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अन� ु ����� शभ ु कामना संदेश
3-8
संपादक�य
9
1. �हंद� लोकक�ा का वग�करण : एक अ�ययन
- व�र�� �ो. उपल ु रं �जत हे वा�वतानगमगे
12
2. पंचम �व�व �हंद� स�मलेन - 1996
- डॉ. अनीता गांगल ु �
23
3. उ�मीद (कहानी)
- �ी ��सल नागोड �वतान
27
4. दे वनागर� �लप का उ�स �र �वकास
- डॉ. �वजय कुमार म�हो�ा
30
5. वै��वक स�दभ� म� �हंद� �र �व रो�गार क� संभावना
- �ो. व�शनी शमा�
6. डॉ. ह�रवंशराय ब�चन के मधुशाला क� दाश��नक प�ृ �भ�ू म - �ो. (डॉ.) उमाप�त द���त
37 43
7. �बन पानी सब सन ु ,
- �ी संजय भार�वाज
49
8. बदनामी क� छांव
- डॉ. सन ु ीता भड़वाल
59
9. �ी लंका म� भ�व�य क� �हंद� 10. �ी लंका क� सं�कृ�त
11. �हंद� भाषा का �व�प-�ववेचना
- स� ु ी नधीरा �शवंती
63
- स� ु ी श�मला क�मद ु �
68
- डॉ. �कंध जी पा�क
12. �हंद� के �लए आव�यक कुछ कदम
- �ी �ीधर बव�
77 85
13. द���नी त�ा �ड़ी बोल� का अंत� संबध ं
- डॉ. गंगाधर वानोडे
94
14. �हंद� का वत�मान �व�प
- डॉ. मंजु रॉय
97
15. �हंद� �दवस के �लए �वशेष :
- �ी तारकेश कुमार ओझा
99
16. महाक�व जयशंकर �साद का जीवनवत ृ
- डॉ. मक ु ु ल ��डेलवाल
17. दे वनागर� क� �े��ता
- �ीमती च��दमा च���संह
18. ना�क म� �व�न एवं संगीत योजना त�ा वेशभष ू ा का मह�व - डॉ. �वनय कुमार
19. प�ने क� बदलती सं�कृ�त �र �कताब का भ�व�य
- डॉ. डी.पी. �संह
20. वै�वीय �हंद� म� चल�च�
- �ी शरणग�ु त वीर�संह
21. भारतीय दाश��नक परं परा म� नार� के अवदान का अनश ु ीलन - �ो. (डॉ.) आशीष कुमार पा�डेय
101 103 104 106 110 112
22. �त�रया च�र� मह ु ावरा : एक समी�ा�मक अ�ययन
- स� ु ी क��त� पा�क
127
23. उ�तर �प�नवे�शक भारत
- �ीमती अनश ु ा �न��मनी सलवातरु
135
24. �हंद� त�ा �संहल� के अ�न�चयवाचक सव�नाम
-�ीमती ड�लयू .नीता सभ ु ा�षनी सेने�वर�न
151
25. �हंद� क� �त�ु त
- �ीमती वसंता प��नी
158
- �ीमती कमलद�प ��ना
159
- �ीमती अचला दमयंती
160
- �ीमती अमानी �व�मार��च
161
26. ये ग�र� का लहू है, सच मरा, 27. वह
�कृ�त �र नार�
28. ���त 29. सनम रे ! एक �संहल� क�वता का अनव ु ाद, कमी
- स� ु ी �दे �शका पेरेरा
30. बौ� �म� के अनस ु ार स�चने म� कुछ
- �ी आर. एम ्. �दमत ु ु चतरु ं ग
163
31. बस ह� ये द�ू रया�
- स� ु ी हसारा दस�ु न �ह�रमत ु ग ु ॉड़
164
32. चल अब आ जा, सावन है यह
- �ी आनंद अबेस� ु दर
164
�ी यशवंत चौहान
165
33. आ�ाद�
2
162
-
34. �ह�द दे श क� पहचान है, �हंद�
- स� ु ी अना�मका अ�वाल
35. �ी लंका के �हंद� समाचार जनवर� 2017 से
- संपादक मंडल
166 167-172
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4
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मह हर्ष का विर्म है कक श्रीरंका कोरंफो का बायतीम सांस्कृततक केन्द्र हहंदी हदिस
2017 के संस्भयणाथष ई -ऩत्रिका ई -प्रमास का प्रकाशन कय यहा है ।
प्रस्तत ु ऩत्रिका श्रीरंका तथा बायतीम संस्कृतत के सन्द्दबष भें प्रकाशशत हो यही है
।
सांस्कृततक दष्ॄ टि से बी दोनों दे शों के सम्फन्द्ध अतत प्राचीन है ।
भेया विश्िास है कक मह ऩत्रिका आज के इस िैऻातनक मग ु भें विदे शीम संस्कृतत के
आदान प्रदान भें भहत्िऩण ू ष बशू भका तनबाएगी ।
इस ऩत्रिका की सपरता के शरए शब ु काभनामें । डॉ . (श्रीभती) इंरा दसनामक साहहष्त्मक चक्रिती,
सेिातनित ू ऩि ू ष अध्मऺ हहन्द्दी विबाग, ृ प्रो. तथा बत केरतनमा विश्िविद्मारम, केरतनमा
6
7
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संपादक�य
भाषायी संदभ� म� �ह�द� के संवध�न एवं �वकास के �लए नई तकनीक के साथ कदम �मलाते हुए �पके सम� ई -प��का ई- �यास भारत- �ीलंका के सा�हि�यक स�दभ�, म� लेकर �पि�थत है ।
भाषा सं�कृ�त �र इ�तहास क� सु�� पर�परा�ं से लेकर वत�मान
म� राजन�यक, सामािजक एवं ��थ�क �प से भारत के स�ब�ध �ीलंका के साथ मै�ीपू�� रहे ह� । भाषा
�व�ार-�व�नमय का एक सव��े��
साधन है । भाषा के
�वारा �कसी भी समाज का �ान सुर��त रहता है । भाषा ह� भावा�मक एकता, रा���य एकता एवं �ंतरा����य भावना�ं का �वकास करती है । वैि�वक मं� पर �हंद� वत�मान प�र�े�य म� केवल एक दे � क� सीमा म� बंधी हुई नह�ं है । इस भूमं�ल�कर� के दौर म� �हंद� �पने सम� �प म� ��ा�रत-�सा�रत हो रह� है । इसका फैलाव ए��याई दे �� म� तो हो
ह� रहा है । साथ ह� सम� युरोपीय दे �� म� भी �हंद� फल-फूल रह� है । �नि��त तौर पर �ह�द� ु तान क� यह मधुर, सु�दर भाषा पूरे �व�व म� �त ु गामी �प से फ़ैल रह� है । �व�भ�न दे �� के �पसी संबंध केवल
9
рд░рд╛я┐╜рдиреАя┐╜рддрдХ, рд╕рд╛рдВя┐╜рдХреГя┐╜рддрдХ рдпрд╛ рдзрд╛я┐╜рдоя┐╜рдХ рдпрд╛ я┐╜рдпрд╛я┐╜рд╛рд░ я┐╜рдЧрдд рддрдХ рд╣я┐╜ рд╕реАя┐╜рдордд
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शुभकामना संदेश� ने प��का को ��वग�ु �त आभा �दान क�
ह�, उन महानुभाव� क� शुभकामनाओं के ��त भी �पनी कृत�ता �य�त करती हूँ।
शुभकामना संदेश� ने प��का को � हम आभार� ह� भारतीय उ��ायोग, कोलंबो के उ��ायुकत ह�, उन महानुभाव� क� शुभकामनाओं के ��त महोदय ��रंदम बाग�ी �वं भारतीय सां�कृ�तक क��, कोलंबो क� �नदे शक करती हूँ। राज�ी बेहरा �जनके माग�दश�न व �नद� शन के �बना यह काय� संभव न हम आभार� ह� भारतीय उ��ायोग था । महोदय ��रंदम बाग�ी �वं भारतीय सां�कृ�त प��का को सवांरने व �नखारने म� सु�ी न�ीरा �शवंती, �ीमती राज�ी बेहरा �जनके माग�दश�न व �नद� शन क �मानी �व�मआरा���, संपादक मंडल और �ी बानक ू (�नओ �ा���स) था । के सहयोग को �व�मत ृ नह�ं �कया जा सकता ह�। प��का को सवांरने व �नखारने म� स आशा ह� नह�ं पू�� म� �व�वास है �क हमारे इस ई-�यास को �मानी �व�मआरा���, संपादक मंडल और आपका �नेह �ा�त होगा। दोन� दे श� के सारग�भ�त और उपयोगी �काशन के सहयोग को �व�मत ृ नह�ं �कया जा सकत को आप पढ़ सक�गे A �हंद� को वै�ा�नक तकनीक� से जो�ने क� हमार� आशा ह� नह�ं पू�� म� �व�वास ह इस को�शश म� आप सबका सहयोग और माग�दश�न �पे��त है । आपका �नेह �ा�त होगा। दोन� दे श� के सारग आभार। को आप पढ़ सक�गे A �हंद� को वै�ा�नक तक डॉ.�शर�न कुरै शी �हंद� �ेयर
भारतीय सां�कृ�तक क�� ,कोलंबो
इस को�शश म� आप सबका सहयोग और मा आभार। डॉ.�शर�न कुरै शी �हंद� �ेयर
भारतीय सां�कृ�तक क�� ,कोलंबो
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िह��ी लोक कथाओ ं का वग�करण : एक ��ययन Senior Professor Upul Ranjith Hewawitanagamage Head, Dept. of Hindi Studies, University of Kelaniya, Sri Lanka व�र� �ो�े �र उपुल रंजीत हेवािवतानगमगे िवभागा�य�, िह��ी ��ययन िवभाग, कॅ लिणय िव�िव�ालय, �ी लंका।
िह��ी लोक कथाओ ं के उपल�� वग�कर�� म� समानताओ ं के साथ-साथ िवषमताएँ भी ���य होती ह� । इनम� म�ु यत: �े�गत �ि�को� का बाह��य िव�मान है। अतः लोकवाता�िव�� के अपने-अपने िवचार� म� असमानताएँ �ि�गत होती ह�। हम यहाँ भारतीय लोक कथाओ ं के वग�कर� के बारे म� चचा� नह� करना चाहते। के वल िह��ी लोक कथाओ ं के वग�कर� पर �का� डालना हमारा उ�े�य है। यहाँ यह उ�ले�नीय है िक िह��ी लोक कथाओ ं के वग�कर� के सं�भ� म� िजन लोकवाता�िव�� के �ारा जो �यास िकए गए ह�, वे अ�यतं मह�वप�ू � और अव�य �तु�य भी ह�। �य�िक उन सभी का उ�े�य यह रहा हो िक इन वग�कर�� से िह��ी लोक कथाओ ं का एक वै�ािनक एवं स�ु यवि�थत अ�ययन ��तुत िकया जा सके । कृ ���ेव उपा�याय के िवचारानसु ार भोजपरु ी लोक कथाओ ं का वग�कर� िन�न�कार है, जो म�ु यतः 6 भाग� म� िवभािजत िकया गया है : 1. उप�े�ा�मक 2. मनोरजना�मक 3. �ता�मक 4. �ेमा�मक 5. व��ना�मक 6. सामािजक 1 इनके अित�र� रह�य-रोमांच क� कथाओ ं का भी उ�ले� िकया गया है, िक�तु उसे सातव� स�या पर नह� ठहराई गयी है। उनके कथनानुसार रह�य-रोमांच क� िक इन कथाओ ं को सनु ने म� कौतूहल तो अव�य उ�प�न होता है। परंतु, ��य पर उनका कुछ �थायी �भाव नह� पड़ता। और ऐसी कथाओ ं क� सं�या भी अ�यंत कम होती है।2 उपा�याय का ही भोजपरु ी लोक कथाओ ं से संबि��त और एक वग�कर� 'िह��ी सािह�य का बृहत इितहास : षोडस भाग' �ंथ म� उि�लि�त है।3 यहाँ भी 6 वग� ��तुत िकये गये ह� :
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1. उपदेश कथा 2. �त कथा 3. �ेम कथा 4. मनोरंजक कथा 5. सामािजक कथा 6. पौरािणक कथा �थम वग�करण म� आये 'वण�ना�मक कथा' के बदले इस ि�तीय वग�करण म� 'पौरािणक कथा' वग� जोड़ िदया गया है। साथ-साथ यह वग�करण 'िवषयगत' बताया गया है। भोजपरु ी लोक कथाओ ं से सबं ि�धत गणेश चौबे (1954) �ारा ��तुत वग�करण वा�तगत �तीत होता है : 1. सृि� कथाएँ 2. देवताओ,ं अितमानव�, रा�स� एवं �ेत� क� कथाएँ 3. चम�कार क� कथाएँ 4. साहस क� कथाएँ 5. ठगी और धोखे क� कथाएँ 6. जाित िवषयक कथाएँ 7. पशु-प�ी एवं पौध� क� कथाएँ 8. �त-�योहार क� कथाएँ 9. हािज़रजवाबी एवं चालाक� क� कथाएँ 10. ऐितहािसक अन�ु िु तय� क� कथाएँ 11. कहावत� क� उ�पि� संबंधी कथाएँ 12. पहेली क� कथाएँ 13. यौन साबंधी कथाएँ 4 भोजपुरी क� �मख ु तीन उपबोिलय� क� के अंतग�त आनेवाली 'नागप�ु रया' अथवा 'नागपरु ी' 5 म� उपल�ध लोक कथाओ ं का एक पृथक वग�करण भवु ने�र 'अनजु ' �ारा ��तुत िकया गया है, जो 6 भाग� म� िवभािजत ह� : 1. अन�ु ािनक कथाएँ 2. िव�ास कथाएँ 3. �ेमा�मक कथाएँ 4. नीित कथाएँ Page 2 of 11
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5. मनोरंजन संबंधी कथाएँ 6. सामािजक कथाएँ 6 सपं ि� आया�णी के मतानसु ार मगही लोक कथाओ ं को 9 भाग� म� िवभािजत िकया जा सकता है : 1. उपदेशा�मक कथाएँ 2. �त-�यौहार साबधं ी कथाएँ 3. सामािजक कथाएँ 4. मनोरंजन �धान लोक कथाएँ 5. �ेमा�मक कथाएँ 6. का�पिनक लोक कथाएँ 7. साहस-परा�म क� लोक कथाएँ 8. पौरािणक लोक कथाएँ 9. �म-संव� ृ लोक कथाएँ 7 यहाँ यह �प� नह� है िक �य� िकसी म� के वल 'कथाएँ' श�द आता है और अ�यत: िकसी म� 'लोक कथाएँ' श�द का �योग िकया जाता? हमारा अनमु ान है िक यहाँ लोक कथाओ ं के अथ� म� ही 'कथाएँ' श�द का भी �योग िकया गया हो। जयका�त िम�ा ने मैिथली लोक कथाओ ं को 8 भाग� म� िवभािजत िकया है : 1. �त कथा 2. परी कथा या रोमांच कथा 3. भतू -�ेत तथा जादगू रनी कथा 4. उपदेशा�मक तथा त�या�मक कथा 5. बिु �-िवनोद कथा 6. िशशु कथा 7. उपासक कथा 8. �थान संबंधी कथा 8 तारकनाथ िम� ने भी मैिथली लोक कथाओ ं को 9 भाग� म� िवभािजत िकया है। कहा गया है िक यह �थल ू �ि� से िकया गया वग�करण है, यथा-Page 3 of 11
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1. धम� कथा 2. नीित कथा 3. चम�कार कथा 4. हा�य-िवनोद कथा 5. �ेम कथा 6. सामािजक कथा 7. बझु ौविल कथा 8. लघछ ु ं द कथा 9. िविवध कथा 9 स�य�त अव�थी �ारा अवधी लोक कथाओ ं को म�ु यत� दो भाग� म� और कई अनुभाग� म� भी िवभािजत िकया गया है : 1. अवसर िवशेष पर कही जानेवाली कथाएँ 1.1 �त संबंधी कथाएँ 2. अ�य कथाएँ 2.1 सृि� क� कथाएँ 2.2 देवताओ,ं अितमानव�, भतू �, चड़ु ैल� क� कथाएँ 2.3 चम�कार क� कथाएँ 2.4 साहस क� कथाएँ 2.5 ठगी और धोखे क� कथाएँ 2.6 जाित िवषयक कथाएँ 2.7 पशु-पि�य� एवं पेड़-पौध� क� कथाएँ 2.8 हािज़रजवाबी एवं चालाक� क� कथाएँ 2.9 लोकोि�य� से स�ब� कथाएँ 2.10 ऐितहािसक अन�ु िु तयाँ 2.11 पहेली और यौन संबंधी कथाएँ 10 बघेली लोक कहाओ ं का वग�कर� �ीच�� जैन ने ��तुत िकया है, जो म�ु यतया दो भाग� म� िवभ� है : 1. िवषयानसु ार 1.1 पशु-प�ी संबंधी 1.2 राजा-रानी संबंधी 1.3 देवी-देवता संबंधी Page 4 of 11
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1.4 1.5 1.6 1.7
जाती संबंधी भतू -चड़ु ैल संबंधी जाद-ू टोना संबंधी साधु-पीर संबंधी
2. ��े�यानसु ार 2.1 रंजना�मक 2.2 �पदेशा�मक 11 शकंु तला वमा� ने छ�ीसग�ी लोक कथाओ ं को म�ु यत� 4 भाग� म� िवभािजत िकया है : 1. 2. 3. 4.
बाल कहािनयाँ (लघु छंद कहािनयाँ) कृ षक जीवन क� कहािनयाँ दा�प�य जीवन क� कहािनयाँ िविवध कहािनयाँ 4.1 दो भा�य� क� कहानी 4.2 पश-ु प�ी सबं ंधी कहािनयाँ 4.3 बझु ौवल कहािनयाँ 12
स�य�� �ारा �थल ू �ि� से िकया गया �ज लोक कथाओ ं का िवभाजन िन�न�कार है : 1. गाथाएँ 2. पश-ु प�ी सबं ंधी कथाएँ 3. परी क� कथाएँ 4. िव�म क� कहािनयाँ 5. बजु ौवल संबंधी कहािनयाँ 6. िनरी�णगिभ�त कहािनयाँ 7. साध-ु पीर� क� कहािनयाँ 8. कारण िनद�शक कहािनयाँ 13 ब�ु देली लोक कथाओ ं को राम�व�प �ीवा�तव ने 7 भाग� म� िवभ� िकया है : 1. �त-�यौहार से संबि�धत 2. वीर च�र� िवषयक Page 5 of 11
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3. कहावत� क� �यंजक 4. नीित एवं उपदेशा�मक 5. कारण िनद�शक 6. �ेम एवं शंगृ ार िवषयक 7. अधं िव�ास मल ू क 14 सांताराम अिनल �ारा कनउजी लोक कथाओ ं को 6 भाग� म� िवभािजत िकया है : 1. �त कहािनयाँ 2. उपदेशा�मक कहािनयाँ 3. �ेम कहािनयाँ 4. िविवध कहािनयाँ 5. पंचतं� शैली क� कहािनयाँ 6. जाित �वभाव क� कहािनयाँ 15 कनउजी के संदभ� म� सरु े शच�� ि�पा�ी का वग�करण के वल 4 भाग� म� सीिमत है : 1. धमा�िभ�यि� �धान कथाएँ 2. िश�ा �धान कथाएँ 3. मनोरंजन �धान कथाएँ 4. अ�य कथाएँ 16 महेश गु� ने कनउजी क� एक उपबोली 'पीलीभीता' क� लोक कथाओ ं का वग�करण इस �कार िकया है : 1. धािम�क कथाएँ 2. नीित एवं िश�ा �धान कथाएँ 3. ऐितहािसक पा�� पर �धा�रत कथाएँ 4. अलौिकक कथाएँ 5. हा�य-�य�ं य �धान कथाएँ 6. �ेमा�मक कथाएँ 7. बाल कथाएँ 17 शंकर लाल यादव के मतानुसार ह�रयाणवी लोक कथाओ ं को 13 भाग� म� िवभािजत िकया जा सकता है : 1. मनोरंजना�मक Page 6 of 11
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2. �पदेशा�मक 3. �ता�मक 4. देव िवषयक 5. पौरािणक 6. साहस एवं शौय�पणू � 7. ऐितहािसक 8. कौशलपणू � 9. अलौिककतापणू � 10. सामािजक 11. बजु ौवल 12. चटु ् कुले 13. लघछ ु ् ं द 18 सीता तथा बी॰ ए॰ �भाकर ने पि�मो�र ��र �देश क� लोक कथाओ ं को 15 भा�� म� िवभािजत िकया है : 1. �यौहार� क� कहािनयाँ 2. भि�रस क� कहािनयाँ 3. �ेम कथाएँ 4. िश�ा�द कहािनयाँ 5. नीित कथाएँ 6. बिु � क� कहािनयाँ 7. अ�ुत साहस क� कहािनयाँ 8. कला क� मह�ा सबं ंधी कथाएँ 9. सामािजक कहािनयाँ 10. भा�य संबंधी लोक कथाएँ 11. का�पिनक लोक कथाएँ 12. चोर� और ��� क� लोक कथाएँ 13. हा�यरस क� लोक कथाएँ 14. बाल कथाएँ 15. िविवध िवषय� पर लोक कथाएँ 19 ��या��ु �ारा व��कृत खड़ीबोली लोक कथाओ ं का व��करण िन�न�कार है : 1. धािम�क कथाएँ 2. ऐितहािसक कथाएँ Page 7 of 11
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3. अलौिकक कथाएँ 4. सामािजक कथाएँ 5. नीित कथाएँ 6. हा�य कथाएँ 7. पश-ु प�ी कथाएँ 20 नानरु ाम ससं कता� का राज�थानी लोक कथाओ ं का वग�करण िन�नािं कत है : 1. वीरभावा�मक बात� 2. नीित संबंधी बात� 3. धम�, �त तथा �यौहार िवषयक बात� 4. देव िवषयक बात� 5. पौरािणक बात� 6. ऐितहािसक बात� 7. �ेम सबं ंधी बात� 8. �ी चातुय� क� बात� 9. कहावत� क� कहािनयाँ 10. (क) प� ब� या लघु छंद बात� (ख) हा�य संबंधी बात� 11. चोर धा�ेितय� क� बात� 12. ��ो�र (बुजौवल) बात� 21 �याम परमार ने मालवी लोक कथाओ ं को 7 भाग� िवभ� िकया है : 1. ऐितहािसक कथाएँ 2. अध� ऐितहािसक कथाएँ 3. �त कथाएँ 4. पशु-प�ी संबंधी कथाएँ 5. चतुराई िवषयक कथाएँ 6. �म संव� ृ कथाएँ 7. चम�कार �धान कथावृ� 22 साथ-साथ मालवी लोक कथाओ ं का और एक विग�करण ��ाद च�� जोशी ने भी ��तुत िकया है : 1. जाितगत लोक कथाएँ 2. सामािजक कथाएँ Page 8 of 11
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3. धािम�क कथाएँ 4. कौतूहल-मनोरंजन एवं हा�य संबंधी कथाएँ 5. जादू एवं चम�का�रक लोक कथाएँ 6. कृ िष संबंधी कथाएँ 7. पश-ु प�ी सबं ंधी कथाएँ 8. बाल कथाएँ 9. ऐितहािसक कथाएँ 10. कहावत� क� कथाएँ 23 पहाड़ी िह�दी के अंतग�त आनेवाली गढ़वाली लोक कथाओ ं का �थल ू वग�करण गोिवंद चातक ने िन�न�कार िकया है : 1. देवी-देवताओ ं क� गाथाएँ 2. प�रय�, भतू � और चम�कार� क� आ�य�, उ�साह और रोमाचं पणू � कथाएँ 3. वीर कथाएँ 4. कारणिनद�शक कथाएँ 5. नीित कथाएँ 6. पश-ु पि�य� क� कथाएँ 7. ज�मांतर अथवा परज�म क� कथाएँ 8. �पक कथाएँ 9. लोकोि�मल ू क कथाएँ 10. आँटे-साँटे 11. हा�य कथाएँ 12. िन�कष�गिभ�त कथाएँ 24 मोहनच�� उ�ेती �ारा कुमाऊँनी लोक कथाओ ं को 3 भाग� म� िवभािजत िकया गया है : 1. सृि� क� उ�पि� 2. आ��रय� (प�रय�) क� कथाएँ 3. सामािजक कथाएँ 25 इस संदभ� म� कृ �णानदं जोशी का वग�करण भी 3 भाग� म� िवभ� है, परंतु नामकरण पृथक है : 1. अितमानवीय शि�य� तथा पश-ु पि�य� क� कथाएँ 2. मनोरंजन�धान कथाएँ 3. िश�ा�धान कथाएँ 26 उपय�� ु वग�करण� से अिधक िव�तृत वग�करण प�ु पलता भ� ने िन�न�कार ��तुत िकया है : Page 9 of 11
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1. देवी-देवता सबं ंधी 2. तं�-मं� संबंधी 3. �त कथाएँ 4. रा�स� और प�रय� क� कथाएँ 5. �ेम कथाएँ और क�पना�धान कथाएँ 6. पशु-प�ी-संबंधी कथाएँ 7. हा�य�धान कथाएँ 8. नीित उपदेश तथा िश�ा�धान कथाएँ 9. ऐितहािसक परा�म और साहस क� कथाएँ 10. पा�रवा�रक तथा सामािजक पृ��िू म पर आधा�रत कथाएँ 11. गीत कथाएँ 12. िविश� उि�य�, चटु कुल� और वाकचातुरी संबंधी कथाएँ 27 पहाड़ी िह�दी के अंतग�त आनेवाली कुलुई क� लोक कथाओ ं का वग�करण प�च�� का�यप ने िन�न�कार ��तुत िकया है : 1. बाल मनोरंजन कथाएँ 2. देवी-देवता संबंधी कथाएँ 3. �ा�य जीवन संबंधी कथाएँ 28 िह�दी लोक कथा वग�करण के संद�� म� नंदलाल क�ला का िववरण िवचारणीय �तीत होता है। उनके �ारा कृ त 'िह�दी का �ादेिशक लोक सािह�य शा�' �ंथ म� ��तुत वग�करण म�ु यत: दो �ि�य� पर आधा�रत बताया गया है : 1. िवषयव�तु क� �ि� पर आधा�रत लोक कथाएँ 1.1 धािम�क तथा उपदेशा�मक 1.2 सामािजक िवषय �धान 1.3 �कृ ित और पया�वरण िवषयक 1.4 वग�य िवषयक 1.5 मनोरंजन �धान 1.6 अव�था�ेद िवषयक 2. िश�प क� �ि� पर आधा�रत लोक कथाएँ 2.1 लघु कथा 2.2 दीघ� कथा 2.3 शृंखलाब� कथा Page 10 of 11
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2.4 पनु रावत�नी कथा 2.5 �तीका�मक कथा 2.6 एक पा�ीय कथा 2.7 बह� पा�ीय कथा 29 उपय�� ु उि�लिखत िह�दी लोक कथाओ ं के वग�करण� को परखने से यह �ात होता है िक मल ू तः ये सब �े�गत त�व� पर आधा�रत ह�। एक ऐसी िवशेषता भी िदखती है िक मैदानी �े�� तथा पहाड़ी �े�� के कथा वग�करण� म� �यनू ािधक �प म� िविश�ताए� होती ह�। यह �प� है िक िह�दी �देश के अंतग�त आनेवाले �देश� के िनवासी �ायः एक ही लोक सं�कृ ित से ब� ह�। अतः लोक कथाओ ं के वग�करण� म� भी अ�यिधक एकता �ि�गत होना संभव है। िफर भी, �े�गत प�रि�थित के साथ-साथ भौगोिलक, धािम�क, सामािजक, आिथ�क, सां�कृ ितक प�रिथय� प�रि�थितय� के अनुसार ��येक िह�दी लोक कथा वग�करण म� एक अपना �वत�ं मह�व अव�य प�रलि�त है। लोक कथा के �े� म� काय�रत मनीिषय� का अनवरत �यास सदा सराहनीय है और अव�य अतल ु नीय है। िक�त,ु �ंथकरण के प�र�े�य म� अिधकांश मनीिषय� �ारा एक िवशेष त�व पर �यान िदये जाने िक �वृि� भी ���य है। उपय�� ु वग�करण� को �यान से देखते समय यह �ात हो जाता है िक 'लोक कथा' श�द के िलए कभी 'कहानी', कभी 'कथा', कभी एक ही वग�करण म� 'कथा', 'लोक कथा' आिद के �प म� श�द� का �योग करने म� एकता बरतने का थोड़ा-सा �यास तक नह� िकया गया है। वा�तव म� यह, एक �याकुल ि�थित उ�प�न करनेवाली बात तो है ही। ऐसी दबु �लताओ ं से बचकर लेखक जब िलखने लग�गे, तभी इस िवषय का भिव�य अव�य उ�जवल हो जाएगा।
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�� ��ा�र� ���प का ��स �र ��कास-�� ��ज� कु�ार �����ा, पू�� ���� � क (राजभाषा), र� � ���ा��, भारत सरकार <malhotravk@hotmail.com>
दे वनागर� �ल�प के इ�तहास के सू�� को �ो�ने से पहले हम� भारत म� ले�न क� �� ु �त कैसे हुई.. इसका पता लगाना होगा. भारत के �थम �ंथ ��वेद का र�ना काल कम से कम 1200 ई.पू. तो माना ह� �ा
सकता है . इसक� भा�ा �ा�ीन वै�दक सं�कृत है , ले�कन �क लं�े समय
तक इसको �ल�प�� करने का कोई �मा� इ�तहास म� नह�ं �मलता.
�ु�त परं परा से ह� वै�दक सा�ह�य के प�न-पा�न क� परं परा लं�े समय तक �लती रह�. ��ना �ल�प�� �कये हु� ह� वेद, वेदांग, �ा�म� �ंथ, �र�यक और �प�न�द �ैसे ��कृ�� सा�ह�य क� र�ना कैसे संभव हो पायी होगी, यह समझना मु��कल तो है , ले�कन ��ना सा�य के कोई दावा भी तो नह�ं �कया �ा सकता. �सं�ु स�यता का काल लगभग 2500 ई.पू. से 1500 ई.प.ू के �ी� ��का गया है और वहा� �मले पुराव�े�� से यह तो �प�� हो गया है �क यह ��यंत �वक�सत स�यता थी और इस काल म� ���लत �सं�ु �ल�प म� �व�व� �कार के लगभग 400 संकेत ह�. यह �ल�प न तो व��माला�मक है और न ह� ��रमाला�मक और �भी तक यह प�� भी नह�ं �ा सक� है . ��स�
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पुरा�वद ��. एस.आर. राव �संधु �ल�प का संबंध अशोककाल�न �ाहमी �ल�प से जो�ते ह�, ले�कन अभी तक इसक� पिु �ट नह�ं हो पायी है . मोटे तौर पर तो भारत म� सबसे पहले �मलने वाले अ�भलेख स�ाट अशोक के ह�, िजनका शासन काल 272 ई.पू. से 232 ई.पू. तक रहा है . ये लेख �स समय क� �ाकृत (मागधी) म� थे. अशोक ने इन लेख� क�
�ल�प को ध�म�ल�प कहा है , ले�कन कालांतर म� इस �ल�प को �ा�मी �ल�प कहा जाने लगा. गुणाकर मुले ने इसे अशोककाल�न �ा�मी �ल�प कहा है , �य��क हर काल म� इसका �व�प बदलता रहा है . यह एक पूण� �वक�सत वण�माला है , एक �व�या�मक �ल�प है और एक वै�ा�नक �ल�प भी है . �सकंदर के हमले (326 ई.पू.) से पूव� गांधार दे श म� ईरानी स�ाट के शासन काल म� ���लत आरमेई �ल�प के आधार पर �वक�सत खरो��� �ल�प का ��ार था. कहते ह� �स समय �सकंदर के साथ भारत म� आयी यन ू ानी �ल�प भी ���लत थी. इस�लए अशोक ने अपने लेख इन �थानीय �ल�पय� म� खुदवाये. अशोक के इस समय के पा�क�तान म� ि�थत मानहे सरा और शाहबा�ग�� के लेख खरो��� �ल�प म� ह�. कंदहार के पास से अशोक का एक लेख आरमेई और यूनानी �ल�प म� भी �मला है . अशोक के पि��मो�तर �ांत को �ो�कर सभी लेख शे� भारत म� �ा�मी �ल�प म� ह� ह�. इससे �प�ट है �क �स समय �ा�मी �ल�प का ��ार सारे दे श म� था. �न��य ह� इस �ल�प को सारे भारत म� फैलने के �लए एक-दो सद� का समय तो लगा ह� होगा.
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तीन-चार लेख ऐसे भी ह� िजनके बारे म� परु ा�वद� का मत है �क ये अशोक के पहले के ह�. सहगौरा (गोरखपुर िज़ले) से एक ता�प� �मला है . अनेक �व�वान� का मत है �क यह ता�प� चं�ग�ु त मौय� (324 ई.पू. से 300 ई.पू.) के समय का है . इसी �कार महा�थान (बांगला दे श) से �ा�त एक लेख को अशोक के पहले का माना जाता है . �प�ावा के �ाचीन बौ� �तूप से एक धातु-पा� �मला है , िजस पर ‘स�लल�नधाने
बुधस भगवते ‘ श�द �ा�मी �ल�प म� खुदे हुए ह�. कु� �व�वान� का मत
है �क बौ� �तूप तथा धातु-पा� का �नमा�� बु� के �नवा�� (483 ई.पू.) के तुरंत बाद �कया गया था. लंदन के ����श सं�हालय म� एक बेबीलोनी फलक रखा हुआ है . यह फलक संभवतः ईसा पूव� पा�चवीं सद� का है �र इस पर �ा�मी �ल�प �र बेबीलोनी क�ला�र� �ल�प म� एक
लेख खुदा हुआ है . इस लेख के �ा�मी अ�र अशोक क� �ा�मी �ल�प के अ�र� से अ�धक �ाचीन जान प�ते ह�. इससे �प�� है �क �ा�मी �ल�प अशोक के पहले ह� अि�त�व म� आ चुक� थी. अशोक के बाद क� दो-तीन स�दय� म� इस �ल�प का थो�ा �वकास हुआ.
ईसा के आरं भ क� लगभग तीन स�दय� क� �ल�पशै�लय� को शुंगकाल�न �ा�मी �ल�प का नाम �दया जा सकता है . वैसे तो इस काल म� शक�, सातवाहन�, इ�वाकु�ं �र प�लव� के भी बहुत से लेख इस �ल�प म� ह�.
350 ई. से 550 ई. तक गु�त काल म� इस �ल�प का �र अ�धक
�वकास हुआ, िजसे ग�ु तकाल�न �ा�मी �ल�प कहा जा सकता है . गु�त
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काल क� ��तर भारत क� �ा�मी �ल�प ईसा क� पाँचवी�-छ�� स�� म� प��चम��तर भारत और म�य ���या म� पहुँच गयी और वहाँ ह�त�ल�पय� म� इसका इ�तेमाल ह�ता है .
व�तुतः गु�त काल �ा�मण �म� और स��कृत भाषा के पुन��थान का
युग था. इस काल म� स��कृत भाषा के बहुत से ��थ �ल�े गये. जैन
और ब�� प���त� ने भी �ाकृत छ�ड़कर स��कृत क� �पना �लया. ���ण भारत के प�लव �ासक� ने भी स��कृत क� �पना �लया. ग�ु त� के सारे ले� ह� स��कृत म� ह�. इसी काल के ले�� म� ओम ् के �च�न का भी
�वकास ह�ता है . �वरर�हत �य�जन� के �ल� हल�त का �य�ग ह�ने लगता है . �ा�मी �ल�प का �वकास-�म न�� के �वाह जैसा है . छ�� स�� से ��तर भारत के ले�� म� ���क कला�मकता ���ायी �े ने लगी. ��र� क� �ड़ी रे �ा�ँ नीचे क� तर� बायी� ओर मुड़ जाती ह� और �वर� क� मा�ा�ँ ���क ल�बी,�े ��-मे�� और कला�मक बनने लगी�. छ�� से न�वी� स�� तक इस �कार क� �ल�प म� ��तर भारत के �नेक ले� �ल�े गये.
कुछ पुरा�व�� ने इस �ैल� क� कु��ल �ल�प नाम ��या है , ले�कन ��स� इ�तहासकार ��बे�नी (1030 ई.) ने �ल�ा है �क क�मीर, वाराणसी और म�य �े � (क�न�ज के �सपास के ��े �) म� �स�मातक ृ ा �ल�प का
�य�ग ह�ता है और मालवा म� नागर �ल�प का �चलन है . ���ण भारत म� इसी �ल�प क� न���नागर� कहा जाता था और न���नागर� म� �ल�े ले� ���ण भारत म� 8वी� स�� से ह� �मलने लग जाते ह� और ��तर
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भारत म� 9वीं सद� से. द��� भारत म� नागर� �ल�प का खूब �यवहार होता था. दरअसल, नागर� के �रं �भक लेख हम� �वं�य पव�त के नी�े के द�खन �दे श से ह� �मलते ह�.
द��� भारत म� नागर� का �ा�ीनतम
लेख रा��कूट राजा दं �तदग ु � का सामांग� दानप� (754 ई.) है . दं �तदग ु �
ने ह� रा��कूट शासन क� नींव �ाल� थी. ये रा��कूट मूलत� कना�टक
�नवासी थे �र �नक� मातभ ृ ा�ा क�न� थी, परं तु ये खानदे श म� बस
गये थे. रा��कूट शासन के द�रान ह� ग��त� महावीरा�ाय� (850 ई.) ने अपने ग��तसार-सं�ह क� र�ना क�. 8वीं सद� म� क�क� �दे श म� �शलाहार� का रा�य �था�पत हो गया. �नके भी अनेक लेख नागर� म� �मलते ह�. सुदरू द��� से �ा�त वरमु� का प�लयम ता�प� (9वीं सद�) नागर� �ल�प म� है . राजराज व राज�� जैसे �तापी �ोल राजा�ं (11 वीं सद�) के �स�क� पर दे वनागर� के अ�र �मलते ह�. 12वीं सद� के केरल के शासक� के �स�क� पर “वीरकेरल�य ” जैसे श�द नागर� म� अं�कत ह�. �ीलंका के परा�मबाहु �र �वजयबाहु (12 वीं सद�) ��द शासक� के
�स�क� पर भी �लखे नागर� के अ�र �मलते ह�.14वीं-15वीं सद� म�
�वजय नगर के शासक� ने अपने लेख� क� �ल�प को नं�दनागर� कहा है . �वजय नगर के शासक�
के लेख क�न�-तेलुगु �र नागर� �ल�प म�
�मसते ह�. जानकार� �मलती है �क �वजय नगर के शासन-काल ह� म� पहले-पहल वेद� को �ल�पब� �कया गया था �र यह �ल�प ��र दे वनागर� रह� होगी.
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��तर भारत म� अ�पकाल के �लए ��लामी शासन क� नींव डालने वाले महमूद गजनवी ( 11वीं सद�) के लाहौर के टकसाल म� �ाले गये �स�क� पर भी नागर� के अ�र अं�कत ह�. “अ�य�तमेकं मुह�मद अवतार नप ृ �त
महमूद “ (1028 ई.) मुह�मद गौर�, अला��ीन �खलजी और शेरशाह सूर�
ने भी अपने �स�क� पर नागर� श�द खुदवाए. बादशाह अकबर ने एक �सा �स�का चलाया था,िजस पर राम-सीता क� आकृ�त भी है और
नागर� म� “रामसीय “ श�द अं�कत है .��तर भारत म� मेवाड़ के गु�हल, सांभर-अजमेर के चौहान, क�नौज के गाहड़वाल, का��यावाड़-गुजरात के सोलंक�, आबू के परमार, जेजाकभुि�त (बुंदेलखंड) के चंदेल तथा ��पुरा के कलचु�र शासक� के लेख नागर� �ल�प म� ह� ह�. ��तर भारत क� �स �ल�प को हम दे वनागर� के नाम से जानते ह�. �ससे �प�ट है �क ईसा क� 8वीं-11 वीं सद� म� हम नागर� �ल�प को पूरे दे श म� �या�त दे खते ह�. �स समय यह एक साव�दे�शक �ल�प थी. जहाँ भी सं�कृत क� पु�तक� �का�शत होती थीं, वह�ं नागर� �ल�प का �योग होता था. �स नागर� �ल�प के �दय के साथ ह� भारतीय ��तहास व
सं�कृ�त के एक नये युग क� शु�आत होती है . भारत ��लाम के संपक�
म� आता है और 13 वीं सद� से भारत म� ��लामी शासन शु� हो जाता है . भारतीय समाज व बहुत-से सं�दाय� को एक �यापक नाम �मलता है , �हंद ू समाज और �हंद ू �म�. ��क �सी तरह से द��� भारत म�
नं�दनागर� और ��तर भारत म� नागर� नाम से �च�लत �ल�प मु�यत�
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सं�कृत ��ा�त ् �े ववाणी के �ल� �यु�त होने के कारण �े वनागर� कह�
जाने लगी. संभवतः यह नाम 11 वीं स�� से साव��े��क �ल�� के �� म� ���लत होने लगा. सन ् 1796 म� ज�न �गल�ा��� �वारा �ल��त “�हं�� ु तानी भा�ा का �याकरण “ �े वनागर� �ल�� म� �का��त हुआ. सन ्
1836 म� कोलकाता से “��ं ड मात�ड “ नाम से �े वनागर� �ल�� म� मु��त
�हं�� का �हला ��बार �नकला. �स �कार मूलतः �े ववाणी सं�कृत के �ल� �े वनागर� �ल�� का �योग
आज भारत क� राजभा�ा �हं��, मरा��,क�कणी, �सं�ी, डोगर�, बोडो और ने�ाल� के �ल� भी �कया जा रहा ह� . .................................
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वैश्ववक सॊदबभ भें
हहॊदी औय स्व योजगाय की सॊबावनाएॉ प्रो. वशिनी िभाभ , आगया
वैश्ववक सॊदबभ भें
हहॊदी अफ साहहश्यमक अध्ममन औय अध्माऩन की
सीभाओॊ से फाहय आ कय ववशबन्न प्रौद्मोगगकीम औय व्मावसायमक ऺेत्रों भें अऩना स्थान फना चक ु ी है । इन हदनों दे ि भें ही नहीॊ ववदे ि भें बी व्मावसायमक ऩाठ्मक्रभों भें हहॊदी (अन्म बाषाएॉ) की व्मावहारयक कामभऩयक कुिरता ऩय फर हदमा जा यहा है ।
बायतीम व्मावसायमक जगत भें अऩने व्मश्ततमों को कामभऺभ फनाने की दृश्टि से बफज़नेस हहॊदी के ऩाठ्मक्रभ चराए जा यहे हैं । ककसी सॊस्था मा सयकायी नौकयी के अयतरयतत अनेक ऺेत्र ऐसे हैं श्जन भें
हहॊदी भें कामभ कुिरता वैश्ववक स्तय की स्व-
योजगाय सॊबावनाओॊ के शरए नए दयवाजे खोर दे गी । महाॉ तक कक हहॊदी के वैश्ववक
प्रचाय-प्रसाय औय अध्ममन को बी फर शभरेगा औय हभाये अॊतयाभटरीम छात्र हहॊदी को अऩने योजगाय के शरए बी उऩमोगी फना सकेंगे ।
स्व-योजगाय के दो ऺेत्र हो सकते हैं – अ )बाषा ऩयक
फ) कौिरऩयक ।
बाषाऩयक स्व-योजगाय
ऑन राइन हहॊदी शिऺण के कई यनजी ऩाठ्मक्रभ स्व -योजगाय की हदिा भें
भहयवऩण ू भ वैश्ववक प्रमास हो सकते हैं ।सॊचाय -सच ू ना प्रौद्मोगगकी भें हदनों-हदन
फढ़ यही हहॊदी की उऩमोगगता औय अयनवामभता अगधक से अगधक कामभ-सऺभ
मव ु ाओॊ को योजगाय हदरा सकेगी । ऑन राइन अगधक कामभ-सऺभ मव ु ाओॊ को
योजगाय हदरा सकेगी । ऑन राइन िॉवऩॊग औय भाकेहिॊग औय ववकीऩीडिमा के शरए हहॊदी भें रेखन सज ृ नायभक सॊतुश्टि के साथ ववयतीम राब का अवसय
ववदे िी कामभक्रभों का हहॊदी भें अनस ु ज ृ न
डिस्कवयी चैनर , नेिनर ज्माग्राकपकर चैनर औय
िे रीिॉवऩॊग ,ऑनराइन हहॊदी शिऺण ही नहीॊ कई ववदे िी चैनल्स ऩय प्रसारयत
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कपल्भें ,कॉिूभन सीरयमल्स हहॊदी भें अनस ु ज ृ न के कायण अफ रोकवप्रम व्मावसायमक
ऺेत्र फन चक ु े हैं औय योजगाय का नमा ऺेत्र बी ।
एक चैनर जैसे कियॊ गी अॊतयाभटरीम ववदे िी बाषाई कपल्भों को हहॊदी भें िफ कयके प्रस्तुत कयता है ।
हहॊदी कपल्भों के अयतरयतत अन्म बाषाओॊ भें सफ िाइिल्स का कामभ बी
हभाये सॊस्थान के कई दे िों के मव ु ा छात्रों के शरए ऐसा ही एक योजगाय का ऺेत्र
फना हुआ है । जन सॊचाय भाध्मभों भें अवसय
सबी जन सॊचाय भाध्मभों भें - कपल्भी मा गैय कपल्भी सबी कामभक्रभों भें
एॊकरयॊग मा कामभक्रभ सॊचारन/ सॊमोजन के शरए हहॊदी की अयनवामभता औय उऩमोगगता हय तयह से शसद्द हो चक ु ी है । चाहे नयृ म,सॊगीत,गामन की
प्रयतमोगगताओॊ के यीमशरिी िोज़ हो मा सम्भान / ऩयु स्काय ववतयण सभायोह –
हहॊदी की कुिर सॊप्रेषणीमता के बफना मे सपर हो ही नहीॊ सकते । इनके शरए
हहॊदी भें अशबव्मश्तत ऩयक प्रशिऺण की ज़रूयत होगी ताकक योजगाय के नए द्वाय
खर ु े |
ऩमभिन व्मवसाम भें अवसय
ऩमभिन भें व्मवश्स्थत प्रफॊधन औय द्ववबाषी कुिर गाइि औय आिु अनव ु ादक
का कामभ हहॊदी भें योजगाय की अनॊत सॊबावनाएॉ जगाता है ।
फीश्जॊग ओरश्म्ऩक भें हहॊदी सॊस्थान की एक छात्रा को ऩहरवान सि ु ीर कुभाय के
साथ चीनी अगधकारयमों द्वाया हहॊदी दब ु ावषए की तयह तैनात ककमा गमा था ।
इतना ही नहीॊ भेडिकर िूरयज्भ,साॊस्कृयतक ऩमभिन , आहद भें भें हहॊदी के ऻान
का वैश्ववक दृश्टि से फ-खूफी इस्तेभार सॊबव हो सकता है ।
भीडिमा औय ववऻाऩन
ववऻाऩन का भनभोहक जगत हहॊदी भें कुिर औय सज ृ नायभक सॊबावनाओॊ को
यनभॊत्रण दे ता है औय सबी रोकवप्रम कामभक्रभों भें फाय-फाय हदखाए जानेवारे इन
ववऻाऩनों भें हय कॊऩनी के कयोिों का वाया-न्माया होता है ।
श्स्क्रप्ि रेखन, एयनभेिन,गीत रेखन औय कॊप्मि ू य का ऻान स्व-योजगाय के
भोहक अवसय प्रदान कयता है ।
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हहन्दी भें आकषभक औय प्रबावी ववऻाऩन तैमाय कयने के शरए मव ु ाओॊ की भाॊग
फढ़ी है । प्रसन ू जोिी जैसे कई रेखकों ने ववऻाऩन की दयु नमा भें एक अरग
अरग ऩहचान कामभ की है ।
अयतगथ रेखन : कभाई का नमा साधन
इॊियनेि ऩय कॊिे न्ि याइहिॊग औय अनव ु ाद के शरए बी हहन्दी के वविेषऻों औय
बाषाववदों की जरूयत फढ़ाई है ।व्माऩाय रेखन की ववशिटि जहिरता इस कामभ
कोफहुत ही चन े य रेखकों औय िोधकताभओॊ के शरए ु ौतीऩण ू भ फनाता है , औय ऩेिव अवसयों का एक नमा प्रवेि द्वाय फनाता है । बफजनेस औय कॉयऩोये ि रेखन ऩयू ी तयह से अरग फात है , व्मावसायमक
प्रमोजनों के शरए साभग्री रेखन औय मा सवभय कॊऩयनमों की जरूयत के शरए
आऩये िन ऺेत्रों के शरए ऩमाभप्त ऻान के साथ ही उद्मोग की बी उगचत ऻान राबकायी होगा।
श्स्क्रप्ि औय कॊिे न्ि रेखन
िीवी सीरयमर हो कपल्भ की दयु नमा, ववऻाऩन सॊस्थाएॊ, कोगचॊग सेंिय, प्रकािन
सॊस्थान मा अन्म यनजी कॊऩयनमाॊ, अऩने महाॊ श्स्क्रप्ि रेखन औय कॊिे न्ि याइहिॊग
के शरए हहन्दी के रेखकों को ढे यों अवसय भह ु ै मा कया यही हैं। फॉरीवि ु भें इन
हदनों श्स्क्रप्ि रेखकों की अच्छी-खासी भाॊग है । खाना ऩकाने (कुककॊग) के कामभक्रभ
िीवी के ववशबन्न चैनर खाना ,नावते , शभठाई औय ववशबन्न व्मॊजनों के हहॊदी
कामभक्रभों भें फनाने की ववगध ,साभग्री औय प्रस्तुयत भें योचकता औय ववववधता
राने का ऩयू ा प्रमास कयते हैं।
इन कामभक्रभों भें हहॊदी के जानकाय रोगों के शरए योजगाय के अनेक अवसय हैं
एॊकय के रूऩ भें बी औय प्रस्तुयत के शरए बी।
अगधकाॊि कामभक्रभ हहॊदी भें प्रस्तुत होता है ऩय साभग्री का उल्रेख कबी-कबी
अॊग्रेज़ी भें बी ककमा जाता है ।
• िे रीभाकेहिॊग औय िे रीिॉवऩॊग आज िीवी का फहुचगचभत कामभक्रभ है औय कई चैनर इस कामभक्रभ के प्रसायण का सभम ऩहरे से यनधाभरयत कयते हैं ताकक उऩबोतता को ऑिभय दे ने भें सवु वधा हो सके ।
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•
इॊपोभशिभमर ( infomercials) ऐसे िे रीववज़न कामभक्रभ हैं जो ककसी
रोकवप्रम कामभक्रभ के दौयान हदखाए जाते है |ववऻाऩन के अन्म प्रकायों की तयह इनभें बी कथ्म व्मावसायमक उद्देवम शरए होता है जो प्रामोजक के
दृश्टिकोण औय राब को प्रस्तुत कयता है |
• इॊपोभशिभमर अतसय वास्तववक िे रीववज़न कामभक्रभ की तज़भ ऩय ही फनते हैं जैसे िॉक िोज़ औय साऺायकाय जो ववऻाऩन जैसे नहीॊ रगते।
• इन कामभक्रभों भें प्रस्तयु त के शरए हहॊदी अशबव्मश्तत भें कुिर औय आकषभक नौजवानों की आववमकता होती है अत् मह बी योजगाय का अच्छा ऺेत्र है ।
मोग औय बायतीम गचककयसा ऩद्दयत
इधय कुछ वषों से मोग की क्राॊयत ने स्वास्थ्म औय व्मश्ततगत कपट्नेस को
वववव स्तय ऩय जन-साभान्म केशरए सर ु ब औय रोकवप्रम ऺेत्र फना हदमा।
अनेक अॊतयाभटरीम औय याटरीम हश्स्तमों ने इसे अऩनी जीवन-िैरी का अॊग फनामा औय अऩने अभ्मास सॊफॊधी वीडिमोज़ बी फनाए।
फाफा याभदे व के वववव व्माऩी शिववयों ने बी इसे इतना सर ु ब औय व्माऩक फनामा
। आज स्थान-स्थान ऩय यनजी तौय बी इसके स्वैश्च्छक केंद्र चर यहे हैं ।इसे बी
योजगाय का साधन फनामा जा सकता है ।
रयमशरिी िोज़: प्रयतमोगगता औय कभाई का नमा ऺेत्र
सॊगीत /नयृ म / हास्म / श्तवज़ / ऩारयवारयक / साभाश्जक/ खेर सॊफॊधी िोज़
तमों खीॊचते हैं अऩनी तयप रयमशरिी िो
रयमशरिी िो शसपभ बायत भें ही नहीॊ, फश्ल्क दयु नमा बय भें धभ ू भचा यहे हैं. हय
दे ि भें इॊडिमन आमिर, योिीज़ औय बफग फॉस जैसे रयमशरिी िोज़ का अऩना
एक अवताय है . रेककन ऐसा तमा है कक रोग इनकी तयप खखॊचे चरे जाते हैं. मव ु ा प्रयतबाओॊ को भॊच दे ते हैं रयमशरिी िो
कौन फनेगा कयोड़ऩयत मा इॊडिमन आमिर को तो हभ सबी जानते हैं. वऩछरे
कई सारों से मे िो बायत भें सफ की श्जॊदगी का हहस्सा फन गए हैं औय यातों-
यात अभीय फनने का सच होता सऩना बी।इस फाय का एक ववऻाऩन तो हहॊदी जानने वारे अनजान ,सफ औय से असपर मव ु क के कयोड़ऩयत फन जाने ऩय
केंहद्रत है ।नयृ म ,सॊगीत,हास्म गेभ िोज़ बी रोकवप्रम यनणाभमकों के कायण औय
तगड़ी स्ऩधाभ के कायण धभ ू भचाए
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हुए हैं ।
कामभक्रभ प्रफॊधन ( Event Management)
आए हदन दे ि-ववदे ि भें बव्म सभायोह औय आमोजन होते यहते हैं - ऩारयवारयक
/साभाश्जक/धाशभभक/कपल्भी /भनोयॊ जन/ ऩयु स्काय/सम्भान सभायोह /िैक्षऺक /याजनीयतक आहद।
इन आमोजनों की व्मवस्था कयना ही इवें ि भनैजभें ि कहराता है ।ऩहरे केवर फड़ी कॊऩयनमाॉ अऩने उयऩादों के राॊच के शरए मे आमोजन कयती थीॊ ऩय अफ हय आमोजन का भानदॊ ड़ इवें ि की बव्मता से आॊका जाता है ।
इनकी सपरता के ऩीछे श्जन रोगों की कुिर व्मवस्था औय भेहनत होती है वे
इवें ि भैनेजय कहराते हैं।इवें ि भैनेजय इन आमोजनों की ग्राहक की भाॉग औय फजि के अनरू ु ऩ िरु ु से अॊत तक हय ऩड़ाव की तैमायी कयते हैं।मह ऺेत्र
ववऻाऩन औय भाकेहिॊग जगत का एक उच्च स्वरूऩ है ।वतभभान सभम भें
जनसॊचाय के ऺेत्र भें मह उबयते कैरयमय के रूऩ भें साभने आ यहा है ।आमोजनों
की फढ़ती सॊख्मा औय सॊऩन्न वगभ की प्रदिभनवप्रम भानशसकता के चरते इन आमोजनो की बव्मता भें
का अनोखा अवसय बी।
आऩसी होड़ बी खूफ है औय नई ऩीढ़ी के शरए योजगाय
ववदे िी चैनर के हहॊदी भें कामभक्रभ
आज ववदे िी चैनर बी हहॊदी भें कामभक्रभों की फाध्मता को फखूफी सभझते हैं
अत् सबी चैनर अऩने कामभक्रभों का हहॊदी भें अनस ु ज ृ न कयने की मोजना के
तहत ववशबन्न प्रमास कयते नजय आ यहे हैं । इसे इस तयह कहा जा सकता है
कक हहॊदी अनस ु ज ू ा , कथानक ृ न भें ववदे िी कामभक्रभ का भौशरक ऩरयवेि, वेिबष
सबी हहॊदी भें प्रस्तुत ककमे जा यहे हैं।महाॉ तक कक िीषभक गीत ,भह ु ावये , रोकवप्रम
कथाओॊ का बी योचक अनस ु ज ृ न हो यहा है ।
इन ववदे िी कामभक्रभों की हहॊदी बायतीम कामभक्रभों की हहॊदी से कई दृश्टिमों से
अरग है । नई िैरी, नई िब्दावरी, कोि शभश्रण, कोि अॊतयण सबी कुछ अरग
तयह का।
मह बी ध्मान यखने मोग्म बफॊद ु है कक इनके बाषाॊतरयत कामभक्रभ अॊग्रेजी भें बी
ककसी अन्म ववदे िी बाषा से बी बाषाॊतरयत होकय प्रस्तुत ककमे जाते यहे हैं। हहॊदी के बॊिाय की श्री-ववृ द्द के शरए नए-नए ववषम, नए कथानक एवॊ ववधाएॊ हहॊदी की
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अनेक सॊबावनाओॊ के भागभ प्रिस्त कयते हैं औय यनश्वचत ही हहॊदी भें
सज ृ नायभकता के योजगाय के एक भौका बी ।
अनव ु ाद औय अनस ु ज ृ न: बायतीम बाषाएॉ
अनव ु ाद औय अनस ु ज ू ना ृ न की अयनवामभता इन हदनों सबी भनोयॊ जन औय सच
प्रधान सॊचाय भाध्मभों की साभग्री भें खास कय सबी बायतीम बाषा की कपल्भों
,ववऻाऩनों औय अन्म भनोयॊ जक कामभक्रभों के हहॊदी भें प्रसायण के सॊदबभ भें
अनदे खी नहीॊ की जा सकती । वेफ ऩय कपल्भ,गीत औय सॊवाद के अनव ु ाद के
वैमश्ततक औय सॊस्थागत यनजी प्रमास हो यहे हैं औय हहॊदी कपल्भों की प्रादे शिक
औय वैश्ववक बशू भका इसे एक उवभय कामभबशू भ फना चक ु ी है । बायतीम बाषाओॊ से
हहॊदी भें इस कामभ की भाॉग उन दे िों भें बी है जहाॉ हभाये अन्म बाषा-बाषी बायतीम फसे हुए हैं । हहॊदी कॊप्महू िॊग भें योजगाय
ऻान-ववऻान के ऺेत्र भें हहन्दी रेखन ने योजगाय के नए अवसय ऩैदा ककए हैं।
आने वारे सभम भें इसे औय फढ़ावा दे ने की जरूयत है । हहन्दी प्रौद्मोगगकी के
ऺेत्र भें बी फढ़ यही है ।
मयू नकोि के आने से अफ हहन्दी भें िाइऩ कयना आसान हो गमा है । इससे हहन्दी
से जुड़े रोगों को योजगाय के नए अवसय उऩरब्ध हो यहे हैं। भीडिमा के ऺेत्र भें
दे खें तो तयह-तयह के चैनर हहन्दी के जानकायों के शरए अवसय उऩरब्ध कया यहे हैं।
हहन्दी ऩत्रकारयता ने हहन्दी के कायोफाय को अच्छा-खासा फढ़ावा हदमा है । आने
वारे सभम भें हहन्दी को वैश्ववक बाषा फनाने की हदिा भें औय काभ कयने की
जरूयत है ।आिा है हहॊदी हदवस के आमोजनों भें हहॊदी भें वैश्ववक स्तय ऩय स्वयोजगाय की सॊबावनाओॊ के सॊदबभ भें गहन ववचाय-ववभिभ होगा ।
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डॉ.हररवंशराय बच्चन के मधुशाला की दाशशननक पृष्ठ-भूनम प्रोफे सर (डॉ.) ईमापनत दीनित, डी. नलट्
कें द्रीय हहदी संस्थान ( मानव संसाधन नवकास मंत्रालय , भारत सरकार) अगरा (भारत)
अनममक पीड़ा से ऄंतस का मनथत होना और तज्जन्य अममबोध की नस्थनत, ये ही दो ऐसे कारक तमव हैं, नजनके स्पशश से रचनाकार की रचनाधर्ममता साथशक और कृ तकृ मय होने के साथ-साथ रचनाकार को भी लौककक ऄमृतत्त्व प्रदान करती है। ऄंतस् से ईद्भूत समय रचनाकार रूपी फणी की वह मनण है, नजसके अलोक में वह व्यनि होकर भी समनि का, िुद्र होकर भी नवराट का और लौककक होकर भी ऄलौककक का दशशन करता है। ऐसे रचना धमी की रचना, सजशना, चाहे वह गद्य हो या पद्य, लोक मन को ऄपनाने का मृदल ु कदग्दशशन देती ही है, जनमानस को ऄपने अह्लादक प्रभाव से भी ओत-प्रोत कर देती है;। हृदय के गहरे तल से ईभरे ऄनुभूनत के स्वर गाकर ही बच्चन जनकनव और लोकनायक की महानता से जुड़ सके हैं। यद्यनप यह समय है कक युगधमी-सानहमय स्रिा सवशतंत्र- स्वतंत्र हचतक होता है। वह ककसी धमश, दशशन या सम्प्प्रदाय के बंधन में नहीं बँधता। स्वतंत्र धमश और स्वतंत्र धार्ममक चेतना सम्प्पन्न वह नजसे देखता है, ऄपनी दृनि से, देखता है; कफर भी ककसी न ककसी ऄथवा एक साथ ऄनेकानेक पारम्प्पररक दाशशननक नवचारों से ईसकी सानहमय-साधना का स्वर जुड़ ही जाता है। ऐसा ऄनायास ही होता है और आसनलए होता है कक दशशन-लोक लोक का पूणश दशशन ऄपनी पररनध की ऄसीनमत सीमा रखता है। बेचारा सानहमय स्रिा ककसी खास नवचारधारा में न बँधने की दृढ़ माननसकता
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को भरसक ननभाने की कोनशश करता है; ककन्तु ननभे भी तो कै से? लोक की सीमा भी तो दशशन की सीमा से तननक भी कम नहीं। दशशन, लोक की सृनि है, तो लोक दशशन का नवस्तार और आसी नवस्तार में लोक-धमी सानहमयकार जीवन के जलतेईबलते प्रश्नों की अँच में तपते हुए ऄकथनीय तीव्र वेदना से सािात करता है। सहनशीलता और ननभीकता के बावजूद पीर से जूझते रचनाधमी की माननसकता क्रानन्त से जुड़ती है और फू टते है, ऄनभव्यनि में जीवन्त हचतन के स्वर, ऄलौककक दशशन-सूत्र और लोक मानस के छन्द। अममानभव्यनि के आस ऄलौककक काव्य पर ककसी नवशेष या कइ दशशनों का एक साथ प्रभाव तो देखा जा सकता है; ककन्तु ककसी नवशेष दशशन से बँध कर जीना आस मतवाले गायक के नलए संभव ही नहीं। लोक कनव की कनवता पर ईपयुशि प्रभाव की जो छाया दृनिगत होती है, ईसी के चलते दाशशननक पृष्ठभूनम नजज्ञासा और ऄध्ययन का नवषय बनती है। अममरिण और जीवन यापन सृनि के समस्त जीवों का सहजधमश है; ककन्तु मनुष्य ही सृनि का वह ऄनितीय प्राणी है, नजसमें बुनि-वैनशिय है। आसी की सहायता से वह युनि पूवशक यथाशथ का ज्ञान प्राप्त करता है। युनिपूवशक यथाथश का ज्ञान प्राप्त करना ही दशशन है। ‘दशशन’ शब्द की ईमपनि ‘दृश’ धातु से हुइ है नजसका ऄथश है-देखना’’ ककन्तु यह दशशन
सामान्य देखना नहीं है; ऄनपतु सम्प्यक् दशशन
है, जैसा कक मनुसंनहता में
कहा गया है-‘‘सम्प्यक् दशशन सम्प्पन्नः कमशनभनश नबध्दयते। दशशनेन नवहीनस्तु संसारं प्रनतपाद्यते।।’’1 मनुसंनहता ६/७४ ऄथाशत् सम्प्यक् दशशन प्राप्त होने पर कमश मनुष्य को बंधन में नहीं डालते। नजनके पास यह सम्प्यक् दृनि नहीं है, वे ही संसार के जाल में फँ स जाते हैं। आस तरह हम देखते हैं कक भारतीय नवचारणा दशशन
को ‘दृश्यते ज्ञायते
यथाथशतमवमनेनेनत दशशनम्’’ मानती है और आसके समानाथी पाश्चामय शब्द ‘कफलॉसफी’ से ऄपने व्यापक भेद को सूनचत करती है। हमारे यहाँ यह ऄनुभव के
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नवषय में ननष्कषों का समूह, ‘ऄनुभव के प्रनत एक दृनिकोण’ या ‘समीिा का सामान्य नसिान्त’ नहीं है और न आसे ‘नवज्ञानों का संकलन या सवेिण’ ही कहा जा सकता है। यह ज्ञान के प्रनत सामान्य ऄनुराग भी नहीं है। हाँ, यह पूणशरूपेण ऄध्यामम ऄवश्य है और आस दृनि से हम महर्मष श्री ऄरनवन्द की पररभाषा ‘‘दशशन का कायश ज्ञान के नवनभन्न साधनों’’ िारा ईपलब्ध सामग्री को कु छ भी न छोड़ते हुए व्यवनस्थत करना और ईनको एक समय, एक सवोच्च सावशभौम सदवस्तु से समुनचत सम्प्बन्ध में रखना है’’ को आसके काफी ननकट पाते हैं। दशशन-दुःख का नहीं, पीड़ा का नहीं, अनन्द का दशशन ही एक मात्र दशशन है। ‘अनन्दम् ��ेनत व्यजानात्’’ की नचरन्तन साधना में व्यस्त-मस्त भारतीय मनीषा पलायनवादी नहीं है। वह समस्त नकारों को जीते हुए भी सतकश एवं सावधान दृनि से सकार की ओर ही ऄनभगमन करती है। ईसका ऊनष ऄसत्, तम और मृमयु की पीड़ा के उपर पहुँचने की, ईन पर शाश्वत नवजय पाने की प्राथशना में ऄनवरत हृदय से लगा हुअ है-‘‘ऄसतो मा सद्गमय, तमसो मा ज्योनतगशमय, मृमयोमाशमृतं गमय’’ का यह कदव्य-प्राथशना स्वर जीवन के श्वेत-श्याम युगलपिों का दशशन कराने वाला होने के साथ-साथ ऄसमय से समय की ओर, ऄन्धकार से प्रकाश की ओर और मृमयु से ऄमरता की ओर गनतमान ऄदम्प्य नजजीनवषा का कदग्दशशक भी है। मधुनि मुतोशसो मधुमत् पार्मथवं रजः। मधु धौ रस्तु नः नपता, मधुमान् नो वनस्पनत। मधुमानस्तु सूयशः। माध्वी गाशवो भवन्तु नः।। ‘‘हे परमाममा! हमारे कदवस और रानत्रयाँ मधुर हों। पृथ्वी (माता) की रज मधुर रहे। अकाश हमारे नलए नपता के समान मधुर हो। हमारी वनस्पनतयाँ मधुर हों, हमारा सूयश मधुर हो और हमारी गायें मधुर ऄथाशत् मीठा दूध देने वाली हों।’’ का प्राथी उजशनस्वत मधुरस-सोमरस का पीने वाला भारतीय ऊनष मधुरता को कदव्यरस मानता है। वेदों से लेकर पुराणकाल तक और ईसके अगे भी इसा पूवश
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प्रथम शताब्दी तक यही मधुरस जीवन के हर संघषश में मानव का सहचर रहा है। असुरी शनियों से अक्रान्त दैवी शनियों की िुब्धता समेककत शनि पुंज दुगाशजी का प्राकट्य और ऄसुरता की पराजय के बीच मनहषासुर से संघषश-शानन्त के िण में पराशनि ने भी आस कदव्यरस का पान ककया था। मारकण्डेय पुराणान्तगशत दुगाशसप्तशती में मधुपान के समय की भगवती की यह गवोनि ककतनी ओजमयी हैगजश-गजश िणं मूढ़ मधुयावनमपबाम्प्यहम। मयामवनय हतेत्रैव गर्मजश्यान्मयाषु देवता।। ‘‘ऐ मूखश! जब तक मैं मधुपान करती हँ ईतने िणों तक तू नजतनी चाहे गजशना कर ले। ईसके बाद तो शीघ्र ही मेरे िारामारे जाने पर देवता लोग तुम पर गजशना करें गे। युिगत थकान नमटाने एवं मस्ती में डू बने के नलए यह परम्प्परा संस्कृ त के महान कनव कानलदास के समय तक यथावत् व्यवहृत रही है। मधुरस का ऄन्वेषी, ‘रसो वै सः ‘��ानन्द सहोदरः’ का प्रमन प्रसन्न गायक ‘‘अनन्दम् ��ेनत व्यजानात्। यकद वा अकाशे अनन्दी न स्यात्,तर्मह को वा ऄन्यात् को वा प्राण्यात्’’ का द्रिाभोिा मानव जीवन भर अनन्द ही तो खोजता रहता है। ‘अनन्दम् दृश्यते ऄनेनेनत’’ का दशशन जीते ऊनष मना ऄमृतस्य पुत्राः मनुसंतनत की यह भावनामधुमन्मे ननष्क्रमणं मधुमन्मे परायणम् वाचा वदानम मधुमत भूयाषं मधु संदश ृ ः ।। सचमुच स्तुमय है और प्रणम्प्य है। ईसका अममदृि सािामकृ त वह मधुलोक भी, जो ईसके परमाराध्य भगवान नवष्णु के नत्रनवक्रम रूप के ऄनतररि ईनका परमपद है, जहाँ परमाममा नवष्णु के सूक्ष्म ��रूप का ननवास है, ईस लोक में नवष्णु के भि लोग ऄमृतपान करते हुए अनंदानुभव ककया करते हैं ईसमें मधुचक्र है, ऄमृतरूप है। (ऊग्वेद १/१५४/०५) प्रनसि ऄिैतवादी दाशशननक भि अचायश शंकर की दृनि में वह परमाममा सवशतोभावेन मधुर हैऄधरं मधुरं वदनं मधुरं चलनं मधुरं हनसतं मधुरं। गोपी मधुरा गावौ मधुरौ मधुरानधपतेरानखलं मधुरम् ।।
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भारतीय दशशन का
परमप्राप्य परमेश्वर सनच्चदानन्द रूप है। सत् नचत
(नवचार, प्रमयिज्ञान, प्रज्ञावुनि, समझ, हृदय, अममा, जीव, ��) और अनन्द देखने में ऄलग-ऄलग हैं1 लेककन यथाथशतः तीनों एक हैं। तीनों का समेककत रूप यह परम समय परमाममा प्रेम से ही जाना जा सकता है। क्या सगुण, क्या ननगुशण सबकी दृनि में ईसे पाने के नलए- मधुर मागश की साधना ही सवोिम ईपाय है। नारद, शांनण्डल्य अकद भि नजस भनि िारा ईसे पाने की साधना करते हैं, वह परम प्रेम रूपा और ऄमृत स्वरूपा है।१ तुलसी के नशव ईसे प्रेम से प्रकट होता हुअ देखते हैं तो ननगुशननया कबीर भी दुलनहन बनकरदुलनहनन गावहु मंगल चार। हमरे घर अये हो राजाराम भरतार। कबीर आसी तन-रनत-मन-रनत से जुड़कर अनन्द नवभोर हैं। नचन्तन की दृनि से भारतीय दाशशननक चेतना निधा नवभि है। एक, वेद स्मृनत, पुराणाकद के सुलनलत मयाशकदत पथ का पोषण करती है, नजसमें धार्ममक कमशकाण्ड और अनममक दशशन दोनों एकाकार-ऄन्योन्य हैं, तो दूसरी नचन्तन धारा कानयक साधना को बहुमान देने वाली ईस वाम वीथी की ओर ले जाती है, जो वैकदक कमशकाण्ड एवं मयाशदा दोनों के नवरुि अक्रामक नवद्रोह की ईपज है। यह वाम मागश ईपननषद् कालीन नवद्रोही ऊनषयों के ‘आमे नौका ऄदृढ़ा यज्ञ रूपा’ की ऄनभव्यनि से शुरू होता है और चावाशक तक पहुँचते-पहुँचते- ‘यावज्जीवेत् सुखं जीवेत्। ऊणं कृ मवा घृतं नपबेत्- जब तक जीयो सुख से जीयो, ऊण करके भी अनन्ददायी सुखभोग करो से जुड़कर ननतान्त भौनतक- पूणश सुखवादी हो जाता है। ककनचत संस्काररत रूप में आसी का ऄगला क्रम जैन और बौि दशशन है। ऄहहसक कमशकाण्ड नवरोधी और कानयक साधना को बहुमान देते आन दशशनों में बौि दशशन की मंत्रमान शाखा तक पहुँचते-पहुँचते कानयक साधना और पंच मकार आतने प्रबल हो गये कक नसिों (चौरासी नसि नजसमें गोरि पाद को भी नगना गया ककतु ईन्होंने ऄपना मागश ऄलग करके नाथ पंथ का प्रवतशन
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ककया) की पूरी परम्प्परा ही वारुणी (मकदरा) सेवन और नारी भोग को पारलौककक या कदव्य ऄलौककक सुख का परम साधन मान बैठी। नाथपंथी अचायश भी कु नमसत भोग को छोड़कर कानमक साधना के प्रबल पिपाती थे। डॉ. ऄनभनव कु मार नत्रपाठी के शब्दों में ‘कानयक बहुमान्यता, ऄधोस्थान प्राप्त समाज ईपेनितों का नपष्ठपोषण, वाह्मपूजा, जानतपानत धमश, सम्प्प्रदाय कृ मयों-कमशकाण्डों का नवरोध-सतकश प्रबल नवरोध आस मागश की प्रमुख नवशेषताएँ रही हैं। सानहमय जगत में बच्चन का अलोकपूणश पदापशण सन् १९३३ में कफट्जराल्ड कृ त ‘रुबाआयात ईमर खय्याम’ के ‘खय्याम की मधुशाला’ नामक नहन्दी ऄनुवाद से होता है। खय्याम ‘सन् १०१४ इ. के लगभग नैशपुर, खुरासान, इरान में पैदा हुअ, वह बहुशास्त्रनवद के रूप में शाही वैद्यशाला के प्रधान नजूबी (ज्योनतषी) पद पर पहुँच कर भी खाओ पीओ, मौज करो के नसिान्त को मानते हुए सृनि के प्रयोजन एवं इश्वर के ऄनस्तमव के प्रनत अजीवन संदह े वादी रहा। धमाशन्ध मुल्लाओं की तीव्र अलोचना और परम्प्परागत धार्ममक नवचारों की नखल्ली ईड़ाने के कारण जीवन के संध्याकाल में करठन यातना में नवरोनधयों के सामने घुटने टेककर ईसने मक्के की यात्रा की और नमाज भी पढ़ी’’। स्वयं बच्चन भी मधुशाला की रचना प्रेरणा का साराश्रेय ईमर खय्याम के प्याले को देते हुए कहते हैं-‘‘ईमर खय्याम ने रूप-रं ग, रस की एक नयी दुननया ही मेरे अगे नही ईपनस्थत की, ईसने भावना, नवचार और कल्पना के सवशथा नये अयाम मेरे नलए खोल कदये। ईसने जगत, ननयनत और प्रकृ नत के सामने लाकर मुझे ऄके ला खड़ा कर कदया’’। मधुशाला, मधुबाला और मधुकलश अकद कृ नतयों में बच्चन ने मधुशाला, प्याला, मकदरा साकी पीनेवाला अकद शब्दों का प्रतीकाममक प्रयोग ककया है और सानहमय में ईनकी आस ऄनभव्यनि को हालावाद के नाम से जाना गया। जबकक ‘‘हालावाद’’ एक सूफी दशशन है नजसमें रूसी, ईमर खय्याम हाकफज रानबया अकद फारसी कनवयों ने रोजा, नमाज अकद अडम्प्बरों का नवरोध कर अनशक (अममा) माशूक (परमाममा) के प्रेम में खो कर सुन्दर सरस ऄनभव्यनि की’’। बच्चन का
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हचतन-नवशुि भारतीय है। ऄपनी कालजयी कृ नत मधुशाला के प्रारम्प्भ में ही मंगलाचरण का ईनका स्वर परम के प्रनत नजस समर्मपत प्रणनत भाव से नवषय वस्तु की पनवत्रता का ननवेदन करते हुए रचना नैवेद्य समर्मपत करता है वह ननःसंदह े ही आि की कदव्य माननसक पूजा ही है। मृदभ ु ावों के ऄंगूरों की स्वननर्ममत हाला को नप्रयतम को ऄपने हाथों से नपलाने का संकल्प और उपर से यह ऄनन्य ननष्ठा कक सबसे पहले तुम्प्हारा भोग लगेगा कफर संसार प्रसाद पायेगा; भनिभाव की ककतनी ईच्च पराकाष्ठा है? मेरे मादल! तुम्प्हारी ऄनुकम्प्पा से ऄंतस् के महाखार में ईतरी यह मधुशाला सबसे पहले तुम्प्हारा स्वागत करे गी। मृदभ ु ावों के ऄंगूरों की, अज बना लाया हाला; नप्रयतम, ऄपने ही हाथों से, अज नपलाईँ गा प्याला; पहले भोग लगा लूँ तेरा, कफर प्रसाद जग पायेगा; सबसे पहले तेरा स्वागत, करती मेरी मधुशाला। बच्चन की मधुशाला स्थूल रूप से मकदरा की वकालत करती है। ग्रन्थ की भावनवगनलत भूनमका में ईनके ननम्न शब्द- स्वपि की नवजय के नलए कृ तसंकल्प सतकश सजग वकील के ही शब्द लगते हैं-‘‘अज मकदरा लाया हँ -मकदरा नजसे पीकर भनवष्यत् के भय भाग जाते हैं और’ भूतकाल के दारुण दुःख दूर हो जाते हैं, नजसे पान कर मान-ऄपमानों का ध्यान नहीं रह जाता और गौरव का गवश लुप्त हो जाता है, नजसे ढालकर मानव ऄपने जीवन की व्यथा, पीड़ा और करठनता को कु छ नहीं समझता और नजसे चखकर मनुष्य श्रम, संकट, संताप सभी को भूल जाता है। अह, जीवन की मकदरा जो हमें नववश होकर पीनी पड़ती है, ककतनी कड़वी है’’। बच्चन का मकदरा का दशशन ऐनतहानसक है; लेककन यह आनतहास नवदेशी प्रभाव वाला नहीं, स्वदेश सम्प्मत- वेद सम्प्मत है, पुरातन ही नहीं अकदम भी है। आसी दशशन परम्प्परा को व्याख्यानयत करते हुए मधुशाला में वे कहते हैं-
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सोम सुरा पुरखे पीते थे, हम कहते ईसको हाला; द्रोण कलश नजसको कहते थे, अज वही मधुघट अला; वेद नवनहत यह रस्म न छोड़ो, वेदों के ठीके दारों; युग-युग से है पुजती अइ, नयी नहीं है मधुशाला। वकालत, वह भी दशशन
की; सतकश तो होनी ही चानहए। बच्चन तकश की आस
लड़ाइ में समस्त प्रनतपि को परास्त-धराशायी कर रौद्र-नस्मत के साथ बचे-खुचे मुर्मछत-घायलों को भी ललकारते हुए कदखाइ देते हैंवही वारुणी जो थी सागर, मथकर ननकली ऄब हाला; रं भा की संतान जगत में, कहलाती साकीबाला; देव-ऄदेव नजसे ले अये, संत-महंत नमटा देंगे; ककसमें ककतना दम-खम आसको, खूब समझती मधुशाला। जानत-पाँनत का भेद-भाव, धमश-सम्प्प्रदाय के नवभेद सबको ईखाड़ने-पछाड़ने और ऄपने ननबशन्ध प्रवाह में बहा ले जाने को सतत् तमपर है बच्चन की तकश -मन्दाककनीमुसलमान और नहन्दू हैं दो, एक मगर ईनका प्याला, एक मगर, ईनका मकदरालय, एक मगर ईनकी हाला। बैर बढाते मंकदर-मनस्जद, मेल कराती मधुशाला। कोइ भी हो शेख नमाजी, या पंनडत जपता माला; देखो कै से थाम न लेती दामन ईसका मधुशाला। करले पूजा शेख-पुजारी, तब तक मंकदर-मनस्जद में। जहाँ ऄभी है मंकदर-मनस्जद, वहाँ बनेगी मधुशाला। वणश भेद, धमश-भेद, जानत-भेद, सबके उपर है बच्चन का यह हालावादी दशशन, जहाँ सब नवभेद रनहत सब स्पृश्य, सब सह-पायी-सह-भोिा हैं-कभी नहीं सुन पड़ता ‘आसने’, हा छू दी मेरी हाला;
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कभी न कोइ कहता ईसने, जूठा कर डाला प्याला; सभी जानत के लोग यहाँ पर, साथ बैठकर पीते है; सौ सुधारकों का करती है, काम ऄके ली मधुशाला। ईपयुशि नववेचन के अधार पर बच्चन की दशशन-परम्प्परा नवशुि भारतीय ककन्तु वाममागी है। आसीनलए डॉ. ऄनभनव नत्रपाठी आन्हें ईपननषदों, नसि-नाथ योनगयों और कबीर की परम्प्परा की ऄनग्रम पंनि मानते हुए कहते हैं कक- ‘‘दशशन परम्प्परा की दृनि से देखने पर बच्चन जी ईपननषदों-नसि- नाथ योनगयों और कबीर की तरह काया को बहुमान देते हैं। ईनकी दृनि में सुमुनख प्रेयसी ही प्याला भी है और हाला भी। प्रणयी की प्रणय-साधना, प्रेयसी और प्रणयी का मधुर सनम्प्मलन ही अनंद का वह मधुतीथश है- नजसे मधुशाला कहते हैं। तभी तो वे ऄपनी प्रेयसी से प्रवण प्रणय ननवेदन करते हुए कहते हैंअज सजीव बना लो प्रेयनस, ऄपने ऄधरों का प्याला; भर लो भर लो भर लो आसमें, यौवन मधुरस की हाला; और लगा मेरे हांठों से, भूल हटाना तुम जाओं; ऄथक बनूँ मैं पीने वाला, खुले प्रणय की मधुशाला। सुमुनख, तुम्प्हारा सुन्दर मुख ही, मुझको कं चन का प्याला; छलक रही नजसमें मानणक सी, रूप मधुर मादक हाला; मैं ही साकी बनता मैं ही, पीने वाला बनता हँ ; जहाँ कहीं नमल बैठे हम तुम, वहीं हो गयी मधुशाला। ऄपने ईपयुशि तकश के सम्प्बन्ध में डॉ.नत्रपाठी अगे कहते है- ‘‘नाथनसि संतों की तरह ही वे (बच्चन) धार्ममक कमशकाण्डों और परम्प्पराओं का ऄपने नवद्रोही स्वर से दो टू क शब्दों में नकार देते हैं। जानत-धमश पर ईनका प्रहार ककतना मारक है- देखें ईन्हीं के शब्दों में-
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नाम ऄगर पूछे कोइ तो,कहना बस पीने वाला; काम ढालना और ढ़लाना, सबको मकदरा का प्याला; जानत नप्रये पूछे यकद कोइ, कह देना दीवानों की; धमश बताना प्यालों की ले, माला जपना मधुशाला। सम्प्प्रदायगत भेद और साधन की ईच्चता का दंभ भी बच्चन के प्रहार से नहीं बच पाता। मंकदर-मनस्जद, शेख नमाजी, सभी चोचले सब हैं पाजी। सबको तौलजोख कर रख देती है बच्चन की कलम। ‘बच्चन की दृनि से पनवत्रता के टोटम व्यथश हैं। तभी तो वे ऄपने ऄंनतम िणों में चाहते हैं‘‘मेरे ऄधरों पर हो ऄंनतम, वस्तु न तुलसी दल प्याला; मेरी नजह्वा पर हो ऄंनतम, वस्तु न गंगाजल हाला; मेरे शव के पीछे चलने वालों याद आसे रखना; रामनाम है समय न कहना, कहना सच्ची मधुशाला।’’ डॉ. नत्रपाठी बच्चन के वाममागी दशशन से जुड़ाव के सम्प्बन्ध में तकश देते हुए अगे नलखते हैं- ‘‘मृमयु के बाद के ईपकमश श्रािाकद में भी ईनकी तीव्र ऄश्रिा है। मधुमधुमयता और मधुवादी ही ईन्हें तब भी ऄभीि हैं। और ऄपने आस तकश के पि में वे मधुशाला की ननम्न पंनियाँ ईद्धृत करते हैंमेरे शव पर वह रोये हो, नजसके अँसू में हाला; अह भरे वह जो हो सुरनभत, मकदरा पीकर मतवाला; दे मुझको वे कं धा नजनके पद मद डगभग होते हों, और जलूँ ईस ठौर, जहाँ पर कभी रही हो मधुशाला। और नचता पर जाय ईड़ेला,पात्र न धृत का पर प्याला; घंट बँधे ऄंगूर लता में, मध्य न जल हो पर हाला; पुत्र कहाँ समझेंगे पीड़ा संभव है नालायक हो ।
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आसीनलएप्राणनप्रये, यकद श्राि करो तुम, मेरा तो ऐसे करना; पीने वालों को बुलवाकर, खुलवा देना मधुशाला। ‘‘जीवन एक बहती हुइ नदी है।’’1 रचनाधर्ममता की ईपज कृ नतयाँ आसी नदी में नीलोमपल की तरह नखलती नखलनखलाती हैं। आनका प्रमयेक पणश-पुष्प रचनाकार के जीवन के सूक्ष्मानत सूक्ष्म भानवक संपूणश का, हचतन के प्रमयेक ऄंतस्-गह्वर का अँखों देखा गवाह होता है- ऐसा गवाह नजसका साक्ष्य न के वल समस्त संदह े ों से परे है; वरन् समय के ननकट स्पशश से प्रमानणत भी है। जहाँ तक बच्चन का प्रश्न है-‘‘धमश संस्थाओं के बंधन। तोड़ बना वह नवमुिमन’’। का मेधावी ‘‘िणे-िणे यन्नवतामुपैनत तदैव रूपं रमणीयतायाः’’ के संस्पशश
से रमणीय भला दशशन की दृनि से ककसी से
कब बँधने लगा। बच्चन के आसी ननरन्तर पररवतशनशील हचतन दशशन को रूपानयत करते हुए डॉ.नत्रपाठी स्पि करते हैं- ‘‘दाशशननक परम्प्परा के अलोक में डॉ.हररवंशराय बच्चन पूणशतया वाम नचन्तन रखते हैं। ईपननषदीय ‘‘आमे नौका ऄदृढ़ा यज्ञ रूपा’’ का दशशन नसिों-नाथों और संतों का साथ पाकर बच्चन जी में ऄपने प्रौढ़ रूप में दृि हुअ हैं; ककन्तु वे आतने से ही तृप्त नहीं हैं। ऄपनी दाशशननक चेतना के ऄनग्रम प्रसार पंनि में वे आसी कदशा के िणवादी ऄद्यवादी चावाशक से भी जुड़े कदखाइ देते हैंकल ? कल पर नवश्वास ककया, करता है कब पीने वाला; हो सकते कल कर जड़, नजनसे कफर अज ईठा प्याला; अज हाथ में था वह खोया, कल का कौन भरोसा है; कल की हो न मुझे मधुशाला, काल कु रटल की मधुशाला।
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और यहीं पहुँच कर बच्चन परम्प्परा नवद्रोह कर ऄपने ऄलग-थलग होने का नवगुल बजा देते हैं। जो आस नचन्तन परम्प्परा की ऄन्यतम नवशेषता है।’’ प्रकृ नत के सुकुमार कनव पन्त, जो ऄपने जीवन के ईिराधश में भारतीय योगी श्री ऄरनवन्द जी के दशशन से प्रभानवत हो गये थे और यह प्रभाव ईनकी ईिर कालीन कृ नतयों नवशेष कर लम्प्बी कनवता नौका प्रवाह के ‘‘आस धारा सा ही जीवन क्रम शाश्वत गनत है शाश्वत ईद्गम’’ अकद पंनियों में स्पि पररलनित होता है, के साथ काफी समय तक रहने के बाद भी बच्चन पर पंत जी का कोइ प्रभाव नहीं पड़ा। क्यों? आस प्रश्न के ईिर में बच्चन स्वयं कहते हैं, ‘‘पंत जी के साथ रहकर भी मेरी कनवता पर ऄरनवन्द दशशन
का शायद ही कोइ प्रभाव हो। मैंने ऄंग्रेजी में पढ़ी एक बात गाँठ बाँध ली
थी-कनव को सब तरह की कफलासफी पढ़नी चानहए; पर कनवता नलखते समय सबको भुला देना चानहए।’’ दाशशननक परम्प्परा के संदभश में बच्चन का ‘एकला चलो’ का ‘‘राह पकड़ तू एक चला चल, पा जायेगा मधुशाला’’ का दशशन चरै वेनत-चरै वेनत के ऄनुयायी वैकदक ऊनषयों के दशशन का पुनसंस्करण कहा जा सकता है। नननश्चत रूप से आस प्राचीन दशशन में ईन्मुि गनतमयता का जो प्रवाह है ईसी ने नवश्व कनव रवीन्द्र को भी प्रभानवत ककया है और ईनके ईिरकालीन डॉ.हररवंशराय बच्चन को भी। ननतान्त पार्मथव व्यनिवादी और एकाकी नचन्तन को बहुमान देने वाले बच्चन का दशशन ईनके स्वयं के देखे भोगे यथाथश की ईपज है।1 ऄज्ञेय के कथन ‘‘जो वेदना में है, वही दृिा हो सकता है’’ के ऄनुसार ‘‘बच्चन के जीवन की देखी-भोगी कटु नति वेदना ने ही ईन्हें वह द्रिा बनाया है, जो अकदम पारम्प्पररक वाह्म दशशन का ऄनुसहयात्री बनकर भी भीड़ में नहीं खोता। अकाश मंडल के तारों के बीच भोर के तारे की तरह ऄपने स्व की ऄलग पहचान, ऄपनी स्वयं प्रभा से दीप्त है। अममकथा तथा ऄन्य कृ नतयों के अधार पर बच्चन के दशशन नचन्तन के कु छ मुख्य कथ्य- नजनमें ईनका नवद्रोह भाव चरम पर है, ननम्न हैं-१.सब प्रकार के धमो के प्रनत अस्था मेरे
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ऄन्दर नमट चुकी थी। ककसी प्रकार के दाशशननक नसिान्त को मेरा मन पूणशतया स्वीकार नही करता था। २.दशशन के रूप में मैने कु छ भी स्वीकार नहीं ककया है- न पनश्चमी न पूवी, गो जब कक मैं थोड़ा-बहुत दोनों से पररनचत हँ।३. मेरा कोइ दशशन है तो वह आसी पावों के नीचे की पृथ्वी की माटी के स्पशशन से बना है-वायवीअकाशी- ऄनतमानसी स्रोत मेरे नलए नहीं खुल सकें हैं।1 ४. शायद मेरे ऄवचेतन में कहीं कोइ अस्था है। ऄन्त में अनस्तकता शायद अमम नवश्वास है। का ईद्घोष करते हुए बच्चन जी ‘ऄके ला भी बहुत बड़ा है, आन्सान’ के सुपुि व्यनिवादी अममानभमान के साथ ‘‘ऄपना ऄंधकार कहीं नवश्व के ऄंधकार से सम्प्बि है’’ की मान्यता के साथ एकाकी पीड़ा, कु ण्ठा और हताशा के ऄंधकार से ईपजी मकदरा को मस्ती के तुलसीदल के स्पशश से नैवेद्य बनाकर न के वल परम शनिमान मादल को समर्मपत करते हैं; वरन् लोक को भी मधुशाला का प्रसाद देते हैं। यही नचन्तन-यही प्रसाद बच्चन के दशशन का प्रारम्प्भ भी है, और चरम परम नवन्दु भी। जहाँ पहुँच कर वे ऄनुभव करते हैं कक ‘‘जीवन को जानने का कोइ सीधा रास्ता नहीं है। ‘‘जीवन को जानना एक खोज है। ईसे कु छ भूल-भटक कर ही जाना जा सकता है।’’ ऄन्तस् की ऄतल गुहा में नननहत अममतत्त्व-महित्त्व के सािात् ऄनुभूनत के बाद का ईनका’’ समय ककसी ऐसे ऄतल में है, जहाँ मनुष्य तब पहुँचता है, जब वह सवशथा ऄहम् नवहीन हो जाता है।’’ की मार्ममक ऄनभव्यनि भारतीय दशशन
और ऄध्यामम की
वह पराकाष्ठा है जहाँ ऐरे -गैरे सभी का सहज प्रवेश संभव ही नहीं हैं। ‘शीश ईतारै भुआ धरै सो ऐसे एनह माहह2 का प्रणनत-दशशन जीता हुअ कोइ नवरला साधक ही यहाँ पहुँच पाता है।
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सॊजम बायद्वाज writersanjay@gmail.com 9890122603
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१)
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बिन पानी सि सून
बिन पानी सि सून
जर जीवन के केंद्र भें है । मह कहा जाए कक जीव जर जीवन के केंद्र भें है । मह कहा जाए कक जीवन ऩानी की ऩरयधध तक ही सीमभत है तो अततश्मोक्तत नहीॊ होगी। नामबनार हटाने से रेकय भत ृ क को नहीॊ होगी। नामबनार हटाने से रेकय भत ृ क को स्नान कयाने तक सायी प्रकिमाओॊ भें जर है । अर्घमय द्वाया जर के अऩयण से तऩयण तक जर है । क द्वाया जर के अऩयण से तऩयण तक जर है । कहा जाता है -‘क्षऺतत, जर, ऩावक, गगन, सभीया,ऩॊचतत्व से फना सयीया।’ इततहास साऺी है कक ऩानी के अततर फना सयीया।’ इततहास साऺी है कक ऩानी के अततरयतत अन्म ककसी तत्व की उऩरब्धता दे खकय भानव ने फक्स्तमाॉ नहीॊ फसाई। ऩानी के स्रोत के इदय -धगदय न फक्स्तमाॉ नहीॊ फसाई। ऩानी के स्रोत के इदय -धगदय नगय औय भहानगय फसे। प्राम् हय शहय भें एकाध नदी, झीर मा प्राकततक जर सॊग्रह की उऩक्स्थतत इस झीर मा प्राकृततक जर सॊग्रह की उऩक्स्थतत इस सत्म को शाश्वत फनाती है । बोजन ग्रहण ृ कयने से रेकय ववसजयन तक जर साथ है । मह सवयव्माऩकता उस ववसजयन तक जर साथ है । मह सवयव्माऩकता उसे सोरह सॊस्कायों भें अतनवामय रूऩ से उऩक्स्थत कयाती है ।
ऩानी की सवयव्माऩकता बौगोमरक बी है । ऩथ् ृ वी ऩानी की सवयव्माऩकता बौगोमरक बी है । ऩथ् ृ वी का रगबग दो-ततहाई बाग जराच्छाददत है ऩय कुर उऩरब्ध जर का केवर 2.5 प्रततशत ही ऩीने मोग् उऩरब्ध जर का केवर 2.5 प्रततशत ही ऩीने मोग्म है । इस ऩीने मोग्म जर का बी फेहद छोटा दहस्सा ही भनष्ु म की ऩहुॉच भें है । शेष साया जर अन्मान् भनष्ु म की ऩहुॉच भें है । शेष साया जर अन्मान्म कायणों से भनष्ु म के मरए उऩमोगी नहीॊ है । कटु मथाथय मे बी है कक ववश्व की कुर जनसॊख्मा के मथाथय मे बी है कक ववश्व की कुर जनसॊख्मा के रगबग 15 प्रततशत को आज बी स्वच्छ जर ऩीने के मरए उऩरब्ध नहीॊ है । रगबग एक अयफ रोग ग मरए उऩरब्ध नहीॊ है । रगबग एक अयफ रोग गॊदा ऩानी ऩीने के मरए वववश हैं। ववमबन्न रयऩोटों के अनस ु ाय ववश्व भें रगबग 36 राख रोग प्रततवषय अनस ु ाय ववश्व भें रगबग 36 राख रोग प्रततवषय गॊदे ऩानी से उऩजनेवारी फीभारयमों से भयते हैं। जर प्राण का सॊचायी है । जर होगा तो धयती मस जर प्राण का सॊचायी है । जर होगा तो धयती मसयजेगी। उसकी कोख भें ऩड़ा फीज ऩल्रववत होगा। जर होगा तो धयती शस्म-श्माभरा होगी। जीवन की होगा तो धयती शस्म-श्माभरा होगी। जीवन की उत्ऩक्त्त के ववमबन्न धामभयक मसद्ाॊत भानते हैं कक धयती की शस्म श्माभरता के सभधचत उऩबोग के मरए की शस्म श्माभरता के सभधु चत उऩबोग के मरए ववधाता ने जीव सक्ृ ष्ट को जना। ववऻान अऩनी सायी ु शक्तत से अन्म ग्रहों ऩय जर का अक्स्तत्व तराश शक्तत से अन्म ग्रहों ऩय जर का अक्स्तत्व तराशने भें जुटा है । चॉ कक ककसी अन्म ग्रह ऩय जर उऩरब्ध होने के ऩख् ु ता प्रभाण अफ नहीॊ मभरे हैं, अत् वह होने के ऩख् ु ता प्रभाण अफ नहीॊ मभरे हैं, अत् वहाॉ जीवन की सॊबावना नहीॊ है । सब ु ावषतकायों ने बी जर को ऩथ् ृ वी के त्रियत्नों भें से एक भाना है -‘ऩधृ थव्म को ऩथ् ु ावषतभ ्।’ ृ वी के त्रियत्नों भें से एक भाना है -‘ऩधृ थव्माभ ् िीतन यत्नातन जरभन्नभ ् सब भनष्ु म को ऻात चयाचय भें जर की सवयव्माऩकत भनष्ु म को ऻात चयाचय भें जर की सवयव्माऩकता तो ववऻान मसद् है । वह ऐसा ऩदाथय है जो ठोस, तयर औय वाष्ऩ तीनों रूऩों भें है । वह जर, थर औय न औय वाष्ऩ तीनों रूऩों भें है । वह जर, थर औय नब तीनों भें है । वह ब्रहभाॊड के तीनों घटकों का सभन्वमक है । वह ‘ऩणयस्म ऩणयभादाम ऩणयभेवावम सभन्वमक है । वह ‘ऩणयस्म ऩणयभादाम ऩणयभेवावमशष्मते ’का प्रभाणणत सॊस्कयण है । दहभ से जर होना, जर से वामु होना औय वामु का ऩन ु ् जर होकय जर से वामु होना औय वामु का ऩन ु ् जर होकय दहभ होना, प्रकृतत के चि का सफसे सयर औय खुरी आॉखों से ददखने वारा उदाहयण है । आत्भा की न आॉखों से ददखने वारा उदाहयण है । आत्भा की नश्वयता का आध्माक्त्भक मसद्ाॊत हो मा ऊजाय के अऺम यहने का वैऻातनक तनमभ, दोनों को अॊगद के ऩा यहने का वैऻातनक तनमभ, दोनों को अॊगद के ऩाॊव -सा प्रततऩाददत कयता-फहता यहता है जर।
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बायतीम रोक जीवन भें तो जर की भहत्ता औय सत्ता अऩयॊ ऩाय है । वह प्राणदामी नहीॊ अवऩतु प्राण है ।
वह प्रकृतत के कण-कण भें है । वह ऩानी के अबाव से तनमभयत भरुस्थर भें ऩैदा होनेवारे तयफज के बीतय
है , वह खाये सागय के ककनाये रगे नारयमर भें मभठास का सोता फना फैठा है । प्रकृतत के सभान भनष्ु म की दे ह भें बी दो-ततहाई जर है । जर जीवन यस है । अनेक स्थानों ऩय रोकजीवन भें वीमय को जर कहकय
बी सॊफोधधत ककमा गमा है । जर तनयाकाय है । तनयाकाय जर, चेतन तत्व की ऊजाय धायण कयता है । जर प्रवाह है । प्रवाह चेतना को साकाय कयता है । जर ऩरयक्स्थततमों से सभरूऩ होने का अद्भत ु उदाहयण है । ऩाि भें ंॊ ढरना उसका चरयि औय गण ु धभय है । वह ओस है, वह फॉद है, वह झयने भें है, नदी, झीर, ताराफ,
ऩोखय, तार, तरैमा, फावड़ी, कुएॉ, कुईं भें है औय वह सागय भें बी है । वह धयती के बीतय है औय धयती के ऊऩय बी है । वह रघु है , वही प्रबु है । कहा गमा है -‘आकाशात ऩतततॊ तोमॊ मथा गच्छतत सागयॊ ।’ फॉद
वाष्ऩीकृत होकय सभद्र ु से फादर भें जा तछऩती है । सागय फॉद को तयसता है तो फादर फयसता है औय
रघत ु ा से प्रबत ु ा का चि अनवयत चरता है ।
रोक का मह अनश ु ासन ही था क्जसके चरते कभ ऩानी वारे अनेक ऺेिों ववशेषकय याजस्थान भें घय की छत के नीचे ऩानी के हौद फनाए गए थे। छत के ढरआ ककनायों से वषाय का ऩानी इस हौद भें एकत्रित ु
होता। जर के प्रतत ऩवविता का बाव ऐसा कक क्जस छत के नीचे जर सॊग्रदहत होता, उस ऩय मशशु औय भाॉ मा मग ु र का सोना वक्जयत था। प्रकृतत के चि के प्रतत श्रद्ा तथा ‘जीओ औय जीने दो’ की साथयकता ऐसी कक कुएॉ के चायों ओय हौज फाॉधा जाता। ऩानी खीॊचते सभम हये क से अऩेक्षऺत था कक थोड़ा ऩानी इसभें बी डारे। मे हौज
ऩश-ु ऩक्षऺमों के मरए भनष्ु म तनमभयत ऩानी के स्रोत थे। ऩश-ु ऩऺी इनसे अऩनी
प्मास फझ ु ाते। ऩरु ु षों का स्नान कुएॉ के सभीऩ ही होता। एकाध फाल्टी ऩानी से नहाना औय कऩड़े धोना
दोनों काभ होते। इस प्रकिमा भें प्रमत ु त ऩानी से आसऩास घास उग आती। मह घास ऩानी ऩीने आनेवारे भवेमशमों के मरए चाये का काभ कयती।
ऩनघट तत्कारीन ददनचमाय की धरु य था। नॊदरार औय याधायानी के अभतय प्रेभ का भतय प्रतीक ऩनघट, नामक-नातमका की आॉखों भेंेंॊ होते भक सॊवाद का ये कॉडयकीऩय ऩनघट, ऩरु ु षों के याभ-श्माभ होने का
साझा भॊच ऩनघट औय क्स्िमों के सख ु -दख ु के कैथायमसस के मरए भामका-सा ऩनघट ! ऩानी से बया ऩनघट आदभी के बीतय के प्रवाह का ववयाट दशयन था। काराॊतय भें
मसकुड़ती सोच ने ऩनघट का
दशयन तनयऩतनमा कय ददमा। कुएॉ का ऩानी ऩहरे खीॊचने को रेकय साभन्मत् ककसी तयह के वाद-वववाद
का उल्रेख नहीॊ मभरता। अफ सावयजतनक नर से ऩानी बयने को रेकय उऩजने वारे करह की ऩरयणतत हत्मा भें होने
की खफयें अखफायों भें ऩढ़ी जा सकती हैं। स्वाथय की ववषफेर औय भन के सखेऩन ने
मभरकय ऐसी क्स्थततमाॉ ऩैदा कय दीॊ कक गाॉव की प्मास फझ ु ानेवारे स्रोत अफ सखे ऩड़े हैं। बाॉम-बाॉम कयते कुएॉ औय फावड़ड़माॉ
एक हयी-बयी सभ्मता के खॊडहय होने के साऺी हैं।
हभने केवर ऩनघट नहीॊ उजाड़े, कुओॊ को सीॊचनेवारे ताराफों औय छोटे -भोटे प्राकृततक स्रोतों को बी ऩाट
ददमा। ताराफों की कोख भें ये त-सीभें ट उतायकय गगनचुम्फी इभायतें खड़ी कय दीॊ। फाल्टी से ऩानी खीॊचने की फजाम भोटय से ऩानी उरीचने की प्रकिमा ने भनष्ु म की भानमसकता भें बमानक अॊतय रा ददमा है । फॉद-फॉद सहे जनेवारा सभाज आज उछार-उछार कय ऩानी का नाश कय यहा है । दस रीटय भें होनेवारा
स्नान शावय के नीचे सैकड़ों रीटय ऩानी से खेरने रगा है । ऩैसे का ऩीछा कयते आदभी की आॉख भें जाने
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कहाॉ से दय का न दे ख ऩाने की फीभायी-भामोवऩआ उतय आई है । इस भामोवऩआ ने शासन औय अपसयशाही की आॉख का ऩानी ऐसा भाया कक
सखे से जझते ऺेि भें नागरयक को अॊजुरय बय ऩानी
उऩरब्ध कयाने की फजाम किकेट के भैदान को राखों रीटय से मबगोना ज्मादा भहत्वऩणय सभझा जाने रगा है ।
ऩमायवयणववद
भानते हैं कक अगरा ववश्वमद् ु ऩानी के मरए रड़ा जाएगा। प्राकृततक सॊसाधन तनभायण नहीॊ
ककए जा सकते। प्रकृतत ने उन्हें रयसाइककर कयने की प्रकिमा फना यखी है । फहुत आवश्मक है कक हभ प्रकृतत से जो रे यहे हैं, वह उसे रौटाते बी यहें । ऩानी की भािा की दृक्ष्ट से बायत का स्थान ववश्व भें तीसया है । ववडॊफना है कक
सफसे अधधक तीव्रता से बगबय जर का ऺयण हभाये महाॉ ही हुआ है । नदी को भाॉ कहनेवारी सॊस्कृतत ने भैमा की गत फयु ी कय दी है । गॊगा अमबमान के नाभ ऩय व्मवस्था द्वाया
चारीस हजाय कयोड़ डकाय जाने के फाद बी गॊगा सदहत अधधकाॊश नददमाॉ अनेक स्थानों ऩय नारे का रूऩ रे चुकी हैं। दतु नमा बय भें ग्रोफर वॉमभिंग के चरते ग्रेमशमय वऩघर यहे हैं। आनेवारे दो दशकों भें ऩानी
की भाॊग भें रगबग 43 प्रततशत फढ़ोत्तयी की आशॊका है औय हभ गॊबीय जर सॊकट के भह ु ाने ऩय खड़े हैं। आसन्न खतये से फचने की ददशा भें सयकायी औय गैय सयकायी स्तय ऩय कुछ स्थानों ऩय अच्छा काभ
हुआ है । कुछ वषय ऩहरे चेन्नई भें यहनेवारे हय नागरयक के मरए वषाय जर सॊयऺण को अतनवामय कय तत्कारीन करेतटय ने नमा आदशय साभने यखा। दे श बय के अनेक गाॉवों भें स्थानीम स्तय ऩय कामययत सभाजसेववमों औय सॊस्थाओॊ ने रोकसहबाग से ताराफ खोदे
हैं औय वषाय जर सॊयऺण से सखे ग्राभ को
फायह भास ऩानी उऩरब्ध यहनेवारे ग्राभ भें फदर ददमाहै । ऐसेंे प्रमासोंेंॊंॊ को याष्रीम स्तय ऩय गतत से औय जनता को साथ रेकय चराने की आवश्मकता है ।
यहीभ ने मरखा है -‘ यदहभन ऩानी याणखमे, त्रफन ऩानी सफ सन, ऩानी गमे न ऊफये , भोती, भानस, चन।’
ववमबन्न सॊदबों भें इसकी व्माख्मा मबन्न-मबन्न हो सकती है ककॊ तु ऩानी का मह प्रतीक जगत ् भें जर की अतनवामयता को प्रबावी रूऩ से ये खाॊककत कयता है । ऩानी के त्रफना जीवन की कल्ऩना कयते ही भॉह ु सखने रगता है । क्जसके अबाव की
कल्ऩना इतनी बमावह है, उसका मथाथय कैसा होगा ! भहादे वीजी के
शब्दों भें कबी-कबी मथाथय कल्ऩना की सीभा को भाऩ रेता है । वस्तत ु ् ऩानी भें अऩनी ओय खीॊचने का एक तयह का अफझ आकषयण है । सभद्र ु की रहय जफ अऩनी ओय खीॊचती है तो ऩैयों के नीचे की फरई ु
ज़भीनणखसक जाती है । भनष्ु म की उच्छृॊखरता मों ही चरती यही तो ज़भीन णखसकने भें दे य नहीॊ रगेगी। फेहतय होगा कक हभ सभम यहते चेत जाएॉ। -संजय भारद्वाज
अध्मऺ-दहॊदी आॊदोरन ऩरयवाय
सदस्म- भहायाष्र याज्म दहॊदी सादहत्म अकादभी सम्ऩादक- हभ रोग
२)
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बदनामी की छाांव डॉ. सन ु ीता भडवाल
72/73 सी.एस.एक्स
सैननक कॉलोनी जममत ू बी- 180011 खिडकी के पास बैठी वद ृं ा ना जाने ककन खयालम मग मम ु ।ीव वइ नतनी िोह इुह ।ी कक ेसे
ककसी के कमरे मग आने तक का एइसास भी न इुआव ेसके कृंधे पर जोर से इा। रिते इुए मैंने पक ु ारा, वद ृं ा कौन सी सोचम मग िोह इुह इोव वद ृं ा कुसी पर बैठे-बैठे इी समभालते इुए बोली कुछ नइीृं बस यू ृं इी
जजृंदमी के परु ाने अधयायग पलेते कब खयालम मग ननकल मह पता इी नइीृं चलाव तम ृं ा यइ ु इग पता इै ना वद परु ाने पन्ने से कुछ इालसल न इोमा पर तम ु क र भी ना जाने क्यम बार-बार वइ सब याद करती इोव वइ ीकी सी इृं सी इमठो पर ललये मेरी तर
दे िती रइीव वइ कुछ नइीृं बोली लेककन ेसका चेइरा बता रइा
।ा कक वइ परु ानी यादम की माृंठ का बोझ ेठाने मग असम।थ इो रइी इै व बात को बदलते इुये मैंने पछ ू ा –
आकाश कइाृं इै ? वइ दफ्तर मग ।े ककसी काम से सब ु इ इी चले मएव और मौरी दफ्तर के ेुर परव तम ु आज घर पर क्यम इो बस सेइत कुछ ठीक नइीृं ।ी, कुछ छुटेेयाृं भी बाकी ।ी सोचा आज आराम करृंमी व
अरे यइ कैसा आराम इुआ ? तम ु तो परे शा-सी बैठी खयालम मग मम ु इोव ननशा तम ु इग पता इै क थ ने के.एस.(kashmir Administrative Service) मग ेॉप ककया इै ा ओइ तो यइ इै तम ु इारी मायस ु ी का कार इाृं मैं िुश इू ृं और मायस ु भीव सब ु इ श्राव
तम ु इग तो मायस ू ी नइीृं िुश इोना चाटइएव आया तो ेसी ने सन ु ायाव न जाने क्यम ेसी वक्त से
मन बेलमल इै व
- वद ृं ा मझ ु े तम ु इारी बातग बल्कुल समझ मग नइीृं आती इै व
- ननशा तम ु से अधधक मझ ु े कौन समझ सकता इै व बडा लमबा सा। इै तेरा मेरा और मेरे दि ु म का व - कैसा दि ु ? - क्या नइीृं इै ? तम ु इारे पास अछछा घर, पनत, बेेी और समाज मग अछछा रतबा और तम ु इग क्या चाटइए ? - न जाने क्यम नन
ु परु ाने काेम भरे रासते पर चलकर अपने आप को ू लम भरे रासते को छोड तम
लइुलइ ु ान कर रइी इोव
1
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- बात का जबाव टदए बना वइ बाइर वक्ष पर बने धचडडया कैसे घौसलग मग अपने छोेे -छोेे बछचम को मइ ु ृं मग दाना दबाए खिलाने आती इै और क र ेड जाती इै ा वइ ।क भी मह इोमी पर माृं इोने का मोइ ेसको बार-बार ेडने की टइममत दे ता इै व नृंसान तो नृंसान पशु पक्षी भी नन मोइ की जृंजीरम को तोड नइीृं सकतेव वइ िुद ब िुद बोलती चली जा रइी ।ीव तम ु इग याद इै ननशा जब दारी की ।ाली माय का बछडा मरा ।ा तो कह टदन माय आृंिम से आसृंू बइाती भि ू ी पयासी रइी ।ी बेजब ु ानव वइ स े द कुनतया याद इै तम ु इग सकू ल के बाइर जजस पपल्ला स े द
मारनत के नीचे आकर मरा ।ाव वइ कुनतया जब तक जीपवत रइी वइ इर स े द मारनत को इतयारी समझ ेसके पीछे भामती ।ीव शायद वइ सारी ेमर अपना बछचा िोने का दि ु ना भल ू पाह ।ीव -
आज ेसकी बातग मझ ृं ा आज तम ु े कुछ अजीब सी लम रइी ।ीव मैंने टइममत कर पछ ू ा वद ु यइ
कैसी बातग कर रइी इो ? -
वइ अपने आप को सृंभालते इुए बोली – पज ू ा की माृं शाजन्त आह ।ी मेरे पासव
-
कौन पज ू ा कौन शाजन्त ?
-
शाृंनत वइी जो इमारे यइाृं काम ककया करती ।ी ेसी की बेेी पज ू ा जजसे मेरे कइने पर शाृंनत ने सकू ल भेजा ।ाव
-
ेसे क्या इुआ ? कुछ नइीृंव
-
ओइ मैं तो डर मह शायद कोह इादसा इो मया व
-
नइीृं वइ ठीक इै पर व
-
पर क्या ?
-
कुछ घेना इादसे कम और मजबरू ी जयादा इो जाती इैव
-
मानम मइ ुृं मग कडवी दवाह का घे ू ृं इो जजसे ननमलने बनता इै और ना इी ेमलतेव
-
कैसे ननयम इै नस दनु नया के ननशा ? इमेशा औरत को बाृंध कर रिते इै व
-
मैं चुपचाप ेसकी बातग सन ु ती रइी जो बातग कम पक ु ारते जयादा ।ीव
-
वद ृं ा क र बोली, शाजन्त बडी परे शान इै व
-
कोह नइीृं कोह भी परे शानी इो ेसका इल तो इोता इै नाव
-
सच कइा ननशा तम ु ने, इर मजु ्कल का इल इोता इै , पर कभी-कभी ेन मजु ्कलम का इल करतेकरते मन रपी क्यारी मग ेमे काेग मन को लइुलइ ु ान कर दे ते इै क र चाइे जखम कुछ दे र बाद
भर जायग पर ेनकी पीढा ेमर भर की सा।ी बन जाती इै व
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-
आज सोचती इू ृं काश मेरे जीवन मग वइ घेना ना घेी इोती तो जीवन मग कभी भी मझ ु े घे ु -घे ु कर ना जीना पडता, और जीवन रपी क्यारी आकाश और मौरी रपी
ु ल्लम से सदा मइकतीव ेस
एक घेना ने मेरे पर मानो ककतना बोझ डाल टदया इो और मैं आधी ेमर से ेस बोझ से ननकलने की नाकाम कोलशश मग लमी इू ृंव पर कोह
ायदा नइीृंव कभी मझ ु े अपने आप धोिे की
पोेली, कभी पापी तो कभी न जाने क्या...........क्याव दे िो मग क र भी जी रइी इू ृं और वइ बोझ ेठाये क र रइी इू ृं ेस पाप का जो मैंने कभी ककया इी नइीृं ।ा, मेरा क्या कसरू ।ाव
-
ननशा चुपचाप ेसको दे िती रइीव पचीस बरसम का समय भी ेसके दि ु को कम ना कर सकाव कभी बरसाती पानी के छल ेसकी काया को परू ा लभमो दे ते और कभी सि ु े मग कुछ सि ू जातेव
वइ वद ृं ा याद आ रइी ।ी जो सारे घर मग टइर ी की तरइ दौडती क रती और ेसकी इृं सी से सारा घर जी ेठताव माृं पपता ेसे जान से भी अधधक प्रेम करतेव ेसे चाइते भी क्यम ना भला ? अकेली बेेी ।ी नलाके के समद्द्य पररवार और बडे वयापारी पपता कीव यइाृं वइ पाृंव रिती सभी अपनी इ।ेली रितेव सारे घर की िुशी मम ेसी से जुडे ।ेव ेसके एक नशारे पर सब इाजजर इो जाताव पर नसीब तो बेटेयाृं ऊपर से ललिवा कर आती इै नाव माृं बाप सब दे सकते ।े पर मा।े की लकीर नइीृं बदली जा सकती ।ीव -
वद ृं ा की जजदृं मी मग भी वइ काली अधेरी रात आह जजसने ेसकी िलु शयम को ग्रइ
लमा टदयाव
पास के घर मग शादी ।ी सभी ेस मग वयसत व िू ब शोर और शइनाह की आवाजम मग ेसकी चीिे दब कर रइ मह ।ीव ेस िश ु ी की शइनाह मग ेसके दि ु म का भी लमश्र
इो चक ु ा ।ाव वचापारी
पपता की रृं जजश का बदली बेेी की आबर मग वसल ू ककया मयाव यइ मदथ जजस औरत को कमजोर समझते इैं वइ कमजोर कैसे इैं ? वइीृं और अपने कमजोर समझे जाने वाले शरीर मग कभी जीव आतमा धरती पर लाती इै तो कभी पर ु क के प्रेम मग मोमबती की तरइ पपघलते इुए ेसका घर
बसाती इै , कभी पर ु क का चाइ पर मर भी लमेती इै तो कभी द्ु मनम का लशकार इो जाती इै मदथ जानत की आपसी रृं जजशम और बदले को परू ा करने की िानतरव -
तब वद ृं ा को एक चपु प सी लम मह ।ीव इमेशा सइमी सी रइतीव मइ ृंु से भले इी ना बोले यइ औरत जात पर कभी-कभी ेसका अपना शरीर बोलने लम जाता इै व वद ृं ा के सा। भी ऐसा इी इुआव
ेसके शारीररक लक्ष्
भी कुछ बोल रइे ।े और माृं की पारिी नजरम ने ेसे भाृंप ललया
।ाव वद ृं ा आज माृं की अदालत मग मज ु ररम बनी िडी ।ी पर वइ मदथ न नीचे झुकाये मोेे -मोेे
आृंसओ ु ृं से मानम अपना दि ु धो रइी ।ीव माृं के जोर से पछ ू ने पर ेसने अपनी बेवसी और सारी घेना बयान कर दीव माृं पर मानो वरपापात इो मया इो वइ तडपते इुये जानकारी डाक्ेरनी के पास पइुृंची पर डाक्ेरनी की ना ने तो मानो ेसे जीते जी मार टदयाव घर पइुृंचते इी सारी घेना
3 61
माृं ने पपताजी को सन ु ाहव मस ु से मग आम बबल ू ा पपता इा। मग दोनाली बृंदक ू ललये द्ु मनम का स ाया करने को तैयार बढे कक माृं की पीछे से आती आवाज ने ेन्इग रोक ललयाव आप पामल इोव जानते इैं अमर आप ऐसे करे मग तो बेेी की ककतनी बदनामी इोमीव कैसी जीपवत रइे मा वइ नस बदनामी की छाृंव मग व पपता का मस ु सा पल मग इवा इो मयाव मानो कोह लावा जवालामि ु ी बनने से पइले इी ठृं डा इो मया इोव माृं की सलाइ पर माृं बेेी सभी कुछ छोडकर कुछ मइीने अपने व ादार श्रव
के सा।
दे इरादन ृं ा को लमता जजदृं मी मग अधगरा ू रइे व कुछ मइीनम के ेपरान्त माृं बेेी घर लौे आहव वद इी अृंधेरा इै मानो ेसका चाृंद कइीृं दरू रइ मया इोव
समय की मनत को रोकना ककसी के बस की बात नइीृं वइ आमे बढता चला मयाव जजदृं मी मग राजदार बन के आकाश आया मानो परू ा सरू ज भी ेसके सा। जजदृं मी का अृंधेरा लमेाने आया इोव जब भी आकाश को दे िती तो सोचती क्या सच मग आकाश नसी दनु नया इै , जजसने एक घायल पक्षी को मरने से बचाया और अपने प्रेम और भरोसे का मरइम लमा कर क र िल ु े आकाश मग ेडने के का बल बनायाव ननशा चुपचाप वद ृं ा के पास बैठी ेसे सन ृं ा एक लमबी साृंस छोडते इुए बोली, ु रइी ।ीव वद
आज शाृंनत ने मझ ु े क र वइाृं पइुृंचा टदया जजसे मैं सोचती ।ी कक बइुत पीछे छोड आह इू ृंव माृं बाप पैसे वाले ।े ेन्इमने मेरे जीने का एक और मौका बना ललयाव पर शाृंनत जो अपनी बेेी के ललए बन पानी मछली की तरइ तडप रइी इै व वइ क्या करे मी ? कइाृं जायेमी, कौन श्रव
इोमा
जो ेसका राजदार बन बछचा बछचा का खयाल रिेमा और अपने नाम से समाज मग लसर ेठाकर जीने का मौका दे माव पज ू ा का समय भी सभी के सृंम आमे बढ रइा इै व ननशा क्या एक बार क र मृंटदर की सीटढयम पर कपडे मग ललपेा नवजात लोमम को लमलेमा और पलु लस ेसे अना।ाश्रम ले जायेमीव क र एक बार वइाृं के रजजसेर पर क र कोह मम ु नाम ललिा जायेमा और बन बयाइी माृं पज ू ा सारी जजदृं मी ेसी बदनामी की छाृंव मग तडपने को मजबरू इोमीव क्यम ननशा क्यम ? कब तक दस ू रम की करनी का बोझ लडककयम का सइना पडेमा और बलातकार का कलृंक लस थ लडककयम का इोमाव ेनका अपना ननजी कलृंकव कब तक ..............................व
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श्री रॊका भें बविष्म की हहॊदी नधीया शििॊति
हहॊदी अध्मावऩका
बायिीम साॊस्कृतिक केंद्र, कोरम्फो
आज से कई सार ऩि ू व हहॊदी बाषा श्री रॊका भें एक विदे िी बाषा के रूऩ भें ऩनऩने रगी। िफ से हभाये विद्मार्थी भें काफ़ी रुचि ऩैदा होने रगी। ऩहरे िो हहॊदी बाषा के भुकाफरे भें फ्ाॊस औय जाऩानी बाषाएॉ बी सार्थ-सार्थ प्रमुक्ि होने के कायण हहॊदी की स्स्र्थति काफ़ी चगयी। क्मोंकक रोग सोिने औय सभझने रगे कक हभाये सॊिान का बविष्म हभें फनाना है । उस ियह उनके बविष्म काभमाफ कयने के शरए विदे िी बाषाओँ से िीनी, जाऩानी,फ्ाॊस, आहद बाषाएॉ शसखाने से जगि भें अच्छा स्र्थान ऩा सकिा औय आगे फढ़ सकिा है । रेककन मह ऩुयाना ख्मार धीये -धीये गामफ हो यहा र्था। उसके फाद बायिीम शसनेभा, गीिों की सुयीरी धुन सुनने, बायि के फाये भें र्थोड़ा- र्थोड़ा शसनेभाओॊ से जानने के कायण विद्माचर्थवमों के भन भें हहॊदी सीखने की आिश्मकिा िरू ु होने रगी। ििवभान भें हहॊदी बाषा सीखने औय जानने के शरए विद्मार्थी ऩहरे दजे ऩय है । उनके भन भें उत्सुकिा का बाि आने रगे कक हभ हहॊदी बाषा सीखने हहॊदी के ऺेत्र भें फहुि कुछ कय सकिे हैं । इसशरए अफ विद्मारमों, विश्िविद्मारमों औय सबी सॊस्र्थाओॊ भें हहॊदी बाषा का प्रिाय औय प्रसाय फहुि ज़ोय से िर यहा है । कोरॊफो भें
स्स्र्थति बायिीम साॊस्कृतिक केंद्र, कैं डी का करा केंद्र की ओय से केंद्रीम हहॊदी सॊसर्थान के ऩाठ्मक्रभ औय दक्षऺणा बायि हहॊदी प्रिाय सबा के सबी ऩाठ्मक्रभ
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िरािे हैं। विद्मार्थी अऩने अध्ममन ऩर्थ भें आगे फढ़ाने के शरए इनहीॊ ऩयीऺाओॊ भें फैठिे हैं। इसके अरािा जमिधवनऩयु ा, केरतनमा, सफयगाभि ू ा, सौंदमव औय कोरम्फो विश्िविद्मारमों भें बी हहॊदी बाषा के अध्ममन औय अध्माऩन रगािाय िर यहे हैं । हहॊदी बाषा अफ ज़ोयदायी से श्री रॊका भें प्रिशरि हो यही है । इसके शरए अबी अच्छा स्र्थान शभरा। ज़्मादािय विद्माचर्थवमों के अरािा आभ जनिा अऩने व्माऩाय के शरए बायि भें घभ ू ने जािे हैं । शसपव िह बी कायण नहीॊ, अवऩिु अऩनी फीभारयमों के शरए चिककत्सा कयाने को, सॊगीि औय कर्थक नत्ृ म शसखने को आहद। अगय श्री रॊका के विश्ि विद्मारम के ककसी विद्मार्थी का िमन नहीॊ हो ऩामा, िे ज़रूय अऩने ऩैसे खिव कयके बायि
जाकय अऩना बविष्म फना रेिा है । मे िभाभ फािों के कायणों से बी हहॊदी शसखने की ज़रूयि ऩैदा हुई है । खासकय
दे िी रोग बायि भें ऩमवटक फनकय इसशरए जािे हैं। िाकक िे रोग फुद्दा का जनभ
स्र्थर, फद्द ु त्ि औय फद्द ु ा ऩयतनिावण अऩनी आॉखों से दे ख सकें। इसशरए सबी भागवदिवक मह सोििे है कक िहाॉ जाने से ऩहरे हहॊदी जानना ज़रूयी है । नहीॊ िो काभ आसान नहीॊ होगा। इन सबी कायणों के सार्थ एक कायण फिाना बूर गमी। िह क्मा है कक श्री रॊका की सयकाय से ऩहरे से ही हहॊदी, 11 िीॊ श्रेणी की ऩयीऺा के शरए औय विश्िविद्मारम प्रिेि की ऩयीऺा के शरए विषम के रूऩ भें यखी है । इसशरए जफ फच्िे हहॊदी G .C .E .(O /L ) औय G .C .E .(A /L ) से ऩढ़ने रगिे हैं, उनहें विश्िविद्मारम प्रिेि की ऩयीऺा िक ऩढ़ना आसान होगा।
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रेककन एक फहुभूल्म बाषा फनकय हहॊदी अफ श्री रॊका भें िायों ियफ़ फ़ैर यही है ।
विद्मार्थी हहॊदी ऩयीऺाओॊ से उत्िीणव होकय हहॊदी के ऺेत्र भें आगे फढ़ना िाहिे हैं।
मह कहना ज़रूयी है कक जफ नौकयी ऩय आिेदन ऩत्र डारिे ही हहॊदी बाषा को अतिरयक्ि मोग्मिा सभझकय अऩनी कॊऩतनमों भें नौकयी दे नेिारे अच्छे हदरदाय बी हैं। जैसे भैंने कहा कक हहॊदी ऩढ़ने भें अफ रुकािट िो नहीॊ आिी। क्मोंकक साभग्री महाॉ उऩरब्ध है । उसी ऺेत्र भें बी श्री रॊका के फाहय नौकयी कयने को हदरिस्ऩी यखिे हैं। िो भेया प्रस्िाि है कक बायि सयकाय अऩनी बाषा प्रिायप्रसाय कयने भें रगी हुई है । उसी ियह िे उन विद्माचर्थवमों को अऩनी सीखी हुई
हहॊदी बाषा से बी काभमाफ फनने को भदद कयें । िबी श्री रॊका भें हहॊदी की स्स्र्थति औय बी उज्जिर होगा। कुछ िषव फाद कोरॊफो जैसा कोरॊफो के फाहय औय बी प्रदे िों भें हहॊदी प्रिाय-प्रसाय भें अध्माऩक गण तनयॊ िय उत्सुक हो यहे हैं । ई-रतनिंग कम््मूटय-आधारयि शिऺा, स्जसे कबी-कबी सॊऺेऩ भें सीफीएर (CBL) बी कहा जािा है । िैक्षऺक िािाियण के एक भुख्म घटक के रूऩ भें कॊ्मूटय के उऩमोग को सॊदशबवि कयिा है । जफकक मह एक कऺा भें कॊ्मूटयों के इस्िेभार को सॊदशबवि कय सकिा है । मह िब्द औय अचधक व्माऩक िौय ऩय एक सॊयिनात्भक िािाियण को सॊदशबवि कयिा है स्जसभें अध्माऩन के प्रमोजनों के शरए कॊ्मूटयों का इस्िेभार ककमा जािा है । इस अिधायणा को आभ िौय ऩय उन भामनों भें कॊ्मट ू यों के इस्िेभार से अरग रूऩ भें दे खा जािा है जहाॉ शिऺा कभ से कभ अनुबि का एक ऩरयधीम ित्ि है । ई-शिऺा (ई-रतनिंग) को सबी प्रकाय के इरेक्रॉतनक सभचर्थवि शिऺा औय अध्माऩन के रूऩ भें ऩरयबावषि ककमा जािा है । जो स्िाबाविक िौय ऩय 65
कक्रमात्भक होिे हैं औय स्जनका उद्देश्म शिऺार्थी के व्मस्क्िगि अनब ु ि, अभ्मास औय ऻान के सनदबव भें ऻान के तनभावण को प्रबाविि कयना है । सूिना एिॊ सॊिाय प्रणाशरमाॊ, िाहे इनभें नेटिकव की व्मिस्र्था हो मा न हो। शिऺा प्रकक्रमा को कामावस्निि कयने िारे वििेष भाध्मभ के रूऩ भें अऩनी सेिा प्रदान कयिी हैं। ई-शिऺा अतनिामव रूऩ से कौिर एिॊ ऻान का कॊ्मूटय एिॊ नेटिकव सभचर्थवि अॊियण है । ई-शिऺा इरेक्रॉतनक अनुप्रमोगों औय सीखने की प्रकक्रमाओॊ के उऩमोग को सॊदशबवि कयिा है । ई-शिऺा के अनप्र ु मोगों औय प्रकक्रमाओॊ भें िेफआधारयि शिऺा, कॊ्मूटय-आधारयि शिऺा, आबासी कऺाएॊ औय डडजीटर सहमोग िाशभर है । ऩाठ्म-साभचग्रमों का विियण इॊटयनेट, इॊरानेट/एक्स्रानेट, ऑडडमो मा िीडडमो टे ऩ, उऩग्रह टीिी औय सीडी-योभ (CD-ROM) के भाध्मभ से ककमा जािा है । इसे खुद फ खुद मा अनुदेिक के नेित्ृ ि भें ककमा जा सकिा
है औय इसका भाध्मभ ऩाठ, छवि, एनीभेिन, स्रीशभॊग िीडडमो औय ऑडडमो है । ई- रतनिंग कुछ ही विश्िविद्मारमों भें प्रा्ि है । जैसे केरतनमा, वििि ृ ा औय कोरॊफो आहद विश्िविद्मारमों के नाभ आगे है ।
बायिीम सॊस्कृति केंद्र भें बाषा प्रमोगिारा की बी सुविधा यखी है । जो विद्मार्थी
भौखखक के शरए आिे हैं, उनके शरए आसानी से हहॊदी बाषा का उच्िायण कया सकिे हैं। विद्मार्थी अऩनी ऩढ़ाई के फाद बाषा भौखखक के रूऩ सभाज भें व्मिहाय कयिे हैं। िबी उसे बाषा प्रोमगिारा से फहुि राब शभरिा है ।
ई-भोफाइर का बी इस्िेभार अबी ज़ोयदाय से िरिा है । क्मोंकक हय विद्मार्थी के ऩास भोबफर है । िे अबी िब्दकोि से ज़्मादा भोबफर हार्थ भें यखिे हैं। बविष्म भें स्कूरों, सॊस्र्थाओॊ, विश्िविद्मारमों भें ककिाफ की जगह हहॊदी सीखने के शरए ईभोफाइर दे खने को शभरेगा। 66
बायिीम साॊस्कृतिक केंद्र कोरोंफो द्िाया रगबग 14 िषों से हहॊदी ऩाठ्मक्रभ
सॊिाशरि ककमे जा यहे हैं। हहॊदी विषम भें अध्मनन हे िु बायि के द्िाया विद्माचर्थवमों को छात्रिस्ृ त्ि प्रदान की जा यही है । बायिीम साॊस्कृतिक केंद्र द्िाया
हहॊदी की उननति ि प्रिाय हे िु ियह ियह की प्रतिमोचगिाएॉ विश्ि हहॊदी हदिस औय हहॊदी हदिस ऩय आमोस्जि की जािी है । हहॊदी को हभ रोक बाषा फनाएॉगे। जन-जन की बाषा फनाकय बायि से अटूट
सॊफॊध यखेंगे। हभ आिा कयिे हैं कक बायि की सहामिा ऩय हभायी उम्भीद फनी यहे गी। श्री रॊका भें अफ हहॊदी का प्रिाय ज़ोयदाय से िर यहा है । इस विषम भें श्री रॊका उननि स्र्थान ऩय है । आज हहॊदी श्री रॊका के सबी विश्िविद्मारमों औय स्कूरों भें ऩढ़ाई जा यही है । श्री रॊका िासी हहॊदी सीखने भें फहुि आगे हैं। श्री रॊका भें हहॊदी प्रिाय के शरए हभ औय बी नए कदभ फढ़ाएॉगे। भैं तनिेदन कयिी हूॉ कक इन सवु िधाओॊ का सदऩ ु मोग कय रीस्जए।
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श्रीरॊका की सॊस्कृतत शमभर कौभद ु ी ह द ॊ ी अध्मापऩका
ऐसा पिश्िास ककमा जाता ै कक याजकुभाय पिजम औय उसके 700 अनम ु ामी ई.ऩ.ू 543 भें श्री रॊका भें ज ाज़ से उतये । पिजम श्री रॊका का ऩ रा याजा था । उसने
जजस याज्म की स्थाऩना की ि कयीफ 2358 िर्ष तक कामभ य ा। फीच भें एकाध फाय छोल्मा ऩाॊड्म के याजा ने इस ऩय अधधकाय कय मरमा। ककॊतु मसॊ मरमों ने उन् ें दे श से तनकार फा य ककमा। प्राचीन कार से ी श्री रॊका ऩय शा ी मसॊ रा िॊश का शासन य ा ै । सभम- सभम ऩय दक्षिण बायतीम याजिॊशों का बी आक्रभण बी इस ऩय ोता य ा ै । तीसयी सदी ईसा ऩूिष भें भौमाष सम्राट अशोक के ऩुत्र भ ें द्र के म ाॉ आने ऩय फौद्द धभष का आगभन ु आ। श्री रॊका का दस्तािेज इतत ास 3000 सार ऩुयाण ै । साथ ी 1 ,25 , 000 सार ऩ रे के ऩूिष ऐतत ामसक सभम भें भानि फस्ती के कुछ सफूत बी मभरे ैं। म एक बौगोमरक जग
ै कक द्पितीम पिश्ि मद्द ु के सभम से ी स्थापऩत ग ये
फॊदयगा इस जग को साभरयक भ त्ति बी दे ते ैं। श्री रॊका 1972 तक सीरोन नाभ से जाना जाता था। ऩ रे ऩुतग ष ार ने कोरॊफो के ऩास अऩना दग ष ामरमों ने ु ष फनामा। धीये - धीये ऩुतग अऩना प्रबुत्ि आसऩास के इराकों भें फना मरमा। कपय श्री रॊका के तनिामसमों ने डच रोगों से भदद री। इसके फाद अॊग्रेज़ों ने डच के इराकों ऩय अऩना अधधकाय 68
आयॊ ब कय हदमा। इस तय सॊऩूणष श्री रॊका ऩय अॊग्रेज़ों का अधधकाय ो गमा। द्पितीम पिश्ि मद्द ु के फाद 1948 भें दे श को आज़ादी मभरी। श्री रॊका दक्षिण - ऩि ू ष बायत के ऩास के दक्षिण एमशमा का ी दे श ै । श्री रॊका के उत्तय-ऩजश्चभ भें बायत की सीभा औय दक्षिण-ऩजश्चभ भें भारदीि की मसभा ै । श्री रॊका एक गणयाज्म ै औय सॊमुक्त याज्म बी ै । जजसऩय अधष - प्रणारी से शासन ककमा जाता ै । श्री रॊका की याजधानी श्री जमिधषनऩुया कोट्टे ै । कोरॊफो व्माऩायी नगय ै । श्री रॊका के इतत ास भें आहदिामसमों के फाये भें क ातनमाॉ प्रचमरत ु ई ैं। उनभें
से कुछ ऩयम्ऩयाएॉ आज बी भह मॊगनमा औय दफाना आहद प्रदे शों भें पिद्माभान ै । दे शी औय पिदे शी रोग उन् ें दे खने के मरए दयू - दयू से आते ैं। आहदिासी रोग अऩनी सॊस्कृतत दशषकों को हदखाके उनके अऩने जीिन को बफताने के मरए ऩैसे
कभाते ैं। अबी आहदिासी के फाह्म रूऩ भें थोड़ा- सा फदराि आ गमा ै । क्मोंकक िे अन्म साभान्म सबी जाततमों के साथ य -य कय उनके िस्त्र, खान-ऩान औय जीपिका भें अॊतय आ गमा। उनकी बार्ा, सॊगीत, नत्ृ म, बॉियों से भधु इकट्टे
कयना, मशकाय कयके भाॊसों को बुनना आहद कक्रमाएॉ अबी तक ऩुयाने ज़भाने की तय चरती य ती ैं। ह न्द ू सभाज की तय श्री रॊका भें बी सॊस्काय ककमे जाते ैं। रेककन आधुतनक मशिा के प्रसाय के कायण सॊस्कायों का रूऩ फदरता गमा ै । म पिमबन्नताओॊ औय फ ु -सॊस्कृततमों िारा दे श ै । ह न्द ू सभाज का प्रबाि श्री रॊका भें बी ऩुयाने
कार से प्रचमरत आ य ा ै । इसमरए सोर सॊस्कायों के अनुसाय अऩना जीिन बफताने को रोग कोमशश कयते
ैं। क्मोंकक उनके जीिन भें मे सॊस्काय एक
अपिस्भयणीम ऩर फनते ैं। 69
जातकभष सॊस्काय भें फच्चे के नाभकयण ऩय ऩारयिारयक सभायो ककमा जाता ै । फच्चे के मरए अच्छा-सा नाभ ऩरयिाय के फज़ ु ग ु ष से मा ककसी ऩॊडडत से यखा जाता ै । फच्चे के जन्भ के छे भ ीने के फाद अन्नप्राशन सॊस्काय ोता ै । मसॊ री रोग, इस सॊस्काय को " इदर ु कटा गेभा " क ते ैं। ककरयफत के साथ मभठाइमाॉ यखके अऩनी नानी- दादी मा फच्चे के भाता-पऩता से फच्चे को ऩ री फाय खाने खखराते ैं। कपय चड़ ू ाकभष सॊस्काय आता ै । तीन मा ऩाॉच िर्ष की आमु भें फच्चे का कणषिेध सॊस्काय ोता ै । उऩनमन सॊस्काय भें फच्चे को स्कूर भें रे जाता ै । फच्चे की मशिा ऩाॉच िर्ष से आयॊ ब ोती ै । कुछ रोग ऩाठशारा रे जाने से ऩ रे ' भोजन्टसोरय ' बेजते ैं।
म ाॉ की जनता की फड़ी सॊख्मा ऩढ़ औय सभझ सकती के ऩास रे जाने की प्रथा बी अबी बी प्रचमरत भ्रभणशीर अध्माऩक य ते मसखाते जाऩानी,
ै । श यों औय गाॉिों भें
ैं। ितषभान भें ऩाठशाराओॊ भें मरखना-ऩढ़ना
ैं। मशिा के साथ खेरकूद बी शामभर
ऩढ़ाए जाते
ैं। मशष्म को गुरु
ै । आभ तौय से मे पिर्म
ॊ ी, ैं-मसॊ री बार्ा, अन्म बार्ाएॉ (तमभर, अॊग्रेज़ी, ह द
फ्रेंच, जभषन,
चीन, कोरयमन)
पिज्ञान, गखणत,
तकषशास्त्र आहद अनेक पिर्म प्रस्तुत कय सकते
याजनीतत,
ैं। ऩाठशारा औय पिश्ि
पिद्मारम से अऩनी ऩढ़ाई ऩूयी कयने के फाद नौकयी कयते ैं मा जीिन भें प्रिेश कयते ैं। मसॊ र के दो ऐतत ामसक ग्रॊथ- दीऩिॊश तथा भ ािॊश का तनभाषण चौथी तथा ऩाॉचिीॊ शती ईस्िी भें
ु आ था। फाद भें बत्रपऩटक की ऩारी टीकाओॊ
तथा पिपिध पिर्मों की अन्म ऩस् ु तकों को मरपऩफद्द ककमा गमा। भ ािॊश के फ ु सॊख्मक धचककत्सारमों का उल्रेख
ोने से साबफत
प्राचीन कार भें मसॊ र भें उच्च सॊस्कृतत पिद्माभ थे। 70
ोता
ै कक
श्री रॊका भें पििा के मरए रड़का - रड़की की भॊज़ूयी प्रकट कयने के फाद मा ऩरयिाय के फड़े रोग रड़का-रड़की ऩसॊद कयने से दोनों की जन्भ कॊु डमरमाॉ
मभरिामी जाती ै । शादी के हदन " ऩोरुिा चारयत्र " ( पिशेर् प्रकाय का भॊडऩ ) कयके प्रथा के अनुसाय एक दस ू ये को अॊगूठी ऩ नाते ैं। पििा सॊस्काय ककसी भॊहदय भें मा ोटर भें ककमा जाता ै । यजजस्टाय को शादी के हदन फुराकय पििा को ये जजस्रय ककमा जाता ै । मसॊ मरमों भें आज बी एक स्त्री-ऩरु ु र् पििा की प्रथा ै । पऩता ी ऩरयिाय का स्िाभी ोता ै । भाता के प्रतत सिाषधधकायी सम्भान प्रदमशषत ककमा जाता ै । अॊत्मेजष्ट सॊस्काय भें भत ृ दे को अऩनी भज़ी के अनुसाय धचता ऩय यखते ैं मा
ज़भीन ऩय दफ़नाते ैं। सबी रयश्तेदाय आखखयी पिदा दे ने को आते ैं। अगय धचता ऩय आग रगाना ै तो उसे अऩने ऩत्र ु से मा रयश्तेदाय से ककमा जाता ै । भत ृ दे
जराने मा दफ़नाने के फाद जस्त्रमाॉ घय भें य कय बात, कद्दू, औय कयिाड फनाकय शभशान से रौटनेिारों को खाने को दे ते ैं। इससे घयिारे सोचते ैं कक भये
ुए
आदभी को शाॊतत मभरती ै । मसॊ मरमों भें प्राम् फौद्द मबिुओॊ तथा ऊॉचे रोगों के भत ृ शयीयों को जरने की प्रथा ै । साथ
ी श्री रॊका फ ु त से धभों, जातीम सभू औय बार्ाओँ का बी घय ै । प्रभुख
धभों से फौद्द, ह न्द,ू इस्राभ, ईसाई आहद प्रमसद्द ै । रॊका भें मसॊ री, तमभर, अॊग्रेज़ी आहद बार्ाएॉ फोरते ैं। कुछ रोग ह द ॊ ी, फ्राॊस, जाऩानी आहद अनेक बार्ोंओॊ की ज्ञानकायी बी रेते ैं। फ ु भत िारी रॊका भें , फ ु त से श्री रॊकन,
बायतीम तमभर, भयू , फगषय, भरमा, काकपय औय आहदिासी िेद रोगों का घय बी ै । श्री रॊका भें फौद्द धभष पियासत ै । 71
फाय भ ीनों भें ऩखू णषभा के हदन आते ैं। य ऩखू णषभा के साथ ककसी न ककसी फौपद्दक घटनाएॉ जुड़ी ोती ैं। बगिान फुद्द के सभम जो िाताियण था, उन् ें माद हदराने के मरए सबी फौद्द, भ ीने भें एक फाय भॊहदयों भें जाके " मसर " यखते ैं। (मसर एक प्रकाय का ित ु ॊ से ृ ै , जजसे रोग एक जग फैठके भॊहदयों के साधओ
दे नेिारे प्रिचन के अनस ु ाय अऩना हदन ऩखू णषभा के हदन ऩय बफताते ैं।)
इसके अरािा स्ितॊत्र हदिस, नमा सार, भ ा मशियाबत्र, ोरी, दीऩािरी, ऩोंगर, कक्रसभस, ईद, आहद प्रभुख त्मौ ाय बी भनामे जाते ैं। (श्री रॊका के अन्म त्मो ाय दक्षिण बायत से औय मूयोऩीम दे शों से आमे ु ए त्मो ाय ैं।) नमा सार फौद्द औय ह न्दओ ु ॊ का प्रभुख त्मौ ाय
ै । नमे सार भें फौद्द-ह न्द ू
जनता अऩने घय-भु ल्रे साफ़ कयते ैं। नमे कऩड़े मसराते ैं औय मभठाइमाॉ फनाने के मरए रगे य ते ैं। नमे सार के खाने भाभूरी हदनों के खाने से कुछ अरग ै । सबी रोग शब ु भु ु तष ऩय ' ककरयफत ' फनाते ैं। म ाॉ ककरयफत, चािर भें नारयमर का दध ू मभराके फनाते ैं औय इसके साथ खाने के मरए ' कटसॉफोर ' का सेिन कयते
ैं। श्री राॊककक जनता तेज़ी चीज़ें खाने की रुधच यखते
ैं।
इसमरए श्री रॊका भें आऩ ज ाॉ जाएॉ, ि ाॉ आप्ऩा, ईदी आप्ऩा ,ऩोर योटी के साथ श य मा गाॉि भें ' कटसॉफोर' खाने को दे ते ैं। ऩटाखे छोड़ने के फीच भें ऩयू े श्री रॊका के रोग ककरयबत शुब भु ु तष ऩय खाते ैं। इसके फाद ऩैसे रेन-दे न का भु ु तष आता ै । उसी भें छोटे , फड़ों को औय फड़े, फुज़ुगों के साथ ऩैसे ऩान ऩय यखकय एक
दस ू ये को दे ते ैं। जस्त्रमाॉ एक तय की ढोरक फजाती ैं। जजसे " यफान " क ते ैं । म
" यफान " खास कयके नए सार भें फजाई जाती ैं।
श्री रॊका प्राकृततक सौंदमष के मरए अव्िर स्थान भें
ै । नहदमाॉ, झयने, झीर,
ऩ ाडड़मों की श्रॊख ृ रा, तर टी, सभतर बूमभ, उऩजाऊ खेत, सायखणमाॉ, ऩ ाड़ी 72
इराकों के सुयॊग दे खने को हदर कयता ै । श्री रॊका के अनेक प्रमसद्द दशषनीम स्थरों भें कैं डी श य, ऩेयादे तनमा, गॉर, यत्नऩयु ा, ह क्कडुिा, उनिटुना, फोऩत झयना, अनुयाधऩुया, मसधगरयमा, ऩोरोन्नरुिा आहद ऐतत ामसक स्थर ऩमषटक केंद्र फन गए ैं। फड़े औय घने िनोद्मानों से मसॊ याज, मारा, पिरऩत्तू, भाउससे, उड़ाित्ता आहद भश ू य ै । डच रोगों से फना ु आ गोर खखरा बफल्कुर सभद्र ु के ककनाये जस्थत ै । ि ाॉ से रूभस्सरा दयू से दे खा जा सकता ै ।
गोर खखरे के अॊदय प्रकाश स्तम्ब बी ै । कैं डी के तनकट ऩेयादे तनमा िनस्ऩतत उद्मान ( फोटै तनकर गाडषन ) ै । ि ाॉ फ ु त साये यॊ ग बफयॊ गे पूर रगे ु ए ैं। कऩड़ों से ज़्मादातय रोग दे शीम फततक (Batic) औय सत ू ी कऩड़े ऩ नने कक रुधच प्रकट कयते ैं। क्मोंकक श्री रॊका के भौसभ से सार भें कई फाय गभी रगती ै । पिदे शी रोग म ाॉ आकय बी फततक से फने ु ए कऩड़े औय सूती कऩड़ों की कभीज़साडड़माॉ खयीदने की हदरचस्ऩी यखते
ैं। इसके अरािा बायतीम औय मूयोऩीम
िस्त्र बी श्री रॊका भें दे खने को मभरते ैं। ऩें ट-शटष औय रॊग ु ी ऩरु ु र्ों का भख् ु मा ऩ नािा ै । साड़ी, ओसायी, सरिाय-कुयता औय याष्रीम ऩोशाक आहद जस्त्रमों का
ऩ नािा
ै । आधुतनक सभम भें फ ु त से मसॊ मरमों ने मूयोऩीम िेशबूर्ा ग्र ण
कय री ै । मसॊ र रोग अऩने यीतत-रयिाज़ों, धभष, मशिा औय ऩोशाक को ऩारन कयते ु ए सफसे अच्छे जीिन बफता य े ैं। मसॊ मरमों को धान की खेती औय मसॊचाई , दोनों का ज्ञान ै । उनका भख् ु म बोजन चािर ै । इसके मसिा कुछ अन्म अनाज तथा दारों की बी खेती की जाती ै ।
इन अनाजों से फना बोजन उनका आ ाय
ै । सभम फीतने ऩय मूयोऩीमों के फाद,
बोजन के सम्फन्ध भें बायी ऩरयितषन ो गमा। ईख, रुई, ल्दी, अदयक, कारी मभचष, भसारे तथा परों के ऩेड़ बी फड़ी सॊख्मा भें उगामे जाने रगे। खेती के साथ73
साथ ऩशुऩारन बी ककमे जाने रगे। ताराफ फनाने भें मसॊ री दि थे। उनके फनामे ककतने
ी ताराफ आज बी पिद्मभान ै । श्री रॊका चाम, यफड़,चीनी,
कॉफ़ी, दारचीनी, जिा य का तनमाषतक फन गमा। ऩुयाने ज़भाने भें याजाओॊ तथा प्रजा िगों को जरक्रीड़ा, नत्ृ म, गामन, मशकाय
आहद पिपिध खेरों तथा कराओॊ भें अच्छा आनॊद आता ै । मुद्द भें सॊगीत का भ त्ति फना य ता था। ऩाॉच तय के िाद्म मॊत्रों- ढोरों, बेरयमों, शॊखों, फीनों, फाॉसुरयमों आहद का प्रचरन प्राचीन कार से आ य ा ै । मसॊ रमों भें कठऩुतमरमों का नाच औय नाट्मों का अमबनम ोता ै । जजनके मरए गाॉिों भें मा श यों भें भॊच फनामे जाते ैं। रेककन आज जनता अऩने जीिन भें ज़्मादा काभ कयने के कायण कठऩत ु मरमों के नाच दे खने का सभम न ीॊ मभरता। " असाढ़ी " ऩिष के सभम फ ु त रम्फा जर ु स ु तनकरता ै । जजसभें फड़ी सॊख्मा भें
ाथी बी सजाए जाते ैं। कैं डी औय गॊगायाभा के जुरुस फड़ी धूभ- धाभ से तनकारे
जाते ैं। जजन् ें दे खने के मरए फड़ी सॊख्मा भें दे शी-पिदे शी रोग य सार भें आते ैं। ग्र ों तथा बूत-प्रेतों की फाधा दयू कयने के मरए " फरी ऩूजा" ककमे जाते ैं। मसॊ री करा बायतीम करा से पिशेर् रूऩ से प्रबापित ै । श्री रॊका भें धचत्रकाय, याज, मभस्त्री, रो ाय, कॊु बकाय,दयजी, जुरा े , ाथी दाॊत का काभ कयने िारे, औय अन्म करापिद ोते ैं। मशल्ऩकराओॊ से अम्फरॊगोड़ा, एरऩीहटमा आहद प्रदे श, कठऩुतरे के मरए औय भुखौटे के मरए ह क्काडुिा, पऩमरभतरािा, अम्फरॊगोड़ा आहद प्रदे श। ककसान खेतों भें काभ कयने के फाद जफ पसर ऩकते ैं। तफ नए पसर काटने के फाद नए चािर बगिान ऩय चढ़ाते ैं। 74
कुछ गाॉि के भॊहदय भें जाके बॊते जी को ऩूजा कयते ैं। भुख्म कृपर् बोग चािर ै ,
इसके अरािा ितषभान भें श्री राॊककक जनता अऩने-अऩने आॉगनों भें पर, सजज़ज़माॉ रगाते ैं। उन् ीॊ भें खाद्म डारके ताज़े-ताज़े सजज़ज़माॉ, पर, साग आहद योज़ खाने भें उन् ीॊ को मभरता फ ुत रेती
ैं। केयर जैसे श्री रॊका भें नारयमर के ऩेड़
ैं। गहृ खणमाॉ नारयमर इस्तेभार कयके अऩने खाने स्िाहदष्ट फना
ैं। नारयमर का तेर बी फ ु त भश ू य
उऩमोगी फनती
ै । नारयमर ऩेड़ की
य चीज़ें
ैं।
श्री रॊका भें रोक गीत, सॊगीत औय नत्ृ म के कायण आज बी रोग अऩने व्मस्त
जीिन का आनॊद रे य े
ैं। ऩुयाने सभम भें खेततमों भें काभ कयके ककसान,
भज़दयू थक जाते थे। उनकी थकािट दयू कयने के मरए उन् ीॊ से गामे ु ए गीत
औय गाॉि की फामरकाओॊ से तार के अनुसाय ऩदचार यखना, “रोक गीत औय रोक नत्ृ म” से जाना जाता था। ऩायॊ ऩरयक नत्ृ मों से " UDARATA ", "
PAHATARATA" औय " SABARAGAMU " प्रचमरत ै । इन तीनों सम्प्रदामों के
मरए अरग-अरग िाद्म मॊत्र फजामे जाते ैं। पसर ऩकने ऩय ककमे जाने िारे श्री रॊका के ऩायम्ऩरयक नत्ृ मों से "कुरु नेटुभ , करागेड़ी नेटुभ, गोमभ नेटुभ प्रमसद्द ै ।
फौद्द जनताओॊ के ततथषक स्थर कैं डी श य का श्री दरदा भामरगािा, अनयु ाधऩयु ा का श्री भ ा फोधध िि ृ , ऩोरोन्नरुिा के खॊड ाय, मसधगरयमा, श्री ऩादमा ( म ाॉ
गौतभ फुद्द श्री रॊका के आगभन भें तीसयी फाय ऩधायें ), भातया का िेय े ना भॊहदय,
नागदीऩमा, केरतनमा, सेरुिापिरा, कतयागभा ( म ाॉ फौद्द रोगों के साथ ह न्द ू बी दे िताओॊ का दशषन कयने के मरए जाते ैं। ) ह न्द ू जनताओॊ के बी कुछ तीथष
स्थर ोते ैं।
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रािता इराके भें फसा
ु आ भश ू य भुन्नेश्ियभ कोपिर, बत्रॊकोभरी का
कोणेश्ियभ कोपिर, जाफ़ना का नल्रूय, कैं डी का ऩुल्रैमाय कोपिर आहद।
ईसाईमों के मरए ' भडु " धगरयजाघय िितु नमा भें ै । यागभा फेमसमरका धगरयजाघय बी उल्रेख ै । श्री रॊका के रोगों का एक ऩेशा ै कक भत्सम उद्मोग। ि क्मा ै कक श्री रॊका एक द्िीऩ ोने के कायण चायों तयफ़ सभन्दय से तघया ु आ ै । तो धीिय अऩनी जीपिका ि ीँ से चराते
ैं। उस उद्मोग से दे श की अच्छी आभदनी बी फढ़ती जा
य ी ै । क्मोंकक दे श के अॊदय न ीॊ, फजल्क फा य बी भछमरमाॉ ऩकड़के तनमाषत कयते ैं। ऊऩय उल्रेखनीम िणषन साॊस्कृतत की पियासत ै । रेककन म ाॉ ऩयू ी साॊस्कृतत
मरखी न ीॊ जा सकती। साॊस्कृतत ककसी बी दे श का ऩ चान ै । इसे रोग इज़्ज़त
कयते ैं। साॊस्कृतत के कुछ अॊग मों ी चरते ैं औय कुछ मभरते जा य े ैं तथा कुछ बफगड़ते ु ए कपय से फनते ैं।
76
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84
हहॊदी के लरए आवश्मक कुछ कदभ श्रीधय फवे
इॊदौय भध्म प्रदे श
क्मा ऐसा हो सकता है कक भध्मप्रदे श से कोई आवेदक बफहाय भें ककसी'शासकीम' ववबाग के
'सॊचारक' को औय हरयमाणा अथवा
उत्तयप्रदे श से ऐसा ही आवेदक छत्तीसगढ़ भें ककसी
'याजकीम' ववबाग
के 'ननदे शक'को आवेदन ऩत्र बेजे औय डाकववबाग आवेदकों को उनके द्वाया बेजे गए ऩत्र इस आधाय ऩय वाऩस बेज दे कक ऩत्र ऩाने वारा ऩद अधधकायी इन याज्मों भें नहीॊ
है
।हाॉ,ऐसा हो सकता है ,क्मोंकक
Director ऩद के नभानुवाद इन याज्मों भें ऐसे ही हैं , कहीॊ 'ननदे शक ' तो कहीॊ 'सॊचारक'। 'सयकायी' शब्द का अनुवाद कहीॊ 'शासकीम' तो कहीॊ 'याजकीम'चरामे जा यहे हैं । 'इॊजजननमय' को कहीॊ 'अलबमॊता',कहीॊ 'मॊत्री' फना हदमा है ।'जनऩद' शब्द छत्तीसगढ़- भध्मप्रदे श भें ब्रॉक Block के लरए तो उत्तय
प्रदे श भें जजरा अथथ भें प्रमुक्त् ककमा जा यहा
है ।'ब्रॉक'Blockका अनव ु ाद भ.प्र छत्तीसगढ़ भें खॊड है , वही बफहाय भें प्रखॊड प्रचलरत है । याजस्व भॊडर के लरए भ.प्र भें सॊबाग अभर भें है तो प्रभॊडर झायखण्ड भें
। ऐसे अनेक याजकीम नाभ-ऩद हैंजजनके
लबन्न- लबन्न अनुवाद अरग-अरग याज्मों भें चर यहे हैं । साहहत्म औय बाषा भें एक ही शब्द के अनेक रूऩ जहाॉ सौंदमथ औय सयसताउत्ऩन्न कयते हैं , वही याजकाज औय औऩचारयक सॊस्थानों भें
85
शब्दों (ऩद आहद) के ववलबन्न रूऩ भ्रभ ,जहिरता औय दरू ु हता उत्ऩन्न कयते हैं । ऩमाथमवाची शब्द , शब्दकोशों की सभवृ िभें ववृ ि कयते हैं तो
ऩद-सॊस्थानों के नाभों के अरग-अरग रूऩ भ्रभजार उत्ऩन्न कयते हैं ।
हभाये दे श भें हहॊदी बाषी दसयाज्म हैं- उत्तयप्रदे श , भध्मप्रदे श, याजस्थान, बफहाय,छत्तीसगढ़, उत्तयाखॊड, झायखण्ड, हरयमाणा, हहभाचर प्रदे श औय हदल्री। इन याज्मों भें ऩद औय कामाथरमों तथा सॊस्थानों के नाभों भें सभरूऩता का आबाव होने काकायण मह है कक बाषा के उऩमोग के सम्फन्ध भें इन याज्मों भें कोई तारभेर नहीॊ है । सभन्वम की कभी के कायण ऩदों के नाभों भें अनुवाद की स्वेच्छाचारयता आ गई है । हहॊदी को सॊववधान के प्रबावशीर होने के 15 वषों फाद दे श भें याजबाषा के ऩद ऩय प्रनतजठित होना था ककन्तु दे श के कुछ बागों भें ववयोध होने के कायण याजबाषा अधधननमभ भें ऐसा सॊशोधन ककमा गमा
जजसके प्रावधानस ु ाय बायत के बाग्म के साथ अॊग्रेज़ी बाषा सदासवथदा के लरए फाॉध दी गमी है । इसके अनुसाय जफ तक दे श का एक बी याज्म अॊग्रेजी फनामे यखना चाहे गा तफ तक अॊग्रेजी सयकायी काभकाज के लरए प्रमक् ु त होती यहे गी । स्भयणीम है कक नागारैंड , लभजोयभ औय भेघारम याज्मों ने अॊग्रेजी बाषा को अऩनी याजबाषा स्वीकृत कय यखा है क्मोंकक इन याज्मों भें प्रचलरत रोक बाषाएॉ इतनी उन्नत नहीॊ है
कक वे याजकाज हे तु प्रमुक्त की जा सकें । मह जस्थनत दे श भें अॊग्रेजी को स्थानमत्व का अभयऩट्टा प्रदान कयती हैं । मह बी स्ऩठि रूऩ से सभझ लरमा जाना चाहहए कक हहॊदी को याठरबाषा फनाने का ववयोध इसलरए नहीॊ ककमा गमा था कक उसके 86
कायण अन्म दे शी बाषाओँ की प्रगनत का भागथ अवरुि हो यहा था फजल्क इसलरए कक अॊग्रेज़ी सभथथक अऩनी अॊग्रेजी भानलसकता तथा औऩननवेलशक धयोहय को अऺुण्ण यखकय अॊग्रेजी के भाध्मभ से सयकाय औय दे श ऩय अऩना वचथस्व एवॊ अधधकाय फनामे यख सकें
। याठर ,
याठरीम बावना औय याठर बाषा जैसे भुद्दे उनके लरए बावुक आदशाथत्भक ववषम हैं जो याज्म शजक्त के मथाथथसे िकयाते यहते हैं
,
जजनकी धचॊता नहीॊ कयनी चाहहए ।महद वे अऩनी प्रादे लशक बाषाओँ के सच्चे हहतैषी होते तो वे अऩने-अऩने प्रदे शों (याज्मों) भें अऩनी-अऩनी बाषाओँ को प्रत्मेक स्तय ऩय प्रनतजठित कया चुके होते
। उनका हहॊदी
ववयोध वास्तव भें बायतीम बाषाओँ के ववयोध का भख ु ौिा है । हहॊदी के अन्म ववयोध के कायण केवर उनके याज्मों भें ही नहीॊ
, हहॊदी
बाषी याज्मों सहहत ऩयू े बायत भें अॊग्रेजी बाषा के साम्राज्म की जड़ें
,
ऩयाधीनता के हदनों से बी अधधक गहयी औय दृढ हुई हैं औय होती जा यही हैं । औऩननवेलशक भानलसकता के उत्तयाधधकायी शासकों औय
प्रशासकों ने अऩने हहत सॊयऺण के लरए मुवा शजक्त ववशेषकय छात्र वगथ का इस्तेभारकय हहॊदी ववयोधी भाहौर का ननभाथण ककमा था । इस कूिनीनत द्वाया उनके हहतों का सॊयऺण तो हो गमा भगय बायत भाता के भॉुह ऩय अॊग्रेजी बाषा रूऩी तारा अिर रूऩ से रग गमा । इस तारे को ऩूयी तयह नहीॊ तो आॊलशक स्तय ऩय याज्म (प्रदे श) अऩने-अऩने ऺेत्रों भें खोर सकते थे
। लशऺा , न्माम, सयकायी काभकाज , उद्मोग
व्माऩय, धचककत्सा, आहद ऺेत्रों भें प्रदे श सयकायें अऩने-अऩने याज्मों भें अऩनी प्रादे लशक बाषाओँ को रागूकय उन्हें उन्नत औय प्रनतजठित कय 87
सकती थी औय ऐसा कयने के लरए कोई प्रनतफन्ध बी नहीॊ था
, ककॊतु
ऐसा इसलरए नहीॊ हो सका क्मोंकक केंद्र के साभान ही औऩननवेलशक भानलसकता के ऐसे शासक औय प्रशासक याज्मों भें हावी यहे हैं जजनकी ननठिा तथा प्रनतफिता दे शी बाषाओँ के प्रनत नहीॊ के फयाफय है । इनके अनतरयक्त ननवाथधचत सयकायों , जन प्रनतननधधमों औय भॊबत्रमों के भन भें बी स्वबाषाओॊ की प्रनतठिा औय सम्भान के लरए ववचाय
,
मोजना औय प्रनतफिता नहीॊ थी औय न है । बाषा के भाभरों भें कोई ननजश्चत नजरयमा नहीॊ होने के कायण वे केवर तादधथथक रूऩ से कुसी
की शोबा ववृ ि कयते यहे । जो कभी अन्म बाषा -बाषी याज्मों भें यही हैं
कहीॊ हहॊदी बाषा -बाषी याज्मों भें बी यही । अरफत्ता मह हो सकता था कक हहॊदी बाषी याज्म ,बाषा के भाभरे भें सॊगहित औय सॊकजल्ऩत होकय, अऩने याज्मों भें स्वबाषा को प्रत्मेक ऺेत्र भें व्मवहाय भें राने तथा उऩमोग कयने की हदशा भें ऩूये दे श का भागथदशथन कयते
। भगय
जो अफ तक नहीॊ ककमा अफ तो कय सकते हैं । प्रदे श(याज्म)स्तय ऩय , सबी दस याज्म, ननम्नाॊककत उऩाम कय ही सकते हैं:1. याज्म सयकायों का सभस्त काभकाज हहॊदी भें हो
।हहॊदी बाषी
याज्मों के भध्म ऩायस्ऩरयक व्मवहाय की बाषा बी हहॊदी ही हो
।
अहहन्दी बाषा-बाषी याज्मों से व्मवहाय हहॊदी औय उनकी बाषा भें हो। केवर भजफूयी भें अॊगेजी बाषा का उऩमोग हो। 2. कानन ू , धचककत्सा, इॊजीननमरयॊग, प्रफॊधन अहद हदधाओॊ का अध्माऩन हहॊदी भें ककमा जाए। अॊग्रेजी भाध्मभ से अध्ममन कयने वारों को
88
उस बाषा भें अध्ममन की छूि दी जाए रेककन सयकायी सहामता उन्हें नहीॊ लभरे। 3. वतथभान भें महद सम्फॊधधत ववषमों की ऩस् ु तकों का आबाव है तोइसकी ऩूनतथ के लरए मुिस्तय ऩय तमायी की जाए
। स्तयीम
औय प्राभाणणक ऩुस्तकों के अनुवाद मुिस्तय ऩय कयामे जाएॉ
-
अनुहदत प्रकालशत ऩुस्तकें ऩाठ्मक्रभ भें रगामी बी जाएॉ। 4. इसी तयह इन ववषमों भें ववद्वानों से भौलरक ऩस् ु तकें बी लरखवाई जाएॉ। 5. न्मामऩालरका के ऺेत्र भें सॊववधान के द्वाया क्र. 348 भें ऩरयवतथन कय हहॊदी औय याज्म की बाषाओँ भें बी उच्च एवॊ सवोच्च न्मामारमों भें काभकाज हो सके क्मोंकक अबी वहाॉ केवर अॊग्रेजी ही अधधकृत बाषा है ।
6. उद्मोगऩनतमों औय व्माऩारयमों से आग्रह ककमा जाए कक वे अऩने कायोफाय भें अॊग्रेजी के साथ-साथ हहॊदी को बी अन्वामथतमा उऩमोग भें रामें ।जजन व्माऩारयमों का रेन -दे न कायोफाय व्मवहाय स्थानीम औय प्रादे लशक स्तय ऩय हो उनसे हहॊदी भें कायोफाय कयने का आग्रह ककमा जाए । वे अऩने नाभऩट्टों , वऻाऩनों औय यसीदें दे ने औय ऩत्र व्मवहाय हहॊदी भें कयें ।महद उनका कायोफाय गैय-हहॊदी याज्मों भें बी है तो हहॊदी के साथ-साथ सम्फजन्धत
याज्म की
बाषा भें व्मवहाय कयें ।
89
7. जफ कोई व्माऩायी अथवा उद्मोगऩनत ककसी बी खुदया ग्राहक से उनकी बाषा भें व्मवहाय कयता है तो शेष कायोफाय भें ववदे शी बाषा का
इस्तेभार कय दयु ाव-नछऩाव क्मों यखा जाएॉ?
8. धचककत्सा के ऺत्र भें बी फीभायों औय योधगमों के के इराज की अलबरेख हहॊदी भें तैमाय ककमे जाएॉ ताकक ऩायदलशथता प्रभाणणत हो क्मोंकी 95 प्रनतशत रूग्ण व्मजक्तमों को अॊग्रेज़ी का ऻान नहीॊ होता। महद योगी को गैयहहॊदी ऺेत्र भें उऩचाय के लरए ये पय ककमा जाता है , उसके उऩचाय के रयकाडथ को अॊग्रेजी बाषा भें उऩरब्ध कयामे जाएॉ। हहॊदी बाषी याज्मों भें पशथ से रेकय अशथ तक सभस्त ववषमों के
150 अधधक सयकायी ववश्वववद्मारम हैं
।
द्ववबाषी ववद्वानों की कोई कभी नहीॊ है । 9. हहॊदी बाषी याज्मों की सयकायें ववदे ही ननवेशकों से अऩने याज्म भें उद्मोग कायखाने आहद स्थावऩत कयाएॊ तो कयायनाभे हहॊदी भें तैमाय कयाए जाएॉ, इससे ववदे लशमों की नज़य भें हभायी बाषा का भहत्त्व फढ़े गा। आवश्मक हो तो कयायनाभों का अनुवाद ननवेशक केदे श की याजबाषा भें कयामा जाए , महद भजफयू ी हो तो अॊग्रेजी बाषा को स्थान हदमा जाए । ऐसा बायत के फाहय सफदे शों भें होता है । ऐसी फातों भें अऩनी बाषाकी अवहे रना हभ ही कयते हैं , अन्म दे श नहीॊ । कयाय की शतों की व्माख्मा (ककसी वववाद की जस्तधथ भें न्मामारम जाने ऩय) हभायी बाषा भें लरखी हुई इफायत ही भान्म होगी।
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10. शारेम लशऺा व्मवस्था भें हहॊदी बाषा-बाषी याज्मों ने बत्रबाषा लशऺा अॊतगथत गैय हहन्दीबाषी याज्मों की बाषाओँ के अध्माऩन की घोय उऩेऺा की है । ववगत 60 वषों से हहॊदी बाषी याज्मों ने दक्षऺणी , ऩूवी औय उत्तयी एवॊ ऩश्चभी बायत के याज्मों की बाषों की अऩेऺा की, जफकक अन्म याज्मों ने अऩनी प्रादे लशक बाषा के साथ-साथ अऩने छात्र-छात्रों को अॊग्रेजी औय हहॊदी बी लसखाई है । हहॊदी बाषी याज्मों केउऩेऺाऩण ू थ व्मवहाय से अन्म याज्मों भें हहॊदी के प्रनत दब ु ाथव उत्ऩन्न हुआ है , याठरीम सद्भावना
औय एकता की बावना को हहॊदी बाषी याज्मों ने ऺनत
है । इसकी ऺनतऩनू तथ हहॊदी बाषी याज्मों को ही कयना है ।
ऩहुॉचाई
11. याठर की बावनात्भक एकता औय दे श की फहुबावषक
ऩरयजस्थनत के कायण हाईस्कूर तक बत्रबाषा पाभर ूथ ा 1961 भें तैमाय कय उसे रागू कयने का ननणथम लरमा गमा था
। मे तीन
बाषाएॉ छात्रों को ऩढ़नी थी - हहॊदी , ऺेत्रीम बाषा औय अॊग्रेजी। गैय हहॊदी बाषी याज्मों ने इस सूत्र को ईभानदायी से अऩने महाॉ रागू ककमा ऩयन्तु हहॊदी बाषी याज्मों ने तीसयी बाषा के स्थान ऩय सॊस्कृत औय उदथ ू का आश्रम रेकय अन्म ऺेत्रीम बाषाओँ की
अवहे रना कय दी। वऩछरे ऩचऩन वषों भें झेरभ से रेकय कावेयी तफ फहुत ऩानी फह गमा साथ भें अहहन्दी बाषी याज्मों के भन भें अऩनी बाषाओँ कीउऩेऺा की िीस-कसक बी छोड़ता गमा।
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12. सभम आ गमा है कक याठरीम हहत तथा सभझ को फढ़ावा दे ने के लरए हहॊदी बाषी याज्म अन्म याज्मों की प्रादे लशक बाषा को ऩढ़ाने के लरए ईभानदायी फयतें
, जजन ववद्माधथथमों को
सॊस्कृत अथवा उदथ ू ऩढ़ना हो उनके लरए अरग व्मवस्थता की जा सकती है ।
13. आवश्मक नहीॊ कक प्रत्मेक स्कूर भें सफ बाषाओँ के
अध्माऩन की व्मवस्था हो । ककसी बी एक स्कूर भें केवर एक
ही प्रादे लशक बाषा का अध्माऩन ककमा जाम , ककन्तु ऐसा हो कक
ऩयू े याज्म भें दे श की सभस्त बाषाओँ की अध्माऩन की व्मवस्था हो जामे । ऩढ़ाने वारे लशऺक सम्फॊधधत याज्मों
से बयती ककमे
जामें जजन्हें अऩनी याज्म की बाषा के आरावा हहॊदी बाषा का बी अच्छा ऻान हो । ऐसे द्ववबाषी लशऺक औय उनके ऩरयवाय हहॊदी बाषी याज्मों भें आएॊगे तो द्ववबाषावाद औय याज्मों की बाषासॊस्कृनत की ऩायस्ऩरयक सभझ भें ववृ ि होगी जजसके द्वाया
याठरीम एकता को फढ़ावा ही लभरेगा । इस मोजना को अववरम्फ रागू ककमा जाए, क्मोंकक अन्म बाषा-बावषमों को ववश्वास भें लरए फगैय हहॊदी का याठरबाषा फनने का भागथप्रशस्त नहीॊ होगा ,साथ ही जफ तक ऩूये दे श भें हहॊदी को प्रत्मेक ऺेत्र भें प्रनतजठित नहीॊ ककमा जाता तफ तक उसे सॊमुक्त याठर सॊघ भें बी भान्म नहीॊ ककमा जा सकेगा , क्मोंकक जजसका सम्भान अऩने घय भें ही नहीॊ हो, उसे फाहय सम्भान की अऩेऺा नहीॊ कयना चाहहए।
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14. ऩदों, सॊस्थानों के नाभों के भानक अनुवाद कय अयाजकता से फचने ,हहॊदी बाषी याज्मों भें सभस्त सयकायी काभ- काज कयने को सनु नजश्चत कयने
, सभस्त स्तयों ऩय लशऺा भाध्मभ
,
न्मामारमों, धचककत्सारमों, उद्मोग-व्माऩय भें हहॊदी के इस्तेभार कयने, ववद्मारमों भें बत्रबाषा पाभर ूथ ा का ऩारन कयने औय ननणथमों का ऩारन सुननजश्चत कयने के लरए सभस्त हहॊदी बाषी याज्मों के लरए एक अॊतय याज्मीम सॊस्था (आमोग , भॊडर अथवा प्राधधकयण) का गिन ककमा जाना अबीठि कामों की गनत को तीव्रता प्रदान कये गा । ऐसी सॊस्था को आधधकारयक रूऩ से ऐसे अधधकाय हदए जामें जो सभम-सभम ऩय कामथ प्रगनत की सभीऺा कय सके औय लरए गए ननणथमों को व्मवहाय भें राने के लरए सऺभ हो।
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nfD[kuh h दक्खिणी तथाfga nिडी बोली का अंतःसंबंध MkW- xaxk/kj okuksMs
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हहिंदी हदवस के लऱए ववशेषः ---------------------झििक लमटे तो हहिंदी बढे ...!! तारकेश कुमार ओिा
एक फाय भझ ु े एक ऐसे सभायोह भें जाना ऩडा, जहाां जाने से भैं मह सोच कय कतया यहा था कक वहाां अांग्रेजी का फोरफारा होगा। साभान्मत् ऐसे भाहौर भें भैं साभांजस्म स्थापऩत नह ां कय ऩाता। रेककन भन भाय कय वहाां ऩहुांचने ऩय भझ ु े अप्रत्माशित खुिी औय सख ु द आश्चमय हुआ। क्मोंकक ज्मादातय वक्ता बरे ह अहहांद बाषी औय ऊांचे ऩदों को सि ु ोशबत कयने वारे थे, रेककन सभायोह के िरू ु आत भें ह एक ने हहांद भें बाषण
क्मा िरू ु ककमा प्रफांधक से रेकय प्रफांध ननदे िक तक ने ऩयू ा बाषण हहांद भें प्रस्तत ु ककमा। फात वहाां भौजूद
हय छोटे - फडे के रृदम तक ऩहुांची। इस घटना ने भेय धायणा फदर द । भझ ु े रगा कक अांग्रेजीदाां सभझे जाने वारे रोग बी हहांद ऩसांद कयते हैं औय इस बाषा भें फोरना चाहते हैं। रेककन अक्सय वे फडे सभायोह जहाां ऊांचों ऩदों को सि ु ोशबत कयने वारे रोग भौजूद हों हहांद फोरने से मह सोच कय कतयाते हैं कक मह िामद उन्हें ऩसांद न आए। जीवन प्रवाह भें भझ ु े इस तयह के कई औय अनब ु व बी हुए। भसरन भैं एक नाभी अांग्रेजी स्कूर के प्राचामय कऺ भें फैठा था। स्वागत कऺ भें अनेक ऩत्र - ऩत्रत्रकाएां भेज ऩय यखी हुई थी।
जजनभें स्कूर की अऩनी ऩत्रत्रका बी थी। जो थी तो अांग्रेजी भें रेककन उसका नाभ था िैिव। इससे बी सख ु द आश्चमय हुआ। क्मोॆॆांकक ऩयू तयह से अांग्रेजी वातावयण से ननकरने वार अांग्रेजी ऩत्रत्रका का नाभ हहांद भें था। फेिक इसके प्रकािकों ने हहांद की ताकत को सभझा होगा। इस घटना से बी भैं गहये सोच भें ऩड गमा कक आखखय क्मा वजह है कक फडे - फडे कायऩोये ट दफ्तयों व िॉपऩांग भॉरों भें बी योभन शरपऩ भें ह सह
रेककन हहांद के वाक्म कैच वडय के तौय ऩय शरखे जाते हैं। जैसे.. िाद भें अऩनों को दें खास उऩहाय... खास
हो इस फाय आऩका त्मोहाय... िब ु नववषय... िब ु द ऩावर ... हो जाए नवयात्र ऩय डाांडडमा ... वगैयह - फगैयह।
मह नह ां साभद ु ानमक बवनों के नाभ बी भाांगशरक आिीवाद, स्वागतभ तो फडे - फडे आधुननक अस्ऩतारों का नाभकयण स्ऩांदन, नवजीवन , सेवा - सश्र ु षा होना क्मा मह सात्रफत नह ां कयता कक फोरचार भें हभ चाहे
जजतनी अांग्रेजी झाड रें रेककन हभ बायतीम सोचते हहांद भें ह है । क्मा इसशरए कक अांग्रेजीदाां ककस्भ के रोग बी जानते हैं कक फाहय से हभ चाहे जजतना आडांफय कय रें रेककन हहांद हभाये रृदम भें फसती है । भझ ु े रगता है हहांद की याह भें सफसे फडी रुकावट वह खझझक है जजसकी वजह से उच्चशिक्षऺत भाहौर भें हभ हहांद
फोरने से कतयाते हैं। जफकक ककसी बी वातावयण भें अफ हहांद के प्रनत दब ु ायवना जैसी कोई फात नह ां यह गई है । अऩने ऩेि के चरते भझ ु े अक्सय आइआइट जाना ऩडता है । फेिक वहाां का भाहौर ऩयू तयह से अांग्रेजी
के यां ग भें यां गा होता है । रेककन खास सभायोह भें जफ बी भैने ककसी सांस्थान के छात्र मा अन्म प्राध्माऩकों से हहांद भें फातचीत की तो कपय भाहौर फनता चरा गमा। मह तो हभाय खझझक है जो हभ अऩनी बाषा भें
फात कयने से कतयाते हैं। आइआइट के ह एक कामयक्रभ भें एक अनत पवशिष्ट हस्ती भख् ु म अनतथथ थे। जो दक्षऺण बायतीम ऩष्ृ ठबशू भ के तो थे ह उनकी अांतय याष्र म ख्मानत बी थी। उनके सांबाषण से ऩहरे एक
हहांद दे िबजक्त गीत फजामा गमा तो उन्होंने अऩने सांबाषण की िरू ु आत भें ह इस गीत का पविेष रूऩ से
उल्रेख ककमा। ऐसे भें हभ कैसे कह सकते हैं कक आज के दौय भें ककसी को हहांद से ऩयहे ज है .मा कह ां हहांद सीखने - शसखाने की आवश्मकता है । अऩने ऩेिे के चरते ह भझ ु े अनेक नाभचीन रोगों के भोफाइर ऩय
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पोन कयना ऩडता है जजनभें दे ि के पवशबन्न प्राांतो के रोग होते हैं। रेककन भैने ज्मादातय अहहांद बाषी
पवशिष्ट हजस्तमों का कॉरय टोन हहांद भें ऩामा। फेिक कुछ हहांद बापषमों के भोफाइर ऩय अहहांद बाषी गानों
की धुन टोन के रूऩ भें सन ु ने को शभर । बाषाई उदायता औय दे ि की एकता की दृजष्ट से इससे अच्छी फात
औय क्मा हो सकती है । दयअसर ह न ग्रांथथ हभाये बीतय है । हभ सोचते हैं कक उच्च शिक्षऺत औय ऩढे शरखे रोगों के फीच भैं महद बायतीम बाषा भें फात करुां गा तो वहाां भौजूद रोगों को अजीफ रगेगा।रेककन ऐसा
त्रफल्कुर नह ां है ।हभें अऩनी इस खझझक से ऩाय ऩाना ह होगा। भझ ु े माद आता है श्री हरयकोटा भें प्रधानभांत्री का हहांद भें हदमा गमा वह बाषण जजसे वहाां भौजद ू वैऻाननक ऩयू तन्भमता से सन ु ते यहे । कपय बाषाई वैशिष्टम मा सांकीणयता को रेकय हभ आधायह न शिकामत क्मों कयें ।
----------------------------------------------------------------------------------------------ऱेखक पश्चिम बिंगाऱ के खड़गपुर में रहते हैं और वररष्ठ पत्रकार हैं। ------------------------------------------------------------------------------------तारकेश कुमार ओिा, भगवानपरु , जनता ववद्याऱय के पास वाडड निंबरः09 (नया) खड़गपरु ( पलशिम बिंगाऱ) वपन ःः721301 श्जऱा प लशिम मेहदनीपुर सिंपकडः 09434453934, 9635221463
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दे वनागरी की श्रेष्ठता
दे वनागरी की श्रेष्ठता
देदे वनागरी भारत की प्राचीनतम ब्राह्मी की वंलऱपऩ शजा हे . ब्राह्मी ब्राह्मी का की सम्बन्ध से प्रमाणितका वनागरी भारत की लऱपऩ प्राचीनतम वंशइनजालऱपऩयों हे . ब्राह्मी हो गया तो नगरी भी इससे सम्बन्न्धत मानी जाएगी. भारतीय संस्कृतत ,दशशन,आध्यात्मा तथा ऱोकरं जन
सम्बन्ध इ
हो गया तो नगरी भी इससे सम्बन्न्धत मानी जाएगी. भारतीय संस्कृतत ,दशशन,
एवं ऱोकमंगऱ की कामना से रचचत ग्रन्थ दे वनागरी की अमल् ू य तनचध हे . ये प्राचीनतम ग्रन्थ दे वनागरी
की समऱोकमं पृ ि एवं प्राचीनता को अलभप्रमाणित हैं.संस्ग्रन्थ कृत, प्रकृत,अऩभ्रं श और की हहंदी तक यात्रातनचध में एवं गऱ की कामना सेकरतेरचचत दे वनागरी अमकील् ू य
दे वनागरी समि ृ भी हे और संस्काररत भी.इसका जनाधार बढ़ा है और इस तरह दे वनागरी संऩकश लऱपऩ के
हे . ये प्राच
कीमें सम एवंहै. प्राचीनता कोके अलभप्रमाणित हैं.संलऱपऩ स्कृत, प्रकजाना ृ त,अऩभ्रंश रूऩ अचधकपृ ि सऺम संऩकश लऱपऩ होने लऱए न्जन तत्वों और करते कारकों का ककसी में ऩाया आवश्यक है . वे सब में पवद्यमान हैं. संऩकश भी.इसका लऱपऩ वही हो सकती है दे वनागरी समदे विनागरी भी लऱपऩ हे और संस्काररत जनाधार
ृ
और
जो प्राचीन हो बढ़ा है और इस तरह
,वैऻातनक हो,अलभव्यन्ततकौशऱ में समथश हो तथा दे श की अचधकांश जनता द्वारा व्यवहृत होती है।
रूऩ में अचधक सऺम है . संऩकश लऱपऩ होने के लऱए न्जन तत्वों और कारकों का
चंहदमा चन्रलसंह
आवश्यक है . वे सब दे वनागरी लऱपऩ में पवद्यमान हैं. संऩकश लऱपऩ वही हो सकत
भारतीय सांस्कृततक केंर
,वैऻातनक हो,अलभव्यन्ततकौशऱ में समथश हो तथा दे श की अचधकांश जनता द्वा
श्री ऱंका
चंहदमा चन्रलसंह
भारतीय सांस्कृततक केंर श्री ऱंका
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���� �� ����� ����ृ�� �� ����� �� ����� डा. डी.पी �स�ह �विज���ग �ो�ेसर (�ह�द� चेयर, आई.सी.सी.आर केला�नया �व�व�व�यालय �ी ल�का)
�प�ले कई व�� से प�ने क� ���या म� आये बदलाव को स�ी ने गौर �कया होगा | �े �नोल�जी ने िजस तरह अहमारे जीवन म� ह�त�ेप �कया है वह बेहद �न�ा�यक है |हमारे रो�मरा� के जीवन से तमाम व�त गायब हो गया है | इस �सकुड़ते रोजमरा� के जीवन म� िजन बातो का बता�व कम हुआ है उनमे शौक से
पढ़ना �मुख है | यह प�रवत�न तब और मह�वपू�� हो जाता है जब इसे अतीत के प�र�े�य म� दे खते ह� | द�ु नया के तमाम प�रवत�न शौ�कया पढ़ने क� स��कृ�त से ह� आये ह� | “सा�ह�य” का �पेस हमारे जीवन म� बदला है | मसलन अब �क उप�यास को मा�ग कर पढ़ने वाले कम �मलते ह� |
�ला�सक क� जगह
बे��सेलर ने ले ल� है और सा�ह�य क� जगह लोक��य सा�ह�य ने ले ल� है | �कताबो से �का�म और ज�ब करने क� ���या �क सी गयी है | �सा नह�� द�ु नया या �ारत के �श��त वग� म� पढ़ना कम हो चला है | प�ने का �पेस अब �ी बचा है ले�कन उसमे बड़ा बदलाव आया है | ये बदलाव है पार�प�रक प�ने को �र�लेस करके वचअ ु� ल-र��ड�ग ने ले ल� है | �कताब का �पेस �सकुड़ता सा �दखता है और सोशल
मी�डया क� द�ु नया म� प�ने का �पेस �श�� हो गया है | क�ी समाचार क�ी लेख क�ी पो�� क�ी �ल�ग-पो�� तो क�ी �ेसबक ु आगे ना जाने �कतने तरह के प�ने के आयाम ह� | इस बदलाव के बीच अगर आप अपने आस-पास दे खे तो पा��गे �क पड़ने क� स��कृ�त म� �प�ले �क दशक म� बड़ा बदलाव आया है | इस बदलाव के �व���न आयाम को दे खना �दलच�प है |
पढ़ना मानवीय ��या कलाप का मह�वप� ू � प� हॅ. साम�ू हक �व� �यि�तगत चेतना को गढ़ने मे 'पढ़ने क� स��कृ�त' क� मह�वप� ू � ��ू मका रह� हॅ यरू ोप से लेकर ��शया तक आधु�नकता के �व�तार म� 'प�ने क�
स��कृ�त' �न�ा�यक रह� है . आधु�नक काल का इ�तहास इस बात का गवाह है �क तमाम सामािजक
सा��कृ�तक प�रवत�न� को गढ़ने म� 'पढ़ने क� स��कृ�त' �मुख कारक रह� है . ब�गाल रे नेसा� क� प�रक�पना
पढ़े �लखे म�य वग� के �बना नह�� क� जा सकती . �ारत म� �ापे खाने क� ��ापना के बाद पि�लक-
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я┐╜я┐╜я┐╜рдпрд░ рдоя┐╜ рдзрдоя┐╜ я┐╜рд░ я┐╜рд╡рд╡реЗрдХ рдХя┐╜ рдЪрдЪрд╛я┐╜ рдХреЛ рдЗрд╕реА рд╕я┐╜рджрдня┐╜ рдоя┐╜ рджреЗ рдЦрд╛ рдЬрд╛ рд╕рдХрддрд╛ рд╣реИ | рдзрдоя┐╜ ,я┐╜рд╡рд╡реЗрдХ я┐╜рд░ рдкрд░я┐╜рдкрд░рд╛ рдХя┐╜ рдпрд╣я┐╜ рдЪрдЪрд╛я┐╜ рдЖрдЧреЗ рдЪрд▓ рдХрд░ рдЙрдкя┐╜рдирд╡реЗрд╢ я┐╜рд╡рд░реЛрдзреА рдЪреЗрддрдирд╛ рдоя┐╜ рдкя┐╜рд░рд╡я┐╜рддя┐╜рдд рд╣реЛ рдЬрд╛рддреА рд╣реИ | я┐╜рд╡рд╛рдзреАрдирддрд╛ рдЖя┐╜рджреЛрд▓рди рдХреЗ рджя┐╜рд░рд╛рди рднрд╛рд╖рд╛,рдЙрдкя┐╜рдирд╡реЗрд╢ рдХрд╛ я┐╜я┐╜рдЪя┐╜рдп ,рдзрди рдХя┐╜ я┐╜рдирдХрд╛рд╕реА
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я┐╜рд╡я┐╜рддрд╛рд░ я┐╜рдХрдпрд╛"
я┐╜я┐╜рд╕ рдмрд╛рдпрд▓ : рдПя┐╜рдкрд╛рдпрд░ рдПрдВрдб рдЗя┐╜я┐╜рд╛рдоя┐╜рд╢рди :рдкреЗрдЬ реирейрео)тАитАирд░я┐╜я┐╜рдбрдВрдЧ рдХя┐╜рдЪрд░ рдХрд╛ я┐╜рднрд╛рд╡ я┐╜рдХрддрдирд╛ рджрд░реВ рдЧрд╛рдореА рд╣реЛрддрд╛ рд╣реИ рдЗрд╕реЗ
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यानी बीसवीं सद� के पा�क से इस माम�े म� ��ग है क� इसके संवेदन जगत म� रा���य मिु �त के सवा�� से ��धक मह�वपण ू � मानवता और पया�वर�णक ��न है। सा�ह�य के पारं प�रक पा�क िजस तरह �कसी पा� से ��� का �नमा�ण करते �े उससे ���न तर�के से यह पा�क ��� का �नमा�ण करता है ,|
बीसवीं सद� के पा�क क� ��ंता�ं म� राजनी�त को मह�वपण ू � ��ान �ा�त �ा �े�कन इस न� पा�क क� ��ंता�ं का �नमा�ण सां�कृ�तक �ि�मता कर रह� है और ये �ि�मता�ं न� तरह के मी�डया से �न�म�त हो रह� ह�
। मी�डया के न� �प� ने �ा�ा ,��ंग , न��, �वाद आ�द �ि�मता �नमा�ण के न� �टक� को
ज�म �दया है।मी�डया के इसी बद�ाव क� ���व�णत े आक�न क े ��� यन ु ा क ू े�को ने मै��ाइत क�
��य�ता म� �क आयोग का ग�न �कया िजसने माना क� मी�डया के ��� स�दे श ��वा मा�यम क� बजा� स�द�� ��धक मह�वपूण� कारक होता है। कहने का ता�पय� यह क� स�दे श का �ह�ता उसे �पने ��ंगीय, �ा��क , जातीय , न��� स�द�� म� �हण करता है।
�सा�रत हो रहे स�दे श म� �पने स�द�� से
��� �रने क� इसी ���या म� पा�क �यापक सां�कृ�तक �वमश� का �ंग बनकर नयी �ि�मता�ं का
सज ु का सबसे �मख ु ृ न करता है। मी�डया म� �सारण पर �का�धकार और �हण म� �व�वधता को न� यग
टकराव का �व�द ु माना जाता है िजसके तहत ये 'पा�क�य �ि�मता�ं' म� ू त� ��त�न�ध�व क� ��ा� ��ती है । मेरे ��ययन से इन �ि�मता�ं के �ंश �व�द ु समझकर उ�ह� समा�हत करने क� समावेशी रणनी�त
क े स� ू ीकरण म� सहायता �म�ेगी। मी�डया जगत म� सां�कृ�तक ��त�न�ध�व म� ू त� सब��करण का ह� �क �प है ।
�ा���� के पाठक �ना� �च ू ना के पाठक �हंद� �काशक� के खोये
आंक�ो को समझने क� को�शश करे तो उपर� त�र पर प� ु तको क� �ब�� म�
इजाफा हुआ है । पर इससे कोइ �न�क�� �नका�ने से पह�े �ं�ेजी-सा�ह�य को पढ़ने वा�� क� सं�या म� आये बद�ाव पर ग�र करने क� ज�रत है। �हंद� पा�को क� सं�या का �व�तार �क बात है �े�कन �क
�हंद� पा�क के �पेस म� आया मा�ा�मक और गण ु ा�मक बद�ाव दस ू र� बात। नेशन� र�डर�शप के सव� �गातार �हंद� प��का�ं और प�� के पा�को क� सं�या म� ��त ू पूव � इजाफे क� बात करते है �े�कन ग�र
करने क� बात यह है �क �या सर�वती , हं स �ताप ,मतवा�ा और आज के इं�डया टुडे ,दै �नक �ा�कर
,पंजाब केसर� के पा�क को �क नज�रये से दे खना ��हये ।इसी के �व�तार म� दे खे तो �या �ेम�ंद के गबन ,गोदान और 'फ़ाइव पॉइंट सम वन' को �क तरह से समझा जा सकता है। �ारतीय सा�ह�य ��ंतन म� ‘स�दय’ और ‘साधारणीकरण’ और ‘रस’ क� �वधारणा रह� है । इस��� समझ और संवेदना क�
पढ़न-
सं�कृ�त के बाद स� ू ना क� पढ़न- सं�कृ�त �क मह�वपण ू � �श�ट है िजसे �यापक संद�� म� समझने क� ज�रत है ।�ह�द� का यह नया पा�क ���खत श�द से और तरह क� �पे�ाये है �य��क उसक� सामािजक �वि���त म� �ंतर आया है।
करता हुआ �तीत हो रहा �ब उसके जीवन म� �नजी और साव�ज�नक
का �ेद ��धका�धक ��म हो रहा है और वह �नरं तर �तीक� क� द�ु नया म� ��गाव को दरू करने के ��� दख� के न� तर�के खोज रहा है।
पढ़ने क� सं�कृ�त का �व�तार जहां �ापे खान� के ��व�कार और �व���न समाज� के बी� उसके आगमन से तेजी से शु� होता है वह�ं न� तकनीक� �वकास �ापे खाने म� मु��त सं�कृ�त को समेटता �ी �दखा� दे ता है। इसका संबंध राजनी�तक और आ���क
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साम�ी के पढ़ने क�
�तर पर �यव��ापरक
�ां�े के �नमा�� से भी जुड़ा है । जब हम बाजारवाद कहते है तो वहां तकनीक के साथ दस ू रे कारक भी ��ने क� सं�कृ�त को �भा�वत करते �द�ा� �ड़ते ह�।
����े दो द�को म� �� रहे ��थ�क �दार�कर� �र �ं�रने� क� तकनीक ने सां�कृ�तक बता�व �र ��र��� को �न�ा��क �ं � से बद� �द�ा है । ��क से �ड़ने क� �र��रा म� ब�ु न�ाद� बद�ाव ��े ह� । संवेदना को �वक�सत करने वा�े सा�ह�� क� ज�ह ���ो��ता ��ान कं�� � ��ने क� �ब�ृ �त ब�� है । �ं�रने� �र �ं�ेजी के ब���व ��ते �ह�द� भा�ी �ा�क �ं�ेजी कं�� � ��ने को मजबरू हुए है
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वैश्वीय हहन्दी में चऱचचत्र शरणगप्ु त वीरससॊह
ऩद्मा वीरससॊह
श्री ऱॊका हहन्दी ननकेतन
जीना यहाॉ मरना यहाॉ इसके ससवा जाना कहाॉगाना जो भी हो, ऱेककन उसमें ननहहत शब्द सुनते ही कानों में समश्री घुऱ जाती है , तन मन ऩऱ ु ककत हो उठता है । ढाई अक्ष्ररों के इस छोठे शब्द ने दनु नया में हऱचऱ मचा दी है , ऱाखों,करोडों, अरबों ऱोगों को एक सूत्र में बाॉध हदया है करोडों हहन्दी के प्रेमी बना हदये हैं। इसमें कोई सॊदेह नहीॊ कक दनु नया भर के हहन्दी प्रेसमयों को बाॉधने का सूत्र हहन्दी चऱचचत्रों से ही उत्ऩन्न हुआ है । इतना ही नहीॊ, हहन्दी चऱचचत्रों ने हहन्दी भाषा को भी दनु नया के कोने कोने तक ऩहुॉचा हदया है ।
हहन्दी भाषा का माधय ु य , भारतीय साॊस्कृनतक का औदात्य , उत्सवों की ववचचत्रता, वेष भष ू ा और आभष ू णों का सौंदय य, नत्ृ य, सॊगीत और गीतों में
ननहहत मादकता तथा कऱाकारों की अनुऩम प्रनतभा, इन सभी बातों ने हहन्दी प्रेसमयों को अऩने वश में कर सऱया।
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ध्यान दे ने की बात यह है की इन चऱचचत्रों ने हहन्दी प्रेसमयों के मन में हहन्दी ऩढ़ने की रुचच भी ऩैदा की है और उसीसे प्रेररत होकर ऩरू े ववश्व में हहन्दी सशऺण केंद्र स्थावऩत हो गये। वास्तव में ऱोगों में हहन्दी सीखने की इच्छा इतनी बढ़ गयी कक सरकार ने भी प्रभाववत होकर स्कूऱों में
और ववश्वववद्याऱयों में हहन्दी सशऺण का प्रबॊध कर हदया है । इतना ही नहीॊ गैर सरकारी हहन्दी सशऺण केंद्र भी बन गये जो ऱगातार हहन्दी ऩढ़ाने के कायय में ऱगे हुए है । इस ववषय में यह भी कहना उचचत है कक ऐसे ऱोग भी ऩाये जाते हैं जो बबना हहन्दी ऩढ़े मात्र चऱचचत्र दे ख दे खके हहन्दी बोऱना सीख गये हैं। कुछ् ऱोग ऐसे भी हैं जो ककसी भी ववश्वववद्याऱय में प्रवेश ककये बबना हहन्दी की उच्च कोहि की जानकारी ऩाये हैं।
अॊत में यह भी कहना चाहहए कक ववश्वव्याऩी हहन्दी प्रचार प्रसार में हहन्दी चऱचचत्रों का बहुत बड़ा योगदान रहा है और कऱ भी रहे गा ।
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भारतीय दार्शिनक परम्परा में नारी के ऄवदान का ऄनुर्ीलन प्रोफे सर (डॉ.) अर्ीष कु मार पाण्डेय Mk;jsDVj&Jh lrxq: xjhc nkl baVjus”kuy fjlpZ bafLVV~;Vw iatkc
भारत में दर्शन की र्ािददक ऄवधारणा है- ‘िजसके माध्यम से देखा जाय वह दर्शन है।’ दृर्् धातु से िनष्पन्न दर्शन र्दद का व्यापक ऄथश है। सचेतन जीवधारी जगत् में अता है। अँख खोलकर दुिनया को देखता है। ईसको पहचानता है। ईसके प्रित एक दृििकोण बनाता है। ‘जीवन-जगत’ के प्रित मानवीय दृििकोण ही दर्शन है। दर्शन चमश-चक्षुओं के ईन्मीलन के साथ-साथ ज्ञान-चक्षुओं के खुलने की सतत प्रक्रिया है। यह जीवन में भी है। जीवन के पार का भी ऄध्ययन है। जीवन से जुड़ा जो कु छ भी है चाहे वह सृिि हो ईसका िवकास हो, िवकास का िम हो, पंचमहा भूत हों, ईनके एकीकरण की प्रक्रिया हो, ईनके पाथशक्य की प्रक्रिया हो, स्थूल से सूक्ष्म का रूपान्तरण हो, रूपान्तरण का िनिमत्त हो, वह इश्वर भी हो सकता है, माया भी हो सकती है, प्रकृ ित-पुरुष का संयोग भी हो सकता, पर और ऄपर ब्रह्म भी हो सकता है। मन-मानने की ...है। ऄनेक सम्प्रदाय हैं , अपकी अस्था और अपका िवश्वास जहाँ ईस पंथ को ऄपना सकते हैं । वस्तुतः भारतीय दार्शिनक परम्परा नािस्तक और अिस्तक दो सम्प्रदायों में बाँटी गयी है। नािस्तक वे हैं जो वेदानुरूप नहीं रहे। आसके ठीक िवपरीत जो वेदों की अधारभूिम पर बने वे अिस्तक दर्शन कहलाए। चावाशक, जैन, बौद्ध, दर्शन नािस्तक तथा सांख्य, योग, न्याय, वैर्ेिषक मीमांसा और वेदान्त अिस्तक हैं। आनको ‘षड् -दर्शन-समुच्चय’ से ऄिभिहत क्रकया गया। कालान्तर में भारतीय दर्शन की ऄनेक धाराएँ प्रस्फु टटत समकालीन भारतीय दर्शन के साथ-साथ
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ऄनुप्रयुक्त तक िनरन्तर िवकिसत हो रहीं है। श्री ऄरिवन्द, गांधी, िववेकानन्द, टैगोर, मानवेन्र नाथ राय, आकबाल प्रमुख समकालीन िवचारक हैं । भारतीय दार्शिनक परम्परा में नारी के ऄवदान और स्थान की चचाश में सबसे पहले वैक्रदक दर्शन का ऄनुर्ीलन ऄपेिक्षत हो जाता है। वैक्रदक दर्शन प्रकृ ित के रहस्यों का ईद्घाटन करने वाली ईदात्त्य ऄतीिन्रय, अध्यािममक ऄनुभूितयों की ऄिभव्यिक्त है। वैक्रदक युग में नारी अममसाधन और अममिवकास की ऄिधकाटरणी है। वह गुरुकु लों में रहकर वेदाध्ययन करती है। वह ऊिषका ब्रह्मवाक्रदनी है। यज्ञन्यायाक्रद कर सकती है। वैक्रदक युग में स्त्री के िलए घुटनकारी सामािजक वजशनाएँ नहीं हैं । यही कारण है क्रक वह मन्रदृिा के रूप में प्रखर वैदष्ु य परम्परा की संवािहका बनती है। वैक्रदक समाज में ही िवलक्षण मन्ररिा घोषा है जो लोकमंगलकारी, कालरयी मंरों की दर्शना करती है। वह इश्वर से स्तुित करती हैयुवां िह घोषा पयशिश्वना यतो राज्ञः ईचे दुिहता पुच्छे वा नरा भूतः मे ऄहन् ईतभूतभक्तवे श्वायवे रिथने र्क्तमवशते।’ ऄथाशत् मैं सवशर वेद की संवािहका हँ, स्तुितकार हँ। हे देव! मैं सवशर अपका यर्ोगान करती हँ। अप सदा मेरे िनकट रहकर आन आिन्रयरूपी ऄश्वों से युक्त, र्रीर रूपी रथ के साथ मेरे मन रूपी ऄश्व का दमन करें ।४ राज दुिहता घोषा का यह कथन प्रेम से श्रेय की ओर प्रस्थान की कामना है। वह सािधका है। जागितक प्रपंचों से मुिक्त की अकांक्षा करती है, तभी ऄपने आिन्रय रूपी ऄश्वों की लगाम को कस कर साधने की बात करती है। घोषा की यह प्राथशना तमकालीन नारी-समाज के दर्शन-सुधी होने का जीवन प्रतीक लगती है। ऊग्वेद में २० से ऄिधक ऊिषयों के नाम अए हैं - अपला, आन्राणी, ईवशर्ी, करु, गोधा, जटरता जुह, दिक्षणा, देवयानी, पौलोभी, मेधा, यमी, रािर, रोमश्य लोपमुरा, वागांभृणी, िवश्वावारा, र्ांगाां, श्रद्धा-कामायनी, श्री, सरमा और सािवरी। आनके ऄितटरक्त सामवेद की चार ऊिषकाएँ हैं : ऄकृ िभास्त, गंपायना, बोधा, िसकता, िननावरी। िजन ऊिषकाओं की वन्दना की जाती है ईनमें बड़वा प्रितथेयी, सुलभा मैरेयी, गागी वाचक्नवी भी हैं । १ ब्रह्मवाक्रदिनयों की संख्या के
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िवषय में पं. किपल देव ििवेदी ने कहा है क्रक लगभग मन्ररिा नाटरयाँ हुयी है। वैक्रदक काल में िवद्या के दो िवभाग माने जाते थे, ऄपरा ऄथाशत्- लौक्रकक िवद्या परा ऄथाशत् ब्रह्म िवद्या नाटरयाँ पुरुषों के समान पारं गत और िवित् समाज की र्ोभा बढ़ाने वाली थीं। ऐसे ईद्धरण प्राप्त होते हैं जहाँ पर िस्त्रयों ने ब्रह्म िवद्या के िवषय में पुरुषों का पथ-प्रदर्शन क्रकया है। के नोपिनषद् में अए यक्षोपाख्यान से पता चलता है क्रक ब्रह्म के िजज्ञासु ऄिि, वायु, और आन्र अक्रद देवता जब यत्न करने पर भी ब्रह्म को जानने में ऄसफल रहे तो ईमा हेमवती ने ईन्हें बुद्ध का ज्ञान कराया था।२ ऊग्वेद के दर्म मण्डल में आन्राणी ईद्घोषणा करती है- ‘ऄहं के तुरहं मूधाशऽमुग्रा िववाचनी। ममेदनु ितुं पित सेहानायाः ईपाचरे त्।३ मैं ज्ञान में ऄग्रगण्य हँ। िस्त्रयों में मूधशन्य हँ। मैं ईच्च कोटट की वक्ता हँ। वैक्रदक समाज में स्त्री को स्वतंरता थी क्रक वह अजीवन ब्रह्मवाक्रदनी रहकर सारस्वत साधना करे या गृहस्थ जीवन का वरण कर ससुराल में ‘साम्राज्ञी पद’ प्राप्त करे । वैक्रदक युगीन दार्शिनक परम्परा की बात की जाय तो घोषा का स्विस्त वाचन िवर्ेष रूप से ईल्लेख्य हो जाता है। वह लोकमंगल से ओतप्रोत है। वह स्तुित करती है-‘‘अ ब्रह्मन् ब्राह्मणों ब्रह्मवचशनी जायताम्मार राष्ट्रे राजन्यः र्ूर आषव्योितमयाशधी महा रथी
घेग्घी धेनुवोगांगा वानार्ुः सिप्त पुरर्न्न्धयोषा
िजण्णुरथेिा सभेयो युवास्य यजमानस्य पीरो जायताम्, िनकामे-िनकामे च पजशन्यो वषशतु फलवमयो न ओषधयो पत्र्यन्ताम् योगक्षेमो च कल्पताम्।’’ ऄथाशत् हे इश्वर! हमारे ब्राह्मण ब्रह्मतेज से पूणश हों, क्षिरय ऄस्त्रों के संचालन में पटु हों, वैश्य िनबाशध रूप से व्यवसाय करें , गोधन सम्पुट हों, घोड़े तीव्रगामी हों, योद्धा िवजयी हों, युवा वगश िनभशय हो, समय-समय पर वषाश हो, औषिधयाँ ईपयोगी हों सम्पूणश देर्वािसयों का योगक्षेम हो।१ घोषा का यह मन्र ईसके पुि समाजदपशण का सजीव ईद्धरण है। आतना ही नहीं एक समृद्ध राष्ट्र के िनमाशण में िजन घटकों की अवश्यकता होती है ईनकी सबलता, र्िक्तमत्ता और पुिता की कामना करती हुयी घोषा की चेतना का िर्वमवमय िवचार है। वह योग तो चलाती ही है जो प्रापत है ईसके सम्वधशन की िचन्ता करती है। यह तमकालीन नारी-चेतना की सघनता है। प्रबल दार्शिनक चेतना
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है। िवद्या, सुरक्षा, श्री और सेवा से सम्पुि समाज के नविनमाशण का अदर्श है। पयाशवरणीय चेतना की सघनता है। पटरिस्थितकी का दर्शन है। वैक्रदक ज्ञान की सुगमता के िलए मीमांसा दर्शन का प्रणयना हुअ। आस दर्शन पर कार्कृ मस्वा ने ग्रन्थ िलखे थे िजसको काराकृ स्त्री कहते हैं । औपिनषक्रदक परम्परा में लैंिगक भेद नहीं है। ‘जीव’ की ऄवधारणा है। स्त्रीपुरुष दोनों जीव हैं । ब्रह्मिजज्ञासुओं को माया से दूर रहने का संदर् े है। प्रकृ ित और माया िरमुनािममका वृित्त वाली हैं । ये ‘पुरुष’ को मोहपार् में बाँधने वाली हैं । जगत के यथाथश स्वरूप को ढँकती ही नहीं ऄिपतु ईस पर दूसरे रूप का अवरण भी डालती है। ‘अवरण और िवक्षेद’ ईसके हथकण्डे हैं । िजनसे वह बाजीगरी करती है। वह महा ठिगनी , महा मायािवनी है। ईससे मुक्त होकर ही अममसाधन की िस्थित बनती है। भवबंध से मुक्त होने के िलए ‘माया’ के वास्तिवक रूप को जानना पड़ेगा, और माया के सारे लक्षण िस्त्रयों जैसे बताए गए। जीव कहा गया है। माया का स्त्रीकरण है। ऄब ऐसी िस्थित में जहाँ पर ‘माया’ और स्त्री धीरे -धीरे एकाकार हो रहीं थीं। नारी के दार्शिनक होने की सम्भावना भी क्षीण पड़ रही थी। तभी वाचकनवी गागी प्रकट होती है। वह ऄपने युग के सबसे बड़े ज्ञानी याज्ञवल्क्य से सम्बाद करती है। ईपिनषद काल में सम्पन्न यह र्ास्त्राथश भारतीय दर्शन, तमव-ज्ञान और िचन्तन परम्परा में ऄनूठा है। वृहदारण्यक के तृतीय चतुथश ऄध्यायों में वर्न्णत है। राजा जनक के मन में िजज्ञासा हुयी क्रक सबसे बड़ा ब्रह्म ज्ञानी कौन है ? वह अये और आन गायों को हाँक ले जाए। ईन्होंने प्रकाण्ड ब्रह्मवेत्ताओं और ब्रह्मवाक्रदिनयों को अहत क्रकया था। याज्ञवल्क्य ने ऄपने िर्ष्य र्ामश्रवा से कहा ये गायें.... हाँक कर ले चलो। ऐसा करने पर सबसे पहले ईनको ऄश्वल ने ललकारा। एक-एक करके सात ब्रह्मज्ञािनयों१ ने याज्ञवल्क्य से प्रश्न पूछे। सभी को िनरुत्तर करके अगे बढ़े तो गागी ने प्रश्नों का प्रहार क्रकया। जहाँ सबसे एक-एक प्रश्न पूछे गागी ऄनेक प्रश्न पूछे- याज्ञवल्क्य को कहना पड़ा गागी ऄितप्रश्न मत कर। ऄितप्रश्न करने से तेरी खोपड़ी न फट जाए। पहले ईसको पृथ्वी से लेकर ऄंतटरक्ष लोक पयशन्त और क्रफर ऄंतटरक्ष लोक से ब्रह्मलोक पयशन्त िविवध िवषयों पर प्रश्न क्रकए। ब्रह्मलोक
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से अगे के िवषय में पूछने पर याज्ञवल्क्य ने ईसको ऄनािधकार चेिा बताते हुए ऄनितप्रश्न्यां वै देवता- मितपृच्छिस गागी माितप्राप्ती।’ कहकर रोक क्रदया। वादिववाद चलता रहा। अरूिण की र्ंका-समाधान के बाद गागी ने याज्ञवल्क्य से क्रफर से प्रश्न पूछने के िलए सभा की ऄनुमित प्राप्त कर गहन तमवमीमांसीय प्रश्न ईठाए। प्रथम था- दृश्य और ऄदृश्य जगत् का भूत, भिवष्य, वतशमान क्रकस तमव में िनिहत है। याज्ञवल्क्य का ईत्तर था अकार् में। तब गागी ने पूछा अकर् क्रकसमें ओत-प्रोत है। याज्ञवल्क्य ने ईत्तर क्रदया ईस तमव को ब्रह्मज्ञानी ऄक्षर कहते हैं । िजसके प्रर्ासन में सभी दृश्य ऄदृश्य जगत् है। जो स्वयं ऄज्ञात है और दूसरों का ज्ञाता है।’ गागी याज्ञवल्क्य के ईत्तरों से संतुि हो गयी। ईसने ईपिस्थत सभा को सम्बोिधत करते हुए कहा- ‘‘न वै जातु युष्माकिममं काििद् ब्रह्मोद्यं जेतैित।’’ ऄथाशत् अप में से कोइ भी याज्ञवल्क्य को ब्रह्मिवषयक वाद-िववाद में जीतने वाला नहीं है। अप का िहत यही है क्रक अप आनको नमन करें । प्रस्थान करें । सभा के ऄन्त में याज्ञवल्क्य को ब्रिह्मष्ठ घोिषत क्रकया गया। िनणशय सुनाने वाली गागी थी। आसी युग में एक नाम मैरेयी का भी अता है। वह प्रखर दार्शिनक िजज्ञासा वाली थी। याज्ञवल्क्य की पत्नी है। ईनकी दो पित्नयाँ हैं - मैरेयी और कामयायनी। याज्ञवल्क्य के साथ मैरेयी का सम्वाद चलता रहता है। याज्ञवल्क्य वानप्रस्थी होने जा रहे हैं । मैरेयी से पूछते हैं यक्रद तुम चाहो तो ऄपनी ऄकू त सम्पदा का बँटवारा तुम्हारे और कामयायनी के बीच कर दू।ँ धन-सम्पदा सुख-सुिवधा सब ले लो। मैरेयी ने पूछा-क्या मैं आससे ऄमृत पा सकती हँ। याज्ञवल्क्य ने कहा नहीं। लम्बा सम्वाद है। गूढ़ दार्शिनक प्रश्नों को समेटे हुए। मैरेयी कहती है- ‘‘येनाहं नामृता स्याम क्रकमिं तेन कु याशम्।’’ िजससे मुझको ऄमरमव नहीं िमलेगा ईसे लेकर मैं क्या करूँगी? ऄमृतपद के बारे में जानना चाहती हँ। गागी और मैरेयी की िवलक्षण दार्शिनक चेतना ऄपने समय के सबसे बड़े ज्ञानी के साथ संवाद करने का साहस करती है। मैरेयी तो याज्ञवल्क्य के साथ ब्रह्म िजज्ञासा का र्मन करने िनकल गयी। गागी की क्रफर कोइ चचाश हमारे सािहमय में ईपलदध नहीं हुयी। आस चचाश न होने के पीछे भी एक तरह से पुरुष प्रधान व्यवस्था ही है।१ जहाँ मैरेयी का वह काम्य नारी की ऄजेय, ऄपटरमेय िजज्ञासा का प्रतीक
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बन गया। वहीं गागी की प्रश्नाकु लता को व्यापक- िक्षितज िमलता तो ऄनेक तमवमीमांसीय ऄवधारणाएँ स्पि होतीं। ईमकट िजज्ञासु स्त्री ऄच्छी नहीं होती। वह श्रोता के रूप में सोहती है। ‘सेवा-सुश्रुषा’ ईसके कतशव्य हैं । ईतना ही करे । नािस्तक दर्शन परम्परा में नारी की िस्थित और भूिमका पर िवचार िम में थेरी गाथाओं का ईल्लेख अवश्यक हो जाता है। समग्र बौद्ध दर्शन िरिपटकों में समािहत है। (१) सुत्त िपटक (२) िवनय िपटक (३ ) ऄिभधम्म िपटक सत्त िपटक के पाँच िनकाय हैं - (१) दीघ िनकाय (२) मिझम िनकाय (३ ) संयुत िनकाय (४ ) ऄंगुतर िनकाय (५) खुद्ददक िनकाय खुद्दक िनकाय लगभग १०० पेटरयों िारा वािचक परम्परा में प्राप्त िचन्तन है। पाँच सौ बाइस गीतों का संकलन है। लगभग एक हजार वषों तक मौिखक रूप से प्रचिलत यह आितहास स्मृत आितहास है। खुद्दक िनकाय के १५ ग्रन्थों में ईदान भी र्ािमल हैं । आन ग्रन्थों में बुद्ध के वचनों के साथ-साथ प्रारम्भ में ईनके प्रसंग भी दे क्रदए गए हैं । िजससे ईनका ऄथश भी सहज ही स्पि हो सके । आसी पद्धित का िनवशहन थेरी गाथाओं में भी क्रकया गया है। आनमें िविवध वगों की नाटरयाँ हैं । जो बौद्ध िभक्षुणी बनीं। ऄपने संिचत जीवन ऄनुभवों को आन गाथाओं के माध्यम से ऄिभव्यिक्त दी। आनमें प्रमुख हैं - खेमा, सुमका, र्ैला, सुमेधा जो कोसल, मगधा और ऄज्ञानी के राजघरानों से थीं। महा प्रजापित गौतमी, ितख्या, ऄिभखा, नन्दा, सुन्दरी नन्दा, जेत्ती ससह धीरा, िमरा-भरा, ईपर्का और ऄन्यतरा अक्रद र्ाक्य और िलच्छिव की कन्याएँ थीं। आनके ऄितटरक्त मैिरका ऄन्यतरा, चांमा ईपचाला, रोिहनी, सुन्दरी र्ुभा, भरा, मुक्ता नन्दा, सोमा ब्राह्मण वंर् की नाटरयाँ हैं । वैश्व वगीय नाटरयों में पूणाश, िचगा, ईष्वीरी र्ुक्ला, धम्माक्रदत्ता, भराकु ण्डलके र्ा, पटाचारा, सुजाता ऄमोपमा प्रमुख है। ऄदढ्कासी, ऄभयमाता िवमला, ऄम्बपाली नगर वधुएँ है। आनकी सघन भावािभव्यिक्तयाँ ही थेरी गाथाएँ बनी है। आन गाथाओं में मुिक्त की बात है। ऄहो मैं! मुक्त हो गयी। ऄच्छी सुमुख हो गयी। आन गाथाओं में देह मुिन िवदेह मुिक्त का प्रश्न तो बाद में अता है पहले घोर यन्रणामय जीवन से
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मुिक्त का प्रश्न है। मूसल से धान करने से मुक्त होने का अस्वाद है। बुद्ध की ‘प्रश्न पारािमता’ की ऄिधकाटरणी बनने की संघषश कथा भी है। वृद्ध िभक्षुणी के िलए बालिभक्षु की प्रणम्यता है। बुद्ध ने अनन्द के मानमनुहार के बाद िस्त्रयों को संघ में प्रवेर् करने की ऄनुमित दी। अठर्तों के साथ िभक्षुओं की तुलना में िभक्षुिणयाँ उपर ही रहीं। दो र्तों का ईल्लेख जरूरी हो जाता है(१) िभक्षुणी चाहे वृद्धा हो, ईसको दीक्षा दी ही जाये चाहे ईसके सौ वषश हो गए हों, ईसका कत्तशव्य है क्रक वह क्रकसी नवदीिक्षत युवा िभक्षु के पधारने पर खड़ी होकर ऄिभवादन करे । (२) क्रकसी िभक्षुणी को क्रकसी िभक्षुणी की भमसशना नहीं करनी चािहए। न तो ऄपर्ददों का प्रयोग करना चािहए। महा प्रजावती से संन्यास दीक्षा लेकर संघा कहती है- मैंने संन्यास लेकर घर छोड़ा ऄिवद्या को छोड़कर िवरक्त हुयी, तृष्णा का समूल खोदकर साक्षामकार क्रकया है मैने िनवाशण की धम्म र्ािन्त का साक्षामकार क्रकया है मैंने ऄब मैं परमर्ान्त हो गयी।१ दटरर ब्राह्मण कन्या मुक्ता कहती है मैं सुमुख हो गयी और बली से, भूषण से ऄपने कु बड़े स्वामी से मैं ऄच्छी िवमुक्त हो गयी मेरी भव-रज्जु कट गयी।१ कु छ धमशप्रचाटरकाएँ भी हुयी। कोमकल्यानाथश बुद्ध के संदर् े ों को प्रचाटरत-प्रसाटरत करतीं थीं। कु छ ने कहा- जब िचत्त समािधस्थ हो, ज्ञान ऄन्तर में भास्वर हो धमश का सम्यक् दर्शन हो चुका है तो ईसमें स्त्रीमव हमेर्ा क्या करे गा?२ कोसल नरे र् प्रसेनिजत् का क्षेमा से दार्शिनक सम्वाद एवं श्रावक िवर्ाख का धम्माक्रदत्ता से दार्शिनक प्रश्नों पर सम्यक् समाधान प्राप्त करना आस बात की पुिि करता है क्रक िभक्षुिणयाँ दर्शनर्ास्त्र में िनष्णात थीं। गूढ दार्शिनक िवषयों पर समथश सम्वाद करती थीं। ‘िगिवरका’ और ‘सूताितक्रकनी’ जैसे ऄलंकरण ईनकी दर्शिनक चेतना के प्रमाण है। भराकु ण्डलके र्ा तकश र्ास्त्र की पंिडत थी।३ जैन दर्शन में िवदुषी नाटरयाँ की कमी न और दाक्रकनी महत्तरा की चचाश िमलनी है। वह परम िवदुषी थी। ईसने िहन्दू धमशर्ास्त्रों के प्रकाण्ड पंिडत हटरभरसूरी को र्ास्त्राथश में परािजत क्रकया ९ ०५ इ. में गुणासाध्वी, बारहवीं र्ती
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में महत्तरागािमनी वीरमती नामक दो तमववेत्ताओं ईल्लेख िमलता है। बुद्ध की तुलना में महा वीर नाटरयों के प्रित ऄिधक ईदार थे। ईनको दीक्षा देने से तिनक संकोच नहीं क्रकया। ऄिपतु साम्पितक ऄिधकार देकर ईनकी िस्थित को सुदढ़ृ क्रकया। िहन्दू धमशर्ास्त्रों में स्त्री हेतु पुर का जन्म अवश्यक माता जाता था बुद्ध और महा वीर ने िनवाशण की बात कही। कमों को ईत्तरदायी ठहराया। यज्ञीय कमश को ऄनावश्यक बताकर िनषेध क्रकया। ‘स्त्री-पुरुष’ का िवभेद दूर क्रकया। नारी के क्रकस अध्यािममक ईन्नित का मागश प्रर्िस्त क्रकया। यही कारण है क्रक ब्रह्मवाक्रदिनयों की तुलना में थेटरयाँ ज्यादा प्रगल्म दीक्षती हैं । महा भारत के र्ांितपवश के २२० सगश में सुवणशला की कथा प्रसंगतः जरूरी हो जाती है। देवल ऊिष की कन्या है। िपता िारा पूछे जाने पर वह ऄपने होने वाले पित का वणशन करती है। मेरा पित ऐसा व्यिक्त हो जो ऄंधा भी हो न भी हो। आसिलए ऐसे युवक की खोज कीिजए। ऄप्रितम रूपमती सुवचशना से दयाल के आच्छु क ऄनेक ब्राह्मण ऄनेक ब्राह्मण युवक अए मन मसोस कर चले गए। ऊिष ईद्दालक के पुर श्वेतके तु ने ईससे िमलने का िनिय क्रकया। वह सुवचशना से िमलकर पूछता है मैंने सुना है तुम ऐसे युवक से िववाह की आच्छा रखती हो जो ऄंधा भी हो न भी हो। मुझे िवश्वास है क्रक मैं वही व्यिक्त हँ। सुवचशना ने पूछा भर। मैं जानना चाहती हँ क्रकस तरह ऄंधे हो, भी नहीं भी हो। श्वेतके तु ने ईत्तर क्रदया- देखना, सुनना, छू ना सूँघना स्वाद लेना पंच ज्ञानेिन्रयों के कायश हैं । ये कायश मेरी ज्ञानेिन्रयों के िारा सम्पन्न हो रहे हैं । ऄतः ऄंधा नहीं हँ। घर देखी हुयी वस्तुओं को नहीं देखता सुनी हुयी हविनयों को नहीं सुनता, सूँघी हुयी वस्तुओं को नहीं सूघना, अस्वाथश पदाथश का अस्वद नहीं लेना ऄतः मैं पूरी तरह से ऄंधा हँ। लोक संग्रह की दृिि से मैं आिन्रयों को कायश करने देता हँ। क्रकन्तु ईनके कायों से िनर्न्लप्त हँ। ईत्तर से संतुि होकर सुवचशना ने श्वेतके तु से िववाह क्रकया। सुवचशना श्वेतके तु के साथ तमव ज्ञान की चचाश िनरन्तर करती रहती थी। श्वेत के तु ने देर्काल जगत्-जीव परमसत्ता के बोध के साधनों पर श्वेतके तु के साथ गंभीर चचाश की है। सारी चचाश के साथ सुवचशना और श्वेतके तु चेतना के पार देख रहे थे।१ स्मृितयुग तो िविध-िनषेध और लोकाचार को समर्न्पत रहा। िस्त्रयों के उपर ऄनेक बंधनों की वकालत की गयी। िर्क्षा प्रािप्त के उपर से वंिचत् करने के ईपिम
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हुए क्रफर दार्शिनक बनने की बात तो बहुत पीछे छू ट जाती है। मध्यकालीन सन्त परम्परा में मीरा जैसी धुर दार्शिनक कहीं दृििकोण नहीं होती वैष्णव दर्शन परम्परा को जीवन्त करने में मीरा के सामानांतर कोइ खड़ा नहीं होता। राजवधू है। प्रेम को छोड़कर श्रेय का वरण करती है। ‘तात-मात-नात’ के कब बंधनों को काटने की जुगत बरती है। आसकी समकालीन दिक्षण में तांडव महा राष्ट्र में कृ ष्ण भिक्त की परम्परा वाली महदां... हुयी। आसी समय सन्त किव मुक्ताबाइ भी हुयीं। सन्त नामदेव की बहन जनाबाइ, वेणाबाइ, ऄक्कावइ का नाम स्मरणीय है। १९ वी र्ती में कश्मीर में सल्लेश्वरी (लतुधर) नामक सन्त ने भिक्त रस से ओत-प्रोत ईदात्त मींजी दार्शिनक िवचारों से ओतप्रोत पदों की रचना की। मुक्ताबाइ, जनाबाइ के नाम भी आसी श्रृंखला में अते हैं । ऄट्ठारहवीं र्ताददी में चरणदासी सम्प्रदाय की सहजोबाइ, दयाबाइ नामक दो िवदुिषयों ने भागवत दर्शन को समृद्ध क्रकया है। पुनजाशगरण काल की महा न् िवदुषी समाजदार्शिनक पंिडता रमाबाइ की चचाश के िबना वैदष्ु य का वणशन पूरा नहीं हो पाएगा। ‘द’ हाइकास्ट िहन्दू वूमन’ नामक ग्रन्थ के माध्यम से ईन्होंने जो िचन्तन प्रस्तुत क्रकया वह तमकालीन समाज में व्याप्त िवसंगितयों के िनवारण में महती भूिमका में रहा। अपके ईग्र सामािजक िवचारों की बड़ी कीमत चुकानी पड़ी। पंिडता रमाबाइ की प्रचण्ड मेधा का दमन करने के िलए कु टटल िवरोध हुए। पंिडता रमाबाइ क्षुदध होकर ऄपनी सनातन धर्न्मता ही मयाग बैठीं। महा देवी वमाश जी भी ऄपने िचन्तन से नारी जाित की श्रृंखला की किड़याँ तोड़ते नजर अती हैं । वतशमान स्त्रीवादी लेखक भी ऄपने-ऄपने नइ दर्शन की नूतन िवधा की गठन में लगा हुअ है। चूँक्रक वहाँ वैचाटरकी है। आसिलए ईसको भी समकालीन समाज दर्शन की पटरिध में रखा जा सकता है। आनमें प्रमुख हैगीताश्री, ऄनािमका, मैरेयी पुषपा, वृन्दा करात रमिणका गुप्ता। अषश युग में स्त्री की सर्क्त दार्शिनक पवश थी। जो कालान्तर में नहीं रह गयी। ऄनेक चरण थे। सबसे बड़ा कारण था मातृवंर्ीय व्यवस्था का िपतृसत्ताममक रूप ग्रहण करना। पुरुष प्रधान हो गया स्त्री हेय हो गयी। ऄनुपादेय हो गयी। पुर और िसफश पुर प्रािप्त की आच्छा थी। दुिहता का जन्म अकश नन्दनीय नहीं रह गया। ‘दुिहता
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में पंिडता जायेत’ यक्रद पुरी हो भी तो वह गभश से ही वैदष्ु य धारण कर अए। १२ वषश में दयाह के प्रावधान से कौन सी कन्या पढ़ िलखकर िवचारक भी बन सकती है भला? िस्त्रयों के िलए बंधनों को बाँध गया। समय-समय पर ईनको कसा भी गया ऐसी िस्थित में िस्त्रयों ने ऄपनी दुदम श वीय अस्था से जो कु छ भी ‘रचा-बुना’ वह ऄप्रितम है। ऄसत् से सत् की ओर ऄग्रसर होने का सन्देर् है। हमारी दृिि में कु छ ऐसी िस्त्रयों की कथा यहाँ पर कहना जरूरी हो जाता है। िजनकी प्रचण्ड मेधा का दमन करने के िलए जो कु छ रचनाएँ हुयीं वे एक प्रखर दार्शिनक सम्भावना के जन्म लेने से पूवश ही मार देने वाली थीं। कािलदास की िवद्योत्तमा ईफश िप्रयंगुमंजरी, का नाम िलया जा सकता है। कािलदास तुलसीदास की िनर्न्मती में िजन िस्त्रयों का योगदान है आितहास ने ईनको याद नहीं क्रकया। ईनकी खोज-खबर नहीं ली गयी। ‘भव-बन्ध’ से मुिक्त का मागश क्रदखानेवाली रत्नावली नेपथ्य में चली गयी। आन िस्त्रयों को एक तरह से खल भूिमकाओं में िचिरत क्रकया गया। िवलक्षण प्रितभा की गभश में हमया हुयी। िपतृसत्ताममक व्यवस्था की चोट थी। अगे ऄपनी व्यवस्था में ‘ढली-स्त्री’ के िनमाशण की प्रक्रिया र्ुरू हुयी। ‘स्त्री-सुलभ’ गुणों में प्रखरता और साहस को नहीं रखा गया। स्त्री सुलभ गुणों के साथ स्त्री र्ोिभत होती है। अदरे य है। वह दासी भाव में रहे तो देवी है। स्वतंर िचन्तन के िलए िजस धरातल की अवश्यकता थी वह अषश युग के बाद संकुिचत होता गया। यही कारण है क्रक ‘स्वतंर चेता’ के रूप में नारीनामों की संख्या सीिमत है। जब ऄपना गुरु ही प्रितस्पधी बनता है तो िप्रयंगुमंजरी सरीखी िवलक्षण प्रितभा सम्पन्न िस्त्रयों के साथ छल-बल का प्रयोग होता है। राजा िविमाक्रदमय की पुरी िप्रयंगुमंजरी बारूिच पंिडत की िर्ष्या थी। वह पके -पके अम के फलों को अँचल में गटठयाएँ हुए झरोखे पर बैठी थी। वररूिच पंिडत कु छ देर वहाँ िवश्राम के िलए रूके , ईसने पूछा फल खा सके ? गमश या ठं डे? वारूिच ने भी ईपहास में कह क्रदया गमश-गमश। पके फलों को ‘िपयंगु’ ने जमीन पर िगरा क्रदया। गुरु फूँ क मार-मार खाने लगे। ईसने हँसते हुए कहा फलों को ठं डा करके खा रहे हैं ? गुरु को िोध अ गया। श्राम क्रदया तुम्हारा िववाह पर्ुपाल से होगा। वह बोली अप
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न्याय, मीमांसा के िवख्यात िविान है तो मेरा पित अप से भी बड़ा िविान होगा। अपका भी गुरु होगा। वररूिच जंगल की ओर जा रहे थे। प्यास लगी। वहाँ एक पर्ुपाल भैंसे चरा रहा था। ईससे पानी माँगा। तो वह बोला दूध है। ईनके माथे पर हाथ रख कर बैठने का आर्ारा करते हुए बोला ‘करचण्डी’ बना। ईन्होंने नया र्दद सुना था। पर्ुपाल का हाथ ऄपने मस्तक पर रखे जाने तथा र्दद सीखने के कारण मन ही मन ऄपना ‘गुरु’ मान िलया। ईसको ऄपने घर लाकर सजा-धजा कर एक र्दद बड़े प्रयास के बाद िसखाया- उँ नमः िर्वाय महल िलवा कर अए। राजा से कहा- ये मेरे भी गुरु हैं । राजा ने प्रसन्न होकर ऄपनी पुरी से िववाह की ऄनुमित दे दी। िबना ‘वर-र्ोधन’ के । धूम-धाम से िववाह की तैयारी से पूवश िप्रयंगुमंजरी ने ऄपने भावी पित की परीक्षा लेनी चाही। वह पर्ुपाल वररुिच िारा िसखाए गए र्दद को भयवर् भूल गया। ईसको उँ नमः िर्वाय के स्थान पर ‘ईर्रट’ याद अया। वह ‘ईर्रट’ कह बैठा। वररूिच ने ईसकी मूखशता को िछपाने तथा ऄपने से बड़ा पंिडत िसद्ध करने के िलए ‘ईर्रट’ र्दद की नवीन ईद्भावना प्रस्तुत करने के िलए एक श्लोक की रचना कीईमया सिहतो रूरः र्ंकरः र्ूल पािन भृत् । रक्षतुल्यं महीपाल टंकार बलगर्न्वतः ।। आस श्लोक की व्याख्या ईस पर्ुपाल को परममंिडत िसद्ध करने की दृिि से वररूिच ने आस प्रकार की- हे राजन् ईमा सिहत रूर र्ंकर हाथ में र्ूल धारण करके रक्षा करें अपकी, जो धनुष की टंकार के बल से गर्न्वत है- आसमें से ईमा सिहत रूर से ई, र्ंकर से र्, रक्षा करें आस क्रिया से र तथा टंकार के बल से गर्न्वत आस पद से ट लेकर मेरे गुरु ने ईर्रट यह अर्ीवाशद अपको क्रदया है। सुनकर राजा की प्रसन्नता का कोइ टठकाना न रहा। पुरी का िववाह धूम-धाम से सम्पन्न हुअ। वररुिच ने ऄपने तथाकिथत गुरु को मौन ही साधे रहने की िर्क्षा दी थी। सो िबना क्रकसी व्यवधान के पर्ुपाल िप्रयंगु मंजरी का पित बन बैठा। बहुत क्रदनों तक मौन साधे रहा। िप्रयंगु ने ईसके मौन को तोड़ने की खाितर एक क्रदन ऄपनी नव रिचत पुस्तक में संर्ोधन करने की माँग रखी। भोजपर पर िलखी गयी ईस पाण्डु िलिप को वह पर्ुपाल क्या
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समझता। वह एक हाथ में नखच्छेदनी दूसरे हाथ पाण्डु िलिप पकड़े ऄक्षरों से िबन्दु और माराएँ िमटा-िमटाकर र्ुद्ध ऄंर्ों को ऄर्ुद्ध करने लगा। यह ईपिम राजकन्या को समझने के िलए पयाशप्त था क्रक वह घोर मूखश है। दूसरा प्रकरण आससे भी ऄिधक प्रकार्क रहा। पर्ुपाल ने महल की दीवारों पर बने िभित्त िचरों में भैसे के झुंड को देखा। वह बेसुध हो ईठा। भैंसों को बुलाने के िलए तालु से जीभ सटाकर अवाज िनकालने लगा। िप्रयंगु ने ऄपमािनत कर ईस मूखश पर्ुपाल पित को प्रासाद से िनकाल क्रदया। यह ऄपमान ईसको आतना घातक लगा क्रक वह पर्ुपाल देवी काली की अराधना करने बैठ गया। ईसकी साधना से देवी प्रसन्न हुयी। प्रकट हुयीं। ईस पर कृ पा कर महा न िविान् बना क्रदया जब वह िप्रयंगुमंजरी के पास लौटकर अया तो ईसने पूछा- ऄिस्त कििद् वागिवर्ेषः? (तुम्हारी बानी कु छ िविर्ि हुइ? तब ईस पर्ुपाल ने ऄिस्त, किित् और वाक् ) आन तीन र्ददों से अरं भ होने वाले तीन काल एवं कु ल िमलाकर छः प्रबंधों की रचना की, कािलदास नाम से िवश्रुत हुए। आितहास यह कथा स्वीकार करता है क्रक पहली र्ती इसा पूवश में ईज्जियनी नरे र् िविमाक्रदमय थे तो ईनकी पुरी िवदुषी थी, ऄपने समय के धुर पिण्डतों से र्ास्त्राथश करती थी। तमव-चचाश करनी थी।१ पर्ुपाल से कािलदास रूप में गढ़न की कथा तथा कालांतर में ईनके िवपुल सािहमय की चचाश प्रखर है। क्रकन्तु िप्रयंगुमंजरी का आसके बाद क्या हुअ, आस पर आितहास मौन है। एक वैदष्ु य परम्परा प्रारं भ होने से पूवश ही िपतृताममक व्यवस्था के षड्यन्रों का िर्कार बन गयी। दूसरा महत्त्वपूणश नाम यहाँ पर रत्नावली का भी हो सकता है। िजसने ‘रामबोला’ को तुलसीदास बनाने में महत्त्वपूणश भूिमका िनभायी। जगत् की िनस्तारता का प्रथम पाठ पढ़ाया- ‘‘हाड़ मांस के चाम में ऐसी प्रित, ऐसी तो श्रीराम में होत न तब भव भीित।’ ईसकी दार्शिनक चेतना को युग ने कभीस्वीकार नहीं क्रकया।’’ मैं मोर-तोर’- माया के ममश माया के ममश को समझाने में रत्नावली की भूिमका को तुलसी ने भी याद नहीं क्रकया। ऄिभप्रेत आतना है क्रक स्त्री की दार्शिनक चेतना सघन हो सकती थी। नूतन दार्शिनक परम्पराएँ स्थािपत होतीं, यक्रद स्त्री-मेधा का सम्मान हुअ होता। स्त्री की प्रखर चेतना को दिमत करने की
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व्यूह-रचनाएँ न होतीं। जब गुरु ही प्रितस्पधी बन जाए तो िप्रयंगुमंजरी जैसी िस्त्रयों की वैचाटरक छाया तो होगी ही। मूल में क्रफर वही िपतृसत्ता की ऄहंवादी मनोवृित्त दृििगत होती है। भारतीय दार्शिनक परम्परा में स्त्री की सर्क्त ईपिस्थित मीमांसक मंडन िमश्र जी के घर में दीखती है। ईनकी भायाश भारती के रूप में। र्ंकर और मंडन के बीच चल रहे र्ास्त्राथश की िनणाशयक के रूप में। प्रखर िवदुषी भारती को िनणाशयक रूप में स्वीकार करना ही ऄपने अप में महत्त्वपूणश बात है। पुनि पित के हारने के बाद र्ंकर को र्ास्त्राथश हेतु अमंिरत करना, परास्त भी करना स्त्री की िवलक्षण मेधा को पुिष्पत पल्लिवत करने हेतु क्रदए गए ऄवसरों और संसाधनों का पटरचायक है। साथ ही साथ ईसके प्रित सम्मान और अदरबोध रखने वाले समतामूलक समाज का भी पता देता है। यक्रद नारी को मंडन िमश्र सरीखा ‘पितकु ल’ और ईदार समाज िमला होता तो और भी ‘ईनका’ भारतीयों के नाम दर्शन पटल पर ऄगर-मगर करते। प्रसंगतः वाचस्पित िमश्र की पत्नी भामती की कथा का ईल्लेख भी यहाँ पर ऄपेिक्षत हो जाता है। वाचस्पित िमश्र जी वेदान्त पर टीका िलखने में ध्यानस्थ थे। ईनकी ध्यान मुरा क्रकतनी सुदीघश रही होगी आस बात की ऄवगित सहज ही हो सकती है। ऄगाध सागर में मिणमुक्ताविलयों की खोज सटीक ईपिम था गृहस्थ अचायश वास्पित िमश्र की मौन सािधका के रूप में ईनकी पत्नी भामती का सहयोग सबसे मूल्यवान था जो ईनको गृहस्थी के खटरागों की अहट तक न लगने देतीं। एक क्रदन अचायश ऄपनी कु टटया में बैठे िलखने में तल्लीन थे। छटाक्षेप ऄन्धेरा हो रहा था। क्रदए की काँपती लौ में कु छ भी क्रदखायी नहीं दे रहा था। बाती ढरक कर तेल में िगर गयी थी या जलते-जलते छोटी हो गयी थी। तम घनीभूत हो रहा था। क्रकसी ने अकर बाती को उपर कर क्रदया। कु टटया ज्योितत हो ईठी। अचायश प्रकार् पाकर ऄिभभूत हो ईठे । प्रिणपात कर पूछते हैं - अप कौन देवी? श्री हैं , र्ारदा, या र्िक्त हैं ? आतनी प्रकार्मान। अपने धन्य कर क्रदया। ग्रन्थ का सम्पूर्न्त काल था। अचायश की िवकलता और िवह्नलता देख देवी भामती ने ईनको ध्यान मुरा से जगाते हुए कहा- स्वामी! में अपकी पत्नी भामती! अचायश ऄिभभूत हो गए। कहा अपको मैंने कु छ भी नहीं क्रदया अज मैं ऄपना यह ग्रन्थ अपके नाम करता हँ। भामती को ईनके
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ऄवदान का ईिचत मूल्य-महत्त्व िमला। अज दर्शन जगत् में ‘भामती प्रस्थान’ प्रिसद्ध है।
स्त्री को ऄपने नकार का देर् सबसे ज्यादा ऄनुभव होता है। भारतीय सामािजक व्यवस्था में यह भाव िमर्ः बद्धमूल होता गया है। ईसकी भूिमका का सम्यक मूल्यांकन नहीं हुअ है। भामती को पित ने कभी ‘नजर भर’ नहीं देखा। पहचाना तक नहीं। भारतीय नारीमव की ईदारता देिखए। वह मौन सहयोगी रहा तभी दार्शिनक कृ ित की रचना और िनर्न्मित में। यक्रद ईसके महनीय ऄवदान का मूल्यांकन नहीं हुअ होता, तो वह दर्शन जगत् में ईपिस्थत नहीं होती। एक चेरी के रूप में जीवनयापन कर परलोक िसधार जाती। भारतीय नारीमव को अचायश वाचस्पित िमश्र जैसे सम्वेदनर्ील सुहृद और नैिष्ठक पित-कु ल िमलता तो सम्भवतः दर्शन की नारी परम्परा भी समृद्ध होती। ऄिविच्छन्न होती। नारी की क्षमता, ईसके प्रितभा, ईसके श्रम-र्िक्त का ऄवमूल्यन ईसके अममिवकास के मागशबाधक हैं । स्त्री के प्रित िनष्पक्ष सोच नहीं बन पायी। माया और प्रकृ ित की सम्पूणश िवर्ेषताएँ स्त्री से मेल खाती हैं । आसिलए माया से दूर रहने के िम में स्त्री से दूरी बनने लगी। ईसकी परछाइ से भुजंग तक ले ऄंधे होने का खतरा बढ़ने लगा था। जीव की ऄवधारणा रखने वाले दर्शन जगत् में स्त्री से दूर रहने की बात गूढ़ होने लगी थी। प्रकारान्तर से स्त्री ही माघ के रूप में रूपाियत होने लगी थी। ऄब ऐसी सोच के बद्धमूल रहते दर्शन जगत् में स्त्री की ईपिस्थित की बात िनरथशक हो जाती है। सभी धमशर्ास्त्र पुरुषों िारा िलखे गए, सभी, स्मृितयाँ पुरुषों की रची हुयी है। आन सबमें स्त्री की भूिमका पर ईस तरह से िवचार नहीं हुअ िजस तरह स्त्रीप्रधान समाज में हो सकता था। भारत में र्ास्त्र िचन्तन के िवकास में िस्त्रयों की कोइ बड़ी भूिमका हो। क्रकसी स्त्री ने न्यायसूर या वामस्यायन जैसे र्ास्त्रग्रन्थ रचा हो ऐसा प्रमाण नहीं िमलता। ईपिनषद् काल के बाद र्ास्त्राथश में स्त्री िवस्मृत हािर्ए पर है क्रकसी कोने से ईसकी अवाज सुनायी देती है। पर जब वह ऄवगुण्ठन से बाहर िनकल कर अती है तो सब िवकट चुनौती सामने रखती है और तुरंत प्रश्न ईठाती है। यह भी हुअ है क्रक स्त्री ऄके ली होने के बावजूद ऄपनी प्रखरता और तेजिस्वत पुरुष समाज को हमप्रभ कर देती है। ईपिनषदों में ब्रह्म सभाओं के वणशन अते हैं क्रक जब स्त्री गंधवश से अिवि हो
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जाती है, तो ईसके प्रश्नों का ईत्तर पुरुष समाज नहीं दे पाता। स्त्री तमव-िचन्तन करे यह िवरोधाभासी है। तमव-ज्ञान की प्रािप्त के सभी मागश स्त्री को ऄपनी सबसे बड़ी बाधा मानते हैं क्रफर ऐसी िस्थित में स्त्री की दार्शिनकता का स्वीकायश-ऄसम्भव की िस्थित बनती है। ईसके िचन्तन को गंधवश अवेिर्त िचन्तन कहकर मूल्यहीन िसद्ध क्रकया गया। क्रफर भी िस्त्रयों ने मूल्यवान िचन्तन प्रस्तुत क्रकए। तमव-जगत् में ऄपना वैिर्ष्य स्थािपत क्रकया। अषश युग से प्रारम्भ स्त्री-िचन्तन ने प्राक भारतीय वाङ्मय को समृद्ध क्रकया। गटरमामय अभा प्रदान की। जो िचरकार ईपिनषद् काल से होती हुइ मध्यकालीन सन्त परम्परा तक सजल प्रवाहमयी बनी रही। कालान्तर में स्त्रीजाित के प्रित ईपजी िवषम सामािजक सोच के कारण ऄवरुद्ध भी हुयी। दर्शन जगत् में स्त्री की ईपिस्थित स्फु ट ही सही क्रकन्तु ऄपनी ऄपराजेय ऄिस्मता प्रखर मेधा, िवलक्षण वैदष्ु य से ऄसत् से सत्२ की ओर प्रस्थान के बीज मन्र की ईद्भावक है। यक्रद स्त्री को िचन्तन का ईदार सिहष्णु, समतल, वृहद् और व्यापक अयाम िमला होता तो भारतीय दर्शन, धमश और संस्कृ ित का िक्षितज प्रहन्तर होता।
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ततररया चररत्तर मुहावरा : एक समीक्षात्मक ऄध्ययन कीर्ति त्रिपाठी
शोध छािा, एम. फिऱ.ह द िं ी विभाग म ात्मा गािंधी काशी विद्यापीठ
िाराणसी
ततररया चररत्र’ नामक मुहावरे से तो सभी पररतचत ही हैं । पुरुषवादी सामंती मानतसकता के लोगों का ईपयुुक्त मुहावरे से खास तौर पर पररचय है
, क्योंकक
पुरुषवादी सामंती सोच आस मुहावरे का प्रयोग तियों को नीचा कदखाने व ईनके भावों-तवचारों को कुं द या भोथरा करने के तलए बराबर करता अ रहा है। अज भी , जब समाज तवतभन्न क्षेत्रों में प्रगतत के राह पर ऄग्रसर है , आस मुहावरे के प्रयोग द्वारा तियों को ईपेतक्षत करने व नीचा कदखाने में पुरुष दम्भ चूकता कहााँ है
? भारतीय
समाज की प्रगततशीलता का दावा करने वाले लोग ही आसके समथुन में खड़े नजर अते हैं। िी चाहे ककसी भी वगु , समुदाय या जातत की हो , वह ऄपने अप को आस मुहावरे से बचा नहीं पाती है। यह पुरुषवादी दम्भ ही है , जो ईन्हें (पुरुषों को) यह तवचार नहीं करने देता है कक
‘िीत्व’ है, तभी ‘पुरुषत्व’ है। तबना ‘िीत्व’ के
‘पुरुषत्व’ का कोइ ऄथु नहीं, कोइ ऄतततत्व नहीं है प्रश्न ईठता है कक अज भी समाज की यह दूरवतथा क्यों है ? आसके तलए महा देवी वमाु ककसी पुरुष या िी को नहीं बतकक हमारे संतकार जतनत दोषों को ऄपराधी ठहराती हैं
, ‘हमारे बाकयाकाल के
संतकार ही जीवन का ध्येय तनधाुररत करते हैं , ऄतः यकद शैशव में हमारी सन्तान ऐसे व्यतक्तयों की छाया में ज्ञान प्राप्त करे गी तजसमें चररत्र तथा तसद्धान्त की तवशेषता नहीं है तजनमें संतकारजतनत ऄनेक दोष हैं तो किर तवद्यार्थथयों के चररत्र पर भी ईसकी छाप पड़ेगी। ’१ आसी बात को मतहला कथाकार सुधा ऄरोड़ा कु छ आस रूप में कहती हैं - ‘सारा ऄसामंजतय और ऄसन्तुलन हमारी सामातजक व्यवतथा का
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है तजसके तहत पुरुष तवयं भी ईस सामातजक व्यवतथा
, परम्परागत सोच और
रूकिग्रतत संतकारों का तशकार -तवतक्िम है जो बचपन से ईसकी शारीररक संरचना में ईसके तसतिम में आस कदर पैठ गया है कक वह चाहकर भी आससे छु िकारा नहीं पा सकता।’ कहा जा सकता है कक यही संतकारजतनत दोष ही ऐसे िी तवरोधी मुहावरे को गूिता और अगे बिाता रहा है। ‘ततररया चररत्तर’ ऐसे गिे हुए और तथातपत मुहावरे को तोड़ने वाली कहानी है। यह कहानी यह भी तपष्ट करती है कक यह मुहावरा ऄहंकारी व दम्भी पुरुषों (कहानी के पात्र तबसराम जैसे लोगों ) पर ककस प्रकार लागू होती है। यह कहानी वररष्ठ कथाकार तशवमूर्थत के १९ ९ १ में प्रकातशत कहानी संग्रह
‘के शर कततूरी’ में
संग्रतहत है , जो कक ककशोरावतथा से ही ईंि के भट्ठे पर मजदूरी करने वाली तवमली के जीवन संघषों की व्यथा -कथा को पूरी यथाथुता के साथ बयााँ करती है। आसके साथ ही समाज के एक तहतसे में मौजूद पुरुषवादी दम्भी मानतसकता को भी बेपदाु करती है।कहानी की नातयका तवमली ऄपने मााँ -बाप के तलए लड़का बनकर रहती है। तवमली का एक बड़ा भाइ है , लेककन वह मााँ -बाप और तवमली को ऄके ला छोड़ पत्नी के साथ ऄपनी ऄलग दुतनया में मतत है। ऐसे ही हालात में तवमली अत्मतनभुर बनने का िै सला करती है। ईसका तवचार है कक ‘ऄपना ही क्यों? सबका पेि पालेगी वह! भाइ भाग गया तो क्या ? वह लड़का बनकर रहेगी। नया -नया भट्ठा खुला है गााँव में। काम की ऄब क्या कमी है। ’’ लेककन एक िी के तलए अत्मतनभुर बनने का रातता आतना असान नहीं होता है। जब वह तमाम सामंती बंधनों को तोड़ने हुए अत्मतनभुर बनने की राह पर ऄग्रसर होती है , तो ईसके अस -पास का सामंती समाज ईसके तवषय में तरह -तरह की बातें गिता है और आन्हीं बातों को माध्यम से वह ऄपने सामंती बंधनों को कसना चाहता है। ‘ततररया चररत्तर ’ कहानी की नातयका तवमली के साथ भी ऐसा बताुव होना ऄतवाभातवक नहीं है। कहानी की कु छ पंतक्तयााँ आसी सामंती मानतसकता की ओर ही संकेत करती हैं -
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१. ऄब भट्ठे पर ‘िरे ननग’ देगी तबरिया को। सयानी हो रही है ना। आस घर का गकला खा -खाकर ईमर से पहले ही मतती चि रही है। ले
‘िरे ननग’। बहुत लोग
‘िरे ननग’ देने के तलए ‘लोक’ लेने को बैठे हैं वहााँ’’ २. ‘‘दुतनया भर के चोर -चाइ का ऄड्डा है भट्ठा। लौंडे -लपाड़े!गुण्डा-बदमाश! रात-तवरात अते -जाते रहते हैं । .........अन्हर हो गइ है बुकिया। ईंि पथवाएगी। ‘पाथेगा’ कोइ ढंग से? तब समझ में अएगा।’’ लेककन तवमली ऐसी बातों की परवाह न करते हुए
, भट्ठे पर काम के तलए
जाती है और आसमें ईसका सहयोग करती है ईसकी मााँ - ‘‘सबेरे से सााँझ तक काम करो। किर ऄपने घर , एहमा कौन बेआज्जती ?’’६तवमली की शादी भी हो चुकी है यद्यतप ईसका गौना ऄभी बाकी है। ऄतः वह ऄभी एक बार भी ससुराल नहीं गइ है ककन्तु ईसके ससुर तबसराम की तनगरानी करती नजरे बराबर ईसका पीछा करती रहती हैं । ईसके ससुर तबसराम को तवमली के भट्ठे पर काम करने से एतराज है
,
मेला देखने जाने से एतराज है , ककसी से हाँस -बोल लेने से एतराज है। वह तवमली के बाप से कहता है कक ‘‘देतखए समधी भाइ ?.........चावल ‘तसरजा’ जाता है ‘भात’ नहीं। चावल भात बना नहीं की दुसरे कदन ही सड़ने लगता है। लड़की
‘सयानी’ हुइ
तो भात हो गइ। ईसे तो ससुराल भेजने में ही आज्जत है। ’’ प्रश्न ईठता है कक एक िी पर ही सारी आज्जत का भार क्यों ? ईस पर आतनी तनगरानी आतनी पाबंदी क्यों ? पुरुष क्यों ऄपने को आन पाबंकदयों से बचा कर रखता है ? लड़कों पर पाबंकदयााँ क्यों नहीं? लड़को से समाज क्यों कोइ प्रश्न नहीं करता ? सारे प्रश्न, सारी पाबंकदयााँ क्यों नहीं? लड़कों से समाज क्यों कोइ प्रश्न नहीं करता ? सारे प्रश्न, सारी पाबंकदयााँ एक िी के तलए ही क्यों? आस संदभु में प्रतसद्ध मतहला कथाकार मैतत्रयी पुष्पा का कहना है कक ‘‘आस सबके बीच एक िी क्या सोचती है ? यह ककसी ने नहीं पूछा। िी की ततथतत यह है कक पैदा होती है तो मादा ही होती है। शरीर ही मानी जाती है। चाहे
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तजतनी बड़ी हो जाए , ईसमें बुतद्ध होती है , यह मानने को समाज तैयार ही नहीं। िी की सुरक्षा भी आसतलए कक ‘ऄक्षत योतन’ की ऄवधारणा मन में धाँसी है। ’’ तवमली का अत्मतनभुर होने तथा घर
-गृहतथी की तजम्मेदारी पूरी तरह
तनभाने के बावजूद ईसके मााँ -बाप भी ईसे बोझ और पराया धन ही समझते हैं
,
क्योंकक वे भी सामंती संतकारों की जकड़न से मुक्त नहीं हैं । आसीतलए शादीशुदा होने के बावजूद वे तवमली का ररश्ता दूसरे लड़के
(तबकलर) से तय करने को तैयार हो
जाते हैं , क्योंकक यह थोड़ा ज्यादा कमाता है और पहली शादी िू िने के एवज में होने वाले हरजाने को भरने के तलए तैयार है। यहााँ कहा जा सकता है कक आन सामंती सोच व संतकारों ने िी को दान के रुप में प्रदान की जाने वाली एक वततु -पण्य मात्र समझा है और िी का भी ऄपना ऄतततत्व है
, ईसकी ऄपनी ऄततमता है , ऄपना
बुतद्ध-तववेक है , जैसी बातों को खाररज करता रहा है। तवमली आन सामंती संतकारों पर कु छ आस प्रकार चोि करती है१. ‘‘कल को कोइ दस बीघे वाला लड़का अ जाएगा तो तू कहेगी कक मैं ईसी के साथ बैठ जाउाँ।’’ २. ‘‘दस रुपए के हुक्के -तम्बाकू पर तूने ऄपनी तबरिया को राड़ समझ तलया रे ? बोल! कै से सोच तलया ऐसा ? तजसकी औरत ईसे पता भी नहीं और तू ईसे दूसरे को सौंप देगी ? गाय-बकरी समझ तलया है ?’’ आस प्रकार देखा जा सकता है कक समाज के एक तहतसे में िी को अज भी ईसकी सहमतत के तबना जानवरों की तरह ककसी भी खूाँिें में बााँध कदये जाने को मजबूर ककया जा रहा है। आस सन्दभु में ईभरती कवतयत्री अशा यादव की ‘चिाइ’ कतवता की कु छ पंतक्तयााँ प्रासंतगक तसद्ध होती हैं ‘‘नारी आं सान नहीं चिाइ। जाती बेची खरीदी जानती नहीं तजसे ईसी की हो जाती होती बिाइ
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नारी आं सान नहीं चिाइ।’’ कहा जा सकता है कक सामंती संतकारों में जकड़ा समाज नारी की मात्र ‘बिाइ’ ही तो करता अया है। ककन्तु कहानी में तवमली के प्रततरोध ने यहााँ ईसे आस बिाइ से बचा तलया है , भले ही अगे चलकर वह ससुर तबसराम की तगद्ध दृतष्ट व हबस का तशकार हो जाती है।तबसराम
‘तवमली का ससुरद्ध गौने में तवमली की
तवदाइ कराकर ले जाता है। ककन्तु तबडम्बना यह है कक तबराम ऄपने पुत्र सीताराम (तवमली कस पतत ) को न तो गौने में बुलाता है और न ही बाद में , क्योंकक तवमली की देह पर ईसकी तनगाह लागी हुइ और वह ईसे हर -हालत में भोग लेना चाहता है। जब तवमली आसका प्रततवाद करती है और ऄपनी दृिता से तडगती नहीं है
, तो
तबसराम ईसको तरह-त्रह की गातलयााँ देता है१. ‘‘बड़ी सती सतवत्री बनती है?सारा गााँव नहीं बन्धवा कदया था तूने ?’’ २. ‘‘डरे वरवा के साथ गुलछरे नहीं ईड़ाती थी तू ?’’ ३ . ‘‘और बनारस की ठं डाइ ?हुाँह ठं डइ! बड़ी तपलाइ है साले ने , एकदम ठं डा कर कदया है।’’ ४ . ‘‘एतना कपड़ा -लत्ता, साड़ी-तबलाईज, गहना-गुररया? सब बाप की कमाइ है? लूले साले की? वह करे गा बेिी की दुकानदारी और तू यहााँ अकर.....’’ ५. ‘‘ततररया चररत्तर िै लाने से जान बचेगी?साली! काततल की कु ततयााँ ’’ ऐसी-ऐसी भद्दी गातलयााँ भी तवमली को तडगा नहीं पाती हैं । गातलयों के सन्दभु में एक बात और कहना चाहाँगा कक पुरुषों द्वारा तजतनी भी गातलयों का प्रयोग ककया जाता है , ईनमें से ऄतधकांशतः िी के तन्ित ही है , जो कक एक सामंती व तवकृ त पुरुषवादी मानतसकता का पररचायक तो हैं ही
, साथ ही समाज के
तपछड़ेपन की ओर भी संकेत करती हैं । जब तबसराम की आन हरकतों वे कमीनेपन पर समाज की तियों ने सवाल खड़ा ककया , तो पुरुषवादी मानतसकता में जकड़ी जातीय पंचायत आन तियों के
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तलए आस मुहावरे का प्रयोग करती है कक ‘‘ठीक ही कहते हैं - नाक न हो तो औरतें मैला खा लें। ’’ ऄब आन दम्भी और पुरुषवादी मानतसकता के लोगों से कौन पूछे कक भाइ नाक के कारण तो औरतें बची हुईं , लेककन अप जैसे दम्भी पुरुष नाक होने के बाद भी आससे बच नहीं पाये हैं । तियों के प्रतत बिती यौन नहसा , घरे लू नहसा और दो-दो, तीन-तीन साल की बतियों का बलात्कार जैसे तघनौने कायों का ककया जाना अकद आस बात से तपष्ट प्रमाण हैं । तबसराम तवमली की देह पाने के तलए ऄब स्नेह और दुलार का रातता ऄपनाता है। कहा जा सकता है कक तबसराम यानी एक पुरुष के ततररया चररत्र की कहानी यही होती है। ऄपने स्नेह व दुलार से तबसराम ने एक कदन चरनामृत के बहाने तवमली को ऄिीम तपला कदया और बेहोश तवमली के शरीर को नोचता खसोिता हुअ ईसका भोग करता है।
‘‘चेतना अते ही ईसे रूलाइ छु िने लगी है -
धोखा! छल! कहााँ-कहााँ से ककन -ककन खतरों से बचाती अयी थी वह परायी ऄमानत! ककतने बीहड़ ? ककतने जंगल ? ककतने जानवर ? ककतने तशकारी ! और मुकाम तक सुरतक्षत पहुाँचकर भी लुि गइ वह !’’ आस तरह के तघनौने घरे लू नहसा का तशकार अज भी तियााँ होती रही हैं । दहेज हत्या , कन्याभ्रूण हत्या जैसे तघनौने व पाशतवक कायु आसके बड़े प्रमाण हैं । तबसराम यानी एक पुरुष ऄपने ततररया चररत्र के ऄन्तगुत ऄब रोने -धोने और हो-हकला अकद का आततेमाल करता है और तवमली पर ड्राआवर के साथ रात तबताने का तथा सास के गहने चोरी करने अकद का अरोप लगाता है। आस सन्दभु में वह पंचायत भी बुलाता है। पंचायत में ऄपने को भी आस रूप में दोषी बताता है कक ‘आसे (तवमली) रखा नहीं पाया। चौकीदारी नहीं कर पाया। ’ एक पुरुष के ततररया चररत्र को यहााँ तपष्ट रूप से देखा जा सकता है। कहा जा सकता है कक
‘तजतम तवतन्त्र होइ
तबगरही नारी’ जैसी तुलसी की पुरुषवादी ईतक्त में अज भी बदलाव नहीं अया है। प्रश्न ईठता है कक ऐसे दुराचारी पुरुषों को एक िी की रखवाली व चौकीदारी करने का हक ककसने दे कदया ? क्या यह पुरुषवादी व्यवतथा द्वारा पुरुषों को कदया गया
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वरदान नहीं है ? पंचायत भी तवमली को ही दोषी ठहराती है और सजा के रूप में ईसे गमु लोहे से
‘दागने’ का िरमान जारी करती है। क्या यह मध्यकालीन
मानतसकता का पररचायक नहीं है , जब जानवरों अकद को दागने की प्रथा प्रचतलत थी! क्या एक नारी पशु के समान है ? पंचायत का यह िै सला अज के खाप पंचायतों की भी याद कदलाता है। आसी प्रकार के पंचायती िै सले के कारण ही पंच को परमेश्वर कहने वाले प्रेमचन्द गोदान तक अते -अते धतनया के माध्यम से ईन्हें ‘पक्के राक्षस’ की संज्ञा देने लगते हैं । पंचायत के आस िै सले के तखलाि कोइ खड़ा होता है , तो वह है मनतोररया की माइ , यानी एक िी। यहााँ पुरुष समाज या तो नपुंसक बना बैठा है या किर पुरुषवादी संतकारों में जकड़ा हुअ है। वह कहती है
‘‘इ ऄंधोर है। दुगनी दागना है
तो तबसराव और बोधन चौधरी के चूतर पर दागना चातहए। .........गााँव की औरतें मुाँह खोलने को तैयार हो जाएाँ तो तबसराम की घरियारी के वह एक छोड़ दस ‘परमान’ दे सकती है। वही अदमी बेबस बेकसूर लड़की को दागेगा
?’’ लेककन
ईसकी बात कोइ नहीं सुनता और मनतोररया का बाप ईसे घसीिकर पंचायत से बाहर कर देता है। आस प्रकार सामंती संतकार ऄन्याय के तखलाि अवाज ईठाने वाली िी की अवाज को दबाता अया है। यहााँ यह भी तपष्ट है कक महा भारत की कथा दुहराइ जाती रही है और भरी सभा में एक लाचार औरत की बेआज्जती की जाती रही है। आस ततथतत में अज भी बड़ा बदलाव नहीं अया है , िकु तसिु आतना अया है कक ‘‘सामंती व्यवतथा में ‘िी’ व्यतक्तगत ईपभोग के तलए बनाइ जाती थी (सीमोन दबोईवार ने तलखा है कक औरत पैदा नहीं होती , बनाइ जाती है। ) पूाँजीवाद व्यवतथा में िी का श्रम , ईसका शरीर, ईसकी चेतना न के वल सावुजतनक ईपभोग के तलए बनाइ जाती है , बतकक ईसे व्यापार के तलए एक पण्य की तरह पैदा ककया जाता है। ’’२०कहानी की ऄंततम पतक्तयााँ ध्यान देने योग्य हैं , तजसमें कहा गया है कक ‘ततररया चररत्र समझना असान नहीं।’ यह ततररया चररत्र ककसी िी का नहीं बतकक
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तबसराम का है , एक पुरुष का है और वाततव में तबसराव जैसे पुरुषों का ततररया चररत्र समझना असान नहीं है। आस प्रकार तपष्ट है कक यह कहानी तियों के तलए गिे गये आस मुहावरे को तोड़ती है और आसका प्रयोग तबसराम जैसे पुरुषों के तलए करती है। तवमली के शरीर को पाने के तलए जोर
-जबरदतती, गाली-गलौज, स्नेह-
दुलार और ऄन्त में धोखा-छल अकद का प्रयोग तबसराम का ततररया चररत्र नहीं , तो और क्या?
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उत्तर औपनिवेशिक भारत उत्तर औपनिवेशिक भारत
ofj’B O;k[;krk vuq”kk fufYe.kh lYorqj dsyfu; fo”ofon~;ky; साधारणतः उत्तर उपनिवेशवाद का तात्पर्य र्ा उसका आरं भ उपनिवेशवाद से तुरंत बाद की स्थिनत से है ,
स्िसका ववकास ववशेषतः एशशर्ाई दे शों में 20वीं शताब्दी के मध्र् से होता हुआ ददखाई दे ता है । वथतुतः ककसी साधारणतः उत्तर उपनिवेशवाद का तात्पर्य र्ा उसका आरं भ उपनिवेशवाद से तुरंत बाद की स्थिनत से है , उपनिवेशी दे श को थवतंत्रता शमलिे के बाद ही उस दे श में उत्तर औपनिवेशशक र्ुग का आरं भ होता है । स्िसका ववकास ववशेषतः एशशर्ाई दे शों में 20वीं शताब्दी के मध्र् से होता हुआ ददखाई दे ता है । वथतत ु ः ककसी
उपनिवेशी भारत दे श कोमें थवतं शमलिे के बाद दे शभारत में उत्तर र्ुगकका आरंददखाई भ होता देहैत।ा है अिायत उत्तर उत्तरत्रता औपनिवे शशक र्ग का उस संबंध की औपनिवे थवतंत्रताशशक प्रास्तत े साि ु ही
उपनिवेशवाद का तात्पर्य थवातंत्र्र्ोत्तर शब्द से िोड़ा िािा तकयसंगत है । 1 ककसी दे श में िब से उत्तर औपनिवेशशक र्ग भारत में उत्तर औपनिवेशशक र्ुग का संबंध भारत की थवतंत्रता प्रास्तत के साि ददखाई दे ता है अिायत उत्तरु का सत्रपात होता है , तभी से उस दे श में औपनिवेशशक र्ग की समास्तत मािी िाती है । उपनिवेू शवाद का तात्पर्य थवातंत्र्र्ोत्तर शब्द से िोड़ा िािा ुतकयसंगत है । 1 ककसी दे श में िब से उत्तर औपनिवेशशक र्ुग
का सूत्रपातवाथतव होता हैमें, तभी दे श मेंशशक औपनिवे र्ुगआर्िय की क समास्तत िाती िहीं है । िा। वह एक ऐसा काल िा भारतसेकाउसऔपनिवे कालशशक केवल ववकासमािी का काल
िब भारत िे मध्र्काल से आधुनिक काल में कदम रखा। वह सामास्िक एवं आर्ियक दृस्टि से अत्र्र्धक उिल-पुिल वाथतव में भारत का औपनिवेशशक काल केवल आर्ियक ववकास का काल िहीं िा। वह एक ऐसा काल िा का समर् िा स्िसमें एक राटरीर् समद भी उदर् हआ। िब राटरीर् आन्दोलि के माध्र्म से राटरवाद की ु ार्में का िब भारत िे मध्र्काल से आधुनिक काल कदम रखा। वहु सामास्िक एवं आर्ियक दृस्टि से अत्र्र्धक उिल-पुिल ववचार-धारा का थपटिीकरण हुआ उसकी पराकाटठा भारत की थवतंत्रता-प्रास्तत के रूप में हुई, अिायत 30 वषों से भी का समर् िा स्िसमें एक राटरीर् समुदार् का भी उदर् हुआ। िब राटरीर् आन्दोलि के माध्र्म से राटरवाद की अर्धक समर् तक िीववत राटरवादी संघषय के उपरान्त 15 अगथत 1947 में भारत को औपनिवेशशक बंधि से मस्ु तत ववचार-धारा का थपटिीकरण हुआ उसकी पराकाटठा भारत की थवतंत्रता-प्रास्तत के रूप में हुई, अिायत 30 वषों से भी प्रातत हुई।2 अर्धक समर् तक िीववत राटरवादी संघषय के उपरान्त 15 अगथत 1947 में भारत को औपनिवेशशक बंधि से मस्ु तत
प्रातत हुई। 215 अगथत के पश्चात भारत तिा उसके सभी प्रान्तों से ब्रिदिश-निर्ंत्रण समातत हो गर्ा और उपनिवेशी
ववधाि-मंडल द्वारा बिार्े गर्े ककसी भी कािूि को गैर कािूिी घोवषत करिे की सम्राि की शस्तत समातत हो गर्ी, 15 अगथत के पश्चात भारत तिा उसके सभी प्रान्तों से ब्रिदिश-निर्ंत्रण समातत हो गर्ा और उपनिवेशी अिायत भारत में तब से उत्तर औपनिवेशशक र्ग का आरं भ हुआ। आलोचकों की मान्र्ता है कक भारत की राििैनतक ववधाि-मंडल द्वारा बिार्े गर्े ककसी भी कािूिु को गैर कािूि ी घोवषत करिे की सम्राि की शस्तत समातत हो गर्ी, थवाधीिता से एशशर्ा में एक िवीि र्ुग का सूत्रपात हुआ है । उिके मतािुसार सि ् 1947 का वषय ववश्व-इनतहास में अिायत भारत में तब से उत्तर औपनिवेशशक र्ग ु का आरं भ हुआ। आलोचकों की मान्र्ता है कक भारत की राििैनतक एक महत्वपणय मोड़ िा, िब ववश्व-साम्राज्र्वाद का एक बहत बड़ा भाग अिायत भारत, थवतंत्र होकर अन्र् परतंत्र थवाधीिता सेू एशशर्ा में एक िवीि र्ुग का सूत्रपात हुआ है । ु उिके मतािुसार सि ् 1947 का वषय ववश्व-इनतहास में राटरों के शलए प्रेरणा का थत्रोत बि गर्ा।3 एक महत्वपण ू य मोड़ िा, िब ववश्व-साम्राज्र्वाद का एक बहुत बड़ा भाग अिायत भारत, थवतंत्र होकर अन्र् परतंत्र
3 राटरों के शलए का औपनिवे थत्रोत बि गर्ा। भारतप्रेरमेंणाउत्तर शशक र्ुग ि केवल राििैनतक दासता से मुस्तत-प्रातत र्ुग िा अवपतु सामास्िक एवं
आर्ियक दस्ु टि से भी मुस्तत-प्रातत तिा बौद्र्धक एवं समाि के सांथकृनतक पुिरिागरण की भाविा से भरा हुआ र्ुग भारत में उत्तर औपनिवेशशक र्ुग ि केवल राििैनतक दासता से मुस्तत-प्रातत र्ुग िा अवपतु सामास्िक एवं िा। दस री ओर उपनिवेशोत्तर भारत, िव्र् राटरीर् और िव्र् पूँि ीवादी दे श में रूपांतररत होता भी िा रहा िा। ू आर्ियक दस्ु टि से भी मुस्तत-प्रातत तिा बौद्र्धक एवं समाि के ू सांथकृनतक पुिरिागरण की भाविा से भरा हुआ र्ुग
िा। दस ओर उपनिवे भारत, िव्र् और ववशे िव्र्षता पूँि ीवादीरही दे शककमें इसमें रूपांतररत होता रहा और िा। क्षेत्रवाद ू री भारतीर् ू र्ह थवतंशत्रोत्तर ता आन्दोलि की राटरीर् सबसे बड़ी िानत, धमयभी , संिा प्रदार्
िैसी अलगाववादी भाविाओं को भुलाकर कंधे से कंधा शमलाकर लोगों िे र्ह महाि संग्राम लड़ा िा। पररणामथवरूप भारतीर् थवतंत्रता आन्दोलि की सबसे बड़ी ववशेषता र्ह रही कक इसमें िानत, धमय, संप्रदार् और क्षेत्रवाद दे श में एक ऐसे र्ग ण हआ, स्िससे िीवि के सभी क्षेत्रों में िर्े िीवि का संचार होिे लगा, अिायत र्हीं ु का निमाय िैसी अलगाववादी भाविाओं को भुलु ाकर कंधे से कंधा शमलाकर लोगों िे र्ह महाि संग्राम लड़ा िा। पररणामथवरूप से भारत में थवातंत्र्र्ोत्तर आधनिक र्ग का प्रारं भ मािा िाता है । वाथतव में थवाधीिता के पश्चात भारत को एक दे श में एक ऐसे र्ुग का निमायणु हुआ, ु स्िससे िीवि के सभी क्षेत्रों में िर्े िीवि का संचार होिे लगा, अिायत र्हीं
से भारत में थवातंत्र्र्ोत्तर आधुनिक र्ुग का प्रारं भ मािा िाता है । वाथतव में थवाधीिता के पश्चात भारत को एक 1 1
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Post colonialism is an intellectual direction that exists since around the middle of the 20th Century. It developed from and mainly refers to the time after colonialism. The Post-Colonial direction was created as colonial countries became independent. nilsole.net, Post-colonialism; Definition, Development and Examples from India, 2 August 2008, p.01 Post colonialism is an intellectual direction that exists since around the middle of the 20th Century. It developed from and mainly refers to the The Indian Dominion came in to existence on the mid night of 15 August 1947. This day will ever remain memorable in the History of India. time after colonialism. The Post-Colonial direction was created as colonial countries became independent. The British rule came to an end on this day. nilsole.net, Post-colonialism; Definition, Development and Examples from India, 2 August 2008, p.01 Jayapalan, N. (1988) History of Freedom Movement, p.96 The Indian Dominion came in to existence on the mid night of 15 August 1947. This day will ever remain memorable in the History of India. पिे ी, हे मेन्rule रकुमार थवातं र्ोत्तर दहंदी उपन्र्ासः मूल्र् संक्रमण, प.ृ 123 The रBritish came(1974) to an end on त्र्this day. Jayapalan, N. (1988) History of Freedom Movement, p.96 पिेरी, हे मेन्रकुमार (1974) थवातंत्र्र्ोत्तर दहंदी उपन्र्ासः मूल्र् संक्रमण, प.ृ 123
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राटर के रूप में राििीनतक महत्व शमला और थवाधीिता की भाविा िे भारतीर्ों के वैचाररक िगत को िवीि दृस्टि दी, स्िससे िीवि के प्रत्र्ेक क्षेत्र में परं परागत ववचारों को पराधीि िीवि का प्रतीक मािकर त्र्ाज्र् समझा गर्ा।
अतः उन्हें छोड़कर िवीि ववचारों के ग्रहण का आग्रह दृस्टिगोचर होिे लगा। भारत की इसी स्थिनत पर श्री िवाहरलाल िेहरु द्वारा व्र्तत ककर्ा गर्ा ववचार उसकी और भी पुस्टि करता है -
“र्चरकाल से दबी हुई राटर की आत्मा को वाणी शमली”4 दस ू री ओर आलोचक गण एक ऐसा मत भी प्रकि करते हैं, स्िससे भारत पर थवतंत्र भारत के सवयप्रिम
प्रधािमंत्री पं. िवाहरलाल िेहरु के बहुआर्ामी व्र्स्ततत्व की थपटि झलक ददखाई पड़ती है -
पं. िवाहरलाल िेहरु भारत के प्रधाि मंत्री तो िे ही, वे करीब दो दशकों तक दे श का
सफलतापूवक य िेतत्ृ व करते रहे । उिके िेतत्ृ व में भारत को आर्ियक, सांथकृनतक एवं
ववज्ञापि के क्षेत्र में ि केवल बनु िर्ादी सफलता शमली, बस्ल्क ववश्व मंच पर भारत
को गौरवपूणय थिाि शमला। भारत िे ववशभन्ि क्षेत्रों में िो प्रगनत प्रातत की और ववश्व
में िो ख्र्ानत अस्ियत की, उसका सारा श्रेर् पं िेहरु को है । इसशलए उन्हें आधनु िक
भारत का निमायता कहा िाता है । इनतहास में उिका थिाि अपिे समर् के ववश्व में
असाधारण तो िा ही, साि ही राटरीर् पुिनियमायण में भी उिका र्ोगदाि अक्षुण्ण बिा रहा।5
र्ह रटिव्र् है कक भारत की थवाधीिता प्रास्तत, संववधाि का निमायण तिा राटरीर्ता की भाविा का ववकास, र्े
तीिों स्थिनतर्ाूँ परथपर संबंर्धत हैं। थवतंत्रता प्रास्तत के साि ही भारत का एक थवतंत्र राटर के रूप में पुिियन्म हुआ
तिा संववधाि िे इस राटर को निस्श्चत ददशा और आकार प्रधाि ककर्ा। पररणामथवरूप थवच्छं द रूप से थवतंत्र राटर
के िागररकों में राटरीर्ता की भाविा का ववकास हुआ। अंतरायटरीर्ता की सीमाओं में राटरीर्ता का ववकास आधुनिक
भारत की एक महत्वपूणय ववशेषता है । ववद्र्ाधर महािि के मतािुसार भी तत्र्ुग में धमय, राििीनत, सादहत्र्, दशयि तिा उद्र्ोग सभी में िर्ा उत्साह भर लार्ा िा।6 र्ह संभव है कक थवतंत्रता आन्दोलि के बाद सामास्िक न्र्ार् और
व्र्वथिा में पररवतयि का िो संघषय शुरु हुआ िा, वह िीवि के सभी-राििीनतक, सामास्िक, आर्ियक और सांथकृनतक-
क्षेत्रों में एक साि ददखाई दे िे लगा, और र्ह अवश्र् हुआ कक एक क्षेत्र में उपस्थित पररवतयिों का प्रभाव अन्र् क्षेत्रों
पर भी पड़िे लगा।
थवातंत्र्र्ोत्तर भारत की आलोचिा करते हुए डॉ. दे वेन्र उपाध्र्ार् कहते हैं कक तत्र्ुगीि भारत के
7 औद्र्ोर्गक, आर्ियक, राििीनतक, सामास्िक, प्रौद्र्ोर्गक आदद क्षेत्रों में पि ु रनिमायण की भाविा कार्य करिे लगी है ।
थवतंत्रता के पश्चात की भारत की सबसे बड़ी उपलस्ब्ध दे श में शासि और राििीनत की एक लोकतांब्रत्रक प्रणाली को
थिावपत ककर्ा िािा िा, अिायत राििैनतक दृस्टि से उत्तर औपनिवेशशक राटर िेताओं के सामिे सबसे महत्वपण ू य प्रश्ि
र्ह रहा कक थवतंत्र भारत का थवरूप तर्ा हो? एक ओर भारत तिा पाककथताि करके दे श का ववभािि हो चुका िा,
4 5 6 7
उपाध्र्ार्, दे वेन्र (1998) आज़ादी के 50 वषय-तर्ा खोर्ा, तर्ा पार्ा (भाग 01), प.ृ 52
उपाध्र्ार्, दे वेन्र (1996) िवाहरलाल िेहरु - बहुआर्ामी व्र्स्ततत्व, प.ृ 06 महािि, ववद्र्ाधर (1988) आधनु िक भारत का इनतहास, प.ृ 654
उपाध्र्ार्, दे वेन्र (1998) आज़ादी के 50 वषय-तर्ा खोर्ा, तर्ा पार्ा, (भाग 02), प.ृ 13
136
"इस बात को कृपर्ा ध्र्ाि में रखखए कक भारत सरकार को, िो कक 15 अगथत 1947
से कार्य कर रही है , अब तक की ककसी भी भारत सरकार की अपेक्षा अर्धक समथर्ाओं का सामिा करिा पड़ रहा है ।"12
अंततः राटर के उसी चहुूँमख ु ी ववकास को दृस्टि में रखते हुए पंचवगीर् र्ोििाओं के माध्र्म से दरू दराि के
गाूँवों से लेकर शहरों तक के ववकास का लक्ष्र् निधायररत करिे का संकल्प ककर्ा गर्ा, उससे भारत के ववश्वव्र्ापी थवरूप की अशभव्र्स्तत हुई। उसके निमायण में स्िि राििैनतक िेताओं िे अपिा र्ोगदाि ददर्ा है , उिकी राििैनतक
र्ात्रा की अशभव्र्स्तत ही थवातंत्र्र्ोत्तर भारतीर् राििैनतक पररस्थिनत के रूप में पहचाि सकते हैं।
िैसे पहले अंककत ककर्ा गर्ा है , दे श की राििीनत के शलए एक लोकतांब्रत्रक प्रणाली को अपिािा थवतंत्र
भारत का एकमात्र लक्ष्र् रहा। फलथवरूप 26 ििवरी 1950 को िर्ी संववधाि सभा की थिापिा हुई तिा भारत “सवय प्रभुता सम्पन्ि लोक-तंत्रात्मक गणराज्र्” घोवषत ककर्ा गर्ा।13 गणतंत्र भारत के प्रिम राटरपनत डॉ. रािेन्र प्रसाद मािे गर्े। तत्पश्चात राटर गीत, राटरीर् ध्वि और कई राटरीर् प्रतीक चुिे गर्े। साि ही राटर भाषा के शलए भी
संववधाि सभा में थिाि ददर्ा गर्ा तिा दहंदी को राटर भाषा के रूप में थवीकारा गर्ा। इसी बीच अिायत थवाधीिता
के तत्काल के बाद िेहरु और सरदार पिे ल दोिों राििेता दो अलग-अलग पक्ष में हो गर्े और सत्ता में संघषय का
आरं भ हुआ। लेककि पिे ल की मत्ृ र्ु के बाद वह संघषय समातत हुआ और िवाहरलाल िेहरु प्रधािमंत्री के पद पर
आसीि हुए।
सि ् 1952 में थवाधीि भारत का प्रिम आम चुिाव हुआ, स्िसमें कांग्रेस पािी को बहुमत शमला। सि ् 1954
में कांग्रेस पािी िे समािवादी मत की प्रास्तत में घोषणा की और सि ् 1957 में समािवाददर्ों को सफलता शमल गर्ी। पररणामथवरूप ववधाि सभा और लोक सभा दोिों में ही समािवादी दल के सदथर्ों की संख्र्ा बढ़ गर्ी।
भारतीर् राििैनतक इनतहास के अिस ु ार र्ह रटिव्र् है कक थवतंत्रता के बाद भी भारत को कई र्द् ु धों का
सामिा करिा पड़ा िा। सि ् 1962 में चीि िे भारत पर आक्रमण कर ददर्ा स्िसमें भारत को परािर् शमली। सि ्
1963 में िागालैन्ड राज्र् की थिापिा हुई। सि ् 1964 में भारत के राििैनतक क्षेत्र में बहुत बड़ी दघ य िा हुई, अिायत ु ि
पं. िवाहरलाल िेहरु की मत्ृ र्ु हुई। उसके पश्चात भारत के प्रधािमंत्री के रूप में लाल बहादरु शाथत्री को चुिा गर्ा।
परं तु उिके भी निधि के कारण उस वतत के राििीनतक पररवेश में उिल-पि ु ल मच गर्ी। चीि के आक्रमण से
भारत अभी सूँभल िहीं पा रहा िा कक सि ् 1965 में भारत पर पाककथताि िे आक्रमण कर ददर्ा। 24 ििवरी 1966 को शपि ग्रहण कर श्रीमती इंददरा गांधी भारत की प्रधािमंत्री पद पर आसीि हुई। सि ् 1967 के आम चुिाव भारतीर्
राििीनत में कई पररवतयिों के साि संपन्ि हुए। वह थवातंत्र्र्ोत्तर भारत का चौिा चुिाव िा। इसमें कांग्रेस को पूणय
बहुमत प्रातत िहीं हुआ। फलतः कांग्रेस दल में ही आपसी संघषय उत्पन्ि हो गर्ा और िुलाई 1969 ई. में कांग्रेस
12 13
सच ू िा तिा प्रसार मंत्रालर् (1954) थवाधीिता और उसके बाद, प.ृ 261 The first great task of Independent India was to frame for herself a Constituent Assembly, ‘sovereign body representing the sovereign people of India.’ The members of the assembly rose to the challenge. Two weeks after independence obtained, a committeewas set up to draft a constitution for the Indian Union. On 21 February 1948 the committee’s report was released. Then after several months of public discussion, the draft constitutionwas introduced in the Constituent Assembly.Here it was subjected to more than a year of painstaking debate, before being adopted on 26 November 1949. Finally, on 26 January 1950&the twentieth anniversary of the first taking of the Independence Pledge&the Constitution of the Republic of India went in to effect. Heehs, Peter (1992) India’s Freedom Struggle 1857-1947; A Short History, p. 184
137
पािी का ववघिि दो थवतंत्र दलों-िर्ी कांग्रेस, संगठि कांग्रेस-के रूप में हो गर्ा। राििैनतक ववचारकों के मतािुसार
इस चुिाव के उपरांत, अिायत 1970 के अंत तक भारत में राििैनतक अस्थिरता के दशयि होते हैं।
सि ् 1971 के चुिाव का बहुमत कांग्रेस के पक्ष में आ गर्ा और श्रीमती इंददरा गांधी की भारतीर् राििीनत
में स्थिनत स्थिर हो गर्ी। वाथतव में सि ् 1972, भारत के एक िवीि र्ग ु का प्रारं भ मािा िाता है । उस र्ग ु में दे श में राििीनतक स्थिरता िी। इस अवसर का लाभ उठाते हुए श्रीमती इंददरा गांधी िे बैंकों का राटरीर्करण, वैज्ञानिक
कार्ों को प्रगनत मागय पर लािा, गरीबी हिाओ र्ोििा आदद महत्वपूणय कार्य ककर्े। आलोचकों की मान्र्ता के अिस ु ार
सि ् 1974 को रािथिाि के पोखरण िामक थिाि पर परमाणु बम का परीक्षण भारत की परमाणु तकिीक में आत्म
निभयर बििे की ददशा में एक सफल प्रर्ास के रूप में अशभव्र्स्ततत है ।
सि ् 1975 भारतीर् राििीनत के शलए एक संकिपूणय समर् िा। 26 िूि की रात्री को आपातकाल की घोषणा
की गर्ी। आपातकाल में इंददरा गांधी के हािों में अपार रािकीर् तिा दलीर् शस्तत केंदरत हो गर्ी। लेककि अन्र्
सभी दलों िे एक होकर उसका ववरोध ककर्ा िा। कफर 10 ििवरी 1977 को इंददरा गांधी िे लोक सभा के चुिाव की
घोषणा की। माचय में चुिाव सम्पन्ि हुए, स्िसमें ििता पािी वविर्ी हुई। आपसी तिाव के कारण 1979 ई. में कफर
उस पािी का ववभािि हो गर्ा और ििसंघ के पुरािे िेताओं िे 1980 ई. के अंत में ही भारतीर् ििता पािी के
िाम से िर्ा दल बिार्ा। ििवरी 1980 ई. के चुिाव से श्रीमती इंददरा गांधी पुिः सत्ता में आर्ी और भारतीर् राििीनत में केंरीर् शस्तत के रूप में उपस्थित रहीं। उस समर् भारत में कार्यरत कश्मीर, असम और पंिाब के बढ़ते
आतंकवाद के ववरुद्ध भारत सरकार िे “आपरे शि ब्लू थिार” शुरु ककर्ा, स्िससे शसखों के बीच असंतोष व्र्ातत होिे
के कारण 31 अतिूबर 1984 ई. को इंददरा गांधी की हत्र्ा उन्हीं के दो शसख अंगरक्षकों द्वारा कर दी गर्ी। उिकी
अिुपस्थिनत में कफर एक बार भारतीर् राििीनत में अस्थिरता फैल गर्ी, फलतः प्रधािमंत्री पद के शलए श्रीमती इंददरा गांधी के सप ु त्र ु रािीव गांधी को चि ु ा गर्ा। र्ह सवयमानित है कक रािीव गांधी िे लोक सभा के संपण ू य काल में अपिे
प्रधािमंत्री पद का दानर्त्व अच्छी तरह पूरा ककर्ा। कफर भी िौवीं लोक सभा के आम चुिाव में कांग्रेस को बहुमत
िहीं शमला। मई, िि ू 1991 ई. के चुिाव के दौराि तशमलिाडु के श्रीपेरुम्बद ु रू चुिाव सभा में रािीव गांधी एक
आत्मघाती बम का शशकार हो गर्े। तब कांग्रेस िे िरशसंहा राव के िेतत्ृ व में लोकसभा का चुिाव लड़ा और कांग्रेस को भारी बहुमत प्रातत हुआ।
6 ददसम्बर 1992 ई. के ददि भारतीर् राििीनत और समाि पर प्रश्ि र्चह्ि लगा, िब बाबरी मस्थज़द व
रामिन्र् भूशम-वववाद के फलथवरूप दे श की दहंसक घििाओं में वद् ृ र्ध हुई, संपूणय दे श में साम्प्रदानर्कता तेज़ी से
भड़की, स्िससे कुछ थवािी िेताओं को भले ही राििीनतक लाभ शमला हो, परं तु पुिः ववभािि की त्रासदी िैसी स्थिनत पैदा होिे लगी। कफर भी िरशसम्हा राव िे दसवीं लोक सभा का काल ब्रबिा ककसी बाधा के पूरा ककर्ा। मई 1996 में
ग्र्ारहवीं लोक सभा में भारतीर् ििता पािी िे सफलता प्रातत की और भािपा के िेता अिल ब्रबहारी वािपेर्ी 16 मई 1996 ई. को शपि ग्रहण कर प्रधािमंत्री बिे, लेककि तेरह ददि प्रधािमंत्री का दानर्त्व पूरा कर वे इस पद से
ववमुतत हो गर्े। 14 संर्ुतत मोचे के क्रमशः दो प्रधािमंत्री एच. डी. दे वगौड़ा और इंरकुमार गुिराल के बाद बारहवीं
लोक सभा के चुिाव में 19 माचय 1998 ई. को अिल ब्रबहारी वािपेर्ी िे दस ू री बार प्रधािमंत्री पद सूँभाला। ववचारकों
14
Recently Indian democracy experienced one more politicalexperiment of Prime Ministership of twelve days, along with his cabinet colleagues without even facing the trial of strength on the floor of Lok Sabha. Grover, Ed. Verinder (?) India fifty Years of Independence, p.57
138
के अिुसार ववववध संगठिों से बिी अिल िी की र्ह सरकार राटरीर् एकात्मकता का सुन्दर उदाहरण है और अपिे
कार्ों से अिल िी िे भारतीर् राििीनत में एक प्रेरणादार्ी इनतहास की रचिा की।
अवप्रल 2004 ई. के तिा 2009 ई. के आम चुिावों में मिमोहि शसंह को भारत के प्रधािमंत्री पद पर
15 आसीि होिे का सअ ु वसर शमला िो भारत के सवयप्रिम शसख तिा अदहंद ू प्रधािमंत्री हैं। ववचारकों के मतािस ु ार 21वीं
शती में भारत, अगखणत संघषों का सामिा करते हुए भी राििैनतक शस्तत की दृस्टि से प्रनतस्टठत थिाि पर ववरािमाि हैं।16
िरे न्र दामादरदास मोदी भारत के वतयमाि प्रधािमंत्री हैं। वे थवतंत्र भारत के 15वें प्रधािमंत्री मािे िाते हैं।
र्ह भी ववशेष बात है कक इस पद पर आसीि होिेवाले थवतंत्र भारत में िन्मे प्रिम व्र्स्तत है । उिके िेतत्ृ व में
भारत की प्रमुख ववपक्षी पािी, भारतीर् ििता पािी िे 2014 का लोक सभा चुिाव लडा और 262 सीिें िीतकर
अभूतपूवय साियकता प्रातत की है । इससे पूवय वे गुिरात राज्र् के 14वें प्रधािमंत्री रहे । उन्हें उिके काम के कारण
गुिरात की ििता िे लगातार 4 बार (2001 से 2014 तक) मुख्र्मंत्री चुिा। गुिरात ववश्वववद्र्ालर् से राििीनत
ववज्ञाि में थिातकोत्तर ड़डग्री प्रातत िरे न्र मोदी ववकास पुरुष के िाम से पहचािे िाते हैं तिा वतयमाि समर् में दे श
के सबसे लोकवप्रर् िेताओं में से एक हैं।
अतः र्ह कह सकते हैं कक पंड़डत िवाहरलाल िेहरु से लेकर िरे न्र मोदी तक के प्रधािमंत्री पद के कार्यकाल
में थवतंत्र भारत की राििीनत अिेक पड़ावों से गुज़री है । वथतुतः र्ह संभव है कक थवाधीिता के उपरांत भारतीर्
राििीनत में तेज़ी से पररवतयि आर्ा है । उल्लेखिीर् बात र्ह है कक थवाधीिता आन्दोलि में िो िेता तप और त्र्ाग
के पुज़ारी िे, वे थवतंत्र भारत में बड़े भ्रटि शसद्ध हुए हैं अिायत केवल भारत के िहीं परं तु सभी दे शों के अर्धकार्धक िेता लोग आि, दे श की ििता से शसफय वोि लेकर अपिी सत्ता थिावपत कर लेिे और अपिे थवािय शसद्ध कर लेिे की कूि िीनत में िीिेवाले हैं।
थवतंत्रता के पश्चात भारत की आर्ियक स्थिनत की समीक्षा करिेवाले समीक्षकों के मतािस ु ार थवतंत्र भारत
को दरररता तिा अभाव से ग्रथत एक वपछड़ी हुई अिय-व्र्वथिा प्रातत िी, स्िसमें कृवष उत्पादि स्थिर िा।17 लेककि औद्र्ोर्गक आधार कमज़ोर िा अिायत उसका अर्धकतर निर्ायत मुख्र्तः मूल उत्पादों का िा िो अर्धकांशतः ब्रििे ि
तिा अन्र् ववकशसत दे शों को निर्ायत ककर्े िाते िे। िबकक आर्ात अर्धकतर इन्हीं ववकशसत दे शों से मशीि निशमयत
वथतुओं का िा। फलतः भारत को आर्ियक दृस्टि से ववकशसत दे शों पर निभयर रहिा पड़ता िा। दस ू री ओर पूँि ू ी के
संसाधि निम्ि थतर के िे। अतः अिय व्र्वथिा की दृस्टि से क्षेत्रीर् असंतशु लतता अर्धक िी।
15 16
17
Manmohan Sing became the first Sikh and non-Hindu to date hold India’s most powerful office. en.wikipedia.org, History of the Republic of India, p. 12 However, 21st century India is facing the Naxalite-Maoist rebels, in the words of Prime Minister Manmahan Singh, India’s “greatest internal security challenge” and other terrorist tensions (such as Islamist terrorist campaigns in and out Jammu & Kashmir, terrorism in India’s Northeast] and Hidutva terrorism) Terrorism has increased in India with bomb blasts in leading cities like Mumbai, New Delhi, Jaipur, Bangalore, Hydrabad has been very common. India in the new millennium, improved relations with many countries and foreign unions including the United States, the European Union, Israel and the People’s Republic of China. The economy of India has accelerated by growing at a very rapid pace. India is now being looked at as a potential superpower. en.wikipedia.org, History of the Republic of India, p.13 बरमािी, आर. सी. (2011) भारत में उपनिवेशवाद और राटरवाद, प.ृ 516
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ऐसी स्थिनत में थवतंत्र भारत के सवय प्रिम प्रधािमंत्री पं. िवाहरलाल िेहरु को अपिे दे श के प्रनत बहुत बड़ा
कतयव्र् निभािा रह गर्ा िा और स्िसको सम्पन्ि करािे में उिका र्ोगदाि ककस थतर पर िा, उसकी थपटि
अशभव्र्स्तत इस अवतरण में है -
“िेहरु िािते िे कक उिका दे श सददर्ों से वपछड़ा हुआ है । उन्होंिे दे श भर में घूमकर भली-भाूँनत
दे खा-समझा िा कक दे शवासी ककतिे गरीब हैं , ककतिी बेहाली में ददि गुज़ार रहे हैं। ऐसे में उिके
सामिे मुख्र् समथर्ा िी कक दे श को ककस प्रकार िल्दी से िल्दी इस गरीबी और बेहाली से मुतत
कराके ववकशसत आधुनिक राटरों के कतार में खड़ा ककर्ा िाए, ककस प्रकार खेती की, उद्र्ोगों की
उन्िनत की िाए? राथता एक ही िा-ववज्ञाि और प्रौद्र्ोर्गकी का सदप ु र्ोग। और िेहरु दे श की आज़ादी के तत्काल बाद निर्ोस्ित ववकास की िींव रखते हुए उस बात का ध्र्ाि रखा कक दे श को
आधनु िक ववज्ञाि और िे तिोलोिी के लाभ ददलार्े िाएूँ, ताकक ककसाि को अर्धक और बेहतर खेती
के शलए रसार्निक खादें , कीििाशक दवाइर्ाूँ, बड़े-बड़े बाूँधों से आवश्र्क मात्रा में पािी, ब्रबिली आदद शमलें ।.........”18
वथतुतः उिके समियकों िे भी र्ह समझ शलर्ा िा कक दे श में औद्र्ोर्गक क्रांनत लार्े ब्रबिा ि तो िि िीवि
का थतर सध ु ारा िा सकता है , और ि दे श को आर्ियक तिा सामास्िक दृस्टि से समद् ृ ध तिा समिय बिार्ा िा सकता
है और र्ह सब वैज्ञानिक दृस्टिकोण अपिार्े ब्रबिा और दे श में वैज्ञानिक थवभाव बिार्े ब्रबिा संभव िहीं है । फलतः ऐसी मान्र्ता प्रातत है कक 1950-1960 की अवर्ध आिायत पं. िेहरु की पालि अवर्ध में भारत, औद्र्ोर्गक दे श की
दृस्टि से उल्लेखिीर् थतर पर िा।19
इस प्रकार दे श की निम्ि थतरीर् आर्ियक दशा के पुिरनिमायण में थवातंत्र्र्ोत्तर
भारत िे कृवष, औद्र्ोर्गक तिा पर्यिि आदद क्षेत्रों में उल्लेखिीर् उपलस्ब्धर्ाूँ प्रातत की हैं। ववशेषतः सि ् 1956 में
चलार्ी गर्ी औद्र्ोर्गक िीनत िे भारत के सावयिनिक क्षेत्रों की िो सुववधाएूँ प्रदाि की िीं, उससे भारत में
एल्र्ूशमनिर्म, परमाणु ऊिाय, भारी मशशिरी, भारी ववद्र्ुत मशशिरी, खनिि तेल, वार्ु और रे ल पररवहि िैसे भारी उद्र्ोग बड़ी भारी संख्र्ा में थिावपत हुए। थवतंत्र भारतीर् उद्र्ोगों में आधुनिक तकिीकी का भी पर्ायतत उपर्ोग होिे लगा। पररणामतः आि ववश्व के श्रेटठ औद्र्ोर्गक क्षेत्रों में भारत का प्रनतस्टठत थिाि निधायररत हो चुका है ।
र्ह प्रतीत होता है कक कृवष क्षेत्र की उपलस्ब्धर्ों में शसंचाई, रसार्निक उवयरकों, उन्ित बीिों और कीििाशक
दवाइर्ों के उपर्ुतत प्रर्ोगों का ववशेष र्ोगदाि रहा है । थवतंत्र भारत के भूशम-सुधार के कार्यक्रमों िे भी कृवष के क्षेत्र में महत्वपण ू य भशू मका निभार्ी है । ववचारकों की मान्र्ता है कक हररत क्रांनत के आरं भ के बाद कृवष में भारत िे उल्लेखिीर् प्रगनत की है । कहते हैं कक कािू, िाररर्ल, आम और केला िैसे फलोत्पादि के क्षेत्र में भी भारत का सारे ववश्व में प्रिम थिाि है ।20
प्रशंसिीर् प्रगनत हुई है । 18 19
20
सारांशतः र्ह उल्लेखिीर् है कक उत्तर औपनिवेशशक भारत में कृवष ववकास संबंधी अिेक
दे वेन्र, उपाध्र्ार् (1996) िवाहरलाल िेह्रू-बहुआर्ामी व्र्स्ततत्व, प.ृ
25-26
Under the leadership of Jawaharlal Nehru, India’s first Prime Minister (1947-64) India addressed its economic erisis throughcombination of socialist planning and free enterprise. During the 1950s and 1960s large government investments made India as awhole in to one of the most industrialized nations in the world. Ed.Hertzman, James and Robert L. Worden (1995) India-A Country Sdudy, p.xxxviii
उपाध्र्ार्, दे वेन्र (1998) आज़ादी के
140
50
वषय-तर्ा खोर्ा, तर्ा पार्ा ;भाग
02द्ध, प.ृ 14
थवतंत्रता के बाद भारत में ववश्व के अिेक दे शों की भाूँनत पर्यिि उद्र्ोग की भी वद् ृ र्ध हुई। ववचारकों का
कहिा है कक उसकी प्रगनत तो अवश्र् हुई, अवपतु उस प्रगनत िे पर्ायवरण को भर्ंकर रूप से प्रदवू षत भी कर ददर्ा
है । कफर भी बढ़ती आर्, िर्े-िर्े दशयिीर् थिलों को दे खिे की चाह तिा िर्े प्रचार-प्रसार के साधिों िे पर्यिि उद्र्ोग
को पर्ायतत सहार्ता प्रदाि की है । ववशेषतः रै वल एिेंशसर्ों, सब्िी ववक्रेताओं, दध ू ववक्रेताओं, िे स्तसर्ों के माशलकों
तिा शराब के ठे केदारों से लेकर छोिे -मोिे काम करिेवालों िे पर्यिि को अपिे िीववकोपाियि का माध्र्म बिाकर इस उद्र्ोग की उन्िनत में साि ददर्ा है ।
र्ह भी उल्लेखिीर् है कक थवतंत्र भारत िे शशक्षा के क्षे त्र में भी ववशेष प्रगनत की है , अिायत वतयमाि भारत
ववश्व में शशक्षा से प्रगनत प्रातत तत ृ ीर् बड़े दे श के रूप में ववख्र्ात है । र्चककत्सा-शशक्षा के क्षेत्र में भी उत्तर औपनिवेशशक भारत िे ववशेष सफलता प्रातत की है । र्ह निववयवाद है कक ववश्व का कोई ऐसा दे श िहीं है , िहाूँ भारत के डातिर िहीं हों। ववचारकों के अिुसार थवातंत्र्र्ोत्तर भारत िे अर्धकार्धक उपलस्ब्ध ववज्ञाि और प्रौद्र्ोर्गकी के क्षेत्र में की है
और ववश्व में अपिा थिाि निधायररत ककर्ा है । भारत के ववश्व-ववख्र्ात प्रौद्र्ोर्गकी संथिािों, तकिीकी संथिािों और
मेड़डकल कालेिों तिा ववशभन्ि प्रकार के संथिािों में शशक्षा प्रातत ववशेषज्ञों िे ववश्व के ववकशसत दे शों में िाकर ववज्ञाि और औद्र्ोर्गकी के क्षेत्र में ववशशटि कीनतय-माि थिावपत ककर्े हैं।
र्ह सवयववददत है कक हज़ारों कक. मी. के दीघय मोिर मागों और रे ल मागों का निमायण करके थवतंत्र भारत िे
पररवहि सेवाओं में भी अपिा कीनतयमाि थिावपत ककर्ा है । िहाूँ रे ल िहीं िा सकती, ऐसे दरू के क्षेत्रों में बस सेवाओं
का ववथतार ककर्ा गर्ा है । हवाई पररवहि के क्षेत्र में भी एर्र इंड़डर्ा ववश्व की सवायर्धक प्रनतस्टठत ववमाि-सेवा के
रूप में प्रशसद्ध है । उसके अनतररतत ऐनतहाशसक, धाशमयक, व्र्ावसानर्क, सांथकृनतक, राििीनतक तिा प्राकृनतक सौन्दर्य
के थिलों, िगरों और ववशशटठ केन्रों तक भी आि ववमाि सेवाएूँ उपलब्ध हैं।
इस प्रकार र्ह रटिव्र् है कक थवतंत्र भारत को आर्ियक और प्रौद्र्ोर्गक ववकास के क्षेत्रों में बड़ी-बड़ी चुिौनतर्ों
का सामिा करिा पड़ा है । कफर भी भारत को आि ववश्व की एक बड़ी औद्र्ोर्गक तिा प्रौद्र्ोर्गक शस्तत के रूप में
मान्र्ता प्रातत है ।21 साि-साि वह आिकल ववश्व में अर्धक चर्चयत दे श भी बिता िा रहा है । अिायत थवतंत्रता पूवय 22 भारत स्िस आर्ियक अधीिता में िी रहा िा, उसिे थवातंत्र्र्ोत्तर र्ग य ः पि ु में पण ू त ृ क रूप ले शलर्ा।
‘धमय’ शब्द का अिय है -धारण करिेवाला। प्राचीि भारतीर् इनतहास तिा सादहत्र् में भी धमय का उसी अिय में
ही प्रर्ोग हुआ है ।23 अतः धमय वह है िो सभी मािव को एवं सम्पण ू य ववश्व को धारण करता है । र्ह सवय थवीकृत एवं
21 22
23
Overall gains from huge investments in modern science and technology have made India in to the tenth greatest national economy in the world. Frankel R.,Francine (1978) India’s political economy1947-1977 The Gradual Revolution, p. x India has entered the 50th year of Independence &an independence won at the cost of the division of the country. From the ashes of those terrible days has arisen a country which can be counted as one of the leading democracies of the world. From pins to cars, cycle to ships, electric bulbs and even cloth was imported from England during the British Raj. Now India is not Only self-sufficient in most of the requirements of a modern state but also exports substantially. Grover, Ed. Veriner and Ranjana Arora (?) India Fifty Years of Independence, p. xv इस अिय में धमय का प्रर्ोग ऋगवेद में ;अतो धेमायररण धारर्ेि ् ऋगवेद 1,22,18द्ध हुआ है। वैददक सादहत्र् में भी धमय को धारण करिे के अिय में ही कहा गर्ा है। बह ु दारण्र्क उपनिषदकार िे धमय एवं सत्र् को एक ही मािा है। महाभारतकार के अिस ु ार धमय वही है िो धारण
कक्रर्ा से संर्त ु त है।
पािेरी, हे मेन्रकुमार (1974) थवातंत्र्र्ोत्तर दहंदी उपन्र्ास-मूल्र् संक्रमण, प.ृ 264
141
सवय व्र्ातत ववधाि कह सकते हैं। र्ह सत्र् है कक धमय ककसी-ि-ककसी रूप में सभी समािों में रहा और रह रहा है ,
भले ही वह समाि वपछड़ा हो र्ा भौनतक दृस्टि से अत्र्ंत ववकशसत। आददम र्ुग से ही धमय मािव के शलए बहुत बड़ा सम्बल रहा है । मािव के र्चंति, मिि, व्र्वहार और कमय में उर्चत और अिुर्चत को लेकर धमय िे एक निणायर्क
सत्ता का कार्य ककर्ा। सभी समािों िे हर समर् ककसी ि ककसी रूप में ईश्वर की कल्पिा को भी थवीकार ककर्ा।
भारतीर् संथकृनत से धमय का प्रगाढ़ संबंध है । सामास्िक तिा सांकृनतक गनतववर्धर्ों का मल ू ाधार भी धमय ही रहा है । परं परा में धमय िीवि से पि ृ क िहीं दे खा गर्ा। भारतीर् िीवि की, प्रत्र्क्ष र्ा परोक्ष रूप से धमय के प्रनत आथिा
अपिे आप में एक ववशेषता रही है ।
र्ह थपटि है कक भारत का समाि साधारणतर्ा अपिे मूल चररत्र से एक वैददक समाि है , अतः हज़ारों वषों
से र्हाूँ की सत्ता-व्र्वथिा का शस्तत-संचालि धमय, िानत, संप्रदार् पर अर्धक निभयर रहा है , अिायत भारतीर् धाशमयक-
व्र्वथिा वणों में िकड़ी हुई है और सामास्िक संदभय में धमय का ववशेष र्ोग रहा है । प्राचीि समर् से धमय िे मािव
की समाि ववरोधी प्रववृ त्तर्ों पर निर्ंत्रण रखा है । आददम समाि में िब ववधाि एवं राज्र् का प्रादभ ु ायव िहीं हुआ िा
तब धाशमयक भाविा से प्रेररत होकर ही समास्िक निर्मों का पालि ककर्ा िाता िा। र्ह थपटि है कक समाि-व्र्वथिा
को बिार्े रखिे का महत्वपूणय कार्य धमय िे ही ककर्ा है । ईश्वर के दं ड का भर्, थवगय-िरक का ववचार, कमय-फल का
शसद्धान्त, पाप पुण्र् की धारणा आदद बातें ऐसी िीं स्ििके कारण मािव बुरे कार्ों से बचता रहा। धमय-रक्षािय ककतिे
ही र्ुद्ध लड़े गर्े। अतः बड़े-बड़े र्ुद्धों को ‘धमय र्ुद्धों‘ की संज्ञा भी दी गर्ी। तब धमय दे श-भस्तत का माध्र्म िा,
लेककि औपनिवेशशक र्ुग में भारतीर् धमों की कट्िरता एवं संकीणयता में कुछ बदलाव पररलक्षक्षत होिे लगा, अिायत
उसके प्रभाव के कारण धमय निरप्रेक्षता अिायत धाशमयक थवतंत्रता की भाविा फैली हुई िी। फलतः औपनिवेशशक भारतीर् समाि में थवतंत्रता-प्रास्तत संघषय के साि-सााि एक तरह का धाशमयक आन्दोलि भी चल रहा िा, स्िसकी पुस्टि में
आर्य समाि, िह्म समाि, प्राियिा समाि आदद स्िि धाशमयक संथिाओं का र्ोगदाि रहा, वह थवातंत्र्र्ोत्तर भारत की धाशमयक स्थिनत के निमायण में सहार्क शसद्ध हुआ।24
उत्तर औपनिवेशशक भारतीर् समाि में भी धाशमयक आन्दोलि चलार्े गर्े , लेककि शहरीकरण एवं आधुनिकीकरण
िैसी औपनिवेशशक ववरासतों के कारण र्े धाशमयक आन्दोलि ब्रबिा संघषय ककर्े ही दब गर्े। अतः थवतंत्र भारतीर् समाि में ववशभन्ि धमों की परथपर ववरोधी मान्र्ताओं , ववचार-धाराओं तिा धमायचार्ों की िकराहि के कारण दे श में
धमय की संकीणयता तो िूि गर्ी, अवपतु धमय के िाम पर अिेक संकीणय मतावलंबी संगठि ददखाई पड़िे लगे।
फलथवरूप धि पर निभयर अिवा भौनतकता पर आधाररत आधुनिक भारतीर् समाि में धमय के िाम पर
आतंक फैलािा, दं गे करािा, धाशमयक अिटु ठािों के िाम पर बालाओं को फूँसािा आदद कुप्रिाओं का पोषण करिेवाली
प्रववृ त्तर्ों का ववकास होिे लगा, दस ू री ओर राििीनतज्ञों, कट्िरवादी मल् ु लाओं और पंड़डतों की कार्य-प्रणाली से
सांप्रदानर्कता को बढ़ावा शमला। पाखंड़ी साधुओं का भी निमायण होिे लगा, स्िन्होंिे र्ोििाबद्ध ढं ग से अपिा प्रचार
कराके थवर्ं भगवाि के समतुल्र् बि, मठ और मंददर को धाशमयक अिैनतकता का केन्र बिा ददर्ा है ।
दस ू री ओर पाश्चात्र् संपकय से पूवय भारतीर् र्चंति की ददशा धमय से निधायररत होती िी, अिायत धमय ही
उसका महत्वपूणय आधार िा। परं तु थवतंत्र भारत में धमय के साि ववज्ञाि को भी अपिार्ा गर्ा। फलतः वेदों में वैज्ञानिक सत्र् को खोिा िािे लगा और दाशयनिक ववचारों को वैज्ञानिक रूपकों के माध्र्म से समझा िािे लगा। 24
सं. िगेन्र (2011) दहंदी सादहत्र् का इनतहास, प.ृ 409
142
कफर भी र्ह रटिव्र् है कक आि के भौनतक र्ुग में ववशभन्ि प्रहारों के उपरांत भी धमय िीववत है । ऐसी
मान्र्ता प्रातत है कक महार्ुद्धोत्तर काल में मािव-िानत का धमय के प्रनत ववशेष झुकाव हुआ है । तर्ोंकक महार्ुद्ध-
िन्र् अिाथिा, कंु ठा, निराशा, द्वेष, घण ृ ा, अनिश्चर्, भीषण िर-संहार एवं अत्र्ाचार से मािव ऊब चुका िा। अतः
कहीं ववश्वास, ववश्रांनत, प्रेम, ववश्व-बंधुत्व पािे के उद्दे श्र् में धमय का, ईश्वर का आश्रर् खोिा िािे लगा िा। वथतुतः
र्ह तत्कालीि समर् की मिोवैज्ञानिक आवश्र्कता िी। समाि शाथत्रज्ञों के मतािस ु ार आधनु िक र्ग ु में भौनतक िगत
एवं मशीिी र्ुग की िीरसता एवं एक रसता से ऊबकर र्ुवा मािस पुिः धमय की ओर प्रेररत हो रहा है । 25 इस संदभय में भारतीर् धमय, दशयि, र्ोग और ध्र्ाि के प्रनत र्ह प्रत्र्ावनतयत भाविा ववचारणीर् है ।
इस प्रकार थवातंत्र्र्ोत्तर अिायत आधुनिक भारतीर् धाशमयक पररस्थिनत की समीक्षा करिे पर र्ह ववददत होता
है कक भारत में आि धमय का वह परं परागत थवरूप िहीं रहा है , अिायत धमय र्ग ु ािक ु ू ल रूपान्तररत होता आ रहा है , धमय की पररभाषाएूँ भी बदलती िा रही हैं। ववचारकों के मतािुसार दे शकाल के कारण धमय के ववशभन्ि रूप शमलते हैं , परं तु सबका अंनतम ववलर् मािव-धमय में होता है । अतः अब परं परागत धमय सवोच्च और सवोत्तम ि होकर िीवि का
एक वैर्स्ततक एवं ऐस्च्छक अंश रह गर्ा है , अिायत आधुनिक भारत के धमय के परं परागत दृस्टिकोण में तर्ायतत अंतर आर्ा है ।
निटकषयतः धमय के वतयमाि पररणत थवरूप का वववेचि ककर्ा िार् तो थपटि होगा कक परं परागत धमय िो
अलौककक तत्त्व अिायत ईश्वर, दे वी-दे वताओं पर आधाररत िा, उसे रूपांतररत स्थिनत में मािवीर् आधार शमला है । धमय के परं परागत भावात्मक रूप की अब बौद्र्धक व्र्ाख्र्ा की िािे लगी है । धमय िो कभी िीनत, एवं सत्र् के ववरुद्ध
भी हो सकता िा, अब उसके िीनत सम्मत सत्र् रूप को ही प्रनतटठा शमलिे लगी। र्ह माििे लगा कक मािव-धमय
का संबंध परलोक से ि होकर इहलोक से है । इस प्रकार र्ह रटिव्र् है कक वतयमाि स्थिनत में धमय की रूदढ़गत स्थिनत का बादहटकार ककर्ा िा रहा है अिायत थवातंत्र्र्ोत्तर भारत की धाशमयक स्थिनत में धमय निरपेक्षता की भाविा की प्रधािता दे खिे को शमलती है ।
मािा िाता है कक मािव िानत की समथत सामास्िक ववरासत र्ा मािव की समथत संर्चत सस्ृ टि
का ही िाम संथकृनत है ।26 इस अिय में एक ओर वह थिल ू भौनतक वातावरण, स्िसकी सस्ृ टि मािव िे अपिे श्रम,
कल्पिा और कौशल, ज्ञाि और ववज्ञाि द्वारा प्राकृनतक िगत में पररवतयि लाकर और उसके ऊपर एक अन्र् िर्ा
मािव-निशमयत कृब्रत्रम िगत को थिावपत करके की है तिा दस ू री ओर मल् ू र्, मान्र्ता, चेतिा, ववश्वास, ववचार, भाविा, ररवाज़, भाषा, ज्ञाि, कला-धमय, िाद-ू िोिा आदद के वे सभी मूत,य अमूतय थवरूप संथकृनत में शाशमल हैं, स्ििसे मािव
और मािव-सस्ृ ित भौनतक िगत महत्ता और साियकता पाता है , अिायत र्ह रटिव्र् है कक संथकृनत ि तो कभी ववचारधारा र्ा र्चंति को संकीणयता की ओर ले िाती है , और ि उन्हें सीमाबद्ध करती है । वह ककसी भी व्र्स्तत,
समाि र्ा दे श को अर्धक उदार, थवीकारोन्मुख तिा ग्रहणशील बिाती है । इस प्रकार संथकृनत का व्र्ापक अिय ककसी
समाि की िीवि-पद्धनत से है , स्िसमें कला-शशल्प, ववश्वास, मान्र्ताएूँ, मूल्र्, िीवि-दशयि, संथकार, प्रिाएूँ, धमय आदद सब समादहत हैं। मािव व्र्स्ततत्व के निमायण में संथकृनत ही सहार्क होती है ।
25
26
पािेरी, हे मेन्रकुमार (1974) थवातंत्र्र्ोत्तर दहंदी उपन्र्ास-मूल्र् संक्रमण, प.ृ
265
िन्दि, सं. कन्हैर्ालाल, (1996) अतिूबर-ददसम्बर, गगिांचल, शताब्दी का अंत-साथकृनतक िवोदर् र्ा िव उपनिवेशवाद, प्रोफेसर परू िचंर िोशी, प.ृ
13
143
करते हैं-
उत्तर औपनिवेशशक भारत के सांथकृनतक ढाूँचे की समीक्षा करते हुए दे वेन्र उपाध्र्ार् निम्ि मत अशभव्र्तत “थवतंत्र भारत िे अपिे सांथकृनतक थवरूप को भी ववकृत ककर्ा है , सचमुच हम सांथकृनतक संकिता में गुज़र रहे हैं।“27 साधारणतः ववश्व में कहीं भी होिेवाले पररवतयि संसार के प्रत्र्ेक भाव को प्रभाववत करते हैं। र्ह संभव है
कक थवाधीि भारत में एक ओर संथकृनत की ववगत परं पराओं को सिीव ककर्ा िा रहा है , दस ू री ओर िवीि प्रभावों
को भी अपिार्ा िा रहा है , स्िसकी अशभव्र्स्तत सकारात्मक भी हो सकती है , और िकारात्मक भी। थवातंत्र्र्ोत्तर
भारत की संथकृनत की आलोचिा करते हुए डॉ. हे मेन्रकुमार पािेरी िे िो मत प्रकि ककर्ा है , उससे भी र्ह बात
थपटि पररलक्षक्षत है कक थवतंत्र भारतीर् संथकृनत संकिपण ू य स्थिनत में िी रही है ।
आधुनिक संथकृनत पर ववज्ञाि प्रभावी है । अब महािगर संथकृनत के केन्र बि गर्े हैं। भौनतक उपलस्ब्धर्ाूँ
और मशीिें मिुटर् पर हावी हो गर्ी हैं। परं परागत संथकृनत का मशीिी-उद्र्ोगों से कोई संबंध िहीं िा। पर
वतयमाि संथकृनत मशीिी-उद्र्ोगों में पिप रही है । साि ही आरखणक-र्ुद्ध की संभाविाएूँ बढ़ गर्ी हैं। संथकृनत पर संकि के बादल मण्डरा रहे हैं। ककसी भी समर् हमारा सबकुछ रसातल में शमल सकता है । लगता है हम
उत्िाि से पति की ओर िा रहे हैं। 28
वथतुतः ववचारकों में ऐसी मान्र्ता प्रातत है कक भारत में थवाधीिता के पश्चात हुए औद्र्ोगीकरण एवं
शहरीकरण िे सांथकृनतक गनतरोध उत्पन्ि ककर्ा है । एक ओर शहरीकरण से संथकृनत की परं परागत इकाई अिायत
गाूँवों का ववखंडि प्रारं भ हो गर्ा, दस ू री ओर औद्र्ोगीकरण के पररणामथवरूप ववववध धमय, िानत और सम्प्रदार्ों के
सस्म्मर्श्रत रूप में शहरों का निमायण हुआ, स्िससे परं परागत सांथकृनतक संगठि की समास्तत हो गर्ी। फलतः संथकृनत के मुख्र् साधि धमय की संकीणय सीमाएूँ शशर्िल होती गर्ी और परं परागत धमय के थिाि पर मािव-धमय की प्रनतटठा
होिे लगी। आणववक पररवार की बढ़ती हुई प्रववृ त्त तिा संर्ुतत पररवार का ववघिि भी थवातंत्र्र्ोत्तर भारत के ववचशलत सांथकृनतक ढाूँचे के शलए मुख्र् कारण बि गर्े। ऐसी स्थिनत में वैज्ञानिक मशीिीकरण के कारण िवीि औद्र्ोर्गक
संथकृनत का निमायण हुआ और परं परागत वणय-व्र्वथिा के थिाि पर िवीि वगों का उदर् हुआ।
र्ह संभव है कक वतयमाि संसार में मशीिें मािव का थिाि ले रही है । इतिा ही िहीं वैज्ञानिकों िे ववद्र्ुतगणक
िैसे कृब्रत्रम मस्थतटक का निमायण भी कर शलर्ा है । िो कक र्ह थमनृ त, र्चंति और निणयर् के क्षेत्र में मािव-मस्थतटक के समाि कार्य कर सकता है । दस ू री ओर वतयमाि भारतीर् व्र्स्तत भी आर्ियक दबाओं से नघरकर थवकेंदरत हो गर्ा
है । पररणामतः प्रेम, थिेह, करुणा, दर्ा, सेवा िैसे भावात्मक मल् ू र्ों में ददखाविी आ गर्ी है , कृब्रत्रमता व्र्ातत हो गर्ी
27
(क). उपाध्र्ार्, दे वेन्र (1998) आज़ादी के 50 वषय-तर्ा खोर्ा, तर्ा पार्ा (भाग 02), प.ृ 25
(ख). Post colonialism also deals with conflicts of identity and cultural belonging. Colonial power came to foreign States and
28
destroyed main parts of native tradition and culture, furthermore, they countries replaced them with their own once. This often lead to conflicts when countries became independent and suddenly faced the challenge of developing a new nationwide identity and self-confidence. www.nilsole.net, Post colonialism; Definition, Development and Examples from India, p.02
पािेरी, हे मेन्रकुमार (1974) थवातंत्र्र्ोत्तर दहंदी उपन्र्ास-मूल्र् संक्रमण, प.ृ
144
127
है । आि की कृब्रत्रम तिा संक्रांनत र्ुग में संथकृनत का पालि भी असंभव सा प्रतीत हो रहा है , स्िसका उल्लेख डॉ.
हे मेन्रकुमार पािेरी निम्ि प्रकार करते हैं-
आि के इस संक्रांनत र्ुग में मािव के पास इतिा अवकाश और सुववधा कहाूँ है कक वह रीनत-ररवाज़, संथकार
और परं परागत मान्र्ताओं का पालि कर सके।29
इस प्रकार र्ह रटिव्र् है कक थवातंत्र्र्ोत्तर भारतीर् संथकृनत में भोगवादी दृस्टि की प्रधािता रही, स्िसकी
अशभव्र्स्तत ववशेषतः शसिेमा, िी. वी., फैशि शो, समाचार-पत्र, ववशभन्ि प्रकार की पब्रत्रकाएूँ, उद्र्ोगों और कल-
कारखािों आदद आधुनिक प्रचार-प्रसार के साधिों िे की है । दस ू री ओर रहि-सहि, खाि-पाि, बोल-चाल, ित्ृ र्-संगीत,
मेले-त्र्ौहारों से लेकर भारतीर् िीवि शैली में भी उपभोततावादी दशयि िे अपिा अर्धकार िमा शलर्ा है अिायत
भारतीर् संथकृनत पर उसका प्रभाव दृढ़तापूवक य पड़ा है । पररणामथवरूप िर्ी आर्ियक व्र्वथिा, पाश्चात्र् शशक्षा तिा िवागत िीवि पद्धनत के कारण भारतीर् संथकृनत की अपिी पहचाि भी पूणयतः असंभव सी हो गर्ी है । 30
दस ू री
ओर पस्श्चमीकरण अिायत आधुनिकीकरण की प्रकक्रर्ा, िो िर्े अियतंत्र, शशक्षा प्रणाली तिा संचार िाल आदद के कारण औपनिवेशशक काल में ही आरं भ हुई िी, वह उत्तर औपनिवेशशक र्ा थवतंत्र भारत के
सांथकृनतक संघिि में पूणत य ः पररलक्षक्षत होिे लगी। पररणामथवरूप उत्तर औपनिवेशशक भारत में पस्श्चमीकरण
की उपसंथकृनत अिेक चरणों में ववकशसत होती आर्ी, स्िसकी अशभव्र्स्तत अर्धकांशतः पस्श्चमी िीनत-रीनत, आचार-
ववचार, वेशभूषा आदद के अंधािुकरण के रूप में होिे लगी। इस प्रकार की िीवि पद्धनत के कारण थवातंत्र्र्ोत्तर भारत की सांथकृनतक, सामास्िक और िैनतक कल्पिाएूँ पूणत य ः पररवनतयत हुई, स्िसकी सफल उपलस्ब्ध प्रधाितः सामास्िक
प्रणाली में रटिव्र् है ।
'समाि' शब्द में समता का िो आभास होता है और उसके आधार पर एक साि रहिे और िीिे की िो
आकांक्षा झलकती है , उसका अभाव ही साधारणतर्ा सामास्िक िीवि को दब य बिाता है । र्े समता तिा सामदू हकता ु ल
का आभास भारत के उपनिषद काल में , भगवाि बुद्ध के उपदे शों में, मध्र्कालीि भस्तत आन्दोलि में , उन्िीसवीं
शताब्दी के समाि-सध ु ार आन्दोलिों में और गांधी र्ग ु में थपटितर्ा पररलक्षक्षत है , अिायत स्ििकी पारथपररक संबंधता के आधार पर ही भारत के सामास्िक ढाूँचे का निमायण हुआ है ।
दस ू री ओर थवतंत्रता पव ू य भारतीर् समाि िीवि के चार प्रमख ु लक्षणों के धमय, अिय, काम, मोक्ष की पनू तय के
उद्दे श्र् में तिा कमय, पुिियन्म, पंच ऋण एवं र्ज्ञ तिा संथकार पर निभयर िा, अिायत समाि वणय व्र्वथिा, िानत
व्र्वथिा, संर्ुतत पररवार, ग्राम पंचार्त, धाशमयक संथकार के रूप में वववाह, धमय की प्रधािता, ववववधता में एकता
आदद ववशेषताओं पर आधाररत िा। परं तु औपनिवेशशक र्ुग तक आते-आते पूवोतत लक्षण सदहत भारतीर् समाि का
थवरूप पूणत य ः पररवनतयत होिे लगा। स्िसके शलए अंग्रेज़ी शासि द्वारा लागू की गर्ी सती प्रिा का निषेध, िर-बशल, बाल-वध, बाल-वववाह का निषेध, ववधवा-वववाह, थत्री-शशक्षा तिा मदहला संपवत्त अर्धकार संबध ं ी कािूि आदद सामास्िक
29 30
पािेरी, हे मेन्रकुमार (1974) थवातंत्र्र्ोत्तर दहंदी उपन्र्ास-मल् ू र् संक्रमण, प.ृ
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After being controlled by the large power for such long time, they need to establish their own way of running things. It’s difficult because their cultural identity is in question. The society is no longer being oppressed as they have become an independent nation, free of oppression. However they’ve changed. Their culture has changed now. They need to figure out who they really are. www.pediaview.com, Postcolonial Literature, p.05
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कुरीनतर्ों को शमिािे के शलए लागू ककर्े गर्े कािूि भी सहार्क शसद्ध हुए। अिायत र्ह ववददत होता है कक थवातंत्र्र्ोत्तर भारतीर् समाि अपिे प्राचीि थवरूप से पूणत य ः पि ृ क रूप धारण करिे लगा िा।
भारतीर् िानत-व्र्वथिा के कलंक के रूप में मान्र्ता प्रातत अथपश्ृ र्ता की समास्तत भी उत्तर औपनिवेशशक
र्ग ु में ददखाई दे ती है , अिायत थवतंत्र भारत में ककसी भी व्र्स्तत को धाशमयक और सावयिनिक थिलों में प्रवेश करिे, कुएूँ से पािी भरिे अिवा शशक्षण-संथिाओं में प्रवेश लेिे, केवल इस आधार पर िहीं रोका िा सकता कक वह अमुक
िानत र्ा अमक ु धमय का व्र्स्तत है । र्ह भी घोवषत ककर्ा गर्ा है कक ककसी भी प्रकार की छुआछूत की भाविा
संवैधानिक रूप से गंभीर अपराध है । मािवीर् संबंधों की दृस्टि से र्ह उल्लेखिीर् है कक थवतंत्र भारतीर् समाि
समता, न्र्ार् और समाि अवसर की अवधारणा पर आधाररत हो गर्ा, अिायत िानत, धमय, शलंग, भाषा, क्षेत्रीर्ता और िथल के आधार पर ककसी का भेद-भाव करिा, िो ब्रिदिश पूवय समाि से िा, उसका थवतंत्र भारतीर् समाि में अंत
सा हो गर्ा।
दस ू री ओर थवतंत्र भारत में मदहलाओं को दी िािेवाली थवतंत्रता भी एक ववशेष उपलस्ब्ध है । दशलतों और
मदहलाओं को राििीनतक, सामास्िक और आर्ियक सत्ता के शशखर पर पहुूँचािा थवतंत्र भारतीर् समाि का एक महत्वपूणय उद्दे श्र् रहा है । ववशेषतः सि ् 1950 से मदहलाओं को भी पुरुषों की तरह वोि दे िे का अर्धकार प्रातत होिा
उल्लेखिीर् है । उसके अनतररतत एक पनत-पत्िी वववाह, वववाह-ववच्छे द के अर्धकार आदद में िारी को मान्र्ता दी
गर्ी। साि-साि वेश्र्ा ववृ त्त तिा दहे ि प्रिा के ववरुद्ध और बलात्कार संबंधी कािूि बिािा भी थवातंत्र्र्ोत्तर भारतीर् समास्िक ढाूँचे को बदलिेवाली कक्रर्ाएूँ हैं। कफर बाशलकाओं की शशक्षा, गभय में ही बच्चे की र्ोनि का पता लगािेवाले
परीक्षणों पर रोक, भ्रूण हत्र्ाओं र्ा बच्ची को िन्म लेते ही मार दे िा आदद समथर्ाओं पर भी थवतंत्र भारतीर् समाि में काफी आन्दोलि खड़े हुए हैं।
थवतंत्र भारत की िारी की स्थिनत भी एक प्रकार की सामास्िक समथर्ा के रूप में पस्ु टि होती हुई ददखाई
दे ती है । र्ह सच है कक ववशभन्ि थतरों पर ककर्े गर्े प्रर्त्िों के फलथवरूप िारी को थवतंत्र, अर्धकार सम्पन्ि, आत्म
निभयर, शशक्षक्षत और िागरुक बिािे में सफलता शमली है । परं तु वाथतववकता र्ह है कक मदहलाएूँ, शस्ततहीि और परु ु षों की तुलिा में दीि हैं और िारी समािता की भाविा की प्रास्तत में असंभव-सी प्रतीत हो रही है । र्ह संभव है कक
मदहलाएूँ, शशक्षा, व्र्वसार्, ववज्ञाि, खेल-कूद आदद सभी क्षेत्रों में परु ु षों से अर्धक र्ोग्र् शसद्ध हो रही हैं, अवपतु
सड़कों, गशलर्ों, बसों, रे ल-गाड़ड़र्ों में छे ड़छाड़ तिा बलात्कार िैसे दटु कृत्र् भी शसद्ध हो रहे हैं। र्ह उल्लेखिीर् है कक
अर्धकार्धक मदहलाएूँ आिोपाियि करके अपिे-अपिे पररवारों को सम्पन्ि बिाती हुई समिय िागररक की भूशमका निभा
रही हैं, दस ू री ओर सबसे सुरक्षक्षत थिल-घरों में -निकि संबंर्धर्ों तक के द्वारा कम उम्र की बस्च्चर्ों को शशकार बिािे की घििाएूँ बढ़ती िा रही हैं। र्ह रटिव्र् है कक शशक्षा, चेतिा तिा थवैस्च्छक प्रभावों से औरतों में थवाशभमाि और
आत्म निभयरता की भाविा बढ़ रही है , लेककि आधुनिकता की दौड़ में मदहलाएूँ अर्धकांशतः ‘भोग की वथतु’ के रूप
में
पररवनतयत होती िा रही हैं।
समाि समीक्षकों की मान्र्ता है कक रहि-सहि, वेष-भूषा, बोलचाल, पुरुषों के साि संबंध, अन्र्ार् के ववरुद्ध
आवाज़ उठािे की क्षमता िैसे सभी लक्ष्र्ों पर आि भारतीर् िारी, पहले से अर्धक िागरुक, सक्षम तिा आत्म ववश्वास से पररपूणय ददखाई दे ती हैं। थकूल-कालेि में सह-शशक्षा अब साधारण बात हो गर्ी है और गाूँव की लड़ककर्ाूँ
भी उच्च शशक्षा प्रातत कर रही हैं। मदहलाएूँ , िहाूँ पुरुषों की ज़्र्ादनतर्ों और अत्र्ाचारों को अपिी निर्नत मािकर सह
िाती िीं, वहाूँ वे अपिे पनत तक के अत्र्ाचारों तिा अपिे र्ा अपिी बेिी के साि हुए बलात्कार को पशु लस में ररपोिय
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करािे का धैर्य िुिािे लगी हैं। र्ह भी उल्लेखिीर् है कक वे संगदठत रूप से दहे ि, शराब, अन्र्ार्पूणय कार्ों, पेड़ों की
किाई आदद के ववरोध में आन्दोलि भी कर रही हैं और साक्षरता तिा मदहला िागरुकता के अशभर्ािों में सकक्रर् रूप
में भाग भी ले रही हैं, अिायत ‘राटरीर् मदहला आर्ोग’ का गठि मदहलाओं के संगदठत प्रर्त्िों का ही पररणाम है ।
इसके अनतररतत स्थत्रर्ों को अन्र्ार्, बलात्कार िैसे अमािवीर् कृत्र्ों, दहे ि-हत्र्ा, छे ड़छाड़ आदद से बचािे के शलए
कई कािूि भी बि गर्े हैं।
र्ह रटिव्र् है कक उपर्त ुय त सभी तथ्र् िारी के पररवनतयत सामास्िक व्र्वथिा की ओर संकेत करते हैं। उस
प्रकार िीवि के ववशभन्ि क्षेत्रों पर दृस्टि डालें तो थपटि झलकता है कक िारी की भागीदारी की ि केवल वद् ृ र्ध हुई है ,
अवपतु कुछ घििाओं में उन्हें महत्वपण ू य थिाि भी शमलिे लगा है । अध्र्ापि, अशभिर्, फैशि, कफल्म, िे शलववज़ि,
पत्रकाररता, ववज्ञापि िैसे व्र्वसार्ों में , िहाूँ व्र्स्ततत्व तिा सुन्दरता को महत्व ददर्ा िाता है , वहाूँ िारी की भूशमका का ववशेष रूप से ववथतार हुआ है । र्ह भी ववददत है कक अर्धकांश संगठिों में शीषय पदों पर भी र्े पहूँच गर्ी हैं और
थवैस्च्छक आन्दोलिों में भी मदहलाएूँ अग्रणी हैं। परं तु बढ़ते हुए उपभोततावाद के प्रभाव के कारण मदहला का थवरूप
आि भी व्र्स्तत के रूप में ‘कम’ तिा ‘वथतु’ और ‘भोग्र्ा’ के रूप में अर्धक ददखाई दे ता है । समथर्ामूलक बात र्ह
है कक कफल्में , िी.वी पर प्रसाररत लोकवप्रर् धारावादहक िािक, ववज्ञापि तिा बाज़ारी संथकृनत से पररचाशलत अन्र्
माध्र्म भी िारी की इस छवव को और पररपुटि बिा दे ते हैं। सबसे अिुपर्ुतत बात र्ह है कक अर्धकतर कफल्मों में
िारी के शरीर तिा उसके वासिारं स्ित आकषयण पर बल दे िे की प्रववृ त्त दे खी िा सकती है । र्ह भी रटिव्र् है कक
फैशि शो, सौन्दर्य प्रनतर्ोर्गताओं, ववज्ञापिों, पत्र-पब्रत्रकाओं में प्रकाशशत र्चत्रों आदद में िारी के केवल सौन्दर्य तिा
प्रदशयि पक्ष पर अर्धक दृस्टि डाली िाती है और अर्धकतर मदहलाएूँ भी अपिे शारीररक आकषयण तिा प्रभाव को
अर्धक तिा अन्र् र्ोग्र्ताओं व ववशेषताओं के प्रनत बेपरवाह होती ददखाई पड़ती हैं। आलोचकों का कहिा है कक हर
तीसरे कफल्म में बलात्कार के प्रर्ास का दृश्र् शाशमल ककर्ा िाता है , स्िसके माध्र्म से िारी को िग्ि, अधय िग्ि
र्ा अव्र्वस्थथ्त स्थिनत में ददखािे का बहािा शमल िाता है। दस ू री ओर कफल्मों के गीतों में भी लड़ककर्ों को कामुक
तिा अधय िग्ि मर ु ाओं में ददखािा सामान्र् बात हो गर्ी है ।
‘आदशय भारतीर् िारी’ -र्े तीि शब्द एक ऐसी िारी की तथवीर का प्रदशयि करते हैं , िो सब तरह से अन्र्ार्,
डाूँि-फिकार और अत्र्ाचारों के ववरुद्ध पथ् ृ वी की तरह सहिशीलता की प्रतीक बिी रहकर पररवार, ववशेषतः ‘पनत
परमेश्वर’ की भलाई में अपिी इच्छाओं, सुख एवं िीवि को बशलदाि कर दे ती है । सामान्र् पररवारों में संथकारों को
महत्वपूणय थिाि दे िा िारी पक्ष का अनिवार्य अंग बि िाता है । लेककि आधुनिक शशक्षा, िर्ी िे तिॉलॉिी तिा मदहला
अर्धकारों के कारण लड़की के लालि-पालि की प्रकक्रर्ा में भी परं परागत आदशों का प्रर्ोग करिा कुछ कम अवश्र्
ददखाई दे ता है । ककं तु सत्र् र्ह है कक अर्धकतर मध्र्वगीर् पररवारों में िारी के इस थवरूप को तोड़ पािे की इच्छा
और साहस नितांत िहीं है , तर्ोंकक बाह्र् रूप में आधुनिक भारतीर् खुले और प्रगनतशील अवश्र् ददखाई दे ते है , परं तु
अभी उिकी मािशसकता रूढ़ीवाद से मुतत िहीं हो पार्ी है । अतः र्ह रटिव्र् है कक आधुनिक भारतीर् िारी को एक
ओर अनत शशक्षक्षत तिा उच्च पदों पर कार्यरत होते हुए भी सामास्िक तिा िानतगत बंधिों के कारण उिका प्रगनत की ददशा तक पहुूँचिा असंभव-सा प्रतीत होता है । दस ू री ओर िारी के प्रनत भोगवादी दृस्टि के कारण आधुनिक र्ुग
में िारी स्िस प्रवाह से थवतंत्रता तिा आत्म-निभयरता की ददशा में बढ़ रही है , उसी प्रवाह से उसके ववरुद्ध होिेवाले
अपराधों की संख्र्ा भी बढ़ रही है ।
147
समग्रतः र्ह रटिव्र् है कक थवातंत्र्र्ोत्तर भारतीर् िारी, थवतंत्र, िागरुक, सक्षम तिा आत्म ववश्वास से
पररपूणय अवश्र् है , अवपतु समाि की रूढ़ीवादी मािशसकता से वह कहीं अर्धक नघरी हुई है ।
वाथतव में िवीि मािवतावाद के आववभायव के कारण थवातंत्र्र्ोत्तर भारतीर् समाि में छुआछूत, िानत-प्रिा,
थत्री-परु ु ष के भेद-भाव आदद के प्रनत ववरोध के साि-साि थवतंत्रता, समािता आदद का समियि भी हो रहा है , अिायत
र्ह रटिव्र् है कक आधुनिक र्ा थवातंत्र्र्ोत्तर र्ुग में मिुटर्, अपिी समता, थवतंत्रता आदद का सामास्िक न्र्ार् के
आधार पर समियि करिे की कोशशश करता है ।
थवतंत्र भारत उन्िनत के पि पर चलते हुए भी कुछ खास क्षेत्रों में अपेक्षक्षत सफलता प्रातत िहीं कर सका है
और स्िसका प्रभाव उत्तर औपनिवेशशक भारत के समर्ु चत ववकास में बाधा का ववषर् बि गर्ा है । ववशेषज्ञों के अिम ु ाि के अिुसार िब भारत थवतंत्र हुआ तो उस समर् दे श की िि-संख्र्ा 35 करोड़ िी। सि ् 1997 की िि गणिा के
अिुसार भारत की िि संख्र्ाा 96 करोड़ िी। और िि संख्र्ा की वद् ृ र्ध की समीक्षा करिे पर र्ह अिुमाि लगाते 31 भी हैं कक सि ् 2016 तक वावषयक िि संख्र्ा की वद् ृ र्ध 1.4 प्रनतशत हो सकेगी।
वाथतव में ककसी दे श की िि
संख्र्ा की वद् ृ र्ध से दटु पररणाम ही निकलते हैं। अतः र्ह रटिव्र् है कक थवतंत्र भारत का शहरीकरण उि दटु पररणामों
का एक प्रबल उदाहरण है । उसके अनतररतत साधारणतः िि- संख्र्ा की वद् ृ र्ध के साि निधयिता, निरक्षरता तिा
भ्रटिाचार की वद् ृ र्ध भी हो िाती है । निरं तर बढ़ती िा रही िि-संख्र्ा की वद् ृ र्ध के कारण थवातंत्र्र्ोत्तर भारत की भी वही स्थिनत हुई।
साधारणतर्ा भारत धि-धान्र् से पररपूणय दे श है , ककं तु ऐसी मान्र्ता है कक वहाूँ के लोग कटिग्रथत िीवि
ब्रबता रहे हैं। इसका एकमात्र कारण अबाध गनत से बढ़ती िा रही वहाूँ की िि-संख्र्ा ही है । र्दद भारत अपिी खाद्र् सुरक्षा, आिीववकाहीिता, प्रशशक्षण का अभाव, निधयिता, असमािता िैसी अर्धकांश समथर्ाओं का समाधाि चाहता
है तो िि-संख्र्ाा-वद् ृ र्ध की समथर्ा का समाधाि अवश्र् करिा होगा तिा वाथतव में भारत की अिय व्र्वथिा के
सभी सामास्िक और राििीनतक पहलुओं का प्रबंधि इस सरल ककं तु आधारभूत समथर्ा के सफल समाधाि में ही
निदहत है । आलोचकों की मान्र्ता है कक र्दद भारत अपिी िि-संख्र्ा को अपिे दे श की भरण-पोषण-क्षमता के
अिुरूप बिार्े रखें तो, वह एक मािव संसाधि उत्पादक, सुपुटि एवं एक िीरोग राटर बिा पाएगा, अिायत र्ह ज्ञात
होता है कक उत्तर औपनिवेशशक समाि में निधयिता की समथर्ा समाि के शलए एक हानिकारक कारण बि गर्ी है और उसकी समास्तत भी असंभव-सी शसद्ध हो रही है ।
दस ू री ओर ववज्ञाि की उतिी प्रगनत होते हुए भी निरक्षरता के भर्ंकर प्रकोप िे थवतंत्र भारत के ववकास को
अवरुद्ध ककर्ा है । ववचारकों का कहिा है कक निरक्षरों की इतिी बड़ी संख्र्ा के साि भारत, ववश्व का सवायर्धक निरक्षरोंवाला दे श बि गर्ा है । ववशेषतः ग्रामीण क्षेत्रों की मदहलाओं की अशशक्षा की समथर्ा और भी गंभीर है । थवतंत्र
भारत की सरकार िे प्रौढ़-शशक्षा अनिवार्य करके निरक्षरता को दरू करिे का अशभर्ाि तो आरं भ ककर्ा है , लेककि उससे अर्धक लाभ होिे की संभाविा पर कोई निस्श्चत निणयर् लेिा असंभव है ।
अतः र्ह सवयववददत है कक भारत की निधयिता, आिीववकाहीिता, िि-संख्र्ा, सामास्िक असमािता एवं
सामास्िक शोषण िैसी मूलभत ू समथर्ाएूँ तो आसािी से मत ु त िहीं हो पार्ी हैं, कफर भी शशक्षा, उद्र्ोग, कृवष, रहिसहि, थवाथथ्र्, पररवहि तिा संचार िैसे क्षेत्रों में भारत िे प्रामाखणक प्रगनत प्रातत की है । दस ू री ओर िि-संख्र्ा31
उपाध्र्ार्, दे वेन्र (1998) आज़ादी के
148
50 वषय-तर्ा खोर्ा, तर्ा पार्ा (भाग 02), प.ृ 21
निर्ंत्रण, पर्ायवरण, बाल मज़दरू ी िैसी कुछ समथर्ाएूँ ऐसी भी हैं, स्िन्हें हल करिे की ददशा में अिेक प्रर्त्िों के
कारण व्र्ापक िागरुकता लािे में सफलता शमली है ।
र्ह उल्लेखिीर् है कक आि की महत्वपूणय प्रगनत के अनतररतत थवतंत्र भारत को अभी भी अपिी पुरािी
समथर्ाओं का सामिा करिा पड़ रहा है । गरीबी, िि-संख्र्ा, पर्ायवरण प्रदष ू ण, दहंदओ ु ं और मस ु लमािों के बीच िातीर्
तिा धाशमयक संघषय और उसके अनतररतत कश्मीर संघषय की समास्तत अभी तक िहीं हुई है , िबकक पाककथताि और
भारत, दोिों परमाणु हर्िर्ारों के साि एक दस ू रे को अपिी शस्तत र्ा बल ददखाते रहते हैं।
दस ू री ओर भारतीर् िि-संख्र्ा और संथकृनत में पस्श्चमी मूल्र्ों के एकीकरण के संदभय में ववचारकों में ऐसी
मान्र्ता है कक ब्रिदिश प्रभाव एशशर्ाई उपमहाद्वीप में सवयव्र्ापी है अिायत थवतंत्र भारत पर आि भी ब्रिदिश साम्राज्र्
का गहरा व्र्स्ततत्व रस्टिगत होता है । वाथतव में अंग्रेज़ी भाषा का असीम अर्धकार उसका कारण हो सकता है , अिायत
अर्धकतर भारतीर् अंग्रेज़ी भाषा से पररर्चत हैं। तर्ोंकक ब्रिदिश उपनिवेशवाददर्ों िे भारतीर् िि-संख्र्ा तिा अपिे
भाषा शशक्षण द्वारा अपिे मूल्र्ों और संथकृनत का प्रचार ककर्ा िा। अतः र्ह रटिव्र् हे कक थवतंत्रता प्रास्तत के 60
वषय बीत िािे पर भी औपनिवेशशक ववरासत अिायत औपनिवेशशक मािशसकता से भारतीर् िि-मािस मुतत िहीं हो
पार्ा है । 2007 में भारत के प्रधािमंत्री मिमोहि शसंह द्वारा आतसफोड ववश्वववद्र्ालर् में ददर्े गर्े भाषण से उतत बात की और भी पुस्टि होती है -
”ऐसा कहा िाता िा कक ब्रिदिश साम्राज्र्वाद का सूरि कभी िहीं डूबता िा, परं तु मुझे डर है कक इस लोकोस्तत को पुस्टिभूशम में भेििे के शलए हम सभी उत्तरदार्ी हैं, तथ्र् र्ह है कक एक ऐसी पररघििा स्िस
पर सूरि कभी भी डूब िहीं सकता, वह है अंग्रेज़ी भाषा बोलिेवाले लोगों का संसार स्िसमें भारतीर् मूल के
लोग ववश्व का सबसे बड़ा भाग है और अंत में , ब्रिदिश उवनिवेशवाद की सबसे बड़ी ववरासत है औपनिवेशशक
मािशसकता। अर्धकतर भारतीर् अभी भी अपिे से वररटि व्र्स्ततर्ों को ‘सर’ कहकर पक ु ारते हैं। इसके
अनतररतत भारतीर् मािशसकता पर कई अन्र् औपनिवेशशक निशानिर्ाूँ हैं। हम सभी ववदे शशर्ों, चाहे वे
अमरीकि हो, फ्रेन्च अिवा रशशर्ि, अंग्रेज़ कहकर ही संबोर्धत करते हैं। भारतीर् शशक्षक्षत ववशशटि वगय का अहं कार भी अंग्रेज़ी ववरासत है । िैसा कक एक ववद्वाि िे दितपणी की है , इस बात को हो सकता है कम
भारतीर् मािे, परं तु सफेद चमड़ी को अभी भी हम श्रद्धापूणय दृस्टि से दे खते हैं। ............................संक्षप े
में िहाूँ उपनिवेशवाद तो 1947 में समातत हो गर्ा, परं तु औपनिवेशशक ववरासतें ’ब्रिदिश राि से लेकर आि तक‘ बरकरार हैं।“32
भारत में उत्तर औपनिवेशशक र्ुग की पररभाषा करते हुए प्रोफेसर पूरणचंद िोशी िे अपिा िो मत प्रकि
ककर्ा है , उससे भी र्ह कल्पिा उत्पन्ि होती है कक तर्ा र्ह सचमुच िर्े औपनिवेशशक र्ुग का आरं भ है ?
“बीसवीं सदी का अंत और इतकीसवीं सदी का आरं भ भारत िैसे दे शों के शलए सांथकृनतक िवोदर् का संकेत
है र्ा िव उपनिवेशवाद का -र्ह वतयमाि संदभय में एक मुख्र् प्रश्ि बिकर उभरा है ।”33
32 33
बरमािी, आर. सी. (2011) भारत में उवनिवेशवाद तिा राटरवाद, प.ृ 525
िोशी, परू णचंर, शताब्दी का अंत-सांथकृनतक िवोदर् र्ा िव उपनिवेशवाद (1996) अतिूबर-ददसम्बरद्ध गगिांचल, प.ृ
13
149
समग्रतः उत्तर औपनिवेशशक भारत के प्रनत ववश्वीर् दृस्टि डालिे पर र्ह प्रतीत होता है कक वतयमाि समर् में
ववज्ञाि के प्रभाव से मािव की िीवि पद्धनत में रत ु गनत से पररवतयि आ रहा है, लेककि मािशसक-संथिाि में
पररवतयि की गनत में ववलम्ब अवश्र् है । अिायत आि भारत आधुनिक तो शीघ्र ही बि पाता है , पर आधुनिकतावादी
िहीं बि पाता है । र्ह िीवि-दृस्टि एवं िीवि-पद्धनत में अंतववयरोध की स्थिनत है । इसी कारण मल् ू र्ों में तिाव की
स्थिनत उत्पन्ि हो रही है , संघषय उभर रहा है । मािव खाि-पाि तिा रहि-सहि में तो आधुनिक बि गर्ा है , पर
उसकी िीवि दृस्टि परं परावादी ही है । वैज्ञानिक िीवि दृस्टि में र्िािय की थवीकृनत के कारण धाशमयक तिा सामास्िक
बंधि क्षीण होते गर्े हैं। र्ह पररवतयि आधुनिक र्ुग में संपूणय ववश्व में चल रहा है । परं तु भारत में थवतंत्रता के पश्चात ही इसकी पस्ु टि हुई है िो आि तक गनतशील है ।
150
िहंदी तथा िसंहली के ��न����ा�क स�र्नाम �ब�यू. नीता सुभािषणी सेनेिवर�न िह�दी अ�ययन िवभाग,
कॅलिणय िव�विव�यालय
संज्ञा के �थान पर प्रयक् ु तहोनेवाला श�द ’सवर्नाम’कहलाता है । इसका ता�पयर् यह है िक िजस �थान पर संज्ञा का प्रयोग हो सकता है , उस �थान पर सवर्नाम का भी प्रयोग हो सकता है । केवल संबोधन म� सवर्नाम का प्रयोग संज्ञा के बदले नहीं िकया जाता। िसंहली भाषा म� सवर्नाम को, ’अिभ�ननाम’तथा ’िनयु�यनाम’आिदनाम� से भी अिभिहत िकया जाता है । भाषा म� सवर्नाम� का �थान मह�वपूणर् एवं अपिरहायर् है । ये, भाषा के ऐसे घटक होते ह�, जो भाषा म� िन�य प्रित अिधक मात्रा म� अंतगर्त आते ह� । संज्ञाओं की पन ु राविृ � को रोकना, सवर्नाम का मख् ु य कायर् होता है । िह�दी के सवर्नाम� को छह वग� म�
िवभािजत िकया गया है , जैसे‐ प� ु षवाचक, िन�चयवाचक, अिन�चयवाचक , प्र�नवाच, , संबंधवाचक तथा िनजवाचक सवर्नाम आिद। िसंहली भाषा के सवर्नाम� को पु�षवाचक, िनद� शवाचक , प्र�नवाचक , अिन�चयवाचक , समुदायवाचक तथा िनजवाचक के �प म� छह प्रभेद� म� िवभक्त िकया गया है । इन सवर्नाम� म� से िहंदी तथा िसंहली के अिन�चयवाचक सवर्नामओं का िवचार िकया जाएगा। िकसी अज्ञात, अिनि�चत �यिक्त तथा व�तु का िनद� श करने के िलए अिन�चयवाचक सवर्नाम�
का प्रयोग िकया जाता है । िहंदी म� दो अिन�चयवाचक सवर्नाम होते ह�, ’कोई’और ’कुछ। ’कोई’का
प्रयोग िकसी प्रािणवाचक संज्ञा के �थान पर होता है तथा ’कुछ’का प्रयोग मनु�येतर प्रािणय� एवं पदाथ�
के िलए िकया जाताहै ।
कोई
[उस झ�प�ी म� कोई है ]
[वहाँ कोई िच�ला रहा है ]
कुछ
[कुछ समझता है िक नहीं]
[िभखारी ने कुछ माँगा]
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’कोई’तथा ’कुछ’िनयत िलंग है । इनके साथ सामा�यत� प�ु �लंग िक्रया का प्रयोग िकया जाता है, भले
इनसे संकेित तपदाथर् िकसी िलंग का हो।
[आप से िमलने कोई आया है]
[आपने कुछ खाया]
’कोई’के प्रयोग से संबंिधत कुछ उ�लेखनीय त�य िन�नप्रका रप्र�तत ु िकये जा सकतेह� ‐
’कोई’के पहले ’सब’लगा िदया जाए तो उसका अथर् ’सब लोग’और ’हर’लगा िदया जाए तो
उसका अथर् ’प्र�येक’हो जाता है , जैसे‐
[सब कोई यह बात कह रहे थे]
[हरकाम हरकोई नहीं कर सकता]
िकसी संख्यावाचक संज्ञा के पूव र् ’कोई’लगा िदया जाए तो उसका अथर् ’लगभग हो जाता है, जैसे‐
[कोई डेढ़ सौ सेवक वहाँ काम करते थे]
[कोई बीस‐पचीस मील पर पहाड़ी प्रांत शु� हो गया]
’कोई’के साथ ’एक’का प्रयोग होने से अिध अिन�चयता प्रकट होती है ‐
[तुमम� से कोई एक आ जाए]
सामा�यतया ’कोई’का प्रयोग एकवचन म� होता है । एक से अिधक �य�क्तय� के िलए ’कुछ
लोग’का प्रयोग िकया जाता है । ’कोई‐कोई, ’कोई लोग’आिद भी एकािधक �य�क्तय� के िलए प्रयक् ु त होते ह�‐
[आप से िमलने के िलए कुछ लोग आये ह�]
[कोई लोग यह भी नहीं चाहते ह� िक िशक्षा अिनवायर् हो जाए]
152
[कोई‐कोई ��ाी िशक्षा के �व��ध ह�]
’कोई’की तुलना म� ’कोई भी’ और अिधक अिन�चयवाचक है । ऐसे ही ’कोई’समु�चय के एक
सद�य का बोध कराता है , जबिक ’कोई भी’पथ ृ क‐पथ ृ क समु�चय के प्र�येक सद�य का ग्रहण करता है ,
यथा‐
[दरवाज़ा बंद रखो, कोई अंदर आ सकता है]
[दरवाज़ा बंद रखो, कोई भी अंदर आ सकता है ]
समु�चय म� से िन�चयपूवक र् कम‐से‐कम एक का ग्रहण कराने के िलए ’कोई‐न‐कोई का प्रयोग
िकया जाता है ।
[कोई‐न‐कोई तो हमेशा बीमार पड़ता है ]
प्राय�प्र�न, िनषेध या अिन�चय के संदभर् म� ’कोई’के साथ कभी‐कभी ’वह’और ’जो का प्रयोग िकया जाता है ‐
[यहाँ कोई नहीं है जो बाज़ार जाने को तैया रहो]
[यिद कोई भारत जाना चाहता है तो वह अपना िटकट खरीद ले]
भाववाचक संज्ञाओं के साथ ’कोई’का प्रयोग िकया जा सकता है , परं तु केवल नकारा�मक संदभर् म� ‐
[अब उसके बचने की कोई उ�मीद नहीं है ]
[क्या उसे अपने िकये प रकोई पछतावा है ]
’कुछ’की तल ु ना म� ’कुछ भी’अिधक अिन�चयता का �योतक है । ’कुछ’समु�चय के एक‐दो
सद�य� का ही ग्रहण करता है , जबिक ’कुछ भी’पथ ृ क‐पथ ृ क समु�चय के सभी सद�य� का ग्रहण करता है । उसम� ’सब’का अथर् अंतगर्त है , यथा‐
[कुछ भी कहो, म� उसे न जाने दँ ग ू ा]
समु�चय के सभी सद�य� का ग्रहण कराने के िलए ’कुछ’से पूव र् ’सब’का प्रयोग िकया जा
सकता है‐
[हम� सबकुछ पता है ]
153
समु�चय म� से िन�चयपूवक र् कम‐से‐कम एकप्राणी या पदाथर् का ग्रहण कराने के िलए ’कुछ‐न‐
कुछ’का प्रयोग िकयाजा ताहै ‐
[वहाँ कुछ‐न‐कुछ हो रहा है]
’कुछ’का प्रयोग ’और कुछ’तथा ’कुछ और’के �प म� भी होता है । इससे ’दस ू रा’का अथर्
िनकलता है , जैसे‐
[मेरा नाम कुछ और रख दो]
[आपको और कुछ चािहए]
ह�, यथा‐
’कोई’तथा ’कुछ’सवर्नाम� से संबंिधत िविभ�न प्रयोग िमलते ह�, िजनसे िविवध अथर् प्रकट होते
सवर्नाम
सब कोई
→ सब लोग
हरकोई
→ प्र�येक
कोई एक
→ अिधअिन�चय
कोई‐कोई
→ एकािधक �यि�त
कोई लोग
→ एकािधक �यि�त
कोई भी
→
अिधक अिन�चयवाचक
कोई‐न‐कोई
→
समु�चयम� सेिन�चयपूवक र् कम‐से‐कमएककाग्रहण
कोई डेढ़ सौ
→ लगभग
कुछ भी
→ अिधक अिन�चयवाचक
सबकुछ
→
समु�चय के सभी का ग्रहण
कुछ‐न‐कुछ
→
समु�चय म� से िन�चयपूवक र् कम‐से‐कम एक का ग्रहण
और कुछ
→
दस ू रा
154
अथर्
कुछ और
→
दस ू रा
भाषण िसंहली म� �यवहार होनेवाले अ�न�चयवाचक सवर्नाम इस प्रका रहोते ह�-
[kɑvurut] ’कोई’
[kenek]’कोई’
[sɑmɑhɑrek]’कोई’
[ætæmek]’कोई’
[yɑmɑk] ’कुछ’
इन सवर्नाम� म� से [kɑvurut], [kenek], [sɑmɑhɑrek] तथा [ætæmek] आिद सवर्नाम ’कोई’के
अथर् म� प्रयक् ु त होते ह� तथा[yamak] सवर्नाम ’कुछ’के अथर् म� । यथा‐
कुछ प्र�नवाचक सवर्नाम� का भी अ�न�चयवाचक सवर्नाम के �� म� प्रयोग िकया जा सकता है ,
[[kɑvudә]’कोई’
[मानव]
[mokekdә]’कोई’
[‐मानव, +एकवचन]
[mokkudә]’कोई’
[‐मानव, ‐ एकवचन]
[mokɑkdә] ’क्या’
[‐प्रािणवाची, +एकवचन]
[mokɑkdә]’क्या’
[‐प्रािणवाची, ‐एकवचन]
इन सवर्नाम� का प्रयोग �न�नप्रकार उ�लेख िकया जा सकता है ।
उदा‐
[ɡe: ætule kɑvudә innәvɑ]
’घर म� कोई है ’
[peʈʈiye mokekdә innvɑ]
’����े म� कोई है ’
155
[vɑture mokkudә innvɑ]
’पानी म� कुछ ह�’
[nændɑ mokɑkdә dunnɑ]
’मामी ने कुछ िदया।
[eyɑ monvɑdә kivuvɑ]
’उसने कुछ कहा’
प्र�नवाचक सवर्नाम� से ’hɑri’प्र�यय जोड़कर भी अिन�चयवाचक सवर्नाम� का िनमार्ण िकया जा
सकता है , यथा‐
[kɑvuruhɑri]’कोई’ [+मानव]
[mokekhɑri]’कोई’ [‐ मानव]
[mokɑkhɑri]’कुछ’ [+अप्रािणवाची]
[monәvɑhɑri]’कुछ’ [+अप्रािणवाची]
[ko:kɑkhɑri] ’कुछ’ [‐+अप्रािणवाची]
इन सवर्नाम� म� से ’kɑvuruhɑri’केवल मानव� के िलए प्रयक् ु त होता है तथा ’mokekhɑri,
मनु�येतर प्रािणय� केिलए। ’mokɑkhɑri’, ’mokɑkhɑri’तथा ’ko:kɑhɑri’/ ’ko:kɑkhɑri’आिद सवर्नाम� का अप्रािणवाचक अथर् म� �यवहार िकया जाता है । इन सवर्नम� का प्रयोग िन�नवत है ‐
[eyɑʈәkɑvuruhɑri udɑvu kәrɑyi]
’कोई उसकी मदद करे गा’
[hiɡ̃ɑnnɑʈә monәvɑhɑri dennә]
156
’िभखारी को कुछ दो’
[me: leɖe:ʈә mokɑkhɑri kәrɑnnә]
’इस बीमार को कुछ करो’
[me: deken ko:kɑkhɑri ɡɑnnә] ’इन दोन� म� से कुछ लो’
िसंहली भाषा म� [ekkenɑ], [ekkenek], [ki:pәdenɑ],[ki:pәdenek], [ki:pәyɑk],
[tikɑk], [huɡ̃ɑk], [huɡә:denek]आिद भी अिन�चयवाचक सवर्नाम के �पम� प्रयुक्त होते ह�, यथा‐
[ ekkenek væɖә kәrәnәvɑ] ’वहाँ एक आदमी काम करता है ’
[ki:pәdenek eyɑ:ʈә ɡæhuva] ’कई आदिमय� ने उसे मारा’।
[mɑʈɑtʈikɑk dennә] ’मुझे भी थोड़ा दो’
इस तल ु ना�मक अ�ययन से यह �प�� होता है िक दोन� भाषाओं के अिन�चयवाचक सवर्नाम� की संख्या अ�प होने पर भी उनके िवशेष प्रयोग भी द्र���य होते ह�।
संदभर् ग्रंथ-सूची: िहंदी अग्रवाल, कैलाश (1971)आधिु नक िहंदी �याकरण तथा रचना, रं जन प्रकाशन, आगरा। आयर्, सदािवजय; िम�, रमेश (1971) िहंदी भाष का उ�गम और िवकास, िचत्राग�ु त प्रकाशन, अजमेर। गु�, कामताप्रसाद (सं. 2100) िहंदी �याकरण, नागरीप्रचािरणी सभा, काशी। चतव ुर् ेदी, राज�द्र प्रसाद (?) िहंदी �याकरण, उपकार प्रकाशन, आगरा। त�ण, हिरवंश (2008) मानक िहंदी �याकरण और रचना, प्रकाशन सं�थान, नई िद�ली।
157
��ं�� �� �तु�त �ीमती �संता प��नी - ���प �ला�म, बटपोल। �� �नागर� ��र स���त �� � तु�य �न �� �ा�ा ���� �ा��त �� �र ��सर मान�ता �� प�र�ा�ा �ो�ट �ो�ट �ं�� स� �न�ल� य� �� सब �� ���ला�ा ��ं�� �ा ���यान ब�ा� ��ं�� �� �ल �� �ा�ा...
गंगा यमुना सर��ती �� ��सा �� �नम�ल पानी �स संसार �� �ा�ा�ं म� ��ं�� �� म�ा �ानी न�ृ य �र संगीत �ला �� �� �ी य� �ी�ापा�ी ��ं�� �ो ��ी�ार �रो �ब य� ��सी �ना�ानी...
मन �ो ��तना �ीतल �रती ��ं�� �� ���नया� सार� �स संसार �� �ा�ा�ं म� ��ं�� �� सबस� �यार� मीरा तुलसी सूर�ास �� य� �ा�ा �यार� �यार� �ं���ी �ा गया �माना �ब �� ��ं�� �� बार�...
158
मे गौयी का रहू है, सच भया! ऩूछा तो था साहहय ने,
"मे ककसका रह है , कौन भया?"
ू हैभया! मेमेगौयी का का रहू हैरह , सच गौयी ू , सच
भया! रो साहहय आज जवाफ रो
ऩूछा तो था साहहय ने,
"मे ऩछसच ा तोका थारह साहहय ने, भया।" ू है , सच
"मे ू ककसका रहू है , कौन भया?"
"मेसाहहय ककसका रहू हैरो, कौन रो आज जवाफ चन री गमी हैं फंदक ू ें "मे ु सच का रह है , सच भया।"
भया?"
ू रो साहहय आज जवाफ रो
खयीदी गमी हैं गोलरमां
मे गौयी का रहका ू हैंहै,फंसच सच रह है , च"मे न री गमी दकेंभया!
ु
ू
ू
सच भया।"
हय गोरी ऩय है नाभ लरखा
खयीदी गमी हैं गोलरमां
ऩूछा तो था साहहय ने,
"मे सच का रह है , सच भया।"
हय हैू हैनाभ "मे रह , कौन भया?" चककसका न रीऩय गमी हैंू लरखा फं दक ुगोरी ू ें
"मेसाहहय सच का रह रो आज जवाफ रो भया।" ू है , सच
खयीदी गमी हैं गोलरमांनमा
"मे सच का रहू है ,हैसच भया।"बी नमा सभम , नाया
नमा नायाहैबीनाभ नमा लरखा हय सभम गोरीहै,ऩय
चजो न गमी का हैं फंदअरख क ु रीसच ू ें
जगामेगा
जो सच का अरख जगामेगा
"मे गोरी सच है , सच खयीदी गमी हैंका गोलरमां वह से रह भय ू जामे गा वह गोरी से भय जामेगा
हय गोरी ऩय है नाभ लरखा
भया।"
"मे काका रह रह है , सच "मेसच सच है ,भया।" सच भया।"
"मे सच का रहू है ,ू सच ू भया।"
नमा सभम है , नाया बी नमा
हय गोरी ऩहनाया तम जगह ुं च यही नमा बीहैनमा जोसभम सचहै,का अरख जगामेगा
हय गोरी ऩहुंच यही है तम जगह
करसच गौयी की फायी थी शामद जो का अरख जगामे गा
वह से गा कर फायी थी शामद वह गोरी भयकी जामेभय गशामद ा जामे अफ भेगोरी यगौयी ीसेफायी आमे
"मे सच काू रहू है , सच भया।"
"मे सच का भया।" ू है , हैसच "मे सचभे का , आमे सच भया।" अफ यरह ी रह फायी शामद हय ऩहुंच है तम "मेगोरी सच कायहीरह , सच ू हैजगह
प्रकतत औय नायी करृ गौयी की फायी थी शामद
भया।"
हय गोरी ऩहुंच यही है तम जगह
अफ भेयी फायी आमे शामद
अम्फय काऔय ववस्ताय, लसभटा स्री के घय द्वाय प्रक करततगौयी कीनायी फायी थी शामद
ृ का रहू है, सच भया।" "मे सच
धया न, भात त्ृ व शामद का फंधन अफकाभेयस्ऩंी दफायी आमे
प्रक नायी ृ तत औय का अम्फय
ववस्ताय, लसभटा स्री के घय द्वाय
"मे सच , सच भया।" हवाओं का का शोय,रह फना सो की डोय ू हैसां
अम्फय का ववस्ताय, लसभटा स्री के घय द्वाय
धया का स्ऩंदन, भातत्ृ व का फंधन
ऩंतछमों का करयव, भेयी रोयी का सयगभ
धया का स्ऩंदन, भातत्ृ व का फंधन
प्रकृतत औय नायी सभ का शोय, हाहाकाय, नस की चीत्काय हवाओं का शोय,सांभेसयफना सां ो की डोय ुद्र का हवाओं फना ोे अं कीतभम डोय ऩंप्रक तछमों भेनायी यी रोयी सयगभ अम्फय का लसभटा का करयव, क्रंदन,ववस्ताय, का का रुदन ृ तत का
स्री के घय द्वाय
ऩंतछमों का करयव, भेयी रोयी का सयगभ
सभ द्र हाहाकाय, ख न की चीत्काय ु का ज्वाराभ दहकता भेत ये भमबीतय की आग ु भेी,ये अं
धयाद्र का दन, भात न चीत्काय सभ का स्ऩं हाहाकाय, भेयत्ृ े वअंका तभमनफंधकी
प्रकृतत ु का क्रंदन, नायी का रुदन
सज ृ न बी ववध्वंस बी .....लसपम तू I
दहकता ज्वाराभ ी, भेये बीतय आग हवाओं काुखशोय, फनाकीसां सो
की डोय प्रकृतत का क्रंदन, नायी का रुदन
सज ृ न बी ववध्वंस बी .....लसपम तू I
ऩंतछमों ज्वाराभ का करयव, भेयये ी बीतय रोयी की का आग सयगभ दहकता ुखी, भे
कभरदीऩ खन्ना
सभ द्र का ववध्वं हाहाकाय, ये अंतभम स ज बी स फबी म न तू ु उच्चामोग, बायतीम कोरं ो भे.....लसप ृ न
की I चीत्काय
प्रकृतत का क्रंदन, नायी का रुदन दहकता ज्वाराभख ु ी, भेये बीतय की आग
159
वह
वह प्रकृति की बेटी है वह , सष्ृ टट की ऩरम सौन्दर्यमर्ी कृति है वह ,
ह,
उसकी आत्मा में ,खिलिा है ,प्रेम का प्रसन ू ।
दर्यमर्ी कृति है वह ,
लिा है ,प्रेम का प्रसन ू ।
मग्र सष्ृ टट को,
ि।
सरु भिि करिा है ,समग्र सष्ृ टट को, उनकी सेवा का सौरि । किी वह िड्गधाररणी काली है ,ऩािॊडी का वध करने के भलए। किी वह दश प्रहरधाररणी दग ु ाय है ,नारी शष्ति को जगाने के भलए। किी वह लक्ष्मी है ,सॊसार को सश ु ोभिि बनाने के भलए। किी वह सरस्विी है ,जगि में ववद्र्ा वविरण करने के भलए।
वसध ु ा है , सहहटणुिा के गण ु से। णी काली है ,ऩािॊडी का वध करने के .वह भलए। वह आकाश है , सबकी आश्रर्दातर्नी होने के कारण ।
ररणी दग केवार् भलए। ु ाय है ,नारी शष्ति को जगाने वह है ,सबकी जीवनदातर्नी होने के कारण । ु
सार को सश ु ोभिि बनाने के भलए।
वह जल िी है ,सबको रसभसति बनाकर ,सबको अऩना बनाने के कारण । ऩति के भलए चररत्र,सॊिान के भलए ममिा ,
,जगि में ववद्र्ा वविरण करने के भलए। समाज के भलए शील ,ववश्व के भलए दर्ा,
णुिा के गण ु से।
ी आश्रर्दातर्नी होने के कारण ।
ीवनदातर्नी होने के कारण ।
जीव मात्र के भलए करूणा सॉजोनेवाली , महाप्रकृति का नाम वही है । वह नारी है ।
अचला दमर्ॊिी
ो रसभसति बनाकर ,सबको अऩना बनाने के कारण । हहॊदी अध्र्ावऩका
सॊिान के भलए ममिा , 160
,ववश्व के भलए दर्ा,
िारिीर् साॊस्कृतिक केंद्र, कोलॊबो
इज़्ज़त किसी िे मन में , किसी िे प्रति, पैदा होिा है , तनर्वयााज िा भाव, वही है इज्ज़ि । उठ उठ िे जो, ददखािा है इज्ज़ि, ददखावट है वह, नहीीं है , उसमें तनर्वयााज िा भाव है भरा, उसमें र्वयाज िा भाव प्रिट होिा है क्या ? उठ बैठने से, वही है , इज्ज़ि। नहीीं, वह मानदीं ड नहीीं है किसी िो माप िौऱ िरने िा।। अमानी ववक्रमारच्चि दहींदी अध्यावपिा
भारिीय साींस्िृतिि िेंद्र िोऱींबो
161
खाली है, तो खोला है
जीते जा रही ह�ँ मेरे सनम
खल ु ा है, तो काली है पर न�रकिवता नह� का अनवु ाद) (एकह�,िसपरहं ली
न िमल सकने से आकाशगगं ा
(किवहै अ�ात ि�र कतर हरहै)कह��
सागर-प�ु रो-रोके मरता है
सनम रे!
टूटे ह�ए िदल से वैसे
(एक िसहं ली किवता का अनवाद) कण-कण �स� नामउदेिशका पेक� रेरा बदंू � से ु (किव है) पर सने ह�एअ�ात धिू ल-कण� ि��ि��ालयकॅ लिनय ि��ि��ालय सनम रे! बैठकर गनु गनु ाये कण-कण हँस रहे ह� मे�स� रे सनमक� बदंू � से सने ह�ए धिपेू ल-कण� आसमान दरू पर पर गिठमिठमाते नु गनु ाये बैठतार� कर म� हँिदल स रहेछुपाये ह� मेरबैे सनम ठकर आसमान रू पर हँस रहे ह� मेपेरदे सनम
त�ु हारे िदल बहलाके तब आँसू प�छने का हक मझु े न िमलने तक कै सा पाप िकया है, मेरे सनम? मझु े न िमलने तक कै(��रि�त सा पाप िकया कि�ता)है, मेरे सनम?
िठमिठमाते तार� म�
कमी
िदल अनछछु एु पाये तार�बैम�ठकर ही हँिदन-रात स रहे ह�लगाकर मेरे सनमतन-मन
(��रि�त कि�ता) खाली है, तो खोला है
सपन� से ही छूते-छूते अनछ ु ए तार� जीते जा रही ह�म�ँ मेहीरे सनम
खाली है, न�र तो खोला पर ह�, पर नह� है
िदन-रात लगाकर तन-मन चाह के महल बनाके सपन� छूते-छूते चाह सेसेहीहीसजाके जीते रही ह�मनाके ँ मेरे सनम चाह सेजािदल चाह जीते केजामहल रही ह�बनाके ँ मेरे सनम
162
आँसू बहाते हो, मेरे सनम
कमी खल ु ा है, तो काली है ख , तो काली है ु ाहैहैकतर ि�रल हर कह�� पर ह�, पर न�र नह� ि�र हर पेकह�� नाम-हैउदेकतर िशका रेरा ि��ि��ालय- कॅ लिनय ि��ि��ालय
चाह से ही सजाके
नाम- उदेिशका पेरेरा
चाह िदल मनाके न िमलसे सकने से आकाशगगं ा जीते जा�ु रहीरो-रोके ह�ँ मेरेमरता सनमहै सागर-प
ि��ि��ालय- कॅ लिनय ि��ि��ालय
टूटे ह�ए िदल से वैसे नआँिमल सकनेहो,से मेआकाशग सू बहाते रे सनम गं ा
�����न - होमागम dimuthuchathuranga768@gmail.com
आर.एम.�दमत ु ु चतरु ं ग
�ी लंका बौ� �र �ा�ल �व�व�व�यालय
- होमागम ‘’�����न बौ� �म� के �नस ु ार सोचने म� कुछ’’ dimuthuchathuranga768@gmail.com
आर.एम.�दमत ु ु चतरु ं ग
�ीम का बौ��ो� �र क �ा�ल �व�व�व�यालय त े �लए ु लं��ने �����न - होमागम dimuthuchathuranga768@gmail.com
‘’ बौ� �म� के �नुसार सोचने म� कुछ’’
दं � नह�ं �ा�गे
त� ु हारा �ो� खुद ह� त� ु ह� दं ��त करे गा।।
तम ु ��ने �ो� के �लए
‘’ बौ� �म� के �नस म� कबात ु ार सोचने ���ी ु छ’’�ो
नेक लोग� क� संगत
दं � नह�ं �ा�गे
से हम� शा भला� ह� �मलती है
त� ु हारा �ो� खुद ह� �य��क,
त ��ने �ो� का।। ेज़ ु� तम दं ��त करे हवा फूल� से ग ग रती है , ु ह�जब ु �लए
दं � वोनह�ं तो भी �ा�गे खश ु बद ू ार
ने� लोग� त हारा �ो� ु कजाती ुद गह�त हो है ।।क�खसं
त ��त करे गा।। से� ा भला� ह� �मलती है ु ह�हम�दंश
ताकत क� ज़�रत तभी होती ह�,
�य��क, जब ा करना ु छ बरु क� नेक कलोग� संगतहो, वरना हवा जब फूल� से गज़ ु रती है , दसे�ु नया म�ा सब कुछह��ाने के �लए हम� श भला� �मलती है तो वो भी खश बद ार ु ू �ेम ह� का�� है ।। �य��क, हो जाती है ।। हवा जब फूल� से गज़ ु रती है ,
����� मत मानो �य��� ,
��ा ���य� �े होता आया है ,
���ी बात �ो ����� भी मत मानो �य��� बड़े �ो� या ����ान �ो� ��ा �हते ह� । ���ी बात �ो ����� भी मत मानो �य��� ���� म� ��ा ���ा हुआ है।
���ी भी बात �ो तब ह� मानना जब �ह आ��े ����� म� �रा उतर जाये।।
लोहे को
तो वो भी खशबदार
ु करू सकता को� न��क�नह�ं ताकत ज़�रत तभी होती ह�, हो जाती हैजं ।।ग �से न�� करता है बस जब �सका कुछ ब रु ा करना हो, वरना इसी तरह
द�ु नया म� सब कुछ �ाने के �लए ताकत क� ज़�रत तभी होती ह�, आदमी को भी को� �र नह�ं �ेम ह� का�� है ।। जब कछ बरा करना हो, वरना ब��क ु �सक�ु सोच द�ु नया कुछहै,�ाने के �लए ह� न�� म� करसब सकती
लोहे को
�ेम ह� का�� है ।। �न��चत ��छा ह� होगा। सोच ��छ� रखो…..
को� न�� नह�ं कर सकता
बस �सका जंग �से न�� करता है लोहे को इसी न�� तरह नह�ं कर सकता को�
आदमी को जंभी �र करता नह�ं है बस �सका ग को� �से न�� इसी ब��कतरह �सक� सोच आदमी को� �र ह� न��कोकरभीसकती है , नह�ं
ब��क �सक� रखो….. सोच �न��चत ��छा ह� होगा। सोच ��छ� ह� न�� कर सकती है ,
सोच ��छ� रखो….. �न��चत ��छा ह� होगा। 163
सावररया तेरी यादों में हम खोये-खोये रहते हैं
ऩपऩहा बोऱे, ऩीऊ-ऩीऊ
जीना न ऱागे, जजया मेरा धड़के चऱ अब आ जा, सावन है यह भर दे आॉचऱ गमम हवा से रातें ऱम्बी, भीगी-भीगी
गाएॉगे हम मस्त तराने
चऱ अब आ जा सावन है यह
ममऱके चऱेंगे, प्यार की गमऱयों में
बस ह� ये द�ू �य�� हसारा दसु�न �ह�रमुतुगॉड
केल�नय �������यालय आया है मौसम बसंत का
आनॊद अबेसॊद ु र हहॊदी पवभाग केऱननया पवश्वपवद्याऱय, श्री ऱॊका
फूलती-फलती चार� �र
चल अब आ जा, सावन है यह .......
�फर �य� �ीत �तु अभी भी
बरसे सावन, तुझ बबन
मेरे मन के आँगन म� ? ये �य� मरु �ा गये ह� उदासी तन-मन मेरे? हो गयी हूँ म� तेर� पपीहा �ेम-सरो�र के �कनारे
ररम-झझम ररम-झझम
आया है सावन ऱेके प्यार की बरसातें सावररया तेरी यादों में हम खोये-खोये रहते हैं
ऩपऩहा बोऱे, ऩीऊ-ऩीऊ
ढूँढ रह� हूँ बेचन ै होकर
जीना न ऱागे, जजया मेरा धड़के
दे � रह� हूँ बा�ल� होकर
भर दे आॉचऱ गमम हवा से
कहाँ ��प गया तू?
कब आएगा त?ू
सू�े लब� पे रटता तेरा ह� नाम �दन-रात ��ा है �या, इस तरह? सम�ोना मेरे �दल क� बात लौट आना उड़कर मेरे पास �बताना है �ी�न एक सा�
चऱ अब आ जा, सावन है यह रातें ऱम्बी, भीगी-भीगी
गाएॉगे हम मस्त तराने
चऱ अब आ जा सावन है यह
ममऱके चऱेंगे, प्यार की गमऱयों में आनॊद अबेसुॊदर हहॊदी पवभाग केऱननया पवश्वपवद्याऱय, श्री ऱॊका
164
�ज़ाद�
यशवंत चौहान
रा���य �ज क�व
राजगढ़ िजला धार, म�य �दे श गंगा, यमुना क� धवल धरा सी ह� ये �नम�ल �ज़ाद� ।
र�ना इसे सं�ाल के यार� �ूल� सी क�मल �ज़ाद� ।। �ा�सी वाल� रानी के ब�लदान� क� कायल �ज़ाद� ।
�ारत मा� के प�र� क� �व���म सी पायल �ज़ाद� ।। �� ग�र के जनग�मन क� पक ु ार ह� ज�से �ज़ाद� । पावन व�दे मातरम क� हुंकार ह� ज�से �ज़ाद� ।। रा�� �वज �मर �तरं गे सी लहरा� �ज़ाद� ।
दे श राग के क�वय� क� वा�ी से �यी �ज़ाद� ।। �ढ़ ��त�ा के ��तमान स� ु ा� वाल� �ज़ाद� ।
�ज़ाद प�रंद� के �नम�ल �काश वाल� �ज़ाद� ।।
�बि�मल, �तलक, �गत�संह क� �ंधी वाल� �ज़ाद� । स�य ��हंसा के �नुगामी गांधी वाल� �ज़ाद� ।।
��दल ु हमीद, ��दल ु कलाम क� दे श ��त ह� �ज़ाद� । स�तर व�� से �ारत क� �द�य शि�त ह� �ज़ाद� ।।
हर एक मज़दरू �र �कसान क� ह� मेहनत �ज़ाद� ।
�ह�द,ू मुि�लम,�स�� ,इसा� सबक� ज़ीनत �ज़ाद� ।। ब�च� क� �कलकार� म� गंज ू े �ारत क� �ज़ाद� । सेना क� �द ु दार� म� गूंजे �ारत क� �ज़ाद� ।।
नार� के स�मान क� कायल ह� ये �यार� �ज़ाद� ।
सबसे सु�दर, सबसे ����, सबसे �यार� �ज़ाद� ।। हर चेहरे पर म� ु काये, �ा�� से �यार� �ज़ाद� ।
दे श - �ेम के गीत सन ु ाए, हर पल �यार� �ज़ाद� ।। �ढ़ ��त�ा ह� �ारतवासी, क�ी न �ब�रे �ज़ाद� ।
हर जन से ��हान यह� ह� , हर �दन �न�रे �ज़ाद� ।।
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हहिंद दे श की ऩहचान हे हहिंदी
हहिंदस् ु तान का स्वाभिमान हे हहिंदी
हहिंद दे श की ऩहचान हे हहिंदी
गवव हे हमें हमारी मातिाषा ऩर हहिंदस् ु तान का स्वाभिमान हे हहिंृ दी
िारत का मान हे हहिंदी गवव ववश्वऩटऱ हे हमें हमारीऩरमात ि ृ ाषा ऩर हहिंद दे श की ऩहचान हे हहिंदी ववश्वऩटऱ ऩर िारत का मान हे हहिंदी हहिंदस् ु तान का स्वाभिमान हे हहिंदी ववश्व में अऱग ऩहचान हे हहिंदी
गववववश्व हे हमेंमें हमारी मात ि ृ ाषाहे ऩर ऩहचान दी हर अऱग िारतवासी की हहिं शान हे हहिंदी ववश्वऩटऱ ऩर िारत का मान हे हहिं द हर िारतवासी की शान हे हहिंदी ी
िारत माता के भसर का ताज हे हहिंदी
िारत माता के भसर का ताज हे हहिंदी ववश्व ववववध में अऱगिाषाओिं ऩहचान में हे हहिं दी भसरमौर हे हहिंदी ववववध िाषाओिं में भसरमौर हे हहिंदी हर िारतवासी की शान हे हहिंदी
माता के भसर ताज दीदी दस् की गौरव ु तान हहिंदिारत स् तान की गौरव गाथाकाहेगाथा हहिंदी हेहे हहिंहहिं ु हहिं ववववध िाषाओिं में भसरमौर वीरऩ त्र हे हहिं दी हे हहिंहेदीहहिंदी ु ों का वीरऩ त्र का सौऩान ु ों सौऩान
अनेक ता मेंताएकता का प्रतीक हे हहिंदी हे हहिंदी में एकता हहिंदस् तानककी गौरव गाथा का हे हहिंप्रतीक दी ु अने दे श की आन बान शान हे हहिंदी कीसौऩान आन हेबान वीरऩदेत्र ों का हहिंदीशान हे हहिंदी ुश
अने कता में एकता का प्रतीक हे हहिंदी रचचयता दे श रचचयता की आन बान शान हे हहिंदी कववयत्री सश्र ु ी अनाभमका अग्रवाऱ
कववयत्री सश्र अनाभमका अग्रवाऱ ु ीकाऱोनी ६, ननरिं जन श्रीनाथ रचचयता ६, न ननरिंरोड जन श्रीनाथ काऱोनी डाईवशव कववयत्री सश्र ु ी अनाभमका अग्रवाऱ KHARGONE प्र.) ४५१००१ डाईवशव न (म. रोड काऱोनी ६, ननरिं जन श्रीनाथ िारत KHARGONE (म. प्र.) ४५१००१ डाईवशव न रोड KHARGONE (म. प्र.) ४५१००१ िारत िारत
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केंद्रीम ह द ॊ ी सॊस्थान, आगया
के ऩन ॊ ी भशक्षकों ु श्चमाय ऩाठ्मक्रभ भें बायतीम साॊस्कृततक केंद्र के छः ह द
ने प्रततबागगता की एिॊ दस हदिसीम प्रभशक्षण प्राप्त ककमा इस अिसय ऩय ह द ॊ ी सॊस्थान के तनदे शक प्रोपेसय नॊद ककशोय ऩाॊडम े एिॊ ह द ॊ ी भशक्षण भॊडर के उऩाध्मक्ष कभर ककशोय गोमनका ि अॊतयायष्रीम विबागाध्मक्ष
Jh yadk ds fganh lekpkj
डॉ. गॊगाधय िानोडे बी उऩस्स्थत थे।
बायतीम उच्चामोग, कोरॊफो के उच्चामक् ु त श्री तयनजीत सॊधू एिॊ बायतीम साॊस्कृततक केंद्र की तनदे शक याजश्री फे े या के साथ केंद्रीम ह द ॊ ी सॊस्थान, आगया भें अध्ममन विद्माथी।
े तु छािितृ त प्राप्त श्री रॊका के 20
विश्ि ह द ॊ ी हदिस के अिसय ऩय बायतीम उच्चामोग कोरॊफो के प्रबायी उच्चामक् ु त श्री अरयॊदभ फागची कय कभरों द्िाया ह द ॊ ी प्रचाय भभि भॊडर ने श्री रॊका के 13 ह द ॊ ी सेविमों को सम्भातनत ककमा।
विश्ि ह द ॊ ी हदिस 2017 के कामयक्रभ भें बायतीम साॊस्कृततक केंद्र, कोरॊफो की प्रथभ ह द ॊ ी रघु ऩत्रिका " श्री रॊका ह द ॊ ी
सभाचाय " का विभोचन बायतीम उच्चामोग कोरॊफो के प्रबायी उच्चामक् ु त अरयॊदभ
फागची के कय कभरों द्िाया ककमा गमा। साथ भें बायतीम साॊस्कृततक केंद्र की तनदे शक याजश्री फे े या, ह द ॊ ी चेमय डॉ. भशयीन कुयै शी एिॊ नधीया भशिॊती एिॊ अन्म ह द ॊ ी भशक्षक।
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ह द ॊ ी ऩखिाड़ा सभायो
2017 भें स ामक उच्चामोग कैं डी की स ामक उऩ उच्चामक् ु त याधा
िें कटयाभन सबा को सम्फोगधत कयते ु ए। ह द ॊ ी ऩखिाड़ा सभायो 2017 भें स ामक उच्चामोग कैं डी की स ामक उऩ उच्चामक् ु त याधा
िें कटयाभन सबा को सम्फोगधत कयते ु ए।
विश्ि ह द ॊ ी हदिस के अिसय ऩय ऩस् ॊ ी भशक्षण सॊग्र ु तक " ह द
"
को विभोगचत कयते ु ए बायत के
स ामक उच्चामोग कैं डी की स ामक उच्चामक् ु त याधा िें कटयाभन एिॊ बायत से आमे ु ए प्राध्माऩक गण। विश्ि ह द ॊ ी हदिस के अिसय ऩय ऩस् ॊ ी भशक्षण सॊग्र " को विभोगचत कयते ु ए बायत के ु तक " ह द
स ामक उच्चामोग कैं डी की स ामक उच्चामक् ु त याधा िें कटयाभन एिॊ बायत से आमे ु ए प्राध्माऩक गण।
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कन्सरटे जापना द्िाया विश्ि ह द ॊ ी हदिस 2017 ऩय वितयण
सभायो
का
आमोजन ककमा गमा।
साॊस्कृततक झरककमाॉ-विश्ि ह द ॊ ी हदिस 2017
कन्सरटे जापना द्िाया विश्ि ह द ॊ ी हदिस 2017 ऩय वितयण
सभायो
का आमोजन ककमा गमा।
साॊस्कृततक कामयक्रभ एिॊ प्रभाण ऩि
साॊस्कृततक कामयक्रभ एिॊ प्रभाण ऩि
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बायतीम उच्चामोग, कोरॊफो के उच्चामक् ु त श्री तयनजीत सॊधू एिॊ बायतीम साॊस्कृततक केंद्र की तनदे शक याजश्री फे े या के साथ केंद्रीम ह द ॊ ी सॊस्थान, आगया भें अध्ममन
े तु छािितृ त प्राप्त श्री रॊका के 20
विश्ि ह द ॊ ी हदिस के अिसय ऩय बायतीम साॊस्कृततक केंद्र, कोरॊफो भें बायत के विभबन्न विश्िविद्मारमों विद्माथी। से आमे 22 प्रोपेसयों ने प्रततबागगता की।
विश्ि ह द ॊ ी हदिस के अिसय ऩय बायतीम उच्चामोग कोरॊफो के प्रबायी उच्चामक् ु त श्री अरयॊदभ फागची कय कभरों द्िाया ह द ॊ ी प्रचाय भभि भॊडर ने श्री रॊका के 13 ह द ॊ ी सेविमों को सम्भातनत ककमा।
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बायतीम साॊस्कृततक केंद्र, कोरॊफो के ह द ॊ ी विद्माथी द्िाया विश्ि ह द ॊ ी हदिस 2017 के अिसय ऩय ऩ री फाय श्री रॊका भें दष्ु मॊत- शकुन्तरा
ह द ॊ ी नाटक का भॊचन ककमा गमा।
केंद्रीम ह द ॊ ी सॊस्थान, आगया के ऩन ॊ ी भशक्षकों ु श्चमाय ऩाठ्मक्रभ भें बायतीम साॊस्कृततक केंद्र के छः ह द
ने प्रततबागगता की एिॊ दस हदिसीम प्रभशक्षण प्राप्त ककमा इस अिसय ऩय ह द ॊ ी सॊस्थान के तनदे शक प्रोपेसय नॊद ककशोय ऩाॊडम े एिॊ ह द ॊ ी भशक्षण भॊडर के उऩाध्मक्ष कभर ककशोय गोमनका ि अॊतयायष्रीम विबागाध्मक्ष
डॉ. गॊगाधय िानोडे बी उऩस्स्थत थे। 171
c.Mkjuk;d lsUVj bUVjus ”kuyद्िाया LVMhlविश्ि esa Hkkjrh; LÑfrd2017 dsaUnz] ऩय dksyEcks साॊ ds स्izक ;klks a ls fgUnh Hkk’kk dks izkjaHk fd;k कन्सरटे जापना ह द ॊ ीlkaहदिस ृ ततक कामयक्रभ एिॊ प्रभाण ऩि x;kA dk;ZØe esa Hkkjrh; lkaLd`frd dsaUnz] dksyEcks ds fgUnh fon~;kFkhZ lkaLÑfrd izLrqfr nsrs gq,A वितयण सभायो का आमोजन ककमा गमा।
साॊस्कृततक झरककमाॉ-विश्ि ह द ॊ ी हदिस 2017 172
Hkkjrh; lkaL—frd dsanz&dksyacks Hkkjrh; lkaL—frd dsanz&dksyacks dh LFkkiuk lu~ 1998 ls gqbZA ijarq fganh Hkk’kk dk vè;kiu dk;Z Hkkjrh; mPpk;ksx esa lu~ 1952 ls py jgk FkkA Jh yadkokfl;ksa esa fganh&Hkk’kk ds Ikzfr fo”ks’k Ikzse ns[krs gq, Hkkjrh; lkaL—frd dsanz esa fganh fo"k; ls lacaf/kr fofHkUu izdkj ds ikB~;Øe pyk;s tk jgs gSaA iwoZ esa nf{k.k Hkkjrh; ikB~;Øe ;gk¡ lapkfyr fd;s tkrs FksA ijarq orZeku esa dsanzh; fganh laLFkku] vkxjk ds 100] 200] 300] 400 rd ds fMIyksek izek.k&i= ikB~;Øe lapkfyr fd;s tk jgs gSaA blds vfrfjDr ekSf[kd d{kk,¡] izek.k&i= ikB~;Øe] fo”ks’k fganh d{kk,¡] cky d{kk,¡] vkfn fganh d{kk,¡ lapkfyr dh tk jgh gSaA Hkkjrh; lkaLÑfrd dsanz esa fganh ds fofHkUu Ikzdkj dh dk;Z'kkykvksa o xfrfof/k;ksa dk vk;kstu o"kZ Hkj gksrk jgrk gSA Hkk’kk mPpkj.k gsrq Hkk’kk iz;ksx “kkyk dk Hkh iz;ksx fd;k tk jgk gSA Hkkjrh; lkaL—frd dsanz esa Hkk’kk;h fodkl dkS”kyksa ds vfrfjDr Hkkjrh; lkaL—frd ijaijk vkfn ls Hkh Nk=ksa dk ifjp; djk;k tkrk gSA Hkkjrh; fon~okuksa ds fofo/k lkfgR; dh tkudkjh fon~;kfFkZ;ksa dks nh tkrh gSA blds vfrfjDr u`R;] laxhr] ;ksxk vkfn dh d{kk,¡ Hkh ;gk¡ ij lapkfyr dh tk jgh gSaA fofHkUu lkaL—frd dk;ZØe dk vk;kstu o ioZ euk;s tkrs gSaA bl le; yxHkx 500 fon~;kFkhZ ;gk¡ ij v/;;ujr gaSA fganh izpkj& izlkj dh fn'kk esa Hkkjrh; lkaLÑfrd dsanz] mYys[kuh; dk;Z dj jgk gSA
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Hkkjrh; lkaL—frd dsanz
16@2] xzsxjh jksM] dksyacks 07 Indian Cultural Center 16/2, Gregory’s Road, Colombo 07 Q+ksu@Phone: (011) 2684698 | Q+SDl@Fax: (011) 2684697 besy@Email: iccrcolombo@gmail.com Q+sLcqd@Facebook: facebook.com/ indianculturalcentre 173