Dipak Mashal's Hindi short stories

Page 1

दीपक 'मशाल' २४ िसितम्बर सिन् १९८० को उत्तर प्रदे श के उरई (जालौन) िजले में जन्मे दीपक चौरिसिया ‘मशाल’ की प्रारंभ िभिक िशक्षा जनपद के कोंच नामक स्थान पर हुई . बाद में आपने जैव प्रौद्योिगिकी में परास्नातक तक िशक्षा अध्ययन िकया और वतर्तम ान में आप उत्तरी आयरलैंड (यू. के .) के क्वींसि िवश्वविवद्यालय सिे कैं सिर पर शोध में सिंभल ग्न हैं . १४ वष र्त की आयु सिे ही आपने सिािहत्य रचना प्रारंभ भि कर दी थी . लघुक था, व्यंभग् य तथा िनबंभध ों सिे प्रारंभ भि हुई . आपकी सिािहत्य यात्रा धीरे -धीरे किवता, ग़ज़ल, एकांभक ी तथा कहािनयों तक पहुँ च ी . सिािहत्य के अितिरक्त िचत्रकारी , अिभिनय, सिमीक्षा िनदे श न, मौडिलगि तथा सिंभगि ीत में आपकी गिहरी रूचिच है . अब तक इनकी िविवध िवधाओं की रचनाओं का सिमरलोक, परीकथा, पाखी, पांभडु िलिप, िहदी-चेत ना, पुर वाई, सिुख नवर, सिृज न सिे, गिभिर्तन ाल, स्पंभद न, लोकसिंभघ ष र्त पित्रका, सिािहत्य सिंभगि म, सिृज नगिाथा, कथाक्रम(आगिामी अंभक के िलए दो लघुक थाएंभ स्वीकृ त ), अमर उजाला, दै ि नक जागिरण जैसि ी ख्याितलब्ध राष्ट्रीय , अंभत रार्तष्ट्र ीय पत्र-पित्रकाओं में प्रकाशन हो चुक ा है . २००९ में िहन्दयुग् म वेब सिाईट द्वारा अगिस्त माह के यूि नकिव का पुर स्कार िमला . यू. के . िहन्दी सि​िमित द्वारा प्रकािशत होने जा रही पुस् तक 'िब्रिटे न की प्रितिनिध कहािनयाँ' में 'उज्जवला अब खुश थी ' कहानी को स्थान . 'मिसि-कागिद' के नाम सिे सिबका चहे त ा िनजी िहन्दी ब्लॉगि. इसिी वष र्त आपकी किवताओं का सिंभग्र ह “अनुभि ूि तयाँ” िशवना प्रकाशन द्वारा प्रकािशत हुआ है सिाथ ही 'सिम्भिावना डोट कॉम' एवंभ 'अनमोल सिंभच यन' पुस् तकों में भिी इनकी रचनाओं को स्थान िमला है . इसि वष र्त एक लघुक था सिंभग्र ह और एक अन्य काव्यसिंभग्र ह आने की सिंभभि ावना है . १- सिफल आदमी आदमी महानगिर की तरफ बढ़ रहा था. रास्ते में पड़ने वाली हर वस्तु, घटना को कौतुहूल सिे देखता जाता. िकसिी गिाँव के रास्ते में पड़े मरणासिन्न कु त्ते को देख िठिठिक कर रुक गिया, तभिी वहाँ सिे २-३ और कु त्तों को गिुजरते देखा. कु त्तों ने अपने मृतप्राय सिाथी को सिूघ ँ ा, इधर-उधर देखा और चलते बने. आदमी भिी आगिे बढ़ गिया. अबकी क़स्बा पड़ा. तत्परता सिे िकसिी घर की रखवाली करते एक दूसिरे कु त्ते को देख कर पुनः रुक गिया. तभिी घर सिे िनकला कु त्ते का मािलक डबलरोटी के दो टु कड़े डाल कर चलता बना. अचानक ही कहीं सिे उड़ते आ रहे एक कौवे की नज़र डबलरोटी पर पड़ी. वह झट सिे उसिे मुँह में दबा फु रर्त सिे उड़ गिया. कु त्ता असिहाय था िसिवाय भिौंकने के और उसि काले पक्षी के पीछे दौड़ने के कु छ ना कर सिका. आदमी मुस्कु राया और िफर आगिे चल िदया. महानगिर के द्वार पर िबजली के करंभ ट सिे मरे कौवे को घेरे कांभव -कांभव करते उसिके सिािथयों पर नज़र गिई तो मगिर उसिे कोई िदलचस्पी ना हुई.


महानगिर में आदमी को काम िमल गिया. एक िदन अपने वाहन सिे कहीं जाते सिमय रास्ते में उसिे सिड़क िकनारे दुघटर्त नाग्रस्त व्यिक्त पड़ा िमला. आदमी ने उसिे देखा, घड़ी भिर को ठिहरा भिी िफर घड़ी पर नज़र डाली. उसिे देर हो रही थी इसि​िलए आगिे बढ़ गिया. कंभ पनी में अपने सिहयोगिी को वष ों की सिेवा पर िमलने वाले पुरस्कार और तरक्की पर ितकड़म िभिड़ा कर आिख़िरी सिमय में अपना कब्ज़ा जमा िलया. कु छ बरसि और बीते. वो पूरी तरह सिे महानगिर का आदमी हो चुका था. सिफलता उसिके कदम चूमती थी. एक सिमारोह के बाद सिाक्षात्कार में उसिने लोगिों को सिन्देश िदया िक उसिने सिफलता की तरफ बढ़ते हुए हर उसि घटना सिे कु छ ना कु छ सिीखा िजसिसिे सिीखा जा सिकता था, इसिीिलए आज वो सिफल आदमी था. २- सिमूह भिोज रोज-रोज के उसिी एक जैसिे खाने सिे ऊब गिया था वह, महीनों सिे तो खाता आ रहा था वही रोटी और अचार. तभिी तो जब आज सिुबह माँ ने गिाज़र का हलवा, तली हुई हरी मटर और पूड़ी िटिफन में रखी तबसिे उसिका मन पढ़ाई में ना था, बसि इंभ तज़ार था िक कब मध्यावकाश हो और वह उन सिब पकवानों का मज़ा ले . मध्यावकाश के सिमय पंभिक्तयों में बैठिे सिभिी छात्रों ने जैसिे ही भिोजन मंभत्र सिमाप्त िकया िक मास्टर जी की कड़क आवाज़ ने अपने-अपने िटिफन को खोलने को बढ़ते हाथ रोक िदए. आदेश हुआ िक ''आज वािष क सिामूिहक भिोज का िदन है. प्रेम और भिाईचारा बढ़ाने एवंभ भिेदभिाव दूर करने के िलए ऐसिे आयोजन आवश्यक हैं. इसि​िलए आज सिभिी का भिोजन एक बाल्टी में एकित्रत िकया जाएगिा. िफर उसिे िमिश्रित कर सिबमे बांभटा जाएगिा. िजसिके िहस्सिे जो पड़ेगिा उसिे प्रेम सिे खाना होगिा.'' वो हलवे और पूड़ी का लज़ीज़ स्वाद याद करते हुए उन्हें बाल्टी में सिमािहत होते देखते रहने के िसिवा कु छ ना कर सिका. एकबार िफर उसिके िहस्सिे िकसिी और के यहाँ की बनी गिली सिी रोटी और अचार ही पड़ा. पानी पीने के बहाने उठिते हुए उसिने सिबके िहस्सिे में पड़े भिोजन पर एक नज़र डाली. मगिर गिाज़र का हलवा और पूड़ी िकसिी के पासि ना िदखा, ना ही वो तली हुई हरी ताज़ी मटर. जाने क्यों उसिकी नज़र अध्यापक कक्ष की ओर उठि गिई जहाँ सिे ठिहाकों की आवाजें आ रही थीं. ३- फे यर एन लवली नारी और पुरुष सिौंदयर्त प्रसिाधनों की वो दोनों दुकानें थीं तो अगिल-बगिल में, उनमें िमलने वाले सिामान और होजरी भिी एक सिे थे मगिर ना जाने क्यों िफर भिी दूसिरी वाली दुकान ज्यादा चलती . सिब तो एक सिा था, दोनों की सिजावट एक जैसिी, दोनों में ही युवा सिेल्सि वोमेन.. लेिकन िफर भिी कु छ था जो एक जैसिा नहीं था. पहली दुकान का मािलक बराबर इसिी बात सिे कु ढ़ता रहता िक दूसिरे वाले की दूकान पर भिीड़ इतनी ज्यादा क्यों रहती? एक िदन उसिने बहाने सिे दूसिरी दुकान में झाँक कर देखा और शाम को ही अपनी सिेल्सि वोमेन सिे िहसिाब कर लेने को कह िदया. वो अब दूसिरी सिेल्सि वोमेन चाहता था. थोड़ी कम खूबसिूरत और श्यामवणी उसि लड़की ने घर की तंभगिहाली का हवाला िदया मगिर दुकान मािलक ना पसिीजा, आिखर वो भिी क्या करता ज्यादातर ग्राहक तो पुरुष ही आते थे ना.


४- देनदारी उम्र के सिातवें दशक में कदम रखते अवध िकशोर की सिाइिकल भिी उसिी की तरह हो चली थी . बाकी सिब तो चलाया भिी जा सिकता लेिकन उसि चेन का क्या करते जो इतनी पुरानी और ढीली पड़ गिई थी िक हर दसि कदम पर ही उतर जाती. अपना खुद का कोई ख़िासि काम ना होने की वजह सिे उसिे घर के सिामान लाने के इतने काम दे िदए जाते िक सिारा िदन िनकल जाता. वो भिी सिाइिकल के िबना तो िदन भिर में भिी पूरे ना हों. आज उसिकी छोटी सिी वृद्धावस्था पेंशन हाथ आई तो सिोचा िक पहले नई चेन ही डलवा लेते हैं. पैसिे लेकर घर पहुंभचा ही था िक उसिके हाथ में हरे -हरे नोट देख बेटा बोल पड़ा, ''दद्दा दो महीना पहलें तुमने चश्मा और जूता के लाने जो पैसिा हमसिे लए ते वे लौटा देओ , हमे जा महीना तनख्वाह देर सिे िमलहे और मोटरसिाइिकल की सि​िवसि जरूचरी कराने है.'' अवध िकशोर ने पैसिे उसिे देते हुए इतना ही कहा, ''हाँ बेटा हम तो भिूलई गिए ते िक तुम्हाई कछू देनदारी है हमपे, अच्छो रओ तुमने याद िदला दई''. ५- नखरे ''सिुिनए जी!! ये तुम्हारे पापा जी के नखरे अब हमसिे नहीं उठिाये जाते. रोज के रोज नए क़ानून िनकालते रहते हैं, कभिी सिब्जी में नमक ज्यादा बताते हैं तो कभिी िमचर्त. जरा सिुबह का खाना इनको शाम को खाने को दे दो तो इनके दांभतों में ददर्त होने लगिता है .'' मनोहर की बीवी श्यामा आज िफर वही रोज का रोना लेकर बैठि गिई. तभिी दूसिरे कमरे सिे उनके बारह वष ीय बेटे के कु नमुनाने की आवाज़ आई, ''क्या मम्मी मैं रोज कहता हूँ िक मुझे दूध में मलाई नहीं पसिंभद. िफर भिी आप छानते हुए ध्यान नहीं देतीं.'' ''हाँ बेटा अभिी आई, दुबारा छान देती हूँ.'' और मनोहर बच्चे के नखरे उठिाने को रसिोई की ओर भिागिती बीवी को देर तक देखता रहा. ६- आदत अब कोई रोके भिी तो कै सिे ये उम्र ही ऐसिी होती है िक घर का बना खाना खाया नहीं जाता और बसि चाट पकोड़े खाने को जी करता रहता है . यही हाल िकशोरवय धमेन्द्र का था, िक वो िदन भिर तो घर का बना हुआ रोटी-दाल-सिागि कु छ खाता नहीं, बसि सिारे िदन भिर भिूखा रह इंभ तज़ार करता ३ बजे घर के सिामने सिे गिुजरने वाले चाट के ठिे ले का. आज िफर सिही सिमय पर जैसिे ही चाट वाले ने अपनी कलछु ल को देशी घी में तली आलू की करारी िटिक्कयों सिे सिजे बड़े सिे तवे पर टनटनाया तो धमेन्द्र जेब में तीन रुपये डाल तेजी सिे बाहर की तरफ भिागिा. चाट वाले को भिी अब तक पता चल चुका था िक धमेन्द्र की पसिंभद क्या है इसि​िलए झट सिे उसिने लड़के के स्वादानुसिार करारी िटक्की हािज़र कर दी. अपनी ही मस्ती में खोये उसि िकशोर ने चाट खा कर दोने में ही सिोंठि का पानी पीया और तृप्त होकर दोने को सिड़क के बीचों बीच हवाईजहाज की तरह उछाल िदया. पत्तों का बना वो दोना पीछे सिे आते एक बुजुगिर्त के माथे सिे लगिते -लगिते बचा. धमेन्द्र


घबरा गिया, लेिकन उसिकी आशा के िवपरीत उन सिज्जन व्यिक्त ने दोने को उठिा कर चुपचाप चाट वाले के कू ड़ेदान में डाल िदया और आगिे बढ़ गिये. धमेन्द्र सिकु चाया सिा घर में घुसि गिया. अगिले िदन िफर उसिी सिमय वही चाट, वही पानी और िफर आिखर में वही दोने का सिड़क पर फें कना. अब अगिर आदतें इतनी जल्दी बदलने लगिें तो आदतें ही क्या? मगिर तभिी आज िफर सिामने सिे मुस्कु राते हुए उन्हीं बुजुगिर्त सिज्जन को आते देख धमेन्द्र ने बड़ी फु ती सिे दोना सिड़क सिे उठिाया और कू ड़ेदान में डाल िदया. ७- इकलौती औलाद उसि छोटे सिे कस्बे में ले दे कर एक ही तो टॉकीज थी िजसिमें सिबको मनोरंभ जन के िलए जाना होता था. लेिकन उसिे क्या पता था िक आज उसिके स्कू ल सिे भिागिकर और घर सिे चुराए गिए उन पैसिों सिे वो माधुरी दीिक्षत की याराना िफल्म देखने सिे इतनी बड़ी मुसिीबत में फंभ सि जाएगिा. िफल्म ख़ित्म होने तक तो सिब ठिीकठिाक था लेिकन बाहर िनकलते ही उसिके सिामने पड़ोसि में रहने वाले वो िमश्रिा अंभकल पड़ गिए. अब एक तो िमश्रिा जी इधर-उधर करने में मािहर, ऊपर सिे पापा के दोस्त भिी. उसिकी तो ऊपर की सिाँसि ऊपर और नीचे की नीचे. शाम को िपटाई तो तय ही थी. मारे डर के वो घर ना जाकर कस्बे सिे सिौ िकलोमीटर दूर बसिे शहर को जाने वाली रे लगिाड़ी में बैठि गिया. शाम तक जब उसिका कु छ पता ना चला तो घर वाले परे शान हो उठिे . मोहल्ले में हंभगिामा मच गिया, सिारे कस्बे में कहाँ-कहाँ नहीं ढू ँढा गिया, िमश्रिा जी को भिी उसिी िदन िकसिी काम सिे १५ िदन के िलए बाहर जाना पड़ गिया तो अब खबर कौन देता. पुिलसि में िरपोटर्त हुई लेिकन नतीजा िसिफ़र. कहते हैं िक भिूख वो बला है जो अच्छे -अच्छों को रास्ते पर ले आती है. तो दो िदन बाद जब सिारा पैसिा ख़ित्म हो गिया तो लड़का थक हार कर पेट टटोलता हुआ घर लौट आया. अब ना उसिे मार का डर था ना िपटाई का, थी तो िसिफर्त भिूख. रास्ते में बचने का उपाय भिी सिोच िलया. घर पहुँचने पर माँ-बाप के तो जैसिे प्राण ही लौट आये. पूछने पर उसिने बताया िक एक झोली वाला बाबा उसिके ऊपर जादू करके ले गिया था. पहले सिाथ में िफल्म िदखाई िफर िबस्कु ट िखलाकर जाने क्या नशा करा िदया िक उसिे पता ही ना चला िफर क्या हुआ. लेिकन जब दूसिरे शहर में पहुँचने पर होश में आया तो िकसिी तरह जान छु ड़ा कर घर लौट आया. लड़के की बहादुरी सिे सिभिी बड़े प्रभिािवत, ऐसिे स्वागित हुआ जैसिे कोई कुँ वर जंभगि जीत कर लौटा हो. अब बाप को चोरी हुए पैसिों का सिारा चक्कर सिमझ में तो आ रहा था, पर बेचारा इकलौती औलाद का और करता भिी क्या. ८- मुनाफा ''तुमसिे िकतनी बार कहा िक सिुबह जल्दी उठिकर पहले दूध लेने चले जाया करो, अपनी आँखों के सिामने दूध दुहाओगिे तो वो दूधवाला कोई िमलावट ना कर सिके गिा िपयोर दूध िमलेगिा िबना पानी िमलाये लेिकन तुम्हारी आँख खुले तब ना.'' छु न्नालाल बिनया सिुबह-सिुबह अपने बेटे सितीश को डांभटे जा रहा था. ''लेिकन िपताजी दूधवाले चाचा इतने पुराने जान-पिहचान वाले और भिरोसिे के आदमी हैं, वो क्यों कर पानी िमला दूध देने लगिे?'' सितीश ने तकर्त िदया


''अरे हिरश्चंभद्र तुम जल्दी जाकर दूध लाओ, ये तुम्हारा सितजुगि नहीं सिमझे . सिुबह सिे बहसि लड़ाता है नालायक.'' जवाब िमला दूध लेकर घर लौटा तो देखा िक बैठिक में िपता छु न्नालाल अपने िवश्ववस्त नौकर को सिमझा रहे थे िक, '' देख छु ट्टन, ये ३ िकलो सिफ़े द कंभ कड़ ले जा और चावल के बोरे में अभिी के अभिी िमला दे वनार्त एकबार ग्राहक आने शुरूच हो गिए तो इसि बोरे का भिी ऊपरी मुनाफा गिया ही सिमझो.'' ९- बालमन सिुबह स्कू ल में अकरम की नई सिाइिकल देख कर किपल के मन में जाने क्या शरारत सिूझी िक उसिने स्कू ल सिे वापसि लौटते सिमय पीछे सिे जानबूझकर उसिको अपनी पुरानी सिाइिकल सिे टक्कर मार दी. नई सिाइकल तो थी ही सिवार भिी नौिसि​िखया ही था. अकरम का बैलेंसि िबगिड़ने में जरा भिी देर ना लगिी और वो सिामने सिे आते एक दूसिरे सिाइिकल सिवार सिे टकराकर सिड़क पर िगिर गिया. खतरा भिांभपकर किपल चेहरा छु पा कर भिागि िनकला. अगिले िदन जब उपिस्थित लेते सिमय टीचर ने अकरम का नाम पुकारा किपल के भिी कान खड़े हो गिए. उसिके पड़ोसि में रहने वाले लड़के ने अकरम का छु ट्टी के िलए प्राथर्तना पत्र टीचर को सिौंपते हुए बताया िक कल सिाइिकल सिे उसिका एक्सिीडेंट हो जाने सिे घुटनों में बहुत चोट आई, िजसिसिे ददर्त और बुखार भिी था. वो एक हफ्ते स्कू ल आने में असिमथर्त था. सिुनकर किपल के हाथ अनजाने ही अपने घुटनों पर चले गिए, उसिे वहाँ िछलने जैसिा ददर्त महसिूसि हो रहा था और आँखों सिे पश्चाताप के आँसिू बह रहे थे.

१०- सिमझदार मोहल्ले के इकलौते प्राइवेट स्कू ल की चौथी कक्षा में सिाथ पढ़ने वाली मुन्नी के सिाथ मुन्ना की अच्छी जमती. मुन्नी पढ़ाई में तेज़ तो थी ही, स्कू ल की और भिी कई प्रितयोिगिताओं में अब्बल आती. मुन्ना और मुन्नी ज्यादातर सिाथ ही देखे जाते . कई बार पढ़ाई में वो मुन्नी की मदद भिी ले लेता. पर मुन्ना की सिमझ में ना आता िक उन दोनों की पक्की दोस्ती को सिारे मास्टर बड़े अजीब तरीके सिे क्यों देखते थे ? कई बार उसिे लगिता िक वो इशारों में ही मुन्नी सिे दूर रहने के िलए कहते हों. िफर भिी खुल कर कोई कु छ ना कहता. पर अभिी कु छ िदनों सिे मुन्ना खुद ही मुन्नी सिे दूर भिागिने लगिा था. कक्षा में अपने बैठिने की जगिह भिी बदल दी थी. अब ना तो उसिके सिाथ खेलता, ना खाना खाता और ना ही उसिसिे सिवाल का हल पूछता. मास्टर जी ने भिी उसिके िपता सिे कहा िक 'आपका मुन्ना अब सिमझदार हो गिया है.' अब होता भिी क्यों ना मुन्ना ने इतवार को सिुबह जल्दी नींद खुलने पर मुन्नी को उसिके अम्मा-बापू के सिाथ सिड़क पर झाड़ू लगिाते जो देख िलया था.


११- भिारतीय पहली बार लन्दन गिया था वो. दोस्त के घर पहुँचने के िलए पूवर्तिनयोिजत रास्ते और तरीके सिे वह हवाई अड्डे सिे रे लवे स्टेशन पहुँच गिया. ट्रेन सिे आगिे का रास्ता तय कर रहा था. तभिी भिीड़ भिरी उसि ट्रेन में िकसिी स्टेशन सिे एक बुजुगिर्त अँगिरे ज़ मिहला का उसिके कम्पाटर्तमेंट में चढ़ना हुआ. जब उन बूढ़ी मिहला को कहीं बैठिने को जगिह ना िमली तो सिंभस्कारवश उसिने अपनी सिीट सिे उठि कर मिहला सिे बैठिने का आग्रह िकया. बदले में जब उसि बूढ़ी औरत ने अंभग्रेज़ी में ही कहा, 'धन्यवाद बेटा, तुम भिारतीय सिच में बहुत दयालु होते हो. ईश्ववर तुम्हें खुश रखे' तो उसिे अपनी भिारतीयता पर गिवर्त हुआ. ट्रेन का सिफ़र तय करने के बाद उसिे अंभडरग्राउंभ ड ट्यूब स्टेशन तक पहुँचने में भिी कोई परे शानी नहीं हुई. सिब कु छ दोस्त ने फ़ोन पर सिमझा िदया था इसि​िलए सिेन्ट्रल लाइन(लन्दन की मेट्रो की एक लाइन) के प्लेटफामर्त तक पहुँचने में भिी देर नहीं लगिी. मगिर उसिे यह सिमझ ना आया िक अपने गिंभतव्य तक पहुँचने के िलए िकसि िदशा सिे आती सिेन्ट्रल लाइन ट्यूब में बैठिा जाए. दोस्त ने भिी िसिफर्त सिेन्ट्रल लाइन पकड़ने के िलए बताया था और अपना पता बता िदया था. दुभिार्तग्य िक दोस्त स्टेशन का नाम बताना भिूल गिया और वह पूछना. प्लेटफामर्त भिी जमीन सिे ४०-५० मीटर नीचे था, जहाँ मोबाइल नेटवकर्त िमलना असिंभभिव ही था. पासि सिे गिुज़रते एक भिारतीय सिे जब उसिने पता करने की कोिशश की तो वह उसिे अनदेखा कर िनकल गिया. एक-दो अन्य भिारतीयों ने तो उसिे ऐसिे घूर कर देखा जैसिे वह कोई िभिखारी हो. अंभत में जब उसिे भिारतीयों सिे उम्मीद ना रही तो एक अँगिरे ज़ सिे ही पूछना ठिीक सिमझा, और तुरंभत ही एक सिज्जन गिोरे व्यिक्त ने अपनी ट्रेन के छू टने की परवाह िकये िबना उसिकी सिमस्या का हल कर िदया. अब उसिे भिारतीयों पर शमर्त आ रही थी. दीपक मशाल

१२- अच्छा स्कू ल वह एक सिरकारी प्राथिमक िवद्यालय में िशक्षक था. भिलीभिांभित जानता था िक अपने बच्चे का भि​िवष्य कै सिे सिुिनिश्चत करना है, कै सिे सिंभवारना है? तभिी तो उसिके पैदा होते ही उसिने उसिके नाम सिे एक मुश्त रकम जमा कर दी, िजसिसिे िक जब तक बच्चा स्कू ल जाने योग्य हो तब तक िकसिी 'अच्छे स्कू ल' में दािखले लायक धन जमा हो सिके . पर बढ़ती महंभगिाई का क्या करें िक उसिके बेटे की उम्र तो िशक्षा पाने की हो गिई लेिकन जमा धन िशक्षा िदलाने लायक ना हुआ. इन चंभद सिालों में मंभहगिाई उसिकी सिोच सिे दोगिुनी रफ़्तार सिे बढ़ चुकी थी. जो पैसिे उसिके हाथ आये थे उतने तो मनवांभिछत स्कू ल की एडिमशन फीसि देने के िलए भिी नाकाफी थे, िफर उसिकी आसिमान छू ती ट्यूशन फीसि की बात ही कौन करे . एक बारगिी सिोचा तो िक ''एक-दो सिाल के िलए अपने ही सिरकारी स्कू ल में दािखला िदला दूँ '', लेिकन यह उसिकी पत्नी को गिंभवारा ना हुआ. जब कु छ इंभतजाम ना बन पड़ा तो अपने मोहल्ले के ही एक िशशुमंभिदर में प्रवेश िदला िदया. यह सिोचकर िक, ''एक सिाल यहाँ रहकर अनुशासिन तो सिीखेगिा... तब तक 'अच्छे स्कू ल' के िलए कहीं सिे बंभदोबस्त कर ही लूगि ँ ा''.


दीपक मशाल १३- चक्कर गिुप्ता जी के पड़ोसि में रहने वाले पिरहार सिा'ब अपने घर में एक नया कमरा बनवा रहे थे . कमरा लगिभिगि तैयार था, लेंटर पड़े हुए भिी दो हफ्ते बीत चुके थे. एक िदन कमरे का मुआयना करते हुए अचानक उनके सिर पर सिूखे हुए लेंटर का एक बड़ा टु कड़ा िगिर पड़ा. पिरहार सिा'ब बुरी तरह लहुलुहान हो गिए. सिर, कंभ धे और हाथ में काफी गिंभभिीर चोटें आई. तुरंभत नजदीक के अस्पताल में भिती कराया गिया. एक हफ्ते इमरजेंसिी में रहने के बाद कु छ िदन सिाधारण वाडर्त में भिी रहना पड़ा और आज ही घर वापसि लौटे थे. पड़ोसिी धमर्त िनभिाते हुए ऑफिफसि सिे लौटने के बाद गिुप्ता जी सिपत्नीक बीमार का हालचाल लेने पहुंभचे. शरीर में जगिह-जगिह बंभधी पिट्टयों, सिूजे चेहरे और पिट्टयों सिे िझलिमलाते खून को देख कमज़ोर िदल की गिुप्ता भिाभिी घबरा गिई और वहीं पर रोने लगिीं. गिुप्ता जी ने उन्हें सिम्हाला और जल्दी ही घर वापसि ले आये. रात को गिुप्ता जी की आँखों में नींद नहीं थी. काफी देर तक करवटें बदलने के बाद भिी जब सिो ना पाए तो आधी रात के बाद बाथरूचम जाने के िलए उठिी पत्नी सिे पूछ ही बैठिे , ''तुम उसि पिरहार को देख ऐसिे क्यों रो पड़ी जैसिे एक्सिीडेंट उसिका नहीं मेरा हुआ हो? मानो ददर्त मेरा हो.. आिखर चक्कर क्या है?'' दीपक मशाल १४- जानवर के िलए क्या रोना मोटरसिाइकल सिड़क िकनारे खड़ी करते वक़्त उसिने जानबूझकर उसिका अगिला पिहया सिोये हुए कु त्ते के पैर पर चढ़ा िदया. बेजुबाँ जानवर ददर्त सिे िबलिबलाउठिा और कई-कई करता हुआ उठिा खड़ा हुआ. मोटरसिाइकल पर पीछे बैठिे उसिके दोस्त सिे ये सिहन ना हुआ. उसिकी आँखें उसि मासिूम जानवर के िलए भिीगि गिई. उसिने इसि कृ त्य के िलए िनदर्तयी िमत्र को डांभटा तो जवाब िमला, ''अरे .. जानवर के िलए क्या रोना?'' अचानक, पीछे सिे आ रही एक-और तेज़ रफ़्तार मोटरसिाइकल का हैंडल उसिकी अंभगिुली सिे टकराता हुआ िनकल गिया। तुरन्त ही वह उसि कु त्ते सिे भिीअिधक िवदारक आवाज़ में चीख उठिा और अपना हाथ पकड़कर जहाँ का तहाँ बैठि गिया। िदलासिा देने के िलए दोस्त हालाँिक उसिके कन्धे पर झुक गिया था लेिकन होठिों पर हठिात् उभिर आई मुस्कान को वह न रोक न सिका। 15- जंभगि ल का क़ानून कत्ले-आम के आरोप में बंभदी खरगिोश कटघरे में खड़ा था। भिेिड़ये, लकड़बग्घे, लोमड़ी, िसियार उसिके िखलाफ अपनी-अपनी गिवाही दे चुके थे। प्रितवादी वकील ने उनकी गिवाही के प्रितकू ल अपना तकर्त अदालत के सिामने रखा, ''योर ओनर! मेरे मविक्कल की बेगिुनाही का सिबसिे बड़ा सिबूत यह है िक वह मांभसिाहारी ही नहीं है। उसिके दाँत मेरी इसि बात के गिवाह हैं।''


लेिकन सिरकारी वकील ने उसिकी बात काटी,''सिवाल शाकाहारी या मांभसिाहारी होने का है ही नहीं मी लोडर्त! हत्याखोरी का है. मेरे कािबल दोस्त ने इसिके दाँतों की बनावट को इसिकी बेगिुनाही का सिबूत बताया है ; लेिकन आप इसिके पैने नाखून देिखए, क्रूरता सिे भिरे इसिकी आँखों के स्थाई लाल डोरे देिखए। पुिलसि की आहट सिे चौकन्ना रहने के अभ्यस्त, हर िदशा में घूम सिकने वाले इसिके बड़े -बड़े कानों को देिखए; और हादसिे को अंभजाम देकर पल भिर में ही मौका-ए-वारदात सिे गिायब हो सिकने में सिहायक बला की फु ती को देिखए।'' यह कहकर सिरकारी वकील ने आरोपी को कड़ी सिे कड़ी सिज़ा देने की िसिफािरश अदालत सिे की. उसिके द्वारा पेश सिबूतों और जंभगिल के प्रभिावशाली गिवाहों के बयानों पर अदालत ने गिम्भिीरता सिे िवचार िकया। जंभगिल में अमन-चैन को जारी रखने के मद्देनज़र उसिने खरगिोश को सिज़ा-ए-मौत सिुनाई और वहीं पर अपनी कलम तोड़ दी। दीपक 'मशाल' 16- जूितयाँिकतनी ही महँगिी जूितयाँ पिहन लीं उन्होंने पर 'बात' ना बनी, चलने पर चुरर्त-चुरर्त की आवाज़ ही ना आती.... जबसिे िकसिी ने उन्हें बताया िक, 'जूितयों की ये ख़िासि आवाज़ व्यिक्त के आत्मिवश्ववासि को दशार्तती है जो िक उसिकी सिच्चाई सिे आता है.' तब सिे उन्हें गिूंभगिी जूितयाँ रासि ना आतीं. पगिार में सिे दो हज़ार रुपये चपरासिी को देकर आज िफर नई जूितयाँ मँगिाई. कमाल हो गिया!! इसि बार, नई चमचमाती काली जूितयाँ पिहन जब वो फशर्त पर चले तो कमरा चुरर्त -चुरर्त की ख़िासि ध्विन सिे गिूँज उठिा. चलते हुए वो सिोच रहे थे, ''अपनी जेब सिे पैसिा गिया तो गिया पर आत्मिवश्ववासि तो आया.. '' दीपक 'मशाल'

17- चोर भियानक िफ़ल्मी खलनायक सिा िदखने वाला एक चोर उसि घर में सिेंध लगिाने में जुटा था. चोर पर नज़र पड़ते ही वह चुपचाप उसिके पासि पहुंभचा और उसिे आसिानी सिे बेआवाज़ घर में घुसिने की जुगित बताकर माल आधा-आधा करने का प्रस्ताव रखा. कु छ सिोचकर चोर ने भिी जोिखम सिे बचने के िलए प्रस्ताव मान िलया. उसिके बताये कारगिर तरीके सिे दोनों ने घर में प्रवेश िकया. भिोर होने सिे पहले घर के बेशकीमती सिामान को आधा-आधा बाँट दोनों अलगि हो गिए. सिुबह उठिते ही उसिने मायके गिई बीवी को फोन पर रात की घटना के बारे में बताया. माथा पीटते हुए बीवी ने िवलाप शुरूच कर िदया, ''खुद ही अपना घर लुटवा िलया, पुिलसि को खबर क्यों नहीं की कबीरदासि?''


''िदमागि खराब है तुम्हारा? िकसिी तरह आधा सिामान तो बचा..'' उसिका जवाब था. दीपक 'मशाल' 18- िनशान सिाइबेि रयन सिारसि का वो बच्चा भिारत में सि​िदयांभ िबताने के बाद वापसि लौटते वक़्त एक बड़े पेड़ पर िनशान लगिाने की कोिशश करने लगिा िजसिसिे िक अगिले सिाल वापसि लौटने पर उसिको अपनी इसि मनपसिंभद जगिह और पेड़ को ढू ँ ढ ने में परे शानी ना हो . अपनी सिंभत ान को ऐसिा उपाय करते दे ख माँ सिारसि बोल उठिी - ''रहने दे मेरे बच्चे.. मुझ े पूर ी उम्मीद है िक अगिले सिाल तक यह जगिह भिी कंभ क्रीट के टीलों सिे पट जायेगि ी .. या िफर यहाँ कोई खदान होगिी . पर इतना तय है िक ना ये पेड़ रहे गि ा , ना ये अभ्यारण्य और ना ही तुम इसि जगिह को पिहचान पाओगिे. अगिले सिाल कहीं और चलते हैं '' दीपक 'मशाल' 19- सिंभदे ह नसिर्त नवजात िशशु को लेकर बाहर आते िदखाई दी तो बाहर इंभ तज़ार कर रहे पिरजनों ने उसिे घेर िलया. बच्चे को देखते ही सिबके चेहरे िखल गिए. नसिर्त भिी एक पल को िठिठिक कर खड़ी हो गिई. ''अरे देिखये तो इसिकी सिूरत तो पूरी भिैया पर गिई है, है ना??'' एक लड़की ख़िुशी सिे िचल्लाई. अगिली आवाज़ िकसिी पुरुष की थी- '' हाँ पर मुझे लगिता है िक भिाभिी जैसिी आँखें हैं इसिकी'' ''ऊंभचे माथे और नाक को देखकर तो कोई भिी बता देगिा िक हमारे खानदान का बच्चा है'' ये पिरवार के बुजुगिर्त थे. ''थैंक्सि िसिस्टर, थैंक यू वैरी-वैरी मच फॉर शोइंभ गि असि अवर चाइल्ड.. हाउ इज माय वाइफ?(हमारा बच्चा हमें िदखाने के िलए बहुत बहुत शुिक्रया िसिस्टर... मेरी पत्नी कै सिी हैं?)'' िहन्दी भिाष ा सिे अनिभिज मलेिशयन नसिर्त को उसिने धन्यवाद देके सिवाल िकया. नसिर्त ने मुस्कु राते हुए जवाब िदया- ''ओह्ह आई एम वैरी सिॉरी बट िदसि इज नॉट यौर बेबी.. द अदर िसिस्टर इज िब्रि​िगिगि हर आउट.. ( क्षमा चाहती हूँ पर ये आपका बच्चा नहीं.. उसिे तो दूसिरी नसिर्त लेकर आ रही है).'' ''ऐसिा सिंभदह े हुआ तो कु छ मुझे भिी था..'' सिबने सिमवेत स्वर में कहा. दीपक 'मशाल' 20- अपना देश जब सिे िब्रिटेन आया उसिे अपने देश की हर बात नकली, झूठिी और बेमानी लगिती. यहाँ के सिाफ़ और चमकदार बाज़ार, गिली, घर, कारें और बगिीचों के अलावा यहाँ के लोगिों की ईमानदारी, खान-पान,


िचिकत्सिा-व्यवस्था, तनख्वाह हर बात की तो वो भिारत सिे तुलना करने लगिता और िफर स्वयंभ को बेहतर हालात में ही पाता. जो घर उसिने िकराए पर ले रखा था उसिमे टी.वी., डीवीडी सिे लेकर माइक्रोवेव, वािशगि मशीन सिब मकान मािलक का िदया हुआ था वो तो िसिफर्त उसिमें आकर िटक गिया था. सिारे खचे का िहसिाब लगिाने पर पता चला िक िजतना वह भिारत में कमाता था उसिसिे ६ गिुना ज्यादा की तो हर महीने सिीधी-सिीधी बचत है. पहले महीने ही उसिने एक नया लैपटॉप खरीद िलया. एक िदन दोपहर को अचानक एक जाँच अिधकारी उसिके घर आ धमका. घर में टी.वी., डीवीडी, इंभ टरनेट कनेक्शन, लैपटॉप सिब अपने सिाथ लाये एक फॉमर्त में दजर्त कर िलये और अंभततः उसिे टी.वी. लाइसिेंसि ना लेने का दोष ी बताया. वह लाख िरिरयाता रहा िक ना तो वह टी.वी. देखने का शौक़ीन है ना ही इंभ टरनेट पर लाइव सिमाचार ही सिुनता है. पर अिधकारी को ना एक सिुनना था ना उसिने सिुनी. एक हज़ार पाउंभ ड का जुमार्तना सिुनकर आज उसिे अपना देश सिबसिे प्यारा लगि रहा था. दीपक 'मशाल' 21- िहसिाब सिेठि जी की बेटी की शादी की चचार्त शहर तो क्या टी.वी. के सिहारे देशभिर में थी. बाराितयों को बी.एम.डब्ल्यू. गिािड़यांभ और रोलेक्सि की घिड़याँ जो बांभटीं गिई थीं. सिभिी बड़े प्रसिन्न थे. लड़की को वांभिक्षत वर िमल गिया था और लड़के को लक्ष्मी. सिेठि जी सिंभपन्न तो थे ही, इसि शादी सिे उन्हें शोहरत भिी खूब िमली. ये और बात है िक देशव्यापी प्रिसि​िद्ध के िलए मीिडया को भिी खूब अफराया गिया. शादी के बाद आज घर की कामवाली बाइयों का िहसिाब िकया जा रहा था. एक िदन देर सिे आने की वजह सिे पगिार में सिे सिौ रुपये कटते देख मुन्नी ने िगिडिगिडाते हुए अपनी गिरीबी हालत का हवाला िदया तो सिेठि जी ने सिमझाया, ''देख मुन्नी पहले ही इतना खचार्त हो चुका है और वैसिे भिी ये िबिटया की शादी थी, बेटे की शादी में सिब िहसिाब बराबर कर लेना..'' दीपक 'मशाल' 22- नई शतर्त अब की शतर्त यह नहीं थी िक कछु आ उसि दौड़ को जीते बिल्क चालाक खरगिोश ने शतर्त यह रखी थी िक 'िवकासि नाम की िजसि मंभिजल तक मैं पहुँच चुका हूँ तुम उसि तक पहुँच कर ही िदखा दो'. कछु ए ने हामी भिर दी थी, वो िवकासिशील जीव धीरे -धीरे मंभिजल की तरफ बढ़ रहा था. मगिर धूतर्त खरगिोश कभिी रास्ते में दूसिरे कछु वों सिे उसिकी टांभगि िखचवा देता तो कभिी मंभिजल नाम की तख्ती को थोड़ा और आगिे कर देता. कछु आ िफर भिी चलता जा रहा था.


23- गिाहक जाड़े सिे कांभपते लल्लू ने स्टोव पर दूध चढ़ा िदया और कल रात के गिाहकों के िगिलासि-प्लेट मांभजने में लगि गिया. िगिलासि पोंछ कर ठिे ले पर सिजा ही रहा था िक सिामने सिे आवाज़ आई 'लल्लू, एक चाय बना कड़क सिी.' लल्लू ने भिारी भिरकम काले जूते और खाकी पेंट पहने उसि गिाहक को टके सिा जवाब दे िदया, 'ज़रा ठिहरो सिा'ब सिबेरे सिे बोहनी ना ख़िराब करो' 24- न्याय सिब खुश थे, सिबको न्याय िमलने लगिा था. कु छ न्यायाधीश िबके हुए िनकले तो क्या लोगिों को अब भिी भिरोसिा था िक जैसिे इतनों को न्याय िमला वैसिे जल्द ही उन्हें भिी िमलेगिा. कलावती को भिी लगिने लगिा था िक दबंभगिों ने उसिकी जो ज़मीन हिथयाई थी वो वापसि िमलेगिी,उसिके मरद के हत्यारों को फांभसिी चढ़ाया जाएगिा. वकील सिाब ने इसि बार की पैरवी की फीसि लेते हुए बताया था िक िकसिी जेिसिका और नीितश कटारा के हत्यारों को सिज़ा िमल चुकी है जल्द ही उसिे भिी इन्सिाफ िमलेगिा. सिुनकर कलावती को मजदूर पित की आिखरी िनशानी बेंच देने का गिम कु छ कम हुआ. िफर सिे हौसिला हुआ. उसिे क्या पता था िक िजसिे इन्सिाफ िमला उनमें एक हाई-प्रोफाइल मॉडल थी और दूसिरा आई.ए.एसि. का बेटा. 25- मूली और मामूली गिली में छु ट्टा घूमने वाला वो नगिर पािलका का सिांभड कु छ िदनों सिे अचानक ही अजीब स्वभिाव का हो चला था. बेवजह िकसिी के भिी पीछे नथुने फु लाकर दौड़ पड़ता. अभिी िपछले हफ्ते तो उसिने मोहल्लेवालों का बड़ा मनोरंभ जन िकया जब एक मामूली हाथ ठिे लावाले के ठिे ले पर लदी हरी सिब्जी के दो-तीन गिट्ठे खा गिया और रोकने पर अपने खतरनाक सिींगिों के दम पर उसि गिरीब को दूर तक खदेड़ िदया. मगिर आज नगिरपािलका वाले उसिे पकड़ कर ले ही गिए. हद ही हो गिई उसिने सिब्जी खरीद कर लौट रहे सिभिासिद के चाचा की डोलची सिे मूली जो खा ली थी. 26- सिंभवाददाता नवरात्र के िदनों में भिी कस्बे के इकलौते िसिनेमाघर में चल रही अश्लील िफल्मों के फू हड़ पोस्टर हर दसि कदम पर िदखने लगिे थे. राह चलती लड़िकयों-मिहलाओं की असिहज होती नज़रें शमर्त सिे ज़मीन की तरफ देखने को मजबूर हो जातीं, शोहदों द्वारा छींटाकशी की हरकतें बढ़ने लगिीं. तंभगि आकर उसिने और उसिके कई दोस्तों ने िमलकर ऐसिी िफ़ल्में लगिने के िवरोध में आन्दोलन छेड़ने की ठिानी. सिबसिे पहले चेतावनी के रूचप में एक खबर बनाकर प्रिसिद्द िहन्दी अखबार के नगिर सिंभवाददाता के कायार्तलय पहुंभचे.


हस्तिलिखत खबर पढ़ कर सिंभवाददाता भिड़क उठिा, ''ऐसिे ख़िबरें िलखते हैं कहीं? कल के लौंडे अपने को पत्रकार सिमझने लगिे हैं.'' िफर लड़कों के िनवेदन करने पर पसिीजते हुए कहा, ''ठिीक है, चलो अभिी जाओ मैं इसिको ढंभगि सिे खबर बना कर प्रेसि में भिेज दूगि ंभ ा.'' दूसिरे िदन अखबार में कस्बे के िनिश्चत पन्ने पर खबर इसि तरह लगिी थी- 'नवरात्रों के पावन सिमय में नगिर में लगि रही अश्लील िफल्मों के िवरोध में कस्बे के युवकों ने एकजुट हो आन्दोलन करने की ठिान ली है . उन्होंने आगिे की योजना के िलए एक गिुप्तस्थान पर मीिटगि रखी. मगिर जीतोड़ मेहनत कर हमारे खोजी सिंभवाददाता ने वो गिुप्त िठिकाना ढू ंभढ ही िलया......' बाकी खबर जसि की तसि थी. 27- हकीकत गिाँव के सिरकारी स्कू ल में आज ही आया वो नया मास्टर कक्षा में दािखल हुआ. अभिी कु सिी पर पूरी तरह सिे बैठि भिी ना पाया था िक अचानक ददर्त सिे िबलिबला कर खड़ा होना पड़ा. पूछने पर पता चला िक कु सिी पर कीलें िबखेरने का काम गिाँव के बाहुबली मुिखया के िबगिडैल बेटे का था. मास्टर ने उसिके कान खींचते हुए उसिे बाहर िनकाल िदया और िपताजी को लेकर आने को कहा. मुिखया स्कू ल िजन्दगिी में कभिी गिया होता तो जाता. मास्टर भिी अड़ गिया. बी.एसि.ए. तक बात पहुँची. अिधकारी मामले की जाँच को आया तो लेिकन मुिखया के घर चाय पर सिब 'हकीकत' सिमझ गिया. अगिले िदन सिमाचारपत्र में खबर थी, 'पाठि याद ना कर पाने पर मासिूम पर कहर ढाने वाला िनदर्तयी मास्टर िनलंभिबत' दीपक 'मशाल' 28- काफी-कु छ यूँ तो आज तक उसिने दिसियों लड़िकयों के सिाथ नैन-मटक्का िकये, गिलबिहयांभ कीं और िकतनों के सिाथ सिीमाओं को लाँघा लेिकन िकसिी में भिी वो बात नहीं थी जो इसि लड़की में िदखी. क्या गिोरा रंभ गि, गिज़ब के तीखे नैन-नक्श, मानो अप्सिरा के सिाँचे में ढाल ज़मीं पर उतारा गिया हो उसिे . उसिने एक बार देखते ही हाँ कर दी, लड़की सिे पूछने की जरूचरत भिी ना सिमझी. लड़के और लड़की वालों ने एक दूजे का मुँह मीठिा कराया, तुरत-फु रत अंभगिूिठियाँ बदली गिई और तारीखें िनकलने की प्रिक्रया प्रारंभ भि हो गिई. ये परसिों की बात थी... आज सिुना है उसिने लड़की वालों को अंभगिूठिी वापसि िभिजवा दी, मोहल्ले के मुन्ना ने कल रात उसिे बताया था, ''अरे उसिका तो प्यार का चक्कर था िकसिी के सिाथ, िजसिने इसिे छोड़ िदया. सिुना है दोनों के बीच 'काफी-कु छ' हो चुका था..'' दीपक 'मशाल' 29- चमत्कार


ये सिब अचानक नहीं हुआ, उसिके जानने वालों को पता है िक वो कई सिालों सिे अच्छा िलख रहा था. कभिी स्कू ल की वािष क पित्रका में किवता, कहानी बना कर दी होगिी. प्रकािशत होने पर उसिका हौसिला बढ़ा. उसिके अध्यापकों, दोस्तों और अिभिभिावकों ने बहुत पसिंभद िकया था उन्हें . तभिी सिे िलखने का शौक़ लगि गिया था, जो उसिके िलए धीरे -धीरे रोज़ के िकसिी भिी जरूचरी काम सिे ज्यादा जरूचरी होता गिया. सिमय के सिाथ-सिाथ कई प्रिसिद्द और विरष्ठ लेखकों की िविवध शैली की रचनाओं को पढ़ने के सिाथ उसिकी रचनाओं में भिी िविवधता आती चली गिई. िवचार उसिके मौिलक रहते, िवष य अपने वतर्तमान पिरवेश, अखबारों, गिली-मोहल्ले की घटनाओं-दुघर्तटनाओं और रोजमरार्त की सिमस्याओं में तलाश ही लेता. लोगिों को उसिके लेखन में नयापन, एक अनूठिापन लगिता. इसिी क्षेत्र में आगिे बढ़ने की चाह कई नामी-िगिरामी पित्रकाओं के सिंभपादकों के कायार्तलयों तक ले गिई उसिे . सिबने रचनाएंभ देखी या नहीं, कु छ कह नहीं सिकते अलबत्ता अपनी टेबल पर छोड़ जाने को कईयों ने कहा था. कोिशश जारी रही िफर भिी वह कब तक सिहन करता. बड़े सिम्पादक उसिे छापने को तैयार ना होते और छोटी पित्रकाएंभ उसिके लेखन को सिमझ सिे परे जतला देतीं. आज कई ख्याितप्राप्त िहन्दी सिािहित्यक पित्रकाओं के दफ्तरों सिे उसिकी रचनाओं को आमंभत्रण आये हैं . सिब 'पहले हमें, पहले हमें' की रट लगिाए हैं. आप सिोचते होंगिे िक ये चमत्कार कै सिे हुआ? अजी चमत्कार तो अंभग्रेज़ी का किहये , िजसिमें खुद सिे अनुवािदत िकये गिए उसिके अपने पहले ही उपन्यासि ने उसिे अंभतरार्तष्ट्रीय पुरस्कार िदला िदया. -------------30- ढंभगि का मनोरंभ जन स्टेिडयम सिे घर लौटते हुए वो मन ही मन सिोच रहा था, 'हज़ार रुपये का िटकट था मगिर भिरपूर मनोरंभ जन हुआ. क्या कांभटे का मैच लड़ाया पट्ठों ने . आिखरी गिेंद पर वो बल्लेबाज रन आउट ना होता तो जीत ही गिई थी आस्ट्रेिलया..' घर में घुसिते ही नन्हे बेटे ने नुमाइश देखने की िज़द कर दी. अब वो टालता भिी कै सिे इकलौता प्यारा बेटा जो था. मेला-ग्राउंभ ड में लगिी सिालाना नुमाइश में घूमते हुए जब उसिके बेटे ने 'मौत का कु आँ' देखने की िज़द की तो उसिने बड़े प्यार सिे सिमझा िदया, ''बेटा बेकार में उसि घिटया खेल में ५ रुपये बबार्तद करोगिे , ये कोई मुिश्कल काम थोड़े है. वो सिब उनकी चालाकी होती है इसिसिे तो अच्छा है कोई और ढंभगि का मनोरंभ जन ढू ंभढते हैं '' 31- बड़ा-भिाई गिाँव सिे थी तो क्या? वो इतनी भिी नासिमझ नहीं थी िक िकसिकी नज़र उसिे कै सिे देख रही है ये ना सिमझ पाती. सिामने वाली सिीट पर बैठिे उसि छोरे की चोर नज़र को कब का भिांभप िलया था उसिने . वह रह-रह कर ितरछी नज़रें कर धोती के भिीतर उसिके इकलौते बेटे की भिूख िमटाती छाितयों की झलक पाने की


कोिशश करता. बार-बार कभिी बाथरूचम जाने के बहाने उठिता तो कभिी पानी के ... और ऊपर सिे तो कभिी बगिल सिे झाँकने की कोिशश करता. िकसिी ने सिच ही कहा है 'गिरीब की लुगिाई, गिाँव भिरे की भिौजाई'. उसिकी िझरी सिी धोती और दयनीय दशा देख कर ही उसि नवयुवक की इतनी िहम्मत हो रही थी िक भिीड़ सिे भिरी इसि जनरल बोगिी में भिी उसिके अंभगि-िवशेष को हसिरत भिरी िनगिाहों सिे घूरे जा रहा था. मजूरी करते वक़्त अक्सिर ठिे केदार की नज़रें भिी तो ऐसिे ही घूरती हैं उसिे. काफी देर हो गिई तो उसिने दूध पीते बच्चे को सिमझाने के अंभदाज में कहा, ''तू इतने सिे सिंभतोष करले मुन्ना.. तेरा बड़ा भिाई तुझसिे ज्यादा भिूखा लगि रहा है.'' दीपक मशाल 32- अनहोनी बड़ी अनहोनी हो गिई. नेता जी को हमलावरों ने घायल कर िदया. सिुना है वो सिुबह सिुबह मंभिदर जा रहे थे लेिकन रास्ते में ही मोटरसिाइिकल सिवार दो अजात हमलावरों ने अचानक उनपर ताबड़तोड़ गिोिलयांभ बरसिा दीं. उनके बहते खून ने सिमथर्तकों का खून खौला िदया.. देखते ही देखते उनके चाहने वालों का हुजूम जमा हो गिया.. थोड़ी देर में ही नेता ओपरे शन िथयेटर में थे और बाहर सिमथर्तकों के सिब्रि का बाँध टू ट रहा था.. िकसिी ने कहा- 'इसि सिब में पुिलसि की िमलीभिगित है..' िफर क्या था.. २०० लोगिों की भिीड़ थाने की तरफ बढ़ चली. लाठिी, बल्लम, हॉकी िस्टक , िमट्टी का तेल, पेट्रोल सिब जाने कहाँ सिे प्रकट होते चले गिए. रास्ते में जो भिी वाहन िमलता उसिमे आगि लगिा दी जाती. दुकानें बंभद करा दी गियीं.. जो नहीं हुई वो लूट ली गिई.. इसि सिब सिे बेखबर वो आज भिी थाने के पासि वाले चौराहेपर अपना िरक्शा िलए खड़ा था, जो उसिके पासि तो था पर उसिका नहीं था. हाँ िकराए पर िरक्शा िलया था उसिने. आज सिाप्तािहक बाज़ार का िदन था, उसिे उम्मीद थी िक कम सिे कम आज तो िरक्शे के िकराए के अलावा कु छ पैसिे बचेंगिे िजसिसिे उसिके तीनों बच्चे भिर पेट खाना खा सिकें गिे और कु छ और बच गिए तो बुखार में तपती बीवी को दवा भिी ला देगिा. दूर सिे आती भिीड़ को उसिने देखा तो लेिकन उसिके मूड का अंभदाजा ना लगिा पाया.. या शायद सिोचा होगिा िक उसि गिरीब सिे उनकी क्या दुश्मनी? पर जब तक वो कु छ सिमझ सिकता िरक्शा पेट्रोल सिे भिीगि चुका था.. एक जलती तीली ने पल भिर में बच्चों के िनवाले और उसिकी बीवी की दवा जला डाली.. अगिले िदन नेता जी की हालत खतरे सिे बाहर थी.. हमलावर पकड़े गिए. नेता जी ने सिमथर्तकों का उनके प्रित अगिाध प्रेम दशार्तने के िलए आभिार प्रकट िकया. िरक्शावाले के घर का दरवाज़ा सिूरज के आसिमान चढ़ने तक नहीं खुला.. अनहोनी की आशंभका सिे पड़ोिसियों ने अभिी-अभिी पुिलसि को फोन िकया है. दीपक 'मशाल'


33- इज्ज़त उसिसिे सिहन नहीं हुआ.. जब तक उसिके सिाथ ये सिब होता रहा तब तक वो खामोशी सिे सिब सिहती रही.. पिरवार और छोटे भिाई बिहनों की खाितर एक लाश बना िलया उसिने अपने आपको. लेिकन जब वही सिब उसिकी छोटी बिहन के सिाथ करने की कोिशश होने लगिी तो उसिने घर सिे भिागि कर पुिलसि थाने में िशकायत दजर्त करा दी.. आिखर कै सिे उसिकी भिी अस्मत लुट जाने देती उसि राक्षसि के हाथों. अनजाने ही कई लोगिों को कम सिे कम कु छ िदनों के िलए रोजी-रोटी दे दी उसिने. जाने कै सिे सिूघ ंभ -सिूंभघ कर पत्रकार उसि तक पहुँच गिए.. उसिके धुंभधले चेहरे के सिाथ उसिकी तस्वीर टी.वी. पर आ गिई. पुिलसि ने बड़ी बेटी के बयान और मेिडकल जांभच के आधार पर घर के मुिखया यािन उसिके बाप को तुरंभत ही िगिरफतार कर िलया. छोटी को उसिने ना पुिलसि के सिामने आने िदया और ना ही टी.वी. वालों के . सिामने आने भिी कै सिे देती? माँ के मर जाने के बाद सिे वही माँ थी अपने सिे छोटी और एक छोटे भिाई के िलए. उसिे ही तो उन सिब को हर धूप-बािरश सिे बचाना था. शराबी िपता को पुिलसि पकड़ के ले गिई.. जब शराब का नशा उतरा तो ज़माने को मुँह िदखाने सिे बचने के िलए वो हवालात में ही अंभगिोछे को फंभ दा बना फांभसिी पर लटक गिया. पंभचनामे के बाद लाश का अंभितम सिंभस्कार भिी उसिी को करना था.. िरश्तेदार और सिंभबंभधी तो आने सिे कतराए लेिकन खानदान के कु छ लोगि जमा हो गिए. अब तक सिबको पता चल चुका था. सिब आपसि में कानाफू सिी कर रहे थे और अथी बाँधने की तैयारी में लगिे थे .. हर िकसिी की नज़र में नफरत देखी जा सिकती थी.. हाँ नफरत!!! लेिकन मरने वाले बलात्कारी बाप के िलए नहीं.. उनकी नज़रों में घर की इज्ज़त को िमट्टी में िमला देने वाली लड़की के िलए.. 34- डर ऐसिा नहीं िक बूढ़े के पासि पैसिों की कमी थी. बच्चे भिी अपनी-अपनी जगिह सिैिटल हो चुके थे, बड़ा बेटा पुणे में डॉक्टर था और बेटी वहाँ चंभडीगिढ़ ब्याही थी.. दोनों खुश थे और कई बार दोनों ने उनसिे कहा भिी िक''आपने सिारी उम्र एक जगिह पर रह कर हम दोनों को पढ़ाने -िलखाने में गिुज़ार दी, हमारा भि​िवष्य बनाने में लगिे रहे. अब जब हम हर तरह सिे खुशहाल हैं तो अब तो दुिनया घूम लीिजये. हम आपके सिाथ चलने को तैयार हैं. ज्यादा नहीं तो चारों धाम या कु छ तीथर्त के बहाने ही घर सिे िनकिलए तो.. कहाँ यहाँ पड़े रहते हैं इसि शहर में तो ढंभगि सिे िबजली भिी नहीं आती. सिड़ते रहते हैं गि​िमयों में.. '' उसिकी पत्नी ने भिी कई बार घूमने की इच्छा जताई लेिकन वो कहाँ मानने वाला था.. पत्नी सिे भिी कह देता ''अगिर तुम्हें घूमना हो तो घूम आओ.. मैं नहीं जाने वाला..'' उसि शहर सिे उसिकी आसि​िक्त िकसिी सिे छु पी नहीं थी, जबिक ना ही वहाँ उसिका कोई दोस्त था ना सिगिासिंभबंभधी. ऊपर सिे १२ कमरों का इतना बड़ा मकान... बुड्ढा-बुिढ़या २ कमरों और एक िकचेन सिे ज्यादा इस्तेमाल भिी ना करते िफर भिी उसिे िकराए सिे ना उठिाते. सिब यही सिमझते िक बेटा-बेटी अपने-अपने घरों में सिुख सिे हैं पैसिों की कोई कमी नहीं इसि​िलए िकराए पर उठिायें भिी क्यों!!


पर एक िदन बुिढ़या ने रात में बुड्ढे को बड़बड़ाते सिुना- '' नहीं.. नहीं.. तुम ऐसिा नहीं कर सिकते.. मेरे मकान पर कब्ज़ा नहीं कर सिकते. इसिीिलये मैं िकराए पर नहीं देता था.. मुझे पता था तुम सिब मेरे मकान पर आँख गिढ़ाए बैठिे थे... पर तुम मेरे जीते जी ऐसिा नहीं कर सिकते..'' अचानक बुिढ़या को ३५ सिाल पहले का वो दृश्य याद आ गिया जब वो और उसिका पित उसि घर में अके ले रहने वाले बूढ़े के पासि िकरायेदार बनकर आये थे और िफर एक सिुबह अचानक उसिके मािलक बन बैठिे थे. अब वो बूढ़े पित का डर सिमझ सिकती थी. दीपक 'मशाल' 35- एड्सि परीक्षण फॉमर्त भिर जाने के बाद जब उसिने डॉक्टर को वापसि िकया तो डॉक्टर ने फॉमर्त में पूछे गिए सिवालों के जवाबों पर िनगिाह डाली। उसिके रक्त का नमूना लेने के बाद एक बार िफर उसिे कु रे दने की कोिशश की- ''तुम्हें अच्छे सिे याद है ना िक िपछले कु छ महीनों के दौरान तुमने ना ही कहीं कोई रक्तदान िकया, ना रक्त चढ़वाया, ना असिुरिक्षत सिम्भिोगि िकया, ना नाई के यहाँ शेव बनवाते हुए तुम्हें कोई कट वगिैरह लगिा?'' ''हाँ, डॉक्टर सिा'ब मुझे अच्छे सिे याद है। आप मुझपर ऐसिे शक़ क्यों कर रहे हैं ?'' मुस्तफ़ा ने डॉक्टर को जवाब िदया। डॉक्टर- ''ह्म्म्म.. िफर तुम्हारा वज़न अचानक इतना क्यों िगिरा हमें देखना पड़ेगिा। भिूख भिी नहीं लगिती तुम्हें, खैर िरपोटर्त आने के बाद ही कु छ कह पाऊंभगिा। िफर भिी कहना ज़रूचरी सिमझता हूँ िक हमारे बीच की हर बात गिोपनीय रखी जायेगिी और सिब सिच बता दोगिे तो तुम्हारे ही इलाज़ में आसिानी रहेगिी।'' मुस्तफ़ा के मुह ँ सिे िसिफ़र्त ''जी..'' िनकला। वो एलाइजा टेस्ट के िलए रक्त के नमूना-पत्र पर दस्तख़ित कर ज़ल्दी सिे बाहर िनकल गिया। कु छ िदनों बाद डॉक्टर ने िरपोटर्त थमाकर उसिे एचआईवी पोिजिटव बताया और हज़ार िहदायतें देते हुए सिमझाया िक अगिर वो उनका बताया कोसिर्त िबना नागिा िकये लेगिा तो वो भिी और इंभ सिानों की तरह भिरपूर तरीक़े सिे अपना जीवन जी सिकता है। पर मुस्तफ़ा अब और कु छ सिुनने वाला कहाँ था, वो तो बसि िचल्लाये जा रहा था, ''तो उसि नीच औरत की बात सिही थी, मैंने ही एहितयात नहीं बरता। पर अब मैं उसिे िज़न्दा नहीं छोडू ंभगिा। मैं अके ले नहीं मरूचँगिा। 10-12 को ये रोगि दे के जाऊँगिा..'' डॉक्टर असिहाय बसि उसिे देखे जा रहा था। 36- दे ख ा !! ऐसिा नहीं िक वो ऐसिा पहली बार कर रही थी.. उसिके तीनों बच्चे क्रमशः ९, १० और ११ सिाल के हो गिए थे लेिकन मज्ज़ाल उसिने कभिी उनका िटकट लेके ट्रेन में सिफ़र िकया हो. हमेशा लड़-झगिड़ के , िजसिे वो अपनी वाक्पटु ता सिमझती, बच िनकलती. िफर भिी कभिी-कभिी हल्का सिा डर रहता था िक कोई खंभडूसि टी.सिी. उसिे जेल की हवा ना िखला दे. मगिर पैसिों का मोह इसि डर पे हमेशा हावी रहता.


आज भिी वो अपने बीच वाले बेटे को लेके सिफ़र कर रही थी. िटकट-चेकर जैसिे-जैसिे नजदीक आता जाता, उसिके चेहरे के भिाव वैसिे-वैसिे बनते-िबगिड़ते जाते और वह सिहयाित्रयों सिे बातें कर सिामान्य होने का प्रयासि करती. उसिकी बारी आने पर उसिके लड़के को देख टी.सिी. पल भिर को िठिठिका और उसिसिे पूछ बैठिा, ''ये बच्चा आपका है?'' ''हाँ जी, लेिकन वो अभिी बहुत छोटा है, उसिका िटकट नहीं लगिता िफर आप कै सिे ले सिकते हैं? ऐसिा-वैसिा मत सिमिझये.. हमें भिी रे लवे के िनयम-कानून आते हैं. पहली दफा नहीं सिफ़र कर रहे हम रेलगिाड़ी में , अच्छे सिे जानते हैं आपकी ईमानदारी को..'' िबना कु छ पूछे ही वो सिारे सिवाल-जवाब खुद ही बडबडाती चली गिई. टी.सिी. ने चुपचाप उसिके िटकट पर िनशान लगिाया और अगिले िडब्बे को जोड़ने वाले रास्ते की ओर बढ़ गिया. जब वो काफी आगिे िनकल गिया तो मिहला गिवर्त -िमिश्रित िवजयी मुद्रा में सिहयाित्रयों की ओर देखती हुई बोली, ''देखा!!'' दूसिरी तरफ अगिले कोच में पहुँच चुके टी.सिी. की आँखों में सिमंभदर के पानी सिी एक लहर आ िनकली थी.. हाँ इसि लड़के सिे काफी िमलती-जुलती शक्ल और कद-काठिी का ही तो था उसिका बेटा जो अभिी ३ महीने पहले ही तपेिदक(टीबी)सिे चल बसिा था. दीपक मशाल 37- प्रेम -िववाह वो दोनों एक ही शहर सिे थे, अपने शहर सिे दूर एक ही िवश्वविवद्यालय में एक ही कोसिर्त में अध्ययनरत थे , हालांभिक उनकी मुलाक़ात तभिी हुई जब दोनों ने उसि िवश्वविवद्यालय में दािखला ले िलया.. अपनी बोली, अपनी भिाष ा सिे दूर पराये शहर में अपने जैसिा कु छ िमल जाना स्वतः ही आकष र्तण को आिवष्कृ त कर देता है, दोनों सिाथ-सिाथ घूमने-िफरने, खाने-पीने लगिे. एक बार सिाथ-सिाथ पढ़ते-पढ़ते जब रात ज्यादा हो गिई तो वो उसिी के रूचम पे रुक गिई; अब जाने ये बाहर हो रही तेज़ बािरश का नतीजा था या अन्दर भिीगिे हुए िदलों की तमन्नाएंभ िक उसि रात दोनों मदहोशी में खजुराहो की कलाकृ ितयों में ढल गिए. िजदगिी में सिीमाओं की पिरिधयाँ एक बार लांभघ ली जाएँ तो वापसि उनमें नहीं लौटा जा सिकता.. हाँ इतना जरूचर है िक आगिे की और हदें ना पार हों ये ध्यान में जरूचर रखा जा सिकता है . लेिकन िजसि उमर में वो थे उसिमे ये सिब िनयंभत्रण आसिान होते हैं भिला!!! पिरिधयाँ िनरंभ तर भिेदी जाती रहीं और एक िदन 'वही' अवांभिछत घिटत हो गिया.. बात दोनों के घरों तक पहुँची. लानतें-मलानतें भिेजी गियीं. पर दोनों एक ही जाित के होने के कारण उतना बवाल ना हुआ िजतना अलगि जाित या ऊंभची-नीची जाित के होने पर होने की सिम्भिावना रहती. लोक-लाज, इज्ज़त के नाम पर दोनों की आपसि में शादी की बात चलने लगिी. बात पैसिों के लेन-देन को लेकर थोड़ा सिा फंभ सिी.. अब लड़का दहेज़ का सिमथर्तक तो नहीं था पर िवरोधी भिी नहीं था. इसि​िलए घरवालों के थोड़े सिे सिमझाने पे ही मान गिया.. लड़की भिी अपने घर वालों सिे अपना हक चाहती थी सिो ये मुिश्कलें बड़ी ना सिािबत हुई. कु छ लाख रुपये की एक मुश्त रकम पर सिौदा पट गिया.


आज दोनों की शादी है.... शहर में चचार्त है िक फ़लाने का लड़का और फ़लाने की लड़की आपसि में 'प्रेमिववाह' कर रहे हैं.. दीपक मशाल 38- मुझ े नहीं होना बड़ा आज िफर सिुबह-सिुबह सिे शमार्त जी के घर सिे आता शोर सिुनाई दे रहा था। मेरे और उनके घर के बीच में िसिफर्त एक दीवार का फासिला है। बड़ी आसिानी सिे उनके घर की ज़रा-सिी भिी ऊंभची आवाज़ हमारे घर में सिुनाई दे जाती है। मालूम पड़ा—िकसिी बात को लेकर बड़े भिाई अिमत की अपने छोटे भिाई अनुरागि सिे कहा-सिुनी हो गियी है। बात जब हाथापाई तक पहुँचती लगिी तो मुझसिे रहा नहीं गिया और बीच-बचाव के िलए मैं उनके घर पहुँच गिया। हालांभिक इसि कोिशश में मैं नाक पर एक घूसि ँ ा खा गिया और चेहरे पर भिी कु छ खरोंचें चस्पा हो गियीं, मगिर सिंभतोष इसि बात का रहा िक उनका युद्ध महाभिारत में तब्दील होने सिे बच गिया। वैसिे तो अिमत और अनुरागि दोनों सिे ही मेरे दोस्ताना बिल्क कहें तो तीसिरे भिाई जैसिा िरश्ता था लेिकन अल्लाह की मेहरबानी थी िक उन दोनों के बीच आये िदन होने वाले झगिड़े की तरह इसि तीसिरे भिाई सिे उनका कोई झगिड़ा नहीं होता था. अिमत के दो बेटे हैं—बड़ा ७-८ सिाल का है और छोटा ४-५ सिाल का। झगिड़े के सिमय वे दोनों िखिसियाने सिे दाल्हान के बाहरी खम्भिों सिे ऐसिे िटके खड़े थे जैसिे िक खम्भिों के सिाथ उन्हें भिी मूितयों में ढाल िदया गिया हो। उनकी फटी-फटी आँखें और खुला हुआ मुँह देखने लायक था। झगिड़ा िनपटने के लगिभिगि आधे घंभटे बाद जब दोनों कु छ सिंभयत होते िदखे तो उनकी माँ, सिुहािसिनी भिाभिी, उनके िलए दूध सिे भिरे िगिलासि लेके आयीं। ”चलो तुम लोगि जल्दी सिे दूध पी लो और पढ़ने बैठि जाओ..” भिाभिी की आवाज़ सिे उनके उखड़े हुए मूड का पता चलता था। बड़े ने तो आदेश का पालन करते हुए एक सिांभसि में िगिलासि खाली कर िदया लेिकन छोटा बेटा ना-नुकुर करने लगिा। भिाभिी ने उसिे बहलाने की कोिशश की,“दूध नहीं िपयोगिे तो बड़े कै सिे होओगिे, बेटा?” “मुझे नहीं होना बड़ा…” कहते हुए छोटा अचानक फू ट-फू ट कर रोने लगिा,“मुझे छोटा ही रहने दो… भिईया मुझे प्यार तो करते हैं…”

39- तलब आँख खुलते ही सिुबह-सिुबह मुकेश को अपने घर के सिामने सिे थोड़ा बाजू में लोगिों का मजमा जुड़ा िदखा. भिीड़ में अपनी जानपिहचान के िकसिी आदमी को देख उसिने अपने कमरे की िखड़की सिे ही आवाज़ देते हुए पूछा''क्या हुआ अरिवन्द भिाई? सिुबह सिे इतनी भिीड़ क्यों लगिी है?'' ''यहाँ कोई िभिखािरन मरी पड़ी है मुकेश जी, शायद सिदी और भिूख सिे मर गिई.'' जवाब सिुन कर उसिे बीती रात का घटनाक्रम याद आ गिया..


१० बजे के आसिपासि िसिगिरे ट की तलब उठिते ही वो नाईट ड्रेसि में ही १४-१५ रुपये डाल पान की दुकान, जो िक गिली के मुहाने पर थी, की तरफ बढ़ गिया. रास्ते में एक मरिगिल्ली सिी िभिखािरन २-३ रुपये के िलए िगि​िगियाने लगिी''ऐ बाबू जी, दू ठिो रुपईया दे देओ.. हम बहुत भिूखाइल बानी अउर पेट दुखाता.. तनी दू ठिो रोटी खा लेब'' एक पल को मुकेश िठिठिका तो पर उसिे ख्याल आया िक 'इसिे २ रुपये दे िदए तो िसिगिरे ट के पैकेट को कम पड़ जायेंगिे और उसिे वापसि घर भिागिना पड़ेगिा पैसिे लेने के िलए. िफर ये तो मंभगिनी है कोई ना कोई दे ही देगिा इसिे.' ''अरे दे देओ बाबू जी.. ना तो भिूखे हम मर जाइब, भिगिवान् भिला करी'' िभिखािरन अभिी भिी िगिड़िगिड़ा रही थी और वो ''खुल्ला नहीं है माई'' कह कर वहाँ सिे बच कर िनकल िलया था . दुखी मन सिे दातुन करते हुए अब उसिे पछतावा हो रहा था िक उसिकी िसिगिरे ट की तलब िकसिी की भिूख पर भिारी पड़ गिई.. एक िज़दगिी पर भिारी पड़ गिई.. वो उठिा और सिबसिे पिहले िसिगिरे ट के आधे बचे पैकेट को कमोड में बहा िदया, शायद कु छ दृढ िनश्चय सिा िकया था उसिने. दीपक 'मशाल' 40- दागि अच्छे हैं ''िनकल बाहर यहाँ सिे... बदतमीज़ कहीं का..'' बरसिाती गिंभदे पानी सिे सिनी चप्पलें पिहनें कल्लू को अपने घर में अन्दर घुसिते देख शोभिा आंभटी ने अचानक काली रूचप धारण कर िलया और उसिकी कनपटी पर एक तमाचा जमाते हुए उसिे घर सिे बाहर िनकाल िदया. ''रमाबाई तुमसिे िकतनी बार मना िकया है िक अपनी सिंभतानों को यहाँ मत लाया करो.. सिारा धुला-पुंभछा घर जंभगिल बना देते हैं..'' आंभटी ने अपनी कामवाली बाई को डांभटते हुए कहा. ''आगिे सिे नई लाऊँगिी मेमसिाब.. मैं लाती नहीं पर क्या करुँ ये छोटा वाला मेरे पीछे -पीछे लगिा रहता है..'' अपनी आँख में भिर आये पानी को रोकते हुए घर के बाहर खड़े होकर कनपटी सिहलाते कल्लू की तरफ देख बेबसि रमाबाई बोली. रमाबाई ने चुपचाप पोंछा लेकर पायदान के पासि बने कल्लू के तीनों पदिचन्हों को िमटा िदया. थोड़ी देर बाद आंभटी का बेटा प्रसिून स्कू ल बसि सिे िनकल कीचड़ में जूते छप-छप करते घर में घुसिा तो उसिे देख आंभटी का वात्सिल्य भिाव जागि उठिा, ''हाय रे िकतना बदमाश हो गिया मेरा बच्चा!!!'' और प्रसिून को सिीने सिे लगिा िलया.. ''सिॉरी मम्मी फशर्त गिन्दा हो गिया'' प्रसिून ने ड्राइंभ गि रूचम के बीच में पहुँच कर मासिूिमयत सिे कहा शोभिा आंभटी उसिकी स्कू लड्रेसि उतारते हुए बोलीं, ''कोई बात नहीं बेटा 'दागि अच्छे हैं' है ना??? अभिी बाई फशर्त सिाफ़ कर देगिी डोंट वरी'' बाहर खड़ा कल्लू गिंभदे पानी सिे भिीगिी अपनी चप्पलें प्रसिून के कीचड़ सिने जूतों सिे िमला रहा था.


दीपक 'मशाल'

41- रे नकोट ५-६ रे नकोट देखने के बाद भिी उसिे कोई पसिंभद नहीं आ रहा था. दुकानदार ने सिाहब को एक आिखरी िडजाइन िदखाने के िलए नौकर सिे कहा.. 'पता नहीं ये आिखरी िडजाइन कै सिा होगिा? इन छोटे कस्बों में यही तो सिमस्या है िक जरूचरत की कोई चीज आसिानी सिे िमलती नहीं.' वो हीरो टाइप का शहरी लड़का इसिी सिोच में डू बा था िक बाहर हो रही बािरश सिे बचने के िलए एक आदमी दुकान के शटर के पासि चबूतरे पर आकर खड़ा हो गिया. शरीर पर कपड़ों के नाम पर एक सिैंडो बिनयान और एक मटमैला सिा पैंट पिहने था वो और एक जोड़ी हवाई चप्पल. चबूतरे पर आते ही पैंट के पांभयचे मोड़ने लगिा. रंभ गि, शक्ल सिे और शारीिरक गिठिन सिे तो मजदूर लगिता था.. उसिके पसिीने की बू दुकान में भिी एक कड़वी सिी बदबू फै ला रही थी. बािरश थमती ना देख शायद उसिने तेज़ पानी में ही िनकलना चाहा. अचानक अपनी जेब में सिे कु छ िनकालने लगिा. हाँ ३-४ पांभच-पांभच रुपये के मुड़े-तुड़े नोट िनकले. उन नोटों को ले वो दुकान के अन्दर आया और २-२.५ मीटर पतली वाली बरसिाती खरीदी. बरसिाती को अपने सिर पर डालते हुए उसिने खुद को ऐसिे ढँक िलया जैसिे कछु ए ने अपने आप को खोल में डाल िलया हो.. और दोनों िसिरे दोनों कानों के पासि सिे िनकाल हाथों में पकड़ िलए. अब िसिफर्त उसिका चेहरा और पैर िदख रहे थे बाकी पूरा शरीर बरसिाती में ढँक चुका था और वो मस्तमौला सिा तेजी सिे भिारी बािरश में ही सिड़क पर बहते गिंभदे पानी को हवाई चप्पलों सिे उछालता हुआ अपने गिंभतव्य की ओर बढ़ गिया. उसि जाते हुए आदमी को काफी देर सिे गिौर सिे देख रहे उसि हीरोनुमा शहरी शख्सि को पहले िदखाए सिारे रे नकोट अब एकाएक अच्छे लगिने लगिे थे. दीपक 'मशाल' 42- पोनर्तसि ाईट ''ओए, ज़ल्दी घर आजा कोई है नहीं अभिी... एक मस्त धमाके दार चीज़ िदखाता हूँ।'' दूसिरी तरफ़ सिे आवाज़ उभिरी- ''पर है क्या स्सिाले ये तो बता.. इतना उछल क्यों रहा है?'' ''अबे इधर आ तो सिही, तेरी बांभछें िखल जायेंगिी देखते ही'' उसिने जवाब िदया ''मेरे भिाई तुझे पता है ना.. िक मैं हाई बी.पी. का मरीज़ हूँ। बता दे वरना कोई िहट ही दे दे .. कहीं ऐसिा ना हो िक एक्सिाईटेशन में मुझे मुिश्कल हो जाए..'' दूसिरी तरफ़ बेचैनी बढ़ रही थी.. ''ओक्के.. पर बसि िहट दूगि ंभ ा.. तुझे मेरे सिामने वाले मकान में रहने वाली जो चमेली पसिंभद है वो अब अपने हाथ में होगिी..''


बात ख़ित्म होने सिे पहले ही दूसिरे तरफ़ सिे िफर एक बेक़रार आवाज़ भिरार्तई - ''लेिकन कै सिे भिाई ये तो बता दे..'' ''तू आ तो जा सिाले ज़ल्दी.. नेट पर मस्त एमएमएसि िदखाता हूँ।'' ''ओह... सिही िबडू सिमझ गिया सिब.. बसि 10 िमनट में पहुंभचा अभिी.. अब तो रुका नहीं जा रहा।'' थोड़ी देर बाद दरवाज़े की घंभटी बजती है। ''हाय मेरी जान, आ गिया तू, सिही टाइम पर आया। मैं और एमएमएसि ढू ंभढ रहा था। चल तू देख मैंने वेबसिाईट खोल रखी है। तेरी भिाभिी तो है नहीं मैं पैगि बना के लाता हूँ फटाफट , आज तो पाटी होनी चािहए।।'' ''हाँ वो ज़रा प्याज भिी काट लेना पीनट्सि के सिाथ।'' ''ओके िडअर.. पर िसिगिरे ट है ना तेरे पासि या ज़ल्दी सिे भिागि के ले आ ।'' ''नहीं तू िफ़क्र ना कर पूरी िडब्बी है।'' सिलीम अन्दर प्याज काटने में लगिा था िक अचानक- ''ओए सिलीम ज़ल्दी इधर आ कमीने , तूने बताया नहीं कभिी।'' ''क्या...'' सिलीम ने िकचेन सिे बाहर आते हुए पूछा। ''तूने ये भिाभिी का िक्लप बना के कब डाला वेब पर?? जो भिी हो मस्त हैं भिाभिी... मैं तो पहली बार उन्हें इसि तरह..'' चटाक... थप्पड़ की एक ज़ोरदार आवाज़ के सिाथ सिलीम के दोस्त की आवाज़ बीच में कट गिई। कम्प्यूटर बंभद हो गिया था। सिलीम अपनी बीवी का फ़ोन ट्राई कर रहा था। दीपक ‘मशाल’ 43- वतन के रखवाले ''आप कै सिे ये जनरल बोगिी खाली करा सिकते हैं जबिक इसिके बाहर 'सिैिनकों के िलए आरिक्षत' या इसिके जैसिा कु छ भिी नहीं िलखा?'' उन १०-१२ सिैिनकों के कहने पर चुपचाप उसि सिामान्य बोगिी सिे उतरते लोगिों में सिे उसि पढ़े-िलखे सिे युवक ने एक िमिलट्री वाले सिे सिवाल कर िदया. ''तुझे हम सिबकी वदी नहीं िदख रही क्या?'' सिैिनकों में सिे एक ने जवाब में सिवाल की गिोली चला दी. शायद युवक भिी जल्दी हार मानने वाला नहीं था ''पर रे लवे ने पहले सिे तो ऐसिा कु छ बताया...'' ''हाँ-हाँ ठिीक है भिूल होगिी रे लवे की.. अब अपना सिामान िसिमेटो और जल्दी िनकलो यहाँ सिे .'' युवक की बात काटते हुए दूसिरा सिैिनक बोल पड़ा.


िबना अपना सिामान उठिाये वो िफर बोला- ''पर अगिर ये आमी के िलए है तो मेरे चाचा जी भिी लेिफ्टनेंट कनर्तल हैं.. कैं सिर सिजर्तन हैं वो आमी होस्पीटल में . देिखये सिर मुझे सिुबह ड्यूटी ज्वाइन करनी है और ये रात भिर का सिफ़र है, मुझे यहीं रहने दीिजए प्लीज़.. आप चाहें तो मैं अंभकल सिे बात करा देता हूँ ... अगिर िवश्ववासि ना हो तो.'' कहते-लहते वह जेब सिे मोबाइल िनकाल अपने अंभकल का नम्बर डायल करने लगिा. उसिके मोबाईल वाले हाथ को सिख्ती सिे पकड़ एक सिैिनक कु छ ज्यादा ही तैश में आते हुए बोला ''ओये ज्यादा नौटंभकी नहीं.. चुपचाप उतर जा या धक्के मार के उतारें .. बाकी के सिब चू** थे क्या जो आराम सिे उतर गिए.. बड़ा आया अंभकल वाला'' मायूसि होकर उसिे वतन के उन रखवालों की मंभशा पूरी करनी ही पड़ी. उसिके डब्बे सिे नीचे उतरने के सिाथसिाथ दो लड़िकयांभ उसिी बोगिी में चढ़ने की कोिशश करने लगिीं. िजन्हें उसिने सिमझाने की सिोची िक इनलोगिों सिे बात करना िफ़ज़ूल है. पर उसिसिे पहले ही- ''ये कम्पाटर्तमेंट पूरा खाली है, क्या हम इसिमें बैठि सिकती हैं?'' अन्दर सिे ३-४ सिमवेत स्वर उभिरे - ''हाँ-हाँ क्यों नहीं? आ जाइये.'' दीपक 'मशाल' 44- कीमत रमा के मामा रमेश के घर में कदम रखते ही रमा के िपताजी को लगिा िक जैसिे उनकी सिारी सिमस्याओं का िनराकरण हो गिया. रमेश फ्रेश होने के पश्चात, चाय की चुिस्कयांभ लेने अपने जीजाजी के सिाथ कमरे के बाहर बरामदे में आ गिया. ठिंभ डी हवा चल रही थी.. िजसिसिे शाम का मज़ा दोगिुना हो गिया. पिश्चम में सिूयर्त उनींदा सिा िबस्तर में घुसिने िक तैयारी में लगिा था.. िक चुिस्कयों के बीच में ही जीजाजी ने अपने आपातकालीन सिंभकट का कालीन खोल िदया''यार रमेश, अब तो तुम ही एकमात्र सिहारा हो, मैं तो हर तरफ सिे हताश हो चुका हूँ.'' मगिर जीजाजी की बात ने जैसिे रमेश की चाय में करे ले का रसि घोल िदया, उसिे महसिूसि हुआ की उसि पर अभिी िबन मौसिम बरसिात होने वाली है.. लेिकन बखूबी अपने मनोभिावों को छु पाते हुए उसिने कहा''मगिर जीजाजी, हुआ क्या है?'' ''अरे होना क्या है, वही पुराना रगिडा... तीन सिाल हो गिए रमा के िलए घर तलाशते हुए. अभिी वो ग्वािलयर वाले शमार्त जी के यहाँ तो हमने िरश्ता पक्का ही सिमझा था मगिर..... उन्होंने ये कह के टाल िदया की लड़की कम सिे कम पोस्ट ग्रेज़ुएट तो चािहए ही चािहए. उसिसिे पिहले जो कानपूर वाले िमश्रिा जी के यहाँ आसि लगिाई तो उन्होंने सिांभवले रंभ गि की दुहाई देके बात आई गिई कर दी.'' ''वैसिे ये लड़के करते क्या थे जीजा जी?'' ''अरे वो शमार्त जी का लड़का तो इंभजीिनअर था िकसिी प्राइवेट कंभ पनी में और उनका िमश्रिा जी का बैंक में क्लकर्त ..'' लम्बी सिांभसि लेते हुए रमा के िपताजी बोले. ''आप िकतने घर देख चुके हैं अभिी तक िबिटया के िलए?'' रमेश ने पड़ताल करते हुए पूछा.


''वही कोई १०-१२ घर तो देख ही चुके हैं बीते ३ सिालों में'' जवाब िमला. '' वैसिे जीजा जी आप बुरा ना मानें तो एक बात पूछूंभ ?'' रमेश ने एक कु शल िवश्लेष क की तरह तह तक जाने की कोिशश प्रारंभ भि कर दी. ''हाँ-हाँ जरूचर'' ''आप लेन-देन का क्या िहसिाब रखना चाहते हैं ? कहीं हलके फु ल्के में तो नहीं िनपटाना चाहते ?'' सिकु चाते हुए रमेश बोला. ''नहीं यार १६-१७ लाख तक दे देंगिे पर कोई िमले तो..'' जवाब में थोड़ा गिवर्त िमिश्रित था. रमेश अचानक चहका''अरे इतने में तो कोई भिी भिले घर का बेहतरीन लड़का फंभ सि जायेगिा, जबलपुर में वही मेरे पड़ोसि वाले दुबे जी हैं ना, उनका लड़का भिी तो िपछले महीने ऍम.डी. कर के लौटा है रूचसि सिे... उन्हें भिी ऐसिे घर की तलाश है जो उनके लड़के की अच्छी कीमत दे सिके .'' रमा के िपताजी को लगिा जैसिे ज़माने भिर का बोझ उनके कन्धों सिे उतर गिया.. मगिर परदे के पीछे खड़ी रमा को इसि बात ने सिोचने पे मजबूर कर िदया िक यह उसिकी खुिशयों की कीमत है या उसिके होने वाले पित की???? दीपक 'मशाल' 45- चोर कहीं का! ''कल तो िकसिी तरह बच गिया लेिकन आज? आज कै सिे बच पाऊँगिा िपटाई सिे, जब घर पर पता चलेगिा तो....'' ये सिोच-सिोच कर िसिहरा जा रहा था वो. थोड़ी-थोड़ी देर बाद क्लासि के बाहर टंभगिी घंभटी को देखता जाता और िफर चपरासिी को.. ठिीक ऐसिे जैसिे जेठि की दोपहर में प्यासि सिे व्याकु ल कोई मेमना हाथ में पानी की बाल्टी िलए खड़े अपने मािलक को तके जा रहा हो िक कब वो बाल्टी करीब रखे और बेचारा जानवर अपनी प्यासि बुझाये. उसिका मन आज पढ़ाई में िबलकु ल नहीं लगि रहा था जबिक क्लासि में वो हमेशा अब्बल रहने वालों में सिे था. कु छ देर बाद जैसिे ही चपरासिी मध्यावकाश(इंभ टरवल) की घंभटी बजाने के िलए आता िदखा तो वो खुशी सिे लगिभिगि चीख उठिा, ''इंभ टरवल्ल्ल्ल ............'' ''गिौरव!!!!!!!!!!'' अंभगिरे जी वाले मास्टर जी ने डांभट कर उसिे चुप कराया. हाँ यही नाम था उसिका. उसिे पहली बार पढ़ाई सिे ध्यान हटाकर इसि तरह िचल्लाते देख मास्टर जी और उसिके सिािथयों को तो अजीब लगिा ही.. वो खुद भिी अपने आप को ऐसिे देखने लगिा जैसिे वो एिलयन(बाहरी गिृहवासिी) में तब्दील हो गिया हो. सिब अपना-अपना िटिफन लेकर लंभच के िलए चले गिए.. मगिर वो नहीं गिया जबिक उसिके सिबसिे ख़िासि दोस्त ने उसिसिे िकतनी बार चलने के िलए कहा भिी. इंभ टरवल के बाद सिब कु छ वैसिा सिा ही हुआ जैसिे रोज चलता था.. वही मास्टर जी, वही क्लासिवकर्त , वही होमवकर्त और अब वो भिी सिामान्य सिा िदख रहा था रोज की तरह. पर आिखरी क्लासि के बाद जब सिारे बच्चे अपने-अपने जूते-मोज़े(जुराबें) पिहनने लगिे तो उसिका एक सिहपाठिी रोनी सिूरत िलए हुए मास्टर जी के पासि


जाके बोला, ''मास्टर जी, एक हफ्ते पहले ही मेरे पापा ने नए मोज़े िदलवाए थे और मैं आज पहली बार वो पिहन कर आया था लेिकन अभिी वो मेरे जूतों में नहीं हैं..'' मास्टर जी ने सिमझाया, ''नहीं अंभिकत यहाँ कोई ऐसिा काम नहीं कर सिकता.. जरा सिीट के नीचे देखो शायद िकसिी के पैर सिे िछटक कर दूर िगिर गिए हों..'' ''नहीं सिर मैंने देख िलया सिब जगिह'' अंभिकत ने रोआँसिे होते हुए कहा.. ''मगिर स्कू ल ड्रेसि के सिभिी मोज़े एक जैसिे होते हैं .. अगिर िकसिी ने िलए होंगिे तो तुम पिहचानोगिे भिी कै सिे? क्या कोई िनशान लगिाया हुआ था उनपर?'' मास्टर जी ने सिवाल िकया. ''हाँ सिर, मैंने सिुबह जल्दबाजी में उसिपर लगिा लेबल नहीं हटाया और उसि पर सिटेक्सि िलखा हुआ है ..'' ''हम्म.. देखो मैं सिबसिे कह रहा हूँ िजसिने भिी अंभिकत के मोज़े िलए हों वो चुपचाप आके यहाँ वापसि करदे , मैं उसिे कु छ नहीं कहूँगिा..'' पर िकसिी ने भिी मास्टर जी की बात का कोई जवाब नहीं िदया.. ''ठिीक है िफर.. सिब लोगि एक-एक कर आगिे आयें और अपने मोज़े अंभिकत को िदखाएँ.. िजसिसिे िक वो अपने मोज़े पिहचान सिके .'' मास्टर जी ने तमतमाते चेहरे सिे सिबको आदेश िदया. मगिर िकसिी के मोज़े िदखाने सिे पहले ही गिौरव के सिबसिे खासि दोस्त ने खड़े होकर बताया, ''ये चोरी गिौरव ने की है..'' अब सिबकी नज़र गिौरव की ओर थी जो ये सिुनते ही राम िबलईया(एक बरसिाती कीड़ा) की तरह अपने आप में दुबक सिा गिया. काफी जोर देने पर भिी जब वो उन सिटेक्सि के लेबल वाले मोजों के उसिके खुद के होने का दावा करता रहा तो गिौरव ने िफर कहा, '' 'िवद्या कसिम' खा के बोलो िक तुमने थोड़ी देर पहले मुझसिे ये नहीं कहा था िक 'कल िकसिी ने मेरे नए मोज़े चुरा िलए थे और मैंने िकसिी तरह ये बात घर पर छु पा ली क्योंिक बताता तो मार खाता और मेरे पापा के पासि इतने पैसिे भिी नहीं िक मुझे इतनी जल्दी िफर सिे नए मोज़े िदला सिकें .. इसि​िलए आज मैंने अंभिकत के मोज़े, जो िबलकु ल वैसिे ही हैं जैसिे मेरे थे, उठिा िलए'..'' बाकी सिब गिौरव की चुप्पी ने कह िदया.. ''चोर कहीं का..'' मास्टर सिाहब तो िबना उसिे पीटे इतना कह कर चले गिए.. लेिकन आज भिी उसिके स्कू ल के 'सिाथी' उसिे यही कह कर बुलाते हैं...... ''चोर कहीं का..'' दीपक 'मशाल' 46- छिमया नए शहर में पहले िदन बाज़ार सिे कु छ खरीदने गिई थी रमा.... िक तेज धूप में अचानक सिड़क पर िगिरते उसि लड़के को देख वो भिी अपनी स्कू टी ले उसिकी तरफ बढ़ गिई. १०-१२ लोगि लड़के को घेर कर खड़े हो गिए, मगिर सिभिी उसिे देख के वल उसिकी बीमारी के बारे में कयासि लगिाए जा रहे थे.... कोई उसिको हस्पताल पहुँचाने को राजी ना था. उसिका मन उन इंभसिानी मशीनों को देख नफरत सिे भिर आया. शॉिपगि का िवचार छोड़ एक सिाइिकल वाले की मदद सिे सिड़क पर पड़े उसि अधबेहोश लड़के को उसिने िकसिी तरह अपनी स्कू टी पर िबठिाया और धीरे -धीरे स्कू टी चलाते हुए उसिे पासि के एक क्लीिनक तक ले गिई.


डॉक्टर ने ग्लूकोज की बोतल चढ़ाई और कमजोरी बता कर कु छ टोिनक और हफ्ते भिर का आराम िलख िदया. थोड़ी देर में जब लड़के को होश आया तो डॉक्टर का शुिक्रया अदा करने लगिा. तब डॉक्टर ने ही बताया िक रमा ही उसिे वहाँ लेकर आयी थी. ''बहुत-बहुत धन्यवाद रमा जी.. मैं आपका अहसिान कभिी नहीं भिूल सिकता, आपका जो पूरा िदन ख़िराब िकया वो तो नहीं लौटा सिकता पर अभिी घर पहुँच कर जो भिी खचर्त हुआ वो आपको देता हूँ ...'' आभिार प्रकट करते हुए उसिने कहा ''अरे नहीं.. उसिकी कोई जरूचरत नहीं है, आिखर इंभ सिान ही इंभसिान के काम आता है'' रमा ने िवनम्रता सिे कहा ''वैसिे मेरा नाम सिमीर है और यहाँ सिे थोड़ी दूर राईट हैण्ड पर जो नारायण कॉलोनी पड़ती है ना.. बसि उसिी के ब्लॉक-सिी में रहता हूँ.. पता नहीं कै सिे अचानक चक्कर आ गिया. शायद सिुबह घर सिे कु छ खा-पीकर नहीं िनकला और आज धूप भिी तेज़ थी इसि​िलए..'' ''अरे वाह.. मैंने भिी उसिी कॉलोनी के ब्लॉक-बी में फ़्लैट िलया है, चिलए िफर आपको घर भिी छोड़ देती हूँ..'' रमा ने कहा तो सिमीर मना ना कर पाया. ३ िदन बाद रमा को ब्लॉक-सिी में कु छ काम था तो सिोचा 'यहाँ तक आई हूँ तो सिमीर का हाल लेती चलूँ '. रास्ते सिे कु छ फल लेकर उसिके घर पहुँची और उसिका हाल-चाल लेकर वापसि जाने के िलए जैसिे ही स्कू टी स्टाटर्त करने लगिी िक घर सिे थोड़ी दूर खड़े ३ लड़कों की फु सिफु सिाहट ने उसिके कान खड़े कर िदए.. ''ओये देख.. सिमीर की 'छिमया' '' एक बोला ''ओये रिहन दे, फें क मत'' दूसिरा बोला. पहले ने िवश्ववासि िदलाते हुए कहा,''हाँ बे कसिम सिे.. सिमीर भिाई ने ही बताया.. यही तो उसि िदन उनको हस्पताल सिे लाई थी, कहते थे बड़ा मज़ा आया िचपक के बैठिने में'' अब तीसिरा कै सिे चुप रहता,''हाय ssssss... उसि िदन मैं क्यों ना िगिरा सिड़क पर..'' गिुस्सिे सिे भिरी रमा स्कू टी स्टाटर्त कर चुपचाप वहाँ सिे िनकल गिई. आज िफर कहीं जाते हुए रमा ने िकसिी आदमी का एिक्सिडेंट होते देखा.. पर अबकी उसिकी स्कू टी नहीं रुकी. दीपक 'मशाल' 47- बड़ा आदमी मुजीब ढाबे सिे चाय पीने के बाद लौट कर अपने ट्रक पर आया, गिाना चालू िकया और एक बार िफर ट्रक को पुणे की तरफ दौड़ा िदया.. थोड़ी देर बाद जैसिे ही दो गिानों के बीच गिैप आता, उसिे ऐसिा लगिता िक ट्रक में कोई दूसिरा भिी है उसिने इधर-उधर देखा तो कोई िदखाई ना िदया. अपने मन का वहम सिमझ वह आगिे बढ़ता गिया, अब यहाँ अके ले में पूछता भिी तो िकसिसिे ? अरे हाँ अके ले इसि​िलए िक िपछले हफ्ते ही उसिका क्लींज़र हैजे की चपेट में आ दुिनया छोड़ गिया था और अभिी तक उसिे कोई नया क्लींज़र नहीं िमला था . पर माल की िडलीवरी टाइम सिे देनी थी इसि​िलए उसिे अके ले आना ही पड़ा.


लेिकन जब कई बार उसिे ऐसिा लगिा िक कोई ट्रक में है जो िसिसिक रहा है तो जाने क्या सिोच वो पसिीनापसिीना हो गिया. पर िफर भिी िहम्मत कर उसिने ट्रक सिड़क सिे एक सिाइड में लगिाया और अन्दर अच्छे सिे चेक करने लगिा. वो गिलत नहीं था असिल में उसिकी ड्राइिवगि सिीट के पीछे एक १४-१५ सिाल का लड़का एकदम कोने में दुबका िसिसिक रहा था. पहले तो काफी देर तक पूछताछ करने पर कु छ नहीं बोला पर जब''बताता है अपना नाम और पता या लेके चलूँ तुझे पुिलसि थाने में?'' उसिने सिख्ती सिे पूछा फटेहाल सिा वो लड़का अचानक बहुत जोरों सिे रोने लगिा, ''मुझे थाने मत ले जाइए मैं सिब बता दूगि ंभ ा.. लेिकन आप िकसिी सिे कहना नहीं. वनार्त वो मुझे िफर पकड़ ले जायेंगिे और पीटेंगिे.'' मुजीब को उसिकी हालात पर कु छ तरसि आया, ''ठिीक है नहीं ले चलूगि ँ ा लेिकन कौन पकड़ कर ले जायेंगिे ? कोई चोर-वोर तो नहीं? तू िकसि मकसिद सिे मेरे ट्रक में चढ़ा? या कहीं सिे भिागि कर आया है?' उसिने ताबड़तोड़ सिवाल कर िदए ' ''हाँ सिाब, मेरा मािलक मेरे गिाँव सिे बापू सिे ये कह कर अपने सिाथ ले आया था िक मुझे नौकरी पर रखेगिा, अच्छी तनख्वाह देगिा और पढ़ायेगिा भिी.. लेिकन...'' कहकर लड़का िफर िसिसिकने लगिा ''लेिकन क्या...'' ''बापू ने कहा था िक वो बड़ा आदमी है मेरी िजन्दगिी सिुधार देगिा लेिकन वो यहाँ लाकर मुझसिे िदन-रात िसिफर्त काम कराता है, खाना भिी ढंभगि सिे नहीं देता और कु छ कहने पर लात-घूसि ंभ ों सिे पीटता है.. मैंने भिागि कर शहर में लोगिों सिे उसिकी िशकायत करने की कोिशश की पर वो एक इंभ जीिनयर है और उसिको सिब जानते हैं तो िकसिी ने मेरी बात नहीं सिुनी और मुझे िफर सिे उसिी के पासि पहुंभचा िदया'' लड़का अब कु छ िनभिीक सिा होकर बोलता जा रहा था, ''घर पहुँच कर उसि रात मेरी डंभडे सिे बुरी तरह सिे िपटाई की गिई, पीठि पर िनशान पड़ गिए और अभिी भिी नील पड़े हैं..'' कहते हुए वो मुजीब की तरफ पीठि कर अपनी कमीज़ ऊपर उठिा िनशाँ िदखाने लगिा. मुजीब सिे सिहानुभिूित और पुिलसि को ना सिौंपने का आश्ववासिन पा लड़का कु छ और सिहज हो चला था. अगिले ढाबे पर चाय िपलाते हुए उसिने लड़के सिे पूछा''नाम क्या है तुम्हारा?'' ''नाम राजेन्द्र है.. पर सिब राजू-राजू कहते हैं'' जवाब िमला ''राजू-राजू या राजू'' उसिने मसिखरी की चाय के िगिलासि में जल्दी-जल्दी डबलरोटी डु बो कर खा रहे सिुबह सिे भिूखे राजू के होठिों पर मुस्कान तैर गिई और उसिने हँसिते हुए कहा, '' राजू.. इसिी रास्ते पर सिौ िकलो मीटर आगिे मेरा गिाँव है 'पनिरया' '' मुजीब ने उसिे सिमझाया, ''हम्म... देखो बेटा मैं कोई बड़ा आदमी तो हूँ नहीं जो तुम्हें नौकरी पर रख सिकूंभ या पढ़ा सिकूंभ लेिकन हाँ मैं तुम्हें तुम्हारे गिाँव छोड़ दूगि ंभ ा, तुम्हारे बापू के पासि... ठिीक है?'' राजू चुपचाप िसिर नीचे िकये चाय के िगिलासि को तके जा रहा था और बड़े आदमी का मतलब सिमझने की कोिशश कर रहा था.


दीपक 'मशाल' 48- बोनट रोज की तरह कॉलेज जाने के िलए जब उसिने अपनी सिहेिलयों के सिाथ पासि के शहर जाने वाली पहली बसि पकड़ी तो बसि में क़दम रखने पर कु छ भिी नया नहीं िमला.. सिामने वाली सिीट पर वही बैंक बाबू अपनी अटैची िलए बैठिे थे, उनके सिाथ रस्ते के गिाँव में उतरने वाले वो प्राइमरी स्कू ल टीचर, बाएंभ तरफ की सिीट पर िजला न्यायालय जाने वाले वो तीन वकील सिाहब और बोनट व ड्राइवर के आसिपासि वही ३ िछछोरे लड़कों का गिैंगि.. ''आय हाय आज तो सिरसिों फू ल रही है.. चलें क्या खेत में?'' बोनट की तरफ सिे पहला घिटया कमेन्ट आया. उसिे क्या सिबको सिमझ आ रहा था िक ये तंभज़ उसिी के पीले सिूट को देख कसिा जा रहा है .. दूसिरा गिुंभडा टाइप लड़का कहाँ पीछे रहने वाला था- ''प्यार सिे ना िमले तो छीनना पड़ता है आजकल की दुिनया में...'' और ना जाने क्या-क्या अनाप-शनाप बोले जा रहीं थीं वो रईसि बापों की िबगिड़ी हुई औलादें.. कमाल की बात तो ये िक बसि में सिब सिुन कर भिी अनसिुना कर रहे थे . वो भिी चुप रही और उसिकी सिहेिलयांभ भिी.. पर जब बसि कंभ डक्टर िकराया लेने आया तो उसिसिे रहा नहीं गिया और उसिसिे बोल ही उठिी- ''भिैया आप रोज के रोज ऐसिे लोगिों को चढ़ने ही क्यों देते हैं बसि में या िफर चुप क्यों नहीं कराते?'' कंभ डक्टर रुखाई सिे बोला- ''देिखये मैडम ये आप लोगिों का आपसि का मामला है आप ही जानें .. और वैसिे भिी ना मैं आपका भिैया हूँ और ना वो लोगि ऐसिा कु छ कर रहे हैं िक मैं अपने पेट पर लात मार लूंभ . आप ही की तरह वो भिी मेरी सिवारी हैं. अगिर कु छ कह िदया तो आप ध्यान ही मत दो, कह ही तो रहे हैं.. कु छ कर थोड़े रहे हैं..'' ''मतलब??'' वो हैरान रह गिई उसिका जवाब सिुन. शाम को कंभ डक्टर जब अपने घर पहुंभचा तो पता चला घर में अज़ब कोहराम मचा था.. मोहल्ले के िकसिी लड़के ने राह चलते उसिकी बिहन का दुपट्टा जो छीन िलया था. अगिले िदन पहली बसि में वो लड़िकयांभ थीं, बैंक बाबू , मास्टर सिाब थे, वकील सिाब थे और बाकी सिब थे.. बसि बोनट के आसि-पासि कोई नहीं था. दीपक 'मशाल' 49- जिरया ‘'अंभकल मैं उसि कॉिमक्सि का दो िदन का िकराया नहीं दे पाऊंभगिा.'' कॉिमक्सि को एक िदन ज्यादा रखने का िकराया देने में असिमथर्तता ज़ािहर करते हुए बल्लू ने दुकानदार सिे कहा. लेिकन उसिके चेहरे पर कोई भिाव ना देख बेचारगिी सिी िदखाते हुए बोला''प्लीज एक ही िदन का िकराया ले लीिजये ना अंभकल..'' ''हम्म.. पैसिा तो पूरा देना पड़ेगिा'' सिपाट सिा जवाब िमला और िफर थोड़ी देर तक खामोशी


''रहता कहाँ है वैसिे तू? िकसिका लड़का है?'' उसिे ऊपर सिे नीचे तक घूरते हुए सिवाल हुआ.. जेब में िसिफर्त अठिन्नी िलए बल्लू को कु छ आशा जगिी- ''अरे अंभकल वो नाले के पासि िछद्दन कारीगिर को जानते हैं, उन्हीं का बेटा हूँ.'' ''ठिीक है माफ़ कर देता हूँ.. और मेरा काम करे गिा तो फ्री में भिी पढ़ सिके गिा'' कु छ सिोचने के बाद जवाब आया ''लेिकन कल दोपहर १ बजे आना जब दुकान के आसिपासि कोई ना हो, सिब सिमझा दूगि ंभ ा'' खुशी सिे झूमता बल्लू सिर िहला के चला गिया लेिकन रास्ते भिर सिोचता रहा िक कौन सिा काम होगिा िजसिकी वजह सिे उसिे इतनी ढेर सिारी कॉिमक्सि फ्री में पढ़ने को िमलेंगिीं. खैर जो भिी हो करने का िनश्चय कर िलया उसिने और अगिले िदन िनयत सिमय पर दुकान पर पहुँच गिया. ''आ गिया तू!! िकसिी ने देखा तो नहीं?'' ''नहीं'' उसिने िसिर िहलाकर सिंभिक्षप्त सिा उत्तर िदया ''हम्म.. चल अन्दर वाले कमरे में'' थोड़ी देर खामोशी छाई रहने के बाद अन्दर वाले कमरे सिे आवाजें आ रहीं थीं- ''िछः अंभकल ये गिन्दा काम है.. मुझे िघन आती है'' ''तुझे कॉिमक्सि पढ़नी है या मैं िकसिी और को फ्री पढ़ाऊंभ?'' कु छ पल की खामोशी के बाद अब बल्लू फ्री में कॉिमक्सि पढ़ने के नए ज़िरये के िलए राज़ी हो गिया था. दीपक 'मशाल' 50- आयरन मैन 'तड़ाक... तड़ाक... तड़ाक...' तीन-चार तमाचों की तेज़ आवाज़ और गिािलयों के सिाथ िकसिी के गिजर्तन को सिुन बरात के बीच सिे नन्हे

मुग्ध

का

ध्यान

अचानक

डांभसि सिे हटकर उसि ओर चला गिया.

अपने दोनों गिालों और कानों को अपने नन्हे हाथों और बाजुओं सिे ढंभके उसिका ही हमउम्र सिा (करीब ९१०सिाल का) एक मैला-कु चैला बच्चा िसिहरा हुआ खड़ा था और िहचिकयाँ ले रहा था. उसि बच्चे के सिाथ ही खड़ा एक शिक्तशाली आदमी जो शायद लाइटहाउसि का और उसि बच्चे का मािलक लगि रहा था, उसिे लाल आँखों सिे घूरते हुए, अंभट-शंभट गिािलयाँ बके जा रहा था. ''हरामजादे.. अब इसिका पैसिा क्या तेरा बाप भिरे गिा आके ? जब टांभगिों में जान नहीं तो क्यों आ जाते हो मरने? गिमला उठिाएंभगिे ये स्सिाले..'' बीच-बीच में कभिी पतली फंभ टी को उसिकी फटे-चीथड़े हाफ पेंट सिे कहने भिर को ढँकी कमज़ोर टांभगिों पर फटकारता जाता, तो कभिी उसिके बाल पकड़ जोर सिे भिभिोंच देता. उन्माद में डू बे िकसिी बाराती ने उसि आदमी को रोकने की कोिशश नहींकी. लोगिों की बातों सिे पता चला उसि मजदूर बच्चे के हाथ सिे लाइट हाउसि के गिमले का एक ट्यूबलाइट टू ट गिया था.. वो भिी शायद उसिकी गिलती नहीं थी बिल्क िकसिी बाराती के पैर में तार उलझ गिया और अचानक तार में पैदा हुए िखचाव सिे वो बेचारा गिमला सिम्हाल ना पाया.


उसिकी िनमर्तम तरीके सिे िपटाई देख मुग्ध के मुह ँ सिे भिी िसिसिकारी िनकल गिई. चलते-चलते, हँसिते-गिाते बारात लड़की वालों के दरवाजे पर पहुँच गिई पर अब उसिका अपने प्यारे चाचू की शादी में भिी डांभसि करने का या कु छ खाने-पीने का मन नहीं कर रहा था. वो इसिी सिोच में उलझा था िक उसि ट्यूबलाइट में ऐसिा क्या था जो उसि बच्चे को उसिकी वजह सिे इतनी मार और गिािलयाँ खानी पडीं. जबिक उसिकी खुद की तो तब भिी इतनी डांभट नहीं पड़ी थी जब उसिसिे गिलती सिे टी.वी. खराब हो गिया था और पापा को िफर नया टेलीिवजन ही खरीदना पड़ा था.. कु छ भिी तो नहीं कहा गिया था उसिसिे िसिवाय इतने प्यार सिे सिमझाने के िक-

''मुग्ध

बेटा,

आगिे

सिे

अगिर इसिका

कोई फंभ क्शन सिमझ ना

आये तो

िकसिी

सिे

पूछ िलया करना'' ''जरूचर कु छ और बात रही होगिी.. शायद वो ट्यूब लाइट बहुत ही महंभगिा हो... लेिकन िफर इतनी मार खा के भिी वो रोया क्यों नहीं?? हम्म्म्म सिमझा जरूचर वो बच्चा आयरनमैन होगिा'' दीपक 'मशाल' 51- लोगि क्या कहेंगिे 'अ' एक लड़की थी और 'ब' एक लड़का. बचपन सिे ही दोनों के बीच एक स्वाभिािवक आकष र्तण था, िजसिे बढ़ती उम्र और मेलजोल ने प्रेम के रूचप में िनखार िदया. दोनों सिाथ में पढ़ते, घूमते-िफरते, कॉलेज जाते और कला-सिंभगिीत के कायर्तक्रमों में रुिचयाँ लेते. एक दूसिरे की रुिचयों में सिमानताएंभ होने सिे प्यार सिघन होता गिया. उनके अटू ट सिे िदखते प्रेम को देख लोगिों के िदलों सिे िनकली ईष्यार्त के उबलते ज़हर की गिमी उनके आसिपासि के वातावरण को िजतना उष्ण करती उनके प्रेम की शीतलता उन्हें उतना ही करीब ले आती. पढ़ाई ख़ित्म होते-होते दोनों के पिरवारवालों को अपने-अपने बच्चों की शादी की िचता सिताने लगिी. ये तो याद नहीं पड़ता िक कौन, िकसिसिे, कै सिे और िकतना ज्यादा अमीर था लेिकन दोनों के पिरवारों के बीच के पद-प्रितष्ठा, धन और शोहरत के इसिी अंभतर ने उनके प्रेम के िपटारे में झाँकने की ज़हमत ना उठिाई, चारों तरफ सिवाल उठिे - ''लोगि क्या कहेंगिे?'' और अ या ब िकसिी एक के घरवालों ने उनके प्रेम को पिरवार की इज्ज़त को डंभसि सिकने वाले ज़हरीले नागि का िखताब दे उसि िपटारे को वही ँ दफ़नाने का हुक्म सिुना िदया. दोनों के िरश्ते अलगि-अलगि पिरवारों में अपनी-अपनी हैिसियत के मुतािबक कर िदए गिए. िकसिी सिे कहे बगिैर मन ही मन दोनों ने अपने-अपने बच्चों के सिाथ ऐसिा ज़ुल्म ना करने की ठिान िनयित के आगिे सिर झुका िदया. सिालों बीत गिए.. अ और ब दोनों ने अपनी मेहनत और लगिन सिे सिमाज में अच्छा रुतबा, धन-दौलत और वो सिब िजसिके िलए लोगि खपते हैं , कमा िलया. दोनों अलगि-अलगि शहर में थे एक दूसिरे सिे अन्जान, अलबत्ता यादों में दोनों अभिी भिी एक-दूसिरों को याद थे. अ का बेटा अपनी पढ़ाई पूरी कर चुका था और अ उसिकी शादी के िलए सिुयोग्य लड़िकयांभ ढू ँढने लगिी थी और उधर ब अपनी खूबसिूरत और खूबसिीरत बेटी के िलए भिी यही सिब उपक्रम करने लगिा था. दोनों ने सिोचा क्यों ना एक बार अपने -अपने बच्चों सिे जान िलया जाए िक कहीं उन्हें तो कोई पसिंभद नहीं. दोनों का सिोचना सिही िनकला. इधर अ का बेटा एक लड़की सिे


बेइन्तेहाँ मोहब्बत करता था और वो लड़की भिी तो उधर दूसिरी तरफ ब की बेटी को भिी एक लड़के सिे प्रेम था. कहीं ना कहीं अ और ब की सिी कहानी दोनों तरफ पनप रही थी. अ ने अपने बेटे की प्रेिमका के बारे में कहीं सिे जानकारी जुटाई तो पता चला वो एक मॉडल थी .. लोगिों ने बीच में िमचर्त-मसिाला लगिा इसि पेशे की बुराइयांभ िगिनानी शुरूच कर दीं- ''मैडम, आप तो जानती ही हैं इसि पेशे में क्या-क्या उघाड़ना पड़ता है और क्या-क्या छु पाना पड़ता है.. अपनी इज्ज़त का कु छ तो ख्याल कीिजए. लोगि क्या कहेंगिे?'' उधर ब की बेटी को जो लड़का पसिंभद था उसिके ना माँ का पता था ना बाप का.. अनाथालय में पला-बढ़ा था. लोगिों ने यहाँ भिी कहना शुरूच िकया, ''इंभ टेिलजेंट है तो उसिसिे क्या? खानदान भिी तो देखना पड़ता है िक नहीं? अगिर इकलौती बेटी के िलए भिी ढंभगि का खानदानी लड़का ना ढू ंभढ पाए तो लोगि क्या कहेंगिे?'' एक बार िफर दो अलगि-अलगि शहरों में दो प्रेम कहािनयों का ''लोगि क्या कहेंगिे?'' के शोर के बीच क़त्ल कर िदया गिया.. अब अ और ब की मजी के मुतािबक उनके बेटे -बेिटयों की कहीं शािदयाँ हो रही थीं. िफर शहनाइयों के बीच २५ सिाल पुराने 'अपने बच्चों के सिाथ ये ज़ुल्म ना होने देंगिे ' जैसिे सिंभकल्प दोहराए जा रहे थे. दीपक 'मशाल' 52- शक यूिनविसिटी ने जब सिे कई नए कोसिर्त शुरूच िकये हैं, तब सिे नए छात्रों के रहने की उिचत व्यवस्था(हॉस्टल) ना होने सिे यूिनविसिटी के पासि वाली कालोनी के लोगिों को एक नया व्यापार घर बैठिे िमल गिया. उसि नयी बसिी कालोनी के लगिभिगि हर घर के कु छ कमरे इसि बात को ध्यान में रखकर बनाये जाने लगिे िक कम सिे कम १ -२ कमरे िकराये पर देना ही देना है और सिाथ ही पुराने घरों में भिी लोगिों ने अपनी आवश्यकताओं में सिे एक-दो कमरों की कटौती कर के उन्हें िकराए पर उठिा िदया. ये सिब कु छ लोगिों को फ़ायदा जरूचर देता था लेिकन झा सिाब इसि सिब सिे बड़े परे शान थे, उनका खुद का बेटा तो िदल्ली सिे इंभजीिनअिरगि कर रहा था लेिकन िफर भिी उन्होंने शोर-शराबे सिे बचने के िलए कोई कमरा िकराए पर नहीं उठिाया. हालाँिक काफी बड़ा घर था उनका और वो खुद भिी िरटायर होकर अपनी पत्नी के सिाथ शांभित सिे वहाँ पर रह रहे थे लेिकन कु छ िदनों सिे उन्हें इन लड़कों सिे परे शानी होने लगिी थी. असिल में यूिनविसिटी के आवारा लड़के देर रात तक घर के बाहर गिली में चहलकदमी करते रहते और शोर मचाते रहते, लेिकन आज तो हद ही हो गिई रात में सिाढ़े बारह तक जब शोर कम ना हुआ तो गिुस्सिे में उन्होंने दरवाज़ा खोला और बाहर आ गिए. ''ऐ लड़के , इधर आओ'' गिुस्सिे में झा सिाब ने उनमे सिे एक लड़के को बुलाया. लेिकन सिब उनपर हंभसिने लगिे और कोई भिी पासि नहीं आया, ये देख झा सिाब का गिुस्सिा और बढ़ गिया.. वही ँ सिे िचल्ला कर बोले- ''तुम लोगि चुपचाप पढ़ाई नहीं कर सिकते या िफर कोई काम नहीं है तो सिो क्यों नहीं जाते? ढीठि कहीं के ''


एक लड़का हाथ में शराब की बोतल िलए उनके पासि लडखडाता हुआ आया और बोला- '' ऐ अंभकल क्यों टेंशन लेते हैं, अभिी चले जायेंगिे ना थोड़ी देर में. अरे यही तो हमारे खेलने-खाने के िदन हैं..'' शराब की बदबू सिे झा सिाब और भिी भिड़क गिए- '' िबलकु ल शमर्त नहीं आती तुम्हें इसि तरह शराब पीकर आवारागिदी कर रहे हो.. अरे मेरा भिी एक बेटा है तुम्हारी उम्र का लेिकन मज्जाल िक कभिी िसिगिरे ट -शराब को हाथ भिी लगिाया हो उसिने, क्यों अपने माँ-बाप का नाम ख़िराब रहे हो जािहलों..'' उनका बोलना अभिी रुका भिी नहीं था िक एक दूसिरा शराबी लड़का उनींदा सिा चलता हुआ उनके पासि आते हुए बोला- ''अरे अंभकल, आप िनिष्फकर रिहये आपके जैसिा ही कु छ हमारे माँ-बाप भिी हमारे बारे में सिमझते हैं इसि​िलए आप जा के सिो जाइये.. खामख्वाह में हमारा मज़ा मती ख़िराब किरए.'' और वो सिब एक दूसिरे के हाथ पे ताली देते हुए ठिहाका मार के हंभसि िदए. अब झा सिाब को कोई जवाब ना सिूझा और उन्हें अन्दर जाना ही ठिीक लगिा.. उनका मकसिद तो पूरा ना हुआ लेिकन उसि लड़के की बात ने एक शक जरूचर पैदा कर िदया. दीपक 'मशाल' 53- शिन की छाया पूजा के िलए सिुबह मुह ँ अँधेरे उठि गिया था वो, धरती पर पाँव रखने सिे पहले दोनों हाथों की हथेिलयों के दशर्तन कर प्रातःस्मरण मंभत्र गिाया 'कराग्रे बसिते लक्ष्मी.. कर मध्ये सिरस्वती, कर मूले तु.....'. िपछली रात देर सिे काम सिे घर लौटे पड़ोसिी को बेवजह जगिा िदया अनजाने में. जनेऊ को कान में अटका सिपरा-खोरा(नहाया-धोया), बाग़ सिे कु छ फू ल, कु छ किलयाँ तोड़ लाया, अटारी पर सिे बच्चों सिे छु पा के रखे पेड़े िनकाले और धूप , चन्दन, अगिरबत्ती, अक्षत और जल के लोटे सिे सिजी थाली ले मंभिदर िनकल गिया. रस्ते में एक हिड्डयों के ढाँचे जैसिे खजैले कु त्ते को हाथ में िलए डंभडे सिे मार के भिगिा िदया. ख़िुशी-ख़िुशी मंभिदर पहुँच िविधवत पूजा अचर्तना की और लौटते सिमय एक िभिखारी के बढ़े हाथ को अनदेखा कर प्रसिाद बचा कर घर ले आया. मन िफर भिी शांभत ना था... शाम को एक ज्योितष ी जी के पासि जाकर दुिवधा बताई और हाथ की हथेली उसिके सिामने िबछा दी. ज्योितष ी का कहना था- ''आजकल तुम पर शिन की छाया है इसि​िलए की गिई कोई पूजा नहीं लगि रही.. मन अशांभत होने का यही कारण है. अगिले शिनवार को घर पर एक छोटा सिा यज रख लो मैं पूरा करा दूगि ंभ ा.'' 'अशांभत मन' की शांभित के िलए उसिने चुपचाप सिहमती में सिर िहला िदया. दीपक 'मशाल' 54- रोल उसिके कंभ धे पे हाथ रख कर पहली बार इतनी आत्मीयता सिे बात करते हुए उसि सिुपर स्टार पुत्र ने वीरें दर, जो िक उसिका ड्राइवर था, को अपनी परे शानी बताते हुए कहा''यार वीरें दर, मुझे पहली बार िकसिी बहुत बड़े डायरे क्टर के सिाथ काम करने का मौका िमला है ..'' ''ये तो बड़ी खुशी की बात है सिर'' अपनी खुशी ज़ािहर करते हुए वीरें दर बोला


''लेिकन रोल कु छ ऐसिा है िक वो तेरी मदद के िबना पूरा नहीं हो सिकता..'' अपनी बात को आगिे बढ़ाता वो नया 'हीरो' बोला.. ''वो कै सिे सिर....'' अब वीरें दर उसि अचानक उमड़े प्रेम का कारण कु छ सिमझ रहा था ''मुझे एक बड़े स्टार के ड्राइवर का रोल िमला है जो िक कहानी का मुख्य चिरत्र है .. एक तुम्हारे जैसिे गिरीब, मजबूर आदमी का रोल है... इसिके िलए मुझे तुम्हारी िदनचयार्त .. उठिना-बैठिना, रहन-सिहन सिमझना होगिा बस्सि.. कु छ िदन के िलए'' अपनी मजबूरी बताते हुए और वीरें दर की जेब में १०००-१००० के १० करारे नोट घुसिेड़ता हुआ वो तथाकिथत हीरो बोला.. ''लेिकन सिर ये तो...'' अपनी स्वािमभि​िक्त िदखाने के िलए रुपये लेने सिे इंभ कार करता वो कु छ बोलना चाहता था... ''अबे रख ले चुपचाप सिाले .. अब ज्यादा मुँह मत खोल वनार्त इतना भिी नहीं देता .. वो तो मेरी मजबूरी है आज तक िकसिी 'स्लम डॉगि' की लाइफ को करीब सिे नहीं देखा.. इसि​िलए.. वनार्त मैं तुझ जैसिों के मुह ँ नहीं लगिता...'' अचानक ड्राइवर को उसिकी औकात बताते हुए उसिने िझड़क िदया.. होंठि तो चुप रह गिए लेिकन अब वीरें दर का िदमागि अपने आप सिे बोल रहा था 'अगिर मैंने सिब सिच बता िदया तो क्या ये आदमी मेरा रोल अदा कर पायेगिा परदे पर???' दीपक 'मशाल' 55- दोहरी मानिसिकता िबिलयड्सिर्त की लाल गिेंद की मािफक आफताब भिी अस्ताचल में अपने होल में सिमाया जा रहा था.बड़ी देर सिे उसि डू बते सिुखर्त लाल गिोले को देखे जा रहा था धनञ्जय- ''क्या िबलकु ल ठिीक इसिी तरह अपनी अवाम की सिच्चाई, ईमानदारी और शराफत जैसिी अच्छाइयांभ भ्रष्टाचार, झूठि और घोटालों के अस्ताचल में नहीं सिमाई जा रही हैं?'' शायद इतने अिधक गिंभभिीर िदखने की कोिशश करते हुए धनञ्जय यही सिब शब्द िचत्र अपने िजहन में उके र रहा था. मगिर एक बड़े गिज़ब का या कहें िक शोध का िवष य था िक उसिके माथे पर औरों की तरह भिाव नज़र नहीं आते थे और ना ही गिंभभिीर मुद्रा में भिी दाशर्तिनकों का सिा प्रितरूचप झलकता था उसिमें , बसि मासिूम सिा चेहरा िचरस्थायी रहता था िफर भिी वह लगिातार िचतन के महासिागिर में गिोते लगिाते हुए िरक्शे पर बैठिा अपने गिंभतव्य की ओर िहचकोले खाता हुआ बढ़ता जा रहा था. रास्ते में पड़ने वाले उतार-चढ़ावों को देख ख्याल आता िक- ''कब तक ये उतार-चढ़ाव की राजनीित के अवरोध देश की प्रगि​ित में बाधक बनते रहेंगिे और कब िचकनी सिड़क पर दौड़ते वाहन की भिांभित अपना वतन प्रगि​ित की ओर भिागिेगिा? मगिर क्या भिागि पायेगिा इन ज़हरीले नागिों को आस्तीनों में भिरकर? िकतनी ही सिंभस्थाएंभ हैं उसिके नगिर में जो सिमाजसिेवा के नाम पर ठिगिी का धंभधा चलाती हैं . बाबू सिे लेकर चपरासिी तक की वदी िरश्ववत के रंभ गि में रंभ गिी है . पौरुष , िलप्सिारिहत और सिाहसिी का ढोंगि रचने वाले पुिलसि वाले भिीतर ही भिीतर इसिे खोखला िकये जा रहे हैं.


बाहर सिीमा के रक्षकों सिे जो कु छ उम्मीदें थीं वो भिी रक्षा सिौदे की दलाली में फंभ सिे िब्रिगिेिडयरों और कनर्तलों ने तोड़ दीं. अरे िसिफर्त वे ही क्यों देशभि​िक्त और ईमानदारी का रागि अलापें , जबिक हर तरफ बेईमानी का िवष फै ला है और जब सिफे दपोशों को अपनी सिफे दी में दागि का डर नहीं तो खाकी रंभ गि में कोई दागि िदखता कहाँ है.'' ''ई लीिजये बाबू जी! आ गिवा तोहार पंभजाबी मारिकट.'' उसि काले कलूटे कृ ष काय िरक्शेवाले की हांभफती और कंभ पकंभ पाती आवाज़ ने धनञ्जय के िचतन में खलल डाला. िरक्शे सिे नीचे पैर रखते ही पहले जेब में अपना पसिर्त टटोला और िफर शटर्त की जेब सिे ३ रुपये के िसिक्के िनकाल कर िरक्शे वाले के हाथ में रख चुपचाप आगिे चलने लगिा. '' ई का सिािहब इतना दूर का तीने रुपईया दोगिे मािलक!'' ये बात धनञ्जय को नागिवार गिुजरी या उसिे अपनी तौहीन लगिी, तभिी तो िचल्ला उठिा उसि गिरीब पे''अबे तो क्या तीन िकलोमीटर के िलए िकसिी का घर लेगिा क्या? तुम लोगि स्सिाले इसिीिलए नहीं पनप सिकते िक ईमानदारी का तो मतलब ही नहीं जानते, सिाले सिब के सिब हराम की रोटी तोड़ना चाहते हो.'' शायद उमसि और फू लती सिांभसि ने शहर में नए आये उसि िरक्शेवाले में बोलने तक की सिामथ्यर्त नहीं छोड़ी या तो िफर वो धनञ्जय के तकों सिे सिंभतुष्ट था इसिीिलए िरक्शा एक िकनारे कर सिुस्ताने लगिा. ७ रुपये बचाकर अपनी बुिद्ध को मन ही मन सिराहता हुआ धनञ्जय िडस्को सिेंटर की तरफ बढ़ गिया... लेिकन ना जाने क्यों अब ज़माने भिर के हजारों ज़हरीले सिाँपों का ज़हर उसिके भिी चेहरे की नशों में सिाफ़-सिाफ़ देखा जा सिकता था. दीपक 'मशाल' 56- एक लघुकथा का अंभत " डा. िवद्या क्या बेिमसिाल रचना िलखी है आपने ! सिच पूिछए तो मैंने आजतक ऐसिी सिंभवेदनायुक्त किवता नहीं सिुनी", "अरे शुक्ला जी आप सिुनेंगिे कै सिे? ऐसिी रचनाएँ तो सिालों में, हजारों रचनाओं में सिे एक िनकल के आती है. मेरी तो आँख भिर आई" "ये ऐसिी वैसिी नहीं बिल्क आपको सिुभिद्रा कु मारी चौहान और महादेवी वमार्त जी की श्रिेणी में पहुँचाने वाली कृ ित है िवद्या जी. है की नहीं भिटनागिर सिाब?" एक के बाद एक लेखन जगित के मूधन्र्त य िवद्वानों के मुखारिबद सिे िनकले ये शब्द जैसिे -जैसिे डा.िवद्या वाष्णेय के कानों में पड़ रहे थे वैसिे वैसिे उनके ह्रदय की वेदना बढ़ती जा रही थी. लगिता था मानो कोई िपघला हुआ शीशा कानों में डाल रहा हो. अपनी तारीफों के बंभधते पुलों को पीछे छोड़ उसि किव-गिोष्ठी की अध्यक्षा िवद्या अतीत के गि​िलयारों में वापसि लौटती दो वष र्त पूवर्त उसिी स्थान पर आयोिजत एक अन्य किव-गिोष्ठी में पहुँच जाती है, जब वह िसिफर्त िवद्या थी बेिसिक िशक्षा अिधकारी डा.िवद्या नहीं. हाँ अलबत्ता एक रसिायन िवजान की शोधाथी जरूचर थी.


शायद इतने ही लोगि जमा थे उसि गिोष्ठी में भिी, सिब वही चेहरे , वही मौसिम, वही माहौल. सिभिी तथाकिथत किव एक के बाद एक करके अपनी-अपनी नवीनतम स्वरिचत किवता, ग़ज़ल, गिीत आिद सिुना रहे थे. अिधकांभश लेखिनयाँ शहर के मशहूर डॉक्टर, प्रोफे सिर, वकील, इंभ जीिनयर और िप्रिसिपल आिद की थीं. देखने लायक या ये कहें की हँसिने लायक बात ये थी की हर कलम की कृ ित को किवता के अनुरूचप न िमलकर रचनाकार के ओहदे के अनुरूचप दाद या सिराहना िमल रही थी. इक्का दुक्का ऐसिे भिी थे जो औरों सिे बेहतर िलखते तो थे लेिकन पदिवहीन या सिम्मानजनक पेशे सिे न जुड़े होने की वजह सिे आयाराम-गियाराम की तरह अनदेखे ही रहते. गिोष्ठी प्रगि​ित पे थी, सिमीक्षाओं के बीच-बीच में ठिहाके सिुनाई पड़ते तो कभिी िबस्कु ट की कु रकु राहट या चाय की चुिस्कयों की आवाजें . शायद उम्र में सिबसिे छोटी होने के कारण िवद्या को अपनी बारी आने तक लम्बा इन्तेज़ार करना पड़ा. सिबसिे आिखर में लेिकन अध्यक्ष महोदय, जो िक एक प्रशासि​िनक अिधकारी थे, सिे पहले िवद्या को काव्यपाठि का अवसिर अहसिान िक तरह िदया गिया. 'पुरुष प्रधान सिमाज में एक नारी का काव्यपाठि वो भिी एक २२-२३ सिाल की अबोध लड़की का, इसिका हमसिे क्या मुकाबला?' कई बुिद्धजीिवयों की त्योिरयांभ खामोशी सिे ये सिवाल कर रहीं थीं. वैसिे तो िवद्या बचपन सिे ही किवता, कहािनयांभ, व्यंभग्य आिद िलखती आ रही थी लेिकन उसिे यही एक दुःख था की कई बार गिोिष्ठयों में काव्यपाठि करके भिी वह उन लोगिों के बीच कोई िवशेष स्थान नहीं अिजत कर पाई थी. िफर भिी 'बीती को िबसिािरये' सिोच िवद्या ने एक ऐसिी किवता पढ़नी प्रारंभ भि की िजसिको सिुनकर उसिके दोस्तों और सिहपािठियों ने उसिे पलकों पे िबठिा िलया था और उसि किवता ने सिभिी के िदलों और होंठिों पे कब्ज़ा कर िलया था. िफर भिी देखना बाकी था की उसि कृ ित को िवद्वान सिािहत्यकारों और आलोचकों की प्रशंभसिा का ठिप्पा िमलता है या नहीं. तेजी सिे धड़कते िदल को काबू में करते हुए, अपने सिुमधुर कन्ठि सिे आधी किवता सिुना चुकने के बाद िवद्या ने अचानक महसिूसि िकया की 'ये क्या किवता की जान सिमझी जाने वाली अितसिंभवेदनशील पंभिक्तयों पे भिी ना आह, ना वाह और ना ही कोई प्रितिक्रया!' िफर भिी हौसिला बुलंभद रखते हुए उसिने िबना सिुर -लय-ताल िबगिड़े किवता को सिमािप्त तक पहुँचाया. परन्तु तब भिी ना ताली, ना तारीफ़, ना सिराहना और ना ही सिलाह, क्या ऐसिी सिंभवेदनाशील रचना भिी िकसिी का ध्यान ना आकृ ष्ट कर सिकी? तभिी अध्यक्ष जी ने बोला "अभिी सिुधार की बहुत आवश्यकता है, प्रयासि करती रहो." मायूसि िवद्या को लगिा की इसिबार भिी उसिसिे चूक हुई है . अपने िवचिलत मन को सिम्हालते हुए वो अध्यक्ष महोदय की किवता सिुनने लगिी. एक ऐसिी किवता िजसिके ना सिर का पता ना पैर का, ना भिावः का और ना ही अथर्त का, या यूँ कहें की इसिसिे बेहतर तो दजार्त पांभच का छात्र िलख ले. लेिकन अचम्भिा ये की ऐसिी कोई पंभिक्त नहीं िजसिपे तारीफ ना हुई हो, ऐसिा कोई मुख नहीं िजसिने तारीफ ना की हो और तो और सिमाप्त होने पे तािलयों की गिड़गिडाहट थामे ना थमती. सिािहत्यजगित की उसि सिच्ची आराधक का आहत मन पूछ बैठिा ''क्या यहाँ भिी राजनीित? क्या यहाँ भिी सिरस्वती की हार? ऐसिे ही तथाकिथत सिािहित्यक मठिाधीशों के कारण हर रोज ना जाने िकतने योग्य


उदीयमान रचनाकारों को सिािहित्यक आत्महत्या करनी पड़ती होगिी और वही ँ िविभिन्न पदों को सिुशोिभित करने वालों की नज़रंभ दाज़ करने योग्य रचनाएँ भिी पुरस्कृ त होती हैं .'' उसि िदन िवद्या ने ठिान िलया की अब वह भिी सिम्मानजनक पद हािसिल करने के बाद ही उसि गिोष्ठी में वापसि आयेगिी. वापसि वतर्तमान में लौट चुकी डा. िवद्या के चेहरे पर ख़िुशी नहीं दुःख था की िजसि किवता को दो वष र्त पूवर्त ध्यान देने योग्य भिी नहीं सिमझा गिया आज वही किवता उसिके पद के सिाथ अितिविशष्ट हो चुकी है . अंभत में सिारे घटनाक्रम को सिबको स्मरण कराने के बाद ऐसिे छद्म सिािहत्यजगित को दूर सिे ही प्रणाम कर िवद्या ने उसिमें पुनः प्रवेश ना करने की घोष णा कर दी. अब उसिे रोकता भिी कौन, सिभिी किव व आलोचकगिण तो सिच्चाई के आईने में खुद को नंभगिा पाकर जमीन फटने का इन्तेज़ार कर रहे थे. दीपक 'मशाल'

57- कृ पा एक सिमय था जब मलेि रया के मारे मरीज उनके हस्पताल के फे रे लगिाया करता था और वो पूर ी ईमानदारी सिे कम सिे कम सिमय में मरीज को ठिीक कर दे त े तब भिी चाहे अमीर हो या गिरीब सिबको सिमान भिाव सिे दे ख ते हुए ताक़त के सिीरप के नाम पर अनावश्यक दवाएंभ िलख ही िदया करते थे. उन दवाओं में होता िसिफर्त चीनी का इलायची या ओरें ज फ्लेव डर्त घोल. लेि कन ये सिब पता िकसिे था िसिवाय खुद उनके , एम.आर और के िमस्ट के .. उनमें भिी के िमस्ट तो घर का आदमी था , रही बात एम .आर. की तो उसिे अपनी सिेल बढ़ानी थी , अब वो चाहे कै सिे भिी बढ़े . उसि छोटे कस्बे के अल्पिशिक्षत लोगिों की डॉक्टर में बड़ी आस्था थी , डॉक्टर सिा'ब का मरीज को छू लेन े भिर सिे आधी बीमारी उनके मुत ािबक ठिीक हो जाती थी . लेि कन अभिी कु छ सिालों सिे लोगि कु छ ज्यादा ही चतुर हो गिए थे ... उधर एक लम्बे अरसिे सिे िकसिी बीमारी ने इधर का रुख नहीं िकया था , धंभध ा मंभद ा हो चला था और अब डॉक्टर सिा'ब खुद ही मरीजों की तरह लगिने लगिे थे ... पर इसि बार लगिता है सिावन -भिादों-वसिंभत सिब एक सिाथ आ गिए. मच्छरों ने डॉक्टर का आतर्तन ाद सिुन िलया शायद . तभिी तो दोनों िशफ्टों में बीमािरयाँ फै लाने लगिे. िदन वाले मच्छर डें गि ू और रात वाले मलेि रया . डॉक्टर सिा'ब आजकल बहुत खुश हैं , उनके सिाथी.. के िमस्ट, एम.आर. सिब िफर सिे काफी व्यस्त हो गिए. मैं भिी कल ज़रा हरारत महसिूसि कर रहा था तो मजबूर न उनके मोबाइल पर फोन लगिाना पड़ गिया.. नंभब र िमलते ही डॉक्टर सिा'ब की कॉलर टोन बजनी शुरूच हो गिई - ''मेर ा आपकी कृ पा सिे सिब काम हो रहा है ... करते हो तुम ....'' इधर मेरे दू सि रे कान के पासि एक मच्छर मस्ती में अपनी तान छे ड़े हुए था .


दीपक 'मशाल'


Turn static files into dynamic content formats.

Create a flipbook
Issuu converts static files into: digital portfolios, online yearbooks, online catalogs, digital photo albums and more. Sign up and create your flipbook.