दीपक 'मशाल' २४ िसितम्बर सिन् १९८० को उत्तर प्रदे श के उरई (जालौन) िजले में जन्मे दीपक चौरिसिया ‘मशाल’ की प्रारंभ िभिक िशक्षा जनपद के कोंच नामक स्थान पर हुई . बाद में आपने जैव प्रौद्योिगिकी में परास्नातक तक िशक्षा अध्ययन िकया और वतर्तम ान में आप उत्तरी आयरलैंड (यू. के .) के क्वींसि िवश्वविवद्यालय सिे कैं सिर पर शोध में सिंभल ग्न हैं . १४ वष र्त की आयु सिे ही आपने सिािहत्य रचना प्रारंभ भि कर दी थी . लघुक था, व्यंभग् य तथा िनबंभध ों सिे प्रारंभ भि हुई . आपकी सिािहत्य यात्रा धीरे -धीरे किवता, ग़ज़ल, एकांभक ी तथा कहािनयों तक पहुँ च ी . सिािहत्य के अितिरक्त िचत्रकारी , अिभिनय, सिमीक्षा िनदे श न, मौडिलगि तथा सिंभगि ीत में आपकी गिहरी रूचिच है . अब तक इनकी िविवध िवधाओं की रचनाओं का सिमरलोक, परीकथा, पाखी, पांभडु िलिप, िहदी-चेत ना, पुर वाई, सिुख नवर, सिृज न सिे, गिभिर्तन ाल, स्पंभद न, लोकसिंभघ ष र्त पित्रका, सिािहत्य सिंभगि म, सिृज नगिाथा, कथाक्रम(आगिामी अंभक के िलए दो लघुक थाएंभ स्वीकृ त ), अमर उजाला, दै ि नक जागिरण जैसि ी ख्याितलब्ध राष्ट्रीय , अंभत रार्तष्ट्र ीय पत्र-पित्रकाओं में प्रकाशन हो चुक ा है . २००९ में िहन्दयुग् म वेब सिाईट द्वारा अगिस्त माह के यूि नकिव का पुर स्कार िमला . यू. के . िहन्दी सििमित द्वारा प्रकािशत होने जा रही पुस् तक 'िब्रिटे न की प्रितिनिध कहािनयाँ' में 'उज्जवला अब खुश थी ' कहानी को स्थान . 'मिसि-कागिद' के नाम सिे सिबका चहे त ा िनजी िहन्दी ब्लॉगि. इसिी वष र्त आपकी किवताओं का सिंभग्र ह “अनुभि ूि तयाँ” िशवना प्रकाशन द्वारा प्रकािशत हुआ है सिाथ ही 'सिम्भिावना डोट कॉम' एवंभ 'अनमोल सिंभच यन' पुस् तकों में भिी इनकी रचनाओं को स्थान िमला है . इसि वष र्त एक लघुक था सिंभग्र ह और एक अन्य काव्यसिंभग्र ह आने की सिंभभि ावना है . १- सिफल आदमी आदमी महानगिर की तरफ बढ़ रहा था. रास्ते में पड़ने वाली हर वस्तु, घटना को कौतुहूल सिे देखता जाता. िकसिी गिाँव के रास्ते में पड़े मरणासिन्न कु त्ते को देख िठिठिक कर रुक गिया, तभिी वहाँ सिे २-३ और कु त्तों को गिुजरते देखा. कु त्तों ने अपने मृतप्राय सिाथी को सिूघ ँ ा, इधर-उधर देखा और चलते बने. आदमी भिी आगिे बढ़ गिया. अबकी क़स्बा पड़ा. तत्परता सिे िकसिी घर की रखवाली करते एक दूसिरे कु त्ते को देख कर पुनः रुक गिया. तभिी घर सिे िनकला कु त्ते का मािलक डबलरोटी के दो टु कड़े डाल कर चलता बना. अचानक ही कहीं सिे उड़ते आ रहे एक कौवे की नज़र डबलरोटी पर पड़ी. वह झट सिे उसिे मुँह में दबा फु रर्त सिे उड़ गिया. कु त्ता असिहाय था िसिवाय भिौंकने के और उसि काले पक्षी के पीछे दौड़ने के कु छ ना कर सिका. आदमी मुस्कु राया और िफर आगिे चल िदया. महानगिर के द्वार पर िबजली के करंभ ट सिे मरे कौवे को घेरे कांभव -कांभव करते उसिके सिािथयों पर नज़र गिई तो मगिर उसिे कोई िदलचस्पी ना हुई.