Jagran - Founders Issue 2019

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जागरण वार्षिक पर्िका – 2019 प्रकाशक भारतीय भाषा र्वभाग र्ि असम वैली स्कूल मख् ु य सपं ािक सहायक सपं ािक सहायक सपं ािक मण्डल

र्वद्यार्ी सपं ािक मण्डल

आवरण सज्जा

फोटोग्राफ सपं ािकीय पता ईमेल का पता

: डॉ. राजेश कुमार र्मश्र : श्रीमान संजय िीर्ित : श्रीमान प्रेम कुमार र्संह : श्रीमान अर्नल कुमार यािव : श्रीमती ममता र्मश्रा : श्रीमती मनिीप कौर : डॉ. पररणीता गोस्वामी : श्रीमती प्रार्िना बोरा फूकन : र्सकुनर्प्रया गोस्वामी : आरव जैन : आयिन खाटूवाला : वेिांश र्जंिल : अनुष्का जोशी : अर्नके त अनतं जोशी : डॉ. राजेश कुमार र्मश्र : श्रीमान प्रेम कुमार र्संह

: र्ि असम वैली स्कूल, बालीपारा, शोर्णतपरु (असम) :rkm@assamvalleyschool.com


संपािक की कलम से............ प्रिय सधु ी पाठकगण, भारतीय भाषा प्रिभाग की िाप्रषक ि पप्रिका जागरण के माध्यम से एक बार पनु ः आपसे जड़ु ते हुए मझु े अपार हषि का अनभु ि हो रहा है। गत िषों की भा​ाँप्रत इस िषि भी हमने अपनी इस पप्रिका में प्रिद्याप्रथियों की भािनाओ ं को पप्रु पपत और पल्लप्रित करने का अथक ियत्न प्रकया है। बालमन की भािनाओ ं को शब्द-रूप में मतू ि करना ही हमारा मख्ु य उद्देश्य है। प्रकसी भी प्रिद्यालय की उत्कृ ष्टता की पहचान उसके प्रिद्याथी होते हैं। अतः मेरी नज़रों में प्रशक्षा का उद्देश्य तभी साथिक होता है, जब प्रिद्याथी पस्ु तकीय ज्ञान के साथ-साथ व्यािहाररक ज्ञान में भी दक्ष हों। प्रिद्याप्रथियों की चंचलता और िैचाररकता को सृजनात्मकता में पररिप्रतित करना ही प्रशक्षक का मल ू ध्येय होता है। इसप्रलए हमने बाल-मनोभािों को कहानी, प्रनबंध, यािा-संस्मरण एिं कप्रिता के साथ-साथ प्रचिात्मक स्िरूप में भी िस्ततु करने का पणू ि ियास प्रकया है। हमारा यही ियास रहा है प्रक प्रिद्यालय के अप्रधकांश प्रिद्याथी इस रचनात्मक कायि में अपनी अप्रधकतम् सहभाप्रगता कर सकें । पयाि​िरण सरं क्षण को ध्यान में रखते हुए प्रिभाग ने ऑन लाइन पप्रिका के िकाशन की ओर कदम बढाया है। जागरण के सफल िकाशन हेतु संपादक होने के नाते सि​ि​िथम में प्रिद्यालय के िधानाचायि श्रीमान डॉ. प्रिधक ु ेश प्रिमल जी के िप्रत हाप्रदक ि कृ तज्ञता िकट करता हाँ प्रजन्होंने प्रिद्यालय में भारतीय भाषाओ ं के प्रिकास में अपना असीम सहयोग िदान प्रकया है। प्रहदं ी प्रिभाग के समस्त सहयोप्रगयों श्रीमान संजय दीप्रक्षत, श्रीमान िेम कुमार प्रसंह, श्रीमान अप्रनल कुमार यादि, श्रीमती ममता प्रमश्रा एिं श्रीमती मनदीप कौर जी का भी सहयोग के प्रलए मैं हृदय से आभार व्यक्त करता ह।ाँ असप्रमया प्रिभाग की भाषा अध्याप्रपका डॉ. पररणीता गोस्िामी एिं श्रीमती िाथिना बोरा फूकन के साथ-साथ बांग्ला भाषा के अध्यापक श्रीमान मल्हार रप्रक्षत जी का भी मैं आभार व्यक्त करता हाँ प्रजन्होंने असप्रमया और बांग्ला भाषा की रचनाओ ं के सपं ादन में अपना अिप्रतम योगदान प्रदया। आशा करता हाँ प्रक आप हमारे नौप्रनहालों की रचनाओ ं को पनु ः अपने हृदय में स्थान देकर हमें िेररत करें ग।े हम आपके सहयोग एिं सझु ाि का सदैि स्िागत और सम्मान करते हैं। डॉ. राजेश कुमार र्मश्र संपािक, जागरण र्हिं ी र्वभाग र्ि असम वैली स्कूल बालीपारा, शोर्णतपुर

rkm@assamvalleyschool.com hsmmu@assamvalleyschool.com



अनुक्रमर्णका पृष्ठ सख्ं या 1 – यह भारत देश हमारा, मेरा

पृष्ठ सख्ं या 15 – असली प्रिजेता

अप्रभमान प्रतरंगा, समय का पप्रहया

पृष्ठ सख्ं या 16 – मैं जीत गया

पृष्ठ संख्या 2 – मेरा भारत देश महान, बीते

पृष्ठ संख्या 17 – आप्रखर मैं बेहोश क्यों हुई ?

पल, इस कश्मकश का नाम है प्रज़ंदगी पृष्ठ संख्या 3 – गा​ाँधी, मा​ाँ पृष्ठ सख्ं या 4 – सच्चा देशभक्त, सच्चा दोस्त, मेरा भारत महान, हमारा प्यारा प्रहदं स्ु तान

पृष्ठ संख्या 18 – गलती का एहसास पृष्ठ संख्या 19 – छूकर मेरे मन को – हषि अग्रिाल पृष्ठ संख्या 20 – छूकर मेरे मन को – आयिन

पृष्ठ संख्या 5 – हौंसला, मेरा देश

साह

पृष्ठ संख्या 6 – मोबाइल और ररश्ते, प्रज़ंदगी,

पृष्ठ संख्या 21 – छूकर मेरे मन को – ओजस

क्यों डर लगता है मझु े

ज्योप्रत बोरा हजाररका

पृष्ठ सख्ं या 7 – भारतमाता का मंप्रदर, मेरी मा​ाँ

पृष्ठ सख्ं या 22 – छूकर मेरे मन को – कपीश

पृष्ठ संख्या 8 – पेड़ हमारे सच्चे साथी, भारत

हरप्रसंगपरु रया

देश है सबसे प्यारा, मैंने देखा

पृष्ठ संख्या 23 – छूकर मेरे मन को – श्रप्रु त

पृष्ठ संख्या 9 – दीिारें बनीं घर

कोठारी

पृष्ठ सख्ं या 10 – गाधं ी : एक आदशि, पररितिन

पृष्ठ सख्ं या 24 – प्रहदं ी िगि पहेली

पृष्ठ सख्ं या 11 – आप्रटिकल 370

पृष्ठ सख्ं या 25 – मेधा परीक्षण

पृष्ठ संख्या 12-13 – पाइका प्रिद्रोह

पृष्ठ संख्या 26 – रास्ता ढूाँप्रढए

पृष्ठ संख्या 14 – राजगरु​ु महापािा, गीता : एक

पृष्ठ संख्या 27 – देखो हाँस न देना

िेरणा


यह भारत िेश हमारा सप्रदयों से सम्माप्रनत पप्रू जत िेद-मिं , गीता से गप्रंु जत िेम-भाि सररता से प्रसप्रं चत दप्रु नया भर से यह प्यारा यह भारत देश हमारा। यहा​ाँ ऋप्रष मप्रु नयों की िाणी महापरु​ु षों की अमर कहानी मानिता की अप्रमट प्रनशानी सकल प्रिश्व से यह न्यारा यह भारत देश हमारा। गीता और कुरान यहा​ाँ पर गरु​ु िाणी का मान यहा​ाँ पर सकल गणु ों की खान यहा​ाँ पर सबकी आाँखों का तारा यह भारत देश हमारा।

िीरों की तलिार प्रतरंगा खप्रलहानों का तेज प्रतरंगा देशिेम की ज्योप्रत प्रतरंगा बप्रलदानों का भान प्रतरंगा। खप्रु शयों की सौगात प्रतरंगा दप्रु खयों का अिलंब प्रतरंगा हर मानस के साथ प्रतरंगा िेम-भाि से भरे प्रतरंगा। जीिन का संचार प्रतरंगा खश ु हाली का भाि प्रतरंगा प्रमिों का है प्रमि प्रतरंगा दश्ु मन का है काल प्रतरंगा। शौयि के र्डया किा-िसवीं

गणु कारी औषप्रधयों का घर अतं ररक्ष की शान यहा​ाँ पर सात स्िरों िास यहा​ाँ पर नप्रदयों की कल-कल धारा यह भारत देश हमारा। काव्य बागरोर्डया किा-िसवीं

मेरा अर्भमान र्तरंगा तीन रंगों से सजा प्रतरंगा भारत का अप्रभमान प्रतरंगा सेना की है शान प्रतरंगा भारत की पहचान प्रतरंगा।

समय का पर्हया समय का पप्रहया चले प्रनरंतर सबको यही प्रसखाता है जो चलता है प्रबना रुके बस मप्रं जल िह ही पाता है। रुक जाने से थमता जीिन गात प्रशप्रथल हो जाता है गप्रत के साथ कमि जो करता स्िस्थ िही कहलाता है।

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सररता हर पल कल-कल बहती स्िच्छ नीर ले जाती है ठहरे ताल के पानी में दगु धं सदा ही आती है। सम्राट गप्तु ा किा-िसवीं

मेरा भारत िेश महान दप्रु नया भर के सब देशों में सबसे ऊाँची अपनी शान िगप्रत के पथ पर आगे बढता मेरा भारत देश महान। यहा​ाँ सभी लोगों का स्िागत सबका है सम्मान यहा​ाँ गगं ा की इस अमर धरा-सा दजू ा कोई धाम कहा​ाँ।

बीते पल समय गजु र जाने पर हमको बीते पल याद आते हैं, तन-मन में उल्लास जगाकर बेचैनी कर जाते हैं। बचपन का िह अल्हड़पन प्रदल में शोर मचाता है, प्रमिों के सगं खेल खेलना सब कुछ ही याद आता है। प्रदन की उछलकूद और मस्ती प्रफर एक बार बल ु ाती है, बीते गए जो बचपन में पल उनकी प्रफर याद आती है। हृियांश गोयल किा-सातवीं

इस कश्मकश का नाम है र् ंिगी गीता और कुरान यहा​ाँ पर गौतम बद्ध ु का ज्ञान यहा​ाँ राम-कृ पण की कमिभप्रू म-सा कोई पािन धाम कहा​ाँ। िीर शहीदों की यह भप्रू म प्यार प्रदलों में रचती है मातृभप्रू म के दीिानों के रग-रग में यह बसती है। आरव जैन किा-िसवीं

कसक हुई कुछ प्रदल में आाँख में हुई नमी पछ ू उठा हर अश्क मेरा क्या इसी कश्मकश का नाम है प्रज़दं गी ? कुछ पंख फै लाती कुछ जनु नू में थरथराती कहीं प्रगरती, कहीं संभलती कुछ प्रहचप्रकचाती कभी दबे पा​ाँि आती क्या इसी कश्मकश का नाम है प्रज़दं गी ? हर ज़रे में तू है हिा के रुख़ में तू है खल ु ी आाँखें तो, खल ु े आसमान में तू है

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हर साये, हर रास्ते हर मकाम में तू है हल्की-सी जो हुई आहट तो भी तेरी ही गजाँू कै सी है यह कश्मकश क्या इसी कश्मकश का नाम है प्रज़दं गी ? कभी कहीं तू सरल पहेली कभी कहीं तू जिाब अनोखा कभी कहीं तू अनसही उलझन कभी कहीं तू प्यार का धोखा कभी कहीं तू बहती जाती कभी कहीं तू रुकी जिानी क्या इसी कश्मकश का नाम है प्रज़दं गी। कुछ ररश्ते गहरे , कुछ हाथ छूटे कुछ महकी आस, कुछ ख्वाब टूटे कुछ पाने की चाह कभी कभी एक आरजू प्रबखरी कभी मक ु प्रम्मल जहां कभी यह खाप्रलश कहीं कभी कहीं गमु राही, गमु नामी कभी कहीं रुकती, थमती जैसी भी है मेरी या तेरी पर यही है िह कश्मकश प्रजसका नाम है प्रज़दं गी। डॉ. पूजा जैन बैंजार्मन अध्यार्पका अंग्रेजी र्वभाग

गांधी एक महात्मा पहनके चश्मा लेकर लाठी हाथ गात में धोती, हाथ में लाठी प्रलए सत्य का साथ। मानिता के साथ अप्रहसं ा करता सदा ियोग पाठ प्रसखाता गीता का िह कमि-िचन का योग।

देख देश की हालत उसने छोड़ प्रदया सख ु धाम मानिता की रक्षा के प्रहत प्रकए सदा सब काम। ऊाँच-नीच के भेदभाि को उसने दरू भगाया अपने अथक ियत्नों से बदली देश की काया। अग्रं ेजों के मन में उसने सत्य का खौफ़ जगाया देश हुआ आज़ाद हमारा िह रापरप्रपता कहलाया। हमराज र्संह जस्सल किा-ग्यारहवीं

मा​ाँ मा​ाँ ने हमको जन्म प्रदया उसने सारा कष्ट सहा चलना उसने प्रसखलाया सदा प्यार ही प्रदखलाया। घर पर हमें पढाती है खाना गरम प्रखलाती है अच्छी बात बताती है पढना हमें प्रसखाती है। बच्चों के संग रहती है सब दःु ख खदु ही सहती है चैन नींद की देती है हम सबसे कम सोती है दप्रु नया की परिाह नहीं मा​ाँ जैसी कोई छा​ाँह नहीं

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ईश्वर का िरदान है मा​ाँ हम बच्चों की जान है मा​ाँ। र्हमांशु गोयनका किा-सातवीं

सच्चा िेशभक्त

साथ हमेशा सच का पकड़े हाथ कभी न मेरा झटके अधं ेरा हो अगर राह में िह मेरी बाती बन जाए। र्नशांता बोरा किा-पाचवीं

मेरा भारत िेश महान देश की खाप्रतर जान लटु ाना शिु के दल पर चढ जाना भारत मा​ाँ की लाज बचाना यह है देशभक्त का काम। सीमाओ ं पर हर पल डटना अपने कदम न पीछे रखना चनु ौप्रतयों से हरदम लड़ना यह है देशभक्त का काम। भक ू ं प हो या सख ू ा आए नप्रदया​ाँ बा​ाँध तोड़ उफनाएाँ पीप्रड़त की जो मदद को आए यह है देशभक्त का काम। काश्वी अग्रवाल किा-सातवीं

सच्चा िोस्त

मेरा भारत बहुत महान प्रिश्व में अलग है इसकी शान सबु ह-सबु ह प्रचप्रड़यों का डेरा हर प्रदल में ईश्वर का बसेरा सबु ह उठे मप्रस्ज़द से अजान मेरा भारत बहुत महान। इसकी नप्रदया​ाँ कल-कल बहतीं खेतों में हररयाली भरतीं कोयल मीठे गीत सनु ाती सब लोगों का मन बहलाती मप्रं दर में घण्टों का नाद मेरा भारत बहुत महान। र्सद्धी पाठक किा-सातवीं

हमारा प्यारा र्हंिुस्तान

सच्चा दोस्त िही है जो मप्रु श्कल में साथ दे गलत राह में जाने पर हमको कसकर डा​ाँट दे।

प्रिश्व में है इसकी पहचान हमारा प्यारा प्रहदं स्ु तान यहा​ाँ सब धमों का सम्मान हमारा प्यारा प्रहदं स्ु तान।

साथ हमारा कभी न छोड़े हमसे मख ु िह कभी न मोड़े राह में प्रजतने आएाँ रोड़े उनकी प्रदशा तरु ं त िह मोड़े।

प्रहमालय पि​ित सबसे महान हमारा प्यारा प्रहदं स्ु तान यहा​ाँ की नप्रदया​ाँ हमारी जान हमारा प्यारा प्रहदं स्ु तान।

जागरण पृष्ठ संख्या 4


यहा​ाँ सब रत्नों की है खान हमारा प्यारा प्रहदं स्ु तान यहा​ाँ िृक्षों में बसें भगिान हमारा प्यारा प्रहदं स्ु तान। यहा​ाँ सब पहने प्रिप्रिध पररधान हमारा प्यारा प्रहदं स्ु तान हमें इस धरती पर अप्रभमान हमारा प्यारा प्रहदं स्ु तान। सौम्या अग्रवाल किा- आठवीं

तभी अचानक मन में तफ़ ू ान आने का बात प्रबगड़ जाने का यह भय बना रहता है। कृष अग्रवाल किा- ग्यारहवीं

मेरा िेश

हौंसला

हररयाली से भरी धरा पर फूलों का श्रृंगार है रंग-प्रबरंगी प्रततली इसके सदंु र से पररधान हैं।

प्रदल में हमेशा एक िश्न होता है आप्रखर सफलता कब आएगी ? कोप्रशशों के बाद भी मेहनत के साथ भी यह भय बना रहता है।

नप्रदयों की बहती धारा से मख ु ररत सदंु र तान है सरू ज की प्रकरणों से जगमग संदु र सकल प्रितान है।

समय तेजी से दौड़ता है आशा की प्रकरण चमकती है जोश छलकता है, लेप्रकन समय हमेशा प्रकसका साथ देता है यह भय बना रहता है।

ऊाँचे प्रशखर प्रहमालय के देते औषप्रध का दान हैं के सर की संदु र क्यारी सब काश्मीर की शान हैं।

प्रदल की धड़कने बढती हैं सा​ाँसें तेजी से चढती हैं जीत की आरजू जगती है कहीं हम प्रपछड़ न जाएं यह भय बना रहता है।

सागर चरण पखारे इसके रत्नों की यह खान है सकल प्रिश्व के सब देशों में मेरा देश महान है।

हौंसले बनते हैं अरमान पनपते हैं दरू रया​ाँ घटती हैं

र्सकुनर्प्रया गोस्वामी किा- ग्यारहवीं

जागरण पष्ठृ सख् ं या 5


मोबाइल और ररश्ते भीड़ से भरी दप्रु नया​ाँ में हमारे पास समय कहा​ाँ, नज़र घमु ाओ प्रजस तरफ सब लगते हैं व्यस्त यहा​ाँ। मोबाइल की दप्रु नया में सभी जन डूब रहे हैं, अपनों के पास बैठे हुए लेप्रकन फोन में डूब रहे हैं। भाई-बहन और माता-प्रपता से हम बहुत दरू हो गए हैं, फोन के काल्पप्रनक जगत में हम सब खो गए हैं। प्रजतने पास नहीं ररश्ते उससे ज्यादा प हैं, मोबाइल में डूब चक ु े सब अब ररश्तों में गैप हैं। बसुमन लोर्हया किा- िसवीं

र् ंिगी प्रज़दं गी एक लहर की तरह कभी उठती तो कभी प्रगरती है, प्रज़दं गी एक प्रकताब की तरह कभी खल ु ती तो कभी बंद होती है। प्रज़दं गी एक दौड़ की तरह कभी तेज तो कभी धीमी होती है, प्रज़दं गी एक मोड़ की तरह

कभी तीव्र तो कभी सामान्य होती है। प्रज़दं गी खेल के मैदान की तरह कभी जीतती तो कभी यहा​ाँ हार होती है, प्रज़दं गी एक परछाई की तरह कभी लम्बी तो कभी छोटी होती है। प्रज़दं गी एक उलझन की तरह कभी सल ु झी तो कभी अनसल ु झी रहती है, प्रज़दं गी एक पैगाम की तरह कभी खश ु ी तो कभी बेहद गम देती है। उत्कषि अग्रवाल किा- िसवीं

क्यों डर लगता है मुझे ? लोगों की भख ू ी प्रनगाहों से अतृप्त मन की आहों से अके ली सनू सान राहों से क्यों डर लगता है मझु े ? मैं भी तो एक इसं ान हाँ सरलता की पहचान हाँ प्रफर भी अके ली होने पर क्यों डर लगता है मझु े ? जैसी भी ह,ाँ अनमोल हाँ खदु में बहुत ही मौन हाँ अपने प्रिचार बताने में क्यों डर लगता है मझु े ? सा रूप प्रदया उस रब ने इसको क्यों कोसा है सबने

जागरण पष्ठृ सख् ं या 6


लोगों की सोच से लड़ने में क्यों डर लगता है मझु े ?

मेरी मा​ाँ

सृर्ि बजाज किा - आठवीं

जब मैं हाँसता, िह भी हाँसती मझु े कभी न रोने देती कोई भी पीड़ा आने पर मेरे सारे दःु ख हर लेती।

भारत माता का मंर्िर

मझु े प्रखलाकर तब खदु खाती कभी-कभी भख ू ी रह जाती मझु े सल ु ाती सूखे प्रबस्तर पर िह खदु गीले पर सो जाती।

भारत माता के मप्रं दर में प्रफर न कोई दश्ु मन आ पाए, जान भले ही जाए मगर कश्मीर न यह जाने पाए।

मझु े कभी चोट लगने पर उसने सारा ददि उठाया मैं दप्रु नया में खश ु नसीब हाँ मेरे ऊपर है मा​ाँ का साया।

मा​ाँ कह दे आज सपु िु ों को कश्मीर जगाता है तमु को, जागो राणा, जागो भामा कश्मीर बल ु ाता है तुमको।

दप्रु नया सारी क्षणभगं रु है न जाने कब क्या हो जाए मा​ाँ की ममता है प्रजसके सगं उसे कष्ट कभी छू न पाए।

काली थी रात अमािस की जब आयाि​िति ही दहल गया, रो पड़ा प्रबलखकर ननकाना तक्षप्रशला पाक में समा गया।

दप्रु नया भर की सख ु -सप्रु िधाएाँ छोड़ हमेशा मा​ाँ को चनु ना मा​ाँ से हारे सभी देिगण मा​ाँ की हमेशा पजू ा करना।

कट गई ंभजु ाएं जननी की बन गया पाक और भारत देश, असंख्य शहीद हो चले गए बाँट गया अपना प्यारा स्िदेश।

आयिन खाटूवाला किा - ग्यारहवीं

रक्षा कर लो डल झेलम की प्रबखरा न सकें अरर अगं ारे , जान भले ही जाए मगर कश्मीर नहीं जाने पाए। अर्नल कुमार यािव र्हिं ी अध्यापक

मा​ाँ और जन्मभर्ू म स्वगि से भी बढ़कर होती हैं। जागरण पृष्ठ संख्या 7


पेड़ हमारे सच्चे सार्ी पेड़ हमारे सच्चे साथी हरदम साथ प्रनभाते हैं फल और फूल हमें देकर सारा जग महकाते हैं। जहा​ाँ कहीं भी धपू प्रनकलती छाया हमें प्रदलाते हैं औषप्रधया​ाँ देकर हम सबको जीिन स्िस्थ बनाते हैं। लगती जब भी भख ू प्रकसी को ताज़े फल तरु त प्रखलाते हैं िषाि लाकर तप्त धरा की तरु त ही प्यास बझु ाते हैं। र्नहाल जजोर्डया किा - सातवीं

भारत िेश है सबसे प्यारा भारत देश है सबसे प्यारा आओ इसे सजाएाँ हम, ये है अपनी धरती माता इसको शीश निाएाँ हम। प्रतलक, बोस, आज़ाद है जन्में इस भारत की भप्रू म पर, आओ गि​ि करें हम अपने देश के िीर जिानों पर। भारत की धरती पर रहते प्रहन्द,ू मप्रु स्लम, प्रसक्ख, ईसाई, आपस के भाईचारे से दप्रु नया में तारीफ़ है पाई।

यह संस्कृ प्रत का देश है यारों इस धरती पर स्िगि है यारों, इसका प्रतरंगा सबसे प्यारा भारत अपना देश है न्यारा। अनन्या यािव किा - चौर्ी

मैंने िेखा है दप्रु नया बदल गई है यह सबको कहते देखा है पर मैं यह कै से कह दाँू जब बहुत देखना बाकी है मैंने देखा इस दप्रु नया को अक्सर रंग बदलती है कहती है कुछ प्रकसी एक से दजू े से कुछ कहती है। प्रकस्मत को रोते देखा है मैंने बहुत से लोगों को कमि के पथ से हटते देखा मैंने कुछ इसं ानों को ईमानदार का जीना मप्रु श्कल मौज कर रहे झठू े हैं अपनी धनु में लगे हुए बस परप्रहत में सब रीते हैं। दपु कमों की ख़बरें सनु कर गस्ु सा मन में आता है जाप्रलम को क्यों सज़ा में देरी सोच के मन घबराता है घटु -घटु कर मरते देखा है मेहनत करने िालों को मौज तरक्की करते देखा साहब जी के प्यादों को। अंशु कुमारी किा - ग्यारहवीं

जागरण पृष्ठ संख्या 8


िीवारें बनीं घर हम सबका एक ही घर होता हैिह घर जहा​ाँ हमारा बचपन गज़ु रा, जहा​ाँ हमारे मा​ाँ-बाप रहते हैं और जहा​ाँ हमने सारे सख ु दख ु देखे और जीिन के सभी पलों को प्रजया। पर..... आज मेरे पास एक नहीं दो घर हैं। एक मेरा अपना घर और एक मेरा स्कूल – प्रद असम िैली स्कूल। जब मैं अपने पहले प्रदन को याद करती हाँ तो मझु े यकीन नहीं आता प्रक कै से कुछ ही सालों में मझु े एक अजं ान जगह से इतना लगाि हो गया प्रक मन करता है प्रक परू ी प्रज़दं गी ही यहा​ाँ गजु ार द।ाँू लेप्रकन जीिन चलते रहने का नाम है। आज पा​ाँच सालों बाद जब मैं स्कूल में अपने पहले प्रदन को याद करती हाँ तो मझु े एक अलग सा एहसास होता है। मैं यहा​ाँ कक्षा आठ में दाप्रखले के प्रलए 2015 में आयी थी। जब मेरी मा​ाँ ने मझु से पछ ू ा प्रक क्या तम्ु हें असम िैली स्कूल में पढना है, तब मैंने बड़ी खश ु ी से िहा​ाँ पढने का मन बना प्रलया था और जब मैं ि​िेश परीक्षा देने आई तो स्कूल देखकर मेरे पैरों तले ज़मीन ही प्रखसक गयी। मैंने इतना बड़ा स्कूल पहले कभी नहीं देखा था। स्कूल पररसर देखने के प्रलए जब मझु े एक जगह से दसू री जगह ले जाया गया तो मझु े लगा प्रक मैं प्रकसी भल ू भल ु ैया में आ गयी ह।ाँ स्कूल देखते देखते मेरे पैरों में ददि सा होने लगा था। इतना बड़ा स्कूल भी होता है मझु े तब समझ में आया। िहा​ाँ का मौसम बहुत खश ु नमु ा था। सब कुछ सोच प्रिचारकर मैंने अपना मन बना प्रलया था प्रक मझु े यहीं पर पढना हैं। ि​िेश परीक्षा के चार प्रदनों के बाद अपना पररणाम देखकर मेरी यह कामना परू ी हो गयी और मेरा दाप्रखला प्रद असम िैली स्कूल में हो गया। मैंने खश ु ी खश ु ी स्कूल जाने की तैयारी की और आप्रखर िह प्रदन आ ही गया जब मझु े अपना घर छोड़कर जाना पड़ा। घर छोड़ते समय मझु े थोड़ा दख ु तो हुआ प्रक क्या पता िहा​ाँ घर जैसा माहौल प्रमलेगा या नहीं पर अपने सपनों को परू ा करने के प्रलए एक प्रदन सबको अपना घर छोड़ना ही पड़ता है, इसप्रलए थोड़ी देर बाद ही

मेरा यह दख ु दरू हो गया क्योंप्रक अब मझु े अपने जीिन के सपनों को भी साकार करना था। 10 घटं े की थकान भरी यािा के बाद जब मैं स्कूल पहुचाँ ी तब मझु े कोप्रपली सदन ले जाया गया। जब मेरा सामान मेरे कमरे में रखिा कर मेरे माता-प्रपता िहा​ाँ से जाने की तैयारी करने लगे तब उस पल मझु े अदं र से बहुत ही दख ु हुआ और मैं रो पड़ी। मझु े रोता देखकर मेरे माता- प्रपता भी अपने आाँसू न रोक पाये। उनके जाने के बाद हॉस्टल की लड़प्रकयों ने मझु े संभाला और मझु े यहा​ाँ के बारे में बताने लगीं। धीरे धीरे सब मेरी अच्छी दोस्त बन गई ं और मझु े अपनेपन का एहसास होने लगा। मेरे हॉस्टल की दीिारों ने कब घर का रूप ले प्रलए मझु े पता ही नहीं चला। मैं यहा​ाँ के पररिेश में परू ी तरह से ढल गयी। आज मैं यहा​ाँ बहुत खश ु हाँ और मझु े पता है प्रक कुछ महीनों बाद ही मेरी पढाई परू ी हो जाएगी और मझु े यहा​ाँ से जाना होगा। शायद यहा​ाँ से जाने पर मेरी आाँखों में उतने ही आाँसू होंगे प्रजतने यहा​ाँ आने के समय मेरी आाँखों में थे। प्रज़दं गी के ये चार साल मेरे जीिन में हमेशा अप्रिस्मरणीय रहेंग।े शगनु अग्रवाल किा – ग्यारहवीं

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गांधी : एक आिशि भारत के रापरप्रपता कहलाने िाले गाधं ी जी का जन्म 2 अक्टूबर 1869 को गजु रात के पोरबंदर नामक स्थान पर हुआ था। बचपन में िे आम बालकों के समान शरारती और असहज प्रियाकलाप करने िाले थे। धीरे -धीरे िे जैसे-जैसे बड़े होते गए िैसे-िैसे उनमें अकल्पनीय पररितिन होते चले गए। उनके आचरण और व्यिहार में आए सकारात्मक पररितिनों ने उन्हें एक आम आदमी से आदशि व्यप्रक्त बनने का मागि िशस्त प्रकया। गाधं ी जी ने अपनी िारंप्रभक प्रशक्षा-दीक्षा भारत में और उच्च प्रशक्षा प्रिदेश से अप्रजति की। जब िे उच्च प्रशक्षा के प्रलए प्रिदेश गए तो उनके मन में एक व्यािसाप्रयक रूप से सफल व्यप्रक्त बनने की इच्छा थी लेप्रकन जब िे प्रिदेश से िापस लौटे तो उनका लक्ष्य पररिप्रतित हो चक ु ा था। गांधी जी ने न के िल भारत की आज़ादी में अपना अप्रिस्मरणीय योगदान प्रदया िरन् प्रिश्व-पटल पर होने िाले अन्याय के प्रखलाफ़ भी अपनी आिाज़ बल ु दं की। दप्रक्षण अफ्रीका में काले-गोरे के बीच होने िाले भेदभािपणू ि रिैये के प्रखलाफ भी गांधी जी ने आदं ोलन चलाया और प्रजसमें उन्हें जीत हाप्रसल हुई। भारत को गल ु ामी की जजं ीरों से आज़ाद कराने के प्रलए उन्होंने भारत के जनमानस को एक ध्िज के नीचे एकप्रित प्रकया। लोगों को साथ लेकर उन्होंने अग्रं ेजों के प्रखलाफ भी आदं ोलन खड़े प्रकए। भारत में फै ली हुई जाप्रत-पा​ाँप्रत की खाई को पाटने के प्रलए भी गाधं ी जी अनेक ियास प्रकए। गाधं ी जी के अथक ियासों के कारण ही भारत में जन-जागरण हुआ। भारत के लोग उनको प्रपता के समान मानकर उनका आदर प्रकया करते थे। गांधी जी ने भारत के लोगों को यह भी प्रसखाया प्रक दमन के प्रखलाफ आिाज़ उठाने से ही दमन का अतं प्रकया जा सकता है लेप्रकन हमें कभी भी प्रहसं ा का सहारा नहीं लेना चाप्रहए क्योंप्रक प्रहसं ा से प्रहसं ा पर प्रिजय नहीं िाप्त की जा सकती।

भारत के लोगों को सत्य और अप्रहसं ा की अमोघ शप्रक्त गांधी जी ने ही िदान की। सत्याग्रह और असहयोग जैसे बड़े-बड़े आदं ोलनों को खड़ाकर गाधं ी जी ने यह प्रदखा प्रदया प्रक अप्रहसं ा में प्रकतनी बड़ी शप्रक्त होती है। गांधी जी का सबसे बड़ा प्रसद्धांत था प्रक बरु ा मत देखो, बरु ा मत सनु ो और बरु ा मत बोलो। गाधं ी जी ने जीिन पयिन्त अपने बनाए प्रसद्धांतों का पालन कर लोगों के समक्ष एक आदशि आचरण िस्ततु प्रकया। आज सभी भारतिासी गांधी जी को रापरप्रपता के रूप में याद करते हैं। आज हमारे देश में ही नहीं बप्रल्क प्रिदेशों में भी गाधं ी के प्रिचारों को सराहा जाता है। िे के िल हमारे ही पज्ू य नहीं हैं बप्रल्क सारा प्रिश्व गांधी को एक महामानि मानकर उनके प्रसद्धातं ों को अपने जीिन में उतारने का ियास करता है। गाधं ी प्रिद्याप्रथियों के प्रलए भी िेरणा-स्रोत हैं। आज हम गांधी को एक व्यप्रक्त न मानकर एक प्रिचार मानते हैं। गांधी जी समय को बहुत ही मल्ू यिान मानते थे और यही कारण था प्रक िे हमेशा अपनी कमर में घड़ी को लटकाकर रखते थे। गांधी जी को समय व्यथि करना प्रबल्कुल पसंद नहीं था। यप्रद प्रिद्याथी गांधी जी के प्रिचारों में से समय-पालन और सादगी के प्रिचारों को अपना ले तो सहजता से सफलता प्रमल सकती है। कृतार्ाि कौर्शक किा – सातवीं

पररवतिन पररितिन िकृ प्रत का प्रनयम है। सृप्रष्ट के कण-कण में पररितिन अप्रनिायि रूप से प्रदखाई देता है। प्रबना पररितिन के संसार धीरे -धीरे नीरस

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हो जाएगा। पररितिन से ही जीितं ता बनी रहती है। यप्रद हम एक से स्िरूप का अिलोकन करते रहें तो प्रनप्रित ही उससे मन में बोप्रझलता का भाि आने लगता है। िकृ प्रत भी समयानसु ार अपने अदं र पररितिन लाकर लोगों को आकप्रषति करती रहती है। लोगों की आदत एिं िकृ प्रत भी पररितिनीय है। िह कभी प्रकसी के िप्रत अच्छा हो जाता है तो कभी प्रकसी के िप्रत बरु े व्यिहार का िदशिन करने लगता है। मानि जाप्रत भी पररितिन के सिू में बाँधी हुई है। यप्रद भोजन भी मनपु य को एक जैसा प्रमलता रहे तो एक सा समय अिश्य आएगा जब िह उससे ऊब जाता है। यही कारण है प्रक हम बदलाि के साथ रहना बेहतर मानते हैं। आज हम देश की पररप्रस्थप्रत की समीक्षा करें तो हम पाएगं े प्रक समाज में अराजकता और असप्रहपणतु ा का मख्ु य कारण मानिीय व्यिहार ही है। यप्रद यह मानिीय व्यिहार समाज के िप्रत अपेप्रक्षत नहीं होता है तो समाज में प्रिसंगप्रतया​ाँ पैदा होती हैं और इन्हीं प्रिसगं प्रतयों के कारण सामाप्रजक द्वेष की भािना का जन्म होता है। यप्रद हम प्रिश्व-पटल की चचाि करें तो हम देखते हैं प्रक सामाप्रजक प्रस्थरता और तटस्थता ने ही िाप्रं तकारी पररितिन को जन्म प्रदया है। भारत देश के पररपेक्ष्य में यह देखें तो हम पाएगं े प्रक कभी भारत सोने की प्रचप्रड़या कहलाता था लेप्रकन आज िह आप्रथिक मदं ी से जझू ता हुआ रापर है प्रजसके पास न जाने अप्रशक्षा, भख ु मरी और बेरोजगारी समेत प्रकतनी समस्याएाँ हैं। आने िाले समय में इनका भी कोई न कोई हल प्रनकलेगा और यह रापर पनु ः उसकी अपनी सनु हरी पहचान को हाप्रसल करे गा। मेरा मानना है प्रक सामाप्रजक सोच ही पररितिन का िथम चरण है। आज का समय जनजागरण का समय है। लोगों की सोच तेजी से बदल रही है और यह बदलती हुई सोच ही मानि को पररितिन की ओर ले जाकर एक निीन रापर को जन्म देगी। ससं ार में कुछ भी प्रस्थर नहीं है। अप्रस्थर संसार में प्रकसी भी चीज़ को प्रस्थर रखना प्रकसी चनु ौती से कम नहीं है। आज धीरे -धीरे प्रिश्व में मीप्रडया का िभाि बढ रहा है प्रजसके पररणामस्िरूप जागरूकता का संचार प्रदखाई देता

है। यही जागरूकता पररितिन का िथम कारक बनती है। जलिायु पररितिन भी लोगों की सोच एिं अन्य गप्रतप्रिप्रधयों में पररितिन के प्रलए उत्तरदायी है। एक छोटे से उदाहरण के द्वारा मैं स्पष्ट करना चाहता हाँ प्रक पररितिन तब होता है जब हमें या तो बहुत ही अच्छे पररणाम प्रमल रहे हों या पररणाम हमारे प्रलए नक ु सानदायक साप्रबत हो रहे हों। आज समाज में निीन चेतना का भाि जन्म ले रहा है। यही कारण है प्रक पॉलीथीन की लम्बी समय तक गल ु ामी में रहने के बाद आज लोगों को इसके होने िाले दपु पररणामों से डर लगने लगा है। इससे भयभयीत होकर आज एक प्रिश्वव्यापी सहमप्रत उभरकर आ रही है प्रक पॉलीथीन के ियोग को िप्रतबप्रं धत करना होगा प्रजससे मानि एिं जीि जाप्रत के प्रहतों की रक्षा की जा सके । इसी िकार जल संकट का कारण भी मनपु य ही है और इस संकट की भयािह प्रस्थप्रत को देखकर आज हम जल संकट से उबरने के प्रलए अप्रधक पेड़ लगाने और पयाि​िरण को सदंु र बनाने के बारे में सोचना शरू ु कर रहे हैं। अतं में मैं यही कहना चाहगाँ ा प्रक संकट के भय से ही पररितिन जन्म लेता है। नीरज शमाि किा – िसवीं

आर्टि कल 370 एक प्रदन अचानक कश्मीर में फ़ौज की सरगमी तेज हो गई। अचानक कश्मीर में फ़ौप्रजयों की संख्या बढने के कारण कश्मीर के राजनैप्रतक गप्रलयारों में चचाि होने लगी प्रक कश्मीर में कुछ बड़ा होने िाला है। यह सभी घटनाएाँ इतनी गोपनीय तरीके से हो रही थीं प्रक प्रकसी को कुछ सोचने समझने का समय ही नहीं प्रमला। सड़कों, गप्रलयारों और टी. िी. पर आने िाली बहसों में यह चचाि तो अिश्य थी प्रक कुछ तो अिश्य होने िाला है लेप्रकन यह प्रकसी को अदं ाजा नहीं था प्रक क्या होने िाला है ? कुछ प्रदनों बाद एक

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प्रदन अचानक यह खबर सामने आयी प्रक भारत सरकार ने कश्मीर से धारा 370 और 35 ए. समाप्त कर प्रदया है। इस सचू ना के बाहर आते ही राजनेताओ ं ने अपनी बयानिाजी शरू ु कर दीं लेप्रकन उसका जनमानस पर कोई खास िभाि नहीं पड़ रहा था। कश्मीर और कश्मीररयों की सरु क्षा के प्रलए बड़ी मािा में सैप्रनक बल की तैनाती हो चक ु ी थी और प्रिघटनकारी बयान देने िाले नेताओ ं के ऊपर सख्ती कर दी गई प्रजससे िे प्रकसी िकार की अराजकता न फै ला सकें । इतनी बड़ी िप्रतप्रिया देखकर मन में यह िश्न आना स्िाभाप्रिक था प्रक यह धारा क्या है और इसके अप्रस्तत्ि को लेकर लोग इतनी िप्रतप्रियाएाँ क्यों दे रहे हैं मैंने धारा 370 के अब तक के अप्रस्तत्ि के प्रिषय में जानने के प्रलए सबं प्रं धत दस्तािेजों को खोजने का ियास शरू ु प्रकया। मझु े पता चला प्रक भारत की आज़ादी के बाद कुछ राजा आज़ाद प्रहदं स्ु तान के साथ स्िेच्छा से जड़ु गए और कुछ राजा अपनी कुछ शतों के साथ भारतीय गणराज्य में आ प्रमले। दप्रक्षण भारत के राजाओ ं को भारत के साथ जोड़ने का काम सरदार बल्लभ भाई पटेल ने शरू ु प्रकया और उन्होंने इस काम में सफलता भी िाप्त की। लेप्रकन कश्मीर के राजा हररप्रसंह ने भारत के साथ जड़ु ने की इच्छा नहीं जाप्रहर की। हमारे देश के िथम िधानमिं ी जिाहर लाल नेहरू ने उनको भारत में प्रमलाने के प्रलए अनेक ियास प्रकए। कुछ नाटकीय घटनािम चलने के बाद सभी लोग उप्रचत समय आने का इतं ज़ार करने लगे। पाप्रकस्तान ने कश्मीर को अपने देश में प्रमलाने के प्रलए कबाइप्रलयों का एक बड़ा दश्ता कश्मीर भेजा। जब राजा हररप्रसंह को यह जानकारी प्रमली तो िे घबरा गए और उन्हें समझ में आ गया प्रक प्रबना भारत में प्रिलय के कश्मीर का अपना कोई अप्रस्तत्ि नहीं बचेगा। यह प्रिचार कर उन्होंने भारत के साथ कश्मीर के प्रिलय का िस्ताि रखकर भारत सरकार से सरु क्षा की मा​ाँग की। भारतीय सेना कश्मीर की रक्षा के प्रलए िहा​ाँ पहुचाँ ी और उसने कबाइप्रलयों को कश्मीर से खदेड़ने का काम शरू ु कर प्रदया। कश्मीर के काफी बड़े भभू ाग से कबाइप्रलयो को पीछे तो धके ल प्रदया गया लेप्रकन पाप्रकस्तान ने अपनी नापाक हरकत से

कश्मीर एक बड़ा प्रहस्सा अपने कब्जे में प्रलया और अपना दािा ठोक प्रदया। कश्मीर के भारत में प्रिलय के समय उस राज्य को कुछ अप्रतररक्त सप्रु िधाएाँ देने के प्रिचार से अस्थायी रूप से धारा 370 और आप्रटिकल 35 ए. को अप्रस्तत्ि में लाया गया। यह धारा इसप्रलए रखी गई प्रजससे िहा​ाँ के लोग धीरे -धीरे अपने देश के साथ घल ु प्रमल जाएं और िहा​ाँ की सांस्कृ प्रतक प्रिरासत को देश के साथ साझा कर सकें । प्रिघटनकारी शप्रक्तयों के बहकािे में आकर लोग अस्थायी व्यिस्था को संप्रिधान से ऊपर मानकर कश्मीर की जनता को भड़काने का काम करने लगे। इस धारा के अप्रस्तत्ि में होने के कारण कश्मीर अनेक आतंकी गप्रतप्रिप्रधयों का प्रशकार रहा और िहा​ाँ की जनता भारत की मख्ु य धारा से कटकर रहने लगी प्रजसके कारण इस धारा को हटाना आिश्यक हो गया था। धारा 370 हटने के बाद ही कश्मीर का सिांगीण प्रिकास संभि था। राजनैप्रतक इच्छाशप्रक्त के बलिती होने के पररणामस्िरूप इसे समाप्त कर एक देश एक प्रिधान एक संप्रिधान के सपने को साकार प्रकया गया। अब सा लगता है प्रक कश्मीर भारत के अन्य राज्यों की तरह तेजी से अपना प्रिकास करे गा। भारत में चलने िाली सभी जनकल्याणकारी योजनाओ ं का सीधा लाभ िहा​ाँ की जनता को प्रमल सके गा। हमें खश ु ी है प्रक अब हमारा देश कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी तक एक ही संप्रिधान रखता है। इससे हमारा देश और मजबतू होगा। आरव जैन किा – िसवीं

पाइका र्वद्रोह भारत को आज़ाद हुए एक लम्बा समय व्यतीत हो चक ु ा है। लेप्रकन आज भी हम इप्रतहास के पन्नों को खगं ालकर भारतीय स्िाधीनता सग्रं ाम के तथ्यों को एकजटु करने का ियास कर रहे हैं। भारतीय इप्रतहास में 1857 को िथम स्िाधीनता संग्राम माना जाता है, अब सरकार उस इप्रतहास में बदलाि करने पर

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प्रिचार कर रही है। 1857 की िाप्रं त से पहले हुए 1817 के पाइका प्रिद्रोह को पहला संग्राम मानने की प्रसफ़ाररश कें द्रीय मानि संसाधन मिं ी श्रीमान िकाश जािडेकर ने की है। 1817 में ओप्रडशा में हुए पाइका प्रिद्रोह ने पूिी भारत में कुछ समय के प्रलए प्रिप्रटश राज की जड़े प्रहला दी थीं। मल ू रूप से पाइका ओप्रडशा के उन गजपप्रत शासकों के प्रकसानों का असंगप्रठत सैन्य दल था, जो यद्ध ु के समय राजा को सैन्य सेिाएं महु यै ा कराते थे और शांप्रतकाल में खेती करते थे। इन लोगों ने 1817 में बक्शी जगबंधु प्रिद्याधर के नेतत्ृ ि में प्रिप्रटश राज के प्रिरुद्ध बगाित का झडं ा उठा प्रलया था। खदु ाि के शासक परंपरागत रूप से जगन्नाथ मप्रं दर के संरक्षक थे और धरती पर उनके िप्रतप्रनप्रध के तौर पर शासन करते थे। िे लोग ओप्रडशा के लोगों की राजनीप्रतक और सास्ं कृ प्रतक स्ितंिता का ितीक थे। प्रिप्रटश राज ने ओप्रडशा के उत्तर में प्रस्थत बंगाल िातं और दप्रक्षण में प्रस्थत मद्रास िातं पर अप्रधकार करने के बाद अग्रं ेजों ने 1803 में ओप्रडशा को भी अपने अप्रधकार में कर प्रलया था। उस समय ओप्रडशा के गजपप्रत राजा मक ु ंु ददेि प्रद्वतीय अियस्क थे और उनके संरक्षक जय राजगरु​ु द्वारा प्रकए गए शरु​ु आती िप्रतरोध का अग्रं ेजों द्वारा िूरता पिू क ि दमन प्रकया गया और जयगरु​ु के शरीर के प्रजदं ा रहते हुए ही टुकड़े कर प्रदए गए। कुछ सालों के बाद गजपप्रत राजाओ ं के असगं प्रठत सैन्य दल के िश ं ानगु त मप्रु खया बक्शी जगबंधु के नेतत्ृ ि में पाइका प्रिद्रोप्रहयों ने आप्रदिाप्रसयों और समाज के अन्य िगों का सहयोग लेकर बगाित कर दी। पाइका प्रिद्रोह 1817 में आरंभ हुआ और बहुत ही तेजी से फै ल गया। हालाप्रं क प्रिप्रटश राज के प्रिरुद्ध प्रिद्रोह में पाइका लोगों ने अहम भप्रू मका प्रनभाई थी, लेप्रकन प्रकसी भी मायने में यह प्रिद्रोह एक िगि प्रिशेष के लोगों के छोटे समहू का प्रिद्रोह भर नहीं था। घमु सरु जो प्रक ितिमान में गजं म और कंधमाल प्रजले का प्रहस्सा है, िहा​ाँ के आप्रदिाप्रसयों और अन्य िगों ने इस प्रिद्रोह में सप्रिय भप्रू मका प्रनभाई। िास्ति में पाइका प्रिद्रोह के प्रिस्तार का सही अिसर तब

आया, जब घमु सरु के 400 आप्रदिाप्रसयों ने प्रिप्रटश राज के प्रखलाफ बगाित करते हुए खदु ाि में ि​िेश प्रकया। खदु ाि, जहा​ाँ से अग्रं ेज भाग गए थे, िहा​ाँ की तरफ कूच करते हुए पाइका प्रिद्रोप्रहयों ने प्रिप्रटश राज के ितीकों पर हमला करते हुए पप्रु लस थानों, िशासकीय कायािलयों और राजकोष में आग लगा दी। पाइका प्रिद्रोप्रहयों को कप्रनका, कुजगं , नयागढ और घमु सरु के राजाओ,ं जमींदारों, ग्राम िधानों और आम प्रकसानों का समथिन िाप्त था। यह प्रिद्रोह बहुत तेजी से िांत के अन्य इलाकों जैसे पल ु ि, पीपली और कटक में फै ल गया। प्रिद्रोह से पहले तो अग्रं ेज चप्रकत रह गए। लेप्रकन बाद में उन्होंने आप्रधपत्य बनाए रखने की कोप्रशश की लेप्रकन उन्हें पाइका प्रिद्रोप्रहयों के कड़े िप्रतरोध का सामना करना पड़ा। बाद में हुई कई लड़ाइयों में प्रिद्रोप्रहयों को सफलता प्रमली, लेप्रकन तीन महीनों के अदं र ही अग्रं ेज अतं त: उन्हें पराप्रजत करने में सफल रहे। इसके बाद दमन का व्यापक दौर चला प्रजसमें कई लोगों को जेल में डाला गया और अपनी जान भी गाँिानी पड़ी। बहुत बड़ी संख्या में लोगों को अत्याचारों का सामना करना पड़ा। कई प्रिद्रोप्रहयों ने 1819 तक गरु रल्ला यद्ध ु लड़ा, लेप्रकन अतं में उन्हें पकड़ कर मार प्रदया गया। बक्शी जगबंधु को अतं त: 1825 में प्रगरफ्तार कर प्रलया गया और कै द में रहते हुए ही सन् 1829 में उनकी मृत्यु हो गई। हाला​ाँप्रक पाइका प्रिद्रोह को ओप्रडशा में बहुत ऊाँचा दजाि िाप्त है और िहा​ाँ के बच्चे अग्रं ेजों के प्रिरुद्ध लड़ाई में िीरता की कहाप्रनया​ाँ पढते हुए बड़े होते हैं, लेप्रकन दभु ािग्य से इस प्रिद्रोह को रापरीय स्तर पर िैसा महत्ि नहीं प्रमला जैसा प्रक प्रमलना चाप्रहए था। भारत सरकार ने इस प्रिद्रोह को समप्रु चत पहचान देने के प्रलये ही इस घटना की 200 िीं िषिगांठ को उप्रचत रूप से मनाने का प्रनणिय प्रलया है। (सक ं प्रलत) रर्चत अग्रवाला किा – ग्यारहवीं

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राजगुरु महापािा प्रशिराम हरर राजगरू ु महापािा का जन्म 24 अगस्त 1908 को पणू े प्रजले के खेड़ा ग्राम में हुआ था। राजगरू ु भरतीय स्ितंिता संग्राम के एक महान िांप्रतकारी थे। भारतीय स्ितंिता संग्राम में राजगरू ु का बप्रलदान एक महान घटना थी। इस महान िांप्रतकारी को भगतप्रसंह और सख ु देि के साथ 23 माचि 1931 को फा​ाँसी पर लटका प्रदया गया था। इनके बप्रलदान ने भारतीय िांप्रत में हलचल पैदा कर दी थी। इनके बचपन के कुछ प्रमि इन्हें गरु​ु कहकर भी पक ु ारते थे। राजगरू ु बचपन से ही िाप्रं तकारी प्रिचारों के धारक थे। छः िषि की छोटी-सी आयु में इनके प्रपता की मृत्यु हो गई प्रजसके कारण यह िाराणसी प्रशक्षा ग्रहण करने आ गए। राजगरू ु को संस्कृ त सीखने की बहुत ललक थी। राजगरू ु ने प्रहदं ओ ु ं के अनेक पप्रि​ि ग्रथं ों के अध्ययन के साथ-साथ िेदों का भी ज्ञान िाप्त प्रकया। राजगरू ु को लघु प्रसद्धांत कौमदु ी जैसे प्रक्लष्ट ग्रंथ भी कंठस्थ थे। बचपन से ही इनको अपने स्िास्थ्य के िप्रत बेहद लगाि था। िे प्रनयप्रमत व्यायाम करते और शरीर को फुतीला रखने के प्रलए दौड़ भी लगाते थे। भारतीय महापरु​ु षों में इन्हें छिपप्रत प्रशिाजी बहुत ही प्रिय थे। इनको उनकी यद्ध ु कला बेहद रुप्रचकर लगती थी। िाराणसी में प्रिद्याध्ययन के समय इनका संपकि देश के अनेक िांप्रतकाररयों से हुआ और उनसे िभाप्रित होकर राजगरू ु प्रहदं स्ु तान सोशप्रलस्ट ररपप्रब्लकन आमी से जड़ु गए। अनेक िांप्रतकारी इनकी पहचान को गोपनीय रखने के प्रलए इन्हें रघनु ाथ के नाम से पक ु ारते थे। इनके िमख ु िाप्रं तकारी प्रमिों में चंद्रशेखर आजाद, सरदार भगत प्रसंह और यतीन्द्रनाथ दास आप्रद शाप्रमल थे। सभी िांप्रतकाररयों में इनका प्रनशाना सबसे अचक ू था। इसी कारण साण्डसि की हत्या करने की योजना में राजगरू ु को शाप्रमल प्रकया गया। चद्रं शेखर आजाद इन तीनों िांप्रतकाररयों को बेहद प्यार करते थे। इसप्रलए िे उनके साथ साये की तरह रहते थे।

साण्डसि की हत्या के बाद इस िाप्रं तकारी को पकड़ प्रलया गया और 23 माचि 1931 को भगत प्रसंह और सख ु देि के साथ लाहौर के सेण्रल जेल में फा​ाँसी की सजा दे दी गई। इस महान िाप्रं तकारी के बप्रलदान के बाद देश में आिोश की लहर उमड़ पड़ी और िह प्रिद्रोह की आग इतनी भयानक हुई प्रक एक प्रदन अग्रं ेजों को भारत छोड़कर जाना पड़ा। इस महान िांप्रतकारी का नाम आज भी भारत के इप्रतहास में आदर और सम्मान के साथ प्रलया जाता है। (संकप्रलत) मेहुल अग्रवाला किा - ग्यारहवीं

गीता : एक प्रेरणा मानि एक प्रिकासशील िाणी है। प्रिकास की इस दौड़ में मानि को आधप्रु नकता ने सबसे अप्रधक िभाप्रित प्रकया है। आधप्रु नकता की दौड़ में इनसान चारों ओर से इक्कीसिीं सदी के चमत्कारों से प्रघरकर अपनी आध्याप्रमकता को एक प्रकनारे करता जा रहा है। यप्रद हम आज मनपु य के जीिन का अध्ययन करें तो पाएगं े प्रक िह अपने जीिन का सिािप्रधक समय मोबाइल, कम्प्यटू र और गाड़ी के साथ व्यतीत करता है। इन सभी आकषिणों से िह इतना जकड़ा हुआ है प्रक उसे अपने प्रि​िेक के ियोग करने का समय ही िाप्त नहीं होता है। मैं मानता हाँ प्रक इन सभी िस्तओ ु ं ने जीिन को सहज एिं सरल बनाकर मानिता पर बहुत बड़ा उपकार प्रकया है लेप्रकन यह भी सच है प्रक सहजता और सरलता िदान करने िाले इन साधनों ने मानिीय सोच को अपने तक ही सीप्रमत भी कर प्रलया है। आधप्रु नक यगु के यिु ा धीरे -धीरे जीिन के िास्तप्रिक अथि से दरू होते चले जा रहे हैं। आज उनका ध्येय के िल आत्मकें प्रद्रत होकर रह गया है। आधप्रु नक संसाधनों के ियोग ने हमें प्रिकास की ऊाँचाइयों तक तो पहुचाँ ा प्रदया है लेप्रकन भािनात्मक रूप से काफी कमजोर भी कर प्रदया है। यही कारण है प्रक प्रिकास

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की इस अधं ी दौड़ में यप्रद कोई यिु ा स्ियं को बनाए रखने में असफल महससू करता है तो िह जीिन त्यागने जैसे कठोर कदम भी उठाने से पीछे नहीं रहता। प्रिकास की िप्रतस्पधाि में लगे हुए माता-प्रपता भी अपने बच्चों को समप्रु चत समय नहीं दे पाते प्रजसके कारण बच्चों का उनके िप्रत लगाि धीरे -धीरे कम होता जा रहा है। भारत हमेशा से ही आध्यात्म का कें द्रप्रबन्दु रहा है। इसने सारे ससं ार को सत्य की झलक प्रदखाई है। दप्रु नया का मागिदशिन करने िाला देश आज स्ियं भटकाि की प्रस्थप्रत से गजु र रहा है। आज हमारे देश के यिु ाओ ं को उसी आध्याप्रत्मक संबल की आिश्यकता है जो उनका सही मागिदशिन कर सके । भारतीय दशिन के क्षेि में गीता हमारी सच्ची मागिदशिक हो सकती है जो मानि माि को कल्याण और शांप्रत का मागि बताती है। आज आिश्यकता है प्रक हम अपने ही देश के इस महान ग्रंथ को पढकर अपना आध्याप्रत्मक प्रिकास करें । यह पस्ु तक िह शप्रक्त रखती है जो समस्त यिु ाओ ं को इस सि ं ाप्रत काल में भी उप्रचत प्रदशा बोध करा सकती है। मेरी नज़र में गीता एक धाप्रमक ि ग्रंथ न होकर एक आध्याप्रत्मक िाप्रं त पैदा करने िाला ग्रथं है। जो लोग इसे प्रकसी धमि के चश्मे से देखने का ियास करते हैं, िे िास्ति में देश के भोले भाले लोगों को गमु राह करने का काम कर रहे हैं। िे नहीं चाहते प्रक देश के लोग सच्चाई को जानकर उसको अपने जीिन में उतारें और समथि बन सकें । गीता में प्रदए हुए मेरे एक प्रिय श्लोक में कहा गया है प्रक िोध के कारण स्मृप्रत का नाश होता है, प्रजसके कारण बप्रु द्ध का नाश हो जाता है और अतं में माया के िशीभतू होने के कारण स्ियं का नाश हो जाता है। इससे हमें यह पता चलता है प्रक गीता हमें मानिता और भलाई की ही सीख देती है। अतं में मैं यही कहना चाहता हाँ प्रक मेरे प्रलए गीता एक धमिग्रथं ने होकर एक मागिदशिक है जो सदैि ही मप्रु श्कल समय में मेरा सही मागिदशिन करती है। गीता में भी यही प्रलखा गया है प्रक जब-जब धरती पर अधमि और अन्याय का बोलबाला होता है, तभी ईश्वर अितार लेते हैं और धमि की रक्षा करते हैं तथा अधप्रमयि ों का प्रिनाश करते हैं। यप्रद हम प्रकसी भी

ग्रथं का अध्ययन करें और िह मानि और मानिता को सही प्रदशा की ओर ले जाए, िहीं सदग्रंथ कहलाने योग्य है। मेरी नज़र में गीता इस यगु के प्रलए सिािप्रधक उपयक्त ु पस्ु तक है जो जनमानस को कमि के िप्रत उन्मख ु कर कल्याण का मागि िशस्त कर सकती है। र्नलय धकाल किा – ग्यारहवीं

असली र्वजेता एक गा​ाँि में मोहन नाम का एक लड़का रहता था। उसके प्रपताजी एक मामल ू ी प्रकसान थे। एक प्रदन मोहन के प्रपताजी ने उसे अपने साथ शहर लेकर गए। िहा​ाँ उन्हें मैदान साफ करने का काम प्रमला था। उस मैदान में दौड़ िप्रतयोप्रगता आयोप्रजत होनी थी। मोहन उस मैदान को देखकर बहुत खश ु हुआ। उसके मन में भी मैदान में दौड़ की तीव्र इच्छा हुई। जब प्रपता और पिु दोनों अपने गा​ाँि पहुचाँ े तो मोहन ने अपने प्रपताजी से प्रज़द करते हुए कहा प्रक प्रपताजी हमारे गा​ाँि में सी दौड़ की िप्रतयोप्रगता होनी चाप्रहए। मोहन की प्रज़द मानकर प्रपताजी ने गा​ाँि के िधान के सामने यह िस्ताि रखा। ग्राम िधान ने खश ु होकर उस िस्ताि को अपनी सहमप्रत दे दी। कुछ प्रदनों में िप्रतयोप्रगता की तैयाररया​ाँ शरू ु हो गई।ं गा​ाँि के आस-पास के बच्चे उस दौड़ िप्रतयोप्रगता में भाग लेने के प्रलए अभ्यास करने लगे। मोहन के दादाजी ने इन तैयाररयों को देखा। मोहन के मन में उत्साह के साथ-साथ अहक ु ा ं ार का भाि भी आ चक था प्रक िह सबसे तेज धािक है और इस िप्रतयोप्रगता में िह ही जीतेगा। दादा जी मोहन के इस अहक ं ार से बहुत दःु खी थे। अगले प्रदन िप्रतयोप्रगता शरू ु हुई और मोहन की मेहनत रंग लाई। िह इस िप्रतयोप्रगता का प्रिजेता बन गया। दादाजी ने अगले ही प्रदन एक और िप्रतयोप्रगता का आयोजन प्रकया और कहा प्रक मोहन तमु प्रिजेता

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हो और इस िप्रतयोप्रगता में तम्ु हें अिश्य दौड़ना होगा। मैदान में के िल तीन ही िप्रतयोगी खड़े थे। जैसे ही सीटी बजी मोहन तेजी से लक्ष्य की ओर दौड़ा लेप्रकन उसे आसपास कोई नज़र न आया। िह पीछे पलटा तो देखा प्रक दोनों िप्रतयोगी इधर-उधर भटक रहे हैं। मोहन तरु ं त पीछे लौटा और देखा उनमें से एक अधं ा है और दसू रा एक पैर से प्रिकलांग। मोहन को यह देखकर उन पर दया आ गई। िह रास्ते से िापस लौट पड़ा। िह तेजी से उनके पास गया और दोनों का हाथ पकड़कर लक्ष्य की ओर ले चला। थोड़ी ही देर में उन दोनों को आगे करके मोहन ने यह जीत उन दोनों िप्रतयोप्रगयों के नाम के कर दी। मोहन के दादाजी यह सब देख रहे थे। उन्हें मोहन का यह व्यिहार देखकर बहुत खशु ी हुई। िे अपने स्थान से दौड़कर मोहन के पास पहुचाँ े और उसे गले से लगा प्रलया। मोहन के दादाजी ने कहा प्रक आज सही अथों में तमु असली प्रिजेता बने हो। अर्चित रूर्र्या किा – नवमीं

मैं जीत गया मयरू एक सीधा और सरल स्िभाि का लड़का था। िह होप्रशयार तो था लेप्रकन उसे अपनी खप्रू बयों के बारे में अप्रधक जानकारी नहीं थी। िह एक छोटे से शहर का रहने िाला था। उसकी अपनी प्रज़दं गी में कोई बहुत अप्रधक अपेक्षाएाँ नहीं थी। िह लोगों से अपने आप को लेकर कोई प्रशकायत नहीं करता था। कभी-कभी हमारी प्रज़दं गी में कुछ से लोग आते हैं जो हमारी प्रज़दं गी को परू ी तरह से बदलकर रख देते हैं। शायद मयरू के प्रलए भी कोई सा ही अिसर आने िाला था। उसके माताप्रपता उसे हमेशा यही समझाते थे प्रक जीिन में हमेशा अपने उद्देश्य को ध्यान में रखकर आगे कदम बढाना और प्रज़दं गी को कहीं भटकने मत देना। मयरू अपने जीिन में बहुत ही खश ु रहने की कोप्रशश करता रहता था।

मयरू के अध्यापक हमेशा ही उसकी तारीफ करते रहते थे। एक प्रदन की बात है, मयरू सबु ह से ही खदु को बहुत ही प्रनराश-सा महससू कर रहा था। लेप्रकन इस सबके बाद भी िह जल्दी-जल्दी तैयार होकर अपने प्रिद्यालय के प्रलए चल पड़ा। परू ा प्रदन उसे बहुत अजीब-सा लगता रहा। िह दोस्तों से बातचीत करने के बजाय एकांत में गपु चपु बैठा रहा। उसी समय एक लड़की ने आकर उससे बातचीत की। मयरू को उससे बात करके अच्छा लगा। मयरू अब रोजाना उस लड़की के साथ-साथ घमू ने लगा और उसके साथ समय प्रबताना उसे अच्छा लगने लगा। मयरू धीरे -धीरे अपनी पढाई से दरू होता चला गया। इसका पररणाम यह हुआ प्रक आगामी परीक्षा में उसका परीक्षा पररणाम बहुत गदं ा रहा। परीक्षा पररणाम देखते ही मयरू को बहुत प्रनराशा हुई। मयरू और उसके माता-प्रपता को उससे से परीक्षा पररणाम की आशा नहीं थी। उसके माता-प्रपता ने उसे काफी समझाया और गरु​ु ओ ं ने भी उसका मागिदशिन प्रकया। मयरू की समझ में सारी बात आ गई। अगले ही प्रदन से मयरू ने अपना परू ा ध्यान अपनी पढाई पर देना शरू ु कर प्रदया। अब िह देर रात तक स्िाध्याय करने लगा। धीरे -धीरे उसने अपने सभी प्रिषयों को अच्छी तरह से तैयार कर प्रलया। िाप्रषक ि परीक्षा में उसने जमकर मेहनत की। कुछ प्रदनों के बाद उसका परीक्षा पररणाम आया और उसमें उसने बहुत अच्छे अक ं हाप्रसल प्रकए। उसके अच्छे िदशिन को देखकर माता-प्रपता की खश ु ी का प्रठकाना न रहा। मयरू भी अपने अक ु था। उसने ं देखकर बेहद खश अपने माता-प्रपता से िादा प्रकया प्रक अब िह कभी प्रकसी गलत राह की ओर नहीं जाएगा। आज मयरू अपने आप को जीता हुआ महससू कर रहा था। िह समझ रहा था प्रक भटकाि के कारण न जाने प्रकतने यिु ा अपने लक्ष्य से अलग हटकर पतन की ओर चले जाते हैं। मयरू आज अपने आपको जीता हुआ महससू कर रहा था। वेिांश र्जंिल किा - ग्यारहवीं

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आर्खर मैं बेहोश क्यों हुई ? ससं ार में अच्छी और बरु ी दोनों तरह की शप्रक्तया​ाँ होती हैं। अगर दप्रु नया में धनात्मक ऊजाि है तो ऋणात्मक ऊजाि से भी इक ं ार नहीं प्रकया जा सकता। अक्सर लोग भतू -िेतों से न डरने की बातें करते हैं लेप्रकन मैं इसको सच नहीं मानती क्योंप्रक मैंने खदु , लोगों को कहते सनु ा है प्रक यप्रद मैं मिं ों का थोड़ा-सा का जाप कर लाँू तो मेरे मन से भय दरू हो जाता है। मेरे जीिन में भी एक सी ही घटना घटी प्रजससे मझु े प्रिश्वास हो गया प्रक जीिन में हर तरह की शप्रक्तयों से हमारा सामना होता है। बात उस समय की है जब हमारे एक दरू के ररश्तेदार के यहा​ाँ शादी थी। हमारे पररिार के सभी लोग उस शादी में गए हुए थे। के िल मैं ही घर पर अके ली थी। मेरे माता-प्रपता मझु े बता गए थे प्रक उन्हें िापस लौटने में काफी देर हो जाएगी। मैंने भी सोचा प्रक यप्रद मा​ाँ और प्रपताजी घर पर नहीं होंगे तो समय और मजे से गजु रे गा। माता-प्रपता के जाने के बाद मैंने शाम का खाना खाया और आराम करने लगी। जब आराम करतेकरते मैं ऊब गई तो मैं टी. िी. देखने बैठ गई। अचानक टी. िी. में मझु े एक सी मप्रहला प्रदखाई दी प्रजसने एक लम्बी सफे द साड़ी पहनी हुई थी। उसके बाल काफी लम्बे-लम्बे थे। बालों से उसने अपने चेहरे को ढक रखा था। अभी मैं उस मप्रहला को देख ही रही थी प्रक अचानक प्रबजली चली गई। चारों ओर अाँधेरा छा गया। मझु े सा लगा प्रक जैसे प्रकसी ने मेरे कंधे पर हाथ रखा हो। मैं अभी उस मप्रहला को देख ही रही थी प्रक अचानक कुत्तों ने भौंकना शरू ु कर प्रदया। अब मैं और अप्रधक भयभीत होने लगी। भय के कारण मझु े सा लगने लगा प्रक िह मप्रहला खनू से सना हुआ चाकू लेकर मेरे घर में ही कहीं घमू रही हो मैं जोर-जोर से चीखने लगी। मैं डर से का​ाँपने लगी। मझु े लगा प्रक मैं बेहोश हो गई ह,ाँ तभी दरिाज़े

की घटं ी बजी। मैं उस घटं ी के बजने से और अप्रधक डर गई। मैं दरिाज़े में लगे शीशे से बाहर देखने का ियास कर ही रही थी प्रक अचानक प्रबजली आ गई। बाहर देखने पर पता चला प्रक मेरी मा​ाँ और प्रपताजी दरिाज़े के बाहर खड़े हैं और िे ही घटं ी बजा रहे थे। प्रपताजी ने घर में घसु कर मझु े देखते ही पछ ू ा प्रक मैं इतनी डरी हुई क्यों हाँ ? मैंने प्रपताजी को सारी सच्चाई कह सनु ाई। प्रपताजी मेरे डर का कारण समझ गए थे और उन्होंने मझु े प्रबठाकर काफी समझाया। मैंने प्रपताजी की बातों से एक बात बहुत अच्छी तरह से समझी प्रक हमें हमेशा अपने आपको मन से स्िस्थ रखना चाप्रहए और ईश्वर में सच्ची आस्था रखनी चाप्रहए। जहा​ाँ ईश्वर के िप्रत आस्था होती है, िहा​ाँ बरु ी शप्रक्तया​ाँ ि​िेश नहीं करती हैं। मैं समझ गई थी प्रक हमें कभी भी सी चीज़ें देखकर अपने मन में बरु े ख्याल नहीं लाने चाप्रहए। मर्हका अग्रवाल किा - िसवीं

माता-र्पता के द्वारा िी गई र्शिा जीवन में सफलता हेतु अर्नवायि है।

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गलती का एहसास अप्रभजीत बचपन से ही अपनी कक्षा में हमेशा िथम आता था। िह अब बारह साल का हो चक ु ा था। उसे गाड़ी चलाने का बहुत शौक था। िह अपने प्रपताजी से जब गाड़ी चलाने की अनमु प्रत मा​ाँगता तो िह एक ही बात कहते थे प्रक जब तमु अठारह िषि के हो जाओगे तब अिश्य चला लेना। इस समय तम्ु हारा गाड़ी चलाना ठीक नहीं है। जैसे-जैसे िह प्रकशोरिय में आगे बढ रहा था, उसका ध्यान पढाई की ओर से भटकने लगा। िह प्रदन-रात दोस्ती में समय प्रबताने लगा। िह देर रात तक दोस्तों के साथ घमू ता और प्रफर चपु चाप घर आकर सो जाता। उसकी इन बदली हुई आदतों के कारण िह पढाई में भी प्रपछड़ने लगा। िह अपनी मा​ाँ को बहुत चाहता था। इस कारण िह अपनी सब बातें अपनी मा​ाँ से कह लेता था। िह प्रपताजी से छुपकर दोस्तों के साथ गाड़ी चलाता था। मा​ाँ को जब ये सारी बातें उसने बताई ं तो मा​ाँ ने अप्रभजीत को सािधान करते हुए सा न करने की सलाह दी। एक प्रदन उसने अपने प्रपताजी से कहा प्रक िह उनकी कार चलाना चाहता है। यह सनु कर प्रपताजी ने कहा प्रक कार चलाने के प्रलए अभी िह छोटा है। अगर िह कार में चालक की सीट पर बैठेगा तो उसे बाहर की चीज़ें कद छोटा होने के कारण प्रदखाई नहीं देंगी। उस बात को सनु कर अप्रभजीत को बहुत गस्ु सा आया क्योंप्रक अब िह प्रपताजी से प्रछपकर अपने दोस्त की कार कई बार चला चक ु ा था। उसे कहीं न कहीं यह लगने लगा प्रक प्रपताजी उसे कार चलाने के प्रलए देना ही नहीं चाहते हैं। उसके मन में प्रपताजी के िप्रत सम्मान की भािना कुछ कम होने लगी। प्रपताजी को अप्रभजीत के प्रिषय में सारी जानकारी नहीं थी। जब अप्रभजीत का परीक्षाफल आया तो देखा प्रक कक्षा में पहला स्थान पाने िाला िह लड़का कक्षा में अप्रं तम चौथे स्थान पर पहुचाँ गया है। यह सब देखकर प्रपताजी को बहुत बरु ा लगा और िे

सोचने लगे प्रक उनके पालन-पोषण में सी कौन-सी कमी रह गई थी प्रजसके कारण अप्रभजीत पढाई में इतना प्रपछड़ता जा रहा है। प्रपताजी उदास होकर बैठे हुए थे। उनको उदास देखकर मा​ाँ ने उनसे कहा प्रक आप इतना उदास क्यों हैं ? अप्रभजीत की मा​ाँ ने कहा प्रक हमारा अप्रभजीत आपके सही से बातचीत न करने के कारण थोड़ा भटक गया है। प्रपताजी ने उनसे कहा प्रक तमु यह क्या कह रही हो ? मैंने उससे कब बातचीत नहीं की ! मा​ाँ ने उन्हें समझाते हुए कहा प्रक अब आप ज्यादा से ज्यादा समय देकर उससे उसकी प्रदल की बात पछ ू ा करो। प्रपताजी बहुत ही हतिभ थे। उनको आज महससू हो रहा था प्रक शायद समय न देने के कारण आज उनका बेटा उनसे बहुत दरू हो गया है। उन्होंने मन ही मन प्रनिय प्रकया प्रक िे अपने बेटे से अपना संबंध सधु ारें गे प्रजससे प्रक उनका बेटा सही रास्ते पर लौट सके । अप्रभजीत के प्रपताजी ने अपनी पत्नी से कहकर अप्रभजीत के पसंद का सारा खाना तैयार कराया और अपने बेटे के आने का इतं ज़ार करने लगे। रात के नौ बजने िाले थे प्रक अप्रभजीत का एक प्रमि दौड़ता हुआ उनके घर पहुचाँ ा और बताया प्रक उसका कार चलाते हुए एक्सीडेंट हो गया है। अप्रभजीत के माता-प्रपता तरु ं त उस अस्पताल की ओर भागे जहा​ाँ अप्रभजीत भती था। अप्रभजीत बहुत बरु ी तरह से घायल हुआ था। अपने माता-प्रपता को सामने देखते ही िह रो पड़ा। उसने अपने प्रपताजी से कहा प्रक उसने उनकी बात न मानकर बहुत बड़ी गलती की है। अब िह सी गलती दोबारा नहीं करे गा। यह सनु ते ही माता-प्रपता की आाँखों में आाँसू आ गए और उन्होंने अप्रभजीत को गले से लगा प्रलया। इस घटना के बाद िह प्रफर से पढाई में िथम आने लगा। आर्ित्य कुमार उपाध्याय किा - नवमीं

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छूकर मेरे मन को ............... प्रद असम िैली स्कूल भारत के िप्रसद्ध आिासीय प्रिद्यालयों में अपनी एक अलग पहचान रखता है। उत्तर-पिू ि में प्रस्थत यह प्रिद्यालय इस क्षेि के रहने िाले हम सभी बच्चों के प्रलए प्रकसी िरदान से कम नहीं है। चंद िषों में ही इस प्रिद्यालय ने एक उत्तम शैक्षप्रणक संस्थान होने का गौरि िाप्त प्रकया है। सबसे पहले मेरे प्रपताजी को अपने प्रमिों से इस प्रिद्यालय के बारे में पता चला तो उन्होंने प्रिद्यालय के प्रिषय में सारी खोजबीन की। सभी जानकाररया​ाँ बटोरने के बाद उन्होंने मझु से प्रिद्यालय के बारे में चचाि की और मैंने भी अपने कुछ दोस्तों से प्रिद्यालय के बारे में पता प्रकया। प्रिद्यालय के बारे में जानकर जब हम परू ी तरह से संतष्टु हो गए तब प्रपताजी ने मेरे प्रलए प्रिद्यालय में ि​िेश िप्रिया में मेरा पंजीयन करा प्रदया। मैंने इस प्रिद्यालय में ग्यारहिीं कक्षा में ि​िेश प्रकया। मेरे सदनाध्यक्ष डॉ. राजेश कुमार प्रमश्र जी थे। उस समय मानस सदन के कप्तान ित्यषु िान दास थे। मझु े आज भी 27 जनू , 2018 का िह प्रदन याद है जब मैं अपना सारा सामान लेकर इस प्रिद्यालय में पहुचाँ ा था। जब तक मा​ाँ और प्रपताजी प्रिद्यालय में रहे, मैं उनके साथ ही घमू ता रहा। माताप्रपता के जाने के बाद मेरे प्रमिों ने मेरे प्रिषय में सारी जानकाररया​ाँ लेनी शरू ु कर दीं। मैं बहुत ही स्पष्टता के साथ उनके िश्नों का उत्तर देता रहा। कुछ ही घण्टों के बाद मैं अपनी कक्षा के प्रिद्याप्रथियों के साथ अच्छी तरह घल ु प्रमल गया। मझु े प्रिद्यालय देखकर एक ओर बड़ी िसन्नता हो रही थी तो दसू री ओर पररिार से दरू होने का थोड़ा-सा दःु ख भी था। शाम के समय मानस सदन में सभी साप्रथयों के साथ एक मीप्रटंग का आयोजन प्रकया गया। इस मीप्रटंग में सभी नए प्रिद्याप्रथियों की पहचान सभी प्रमिों से कराने के प्रलए सभी को बल ु ाकर उनका पररचय देने की िप्रिया िारंभ की गई। मैंने भी अपने बारे में सभी को अिगत कराया। मेरे सदन के सभी प्रमि बहुत ही सहयोगी ि​िृप्रत्त के हैं प्रजनकी िजह से मझु े प्रिद्यालय के निीन िातािरण में खदु को ढालने में समय बहुत कम लगा। जल्दी ही मैं सबमें घल ु प्रमल गया। मेरे सदन के सभी साथी हर पल मेरा सहयोग करते थे प्रजनकी िजह से प्रिद्यालय में मेरा दो िषि का समय बहुत ही अच्छी तरह से व्यतीत हुआ। आिसीय प्रिद्यालय प्रिद्याप्रथियों के सिांगीण प्रिकास में सबसे महत्त्िपणू ि भप्रू मका प्रनभाते हैं और मेरे प्रिद्यालय ने भी मेरे प्रिकास में सदैि ही मेरा भरपरू सहयोग प्रकया। मैं शरू ु आत में थोड़ा लापरिाह अिश्य था लेप्रकन बारहिीं कक्षा में आते ही प्रिद्याप्रथियों में बदलाि आते हैं प्रजनके फलस्िरूप मैं थोड़ा प्रज़म्मेदार प्रिद्याथी बन गया। मेरी कमिण्यता को देखकर प्रिद्यालय ने मझु े इिेंट मैनेजमेंट िीफे क्ट तथा सोप्रशयल सप्रिसि कै प्टन प्रनयक्त ु कर प्रदया। मैंने भी अपनी परू ी तल्लीनता के साथ अपने कत्तिव्य प्रनि​िहन का ियास प्रकया। प्रिद्यालय के िातािरण ने मझु े एक कमिठ व्यप्रक्तत्ि के रूप में प्रनखारा और चनु ौप्रतयों का सामना करना प्रसखाया। आज मैं गि​ि के साथ कह सकता हाँ प्रक प्रिद्यालय के बाद जीिन में आने िाली चनु ौप्रतयों का मैं सफलतापिू क ि

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सामना कर सकता ह।ाँ मैं अपने प्रिद्यालय को धन्यिाद देना चाहगाँ ा प्रजसने मझु े एक जागरूक यिु ा के रूप में प्रिकप्रसत करने में अपनी महती भप्रू मका प्रनभाई है। मैं अपने सभी प्रमिों, अध्यापकों तथा उन सभी सहयोप्रगयों का भी धन्यिाद करूाँगा प्रजन्होंने हमेशा मेरी भलाई के प्रलए मेरा मागिदशिन प्रकया है। अतं में मैं ईश्वर से अपने प्रिद्यालय की उन्नप्रत की कामना करता ह।ाँ हषि अग्रवाल किा – बारहवीं मेरे प्रिद्यालय ने मेरे प्रलए जो भी सख ु द स्मृप्रतया​ाँ दी हैं, उन्हें शब्दों में व्यक्त कर पाना मेरे प्रलए बहुत ही मप्रु श्कल है। मैं इस प्रिद्यालय में कक्षा छठिीं में ि​िेश प्रलया था। मझु े इस सदन में दाप्रखला लेकर बहुत ही अच्छा लगा था क्योंप्रक यह सदन अपने साप्रथयों के साथ बहुत ही प्रमि​ित् व्यिहार रखता है और साथ ही साथ इस सदन के प्रिद्याप्रथियों को संगीत की मधरु धारा से प्रिशेष लगाि है। मानस सदन िारंभ से ही सगं ीत के क्षेि में अपना प्रिप्रशष्ट योगदान देता रहा है और मेरा भी रूझान संगीत की ओर था। संगीतमय िातािरण ने मेरी संगीत के िप्रत अप्रभरुप्रच को और अप्रधक प्रिकप्रसत करने में मेरी मदद की। मेरे ि​िेश के समय मानस सदन के सदनाध्यक्ष श्रीमान संजय शमाि जी थे। श्रीमान शमाि जी ने हमेशा ही मेरा प्रिशेष ध्यान रखा। मेरे ट्यटू र श्रीमान अमर माथरु जी थे प्रजन्होंने हमेशा ही मझु े एक अच्छा इनसान बनने की सीख दी। मैं भी अपने सदन के साथ बहुत ही गहरा लगाि रखता ह।ाँ प्रिद्यालय के सदंु र िातािरण को देखकर मझु े कभी लगा ही नहीं प्रक मैं कहीं बाहर ह।ाँ मझु े हमेशा सा लगता है प्रक यह मेरा दसू रा बड़ा घर है जहा​ाँ मेरे इतने सारे भाई एक साथ प्रमलजल ु कर रहते हैं। मेरे प्रमिों के साथ-साथ प्रिद्यालय के सभी अध्यापकगण भी मझु से इतना ही आत्मीय भाि रखते हैं प्रक कभी मझु े अपने पररिार की कमी नहीं खलती। मेरी बड़ी बहन कै ररन इसी प्रिद्यालय में प्रशक्षा ग्रहण कर रही थी प्रजसके बौप्रद्धक और बहुआयामी प्रिकास से हम सभी िभाप्रित थे। इसी कारण मैंने भी इसी प्रिद्यालय को अपनी कमिभप्रू म के रूप में चनु ा। कक्षा छः से लेकर बारहिीं तक का मेरा सफर काफी रोमाच ं क रहा। प्रिद्यालय के सनु हरे िागणं में धीरे -धीरे मेरी िप्रतभाओ ं का प्रनखार होता रहा। मेरे सभी प्रमिों ने सदैि ही मेरा सहयोग प्रकया प्रजसके पररणामस्िरूप आज मैं अपने आपको काफी हद तक आत्मप्रिश्वास से समृद्ध पाता ह।ाँ इस प्रिद्यालय में आने के बाद मैंने खेलकूद के सभी क्षेिों में सहभाप्रगता की और काफी सम्मान भी िाप्त प्रकया। शैप्रक्षक क्षेि में भी मैंने अपना पणू ि ियास प्रकया प्रजसके फलस्िरूप मैं सदा ही एक अच्छे प्रिद्याथी के रूप में प्रिद्यालय के द्वारा सराहा गया। मेरे शैप्रक्षक, सास्ं कृ प्रतक और खेलकूद जगत में योगदान को देखकर प्रिद्यालय ने मझु े गरु​ु जनों के आशीिािद से प्रिद्याथी-िमख ु की प्रज़म्मेदारी सौंपी। मैंने भी अपनी पणू ि प्रनष्ठा से उसे पणू ि करने का सदैि ियास प्रकया। आज मैं जो कुछ भी ह,ाँ उसका परू ा श्रेय अपने अपने प्रिद्यालय, अध्यापकों और अपने प्रमिों को देना चाहगाँ ा। मेरी यही अप्रभलाषा है प्रक मेरा प्रिद्यालय िप्रतप्रदन प्रिकास की सभी सीमाओ ं को पार करता हुआ प्रिश्व स्तर पर अपनी पहचान बनाए। यह इसी िकार अच्छे नागररकों के प्रनमािण में सदैि अपना योगदान देता रहे। आयिन साहू, किा - बारहवीं

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मैं ओजस ज्योप्रत बोरा हजाररका प्रडिगू ढ का रहने िाला ह।ाँ मैंने इस प्रिद्यालय में कक्षा छः में, िषि 2013 में ि​िेश प्रलया। इस प्रिद्यालय में ि​िेश लेने की िजह मेरी बड़ी बहनें ओब्जा बोरा हजाररका एिं ओिाप्रमका बोरा हजाररका थीं प्रजन्होंने िषि 2005 एिं 2008 में इस प्रिद्यालय से कक्षा बारहिीं उत्तीणि कीं। अपनी बहनों की अच्छी शैक्षप्रणक एिं अन्य गप्रतप्रिप्रधयों में दक्षता को देखकर मेरे मन में भी इस प्रिद्यालय में ि​िेश लेने की तीव्र अप्रभलाषा हुई। मेरे प्रपताजी ने मेरी मनःप्रस्थप्रत को देखकर मेरा ि​िेश भी इस प्रिद्यालय में करा प्रदया। िह प्रदन मझु े आज भी अच्छी तरह से याद है जब मैंने पहली बार एक प्रिद्याथी के रूप में इस प्रिद्यालय में ि​िेश प्रकया। िह प्रदन शि ु िार का था और उस प्रदन की तारीख 3 मई 2013 थी। मैंने मानस सदन के जप्रू नयर प्रिद्याथी के रूप में सदन में ि​िेश प्रकया। उस समय हमारे सदनाध्यक्ष श्रीमान संजय शमाि जी थे। उन्होंने बहुत ही अच्छे तरीके से मझु े सदन और प्रिद्यालय के प्रिषय में समझाया। पहली बार छािािास में आने के कारण अगं द प्रसंह सेखों को मेरा मेंटर प्रनयक्त ु प्रकया गया। अगं द बहुत हाँसमख ु स्िभाि का प्रिद्याथी था। उसने मझु े प्रिद्यालय के प्रिषय में बहुत ही अच्छी तरह से सब कुछ समझाया। छािािास में मेरी दोस्ती सबसे पहले आयिन साह से हुई। आयिन बहुत ही मेधािी तथा समझदार प्रमि था। उसने हर पल हर स्थान पर मेरी भरसक मदद की। धीरे -धीरे मैं छािािास के अपने सभी साप्रथयों के साथ घल ु प्रमल गया। मझु े अब सा लगता है प्रक यह छािािास मेरा प्रिकप्रसत पररिार ही है। सभी साथी मेरा भरपरू ध्यान रखते हैं। मैंने भी अपने सदन और प्रिद्यालय के प्रलए बहुत से साथिक ियास प्रकए हैं। मैं पहले से ही टेप्रनस खेलता था लेप्रकन टेप्रनस के िप्रत मेरी रुप्रच इसी प्रिद्यालय में आने के बाद और बलिती होती गई। मैंने प्रिद्यालय में रहकर प्रिद्यालय स्तर, अन्तर-प्रिद्यालयीय और प्रजला स्तरीय एिं आई. पी. एस. स्तर पर टेप्रनस खेलकर प्रिद्यालय के नाम को आगे बढाने का काम प्रकया है। मेरे गरु​ु जनों ने मेरी नेतत्ृ ि िप्रतभा को देखकर मझु े हाउस िीफे क्ट बनाया और मैंने भी परू े मनोयोग से उन प्रज़म्मेदाररयों के प्रनि​िहन करने का ियास प्रकया। इस प्रिद्यालय में आकर मैंने तैरना, प्रिके ट, फुटबॉल तथा बास्के टबॉल जैसे खेलों में भी महारत हाप्रसल करने की कोप्रशश की और काफी हद तक सफल भी रहा। मैंने शैप्रक्षक क्षेि में भी अपना अच्छा प्रिकास प्रकया प्रजसका सारा श्रेय मैं अपने प्रमिों तथा गरु​ु जनों को देना चाहगाँ ा। प्रिद्यालय ने मझु े इस काप्रबल बना प्रदया है प्रक मैं यहा​ाँ से बाहर जाने के बाद जीिन की सभी चनु ौप्रतयों का अच्छी तरह से सामना कर सकाँू । मझु े अपने प्रिद्यालय पर गि​ि है जो प्रिद्याप्रथियों को आगामी भप्रिपय की चनु ौप्रतयों के प्रलए तैयार करके उन्हें एक प्रज़म्मेदार नागररक बनाने का ियास करता है। मैं चाहता हाँ प्रक यप्रद भप्रिपय में मझु े प्रिद्यालय का यह ऋण उतारने का मौका प्रमला तो अिश्य ही मैं अपना परू ा सहयोग अपने इस प्रिद्यालय को देना चाहगाँ ा। अतं में ईश्वर से मेरी यही कामना है प्रक मेरा प्रिद्यालय इसी िकार देश के प्रलए प्रज़म्मेदार नागररकों का प्रनमािण करता रहे। ओजस ज्योर्त बोरा हजाररका किा - बारहवीं

जागरण पष्ठृ सख् ं या 21


मैं कपीश हरप्रसंगपरु रया प्रतनसुप्रकया का रहने िाला ह।ाँ आज से छः िषि पहले मेरे प्रपता ने मझु े इस प्रिद्यालय में ि​िेश प्रदलाने से पिू ि इण्टरनेट का सहारा लेकर भारत के सभी अच्छे प्रिद्यालयों को खोजा। सब प्रिद्यालयों के प्रिषय में जानने के बाद उन्होंने असम िैली को चनु ा और इसके प्रिषय में अन्य लोगों से भी जानकारी एकप्रित की। अतं में मझु े इस प्रिद्यालय में ि​िेश प्रदलाने का प्रनणिय प्रलया गया। मैंने भी अपने प्रमिों से इस प्रिद्यालय के प्रिषय में काफी सनु ा था इसप्रलए मैं यहा​ाँ आने को काफी उत्साप्रहत था। प्रिद्यालय में ि​िेश होने के बाद मेरे माता-प्रपता, बहन और चाचा मझु े यहा​ाँ छोड़ने आए। मैं 5 मई 2013 को प्रिद्यालय में पहुचाँ ा। प्रिद्यालय में फै ली िाकृ प्रतक छटा को देखकर मैं और मेरा पररिार बहुत ही खश ु था। प्रजस समय मैं मानस सदन में पहुचाँ ा उस समय श्रीमान संजय शमाि जी हमारे सदनाध्यक्ष थे। मेरे गरु​ु जनों ने मझु े और मेरे प्रपता को प्रिद्यालय की गप्रतप्रिप्रधयों के प्रिषय में प्रिस्तार से समझाया। तेजराज कश्यप को मेरा प्रिद्याथी मागिदशिक चनु ा गया। तेजराज ने मझु े प्रिद्यालय और सदन को अच्छी तरह समझने में मेरी भरसक मदद की। माता-प्रपता से दरू रहने पर मझु े छािािास के रूप में मेरा एक नया पररिार प्रमला। यहा​ाँ रहकर मैंने अपने नए प्रमि बनाए। मेरा सदन शैप्रक्षक, सास्ं कृ प्रतक और खेलकूद सभी क्षेिों में बेहद अच्छा रहा है प्रजसके पररणामस्िरूप मैं भी सभी क्षेिों में बेहतर िदशिन करता रहा। मेरी िप्रतभा को देखते हुए मेरे गरु​ु जनों ने मझु े उप-सांस्कृ प्रतक छाि िमख ु के रूप में प्रज़म्मेदारी दी प्रजसका मैंने बखिू ी प्रनि​िहन करने का ियास प्रकया। मैंने सदैि ही अपने प्रिद्यालय और सदन के साप्रथयों से बहुत कुछ सीखा है प्रजनका मैं आजीिन ऋणी रहगाँ ा। आज जब प्रिद्यालय से दरू होने का समय नज़दीक आ रहा है, तो लगता है प्रक बाहर की खल ु ी दप्रु नया मेरे प्रलए प्रकसी चनु ौती से कम नहीं होगी। मझु े प्रिद्यालय ने इस तरह से अनश ु ाप्रसत और शैप्रक्षक उत्कृ ष्टता िदान की है प्रजससे प्रक मैं बाहर दप्रु नया की चनु ौप्रतयों से सहजता से सामना कर सकाँू । मैं अपने प्रिद्यालय के प्रिषय में यही कहना चाहगाँ ा प्रक यह हमारे प्रलए प्रकसी मप्रं दर से कम महत्ि नहीं रखता। मेरी यही अप्रभलाषा है प्रक यह प्रदनोंप्रदन उन्नप्रत की ओर बढकर देश के प्रज़म्मेदार नागररकों का प्रनमािण करता रहे। कपीश हरर्संगपुररया किा – बारहवीं

मैंने चार िषि पहले प्रद असम िैली स्कूल में ि​िेश प्रकया। यह समय इतनी जल्दी व्यतीत हो जाएगा इसका मझु े अदं ाजा ही नहीं था। कक्षा निमीं में ि​िेश लेने के समय मैं बहुत ही अपररपक्ि थी। इस प्रिद्यालय में आने के बाद ही मैंने बहुत कुछ अनभु ि प्रकए प्रजसके बाद आज मैं स्ियं को प्रनणिय लेने में समथि पाती ह।ाँ जब हम एक छोटे पररिार से बड़े पररिार में कदम रखते हैं तो हमें बहुत कुछ सीखने को प्रमलता है। मझु े लगता है प्रक यह दप्रु नया सी है जहा​ाँ आपको सभी प्यार करते हैं और हर काम आसानी से हो जाता है। प्रिद्यालय में आने के बाद ही मेरा इस

जागरण पृष्ठ संख्या 22


सच्चाई से पररचय हुआ प्रक यप्रद आप दसू रों का सहयोग करने के प्रलए तैयार होते हैं तो लोग आपका भी खल ु े हृदय से सहयोग करते हैं और यप्रद दसू रों के िप्रत स्नेह रखते हैं तो आपको उतना ही स्नेह प्रमलता है। सच्चाई यह है प्रक समाज में हर तरह के लोग रहते हैं जो आपकी हर क्षण परीक्षा लेते हैं। जीिन की व्यािहाररक पररपाटी ही असली व्यप्रक्तत्ि का प्रनमािण करती है। बाहरी दप्रु नया में कदम रखने से पहले यह जानना भी ज़रूरी है प्रक दप्रु नया प्रकस िकार अच्छाई-बरु ाई, झठू -सच और अन्य गणु ों का सप्रमश्रण रखती है। यह जानने के बाद ही आप खदु को इस काप्रबल बनाते हैं प्रक अच्छी तरह से लोगों में आिश्यकतानसु ार घल ु प्रमल सकें । प्रिद्यालय के अनश ु ाप्रसत िातािरण ने मझु े अनश ु ासन का महत्त्ि समझाया। मेरे प्रिद्यालय के साप्रथयों ने सदैि ही मझु े अपना सहयोग िदान प्रकया। मैंने यहीं पर आकर दप्रु नया के अनेक धमों के प्रिषय में बहुत कुछ सीखा। यप्रद कभी मेरे जीिन में कोई दःु ख के पल आए तो सभी अपने दोस्तों को मैंने अपने साथ खड़े पाया है। प्रिपरीत पररप्रस्थप्रतयों में धैयि रखने की कला भी मैंने अपने गरु​ु जनों और साप्रथयों से ही सीखी है। आज मैं अपने साप्रथयों के साथ कंधे से कंधा प्रमलाकर चलती ह।ाँ यह आत्मप्रिश्वास भी मेरे प्रिद्यालय की ही देन है। जीिन में सफलता असफलताओ ं की सीप्रढयों पर चढकर प्रमलती है। यह गहन ज्ञान भी मेरे प्रिद्यालय की ही देन है। न जाने प्रकतनी बार सा समय आया जब मैं हताश होने लगी और न जाने कब मेरे दोस्तों के िेरणािद िाक्यों ने मझु े इतना िेररत प्रकया प्रक मैं हताशा से प्रनकलकर अपनी जगं खदु लड़ने खड़ी हुई और पररप्रस्थप्रतयों पर प्रिजय िाप्त की। मेरी सदनाध्यक्षा ने मेरे आत्मप्रिश्वास और साहस को देखकर मझु े हाउस िीफे क्ट का पद भार सौंप प्रदया और मैंने भी उनके प्रिश्वास को कायम रखने के प्रलए जी तोड़ मेहनत की। इस पद ने मझु े प्रसखाया प्रक प्रशक्षा के साथ-साथ नेतत्ृ ि के गणु भी प्रिद्याथी के जीिन और क्षमतािान बनाते हैं। जब प्रिद्यालय से प्रिदा लेने का समय प्रनकट आ रहा है तो मझु े लगता है प्रक बाहर की दप्रु नया में जाने के बाद श्रीमान झा साहब के द्वारा प्रदया जाने िाला भोजन, आधी-आधी रात तक दोस्तों के साथ पढाई और उनकी बातें बहुत याद आएगं ी। ट्यटू ोररयल में अपनी प्रमिों के साथ ट्यटू र के घर जाना, उनके बनाए हुए पकिानों का आनंद लेना और मस्ती करना भी शायद जीिन में कभी दोबारा प्रमलेगा। यहा​ाँ सभी से मझु े बेहद स्नेह प्रमला है, िह शायद ही मैं कभी भल ू सकाँू गी। मेरा एक ही सपना है प्रक मेरा प्रिद्यालय मेरे जैसे सभी प्रिद्याप्रथियों के सपनों का साकार करने िाला मप्रं दर बनकर रहे। श्रुर्त कोठारी किा – बारहवीं

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------ र्हंिी वगि पहेली --------

संकेत – 1. सुंिर वणि और आकृर्त

16. ओस

2. र्मट्टी से बना फूल लगाने का पाि

17. रस

3. एक ही तरह के लोग

18. लघु होने का भाव, लघुता

4. वस्त्र

19. बौखलाया हुआ

5. उल्टी लगना

20. बेकार

6. र्वनीत 7. मुख्य, प्रधान, अत्यंत 8. छोटा पत्र्र का टुकड़ा 9. उच्च कुल का 10. ना , अिा 11. अचेत 12. खाली हार् खड़े होना 13. बाघ की मा​ाँि 14. कूड़ा-ककि ट 15. धरती

सख्ं या िाले कॉलम के िणि को आधार बनाकर शब्द पणू ि कीप्रजए। िगि पहेली के हल का संकेत िमिार प्रदया गया है। जागरण पृष्ठ संख्या 24


मेधा परीिण प्रचिकार से पहले के समान दसू रा प्रचि प्रनमािण करते समय उसमें कुछ गलप्रतया​ाँ रह गई हैं। प्रजतने कम समय में आप सभी गलप्रतयों की संख्या ढूाँढ लेते हैं, उतनी आपकी बप्रु द्ध तीव्रगामी है।

जागरण पष्ठृ सख् ं या 25


जल ू ी घर जाते समय भल ू -भल ु ैया से भरे हुए रास्तों में अपने घर का रास्ता भल ू गई है। उसे सही रास्ते से उसके घर पहुचाँ ने में उसकी मदद कीप्रजए।

जागरण पृष्ठ संख्या 26


िेखो हाँस न िेना...........................

पाथि -

यह मोबाइल मझु े कंगाल करके छोड़ेगा । दस बार इसकी बैटरी बदल चक ु ा हाँ ।

हप्रषति - मगर क्यों ? पाथि -

जब भी इस्तेमाल करता हाँ , तभी प्रलखकर आ जाता है – बैटरी लो ।

-----------------------------------------------------------------------------------------------प्रपता - बेटा, छोड़ दे यह फे सबक ु , यह तझु े रोटी नहीं देने िाली। बेटा -

कोई बात नहीं पापा, रोटी बनाने िाली तो दे ही देगी।

-----------------------------------------------------------------------------------------------दो प्रमि आपस में बातें कर रहे थे । पहला प्रमि -

यार, मेरा प्रमि मोहन बड़ा पागल प्रनकला । िह आज कुएाँ में कूद गया और अपनी जान से हाथ धो बैठा।

दसू रा प्रमि -

तम्ु हारा प्रमि पागल नहीं महान पागल था।

पहला प्रमि -

भला िो कै से ?

दसू रा प्रमि -

अरे जब िह कुएाँ में कूदा था, तो उसे जान की जगह पानी से हाथ धो लेना चाप्रहए था।

वगि पहेली का हल :

जागरण पृष्ठ संख्या 27


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অন্ধ রাগে

আমোর েোলে কেোও বলে,

চ োখ বন্ধ করলেই চেখখ েোে

কেো ভোেবোখে ।

ভোে েোগলেনো আর জীবলনর এই তোে,

Hrideek Chaudhury

খকেু আঘোত করোর চকমন চেন ইচ্ছো হয়,

Class - 9

খকন্তু আজ চেই ইচ্ছোপূরলের খেন নয় । তোর চেলক বরং গধুেীর উন্মুক্ত প্রোন্তলর, খমলে চেলত

োই উদ্ভ্রোন্ত চরোলে,

ক্লোখন্তর চরোলে েমীরে ,

বিদ্যালয় জীিগে খেলাধুলার গুরুত্ত : চখেোধুেোর

মোধযলম

শুধু

েরীর চ ো

জোখরত চহোক অন্তলর।

পোরস্পখরক

আজ খনখখে আনলে চমলত উঠু ক

চখেোধুেো ।

নীেোকোলের েন্খখ ে,

কোরখোনোগুখেলত কোজ শুরু করোর আলগ েরীর চ ো করো

পৃখেবীর েমস্ত প্রোলন্ত চজলগ উঠু ক,

মলনোখনলবে ক্ষমতোও বৃখি পোয় । আমরো প্রলিলকই জোখন,

মোনবতোর অকৃ খিম খমখে​ে ।

Areeq Imran Class -10

চেৌহোেচ , মমত্রী, ভোতৃ ি

নয়, চনতৃ িেখক্ত, ইতযোখের

োখরখত্রক

গুনোবখের প্রকোে ঘলে । েুস্থ জীবনেোলভর জনয উন্নত

চে​েগুলেোলত

েোধোরেত

োই কে-

হলয় েোলক ; এর দ্বোরো কমচেখক্তর খবকোে হয় এবং

চে

স্বোস্থই হে আে​ে েম্পে, তোই েুস্থতোই আমোলের

চমৌখেক কতচ বয । খনয়খমত এবং পখরখমত চখেোধুেোর অভযোে েুস্থ জোখত ও েুস্থ

মোনখেকতো

এমনখক

মোনুষ

গঠলন

খবলেষ

েৃন্খেোপরোয়ে

ভূ খমকো হলয়

গঠন

কলর

তোই

ওলঠ

েরীর চ ো এবং চখেোধূেোর অভযোে েুস্থ মোনবজোখত গঠলন

কথা কেোয় কেোয় কেোর মোলে কেোর কেোই আলে,

এক খবলেষ অগ্রখন ভু খমকো পোেন কলর ।

Arkaprabha Dutta Class- 8

চ োলখর কেোয় বেলেো কেো আমোয় ভোেবোলে। আমোর কেোও তোলক বখে কেোর মুলখ হোখে, जागरण, बा​ांग्ला भाषा, पष्ृ ठ सांख्या 01



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