कहा जाता है, सजिे मां-बाप अपनी बेटी को शादी के बाद एक आस्थसक िुरक्​्ा का बोध कराने के सिए भी प्​्दान करते है्. अगिे एक दशक तक हर िाि 1.5 करोड् शासदयां होनी है्, क्यो्सक देश की 50 फीिद िे भी ज्यादा आबादी 25 िाि के भीतर की है. मांगरलक मौको् पि सोने की सजिज: दर्​्िण मे् लोकर्​्पय

सांस्कृरतक पक्​्

सहंदू और जैन िमाज मे् िोने को शुभ माना जाता है. पौरासणक सवसध दाता मनु महाराज ने यह ऐिान सकया था सक स्वण्स आभूषण महत्वपूण्स अविरो् और िमारोहो् पर पहने जाने चासहए. भारत मे् कई क्​्ेत्ीय पव्सत्यौहारो् के मौके पर िोने की खरीदारी के िाथ जश्न मनाने की रवायत रही है. दस्​्कण भारत मे् अक्​्ाय तृत्या, पो्गि, ओणम और उगड्ी पर, पूव्ी राज्यो्मे्दुगा्स पूजा और दीपाविी (धनतेरि) के अविर पर, पस्​्िम के राज्यो् मे् गुड्ी पड्वा तथा उत्​्री राज्यो् मे् बैिाखी व करवा चौथ इि योजना पर अमि हो जाने की पूरी उम्मीद है. इिके तहत िोगो् को अपने िोने के गहने बै्को्मे्दे देने हो्गे, सजिके बदिे बै्क ल्याज के र्प मे्एक सनस्​्ित रासश दे्गे. वष्स1999 मे्भी इि तरह की एक योजना िरकार ने शुर् की थी, िेसकन वह पूरी तरह िे सवफि हो गयी थी. कारण यह था सक उि िमय 500 ग्​्ाम िे कम िोना बै्क मे्रखने की इजाजत नही्थी, जबसक इि बार िरकार ने महज 30 ग्​्ाम िोने को भी बै्क मे्जमा करने की नीसत सनध्ाससरत की है. इि​िे उम्मीद की जा रही है सक अब िोग अपने घरो् की अिमासरयो् मे् पड्े िोने को सनकाि कर बै्को्के हवािे करे्गे, िेसकन यहां भी मसहिाओ् की इच्छा पर िब कुछ सनभ्सर करेगा. सजन्हो्ने िोना गहने की शक्ि मे्खरीदा है, वे इिे सकिी बै्क मे्रखने की इच्छा तो नही् ही जताये्गी. हां, सजन्हो्ने रॉड, सिके् या सबस्कुट की शक्ि मे्िोना खरीद रखा है, उन्हे् शायद कमाई का यह तरीका पिंद आये. िोने का आकष्सण भारतीय िमाज मे् िसदयो् िे रहा है. आज भी इि धातु की मांग इतनी ज्यादा है सक तस्करो्के सिए भारत प्​्मुख सनशाना बन गया है. मांग बढ्ने के िाथ ही दुबई 20 शुक्वार | 1 िे 15 नवंबर 2015

आर्थषक पक्​्

भारतीयो् मे् यह आम धारणा है सक सजिके पाि िोना है, वह अमीर है. िोगो्की प्​्सतष्​्ा भी िोने िे आंकी जाती है. िोने के खरीदारो्मे्ज्यादातर इि पीिी धातु को भसवष्य के सनवेश के र्प मे् देखते है्. सकिी गंभीर बीमारी के इिाज के दौरान िोग िबिे पहिे घर िे िोना ही सनकािते है्. इिके अिावा सजनके पाि घर नही्होता, वे अतीत मे्खरीदे गये जवाहरात को बेचकर मकान बनाने का िपना पूरा करते है.् कई मौको्पर बेट-े बेसटयो् की उच्​्सशक्​्ा के सिए भी िोने का सनवेश भसवष्य मे्मुनाफा देकर ही जाता है. यही वजह है सक बाजार मे्इिकी चमक कभी फीकी नही्पड्ती.

और सिंगापुर िे िोने की तस्करी िबिे ज्यादा भारत मे् हो रही है. राजस्व िूचना सनदेशािय का मानना है सक िोने की तस्करी की मुख्य वजह दाम मे् अंतर का होना है. सनदेशािय ने तसमिनाडु के मदुरै एअरपोट्स पर अक्तूबर के महीने मे्ही 31.75 सकिो िोना बरामद सकया. इिकी कुि कीमत 8.43 करोड् र्पए आंकी गयी. ज्यादातर स्वण्सतस्कर दुबई या सिंगापुर मे् खुिे बाजार िे िोना खरीदते है्. सवसभन्न शक्िो् मे्ढाि कर उन्हे्भारत िाने की कोसशश करते है्. तस्करी करनेवािे गै्ग मे् बंट जाते है् और आम यात्​्ी की तरह भारत मे् प्​्वेश करते है्. दुबई और सिंगापुर िे ज्यादातर िोने के अवैध वाहक हवाई माग्स िे दस्​्कण भारत पहुंचते है्. दूिरी ओर श्​्ीिंका िे होनेवािी िोने की तस्करी िमुद्ी माग्स पर सनभ्सर है. िोने पर आयात कर अत्यसधक होने के कारण इिकी तस्करी फायदे का िौदा िासबत होने िगा है. आम तौर पर िोना सकिी और देश िे िाने पर कुि कीमत का दि फीिद आयात कर िगता है. इि​िे बचने के सिए इिे छुपा कर भारत िाया जाता है. अगर िफितापूव्सक िोने की खेप भारत पहुंच जाती है, तो प्​्सत दि ग्​्ाम पर

ढाई हजार र्पये का फायदा तस्कर को होता है. यह दुबई के खुिे बाजार के भाव पर सनभ्सर करता है सक िोने की तस्करी िे सकतना फायदा होना है. दुबई िे अगर एक सकिो िोना आयात शुल्क और अन्य कर सदये बगैर िाया जाता है, तो करीब भारतीय खुदरा बाजार मे् िोने की कीमत का फक्फपांच िाख र्पये तक आ जाता है. इि मुनाफे के चक्​्र मे्ही इि सवत्​्ीय वष्स मे् िोने की तस्करी करते भारत िरकार ने करीब 54 िोगो्को सगरफ्तार कर जेि मे्डािा है. दूिरी ओर, भारत आते ही यहां यह िोना हाथो-हाथ सबक जाता है. छोटे कारोबारी 24 कैरेट िोना खरीदते तो है्, िेसकन इिे 22 और 18 कैरेट की शुद्ता के गहने मे्बदि कर िगभग 24 कैरेट के ही दाम पर बेचते है्. बड्े शहरो् मे् बहुराष्​्ीय कंपसनयो् के शो-र्म मे् तो िोने की शुद्ता ग्​्ाहक को सदखाकर बेची जाती है, िेसकन अध्ससवकसित छोटेछोटे शहरो्-किबो्मे्िोनारो्की जबान ही िोने की शुद्ता की मानक होती है. छोटे शहरो् के ग्​्ाहक भी शुद्ता िे ज्यादा तोि-मोि को n तवज्​्ो देते है्.


सोना और सनक ऐसे लोगो् की कमी नही् है जो सोने से बनी जवजभन्न वस्​्ुओ् से अपने िौक पूरे करने के जलए कोई भी कीमत देने को तैयार है्.

िो

ने की चमक और इिकी दीवानगी िोगो् (चेन, घड्ी, ब्​्ेि​िेट) भी बनवाई. इि िोने के के सिर चढ्कर बोि रही है. इिके कई कमीज के चच्ास मे् आने के िगभग एक िाि उदाहरण आये सदन देखने को समि रहे है्.एक बाद महाराष्​् के नेता पंकज परख ने भी कुछ ओर जहां अंतरराष्​्ीय बाजार मे्िोने की कीमत इिी तरह िोने के प्​्सत अपने आकष्सण को सनत नयी ऊंचाई छू रहा है, वही्दूिरी ओर ऐिे जासहर सकया. िगभग 1.4 करोड् र्पये की िोगो् की कोई कमी नही् है जो िोने िे बनी िागत वािी िोने की कमीज पंकज ने भी पहनी. सवसभन्न वस्​्ुओ् िे अपने शौक पूरे करने के इि चमकती धातु िे बने कपड्ो् के प्​्सत िोगो् सिए कोई भी कीमत देने को तैयार है. पुणे के के आकष्सण को देखते हुए तुक्ी के गहना व्यविायी फूगे की यह दीवानगी ही है जो उन्हो्ने कारीगर एहमत ने िड्सकयो्का गाउन ही बना एक िोने की कमीज के सिए 1.42 करोड्र्पये डािा. कपड्ो्औऱ गहनो्िे आगे सनकिते हुए खच्सकर सदये. फूगे के सिए इि िोने की कमीज कुछ कारीगरो्ने िोने िे बने टॉयिेट पेपर, दवा को बनाने मे् 15 कारीगरो् ने प्​्सत सदन 16 घंटे की गोिी, बंदूक, राइफि औऱ पूरी टॉयिेट काम सकया और इिे बीि सदनो् मे् पूरा सकया. िीट ही बना डािी है. वष्स 2011 मे् टाइटन इतना ही नही्फूगे ने इि कमीज के िाथ पहनने कंपनी की गोल्ड प्ि​ि ज्वेिरी ने गहना सनम्ासण के सिए करीब िात सकिोग्​्ाम की एक्िेिरीज कारोबार के 5000 िाि पूरे होने की खुशी मे् िाइिन की स्वर्णिम नैनो: सड्क पि गहना

फूगे : सोने के गहने औि कपड्े

22 करोड् र्पये की िागत वािा गोल्ड नैनो बनाया. 80 सकिोग्​्ाम िोना, 20 सकिोग्​्ाम चांदी और िौ िे भी असधक हीरे और कीमती पत्थरो्िे बना यह नैनो काफी िमय तक िोगो् के आकष्सण का के्द् रहा. इि पीिी धातु का आकष्सण ही है सक पैिे सनकािने वािे एटीएम मशीन की तज्सपर िोना सनकािने वािे एटीएम मशीन बनाया गया. िबिे पहिे िोगो् को इिका अनुभव अबुधाबी के एमीरात पैिेि होटि मे्हुआ. इि मशीन िे िोने की सबब्सकट, िोने के सिके् िमेत िोने िे बनी 320 तरह की चीजे्सनकािी जा िकती है. सदिंबर 2010 के बाद िे अबतक फ्िोसरडा, स्वीटजरिै्ड, ऑस्सट्​्या, जम्सनी और िंदन के सवसभन्न शॉसपंग मॉि और एयरपोट्समे्स्थासपत सकये जा चुके है्. सोने का िाथर्म औि िॉयलेि: ऐसी भी खब्त

शुक्वार | 1 िे 15 नवंबर 2015 21


दीपावली ववशेष

ज़ायका बनाम बदज़ायका

दीवाली पर घरो् मे् जमठाई का आना जर्री होता है और इसी के साथ नकली और जमलावटी जमठाइयो् का बाजार भी गम्ष हो जाता है. इसके जलए उपभोक्ता को सावधानी बरतनी जर्री है. नि्रदौस ख्ाि

त्यो

हारो्के मौिम मे्समठाइयो्का घरो्मे् आना तय है. ऐिे मे्त्योहार की आड् मे् बहुत िारे नकिी और समिावटी समठाइयो् का बाजार भी तेज हो जाता है. समठाइयो् िे त्योहार गुिजार रहे इिके सिए आपको ितक्तफ ा बरतनी होगी. आये सदन छापामारी की ख़बरे् िुनने को समिती है् सक फ़िां जगह इतना समिावटी मावा पकडा गया, फ़िां जगह इतना

22 शुक्वार | 1 िे 15 नवंबर 2015

नकिी मावा पकड्ाया. इन मामिो्मे्केि भी दज्स होते है् और सगरफ़्तासरयां भी होती है्. दोसषयो्को िजा भी होती है. इि िबके बावजूद समिावटख़ोर कोई िबक़ हासि​ि नही् करते. समिावटख़ोरी का धंधा बदस्​्ूर जारी रहता है. त्योहारी िीजन मे् कई समठाई सवके्ता, होटि और रेस्टोरे्ट िंचािक समिावटी और नक़िी मावे िे बनी समठाइयां बेचकर मोटा मुनाफ़ा कमाये्गे. ऐिे मे् इि तरह की समठाइयो् िे चौकन्ना रहने की जर्रत है, तासक आपके त्योहार की खुसशयां कम न हो. ज्यादातर समठाइयां मावे और पनीर िे बनायी जाती है्. दूध सदनो्सदन महंगा होता जा रहा है. ऐिे मे् अि​िी दूध िे बना मावा और पनीर बहुत महंगा बैठता है. सफर इनिे समठाइयां बनाने पर ख़च्स और ज्यादा बढ जाता है, यानी समठाई की क़ीमत बहुत ज्यादा हो जाती है. इतनी महंगाई मे्िोग ज्यादा महंगी समठाइयां ख़रीदना नही् चाहते. ऐिे मे् दुकानदारो् की सबक्​्ी पर अिर पडता है. इिसिए बहुत िे हिवाई समठाइयां बनाने के सिए नक़िी या समिावटी मावे और पनीर का इस्​्ेमाि करते है्. नक़िी और समिावटी मे् फ़क़्फ ये है सक नक़िी मावा शकरकंद, सिंघाड्े, मैदे, आटे, वनस्पसत घी,

आिू, अरारोट को समिाकर बनाया जाता है. इिी तरह पनीर बनाने के सिए सिंथसे टक दूध का इस्​्ेमाि सकया जाता है. समिावटी मावे उिे कहा जाता है, सजिमे् अि​िी मावे मे् नक़िी मावे की समिावट की जाती है. समिावट इि तरह की जाती है सक अि​िी और नक़िी का फ़क़्फनजर नही्आता. इिी तरह सिंथेसटक दूध मे् यूसरया, काब्सटक िोडा, सडटज्​्ेट आसद का इस्म्े ाि सकया जाता है. िामान्य दूध जैिी विा उत्पन्न करने के सिए सिंथेसटक दूध मे् तेि समिाया जाता है, जो घसटया सक़स्म का होता है. झाग के सिए यूसरया और काब्सटक िोडा और गाढ्ेपन के सिए सडटज्​्ेट समिाया जाता है. फूड सवशेषज्​्ो् के मुतासबक़ थोडी-िी समठाई या मावे पर सटंचर आयोडीन की पांचछह बूंदे् डािे्. ऊपर िे इतने ही दाने चीनी के डाि दे.् सफर इिे गम्सकरे.् अगर समठाई या मावे का रंग नीिा हो जाये, तो िमझे्उिमे्समिावट है. इिके अिावा, समठाई या मावे पर हाइड्​्ोक्िोसरक एसिड यानी नमक के तेजाब की पांच-छह बूंदे्डािे्. अगर इिमे्समिावट होगी, तो समठाई या मावे का रंग िाि या हल्का गुिाबी हो जायेगा. मावा चखने पर थोड्ा कड्वा और रवेदार महिूि हो, तो िमझ िे्सक इिमे् िाजाि मे् रमठाई: ग्​्ाहक रकतना जागर्क?


वनस्पसत घी की समिावट है. मावे को उंगसियो् पर मि​ि कर भी देख िकते है् अगर वह दानेदार है, तो यह समिावटी मावा हो िकता है. इतना ही नही्, रंग-सबरंगी समठाइयो् मे् इस्​्ेमाि होने वािे िस्​्े घसटया रंगो् िे भी िेहत पर बुरा अिर पडता है. अमूमन समठाइयो् मे्कृस्तम रंग समिाए जाते है्. जिेबी मे्कृस्तम पीिा रंग समिाया जाता है, जो नुक़िानदेह है. समठाइयो् को आकष्सक सदखाने वािे चांदी के वरक़ की जगह एल्यूमीसनयम फॉइि िे बने वक़्फ इस्​्ेमाि सिए जाते है्. इिी तरह केिर की जगह भुट्े के रंगे रेशो् िे समठाइयो् को िजाया जाता है. सदवािी पर िूखे मेवे और चॊकिेट देने का चिन भी तेजी िे बढा है. चॉकिेट का कारोबार बहुत तेजी िे बढ रहा है. फूड नेसवगेटर-एसशया की सरपोट्स की माने्, तो िाि 2005 मे्भारत मे्चॉकिेट का उपभोग 50 ग्​्ाम प्​्सत व्यब्कत था, जो िाि 2013-14 मे्बढ्कर 120 ग्​्ाम प्​्सत व्यब्कत हो गया. एक अन्य सरपोट्स की माने्, तो सपछिे िाि देश मे् चॉकिेट का 58 अरब र्पये का कारोबार हुआ था, सजिके िाि 2019 मे्बढ्कर 122 अरब र्पये होने की िंभावना है. चॉकिेट की िगातार बढती मांग की वजह िे बाजार मे् घसटया सक़स्म के चॉकिेट की भी भरमार है. समिावटी और बड्े ब्​्ांड के नाम पर नक़िी चॉकिेट भी बाजार मे् ख़ूब सबक रही है्. इिी तरह जमाख़ोर रखे हुए िूखे मेवो्को एसिड मे्डुबोकर बेच रहे है्. इिे भी घर पर जांचा जा िकता है. िूखे मेवे काजू या बादाम पर पानी की तीन-चार बूदं े्डािे,् सफर इिके ऊपर ल्िू सिटमि पेपर रख दे्. अगर सिटमि पेपर का रंग िाि हो जाता है, तो इि पर एसिड है. सचसकत्िको् का कहना है सक समिावटी समठाइयां िेहत के सिए बेहद नुक़िानदेह है्. इनिे पेट िंबंधी बीमासरयां हो िकती है्. फ़ूड प्वाइजसनंग का ख़तरा भी बना रहता है. िंबे अरिे तक खाये जाने पर सकडनी और िीवर पर बुरा अिर पड्िकता है. आंखो्की रोशनी पर भी बुरा अिर पड्िकता है. बच्​्ो्का मानसिक और शारीसरक सवकाि र्क िकता है. घसटया सिल्वर फॉएि मे्एल्यमू ीसनयम की मात्​्ा ज्यादा होती है, सजि​िे शरीर के महत्वपूण्स अंगो् के ऊतको्और कोसशकाओ्को नुक़िान हो िकता है. सदमाग़ पर भी अिर पडता है. ये हस्​्डयो्तक की कोसशकाओ् को डैमेज कर िकता है. समठाइयो् को पकाने के सिए घसटया सक़स्म के तेि का इस्​्ेमाि सकया जाता है, जो िेहत के सिए ठीक नही् है. सिंथेसटक दूध मे् शासमि यूसरया, काब्सटक िोडा और सडटज्​्ेट आहार नसिका मे्अल्िर पैदा करते है्और सकडनी को नुक़िान पहुंचाते है्. समिावटी समठाइयो् मे्

फॉम्​्ेसिन, कृस्तम रंगो् और घसटया सिल्वर फॉएि िे िीवर, सकडनी, कै्िर, अस्थमैसटक अटैक, ह्दय रोग जैिी कई बीमासरयां हो िकती है्. इनका िबिे ज्यादा अिर बच्​्ो् और गभ्सवती मसहिाओ्पर पडता है. िूखे मेवो्पर िगा एसिड भी िेहत के सिए बहुत ही ख़तरनाक है. इि​िे कैि ् र जैिी बीमारी हो िकती है और िीवर, सकडनी पर बुरा अिर पड्िकता है. हािांसक देश मे् खाद्​् पदाथ्​्ो् मे् समिावट रोकने के सिए कई क़ानून बनाये गये, िेसकन समिावटख़ोरी मे्कमी नही्आयी. खाद्​्पदाथ्​्ो मे्समिावटखोरी को रोकने और उनकी गुणवत्​्ा को स्​्रीय बनाये रखने के सिए खाद्​् िंरक्​्ा और मानक क़ानून-2006 िागू सकया गया है. िोकिभा और राज्यिभा िे पासरत होने के बाद 23 अगस्​् 2006 को राष्​्पसत ने इि क़ानून पर अपनी मंजूरी दी. सफर 5 अगस्​्2011 को इिे अमि मे्िाया गया, यानी इिे िागू होने मे् पांच िाि िग गये. इिका मक़िद खाद्​्पदाथ्​्ो् िे जुडे सनयमो्को एक जगह िाना और इनका उल्िंघन करने वािो् को िख़्त िजा देकर समिावटख़ोरी को ख़त्म करना है. भारतीय खाद्​्िंरक्​्ा एवं मानक प्​्ासधकरण की स्थापना खाद्​् िुरक्​्ा और मानक सवधेयक 2006 के तहत खाद्​् पदाथ्​्ो् के सवज्​्ान आधासरत मानक सनध्ाससरत करने एवं सनम्ासताओ् को सनयंस्तत करने के सिए 5 सितंबर 2008 को की गयी. यह प्​्ासधकरण अंतरराष्​्ीय तकनीकी मानको्और घरेिू खाद्​्मानको्के बीच मध्य िामंजस्य को बढ्ावा देने के िाथ घरेिू िुरक्​्ा स्​्र मे्कोई कमी न होना तय करता है. इिके प्​्ावधानो् के तहत पहिे काम कर रहे कई सनयम-क़ानूनो् (1-फू्ट प्​्ोडक्ट्ि आड्सर, 1955 2-मीट फूड प्​्ोडक्टि ् आड्रस , 1973 3समल्क एंड समल्क प्​्ोडक्ट्ि आड्सर, 1992 4िािवेट् एक्िट्क्ै ट् ड े आयि, डी-आयल्ड मीि एंड एसडबि फ्िोर (कंट्ोि) आड्रस , 1967 5-

दीवाली पि िाकलेि का तोहफा सवसजटेबल्ि आयि प्​्ोडक्ट्ि (रेगुिेशन) आड्सर, 1998 6-एसडबि आयल्ि पैकेसजंग (रेगि ु श े न) आड्रस , 1998 7- खाद्​्अपसमश्ण ् सनवारण कानून, 1954) का प्​्शािसनक सनयंत्ण को इिमे्शासमि सकया है. इि क़ानून मे्खाद्​्पदाथ्​्ो्िे जुडे अपराधो् को श्स्ेणयो्मे्बांटा गया है और इन्ही्श्स्ेणयो्के सहिाब िे िजा भी तय की गयी है. पहिी श्​्ेणी मे्जुमा्नस े का प्​्ावधान है. सनम्न स्र् , समिावटी, नक़िी माि की सबक्​्ी, भ्​्ामक सवज्​्ापन के मामिे मे् िंबंसधत प्​्ासधकारी 10 िाख र्पये तक जुमा्नस ा िगा िकते है.् इिके सिए अदाित मे् मामिा िे जाने की जर्रत नही् है. दूिरी श्​्ेणी मे् जुम्ासने और क़ैद का प्​्ावधान है. इन मामिो् का फ़ैि​िा अदाित मे् होगा. समिावटी खाद्​्पदाथ्​्ो के िेवन िे अगर सकिी की मौत हो जाती है, तो उम्​्क़ैद और 10 िाख र्पये तक जुम्ासना भी हो िकता है. पंजीकरण या िाइिेि ् नही्िेने पर भी जुमा्नस े का प्​्ावधान है. छोटे सनम्ासता, सरटेिर, हॉकर, वे्डर, खाद्​् पदाथ्​्ो के छोटे व्यापारी सजनका िािाना टन्सओवर 12 िाख र्पये िे कम है, उन्हे् पंजीकरण कराना जर्री है. इिके उल्िंघन पर उन पर 25 हजार र्पये तक जुम्ासना हो िकता है. करीब 12 िाख र्पये िािाना िे ज्यादा टन्सओवर वािे व्यापारी को िाइिे्ि िेना जर्री है. ऐिा न करने पर पांच िाख र्पये तक जुम्ासना और छह महीने तक की िजा हो िकती है. अप्​्ाकृसतक और ख़राब गुणवत्​्ा वािे खाद्​् पदाथ्​्ो् की सबक्​्ी पर दो िाख र्पये तक का जुम्ासना हो िकता है. सदवािी पर समठाई की मांग ज्यादा होती है. इिके मुक़ाबिे आपूस्तस कम होती है. समिावटख़ोर मांग और आपूस्तस के इि फ़क़्फका फ़ायदा उठाते हुए बाजार मे्समिावटी िामग्​्ी िे बनी समठाइयां बेचने िगते है्. इि​िे उन्हे् तो ख़ािी आमदनी होती है, िेसकन ख़ासमयाजा n उपभोक्ताओ्को भुगतना पड्ता है. शुक्वार | 1 िे 15 नवंबर 2015 23


दीपावली ववशेष

िाक पि दीये िनाता कुम्हाि: रवलुप्तत का कगाि

क्यो् बुझ रहे दीये

दीवाली पर प्लास्टटक और जबजली की लज्डयो् के दौर मे् वह जदन दूर नही् जब जमट्​्ी के दीये बनाने वाले कुम्हार जवलुप्त हो जाये्गे. अि​िीश कुमार

गर ऐिे ही हािात रहे तो वह वक्त ज्यादा दूर नही् है, जब कुम्हार सविुप्त हो जायेग् .े उनके बच्ो्​्ने भी पुशत् नै ी काम छोड्कर दूिरा धंधा करना शुर् कर सदया है. क्यो्सक सपछिे िाि 40 र्पये के 100 दीपक और 10 र्पये मे् एक करवा सबका था. इनकी सजतनी िागत और मेहनत िगती है, उि सहिाब िे िामान का दाम नही्समिता है. ऐिे मे्मुनाफा न समिने िे भी िोगो् ने ये काम बंद कर सदया है.पूरी बस्​्ी मे्कुछ ही सगने-चुने कुमह् ार है.् वही् इनमे्िे सिफ्फतीन-चार ही हाथ िे चिने वािे चाक बचे है्. यह सदक्​्तो् और रोजी रोटी के िंकट की दास्​्ां कानपुर के कुम्हार िुखी िाि बयान करते है्. आज आधुसनकता इनके व्यविाय पर भारी पड् रही है. हािांसक दीवािी का त्योहार आते ही कुम्हारो्के चाक की रफ्तार तेज हो जाती है. कुम्हार पसरवार सदन रात एक कर समट्​्ी के बत्सन और दीया, मूस्तसयां बनाने मे् िग जाते है्. बच्​्े िे िेकर बूढ्े तक इि काम मे् हाथ बंटाते है. िेसकन समट्​्ी के दीयो्की चमक अब दीपाविी पर कम होती जा रही है. इनकी जगह अब प्िॉब्सटक और चाइनीज िस्डयो्िे िी है. इि​िे 24 शुक्वार | 1 िे 15 नवंबर 2015

रोजी-रोटी पर िंकट के बादि छाने िगते है्. आज महज परंपरा के नाम पर बि समट्​्ी के दीयो् का इस्​्ेमाि हो रहा है.िमय बदिने के िाथ प्​्ाचीन परंपरा पर आधुसनकता हावी हो रही है. इनका अिर कुमह् ार चाक पर भी पड्ा है. इि वजह िे उनके रोजीरोटी पर िंकट आने िगा है. चूंसक बाजार मे् आकष्सक वस्​्ुओ् की मांग ज्यादा है, इि वजह िे िोग समट्​्ी के सदये कम खरीद रहे है्. कानपुर शहर और देहात मे्करीब 150 कुम्हार पसरवार है्, जो समट्​्ी के बत्सन,दीया और मूस्तसयां बनाने का व्यविाय करते है्. यहां एक कुम्हार पसरवार करीब पांच हजार समट्​्ी के बत्सन, दीया और मूस्तसयां बनाता है. इि तरह ये पसरवार करीब पांच िाख समट्​्ी के बत्सन व दीया और मूस्तसयां बनाते है्. इिे कानपुर शहर और देहात मे् इन्हे् बेचा जाता है्. बावजूद इिके, बहुत िारे दीये और अन्य समट्​्ी के िामना बच जाते है्. सजिके कारण इन िोगो को काफी नुकिान उठाना पडाता है सजिके चिते कानपुर के इन कुम्हारो्को अब अपने रोजग़ार की सचंता िताने िगी है. इन िोगो्का कहना है की अब िोगो्पर आधुसनकता हावी हो रही है. बाजार मे् चीन के उत्पादो् की चमक िोगो् की आंखो् मे् िमा गयी है्. इि​िे िोगो् के रहन-िहन मे् भी कई बदिाव आये. अब िोगो्ने समट्​्ी के बत्सनो्

की जगह क्​्ॉकरी जैिी चीजो् का इस्​्ेमाि करना शुर्कर सदया, सजिका नतीजतन समट्​्ी के घड्े, दीया और मूस्तसयां बनाने वािे कुम्हार कसठन हािात िे गुजर रहे है्. इिका प्​्भाव उनके व्यविाय पर पड् रहा है. मूस्तसयां बनाने वािे कुम्हार सदक्​्तो्िे गुजर रहे है्. कानपुर देहात के कुम्हार असनि बताते है् सक मूस्तस बनाना और बेचना उिका पुस्ैनी धंधा है. नौवी् तक पढ्े असनि कहते है् सक उनके पसरवार के िभी िदस्य मूस्तस बनाने मे् िहयोग करते है्. सदवािी के सिए उन्हो्ने 6000 दीये बनाये है्. इन्हे्वह कानपुर देहात और शहर मे् बेचते है्. िेसकन हर िाि यह सदये अभी तक िारे सबक जाते थे, िेसकन इि बार वह सिफ्फ 200 दीये ही बेचे पाये है्. इि तरह उन्हे्डर है की उनके बनाये दीये सबक पाये्गे की नही्. यह कहानी केवि असनि की ही नही् है. कानपुर के सशविी के कुम्हार राम भरोिे बताते है्सक एक िमय था, जब िोग कुम्हार के हाथो् िे बने दीयो्को भगवान के िामने जिाकर घरो् को रोशन करते थे, िेसकन अब आधुसनक िुसवधाओ् की वजह िे िोग परंपराओ् को भी भूि चुके है्. इिका िबिे ज्यादा अिर उनकी सजंदगी पर पड्ा, जो इिी के जसरये रोजी-रोटी कमा रहे थे. हािात यह है सक आज कुम्हार गुमनामी की सजंदगी जीने को मजबूर है्. समट्​्ी के बत्नस ो्के पय्ावस रण िे जुड्ेहोने की बात पर कुम्हार सशवनाथ बताते है्सक कुम्हार हमेशा िे पय्ावस रण को िुरस्​्कत रखने का प्य् ाि करते है्और इसिसिए हम समट्​्ी को ही चाक पर अिग-अिग र्प देकर दीपक, बत्सन आसद तैयार करते है,् िेसकन प्िॉब्सटक के बत्नस हमारी इि किा की हत्या कर रहे है.् हमारे सिए िबिे बड्ी िमस्या चाइनीज बल्बो् के झािर की है् क्यो्सक यह िस्​्ेदामो्पर बाजार मे्उपिल्ध है् और दीपाविी पर िोग इिे अपने घरो्मे्िगाने के शौकीन होते जा रहे है्. सजि​िे अथक प्​्याि करने के बाद भी हम सजतने दीपक आसद तैयार करते है्, वह पूरे सबक नही्पाते और हमे्हमारी मेहनत का पासरश्​्समक तक नही् समि पाता. िेसकन अब यह सिफ्फदेवी और देवताओ्के होने वािे पूजा मे्प्​्योग होने तक ही िीसमत हो गया है. आने वािी पीढ्ी इन समट्​्ी के दीपको्िे मुंह मोड्ती नजर आ रही है. कुम्हार केवि समट्​्ी को आकार नही् देते. वे पय्ासवरण सहतैषी भी है्. जब आज पूरी दुसनया प्िॉब्सटक के कचरे के सनपटारे के सिए तमाम तरह के नये खोज मे् जुटी है, ऐिे मे् वह एक िहज सवकल्प तो पैदा ही करते है्. भिे ही आधुसनकता ने कुम्हार की रोजी पर डाका डािा हो, िेसकन समट्​्ी के सदयो् के दीपक आज भी आधुसनकता मे्परंपरा को सजंदा रखने का काम n कर रहे है्.



सावहत्य/धरोहर

एक पुरानी याद संस्मरण फणीश्​्रिाथ रेणु

पुरानी कापी मे् ट्मृजतयो् की ताजी िूल-पंखुज्डयां जमल जाये् तो इससे बड्ी खुिी क्या होगी. इसके दृश्य-पटल पर जीवन इस तरह झांक उठा है जैसे भरे बादलो् से दूज का चांद. रेणु के बचपन का आख्यान उन्ही् की जुबानी.

26 शुक्वार | 1 िे 15 नवंबर 2015

सक

िी बात या घटना की याद क्यो् और कैिे आती है, इिका शास्​्ीय सववेचन मनोसवज्​्ान के सवशेषज्​्ो् का सवषय है. हम िाधारण-जन तो इतना ही कह िकते है् सक पुरानी याद उि िोने की तरह है, सजिमे्समिी हुई, खाद िमय की आंच मे् तप गिकर स्वयं ही अिग-सविग हो जाती है. सपछिे िाि दूर देहात मे,् अपने एक सनकट िंबध ं ी के घर पर दो-सदनो्के सिए ठहरना पड्ा. िाथ मे्जो एकमात्​्मासिक-पस्​्तका थी, उिकी िभी पठनीय और अपाठ्​्िामस्​्गयो्को एक ही सदन मे्दो बार पढ्चुका था. सवज्​्ापनो्िे दूिरे सदन की दोपहरी सकिी तरह कटी. सकंतु, तीिरे सदन को काटने के सिए मेरे पाि कुछ नही् था और िुबह िे शाम तक मै्खुद कट ता रहा. मेरी बेचैनी का कारण जानकर मेरे िंबंधी ने दुख प्​्कट करते हुए कहा, ‘घर मे्तो पोथी-पत्​्र के नाम पर बि एक रामायण जी है्. रामायण पस्ढयेगा?’ अंदर हवेिी िे सकिी की एक पुरानी सपटारी

िेकर आये. सपटारी िे रामायण जी के िाथ और भी कई सकताबे् सनकिी्. एक-उि जमाने की एक मशहूर पेटे्ट दवा की कंपनी का िसचत्​् पंचाग (िूची पत्​् िसहत) था. दूिरी थी िन्ा उन्नीि िौ अट्​्ाईि मे् समडि मे् पढ्ाई जाने वािी सकताब िासहत्य-पाठ. दृस्ष पड्ते ही मेरा किेजा धड्क उठा. पृष्उिटकर देखा अस्य पुस्कासधकारी? अपने हाथ की पुरानी सिखावट को पहचानने मे्देर नही्िगी. सकताब मेरी ही थी, जाने कब और कैिे यहां आकर िुरस्​्कत पड्ी हुई थी. रामायण जी बािकांड और उत्​्रकांड के असधकांश पृष् दीमक-भुक्त हो चुके थे. सकंतु मेरी सकताब की प्​्त्येक पंब्कत मे् मेरा बािकांड छुपा हुआ था-मानो. िसचत्​्िासहत्यपाठ के कई पाठो् के आि पाि हासशये पर अंग्ेजी मे् ‘इम्प’ (अथ्ासत्ा इम्पोट्​्ेट) ‘वी. इंप’ (वेरी इम्पोट्​्ेट) और कही् वेरी-वेरी इम्पोट्​्ेट आसद िाि-ितक्फवासण यां इतने सदनो् की बाद भी मुझे ितक्फकर रही थी्...


यत्-् तत्,् िाि पेस्ि​ि िे पंबक् तयां रेखांसकत थी् और सकिी तस्वीर की मूंछ ‘सरटच’ करके िंवारी गयी थी. सकिी िंत कसव को चश्मा पहना सदया गया था ‘जयद्​्थ वध’ उि काि पस्​्िम ओर रसव की रह गयी बि िासिमा, होने िगी कुछ-कुछ प्​्कट-िी यासमनी कासिमा’ परीक्​्ा मे् इन पंब्कतयो् का अथ्स‘िंदभ्सिसहत’ सिखा था- रसव की िािमां भी रह गयी और जासमनी की कािी-मां तब िामने आ गयी-बचपन की हंिी सफर िौट आयी मेरे होठो्पर. एक पृष्पर डाब्लहया फूि की कई बदरंग पंखुस्डयां सचपकी पड्ी समिी्. सततिी के पंखो् जैिी. और उन्ही्पंखो्के िहारे मै्तीि-बत्​्ीि िाि पहिे की दुसनया मे्जा पहुंचा. स्कूि के हेडमास्टर के कमरे के िामने, बाग मे् एक नया फूि सखिा है ‘अंग्ेजी फूि, डाब्लहया. हम िभी महीनो् िे इि फूि के सखिने की प्​्तीक्​्ा कर रहे थे. सजि सदन वह सखिा, हेडमास्टर िाहब की बांछे् सखि गयी्. इतने प्फ ् बु ल् ित हुए सक एक घंटा पहिे की छुट्ी की घंटी बजवा दी हेडमास्टर िाहब ने वीपी िे उि फूि का कंद (बल्बे) मंगवाकर अपने हाथो् रोपा-िी्चा था.छुट्ी की घंटी बजी. स्​्डि-पीसरयड और स्​्डि-मास्टर िाहब िे छुट्ी पाकर हम प्​्िन्न हुए- जै हो डाब्लहया फूि की! सकंतु हम स्कूि के अहाते िे सनकिकर एक फि्ा​ा्ग भी नही् जा पाये थे सक पीछे िे स्कूि के चपरािी की पुकार िुनाई पड्ी. उधर स्कूि की घंटी सफर जोर-जोर िे बजने िगी. टन-टनांग, टन-टनांग!! एक, दो, तीन ‘ग्यारह’ हेडमास्टर िाहब स्वयं घंटी बजा रहे थे. घंटी बंद हुई तो स्काॅउट-मास्टर की िीटी बजने िगी- खतरे की िीटी! डे्जर? डे्जर? सवसभन्न सदशाओ् की पगडंसडयो् पर जाते हुए सवद्​्ाथ्​्ी मुड्े, िौटे और दौड्े- क्या हुआ? क्या हो गया? सकधर आ गयी? कौन डूबा? स्कूि के अहाते मे् िौटकर देखा हेडमास्टर िाहब असगया-बैताि होकर सचल्िा रहे है्- सकिने तोड्ा? फूि सकिने तोड्ा? एक-एक की तािाशी िी गयी, हासजरीबसहयां खोिकर हर दज्े् के सवद्​्ाथ्​्ी की उपब्सथसत-अनुपब्सथसत समिाई गयी.पर वह फूि तो पौरासणक कथाओ्का फूि हो गया. अंत मे्हेडमास्टर िाहब झमा कर बैठ गये, मानो उि फूि मे्ही उनकी जान बिी हुई थी. हम िभी झमा गये हाय! दूिरे सदन हेडमास्टर िाहब के दफ्तर मे् सजन कई सगने-चुने छात्​्ो्की बुिाहट हुई, उिमे् एक मै्भी था. इतना ही नही्,दफ्तर मे्पहुंचकर िुना–हेडमास्टर िाहब का सवश्​्ाि एकदम

सुप्ससद्​् उपन्यासकार और गद्​् सिल्पी. जन्म: 4 मार्च 1921, सिधि: 11 अप्​्ैल 1997. प्​्मुख उपन्यास: मैला आंरल, परती पसरकथा, दीर्चतपा, सकतिे रौराहे. गद्​् कृसतयां: ठुमरी, ऋणजल धिजल, िेपाली क्​्ांसत कथा.

पक्​्ा है सक मेरे सिवा और सकिी ने यह काम नही् सकया है.िंदेह के कारण? क्यो्सक, मै्ने उनिे पूछा था- िर! क्या इि फूि मे् जरा भी िुगंध नही् होती? तब,इि फूि की क्या कीमत?’ ‘और, इिसिए भी सक सखिे हुए फूि को, हेडमास्टर िाहब के कथनानुिार– मै्बड्ी भूखी सनगाह िे देख रहा था! मेरी कोई िफाई नही्िुनी गयी और किूर कबूि करवाने के सिए तमाचे िे िेकर छड्ी तक की िहायता िी गयी.मेरा चेहरा िाि हो गया. िेसकन फूि? चोट, िाज और ग्िासन के मारे मै्बीमार हो गया. तेज बुखार मे्मेरी आंखो्के आगे िैकड्ो् डाब्लहया के फूि सखिे, मुझ्ासये और सफर धू-धू कर जिे. रात भर मै्डाब्लहया के बाग मे्भरमता रहा खोकर. दूिरे सदन शाम को जी जरा हिका था. पाि के गांव िे मेरा एक िहपाठी मुझे समिने आया. उिने मेरी हाित पर हास्दसक दुख प्​्कट सकया और मुझे ‘सवद्​्ा- किम’ सखिाने केबाद फुिफुिा कर बतिाया – ‘देखो, फूि मै्ने तोड्ा है हेडमास्टर िाहब के चपरािी ने बतिाया था एक सदन सक इिका पहिा फूि सजिके पाि हो, वह सकिी इम्तहान मे्फेि नही् कर िकता. खािकर अंग्ेजी मै् तो कभी नही्.क्यो्सक फूि अंग्ेजी है.और, तुम तो जानते ही हो सक मै् िभी िबजेक्ट मे् कैिा भुिकोि हूं.’ इतना कहने के बाद उिने अपने अंगोछे मे् सिपटे फूि को सनकािा बािी, मुझा्ईस और झड्ी पपस्डयां, पंखुस्डयां!! सफर उिने इि फूि की कुछ पंखसु ्डयां मुझे देकर इिके व्यवहार की सवसध भी बतिाई-

सासहत़य-पाठ की उन पंखस़ियो़ को बटोरकर मै़ने बैग मे़रख सलया हमने सजसे प़यार सकया था, उसको एक राज़य भर के क़​़ीि़ा प़​़ेसमयो़ने प़यार सकया.

‘सजि सवषय मे्ज्यादा नंबर पाने की इच्छा हो, उि सवषय की सकताब मे् इन पंखुस्डयो् को दबाकर रख दो. सफर, काम िोना!’ चोट, दद्स और बुखार के बाद अि​ि आिामी को बा-माि देखकर मै्तसनक उत्स्ेजत हुआ. सकंतु, पढ्ने मे्बोदा होने के बावजूद उि​िे मेरी दोस्​्ी थी.वह फुटबॉि का अच्छा सखिाड्ी था.हमारे बािचर-दि का मुस्ंड िाथी. इिके अिावा बार-बार माफी मांगते िमय वह अपना मुंह िामने कर देता था.कनपटी टेढ्ी करके कहता- ‘तुमको सजतनी मार िगी है उि​िे ज्यादा मुझे मार िो.’ मैन् े फूि की पंखसु ्डयो्को िासहत्य-पाठ के पृष्ो्मे्दबा कर रख सदया और सफर कभी उि सकताब को स्कूि नही्िे गया. िबिे अचरज की बात जो शायद आ रही है वह यह सक परीक्​्ा फि सनकिने के बाद मेरा वह फूिचोर-समत्​् िभी सवषयो् मे् फेि होकर भी मुझिे िोत्िाह कहने आया-‘देखी न तुमने इि स्कूि की मसहमा?सजि सकताब मे्दबाकर रखा उिमे्तो िबिे ज्यादा नंबर तुमह् ी्को आया न?’ खुद अपने बारे मे् उिने स्वीकार सकया, चूंसक फूि हेडमास्टर िाहब का था और िबिे बड्ेगुर्का सदि दुखा कर पाि करना खेि नही् मेरा वह समत्​्आठ वष्सपूवस्‘सबहार एिेवन’ मे्‘िेिेक्ट’ होकर– किकत्​्ेके मैदान मे्चार सदनो् तक कमाि सदखिाया था. अखबारो् मे् उिकी तस्वीर छपी थी िासहत्य-पाठ की उन पंखस्डयो् को बटोरकर मैन् -े बैग मे्रख सिया हमने सजिे प्यार सकया था, उिको एक राज्य भर के क्​्ीड्ा प्स्ेमयो् ने प्यार सकया- उिके नाम को और िंस्कप्त करके एक मीठा-िा नाम सदया अट्​्ाईि-उनतीि िाि के बाद, अपनी पढ्ी हुई, कोि्सकी सकताब को सफर िे देख पाना ही अपने मे् एक बड्ी बात है पर, उिके पन्नो् के बीच पुरानी याद की कुछ पंखुस्डयां दबी सचपकी n पड्ी हो्? शुक्वार | 1 िे 15 नवंबर 2015 27


सावहत् मास्यट/धरोहर हेड व्यंग्य कथा हनरशंकर परसाई

क शाम रेिवे स्टेशन पर एक स्वामीजी के दश्सन हो गये. ऊंचे, गोरे और तगड्े िाधू थे. चेहरा िाि. गेर्ए रेशमी कपड्े पहने थे. पांवो्मे्खड्ाऊं. हाथ मे्िुनहरी मूठ की छड्ी. िाथ एक छोटे िाइज् का सकशोर िंन्यािी था. उिके हाथ मे् ट्​्ांसजस्टर था और वह गुर् को रफ़्ी के गाने िुनवा रहा था. मै्ने पूछा- स्वामी जी, कहां जाना हो रहा है? स्वामीजी बोिे - सदल्िी जा रहे है्, बच्​्ा! मै्ने कहा- स्वामीजी, मेरी काफ़्ी उम्​् है. आप मुझे 'बच्​्ा' क्यो्कहते है्? स्वामीजी हंिे. बोिे - बच्​्ा, तुम िंिारी िोग होस्टि मे् िाठ िाि के बूढ्े बैरे को 'छोकरा' कहते हो न! उिी तरह हम तुम िंिासरयो् को बच्​्ा कहते है्. यह सवश्​् एक सवशाि भोजनािय है सजिमे्हम खाने वािे है् और तुम परोिने वािे हो. इिीसिए हम तुम्हे् बच्​्ा कहते है्. बुरा मत मानो. िंबोधन मात्​्है. स्वामीजी बात िे सदिचस्प िगे. मै् उनके पाि बैठ गया. वे भी बेच ् पर पािथी मारकर बैठ गये. िेवक को गाना बंद करने के सिए कहा. कहने िगे- बच्​्ा, धम्सयुद् सछड् गया. गोरक्​्ा-आंदोिन तीव्​् हो गया है. सदल्िी मे् िंिद के िामने ित्याग्​्ह करे्गे. मै्ने कहा- स्वामी जी, यह आंदोिन सकि हेतु चिाया जा रहा है? स्वामी जी ने कहा- तुम अज्​्ानी मािूम होते हो, बच्​्ा! अरे गौ की रक्​्ा करना है. गौ हमारी माता है. उिका वध हो रहा है. मै्ने पूछा- वध कौन कर रहा है? वे बोिे- सवधम्​्ी किाई. मै्ने कहा- उन्हे्वध के सिए गौ कौन बेचते है्? वे आपके िधम्​्ी गोभक्त ही है्न? स्वामी जी ने कहा- िो तो है्. पर वे क्या करे?् एक तो गाय व्यथ्सखाती है, दूिरे बेचने िे पैिे समि जाते है्. मै्ने कहा- यानी पैिे के सिए माता का जो वध करा दे, वही िच्​्ा गो-पूजक हुआ! स्वामी जी मेरी तरफ़् देखने िगे. बोिेतक्फतो अच्छा कर िेते हो, बच्​्ा! पर यह तक्फ की नही्, भावना की बात है. इि िमय जो हज्ारो् गोभक्त आंदोिन कर रहे है्, उनमे् शायद ही कोई गौ पािता हो. पर आंदोिन कर रहे है्. यह भावना की बात है. स्वामीजी िे बातचीत का रास्​्ा खुि चुका था. उनिे जमकर बाते्हुई्, सजिमे्तत्व मंथन हुआ. जो तत्व प्​्ेमी है्, उनके िाभाथ्सवात्ासिाप नीचे दे रहा हूँ. 28 शुक्वार | 1 िे 15 नवंबर 2015

एक गोभक्त से भे्ि

स्वामीजी और बच्​्ा की बातचीत - स्वामी जी, आप तो गाय का दूध ही पीते हो्गे ? -नही् बच्​्ा, हम भै्ि के दूध का िेवन करते है्. गाय कम दूध देती है और वह पतिा होता है. भैि ् के दूध की बस्ढया गाढ्ी मिाई और रबड्ी बनती है. तो क्या िभी गोभक्त भै्ि का दूध पीते है्? हां, बच्​्ा, िगभग िभी. -तब तो भै्ि की रक्​्ा हेतु आंदोिन करना चासहए . भै्ि का दूध पीते है्, मगर माता गौ को कहते है्. सजिका दूध सपया जाता है, वही तो माता कहिाएगी. -यानी भै्ि को हम माता.... नही् बच्​्ा, तक्फठीक है, पर भावना दूिरी है. -स्वामी जी, हर चुनाव के पहिे गोभब्कत क्यो्ज्ोर पकड्ती है ? इि मौिम मे्कोई ख़्ाि बात है क्या? -बच्​्ा, जब चुनाव आता है , तब हमारे नेताओ्को गोमाता िपने मे्दश्नस देती है. कहती है- बेटा चुनाव आ रहा है. अब मेरी रक्​्ा का आंदोिन करो. देश की जनता अभी मूखस्है. मेरी रक्​्ा का आंदोिन करके वोट िे िो. बच्​्ा, कुछ राजनीसतक दिो् को गोमाता वोट सदिाती है, जैिे एक दि को बैि वोट सदिाते है्. तो ये नेता एकदम आंदोिन छेड् देते है् और हम िाधुओ् को उिमे् शासमि कर िेते है्. हमे् भी राजनीसत मे्मज्ा आता है. बच्​्ा, तुम हमिे ही पूछ रहे हो. तुम तो कुछ बताओ, तुम कहां जा रहे हो? - स्वामी जी मै् 'मनुष्य-रक्​्ा आंदोिन' मे् जा रहा हूं . - यह क्या होता है, बच्​्ा?

व्यंग्य रित्​्: इिफान

- स्वामी जी, जैिे गाय के बारे मे्मै्अज्​्ानी हूं , वैिे ही मनुष्य के बारे मे्आप है्. - पर मनुष्य को कौन मार रहा है? - इि देश के मनुष्य को िूखा मार रहा है, अकाि मार रहा है, महंगाई मार रही है. मनुष्य को मुनाफ़्ाखोर मार रहा है, कािा-बाज्ारी मार रहा है. भ्​्ष्शािन-तंत्मार रहा है. िरकार भी पुसि​ि की गोिी िे चाहे जहां मनुष्य को मार रही है. सबहार के िोग भूखे मर रहे है्. -सबहार? सबहार शहर कहां है बच्​्ा? -सबहार एक प्​्देश है, राज्य है . - अपने जम्बूद्ीप मे्है न? - स्वामी जी, इिी देश मे्है, भारत मे्. - यानी आय्ासवत्समे्? -जी हां, ऐिा ही िमझ िीसजए. स्वामीजी, आप भी मनुष्य-रक्​्ा आंदोिन मे् शासमि हो जाइए न! -नही्बच्​्ा, हम धम्ातस म् ा आदमी है्. हमिे यह नही् होगा. एक तो मनुष्य हमारी दृस्ष मे् बहुत तुच्छ है. वे िोग ही तो है्, जो कहते है्, मंसदरो् और मठो् मे् िगी जायदाद को िरकार िे िो. बच्​्ा, तुम मनुष्य को मरने दो. गौ की रक्​्ा करो. कोई भी जीवधारी मनुष्य िे श्​्ेष्है. तुम देख नही् रहे हो, गोरक्​्ा के जुिूि मे् जब झगड्ा होता है, तब मनुष्य ही मारे जाते है.् एक बात और है, बच्​्ा! तुम्हारी बात िे प्​्तीत होता है सक मनुष्य-रक्​्ा के सिए मुनाफ़्ाख़्ोर और कािा-बाज्ारी िे बुराई िेनी पड्ेगी. यह हमिे नही् होगा. यही िोग तो गोरक्​्ा-आंदोिन के सिए धन देते है.् हमारा मुहं धम्सने बंद कर सदया है. - ख़्ैर, छोस्डए मनुष्य को . गोरक्​्ा के बारे मे् मेरी ज्​्ान-वृस्द कीसजए. एक बात बताइए,


मान िीसजए आपके बरामदे मे्गेहूं िूख रहे है्. तभी एक गोमाता आकर गेहूं खाने िगती है. आप क्या करे्गे? - बच्​्ा? हम उिे डंडा मारकर भगा दे्गे. -पर स्वामी जी, वह गोमाता है न . पूज्य है. बेटे के गेहूं खाने आई है. आप हाथ जोड्कर स्वागत क्यो्नही्करते सक आ माता, मै्कृताथ्स हो गया. िब गेहूं खा जा. -बच्​्ा, तुम हमे्मूख्सिमझते हो? - नही्, मै्आपको गोभक्त िमझता था . - िो तो हम है्, पर इतने मूख्स भी नही् है् सक गाय को गेहूं खा जाने दे्. - पर स्वामीजी, यह कैिी पूजा है सक गाय हड्​्ी का ढांचा सिए हुए मुहल्िे मे् काग़्ज् और कपड्े खाती सफरती है और जगह जगह सपटती है! -बच्​्ा, यह कोई अचरज की बात नही्है . हमारे यहां सजिकी पूजा की जाती है उिकी दुद्सशा कर डािते है्. यही िच्​्ी पूजा है. नारी को भी हमने पूजय् माना और उिकी जैिी दुदश स् ा की िो तुम जानते ही हो. -स्वामी जी, दूिरे देशो् मे् िोग गाय की पूजा नही्करते , पर उिे अच्छी तरह रखते है् और अब वह खूब देती है. -बच्​्ा, दूिरे देशो् की बात छोड्ो . हम उनिे बहुत ऊंचे है्. देवता इिीसिए सिफ़फ्हमारे यहां अवतार िेते है्. दूिरे देशो्मे्गाय दूध के उपयोग के सिए होती है, हमारे यहां वह दंगा करने, आंदोिन करने के सिए होती है. हमारी गाय और गायो्िे सभन्न है. -स्वामी जी, और िब िमस्याएं छोड्कर आप िोग इिी एक काम मे्क्यो्िग गये है्? -इिी िे िब हो जायेगा, बच्​्ा! अगर गोरक्​्ा का क़्ानून बन जाये, तो यह देश अपनेआप िमृद् हो जायेगा. सफर बादि िमय पर पानी बरिाएंगे , भूसम ख़्ूब अन्न देगी और कारखाने सबना चिे भी उत्पादन करे्गे. धम्सका प्​्ताप तुम नही्जानते. अभी जो देश की दुद्सशा है, वह गौ के अनादर का पसरणाम है.

-स्वामी जी, पस्​्िम के देश गौ की पूजा नही्करते, सफर भी िमृद्है्? -उनका भगवान दूिरा है बच्​्ा. उनका भगवान इि बात का ख्​्याि नही्करता. - और र्ि जैिे िमाजवादी दश भी गाय को नही्पूजते, पर िमृद्है्? - उनका तो भगवान ही नही् बच्​्ा. उन्हे् दोष नही्िगता. यानी भगवान रखना भी एक झंझट ही है. वह हर बात का दंड देने िगता है. -तक्फठीक है, बच्​्ा, पर भावना ग़्ित है. -स्वामी जी, जहां तक मै्जानता हूं, जनता के मन मे्इि िमय गोरक्​्ा नही्है, महंगाई और आस्थसक शोषण है . जनता महंगाई के स्ख़िाफ़् आंदोिन करती है. वह वेतन और महंगाई-भत्​्ा बढ्वाने के सिए हड्ताि करती है. जनता आस्थसक न्याय के सिए िड् रही है. और इधर आप गोरक्​्ा-आंदोिन िेकर बैठ गये है्. इिमे् तुक क्या है? -बच्​्ा, इिमे् तुक है . देखो, जनता जब आस्थसक न्याय की मांग करती है, तब उिे सकिी दूिरी चीज्मे्उिझा देना चासहए, नही्तो वह ख़्तरनाक हो जाती है. जनता कहती है- हमारी

इस जनता को अगर गोरि़​़ाआंदोलन मे़न लगाये़गे तो यह तनख़​़वाह बढ़वाने का आंदोलन करेगी, मुनाफ़ाख़ोरी के स़खलाफ़ आंदोलन करेगी. मांग है महंगाई बंद हो, मुनाफ़्ाख़्ोरी बंद हो, वेतन बढ्े, शोषण बंद हो, तब हम उि​िे कहते है् सक नही्, तुम्हारी बुसनयादी मांग गोरक्​्ा है. बच्​्ा, आस्थक स क्​्ासं त की तरफ़्बढ्ती जनता को हम रास्​्ेमे्ही गाय के खूंटे िे बांध देते है्. यह आंदोिन जनता को उिझाए रखने के सिए है. - स्वामी जी, सकिकी तरफ़्िे आप जनता को इि तरह उिझाए रखते है्?

सुप्ससद्​् व्यंग्यकार और गद्​्सिल्पी. जन्म: 22 अगस्​् 1924, सिधि: 10 अगस्​् 1995. प्​्मुख कृसतयां: सदारार का तावीज, जैसे उिके सदि सिरे, रािी िागि​िी की कहािी, सठठुरता हुआ गणतंत्, पगडंसडयो् का जमािा, वैष्ण्ाव की सिसलि, प्​्ेमरंद के िटे जूते.

- जनता की माँग का सजनपर अिर पड्गे ा, उिकी तरफ़् िे. यही धम्स है. एक दृष्ांत देते है्. एक सदन हज्ारो् भूखे िोग व्यविायी के गोदाम मे् भरे अन्न को िूटने के सिए सनकि पड्े. व्यविायी हमारे पाि आया. कहने िगा- स्वामीजी, कुछ कसरए. ये िोग तो मेरी िारी जमा-पूंजी िूट िे्गे. आप ही बचा िकते है्. आप जो कहे्गे, िेवा करे्गे. बि बच्​्ा, हम उठे, हाथ मे् एक हड्​्ी िी और मंसदर के चबूतरे पर खड्े हो गये. जब वे हज्ारो् भूखे गोदाम िूटने का नारा िगाते आये, तो मै्ने उन्हे् हड्​्ी सदखायी और ज्ोर िे कहा- सकिी ने भगवान के मंसदर को भ्​्ष् कर सदया. वह हड्​्ी सकिी पापी ने मंसदर मे् डाि दी. सवधम्​्ी हमारे मंसदर को अपसवत्​्करते है्., हमारे धम्सको नष्​् करते है्. हमे्शम्सआऩी चासहए. मै्इिी क्​्ण िे यहां उपवाि करता हूं. मेरा उपवाि तभी टूटेगा, जब मंसदर की सफर िे पुताई होगी और हवन करके उिे पुनः पसवत्​्सकया जायेगा. बि बच्​्ा, वह जनता आपि मे्ही िड्ने िगी. मै्ने उनका नारा बदि सदया. जव वे िड् चुके, तब मै्ने कहा- धन्य है इि देश की धम्स-प्​्ाण जनता! धन्य है अनाज के व्यापारी िेठ अमुकजी! उन्हो्ने मंसदर की शुस्द का िारा ख़्च्स देने को कहा है. बच्​्ा सजिका गोदाम िूटने वे भूखे जा रहे थे, उिकी जय बोिने िगे. बच्​्ा, यह है धम्स का प्​्ताप. अगर इि जनता को गोरक्​्ाआंदोिन मे् न िगाएँगे यह बै्को् के राष्​्ीयकरण का आंदोिन करेगी, तनख्​्वाह बढ्वाने का आंदोिन करेगी, मुनाफ़्ाख़्ोरी के स्ख़िाफ़्आंदोिन करेगा. उिे बीच मे्उिझाये रखना धम्सहै, बच्​्ा. - स्वामी जी, आपने मेरी बहुत ज्​्ान-वृस्द की. एक बात और बताइए. कई राज्यो्मे्गोरक्​्ा के सिए क़्ानून है. बाक़्ी मे्िागू हो जायेगा. तब यह आंदोिन भी िमाप्त हो जाएगा. आगे आप सकि बात पर आंदोिन करे्गे. -अरे बच्​्ा, आंदोिन के सिए बहुत सवषय है् . सिंह दुग्ास का वाहन है. उिे िरकिवािे सपंजरे मे् बंद करके रखते है् और उि​िे खेि कराते है्. यह अधम्स है. िब िरकिवािो् के स्ख़िाफ़्आंदोिन करके, देश के िारे िरकि बंद करवा दे्गे. सफर भगवान का एक अवतार मत्सय् ावतार भी है. मछिी भगवान का प्त् ीक है. हम मछुओ् के स्ख़िाफ़् आंदोिन छेड् दे्गे. िरकार का मछिी पािन सवभाग बंद करवायेग् .े - स्वामी जी, उल्िू िक्​्मी का वाहन है. उिके सिए भी तो कुछ करना चासहए. -यह िब उिी के सिए तो कर रहे है्, बच्​्ा! इि देश मे्उल्िू को कोई कष्​्नही्है. वह मज्ेमे्है. इतने मे् गाड्ी आ गयी. स्वामी जी उिमे् पैठकर चिे गये. बच्​्ा, वही्रह गया. n शुक्वार | 1 िे 15 नवंबर 2015 29


सावहत्य

आत्मव्ाृत् लीलाधर जगूड्ी

चपन को याद करने का मतिब है पहिी बार इि दुसनया मे् अपने होने को याद करना. पैदा होने के बाद मुझे अपने िेटे रहने की याद तो नही्, पर झगुिा पहने अपने बचपन मे् चिने-सफरने की ऐिी याद है सक अपने पर अब उि तरह तरि आता है जैिे सकिी दूिरे व्यब्कत के बचपन को देख रहा होऊं. िचमुच अपने बचपन का िमय खोया िमय िगता है, सकतनी दूर आ गया हूं मै् अपने जन्म के सदन िे अपने बचपन को पार करते हुए और बचपन को छोड्देना ही बड्ा होना है. अपने एकएक वष्सकी िीढ्ी पार करता मै्अपने 75वे्िाि मे्प्​्वेश करने वािा हूं. िमय के चक्​् और अपने भसवष्य के भाग्य पर क्या इतना भरोिा करना िही है? अगर न करता तो अब तक सवदा हो चुका होता. मृत्यु को मै्ने धोखे के र्प मे् ही ज्यादा जाना है, सवदा होने के र्प मे् नही्. एक आरामदायक मृतय् ु को शायद सवदा होना कहा जा िके. मेरा कई बार मरना हुआ है, मृत्यु-तुल्य आघातो् िे.पर जैिे िबका होता, पास्थसव शरीर का मरना अपने िंदभ्समे्भिे ही सफिहाि अज्​्ात हो, िेसकन उिे होना है और वह दूिरो्को ज्यादा ज्​्ात होना है, मुझे नही्. करीब चार बार मै्मरण िंकट झेि चुका हूं.एक बार कृष्णाश्​्म (हसरद्​्ार) की नहर मे् बाकायदा तैरते हुए िहरो्की चपेट मे्आ गया और डेढ्-दो सकिोमीटर के बाद मरते दम सकनारे िग पाया. दूिरी बार 1973 मे्सदल्िी िे देहरादून आते हुए रेि पर एक व्यब्कत ने कुछ सखिा सदया और मै्रात करीब ढाई-तीन बजे एक बोगी मे् अध्समूस्छित अवस्था मे् बसनयान और अंडरसवयर मे् पुसि​ि के हाथ मे् था. इिकी कुछ झिक ‘बिदेव खटीक’ कसवता मे्आयी है. तीिरी बार 1970 मे्रतूड्ीिेरा के पाि उत्​्रकाशी के गे्विा गांव मे्13 सिंतबर को भूस्खिन और पनगोिा सगरने िे मेरे बड्ेबेटे िसहत दो मकानो्वािा घर और पसरवार के छह िदस्य खत्म हो गये. यह मेरी स्वयं की भी एक मृत्यु थी. चौथी बार 17 जून 2013 को अपने छोटे बेटे सवशेष के व्याविासयक के्द् ( करीब 65 कमरो् के एक होटि) िसहत सरहायशी घर भी, (जोसशयाड्ा उत्​्रकाशी मे्) नेस्नाबूद हो गया. उि सदन अन्य बहुत िे पसरवारो्का भी नुकिान हुआ. मेरे सिए वह भी एक मृत्यु तुल्य आघात था. मां की गोद और धंत्ण गांव: एक बार सफर िे मै्मां की गोद मे्जाना चाहता हूं. उि पहिी स्​्ी की दूध की छाती िे अपने मुंह को उि तरह िटाना चाहता हूं जैिे सक वह सजिे ढूढं ्रहा है उिे पाना भी चाहता है. जैिे सक मां के भरे हुए छि-छिाते स्​्न मेरे छोटे िे पेट मे्उि तरह उतर जाना चाहते हो्जैिे अपनी मां के वसरष्​् कसव और गद्​्कार. बारह कसवता संग्ह और एक गद्​् संकलि प्​्काि​ित . प्​्मुख कृसतयां: िाटक जारी है, इस यात्​्ा मे्, बरी हुई पृथ्वी, भय भी िक्तत देता है, ईश्​्र की अध्यक्​्ता मे्, रात अब भी मौजूद है, सजतिे लोग उतिे प्​्ेम और ररिा प्​्स्कया से जूझते हुए. कई पुरस्कारो् और पद्​्श्ी से सम्मासित.

30 शुक्वार | 1 िे 15 नवंबर 2015

एक जनम मे्

माफ्फत हर कोई िंिार मे् जीवन के िारे रिायनो् िे जीवन की नी्व को पोसषत करता है. अपने बचपन िे और बचपन के उि शरीर िे िचमुच सकतनी दूर आ गया हूं मै्. मां के सदये हुए प्​्ाणो्वािा मेरा शरीर मुझे अपनी मां के स्नहे िाब्ननध्य मे्, मेरे पांचवे्वष्सतक िे आया. यह अपने जन्म के बाद अपने पांचवे्वष्स मे्मेरा पहिा पड्ाव जैिा था. एक जुिाई 1945 को पांचवे्वष्समे्पहुंचने पर मेरी मां ने एक छोटी िी पासरवासरक पूजा रखवायी. पहिी बार मुझे भगवान के िामने नतमस्​्क होकर कुछ देर बैठने के सिए कहा गया जहां सक शायद अपनी चंचिता के कारण मै्ठीक िे बैठ नही्पाया. उिी सदन िे ईश्​्र और दुसनया के डर की चपेट मे् मै् उि तरह आया जैिे सकिी अदृश्य बीमारी ने मुझ मे्प्​्वेश पा सिया हो. दुख-दद्सऔर परेशासनयो्िे इि कदर भूतो्की तरह सघरा रहा हूं जैिे वे ही स्थानीय देवता बनकर मुझे घेरे हुए हो् और मुझिे एक िे एक बसियां मांग रहे हो्. काश सक इन देवताओ् का भी कोई सनयामक और िन्मसतदाता ईश्​्र होता. मगर जैिा सक कहा गया है, मै्भी अपने पसरवार की िव्सश्ेष्ईश्​्र अपनी दादी के खो्गिे (वस्​्ावेस्षत गोद) मे्आ सगरा. आगे चिकर मेरी दादी ने ही मुझे बताया सक तुम्हारे सपता िे बड्ा भी मेरा एक बेटा था सजि तरह सक तुमिे पहिे तुम्हारी मां का भी एक बेटा हुआ था, जो नही्रहा.तब तुम्हारे सपता और तुम एक-एक के मरने के बाद आये हो. जब तुम्हारे दादा मरे, तब तुम्हारे सपता नौ वष्सके थे और मेरी आसखरी िंतान तुम्हारी बुआ एक डेढ् वष्सकी थी. मै्अट्​्ाईि-तीि वष्समे्सवधवा हो गयी थी. उन्हो्ने बताया था सक मेरे दादा पंसडत, पहिवान और योद्​्ा थे. वे अपना बड्ा गांव मुखेम छोड्कर धंगण गांव की गोशािा के पाि चार कमरो् का मकान बनाकर मरे. हमारी िारी जमीन धंगण गांव मे् थी इिसिए मुखेम िे आकर खेती


बुखार बहुत फैिते थे. हैजा-चेचक और महीने भर के बुखारो् िे काफी िोग मर जाते थे. टीबी के मरीज को घर िे सनकाि कर अिग झोपड्ी बनाकर रखते थे. मुखेम गांव मे्तो एक कुष्रोगी दम्पसत को रात मे्सजंदा जिा सदया गया था. सजतने भूत थे, उतने ही देवता भी गांवो्मे्रहते थे. भूत का अथ्सहै भूतकाि, यानी सक जो चिा गया, जो बीत गया, जो वापि नही् आ िकता, िेसकन गांवो् मे् भूत का मतिब था वह मरा हुआ आदमी सजिकी आत्मा का मोक्​्नही्हुआ है जो सफर िे घरो्और मनुष्यो्के बीच आने के सिए भटकता रहता है. भूत एक ऐिा डर है जो कही्भी कभी भी सकिी को डरा िकता है. भूत कही्हो या न हो. पर वह हरेक के डर मे्घर बनाये रहता है.

कोख पहली जन्मभूसम है

मेरे सपता पं. कमिा प्​्िाद शम्ास जगूड्ी का जन्म, जनवरी 1913 को धंगण गांव के उि मकान मे् हुआ सजिे मेरे तत्कािीन युवा दादा श्​्ीराम शम्ास ने बनवाया था. मेरे सपता नौ वष्सके थे जब धंगण गांव वािे मकान मे् मेरे दादाजी का देहांत हुआ. उि मकान मे्सकिी उम्​्दार आदमी की यह पहिी मौत थी. उि नये घर मे् मेरी दादी िरस्वती देवी पहिी जवान सवधवा हुई. घरो् का पुरानापन और तथाकसथत खानदानीपन जन्म और मृत्यु के बीच के सववाह आसद उत्िवो् की कहासनयो् िे गुंथा हुआ होता है..एक बार मधुमब्कखयो्ने करीब बीि िाि तक हमारे घर के एक आिे मे् अपना छत्​्ा बनाये रखा और इिी वजह िे हमारे घर का नाम शहद वािा घर पड्गया. मुखेमवािे पैतृक घर के पाि हमारा एक चूिू का पेड् था, सजि पर कई घीड्े (कंसडयां) िगते थे. एक सदन शंकरी देवी चूिू खाते हुए सगर पड्ी और उिी सदन मर गयी्. वे मुखेम गांव के प्​्सिद्​् श्​्ीकृष्ण मंसदर के खानदानी पुजारी प्​्द्ुम्न रावि की बेटी थी्. धंगण गांव के घर के आिपाि मै्ने 1949 मे्सटहरी सरयाित की आजादी के बाद िेब, िंतरे और प्िम आसद के पेड् िगाये सजनमे् िे कुछ अभी भी जीसवत है. उन पेड्ो्ने मेरे दादा के बनाये घर की रौनक और पूरे गांव मे्मेरी भी इज्त् बढ्ा दी. मै्रोज िामने के पहाड्पर फैिे बांज के जंगि िे घीड्ी (कंडी) भर भरकर जंगिी पस्​्तयो्की खाद िाता था. उि​िे उन पेड्ो्के सिए बने की देखभाि कसठन हो रही थी. धंगण गांव दो िदानीरा नसदयो् के बीच, गहरे गड्​्ो् को भरता था. इि काम को सनरथ्सक िमझते हुए घर के बाहर छोटी पहास्डयो्और बांज के जंगिो्िे सघरा हुआ गांव है, सजिमे्उि िमय मेरी काफी हंिी उड्ायी जाती थी. मेरी कमजोर पढ्ाई-सिखाई को िेकर केवि 14 पसरवार सनवाि करते थे. सपताजी की बहुत मार पड्ती थी, िेसकन मुझ मे्इि खल्त ने घर का सिया धंगण गांव की आत्माएं था सक अगर ये पेड्जम गये तो िमझो मै्पाि हो गया. जब ये पेड्पांच धंगण गांव अपने आप मे्छासनयो्, गोशािाओ्िे धीरे-धीरे एक गांव वष्स के हो गये तो मै् दि वष्स का हो गया.पेड् तो जम गये पर मां मुझ िे बन रहा था. ब्​्ाह्मणो्के खोिे मे्7 पसरवार थे और क्स्​्तयो्(सजन्हे्खसिया सछन गयी. सकिी कसव ने कहा है सक अपने बचपन का कोई न कोई टुकड्ा कहते थे) के छह. इनके अिावा गांव के सकनारे एक पसरवार बेड्ा जासत अपनी जेब मे्रखना चासहए और उिे बहुत अकर्ण ब्सथसतयो्मे्भी अपनी का था जो औजी (कपड्ा सि​िाई) का भी काम करते थे. औजी िोग तीन यादो्िे छू िेना चासहए. अपने बचपन मे्िौटकर अपनी मां को मै्सफर िे भाई थे और एक ही पसरवार मे्ढोि-नगाड्ा बजाकर गाते और नाचते थे. छूना चाहता हूं जैिे उिे सफर िे पा सिया हो. उनकी बेड्सनयां नये िंवत्ि के शुभांरभ मे्घर-घर जाकर मंगि गीत गाती मेरा जन्म 1 जुिाई 1940 यानी सवक्​्म िंवत 2097 के 18 गते थी्. वे िोकगीतो्के िाथ िुंदर नृत्य प्​्स्ुत करते हुए अपने सिए वष्ा​ा्रंभ आषाढ् िुबह िाढ्े नौ बजे हुआ. मेरे सपता घर िे करीब तीन सकिोमीटर मे् कुछ अन्न, कुछ दस्​्कणा प्​्ाप्त करने की इच्छा दूर रंगेड्नामक घाटी मे्रोपणी के खेतो्को जोत रखती थी्. उन्हे्घर की स्​्सयां बहुत िम्मानपूव्सक सकसी ने कहा है सक बचपन का रहे थे. हमारे गांव की धार िे वह घाटी सबल्कुि अन्न, वस्​् और कुछ आने-पैिे और कभी एक कोई न कोई टुकि़ा अपनी जेब मे़ पाि सदखाई देती है. जोर िे आवाज िगाओ तो र्पया तक भी देती थी्. हर फि​ि पर उन्हे्पैदावार वहां िुनाई देता था.मेरी बुआ (फूफू) ने मेरे रखना चासहए और उसे बहुत मे् सनराई-गोड्ाई के सहिाब िे फि​िाना भी सदया सपताजी को आवाज देकर खबर दी सक घर आ अकऱण स़थथसतयो़मे़भी अपनी जाओ, भाभी के बच्​्ा हुआ है. और यह खबर पूरे जाता था. उनमे्श्​्म और किा दोनो्सनवाि करते थे. बेड्ा पसरवार तुिनात्मक र्प िे गरीब था और गांव मे्गूंज गयी. खबर मेरे पूव्सजो्के गांव मुखेम यादो़से छू लेना चासहए. बाकी 13 पसरवार उनिे अच्छे थे क्यो्सक वे भूसमधर भी पहुंच गयी जहां मेरी नसनहाि भी है. थे. यो्देखा जाये तो बेड्ाओ्के पाि भी छोटे-बड्ेपांच-छह असिंसचत खेत मेरी नसनहाि मे्नाना-नानी का, मेरी मां शाकंबरी देवी का जन्म होते थे. धंगण गांव मे् धान बहुत होता था. बांज के जंगिो् के कारण पशु भी ही पांच वष्​्ो्के भीतर ही सनधन हो गया था. मेरे नाना का घरेिू नाम टप्पू दुधार्थे. पूरे गांव के िोग करीब एक जैिे िंपन्न या एक जैिे गरीब थे. और बाहर का नाम सवद्​्ाधर था. नानी का नाम मुझे पता नही्. बहुतो् िे कम भूखे और कम नंगे रहते हुए भी वे एक जैिी बहुत िी बीमासरयो् िे पूछा पर सकिी को याद नही्था. उनके भाई रामकृष्ण, बािकृष्ण और राम ग्​्स्थे. फोड्े-फुंिी, खुजिी, डायसरया और एक सदन छोड्कर आने वािे प्ि ् ाद आसद ने उि अनाथ कन्या शाकंबरी का पािन-पोषण सकया जो आगे

कई जनम

शुक्वार | 1 िे 15 नवंबर 2015 31


सावहत्य चिकर मेरे अनाथ सपता की पत्नी और मेरी मां बनी्. मरा है. उधर आषाढ् का पहिा सदन यानी सक िुंग (रोपणी) का पहिा धंगण गांव के एक सपतृहीन बािक की, जो बाद मे्मेरे सपता बने, कुछ सदन आने वािा है. गांव मे् उि सदन धान की रोपाई का पहिा िामूसहक योग्यताएं इि प्​्कार थी्. वे गाते अच्छा थे.गढ्वािी मे्गीत बनाते थे और पूजन होता है. बेडा और बेसडन ढोि-नगार बजाकर मंगि गीत गाते हुए सहंदी मे् भजन.उनमे् पढ्ने की बड्ी तीव्​् इच्छा थी िेसकन गरीबी और खेत, बैि और पानी की नहरो्को नमन करने की याद सदिाते है.् िब िोग माग्सदश्सन के अभाव मे् वे ठीक िे पढ् नही् पाये. उनके नानाओ् ने उन्हे् करीब एक िाथ िाथ अपने-अपने खेतो्मे्बैि जोतते है्. पहाड्की ऊंची िाक्​्र बनाया और ज्योसतष सवद्​्ा सिखायी, िेसकन वे गांव के मंडायण मे् धार पर िे बाजगी िबके सिए देवता का ढोि बजाते है. उिके बाद जब िोकभाषा मे्महाभारत की कथा कहते हुए धनुधा्रस ी नृतय् करते थे. वे हरेक एक पानी भरे खेत को हि िगाकर तैयार कर सिया जाता है, तब खेत को पात्​् के अपने ढंग िे िंवाद रचते थे. वे इतना जीवंत और िंगीतमय बराबर िमति करने के सिए कंघी जैिी धांगो्की बनावट वािा मया बैिो् असभनय करते थे सक स्​्सयो् के श्​्ीकृष्ण जैिे स्​्पय हो गये थे और कठोर पर जोता जाता है.सजि​िे समट्​्ी को बराबर करके खेत को पानी जैिा ह्दय पुर्षो्की भी कर्णा के पात्​्बने गये थे. अगर वे आधुसनक िमय मे् िमति बना सदया जाता है. िब एक िाथ खेतो् मे् मया िगाते है् और होते तो वे एनएिडी के किाकारो् जैिी योग्यता रखते. वे हारमोसनयम ढोि-नगारे बजते रहते है्. इिमे्बैिो्को भी शबाशी दी जाती है. बहुत अच्छा बजाते थे और िोगो्केआमंत्ण पर गांवो्मे्रामचसरत मानि उि पसवत्​् िुंग के सदन मेरी दादी का बेटा यानी मेरे सपता अचानक की िस्वर कथा िुनाते थे. उन्हो्ने वाल्मीसक को भी पढ्ा था, िेसकन बीमार पड्गये. दादी ने गांव के दो-तीन बुजुग्ो्को बुिाकर बेटे को देखने रामचसरत मानि उन्हे् कंठस्थ था. उन्हो्ने मानि पीयूष टीका का सवशद के सिए कहा. िारे गांव मे्फैि गया सक कमिा प्​्िाद पर उिी का सपता अध्ययन सकया था. वे शल्दो्का िधा हुआ इस्​्ेमाि करते थे. मेरी शल्द का भूत बनकर िग गया है. एक िज्​्न ने कहा सक बुखार तो इिे नही्है, चेतना मे्उनकी शल्द िाधना का भी हाथ है. कि रात िे कुछ बोि भी नही्रहा है तो जर्र कोई भूत-छाया इि पर पड् मेरे सपता को रामचसरत मानि ने सवमुग्ध कर रखा था. यह गयी है. इतने मे् दूिरे बुजुग्ो् िज्​्न कांपने िगे और जोर-जोर िे िांिे् आि्​्य्सजनक िगता है सक गढ्वािी भाषा बोिने वािे िोग अवधी और िेने िगे. दादी िमझ गयी सक इन पर देवता आ गया है.थािी मे् जौ के कसतपय जगहो् पर व्​्जभाषा का अच्छा-खािा मजा िेते थे. ऐिा शायद िाथ चार मुट्ी चावि और दो मुट्ी उड्द की दाि िाकर रखी गयी. दीया इिसिए होता था सक पहाड् के िोग िंस्कृत और ज्योसतष इत्यासद पुरानी जिाया गया. देवता ने मेरे दि वष्​्ीय अनाथ सपता को चार थप्पड्मारे तो सवद्​्ाओ्को पढ्ते थे. िंस्कृत और प्​्ाकृत भाषाओ्िे उपजी अवधी, ब्​्ज वे बोिे, काका मै्सबल्कुि ठीक हूं. मुझ पर कोई भूत-ऊत नही्िगा है. मै् और गढ्वािी उन्हे्अपने भाषा सचंतन और व्यवहार के करीब िगती थी. आप िोगो्की िब बाते्िुन और िमझ रहा हूं. मै्बीमार नही्हूं. मां मुझे पव्सतीय पढ्े-सिखे िोगो् मे् कुछ रीसतकािीन हमेशा कहती रही है सक मुझे सबल्कुि सचंता नही् मेरे सपता को रामचसरत मानस ने है सक मेरा बाप मरा है. मै्खेिता-कूदता रहता हूं, काव्य का कांता िब्ममत र्प भी देखने-िुनने को समिता था.मै्ने बचपन मे् अपने एक सहंदी मै् अपने मरे हुए बाप की सचंता नही् करता. जब सवमुग़ध कर रखा था. गढ़वाली अध्यापक िे एक बार बहि मे्िमस्यापूस्तस वािी सक मेरे कई दोस्​्है्, सजनके सपता जीसवत है्.और भाषा बोलने वाले लोग अवधी पंब्कत िुनी थी ‘केसह कारण गोसर के हाथ जरयो?’ वे अपने बच्​्ो्को बहुत मारते है्.वे मुझिे कह रहे और कसतपय जगहो़पर ब़​़जभाषा थे सक सकतना अच्छा होता, तुम्हारे बाप की तरह इि​िे पहिे की पंब्कतयो्का रहस्य भी मै्हथेिी िे का अच़छा-खासा मजा लेते थे. दीया बुझाये की आतुरता िे कुछ-कुछ िमझ गया हमारे भी बाप मर जाते. मां की डांट िुनकर और था. मतिब सक तन िे नही्, पर मन िे मै्अपनी मार खाकर कि रात िे मै्ने तय कर सिया है सक उम्​्िे बड्ा हो रहा था. मै्अब अपने सपता के मरने की सचंता करं्गा. शोक मेरे सपता के रामायण प्​्ेम की चच्ास आिपाि मनाऊंगा. काका मै्सचंता और शोक मे्हूं. मेरे पर के इिाके मे्फैिी हुई थी. पं रामप्​्िाद भट्​् ने जो कोई मिाण नही्िगा है. मुझ पर सचंता का भूत िग सक रामायण के प्​्सिद्​् कथा वाचक थे, रामकृष्ण गया है.अब मै्कोई काम नही्करं्ग. बाते्िुनकर भट्​्िे बात करके अपने पसरवार की मातृसपतृ सवहीन बुजगु स्का देवता बार (अपने स्थान को) चिा गया. कन्या शाकंबरी का सववाह धंगण गांव के अनाथ बार जाते िमय वह थािी मे्आसखरी बचे हुए जौ, िड्के कमिा प्​्िाद िे करा सदया. दो अनाथो्का चावि और दाि (जौ्दाि) देकर एक श्​्ीफि जीवन िनाथ हो उठा. अपनी मां की िमकािीन फाड्देने के सिए कह गया. दादी ने रो-रोकर अपने मसहिाओ्िे जब मै्ने अपनी मां के बारे मे्पूछा तो बेटे को गिे िगाया और किम खायी सक अब तुझे वे उन्हे् बहुत दोस्​्ी सनभाने वािी और मददगार कुछ नही् कहूंगी. बि, आज रोपणी के पहिे सदन स्वभाव की बताते थे. की रस्म पूजा के सिए बैि िेकर खेतो् मे् पहुंच, िाि 1922 मे्उनके सपता यानी मेरे दादा जी जुआ तू िे चि, हि मै्िाती हूं. का आकब्समक सनधन हुआ. तब मेरे सपता नौ वष्स ऐिे थे मेरे सपता सजन्हो्ने मुझे बचपन मे्खेिने के थे और बहन एक वष्स की हो चुकी थी. अपने के नाम पर और पढ्ाई के नाम पर िबिे ज्यादा सपता के मरते ही मेरे सपता कुछ ज्यादा आजाद और पीटा.मै्चाहता था सक मेरे सपता कही्सरश्तेदारी मे्, चंचि हो गये थे. दादी को िगने िगा सक िड्का मेहमानदारी मे् इधर-उधर ज्यादा रहे्. हे भगवान, गैर-सजम्मेदार और आवारा होता जा रहा है. कहना वे कभी घर न आये्.या सफर वे तब घर पहुंचे्जब मै् नही्मानता और घर के कामो्मे्र्सच नही्िेता है. िो चुका होऊं. इतनी बड्ी जमीन एक सवधवा कैिे िंभािेगी. जब अपनी पढ्ाई की इच्छा पूरी करने के सिए तक घर मे् एक सकिान मद्स न हो, खेती नही् उन्हो्ने मेरी दादी यानी अपनी मां की दि चांदी की अठब्ननयो्िे बनी गिे की कंठी चुरायी और अपने िंभािी जा िकती. इधर दादाजी को मरे एक वष्स हमउम्​् छोटे मामा ब्​्दी प्​्िाद डबराि के िाथ ऋ होने को आ गया, िेसकन इिकी सनष्स्कयता का सषकेश भाग गये. वहां कािी कमिी िंस्कृत कोई अंत नही्. कही्िे नही्िगता सक इिका बाप 32 शुक्वार | 1 िे 15 नवंबर 2015


पाठशािा मे् पढ्े और उिके बाद घर आकर खेती मे् जुट गये.एक बार बताते है्सक हमारे एक बैि की पहाड्िे सगरकर मृत्यु हो गयी. उन दोनो् मामा-भांजे ने दूिरे बैि की जगह एक नवोसदत िांड्को जोत सदया. पंसडतो् ने सवरोध सकया तो उन्हो्ने एक सदन के काम के बाद उिे यह कहकर छोड् सदया सक जब शास्​्ी हि िगा िकता है तो िांड क्यो्नही्िगा िकता? मेरे सपता पौरोसहत्य नही् करते थे. उन्हो्ने अपने सकिी भी बच्​्े की जन्म पत्​्ी नही् बनवायी. वे सजतने कठोर सदखते थे, उतने ही स्वाध्यायी और कम्ससनष्​्भी. कुछ नया करने मे्उन्हे्िुख समिता था.जब कुछ नही्होता तो वे सकिी खेत का बंजर सबट्​्ा काटकर खेत को बड्ा बना देते थे.इिीसिए पहाड्पर होते हुए भी हमारे हर खेत मे्हि बैि चिाये जा िकते थे. वरना बहुत िे पसरवार तो अपने छोटे-छोटे खेतो् को कुदाि और फावड्े िे ही बोते थे.

मुझे भी अपने िाथ रोपनी के खेत पर िे गयी. रास्​्ेमे्जहां कंकड्-पत्थर थे और जहां कांटे थे, वहां िे मां मुझे अपनी पीठ पर िे गयी. वह खेत घर िे करीब एक मीि दूर रहा होगा. उन सदनो्रेिी चाची की भी एक बेटी हो रखी थी. सिरताज बेडा को मै्चाचा कहता था. उन्हे्अनुिूसचत जासत का बताया जाता था, पर उनिे अछूत जैिा व्यवहार नही्सकया जाता था. जो भी हो, मेरी मां के रेिी बेडनी िे िहेिी जैिे िंबंध थे. मेरी दादी और मां मेरे पैदा होने के बाद मुझे रेिी को बुिाकर उिकी गोद मे्रखा और रेिी बेडनी िे कहा सक इि बच्​्े को अपना दूध सपिाओ. रेिी ने पहिे तो इनकार सकया, िेसकन जब मेरी मां ने उिे िमझाया सक ऐिा करने िे यह पहिे बच्​्े की तरह अगर करने वािा होगा तो बच जायेगा. इि तरह मै् रेिी बेडनी का दूध पीकर अभी तक अमर हूं. अब मुझे उि बात की याद आती है तो इिसिए अच्छा िगता है सक मेरे बहाने एक जासत बंधन टूटा. मै्बेडनी के दूध िे बचा हुआ ब्​्ाह्मण हूं. कािांतर मे्मेरे सपता जी ने जब रेली बेडिी का दूध िन्ा 1940 िे 1945 के बीच मेरी पीठ के दो भाई, मुरिीधर और यह बात िुनी तो उनका उत्​्र था सक ‘िबै भूसम गोपाि की.’ उि िमय के धंगण गांव मे्पहाड्के ढाि पर चंदश ्ख े र, मेरे बाद इि दुसनया मे्और आ गये. हम मेरी मां के रेली बेडनी से सहेली िबिे ऊपर हमारा घर था. िबिे नीचे, सजिे तीन भाई, िेसकन हमारा कोई बचपन नही्. मै्बड्ा जैसे संबंध थे. मां ने मुझे रेली िबिे पहिे भी कहा जाता था, वािुदवे सिंह चाचा था. मुझिे अपेक्ा की जाती थी सक मै्उन्हे्िंभािू. का घर था. वे िबिे पहिे उि िाि चेचक के को बुलाकर उसकी गोद मे़रखा इि तरह मेरे बचपन की आजादी खुद ही सछन गयी. मै्गड्वािू (बच्​्ो्को गोद सखिाने वािा) और रेली बेडनी से कहा सक इस सशकार हुए.उिके बाद िबिे ऊपर और िबके बाद हमारे घर मे्मेरी मां को चेचक ने घेर सिया. हो गया. अगर कोई चोट खा जाये या खुद ही बच़​़ेको अपना दूध सपलाओ. चेचक, हैजा और प्िेग. इन्हे् महामारी कहा स्वेच्छा िे रो पड्ेतो इिकी भी डांट मै्खाता था. जाता है , के व ि बीमारी नही् . हैजे मे्उल्टी, दस्​्और बुखार िे पूरा शरीर िाि1945 के श्​्ावण के महीने मे् रोपणी का काम आसखरी खेत मे् बे ि ध ु हो जाता है . चे च क मे ् अिह् ्बुखार के िाथ धीरे-धीरे पूरे शरीर मे् चि रहा था. जहां खेत था, उि जगह का नाम सकंगरी था. उि खेत के दाने फू ट आते है ् और दि पं द ह ् सदन के भीतर ही मौत हो जाती है. प्िेग मे् एक कोने पर बरिात मे् अपने आप पानी सनकिता था. वहां सपता जी ने भी बु ख ार और शरीर के िं स ध स् थ िो् पर सगब्लटयां सनकि आती है्और कुछ पानी का एक धारा बना रखा था. उि सदन मां के िाथ रोपाई के सिए गांव ही सदनो् मे ् मरीज मर जाता है . उि िमय चेचक, हैजा और प्िेग मे्पूरा के बेड्ा सिरताज की पटनी रेिी आ रखी थी. मां और बेड्नी रेिी िगभग गां व या आधा गां व िाफ हो जाते थे . एक उम्​्की थी्और उनमे्बराबरी का दोस्​्ाना सदखता था. मां उि सदन शुक्वार | 1 िे 15 नवंबर 2015 33


सावहत्य हमारे गांव के िोग अपने घरो् पर तािा सबछाकर सपताजी ने बैठने के सिए कहा. मै्ने छज्​्े िगाकर दूर नदी सकनारे के खेतो् मे् छान के बजाय ऊपर वािे दरवाजे के पल्िू िे िटाकर और स्​्तपाि इत्यासद िे झोपस्डयां छवांकर एक आिन सबछाया और चसकत िा उि पर बैठ पशुओ् िसहत रहने चिे गये. एक िबिे पहिे गया. वहां िे भीतर वािा कमरा सदख रहा था. और एक िबिे आसखर का घर बचा, जहां सखड्की िे वहां िुबह की हल्की िी रोशनी आ रही बीमार और तीमारदार बचे रह गये. उि िमय थी. सपताजी ने मुझे श्िोक रटा रखा था: ‘त्वमेव मेरी दादी को हम तीन बच्​्ो् और जानवरो् के माता च, सपता त्वमेव’ सपताजी ने मुझे कहा तुम इि िाथ कही् छान मे् सनकि जाना था, िेसकन श्िोक पाठ करो. मै्उि श्िोक को दोहराने मे्िग उन्हे् भी बुखार आ गया और वे चेचक ग्​्स् हो गया. हमारे गांव के करीब गांव वािा िावन सिंह, गयी्. इि तरह: तीन और डेढ् वष्स के मुरिीधर सजिे चेचक हो रखी थी, सपताजी का िहायता के और चंदश ्ख े र को भी चेचक सनकि आया. सपताजी सिए भीतर गया. मेरी दादी अपनी बहू के सिए रो को पहिे चेचक हो रखी थी इिसिए वे रही थी. मुरिी और शेखर की आवाज उि र्िाई इि सकंवदंती के िहारे अपने को िुरस्​्कत िमझ रहे मे्कही्शासमि नही्थी. कोई एक व्यब्कत नीचे िे थे सक सजिे एक बार चेचक हो जाती है और अगर एक घीड्ा (सरंगाि िे बनी हुई घाि और पस्​्तयां वह बच जाता है तो उिे दोबारा चेचक नही् िाने की कंडी) िेकर अंदर गया. उन्हो्ने मेरी मां सनकिती. मुझे उन्हो्ने नीचे के कमरे मे् इि को िफेद कपड्े मे् िपेटा. मुंह खुिा रहने सदया, सहदायत के िाथ रखा सक मै् इन िोगो् िे ऊपर पर मै्बाहर िे मुहं नही्देख पा रहा था. जब उन्हो्ने जाकर समिूंगा नही्. इनकी तरफ देखूंगा भी नही्. मां को उठाया और उिके घुटने मोड्कर, सबठाने ‘अगर तूने अपनी मां, दादी और भाइयो् की तरफ की मुद्ा मे्घीड्ेमे्डािा तब मै्ने श्िोक का पाठ ऊपर जाकर देखा भी तो तू भी बीमार हो जायेगा. करते हुए देखा सक उिके उिझे हुए िारे बाि और तुम मेरे सिए एक और मुिीबत बन जाओगे.’ उिके मुंह पर आ गये है्. िगा, जैिे मै्सकिी कािे सपता जी ऊपर के दो कमरो मे्िे बाहर वािे कमरे रंग के बुरांि के फूि को देख रहा हूं सजिके िारे के पीछे सबस्​्र िगाकर िोते थे.मै् भांडे-बत्सन, रेशे उिके मुंह पर आ गये हो्. मुझे बािो् िे ढके घाि-फूंि, हि -जुआ, कुदाि -फावड्ा आसद चेहरे के र्प मे् ही अपनी मां का आसखरी चेहरा खेती के औजारो्के िाथ उि ओबरे मे्रहता था. याद है. दादी और मेरे दोनो़भाइयो़के पांचवे्वष्समे्था और छोटे कद के कारण रात को मेरी मां की अथ्​्ी नही् बनाई गयी क्यो्सक चेहरे पर चेचक के चुगे हुए दोनो़ महामासरयो् मे् मरने वािो् को िीधे गाड् सदया अंदर िे दरवाजे की कुंडी बंद नही् कर पाता था. के सरक़त सनशान बहुत समय तक जाता है, मेरी दादी के चेहरे पर और मेरे दोनो् कभी सपताजी कुंडी बाहर िे बंद कर देते थे, कभी मुझिे कहते थे सक कोई भारी बत्सन या कुदाि, रहे. मेरी पीठ का भाई मुरलीधर भाइयो् के चेहरे पर चेचक के चुगे हुए दोनो् के जुआ जैिी कोई चीज भीतर िे दरवाजे पर अड्ा दूं सरक्त सनशान बहुत िमय तक मौजूद रहे. मेरी पीठ तो अपनी दोनो़आंखे़खो बैठा. तो दरवाजा रात को जल्दी खुिेगा नही्. एक रात का भाई मुरिीधर तो अपनी दोनो्आंखे्खो बैठा. दरवाजा खुि गया और मै्िमझ गया सक बाघ अंदर आ गया है. मै्सबस्​्र जब मां सवदा हो गयी तब घर की िफाई हुई. शुद्ीकरण हुआ. पूरे गांव का मे्डुबका पड्ा रहा.िुबह सपता जी ने बताया सक बाघ नही्आया था, हवा शुद्ीकरण हुआ. देवी (चेचक माता) की डोिी महापूजन के िाथ दो का झो्का आ गया था. नसदयो्के पार एक अंधेरे पाख मे्सवदा हो गयी. वहां उिके नाम का एक मां को बीमार हुए िगभग पंद्ह सदन हो चुके थे. दादी को िात सदन छोटा िा मंडेिा बनाया गया. गांव मे्सफर भी कई सदन तक दो आदसमयो् और दोनो्छोटे भाइयो्को चेचक सनकिे अभी पांच छह सदन हुए हो्गे. एक की मौत का िन्नाटा छाया रहा. महामारी ने एक पहिा. एक अंत का घर सदन सपता जी ने मुझे गांव वािो्की छासनयो्की तरफ जाकर दूर िे आवाज चुना था. इि तरह अद्​्ंत पूरा हो गया.व्याकरण मे्अद्​्ंत के अक्​्र ग्​्हण िगाकर यह बताने के सिए कहा सक मेरी मां मरने वािी है. मै् मृत्यु का करने िे बीच के िारे अक्​्र ग्​्हण सकये हुए मान सिये जाते है्. जैिे उि तब कोई ठीक- ठीक अथ्सनही्िमझता था. मेरे हम उम्​्बच्​्ो्ने मुझे दूर महामारी िे बचे हुए हम िोगो् को मृत्यु ने अपने व्याकरण मे् ग्​्हण कर िे देखा. मुझे पता पड्गया सक उन्हे्मेरे पाि आने मे्धमका कर रोका जा सिया हो. हम कुछ मृत्यु के ग्​्हण सकये हुए िोग अपनी सजंदगी मे् सकिी रहा है. बीमारी ने हमे्अछूत बना सदया था. दूिरे सदन िुबह हल्की-हल्की एक और मौत की प्​्तीक्​्ा कर रहे है्. बासरश हो रही थी. गांव के चौदह-पंद्ह िोग कािे छाते ताने हुए घर के तीन सदन बाद मेरे सपता मुझे हमारे गांव की मूि गाड ( नदी) के पाि खेत की मेड्पर बैठ गये.मै्िमझ गया सक मां मर गयी है, क्यो्सक मां सकनारे िे गये, जहां सिरताज बेडा ने उस्​्रे िे मेरे बाि उतारे. वहां ताजा मरने वािी है, यह िंदेश तो मै्ही इन िोगो्तक िे गया था. मुझे नही्था खुदी हुई समट्​्ी बता रही थी सक यही्मेरी मां को दफनाया गया है. मै्वहां मािूम सक मृतय् ु क्या होती है क्यो्सक मै्नेअभी तक मृतय् ु कभी देखी ही नही् इब्तमनान िे इिसिए भी बैठा रहा सक मां बाहर आयेगी तो मुझे गोद मे्िे थी. मौत आती है और सजंदा आदमी को िे जाती है, मै्ऐिा िमझता था. िेगी. मेरे बाि जब जमीन के मुंह पर सगरे तो मुझे िगा, ये मेरी मेरी मां के मरने की मुझे पहचान नही् थी. मै् िोचता था, मौत के िाथ जाते हुए भी मुंह पर सगरे हुए उिझे- पुिझे बाि है्. जब भी मै्सकिी स्​्ी के खुिे बाि व्यब्कत कुछ न कुछ याद आते ही घर वािो्को बता देता होगा. बड्ा होने देखता हूं और अगर वे कंघी करते िमय मुंह पर सगरे हो्, तो मुझे मेरी मां पर मै्उि पीड्ा िे दुखी रहा सक जब मरे हुए आदमी को जिाते है्, तो उिे का ढका हुआ चेहरा याद आ जाता है. मूि नदी के सकनारे मेरी मां शाकंबरी बड्ी तकिीफ होती होगी. देवी दफन है. नसदयां यानी सक पानी मेरे पीछे सवपस्​्त की तरह पड्ा रहता अब हमारे खेत की मेड् पर बीिेक कािे छाते हो गये थे. सकिी के है. क्या इि तरह मेरी मां मेरा पीछा करती होगी?. कभी नही्, बब्लक मूि नीचे दो-दो िोग भी बैठे थे. उनके घर मे् छाते नही् रहे हो्गे इिसिए वे नदी मे्इि बीच सजतनी बार बाढ्आयी होगी, उिने वहां दफनाये हुए िोगो् n दूिरे के छाते के नीचे आये थे. पहिी बार मुझे ऊपर के छज्​्ेपर आिन को उखाड्कर अपने िाथ बहा सिया होगा. 34 शुक्वार | 1 िे 15 नवंबर 2015



मास् सावहत् ट हेयड

संस्मरण अंबरीश कुमार

लोचन बो

ब तक र्कने को कहूं, टैक्िी कुछ दूर आगे स्कूि तक चिी गयी. िािो् बाद गांव आया तो ध्यान भी नही् रहा और गांव मे् बहुत कुछ बदि गया था. पीछे िौटा. िडक िे घर को जाने वािे रास्​्े पर बढा तो अचानक बगि के छोटे िे घर पर नजर गयी तो देखा कुंडा िगा हुआ है और एक मोटा िा तािा बंद है. .कुछ अटपटा िा िगा और र्क गया. मुझे उि तरफ देखते अचानक गुड् आये और बोिे भैया, िोचन बो चिी गई . एक झटका िा िगा. गोरखपुर आया था. िमय था और मनु ने कहा गांव भी देखते जाये,् करीब दो घंटे का िफ़र था 36 शुक्वार | 1 िे 15 नवंबर 2015

इिसिए चिा आया. तभी यह जानकारी समिी. बचपन के कई दृश्य िामने घूम गये. याद आया ित्​्र के दशक की गस्मसयो्का एक सदन था. हम िब बि िे गोरखपुर िे गांव पहुंचे थे. वैिे तो नसनहाि हर िाि जाना होता था. पर इि बार अपने पुस्ैनी घर आये. शाम को बबुआ घर के बाहर बैठे जोर िे आवाज िगा रहे थे, 'िोचन बो.' पिट कर िोचन बो की आवाज आयी, ‘आवत हई बबुआ.’ कुछ ही देर मे्िोचन बो यानी दरपानी देवी हासजर. बबुआ बोिे, िोचन को बुिाओ् नदी सकनारे जाकर एक सकिो झी्गा िे आये. जेिर िाहब के बच्​्े आये है्उनका खाना रात मे्तोहरे यहां ही बनी. िाथ ही सहदायत दे दी सक महरासजन िे तेि मिािा िे्िे.

हर बार यही होता था. घर मे् शाकाहारी भोजन बनता और वह भी बहुत छुआछूत के िाथ. रिोई मे् एक अदृश्य िक्​्मण रेखा होती सजिके उि ओर िे महरासजन तवे की रोटी िीधे उछाि देती जो थािी मे्सगरती. उिे हाथ िे नही् सिया जा िकता था. ऐिे घर मे्शहर मे्बि गये भतीजे अफिर के बेटे-बेटी के सिये िासमष भोजन का िवाि ही नही् होता. इिी वजह िे घर का िारा काम करने वािी िोचन बो जो पडोि मे्रहती थी उिके यहां ही मछिी, झी्गा आसद बनता. घर के बगि िे जो गिी जाती थी उिके अंसतम छोर पर िोचन का समटटी का खपरैि की छत वािा दो कमरे का घर था. िामने िीपा-पुता बरामदा सजिमे् एक तुि​िी का पौधा िगा था. यह बरामदा मुखय् िडक की


ओर खुिता था. िोचन बो मल्िासहन थी और घर के कामकाज पर सनभ्सर थी. उम्​् करीब तीि िाि ,छरहरे बदन की िांविे रंग की. एक छोटी बेटी जो कामकाज के िमय उिके िाथ रहती. यह राजस्थान िे आकर बिे एक कायस्थ पसरवार का पुराना घर था. यह घर खपरैि का पर बहुत बडा था. इिके बरामदे मे्बीि चारपाई ड्​्ोढ्ी का रास्​्ा छोड्कर पड जाती थी. भीतर जाते ही बाये् तरफ आधा कमरा भूिा िे भरा रहता था तो दाये् समटटी के बडे-बडे ढेहसरयो् मे् अनाज रखा रहता था. भीतर आने पर खुिा हुआ आंगन आ जाता सजिके चारो ओर बरामदा और पसरवार के िदस्यो्के कमरे थे. आंगन के एक कोने िे रास्​्ा सखडकी की ओर एक बडे कमरे िे होकर जाता सजिमे् चक्​्ी, अनाज कूटने की हाथ िे चिने वािी मशीन और ओखिी आसद रखी थी. पसरवार की मसहिाओ्के िाथ िोनारी इिी कमरे मे्सदन भर काम मे् िगी रहती. इिी कमरे का दूिरा दरवाजा करीब दो बीघे बेतरतीब बगीचे मे् खुिता था सजिमे शरीफा, अमर्द, आम और नी्बू के कई झाडीनुमा पौधे थे. आंगन िे नाबदान का पानी इिी सखडकी मे् आता और बगीचे को िी्चता हुआ एक कोने मे् इकठ्​्ा हो जाता. सदन मे् घर की मसहिाओ् के सिए यह शौच की भी जगह थी जो अमूमन मुंह अंधेरे या शाम को घर िे बाहर खेत की तरफ जाती थी्. घर के िामने करीब एकड भर जमीन थी सजिमे् दायी् ओर कटहि, आम, जामुन और एक कदंब का पुराना पेड था. िामने का सहस्िा सबना घाि के िान जैिा था सजि पर गस्मसयो्मे् शाम को पानी डाि कर तैयार सकया जाता. िभी पुर्ष और बच्​्े बाहर िोते तो मसहिाएं आंगन मे्. यह गांव उत्​्र प्​्देश मे्पूव्ा​ा्चि के देवसरया सजिे मे्पडता है. बरहज बाजार िे करीब ढाई सकिोमीटर दूर कपरवार घाट की तरफ चिने पर जैिे ही एक बडा प्​्ाइमरी स्कि ू पडता है यह

गांव शुर्हो जाता है. बायी ओर दो सकिोमीटर पर िरयू बहती थी जो अब एक सकिोमीटर करीब आ गयी है. इिके उि पार देवारा है जो यादव बहुि है. स्कि ू एक ठाकुर िाहब ने जमीन देकर घर के िामने ही बनवा सदया था सजि​िे गांव के कुछ बच्​्े कुछ पढना सिखना िीख गये. जब जमी्दारी थी तो राजा िाहब ने शानदार कोठी

अंसतम छोर पर लोचन का समट़​़ी का खपरैल की छत वाला दो कमरे का घर था. सामने लीपा-पुता बरामदा सजसमे़एक तुलसी का पौधा लगा था. बनवायी जो तीिरी पीढ्ी आते-आते जज्सर हो गयी और कोई कंडक्टर बना तो सकिी ने छोटी मोटी दूकान खोि िी. राजपाट ख़त्म हुआ तो यादव सबरादरी गांव पर हावी हो गयी .बाद मे् डकैती और हत्या आसद मे् दो को जेि भी हो गयी .यही पटवारी छांगुर प्​्िाद का घर इिी सरयाित की कोठी िे िगा था सजिके तीन तरफ यादव पसरवार थे. छांगुर प्​्िाद सवद्​्ान थे और उन्हे् िोग पटवारी चाचा या छांगुर बाबा भी कहते थे. वे पटवारी थे और िारा गांव उनकी इि प्​्सतभा का िोहा भी मानता था. छांगुर बाबा तीन भाई थे और करीब डेढ िौ बीघे की उपजाऊ खेती के मासिक भी. दो भाई रेिवे मे् तो एक भतीजा अंग्ेजो के िमय मे्ही असिस्टे्ट जेिर हो गया और जीवन भर वे जेिर ही कहिाये भिे वे बाद मे् प्​्मोट होकर जेि अधीक्​्क हो गये .जेिर होने की वजह िे उन्हे् गांव मे् िामासजक प्​्सतष्​्ा भी समिी खािकर .दंगि यादव जेि गये तो उनकी मदद भी जेिर िाहब ने की . िरयू के सकनारे का यह बहुत उपजाऊ अंचि रहा सजिकी वजह िे कुछ िोग िंपन्न

वसरष्​् पत्​्कार और यात्​्ा लेखक. लंबे समय तक सहंदी दैसिक ‘जिसत्​्ा’और ‘इंसडयि एत्सप्​्ेस’ मे् सहंदी और अंग्ेजी पत्​्कासरता करते रहे. इि सदिो् ‘िुक्वार’ पास्​्कक के संपादक. यात्​्ा संस्मरणो् की एक पुस्क िीघ्​् प्​्काश्य.

भी हुए तो कुछ नौकरी करने किकता चिे गये .तब वे गांव िे दो सकिोमीटर दूर िरयू मे् ही स्टीमर पर बैठ जाते और बसिया होते हुए गंगा नदी के जसरये चार पांच सदन हावडा पहुंच जाते . हावडा के एक मारवाडी िेठ की जूट समि मे्िोचन काम करता था .िाि मे्एक बार आता था और पैिा दे जाता था .खेत का एक छोटा टुकडा भी था सजि​िे कुछ अनाज समि जाता .पर एक बार बीमार पडा तो सफर िौट नही् पाया. टीबी हो गयी थी. जूट समि के अस्पताि मे् कुछ सदन भत्​्ी रहा और सफर गुजर गया .िोचन के जाने के बाद दरपानी देवी पर बेटी को पािने की सजम्मेदारी आ गयी .गांव के प्​्ाइमरी स्कूि मे्चार तक पढने के बाद उिे भी चौका बत्सन के काम मे्िगा सदया .िोचन बो ने ही गांव िे अपना पसरचय कराया था .पंसडत जी के घर िे िेकर उचका वािी काकी के घर िे जाना हो या भडभूजे के घर जाकर भूजा िाना िब उिी के सजम्मे था. गस्मसयो्मे्जब पटवारी चाचा के यहां उनके भतीजो् के बच्​्े आते तो िोचन की बेटी भी उनके िाथ गांव िे िेकर नदी सकनारे तक घूमने जाती .वह उन बच्​्ो् िे सहिसमि गयी थी .पर स्कूि छोडने के बाद िे ही िोचन बो की सचंता बेटी के हाथ पीिे करने की थी और कुछ जमीन बेच कर उिने कुछ दूर के एक गांव मे्उिका सरश्ता भी कर सदया .पटवारी चाचा ने जो िंभव थी मदद भी कर दी .उिके बाद िे वह पूरी तरह अकेिी हो गयी . पटवारी चाचा के यहां भी कुि दो िोग बचे थे .ज्यादा काम भी नही्था .जमीन सबकती जा रही थी और खेती िे इतना अनाज भी नही्आता .धीरे-धीरे भतीजो् का गांव आना भी कम हो गया और गस्मसयो् सक वह चहि पहि भी कम हो गयी .जेिर िाहब सरटायर हो कर गांव आ गये पसरवार िमेत .एक छोटा स्कूि भी खोि सदया .िोचन बो अब बूढी हो चुकी थी और बीमार रहने िगी थी .बीच बीच मे्उिकी बेटी दो चार सदन के सिये आ जाती .खाना िे िेकर दावा आसद का इंतजाम भी जेिर िाहब का पसरवार कर देता . इि बीच कई िाि तक गांव जाना नही् हुआ. पसरवार के अिावा सकिी का कोई हाि चाि भी नही् समिा .आज जब कई िाि बाद गांव पहुंचा तो यह जानकर िदमा िगा सक जो िोचन बो बचपन मे् मछिी झी्गा सखिाती थी ,गांव िे सजिने अपना पसरचय कराया ,टाि तािाब और कुओ् के बारे मे् बताया वह अब नही्है. देर रात उिके घर के ओिारे मे्सढबरी की रौशनी मे्तीखी िरिो्वािी रोहू और िाि भात का स्वाद याद आ गया. और सफर िमूचा गांव भी याद आ गया .वह गांव सजिे हमने िोचन बो के चश्मे िे देखा था. n शुक्वार | 1 िे 15 नवंबर 2015 37


सावहत्य

चेर्ोबिल की आवाज्े् दस्​्ावेज स्िेतलािा अलेक्ससयेनिच

ल्बीि अप्​्ैि, 1986 रात एक बजकर 23 समनट 58 िेकंड. एक के पूरा आकाश. एक ऊंची िपट. और धुआं. गम्​्ी भयानक थी. और वो अभी बाद एक सवस्फोटो्ने उि इमारत मे्ब्सथत सरएक्टर को नष्​्कर सदया तक नही्िौटा था. वे िोग सजि हाित मे् थे, अपनी पोशाको् मे्, वैिे ही चिे गये थे. जहां चेन्ोसबि परमाणु ऊज्ास स्टेशन का एनज्​्ी ल्िॉक 4 रखा हुआ था. चेन्ोसबि का सवनाश बीिवी्िदी की िबिे बड्ी तकनीकी बरबादी िासबत सकिी ने उन्हे्नही्बताया था. उन्हे्आग पर क़्ाबू पाने के सिए बुिाया गया हुई. ...छोटे िे बेिार्ि के सिए (आबादी: एक करोड्), ये एक राष्​्ीय था. बि इतना ही. िुबह के िात बजे. िात बजे मुझे बताया गया सक वो अस्पताि मे्है. तबाही थी... आज, हर पांच मे्िे एक बेिार्िी िंक्समत ज्मीन पर रहता है. और ये आंकड्ा बीि िाख िोगो्का है सजनमे्िे िात िाख बच्​्ेहै्. मै्वहां भागी. िेसकन पुसि​ि ने पहिे ही घेरेबंदी कर दी थी. और वे सकिी गोमेि और मोगीिेव इिाक़्ो्मे्जहां चेन्ोसबि का िबिे ज्य् ादा अिर पड्ा को जाने नही्दे रहे थे. सिफ्फएम्बुिे्ि जा रही थी्. पुसि​ि वािे सचल्िाते और िबिे ज्​्यादा तबाही हुई, वहां मृत्यु दर, जन्म दर िे बीि गुना असधक थे: ‘एम्बुिे्ि रेसडयोएब्कटव है्, दूर रहो!’ मै्ने एक दोस्​्की तिाश की, वो अस्पताि मे्डॉक्टर थी. जब वो एक एम्बुिे्ि िे बाहर आयी तो मै्ने है. -बेिार्ि का इनिाइक्िोपीसडया, 1996, चेन्ोसबि, पेज 24 29 अप्​्ैि 1986 को रेसडयोधस्मसता की जांच करने वािे उपकरणो्ने उिका िफेद कोट पकड् सिया. ‘मुझे अंदर जाने दो!’ ‘नही् जाने दे पोिै्ड, जम्सनी, ऑसस्ट्या और रोमासनया मे् उच्​् स्​्र का सवसकरण दज्स िकती. उिकी हाित खऱाब है, िबकी हाित बुरी है.’ मै् उि​िे सिपट सकया. 30 अप्ि ्ै को ब्सवट्जरिैड् और उत्र् ी इटिी मे.् एक मई और दूिरी गयी. ‘सिफ्फउिे देखने के सिये!’ ‘ठीक है,’ उिने कहा. ‘मेरे िाथ आओ, मई को फ्​्ांि, बेब्लजयम, द नीदरिै्ड्ि, स्​्बटेन, और उत्​्री यूनान मे्. तीन सिफ्फपंद्ह या बीि समनट के सिए.’ मै्ने उिे देखा. वो हर जगह िे िूज गया था मई को इजऱायि, कुवैत और तुक्ी मे्... हवा के और फूिा हुआ था. उिकी आंखे्नही्सदखती थी. िाथ ज्हरीिी गैि के कण पूरे भूमंडि का दौरा एक रात मै़ने एक शोर सुना. ‘उिे दूध की ज्र्रत है. बहुत ज्​्यादा दूध कर रहे थे: 2 मई को वे जापान मे्दज्ससकये गये. मै़ने सखि़की से बाहर देखा. की,’ मेरी दोस्​्ने कहा. ‘उनमे्िे हरेक को कम पांच मई को भारत मे्, और पांच और छह मई को उसने मुझे देखा, ‘सखि़की बंद िे कम तीन िीटर दूध पीना चासहए.’ अमेसरका और कनाडा मे्. - बेिार्ि मे् कर दो और सो जाओ. सरएक़टर ‘िेसकन उिे दूध अच्छा नही्िगता है.’ चेन्ोसबि हादिे के नतीजे, समन्स्क ब्सथत द मे़आग लग गयी है. ‘वो अब उिे पी िेगा.’ िखारोव इंटरनेशिन कॉिेज ऑन (िारे मरीज्ो्को मॉस्को सशफ्ट करने का पता रेसडयोइकॉिजी, समन्स्क, 1992 चिने के बाद) ल्युजसमला इग्िाते्को, मृत दमकलकम्​्ी (फ्ायरमैि) वाससली मै्छह महीने की गभ्सवती थी. िेसकन मुझे मॉस्को पहुंचना था. इग्िाते्को की पत्िी जो िबिे पहिा पुसि​ि असधकारी सदखा उिे हमने पूछा, चेन्ोसबि के हमारी नयी नयी शादी हुई थी. हम अभी भी हाथ मे्हाथ डािकर घूमते थे. स्टोर भी जाते तो एकदूिरे का हाथ थामकर. मै्उिे कहती, ‘तुम्हे्प्यार अब्गनशमन दि को को कहां रखा गया है. और उिने हमे्बताया, ये िबके करती हूं.’ िेसकन उि िमय मै्नही्जानती थी सक सकतना. मुझे नही्पता सिए आि्​्य्सथा, ‘अस्पताि िंख्या 6, श्खूसकन्िकाया स्टॉप.’ ये रेसडयोिॉजी के सिए एक सवशेष अस्पताि था और सबना पाि के था... हम िोग उि फ़्ायर स्टेशन की डॉरमेटरी मे्रहते थे जहां वो काम करता था. मै्हमेशा जानती थी सक क्या हो रहा था- वो कहां है, वो कैिा आप अंदर नही्जा िकते थे. मै्ने दरवाजे पर खड्ी मसहिा को कुछ पैिे सदये, और उिने कहा: ‘जाओ.’ सफर मुझे सकिी और िे पूछना पड्ा. मै् है. एक रात मै्ने एक शोर िुना. मै्ने सखड्की िे बाहर देखा. उिने मुझे सगड्सगड्ायी. आसखरकार मै्हेड रेसडयोिॉसजस्ट के दफ़्तर तक पहुंच गई, देखा, ‘सखड्की बंद कर दो और िो जाओ. सरएक्टर मे्आग िग गयी है. आंजेसिना वासि​ियेव्ना गुस्कोवा. उिने तपाक िे यही पूछा: ‘क्या तुम्हारे बच्​्ेहै्?’ मै्जल्द ही िौट आऊंगा. मै्उिे क्या बताऊं? मै्ने पहिे ही भांप सिया था सक मुझे ये सछपाना मै्ने ख़्ुद सवस्फोट नही्देखा. सिफ्फिपटे्. हर चीज्रोशन हो गयी थी. 38 शुक्वार | 1 िे 15 नवंबर 2015


है सक मै् पेट िे हूं. वरना वे मुझे उि​िे समिने नही् दे्गे! अच्छा है सक मै् पतिी हूं, आप मुझे देखकर कुछ नही्बता िकते है्. ‘हां,’ मै्ने कहा. ‘सकतने?’ मै्िोच रही हूं, सक मुझे उिे बताना चासहए- दो. अगर एक कहूंगी तो वो मुझे जाने नही्देगी. ‘एक िड्का और एक िड्की.’ ‘तो सफर तुम्हे् और पैदा करने की ज्र्रत नही् है. ठीक है. िुनो: ‘उिका के्द्ीय तंस्तका तंत् बेकार हो चुका है, उिकी खोपड्ी काम नही् करती है.’ ओके, मै्िोच रही हूं, वो थोड्ा बेकि और अधीर ही तो होगा. ‘और िुनो: अगर तुम रोने िगी, तो तुम्हे्फ़्ौरन सनकाि बाहर करं्गी. गिे नही् समिना है और कोई चूमना वगैरा नही्. उिके नज्दीक जाने की कोसशश भी मत करना. तुम्हारे पाि आधा घंटा है.’ िेसकन मै् पहिे िे जानती थी सक मै् उिे छोड्कर नही् जा रही हूं. अगर मै्जाऊंगी, तो उिे िेकर. मै्ने ख़्ुद की किम खाई. मै्अंदर गयी. वे िब सबस्​्र पर बैठे है्, ताश खेि रहे है्और हंि रहे है्. वास्या, उन्हो्ने आवाज्दी. वो पिटा: ‘ओह, अच्छा, अब खेि ख़्त्म हुआ. इिने तो मुझे यहां भी ढूंढ सिया.’ वो इतना बेढंगा िगता है, 48 िाइज्वािा पैजामा, और उिका िाइज्52 है. आस्​्ीन बहुत छोटे है, पैट् बहुत छोटी. िेसकन उिका चेहरा अब िूजा हुआ नही्है. उन्हे्कुछ ख़्ाि तरह का द्​्व सदया गया था. मै्ने कहा: ‘तुम भिा कहां भागते?’ वो मुझिे सिपटना चाहता है. डॉक्टर ऐिा नही्करने देगी. ‘बैठो, बैठ जाओ,’ वो कहती है, ‘यहां गिे िगना मना है.’ हम सकिी तरह मज्ाक करने िगे. और सफर िब वही्जुट गये. उि जहाज्मे्ये 28 िोग िाये गये थे. मै् उिके िाथ अकेिा रहना चाहती थी, एक समनट के सिए िही. उिके दोस्​्ो् ने इि बात को महिूि कर सिया और बहाना कर हॉि िे बाहर सनकि गये. सफर मै्ने उिे गिे िगाया और उिे चूमा. वो अिग हट गया. ‘मेरे नज्दीक मत बैठो. कुि्ी िे िो.’ ‘ये बेवकूफ़्ी है’, मैने कहा. अगिे सदन मै्पहुच ं ी तो वे अपने अपने कमरो्मे्पड्ेहुए थे. उन्हे्हॉि के गसियारो्मे्जाने िे मना कर सदया गया था. एक दूिरे िे बातचीत करने िे भी मनाही हो गयी थी. वे दीवारो्पर दस्क ् देते रहते थे अपनी अंगसु ियो् के पोरो िे्. ठक ठक ठक ठक. डॉक्टरो् ने दीवारो् का सवसकरण भी नाप सिया था. उिमे्बदिाव आ रहा था- हर रोज्मै्एक नए व्यब्कत िे समि रही थी. जिने की चोटे्ितह पर आ रही थी्. उिके मुंह मे्, उिकी जीभ पर, उिके चेहरे पर- पहिेपहि छोटे छोटे जख्​्म उभरे थे और सफर वे बढ्ने इस वर्च िोबेल पुरस्कार के सलए रुिी गयी बेलार्स की सुप्ससद्​् पत्​्कार और लेसखका. रेि्ोसबल एटोसमक त्​्ासदी और र्स के अिगासिस्​्ाि युद् पर उिका दस्​्ावेजी लेखि और सरपोत्ाचज बहुरस्रचत. र्स और बेलार्स मे् कुछ सकताबो् पर प्​्सतबंध.

िगे. परतो् मे् िब कुछ उधड्ने िगा.. सकिी िफेद सफ़्ल्म की तरह... उिके चेहरे का रंग... उिका शरीर... नीिािाि... धूिर, भूरा. और ये िब भी मेरा ही था. इिका वण्सन करना अिंभव है. इिे सिखना अिंभव है. इि​िे सनजात पाना तो और भी अिंभव. सजि एक चीज्ने मुझे बचाया वो ये थी सक ये िब कुछ बहुत तेज्ी िे हुआ, िोचने का जऱा भी वक्​्त नही् था, रोने का भी वक्​्त नही्था. सिवाससयो् का कोरस: वे जो लौट आये ओह, मै् तो इि पर बात भी नही् करना चाहती हूं. वो एक डरावनी घटना थी. उन्हो्ने हमे् सनकाि बाहर सकया. िैसनको् ने हमे् खदेड्ा. िेना की बड्ी मशीने्अंदर घुि आई्. एक बूढ्ा आदमी- पहिे ही मैदान पर जा सगरा था. मरता हुआ. वो आसखर कहां जाना चाह रहा था? ‘मै उठ जाऊंगा,’ वो रो रहा था, ‘और कस्​्बस्​्ान तक ख़्ुद जाऊंगा. मै् ये काम अपने आप करं्गा.’ *********** हम जा रहे थे- मै्ने अपनी मां की कब्​् िे कुछ समट्​्ी उठा िी, एक छोटे िे झोिे मे्रख िी. घुटनो्पर बैठ गयी और कहा: ‘हमे्माफ़्कर दो मां, तुम्हे्छोड्कर जा रहे है्.’ मै्रात मे्वहां पहुंची और मै्डरी हुई नही् थी. िोग घरो्पर अपने नाम सिख रहे थे. िकड्ी पर, फे्ि पर, डामर पर. मै्ने घर धुिा, चूल्हे को ल्िीच सकया. टेबि पर कुछ डबिरोसटयां और कुछ नमक, एक छोटी प्िटे और तीन चम्मच रख देने चासहये. उतने चम्मच सजतनी आत्माये्है्इि घर मे्. और हो िकता है हम िौट आये् ************ मुग्े मुस्गसयो् की किसगयां कािी पड् गयी् थी्, वे अब िाि नही् रह गयी थी्, सवसकरण की वजह िे. और आप चीज् नही् बना िकते थे. हम िोग एक महीना चीज् और कॉटेज चीज् के बगैर रहे. दूध खट्​्ा नही् हो गया था- वो फटकर पाउडर बन गया था, िफेद पाउडर. सवसकरण की वजह िे. ************ पुसि​ि वािे सचल्िा रहे थे. वे कारो्मे्भरकर आये और हम जंगिो् की ओर भाग गये. जैिे जम्सनो् िे भागे हो्गे. एक बार वो वकीि को िे आये, वो हांफा, चीखा, हमे्धारा 10 के तहत जेि मे्डािने की धमकी समिी. मै्ने कहा: ‘ठीक है मुझे एक िाि जेि मे्रख दो. मै्िज्ा काटकर िौटूंगा, यही् िौटूंगा.’ उनका काम है सचल्िाना, हमारा काम है ख़्ामोश रहना. मेरे पाि मेडि है- मै्इिाक़े्का िबिे अच्छा सकिान था. और वो मुझे धारा 10 के नाम पर डरा रहा है. ************* इि एक सरपोट्सर ने कहा सक हम िोग महज्अपने घरो्को नही्िौट रहे थे, हम िौ िाि पीछे िौट चुके थे. हम कटाई के सिए एक हथौड्ेऔर हंसिया का इस्म्े ाि करते है.् हम गेह् ू की बासियो्को ठीक डामर के ऊपर पीटते है्. ************ हमने फ़्ौरन रेसडयो बंद कर सदया. हम सकिी िमाचार के बारे मे्नही् जानते िेसकन सज्दगी शांसतपूण्सहै. हम िोग नाराज्नही्होते है्. िोग आते है्, वे हमे् कहासनयां िुनाते है्- हर जगह युद् है. और कहते है् सक िमाजवाद ख़्त्म हो गया है और हम पूंजीवाद के िाये मे्रह रहे है्. और ज्ार िौट रहा है. क्या ये िच है? *********** िोग अंडे िे जाते है,् रोि िे जाते है्और जो कुछ भी उनके पाि होता है उिे िेकर कस्​्बस्​्ान पहुंचते है्. हर कोई अपने पसरवार के िाथ बैठता है. वे उन्हे्बुिाते है्: ‘बहन, मै्तुम्हे्समिने आया हूं. आओ िंच करते है्.’ या ‘मां, प्यारी मां. पापा, प्यारे पापा.’ वे दूर स्वग्सिे आत्माओ्को बुिाते है्. सजनके िोग इि िाि मरे, वे रोते है्, और सजनके िोग पहिे मर गए वे नही् रोते है्. वे बाते करते है्. याद करते है्. हर कोई प्​्ाथ्सना करता है. शुक्वार | 1 िे 15 नवंबर 2015 39


सावहत्य और जो नही्जानता है सक प्​्ाथ्सना कैिे की जाती है वो भी प्​्ाथ्सना करता है. ************* हमारे पाि यहां हर चीज्है- कब्.् हर कही्कब्.्े डम्प करने वािे ट्क ् काम पर िगे है्और बुिडोजऱ भी. मकान सगराये जा रहे है्. कब्​्खोदने वािे मशक्​्त कर रहे है्. उन्हो्ने स्कूि को दफऩाया, मुख्यािय को और स्नानघरो्को. ये वही दुसनया है, िेसकन िोग अिग है्. एक चीज्जो मुझे िमझ नही्आती सक क्या िोगो्मे्आत्मा होती है? आत्मा सकि तरह की होती है? मेरे दादा दो सदन मे्मरे. मै्चूल्हे के पीछे सछपा था और इंतज्ार कर रहा था: वो उिके शरीर िे कैिे उड्कर जाएगी? मै्गाय दुहने चिा गया था- मै्िौटा और दादा को आवाज्दी. वो वहां पड्ेथे, उनकी आंखे् खुिी हुई थी. उनकी आत्मा पहिे ही उड् गई थी. या ऐिा कुछ हुआ ही नही्था. और सफर मै्उनिे कैिे समिूंगा? सैसिको् का कोरस हमारी रेसजमे्ट को ताक़्ीद कर दी गई थी. हम िोग जब मॉस्को मे् बेिोर्स्काया ट्​्ेन स्टेशन पहुंच गये तब जाकर हमे् बताया गया सक हम जा कहां रहे है्. एक फ़्ौजी, वो शायद िेसननग्​्ाद का था, उिने सवरोध करना शुर्कर सदया. उिे बताया गया सक उिे िैन्य स्​्टल्यूनि के िामने पेश कर सदया जायेगा. कमांडर ने टुकड्ी के िामने ठीक यही बात कही िेन्ोरिल संयंत्: तिाही के िीि स्मािक थी: ‘तुम्हे्जेि मे्ठूंि सदया जायेगा या गोिी मार दी जायेगी.’ मेरे मन मे् अिग ही भावनाये् थी, उि फ़्ौजी िे सबल्कुि उिट. मै् कुछ हीरो जैिा हादिा,’ कप्तान मे्हमे्कहा. ‘बहुत िमय पहिे हो चुकी है ये दुघ्सटना, करना चाहता था. हो िकता है ये बच्​्ो् का मामिा हो. िेसकन मेरे जैिे तीन महीने हो गये. अब कोई ख़्तरे वािी बात नही्है.’ ‘ठीक है िब, कोई सदक्​्त नही्,’ िाज्​्ेट ने कहा, ‘बि खाने िे पहिे अपने हाथ ज्र्र धुि और भी िोग थे. डर तो था िेसकन मजेदार भी था, सकिी वजह िे. िे ना.’ तो हमे् पहुंचा सदया गया. हमे् िीधे पावर स्टेशन िे जाया गया. हमे् मै् घर िौटा. मै् डांि करने जाऊंगा. मै् अपनी पिंद की िड्की िे िफेद िबादे और िफेद टोसपयां दे दी गयी्गेज िस्जसकि मास्क भी. हमने समिू ग ं ा और कहूंगा, ‘चिो एक दूिरे को बेहतर ढंग िे जान िे्.’ इिाक़े्की िफ़्ाई कर दी. रोबोट ये नही्कर िकते थे, उनके सिस्टम बैठ ‘आसखर क्यो्, सकिसिए? तुम अब एक चेन्ोसबिाइट हो. मुझे तुम्हारे गये थे. िेसकन हमने काम सकया. और हमे्इि बात का गव्सथा. बच् े ् पै द ा करने मे्डर िगता है,’ वह कहेगी. ************ मरात सफ् सलपोसवर कोखािोव, बेलार्स एकेडमी ऑफ् ये रहा वो छोड्ा हुआ मकान. ये बंद है. सखड्की की सि​ि पर एक सां इ से स मे ् एटमी ऊज्ाच संस्थाि के पूव्च मुख्य असभयंता सबल्िी है. मै्िोचता हूं: ज्र्र समट्​्ी की सबल्िी होगी. मै्आगे जाता हूं और मई के आसखर मे्, हादिे के कऱीब एक महीने बाद, हमे् ये तो अि​िी सबल्िी है. उिने घर मे्रखे िारे फूि खा सिये है्. सजरेसनयम तीि सकिोमीटर के दायरे िे परीक्​्ण और जांच के सिये िंक्समत के फूि. वो अंदर कैिे आयी? या घर के िोगो्ने ही उिे यहां छोड्सदया चीज्े् भेजी जाने िगी्. हमे् पाितू और गैरपाितू जानवरो् के शरीरो् के था? सहस्िे भेजे गये. पहिे परीक्​्णो्िे ही िाफ़्हो गया सक हमारे पाि जो आ दरवाजे पर एक नोट सचपका हुआ है: स्​्पय दयािु व्यब्कत, यहां सकिी रहा है वो मीट नही् है बब्लक रेसडयोएब्कटव उपोउत्पाद यानी बायप्​्ॉडक्ट कीमती चीज्की खोजबीन न करना. हमारे पाि ऐिी कोई चीज्कभी नही् है . हमने दूध का परीक्​्ण सकया, वो दूध नही् था. वो एक रेसडयोधम्​्ी थी. जो चाहे वो इस्​्ेमाि कर िेना, िेसकन जगह को गंदा मत करना. हम बायप् ॉ ् डक् ट था. िौटकर आये्गे मै्ने अन्य मकानो्मे्अिग अिग रंगो्के सनशान देखे थेकु छ गां वो्मे्हमने वयस्को्और बच्​्ो्मे्थायरॉयड की माप की. ये प्यारे घर, हमे्माफ़्कर दो! िोग अपने घरो्को ऐिे अिसवदा कह रहे थे सनध् ा स स रत डोज् िे िौ, कभी कभी दो िौ और तीन िौ गुना असधक थी. ट्क्ै ट् र जैिे सक वे भी िोग हो्. या उन्हो्ने सिखा था: हम िोग िुबह सनकि रहे है् चि रहे थे , सकिान अपनी ज्मीनो को खोद रहे थे. बच्​्ेरेत के बक्िो्पर या हम िोग रात मे्सनकि रहे है्. और उन्हो्ने तारीखे्भी सिख दी थी्और बै ठ े और खे ि रहे थे . हमने एक औरत को देखा जो अपने घर के पाि एक िमय भी. स्कूि की कॉसपयो् के पन्नो् पर नोट सिखे हुए थे: सबल्िी को बे च ् पर बै ठ ी थी, अपने बच्​्ेको दूध सपिाती हुई- उिके दूध मे्िीसजय़म मारना मत. वरना चूहे िबकुछ खा जाये्गे्. और सफर एक बच्​्ेकी राइसटंग थावो चे न ो ् सबि की मे ड ोना है. मे्सिखा था: हमारी ज्ुल्का को मत मार देना. वो एक अच्छी सबल्िी है. हमने अपने बॉिो् को पूछा: ‘हम क्या करे्? *********** कै ि े काम करे्?’ उन्हो्ने कहा: ‘अपने माप िो, कुछ गांवो़मे़हमने वयथ़को़ हम घर िौटे. मैन् े अपने िारे कपड्ेउतारे और टीवी देखो.’ टीवी पर गोब्ाचस य् ोव िोगो्को सदिािा उन्हे् नष्​् करने के सिए ट्​्ैश शूट मे् डाि सदया. और बच़​़ो़मे़थायरॉयड की दे रहे थे: ‘हमने तत्काि प्​्भाव िे क़्दम उठाये अपनी कैप मै्ने छोटे बेटे को दे दी. वो वाकई उिे माप की. ये सनध़ा​ासरत डोज़से है्.’ मै्ने इि पर भरोिा सकया. मैने बतौर चाहता था. और वो हर वक्​्त उिे पहने रहता था. सौ, कभी कभी दो सौ और इं जीसनयर बीि िाि तक काम सकया था. मै् दो िाि बाद उिकी बीमारी की पहचान की गयी: भौसतकी के सनयमो् िे भिीभांसत पसरसचत था. मै् तीन सौ गु न ा असधक थी. उिके सदमाग मे् ट्​्ुमर हो गया था... इिके बाद जानता था सक हर जीसवत चीज् को वो जगह की बाते् आप ख़्ुद ही सिख िीसजये. मै् और बात छोडऩी होगी, चाहे थोड् े िमय के सिए ही. िेसकन हमने सनष्​्ापूवक स् अपने नही्करना चाहता हूं. माप सिये और टीवी दे ख ा. हमे ् सवश् ा ् ि कर िे न े की आदत पड् गयी थी. ********** ज् ो या दासिलोव् ि ा ब् क ु ् , पय् ा व च रण इं स प ् त े ट ् र हम िोग घटनास्थि पर पहुंचे. अपने उपकरण उठाये. ‘सिफ्फ एक 40 शुक्वार | 1 िे 15 नवंबर 2015


मटर के दाने बोये थे, वैिा ही वे उिे काट रहे थे. जबसक िभी ये जानते थे सक मटर मे् िबिे ज्यादा सवसकरण घुिता है, जैिे सक तमाम बीन्ि मे्. उिके पाि मेरे सिए िमय नही् था. िारे के िारे रिोइये और नि्​्े बािसवहार (सकंडरगाट्सन) िे भाग गये थे. बच्​्े भूखे है्. सकिी का एपेब्नडक्ि सनकािना है तो आपको उिे एम्बुिे्ि मे्अगिे इिाक़े्की ओर िे जाना होगा. िाठ सकिोमीटर का िड्क का िफऱ. िारे िज्सनो्ने हाथ खड्े कर सदये. कहां की कार कहां के दोगुने खांचे्, उिके पाि मेरे सिए िमय नही्था. सिहाज्ा मै्िेना के िोगो्के पाि चिी गयी थी. वे युवा िोग थे. छह महीनो् िे वहां डटे थे. िेसकन अब वे भयनक र्प िे बीमार थे, उन्हो्ने मुझे चािक दि के िाथ एक हसथयारबंद सनजी वाहन दे सदया. अच्छा था सक ये एक िुिस्​्जत िैन्य वाहन था सजिमे्आगे मशीनगन िगी हुई थी. हम िोग इिमे्जा रहे थे अपने जंगिो्अपनी िड्को्िे होते हुए. मसहिाएं अपने अपने दीवारो् के पाि खड्ी थी और रो रही थी- युद् के बाद िे उन्हो्ने ऐिे वाहन नही्देखे थे. उन्हे्डर था सक नया युद्सछड्गया है. हम एक बूढ्ी मसहिा िे समिे. ‘बच्​्ो्, मुझे बताओ, क्या मै्अपनी गाय का दूध पी िकती हूं?’ हमने सनगाहे्झुका दी्, हमारे पाि आदेश थे- सिफ्फडाटा जमा करने मृतको् को याद किने का समय का. डाटा जमा करना िेसकन स्थानीय िोगो्िे मेिजोि मत करना. मै्पय्ासवरण रक्​्ा के सनगरानी के्द्मे्तैनात थी. हम िोग सकिी तरह आसखरकार हमारे वाहन का ड्​्ाइवर बोि उठता है, ‘दादी अम्मा, आप के सनद्​्ेश का इंतज्ार कर रहे थे िेसकन एक भी सनद्​्ेश नही्समिा. उनकी सकतने िाि की है्?’ हरकत तभी शुर् हुई जब बेिार्िी िेखक अिेक्िई आदमोसवच ने ‘ओह, हां, अस्िी िे ज्​्यादा. या उि​िे भी ज्​्यादा. मेरे दस्​्ावेज युद् मॉस्को् मे् मामिा उठाया और ख़्तरे की चेतावनी दी. वे उि​िे सकतनी के दौरान जि गए थे..’ नफऱत करते थे! उनके बच्​्े यहां रहते है्, और ‘तो सफर आप जो मन करे वो िब पीती रहे्..’ ज़​़यादा समय नही़हुआ जब हमने उनके नातीपोते भी, िेसकन उनकी बजाय एक मै् िमझ गयी थी. उि िमय फ़्ौरन नही्. िेखक दुसनया को बता रहा है: हमे्बचाओ! आप िेसकन कुछ िाि बाद सक हम िब उि अपराध अपने एक दोस़​़को वहां िोचे्गे सक कुछ आत्मरक्​्ा का कोई तरीक़्ा सनकि मे ्भागीदार थे. दरऩाया था. वो रक़त कै़सर से आयेगा. इिके बजाय, तमाम पाट्​्ी बैठको्मे्और सवत्टर लातुि, फ्ोटोग्​्ािऱ मरा था. हम जगे और थ़लासवक धूमप् ान के सिए होने वािे ब्के् ि ् मे्आप बि ‘उन्ही् ज्​्यादा िमय नही्हुआ जब हमने अपने एक परंपरा के मुतासबक हमने पी. सनरे िेखको्’ के बारे मे्िुनते थे. ‘वे अपनी नाक दोस्​्को वहां दफऩाया था. वो रक्त कै्िर िे मरा उि मामिे मे् क्यो् घुिा रहे है सजि​िे उनका था. हम जगे और स्िासवक परंपरा के मुतासबक िेनादेना नही्? हमारे पाि सनद्​्ेश है्! हमे्आदेशो्का पािन करना होगा! हमने पी. और सफर आधीरात तक बातचीत होती रही. पहिे उिके बारे मे्, वो क्या जानता है? वो कोई भौसतकसवद्है क्या?’ जो मर गया था. िेसकन उिके बाद? देश की सकस्मत और ब्​्ह्मांड के रेसडयोधम्​्ी समट्​्ी को दबाने के सिए उनके पाि सिसखत मे्प्​्ोटोकॉि मंिबू े के बारे मे.् क्या र्िी फ़्ौज चेचन्या िे हटेगी या नही्? क्या काकेशश है. हमने समट्​्ी को समट्​्ी मे्दबाया- एक अजीब मनुष्य गसतसवसध. सनद्​्ेशो् का दूिरा युद् होगा या वो पहिे िे ही शुर् हो चुका है. स्​्बसटश शाही के मुतासबक, सकिी भी चीज्को दबाने िे पहिे हमे्एक भूगभ्​्ीय िव्​्ेकरना ख़्ानदान और राजकुमारी डायना के बारे मे्. र्िी राजशाही के बारे मे्. था ये जानने के सिए दफऩ क्​्ेत्के चार िे छह मीटर के दायरे मे्भूजि तो चेन्ोसबि के बारे मे,् अिग अिग बाते.् अिग अिग थ्योसरयां. कुछ कहते नही्है. हमे्ये भी िुसनस्​्ित करना था सक गड्​्ेकी गहराई बहुत ज्​्यादा न है्सक एसियन्ि को इि सवनाश का पता था और उन्हो्ने हमारी मदद की. हो. और उिकी दीवारे्और ति पर पॉिीथाइिीन की परत चढ्ा दी जाए. दूिरे िोग कहते है् सक ये प्​्योग था और जल्द ही असवश्​्िनीय प्​्सतभा िेसकन वास्​्सवकता मे् होता कुछ और ही था. हमेशा की तरह. कोई वािे बच्​्े पैदा होने िगे्गे. या बेिार्ि के िोग ग़्ायब हो जाये्गे्, भूग्सभीय िव्​्ेनही्. वे अपनी अंगुसियो्िे इशारा कर देते और कहते, यहां स्काइसथयनो्, िरमतो्, सकमरीयो्, हुआस्क ्े ो्की तरह. हम िोग तत्वज्​्ानी खोदो. खोदने वािी मशीन खोद देती. सकतना भीतर गए हो. भिा कौन है्. हम िोग इि धरती पर नही्रहते है्, बब्लक अपने िपनो्मे्रहते है्, जानता है. मै्र्क गई जब मै्पानी िे टकराई. वे पानी मे्ही खुदाई कर रहे अपने िंवादो्मे्. क्यो्सक इि िाधारण जीवन मे्आपको कुछ और जोडऩे थे. की ज्र्रत होती है, इिे िमझने के सिये. तब भी जब आप मौत के कऱीब मेरा िबिे बड्ा एिाइनमे्ट क्​्ास्नोपोल्स्क क्​्ेत् मे् था, जहां हाित होते है्. बहुत खऱाब थे. रेसडयोन्यूक्िाइड, मैदानो्के ज्सरए नसदयो्मे्न चिे जाये्, व्लादीसमर मातवीसवर इवािोव, स्​्ावगोरोद क्​्ेत्ीय पाट्​्ी इिके सिए हमे् सफर िे सनद्​्ेशो् का पािन करना था. दोगुने खांचो् को कमेटी के पूव्च प्​्थम सेके्ट्ी जोतना था, अंतराि छोडऩा था, और दोगुनी खापे् भरनी थी् और ये मै् अपने िमय का प्​्ॉडक्ट हूं. मै् परम कम्युसनस्ट हूं. अब हम पर सि​िसि​िा बनाये रखना था. तमाम छोटी नसदयो्का दौरा करना था और तोहमते् िगाना िुरस्​्कत है्. ये फ़ै्शन मे् है. िारे कम्युसनस्ट अपराधी है्. उन्हे्चेक करना था. ज्ासहर है मुझे एक कार की ज्र्रत थी. सिहाज्ा मै् अब हम हर चीज्का जवाब दे्, भौसतकी के सनयमो्का भी. क्​्ेत्ीय काय्सकासरणी के चेयरमैन के पाि गयी. अपना सिर अपने हाथो्िे मै्कम्युसनस्ट पाट्​्ी की क्​्ेत्ीय कमेटी मे्प्​्थम िसचव था. अखबारो्मे् पकड्ेवो अपने दफ्तर मे्बैठा हुआ था: सकिी ने योजना नही्बदिी थी, सिखा गया सक कुिरू , आप जानते है,् सकिका था, कम्यसु नस्टो्का: उन्हो्ने सकिी ने फ़्ि​ि काटने के काम मे् रद्​्ोबदि नही् सकया था. जैिे उन्हो्ने कमज्ोर, िस्​्े एटमी िंयंत् बनाये, उन्हो्ने पैिे बचाने की कोसशश की, शुक्वार | 1 िे 15 नवंबर 2015 41


सावहत्य और िोगो् की सज्ंदसगयो् की परवाह नही् की. िोग उनके सिए महज् रेत थे, इसतहाि के उव्सरक. ठीक है. भाड्मे जाये् ऐिा सिखने वािे! भाड् मे्! ये िब शासपत िवाि है्: क्या करे् और सकि को दोषी बताये्? ये ऐिे िवाि है्जो बने रहते है्. हर कोई अधीर है, वे बदिा िेना चाहते है्. उन्हे् ख़्ून चासहये. अन्य िोग ख़्ामोश है,् िेसकन मै् आपको बताता हूं. अख़्बार सिखते है् सक कम्युसनस्टो्ने िोगो्को मूख्सबनाया, उनिे िच्​्ाई सछपायी. िेसकन ऐिा करना पड्ा. हमे् के्द्ीय कमेटी और क्​्ेत्ीय कमेटी िे तार समिे थे, सजनमे्हमे्बताया गया था: तुम िोग दहशत फैिने िे रोको. और ये िच है, दहशत एक डरावनी चीज्है. उि िमय डर था और अफ़्वाहे्भी फैिी हुई थी्. िोग सवसकरण िे नही्मरे थे, बब्लक घटनाओ्िे मरे थे. हमे्एक दहशत को रोकना था. क्या हो जाता अगर मै्कह देता सक िोगो्को बाहर नही्जाना चासहए? वे कहते: ‘तुम मई सदवि मे् व्यवधान डािना चाहते हो?’ ये एक राजनैसतक मामिा था. वो मेरे पाट्​्ी सटकट के बारे मे्मुझिे दरयाफ़्त कर िकते थे. (हल्का िा शांत होकर) वे इि बात को नही् िमझते थे सक भौसतकी जैिी चीज्भी आसखर होती है. ये एक चेन सरएक्शन है. और कोई आदेश या िरकारी प्​्स्ाव उि चेन सरएक्शन को रोक नही् िकता है. दुसनया भौसतकी के सनयमो्पर बनी हुई है, माक्ि ् के सवचारो्पर नही्. िेसकन अगर मै्ऐिा कह देता तब क्या होता? मई सदवि की परेड को रोक देने की कोसशश करता? ( सफर िे गुस्िा होते हुए.) अख़्बारो्मे्वे सिखते है् सक िोग िड्को् पर सनकि आए थे और हम भूसमगत बंकरो् मे् थे. मै् जबसक स्​्टल्यून मे् उि कड्ी धूप मे् दो घंटे तक खड्ा रहा था, बगैर हैट बगैर रेनकोट! और नौ मई को, सवजय सदवि के मौके पर मै्अपने बुज्ुग्ो् के जुिूि के िाथ चिा. उन्हो्ने हाम्​्ोसनका बजाया था. िोग नाचे थे और उन्हो्ने ख़्ूब पी थी. हम िब उि सिस्टम का सहस्िा थे. हम यक़्ीन करने वािे िोग थे, सवश्​्ाि करने वािे िोग थे. हमे्ऊंचे आदश्​्ो्पर सवश्​्ाि था, जीत पर? हम चेन्ोसबि को हरा दे्गे! ... वाससली बोसरसोसवत िेस्ेरे्को, बेलार्स एकेडमी ऑफ् सांइसेस मे् एटमी ऊज्ाच संस्थाि के पूव्च सिदेिक उि सदन, 2 अप्​्ैि, मै्अपने काम िे मॉस्को मे्था. वहां मुझे हादिे का पता चिा. मै्ने समन्स्क मे् बेिार्ि की कम्युसनस्ट पाट्​्ी की के्द्ीय कमेटी के महािसचव स्िाइयुनकोव को फ़्ोन िगाया. एक बार, दो बार, तीन बार मै्ने कोसशश की िेसकन मेरी उनिे बात नही् करायी गयी. सफर मै्ने उनके िहायक को फ़्ोन समिाया, वो मुझे अच्छी तरह जानता था. ‘मै् मॉस्को िे बोि रहा है. मेरी स्िाइयुनकोव िे बात करा दो. मेरे पाि उनके सिए एक ज्र्री िंदेश है. आपात िूचना.’ आसखरकार कऱीब दो घंटे बाद मेरी स्िाइयुनकोव िे बात हो पायी. ‘मुझे पहिे ही सरपोट्​्े समि गई है्,’ स्िाइयुनकोव कहता है. ‘आग 42 शुक्वार | 1 िे 15 नवंबर 2015

िगी थी, िेसकन बुझा दी गयी.’ मै् ये बद्ासश्त न कर िका. ‘ये झूठ है! ये एक खुिा झूठ है!!’ 29 अप्​्ैि कोमुझे हर चीज् बहुत अच्छी तरह याद है, तारीख के िाथ- आठ बजे िुबह, मै् स्िाइयुनकोव के दफ़्तर के स्वागत कक्​् मे् बैठा हुआ था. मुझे अंदर जाने नही् सदया जा रहा था. मै् वहां पर, ये िमसझये कोई िाढ्े पांच बजे तक बै र्सी िेहिो् पि मास्क: एिोरमक ऊज्ाि का रविोि ठा रहा. िाढ्े पांच बजे एक प्​्सिद्​् कसव स्िाइयुनकोव के दफ्त़ र िे बाहर सनकिे. मै्उन्हे्जानता था. उन्हो्ने मुझिे कहा, ‘कॉमरेड स्िाइयुनकोव और मै्ने बेिार्ि की िंस्कृसत पर बात की.’ ‘बेिार्ि की िंस्कृसत नही् बचने वािी है,’ मै् फट पड्ा था, ‘या आपकी सकताबो्को भी पढ्ने के सिए कोई नही्बचेगा, अगर हमने फ़्ौरन चेन्ोसबि िे हर व्यब्कत को सनकािा नही्तो! अगर हमने उनकी जान नही् बचायी तो!’ ‘क्या मतिब है तुम्हारा? आग तो पहिे ही बुझा दी गयी है.’ आसखरकार मुझे स्िाइयुनकोव िे समिने का अविर समि ही गया. ‘तुम्हारे आदमी (िंस्थान के कम्सचारी) शहर मे् गाइगर काउंटर (रेसडयोएब्कटव सवसकरण की जांच के सिए उपकरण) सिए क्यो्भागे सफर रहे है्, हर सकिी को डराते हुए? मै्ने मॉस्को िे पहिे ही बात कर िी है. मेरी अकादसमक इल्यीन िे बात हो गयी है. उनका कहना है सक िब कुछ िामान्य है. और िरकारी आयोग स्टेशन पर मौजूद है, प्​्ोिीक्यूटर का दफ्तर भी वही् है. हमने िेना बुिा िी है. हमारा िारा िैन्य िाजोिामान तैयार है.’ वे िोग अपरासधयो्का सगरोह नही्थे. इिे जहाित और फ़्म्ासबरदारी की िासज्श के र्प मे्देखना चासहये. उनके जीवन का सिद्​्ांत यही था, पाट्​्ी मशीन ने उन्हे्जो एक चीज्बतायी थी वो यही थी सक कभी भी अपनी गद्सन मत घुिाओ. हर सकिी को ख़्ुश रखना बेहतर है... मै् शस्तसया कह िकता हूं सक के्मसिन िे फ़्ोन ज्र्र आया होगा. िीधे गोब्ासच्योव िे. उन्हो्ने ये कहा होगा सक ‘मुझे उम्मीद है बेिार्ि के तुम िोग दहशत न फैिने दोगे, पस्​्िम ने तो शोर मचाना शुर्कर सदया है’...अब इिके बाद क्या होता है... िोग अपने िे ऊपर के िोगो्यानी अपने वसरष्​्ो्िे ज्​्यादा डरते है्, एटम बम िे नही्. मै्भी गाइगर काउंटर िेकर सनकिा था. िसचव और शोफऱ कहते थे, ‘प्​्ोफ़े्िर आप िबको डराते क्यो् घूम रहे है्? क्या आप िोचते है् सक बेिार्ि की सफ़्क्करने वािे आप अकेिे है्? और वैिे भी जान िे्, सक िोगो्को सकिी न सकिी वजह िे मरना ही पड्ता है. धूम्पान िे, या वाहन दुघ्सटना िे या सफर आत्महत्या िे.’ — र्िी िे कीथ गैिन के अनुवाद का र्पांतर, द पेसरि सरव्यू िे िाभार n (अिुवाद: सिवप्​्साद जोिी)



सावहत् मास्यट/कहािी हेड

पांच कथाएं कहावियां रिी्द्िम्ाि

पृथ्वी का व्याकरर

न्नत और दोजख आि पाि थे, वन्ास गासिब िैर के वास्​्े दोनो् को समिाने की क्यो्िोचते. भोिे और कािू दोनो्दो भव्य द्​्ारो्के बीच मे्भौ्चक खड्ेथे. उनकी िमझ मे्नही्आ रहा था सक सकि द्​्ार के पीछे स्वग्स है. एकाएक पहेिी िुिझ गयी.उन्हो्ने देखा सक एक द्​्ार के िामने द्​्ारपाि था, दूिरा द्​्ार खािी था.वे तुरंत जान गये सक जो द्​्ार खािी था उिके पीछे नक्फ था उिमे् द्​्ारपाि भीतर की तरफ होगा तासक वह नक्फवासियो् को बाहर भागने िे रोक िके. स्वग्स द्​्ार के िामने द्​्ारपाि, तासक असधकृत िोग ही अंदर जा िके्. भोिे और कािू स्वग्स द्​्ार की ओर बढ्े. द्​्ारपाि ने उनका पार-पत्​् मांगा. दोनो्ने एक िाथ जेब मे्हाथ डािा और सनकािा. दोनो्के हाथो्मे् सपस्​्ौि थी. द्​्ारपाि चीखा ‘सपस्​्ौि हाथ मे्सिए स्वग्समे्जाना चाहते हो!’ दोनो् ने झट िे सपस्​्ौि फेक सदये और दूिरी जेब िे पार-पत्​् सनकािकर द्​्ारपाि को िौ्प सदये. द्​्ारपाि ने दोनो्पार-पत्​्पिटकर दोनो्तरफ देखे और बोिा ‘इनमे्तो कुछ भी नही्सिखा.’ भोिे और कािू एक िाथ बोिे ‘दोनो् पर सचत्​्गुप्तजी ने स्वग्स सिखा था.रास्​्ेमे्बासरश थी.दोनो्भीगकर िाफ हो गये.’ ‘तुम कैिे मरे?’ द्​्ारपाि ने पूछा. ‘एक दूिरे की गोिी िे’ दोनो्बोिे.दोनो्मुस्करा रहे थे. द्​्ारपाि भी क्ण ् भर मुसक ् राया.सफर गंभीर हो गया. उिने भोिे की ओर देखते हुए कहा: ‘तुम अकेिे जवाब दो. तुम कौन हो?’ ‘पुसि​ि इंस्पेकट् र.’ ‘और तुम?’ द्​्ारपाि ने कािू की तरफ देखा. ‘नक्ि​िी.’ वसरष्​् कथाकार और उपन्यासकार. प्​्मुख कृसतयां: आसखरी मंसजल, दस बरस का भंवर, क्​्ांसत काका की जन्म िताब्दी, मै् अपिी झांसी िही् दूंगा, सकस्सा तोता ससि्फ तोता. लरु कथाओ् के सलए सविेर र्प से रस्रचत.

44 शुक्वार | 1 िे 15 नवंबर 2015

‘कहां सभड्े?’ ‘दंतेवाड्ा मे्.’ ‘क्यो्?’ द्​्ारपाि ने कािू की ओर देखा. ‘क्यो्सक िरकार हमारी धरती िूट रही है’ नक्ि​िी ने कहा. द्​्ारपाि ने ठहाका िगया: ‘धरती कैिे िुट िकती है?’ ‘यह हंिने की बात नही्है, मान्यवर’ नक्ि​िी िंजीदा था.’ आप धरती पर होते तो आप देखते सक धरती के जंगि, खसनज और पानी कैिे िुटते है् और उिी धरती पर बने घर कैिे जंगि हो जाते है्.’ ‘उन घरो्के िोग कहां जाते है्?’ द्​्ारपाि की आंखे्फैि गयी्. ‘धरती के नरक मे्.’ ‘धरती पर भी नक्फहै?’ द्​्ारपाि हैरान था. ‘हां, मान्यवर, हर शहर के सकनारे नक्फबि गया है, सजन्हे्स्िम्ि कहते है्, जैिे पहिे हर नदी के सकनारे िभ्यताएं पैदा हौती थी्.’ द्​्ारपाि हंिा: ‘क्या स्िम्ि धरती की नई िभ्यताएं है?’ ‘हां, मान्यवर.’ ‘मगर िरकार ऐिा क्यो्करती है?’ द्​्ारपाि िन्न था. ‘िरकार मजबूर है’ नक्ि​िी मुस्कराया. ‘यह कैिी िरकार है जो मजबूर है?’ ‘अि​ि मे्सजनकी मुट्ी मे्मुद्ा है, उन्ही्की मुट्ी मे्िरकार है.िरकार की मुस्काने्और आंिू िब नकिी है.’ द्​्ारपाि को हंिी आ गयी.उिने कािू की ओर देखकर कहा ‘एक बात बताओ.’ ‘क्या?’ ‘तुम अपने िोगो्को धरती के नक्फमे्छोड्कर स्वग्समे्कैिे आ गये?’


सफर मै्ने बाहर आकर उिे उिटा कर सदया और खूब खंगािा. कुछ हासि​ि नही् हुआ. एक सतनका भी नही्. बि, मेरी आंखो् मे् ताकता शून्य था यसद इिे कोई िरमाया कहा जा िके. मुझे अपने पर बेहद खीझ हुई. समज्ास गासिब याद आये जो एक शेर के कहे जाने पर एक गांठ िगा िेते थे और सफर फुि्सत मे्उिे कागज के िुपुद्सकर देते थे. मेरे दामन मे्कोई गांठ नही्है.मै् यही सिख रहा हूं. पन्ना कोरा है. यो् कोरे पन्ने की भी एक कहानी हो िकती है,िेसकन यह कहानी मै् उि कहानी के बारे मे्सिख रहा हूं जो मै्भूि गया हूं. उिकी कोई धुंधिी िी छाया भी होती तो मै् उिे कायनात मे् कही् टांगने की कोसशश करता. क्यो्सक कायनात मे् ऐिी चीजे् है् जो छाया के सिए तरिती है् जैिे दु:ख. दुःख ठोि होते है् पहाड्ो् की तरह, सजनकी छाया नही् होती. क्यो्सक उन पहाड्ो्के देश मे्िूरज नही्होता. क्या जो कहानी मै्भूि गया हूं वह उिी देश के बारे मे्है सजिमे्िूरज नही्है? धरती पर जब अंधेरा सघरने िगता है तो यही िगता है.यही िगता है सक धरती ईश्​्र की वही कहानी है सजिे वह भूि गया है.

डाइंग डेक्लेरेशन

मंजू, अच्छा तुम डर गयी्थी्हां-हां. तुम्हे्िगा सक दो आदमी मेरी िेटी िाश घर मे् िा रहे है्.नही् मंजू, कभी िाश घर नही् िौटती. घर हमेशा आदमी िौटता है. हां, शहीद पाक्फ मे् माच्स खत्म होने पर मै् अचानक खड्ा-खड्ा धराशायी हो गया था जैिे मुझे अदृश्य गोिी िगी हो. चारो्ओर खड्ेिोग दौड्े, उन्हो्ने मुझे हाथो्िे उठाया,गाड्ी मे्सिटाया और अस्पताि िे जाने िगे. मै्ने अपनी बंद आंखे् खोि दी् और कहा सक मुझे कुछ नही् हुआ है, मुझे घर िे चिो. दरअि​ि मै्खुद चसकत था सक इतना हजरतगंज मे्गांधी प्​्सतमा िे गोमती सकनारे शहीद स्थि तक इतना िंबा मै्कैिे चिता रहा. जै िा सक तुम जानती हो, इन सदनो्मेरा अभ्याि िुबह पाक्फ-पसरक्​्मा का ही ‘मेरे मरने के िाथ मेरी इच्छा भी मर गयी,’ नक्ि​िी ने कहा.‘सचत्​्गुप्त है जो पूरा सकिोमीटर भी नही् और जहां मै् रोज िुबह-िुबह आधा घंटा जी ने मुझे यहां भेज सदया.’ िोचता हुआ बैठा रहता हूं, गोया खुिी हवा और पेड्-पौधे मेरा सचंतन कक्​् द्​्ारपाि भोिे की ओर मुखासतब हुआ. उिने पूछा: ‘तुम पुसि​ि मे्क्यो् हो् . भरती हुए थे?’ गांधी प्​्सतमा पर जब मै्दोपहर मे्पहुंचा तो शहर के िोग हैरान रह गये ‘पैिे के सिए’ भोिे एक िांि िेकर बोिा ‘मेरे घर मे् एक बच्​्ा है, मै न ् े दो-तीन बरि िे जुि​ि ू ो्मे्जाना छोड्सदया था.उन्हो्ने तुरतं मेरा पसरचय बीवी है, और मां बाप है.दरवाजे पर भूख दस्​्क दे रही थी जब मै् घर िे मे ध ा पाटकर िे कराया. वे मुस्करायी्. उन्हो्ने मुझे आगे अपने िाथ खड्ा भागा.’ सकया और जु ि ि ू नारे िगाता हुआ चि पड्ा. यह नम्सदा बचाओ आंदोिन ‘सजि सदन मै् गांव िे भागकर नक्ि​िी बना’ कािू एक तंद्ा मे् बोि का माच् स था जो उच् त ् म न् य ायािय के उि सनण्सय के सवर्द् था. सजिके रहा था, ‘मेरे घर मे् भूख तीन सदन िे कुंडिी तहत बां ध की पूरी ऊंचाई की अनुमसत समि गयी मारकर बैठी थी.’ यह मसहला नारे लगाते लगाते थी. जबसक आसदवासियो् का पुनव्ासि आधा अधूरा द्​्ारपाि हंिने िगा, सफर देर तक हंिता रहा. बूढ़ी हो गयी थी और नम़ादा बांध भी नही्था. मै्ने िुबह अखबार मे्मेधा पाटकर का जब वह हंिते-हंिते थक गया तो बोिा ‘स्वग्स मे् भी पूरा हो गया था. हजारो़ सचत्​्देखा था सजिमे्उिके बािो्मे्िफेदी आ गयी भूख नही्है. मै्भूख को नही्जानता, िेसकन इतना थी. यह मसहिा नारे िगाते िगाते बूढ्ी हो गयी थी आसदवासी उजि़गये थे. यही जान गया हूं सक तुम दोनो् का अि​िी दुश्मन भूख और नम्सदा बांध भी पूरा हो गया था. हजारो् थी. उि​िे समिकर िड्ने के बजाय तुम िोग सभ़यता का सवकास था. आसदवािी उजड्गये थे. यही िभ्यता का सवकाि आपि मे्िड्मरे. पृथ्वी का व्याकरण गड्बड्है. था. यही िोचते हु ए मै ् अपनी िफे द दाढ्ी सहिाता हुआ गांधी प्​्सतमा तक मुझे महराज इंद्को रपट देनी होगी.’ पहु च ं ा था. द्​्ारपाि िहिा अंत्सधान हो गया. तुम ठीक मुस्करायी हो, मंजू. अि​ि बात कुछ और था. इन सदनो्मुझे दोनो्भव्य द्​्ारो्के बीच भोिे और कािू अकेिे रह गये. िगने िगा था सक मेरी किम की स्याही चूक गयी है. िमझ मे्नही्आता था सक बचे सदनो्का मै्क्या करं्. स्याही चुकने की गहराई मे्एक बात और थी. मुझे शंका होने िगी थी सक मेरा सिखा सकतना और कैिे पढ्ा गया. मै् सजि माबा िमाज मे् था, उि​िे िचमुच मेरा क्या सरश्ता था? इिीसिए आज िुबह जब मै्सबस्​्र िे उठा तो मुझे िगा सक मै्वह कहानी भूि सपछिे माह जब मै्ने खबर पढ्ी सक अपने गांव मोठ मे्दो सकिानो्ने िूखे गया हूं जो मुझे कि शाम िूझी थी. मै् अपने सदमाग के हर कोने मे् घूमा.

भूली हुई कहानी


सावहत्य/कहािी की वजह िे आत्महत्या की, तो मेरा मन हुआ सक वहां जाऊं और मोठ तहिीि के िामने बुदं ि े खंड राज्य के सिए आमरण अनशन पर बैठ जाऊं. स्वतंत् राज्य होता तो शायद िारी नोच खिोट के बावजूद मोठ के दो मे् िे एक सकिान बच जाता. आज िुबह अखबार मे्मेधा के िफेद बाि देखकर मैन् े िोचा सक मै् मोठ नही् गया, िेसकन मुझे गांधी प्​्सतमा जर्र जाना चासहए. हां, तुमने रोका जर्र था. मै् जानता हूं सक तुम चाहती हो सक हमारा िाथ बना रहे. मै्जानता हूं सक एक सदन यह िाथ टूटेगा. उि टूटन की झांकी की पूरी रीि कभी-कभी मेरी आंखो् के िामने चिने िगती है. यह टूटन गांधी प्​्सतमा की ओर जाते हो, तो क्या हज्सहै. अब मुझे मृत्यु आिान िगती है, मंजू. क्या यह मेरा डाइंग डेक्िेरेशन है?

बाग्

मै्रोज उि बाग मे्जाता था. वह बाग एक सकिोमीटर िंबा और एक सकिोमीटर चौड्ा था.उिका क्त्े फ ् ि एक सकिोमीटर था जैिे शूनय् को शूनय् िे जोड्ने या घटाने या गुणा करनेया भाग देने िे शून्य ही हासि​ि होता है. उि बाग मे्िबकुछ था.एक मीटर ऊंचाई िे िेकर आकाश छूते हुए पेड्थे.एक िरोवर िे िेकर दूिरे िरोवर तक नहरो् मे् पानी बहता था सजनके ऊपर पुि बने थे.करीने िे तराशी हुई टेकसरयां बीच मे्फैिी थी्.सजनके बीच मे्रास्​्ेथे और ऊपर घाि थी. घाि पर एकाध पुराने बबूि के पेड्थे. बाग के िमूचे इिाके मे्िमति हरी-हरी घाि फैिी थी. बबूि के पेड्ो् की िघन पब्कतयां नजर बांध देती थी् जबसक यूसकसिप्टि की शाखाएं नजर को पुचकारती् और उिे मुक्त आकाश मे्छोड्देती. बाग मे्बंधन की आजादी और आजादी के बंधन थे. बाग नदी की तरह था जो हर क्​्ण बदिती थी. मै् रोज उिीबाग मे् घुिता था जो अंदर बदि जाता था. हर कदम पर बाग का नजारा दूिरा था. यह मुझे आसहस्​्ा-आसहस्​्ा पता चिा. जब मुझे िगता सक मै्िब कुछ देख चुका,तभी मुझे कोई नया कोण समिता और कायनात बदि जाती. अि​िुबह पूरब की गहराई मे् जब िूय्स का फीका गोिा उगता, तब बाग मे् िुरमयी उजािा फूि, पत्​्ो्और घाि पर फैि जाता. मै्रास्​्ेपर गहरी िांिे्िेती उछिती छासतयां और सिहरते सनतम्ब सनहारता. तभी धूप घाि पर कच्​्ेिोने

की तरह सबखर जाती. कही्-कही् पेड्ो् के पत्​्े धूप को ऊपर ही ऊपर रोके िेते. िूय्स भी वही् पस्​्तयो्पर सबखर जाता जैिे कोई प्​्काश पात्​्िुढ्क गया हो. हरकदम पर िूयस्की सकरणो् के कोण अिग थे. हर स्थि स्वयंम था.कायनात हर क्​्ण बदि रही थी. मै् एक टेकरी पर खड्ा था. ऊपर बबूि की पस्​्तयां थी्. एकाएक मै्ने ऊपर देखा और िोचा सक मै् इन पस्​्तयां को कभी नही्सगन पाऊंगा.

कोई और मै् अब उि उम्​् मे् पहुंच गया हूं सजिमे् कि नही् होता. मतिब आनेवािा कि. बीते हुए किो् की तो ऐिी कतार है जो कभी खत्म नही् होती. जैिे मै्अपने सपछिे जन्मो्मे्चिा जाऊं सचंपैजी तक. यो्देखा जाये तो सशशुओ्मे्कोई खाि फक्फनही्होता चाहे वह आदम जात हो या बंदर. अिबत्​्ा सशशु कृष्ण कन्हैया की बात और है जो दूध पीने के बहाने पूतना के स्​्न िे उिकी जान खी्च िेते है्. मै्अब अक्िर अपने को बचपन या िड्कपन मे्गोता िगाते हुए पकड् िेता हूं. उि गोते मे्मै्दूर तक पानी के भतर चिा जाता हूं जैिे सकिी और का िाथ दे रहा होऊं, पानी के अंदर उतरते हुए कभी मै् िहानुभूसत िे मर जाता हूं, कभी हंि पड्ता हूं, जब अपने को शरतचंद्या हाडी के उन्यािो् को पढ्ते और रोते पाता हूं. तब मै्ने िोचा नही्था सक इि रोने पर एक सदन मै्हंिूगा. अंदर दहकती अंधेरी यौनाकांक्ा की रोशनी मे् जवान होते हुए मै् िड्सकयो्के चेहरो्मे्खोने िगा था. मुझे हर िड्क पर जाती िुंदर िड्की के अपनी प्​्ेसमका होने का शक याद है. यह भी याद है सक यसद उि िड्की के िाथ कोई िड्का होता, तो वह मेरा जानी दुश्मन होता था. अब भी जब कभी कोई सदिकश चेहरा देखता हूं तो पिभर अपने को भूि जाता हूं, गोया िमुद्या सहमािय िे िामना हो गया हो. जो सकशोर देवदाि पढ्कर रोया,वह आगे जाकर अपने अिफि प्​्ेम पर नही्रोया. शायद प्​्ेम पर जी भर के रोना एक बार ही होता है. जो एक बार देवदाि बन चुका, वह दूिरी बार कोई और हो जाता है. इिी तरह आसहस्​्ा-आसहस्​्ा अपनी पुरानी तस्वीरे् देखते हुए मै् अपने कुि के पाि जाकर उि​िे दूर होता गया. अब मुझे िगता है सक जो मेरी सजंदगी जी रहा था, वह कोई और था.n

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46 शुक्वार | 1 िे 15 नवंबर 2015



सावहत्य कहािी संजीि

िम खा कर कहती हूं सक वह एक कयामत की रात थी. ट्​्ेन के उि िफर को आज भी याद करती हूं तो सिहर-सिहर उठती हूं, जैिे िांप की दोधारी जीभ िहिा जाये. जान मे् जान तब आयी जब कंडक्टर ने आकर हमे् बताया, ‘रब का शुकर मनाओ सक खतरा टि गया’. ‘पर क्या वाकई कोई टेरसॅ रस्ट एटेमप्ट् था या सिफ्फ?’ बहुत कुछ पूछना चाहते थे हम, मगर कंडक्टर ने हमे बोिने का मौका ही नही्सदया, ‘ये टाइम बहोत खराब है जी, कब हकीकत अफवाह बन जाये, कब अफवाह हकीकत. खतरा तो टि गया िगता है. पर खतरा तो कभी भी आ िकता है जी, एसतहयातन एिट्सही रहे् तो अच्छा’. कम्पाट्समे्ट की बुझी बस्​्तयां जि

उठी्. िगा, हम एक िंबी कािी िुरंग िे बाहर सनकिे है्. हमारी र्की िांिे् खुि गयी्. हमने अपने देवी-देवताओ्को सफर िे याद सकया. बच गयी जान. पता नही्, क्या क्या हो िकता था हम पर उि रात. कुछ भी हो िकता था. कुछ भी. अगर टेरेसरस्ट अटैक की बात िच हुई होती. तसनक इत्मीनान की िांि िेते हुए अपने अपने अनुभव शेयर करने िगे हम. एक िे जुड्ी दूिरी कड्ी, दूिरी िे जुड्ी तीिरी कड्ी, कड्ी-कड्ी जुड्ती गयी. हॉरर सफल्म, नॉवेल्ि, रीयि घटनाएं क्या-क्या नही्. बातो् ही बातो् मे् आतंक के सकिी अनजान सिरे की तरह हाथ िग गयी भुवनेशर् की यादगार कहानी ‘भेस्डए’. कल्पना मे् कहानी का सदन रात मे् ढिा, धुआंती हुई चांदनी रात. उि धुआंती चांदनी मे् एक धल्बा बढ्ता हुआ चिा आ रहा है एक गड्​्ा! इि गड्​्े पर ग्वासियर िे तीन नसटसनयो् को पंजाब मे् बेचने के सिए िेकर चिा आ रहा है इसफ्तखार और उिका बाप सक तभी कुछ और धल्बे सदखते

वह कौर थी

48 शुक्वार | 1 िे 15 नवंबर 2015

है्. भेस्डए! पहिे अपनी बंदूक िे भेस्डयो् को मारता है इब्फतखार. अपने मृत िासथयो्को चट कर देखते ही देखते आगे बढ् आते है् दूिरे भेस्डए. भेस्डयो् की तादाद बढ्ती जाती है. कारतूि चुक गए है.् कारतूिो्की पोटिी घर पर ही भूि आया है इब्फतखार. उिकी इि भूि पर खरी-खोटी िुनाते हुए बाप गड्​्ेको हल्का करने के सिए एक-एक िामान को फे्कने को कहता है, तासक गड्​्ा तेजी िे भाग िके. िामान! इिी क्​्म मे् बारी आती है नसटसनयो् की! दो को तो फे्क देता है इब्फतखार िेसकन तीिरी को फे्कने िे तसनक सहचसकचाता है. वह उि​िे प्यार करने िगा था. बाप डांटता है और िोचने-सवचारने का िमय है नही्. नसटनी की तरफ आगे बढ्ता है. नसटनी उिे डबडबायी आंखो् िे देखती है. गड्ािे के नीचे कोई धड्कती हुई बोटी-िी, शायद धूसमि ने कहा था. ‘तुम खुद कूद जाओगी या मै् तुम्हे् फे्क दू?ं ’ कोई सशकवा नही्सशकायत नही्. जवाब मे् वह उिे अपनी चांदी की नथुनी उतार कर उिके हाथो्पर धरकर आंखे्मूंद कर भेस्डयो्के बीच कूद जाती है.’ दरवाजे के बगि वािी िीट पर बैठी बुक्े वािी औरत ने सफर िे नकाब उिट सिया और फटी-फटी आंखो्िे िगी ताकने हमे. ‘अब एक बैि को भी भेस्डयो् के हवािे करना पड्ा और आसखरकार बाप भी ओह इट वाज हॉरर! सिम्पिी हॉरर!’ अनयाि ही भेस्डयो्का हॉरर हमारी जेहन मे् नही् उभरा था, उिकी वजह भेस्डयो् की आंखो् िी अभी भी जि रही थी. अगर वह टेरेसरस्ट अटैक वाकई हुआ होता. और क्या पता सफर िे ऐिी कोई बिा आ जाये. हमारा ए.िी. टू टायर का सटकट कनफम्स नही् हुआ था और हम, मै्और क्म् ा नॉन ए.िी. के थ्​्ीटायर के कूपे मे्िफर कर रहे थे. ट्​्ेन जम्मू िे चिने के बाद िे ही रे्गने िगी थी. टी.टी. ने पूछने पर बताया सक कोई टेरेसरस्ट अटैक या िबोटेज होने की थ्​्ेटेसनंग समिी है. कनफम्स नही् है, सफर भी एहसतयातन आप िोग अंदर िे कूपा बंद कर िे,् जगी और चौकन्नी रहे्. बुक्े वािी औरत ने कूपा बंद करने के िाथ-िाथ नकाब भी सगरा सिया. हािांसक कूपे मे्हम औरते्ही थी्. कंडक्टर बाहर सकिी को बता रहा था, वैिे आगे-आगे इंस्पेक्शन पायिॅट इंजन जा रहा है. ट्​्ेन की स्पीड भी धीमी रखी जा रही है, पैरासमसिटरी फोि्​्ेज की गश्त हो रही है. वह शायद पैिे्जर को तिल्िी देना चाहता था, मगर हमारा खौफ कम होने के बजाय बढ्ता ही जा रहा था. िगता था, कूपे को छेद कर िंगीने् सनकि आये्गी. सकिी भी क्​्ण फायसरंग हो िकती थी या ल्िास्ट! खौफ एक खंजर की


तरह खुभा आ रहा था, पीठ मे्. िीने मे्सखड्की िे, डोर िे नीचे रे्गता हुआ. ऊपर िटकता हुआ. एक दूजे की उंगसियां तक छू जाती्तो हम सचहुक ं उठते. जैिा सक टी.टी. ने बताया, ट्न्े की रफ्तार धीमी थी और यह धीमी चाि हममे्डर के िाथ-िाथ खीझ भी पैदा कर रही थी. बोगी की करंट की ट्​्ेन की रफ्तार के िाथ कोई दुरसभिंसध थी. रफ्तार तेज होती तो िाइट और पंखो्मे्जान आ जाती और धीमी होती तो दोनो् धीमे पड् जाते. जैिे ही ट्े्न र्कती या कोई खटका होता, हमारे रोये् खड्े हो जाते-आ गये टेरेसरस्ट! बहरहाि वह िब बीत चुका था और अब हम भेस्डए की चच्ास मे्मशगूि थे. अचानक िाइट सफर धीमी हुई. नीम अंधेरे मे् ऊपर िे एक आवाज हुई, ‘यह कब का वाकया होगा?’ हमने चौक कर देखा, ‘ऊपर वािी बथ्सपर कोई औरत उठ बैठी है. अपनी बेखयािी मे्हमे् उिका अब तक ख्याि भी न रहा कौन है, कब िे बैठी है. ‘मेरा खयाि है, यही कोई िन्ा उन्नीि िौ तीि-चािीि का. क्यो्?’ ‘यूं ही, मै्ने िमझा, इधर का होगा.’ ‘तुम तो ऐिे बोि रही हो, जैिे आए सदन घटती रहती है ऐिी वारदाते्.’ ‘िच्​्ी िमझा आपणे.’ वह कभी न को ण बोिती, कभी कुछ का कुछ. पंजाबी सहंदी के िाथ अनाश्​्यक छेड्छाड् करते रहने िे उिकी भौगोसिकता सहचकोिे खा रही थी. पहनावा ि​िवार-कुत्ी. आवाज िे प्​्ौढ्ता का आभाि हो रहा था. वैिे भी इिे पहचानने या भेद कर पाने की अपनी कासबसियत पर मुझे कभी यकीन न रहा. िाइट्ि के धीमी होते ही उिके पूरे वजूद पर सतसिस्मी अंधरे ा गहराने िगता. सफर ट्न्े के चि पड्ते ही ‘चे् के्’ की आवाज िे मन सफर िे आशंकाओ्िे भरने िगता. ‘आपको कहां तक जाणा है?’ उिने पूछा. ‘सदल्िी.’ ‘दोणो्को?’ मै्ने क्​्मा को देखा, क्​्मा ने मुझे. हमे्उि औरत का इि तरह बीच मे् कूदना अच्छा नही् िगा. मान न मान मै्तेरी मेहमान. कमबख्त ने कहानी का िारा मजा ही सकरसकरा कर सदया था. ऐिे माहौि मे् सकिी िे ज्यादा मेिजोि बढ्ाना अच्छा नही् होता. पता नही्, कौन कौन हो, कौन-कौन. उि​िे पल्िा झाड्ने की गरज िे अपने बारे मे्बात न कर हम सफर कहानी पर िौट आये, ‘तुमने भेस्डए देखे है्?’ ‘आदमी देखे है्. तुिी क्या जाणो आदमी की जात को! उिके मुकाबिे क्या तो भेस्डए, क्या तो दूिरे? सकतने तो खूंखार! सकतने तो

वसरष्​् कथाकार और उपन्यासकार. प्​्कासित उपन्यास: सक्फस, सावधाि, िीरे आग है, पांव तले की दूब, जंगल जहां िुर् होता है, सूत्धार, रह गयी् सदिाएं उस पार. कहािी संग्ह: आप यहां है्, भूसमका, प्​्ेत मुक्तत, खोज, ब्लैक होल. बच्​्ो् के सलए उपन्यास और िाटक लेखि. कई पुरस्कारो् से सम्मासित. जहरीिे? हम कश्मीर िे आये है्, हमिे बेहतर भिा कौन जानता है?’ ‘कश्मीर िे? िेसकन तुम्हारी जबान तो?’ ‘अपणी अि​ि बोिी तो पौठवारी माने पहाड्ी मीरपुरी हो िकती थी भैण जी. मां के मुहं िे आज भी कभी-कभी सनकि पड्ती है.’ वह अब िंभि िंभि कर बोि रही थी. हमारे बीच की दीवार ढहने िगी थी. ‘कश्मीर के तो हम भी हुए.’ ‘नवािी मे्आई हो्गी?’ ‘नही्नल्बे मे्सकधर िे आये थे तुम िोग?’ ‘कहां का बताये् सकधर िे आये, सकधर िमाये. हमने तो िुना है, नवािी मे्जो कश्मीरी पंडत आये थे उनमे्िे हर फेसमिी को दि-दि हजार समिे. इि िािच मे् कइयो् ने अपनी फेसमिी का बटवारा कर सिया. हर सफरके को दि-दि हजार. मौज करो जी. पैिे हो तो धरमकरम की बात करो, पैिे हो् तो जात पांत की. पैिो् के सिए कभी उधर चिे जाओ, पैिो् के सिए कभी इधर.’ इि किमुंही को मूं िगाना अच्छा नही्हुआ. अब हम दोनो्खुद पर झल्िा रहे थे. ‘यह जात-पांत कहां िे िे आयी तुम?’ ‘क्यो्खातून जरा अपनी जात मे्बतिाना.’ उिने बुरके वािी उिे प्​्ौढ्ा औरत िे पूछा. वह सफर नकाब उिट कर फटी-फटी आंखो्िे हमे् ताकने िगी. ‘नही्बताना चाहती ये. चिो हम बताते है्, पैदाइशी कुछ और थी. सफर कुछ और हुई. जहांजहां गयी वहां-वहां इिकी जात बदिी. सनचोड्ा, मन भरा और छोड् सदया. अस्ि मे् औरत या मद्स की कोई जात ना होवे जी, बि औरत और मद्स. मगर मेरा किेजा िुिग जाये जब इंिान की पूंछ उठा कर उि पर जात का ठप्पा मार सदया जावे. अपनी शब्खियतो्का रंग मे्ढंग मे,् बोिी मे,् पहरावे मे,् पहचान मे्छुपाते सफरते िोगां. सजंदा रहने के सिए क्या-क्या फरेब नही्करने पड्ते.’

‘कैिा फरेब?’ ‘अब यही िो, जब भी बात होगी, कश्मीरी पंडतो्की होगी. क्या इतने बड्ेकश्मीर मे्पंडत ही पंडत थे. कहां गये दूिरे िोग?’ मै् क्​्मा िे धीरे िे बुदबुदायी, ‘कही् यह नामुराद बक्​्वाि, गूजर, पहाड्ी, सकश्तवार, बद्​्वार जैिी सकिी सबरादरी की तो नही् है?’ क्​्मा ने कंधे उचकाये, ‘पता नही्.’ हमारी बातचीत को ताड्सिया उिने, ‘बुरा न मानना भैण, पंडतो् का बुरा िोचूं तो ऊपर वािा मुझे कभी माफ न करे. मगर एक पूरी आबादी जिावतन होकर र्क- र्क कर यहांवहां, वहां िे यहां, बाड्रस ो्िे छुप-छुपाकर आती रही या खदेड्ी जाती रही तो इि बात की खोज तो होनी ही चासहए न सक कोण-कोण थे. गैर पंडत जो न आ पाये, उनका क्या हुआ? जो बच-बचा कर आ गये, उनका और उनके आदऔिाद का क्या बना? घाटी का क्या हाि है, जम्मू का क्या, बाड्सर िे िटे इिाको् का क्या, बाकी इिाको् का क्या? हमे् तो िगता है, या तो वे मुि​िमान बन गये या पंडत का िबादा ओढ्े रहे. यही दहशतगद्स है् उि पार और इि पार के.’ उिकी वाचािता और तक्​्ो् िे हम भन्ना गये. वह मुि​िमान और सहंद,ू इि पार और उि पार दोनो् को दहशतगद्स बता रही थी. कश्मीर के नाम पर कौन िा धूि खाता पन्ना वह उठा कर बांच रही थी, क्या पता. कश्मीरी पंसडत एक आम शल्द है सजिके तहत कश्मीर िे सवस्थासपत हर सहंदू को कहा जाता है. क्​्मा ने खुिािा सकया. पर िगा, वह अपनी ही रौ मे्थी. ‘ये तुम कह रही हो?’ ‘तुम नही्?’ ‘ना. मै्पूछूं मेहतरो्-जमादारो्को भी. पंडत िोग पंडत की पंगत मे् रखे्गे? ये पंडत िोग पंडतो्को ही पंडत ना माणे्, तो िारे गैर पंडतो् को पंडत क्यो्माने?’ हम दोनो्चुप हो गये. वह बोिती गयी, ‘तो िुणो जी, आपणे उन्हे् शुक्वार | 1 िे 15 नवंबर 2015 49


सावहत्य कोई इज्​्त ना दी. िेसकन इि अफरातफरी मे् िबिे ज्यादा खुश वही थे. उन्हे्सहंदुओ्ने छोड् सदया था और मुि​िमानो्ने अपनाया नही्. उन्हे् सहंदुओ्के छोड्ेगये बड्े-बड्ेमकान समि गये. उन्हे्न सहंदुस्ान मे्न जा पाने का कोई िािच था, न पासकस्​्ान या पोक मे्रह जाने का कोई मिाि.’ हम उिे परास्​्करने के सनसमत्​्कुछ और तक्फ चुन रहे थे, मगर उिने हमे् मौका ही न सदया. कारण उिके धूि खाए फटे पन्ने िे अब कोई औरत सनकिी चिी आ रही थी, घोड्ेपर चढ्ी औरत भागवंती. भागवंती? नही्-नही् यह उिका अधूरा पसरचय होगा गस्भसणी भागवंती. ‘अपणा मुिक ु , अपणा. िब कुछ छोड्कर कोण जाणा चाहे भैण. िेसकन जाणा पड्ता है. अपणे मुिुक िे भाग आने के इतने िािो् बाद भी भागवंती कहां भूि पायी अपना गांव, गांव के िोग -बाग, पेड्-परबत, नदी-नािे. आिपाि के िोग भाग रहे थे दहशत मे्रहना है तो धरम बदिो नही्तो एक ही पारटीशन नही्हुआ था. फेसमिी तक मे् पारटीशन हुआ था, एक-एक फेसमिी मे्. कुछ िोग बदि गये. कुछ नही्. अपने ही िोगो् कैिे बदि जावे है्, तुिी की जानी. भागवंती ऐिे ही िोगांे मे्थी, सजन्हे्जान भी प्यारी थी और जात भी. उन्हे्िगता, सजि रब की उन्हो्ने इतनी पूजा की है, वो रब कोई न कोई कसरश्मा करके सदखायेगा अखीर-अखीर तक. िो जाने वािे एक-एक कर गांव छोड्ते रहे, मगर वो फेसमिी, भागवंती की फेसमिी गांव मे् बनी रही. िबिे अखीर मे्गांव छोड्ने को तैयार हुए गांव के िोग. ‘उिका दि िाि का बेटा सजतू छत पर चढ्कर सनगरानी करता. वह मजाक-मजाक मे् डराया करता, भागो, वे आ गये. चूंसक कोई न आता िो उिकी बात को वे हंिी मे् उड्ा सदया करते. उन्हो्ने िूखे मेवे और खाने-पीने के िामान बांध सिये थे िाथ ही सवक्टोसरया के चांदी के र्पयो्िे भरी छोटी-छोटी थैसियां उन्ही् मे् िे एक का हेड-टेि उछािा करता, वो आये्गे नही्आये्गे. रोज ही रात का खाना सदन रहते ही बणा िेते थे. जीतू कुफर बोिता, उन्हे् अच्छी तरह सखिा-सपिाकर उनिे दुआ ि​िाम करके जाये्गे. िेसकन एक सदन उिका बोिना मजाक न था. वह िचमुच हड्बड्ी मे्था, जल्दी करो, वे पहुंचने ही वािे है्. जैिा सक पहिे िे तय था, िवारी के घोड्ो्-घोस्डयो् को छोड्कर िारे मवेसशयो्के रस्िे खोि सदये गये. दरवाजे खुिे छोड्सदये गये.’ ‘औरो् की तरह भागवंती ने भी पीछे मुड्कर अखीरी बार देखा अपने आसशयाने को, अपनी जनम भूमी को, अपने पुरखो् की सनशासनयो् को. आिमानो् मे् अभी भी उजािा था. घर-द्​्ार, मवेशी, पेड्-पौधे ही नही्, पत्थर 50 शुक्वार | 1 िे 15 नवंबर 2015

तक भी सकतना अपणा िगने िगे है सबछड्ने के बखत. घोड्ी पर चढ्ने ही वािी थी सक याद आया वो अपणा पुश्तैणी पीति का हुक्ा दादाजी की सनशानी. उिे राख िे चमका कर ऐन बैठके के बीचो्बीच रख देते तो िगता, दादाजी हमे ताक रहे है्. पूरे पसरवार पर सनगहबानी रहती उनकी. उिे कैिे छोड्दे?् बि उिी को िाने को िौटना पड्ा. गयी, उठाया और िगभग दौड्ी हुई आयी. देर नी िगाई जरा भी मगर देर िगेगी.’ वह तसनक र्की. सतसिस्म को गहराने सदया. सफर बोिी, ‘वे आ चुके थे एक, दो, तीन, चार या सकतने पता नही्. आते ही जा रहे थे. आिमानो्िे हल्का अंधरे ा झरने िगा था. उनके सिए पहिे ही टुकड्ेफे्क रखे थे. घर खुिा था, कमरा-कमरा खुिा था, खाणे-पीणे की और ढेर िारी दीगर चीजे् थी्, पुश्तो् िे जोड्ी हुई एकएक चीज. बना-बनाया रात का खाणा भी, जैिे वे कोई सजन्न हो् सजन्हे् खुश रखने के सिए ये तैयासरयां हमने कर रखी थी्.’ ‘बि एक सपराबिम थी बूढ्ी िाि. इि बूढ्ी. को कैिे िंभािा जाये. िेसकन वो

उसका दस साल का बेटा सजतू छत पर चढ़कर सनगरानी करता. वह मजाकमजाक मे़डराया करता, भागो, वे आ गये. सपराबिम एन बख्त पर बूढ्ी ने खुद ही हि कर दी. इि िफर पर कूच करने के पहिे ही वह अपने िंबे िफर को कूच कर गयी. डर कर मर गयी. उिे वही्छोड्देना पड्ा.’ ‘अब एक घोड्े पर भागवंती और उिका मरद. दूिरे घोड्ेपर पंद्ह िाि की ननद, दि बरि का सजत्​्ू. इिी बरि ननद की शादी करने की िोच रहे थे. दोनो् बहादुर बच्​्े. ननद के हाथ मे् बंदूके्. इधर पेट िे थी भागवंती, िो उिके मरद को िंभि कर चिना पड्रहा था. ‘वे आते ही टूट पड्े थे. तसनक देर बाद सजत्​्ू को आवाज आयी, ‘जरा तेज चिो बापू, वे सफर आ रहे है.’ ननद ने अपने घोड्ेकी चाि धीमी कर दी, तासक िाथ बना रहे. ‘फे्क, जो भी फे्कने िायक हो’ भागवंती के मद्स ने कहा. उन्हो्ने सिक्​्ो् की थैसियां फे्की. भागवंती ने पूछा, ‘अब? गहनो्को सकि सदन के सिए रख छोड्ा है?’ भागवंती ने एक-एक कर अपने गहने फे्कना शुर्सकया. वे िूटने भर को र्कते सफर आगे बढ्जाते. ‘अब फेक ् ने को कुछ नही्बचा?’ भागवंती ने कहा.

‘वो पीति का हुक्ा सकि सदन काम आयेगा?’ पसत ने कहा. ‘उिे िबिे अखीर मे् फे्के्गे. पुश्तैनी सनशानी है.’ ‘अब कौन-िा अखीर आयेगा? कोई भी चीज तो नही्बची सजिको फे्क कर इन दसरंदो् को उिझाये रखा जा िके?’ ‘एक चीज है.’ इतना कह कर ननद ने सजत्​्ू के गाि चूमे. अपनी बंदूक उिे थमायी और घोड्ा रोक कर उतर गयी. एक कमसिन औरत पाकर वे र्क.े कुत्ो्की तरह हक जताने के सिए आपि मे् सभड् गये. फायसरंग भी हुई. फायसरंग की आवाजे्मे्कुछ एक आवाजे्सजत्​्ूके बंदूक की भी थी्. उन्हे्िुरस्​्कत भाग सनकिने के सिए वह भी सपि पड्ा था. मारा गया. ‘अब अकेिा घोड्ा भागा जा रहा था दो िवारो् को िेकर. फायसरंग सफर शुर् हो गयी थी.’ ‘िे धांय.’ ‘िे धांय.’ भागवती का मद्स आधा मुंह िे बोि रहा था, आधा बंदूक िे. ‘हममे्िे एक को जाणा पड्गे ा.’ वह बोिा, ‘तेरे पाि खानदाण की आसखरी सनशानी है. तू सनकि जा, मै् इन्हे्रोके रखता हूं. तुझे किम है जो मेरी बात न मानी. ’ किेजे मे् हूक उठ रही थी भागवंती के, मगर र्िाई को अंदर ही अंदर घो्टना पड्रहा था. डर की गुंजिक थी और नी्द की खुमारी. वह औरत अब सकिी कैम्प-वैम्प की बात कर रही थी और मै् उि अदेखे कैम्प को सवजुअिाइज कर रही थी. मै्आधी नी्द मे्थी, आधी जागरण मे्. मेरी तरह उिकी कहानी भी आधी पानी मे्थी, आधी पानी के बाहर. ‘रेफ्यूजी कैम्प. जैिे खानबदोश बनजारे सकिी खािी पड्ी जगह मे्बस्​्सयां बिा िेते है्, यहां रिोई, वहां पानी का घड्ा, वहां सबस्र् वहां कपड्े, वहां झाडू, वहां जूठन वहां कुत्ा, वहां खेिते-झगड्ते बच्​्े, इधर नहाती जनासनयां, उधर ताकते झांकते िोग, हुफ-हुफ करते, पूंछ िे मब्कखयां हड्ाते घोड्े-घोस्डयां या टट्​्. िरकारी इमदाद और खैरात के भरोिे कब तक कटती सजंदगी. मद्स हर जगह काम ढूंढ्ने जाते. कभी समिता, कभी नही्, समि समि कर छूट जाता. न बच्​्ो् की कायदे की परवसरश, न पढ्ाई-सिखाई, न बड्ो् को रोजी-रोजगार. बनजारो् िी सजंदगी. बीमार पड्ते, सबना दवादार्के पड्ेरहते जमीन पर मब्कखयां सभनकती रहती.’ ‘सक तभी एक सदन कोई सदिावर सिंह आये और अपने गांव खावो रहवो की बात करने िगे. हमे् िगा, रेफूजी कै्प के नक्फ िे अिग तो जो भी होगा, िुरग ही होगा.


‘अब सदिावर सिंह का गांव िंबी-चौड्ी खेती-बाड्ी गाय-भै्ि, बैि. क्या नही्, तो समनख. एक भी नही्. क्यो्नही्तो डर कर भाग गये. क्यो्भाग गये तो फायसरंग होती रहती थी. बॉड्सर का इिाका है, जब चाहे उधर के िोग और फौजी आकर यहां के बकरे और खाणेपीणे का िामान िूट िे जाते, जब चाहा फायसरंग करणे िगते.’ ‘घर छूट गया. गांव छूट गया. वतन छूट गया. खिम छूट गया. बेटा छूट गया. िाि और ननद छूट गयी. िबको अपनी आंखो्के िामने कटता, िुटता हुआ देखती रही. िब कुछ तो उनके हवािे कर सदया. एक-एक िब कुछ. उिका बश चिता तो वह अपने पेट के बच्​्ो् को भी खरो्च कर फे्क देती तासक हल्की होकर भाग िके.’ उिके खरोच शल्द के उच्​्ारण पर हमारी तो सगनसगनी छूट गयी. पूरा दृश्य ही िाकार हो गया हमारे िामने वह बोिती गयी, ‘उन्हे् उनके धरम का वास्​्ा सदया, ईमान का वास्​्ा सदया, इनिासनयत का वास्​्ा सदया. उन्हे् बाप बणाया, भाई बणाया. मगर वे सिफ्फ दहशतगद्सदसरंदे थे, सिफ्फदहशतगद्सदसरंद.े कहां भाग कर जाओगे? िुणा है, अमरीका ने ऐिी गोिी बनायी है जो जर्रत पड्ने पर अपना रस्​्ा बदि कर भी मारती है. गोया के गोिी न हुई, िांड् ही गयी. िांड् भी नही्, वो तुम्हारा भेस्डया.’ ‘हम तो कहानी की बात कर रहे थे, एक कहानी थी भेस्डए.’ क्​्मा ने उि बावरी को िमझाने की कोसशश की. ‘मै् कोई कहाणी-वहाणी ना जानूं. मै् तो हकीकत बयां कर रही थी.’ उि औरत ने बात काट िी. ‘तुम कैिे कह िकती हो सक वो हकीकत थी?’ ‘इिसिए सक भागवंती मेरी मां है. अभी सजंदा है. वह सजिे पेट िे खरो्च कर फे्क देना चाहती थी वो मे.’ झन्न िा कपाि पर बजकर गड्राता चिा गया दूर तक दूर तक. ‘अरे.’ हम दोनो् िंभि कर बैठ गये. कमबख्त िाइट एकदम िे चिी गयी. उिकी आवाज अंधेरे मे् जहां-तहां िे टकराती हुई फड्फड्ा रही थी. ‘मां के पेट मे्ही मैन् े बॉड्रस पार सकया, कैप् मे् पैदा हुई बांड्सर के सदिावर सिंह के फाम्स हाउि पर जवाण हुई. कै्प मे् िौट कर अपने बचे िोगो्मे्ल्याह रचाया. एक बेटा देकर कही् कमाणे चिा गया मेरा हीर नही् िौटा. बेटे बिसवंदर का व्याह सकया. उिे भी बेटा हुआ. िातवी्पाि बिसवंदर भी एक सदन कागज बनवा कर चिा गया इराक. सफर नही् िौटा. उिकी बहू बीमार होकर चि बिी. अब मै् हूं, मां है और मेरा पोता दिजीत जो यहां मेरे पाि िो रहा

है. घर जो छूटा, िो छूट ही गया.’ ‘िवाि है, हम क्या बचाणा चाहते है्और क्या बच पाता है. एक-एक कर प्यारी िगने वािी चीजे् हमे् फे्कनी पड्ती है्, तासक गड्​्ा हल्का हो, हम भेस्डयो् िे जाण बचा कर भाग िके. अब अपणा ही देखो, बची भागवंती, पेट मे्की सनशानी, माने मै्उिकी बेटी िाजो और दादाजी का हुक्ा. गुजरे जमाने की यादे् तासजंदगी ढोया करे है्हम जबसक खुद को ही ना ढोया जावे.., और यादो् को ढोने का जज्बा? भौत ई खतरनाक है ये जज्बा. भौत ई खतरनाक. बचा तो पाते नही्, मुफत मे्कुछ और गंवा आते है् हम. हाय रे मेरा भाई सजत्​्ू और बूआ नीिू. चाहते तो वे पहिे भी भाग िकते थे. तब इन्हे् बचा िेते हम, मगर वो पुश्तैणी हुक्ा. एक सनशानी बचाने के सिए िारी सनशासनयो्को समट जाने सदया हमने. ‘अब ये िड्का है, मेरी मां है और मै्. मै् एक कै्ि चिाती हूं. तीन एक हजार समि जाते जी. डेढ्एक हजार घर के भाड्ेमे्सनकि जावे है्. बाकी बचे डेढ् अब इतने पैिो् मे् मै् मां को

बचाऊं या पोते को. कई बार िोचा, मां ने तो भौत दुसनया देख िी. पोते ने कुछ नही् देखा. माणे िमझ रही हो्न आप? वही पुराणा स्वाि, जीभ चटचटाते दौड्ेआ रहे है्पीछे भेस्डए. बोझ हल्का करणा है. मां को फेकूं या बेटे के बेटे को? एक गुजरा जमाणा है, एक आणे वािा. बीच मे्मै्और हम िब के बीच बेटा. ईराक िे कोई खबर नी आयी, सजंदा है या? िेसकण हम िब उनका जनमसदन मनाते है हर िाि. ‘िोचती कभी-कभी मां को ही फेक दूं. िेसकण सफर िोचती, मां न होती तो तू कहां होती, कैिे बच पाती, करमजिी? तो क्या पोते को? िेसकण वो ई तो अकेिी जाण है वासरि, जो तेरी पहचाण को आगे िे जायेगा. वरना तू क्या और तेरी सजंदगी क्या. ‘थक गयी मै्इिको उिको ढोते ढोते. बुरी तरह थक गयी. तीन-तीन रोसटयां थापती हूं तो एक-एक पड्ती है िेसकण िच्​्ी कहूं, अब फे्का नही्जाता सकिी को. सकिी को भी नही्.’ ‘नही्. मान िो फे्कना सनहायत जर्री हो जाये तो सकिे फेकोगी?’ यह मेरा अंसतम यक्​्

प्​्श्न था. ‘हां िे जाण बचाने का ह्​्ां. ह्​्ां िे जाण बचाने को ह्​्ां.’ जां भी जावे,् िूघं ते-िूघं ते आ जाते है्दसरंद.े आदमी िे कुत्ा बना सदया हमे.् ताज्ब्ु . देश तो चि ही रहा है, दुसनया तो चि ही रही है. खैरात इमदाद भी बट रही है मुिीबत के मारो्को. सिफ्फ हम पोक वािे रेफ्यूसजओ् जैिो् की तकिीफ देखने वािा कोई नही्. हम उिे िािो्िे वैिे ई है्. वही्रेफूजी कैम्प. क्या हमारा कोई देश नही् है? हम आिमान िे टपके है?् कहां चिे जाये?् गया तो मेरा बेटा इराक. िौट पाया? या रब. धरती का कौन िा कोणा है जहां चिे जाये् हम?’ िाजो की आवाज फट कर कातर फसरयाद िी बरि रही थी. जाने कब आंख िग गयी. ट्​्ेन के झटके िे खुिी तो िगा, सकिी स्टेशन पर र्क कर सफर िे रे्ग रही है. क्या पता, सकतनी देर तक र्की रही. वह एक धुंआती हुई चांदनी रात थी. नीचे सकिी खसियायी नदी का सवस्​्ार था. उखड्ाउखड्ा पसरवेश. धुध ं िा-धुध ं िा पसरदृशय् . जहांतहां कुछ एक झाड्, कुछ एक चट्​्ाने्, कुछ एक पेड्और जहां-तहां थोड्ा पानी सजिमे्रोशनी के पसरंदे िा चांद कभी एक गड्​्े मे् नहा कर पंख फड्फड्ाता, कभी दूिरे गड्​्े मे्. गाड्ी अभी भी रेग् ते-रेग् ते र्क रही थी, र्कती- र्कती रेग् रही थी. िहिा नजर ऊपर गयी. ऊपर वािी बथ्सपर न िाजो थी, न उिका पोता. बुक्े वािी औरत भी नही्. वे कही् उतर गये, उन्हे् उतार सिया गया या वह कोई प्​्ेतिीिा थी. इि बीमार रोशनी मे्बुक्े वािी का चेहरा दो एक बार जि कर बुझ गया. िाजो या उिके पोते का चेहरा तक ठीक-ठीक न देख पाये हम, न ही यह पूछ पाये सक वह कौन थी और कहां का वाकया बयान कर रही थी. िन्ा 1947 का, िन 1989 का, िन 1971 का, िन 2013 का या उिके आगे-पीछे कही्और का, और कब का सक वह बॉड्रस का ही था या सहन्द-पाक कश्मीर का कही् और का, बांग्िादेश का, अफगासनस्​्ान, ईरान, इराक, समस्,् िीसरया, सफसिस्​्ीन, इजरायि या कही् और का सक वह भागवंती की बेटी िाजो थी या बब्सरीक की कोई असभशप्त आत्मा. प्​्ेत तो कही् के भी हो िकते है्, कोई भी शक्ि अब्खतयार कर िकते है्, कोई भी जबान बोि िकते है्. उिका िंग तो ट्न्े मे्ही छूट गया. वह दृशय् हमने अपनी आंखो्िे कभी देखा भी नही्, मगर उि रात की याद आते ही ऐन आंखो् के आगे सखि उठता है. जहां अंधेरो् उजािो् को पार करती कोई गस्भण स ी औरत घोड्ी पर भागती चिी आ रही है. एक भागवंती कई भागवंती मे्गुसणत होती चिी जाती है. वैिे ही उिका पीछा करने n वािे दसरंदे. शुक्वार | 1 िे 15 नवंबर 2015 51


कहािी कहािी संजय कुंदि

हान शायर इकबाि आज होते तो अपनी नज्म की ऐिी दुग्ससत पर सिर पीट िेते. भारत के एक सपछड्े, अथ्सशास्​्सयो्की भाषा मे् कहे् तो बीमार् राज्य की राजधानी के िबिे गये-गुजरे मोहल्िे का एकमात्​्बौस्​्दक व्यब्कत बौका अपने बाथर्म मे्जोर-जोर िे गा रहा था: िारे जहां िे गंदा है मोहल्िा हमारा हम िब िुअर उिके वो िुअरबाड्ा हमारा कूड्ा है िबिे ऊंचा पव्सत जैिा फैिा िीवर िाइन फटकर देती हमे्फुहारा गोदी मे्खेिती है् बदबूदार नासियां कीड्े-कीटाणु िब आकर पाते यहां िहारा मोहल्िा नही्सिखाता आपि मे्बैर रखना गंदे है हम, गंदे है हम िुअर है् िुअरबाड्ा हमारा िारे जहां िे गंदा. इिमे् सजि मोहल्िे की चच्ास हो रही थी, उिका नाम था- कािापानी. हािांसक उिका मूि नाम एक िमाजवादी नेता के नाम पर था, सजिका सजक्​् िरकारी दस्​्ावेजो् के अिावा शायद ही कही् होता था. वैिे कािापानी नाम पड्ने की कोई और वजह नही्, बि यही थी सक मोहल्िे के बीचो्बीच िात-आठ महीने कािा पानी बहता रहता था. यह पानी शहर के कई नािो्िे होकर यहां पहुंचता था. इिमे्बरिात का पानी भी समि जाता था. और जब तक बरिात रहती यह बेरोकटोक घरो् मे् भी घुि जाता था. तब पूरी कॉिोनी को देखकर िगता था सक कािािागर पर छोटे-छोटे जहाज खड्े हो्. जब पानी िूख जाता, तब मकान की दोनो् कतारो् के बीच कीचड् ही कीचड् सदखता था. मोहल्िे के एक सहस्िे मे् िंबी घाि उग आती थी, और तब वह क्​्ेत्पशु प्​्जनन के्द्के र्प मे्सवकसित हो जाता था. वहां कुत्ो्और िूअरो् की कई पीस्ढयां पैदा हुई्. मच्छरो्, मब्कखयो्का तो कोई सहिाब ही नही्. पानी मे् रहने वािे सवषहीन िांपो्का भी यह डेरा था. एक तरफमकानो्की कतार मे्कुछ सहस्िा खािी था, जहां कूड्ा जमा होते-होते एक टीिे जैिा बन गया था. वहां भी प्​्ाय: झास्डया उगी रहती थी्. कभी-कभार उि जगह की िफाई कर 52 शुक्वार | 1 िे 15 नवंबर 2015

सारे जहां से

या उिे िमति कर मैदान के र्प मे् उिका िाव्सजसनक इस्​्ेमाि भी होता था. कािा पानी मे् हैजा, मिेसरया और डे्गू जैिी बीमासरयां अक्िर फैिी रहती थी्. इि कारण मौते् होती रहती थी्. िमाजवाद के सिद्​्ांत पर चिने वािी एक राज्य िरकार ने अपने चतुथ्सवग्​्ीय कम्सचासरयो् को िस्​्ी दर पर मकान उपिल्ध कराने की योजना के तहत यह छोटी िी कॉिोनी बनवायी थी, सजिमे् िमाज के कमजोर वग्स को सवशेष तरजीह दी गयी थी. फ्िैट के सिए एक मामूिी मासिक सकस्​् तय की गयी थी. पूरा मुल्य चुकता हो जाने पर मकान उि व्यब्कत को िौ्प सदया जाना था, िेसकन बहुत िे िोगो् ने तो मासिक सकस्​् ही नही् जमा की. सफर भी वे उिमे्डटे हुए थे. कई िोग तो दुसनया छोड्चुके थे, अब उनके बेटे उिमे्रह रहे थे. इिे सजि पाट्​्ी की िरकार ने बनाया था, वह ित्​्ा िे बाहर हो गयी थी. बाद की िरकारो् की इिमे्कोई र्सच न थी. शहर के िोग भी इिे भुिा चुके थे. नगर सनगम को भी इिकी परवाह नही् थी. यहां िप्िाई का पानी आना सबल्कुि बंद हो चुका था. िोग पाि के एक पाक्फमे्िगे नि िे नहाने या पीने के सिए पानी िाते थे.

सबजिी आती थी िेसकन सबि न देने के कारण असधकतर िोगो् का कनेक्शन काट सदया गया था. पर उन्हो्ने कसटया िगाकर सबजिी का इंतजाम कर सिया था. इि कॉिोनी के फ्िैटो्के सरटायर मासिको् को थोड्ी-बहुत पेश ् न समिती थी, सजनिे उनका गुजारा चिता था. उनमे् िे कुछ के बच्​्े पढ्सिख गये थे. सदल्िी-मुबई मे्नौकसरयां कर रहे थे. ऐिे घरो्की हाित थोड्ी अच्छी थी. वे िोग यहां ‘वीआईपी’ कहे जाते थे. वे िोग अक्िर इि मोहल्िे को छोड्कर कही् और बिने की बात सकया करते थे, हािांसक जाते नही्थे. उनमे् िे एक ने तो िेके्ड है्ड कार भी खरीद िी थी, जो हफ्ते मे् एकाध सदन कािे पानी को उड्ाती हुई छप-छप करके चिती थी. ऐिे कुछ पसरवारो्को छोड्कर ज्यादातर पसरवारो्के बच्​्े ड्​्ाप आउट थे. सकिी ने चौथी मे्पढ्ाई छोड्दी तो सकिी ने आठवी् मे्. कोई दूकान मे् काम करने िगा था, तो कोई पंचर बना रहा था. कई िोगो्को कुछ काम नही्समि पा रहा था. उनमे् िे कुछ शराब-गांजा के आदी हो गये थे या ड्ग् ि ् िेने िगे थे. कुछ पसरवारो् को छोड्कर िड्सकयो् की शादी पंद्ह-िोिह िाि मे्ही कर दी जाती थी.


थी.

गंदा

हािांसक कुछ िड्सकयो् ने शादी करने िे इनकार सकया और शहर मे् नये खुिने वािे सडपाट्समे्टि स्टोरो् मे् काम करने िगी थी्. वे िुबह सनकिती्और देर रात मे्आती्. मोहल्िे के िोग उन्हे् िंदेह की नजर िे देखते और उनके बारे मे्कहासनयां बनाते. घरो्मे्टीवी था. िोगो्ने केबि कनेक्शन िे रखे थे. मसहिाएं टीवी पर िाि-बहू के िीसरयि देखती् और उि पर बहि करती्. वे नयी िड्सकयो् को कोिती् सक वे बात नही् िुनती्. उनके पर िग गये है्. वे िारे िंस्कार भूि चुकी है्. कािापानी के िोग जब शहर मे् सनकिते तो उन्हे् अपने ऊपर शम्स आती थी. सिटी बि मे्, डाकघर, अस्पताि, कोट्सया दफ्तर मे्, जब बताते सक वे कािापानी िे है्, तो िोग उन पर हंिते या मुहं घुमा िेत.े कुछ तो नाक पर र्माि रख िेते. पुसि​ि को जब मुस्ैदी सदखानी होती तो वह कािापानी आकर कुछ िड्को् को पकड्कर िे जाती थी. अपने बुरे हािात िे बाहर सनकिने की बेचैनी हर सकिी मे् थी, पर सकिी को कुछ िूझता नही् था सक वह करे् क्या. अपने को जीसवत रखना ही िबके सिए एक बड्ी चुनौती

जब बौका तैयार होकर बाहर आया तो देखा सक मोहल्िे मे् अच्छी-खािी चहि-पहि थी. कािापानी मे्ऐिी रौनक वह बहुत सदनो्के बाद देख रहा था. यहां आम तौर पर िोग तभी बाहर सनकि कर खड्े होते थे जब सकिी की मौत होती थी या पुसि​ि आकर सकिी को िे जाती थी. िेसकन आज मामिा कुछ और था. उिने िोगो्के करीब जाकर िमझने की कोसशश की. कािापानी के िोग उि​िे बात करने िे कतराते थे, इिसिए वह थोड्ी दूरी िे कान िगाकर बाते् िुन रहा था. वैिे मोहल्िे के बच्​्ो् िे उिकी बातचीत होती थी. वह उनिे पूछ िकता था, पर वे इि वक्त नजर नही्आ रहे थे. कुछ समनटो् मे् माजरा िमझ मे् आ गया. कािापानी मे्स्वच्छता काय्सक्म होने वािा था. मुखय् मंत्ी मोहल्िे की िफाई करने वािे थे. उिे िेकर तरह-तरह की चच्ास थी. कई िोगो् को िग रहा था सक उनका भाग्य पिटने वािा है. अब मोहल्िे का कायाकल्प हो जायेगा. मुख्यमंत्ी, मंत्ी वगैरह आये्गे तो मोहल्िे की िमस्याओ् के बारे मे् बात होगी. हो िकता है, िब कुछ ठीक हो जाये. उनका जीवन बदि जाये. िोगो् को यह बात रोमांसचत कर रही थी सक आसखर िरकार की नजर कािापानी पर पड्ही गयी. नही्तो िब भूि ही गये थे सक इि धरती पर कािापानी भी कही्है. कई िोग यह िमझ ही नही् पा रहे थे सक आसखर चीफ समसनस्टर क्यो्िफाई करेग् .े िफाई के सिए मंत्ी जैिी हस्​्ी की क्या जर्रत. यह तो कोई भी कर िकता है. कुछ बच्​्ो्और कुछक े मसहिाओ्को यह िगा सक अब िे रोज मुख्यमंत्ी जी ही कािापानी की िफाई सकया करे्गे. कुछ िमय पहिे ही के्द् मे् ित्​्ा बदिी थी, सफर कुछ सदनो् बाद इि राज्य मे् नयी िरकार आयी. अरिे बाद िंयोग बना सक के्द् और राज्य मे् एक ही दि की िरकार हो. मुख्यमंत्ी प्​्धानमंत्ी िे अपनी नजदीकी सदखाना चाहते थे िो पीएम के स्वच्छता असभयान की घोषणा करते ही राज्य मे्इिे िागू करने की घोषणा कर दी. उन्हो्ने कहा सक िबिे गंदे मोहल्िे िे शुर्आत करे्गे तासक िगे सक स्वच्छता को िेकर वे गंभीर है्. कािापानी

इिाके के नये सवधायक ने इिे अपने सिये अविर के र्प मे्देखा. उिका नजसरया पुराने एमएिए िे अिग था. वह अि​ि मे् एक सबल्डर था. उिे यह बात अटपटी िगती थी सक इतने बड्ेइिाके मे्इतने कम िोग रहते है्. यह तो जगह की बब्ासदी है. उिके सदमाग मे् एक दीघ्सकासिक योजना कुिबुिा रही थी. वह िोचता था सक क्यो्न यहां की जमीन िेकर उि पर बड्ा अपाट्समे्ट खड्ा सकया जाये. िेसकन इिके सिए स्थानीय िोगो्को सवश्​्ाि मे्िेना जर्री था. इिकी शुर्आत स्वच्छता असभयान िे हो िकती थी. पर यह योजना बगैर िीएम को िाथ सिये अमि मे् नही् िायी जा िकती थी, िेसकन सवधायक ने िोचा सक िमय आने पर वह उन्हे् बताएगा, सफिहाि तो उिने यही बताया सक उिमे् दसित सहंदू और मुि​िमान ज्यादा है्. इि पर उिकी आशा के सवपरीत िीएम िाहब प्​्िन्न हुए. उनकी मुख मुद्ा िे िगा सक कािापानी को मुख्यमंत्ी जी अपने रडार पर िेना चाहते है.् सवधायक िे पहिे पाट्​्ी के काय्क स त्ास कािापानी पहुच ं .े उन्हो्ने ही जाकर िबको बताया सक यहां क्या होना है. मोहल्िे के वीआईपी कहे जाने वािे रामफि चौधरी, जामुन प्​्िाद और टेनी समयां कुछ इि अंदाज मे् सहिते हुए नजर आ रहे थे जैिे मुख्यमंत्ी ने िीधे इन्हे् ही फोन करके स्वच्छता असभयान के िंचािन की जवाबदेही िौ्पी हो. रामफि चौधरी ने बौका को देखकर कहा, ‘अरे तुम क्यो् मुंह िटकाए हुए हो. पता है न मोहल्िे मे्मुख्यमंत्ी आने वािे है्.’ ‘तो..’बौका ने गंभीर होकर कहा. ‘अरे,तुम्हे्कोई खुशी नही्हुई?’ ‘खुशी क्यो्होगी.’बौका ने जवाब सदया. ‘यह बहुत बड्ी बात है सक यहां चीफ समसनस्टर आये्गे. और झाड्​् िे खुद िफाई करे्गे.’ ‘उिके बाद?’ बौका ने सनस्वसकार भाव िे पूछा. चौधरी जी थोड्ा िकपकाये. उन्हे् तुरंत इिका जवाब नही् िूझा. उन्हो्ने एक क्​्ण र्ककर कहा, ‘उिके बाद हो िकता है भाषण दे्.’ ‘सफर उिके बाद?’

जािे-मािे कसव, कथाकार और पत्​्कार. प्​्मुख कसवता संग्ह: कागज के प्​्देि मे्, रुप्पी का िोर. कहािी संग्ह: बॉस की पाट्​्ी, हीरालाल. एक उपन्यास: टूटिे के बाद.

शुक्वार | 1 िे 15 नवंबर 2015 53


कहािी ‘उिके बाद क्या चिे जाये्गे?’ ‘उिके बाद?’ चौधरी जी इि बार झुंझिाये, ‘अरे तुम भी न.’ वह यह कहकर चिे गये. बौका उन्हे्देखता रह गया. उिके ऐिे ही िवािो्के कारण िोग उि​िे बचते थे. वह अक्िर सवसचत्​् प्​्श्न उठा देता या िोगो्के उत्िाह के गुल्बारे मे्सपन मार देता. िोग हैरत मे्पड्जाते थे सक वह क्या चीज है. ऐिे तो बौका मुंह बनाये रहता, िेसकन गानो् की मजेदार पैरोडी बनाता सजन पर खूब हंिी आती. उिका ‘िारे जहां िे गंदा’ काफी पॉपुिर हो गया था. बच्​्े तो उिे गाते ही, बुजुग्स भी अकेिे मे् उिे गुनगुनाने िगते. एकाध बार तो शादी मे् भी औरतो् ने यह गाना गाया. पुरानी पीढ्ी की कई औरतो् ने इिे बौका के मौसिक गीत के र्प मे्स्वीकार सकया था. उन्हे्क्या पता सक इकबाि नामक महान शायर ने सहंदुस्ान की प्​्शंिा मे्इि जैिी कोई नज्म सिख रखी है. बौका का मतिब स्थानीय भाषा मे् गूंगा और बेवकूफ दोनो् होता था. उिे यह नाम इिसिए समिा सक उिने देर िे बोिना शुर् सकया. वह दफ्तरी रामिाि का बेटा था. पढ्ने मे्वह शुर्िे अव्वि था, िेसकन रामिाि को तीन-तीन बेसटयां ल्याहनी थी्, िो वह अपने बेटे की पढ्ाई के सिए कुछ खाि नही्कर पाये. उन्हे् कई िोगो् ने िमझाया था सक बौका अगर प्​्ाइवेट स्कूि मे्पढ्ेतो बहुत बड्ा आदमी बन िकता है. पर एक दफ्तरी के सिए अपने बच्​्े को पब्लिक स्कूि मे् पढ्ाना औकात िे बाहर की चीज थी. उनकी दिीि थी सक बौका की सकस्मत मे् बड्ा आदमी बनना होगा तो वह गरीबी मे् भी बन जायेगा. खैर बौका ने तमाम सवघ्न-बाधाओ् के बीच िरकारी स्कूि और कॉिेज मे्पढ्ाई की और ग्​्ेजुएट हो गया. राज्य की नौकसरयो्की कई सिसखत परीक्​्ा उिने पाि की, िेसकन इंटरव्यू मे् वह फेि हो जाता था क्यो्सक िाक्​्ात्कार िेने िे पहिे ही डेढ्-दो िाख की मांग कर दी जाती थी, सजिे जुटाना उिके सिए अिंभव था. मजबूरन वह एक कोसचंग इंस्टीट्​्ूट मे् पढाने िगा था. जब वह िसचवािय के िामने िे होकर गुजरता और तेजी िे बैग सिए सकिी बाबू को बड्े िे गेट मे् घुिते देखता तो वह िोचता सक इिकी जगह वह हो िकता था. जब वह सकिी काम िे िरकारी हाई स्कूि जाता और वहां चि रही सकिी कक्​्ा मे्झांकता तो उिे िगता सक िामने खड्े मास्टर िाहब की जगह उिे होना चासहए था. इिी तरह कई बार रेिवे स्टेशन पर स्टेशन मास्टर की िीट पर या बै्क मे्मैनेजर की कुि्ी पर वह खुद को देखता और सफर परेशान हो जाता. ऐिे िमय मे् वह अपनी कोई पैरोडी गुनगुनाने िगता. अब भी उिने यही सकया. 54 शुक्वार | 1 िे 15 नवंबर 2015

गुनगुनाने िगा, ‘िारे जहां िे गंदा...’ वह मोहल्िे िे सनकिने ही वािा था सक देखा सक एक बड्ी िी एियूवी गाड्ी चिी आ रही है. वह पिटा. गाड्ी ने र्कते-र्कते एक हल्की िी फुहार पाि खड्ेिोगो्पर छोड्ी. िेसकन उिकी परवाह सकये बगैर िोग गाड्ी को घेरकर खड्े हो गये. उिमे् िे सवधायक बाहर आया. उिे देखकर मोहल्िे के वीआईपी तेजी िे दौड्े. बाकी िोग थोड्ी दूर िे ही िब कुछ देख रहे थे. सवधायक के िाथ गाड्ी मे्उिके वही चमचे थे जो पहिे एक बार आ चुके थे. उनमे्िे एक ने मोहल्िे वािो्िे कहा, ‘ये है्माननीय सवधायक श्​्ी.’ सवधायक गाड्ी िे उतरते ही भाषण देने िगा जैिे वह उिकी सरहि्सि करके आया हो, ‘कािापानी के भाई बहनो, आप िबको जानकर खुशी होगी सक आपके मोहल्िे मे् अगिे हफ्ते स्वच्छता का काय्क स म् होगा. माननीय मुखय् मंत्ी जी खुद आकर िफाई की शुर्आत करे्गे. आप िबको उि सदन िफाई करनी होगी और यह वचन िेना होगा सक आप मोहल्िे को कभी गंदा नही्होने दे्गे. हमेशा िाफ-िुथरा रखे्गे... सकिी ने जोर िे कहा, ‘यह हम िबके बि

चौधरी जी और दूसरे वीआईपी मन ही मन पछता रहे थे सक ये बाते़उऩहो़ने क़यो़नही़कही. वे बेकार ही डर रहे थे. सवधायक आदमी ही तो है, खा थोि़ेजाता. का नही्है.’ िबने चौ्ककर देखा. यह बौका की आवाज थी. िोगो्को आि्य् स्हुआ. अरे, बौका बोिता भी है. ज्यादातर िोगो् ने अब तक उिे ‘हां, हूं’ कहते या गाना गाते िुना था. पर इि तरह िे. सवधायक ने भी उि ओर देखा जहां, बौका खड्ा था. बौका थोड्ा आगे आकर बोिा, ‘आपको क्या िगता है सक हम िोग जानबूझकर गंदे रहते है्. हमे्शौक है गंदगी के बीच रहने का? हम चाहकर भी िाफ नही्रह िकते. हमारा मोहल्िा िाफ नही्रह िकता.’ इि बार सवधायक के िाथ आए उिके एक चमचे ने जोर िे कहा ‘क्यो्नही्रह िकता?’. बौका ने उिी के अंदाज मे्जवाब सदया, ‘क्यो्सक यह कािापानी है. इि पर सकिी की नजर ही नही्जाती. शहर के कई पुराने नािे यहां आकर खत्म हो जाते है्. इन नािो्का पानी सजि नहर मे् जाकर समिता था, वह भर दी गयी है. उि पर सबल्डरो् ने सडिाइट कॉिोनी खड्ी कर दी है, जहां शहर के बड्े-बड्ेिोग रहते है्. हमारे चारो् ओर के छोटे-बड्े नािो् की कभी िफाई नही् होती. उनमे् पॉसिथीन जमा हो रहा है. जगह-जगह बन रही नयी कॉिोसनयो् की रेत

और िीमे्ट उनमे् जम रही है. नगर सनगम के िफाई कम्सचारी हमारे मोहल्िे के ठीक पचाि मीटर दूर तक आते है्और चिे जाते है.् कई बार तो न जाने रात के अंधेरे मे्कई ट्​्ैक्टर आते है्. यहां बीच िड्क पर कूड्ा डािकर चिे जाते है.् हमारा मोहल्िा कूड्ेदान है इि शहर का. कािापानी मे्मुब्शकि िे डेढ्-दो िौ िोग रहते है्. क्या वे कर िे्गे इतनी िफाई. सकिके पाि िमय है. िबको काम करना है, रोटी कमानी है. हम तो मजबूरी मे् यहां रहते है्. गंदगी िे यहां बीमारी फैिती है. डे्गू, मिेसरया िे हर महीने कोई न कोई मर जाता है यहां. आप कहते है्सक हम िफाई करे्.’ चारो् ओर िन्नाटा पिर गया था. िोग हतप्भ् बौका को देख रहे थे. सवधायक ने ब्सथसत को िंभािने की कोसशश करते हुए कहा, ‘आप एकदम िही रहे है् मेरे भाई. यह िब सपछिी िरकारो् की िापरवाही का नतीजा है. िेसकन अब यह िब नही्चिेगा. हमारी िरकार गरीबो् की िरकार है, दबे कुचिो्की िरकार है. हम यह अन्याय अब और नही् होने दे्गे. स्वच्छता असभयान के िाथ आप िबकी हर िमस्या का सनपटारा हो जायेगा.’ यह कहकर सवधायक बौका के पाि आया और उिकी पीठ ठोकी. िेसकन बौका के चेहरे पर कोई भाव नही् था. वह हमेशा की तरह कही्खोया िा िग रहा था. पर मोहल्िे के नौजवान उिे अपने नायक की तरह देख रहे थे. चौधरी जी और दूिरे वीआईपी मन ही मन पछता रहे थे सक ये बाते्उन्हो्ने क्यो् नही् कही. वे बेकार ही डर रहे थे. सवधायक आदमी ही तो है, खा थोड्ेजाता. तभी चौधरी जी ने माहौि बदिने की कोसशश की, ‘िर, आप िोग के सिए हमारे घर पर चाय-पानी की व्यवस्था है. आइए न चिते है्.’ सवधायक ने पहिे कुछ िोचा सफर उनके िाथ चि पड्ा. भीड्का एक सहस्िा उनके पीछे चिा. दूिरे वीआईपी जामुन प्​्िाद, टेनी समयां भी िाथ मे् चिे. उन्हे् िग रहा था सक वे मात खा गये है.् वे सवधायक के िामने चाय-पानी का प्​्स्ाव रखने मे्चूक गये. पर उन्हो्ने सवधायक को छो़ड्ा नही्. िाथ-िाथ िगे रहे.पर बौका सकधर गया, सकिी को िमझ मे्नही्आया. रामफि चौधरी के घर पर सवधायक अपने चमचो्के िाथ बैठा. वहां उिने एक बार चारो् ओर नजरे्घुमाकर देखा सक कही्बौका तो यहां भी नही्आ पहुच ं ा. सफर उिने नये सिरे िे भाषण सदया सजिका िल्बोिुआब यह था सक कािापानी की सकस्मत बदिने वािी है. यह िरकार अब इि कॉिोनी को नया र्प देगी सजिकी शुर्आत िफाई असभयान िे होने वािी है. उिने बताया सक आज िे एक हफ्ते बाद काय्सक्म होगा. मुख्यमंत्ी आये्गे और दि समनट तक यहां रहे्गे. यहां एक छोटा-मोटा


काय्क स म् होना चासहए. और नही्तो कम िे कम यह वािा गाना होना चासहए-‘िारे जहां िे अच्छा.’ यह कहकर सवधायक थोड्ा गुनगुनाया सफर चुप होकर बोिा, ‘बहुत बड्े कसव का सिखा हुआ है ये. मुि​िमान होकर भी भारत का तारीफ सकया है.’ यह कहकर सवधायक ने टेनी समयां की तरफ देखा. इि पर एक चमचे ने कहा, ‘हां, भाईजी, बहुत अच्छा गाना है. िारे जहां िे अच्छा.’ अचानक रामफि चौधरी ने उछिकर कहा, ‘यह तो हमको पूरा याद है.’ सवधायक जी ने कहा, ‘अरे तो हो जाये एक बार.’ रामफि चौधरी ने गाना शुर्सकया िारे जहां िे गंदा, है मोहल्िा हमारा हम िब िुअर इिके, ये िुअर बा़ड्ा हमारा. सवधायक ने अजीब िा मुंह बनाया और बोिा, ‘मेरे ख्याि िे तो यह गाना इि तरह नही् है.’ उिके एक चमचे ने कहा, ‘हां, भाईजी, यह कुछ दूिरे ढंग का है.’ सवधायक ने कहा, ‘हां, तो िुनाओ न.’ चमचे ने सिर ऊपर करके यह नज्म याद करने की कोसशश की, पर उिे याद नही् आया. सवधायक उखड् गया, ‘तुम िोग सकिी काम के नही् हो.’ दूिरे चमचे ने गुनगुनाया- ‘िारे जहां िे अच्छा, सहंदोस्​्ां हमारा.’ सफर वह ठहर गया. सवधायक ने पूछा, ‘आगे?’ तो उिने भी हसथयार डाि सदये. तभी सवधायक ने अपने िेिफोन िे एक नंबर समिाया और बोिना शुर्सकया, ‘हां, बेटी, वो क्या है. िारे जहां िे अच्छा सहंदोस्​्ां हमारा.’ तभी उधर िे उिे जवाब समिा तो सवधायक खुश होकर बोिा, ‘हां, पता चि गया. िारे जहां िे अच्छा ये सहंदोस्​्ां हमारा. हम बुिबुिे है् इिकी ये गुिसितां हमारा.’ सवधायक इिे दोहराकर इि तरह खुश हुआ जैिे उिके चुनाव जीतने की खबर आयी हो. उिे प्ि ् न्न देख रामफि चौधरी, टेनी समयां और जामुन प्​्िाद भी मुस्कराये. िेसकन अचानक सवधायक िीसरयि होकर उनकी ओर घूमा और बोिा, ‘िेसकन आपिोग को यह िब कौन सिखा सदया? आप क्या गा रहे थे अटशंट हम िब िुअर इिके. कहां िे िीखे भाई आप िोग.’ उन तीनो्की चेहरे की बत्​्ी अचानक गुि हो गयी. वे स्कूि मे् डांट खाते बच्​्ो् की तरह िग रहे थे. सवधायक गरजा, ‘अरे आप िोग एकदम चौपट है्क्या जी. अरे इ गंदा िुअर बाड्ा िािा ये िब इि गाना मे् कहां िे आ गया. इिीसिए आपिोग का कुछ नही् होता है. आप िोग का िोच गड्बड्है. आप िोग नािा गंदगी िे बाहर आ ही नही् पाते. अरे ये फीिगुड का िमय है. अच्छा िोसचए बड्ा िोसचए. हमारी िरकार ऊंचा िोचती है. बड्ा-बड्ा फ्िाईओवर

बन रहा है. मल्टीस्टोरी सबब्लडंग बन रहा है मल्टीप्िके ि ् और मॉि बन रहा है, पाक्फबन रहा है और आप िोग है सक नािा और गंदगी िोच रहे है.् अच्छा िोसचएगा तभी आगे बस्ढएगा, नही् तो िड्ते रसहएगा िुअरबाड्ा मे् खैर कोई बात नही्.’ तभी टेनी समयां ने कहा, हम िोगो् को अि​िी गाना भी पता है िेसकन प्​्ॉल्िम है सक यहां िबको दूिरे ढंग िे गाने का आदत पड् गया है.’सवधायक थोड्ा नरम पड्ा. उिने उत्िुक होकर पूछा, ‘िेसकन क्यो्?’ जामुन प्​्िाद बोिे, ‘वो बौका ऐिे ही गाता है.’ ‘कौन है बौका?’ सवधायक ने आि्​्य्सिे पूछा. रामफि चौधरी थोड्ा िकुचाते हुए बोिे, ‘वही िड्का.. जो अभी आपिे कह रहा था सक कािा पानी का कभी िफाई नही् हो िकता.’ सवधायक के चेहरे का रंग बदिा. उिने कहा, ‘अच्छा, अच्छा. मुझे तो पहिे िे ही िंदेह था. कौन है वो? सकि पाट्​्ी का है?’ जामुन प्​्िाद ने कहा, ‘ये तो हमे्पता नही्.

वो टीचर है. वही ये गाना हर िमय गाता रहता है.’ ‘अरे अजीब आदमी है् आपिोग. वो कुछ भी गायेगा तो आप िोग िीख िीसजएगा. कि वह कहेगा सक आपिोग कुआं मे्कूद जाइए तो क्या कूद जाइएगा?’ सवधायक ने सखसियानी मुंह बनाकर कहा. ‘नही्-नही्हमिोग नही्कूदे्गे.’ टेनी समयां बोिे. तीनो् वीआईपी िमझ नही् पा रहे थे सक बौका के बारे मे्क्या स्टै्ड सिया जाये? ‘वो यहां का नेता है?’ सवधायक के इि िवाि पर भी तीनो्को कुछ नही्िमझा. चौधरी जी ने कहा, ‘नही्-नही्. वो नेता नही्है.’ ‘सफर आपिोग उिकी तरह गाना क्यो् गाये?’ सवधायक ने डपटकर कहा. ‘गिती हो गयी. अब नही् गाये्गे.’ जामुन प्​्िाद ने कहा. सवधायक ने कुछ देर तीनो् को ऊपर िे नीचे देखा और बोिा, ‘ये गाना खोजकर िाइए और मोहल्िा मे् जो िड्का-

िड्की िुरीिा गाता है, उिको तैयार करवाइए. कि िे सरहि्सि शुर् करवा दीसजए.’ यह कहकर सवधायक अपने िाव-िश्कर के िाथ चिा गया. उिके जाते ही टेनी समयां ने पूछा, ‘भाई िाहब, हमिोग ये गाना अब तक गित गा रहे थे?’ ‘हां.’ जामुन प्​्िाद ने मुंह बनाकर कहा. इि पर रामफि चौधरी ने कहा, ‘देसखए, अब जो हो गया िो हो गया. अब जो हो रहा है उि पर ध्यान दीसजए. गाना िुधार िीसजए, तभी कािा पानी मे् िुधार होगा.’ जामुन प्​्िाद ने बताया सक शायद उनकी पोती की सकताब मे्ये वािा गाना सिखा हुआ है. अगिे सदन िे जामुन प्​्िाद की पोती डॉिी की अगुआई मे्सरहि्ि स शुर्हुई. हािांसक पहिी बार डॉिी ने भी पैरोडी ही गाई. इि पर जामुन प्​्िाद ने कड्ी डांट िगायी और कहा सक अि​िी गाना कुछ और है. वह सकताब िे सनकािकर उिे याद कर िे. डॉिी ने कागज पर वह गाना उतार सिया. सफर मोहल्िे के अपने कुछ दोस्​्ो् को िाथ िेकर गाने की प्​्ैब्कटि शुर्कर दी. बार-बार वही िमस्या आ रही थी. हर बच्​्े की जुबान पर िारे जहां िे गंदा चढ्ा हुआ था. ज्यो् ही‘िारे जहां िे’ की शुर्आत होती, िब उिके आगे गंदा बोिते. बड्ी मुब्शकि िे तीनो् वीईपी ने बच्​्ो्की जुबान िे पैरोडी को हटाया. दो सदन बाद सवधायक सरहि्सि देखने पहुंचा. तीनो् वीआईपी भी वहां उपब्सथत थे. उनकी िांि अटकी पड्ी थी सक बच्​्े कोई गड्बड् न कर दे्. िेसकन सवधायक के इशारा करते ही बच्​्ो्ने ‘िारे जहां िे अच्छा सहंदोस्​्ां हमारा’ का बेहतरीन गायन सकया. सवधायक ने प्​्िन्न होकर बच्​्ो् की पीठ ठो्की और उन्हे् एक-एक टॉफी दी. जामुन प्​्िाद ने मुग्ध होकर कहा सक यह िब डॉिी का कमाि है. वह स्कूि मे्भी िंगीत मे्इनाम जीतती रहती है. सवधायक ने डॉिी की पीठ थपथपायी और एक बार सफर गाने को कहा. बच्​्ेज्यो्ही गाने को हुए तभी वहां बौका आया और िामने खड्ा हो गया. बौका डॉिी को देखकर मुस्कराया. डॉिी गंभीर बनी रही, िेसकन उिने ज्यो् ही गाना शुर्सकया, इि बार गाना बदि गया. वह गा रही थी: िारे जहां िे गंदा ये मोहल्िा हमारा. और बच्​्ेभी उिी पटरी पर आगे बढ्े. सवधायक और तीनो् वीआईपी अवाक रह गये. उन्हो्ने एक स्वर िे डांटा,‘ये क्या गा रहे हो तुम िोग?’ सवधायक ने इि बार धमकी के स्वर मे्कहा,‘अगर ये गाना सफर सकिी ने गाया तो मै् प्​्ोग्​्ाम कै्ि​ि करवा दूंगा. मुख्यमंत्ी जी नही्आये्गे यहां.’ जामुन प्​्िाद के कमरे मे्िन्नाटा छा गया. शुक्वार | 1 िे 15 नवंबर 2015 55


कहािी तीनो् वीआईपी एक दूिरे का मुंह देखने िगे. उन्हे्िमझ मे्नही्आ रहा था सक क्या कहे.् तभी सवधायक ने सवषय बदिते हुए कहा,‘आप िोगो् ने िोचा है सक काय्सक्म कहां होगा? आपके मोहल्िे मे्तो एक कदम भी रखना मुबश् कि है.’ रामफि चौधरी ने कहा, ‘यहां तो जो भी होता है वह उिी ऊंची जगह पर होता है.’ ‘िेसकन वहां तो कूड्े के ढेर है्. सफर मोहल्िे मे्घुिने का कोई रास्​्ा भी नही्है. जो है उि पर अब भी पानी िगा है.’ यह कहकर सवधायक कुछ िोचने िग गया. सफर उिने कहा, ‘चसिए थोड्ा बहुत िफाई करवा देते है्. कम िे कम मुख्यमंत्ी जी घुि तो िके् और कुछ देर खड्ेतो रह िके्. अभी तो हाित है सक ….’सवधायक ने यह कहकर अजीब िा मुंह बनाया. तीनो्वीआईपी झे्प गये. अगिे सदन कािापानी के िोगो्ने वह देखा जो वे कभी-कभार िपने मे् देखा करते थे. दो ट्​्ैक्टर खड्ेथे, सजन पर रेत, और ई्टे्िदी थी्. िाथ मे्कुछ मजदूर भी आए थे. िड्क िे िेकर मोहल्िे के बीच के टीिे तक के रास्​्ेमे्कीचड् के ऊपर रेत डािी गई सफर ई्टे सबछाई जाने िगी्. िोग हैरत िे िब कुछ देख रहे थे. वे सिफ्फ कल्पना सकया करते थे सक यहां कभी िड्क हुआ करेगी. िेसकन ई्टे िड्क बनाने के सिए नही् आई थी्. बि एक कच्​्ा रास्​्ा बन गया सजि​िे बह रह कािा पानी छुप गया. अब िड्क िे िीधे टीिे तक पहुंचा जा िकता था. यह भी कािापानी वािो् के सिए सकिी चमत्कार िे कम न था. टीिे िे कूड्ा हटाया गया िेसकन उिे फे्कने की कोई और जगह न समिने के कारण मोहल्िे के दूिरे कोने मे्डाि सदया गया. तय हुआ सक टीिे पर ही भाषण आसद होगा. और मुख्यमंत्ी जी ई्ट की िड्क पर झाड्​्िगाते हुए चिे्गे. इिके सिए काय्सक्म के सदन िड्क पर िूखे पत्​्ेडाि सदए जाये्गे. िड्क बनने के दौरान तीनो्वीआईपी चौड्े होकर घूमते रहे. बात-बात मे्सवधायक जी का नाम आता. ऐिा िग रहा था सक स्वच्छता काय्सक्म इन्ही् तीनो् की वजह िे हो रहा है. िेसकन अगिे सदन एक सवसचत्​्घटना घटी. टीिे के ऊपर गाने की सरहि्सि चि रही थी. ज्यो्ही बच्​्ो् ने गाना शुर् सकया, उिी िमय बौका उधर िे गुजर रहा था. बच्​्ेिारे जहां िे अच्छा सहंदोस्​्ा हमारा गा चुके थे. िेसकन अगिी िाइन मे्वे भटक गये. उन्हो्ने गाना शुर्सकयागोदी मे्बहती है बदबूदार नासियां. टेनी समयां ने डांटकर बच्​्ो् को चुप कराया. बौका के जाते ही गाना सफर िुधर गया. शाम मे् सवधायक िारी चीजो् की मुआयना करने आया. जामुन प्​्िाद ने प्​्स्ाव रखा सक वह गाने की सरहि्सि देख िे्क्यो्सक गाना बहुत ही शानदार तैयार हो गया है. सवधायक ने कहा 56 शुक्वार | 1 िे 15 नवंबर 2015

सक टीिे पर ही सरहि्ि स हो क्यो्सक वही्फाइनि प्​्ोग्​्ाम होना है. सरहि्सि देखने पूरा मोहल्िा जमा हो गया. सवधायक ने बताया सक वह िबिे पहिे मुख्यमंत्ी के सिए स्वागत भाषण पेश करेगा. सफर बच्​्े मुख्यमंत्ी जी को मािा पहनाएंगे. सफर सवधायक यह घोषणा करेगा सक अब गाना होने वािा है. उिने िबको सहदायत दी सक िबको हंिते हुए गाना है क्यो्सक िामने कैमरा होगा. यह िब बताने के बाद बच्​्ो् िे गाने को कहा गया. सवधायक और भीड्भाड् देखकर बच्​्ेनव्ि स थे. उन्हो्ने पहिे इधर-उधर देखा सफर गाना शुर्सकया : िारे जहां िे गंदा.. गंदा शल्द िुनकर सवधायक चीखा, ‘बंद करो.’ अचानक रामफि चौधरी ने पिटकर भीड् की तरफ देखा. िबिे िामने बौका खड्ा था. वह तेज कदमो्िे उिके पाि पहुंचे और उिके कंधे पर हाथ रखकर उिे िगभग खी्चते हुए दूिरी तरफ िे गये. सवधायक ने झुंझिाकर कहा, ‘तुम जासहिो् िे मै्ने बेकार ही उम्मीद की. रहने दो इिे. अब कोई गाना-वाना नही्होगा.’ टेनी समयां और जामुन प्​्िाद के चेहरे िटक गये. जामुन प्​्िाद को िगा सक उनकी पोती ने इतनी मेहनत

टीले पर ही भाषण आसद होगा. और मुख़यमंत़ी जी ई़ट की सि़क पर झाड़​़लगाते हुए चले़गे. काय़ाक़म के सदन सि़क पर सूखे पत़​़ेडाल सदए जाएंगे. िे गाना तैयार सकया है, िब बेकार हो जायेगा. कािापानी मे् उनके और पसरवार की सखल्िी उड्ेगी. उन्हो्ने सघसघयाते हुए कहा, ‘एक मौका और दे दीसजए. अरे बच्​्ेहै.् घबरा जाते है.् कमरे मे् तो िही ही गा रहे थे िब. पहिी बार बाहर गा रहे है्िो थोड्ा...’ ‘क्या मौका दे्. परिो्प्​्ोग्​्ाम होना है. अब एक सदन मे् क्या िुधार होगा. अगर इन्हो्ने मुख्यमंत्ी जी केिामने वो गंदा-िंदा बोि सदया तो मेरा तो कबाड्ा हो जायेगा. और कािा पानी भी गया िमझो. कुछ नही्होगा सफर यहां.’ यह कहकर सवधायक चिा गया. वहां मौजूद िोगो् मे्खुिर-फुिर होने िगी. तीनो् वीआईपी एकांत मे् समिे. रामफि चौधरी ने एक बड्ा रहस्योद्घाटन सकया, ‘भाई मुझे िब िमझ मे्आ गया.’ टेनी समयां ने आंखे् नचाते हुए पूछा, ‘क्या?’ ‘देसखए, मै्ने एक चीज गौर सकया है. आपिोग भी देखे होगे शायद. ...जब-जब बौका िामने रहता है तभी गड्बड् होता है. उिी को देखकर बच्​्ा िोग गाना का दूिरा रस्​्ा पकड् िेता है. जब वह नही्रहता तो ऐिा नही्होता.’

रामफि चौधरी ने जब उदाहरण देकर अपनी बात स्पष्​् की तो दोनो् िहमत हो गये. टेनी समयां ने कहा, ‘अगर प्​्ोग्​्ाम के सदन बौका िामने खड्ा रहा तो कयामत आ जायेगी.’ ‘सकिी तरह बौका को रोकना होगा.’ जामुन प्​्िाद ने कहा. टेनी समयां ने रास्​्ा िुझाया, ‘इिका उपाय तो यही है चिकर बौका िे कहा जाये सक वह उि सदन काय्सक्म मे् न आये, या आये भी तो पीछे खड्ा रहे.’ ‘आपको क्या िगता है सक आप कहेग् े और वह मान िेगा.’ रामफि चौधरी ने कहा. ‘क्यो् नही् मानेगा. मोहल्िा के इज्​्त का मामिा है भाई.’ अचानक जामुन प्​्िाद ने उत्​्ेसजत होकर कहा, ‘इ बौका िािा हेडेक हो गया है. उिी के चिते सवधायक हमिोगो् को गसरया दे रहा है. इिका कुछ परमाने्ट इंतजाम करना होगा.’ ‘कैिा इंतजाम?’ टेनीसमयां और रामफि चौधरी ने एक िाथ पूछा. ‘आइए चसिए.’ जामुन प्​्िाद यह कहकर तेजी िे आगे बढ्े. बाकी दोनो् वीआईपी भी पीछे-पीछे चिे. जामुन प्ि ् ाद ने बहुत सदनो्बाद अपनी कार सनकािी. तीनो् उिमे् बैठकर सवधायक के घर पहुंचे. कािापानी का नाम िुनते ही सवधायक ने उन्हे्तुरंत समिने के सिए बुिा सिया. उिे िगा अपने मन की बात कहने का मौका आ गया है. वह उन तीनो्को देखकर अथ्सपूण्सतरीके िे मुस्कराया. सफर उिने कहा, ‘हमको पता था सक एक सदन आपिोग आयेग् .े .. आसखर आप िोग मोहल्िे का भिा िोचते है्.’ तीनो्वीआईपी एक दूिरे का मुंह देखने िगे. वे कुछ कहते इि​िे पहिे सवधायक ने कहा, ‘आपके कािापानी मे्75 दो मंसजिा फ्िैट है. अगर िबको तोड्सदया जाये और आठ मंसजिा अपाट्समे्ट बनवा सदया जाये तो सकतना और फ्िैट बन जायेगा? बताइए? तीनो् वीआइपी की बोिती बंद थी. सवधायक बोिा, ‘िगता है आप िोग का मैथ कमजोर है. कािा पानी मे्अपाट्म्ेट बनाने पर 600 फ्िैट बने्गे. एक-एक फ्िैट की कीमत होगी-कम िे कम पंद्ह िाख र्पये. अगर आप िोगो्को एक-एक फ्िैट फ्​्ी मे्दे सदया जाये तो आप िोगो्को कोई सदक्​्त है? तीनो्ने िमझा सक सवधायक ने पी रखी है इिसिए इि तरह की बाते्कर रहा है. वे घबराये सक उनके आने का मकिद पूरा होगा सक नही्. सवधायक ने उनके कानो् के पाि अपना बड्ा िा मुंह िे जाकर कहा,‘आप िोगो् को तैयार कीसजए. सकिी तरह एक बार मोहल्िा खािी करवा दीसजए. सफर हम देख िे्गे. िोगो् िे कहे्गे सक हम उन्हे् एक-एक फ्िैट दे्गे अपाट्मस टे् मे.् सरपेयसरंग के नाम पर उन िोगो्को


सनकािा जा िकता है. आप िोगो् को िमझाइए. हम नोसटि तैयार करवाते है्.’ जामुन प्​्िाद को स्कीम िमझ मे्आ गयी. वे िमझ गये सक एमएिए उनिे चाहता क्या है. अगिे ही पि रामफि चौधरी के सदमाग की बत्​्ी जि उठी. टेनी समयां के जेहन मे् भी घनघनाहट हुई. तीनो् ने एक िाथ कहा- ‘हां, िर. करवाइए न. बड्ा अच्छा रहेगा.’ सवधायक ने कहा, ‘हमारा भी फायदा आपका भी फायदा. िेसकन अभी इि बात को अपने तक ही रसखए. सकिी को पता चि गया तो गुड्-गोबर हो जायेगा. पहिे स्वच्छता असभयान िफि करवाइए.’ ‘उिी के सिए तो हमिोग आए है्.’ जामुन प्​्िाद ने सवधायक को िमझाया सक बौका इि काय्सक्म को िफि नही्होने चाहता. इिसिए जान-बूझकर गाने के िमय खड्ा हो जाता है, सजि​िे बच्​्ेगित गाना गाने िगते है.् काय्क स म् के सदन भी वह वैिा ही करेगा. सवधायक ने उनकी हां मे् हां समिाते हुए कहा सक मुझे तो पहिे िे ही शक था. िेसकन मै्क्या कर िकता था. अब आप िोग कह रहे है्तो... सवधायक ने तुरंत एिपी को फोन समिाया. अगिे सदन बौका जब अपने इंस्टीट्​्ूट िे घर िौट रहा था, तब रास्​्े मे् उिे सगरफ्तार कर सिया गया. कोसशश यह की गयी थी सक उिकी सगरफ्तारी इि तरह हो सक सकिी को पता न चिे. पर उिके एक छात्​्ने देख सिया था. वह दौड्ा हुआ कािापानी आया और शोर मचा सदया सक बौका को पुसि​ि पकड्कर िे गई है. शुर् मे्िोगो्ने इि बात को गंभीरता िे नही्सिया, िेसकन जब देर रात िोगो् ने बौका के घर पर तािा िटकते देखा तो उन्हे्यकीन हो गया. पूरे मोहल्िे मे् िनिनी फैि गयी. स्वच्छता असभयान की वजह िे सवधायक के आने-जाने िे िोगो् को िगा था सक प्​्शािन का रवैया कािापानी के प्​्सत बदि रहा है. उनमे् थोड्ी उम्मीद जागने िगी थी, िेसकन बौका की सगरफ्तारी की खबर ने उनकी आशाओ्को रौ्द डािा. खािकर नौजवानो् मे् बहुत ज्यादा आक्​्ोश था. उनमे्िे कुछ को शक था सक कही् बौका के बाद अब उन्ही्का नंबर न हो. िेसकन वे डर नही्रहे थे. उनके भीतर िरकार के प्​्सत गहरा आक्​्ोश भड्क रहा था. एक-एक कर िारे नौजवान बौका के घर के आगे जमा होने िगे. तभी उन्हो्ने देखा सक दो गास्डयां वहां आकर र्की. उनमे्िे कुछ पुसि​ि वािे और कुछ िादे कपड्े मे् अफिर जैिे सदखने वािे िोग उतरे. एक पुसि​ि वािे के िाथ बड्ा कुत्ा भी था. वे िब टीिे की तरफ बढ्ने िगे. वहां र्ककर थोड्ी देर वे बाते्करते रहे सफर िौटने िगे. उन्हे् देख एक िड्के को न जाने क्या िूझा. उिने जोर िे कहा-‘बौका

को सरहा करो.’ तभी अचानक जामुन प्​्िाद प्​्कट हुए और उि िडके की तरफ दौड्े, ‘अरे तुम िोगो्का सदमाग खराब हो गया है. क्यो्उि बौका के चिते पूरे मोहल्िे के सिए आफत बुिाना चाहते हो.’ तभी भीड्मे्िे आवाज आयी, ‘तो क्या हम चुप होकर तमाशा देखते रहे्. वो िोग जो चाहे करे, और हम मुहं पर तािा िगाये रहे.् इिीसिए तो हम िोग का ये हाि है. हम आजतक चुप रहे पर अब चुप नही् रहे्गे.’ भीड् िे एक और आवाज आयी. अगिे ही पि जोर जोर िे नारे िगने िगेः बौका को सरहा करो, सरहा करो, सरहा करो. तभी एक िड्के ने कीचड्के ऊपर जमाई गयी् ई्ट उठाकर फे्क दी. बि सफर क्या था. वहां मौजूद अनेक िड्के ई्टे् उठा-उठाकर इधर-उधर फे्कने िगे. वहां बनाया गया रास्​्ा बब्ादस हो गया. तीनो्वीआईपी दौड्ते हुए अपनेअपने घर आये. टेनी समयां ने जल्दी-जल्दी अपने िामान बांधे और अपनी पत्नी िे कहा, ‘कोई मुझे खोजने आये तो कह देना मेरी खािा का इंतकाि हो गया है. इिसिए मै् चिा गया हूं.’

जब वे तीनो़चुपचाप मोहल़ले से चंपत हो रहे थे, कालापानी मे़यह गाना गूंज रहा थाः सारे जहां से गंदा यह मोहल़ला हमारा. जामुन प्​्िाद ने भी घर छोड्ते हुए अपनी बहू िे कहा, ‘कोई पूछे तो कह देना सक चाचा अचानक बीमार पड्गये िो गांव जाना पड्ा.’ रामफि चौधरी का बहाना था सक नानी गुजर गयी्है्, िो जाना पड्ा. जब वे तीनो् चुपचाप मोहल्िे िे चंपत हो रहे थे, कािापानी मे्यह गाना गूज ं रहा थाः िारे जहां िे गंदा यह मोहल्िा हमारा. िुबह-िुबह जब िोगो् की नी्द खुिी तो िब कुछ रोज जैिा ही था, बब्लक कुछ ज्यादा ही शांसत थी, छुटी के सदनो् की तरह. दो-तीन सदनो्िे जो कािापानी नही्सदखायी दे रहा था, वह आज सफर अपने पूरे बहाव के िाथ नजर आ रहा था. कुछ ई्टे् इधर-उधर सबखरी थी्. अिबत्​्ा टीिा कुछ िाफ और खािी-खािी िा सदख रहा था. खदेड् सदये गये कुत्े और िुअर वापि आ गये थे. िोग जब घरो्िे बाहर सनकिे तो वे एक-दूिरे को िवासिया सनगाहो् िे देख रहेथे. तभी कही् िे आवाज आई-स्वच्छता असभयान टांय-टांय सफस्ि. एक दूिरी आवाज आई-िरकार डर गयी बे. बौका भइया भी

छूटकर आ गये. हमारा आंदोिन िफि हुआ. इंकिाब सजंदाबाद. बहुत िे नौजवान बाहर सनकिकर टीिे पर जमा हुए. वे एक-दूिरे िे गिे समि रहे थे, हाथ समिा रहे थे. िब कह रहे थे सक अब जल्दी ही एक बड्ा आंदोिन शुर्सकया जाये इि मोहल्िे के िुधार के सिए. िड्क बनाने के सिए, वाटर िप्िाई सनयसमत करने के सिए. मकानो् की सरपेयसरंग के सिए. पूरे कािापानी मे् जश्न का माहौि बन गया, तीन घरो्को छोड्कर. करीब शाम तीन बजे के आिपाि एक घर मे्कुछ िोग टीवी देख रहे थे. उनमे्उि घर मे् रहने वािे पसरवार के अिावा पड्ोि के भी कुछ िोग थे. मकान मािसकन ने अचानक िमाचार िगा सदया. एक खबर के आते ही िबकी िांिे् थम िी गयी्. एक खूबिूरत एंकर ने िूचना दी: शहर मे् स्वच्छता काय्सक्म की शुर्आत. मुख्यमंत्ी ने कािापानी िे इिकी शुर्आत की. इि मौके पर स्थानीय सवधायक भी मौजूद थे. खबर के िाथ जो सचत्​्आ रहा था, उिमे् मुख्यमंत्ी बड्ेझाड्​्िे िफाई करते सदखे. िोगो् ने गौर िे देखा, यह काय्सक्म दरअि​ि कािापानी के बगि के पाक्फमे्हो रहा थ. िोगो् ने उिे उि निके िे पहचाना सजि​िे वह पानी भर कर िाते थे. खबर मे्काफी िारे िोग सदख रहे थे पर एक भी कािापानी का नही्था. तभी कुछ टीवी दश्सक उठकर बाहर भागे और उन्हो्ने कुछ और जगहो्पर टीवी देख रहे िोगो् को इिकी िूचना दी. वह खबर िबने देखी. वे िकते मे् आ गये. कुछ बुजुग्ो् ने उन िड्को् का मजाक उड्ाना शुर् सकया, जो आंदोिन करने की बात कर रहे थे. उनका कहना था सक बौका जर्र छूटकर आ गया है पर दूिरे िोग अब पकड्े जाये्गे. अचानक उत्िव का माहौि जैिे मातम मे् बदि गया. तीनो्वीआईपी अगिे ही सदन प्क ् ट हो गये. उन्हे् सकिी ने मोबाइि पर िब कुछ बता सदया था. उन्हो्ने भी घूम-घूमकर बयान सदया सक िीआईडी वािो् ने उन िड्को् के बारे मे् पता कर सिया है सजन्हो्ने स्वच्छता असभयान मे्बाधा डािी है. इिका नतीजा यह सनकिा सक कुछ िड्को् को उनके मां-बाप ने जबद्सस्ी अपने सरश्तेदारो् के यहां भेज सदया. वीआईपी बड्े उत्िाह के िाथ एक सदन सवधायक के घर पहुंचे, िेसकन घंटो्इंतजार के बाद उन्हे्बताया गया सक एमएिए िाहब कही् चिे गये है्. दरअि​ि सवधायक ने अपनी योजना को कुछ सदनो् के सिए टाि देने का फैि​िा सकया था.िरकार एक बार सफर इि मोहल्िे िे दूर हो गयी.धीरे-धीरे िब कुछ पहिे जैिा चिने िगा. बौका की आवाज उिी तरह िुनाई देती-िारे n जहां िे गंदा. शुक्वार | 1 िे 15 नवंबर 2015 57


सावहत्य/कववता निष्णु खरे वसरष्​्कसव,आिोचक,अनुवादक और सफल्म िमीक्​्क. प्​्मुख कसवता िंग्ह: खुद अपनी आंख िे,िबकी आवाज के पद्​्ेमे्, काि और अवसध के दरम्यान,पाठांतर, आिोचना की पहिी सकताब. सवदेशी िासहत्य िे कई अनुवाद.

सुंदरता एक बहुत िुंदर सचसडया न बहुत छोटी न बडी आम की बौराई डाि पर बैठी हुई सजिे देखते रहने का सदि हो एक बहुत िुंदर सततिी न बहुत छोटी न बहुत बडी डाि की बौरो्पर मंडिाती बैठती उडती सजिे हथेिी पर बैठािने का सदि हो क्या सचसडया मे्इतना िम्मोहन था या अपने गहरे रंगो्िे बौरो्और डासियो्मे्वह इतनी यकिार हो गयी थी सक सततिी उिे देख न िकी जबसक सचसडया उिके चटख रंगो् और मंडिाने को शायद एकटक देख रही होगी सचसडया और सततिी अब ऐिे दीख रहे थे जैिे परस्पर एक अिंभव चुंबन मे् दोनो्परस्पर मुख छोडना न चाहते हो् सततिी के पंख वस्​्ो्की तरह सफि​ि नीचे पस्​्तयो्के ति तक सतरते गये उिका थरथराता शरीर सचसडया की जीभ िे आत्मिात हुआ तृब्पत के बाद सचसडया िंयत्ा हुई सफर उिने जो गाया वह उिकी िुंदरता जैिा ही िुंदर था उिमे्पराग और मधुर मधु थे उि काि िांझ हो रही थी डूबते िूरज को वह कब तक बैठी देखती उिे िौटना था अपने वृक्पर अपने नीड को जहां सकिे पता कौन-कौन उिकी प्​्तीक्​्ा कर रहा होगा िौट पाती यसद शाम को तो वह सततिी कहां िौटती? क्या वहां उिकी बाट जोही गयी होगी ? दूिरी सततसियो्का यह िोचने-कहने का ढंग कैिा होता होगा सक वह नही्आयी अभी तक ? नीचे अपनी बांबी मे्िे जाती हुई िाि चीसटयो् 58 शुक्वार | 1 िे 15 नवंबर 2015

िे छुडाकर एक बच्​्ी ने अिबत्​्ा िहेज कर रखे अपनी सकताब मे् दो वह िुंदर चटख पंख जब तक वह बचे

आलैन

जमी्पर पेशानी सटकाये हुए यह कौन िे सिजदे मे्है अपने सिए हौिे-हौिे िोरी गाती और तुझे थपसकयां देती उन्ही्िहरो्को देखते हुए तेरी आंखे्मुंदी हो्गी तू अभी-भी मुस्कराता-िा दीखता है

हमने सकतने प्यार िे नहिाया था तुझे सकतने अच्छे िाफ़ कपडे पहनाये थे तेरे घने कािे बाि िंवारे थे तेरे नन्हे पैरो्को चूमने के बाद जूतो्के तस्मे मै्ने ही किे थे गासिब ने िताने के सिए तेरे गािो्पर गीिा प्यार सकया था सजिे तूने हमेशा की तरह पो्छ सदया था

हम दोनो्तुझे खोजते हुए िौट आये है् एक टुक सिरहाने बैठे्गे तेरे नी्द मे्तू सकतना प्यारा िग रहा है तुझे जगाने का सदि नही्करता

और अब तू यहां आकर इि गीिी रेत पर िो गया

िेसकन तू है सक िौट कर इि गीिी रेत पर िो गया तुझे क्या इतनी याद आयी यहां की सक तेरे सिए हमे्भी आना पडा

दूिरे सकनारे की तरफ़ देखते हुए तेरी आंख िग गयी होगी जो बहुत दूर नही्था जहां कहा गया था तेरे बहुत िारे नये दोस्​् तेरा इंसतजार कर रहे है् उनका तिव्वुर करते हुए ही तुझे नी्द आ गयी होगी सक़श्ती मे्सकतने खुश थे तू और गासिब अपने बाबा को उिे चिाते देख कर और अम्मी के डर पर तुम तीनो्हंिते थे तुम जानते थे नाव और दसरया िे मुझे सकतनी दहशत थी तू हाथ नीचे डािकर िहरो्को थपकी दे रहा था और अब तू यहां आकर इि गीिी रेत पर िो गया तुझे देख कर कोई भी तरद्​्द मे्पड जायेगा सक इतना ख़ूबर्बच्​्ा

तू ख्वाब देखता होगा कई दूिरे िासहिो्के तेरे नये-नये दोस्​्ो्के तेरी फ़ूफ़ी तीमा के

चि अब उठ छोड इि िद्सरेत के सबछौने को छोड इन िहरो्की िोसरयो्और थपसकयो्को नही्तो शाम को वह तुझे अपनी आग़ोश मे्िे जाये्गी समिे्तो समिने दे फ़ूफ़ी और बाबा को रोते हुए कही्बहुत दूर अपन तीनो्तो यही्िाथ है्न छोड दे ख्वाब नये अजनबी दोस्​्ो्और नामािूम सकनारो्के देख गासिब मेरा दायां हाथ थामे हुए है तू यह दूिरा थाम उठ हमे्उनी्दी हैरत और ख़ुशी िे पहचान हम दोनो्को िगाने दे गिे िे तुझे आ तेरे जूतो्िे रेत सनकाि दूं चाहे तो देख िे एक बार पिट कर इि िासहि उि दूर जाते उफ़क को जहां हम सफ़र नही्िौटे्गे चि हमारा इंसतजार कर रहा है अब इिी ख़ाक का दामन. n िीसरया के शरणाथ्​्ी बच्​्ेआिैन का शव


िरेश सस्सेिा वसरष्​्कसव. दो कसवता िंग्ह प्​्कासशत: िमुद्पर हो रही है बासरश, िुनो चार्शीिा. दो नाटक: आदमी का आ, प्​्ेत. सफल्म सनद्​्ेशन के सिए राष्​्ीय सफल्म पुरस्कार. पहि िम्मान और ऋ तुराज िम्मान िे पुरस्कृत.

पुत्-ऋर मातृ-ऋ ण हम इि तरह भी चुकाते है् सक सपता के कहने पर परशुराम मां का सिर धड्िे अिग कर देते है् सपताओ्की परेड मे् अिंभव है अि​िी सपता की सशनाख्त क्यो्सक इि िमय सजिके पाि सजतनी बड्ी थैिी है वह उतना बड्ा सपता है मातृ -ऋ ण इि तरह भी चुकाते है्, हम सक अगर गाय को कह दे् माता तो बूढ्ी होते ही उिे पीट कर घर िे सनकाि सकिी घूरे पर प्िाब्सटक खाकर मरने के सिए छोड्देते है् धरती को कह दे्माता तो उिकी हसरयािी को नोच कर बंजर बनाकर छोड्देते है् नदी को माने्माता तो उिे मिमूत्िे भर कुंभीपाक बनाकर छोड्देते है् नासगन अपने बच्​्ो्को खुद ही खा जाती है िेसकन कुछ बच्​्ेऐिे भी होते है् जो अपनी मां को खा जाते है् भारत माता! तेरे कुछ िपूत अब कर रहे है्तेरे नाम का जाप अपनी खैर मना और पुत्-ऋ ण चुकाने के बारे मे्िोच.

वीरावारदरन क्या यह अजीब नही् इि शहर मे् कोई स्​्ी वीणा बजाना नही्जानती कई सदनो्िे गिी-गिी मे्हो रहा है शंखनाद चौराहे-चौराहे, दुग्ासएं कर रही्है्दैत्यो्का मद्सन

दैत्य, सजनके बड्े-बड्े दांत बड्े-बड्ेिी्ग और बड्े-बड्ेपेट जबसक मद्सन तो हो रहा उनका सजनके न दांत है्, न िी्ग िसदयो्िे भूखे, सजनके सपचके है्पेट सनरीह बस्​्चयो्पर हो रहे बिात्कार और घर-घर मे्दुग्ासएं हो रही है्अपमासनत

वैज्ासनको तुम्हारी िारी खोजे्और असवष्कार तो उनके पूव्सज िसदयो्पहिे कर चुके है् तुम क्यो्नष्​्कर रहे हो देश के बहुमूल्य िाधन और िमय बि, वे पहुंचने ही वािे है् तुम्हारी प्​्योगशािाओ्के प्​्वेश द्​्ार पर स्वागत करो्उनका.

ऐिे मे्सकतना अजीब िगता यसद कोई स्​्ी कही्वीणा बजा रही होती.

इस बाररश मंे

धम्षसेनाएं

सजिके पाि चिी गयी मेरी जमीन उिी के पाि अब मेरी बासरश भी चिी गयी

अचानक धम्सिेनाएं गोमूत्िे पसवत्​्स्​्तशूिो्को िहराती हुई् नगर वीसथयो्मे्सवचर रही है् पहिे वे उड्ाये्गी सवधस्मसयो्के सिर सफर वे उनके िाथ जिाकर धुएं मे्उड्ा दे्गी उनकी पुस्के्और सवचार और नािंदा की महान परंपरा मे्शासमि हो जाये्गी नािंदा, जहां िे गुजरते हुए आज भी जिे हुए शल्दो्की गंध आती है उनके नेजो्की नोक पर है् गैिीसियो, ब्​्ूनो और आय्सभट के सिर

अब जो सघरती है्कािी घटाएं उिी के सिए सघरती है् कूकती है्कोयिे्उिी के सिए उिी के सिए उठती है धरती के िोने िे िो्धी िुगंध अब नही् मेरे सिए हि नही्बैि नही् खेतो्की गैि नही् एक हरी बूंद नही् तोते नही्, ताि नही्, नदी नही्, आद्​्ा नक्​्त्नही् कजरी मल्हार नही्मेरे सिए सजिकी नही्कोई जमीन उिका नही्कोई आिमान.

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शुक्वार | 1 िे 15 नवंबर 2015 59


कववता इब्बार रब्बी वसरष्​्कसव और पत्​्कार. जन्म 2 माच्स1941. चार कसवता िंग्ह प्​्कासशत: खांिती हुई नदी के सिए, िोगबाग, घोषणापत्​्, वष्ास मे्भीगकर, कसव ने कहा.

उतरना वष्ास की गीिी रात मे् मां, तुम उतरती हो! फूिो्की तरह सखिसखिाती हरी गोद तुम आती हो मां! आता है पुरानी िाड्ी का आंचि जूने और राख की गंध दाि की बघार ताजा िब्लजयो्की महक फूिी हुई रोटी की भाप मां, तुम उतरती हो आता सचस्​्टयो्का जवाब आय्ासवत्सपर बरिते वेद अरब मे्कुरान, यर्शिम मे्इंजीि मैिोपोटासमया मे्ज्​्ान बेसबिोन मे्बगीचे, पाटसिपुत्मे्एश्​्य्स उज्​्सयनी मे्कासिदाि छायावाद मे्कामायनी उतरती हो मां तुम!

अरमयास सचट्​्ी सिखता है बीि वष्सका ‘बच्​्ा’ अखबार मे् सवज्​्ापन देता है बेटी का सपता

60 शुक्वार | 1 िे 15 नवंबर 2015

सदल्िी दरवाजे के बाहर हसरदािपुर की िड्क पर सजज्​्ािु की बगीची और ठंडी िड्क पर मां को खोजता है बच्​्ा खोजता है चूिने को िूती िाड्ी का आंचि झुनझुना गोरे माथे पर िाि िाि सबंदी मां की तिाश मे्सचट्​्ी सिखता है बच्​्ा कही्िे नही्आता कोई जवाब बाि नोचता है िड्की का सपता वष्ास की रात मे्रोशनी के कीड्ो्के बीच चीसटयां कुचिता करवट बदिता है काई िगी छत के गीिे फश्सपर िीमे्ट की शफ्फा िीढ्ी पर िर पटकता है िरस्वती की तिाश मे्अनाथ बच्​्ा चो्च मे्दाने के सिए चूजा

इंतज्ार िेम्युि बेकेट को गोदो का इंतजार है खुदरा व्यापारी को वािमाट्सका नयी दुसनया को कोिबंि भारत को वास्को िद्​्ाम हुिैन हूं बुश का इंतजार है र्ि को गोव्ासचोफ का इंतजार सवदभ्सके सकिान को मो्टाना, कारसगि, हाइस्​्बड का इंतजार

काशी मे्कबीर को मैनचैस्टर, िंकाशायर का इंतजार घंटेवािा कैडबरी को ताके शब्सत, िस्िी, ठंडाई को पेप्िी का इंतजार बहादुर शाह, तात्या, िक्​्मी बाई को हडिन, मैकफि्सन, सनकल्िन क्िाइव, हेब्सटंग्ि, बे्सटक का इंतजार मंडेिा को बेस्डयो्का तीिरी दुसनया को एड्ि भगत सिंह को फंदे का सहंदी हूं अंग्ेजी का इंतजार है.

हवा से जूझना एक ही वृत्पर घूमना है चांदनी की नही्हवा का पसरमि बांट कर तुम को दद्सिे झूमना है न ऊपर न नीचे न अंदर न बाहर सदनभर रातभर युगो्-युगो्तक चिकर जाऊं कही्नही् जड्सदया जहां, वहां िे सति भर नही्सहिना स्वयं का कॉयि फूंक कर घूमना-घूमना उम्​्भर गोि-गोि घूमना उम्​्के बाद घूमना जन्म िे पहिे मरण के बाद हवा िे जूझना. n


मदि कश्यप जाने-माने कसव और आिोचक. प्​्कासशत कृसतयां: िेसकन उदाि है पृथ्वी, नीम रोशनी मे्, कुर्ज, दूर तक चुप्पी,अपना ही देश, िहूिुहान िोकतंत्

स्​्ी-पुर्र: पुर्र पक्​् जब एहिाि हुआ सक िब कुछ पा सिया है तभी िब कुछ खोता हुआ िगा तुम दुसनया की िबिे िुंदर स्​्ी थी जब बांहो्मे्और कर रही थी प्यार तभी तुमने कहा: स्​्ी जैिा कुछ भी नही्बचा है मेरे भीतर तुम मे्भी जो मद्सजैिा कुछ बचा हो तो उिे छोड्दो और करो प्यार उिी क्​्ण एक-दूिरे को बांहो्मे्जकड्ते हुए हमने िबिे पहिे सजिे छोड्ा वह था भय न तो अिफिता हमे्डरा रही थी न ही िफिता िारा िंकट तो स्​्ी-पुर्ष होने तक ही था अब हम वह नही्थे जो थे एक अदद नकार िे बदि गयी थी स्वीकार की दुसनया ऐिा भी नही्सक हमने सकंही अिग अिग दुसनया मे् अपने-अपने होने का मतिब पा सिया था हमारा होना अब भी अधूरा था हमे्प्यार की उतनी ही जर्रत थी सजतनी क्​्ांसत की मन को कही् गहरे िगा क्​्ांसत की तरह प्यार पर भी हमारा बि नही्है खोना हमारी सनयसत थी सजि हम उपिब्लध की तरह देख रहे थे उि खोने को ही एक बार पा िेना चाह रहे थे सजंदगी एक जिता हुआ सिगरेट थी सजिे मै्ने उंगसियो्मे्फंिा रखा था िेसकन कश िेना भूि गया था जब आग ने अंगुसियो्को छुआ तब जाकर उिके होने का एहिाि हुआ स्पाइरोगाइरा के छोटे िे दूह की तरह थी हमारी इच्छाएं सजतनी जीसवत उतनी ही मरी हुई काि उि पर कुंडिी मार कर बैठा था हमने जिा सदया था ईश्​्र का कटारनामा स्याह कागज जो भुरभुरा कर सगरा था िमय की धरती पर सफर भी उिमे्चमक रहे थे कुछ अक्​्र

पहिा िवाि ही आसखरी िवाि बन कर िौटा था क्या मतिब हमारे होने का जो हम स्​्ी-पुर्ष न हो् हम उि िवाि को सफर िे नामंजूर कर रहे थे.

शीर्षकरवहीन प्​्ेम एक

जैिे खािी िड्क करती है प्​्तीक्​्ा चिकर गुजरने वािे कदमो्की जैिे समट्​्ी की खान धंिने िे पहिे तक जोहरी रहती है कुमार का बाट जैिे पड्ती खेत की खुदरी देह अकानती रहती है हिवाहे की आहट कुछ वैिे ही करता रहा मै्तुम्हारा इंतजार काश, प्​्तीक्​्ा कोई खुशबू होती जो फैिती चिी जाती तुम तक

दो

आऊंगा इि तरह आऊंगा सक दरवाजा जरा िा भी नही्चरमरायेगा वहशी रखवािे ताकते ही रह जाएंगे

इि तरह पैठूंगा तुम्हारी आत्मा मे् सक तन को भी पता नही्चिेगा जैिे अमर्द मे्घुिती है समठाि सखच्​्ेकैिेिेपन को टसरयाती हुई वैिे ही घुिूंगा अनंत चोर दरवाजो्िे पानी मे्समिे ग्िूकोज िा घुि जाऊंगा फैि जाऊंगा तुम्हारी पूरी देह मे्

तीन

एक झरना फूट पड्ा है मेरी आत्मा मे् देह को भेद कर बाहर आ रही है् उिकी फुसहयां मै्गीिे तौसिए की तरह सिपट जाना चाहता हूं िेसकन तुम तो अपनी आदी ओदी इच्छाओ्को िुखाने चिी गयी हो ईश्​्र के आंगन मे्

चार

रेत नही् मुट्ी मे्बंद गुिाि की तरह है हमारा प्यार झड्जाएगा पूरा का पूरा तब भी छोड्जायेगा सनशान काि की हथेिी पर.

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शुक्वार | 1 िे 15 नवंबर 2015 61


कववता पंकज चतुि्ेदी जाने-माने कसव और आिोचक. प्​्कासशत कृसतयां: एक ही चेहरा, एक िंपूण्सता के सिए, रक्तचाप और अन्य कसवताएं (कसवता) सनराशा मे् भी िामथ्य्स,जीने का उदात्​्आशय, रघुवीर िहाय.

उिके कंधे िे िटकता था सरवॉल्वर यो्वह था रोब ग़ासिब करने के वास्​्े मेहमानो्या नव-वधू को डराने के सिए नही् मगर उिके कारण शादी के बाद होनेवािे प्यार की प्​्कृसत िे भय िगता था

जो संवाद होना चारहए था लक्​्र वे जो िही िमझकर करते है् दंगो्िे िेकर हत्या और सवध्वंि तक गोडिे की तरह रंगे हाथो् पकड सिये जाये् तो बात और है वन्ास आम तौर पर स्वीकार नही्करते सक भिे िंसवधान का उल्िंघन हो पर उन्हो्ने उिे िही जानकर सकया है यानी जो वे करते है् उिके सिए सजम्मेदार होना तकिीफ़ उठाना या िजा पाना नही् बब्लक उिके जसरए भय और वैमनस्य फैिाकर हुकूमत चिाना चाहते है् ये िारे िक्​्ण अपरासधयो्के है् नेताओ्के नही्

अगर मै्ने तुमसे बात की मेरा मोबाइि बज रहा है उिमे्तुम्हारा नाम सिखकर आ रहा है मै्जान गया हूं सक यह तुम हो इिसिए उिे उठाऊंगा नही्

62 शुक्वार | 1 िे 15 नवंबर 2015

तुम्हे्मेरी समत्​्ता या नही्तो मेरे ह्दय की कोमिता पर यक़ीन है यो्तुम इि िंभावना पर िोचते हो सक तुम्हारा नंबर मेरे पाि नही्है इिसिए तुम मुझे एिएमएि करते हो : यह मै्हूं तुम्हारा पुराना दोस्​् एक िंकट मे्पडा हूं मुझे तुम्हारी मदद की जर्रत है अब तो मै्यह फ़ोन और भी नही्उठाऊंगा क्यो्सक जान गया हूं सक तुम्हे्मुझिे महज बात नही्करनी थी बब्लक मुझे तुम्हारी मदद करनी पड िकती है देखो िच सिफ़्फयह नही्है सक मै्तुम्हारे सिए मर चुका हूं और सवज्​्ान ने मुझे िुसवधा दी है सक मै्तुमिे वह नफ़रत कर िकूं जो पहिे नही्कर िकता था बब्लक यह भी है सक मै्अब फ़ासिस्टो्की िेवा मे्िगा हूं उिी की बदौित जीसवत और िशक्त हूं और अगर मै्ने तुमिे बात की वे मेरी ताक़त छीन िे्गे मुझे मार दे्गे

सज्​्ा-साधन सववाह मे्वरमािा के िमय दूल्हे की वेश-भूषा मे् िज्​्ा के अन्य िाधनो्के अिावा

एक सदन िहिा उिे अपने िमीप पाकर मै्िहम गया िपने मे्चिते-चिते जैिे उिका िौ्दय्ससमिे उिने कुछ मुझिे कहा सजि​िे बि यही िगा उिे कुछ और कहना था मै्ने भी कुछ कहा मगर यह जानते हुए यह उिका उत्​्र नही् जो वह मुझिे कहना चाहती थी सफर दूिरी व्यस्​्ताएं थी् सजनमे्खो गया हमारा िाब्ननध्य जो िंवाद होना चासहए था उिके सिए जर्री था अनंत सदक्​्ाि जबसक उत्िव हमारे समिने की जगह थी उत्िव ही सबछुडने की वजह

हारन उत्​्ेजना मे्वे भाषा के बाहर चिे गये चुनौती थी पतन पर क्​्ोभ की असभव्यब्कत की मै्ने कहा : आप अपने सशल्प की हासन क्यो्कर रहे है्?

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कुमार अंबुज जाने-माने कसव और कथाकार. जन्म 13 अप्​्ैि 1957 . प्​्कासशत कृसतयां: सकवाड्, कू्रता, असतक्​्मण, अनंसतम, अमीरी रेखा, इच्छाएं. अनेक पुरस्कारो्िे िम्मासनत.

इतनी धूल इतनी धूि चिी आती है जीवन मे् सक मरते दम तक कोई नही्छुड्ा िकता इि​िे पीछा सकिी भी चीज पर बैठने के सिए वह पहिे ही पैदा हो गयी होती है दराजे्, किाकृसतयां, सकताबे्और सवचार उिकी खाि पिंद है् चीजो्िे उिे झाड्ते हुए केवि खीझ है जो बारीक धूि की तरह झरती रहती है आपके भीतर कही् इधर सिद्​्ांत और आदश्सपैदा हुए नही्सक उधर उन पर सगरने िगती है धूि वह जमा हो जाती है उन ऊंचाइयो्पर भी जहां आपके हाथ आिानी िे पहुंचते नही् वह पंखो्, जासियो्, मत्सबानो्और तिवीरो्पर ही नही् आपकी मूंछो्और सिर के बािो्पर भी हो जाती है िवार आपके फेफडो्और सपत्​्ाशय की थैिी मे्तो वह इकट्​्ा हो ही रही है िगातार वक्तव्यो्, नैसतक सशक्​्ाओ्और उपदेशो्मे्यही सकरसकराती है अंतसरक्​्मे्, नक्​्त्ो्मे्भी है उिी का िाम्​्ाज्य उिके अपने बवंडर है्और पव्सत श्​्ंृखिाएं वह आपके घर की दीवार मे्िगे पत्थर की तरह िख्त है और कभी-कभी आप उिे उड्ा देते है्एक फूंक िे ही मुब्शकि होती है जब वह जमा हो जाती है सदमागो्मे् सफर वही है जो बगूिो्की तरह आंसधयो्की तरह प्​्कट होती है यही है जो जम जाती है पारदश्​्ी चीजो्पर सफर कोहरा हमारी ऐन आंखो्के आगे फैिता है यह प्​्ेक्ाग्​्ह की कुस्िसयो्पर समिती है और न्यायाधीशो्के सनण्सयो्मे् जरा िी चूक हो तो यह उड्कर बैठ जाती है कहासनयो्-कसवताओ्की पंब्कतयो्के बीच मे्भी एक सदन िबिे ताकतवर आदमी यकायक सगरता है- ‘धप्प!’

यह धूि मे्सगरने की आवाज है सनम्ासण मे्उड्ती है वह ध्वंि के बाद भी बची रहती है सिफ्फवही धूि के सखिाफ िारे असभयान आसखर धूि मे्समि जाते है्.

कही्कोई ज्मीन नही् िब तरफ है्नवसनम्ासण की आवाजे् और सनम्ासण केवि सबल्डर कर रहे है् बाकी िोग सिफ्फबेच रहे है्अपनी जमीने् जज्सर घरो्की नीिामी ही बेहतर उपाय अब िारी जमीन सबल्डरो्के पाि है िारी तरकीबे्, अध्यात्म और दश्सन सबल्डरो्के पाि जो खरीद िकते है्वे जीसवत है् बाकी मर चुके है् या केवि उनकी छाया-प्​्सतयां चि-सफर रही है् सबल्डर अब घर का सवज्​्ापन नही्देते चेतावनी देते है्सक आज िे िको तो िो कि िे तुम सिफ्फबेघर रहोगे तुम चाहते हुए भी आज उि घर की कीमत दे नही्िकते और परिो्देखते हो सक गेहूं की, कंबि की, चश्मे की कीमत िवाया हो गयी है िेसकन उिी घर की कीमत तीन गुना यह जादुई यथाथ्सवाद है या कमीनगी सक सजि जमीन पर भी मै्पांव रखता हूं वहां एक कुत्ा भौ्कता है बताता हुआ सक वह सकिी की व्यब्कतगत िंपस्​्त है हर जगह मे्सनजी होने की ताकत की िूचना बोड्सपर सिखी है अब कोई कसव, सचत्​्कार, दाश्ससनक या राजनीसतज्​्नही्कहता ‘यहां िे देखो, यह दुसनया ऐिी है और िंभव है’ एक सबल्डर कहता है देखो, इि ब्​्ाॅशर मे्देखो, ‘यह दुसनया इतनी ही है, िुंदर है और िबके सिए मुमसकन नही्’ फि​िे्जिा दी गयी है् िल्फाि खा चुके है्सकिान और बचे-खुचे िोग सबल्डरो्िे ही रोजी मांग रहे है् पृथ्वी सबल्डर की डायसनंग टेबुि पर रखा एक अधखाया फि सकिी के पाि पेशाब करने िायक जमीन का कोना भी नही् िेसकन सफिहाि यह सकतना अजीब है, हास्यास्पद और सनष्फि है सक जब चैकीदारो्की आंख बचाकर इि शहर मे्कोई राहगीर पेशाब कर रहा होता है तो वह सकिी सबल्डर की बनती दीवार पर ही. n शुक्वार | 1 िे 15 नवंबर 2015 63


कववता आत्मा रंजि चस्चसत कसव. जन्म 18 माच्स1971. कसवता िंग्ह ‘पगडंसडयां गवाह है्. प्​्सतस्​्षत पत्​्-पस्​्तकाओ्और िंपासदत िंग्हो्मे्कसवताएं प्​्कासशत.

रकताब का सपना चेतना के सकतने ही कोमितम स्पश्​्ो्ने रचा है शल्द का शरीर सदपसदपाते अिंख्य स्पंसदत स्पश्​्ो्िे िबािब सकताब नही्चाहती सचरसनद्​्ा जड्िोहे िकड्ी या पीति की ठंडी जकड्ती गोद मे् चहती है सकताब बार-बार रहे डोिती हाथ दर हाथ बसतयाती रहे नजरो्िे स्पश्​्ो्िे रह सिंकती िाफ शफ्फाफ अनुशासित मेजो्पर िज-धज कर न रहे पड्ी ही पड्ी रहे बसतयाती देर तक वहां कोने के ढांिने मे् सबस्​्र पर आड्े-टेढ्े उतान या औ्धे िेटे सकतनी ही शरीर और भाव मुद्ाओ्मे् िोती रहे सिरहाने तिे कई-कई रात पढ्ेजाते अमुक पृष्पर रहे धरी औ्धी सबस्​्र पर या यहां-वहां छोटे-छोटे प्​्तीक्​्ा अंतरािो्का रहे िेती आनंद ऊधम मचाते नन्हे्का पड्ही जाये बचते-बचाते सजल्द के एक छोर पर िड्खड्ाता पैर चाहती है सनकि आये खेतो्तक मकई-ईखो्की कतारबद्​् गव्​्ीिी देह गंध मे्डूब-डूब आये या तैर आये वहां सखिे िरिो्के िमंदर की मादक बयार मे् गोबर गौ्च की खासि​ि देहाती महक बीच टहि आये पशु-रेवड्के पीछे हंकार िगाती देह की 64 शुक्वार | 1 िे 15 नवंबर 2015

कांख मे्दबी रीस्ढयो्पार सनकिे अनाम आवारा सकस्म यात्​्ा पर िौटे तो धूि िनी हो देह पिीने के धल्बे बीड्ी-तंबाकू की आग की कैरोिीन की िीिन की गंध िनी गृहणी िंग पहुंचे कभी रिोई भीतर तवे-झुि​िी उिकी तज्सनी को अपने कोमितम िे िहिाये शासमि हो उिकी तरंग गुनगुनाहट मे् हल्दी-तेि िने हाथो्की बेतरतीब अल्पनाएं दज्सहो छुवन िंग सजल्द मे्देह मे्जहां-तहां नमक मिािो्का कुछ तो समिे स्वाद खूब नहाये छौ्क की महक मे् आिीशान दीवारो्पर टंगे सहरण के कटे सिर की मासनंद नही्होना चाहती वह एटी्क न महि के हरम की शोभा बढ्ाती िजी-िंवरी खूबिूरत रानी की ही मासनंद देखती है िपना सकताब मुब्कत का दराजो्,अल्मासरयो्,मेजो्िे कुिीन िभा कक्​्ो्की कैद िे भी.

मूल्य कैिा िमय है भाई सक िब मूल्यो्पर हावी है िब मूल्यो्िे बडा आज बाजार मूल्य हर कही्चस्पां हर कही्दज्स दृश्य या अदृश्य सनध्ाससरत मूल्यो्की इबारते् क्या कहे् और कहे्सकि​िे सक र्पये दो र्पये मे्

भिे सबक रही हो मासचि यह उिकी कीमत तो नही् सिंकती रोसटयो् या धधकती बस्​्सयो्के आि-पाि खोजे जा िकते है्ऐिे अथ्स क्या कहे् और कहे्सकि​िे बीच बाजार सक चंद सिके्भर नही्हो िकती नमक की कीमत बिात चस्पां की जा रही सनध्ाससरत मूल्य की इबारते् चीजो्पर और चेहरो्पर.

सजावट घर िजाने के सिए खरीद िायी्तुम कुछ कागज के फूि पूरी ि​िक के िाथ सनहारते टांग सदये ि​िीके िे यहां-वहां सनहार के स्पश्सके जादू ने बदि सदया कागजी फूिो्का भी सचरपसरसचत मूि स्वभाव सक िहक उठी्दीवारे् महक उठा घर तुम्हारी अनुपब्सथसत मे् खामोश मुझ्ासते देखे ये कागज के फूि.

जीवन इरतहास नीरतयां जीवन है जीवन की व्याख्याएं व्याख्याओ्के सनष्कष्स सनष्कष्​्ो्की सनस्मससतयां इसतहाि नीसतयां व्याख्याओ्सनष्कष्​्ो्मे् सछपा है सनयंता सछपा है राजा राजा िुिभ तमाम कू्रताओ्और चक्​्वत्​्ी िाि​िाओ्के िाथ.

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िीलेश रघुिंशी जानी मानी कसव. जन्म 4 अगस्​्1969. कसवता िंग्ह: घर सनकािी,पानी का स्वाद,अंसतम पंब्कत मे्. एक उपन्याि एक कस्बे के नोट्ि भी चस्चसत.

अंधेरे मंे अंधेरे से

िोग इतने मूख्सभी नही्सक तुम्हारी िमझदारी की चक्​्ी मे्सपि जाएं िमझदार मूख्ो तुम सकिी के नही्हो और इि तरह सफर कही्के भी नही्हो तुम.

मुझे तारे बहुत अच्छे िगते है् क्यो्सक वो एक नही्बहुत िारे होते है्. मै्अकेिी, सकतनी अकेिी हूं आिपाि फैिे शोर को चीरते हुए बहुत जोर िे चीखना चाहती हूं िड्ना चाहती हूं िेसकन सकि​िे िड्ंूऔर कैिे िडूं? रोशनी की आड्मे्सछपा अंधेरा हंिता है मै्अंधेरे मे्अंधेरे िे िड्ती हूं दूर कही्एक तारा टूटता है भीतर कही्कुछ चटकता है िड्ना सबखरता है , चुप्पी पिरती है एक नही्, हज्ार चोर दरवाजे़ है् सकिी एक मे्मुझे भी घुि जाना है.

एक कलाकार की मां का आत्मकथन तुम बहुत तेज दौड्ते हो पि भर भी पेड्की छांह मे्नही्बैठते दौड्ते हुए खुद िे बाते्करते हो थोड्ा नही्, बहुत ज्यादा हट के हो यह िोच तुम सखिसखिा पड्ते हो सकतने मजेदार और सबंदाि हो तुम और जर्रत िे ज्यादा आरामपंिद भी. इि ऊिजुिूि दुसनया मे् तुम िब कुछ करके देखना चाहते हो असभनय की पाठशािा मे् तुमने जन्म िेते ही िे सिया था प्​्वेश. हुनर को ऐब और ऐब को हुनर मे्बदिते रात-सबरात के प्यारे बंजारे हो तुम मै्तुम्हे्इि िंिार का िव्सश्ेष् बनते देखना चाहती हूं. हर दूिरा पहिे की तरह सदखता है और पहिा तीिरे, चौथे की तरह इि इकिेपन िे टकराते सकतने चोसटि हो जाते हो तुम हर रात स्वप्न मे् तुम्हारे माथे पर रखती हूं बफ्फकी पट्​्ी .

रवरक्कत झुंड मे्होकर भी ये सदखते नही्िमूह मे् यह जब चिते है्एक िाथ तोे बेवजह घेर िेते है्सकतनी िारी जगह.

एक ट्​्ेन करती है तुम्हारा पीछा पटसरयो्के िाथ-िाथ दौड्ते हो तुम तसकए पर िुनती हूं ट्​्ेन की हांफती आवाज पिीने िे िथपथ ट्​्ेन को सवदा करते सबना वजह की दौड्िे खुद को हटाते हंिते हो दूध िे उजिे दांत सिये सकतने स्वाभासवक असभनेता हो तुम. सकतनी भूसमकाओ्मे्जाने सकतनी बार मरना होगा तुम्हे्परदे पर क्यो्न उि​िे पहिे थोड्ा िा मरकर देखूं मै् .

समझदार मूख्ष िमझदार मूख्ो तुम बकवाि को भाषण का र्प देते हो . तुम गा िकते हो, नाच िकते हो, रो िकते हो पौि खुिती देख मौन व्​्त धारण कर िकते हो तुम तमाशबीनो्को जुिूि की शक्ि देते उबि रहे िावे को ठंडा करते हुए मोमबत्​्ी को मशाि का र्प देते हो. इि तरह िड्ाई को शुर्होने िे पहिे ही खत्म कर डािते हो तुम कैिे सवकट सजज्​्ािु मूख्सहो जो पेड्को देख कहते होअहा! सकतना हरा है यह पेड्. बेवजह सकतनी जगह घेरकर बैठे हो तुम

ई्ट-गारा ढोते कक्फश स्वर मे्सचल्िाते बनते हुए घर को घर बनने िे पहिे ही बना िेते है्अपना घर. अधबनी दीवारो्के बीच ऐिे िेटते है्जैिे राजा हो्कही्के पेड्ो्पर िटका देते है्अपने फटे चीथड्े ति​िे मे्पानी भरकर धोते है्जब ये मुंह-हाथ तो कैिी सहकारत िे भर जाता है मन सक पानी की िारी तंगी इन्ही्की वजह िे है इनकी हेकड्ी पर आती है कैिी तमतमाहट िेसकन कुछ कहने िे पहिे िोचना होता है इनका क्या ये तो अधबने घर को छोड्चि दे्गे कही्और सफर सकिी बनते हुए घर को बना िे्गे अपना घर प्याज के िंग िूखी रोटी खाते देख क्या तरि खाना और क्या तो दया करना इनके मोटे सटक्​्ो्पर अब नही्टपकती िार धूि मे्सिथड़्ते मजदूर बच्​्ो्को देख िूझता नही्कोई िाक्​्रता गीत ये कभी राष्​्गीत गाते हो्गे क्या गाते भी हो्गे तो भी जन-गण-मन को कोई दरकार नही्मजदूरो्को. मजदूरो्िे क्यो्इतना सवरक्त हुआ मन सक बनते हुए घर को देख कुछ बनना तो दूर दरकता भी नही्अब कुछ भीतर ये मजदूर अपने जन्म के िाथ कैिी बदहािी िेकर आते है् तगाड्ी मे्ढोते सफरते है् िसदयो्िे परंपरा मे्समिी सहकारत को. n शुक्वार | 1 िे 15 नवंबर 2015 65


कववता माेनिका कुमार चस्चसत युवा कसव. जन्म 1977. सवसभन्न पत्​्-पस्​्तकाओ् और िंकिनो्मे्कसवताएं और गद्​्प्​्कासशत.

एक

( सफल्म ‘आंखो्देखी’ मे्िंजय समश्​्ा की आवाज के सिए ) अनजान नंबर िे फोन करने पर भी िोग कई बार हैिो िे हमे्पहचान जाते है् हम इतरा जाते है् धूि-चढी इि आवाज के बावजूद फानी दुसनया मे्हम कोई तो वजह रखते है् हैिो की आवाजे्पृथ्वी के सनव्ासत को बडी मेहनत और िगन िे भरती है् इन आवाजो्मे्मध्यांतर की तरह बत्सन सगरने की बम फटने की झी्गुरो्की कुहािे, अंधेरे और िापरवाही के कारण सभडती गासडयो्की गम्सतेि मे्जीरे के फूटने की बांध िे र्कते हुए पानी की बच्​्ो्के गुल्बारे फटने की आवाज आती है िेसकन प्​्थम पुरस्कार समिता है हैिो को इिकी सनयसमतता और अनुशािन सनसमत्​् इि मान-पत्​्के िाथ सक हैिो की आवाजे् पृथ्वी को गृहस्थ ग्​्ह तस्दीक करती है् एक िडका अपनी आवाज िुनने के सिए पहाड पर चढ कर सचल्िाता है हैिो जवाब मे्सचल्िाती हुई आवाज आती है हैिो यह िुनकर मुझे िंता की याद आती है िंता बंता को फोन करता है और पूछता है कौन बोि रहा है बंता कहता है मै्बोि रहा हूं िंता कहता है कमाि है यार! इधर भी मै्बोि रहा हूं इि तरह हम हैिो-हैिो करते कमजोर नेटवक्फकी सशकायत करते है् और नैराश्य मे्आंखे्बंद कर िेते है् कुंद हुई आंखे्हर तरफ हैिो देखती है् प्​्श्न मे्हैिो और उत्​्र मे्भी हैिो है जबसक उिने मान सिया वह एक हैिो है सकिी और को पडता हुआ घूंिा उिकी आंख मे्पड जाता है आंख ऐिी खुिती है सक वह िंयुक्त पसरवार के व्यस्​्आंगन मे् िुबह उद्घोष करता है सक वह हैिो नही्है 66 शुक्वार | 1 िे 15 नवंबर 2015

दो

पहिी बार मार खाने के बाद वह िुबक रही थी उिने रोटी खायी उिे िुकून समिा िहेसियो्ने उिकी उपेक्ा की वह रो रही थी उिने मीठा खाया उिे अच्छा िगा उिका सदि टूटा उिे घुटन हो रही थी उिने रोटी खायी उिे हल्का िगा दुखो्के िामने छोटी-मोटी बुस्द, धूत्सता, चािाकी और हास्य बोध सकिी काम नही्आता था दुखो्को िहने मे्इनकी भूसमका िंसदग्ध बनी रहती जबसक आिू और गुिाब जामुन खाकर तुंरत कुछ राहत समिती थी इि तरह इि​िे पहिे सक दुख उिे घेरते वह कुछ न कुछ खाने की इच्छा िे सघरी रहती बि एक सदि था जो जमी हुई नासडयो्िे खून िी्चता हायतौबा करने िगा था और रक्तचाप की भाषा मे् सदि के नये दुख िुना रहा था

तीन

सकिी िदमे िे उभरने का पहिा सदन अजीब होता है काम पर िौटने का सनण्सय करके िाहि जुटा कर घर िे सनकिती हूं जानी-पहचानी िडके्अजनबी िगती है् चौक पर पहुंच कर याद नही्आता सकि तरफ मुडना है िडक का जाना-पहचाना शोर मेरी खोयी हुई याददाश्त िे कोई स्मृसत नही्टटोिता िदमे िे उभरा वैराग्य छोटी-छोटी कई दुश्मसनयो्

और नफरतो्िे आजाद कर देता है यह वैराग्य ऐिे सवषाद िे पसरचय कराता है जो अपने नयेपन की वजह िे इतना अजनबी होता है सजिका कोई छोर हाथ नही्आता यह भरे हुए पेट मे्खािीपन भर देता है मुंह िे स्वाद छीन िेता है यह िब ऐिी गसत मे्िंपन्न होता है सजि गसत मे्चिते वाहन हमे्नष्​्ता को अंगीकार करते सदखाई देते है् मुझे िदमे िे उभरने का पहिा सदन बहुत कसठन िगता है ऐिे पहिे सदन मे् मुझे अपनी पहचान के पुराने दुखो्की बहुत याद आती है छोटी दुश्मसनयो्और नफरतो्की याद आती है जो इि तरह रच-बि गयी थी जीवन मे् सक दुख की असनवाय्सता का धम्ससनभाते हुए एक िामान्य सदन को उि​िे कुछ कम नही्होने देती थी वनस्पसत यह सदन जब िडक का शोर इि नवजात अजनबीपन िे मुझे मेरी रोज की िडको्िे बेगाना कर रहा है.

चार

िल्जी जिने िे पहिे घर मे्मोहक गंध फैिाती है यह गंध उि सबंदु का आगमन है जहां पक रही िल्जी का हर अंश पकानेवािी आंच को पूरा िमस्पसत होता है घी बत्सन िे छूटने िगता है स्वाद और िुगंध सवरब्कत मे्पसरसणत होते है् यह िमप्सण का क्​्ण पूरा होता है स्​्ी के स्पश्सिे जो हल्के हाथो्िे िल्जी सहिाकर बत्सन के सकनारे करछुि की ठक-ठक िे अब्गन को सवदा देती है सकिी सदन वह अंसतम स्पश्सकरने िे चूक जाती है मोहक गंध झपकी मे्पसरसणत होती है वह हडबडा कर उठती है कोयिा हुई िल्जी देखती है सखडसकयां-दरवाजे खोि देती है और िारा सदन उदािी मे्रहती है.

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अिुज लुगुि आसदवािी युवा कसव. जन्म 10 जनवरी 1986. सवसभन्न पत्​्-पस्​्तकाओ् मे् कसवताएं प्​्कासशत और चस्चसत. पहिा कसवता िंग्ह शीघ्​्प्​्काश्य.

जो हज़ारो्फूलो्की सुगंध नही्चाहते उन्हो्ने कल्पनाओ्को इसतहाि घोसषत कर सदया है और समथको्को देवता उनके सिए तक्फिबिे बडा दुश्मन है और उिके सवर्द्वे हमेशा बंदूक, तिवार, टोपी-टीका और फतवे िहेज कर रखते है् दरअि​ि वे दुसनया को ऐिे फ़ाम्समे्बदि देना चाहते है् सजिमे्केवि िूअरो्की खेती हो या केवि गायो्की वे नही्चाहते सक दुसनया एक जंगि की तरह हो जहां िोगो्को सिफ्फउनका नाम सदया जाये नस्ि और धम्सनही् जो हजारो्फूिो्की िुगंध नही्चाहते या जो नही्चाहते िभी प्​्ासणयो्की मौसिक भाषा उनकी िांिो्मे्कभी नही्घुि िकता हजारो्िोगो्का दुख वे एक ही धम्सकी दसबश दे िकते है् वे एक ही नस्ि की बात थोप िकते है् वे एक ही जासत की श्​्ेष्ता िासबत कर िकते है् वे एक ही राष्​्के नाम की कट्​्रता पैदा कर िकते है् बावजूद इिके वे एक की सगनती को बढने िे रोक नही्िकते वे एक दूिरे रंग के फूि को कुचि िकते है् वे एक दूिरी भाषा की जीभ काट िकते है् वे एक दूिरे ढंग के जीव को पसवत्​्या अपसवत्​्घोसषत कर िकते है् िेसकन वे धरती की बहुिता को ख़त्म नही्कर िकते उन्हे्यह आिान तक्फभी िमझ मे्नही्आता है सक केवि एक की सगनती अधूरी सगनती रही है चाहे वह रंग और गंध की बात हो

या चाहे वह गसणत मे्हो या इसतहाि मे् एक-एक कर िबको कुचि देने की धमकी के बाद भी ितरंगी जीवन के सिए अपनी पहचान के िाथ एक-एक कर हमेशा सखिते रहे्गे हजारो्फूि.

आत्महत्या के रवर्द् वे तुम्हारी आत्महत्या पर अफ़िोि नही्करे्गे आत्महत्या उनके सिए दाश्ससनक सचंता का सवषय है वे इिकी व्याख्या मे्िवाि को वही्टांग दे्गे सजि पेड पर तुमने अपना फंदा डािा था यह उनके सिए सचंता का सवषय नही्होगा वे जानते है्गे्हूं की कीमत िोहे िे कम है और इि वक्त वे िोहे की खेती मे्व्यस्​्है् िोहे की खेती के सिए ही उन्हो्ने आसदवािी गांवो्मे् िैन्य छावनी के िाथ डेरा डािा है िोहे की खेती के सवर्द्ही आसदवािी प्​्सतघाती हुए है् उिी खेती के सबचडे के सिए उन्हे्तुम्हारी जमीन भी चासहए तुम आत्महत्या करोगे और उन्हे्िगेगा इि तरह तो वे गोिी चिाने िे बच जाये्गे और यह उनकी रणनीसतक िमझदारी होगी वे तुम्हारी आत्महत्या पर अफ़िोि नही्करे्गे उन्हे्सिफ़्फप्​्सतघाती हत्याओ्िे डर िगता है और जब तुम प्​्सतघात करोगे तुम्हारी आत्महत्या को वे हत्याओ्मे्बदि दे्गे.

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शुक्वार | 1 िे 15 नवंबर 2015 67


कववता रीता दास राम युवा कसव. एक कसवता िंग्ह तृष्णा प्​्कासशत. सवसभन्न पत्​्-पस्​्तकाओ्और ल्िॉग मे्कसवताएं प्​्कासशत.

एक

बहुत िहज िी औरते् बैठी है्िडक पर जाने क्यो्रास्​्े उनके चिते ही अदृश्य होने िगते है्.

दो

गुजर रहा था चांद वह देख रही थी उिने चांद को कभी पकडने की कोसशश नही्की उिे चौथ के चांद को देखने की अनुमसत थी सजिे वह दूज िे सनहारा करती चांद अपनी गसत िे बढता रहता वह अपनी रफ्तार िे भागती रहती पैरो्की बेसडयां अदृश्य थी् रास्​्ेिाफ-िाफ सदखाई देते थे उिे रास्​्ेतय करने की मनाही थी.

तीन

िच का ख्वाब देखना बुरा है बुस्दजीवी इिकी जमीन पर खडे होना चाहते है् प्यादो्की तरह मार सदये जाते है् शतरंज कािे िफ़ेद का खेि भर है टेढ्ी-मेढ्ी चािो्िे भरा एक अदृश्य िा खेि और भी है जो जाने कैिे खेिा जाता है िभी को सनगिता जाता है सजिका नजर आती हकीकत की ही जमीन िे िारा िरोकार होता है हमारी खुिी आंखे्न जाने बंद क्यो्होती है्.

चार

बढती जानकारी के िाथ

68 शुक्वार | 1 िे 15 नवंबर 2015

हम अिहज होते जा रहे है् बढते हुए बुरे काम को पहचान रहे है् िहज रह पाना मुब्शकि हो रहा है बहुत िहज है रास्​्ेबुरे कम्​्ो्के हम बुरे कम्सकरते जा रहे थे बुरे काम का अंजाम बुरा होता है जानने के बावजूद हमने बुरा काम करना तय सकया िोग देख रहे है्हम बुरा कर रहे है िब चुप है्क्यो्सक िभी बुरे कम्​्ो्मे्सिप्त है् बुरा होने के डर िे बुरा करने पर मजबूर है् बुरा करना भी सहम्मत का काम है पूरी आत्मा को कुचि कर आगे बढना एक बदतर चुनौती है.

पांच

घटनाएं चीखते-चीखते चुप हो जाती है् सवचार चिते-चिते गुम हो जाते है् वक्त खािी आकाश मे् तारो्को सगनते पिरा होता है कािचक्​्हर बारह घंटे मे् पाता है बदिाव अंधेरे और रोशनी का हमे्अपनी जगह बनानी होती है रोशनी की तीव्​्ता और अंधेरे की स्याही देखकर.

छह

सखडकी मे्बैठी चांदनी देख रही हूं पिरती गहराती धीरे-धीरे उतर आती मन के आंगन तक वह देखती है हिीन रातो्की गुफ्तगू बसतयाती अपनी ही िसखयो्िे बासरश के सदनो्की बाते् पूरी तरह भीगते हुए

कोसशश करते खुद को दद्समे्भीगने िे बचाने की किा के िाथ.

सात

पुर्षो्िा जीवन जी रही है शहर की औरते् पहनती है पतिून भी ठीक उन की तरह सफर भी िगती है्पुर्ष िे अिग उनकी ही तरह दफ्तर के काम सनपटाती है्िारे करती हुई िाथ घरो्के काम पुर्ष िे आगे सनकि आयी है् दोहरी सजम्मेदारी को सनभाते देख रही है् अहम की गद्​्ी पर बैठे पुर्ष को उपेस्कता नारी अब िभी जगह अपेस्कत है घर मे्भी बाहर भी पसरवार की िंकीण्समानसिकता अब सरिेशनसशप मे्उतर आयी है िुप्त हो रहा है आंगन पायि की र्नझुन िे्सडि की खट-खट मे्हो रही है तल्दीि पदचाप अब िुनाई नही्देते भाषा के िासनध्य मे् खो गयी है पहचान मनुष्य अब मनुष्य नही् अपने सहस्िे की सजंदगी जीने की बेताबी सिए भागता हांफता बाजार है.

आठ

वे मार देना चाहते है् उनके सवचार िच्​्ाई िामने िा पाने वािी उनकी सहम्मत उनकी शब्कत उनकी िेखनी उनके मस्​्सष्क िे आती बू को भी वे नही्चाहते रहे सजंदा िद्​्ावना बातो्की िही या गित फेहसरस्​्के िाथ हासशये मे्खडे िारे िोग िूनी गसियो्के तहखाने मे्दफ्त कर सदये जाये्गे और िाथ वह आवाज भी सजिकी पुकार िाब्तवक कर्णा के िंग जगाती है सदिो-मस्​्सष्क को. n


अस्समता िन्तिका िंदा

क्या बच्​्े अपराधी है्

जदल्ली मे् ही हर रोज 18 बच्​्े लापता होते है् जजसमे् करीब चार का कभी कोई सुराग नही् जमलता. अक्सर ऐसे बच्​्े अपराध की दुजनया मे् धकेल जदये जाते है्.

हि क्या सिफ्फ यही है सक बडा अपराध करने वािे छोटी उम्​् के अपराधी की िजा सकि आधार पर तय की जाये. उिकी कम उम्​्की मािूसमयत पर या बडे अपराध की कू्रता पर या बहि कुछ और मुद्ो्पर की जा िकती है, की जानी चासहए. नेताओ् के सिए बहि का सिफ्फ एक सिरा राजनीसतक रोसटयां पकाने के सिए फायदेमंद हो िकता है पर िमाज के सिए इि अधकचरी बहि के फायदेमदं होने के कोई िंकते नही्सदखते. सनभ्सया की घटना के कुछ ही महीनो् बाद एक खबर अचानक आयी और चिी गयी. सजि अखबार ने इि खबर को छापा था, उिे भी बाद मे् उि पर चुप्पी िाधनी पडी. खबर उि कसथत अपराधी बच्​्ेके बारे मे्थी उि घटना का िबिे बडा आरोपी था. ये कसथत मािूम बच्​्ा सतहाड मे् नही्भेजा गया था क्यो्सक उिकी उम्​्18 िाि िे बि कुछ ही महीने कम थी. सिहाजा उिे सदल्िी के एक िुधार गृह मे्रखा गया था. अखबार ने उि िुधार गृह के हवािे िे खबर छापी थी सजिका िार यह था सक कैिे वो मािूम बच्​्ा यहां पर भी िबके सिए आफत बना हुआ था. बाद मे्इि खबर के मानवीय न होने पर कुछ सवरोध भी हुआ और मामिा जैिे खत्म हो गया. उधर सतहाड जेि िे भी यह खबर आती रही सक कैिे बाकी तमाम आरोपी अपनी-अपनी तरह िे अपनी मािूसमयत और बेगनु ाही िासबत करने मे जुटे थे और आज भी जुटे है्. जासहर िी बात है सक हाित यही रहे तो कुछ िािो् मे् शायद यह मामिा धुंधिा जाये और यह जानना मुब्शकि हो जाये सक अि​ि मे्यह अपराध सकया सकिने था. ऐिे मे्यह अंदाजा िगाना बहुत आिान है सक उन मामिो्मे्उन पीस्डतो्की ब्सथसत कैिी होती होगी जो घटना के बाद जीसवत होते है् और अपने ही िामने खुद पर आक्​्ेप िुनने को मजबूर होते है्. खैर, बात उम्​्की हो रही थी. यह कैिे, कौन और कब यह तय करे सक ऐिे कू्र अपराध करने वािे को क्या इिसिए छोड सदया जाये सक उिकी उम्​्18 िाि के बैरोमीटर िे पार नही् हुई है. इि तरह उिे िजा नही्, सिफ्फ िुधार की जर्रत है. यही िवाि जब्सटि वम्ास कमेटी की सरपोट्स को तैयार करते िमय भी उठे थे. इि मामिे मे्बाि िंगठनो्की अपनी दिीि हो िकती है, िेसकन उि​िे यह िवाि न हल्का पडता है और न ही फीका. नेशनि क्​्ाइम सरकॉड्सल्यूरो के आंकड्ो्के मुतासबक िाि 2012 की तुिना मे् 2013 मे् देश भर मे् नाबासिगो् के सकये बिात्कारो् मे् 158

फीिद का इजाफा हुआ है. इन अपराधो्का अनुपात देखे्तो इिी िमय मे् यह इजाफा 30 फीिद रहा है. बेशक अपराध कर रहे बच्​्ो् पर उनके आि-पाि के माहौि का काफी अिर पड्ता है, िेसकन पुसि​ि की बात माने् तो कई बार व्यस्क बच्​्ो् िे कई अपराध इिसिए भी करवा िेते है् क्यो्सक इनमे् िजा न के बराबर होती है. अकेिे िाि 2013 मे् ही 163 नाबासिग बिात्कार और 76 हत्या के मामिे मे्िंसिप्त पाये गये थे. हर बार नाबासिग जब कोई बड्ा अपराध करता है तो बहि को मानवीयता और कानूनी दावपेच िे राजनीसतक शल्दो्मे्ढाि कर दबा सदया जाता है. पर इि​िे िमस्या का सनदान नही्हो िकता. यह मौके मीसडया को मिािा खबर देते है् क्यो्सक ऐिे मि​िो् पर भारत के नेता-असभनेता खूब बयानबाजी करते है्. बेशक बच्​्ो्के इन अपराधो्का एक दूिरा पहिू भी है जो इि बात की पुस्ष करता है सक बच्​्े अि​ि मे् सकिी भी तरह िे िुरस्​्कत नही् है्. इिकी गवाही आकड्ेभी देते है्भारत मे्हर िाि डेढ्िाख िे ज्यादा बच्​्े िापता हो जाते है.् इनमे्िे करीब 45 फीिद का कोई िुराग तक नही्समि पाता. इिी तरह पासकस्​्ान मे्हर िाि तीन हजार और चीन िे करीब दि हजार बच्​्े िापता होते है्. इि सिहाज िे भारत का कोई िानी नही्. नेशनि क्​्ाइम सरकॉड्स ल्यूरो के मुतासबक भारत मे्हर 8 समनट मे्एक बच्​्ा गायब होता है. गायब होने वािे बच्​्ो्मे्55 फीिद िड्सकयां है्. इन्हे् आम तौर पर या तो अपराध के बाद मार डािा जाता है, उनिे भीख मंगवायी जाती है या सफर उन्हे् वेश्यावृस्त मे् धकेि सदया जाता है. सदल्िी मे्ही हर रोज 18 बच्​्ेिापता होते है् सजिमे् करीब चार का कभी कोई िुराग नही् समिता. अक्िर ऐिे बच्​्े अपराध की दुसनया मे् धकेि सदये जाते है्. दरअि​ि, बच्​्ो्की गुमशुदगी िे जुड्ी आज भी हमारे यहां सकिी ठोि नीसत की कमी है. यह बात अिग है सक बच्​्ो् और मसहिाओ् को िेकर इि देश मे्गैर-िरकारी िंस्थाओ्की कोई कमी नही्, िेसकन उनकी िस्​्कयता और ईमानदारी शक के घेरे मे्है. अि​ि मे् जर्रत बच्​्ो् की गुमशुदगी को िेकर नीसतगत फैि​िे िेने की है. अपराधी को उिकी उम्​् के सहिाब िे िजा समिे या अपराध के सहिाब िे, यह जब तक मौजूदा पसरब्सथसतयो्का आकिन करते हुए तय नही्होगा, इि देश को अपराध n मुक्त करने की बात सिफ्फकागजी ही रहेगी. शुक्वार | 1 िे 15 नवंबर 2015 69


खािपाि अर्ण कुमार ‘पािीबाबा’ िेखक िंस्कार िे राजनीितक व्यब्कत और पानी,भोजन और पोषाहार के िवशेषज्​्है्. हिवाई होने का दावा भी करते है्. e-mail.: akpanibaba@gmail.com

उत्सववाद के देश मे् ददवाली

गुंजझया वास्​्व मे् अजखल भारतीय जमठाई है महाराष्​् मे् करंजा कहलाती है, दज्​्िण मे् सोमासी. गुंजझया वास्​्व मे् एक तरह से मीठा समोसा है. समोसा जतकोना होता है, गुंजझया अ्​्द्ष गोलाकार होती है.

भा

रतीय िमाज और िंस्कृसत की िरंचना मे्त्योहार बुसनयासद तंत्है. दाश्ससनक स्​्र पर कहा जाता है सक मानव जीवन ही उत्िव का प्​्तीक है. सकंतु िाधारण िमाज हर सदन जीवन का जि​िा आयोजीत करने मे्न तो िक्म् नही्. परंतु मानव जीवन मे्उत्िव के भाव को सजिाये रखना, यासन िस्​्कय बनाये रखना भी असनवाय्सहै. इिी परंपरा का नाम उत्िववाद है. भारतीय वांगमय मे्विंत को ऋ तु राज कहा गया है. िंगीत मे्भी विंत का महत्व बड्ा है. सकंतु िामासजक दृस्ष िे शारदोत्िव जीवन का उत्िव है. भाद्​्पद पूस्णसमा को सपतरो्का आवाहान हो जाता है. अस्​्शन अमवस्या का सपतृपक्​् का उत्िव चिता है. आस्​्शन शुक्ि एकम को दुग्ास नवरास्​्त की स्थापना हो जाती है इिी सदन िे रामिीिा का िाव्ज स सनक मेिा शुर् हो जाता है. यह ऐिा अिाधारण आयोजन है सजिकी अन्य कही् कोई समिाि नही्. शरद पूनो िे तीिरे या चौथे सदन करवा चौथ को िदा िुहाग का जि​िा उिके चार सदन बाद िंतान की दीघ्ासयु के सिए होई अष्​्मी की पूजा. होई का सवसशष्​् व्यंजन है गुड्आटे के पूए. दादी का नुस्स्खा सबल्कुि िरि था. दादी एक िेर गुड् िगभग तीन पाव पानी मे्सभगो देती थी. दोपहर तक गुड् का घोि बन जाता था बि उि घोि मे् अंदाज िे आधा िेर गेहूं का ताजा हाथ सपिा आटा समिाकर समश्​्ण को अच्छी तरह फे्ट देती, बि इि समश्​्ण को सति के तेि मे् ति कर पूए बना देती थी. दादी की मान्यता थी सक होई माता की पूजा मे्सिद्​्पूए खा कर बच्​्ो्के पेट सदवािी के मौके पर ढेरो् समठाई पचाने के सिए तैयार हो जाते थे. अब तो न ढेरो् समठाई समिती है और न ही उि स्वाद के पूए. होई माता का जो समसत सचत्​् बनता था वही् 70 शुक्वार | 1 िे 15 नवंबर 2015

सदपाविी का पूजन होता था. होई िे पाचवे्सदन धन तेरि को होई माता के िामने सदवािी िजनी शुर्हो जाती. उिी सदन िे सदवािी के सिए समठाई और नमकीन बनाने का काम शुर्हो जाता है. पश्य दृस्ष िे देखने-िोचने पर बड्ी हैरानी होती है. घर मे् कुि दो बड्ी मसहिाएं थी दादी और मां. हम तीन भाई और एक बहन भी अपनीअपनी क्​्मता योग्यता के अनुिार िहयोग करते थे. कभी ऐिा नही् िगा सक मां और दादी को इतने िंबे चौड्ेआयोजन मे्आिस्य का भाव महिूि हुआ हो. सदवािी के व्यंजनो्मे्िव्ाससधक गंभीर मुद्ा घर मे्बनी ि​िोनी खस्​्ा गुंसझया का है. परंपरा के अनुिार दीपाविी की पहिी शाम दीप पूजन होता. सपछिी िात पीस्ढयो् के नाम िे दो-दो या चार-चार दीये जिाकर पूजे जाते थे, घर िे शुर् होकर चौराहे तक, कुएं मंसदर तक प्क ् ाश सकया जाता था. बड्ी सदवािी की शाम िक्म् ी-गणेश पूजा के बाद सपतरो्के नाम िे खीि-बताशे और सम ठा ई - सम न िी (पूजी) जाती थी. परंपरा के अनुिार इि पूजा मे् गुंसझया असनवाय्ससमठाई थी. गुसं झया वास्व् मे् असखि भारतीय समठाई है महाराष्​् मे् करंजा कहिाती है, दस्​्कण मे् िोमािी. गुसं झया वास्व् मे्एक तरह िे मीठा िमोिा है. िमोिा, सतकोना होता है, गुंसझया अ्​्द्सगोिाकार होती है. अब िे पचाि बरि पहिे तक उत्​्र भारत मे्हिवाईयो्की दूकान पर न तो गुसं झया बनती थी, न सबकती थी. यह पूणतस् या घरेिु समठाई थी, सदवािी और होिी को जो सपतर स्मरण की परंपरा थी उिमे्इिका प्​्योग असनवाय्स था. अत: यह समठाई इन्ही्दो पव्​्ो पर बनाई जाती थी.


आज यह जानना अटपटा िग िकता है सक सदवािी मूित: तांस्तक धसनया, दि पंद्ह कढी पत्​्ेकड्ाही मे्, भूनना शुर्करे्, हल्की िी खुशबू, पव्सहै. जब तक परंपरा का आधुसनकीकरण नही्हुआ था तब तक िमूचे आने िगे तो इिमे्25 ग्​्ाम जीरा डाि दे, जीरे की िुगंध उठ जाये तो 5 कुरम्ब िुबह का भोजन िामुसहक र्प िे सपतरो्के स्थान पर एकस्​्तत होकर ग्​्ाम कािी समच्स, 5 ग्​्ाम पीपि, 5 ग्​्ाम दाि चीनी, डाि कर भूि िे्. इि करते थे. दाि भरी पूस्ड (कचौरी) और दूध, चावि की खीर सपतरो् के समश्​्ण को ठंडा होते होते खरक मे् या सि​ि पर रगड् िे. चाट मे् िे्धा नाम िे परोिी जाती थी. शाम को दोबारा सपतर पूजा होती तब गुंसझया नाम नमक का ही प्​्योग करे्सबिकुि मामूिी िा कािा नमक भी डाि िकते के दही बड्े का प्​्िाद चढ्ाया जाता था. इिका है्. अच्छी चटपटी चाट का स्वाद िेना हो तो िाि दही की गु स ं झयां एकल बनाना भी िरि नही्था. यह उड्द दाि की सपठ्​्ी नही्पीिी समच्सकूट कर इस्​्ेमाि करे्. मसहला/पुऱष भी बना िे बनाई जाती थी. उड्द दाि का दही बड्ा जो दही तैयारी पूरी हो जाये तो. गुंसझया और पकोड्ी की गुंसझया कहिाता है, उत्​्र भारत मे् चाट की को पानी िे सनकाि कर हथेसियो् के बीच मे् सकते है़. छोटे पसरवार दूकानो् पर आज भी उपिल्ध है. तांस्तक पूजा मे् दबाकर सनचोड् िे्. दही छुआ कर एक प्िेट या के सलए एक पाव दाल दही बड्ा आज भी असनवाय्स है. मीठी गुंसझया का ढाक के दोने मे् एक दो गुंसझया और चार या छह पय़ा​ाप़त होगी. नुस्खा इिसिए दरगुजर कर रहे है् सक िंयुक्त पकोड्ी िजा दे्. इि पर स्वादनुिार नमक, समच्स, पसरवार तो बचा नही्, और पड्ोि के िहकार की परंपरा पूरी तरह िे मिािा डािे्. इिके ऊपर तीन-चार बड्े चमच गाढा-दही सछड्क कर सवकसित होने के पहिे ही िुप्त हो गयी. डािे्. उिके ऊपर दो चम्मच िौ्ठ की चाट िगाये और उि पर एक छोटा दही की गुसं झयां तो एकि मसहिा/पुरष् भी बना िकते है.् छोटे पसरवार चम्मच हसर चटनी िे चाट को सतरंगा बना कर पहिे सपतरो्को परोिे.् यासन के सिए एक पाव दाि पय्ासपत् होगी. सछिके वािी कािी उड्द एक घंटा कौवो्, गाय और आि-पाि बिे िहयोगी िेवको् को परोिे. यह तथ्य सभगोकर रख दे्. मि​ि कर सछिका सनथार दे्. घर मे् सि​िबट्​्ा बचा तो कदासप न भूिे्सक दही की चाट िूया्स स ्िे एक डेढ्घंटा पहिे तक आरोगी उि पर पीि िे, वन्ास समक्िी या ग्​्ाईडर मे्, सबना पानी या न्यूनतम पानी जाती है. िूय्ासस् होने पर दही िे बने व्यंजन का प्​्योग अनुसचत बताया िे पीि िे्. सपट्​्ी को अच्छी तरह चौड्ी थािी मे्चपटी हथेिी िे मथ िे्. जाता है. िेसकन सपट्​्ी पूरी तरह िे गाढी रहनी चासहए, सपट्​्ी मथते िमय थोड्ा ही्ग बाजार की समठाई का अवश्य सनषेध रखे्. वह सवषाक्त हो िकती है. अवश्य डािे्. एक िरि समठाई िौकी की बफ्​्ी की है. एक सकिो िोकी का िच्छा ढाई अ्​्द्स चंद्ाकार भरवां गुंसझयां बनाना थोड्ा कसठन तो जर्र है, तीन सकिो दूध मे्उबिना चढा दे जब यह समश्​्ण पय्ासप्त गाढा हो जाये तो िेसकन अिाध्य नही्, थोड्े प्​्याि िे अभ्याि हो जायेगा. एक उिटी इिमे्एक सकिो देिी बूरा समिा दे्. इिे अच्छी तरह भूि िे्. अंत मे्उसचत थािी पर मिमि का कपड्ा गीिा करके फैिा िीसजए. इि पर मात्​्ा मे्इिायची का चूण्सथोड्ा िा खाने योग्य कपूर समिा कर घी चुपड्ी एक चम्मच सपट्​्ी रख दे और उिे सगिे हाथ िे चपटा फैिा िे्. अब थासियो्मे्जमा िे्. िॉज पूरी तरह िे ठंडी होकर जम जाय तो मनपिंद उि पर दो तीन सकशसमश, कुछ कटे सछिे बादाम, दो-चार सचरौ्जी, बफीर्के टुकड्ेकाट कर सकिी बड्ेकटोरदान मे्हवा िे बचाकर िुरस्​्कत दो दाने कािी समच्स, तीन-चार छोटे टूकड्ेअदरक के, दो टुकड्ेकटी समच्स कर िे्. के रख दे्. र्मािी का एक सिरा पकड् कर पहिे इिे दूहरा कर दे् और नमकीन मे्मैदा की पापड्ी, बना िकते है्. पाव भर या आधा िेर मैदा दूिरे प्​्याि िे अ्​्द्सचंद्कार बड्ेको पानी िगे हाथ पर उठाकर गम्सतेि मे्एक सतहाई सति का तेि और तेि िे कुछ कम पानी समिाकर अच्छी मे् िरका दे्. और यसद भरवा गुंसझयां बनाना सबल्कुि ही अिाध्य िगे तो तरह गूंथ िे. इन मठसरयो् मे् हल्का िा नमक िगा िकते है. नमक न भरवा िामग्​्ी को सपट्​्ी मे् समिा िे् और िाधारण बड्ो् की तरह हाथ पर िगाये तो बेहतर होगा. सफकी मठरी िूखे िाग और अचार िे भी रखा चपटा कर के ही ति िे्. कायदे िे उड्द की गुंसझया के िाथ मूंग की िकते है्और चाहे तो दही मे्पापड्ी की तरह भी. बनाने की सवसध सबल्कुि पकोड्ी भी बनानी चासहए. बनते ही बड्ेपकोड्ी को नमक के पानी मे्सभगो् िरि है. पापड्ी का, आटा, मठरी बेिने िे एक घंटा पहिे ही गूंथ कर देते है. रख िेते है्. तब छोटी िोई को पूरी के आकार मे्बहुत पतिा बेि कर दो इन बडो के सिए दही बनाने की सवसध है: दही न्यूनतम 36 िे 48 घंटे बार दुहरा करते है तब इिका आकार सबना भरे िमोिे जैिा हो जाता है. पुराना होना चासहए. इिे मिमि के कपड्े मे् बांध कर टांग देते है् तासक इि चौतही मठरी मे्एक िौ्ग िगा कर बहुत ठंडी या मंद आंच पर मठरी यह पूरी तरह िे सनचुड् जाये. सफर उिी कपड्े मे् थोड्ा-थोड्ा गाय का को तिते है. कच्​्ा दूध समिाकर अच्छा गाढा दही छान िेते है्. इिमे्हल्की िी बूरा की सदवािी के मौके पर एक नमकीन सचवड्ा समश्​्ण अवश्य बनाए. ताि िगाते है्. मीठी िौ्ठ इमिी या अमचूर की बनाते है्. यह िौ्ठ पंद्ह सचवड्ेको फटक चुग कर िाफ कर िेते है, यासन सचबड्ेमे्कोई धान का बीि सदन तक रखी जा िकती है. इमिी या आमचूर को को सभगोकर उिमे् सछिका या सछिका युक्त सचवड्ा न रह जाये. थोड्ी िाि समच्सके िाथ पका सिसजए. अच्छी तरह पक जाये तो गाढे घोि आधा सकिो सचवड्ेमे्िौ ग्​्ाम भुना चना (सछिका उतरा) मूंगफिी को मिमि के कपड्ेिे छान कर पुन: आग पर बढ्ा दीजीए. चटनी इमिी भी कुछ वैिी ही. पाव भर िूरती िेव (जो दाि मोठ मे्उपयोग की जाती की है तो पय्ासप्त मात्​्ा मे् गुड् और आमचूर की है तो देिी बूरा समिाया है). इतना समश्​्ण पसरपूण्स होगा. पहिे सचवड्े को कड्ाही मे् िूखा भूने् जाता है. पुन: पका कर आंच िे उतार सिसजए. इिमे्हाथ कुटी िौ्ठ, कािी स्वाद के सहिाब िे करी पत्​्ा (मीठा नीम) और कटी हरी समच्सभी िाथ ही समच्सऔर कचरी का चूण्ससमिा सिसजए सकिी कारण कचरी उपिल्ध न हो भूने्. सचवड्ा कुरकुरा होने िगे तो तो उिमे्चने और मूंगफिी डाि दे्. वह तो थोड्ा नी्बू का रि अवश्य समिा िे्. यही वह इमिी या अमचूर की भी भुन जाये तो उिमे्िूखे नासरयि की कतरन डाि दे्. यह िारा िमान समठी चटनी है सजिे िौ्ठ या चाट भी कहा जाता है. ठीक िे कुरकुरा हो जाये तो इिमे् तीन चार चम्मच शुद् घी डाि कर सनयमानुिार इि िौ्ठ मे्सकशसमश, छुआरे की कतरन और अदरक समश्​्ण को सचकना कर िीसजये. घी िे परहेज हो तो मूंगफिी या सति का का महीन िच्छा भी डािा जाता है. कायदे के मुतासबक इि दही बड्ेमे्हरे तेि डाि िीसजए. आंच बंद करके गरम कड्ाही मे् िूरती िेब भी समिा धसनये की चटनी का छी्टा भी िगाना चासहए. इि चटनी मे् ही्ग, जीरा दीसजए. बि नमक और चुटकीभर टाटरी (नी्बू का ित) और थोड्ा िा बूरा एक िाथ पीि कर सछड्क दीसजए. अंकि नमकीन/सचप्ि वगैरह िे नमक हरा धसनयां, हसर समच्सऔर आमिे का प्​्योग करना चासहए. चौथी तैयारी दही की चाट के मिािे की करनी होती है. इि मिािे बच्​्ो्को बचाना चाहे्तो सदवािी-होिी पर इि नुस्खे को अवश्य आजमा n मे्प्​्मुख स्वाद जीरे का होता है. 50 ग्​्ाम मिािे के सिए दि ग्​्ाम िाबूत कर देखे्. शुक्वार | 1 िे 15 नवंबर 2015 71


सावहत्य/यायावरी

स्वप्नलोक-सी धरती पर

प्सवट्जिलै्ड मे् एक झील: सौ्दय्ि की सुिम्य गोद

सुंदरता के जलहाज से स्टवट्जरलै्ड के सभी िहर बेजोड् है् और उन्हे् बहुत सहेज कर रखा गया है. ट्वप्नलोक जैसे इस देि मे् एक अनोखी िांजत भी है और लगता है जैसे पूरा देि एक खामोि ि्​्ेत् हो. मधु कांकनरया

ख़ा

मोशी के पेड िे मै्ने/ये अक्​्र नही् तोडे. यह तो जो पेड पर िे झड्ेथे/ मै्वही अक्​्र चुनती रही (अमृता प्​्ीतम). यही सकया मैन् े ब्सवट्जरिैड ् मे.् परी और िोककथाओ्िे िुदं र उि देश की अंतरात्मा को िमझने की न तो मुझमे् कूबत ही थी और न ही इतना िमय था मेरे पाि, मै्तो बि आंखो्की किम िे जो देखा उिे ही शल्दो्मे्सपरोती रही या सफर शल्दो्के उन फूिो्को ही बटोरती रही जो िोगो्के मुंह िे सनरंतर पेड के पत्​्ो्की तरह झडते रहते थे . ब्सवट्जरिै्ड के शहर िुगानो िे हम बरसनना एक्िप्​्ेि िे सतरानो और सतरानो िे चूर की ओर. यह यात्​्ा यूनेस्को की वल्ड्सहेसरटेज है. गोिाकार बडी-बडी सखड्सकयो्वािी चमचमाती जादुई ट्​्ेन सजिकी एक सखडकी िे आप बाहर का पूरा िंिार देख िके्. ऊपर िे सगरता झरना, पहाडो्के बीच िे गुजरते हम. पहाडो्की ढिान, ढिान पर ढिान, ढिान पर बने छोटेछोटे िकडी के नक्​्ाशीदार सतकोने घर और हर घर मे्फूि. फूिो्िे भरी तराई. रकम-रकम की हसरयािी.बीच बीच मे् कही् नीचे िमुद्ी रंग की झीि .थोडी देर के सिए राइन नदी िे भी मुिाकात हुई. िामने ऐल्पि ् . आधे बफ्फ िे ढके जैिे पहाड के चेहरे पर अिावधानी िे पुता पाउडर. मै् अनायाि ही इिकी तुिना सहमािय िे करने िगती हूं. पर सहमािय की ऊंचाई, िुंदरता और सवसवधता और िबिे असधक उिके पि-पि बदिते रंग के िामने ऐल्प्ि कही्नही्ठहरता. िेसकन सजि चीज ने िचमुच यह अहिाि कराया सक मै्भारत मे्नही्वरन ब्सवट्जरिै्ड मे्हूं वह थे यहां 72 शुक्वार | 1 िे 15 नवंबर 2015

के फूिो्के रंग, कुछ पेडो्की चांदी िी चमकती पस्​्तयां. गहरे नीिे और जामुनी रंगो्के फूि और िाि-िाि पत्​्ो्वािे पेड मैन् े यही्देखे थे. फूिो् के प्​्सत िोगो्के प्​्ेम को देखकर मै्मन ही मन इिे फूिो्का देश कहती हूं. यहां के िोग फूि िगाने की कोई जगह नही्छोडते, यहां तक सक िै्प पोस्ट तक पर फूि टंगे हुए. नजरे्एकाएक गायो्के गिे मे्बंधी घंसटयो्पर पडती है्. इिे ब्सवि बेि कहते है्. दुसनया भर के िोग यहां िे घंसटया िे जा कर अपने घरो्मे टांगते है्. दूिरे सदन हम चूर िे ज्यसू रक और वहां िे बाजि होते हुए ब्सवट्जरिैड् के बेहद खूबिूरत शहर इंटरिाकेन मे् थे. िपनो् मे् डूबा, एकदम शांत धीमा खामोश शहर ,िगता ही नही्जैिे यहां िोग रहते हो्, जैिे सकिी ने इि शहर की काया को िजाया –फूिो्िे िंवारा और सफर ऐिे ही छोड सदया हो. यहां के िोग िुबह िे काय्सरत हो जाते है्. नौ बजे िे ऑसफि की शुरआ ् त हो जाती है. शाम पांच बजे तक िब घर वापि. व्यब्कतगत जीवन, सनजीपन यहां का िबिे बडा मूल्य है. भारतीयो्की तरह यहां के बॉि न गधो्की तरह खटते है्और न ही खटाते है्. यहां की एक कंपनी नोवास्टि​ि मे्एक भारतीय िीईओ ने आते आतंसकत कर सदया, उिने आते ही सनयम बना सदया सक जब तक वह ऑसफि मे्है,् िबको रहना होगा. उिका जीवन कंपनी को िमस्पसत था. िोग आज भी उिे कोिते है् सक उिके आते ही यहां का कल्चर सबगड गया था. शांसतस्​्पय ब्सवट्जरिै्ड मे्शांसत का आिम यह सक वहां की िोकि ट्​्ेन मे् भी ‘िाइिे्ट जोन’ बना हुआ है. जहां बैठकर आप कुछ भी नही् बोि िकते है्, मुझे इिकी जानकारी एकदम नही्थी. हम भारतीय को तो पूरा ब्सवट्जरिै्ड ही िाइिे्ट िगता था. बहरहाि बाजेि िे दौड कर


पकडते हुए हम कब ट्​्ेन के ‘िाइिे्ट जोन’ मे्बैठ गये हमे्पता ही नही् चिा. मै् अपनी पुत्वधू िे कुछ पूछ रही थी सक पीछे की िीट िे उठकर एक स्वीि बूढ्ा आया. उिने मुझिे अनुरोध सकया सक मै्चुप रहूं, मै्ठीक िे उिे िमझ नही्पायी तो उिने अंगुिी िे मुझे ट्​्ेन की दीवार पर सिखा ‘ब्कवट जोन’ सदखाया. मै्ने माथा पीट सिया, एकदम शांतट्​्ेन मे् भी ‘िाइिे्ट जोन’ इधर-उधर सिर घुमायी तो देखा आिपाि कुछ बूढे िो रहे थे, कुछ युवक िैपटॉप पर काम कर रहे थे. एक प्​्ौढ मुसदत मन सखडकी िे आिमान सनहार रहा था उिकी टी-शट्स पर सिखा हुआ था, ‘यूएि अमेसरकन वे ऑफ िाइफ इज अबाउट टू सडस्ट्ाय द वल्ड्स’ इि हाईटेक ट्​्ेन मे हर जगह िे्िर िगे हुए थे. अपनी ट्​्ेन मे्बैठे-बैठे आप देख िकते है् सक बाथर्म खािी है या उिके भीतर कोई है. िाि जिती सदख रही है मतिब अंदर कोई है. मै्हरी बत्​्ी देख अपनी िीट िे उठी, मुझे बाथर्म तक जाने के सिए कांच का दरवाजा पार करना था, मै् हाथ िे उिे सखिकाने िगी सक देखा दरवाजा एकाएक खुि गया, दरवाजे के ऊपर िे्िर िगे हुए थे, बाथर्म मे्भी नि के नीचे िे्िर थे, हाथ नीचे रखा पानी शुर्. मुझे एकबार िुखद आि्​्य्सहुआ जब मै्एक हॉस्टि मे् रात भर के सिए र्की थी. रात को पेशाब की जर्रत हुई, उठी तो देखा बाहर घुप्प अंधेरा, मै्ने टॉच्स सनकािी ,िेसकन दरवाजे िे बाहर आते ही पूरा कोसरडोर बत्​्ी िे जगमगाने िगा. सबजिी की बब्ासदी िे बचने का भी यह एक अच्छा उपाय था. इिी प्​्कार पूरे यूरोप मे् देखा िरकारे् प्​्दूषण रोकने, पेट्ोि और डीजि बचाने के सिए िोगो् को पब्लिक वाहन और िाइसकि के सिए प्​्ोत्िासहत करती है.् पूरे यूरोप के इि मानवीयता के सिए कदम उठाते देखा. िाइसकि वािो् के सिए सवशेष िुसवधा. पास्कि्ग की सवशेष िुसवधा. िड्क पर िाि घेरा बनाकर आरस्​्कत जगह िाइसकि वािो् के सिए. भूि िे गाड्ी और िाइकि मे् सभड्ंत हो भी गयी तो िारे कानून िाइसकि के पक्​् मे्. पैदि चिने वािा व्यब्कत तो वहां राजा है . एक बार मुझे ध्यान नही् रहा और हरे सिग्नि मे् ही मै् रास्​्ा पार करने िगी, मै्ने देखा सक िारी ट्​्ैसफक र्क गयी. और तब तक र्की रही जब तक मै्ने िड्क पार नही् कर िी. पैदि व्यब्कत कही् भी क्​्ॉसिंग पर बने एक प्क ् ार के हैस्डि को घुमाकर ट्स्ैफक को र्कने का अनुरोध कर िकता है. जरमट शहर मे् सिवाय िरकारी वाहनो् के सनजी वाहनो् की इजाजत नही्है. यहां कोई गगनचुंबी इमारत नही्है. इि बीच ब्सवट्जरिै्ड की काया के कई रंग सदखे. ब्सवट्जरिै्ड क्या यूरोप के िभी देशो् का तन जहां अत्याधुसनक अवस्था मे् है वही् उिका मन आज भी आसदम अवस्था मे् है. मन को पूरी छूट,जहां चाहे उडे, न कोई िामासजक बंधन न ही नैसतकता या मय्ासदा का कोई चाबुक. यहां की िेक्ि शॉप जहां कल्पना के सिए कुछ नही्बचता. जहां मांि​िता खुिे िर घूमती है. यहां की औरतो्के पाि भी िुंदर सदमाग, बुस्द और प्​्सतभा है पर हर जगह प्​्दश्सन सिफ्फ और सिफ्फ देह का होता सदखायी सदया. पुर्षो् को आमंस्तत करती हर औरत जैिे खजुराहो् की गुफा िे सनकि रास्​्ो्पर खड्ी होती्सदखायी दी्. इि तरह देह का अंसतम सबंदु तक प्​्दश्सन होता सदखा. सकचन मे् पहनने वािे एप्​्न पर भी नग्न औरत की तस्वीर आपको िहज सदख जायेगी. औरत की इि हद तक नग्नता पर चच्सभी परेशान सदखता है. चच्स की दीवारो् पर हर जगह सिखा है ‘ प्िीज कम इन ड्ि ्े

जािी-मािी कथाकार और उपन्यासकार. प्​्मुख कृसतयां: पत्​्ाखोर, युद् और बुद्, बादलो् मे् बार्द, अंत मे् यीिू, सेज पर संस्कृत, सलाम आसखरी. कोड’. इंटरिाकेन के एक चच्समे्देखा बाकायदा दरवाजे पर स्टाफ खडे है्हाथो्मे्स्कफ्फऔर गमछा सिये. आपस्​्तजनक ड्​्ेि मे्आने वािी औरत को सदये जा रहे् है स्कॉफ्फ और गमछे सजि​िे वह प्​्भु यीशु की मूरत के िामने जाने के पहिे अपनी नंगी टांगो्और ऊपर के जर्रत िे ज्यादा खुिे सहस्िो्को ढक िे्. यूरोप मे्िंयुक्त पसरवार टूटे, दांपत्य टूटा और अब इंिान भी टूटता जा रहा है. नयी पीढी शादी िे कतरा रही है. करीब िभी अकेिे इनमे् बूढ्े, जवान और सवकिांग भी है्, िेसकन हर जगह जबद्सस्िरकारी िहायता आपको समिती सदखायी देगी. हर जगह सवकिांगो्और बूढ्ो्के सिए उत्​्म इंतजाम. बफ्फके स्​्थि और रोमांि को महिूि करने के सिए अब हम दि हजार सफट की ऊंचाई पर बिे सटटसि​ि की ओर बढ्रहे थे. केबि कार और सफर गंडोिा िे हम पंहुचे वहां. यहां हमने बहुत िारे भारतीय िोगो्को अपनीअपनी टोसियो् मे् देखा. घुिते ही मातृभाषा के दश्सन िे आत्मा खुश हो गयी. सहंदी मे् सिखा था, ‘दुसनया का पहिा घूमता हुआ गंडोिा आपका स्वागत करता है.’ यहां जब दुसनया के करीब िभी देश के िोग समिते है तब िचमुच यह अहिाि होता है सक हम िब एक धरती के िोग है्. यहां मै्ने एक जगह सिखा हुआ देखा, ‘नो नेशन नो बाड्सर’. ऊपर ग्िेसशयर, सबना थकावट आप आइि फ्िायर और घुमते हुए गंडोिा िे हर स्​्र पर सबखरी बफ्फकी िुंदरता का आनंद िे िकते है्. ट्​्ूब पर बैठकर बफ्फकी ढिान पर सफि​िन का मजा भी िे िकते है्. नीचे भारतीय स्टाि पर मिािेदार चाय तो पी, पर एक कप चाय का भारतीय मुद्ा मे्240 र्पये देते िमय मन मे्टीि होती रही. हमारा अगिा पडाव था राइन फाल्ि. िुज्ेन िे शाफ्होव्सजंग होते हुए हमने देखा तूफानी ,दुसधया राइन फाल्ि. कभी िब कुछ जिमय तो कभी िब धुआं-धूआं. इतना तेज बहाव सक बहता पानी सदखता ही नही्, सदखता है जैिे टनो्पॉउडर ऊपर िे सगराया जा रहा हो. रेसिंग पर खडे-खडे िगा कही्बह ही न जाऊं. पर जानती थी सक यहां िब कुछ िुरस्​्कत है. इतनी प्सवस पहार्डयां: प्​्कृरत िुलाती है ऊंचाई िे बहता झरना सक िगा जैिे ऐल्प्ि िे ही फूट रहा हो यह. यहां जगह-जगह गाय की मूस्तसयां िगी हुई है्, यहां का चीज और दूिरे दूध के उत्पाद दुसनया मे्प्​्सिद्​्है्. ब्सवट्जरिै्ड मे् सजि बात िे मै्असभभूत हुई वह थी प्​्कृसत को टेक्नोिॉजी के िाथ जोडकर दुगमस् जगहो्को भी इतना िुगम बना सदया गया सक 80 वष्​्ीय बूढे भी बफ्​्ीिे पहाडो्,तूफानी झरनो् का आनंद िे िके्. चाहे वह टेन ग्िेसशयि्सवाटर फाल्ि हो या शुक्वार | 1 िे 15 नवंबर 2015 73


सावहत्य/यायावरी मैटरहॉन्सपहाड (ऐल्प्ि की मे्प्​्ाय: नही्फंिता है, उिे ही एक चोटी) . टेक्नािॉजी घुट्ी मे् िहज सवश्​्ाि नही् की िहायता िे पहाडो् को वरन ‘बी एिट्स’ सपिाया ल्िास्ट कर, झरनो् के गया है. वह खूब घूमता है, तूफानी बहाव को पव्सतो् के उिके पाि पत्नी नही् गि्स बीच िे, अिग कोणो् िे फे्ड होती है सजिे मौिम की सनकिते टेन ग्िेसशयि्स तरह वह बदिता रहता है फाल्ि को सदखाया गया है. सजिके िाथ बहुत हुआ तो मैटरहॉन्स की िबिे ऊपर वह सिव इन सरिेशन की चोटी पर हम फुसनकुिर पािता है.. (ब्सवट्जरिैड ् मे् की िहायता िे सबना थके दो िाि के बाद सिव इन ,सबना र्के एकदम तरोताजा सरिेशन को कोट्सिे मान्यता पंहच ु .े काश सहमािय को भी समि जाती है) बच्​्ेहोते भी इिप्​्कार सबना थके देखा है् तो जवान होते न होते वे जा िकता! भी मां-बाप का घरो्दा छोड अगिे सदन हम देते है. इिसिए सजस्म का ब्सवट्जरिै्ड की राजधानी जादू ढिने पर वह अकेिा िाजिानी िन्ि की एक सड्क: स्वच्छता पि ध्यान हो जाता है. िांय-िांय बन्स मे् थे. यहां हमने हर जगह भािू की तस्वीरे्, झंडो्और फव्वारो्के ऊपर देखी्. सकिी ने बताया करता िूना घर,आत्मा िे दूर सछटकी देह और कच्​्ा बेकाबू मन. िंिार सक बन्सनाम भी बीयर िे बना है. यहां भािूओ्के सिए सवशाि खुिा पाक्फ के ..ईश्र् के ..िारे दरवाजे बंद. जीवन के प्​्सत न सवशेष िम्मान, न कोई है. यहां हम आइंस्टॉइन के घर भी गये. यही् रहकर 1902 मे् उिने सजम्मेदारी, न कोई उद्​्ेश्य, न कोई स्वप्न और न ही जीवन िंघष्स का सरिेसटसवटी का सिद्​्ांत सिखा था. माधुय्स.. ऐिा कुछ नही्जो दे ‘कोई है’ का आश्​्ािन. ऐिे मे्आत्महत्या ब्सवट्जरिै्ड को एक बार मे्िमझना उतना आिान नही्, यह आप उिे प्​्ेयिी की तरह िुभाती है. सवशेषकर जब एक पाट्सनर मर जाता है तो पर धीरे-धीरे खुिता है. यहां के िुरताि ,यहां की सवसचत्त् ा जल्दी िे पकड् दूिरा भी आत्महत्या कर िेता है. मे्नही्आते. व्यब्कतवाद और मानवीय गसरमा की यहां बहुत कद्​्है. घरो् सपछिे आठ िौ िािो्के इसतहाि मे्ब्सवट्जरिैड ् मे्एक भी युद्नही् मे्काम करने वािे नौकरो्के सहत को ध्यान मे्रखते हुए बनाये गये सनयम हुआ. ब्सवि िोग नही् जानते सक बत्ी् गुि होना क्या होता है. पानी की, इतने िख्त है्सक िोग चाह कर भी इनका शोषण और अपमान नही्कर सबजिी की कमी क्या होती है. िूखा क्या होता है,अकाि क्या होता है. िकते, जैिे भारत मे्करते है्. अपराध यहां नही्होते और यसद होते भी है् महंगाई क्या होती है. भुखमरी क्या होती है, यहां इन्फ्िेशन नही् तो बाहर िे आये िोगो् के जसरये. आत्मसनभ्सर ब्सवि जल्दी िे दूिरो् िे सडफिेशनहै. यहां बच्​्ो्की पढाई मां-बाप की सचंता नही्वरन तीन बच्​्ो् घुिते समिते नही्. घर मे् भी सकिी को बहुत ही कम आमंस्तत करते है्. तक िरकार आपको टैक्ि मे्छूट देती है. उनके सिए सचंता का सवषय हैसनजीपन यहां इतना िुरस्​्कत है सक सदन के िमय भी कोई सकिी के बेडर्म ग्िोबि वास्मा्ग और प्​्दूषण.. क्या यह महज िंयोग है सक सपछिी दो मे् घुिने की असशष्​्ता नही् करेगा, जबसक यहां बेडर्म तक की करीब िसदयो् मे् वहां कोई महान िासहत्य नही् रचा गया क्यो्सक महान िासहत्य िभी स्​्कयाएं िाव्सजासनक र्प िे िंपन्न की जाती है्. यहां मातृत्व को स्​्ी बडे दुःख िे उपजता है. कहा जाता है सक वह िबिे ज्यादा दुसखयारा है की िृजनात्मकता,प्​्ेम,गृहस्थ धम्स और िाथ्सकता िे जोड कर नही् देखा सजिने दुःख नही्देखा. िुख मे्आकंठ तक डूबे ब्सवट्जरिै्ड पर यह बात जाता, मेरी पुत्वधू की िहेिी ने बताया - जब डॉक्टर को पता चिा सक मै् पूरी तरह िागू होती है. दरअि​ि व्यब्कत हो या राष्​्जब तक सजंदगी का गभ्सवती हूं तो भारतीय डॉक्टर की तरह बजाय बधाई देने के उिने मुझिे सरश्ता दद्सिे नही्जुडता, सजंदगी की िमझ गहराती नही्. करीब हर ब्सवि पूछा सक क्या मै्यह बच्​्ा चाहती हूं? युवक होने मे्नही्सदखने मे्सवश्​्ाि करता है. इिसिए बढ्ती उम्​्मे्जहां हर वक़्त प्​्ेम और मांि​िता मे्डूबे, भोग के असतरेक मे्धंिे, िुख िे एक भारतीय देह के प्​्सत अनािक्त हो आत्मा की ओर, अध्यात्म की ओर ऊबे यहां के िोगो्को मौत भी सजंदगी की तरह िुभाती है क्यो्सक हताशा मुड्जाता है. ब्सवि युवक के पाि इि आब्तमक िुख का िौभाग्य नही्है के पिो्िे िडना, सजंदगी की चुनौसतयो्का िामना करते हुए जीना इन्हे् क्यो्सक उनके पाि कोई बुद्और सववेकानंद नही्जो उन्हे्तात्कासिकता नही्आता है. दुसनया का पहिा देश है ब्सवट्जरिैड ् जहां युथने से शया (मि्​्ी की चकाचौ्ध िे परे िे जाकर िमझा िके जीवन का मम्स. सकसिंग) वैधासनक है .कई िोग सवदेश िे यहां आते है्सिफ्फइिसिए सक भारत की तरह यहां शादी, जन्म, मुंडन, गृह प्​्वेश तो दूर की बात युथेनेसशया िे मर िके्. युथेनेसशया के यहां बाकायदा ब्किसनक खुिे हुए मृत्यु और उठावना जैिे मौको्पर भी पसरवार के िोग, सरश्तेदार, सबरादरी है,् जहां कोट्सिे ऑड्रस िेकर आप दासखिा िे िकते है.् वहां आपको मरने के िोग नही्जुटते है्. मै्ने एक ब्सवि युवती को जब यह बताया की मेरे के कुछ केट्िोग सदखाये जाये्गे, आप अपना मेनू पिंद कर िीसजए ,यसद बेटे की शादी मे्चार पीसढया और 500 िोग आमंस्तत थे, तो उिे सवश्​्ाि आप के पाि अपना मेनू नही् तो भी सचंता न करे्. वे आपको नशे का नही्हुआ, उिने कई बार पूछा. अंत मे्मैन् े उि सिखकर बताया सक 500. इंजेक्शन दे्गे, आप गहरी बेहोशी मे्िप्ताह भर बाद उठे्गे, सफर वे धीरे- रीसत सरवाजो्, उत्िवो्, त्यौ्हारो्, गीतो् और नृत्यो् िे भरी भारतीय जीवन धीरे नशे की मात्​्ा बढा दे्गे, इि बार आप पंद्ह सदन बाद उठे्गे ..और सफर पद्​्सत आदमी को कभी अकेिा नही्छोडती. एक सदन आप उठे्गे ही नही्. यहां िुिाइड रेट दुसनया मे्िबिे असधक है बहरहाि अधूरापन दोनो्ही तरफ है, हमारे यहां पेट खािी तो उधर शायद इिीसिए सक सजतनी िुंदरता, सविासिता और अमीरी यहां की सफजां र्ह प्यािी. यहां अंधसवश्​्ाि, धम्स- अधम्सऔर कम्सकांड के घने जािे है् मे्सबखरी है, उतनी ही उदािी, अविाद ,व्यथ्सताबोध और अकेिापन भी तो उधर देह, मांि​िता और असतभोग का चौ्सधयाता अंधेरा. अकेिापन यहां की हवा मे् घुिा है. हर ब्सवि युवक जवानी को अंगूर का गुच्छा यहां भी है ,फक्फसिफ्फइतना सक यहां यह व्यवस्था िे उपजा है, वहां वह n िमझता है सजिकी अंसतम बूंद तक चूि िेने के सिए वह सववाह के झंझट व्यब्कत का अपना वरण है. 74 शुक्वार | 1 िे 15 नवंबर 2015



मास् विल्ट महेड

छोटे बजट के जिल्मो् के साथसाथ अब बड्े बजट की जिल्मो् का नया दौर भी िुर् हो गया है. और कम से कम छह ऐसी जिल्मे् आने वाली है जो भव्यता का नया अध्याय खोले्गी. हनर मृदुल

ह बड्ा सदिचस्प पसरदृश्य है. बॉिीवुड मे् बड्े बजट की सफल्मे् चच्ास पा रही है् या सफर एकदम िीसमत बजट की. िीसमत बजट 1का दायरा दि करोड्तक का है, तो बड्ेबजट का मतिब है िाठ करोड्िे िवा िौ करोड्के बीच के आंकड्ेमे्सफल्म का सनम्ाण स . बड्ेबजट की सफल्मो मे् ‘प्​्ेम रतन धन पायो’(90 करोड्), ‘तमाशा’(65 करोड्), ‘वजीर’ (60 करोड्), ‘सदिवािे’(95 करोड्), ‘बाजीराव मस्​्ानी’(75 करोड्), ‘सफतूर’ (60 करोड्) और ‘समस्जसया ’ (65 करोड्) जैिी आगामी सफल्मे्है.् जहां इन सफल्मो्का दश्क स ो्का बेिब्​्ी िे इंतजार है, वही्ट्​्ेड सवशेषज्​्ो्की गहरी नजर है सक इतनी महंगी सफल्मो् के सबजनेि का स्वर्प आसखर क्या होगा? दरअि​ि बड्ेबजट की सफल्मे्अगर बैठ जाती है्, तो उिका अिर व्यापक होता है. अक्िर देखा गया है सक ऐिे मे् प्​्ोडक्शन कंपनी का दम सनकि जाता है. इिका नकारात्मक अिर उि बैनर की दूिरी सफल्मो् पर पड्जाता है. िेसकन एक िच यह भी है सक अगर ऐिी सफल्मो्को दश्सक पिंद करते है्, तो सफर चांदी हो जाती है. तीन सदन के भीतर सनम्ाण स की िागत सनकि आती है. इिके बाद मोटी कमाई का सि​िसि​िा शुर्हो जाता है. िेसकन हमेशा ऐिा नही्होता. अक्िर असनस्​्ितता बनी रहती है. दश्सको् के मूड के बारे मे् कुछ नही् कहा जा िकता है. कुि समिाकर यही सक बड्े बजट की सफल्मो् मे् जोसखम भरपूर है. पर इि जोसखम का िामना िाहिी सफल्मकारो् ने हमेशा ही सकया है. यही वजह है सक बॉिीवुड की मेनस्ट्ीम सफल्मे्इि िमय भव्यता का एक नया अध्याय सिख रही है्. सफल्म ‘प्​्ेम रतन धन पायो’ का फस्ट्सिुक देखकर िमझ मे् आ जाता है सक वह सकतनी भव्यता िे सफल्माई गयी है. सनस्​्ित र्प िे यह ‘राजश्​्ी’ बैनर की अब तक की िबिे महंगी सफल्म है. इि सफल्म मे् ि​िमान खान जैिा बॉिीवुड का िबिे महंगा सितारा हीरो है, तो सफल्म का बजट बढऩा ही था. अि​ि मे्सफल्म की कथावस्​्ु ने इि सफल्म का बजट दुगुना 76 शुक्वार | 1 िे 15 नवंबर 2015

‘िाजीिाव मस्​्ानी’ मे् िणवीि रसंह औि दीरपका पादुकोण: इरतहास की िमक-दमक

भव्यता का नया

सकया है. राजस्थान के एक राजघराने की कहानी को सफल्माना हो, तो कम बजट की अपेक्ा सकिी भी हाित मे् नही् की जा िकती है. उदयपुर की सरयि िोकेशन पर इि सफल्म के कई अहम दृश्य सफल्माए गये है्. राजभवन और सकिो् की खूबिूरती को सदखाने के सिए कई तरह के जतन सकये गये है्. गौर करे्गे, तो पाये्गे सक इि सफल्म मे् हरचीज बहुमूल्य है. चाहे सफल्म का िेट हो, नयनासभराम िोकेशन हो् या सफर किाकारो् की ड्​्ेि, कही् भी कोई िमझौता नही् सकया गया है. गीत-िंगीत का सफल्मांकन भी कम नयनासभराम नही्है. इिका एक ही उदाहरण ही काफी है. सफल्म मे्हष्सदीप कौर के गाये एक गाने ‘जिते दीये...’ मे् िात हजार दीये जिते सदखायी दे्गे . िमझा जा िकता है सक सनद्श ्े क िूरज बडजात्या ने सफल्म की भव्यता का सकतना खयाि रखा है. इिी तरह सफल्म ‘तमाशा’ की भव्यता भी चच्ास का सवषय है. इिमे् भी मेसकंग के स्​्र पर कोई िमझौता नही् सकया गया है. दीसपका पादुकोण और रणबीर कपूर की िीड रोि वािी इि सफल्म की िोकेशन भी बड्ी मनोरम है्. इन दृश्यो् को बड्ेपरदे पर खूबिूरती िे सदखाने के सिए उत्कृष्सिनेमेटोग्​्ाफी और उच्​्तकनीक की जर्रत पड्ती है, जो सक ‘तमाशा’ के सफल्मांकन मे्प्​्युक्त हुई है.

सफल्म ‘सदिवािे’ मे्शाहर्ख खान ने कोई किर नही्छोड्ी है. वैिे भी सकंग खान की हर सफल्म भव्य होती है. वे िही पसरणाम पाने के सिए सकिी भी हद तक अपनी सफल्म का बजट बढ्ा िकते है्. सफल्म ‘सदिवािे’ की काफी शूसटंग हैदराबाद के रामोजी राव स्टूसडयो मे्भी हुई है. सफल्म के सनद्​्ेशक रोसहत शेट्ी भी हर िीन को बड्ेमनोयोग के िाथ सफल्माते है.् िीन को सदिचस्प बनाने मे् वे र्पयो् की ओर नही् देखते. उनकी भी यही िोच रहती है सक भिे ही सफल्म ओवर बजट हो जाये. परंतु िीन की भव्यता कतई कम न हो. सफल्म के सनद्​्ेशक रोसहत शेट्ी कहते है्, ‘सदिवािे’ को बड्े परदे पर देखने के बाद दश्सक खुद िमझ जाये्गे सक यह इतनी महंगी सफल्म क्यो् है? अगर कहानी के सहिाब िे सफल्म मे् खच्ास न हो, तो सफर बेहतर पसरणाम की उम्मीद नही्की जा िकती है.’ सफल्म ‘बाजीराव मस्​्ानी’ की बात करे,् तो िंजय िीिा भंिािी ने एक बार सफर अपनी सफल्म को भव्य बनाने मे्कोई किर नही्छोड्ी है. यह उनकी बेहद महंगी सफल्म है. हाि ही मे् उन्हो्ने पूना मे्एक डांि िेट तैयार करवाया था, सजिकी तुिना ‘मुगि-ए-आजम’ के शीश महि िे की जा िकती है. शीशे के इि िेट पर मस्​्ानी बनी दीसपका पादुकोण का डांि सफल्माया गया, तो िोगो्को िहज ही मधुबािा


अध्याय के गाने ‘प्यार सकया तो डरना क्या...’ की याद आ गयी. काफी िमय के बाद सकिी सफल्मकार ने एक गाना सफल्माने के सिए इतना महंगा िेट खड्ा करवाया . इि सफल्म मे् बाजीराव बने रणवीर सिंह के कई युद्दृशय् है,् सजन्हे्सफल्माने मे्भी बहुत बड्ा खच्ास आया है. सफल्म ‘सफतूर’ की शूसटंग कश्मीर जैिी कई सरयि िोकेशन पर हुई है. कैटरीना कैफ, आसदत्य राय कपूर और तल्बू की मुख्य भूसमकाओ् वािी यह सफल्म एक अंग्ेजी उपन्याि पर आधासरत है. उपन्याि मे् वस्णसत तमाम ब्सथसतयो् को परदे पर िाकार करने के सिए सफल्म के सनद्​्ेशक असभषेक कपूर को काफी जद्​्ोजहद करनी पड्ी है. इि सफल्म मे् पहिे तल्बू की जगह रेखा थी्. कैटरीना और रेखा के कई दृश्यो् की शूसटंग हो चुकी थी. महीना भर शूसटंग करने के बाद रेखा ने एक सदन अचानक यह सफल्म छोड् दी, इिसिए इिका बजट वैिे भी काफी बढ्गया. सफल्म ‘समस्जसया’ की बात करे्, तो यह सफल्म पंजाब की प्​्सिद्​् प्​्ेम कथा ‘िासहबां समज्ास’ पर आधासरत है. इि सफल्म के सिए सफल्मकार राकेश ओमप्​्काश मेहरा ने अनूठी िोकेशनो् का तो चुनाव सकया ही है, कई महंगे िेट भी खड्ेसकये है्. मेहरा भी सफल्मांकन मे् कोई िमझौता न करनेवािे सफल्मकारो्मे्िे एक है्. वे जानबूझकर महंगी

‘रदलवाले’ मे् काजोल औि शाहर्ख खान: किोड्ो् का िजि सफल्म नही् बनाते है्, िेसकन कथावस्​्ु को देखा जाना चासहए. सवषय वस्​्ु की वजह िे सवश्​्िनीय बनाने के सिए हर िंभव प्​्याि बजट का बढऩा एक मजबूरी हो जाती है . करते है्और खच्​्ेिे नही्डरते है्. वे कहते है्, सवसभन्न िोकेशनो्को परदे पर उतारने के सिए ‘सफल्म की भव्यता कोई बाहरी चीज नही्होती महंगे तकनीसशयनो्की जर्रत पड्ती है. िटीक है. कहानी की मांग मुतासबक ही सकिी सफल्म एक्शन दृश्य न हो्, तो िीन के हास्यास्पद हो का सफल्मांकन होता है. जबद्सस्ी की भव्यता जाने मे् देर नही् िगती. सफर इधर िाउथ की हमेशा ही भद्​्ी िगती है. सकिी सफल्म की व्यथ्स भाषाओ्िे सहंदी मे्डब हुई ‘बाहुबिी’, ‘र्द्मा की चमक दमक उिके प्​्भाव को नष्​्कर देती देवी’ और ‘पुिी’ जैिी सफल्मो् ने बॉिीवुड के दश्सको् को एक नये सवस्​्ृत कैनवाि के भव्य है.’ इिमे् कोई शक नही् सक सफल्म का कथ्य सिनेमा का पसरचय करा सदया है. सफल्म ऐसतहासिक हो, तो बजट अपने आप ही बढ् ‘बाहुबिी’ तो हर सिहाज िे हॉिीवुड को जाता है. सफल्म ‘बाजीराव मस्​्ानी’ और टक्​्र देती सफल्म है. सहंदी मे् डब होकर इि ‘समस्जसया’ के महंगे बजट को इिी पसरप्​्ेक्य मे् सफल्म ने जैिी वाहवाही िूटी है, वह एक प्​्सतमान है. कहने की जर्रत नही् है सक सहंदी ‘रफतूि’ मे् कैि​िीना कैफ: ग्लैमि भिपूि सफल्मो् के दश्सक भी बॉिीवुड मे् अब ऐिे ही भव्य सफल्मांकन की उम्मीद करने िगे है्. यह सहंदी सिनेमा के सिए एक नयी चुनौती की तरह है. िाउथ की सफल्मे्एक अरिे िे हॉिीवुड को टक्​्र देती आ रही है्. अब इज्​्त बचाने के सिए बॉिीवुड को भी ऐिा सिनेमा देना ही पड्गे ा. िेसकन इन बड्ी सफल्मो्के िाथ सदक्त् यह है सक ये अपने महंगे सटकटो् िे आम सिने दश्सक को टे्शन मे्डाि देती है्. िपसरवार इन सफल्मो्को देखने के सिए एक बड्ी रकम खच्स करनी पड् जाती है. सदक्​्त तब होती है, जब इन सफल्मो् मे् सिफ्फ भव्यता ही नजर आती है, कहानी इि भव्यता मे् गायब हो जाती है. कुछ महीने पहिे ‘बांबे वेिवेट’ (80 करोड्) ने इिी वजह िे बॉक्ि ऑसफि पर मुंह की खायी थी और दो िप्ताह पहिे सरिीज हुई सफल्म ‘शानदार’ (60 करोड्) का भी ऐिा ही हश्​् n हुआ है. शुक्वार | 1 िे 15 नवंबर 2015 77


अंितम पन्ना चेति भगत

युवा आंखो्के सपने

युवा भारत को हम-आप या कोई भी व्यवट्था जकसी आयु सीमा मे् नही् बांध सकती. युवा भारत के लोग अपने जलए बेहतर जजंदगी चाहते है्, अच्छी नौकरी और रोमांस चाहते है्.

ह कहने मे् कोई मै् सहचक नही् महिूि करता हूं सक हमारा िमाज प्​्गसतशीि है. उिने अपने सिये कोई भी िक्​्य िंकीण्सनही्रखा है. इिसिए भी वह अपने होने के महत्व को जानता है. उि पर सकिी भी तरह के झूठ-फरेब का अिर ज्यादा सदनो्तक पडने वािा भी नही्है. राजनेता यही्होसशयार हो जाये्. यही् पर िवाि उठता है सक ऐिे िमाज का चेहरा खुिकर सदखाई क्यो् नही् देता? दरअि​ि, बीते वष्​्ो् मे् यह जर्र हुआ है सक भारतीय िमाज ने अपने सिए भौसतक िुख-िुसवधाएं के िक्​्य भी सनध्ाससरत सकये है्. जहां वैचासरक प्​्गसतशीिता है और िाथ मे् भौसतक िुख-िुसवधाओ् की मांग भी है. वहां बाजार का सकरदार अहम हो जाता है. ऐिे मे् सकिी भी स्वस्थ िमाज को तािमेि सबठाना पडता है. दरअि​ि, यही यंग इंसडया है, युवा भारत है. इि युवा भारत को हमआप या कोई भी व्यवस्था सकिी आयु िीमा मे्नही्बांध िकती. युवा भारत के िोग अपने सिए बेहतर सजंदगी चाहते है्, अच्छी नौकरी और रोमांि चाहता है. इिसिए वे मेक इन इंसडया या सडसजटि इंसडया जैिे शल्दो् के प्​्सत आकस्षसत होते है्. िेसकन यहां एक िच यह भी है सक िबिे पहिे वह वह अपनी जर्रतो् को पूरा करेगा. इिके बाद ही वह सकिी और की मदद की िोच िकता है. अगर मै्और ज्यादा िही कहू,ं तो आज का युवा िबिे पहिे सकिी अच्छे महानगर मे् बेहतर तनख्वाह वािी नौकरी और एक अच्छी गि्सफे्ड चाहता है. गृहस्थ जीवन िे जुडी इि िोच मे् कोई बुराई भी नही् है. हािांसक, इिमे्महत्वपूण्सयह है सक वह ये िब ईमानदारीपूव्सक करे, िमाज सनम्ासण के बुसनयादी मूल्यो् को नजरअंदाज करके न करे. जब आप मेरी सकताब ‘व्हॉट यंग इंसडया वॉन्ट्ि’ को पढते है्, तो इनिे जुडे िच और समथ को जर्र पाते है्. िेसकन आप यह िोच रहे हो्गे सक आसखर इन िबका आजादी के मायने िे क्या िेना-देना है. मुझे िगता है क्यो्सक यंग इंसडया देश की राजनीसत, अथ्सव्यवस्था और िामासजक व्यवस्था को काफी हद तक प्​्भासवत करता है. यंग इंसडया की परवसरश आजाद भारत मे् हुई है. इिसिए उिने उि गुिामी को बि िुना और सकताबो्मे्पढा है. चूसं क उिे अपने सिए आजादी जुटानी नही्पडी, इिसिए 78 शुक्वार | 1 िे 15 नवंबर 2015

वह उिके महत्व को कम आंकता है. पर इिका मतिब यह भी नही्है सक उिके सिए आजादी के कोई मायने नही्है्. इिमे्कोई दोराय नही्सक आज के वक्त मे्आजादी एक तुिनात्मक शल्द है. मि​िन, मै् आपिे सकतना आजाद हूं. उिी तरह यंग इंसडया अब व्यब्कतगत आजादी की बात कर रहा है. वह काफी वक्त िे देख रहा है सक उिके कामकाज मे् घर-पसरवार का बहुत रोक-टोक है. वह उिका सवरोध करने िगा है. वह खुद अपना कसरयर चुनना चाहता है, न सक माता-सपता के थोपे गये कसरयर को अपनाना चाहता है. पुराने िमाज की गढी हुई वज्सनाओ् को वह िांघना चाहता है. वह जात-पात और धम्स के दायरे िे सनकिने को छटपटा रहा है. वह मानवासधकार की बात करता है. िडसकयां-युवसतयां िमाज मे् अपनी बराबरी के सिए िड रही है्. वे दहेज प्​्था का खुिकर सवरोध कर रही है्. उनके सिए यहां आजादी का मतिब आस्थसक स्वाविंबन और आस्थसक आजादी है. वे चाहती है् सक घर िे बाहर सनकिकर अपने सिए खुद खरीदारी करे.् पुरष् ित्​्ात्मक िमाज ने उनके सिए जो िीमाएं बनायी गई है्, उन्हे् वे तोडना चाहती है्. अपने सिए खुद िीमाएं बनाना चाहती है्. आसखर ये िब भी तो आजादी के दायरे मे्आने वािे तत्व है्. यह आजादी बोिने, सिखने िे िेकर कई अथ्​्ो्तक जुडी है. ऐिे मे् इिमे्कोई भी हस्क ् प्े युवा भारत को नागवार गुजरता है. भिे ही यह हस्​्क्ेप िरकारी हो या सनजी, वह सवरोध दज्सकराता है. याद करे्, कैिे खुदरा बाजार मे् प्​्त्यक्​् सनवेश के मि​िे के सवरोध मे् छोटे दुकानदार उठ खडे हुए थे, कैिे हाि-सफिहाि इंटरनेट की आजादी का मामिा उठा था, कैिे असभव्यब्कत की आजादी को िेकर सवरोध-प्​्दश्सन हुआ है. इन िब चीजो् को बहुत ही िकारात्मक तरीके िे िेने की जर्रत है. िमाज मे् पक्​्-सवपक्​् चिता रहता है और युवा भारत का िमाज भी इि​िे अछूता नही् रह िकता. हम भिे इिके पक्​् मे् हो् या सवपक्​् मे्, िेसकन तमाम ब्सथसतयो् का िम्मान सकया जाना n चासहए. (िेखक अंग्ेजी के िोकसप्​्य उपन्यािकार और सफल्म पटकथाकार है्. आिेख श्​्ुसत समत्​्ि िे बातचीत पर आधासरत.)




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