Parikatha 2010

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सराहकाय सॊऩादक डॉ. नाभवय ससॊह सॊऩादक शॊकय सॊऩादक भॊडर ऻानयॊ जन असॊगय वजाहत अबम

एक्सससमूटिव सॊऩादक बावना ससन्हा सहामक सॊऩादक तेजबान याभ उऩ-सॊऩादक घनश्माभ कुभाय 'दे वाॊश साॊस्कृ सतक सॊऩादक आशीष त्रिऩाठी

09450711824

करा सॊऩादक सुषभा ससन्हा 09431417339 सभन्वम सॊऩादक सुहैर अॊख्तय 09437044651 करा : जमॊत कानूनी सराह : उत्कषष वाक्णज्म प्रफॊधक अवधेश टद्रवेदी 09430112417 09956535008 ऺेिीम सभन्वमक फी. तुरसी याव 09471337240


सम्ऩादकीम व्मवस्थाऩकीम कामाषरम ऩरयकथा, 96, फेसभंि, पेज III, इयोज गाडष न, सूयजकुॊड योड, नई टदल्री-110044 दयू बाष : (0129) 4116726 09431336275 Website : www.parikathahindi.com email : parikatha.hindi@gmail.com

इस अॊक का भूल्म : 35 रुऩमे फायह अॊकीम सदस्मता : 275 रुऩमे सौजन्म सदस्मता (आजीवन) : 4000 रुऩमे  सम्ऩादक भॊडर के सदस्म, सम्ऩादक, सभन्वम सम्ऩादक औय सबी ऺेिीम सम्ऩादक अवैतसनक अव्मावसासमक रूऩ से भाि साटहक्त्मक-साॊस्कृ सतक कभष भं सहमोगी।  साये बुगतान भनीऑडष यफंक ड्राफ्िचेक से ऩरयकथा के नाभ से टकमे जाएॉ। ओभप्रकाशU द्राया ऩरयकथा, 96, फेसभंि, पेज III, इयोज गाडष न, सूयजकुॊड योड, नई टदल्री-44 से प्रकासशत, रुसचका त्रप्रॊिसष, शाहदया, टदल्री-32 से भुटित एवॊ शॊकय द्राया सम्ऩाटदत। 'ऩरयकथा' भं प्रकासशत यचनाओॊ के त्रवचायं से इसके सम्ऩादकं का सहभत होना आवश्मक नहीॊ है । ऩरयकथा को कुछ रेखक औय सभि शुबसचॊतक सभर-जुरकय सनकार यहे हं । आऩ जुड़ेंगे तो हभ फढ़ें ग.े .. जो साटहत्म-प्रेभी, शुबसचॊतक 'ऩरयकथा' को वषष भं कभ से कभ एक फाय अनुदान सहमोग दं गे, 'ऩरयकथा' उनके प्रसत ससम्भान सावषजसनक रूऩ से, आधे ऩूये ऩृद्ष ऩय आबाय प्रकि कये गी। सनवेदक भो. : 09431336275 09661649771, 09863076138


ऩरयकथा सभम औय सभाज की ऩरयक्रभा वषष 5, अॊक 24, टद्रभाससक, जनवयी पयवयी 2010

नवरेखन अॊक सॊवाद सॊऩादकीम

2

कहासनमाॉ दयू का शहय

कृ ष्णकाॊत

11

टदल्री वारी भौसी

सुधीय कुभाय

14

दध ू का दाॉत

अशोक कुभाय ओझा

19

जहाज

एस. यक्जमा फेगभ

22

शभाष अॊकर की भौत

अरुण मादव

26

चभक धूऩ की

कुभाय क्जनेश शाह

32

नमा भकान

याकेश दफ ू े

35

फस महीॊ तक

भॊजकूय आरभ

39

तूॊपान के फाद

अजम कुभाय दफ ू े

44

भहासभरन

सनत कुभाय जैन

47

अऩनी दसु नमा

सुनीता सृत्रद्श

50

सय का पोन कॉर

टदवाकय घोष

54

प्रेभ-कथा

सॊदीऩ अवस्थी

58

इस भोड़े ऩय

धभेन्ि कुभाय

61

अधूयी यात के ऩूये सऩने

दग े ससॊह ु श

69

नई सड़ेक

वसशता

72

कोख

अनीता ऩॊडा

77


सहमािा एक द:ु स्वप्न

श्माभनायामण कुॊदन

81

सचटडमाघय

भनोज सतवायी

83

ग्रे शेड

त्रवत्रऩन चौधयी

86

कुकीचे

उषा शभाष

89

तुम्हं माद हो टक न माद हो

गुॊजेश कुभाय सभश्र

93

साहफ का कभया

सुनीर बट्ि

98

त्रवडम्फना, फहन

क्जतेन

103

कैरेण्डय ऩय..., त्रवसॊगसत, टपय बी...

प्रदीऩ क्जरवाने

104

तेये शहय भं, भं नहीॊ सभरूॉगा, उसकी गरती

ब्रजेश कुभाय ऩाॊडेम

105

हभायी आग, सॊजम की...,दहक, नावं, सुकत्रव का...

टदरीऩ शासम

106

वे रोग कौन थे, खफय

याहुर झा

107

वाताषओॊ की..., झूठ, ऩूयक, आत्भस्वीकृ सत,

कजष कुभाय

108

सवार-जवाफ, प्रेभ भं रड़ेकी

प्रऻा गुद्ऱा

109

कुछ कत्रवताएॉ...

असबषेक'

111

अशुब, सचट्ठी, सभम से..., सभ्मता-सभीऺा

प्रबाकय ससॊह

111

जीवन, जीवनयाग, उदास रड़ेकी

वॊदना शाही

112

फच्चे नहीॊ जानते, सीतापर का ऩेड़े

आशीष दशोत्तय

113

मह आॊजभगढ़े है

सुजीत कुभाय ससॊह

114

घय

शशाॊक शेखय

116

जादग ू य, क्जन्दगी... अधछे ड़ेू करभ अस्भुयायी

नॊदन सभश्र भधुकय

116

असगनऩाखी, ऩत्थय

चॊिकाॊत ससॊह

117

फॊद घड़ेी

याजेश कुभाय

117

गाॉधी-जमन्ती भनाई गोडसं ने

वेद सभि शुसर 'भमॊक'118

भृगतृष्णा, रौि आने तक

सॊतोष श्रेमॊस

सॊस्काय की थैरी, इन्तजाय

त्रप्रमोवसत सनड.व्थंजा 119

ऩंटिॊ ग, त्रऩता, औयत..., सचटड़ेमा, फूढ़ेा...

भॊजुश्री वभाष

कत्रवताएॉ

118 119


ख्वाफं के जॊगर भं

सैमद जैगभ इभाभ

121

कुछ कत्रवताएॉ...

आशा तनेजा

121

प्रेभ कयने..., तीसयी नस्र..., छामाप्रसत

अनाय ससॊह वभाष

122

याजकुभायी : कुछ कत्रवताएॉ

नीयज दइमा

123

ऩमाषमवाची नहीॊ, औय बी दोस्त

उस्भान खान

124

अऩनी जड़ें

रुसचका अग्रवार

125

भेयी दादी

नवनीत कुभाय झा

125

एक अदद आदभी, आभ फात

टकयण सतवायी

125

गुटड़ेमा की हॉ सी

टहना जयीन

126

सॊसद का ऩता

प्रबात कुभाय झा

126

भं नहीॊ जन्भी, कैसे कहूॉ

चारु चॊचर

127

उदष ू जगत

नई कहासनमाॉ, नई नस्र

भुशयं प आरभ जौकी 128

कुछ नोट्स अनास्था के जॊगर भं आस्था की खोज

आनॊद वर्द्ष न

131

दष्ु चक्र भं कत्रवता

फोसधसत्व

133

गुनगुनाती दऩ ु हयी भं...

ससर्द्ाथष शॊकय

137

बयत प्रसाद

140

अयत्रवन्द श्रीवास्तव

144

ताना-फाना नमा, नमा नहीॊ है ब्रॉग सशराओॊ को तयाशती छे सनमाॉ

बीतयी ये खाॊकन : जमॊत, शहॊ शाह आरभ, गोत्रवन्द, ससर्द्े द्वय, त्रफजधावने, ऩयदे शी आवयण: जमॊत, ग्राभ ऩोस्ि ससकरयमा, सासायाभ, त्रफहाय कम्प्मूिय सज्जा : हयीश चन्ि जोशी - 09650463001


सॊवाद इस्राइर-टपसरस्तीन सॊघषष आज सफसे नाजुक औय िासद दौय से गुजय यहा है । त्रवडॊ फना दे क्खए, टक त्रवद्व शाॊसत के तथाकसथत ठे केदाय अभेयीका तथा ऩक्द्ळभी दे श भानवीम भूल्मं को ताक ऩय यखकय अऩने सनटहत स्वाथं के सरए इस भुद्दे ऩय खुरकय याजनीसतक खेर, खेर यहे हं । ऐसे सभम भं 'एभोस ओज' सयीखे यचनाकायं के सहाये मह उम्भीद क्जॊदा है टक भानव इसतहास की इस जटिरतभ सभस्मा को सुरझाना कटठन है , असॊबव नहीॊ। महूदी औय टपसरस्तीनी, दोनं

सभुदामं की सॊवेदनाओॊ को झकझोयती उनकी भभषस्ऩशी यचनाएॉ सनस्सॊदेह भॊथय गसत से ही सही, ऐसा भाहौर तैमाय कय ऩाएॉगी क्जससे सारं रॊफे चरे इस खूनी सॊघषष ऩय त्रवयाभ रगाने भं सपरता सभर सकेगी तथा शाॊसत व सौहादष कामभ हो सकेगा। मुवा ऩीढ़ेी के रेखकं द्राया अऩनी कच्ची-ऩसकी बाषा भं टकए जा यहे यचनाकभष को एक त्रवस्तृत परक प्रदान कय 'ऩरयकथा' ने साहस का ऩरयचम टदमा है । साधुवाद स्वीकाय कयं । फादशाह हुसैन रयजवी की कहानी 'दहशतगदी', गुजयात भं घटित इशयतजहाॉ भुठबेड़े काॊड की माद टदरा गई। मह कहानी भ्रद्श, स्वेच्छाचायी तथा नकाया हो चुकी ऩुसरस व्मवस्था की ऩोर खोरती है । '' सुशाॊत सुत्रप्रम की कहानी 'दोस्त की डामयी' त्रवचायोत्तेजक है । सभाज औय दसु नमा के आड़े​े -सतयछे सनमभं एवॊ रयवाजं की वजह से सीधा तथा सुरझा हुआ सुधाकय टहरा हुआ भारूभ ऩड़ेता है । सच भासनए तो ऩूयी दसु नमा ही टहरी हुई है औय अऩनी जड़े​े आऩ खोदने भं रगी है ।

हफीफ साहफ ने अऩनी ऩूयी क्जॊदगी रोक नािकं को सभत्रऩषत कय दी। प्रमोगधसभषता की अद्भत ु

ऊॉचाईमं ऩय रोक वेश-बूषा, रोक वाद्यं, रोक कराकायं तथा रोक जीवन के फहु-त्रवत्रवध यॊ गं से यॊ गे उनके नािकं ने बायतीम यॊ ग-भॊच को रोक यॊ ग भं सयाफोय कय टदमा। नीयज झा भधुफनी, त्रफहाय 'ऩरयकथा' का नवम्फय-टदसम्फय अॊक सभरा। आबाय। इधय कई अॊकं से 'ऩरयकथा' फेहतय होती जा यही है । इसके सरए आऩको फधाई। काभतानाथ की कारकथा, जात्रफय हुसैन का फ्रावय नुक, एसशमाई सॊस्कृ सत ऩय शॊबुनाथ का रेख औय सजषकं का प्रेऺाग्रह 'क्जतेन्ि बाटिमा' अॊक को सॊग्रहणीम फना यहे हं । कत्रवता सॊग्रह हो मा कहानी सॊग्रह हो अथवा रेखं की ऩुस्तक हो, सनन्मानवे प्रसतशत सभीऺाएॉ प्रशॊसात्भक ही सरखी जा यही हं क्जनके ऩढ़ेने का कोई भतरफ नहीॊ है । श्री प्रकाश शुसर के कत्रवता सॊग्रह ऩय वसॊत त्रिऩाठी की सभीऺा फेहद ऩसॊद आई समंटक सभीऺा कत्रव को नहीॊ कत्रवता सॊग्रह को ऩढ़ेकय सरखी गई है ।


नये न्ि ऩुण्डयीक डी.एभ. कॉरोनी, ससत्रवर राइन, फाॉदा 'नवम्फय-टदसम्फय 2009' अॊक सभरा। सफसे ऩहरे 'शॊक्ख्समत' के अॊतगषत डॉ. शॊबु गुद्ऱ द्राया सरक्खत रेख 'बायतीम रोक की टकसानी सभझ' ऩढ़ेा। गुद्ऱ जी ने श्री अजुन ष कत्रव के दोहं ऩय त्रवस्ताय से सरखा है । ऺेिीम शब्दं के कायण कुछ दोहे सभझ भं नहीॊ आए। टपय श्री अजुन ष कत्रव ने क्जस तयह अऩने जीवनानुबवं का सनचोड़े दोहं भं उतया है , वह उल्रेखनीम है । दोहा एक सशक्त काव्म रूऩ है । इसभं सभकारीन जीवन मथाथष बी आ यहा है । टपय समं प्रसतत्रद्षत ऩत्रिकाएॉ इससे ऩयहे ज कय यही हं ? आशा है 'ऩरयकथा' दोहं को बी स्थान दे गी। गोत्रवन्द सेन याधायभण कॉरोनी, भनावय, क्जरा धाय (भ.प्र.) 'ऩरयकथा' का नवम्फय-टदसम्फय 2009 अॊक सभरा। आऩने भेयी एक कत्रवता प्रकासशत कय भुझे उऩकृ त टकमा है । भगय मह सभझ भं नहीॊ आमा टक इतनी सायी (रगबग 6-7) कत्रवताएॉ बेजने के फाद बी आऩने केवर एक कत्रवता प्रकासशत की। समा कायण हो सकता है ? दस ू यी फात समा भेया ऩरयचम मही है टक भं एक ये रवे-कभी बय हूॉ। कत्रवता औय साटहत्म को इतने वषष दे ने के फाद बी समा भेया मही ऩरयचम है ? समा मह भेये साटहक्त्मक व्मत्रक्तत्व के साथ इॊ साप है ?

कहासनमाॉ औय आरेख अच्छे रगे। खासकय 'नॊजाया दयसभमाॉ', 'फ्रावयनुक', 'टहयोसशभा का अॊधेया, योशनी औय...' 'सभकारीन टहन्दी ससनेभा भं स्त्री जीवन' औय 'कत्रवता का फहुरतावाद' अच्छे रगे। कत्रवताएॉ बी अच्छी हं ।

नवरेखन की उम्र सीभा समा है ? आऩने स्ऩद्श नहीॊ टकमा है । सुयेन्ि दीऩ 89293, फॉगुड़े ऩाकष, रयसड़ेा (ऩ.फॊ.) अॊधेये की दीवाय को ढहाते हुए पैरते उजारे से ओत-प्रोत 'ऩरयकथा', नवम्फय-टदसम्फय अॊक का

आवयण, सुषभा ससन्हा द्राया टकमा गमा एक सयाहनीम करात्भक प्रमास है । उन्हं साधुवाद! इस करात्भक आवयण भं सरऩिी सभकारीन सृजनात्भक टक्रमाशीरता की झरटकमाॉ तृसद्ऱदामक यहीॊ। कथा डामयी भं जात्रफय हुसैन साहफ की 'फ्रावय-नुक' कहानी के सरफास भं एक कत्रवता है । दो

सॊवेदनशीर प्रेसभमं के भौन प्रेभ के इदष -सगदष ससभिी मह कहानी गहये छूती है । हसन जभार की कहानी 'अॊदय खाने' भुक्स्रभ सभाज भं ससस्िभ के प्रसत व्माद्ऱ ऩूवाषग्रहं को टदखाती है । इसके अरावा इसतहास के ऩन्नं से सनकार कय राई गई भेयी त्रप्रम रेक्खका कुयष तुर ऐन है दय की


कहानी 'नॊजाया दयसभमाॉ' ऩढ़ेना एक त्रवसशद्श अनुबव यहा। आऩसे अनुयोध है टक ऐनी आऩा की सवाषसधक चसचषत यचना 'आग का दरयमा' को 'ऩरयकथा' भं टकस्तं भं छाऩने का कद्श कयं । उम्भीद है ऐसा कयना आऩके सरए दष्ु कय नहीॊ होगा।

'श्माभ फेनेगर की टपल्भं औय नायी अक्स्भता' एक फेहतय प्रमास है क्जसे फेहतयीन फनामा जा सकता था। इस आरेख भं रेखक के अॊदय आत्भत्रवद्वास की कभी झरकती है । भुझे रगता है भुकेश कुभाय भं कापी सॊबावनाएॉ हं । प्रमास कयते यहं । नीयज झा, भधुफनी, त्रफहाय 'ऩरयकथा' का अगस्त-ससतम्फय 2009 अॊक ऩढ़ेा। 'ऩरयकथा' भं त्रवचाय औय यचनात्भकता का सॊतुरन औय वैत्रवध्म सनयन्तय फढ़े यहा है । एक अच्छी ऩत्रिका के सरए मह शुब सॊकेत है । इस अॊक भं बी रगबग सबी यचनाएॉ अच्छी हं । कहासनमाॉ रगबग सबी ऩठनीम हं । टदनेश कुभाय शुसर, भोहन कुभाय डहे रयमा औय शसशबूषण फड़ेोनी की कत्रवताएॉ आकत्रषषत कयती हं । 'भुराकात' स्तम्ब भं आनॊद वधषन का सॊस्भयण अच्छा है । मह ऩयाए दे श की साॊस्कृ सतक ऩहचान के साथ ही इस फात के बी सॊकेत हं टक औय दे शं के याजनीसतऻं भं याजनीसत के साथ ही साटहत्म औय सॊस्कृ सत की गहयी सभझ बी है । बयत प्रसाद का 'ताना-फाना' अॊक कीत्रवसशद्श यचना है । क्जस तयह से बयत प्रसाद यचनाओॊ को त्रवद्ऴेत्रषत कयते हं , उससे एक नई आरोचना दृत्रद्श के त्रवकास का ऩता बी चरता है । 'मुवा रेखन त्रवभशष' के अन्तगषत तीनं रेख साभसमक हं , त्रवशेषकय शॊबुनाथ औय शॊबु गुद्ऱ के रेख मुवा रेखन के फहाने टहॊ दी कहानी के नमे मथाथष के सन्दबं भं फहुत त्रवद्ऴेषणात्भक ऩड़ेतार हं । जानकारयमाॉ हंमा सनष्कषष, अथवा टपय सभम सन्दबं भं सृजनात्भकता की ऩड़ेतार, इन दोनं आरोचकं ने फहुत प्रभाक्णकता से त्रवद्वसनीम सरखा है । ऩय इस सुगटठत अॊक भं एक कभजोयी बी है , उसभषरा सशयीष द्राय कभराप्रसाद का सरमा गमा इॊ ियव्मू। फेहद साभान्म से

रगबग चरताऊ प्रद्लं के अकादसभक उत्तय हं । एक आरोचक औय सॊऩादक से इॊ ियव्मू रेने के सरए जो ऩूवष तैमायी होनी चाटहए, उसका ऩूये इॊ ियव्मू भं अबाव है । फनाविी औय गढ़े​े गए प्रद्लं के कायण कभराप्रसाद के जवाफ बी अरसाए औय अस्वाबात्रवक हं । उसभषरा सशयीष का कथन है टक कभराप्रसाद के वसुधा के सम्ऩादकीम प्राम: चचाष भं यहते हं औय फहस छे ड़ेते यहते हं । रेटकन उसभषराजी ने वसुधा के एक बी सम्ऩादकीम का उदाहयण नहीॊ टदमा क्जसने साटहत्म जगत भं फहस छे ड़ेी हो। कभराप्रसाद जी फेहद सीधे-सादे औय सयर व्मत्रक्त हं । उनके सम्ऩादकीम बी रगबग वैसे ही है । उसभषरा जी ने वसुधा के सम्ऩादकीम को फहस तरफ मा चसचषत फताकय कभराप्रसाद जी की सम्ऩादक छत्रव को दत्रु वधा भं ही डारा है । फहस ऩैदा कयना कभराप्रसाद जी के स्वबाव का टहस्सा नहीॊ है ।

इस ऩूये इॊ ियव्मू भं कभराप्रसाद जी के आरोचक, सॊऩादक औय प्ररेस के याद्सीम भहाससचव की


छत्रव को ध्मान भं यखकय सभम सन्दबं से सम्फर्द् कोई प्रद्ल नहीॊ है । चॉटक इस तयह के त्रवद्ऴेषणात्भक औय साभाक्जक प्रद्ल नहीॊ थे तो जाटहय है टक जवाफ बी अऩने सभम की वैचारयकी औय सृजनात्भकता से किे हुए यहे । जो कभराप्रसाद जी को नहीॊ जानते हंगे उनके सरए तो मही सॊदेश गमा होगा टक कभराप्रसाद आरोचना, ऩयम्ऩया औय सृजनात्भकता के अन्तसषम्फॊधं से

अनसबऻ हं । इॊ ियव्मू फहुत ही अहोबाव से सरमा गमा है । रगबग गदगद होकय। इॊ ियव्मू हभेशा एक भुठबेड़े की बाॉसत होना चाटहए क्जससे एक रेखक क्जतना ससभिा, सकुचामा, चोयी-सछऩे

अऩने बीतय फैठा है , फाहय आ जाना चाटहए। अऩनी सम्ऩूणष ताकत औय कभजोरयमं के साथ उसे प्रस्तुत कय दे ना चाटहए। इस इॊ ियव्मू भं एक आरोचक औय यचनाकाय के ऩयस्ऩय यचनात्भक सम्फन्ध, आरोचकीम द्रन्द्र, वसुधा को रेकय सम्ऩादक की दृत्रद्श, उसके दासमत्व, साथ ही प्ररेस को रेकय उनके साॊगठसनक प्रमास, अन्तकषरह औय इन सफके फीच व्मत्रक्त कभराप्रसाद औय आरोचक, सम्ऩादक औय भहाससचव कभराप्रसाद की बूसभका उनके अन्तद्रष न्द्र उनकी सपरताएॉ, असपरताएॉ मह साया कुछ दफा यह गमा। फहयहार ऩि कोई आऺेऩ नहीॊ है । एक अच्छी ऩत्रिका भं सॊऩादक, यचनाकाय सबी से मह अदे खी कैसे हो गई? इस फात को रेकय टकॊसचत अचयज है । उम्भीद है इसे व्मत्रक्तगत रेकय अन्मथा नहीॊ रंगे औय ऩत्रिका के सन्दबष भं उदाय होकय दे खंगे। डॉ. याधेश्माभ कभाष 124, सतरक ऩथ, खयगोन (भ.प्र.) वषष 2009 का अॊसतभ अॊक अऩने रूऩ-यॊ ग के साथ-साथ अऩने यचनात्भक चमन भं बी अटद्रतीम रगा। फगैय सॊऩादकीम के मह अॊक कुयष तुर ऐन है दय (नॊजाया दयसभमाॉ) के साथ इच्छाऩूसतष (तयसेभ गुजयार), अॊदय खाने (हसन जभार), सौदा (नसीभ साकेती), टहसाफ (याभाशीष), ऩुतरा (भोहन रार ऩिे र), चॊदा (हरय टदवाकय) की कहासनमं से सजी शब्दं की मह फायात 'ऩरयकथा' वाकई अऩने सभशन से आगे फढ़े गई है । आज साटहक्त्मक ऩत्रिका का एक अॊक सनकारना फेिी ब्माहने जैसा है । आऩ चुनौती बया काभ कय यहे हं औय कुछ रोग हं टक इसभं बी कीर सनकार यहे हं ...। गॊबीय रेखं भं डॉ. शॊबुनाथ का रेख कई भुद्दं को अऩने दामये भं सभेिे हुए है , इतने त्रवषमं को एक साथ गूॊथ कय कभ सरखा जा यहा है । इससे रेखक के सभाज-सॊसाय भं पैरी त्रवसॊगसतमं के प्रसत सचॊसतत भन का ऩता चरता है । सुयेन्ि दीऩ की छोिी-सी कत्रवता 'वह ऩि की तयह आमा', एक फड़े​े कैनवास की कत्रवता रगी। इस अॊक की कहासनमं भं दो कहासनमं का उल्रेख कयना चाहूॉगा। एक जात्रफय हुसैन की कहानी

'फ्रावय नोक' औय दस ू यी नसीभ साकेती की 'सौदा'। 'फ्रावय नोक' जहाॉ असत योभानी औय बावुक फना दे ने वारी कहानी है , वहीॊ 'सौदा' आज की सफसे फड़ेी सभस्मा फाॊजायवाद ऩय प्रसतवाद भं


अटडग त्रवचाय ऩय फहुत ही फेहतय ठोस कहानी है । क्जस बूसभ की कहानी सौदा है उसकी बाषा

बी कथाकाय ने वैसी ही गॊवई बेष भं प्रस्तुत की है । इससे कहीॊ-कहीॊ प्रेभचॊद का आबास होता है । मह जुफान की चाशनी कहानी को औय आकषषक फनाती है । आद्ळमष औय खुशी की फात है टक रखनऊ भं फैठा रेखक सॊसाय भं हो यहे भशीनीकयण का त्रवयोध ऩक्द्ळभ फॊगार के नन्दी ग्राभ की ऩृद्षबूसभ से प्रबात्रवत होकय कयता है औय हभ 'टहन्दी के फॊगारी' रोग केवर ऩढ़े यहे हं ...। मह वषष 'टहन्द स्वयाज' के प्रकाशन का शतवषष बी है , क्जसभं फाऩू ने भशीनीकयण का घोय त्रवयोध टकमा है , इसका उल्रेख डॉ. शॊबुनाथ ने बी टकमा है । इससरए 'सौदा' का औय भहत्व फढ़े जाता है । नसीभ साकेती को इसके सरए फधाई औय सॊऩादक भॊडर का आबाय टक उन्हंने हभ तक इसे ऩहुॉचामा।

डॉ. सेयाज खान फासतश 3-फी, फॊगारी शाह वायसी रेन, दस ू या तल्रा फ्रैि नॊ. 4, क्खटदयऩुय, कोरकाता

'ऩतझड़े की फेरा भं आय.के. स्िू टडमो' अऩनी ही त्रवयासत औय भहत्वऩूणष धयोहय को भटिमाभेि कय दे ने की िासद-कथा कहता आरेख है । रूभासनमत औय पॊतासी के यॊ ग-योगन के भध्म बी आभ आदभी के दख ु -ददष को, गयीफ, भॊजरूभ औय भेहनतकश भजदयू ं की आवाज को, क्जसे

ख्वाजा अहभद अब्फास की खाॊिी भया ् ाससवादी करभ गढ़ेती थी, याज कऩूय तथा याधू कयभाकय

अऩने सनदे शन औय ससनेभॉिोग्रापी से प्राणवान कय दे ते थे, टहन्दी ससनेभा की त्रवयासत हं , क्जनसे टकतने टपल्भकायं ने टकतना कुछ सीखा-सभझा। इसको (आय.के. स्िू टडमो) सहे जने भं क्जस कदय फेरुखी औय उदासीनता फयती जा यही है वो अॊदय तक टहरा कय यख दे ती है ।

तेजबान याभ ने 'सभकारीन टहॊ दी ससनेभा भं स्त्री जीवन' के फहाने सभकारीन टहन्दी टपल्भकायं की अधकचयी सभझ को कोसते हुए उनके व्मावसासमक नजरयए को, नायी की छत्रव को फदरने भं ससनेभा की अऩनी जो अहभ बूसभका हो सकती थी उससे त्रवपर यह जाने का कायण भाना है ।

तेजबान याभ औय भुकेश कुभाय (श्माभ फेनगेर की टपल्भं औय नायी अक्स्भता की तराश) की स्त्री जीवन ऩय आधारयत भहत्वऩूणष टपल्भं की (क्जनभं स्त्री-चरयि के त्रवत्रवध ऩहरुओॊ का सभम साऩेऺ औय मथाथष-ऩयक त्रवद्ऴेषण टकमा गमा है ) सभीऺाएॉ पेहरयस्त भाि नहीॊ हं फक्ल्क टहन्दी ससनेभा के प्रफुर्द् दशषकं के सरए भागषदसशषका का काभ कयं गी। एसशमाई सॊस्कृ सत को त्रवसशद्श रूऩ भं दे खने औय टदखाने के प्रमास का नाभ है 'एसशमाई सॊस्कृ सत : भहानता, अॊतत्रवषयोध औय चुनौसतमाॉ'। अऩने नाभ के ही अनुरूऩ मे आरेख एसशमाई सॊस्कृ सत के गरयभाभम इसतहास भं उरझकय नहीॊ यह जाता है । एसशमाई सॊस्कृ सत भं जो कूऩभॊडूकता व्माद्ऱ हो


गई है उसे बी साभने यखता है । मटद मे कहूॉ टक एसशमाई सॊस्कृ सत क्जस धभोन्भाद के चॊगुर भं

पॊस कय अऩने भूर तत्वं मा भूर गॊतव्म से बिक गई है , उन भूर तत्वं से ऩुनसंवाद स्थात्रऩत कयने की एक ऩहर की है शॊबुनाथ ने, तो ज्मादा तकषसॊगत होगा। याभत्रवरास शभाष, पैज अहभद पैज, प्रेभचन्द औय याभचन्ि शुसर के त्रवचायं को उर्द्त ृ कयते हुए उन्हंने ठीक ही कहा है टक ''एसशमाई सभाजं भं फढ़ेती खुदगजी औय टहॊ सा सनद्ळम ही ऩक्द्ळभ के उग्र-व्मत्रक्तवाद की

प्रसतध्वसनमाॉ हं ?'' रेटकन उनका साॊस्कृ सतक अध्ममन एकाॊगी नहीॊ है समंटक वे दस ू यी तयप मे बी स्वीकायते हं टक ''ऩक्द्ळभी सभाजं भं बी सॊवेदनशीरता औय नयभ रुख है औय एसशमाई सभाजं भं बी फफषयता औय सख्त चीजं हं ।'' मे कथन मही दशाषता है टक रेखक फड़ेफोरेऩन का सशकाय होने से फचते हुए भानवता के टहत भं अऩना मोगदान दे यहे हं । टहन्दी के सगने-चुने तथ्मऩयक, भानवीम औय साॊस्कृ सतक सॊवेदना से ओतप्रोत आरेखं भं शुभाय होने की कूवत यखता है मे

आरेख। साटहत्मकाय होना ही अऩने आऩभं एक फहुत फड़ेी चुनौती है । भं ऐसा समं कह यहा हूॉ इसका साक्ष्म है क्जतेन्ि बाटिमा द्राया प्रस्तुत कंजाफुयो ओए औय उनके फेिे टहकायी की अद्भत ु

गाथा। ाॊक्जन्दगी के अॊधेये से अॊत तकरड़ेते यहने वारे कंजाफुयो ओए सचभुच उन डॉसियं की सराह भानकय अऩने जीवन को आसान कय सकते थे ऩय क्जतेन्ि बाटिमा सचकहते हं टक वे तफ जीवन की असॊख्म टदव्म सॊबावनाओॊ से वॊसचत यह जाते। साटहत्मकाय समा ऐसा सनभषभ हो सकता है टक अऩनी सॊतान से इससरए भुत्रक्त ऩा रे टक वह टदभागी रूऩ से फासधत है औय उसके ऐसा होने भं उसका अऩना कोई दोष नहीॊ है । इस भासभषक औय प्रेयक कथानक की प्रस्तुसत के सरए त्रवशेष धन्मवाद!

त्रवद्रत सभाज की नऩी-तुरी िकसारी बाषा के प्रसतकूर अनगढ़े औय नैससगषक बाषा के कत्रव जो दोहे सरखते नहीॊ कहते हं अजुन ष कत्रव। उन जैसे सादा, सहज औय सुगभ कत्रव को कफीय, यै दास औय यसखान ही नहीॊ सबखायी ठाकुय औय डाक कत्रव की श्रेणी का असखड़े-पसकड़े औय ठं ठ गॊवईं आवाज का कत्रव कहा जा सकता है , जैसे नागाजुन ष थे। कौन कह सकता है टक टहन्दी भं जन कत्रव अफ नहीॊ यहे । कभ से कभ अजुन ष कत्रव को ऩढ़ेने के फाद तो इस धायणा को िू िना ही ऩड़े​े गा। 'बायतीम रोक की टकसानी सभझ' के भापषत एक अद्भत ु शक्ख्समत से बंि कयवा दी शॊबु गुद्ऱ ने।

'नॊजाया दयसभमाॉ' न ससपष भुहब्फत ऩय दौरत की जीत की दास्तान है फक्ल्क सॊसुस्कृ सत ऩय अऩसॊस्कृ सत की त्रवजम-कथा बी है । इस कहानी को ऩढ़ेकय सहज ही मे अहसास होता है टक ऐनी आऩा हद दजे तक बायतीम सॊस्कृ सत, बाषा औय तहजीफ की किदान थीॊ। उनकी इन ऩॊत्रक्तमं को ऩढ़ेने के फाद कोई बी उनकी बावनाओॊ का कामर हो जाएगा ''कुछ रड़ेटकमाॉ क्जन्हंने हार भं पैशन ऩये ड भं बाग सरमा था, जोय-जोय से टकसी त्रवषम ऩय चचाष कय यही थीॊ। मह सायी रड़ेटकमाॉ क्जनकी भातृबाषा उदष ,ू टहन्दी, गुजयाती


औय भयाठी थी केवर अॊग्रेजी फोर यही थीॊ।'' आऩसे औय भॊजय करीभ से मे गुजारयश है टक कुयष तुर ऐन है दय की अन्म कहासनमं का तयजुभा अगरे अॊकं भं बी दं । तयसेभ गुजयार की कहानी आज की हॊ कीॊकत फमान कयती है । जहाॉ आभ आदभी सतकड़ेभी भरॊग फाफा के प्रऩॊच का सशकाय केवर इससरए फनता है टक वो अऩनी सायी सभस्माओॊ का सनदान झोरिॊ गी फाफाओॊ के आशीवाषद से ही प्राद्ऱ कय रेना चाहता है । आभ जनजीवन भं व्माद्ऱ अॊधत्रवद्वास को बुनाने वारे मे भरॊग फाफा रोग टकस दजे तक टपयॊ ि होते हं मे ही इस कहानी का भजभून है । इस कहानी का सफसे दमनीम टकयदाय है कोभर क्जसे फेवजह अऩने दटकमानूस ऩसत का कोऩबाजन फनना ऩड़ेता है । कोभर के सवार के रूऩ भं सत्ती के मे शब्द ''कसूय मही है टक तुभ औयत हो औय तुम्हं ऩेि भं आदभी का फीज ही नहीॊ उठाना, गासरमाॉ औय आयोऩ बी उठाने हं '' टदर टदभाग की ग्रक्न्थमं को कुये द कय यख दे ते हं । अॊक की अन्म कहासनमाॉ बी सभसाभसमक औय भनोनुकूर हं । क्जतेन्ि श्रीवास्तव, फसॊत िीऩाठी औय नीयज खये की ऩुस्तक सभीऺाएॉ इन ऩुस्तकं के प्रसत रुझान को उसी तयह फढ़ेा यही हं जैसे प्रज्वसरत अक्नन को घी। नवनीत कुभाय झा गौयाॊग बवन, आदशष कॉरोनी, भधुफनी (त्रफहाय) 'ऩरयकथा' का ऩाठक कापी सभम से हूॉ ऩयॊ तु ऩि सरखने का ऩहरा अवसय है ।

नवॊफय-टदसॊफय अॊक भं याजेन्ि याजन ने ऩतझड़े की फेरा भं आय.के. स्िू टडमो की सैय कयाई है , वह फहुत ही योचक रगी हाराॉटक वह ठीक दो वषष ऩुयानी है । अफ तक तो उसकी दशा औय बी जजषय हो चुकी है ।

व्मत्रक्तगत रूऩ से इस वषष भंने याजकऩूय की वे सबी टपल्भं ऩुन: दे खी जो फचऩन भं सथमेिय भं दे खी थी।

याजेन्ि याजन जी ने 'आवाया' औय श्री 420 के उस दृश्म की फात की क्जसभं ऩूया गाना ही स्िू टडमो के बीतय शूि टकमा गमा था औय इसके साथ ऩाॉचवे दशक भं ही एक नई तकनीक का प्रमोग टकमा गमा, सबी मादं को ताॊजा कय गमा। भदन गुद्ऱा सऩािू 196, सेसिय-20A, चॊडीगढ़े 'ऩरयकथा' का नवम्फय-टदसम्फय 2009 अॊक ऩढ़ेने ऩय रगा टक कोई साटहक्त्मक ऩत्रिका ऩढ़े यहा हूॉ वयना साटहक्त्मक ऩत्रिकाओॊ

के नाभ ऩय कुछ उॊ गरी ऩय सगनी जाने वारी ऩत्रिकाओॊ को

छोड़ेकय कई नाभचीन ऩत्रिकाएॉ बी साटहत्म के नाभ ऩय जाने समा-समा अप्रासॊसगक व्मथष की चीजं ऩयोस यही हं । महाॉ तक की सभ-साभसमक सभस्माओॊ से भुॊह भोड़े कय ऑॊखं फॊद कय के रैरा-भजनू, हीय-याॊझा, शीयीॊ-पयहाद, नर-दभमॊती आटद को दफ ु ाया ाॊक्जन्दा कय के ''योभ जर


यहा है औय नीयो फॊशी फजा यहा है '' की कहावत को चरयताथष कय यही हं समंटक उनकी नजयं तो व्मावसासमकता ऩय कंटित हं , साटहत्म तथा ज्वरॊत सभस्माओॊ से उन्हं समा रेना-दे ना, जफटक 'ऩरयकथा' व्मावसासमकता से कोसं दयू रगती है जैसा टक उसकी साभग्री से ऩरयरक्ऺत होता है । उदाहयणाथष आरेखं तथा कहासनमं का चमन दृद्शव्म है । कहासनमं भं 'नॊजाया दयसभमाॉ', 'ऩुतरा', 'इच्छाऩूसतष' तथा 'सौदा' ने प्रबात्रवत टकमा। इनभं क्जसने असधक प्रबात्रवत कयके भानससक तथा आक्त्भक सॊतुत्रद्श का एहसास कयामा वो कहानी है नसीभ साकेती की 'सौदा' क्जसभं एक साभसमक ज्वरॊत सभस्मा को उजागय टकमा गमा है । हभाया दे श कृ त्रष प्रधान दे श है । इसी से 'सोने की सचटड़ेमा' का ताज इसके ससय ऩय यखा गमा था रेटकन आज सयकायं जाने समं उस ताज को धूर-धूसरयत कयने भं रगी हं । हभायी सोने जैसी कृ त्रष मोनम बूसभ को दे शी-त्रवदे शी कॊऩसनमं को उद्योग रगाने के सरए दे ने ऩय आतुय हं । रेखक ने फड़ेी सिीक तथा तकषसॊगत फात कही है 'अगय सयकाय दे शी-त्रवदे शी कम्ऩसनमं को बूसभ दे ना ही चाहती है तो याघव ऩुय की हजायं एकड़े फॊजय बूसभ समं नहीॊ दे ती है ...?' 'उद्योग रगाए जाएॉ रेटकन कृ त्रष-मोनम बूसभ ऩय नहीॊ।' ससॊगुय भं इसी सभस्मा को रेकय हजायं टकसानं को अऩनी जान से हाथ धोना ऩड़ेा। ऐसी सशक्त कहानी के रेखन तथा सम्ऩादन के सरए श्री नसीभ साकेती तथा आऩको ढ़े​े य सायी फधाइमाॉ, इस काभना के साथ टक बत्रवष्म भं साभसमक ऩरयवेश की सभस्माओॊ को उजागय कयने वारी कहासनमाॉ ऩढ़ेने को सभरंगी। 'सौदा' कहानी फहुत टदनं तक माद की जाएगी।

कथा डामयी के अॊतगषत जात्रफय हुसैन की फ्रावयनुक, शैरेम की कत्रवताएॉ, शम्बूगुद्ऱ, डॉ. त्रववेक श्रीवास्तव तथा बयत प्रसाद के आरेख ऩसॊद आए। डॉ. शैरेश, बयतऩुय 'ऩरयकथा' का नवम्फय-टदसम्फय 09 अॊक अन्म अॊकं की ही तयह ऩठनीम एवॊ प्रबावी है ।

काभतानाथ का उऩन्मास अॊश योचक है तथा ऩूये उऩन्मास के प्रसत उत्सुकता जगाता है । इस फाय इत्तेपाक से सबी कहासनमाॉ अच्छी हं । नसीभ साकेती की कहानी सवषथा नए तथा आज के ज्वरॊत त्रवषम ऩय है , अत: प्रशॊसनीम है । हरय टदवाकय की कहानी मऻ, जागयण तथा अन्म धासभषक आमोजनं के नाभ ऩय हो यही दक ु ानदायी तथा गुण्​्ई को दशाषती अच्छी यचना है । तयसेभ

गुजयार की कहानी बी इसी फात को दस ू ये ढॊ ग से कहती है । मद्यत्रऩ कहानी सऩाि औय अऩेऺाकृ त हल्की है टकन्तु उसका अॊत अच्छा है । हसन जभार ने एक किु सत्म को फहुत फेफाक ढ़ेॊ ग से कह टदमा है । इससरए वे फधाई के ऩाि हं ।

कत्रवताओॊ भं नये न्ि ऩुण्डयीक, शैरेम तथा सुयेन्ि दीऩ की कत्रवताएॉ ऩसन्द आईं। शॊबुनाथ का रेख फहुत गॊबीय, त्रवद्ऴेषणात्भक तथा सूचनाऩयक है । बयत प्रसाद का स्तम्ब हय फाय की तयह

फहुत ऩरयश्रभ औय सनष्ऩऺता से तैमाय टकमा गमा है । मह स्तम्ब 'ऩरयकथा' का असनवामष अॊग-सा हो चुका है । याजेन्ि याजन का रेख बी फहुत योचक है तथा अतीत की ढे यं जानकारयमाॉ दे जाता


है । कुर सभरा कय मह अॊक सनयाश नहीॊ कयता। अक्खरेश श्रीवास्तव 'चभन' त्रिवेणी सनवास, सी-2, एच ऩाकष, भहानगय, रखनऊ 'ऩरयकथा' का नवम्फय-टदसम्फय अॊक इस फाय जल्दी सभर गमा, वयना फुक स्िार के कई चसकय व्मथष भं रगाने ऩड़ेते थे, आऩको फधाई। अॊक का कवय फहुत ही आकषषक फना है । साभग्री बी

उत्तयोत्तय अच्छी से अच्छी आ यही है , क्जसका श्रेम आऩ तथा 'ऩरयकथा' ऩरयवाय के ऩरयश्रभ को जाता है । कहासनमं का चमन अटद्रतीम है । कुतुर ष ऐन है दय की कहानी 'नॊजाया दयसभमाॉ' फेजोड़े कहानी है , रेटकन सफसे असधक प्रबात्रवत टकमा नसीभ साकेती की सशक्त कहानी 'सौदा' ने क्जसने हभायी कृ त्रष-मोनम बूसभ को दे शी-त्रवदे शी कम्ऩसनमं व सयकाय के स्वाथी चेहये को फेनकाफ टकमा है , ससॊगूय की घिना की माद आ गई। नसीभ साकेती को ऐसी सुन्दय कहानी सरखने के सरए फधाई। शैरेम की कत्रवताएॉ, नीयज खये , शॊबु गुद्ऱ तथा बयत प्रसाद के आरेख ऩसन्द आए। आगाभी अॊक भं शीघ्र सभरते यहं गे। आशुतोष, ऩुणे जात्रफय हुसैन साहफ की कथा डामयी का एक अरग आस्वाद है । कत्रवताभमी भानससक, बात्रवक

क्स्थसतमं भं ाॊजफयदस्त मथाथषगत नािकीमता। रेटकन कथा डामयी जैसा नाभकयण चंकाने वारा है जफटक इस कहानी भं कहानी, कत्रवता, नािक के तत्व तो हं रेटकन डामयी के नहीॊ। इससरए मह कथा डामयी है तो टकस प्रकाय से? आॊक्खय हसन जभार साहफ की कहानी 'अॊदयॊ खाने' कथा डामयी समं नहीॊ है ? ''बायतीम रोक की टकसानी सभझ'' के अॊतगषत डॉ. शम्बु गुद्ऱ ने दोहाकाय कत्रव अजुन ष का गहया भूल्माॊकन टकमा है । वे (कत्रव औय सभारोचक) सभकारीन कत्रवता भं असबव्मत्रक्त के ऐसतहाससक काव्म-सशल्ऩ को ऩुनप्रषसतत्रद्षत कयते हं औय साथ ही अक्स्भतावादी यचनाशीरता के सरए एक भानक औय दृत्रद्श दे ते हं । कत्रव अजुन ष के इन सहज, सयर दोहं के ऩाठ-सनधाषयण का मह प्रबाव यहा टक इस अॊक की असधकाॊश छन्दभुक्त कत्रवताएॉ अफूझ औय प्रबावहीन हो गईं। आय.के.

स्िू टडमो को रेकय याजेन्ि याजन जी ने जो भहसूस टकमा औय हभं कयामा वह ऋत्रष कऩूय जी को बी होगा, इसकी उम्भीद कय सकते हं । 'सजषकं का प्रेऺागृह' फहुत अच्छा है । चरते यहना चाटहए। केशव शयण

एस 2564, ससकयौर, वायाणसी


सॊऩादकीम दयू दयू की दस्तकं नवरेखन अॊक के ऩहरे (ससतम्फय-असिू फय, 07) औय दस ू ये (ससतम्फय-असिू फय, 08) क्रभ भं

नवरेखन की मह तीसयी कड़ेी आऩ सफके सभऺ प्रस्तुत है । जो मह भानते यहे हं टक भौजूदा

भाहौर भं नई ऩीढ़ेी साटहत्म औय करा को छोड़े अन्म दस ू ये ऺेिं की ओय उन्भुख है , साटहत्म

औय करा के ऺेि अफ उनके सयोकाय नहीॊ यह गए हं औय हय वषष नवरेखन अॊक सॊमोक्जत कयने के सरए ऩमाषद्ऱ भािा भं यचनाकाय जुि बी नहीॊ ऩाएॉगे, वे एक फाय टपय सही नहीॊ ससर्द् हुए हं ।

सच मही है टक जो सफसे ज्मादा सॊवेदनशीर, चेतना औय साभाक्जकता के फोझ से सम्ऩन्न हं , वे हय दौय की तयह इस दौय भं बी साटहत्म औय करा के ऺेि की ही ओय रुख कय यहे हं । हभने ऩहरे बी कहा है औय एक फाय टपय उसको दहु याने की जरूयत है टक सभाज की सफसे

ज्मादा सॊवेदनशीर औय चेतना-सम्ऩन्न इकाइमाॉ साटहत्म औय करा की दसु नमा को ही चुनती हं औय साटहत्म औय करा की दसु नमा भं जो सटक्रम यहते हं , वे ही सभाज की धुयी हं । सभाज का फहुत कुछ वे ही फनाते हं , सभम की तसवीय उनसे ही जीवन ऩाती है । मे सॊख्मा भं टकतने हं ,

इसके क्जतने भामने हं उतने ही भामने इनकी गुणवत्ता के हं । मे सभाज की धड़ेकने हं , मे सभम की साॊसं हं । मे न हं तो सभाज ऩत्थयं का ढे य फन जाएगा, मे न हं तो सभम कीचड़े की नदी फन जाएगा। साटहत्म की दसु नमा भं अऩनी साथषकता औय सटक्रमता की जभीन तराशने के सरए नई प्रसतबाएॉ

ससपष टहॊ दी प्रदे शं से ही नहीॊ, फक्ल्क दयू -दयू से दस्तक दे यही हं औय नवरेखन की धभक दयू -दयू से सुनाई ऩड़े यही है । इस अॊक के सरए ऩाॊटडचेयी से एस. यक्जमा फेगभ, गाॊधी धाभ (कच्छ) से कुभाय क्जनेद्वय साह औय सशराॊग से अनीता ऩॊडा की कहासनमाॉ प्राद्ऱ हुई हं जो अॊक भं शासभर

हं । इसी अॊक भं भक्णऩुय की त्रप्रमोफती सन्.थौजा की कत्रवताएॉ शासभर हं । मे यचनाएॉ इस फात का ऩता दे ती हं टक नई प्रसतबाएॉ अऩने सभम के फाये भं रगाताय सोच यही हं । वे फहुत कुछ

कहना चाहती हं औय जो कहना चाहती हं , उसे कहने के सरए एक छिऩिाहि से गुजय यही हं , एक फेचन ै ी से गुजय यही हं । फात ससपष इतनी है टक उन्हं असबव्मत्रक्त का कोई अवसय सभरे, उनकी यचना को कोई भॊच सभरे। नए यचनाकायं की यचनात्भक टक्रमाशीरता की इस क्स्थसत के भद्दे नजय साटहक्त्मक ऩिकारयता की क्जम्भेदायी की एक फाय टपय से चचाष जरूयी है । महाॉ 'सारयका' के नवरेखन अॊकं की माद आमे, मह फहुत राक्जभी है । हभ कभरेद्वय सॊऩाटदत 'सारयका' से इस आधाय ऩय टक वह एक

व्मावसासमक सॊस्थान का व्मावसासमक प्रकाशन था, सहभसत-असहभसत का बाव यख सकते हं


टकॊतु इस तथ्म को नजयअॊदाज कय ऩाना भुक्श्कर है टक उसके नवरेखन अॊकं ने कई जेनुइन यचनाकायं का साभने राने का काभ टकमा, क्जन्हंने कहानी की दसु नमा भं जीवॊतता का एक

भाहौर ऩैदा टकमा। 'वागथष', 'कथादे श' के नवरेखन अॊक इसी की अगरी कटड़ेमाॉ यहे हं । 'ऩरयकथा' नवरेखन अॊक को फहुत ही जरूयी भानकय इसे एक असबमान की तयह आगे फढ़ेा यही है ।

साटहक्त्मक ऩिकारयता का उत्कृ द्शतभ प्रसतभान तो मह होता टक ऐसी यचनाशीर प्रसतबाएॉ ढू ॊ ढी जातीॊ औय उनके आगभन को एक भहत्वऩूणष घिना फतामा जाता। कोई बी ऩत्रिका नवरेखन ऩय कंटित सॊमोजन कयती तो फाकी ऩत्रिकाएॉ उसभं प्रस्तुत यचनाओॊ की कसभमं-खूत्रफमं की चचाष कयतीॊ, नए यचनाकायं की ऩहचान भजफूत कयने भं अऩनी साझेदायी सनबातीॊ। साटहत्मक ऩत्रिकाएॉ अस्वस्थ प्रसतस्ऩषर्द्ा की सगयफ्त भं हं मा टक सफकी अऩनी-अऩनी प्राथसभकताएॉ हं , मे तो त्रफरकुर प्रद्ल है । टकॊतु इतना तो टदखाई ऩड़े यहा है टक जो ऩत्रिका नवरेखन अॊक सॊमोक्जत कय यही है , वही उसभं शासभर यचनाओॊ औय यचनाकायं की चचाष का सॊमोजन बी कय यही है । ऩत्रिका कंिं ऩय, साटहक्त्मक आमोजनं भं आरोचकं, सभीऺकं, ऩाठकं, रेखकं के फीच चचाष गभषजोशी ऩय यही यही है टकॊतु दस ू यी ऩत्रिकाओॊ को जैसे कुछ बी नहीॊ टदखाई ऩड़े यहा है मा कुछ बी नहीॊ

सुनाई ऩड़े यहा है । ऐसे सॊमोजन ऩय साटहक्त्मक ऩत्रिकाओॊ की दसु नमा भं एक खाभोशी मा चुप्ऩी

यह यही है । मह एक अॊतत्रवषयोधऩूणष क्स्थसत ही है टक एक तयप तो साटहत्म की तयप ऩाठकं औय रेखकं के नहीॊ उन्भुख होने का योना योमा जाए औय दस ू यी तयप उनके आगभन का कोई दृद्शाॊत मा अवसय टदखाई ऩडे तो आॊखे भूॊद री जाएॉ औय उसे नजयअॊदाज कयने की भन:क्स्थसत भं यहा जाए। स्तम्बकायं भं एक-दो को छोड़ेकय ज्मादातय स्तम्बकाय नवरेखन अॊकं के प्रसत सनजीव सशराखॊड की तयह सनत्रवषकाय फने यह गए से टदखाई ऩड़े​े हं । 'इॊ टडमन न्मूज', 'शुक्रवाय' जैसी सभाचाय-ऩत्रिकाएॉ नवरेखन अॊकं के प्रसत सॊवेदनशीरता का रुख टदखाती यही हं टकॊतु फाकी सभाचाय-ऩत्रिकाएॉ रोकाऩषण व सम्भान सभायोहं जैसी सतह के ऊऩय की घिनाओॊ से आगे जाते हुए नहीॊ टदखाई ऩड़ेी हं । सतह के नीचे जो कुछ फन यहा है जो कुछ उबय यहा है , वह उनकी

सोच भं यहता हुआ नहीॊ टदखाई ऩड़ेा है । टकॊतु इतना तो तम है टक नई प्रसतबाएॉ अऩने फर-फूते ऩय फनती हं । जो उॊ सरमाॉ करभ थाभ रेती हं , वे आगे की धुध ॊ बी चीयती हुई चरती हं । ऐसा हभेशा हुआ है ...।



मह टदखाई ऩड़े यहा है टक साभान्म जन की त्रववशता, फेफसी, भजफूरयमाॉ, ऩये शासनमाॉ फहुत साये

नए यचनाकायं के रेखन का त्रवषम फन यही हं । करुणा से ओत-प्रोत मे कहासनमाॉ सनस्सॊदेह इस दौय की िासदी औय ऩीड़ेा का भासभषक अॊकन हं औय इस अथष भं भहत्वऩूणष हं । टकॊतु महाॉ मह तथ्म बी ध्मातव्म है टक िासदी औय ऩीड़ेा का अॊकन तबी साथषक औय मथाथषऩयक होता है जफटक वह कामषकायण के सूिं की ऩहचान से खड़ेा हुआ हो। िासदी औय ऩीडा के अॊकन को एक जरूयत मह बी है टक मह ऩािं की वैमत्रक्तकता की चायदीवायी भे फॊद हो, मह उस चायदीवायी का

असतक्रभण कये , ऩािं की वैमत्रक्तकता से फाहय सनकरकय फाहय की फड़ेी दसु नमा से बी जुडे, उसका


टहस्सा फने मा टपय फाहय की दसु नमा टकसी न टकसी रूऩ भं, टकसी न टकसी भािा भं ऩािं की

वैमत्रक्तक दसु नमा के फीच झाॊकती हुई टदखाई ऩड़े​े । प्रेभचॊद की कहानी कपन इसीसरए भहत्वऩूणष है टक वह ससपष घीसू औय भाधव की भजफूरयमं की ही कहानी नहीॊ है , मह घीसू औय भाधव की

वैमत्रक्तक दृत्रद्श से फाहय की जो दसु नमा है , जो ऩरयक्स्थसतमाॉ हं , घीसू औय भाधव क्जनकी उऩज मा

प्रसतपर हं , मह उनकी बी कहानी है । घीसू औय भाधव की वैमत्रक्तक क्जॊदगी की जो ऩरयक्स्थसतमाॉ हं , वे औय उनकी क्जॊदगी से फाहय की जो ऩरयक्स्थसतमाॉ हं क्जनसे घीसू औय भाधव की क्जॊदगी तम होती है , वे बी, दोनं ही कपन भं साथ-साथ भौजूद हं । मह एक मथाथषवादी कहानी की फुसनमादी अऩेऺा है । नए यचनाकायं भं से कुछ के ऩास मह दृत्रद्श टदखाई ऩडी है , कुछ के ऩास नहीॊ टदखाई ऩडी है । हभने कहासनमं के चमन भं इस फुसनमादी अऩेऺा को कसौिी भाना है । इस अॊक भं शासभर कई कहासनमाॉ एक साझे जीवन की काभना की कहासनमाॉ हं । कहने की जरूयत नहीॊ टक मे सॊप्रदामवाद के सनषेध औय उसके प्रसतयोध की कहासनमाॉ हं । साॊप्रदासमकता नए यचनाकायं के बी भन-सभजाज को उद्रे सरत टकए हुए है । अरुण मादव, कुभाय क्जनेद्वय शाह, अजम कुभाय दफ ू े, याकेश दफ ू े, भजकूय आरभ, गुॊजेश कुभाय सभश्र की कहासनमाॉ इसी सचॊता को ये खाॊटकत कयती हं । टकॊन्तु महाॉ टपय वही दहु याने की जरूयत है टक साझा जीवन भाि बावनात्भक इमत्ता नहीॊ है औय न ही ऩािं की वैमत्रक्तकता की दसु नमा को कोई चीज है । दो सभुदामं का जीवन

साभान्म जीवन की आसथषक अॊतटक्रषमाओॊ से जुड़ेता है औय उनभं ऩैदा हो गए िकयावं से िू िता है । टपय इसे वैक्द्वक ऩरयक्स्थसतमाॉ औय उनके ऩऺधय दे शज कायक बी ऩैदा कय यहे हं । मह अफ

इतना आसान नहीॊ है टक दो सॊप्रदाम सभर-जुरकय यहना चाहं तो यह रं। सॊप्रदामवाद ऩय सरखी जाने वारी यचना की मह जरूयत है टक वह ऩािं की बावनात्भक सयहदं से फाहय साझा जीवन को सॊबव फनाने वारे आसथषक कायकं औय योजभयाष की जरूयतं की ऩहचान कये औय जो वजहं इसे तोड़े यही हं , उनकी बी ऩहचान कये । हभ मह त्रवद्वास यखते हं टक जो नए यचनाकाय आज साझा जीवन के बावनात्भक सूिं की ऩहचान कय यहे हं , वे इसके वस्तुऩयक सूिं की बी ऩहचान कय रंगे औय एक टदन 'सायी तारी भात' (असगय वजाहत), 'आदभी जात का आदभी' (स्वमॊ प्रकाश) मा 'औय अॊत भं प्राथषना' (उदम प्रकाश) मा टपय इन्हीॊ जैसी सरखी गमी अनेक कहासनमं जैसी कहानी सरखंगे।  अभृत याम ने प्रगसतशीर रेखक सॊघ के याद्सीम सम्भेरन (1982, जमऩुय) के अवसय ऩय अऩने आस-ऩास जुि आए नए रेखकं की जभात को अनौऩचारयक फातचीत भं कहा था टक रेखन एक भैयाथन दौड़े है । इसभं कौन कफ आगे है , कफ ऩीछे है , कफ फीच भं है , इससे ज्मादा भहत्वऩूणष मह है टक कोई रेखक इसभं टिका यहे , थककय मा ऊफकय फीच भं दौड़े स्थसगत न कय दे । नवरेखन अॊकं से जो यचनाकाय भैयथन दौड़े भं शासभर हुए हं , हभायी काभना है टक वे इस दौड़े भं फने यहं औय अऩनी सटक्रमता एक रम्फे सभम तक फनामे यखं। मह खुशगवाय क्स्थसत है टक


नवरेखन अॊकं से जो यचनाकाय साभने आए हं , उनभं से असधकाॊश अऩनी सटक्रमता फनाए हुए

हं । उनकी यचनाएॉ रगाताय त्रवसबन्न ऩत्रिकाओॊ भं छऩी हुई टदखाई ऩड़े यही हं । नवरेखन अॊकं से आए अनेक यचनाकायं ने अऩनी यचनाएॉ टपय से 'ऩरयकथा' को बी बेजी हं । ऐसे ही छ:

कहानीकायं को हभ 'सहमािा' स्तम्ब के अॊतगषत इस नवरेखन अॊक भं एक फाय टपय ऩेश कय यहे हं ।  इस अॊक से साटहक्त्मक ऩिकारयता के अग्रणी व्मत्रक्तत्व ऻानयॊ जन 'ऩरयकथा' के सॊऩादक भॊडर भं शासभर हो यहे हं । 'ऩरयकथा' ऩरयवाय उनका हाटदष क स्वागत कयता है ।  इस अॊक से ऩरयकथा ऩत्रिका इॊ ियनेि ऩय बी उऩरब्ध होगी। त्रऩछरे टदनं वरयद्ष ऩिकाय प्रबाष जोशी, आरोचक-त्रवचायक डॉ. 'कुॊवयऩार ससॊह, 'वातामन' ऩत्रिका के सॊऩादक-गीतकाय हयीश बदानी, जनकत्रव अजुन ष कत्रव तथा कत्रव-ऩिकाय याभकृ ष्ण ऩाॊडेम का सनधन हो गमा। 'ऩरयकथा' ऩरयवाय की ओय से इन सबी को हाटदष क श्रर्द्ाॊजसर। _शॊकय


नवरेखन ( कहासनमाॊ) कृ ष्णकाॊत

सरखने का अथष है जी हुई क्जन्दगी के बोगे मथाथष को ऩन्नं भं दजष कय दे ना। भेये सरए सरखने का अथष खुद औय दसु नमा

के मथाथष का स्वीकाय है । व्मक्त होना ही व्मत्रक्त होने की त्रवसशद्शता है ।

मह अऩने होने का दस्तावंजीकयण है । असबव्मत्रक्त भं ही सभाज का इसतहास छुऩा होता है क्जसके आधाय ऩय बत्रवष्म का मूिोत्रऩमा यचा जाता है । इससरए जरूयी है टक उन आवाजं को फुरन्द टकमा जाए जो कही दफे भं दफा दी गई हं । कृ ष्णकाॊत द्राया गजेन्ि ससॊह सी-1114, मभुना त्रवहाय, टदल्री-53 भो.: 09990890350 आजकर इराहाफाद त्रव.त्रव. से ऩिकारयता भं एभ.ए. औय टदल्री भं टिराॊन्स कय यहे हं ।

दयू का शहय भदीना को टहन्दी फनाभ भयाठी का ऩंच नहीॊ ऩता है । टहन्दी औय भयाठी बी कोई होते हं , मह न तो उसने कबी सुना है औय न जाना है । मूऩी औय त्रफहायी 'जॊगसरमं' का दे श बय के 'सभ्म' शहयं भं पैरकय वहाॉ बी जॊगरीऩन पैराने जैसे त्रववाद उसके सऩनं भं बी नहीॊ आते। भुॊफई मा टदल्री भं से कौन टकसके फाऩ की जागीय है , इस ऩय उसने न कबी सोचा है औय क्जॊदगी यहने तक न कबी सोचेगी। उसे तो फस इतना भारूभ है टक शहय कोई ऐसी जगह है जहाॉ जाकय यंजी-योिी का जुगाड़े हो जाता है अल्रापेरु के अब्फू को उसी ने ठे र-ठे रकय फॊफई बेजा था रेटकन अफ ऩछता यही है । कर वह अऩनी ऩड़ेोसन सखी कौसय से कह यही थी 'अल्रापेरु के


अब्फू इस फाय जफसे फॊफई गमे हं , तफ से हभये घय ऩे शनीचय रगा है । कह यहे थे, ऩता नहीॊ कौन भुॉहझंसे भुॉह भं कऩड़ेा फाॉध-फाॉधकय झुॉड भं आते हं औय अगय दक ू ान खुरी सभर गई तो सफ तोड़े-ताड़े दे ते हं । छुया-कंची उठा रे जाते हं औय भाय-ऩीि कयते हं अरग से।'

भदीना ऩय अफ ऩाॉव फच्चं को ऩारने की क्जम्भेदायी है तो दस ू यी तयप भजीद की सराभती की

सचन्ता। जफ कौसय ने ऩूछा 'ई सफ हो समं यहा है ?' तो भदीना फोरी 'ऩता नहीॊ समं हो यहा है । गयीफ-गुयफा का कहीॊ फसय नहीॊ है । अऩना खून-ऩसीना फहाकय बी ऩेि बयना गुना है ...' कौसय ने ऩूछा 'कुछ पोन-सोन आमा था टक नहीॊ?' 'हाॉ, आमा था। कह यहे थे टक ऩैसा-ऩानी की अबी कोई उम्भीद न कयो। अबी तो महाॉ फवार चर यहा है । फॊफई वारे कह यहे हं टक जाकय सफ अऩने गाॉव-दे स भं काभ कयो। वो रोग कहते हं टक हभायी बाषा फोरो। अफ फताओ, मह कहाॉ हो सकता है । जफ कोई ऩढ़ेा-सरखा सगमानी ही होगा तो वह ऩयामे दे श भजूयी कयने समं जामेगा? क्जसे अॊधेय ही अॊधेय है ।' भदीना ने अऩनी बय आई ऑॊखं ऑॊचर से ऩंछ रीॊ। कौसय उसको तसल्री दे ने के गयज से फोरी 'अॊधेय तो है ही। न घय ऩय खाने का टठकाना, न फाहय कभाने का टठकाना, रेटकन कोई फात नहीॊ। क्जसका कोई नहीॊ होता, उसका ऊऩयवारा होता है । यो-धोकय सफ कि जाता है । तुम्हाया बी कि जामेगा। आमंगे नहीॊ इधय?' भदीना थोड़ेा सशकामती रहॊ जे भं फोरी 'कहा तो था टक चरे आओ, दस ू ये की योजी-योिी टकसी को था टक चरे आओ, दस ू ये की योजी-योिी टकसी को सारती है तो काहे को जान जोक्खभ भं डारना। ऩय वे तो बैमा टकसी की सुनते नहीॊ। कहने रगे 'कबी तो दॊ गा-पसाद फॊद होगा। यत्ती-यत्ती बय फच्चं को योिी के सरए अऩनी ऑॊखं से तयसते दे खने से अच्छा है टक वहाॉ यहं ही न। अऩना महीॊ-कहीॊ हाथ-ऩाॉव भायते यहं गे।' कौसय जैसे भजीद ऩय गुस्सा ही हो गई 'मे तो फटढ़ेमा है । मे ऩयदे स जा सकते थे तो चरे गमे टक बूखे फच्चं को अऩनी ऑॊख से नहीॊ दे खंगे। भगय तुभ कहाॉ जाओगी? इन छे वनं को सॊबारने वारा बी तो कोई होना चाटहए। औयत, भयद भं मही पयक होता है । सॊबारे नहीॊ सॊबर तो अऩना चर टदमे हाथ झाड़े के, अफ बुगतो अकेरे तुभ।' मह फात भदीना को जॉची नहीॊ, फोरी 'अये , तो समा कयं वे औय समा कयं हभ? अफ तो जो अल्राह कये , सफ भॊजूय है ।' रे-दे कय अफ भदीना इस फात के सरए तैमाय है टक ऩाॉच फच्चं का ऩेि ऩारने की क्जम्भेदायी अफ उसी की है । भदीना जो बी जोड़े-तोड़े कये गी सफ योिी के सरए इससे आगे वह न कुछ जानती है , न सभझती है । मह बी नहीॊ टक वह कुसी के कुक्त्सत खेर का अॊजाभ बुगत यही है औय न मही टक हभीॊ जैसे हजायं-राखं रोगं के ससय कुचरकय सत्ता की कुसी तैमाय होती है । इस खेर के आमोजन भं क्जस जासत, धभष व सम्प्रदाम की अक्स्भता का सहाया सरमा जाता है दयअसर वह सफ उसके सरए कोई भसरा ही नहीॊ है । अगहन भहीने की चुबती हुई ठॊ ड अऩना ऩाॉव ऩसाय चुकी थी। भदीना औय फच्चं के टदन जैसे-


तैसे गुॊजयते जा यहे थे। आऩ का साधन गाॉव भं रगी हुई मजभानी बय है । कबी टकसी के महाॉ कोई प्रमोजन, तीज-त्मौहाय आटद हुआ तो कुछ सभर गमा मा टपय टकसी के महाॉ कुछ छोिा-

भोिा काभ सभर गमा तो कुछ न कुछ हाथ रग गमा। भाॉग-जाॉचकय मा स्वत: सुहानुबूसत भं बी िू िन-छूिन सभर ही जाता है । इस जोड़े-तोड़ेनुभा ऩरयक्स्थसत भं उसके टदन ऐसे गुजयते हं जैसे कोई नि दो तयप फक्ल्रमं भं फॉधी यस्सी ऩय धीये -धीये ऩाॉव चुन-चुन त्रफसकता है । एक यात की फात है । ठॊ ड कुछ फुढ़ेी हुई थी। कयीफ दो घड़ेी यात उसका एक फच्चा उठ फैठा औय योने रगा। वह काॉऩ यहा था। उसे जोयं की ठॊ ड रग यही थी। भदीना दे य तक त्रवचाय कयती यही

टक समा कये । ससपष दो त्रफछावन थे। दोनं जोड़ेकय त्रफछे हुए थे। एक ऩय दो फच्चं को रेकय वह खुद रेिी थी औय एक ऩय फाकी तीनं फच्चे। एक फड़ेा-सा ऩुयाना कम्फर था जो आड़ेा-सतयछा होकय ऩाॉचं के फदन ढके हुए था। भदीना को एक उऩाम सझा। उसने

सफ फच्चं को एक ही

त्रफछौने ऩय सरिा टदमा तथा दस ू या त्रफछावन औय कम्फर सभराकय ऊऩय से ओढ़ेा टदमा। जागे हुए फच्चे को थऩटकमाॉ दे कय सुरामा औय वह खुद फाहय आ गई। फाहय हल्की-हल्की हवा चर यही

थी। ठॊ ड के फावजूद हवा अच्छी रगी। उसने इधय-उधय दे खा टक कुछ जराने को सभर जामे तो बाग ताऩकय ही यात काि री जामे। भगय कुछ टदखा नहीॊ। एक फाय उसके भन भे आमा टक छप्ऩय का जो कोना रिका है , उसे नोचकय थोड़ेा पूस सनकार रे, भगय घय के उजड़े​े कोने की कल्ऩना से ही फदन काॉऩ गमा। घय भं ओढ़ेने-त्रफछाने को कुछ नहीॊ, फाहय आग जराने को कुछ नहीॊ, रे दे कय ससय ऩे मही एक छप्ऩय तो है जहाॉ ऩानी ऩीकय बी यात कािी जा सकती है । वह

ससहय उठी। फदन भं ठॊ ड व्माऩने रगी। चायं तयप सनगाह डारते हुए भदीना घय के ऩीछे गमा।

वह उन्हं फिोय राई। घय भं से भासचस राकय आग जराई औय फैठ गई। आग से जफ फदन भं थोड़ेी गयभी हुई तो उसे भजीद की माद आने रगी। त्रऩछरी ठॊ डी भं जफ छोिा फच्चा ऩेि भं था,

भजीद महीॊ था। एक टदन यात को उसे नीॊद नहीॊ आ यही थी। वह भजीद से फोरी 'भन ठीक नहीॊ है , जया फाहय चरोगे?' भजीद फोरा 'तॊग न कयो, सोने दो।' भदीना ने चुिकी री 'ऐसे चैन की नीॊद सोने से फच्चा नहीॊ सभर जाता। दे खो, मह जोय भाय यहा है । कह यहा है , फाहय चरो, खुरी हवा भं भुझे घूभना है ।' भजीद हॉ सता हुआ उठकय फैठ गमा। भदीना उसका हाथ ऩकड़ेकय अऩने ऩि ऩय यखते हुए फोरी 'दे खो खुद ही दे ख रो। कैसे जोय भाय यहा है , हुभक-हुभककय तुम्हं ही फुरा यहा है ।'

भजीद उठा था औय भयीना का हाथ ऩकड़ेकय फाहय फीॊच रामा था 'जफ फेगभ औय शाहजादा दोनं का हुकभ है , तफ तो बई चरना ही ऩड़े​े गा।'

फाहय खूफ ठॊ ड थी। भजीद फोरा इतनी ठॊ ड भं फाहय घूभने की साध रगी है तुभको। ठॊ ड चढ़े फैठी तो? 'तो तुभ समा कयोगे? तुम्हं इसीसरए तो साथ राई हूॉ टक कोई चढ़े न फैठे।'

दोनं आऩस भं कॊधा िकयाकय हॉ सने रगे थे। उसके फाद भजीद ने पूस राकय बाग जराई थी। औय जैसे ही दोनं ताऩने के सरए आभने-साभने फैठे थे टक भजीद ने एक जरती रूकी उठाकय


भदीना की उॊ गरी भं हुआ टदमा था। उसकी मह भसखयी औय उसका साथ माद कय भदीना कफ

बावुक हो गई, उसे भारूभ ही नहीॊ चरा। उसने ऑॊचर से ऑॊसू ऩंछा औय टपय दे य तक भजीद की कारी-उजरी छत्रवमं को तहं तह उरिती यही। अफ तक आग की रऩिं धीभी हो चुकी थीॊ। पूस की आग टिकती ही टकतनी दे य है । जफ टपय से ठॊ ड के भाये फदन भं सयसयी हुई तो भदीना सोचने रगी, अबी तो मह अगहन का भहीना है ।

ऩूयी ठॊ ड-ऩूस, भाघ सफ ऩड़ेी है । त्रफना त्रफस्तय-त्रफछौने के कैसे किे गा? ऐसे एक कॊफर भं तो फच्चे ऐॊठ जामंगे। अचानक उसके जी भं आमा टक भजीद साभने हो तो सचल्राकय कहॉ दे खो, क्जॊदगी कैसी कटठन है । जीना बारू है औय तुभ हो टक छोड़ेकय वहाॉ फैठे हो। टपय जी भं आमा टक आक्खय घय छोड़ेा बी तो इसीसरए है टक दो कौड़ेी का जुगाड़े हो तो क्जॊदगी आसानी से सयके। मही सफ सोचते-सोचते सुफह हो गई। सुफह के सफ काभ मासन झाडू -ऩोछा, फतषन-खाना कयने के फाद भदीना फाहय सनकरी। गोद भं सफसे छोिे फच्चे को रिका सरमा। उसके घय से थोड़ेी दयू ऩय काभता प्रसाद सभश्र जी का फड़ेा-

सा फाग था। उसी भं उन्हंने खसरहान रगामा था। धान की पसरं से अनाज सनकार सरमा गमा था। ऩुआर वहीॊ खसरहान भं ही ढे यं-ढे य रगा था। काभताप्रसाद जी का रड़ेका वहीॊ खसरहान भं फचे हुए कुछ अनाज फिायकय फौय भं बय यहा था। भदीना धीये -धीये ढु यकते हुए ऩहुॉची औय रड़ेके से फोरी 'बैमा, कहो हार?'

'ठीक है ... उसने एक सनगाह डारी। 'कहाॉ हं भहायाज? वह सीधे अऩने त्रवषम ऩय आ गई।' 'कौन भहायाज?' 'तुम्हाये फाफू, काभता बैमा।' 'घय ऩे हंगे।' इतना कहकय रड़ेका फोया उठाकय चर टदमा। ऩीछे से भदीना फोरी 'बैमा तसनकसा उनसे काभ था।' 'समा काभ था, फताओ?' 'बैमा, यात बय फहुत ठॊ ड रगती है । फच्चे ठॊ ड भं टठठु यते हं । त्रफस्तय त्रफछौना कुछ है नहीॊ। इसी भं से थोड़ेी ऩुआर दे दे ते।' 'अफ हभ समा फताएॉ? उन्हीॊ से कहना।' इतना कहकय काभताप्रसाद का रड़ेका घय की ओय फढ़े गमा। भदीना थोड़ेी दे य खड़ेी इधय-उधय सनहायती यही, टपय घय रौि गई। रड़ेके का जवाफ उसे फुया नहीॊ रगा, 'भाॉगने ऩय चीज सभर बी जाती है , नहीॊ बी सभरती है मा दोफाया भाॉगना ऩड़े सकता है । भरार कैसा? महाॉ तो क्जॊदगी ही ऐसे कािनी है ।' दो-एक टदन फीता। भदीना अससय काभताप्रसाद के घय औय खसरहान के इदष -सगदष भॉडयाती यही


टक काभता फाफू कहीॊ टदख जामं तो अऩनी भाॉग यखी जाए। आक्खयकाय तीसये टदन खसरहान के ऩास काभताप्रसाद सभर गमे। वे शौच से रौि यहे थे। भदीना ाॊजया खुशाभदी हॉ सी हॉ सकय फोरी 'कहो बैमा हार?' 'ठीक है , अऩनी कहो।' भदीना को फस भौका सभर गमा 'अये बैमा हभ को कहं । जान को पाॉसी है ठॊ डी तो जान रे रेगी जैसे।' 'अबी कौन ऐसी ठॊ ड ऩड़ेती है ? औय ठॊ डी गयभी तो आती यहती है ।' 'आती तो यहती है रेटकन जो इनसे सनऩि सके, उनके सरए आमे, चाहे जामे। हभये सरए तो सीधी भौत है । हे बैमा, यात-बय यत्ती-यत्ती बय रड़ेके टठठु यते हं । ओढ़ेना-त्रफछौना कुछ नहीॊ है यजाई-पािा खदीदने का फूता नहीॊ है । है बैमा, एक फात कहं ...?' 'कहो!' 'हभं इसी भं से थोड़ेी-सी ऩुआर दे दे ते त्रफछाने के सरए तो हभायी बी ठॊ ड कि जाती टकसी तयह। बैमा, फहुत ऩुण्म होगा।'

इसभं ऩाऩ-ऩुण्म की समा फात? रे जाओ, जो जरूयत हो। भदीना सनहार हो गई। भन ही भन जाने टकतनी दआ ु एॉ कय गई काभताप्रसाद के सरए। अफ वह ठॊ ड से कुछ सनक्द्ळन्त हुई टक ऩुआर का त्रफछौना हो जामेगा, गयभ बी कये गा। दोनं त्रफछावन तथा कॊफर ओढ़ेने के काभ आमंगे।

अगरे टदन सुफह ऩीसीओ वारा आकय फोरा 'आज शाभ को छ: फजे भजीद का पोन आमेगा। साढ़े​े ऩाॉच फजे चौयाहे ऩय चरी आना।' भदीना भन ही भन क्खर उठी। फचं को फतामा टक आज साॉझ को अब्फू का पोन आमेगा। सफके ऩाॉव जभीन से जया ऊऩय उठ गमे। छोिा फच्चा कहने रगा 'हभ बी चरंगे फात कयने।' दस ू या कह याह था 'कोई नहीॊ जामेगा। अकेरा अम्भा जामंगी।

पोन फच्चं को कयॊ ि भाय दे ता है ।' उधय भदीना इस सफसे फंखफय भन ही भन सोचने रगी 'जैसे ही घॊिी फजेगी, ऩीसाओ वारा पोन उठाकय 'हरो' कयके हभं दे गा औय जैसे ही कभ 'हरो' कहं गे, वैसे ही वे फताने रगंगे टक महाॉ सफ ठीक है । अफ फॊफई वारे हभं भायते-ऩीिते, बगाते नहीॊ। वे हभं उनकी बाषा सीखने को रेकय दक ू ान बी नहीॊ तोड़ेते। दक ू ान चरने रगी है । ऩैसा सभरने

रगा है । भं ऩैसा रगा यहा हूॉ। एक हॊ फ्ता भं सभर जामेगा। याजी खुशी यहना। फहुत तकरीप न उठाना।' इन कल्ऩनाओॊ भं वह पूर गई। अचानक भुॊह से सनकरा 'अल्राह कये , सफ ठीक-ठाक हो। अच्छी-अच्छी खफय सुनं।' इन्हीॊ दआ ु ओ औय कल्ऩनाओॊ के टकरे गढ़ेते-गुढ़ेते शाभ हो गई।

भदीना ऩीसीओ ऩय ऩहुॉची। ठीक छ: फजे पोन की घॊिी फजी टक भदीना का टदर धड़ेकने रगा।

वह उठकय पोन के ऩास आ गई। पोन वारे ने पोन उठामा औय 'ऩता नहीॊ कौन है ' कहकय यख टदमा। भदीना भामूस हो फैठ गई। थोड़ेी दे य फाद टपय घॊिी फजी। इस फाय दस ू यी ओय भजीद ही था। भदीना उछर ऩड़ेी 'हाॉ हरो, का हार-चार है ?'


_ 'हार-चार ठीक है । हभ सोचा, घय का हार-खफय रे रूॉ। सफ ठीक है न?' _ 'हाॉ ठीक है अऩनी सुनाओ। धॊधा-ऩानी का समा हो यहा है ?' _ 'धॊधा-ऩानी का समा होगा। एक टदन दक ू ान खोरी थी। कुछ रोग झुॊड फनाकय आमे खूफ ईंिऩत्थय चरामा। ससय पूि गमा था। अफ ठीक है । दे खो, दो चाय योज भं टिकि रेके हभ घय आ

यहे हं । वहीॊ कुछ कयं गे। अऩनी तयप के सफ रोग बागे जा यहे हं । अफ महाॉ कौन भये अकेरे...' भदीना की उम्भीयं बयबया कय ढह गईं। होठ पड़ेपड़ेाकय सनष्प्राण हो गमे। ऑॊखं फह चरीॊ। वह चुऩचाऩ पोन कानं भं सचऩकाए खड़ेी यही। इधय से कोई प्रसतटक्रमा न ऩाकय भहीद हरो-हरो कयता यहा, टपय पोन यख टदमा। भदीना पोन यखकय रौिने रगी तो ऩीसीओ वारे ने ऩूछा 'समा हुआ, समं योने रगी?'

'कुछ नहीॊ, बैमा। फजय ऩये ऐसे शहय ऩे जहाॉ पूिी कौड़ेी नहीॊ सभर सकती, जान बी नहीॊ फच सकती।' इसी तयह फुद्बयु ाते हुए वह घय की ओय चर ऩडी। यात होने रगी थी। फच्चं के खाने का इॊ तजाभ बी कयना था।    सुधीय कुभाय

भनुष्म साभाक्जक प्राणी है , सभाज भं यहता है , सभाज भं आए टदन कुछ न कुछ घटित होता है । कुछ घिनाएॉ झकझोय कय यख दे ती हं , उन्हीॊ घिनाओॊ को भं यचनाओॊ का रूऩ दे दे ता हूॉ। सुधीय कुभाय ऩुि श्री ऩन्नारार श्रीभती प्रसतबा (सशक्ऺका) ग्राभ व ऩो.-याभगढ़े, क्जरा-कैभूय त्रफहाय-821110 भो.: 09279179884 आजकर त्रफहाय सयकाय ग्राभीण त्रवकास भॊिारम के अधीन 'रोक सूचना ऩदासधकायी' के ऩद ऩय कामषयत। जन्भ : 1980


टदल्री वारी भौसी भौसी! भौसी! ए भौसी! ''...।'' कोई जवाफ नहीॊ। ''ए त्रप्रमम्फदा भौसी, सुन नहीॊ यही हो?'' ''अ... आ... हाॉ, फोर समा फोर यहा है ?'' भौसी के चेहये के बाव को दे खने से ऐसा रगा, जैसे शाॊत जर भं कोई ऩत्थय पंक टदमा गमा हो... वो गहयी सोच भं डू फी हुई थीॊ। ...औय भंने उनकी तन्िा बॊग कय दी। वह भेयी ओय त्रफना भुखासतफ हुए ऩुन: क्ऺसतज की ओय सनहायने रगीॊ। गाजीऩुय के ददयी घाि ऩय फैठी भौसी ऩूवव ष त ् हो गईं।

भौसी योज गॊगा स्नान के सरए जाती हं । भं जफ गाजीऩुय भं यहता हूॉ तो उनके साथ हो रेता हूॉ। वो सॊस्कृ त भं कुछ अशुर्द् भन्िं का उच्चायण कयके डु फकी रगातीॊ, ताॊफे की रोटिमा भं गॊगाजर बयकय घाि ऩय फने भक्न्दय भं जाकय, गॊगाजर को सायी दे वी-दे वताओॊ ऩय सछड़ेकतीॊ। आज भौसी गॊगा भं फहते एक छोिे फच्चे के शव को दे खकय चेतनाशून्म हो गईं। वो अऩरक उस शव को सनहाय यही थीॊ। धाया के वेग से जफ फच्चे का शव कापी दयू चरा गमा, तफ बी भौसी उसी अवस्था भं फैठी यहीॊ।

भंने भौसी को झझोड़ेा... भौसी क्ऺसतज की ओय सनहायने रगीॊ। सूमष अऩना रूऩ बव्म कयता जा यहा था। गॊगाजी के ठॊ डे ऩानी की ठन्ढई भय यही थी। ...भुझसे यहा नहीॊ गमा, भंने भौसी को ऩुन: झझोड़ेा औय उठा टदमा। ''भौसी, आज भौसा का पोन बी तो आने वारा है ।'' ''अये हाॉ! ...भं तो बूर ही गई थी।'' भौसी फगर भं यखे हुए कऩड़े​े उठाते हुए फोरीॊ।

भौसी त्रफना नहाए ही भेये साथ घय चरी आईं।  भौसी सचक्न्तत औय उदास यहती हं । छोिी-सी बी फातं भं घफया जाने वारी भौसी, छोिे फच्चं की फातं को गम्बीयता से रे रेती हं , औय योने रगती हं । भौसी कबी-कबी भजाक को बी गम्बीयता से रे रेती हं । ऩप्ऩू भाभा की छोिी रड़ेकी सौम्मा ने ही फचकाना हयकत कयते हुए भौसी से कह टदमा, ''फुआ, अफ गाजीऩुय भत आइएगा...।''

भौसी को मे फात रग गई, टदन बय योईं, खाना बी नहीॊ खामा। राख सफ रोगं ने सभझामा ''फच्ची है , उसकी फातं को टदर ऩय समा रेना?'' रेटकन भौसी कफ भानने वारी थीॊ, जफ तक थकीॊ नहीॊ, योती यहीॊ...। भुझे भौसी की शादी की धुध ॊ री माद है । ...भुझे माद है , भौसी की त्रफदाई के सभम भाॉ, नानी,


नाना ने सभरकय 'ऩुिवती बव' औय 'सदा सुहागन बव' के आशीवाषद टदमा था। ...शादी के कुछ टदन फाद भौसी भौसा के साथ आई थीॊ... भौसी त्रफरकुर फदर गई थीॊ। ...एक अप्रत्मासशत फदराव भंने भौसी भं दे खा, वेश-बूषा, बाषा, चार-ढार सफ चीजे फदर गई थीॊ। ...अजीफोगयीफ खड़ेी टहन्दी भौसी फोरतीॊ क्जनभं बोजऩुयी के असधकाॊश शब्दं को सभरा दे तीॊ। सुनकय हॉ सी आती... भं ठठाकय हॉ स ऩड़ेता। भाॉ आऩत्रत्त कयतीॊ, कहतीॊ, ''हॉ सो भत... तुम्हायी भौसी शहयी हो गई है ... वो जैसे फोर यही है , वैसे फोरना सीखो।'' भाॉ की डाि सुनकय भं चुऩ हो जाता। अफ हॉ सी भाॉ ऩय आती। भौसाजी अऩने साथ एक द्वेत-श्माभ कैभया रेकय आए थे। भं उस कैभये ऩय क्जऻासु नजयं से ऑ ॊखं गड़ेाए यहता। ...रेटकन दे खकय टकसी के फाये भं सभझना आसान नहीॊ है । ...भेये सरए वह कैभया अफूझ ऩहे री ही था। ...भौसाजी ने भुझे कैभये की तयप दे खते हुए दे ख सरमा। उन्हंने उस कैभये के फाये भं त्रवसधवत सभझामा। उन्हंने हभाये साथ-साथ सफके पोिो खीॊचे। उस सभम भं

कापी ढीठ था। हये क पोिो भं भं शासभर हो जाता। आज बी स्भृसत के प्रभाण ऩिं भं साये पोिो भेये ऩास भौजूद हं , क्जन्हं भंने अबी बी सहे ज कय यखा है । भौसी का गाजीऩुय आना टकसी खुशखफयी से कभ नहीॊ था। भौसा-भौसी को आते दे ख भेयी फाॉछे क्खर जातीॊ। भौसी सफको हसातीॊ, ...भं ही समं, सफके सफ हॉ सते, खुश होते। रजीज ऩकवान फनते। नाना के घय भं ऐसे ऩकवान ससपष भौसाजी के आने के फाद ही फनते। ...भं कापी भॊजे से खाता औय भन ही भन भनाता भौसाजी कुछ टदन औय रुक जाते तो औय वेयाईिी के ऩकवान खाने को सभरते, रेटकन

भौसाजी रुकते नहीॊ। वो सयकायी इॊ जीसनमय ठहये , छुक्ट्िमाॉ फहुत ही कभ सभरतीॊ। ...भौसाजी के

साथ ही भौसी बी चरी जातीॊ। भौसी जातीॊ तो सफको रुराकय जातीॊ, खुद बी योतीॊ... तेज फहुत

तेज, फच्चं की तयह। योतीॊ तो चुऩ होने का नाभ नहीॊ रेतीॊ। भौसी के चुऩ होने का भं इन्तजाय कयता। भौसी जाते वक्त भुझे ऩैसा जो दे तीॊ। भाॉ ने भुझे सभझामा था, ''जफ भौसी मा औय कोई भेहभान कुछ दं तो एक-दो फाय ना-नुकुय कयना चाटहए, इसके फाद ऩैसा रे रेना चाटहए।'' भं वैसा ही कयता था। टपय भौसा औय भौसी के ऩैय छू रेताथा।

उस सभम भाॉ फतातीॊ टक भौसाजी औय भौसी उड़ेकय टदल्री जाते हं । जहाज से। भुझे सभझ भं नहीॊ आता, उड़ेते कैसे हंगे? जहाज कैसा होगा? भं भाॉ से क्जद कयने रगता, ''भौसी के साथ भुझे बी जाने दो।'' भाॉ के चेहये ऩय हल्की सशकन आ जाती, कहतीॊ ''तुभ अबी छोिे हो, जफ फड़े​े हो जाओगे तो जाना।'' भं फड़ेा होने का इन्तजाय कयने रगता। सोचता, कफ फड़ेा होऊॉगा, इतनी दे य से समं फड़ेा होता हूॉ भं ...सफ तो इतने फड़े​े -फड़े​े हं । भं ही छोिा हूॉ, आक्खय समं छोिा हूॉ? बगवान भुझे जल्दी से फड़ेा कय दे । रेटकन बगवान ने भेयी नहीॊ सुनी, भं छोिा ही यहा। भौसी भौसाजी के साथ चरी गईं।


भौसी अऩनी चायं फहनं भं सफसे छोिी हं । इसी वजह से नाना की राडरी थीॊ, दर ु ायी थीॊ। नाना ने भौसी को कापी ऩढ़ेामा, रेटकन भौसी ने ससपष टडसग्रमाॉ ही फिोयीॊ... भौसी का शैक्ऺक ऻान

कभ ही था। वे भेये छोिे -छोिे सवारं का जवाफ दे ने भं असभथषता जाटहय कय दे तीॊ। भौसी को असभथषता के फाद भेया फार भन सनष्कऩि बाव से कह दे ता ''भौसी तुभ फुर्द्ू हो, कुछ बी नहीॊ जानतीॊ, तुभसे ज्मादा तो भं जानता हूॉ।''

भेयी फात भौसी को रग जाती, वो भुझसे रूठ जातीॊ। रेटकन भौसी का रूठना ऐल्मुसभसनमभ के फतषन के सभान था। क्जतना तेज गुस्सा होतीॊ, उतनी ही जल्दी भान बी जातीॊ। भंने जफसे होश सम्बारा है भौसी के इसी रूऩ का दशषन कय यहा हूॉ। भौसी की ससुयार वारं से नहीॊ ऩिी। अऩने सास, ससुय, दे वय से वो अरग यहना चाहती थीॊ। भाॉ औय नानी के फीच फातचीत के दौयान भंने

सुना था औय एक टदन भंने मह बी सुना टक भौसा-भौसी टदल्री भं ही एक अरग भकान रेकय यहने रगे हं । भाॉ ने भुझे फतामा था, ''तुम्हाये भौसा- भौसी एक भहीने भं क्जतना भकान का टकयामा दे ते है , उतना तुम्हाये फाफू छ: भहीने भं बी नहीॊ कभा ऩाते।'' भुझे प्रफर क्जऻासा हुई, भौसाजी टकतना टकयामा दे ते हं । भंने भाॉ से ऩूछा, ''टकतना''? भाॉ फोरीॊ, ''छह हजाय रुऩमे भहीना।''

भाॉ की फात सुनकय स्वत: भेया भुॉह खुर गमा औय हथेरी भुॉह ऩय चरी गई। भं आवाक् हो गमा। भं फोरा, ''भाॉ! भौसी तो याजा हं , याजा।''

भुझे प्रफर इच्छा होने रगी... टदल्री जाने की। क्जऻासाओॊ ने अनसगनत प्रद्ल खड़े​े कय टदए। टदल्री कैसी होगी? कहाॉ होगी? इस धया ऩय ही तो होगी? ऐसा होगा... वैसा होगा... कल्ऩना से ऩये होगा...। भाॉ ने भुझे सभझामा, टकसी के घय खुशी भं जामा जाता है , तो जाने वारे को बी अच्छा रगता है । जहाॉ जामा जाता है , उसको बी अच्छा रगता है । शुबे शुब तुम्हायी भौसी को रड़ेका हो जाए, टपय भं तुभको भौसी के ऩास बेजूॊगी। घफयाओ भत। सभम फीतते दे य नहीॊ रगती। भौसी की शादी को दस वषष होने को हं , अफ तक गोद हयी नहीॊ हुई है । भौसी का सुख सछछरा था, बौसतक था, कृ त्रिभ था। उनका जीवन एक ऐसे हये -बये भरुस्थर के सभान था जहाॉ क्खरक्खराते ऩौधे उगे हं , रेटकन उनभं फासरमाॉ, पूर नदायद हं । उस फाग भं ऩैसे रूऩी हरयमारी है । भौसी अऩनी चाय फहनं भं सफसे छोिी थीॊ। टडग्री की फदौरत ही भौसाजी से शादी हुई। भौसाजी सयकायी इॊ जीसनमय हं । टदल्री उनका घय बी था। रेटकन भौसाजी भौसीजी को रेकय कबी बी

अऩने ऩुश्तैनी भकान भं नहीॊ जाते हं । भौसाजी की फीच भं कुछ टदनं के सरए फदरी बी हुई। रेटकन प्रफर ऩैयवी की वजह से भौसाजी टदल्री भं ऩुन: ऩदस्थात्रऩत हो गए।

भौसी खुशनसीफ हं मा फदनसीफ, मह अरग प्रद्ल है , इसका उत्तय खुद के दृत्रद्शकोण से टदमा जा सकता है । भौसी के ऩास ससवाए एक द:ु ख के सफ सुख थे, दाम्ऩत्म सुख, आसथषक सुख,


शायीरयक सुख... रेटकन? भातृत्व सुख के त्रफना साये सुख फौने होते हं , भौसी को इस फात का एहसास था। भौसी के सुख भं चाय चाॉद रगाने के सरए कयीभुद्दीनऩुय वारी भौसी ने टकसी फच्चे को गोद रेने की सराह दी रेटकन भौसी ने उसे ससये से ही खारयज कय टदमा। भौसी अऩने ऩड़ेोसी की कहानी, कयीभुद्दीनऩुय वारी भौसी को सुनाने रगीॊ, टदर दहरा दे ने वारी दास्तान सुनकय कोई बी फच्चा गोद रेने से डये गा। कयीभुद्दीनऩुय वारी भौसी ने टदल्री वारी भौसी को सराह दी। ''दस ू ये का फच्चा गोद रेने ऩय वो अऩना कबी नहीॊ फन ऩाता है , वो फड़े​े होने ऩय खतयनाक बी सात्रफत हो सकता है । अऩने रयश्तेदाय के फच्चे को ही गोद रे रो।'' कयीभुद्दीनऩुय वारी भौसी की फातं सुनकय भेयी फाछं क्खर गईं। भं अफ तक भूकदशषक फैठकय दोनं भौसी की फातं सुन यहा था। भं फोरा, ''भौसी, भुझे समं नहीॊ रे रेती गोद? भं ऩुि धभष का ऩारन करुॉ गा... भुझ ऩय त्रवद्वास कयो।'' भौसी भेयी ओय भुखासतफ होकय अऩरक दे खने रगीॊ, भुॉह त्रफचका कय फोरीॊ, ''भं अकेरे ही ठीक हूॉ।''

भौसी की आवाज भं ददष था। सनयाशा थी। भौसी की फात सुनकय भं बी घोय सनयाशा भं डू फ गमा। भौसी भुझे ऩसन्द नहीॊ कयतीॊ। भेयी भाॉ को ऩसन्द नहीॊ कयतीॊ, फाफू से नपयत कयती हं । भुख्म वजह समा थी, भुझे ऩता नहीॊ, रेटकन

एक वजह स्ऩद्श थी, औय वो थी, हभ सफका गयीफ-गवई होना। हभ रोगं के खून भं गयीफ, गवई सॊस्काय थे। फात-चीत, यहन-सहन... सफ कुछ भौसी से त्रवऩयीत थे। भौसी शहयी थीॊ, याजधानी भं यहती थीॊ। हाव-बाव के साथ-साथ सफ कुछ ही भौसी के फदर चुके थे। भं भौसी को फेहद ऩसन्द कयता, भेया ऩरयवाय भौसा-भौसी की सेवा भं ऩरकं त्रफछाए यहता। टदर भं मे आशा सरए हुए टक

भौसाजी मा भौसीजी अऩने ऩास फुराएॉगे। आशा इतनी प्रफर थी टक उसने त्रवद्वास का रूऩ धायण कय सरमा था। भाॉ कहतीॊ, ''भौसाजी कहीॊ न कहीॊ तुम्हायी नौकयी रगवा दं गे। भौसाजी फहुत फड़े​े आदभी हं । नेकटदर बी हं ।''

भं भाॉ से प्रद्ल कयता, ''भाॉ! भौसी तो हभसे अच्छी तयह से फात बी नहीॊ कयती हं , ...हभेशा रगने वारी फात फोरती हं । कहती हं , ''फाफूजी के ससय का बाय हो गए हो तुभ रोग, गाजीऩुय छोड़ेकय चरे जाओ, अऩने फाऩ के घय यहना चाटहए।'' भाॉ भेयी फात सुनकय, भुझे फहराने की कोसशश कयतीॊ, ''भौसी तुभसे भजाक कयती हं , वो गॊबीय होकय थोड़े​े ही फोरती हं ।'' भाॉ की फात सुन भेयी ऑॊखं भं ऑॊसू बय आए, ''भाॉ, भुझे सभझ है , टकस रहजे भं कौन समा कहता है ? ऩप्ऩू भाभा की रड़ेकी की फात का फुया रग जाता है उनको औय उनकी फातं का फुया


टकसी को नहीॊ रगता? भाॉ फड़े​े रोग गरत नहीॊ फोरते, भौसी बी गरत नहीॊ फोरतीॊ... हभं महाॉ नहीॊ यहना चाटहए। ...सुख-दख ु तो रगा ही यहता है । भौसी सही कह यहीॊ हं । भौसी की फात से

भुझे रेशभाि बी तकरीप नहीॊ हुई। भुझे अऩनी औकात का ऩता है ।'' भेयी फात सुनकय भाॉ की आखं से ऑॊसू छरक ऩड़े​े ।

भाॉ के ऑ ॊसू दे खकय भेया भन चीत्काय कय उठा। भाॉ के ऑॊसू दे खकय भेये बी ऑॊसू छरक ऩड़े​े । ...भं फुसका भायकय योने रगा। भाॉ ने भुझे अॊक भं बय सरमा। भाॉ के ऑ ॊसू अनवयत फह यहे थे। भाॉ के ऑॊसू ऑॊसू नहीॊ थे, दख ु के अथाह सागय थे, जो फूॊदं भं फह यहे थे। भंने भाॉ की आखं के ऑॊसू ऩोछे ''भाॉ! ऩैसे की ताकत फहुत फड़ेी ताकत होती है ।

भौसी नहीॊ, भौसी का ऩैसा फोर यहा है । नाना बी भौसी की फातं का ही सभथषन कयते हं । तुभ नाना से भौसी के फाये भं कुछ बी सशकामत भत कयना।'' भाॉ फोरी, ''सशकामत समा कयनी है , त्रप्रमम्फदा का नजरयमा हभाये प्रसत जो बी हो, ...वो भेयी छोिी फहन है , ...उसऩय भेया ऩूया स्नेह है , रयश्ता जरूयी नहीॊ टक दोनं ओय से सनबामा जाए, एकतयपे रयश्ते बी सनबाए जाते हं । त्रप्रमम्फदा को खुश दे खकय भुझे याहत औय सुकून भहसूस होता है । ...भंने तो दे वी-दे वताओॊ से भन्नतं बी भाॉगी हं टक उसका अगय रड़ेका हो जाएगा तो भं चौफीस घॊिे हरय कीतषन गवाऊॉगी। वो सचड़ेसचड़ेी हो गई है , कुछ बी फोर दे ती है ।'' भाॉ की फात सुन भंने भाॉ से प्रद्ल टकमा, ''ससपष हभं औय तुम्हं ही समं फोर दे ती हं औय दस ू ये को समं नहीॊ? ...ऩप्ऩू भाभा की फेिी उन्हं टकतना फोरती है , टपय बी वो जफ बी टदल्री से आती हं , अच्छे -अच्छे कऩड़े​े रेकय आती हं । हभाये -तुम्हाये सरए समा रेकय आती हं ? ...कुछ बी तो नहीॊ।'' भाॉ भुझे सभझातीॊ ''भौसी ऩप्ऩू भाभा के घय आती है , इससरए उनके फच्चं के कऩड़े​े रेकय आती है । तुम्हाये घय आएगी तो तुम्हाये सरए बी राएगी, तुम्हाये छोिे बाई, दोनं फहनं औय फाफू के सरए बी राएगी। तुम्हायी भौसी फोर, बरे ही दे ती है , रेटकन टदर की फुयी नहीॊ है । वो भेयी फहन है , उसे भं अच्छी तयह से जानती हूॉ।''

'तो समा भौसी अऩने ऩास भुझे रे जाएगी? टदल्री घूभने की भुझे इच्छा है । कयीभुद्दीनऩुय वारी भौसी फोर यही थीॊ टक

''त्रप्रमम्फदा का घय तो स्वगष है । उसके ऩूये घय भं आइने रगे हं , पशष

ऩय भहॉ गे ऩत्थय। मही फातं भझवायी वारी भौसी बी तो कह यहीॊ थीॊ। अगय भौसी भुझे रे जाने के सरए हाॉ कय दे गी तो तुभको बी भं रेकय चरूॉगा। फाफू बी साथ भं चरंगे... सुफह से शाभ तक टकतनी भेहनत कयते हं , तफ कहीॊ जाकय छोिे बाई को फाहय ऩढ़ेा ऩाते हं । उनका बी आनभान हो जाएगा, यक्श्भ दीदी औय अरका दीदी को बी रे चरंगे। वो बी दे ख रंगी, दसु नमा टकतनी फड़ेी है । कैसे-कैसे रोग यहते हं ... धनी से बी धनी, गयीफ से बी गयीफ, इभयतं इतनी फड़ेी-फड़ेी,


ऊॉची-ऊॉची टक ऩूया दे खने भं ससय की िोऩी सगय जाए। फस भुझे इन्तजाय है , भौसी की हयी झॊडी सभरने का।''

भाॉ फोरीॊ, ''तुभ एक ऩर भं टकतने फड़े​े सऩने दे ख रेते हो? जाओ, सफके ऩैय छू रो... आशीवाषद रे रो।'' ''समं?'' भंने ऩूछा। ''आज तुभ ऩूये ऩच्चीस वषष के हो गए।'' भाॉ फोरीॊ। ''रेटकन फचकानी हयकत तो गई नहीॊ। ...सोच ऩरयऩसव तो हुई नहीॊ।'' भं फोरा। भाॉ फोरीॊ, ''भाॉ के सभऺ उसका फेिा, फच्चा ही यहता है ।''

भंने भाॉ का ऩैय छुआ, भाॉ ने आशीवाषद टदमा। ...नाना-नानी, भाभा-भाभी सफके फायी-फायी से ऩैय छुए। भौसाजी का ऩैय छुआ, भौसाजी ने ऩूछा ''एकाएक सफके ऩैय समं छू यहे हो?'' भं फोरा, ''भौसाजी, आज भेया जन्भ टदन है ।''

भौसाजी ने आशीवाषद टदमा, भंने अन्त भं टदल्री वारी भौसी के ऩैय छूए, भौसी ने चेहये ऩय हल्की भुस्कान सरए, आशीवाषद टदमा। उन्हंने भुझसे कुछ बी नहीॊ ऩूछा। भं कुछ दे य खड़ेा यहा। भौसी के हंठ टहरेनहीॊ। भौसी गाजीऩुय भं फहुत टदन तक नहीॊ रुकतीॊ, ...रेटकन ऩप्ऩू भाभा के रड़ेके 'सगट्िु ' का

जन्भटदन भनाने के सरए रुकी हुई थीॊ। भेये जन्भटदन के दो टदन फाद सगट्िु का जन्भटदन ऩड़ेता है । भेया जन्भटदन कोई नहीॊ जानता, ससवाम भाॉ के, भं खुद बी नहीॊ। सगट्िु का जन्भटदन सबी को माद यहता... भुझे बी।

सफके ऩैय छूकय भं भाॉ के ऩास आ गमा। ...भाॉ ने भाथे ऩय िीका रगामा। भं प्रपुक्ल्रत हो गमा। भेयी भाॉ, ऩाऩा, बाई, फहनं सबी अनभोर धन हं । इस धन की तुरना रुऩमे-ऩैसं से नहीॊ हो सकती। रुऩमे का भोर है , रयश्ता अनभोर है । रुऩमा सनजीव है , रयश्ता सजीव है । रुऩमा कृ त्रिभ है , रयश्ता प्राकृ सतक है । रुऩमा-ऩैसा फाह्य है , रयश्ता आन्तरयक है । भं खुशनसीफ हूॉ जो भुझे अऩनाअऩना धभष सनबाने वारे रयश्तेदाय सभरे। मह खुद का नजरयमा है । सफके नजरयए की ऩरयबाषाएॉ अरग-अरग होती हं । भाॉ ने हाथ भं यखा गुड़े भेयी तयप फढ़ेामा, भंने गुड़े खाकय ऩानी त्रऩमा। गुड़े की सभठास अकल्ऩनीम थी। आज सगट्िु का जन्भ टदवस है , भौसी कभये सजाने भं व्मस्त हं । भौसाजी भौसी की भदद कय यहे हं । कुछ ही सभम भं भौसी ने कभये को दल् ु हन की तयह सजा टदमा। नीयस औय फोक्झर-सा टदखने वारा घय अफ फहुत ही खूफसूयत रगने रगा।

रेटकन इतनी सुफह? जन्भटदन तो यात को भनामा जाएगा, केक यात को किे गा। भंने सगट्िु की भाॉ से ऩूछा, ''भाभी, मह कभया समं सजामा जा यहा है ? जन्भटदन तो यात भं भनामा जाएगा।'' भाभी फोरी, ''सगट्िु की छोिी फुआ सगट्िु के जन्भटदन ऩय नमा-नमा प्रोग्राभ फनाती हं । इस फाय


बी कुछ फनामा होगा। इससरए कभये को अबी सजा यही हं टक फाद भं शामद सभम नहीॊ सभरे।'' भौसी कभये को सजा कय खारी हो गईं। उन्हंने सजाए हुए कभये का फाहय से दयवाजा फन्द कय टदमा। भाभी भौसी के ऩास दौड़ेकय आईं, ऩूछा, ''दीदी आगे का समा प्रोग्राभ है ।''

भौसी फोरीॊ, ''ऩरयवाय के सदस्म इस फाय गॊगा के उस ऩाय जाएॉगे। भस्ती कयं गे... शाभ को रौिं गे, तो सगट्िु का जन्भटदन भनामा जाएगा।'' भौसी की फातं सुन भाभी के चेहये ऩय यौनक आ गई। सफ तैमायी कयने रगे। नए-नए कऩडे , क़्रीभ, ऩाऊडय चेहये ऩय सछड़ेकने रगे। आस-ऩास का वातावयण गभगभा गमा। पूरं-सा गभक वारा मह संि वाकई राजवाफ था। भाॉ औय भेये ऩास नए कऩड़े​े नहीॊ थे। सो भाॉ ने गॊगा के उस ऩाय न जाने का सनणषम सरमा। भाॉ ने भुझे जाने के सरए न तो हाॉ कहा, न ही रुकने के सरए कहा। भंने उसी कऩड़े​े भं जाने का सनणषम रे सरमा। भाॉ ने भुझे खूफ सभझामा 'नाव भं टकनाये भत फैठना... नाव रुकने ऩय ही उतयना... आटद आटद।' सफ रोग जाने रगे, भुझे टकसी ने नहीॊ कहा, भं कुछ दे य के सरए रुक गमा। भाॉ फोरीॊ, ''कोई फुराए नहीॊ तो भत जाना।'' कुछ दयू जाने के फाद सगट्िु ने भुझे फुरामा, ''बैमा, तुभ बी आ जाओ।'' भं सगट्िु के फुरावे ऩय दौड़े ऩड़ेा। भौसी ने सगट्िु को अनेकं फाय घूय-घूय कय दे खा था। भाॉ के फताए अनुसाय भं नाव के फीच भं फैठ गमा। नाव उस ऩाय के सरए चरी। भाभी ने एक फहुत ही अच्छा गीत सुनामा। उस ऩाय नाव रग गई। सफ रोग भस्ती कयने रगे, कोई ये त ऩय टपसरता, कोई ये त का गोरा फनाकय टकसी ऩय भायता, कोई दौड़े-दौड़े कय एक दस ू ये को छूने की सपर-असपर कोसशश कयता, भौसी बी इन खेरं भं तन्भमता से सॊसरद्ऱ थीॊ। भं एक ओय खड़ेा मह सफ दे ख आनक्न्दत हो यहा था। भस्ती कयने के फाद सफ रोग नाव ऩय फैठकय इस ऩाय आने रगे। भौसी की ऑॊखं से ऑॊसू छरक ऩड़े​े ... समं, टकसी को ऩता नहीॊ? भुझसे यहा नहीॊ गमा... भंने भौसी की ऑॊखं के ऑ ॊसू ऩोछने के सरए हाथ फढ़ेामा रेटकन भौसी ने भेया हाथ ऩकड़े सरमा। उन्हंने अऩने कीभती रुभार से ऑ ॊसू ऩोछे । भौसाजी भौसी की फगर भं भूकदशषक फने फैठे हुए थे।

भौसी ऩहरे तो ऐसी नहीॊ थीॊ, हभसे फहुत प्माय कयती थीॊ। जैसे-जैसे टदन फीते, सार फीते, भौसी भुझसे दयू ी फनाती गईं। घृणा कयने रगीॊ। आक्खय समं? मह एक अनुत्तरयत प्रद्ल था। हो सकता

है , टदल्री की सॊस्कृ सत ही वैसी हो, जहाॉ इॊ सानी रयश्तं का भतरफ नगण्म हो औय रुऩमा-ऩैसा ही सफ कुछ हो। भौसी धनी हं , भं गयीफ हूॉ। भौसी सुत्रवधाओॊ भं जीती हं , भं अबावं भं जीता हूॉ।

अगरे टदन सुफह भौसा-भौसी चरे गए। भौसा-भौसी के जाने के कुछ ही दे य फाद ऩप्ऩू भाभा ने भाॉ औय भुझे फुराकय कहा, ''आऩ रोग बी अफ महाॉ से चरे जाइए... भेये फच्चे नहीॊ चाहते टक आऩ रोग महाॉ यहं ।'' नाना, नानी, भाभी, सौम्मा, सगट्िु सफ वहीॊ थे, चुऩ थे। सफकी भौन सहभसत थी।


भंने त्रफना दे य टकए, भाॉ को रेकय घय जाने का सनणषम रे सरमा। एक झोरे भं भंने साया साभान यखा औय उसी सभम भाॉ को रेकय अऩने घय के सरए चर ऩड़ेा। यास्ते बय भाॉ के ऑॊसू रुके नहीॊ।  फाफू फीभाय हं । कुछ टदनं से काभ ऩय नहीॊ जा यहे हं । टदन-यात खाॊसते यहते हं , तेज, फहुत तेज। दवा नहीॊ हो ऩा यही है , घय भं ऩैसा नहीॊ है । भाॉ ऩाऩा की फगर भं फैठी यहती हं । दोनं फहनं

अऩरक फाफू को सनहायती हं । फाफू हभेशा चुऩ यहते हं , ऑॊखं से अत्रवयर धाया फहती हं । उन्हं छोिे बाई को ऩैसे बेजने की सचॊता है । भेये सरए मे साये दृश्म असहनीम हं । साये रयश्ते- नाते, टदखावे हं , छरावे हं , रयश्ते ऩैसं के आधाय ऩय भजफूत होते हं औय ऩैसं की कभी की वजह से िू ि जाते हं । भं भाॉ से कहता हूॉ, ''भाॉ, भं कभाऊॉगा, भुझे बाड़ेा दो... भं बी कभाऊॉगा।'' ''कहाॉ कभाने जाओगे?'' भाॉ ने ऩूछा था। ''टदल्री।'' ''टदल्री वारे अच्छे नहीॊ होते। तुम्हायी भौसी टदल्री भं यहकय ही तो फदर गई है । भाॉ स्ऩद्श फोरी थी।'' भंने भाॉ को सभझामा, ''भाॉ, भं भौसी के ऩास ही जाऊॉगाबरे ही भुझे उन्हंने नहीॊ फुरामा है जाने के फाद वो बगाएॉगी तो नहीॊ औय बगाएॉगी बी तो हभ फच्चे थोड़े​े ही हं , जो बूर जाएॉगे, घय

वाऩस आ जाऊॉगा। आगे फढ़ेना है , कभाना है तो ठोकयं से समा डयना? वो बगा बी दं गी तो भेयी इज्जत नहीॊ जाएगी औय योक बी रंगी तो इज्जत फढ़े नहीॊ जाएगी। बूखे को बय ऩेि बोजन चाटहए। प्माय से कोई दे , नपयत से दे , बूखा ऩयवाह नहीॊ कयता... उन्हंने भुझे अऩनामा तो बी ठीक, ठु कयामा तो बी ठीक।'' भाॉ ने अऩने ऩैयं भं से छागर सनकार कय भेये हाथं ऩय यख टदमा। फोरीॊ, ''जाओ, इसे फेच दो। अफ भेये ऩास गहने के नाभ ऩय मही फचे हुए थे। अऩनी फहू के सरए यखे थे। ...रेटकन ऩरयक्स्थसतमाॉ त्रवऩयीत हं ।''

भंने अऩना काॊऩता हाथ फढ़ेामा था। भाॉ ने ऩामर भेये हाथं ऩय यख टदमा, उसके बी हाथ काॉऩ यहे थे। भं बायी भन से फेचने के सरए फाॊजाय भं चरा गमा।  भौसी का ऩता भंने अऩने ऩैसं से बी ज्मादा सुयक्ऺत यखा था। टदल्री की फड़ेी-फड़ेी त्रफक्ल्डगं, चौड़ेी सड़ेकं, त्रफन धुएॉ की गाटड़ेमाॉ... सफ कुछ नमा औय आद्ळमषजनक था भेये सरए। भं भौसी के दयवाजे ऩय ऩहुॉच गमा था। कारफेर फजाई। दयवाजा भौसी ने खोरा। भुझे दे खते ही भौसी का चेहया सख्त औय रार ऩड़े गमा। उन्हंने झिके से टकवाड़े फन्द टकमा, भेयी ऊॊगुरी दयवाजे भं

पॉस गई। ददष से भं सचल्रा उठा... भौसी, भौसी नहीॊ, दश्ु भन है भेयी। भं दयवाजे के ऩास फैठकय


खूफ योमा। भौसी ने दयवाजा नहीॊ खोरा। भुझे आशा ही नहीॊ ऩूणष त्रवद्वास था, भौसी भुझे ऩनाह दं गी। भौसी भेयी भाॉ की फहन है , भाॉ की तयह कोभर टदर उनके ऩास बी होगा। भं घय नहीॊ जाना चाहता था। कतई नहीॊ। भेये छोिे बाई का बत्रवष्म, दो फहनं की शादी औय फाफू की फीभायी... मे सफ अफ तो भेये ही कॊधे ऩय आ गए हं । टपय ऊॉगरी भं रगी इस छोिी-सी चोि से घफयाकय भं बाग जाऊॉ... कतई नहीॊ। एक घॊिा, दो घॊिे... छ: घॊिे हो गए। भौसी का दयवाजा नहीॊ खुरा। बूख बी रग गई। भाॉ के द्राया दी गई सरट्िी भंने खाई, ऩानी त्रऩमा औय टपय वहीॊ फैठ गमा। शाभ को भौसाजी आए, वो ऩहचान कय बी नहीॊ ऩहचान सके। उन्हंने भौसी को आवाज दी, भौसी ने दयवाजा खोरा, भौसाजी अन्दय चरे गए। भेया असधकाय भौसाजी ऩय नहीॊ था। भेयी टहम्भत हाय यही थी। भंने टहम्भत को एकत्रित कय एक फाय टपय दयवाजा खिखिामा। भौसी ने दयवाजा खोरा। भंने भौसी का ऩैय ऩकड़े सरमा, सगड़ेसगड़ेाने रगा, ''भौसी-भौसी, भुझे ऩनाह दे दो... कहीॊ बी नौकयी भौसाजी से कहकय टदरा दो। भेया ऩरयवाय ऩये शासनमं से जूझ यहा है । भझधाय भं पॉसे भेये बाई के बत्रवष्म को बी ऩाय रगाओ, भौसी। आऩ भेयी भदद करयए, भौसी भं बगवान से बी ऩहरे आऩको ऩूजूॊगा।'' '...।' भौसी चुऩ थीॊ। भौसाजी बी चुऩ थे। फहुत दे य तक भौसा-भौसी कुछ नहीॊ फोरे। भंने आक्खयी कोसशश की, ''भौसी, भुझे आऩ ऩहचान यही हं न? भं आऩकी प्रसतबा दीदी का फड़ेा फेिा हूॉ। भेया छोिा बाई आरोक यॊ जन इॊ जीसनमरयॊ ग की ऩढ़ेाई कय यहा है । ऩैसे के अबाव भं वो घय आ

जाएगा। फाफू फीभाय हं । दोनं फहनं की शादी कयनी है । भं भाॉ से वादा कयके आमा हूॉ, खारी हाथ नहीॊ रौिू ॊ गा। आऩ चुऩ समं हं ।''

भौसी नहीॊ फोरीॊ, भौसा बी नहीॊ फोरे। अॊतत: भं हाये हुए जुआयी की तयह घय से ये रवे स्िे शन

की तयप फढ़ेा। यास्ते बय भं योमा, ऑॊखं से अश्रु की धाया रगाताय फह यही थी। भं भाॉ से समा फोरूॉगा, ऩाऩा समा सोचंगे, छोिे बाई का समा होगा? भुझे खुद ऩय गुस्सा आ यहा था। भं आत्भनरासन से बय गमा। भं स्िे शन ऩय ऩहुॉच गमा था। स्िे शन ऩय भेये गाॉव जाने वारी ट्रे न रगी हुई थी। त्रऩछरी सुफह

इसी ट्रे न से भं आमा था। अगरी सुफह इसी ट्रे न से भं घय ऩहुॉच जाऊॉगा। भाॉ से साभना कयने

की टहम्भत भुझभं नहीॊ फची है , उसने तो अऩना शेष फचा ऩामर बी फेच टदमा, भुझ को टदल्री बेजने के सरए। भुझे खुद से नपयत होने रगी। अचानक भेया हाथ टकसी ने ऩकड़े कय खीॊचा। जानी-ऩहचानी आवाज सुन भं ऩीछे भुड़ेा, भौसी थीॊ। भौसी की ऑॊखं से अत्रवयर ऑॊसू फह यहे थे। वो भुझे अॊक भं बयते हुए फोरीॊ, ''भुझे भाप कय दो, ...भुझसे गरती हो गईं। तुभ भेये फेिे हो। आरोक भेये ऩैसे से ऩढ़े​े गा, दोनं फहनं की शादी भं करुॉ गी, फाफू की दवा का खचां भं दॊ ग ू ी। मे

भकान, धन-दौरत, समा होगा, मह सफ तुम्हाया है । तुभ भुझे छोड़ेकय भत जाओ। भं तुम्हाये हाथ जोड़ेती हूॉ। भौसाजी फगर भं खड़े​े थे। भौसी के हंठ काॊऩ यहे थे, 'तुभ भुझे भाप नहीॊ कयोगे?' भौसी की आवाॊज भं आत्भीमता थीॊ।


भं फोरा, ''उ... हूॉ?''

''समा?'' भौसी झिके से फोरी थीॊ। भं फोरा, ''भौसी आऩकी गरती ही कफ थी, जो भं भाप करुॉ । भं भौसी से फोरा, ''भौसी, तुभ भुझे बी भाप कय दो भं तुम्हं फोरा था, टदल्री वारे फहुत फुये होते हं ।''

''भं भाप करुॉ गी एक शतष ऩय, तुभ भुझे भाॉ कहो... भेये कान तयस यहे हं ।'' फगर भं खड़े​े भौसाजी फोरे, ''औय भुझे ऩाऩा...।'' भं फोरा, ''भाॉ, ऩाऩा! भेया ऩूया जीवन आऩके चयणं भं सभत्रऩषत है ।'' अचानक भेयी सोच भं रुकावि आई। भंने इधय-उधय दे खा, भौसी, भौसा कहीॊ नहीॊ थे। भं अऩनी सोच भं ही भौसी, भौसा को दे ख गमा था। स्िे शन ऩय तो भं अकेरा ही था। ट्रे न अफ खुरने ही वारी थी। भंने बायी कदभं से ट्रे न के टडब्फे भं ऩाॉव यखे। ट्रे न ने सीिी दी। ट्रे न अफ टदल्री से फाहय सनकर यही थी।   अशोक कुभाय ओझा 

के-72, भॊगोरऩुयी टदल्री-110083 भो.: 09868949657 आजकर टहन्दी अध्माऩक, सशऺा सनदे शारम, टदल्री सयकाय। जन्भ : 1973

दध ू का दाॉत ऩाॊम रागी, ऩॊटडज्जी भायाज'। गाॉव की ऩगडॊ डी ऩय ऩहरा कदभ यखते ही सागय के कानं भं आवाज आई। सागय ने गदष न घुभाकय दे खा, फगर के खेत भं धान की सनयाई कय यहा सीतायाभ हरयजन उन्हीॊ


की तयप दे ख यहा था। सागय ने आशीवाषद दे ने की भुिा भं हाथ ऊऩय उठामा औय फोरा, ''क्जमत यहा, अउय हो ससतई सफ ठीक फा।'' 'सफ आऩका टकयऩा फानी, भायाज, फाकी पुरवा का त्रफमाह हो गइर अउय ऊ आऩन ससुयार गइसरस।' गाॉव की चभयौिी (हरयजन भौहल्रा) के सीतायाभ की मह फात सुनकय सागय के शयीय भं प्रवाटहत साये यसामनं का प्रवाह उल्िा हो गमा। मद्यत्रऩ वह त्रफना कुछ औय फोरे अऩने घय के यास्ते की तयप फढ़े गमा, रेटकन अफ उसका एक-एक ऩैय नौ-नौ भन बायी रग यहा था औय भन भं त्रवचायं का फवॊडय उठ खड़ेा हुआ था।

सागय जफ अऩने घय ऩहुॉचा तो वह उदास था। त्रऩता, बाई, फहन टकसी को बी उसकी उदासी का ऩता नहीॊ चरा रेटकन जफ वह भाॉ के ऩास ऩहुॉचा तो भाॉ ने उसकी उदासी ताड़े री, भाॉ की

तभाभ कोसशशं के फाद बी उसने अऩनी उदासी का कायण नहीॊ फतामा, उसकी कुछ ऩुयानी मादं उसे ददष दे यही थीॊ औय वह अऩनी उदासी का कायण फताकय साभाक्जक प्रसतद्षा की दहु ाई दे ने वारे अऩने ऩरयवाय के ऩुयाने जख्भं को हया नहीॊ कयना चाहता था। सागय का भन टदनबय व्मसथत यहा, उसकी पुरवा कहीॊ गई, 'कहाॉ', मह जानने का उसने प्रमास नहीॊ टकमा। पुरवा उसकी कुछ तो रगती ही थी, तबी तो ससतई हरयजन ने उसको गाॉव का औय कोई सभाचाय न फताकय, ससपष मही सभाचाय फतामा टक 'पुरवा गई'। इसका सीधा-सा भतरफ मही तो था टक ऩूये गाॉव-सगयाॊव को एक ब्राह्मण के फेिे औय एक दसरत की फेिी के फीच ऩनऩे प्माय की ऩूयी जानकायी थी।

मह फात ऩूये गाॉव त्रवशेषकय, फबनौिी के ऊॉची नाक वारे फाबनं को फहुत खिकी थी, सागय के त्रऩता के ऩास फहुत सायी सशकामतं आई थीॊ। कई ब्राह्मणं, ठाकुयं ने सागय के त्रऩता फिीप्रसाद सभश्र को सचेत टकमा था टक उनके रड़ेके सागय के रऺण ठीक नहीॊ, उसका एक दसरत की

रड़ेकी से चोयी-सछऩे सभरना ससपष रुका-सछऩी का खेर नहीॊ, फक्ल्क एक जवान होते रड़ेके औय एक जवान होती रड़ेकी के फीच का खेर है , मटद इसे गम्बीयता से नहीॊ सरमा गमा तो एक टदन मे रड़ेका फाबनं की नाक किाएगा। औय अऩनी नाक फचाने भं भाटहय ब्राह्मण कुर की सॊतान सागय को इसी चसकय की खासतय गाॉव-घय से दयू शहय भं एक आवासीम त्रवद्यारम भं दाक्खरा टदरा टदमा गमा, जहाॉ अन्म त्रवषमं के साथ सॊस्कृ त बाषा एवॊ उत्तभ सॊस्कायं भं दीक्ऺत होने की त्रवशेष व्मवस्था थी।

सागय के त्रऩता फिीप्रसाद सभश्र सॊस्कृ त बाषा के प्रकाॊड त्रवद्रान तो थे ही, साथ ही साथ अऩने गाॉव के अरावा आस-ऩास के फीस गाॉवं के ऩुयोटहत बी थे। वे एक कट्िय, रूटढ़ेवादी ब्राह्मण थे। मद्यत्रऩ वे त्रवद्रान कभषकाण्डी ब्राह्मण थे रेटकन सवणं के असतरयक्त औय टकसी से दान-दक्ऺणा नहीॊ रेते थे, न ही टकसी नीच जासत के कयनी, ऩयोजन, शादी-ब्माह भं कथा-ऩूजा कयते थे औय इसी प्रकाय के सॊस्कायं की अऩेऺा वे अऩने फच्चं से बी कयते थे।

जासत-ऩासत, छुआ-छूत, ऊॉच-नीच की बावना उनभं कूि-कूि कय बयी थी। गाॉव की चभयौिी के


हरयजन रारासमत यहते थे टक ऩॊटडत जी उनके महाॉ बी सत्मनायामण की कथा फाॉचं, दान-दक्ऺणा रं। जभाना कहाॉ से कहाॉ चरा गमा है रेटकन भयनी, कयनी भं बी आग्रह कयने के उऩयान्त बी चभयौिी भं ऩॊटडतजी के भुॊह से दो शुर्द् तो समा अशुर्द् भॊि बी नहीॊ पूिे । उन्हीॊ ऩॊटडत फिीप्रसाद

के फेिे सागय ने ऩता नहीॊ कैसे उसी चभयौिी की फेिी पुरवा के साथ फचऩन से ही छुऩा-छुऩौवर का खेर खेरना शुरू कय टदमा। टपरहार सागय जैसे घय आमा था, वैसे ही उदास भन सरए शहय वाऩस चरागमा, रेटकन शहय भं बीडबाड़े के फावजूद उसकी मादं भं पुरवा के ससवा कोई बी नथा।

सागय को फाय-फाय फचऩन की वो धुध ॊ री माद आती जफ फचऩन भं गाॉव के फच्चं के साथ छुऩाछुऩौवर का खेर खेरते हुए ऩता नहीॊ कैसे चभयौिी की रड़ेकी पुरवा बी शासभर हो गई थी

औय इस खेर भं फाबन के फेिे की जोड़ेी हरयजन की फेिी के साथ फन गई थी। रुका-सछऩी के इस खेर भं पुरवा ने कई फाय सागय को हयामा, वह उसे खोज ही रेती थी, जफटक सागय के हाथ वह एक फाय बी नहीॊ आई थी। अफ जफ पुरवा ब्माह के टकसी अनजान जगह चरी गई थी तो वह सोचता था कई फाय टक

समा वह छुऩा-छुऩौवर का खेर सनमसत के रुका-सछऩी के खेर का ऩहरा चयण था, समंटक उस ऩहरे खेर के फाद, साॉवरी-सरोनी, धूर-धूसरयत पुरवा उसके हय खेर भं शासभर यहने रगी। क्जस टदन फच्चं की िोरी भं पुरवा न होती, सागय का भन खेर भं न रगता। वह फेचन ै -सा यहता औय जफ कबी खेर के फीच भं पुरवा आ जाती तो सागय क्खर उठता औय अऩने साथ के फच्चं से खेर टपय से शुरू कयने की क्जद कयता।

सागय के भन के दयवाजे ऩय सायी त्रऩछरी मादं दस्तक दे यही थीॊ, काश! वह पुरवा को अऩनी ाॊक्जन्दगी के खेर भं बी शासभर कय ऩाता, काश उसका जन्भ ब्राह्मण खानदान भं न हुआ होता। वह एक ऐसे सभाज भं ऩैदा हुआ था जहाॉ जासत-ऩासत, वगषबेद, वणषबेद की दीवायं चीन की दीवाय से बी ऊॉची औय भजफूत थीॊ।

उस ऊॉची औय भजफूत दीवाय के उस ऩाय पुरवा थी, इस ऩाय सागय। उम्र फढ़ेने के साथ-साथ

पुरवा के साथ छुऩा-छुऩौवर का नकरी खेर तो फन्द ही हो गमा रेटकन मुवावस्था की दहरीज

तक आते-आते छुऩा-छुऩौवर का असरी खेर शुरू हो गमा। एक दस ू ये को दे खे त्रफना न सागय को चैन आता न पुरवा को। खेर कफ प्रेभ भं फदर गमा, ऩता ही न चरा।

प्रेभ छुऩा-छुऩौवर का खेर ही है , औय जफ दो प्रेसभमं के फीच जासत धभष की ऊॉची दीवायं हं तो मही खेर रुका-सछऩी के असरी खेर भं ऩरयवसतषत हो जाता है । ग्रेजुएि होते-होते सागय की मह धायणा खक्ण्डत हो गई टक खेर कोई बी हो, वह तन औय भन को स्वस्थ यखता है , फक्ल्क अफ तो उसकी मह धायणा फन गई थी टक प्माय का खेर तनाव औय तड़ेऩ के ससवा कुछ नहीॊ दे ता। वक्त टदन, भहीने, वषष के ऩॊख रगाकय तेज यफ्ताय से उड़ेता चरा गमा। सागय पुरवा के गाॉव से


जाने के फाद तबी दफ ु ाया गाॉव वाऩस आमा, जफ उसका खुद का त्रववाह होना था। शादी के वक्त पुरवा, सागय को तफ माद आई थी, जफ वह अऩनी होने वारी ऩत्नी के साथ पेये रे यहा था। वह फभुक्श्कर दस-नमायह सार का यहा होगा। पुरवा उससे एक-दो सार छोिी ही थी, रेटकन गुस्सैर होने के साथ-साथ उससे असधक सभझदाय बी थी। एक फाय गुस्से भं झयफेयी से फेय तोड़ेते वक्त पुरवा ने ऩता नहीॊ टकस फात ऩय गुस्सा होकय सागय को धसका दे टदमा था। वह भुॉह के फर सगया था औय साथ ही साथ िू िकय सगय ऩड़ेा था उसके भुॉह भं फचा हुआ एकभाि

'दध ू का दाॉत'। वह फहुत योमा था। पुरवा घफया गई थी। उसने उसका भुॉह साप कयामा था, उसे चुऩ कयामा था औय मह कहते हुए उसने सागय के उस दाॉत को अऩने ऩास यख सरमा था टक वह सागय के िू िे हुए दाॉत को दोस्ती की

सनशानी के रूऩ भं जनभ बय हयदभ अऩने ऩास यखेगी। इसीसरए सागय को त्रववाह के वक्त पुरवा की माद आ गई थी। वह अऩने भन भं सोच यहा था, पुरवा तो ऩहरे ही ऩयाई हो गई थी, आज वह बी टकसी औय के साथ फॊधन भं फॉध यहा था। सागय औय पुरवा के फीच प्रेभ की डोय तो ऩहरे ही िू ि चुकी थी, 'समा पुरवा के ऩास उसके फचऩन की दोस्ती की सनशानी उसका िू िा हुआ दाॉत अफ बी होगा?'

वक्त फीतने के साथ सागय एक क्जम्भेदाय गृहस्थ फन चुका था। वह न केवर अऩने फीवी-फच्चं का वयन अऩने त्रऩता का ऩुयोटहताना बी सम्बार यहा था। धीये -धीये पुरवा उसकी मादं से दयू होती चरी गई।

सभम का कायवाॉ फढ़ेता गमा, उम्र ढ़ेरती गई, सागय प्रसाद सभश्र ने अऩने त्रऩता के टदए हुए साये सॊस्कायं को अऩने जीवन भं फखूफी उताया। सभम की धाया ने सॊस्कृ त के आचामष सागय प्रसाद सभश्र को एक कट्िय, कभषकाण्डी, रूटढ़ेवादी ब्राह्मण फना टदमा। कबी दसरत की रड़ेकी से प्रेभ कयने वारे सागय की मजभानी बी ससपष सवणं तक ही सीसभत थी। सागय ने बी अऩने त्रऩता की तयह टकसी नीच कुर से न तो दान-दक्ऺणा री न ही उनके महाॉ कोई कभषकाण्ड कयामा। जीवन के उत्तयाधष भं तो सागय ने अऩने त्रऩता को बी ऩीछे छोड़े टदमा। अफ वे स्वमॊऩाकी हो गए, जूता-चप्ऩर ऩहनना छोड़े टदमा महाॉ तक टक वाहन से आना-जाना छोड़ेकय ऩदमािी फन गए। मद्यत्रऩ अफ वे घय से दयू कभ ही जाते थे, ऩय कबी-कबी सशष्मं के त्रवशेष आग्रह ऩय उनके महाॉ ऩैदर ही फीस-फीस कोस की मािा कयके कथा फाॉचने जाते।

सदी का भौसभ था, ठण्डी हवा हक्डडमं भं घुसने की कोसशश कय यही थी। इसी भौसभ भं ऩॊटडतजी अऩने टकसी सशष्म के महाॉ से कथा-ऩूजा सुनाकय, कन्धे ऩय ऩूजा भं सभरी दान-दक्ऺणा, सीधा-त्रऩसान, पर आटद की ऩोिरी रिकाकय अऩनी फीस कोसी मािा ऩय ऩैदर ही अऩने घय की तयप चर ऩड़े​े थे। अऩनी सॊध्मा भाता की गोद भं सभाने को आतुय अस्ताचरगाभी सूमष तेज गसत से ऩक्द्ळभ की टदशा भं फढ़े यहा था। ऩॊटडतजी की मािा अबी आधी बी नहीॊ हुई थी, अबी तो मािा के फीच भं


नदी बी ऩड़ेनी थी, उन्हंने अऩनी चार तेज कय दी। वे ज्मं-ज्मं आगे फढ़ेते गए, उन्हं नदी का ऩाि टदखाई दे ना शुरू हो गमा। अबी वे नदी से ऩचास कदभ दयू ही थे टक उन्हं एक जगह बीड़े नजय आई। क्जऻासावश वे बीड़े की तयप फढ़े गए।

रोगं के हुजूभ के फीच पिे -ऩुयाने कऩड़ें भं एक औयत की राश ऩड़ेी हुई थी, कैसे भयी, समं

भयी, मह महाॉ कैसे ऩड़ेी है ? इस ऩय चचाष सभाद्ऱ हो चुकी थी, अफ ऩॊचनाभे की कामषवाही चर यही थी। टक्रमा-कभष कयने वारा कोई नहीॊ था, राश को रावारयस घोत्रषत कयके उसे ऐसे ही नदी भं प्रवाटहत कय दे ने ऩय सहभसत फन गई। शव उठाते वक्त उठाने वारे की नजय शव के ऊऩय सरऩिी, पिी हुई धोती के ऩल्रू ऩय गई। उसभं कुछ फॉधा था। उसने मे फात वहाॉ खड़े​े रोगं को फताई। ऩल्रू खोरकय दे खा गमा तो उसभं टकसी फच्चे का दाॉतथा।

भृत औयत के ऩल्रू भं दाॉत फॉधे होने की फात बीड़े भं खड़े​े टकसी बी व्मत्रक्त की सभझ भं नहीॊ आई, रेटकन सॊमोगवश वहीॊ आ खड़े​े हुए ऩॊटडत सागय प्रसाद सभश्र की सभझ भं तुयन्त आ गई।

पुरवा ने आक्खयकाय सागय को अऩने अॊसतभ सभम भं बी खोज ही सरमा था औय खुद सदा-सदा के सरए सछऩ गई थी। सागय भृत औयत को तो नहीॊ ऩहचान ऩाए थे, रेटकन अऩने उस िू िे हुए दाॉत को तुयन्त ऩहचान गए थे, क्जसे पुरवा ने दोनं की दोस्ती की सनशानी के रूऩ भं अऩने

ऩास यख सरमा था। सागय ने औयत के ऩासथषव शयीय को ऩुन: ध्मान से दे खा। सभम की भाय खा-खाकय चेहया फदर गमा था, रेटकन वह पुरवा ही थी। उसके जीवन भं समा-समा गुजया, उसने कौन-कौन से द:ु ख सहे हंगे, मह तो सागय नहीॊ जान ऩामा रेटकन मह जानकय टक पुरवा ने भयते दभ तक उन दोनं के फीच प्माय औय दोस्ती की अद्भत ु सनशानी सागय के 'दध ू के दाॉत' को सहे जकय यखा औय ऩल्रू भं फाॉधकय भयी, सागय की ऑॊखं बय आई।

पुरवा ने अऩना वादा सनबामा था औय अफ फायी सागय की थी। ऩॊटडत सागय प्रसाद सभश्र ने,

क्जन्हंने अऩने त्रऩता के नसशेकदभ ऩय चरते हुए आज तक टकसी अछूत के महाॉ 'सत्मनायामण

की कथा' तक नहीॊ फाॉची थी, बीड़े के फीच फाकामदा घोषणा की टक ''मह ऩासथषव शयीय रावारयस नहीॊ है , वे त्रवसधवत उसका अॊसतभ सॊस्काय कयं गे।'' रोगं ने इसे एक त्रवद्रान ब्राह्मण का औदामष सभझा, ऩॊटडतजी ने अऩने कन्धे की ऩोिरी उतायकय नीचे यखी, ऩासथषव शयीय को अऩने दोनं हाथं से उठाकय नदी ति की ओय फढ़े चरे, बीड़े उनके ऩीछे -ऩीछे थी। एक व्मत्रक्त उनकी ऩोिरी उठाए साथ-साथ चर यहा था। ऩॊटडतजी सोच यहे थे, 'भयने के फाद ही सही, पुरवा उनके अॊक भं तो आई,' उनका योभ-योभ पुरवा के स्ऩशष के प्रसत प्रेभ प्रकि कय यहा था। नदी ति ऩय आकय ऩॊटडतजी ने दान-दक्ऺणा भं सभरे ऩैसं से सचता के सरए रकटड़ेमाॉ औय अॊसतभ सॊस्काय के सरए सायी साभग्री भॉगवाई, खुद अऩने हाथं से रकटड़ेमाॉ चुनकय सचता सजाई, उस ऩय सरिाकय सजर नेिं से पुरवा का अक्ननदान टकमा।

आज एक ब्राह्मण धायाप्रवाह अऩने भुख से अऩनी अछूत प्रेमसी के सरए भन्िोच्चाय कय यहा था।


सूमष दे वता यात्रि-त्रवश्राभ के सरए अऩनी भाॉ की गोद भं सभा चुके थे। ठॊ ड फढ़े गई थी। सचता के ऩास से धीये -धीये साये रोग चरे गए थे, अफ ऩॊटडतजी अकेरे फचे थे। वे नदी के जर भं उतये , उन्हंने ठन्डे जर भं डु फकी रगाई, अॊजरी भं जर बय कय पुरवा का तऩषण कयते हुए फोरे,

''पूरभती, भंने त्रवसध-त्रवधान से तुम्हाया अॊसतभ सॊस्काय टकमा, भुझे भाप कयना औय हो सके तो अगरी फाय ऐसी जगह जन्भ रेना जहाॉ जासत-बेद की दीवायं न हं।'' पुरवा का शुर्द् नाभ रेते हुए ऩॊटडतजी फुदफुदाए, 'पूरभती, भं बी मही कोसशश करूॉगा।'

ऩॊटडतजी ठॊ ड से काॉऩते हुए नदी से फाहय सनकरे, हाथ जोड़ेकय सचता को अॊसतभ प्रणाभ टकमा औय नदी ऩाय कयने के फाद तेज कदभं से अऩने घय की ओय फढ चरे। उनकी ऑॊखं से

रगाताय ऑॊसू झय यहे थे औय वे सससटकमाॉ बय यहे थे। अफ तक यात्रि हो चुकी थी। उन्हंने ऩीछे भुड़ेकय दे खा, एक ऩयछाईं उनके ऩीछे -ऩीछे चर यही थी।   एस. यक्जमा फेगभ

बायत के भानसचि भं अॊडभान सनकोफाय द्रीऩ सभूह क्जतना छोिा टदखाई दे ता है उसी तयह टहन्दी साटहत्म जगत भं उसका स्थान उतना ही छोिा है । आज सभाज भं टदन-फ-टदन ऩरयवतषन हो यहा है औय क्जस यफ्ताय से मह आगे फढ़े यहा है , रोगं का आऩसी प्रेभ अफ टदन-फ-टदन कहीॊ न कहीॊ खत्भ हो यहा है । मह सफ चीॊजं भुझे प्रबात्रवत कयती आई हं । फचऩन से क्जस प्रेभ, शाॊसत, अभन जैसी चीॊजं दे खती आई हूॉ, अचानक आज उस जगह ऩय नपयत, घृणा औय गरत काभं

की घुसऩैठ हो गई है । भुझे रगता है टक फातं से यचनाकाय सरखने के सरए प्रेरयत हो उठता है । मही यचनाकायं का धभष बी है । एस. यक्जमा फेगभ टहन्दी त्रवबाग ऩाॊटडचेयी त्रवद्वत्रवद्यारम ऩुदच् ु चेयी-605014

भो.: 09345844611 आजकर ऩी.एच.डी शोधाथी।


जहाज आकाश भं घनघोय कारे फादर छाए हुए हं , सुफह हो जाने के ऩद्ळात ् बी फाहय कोई उजारा नहीॊ टदखाई दे यहा है , नहीॊ तो अफ तक ऩूया घय धूऩ की योशनी से जगभगा गमा होता समंटक घय

रकड़ेी का फना हुआ है औय उससे धूऩ का घय के बीतय झाॊकना कोई नई फात नहीॊ है । वैसे तो मह ऩहरे ही से अनुभान था टक आज कुछ ऐसा ही होने वारा है ...

प्रादे सशक सभाचाय द्राया मह सूचना दे दी गई थी टक '...आगाभी दो टदनं तक बायी वषाष मा तेज हवाएॉ चर सकती हं ... भछुवायं को सूसचत टकमा जाता है टक वे भछरी ऩकड़ेने के सरए सभुि की ओय न जाएॉ।' भछुवायं को जफ सभुि भं जाने से भना कय टदमा जाता है तो इससे मह

अनुभान रगाने भं दे यी नहीॊ रगती टक अगरे दो टदनं तक हवा औय फारयश दोनं रगाताय मा रुक-रुक के हो सकती हं । भं अबी तक त्रफस्तय भं एक सनजीव प्राणी की भुिा भं ऩड़ेी हुई हूॉ समंटक ऐसा रग यहा है टक

जया-सी टहरने-डु रने ऩय चादय से शीतर हवा जो वषाष को होने से योक यही है , भेये बीतय प्रवेश न कय रे समंटक क्जस प्रकाय से धूऩ का आगभन आसानी से हो सकता है , उसी प्रकाय से हवा को बी आसानी से प्रवेश सभर जाता है औय अगय तफीमत खयाफ हो जाएगी तो कहीॊ ऐसा न हो टक भेया आज जाना रुक जाए। मही सोच यही हूॉ, तबी ये टडमो के फजते ही चादय अऩने शयीय ऩय रऩेिे ही वहाॉ ऩहॉ च जाती हूॉ।

ये टडमो भं सुनाई ऩड़ेता है टक ''सुफह के 6.50 फज चुके हं । अबी आऩ सेवा सूचना सुनंगे।'' सुनते ही सोचने रगी टक अबी तक त्रफस्तय भं कुनभुना यही थी, सुस्ती तोड़े यही थी। वहीदा को दे खो वो तो सुफह-सुफह ही ये टडमो स्िे शन ऩहुॉच गई, चाहे वषाष हो मा तूपान..., वैसे दसु नमा भं

ऐसे औय बी फहुत से रोग हं जो ठण्ड भं टठठु यते हुए मा गभी भं झुरसते हुए मा वषाष भं बीगते

हुए बी इस सॊसाय के साभाक्जक प्राणी को यहने के सरए घय तो कबी चरने के सरए सड़ेक फनाने के सरए फड़ेी-फड़ेी चट्िानं को तोड़े छोिे -छोिे कॊकड़े भं तफदीर कयते हभं याह चरते टदखाई ऩड़े जाते हं । ये टडमो स्िे शन भं वहीदा एानाउन्स कयती है । कॉरेज भं हभाये साथ ऩढ़ेती थी रेटकन टकसी कायणवश नौकयी भं रगना ऩड़ेा...। उसकी आवाॊज इतनी भीठी है टक कई फाय ऐसा होता है टक आवाॊज भं इतनी भशगूर हो जाती हूॉ टक आगे कौन-सी सूचना आने वारी है , उसे बूर जाती हूॉ, ऩय आज ऐसा नहीॊ हो यहा है समंटक हय इन्सान की टपतयत भं थोड़ेा-सा स्वाथीऩन का आ

जाना स्वाबात्रवक भाना जाता है , चाहे हभ इसे टकतना ही छुऩा समं न रं मा टपय उसकी टदशाएॉ ही समं न फदर दं ऩय भूर भं जो बाव सभाहाय होता है , वह कहीॊ न कहीॊ उसी से जुड़ेा होता है , इससरए कान आज कुछ ज्मादा ही सजग रग यहे हं । आज भुझे भुख्मबूसभ की ओय प्रस्थान


कयना है । जहाॊजयानी सनदे शारम द्राया दी जाने वारी सूचना सुनना आवश्मक है ...। ''सेवा सूचना जहाॊजयानी सनदे शारम द्राया जायी अॊतयद्रीऩीम औय भुख्मबूसभ जरमानं का मािा कामषक्रभ इस प्रकाय है 'तयासा' है वरोक के सरए 'पोसनसस-फे' जेट्िी से आज सुफह 10-00 फजे प्रस्थान कये गी औय 'एभ.वी. याभानुजभ' 'नीर' होते हुए 'यॊ गत' के सरए आज सुफह 11.00 फजे 'भैरयन' जेट्िी से प्रस्थान...। भुख्मबूसभ जाने वारे जहाॊजं की सूचना इस प्रकाय है 'एभ.वी.

स्वयाजद्रीऩ' आज चेन्नई के सरए 4.00 फजे प्रस्थान कये गी, असतरयक्त साभान का रादान तथा मात्रिमं की स्वास्थ्म ऩयीऺा दोऩहय फाद 2.00 फजे से शाभ 3.30 फजे तक चरेगी औय जहाॊज शाभ चाय फजे है डो जेट्िी से प्रस्थान कये गा। करकत्ता जाने वारा जहाॊज'' इतना ही सुनाई ऩड़ेता है टक त्रफजरी अऩना कभार टदखाती है औय ये टडमो अऩने आऩ ही फॊद हो जाता है । थोड़ेी दे य फाद ऩूये घय की चुप्ऩी को तोड़ेते हुए मुसुप बाई तऩाक से फोरते हं ''अॊडभान की फारयश औय त्रफजरी का कोई बयोसा नहीॊ टक कफ साथ छोड़े दं ...।'' इतना कहते हुए दयवाॊजे से फाहय सनकर जाते हं ...।

भं वहीॊ एक कोने भं ससकुड़े कय सोपे ऩय फैठ जाती हूॉ, समंटक अफ बी वातावयण भं ठण्ड ज्मं की त्मं फनी हुईहै ।

जफसे होश सम्बारा है , तफसे रेकय आज तक ऐसा समं नहीॊ हुआ, मह तो नहीॊ ऩता ऩय ऐसा कबी नहीॊ हुआ टक अकेरी कहीॊ बी आई-गई...।

आज अॊडभान सनकोफाय द्रीऩ सभूह से फाहय जाना है , वो बी अकेरे औय मह फाहय जाने का

पैसरा टकसी औय का नहीॊ, भेया ही है । शामद ऩहरी फाय कोई सनणषम सरमा औय इससे सफसे ज्मादा अगय कोई खुश है घय ऩय तो वह अम्भी है ...। अम्भी-अब्फू की आवाॊज एक साथ सुनाई ऩड़ेती है , कौन-सी आवाॊज टकस ऩय बायी ऩड़े यही है , मह सोचना हभेशा भुक्श्कर होता है , समंटक अम्भी कह यही है ''जल्दी नहाने-धोने के फाद जौहय की नभाॊज औय माससन ऩढ़े रेना...।'' अब्फू कह यहे थे ''नसयीन, महाॉ आकय कभ से कभ अऩना साभान तो दे ख रो, सफ ठीक है मा नहीॊ।'' कहाॉ जाऊॉ, सभझ नहीॊ आ यहा था रेटकन फाथरूभ भं जाने का अबी भन नहीॊ है , ...अब्फू की तयप दौड़ेी चरी जाती हूॉ, इसका एक औय बी कायण है , जो महाॉ फता दे ना ाॊजया-सा उऩमुक्त रग यहा है टक अब्फू एक फाय फोरना शुरू कयते हं तो टपय रुकते नहीॊ...।

अचानक उसी सभम मुसुप बाई फारयश की फूॊदं की तयह िऩक ऩड़ेते हं । हार दे खो तो ऐसा रग यहा है जैसे अबी-अबी कीचड़े से पुिफार खेरकय आ यहे हं।

भं कुछ ऩूछूॉ, उससे ऩहरे ही खुद ही चीखते हुए ''सुफह के 10.00 फज गए औय अबी तक महीॊ

खड़ेी हो! नहाना-वाना है टक नहीॊ। 1.30 फजे 'फम्फूपैराि' से फोि है जो सीधे 'चाथभ' जाएगी... तुभ अच्छी तयह जानती हो टक महाॉ 'फोि' के कभषचायी मह सभझते हं टक 'फोि' उनके फाऩ की है । इससरए अऩनी भजी से ऩाॉच मा दस सभनि ऩहरे छोड़े दे ते हं मा फाद भं। इनको कोई पकष


नहीॊ ऩड़ेता टक... टपय बी तुभ हो टक कबी सुधयोगी नहीॊ...।'' ...मुसुप बाई का रेसचय खत्भ हुआ तो भं फस्स! साॊस ही रे यही थी टक सभम गॊवाए त्रफना ही फड़े​े बाई इरमास ऩधाये ... भुख्मबूसभ का सैय-सऩािा कय आए थे, इससरए जफ बी कोई

भुख्मबूसभ की ओय जाता है तो उसे अऩनी टहदामत से जरूय नवाॊजते हं ''टक खाने-ऩीने का साभान रे रेना, आचाय वगैयह औय कुछ नभकीन बी यख रेना... नीॊफू यख रेना...।'' फोरते-फोरते थक गए, इससरए कुछ दे य ब्रेक रेकय... ऩानी की फोतर बी रे रेना... तबी शामयी ने भेये टदभाग को दस्तक दी बाईजान, साया सभुि भेये ऩासहै । एक फूॊद ऩानी की समा प्मास है । इरमास बाई भेयी फातं को भजाक भं रेते हुए फोरे, ''फोर रो... फेिी... फोर रो...। जफ फाहय जाओगी, तफ माद कयोगी... टक हभ तुम्हं छोिी-छोिी फातं समं फोरते यहते हं ? ऩानी भं जो

नाव चरती है ना, वो केवर रहयं मा हवा के फर ऩय नहीॊ चर सकती, उससे चरने मा चराने के सरए भाॊझी औय चप्ऩू की आवश्मकता ऩड़ेती है , सभझी...।'' भं बरी-बाॉसत सभझती हूॉ टक फड़ें की टहदामत सुन रेना अच्छा होता है समंटक वह कबी न

कबी अवश्म हभायी सहामता कयती है , उनकी फातं को नॊजयअन्दाज नहीॊ कयना चाटहए... उनकी फात सभाद्ऱ होते ही नहाने की ओय बागी चरी जाती हूॉ औय फाथरूभ भं घुसते ही जल्दी-जल्दी

एक दो भग ऩानी अऩने शयीय ऩय डारने रगती हूॉ क्जससे ठॊ ड का आबास कुछ कभ हो, समंटक िं क का ऩानी इतना असधक ठॊ डा हो जाता है टक भानो ऐसा रगता है जैसे टिॊज भं यखे हुए

ऩानी से नहा यहे हं... जल्दी-जल्दी शयीय को ऩंछ कऩड़े​े ऩहन रेती हूॉ औय वहीॊ यखी फाल्िी से एक रोिा ऩानी सनकार कय वजू बी कय रेती हूॉ... फाथरूभ से फाहय आते ही...। 'जल्दी कयो, नसयीन, 12.00 फज गए हं ।'

अम्भी का सभम फताना ऐसा रग यहा था टक भं टकसी आरभष घड़ेी के साभने भुॉह पाड़े​े खड़ेी हूॉ। टपय कुछ ऩर वहीॊ रुककय आगे फढ जाती हूॉ... जानभाॊज त्रफछा जौहय की नभाॊज अदा कयती हूॉ,

खत्भ होते ही फावचीखाने की ओय जाती हूॉ, अम्भी ने ऩहरे से ही खाना सनकारकय यख टदमा है , इससरए हाऩड़े-हाऩड़े खा रेती हूॉ औय जल्दी से सरवाय-कभीज ऩहन कय फारं भं कॊघी कय ही यही हूॉ...।

मुसुप बाई की आवाॊज... 'रयसशा रुक गमा, जल्दी कयो...।' अम्भी-अब्फू औय फड़े​े बाई की आवाज एक साथ सभरकय भेये कानं को बेद दे ती है , 'जल्दी कयो... जल्दी कयो।' आवाॊज सुन हड़ेफड़ेाते हुए घड़ेी हाथ भं सरए दऩ ु ट्िा ठीक कयते हुए फाहय आ जाती हूॉ औय हभ ऑिोरयसशा भं फैठ जाते हं औय दोनं बाई हभाये ऩीछे -ऩीछे भोियफाइक रे आते हं ...।

'फोि' की यस्सी फॊधी दे खकय खुश हो जाती हूॉ टक डाॉि-पिकाय से तो चरो, ऩीछा छूिा...।


फोि भं फैठे ऩहरे 'चाथभ' ऩहुॉचते हं औय टपय वहाॉ से िै ससी सरए है डो फन्दयगाह... भेये होठं ऩे हल्की भुस्कुयाहि के साथ-साथ ऑॊखं भं हल्की-हल्की नभी बी जभी हुई थी...।

जैसे ही डॉसियी जाॉच का सभम हो आता है तो अम्भी-अब्फू औय भेये दो बाई मह कहते हुए

त्रवदा रेते हं टक ''अफ अऩना ख्मार तुम्हं खुद यखना होगा...।'' 'हाॉ...' जवाफ भं इतना ही कह ऩाती हूॉ... उसके फाद भुझे कुछ कहने की आवश्मकता नहीॊ ऩड़ेती। भेये ऑॊसू सफ कुछ कह डारते हं , अऩनं से त्रफछुड़ेने का ददष ...।

डॉसियी जाॉच के सरए भुझे एक कऺ भं रे जामा जाता है । महाॉ से भेया इक्म्तहान शुरू हो जाता है । मह भं ऩहरे से ही जानती थी, इससरए अऩने को ऩूयी तयह तैमाय बी कय यखा था। कुछ वैसा ही हुआ, एक िे फुर औय कुसी ऩय एक भोिी-सी कारी स्त्री त्रवयाजभान है क्जसके डे य् स कोड से मह ऩता टकमा जा सकता है टक वह डॉसियी जाॉच के सरए फैठी है ।

उसके ऩास जफ भं ऩहुॉची, तफ उसने भुझे दे खते ही अऩना सवार दागा 'समा तुभ ऩये गनैन्ि हो?' नहीॊ...

उसको भुझसे समा दश्ु भनी है मा उसे इस फात से टकस प्रकाय का अॊतरयभ सुख सभर यहा है , मह भं नहीॊ जानती... उसने भेये ऩेि को ाॊजोय-ाॊजोय से दफामा, तफ जाकय उसे तसल्री सभरी शामद...। ऐसे सवार के सरए भं त्रफरकुर बी तैमाय न थी। टकसी का भोिा ऩेि अगय ऩये गनैन्ि का सूचक है तो जो भदं का तंद सनकरा हुआ यहता है तो समा उसे बी... मही सफ सोचते हुए भं आगे सनकर जाती हूॉ...।

जहाॊज भं जो एल्मूसभसनमभ की फनी सीटढ़ेमं के अगर-फगर फनी दीवायं को हाथं के ऩॊजं से ऩकड़े दोनं कॊधं ऩय अऩना साभान रादे ऊऩय चढ़ेती हूॉ औय टदर ही टदर भं जहाजयानी

सनदे शारम के कानून को बी कोसती हूॉ टक कभ से कभ घयवारं को तो अन्दय आने टदमा जाता जो इतनी टदसकत तो नहीॊ होती...।

हाथ भं टिकि ऩकड़े​े फॊक नम्फय तराश कयती हूॉ... महाॉ मात्रिमं की सुत्रवधा के सरए वाइि फोडष

भं नम्फय सरखा हुआ है । वहाॉ तक जाने की आवश्मकता नहीॊ ऩड़ेती समंटक अन्दय घुसते ही फाएॉ

ओय भुड़ेते ही दयू से भुझे एक छोिा-सा नम्फय प्रेि टदखता है क्जसभं ब्रैक यॊ ग से नम्फय सरखा हुआ है ।

अफ तो भेये चरने की गसत भं जैसे दो ऩटहए औय जुड़े जाते हं , इतनी तेजी आ जाती है समंटक साभान इतना बायी है टक जफ तक इसे यख न दॉ ,ू तफ तक चैन की साॉस नहीॊ रे ऩाऊॉगी...

साभान अऩनी जगह ऩय ऩिकते हुए उसे चैन से फाॉध यही होती हूॉ टक तबी वुउक... वुउक की आवाॊज भुझे उस औय दे खने ऩय भजफूय कय दे तीहै । ''सशल्ऩा... ओ सशल्ऩा, कहाॉ हो?'' भं उनके ऩास दौड़ेते हुए ऩहुॉचती हूॉ, 'समा हुआ ऑॊिी, आऩ टकसी को फुरा यही थीॊ।'


''हाॉ... भेयी फेिी... ने ऩता नहीॊ... नीॊफू कहाॉ यख टदमा।'' 'आऩ रेिी यटहए, भं अबी राती हूॉ। अऩने सीि नम्फय तक ऩहुॉचते हुए इरमास बाई की फातं बी भक्स्तष्क भं घुभड़े जाती हं ...।'

नीॊफू राकय उनके हाथं भं दे ही यही हूॉ टक तबी एक सुन्दय-सी रड़ेकी वहाॉ ऩहुॉचती है ...।

''समा हुआ भाॉ को!'' भुझसे भुखासतफ होते हुए उसने ऩूछा तो भं फोर ऩडी, ़ुछ नहीॊ ाॊजया उरिी हो यही थी तो भं उन्हं नीॊफू दे यही थी...। ''आऩका फहुत-फहुत धन्मवाद।''

''धन्मवाद की कोई जरूयत नहीॊ, मह तो भेया पजष...।'' ''आऩका नाभ जान सकती हूॉ।''

''जी हँ, समं नहीॊ'' ''भेया नाभ नसयीन है ।'' ''फहुत प्माया नाभ है ...।'' ''भं आऩको नसयीन फुरा सकती हूॉ।'' 'समं नहीॊ, जरूय फुरा सकती हो।' 'भं आऩको सशल्ऩा...।' 'नसयीन, तुम्हं कैसे भारूभ हुआ टक भेया नाभ सशल्ऩा है '।

'दयअसर अबी ऑॊिी जी मही नाभ ऩुकाय यही थीॊ, इससरए भंने अनुभान रगामा टक हो न हो, मह तुम्हाया ही नाभ होगा...।' 'हाॉ, तुभने त्रफरकुर सही सोचा औय फाफूजी ने मह नाभ भुझे फड़े​े प्माय से टदमा था रेटकन आज इस नाभ को फुराने वारा ही इस दसु नमा भं नहीॊ यहा...।'

वातावयण भं उदासी घुर जाती है ... साथ ही साथ एक गहयी चुप्ऩी बी। जहाॊज भं सबी तयह की सुत्रवधाओॊ को एनाउन्स टकमा जाता है जैसे राइब्रेयी, ससनेभा, बोजन... औय मात्रिमं को बोजन के सरए िोकन रे रेने के सरए कहा जाना है ...। सशल्ऩा की आवाॊज भुझे चंकाती है 'नसयीन तुभ महाॉ फैठो भाॉ के ऩास, भं खाने के सरए िोकन रे आती हूॉ।'

'नहीॊ कोई जरूयत नहीॊ है , भं क्जतना घय से राई हूॉ हभ तीनं का आसानी से हो जाएगा...।' चुप्ऩी...।

कुछ दे य फाद 'नसयीन, मह तो भंने तुभसे ऩूछा नहीॊ टक तुभ कहाॉ जा यही हो?' 'भं बोऩार फी.एड. भं एडसभशन रेने जा यही हूॉ।' 'औय तुभ...।'

भेये इतना कहते ही उसकी ऑॊखं से ऑॊसू ऐसे फहे जैसे कई टदनं से वो इसी प्रद्ल के इन्तजाय भं अन्दय दफ ु क कय फैठेहो।

भं... हकराते... हकराते 'समा हुआ सशल्ऩा, कुछ गरत प्रद्ल कय... भुॉह से कुछ गरत सनकर गमा तो भाप कयना...' ना जाने भं समा-समा उस एक ऺण भं कह गई औय वह अगय नहीॊ


योकती तो औय आगे समा-समा कह जाती...। ''नहीॊ... नहीॊ, तुम्हाये ससवा महाॉ है ही कौन जो इतने अऩनत्व से ऩूछे... दयअसर भं मह सोच यही थी टक अफ तो हभायी क्जन्दगी बी इस जहाॊज की तयह हो गई है । इतने त्रवशारनुभा जहाॊज को बी टकसी 'ऩाईरि' की जरूयत ऩड़ेती है जो उसे टदशासनदे श दे ते हुए सही यास्ते ऩय रे जाए... ठीक उसी प्रकाय सयकायी नौकयी के चरते फाफूजी हभं महाॉ रे आए... ऩय अफ अऩनी भुख्मबूसभ रौिने का सभम आमा तो फाफूजी इस दसु नमा भं ही नहीॊ यहे ...।''

'यो भत सशल्ऩा, तुभ मह भत सोचो टक तुभ अकेरी हो... तुम्हं इस जहाॊज का केवर एक ही रूऩ टदखाई ऩड़े यहा है , मह तुभ ऐसे सोच यही हो ऩय इसका एक दस ू या रूऩ बी है । सुनो भेयी फात

ध्मान से, इसभं बी रगबग 700 मािी सवाय हं ऩय मह सफको अऩनी गोद भं सम्बारे हुआ है । जफ तक मह सफको अऩने भागष तक ऩहुॉचा न दे , सफको अऩने भं सभेिे यखता है ... उसी प्रकाय से तुम्हाये सरए मह फहुत फड़ेी प्रेयणा है टक तुम्हाये फाफूजी ने तुम्हं इस सॊसाय भं अकेरे नहीॊ

छोड़ेा, फक्ल्क तुम्हं ऩढ़ेामा-सरखामा औय इस कात्रफर फनामा टक तुभ अऩना अच्छा-फुया सभझ सको... इससरए इस सॊसाय भं हय चीज के दो भाऩदण्ड होते हं , एक अच्छा औय एक फुया। ऩय चुनाव तुम्हाये हाथ भं है टक तुम्हं समा कयना है ...।' 'तुभ ठीक कहती हो, नसयीन...।' इसी तयह जहाॊज भं कफ तीन टदन सनकर गए, ऩता ही नहीॊ चरा... दसु नमा का दस्तूय ऩुयाना है , सभरने औय त्रफछुड़ेने का, उसी प्रकाय हभ रोगं को बी एक दस ू ये का साथ तीन टदन भं छोड़ेना ऩड़े जाता है औय हभ अऩनी-अऩनी भॊक्जर की औय सनकर ऩड़ेते हं ...।

भं सीधे चेन्नई ये रवे स्िे शन की ओय सनकर ऩड़ेती हूॉ, बीड़े-बाड़े से डयते-डयते टकसी बी तयह

वहाॉ ऩहुॉच जाती हूॉ...। सॊध्मा चाय फजे जी.िी. ट्रे न से भुझे बोऩार के सरए सनकरना है औय भं अबी 2.00 फजे ही ऩहुॉच चुकी हूॉ।

महाॉ बी बीड़े-बाड़े से रगबग डयी सहभी एक कोने भं जाकय फैठ जाती हूॉ...। तबी वहाॉ आस-

ऩास दीवायं से सचऩके िे सरत्रवजन भं फाय-फाय मह टदखामा जा यहा था टक आऩ ट्रे न भं टकसी से न तो कुछ खाने का रं औय न दं ... भेये सरए मह फहुत आद्ळमष की फात है टक सभ्म कहे जाने वारे भनुष्म के अन्दय इतनी ऩाशत्रवकता आ गई, समा इसी का नाभ भुख्मबूसभ है ...।

ट्रे न भं एक यात, दो टदन का सपय तम कयते हुए बोऩार ऩहुॉच जाती हूॉ... औय भेया एडसभशन बी हो जाता है ... रगबग सफ कुछ सही रूऩ से चरने रगता है दोस्त बी फन जाते हं ...।

रूऩा, त्रऩमा, भोहन औय भं, हभ चायं भं कापी भेर-सभराऩ कुछ ही टदनं भं हो जाता है । टदन फीतते गए औय दोस्तं की पेहरयस्त भं औय बी फहुत से नाभ जुड़ेते चरे गए...।

ऩाठ मोजना फनाना, ऩाठ को अच्छी तयह फच्चं को सभझाने के सरए सहामक साभग्री... टपय श्माभऩि भं प्रद्लं को तैमाय कयके सरखना... वगैयह-वगैयह... सफ ठीक-ठाक चर यहा है ...। रूऩा की आवाॊज 'हभ फाॊजाय जा यहे हं , तुम्हं कुछ चाटहए, नसयीन।'


'नहीॊ चाटहए...' टदर औय टदभाग कुछ ताना फुन यहा है ... कुछ औय सुनना चाहता था। शामद टकसी की आवाॊज ऩय, टकसका... शामद भोहन औय त्रऩमा की आवाॊज का इन्तॊजाय था भेये टदर औय टदभाग को ऩय वह न तो अफ हुआ है औय न होगा...।

भुझे हय वो फात माद आ यही है , रगबग एक दो भहीने से रगाताय क्जससे ऩीछा छुडाने की

कोसशश कयते हुए बी नहीॊ छुड़ेा ऩा यही हूॉ... सऩना दे ख यही हूॉ टक बमनाक तूपान भं सबी रोग पॊसे है ऩय भं उन तीनं से कहती हूॉ टक चाहे भुझे कुछ हो जाए ऩय तुभ तीनं महाॉ से चरे

जाओ, तुम्हायी ाॊक्जॊदगी फच जाएगी... मह तो एक सऩना था ऩय आऩ शामद मकीन नहीॊ भानंगे, हकीकत बी दयअसर कुछ ऐसी ही थी... ऩता नहीॊ समं, भं उन तीनं से इतना असधक प्माय कयने रगी, नहीॊ भारूभ... नहीॊ भारूभ... दत्रु वधा ही... दत्रु वधा है ।

मे सफ सोचते-सोचते टकतना सभम सनकर गमा, ऩता ही नहीॊ चरा... तबी हॉ सी औय फात कयने की आवाॊज भुझे चंकाती है ... टक अये वो तीनं आ गए रगते हं ... ऩय टकसी को कोई पकष ही नहीॊ ऩड़ेा टक भंने फाॊजाय जाने से समं भना कय टदमा, समा रोग इतने स्वाथी होते हं ? ऐसे कई प्रद्ल भेये भन भं घुभड़ेने रगे क्जसे आज भं योक कय बी नहीॊ योक ऩा यही थी। मह इन्सान की त्रववशता ही है क्जसे वो चाह कय बी नहीॊ योक ऩाता...। खाना रेकय फैठती हूॉ ऩय खा नहीॊ ऩाती हूॉ... भन भं दख ु ं का अम्फाय है ... भेयी तफीमत कुछ

टदनं से खयाफ चर यही है ... वो भेयी सगी फहन नहीॊ है औय सगी हो बी तो समा, आजकर तो

सगे बी हाथ छुड़ेा ऩीछे हो जाते हं ऩय टदर नहीॊ भानता टक टकसी को आऩ काॉिं से सनकार कय गुराफ ऩकड़ेाएॉ औय वो आऩ ऩय ऩत्थय फयसाए तो कैसा भहसूस होगा। कुछ ऐसा ही भहसूस हो यहा था भुझे...। त्रऩमा को इतना असधक भानती थी टक उसके कऩड़े​े धोने से रेकय खाना फनाना तक साया क्जम्भा भंने ही रे यखा था... ऩय उसे आज कोई ऩयवाह नहीॊ है टक नसयीन से एक फाय ऩूछ तो सरमा जाए...। 'समा फात है नसयीन, तुभ आजकर इतनी गुभसुभ समं यहती हो? हभाये साथ न कहीॊ आती हो औय न जाती हो। सरास से सीधा अऩने कभये भं चरी जाती हो... भं जानती हूॉ, तुम्हं समा फात अन्दय ही अन्दय ऩये शान कय यही है ... तुभ त्रऩमा से फहुत प्माय कयती हो औय भोहन के उसकी ाॊक्जॊदगी भं आ जाने के फाद वो तुभको ऩूछती तक नहीॊ टक तुभ कैसी हो... वगैयह-वगैयह...।'

'ऐसी कोई फात नहीॊ है , रूऩा... दयअसर तुभ रोग कफ आए ऩता ही नहीॊ चरा।' अनजान फनते हुए ऩूछती हूॉ भं उससे...।' 'फस्स, अबी।'

तबी राइि चरी जाती है ... भं ऊऩय िे येस की ओय सनकर जाती हूॉ... सोचती हूॉ, उस टदन

सशल्ऩा को सभझा यही थी टक कबी अऩने को अकेराऩन भहसूस भत होने दे ना तो आज भुझे समा हुआ है ... समं इतना असहाम भहसूस कय यही हूॉ... शामद ऩहरी फाय घय से फाहय आई हूॉ


औय दसु नमादायी से अफ तक फेखफय हूॉ... मह दसु नमा उसी का साथ दे ती है जो उसके अनुसाय ढरता है ... उसी के अनुसाय ढरना होगा...।

मह खफय बी सुनने को सभरती है टक जफ रोग फाहय ऩढ़ेने जाते हं मा टकसी कामष के चरते, तो कबी आत्भहत्मा कय रेते हं औय कबी-कबी उनकी हत्मा बी हो जाती है ... आज सभझ आ यहा है ... ऐसा समं होता है । इसके फहुत से कायण हो सकते हं रेटकन भेयी सभझ भं मह फात आ यही है टक अकेराऩन इन्सान को दीभक की तयह चाि जाता है ... रोग टपय टकसी से अत्मसधक प्माय कयने रगते हं मा टपय उस ऩय

इतना असधक बयोसा कयने रगते हं टक सफ कुछ बूर जाते हं , समा अच्छा है औय समा फुया... ऩय आज इस चाॊदनी यात ने फहत कुछ भहसूस कया टदमा औय मह बी फता टदमा टक जो सभझदायी ईद्वय ने दी है , उसे अऩने ऩास हभेशा फनाए यखना चाटहए। टकसी चीॊज की बी असधकता खयाफ होती है , हय चीज फयाफय होनी चाटहए नहीॊ तो कबी भीठे औय खट्िे अनुबव के साथ-साथ कड़ेवे का बी अनुबव प्राद्ऱ हो सकता है औय मह सफ फातं त्रफरकुर सच रग यही हं । प्रण रेती हूॉ टक अकेरी घय से इससरए नहीॊ सनकर ऩड़ेी थी टक महाॉ आकय सतनके बय सहाये के सरए अऩनी ाॊक्जॊदगी को मूॉ सतर-सतर कय सभाद्ऱ कय दॉ .ू ..। त्रफजरी बी जैसे भेया साथ दे ते हुए चायं ओय जगभगाहि से भेये बीतय एक नई ऊजाष ऩैदा कय दे ती है औय टकसी चारक की बाॉसत भुझे बी एक नई टदशा प्रदान कयती है । बीतय से जैसे कोई है जो भुझे कह यहा है ... अॊधेये के फाद प्रकाश का आना एक प्राकृ सतक सनमभ है , उसी प्रकाय सागय भं बी रहयं उपान रेती तो हं ऩय ऺण बय भं शाॊत बी हो जाती हं ...।

प्रकृ सत की हय चीॊज हभं प्रेयणा प्रदान कयती है । नीरे आसभान भं तबी छोिे -छोिे कारे फादर टदखाई ऩड़ेते हं । उसे दे खकय इच्छा जागृत होती है टक अगय वषाष हो जाती तो टकतना अच्छा होता, सफ मादं उसी भं धो डारती औय तबी मकामक फारयश होने रगती है औय भं उसी के साथ-साथ फुयी मादं धो डारती हूॉ... औय ऐसा रगने रगता है टक आज सायी सृत्रद्श भेये साथ-साथ चर यही है जैसे टक कबी जहाज चरा था। 

अरुण मादव

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ऩथयाती सॊवेदनाओॊ, ऩसतत भूल्मं औय फीभाय व्मवस्था के कायण ऩैदा हुई उदासी औय फेचैनी से याहत ऩाने के सरए सरखना भेयी भजफूयी है । अरुण मादव 142, मादव भोहल्रा, याभऩुय, जफरऩुय-482008 (भ.प्र.) भो.: 09926658527 आजकर भ.प्र. याज्म त्रवद्युत भण्डर, शत्रक्त बवन, जफरऩुय भं कामषयत। जन्भ : 1969

शभाष अॊकर की भौत त्रऩछरे कुछ वषं से नई-नई कॉरोसनमं

त्रवहायं की फाढ़े-सी आ गई है । जनसॊख्मा के फढ़ेते

दफाव के चरते यंज नई कॉरोसनमाॉ नभूदाय हो यही हं । आॊजादी के फाद दे श भं एक नमा कॉरोनी कल्चय त्रवकससत हुआ है , क्जसभं अरहदा भॊजहफ, जासतमं के रोग एक साथ यहते हुए अऩने साझे सुख-दख ु के साथ यहना सीख यहे हं । वयना ऩहरे तो फस भुहल्रे हुआ कयते थे। जासत, सभुदाम भं फॉिे हुए भुहल्रे। ऩुश्तैनी यॊ क्जशं को ढोते भुहल्रे।

यंजगाय की तराश औय नौकयी के ससरससरे भं रोग एक शहय से दस ू ये शहय भं फसने रगे।

शामद इसी वजह से कॉरोसनमं के सनभाषण की आवश्मकता भहसूस हुई होगी। अफ तो कॉरोसनमं का सनभाषण फहुत फड़े​े उद्योग का दजाष हाससर कय चुका है ।

जगदम्फा कॉरोनी बी इसी कल्चय की दे न है । फाईस सार ऩहरे फनी थी मह कॉरोनी। जो फच्चे उस सभम ऩैदा हुए थे, आज वे गफरू जवान हो चुके हं औय उस सभम के मुवा अफ फारफच्चेदाय औय थके हुए अधेड़े नॊजय आने रगे हं ।

इसी कॉरोनी की धुयी थे शभाष अॊकर। हभायी कहानी के नामक। चूटॉ क कहानी शभाष अॊकर की है , स्वाबात्रवक है टक मह उनके इदष -सगदष ही यहे गी, रेटकन ऩहरे हभ आज के हारात ऩय एक उड़ेती सनगाह डार रं तो कहानी का दे शकार सभझने भं आसानी होगी। वतन भं रोकतॊि का भहोत्सव सॊऩन्न हो गमा है । सौ वषष से असधक ऩुयाने याजनीसतक दर भं ऩरयवाय की अगरी ऩीढ़ेी के रूऩ भं एक मुवा चेहये का उदमकार। त्रवऩऺ द्राया कभॊजोय प्रधान भॊिी से राॉसछत व्मत्रक्तत्व अऩनी भत्रर्द्भ भुस्कान के साथ दस ू यी फाय प्रधान भॊिी के ऩद की शऩथ रे यहे हं ।

ऐसे सभम भं सुफह की अच्छी रगने वारी ठॊ डी हवा के फीच एक ऑिो रयसशा जगदम्फा कॉरोनी


के सवािष य नॊ. सिह के साभने रुका। ऑिो से एक मुवक औय मुवती उतये । मुवती का उबया हुआ ऩेि दे खकय रग यहा था टक वो गबषवती है । मुवक ने कॉरफेर फजाई। एक साठ-ऩंसठ वषष की

फुजुगष भटहरा ने दयवाजा खेरा। कॉरोनी वारे इन्हं शभाष आॊिी कहते हं । रगबग आठ वषष फाद अऩने फेिे भृदर ु को साभने दे ख शभाष आॊिी के चेहये ऩय भाि हल्की भुस्कुयाहि टदखी। एक

औऩचारयक भुस्कुयाहि। फेिे औय फहू द्राया चयण स्ऩशष कयने ऩय बी शभाष आॊिी ने कोई त्रवशेष

प्रसतटक्रमा व्मक्त नहीॊ की। नाश्ते के वक्त सॊमोगवश ऩड़ेोसी श्रीवास्तव जी औय नाभदे व जी बी आ ऩहुॉचे। मे दोनं शभाष अॊकर के खास सभिं भं शुभाय थे औय अफ सयकायी नौकयी से रयिामय होकय ऩंशन का सुख बोग यहे हं ।

ड्राइॊ गरूभ भं शभाष अॊकर का फड़ेा-सा छामासचि भुस्कुया यहा था। नाश्ते के फीच भृदर ु ने अऩने

आने का कायण फतरामा ''भम्भी, आऩ दादी फनने वारी हं । ऐसे भं आऩ हभाये साथ भुम्फई भं यहं गी तो श्रर्द्ा को फड़ेा सहाया सभर जाएगा। इतने टदनं से अकेरे यहते हुए आऩका भन बी फहर जाएगा।''

नाभदे व जी ने बी भृदर ु की फात का सभथषन टकमा ''भृदर ु ठीक कह यहा है , बाबी जी, अफ आऩकी उम्र नाती-ऩोतं से खेरने की हो गई है । जाइए, भुम्फई घूभ आईए... वैसे बी इस कॉरोनी भं तो सायी ाॊक्जन्दगी अकेरे कािी नहीॊ जा सकती ना?'' शभाष आॊिी अऩने फेिे भृदर ु को फड़े​े गौय से दे ख यहीॊ थी। उन्हं भृदर ु के चेहये ऩय भहानगयीम

कुटिरता टदखाई दी। फीते आठ सारं के रॊफे अॊतयार भं उसे कबी भाॉ माद नहीॊ आई। अफ जफ अऩनी ऩत्नी के सरए आमा की ाॊजरूयत ऩड़ेी तो भाॉ के ऩास दौड़ेा चरा आमा। शभाष आॊिी के चेहये ऩय उबय आई ऩीड़ेा की ये खाएॉ श्रीवास्तव जी औय नाभदे व जी से छुऩी न यह सकीॊ।

शभाष आॊिी ने अऩना सनणषम सुना टदमा ''इस कॉरोनी भं तुम्हाये ऩाऩा की मादं फसी हुई हं । महाॉ की गसरमं, भॊटदय, खेर का भैदान, ऩाकष, गुद्ऱा जी के टकयाने की दक ु ान औय यभेश चौयससमा के ऩान ठे रे से झाॉकती स्भृसतमाॉ भुझे उनके होने का एहसास कयाती हं । उम्र के इस ऩड़ेाव भं मे

एहसास ही भेये जीने का एकभाि सहाया है । इनके त्रफना भं जी न सकूॉगी। ऐसे भं भेया भुम्फई जाना सॊबव नहीॊ है ।'' भृदर ु के साथ नाभदे व जी औय श्रीवास्तव जी शभाष आॊिी को आद्ळमष से दे ख यहे थे। शभाष आॊिी की नॊजयं शभाष अॊकर की भुस्कुयाती तस्वीय ऩय टिकी थीॊ।

भृदर ु ने कनक्खमं से अऩनी ऩत्नी श्रर्द्ा को दे खा। श्रर्द्ा के चेहये से भकसद ऩूया न होने की हताशा िऩक यही थी।

फहू-फेिे शाभ की गाड़ेी से भुम्फई यवाना हो गए। अकेरे भं शभाष आॊिी खूफ योईं। शभाष अॊकर की पोिो ऩय हाथ यखते हुए वे कह यहीॊ थीॊ ''भंने कुछ गरत तो नहीॊ टकमा ना?''

उन्हं रगा टक तस्वीय भं हॉ सते हुए शभाष अॊकर उनके सनणषम ऩय भुहय रगा यहे हं । ऐसे बावुक ऺणं भं शभाष आॊिी के आस-ऩास अतीत का कुहासा छाने रगा। वैसे अतीत के सयोवय को


खॊगारते सभम कुछ िू िने-पूिने औय रहूरुहान हो जाने का बम हभेशा फना यहता है । समा ऩता, तरहिी भं ऩैय के नीचे कोई िू िा हुआ काॉच का िु कड़ेा धॉस जाए औय हभ कयाह उठं । रेटकन क्जमे हुए सुखद ऺणं का योभाॊच इन कयाहं की ऩयवाह कहाॉ कयता है । शभाष आॊिी की ऑॊखं भं मादं के सचयाग योशन थे।

पौज से रयिामयभंि के फाद इस कॉरोनी भं आए हुए उन्हं ज्मादा टदन नहीॊ हुए थे रेटकन जल्द ही अऩने आत्भीम व्मवहाय औय रोगं की भदद के सरए हभेशा तैमाय यहने की आदत ने सूयज

प्रसाद शभाष औय श्रीभती प्रबा दे वी शभाष को कॉरोनी भं शभाष अॊकर औय शभाष आॊिी के नाभ से भशहूय कय टदमा। कॉरोनी वारं के सरए हय छोिे -फड़े​े काभ भं शभाष अॊकर की सराह जरूयी

सभझी जाने रगी। मटद सराह न बी भाॉगी जाए, तफ बी शभाष अॊकर अऩनी नेक सराह दे ना कबी न बूरते। कबी-कबी तो इनकी फेशकीभती सराहं कॉरोनी वारं के सनजी जीवन भं हस्तऺेऩ बी सभझी गईं। सरहाजा झगड़े​े -पसाद तक की नौफत आ गई। एक फानगी हुआ मह टक सवािष य नॊ. नौ भं यहने वारे ऩीिय स्िीपन यंज की तयह शाभ को दारू चढ़ेाकय घय आए औय अऩनी वाईप की धुनाई शुरू कय दी। फीच-फीच भं फहकती आवाॊज भं गारी फकते हुए कह यहे थे, ''चाय-चाय रड़ेकी ऩैदा कय दी कुसतमा ने, एक रड़ेका सनकार दे ती तो भय तो न जाती कभीनी।'' थोड़े​े -थोड़े​े अॊतयार भं रात-घूॊसे की आवाॊज के साथ सभसेज ऩीिय की ददष से त्रफरत्रफराती तेज चीख बी सुनाई ऩड़े जाती।

ऩीिय की फड़ेी रड़ेकी योजी ने आज थोड़ेी टहम्भत टदखाई औय छुऩते-छुऩाते शभाष अॊकर के घय जा ऩहुॉची। वह सससकते हुए फोरी ''अॊकर भम्भी को फचा रो, नहीॊ तो ऩाऩा भाय डारंगे।''

शभाष अॊकर का बावुक टदर योजी के ऑॊसू फदाषश्त न कय सका। फस मही बावुकता है जो शभाष अॊकर को दसु नमावी जोड़े-तोड़े से ऩये धकेर दे ती है औय इस ऺण भं वे आभ रोगं से ऊऩय उठे हुए टदखने रगते हं ।

होकय वे तुयॊत ऩीिय के घय जा ऩहुॉचे। वहाॉ भायऩीि, चीख-ऩुकाय का क्रभ जायी था। शभाष अॊकर तुयॊत ऩीिय को फाहय खीॊच राए। शभाष अॊकर की भजफूत बुजाओॊ भं ऩीिय का दफ ु रा-ऩतरा

शयीय झूरने रगा। नशे भं चूय ऩीिय को अऩनी नेक सराह दे ते हुए वे फोरे, ''समा कय यहे हो, ऩीिय, औयत ऩय हाथ उठाते हुए तुम्हं शभष नहीॊ आती। योज-योज भायऩीि, हॊ गाभा खड़ेा कयना समा अच्छी फात है ? नाहक ही कॉरोनी का भाहौर खयाफ कय यहे हो।''

यगं भं दौड़ेते अल्कोहर ने ऩीिय स्िीपन को अऩनी शायीरयक ऺभता से गाटपर कय टदमा था। अफ उनका ध्मान अऩनी वाईप से हिकय शभाष अॊकर की ओय गमा। वे रड़ेखड़ेाती आवाॊज भं गयजे ''तुभ कौन होते हो हभाये फीच भं फोरने वारे? हभने तुम्हं फुरामा था समा? टपय समं चरे आए पिे भं िाॉग अड़ेाने... चरे जाओ महाॉ से, मे हभाया ऩसषनर भैिय है ।''


इतना सुनते ही शभाष अॊकर के दाएॉ हाथ भं हयकत हुई औय तंजी से रहयाता हुआ हाथ ऩीिय के गारं भं जभ गमा। चिाक... की तीव्र ध्वसन हुई औय शभाष अॊकर की ऍॊगुसरमं की छाऩ ऩीिय के गार ऩय उबय आई।

थप्ऩड़े ने जाद ू का असय टकमा। ऩीिय नशीरे आसभान से िऩककय वास्तत्रवकता की जभीन ऩय

आ गमा। तफ तक शोय-शयाफा सुन शभाष अॊकर के सभि श्रीवास्तव जी, नाभदे व जी औय यहभत अरी बी वहाॉ आ ऩहुॉचे। ऩीिय ने सफके साभने अऩने टकए की भापी भाॉग कय अऩनी जान छुड़ेाई।

श्रीवास्तव जी, नाभदे व जी, यहभत अरी औय शभाष अॊकर की चौकड़ेी कॉरोनी भं फड़ेी चसचषत थी। चायं भं से एक बी मटद शाभ तक न सभरा तो सभझो, फाकी तीन फेचन ै । खोजफीन शुरू हो जाती चौथे की। ऩता चरा टक चौथा फीभाय है । फस टपय समा था... डॉसिय के महाॉ रे जाने से रेकय दवा-दारू तक का ऩूया इॊ तजाभ फाकी तीनं के हवारे। ऐसे भं चौथे का कुछ बी फोरना प्रसतफॊसधत होता। धन्मवाद, शुटक्रमा, थंसस जैसे शब्दं का प्रमोग अनुसचत औय आऩत्रत्तजनक था। दवा-दारू से माद आमा टक शभाष अॊकर के घय सद्ऱाह भं कभ से कभ एक फाय भहटपर अवश्म जभा कयती, क्जसभं दे य यात तक ऩीने-त्रऩराने का दौय चरता। इसी के चरते शभाष अॊकर को सभसरट्री कंिीन से सभरने वारी उनके कोिे की शयाफ अससय कभ ऩड़े जाती। हभ-प्मारा, हभसनवारा थे चायं सभि। कबी एक-दस ू ये के सुख भं इठराते तो कबी आऩस भं दख ु भं टहचकी रेरेकय योते।

ईद के टदन यहभत अरी के घय भं दावत होती। रॊजीज व्मॊजनं की मे मादगाय दावत कुछ ऐसा असय छोड़ेती टक ऩकवानं का जामका सार बय फना यहता। ऩरयणाभ मह होता टक ईद के त्रफना बी भनऩसॊद व्मॊजनं की पयभाइश सरभा बाबी को ऩूयी कयनी ऩड़ेती। शभाष अॊकर तो सरभा बाबी के हाथ की फनी भिन त्रफयमानी के दीवाने थे। त्रफयमानी खाने के फाद अऩना हाथ टदखाते हुए वे फड़े​े नािकीम अॊदाज भं कहा कयते थे ''बाबी, दे खना, त्रफयमानी के साथ कहीॊ भं अऩनी एकाध ऍॊगुरी तो नहीॊ खा गमा?''

जवाफ भं सरभा बाबी फस भुस्कया कय यह जाती। जफ बी यहभत अरी के महाॉ भिन त्रफयमानी फनती तो शभाष अॊकर के महाॉ त्रवशेष रूऩ से ऩहुॉचाई जाती। इन चायं की दोस्ती कॉरोनी भं चचाष का फामस होती।

मे उस सभम की फात है जफ दे श भं भॊडर-कभॊडर की याजनीसत गभष थी। सौ वषष से असधक ऩुयानी ऩािी से फगावत कय त्रवऩऺी खेभे भं शासभर हो जाने वारे नेता आक्खयकाय दे श के प्रधान भॊिी फन गए। ऐसे सभम भं शभाष अॊकर कॉरोनी भं अऩनी जड़े​े जभा यहे थे। शभाष अॊकर की शक्ख्समत बी कभ टदरचस्ऩ नहीॊ थी। उनके ससय से फारं को रुखसत हुए कापी अयसा हो गमा था। केवर कान के ऊऩयी टहस्सं औय ससय के त्रऩछवाड़े​े भं ही फारं के अवशेष

फचे हुए थे। इन अवशेषं की दे खबार भं वे कोई कोताही नहीॊ फयतते। सभम-सभम ऩय इन दर ष ु ब


अवशेषं को कारा कयना वे कबी नहीॊ बूरते। अऩनी उजड़ेी दसु नमा को जभाने की नॊजयं से

सछऩाने के सरए वे टकस्भ-टकस्भ की िोत्रऩमाॉ हभेशा रगाए यहते। शभाष अॊकर के ससय भं फार बरे ही नाभभाि के थे, रेटकन भूॉछं फड़ेी शानदाय थीॊ। ऊऩय की ओय तनी हुई झफयीरी। हट्िे कट्िे गोये बसक शभाष अॊकर के व्मत्रक्तत्व को उनकी जफदष स्त भूॉछं औय बव्म फनाती थीॊ। एक फात औय है , जो शभाष अॊकर को कॉरोनीवाससमं से गहये तक जोड़ेती थी। पौज से रयिामयभंि के फाद वे अऩने गृह नगय फीकानेय जा सकते थे, ऩयॊ तु मह शहय उन्हं इतना यास आमा टक वे महीॊ के होकय यह गए। तभाभ सशकवा-सशकामतं के फाद बी उन्हंने स्थामी सनवास के सरए इस शहय को ही चुना। फच्चं की सयरता औय फड़ें की गॊबीयता का अनोखा तारभेर था उनके जीवन भं। सुफह-सुफह कॉरोनी के खेर भैदान भं िीशिष -रोअय ऩहनकय फच्चं की टक्रकेि िीभ को कोसचॊग दे ने ऩहुॉच जाते औय यत्रववाय को होने वारे टक्रकेि भैच भं अॊऩामरयॊ ग का क्जम्भा बी वो फड़ेी खुशी से

सॊबारते। फच्चं के चाहते, न चाहते हुए बी उन्हंने खुद को टक्रकेि िीभ का असबन्न टहस्सा फना सरमा था। अऩनी जवानी के टदनं के टक्रकेि क्खराटड़ेमं के ढे यं टकस्से फच्चं को इस तयह

सुनाते, भानो वे घिना के सभम वहाॉ भौजूद थे। इस तयह कॉरोनी के फच्चं से रेकय फड़ें तक शभाष अॊकर की रोकत्रप्रमता सभान रूऩ से थी। शभाष अॊकर के अजीॊज दोस्त यहभत अरी उन ऍॊधेये टदनं को कैसे बूर सकते हं । उत्तय बायत के एक टहस्से भं एक त्रववाटदत ढाॉचा सगया टदमा गमा था। दे श भं सॊदेह, वैभनस्म के फादर छाए

हुए थे। कॉरोनी का छुिबैमा नेता रच्छू गुद्ऱ फैठकं कय रोगं को एकजुि होने औय बायत भाता की यऺा कयने की दहु ाई दे यहा था। कॉरोनी के कुछ मुवा उसके जोशीरे बाषण से खासे प्रबात्रवत थे।

उन्हीॊ टदनं की अभावस की कोई यात थी। सभम रगबग दो फजे। शभाष अॊकर के ऩास यहभत अरी का पोन आमा। आवाॊज भं घफयाहि थी, ''शभाष जी, भुझे फचाइए, इन रोगं ने भेया घय चायं तयप से घेय सरमा है औय भकान भं आग रगाने की तैमायी कय यहे हं ।'' शभाष अॊकर ने ऍॊधेयी यात भं ही अऩनी राइसंसी दन ु ारी फॊदक ू सनकार री। उनके फेिे भृदर ु ने

उन्हं योकने की फहुत कोसशश की। वो नहीॊ चाहता था टक त्रऩताजी इस ऩचड़े​े भं ऩड़ें । रेटकन जहाॉ दोस्ती सनबाने की फात आ आए तो टपय शभाष जी कहाॉ भानने वारे थे। फेिे की फात अनसुनी कय वे सीधे यहभत अरी के घय ऩहुॉचे। बीड़े उन्भादी नाये रगा यही थी।

शभाष जी ने चीखते हुए, रोगं को वहाॉ से हि जाने के सरए कहा, रेटकन उनकी आवाॊज नायं भं दफी जा यही थी। अॊतत: उन्हंने हवाई पामय कय टदमा। फन्दक ू की आवाॊज ने अऩना असय टदखामा। घफयाकय बीड़े सततय-त्रफतय हो गई।

शभाष अॊकर उस सभम यहभत अरी को परयश्ता नॊजय आ यहे थे। उन्हंने कृ तऻता बाव से कहा ''शुटक्रमा शभाष जी, अगय आज आऩ वक्त ऩय न आए होते तो न जाने समा हो जाता।''


''अरी साहफ, आऩ हभाये फीच के कामदे को तोड़े यहे हं । आऩ जानते हं टक धन्मवाद, शुटक्रमा, थंसस जैसे रॊफ्जं का प्रमोग हभाये फीच प्रसतफॊसधत है ।'' शभाष जी के इस वासम से ऐसे कटठन सभम भं दोनं के चेहयं ऩय हल्की-सी भुस्कान क्खर गई। यहभत अरी के ऩरयवाय को वे यात भं ही अऩने घय रे आए। क्स्थसत साभान्म होने तक यहभत अरी का ऩरयवाय शभाष अॊकर के महाॉ ही यहा। भृदर ु को मह फात जया बी अच्छी नहीॊ रगी। यहभत अरी का ऩरयवाय चरे जाने के फाद वह

तुनक कय फोरा, ''समा जरूयत थी इस झभेरे भं ऩड़ेने की। अगय हभ कबी भुसीफत भं ऩड़े गए तो कौन फचाने आएगा हभं... यहभत अॊकर तो आने से यहे । ऐसा कयके हभने रच्छू नेता जैसे

रोगं को अऩना दश्ु भन फना सरमा है । औय टपय मे कौभ कोई दध ू की धुरी नहीॊ है । भौका सभरा नहीॊ टक जात टदखाने से फाज नहीॊ आते मे रोग।''

तड़ेाक... शभाष जी के जोयदाय तभाचे से भृदर ु रड़ेखड़ेा गमा। ''एक आदभी अऩनी जान फचाने के सरए सगड़ेसगड़ेा यहा हो औय हभ उसके जासत, धभष के टहसाफ-टकताफ भं उरझे यहं ... मही सॊस्काय टदए हं भंने तुम्हं । अऩने टदभाग के जारं को जया साॊप कय रो, भृदर ु । भं तो मे सोचकय काॉऩ जाता हूॉ टक जो जहय तुम्हाये जेहन भं बय चुका है , कहीॊ तुम्हाये सरए ही घातक न फन जाए।

फड़ेा अपसोस है टक मे सफ फातं भं अऩने फेिे से टडस्कस कय यहा हूॉ।'' फोरते हुए शभाष जी का फदन काॉऩ यहा था।

ऩाऩा के तेवय दे ख भृदर ु खाभोश हो गमा। उसकी खाभोशी साप फतरा यही थी टक वह ऩाऩा के तकं से सहभत नहीॊ है । केवर हारात साभान्म कयने की गयज से ही उसने अऩनी जुफान फॊद की है । इस घिना के फहुत टदनं फाद तक कॉरोनी भं तनाव फना यहा। कॉरोनी के रोग स्ऩद्शत: दो बागं भं फॊि गए थे। एक गुि शभाष अॊकर का ऩऺधय था तो दस ू या रच्छू नेता का।

वोिं की याजनीसत के चरते मे कॉरोनी ही समा, ऩूया दे श धासभषक, जातीम आधाय ऩय त्रवबाक्जत नॊजय आ यहा था। उस त्रववाटदत ढाॉचे के साथ औय बी फहुत कुछ िू िा इस दे श भं, रेटकन बावुकता के आवेग औय नायं के शोय भं िू िने की आवाॊज दफ-सी गई।

रगबग दस सार गुॊजय गए उस हादसे को। इस फीच कॉरोनी भं फड़े​े फदराव हुए। रच्छू नेता

की नेतासगयी चभक गई। वह नगय सनगभ चुनाव जीतकय ऩाषषद फन गमा। भृदर ु को भुम्फई भं

जॉफ सभर गमा औय वो वही सशफ्ि हो गमा। शभाष अॊकर की फेिी क्जमा इस सभम अहभदाफाद

के एक प्रसतत्रद्षत सॊस्थान से एभ.फी.ए. कय यही है । इन फदरावं से शभाष अॊकर बी अछूते न यह सके। कॉरोनी भं हभेशा सुनाई दे ने वारे उनके फेरोस ठहाके अफ मदाकदा ही सुनाई दे ऩाते। रगता है , कॉरोनी के भाहौर से वे सॊतुद्श नहीॊ है । शुगय औय फी.ऩी. बी इस उम्र भं उन्हं हरकान कयने रगे हं । कॉरोनी के साथ-साथ दे श बी फड़ेी तब्दीसरमाॉ दे ख यहा था।


सौ सार से बी असधक ऩुयाना याजनीसतक दर, क्जसने ऩचास वषं से ज्मादा इस दे श ऩय हुकूभत की, सत्ता से फाहय हो गमा। टदल्री भं अफ उस दर के नेतत्ृ व भं गठफॊधन सयकाय फनी जो त्रववाटदत ढाॉचे को सगयाने भं शासभर थी। इन सफ के फावजूद शभाष अॊकर के महाॉ यात को जभने वारी भहटपर का दौय जायी था। साथी वही ऩुयाने, सवािष य नॊ. ई-उन्नीस के श्रीवास्तव जी, ई-इसकीस के नाभदे व जी औय ई-उनतीस के यहभत अरी। वहाॉ आसभान भं ऩूयनभासी का चाॉद दभक यहा था औय महाॉ शभाष अॊकर की भहॊ टपर बी धीये धीये जवान हो यही थी। क्व्हस्की से एक-चौथाई बये चाय सगरासं भं शभाष अॊकर ने ऩहरे फॊपष के िु कड़े​े डारे, टपय उन्हं ऩानी से बय टदमा। इसी फीच शभाष आॊिी ऩाऩड़े औय ऩनीय के ऩकौड़े​े तरकय रे आईं। भसारेदाय कुयकुये ऩाऩड़ें के साथ घूॉि-घूॉि क्व्हस्की गरे उतयने रगी। वातावयण भं हल्का सुरूय छाने रगा। ग्रक्न्थमाॉ खुरने रगीॊ। उन्भुक्तता ऩैय ऩसाय यही थी। असबव्मत्रक्त के सरए त्रवचाय भचरने रगे। ''कुछ नहीॊ हो सकता इस भुल्क का... नसथॊग... जभाना चाॉद ऩय चरा गमा औय भॊगर ऩय जाने की तैमायी कय यहा है औय हभ हं टक इस फात ऩय रड़े​े -भये जा यहे हं टक अभुक जगह भॊटदय था मा भसक्जद'' शुरुआत शभाष अॊकर ने की, ''सैकड़ें प्राब्रभ हं कन्ट्री भं... कयोड़ें रोग दो वक्त की योिी के सरए तयसते हं , न जाने टकतने अबागे फदफूदाय झोऩड़ेऩक्ट्िमं भं यहने को भजफूय हं , फेयंजगायी है , असशऺा है , जात-ऩाॉत, अभीय-ाॊगयीफ के फीच फढ़ेती खाई, ऺेिीमता, साम्प्रदासमकता, वैश्मावृत्रत्त औय बी न जाने टकतनी सभस्माएॉ हं महाॉ... ऩय इनके ाॊक्खराॊप टकसी बी ऩॉरीटिकर ऩािी मा धासभषक सॊगठनं ने कबी कोई भोचाष नहीॊ खोरा। वे तो व्मस्त हं फस अऩने धभष औय सॊस्कृ सत की यऺा कयने भं।'' वासम रॊफा होने से शभाष अॊकर की जुफान थोड़ेी रड़ेखड़ेा गई। उन्हंने अऩना ऩेग ाॊखत्भ टकमा औय ऩनीय का ऩकौड़ेा खाने रगे। शभाष अॊकर की फातं ने फहुत कभ फोरने वारे यहभत अरी का भौन आॊक्खय तोड़े ही टदमा

''भुल्क को आॊजाद हुए आधी सदी फीत चुकी है शभाष जी, रेटकन हभ वहीॊ के वहीॊ यहे । हभायी

तयसकी के सरए टदल्री ने कबी कुछ नहीॊ टकमा। दस ू यी ऩाटिष मं का डय टदखा कय हभाया शोषण टकमा गमा है । वोि फंक के रूऩ भं हभाया इस्तेभार टकमा गमा है । इन हारातं के सरए हभ बी उतने ही दोषी हं , क्जतने इस दे श के ऩोसरिीसशमन हं । असर भुद्दं को छोड़ेकय ाॊजया-ाॊजया-सी फात ऩय 'भॊजहफ ाॊखतये भं है ' का हौआ खड़ेा कय टदमा जाता है । ाॊपतवे जायी हो जाते हं । तयसकीऩसॊद ख्मारं को तहॊ जीफ ऩय हभरा भाना जाता है । अफ कोई अऩने ही ऩैयं भं कुल्हाड़ेी भायने को आभादा हो तो बरा कोई दस ू या समा कय सकता है ...?''

शभाष अॊकर, यहभत अरी को एकिक दे ख यहे थे। प्राम: चुऩ यहने वारे यहभत अरी का मूॉ भुखय होना उन्हं अच्छा रगा। उन्हंने ससय टहराकय अऩनी सहभसत दे ते हुए कहा ''अफ सभम आ गमा


है अरी साहफ, टक हभ अऩना ध्मान फुसनमादी भसरं ऩय पोकस कयं , तबी हभाया बरा होगा... वनाष हभं डू फने से कोई नहीॊ फचा सकता।'' श्रीवास्तव जी सगरास भं क्व्हस्की उड़े​े रने रगे। नाभदे व जी क्व्हस्की का भॊजा रेते हुए एक गॊबीय श्रोता की बूसभका भंथे।

चचाष गॊबीय होने से भहॊ टपर का भाहौर बायी हो गमा था। इससे सनजात ऩाने के सरए शभाष अॊकर ने िी.वी. ऑन कय टदमा। टकसी खफरयमा चैनर भं ब्रेटकॊग न्मूज फ्रेश हो यही थी। चायं हाथं भं कैद क्व्हस्की से बये जाभ थयाष गए। यहभत अरी की ऑॊखं टकसी अनहोनी की आशॊका से ससकुड़े गईं। श्रीवास्तव जी को बोऩार भं ऩढ़े यहे अऩने इकरौते फेिे की ाॊटपक्र हो गई। नाभदे व जी को अऩने भामके भुयादाफाद गई फीवी की माद आ गई। शभाष अॊकर के चेहये ऩय बी तनाव टदखाई दे यहा था। खफय ही ऐसी थी। िी.वी. चैनर जरे हुए ये र के टडब्फे औय उसभं जरे हुए रोगं की

राशं के सरंज-अऩ दोहया यहा था। अॊठावन राशं। िी.वी. की ाॊखफय से यॊ ग भं बॊग हो गमा। नशे की उड़ेान थभ गई। अफ क्व्हस्की ऩेि भं तो जा यही थी, रेटकन भक्स्तष्क ऩय उसका कोई प्रबाव नहीॊ हो यहा था। भक्स्तष्क ऩय तो अऩने वारे वक्त की आशॊकाओॊ ने कब्जा कय सरमा था। अच्छे भाहौर भं शुरू हुई भहॊ टपर का अॊत फड़ेा नीयस हुआ।

आशॊका गरत नहीॊ थी। असधकाॊश चैनरं द्राया घिना के दृश्म फाय-फाय टदखाए जाने से दे श भं गुस्सा उफर ऩड़ेा। कतायफर्द् शवं की तस्वीयं अॊखफायं के भुख्म ऩृद्ष ऩय छऩी थीॊ, त्रवस्तृत वणषन के साथ औय शुरू हो गमा टहॊ सा का ताण्डव। चौयासी के दॊ गं के फाद दे श ने शामद ही ऐसा भौत का नॊगा नाच दे खा हो। एक टदवसीम टक्रकेि भैच के स्कोय फोडष की तयह भृतकं की सॊख्मा फढ़े यही थी। रोगं को जरामा जा यहा था, कािा जा यहा था। फरात्काय औय रूि के सही ऑॊकड़ें का तो ऩता ही नहीॊ रग सका। दॊ गं का केन्ि फना ऩक्द्ळभ बायत का एक सॊऩन्न याज्म। भहात्भा गाॊधी की जन्भबूसभ। सयकायी ऑ ॊकड़ें के अनुसाय ही दो हॊ जाय से असधक रोग दॊ गं की बंि चढ़े​े । वास्तत्रवक ऑॊकड़े​े सनक्द्ळत तौय ऩय इस सॊख्मा से असधक थे। भाये गए इन सैकड़ें रोगं का िे य् न भं ाॊक्जन्दा

जराए जाने की घिना से समा सॊफॊध था, मह सोचने का वक्त टकसी के बी ऩास नहीॊ था। दॊ गं की ऑ ॊच साये दे श ने भहसूस की। टकसी ने अऩना बाई खोमा तो टकसी के ससय से त्रऩता का सामा उठ गमा। बाइमं की कराइमाॉ सूनी हुईं तो फच्चे भाॉ के त्रफना मतीभ हुए। मे सबी टकसी


न टकसी काभ से उस सभम दे श के उसी ऩक्द्ळभी टहस्से भं भौजूद थे, जो दॊ गं का केन्ि फना था। महाॉ शभाष अॊकर की टकस्भत दगा दे गई। दे श के ऩक्द्ळभी टहस्से के उस याज्म के एक प्रभुख शहय के एक होस्िर भं यहने वारी क्जमा कुछ जरूयी टकताफं खयीदने फुक हाऊस गई हुई थी।

रौिते सभम दब ु ाषनम से वह दॊ गं की चऩेि भं आ गई औय भायी गई। कॉरेज प्रफॊधन ने िे रीपोन ऩय इस ददष नाक घिना की सूचना दी औय भशत्रवया टदमा टक अबी महाॉ हारात ठीक नहीॊ हं । क्जमा के शव के सरए थोड़ेा इॊ तॊजाय कयं । कॉरोनी भं सन्नािा छा गमा। वातावयण भं क्रोध औय दख ु के कीिाणु तुयॊत पैर गए। भुम्फई भं

भृदर ु को ाॊखफय दे दी गई। शभाष अॊकर जैसे भॊजफूत आदभी बी इस हादसे को झेर न सके। वे कबी दहाड़े भाय-भाय कय योते तो कबी चुऩचाऩ ऑॊसू फहाते। शभाष आॊिी का तो औय बीफुया हार था। क्जमा का नाभ रेकय योती औय फेहोश हो जातीॊ। श्रीवास्तव जी, नाभदे व जी औय यहभत अरी के साथ कॉरोनी के कुछ औय रोग बी शभाष अॊकर के घय यात बय यहे ।

दस ू ये टदन भृदर ु आ गमा। भृदर ु के आते ही रच्छू नेता औय उनकी िीभ सटक्रम हो गई।

कॉरोनी भं गुद्ऱ फैठकं का ससरससरा शुरू हो गमा था। मोजनाएॉ फनाई जाने रगीॊ। इन गुद्ऱ फैठकं भं आद्ळमषजनक रूऩ से भृदर ु बी शासभर हो यहा था।

क्स्थसत साभान्म होते ही भृदर ु , रच्छू नेता औय उनके कुछ साथी क्जमा का शव रेने यवाना हो गए।

क्जमा का शव घय आमा तो ऩूयी कॉरोनी की ऑॊखं भं ऑॊसू थे। ऩहरे से ही भौजूद क्रोध औय दख ु की आग औय तंज हो गई। रच्छू नेता इस आग को औय बड़ेकाने भं जुि गमा।

क्जमा के अॊसतभ सॊस्काय के फाद कॉरोनी भं वीयानी छा गई। रगा जैसे महाॉ कोई यहता ही न हो। इस सुनसान भं फस क्जमा की मादं चहरकदभी कय यही थीॊ।

उसी यात कॉरोनी के दग ु ाष भॊटदय भं रच्छू नेता भीटिॊ ग कय यहा था। भीटिॊ ग भं भृदर ु बी था। थोड़ेी ही दे य भं गुऩचुऩ कोई सनणषम रे सरमा गमा।

तीन टदन फाद। यात का दस ू या ऩहय। बमानक कारी यात। फीच-फीच भं कुत्तं के बंकने से

सनस्तब्धता बॊग हो यही थी। ऐसे भं कुछ ऩयछाइमाॉ यहभत अरी के घय की ओय खाभोशी से फढ़ेी चरी जा यही थीॊ। इन ऩयछाइमं को दे खकय कुत्तं के बंकने की आवाॊजं तंज हो गईं। सवािष य नॊ. उनतीस के ऩास आकय ऩयछाइमाॉ रुक गईं। ऩयछाइमाॉ ऩूयी तैमायी से आई थीॊ। जल्दी से एक ऩयछाई ने दयवाॊजे की फाहय से कुॊडी रगा दी। अन्म दो ऩयछाइमं ने सवािष य के चायं तयप कुक्प्ऩमं से ऩेट्रोर उड़े​े र टदमा। दस ू यी ऩयछाईं ने भासचस की तीरी से आग रगा दी। ऩरक झऩकते ही यहभत अरी का भकान घास-पूस के ढे य की तयह जरने रगा।

मह सफ इतनी तंजी से हुआ टक टकसी को कुछ सभझने का भौका ही नहीॊ सभरा। कॉरोनीवारे जफ तक भदद को आते, सहामता की कातय प्राथषनाएॉ शाॊत हो चुकी थीॊ। इस फाय यहभत अरी


को िे रीपोन कयने का बी भौका नहीॊ सभरा था। पामय त्रफग्रेड की गाटड़ेमं के हानष कॉरोनी भं गूॉजने रगे। मे हानष फड़े​े भनहूस औय डयावने रग यहे थे।

आग फुझने ऩय कॉरोनी वारे यहभत अरी के घय के अॊदय ऩहुॉचे तो वहाॉ जरे हुए चाय क्जस्भ ऩड़े​े थे। यहभत अरी, उनकी ऩत्नी औय उनकी दोनं फेटिमाॉ।

शभाष अॊकर के सरए मह फड़ेा भुक्श्कर सभम था। उन्हंने रुॉ धे गरे से ऩत्नी से कहा था ''रगता है टक सनमसत भेया धैमष औय द:ु ख फदाषश्त कयने की ऩयीऺा रे यही है । ऩहरे फेिी की ददष नाक भौत का गभ, टपय बाई जैसे दोस्त का मूॉ त्रफछे ड़े जाना भुझसे सहन नहीॊ होता, प्रबा... भं िू ि चुका हूॉ'' कहते हुए शभाष अॊकर की टहचटकमाॉ फेकाफू हो गईं।

सुफह होते ही ऩुसरस सटक्रम हो गई। याजनीसत से दफाव था टक दोत्रषमं को तुयॊत टहयासत भं सरमा जाए ताटक क्स्थसत त्रफगड़ेने से योकी जा सके। ऩुसरस को दग ु ाष भॊटदय भं हुई गोऩनीम फैठक की बनक रग चुकी थी। तुयॊत रच्छू नेता औय भृदर ु के घयं भं दत्रफश दी गई। रेटकन ऩुसरस

के हाथ खारी ही यहे । दोनं यात भं ही पयाय हो चुके थे। रगाताय दफाव फढ़ेता जा यहा था टक आयोत्रऩमं को तुयॊत सगयफ्ताय कयो।

आक्खय भं ऩुसरस ने अऩना सुऩयटहि पाभूर ष ा आजभामा। रच्छू नेता के फडे बाई औय शभाष अॊकर को ऩुसरस थाने रे आई। टकसी ाॊखतयनाक अऩयाधी की तयह सये आभ हथकड़ेी रगाकय इन्हं रे जामा गमा। हथकड़ेी रगाए हुए शभाष जी ाॊजभीन भं गड़े​े जा यहे थे। उनकी नॊजयं झुकी हुईं थीॊ। कॉरोनीवारं की ऑॊखं भं शभाष अॊकर के प्रसत करुणा थी।

थाने भं इनसे रच्छू नेता औय भृदर ु के टठकानं की जानकायी भाॉगी गई रेटकन ऩुसरस कुछ

भारूभात हाससर नहीॊ कय सकी। इनकी अनसबऻता से ऩुसरस फौखरा गई। फौखराहि भं रच्छू के फड़े​े बाई औय शभाष अॊकर को खूफ ऩीिा गमा। क्जन्दगी भं ऩहरी फाय इतने ाॊजरीर हुए शभाष अॊकर।

इन्स्ऩेसिय चौहान के कहे उस वासम ने उन्हं भभाषन्तक ऩीड़ेा दी थी। चौहान ऩान यचे भुॉह से शब्दं को चफा-चफा कय कह यहा था ''सफ रोग अऩने रंडं को नेता फनाने के जुगाड़े भं रगे हं ... टकसी का घय जरा दो, दॊ गे बड़ेका दो... फस फन गए हीयो... अफ चुनाव जीतना त्रफरकुर आसान... समं सही कहा ना भंने। अच्छी ट्रे सनॊग दी है अऩने रंडे को तूने शभाष।'' शभाष अॊकर को रगा टक वे आग की रऩिं से सघय गए हं । उन्हं तीव्र जरन भहसूस हुई।

तीन टदनं के फाद जफ इन्हं छोड़ेा गमा तो शभाष अॊकर ऩहचान भं नहीॊ आ यहे थे। गोया बसक दभकता चेहया फुझ गमा था। हॉ सती हुई ऑॊखं नरासन से बयी हुई थीॊ। वे ऐसे चर यहे थे जैसे

खारी गैस ससरेण्डय सड़ेक ऩय रुढ़ेक यहा हो। त्रफरकुर सनजीव चार। घय आकय उन्हंने टकसी से फात नहीॊ की। शभाष आॊिी ने ऩानी राकय टदमा तो उन्हंने इशाये से इनकाय कय टदमा।


फड़ेी बायी यात थी वह। उस यात शभाष अॊकर ने खाना नहीॊ खामा। ऐसे भं शभाष आॊिी के गरे से बी सनवारा कैसे उतयता। दोनं बूखे ही त्रफस्तय ऩय रेि गए। शभाष अॊकर अऩरक घय की छत घूये जा यहे थे। टकसी को बी अॊदाजा नहीॊ था टक ऐसी फोक्झर यात के फाद एक भनहूस सुफह जगदम्फा कॉरोनी का इॊ तॊजाय कय यही है । अरसुफह शभाष आॊिी की नीॊद खुरी तो शभाष अॊकर त्रफस्तय ऩय नहीॊ थे। उन्हंने सोचा टक वे फाथरूभ भं हंगे, इससरए शभाष आॊिी रेिी यही। कयीफ आधे घॊिे तक शभाष अॊकर नहीॊ आए तो उन्हंने जाकय दे खा टक फाथरूभ का दयवाजा तो खुरा हुआ है औय वहाॉ कोई नहीॊ है । शभाष आॊिी को आद्ळमष हुआ टक आॊक्खय वे कहाॉ हं ? ड्राईंग- रूभ का दयवाॊजा फॊद था।

धसका दे कय दे खा तो दयवाॊजा अॊदय से फॊद था। कई फाय दस्तक दे ने के फाद बी दयवाॊजा नहीॊ खुरा तो शभाष आॊिी के चेहये ऩय सचॊता की रकीयं उबय आईं। ऩड़ेोसी नाभदे व जी, श्रीवास्तव जी औय जैन फाफू को फुरा सरमा गमा। उन्हंने बी अऩने-अऩने तयीके से शभाष अॊकर को ऩुकाया रेटकन हय ऩुकाय सनरुत्तय खाभोशी से िकयाकय वाऩस आ यही थी। सबी के चेहये तनाव से क्खॊच गए। शभाष ऑॊिी का धैमष चुकता जा यहा था। आशॊका की गॊध वातावयण भं पैर गई थी। अफ औय इॊ तॊजाय असॊबव हो गमा। अॊतत: ड्राईंगरूभ का दयवाजा तोड़े टदमा गमा। दृश्म फड़ेा वीबत्स था। पाॉसी के पॊदे ऩय शभाष अॊकर का रॊफा-तगड़ेा सनजीव शयीय झूर यहा था। गोया-सचट्िा यॊ ग नीरा ऩड़े गमा था। फाहय की ओय सनकरी हुई क्स्थय ऑॊखं औय जीब दे खकय कोई कह नहीॊ

सकता था टक इसी शख्स के ठहाके कबी ऩूयी कॉरोनी को गुॉजा दे ते थे, फच्चं से रेकय फुजुगं तक के हय छोिे -फड़े​े भसरं ऩय रुसच यखते हुए आत्भीम हस्तऺेऩ कयने वारा मह आदभी इस तयह भौत का आसरॊगन कये गा।

शभाष आॊिी मह दृश्म नहीॊ दे ख सकीॊ। वे गश खाकय सगय गईं। कॉरोनीवाससमं की ऑॊखं नभ थीॊ। अऩने सुसाइि नोि भं शभाष अॊकर ने सरखा था प्रबा, समा सॊफोधन दॉ ू तुम्हं ? त्रप्रम प्रबा सरखूॉ तो औऩचारयकता का सनफाषह ही होगा। भेयी

बावनाओॊ की असबव्मत्रक्त टपय बी अधूयी यहे गी। अधांसगनी, जीवन साथी, हभसॊपय, हभयाह, हभकदभ, प्राणत्रप्रम आटद शब्द बी तुम्हं ऩूयी तयह इजहाय कयने भं असभथष हं । इससरए ससपष तुम्हाया नाभ सरख यहा हूॉ। जीवन के िे ढ़े​े-भेढ़े​े ऊॉचे-नीचे, सभतर-ऩथयीरे यास्ते से गुजयने के फाद भं सनस्सॊकोच सरख सकता हूॉ टक अगय तुम्हाया साथ न सभरा होता तो अफ तक की मािा

नाभुभटकन थी। सुख-दख ु , त्रप्रम-अत्रप्रम प्रसॊगं ऩय भेये साथ हभेशा भजफूती से डिे यहने के सरए धन्मवाद।

भुझे द:ु ख है टक भं जीवन-मािा भं तुम्हं अकेरे छोड़े यहा हूॉ। भं मह बी जानता हूॉ टक इस कृ त्म

के सरए तुभ भुझे कबी भाप नहीॊ कयोगी। टपय बी भं तुभसे भापी भाॉगता हूॉ। भं बी समा करूॉ... पौजी हूॉ... स्वासबभान से जीवन क्जमा है , कबी टकसी के साभने नजयं नीची नहीॊ कीॊ। अऩने

उसूरं से सभझौता नहीॊ टकमा। रेटकन अऩनी ही औराद के कायण सये आभ हथकड़ेी रगाए हुए


कॉरोनीवारं के साभने से गुॊजयना ऩड़ेा। भं तो उसी सभम भय गमा था। आज तो भयने की औऩचारयकता बय ऩूयी कय यहा हूॉ। ऩुसरस की अऩभानजनक ऩूछताछ औय फात-फात ऩय भुझे

यहभत अरी का हत्माया कहा जाना, ऐसे आयोऩ थे, क्जन्हं भेयी आत्भा फदाषश्त नहीॊ कय सकती थी। भेया भानना है टक क्जल्रत की ाॊक्जन्दगी से अच्छा है टक भृत्मु को गरे रगा सरमा जाए। भुझे त्रवद्वास है , तुभ भेयी त्रववशता सभझ यही होगी। टपय बी जीवन सॊध्मा की इस घड़ेी भं तुम्हं अकेरा छोड़ेने के सरए शसभषन्दा हूॉ। अरत्रवदा!

अतीत के धुध ॉ रके से सघयीॊ शभाष ऑॊिी की ऑॊखं से ऑॊसुओॊ की ऩतरी रकीय ढु रकने से ाॊपशष भं नभी के गोर-गोर धब्फे फन यहे थे। कुछ दे य फाद ऑॊसुओॊ की रकीय त्रवक्च्छन्न हुई। अफ

उनकी ऑ ॊखं भं कुछ फूॉदं ही थीॊ। अतीत की मािा ने उन्हं थका टदमा था। उनका फूढ़ेा क्जस्भ संपे भं फेसाख्ता सगय गमा। फाईं कयवि सरए हुए शभाष आॊिी का दामाॉ हाथ चेहये को ढॊ क यहा

था। ऑ ॊखं के ऊऩय हाथ यखा होने से वे केवर साभने की दीवाय ही दे ख ऩा यहीॊ थीॊ, जहाॉ शभाष अॊकर का छामासचि भुस्कुया यहा था।  शभाष अॊकर की भृत्मु के फहुत टदनं फाद तक कॉरोनी भे इस फात को रेकय रॊफी फहसं होती

यहीॊ टक समा शभाष अॊकर द्राया उठामा गमा कदभ उसचत था? समा ऩरयक्स्थसतमाॉ इतनी फदतय हो गई थीॊ टक आत्भघात ही एकभाि यास्ता शेष यह गमा था? एक जुझारू पौजी समा इस तयह आत्भसभऩषण कयता है ? समा मह सॊघषष से ऩरामन नहीॊ है ? आटद-आटद।

दस ू यी तयप शभाष अॊकर से सहानुबूसत यखने वारं के बी अऩने तकष थे। उन्हंने शभाष अॊकर की भौत को साम्प्रदासमकता के क्खराॊप रड़ेाई भं शहीद होना फतरामा। क्जन जीवन भूल्मं व

ससर्द्ाॊतं के साथ शभाष अॊकर ने अऩना जीवन क्जमा, जफ वही सॊदेह के घेये भं आ गए तो टपय जीने के भामने ही समा फचे थे उनके सरए। दस ू यं से तो आऩ कटठन से कटठनतभ रड़ेाई रड़े सकते हं , रेटकन अऩनं से रड़ेना फेहद दश्ु कय है । अऩने फेिे की रच्छू नेता से नॊजदीकी औय यहभत अरी के साथ उनके ऩरयवाय की हत्मा के आयोत्रऩमं भं भृदर ु का नाभ साभने आने से

शभाष अॊकर फुयी तयह िू ि गए थे। एक तयप अऩने ऩयभ सभि की ऩरयवाय सटहत नृशॊस हत्मा का सदभा तो दस ू यी ओय इस जघन्म हत्मा भं अऩने ही फेिे की सॊसरद्ऱता का करॊक उन्हं घोय

भानससक मातना दे गमा। अऩनी फेिी की असाभसमक भृत्मु के शोक से उफयने का प्रमत्न कय यहा एक त्रऩता, एक के फाद एक हादसे का ताफड़ेतोड़े आक्रभण कैसे सह सकता था? ऩऺ-त्रवऩऺ के तभाभ तकं औय फहस-भुफाटहसं का मह दौय धीये -धीये ठॊ डा ऩड़ेता गमा। साक्ष्मं के अबाव भं रच्छू नेता औय भृदर ु को यहभत अरी औय उनके ऩरयवाय की हत्मा के आयोऩ से न्मामारम ने फाईज्जत फयी कय टदमा। अफ तो कॉरोनीवाससमं के भक्स्तष्क भं शभाष अॊकर की स्भृसतमाॉ धुध ॉ री ऩड़े गई हं । याजनीसतक ऩामदानं ऩय तंजी से चढ़ेता हुए रच्छू नेता आज शहय का भहाऩौय फन चुका है ।


यात के सन्नािे भं जगदम्फा कॉरोनी के फासशन्दे जफ गहयी नीॊद भं होते हं , तफ असॊख्म प्रद्ल कॉरोनी की सूनी गसरमं भं बिकते यहते हं , उत्तय की तराश भं।   कुभाय क्जनेश शाह

त्रवचायं का घना कुहासा सॊवेदनाओॊ के ऩहाड़ें से सघयता है तो घनीबूत होकय शब्द रूऩी जर कानं भं ऩरयवसतषत हो जाता है । इन्हीॊ जर त्रफॊदओ ु ॊ से फनी कोई कत्रवता मा कोई कहानी टदर की सभट्िी ऩय फयसकय उसे सबगो जाती है औय तफ वहाॉ यचनाओॊ के पूर रहयाते हं । कुभाय क्जनेश शाह 126, 10 फी.सी., त्रवद्या नगय गाॉधीधाभ, कच्छ-370203 (गुजयात) भो.: 09824425929 आजकर व्मवसाम जन्भ : 1969

चभक धूऩ की भिभैरी धूऩ का कुयता ऩहने सूयज आ तो गमा है , योज आ धभकना उसकी भजफूयी है । वह चाहे बी तो यत्रववाय की छुट्िी रे नहीॊ सकता। जाड़े​े ने उसके कुयते की चभक पीकी कय दी है । वैसे

अबी कॊऩकॊऩाता जाड़ेा शुरू नहीॊ हुआ। एक ओय कश्भीय भं तीन-चाय ईंच फपषफायी हुई तो दस ू यी

तयॊ प से ाॊपमान का चक्रवात हौवा फनकय उठ आमा। फदरं का समा, डय कय साये आसभान ऩय सछतया गए औय सूयज का चेहया धुध ॉ रा गमा। आज की सुफह ने साहा साहफ के भन ऩय बी धुध ॉ रका सछड़ेक टदमा है । अर सुफह की रुिन भं


चाम सुड़ेक कय वे इॊ पको की हयी-बयी कॉरोनी भं एक घॊिे की जोसगॊग-वॉटकॊग कय आए हं । खाद फनाने वारी इस कम्ऩनी ने कुछ ऐसा खाद ऩानी ऩिा कय कॉरोनी को गुरॊजाय कय टदमा है टक वह ऩूया का ऩूया एक त्रवशार फागीचा रगती है । श्रीभान एन.जी. साहा चुस्त शयीय औय खुरे भन के भासरक हं । अऩने औय अऩने ऩूये ऩरयवाय के स्वास्थ्म के प्रसत जागरूक यहने वारे साहा साहफ

को यक्तचाऩ मा भधुभेह जैसी यईस फीभारयमाॉ छू नहीॊ ऩाईं। वैसे उनका भॊजफूत दावा है टक इॊ पको की इस कॉरोनी की स्वच्छता तथा सुॊदयता के फीच खड़े​े दयॊ ख्तं के साए भं कोई दस सभनि बी िहर आए तो उसका फी.ऩी. नाभषर हो सकता है । मह भौसरक त्रप्रक्स्क्रप्शन हय सभरने-जुरने वारे को वे त्रफना भाॉगे ऩकड़ेा दे ते हं । रेटकन आज तो राज बयी ऩरकं की तयह झुके-झुके ऩेड़ें के इदष -सगदष ऩुरटकत योभ-यासश जैसी छाई घासं बी उनके भन का उद्रे ग शाॊत नहीॊ कय ऩाईं। नॉफ गोऩार साहा, भहाफॊदय काॊडरा भं वरयद्ष जर-यासश सवेऺक की योभाॊचक नौकयी से त्रऩछरे ही सार रयिामय हुए हं । कुछ वषष इॊ टडमन नेवी, भुॊफई भं कामषयत यहने के फाद वहाॉ से सनवृत्त होकय उन्हंने काॊडरा भं सत्रवषस रे री। इस प्रकाय कई सारं के सुदीघ कच्छ-सनवास के कायण वे

कक्च्छमत भं सॊदेश की नभष सभठास फनकय घुर गए हं । ऩक्द्ळभ फॊगार के ऩुरुसरमा क्जरे से आए साहा साहफ की फाॊनरा रहजे वारी टहन्दी भं अफ बी गाॉव के खेतं की संधी सभट्िी भहकती है । अऩने ऩायॊ ऩरयक यीसत-रयवाॊजं भं यचे-फसे इस फॊगारी फाफू को महाॉ की फाॉनरा एसोससएशन ने बी सम्भाननीम ऩदं ऩय त्रफठाकय उनका राब सरमा है । आऩ बायतीम भहाफॊदयं के फीच होने वारी

साॊस्कृ सतक प्रसतमोसगताओॊ भं काॊडरा का प्रसतसनसधत्व कयते हुए अऩनी िीभ द्राया प्रस्तुत नािकं तथा छाऊ नृत्मं से टकतने ही ऩदक फिोय राए हं । इन साये भान-सभान के एवज भं वे फाकी

की क्जॊदगी कच्छ के ऩुयसुकुन वातावयण भं त्रफताना चाहते थे। रेटकन अफ जया फात फदर गई है । रयिामयभंि के दो सार ऩहरे साहा साहफ की त्रफटिमा इसी इपको के 'शगुन' हॉर भं ब्माह कय हावडा चरी गई है । दाभाद एभ.फी.ए. कयते-कयते टदल्री भं ही एक भल्िीनेशनर कॊऩनी के कैम्ऩस हॊ ि भं चुन सरमा गमा। कॊऩनी ने बायी ऩेकेज ऑपय दे कय उनकी िे रंि हसथमा री थी। फेिी-दाभाद सऩरयवाय खुश हं औय साहा साहफ नाना बी फन चुके हं । इस तयह, उनका इकरौता फेिा कैसभस्ि फन कय 'िी ट्रे ड इकोनोसभक जॉन' की एक पाभाषस्मूटिकर कॊऩनी भं चीप सुऩयवाइजय है । उसकी अच्छी तनख्वाह औय इनकी ाॊखासी ऩेन्शन छोिे -ऩरयवाय को सुखी-ऩरयवाय फनाए यखने भं सऺभ थी। तबी वैक्द्वक स्तय ऩय छाई आसथषक भॊदी ने त्रवरनसगयी कय दी। ओसबजीत की कॊऩनी बायी घािे के साथ फॊद हो गई। टपरहार वह छोिी-छोिी नौकरयमं भं उरझा हुआ कुॊटठत होता जा यहा है । ऩरयवाय-वत्सर साहा साहफ को मह सहन नहीॊ हो ऩाता।

दस ू यी तयप, दाभाद फाफू ओसबजीत को कोरकाता फुरा यहे हं । काॊपी अच्छा काभ है । साहा साहफ


के सरए बी जॉफ तम कय यखी है । उम्र भं ज्मादा पकष नहीॊ होने के कायण सारा-जीजा का रयश्ता मायी बया है । ओसबजीत के ताय फहन सुभन से गहये जुडे हं । सुभन छोिी जरूय है ऩय उसकी फड़ेी-फड़ेी फातं औय यीसत-रयवाॊजं को भाॉ की बाॉसत ऩयॊ ऩयागत रूऩ से भनाने की प्रकृ सत के कायण ओसबजीत उसे दी' कहा कयता है । सतस ऩय अफ तो सुभन खुद बी भाॉ फन चुकी है । इस ऩदोन्नसत ने उसकी प्रौढ़ेता औय बी फढ़ेा दी है । वह बी भाॉ-फाफा औय ओसब ऩय फॊगार रौिने का दफाव रगाताय फनाए हुए है । अॊतत: त्रऩछरे दस भटहनं से साहा साहफ ने प्रोऩिी ब्रोकय रारवानी को अऩना घय 'गोऩार त्रवरा' अच्छे दाभं ऩय सनकरवा दे ने के सरए कह यखा है ।

उन्हंने मह घय चौदह वषष ऩहरे फनवामा था। खुद एक-एक साभान जाॉच-जाॉच कय टदन-यात की भशसकत के फाद मह घय फनवामा है । कच्छ की खायी ये त मा खाया ऩानी बूर से बी इस्तेभार नहीॊ होना चाटहए, इस फात की तसल्री के सरए वे श्फायी चौकीदाय से खारी नरास भाॉगते औय िं कय से आमा ऩानी खुद ऩीकय दे खते। फारू की जाॉच के सरए भुट्ठी बय ये त नरास भं डारते औय टपय वो ये तीरा ऩानी चख रेते। कबी-कबाय नरास उऩरब्ध नहीॊ होता तो फारू की चुिकी सीधे भुॉह भं डारकय चुबराते औय टपय थूकते यहते। रेटकन खायी ये ती टकसी हारत भं आने न

दे ते। स्ट्रसचय टडॊ जाइन भं बी भुखजी दा को छूि दे यखी थी टक ऊॉचा से ऊॉचा ससरमा इस्तेभार होना चाटहए। मही वजह है , भहात्रवनाशकायी बूकम्ऩ उनके घय की एक बी ईंि टहरा नहीॊ ऩामा। अऩने स्वास्थ्म के फाद शामद दादा इस घय का ही सवाषसधक ध्मान यखते हं । ऐसा शानदाय 'गोऩार त्रवरा' वैक्द्वक भॊदी औय डाॉवाडोर शेमय फाजाय के कायण अफ तक त्रफक

नहीॊ ऩामा। कच्छ भं याजस्व की नई नीसतमाॉ रागू टकए जाने के कायण बी प्रोऩिी भाकेि अिकसी गई है । केन्ि सयकाय कच्छ को त्रऩछरे दस सारं से रगाताय टदए जाते यहे आसथषक राब बी वाऩस रे रेना चाहती है । मे साये कायण तो घाघ रारवानी कई फाय सगनवा चुका है । रेटकन कर यात उसने पोन ऩय उसचत बाव नहीॊ सभरने की जो वजह फतामी, वह अप्रत्मासशत थी। साहा साहफ आवाक यह गए थे। साॉस जफ वाऩस रौिी तो उन्हंने खाभोशी से पोन काि टदमा। अफ मही फात उनको कर यात से बीतय ही बीतय भथ यही है । त्रप्रम ऩाठकगण, एक ही चरयि के सनयॊ तय वणषन से कहीॊ कहानी भोनोिोनस ् ना हो जाए, इससरए चसरए कथा को इस गभगीन भोड़े ऩय छोड़ेकय एक नए जामकेदाय चरयि की तयप भुड़ेते हं । तो रीक्जए, एक नमा कैये सिय कहानी भं शासभर हो यहा है ...। भोहम्भद आॊजाद अॊसायी 'असीभ...' उम्र 68 वषष, रॊफा गठीरा फदन, घुॊघयारे फार, बीॊगा हुआ

यॊ ग, घुिी हुई गहयी आवाॊज, सरीन-शेव ऩय याजकऩूयी भूॊछं, त्रप्रम गामक भुकेश। तखल्रुस को ही नाभ की

तयह धायण टकए हुए 'असीभ' बाई ट्रे टडशनर ऩठानी सरफास की वजह से भुसरभान रगते हं

वनाष ऩूयी तयह से साम्प्रदासमक हं । कौभी एकता के फुरॊद ऩयचभदाय असीभ बाई भं कूि-कूि कय बयी बायतीमता उनके चोिदाय शेयं भं भुकम्भर भासभषकता के साथ पूि ऩड़ेती है ।


आऩ बायत सयकाय के नाससक िकसार भं रुतफेदाय ओहदे ऩय से दस वषष ऩूवष सेवासनवृत्त हुए हं । तफ से शामयी को ऩूणष कासरक कामष फना यखा है । तीन टकताफं आ गई हं औय दो ऩाइऩ-राइन भं हं । धाया प्रवाह वाणी औय छत पाडू ठहाके उनके ट्रे डभाकष हं । भूर ऩैदाइश आॊध्र प्रदे श की, इससरए भातृबाषा तेरुगु। सशऺा तथा काभ- काज का भाध्मभ अॊग्रेजी। टहन्दी के प्रसत याद्स प्रेभ की बाॉसत गहयाई से सभत्रऩषत। सोरह वषं के कच्छ-सनवास के कायण गुजयाती, ससॊधी तथा कच्छी जफानं सहजता से खून भं धुर कय टदर ऩय याज कय यही हं । इस प्रकाय कुछ जभा आधा दजषन बाषाओॊ भं धायाप्रवाह फोर सकते हं । त्रवसबन्न बाषाओॊ भं उनकी इस भहायथ ने ही हभाये साहा साहफ को अचॊसबत कय टदमा है । दोस्ती की शुरुआत बी शामद इसी अहोबाव से हुई।

असीभ बाई का फड़ेा फेिा टकसी त्रवशार जहाज का फड़ेा-सा कैप्िन है । जफ कबी जहाज रेकय वह काॊडरा ऩहुॉचता है तो आठ-दस टदनं तक साथ यह जाता है । वनाष वह तो ठहया जहाज का ऩॊछी... वाऩस अऩने जहाज ऩय त्रवद्व भ्रभण के सरए यवाना।

छोिा फेिा ससयाज बायतीम खाद्य सनगभ भं अच्छे ओहदे ऩय तशयीॊप जभा चुका है । उसी ने सोरह सार ऩहरे अऩने ाॊख्वाफं के असस जैसा घय ताभीर कयवा कय असीभ बाई को गाॊधीधाभ फुरवा सरमा तो उन्हंने ही इस ाॊख्वाफगाह का नाभकयण ''असस'' कय टदमा। दो सार फाद जफ साहा साहफ अऩना घय फनवाने की ाॊजद्दंजहद भं गकष थे, तफ असीभ बाई के घय से ही त्रफजरी का अस्थाई कनैसशन सरमा गमा था। तफ से हय यत्रववाय को दस फजे की चाम टकसी

न टकसी एक घय भं फनती औय साझा ही ऩी जाती। कबी असीभ बाई की शामयी का दौय चरता तो कबी साहा साहफ चेस की फाॊजी भाय रे जाते। साहा साहफ के रयिामयभंि के फाद तो घयं भं आने वारे अॊखफायं को इकट्ठा ही ऩढ़ेा जाता औय साये जहाॉ के भसरं ऩय इतनी तंज फहस होती टक भटहराएॉ आक्जॊज आ जातीॊ। असीभ बाई के कयाये तकं को कािना रगबग नाभुभटकन होता सरहाजा साहा साहफ भन-फेभन से उसे कफूर रेते। गाॉधीधाभ के नवोटदत रेखकं, कत्रवमं, नािम कसभषमं को एकजुि कय असीभ बाई ने एक सॊगठन फनामा है 'अवसय', क्जसकी फैठक प्रत्मेक भाह के अॊसतभ यत्रववाय को होती। साहा साहफ की उऩक्स्थसत श्रोतागण भं असनवामष थी। वे आदशष श्रोता हं औय चाह कय बी शेय ऩढ़े नहीॊ ऩाते। असीभ बाई ने एक फाय शब्द-तोड़े कोसशश की औय ताॊजा शेय उन्हं टदमा ''ना भं सगरा करुॉ गा, ना भं सशकवा करुॉ गा 'तुभ सराभत यहो, भं मह दआ करुॉ गा।''' ु

क्जसे साहा साहफ ने अऩने सनयारे अॊदाॊज भं कुछ सुधाय कय उसे मूॉ रौिामा ''ना भं गीरा कोरुॉ गा, ना भं सूखा कोरुॉ गा तुभ सारा भत यहो, भं मह दावा कोरुॉ गा!''


तफ से असीभ बाई ने मह गरती कबी नहीॊ दोहयाई। अरफत्ता, वे सफ सभर कय हॉ सते-हॉ सते रोिऩोि जरूय हो गए थे। साहा साहफ झंऩ गए थे टक उनसे जरूय कोई गरती हुई है ।

असीभ बाई को गोऩार त्रवरा की रॉन फहत ऩसॊद है । अफ दो दोस्तं की भहॊ टपर यत्रववाय की भोहताॊज नहीॊ यही। मह रगबग योज का क्रभ फन चुका है । गोऩार त्रवरा की एक औय चीॊज उनकी पेवरयि है फाॉस की आयाभ कुसी। असीभ बाई इसी ऩय ऩसय कय शेय ऩढ़ेते-ऩढ़ेते जोश भं तन जाते हं औय टपय आयाभ से फैठ नहीॊ ऩाते। अऩने मा टकसी अन्म कत्रव शामय के राजवाफ अशआय की उत्तेजना भं तभतभाए असीभ बाई हभायी सरजसरजी साभाक्जक व याद्सीम सभस्माओॊ ऩय फयस ऩड़ेते हं । वे अऩने इस तंजाफी तेवय के सरए बी तारुका बय भं भशहूय हं ।

हाॉ तो साहफ, अऩनी ऩये शानी महीॊ से शुरू होती है । रारवानी ने कर यात दस भटहने के सब्र के फाद एक ऐसी खट्िी फात कह दी टक दोनं मायं की मायी के दध ू भं खिाई ऩड़े गई। उसने

प्रोऩिी भाकेि की भॊदी को रताड़ेते हुए मह कड़ेवा सच उगर टदमा टक क्जतने बी ग्राहक घय

दे खने आते हं , वे ऩड़ेोस का 'असस' दे खकय टठठक जाते हं । दो-एक ने तो भुॉह ऩय कह टदमा टक भुसरभान के ऩड़ेोस भं वो यहना नहीॊ चाहते औय फाकी रोग गोर-भोर जवाफ दे कय सौदा िार गए। फाॊजाय की भौजूदा सगयावि को भद्दे नॊजय यखते हुए कीभत घिाने ऩय बी कोई तैमाय नहीॊ हो

यहा। मही अधष-सत्म साहा साहफ को सायी यात फेचन ै कयता यहा। उन्हंने मा उनके ऩूये ऩरयवाय ने कबी ख्वाफो-ख्मार भं बी ऐसा सोचा न था। दग ू ाष-ऩूजा, कारी-ऩूजा मा ईद-फकयीद वे ऐसे भनाते

यहे टक दोनं के जात-धभष जुदा हं , इस फात का एहसास ही नहीॊ हुआ। ससयाज के फच्चे सफा औय आॊपताफ सुभन के ऩास ऩढ़ेते औय वहीॊ सोमे यहते। सुषभा फौदी के हाथं ऩकी झीॊगा-चंगयी-योहू कतरा ऩय तो वे जान सछड़ेकते हं । इधय शयीॊपा फंगभ को खीय-कुभाष ओसभ-सुभन से छुऩाकय

टिज भं यखना ऩड़ेता है वनाष साहा साहफ को कहीॊ कभ सभरे तो उनका थोफड़ेा ख्वाह-भ-ख्वाह भं सूज जाता है । साहा ऩरयवाय अऩने ही घय का असस क्जसभं दे खता है , उस 'असस' भं हल्की-सी जुॊत्रफश हुई है ।

'असस' का दयवाॊजा फॊद हुआ। अफ 'गोऩार त्रवरा' का गेि खुरेगा। साहा साहफ ने अॊखफाय त्रफना ऩढ़े​े ही सभेि सरमा। तबी दनदनाती हुई एक ऩरयसचत आवाज ड्राईंग-रूभ भं धॉसी ''समं बाई

जान, भटहने का आक्खयी यत्रववाय है । 'अवसय' की फैठक भं चरना है ना? आज फड़ेी पड़ेकती हुई चीॊज फन ऩड़ेी है । ऩहरे आऩको महीॊ सुना दॉ ू मा टपय भहॊ टपर भं ही सुनंगे?''

साहा साहफ ने त्रफगड़े​े हुए भूड की ऩयछाॊई को ढकेरते हुए कहा ''असीभ बाई, गॊजर तो वहीॊ

इकट्ठे सफके साथ सुनंगे भगय आऩकी आवाॊज के िोन भं कुछ दस ू यी ही फात है , जो आऩ छुऩा यहे हं ।''

''सही ऩकड़ेा आऩने दादा, भं कर से उरझा हुआ हूॉ। खुशी औय गभ दोनं का एहसास साथ-साथ हो यहा है । कौन टकस ऩय हावी है , तम नहीॊ कय ऩा यहा।''

''ाॊगभ को भारयमे गोरी औय खुशी की फात फताइए। भं बी कर यात से ऩोये शान हूॉ। इससरए


ऩहरे खुशी का ाॊखोफय से भुॉह का सोवाद ठीक कय रं।'' असीभ बाई ने ऩॉरीसथन भं से यसगुल्रं का टडब्फा सनकारते हुए कहा ''दादा, ससयाज का प्रभोशन हो गमा। वह भैनेजय फना टदमा जाएगा। तनॊख्वाह तकयीफन चारीस हॊ जाय को ऩाय कय जाएगी।''

''ओयी फाफा, मह तो फहुत फटढ़ेमा फात है । सुषभा, थोड़ेा पोन तो दे ना। ससयाज को कॉन्ग्रेिस ्

फोरने का है । हाॉ, रेटकन ऩहरे योसोगुल्रा का टडब्फा राइए। ई खावड़ेा वारे एकदभ फंगार जैसा सभठाई फनाते हं औय आऩ बी हभाया कभजोयी ठो जानते हं ।'' साहा साहफ यात की फात सचभुच बूर गए। यसगुल्रे का भीठा जामका दोनं के टदरं ऩय रफारफ छा गमा। ससयाज को पोन रगाते ही ऩहरे सुषभा ने औय टपय साहा साहफ ने फधाई के साथ आशीष का ढे य उड़े​े र टदमा। दस ू यी तयप

ससयाज का रहजा दफा-दफा-सा था। उसने बीॊगी-सी आवाॊज भं रयजते हुए कहा ''अॊकर, मह तयसकी शसतषमा है । भुझे खाद्य सनगभ की यामऩुय-दग ु ष इकाई सॊबारनी होगी। टपय शामद हभ रौिकय महाॉ वाऩस ना आ ऩाएॉ। ऩशोऩश भं हूॉ टक तयसकी रूॉ बी मा नहीॊ?''

अफ तक असीभ बाई बी जॊजफाती हो चुके थे। उन्हंने बये गरे से कहा, ''दादा, आऩ अऩने उस रारवानी दरार को कटहमेगा टक हभाया घय बी फेचना है । वयना ससयाज जरूय तयसकी नहीॊ रेगा। वैसे आऩका बी तो चराचरी का डे या है । हभ जुदा तो होने ही वारे हं । तो टपय, प्रभोशन रेकय वह आगे समं न फढ़े​े ? इतने सारं की भुहब्फत ऩाॉव को जकड़ेती जरूय है । शयीॊपा बी उदास फैठी है । चसरमे उसे बी सभझाएॉ। हाॉ तो शाभ को इसी फात ऩय पड़ेकती हुई गॊजर सुनाऊॉगा। ओ.के. आभी आय-छी!''

असीभ बाई को मह फाॊनरा यीत फहत ऩसॊद है टक हभ जा यहे हं , मह नहीॊ कहना चाटहए। कटहए टक हभ आ यहे हं । फड़ेा ऩॉजेटिव एप्रोच है इस त्रवदाई स्रोगन भं। उनके जाते ही साहा साहफ की ऊॉगसरमाॉ रारवानी का नॊफय डामर कयने को सथयक उठीॊ, अफ टकसी को मह सवार नहीॊ सतामेगा टक ऩड़ेोस भं कौन यहता है । शाभ 'अवसय' की फैठक भं असीभ बाई ने अऩनी राऺक्णक अदा से गॊजर उठाई ''भुझ से ज्मादा न सभरा कय तू नहीॊ तो तन्हा यह जाएगा तू मह टठठु यती हुई धूऩ है ...

इसभं कैसे खूॉ गयभाएगा तू?'' दोनं ही दोस्तं को तासरमं औय दाद के फीच टठठु यती हुई धूऩ खून भं दफे ऩाॉव उतयती हुई

भहसूस हो यही थी। साहा साहफ अचानक नरासन औय ऩये शानी भं डू फने रग गए। उन्हं रगने रगा, काश मह भुभटकन होता टक वे बी महीॊ यह जाते औय असीभ बाई बी कहीॊ नहीॊ जाते। मह भिभैरी, धुध ॊ री धूऩ कफ खुरकय नहामेगी औय कफ इसभं वो ऩहरे वारी चभक रौि आएगी,


अफ मही सवार दोनं की आत्भाओॊ को साथ-साथ कचोि यहा था।   याकेश दफ ू े

द्राया श्री वी.एस. सतवायी सवािष य नॊ. - 1451 सेसिय-7, ऩुष्ऩत्रवहाय एभ.फी. योड नई टदल्री F F F F F F आजकर केन्िीम त्रवद्यारम भं अध्माऩन। जन्भ : 1979

नमा भकान दयू कहीॊ सयकायी घड़ेी के घॊिे ने फायह फजने का ऐरान टकमा। टदसम्फय की सदी भं ऩूया शहय

नीॊद की चादय ताने सो यहा है । सन्नािे को चुनौती दे ने के नाभ ऩय ऩुसरस के फूिं की आवाज औय कबी-कबी त्रवयोध दजष कयाने की-सी भुिा भं बंकते कुत्ते। अरी सय जाग यहे हं । त्रऩछरे हफ्ते बय से वे योज ही जागते हं । न चाहते हुए बी कभये से फाहय सनकर गए।

आज बी कहीॊ

फात नहीॊ फनी। समा कयं ? हफ्ते बय से शहय की खाक छान यहे हं , हय गरी, हय भुहल्रा, हय घय। ऩरयणाभ वही यिा-यिामा जवाफ। मा तो कभया खारी नहीॊ है मा टकयाए ऩय नहीॊ दे ना है । समं? मह ऩूछने का न तो उन्हं असधकाय है , न औसचत्म। ऊऩय से मह भकान भासरक। योज एक ही फात, कभया कफ खारी कय यहे हं । तफस्सुभ के कभये की फत्ती अबी बी जर यही है । दो भहीने फाद ही तोउसके पाइनर ऩेऩय हं । ऩता नहीॊ, उसको ऩेऩय की सचन्ता है मा ऩाऩा की तयह भकान की।


िीवी. भं दे खा था उन्हंने अभेरयका का िावय सगयते हुए। अपसोस बी हुआ था सैकड़ें फेगुनाहं

की भौत ऩय। दसु नमा भं फढ़ेती आतॊकी गसतत्रवसधमं ऩय तफस्सुभ से गयभागयभ चचाष बी हुई थी। अभेरयकी याद्सऩसत का वह वक्तव्म बी सुना था क्जसभं उन्हंने इस्रासभक आतॊकवाद को दसु नमा

की शाॊसत के सरए सफसे फड़ेा खतया फतामा था। टपय ऩूयी दसु नमा भं इस ऩय त्रवभशष, अभेरयका का अपगासनस्तान ऩय हभरा, सायी खफयं से वाटकप थे अरी सय। वे तो उस सभम बी नहीॊ चंके

थे जफ अभेरयका ने ऩाटकस्तान से सोरह हजाय कयोड़े के हसथमाय फेचने का कयाय टकमा। हार के कुछ वषं भं चंकना बूर-सा गए हं , अरी सय। कोई बी तो नहीॊ चंकता आजकर। सफको जैसे बमानक खफयं की आदत ऩड़े गई हो। ऩय अभेरयकी िावय का सगयना आभ फात नहीॊ थी। मह उन्हं तफ ऩता चरा जफ उस योज भकान भासरक ने उन्हं फुरामा, 'अरी सय! आऩ कहीॊ औय भकान ढू ॉ टढए, हभं अऩना भकान खारी कयाना है ।' 'ऩय समं?' 'फस ऐसे ही। गाॉव से हभाये कुछ रयश्तेदाय आ यहे हं ।' 'ऩय इतनी जल्दी हभं दस ू या भकान सभरेगा कहाॉ? फच्चं की पाइनर ऩयीऺा बी होने वारी है ।' 'वह आऩकी सभस्मा है । हभं तो अऩना भकान खारी कयाना है ।'

भकान भासरक त्रफना नॊजयं सभराए अन्दय चरे गए। अरी सय को जैसे साॉऩ सूॉघ गमा। आक्खय समा कायण हो सकता है , त्रऩछरे ऩाॉच वषं से तो वह इसी भकान भं यह यहे हं । कबी टकसी फात ऩय कोई तकयाय नहीॊ हुई। टपय अचानक?

'अये , कायण समा है ? हभ भुसरभान जो ठहये । ऩूयी दसु नमा भं आतॊकवाद पैराने वारे। कैसे यह सकते हं एक टहन्द ू के घय भं।' तफस्सुभ क्रोध से तभतभा यही थी। चंक गए अरी सय। इस

ओय तो उनका ध्मान ही नहीॊ गमा। शहय की हफ्ते बय की हरचरं से वह मह तो भहसूस जरूय कय यहे थे टक हवा फदरी-फदरी रग यही है ऩय अपगानी-अभेरयकी मुर्द् का असय हजायं टकरोभीिय दयू असभ के इस शहय ऩय इस तयह ऩड़ेा, मह तो वे सोच बी नहीॊ ऩाए थे।  'जी, पयभाइए।' दयवाजा खोरने वारे ने ऩूछा था। 'टकयाए ऩय भकान खारी है समा?' 'आइए, अॊदय फैठकय फात कयते हं '। अॊदय जाते सभम अरी सय को रग यहा था, शामद हफ्ते बय की बाग-दौड़े खत्भ होने वारी है । भकान बी ठीक-ठाक था। दो कभये , टकचन, रैटट्रन, फाथरूभ। टकयामा दो हजाय रुऩमे भहीना जरूय ज्मादा रग यहा था ऩय सभम की नजाकत दे खते हुए उन्हंने चुऩ यहना ही फेहतय सभझा। भकान भासरक अॊदय से चाम की ट्रे सरए ड्राइॊ ग रूभ भं दाक्खर हुए। 'अये , इसकी समा जरूयत थी, साहफ।' अरी सय सॊकोच भं थे।

'जरूयत समं नहीॊ है । आऩ ऩहरी फाय हभाये घय आए हं , वैसे बी अफ आऩ हभाये टकयाएदाय हं ,


ऩीना-त्रऩराना तो अफ रगा ही यहे गा।' हॊ स ऩड़े​े भकान भासरक। अरी सय को रगा, वे फेकाय ही ऩये शान हो उठे थे। शहय अबी इतना बी वीयान नहीॊ हुआ है टक अच्छे रोग न हं। 'वैसे आऩ कयते समा हं ?'

'जी, केन्िीम त्रवद्यारम भं टहन्दी ऩढ़ेाता हूॉ।'

'समा फात है । इसे कहते हं सॊमोग। भं फाॊनराबाषी जरूय हूॉ ऩय टहन्दी साटहत्म भं गहयी टदरचस्ऩी यखता हूॉ। कफीय, सूय, प्रेभचॊद को कापी ऩढ़ेा है भंने।'

'मे तो भेया बी सौबानम है । वयना आजकर बाग-दौड़े की दसु नमा भं साटहक्त्मक रोग कहाॉ यह गए हं ?'

'फुया भत भासनएगा, साहफ। ऩय आज के साटहत्म भं बी अफ वह तेवय कहाॉ यहा। सबी रक्ष्भी के ऩीछे बाग यहे हं , अफ है कोई जो कफीय की तयह सीना ठोककय कह सके टक 'फेदयो दीवाय का इक घय फनामा जाए'।' 'ठीक पयभाते हं , जनाफ। अफ वह फात कहाॉ यही। अफ तो सफके अऩने-अऩने तयीके हं , फात को घुभाकय बयभाने का।' 'खैय, एक से बरे दो। अफ आऩ आ जाइए तो टपय साटहत्म चाचाष का यस सरमा जाए। ओह! भं बी टकतना अजीफ हूॉ, घॊिे बय से फक-फक कय यहा हूॉ औय आऩका नाभ बी नहीॊ ऩूछा।' 'जी! भेया नाभ याहत अरी है , रोग अरी सय ही कहते हं ।' भकान भासरक अचानक रुक गए।

'आऩ जया फैटठए, भं अबी आमा।' अॊदय जाते हुए उन्हंने कहा।

अरी सय सोच भं ऩड़े गए। मे अचानक इन्हं समा हो गमा? अबी तो अच्छी- बरी फातं कय यहे थे। टपय? कहीॊ ऐसा तो नहीॊ टक... आशॊका सही सात्रफत हुई। भकान भासरक जफ फाहय सनकरे तो चेहया औय जुफान दोनं फदर चुके थे।

'दे क्खए, हभं अपसोस है रेटकन हभ आऩको अऩना भकान टकयाए ऩय नहीॊ दे सकते।' 'ऩय अबी-अबी तो...।' 'फात दयअसर मह है टक...।' अरी सय फात शामद सभझ गए थे। चेहये ऩय ढे य सायी कड़ेवाहि पैर गई, 'आऩ याहत अरी को भकान नहीॊ दे सकते मा टहॊ दी िीचय को।' 'नहीॊ-नहीॊ, ऐसा कुछ बी नहीॊ है । दयअसर भेयी श्रीभती जी ने कर ही टकसी को भकान दे ने का वादा कय टदमा है ।' भकान भासरक के चेहये ऩय फेशभी साप झरक यही थी। अरी सय सनकर गए। चाम ठण्डी ऩड़े गई थी। सड़ेक ऩय चरते सभम वे भहसूस कय यहे थे टक सभम फदर गमा है । हवाएॊ फदर गई हं । शामद


वे ही अऩने को नहीॊ फदर ऩा यहे हं ।  तीस वषष ऩहरे जफ वे उत्तय प्रदे श के गाजीऩुय क्जरे से योजी-योजगाय की तराश भं असभ के इस ससल्चय शहय भं आए थे, तफ से अफ तक टकतना कुछ फदर गमा है । उन्हं अफ बी माद है कणेन्द ु बट्िाचामष की वे फातं क्जसने उनके जीवन का नसशा फदर टदमा, 'तुभ टहन्दी भं एभ.ए., फी.एड. हो औय टकयाने की दक ु ान ऩय काभ कयते हो। समं नहीॊ केन्िीम त्रवद्यारम भं अध्माऩक के सरए प्रमास कयते। वैसे बी महाॉ टहन्दी ऩढ़े​े -सरखे रोगं की कभी है ।'

'जी, ऩय भेयी तो महाॉ टकसी से कोई जान-ऩहचान नहीॊ है , टकससे फात करुॉ ?' याहत अरी शामद इस प्रद्ल के सरए तैमाय नहीॊ थे।

'तो इसभं समा ऩये शानी है , ऐसा कयो तुभ, कर ही भेये घय आ जाओ, भं त्रप्रॊससऩर से तुम्हायी फात कयवा दे ता हूॉ।'

आज बी उस सुफह को अऩने जीवन की सफसे हसीन सुफह भानते हं अरी सय। प्राचामष, बट्िाचामष भहाशम के ऩरयसचत ही थे। जगह बी खारी ही थी। याहत अरी टहन्दी के काॊट्रैसचुअर िीचय हो गए, एक वषष के सरए। ऩद नाभ ऩय उन्हं जरूय है यानी हुई थी काॊिैय् सचुअर! वह बी केवर एक वषष के सरए। त्रवद्यारम

के सनमभानुसाय दस ू ये वषष वह रगाताय काभ नहीॊ कय सकते। उन्हंने तो मही जान यखा था टक

सशऺक का ऩेशा बावना-प्रधान होता है ऩय बावनाओॊ का काॊट्रैसि बी होने रगा है , मह ऩहरी फाय ऩता रगा था। टपय बी उन्हं सॊतोष था टक जल्दी ही वे सनमसभत हो जाएॉगे, रेटकन...। मह रेटकन कबी खत्भ नहीॊ हो ऩामा। टकतनी फाय साऺात्काय टदमा, उनके ऩढ़ेाए त्रवद्याथी तक अध्माऩक हो गए ऩय अरी सय! हय वषष भजफूय होते यहे त्रवद्यारम फदरने ऩय, उनकी बावना को व्मवस्था ने कबी सनमसभत होने का भौका नहीॊ टदमा, बावनाओॊ के काॊिैय् सि का ससरससरा क्खॊचता ही चरा गमा। अफ तक।

हय वषष त्रवदाई सभायोह। सोचते हं अरी सय। अफ तो आदत-सी ऩड़े गई है । हाॉ, ऩहरी फाय वे प्राचामष की फात सुनकय जरूय चंके थे, 'भुसरभान होकय बी टहन्दी औय सॊस्कृ त जैसे त्रवषम ऩय अरी सय की ऩकड़े टकसी के सरए बी आद्ळमषचटकत कयने वारी है ', प्राचामष ने गवष से दे खा था उन्हं । उन्हं रगा जैसे टकसी ने जफयन एक अनचाही त्रवशेषता की कीर ठोक दी है उनके सीने भं। त्रऩछरे तीस वषं से वे इसे क्जतना ही सनकारने की कोसशश कयते हं , मह औय अॊदय की तयप धॉसती चरी जाती है । 'भुसरभान होकय बी।' मही एक जुभरा है जो नहीॊ फदरा इन तीस सारं भं। फाकी तो फदरता ही यहा। याहत अरी, अरी सय भं फदरते गए। ऩत्नी, फेिी तफस्सुभ, फेिा रयमाज। ाॊक्जन्दगी पैरती गई अऩने त्रवस्ताय भं। फयाक घािी भं टहन्दी का ऩमाषम हो गए वे। अफ तो तभाभ त्रवद्यारम उनकी टडसग्रमाॉ बी नहीॊ


दे खते इॊ ियव्मू के सभम। हय कोई उनका अऩना था। कफीय के त्रविोह भं क्जतना ही उनका चेहया तभतभाता, भीया के त्रवमोग भं उतना ही नभ हो जाता। शहय के हय साभाक्जक-साॊस्कृ सतक आमोजन के असनवामष टहस्सा थे वे उस वषष तक।  7 टदसॊफय, 1992। अरी सय सुफह सोकय उठे तो भौसभ बायी-बायी सा रगा। सड़ेक ऩय िहरते ऩुसरस वारे औय सन्नािे को दे खकय वे इतना तो जान ही गए टक सफ कुछ ठीक नहीॊ है । कर शाभ फाफयी भक्स्जद सगया दी गई। याभ की जन्भबूसभ अमोध्मा भुक्त हो गई? ऩूये दे श भं हाई अरिष घोत्रषत कय टदमा गमा है । अगरे कुछ टदन फेहद फोरयमत औय तनाव भं गुजये । योज जुरूस। कबी त्रवजम का, कबी करॊक टदवस का। ऩहरी फाय शहय भं तभाभ 'टहन्द'ू औय 'भुसरभान' ऩैदा हो गए।

तफस्सुभ उस वक्त चाय सार की थी। सब्जी रेकय घय आते सभम वे चौयाहे की बीड़े दे खकय रुक गए। भॊच ऩय सुदीऩ फभषन जोशीरे ढॊ ग से 6 टदसॊफय की घिना को बायत के इसतहास की अत्रवस्भयणीम घिना फता यहे थे। साथ ही फाफय को आदशष भानने वारं को खुरी चेतावनी बी। कफीय, सूय, तुरसी, भीया...। वे अऩने भानस भं फाफय को तराशने रगे थे। सुदीऩ फभषन। बायत भं टहन्द ू अक्स्भता औय स्वासबभान का नमा काॊिैय् सि सॉबारने वारी ऩािी के प्रभुख ऺेिीम नेता। सभजोयभ त्रविोह के ऩहरे अनाजं को अऩने गोदाभ भं दफाकय यातं-यात फड़े​े आदभी फन गए। त्रविोह थभा तो साभाक्जक है ससमत के सरए याजनीसत भं हाथ आजभाने की कोसशश भं रगे हं । ऩािी का झण्डा फुरॊद कयने की क्जम्भेदायी फखूफी सॉबार यहे हं । 'ऩाऩा, मे फाफय कौन था?' चाय सार की तफस्सुभ ने भासूसभमत से ऩूछा। 'फेिा, एक त्रवदे शी शासक था।' 'समा उसने याभ ऩय कब्जा कय सरमा था, रेटकन याभ तो बगवान थे न।' 'नहीॊ फेिा, ऐसा नहीॊ है ।' 'ऩय ऩड़ेोस वारे अॊकर तो मही कह यहे थे। अच्छा मे टहन्द ू कौन है , ऩाऩा?' 'समा कयोगी जानकय? जफ फड़ेी होगी तफ खुद जान जाओगी।'

'हभ उसके दे श भं समं यह यहे हं । हभाया अऩना दे श कहाॉ है , ऩाऩा?' झल्रा उठे अरी सय। कोई जवाफ नहीॊ था इन भासूभ से सवारं का उनके ऩास। सवार बी तो फहुत उठने रगे हं , आजकर। उसी शाभ जफ यवीन्ि सॊगीत के एक धासभषक आमोजन भं वे त्रफना फुराए ऩहुॉच गए तो तभाभ नॊजयं आद्ळमष बाव से उनकी तयप उठ यही थीॊ। त्रफना उनके कुछ फोरे उन्हं वह जुभरा साप सुनाई ऩड़े यहा था 'भुसरभान होकय बी...।'

'अरी सय! आऩको इस सभम महाॉ नहीॊ आना चाटहए था।' ऩड़ेोस के चक्रवती दा की आवाज ने उन्हं सकऩका टदमा।


'ऩय भं तो वषं से इसी तयह आता-जाता यहा हूॉ।'

'तफ की फात औय थी। अफ क्स्थसत फदर गई है ।' सचभुच क्स्थसत फदरती चरी गई। दीवायं अमोध्मा भं जरूय िू िीॊ ऩय असॊख्म खड़ेी बी हो गईं क्जनकी छामा अरी सय दे ख ऩा यहे थे। भुॊफई फभ त्रवस्पोि ने तो जैसे टहराकय ही यख टदमा, त्रऩछरे तभाभ वषं की फुसनमाद को। उन्हं रगा जैसे वे अचानक फहुत यहस्मभम हो गए हं । ऩता नहीॊ समं हय नॊजय सीना छरनी कयती

प्रतीत होती। तभाभ िमूशन फॊद हो गए। सयकते चरे जा यहे थे कफीय, सूय, तुरसी... खुद उनके अऩने बीतय बी।  अरी सय आज बी जाग यहे हं । भकान की फात अफ तक नहीॊ फन ऩाई। गीदड़ें के योने की आवाज। आजकर शहय भं बी गीदड़े यो यहे हं । 'साधो दे खो जग फौयाना' यात के वीयाने को ि​िोरती ऩगरे की आवाज। मह बी वषं से जाग यहा

है । जफ ऩूया शहय सो जाता है , ऐसे ही कफीय को गाता यहता है , नीॊद भं खरर ऩड़ेने से कई फाय रोग झल्रा उठते हं । ऩय मह हभेशा से ऩागर नहीॊ था। फड़ेी उम्भीद थी अरी सय को अऩने इस होनहाय छाि से। ऩढ़ेाई के साथ-साथ गामन भं बी फेजोड़े। अरी सय अससय त्रवद्यारम के आमोजनं भं कोई न कोई कत्रवता जरूय गाते। सॊवेदना के त्रवस्ताय के साथ-साथ सभाज की त्रवसॊगसतमं के प्रसत स्वत: ही त्रविोह न जाने कैसे बयता चरा गमा। आज बी अरी सय को वह टदन टकसी बमावह स्वप्न की तयह रगता है । उसकी शादी के दो ही भहीने तो फीते थे। शहय भं एक के फाद एक तीन फभ त्रवस्पोिं ने सुयऺा फरं को सचॊता भं डार टदमा। ऩूये शहय की गहन तराशी। वे उन टदनं स्वतॊिता टदवस की तैमारयमाॉ कया यहे थे। आधी यात के वक्त शोयगुर सुनकय जागे थे। क्खड़ेकी से दे खा, सुयऺा फरं ने उसके घय को घेय सरमा है । 'सारा आतॊकवाटदमं की तयपदायी कयता है , दयवाजा खोर।' सुयऺा फरं की बीड़े से आवाज सनकरी थी। थोड़ेी दे य सन्नािा। टपय दयवाजा तोड़ेने की आवाजं। उस यात इतना ही दे ख ऩाए थे वे। फाकी फहुत फाद भं एक टदन ऩगरे ने ही फतामा था।

'भादय...। आतॊक पैराता है ,' एक साथ कई फॊदक ू ं के फि उसके चेहये से िकयाए थे।

ऑ ॊखं के साभने अॊधेया पैर गमा। नई नवेरी ऩत्नी चीखकय उसके ऊऩय ऩड़े गई। दो तीन ससऩाही झऩि ऩड़े​े उस ऩय। 'सारी, यॊ डी, आतॊकवादी को फचाती है ,' खीॊचकय चायऩाई ऩय ऩिक टदमा उसे। वह योती यही, चीखना तेज होता गमा, ऩता नहीॊ कफ वह चेतनाशून्म हो गमा था।


ऑ ॊखं खुरीॊ तो ऩूया घय िू िा ऩड़ेा था। चायऩाई ऩय सचत ऩड़ेी ऩत्नी के इदष -सगदष त्रफखये खून ने उसके होश उड़ेा टदए। चीख ऩड़ेा था वह। अरी सय बाग कय ऩहुॉचे थे उसके घय। उसके बी ससय, नाक, चेहये ऩय खून की ऩऩटड़ेमाॉ ऩड़े

चुकी थीॊ ऩय ऩत्नी की हारत ज्मादा ही खयाफ थी। हाथ ि​िोरकय दे खा, नब्ज चर यही थी। जल्दी से ऑिो फुरामा, भेटडकर कॉरेज की तयप बागे। ऩयॊ तु आगे सड़ेक जाभ थी। असभ से फाहयी रोगं को खदे ड़ेने के सरए एक ऺेिीम सॊगठन ने आॊदोरन के नाभ ऩय मातामात फॊद कय यखा था। घॊिं सचल्राता यहा वह ऩागर। ऩत्नी को गोद भं उठाए सगड़ेसगड़ेाता यहा ऩय याज्म की फड़ेी सभस्मा के आगे उसकी अऩनी सॊवेदना कभजोय ऩड़े गई रोगं को आकत्रषषत कय ऩाने भं। टकसी तयह दो फजे जफ भेटडकर कॉरेज ऩहुॉचे, तफ तक उसकी ऩत्नी क्जॊदगी की जॊग हाय गई थी।

अरी सय को आज बी माद है उसकी गीरी ऑॊखं की सचॊगायी। टपय अचानक ही वह गामफ हो गमा। भहीनं फाद जफ रौिा तो रोगं ने उसे ऩागर घोत्रषत कय टदमा था।  स्कूर का भाहौर अचानक गयभ हो गमा है । वभाष जी ऩूये उपान ऩय हं (कबी-कबी ही होते हं ), 'हद हो गई, साहफ। इस दे श भं आक्खय हो समा यहा है । जनयर डामय को बी ऩीछे छोड़े टदमा है हभायी सयकाय ने। सनहत्थे रोगं ऩय गोसरमाॉ...। कसूय समा है फेचायं का, मही न टक अऩनी ऩुयखं की जभीन नहीॊ छोड़ेना चाहते। साभने ऩड़ेा अखफाय नॊदीग्राभ ऩय यो यहा है ।' 'नॊदीग्राभ ऩय कहाॉ जा यहे हं , ऊऩयी असभ भं कर टपय दस व्माऩारयमं की हत्मा कय दी गई, अफ तो सड़ेक ऩय सनकरते हुए बी डय रगने रगा है , ऩता नहीॊ टकधय से गोरी आए औय खोऩड़ेी उड़ेा दे ।'

चॊडीगढ़े के चढ्ढा जी के चेहये ऩय सचॊता की रकीयं साप टदखाई ऩड़े यही हं । 'फाहयी-बीतयी की फात छोटड़ेए। गुवाहािी की तस्वीयं दे खी आऩने? भटहराओॊ को नॊगा कयके ऩीिा गमा। भं तो कहता हूॉ, अभानवीमता की इससे फड़ेी िासदी औय समा हो सकती है ?' ऩन्ना साहफ चीखे।

अल्राह का शुक्र है , इन घिनाओॊ भं टकसी भुसरभान का हाथ नहीॊ है , अरी सय भन ही भन फड़ेफड़ेाए। साइटकर ऩय घय जाते सभम उस छोिी फच्ची का भासूभ चेहया औय सवार दोनं ही उन्हं आगे फढ़ेने से योक यहे थे। 'सय! दे श भं सफसे फड़ेा आतॊकवादी कौन है ?' अरी सय सकते भं ऩड़े गए। समा जवाफ दं । वे बी तो वषं से इसी का जवाफ चाह यहे हं । टकससे ऩूछं? कहाॉ जाएॉ।


घय ऩहुॉचकय दे खा, ऩत्नी, फेिी

औय फेिा साभान सभेि यहे हं । 'भकान सभर गमा है , आज ही सशफ्ि होना है ।' तफस्सुभ के चेहये ऩय सॊतुत्रद्श के बाव थे। 'कहाॉ?' 'यसूरऩुय भं।' 'चंकने की फायी अरी सय की है । यसूरऩुय भं? ऩय हभ वहाॉ कैसे यह सकतेहं?' 'समं? वहाॉ समा फुयाई है ?' 'अये बाई! तुभ रोग सभझते ही नहीॊ। वहाॉ का साॊप्रदासमक भाहौर ठीक नहीॊ है । रोगं की नॊजय भं हभ फैठे-त्रफठाए साॊप्रदासमक हो जाएॉगे।' ऩत्नी इस फाय त्रफपय गईं, 'आऩको तो फस कुछ सभम भं ही नहीॊ आता है । आठ टदन से दौड़े यहे हं , ढू ॉ ढ ऩाए भकान? कहाॉ चरा गमा था आऩका साॊप्रदासमक सौहादष । टकसी ने टदमा सहाया? वहाॉ का भकान दे खा है ? दो कभये का फ्रैि है , ऐसा भकान ढाई हजाय भं बी नहीॊ सभरेगा औय वहाॉ केवर डे ढ़े हजाय भहीने भं सभर गमा है । अफ अगय हभं एक हजाय रुऩमे भहीने का फच यहा है तो नहीॊ यहना हभं उधय, हभं साॊप्रदासमक सभझा जाए तो सभझा जाए।' अरी सय कुछ बी नहीॊ फोर सके। फेिा ठे रा ढू ॉ ढने सड़ेक ऩय सनकर गमा। दयू कहीॊ ऩागर गा यहा है 'सॊतो घय भं झगया बायी।'   भॊजकूय आरभ

अशयपुर भख्रूकात मासन इॊ सानं की दसु नमा भं बी जौयो-जफय का याज है । मह दे खकय भन

फेचैन हो उठता है । रेटकन फेफसी का रफादा ओढ़ेकय ऩड़ेा यहता हूॉ। जफ जभीय कचोिता है तफ भं अऩनी फेफसी को कम्प्मूिय के की-फोडष भं धॉसा दे ता हूॉ। इस भ्रभ को फनाए यखने के सरए

सरखता हूॉ टक शामद इससे कुछ फदरे। मही फेचायगी औय फेचैनी भुझसे सरखवाती है । टपय बी भं चाहूॉगा टक भेया सरखना फॊद हो जाए... भॊजकूय आरभ द्राया नसीरुर हक, ठठे यी फाॊजाय फॊज्भी नगय, फससय, त्रफहाय-802101


भो.: 09311636408 आजकर 'द सॊडे इॊ टडमन' (बोजऩुयी) ऩत्रिका भं सहामक सम्ऩादक व स्वतॊि रेखन। जन्भ : 1974

फस महीॊ तक जफ भं भॊडी हाउस के कॉपी हाउस से सनकरा था, तो कापी खुश था। भुझे अऩने कॊधे ऩय िॊ गे झोरे का एहसास तक नहीॊ था। भं हवा भं उड़ेता आई.िी.ओ. फस स्िॉऩ ऩय आ खड़ेा हुआ था।

कॉपी हाउस भं करा ऩायक्खमं के एक दर ने भेये कॊधे ऩय िॊ गे िाि के झोरे की शान भं कसीदे ही ऩढ़ेने शुरू कय टदए थे। जैसे वह झोरा न होकय, खूफसूयत आधुसनक ऩंटिनस का अद्भत ु नभूना हो। उन्हं उस ऩय फनी भधुफनी ऩंटिॊ ग फहुत ऩसॊद आई थी।

कोई साढ़े​े छह फज चुके थे। शाभ का धुध ॉ रका ऩूये वातावयण को फहुत तेजी से अऩने आवयण भं

रऩेिता जा यहा था। फत्रत्तमं के यौशन होने से शहय भं कृ त्रिभ चाॉदनी सछॊ िक आई थी। तेज फहती हुई हवा बारे-फसछष मं की तयह फदन को छे दे जा यही थी। रेटकन भं अऩनी धुन भं इतना भगन था टक भुझे इसका एहसास ही नहीॊ था। दफ्तयं के फॊद होने का सॊकेत फस स्िॉऩ की तयप आती हुई बीड़े दे यही थी। रग यहा था टक

ऩूया शहय महीॊ उभड़े ऩड़ेा हो। अरग-अरग रूिं की फसं रगाताय आ-जा यही थीॊ। रोग-फाग चढ़ेउतय यहे थे। रेटकन बीड़े घिने की फजाए औय... औय होते ऍॊधेये की तयह फढ़ेती ही जा यही थी। भुझे वहाॉ खड़े​े -खड़े​े रगबग एक घॊिा होने को आमा। रेटकन अफ तक दे वरी-खानऩुय जाने वारी टकसी फस का ऩता नहीॊ था। रोग फातं कय यहे थे। उनकी फातं भं ताजगी थी। टदन बय के काभ की थकान कहीॊ नहीॊ टदखती थी। अफ घय ऩहुॉच जाएॉगे, ससपष इस सोच ने ही उनके अॊदय ताजगी बय दी थी। टहभाचर भं

आज सुफह ही जभकय फपषफायी हुई है , तबी तो इतनी ठॊ ड फढ़े गई है । नहीॊ तो, कर तक तो सफ कुछ ढये ऩय था। बीड़े भं से टकसी ने कहा अये माय, इतनी तेज ठॊ ड यही तो 26 जनवयी की सुफह तो घय से सनकरना बी भुहार हो जाएगा। उसी भं से टकसी ने हाॉक रगाई सयकायी नौकयी कयनी है , न। दफ्तय तो आना ही ऩड़े​े गा। जैसे ही 26 जनवयी का क्जक्र आमा, भेये शयीय भं झुयझुयी-सी दौड़े गई। ओह... शामद... टपय


कई तयह की अनजान आशॊकाओॊ ने भेये उत्पुसरत भन के ऊऩय अऩना पन काढ़े सरमा... औय भं अॊदय तक ससहयता चरा गमा। कुछ ही टदन ऩहरे तो टदल्री भं आतॊकी वायदात हुई थी औय भुझे माद है टक उसके फाद समासमा हुआ था। भुझे अऩनी फेगुनाही के टकतने सफूत दे ने ऩड़े​े थे। भेये भकान भासरक ने

एकफायगी तो भुझे ही घय खारी कयने को कह टदमा था औय जफ भंने अऩने फॉस को मे फातं फतराई थीॊ तो... भुझे ठीक से माद है टक उन्हंने टदरासा टदराने की फजाए भुझ ही से ऩूछ सरमा था तुम्हं नहीॊ रगता टक इन घिनाओॊ की वजह से ऩूये दे श भं जफयदस्त अत्रवद्वास का भाहौर फनता जा यहा है ? जफ भंने ि​िोरने वारी सदष सनगाहं से उनकी तयप दे खा तो जल्दी से उन्हंने फात को हल्का कयने की गयज से कहा था भुझे ऩता है , फहुत साये सनदोष रोग इसभं

त्रऩस यहे हं । उनकी इस फात ने तो भुझे अॊदय तक छीर कय यख टदमा था। कई यातं घूभते ऩॊखे को दे खते हुए गुजायी थी... एक फाय टपय वही डय भेये ऊऩय तायी होने रगा था।

अचानक भेये ख्मारं को ब्रेक रगा। अच्छा ही हुआ टक तबी ब्रू राइन की 423 नॊफय की फस चयष यषयष... की आवाज के साथ भेये ख्मारं को चीयती हुई भेये साभने खड़ेी थी। भेयी ऑॊखं चभक

उठीॊ। भं नहीॊ सभझ सका टक मे घॊिे-ऩचऩन सभनि की तऩस्मा के सपर होने की चभक थी मा उस बमानक सोच से फाहय सनकरने की, क्जसे भं इन टदनं हय कदभ ऩय बोग यहा था। वैसे बी टदल्री के ऩरयवहन औय भौसभ का कोई बयोसा तो है नहीॊ। इससरए फस आने की खुशी स्वाबात्रवक ही थी।

ठसाठस बयी हुई फस। सतर यखने की बी जगह नहीॊ। खुदा-खुदा कयते टकसी तयह भं उतयने के सरए इस्तेभार आने वारे आगे के दयवाजे से फस भं दाक्खर हुआ। अॊदय आने के फाद

स्वाबात्रवक रूऩ से भंने ऩॉकेिं ऩय हाथ भाया। भोफाइर सभेत सफ कुछ सुयक्ऺत था। अबी याहत की साॉस बी नहीॊ रे ऩामा था टक कॊडसिय की आवाज सुनाई ऩड़ेी टिकि, टिकि रेना बाई... आऩने रे सरमा...। भं कुछ सोचता, इससे ऩहरे ही फस तेज धसके के साथ रुक गई। टकसी तयह बीड़े भं से ससय सनकार कय, सशॊटकत सनगाहं से आगे की तयप सनगाह भायी। साभने आई.िी.ओ. चौयाहे ऩय तभतभाई सुखष चेहये की तयह यौशन फत्ती सख्ती से सबी गाटड़ेमं को रुकने का आदे श दे यही थी। भंने चैन की साॉस री। फस के आगे-ऩीछे छोिी-फड़ेी गाटड़ेमं की रॊफी कताय रगी हुई थी।

उफ्प... कहाॉ से आ जाती हं टदल्री भं इतनी सायी गाटड़ेमाॉ। ऩूये शहय की गाटड़ेमाॉ आज महीॊ आकय रग गई हं समा? असहाम आभ आदभी की तयह भंने सोचना शुरू कय टदमा था सयकाय कुछ कयती समं नहीॊ? समं नहीॊ वह ऐसे रोगं ऩय गाटड़ेमाॉ यखने से योक रगाती है क्जनके घय भं ऩाटकंग नहीॊ है । रावारयस की तयह घय के आगे गाटड़ेमं को रगाकय ऩड़ेोससमं का बी जीना


हयाभ कय दे ते हं । ऩतरी-ऩतरी गसरमं को बी जाभ कयने से नहीॊ चूकते। एक आदभी के ऩास समं दस-दस गाटड़ेमाॉ हं ... टपय... टपय... टपय...। इस तयह के न जाने औय टकतने सवार अबी भुझे ऩये शान कयने वारे थे, ऩता नहीॊ, टक तबी कॊडसिय की आवाज टपय गूॊजी टिकि... भंने खाभोशी से एक दस का नोि उसकी तयप फढ़ेा टदमा दे वरी भोड़े। फस आगे फढ़ेी। हरयमामे चेहये की तयह जरती फत्ती ने आगे फढ़ेने की इजाजत दे दी थी। चौयाहे ऩय से बी कुछ औय सवारयमाॉ फस भं फैठ गई थीॊ। उनभं कुछ भटहरा सवारयमाॉ बी थीॊ। उनके आ जाने से कुछ ऩुरुषं को भटहरा आयक्ऺत सीिं छोड़ेनी ऩड़ेी थीॊ। हाराॉटक उसके फाद बी वहाॉ से चढ़ेी असधकतय भटहराओॊ को खड़े​े ही यह जाना ऩड़ेा था समंटक चढ़ेी सवारयमं के अनुऩात भं आयक्ऺत सीिं नहीॊ थीॊ। कुछ ऩय ऩहरे से ही भटहराएॉ फैठी थीॊ। फहुत कभ ऩय ही ऩुरुषं का कब्जा था। उन्हं जगह खारी कयनी ऩड़ेी थी।

बीड़े फढ़े जाने से फस का ताऩभान बी फढ़े गमा था। ठॊ ड का एहसास जाता यहा था। भटहराओॊ के सरए आयक्ऺत सीिं खारी कयने वारं भं से कुछ रोग कुनभुना यहे थे। एक नेता िाइऩ कुताष-ऩामजाभा, दाढ़ेी वारे फुजुगष ने तो अनभने ढॊ ग से सीि छोड़ेते हुए असनच्छा बी जाटहय कय दी थी सफको फयाफयी चाटहए औय आयऺण बी। मे कहाॉ का न्माम है । कौन-सी सोशर

इॊ जीसनमरयॊ ग है । दसरत औय आटदवाससमं की फात तो छोटड़ेए जनाफ... अफ तो फौर्द्, ससख, भुक्स्रभ, ईसाई सभेत इन भटहराओॊ ने बी आयऺण का झॊडा उठा सरमा है ... औय इन्हं फयाफयी

बी चाटहए... करमुग है ! घोय करमुग है ! अये फयाफयी के सरए जरूयी है टक सभान आचाय सॊटहता फने, रेटकन जफ आचाय सॊटहता की फात उठती है , तो सफ अऩनी-अऩनी डपरी, अऩना-अऩना याग रेकय फैठ जाते हं । मे कैसी फयाफयी बाई। आयऺण बी औय फयाफयी का हक बी। वाह! वाह! इसे कहते हं सचत्त बी भेयी, ऩि बी भेयी। कुछ ही दे य ऩहरे त्रवकराॊगं के सरए आयक्ऺत सीि ऩय जा धॉसे नीरी जीॊस वारे रगबग 30 के रऩेिे के एक मुवक ने त्रफना टकसी की तयप सनगाह उठाए ऻान की गगयी उड़े​े री शयापत से तो रोग यहे उन्हं फयाफयी का दजाष दे ने से। इसीसरए तो उन्हं कानूनन सुत्रवधा दी जा यही है । अगय साभाक्जक स्तय ऩय मे क्राॊसत हो ही जाती... धभष, जासत औयत-भदष के नाभ ऩय गैय-फयाफयी खत्भ हो जाती, तो इसकी जरूयत ही नहीॊ ऩड़ेती। छोिी-सी फस भं ससपष कुछ सीिं आयक्ऺत होने ऩय ही जफ सभची रग यही है , तो बरा समा ऐसे भं मे उम्भीद की जा सकती है टक इस दे श भं वॊसचत औय कभजोय तफकं को न्माम सभरेगा। मे कहते हुए वह अऩने फगर भं फैठे 20-21 सार के मुवक की ओय भुड़े गमा, जो 'कोई नृऩ होम, हभं का हासन' वारे अॊदाज भं कान भं ईमयपोन रगाए एप.एभ. ऩय कोई गाना सुन यहा था औय भस्ती भं हौरे-हौरे गयदन टहरा यहा था। उसने अऩनी तयप ताकते हुए उन भहोदम को दे खा तो जल्दी-जल्दी ससय टहराकय कहा हाॉ...

हाॉ... ये टडमो सभची ही है ... उसे रगा था शामद, उससे मे ऩूछा जा यहा है टक कौन से एप.एभ.


से इतना फटढ़ेमा गाना आ यहा है । सच ही तो है , इस दे श का असधकतय आदभी ऐसा ही तो है , क्जसने अऩने कानं भं अऩनी-अऩनी ऩसॊद का एप.एभ. रगा यखा है , जो हभेशा नीयो की फॊशी की तयह फजता यहता है । चाहे टकसी को सभची रगे। इस अिऩिे जवाफ को सुनकय अगर-फगर वारे उन रोगं के चेहये ऩय भुस्कुयाहि की हल्की-सी ये खा क्खॊच गई थी, जो ठसाठस बयी बीड़े भं शयीय को िे ढ़ेा टकए टकसी तयह सपय टकए जा यहे थे। थोड़ेी दे य के सरए ही सही, रेटकन वह अऩनी ऩये शानी बूर गए थे, ठीक वैसे ही जैसे तभाभ तयह की सभस्माओॊ से जूझती जनता सयकाय की टकसी रॉरीऩाऩ िाइऩ घोषणा से खुश हो जाती है । सभथषन की उम्भीद भं उसकी तयप दे खने वारा नीरी जीॊस वारा मुवक झंऩ गमा था जफटक कुताष-ऩामजाभा, दाढ़ेी वारे फुजुगष आननेम नेिं से नीरी जीॊस वारे को घूयने रगे थे। भुझे उस मुवक की फातं से फड़ेी याहत ऩहुॉची थी। भं बी उस फातचीत भं साझीदाय हो गमा रोग सभझते

नहीॊ इस फात को टक दे श भं ज्मादातय सभस्माओॊ की वजह मे गैय-फयाफयी ही है । इसी वजह से रोगं भं असुयऺा फोध पैरा हुआ है औय उसी का पामदा असाभाक्जक रोग उठा यहे हं । इस ऩय तऩाक से कुताष-ऩामजाभा वारे फुजुगष फोर उठे हाॉ... हाॉ... समं नहीॊ, समं नहीॊ। तुभ जैसे

क्राॊसतकारयमं की वजह से ही तो इस दे श का सवषनाश हो यहा है । भटहराओॊ को ससय ऩय चढ़ेा टदमा है । भानवासधकाय का झॊडा रेकय वह सड़ेकं ऩय नॊगी खड़ेी हो गईं हं । भक्णऩुय भं समा हुआ, दे खा नहीॊ। आटदवाससमं को सय ऩय चढ़ेा टदमा, टदकू-टदकू फोरकय औय थोड़ेी दारू चढ़ेा कय

शयीपं को घय से खीॊच-खीॊच कय भायना शुरू कय टदमा। दसरतं की भनभानी नहीॊ टदखती समा, जया-सा कुछ हुआ नहीॊ टक दसरत एसि भं पॉसा टदमा। भॊडर ने टकतनं की जान री, मे तो

माद होगा ही औय हाॉ, इन भुसरभानं को इस दे श भं समा कभी है ? समं ऩूये दे श भं भाय-काि भचा यखी है ? इन्हं समा कभी है ? ऩूये दे श का सवषनाश कयने ऩय तुरे हं । मे सफ आजादी के नाभ ऩय हो यहा है । कय दो इन सफके सरए इस दे श के िु कड़े​े ... िु कड़े​े एक फाय टपय... एक िु कड़े​े से तो भन बया नहीॊ। क्जन्हं -क्जन्हं इस दे श भं अऩने साथ अन्माम होता नजय आ यहा है , समं नहीॊ चरे गए उसी वक्त अऩने दे श के साथ। रेटकन नहीॊ, चरे जाते तो महाॉ फखया-झॊझि कौन

रगाता। सो यह गए।

नीरी जीॊस वारे ने कुछ कभजोय आवाज भं आऩत्रत्त जताई, जो फस के शोय भं गुभ हो गई, रेटकन भंने चुऩ यहना ही फेहतय सभझा, समंटक होश सॊबारने के फाद से ही ऐसे भुद्दं ऩय जफजफ बी कुछ कहा, उसका पर भं बोगता यहा हूॉ। भेये दोस्त तो आज बी जफ अऩने गाॉव भुझे रे जाते हं , तो भेया नाभ फदर दे ते हं भं सभश्रा, सससेना, सतवायी, त्रिऩाठी हो जाता यहा हूॉ।

फस सचटड़ेमाघय आ ऩहुॉची थी, ऩूयी तयह ठसाठस बयी फस। खड़े​े -खड़े​े भेयी कभय दख ु ने रगी थी। भन भं क्खन्नता घय कयती जा यही थी। महाॉ बी कुछ रोग उतये थे, रेटकन त्रऩछरी फस स्िॉऩ

की ही तयह महाॉ बी उतयने वारे से ज्मादा चढ़ेने वारे थे। कुताष-ऩामजाभा वारे फुजुगष ने सीि की


आस भं एक फाय टपय चायं तयप नजय दौड़ेाई रेटकन इस फाय बी उन्हं काभमाफी हाथ नहीॊ रगी। मे टदल्री की ब्रू राइन फसं बी कभार की हं । फाहय से दे खने भं चाहे क्जतनी बी बयी रगं,

रेटकन दोजख के ऩेि की तयह कबी बयती नहीॊ। स्िॉऩ ऩय खड़ेी कोई बी सवायी छूिती नहीॊ। सफ उसभं सभा जाती हं । सचटड़ेमाघय से चढ़ेने वारं भं एक नकाफऩोश औयत बी थी, क्जसका ऩेि कापी पूरा हुआ था। क्जस वजह से वह सॊतुरन फनाकय चर नहीॊ ऩा यही थी। सॊबर-सॊबर कय उसे डग फढ़ेाना ऩड़े यहा था। फस चर दी थी। उस नकाफऩोश औयत को पूरे ऩेि की वजह से

चरती फस भं ऩाॉव जभाने भं कापी ऩये शानी हो यही थी। वह फाय-फाय रहया यही थी। वह ठीक भेये ऩीछे आ खड़ेी हुई थी। उसे थोड़ेी जगह भुहैमा कयाने के गयज से भं, त्रवकराॊग आयक्ऺत सीि के, क्जस ऩय नीरी जीॊस वारे भहोदम कब्जा जभाए थे, थोड़ेा औय कयीफ सयक गमा था। दाढ़ेी

वारे फुजुगष कॊडसिय की सीि की तयप जा दफ ु के थे। उस नकाफऩोश औयत को ज्मादा ऩये शानी न हो, इससरए खुद को भं फाय-फाय आगे की तयप सयकाता यहा था। भेये ऩीछे खड़ेी वह फाय-फाय

अगर-फगर के रोगं से िकया यही थी, भुझसे बी। वह इतनी रॊफी बी नहीॊ थी टक आसानी से उसके हाथ फस की छत से रगी यॉड आ जाए, इससरए फस के हय धसके के साथ वह बयबया कय टकसी न टकसी से जा िकयाती थी। वैसे हभ सफ बी कभ ऩये शानी भं नहीॊ थे, रेटकन ऩता नहीॊ समं, भुझे फाय-फाय मे रग यहा था टक वह कुछ ज्मादा ऩये शानी भं है । रेटकन जफ बी भुड़ेकय उसकी तयप दे खता तो उसके चेहये की नकाफ कोई सनक्द्ळत याम कामभ कयने भं भेये आड़े​े आ जाती। इस अॊतद्रं द्र की वजह से भं फाय-फाय खुद को औय... औय... औय आगे की ओय

सयकाता जा यहा था। वैसे तो भेये सरए त्रवकराॊग आयक्ऺत सीि ऩय फैठे उस नीरी जीॊस वारे की घूयती सनगाहं का साभना कयना बी इतना आसान नहीॊ था, क्जससे टक भं खुद को आगे सयकाने के पेय भं फाय-फाय िकया यहा था। फस रगबग हय ये ड राइि ऩय रुकती, तम योड ऩय आगे फढ़ेी चरी जा यही थी। रगबग हय स्िॉऩ ऩय रोग उतय-चढ़े यहे थे, रेटकन बीड़े थी टक कभ होने का नाभ ही नहीॊ रे यही थी। बीड़े की वजह से फस भं घुिन होने रगी थी। भेयी सोच का रुख ऩूयी तयह से आतॊकवाद की तयप भुड ग़मा था। समा सरट्िे वारे टहन्द ू नहीॊ हं , समा उल्पा भं टहन्द ू नहीॊ है ? 84 भं इॊ टदया गाॊधी को ससखं ने

भाया था मा आतॊकवाटदमं ने। टपय इस दे श के साये ससखं का समा कसूय था। समा उन्हं भायने वारे आतॊकवादी नहीॊ थे। गुजयात भं भुसरभानं को भायने वारे आतॊकवादी नहीॊ थे। टकतना अच्छा तकष गढ़े यखा है उन रोगं ने, मे दे शिोही नहीॊ हं । जनबावना का ज्वाय है , प्रसतटक्रमा है । उनके साथ अन्माम हुआ है औय वो उसके क्खराप खड़े​े हं । रेटकन भुझे हय जगह एक ही फात

टदख यही थी। हय जगह जुल्भ के सशकाय अल्ऩसॊख्मक औय कभजोय हुए। चाहे धभष के नाभ ऩय मे खेर हुआ, चाहे जासत के नाभ ऩय।


भं थक कय चूय-चूय हो चुका था। खड़ेा यहने की टहम्भत नहीॊ फची थी। खड़े​े -खड़े​े दोनं ऩैय ि​िाने रगे थे, क्जस वजह से खड़ेा यह ऩाना बी भुक्श्कर होने रगा था। भेये ऩाॉव थयथयाने रगे थे। जोयदाय ब्रेक के साथ घॊिे का सपय ऩौने दो घॊिे भं तम कयती फस ताया अऩािष भंि के स्िॉऩ से आ रगी थी। फस के साभने से योड क्रॉस कयते एक फच्चे को फचाने भं फस को इतनी कवामद कयनी ऩड़ेी टक भेये ऩीछे खड़ेी वह नकाफऩोश औयत फहुत जोय से भेये से आ िकयाई थी। शामद उसका ऩेि भेये से िकयामा था। भुझे रगा टक उसके हरक से घुिी-सी चीख सनकरी... हाम य

फाऽ... ऽ...। रेटकन फस की बीड़े औय बीड़े के कोराहर भं मे आवाज उसी की है , भं तम नहीॊ कय ऩामा। ताया अऩािष भंि ऩय उतयने के सरए रोग हड़ेफडी भचाए थे। महाॉ उतयने वारं की सॊख्मा ज्मादा थी। इस हड़ेफड़ेी भं रोग एक दस ष ाय आस-ऩास ू ये को धटकमाते हुए सनकरे जा यहे थे औय फुजुगव की सीिं की तयप नजयं गड़ेाए थे। इस क्रभ भं वह नकाफऩोश ऩूयी तयह दफ ही गई थी। वह

भेये ऊऩय आ सगयी थी। भंने उसके तयप दे खा तो उसके चेहये ऩय चढ़े​े नकाफ का यॊ ग भुझे ज्मादा चभकीरा रगा, जैसा अससय बीगने ऩय होता है । भं बी खुद को सॉबार नहीॊ ऩामा था औय नीरी जीॊस वारे मुवक से जा िकयामा था। इस फाय उसे जया जोय की िसकय रगी थी। समंटक वह औयत अबी तक भुझ ऩय रहयाई हुई थी। भंने जल्दी ही खुद को सॉबार सरमा था। ताया अऩािष भंि से फस खुरी तो भुझे फहुत तसल्री सभरी। चरो औय

10-15 सभनि। इसके फाद आने वारा चौथा स्िॉऩ भेया था औय अगरा स्िॉऩ सॊगभ त्रवहाय का।

भुझे ऩता था टक योज की तयह आधी से ज्मादा सवारयमाॉ आज बी सॊगभ त्रवहाय भं उतय जाएॉगी। मानी टक सीि सभरे मा न सभरे, कभय सीधी कयने की सूयतेहार तो हय-हार भं फन आएगी। इसकी शुरुआत ताया अऩािष भंि से ही हो चुकी थी। चढ़ेने वारं से ज्मादा रोग महाॉ उतये थे। दाढ़ेी वारे फुजुगष पोन से उरझे थे। टकसी को सभझा यहे थे टकतनी फाय भंने तुम्हं सभझामा है टक ऐसे काभ नहीॊ चरेगा। हक के सरए रड़ेना सीखो। उसके फाद तो भं हूॉ ही...।

नीरी जीॊस वारा क्जससे भं जा िकयामा था, भुझे धटकमा कय थोड़ेा औय ऩसय गमा था। टपय भुझे घूयता हुआ

शब्द चफाता हुआ फोरा यीढ़ेत्रवहीन है समा ये तू? भंने नयभी से जवाफ टदमा भाप कीक्जएगा।

नकाफऩोश औयत की तयप इशाया कयता हुआ फोरा भुझ ऩय रहया गई थीॊ। इस वजह से िकया गमा। इनकी हारत तो आऩ दे ख ही यहे हं । टपय बी अनजाने भं हुई गुस्ताखी के सरए भापी चाहता हूॉ।

भेयी भुरामसभमत की वजह से मा उस नकाफऩोश औयत की हारत की वजह से, ऩता नहीॊ, रेटकन इतना जरूय हुआ टक उस नीरी जीॊस वारे का गुस्सा कापूय हो गमा औय ऩसये -ऩसये ही


फोरा कोई फात नहीॊ, कोई फात नहीॊ। फातं का ससरससरा जायी यखते हुए वह नयभी से फोरा इस बीड़े भं बी आऩ रोगं का इतना ख्मार यखते हं , मे दे खना सुखद रगा। इसीसरए तो आज बी

बायत की ऩहचान एक सटहष्णु दे श के रूऩ भं फनी हुई है । दस ू ये दे शं को दे क्खए अऩनी कट्ियता औय सनक का सशकाय ऩूयी दसु नमा को फना रेते हं । ट्वन िॉवय को उड़ेाने का भाभरा छोड़े बी

दीक्जए तो भुॊफई का ताजा उदाहयण हभाये साभने है , है टक नहीॊ। अऩनी आदतानुसाय उसने एक फाय टपय भुझसे हाभी बयवानी चाही। ऐसा नहीॊ है बाई... दसु नमा इतनी बी खयाफ नहीॊ। भुझे तो हय कदभ ऩय अच्छे रोग सभर जाते हं । फस भं... ट्रे न भं... हय जगह। जैसे इसी को रीक्जए न, भं इतनी जोय से आऩसे िकयामा औय आऩ हं टक गुस्सा कयने की फजाए भेयी तायीप कय यहे हं । सच भं तो इस तायीप के हकदाय आऩ हं । कहना तो औय बी भं फहुत कुछ चाहता था, गाॊधी औय फुर्द् के इस अटहॊ सा के दे श के फाये भं, महाॉ की सटहष्णुता के फाये भं रेटकन भं चुऩ यहा। एक फाय टपय भेया डय भेये ऊऩय हावी हो गमा था... समंटक भुझे ऩता था टक उसके फाद समा होगा...। भेयी मह फात सुनकय उसका चेहया हजाय वॉि के फल्फ क्जतना यौशन हो गमा ठीक है , रेटकन...। अबी वह कुछ कहता टक इसके ऩहरे दाढ़ेी वारे फुजुगष की तेज आवाज सुनकय हभ सफका ध्मान उनकी ओय आकत्रषषत हो गमा था। वह कॊडसिय ऩय फयस यहे थे। भाभरा मूॊ था टक ताया अऩािष भंि से चढ़ेने वारं भं एक अधेड़े आदभी बी था, क्जसके हाथ भं छड़ेी औय ऑॊख ऩय कारा चश्भा था। कॊडसिय ने उसे दे खते ही अऩनी फगर वारी सीि ऩय फैठी सवायी को खड़ेा कयके उन्हं अऩनी फगर भं त्रफठा सरमा। सीि ऩय फैठने से ऩहरे वह आदभी

पोक्ल्डॊ ग छड़ेी भोड़े चुका था औय ऑॊखं ऩय से चश्भा उताय कय ऩॉकेि के हवारे कय चुका था। उधय पोन से पारयग होने के फाद आई.िी.ओ. चौयाहे के ऩास सीि से उठा टदए जाने के फाद से ही उनका जभा गुस्सा रावा फनकय पूि ऩड़ेा था। वह कॊडसिय ऩय फयस ऩड़े​े , त्रफपय कय कहा 'कैसे त्रफठा टदमा इसे। भं घॊिे-डे ढ़े घॊिे से महाॉ खड़ेा समा झक भाय यहा हूॉ?'

कॊडसिय जो अफ तक की ऩूयी मािा भं ससपष घिनाओॊ का साऺी फना ऩड़ेा था। इससे ऩहरे उसकी आवाज जफ बी फस भं गूॉजी थी तो ससपष टिकि के सरए। इस फाय ताव खा फैठा चचाऽऽ जी, मे हं टडकैप्ड हमॊऽ। नजय नहीॊ आता समा? कॊडसिय के इस तीखे फाण के सरए फुजुगव ष ाय तैमाय नहीॊ थे। कुछ दे य तो वह सकते भं यहे । कुछ सूझा नहीॊ तो हकराते हुए फोरे अच्छा-अच्छा त... त... तो मे त्रवकराॊग हं ... टपय खुद को सॊमत कय थोड़ेी ऊॉची आवाज भं फोरे अगय मे हं टडकैप्ड हं , तो महाॉ समा कय यहे हं । इन्हं त्रवकराॊग आयक्ऺत सीि ऩय फैठना चाटहए। इन्हं त्रवकराॊगं की आयक्ऺत सीि ऩय फैठाओ। चसरए... चसरए... आऩ उटठए महाॉ से... उटठए... उटठए...। त्रवकराॊग की सीि ऩय फैठा नीरी जीॊस वारा आदभी भौके की नजाकत को खूफ सभझता था। वह सहज फोर उठा अये समा कय यहे हं , बाई साहफ। उन्हं समं ऩये शान कयते हं । उन्हं फैठे यहने दीक्जए। टकसे फैठना है महाॉ त्रवकराॊगऽऽ


वारीऽऽ सीि ऩय। वह त्रवकराॊग वारी सीि को यफय की तयह खीॊचता हुआ फोरा आइए, भं उठ जाता हूॉ इस बीड़े बयी फस भं सीि के सरए कहाॉ-कहाॉ धसका खाते टपयं गे वे।

मह फात सुनकय चश्भा-छड़ेी वारे भहोदम को सॊफर सभर गमा था औय उन्हंने कोसना शुरू कय टदमा अफ तो आदसभमत नाभ की जया-सी बी कोई चीज फची ही नहीॊ। रोग मह बी नहीॊ सोचते टक इस बीड़े बयी फस भं भं अॊधा बरा कहाॉ-कहाॉ भाया टपरूॊगा...। इधय फोरते-फोरते उसी झंक भं अऩनी सीि ऩय ऩसया नीरी जीॊस वारा मुवक उठ गमा था। दाढ़ेी वारे फुजुगष उस सीि से कापी आगे थे। भं थोड़ेा-सा िे ढ़ेा हुआ तो वह पूरे ऩेि वारी

नकाफऩोश औयत धम्भ... से उस सीि ऩय जा फैठी। ऩता नहीॊ समं, भुझे ऐसा रगा टक वह फैठी नहीॊ, खुद-फ-खुद उस सीि ऩय जा सगयी है , अगय थोड़ेी दे य औय खड़ेी यहती तो जहाॉ थी, वहीॊ गश खाकय सगय गई होती। भंने टपय ि​िोरने वारी सनगाहं से उसकी तयप दे खा, रेटकन उसके नकाफ को ऩाय न ऩा सकीॊ भेयी सनगाहं । भै असनणषम की क्स्थसत भं अऩनी जगह खड़ेा यहा। फस को दो सभनि बी नहीॊ रगे हंगे सॊगभ त्रवहाय ऩहुॉचने भं। नीरी जीॊस वारे के साथ सॊगभ त्रफहाय भं आधी से ज्मादा बीड़े उतयने की आऩाधाऩी भचाए थी।

थोड़ेी दे य भं सवारयमं को उताय कय फस चरी तो भंने फड़ेा सुकून भहसूस टकमा। भुझे कभय सीधी कयने की जगह सभर गई थी। दाढ़ेी वारे फुजुगष को ड्राइवय की तयप वारी अगरी सीि सभर गई थी। ऩहरे से फैठे एक आदभी के साथ उन्हंने सीि शेमय कय री थी। उन्हं अफ जाकय इस फात का एहसास हुआ था टक भं बी ऩये शानी भं हूॉ। उन्हंने भेयी तयप फड़ेी आत्भीमता से दे खकय कहा आओ फेिा, तुभ बी इसी ऩय फैठ जाओ। हभ दोनं थोड़ेी-थोड़ेी भं फैठ जाएॉगे। 'जी! शुटक्रमा।' 'अये ! आ बी जाओ...' उन्हंने आग्रह टकमा। 'वैसे जाना कहाॉ है ?' 'जी, फस दो स्िॉऩ औय। दे वरी भोड़े तक।' 'अच्छा! अच्छा! समा नाभ है तुम्हाया?' 'जी, हुसैन! हुसैन अरी।'

'भुसरभान हो?' फुजुगष ने अचानक चंककय भेयी ओय दे खा। भुझे मकामक रगा, मािा अफ सभाद्ऱ हुई है भेयी। इस मािा भं था ही समा? एक आदसभमं से

बयी हुई फस। गभी। गभी से ऩैदा हुई याजनीसत। उसके फीच भेया भुसरभान होना। रगा, फस भं

फैठे आदसभमं की ऑॊखं मकामक भेयी ऩीठ ऩय चुबने रगी हं । तो भुसरभान हो तुभ? शामद इस एक वासम भं ओसाभा से तासरफान तक टकतना कुछ घूभ गमा होगा। मा टपय दे श भं होने वारा चुनाव, क्जसका ऊॉि कयवि रेते-रेते मकामक भुक्स्रभ वोिं की ओय भुड़े जाता था। रगा, जैसे बीतय तक सयसयाहिं हं। अनसगनत रार च्मूॉटिमाॉ... जो भेये 'उधेड़े​े' भाॉस से होकय गुजय यही थीॊ...।


'कहाॉ जाना है ...' कॊडसिय ऩूछ यहा था। 'फस महीॊ तक...' कहते हुए भं शून्मत्रवहीन था। सड़ेक ऩय ऩाॉव धयते हुए जैसे एक सन:शब्द सन्नािा भुझे बीतय तक रीर गमा था...। न जाने समं?   अजम कुभाय दफ ू े

कबी नहीॊ भहसूस टकमा सरखने से ऩहरे कैसा रगता है ,

ऋण की टकस्त अदा कयके, टपय बी मही चाहता हूॉ सनयॊ तय सरखता यहूॉ

नासूय फन यहे पोडे ़ी कहानी। अजम कुभाय दफ ू े दीवान कुरदीऩ ससॊह, सी.ए. स्िू डे न्ि हॉस्िर, इण्िय साइन ससिी, गोक्खवये, वसई (ऩूव)ष क्जरा-थाना, भहायाद्स-401205 आजकर चािष ड एकाउन्िे न्ि पाइनर का स्िू डे न्ि एवॊ सथमेिय एवॊ टपल्भ इॊ डस्ट्री भं क्स्क्रप्ि याइटिॊ ग से जुडाव।

जन्भ : 1984

तूपान के फाद आधी यात फीतने के फाद ही घय रौिता हूॉ; फ्रैि ऩय ऩहुॉचता हूॉ तो दयवाॊजे को दे खकय जाने


समं उसे सॉयी फोरने का भन होता है । रगता है , वो भेयी प्रतीऺा भं खड़ेा है औय भेये दे य से रौिने ऩय नायाॊज है ! ...भं जैसे ही दयवाॊजा खोरता हूॉ, भेया हाथ क्स्वचफोडष ऩय चरा जाता है , रेटकन त्रफना फत्ती जराए हाथ वाऩस खीॊच रेता हूॉ, आदतन मा टपय इस खमार से टक कहीॊ

कभये भं सो यहे फीवी-फच्चं की नीॊद ना खुर जाए। सीधे त्रफस्तय ऩय आ जाता हूॉ। जूते खोरता

हूॉ (त्रफना शोय टकए)। भेज ऩय यखी ऩानी की फोतर से ऩानी ऩीता हूॉ, रेि जाता हूॉ...। कबी-कबी कभय की फेल्ि खोरना औय िे फर पैन ऑन कयना बी बूर जाता हूॉ। थोड़ेी दे य रेिे यहने के फाद

इनकी जरूयत भहसूस होती है (शामद उरझन मा गभी भहसूस कयने ऩय)। ...तुम्हं ताॊज्जुफ होगा मह सुनकय टक भं अऩने ऩरयवाय से ढ़ेाई सार ऩहरे सभरा था। तफ से रगाताय आजतक भं उससे नीॊद ही भं सभरता हूॉ...। फस! एक फाय अऩनी टपल्भ ऩयदे ऩय आ जाए, टपय सफ-कुछ कय रूॉगा एन्जॉए! पैसभरी! िेन्डस! ...राइप... भौज-भस्ती... भं औय ससॊपष भेयी चीॊजं!

फोरते-फोरते वो आवेश भं आ गमा था। भं साभने था रेटकन जैसे था ही नही, टक वो भुझसे फसतमाते-फसतमाते ऩता नहीॊ, कफ अऩने आऩ से ही फातं कयने रगा। उससे मे भेयी दस ू यी

भुराकात ही थी। भं आद्ळमष भं था टक दो ही भुराकातं भं कोई टकसी से इतना भुखय कैसे हो सकता है टक अऩनी सनजी ाॊक्जन्दगी का एक-एक हॊ पष फमान कयने रगे। उससे भेयी ऩहरी भुराकात ऩन्िह अगस्त को हुई थी, एक कामषक्रभ भं। भंने याद्स की सभग्रता ऩय बाषण टदमा था औय उसने कोई गीत गामा था शामद 'गॊगा भेयी भाॉ का नाभ, फाऩ का नाभ टहभारा... तुभ ही

कहो ऐ दसु नमा वारो, भं टकस सूफे वारा...।' कामषक्रभ के भुख्म असतसथ भेये बाषण से प्रबात्रवत थे, भेया ऩरयचम रे यहे थे। तबी वो आकय भेये फगर भं खड़ेा हो गमा था औय भौका ऩाते ही ऩूछ फैठा था 'फम्फई भं कफ से हो?' 'अबी कुछ टदन ऩहरे ही आमा हूॉ, अगय फम्फई अऩना रेगी तो इधय ही करयमय फनाने का इयादा है ।'

'इसे ऩहरे कहाॉ थे?' 'इराहाफाद भं।' 'टकस ऺेि भं प्रमासयत हं ?' 'ाॊटपल्भ इॊ डस्ट्री भं।' 'इॊ डस्ट्री तो फहुत फड़ेी है , आऩ समा कयना चाहते हं ?'

'क्स्क्रप्ि याइटिॊ ग..., टहन्दी भं भेयी कई कहासनमाॉ आ चुकी हं ।' 'अच्छा है , फम्फई औय टपल्भ इॊ डस्ट्री टकसी को सनयाश नहीॊ कयती, भं बी उसी से जुड़ेा हूॉ।' 'आऩ समा कयते हं ?'

'ऩेशे से तो ऩिकाय हूॉ रेटकन टपल्भं फनाने की कोसशश भं रगा हूॉ, क्स्क्रप्ि याइटिॊ ग कयता हूॉ औय अबी एक बोजऩुयी टपल्भ भं एक्सिॊ ग कयने का आपय बी सभरा है (थोड़ेा रुककय)। अऩना


कॉन्िे सि नम्फय दो ना माय, कबी फैठते हं , मे सफ फातं महाॉ थोड़े​े होती हं ।' 'हाॉ-हाॉ जरूय, सरक्खए-09702373301'। ऩहरी भुराकात फस इतनी ही (भं उसका कॉन्िे सि नम्फय नहीॊ रे सका मा उसने टदमा नहीॊ शामद)। एक टदन सुफह ही उसका पोन आमा 'कहाॉ हो?' अजीफ फात है , न हाम, न है रो, कौन फोर यहे हं ? 'आऩ?' भंने इतना ही कहा था टक वो फोरने रगा। 'अये भुझे ऩहचाना नहीॊ, हभ सभरे थे उस टदन, ऩन्िह अगस्त को। टपल्भं भं क्स्क्रप्ि याइटिॊ ग के फाये भं फातं की थीॊ...।' 'हाॉ-हाॉ, ऩहचान गमा, नभस्काय।' 'भं समा फोर यहा था, आज खारी हो समा?' 'भं... आज... तो...।' 'समा है नाऽऽ भं एक क्स्क्रप्ि सरख यहा हूॉ, काभेडी टपल्भ है , कुछ टित्रऩकर है , टडस्कस कयना था।'

भं चुऩ था, उसकी फातं भेयी सभझ के फाहय थीॊ। भेये टदभाग भं एक ही फात कई तयह से उबय यही थी, फड़ेा त्रवसचि आदभी है , कैसे उि-ऩिाॉग तयीके से फात कयता है । टपय क्जसे फात कयने की तहॊ जीफ नहीॊ, वो क्स्क्रप्ि समा सरखेगा? 'तो समा फोरते हो, आ यहे हो?'

'जी ठीक है , कहाॉ सभरना है ?' भंने अनभने ही फोर टदमा। 'इरकान ये स्िोये न्ि भं सभरते हं । तीन फजे। उसकी शाभ फड़ेी अच्छी होती है , फैठने भं भजा आएगा।' 'ओ.के.।' वो फोरता ही जा यहा था। उसे फोरने के सरए भेयी स्वीकृ सत-अस्वीकृ सत की आवश्मकता न थी। भं साभने की कुसी ऩय फैठा था, इतना ही ऩमाषद्ऱ था। भेयी नजय उससे हिकय ये स्िोये न्ि की क्खड़ेकी से फाहय रिक यहे नारयमर के ऩत्ते ऩय थी, उस जगह जहाॉाॊ से फारयश का ऩानी तंजी से चू यहा था जो अफ धीभा ऩड़े गमा था। 'फारयश धीभी ऩड़े गई है , हभं अफ सनकरना चाटहए।' 'अये फैठो ना, एक-एक चाम औय ऩीते हं । अबी काभ की फात तो कुछ हुई ही नहीॊ।'

'दो चाम बेजना इधय।' उसने फैये की तयॊ प इशाया कयके कहा औय टपय शुरू हो गमा। 'भं समा फोर यहा था टक एक टदन आऩको सुधाकय खेडके से सभरवा दे ता हूॉ।'

'कौन सुधाकय खेडके?'


'अये हाॉ, भं तो फताना ही बूर गमा। सुधाकय खेडके 'भासचस' भं अससस्िे न्ि डामये सिय यह चुका है । गुरॊजाय के साथ उसने कापी असाष गुजाया है । अच्छी सभझ यखता है टपल्भ टक्रमेशन भं क्स्क्रप्ि बी सरखता है , जफयदस्त! आऩ सभरो ना उससे (आऩ बी तो सरखते हो)। अफी वो भेयी एक स्िोयी ऩय टपल्भ फनाने वारा है । काभेडी टपल्भ है । ऩये श यावर औय ओभऩुयी से फात हो गई है , हाॉ कय टदमा है ...। अच्छा है न माय, फासस आॊटपस ऩय ऩये श यावर टहि जा यहा है , अच्छी चरेगी!...' 'ठीक है , तो कर-ऩयसं भं सभरते हं उनसे' भंने फात फीच ही भं काि दी। 'अये नहीॊ ये , अफी वो है नहीॊ इधय, रद्दाख गमा है , एक टपल्भ की शूटिॊ ग भं, आने भं वक्त रगेगा...।' चाम ऩीते हभ थोड़ेी दे य औय फैठे थे। शामद भेये उतावरेऩन ने उसे उठने के सरए भजफूय कय टदमा था। वो भेये साथ-साथ गोल्डन सटकषर तक आमा था। टपय ऩॊचकुरा अऩािष भेन्ि की ओय भुड गमा था औय भं सीधे वसॊत त्रफहाय चरा गमा। उन टदनं भेयी यहनवायी वहीॊ थी। ससरससरा चर ऩड़ेा था। उसे जफ बी सभरना होता, पोन कयता। कहता, 'ये स्िोये न्ि के ऩास ही हूॉ, अगय घय ऩय हो तो आओ, फैठते हं थोड़ेी दे य, चाम-वाम ऩीते हं , कुछ गऩ-शऩ बी हो जाएगी

औय कुछ काभ की फातं बी कयनी थीॊ...।' हयफाय एक ही वासम औय एक जैसा असय। 'काभ की फात' ऩय भं ना नहीॊ फोर ऩाता। भं हभेशा उल्रू फनता।

उसके साथ फैठना मानी घण्िं सभम फवाषद कयना, बेजा चिवाना। वो हभेशा अऩनी ही फात कयता रेटकन अऩनी ऩसॊद की। जफ भं कुछ ऩूछता, िार जाता। भसरन एक टदन भंने उसके घय का ऩता ऩूछा तो जवाफ सभरा 'महीॊ ऩास ही भं तो है । चसरए, कबी रे चरते हं आऩको।' औय उठकय चर टदमा 'चसरए, आज आऩके घय चरतेहं।' उस टदन भं क्खससमानी त्रफल्री की तयह उसके साथ चरता यहा। वो भेये कभये ऩय आमा औय फुकसेल्प से कई टकताफं सनकारीॊ, दे खीॊ औय जाते वक्त साथ रे गमा। भं भना कयना चाहता था रेटकन कुछ फोर न पूिे , भन ही भन गरयमाता यहा अऩने आऩको, उसको, टक ऩता नहीॊ, टकसको। एक टदन तो हद ही हो गई। सुफह-सुफह पोन टकमा। घण्िे बय फाद खुद ही आ धभका। फोरा 'पिापि तैमाय हो जाओ। चरो, आज तुम्हं एक फहुत फड़े​े प्रोडमूसय से सभरवाता हूॉ।' 'टकससे?'

'सयप्राइॊ ज है , पारतू सवारं भं वक्त जामा भत कयो।' 'रेटकन हभ जा कहाॉ यहे हं मे तो फताइए?'


'ऩृथ्वी सथमेिय, जुहू।' 'सथमेिय?'

'ऩृथ्वी सथमेिय है नाऽऽ, उसभं ऩृथ्वी कैपे है , उसी भं भीटिॊ ग है ।' दोऩहय रगबग 01:50 फजे के आस-ऩास हभ ऩृथ्वी कैपे ऩहुॉचे थे। चाम ऩी, रोगं को आऩस भं फसतमाते हुए दे खा औय िी.वी. दे खा। इस फीच वो कई फाय फाहय सनकरकय पोन ऩय टकसी से

फातं कयता यहा। भं फैठे-फैठे फोय हो यहा था। िी.वी. ऩय एक ही न्मूॊज फाय-फाय आ यही थी 'आज शाभ 05:20 फजे हाडष िाइड की आशॊका है ।' 'सॉयी! आज भीटिॊ ग कंससर हो गई।' एकफायगी तो भं झल्रा गमा। टपय अऩने ऩय काफू ऩाते हुए ऩूछा 'समा हुआ?'

'फड़ेी ट्रे जडी हो गई...। उनके एक सभि की डे थ हो गई, स्वाइन फ्ल्मू से... वहीॊ जाना ऩड़ेा उनको, इससरए...।' 'कोई फात नहीॊ, टपय कबी सभर रंगे। ...अफ आगे का समा प्रोग्राभ है ?' भंने इस सनक्द्ळॊतता के साथ ऩूछा जैसे जवाफ ऩता हो टक वो कहे गा, वाऩस घय चरंगे औय कहाॉ! रेटकन जवाफ कुछ अरग ही था 'जो भूखत ष ाऩूणष था' 'अफ महाॉ तक आए हं तो जुहू फीच घूभकय ही जाएॉगे।' उसने भेयी ओय कुछ मूॉ दे खा गोमा भेयी यॊ जाभॊदी चाह यहा हो। टपय खुद ही फोरने रगा

'जुहू फीच घूभना बी टकसी सेरीब्रेिी से सभरने से कभ नहीॊ...।' 'रेटकन आज, आज तो हाई िाइड है , भयना है समा!'

'अये तुभ फम्फई भं नए आए होऽऽ, तुम्हं भारूभ नहीॊ, ऐसे हाई िाइड ससॊपष सभाचायं, अॊखफायं भं आते हं ऽऽ। थोड़ेी फहुत रहयं उठती हं औय कुछ नहीॊ..., चरो।' उसने भुझे कुहनी से ऩकड़ेकय उठा टदमा। फीच का दृश्म वाकई योभाॊचक था, रहयं कुराॉचे बय यही थीॊ, नारयमर के ऩेड़ें को दे खकय रग यहा था भानो सागय की ओय ऩीठ कयके खड़े​े हं । तंज हवा सभूचे टकनाये को नॊगा कयने ऩय अभादा थी। ऩृथ्वी कैपे की झुॊझराहि वहाॉ ऩहुॉचते ही दयू हो गई। वो गयजते सागय की ओय भुॉह कयके खड़ेा हो गमा, दोनं हाथ खोरकय गोमा फढ़ेती हुई रहयं को ऩीछे धकेर दे ने के सरए खड़ेा हो, चट्िान फनकय। वह मूॉ ही फहुत दे य तक खड़ेा यहा, टपय चीख-चीखकय भुझसे फातं कयने रगा

'दे ख यहे हो इन रहयं को? ...मे दे श-दे श से आई हुई गॊगाओॊ के अट्िहास कयते शीष हं ! ...अनेकं फाहुऩाश हं ! ...फेताफ हं सनगर जाने को!' 'भगय टकसे सनगरना चाहती हं मे रहयं ?'


'हय धभष को! ...हय सभ्मता को! ...प्रत्मेक सॊवेदनशीर रृदम को! ...हय त्रववेकवान भक्स्तष्क को! ...भानवता के कब्जे वारी धयती के हय िु कड़े​े को! ...भुझको! ...तुभको! ...मे सनगर जाना चाहती हं , रौि जाना चाहती हं , सशव की जिाओॊ भं! ...अऩने-अऩने दे श के ऩुयाणं भं! ...धभषग्रन्थं भं! ...ऩवषत की कन्दयाओॊ भं...!' भं हतप्रब था टक ठे ठ भुम्फइमा शैरी भं फक-फक कयने वारा अचानक दाशषसनक कैसे हो गमा। त्रवशुर्द् टहन्दी का वक्ता। भंने उसे ऩयखने के इयादे से थोड़ेी औय उॉ गरी की 'टकन्तु मे रौिना समं चाहती हं ?' 'समंटक भनुष्म ने इनका दत्रू षत (त्रफरकुर ही अत्रववेकी) उऩमोग टकमा है ... इनकी सभठास भं एक अजीफ-सा खायाऩन घोर टदमा है ।' 'भतरफ?' 'आदभी ने इनकी भीठी जरयासश भं अऩने रृदम औय भक्स्तष्क के खाये ऩन को उड़े​े र टदमा है ! ...सफ कुछ नए ससये से ऩरयबात्रषत कयने की कवामद हो यही है ...।' 'तुभ टकस ऩरयबाषा की फात कय यहे हो?' 'वही ऩरयबाषाएॉ जो जीवन को बूख, अकार, है जा औय अजीणष (ज्मादा खा रेने से होने वारी फीभायी) से आने वारी भृत्मु के रूऩ भं ऩरयबात्रषत कयती हं मा धभोन्भाद भं होने वारे बीषण नयसॊहाय के रूऩ भं...।'

'फचो! दे खो तुम्हाये साभने फड़ेी ऊॉची रहय आ यही है ।' भं ऊॉची रहय को आते दे खकय सचल्रामा। बागा, सोचा, टकसी ऩेड़े के तने को भॊजफूती से ऩकड़ेकय फच जाऊॉगा शामद। रेटकन ऩेड़े तक ऩहुॉचते-ऩहॉ चते रहय ने भुझे बीगो ही टदमा...।

जफ भं बाग यहा था, वो वैसे ही हाथ पैराए ऑॊखं भूॉदं खड़ेा था।  भं फाएॉ ऩैय के िैसचय के कायण ऩूये डे ढ़े भहीने अस्ऩतार भं यहा। ढ़े​े यं रोग भुझसे सभरने आए, कइमं का ाॊपोन आमा। रेटकन न वो आमा, न उसका पोन आमा। जफ अस्ऩतार से रौिकय भं अऩने घय ऩहुॉचा तो रेियफासस भं एक छोिी-सी सचट्िी सभरी क्जस ऩय सरखा था 'ऩॊचकूरा

अऩािष भेन्ि के वाचभैन से अऩनी टकताफं सरेसि कय रं।' सरखने वारे ने अऩना नाभ-ऩता सरखने की आवश्मकता नहीॊ सभझी थी। शाभ को मूसनॊग फाक के सभम, भं ऩॊचकूरा अऩािष भेन्ि गमा, फाचभैन से सभरा। उसने थोड़ेी तस्दीक की, भुझे भेयी टकताफं दीॊ औय एक सरॊपाॊपा बी टदमा। सरॊपाॊपे भं भेये नाभ का एक ऩि था : 'त्रप्रम सभि, यजत! आज फम्फई भं भेया आॊक्खयी टदन है । भं इसे छोड़ेकय जा यहा हूॉ, कहाॉ? मे भुझे बी ऩता नहीॊ।


टकन्तु जाने से ऩहरे भं अऩने जीवन का मथाथष तुम्हं संऩ जाना चाहता हूॉ, जो तुभसे अफ तक सछऩामे यखा।'

भेया टपल्भ इॊ डस्ट्री से कोई सयोकाय नहीॊ है , औय ऩिकाय। वो भं कबी था। भं भूरत: गुजयात का यहने वारा हूॉ। वहाॉ ऩय भं प्रेस रयऩोिष य था। जफ गुजयात भं चायं तयप नयसॊहाय हो यहा था, भं अऩनी प्रंपेशनर डमूिी ऩय था...। उस यंज जफ भं सुफह-सुफह घय से सनकर यहा था, भेयी

फच्ची ने कहा था 'ऩाऩा जल्दी आना।' तफ तक भेये भौहल्रे भं दॊ गे की आग नहीॊ ऩहुॉची थी।

सुफह जाते वक्त भंने सुकून भहसूस टकमा था। भेये भौहल्रे भं दॊ गा बड़ेकने की सूचना भुझे पोन ऩय सभरी, उस एरयमा के कवये ज भं गए ऩिकाय ने फतामा था। जफ भं वाऩस घय ऩहुॉचा तो कुछ बी शेष नहीॊ था, दॊ गाइमं ने भेयी फीवी औय भासूभ फच्ची को फेयहभी से कत्र टकमा था, छूये घंऩे थे, घय को रूिकय उसभं आग रगा दी थी...। इस घिना के फाद भेये जीवन भं भेयी राश फन गई क्जन्दगी के ससवाम औय कुछ बी फचा नहीॊ था। भं ऩागरं की तयह महाॉ से वहाॉ बिकता यहा। इसी बिकने भं फम्फई ऩहुॉचा औय तुभसे सभरा। महाॉ भंने अऩने फीते टदनं को बूरकय नमे ससये से ाॊक्जन्दगी शुरू कयने की कोसशश की, औय नाकाभ यहा। भुझे भाप कयना, दोस्त! भंने तुभसे जो बी झूठ फोरा, वो ाॊक्जन्दगी की तराश भं फोरा! तुम्हाया इकफार   सनत कुभाय जैन

फाहयी ऩरयवेश की अच्छी मा फुयी, भन को छू जाने वारी घिना ही कहानी का रूऩ धायण कयती है , क्जसभं कहानीकाय अऩना दृत्रद्शकोण आयोत्रऩत कयता है । सनत कुभाय जैन सन्भसत इरेक्सट्रकर

सन्भसत गरी, दग ु ाष कौक के ऩास जगदरऩुय (छ.ग.)


भो.: 09425507942 F F F F F F आजकर इरेक्सट्रकर कान्ट्रे सिय।

भहासभरन

चायं ओय उजारा था ऩय अॊधेया बी उतना ही था। ऩेट्रोभैसस, सचभनी, त्रफजरी के फल्फ, िमूफ राइि का प्रकाश पैरा था, ऩय वातावयण दे खकय मह रगता था टक अॊधेये ने प्रकाश को सीभाओॊ भं फाॊध यखा था। प्रकाश पैरा था ऩय अऩनी सीभाओॊ से फाहय जा नहीॊ ऩा यहा था, यॊ ग-त्रफयॊ गीसी थी भेरे की दसु नमा, हय तयप यॊ ग-त्रफयॊ गे कऩड़े​े ऩहने रोग घूभ यहे थे। सफके चेहये असीभ

खुसशमं से बये थे। सबी छरक यहे थे, झरक यहे थे चेहये औय तन से। महाॉ सफके सफ अऩना कर बुरा यहे थे, गुजया औय आने वारे वारा दोनं ही। अस्थाई दक ु ानं ने साभान जभा यखा था, चूड़ेी, त्रफन्दी, ऩाउडय, फाल्िी, भनगा, कऩड़ेा, फतषन, चसरत टपल्भ, बानम फताने की भशीन, वजन फताने की भशीन, फुटढ़ेमा का फार, सभनी सकषस, चेहया त्रफगाडते आइने औय सफकी खुसशमाॉ दग ु नी कयतीॊ ऩान की दक ु ानं।

होठं ऩय ऩान की रारी से रार था गोयी का गार। प्माज के गभष ताजे बक्जए की सुगॊध से, न खाने वारे बी अस्थाई होिर भं उभड ऩड़े यहे थे। नीॊद बय यही थी ऑॊखं भं, ऩय रोग उसे अऩने ऩास पिकने नहीॊ दे यहे थे, झिक-झिक कय बगा यहे थे। उड़ेता-सा सॊगीत फज यहा था। कबी कोई शब्द सुनाई दे ता, कबी कोई शब्द। कोराहर फहुत था, ऐसा रगता था जैसे भेरे भं घूभते साये रोग, औयतं, आदभी, फच्चे एक साथ फात कय यहे हं, सॊध्मा की फेरा भे ऩक्ऺमं का करयव हो जैसे। सायी फातं को कुर सभराकय दे खने ऩय भेरा एक आनॊद सयोवय रग यहा था क्जसभं सफके साथ प्रकृ सत बी आनॊद रे यही थी। आज भॊगरी को तैमाय होने भं आधा घण्िा रगा, आईना दे खदे ख खुशी से ऩगरा यही थी, ऩूयी तयह से सजकय तैमाय होने ऩय जफ आईना दे खा तो उसे सहसा खुद ऩय त्रवद्वास न हुआ। जफ आईने भं खुद को ऑॊखं पाडकय दे खते हुए दे खा तो खुद ही शयभा गई, नजयं चुयाती, खुद से

शयभाती-रजाती अऩनी सहे री सोभायी के ऩास आई। आज उन दोनं की मोजना थी भेरा जाने की। उसके घय ऩहुॉची तो वो इसको दे खती यह गई औय मे उसको दे खती यह गई। दोनं एक दस ू ये


को ऐसे दे खती साथ-साथ हॊ स ऩड़ेीॊ, गरे रग एक दस ू ये की तायीप कयने रगीॊ।

''तुम्हायी त्रफन्दी तो शानदाय है , रॊफी त्रफन्दी तुझे फहुत जभती है '' भॊगरी प्माय से फोरी। ''औय तुझे गोर त्रफन्दी, वो रार यॊ ग की'' सोभायी डफर प्माय से फोरी औय अऩनी नाक ससकोडती उसकी ढु डडी को टहराती फोरी। ''आज दे खना, तुझे दे खकय भेरे भं रड़ेके फेहोश हो जाएॉगे'' भॊगरी सोभायी को छे डती हुई फारी। ''न फाफा, भं फेहोश रड़ेके का समा करुॊ गी, टपय भुझे कौन दे खेगा'' डयने का असबनम कयती सोभायी फोरी औय दोनं इस फात ऩय टपय हॊ स ऩड़ेीॊ। सोभायी औय भॊगरी दोनं ऩडोसी थीॊ उस छोिे से गाॉव की जहाॉ ढाई सौ से ज्मादा घय न थे। घय समा, सभट्िी की दीवायं ऩय खऩयं की छानी, एक योभे ऩत्थयं की छानी, ऩय प्रत्मेक घय एक दभ सापसुथया, गोफय औय खारी सभट्िी सभराकय सरऩा-ऩुता। उन घयं भं उन घयं जैसे ही साप- सुथये , सीधे-सादे रोग यहते हं । छर-कऩि से यटहत रोग, क्जन्हं सादा जीवन ही अच्छा रगता है , महाॉ सफ कुछ थोड़ेा छोिा-छोिा कभ-कभ ही होता है । घय छोिे , खेत, छोिी-छोिी आवश्मकताएॉ, थोड़ेा ऻान औय छोिी-सी ही दसु नमा। महाॉ सोभवाय को जो जन्भ होता है , रड़ेका हो तो सोभारू, सोभससॊह, रड़ेकी हो तो साभायी, सोभायी, सोभवती।

भॊगर को होने वारे भॊगरू, भॊगरससॊह, रड़ेकी भॊगरी, भॊगरदे ई, भॊगरा औय ईतवाय को छुट्िी

नहीॊ यहती, उस टदन बी होते हं जन्भ टदवस औय रड़ेका हो मा रड़ेकी, नाभ होता है ईतवायी। हय घय भं दे वी-दे वताओॊ का वास होता है , टदनं से नाभ न यखना हो तो टपय दे वी दे वता तो हं । भेरे भं ऩहुॉचते-ऩहुॉचते सच भं दोनं को रोग घूयते ही यहे । शामद ही टकसी ने उन्हं एक नजय न भायी हो। दोनं भन ही भन खुश हो यही थीॊ। जैसे ही कोई

दे खता नजय आता, भॊगरी सोभायी

का हाथ दफा दे ती औय टपय दोनं भुॊह दफाकय हॊ सने रगतीॊ। फड़ेा आनॊद आ यहा था दोनं को, दोनं टहरती-डु रती, भिकती भेरे तक ऩहुॉच गईं। उनकी अदाएॉ फढ़े गईं। दोनं ने इतयाना शुरू

कय टदमा। कोई बी उन्हं दे खता तो दे खता ही यह जाता। उन्हं रोगं ऩय हॊ सी आती औय दमा आ जाती। वे भजा रेतीयहीॊ। अफ मे दे खते रोगं से नजये सभराने रगीॊ। जैसे ही दे खते रोगं की नजये उनसे सभरतीॊ, वे झंऩ जाते। इससे सोभायी, भॊगरी औय खुश हो जातीॊ, टहम्भत फढ़ेती गई, अऩने रूऩ औय ऩहनावे ऩे घभॊड आ गमा। अफ तो फाय-फाय दोनं का ऩल्रू कॊधे से सगय जाता, क्जससे फगैय फाॉहं औय फड़े​े गरे का ब्राउज अऩना जाद ू त्रफखेय दे ता।

अचानक उन्हं रगा, कोई जानफूझकय धसका दे कय उनके ऩास से सनकरा। उन्हंने सोचा, शामद हडफडी भं जाने के कायण वे धसका दे कय सनकरे हं। ''जानफूझ कय उसने धसका नहीॊ भाया होगा, भॊगरी''


''हाॉ, भुझे बी ऐसा ही रगता है । अगय जानकय धसका भायते तो वो बी न रडखडाते'' भॊगरी ने ऩुसरससमा अॊदाज भं कहा औय टपय दोनं अऩने उसी कामष भं रग गईं। अऩनी ही भस्ती भं भिकती भॊगरी को एक व्मत्रक्त अचानक टपय यगडता-सा सनकरा। उसने चंक कय दे खा ऩय अॊधेये से उजारे भं कुछ नजय न आमा। उसने गारी दे नी चाही उस व्मत्रक्त को, ऩय उसकी जफान न खुरी, समंटक उस व्मत्रक्त का उसको यगडकय सनकरना आनॊददाई बी रगा, गुस्सा कापूय हो गमा, नशा छा गमा। यात्रि के फायह फजने वारे थे। बीड़े- बाड़े फढती ही जा यही थी। कोराहर फढ़ेता ही जा यहा था, ''नाि'' बी शुरू हो गमा था। उसकी बी धीभी आवाॊज सुनाई ऩड़े यही थी, ग्राभीण नृत्म नाटिका जो भहाबायत, याभामण की कहासनमं ऩय आधारयत यहती है , फड़े​े से भैदान भं फगैय भॊच के भॊसचत की जाती है । इस सॊगीतभम

नाटिका (नृत्मभम) भं दे खने वारं की बीड़े फहुत ज्मादा

होती है । चायं ओय से दे खने वारं की बीड़े होती है । यात-यात बय ''नाि'' चरता है औय रोग दे खते बी यहते हं , दे खने वारे बी नहीॊ थकते औय कयने वारे बी नहीॊ थकते। भेरे भं फाजाय से जया-सी दयू ी ऩय ''नाि'' हो यहा था। दोनं उसी ओय चर ऩड़ेीॊ। जया ज्मादा अॊधेया था उस यास्ते भं।

फाजू के ऩेड़ें से अचानक दो आकृ सतमाॉ उबयीॊ औय भॊगरी-सोभायी को दफोच सरमा, गारं भं एक ऩप्ऩी री उन्हंने, नाजुक अॊगं को छे ड़ेा औय बाग खड़े​े हुए। दोनं को कुछ सभझ आए, तफ तक तो वे बाग चुके थे। भॊगरी औय सोभायी का तो फुया हार था, दोनं एक दस ू ये के गरे रग योने

रगीॊ। कैसे सफ हो गमा, अचानक। सभझ भं नहीॊ आमा। अफ उन्हं भेरे भं डय रगने रगा। 'चर सोभायी, घय चरते हं । महाॉ तो वो रड़ेके ऩीछे ऩड़े गए हं , न जाने अफकी समा कयं ' घफयाहि बये स्वय भं भॊगरी फोरी। ''भेरे भं इतने रोग हं औय आयाभ से भौज कय यहे हं , औय कौन है ? मे रोग जो हभाये ऩीछे ऩड़े गए हं , साया भजा खयाफ कय टदमा इस भेरे का'' अऩने को ठीक कयती सोभायी ने कहा। ''इतनी यात को घय जाने भं बी डय है । इतनी बीड़े भं जफ वो रोग ऐसी हयकत कय सकते हं तो सुनसान जगह भं समा न कयं गे'' डयती भॊगरी ने कहा। ''समं न हभ उस कोने वारी कऩड़े​े की दक ु ान भं फैठ जाए, सुफह-सुफह घय चरे जाएॉगे।'' ''हाॉ, हाॉ, मह ठीक यहे गा।''

अऩनी सायी भिक-चिक, हॊ सी-अदा बूरकय दोनं जल्दी-जल्दी उस कऩडे ़ी दक ु ान भं फैठ गईं। जया-जया-सी दे य भं वो रड़ेके दक ु ान का चसकय कािते यहे ।

''मे हभाये ही ऩीछे समं रगे हं , भॊगरी जफटक हभाये से सुन्दय अनेक रड़ेटकमाॉ घूभ यही हं भेरे भं?''

सचॊकोिी कािती भॊगरी फोरी ''इतनी बी बोरी भत फन। ऐसी ड्रे स क्जसे हभने ऩहना ढॊ कने-छुऩाने के सरए औय वही टदखे, तो समा होगा। टपय हभायी इतयाहि, कोई बी समा उससे भदहोश हुए


त्रफना यहे गा? इस तयीके से सज-धज कय भिककय घूभने से हभं हय कोई चारू चीज सभझ यहा है , ऊऩय से हभने भुस्कयाहिं बी तो उछारी थीॊ।'' अऩनी गरती सभझ आने रगी दोनं को। ''ऩय मे अनुबव खतयनाक होते हुए बी फड़ेा भजेदाय था, फक्ल्क हभं महाॉ फैठकय सभम फयफाद न कय, एक फाय औय घूभने चरना चाटहए।'' ''नहीॊ, भं नहीॊ जाऊॉगी, तेयी जो भजी।'' ''भुझे महीॊ छोड़े। तुझे भेयी कसभ, साथ आए थे, साथ-साथ जाएॉगे'' दोनं दग ु ने जोश के साथ

टपय भेरे भं घूभने रगीॊ। दोनं की नजयं उन्हीॊ रड़ेकं को ढू ॊ ढ यही थीॊ। वो रड़ेके जल्दी ही नजय आ गए। वे शामद शहय से आए थे, अऩनी भोिय साइकर के ऩास खड़े​े थे। भॊगरी-सोभायी वहीॊ खड़ेी होकय उनकी ओय चोय सनगाहं से दे खती यहीॊ। अचानक दोनं रड़ेके इनकी ओय आने रगे। अफ मे दोनं भेरे की ओय बाग खड़ेी हुई। चुहरफाजी भं फड़ेा भजा अमा,

दो-तीन घण्िे भेरे भं इधय-उधय घूभते-घूभते अफ बी सोभायी-भॊगरी नहीॊ थकीॊ औय न ही इच्छा भयी। रड़ेके इतने सभम से उन दोनं की बडकाती ऩोशाक, बडकाती अदा औय टपय चुहरफाजी से उत्साटहत हो गए थे। उनको अफ उनसे सभरने की इच्छा तीव्र हो गई थी। अचानक दोनं वाऩस अऩनी भोिय साइकर ऩय सवाय हुए औय चरे गए।

सोभायी-भॊगरी को अफ भजा नहीॊ आ यहा था। भेरे से वे बी अनभनी-सी अऩने घय को चर ऩड़ेीॊ।

''वे रोग समं चरे गए।'' ''भेरा है , रोग भेरे भं घूभने-टपयने आते हं , न टक यहने के सरए आते हं '' प्माय बयी क्झडक के साथ भॊगरी ने कहा औय आधी दयू ी उन्हीॊ रड़ेकं की फातं कयते-कयते गुजय गई।

सहसा उन्हं त्रवद्वास न हुआ। वही दोनं रड़ेके साभने आ खड़े​े हुए, सुनसान याह भं वो कुर चाय रोग थे।

इतनी दे य से उन रड़ेकं के साथ भजाकभस्ती चर यहा था औय उन्हीॊ की फातं से भुॊह बया था, उनको दे खकय दोनं डय गईं। उन्हं कुछ नहीॊ सूझा, दोनं ने एक-दस ू ये का हाथ कसकय ऩकड़े सरमा।

अफ दोनं सहे सरमं को भेरे भं सरमा भजा सजा रगने रगा। सभझ गई दोनं टक उन रड़ेकं का त्रवचाय कुछ खतयनाक है । भन ही भन भॊगरी ने कुछ सनणषम सरमा औय चेहया उन रड़ेकं की ओय ही यखा, सोभायी हॊ सती हुई उन रड़ेकं की ओय फढ़ेने रगी। रड़ेके बी सनक्ष्क्रम हो भुस्कयाते खडे यहे । ऩीछे -ऩीछे भॊगरी

को बी आना ऩड़ेा। उन रड़ेकं के ऩास ऩहुॉचते ही एक रड़ेके ने कहा ''समा फात है , छसभमा, हभं तयसाकय कहाॉ जा यही हो। चरो ऩान-वान खा आएॉ।'' टपय ऑॊख भायदी।


''अये , वहाॉ भेरे भं हभ रोगं के जानने वारे रोग हं । साया का साया गाॉव आमा है , उनके फीच तुभसे कैसे फात कयती।'' सोभायी जया इठराए अॊदाज भं फोरी। ''भं कहता था न माय टक अऩना काभ आज होना ही है ।'' ऑॊखं से सोभायी की ओय इशाया कयता एक रड़ेका दस ू ये रड़ेके से फोरा।

सोभायी बी उनके साथ भुस्कयाती शयभा गई। ''सुनो, एक काभ कयते हं । महाॉ से जया दयू एक सुनसान झोऩडी है । वहाॉ चरते हं , न कोई आएगा न कोई दे खेगा। शाॊसत के साथ फैठंगे वहीॊ'' सोभायी ने चहकते हुए कहा।

रड़ेकं ने दग ु ने जोश से भोिय साइकर स्िािष टकमा। एक भं सोभायी फैठी औय दस ू ये भं भॊगरी

फैठी। सोभायी के फताए अनुसाय वे एक सुनसान-सी जगह भं ऩहुॉच गए। वहाॉ एक झोऩड़ेी नजय आई, रड़ेके अॊधेये से घफया यहे थे। उनभं से एक सभायी से फोरा, ''तुभ आगे चरो, हभ तुम्हाये ऩीछे हं । तुम्हाया तो दे खा यास्ता है ।'' सोभायी आगेआगे चरी औय झोऩडी भं घुसते हुए कहा ''भं अॊदय जाकय साप-सपाई कयती हूॉ।''

रड़ेकं के भन भं फल्रे-फल्रे हो यहा था। अगरे ऺण की सोच कय दोनं रड़ेकं ऩय भदहोशी-सी छा यही थी। ऩाॉच सभनि भं आवाॊज आई, ''आ जाओ''। रगबग दौड़ेने के अॊदाज भं दोनं झोऩड़ेी भं प्रवेश कय गए, साथ ही भॊगरी बी। अॊदय घुसते ही भानो आसभान िू ि ऩड़ेा। बीतय डण्डं की फयसात हो यही थी। अॊधेये भं भाय खाखाकय दोनं फेहोश हो गए।

''वाह सोभायी, तूने तो कभार कय टदमा। इस झोऩडी का नाभ रेते ही भं सभझ गई टक इन फेचायं की भुसीफत आने वारी है । ताराफ खोदने वारे भजदयू ं की इस झोऩड़ेी भं कुछ नहीॊ तो दस-ऩॊिह भजदयू जरूय हंगे। टकतने डण्डे ऩडे हंगे, बाईमं'' भॊगरी ने कहा तो सबी भजदयू हॊ सने रगे।   सुनीता सृत्रद्श

त्रफहाय के एक टडग्री कॉरेज भं टहन्दी की प्राध्मात्रऩका

अऩनी दसु नमा ट्रे न की सीिी की आवाॊज सुनाई दी औय सफकुछ धीये -धीये ऩीछे की ओय क्खसकने रगा। आनन्द ने एक उटद्रनन-सी दृत्रद्श टपय से अतुर ऩय डारी। अतुर के चेहये ऩय हल्की-सी क्स्भसत थी औय


हाथ त्रवदा की भुिा भं धीये -धीये टहर यहे थे। अतुर ऩीछे की ओय छूिने रगा। अतुर चरती गाड़ेी के साथ दो-चाय कदभ बी आगे नहीॊ फढ़ेा। अचानक उसके भक्स्तष्क भं कंधा ऩय टपय तुयन्त ही अऩने आऩको सधसकाया उसने, टकतना भीन-भाइन्डे ड होता जा यहा है वह! उसने ऩीछे छूि गए

अतुर को दे खने के सरए अऩनी कनऩट्िी क्खड़ेकी की यॉड से सिा दी। वह दे ख यहा था, उसके ओझर होते ही अतुर अऩनी घड़ेी दे खने रगा था औय तेज गसत से सनकर जाने के सरए उसका एक कदभ उठा ही था टक गाड़ेी आगे गढ़े गई। वह अऩनी सीि ऩय ससय ऩीछे की तयप यखकय टिक गमा। अचानक उसने ऩामा टक उसकी ऩरकं गीरी हो आई हं । उसने अऩनी नसं भे एक गहया तनाव भहसूस टकमा जो त्रऩछरे चाय टदनं से उसे सहज नहीॊ होने दे यहा था। अऩनी सशयाओॊ तक भं भानो स्वच्छ हवा बयने के एहसास से उसने एक गहयी साॊस री औय अऩने शयीय को त्रफरकुर ढीरा छोड़े टकमा। ऩामा टक शयीय से ऩये भन के अन्दय फहुत कुछ खुदफुदा यहा है । टहरते जर भं जैसे सफ कुछ गडभग् हो जाता है , कुछ वैसे ही।

थोड़ेी दे य फाद जफ सफ कुछ सथया गमा तो वह एक-एक चीज को ऩकड़ेने की कोसशश कयने रगा। सफसे ऩहरे उसे ख्मार आमा, वह योमा समं? समा था उन ऑॊसुओॊ भं? अतुर से त्रफछड़ेने का ददष ? शामद नहीॊ, इस प्रकाय के भौके तो उसके ऩंतारीस वषष की क्जन्दगी भं फहुत फाय आए हं

औय ऐसे ददष को तो वह भौन घूॉि के साथ ऩी जाता है । कठोयता को वह ऩौरुष का ऩमाषम भानता यहा है औय कुछ इस प्रकाय साधा है उसने अऩने व्मत्रक्तत्व को टक कटठन-से-कटठन घटड़ेमं भं बी वह िू िकय त्रफखय नहीॊ सका... औय आज... आज कैसे ढह ऩड़ेा वह इतनी आसानी से? समा कुछ िू िा जो ऩरबय भं बयबया गमा वह?

अॊसतभ फाय दे खा हुआ अतुर का चेहया उसकी ऑॊखं के साभने घूभ गमा। उसके भुस्कयाते चेहये को फाय-फाय माद कयने रगा वह, समा उसकी भुस्कयाहि भं कहीॊ कोई उदासी बी थी? टकॊसचत

भुस्कान के साथ धीये -धीये टहरता हुआ उसका हाथ। हाॉ, ऩर बय के सरए, भाि ऩर बय के सरए

ही सही, जफ वह दृत्रद्श की सीभा से ऩये जाने रगा था तो एक छामा-सी गुजय गई थी उसके चेहये से ऩय तत्ऺण ही उसने अऩने आऩको सॊबार सरमा था। घड़ेी की ओय नजय डारते हुए वह ऩुन: अऩनी उस दसु नमा भं रौि गमा था... एक दसु नमा जो उनके सऩनं की सीभाओॊ भं कबी नहीॊ सभा ऩाई थी... एक दसु नमा क्जसकी हकीकत भाि कुछ रोगं तक ही सीसभत थी... ऩय एक दसु नमा जो आज अतुर की भुट्ठी भं थी।

शोय औय योने की आवाॊज से उसका ध्मान अऩने आस-ऩास गमा। साभने फैठे फच्चे क्खड़ेकी के ऩास फैठने के सरए आऩस भं रड़े यहे थे औय ऩत्नी उन दोनं के फीच सुरह कयाने का प्रमास कय यही थी। उसकी भुिा कुछ इतनी तिस्थ थी टक कोई उसे टडस्िवष कयने की टहम्भत नहीॊ कय यहा था। वह स्वमॊ बी उस ऩचड़े​े भं नहीॊ ऩड़ेना चाहता था। फाहय नजय गई उसकी। है दयाफाद स्िे शन की जगभगाती तेज फत्रत्तमाॉ ऩीछे छूि गई थीॊ। धीये -धीये शहय की इभायतं छोिे -छोिे भकानं भं

औय अफ दयू -दयू तक पैरे सऩाि भैदानं व वृऺं भं फदर चुकी थीॊ जो क्रभश: गहये होते अॊधकाय


भं छामा-सी प्रतीत होती थीॊ। उस गहये अधॊकाय भं दयू कहीॊ कोई योशनी की कुछ फूॊदं दीख ऩड़ेती थीॊ। सफ कुछ तेजी से बागा जा यहा था।

सचभुच ही सफ कुछ टकतना तेजी से बाग यहा है । टकतना कुछ है जो अबी कर की फात रगती थी, आज फहुत ऩीछे िू ि गई प्रतीत होती है ।

धीये -धीये वह अऩनी ऩुयानी दसु नमाॉ भं रौिने रगा। ऩयसं तक वह आटदत्मऩुय ऩहुॉच जाएगा। दयू दयू तक पैरी हरयमारी औय फर खाती नदी के एक टकनाये ऩय फसा उसका मह अऩना शहय... िािानगय की चहर-ऩहर से फस थोड़ेा ही दयू ... अऩने ही भं खोए हुए एक त्रवयागी की तयह। उसकी खाभोशी को मटद कोई तोड़ेता है तो ऩक्ऺमं का सभूह मा छाि-छािाओॊ का सनद्रष न्द्र

अट्िहास। ऩक्ऺमं के झुॊड एक साथ खेतं मा वीयानं भं उतयते हं औय जया-सी आहि ऩाते ही चौकन्ने मे ऩऺी एक साथ ऩॊख पड़ेपड़ेाते हुए आसभान की ओय उड़े जाते हं । फादरं को

आसभान से धयती ऩय फयसते तो सफने दे खा है ऩय फादरं के धयती से उड़ेकय आसभान भं त्रफखय जाने का मह दृश्म... अद्भत ु ! सुफह होते ही ऩक्ऺमं के साथ छािं का सभूह बी चायं ओय त्रफखय जाता है । शाभ तक जफ कऺाएॉ चर यही होती हं तो एक सन्नािा ऩसया यहता है । शाभ होते ही कऺाओॊ के अनुशासन से छूिे छाि-छािाओॊ के उन्भुक्त करयव से ऩूया ऩरयवेश भहक

उठता है । मह आय.आई.िी. ही तो इस शहय की ऩहचान है । शहय के उत्तयी छोय ऩय इॊ जीसनमरयॊ ग कॉरेज का कैम्ऩस है औय दक्ऺणी ऺोय ऩय दयू -दयू तक ऩसये हुए एकभॊक्जरी सवािष स।ष इसी भं क्स्थत है उसका ढे य सायी क्खड़ेटकमं औय दयवाजं तथा ऩीछे की तयप रम्फे-चौड़े​े ऑॊगन वारा तीन कभयं का सयकायी सवािष य... उसका छोिा-सा स्वगष। इसके ऑॊगन को ढे य साये पूरं के

ऩौधं व रतयं से सजामा था उसने... ऩय आज उसका मह सतयॊ गी स्वगष अचानक यॊ गत्रवहीन समं प्रतीत होने रगा था। इसको सनहाय कय भुनध हो जाने वारी नजयं को महीॊ से दीख यहा है टक इसके प्रास्िय कई जगह से उखड़े​े हुए हं , फाहय की तयप का यॊ ग बी अफ फदयॊ ग होता जा यहा है । ऐसा एक सद्ऱाह ऩहरे तक तो नहीॊ था! अबी एक सद्ऱाह ऩहरे जफ वह तारा फॊद कय

सनकरा था तो माद आमा था, ऩंजी के गभरं को वह कोने भं ही छोड़े आमा है , धूऩ भं कहीॊ कुम्हरा न जाएॉ मे। उसने टपय से तारा खोरकय उनको सही जगह ऩय यखा था, उन्हं सनहाया था, ऩूये घय भं एक त्रफछड़ेने वारी दृत्रद्श डारी थी औय सनकर आमा था ऩरयवाय के साथ है दयाफाद जाने के सरए। भहीना बय ऩहरे है दयाफाद से एक सेसभनाय का सनभॊिण सभरा तो जैसे कोई दफी सचॊगायी सुरग ऩड़ेी थी। है दयाफाद... महीॊ तो है अतुर... उसका रॊगोटिमा माय... नमायह वषष हो गए उससे सभरे हुए। ऩहरे तो कबी-कबाय उसका कोई ऩि आ जाता था ऩय इधय कुछ वषं से तो उसकी कोई खफय ही नहीॊ सभरी। उसने तत्कार गोयखऩुय, उसके फड़े​े बाई को पोन रगामा। वहाॉ से उसका

ऩता सरमा। ऩत्नी व फच्चं का बी रयजवेशन कया सरमा उसने, चरो सेसभनाय बी अिं ड कय रंगे, फच्चं का घूभना बी हो जाएगा औय अतुर से सभर बीरंगे।


अतुर की माद ने उसे योभाॊसचत कय टदमा। कबी वे साथ-साथ होस्िर भं यहा कयते थे, साथसाथ यहना, खाना, ऩढ़ेना, वह भेकेसनकर त्रवबाग भं था औय अतुर कम्प्मूिय भं फी. िे क कय यहा था। वे टदन समा कबी बुराए जा सकते हं ? ...जीवन के सफसे भहत्वऩूणष ऩर... दसु नमा को दे खने के, सभझने के, सऩने फनाने के, आदशष चुनने के टदन, असीभ ऊजाष से बये हुए... उन्हंने साथ त्रफताए थे। दे य यातं तक टदनकय, नागाजुन ष , धूसभर, भुत्रक्तफोध, दष्ु मॊत कुभाय की कत्रवताएॉ

सस्वय ऩढ़ेना, बूऩेन हजारयका के गीत, सड़ेक ऩय चरते हुए भाससषवाद ऩय उनकी फहसं... स्िू डे न्ि पेडये शन भं उनकी सटक्रम बागीदायी... अॊधत्रवद्वासं के क्खराप रड़ेने वारे ये शनर गु ्यऩ की

सदस्मता... नुसकड़े नािकं का भॊचन... जीवन के इन रम्हं को इतनी आसानी से बुरा ऩाना सम्बव है समा? इन्हीॊ सफके फीच तो उन दोनं का व्मत्रक्तत्व सनसभषत हुआ था, जीवन के प्रसत

प्रसतफर्द्ता की अधोत्रषत शऩथं री थीॊ। पेमयवेर के टदन करेजा सचभुच ही त्रवॊध आमा था, अफ मह सफ कुछ छूि जाएगा। जाते वक्त अतुर की ऑॊखं छरछरा आई थीॊ। उसकी हथेसरमं को अऩने दोनं हाथं भं बयकय धीभे से थऩथऩा टदमा था उसने, ददष के भौन घूॉि बयता हुआ।

गुरभुहय के ऩेड़ें की कतायं के नीचे चरते हुए अतुर ने जो कहा था, आज बी माद है उसे, ''इस इॊ जीसनमरयॊ ग कॉरेज भं त्रफताए हुए टदन हभायी सशयाओॊ भं चेतना फनकय समा हभेशा के सरए नहीॊ फस गए हं ?''

उन दोनं ने साथ-साथ ही कई जगह आवेदन टकए थे। कई जगह बिकने के फाद जफ सॊमोगवश उन दोनं की ही सनमुत्रक्त मादवऩुय भं हो गई तो उनकी खुशी का टठकाना नहीॊ यहा। अफ तक दोनं त्रववाटहत हो चुके थे औय मादवऩुय भं एक नई क्जन्दगी की शुरुआत की दोनं ने।

कैसा था उन रोगं का मादवऩुय का जीवन... नई-नई नौकयी, नए जीवन का उल्रास औय नई गृहस्थी फसाने का सुख। आज बी जफ वह उन टदनं को माद कयता है तो खो जाता है उनभं। फहुत टदनं तक पोक्ल्डॊ ग खाि ऩय कऩडे तह-तहकय यखने के फाद जफ एक टदन वे अरभायी औय अरनी खयीद राए थे तो भानो उत्सव का भाहौर हो गमा था। वहाॉ ऩाॉच दोस्तं का गु ्यऩ फन

गमा था उनका। सफकी नई गृहस्थी। कबी टकसी के घय सोपा आमा है , टकसी ने नमा स्कूिय सरमा है , कोई िे सरत्रवजन रे आमा है औय इसी फहाने दावत भन यही है । दावत बी कैसी। साभने वी.सी.आय. ऩय कोई टपल्भ रगा री है , अतुर के घय से छोरे आए हं , याहुर ऩूरयमाॉ तर रामा

है , गौतभ की फीवी यसगुल्रे अच्छे फनाती है , फासु खीय रामा है , उसके घय ऩुराव व चना दान फन गमा है फस हो गई ऩािी! जभीन ऩय ऩसये खा-ऩी यहे हं , हॉ सी-भजाक हो यहा है , टपल्भ दे ख यहे हं औय शसनवाय की सायी-की सायी यात मूॉ ही गुजय गई है । वह भस्ती, वह उल्रास, वह उन्भुक्तता, वह आनन्द जीवन भं टपय रौि कय नही आमा। महीॊ ऩय उनकी ऩहरी सॊतानं हुई।

महीॊ ऩय उसके फड़े​े फेिे को सनभोसनमा हुआ था, उसकी ऩत्नी का ऑऩये शन हुआ था। दो भहीने के अनी को रेकय उसके व सुधा के साथ फायी-फायी से चायं दोस्तं का जगना... डे ढ़े सार के अनी को अतुर के घय छोड़ेकय फीभाय ऩत्नी को रेकय दो टदन अस्ऩतार भं गुजायना। आज बी उन


ऩरं की माद उसे ससहया जाती है ऩय वे कटठन ऺण सभिं के सहमोग से कैसे कि गए थे, ऩता ही नहीॊ चरा था। जीवन का महवैबव वमस्तताओॊ औय ऩरयक्स्थसतमं के फीच कैसे औय कफ ऩीछे छूि गमा, ऩता ही नहीॊचरा।

मह सफ कुछ नहीॊ त्रफखयता, मटद अतुर के साथ वह घिना नहीॊ घिी होती। सायी मोनमता के फावजूद अतुर को यीडयशीऩ नहीॊ सभर ऩाई थी। अतुर के त्रवद्वास को इस घिना ने भानो तोड़े डारा औय उसके जीवन की टदशा ही फदर गई। अऩाटहज त्रऩता व छोिे बाईमं की क्जम्भेदायी बी थी ससय ऩय। इससरए भौका सभरते ही वह प्राइवेि कम्ऩनी की तयप बागा। जीसनमस तो था ही, नई-नई सूचना क्राॊसत की ऩरयक्स्थसतमं का बी पामदा सभरा उसे। ऩहरे फोकायो, टपय ऩूना औय अफ है दयाफाद। त्रफरकुर सशखय ऩय था अतुर आज। शामद मह सशखय ही था जहाॉ से दसु नमा उसे इतनी छोिी नजय आने रगी थी। अतुर के जाने के फाद वह बी ज्मादा टदन मादवऩुय भं नहीॊ

टिक ऩामा औय भौका सभरते ही आटदत्मऩुय-िािानगय भं अऩने भाता-त्रऩता के ऩास चरा आमा। दोनं का जीवन दो त्रवऩयीत टदशाओॊ भं भुड़े गमा औय आज नमायह वषं फाद वे आभने-साभने थे। है दयाफाद स्िे शन ऩय अतुर आमा था रेने, अऩनी चभचभाती कोयर सचऩ सैन्ट्रो भं। उसका गोया यॊ ग औय सनखय गमा था, अरफत्ता फदन कुछ दहु या हो गमा था क्जसभं वह चऩरता नहीॊ यह गई थी। िंचकि दाढ़ेी भं तो वह ऩहचान भं ही नहीॊ आ यहा था। कुछ तो अतुर का नमा व्मत्रक्तत्व, कुछ सैन्ट्रो काय की बव्मता औय यही-सही कसय ऩूयी की है दयाफाद शहय की चकाचंध ने।

चभचभाती योशनी से नहाई चौड़ेी-चौड़ेी सड़ेकं, ऊॉची-ऊॉची आरीशान औय बव्म इभायतं, काॉच की चभकदाय फड़ेी-फड़ेी क्खड़ेटकमं सेसजे ऑटपसेज... वह असबबूत होकय दे खता यहा औय जफ अतुर की सैन्ट्रो उसके ऩैयाडाइज अऩािष भंि के तरघय भं ऩहुॉची तो वह असबबूत ही नहीॊ, भॊिभुनध हो उठा। सरफ्ि से चौथे तरे के कॉरयडोय भं उतयकय उसने जफ क्खड़ेकी से फाहय झाॉका तो दे खता

यह गमा। अतुर ने फतरामा ''वह दे खो, उधय हभाया स्वीसभॊग ऩूर है , उधय वॉटकॊग िै य् क, मे यहा िे सनस रॉन औय वह है ओऩन एमय ऑटडिोरयमभ। अॊदय क्जभखाना है औय उधय सचल्ड्रे न ऩाकष, रगबग साढ़े​े तीन सौ फ्रैट्स हंगे हभाये अऩािष भंि भं...।'' अतुर फता यहा था औय वह कहना चाह यहा था सचभुच मह तो अऩने आऩ भं एक छोिा शहय ही है , ऩय उसकी तो जफान ही भानो तारू से सचऩक गई थी। अतुर के कॉरवेर फजाने ऩय फीणा ने दयवाजा खोरा-ऩुयाने ऩरयचम की आत्भीम भुस्कान चेहये ऩय आई... ऩहचाना इसे, मह है गुडडू ... अये मह इतना फड़ेा हो गमा... अनी, ऩहचाना तुभने ऑॊिी को... अये नभस्ते कयो... इन सफसे अरग-थरग वह दे खे जा यहा था दयवाजे से अॊदय घुसते ही दाईं तयप एक फड़ेा-सा बव्म शीशा रगा था, फाईं तयप जूता यखने की अरभायी, एक तयप फैठने की जगह, कोने भं बव्म नकरी पूरं का गुरदस्ता। आगे ड्राइॊ ग-रूभ था अतुर का। योजवुड के फने हुए बव्म सोपे, 21 इॊ च का िे रीत्रवजन, दीवाय ऩय चॊदन की रकड़ेी ऩय खुदी फड़ेी-सी ऩंटिॊ ग, कभये के फीचं-फीच रिकता झाड़े-पानूस, सोपे के कॉनषय भं ऩीतर का


रैम्ऩ शेड, रकड़ेी का फड़ेा-सा भॊटदय, कीभती ऩयदे ... एक आतॊक-सा छा गमा सुधा, उस ऩय व फच्चं ऩय। वह तो गुडडू -सनसकी के गार सहराना, वीणा को नभस्ते कयना औय अतुर की ऩीठ ऩय धौर जभाना ही बूर गमा था। सचभुच अतुर कहाॉ से कहाॉ ऩहुॉच गमा था खुशी के साथ एक अव्मक्त इष्माष ऩहरी फाय वह अतुर के सरए भहसूस कय यहा था। समा सुदाभा को बी कृ ष्ण के महाॉ ऐसा ही भहसूस हुआ होगा नहीॊ, उसने अऩने खोए आत्भत्रवद्वास को ऩकड़ेा वह सुदाभा नहीॊ है , वह

आय.आई.िी. का यीडय है । वह सुदाभा की तयह माचक फनकय नहीॊ आमा है , वह आमा है अऩने सभि के ऩास फहुत कुछ शेमय कयने।

वह भौका तराशता यहा जफ एकाॊत होगा, अतुर होगा औय टपय ढे य सायी फातं हंगी। इस आसबजात्मता के प्रसत एक आक्रोश रेकय ऩरने वारा अतुर इसभं कैसे एडजस्ि कय सका। समा अफ बी वह चेतना, वह सॊस्काय उसकी सशयाओॊ भं व्माद्ऱ है ? उसे फताना था अतुर दे खो, भंने प्रसतफर्द्ता को अबी तक क्जॊदा यखा है , फहुत जूझना ऩड़ेा है इसे जीत्रवत यखने के सरए। नुसकड़े-नािकं की दसु नमा भं उसकी

अऩनी त्रवसशद्श ऩहचान फन गई है , एक भॊच फन गए हं उसके मे नािक, जन-चेतना के सनभाषण के सरए उसके छाि, उसके ऺेि की जनता उसकी टकतनी फड़ेी ताकत फन गए हं । वह अफ अऩने आऩ भं वाऩस रौिने रगा था। हाराॉटक सामास। खाते वक्त ऩूछा उसने-तुभने तो एकदभ बुरा ही टदमा अतुर, न कोई खफय, न कोई ऩि...

''ऩि सरखने का सभम अफ टकसके ऩास फचा है , आनन्द'', अतुर सूऩ की चुक्स्कमाॉ रेता हुआ

फोरा ''अफ तो मह सफ कम्प्मूिय का काभ है । कासरदास ने कबी भेघदत ू सरखा था, ऩय आज

की दसु नमा के दत ू तो मे कम्प्मूिय हं औय इनकी स्ऩीड बी टकतनी तेज है । सचभुच कम्प्मूिय ने सभूचे त्रवद्व को एक कोने भे सभेि टदमा है । अरादीन का सचयाग था न, वैसा ही हो गमा है मह

कम्प्मूिय। अफ तो रयजवेशन से रेकय सफकुछ इसके द्राया सम्बव है ... अतुर औय बी फहुत कुछ फताए जा यहा था औय आनन्द सोच यहा था खतं की एकाॊसतक खुशफू का त्रवकल्ऩ ई-भेर कबी हो सकते हं समा? थोड़ेा ठहय कय अतुर ने ऩूछा ''तुभने कम्प्मूिय रे सरमा?'' सकऩकाहि के साथ उसने जवाफ टदमा ''नहीॊ, त्रवबाग भं है , उसी से काभ चर जाता है ।'' ''नहीॊ, तुम्हं रे रेना चाटहए। जानते हो, सरिये ि होने के सरए थ्री-आय से काभ नहीॊ चरने वारा अफ तो। इसके त्रफना तो आऊिडे िेड हो जाओगे।'' खाना खाने के फाद अतुर उसे अऩने स्िडी रूभ भं रे आमा। कम्प्मूिय ऩय वह उसे अऩने अभेरयका व कनाडा-प्रवास की तस्वीयं टदखाता यहा औय वह सोचता यहा, समा मह वही अतुर है क्जसे कबी कऩड़े​े ऩहनने का शऊय न था औय क्जसके कऩड़े​े वह खुद खयीदवामा कयता था। ध्मान से दे खा उसने, ऩयखन चाहा, समा अतुर भं अहॊ काय आ गमा है ? ऩामा टक अहॊ काय तो नहीॊ था


वहाॉ, वही ऩुयानी सहजता थी, ऩय प्रदशषन-त्रप्रमता से कैसे इॊ काय टकमा जा सकता है । फेचाया अतुर, सोचा उसने, आक्खय सनम्न-भध्मवगीम भानससकता से कैसे भुक्त हो सकता है बरा औय जफ वह टहन्दी प्रदे शं के त्रऩछड़े​े ऩन ऩय सभतरी आ जाने वारी बॊसगभा के साथ चचाष कयते हुए

साइफय ससिी के रूऩ भं है दयाफाद की प्रगसत की मूॉ तायीप कयने रगा, भानो इसकी मोजना उसने खुद फनाई हो तो आनन्द उसे आद्ळमष से दे खने रगा, समा अतुर त्रफरकुर बूर चुका है टक उसकी जड़ें बी कहीॊ उन्हीॊ त्रऩछड़े​े प्रदे शं से जुड़ेी हुई हं ?

साभने िी.वी. ऩय पीर-गुड के त्रवऻाऩन आ यहे थे औय अतुर उसभं जोड़े यहा था 'इॊ टडमा इज रयमसर शाइसनॊग, भेये माय...' वह फताए जा यहा था टक टकस प्रकाय हार के वषं भं औद्योसगक ऺेि भं सुखद भाहौर ऩैदा हुआ है , सूचना व प्रौद्योसगकी के ऺेि भं बायत फड़ेी तेजी से प्रगसत कय यहा है , जीडीऩी की दय आठ प्रसतशत तक ऩहुॉच गई है , सॉफ्िवेमय के ऺेि भं बायत अऩनी त्रवसशद्श ऩहचान फना सकने भं सऺभ हुआ है औय आनन्द की ऑॊखं के साभने अखफायं के

है डराइन्स घूभ यहे थे सयकाय द्राया अनाज के बये हुए त्रवशार बॊडाय की घोषणा तथा सत्तय राख िन अनाज के सनमाषत का रयकाडष औय दस ू यी तयप टकसानं द्राया रगाताय की जा यही

आत्भहत्माएॉ, चारीस-ऩचास रुऩमे की साड़ेी के सरए रखनऊ भं भची बगदड़े भं भायी गई भटहराएॉ, कुछ हजाय नौकरयमं के सरए असभ-त्रफहाय के फीच गृहमर्द् की क्स्थसतमाॉ... अतुर को सुनते हुए वह रगाताय भहसूस कय यहा था टकस प्रकाय एक वगष से दस ू ये वगष भं स्थानाॊतरयत

होते ही त्रवचाय, दृत्रद्शकोण औय प्रसतफर्द्ताएॉ बी चुऩचाऩ स्थानाॊतरयत हो जाती हं । वह ऩूछना चाह

यहा था ''अतुर, तुम्हायी दसु नमा दो प्रसतशत रोगं भं कैसे ससभि आई, भेये दोस्त? अऩनी दसु नमा के कुछ प्रसतशत रोगं को आरीशान कायं भं घूभते, कम्प्मूिय से साये कामष कयते, भोफाइर ऩय चहकते दे खकय तुभ कैसे बूर गए बूख से आत्भहत्मा कयते टकसानं को, फढ़ेती हुई फेयोजगायी को? समा है दयाफाद की चकाचंध भं तुम्हं दे श के वे कोने माद नहीॊ आए जहाॉ िे सरत्रवजन,

कम्प्मूिय औय भोफाइर तो दयू , त्रफजरी की योशनी तक नहीॊ ऩहुॉच ऩाई है ? तुभ कहाॉ कैद हो गए भेये दोस्त, इॊ टडमा ससपष वही तो नहीॊ जो तुम्हाये कम्प्मूिय भं पीड है ...'', ऩय कैसे ऩूछता, अतुर

तो कुछ फोरने का भौका ही नहीॊ दे यहा था! नमायह फजते ही अतुर घड़ेी दे खता हुआ 'गुड नाइि' कहकय सोने चरा गमा। दे य यात तक उसे नीॊद नहीॊ आई। कॉरेज की वे यातं माद आती यहीॊ, जफ वे सायी-सायी यात फातं भं, फहसं भं गुजाय टदमा कयते थे। ट्रे न की रम्फी मािा की थकान औय दे य यात के जागयण की वजह से वह आठ फजे सोकय जफ उठा, अतुर ऑटपस के सरए तैमाय होकय नाश्ता कय यहा था औय वीणा को टहदामत दे यहा था ''इन रोगं को शहय घुभा दे ना औय भैकडोनाल्ड भं यात का टडनय कयवा दे ना, भुझे आने भं दे य होगी।'' आनन्द को थोड़ेा फुया रगा, दो टदनं के सरए तो आमा है वह, अतुर समा एक टदन उसके सरए छुट्िी बी नहीॊ रे सकता था। ...टपय अऩने आऩ को सभझामा उसने, अतुर की उसकी तयह


िीचय वारी आयाभ की नौकयी थोड़े​े ही है ...! आज अतुर न सही, है दयाफाद शहय ही सही। सुधा फीच-फीच भं आकय रयऩोटिं ग कयती जा यही थी 'टकचन भं दे खा, भाइक्रो ओवन भं खाना टकस प्रकाय गभष हो जाता है '! सुधा असबबूत थी पुरी ऑिोभैटिक वासशॊग भशीन, गीजय, पूड प्रोसेसय घयका साया काभ तो फिन दफाते ही हो जाता है । टदन भं सुधा वीणा को रेकय शॉऩसष िॉऩ सनकर गई। दोऩहय भं वह सोकय जफ उठा तो शाभ के ऩाॉच फज यहे थे। वह गुडडू व सनसकी के आने का इॊ तजाय कयने रगा चरो, आज इन्हीॊ के साथ फातं कये गा। ऩहरे सनसकी आई। नाश्ता कयके डान्स सरास कयने चरी गई। वहाॉ से रौिी तो म्मूक्जक ससस्िभ ऑन कय कभया फॊद कय सरमा। उसके फाद गुडडू आमा। सनसकी तो अतुर के करकत्ता से आने के फाद ऩैदा हुई थी, ऩय मह गुडडू समा इसे माद है टक फचऩन भं साये -साये

टदन वह भेये ही घय ऩय यहा कयता था? वह इॊ तजाय कयता यहा टक गुडडू खारी हो तो फताए टक टकस प्रकाय वह फहुत छोिा था तो बूख रगने ऩय कई फाय सुधा अऩने चेहये को ऑॊचर से

ढॉ ककय उसे दध ू त्रऩरा टदमा कयती थी। ऩय उसका बी सभम फॉिा हुआ था शाभ को फैडसभॊिन की प्रैक्सिस कयने सनकर गमा। आमा तो अऩने कम्प्मूिय ऩय खि-खि कयने रगा।

यात होते-होते आनन्द सभझ गमा टक सचभुच ही ऩूया घय मॊिचासरत हो गमा है , टकसी को टकसी के सरए पुयसत नहीॊ है , सफके अऩने कभये , अऩना कम्प्मूिय, अऩना भोफाइरसफ अऩनेअऩने कोनं भं ससभिे । आनन्द दे ख यहा था, कैसा कॊट्रास्ि था एक तयप तो ऩूयी दसु नमा एक

क्स्क्रन ऩय ससभि आई थी, दस ू यी तयप अऩने ही घय भं सबी अरग-अरग कोनं भं ससभि गए थे।

काय से वाऩस स्िे शन रौिते सभम अतुर एक औऩचारयक-सा उऩारम्ब दे यहा था। दो-चाय टदन औय रुकना चाटहए था। आनन्द खाभोश यहा। वह सभझ गमा था, दो-चाय टदन रुककय बी कोई पामदा नहीॊ था। अतुर उसकी ऩहुॉच से फाहय एक

ऐसी दसु नमा भं खो गमा था, जहाॉ सफ कुछ था, ऩय वक्त नहीॊ था। जो िु कड़ें भं वक्त उसके टहस्से आमा बी था, वह बी भोफाइर पोन की घॊिी, रैऩिॉऩ की टिक-टिक की बेिचढ़े गमा था। फाकी फचा यत्रववाय, तो वह उसके िे फर-िे सनस औय स्वीसभॊग के नाभथा। आनन्द तो भानो अतुर के महाॉ से रयक्त-हस्त रौिा था। इतना बी नहीॊ कह ऩामा था टक कबी आटदत्मऩुय बी आओ। वह जानता था, अतुर का एक खास अदा के साथ जवाफ होगा सभम ही कहाॉ है ! त्रऩछरे ही सार तो अतुर के त्रऩता का दे हान्त हुआ था औय फेिे के फैडसभॊिन-िू नाषभंि की वजह से वह गोयखऩुय नहीॊ जा ऩामा था।

अफ उसने जाना, उसके ऑॊसू त्रफछड़ेने के नहीॊ, एक दोस्त को सदै व के सरए खो दे ने के एहसास के थे। वह वतषभान भे रौि आमा था औय उसकी शून्म दृत्रद्श क्खड़ेकी ऩय थी। क्खड़ेकी के फाहय सफ कुछ


फहुत तेजी से बागा, ऩीछे बागा जा यहा था। उसे दे खते हुए वह अऩनी दसु नमा भं रौिने रगा था भारी ने ऩौधं को ऩानी टदमा होगा मा नहीॊ? डाहसरमा की डारं फढ़े आई हंगी, उन्हं माद से

तोड़ेना होगा... ऩता नहीॊ, सनशाॊत की तफीमत कैसी है , उसके घय से कोई आमा मा नहीॊ... थडष इमय का ससरेफस ऩूया नहीॊ हो ऩामा है , असतरयक्त कऺाएॉ रेनी हंगी। ...अगरे भहीने उसके नािकं की प्रदशषनी है , जाते ही रयहसषर शुरू कय दे नी होगी...। उसने टपय फाहय की तयप दे खा, सचभुच ही सफ कुछ फहुत तेजी से बागा जा यहा था। ऩीछे छू्यिते हुए दृश्मं की तयह अतुर की दसु नमा बी उसकी दसु नमा से कापी ऩीछे छूि गई थी।   टदवाकय घोष

कुछ चीजं, क्स्थसतमाॉ जफ फेचैन कय दे ती हं , तफ उस फेचैनी को अऩनी यचना भं त्रऩयोकय त्रवभशष, सॊवाद कयना चाहता हूॉ। टदवाकय घोष टदवाकय घोष टदशा, सतरकाभाॊझी कन्मा उच्च त्रवद्यारम के सनकि बागरऩुय, त्रफहाय-812001 भो.: 09431071795 आजकर के.फी.सी., काडा, बागरऩुय भं कसनद्ष असबमॊता के ऩद ऩय कामषयत। जन्भ : 1966

सय का पोन-कॉर भोफाइर के रयॊ ग की आवाॊज अवचेन भं गूॊज यही है । कुछ ऺण के सरए फॊद हुई रयॊ ग टपय फजने

रगती है । ऑख ॊ खुरने ऩय दे खता हूॉ टक िे फर ऩय यखे भोफाइर भं रयॊ ग हो यहा है । इस वक्त रयॊ ग


होना एकफायगी आतॊटकत कय गमा। भन आशॊकाओॊ से सघयने रगा। ऩुसरस की गाड़ेी के सामयन सभान रगी रयॊ ग की आवाॊज। भच्छयदानी से सनकर भोफाइर उठा नाभ ऩढ़ेने की कोसशश कयता हूॉ। रेटकन नाकाभ। जफ तक चश्भा ढू ॉ ढ़ेकय ऩहनता औय भोफाइर के स्क्रीन ऩय उबये नाभ को

ऩढ़े ऩाता, तफ तक रयॊ ग फजना फॊद हो गमा औय स्क्रीन ऩय 'वन सभस्ड कॉर' उग आमा। सभस्ड कार के ऑप्सन फिन को दफाने ऩय प्रकाश प्रबाकय स्क्रीन ऩय भोफाइर नम्फय के साथ उबयता है । भं घोय आद्ळमष भं ऩड़े जाता हूॉ। इतने फड़े​े कथाकाय का ाॊपोन कॉर, वो बी इस अर्द्ष यात्रि भं।

उसके जैसे ऩहचान फनाने के सरए सॊघषषयत एक अदने से कथाकाय को। टकसी असनद्श की आशॊका से आक्रान्त होने रगा भन। रगता है , कोई गॊबीय घिना घटित हुई है , तबी तो सय ने पोन टकमा है उसे। भं शहय के प्रभुख साटहक्त्मक व्मत्रक्तत्व प्रकाश प्रबाकय जी को ''सय'' से ही

सम्फोसधत कयता यहा हूॉ। कॉर ऑप्सन फिन को जैसे ही दफाने जा यहा था टक भोफाइर ऩुन:

फज उठा औय स्क्रीन ऩय प्रकाश प्रबाकय कॉसरॊग... उबय आमा। भंने झिऩि हये फिन को दफा भोफाइर को कान के ऩास रे जाकय कहा है रो। 'तुम्हाया ब्रड गु ्यऩ समा है ?' सय का प्रद्ल तैय गमा। 'फी ऩॉक्जटिव।'

'जैसे बी हो, जल्दी से अस्ऩतार ऩहुॉचो।' सय ने आदे शात्भक स्वय भं कहा। भंने साहस कय ऩूछा 'समा फात है , सय?'

'ऩत्नी का एससीडं ि हो गमा है । कापी खून फह गमा है । खून की सख्त जरूयत है , जल्दी आओ' सय ने व्मग्रता से कहा। 'जी सय, भं तुयॊत आता हूॉ' भंने उन्हं बयोसा टदरामा।

पोन टडस्कनेसि होने ऩय भोफाइर भं सभम दे खा। यात्रि के 1 फजकय 10 सभनि हो यहे थे। ऩत्नी को उठाने के सरए हाथ रगामा तो वह कुनभुनाते हुए जागी। उसकी ऑॊखं भं प्रद्ल तैय यहे थे टक समं उठामा? भंने जल्दी-जल्दी भं उसे सायी फात फताई औय कऩड़े​े ऩहनने रगा। तबी ऩत्नी की

सख्त आवाज कानं से िकयामी भोफाइर ऑप कीक्जए औय सोइए चुऩचाऩ। वे फड़े​े रोग हं , कय रं, जहाॉ से चाहं खून का इॊ तजाभ। भंने सभझाने की भुिा भं प्रसतवाद टकमा, कोई इॊ तजाभ नहीॊ हो ऩामा होगा, तबी तो उन्हंने हभको ाॊपोन टकमा है । सय की ऩत्नी के जीवन का सवार है । 'गजफ के आदभी हं आऩ। वो फात एकदभ से बूर गए' माद टदराने के अॊदाज भं ऩत्नी फोरी। 'कुछ नहीॊ बूरा हूॉ रेटकन अबी ऩुयानी फात माद कयने का सभम नहीॊ है । सय इस वक्त बायी ऩये शानी भं हं ।'

उनकी ऩये शानी का ठे का आऩने ही रे यखा है । जाइए, जो भन हो कीक्जए। खून ही समं, टकडनी, ऑ ॊख, कान, नाक जो बी उनको जरूयत हो, सफ दे आइए। उससे बी जी न बये तो फोसरएगा,


ऩत्नी धभष सनबाने भं भं बी ऩीछे नहीॊ यहूॉगी।

'दे खो! सभझने की कोसशश कयो, जान जा सकती है भेये खून न दे ने से फेचायी की। अबी जान फचाना सफसे फड़ेा काभ है । फाकी सफ फात फाद भं सोचा जाएगा। भुझे जाना ही होगा खून दे ने। तुभ टकवाड़े अन्दय से फॊद कय रो, भं अबी आमा' कहते हुए भं सनकर ऩड़ेा। ऩत्नी ने जोय से दयवाजे को फॊद कय अऩनी नायाजगी का अॊसतभ सॊकेत टदमा।

फाहय घना अॊधेया ऩसया था। फाहय का अॊधेया भेये अॊदय की धुध ॊ से एकाकाय हो यहा था। भं ऩैदर फढ़ेा जा यहा था। थोड़ेी ही दयू तेज चरने से ऩसीने से तयफतय हो गमा। जेफ भं हाथ डारा,

रुभार नदायद। रुभार फेिा टपय स्कूर रे गमा होगा। भं कई फाय इस फात ऩय ऩत्नी से नायाजगी जाटहय कय चुका हूॉ। ऩय कोई असय नहीॊ। हथेरी से भुॉह ऩय उबय आए ऩसीने को ऩंछता नुसकड़े ऩय ऩहुॉचा तो एक रयसशे को खड़ेा ऩामा। रयसशावारा रयसशा ऩय ही घुिने को ऩेि भं घुसेड़े​े सोमा था। ऩंटिॊ ग की तयह रग यहा था उसके सोने का दृश्म। भन भं आमा, कैभया होता तो तस्वीय उताय रेता। करात्भक तस्वीय होती। 'चरोगे?' भंने उसे सोते से जगाते हुए अस्ऩतार चरने का आग्रह टकमा। भेयी आशा के त्रवऩयीत वह रयसशा से उतय चरने को ऐसे तैमाय हो गमा जैसे कोई योफोि हो। भं झिऩि रयसशा ऩय

सवाय हो गमा। रयसशा चर ऩड़ेा अस्ऩतार की ओय। अस्ऩतार ऩाॉच टकरोभीिय दयू था। भेये भन भं कई तयह के त्रवचाय आ-जा यहे थे। भुझे माद आता है , जफ भं इस शहय भं नमा-नमा आमा था एक अॊग्रेजी भाध्मभ के स्कूर भं टहन्दी िीचय फनकय। टहन्दी से एभ.ए. कयने के फाद बी टकसी सयकायी स्कूर मा कॉरेज भं नौकयी नहीॊ सभर ऩाई थी। अॊग्रेजी स्कूर भं टहन्दी की

नौकयी, एक उऩेक्ऺत-सा सयोकाय ही तो था, जैसे भं कोई नौकयी न कय यहा होऊॉ, फक्ल्क हय योज माचक की भुिा भं िीचसष रूभ भं जभा हो जाता हॉ । भेये चेहये को ऩढ़ेने वारा दस ू या सशऺक सफसे ऩहरे भेयी फेचायगी से रू-फ-रू होता था।

टहन्दी त्रवषम भुझे फचऩन से ही अच्छा रगता था। ऩयीऺा भं सफसे ज्मादा अॊक भुझे टहन्दी भं ही सभरते। टहन्दी सशऺक भुझे फहुत भानते थे औय कहते थे, एक टदन तुभ जरूय फड़े​े रेखक फनोगे। साटहत्म का योग भुझे स्कूर जीवन से ही रग गमा था। फार ऩत्रिकाओॊ भं कत्रवता-

कहानी बेजा कयता था प्रकाशनाथष। कबी-कबाय जफ कुछ छऩ जाता था तो भं टकतनी खुशी भहसूस कयता था औय एक टदन फड़ेा साटहत्मकाय फनने का सऩना दे खने रगता था। जफ भं कॉरेज भं आमा तो रेसचयय-प्रोपेसय से ऩरयचम हुआ। ऩढ़ेाई के साथ-साथ सरखना-ऩढ़ेना जायी यहा। साटहक्त्मक ऩत्रिकाओॊ भं यचनाएॉ छऩने बी रगीॊ औय फड़े​े साटहक्त्मक हस्ताऺय को ऩढ़ेने-

जानने रगा था। जफ नमा-नमा इस शहय भं आमा था तो सोचा, महाॉ के साटहत्मकायं से सभरूॉ। यचना के स्तय ऩय भं प्रकाश प्रबाकय जी को जानता था। उनकी कई कहासनमाॉ भंने स्तयीम साटहक्त्मक ऩत्रिका भं ऩढ़ेी थीॊ। उनके रेखन से खासा प्रबात्रवत था भं। एक तो उनकी यचनाओॊ भं ग्राम्म जीवन का सजीव सचिण होता, साथ ही उनकी यचनाएॉ सॊघषष के सरए प्रेरयत कयती


प्रतीत होतीॊ। आभने-साभने कबी भुराकात नहीॊ हुई थी।

तबी शहय के करा केन्ि भं ''साटहत्मकाय का साभाक्जक सयोकाय'' त्रवषम ऩय एक सॊगोद्षी के आमोजन की जानकायी स्थानीम अखफाय के भाध्मभ से सभरी। सॊगोद्षी की अध्मऺता प्रकाश प्रबाकय जी कयने वारे थे। यत्रववाय का टदन था। स्कूर भं अवकाश था ही। भं ऩहुॉच गमा करा केन्ि औय ऩीछे की एक कुसी ऩय फैठ गमा। सॊचारक द्राया प्रकाश प्रबाकय जी को भॊच ऩय

अध्मऺता के सरए आभॊत्रित टकमा गमा। अग्र ऩॊत्रक्त से बायी शयीय सरए एक रॊफी आकृ सत कॊधे से झोरा रिकाए धीये -धीये सधे कदभं से भॊच की ओय फढ़ेी। भॊचासीन होने ऩय ऩहरी फाय उन्हं साभने से दे खा। ऑॊखं ऩय चश्भा, रॊफा ओजऩूणष चेहया। त्रवषम ऩय कई वक्ताओॊ के बाषण के उऩयान्त अध्मऺीम बाषण के सरए प्रकाश प्रबाकय जी को आभॊत्रित टकमा गमा। उन्हंने फोरना शुरू टकमा औय भं सम्भोटहत होता चरा गमा। भेया सम्भोहन तफ िू िा, जफ हॉर तासरमं की आवाॊज से गूॉज उठा था। भं बीड़े को चीयता हुआ उनके नजदीक ऩहुॉचा। प्रणाभ कयते हुए भंने अऩना ऩरयचम टदमा। उन्हंने फड़ेी आत्भीमता से भेये कॊधे ऩय हाथ यखा औय घय आने का

सनभॊिण टदमा। भं उनके व्मवहाय से असबबूत हो गमा। टपय तो उनसे भुराकात का ससरससरा चर ऩड़ेा। शहय भं साटहत्म का कोई फड़ेा आमोजन होता, भहानगयं से नाभचीन हस्ताऺय ऩधायते तो आमोजन की अध्मऺता सय ही कयते औय आमोजन को सपर फनाने भं भं यात-टदन एक कय दे ता। भहानगय से ऩधाये साटहत्मकायं के आवबगत भं कोई कोय-कसय नहीॊ छोड़ेता। साटहक्त्मक आमोजनं भं व्मक्त वक्ताओॊ के त्रवचायं से भं ओत-प्रोत होता औय सभाज भं व्माद्ऱ अयाजकता, अन्माम के क्खराप खड़ेा होने वारी भुटहभ भं शासभर होने की सोचने रगता। कभ ऩैसे भं शहय भं बाड़े​े का भकान रेकय ऩत्नी व दो फच्चं के साथ जीवन गुजायना टकतना कटठन है , भं ही जानता था। अससय अन्माम होते दे ख बी कुछ न कय ऩाने की त्रववशता भुझे फेचन ै कय जाती। ऩड़ेोसी शभाष जी ने टकस तयह ऩीि टदमा था रयसशेवारे को उस टदन। अऩने अन्दय इस अन्माम के क्खराप आते उफार को फभुक्श्कर योक ऩामा था भं। ऩयन्तु उस टदन भुझसे यहा नहीॊ गमा। ऩड़ेोसी शभाष जी के फेिे को घय से खीॊचकय शहय का नाभी गुॊडा त्रफल्रू अऩने सासथमं के साथ सनभषभता से ऩीि यहा था। शभाष जी की ऩत्नी चीखचीखकय ऩड़ेोससमं से भदद की गुहाय रगा यही थीॊ। रेटकन कोई उनकी भदद को साभने नहीॊ आ यहा था। शभाष जी का फेिा असहाम त्रऩि यहा था। ऐसे रग यहा था जैसे गुॊडे उसकी जान रेकय ही भानंगे। भेयी नसं भं सनसनाहि होने रगी थी औय अदृश्म शत्रक्त के वशीबूत हो भं कूद ऩड़ेा था शभाष जी के फेिे को फचाने। फचाने के क्रभ भं भुझे चोि बी रगी थी ऩय त्रफल्रू गुॊडा सासथमं के साथ दे ख रेने की धभकी दे ता हुआ बाग खड़ेा हुआ था। तफ भुहल्रे के रोग अऩने घयं से

सनकर जभा हुए थे। कोई ऩुसरस भं यऩि सरखाने की सराह दे यहा था तो कोई शहय भं फढ़ेती

गुॊडागदी ऩय सचॊता व्मक्त कय यहा था तो कोई भीटिॊ ग फुराने की फात कय यहा था। शभाष जी की


ऩत्नी जख्भी फेिे को सहाया दे कय घय के अन्दय रे गईं औय ऩुसरस भं यऩि सरखाने से साप भना कय गईं। भं ठगा यह गमा। शभाष जी की ऩत्नी को समा हो गमा है ? समं वह ऩुसरस भं यऩि सरखाने से भना कय यही हं । कैसे कोई भाॉ अऩने फच्चे के सनभषभता से त्रऩि जाने के क्खराप कुछ बी कयने से ऩीछे हि सकती है ? भं मह सफ सोच ही यहा था टक ऩत्नी आकय भुझे घय के अन्दय रे गई औय पिकायने रगी समा जरूयत थी आऩको फीच भं ऩड़ेने की? अफ बुगसतए, धभकी दे कय गमा है त्रफल्रू? 'कैसी फातं कयती हो। भेये साभने शभाष जी के फेिे को गुॊडा ऩीि यहा था औय भं तभाशा दे खते यहता' प्रत्मुत्तय भं भंने कहा था। 'हाॉ-हाॉ, दे खते यहते तभाशा, जैसे औय रोग दे ख यहे थे। वे रोगे भूखष थे जो नहीॊ ऩड़े​े इस झभेरे भं... भुझे तो अफ डय सताने रगा है , कैसे सनकरोगे यास्ता-ऩैया?' 'कुछ नहीॊ होगा, तुभ फेवजह डय यही हो। टकतना बी घना अॊधेया हो, सूमष सनकरेगा औय अॊधेया बाग खड़ेा होगा।' 'मे सफ टकताफी फातं हं , टकताफं भं ही अच्छी रगती है । व्मवहाय भं उसका कोई भोर नहीॊ है । हय तयप अॊधकाय व्माद्ऱ है , कफ सनकरेगा आऩका सूयज अॊधेया बगाने। अबी तक तो सनकरा नहीॊ' ऩत्नी ने सनरुत्तय कय टदमा था भुझे। भं सभझ यहा था ऩत्नी टकस अॊधेये की फात कय यही है । अबावरूऩी अॊधेया जो भेये घय भं ऩसया है , वह बागने का नाभ ही नहीॊ रे यहा है । फक्ल्क अॊधेया औय गहयाता जा यहा है ।

अचानक रयसशा रुक जाता है । रयसशा रुकने का असबप्राम जानना ही चाहता था टक उसने फतामा चेन उतय गई है । अबी चढ़ेाए दे ता हूॉ।

सूने यास्ते ऩय रयसशा अऩनी गसत से अस्ऩतार की ओय जा यहा है औय भेया भन ऩुयानी फातं भं बिकता जा यहा है । भं टदभाग को सनदे श दे ने की कोसशश कयता हूॉ टक अबी ऩुयानी फात सोचने का समा भतरफ, अबी साभने भौत के आगोश भं जा यहे एक प्राणी की जीवन यऺा का प्रद्ल है , उसके फाये भं सोचना चाटहए। कैसे भौत से जूझ यही हंगी सय की ऩत्नी? रेटकन नहीॊ, टदभाग सॊदेश को ग्रहण ही नहीॊ कय ऩा यहा है । भन को ऩुयानी फातं भं बिकाता जा यहा है । उन टदनं त्रफल्रू गुॊडे का बम ऩूये ऩरयवाय ऩय एक कारे साए की तयह हय वक्त भॊडयाता यहता था। ऩत्नी घय से सनकरने भं ऩयहे ज कयने रगी थी। साथ ही फच्चं को बी फाहय नहीॊ जाने दे ती थी। भुझे बी फाहय जाते दे ख िोका-िोकी कयने रगी थी। सच तो मह था टक भेये अॊदय बी त्रफल्रू का बम व्माद्ऱ हो गमा था, रेटकन घय का भुक्खमा होने के दासमत्व के नाते फीवी-फच्चं के साभने सनबीकता का असबनम कयता यहता था। रेटकन ऩत्नी तो ऩत्नी ठहयी, उत्कृ द्श असबनम के फावजूद भेयी ऑ ॊखं भं व्माद्ऱ बम को ऩढ़े रेती, तफ ऑॊखं चुयाने के अरावा भेये ऩास कोई त्रवकल्ऩ नहीॊ फचता था।


धीये -धीये सभम गुजयता गमा औय त्रफल्रू गुॊडे का बम टदरो-टदभाग से उतयता गमा। ाॊक्जन्दगी टपय से साभान्म गसत से अऩनी ऩियी ऩय चरने रगी। रेटकन एक टदन जफ िमूशन की आक्खयी ऩारी ऩढ़ेा यात्रि भे दस फजे साइटकर से रौि यहा था, तबी साभने से एक फाईक ने तेजी से आकय अचानक ब्रेक रगामा। भंने बी फदहवासी भं साइटकर का ब्रेक जोय से भाया, टपय बी फाईक से िकया ही गमा औय भं साइटकर सटहत सगय ऩड़ेा था। हाथ की कोहनी औय हथेरी भं चोि रगी थी। जफ तक भं कुछ सभझता, फाईक सवाय ने भुझे कॉरय से ऩकड़े उठाते हुए कहा

था 'समं ये , हीयो फनता है । समं कूदा था उस टदन हभाये फीच... फोर... फोर...।' भेयी तो सघनघी फॊध गई। भुॉह से कोई आवाॊज ही नहीॊ सनकर यही थी। त्रफल्रू को अचानक साभने दे ख भं डय से काॉऩने रगा था। कोहनी व हथेरी के ददष को बूर चुका था। साऺात भौत को साभने खड़ेा ऩामा। भेये उत्तय न दे ने से नायाज त्रफल्रू ने ताफड़ेतोड़े थप्ऩड़े रगाए औय रयवाल्वय का फि भेयी कनऩिी ऩय दे भाया क्जससे भं चेतनाशून्म होता चरा गमा था। भक्स्तष्क ने उसके द्राया दी गई बद्दी-बद्दी गारी औय फाईक स्िािष हो जाने की आवाज को ग्रहण टकमा था। टकतने सभम तक अवचेतन भं यहा, ऩता नहीॊ। जफ होश आमा तो दे खा एक तयप साइटकर िू िी ऩड़ेी थी। साहस इकट्ठा कय साइटकर को उठामा औय रुढ़ेकाते हुए घय ऩहुॉचा था। ऩत्नी भेयी क्स्थसत दे ख एकफायगी घफया उठी थी। ऩहरे तो उसने सभझा टक कोई दघ ष ना हुई है । टपय भंने जफ सायी फात ऩत्नी को फताई तो ु ि वह बमग्रस्त हो उठी। ऩानी गभष कय राई औय शयीय ऩय उबये घाव को साप कय भयहभ रगा

टदमा क्जससे आयाभ भहसूस हुआ। रेटकन अॊदय का घाव िहिहा यहा था। अऩभान की ऩीड़ेा िीस भाय यही थी।

शभाष जी औय उनकी ऩत्नी भेये साथ हुए हादसे की खफय सुन भुझे दे खने आए। भंने त्रफपयते हुए उनसे कहा उस टदन अगय आऩने त्रफल्रू गुॊडे के त्रवरुर्द् थाने भं यऩि सरखाई होती तो आज भेये साथ ऐसी घिना नहीॊ घिती। अन्माम के क्खराप खड़ेा नहीॊ होने से अन्मामी का भनोफर ऊॉचा होता है । 'फात तो आऩ ठीक कहते हं । रेटकन त्रफल्रू गुॊडे को आऩ टकतना जानते हं ? उसके त्रवरुर्द् कुछ कयना अऩने-आऩको फफाषद कयना है । कुछ नहीॊ त्रफगड़े​े गा उसका, सभझने की कोसशश कीक्जए। अफ कुछ नहीॊ कये गा त्रफल्रू। उसके भन का गुस्सा सनकर गमा होगा।' सभझाते हुए शभाष जी ने कहा था। रेटकन भेया भन नहीॊ भान यहा था। भेये अॊदय यह-यहकय एक उफार आ यहा था। ऩत्नी

भेयी भन:क्स्थसत को सभझ यही थी। नीॊद भेयी ऑॊखं से कोसं दयू थी। भेये अॊदय की छिऩिाहि,

फेफसी को दे ख ऩत्नी ने साटहक्त्मक सभिं से भदद की गुहाय रगाने का सुझाव टदमा। ऩत्नी ने एक यास्ता टदखा टदमा था, धीये -धीये नीॊद आ गई। भं सय के घय उनसे सभरने गमा था। उनसे क्झझकते हुए सायी फात फताई, सतस ऩय उन्हंने

दे श-दसु नमा के हारात ऩय एक रॊफा रेसचय त्रऩरा टदमा औय ऩुसरस भं एप.आई.आय. दजष कयाने का सुझाव टदमा था। भंने उनके सुझाव ऩय थाने भं एप.आई.आय. दजष कयने हे तु आवेदन


थानेदाय को टदमा था। थानेदाय ने सयसयी सनगाह से भेये आवेदन को ऩढ़ेा था औय तल्ख आवाज भं कहा था इतनी यात भं सड़ेक ऩय समा कयते यहते हो? दे य यात भं सड़ेकं ऩय घूभना शयीपं का काभ तो नहीॊ है । _ भं िमूशन ऩढ़ेाकय रौि यहा था। _ टकस सरास तक के फच्चं को िमूशन ऩढ़ेाते हं ? _ दसवीॊ तक। _ कौन-कौन त्रवषम ऩढ़ेाते हं ? _ ससपष टहन्दी। थानेदाय ने तहकीकात की फात कह आवेदन यख सरमा था। भुझे आशा थी टक ऩुसरस भेये आवेदन ऩय एप.आई.आय. दजष कये गी औय त्रफल्रू को जल्द ही सगयफ्ताय कये गी। त्रफल्रू की सगयफ्तायी की खफय सुनने के सरए भं औय ऩत्नी इॊ तजाय कयते-कयते थक गए। उल्िे त्रफल्रू फाईक से घय के ऩास तक तेजी से आता औय त्रफना टकसी को कुछ कहे टपय वाऩस चरा जाता था। भानो वह मह जताने की कोसशश कय यहा हो टक ऩुसरस उसका कुछ नहीॊ त्रफगाड़े सकती है । ऩरयवाय ऩय बम का फादर औय गहया गमा था। तफ ऩुन: सय से सभरकय सायी फातं फताई। सय ने ऩूयी सॊजीदगी से भेयी फात सुनी औय सराह दी टक शहय के औय साटहक्त्मकाय रोगं से सभरकय उन्हं भाभरा फताओ, टपय सभर-फैठकय कुछ टकमा जाएगा। सय की सराह ऩय भंने शहय के अन्म साटहक्त्मक रोगं को अऩनी व्मथा सुनाई। सबी कुछ कयने का बयोसा टदराते हुए एक

दस ू ये ऩय िारने रगे। 'उनको कटहए, ऩहर कयं । हभ आऩके साथ हं ।' मही जुभरा सबी से सुनने

को सभरा। जीवन भं ऩहरी फाय भेये रृदम को गहया धसका रगा। भुझे अहसास हुआ टक यचनाओॊ भं सफ कुछ कय दे ने वारे साटहत्मकाय वास्तव भं टकतने फुजटदर, बीरू प्रकृ सत के रोग हं ।

त्रफल्रू गुॊडे का नाभ सुनते ही बमग्रस्त हो जाता है उनका चेहया, ऩहरू फदरने रगते हं । टदन ऩय टदन फीतते गए। न तो साटहत्मकाय रोगं की कोई फैठक हुई औय न ही कोई प्रस्ताव ही ऩारयत हुआ

औय न ही अखफाय भं खफय प्रकासशत हुई, न ही ऩुसरस ऩय कोई दफाव फन सका, न ही ऩुसरस ने एप.आई.आय. ही दजष

की औय न ही त्रफल्रू के क्खराप कोई कायष वाई हुई।

ऩहरी फाय भुझे अऩने ऩय से त्रवद्वास उठा। अॊदय से टहर गमा था भं। भुझे साटहत्म से अरुसच होने रगी, साटहक्त्मक रोगं से त्रवतृष्णा होने रगी थी। रेटकन भन नहीॊ भान यहा था, भन कह यहा था टक सय जरूय भदद कयं गे। कुछ न कुछ वे जरूय कयं गे। हो सकता है , उनकी अऩनी कुछ व्मत्रक्तगत भजफूयी हो रेटकन वे जरूय कुछ कयं गे। इसी भनोदशा भं एक टदन भंने उनको पोन रगामा। पोन उनकी ऩत्नी ने उठामा, सय के फाये भं ऩूछने ऩय जवाफ सभरा 'वो घय ऩय नहीॊ हं ।' टदन बय भं कई फाय पोन टकमा, हय फाय वही जवाफ 'वो घय ऩय नहीॊ हं ।' आक्खयकाय यात दस


फजे भंने टपय टहम्भत कय पोन रगामा। पोन टपय ऩत्नी ने उठामा। ऩीछे से आवाज आई 'टकसका है पोन?' ऩत्नी ने आटहस्ता से भेया नाभ फतामा। सय ने कहा 'काि दो पोन।' पोन टडस्कनैसि हो गमा। 'अस्ऩतार आ गमा फाफू', रयसशे वारे ने भुझे चेतन टकमा। भन भं उथर-ऩुथर भची थी। टदभाग एक अजीफ तयह के कश्भकश भं पॊसा था। रेटकन रयसशेवारे को बाड़ेा दे कय भं अस्ऩतार के अॊदय फढ़ेने रगा। ऩाॉव थे टक फढ़ेते ही जा यहे थे।  सॊदीऩ अवस्थी



आस्था डी-184 अऩोक्जि गौयव िॉवय भारवीम नगय, जमऩुय भो.: 09414212942 F F F F F F आजकर अध्माऩन एवॊ कैरयमय सराहकाय।

प्रेभ-कथा

है रो! आटदत्म कैसे हो? तुम्हायी सरखी प्रेभ-कथा तो अभुक साटहक्त्मक ऩत्रिका भं छऩकय छा गई है ।'' ''अच्छा! त्रवजम फाफू, आऩने बी ऩढ़ेी? आटदत्म भुस्कयामा।'' ''आऩने बी ऩढ़ेी?'' समा व्मॊनम कयते हो? ऩिकाय हूॉ तो समा साटहक्त्मक यचनाएॉ नहीॊ ऩढँ गा? ''अये माय, भजाक कय यहा था। औय सुनाओ, फाकी सभिं की समा प्रसतटक्रमा यही।''

तबी फैया कॉपी रेकय आ गमा। दोनं सभि कनाि प्रेस के कॉपी हाऊस भं दोऩहय के फाद फैठे हुए थे। कॉपी हाऊस भं खास बीड़े नहीॊ थी, दो-चाय कॉरेज गोइॊ ग मुवा जोड़े​े ही फैठे हुए थे।

''प्रसतटक्रमा नहीॊ, बाई'' भं फोरारयस्ऩाॉस कहो, मह एक सकायात्भक शब्द है , प्रसतटक्रमा से फेहतय है । फहुत अच्छा रयस्ऩाॉस यहा सफ तयप'' भंने शब्दं का सावधानीऩूवक ष चमन कयते हुए उसकी तयप दे खा। कहानीकाय फनते जा यहे हो।

उसका चेहया सॊतोष, गवष औय कुछ त्रवसशद्श होने के बाव से कभरेद्वय जैसा हो गमा।


''ठीक है , माय'' वह ओढ़ेी हुई त्रवनम्रता औय राऩयवाही से सनभषर वभाष की बावयटहत गम्बीयता की भुिा भे आमा, टपय टकसी भहान ् धुयॊधय रेखक की चतुयाई को ओढ़ेते हुए फोरा, ''प्रॉि ढू ॊ ढने ,

गढ़ेने, ऩॉसरश कयने, ड्राप्ॊ टिग, टपय एडीटिॊ ग कयने भं कम्प्मूिय ऩय घॊिं ससय खऩाना ऩड़ेताहै ।'' दयू कहीॊ आसभान भं फादरं का झुॊड तेजी के साथ सशप्ॊ टिग कय यहा था जैसे मुवा ऩीढ़ेी अऩने सऩनं, त्रवचायं को तेजी के साथ फदरती यहती है औय आक्खय भं खोखरे रेटकन चभक-दभक वारे भ्रभ को अऩने चायं ओय रऩि कय त्रवसशद्श होने का ढ़ेंग कयती है । कॉपी ससऩ कयते हुए भंने गौय से आटदत्म को दे खा, रॊफा कद, चेहये ऩय सौम्मता कभ,

व्मावहारयकता ज्मादा, ऑॊखं भं चतुयाई औय फातं भं भटहरा रेक्खकाओॊ की बाॉसत भ्रभ की क्स्थसत। कुर सभराकय मह आज के ऐसे मुवा की तस्वीय थी जो शॉिष कि से शोहयत चाहता है , फीज फोए त्रफना पर खाने का इॊ तजाय कयता है औय भौका सभरे तो दस ू यं के अवसय को झऩि

रेने को आतुय यहता है । रोगं से सॊफॊध बी नाऩ-तौर कय सधे हुए अनुऩात भं ही फढ़ेाता है जैसे सूयज का सातवाॉ घोड़ेा का नामक। अऩनी हय फात को फटढ़ेमा भानता है ,

चाहे फाहय उसे कोई दो िके का ना ऩूछे रेटकन अऩने आऩको सवषश्रद्ष े से दो हाथ ऊऩय भानता है । खरनामक औय टकसे कहते हं ?

''माय एक फात ऩूछूॉ? सच-सच फताना'' भंने कॉपी के साथ नाजुक प्रेमसी जैसे शतष यखी। ''ऩूछो माय, तुभसे समा छुऩाना'' राऩयवाही से मह कहते हुए वह अॊदय से सावधान हुआ। ''सॊध्मा कैसी है ? भंने तीय छोड़ेा।''

''कौन सॊध्मा?'' (फनने की कोसशश)। ''वही सॊध्मा जो दो वषष ऩहरे तुम्हाये सुल्तानऩुय से टदल्री आने ऩय तुम्हायी ऩहरी दोस्त फनी थी।'' भंने स्ऩद्श कय टदमा नाभवय ससॊह की बाॉसत टक भं सफ कुछ जानता औय सभझता हूॉ।

''ओह, वह! ऩता नहीॊ, माय! कापी सभम हो गमा उसे दे खे तो।'' उसने अनुबवी टक्रकेिय की तयह झुककय फाउॊ सय को फचामा। भंने सनद्ळम टकमा टक नागाजुन ष की बाॉसत खुरकय कह ही दॉ ू ''अच्छा! औय उसके साथ अऩने सॊफॊधं की कहानी को तुभने प्रेभ-कथा की शसर दे दी।''

''कॊ... क... समा कह यहे हो? भं सभझा नहीॊ?'' अऻानता ही आनॊद है , उसने मह स्िं ड सरमा। ''तुभ सफ सभझते हो? भेये बाई'', भंने गहयी साॊस री, ''समा हभाये व्मवहाय औय सॊफॊध सावषजसनक कयने के सरए होते हं ?'' भंने याभत्रवरास शभाष सी गॊबीयता से ऩूछा। आटदत्म के चेहये के हाव-बाव फड़ेी तेजी के साथ अॊदय की हरचर को फाहय आने से योकने भं


व्मस्त थे। वह फोरा, ''भं अबी बी सभझा नहीॊ कुछ। ऐसा समा गुनाह हो गमा भुझसे, जो भुझे नहीॊ कयना चाटहए था?'' वह अऻानता प्रदशषन फॊद कय धीये -धीये साभने आने रगा। ''भेये प्माये बाई! अऩने सॊफॊधं, अनुबवं को टकतने सभम फाद टकतनी गॊबीयता औय ऩरयऩसवता के साथ उठाना है औय कहाॉ प्रदसशषत कयना है , मही तम कयता है टक आऩकी सोच टकतनी ऩरयऩसव है । तुभने सॊध्मा औय अऩनी प्रेभ कहानी नाभ फदरकय छाऩ दी।'' ''तो समा हुआ? समा पकष ऩड़ेता है ?'' वह याजेन्ि मादव की तयह फोरा।

''भेये बाई सॊफॊध दो-तयपा होते हं । भं गॊबीयताऩूवक ष फोरा, ''जफ हभ उन्हं जीते हं तो उस ऩय दोनं का हक होता है , दोनं उसे साझा कयते हं । अऩनी सभिता भं उन्हं गोऩनीम यखना होता है , टकसी को हजष न हो।'' भंने गोल्ड फ्रैक सनकारकय उसे ऑपय टकमा। ''सफ चरता है , भेये दोस्त'' वह आक्खयकाय खुरा, ''नैसतकता को ढोऊॉगा तो रेखक कफ फनूॉगा? 50-60 वषष की उम्र भं? आज कौन नहीॊ है जो सॊफॊधं को रेखन भं नहीॊ उताय यहा है ?'' उसने कई नाभ सरए। भं बी सहभत हुआ ऩय भेया प्रद्ल टपय बी था, ''कभ से कभ उससे तो ऩूछ रेते?''

''ऩूछकय फॊध,ु रेखक नहीॊ फना जा सकता। तुम्हं भारूभ है , कई रड़ेटकमाॉ, भटहराएॉ अऩनी ही कहानी ऩढ़ेने को टकतनी आतुय यहती हं । उन्हं खुशी होती है टक उन्हं रयकोगनाइज टकमा जा यहा है औय तुभ बी माय, समा पारतू फात रेकय फैठ गए? चर उठ, भुझे प्रेस सरफ तक छोड़े दे ।'' प्रेस सरफ भं कुछ दे य त्रफताने के फाद भं अऩने फ्रैि ऩय आ गमा। टदन बय की ई-भेर चैक कयने ऩय उसी भं एक भेर शैपारी का सनकरा। शैपारी, जो टकसी अच्छे स्कूर भं साइॊ स िीचय है औय कॉयस्ऩॉन्डं स से एभ.फी.ए. कय यही है । साथ ही कत्रवताएॉ बी सरखती है । शैपारी से, क्जसकी क्खरक्खराहि से अॊधये कोने बी योशन हो जाते हं , कुछ भाह ऩूवष डी.एर.ऩी. (टडस्िं स रसनंग प्रोग्राभ) के तहत इवसनॊग सरासेस भं भुराकात हुई थी। सरखा था, ''हाम त्रवजम! समा कय यहे हो? िी हो तो कॉर कयना (12:15 ऩी.एभ.)।'' भंने घड़ेी दे खी, छह फजे थे। भंने उसे कॉर रगामा, ''हाम शैपारी! समा कय यही हो?'' ''हाम त्रवजम! कुछ नहीॊ, वही रुिीन राइप स्कूर, हॉस्िर, एभ.फी.ए. सरॉसेस, टपय स्कूर।'' ''तो बई, मह तो ठीक है औय समा चाटहए?'' भंने उसे छे ड़ेा। ''बई, मह ाॊक्जॊदगी बी कोई ाॊक्जॊदगी है ? ाॊक्जॊदगी हो तो ऐसी टक उस ऩय कोई कहानी सरख सके।'' इसी फात का तो भं शैपारी का कामर था टक फुत्रर्द्भता से एक ही वासम भं कई फातं ससभोन द फुआ की तयह कह डारती है । मह खूफी कहने की ही नहीॊ, सुनने-सभझने की असधकाॊश रोगं भं आ जाए तो जीवन औय सहजऩूणष तथा आनॊददामक हो जाए। इसे सफ ऩता था। भं फोरा, ''तुभ बी! टकसी बी फात को रेकय शुरू हो


जाती हो।'' ''वेसे समा मह एसथटकर त्रप्रॊसीऩर के क्खराप नहीॊ है ?'' ''शैपारी, आज सही-गरत के भामने फदर गए हं । जो चीॊज त्रफकती है , वह सही है । त्रवशेषकय बौसतकवादी सोच यखने वारं के सरए। ''अच्छा! वैसे भं सोच यहा हूॉ, हभायी दोस्ती की शुरुआत ऩय कहानी सरख डारूॉ।''

''वेयी पनी! तुभ इतने फेवकूप होते तो हभायी दोस्ती न होती।'' भुझे माद आमा, शैपारी की यचना एक प्रसतत्रद्षत ऩत्रिका भं ऩढ़ेकय उसे एस.एभ.एस. टकमा था। बूर से नाभ जाना यह गमा था। तुयन्त दनदनाता एस.एभ.एस. आमा था टक ''नाभ सरखने का साहस नहीॊ है ?'' भंने साद्ळमष नाभ औय सॊक्ऺद्ऱ ऩरयचम बेजा औय एक राइन बी टक, 'नाभ न बी हो तो बी प्रसतटक्रमा के ऩीछे सछऩे बाव ऩय जाना चाटहए।' तफ से हुआ ऩरयचम आज बी उसके साथ दोस्ती की गहयाईमं को छू यहा है ।

''चरो, आज कहीॊ कॉपी ऩीते हं ।'' भंने कहा। ''नहीॊ, आज नहीॊ आज कापी साया काभ सनऩिाना है । कर सभरंगे 11 फजे ''हनीडमू'' भं। ठीक है । फाम।'' ''फाम'' भंने कहा। शैपारी औय भं ''हनीडमू'' भं आधे घॊिे से फैठे हं औय चचाष भं भशगूर हं । ये स्िोयं ि भं टदन भं कोई खास बीड़े नहीॊ है , फस दो-चाय मुवा जोड़े​े फैठे हं औय कॉपी ऩी यहे हं । वैसे बी मह ये स्िोयं ि

सनभषर वभाष की तयह गॊबीय टकस्भ का है । शैपारी सदा की तयह जीॊस औय आसभानी िी शिष भं कॊधे ऩय फैग रिकाए आई थी। फात कयते हुए उसके कानं के फड़े​े -फड़े​े ईमय रयॊ नस झूरने रगते हं ।

''खूफसूयत है भेयी दोस्त, खुशटकस्भत हूॉ भं'' भंने सोचा, टपय कहा, ''शैपारी, औय सफ ठीक चर यहा है ऩय माय भुझे प्रेभ नहीॊ होता। ऩता नहीॊ समा हो गमा है ।'' ''होता है कबी-कबी ऐसा बी'' वह सॊजीदगी से फोरी। ''कोई जख्भ वगैयह नहीॊ है रेटकन ऩता नहीॊ समं, वह स्ऩाकष अबी तक टकसी से नहीॊ सभरा।'' ''वैसे बी समा जरूयी है टक सबी प्रेभ कयं ?'' वह फोरी। ''वॊडयपुर, भं बी मही सोचता हूॉ। ाॊक्जॊदगी की बागदौड़े, कदभ-दय-कदभ जभकय आगे फढ़ेना, उऩबोक्तावादी सॊस्कृ सत औय मह उत्तय आधुसनक सभम, इसभं कहाॉ है पुयसत फैठकय प्रेभशास्त्र ऩढ़ेने की।'' ''वैसे बी त्रवजम, आजकर के मुवा्य! इनसे बगवान फचाए। जो गॊबीय हं , वह व्मस्त हं । जो नौससक्खए हं , वह प्माय की फजाए सैसस को ही जानते-भानते हं , शैपारी भुस्कयाते हुए फोरी,

''जफ से भंने सभरान कुॊदया, चेखव औय सािष आटद की फामोग्रापी ऩढ़ेी हं , तफ से भन इस नद्वय प्रेभ से ऊऩय उठ गमा है ।''


''मह समं हो टक हय व्मत्रक्त प्माय कये औय एक से ही कये ?'' शैपारी अफ पुर पाभष भं थी। ''तुभ कमा कहना चाहती हो?'' भैने थोड़ेी कृ त्रिभ बंहे चढ़ेाकय कहा। ''प्माय, भुझे रगता है ।'' शैपारी ब्रैक कॉपी का ससऩ रेते हुए फोरी, ''एक गॊबीय व्मत्रक्त इतने

सभठास से भुझसे फातं कयते हं टक ऩूछो भत, तो दस ू ये भेये फॉस भेयी गरती को फख्शते नहीॊ हं ,

न ही भुझ ऩय राय िऩकाते हं औय तुभ बी हो, फहुत ही प्माय से भेयी गरती ठीक कयना फताते हो औय सबी मोनम फैचरय हं ।''

भंने शैपारी से इजाजत रेकय ससगये ि सुरगा सरमा औय ससगये ि के धुएॉ के छल्रं भं से उसे दे खा। 23-24 वषष की गौय वणष फड़ेी ऑॊखं, शंऩू की भहक सरए बूये-कारे फार वारी शैपारी। प्रत्मऺ भं भं फोरा ''शैपारी, तुभ सुॊदय हो, माय। तुभसे कोई बी प्माय कय सकता है ।'' ''प्माय! भाई पुि! िु च्चे, फेसरैस, सथॊटकॊगरैस, वकषरैस नौजवानं की बीड़े भं कोई टदखता है क्जस ऩय त्रवद्वास बी टकमा जा सके? इन्हं ससपष एक चीज चाटहए।'' शैपारी ने भेयी ऑॊखं भं दे खा औय भुस्कयाई ''वह तुम्हं सभर सकती है ।''

''शेय अऩना सशकाय खुद कयता है '' भंने सीना पुराते हुए कहा। उसकी हॉ सी छूि ऩड़ेी। भंने एक कश औय सरमा, टपय सॊजीदगी से फोरा, ''हभं अऩने इक्च्छत औय ऩसॊदीदा गुण दयअसर कई

रोगं भं सभरते हं । टकसी का फाह्य रूऩ अच्छा है , तो कोई क्खरक्खराता है तो साये दख ु दयू हो जाते है । टकसी का जीवन के प्रसत दृत्रद्शकोण सुरझा हुआ है तो कोई इतने धैमष औय त्रवद्वास से आऩको सुनता, सभझाता है टक रगता है टक मही यहे हयदभ ऩास।''

तबी शैपारी के सैर पोन की फैर फजी। उसने नॊफय दे खा औय फोरी, ''सथॊक ऑप द एॊक्जर,'' ''हाम सॊध्मा कैसी हो?'' ''एकदभ पस्िष सरास! िॉऩ ऑप द वल्डष ।'' उसकी चहकती हुई आवाॊज भुझे बी सुनाई दे यही थी, ''तुभ कैसी हो?''

''अऩने वैसे ही हार हं , वही नौकयी, वहीॊ ऩढ़ेाई औय वही त्रवजम।'' ''कुछ के टदन कबी नहीॊ टपयते। तुम्हाया त्रवजम बी उनभं ही आता है । कापी रॊफी दोस्ती चर यही है , समा इयादा है ?'' ''फस माय अऩनी राइप दौड़े यही है । उसके साथ-साथ भुझे बी दौड़ेना ऩड़ेता है ।'' दोनं फातं कय यही थीॊ, भुझे माद आमा, रगबग दो वषष ऩूवष आटदत्म उत्तय प्रदे श के एक कस्फे से जनषसरस्ि फनकय टदल्री आमा था। तबी सॊख्मा बी उसी अखफाय भं िे य् नी जनषसरस्ि थी औय इननू से एभ.फी.ए. के अॊसतभ सेसभस्िय की तैमायी कय यही थी। उसी ने आटदत्म को टदल्री के तौय-तयीके, घूभने के स्थान, यहने की जगह औय अऩनी दोस्ती, सबी कुछ तो टकमा था उसने आटदत्म के सरए। कहाॉ वह छोिे शहय का हीनबावनाग्रस्त नौजवान औय मह टदल्री भं ऩरी-फढ़ेी आधुसनका, टपय बी दोनं की दोस्ती खूफ ऩयवान चढ़ेी। शामद हभ एक-दस ू ये के त्रवऩयीत गुणं की


ओय जल्दी आकत्रषषत होते हं । जो हभभं नहीॊ है , वह हभ फाहय ढू ॊ ढते हं औय जफ मह सभर जाता है तो हभ कुछ सभम के सरए फॊध जाते हं । न जाने मह ससरससरा कहाॉ जाकय खत्भ होगा। टपरहार दोनं अरग-अरग थे। आटदत्म अफ एक सपर ऩिकाय था औय सॊध्मा एभ.फी.ए. के फाद जनषसरस्ि की याह छोड़ेकय एक फहुयाद्सीम कॊऩनी भं प्रबावशारी ऩद ऩय थी औय छह अॊकीम वेतन ऩाती थी। हभ दोनं की ऩरयसचत थी इससरए हभं मे ऩूयी हकीकत भारूभ थी।

''...उसने तुम्हायी दोस्ती की कहानी छाऩ दी है ।'' भेये ख्मारं भं मह आवाज िकयाई। शैपारी कोई बी फात थोड़े​े सभम तक दफाती है , टपय कहकय ही उसे चैन सभरता है । दयू कहीॊ ट्रै टपक भं पॊसी कोई फस जोय-जोय से हानष फजाकय फता यही हं अऩनी उऩक्स्थसत को। जैसे हभ फताते है गरसतमाॉ कय कयके बगवान को अऩनी उऩक्स्थसत टक हभ अबी बी है , सयवाइव कय यहे हं , तेयी गरसतमं से बयी दसु नमा भं।

''अच्छा! हभ तो सभझे थे, रोग बूर चुके है हभं औय महाॉ तो भेया चचाष भेये जाने के फाद बी है ।'' वह चहकती हुई-सी पोन ऩय सुनाई ऩड़ेी ''तुभने ऩढ़ेी?''

''हाॉ'' शैपारी फोरी, ''हाॉराटक उसने ऩािं औय घिनाओॊ की ऩहचान फदर दी है । ऩय जानने वारे जानते हं , तुम्हायी औय उसकी कहानी है ।'' ''हू केमयस?'' वह आज की सुरझी हुई नायी फोरी ''मह रेखक िाइऩ रड़ेके! इन्हं सभाज,

बूभॊडरीकयण, फहुयाद्सीम कॊऩसनमं का जार, उसभं उरझता आभ आदभी, मुवा, मह सफ नहीॊ टदखता?''

''इनसे प्रेभ-व्रेभ बी कोई कयता नहीॊ है ।'' शैपारी शुरू हो गई थी, समंटक इनकी त्रवद्वसनीमता नहीॊ है । तो मे समाकयं ? ''टकसी की दोस्ती की घिनाएॉ नभक-सभचष के साथ, त्रवदे शी रेखकं काॊफ्का, काभू, चेखव आटद के उर्द्यणं के छंक के साथ ऩयोस दे ते हं औय रेखक फनने का भ्रभ ऩार रेते है ।'' कृ ष्णा सोफतीसी फोल्ड़ेनेस भुझे ऺण बय को न जाने समं टदखाई दी। सॊध्मा ने अऩनी फात कही, ''भुझे तो मह सफ ऩढ़ेने का बी सभम नहीॊ है ।'' ''तुभ सभरने आओ न'' शैपारी ने उसे फुरामा।

''आऊॉगी अगरे सन्डे को, तफ तुभसे ऩूछूॉगी हभाये याजेन्ि मादव जैसे ख्मारं वारे त्रवजम कैसे हं ?'' ''फाम!'' शैपारी खूफ क्खरक्खराई औय प्माय से भेयी ओय दे खते हुए फोरी, ''अफ चरं महाॉ से?'' भंने उसे छे ड़ेा, ''तुभ शादी समं नहीॊ कय रेती, भेयी दोस्त?'' ''समं? भं तुम्हं खुश औय हॉ सती हुई फुयी रगती हूॉ?''  


धभेन्ि कुभाय हभाये आस-ऩास के वातावयण भं कुछ ऐसी घिनाएॉ घिती हं , क्जनसे चाहकय बी भं तिस्थ नहीॊ यह ऩाता। जाने-अनजाने इनका प्रबाव भेये जीवन ऩय ऩड़ेता है । कबी-कबी भं इनके फाये भं दोदो, तीन-तीन टदन तक सोचता यहता हूॉ। ऐसी फातं, घिनाओॊ के अन्वेषण तथा त्रवद्ऴेषण भं जो आनॊद आता हे , वही कहानी सरखने को फाध्म कयता है । धभेन्ि कुभाय द्राया श्री इन्दर कुभाय भहतो ग्राभ + ऩोस्ि-फैदाकरा, थाना-ऩािन क्जरा-ऩराभू-822123 (झायखण्ड) भो.: 09570210245 F F F F F F आजकर अध्ममनयत। जन्भ : 1988

इस भोड़े ऩय आजकर गुडडू बइमा की 'भगही ऩान की दक ु ान' धकाधक चर यही है । हय सोभवाय औय शुक्रवाय को बइमा फइदा फाॊजाय जाते हं । एक शाभ भंने उनसे ऩूछा 'बइमा! त्रफक्री-फािा है न?' 'फाजाय भं सौ गो ऩान के ऩतई रे गए थे, फस फीस-तीस ठो फचर हं ।' उनके जवाफ दे ने का अॊदाॊज औय चेहये ऩय चभक की भािा दे खकय भुझे त्रवद्वास हो गमा टक सचभुच भॊजे भं हं गुडडू बइमा! हभ दोनं फसतमा ही यहे थे टक भॊजम ऩॊटडतजी अऩने दाटहने हाथ से धोती की राॉग उठाए औय फाएॉ हाथ से साइटकर की हं टडर ऩकड़े​े हुए आते हं । साइटकर की हं टडर ऩकड़ेने का उनका तयीॊका गजफ का है । वे यंज ससगये ि ऩीते हं । वह बी बइमा की दक ु ान से। आते ही फोरे 'एक ठो ससगये ि दे ना, गुडडू !' 'कौन?' 'उहे , गोल्ड फ्रेक' 'गोल्ड फ्रेक तो खतभ हो गइरहै ।' 'तो जे है , से दो न।'


बइमा झि-से ससगये ि के साथ भासचस बी ऩॊटडतजी के हाथ भं ऩकड़ेाते हं । भुट्ठी भं ससगये ि को अच्छी तयह ऩकड़ेकय ऩॊटडतजी उसे सुरगाते हं । टपय जोयदाय कश खीॊचते हं । एक सभनि फाद उनके भुॉह, कान तथा नाक के दोनं सछिं से धुऑ ॊ सनकरने रगता है । साभने फैठे बइमा कहते हं 'ऩॊटडत जी! आऩके जइसा ससगये ि कोई नहीॊ ऩीता होगा।' 'अये ! ससगये ि का भाज्जा तफ है , जफ ऩीए जानो। का हो, ठीक फात फोरेन?' अऩनी फात का सभथषन ऩाने के सरए ऩॊटडतजी ऩास फैठे अन्म रोगं की तयप दे खते हं । टपय धीये -धीये ससगये ि पूॉकते चरे जाते हं । ऩॊटडतजी ससगये ि पूॉक ही यहे थे टक रुॊगी-गॊजी ऩहने सॊतोष त्रवद्वकभाष जी आते हं । त्रवद्वकभाष जी को गाॉव के सफ रोग जानते हं । उनका कद वैसे तो है छोिा, रेटकन फात फोरंगे 'िू दी प्वाइॊ ि'। चाहे आऩ हं, चाहे फाऩ हं। ...सुफह-शाभ एक क्खल्री ऩान ाॊजरूय खाते हं । बइमा कहते हं टक क्जस टदन त्रवद्वकभाष जी से फोहनी होती है उस टदन खूफ त्रफक्री होती है । काहे नहीॊ होगी त्रफक्री? कोई आर-जार आदभी हं त्रवद्वकभाष जी जो त्रफक्री नहीॊ होगी! सफेये बइमा दक ु ान खोरे नहीॊ टक त्रवद्वकभाष जी हाॊक्जय! 'एक क्खल्री ऩान रगाना, फोस!' 'भीठा टक जयदा?' 'आज भीठे रगाओ। सफेये-सफेये जयदा खाने से भूड खयाफ हो जाता है ।' बइमा ऩान रगाते हं । एकदभ खुश होकय। आज कचकचाकय त्रफक्री होगी। एक वक्त था जफ बइमा िमूशन बी ऩढ़ेाते थे औय दवाई बी कयते थे। अये ... अये ... अऩने गाॉव भं नहीॊ, ससमारदह भं! फात कुछ ऐसी है टक एक टदन घय भं भुॉहाफपिी हो गई। वह बी छोिी

फात को रेकय। जफ भुॉहाफपिी हो ही गई तो बाग गए बइमा! रड़ेाई तो फस फहाना थी। अऩनी फेयोजगायी को रेकय उन टदनं वे फहुत ऩये शान यहते थे। एक भहीना ऩहरे ही सोच यखा था टक

गाॉव छोड़े दे ना है । कहीॊ दस ू यी जगह जाकय काभ कयं गे। महाॉ तो खेत भं भय-भयकय कभाओ बी औय शाभ को चाय फात बी सुनो। वहाॉ कोई धंस जभाने वारा तो न यहे गा! वैसे अऩने भन की

फात वे अऩनी भाॉ को ऩहरे ही फता चुके थे। रड़ेाई हुई तो सोचा टक 'क्जसका भुझे था इन्तजाय, क्जसके सरए टदर था फेकयाय...।' औय बइमा ससमारदह आ गए। ससमारदह कोई शहय नहीॊ है । फइदा की ही तयह ठे ठ दे हात है । चिऩि एक कभया बी सभर गमा। यहने रगे बइमा। उन्हंने सोचा टक अफ तो 'ऩइसा' बी 'खयच' हो यहा है औय कुछ कभा बी नहीॊ यहा हूॉ। फस शुरू कय टदमा िमूशन ऩढ़ेाना। शुरू-शुरू भं दो रड़ेके ही आते थे। उनभं एक फड़ेा फदभाश था। बइमा

फोरते 'फोरो फाफू 'क'!' फच्चा फोरता 'ग'... उसे ऩाॉच सभनि तक सभझाते। 'दे खो, अइसे नहीॊ, इसको अइसे फोरते हं ।' ...हाॉ-हाॉ, ठीक है । ठीक-ठीक दे ख के सरखो। इधय एक को सभझा यहे होते, उधय दस ू या उनके ऩंि भं नेिा ऩंछ यहा होता। बइमा कहते 'अये ... ये ! इ का कय यहा है ,

जी? अफ से ऩढ़ेने आना तो नाक साप कयके आना। कइसा भाॉ-फाऩ है तुभ रोग का। अफ हभ ऩढ़ेाएॉ टक नाक साप कयं ।' ...धीये -धीये बइमा का िमूशन जभने रगा। फच्चं की सॊख्मा सनयॊ तय


फढ़ेने रगी। अफ उनके ऩास कुछ रड़ेटकमाॉ बी आने रगीॊ। वैसे तो उनका दयजा था सातवं सरास का, रेटकन उम्र के टहसाफ से फायहवीॊ की रगती थीॊ। बइमा सुफह-शाभ िमूशन ऩढ़ेाते। टदन भं दवा कयने जाते। डाल्िनगॊज से हय सद्ऱाह दवा रे आते। धीये -धीये उनकी ख्मासत फढ़ेने रगी। अफ वे 'भास्िय साहे फ' के साथ-साथ 'डॉसिय साहे फ' के रूऩ भं बी प्रससर्द् होने रगे। उसी गाॉव भं एक औय 'भास्िय साहे फ' थे। नाभ था सनभषर भास्िय। सनयभर भास्िय फच्चं से रेते थे भहीना ऩचास रुऩमे। बइमा रेने रगे चारीस रुऩइमा। भास्िय साहे फ को फहुत गुस्सा आमा,

'मे तो ऩेि ऩय रात भाय यहा है । अगय मही हारत यही तो एक टदन बीख भॉगवामेगा। स्सारा न जाने कहाॉ से आ गमा।' फात केवर ऩैसे की ही नहीॊ थी। बइमा ऩढ़ेाते बी भस्त थे। भस्त भतरफ एकदभ फटढ़ेमा। उनका व्मवहाय बी अच्छा था। फात बी औय त्रवचाय बी। उनका सयर स्वबाव रड़ेटकमं के फीच चचाष का त्रवषम फना यहता। 'ऐसा भास्िय आज तक नहीॊ सभरा। ऩहरे वारा भस्ियवा तो फस ऩइसा ठगना जानता था।' उनकी प्रैक्सिस बी धुऑध ॊ ाय चरने रगी। मह फात सनभषर भास्िय को अच्छी नहीॊ रगती थी। वे सोचते टक 'मह छोकड़ेा तो चाय भहीने भं ही जभकय कभाने रगा। रगता है , भेया डंगा डु फाकय ही दभ रेगा। ...इसे टकसी तयह बगाना होगा।' भास्िय जी भौके की तराश भं यहने रगे, 'एक फाय हाथ भं आ जाओ फच्चू! टपय तो....।' बइमा नसषयी से रेकय सरास आठ तक ऩढ़ेाते थे। सरास आठ के फैच भं नौ त्रवद्याथी थे। नौ भं चाय रड़ेके औय ऩाॉच रड़ेटकमाॉ। उन्हीॊ भं एक थी त्रवबा। वह जफ बी ऩढ़ेने आती, बइमा को दे खकय उसे कुछ-कुछ होने रगता। बइमा बी कनखी से दे ख रेते कबी-कबी, रेटकन कुछ फोरते नहीॊ थे। समा फोरं? अनजान गाॉव, अनजान रोग औय बइमा फेचाये अकेरे। ऩाॉच फजे छुट्िी

होती। सफ त्रवद्याथी अऩने-अऩने घय। साढ़े​े ऩाॉच फजे त्रवबा टपय हाक्जय। हाक्जय बी कैसे न हो? घय बी था ऩास भं ही। कोई चाय-ऩाॉच टकरोभीिय चरकय आना तो ऩड़ेता नहीॊ था। आते ही दयवाजा ठकठकाती। बइमा अन्दय कुछ कय यहे होते। 'ऩता नहीॊ, कौन आ जाता है ?' दयवाॊजा खोरकय दे खा तो त्रवबा! 'सय, गक्णत भं एक ठो सवार ऩूछना है ।' 'का ऩूछना है ? ...जल्दी ऩूछो।' बइमा भुस्काकय फोरे। 'वही कर जो ऩढ़ेामे थे न, नहीॊ सभझ भं आमा।' बइमा सभझाते वक्त दे खते कॉऩी भं औय त्रवबा जी दे खती उनके चेहये ऩय। जफ उनकी नॊजयं ऊऩय उठतीॊ, वे शयभा जाते। त्रवबा ऩूछकय चरी जाती। ...सुफह-सफेये सदी भं उठकय बइमा नहा रेते। नहा-धोकय नाश्ता फनाने फैठते टक त्रवबा टपय उऩक्स्थत! बइमा को आद्ळमष बी होता औय डय बी रगता, 'त्रवबा है फाभन औय हभ हं कोइयी औय वह बी ऩूयी उम्र की नहीॊ। समानी है रेटकन नाफासरग है । कहीॊ कुछ गड़ेफड़े हुआ तो सफ गड़ेफड़े ही हो जाएगा। ना फाफा ना! इ सफ आरजार से दयू ही यहना चाटहए। नहीॊ तो... डे या-डॊ डा उजाड़े कय यास्ता नाऩना ऩड़े​े गा।'


'सय, हभ झाडू रगा दे ते हं ।' 'नई-नई! ...छोड़े दो। काभ ही टकतना है । सफ कय रंगे।' बइमा हड़ेफड़ेाकय फोरते हं । 'अकेरे यहते हं , टकतना काभ कयना ऩड़ेता है ?' त्रवबा भुस्काकय उनकी ओय दे खती है । '...अये कुछ नहीॊ है । सफ ठीक हो जाएगा।' अफ त्रवबा यंज सुफह-शाभ उनके महाॉ आने-जाने रगी। बइमा ऩये शान औय डये हुए। 'हे बगवान! तू ही सफ सॉबारना। कैसी आपत भं जान पॉसी है ?' वैसे तो उनका सफ कुछ ठीक-ठाक ही चर यहा था रेटकन चेहया दे खकय रगता था, भानो बायी सॊकि भं हं। आजकर सनभषर भास्िय खुश टदखने रगे थे। उनकी फैठक इन टदनं फाभन ऩट्िी भं खूफ जभती है , 'नएका भस्ियवा ऩढ़ेाता है । उसका चार-चरन खयाफ हो गमा है । टकसुन सतवायी की फेिी है न त्रवबवा, उसको पॉसा सरमा है । योजे साॉझ-सफेये आती-जाती है । ...ऩता नहीॊ, समा-समा कयते हं दोनं। ...याभ-याभ। अइसा ही चरता यहा तो गाॉव का भाहौर त्रफगड़े जाएगा। इस छोकड़े​े को गाॉव भं यहना ठीक नहीॊ।' रेटकन त्रवबा औय बइमा अऩनी धुन भं भस्त। वो सवार कयती, मे जवाफ दे ते। त्रवबा की कॉऩी भं सुन्दय अऺयं भं सरखा हुआ था गुडडू कुशवाहा। जफ नाभ कॉऩी भं सरखा हुआ था तो जाटहय-सी फात है टक इसे उसकी सहे सरमाॉ बी दे खतीॊ। अगय त्रवबा अऩने भन से न

टदखाती तो चोयी-छुऩे दे खने की कोसशश कयतीॊ। सो एक टदन त्रफना कोसशश के ही उन्हंने दे ख सरमा। जफ दे ख सरमा तो हॉ सीॊ बी, भुस्कुयाईं बी औय त्रवबा को गुडडू बइमा का नाभ रेकय छे ड़ेा बी। इतने ऩय भाभरा दफ जाता तो फात कुछ औय थी। ...शाभ के कयीफ सात फजे त्रवबा रैम्ऩ

की योशनी भं फैठकय ऩढ़ेाई कय यही थी। वह हर कय यही थी गक्णत के सवार टक ऑॊगन से भाॉ की आवाॊज सुनाई दी 'फेिी त्रवबा, तनी रेरू धय दो न!' त्रवबा ऑॊगन भं जाकय दे खती है टक रेरू अऩनी भाता का दध ै है । फेचाया फाय-फाय जोय रगाता है । उछरता है औय ू ऩीने के सरए फेचन

कबी-कबी अऩनी कोसशश भं काभमाफ बी हो जाता है । परस्वरूऩ, दध ू दहु ने भं सतवायी जी को

कटठनाई होती है । वे गुस्से से अऩनी ऩत्नी की ओय दे खते हं । '...एक रेरू नहीॊ धय सकती? समा भं खाक दध ू दहू ूॉ गा। सछ: सछ:, सफ दध ू रेरू ही ऩी जाएगा।' ...आकय त्रवबा रेरू की जोयी

(यस्सी) भॊजफूती से ऩकड़ेती है । भाॉ अन्दय जाती हं । उधय से चाची धीये -से त्रवबा की भाॉ को फुराती हं । ऩास आने ऩय कॉऩी टदखाती हं औय पुसपुसाकय कुछ कहती हं । भाॉ के चेहये ऩय तनाव की गहयी रकीयं उबय आती हं । ...बइमा का िमूशन ठीक-ठीक ही चर यहा है औय दवाई का काभ बी। रेटकन याह चरते रोग न जाने उन्हं कैसी नॊजयं से दे खते हं । रोगं की फदरती नॊजयं औय फदरते व्मवहाय का अनुबव उन्हं फाय-फाय हो यहा है । गाॉव के रोगं को दे खकय उन्हं रगता है भानो वे उनसे कह यहे हं, गाॉव छोड़ेकय बागते हो मा...


चाय टदन ऩहरे ही टकसुन सतवायी घयफायी भं अयहय की सूखी डाॉठ को जराकय आग ताऩ यहे थे। बइमा उस यास्ते से ही आते-जाते थे। 'आइमे-आइमे, डागडय फाफू! तनी आग ताऩ रीक्जए।' टकतने प्माय से फात की थी उस टदन। उनका टकसी काभ भं भन नहीॊ रग यहा है । आज खाना बी नहीॊ फनामा। फगर के चसरतय साव की दक ु ान से एक त्रफस्कुि औय सौ ग्राभ दारभोठ रे

आए। दारभोि-त्रफस्कुि खाने का बी भन नहीॊ टकमा। ...त्रफस्तय ऩय थोड़ेी दे य आयाभ कयने के इयादे से रेिे टक नीॊद आ गई। नीॊद भं उन्हं सऩना आता है टक 'भं त्रफस्तय ऩय रेिा हआ हूॉ औय कोई भुझे ऩुकाय यहा है । भं उठकय सुनाई ऩड़ेने वारी आवाॊज की तयॊ प दौड़ेकय जाने की कोसशश कयता हूॉ। ऩुकाय औय तंज होती जा यही है । ...ठक् -ठक् -ठक् -ठक् ! नीॊद िू ि गई! तो समा भुझे कोई सचभुच ही ऩुकाय यहा था?' बइमा उठकय रैम्ऩ जराते हं । टपय दयवाॊजा खोरते हं ...। 'अये ... ये ! चाची आऩ, यात भं?' 'त्रवबा की तफीमत खयाफ है । जल्दी चसरए।' 'इहई रे आइए न!' 'उ नईं आ सकती। ...चरना ही ऩड़े​े गा।' आगे-आगे चाची औय ऩीछे -ऩीछे बइमा। अये ! चाची का घय तो उधय है , मे तो गाॉव के फाहय जा यही हं । बइमा के भन भं आमा टक कुछ कहं , रेटकन चुऩचाऩ चरते यहे । महाॉ तक टक गाॉव के सफसे अक्न्तभ शोबन भोची का घय बी सनकर गमा।

'अये ... ये ! त्रवबा?' बइमा की ऑॊखं भं डय के साथ-साथ आद्ळमषसभसश्रत वेदना थी। 'फेिा! ...बाग जा ...जटद जान फचानी है तो...' 'त्रवबा का फोरती है ?' चाची की ओय प्रद्लवाचक सनगाहं से दे खते हुए बइमा फोरे।

'...फेचायी का फोरेगी। ऩाॉच टदन से योती यही है । शादी करूॉगी तो उन्हीॊ के साथ नहीॊ तो...।' 'नहीॊ तो' के फाद बइमा की ऑॊखं भं कई डयावने दृश्म एक साथ उबय आए। '...टक त्रवबा ये र की ऩियी ऩय सोई हुई है । ये र हॉनष फजाती धड़ेधड़ेाती आ यही है । ड्राइवय केत्रफन भं फैठा सचल्रा यहा है । ...भूखष रड़ेकी! बागो! बागो!! त्रवबा उसी तयह रेिी है । नहीॊ हिती। ट्रे न सयसयाती

नॊजदीक आ गई है । ...धड़े... धड़े... खच्च! ...खच्च!! ...खच्च!!! ...टक टकसुन सतवायी ने त्रवबा को ऩाॉच टदन से त्रफना दाना-ऩानी टदए घय के एक ऍॊधेये कभये भं फन्द कय टदमा है । वह फाहय सनकरने के सरए योती है । छिऩिाती है । दीवाय से अऩना भाथा पोड़ेती है । रेटकन उसे फाहय नहीॊ सनकारा जाता। '... टक...' 'चरो!' बइमा के साथ त्रवबा चरने रगती है । रेटकन उनका भन था टक शान्त होने का नाभ ही


नहीॊ रे यहा था। 'इसे रेकय कहाॉ जाऊॉगा? इसकी क्जॊदगी फफाषद हो जाएगी। हभ अबी इस रामक कहाॉ हं टक इतनी फड़ेी ऑॊधी झेर सकं...।' ऩीछे -ऩीछे त्रवबा चुऩचाऩ चर यही है । उसके भन भं द्रन्द्र नहीॊ, हरचर नहीॊ। है तो केवर डय। थोड़ेी खुशी बी उसके चेहये ऩय दे खी जा सकती है । अऩने प्रेभी को ऩाने औय उसके साथ जीवन त्रफताने की प्रसन्नता! ...बोय होते-होते वे डारिनगॊज जाने वारी भुख्म सड़ेक ऩय आ गए थे। गाॉव से रगबग 7-8 टक.भी.दयू । 'जाओ! अफ घय जाओ।'

'घय चरी जाऊॉ! ...घय वारे यख रंगे?' 'हभ बाग बी नहीॊ सकते। ...बागकय बी टकतने टदन फाहय यहं गे?' 'भं फोझ नहीॊ फनूॉगी। हभ साथ यहं गे। सुख भं बी... दख ु भं बी।'

'तुभ क्जॊदगी को नहीॊ सभझ ऩा यही हो। हभाय भाई-फाऩ को तुभ नहीॊ जानती। हभ दोनं को काि के पंक दं गे।' बइमा के स्वय भं खीझ औय करुणा थी। '...तो हभाय भाई-फाऩ काि के नहीॊ पंक दं गे? ...चसरए फहुत दयू चरते हं ।' त्रवबा अफ बी अऩने सनणषम ऩय अटडग थी।

'ऩ... ऩागर भत फनो, त्रवबा!' 'तो... तो आऩ धोखा...।' 'दे खो, धोखा-वोखा की फात नहीॊ है । ...हभायी शादी सॊबव नहीॊ हो ऩाएगी।' 'ऩहरे तो कहते थे टक...'

'उस सभम दोनं नादान थे।' '...औय अफ सभझदाय हो गए हं । है न?' त्रवबा के इस व्मॊनम से आहत हो गए बइमा। सभझ नहीॊ ऩा यहे थे टक समा कयं । घय रेकय जाते हं तो... अगय इस हार भं छोड़ेते हं तो... 'अबी तो कुछ नहीॊ है । ...समा खाएॉगे, समा ऩहनंगे?' 'भेहनत-भजूयी कयके यह रंगे।' 'इ सफ कहना आसान है । तुभको फगर के गाॉव तक छोड़े दे यहा हूॉ। घय चरी जाना।' 'अकेरे घय नहीॊ जा सकती? ...ऐॊ, आऩ बी...'

'कुछ सभझो, त्रवबा!' बइमा फेहद ऩये शान हं । त्रवबा अऩने गाॉव की ओय तंज ाॊकदभ फढ़ेाने रगी। वे बी उसके ऩीछे हो सरए। वह फहुत तंज चर यही थी। चर समा यही थी, कहना चाटहए टक एक तयहसे दौड़े ही यही थी। बइमा साथ-साथ चरने की कोसशश कयने रगे। 'दे खो, त्रवबा... हभ नहीॊ चाहते टक...' 'चुप्ऩ!' त्रवबा की ऑॊखं से अॊगाये फयस यहे थे। गुस्से से चेहया रार हो गमा। दो फूॉद ऑॊसू गार ऩय ढु रक ऩड़े​े । ...तबी दोनं को अनेक रोगं की ाॊजोय-ाॊजोय से फोरने की आवाॊजं सुनाई दीॊ। वे डय गए। अफ समा होगा? अगय अबी ऩकड़े सरए जाएॉ तो कच्चा ही चफा जाएॉगे मे याऺस! 'स्सारे को क्जन्दा गाड़े दं गे। हभायी फेिी को रेकय बाग यहा है ! ...सतवायी को तू अबी ऩहचानता


कहाॉ है ? ...स्सारा गाॉव भं चाय टदन िीसनी का ऩढ़ेा सरमा, राि साहे फ सभझता है ? ...ऐॊ' ...बइमा औय त्रवबा दौड़ेने रगे। 'त्रवबा! ...केतायी भं रुका जाओ।' 'आ... आऩ?' 'हभाया छोड़ेो, ऩगरी! ...जल्दी रुकाओ। सफ-के-सफ बारा-गड़ेासा, राठी-डॊ डा रेके आए हं ।'

त्रवबा ऩास वारे गन्ने के खेत भं छुऩ जाती है । ...अऩने टदर ऩय हाथ यखती है । उसका टदर धक-धक कय यहा है । ...बइमा के सरए मा डय से? कहना भुक्श्कर है । 'इधय, ऩकड़ेो! ...ऩकड़ेो स्सारे को। बागने न ऩाए। ...अब्फे दे खता का है ? ...दउड़ेो राठी रे कय!' बइमा बाग यहे हं । जान फचाने की ाॊखासतय। उनके ऩीछे रगबग सौ आदसभमं की बीड़े राठीडॊ डा, बारा-गड़ेासा सरए दौड़े यही है । '...दौड़ेो, गुडडू ... दौड़ेो। जान फचाओ। ....औय कसके ...औय स्ऩीड भं।' अफ दस ू या गाॉव शुरू हो यहा है । अफ सछऩने का भौका सभर सकता है । ...दौड़ेते-दौड़ेते बइमा एक घय भं घुस जाते हं ...। 'कहाॉ गमा? ...असबमे तो दौड़े यहा था।' 'इधय-उधय ही होगा। खोजो! ...खोजो नहीॊ तो बाग जाएगा हयाभी।' 'बाई साहे फ! एक रड़ेके को आऩने दे खा है ? ...नािा है । शिष -ऩंि ऩहना है ।' 'ऩता नहीॊ, बइमा!' वह आदभी चुऩ हो जाता है ।

'दे क्खए, आऩ रोग सछऩाइएगा तो सभझ रीक्जएगा। ऩूये गाॉव भं आग रगा दं गे! ...हॉ ... ऩूये गाॉव भं।' '...हभ नहीॊ दे खे हं , सतवायी जी! हभको झूठ फोरे से का पैदा है !' 'चरो-चरो। आगे चरते हं ।' गुस्से से बबकती बीड़े आगे फढ़े जाती है । तंजी से। एकदभ स्ऩीड भं, '...छोड़ेना नहीॊ है स्सारे को। गाॉव की फहू-फेिी की इज्जत ऩय डाका डारता है ।'  त्रवबा घय आ गई है । 'आ गई है । ऐॊ ... का फोरा? स्सारा झूठ फोरता है !' 'नहीॊ। एकदभ सच्च! आज दे खे हं । केतायी खेत भं कर टदन-बय औय यातबय थी।' 'कुर-खानदान का नाभ फुड़े गमा। सतवरयमा काि के पंक दे गा। दे ख रेना!' 'स्सारा एकदभ फुड़ेफक है । ...अरफत्ता फोरता है । आऩन फेिा-फेिी ऩय कोई हाथ बरे उठा दे , रेटकन काि के पंक दे ना। याभ-याभ!' गाॉव भं शोय भच गमा है । 'सतवायी जी त्रवबवा को घय भं फन्द कयके फहुत भाय भाये हं । खटिमा से चाय टदन से नहीॊ उठी है । भय जाए! अइसा काभ ही


की है तो बोगेगा कौन? जानते हो, का हुआ, जफ आई...।' 'कहाॉ थी दो यात से?'

'फोरती काहे नहीॊ? ...गूॉगी हो गई हो?' सतवायी जी शेय की तयह दहाड़े यहे थे। 'हभ...हभ यात बय....' 'हभ की फच्ची... चिाक् ... चिाक् ... तड़े-तड़े... तड़ेाक् ।' 'सुनते हं टक त्रवबवा की भाॉ औय चाची दौड़ेकय आ गईं। दोनं ने फचा सरमा। ...नहीॊ तो जान ही रे रेता सतवरयमा। ...गुस्साता है तो टकसी को नहीॊ छोड़ेता है । ...एक टदन फीवी को भाय यहा था। कड़ेकड़ेा के भाया। जफ हो गमा तो ऍॊगना भं सनकरा। ऍॊगना भं फैठा कुतवा उसको दे खकय भोड़ेहा डोराने रगा। गुस्सा भं तो था ही। द ू राठी उसको बी जभा टदमा। फेचाया काॉम-काॉम कयते बागा।'

शाभ सात फजे सतवायी जी के घय फाबन िोरी के सफ आदभी जुि यहे हं । कुछ फात-त्रवचाय होगा। अफ समा टकमा जाए? रगता है , सफ शादी-त्रववाह के फाये भं फसतमाएगा। अफ शादी कौन कये गा ऐसी फकरोर रड़ेकी से। 'दे क्खए, बाई रोग! अफ तो जो होना था, हो गमा। अफ हभ का कयं ।' सफ टदन ससय उठाकय चरने वारे सतवायी जी की गदष न झुकी हुई थी। ऑॊखं नभ थीॊ। 'जल्दी से शादी-त्रववाह ठीक करयए।'

'नहीॊ-नहीॊ! वो तो टकमा ही जाएगा। ...रेटकन रड़ेका को नहीॊ छोड़ेना है ।' 'हाॉ-हाॉ! रड़ेका को छोड़े दे ने का भतरफ है नीच जात का भन फढ़ेाना।' 'कर हभ रोग ऩचास आदभी उसके घय चरते हं । फइदा घय है न?' 'हाॉ-हाॉ फइदा ही है ।' 'घय भं जाके दफ ु का होगा। गाॉव भं ही भायं गे हयाभखोय को।' 'कर सफको चरना है । सफ तैमाय यटहएगा।'

अगरे टदन सफेये गुडडू बइमा के घय रगबग ऩचास आदभी राठी-बारा के साथ हाॊक्जय। गाॉव घय के आदभी अवाक् ! 'का फात है ? आऩ रोग राठी रेके काहे आए हं ?' 'नये श भहतो का इहे घय है ?' 'हाॉ है । का फात है ?' 'आऩका फेिा कहाॉ है ? उसको हाॊक्जय करयए।' 'का टकमा है भेया फेिा!' एकान्त भं रे जाकय सतवायी जी, नये श भहतो को सफ फात फताते हं ।


'...रेटकन वो तो घय भं नहीॊ है । आऩ ही जानते हंगे न टक कहाॉ गमा?' 'ऐ...ऐ, जादे चाराक भत फनो। राकय दो नईं तो घय भं आग रगा दं गे।' 'आग रगा दे गा! का फोरा? ...आग रगा दे गा? तू फूझ यहा है , टकससे फात कय यहा है ? आग रगाने वारे का हाथ काि के पंक दं गे।' 'ऐॊ... अइसा फोर यहा है ।' सतवायी जी ऩाॉच सभनि तक कुछ सोचते हं । 'जरूय कुछ फात है ।' '...ठीक है , ठीक है । जटद रड़ेका नहीॊ है तो हभ चाय टदन फाद टपय आएॉगे।' 'आएॉगे टक नहीॊ आएॉगे, मे आऩ जासनए। घय भं आकय जादे शानदायी भत जनाइए। अगय कुछ हो गमा न उसको तो टपय...' '...अच्छा, एक फाय औय ऩूछ यहे हं रड़ेका घय भं नहीॊ है ?' 'नहीॊ है ।' 'तो हभ जा यहे हं ।' 'जाना है तो जाइए। ताव भत भारयए। ...नहीॊ तो जाते-जाते फचर खाना-ऩानी बी सभर जाएगा। औय हाॉ, एक हफ्ता के अन्दय भेया फेिा राकय दीक्जए नहीॊ तो हभ थाना भं केस कयं गे।' नये श भहतो की फात सुनकय ऩचासं आदभी ऩुक-ऩुक कयने रगे। 'अये फाऩ ये ! इ तो एकदभ शेय है । फोरता है तो रगता है टक दहाड़े यहा है । फेकाय पॉस गए आकय। त्रफना ताकत के कोई ऐसी फोरी नई फोर सकता है । ससमाय-कुसकुय बी नहीॊ सभझता है । सोच-सभझ के काभ कयना होगा।'  अनजान घय भं घुसने के फाद गुडडू बइमा का डय औय बी फढ़े गमा। 'वे रोग हो-हल्रा कयते हुए इधय ही आ यहे हं । मटद मह आदभी फता टदमा, तफ समा होगा? मा इसी गाॉव के रोग

अगरे टदन फाॉधकय रे जाएॉ औय संऩ दं सतवायी के हाथं भं। अनजान आदभी का कोई बयोसा नहीॊ है । घय भं घुसते तो कोई नहीॊ दे खा। एक औयत बय दे खी है । जानती बी है , रेटकन चुऩ है । उसका घयवारा बी जान यहा है । सचभुच दे वता आदभी हं दोनं! यात को औयत के साथ उसका ऩसत बी आमा था।' 'घय कहाॉ है , फाफू?' 'फइदा!' 'फइदा गाॉव! सहदे व फैठा को चीन्हते हो। उनके घय भं हभाय फेिी है ।' 'हाॉ-हाॉ! जानते हं । त्रफनोद बइमा के साथ न।' 'एकदभ ठीक। दे खो, फाफू! सचन्ता-टपटकय भत कयो। उ रोग कुछ नहीॊ त्रफगाड़े ऩाएगा।' औयत फोरी। 'कुछ दे य ऩहरे सफ आगे सनकर गए हं । अफ आयाभ से खाओ-त्रऩमो। बोय भं गाड़ेी ऩकड़ेा दं गे।'

उस आदभी की फातं सुन बइमा उसके ऩैय छूने आगे फढ़े​े । ऐसा कयते दे ख उसने उन्हं गरे रगा


सरमा। 'अये फुड़ेफक आदभी! इ का कयते हो?' बइमा कुछ नहीॊ फोरे। चुऩचाऩ उसे दे खते यहे । ...तीन फजे बोय भं उन्हं जगामा गमा। टदशा-भैदान के फाद उन्हंने दातुन टकमा। इसके फाद... कयीफ ऩच्चीस-तीस आदभी भोिी-भोिी राठी रेकय उनके साथ चर ऩड़े​े , 'कुछ होगा तो दे खा जाएगा। हभायी फेिी तुम्हाये गाॉव भं है , इससरए तुभ हभाये दाभाद हो। दस ू यी जासत के हो तो समा हुआ? आदभी तो हो न! एक असहाम आदभी को भुसीफत से फचाना समा हभाया ाॊपजष नहीॊ है ?' इन रोगं की सदाशमता दे खकय बइमा की ऑॊखं बय आईं। ऩैदर ही चरकय सफ स्िे शन आ गए। सुफह हो गई थी। रगबग ऩाॉच सभनि फाद एक फस बी आ गई। बइमा फस भं फैठ गए। फस चरने रगी तो उनके हाथ स्वत: ही जुड़े गए। नीचे खड़े​े रोगं ने भुस्कुयाकय उन्हं त्रवदाईदी। दो घॊिे फाद गुडडू बइमा डारिनगॊज ये रवे स्िे शन। अफ समा कयं , कहाॉ जाएॉ? समा घय जाना ठीक है ? गाॉव-घय के रोगं ऩय इस घिना की समा प्रसतटक्रमा हुई होगी? नहीॊ, अबी घय जाना

ठीक नहीॊ। तो कहाॉ जाना चाटहए? भौसी घय... मानी टडहयी। हाॉ, वहीॊ जाना चाटहए। अबी कुछ टदन वहीॊ यहना चाटहए। भौसा-भौसी से कहूॉगा टक अबी महीॊ यहने दीक्जए। समा नहीॊ भानंगे?

भानंगे समं नहीॊ? आॊक्खय अऩनी भौसी का ही तो घय है । इसी फहाने उनके प्माय की ऩयीऺा बी हो जाएगी। ऩता चर जाएगा टक टकतना भानती है भौसी। ...मा अफ तक का उनका प्माय-दर ु ाय

केवर टदखावे का था? भौसी घय ही जाना चाटहए। ...बइमा असभॊजस की क्स्थसत भं। स्िे शन ऩय फैठे-फैठे एक घॊिा हो गमा। अफ तक ट्रे न का कोई अता-ऩता नहीॊ। फैठे-फैठे उन्हं नीॊद आने रगी। तबी... 'मािीगण कृ ऩमा ध्मान दं । याॉची से चरकय गढ़ेवा योड, टडहयी ऑन सोन होकय

भुॊगरसयाम जाने वारी इॊ ियससिी एससप्रेस कुछ ही सभनिं भं प्रेिपॉभष नम्फय एक ऩय आने वारी है ।' 'अये ! कौन फोरा? टकधय से आवाॊज आई?... तो अफ ट्रे न आने वारी है । उठना चाटहए। अफ भौसी घय जाकय ही आयाभ करूॉगा। ...रो, अफ आ बी गई।' ...ऩं ...ऩं ...ऩं। ये र के टडब्फे भं फैठने के फाद उनका रृदम आत्भनरासन से बय उठा। '... भंने एक रड़ेकी की ाॊक्जन्दगी भं बूचार रा टदमा है । उसे धोखा टदमा है । उसे कहीॊ का बी नहीॊ छोड़ेा। भं अऩने आऩको कबी भाॊप नहीॊ कय ऩाऊॉगा। आॊक्खय भं कयता बी समा... उसकी ाॊक्जॊदगी फफाषद तो नहीॊ कय सकता रेटकन इस तयह उसे भुसीफत भं छोड़ेकय नहीॊ आना चाटहए था। आॊक्खय भेये ससवा कौन था उसके सरए दसु नमा भं अऩना। भुझे चाहा बय ही तो था। औय उसकी चाहत की इतनी फड़ेी सॊजा भंने उसे दी। घय से एक फाय सनकरने के फाद तो अफ भाॉ-फाऩ बी उसके दश्ु भन हो गए हंगे। ...बगवान! भं ऩाऩी हूॉ। हत्माया हूॉ।' बइमा की ऑॊखं से ऑॊसू छरक आए। गार बीग गमा उनका। साभने फैठे मािी आद्ळमष से उनकी ओय दे खने रगे। दस ू यं को अऩनी तयप

दे खते दे खकय उन्हंने झि-से अऩना चेहया घुभा सरमा।  भौसी के घय यहते हुए गुडडू बइमा को चाय भहीने हो गए। बइमा के आने से भौसी को भाना​ाेाॊ


सहाया सभर गमा। बइमा आयाभ से खाते, ऩीते औय भौसी के साथ खेत भं काभ कयते। भौसी का घय सॊबर गमा। फहन का फेिा तो अऩने फेिे से बी फढ़ेकय सनकरा। उनकी ाॊक्जन्दगी अच्छी गुॊजयने रगी। बइमा की भौसी का घय गोवर्द्ष नऩुय नाभक गाॉव भं था। गोवर्द्ष नऩुय से सिा एक अन्म गाॉव 'रक्ष्भणफीघा' है , रेटकन रोग 'रछभनफीघा' ही कहते हं । रछभनफीघा भं ही याभदमार भहतो का घय है । घय की आसथषक क्स्थसत ठीक-ठाक ही है । ठीक-ठाक का भतरफ हुआ टक भहतो ऩूयी तयह खेती ऩय सनबषय थे। जीवन टकसी तयह चर ही यहा था। फस एक सभस्मा

थी। सभस्मा समा थी, भहान सॊकि था। फात कुछ ऐसी है टक उनकी फेिी सुनीता की उम्र शादी कयने रामक हो गई थी। घय भं ऩैसा एकदभ नहीॊ। टदन-बय कभाने के फाद दोनं सभम बोजन सभर जाता है , मही काॊपी है । टपय एक-ड़े​े ढ राख का जुगाड़े कौन कये ? फीस फयस ऩहरे जफ सुनीता का जन्भ हुआ तो याभदमार भहतो ाॊखश ु नहीॊ थे। उनके दख ु ी होने का कायण मह नहीॊ था टक फेिी का जन्भ हुआ है । फेिी की एक ऑॊख नहीॊ है , मह सोचकय दख ु ी थे। एक ऑॊख की योशनी तो ठीक-ठाक है , रेटकन दस ू यी ऑॊख से कुछ सूझता ही नहीॊ। एक ऑॊख वारी सुनीता।

जन्भ से ही गोसतमा, त्रफयादयी औय गाॉव भं चचाष का त्रवषम फनने वारी सुनीता। 'एक ऑॊख वारी इस रड़ेकी से त्रफमाह कौन कये गा? चाहे टकतना बी रुऩमा दो।' ...सुनीता कफडडी खेरती है । सुनीता ऩेड़े ऩय खि-खि चढ़े जाती है । घय का सफ काभ कयती है । ऩढ़ेने भं खूफ तंज है , रेटकन कानी सुनीता से त्रववाह कौन कये गा? सुनीता की उम्र फीस फयस हो गई है । भैटट्रक ऩास कय गई है वह। सेकेण्ड टडवीॊजन से। याभदमार भहतो की सचन्ता फढ़ेती ही गई। फहुत दौड़े-धूऩ के फाद

एक जगह शादी ठीक हुई। दहं ज की भाॉग हुई अस्सी हॊ जाय। इधय से फतामा गमा टक रड़ेकी की एक ऑ ॊख भं योशनी नहीॊ है । फाकी सफ कुछ ठीक-ठाक है । सतरक चढ़ेने के फाद रड़ेका फोरा 'हभ त्रफमाह नहीॊ कयं गे।' 'काहे नहीॊ कयं गे?' 'रड़ेकी अन्धी है ।' 'अफे अन्धे! एक ऑॊख से नहीॊ टदखता है , इसका भतरफ अन्धा होता है समा?' 'कुछ बी हो। शादी नहीॊ होगी।' 'जाओ। रेटकन दहे ज रौिाओ।' 'वो नहीॊ रौिाऊॉगा।' 'काहे ?' 'हभाये घय एक फाय चढ़ेने के फाद दहे ज वाऩस नहीॊ होता।' 'औय एक फाय हाॉ कयके भुकय जाना ठीक फात है ?' 'उ सफ हभ नहीॊ जानते।' 'तो कौन जानेगा, तेया फाऩ?' 'ऐ... ऐ! ...फाऩ का नाभ भत रो!'


'स्सारा फोरता है , फाऩ का नाभ भत रो। ...अये ! दे खता का है ? अफ इ त्रफमाह तो कये गा नहीॊ। ऩकड़ेो औय भायो दभदभा के।' 'च्... च्ा्... ठाम... ठाम!' 'अगे, बइमा गे!' 'अये -अये , अफ छोड़े बी दो। फेचाये का खून फहने रगा।' अगर-फगर के गाॉव भं फात पैर गई टक दल् ू हे को ऩीिा गमा। वह बी थोड़ेा-भोड़ेा नहीॊ।

कचयाकूि। भाथे से खून फहने रगा था। 'फाऩ ये ! याभदमरवा ऩगरा गमा है । इसके घय भं कोई त्रफमाह-शादी भत कयना। नहीॊ तो ऩकड़े के फहुत भाये गा। इस फाय तो भाथे से खून फहामा है ।

अगरी फाय जान से रेगा। ...हभ त्रफमाह नहीॊ कयं गे, हभायी भजी! तुभ ऩीिा काहे ? आन्हय रइकी यखेगा औय कहे गा टक ऑॊख वारा रड़ेका चाटहए। कानी है तो काना रड़ेका खोजो। मह बी कोई फात हुई टक इनकाय कयने ऩय रड़ेके को घय भं फन्द कयो औय कड़ेकड़ेा के भायो। फाफा ये फाफा! उधय भत जाना कोई? कभ-से-कभ उसके घय नहीॊ।'

सुनीता सोचती 'भुझे जन्भ से ही बगवान ने एक ऑॊख दी तो इसभं भेया कसूय कहाॉ हुआ? समा एक ऑ ॊख नहीॊ यहने के कायण भेयी शादी नहीॊ हो सकती। मा होगी बी तो भोिी यकभ चाटहए। हाम ये त्रवधाता...!' अफ सुनीता गाॉव के स्कूर भं ऩढ़ेाने रगी। ाॊखफ ू भन रगाकय। उसकी अफ शादी कयने की इच्छा नहीॊ होती। अफ वह ऩढ़ेाना चाहती है । रड़ेके-रड़ेटकमं को। वह इॊ िय बी कये गी। अगय भाॉ-फाऩ नहीॊ चाहं तो बी। उसकी इच्छा आसभान भं उड़ेने की होती है । यॊ ग-त्रफयॊ गे ऩक्ऺमं को उड़ेते

दे खकय उसका भन कयता है टक वह बी उनभं शासभर हो जाए। कभ-से-कभ वे तो नहीॊ ऩूछंगे टक तुम्हायी एक ऑॊख समं नहीॊ है ? तुभ कानी समं हो?  एक टदन गुडडू बइमा फाॊजाय से रौि यहे थे। शाभ हो गई थी। गभी का टदन था। प्मास रगी। स्कूर के ऩास नर दे खा। साइटकर से उतयकय नर चराने रगे। नर भं ऩानी ही नहीॊ। अफ समा होगा? जोय से प्मास रगी है । 'नर भं ऩानी नहीॊ है । महाॉ आकय ऩी रीक्जए।' कौन फोरा?... ऐॊ... रड़ी फोरी। ऩानी ऩीने के सरए। वाह बई! चरो गुडडू , टकस्भत फन गई। 'कहाॉ जाना है ?' 'गोवर्द्ष नऩुय।' 'टकसके महाॉ?' 'टकसके महाॉ का! भौसी घय यहते हं ।'


'घय कहाॉ है ? भतरफ अऩना घय।' 'ऩराभू भं। ...फहुत दयू है ।'

बइमा ने सोचा 'ऩानी त्रऩराना है त्रऩराओ, नहीॊ तो चरते हं । इ तो ऩूया जन्भऩिी खोर यही है । ...अये दादा ये ! एगो ऑॊख अजफ िाइऩ की है । रगता है , टदखता नहीॊ। ...इससे ठीक से फोरना चाटहए।' 'नाभ समा है ।' 'गुडडू कुशवाहा।' बइमा की प्मास फुझ गई। कुछ ऩानी ऩीकय औय कुछ सुनीता को दे खकय। वे चरने रगे। रेटकन कुछ सोचते हुए। उनका भन महीॊ अिका हुआ था। ...अगरे टदन बइमा उसी सभम फाॊजाय से रौि यहे थे। टपय भुराॊकात हुई। रेटकन आज प्मास नहीॊ रगी थी। बइमा ने

दे खा, ऩय कुछ फोरे नहीॊ। साइटकर की ऩैटडर भायते हुए चुऩचाऩ भुड़ेी गाड़ेकय सनकर गए। '...ना फाफा ना! इस फाय नहीॊ पॉसना है । इस फाय जान चरी जाएगी।'

सुफह-सवेये बइमा ओिा ऩय फैठकय दातुन कय यहे थे। उन्हंने दे खा टक एक अधेड़े औय उसके साथ रगबग उन्हीॊ की उम्र का रड़ेका, दोनं उनकी तयप आ यहे हं । बइमा डये , ...कुछ फात है का? हभ तो कुछ फोरे बी नहीॊ हं उसको। खारी एक टदन ऩानी ऩीए थे। कर यास्ते भं दे खा बी, रेटकन चुऩचाऩ सनकर गए। 'फाफू! त्रफसुनदे व भहतो का घय इहे है।' 'हाॉ है ।'

'आऩ उन्हकये घय भं यहते हं ?' 'यहते हं ।' 'त्रफसुनदे व फाफू का रगते हं ?' 'भौसा।' 'भौसा!' 'हाॉ भौसा! का काभ है ? काहे खोज यहे हं ?' 'शादी-त्रफमाह के भाभरा भं आमेथे।' 'केकय?' 'हभाय फेिी का नाभ सुनीता है । गाॉव के इस्कूर भं ऩढ़ेाती है ।' 'ओ... ओ! एगो ऑॊख भं क्जसको...' 'फाफू! रड़ेकी फहुते फटढ़ेमा है । फस एगो कभी है । फाकी...'

'हभाय हाथ भं कुछ नहीॊ है । भौसा-भौसी से ऩूसछए। उहे गायक्जमन हं ।' 'उ तो ऩूछंगे ही, रेटकन आऩ कुछ...' 'रड़ेकी तो हभ दे ख ही सरए हं । अफ का कहना है ? हभया कोई टदसकत नहीॊ है ।' 'गायक्जमन भानंगे।'


'हाॉ फोर टदए न! गायक्जमन भाने चाहे ...' 'दान-दहे ज?' 'जे भन कये गा, से दे दीक्जएगा।' बइमा की इस फात भं ाॊगॊजफ का आत्भत्रवद्वास था। अधेड़े उनकी फात सुनकय बावुक हो गमा। उसकी कृ तऻता उसके चेहये औय हाव-बाव से व्मक्त हो यही थी। टदन दे खकय रड़ेकी वारं ने भौसा-भौसी से फात की। जफ रड़ेके की भॊजी हो ही गई तो भौसा-भौसी...। उन्हंने बी हाॉ कय दी। त्रववाह की तायीख बी तम हो गई। '...इस फाय बइमा टकसी त्रवबा को धोखा नहीॊ दे ना चाहते थे। उसकी ाॊक्जन्दगी औय इजज ्ॊ त के साथ क्खरवाड़े नहीॊ कयना चाहते थे।' उन्हंने सोचा टक एक फाय फाफूजी को रड़ेकी दे खने के सरए कहना चाटहए।

गाक्जषमन होने के नाते कभ-से-कभ उनका इतना असधकाय तो है ही। अगरे टदन पोन ऩय नये श चाचा से फात हुई। फेिे की इस नादानी ऩय उन्हं क्रोध तो आमा, रेटकन ाॊजब्त कय गए। अगरे टदन चाचा ट्रे न से गोवर्द्ष नऩुय ऩहुॉच गए। उन्हं रड़ेकी टदखाई गई। ...रड़ेकी दे खकय बड़ेक गए चाचा।

'नहीॊ, इ शादी नहीॊ होगी। हभाय फेिा इतना गमा-गुजया नहीॊ टक...' बइमा को आ गमा गुस्सा। जफ फेिा 'हाॉ' कय टदमा तो आऩको बी फात भान रेनी चाटहए। काि-कूि कयने से फदनाभी दोनं की होगी। रेटकन चाचा भाने नहीॊ। ...अगरे टदन घय आ गए। मह सभाचाय रेकय टक 'गुडडु वा कात्रफर फन गमा है । आऩन भन से त्रफमाह कय यहा है । ऩरयवाय का कोई सवाॉग (सदस्म) त्रफमाह भं नहीॊ जाएगा। अगय जाएगा तो वो भेया दश्ु भन होगा।' अफ बइमा के दादा, चाचा, बाई, टकसी की टहम्भत नहीॊ हुई। शादी भं जाने का ाॊजोक्खभ उठाकय कौन दश्ु भन फनने जाए। घय-ऩरयवाय, गोसतमा के रोगं ने चुऩ यहना ही उसचत सभझा। फेकाय की भुसीफत भोर रेने से समा राब! दादा तैमाय बी हुए तो नये श चाचा की फात सुनकय हड़ेक गए।

इधय बइमा की शादी धूभधाभ से हुई। घयवारे शासभर नहीॊ हुए तो समा, भौसी के गाॉव के रोग फायाती से कभ तो नहीॊ। सो फायासतमं की सॊख्मा बी अच्छी-खासी हो गई। घयवारं के न आने

का दख ु तो उन्हं था, रेटकन फाफूजी का हठ बी फेकाय रग यहा था। नये श चाचा को सभझाने का कोई असय नहीॊ हुआ। बइमा फाय-फाय एक ही फात कहते 'दे क्खए फाफूजी! एक फाय जफान दे के ऩरि जाना नीच का काभ है ।' ऐसी फात सुनकय चाचा गुस्सा गए। बइमा ने बी सोचा टक

'गुस्सा गए तो गुस्सा जाइए। हभ का कय सकते हं ' औय फात बी एकदभ 'िू दी प्वाइॊ ि' थी। त्रवद्वकभाष जी की तयह। जफ सभमाॉ-फीफी याॊजी तो समा कये गा काॊजी। बइमा बाबी को भौसी के घय रे आए। रगबग दो भहीने तक दोनं वहीॊ यहे । रेटकन बइमा का भन नहीॊ रग यहा था। घय की माद फाय-फाय आती थी। एक टदन फोरे 'अफ फइदा चरना चाटहए।' 'फइदा! फाफू जी कुछ नहीॊ कयं गे?' 'कयं गे तो कयं गे। अफ डयने से का पामदा...?'


'घय से सनकार दं गे तो?' 'ऐॊ... सनकार दं गे। कैसे सनकार दं गे। हभाय घय नहीॊ है का?' 'है , रेटकन...' बाबी कुछ कहते-कहते रुक गई। बइमा भाने नहीॊ। भौसी से फोरे टक घय जाना है । सुनकय भौसी घफयाई। डयी टक कहीॊ फाऩ-फेिे भं रड़ेाई न हो जाए। फोरी 'फेिा! हभ बी साथे चरंगे। ...हभको दे ख के कोई कुछ नई फोरेगा।' ऩय बइमा उनकी फात से सहभत नहीॊ हुए। वे

बाबी को रेकय गाॉव जाना चाहते थे। ...आक्खय भौसी के त्रफना दोनं गाॉव ऩहुॉचे। गुडडू बइमा के दो बाई थे। एक उनसे फड़े​े औय एक छोिे । फड़े​े बइमा थे तो फड़े​े औय उम्रदयाज बी, रेटकन

उनका नाभ था टकशोय। उनकी शादी हो चुकी थी। दो-चाय नन्हं -भुन्ने बी थे। आते ही गुडडू बइमा का साभना अऩनी बाबी मानी टकशोय बइमा की फीवी से हुआ। बाबी चुऩ! तसनक बी फोरचार नहीॊ। बइमा को दे खकय उनके भुॉह से सनकरा 'आऩको टहस्सा नहीॊ सभरेगा।' 'काहे ?' बइमा तऩाक-से फोरे। 'आऩ अऩने भन से त्रफमाह टकए हं ।' कहते ही बाबी ने तड़ेाक-से ाॊजभीन ऩय थूक टदमा। उनका चेहया क्रोध से बकबका उठा। 'तो का गरती टकमे हं ।' बइमा ने जरती आग भं घी डारा। तफ तक नये श चाचा औय टकशोय

बइमा बी आ गए थे। बइमा-बाबी ने दोनं के ऩैय छुए। रेटकन कोई जवाफ नहीॊ। उन दोनं के घय आने से भाॉ औय छोिे बाई को छोड़ेकय ऩरयवाय के अन्म सदस्मं के रृदम रूऩी जॊगर भं बमानक तूॊपान आमा हुआ था। रेटकन फाहय से शान्त टदखने का वे बयसक प्रमत्न कय यहे थे। 'जो टकमे हं , उसका पर बी बोसगमेगा।' बाबी ने एिभ फभ पंका।

'पर का बोगंगे? कोई चोयी टकमे हं टक डाका डारे हं ।' तफ तक चाचा बी आवेश भं आ गए थे। गुस्से से फोरे 'राओ यस्सी! फाॉधो तो इसको। फहुत फहादयु फन गमा है ।' टकशोय बइमा दौड़ेकय यस्सी राते, तफ तक गुडडू बइमा बी कहाॉ रुकने वारे थे। रगबग धभकाने के अॊदाॊज भं फोरे 'दे क्खए ठीक नहीॊ होगा। अगय दे ह भं ठे क (स्ऩशष कयना) गए तो...।' तफ तक यस्सी आ चुकी थी। यस्सी गुडडू बइमा के ऊऩय पंकी गई। फाॉधने के सरए। '... अये ! मे समा? यस्सी तोड़े टदमा! बागो ये !' घय भं खूफ हॊ गाभा हुआ। ऩास-ऩड़ेोस के रोग जभा हो गए। एक-दो सच्ची सहानुबूसत के कायण सभझाने के सरए तो असधकाॊश इसी फहाने तभाशा दे खने के सरए। ...अॊत भं बइमा को छोिे

चाचा के महाॉ शयण रेनी ऩड़ेी। यात भं जो कोय-कसय यह गई थी, वह सफेये ऩूयी हुई। सफेये राठी रेकय नये श चाचा टकशोय बइमा के साथ छोिे चाचा के घय ऩहुॉचे।

'...हभाय फेिा घय से सनकारो। नहीॊ तो तू दश्ु भन होगा। घय उजाड़े-ऩजाड़े दं गे। आज इ नारामक


को घय भं सछऩाकय...' ...दो टदन तक बइमा-बाबी छोिे चाचा के घय यहे । तीसये टदन टपय घय भं। अफकी नये श चाचा थोड़े​े नयभ ऩड़े गए। 'अफ होहल्रा कयने से बी का पैदा है । आक्खय अऩना फेिा ही तो है । अफ जफ त्रफमाह कय ही सरमा तो...' धीये -धीये भाहौर ठॊ डा हुआ।

फयसात का भौसभ था। बादो का भहीना। रुक-रुककय झभाझभ फारयश हो यही थी। साया गाॉव धान की योऩाई भं रगा हुआ था। जफ साया गाॉव योऩाई कय यहा था तो टपय गुडडू बइमा के घय कैसे न होती। एक ओय से नये श चाचा औय टकशोय बइमा खेत तैमाय कयते जा यहे थे। ऩीछे से चाची मानी गुडडू बइमा की भाॉ औय उनकी बाबी धान योऩती जाती थीॊ औय गीत गाती जाती थीॊ। गीत गाए बी समं न! घय भं नई फहू जो आई थी। इधय सुनीता बाबी घय के रोगं के सरए करेवा (दोऩहय का बोजन) तैमाय कयने भं रगी हुई थीॊ। बइमा बी जभकय ऑॊिी (धान का नन्हा ऩौधा) ढो यहे थे।

आज गुडडू बइमा की शादी के तीन वषष हो गए हं । बइमा की दक ु ान चकाचक चर यही है ।

उन्हंने फतामा टक अफ वे एर.आई.सी. भं ऩैसा बी जभा कय यहे हं । अफ इधय-उधय फहुत हो गमा। अफ कभाना-खाना है । भंने इधय-उधय दे कय उनसे ऩूछा 'त्रवबा का समा हुआ?'

'उसकी शादी त्रऩछरे सार हो गई। उसकी क्जॊदगी फस गई, अच्छा हुआ। उसके गाॉव से एक

आदभी आमा था।' कहते-कहते उनका चेहया उदास हो गमा। भंने प्रसॊग फदरकय ऩूछा 'अच्छा बइमा! समा दे खकय आऩने बाबी से शादी की। आऩको तो उनसे अच्छी रड़ेकी बी सभर सकती थी औय ढे य साये रुऩमे बी।' 'दे खो, धनी, सुन्दय औय ऩढ़ेर-सरखर रइकी से शादी तो हय कोई कयना चाहता है । ज्मादा टहम्भत है , चाहे भाइ का दध ू त्रऩमा है तो अन्हयी, गूॉगी, रॊगड़ेी रड़ेकी

से, गयीफ रड़ेकी से शादी कयके टदखाओ।' कहते-कहते उनकी ऑॊखं भं ऩानी टदखाई दे ने रगा। उनकी ऩसनमामी ऑॊखं भं गवष था। आत्भत्रवद्वास था मा सभाज से अकेरे रड़ेने का साहस। मह आऩ सोचं...।  दग ु ेश ससॊह


क्जन्दगी को कहानी भानते हं , इससरए कहानी सरखते हं । कोसशश कयते हं टक टकयदाय औय घिनाओॊ का सचिण क्जन्दगी की तजष ऩय हो सके। दग ु ेश ससॊह 18, कनुकुॊज, ऩिे र इस्िे ि जोगेद्वयी ऩक्द्ळभ, भुॊफई-01 भो.: 09987379151 F F F F F F आजकर टहन्दी दै सनक भं कॉऩी एडीिय। जन्भ : 1985

अधूयी यात के ऩूये सऩने नीॊद खुरी तो नरैटडश ने चंकते हुए भोफाइर अऩने हाथ भं रे सरमा। यात के दो फज यहे थे।

हॉस्िर त्रफक्ल्डॊ ग के फेसभंि भं फने वॉचभैन के ससॊगर कभये वारी दसु नमा के इदष -सगदष झीॊगुयं का

सॊसाय अऩनी आवाॊज सनकारने भं भगन था। भोफाइर ससयहाने पंकते हुए उसने सराससक भाइल्ड की टडब्फी से एक ससगये ि सनकार री। ससगये ि सुरगाकय वह फेड से सिी दीवाय का िे क रेकय

फैठ गई। दो-तीन रम्फे कश खीॊचने के फाद ही उसने ठू ॉ ठ ऐश-ट्रे के भुॊहाने ऩय ठू ॉ स दी। याख औय ससगये ि की अधजरी ठू ॉ टठमं से ऐश-ट्रे रफारफ बय यही थी। नरैटडश ने चादय ऩैय से पॊसाकय ससय की तयप खीॊचते हुए त्रफस्तय का एक कोना ऩकड़ेा औय िकािक उॉ गसरमाॉ चराते हुए

भोफाइर को साइरंि भोड ऩय धकेर टदमा। कफ नीॊद रगी औय कफ सऩना आमा, ऩता ही नहीॊ चरा। वैसे बी इॊ सानं को नीॊद औय सऩने का बान शामद ही होता हो। फस स्िं ड ऩय छोड़ेने आए ऩाऩा फोरे नरैटडश फेिा, घय से फाहय तू ऩहरी फाय सनकर यही है । भन रगाकय ऩढ़ेना औय कोई बी सभस्मा हो, तुयॊत इत्तेरा कयना। डंि पीर ओनरी, आई एभ आरवेज त्रवद मू। पपककय यो ऩड़ेी थी नरैटडश। ऩाऩा ने अऩनी फाॉहं भं सभेिते हुए कहा था भं हूॉ न तेये साथ। दे ख, अफ तू इतना योएगी तो भं तुझे जाने नहीॊ दॉ ग ू ा। वैसे बी भुझसे दयू जाने का पैसरा तेया है , न टक भेया। टदल्री भं बी कई अच्छे मोगा सॊस्थान हं । तू वहाॉ ऩढ़े सकती है , दे हयादन ू जाने की कोई जरूयत नहीॊ थी।


इतने भं आई.एस.फी.िी. फस अडडे ऩय दे हयादन ू जाने वारी फस रग चुकी थी। नरैटडश का

साभान ऩाऩा ने फस के ऩीछे रगेज यखने वारे टहस्से भं यखवा टदमा औय त्रफना फस की तयप भुड़े​े वे आगे की ओय चर ऩड़े​े । उनको ऩता था टक ऩीछे भुड़ेना भतरफ फाइस सार की ऩारीऩोसी क्जॊदगी को अऩने से दयू जाने दे ना है । सहभी-सी नरैटडश सससकती यही औय सहभे से ही ऩाऩा का स्वरूऩ ऑॊखं के साभने सजीव होकय बी स्माह-सा रगने रगा। कॊडसिय सचल्रामा आई.आई. वाई.एभ. के सबी रोग फस भं फैठ जाएॉ। फस भं धड़े-धड़े औय धाऩ-धाऩ की आवाॊज होने रगी। सबी रड़ेके-रड़ेटकमाॉ तेजी से फस भं सवाय हो गए औय फस टदल्री की तभतभाई सड़ेकं से सनकरकय उत्तयाखॊड जाने वारे सभरनसाय हाइवे ऩय आ गई थी। थ्री सीिय ऩय क्खड़ेकी का कोना ऩकड़े​े नरैटडश घॊिं सससकती यही। नीॊद खुरी तो घड़ेी के काॉिे सुफह के ऩौने नौ फजा यहे थे। सेभेस्िय की सरासेज नौ फजे से शुरू हो जाती थीॊ। आनन-पानन भं जीॊस-िी शिष भं तैमाय होकय वह कॉरेज ऩहुॉची। हभेशा की तयह अत्रवबाज्म कॉरेज की कंिीन भं उसका इॊ तजाय कय यहा था।

उसे दे खते ही तऩाक से फोरा थंक गॉड, नाउ वी आय नॉि गेटिॊ ग रेि। अफ आ ही गई हो तो कुछ खा रो। हभ आज भूवी जा यहे

हं 'शेडस ऑप राइप'

नरैटडश दे खो अत्रवबाज्म, ऩहरे भुझे अऩनी सरासेज ऩूयी कयनी है , उसके फाद ही हभ कहीॊ जाएॉगे। वैसे बी त्रऩछरे कई टदनं से तुम्हाये चसकय भं भेयी ऩढ़ेाई बी नहीॊ हो ऩा यही है ।

सुफह का वक्त होने की वजह से कंिीन भं बीड़े कभ ही थी। एक दो फैयं के अरावा कोई बी स्िॉल्स ऩय नहीॊ टदख यहा था। त्रवशारकाम कंिीन के ऊऩयी टहस्से ऩय फैठे अत्रवबाज्म ने बीॊच सरमा था अऩनी फाॉहं भं नरैटडश को। फेतहाशा अऩने होठं को उसके चेहये ऩय दौड़ेाते हुए हल्के से कान के ऩास ऩहुॉचकय अत्रवबाज्म ने कहा था अफ फोरो, भूवी चरोगी मा नहीॊ।

अऩने आऩ भं ही ससभिते हुए नरैटडश फोरी थी ऩय भेयी सरासेज।

अत्रवबाज्म ने उसे एक झिके के साथ ऩीछे धकेर टदमा था ठीक है , जाओ तो टपय सरास ही कयो। खिखिाते हुए कंिीन की सीटढ़ेमं से नीचे उतय आमा था अत्रवबाज्म। नरैटडश कुछ कह सकने औय न कह ऩाने की क्स्थसत के फीच उसे सनहायती यह गई थी।

करासेज खत्भ होने के फाद वह सीधा अऩने कभये भं ऩहुॉची औय अऩना फैग ऩिककय त्रफस्तय

ऩय आ सगयी धड़ेाभ से। उसके जेहन भं अबी तक अत्रवबाज्म का ही साम्राज्म हावी था। गुस्से भं दयू गए अत्रवबाज्म का सुफह से कुछ बी ऩता नहीॊ था। फीससमं फाय उसका भोफाइर ट्राई कयने के फाद अफ नरैटडश सनयाश हो चुकी थी। थकी-सी ऑॊखं भं कफ नीॊद सभाई, उसे ऩता नहीॊ

चरा। नीॊद भं दस ू या सऩना आमा औय सऩने भं ही हॉस्िर वाडष न सचल्राई रूभ नम्फय 215, पोन


है । दौड़ेती हुई आई नरैटडश ने हाॉपते हुए कहा हाॉ, ऩाऩा।

साभने से आवाज आई फेिा, ऩाऩा नहीॊ यहे , तड़ेके हािष अिै क आमा था। तुभ जल्दी घय चरी आओ। सफ कुछ तुम्हीॊ को कयना है । एक सचट्ठी सरख गए हं तुम्हाये सरए। मे वही टदन थे जफ नरैटडश की क्जन्दगी भं अत्रवबाज्म आमा था। सफ यॊ ग नमा था। मादं का, फातं का, वादं का, कसभं का, यस्भं का, सुफहं का, शाभं का औय महाॉ तक टक यातं का बी यॊ ग नमा हो चरा था। अनदे खी भाॉ की सूयत उसके जीवन भं ऩाऩा की वजह से ही कबी साकाय नहीॊ हो ऩाई थी। नरैटडश औय ऩाऩा ऩमाषम फन चुके थे एक दस ू ये का। एक के फुखाय होने ऩय फदन दस ू ये का िू िता था। टपय आज ऐसा समं हुआ? ऩाऩा ने कुछ बी नहीॊ कहा औय यात भं पोन ऩय बी फात हुई थी उनसे। उसके जेहन भं आमा,

टदर तो सफसे कोभर चीज होती है , टपय वहाॉ कोई अिै क कैसे कय सकता है ? ऩीठ ऩीछे वाय तो ससपष आदभी ही कयता है , सनमसत ने कफ से मह स्वरूऩ धायण कय सरमा। उसके घय ऩहुॉचने के फाद ही ऩाऩा को नहरा-धुराकय मा मूॉ कहं टक उनके शव को साप कय

फाॉस की पक्ल्ठमं से फने आसन ऩय सरिामा गमा। नरैटडश न कुछ सोच ऩा यही थी औय न ही उसे कुछ सभझ भं आ यहा था। उसकी हारत उस याहगीय जैसी हो चरी थी जो टदन के झसक उजारे भं एक ऐसे गाॉव भं बिक गमा हो जहाॉ कुछ ही घॊिे ऩहरे नयसॊहाय हुआ हो।

तबी ऩाऩा के कयीफी दोस्त गुद्ऱा अॊकर ने कहा फेिा, जल्दी कयो, क्जतना सोचोगी, ऩाऩा की आत्भा को उतनी ही तकरीप होगी। नरैटडश ने सकऩकाकय जवाफ टदमा कुछ नहीॊ ऩाऩा, एसाइनभंि भं व्मस्त होने की वजह से सभम का ध्मान नहीॊ यहा। गुद्ऱा अॊकर नरैटडश, ठीक हो न, फेिा। 'हाॉ' कहकय नरैटडश ने ऩाऩा को भुखाक्नन दे दी। सचता जरते ही उसके सऩनं भं ऩाऩा औय उसके फीच सॊवाद शुरू हुआ था।

टदल्री से दे हयादन ू आते सभम ऩाऩा ने कहा था टक तू जल्दी अऩनी ऩढ़ेाई ऩूयी कय रे, टपय भं एक अच्छे फेिे से तेयी शादी कय दॉ ग ू ा। फेिा वो इससरए कहते थे समंटक उन्हं अऩनी फेिी के सरए रड़ेका नहीॊ चाटहए था।

शयभाकय कहा नरैटडश ने ठीक है , ऩय भेयी एक शतष है टक आऩ हभाये साथ ही यहं गे। ठहाका रगाते हुए हॉ स ऩड़ेते ऩाऩा। उनको ठहाका रगाते दे ख गजफ की खुश होती थी वह।

भोिाऩे की वजह से ऩाऩा का ऩूया शयीय टहरता औय वह बी सनयॊ तय हॉ सती जाती थी। वे सफसे


खूफसूयत टदन थे उसकी ाॊक्जन्दगी के। टकसी चीज की सचॊता नहीॊ होती थी उसे। उसका सफ कुछ ऩाऩा से था मा मूॉ कहं टक ऩाऩा ही सफ कुछ थे। फड़ेी होती नरैटडश को मह कबी नहीॊ रगा था टक ऩाऩा का टकयदाय उसके सरए फदरता जा यहा है । कफ उसका फेडरूभ, फाथरूभ औय कऩड़ेा-रत्ता अरग हो गमा, कफ उसके जीवन की सनदचमाष के ऩन्ने ऩाऩा की डामयी से अरग हो गए, कफ उसके ऩास भोफाइर आमा औय कफ ऩाऩा का पोन आना कभ हो गमा, ऩाऩा अकेरे हो गए हंगे, उसे इसका बी इल्भ नहीॊ हुआ। नरैटडश की क्जन्दगी की तजष ऩय हभ सबी की ाॊक्जन्दगी बी एक सथएिय की तयह होती है , त्रऩसचयं फदरती यहती

हं । आज नरैटडश को रग यहा है टक

ऩाऩा को उसकी जरूयत थी रेटकन वह सभझ न सकी। कुछ ही टदनं फाद वह वाऩस हॉस्िर रौि आई थी। एक सुफह चौक फाॊजाय वारी केसभकर कॊऩनी ने तीन का घॊिा फजामा औय सीिी के साथ ही सड़ेक ऩय भजदयू ं के कदभं की आहि

भहसूस होने रगी। तॊिा िू िी तो उसने टपय से भोफाइर अऩने हाथ भं सरमा औय अफकी स्क्रीन ऩय सरखा था वन भेसेज रयसीव्ड। 'ओ के', भेन्मु भं जाकय जैसे ही उसने भेसेज खोरा, अत्रव नाभ टडस्ऩरे हुआ था स्क्रीन ऩय, सॊदेश था थंसस पॉय भेटकॊग भाई राइप हे र, फाम-फाम। झन्नसी हो गई थी वह औय भोफाइर उसकी भुट्ठी से त्रफरकुर सभम वारी ये त की तयह क्खसका था। इसके

फाद अत्रवबाज्म उसकी क्जन्दगी भं ससपष मादं भं आता यहा औय वह मह जानने के सरए उसे हकीकत भं पोन रगाती यही टक कैसे उसने अत्रवबाज्म की क्जन्दगी को नयक फनामा? मादं आती यहीॊ औय अऩने आऩ भं ही सभाती यही। थककय उसने बी अऩने को अकेडसभसस भं त्रफजी कय सरमा था। मुसनवससषिी से सनकरकय ही याभफाग वारे चौयाहे की राइब्रेयी भं ऩहॉ च जाती थी औय दे य शाभ तक टकताफं भं भशगूर यहती। हॉस्िर कभये भं आती औय दो योिी भुक्श्कर से खाकय ऩसय जाती थी त्रफस्तय ऩय। घय जाना फॊद कय टदमा था उसने। मह वही अत्रवबाज्म था क्जसके सरए उसने अऩने ही ऩाऩा को तन्हा छोड़े टदमा था। हभ टकतने स्वाथी होते हं । अऩनी तकरीपं का सरॊपापा दे खकय बी दस ू ये का भॊजभून नहीॊ बाॉऩ ऩाते। वह तो टपय बी फेिी थी।

एक अत्रवबाज्म के जाने से वह नशे की रत भं डू फ गई, उसे ऩार-ऩोसकय फड़ेा कयने वारा फाऩ तो त्रऩछरे कई सारं से अकेरा था। भाॉ तो साथ न दे ऩाई थी रेटकन ऩाऩा ने तो हभेशा साथ टदमा था। महाॉ तक टक अत्रवबाज्म को रेकय बी उन्हंने हाॉ कय दी थी। अफ न तो ऩाऩा हं औय न ही अत्रवबाज्म। सोच ही यही थी टक तबी डाटकए ने दयवाजा खिखिामा। ऩाऩा की भेटडकर रयऩोिष हॉस्िर आई थी। घय से क्जसके सरए उसने तफ आवेदन टकमा था, जफ उसे ऩता चरा था टक ऩाऩा दवाईमाॉ रेतेथे।


रयऩोिष भं सरखा था 'सभस्िय योटहत काॊत सेन वॉज सपरयॊ ग हाई ब्रड प्रेशय एॊड है वी टडप्रेशन। डमू िू दै ि ही वेमय त्रफकभ अल्कोहसरक एॊड ड्रग एटडसि। सॉयी िू से सभस नरैटडश, इन टहज नॉसभनी पॉभष ही टडड नॉि भंशन मोय नेभ, दै ट्स व्हाई मू ऑय अनेफर िू सरेभ टहज भेटडकर इॊ श्मोयं स।' रयऩोिष रेकय सोपे भं धॉस गई थी नरैटडश औय घॊिं सोचती यही। नीॊद टपय से आई औय साथ भं आमा सऩना। ऩाऩा तू शादी कय रे, फेिा नरैटडश। नरैटडश अफ कुछ नहीॊ होता, ऩाऩा। ऩाऩा ऐसा भत फोर फेिा, हभ तेये साथ हं । नरैटडश आऩ भम्भी को सभस कयते थे औय भुझे फतामा ही नहीॊ। ऩाऩा मादं फताकय थोड़ेी आती हं , ऩगरी औय कैसे फताता टक भुझे तेयी भाॉ की माद आ यही है , वो बी उस नरैटडश को, क्जसे ऩच्चीस सार तक भंने भाॉ का अहसास नहीॊ होने टदमा। नरैटडश आऩ फोरते तो भं आऩके ऩास वाऩस रौि आती।ऩाऩा अत्रवबाज्म को छोड़ेकय। नरैटडश अफ वह भेयी क्जन्दगी का टहस्सा नहीॊ यहा। ऩाऩा ठीक है , क्जन्दगी स्वाथी होती है । सफको जाना है । तेयी भाॉ को दे ख रे, तीन सार यही भेये साथ। नरैटडश उस जाने औय इस जाने भं अॊतय होता है । वह अऩनी भजी से गमा जफटक भाॉ नहीॊ। ऩाऩा रेटकन तकरीप दोनं तयह से होती है । खैय, छोड़े क्जन्दगी अकेरे नहीॊ किती, ससपष सभम किता है । तेयी भाॉ के फगैय भं बी तो क्जन्दगी नहीॊ काि ऩामा। तू शादी कय रे, फेिा। नरैटडश ऩय अत्रवबाज्म का भोह कैसे खत्भ होगा? 'सफ हो जाएगा' कहकय ऩाऩा ने उसके ससय ऩय हाथ सहरामा था औय उसकी नीॊद िू ि गई थी। कॉरेज जाने के सरए उसने दयवाजा फॊद कयते हुए रेिय फॉसस खॊगारा तो दे खा टक गुद्ऱा अॊकर की सचट्ठी ऩड़ेी थी रेिय फॉसस भं। 'त्रप्रम फेिा नरैटडश, कैसी हो, महाॉ ऩय सफ ठीक-ठाक है । सेन साहफ का घय हय हॊ फ्ते वैसे ही साप होता है , जैसा वह चाहते थे। रूसी को भं अऩने घय रामा हूॉ। ऩीछे की दीवायं का यॊ ग उतय यहा था तो सोचा टक दीवारी से ऩहरे नए यॊ ग चढ़े जाएॉ तो ठीक यहे गा। सचट्ठी भं यॊ ग के फाये भं फताना। याभू

गाडया ् ेन साप कय जाता है आकय। ऩैसा बी नहीॊ रेता कभफॊख्त, कहता है कजषदाय हूॉ सेन फाफू का। पुनई धोफी के फच्चे कान्वंि भं ऩढ़ेने रगे हं । आशीवाषद दे यही थी उसकी फीवी तुम्हं औय

फोरी, अफ ऩैसं की जरूयत नहीॊ है समंटक स्कूर से स्कॉरयसशऩ सभरने रगी है । रो, इतनी फातं की बूसभका भं ऩते की फात तो बूर ही गमा था। अन्तभषन ने आई.ए.एस. ऩास कय सरमा है । बूरी तो नहीॊ, तुम्हाया सरॉसभेि औय भेया नारामक फेिा। भं चाहता हूॉ टक तुम्हायी शादी उससे हो जाए, फस।'


प्रीज के साथ ही भदन भोहन गुद्ऱा ने अऩने इकरौते आई.ए.एस. फेिे अन्तभषन का रयश्ता नरैटडश के साथ यख टदमा था। एक फाय टपय से उसके सचत्त ने काभ कयना फॊद कय टदमा था, ठीक उस याहगीय की तयह जो एक ऐसे गाॉव भं बिक गमा हो, जहाॉ हय कोई उसे यास्ता फताने को तैमाय हो। शामद बत्रवष्म की नीॊद भं बूत के सऩनं के न आने की फेरा आ चुकी थी।



  वसशता

जो भंने अनुबव टकमा है , वह भं सभाज से फाॊिना चाहती हूॉ। कहासनमाॉ भेये जीत्रवत होने का प्रभाण हं । वसशता 5295, ससर्द्ाथष नगय आई.िी.आई. योड अरीगढ़े-202001 भो. : 09358940386 आजकर प्राइवेि स्कूर भं सशक्ऺका।

नई सड़ेक

जून का भहीना था। सूयज ने सुफह से ही फेचन ै कयना शुरू कय टदमा था। हवा भध्मभ थी, झंके बी तृद्ऱ नहीॊ कय यहे थे। दोऩहय तक तो गभी औय रू कहय फयऩाने रगती। टकसान बोय की रासरभा भं ही खेतं ऩय हर रेकय सनकर गए थे औय सफ अऩने दै सनक कामं भं व्मस्त थे। श्माभरी ऊॉघती-सी दयवाॊजे के फाहय फॉधी गाम को चाया डारने आई तो उसकी सुस्ती ऩर बय भं ही छू-भॊतय हो गई। उसने सुना, टकसी के फीच झगड़ेा हो यहा है । वह दो-तीन कदभ आगे फढ़े

गई औय ध्मान से दे खा, सन्नो औय चाय-ऩाॉच आदभी थे। आवाॊज वहीॊ से आ यही थी। वह कुछ दे य मं ही खड़ेी यही, फात सभझ भं नहीॊ आई। अचानक सन्नो उसके ऩास से सनकरी तो उसने


आवाॊज रगाकय ऩूछा ''समा फात हो गई, सन्नो?'' ''वही दीदी, जो आए टदन होती है ।'' ''समा होता है आए टदन? जया भुझे बी फता।'' ''तुभ तो मं ऩूछ यही हो जैसे ताई ने तुम्हं गाॉव के फाये भं कुछ फतामा ही नहीॊ।'' ''सच भं नहीॊ फतामा, तू फता!'' ''अगय भंने फता टदमा न तो ताई अनाऩ-शनाऩ फकेगी।'' ''नहीॊ फकेगी, भं कह यही हूॉ ना! तू फता तो सही।''

''फात मे है , दीदी, इन गाॉव वारं को ना कुछ टदखाई दे ता है , ना सुनाई दे ता है ।'' ''ऩय सफ ऐसे नहीॊ हो सकते, सन्नो।'' ''समं नहीॊ हो सकते, मही भं सोचती थी।'' सन्नो को क्रोध आ गमा, ''सफ ऐसे ही हं ।'' इतना कहकय औय आवेश ऩय काफू कय वह आगे फढ़े गई। श्माभरी उसे जाते हुए दे खती यही।

श्माभरी गाॉव के ही सशवचयण ससॊह की ऩुिी थी। जो गाॉव भं सफसे ज्मादा ऩढ़े​े -सरखे, सभ्म औय त्रवशेष रुतफा यखते थे। उन्हंने ऩढाई के फाद ना तो नौकयी की, ना शहय भं फसे। फस अऩने गाॉव औय खेती को ही अऩना सरमा। टपय खेती के कामष औय गाॉव की उन्नसत भं प्रमासयत ् यहे । सशऺा का भहत्व सभझते, इससरए उनके फच्चं ने होश बी नहीॊ सॊबारा था टक उन्हं शहय के स्कूर भं एडसभशन टदरवा टदमा औय वहीॊ हॉस्िर भं यहने की सभुसचत व्मवस्था कयवा दी। वे जानतेसभझते थे टक फच्चं भं ऩढ़े-सरखकय अच्छी सोच-सभझ ऩनऩेगी। वे दसु नमा को अच्छी तयह

सभझ सकंगे। सशऺा के दौयान फच्चं का आना-जाना बी गाॉव भं कभ यहा क्जससे टक उनकी ऩढ़ेाई भं अनावश्मक व्मवधान ना ऩड़े​े । इसी सार उनकी फेिी श्माभरी का फी.ए. ऩूया हो गमा औय वह छुक्ट्िमाॉ त्रफताने औय मह सोचने टक आगे समा कयना है , इस फाय गाॉव चरी आई। ऩहरे जो बी छुक्ट्िमाॉ सभरती थीॊ, उन्हं वहीॊ वह घूभ-टपयकय मा कोसष कय त्रफता दे ती थी।

वैसे जफ से श्माभरी गाॉव आई है , खूफ आनॊदभनन यहती है । सबी के साथ उठना-फैठना, घूभनाटपयना औय सबी के सुख-दख ु की फातं को ध्मान से सुनना-सभझना, गुनना अथाषत ् सफ यस आनॊद रेना।

वह महाॉ आकय गाॉव को खूफ सभझ यही थी, गाॉव के रोगं का जीवन औय

दसु नमा व सभाज के

प्रसत कैसा दृत्रद्शकोण है । ऩय एक फात हभेशा उसे खिकती टक जो सन्नो के प्रसत मा सन्नो का गाॉव के प्रसत रुख था मा जो कुछ बी सुगफुगाहिं सुरग यही थीॊ वो समा थीॊ सफ। श्माभरी चुऩचाऩ औय धीये -धीये इस फात को सभझने औय जानने का प्रमास कयती ऩय कुछ बी नहीॊ

रगता। भाॉ से एक फाय ऩूछा बी था ऩय उनका िका-सा जवाफ था ''अऩने काभ ऩय ध्मान दो।'' छोिा-सा गाॉव, जो शहय से कोई चारीस टकभी. दयू ऩड़ेता था। इस गाॉव भं असधकतय सबी

जासतमाॉ सनवास कयतीॊ व भेर-सभराऩ बी कापी था। भकान महाॉ दो-चाय ही ऩसके थे, वे बी फड़ेी


जासत वारं के थे। महाॉ सबी एक-दस ू ये को फेहतय ढॊ ग से जानते-सभझते थे। रेटकन मे बी सच था टक जासतमं के भध्म हल्की दफी-छुऩी रकीय थी क्जसे कोई बी ऩाय नहीॊ कयना चाहता था।

मे रकीय ऩीटढ़ेमं से चरी आ यही थी। इसे ऩाय कयना सभाज के चॊद ठे केदायं को यास बी नहीॊ आता औय जाने वे समा प्रऩॊच यच दे ते। कुर सभराकय सफ ठीक-ठाक चर यहा था जैसे ऩानी की सतह ऊऩय से शाॊत स्वच्छ औय सनभषर होती है । खेती महाॉ के रोगं का भुख्म व्मवसाम था क्जसभं गाॉव वारे टदन-यात यत यहते। मही उनका कभष-धभष थी। ऩय इधय कुछ सार से फनी नई सड़ेक ने जफ से गाॉव को शहय से जोड़ेा, तफ से फहुत-कुछ फदर गमा। मुवक खेती छोड़े शहय भं काभ कयने जाने रगे। मासन खेती अफ ऩुयाने रोगं की क्जम्भेवायी यह गई थी। उन्हं ही मह

खट्राग ऩसॊद आता औय वे इसे छोड़ेना नहीॊ चाहते थे। सड़ेक सनभाषण ने गाॉव को दो चीजं से जोड़ेा पामदा औय नुकसान। पामदा मे हुआ टक सड़ेक सनभाषण के फाद गाॉव भं कई सयकायी

घोषणाएॉ हुईं। इन्हीॊ घोषणाओॊ भं एक मह थी टक जो बी ऩरयवाय सनमोजन कयवाएगा, उसे कुछ

जभीन सयकाय की ओय से दी जाएगी। इसी घोषणा का राब उनके ऩरयवाय ने उठामा औय उनकी आसथषक क्स्थसत सुधय गई। नुकसान मे हुआ टक मुवक शहय भं जाने रगे।

इसी घोषणा से सन्नो का ऩरयवाय बी राबाक्न्वत हुआ औय उनकी आसथषक क्स्थसत सुधय गई।

अफ आऩ इसे फदटकस्भती कटहए मा कुछ औय टक जो जभीन उन्हं सभरी, वो प्रधान के खेतं से सिकय सभरी। प्रधान वषं से उस जभीन ऩय नजय गड़ेाए था। फस कैसे बी उस ऩय कब्जा हो जाए। ऩय अफ...। उसकी भॊशा नेस्तनाफूॊद हो गई थी।

इधय जभीन ऩाकय सन्नो के ऩरयवाय को खुशी का टठकाना न था। वे फाय-फाय बगवान का शुटक्रमा भनाते। उस जभीन के िु कड़े​े ऩय सन्नो के त्रऩता ने खूफ भेहनत की औय वो िु कड़ेा हयीबयी पसर से रहरहा उठा। मे सफ भेहनत की फदौरत था। मही पसर प्रधान को बी खूफ सचढ़ेाती, तफ प्रधान जर बुनकय यह जाता। प्रधान कबी नहीॊ चाहता, उनकी फीघा बय की पसर रहयाकय-झूभकय उसकी सौ एकड़े की पसर को चुनौती दे । रेटकन भेहनत यॊ ग राती यही औय सार-दय-सार सन्नो की पसर रहयाती चरी गई। इधय प्रधान हभेशा एक नमा भॊसूफा फाॉध रेता जो उसके टदभाग भं उठते टपतूय का ऩरयणाभ होता। अफ इस जभीन ऩय सन्नो रगी यहती उसी भेहनत से जो उसने अऩने त्रऩता से सीखी थी। त्रऩता का सामा ससय ऩय ना यहने के कायण ही उसे सभम ने सनडय रड़ेकी फना टदमा था जो हभेशा डय को हॊ ससए की नंक ऩय यखती। वह सफ काभ कय रेती ...भाॉ का घय के काभं भं हाथ फॉिाना, छोिे बाई को कस्फे के स्कूर तक छोड़ेना औय राना, खेत का साया काभ कयना क्जसभं यखवारी से रेकय अनाज को भॊडी तक रे जाना औय साया टहसाफ-टकताफ कयना। मे उसके, ससपष उसके काभ थे जो वह सनडय होकय कयती, इससरए प्रधान के रठै तं को बी हड़ेका दे ती। इसी हड़ेकाने औय झड़ेऩं के कायण श्माभरी की भाॉ ने उसे कई फाय डाॉिा औय सभझामा बी टक इनसे ना उरझे। टकतनी फाय सन्नो फहस कय जाती औय टकतनी फाय चुऩचाऩ चरी जाती। जफसे


श्माभरी गाॉव आई है , महाॉ के घिते-फढ़ेते घिनाक्रभ से अजीफ-सा भहसूस कयती है । उसके टदभाग भं मह प्रद्ल तेज घोड़े​े की भासनॊद दौड़ेता है टक सन्नो का ही समं झगड़ेा होता है जफटक साये गाॉव भं भेर-सभराऩ अच्छा खासा है । ससपष इसी भोचे ऩय सन्नो समं अकेरी जूझ यही है औय वो बी एक-दो फाय नहीॊ, भहीने भं चौथी-ऩाॉचवीॊ फाय झगड़ेा था। मुवाओॊ से ही कुछ त्रवचाय-त्रवभशष होता औय उन्हीॊ से उम्भीद यखी जाती ऩय असधकाॊश तो शहय चरे गए। दो-चाय थे तो उनसे समा होना था। शहय, क्जसकी अऩनी ऩरयबाषा है औय जो आसऩास के गाॉव की अऩेऺा महाॉ जया जल्दी आ गमा था। इसकी आहि तो वषं ऩहरे बी दे खी जा सकती थी। ऩय तफ भाहौर भं उभॊग, सयसता औय सभयसता फसती थी जो रोगं को अॊदय-फाहय से जोड़े​े यखती थी। ऩय अफ मे ससभिने-ससकुड़ेने रगी थी। चौऩार बी थी ऩय अफ वो भाि फुयाइमं का टठकाना फनकय यह गई थी जहाॉ टकसी बी सभस्मा का हर नहीॊ था, फस फात त्रफगड़ेने औय फढ़ेने का भाहौर ऩनऩ उठा था। मुवा वगष को कोई खास भतरफ नहीॊ था, वे तो शहय के यॊ ग-ढॊ ग भं फस गए थे। अफ उनकी दसु नमा िीवी., टपल्भ औय सॊगीत के इदष -सगदष घूभती थी। 'फदाषश्त' शब्द सनभूर ष होता जा यहा था। टपय फदाषश्त समं कयं ?

टकसी के फाऩ का खाते हं समा? इसी तयह की धायणा फनकय पैर यही थी। टकसी ने जया कुछ कहा नहीॊ टक हाथं भं डॊ डे टदखाई दे ने रगते। बरेभानस फुजुगष थे, वयना समा होता, ऩता नहीॊ? ऩय सन्नो के भाभरे भं दस ू यी ऩेचीदसगमाॉ थीॊ।

फदरते ऩरयवेश भं वतषभान की दहरीज ऩय दो रोग ही सफसे ज्मादा उटद्रनन औय ऩये शान थे, सन्नो औय श्माभरी। उनके बीतय सचन्ता ने ऩैय ऩसाय यखे थे ऩय रूऩ दोनं के सरए अरगअरग था। एक गाॉव के फदरते स्वरूऩ ऩय, दस ू यी ऩरयवाय के दासमत्व के प्रसत। यात का अॊधकाय इन सचन्ताओॊ को औय कारा स्माह कय दे ता है । जफ एक घय की छत ऩय दस ू यी खेत की

यखवारी कय यही होती। सचन्ताओॊ के सभीकयण अरग थे ऩय गुणा-जोड़े एक आता था। आक्खय स्त्री भन की सोच-सभझ एक त्रवशेष तयह का एहसास यखती है । श्माभरी ने आज बी खूफ टदभाग दौड़ेामा ऩय सपर नहीॊ हो सकती थी। आक्खय जो धीये -धीये सुरग यहा है , वो समा है ? मटद कुछ है तो ऩता कैसे चरे? असधकतय सभम शहय भं ही त्रफता दे ना, मटद गाॉव आना हुआ तो वो बी एक-दो टदन के सरए, उस ऩय घय भं ही सभम त्रफता दे ना। अफ घय भं यहकय समा ऩहाड़े तोड़े रेना। उफ्प! समा भुसीफत है ? इस चकयी भं ही उसका टदभाग भथ गमा। टपय सोचते-सभझते-उरझते नीॊद ने उसे अऩने आगोश भं धय सरमा। सच मे नीॊद न हो तो आदभी का जीना ही भुहार हो जाए औय आदभी का टदर-टदभाग सोचनेदौड़ेने औय बागने के जार से भुक्त ही नहीॊ हो ऩाता है । नीॊद ही उसे हल्का-पुल्का फनाती है । नीॊद औय सऩनं की दसु नमा ने श्माभरी को हय ददष से भुक्त कय टदमा। सुफह टपय


''श्माभरी, चरो उठो। सूयज ससय ऩय आ गमा।'' उसने भाॉ की आवाज सुनी औय अॊगड़ेाई रेते हुए

जाग गई। भाॉ ने दोफाया कहा ''आज इतनी दे य तक सो यही है , समा फात है ? तफीमत ठीक है न! औय हाॉ, भैने चाम फना दी है , ऩी रेना। भुझे जया काभ है , खेत ऩय जा यही हूॉ।'' ''भाॉ, भं बी चरूॉ।'' श्माभरी ने तऩाक से कहा। ''नहीॊ,'' इतना कहकय खेत ऩय चरी गई। भाॉ के जाने के फाद थोड़ेी दे य तक श्माभरी मॉ ही रेिी यही भानो आज उठने का इयादा न हो। टपय उसने उठकय घय के काभ सनफिाए जो ससपष रड़ेटकमं के सरए ही फने होते हं । दोऩहय हो चरी थी। श्माभरी छत ऩय कऩड़े​े डारने गई तो सचरसचराती धूऩ ने होश उड़ेा टदए। वह जल्दी से कऩड़े​े डारकय चरने रगी तो उसने ऩीछे गरी भं सन्नो औय उन्हीॊ चाय-ऩाॉच आदसभमं की आवाॊज सुनी तो झाॉक कय दे खा, सन्नो के दोनं हाथ कभय ऩय थे औय वह क्रोध से सचल्रासचल्राकय कह यही थी, ''अये ! हभको गाम-बंस सभझ यखा है समा? क्जधय हाॉकना चाहा हाॉक टदमा। हभ सुयसती नहीॊ, जो ऩता नहीॊ चरने टदमा टक कहाॉ गामफ हो गई। हभं हाथ रगाकय दे खो, चीय-पाड़ेकय यख दं गे।'' सन्नो ने अऩने हाथ को मं घुभामा भानं उसभं हॉ ससमा हो। श्माभरी मह सफ दे खकय चटकत थी समंटक सन्नो की इतनी फात बय से ही रठै तं के चेहये का यॊ ग उड़े गमा था औय वह हवा भं उड़ेती-सी धभकी दे कय चरे गए थे। श्माभरी ने भन ही भन सन्नो की टहम्भत की दाद दी। ऩय अफ एक सवार औय उसके टदभाग भं कंध उठा, मे सुयसती कौन थी औय कहाॉ चरी गई। उसके फाये भं तो गाॉव भं कबी क्जक्र नहीॊ सुना। अफ मह समा नमा भसरा है ? मही सोचते-सोचते वह छत से नीचे उतय आई। उसके बीतय टपय अन्तद्रष न्द यं गने रगा था। दोऩहय अऩने शफाफ ऩय थी। रू के थऩेड़े​े रग यहे थे, जो आदभी को नानी-दादी की माद टदरा दे । इसी रू के कायण श्माभरी की भाॉ घय आ गई थी। टपय वह नहाई औय खाना खाकय आयाभ कयने रगी। तफ भौका दे खकय श्माभरी ने ऩूछा ''भाॉ, मे सुयसती कौन थी?'' श्माभरी के ऩूछने बय की दे य थी, भाॉ की तीखी प्रसतटक्रमा उठी, ''श्माभरी, अऩने काभ से भतरफ यखो औय मह सोचो, आगे तुम्हं समा कयना है ।'' भाॉ की प्रसतटक्रमा सुनकय वह चुऩ हो गई। उसने टपय कबी मह सवार नहीॊ टकमा। फस चुप्ऩी को धायण कय सरमा। चुप्ऩी क्जसके दो ऩमाषम होते हं औय जो धीये -धीये अऩना काभ कयती है । मा तो वह हभं सनयाशा के दरदर भं पंक दे ती है मा सफ कुछ फदर दे ती है । मे कौन-सी थी। वक्त ही सात्रफत कय सकता था। खैय है तो चुप्ऩी न। टदन फीतते गए। गाॉव अऩने ढये ऩय चरता यहा। श्माभरी सफ चुऩचाऩ दे खती यही। नमा सीखने औय कयने की आस उसे सफसे फाॉधे यखती, वो अफ बी सफसे खूफ सभरती-जुरती, घूभती-टपयती


थी। इस चरते-टपयते क्रभ भं एक शाभ वो भाॉ से कहकय खेत ऩय घूभने चरी गई। अचानक उसके भन भं आमा टक सन्नो से सभर रूॉ औय वह उसके खेतं की ओय चरी गई। वह खेत ऩय ही थी। उसने उसे आवाज दी तो वह उसके ऩास चरी आई। ''सन्नो!'' क्झझक औय सशकन श्माभरी के भाथे ऩय थे। ''जी, दीदी!'' सन्नो ने उसी प्रेभबाव से कहा, जैसे वो कहती आई थी। ''सन्नो, तुझे भारूभ है , भं समं तुभसे सभरने आई हूॉ?'' उसके कॊधे ऩय हाथ यखकय श्माभरी ने कहा था।

''हाॉ, वही एक फात, समा हुआ, समं हुआ?'' सन्नो खीझकय फोरी।

''जफ तू जानती है तो फताती समं नहीॊ। आक्खय फात समा है ? तुझे मे रोग समं ऩये शान कयते हं ? मे सुयसती कौन थी?'' इतना कहकय श्माभरी ने उसके कॊधे झझकोय टदए औय टपय कहा, ''ऐसे तू कफ तक अकेरी इनसे जूझती यहे गी। कफ तक? तू भुझे कुछ फता तो सही जो भं तेयी सहामता कय सकूॉ। सच।'' श्माभरी ने कहा था। सन्नो की बाव-बॊसगभा फदर गई टक आक्खय श्माभरी का इयादा समा है । वो मह सफ समं जानना चाहती है जफटक उसकी भाॉ उसे आए टदन डाॊि त्रऩराती यहती है । समा हभददी भं रेकय कोई प्रऩॊच यचा जा यहा है जो उसे सभिाकय यख दे । जो बी हो, कोई न कोई फात तो जरूय है ऩय टपय बी...। वक्त एक कयवि औय रे चुका था। सबी वक्त के साथ फीतते-यीतते चरे गए। वक्त अच्छे -फुये अहसास से रफये ज टकए हुए था, ऩय गुॊजाइश टकसी बी फात के सरए नहीॊ छोड़े यहा था। जीवन कतया-कतया गुजय यहा था। सबी की सोच सबी को अऩनी-अऩनी टदशाओॊ भं फाॉधे खड़ेी थी। श्माभरी ने बी अऩनी सोच के भद्दे नजय रॉ कयने का सनद्ळम कय सरमा औय इससे सॊफॊसधत जानकायी रेने शहय चरी गई। शहय जो हभेशा फाॉहे पैरा यखता औय हय आने वारे को अऩने चॊगुर भं रेता है । टपय हभ ऩाने के भोह भं थे। वहाॊ से सनकर ही नहीॊ ऩाते, फस ऐसा कुछ श्माभरी का बी आरभ था। कई टदन बागा-दौड़ेी भं फीत गए, रॉ पाभष सनकर चुके थे औय उसी की सायी औऩचारयकताओॊ भं सभम का ऩता नहीॊ चरा। गाॉव आई तो भाॉ-त्रऩताजी सॊतुद्श थे टक श्माभरी ने अऩनी टदशा तम कय री। भाॉ इस फात से ज्मादा सॊतुद्श थी टक शहय चरी जाएगी तो पारतू फातं भं टदभाग नहीॊ दौड़ेाएगी। श्माभरी बी सॊतुद्श थी टक उसने उसचत टदशा तम कय री। साथ ही एक औय खुशी थी टक सयकाय की ओय से गाॉव भं स्कूर खोरा जाएगा क्जसके सरए जभीन सवेऺण का काभ चर यहा था। उसके त्रऩता आजकर सयकायी रोगं को जभीन सचक्न्हत कयाने भं सहमोग दे यहे थे। जभीन सचक्न्हत होते ही एक टदन चौऩार ऩय गाॉव वारं से कुछ त्रवचाय-त्रवभशष होगा, टपय स्कूर का काभ शुरू हो जाएगा। श्माभरी को खुशी थी औय इतनी ही, क्जतनी एक ऩढ़े​े -सरखे इॊ सान को हो सकती है औय जो सच भं चाहता है टक ऩढ़ेाई-सरखाई का व्माऩाय खूफ परे-पूरे। इसके साथ ही


प्रत्मेक रड़ेकी अऩनी ऩरयबाषा खुद गढ़े​े । स्कूर खुरने के साथ ही भटहराओॊ के सरए सवष सशऺा असबमान बी चरेगा। मासन औयतं को बी जागरूक कयने की क्जम्भेदायी होगी। जागरूक हो गई तो ऩसत रूऩी चंगे से बी वे फाहय सनकर सकंगी। नमा सीखंगी तो नमा कयं गी ही। नए सऩने, नमा आकाश औय नई अकाॊऺाएॉ क्जनका परक फेहद त्रवस्तृत होगा। सवेऺण का काभ तेजी से चरा औय उसके त्रऩता कापी टदन इसी भं व्मस्त यहे । जभीन सचक्न्हत हो चुकी थी। गाॉव के फाहय दक्ऺण की ओय जहाॉ से चाय गाॉव औय जुड़ेते थे। धीये -धीये वह टदन बी नजदीक सयक आमा जफ चौऩार ऩय सबा होनी थी। एक टदन ऩहरे ही गाॉव बय भं भुनादी कया दी गई थी जो दो पेय भं ऩूयी हो चुकी थी। दोऩहय के आस-ऩास चौऩार ऩय साभान्म व्मवस्था कया दी गई थी। रगबग सबी आ चुके थे। भॊगत प्रधान अऩने रठै तं के सॊग ऩहरे से ही त्रवयाजभान था औय अऩनी सगर्द्-सी नॊजय चायं ओय गड़ेाए था। त्रऩताजी औय सवेऺण वारं को दे खकय खड़ेा हो गमा औय याभ-याभ कहने रगा। एक धूतष नजय उसने श्माभरी ऩय बी डारी जफटक श्माभरी एक ओय औयतं के साथ फैठी थी। ऩहरे तो सयकायी आदभी, त्रऩताजी औय भॊगत प्रधान के फीच खुसय-पुसय हुई, टपय उसके फाद

सयकायी आदभी खड़ेा हो गमा। उसने अऩना चश्भा ऑॊखं ऩय चढ़ेामा औय फताना शुरू टकमा टक ''सयकाय ने गाॉव के फच्चं की बराई औय बत्रवष्म हे तु एक स्कूर खोरने का सनद्ळम टकमा है ।'' भाहौर शाॊत था औय सबी उनकी फात ध्मान से सुन यहे थे। उन्हंने गरा खॊखायकय आगे फात फढ़ेाई, ''हभं त्रवद्वास है टक आऩ रोगं का बयऩूय सहमोग सभरेगा औय मह प्रमास अन्म प्रमासं की तयह साथषक यहे गा। वैसे बी आऩ फखूफी जानते हं टक सयकाय ने हभेशा आऩके टहत हे तु

अनेक मोजनाएॉ चराई हं औय चराती यहे गी।'' सयकायी रहजे भं ही वे फात ऩूयी कय यहे थे जो सकूर से जुड़ेी थी ऩय...। अचानक प्ररम-सी सन्नो वहाॉ धभक ऩड़ेी औय सफको चीयकय आगे फढ़े आई। टपय क्रोध भं पुपकाते हुए फोरी, 'समं नहीॊ, समं नहीॊ, सयकायी साहफ! एक फाय सयकाय ने बराई की औय जभीन फाॉिी तो इस भॊगता को मे फात हजभ नहीॊ हुई औय इसने हभं खूफ

ऩये शान टकमा औय जफ फस ना चरा तो हभाये त्रऩता को भयवा डारा। जफ गाॉव वारं ने सभरकय त्रवयोध टकमा, तफ इसने... समा-समा फताएॉ। आज टपय आऩ इसी के सरए यास्ता खोर यहे हं । मे जो स्कूर आऩ खोरंगे न, इसे एक टदन गुॊडं का अडडा फनाएगा। टपय गाॉव वारं को डयाएगाधभकाएगा, फहू-फेटिमं को ऩये शान कये गा। एक टदन गाॉव तफाह कय दे गा। दे ख रीक्जए, भं सच्ची कह यही हूॉ।'

सफ उसकी फात सुनकय सन्न यह गए औय एक-दस ू ये का भुॉह ताकने रगे। भॊगत औय उसके

रठै तं के चहे ये का यॊ ग उड़े चुका था। ऩय जफ तक कोई कुछ कह- सुन ऩाता, तफ तक वह वहाॉ से नदायद हो गई थी। आद्ळमषसभसश्रत सन्नािा ऩसय कय पैर चुका था। अगय कुछ सुनाई दे यहा था तो फस हुसके की गुड़ेगुड़ेाहि थी। श्माभरी की ऑॊखं चभक उठी थीॊ। श्माभरी ने एक सनगाह

डू फते सूयज औय एक सनगाह भॊगत औय उसके रठै तं को दे खा। अफ प्रद्ल अऩने कई रूऩ फदरकय


त्रऩघर गए थे। मे थोड़ेा-सा सभम जो उसके भन सटहत सफ गाॉव वारं के भन भं कौतूहर ऩैदा कय गमा था, सचटड़ेमा की बाॉसत पुयष से उड़े गमा। श्माभरी की रॉ सरास शुरू हो गई औय वह शहय चरी गई। अऩनी ऩढ़ेाई भं खूफ भेहनत व रगन से रग गई। भानो कोई साध साध यही हो। सरास भं प्रोपेसय से खूफ ऩंचीदा औय तकष की कसौिी ऩय कसे जाने वारे सवार ऩूछती। उसके प्रोपेसय बी अससय उसके सवार ऩूछने के तयीके से हतप्रब यह जाते औय भुस्कया कय कहते, ''श्माभरी, समं, कोई भडष य सभस्ट्री सुरझा यही हो?'' वह अजीफ-सी गहयाई सरए भुस्कया जाती। इधय श्माभरी का सनयॊ तय गाॉव आना-जाना फढ़ेता गमा। सबी का रुख फदरने रगा था। समा इॊ सान, समा ऩॊछी। एक धाया गाॉव भं फहने रगी थी क्जसभं सबी फह यहे थे। वे इस धाया भं बीगकय, फहकय दे खना चाहते थे, आक्खय होता समा है । इस उत्सुकता औय फेचन ै ी भं सफ फातं का सनवायण था औय क्जस तयह श्माभरी की फेचन ै ी दयू हो

गई थी, जफ वह उस टदन सन्नो से खेत ऩय सभरी थी औय सन्नो ने उसे इन झगड़ें का कायण फतामा जो उसे िीस दे ते थे। वह इन्हं उजागय बी नहीॊ कयना चाहती थी समंटक मे ददष की ऐसी सतह थी जो उसने दफा दी थी। फस अऩने सरए एक सुयाख छोड़े यखा था जो उसे रड़ेने-जूझने का साहस दे ता। उसने जो बी फतामा, वो जीवन को झझकोय दे ने को कापी था ऩय उसकी टहम्भत का जवाफ न था। दयअसर भॊगत प्रधान की सनगाह तो उनकी जभीन ऩय रगी थी। इससरए भॊगत अऩने रठै तं से आए टदन उन्हं ऩये शान कयवाता यहता। हय टदन एक नई ऩये शानी खड़ेी हो जाती। ऩय उसके त्रऩता हभेशा इस सफकी उऩेऺा कय खेतं भं रगे यहते, मही फच्चं को ससखाते। उनकी भेहनत यॊ ग राती, पसर खूफ रहयाकय आती। इसी तयह भॊगत कीय ् ईष्मा का बी कहीॊ ठौय न था। वह बी पसर-सी फाय-फाय रहया उठती। उसकी हदं टदन-यात फढ़ेती गईं। गाॉव वारे मे सोचकय ऑॊख भूॉद रेते टक दस ू ये की आग भं कौन हाथ जराए। टपय बी एक-दो कोसशश की गई ऩय सफ फेकाय था। इधय भॊगत का कोई दाॉव काभ नहीॊ कय यहा था ऩय वो

हभेशा ताक भं यहता। उसे जल्दी भौका सभर गमा। एक योज उसके त्रऩता खेत भं ऩानी रगा यहे थे टक प्रधान के रठै तं ने भेड़े कािकय ऩानी अऩने खेतं की ओय कय सरमा। फस फात तू-तू भंभं से शुरू होकय त्रफगड़ेते-त्रफगड़ेते झगड़े​े भं तब्दीर हो गई। टपय इस झगड़े​े का हश्र मे हुआ टक

उसके त्रऩता के ससय ऩय अचानक टकसी ने राठी से प्रहाय कय टदमा। अफ समा होना था, वे इस प्रहाय को झेर ही नहीॊ ऩाए औय वहीॊ ढे य हो गए। उसका ऩरयवाय औय गाॉव वारे दे खते यह गए। श्माभरी ने ऩहरी फाय सन्नो की ऑॊखं ऑॊसुओॊ से छरछराती दे खी। खैय इतने ऩय ही फात सनऩि जाती तो ठीक था ऩय आगे तो औय रृदम को भसोस दे ने वारी फात थी। जफ इस घिना के फाद गाॉव वारे राभफॊद हो गए तो प्रधान ने एक ऩंतया औय चर टदमा। समंटक गाॉव वारे उसके त्रवयोध भं थे, वह कैसे अऩना खौप कामभ कये , इसके सरए उसने सन्नो की फहन सयस्वती को अगवा कयवा टदमा। गाॉव वारं ने फहुत ढू ॉ ढा ऩय नहीॊ ऩता चरा टक आकाश खा


गमा मा ऩातार भं सभा गई। गाॉव वारे डय गए थे। ''औय ऩुसरस?'' मे वासम श्माभरी के भुॉह से हड़ेफड़ेाकय औय फेचन ै ी से सनकरा था। फुझे स्वय भं सन्नो ने कहा, ''वो ऩैसे औय ताकत वारं का कुछ त्रफगाड़े सकती है ?'' सच ही तो है , कानून क्जतना ऩुख्ता होने के सरए रचीरा होता जाता है , वो आभ रोगं की सगयफ्त से उतना ही दयू होता जाता है । उसे दफॊग औय ऩैसे वारे अऩनी उॉ गरी ऩय जफ-तफ नचा

दे ते हं । मूॉ तो कानून बी इन्हं अऩनी उॉ गरी ऩय नचाता है ऩय मे ाॊजया कभ होता है । सन्नो जैसे टहम्भती रोग तो उसके भोहताज ही नहीॊ होते हं । वे तो सभस्माओॊ के साभने डिे यहते हं । अफ तो श्माभरी को बी सभझ भं आने रगा था टक जो हभ ऩढ़ें , वही ऻान नहीॊ होता है । ऻान तो तबी ऩूया होता है जफ हभ साभाक्जक व्मवहारयकता को बी सभझं, जो मथाषथष का ऩूयक है । सुगफुगाहि की धुध ॊ उसके भक्स्तष्क से शनै:-शनै: छॉ ि गई थी। वह खुश बी थी तो इन ऩरयक्स्थसतमं से सचॊसतत बी थी औय सन्नो की फहादयु ी की कामर हो गई थी। वयना सीधे भॊगतयाभ से कौन िकयाता।

सयकायी काभ तेजी से चरा औय स्कूर जल्दी फनकय तैमाय हो गमा। फच्चं की उभॊग दे खते ही फनती थी। स्कूर खुरने का भहत्व बी गाॉव वारं की सभझ भं आने रगा था। औयतं बी सभझने रगी थीॊ टक बरे वे ऩढ़ेी-सरखी नहीॊ ऩय अऩने फच्चं के बत्रवष्म औय सभाज के त्रवषम भं कुछ तो सोच सकंगी। औयतं भं फेहतय जीवन जीने के प्रमास की सभझ त्रवकससत हो यही थी।

चरते-रुकते सही ऩय औयतं का नॊजरयमा सन्नो के प्रसत बी फदरने रगा था। मह सवष सशऺा की दे न थी। हय ऩर जीवन एक नई कयवि रे यहा था क्जसभं अच्छी फात मह थी टक श्माभरी की तकषऩूणष फातं औयतं की सभझ भं आ यही थी। अफ वे ना फेवजह फहस कयतीॊ, ना हॉ सती थीॊ। चुऩचाऩ औय धीये -धीये सफ सुन-सहे ज यही थीॊ। मकीनन मे चुप्ऩी टकसी आने वारे तूपान का सूचक थी, इससरए अऩना आकाय त्रवस्तृत कयती जा यही थी। उधय क्जस टदन से चौऩार ऩय सन्नो ने भॊगतयाभ ऩय खुरे वाय टकए, तबी से भॊगत सतरसभरा गमा औय जरा-बुना यहने रगा औय त्रफल्री-सा दफे ऩाॉव टकसी ना टकसी ताक भं यहता। ऩय गाॉव वारं का चौकन्नाऩन उसे डयाए यखता। ऩय टपय बी वो ठहया घाघ आदभी, अऩनी कयनी कय ही फैठा। एक टदन अचानक जाने कैसे सन्नो के खेत भं आग रग गई औय ऩर बय भं सायी पसर जरकय याख हो गई। अफ इसे सनमसत कहं मा यचा हुआ खेर टक भॊगत के खेत भं सचॊगायी बी नहीॊ ऩहुॉची थी। मे सफ कैसे हुआ? कोई दे ख ऩाता तो जान ऩाता।एक फाय टपय ना कोई दे ख

ऩामा, ना जान ऩामा। आग रगी कैसे? समा आकाश से सन्नो के खेत ऩय ही आग के गोरे फयस ऩड़े​े औयसफ स्वाहा हो गमा। ऩुसरस बी आई थी। उसका काभ ही आना है , तफ्तीश कयना औय चरे जाना है जो ससपष काॊगॊजं ऩय होती है ।


चौऩार वारी फात से गाॉव वारे बी ाॊजया सन्नो से नायाॊज थे, इससरए इस घिना के फाद कोई बी आदभी उसके साथ खडा नहीॊ हुआ। ऩय मे जरूय हुआ टक औयतं भं सन्नो के प्रसत हभददी

औय भॊगत औय उसके रठै तं के सरए आक्रोश झरका था। इधय सन्नो ने भॊगत से उरझना छोड़े टदमा। उधय भॊगत भान फैठा, आक्खय ऊॉि ऩहाड़े के नीचे आ ही गमा। भॊगत ससपष मही सोच सकता था। उसके जैसे रोग तो सभाज औय दसु नमा के सरए कोढ़े होते हं ।

ऋतुएॉ फदर गईं औय फदरते-फदरते कासतषक आ गमा। नवयाि औय याभरीरा की धूभ भची थी। चायं ओय हषोल्रास का वातावयण था। गाॉव भं हय जगह उल्रास औय उभॊग थी। सफने सभरकय याभरीरा औय नवयाि की अच्छी-खासी व्मवस्था कय री थी। इन टदनं तो वैसे बी दयु ाव-सछऩाव नहीॊ होता है । मे उत्सव एकजुिता औय प्रेभ बावना के प्रतीक थे। भॊगत हभेशा अऩनी है ससमत

फयाफय ही शान टदखाता। उसने इस फाय याभरीरा भं डाॊस ऩािी फुराई जो खूफ धूभ भचाने वारी थी। सफ आईने की तयह टदख यहा था। ऩय समं ऐसा था। कहीॊ न कहीॊ कुछ कीरं औय पाॉसं गड़ेी गई थीॊ, जो सनकर नहीॊ ऩा यही थीॊ क्जनभं यह-यहकय िीस, ददष औय छिऩिाहि होती थी क्जनका इराज कयना बी फेहद जरूयी था वयना वे नासूय फन जातीॊ। याभरीरा खूफ जोय-शोय से चरी औय चायं तयप वाह-वाही हुई। शहय से आई डाॊस ऩािी ने औय टदनं की अऩेऺा अक्न्तभ टदन यौनक त्रफखेय दी। उसके अगरे टदन तो दशहया मासन फुयाई ऩय अच्छाई की जीत का सभायोह था। उस यात डाॊस ऩािी ने डाॊस औय गानं का सभा फाॉध यखा था। आदभी औय फच्चे खूफ भस्त हो यहे थे। भॊगत औय उसके रठै तं ऩय तो शयाफ औय भस्ती का सुरूय चढ़ेा हुआ था। वे झूभ-

झूभकय कय नाच-गा यहे थे। औयतं की जरती हुई नॊजय भॊगत व उसके रठै तं ऩय थी। उनकी ऑ ॊखं भं कुछ चुब जरूय यहा था। इसी भस्ती बये भाहौर भं अचानक भॊगत को रघुशॊका रगी तो वह उठकय चरा। ऩीछे से रठै त बी चर टदए ऩय उसने इशाये से अऩना रुतफा औय बीड़े टदखाकय (काहे का डय) उन्हं योक टदमा। वे बी भस्ती भं थे तो फस रुक गए। यात औय भस्ती शफाफ ऩय थी। अफ भाहौर भं भस्ती की हवा तैय यही थी। इधय भॊगत कापी दे य तक नहीॊ रौिा तो रठै तं को सचॊता हुई। वे दे खने सनकरे, ऩय उनके होश पाख्ता हो गए समंटक भॊगत की धड़े से किी राश वहाॉ ऩड़ेी थी। उनकी ऑॊखं पिी की पिी यह गईं औय वे घफया कय सचल्रा उठे । वैसे अफ उनका समा होना था। क्जस शेय का खौप था औय क्जसकी भाॉद भं यहते

थे, वही नहीॊ यहा था। रोग वहाॉ इकट्ठे हो गए थे औय रठै तं का साया नशा छू-भॊतय हो गमा था। हल्के सदष भौसभ भं बी वह ऩसीने से तयफतय हो गए। दो-चाय रोगं ने इधय-उधय दे खा तो खून से सना गॉडासा बी वहीॊ ऩड़ेा सभर गमा था। इत्तेपाक मा साक्जश, वह भॊगत का ही था जो कुछ टदन ऩहरे गुभ हो गमा था। भॊगतयाभ की चीख बी उसके द्राया फनाए शोयगुर भं ही दफ गई। ऩुसरस आई औय इस फाय अन्म घिनाओॊ की अऩेऺा खूफ कड़ेाई से ऩूछताछ की। ऩय कुछ


बी ऩता नहीॊ चरा। कोसशश जायी है ...। अफ श्माभरी का इस घिना के फाद गाॉव आना-जाना कभ हो गमा है । औयतं ने ऩूछताछ भं फतामा, जफ भॊगत की हत्मा हुई सन्नो तो याभ की रीरा दे ख यही थी। टपय...।  अनीता ऩॊडा

डॉ. अनीता ऩॊडा द्राया श्री फी.के. ऩॊडा सनदे शक, अफषन अपेमसष यामताॊग त्रफक्ल्डॊ ग सशराॊग-793001 (भेघारम)

कोख

कैसी भाॉ है ? अऩने चारीस टदन के फच्चे को फेचने चरी थी। सछ:, सछ:।' क्जतने भुॉह, उतनी फातं। टकसी ने कहा 'अये ! मह तो अच्छा हुआ टक वक्त ऩय ऩुसरस ऩहुॉच गई वयना गजफ ही हो जाता।' सुनते-सुनते एक औयत ने कहा, 'घोय करमुग आ गमा है , तबी तो भाॉ अऩने फच्चे को फेच यही थी। दसु नमा भं चायं ओय ऩाऩ हो यहा है ।' 'जरूय चोयी का फच्चा होई। आजकर

अस्ऩतार से फच्चा गामफ हो जाता हं । नससषमा सफ सभरी यहत हं । द-ू चाय डॊ डा ऩड़ेी तो सफ

उगर दे ई,' टकसी ने कहा। ऑॊचर से भुॉह सछऩाए वह पपक-पपक कय यो यही थी। सफ जानना चाहते थे टक वह कौन-सी भजफूयी थी, क्जसके कायण एक भाॉ अऩने दध ु भुॉहे फच्चे को फेचने को तैमाय हो गई।

भटहरा, फच्चे के साथ उसके गाॉव का वह व्मत्रक्त जो त्रफचौसरए का काभ कय यहा था औय फच्चा खयीदने वारे दम्ऩत्रत्त बी ऩकड़े​े गए। ऩुसरस इॊ स्ऩेसिय ने भटहरा से ऩूछताछ शुरू की। ''तुम्हाया नाभ?'' ''बगवन्ती दे वी'' ''गाॉव?''


''त्रफहिा गाॉव'' ''तुभ इतनी दयू त्रफहिा से ऩिना तहसीर समं आई?'' योते हुए भटहरा ने कहा, ''ऩसका कागॊज फनवाने।''

''तो तुभ सचभुच अऩने फच्चे को फेचने आई थी।'' ऩुसरस इॊ स्ऩेसिय ने उसे डाॉिते हुए कहा।

भटहरा डय के भाये ठीक से नहीॊ फोर ऩा यही थी। हकराते हुए उसने कहा, ''नहीॊ साहफ, मह फात नहीॊ है । कौन भाॉ अऩने ाॊक्जगय के िु कड़े​े को फेचेगी? वह तो हभं इन रोगं ऩय दमा आ गई समंटक इनकी कोई औराद नहीॊ है ।'' ऩुसरस इॊ स्ऩेसिय, ''तुभको इन रोगं के फाये भं कैसे ऩता चरा?'' भटहरा, ''साहफ, हभको याभसयन ने इनके फाये भं फतामा।'' उसने याभसयन की ओय इशाया टकमा। मह सुनते ही याभसयन के हाथ-ऩाॉव ठॊ डे ऩड़े गए। उसने हाथ जोड़ेकय सगड़ेसगड़ेाते हुए कहा,

''सयकाय, हभ इस औयत को नहीॊ जानते। इ आज ही हभसे सभरी औय कहने रगी टक उसके फच्चे को एक फेऔराद ऩरयवाय वारे गोद रेना चाहते हं । इसके सरए ऩसका कागॊज फनवाने भं मे हभायी भदद भाॉग यही थी। हभं का भारूभ टक मह गैयकानूनी काभ कय यही है औय इसके चरते हभ ऩकड़े​े जाएॉगे।'' मह सुनकय भटहरा से नहीॊ यहा गमा। वह फोरी, ''साहफ, इ झूठ फोरता है । आऩ ऩता रगवा रं। हभये गाॉव भं यहता है । इ दरार है , दरार, सयकाय! हभ सच कह यहे हं , बगवान की कसभ।'' कहते-कहते भटहरा यो ऩड़ेी। ''चुऩ कय योना फन्द कय। जो-जो ऩूछा जाए उसका सही-सही जवाफ दे वयना ऩुसरससमा डॊ डे ऩड़ेने ऩय सफ कुछ उगर दे गी।'' ऩुसरस इन्स्ऩेसिय की डाॉि सुनकय सफ डय गए। थाने के फाहय अच्छी-खासी बीड़े जभा हो गई। रोगं को तो तभाशे से भतरफ था। ससऩाटहमं ने सफको डाॉिकय वहाॉ से बगामा। ऩूछताछ जायी थी। योते-योते उस भटहरा ने जो सच फतामा, वह चंकाने वारा था। त्रफहिा गाॉव की यहने वारी बगवन्ती का सुखी ऩरयवाय था। उसके तीन फेिे थे औय थोड़ेी-फहुत खेती-फाड़ेी थी। साग-सब्जी फेचकय ऩूये ऩरयवाय का खचष टकसी तयह चर जाता था। जफ तक ऩसत ाॊक्जन्दा था, उसने बगवन्ती को कबी घय से फाहय काभ कयने नहीॊ टदमा। घय-गृहस्थी भं कैसे ऩूया टदन फीत जाता, उसे ऩता ही नहीॊ चरता। चौथे फच्चे के फाद वह अससय फीभाय यहने रगी। उसका ऩसत बगवन्ती की फीभायी को रेकय फहुत सचॊसतत यहता, ऩय

समा कयता? उसके राख सभझाने के फावजूद बगवन्ती खचष के डय से शहय इराज के सरए नहीॊ जाती। गाॉव भं वैद्यजी की दवा रे रेती। एक टदन बगवन्ती का ऩसत भॊडी भं सब्जी फेचकय घय वात्रऩस आ यहा था। फहुत यात हो गई

थी। घय ऩहुॉचने की जल्दी भं वह तेजी से साइटकर चरा यहा था। जफ वह गाॉव के फाहय वारे

ये रवे क्राससॊग ऩय ऩहुॉचा तो दे खा टक गेि फन्द है । उसने इधय-उधय दे खा। चौकीदाय कुछ दयू खड़ेा था। उससे नॊजये फचाकय उसने ऩियी ऩाय कयने की सोची। वह साइटकर रेकय ऩियी ऩाय कय ही


यहा था टक साभने से तंजी से गाड़ेी आती टदखाई दी। यास्ता जल्दी-जल्दी ऩाय कयने के चसकय भं वह रड़ेखड़ेामा औय साइटकर सभेत ऩियी ऩय सगय ऩड़ेा। ''फचाओ, फचाओ!'' की आवाॊज गाड़ेी की आवाॊज भं दफ कय यह गई। गाड़ेी का चारक जफ तक गाड़ेी योकता, तफ तक इॊ जन के ऩटहए से उसके प्राण-ऩखेरू उड़े चुके थे। बगवन्ती ऩय भानो गाज ही सगय गई। उसकी सभझ भं नहीॊ आ यहा था टक वह समा कये ? गाॉव वारे इकट्ठा हो गए। अतएव घयवारं ने कभषकाॊड के सरए जो-जो कहा, वह चुऩचाऩ कयती गई। भन ही भन वह अऩने जेठ जी को धन्मवाद दे यही थी टक ऐसे फुये वक्त भं वे साथ दे यहे हं । मद्यत्रऩ दोनं बाई अरग-अरग यहते थे ऩय भुसीफत भं ऩूया ऩरयवाय साथ हो, मही ऩरयवाय होता है । ऩसत की अकार भृत्मु हुई थी अत: ऩॊटडतजी ने उनकी आत्भा की शाक्न्त के सरए गमा

जाकय त्रवशेष ऩूजा कयने की सराह दी। याभसयन ने, जो टक बगवन्ती के ऩसत का दोस्त था, बगवन्ती को सायी फातं फताई। सुनकय बगवन्ती ने योते हुए कहा, ''हभ का कहं , बैमा? जाने

वारा तो त्रफना कुछ कहे -सुने फीच भझधाय भं छोड़ेकय चरा गमा। हभ तो कछू नाहीॊ कय सके। जौन कयके उनकी आतभा को साक्न्त सभरे, सो कय सकत हं । तसनक जेठ जी से ऩूछ रो। तुभ रोगन को जऊन ठीक रगे, ऊ कयो।'' कहते हुए उसकी टहचटकमाॉ फॊध गईं। वह आगे कुछ बी नहीॊ फोर ऩाई।

फाहय आकय याभसयन औय बगवन्ती के जेठ आऩस भं फहुत दे य तक फातचीत कयते यहे । उसके फाद याभसयन अन्दय आमा औय फोरा, ''बौजी, हभ रोगन टहसाफ रगावा है । कुर दस हजाय

रागी। गाॉव वारन के क्खरावे के ऩड़ेी।'' दस हॊ जाय रुऩमे के खचष की फात सुनते ही बगवन्ती के ऩैयं तरे ाॊजभीन सयक गई। वह फोरी, ''इतना रुत्रऩमा कहाॉ से आई?'' ''फड़ेके बैमा हं न, सफ सॊबार सरहन। सचन्ता कये क कौनं फात नाहीॊ।'' याभसयन की फात से उसके भन भं अऩने जेठ जी के प्रसत औय बी आदय फढ़े गमा। उसचत भौका दे ख कय याभसयन फोरा, ''बौजी, एक फात कही, फुया तो न भनटहए। आऩ अऩनी जभीसनमा फड़ेका बैमा के ऩास ये हन यख दं । खयचा बी सनकर जामी औय कभ से कभ दो जून आऩ रोगन क ऩेि बय बात तो सभर जाइ। छोिा-छोिा रटड़ेका रेकय आऩ से खेती-फायी कइसे होई। जफ ाॊजरूयत होई, त जभीन

छुड़ेा सरमा। घय क फात घय भ यह जाई।'' राचाय बगवन्ती को याभसयन का सुझाव अच्छा रगा। उसने याभसयन के राए कागॊज ऩय ऍॊगूठा रगा टदमा। सफ काभ ठीक-ठाक हो गमा। धीये -धीये ऩसत को भये एक भहीना फीत गमा। घय भं जो कुछ याशन-ऩानी था, सफ खत्भ हो गमा। रोगं की सुहानुबूसत सराह भं तब्दीर हो गई ऩयन्तु बगवन्ती चारीस टदन का फच्चा रेकय समा काभ कये ? उसकी सभझ भं नहीॊ आ यहा था। ऩसत के ाॊक्जन्दा यहते कबी घय से फाहय कदभ नहीॊ यखा था। बूख से त्रफरत्रफराते फच्चं को दे खकय उसकी अन्तयात्भा कचोि यही थी। सुफह तो उसने कर के यखे भाड़े भं ऩानी सभरा कय फच्चं को त्रऩरा टदमा था, शाभ के सरए समा कये गी? उसे ऩता नहीॊ था। गोद का फच्चा बी बूख से यो-


योकय फेहार हो यहा था। उसने दो टदन से कुछ बी नहीॊ खामा था तो छाती भं दध ू कहाॉ से

उतयता। फहुत दे य तक घुिने ऩय ससय यखे सुफकती यही। कुछ सोच कय वह जेठ जी के घय जा

ऩहुॉची। उसे दे खते ही क्जठानी ने ऩूछा, ''कइसन हो, बगवन्ती?'' मह सुनते ही बगवन्ती यो ऩड़ेी, वह फोरी, ''दीदी, घय भं अन्न का एको दाना नाही, फच्चन बूख से त्रफरत्रफराम यहे । का कयी?

कछु दै दो, फडी ट़यऩा होई।'' सुनकय क्जठानी की ऑॊखं तयर हो गईं। उसने फच्चं के सरए खाने का साभान औय थोड़ेा अनाॊज बगवन्ती को टदमा। 'बगवान आऩ रोगन ऩय टकयऩा फनाए यखे' कहते हुए वह साभान उठाए चरने वारी थी टक

साभने से जेठ आते टदखाई टदए। उनको दे खकय झि से ससय ऩय ऩल्रा डार सरमा औय एक टकनाये खड़ेी हो गई। बगवन्ती को दे खकय उन्हंने ऩूछा, 'का फात है , फहू, सफ ठीक तो है ?' उत्तय भं क्जठानी ने कहा, 'त्रफचायी के घय भ कछु खाने को नाही, मही खासतय आई है ।'

जेठजी ने कहा, 'सुन फहू, कफ तक बीख भाॉगोगी? ऐसे घय फैठे-फैठे कौन यंज-यंज खाने को

दे गा? भेहनत-भजूयी कयो।' मह सुनकय बगवन्ती की ऑॊखं भं ऑॊसू आ गए। वह योते हुए फोरी, 'फड़ेका बैमा, चारीस टदन का फच्चा रेकय कहाॉ काभ ढू ॊ ढफ? कउन काभ कयफ? उस ऩय हभयी

जसभसनमा तो आऩ ही के ऩास है । कभ से कभ दो जून तो योिी दे सकत हो। इतना जुरुभ न कयो, बइमा। फचवन का ख्मार कयो।' 'चुऩ कय...' जेठ जी की जोयदाय आवाॊज से ऩूया ऑॊगन गूॉज उठा। वे गयजते हुए फोरे, 'दो गॊज

ाॊजभीन ऩय इतना गरूय। आकय टहसाफ दे ख रे। ऩॊचन को बी टदखरा दे । टकरयमा-कयभ भं दस

हॊ जाय से ज्मादा खयच हो गए। अगय तू फेचती, तो कोई दस हॊ जाय नहीॊ दे ता। एक तो बरा कयो, उस ऩय से चाय फात बी सुनो। वैसे बी तूने ऍॊगूठा रगाकय अऩनी सायी ाॊजभीन हभाये नाभ कय टदमा। अफ ाॊजभीन का धंस हभ को नहीॊ दे ना। मह दे ख काॊगॊज। जा महाॉ से, अऩना भुॉह न टदखाना।' बगवन्ती से कुछ बी कहते नहीॊ फना। वह चुऩचाऩ सुन यही थी। उसे इतनी जोय से रुराई आई टक वह कऩड़े​े से भुॉह दफाए घय की ओय चर ऩड़ेी। भाॉ को दे खते ही फच्चे दौड़ेकय

बगवन्ती के ऩास आए औय कहा, 'अम्भा, कछु खाने को दे न, फड़ेी जोयन की बूख रागी है ।' फच्चं का भुॉह दे खते ही वह अऩना अऩभान औय दख ु बूर गई। जो कुछ रे आई थी, उसे

क्खरामा औय खुद बी खामा। वह एक कोने भं फैठ गई, सोचने रगी टक काश! ऩेि ही न होता मा ऩसत की जगह वह भय जाती तो टकतना अच्छा होता। कभ से कभ फच्चे बूखे तो नहीॊ होते। उसके चायं ओय ऍॊधेया ही ऍॊधेया छामा हुआ था।

ऑ ॊखं ही ऑॊखं भं ऩूयी यात कि गई। सफेया हो गमा। घय फुहाय कय ऍॊगीठी जराई। क्जठानी से जो चावर भाॉग कय राई थी, ऩकाने के सरए ऩतीरे के खौरते ऩानी भं डार टदए। फच्चे सफ कुछ बूर कय खेरने भं व्मस्त थे। चावर के पदकने के साथ-साथ बगवन्ती के भन भं कई प्रद्ल आ-जा यहे थे। वह अऩना ऩहाड़े-सा जीवन कैसे कािे गी? उसके फच्चं का समा होगा। ऩसत की भृत्मु के फाद जफ अऩनं ने उसे धोखा टदमा, तो ऩयामं से समा उम्भीद यखना। अफ तो टकस


ऩय बयोसा कये , टकस ऩय नहीॊ, कुछ सभझ भं नहीॊ आ यहा था। 'बौजी, बौजी' याभसयन की आवाॊज सुनकय उसका ध्मान िू िा। उसे दे खते ही वह गुस्से भं बय गई औय फोरी, ''का हो बइमा, आऩ तो उनके खास दोस्त थे न? हभये साथ धोखा काहे टकए। अफ हभ का कयफ?'' ''शान्त हो जा, बौजी, हभउ का नहीॊ भारूभ यहर टक फड़ेके बैमा अइसन करयहन।'' याभसयन ने सभझाते हुए कहा टक जो हो गमा, सो हो गमा। अफ तो आऩको फच्चं के बत्रवष्म के फाये भं सोचना चाटहए।

याभसयन की सुहानुबूसतऩूणष फातं से बगवन्ती के भन भं आशा की एक टकयण टदखाई दी। उसने कहा, ''अफ आऩ ही फताव, हभ का कयी?'' याभसयन ने कहा, ''बौजी, हभयी फात सुनके आऩ गुस्सा तो न करयहं ?'' बगवन्ती के हाभी बयने ऩय याभसयन ने बगवन्ती से डयते-डयते कहा टक एक फेऔराद जोड़ेा है , जो फच्चा गोद रेना चाहते हं । उन्हं टकसी अच्छे ऩरयवाय का फच्चा चाटहए। उनको गोद का फच्चा चाटहए। वे उसको अऩने तयीके से ऩारंगे। वे फहुत ऩैसा दे ने को तैमाय हं । मह सुन कय

बगवन्ती यो ऩड़ेी औय योते हुए कहा, ''इ सफ हभसे काहे कह यहे हो बइमा, हभ आऩन फच्चा ना फेसचहं ।'' उसने अऩने फच्चे को जोय से छाती भं बीॊच सरमा औय उसकी ऑॊखं भं ऑॊसू आ गए। कुटिर याभसयन जानता था टक बगवन्ती इतनी जल्दी भानने वारी नहीॊ है । उसने सभझाते हुए कहा टक फेऔराद ऩरयवाय वारं को फच्चा दे कय वह ऩुण्म का काभ कये गी। दस ू या, सभरे ऩैसं से

वह अऩने तीनं फच्चं का बत्रवष्म सॊवाय सकती है । ऩय बगवन्ती याजी नहीॊ हुई। उसने योते हुए कहा, ''बइमा, हभ इ फात नाही भसनहं । अये , कऊन भाॉ आऩन चारीस टदन क फच्चा दस ू या क दै टहए। इ ठीक नाही।'' याभसयन ने सभझामा टक बगवन्ती सोचने के सरए कुछ सभम रे रे।

अबी सच्चाई नहीॊ सभझ ऩा यही है । दफ ु ाया कुछ टदन फाद आने के सरए कह कय वह चरा गमा। टकसी तयह दो टदन फीत गए। घय भं जो कुछ अनाज था, सफ खतभ हो गमा। बगवन्ती कई घय गई ऩय टकसी ने भदद नहीॊ की, न ही उसे कोई काभ ऩय यखने को तैमाय था। टकसी ने कहा, ''इतना छोिा फच्चा रेकय समा काभ कय ऩाएगी?'' उस ऩय यभेसय फसनमा से उसे उधाय बी नहीॊ सभरा समंटक न तो घय भं कोई कभाने वारा है , न ही उसके ऩास ाॊजभीन है , क्जसे फेच कय वह उसका उधाय चुका सकेगी। तीन टदन से उसने कुछ नहीॊ खामा था, इधय गोदी का फच्चा बूख से त्रऩछरी सायी यात योता यहा। उसे चुऩ कयाने के सरए वह अऩनी छाती से रगा दे ती ऩय तीन टदन से बूखी भाॉ की छाती भं दध ू कहाॉ से उतयता? तीनं फच्चं को कफ तक झूठा टदरासा दे ती? टदरासा से टकसी का ऩेि नहीॊ बयता।

वह झोरा रिकाए यभेसय फसनमा की दक ु ान ऩय ऩहुॉची। दक ु ान ऩय कापी ग्राहक थे। उसे दे खते

ही यभेसय फसनमा की बंहं िे ढ़ेी हो गईं। उसने सचल्राते हुए कहा, ''अये ! तू टपय से आ गई बीख

भाॉगने। ऩहरे ऩुयाना कयजा उताय, टपय उधाय सभरेगा। चर जा महाॉ से, एक ही फात को टकतनी


फाय सभझाऊॉ। फड़ेी डीठ है ।'' दक ु ान ऩय खड़ेी सुशीरा चाची ने ऩच से ऩान की ऩीक थूकते हुए

कहा, ''ए बइमा, कइसन जभाना आ गमा, खसभ को खा गई औय उसके ऑॊख भूॉदते फेऩयदा हो इ गरी-गरी बीख भाॉगत है । याभ-याभ, टकसनजी अइसन टदन टकसी को न टदखाएॉ।'' राचाय बगवन्ती ससय झुकाए सफ कुछ चुऩचाऩ सुन यही थी। बूख से त्रफरत्रफराते फच्चं के योने ने उसके ऩैयं को भानो जॊजीयं से फाॉध टदमा था। दक ु ान ऩय खड़े​े -खड़े​े चाय घॊिे हो गए। दक ु ान ऩय

सन्नािा-सा छा गमा। यभेसय ने बगवन्ती को फुरामा औय कहा, ''दे ख बगवन्ती, तेये घय भं कोई कभाने वारा तो है नहीॊ, इ फता कयजा कैसे चुकाएगी? हभ तो फसनमा हं नपा-नुकसान दे खकय ही व्माऩाय कयते हं ।'' बगवन्ती को ऍॊधेये भं आशा की टकयण टदखाई दी, वह फोरी, ''बइमा, हभ आऩ क फासन भाॉज दै फ। घय का सफ काभ कय दै फ, फस हभं फच्चन क खासतय दो जून भोिा-झोिा, फचा-खुचा खाना दे टदटहन।'' खीॊसे सनऩोयते हुए यभेसय ने कहा, ''छी, छी इ कइसन फात कयती

हो, बगवन्ती? हभ इतने बी नीच नहीॊ हं टक तुभसे फासन भॉजवाएॉ। तुम्हायी इ उभय है घय-घय फासन भाॉजने की?'' कहते हुए उसने बगवन्ती की कराई ऩकड़े री।

''छोड़ेो बइमा, इ का कयत हो, हभ तो आऩ क बौजी सभान हं । कोई दे ख रंहे।'' कहते हुए उसने फड़ेी भुक्श्कर से अऩनी कराई को छुड़ेामा। जाते-जाते उसने यभेसय के भुॉह ऩय थूक टदमा औय

कह गई, ''हभ थूकत हं आऩ ऩय, हभ अइसन-वइसन नाहीॊ। जादे गयभी हो तो, कौनो कोठे वारी को काहे न ढू ॉ ढ रेत।'' अऩनी चार नाकाभमाफ होते दे ख तथा एक औयत द्राया टकए गए अऩभान ने उसके अहॊ को चोि ऩहुॉचाई। उसने कहा, ''सारी, आज के जभाने भं सीता फनने से कोई

भुफ्त भं ऩेि बय खाना नहीॊ दे ता। भं बी दे खता हूॉ टकतने टदन सात्रविी फनकय बूखी यहती है । सच ही रोग कहते हं टक छोिे रोग ऩय दमा कयो तो वे ससय ऩय फैठ जाते हं ।'' बगवन्ती दौडते हुए घय ऩहुॉची। उसका दभ पूर यहा था। फच्चे भाॉ को दे खते ही फोरे, ''भाॉ, भाॉ खाने को दै दो।''

''कहाॉ से दे ई, कछु नाहीॊ है घय भं।'' बगवन्ती के सभझाने ऩय दो फड़े​े फच्चे तो शान्त हो गए ऩय तीसया फच्चा क्जद कयने रगा। आॊक्जज आकय बगवन्ती ने उसे तीन-चाय तभाचे जड़े टदए औय खुद बी योने रगी। भाॉ को योता दे ख सबी फच्चे योने रगे। घय से योने की आवाॊज सुनकय ऩड़ेोस का फुधवा ऩासी वहाॉ आमा औय बगवन्ती को योते दे ख ऩूछ सरमा, ''का फात है , बौजी? तुभ रोगन काहे यो यहै हो?'' बगवन्ती ने योते हुए कहा, ''का फताएॉ बइमा, जौन औयत का भयद


नाही, सफ ओकया के फहता नारा सभझत हं ऩय हभ बूखा यहफ, कौनो गरत काभ न कयफ।'' उसने सायी फात फुधवा ऩासी को फताई। फुधवा ऩासी ने बगवन्ती को तयह-तयह से सभझामा। घय जाकय कुछ सूखी योटिमाॉ फच्चं के सरए रे आमा। बगवन्ती ने जफ भना टकमा तो उसे फच्चं का वास्ता दे कय योटिमाॉ यख गमा। तीन टदन के बूखे फच्चे योटिमाॉ खाने रगे। फुधवा ऩासी के सभझाने ऩय बगवन्ती ने बी योिी का एक िु कड़ेा भुॉह भं यख सरमा। फात कयते-कयते कापी दे य हो गई। फुधवा को बगवन्ती के घय से आते दे ख यभेसय फसनमा ने िोका, ''का ये फुधवा, अऩनी बंजी से सभर आए? अये , अइसा का दे खा तुभ भं।'' कहकय टपस से हॉ स टदमा। फुधवा के तो ऩूये शयीय भं आग रग गई ऩय गाॉव के इतने फडे व्माऩायी के भुॉह रगने का भतरफ था उधाय फन्द औय घय भं चूल्हा ठॊ डा। 'अइसन कौने फात नहीॊ बइमा। हभ तो जया हार-चार ऩूछने गए थे। वह तो फात कयने भं सभम का ऩता नहीॊ चरा।' यभेसय तो भौके की तराश भं फैठा था। वह बगवन्ती के घय ऩय फयाफय नॊजय यखता था। एक टदन फुधवा से बगवन्ती ने कहा, ''बइमा, हभं कौनो काभ टदरा दे । कभ से कभ एक जून योिी तो सभर जाई।'' फुधवा ने कहा, ''फीड़ेी फनाने का काभ है , बौजी। एक दजषन भं दो रुऩमा सभरेगा।'' मह सुनकय बगवन्ती को भानो डू फते को सतनके का सहाया सभर गमा। उसने तुयन्त हाभी बय दी। अफ हय दस ू ये टदन फुधवा फीडी फनाने का साभान बगवन्ती के घय यख जाता औय फनी हुई फीड़ेी रे जाता। टकसी तयह बगवन्ती का चूल्हा जरने रगा। याभसयन बी हार-चार

ऩूछने के फहाने बगवन्ती के घय आता ऩय उसकी सनगाह तो फच्चे ऩय थी। उसे अऩनी मोजना

ऩूयी होती नहीॊ रग यही थी। उसने फुधवा औय बगवन्ती के सॊफॊधं की अपवाह गाॉव भं पैरानी शुरू कय दी। उस ऩय से यभेसय फसनमा ने अपवाहं की जरती आग भं मह कह कय औय बी घी डार टदमा टक बगवन्ती ने उसके साथ बी चसकय चराना चाहा ऩय उसके भना कयने ऩय बगवन्ती ने उसे फदनाभ कयने की धभकी दी, इससरए वह चुऩ यहा। गाॉव के रोग जानते थे टक यभेसय फसनमा झूठ फोर यहा है ऩय ऩैसे की ताकत ने सफका भुॉह फन्द कय टदमा था। फात बगवन्ती के जेठ के कानं भं ऩडी। अा​ाव दे खा, न ताव, गुस्से से बगवन्ती के घय ऩहुॉचे औय उसकी एक न सुनी। फस पैसरा सुना डारा टक भाभरे की जाॉच औय पैसरा ऩॊच कयं गे। बगवन्ती के तो कािो तो खून नहीॊ। कोई सुनने को तैमाय नहीॊ था टक जफ

सफने उसे औय उसके फच्चं को बूखे भयने के सरए छोड़े टदमा था, उस सभम फुधवा ऩासी ने उन रोगं की यऺा की। भेहनत कयके जफ वह अऩने फच्चं को ऩार यही है तो उस ऩय कुरिा का आयोऩ रग यहा है । अगय वह यभेसय फसनमा की फात भान रेती तो...। उसे ऩॊचं के पैसरे ऩय त्रफरकुर बयोसा नहीॊ था। गाॉव की गयीफ त्रवधवा औयत की त्रफसात ही समा है ? त्रऩछरे भहीने साधु भोची की त्रवधवा को धनी ससॊह के फगीचे से कुछ अभरूद चुयाने ऩय एक हजाय रुऩमे का जुभाषना रगा टदमा। फेचायी गयीफ औयत इतना ऩैसा कहाॉ से राती? जुभाषना नहीॊ बयने ऩय उसे ऩूये गाॉव भं नॊगा कयके घुभामा गमा। अगरे टदन ऩता चरा टक एक कुॉए भं कूद कय उसने


आत्भहत्मा कय री। उसके फच्चे ऩूये गाॉव भं भाये -भाये टपयते हं । मह सफ सोच-सोचकय उसका टदर फैठा जा यहा था। अफ उसे याभसयन के सुझाव के ससवाए औय कोई उऩाम नहीॊ टदखाई दे यहा था। उसने सोचा टक एक फच्चा उससे दयू हो जाएगा ऩय अऩने तीन फच्चं को तो ाॊक्जन्दा यख सकती है । उसने

टकसी तयह अऩने-आऩ को भनामा औय याभसयन के ऩास खफय बेजी। याभसयन ने गाॉव से दयू

ऩिना तहसीर भं सभम औय टदन तम कय टदमा। उसने यातं-यात साभान फाॉधा औय फच्चं को रेकय गाॉव से चर ऩड़ेी। जैसे-जैसे सभम फीतता जा यहा था, वैसे-वैसे बगवन्ती का टदर फच्चे को अरग कयने के ख्मार से धड़ेकने रगता। वह अससय सायी यात जाग-जाग कय त्रफता दे ती। अऩने दध ु भुॉहे फच्चे के सुनहये बत्रवष्म औय फच्चं के सरए वह टकसी तयह इस सौदे के सरए

तैमाय हो गई थी रेटकन महाॉ बी ऩकड़ेी गई। उसे ऩिना तक राने वारे याभसयन ने बी अऩना ऩल्रा झाड़े सरमा। ऩुसरसवारं ने उसे दो-चाय डॊ डे रगाकय छोड़े टदमा। याभसयन फड़ेी दे य तक उन रोगं से फात कयता यहा। इधय बगवन्ती बायी कदभं से चरती हुई सोच यही थी टक वह समा कयने जा यही थी। अऩने फच्चे को फेचने जा यही थी।

तबी याभसयन ने उसको खफय दी 'जाने दो बगवन्ती। जो तुम्हाया फच्चा खयीद यहे थे, उन्हं कोई दस ू या फच्चा सभर गमा। उनका काभ सनकर गमा।'

'वह बी जरूय कोई भजफूय भाॉ होगी औय अऩनी दे ह से क्जगय सनकार कय फेच यही होगी। बगवान तुभ समा कय यहे हो इस दसु नमा भं? हभ गयीफन को अइसे भत भायो, बगवान...।' बगवन्ती सससक-सससक कय यो यही थी। अफ भं घय-घय भं फतषन भाॉजने का काभ ढू ढू ॊ गी रेटकन फच्चं को खुद से अरग नहीॊ करूॊगी, वह फुदफुदा यही थी औय सससटकमाॉ रेती जा यही थी।  


सहमािा : (कहानी) श्माभनायामण कुॊदन

श्माभनायामण कुॊदन 311, एभ.एच.सी., है दयाफाद त्रवद्वत्रवद्यारम गाची फाउरी, है दयाफाद-500046 भो.: 09640375758

एक द:ु स्वप्न ह अकल्ऩनीम औय अद्भत ु था। भुझे त्रवद्वास ही नहीॊ हो यहा था टक भं प्रधानभॊिी फन गमा हूॉ। उस दे श का भुक्खमा हो गमा हूॉ क्जस दे श भं दसु नमा का हय छठाॉ व्मत्रक्त सनवास कयता है ,

क्जसका इसतहास रगबग ऩाॉच हजाय सार ऩुयाना है , जो दसु नमा का धभष गुरु है , क्जसकी उवषय सभट्िी भं याभ, कृ ष्ण, फुर्द्, गाॉधी औय बगत ससॊह सयीखे रार ऩैदा हुए, जो त्रवसबन्न धभं, सॊस्कृ सतमं औय बाषाओॊ का सॊगभ-स्थर है , त्रवत्रवधता भं एकता क्जसकी ऩहचान है ।

जहाॉ के वैऻासनक आज सॊसाय बय भं धूभ भचाए हुए हं । जहाॉ के मुवक औय मुवसतमाॉ पयाषिेदाय

अॊग्रेजी फोरते हं औय ऩूणरू ष ऩेण आधुसनक हं । रेटकन तफ बी, जहाॉ अन्धता इतनी असधक है टक रोग एक कारी-करूिी औयत को डामन सभझकय क्जन्दा जरा दे ते हं , आज बी जहाॉ जासत औय धभष के नाभ ऩय रोगं को सतामा जाता है , दसरत क्स्त्रमं को नॊगा घुभामा जाता है । आए टदन जहाॉ आतॊकवादी ऩिाखं की तयह फभ पोड़ेते हं औय फेगुनाहं के खून से होरी खेरते हं । औय चाॉद तक ऩय अऩने झॊडे गाड़ेकय त्रवद्वसभुदाम से अऩनी ऩीठ ठंकवाने वारी दसु नमा के सफसे प्राचीन दे श की रगबग एक अयफ दस कयोड़े औरादं केवर भुिुय-भुिुय दे खती बय यह

जाती हं , जहाॉ फड़े​े -फडे नेता हं , असबनेता हं औय दसु नमा के सवोच्च धनाढम ऩूॉजीऩसत बी हं , जो अऩना फार किवाने हवाई जहाज से ससॊगाऩुय, हाॊगकाॊग औय न्मूमाकष तक जाते हं , जो फड़े​े -फड़े​े नगयं भं ऊॉचे-ऊॉचे भहरं भं यहते हं रेटकन जहाॉ की एक-चौथाई जनसॊख्मा को बयऩेि बोजन नहीॊ सभरता।वह खुरे आसभान के नीचे अर्द्ष ननन यहती है औय इस सफका दोष वह अऩने बानम


को दे तीहै । सचभुच भं असबबूत था औय अऩने आऩ को टहरा डु रा कय त्रवद्वास टदरा यहा था टक महाॉ जो कुछ बी है , वह सत्म है औय सत्म के अरावा कुछ बी नहीॊ है । वह यॊ ग-त्रफयॊ गा स्वप्न तो कदात्रऩ नहीॊ है , जैसा टक अससय होता है । इसके सरए भं सॊसद की सीटढ़ेमं को नाऩ यहा था। रारा टकरा, इॊ टडमा गेि, जाभा भक्स्जद सयीखे धयोहयं को बाॉऩ यहा था। अऩने इदष -सगदष धूऩ-छाॉह की तयह जभती औय छॊ िती बीड़े को जाॉच यहा था। जो बी हो, वहाॉ अवास्तत्रवक कुछ बी नहीॊ था औय भं प्रधानभॊिी फन गमा था औय भेये ऩास अऩाय ऺभता आ गई थी। रोग फधाईमाॉ दे यहे थे औय भं पूरे नहीॊ सभा यहा था। उस सभम भेये ससय ऩय दे श का ताज था औय भं फड़े​े ही करयश्भाई तयीके से बायतीम सॊसद के साढ़े​े ऩाॉच सौ साॊसदं का भासरक फन गमा था, क्जनको भं कबी ऩानी ऩी-ऩीकय गासरमाॉ टदमा कयता था, भानव-फभ फनकय क्जनके चीथडे उड़ेाने की मोजनाएॉ फनामा कयता था। उनको अफ भं अऩने अनुरूऩ हाॊक सकता था, डाॊि सकता था, उऩमोग कय सकता था औय जरूयत ऩड़ेने ऩय टठकाने बी रगा सकता था। दे श का अऩाय खजाना भेये कब्जे भं था, क्जसको भं अऩनी भॊशा के अनुरूऩ गयीफं भं फाॉि सकता था। फड़े​े -फड़े​े ऩूॉजीऩसतमं की नकेर अफ भेये हाथं भं थी क्जन्हं भनचाहा भं अऩने इशाये ऩय नचा

सकता था। दसु नमा की चौथी फड़ेी सेना अफ भेया हुसभ भानने के सरए भजफूय थी क्जसके फर ऩय भं अऩने दे श ऩय कुदृत्रद्श यखने वारे दद्श ु याद्सं को धूर चिा सकता था। दे श का चौथा आधाय

स्तम्ब भीटडमा बी अफ भेया आदे श भानने के सरए फाध्म खड़ेा था क्जसके फर ऩय भं अनहोनी को होनी भं फदर सकताथा। भेयी इस अत्रवद्वसनीम उऩरक्ब्ध ऩय दसु नमा बय भं प्रसतटक्रमाएॉ हो यही थीॊ। कोई भेये ऩऺ भं था तो कोई त्रवऩऺ भं। कोई भुझे ऩागर, सनकी औय दद्श ु कह यहा था तो कोई भुझे सभकारीन दसु नमा का 'भसीहा' भान यहा था।

भं सफको सुन यहा था औय गुन यहा था, ऩय उस ऩय प्रसतटक्रमाएॉ व्मक्त कयने का भेये ऩास सभम नहीॊ था। भं तो फस ऩयम्ऩया से चरी आ यही अऩनी दसभत इच्छाओॊ को उस सभम ऩूया कय रेना चाहता था। इससरए सचल्रा-सचल्राकय घोषणाएॉ कय यहा था 'भेये त्रप्रम दे शवाससमो। आज औय अबी से इस दे श भं सभानता का कानून रागू होता है । इसके तहत साभाक्जक, आसथषक, साॊस्कृ सतक, धासभषक, याजनीसतक सबी रूऩं भं अफ हय कोई फयाफय होगा। हाॉ, आज औय अबी से कुकुयभुत्ते की तयह उसे आई जासत को सभाद्ऱ टकमा जाता है । धभं को नेस्तनाफूत टकमा जाता है । अफ महाॉ न कोई ऊॉच होगा औय न नीच। न कोई ब्राह्मण होगा, न शूि। न कोई नेता होगा, न असबनेता। न कोई ऩूॉजीऩसत होगा, न कॊगार।'


'हाॉ, भेये गयीफ बाईमो एवॊ फहनो। अफ आऩ रोग अऩने-अऩने असधकायं को झऩिने के सरए तैमाय हो जाइए। आऩ रोगं ने सटदमं से फहुत द:ु ख झेरा है रेटकन अफ नहीॊ झेरंगे। मह भेया वादा है आऩ से समंटक अफ सफको सभान रूऩ से योजी,योिी, कऩड़ेा औय भकान की सुत्रवधा दी जाएगी।' 'सभिो, आऩ सबी एक फात जान रीक्जए टक टकसी बी याद्स का रृदम उसकी याद्सबाषा भं धड़ेकता है । वह टकसी त्रवदे शी बाषा के फर ऩय सभसभमा तो सकता है रेटकन शेय की तयह दहाड़े नहीॊ सकता। ठीक वैसे ही जैसे अॊग्रेजी के चॊगुर भं पॉसा हभाया दे श त्रऩछरे सारं से सभसभमा यहा है । रेटकन अफ ऐसा नहीॊ होगा समंटक आज औय अबी से अॊग्रेजी बाषा को याजबाषा के ऩद से ऩदच्मुत टकमा जाता है औय टहन्दी को ऩूणष रूऩ से याजबाषा औय याद्सबाषा के ऩद ऩय प्रसतत्रद्षत टकमा जाता है ।' 'आज दे श भं अरगाववाद की सभस्मा फढ़ेती जा यही है । क्जस साम्प्रदासमकता ने हभाये दे श को कई िु कड़ें भं तोड़े टदमा, वह आज बी टकसी न टकसी रूऩ भं हभाये साभने ाॊक्जन्दा है । आतॊकवाद तो आज हभाये दे श के अक्स्तत्व के सरए ही खतया फन गमा है । इन सफसे भं सख्ती से सनऩिने का आह्वान कयता हूॉ। हाॉ, अफटकसी बी अरगाववादी मा आतॊकवादी ऩय भुकद्मा नहीॊ चरामा जाएगा, फक्ल्क अफ सीधे उसे गोरी भाय दी जाएगी। साम्प्रदासमकता का जहय पैराने वारं को खुरेआभ चौयाहे ऩय पाॉसी ऩय रिका टदमा जाएगा।' 'बाईमो! आज 370 की धाया हभाये सरए नासूय फन चुकी है । इससरए इसको आज औय अबी से सभाद्ऱ कयके सम्ऩूणष जम्भू औय कश्भीय के बायत भं त्रवरम की घोषणा की जाती है । मटद

ऩाटकस्तान मा कोई औय दे श इसके क्खराप आवाज उठाने की जुयषत कयता है तो हभायी भजफूत सेना उसको ऩूयी तयह से नेस्तनाफूत कय दे ।' सचभुच वहाॉ सफ कुछ एक चभत्काय की तयह हो यहा था। एक तयप भं घोषणाएॉ कय यहा था औय दस ू यी तयप भेयी हय एक फात कानून फन कय शोषकं ऩय फज्र की तयह सगय यही थी। इसके परस्वरूऩ चन्द सभनिं भं ही ऩूये दे श भं बूचार-सा आ गमा। दे श की रगबग अस्सी प्रसतशत

बूखी-नॊगी जनता ने ऩूॉजीऩसतमं को रूि सरमा। गद्दाय नेताओॊ को ढू ढ़े-ढू ढ़े कय खत्भ कय टदमा। भॊटदय, भक्स्जद, गुरुद्राये औय चचष को तोड़े टदमा गमा औय उनके स्थान ऩय एक त्रवशार त्रवद्वभॊटदय का नवसनभाषण टकमा जाने रगा। बायत की त्रवशार सेना ने आगे फढ़ेकय सम्ऩूणष जम्भू-कश्भीय को अऩने कब्जे भं रे सरमा। सच्चे ससऩाटहमं ने दयतगसत से कामषवाही कयके दे श के अन्दय सछऩे हुए आतॊकवाटदमं, भाटपमा ु्

सयगनाओॊ को ढू ढ़े सनकारा औय उन्हं खत्भ कय टदमा। टहन्दी दे श की सवोच्च बाषा फनकय भुस्कया उठी। दे श भं अफ न कोई जासत यही न कोई धभष। गयीफं की झोऩटड़ेमं का स्थान ऩसके भकानं ने रे

सरमा। फेयोजगायं को यंजगाय सभरा औय भ्रद्शाचाय भं सरद्ऱ रोगं की सदा के सरए छुट्िी कय दी


गई। ऩय इसके प्रसतटक्रमास्वरूऩ दे श औय दे श के फाहय घोय त्रवयोध उठ खड़ेा हुआ। दे श के बीतय

अरगाववादी, ऩूॉजीऩसत, गद्दाय, नेता औय आतॊकवादी सभरकय एक हो गए औय चायं तयप फभ त्रफस्पोि कयने रगे। बाषा के नाभ ऩय दे श कई िु कड़ें भं फॉि गमा। ऩाटकस्तान अभेरयका के साथ गठजोड़े कयके बायत ऩय हभरे की मोजना फनानेरगा। ऩय तफ बी भं हाय भानने वारं भं से नहीॊ था। भं आत्भत्रवद्वास से बया हुआ अऩने सनणषम ऩय दृढ़े था। भं कि सकता था रेटकन अऩने पैसरे से ऩीछे नहीॊ हि सकता था। ऐसे भं भंने ऩूयी

दसु नमा को ररकाया 'दसु नमा वारो, कान खोरकय सुन रो, अफ सटदमं से सोमा हुआ बायत जग गमा है । अफ वह तुम्हायी टकसी बी फन्दय घुड़ेटकमं से डयने वारा नहीॊ है ।'

ठीक उसी सभम कुछ हभरावयं ने भुझऩय हभरा फोर टदमा 'धाॉम... धाॉम... धड़ेाभ।' अनसगनत गोसरमाॉ भेये करेजे को चीयती हुई फाहय सनकर गईं। तफ बी भेयी चेतना फाकी थी।भेये शयीय से खून के पंवाये फहने रगे। ऩय भं खड़ेा भुस्कया यहा था।

रेटकन उसके कुछ दे य फाद ही एक बमानक त्रफस्पोि से भेये शयीय के ऩयखच्चे उड़े गए। इसके फाद समा हुआ, कुछ ऩतानहीॊ।

'अये ... ये ... ये ... ये ... मह समा? तो समा मह सचभुच भं सऩना ही था?' भं फदहवासी भं अऩने त्रफस्तय ऩय उठकय फैठ गमा। दे खा तो भेये तीन-चाय सहऩाठी भेये त्रफस्तय के आस-ऩास खड़े​े होकय हॉ स यहे थे। तारी ऩीि-ऩीिकय सचल्रा यहे थे।

'सारे सचयकुि, तुभ नहीॊ सुधयोगे... वास्तत्रवकता भं तो कुछ कय नहीॊ सकते... सऩने भं दे श की कामाऩरि के सऩने दे खते यहते हो।' उनभं से एक आगे फढ़ेकय फोरा। 'आई एभ सॉयी, माय।' इतना कहकय भं फाथरूभ की तयप रऩका। 'अफे, ओम।' तबी ऩीछे से दस ू या सचल्रामा। 'अफ समा है ?' भै टठठककय रुक गमा।

'अये माय, अगय तुभ सायी फोरोगे तो हभ सबी को बी तुभसे सॉयी फोरना ऩड़े​े गा।' तीसये ने कहा। 'समा भतरफ?' भं आद्ळमष से उनकी तयप दे खने रगा। 'भतरफ मह टक तुभ जो द:ु स्वप्न दे ख यहे थे न, वैसा ही द:ु स्वप्न हभ रोग बी रगबग योज ही दे खते हं ।'

'सच्ची' भं आगे फोरा। 'भुच्ची' उन तीनं ने एक साथ जोड़ेा। इसके फाद हभ सबी ठठाकय हॉ सने रगे। 

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भनोज सतवायी

भनोज सतवायी भकान नॊ. 3441, प्रथभ तर सेसिय 71, भोहारी, चॊडीगढ़े-160056 भो.: 09872613845 F F F F F F आजकर सूचना प्रौद्योसगकी ऺेि की कम्ऩनी भं कामषयत। जन्भ : 1971

सचटड़ेमाघय एकाएक चंक कय दे वीदमार की नीॊद खुर गई। घड़ेी भं सभम दे खा तो सुफह के चाय फज यहे थे रेटकन सटदष मं का भौसभ होने के कायण ऐसा रग यहा था टक भानो आधी यात हो। डयावने सऩने से जागने के फाद सफसे ऩहरे उसने अऩने आऩ को हाथं से ि​िोर कय दे खा; सही सराभत ऩाकय दमार ने याहत की साॉस री। टपय कभये भं आस-ऩास यखी चीजं को एक सयसयी सनगाह से दे खा, सफ कुछ वैसा ही जाना- ऩहचाना रगा जैसा टक त्रऩछरे कई सारं से रगता आ यहा था। नीॊद तो अफ ऑॊखं से कोसं दयू थी रेटकन फीता सभम ऐसे माद आ यहा था टक भानो सफ कर ही की फात हो।

कच्ची उम्र भं अऩने त्रऩता की ही तयह तहसीर भं उसने बी दै सनक बत्ते ऩय चौकीदायी का काभ शुरू कय टदमा था। फड़े​े साटहफं की सेवा औय वपादायी तो उसके खून भं ही यची-फसी थी सो त्रवद्वासऩाि फनने भं दे य न रगी। एक टदन फड़े​े साटहफ का तफादरा शहय भं हो गमा औय उनके तभाभ साजो-साभान के साथ-साथ दमार बी शहय ऩहुॉच गमा। जल्दी ही फड़े​े शहय भं छोिा-सा आसशमाना जुि गमा औय टपय एक टदन फड़े​े साटहफ ने ही फतामा टक उसे चतुथष श्रेणी भं

चऩयासी के तौय ऩय सयकायी भुराक्जभ फना टदमा गमा है । ऩसकी नौकयी औय उसके फाद ऩंशन


सभरने की फात सुन दमार की खुशी का टठकाना न यहा। वैसे बी दमार उन टदनं खुश ही यहता था समंटक कुछ ही टदन ऩहरे उसकी शादी हुई थी। उसके त्रऩता ने कहा था टक फहू के चयण

फहुत शुब हं औय वह दे ख सकता था टक सुशीरा के आने के फाद से उसके अच्छे टदन शुरू हो गए थे।

फहुत-सा सभम इस फीच ऩॊख रगा कय उड़े गमा।

चायऩाई ऩय फैठे-फैठे दमार ने दे खा टक ऩास ही दस ू यी चायऩाई ऩय उसकी ऩत्नी सुशीरा सो यही

थी। शादी के ऩहरे टदन की ही तयह आज बी सोते सभम सुशीरा के ससय ऩय उसका ऑॊचर ऩूयी शोबा के साथ त्रवयाजभान था। उस टदन औय आज के टदन भं कोई अॊतय न था ससवाम इस फात के टक अफ धोती के अॊदय से उसके सपेद फार झाॉकने रगे थे। रेटकन उन सपेद फारं के फीच ससन्दयू की गाढ़ेी ये खा उसके धैमष औय त्रवद्वास की ही तयह आज बी अटडग थी। दमार कुछ दे य सुशीरा को मूॉ ही दे खता यहा।

थोड़ेी दे य फाद दमार टपय से ऑॊखं भूॉद कय रेि गमा औय सो गमा। फची हुई नीॊद ऩूयी कयने के फाद जफ दमार की ऑॊख दोफाया खुरी तो उजारा हो चुका था। सफ

कुछ साभान्म टदनं का सा ही था रेटकन भन भं एक क्खन्नता थी। नाश्ते के फीच उसने सुशीरा को फतामा टक आज वह दफ्तय नहीॊ जाएगा। सुशीरा ने सचॊसतत होते हुए ऩूछा, ''का बमा? तत्रफमत तो ठीक है न?''

''हाॉ, रेटकन कछु औय काभ है । ...औय तुभहु तैमाय हो जाओ साथै चरे के सरए।''

मह एक असाभान्म फात थी, सुशीरा ने सकुचाते हुए ऩूछा, ''कहाॉ जाएॉ का है ? हभया जाना जरूयी है का?''

''जरूयी है न... तबै तो कटहत है ...।'' इसके फाद सुशीरा ने औय कोई जाॉच-ऩड़ेतार नहीॊ की। आदत की फात थी इससे ज्मादा सवार तो उसने अऩने ऩसत से कबी नहीॊ ऩूछे तो आज कैसे ऩूछती। ऐसा ही कुछ कयीफ दस सार ऩहरे बी हुआ था जफ दमार एक टदन उसे खाता खुरवाने फंक रे गए थे। उसका अनुभान था टक आज बी टकसी कागॊज ऩय उसके दस्तखत की जरूयत होगी।

दस फज यहे थे। चभकीरी, सुखद धूऩ भं दमार औय सुशीरा ऩैदर ही घय से सनकर सरए। कयीफ ऩाॉच सभनि चरने के फाद वे सड़ेक ऩय ऩहुॉच गए। फस का इॊ तजाय कयने की फजाए दमार ने

एक ऑिो को हाथ दे कय योका औय दोनं उसभं फैठ गए। ऑिो कयीफ फीस सभनि तक चरता यहा। सुशीरा की जानकायी के अनुसाय फंक के सरए इतनी दयू आने की जरूयत न थी। सुशीरा

के भन भं तसनक क्जऻासा तो थी टक वे कहाॉ जा यहे हं रेटकन जफ दमार साथ हं तो उसे कोई त्रवशेष सचॊता न होती थी। टपय एक जगह ऩहुॉच कय ऑिो रुक गमा औय दोनं उस ऩय से उतय ऩड़े​े । सुशीरा ने अऩने ससय ऩय ऩल्रू को ठीक कयते-कयते चायं ओय नजय घुभा कय उस जगह

का जामजा सरमा। मह थोड़ेी बीड़ेबाड़े वारी जगह थी औय वह उस जगह ऩहरे कबी नहीॊ आई


थी। जफ तक दमार ऑिो वारे को ऩैसे दे ता, सुशीरा की नजय एक रार फोडष ऩय ऩड़े गई। उस ऩय सपेद अऺयं से कुछ सरखा था क्जसे वह फोरकय ऩढ़ेने रगी, ''आ... जा... द... न.. ग... य... डाक घय...।'' तबी दमार ऑिो वारे को ऩैसे दे कय उसके ऩास आ गमा, ''दीऩू के फाऩू। ...टहमन का है ? कौनो डाक घय केय काभ है का?'' ''डाकघय का नहीॊ...'' टपय डाकघय के साभने की तयप के एक फड़े​े से पािक की ओय टदखाते हुए दमार फोरा, ''वह दे खो... ऊ है सचटड़ेमाघय... ऊ केय काभहै ।'' ''सचटड़ेमाघय...? औय हभ रोग टहमन का कयं गे?'' दमार ने माद टदराने की चेद्शा की, ''माद है तुभका... जफ तुभ शादी के फाद ऩटहरे दपे शहय भा आई यही यहो औय दीऩू बी नाही बमे यहे , तफ तुभ हभसे का कहे यहौ?'' तसनक जोय डारा तो सुशीरा को बी माद आ गमा। जफ वह अऩने भामके से त्रवदा होकय शहय आने वारी थी तो उसकी ऩसकी सहे री शाॊसत ने कहा था टक जीजाजी से कहो टक तुभका सचटड़ेमाघय टदखा रावं। फहुत तयह-तयह के जानवय हं हुऑ।ॊ सफ रोग घूभै जात हं ।

''हाॉ, तो तफ केय फात आज इतने सार फाद कैसन माद आम गई? ऊ फखत तो रै नहीॊ गए यहौ?'' दमार ने ईभानदायी से स्वीकाय टकमा, ''ऊ फखत अम्भा-फाफू क्जॊदा यहै औय हभका सयभ रगती यही टक कैसे उनसे कहं टक तुभका घुभावे का रै जाएॉ का है ।'' तसनक रुक कय, ''रेटकन अफ तो हभ आऩन भन का कै सटकत है । आज सफेये माद आइ गवा तो सोचा आऩन वादा ऩूया कै टदमा जाए।''

सुशीरा को जैसे ही ऩूयी फात सभझ भं आई तो वह हॉ से त्रफना नहीॊ यह सकी। टपय हॉ सी को योकते हुए वह दमार के ऩीछे चर दी। सचटड़ेमाघय के फाये भं सोच कय, उसके भन भं एक फाय टपय वही फचऩन वारा कौतूहर जाग गमा। भन भं कल्ऩनाएॉ भूतष रूऩ रेने रगीॊ टक न जाने कैसे-कैसे जानवय महाॉ दे खने को सभरंगे? ऩहरे कुछ दे य तो तसनक क्झझक भहसूस हुई ऩय जल्दी ही वह सहज हो गई औय वहाॉ भौजूद हय जानवय के फाये भं सभझने की कोसशश कयने रगी। ''अये ऊ फान्दय का तो दे खो... ऊकेय ऩूछ कैसन नान्ह केय है ...।'' सुशीरा के चेहये ऩय त्रफखयी भुस्कयाहि दे ख दमार बी हॉ स ऩड़ेा। शामद कापी अयसे के फाद दोनं ऩसत-ऩत्नी ऐसी टकसी गैयजरूयी फात ऩय हॉ से थे। कुछ औय फढ़े​े तो रकड़ेफनधे का फाड़ेा टदखाई ऩड़ेा। सुशीरा से यहा न गमा, ''हभ ऩॊचन का फचऩन भं डरुआवा जात यहा टक अॊधेये भं न जाओ, रकड़ेफनघा उठा रै जाई। फताओ अफ जाकय फुढ़ेाऩे भा दे क्ख ऩावा है ... साय कूकुय अइस रागत है । रेटकन सुना है , फड़ेा शासतय होत है , हभये गाॉव भं एक रटड़ेका का उठा रै गा यहा। फड़ेी ढु ॉ ढअउर बई ऩय सभरा नाही।'' जल्दी ही दमार औय सुशीरा सफ घय-गृहस्थी बूर नए-नए जानवयं को दे खने भं यभ गए। हय


एक त्रऩॊजड़े​े के साभने उनके ऩास फसतमाने के सरए कुछ न कुछ जरूय होता। शेखी फघायते हुए दमार ने बी अऩनी जानकायी सुशीरा के साथ फाॉिनी शुरू कय दी ''ई है फॊगार का शेय, फहुत जोय गुयाषत है औय मटहका क्खरावे के खासतय भनन गोश्त भॉगावा जात है ।'' ''औय ई सफ अगय छूि कै फाहय आए जाए तौ...।''

दमार ने सभझामा, ''अये सचटड़ेमाघय भा यहे यहे ई सफ जानवय फेकाय हुइ जात हं । त्रऩॊजड़ेा खौरी दीन्ह जाए तो जल्दी बसगहं नाहीॊ...।''

सुशीरा अऺयं को जोड़ेकय ऩढ़े तो रेती थी रेटकन ऐसा कयने भं उसको सभम ज्मादा रगता था। इस फीच साभने रगी तख्ती, अऩेऺाकृ त जल्दी से ऩढ़ेकय दमार जानवय के फाये भं सुशीरा को ऐसे फताता भानो उसे ऩहरे से ही उन फातं का ऻान हो। इसी क्रभ भं अगरे फाड़े​े के साभने ऩहुॉच कय दमार ने फताना शुरू टकमा, ''मा दे खो, ई है

शुतुभग ुष .ष .. कहे को तो मह सचटड़ेमा है ऩय सुसय उटड़े नहीॊ ऩावत है ...'' एक फाय टपय दोनं जी खोर कय हॉ से। सुशीरा उसकी जानकायी से प्रबात्रवत होते हुए फोरी ''तुभ का ई सफ ऩटहरे से दे खे हो?'' ''नाहीाे... चरत-टपयत सफ ऩता चसरत जात है ...,'' दमार ने याज की फात फताई। आगे एक फहुत फड़े​े फाड़ें भं हासथमं का झुॊड भौजूद था। एक हाथी के ऩैयं को जॊजीयं से जकड़े

कय यखा गमा था। दमार ने सुशीरा को सभझाते हुए कहा, मे वारा जादे फदभाश होई, तबै तो

वटहका खुल्रा नहीॊ छोड़े​े हं । फाड़े​े के फीच भं हासथमं के सरए एक छोिा-सा ताराफ फना हुआ था

क्जसभं से एक हाथी अऩनी सूॉड भं बयकय ऩानी अऩने ऊऩय डार यहा था जफटक फाकी सफ हाथी हयी ऩत्रत्तमं वारा चाया खाने भं व्मस्त थे। सुशीरा उसे गौय से दे ख यही थी। उसके भॉह से सनकरा, वहै एक फाबन है जानो, नहाए धोए के फाद खाना खाई। दमार कबी हासथमं को दे ख कय खुश होता तो कबी सुशीरा के क्खरे हुए चेहये को।

मह उऩक्रभ दे य तक चरता यहा। वह हाथी जो ऩहरे नहा यहा था, अफ सूॉड से अऩने ऊऩय सभट्िी डारने रगा। सुशीरा को मह फात ऩसन्द नहीॊ आई, 'चरो टहमन से, ई फाबन हाथी तो सफ गोड़े टदटहस, नहाए धोए के फाद अफ जानो ऩौडय रगाए यहे हं ।' कयीफ एक घॊिा हो यहा था, दमार औय सुशीरा चरते-चरते थकने रगे थे। रेटकन दोनं भं से कोई मह नहीॊ कहना चाह यहा था टक तसनक रुक सरमा जाए। सौबानम से साभने ही एक खानेऩीने की कंिीन टदखाई ऩड़े गई। दमार ने सुशीरा को कुसी ऩय फैठाते हुए कहा, ''हभ दे क्ख के

आइत है टक का है खाने को।'' खाने- ऩीने के साभान की कीभतं दे ख कय दमार का टदर एक फाय को फैठ गमा, सबी कुछ फहुत भॉहगा था। उसने ऩंि की दाईं जेफ भं यखे कयीफ सौ-डे ढ़े सौ


रुऩमं को ि​िोर कय इत्भीनान टकमा टक वे सुयक्ऺत तो हं । टपय जी फड़ेा भजफूत कयके उसने दो ब्रेड ऩकौड़े​े औय दो कॉपी का आडष य दे ही डारा औय वाऩस सुशीरा के ऩास आकय फैठ गमा। ब्रेड ऩकौड़े​े दे ख कय सुशीरा से यहा न गमा, ''दे खा तो, मटहभा एक ब्रेड औय फेसन है औय फीच भं तसन-तसन आरू बरय टदटहन है । घय भा फनाओ तो दो रुऩमा बी कीभत न आवे ऩय टहमाॉ दस रुत्रऩमा का फेच यहे हं ।'' दमार भन्द-भन्द भुस्कया टदमा। टपय जफ कॉपी आई तो दमार ने सभझामा, ''ई कॉपी है , चाम जैसन होत है ...।'' ''हाॉ, हाॉ, हभ जासनत है ...'' सुशीरा ने तुयॊत जाटहय कय टदमा टक वह बी त्रफरकुर गॉवाय नहीॊ है । कॉपी का एक घूॉि ऩीते ही सुशीरा को माद आ गमा, ''याजू के गौने भं दीऩू राम के टदटहन हभका औय फोरे, अम्भा ई ऩी के दे खो। हभ त्रऩमा तो हभका जयी-जयी भहकत यहै ... तो हभ छाॉड़े टदमा। टपय सफ जने कटहन टक मा मही तान होत है । तफ जाके हभ ऩूयी त्रऩमा।'' दमार ने जोड़ेा, ''याजू के त्रफमाहै को ऩाॉच-सात फयस तो हुई यहे होइहं ?''

दमार के कहने ऩय सुशीरा को बी सभम के ऩरयभाण का अहसास हुआ, ''हाॉ।''

कॉपी खत्भ कयके दमार औय सुशीरा सचटड़ेमाघय के अन्दय फनी झीर के टकनाये ऩहुॉच गए।

आसऩास कोई फंच खारी न ऩाकय दमार ने कहा, ''टकनाये -टकनाये िटहर सरमा जाए...।'' झीर भं फहुत सायी फत्तखं तैय यही थीॊ। हय फाय की तयह दमार ने झीर के टकनाये रगे सूचना वारे फोडष को ऩढ़ेकय सुशीरा को फतामा, ''सटदष मं भं इहाॉ फहुत दयू दे श के ऩॊछी आवत हं औय टपय सटदष मन फाद वाऩस उटड़े जात हं ।''

सुशीरा ने त्रफना कुछ कहे ससपष ससय टहरामा। ऐसा रग यहा था टक वह दमार की फात न सुनकय टकसी सोच भं ऩड़ेी हुई थी। बाॉऩते हुए दमार ने ऩूछा, ''तुभका अच्छा तो रग यहा है न?''

सुशीरा ने सकुचाते हुए कहा, ''हाॉ अच्छा तो है ... रेटकन साथ भं दीऩू औय याजू बी होते... फहुएॉ औय फच्चे बी होते तो औय अच्छा रागत।''

सॊकोच से बया ''हाॉ'' सुन कय सोच भं ऩड़ेने की फायी अफ दमार की थी। दमार आगे खारी ऩड़ेी फंच ऩय फैठ गमा औय झीर भं तैयती फत्तखं को दे खने रगा। सुशीरा को इस फात का अहसास था टक ससपष उसकी खुशी के सरए दमार उसे वहाॉ ऩय राए थे रेटकन उसके जवाफ से उतनी खुशी नहीॊ झरकी क्जतनी शामद दमार ने आशा की थी। एक नजय आस-ऩास दौड़ेाते हुए वह बी दमार के ऩास जाकय फैठ गई। एक फाय टपय उसने दोहयामा, ''सच भा, हभका फहुत नीक राग टहमाॉ आके।''

त्रफना एक दस ू ये को दे खे दोनं थोड़ेी दे य चुऩचाऩ फैठे यहे । सुशीरा ने एक फाय टपय अऩनी शॊका स्ऩद्श कयनी चाही, ''रेटकन आज अचानक कैसे?''

दमार ने ससय झुकाए-झुकाए ही कहना शुरू टकमा, ''कर यात सऩने भं दे खा टक हभाये दफ्तय के सफ रोग हभका त्रफदा कै यहे हं । उसभा तो कौनो खास फात नाही थी... वैसे बी आठ-दस भहीना


भा रयिामय होइ जाफ। रेटकन टपय उसके फाद हभ दे खा टक तुभ, दीऩू, याजू सफ जने बी हभका त्रवदा कय यहे हो। ...मह दे ख कय हभ डय गमेन।'' एक फाय टपय उठाकय उसने सुशीरा की ओय दे खा, वह ऩूयी चेतना के साथ दमार की फात सुन यही थी। दमार ने आगे कहा, ''हभका रगा टक हभ रोगन ने साया जीवन ससपष घय-गृहस्थी भं खऩा टदमा। इन सफ भा हभ आऩन का बूरेन गमेन। हभ तुभका बी बूर गमेन। माद आवा टक तुभ महै एक चीज हभसे भाॉगेव औय वहै हभ न कै ऩामेन। तो हभ सोचा टक दे य-सफेय सही थोड़ेी-फहुत बयऩाई कै टदमा जाए। टपय जाने भौका होम मा न होम।''

मह कहकय दमार ने ससय उठाकय एक नजय सुशीरा की ओय दे खा। नजयं सभरते ही सुशीरा ने अऩनी धोती के ऩल्रू से ऩहरे अऩने भुॉह को ढॊ कने की कोसशश की औय टपय तेजी से चेहया दस ू यी ओय घुभा सरमा। रेटकन इस फीच दमार ने सुशीरा की ऑॊखं भं चभकते हुए भोती दे ख सरए।

अगरे कुछ ऺण दोनं खाभोश फैठे यहं । सुशीरा जफ थोड़ेा सॊमत हुई तो फोरी, ''हभ तो तुभसे कफहुॉ कोई ससकामत नहीॊ टकए। कौनो कभी है बी नहीॊ हभका।''

''तुभ हभयी फात माद यखेओ, मही फहुत नीक है । टहमाॉ आकय हभका सचभुच फहुत अच्छा रगा। ऊ का है , ाॊक्जन्दगी बय दइु चाय यक्स्समाॉ हभेसा फॉधेन यही हं ऩय टहमन आ के ऐसन राग टक सायी यक्स्समाॉ खुर गई हं । आदत नहीॊ है न... एकाध यस्सी तो फॉधी ही होन के चाही। जानो, सचटड़ेमाघय के जानवयन सा ही हभका बी त्रऩॊजड़ेा केय आदत ऩड़े गई है ।'' दमार ने हाभी भं ससय टहरामा। ''जया दे य को अकेरे बए औय घय की माद आन रागी।'' इस फाय सुशीरा ने त्रवनती की, ''...अफ घय चरं, दीऩू औय याजू न जाने का सोचत होइहं ।'' ''ठीक है चरो...'' दमार चरने के सरए उठ खड़े​े हुए औय टपय कुछ सोचते हुए फोरे, ''अफकी दपे दईु तीन योज की छुट्िी रेफ अैय टपय नैनीतार चरे का होई...।'' सुशीरा ससय ऩय धोती ठीक कयते हुए एक फाय टपय भुस्कया दी।  


त्रवत्रऩन चौधयी

त्रवत्रऩन चौधयी भकान नॊ. 1008 हाऊससॊग फोडष कॉरोनी सेसिय-15ए, टहसाय, हरयमाणा-125001 भो.: 09899865514

ग्रे शेड

भंने घड़ेी ऩय नॊजय डारी, यात के 12 फजने को हं । एक गहयी साॉस रेते हुए सीि ऩय भंने अऩना ससय टिकामा।

जफ कबी अऩनी तकरीपं से रड़ेते-रड़ेते ऊऩय आकाश की ओय िकिकी रगाए उम्भीद बयी सनगाहं से दे खती तो हभेशा मही रगता टक दत्रु वधा की तभाभ दख ु तकरीपं के गुरुत्वाकषषण से फहुत ऊऩय, आसभान के फेहद कयीफ सफ कुछ खुशगवाय होता होगा। ऩय आज जफ ऩृथ्वी से

ऩंतीस हजाय टक.भी. की ऊॉचाई ऩय बी अवसाद भं डू फी हुई कारी ऩयछाईमाॉ भेये ऩीछे -ऩीछे चरी आई हं , ऐसा रगता है भेये जीवन के चायं कोनं भं ससपष दख ु ही दख ु पैरे हुए हं । दो जभा दो बी दख ु , दो दन ु ी दो बी दख ु ।

हं ड फैग से ऊनी शार सनकार कय भंने उसे अऩने इदष -सगदष रऩेि सरमा। भेयी सफसे प्मायी सहे री सुनन्दा ने एक ही यॊ ग की ऊन से भेये सरए मह शार औय यवीन्ि के सरए स्वेिय फुनी थी औय इस शार को भेये ऊऩय डारते हुए कहा था, जफ तू औय यवीन्ि दोनं एक जैसे कऩड़े​े ऩहन कय

साथ-साथ सनकरोगे तो गोये रोग अऩनी गोर-गोर ऑॊखं से तुम्हं घूयंगे। उसने असबनम के साथ मह फात कही, इस ऩय हभ दोनं दे य तक हॉ सते यहे थे। सुनन्दा के कहे इस वासम के साथ भंने बी अनामास ही कई सऩने फुन डारे थे। अऩने उन्हीॊ सऩनं की सतराॉजरी दे कय आज भं अऩने दे श वात्रऩस रौि यही हूॉ। ससय भं हल्का-सा ददष

भहसूस हो यहा है । ऑॊखं फॊद कय सोने की कोसशश भं रगी हुई हूॉ। ऩय भन के बीतय जो बमॊकय उठाऩिक चर यही है , उसके चरते नीॊद आनी भुक्श्कर है ।

बायत से यवाना होते वक्त हवाईअडडे ऩय भुझे छोड़ेने के सरए रयश्तेदायं की रम्फी- चौड़ेी िोरी


आई थी। कुछ रयश्तेदाय तो वाकई खुशी से चहक यहे थे औय कुछ खुश होने का असपर असबनम कय यहे थे। त्रववाह की इस प्रथा ने इन सबी रोगं के सीने ऩय घावं के अरग-अरग भानसचि फना डारे थे, फावजूद इसके वे त्रववाह की यस्भं का गवाह फन कय खुश थे। त्रवसनता फुआ अऩनी फेिी के सरए एन.आय.आई. दल् ु हा तराशते-तराशते थक चुकी थीॊ। भनोज भाभा की फेिी अऩने ऩसत की भाय-ऩीि से दख ु ी होकय अऩने भामके आई हुई थी। ऩड़ेोस की काॊता आण्िी दहे ज की आग भं अऩनी इकरौती फेिी को गवाॉ चुकी थीॊ।

त्रऩताजी रयश्तेदायं की बीड़े से अरग खड़े​े डफडफाई ऑॊखं से भेयी ओय ही दे ख यहे थे। भुझे अऩनी ओय दे खते हुए दे खकय वो भेये ऩास आए। जैसे ही उन्हंने अऩना हाथ भेये ससय ऩय यखा, अफ

तक योके गए ऑॊसू रगाताय फहते चरे गए। फाय-फाय एक ही फात भेये भन भं आ यही थी टक भेये चरे जाने के फाद त्रऩताजी फेहद अकेरे ऩड़े जाएॉगे, बाईमं, बासबमं औय ऩोते-ऩोसतमं के बायी जभावड़े​े के फावजूद। भाॉ के स्वगषवासी हो जाने ऩय त्रऩता ने अऩने आऩको ऩूजा ऩाठ भं ही सीसभत कय सरमा था। ऩाॉचं बाईमं ने अऩनी जभीन ठे के ऩय दे दी थी औय खुद टदन बय फैठ कय शयाफ ऩीते औय चायऩाई तोड़ेते औय बासबमाॉ इधय-उधय चुगसरमाॉ कय घयं भं पूि डरवातीॊ। हभाये त्रवशारकाम घय के कई िु कड़े​े हो गए थे। जफ कबी टकसी बाई की शादी होती, उसके तुयॊत फाद ही वह त्रऩता से घय भं अऩना अरग टहस्सा चाहता। त्रऩता के हाथ टकसी सॊत की तयह हभेशा तथास्तु की अवस्था भं यहते। त्रऩता की शाॊसत इस कदय अबेद्दम थी टक उसे घय की अशाॊसत कबी बेद न सकी। कई फाय तो त्रऩता को दे य तक एक ही

अवस्था भं दे ख कय भं फुयी तयह डय जाती औय उन्हं झकझोय डारती। जफ भेयी इस हयकत ऩय त्रऩता बौचसके होकय भेयी तयप दे खते तो भुझे फेहद शभष भहसूस होती। भाॉ होती तो त्रऩता के दख ु -ददष भं फयाफय का टहस्सा फनती। टपय रगता टक ठीक ही हुआ जो भाॉ अऩने फेिं की कयतूतं को दे खने के सरए नहीॊ यही। बाई जो अफ बाई नहीॊ यहे , टकसी के ऩसत औय टकसी के फाऩ फन गए हं , वो कहाॉ तक हभाया सहाया फनते। बाईमं ने तो भानो त्रऩता की नाक भं दभ कयने के सरए ही जन्भ सरमा था। तीसये नम्फय के बाई ने अऩनी सारी का भकान फनवाने के सरए अऩने फंक भं ऩॊिह राख का घोिारा कय डारा था। त्रऩता ने ही ऩैसे बये औय जफ उसे नौकयी से सनकार टदमा तो फाफा फनकय कई भहीनं तक अऩने खेत भं ही गुपा फनाकय सछऩ गमा। आस-ऩास के गाॉवं के असशक्ऺत रोग अऩनी भन्नतं रेकय उस स्वमॊबू फाफा के चयणं भं रोि-ऩोि होने रगे। फाकी के बाई दक ु ानं से साभान रे रेकय कजषदाय हो गए तो बी त्रऩता ही उन्हं नॊजय आते। बाईमं की कयतूतं का साया त्रवष नीरकॊठ हो चुके त्रऩता को ही ऩीना ऩड़ेता। इस ऩय बी बासबमाॉ त्रऩता को रक्ष्म कय न जाने समा-समा कहतीॊ। जफ त्रऩता अऩनी आदत के


अनुसाय अऩने दोनं हाथ फाॉधे-फाधे घूभते तो बासबमाॉ उन्हं सुना-सुनाकय कहतीॊ 'फूढे का टदभाग चर गमा है ,' तो कबी बाई त्रऩता को इस तयह घूय-घूय कय दे खते तो त्रऩता झंऩ जाते औय चुऩचाऩ आकय गसरमाये भं फैठकय अखफाय ऩढ़ेने रगते। कबी-कबी भुझे अऩने त्रऩता औय अऩनी क्स्थसत शाहजहाॉ औय जहाॉआया जैसी रगती। क्जस शाहजहाॉ के ऩास फेशुभाय सऩनं का अम्फाय तो था ऩय उन सऩनं की नीॊव ससये से ही नदायद थी। जहाॉआया की फेफसी अऩने त्रऩता की फेफसी भं ही शासभर थी। फाहय से सफ कुछ व्मवक्स्थत औय हया-बया टदखाई दे ता था ऩय ऐसा कुछ बी नॊजय नहीॊ आ यहा था क्जसके बयोसे आने वारे कर की रूऩये खा फनाई जा सके। यात के शासभमाने भं कुछ जुगनू जरूय अिके हुए टदखाई ऩड़ेते थे, जो केवर कुछ दे य के सरए जरते, फुझते औय टपय अॊधेये के झुयभुि भं कहीॊ रोऩ हो जाते।

घय के फेहद दभघोिू भाहौर भं ससराई िीचय की नौकयी जीवन भं कुछ योशनी बयती। गाॉव की रड़ेटकमाॉ क्जस उत्साह औय उभॊग से ससराई सीखतीॊ, उसे दे खकय औय उनके जीवन के खट्िे सभट्ठे अनुबव सुनकय हय टदन जीवन की नई औय अरग ऩरयबाषा का साऺात्काय होता। गाॉव से रौिते हुए जफ कबी फस नहीॊ सभरती तो टकसी जीऩ मा भैिाडोय से घय आना ऩड़ेता तो बासबमाॉ भुझे रक्ष्म कय दसु नमा बय की नौकयी कयने वारी रड़ेटकमं को गारी दे डारतीॊ, टपय बाईमं के कान बये जाते औय कान के कच्चे बाई कान बयते त्रऩता के।

त्रऩता की तिस्थता आग भं घी का काभ कयती, तफ उन रोगं का गुस्सा औय बी फढ़े जाता। इसी फीच भंने अऩनी फहनं के सरए अऩने गाॉव की जान-ऩहचान के फूते रयश्ते ढू ॊ ढे। शादी कय वे बी अऩनी ससुयार चरी गईं। उस टदन बी फस के न सभर ऩाने के कायण फहुत दे य हो गई थी। त्रऩता बूखे- प्मासे फैठे हंगे,

मह सोचते-सोचते भं तेजी से घय के बीतय घुसी तो दे खा, त्रऩता साभने चायऩाई ऩय खाना खा यहे थे। फगर भं कुसी ऩय नीना फुआ फैठी हुई थीॊ।

भन को कुछ तसल्री हुई औय इतने टदनं फाद फुआ को घय भं दे ख कय सुखद आद्ळमष बी हुआ। अऩने कभये भं जाकय सोने की तैमायी कय यही थी, उसी वक्त त्रऩता भुझे आवाॊज दे ते हुए कभये भं आए औय अऩनी शाॊत आवाॊज भं फोरे, 'नेहा फेिी, तुभसे कुछ फात कयनी है ।'

'हाॉ त्रऩताजी, कटहए' इस तयह त्रऩता ने कबी नहीॊ कहा था। तुम्हायी नीना फुआ रयश्ता राई हं । रड़ेके का ऩूया ऩरयवाय कई सारं से रॊदन भं यह यहा है । वहाॉ उनका गायभंट्स का त्रफजनेस है । थोड़ेा रुककय वे फोरे ऩय रड़ेका दहु ाजु है । तुभ अच्छी तयह सोच-सभझ कय पैसरा कयना,

आक्खयी शब्द तक आते-आते त्रऩता की आवाॊज फुयी तयह रड़ेखड़ेाने रगी थी। त्रऩताजी की ऑ ॊखं भं ससभिे हुए ददष को दे खकय भं मह नहीॊ जान सकी थी टक त्रऩताजी को भेये चरे जाने का दख ु था मा दहु ाजु रयश्ते के आने का। सनक्द्ळत टदन रड़ेका अऩनी भौसी के साथ बायत आमा। सगाई


की यस्भं सनबाते हुए ऐसा रग यहा था भानं टकसी औय नेहा की सगाई हो यही है ।

उसके फाद ऩासऩोिष ऑटपस के चसकय कािना, दफ्तय से छुट्िी रेने की सबी औऩचारयकताओॊ को ऩूया कयना, त्रऩता की दवाईमाॉ औय उनकी दे खबार की सायी व्मवस्था कयना जैसे ढे यं काभ उस छोिे से अॊतयार भं ही ऩूये कयने थे। आक्खयकाय वह टदन बी आ ऩहुॉचा जफ भं सात सभुन्ि ऩाय ऩयदे श ऩहुॉच गई, जहाॉ का साया का साया ऩरयवेश भेये सरए सनताॊत अजनफी था।

तम मह हुआ टक जफ तक शादी की तायीख सनक्द्ळत नहीॊ हो जाती, भं अऩनी फुआ के रड़ेके

प्रदीऩ के ऩास रुकूॉगी। वहाॉ ऩहुॉच कय जफ एक बमॊकय रूऩ से भोिे आदभी के रूऩ भं प्रदीऩ को दे खा तो त्रवद्वास ही नहीॊ हुआ टक कबी फेहद ऩतरे प्रदीऩ की आज मह हारत थी टक अऩने

भोिाऩे टक वजह से कबी बी वह भोिाऩे का त्रवद्व रयकाडष होल्डय ससर्द् टकमा जा सकता था। रयतु बाबी जो बायत आने ऩय अऩनी ऐॊठ टदखाने के सरए प्रससर्द् थीॊ, वह महाॉ रॊदन भं एक होिर भं सपाई कभषचायी थीॊ। उसे दे खकय अऩने दे श भं काभ कयने वारे नौकय माद आते तो मही रगता टक सायी असभानताएॉ गयीफी भं ही जन्भ रेती हं । घय भं फच्चे कफ आते, कफ जाते, ऩता ही नहीॊ चरता। अऩने भाॉ-फाऩ से फातं कयते तो भंने उन्हं कबी दे खा ही नहीॊ। अऩने शुर्द् शाकाहायी होने की वजह से अऩना खाना बी भं हभेशा अरग ही ऩकाती। महाॉ आकय रगता था टक सबी अऩने सरए अऩनी ही अरग दसु नमा भं जी यहे हं , जहाॉ टकसी को टकसी से कोई सयोकाय नहीॊ है । एक टदन जफ भं चाम फनाकय बाबी के ऊऩय वारे कभये भं ऩहुॉची तो बाबी ने चाम का कऩ

ऩकड़ेते हुए फेहद टहकायत से बये हुए रहजे भं कहा, 'आईंदा भेये कभये भं भत आना। भुझे टकसी का अऩने फैडरूभ भं आना त्रफरकुर ऩसॊद नहीॊ है ।' इतना सुनते ही भं नीचे आ गई औय घॊिं योती यही। ऐसा रग यहा था भानो कुएॉ से सनकर कय भं खाई भं आ सगयी हूॉ।

भहीने फाद क्जस टदन शादी होनी थी, उसी टदन दो व्मस्क फच्चे अचानक से आकय भेये ऩाॉव भं सगय कय ाॊजोय-ाॊजोय से योने रगे औय कहने रगे, 'आण्िी आऩ ही हभं फचा सकती हं ।' फड़ेी दे य तक भं उन्हं चुऩ कयाती यही। उन्हंने जो फतामा, उसे सुनकय भेये ऩैयं तरे की ाॊजभीन क्खसक गई। वे उसी शख्स के फच्चे थे क्जससे भेयी शादी होनी थी। उनकी भाॉ ने अऩने ऩसत के हाथं यंज-यंज की त्रऩिाई से तॊग आकय ऩुसरस भं रयऩोिष सरखवा दी थी क्जसके कायण यवीन्ि को जेर भं यहना ऩड़ेा था। इसी वजह से उसने अऩनी ऩत्नी से अरग होने का पैसरा रे सरमा था। भंने अऩने आऩ को जैसे-तैसे सॊबारा औय उन फच्चं को आद्वासन दे कय त्रवदा टकमा। उसी यात भंने साये त्रवकल्ऩ सोच डारे औय टपय एम्प्रामभंि एससचंज भं नाभ सरखवा टदमा। रगबग एक हफ्ते फाद ही भुझे गायभंि पैसियी भं ऩैटकॊग कयने का काभ सभर गमा। इस साये हादसे को बूरने के सरए भंने अऩने आऩको ऩूयी तयह से काभ भं झंक टदमा। शुरू भं अजनफी भाहौर के साथ साभॊजस्म त्रफठाने भं तकरीप हुई। फपष ऩय चरना भेये सरए फेहद

भुक्श्कर सात्रफत हुआ। बायी-बयकभ कोि को सॊबारते-सॊबारते अससय भं फपष ऩय टपसर जाती।


यास्ते बय ऩैदर चरती तो फेहद अजीफ रगता। ससवाए भेये कोई ऩैदर-मािी वहाॉ नॊजय ही नहीॊ आता। फाद भं ऩैदर चरने वारे मात्रिमं के सरए अरग यास्ते का ऩता चरा। धीये -धीये वहाॉ के वातावयण से थोड़ेा ऩरयचम होने रगा। रॊदन के बागभबाग औय बौसतकवादी ऩरयवेश औय रोगं की जीवन शैरी को नॊजदीक से दे खने- ऩयखने का भौका सभरा। महाॉ का खोखरा जीवन कहीॊ से बी भेये सादगीऩूणष जीवन से भेर नहीॊ खाता था। जफ कबी भन ज्मादा बायी हो उठता तो साऊथहार भं खयीददायी कयने सनकर जाती। वहाॉ से खाने-ऩीने का साभान औय कुछ टकताफं रेकय अऩने उस एकाॊत कभये भं रौि आती। रॊदन के ऩरयवतषनशीर भौसभ की ऑॊख-सभचौरी रगाताय चरती यहती। अचानक से कबी तेज धूऩ सनकर आती तो कबी फारयश की झड़ेी रग जाती। घय से राए गयभ कऩड़े​े नाकापी हो गए थे तो ढे य साये गयभ कोि रेने ऩड़े​े । इधय बाबी को भेया घय यहना अखयने रगा तो पोन ऩय उसने बाईमं को भेये क्खराप कई झूठे टकस्से सुना डारे तो बाईमं के धभकी बये पोन आने रगे टक टकसी बी तयह से शादी कयो। तुम्हायी सगाई हो चुकी है । मटद तुभ त्रफना शादी टकए बायत आई तो हभायी जगहॉ साई होगी, हभ कहीॊ भुॉह टदखाने के कात्रफर नहीॊ यहं गे। एक टदन सुनन्दा का पोन आमा। वह घफयाई हुई फोर यही थी। उसने जो कुछ फतामा, उसे सुन कय भं बी टहर गई थी। उसने फतामा, तेये बाईमं ने तुझे जान से भाय डारने की मोजना फना यखी है । तू बायत भत आना।

इधय वीॊजा की अवसध सभाद्ऱ हो यही थी। यवीन्ि की भदद से ही गरत प्रभाणऩि फनाकय टकसी तयह कुछ भोहरत सभरी। अबी बायत रौिने का भेया भन नहीॊ था, ऩय बायत फेहद माद आता। भेया वजन ऩच्चीस टकरो घि गमा था, ऑॊखं के नीचे गहये कारे घेये हो गए थे। प्रदीऩ बईमा औय बाबी के तानं ने अरग जीना भुक्श्कर कय टदमा था। फारयश के टदनं भं जफ घनघोय फपष सगयती तो चायं ओय सपेद ही सपेद टदखाई ऩड़ेता। योशनदान, छत, क्खड़ेकी, सड़ेकं, ऩेड़े चायं ओय सपेदी ही सपेदी। कबी तो ऐसा रगता टक समा मह दयू तक पैरी हुई फपष भेये बायत जाने के सरए रुकावि तो नहीॊ फन जाएगी। मह सोचकय अजीफ तयह की घफयाहि भुझे घेय रेती।

कबी ऐसा सऩना आता टक बायत भं अऩने घय से सबी रोग चरे गए हं , केवर त्रऩताजी ही घय ऩय है औय वे अऩने आसन ऩय फैठकय जोय-जोय से 'ऊॉ नभ: सशवाम' का उच्चायण कयते हुए भारा जऩ यहे हं औय कबी जाग्रत अवस्था भं बी अऩना घय िू िा हुआ टदखाई ऩड़ेता औय

त्रऩताती घय के भरफे भं दफे हुए जोय-जोय से सचल्राते हुए टदखाई ऩड़ेते। ऐसी चीॊजं सोचकय भन की फैचेनी फढ़े जाती। भं जीवन के साथ तेजी से फही जा यही थी।

आज 547 टदनं के फाद बायत रौि यही हूॉ, जहाॉ की सभट्िी अऩनी है , हवा अऩनी है औय हय


अऩरयसचत चेहया बी अऩना ही है । भन भं शाॊसत बय गई है । ऐसा रग यहा है , भानं भीरं के सपय के फाद उऩजी क्जस थकान को भं ढो यही थी, वह अचानक कापूय हो गई है । पुती से जैसे ही कदभ आगे फढा यही थी, उसी वक्त ऩाॉचं बाई औय त्रऩताजी ऑॊखं भं अॊगाये सरए आगे फढ़ेते टदखाई ऩड़े​े । भंने बी अऩने कदभ भजफूती से यखे औय गहये आत्भत्रवद्वास से चरती यही।   उषा शभाष

डॉ. उषा शभाष एप-564, चाय इभरी बोऩार-462016

भो.: 09425138047

कुकीचे

फयदै न नीरू, काकसी ती?' ठॊ डे कारे दस्तानं से ढॉ की हथेसरमं की गयभी को भहसूसते हुए भंने उससे हाथ सभरामा। भुस्कुयाता हुआ उसका झुयीदाय, गोया-सचट्िा, गुराफी चेहया भुझे ऩता नहीॊ समं इतना आकत्रषषत कयता है । कुछ ऩर एकिक उसको दे खते हुए 'दब्र ु े भैसी' कहते हुए भंने अऩने हाथ ससकोड़े सरए। उसने उस तयप ध्मान नहीॊ टदमा फक्ल्क तेजी से टकचन की ओय भुड़ेगई। त्रवरी ऐसा कबी नहीॊ कयती। वह सफसे ऩहरे दयवाजा फॊद कयती, टपय भुझसे हाथ सभराती। भं उसे कुछ ऩर सनहायती, तफ कहीॊ उसका हाथ छोड़ेती, झंऩते हुए। वह भुस्कयाती औय अऩना कोि औय भपरय खूि ॉ ी ऩय िाॉगती, स्नो शूज उतायती औय अऩने फैग से हाउस स्रीऩय सनकारती,

फाथरूभ जाकय फार सॉवायती, चेहया सबन्न-सबन्न कोणं से सनहायती, तफ कहीॊ जाकय टकचन भं ऩहुॉचती। रेटकन आज भं बी उसके ऩीछे -ऩीछे टकचन भं घुस गई। ''समा आऩ चाम त्रऩएॉगी?'' भंने त्रफना उसकी ओय दे खे ऩूछा।

''हाॉ, हाॉ, जरूय'' उसने प्रसन्नता से कहा, ''ऩय शसकय कभ डारना।''


''ठीक है '' भंने भुस्कयाते हुए हॉि प्रेि ऩय चाम का ऩैन चढ़ेा टदमा। जैसे ही त्रवरी घय भं घुसती है , वैसे ही भेया घय ऩता नहीॊ समं भेया नहीॊ यहता। भं अऩने ही घय से इतनी अऩरयसचत हो

उठती हूॉ कुछ घॊिं के सरए टक हॉि प्रेि का कौन-सा क्स्वच दफाना है , मह बी बूर जाती हूॉ। वह बी त्रवरी ही दफाती है औय भं भजफूय खड़ेी यह जाती हूॉ।

'चेस्तीता फाफा भाताष' त्रवरी ने जेफ से रार-सपेद ऊन से फना सुॊदय याखीनुभा चोिी जैसा कुछ सनकार कय भेये कॉरय भं त्रऩन से िाॉक टदमा। 'मे है भातेसनत्सा जो सपेद औय रार धागे से फनामा जाता है । आज के टदन इसे अऩने त्रप्रमजनं को बंि टकमा जाता है ।' 'फहुत सुॊदय है मह, धन्मवाद', भंने झुकते हुए कहा।

'हाॉ, फसॊत सफसे सुॊदय होता है औय हभाये दे श भं आज से फसॊत की शुरुआत भानी जाती है । इससरए भं तुम्हाये सरए खोजकय 'कुकीचे' बी राई हूॉ। सुख, सभृत्रर्द् औय सौबानम का द्योतक मह सपेद पूर।'

उसने भेये टकचन के सफसे सुॊदय काॉच के फतषन भं ऩानी बय कय उसभं कुछ कुकीचे तैया टदए औय डामसनॊग िे फर ऩय यख टदमा। 'भं आऩको टकन शब्दं भं धन्मवाद दॉ ,ू त्रवरी' भंने उसका हाथ थाभ सरमा।

त्रवरी ने भेया भाथा चूभा औय दस्ताने ऩहने हाथं से भेये फारं को सहरामा। 'तुभ त्रऩछरे जन्भ भं भेयी फेिी थी, समा तुम्हं इतना बी नहीॊ भारूभ?' हॉ सती हुई वह फाहय सनकरी औय दयवाजा फॊद कय, कोि औय भपरय उताय कय खूि ॉ ी ऩय िाॉग , जूते उतायने रगी। 'त्रवरी, आऩ ड्राइॊ ग रूभ भं ऩहुॉसचए, भं चाम रेकय वहीॊ आ यही हूॉ।' 'ठीक है ', त्रवरी अफ ऩूयी तयह अऩने ऩुयाने ढये ऩय आ गई थी।

भं जल्दी से दो कऩं भं चाम डारकय औय नभकीन रेकय वहाॉ ऩहुॉची। त्रवरी ऩदाष सयका कय हीटिॊ ग भं हाथ संक यही थी। 'मे रीक्जए', भंने उसे कऩ ऩकड़ेामा। 'तुम्हाये दे श की चाम की भं प्रशॊसक हूॉ, रेटकन तुभ शैतान रड़ेकी टपय से मे खयाफ चीज रेकय

आ गईं।' त्रवरी ने नभकीन की ओय इशाया कयते हुए कहा। भं हॉ स ऩड़ेी। सचभुच भं जानफूझकय ही नभकीन राई थी। त्रवरी को नभकीन तो फहुत अच्छी रगती थी भगय आज तक वह उसे

खाना नहीॊ सीख ऩाई। जफ बी खाती, नभकीन हथेसरमं से सयक कय जभीन ऩय सगय जाती। भं हॉ स ऩड़ेती। 'नोगो, िुदनो' (फेहद कटठन) भंने कहा, 'मे दे खो, भं कैसे खा यही हूॉ, आऩ चम्भच से खाइए न।'

'हूॉ, हे कोरो, सभयो, दोफयदै न, चेस्तीता फाफा भाताष' त्रवरी ने क्खड़ेकी का शीशा ऩूया खोर टदमा। हडडी तक कॊऩा दे ने वारी ठॊ डी हवा का झंका ऩूयी ताकत से अॊदय घुस आमा।


'त्रवरी, क्खड़ेकी फॊद कयो, भं भय जाऊॉगी ठॊ ड से' रेटकन त्रवरी तो रगता है , आज फसॊतोत्सव भनाकय ही भानेगी, बरे ही भेयी जान चरी जाए। 'बायतीम चाम त्रऩमोगे?' वह फाहय खड़े​े दोनं वृर्द्ं, कोरो औय सभयो से ऩूछ यही थी। 'हाॉ, हाॉ, समं नहीॊ?' 'मे रो,' औय उसने अऩनी औय भेयी जूठी चाम के दोनं प्मारे उन्हं ऩकड़ेा टदए औय क्खड़ेकी फॊद कय दी। 'अये त्रवरी चाम जूठी है ।' मे फात उसे सभझाने भं भुझे ऩूये फीस सभनि रगे औय मही भुझे इस फात की फेहद कोफ्त होती थी टक उसकी बाषा भुझे ठीक से समं नहीॊ आती। 'हभ मे सफ फात नहीॊ भानते'। उसने भेयी फीस सभनि की भेहनत को अऩने फेहद राऩयवाह एक वासम भं सभेि टदमा। वह टकचन भं फतषन धो यही थी औय कुछ गुनगुना यही थी। त्रवरी इस अऩरयसचत दे श भं भेयी ऩहरी ऩरयसचता है । त्रफना बाषा औय उम्र के साभॊजस्म के कफ वह भेयी खास हो गई औय भं उसकी, मह हभ दोनं ही नहीॊ जानते। फस का सचि फनाकय मह फताना टक इसे 'फुस' कहते हं औय इसका टिकि टकसी बी फुकस्िॉर ऩय सभरेगा मा फस के अॊदय ड्राइवय से। केरे औय सब्जी कहाॉ सभरंगे, झाडू से रेटकन काय तक 'भेट्रो' (फेहद फड़ेी दक ु ानं) भं सभरेगा, वहाॉ तक रे जाना, राना, जफ तक काय नहीॊ खयीदी, तफ

तक उसकी काय भं फैठकय घूभने जाना, कफ त्रवरी ने मह क्जम्भेदारयमाॉ रे रीॊ, ऩता ही नहीॊ चर ऩामा। भेया फेिा अनु समा खाएगा? उसके सरए तयह-तयह की िोत्रऩमाॉ औय भपरय, प्रोपेसय (भेये ऩसत को वह सदा इसी नाभ से ऩुकायती) को है ि मा िोऩी ऩहनना चाटहए जैसी फातं की सचॊता

कयने की क्जम्भेदायी बी उसने रे री। औय कफ उसने अऩनी एक 'रेव' की दक ु ान फॊद कय भेये घय के काभं की क्जम्भेदायी अऩने हाथं भं रे री, मह बी।

त्रवरी ने घय की एक चाफी रे री थी। भं घय यहूॉ न यहूॉ, सोमी यहूॉ मा जागी, वह आती औय घय की सपाई से रेकय कऩड़ें तक को अरभायी भं जभा जाती। टकतनी ही फाय जफ भं सोमी होती तो भुझे यजाई ओढ़ेा कय, दयवाजा ढक कय, धीये -धीये काभ कयती ताटक भेयी नीॊद भं खरर न ऩडे । वह फहुत ध्मान यखती थी भेया। त्रवदे श भं भुझे भाॉ सभर गई थी। ये रवे के टकसी अच्छे ऩद से रयिामय हो जाने के फाद इस छह पुि की आकषषक औय स्भािष त्रवरी को घय ऩय फैठना ऩसॊद नहीॊ आमा तो उसने छोिी-सी एक दक ु ान खोर री क्जसभं आभ आदभी की जरूयतं का फेहद

सस्ता हय भार 'एक रेव' (फुल्गारयमा की भुिा) भं सभरने वारी वस्तुएॉ थीॊ। त्रवरी का ऩसत साया सभम िी.वी. दे खकय मा अऩनी ऩुयानी 'राडा' काय के नीचे रेिकय उसे ठीक कयते हुए अऩना

सभम त्रफतामा कयता। त्रवरी क्जतनी व्मावहारयक औय खुरे स्वबाव की थी, उसका ऩसत उतना ही घयघुस। उसका फेिा सनकोराई टकसी का सनजी फॉडीगाडष था। वह कबी-कबी घय आमा कयता। भाॉ का खास दोस्त था सनकोराई। जफ 'सनकोराई' घय आता, त्रवरी काभ ऩय नहीॊ आती थी। भं सभझ जाती औय अनु के हाथं कोई बायतीम व्मॊजन खासकय ऩकौड़े​े मा हरवा औय चाम फनाकय


उसके घय सबजवा दे ती औय फदरे भं अनु केक रेकय आता। 'सनकी' के जाते ही त्रवरी सुस्त हो जाती। दो एक टदन जैसे वह होती ही नहीॊ थी। खुशसभजाज त्रवरी थकी-थकी-सी यहती। भंने टकतनी ही फाय उससे कहा 'त्रवरी, आऩ काभ भत कीक्जए, थोड़ेा घूभ टपय आइए कहीॊ।' वो उदास हॉ सी हॉ सकय कहती, 'सनकी जाता है तो तुम्हाये घय भं भुझे खुशी सभरती है । तुम्हं ऩता है , भं तुम्हाये ऩास ऩैसे के सरए नहीॊ, खुशी के सरए काभ कयती हूॉ।'

भं फात ऩरिते हुए कहती, सनकी त्रफरकुर आऩके जैसा टदखता है रम्फा, गोया औय स्भािष ।

'अच्छा', उसकी ऑॊखं भं चभक आ जाती। 'सबी मही कहते हं । सनकी तो भेयी जान है , वह चरा बी जाए तो भेयी दोनं ऑॊखे उसके आस-ऩास ही घूभती हं ।' वह कहीॊ खो जाती। भंने तो सुना था टक त्रवदे शं भं भाॉ, त्रऩता औय फच्चे आऩस भं इतना जुड़ेाव नहीॊ यखते हं । खासकय जफ वे अऩने ऩैयं ऩय खड़े​े हो जाते हं , तफ। रेटकन दसु नमा की हय भाॉ ऐसी ही होती है , मे भुझे अच्छी तयह सभझ भं आ गमा था।

तबी डोय फैर फजी। भं सोपे से उठती, इससे ऩहरे ही त्रवरी ने दयवाजा खोर टदमा। साभने 'कोरो' दोनं कऩ उसे ऩकड़ेाते हुए कुछ फोरा। त्रवरी जोय से हॉ सी ''ठीक है , कर इसी सभम ऩाकष भं खड़े​े हो जाना, भं क्खड़ेकी से तुम्हं दे दॉ ग ू ी चाम।'' उसने कोरो से कहा औय दयवाजा फॊद कय टदमा। वह भेयी औय भुड़ेकय फोरी ''दे खो तो, तुम्हायी चाम तो भशहूय होती जा यही है ।'' ''हाॉ, आऩने भशहूय कय दी'' भंने हॉ सकय कहा।

''चरो, समं न चाम-ऩकौड़े​े की दक ु ान रगा रं।'' हभ दोनं हॉ स ऩडे । त्रवरी जूते ऩहन चुकी थी औय हाउस स्रीऩय फैग भं यख यही थी।

''त्रवरी, भंने टकतनी फाय आऩसे कहा टक आऩ भेये स्रीऩय ऩहन सरमा कीक्जए, आऩ समं इतना कद्श कयती हं योज।'' भं उसकी योज की इस झॊझि को सहन नहीॊ कय ऩाती थी। ''अये नहीॊ, मे भेये स्रीऩय है , सभझीॊ, जया भुझे कोि ऩहना दो'' त्रवरी ने भेयी ओय अऩनी ऩीठ कय दी। ''रीक्जए'' भंने उसे कोि ऩहनाते हुए भपरय बी उसके गरे भं डार टदमा।

''भैसी, अफ तुभ जल्दी तैमाय हो जाओ, फाहय चरंगे, कुकीचे ढू ॉ ढ़ेंगे औय सफको 'चेस्तीता फाफा भाताष' कहं गे।'' ''रेटकन भं तो'' ...भं सॊकोच भं ऩड़े गई। ''भं तो समा, तुभ औय भं फाॊजाय भं घूभंगे, कापी त्रऩएॉगे औय भस्ती कयं गे। आज फसॊत का ऩहरा टदन है । यजाई छोड़ेो, फाहय आओ। जल्दी।'' ''ठीक है ... भं आती हूॉ।''

हे बगवान! इस ठॊ ड भं कुकीचे ढू ॉ ढो, त्रवरी सच्ची भं सटठमा गई है । इतना काभ टकमा है इसने। ऐसा नहीॊ टक घय जाकय आयाभ कये । अनभने ढॊ ग से कोि औय जूते ऩहनकय भं तैमाय हो गई। भंने क्खड़ेकी से नीचे झाॉका। दे खा, त्रवरी सजधज कय खड़ेी थी। बूये यॊ ग का रम्फा पयवारा कोि,


बूये ही ऊॉचे जूते औय बूया सपेद भपरय। रार सरत्रऩक्स्िक से सजी त्रवरी एकदभ गुटड़ेमा रग यही थी। 'चरो' वह सचल्राई। ''हाॉ, हाॉ आती हूॉ।'' भंने बी सचल्राकय कहा जफटक भुझे ऩता है टक भेयी आवाॊज इन शीशं को ऩाय कय उस तक नहीॊ ऩहुॉचेगी। रेटकन जाने से ऩहरे भंने बी सरत्रऩक्स्िक रगा री। आक्खय उसकी खुशी भं भेयी बी तो खुशी है । ''नोगो खूफवू (फहुत सुॊदय)''

भं शयभा गई। ''त्रवरी आऩसे असधक नहीॊ। आज तो आऩ फहुत खुश है ।'' भंने कहा।

उसने जेफ से चाकरेि सनकारकय भुझे दी, ''इसे ऩूया खा जाओ अबी, आज सनकी का जन्भटदन है औय भेया बी। इसीसरए फसॊत भेये सरए औय बी खास हो जाता है ।'' ''ओहो... आऩको फधाई।'' भं उसके गरे से रग गई, ''सनकी आज टकतने वषष का हो गमा?'' 'इकतीस।' ''अच्छा, चरो उसके सरए कुकीचे ढू ॉ ढ़ें।'' हभने फपष के नीचे क्खरने वारे उस दर ष सपेद पूर की ु ब

खोज शुरू कय दी। मह फसॊत भं क्खरने वारा ऩहरा नाजुक-सा सपेद पूर है जो 'फसॊत आ गमा' का सॊदेश दे ते हुए सॊऩूणष प्रकृ सत को झकझोय दे ता है रेटकन स्वमॊ अल्ऩावसध तक ही जी ऩाता है । ''मे रीक्जए त्रवरी, भुझे सात 'कुकीचे' सभर गए।''

''वाह!'' वह ऩास आई, पूरं को जेफ भं डार भेये हाथं को अऩने हाथं भं रेकय गयभाने रगी। ''टकतनी ठॊ डी हो गई हं तुम्हायी उॉ गसरमाॉ, फपष खोदने की समा जरूयत थी?'' उसने डाॉिते हुए कहा।

'त्रवरी, आऩको ऩता है , भेये दे श भं बी फपष सगयती है । भेया फचऩन ऩहाड़े भं ही गुजया है । जफ बी फपष सगयती, हभ 'स्नो भैन' फनाते हुए घय के साये फतषन उसको सजाने भं रगा दे ते। भाॉ टकतना सचल्राती। कबी किोयी गामफ, तो कबी सगरास, चम्भच औय जफ धीये -धीये फपष त्रऩघरती तो टकचन भं फतषन टपय सजने रगते। फपष के नीचे चम्भचं, किोयं औय सगरासं का खजाना सभरता।' 'शैतान रड़ेकी' त्रवरी जोयं से हॉ स ऩड़ेी। ''भेया सनकी बी 'स्नो भैन' फनाता था। अबी बी फनाता है औय कहता है , मे है भेयी भाॉ वेसरच्का भासतषनोवा।'' कहते-कहते वह रुऑॊसी हो गई। भंने उसे हाथ से सहाया टदमा। ''अये , आऩ तो बावुक हो गईं। सनकी आमा नहीॊ अऩने जन्भटदन ऩय।'' ''हाॉ, वो आएगा शाभ को चाय फजे, अबी तो 12 ही फजे हं ।'' त्रवरी की आवाॊज भं वैसी ही खुशी टपय आ गई, ''चरो साभने ये स्तयाॉ भं कापी त्रऩएॉ?''


''चसरए'' हभ दोनं आधी त्रऩघरी फपष ऩय धॉसते-धॉसते एक दस ू ये को सहाया दे ते ये स्तयाॉ की ओय फढ़े​े ।

''त्रवरी, अफ तो फपष नहीॊ सगये गी न।'' भं छह भहीने से रगाताय ऩड़े यही फपष से ऊफ चुकी थी। ''नहीॊ, अफ त्रफरकुर नहीॊ। भंने अऩनी चंसठ सार की ाॊक्जॊदगी भं ऐसा नहीॊ दे खा टक फाफा भाताष के फाद फपष सगये । तुभ दे खना, फसॊत इतनी जल्दी आएगा टक सुफह जफ तुभ अऩनी क्खड़ेकी के फाहय झाॉकोगी तो चायं ओय सचटड़ेमाॉ गा यही हंगी, कफूतय नाच यहे हंगे औय ऩेड़ें भं नन्हीॊ-नन्हीॊ हयी ऩत्रत्तमाॉ हंगी। भेया सनकी बी भेयी ाॊक्जॊदगी भं ऐसे ही आमा।'' वह टपय कहीॊ खो गईं। ''त्रवरी, आऩ सनकी को फहुत प्माय कयती हं ?'' भंने फेतुका-सा प्रद्ल ऩूछ सरमा। उसने त्रवस्भम से भुझे दे खा। भं झंऩ गई। ''सफसे ज्मादा, अऩने ऩसत से ज्मादा औय अऩने से बी ज्मादा। सनकी है तो भं हूॉ, नहीॊ तो भं बी नहीॊ। सनकी, भेया फेिा, उसने अभेरयका मा कोई दस ू ये दे श जाने से बी भना कय टदमा, तुम्हं ऩता

है ? आजकर के रड़ेके त्रवदे श जाकय ऩैसा कभाना चाहते हं ऩय भेया सनकी सफसे अरग रड़ेका है । वह कबी बी हभं अकेरा छोड़ेकय नहीॊ जाएगा।'' अचानक त्रवरी ने भेया हाथ कस कय ऩकड़े सरमा, ''भं उसके त्रवदे श जाने की कल्ऩना बी नहीॊ कय सकती।'' उसका रम्फा गोया चेहया गुराफी हो गमा था ''तुम्हं एक याज की फात फताऊॉ।'' ''हूॉ...'' भंने त्रवरी की ओय दे खा।

''सनकी भेया अऩना फेिा नहीॊ है । भंने गोद सरमा है उसे फाफा भाताष वारे टदन... इसे कोई नहीॊ जानता।'' ''समा सनकी बी नहीॊ...'' भं त्रवक्स्भत थी। ''नहीॊ, औय बगवान का चभत्काय तो दे खो उसकी सूयत बी भुझसे सभरती है । भं इस सच को अऩने से बी दयू यखती हूॉ। रेटकन कुछ टदनं से न जाने समं भुझे कुछ खिक यहा है ।'' ''समा।''

''कुछ नहीॊ'' उसने कॉपी का प्मारा भेये प्मारे से िकया टदमा, 'जा सनकोराई' (सनकी के सरए) हभ खाभोश, कॉपी ऩीते जा यहे थे। फाहय सनकरकय दे खा, धुध ॊ छॉ ि चुकी थी। हल्की-हल्की धूऩ फादरं के फीच से अिक-अिक कय हभ ऩय सगय यही थी। ''त्रवरी, भै सनकोराई के सरए कुछ खयीदना चाहती हूॉ, तुभ फताओ, समा खयीदॉ ।ू ''

''उसे जूतं का शौक है भगय भंने खयीद सरए हं जूते। ऐसा कयो, तुभ भोजे खयीद रो।'' ''भोजे, फस? ...'' ''तो टपय।''


''समा भं एक स्वेिय खयीद रू? ॉ '' ''हाॉ, मे ठीक यहे गा, उसे नीरा औय रार यॊ ग ऩसॊद है ।'' भंने नीरे यॊ ग की स्वेिय खयीदी औय ऩैक कयवाकय त्रवरी को दे दी। त्रवरी फेहद खुश थी। यास्ते बय उसने सनकोराई की फचऩन से रेकय अफ तक की न जाने टकतनी शयायतं औय भासूसभमत के टकस्से सुनाए। उसने फतामा टक सार बय सनकी कहीॊ बी यहे ऩय जन्भटदन भेये साथ ही भनाता है । उसने मह बी फतामा टक आज उसने तरे हुए आरू फनाए हं , जो सनकी को खास

ऩसॊद है । फानीत्सा औय रुतेसनत्सा बी फनामा है । घय बय भं यॊ ग-त्रफयॊ गे गुब्फाये रगाए हं औय त्रऩता ने तो सुफह से ही शयाफ की दक ु ान रगा री है घय भं।

घय के ऩास ऩहुॉचकय भंने त्रवरी से कहा, 'भं चाम औय ऩकौड़े​े सबजवा दॉ ग ू ी चाय फजे।' 'भैसी' त्रवरी ने हाथ टहरामा।

ढाई फज चुके थे। भंने जल्दी-जल्दी आरू, प्माज कािे औय फेसन गरामा। ऩकौड़े​े फनाए, हॉि-ऩॉि भं यखे औय चाम फनाने रगी। इसी फीच पोन फज उठा। बायत से भाॉ का पोन था। भं फातं भं भगन हो गई ऩहरे भाॉ, टपय त्रऩता, बाई, बाबी औय फहनं। ऩसका आधा घॊिा। 'ओह, सवा चाय।' भंने झिऩि चाम थयभस भं डारी औय फाहय झाॉका। फाहय तेज हवा चर यही थी औय सपेद फादरं से आकाश सघया हुआ था।

'समा भौसभ है ?' भंने सोचा। दो घॊिे ऩहरे कुछ औय था औय अफ कुछ औय। भं हॉि ऩॉि औय फ्रॉस्क रेकय नीचे उतयी। साभने रकड़ेी की फंच ऩय कोई फैठा था। इतनी हवा औय ऑॊधी भं... छोड़ेो, भुझे समा? रेटकन जैसे-जैसे भं ऩास ऩहुॉची, भेये ऩैय शून्म होने रगे। मे तो त्रवरी है औय साथ भं उसका ऩसत साशो...। ''त्रवरी?'' भंने उसके कॊधे ऩय हाथ यखा। ''त्रवरी, त्रवरी...।'' त्रवरी की गोद भं भेया टदमा ऩैकेि ऩड़ेा था। नीचे स्वेिय का औय उसके खयीदे जूते का...। ''त्रवरी, समा हुआ?''

उसने उदास सनगाहं से भेयी ओय दे खा। भं उसके ऩास फैठ गई। उसका ठॊ डा हाथ अऩने हाथं भं सरमा। ''त्रवरी, समा हुआ?''

साशो ने कहा 'सनकोराई चरा गमा स्ऩेन।'


''समा???।'' ''हाॉ।'' हभ दोनं चुऩ थे। धीये -धीये हवा शाॊत हो चुकी थी औय अफ फपष सगय यही थी। चंसठ सारं भं ऩहरी फाय इस टदन फपष सगय यही थी। त्रवरी का रम्फा गोया चेहया सपेद हो गमा था। कुकीचे त्रवरी के हाथं से नीचे सगय गए थे औय रगाताय ऩड़े यही फपष उन्हं ढॉ कती जा यही थी।   गुॊजेश कुभाय सभश्र

गुॊजेश कुभाय सभश्र द्राया श्री प्रभोद कुभाय सभश्र बगवान नगय (फाउयी ऩाड़ेा) गोशारा योड़े, दध ु ानी दभ ु का झायखॊड-814101

भो.: 0930899112

तुम्हं माद हो टक न माद हो नो, कैसी हो तुभ? इधय कई टदनं से हभेशा की तयह भं अऩने बगवान से प्राथषना कयता यहा हूॉ टक खुदा तुम्हं खुश यखे औय भुझे ऩूया त्रवद्वास है टक उसने तुम्हं खुश यखा हो मा ना यखा हो, रेटकन तुम्हं खुश जैसा यहना जरूय ससखा टदमा होगा। भं बी आजकर जफ हॉ सता हॉ , तफ तो हॉ सता ही हॉ , जफ योने का भन होता है , तफ बी हॉ स दे ता हूॉ। भॊजे की फात तो मह है टक जफ भं चुऩ होता हूॉ तो भेये अन्दय फहत जोय की हॉ सी उठती है । मकीनन मह हॉ सी तुम्हायी हॉ सी नहीॊ है , तुम्हायी हॉ सी को भं बरा कैसे बुरा सकता हूॉ, त्रफरकुर ब्रेटपक हॉ सी। सच फात तो मह है टक जफ तुभ हॉ सती हो तो तुभ नहीॊ हॉ सती हो, वह तो कोई औय ही होती है जो इतना खुर कय

हॉ सती है । भुझे तो रगता है टक जैसे टपल्भ 'सीता औय गीता' भं हे भा भासरनी के दो टकयदाय थे, वैसे ही तुम्हायी बी कोई गीता जैसी फहन है जो वैसी हॉ सी हॉ सती है । खैय जो बी हो, इतना


तो तम है टक भेये अन्दय की वह हॉ सी तुम्हायी नहीॊ है । उसभं तो फहुत सायी हॉ ससमाॉ सभरी हुई हं त्रवशेष की हॉ सी, यासगनी की हॉ सी, हषष की हॉ सी, 150

CC DTSI ये ड फजाज ऩल्सय की हॉ सी,

अॊखफायं की हॉ सी। जानती हो मह राॊफ्िय चैरंज कफ खत्भ होता है ? जफ इसके असरी प्रसतबागी 'भं', 'सॊत्रवधान', 'शऩथ', 'सनद्षा' जैसे शब्द कई घॊिं तक हॉ सते हं , टपय तासरमाॉ गड़ेगड़ेाती हं , शीशे से शीशा िकयाता है ...। िकयाने से माद आमा टक तुम्हं अफ माद है मा नहीॊ टक हभ ऩहरी फाय कफ िकयाए थे? हाॉ फाफा, हभ िकयाए नहीॊ ऩय आभने-साभने तो हुए ही थे न!

उन टदनं भं कॉरेज की गसतत्रवसधमं भं बाग रेने वारा एक सचेतन छाि हुआ कयता था औय

अऩनी गसतत्रवसधमं को कॉरेज से सनकार कय फाहय बी रे जाने रगा था। इसी क्रभ भं, भंने एक रेख स्थानीम अखफाय के सम्ऩादक को टदमा था। उस टदन उसने ऩॊिहवी फाय भेया पोन रयसीव नहीॊ टकमा था। हाॉराटक भं जानता था टक वह रेख नहीॊ छऩने वारा, टपय बी भं सम्ऩादक के भुॉह से एक औय फाय सुन रेना चाहता था टक ''तुभ सरखते फहुत अच्छा हो रेटकन हभाये

अखफाय की मह ऩासरसी नहीॊ है ... आजकर मह सफ ऩढ़ेता कौन है ? ...भं तुम्हं एक नम्फय दे यहा हूॉ। उस ऩय फात कयो, वे रोग ऐसी चीॊजे छाऩते हं ... कहीॊ कुछ छऩे तो फताना ाॊजरूय।

'आर द फेस्ि पॉय मुअय फ्मुचय'।'' तफ भुझे मह फात सभझ भं आ यही थी टक भेये जभशेदऩुयी दोस्त सही कहते हं टक भं भाकेि के टहसाफ से आउिडे िेड हूॉ औय तफ भुझे अऩने छोिे से

अध्ममन कार भं ऩढ़े​े गए फड़े​े -फड़े​े रेख जो त्रवचायं की शाद्वतता की फात कयते थे, ससपष एक गरतपहभी नॊजय आ यहे थे। तफ भं सोच यहा था टक आज ही 'सशव खेड़ेा' की 'जीत आऩकी'

टपय से ऩढू ॊ गा औय उसके पाभूर ष ं ऩय ाॊखद ु को अऩडे ि करुॉ गा। मह सोचकय भं 'रोक व्मवहाय', 'सचॊता छोड़ेो, सुख से क्जमो', 'फड़ेी सोच का फड़ेा जाद'ू , ऐसी कई टकताफं भं ऩढ़ेी गई खासो-आभ तभाभ फातं को माद कय ही यहा था टक वह ऩॊत्रक्त क्जसभं इभषसन ने कहा था ''जैसे ही आऩको

ऩता चरे टक आऩ टकसी के प्रसत त्रवशेष रूऩ से आकत्रषषत हं तो सभझ रं टक उसभं आऩकी खास रुसच है , वह आऩको ईद्वय की ओय से टदमा गमा भहान उऩहाय है औय इसी के द्राया आऩके बानम का ससताया फुरॊद होगा'' भेये साभने थी। हाॉ, मह सही है टक तुभने भुझे ऩीछे से आवाॊज दी थी औय जफ बी कोई भुझे ऩीछे से आवाॊज रगाता है तो भुझे भाॉ की माद आ जाती है , जो ऩीछे से आवाॊज रगाने को अशुब भानती हं । उस यंज बी तत्कार भुझे भाॉ की माद आई थी, रेटकन तुयॊत ही भुझे मह बी माद आमा था टक फात-फात भं भाॉ को माद कयना 'आउिडे िेड' होने की सनशानी है औय मह फात माद आने के फाद वारे ऺण के सौवं टहस्से भं भंने तत्कार भाॉ को बुरा टदमा था। टपय भाॉ को बुराते-बुराते तुभ भेये साभने थी। अफ तुभ फताओ, ऐसे भं भं समा भानता... मही न टक तुभ भेये साभने ही थी। तुम्हं साभने दे खते ही भं अऩनी इभेज भं वाऩस रौि आमा था क्जसभं भं शामद टकसी थाने का भुॊशी रगता यहा होऊॉगा, एक कठोय रृदम वारे रड़ेके की बूसभका भं औय चूटॉ क तुभ भेये ही फैच


की छािा थी तो वह कठोयता कुछ औय असधक असतरयक्त कठोयता भं फदर गई थी, क्जसे तुभने बाॊऩ सरमा था। तुम्हं बाॊऩा हुआ जानकय भं झंऩ गमा था औय भेये झंऩने ऩय तुभ भुस्कुयाई थी, क्जसने भुझे बी भुस्कुयाने का भौका टदमा था क्जसकी भुझे सफ से ज्मादा जरूयत थी। फाद के टदनं भं भंने तुम्हं अऩनी असतरयक्त कठोयता का कायण फतामा था त्रवशेष। त्रवशेष भेया सफसे प्माया दोस्त था। दोस्त समा! भाॉ तो कहती है , उन टदनं जफ हभ सभट्िी, स्रेि औय ऩंससर खामा कयते थे तो बी एक दस ू ये के सरए फचा कय यखते थे। गजफ की

स्भयणशत्रक्त थी उसकी। जफ वह भाध्मसभक भं था, तबी से हाई स्कूर तक की क्सवज जीता कयता था औय यॊ ग ऐसा गोया टक गार जया-सा भसर दो तो सेफ हो जाम। हभ सफ नवीॊ कऺा भं थे, तबी यासगनी का एड़ेसभशन हुआ था, वह बी सेशन शुरू होने के 3 भहीने फाद। िीचय ने यासगनी का ऩरयचम कयाते हुए कहा था टक हभं इसकी भदद कयनी होगी नहीॊ तो यासगनी नवीॊ कऺा भं ही यह जाएगी औय टपय िीचय ने खासतौय से त्रवशेष को कहा था टक वह ऩढ़ेाई भं

यासगनी की भदद कये । टपय, टपय समा? अफ हभाये गु ्यऩ भं यासगनी बी शासभर हो चुकी थी, जो हभ सफ की तो दोस्त थी ही, रेटकन भेये त्रवशेष दोस्त त्रवशेष को अऩना त्रवशेष दोस्त अथाषत ् 'फेस्ि िंड' फताती थी क्जससे त्रवशेष अऩने आऩ को औय त्रवशेष सभझने रगा था। भुझे अफ

रगता है टक वह उस वक्त जो बी फातं भुझसे कयता था दयअसर वह वे फातं यासगनी से कयना चाहता था। इन्हीॊ फातं के फीच हभ दसवीॊ ऩास कय गए थे औय त्रऩछरे दो वषं को छोड़े दं तो फाकी के सारं भं दे खे गए हभाये साझे सऩने के अनुसाय हभं करा का छाि हो जाना चाटहए था। रेटकन, टकतना अच्छा होता मटद हभेशा ही जो होना चाटहए, वही होता। असर भं होता वही है

जो होने वारा होता है । ओह! तुभ इस होने, न होने भं भत पॊसना। वैसे बी तुम्हं तो ऩता ही है टक हुआ समा था?

घय वारं औय ऩड़ेोससमं के अनुसाय 'करा' एक फेभोर त्रवषम था क्जसे ससपष थडष टडत्रवजनय ऩढ़ेते थे औय टपय त्रवशेष के तो अस्सी प्रसतशत नम्फय आए थे, उस जैसे होनहाय को तो 'त्रवऻान' ही ऩढ़ेना चाटहए, मह फात आती-जाती हवा बी कह यही थी। आक्खय 'त्रवऻान' के ऩास नौकयी का डोसभसाइर होता है , मह ऩाण्डे चाचा का भानना था। हाॉराटक त्रवशेष न तो त्रवऻान ऩढ़ेना चाहता था औय न इॊ क्जसनमय होना, रेटकन टपय बी चूटॉ क यासगनी जीवत्रवऻान ऩढ़ेकय डॉसिय होना चाहती थी, त्रवशेष को इस ख्मार ने ही योभाॊसचत कय टदमा टक वह इॊ जीसनमय होगा औय यासगनी डॉसिय। एक ताकतवय दसु नमा हभाये सऩनं को प्रसतस्थात्रऩत कय यही थी। वह हभं रगाताय मह सभझा यही थी टक जो 'इसतहास' है , वह फेकाय है औय िे सनारॉजी की ताकत ही असरी ताकत है , बत्रवष्म भशीनं का है ...। वह हभाये कॉरेज जीवन की ऩहरी पयवयी थी, त्रवशेष ने सयस्वती ऩूजा का टदन तम टकमा था यासगनी को 'वन पोय थ्री' भतरफ 'आई रव मू' कहने के सरए रेटकन तमशुदा टदन वसॊत ऩॊचभी से िरते-िरते ऩूये दो हफ्ते फाद 'वैरेनिाइन डे ' को तफ, जफटक कॉरेज भं सरास िू िी थी,


गक्णत के छाि कऺा से सनकर यहे थे औय इत्तेपाक से जीवत्रवऻान के छाि कऺा भं प्रवेश कय यहे थे, त्रवशेष ने एक ऩची यासगनी को थभाई औय दौड़ेते हुए पुिफार भैदान की तयप बागा,

क्जसके तीन चसकय रगाने के फाद ही वह रुका था। वैसे तो त्रवशेष को मकीन था टक यासगनी 'हाॉ' कहे गी, रेटकन टपय बी 'उसने समा सोचा?' मह ऩूछने के सरए त्रवशेष ने भुझे कऺा के फाहय सनमुक्त कय यखा था। ''भं उससे शाभ भं ऩाकष भं सभरना चाहूॉगी'', भुस्कुयाती हुई यासगनी ससपष इतना ही फोरी थी औय त्रवशेष भुझसे फाय-फाय ऩूछ यहा था, 'उसने औय समा कहा? उसने औय समा कहा? उसके चेहये ऩय कैसे बाव थे? वह हॉ स यही थी? भुस्कुया यही थी? मा गुस्सा थी?...' उस शाभ रगबग दस सभनि की चुप्ऩी के फाद यासगनी ने ही कहा था मह सफ समा है त्रवशेष? समा फच्चं-सी हयकत कयते हो, टित्रऩकर िीनएॊजसष वारी। 'िीनएॊजसष' ही तो हं हभ औय नहीॊ तो समा 'सीसनमय ससिीजन' जैसी हयकत कयं गे? कोई औय टदन होता, कोई औय रड़ेकी होती तो भं मह ाॊजरूय ऩूछता रेटकन मह त्रवशेष टदन था, वह एक त्रवशेष रड़ेकी थी, क्जसके कहे ऩय सनबषय कयता था टक त्रवशेष आगे नामक का असनर कऩूय होगा मा खरनामक का सॊजम दत्त। इससरए भं चुऩ यहा। 'मे प्माय, रव, इश्क मे सफ फेकाय की फातं हं । मू नो, भंने ऩढ़ेा है जीवत्रवऻान। 'िीनऐॊज' भं अऩोक्जि सेसस भं अट्रे सशन होता ही है ऩय इसे प्माय नहीॊ कहा जा सकता औय टपय अबी तो हभाये साभने हभाया ऩूया कैरयमय ऩड़ेा है , तुम्हं उस तयप ध्मान दे ना चाटहए...' क्जस वक्त यासगनी ऐसा कह यही थी, उस वक्त बी त्रवशेष को मकीन था टक वह सायी हीयोइनं की तयह अऩने बाषण के फाद मह स्वीकाय कये गी टक उसे बी त्रवशेष से ऩहरी ही नॊजय भं प्माय हो गमा था, रेटकन वह कह न ऩाई थी औय तफ त्रवशेष अऩनी असतरयक्त रम्फाई का इस्तेभार कयते हुए

यासगनी के भाथे को चूभ रेगा... ''औय जीने के सरए प्माय के अरावा ऩैसं की बी ाॊजरूयत होती है ...'' मह उस बाषण का आखयी जुभरा था जो त्रवशेष औय शामद भुझे बी कुछ इस तयह से सुनाई टदमा था ''जीने के सरए प्माय नहीॊ ऩैसे की ाॊजरूयत होती है , जो तुम्हाये ऩास नहीॊ है '' हाॉराटक हभ एक सार तक भानते यहे टक उसने ऩहरी वारी ही ऩॊत्रक्त कही होगी, जो हभाये टदभागी सन्नािे की वजह से दस ू यी तयह से सुनाई दी होगी... खैय जो बी हुआ हो, उस आक्खयी जुभरे को सुनकय हभ सन्न होने ही वारे थे टक तबी उसका नोटकमा 6600 क्खरक्खरा उठा।

उसके क्खरक्खराने से यासगनी बी क्खरक्खरा उठी थी। टपय ना भारूभ उसने टकससे समा कहा, थोडी दे य भं एक 150

CC DTSI ये ड़े फजाज ऩल्सय आकय रुकी। उससे एक ठीक-ठाक रड़ेका,

जो अऩने भहॉ गे कऩड़ें के फावजूद त्रवशेष से ज्मादा खूफसूयत नहीॊ था, उतय कय हभायी तयप फढ़े यहा था औय उसे आते दे ख यासगनी फेतयह चौड़ेी हुई जा यही थी। तफ तक वह रड़ेका हभाये

कयीफ आ चुका था, यासगनी बी दो कदभ आगे फढ़ेी औय टपय दोनं ने वह टकमा क्जसे अॊग्रेजी भं 'हसगॊग' कहते हं । 'भीि भाई त्रवरवेड़े-हषष' यासगनी फोरी। इतना कहने के फाद उन दोनं ने एक दस ू ये को टकस टकमा टपय हषष अऩनी जेफ से एक भोफाइर सनकारते हुए फोरा 'टदस इॊ ज अ


सगॊफ्ि िू भाई स्वीि वैरेनिाइन।' मह तो भुझे फाद भं ऩता चरा टक वह नोटकमा N-90 हं डसेि था। यासगनी ने इस फाय एक, दो, तीन, चाय औय फहुत साये 'टकस' हषष को टकए। तफ तक हभ

रोग सन्न हो चुके थे। फस इतना माद है टक यासगनी हषष के साथ, नोटकमा N-90 हाथ भं थाभे 150 CC DTSI ये ड फजाज ऩल्सय ऩय फैठ कय चरी गई थी। त्रवशेष ने िे फर ऩय यखे जग से ऩानी ऩीना शुरू कय टदमा, ऩानी ऩीते हुए त्रवशेष भुझे 'दे वदास' का शाहरुख ाॊखान टदख यहा था। भुझे हॉ सी आ गई उस वक्त जफ त्रवशेष ने कहा टक

उसकी ऑ ॊखं भं कुछ ऩड़े गमा है , कोई फहुत छोिा कीड़ेा क्जसके कायण उसकी रुराई छूि यही थी...।

उसके फाद यासगनी कॉरेज भं टदखती। जफ टदखती तो भुस्कुयाती, भुस्कुयाते हुए उसके दो त्रवष दन्त साभने झरकते क्जसे चभकाते हुए उसने वह ाॊजहय उगरा था ऩैसं वारा ाॊजहय।

त्रवशेष ने कॉरेज आना कभ कय टदमा था। वह शामद अफ भन रगाकय ऩढ़ेना चाह यहा था, रेटकन एक फात जो वह सनक्द्ळत रूऩ से चाहता था वह थी ऩैसे कभाना औय जाने समं उसकी मह इच्छा, भन रगाकय ऩढ़ेने की इच्छा ऩय हावी हो यही थी। शामद उस ऩय न्मूिन का तीसया सनमभ काभ कय यहा था जो हय एक टक्रमा के त्रवऩयीत औय सभान प्रसतटक्रमा की फात कयता है । एक टदन त्रवशेष भुझे कैपेिे रयमा रे गमा औय हभ उसी िे फर ऩय फैठे थे जहाॉ उस टदन फैठे थे। त्रवशेष, त्रवशेष रूऩ से पूरा हुआ भुझसे ऩूछ यहा था टक भं समा रूॊगा। भुझे ठीक-ठीक माद है , उस टदन उसका जन्भ टदन नहीॊ था।

_ ''ऩैसं की सचॊता भत कय, फहुत हं भेये ऩास।''

_ कहाॉ से आए तुम्हाये ऩास इतने ऩैसे? अॊकर की रॉियी रगी समा? (वयना हभ दोनं तो ससमायाभ साल्िी की एक प्रेि चाि बी शेमय कय के खाते हं ।) _ ओह! तुभ सवार फहुत कयते हो। भंने एक ट्रै वर एजंसी ज्वाइन कय री है , अच्छी सैरेयी दे यहे हं औय स्कोऩ बी फहुत है । _ औय तुम्हायी इॊ जीसनमरयॊ ग?

_ दे खता हूॉ, उस फाये भं समा टकमा जा सकता है ।

उसके फाद हभ रोग इसी तयह सभरते यहे , कबी-कबी कॉरेज औय भहीने दो भहीने भं कैपेिे रयमा भं। अफ तो त्रवशेष के ऩास बी नोटकमा 3110 था औय वह फतामा कयता था टक ''अगय काभ ऐसे ही चरता यहा तो वह जल्दी ही 'हीयो होण्ड़ेा नरैभय दे श की घड़ेकन' वारी फाइक बी खयीद रेगा। अफ वह ऩयीऺा को रेकय बी सनशस्ॊ चत हो गमा था औय शामद काभ के दफाव भं ससगये ि बी

ऩीने रगा था, त्रवल्स नेवी कि। भुझे माद है , आक्खयी फाय हभ फायहवीॊ की ऩयीऺाओॊ से ऩहरे 14 पयवयी को उसी कैपेिे रयमा भं सभरे थे। त्रवशेष ने भुझे फतामा था टक वह ऩयीऺाओॊ भं ाॊजरूय फैठेगा। हाॉराटक भं भहसूस कय यहा था टक उस सभट्िी का यॊ ग जो हभने साथ-साथ खामा है ,


फदर गमा था। वह कुछ औय बी कहना चाहता था ऩय कह नहीॊ ऩा यहा था। कुछ ऐसा था जो पयवयी के भहीने भं बी उसकी ऩेशासनमं ऩय रगाताय ऩसीना बय यहा था। वह अऩनी ऩये शानी भुझसे कहने ही वारा होगा तबी उसके नोटकमा 3110 ऩय ''हय टपक्र को धुएॉ भं उड़ेाता चरा गमा'' फज उठा था। _ 'हाॉ, भं ऩहुॉचता हूॉ' कहकय उसने राइन टडसकनैसि की, ''माय मह ट्रै वर एजंसी का काभ बी फहुत ऩये शान कयने वारा है , जल्दी ही छोड़े दॊ ग ू ा।'' इतना कह कय वह चरा गमा था।

सच कहता हूॉ, जैसा टक भंने तुम्हं फाय-फाय कहा है , त्रवशेष को ऩये शान दे खकय भं बी उस टदन

फहुत ऩये शान यहा। भुझे अऩने दोस्त के सरए कुछ कयना चाटहए था, रेटकन भं कयता बी समा? गक्णत, बौसतकी, यसामन इनभं से टकसी बी त्रवषम भं ऐसा कोई सवार नहीॊ था क्जसका जवाफ ''दोस्त की भदद कयना'' होता औय भं इन्हीॊ सवारं भं उरझा था, ऩयीऺाएॉ ससय ऩय थीॊ। 21 पयवयी, त्रवशेष ऩयीऺा शुरू होने के 2 सभनि ऩहरे आता औय ऩाॉच सभनि ऩहरे ही ऩेऩय जभा कय चरा जाता। वह तो अगय भंने त्रवशेष को आक्खयी ऩयीऺा के फाद 5 भाचष की शाभ पोन नहीॊ टकमा होता तो भं बी उसे ही सच भानता जो अखफायं भं छऩा था...। उस टदन फहुत ऩये शान हारत भं त्रवशेष ने भुझे फतामा था टक उसने भुझसे झूठ कहा था टक वह िै य् वर एजंसी भं काभ कयता है । दयअसर वह टकसी यै केि के सम्ऩकष भं था जो प्रसतफॊसधत ऩदाथं का व्माऩाय कयता था, त्रवशेष का काभ था, प्रसतफॊसधत ऩदाथं को रेकय हय क्जरे भं

उसका व्माऩाय कयने वारे तक ऩहुॉचाना। चूटॉ क वह कभ उम्र का छाि था, इससरए टकसी को उसऩय शक बी नहीॊ होता था। चौदह पयवयी की शाभ कापी भािा भं अपीभ, फॊगरादे श से

करकत्ते के यास्ते दभ ु का ऩहुॉची थी। त्रवशेष को उसे ही रेकय याॊची सनकरना था। जफ वह अॊपीभ को याॊची वारी गाड़ेी भं यखवा यहा था, तबी ऩुसरस की ये ड ऩड़े गई। त्रवशेष तो छुऩ कय सनकर

गमा रेटकन सायी अॊपीभ ऩकड़ेी गई। अफ वह रोग उसे धभका यहे थे टक वह अॊपीभ की कीभत उन्हं वाऩस कये , नहीॊ तो उसके औय उसके घयवारं के सरए अच्छा नहीॊ होगा... इतना कहने के फाद ही पोन टडस्कनैसि हो गमा औय टपय उसके फाद नॉि-यीचेवर। भं बागता हुआ त्रवशेष के घय गमा था,

रेटकन आन्िी ने फतामा टक वह तो ऩयीऺा दे कय रौिा ही नहीॊ। अगरी सुफह अखफाय के एक कोने भं खफय थी ऩयीऺाएॉ ाॊखयाफ होने के कायण छाि ने की आत्भहत्मा। भुझे माद है , जफ भंने तुम्हं त्रवशेष की भौत के फाये भं फतामा था तो तुभ बी स्वाबात्रवक रूऩ से उदास हुई थी औय तुभने यासगनी को दोषी ठहयामा था, रेटकन जफ भंने तुम्हायी मह फात एक

गॊजफ की हॉ सी भं उड़ेाई तो तुभ चंकी थी। असर भं त्रवशेष की भौत ने भुझे त्रवशेष से सदा के सरए दयू तो टकमा था, रेटकन अचानक नहीॊ। त्रवशेष की भौत भुझे यसामनशास्त्र की प्रमोगशारा


भं गरत असबक्रभकं के फीच असबटक्रमा कयाने के कायण होने वारे त्रवस्पोि के तयह ही प्रतीत हुई, क्जसके असबक्रभकं भं यासगनी बी थी जो त्रऩछरे तीन वषं से त्रवशेष को भुझसे दयू कय यही थी, रेटकन क्जसने सफसे तंजी से त्रवशेष को भुझसे दयू टकमा, वह थी अभीय होने की चाहत।

भुझे अभीयं से नॊपयत होने रगी थी औय उन टदनं ससपष नॊपयत ही भेये ऊऩय फहुत हावी यहती, क्जसे फुत्रर्द्जीत्रवमं ने भेया सभाजवादी रुझान भाना था, जफटक ऐसा कुछ बी भेये टदभाग भं उस

वक्त तो त्रफरकुर नहीॊ था औय अगय ऐसा होता तो भं टकसी फहुयाद्सीम कम्ऩनी भं नौकयी ऩाने भं सहमोगी ई-काभषस का कोसष कबी नहीॊ कय यहा होता क्जसके फाये भं ऩूछने के सरए तुभने भुझे आवाॊज रगाई थी औय टपय भंने तुम्हं फतामा था टक चूटॉ क तुभ फी.फी.ए. कय यही हो, इससरए एक ऐटडशनर टडग्री मा सटिष टपकेि तुम्हं नौकयी टदराने भं ज्मादा भदद कये गी औय चूटॉ क इसभं कम्प्मूिय बी ससखामा जाएगा तो तुम्हं अरग से कोई कोसष कयने की ाॊजरूयत नहीॊ ऩड़े​े गी। भुझे माद है , तुम्हं भेये ई-काभसष जैसे कोसष कयने से उस सभम त्रवस्भम हुआ था, जफ तुम्हं ऩता चरा था टक भं दशषनशास्त्र का त्रवद्याथी हूॉ औय इस सभम 'टदक' औय 'कार' (िाइभ एॊड स्ऩेस) की

त्रवशार उरझन को सभझने भं उरझा हुआ हूॉ, उस वक्त तुम्हाया गोर चेहया असतशम रम्फा हुआ था औय ठोडी एक त्रफन्द ु भं फदर गई थी। भुझे माद है , शुरू भं हभ सरास भं सभरते, प्रोजेसि

के फहाने फात कयते। उन टदनं भं चाहने रगा था टक टदन के चौफीस घॊिे भं से फाइस घॊिे जो हभं सरास के फहाने सभरे थे, दो घॊिे क्जतनी जल्दी से खत्भ हो जाएॉ औय वह दो घिे जो हभं सरास के फहाने सभरे थे, फाइस घॊिे क्जतने रम्फे हो जाएॉ। तुभने बी तो मही चाहा था, त्रफरकुर ठीक-ठीक मह नहीॊ बी तो बी तुम्हायी मह सशकामत तो जरूय थी टक आजकर दोऩहय कुछ

ज्मादा ही रम्फी हो गई है , यातं औय बी गहयी, रेटकन शाभ गामफ। फाद के टदनं भं सभरने की जगहं भं सरास बी एक जगह थी औय

फहुत सायी फातं भं 'प्रोजेसि' बी एक फात। भुझे नहीॊ

ऩता, तुम्हं मह सफ समं अच्छा रगता था, रेटकन भं जानता हूॉ टक भुझे तुभ फहुत अच्छी

रगती थी औय मह फात भंने तुम्हं िु कड़ें भं कई फाय कही बी थी जैसे आज तुम्हाये सूि का यॊ ग फहुत अच्छा है , आज तो तुभने काजर रगामा है , ऑॊखं औय ज्मादा खूफसूयत हो गईं हं , मह टक तुभ त्रफरकुर तुभ ही हो, तुभ न 'त्रप्रमॊका चोऩड़ेा' हो न 'प्रीती ाॊक्जॊिा', तुम्हाये गारं ऩय न कोई टडम्ऩर ऩड़ेते है औय न ही कोई सतर है , टपय बी तुभ तो फस तुभ ही हो, फहुत सुॊदय। जफ भं ऐसी फातं कयता तो ऩता नहीॊ, तुभ कौन-सी दसु नमा भं चरी जाती औय जफ वाऩस आती तो

कहती 'तुभने कुछ कहा समा?' ऩता नहीॊ समं, हभं टपय हॉ सी आ जाती औय हभ फहुत जोय से

हॉ सने रगते। रेटकन हभायी हॉ सी उनकी हॉ सी से कभॊजोय ऩड़े जाती वे जो चुनाव से ऩहरे अऩनी जीत सुसनक्द्ळत कयना चाहते थे। भुझे उड़ेते-उड़ेते खफय सभरी थी, ''कर यात बय शहय के वीय भॊच वारं ने अऩनी ऩािी के बावी उम्भीदवाय के साथ फैठक कय एक कामषमोजना तम की है ।'' उनकी मोजना थी टक वैसे वोियं को ही खत्भ कय टदमा जाए, जो उनके त्रवऩऺ भं वोि डारते हं । दयअसर, मे वो शुरुआती टदन थे जफ हभ फात-फात भं योने रगे थे। भुझे त्रफरकुर अच्छी


तयह से माद है

ऩहरी फाय तुभ ही योई थी, अॊखफाय भं 'रयॊ जवानुय' की हत्मा की रयऩोिष ऩढ़ेकय।

उसके फाद तुभ दो टदनं तक कॉरेज नहीॊ आई थी औय आई तो टपय से योने रगी थी वह बी ससपष इससरए टक तुभने ऩूयी यात सऩने भं भुझे दे खा था। औय भं? भुझे तो हय वह काभ जो तुभ कयती, कयने भं फहुत भॊजा आता औय भं मूॉ ही यो ऩड़ेता तुम्हं योते हुए दे खकय। इस फीच

कई फाय हभ दोनं के फीच कई अनजान भुखं से औय फहुत फाय हभाये ही अन्दय से मह सवार

उठा था, समा हभ एक दस ू ये से प्रेभ कयते हं ? ऐसे सवारं से भुझे यासगनी वारा अनुबव फचा रे जाता। भं हू-फ-हू उसी के शब्द दहु याता औय आक्खय भं जोड़े दे ता टक अफ हभ 'िीन-एॊजसष' नहीॊ

यहे जो प्रेभ-व्रेभ के चसकय भं ऩड़ें । तुभ बी यसामनशास्त्र का हवारा दे ते हुए कहती टक 'असर भं प्रेभ जैसा कुछ नहीॊ होता है , मह तो फस एक प्रकाय का यासामसनक उत्सजषन है , जो हभाये शयीय भं कुछ हाभोन्स की उऩक्स्थसत के कायण है ।' हाॉ, मह जरूय है टक शामद हभ हायने से डयते थे, इससरए हभने कबी मह शतष बी नहीॊ रगाई टक हभ भं से कोई अगय कबी प्रेभ भं ऩड़े​े तो उसकी सॊजा समा होगी। वैसे हभं इन सफ चीॊजं से कोई भतरफ ही नहीॊ था, हभ तो फस एक दस ू ये की ाॊज्मादा सचॊता कयने रगेथे।

रेटकन! रेटकन उस यंज जो जुम्भे का टदन था, भुझे तुम्हायी सफसे ज्मादा सचॊता हुई थी, तुभ

सभरते ही रुआॊसी हो गई थी औय तुम्हायी ऑॊखं औय तुम्हाया चेहया फता यहा था टक तुभ ऩहरे बी फहुत यो चुकी हो औय जैसे ही हभ अकेरे हुए थे, तुभ टपय से योने रगी थी। भं सभझ नहीॊ ऩा यहा था टक आक्खय हुआ समा है , अगय तुभने थोड़ेी दे य भं मह नहीॊ कहा होता टक ''तुम्हायी जान को ाॊखतया है '' तो भं बी हॉ सने की जगह मूॉ ही तुम्हाया साथ दे ने के सरए यो ऩड़ेता।

रेटकन तुम्हाया योते-योते मह कहना टक ''तुम्हायी जान को ाॊखतया है '' भुझे हॉ सा गमा था। भंने हॉ सते-हॉ सते ऩूछा था टक ''टकससे ाॊखतया है ''। तफ तुभने भुझे राउडस्ऩीकय ऩय सुनी हुई फात

ऐसे फताई भानो तुभ फाडष य ऩाय गई हो औय वहाॉ से मह खफय रेकय आई हो। तुभने कहा टक ''वे रोग कह यहे थे टक काटपयं को भाय डारंगे।'' _ ''हाॉ तो औय समा? काटपयं को भायना ही चाटहए।'' _ ''उनके सरए काटपय का भतरफ गैय-भुक्स्रभ है ।'' _ ''त्रफरकुर, क्जसका ईभान भुसकभर नहीॊ, वह भुसरभान नहीॊ, काटपय है , ऩय बरा वे रोग भुझे समं भायं गे, भंने तो कोई फेईभानी नहीॊ की।'' _ ''नहीॊ, उनके सरए 'भुसरभान' का भतरफ मह नहीॊ है ।'' _ तो समा है ? _ ''वह क्जसने करभा ऩढ़ेा हो वही भुसरभान है ।'' _ ''अच्छा... तो टपय फना दो भुसरभान, ऩढ़ेा दो करभा, तफ तो वे नहीॊ भायं गे भुझे।'' ''हाॉ।''


तुभने फहुत डयते हुए कहा था औय तफ भंने ध्मानभुिा भं फैठ कय औय अऩनी ऑॊखं फन्द कय

''रा ईराहा इरल्राह हो भोहभदयु यसूल्राह'' फोरा ही था टक तुभ फहुत जोय से हॉ स दी। तुम्हायी हॉ सी ने भुझे खुशी दी थी औय भेयी खुशी ने तुम्हं तसल्री। उसके फाद तुम्हं अचानक ही एक

खेर सूझा था खेर टहन्द ु औय ईसाई हो जाने का खेर। उस टदन हभ फायी-फायी से भक्न्दय औय

सगयजाघय गए थे, बूख रगी थी तो गुरुद्राये जाकय हरवा खामा। भुझे ऩता है , उस टदन हभ एक दस ू ये के ईद्वय को फाॉिने का खेर, खेर यहे थे, एक दस ू ये को फहराने का खेर, खेर यहे थे हभ उस टदन...।

शहय का भाहौर तेजी से चुनावी होता चरा जा यहा था औय तबी तुभने अऩना वो पयभान सुनामा था 'सुनो, हभं अफ यंज-यंज नहीॊ सभरना चाटहए। हभ हॊ फ्ते भं एक फाय सभरंगे औय तबी हभाये ऩास कयने के सरए ढे य सायी फातं हंगी, अभेरयका, अॊपगासनस्तान, ऩाटकस्तान, कश्भीय, टदल्री औय जभशेदऩुय के अरावा।' मह बी एक अजीफ फात होती थी हभाये फीच, भं चाहे क्जतनी जोय से कह दॉ ू टक तुभ अच्छी हो, तुभ भुझे फहुत ज्मादा अच्छी रगती हो... तुभ ऩरि कय ऩूछती

टक ''तुभने कुछ कहा समा?'' रेटकन अगय भं अभेरयका मा ऩाटकस्तान को कोई गारी फहुत धीये बी दे ता तो तुभ उसभं सुय सभराती...।

इधय एक छाि ऩरयषद के नेताओॊ ने कुछ गामं के साथ कुछ भुसरभानं को फॊधक फना सरमा, क्जससे शहय भं तनाव ऩैदा हो गमा था। जगह-जगह गुि फन गए थे, कहीॊ टहन्दओ ु ॊ के तो कहीॊ भुसरभानं के। अगरे टदन फॊद का आह्वान टकमा गमा था, क्जसका दस ू ये गुि के द्राया त्रवयोध

टकए जाने की ऩूयी सम्बावना थी। यात बय ऩुसरस की गाटड़ेमं के सामयन कानं भं गूॊजते यहे , तबी दे य यात तुम्हाया एस.एभ.एस. सभरा टक ''भं अऩने शहय रौि जाऊॉ।'' मकीनन तुभने वह एस.एभ.एस. फहुत योते हुए टकमा होगा इससरए भेयी बी रुराई छूि गई थी।

भं अगरी ही सुफह टकसी तयह अऩने शहय चरा गमा था। ऩूये एक हॊ फ्ते तक शहय उस भहत्वाकाॊऺी आग भं जरता यहा था। ऩुसरस रगाताय कहती यही थी टक क्स्थसत उनके सनमॊिण भं है , रेटकन सच तो मह था टक क्स्थसत दॊ गाइमं के सनमॊिण भं थी। सफकी खफय तो भुझे सभर यही थी, रेटकन तुम्हायी कोई खफय नहीॊ थी औय न अफ है । हाॉ, जफ भं भहीने बय फाद तुभसे सभरने की इच्छा से तुम्हाये घय की तयप गमा तो कुछ रोगं ने कहा टक तुम्हाये अब्फू शहय छोड़े कय चरे गए औय कुछ ने...। हाॉ! तुम्हाये घय की जगह एक भल्िी-स्िोयीड सुऩय भाकेि की नीॊव ऩड़े चुकी है , क्जसके भासरक वही रोग हं , जो राउड़ेस्ऩीकयं ऩय सचल्राते थे। भं फहुत ऩये शान हूॉ, रेटकन भुझे मॊकीन है टक जफ तुम्हं मह खत सभरेगा तो तुभ कहोगी टक मह सफ एक फुया सऩना था। काश ऐसा ही हो, भं नीॊद भं होऊॉ औय तुभ भुझे जगा दो...।


तुम्हाया (नोि : मह सचट्िी ऩाॉचवी फाय सरखी गई औय ऩोस्ि न हो सकी। मह ऩता नहीॊ था टक कहाॉ बेजी जाए औय टकस ऩते ऩय। शामद ऩाठकं भं से कोई इसे सही जगह ऩहुॉचा दे । इसी आशा के साथ)   सुनीर बट्ि

सुनीर बट्ि 139-डी, सशप्रा सन ससिी इॊ टदया ऩुयभ, गाक्जमाफाद-201010 (उत्तय प्रदे श) भो.: 09868125047

साहफ का कभया हभाये दफ्तय भं शामद ही कोई होगा जो बगवान, बानम, इत्तपाक आटद भं त्रवद्वास न यखता हो। रगबग सबी ऩूजा-ऩाठी हं । दफ्तय की भेज ऩय काॉच के नीचे बगवान की पोिो रगी हो न हो, उनभं मकीन तो सफ कयते हं । कुछ रोग वास्तु-शास्त्र, पंगशुई आटद को बी भानते हं औय फाकी सफ का ऻानवधषन कयते हं टक दे खो पराॊ भकान पराॊ को सूि नहीॊ कयता, पराॊ कऩड़ेा पराॊ को भाटपक नहीॊ आता, पराॊ तायीख ऩय काभ शुरु कयने ऩय पराॉ को हभेशा नुकसान होता हं जो

रोग ईद्वय के भाभरे भं थोड़ेा शॊकारु हं , वो बी उनकी इन तकषऩूणष फातं औय टपय इसके फाद शुरू हुए चभत्कायं, अजूफं, आद्ळषजनक घिनाओॊ की चचाष के चरते ईद्वयीम शत्रक्त की भौजूदगी को स्वीकाय कय रेते हं ।

इन भाभरं भं हभाये 'फड़े​े साहफ' बी हभायी तयह हं । मे फात हभं उनके आने से ऩहरे ऩता चर चुकी थी। हभं हफ्ता बय ऩहरे भारूभ हो गमा था टक श्री ए.ऩी. जामसवार की ऩोक्स्िॊ ग हभाये दफ्तय भं होने जा यही है । मूॉ तो जुगाड़े दो-तीन रोग औय कय यहे थे, ऩय चीप साहफ का हाथ


इन्हीॊ के ऊऩय था औय मे तो सबी जानते हं टक चीप साहफ की कापी ऊऩय तक जान ऩहचान है । चीप साहफ औय जामसवार साहफ दोनं एक ही इराके के हं औय कौन नहीॊ चाहता टक अऩने दफ्तय भं अऩने इराके के रोगं की रॉफी फने। चीप साहफ उनके साथ थे औय बगवान की दमा से रुऩमे-ऩैसे की कभी न थी। उनका हभाये दफ्तय भं आना तम था। उन्हीॊ टदनं फड़े​े साहफ के फाये भं हभं कापी कुछ भारूभ हुआ। उन्हंने कहाॉ टकतने टदन नौकयी की, टकस दफ्तय भं समा खास टकमा, कफ फाहय गए, कैसे-कैसे केस चरने से फचे, टकस-टकस भॊिी, साॊसद को जानते हं , स्िॉप को िाइभ ऩय आने को तो नहीॊ फोरते, वगैयह-वगैयह। हभाये काभ औय गऩफाजी के भतरफ की कई फातं हभं भारूभ चर चुकी थीॊ। मे बी ऩता चरा टक साहफ धभष-कभष वारे इॊ सान हं । सार भं एक तीथष जरूय कयते हं । क्जन साधु-भहात्भाओॊ को हभ रोग िीवी ऩय दे खते हं , मे उनके त्रवशेष सशष्मं भं सगने जाते हं । वैसे बी फड़े​े साधु-भहात्भाओॊ की ऩहचान उनके फड़े​े चेरं की सॊख्मा से होती है । क्जतने ज्मादा बायी-बयकभ कद वारे चेरे, उतना ही ऩहुॉचा हुआ भाना जाता है साधु। ऐसे भहात्भा को कौन ऩूछता है क्जसके ऩास छोिे भोिे चेरे हं।

साधु-भहात्भाओॊ की सॊगत के अरावा फड़े​े साहफ वास्तुशास्त्र भं बी आस्था यखते हं , मे फात हभं उनके आने ऩय स्ऩद्श हुई। हुआ मे टक ऩहरे टदन फड़े​े साहफ अऩने कभये भं जाने की फजाम

कापी दे य तक चीप साहफ के कभये भे फैठे यहे । वहाॉ फैठे वो इधय-उधय की फातं कयते हुए घडी ़ी तयप घड़ेी-घड़ेी दे खते यहे । अऩने ऩी.एस. से उन्हंने कह टदमा था टक ठीक नमायह फजकय

अड़ेतासरस सभनि ऩय वो अऩने कभये भं आएॉगे। ऩी.एस. एससेना अनुबवी आदभी था। ऩतीरे भं चावर का एक दाना जाॉचकय वो बात का हार जान रेता था। उसने कभया ठीक-ठाक कया टदमा। साहफ की कुसी के ऐन साभने दीवाय ऩय नई घडी िॊ गवा दी। त्रऩछरे साहफ ने घड़ेी अऩनी दाईं तयप िॊ गवाई थी, ऩय इन्हं घड़ेी ठीक साभने चाटहए, ऐसा उसका अॊदाजा था। फाद भं ऩता चरा, उसका अॊदाज सही था। फड़े​े साहफ ठीक नमायह फजकय संतासरस सभनि ऩय अऩने कभये के फाहय ऩहुॉच गए। ऩूयी वेरकभ कभेिी तैमाय थी। सरोनी भैडभ ने साहफ के गरे भं भारा डारा औय भुस्कया कय वेरकभ फोरा। साहफ ने जवाफ भं

भुस्कुया कय थंसमू कहा औय फाकी रोग हंठ िे ढ़े​े कयके भॊद-भॊद भुस्कुया टदए। यस्तोगी साहफ ने दयवाजा खोरा औय फड़े​े साहफ अऩनी सीि की ओय चर ऩड़े​े । फड़ेा कभया, गुदगुदा कारीन, फड़ेी-फड़ेी अफूझी भाडष न ऩंटिॊ नस, दाईं तयप कोने भं दो सोपा सेि, फाईं तयप अॊदय जाकय एक कोने भं साहफ की कुसी औय भेज। भेज बी ऐसी टक उसके आगे एक साथ दस कुससषमाॉ रगाई जा सकं। ''आइमे सा'फ'' ''फैटठए सा'फ'' के फीच फड़े​े साहफ त्रवयाजे औय सीि ऩय फैठकय भुस्कुया टदए। दो सार ऩुयानी तभन्ना आज ऩूयी हुई। तीन भहीनं से नान-स्िॉऩ जुगाड़े रगा यहा था। िं शन तो कापी यही, ऩय अॊत बरा तो सफ बरा। साहफ भुस्कुयाए। वेरकभ कभेिी के सबी भेम्फयं को


साभने फैठामा। उनके नाभ ऩूछे, कौन टकस प्रदे श का यहने वारा है , मे ऩूछा। दफ्तय भं काभ ज्मादा तो नहीॊ है , मे बी जाना। भौसभ के फाये भं फात की औय अऩनी ऩसॊदीदा ऩोक्स्िॊ ग के टकस्से सुनाए। 'अपसय तो बरे स्वबाव के रगते

हं ।' सफने भन भं सोचा। फड़े​े साहफ के चाम के सरए ऩूछने

के फाद उनका मे त्रवचाय औय बी ऩसका हो गमा। चाम ऩीने के फाद सफने फड़े​े साहफ को थंसमूथंसमू कहा औय झुक-झुक कय फाहय आ गए। शाभ तक ऩी.एस. एससेना के ऩास एक सरस्ि थी। साहफ को टकस टकस्भ के ऩदे चाटहए, कारीन टकस प्रकाय की हो, सोपे का टडजाइन, पूर दान का आकाय, रैऩिॉऩ का भॉडर, कोि िाॉगने का हं गय... सरस्ि रम्फी थी। ऩी.एस. सससेना औय फाकी का ऩसषनर स्िॉप खुश था। नए साहफ के आने का मही पामदा है । ऩुयाना साभान स्िोय भं जभा होने की फजाम उनके घय जाएगा। कोई कारीन ऩय कब्जा कये गा, कोई ऩदे रे जाएगा, कोई सोपे तो कोई कुछ औय। सफ आऩस भं सैटिॊ ग यहती है । स्िोय वारे बी खुश यहते हं । 'क्जमो औय जीनो दो' की बावना हभाये दफ्तय का ससर्द्ान्त है । सफ काभ सभर-जुरकय होता है । इस बावना के चरते हय काभ का अॊजाभ हभेशा अच्छा यहता है । सरस्ि ऩाकय सबी खुश थे। ऩयन्तु फडे साहफ ने अगरे टदन सरस्ि वाऩस रे री। ऩता चरा साहफ को मे कभया नहीॊ चाटहए, वो कभया फदरना चाहते हं । 'मे समा फात हुई बरा', 'इतना शानदाय कभया फदरने की जरूयत समा है ?', 'ऐसा फटढ़ेमा कभया उन्हं इस दफ्तय भं कहाॉ सभरेगा?' सबी है यान थे।

फड़े​े साहफ का कभया हभाये दफ्तय की इभायत की ऩहरी भॊक्जर ऩय था। वैसे तो सबी फड़े​े असधकारयमं के कभये ऩहरी भॊक्जर ऩय थे, इससरए वहाॉ गैरयी भं बी कारीन त्रफछी थी। वो हभाये दफ्तय का सत्ता-केन्ि थी। क्जसकी ऩहुॉच वहाॉ तक होती, उसे प्रबावशारी सभझा जाता था। हभाये दफ्तय भं प्रबावशारी उसे कहा जाता है , जो जरूयत ऩड़ेने ऩय दस ू ये को नुकसान ऩहुॉचा

सकता हो। कुछे क प्रबावशारी रोगं से हभने बी दोस्ती कय यखी थी। कौन जाने, कफ फचने की नौफत आ जाए। शहय के असधकतय दफ्तयं की तयह हभाये दफ्तय की इभायत बी आमताकाय थी। फीच भं गैरयी दोनं तयप कभये । फड़े​े साहफ को टदसकत इससरए आमी समंटक उन्हं एक सभि ने सभझा टदमा था टक वास्तुशास्त्र के टहसाफ से मे कभया उनके सरए ठीक नहीॊ है । फड़े​े साहफ के मे सभि आई.आई.िी. के ऩूवष प्रोपेसय हं । रयिामयभेन्ि के फाद अऩना भकान फनाते वक्त उन्हंने वास्तुशास्त्र का अध्ममन टकमा औय भकान के फनते-फनते वो वास्तु त्रवऻान भं ऐसे ऩायॊ गत हुए टक उन्हंने एक कभये भं ऑटपस खोरकय

वास्तु सराहकाय का काभ शुरू कय

टदमा। रयिामयभेन्ि से ऩहरे ज्मोसतष का शौक था, इसने वास्तु के काभ को औय भजफूती दी। वो जन्भऩिी दे खकय फता दे ते थे टक कौन-सा भकान टकसे सूि कये गा औय टकसके ड्राइॊ ग रूभ भं


कौन-सा पूर सजना चाटहए। इसके अरावा आई.आई.िी. के प्रोपेसय का िै ग फड़ेा काभ कयता है । सराह भाॉगने वारा सराह सभरने से ऩहरे ही भान रेता है टक उसे सही सराह सभरने वारी है । मे हभाये फड़े​े साहफ के ऩुयाने सभि हं । क्जन टदनं फड़े​े साहफ का हभाये दफ्तय भं ऩोक्स्िॊ ग का चसकय चर यहा था, उन्हीॊ टदनं फड़े​े साहफ की ऩत्नी ने उनकी जन्भऩिी इस सराहकाय सभि को बेजी थी। फड़े​े साहफ को मे फाद भं ऩता चरा टक उनकी ऩोक्स्िॊ ग के सरए ऩत्नी ने अऩनी तयप से भॊटदयं भं हवन, ऩूजा कयवाई। मे सफ सराहकाय सभि के कहने ऩय हुआ। उन्हंने ही काभ न होने तक मे सफ गुद्ऱ यखने की सराह दी थी। ऩोक्स्िॊ ग होने के फाद जफ फड़े​े साहफ को मे सफ ऩता चरा तो वो गद्गद् हो गए। उन्हंने सभि के प्रसत सम्भान औय ऩत्नी के प्रसत प्रेभ भहसूस टकमा। ऐसे भं जफ शाभ को सभि ने फतामा टक आऩके कभये भं वास्तु दोष है तो वो सचॊसतत होगए। 'इतनी भुक्श्कर से इस दफ्तय भं ऩोक्स्िॊ ग सभरी है , समा एक कभये की खासतय रयस्क रेना ठीक यहे गा?' सभि सभझा यहे थे, ''भंने कर तुम्हायी जन्भऩिी दे खी। वास्तुशास्त्र के टहसाफ से तुम्हाया कभया ऩहरी, तीसयी मा ऩाॉचवी भॊक्जर ऩय नहीॊ होना चाटहए।'' ''ऩयन्तु हभाये दफ्तय भं सबी फड़े​े असधकारयमं के कभये ऩहरी भॊक्जर ऩय हं । ऊऩय के कभये तो फाफू रोगं के सरए हं ।'' ''दे खो, इस वक्त जैसी तुम्हायी ग्रहदशा चर यही है , उसके अनुसाय तुम्हाया कभया चौथी भॊक्जर ऩय होना चाटहए।''

''ऩयन्तु असधकारयमं की सरफ्ि चौथी भॊक्जर तक जाती ही नहीॊ।'' ''असधकारयमं की सरफ्ि?'' ''हाॉ माय, हभाये दफ्तय भं असधकारयमं के सरए अरग सरफ्ि है । मे सरफ्ि फेसभंन्ि की ऩाटकंग से शुरू होती है । फाफू रोगं को वहाॉ ऩाटकंग की भनाही है , इससरए वो सरफ्ि ससपष असधकारयमं के काभ आती है । ऩयन्तु वो सरफ्ि तीन भॊक्जर तक है ।'' 'तीन भॊक्जर समं? तुभ तो कह यहे थे टक असधकायीगण ऩहरी भॊक्जर ऩय फैठते हं ।' ''क्जस वक्त त्रफक्ल्डॊ ग फन यही थी, उस वक्त के चीप साहफ का रकी नॊफय तीन था, सो उन्हंने अऩना कभया तीसयी भॊक्जर ऩय फनवामा।'' ''ऩय इतना सफ तुम्हं कैसे ऩता चरा? तुम्हं तो अबी इस दफ्तय भं आए ससपष एक टदन हुआ

है ।'' सराहकाय सभि फड़े​े साहफ की इभायत इसतहास ऩय इतनी फायीक जानकायी ऩय आद्ळमषमटकत थे। ''मे सफ भुझे अऩने ड्राइवय से ऩता चरा। भंने सरफ्ि भं उससे मे सफ ऩूछा था।'' फड़े​े साहफ जानते थे टक ड्राइवयं के ऩास दफ्तय की हय अॊदरूनी जानकायी


होती है । ''इसका भतरफ अगय चौथी भॊक्जर ऩय तुम्हाया कभया हुआ तो तुम्हं फाफू रोगं की सरफ्ि से जाना ऩड़े​े गा।''

फड़े​े साहफ सचॊसतत हो गए, ''कोई तयीका फताओ, बाई।'' ''दे खो, चौथी भॊक्जर वारा दभ तो टकसी औय भॊक्जर भं है नहीॊ, ऩय तुभ टपरहार दस ू यी भॊक्जर से काभ चरा रो। कभया तैमाय होने के फाद भं कुछ ऩूजा-ऩाठ फता दॉ ग ू ा।''

अगरे टदन ऩी.एस. सससेना ने त्रफक्ल्डॊ ग इॊ चाजष सभश्रा को अऩने कभये भं फुरवा सरमा। ''दस ू यी भॊक्जर भं कोई

कभया खारी नहीॊ है ।'' सभश्रा ने हाथ खड़े​े कय टदए। ''जगह तो सनकारनी ऩड़े​े गी, सभश्रा जी, चाहे कैसे बी कयो। फड़े​े साफ ने चीप साहफ को याजी कय सरमा है ।'' ''मे फताओ, सससेना जी, अगय कभया सभर बी गमा तो हफ्ता बय उसे तैमाय होने भं रगेगा। इतने टदनं तक फड़े​े साहफ कहाॉ फैठंगे।'' ''अऩने घय ऩय।'' ''भतरफ?''

''फड़े​े साहफ ने हफ्ते बय की छुट्िी रे री है । फीच-फीच भं कभये का काभ दे खने आते यहं गे। कर जो साभान की सरस्ि दी थी, उसभं बी फदराव कयने हंगे।''

त्रफक्ल्डॊ ग इॊ चाजष सभश्रा को फता टदमा गमा टक कभये की क्स्थसत कैसी होनी चाटहए। प्रवेश द्राय ऩूवष की ओय, भेज दयवाजे के साभने फीच टडग्री के कोण ऩय, दक्ऺण टदशा भं भेहभान का सोपा, दक्ऺणी-ऩक्द्ळभ भं भीटिॊ ग की भेज, उससे ऩूवष टदशा भं फड़े​े साहफ के भेडरं की भेज, अरभायी वहीॊ भेडरं के ऩास। क्खड़ेटकमं की कोई जरूयत नहीॊ है समंटक टदन बय ए.सी. औय िमूफराइि जरंगी। वैसे बी क्खड़ेटकमं से धूर-सभट्िी अॊदय आ जाती है । ''ऩयन्तु भं कभया राऊॉ कहाॉ से? दस ू यी भॊक्जर ऩय तो रोग फैठे हं ।''

''सभश्रा जी, आऩ पारतू फात फहुत कयते हो। दस ू यी भॊक्जर भं ससपष फाफू रोग फैठते हं औय फाफू

रोगं को सशफ्ि कयना कौन फड़ेी फात है । महाॉ साहफ को सशफ्ि होना ऩड़े यहा है औय आऩ हं टक कभयं का योना यो यहे हं ।'' ऩी.एस. एससेना गयभ हो गमा। इसका असय मे हुआ टक आधे घॊिे के अॊदय त्रफक्ल्डॊ ग इॊ चाजष सभश्रा त्रफक्ल्डॊ ग इॊ जीसनमय ससन्हा को रेकय ऩी.एस. सससेना के ऩास ऩहुॉच गमा।

''साहफ के घय चरना होगा, उन्हंने वहीॊ फुरामा है ।'' ऩी.एस. सससेना ने खफय दी। ''मे फताओ, सससेना जी, फड़े​े साहफ को उस कभये से आऩत्रत्त समा है ?'' त्रफक्ल्डॊ ग इॊ जीसनमय ससन्हा


ने ऩूछा। ''उस कभये भं वास्तु दोष है ।'' ''कैसी फात कय यहे हो, सससेना जी आऩ। त्रफक्ल्डॊ ग के हय कभये भं थोड़े​े ही वास्तु दोष दे खा जाता है । त्रफक्ल्डॊ ग फनाते वक्त वास्तु का ख्मार हभ रोग बी यखते हं ऩय उसके फाद तो हय भॊक्जर भं जरूयत के टहसाफ से कभये सनकारने ऩड़ेते हं । सौ रोगं की इभायत भं डे ढ़े सौ रोगं की जगह सनकरती है , अफ आऩ फताओ ऐसे भं हय कभये भं वास्तु शास्त्र का ख्मार कैसे यखा जा सकता है ?'' ''ससन्हा जी, आऩकी फात तो ठीक है , ऩय मे फताओ, फड़े​े साहफ को। मे सफ सभझाएगा कौन? उन्हंने तो अऩने कभये भं घुसने से बी इॊ काय कय टदमा है ।'' ''ऩयन्तु एससेना जी, दस ू यी भॊक्जर ऩय साहफ के सरए कभया फनवाने के सरए हभं तोड़ेपोड़े कयनी ऩड़े​े गी।'' ''तो!'' ''इसभं कापी खचष आएगा।'' ''टपय तो आऩको खुश होना चाटहए।'' ''कहाॉ की खुशी, सससेना जी? अफ गए वो जभाने सयकायी भजे के, हाॉ, ऩहरे की फात कुछ औय थी।'' ''टपय बी आऩ खुश तो हंगे।'' ऩी.एस. सससेना उनको छे ड़ेने के भूड भंथा।

''खैय, छोड़ेो इन फातं को, मे फताओ गाड़ेी का समा इॊ तजाभ है ? फडे साहफ ने फुरामा है , जाना तो ऩड़े​े गा।'' थोड़ेी दे य के फाद तीनं फड़े​े साहफ के घय ऩय थे। फड़े​े साहफ ने दो सभनि भं पैसरा सुना टदमा। तीनं ने 'सा'फ' 'सा'फ' कयते पैसरा सुन सरमा। त्रफक्ल्डॊ ग इॊ जीसनमय ससन्हा ने आदे श सभरते ही दस ू यी भॊक्जर का नसशा भेज ऩय पैरा टदमा औय सभझाने रगा, ''सा'फ, मे ऩूवष टदशा है , मे उत्तय टदशा है , मे गैरयी है , जी सा'फ, मे ऩूवष से ऩक्द्ळभ की ओय जाती है , मे असधकारयमं की सरफ्ि है , मे सबी कभये उत्तय औय मे कभये दक्ऺण भं खुरते हं , मे क्खड़ेटकमाॉ हं , सा'फ।'' टदसकत मे आई टक ऩूवष की ओय टकसी बी कभये का प्रवेश द्राय नहीॊ था। सबी कभये गैरयी भं खुरते थे औय इनका दयवाजा मा तो उत्तय की ओय खुरता था मा दक्ऺण की ओय। मही हार हय भॊक्जर का था। अॊदय के कभयं की जो बी फनावि हो, दयवाजे उत्तय मा दक्ऺण भं ही खुरते थे। ''कोने की तयप का कोई कभया दे खो, वहाॉ से तो ऩूवी टदशा भं प्रवेश द्राय सनकारा जा सकता है ।'' फड़े​े साहफ ने सुझाव टदमा। 'वाह सा'फ ने समा खूफ आइटडमा टदमा' तीनं सहभत थे, ''इससरए कहते हं , फड़े​े असधकायी के ऩास टदभाग बी फड़ेा होता है ।'' तम हुआ टक असधकारयमं की सरफ्ि के ऩास वारे कभये को तोड़े कय उसे गैरयी का टहस्सा


फनामा जाए औय वहाॉ से फड़े​े साहफ के कभये का प्रवेश द्राय सनकार जाए। साहफ सरफ्ि से गैरयी भं औय गैरयी से सीधा अऩने कभये भं ऩहुॉचंगे, ऩूवी दयवाजे से। ऩी.एस. सससेना के सरए दयवाजे के ऩास एक केत्रफन फनामा जाएगा, जो तोड़े​े जाने वारे कभये के साइज का आधा होगा। जरूयत

ऩड़ेी तो गैरयी का एक टहस्सा बी इसभं जोड़े टदमा जाएगा। आक्खयकाय फडे साहफ के ऩी.एस. का कभया बी तो फड़ेा होना चाटहए। एक फाय ऩूवष भं प्रवेश द्राय सनकर गमा तो फाकी काभ आसान था। दक्ऺणी टदशा भं दयवाजे वारे चायं कभये तोड़े​े जाएॉगे औय सफको सभराकय फड़े​े साहफ का कभया फनेगा। इन कभये के रोगं के सरए जगह का इॊ तजाभ कयना त्रफक्ल्डॊ ग इॊ जाचष सभश्रा की ससयददी थी। इन रोगं को फड़े​े साहफ के ऩुयाने कभये भं बेजने का तो खैय सवार ही नहीॊ उठता। 'ऩहरी भॊक्जर ऩय वो कैसे जा सकते हं ?' ''वो कभया खारी यखा जाएगा''। फड़े​े साहफ ने स्ऩद्श टकमा। उन्हंने त्रफक्ल्डॊ ग इॊ चाजष सभश्रा को आद्वासन टदमा, ''जरूयत ऩड़ेी तो टकसी दस ू यी त्रफक्ल्डॊ ग भं दो-चाय हॉर टकयामे ऩय रे रंगे।''

'नई त्रफक्ल्डॊ ग', 'नए हॉर', 'नमा टकयामा' त्रफक्ल्डॊ ग इॊ चाजष सभश्रा अऩनी भुस्कुयाहि योक नहीॊ ऩामा। 'फड़े​े सा'फ बी 'क्जमो औय जीनो दो' के ससर्द्ान्त को भानते हं । सा'फ के फाये भं जैसा सुना था, वैसा ऩामा। कहाॉ सभरते हं ऐसे अफ्सय।' ''दे खो बाई, हभ नहीॊ चाहते टक हभायी वजह से टकसी को कोई तकरीप हो, ऩयन्तु समा कयं , भजफूयी है ।''

फड़े​े साहफ की फात सुनकय त्रफक्ल्डॊ ग इॊ जीसनमय ससन्हा फोर ऩड़ेा, ''तकरीप कैसी, सा'फ, आऩ हुकुभ कीक्जए, हभ सेवा के सरए हाक्जय हं ।'' औय अगरे टदन से फड़े​े साहफ ने उन्हं सेवा ऩय रगा टदमा।

कोने वारे कभये औय उससे सिे फाकी चायं कभये वारं को खफय दे दी गई टक उनके त्रवबाग टकसी दस ू यी त्रफक्ल्डॊ ग भं सशफ्ि होने वारे हं , वो चरने की तैमायी शुरू कयं । सरक्खत आदे श एकदो टदन भं सभर जाएगा। उन फेचायं को तो ऩहरे-ऩहर सभझ ही नहीॊ आमा, भाजया समा है । जफ सभझ आमा तो एक फाय टपय उन्हं इस दफ्दय भं अऩनी है ससमत का अॊदाजा हुआ। सही कहते हो बाई, हभं ऩूछने वारा है कौन। जो कुछ है , फड़े​े रोग हं ।

मूसनमन के प्रधान को जफ इस फाये भं जानकायी सभरी तो उन्हंने तुयन्त फड़े​े साहफ की इस तानाशाही प्रवृत्रत्त ऩय योष जतामा, ऩय उनके बाई ने, जो ट्राॊसऩोिष का काभ कयता है , उसे चुऩ कया टदमा। इस कभयं के साभान की सशक्फ्िॊ ग का काभ उसके ऩास आने वारा था। अऩने बाई को चुऩ कयाना उसके सरए जरूयी था। हाॉ, अगय उसकी जगह मे काभ टकसी औय को सभरता तफ फात औय थी। तीसये टदन जाकय दफ्तय की त्रफक्ल्डॊ ग से छ: टक.भी. दयू एक रयहामशी इराके भं एक कोठी

टकयाए ऩय सभरी। सॊमोग दे खो, भकान भासरक चीप साहफ का रयश्तेदाय सनकरा। तुयत-पुयत भं


भाभरा तम हो गमा। कोठी मूॉ तो शानदाय थी ऩय ऑटपस के टहसाफ से उसभं थोड़ेा फहुत काभ

कयवाने की जरूयत थी। भकान भासरक को इसभं कोई आऩत्रत्त नहीॊ थी। अऩने ऩरयसचतं से काभ रेने का मही पामदा है । काभ जल्दी हो जाता है । ये ि-वेि तो फाद भं तम होते यहं गे। अगय वो भुसीफत भं हभाये काभ आए तो जाटहय है , हभ बी उनका ख्मार यखंगे। खैय कोठी का टकयामा तम हो गमा औय नमायह भहीने की रीस साइन हो गई। नमायह भहीने के फाद रीस फढ़ेा दी जाएगी। टकयामा फढ़ेाने के फाये भं तबी फात कयं गे, हय चीज ऩय ऩहरे से समा पैसरा रेना। ऩहरे इतवाय को ऩाॉचं कभयं की आरभारयमाॉ, भेज, कुससषमाॉ, फंचं, यै क सफ कोठी भं ऩहुॉचा टदए गए। मूसनमन के प्रधान के बाई ने यात दो फजे तक रेफय रगा कय यखी। वो सुफह से अऩने तीनं ट्रक रेकय दफ्तय भं जभा यहा। इस फीच फड़े​े साहफ घय से ही दफ्तय का काभ दे ख यहे थे। पैसस, पोन सफ घय ऩय भॊगा सरए। दफ्तय भं भोचाष ऩी.ए. सससेना ने सॊबारा। फड़े​े साहफ भीटिॊ ग के ससरससरे भं दो-एक टदन भं

दफ्तय का चसकय रगा रेते थे। हफ्ते बय की छुट्िी खत्भ हो गई ऩय इतने टदन भं ससपष कभये खारी हो ऩाए। नमा कभया फनवाने के सरए त्रफक्ल्डॊ ग इॊ जीसनमय ससन्हा ने कात्रफर ठे केदाय रगामा औय उसके बयोसे फडे साहफ ने हफ्ता बय औय घय ऩय फैठना कफूर टकमा। कभया दो-तीन टदन भं शसर अक्ख्तमाय कयने रगा। क्खड़ेटकमाॉ छोिी हो गईं ताटक ए.सी. टपि हो सके। अबी तक इन ऩय कूरय रिकते थे। क्खड़ेटकमाॉ बी अऩने बानम ऩय भुस्कुयाईं। त्रफजरी की टपटिॊ ग फदरी। फड़े​े साहफ की ऩत्नी ने खुद त्रफक्ल्डॊ ग इॊ जाचष सभश्रा के साथ दक ु ान-दक ु ान जाकय ऩदे ऩसॊद टकए। कुछे क ऩदे घय के सरए बी सरए। सोपे के कऩड़े​े औय कारीन के सरए यॊ ग का

ध्मान यखना जरूयी था, ऐसा सराहकाय सभि ने कहा था, इससरए ऩत्नी खुद यॊ ग छाॉिने आई थी। 'त्रफक्ल्डॊ ग इॊ चाजष सभश्रा कात्रफर इॊ सान हं ', मे सभझते ऩत्नी को दे य न रगी। हय भहॊ गी औय फटढ़ेमा दक ु ान को वह जानता था। दक ु ानदाय बी उसे ऩहचानते थे।

हफ्ते बय भं कभया तैमाय था। ठीक वैसा, जैसा सराहकाय सभि ने कहा था। कभये का हय साभान नमा था। ऩुयाने की महाॉ कोई जगह नहीॊ थी। ऩुयानी भेज त्रफक्ल्डग इॊ जीसनमय ससन्हा ने अऩने कभये भं ऩहुॉचवा दी। वो सार बय से भेज फदरने को कह यहा था। अफ भौका सभरते ही

उसने इस ऩय कब्जा कय सरमा। कारीन ऩी.एस. सससेना का एक की हुई थी। क्जस दक ु ानदाय से नई कारीन री थी, उसी ने ऩुयानी कारीन को कािऩीि कय ऩी.एस. सससेना के घय भं अच्छे से

रगा टदमा। फड़े​े साहफ के फाफू के हाथ ऩंटिग आई तो चऩयासी पूरदान भं खुश हो गमा। िी-सेि ऩय त्रफक्ल्डॊ ग इॊ जीसनमय ससन्हा के चऩयासी ने कब्जा जभामा। त्रफक्ल्डॊ ग इॊ चाजष सभश्रा पैसस भशीन रेकय भाना। उसके फेिे ने नमा-नमा काभ शुरू टकमा था औय उसे पैसस भशीन की सख्त जरूयत थी। ठे केदाय ने जैसा वामदा टकमा, काभ सात टदन भं सनऩि गमा। फड़े​े साहफ खुश थे इसी फीच खफय सभरी टक उनके इस सीि के प्रसतर्द्ॊ दी की ऩोक्स्िॊ ग सनहामत ही थकेरे त्रवबाग भं हो गई। दस ू ये


दावेदाय के क्खराप टकसी ने भॊिी जी को सशकामत कय दी। रऩेिे भं तो फड़े​े साहफ बी आ यहे थे, ऩय चीप साहफ की ऊऩय वारं से जान ऩहचान एक फाय टपय काभ आई। थोड़ेा फहुत ऩैसा रगा सो कोई फात नहीॊ। ऩैसा इज्जत से फड़ेा थोड़े​े ही है ।

''दे खा, भंने कहा था न। मे कभया तुम्हाये सरए अच्छा यहे गा।'' सराह काय सभि फोरे। आक्खयी टदन वो खुद कभया दे खने आए थे। अगर-अरग कोण से खड़े​े होकय उन्हंने गक्णत रगामा। साइॊ टिटपक कैरकुिय वो हभेशा अऩने ऩास यखते हं , उसभं ऩूया सभम वो कुछ-कुछ कयते यहे । दो-तीन छोिे -भोिे सुझाव त्रफक्ल्डॊ ग इॊ जीसनमय ससन्हा को टदए। वो बी सराहकाय सभि के वास्तु ऻान से प्रबात्रवत हुआ।

ऩॊिहवं टदन वेरकभ कभेिी के सफ भैम्फय दस ू यी भॊक्जर भं ऩी.एस. सससेना के नए कभये भं जभा हुए। असधकतय रोगं को नमा कभया दे खने की तभन्ना थी। दफ ु ाया थोड़े​े ही साहफ का

कभया दे खने का भौका सभरेगा। सरोनी भैडभ नई साड़ेी ऩहन कय आई। त्रऩछरे वेरकभ की माद भं ऩहरे से ही चाम की तैमायी कय री गई थी। इस फाय सभठाई बी खास भॊगवाई गई। सबी फैठे फड़े​े साहफ के फाये भं अऩने-अऩने अनुबव सुना यहे थे औय उनके सद्गण ु ं की चचाष कय यहे थे। ऩय न जाने समं, साहफ के आने भं दे य हो यही थी। नमायह फजे तक सफ ऩये शान हो गए।

ऩी.एस. सससेना को बी इस फाये भं कोई जानकायी नहीॊ थी औय न उसकी टहम्भत साहफ से इस फाये भं फात कयने की थी। समा ऩूछता, ''साहफ आऩ दफ्तय आने भं दे य समं कय यहे हं ?'' कुछ सोच कय उसने चीप साहफ के ऩी.एस. से फात की। फड़े​े साहफ ने शामद चीप साहफ से कोई

फात की हो। उसका अॊदाज सही था। फड़े​े साहफ का चीप साहफ के ऩास पोन आमा था। उन्हंने दो टदन की छुट्िी के सरए कहा, फोरा तफीमत ठीक नहीॊ है । चीप

साहफ ने उनके साथ थोड़ेी दे य फात की, उसके फाद चीप साहफ का भूड खयाफ हो गमा। तफीमत खयाफ होने की फात टकसी के गरे नहीॊ उतय यही थी, ऊऩय से चीप साहफ का भूड खयाफ हो गमा। फात कुछ औय है । ऩय है समा, मे टकसी को सभझ नहीॊ आमा। शाभ तक जाकय याज खुरा, जफ फड़े​े साहफ का ड्राइवय उनके नौकय से खफय रामा। ऩता चरा, कर शाभ फड़े​े साहफ के सराहकाय सभि घय आए थे, ऩये शान औय दख ु ी।

''फात समा है , बई, भुॉह समं रिका यखा है । सुफह तो खूफ चहक यहे थे।'' फड़े​े साहफ ने ऩूछा। ''माय, एक टदसकत हो गई है ।'' सभि इधय-उधय दे खते हुए नजयं नीची कयते हुए फोरा।

''समं समा हुआ, हभये भं कोई कभी यह गई है समा?'' दो त्रवयोसधमं के टठकाने रगने के फाद फड़े​े साहफ इस कभये को रकी भानने रगे थे।

''भंने तुभसे कहा था ना टक अगय तुम्हं चौथी भॊक्जर की फजाए दस ू यी भॊक्जर ऩय कभया फनवाना ऩड़ेा तो भं तुम्हं कुछ ऩूजा-ऩाठ फता दॉ ग ू ा।'' ''हाॉ, कहा तो था।''


''इस काभ के सरए जफ भंने तुम्हायी जन्भऩिी दे खी तो ऩता चरा एक गड़ेफड़े हो गई है । क्जस टदन बाबी जी ने तुम्हायी जन्भऩिी दी थी, उसी टदन एक अक्खरेश प्रसाद जामसवार की जन्भऩिी बी भेये ऩास आई।'' ''ऩयन्तु भेया नाभ तो असबषेक प्रसाद जामसवार है ।'' साहफ को फात कुछ-कुछ सभझ आने रगी। ''महीॊ तो गरती हो गई। उनका बी तुम्हाया वारा केस था। भंने उनकी जन्भऩिी ऩढ़ेकय सराह दे डारी औय तुम्हायी ऩढ़ेकय उन्हं ।'' ''अये , फाऩ ये , अफ समा होगा?'' फड़े​े साहफ घफया गए। ''उनको तो भंने कुछ नहीॊ फतामा, ऩय तुम्हाये साथ घय वारी फात है इससरए फता यहा हूॉ, जन्भऩिी के आधाय ऩय तुम्हाया कभया दसवीॊ भॊक्जर से नीचे नहीॊ होना चाटहए।'' ''ऩय भं दसवीॊ भॊक्जर ऩय कभया नहीॊ फनवा सकता।'' ''इतनी जल्दी कयने की कोई फात नहीॊ है ।'' सभि ने ढाॊढस फॊधामा, ''मे दस ू यी भॊक्जर वारा कभया

अगरे ऩाॉच भहीने तक तुम्हं पर यहा है । तफ तक तुभ इससे काभ चरा रो। चाय-ऩाॉच भहीने भं सफ फातं ऩुयानी ऩड़े जाएॉगी, टपय तुभ कुछ दे ख रेना।'' ''फात इतनी आसान नहीॊ है , बाई?'' फड़े​े साहफ ससय ऩकड़े कय फैठ गए। ''समं, चीप साहफ नहीॊ भानंगे समा?'' ''नहीॊ, वो फात नहीॊ है । सभस्मा मे है टक हभायी त्रफक्ल्डॊ ग भं ससपष आठ भॊक्जर हं । अफ भं अऩने कभये के सरए दसवीॊ भॊक्जर कहाॉ से राऊॉगा?''




कत्रवताएॉ क्जतेन

भं नहीॊ जानता कत्रवता समा है । फस मूॉ सभझ रीक्जए टकसी गूॊगे के चीखने की कोसशश जैसा कुछ-कुछ। जानते हं , भं कत्रव होना नहीॊ चाहता भुझसे सहा नहीॊ जाएगा इतना ददष । भं एक आभ आदभी की तयह जीना चाहता हूॉ ाॊक्जॊदगी के छोिे -छोिे सुख-दख ु भं भशगूर। हाॉ, कत्रव होने के सरए कत्रवता सरखना जरूयी हो सकता है रेटकन कत्रवता सरखने के सरए कत्रव होना जरूयी नहीॊ है । क्जतेन द्राया असभत कुभाय गौयव रुभ नॊ. 13, भाॊडवी हास्िर जे.एन.मू., टदल्री-110067 भो.: 09873712275 आजकर बौसतक त्रवऻान भं शोधकामष। जन्भ : 1983 क्जतेन

त्रवडम्फना औय


सफसे खूफसूयत रड़ेटकमाॉ उनसे ब्माही गईं... जो सफसे ज्मादा कू्यय रोग थे

समंटक सॊसाय की सायी सुत्रवधाएॉ उन्हीॊ के ऩास थीॊ औय वे मुवा क्जनके टदरं भं सफसे ज्मादा प्माय था भय गए बयी जवानी भं बूख से रड़ेते हुए कुॊवाये ... औय आने वारी ऩीटढ़ेमाॉ फदरती यहं गी ऩरयबाषाएॉ अच्छाई औय फुयाई की अफ सभ्म रोग वे हं क्जनके सरए फेकाय की फाते हं दे श, गयीफी, असशऺा, भ्रद्शाचाय क्जन्हं चाटहए टडस्को, यॉक औय ऩाटिष माॉ

क्जनका स्वगष अभेरयका है औय ऩूॉजीऩसत क्जनके दे वता औय वे, जो भुस्कया सकते हं

टकसी का कत्र कयने के फाद जो जरा सकते हं झोऩटड़ेमाॉ औय चेनवेया छाऩ रफादे ओढ़ेकय जो फजाते हं तासरमाॉ टक्रकेि के चौकं औय छसको ऩय कर सॊबारंगे दे श की फागडोय औय दे श के सफसे फेहतयीन कायखानं भं


फनाए जाएॉगे कॊडोभ, त्रवमाग्रा, भहॊ गी शयाफ औय आयाभदामक कायं औय बूख से भयने वारं को, प्रसशक्ऺत टकमा जाएगा टक दान कयं अऩनी ऑ ॊखं, गुदे औय रृदम ऊॉचे औय सभ्म रोगं के सरए औय उनकी हक्डडमं से फनाए जाएॉगे जैत्रवक खाद औय इसके सरए जरूयी है ज्मादा से ज्मादा रोग बूखे यहं

भयं

फहन फहन धीये -धीये फड़ेी हो यही थी तुरसी के ऩौधे की तयह फीच भं ही, ऩढ़ेाई योक कय ब्माह दी गई अऩने से दोगुने उम्र के आदभी के साथ उसकी शादी भं त्रफक गई

त्रऩछवाडे ़ी वह जभीन भाॉ क्जसभं योऩती थी झीॊगा, तोयई औय नेनुआ त्रफक गए दो जोड़े​े फैर जो त्रऩताजी के फाद घय भं सफसे ज्मादा भेहनत कयते थे औय वो दध ु ारु गाम


क्जसने हभं त्रऩरामा था दध ू भाॉ का दध ू छूिने के फाद फहन, जो उम्र भं भुझसे तीन-चाय वषष छोिी है अफ शाॊत यहती है एकदभ गॊबीय...

सागय से बी असधक भेयी सभझ भं नहीॊ आता कहाॉ गई उसकी चॊचरता, वो चऩरना आज भं खोजता हूॉ

घय का कोना-कोना कहीॊ सभर जाए वो अल्हड़ेऩन समंटक भं खेरना चाहता हूॉ, उससे रड़ेना चाहता हूॉ

अऩनी शैतासनमं से उसे रुराना चाहता हूॉ औय खाना चाहता हूॉ

भाॉ के हाथं वह भाय क्जससे कोई भहान फनता है ।   प्रदीऩ क्जरवाने

असबव्मत्रक्त के सरए कत्रवता भुझे हभेशा से भुनाससफ भाध्मभ रगा है । हभाया सभम क्जस तयह से असहज औय असाभान्म होता जा यहा है उसने घय, ऩरयवाय,


रयश्ते औय सभाज की फहुत सायी असनवामषताओॊ को टहरा टदमा है । ऐसे रहूरुहान कय दे ने वारे अभानुत्रषक औय फाजाय-सभम भं त्रफखयाव बी फढ़े गमा है । ऐसे भं अऩने सुख-दख ु ,

हताशा, गहयी ऩीड़ेा औय महाॉ तक टक कोई खुशी बी प्रकि कयने का भाध्मभ भं कत्रवता भं तराशता हूॉ तो शामद इससरए टक चीजं औय क्स्थसतमं को प्रकि कयने के सरए कत्रवता भेयी सॊवेदना के फहुत कयीफ से होकय गुजयती है । कबी-कबी रगता है जैसे उसने कोई एक

यास्ता फना सरमा है । भाध्मभ न कहकय मह बी कह सकता हूॉ टक भं उस कत्रवता का एक यास्ता बय हूॉ जो भुझसे होकय गुजयता है । प्रदीऩ क्जरवाने 11226, ऩहाड़ेससॊहऩुया भारू भॊटदय के ऩास खयगोन-451001 (भ.प्र.) भो.: 09755980001 F F F F F F आजकर भ.प्र. ग्राभीण सड़ेक त्रवकास प्रासधकयण भं सॊत्रवदा सनमुत्रक्त। जन्भ : 1978

कैरेण्डय ऩय भुस्कुयाती हुई रड़ेकी भंने दे खा उसकी ऑॊखं भं एक अजीफ-सी गभक है आधुसनक फाॊजाय की चकाचंध से उऩजी हुई एक शहयी चुनौती है

जो उसकी अधखुरी दे ह से दभक यही है औय रगबग ऩायदशी कऩड़ें से छन कय ऩसय यही है ऩूयी दीवाय ऩय कैरेण्डय ऩय भुस्कुयाती हुई रड़ेकी

अऩनी दे ह की सुॊदयता के दऩष भं नहीॊ भुस्कुया यही है औय ना ही इस आशम से टक

इस तयह वह कोई मौसनक तृसद्ऱ मा सुख ऩा यही है कैरेण्डय ऩय भुस्कुयाती हुई रड़ेकी की भुस्कुयाहि के यहस्म इतने सीधे-सयर बी नहीॊ हो सकते


मा उसे इतने साधायण अथं भं नहीॊ सरमा जा सकता टक वह अऩनी इस भुस्कुयाहि की फकामदा तम कीभत ऩा यही है इतने पीके मा स्वादहीन बी नहीॊ हो सकते इस भुस्कुयाहि के यहस्म कैरेण्डय ऩय भुस्कुयाती हुई रड़ेकी भुस्कुया यही है औय भुस्कयाते हुए उसके होठं ऩय एक टकस्भ का आभॊिण है

औय मह आभॊिण उसकी दे ह भं सभाने का नहीॊ उसकी दे ह ऩय चुऩड़े​े 'प्रोडसि' तक जाने का है त्रवसॊगसत मह बी टक हसथमाय न हो हाथं भं तो कोई दे वता नहीॊ होता औय मह बी टक हसथमाय उठामा हय हाथ दे वता नहीॊ होता टपय बी... जरूयी नहीॊ जो याभचन्दय की फेिी के साथ हुआ भेयी फेिी के साथ बी हो टपय बी... अन्दय की ऩूयी कड़ेवाहि को घोरकय एक फड़े​े से थूक के गोरे भं फदरकय भं जोय से उस टदशा भं उछार दे ता हूॉ

क्जधय से अबी-अबी मह फुयी खफय आई है खफय क्जसभं केयोससन है आग है


चीख है चीत्काय है झुरसा हुआ एक चेहया झुके हुए कुछ सय

औय झुॉझराई हुई कुछ आत्भाएॉ हं भेये अन्दय एक ताजी सचता की गॊध धॉसने रगी क्जसने भेयी नस-नस को पुरा टदमा सचता के धुएॉ के उस ऩाय भुझे चेहये त्रवकृ त होते रगे त्रविऩ ू ता की हद तक मह धुऑ ॊ था

जो इस त्रवकृ सत को जन्भ दे यहा था हाॉ, धुऑ ॊ ही होगा त्रवकृ सतमं का जन्भदाता भंने दे खा प्राथषना के कुछ शब्द हवा भं उठे औय ऊऩय ही ऊऩय उठते चरे गए फादरं के बी ऩाय ईद्वय मह त्रवषऩाई सभम औय टकतना रम्फा खीॊचेगा कोई ऩयाकाद्षा तो होगी कुछ भमाषदा तो होगी

शाभ को घय रौिता हूॉ

कड़ेवाहि औय उद्रे रन से बया सॊतद्ऱ ृ औय सनयाशभन टपय एक बयोसा जन्भता है अऩनी फेिी का क्खरक्खराता चेहया दे खकय जो गभाषगभष चाम का प्मारा सरए खड़ेी है साभने चाम की भहक भेयी साॉसं भं धॉसी


सचता की गॊध को भाय दे ती है ऩाता हूॉ फेिी के चेहये ऩय आद्वक्स्त है त्रऩता के घय होने की अऩने घय होने की इसी आद्वक्स्त औय त्रवद्वास से बय सोचता हूॉ

जरूयी नहीॊ जो याभचन्दय की फेिी के साथ हुआ भेयी फेिी के साथ बी हो टपय बी...   ब्रजेश कुभाय ऩाॊडेम

फपष पैसट्री के ऩास ऩाॊडेऩट्िी, फससय-802103 (त्रफहाय) भो.: 09406333573 F F F F F F आजकर केन्िीम रयजवष ऩुसरस फर भं अससस्िे न्ि कभाॊडेन्ि के ऩद ऩय कामषयत। जन्भ : 1979 ब्रजेश कुभाय ऩाॊडेम

तेये शहय भं भं अच्छी तयह जानता हूॉ, हजूय


बूख नहीॊ भहसूस कय सकते आऩ आऩ नहीॊ जान सकते इसका ददष अऩनी बूख से असधक इस फात का द:ु ख

टक दध ु भुॉहा ऩी यहा भाॊड़े दस ू ये फच्चे के जनते ही सूख गई है छाती

फस फहराने के सरए ही सिा दे ती है उसका भुॉह सधसकायती है खुद को इससे अच्छी कुसतमा है भेयी ऩोस यही है भजे भं ऩाॉच-ऩाॉच त्रऩल्रं को एक साथ हजूय बूख तो आऩके ऩास झाॉकने बी नहीॊ जाती कय रेती है यास्ता हभाये िोरे का हाॉ फायह फजे के फाद ही होता है कुल्रा ताटक खयाई न भाये उसी िोरे भं जहाॉ जरता है चूल्हा एक फाय ही औय यह जाता उऩास यह-यह कय हय फान फस इसी जुगत भं टकसी तयह


बूखे फच्चे की रुराई गरी तक न ऩहुॉचे औय भाॉ ससॊझा कय साग-ऩात कयती उऩाम उतय आए दध ू स्तन भं ऩीकय हो जाए अगभ रेटकन हजूय हद तो तफ हो गई जफ ऩेि के गङ्ढे भं फैठे भेये फेिे ने आऩकी अिायी ऩय उतय आए चाॉद को दे खकय कहा 'योिी-योिी' भं नहीॊ सभरूॉगा जफ भं ऩूछता हूॉ

टकसी से उसका ऩता वह कह उठता है ऩता नहीॊ कफ कहाॉ यहूॉ टपय सरख रीक्जए मह नॊफय नाइन पोय थ्री एि... हभेशा सभरूॉगा इसी ऩय भुझसे रोग कहते हं दे दीक्जए कोई नॊफय


भं कहता हूॉ

सरख रीक्जए ऩता ग्राभ-ऩाॊडेऩुय, ऩोस्ि-सनभेज हभेशा सभरूॉगा इसी ऩते ऩय अबी तक भुझसे सभरने कोई नहीॊ आमा भेये गाॉव उन्हं आशॊका है न टक भं नहीॊ सभरूॉगा। उसकी गरती जानते हो दोस्त उसकी गरती फस इतनी थी टक फाॉधकय यस्सी से टिका यखा था कभय ऩय भाॉगी हुई ऩैन्ि को मह कोई कभ सफूत है मह सात्रफत कयने के सरए टक उस रकदक भेभ का ऩसष इसी ने उड़ेामा है क्जसकी ऑ ॊखं ऩय फड़ेा कारा शीशा ताटक अॊदाजा न हो सके टक इन ऑ ॊखं का ऩानी सूख गमा है मा है फाकी उसी गरती मह बी टक ऩैदा हुआ है


उसी तयप क्जधय के असधकतय फच्चे मही सफ कयते हं मह बी है उसकी गरती टक योज की तयह दोऩहय फाद तक बूखा था वह सूखे हंठ धॉसी ऑ ॊखं... फस-फस अफ टकतना सफूत चाटहए   टदरीऩ शासम

  कत्रवता की सजषना औय यचना प्रटक्रमा के फाये भं टदमा गमा कोई बी वक्तव्म अॊतत:एक अधूया वक्तव्म ही होता है । सो भं तो कत्रव शभशेय की इन काव्म ऩॊत्रक्तमं की ही याह रूॊगा 'फात फोरेगी हभ नहीॊ, बेद खोरेगी फात ही।' टदरीऩ शासम अससस्िं ि प्रोपेसय, टहन्दी त्रवबाग जासभमा सभसरमा इस्रासभमा त्रवद्वत्रवद्यारम नई टदल्री-110025 भो.: 09868090931 F F F F F F


आजकर शोध एवॊ स्वतॊि रेखन। जन्भ : 1976 टदरीऩ शासम

हभायी आग मे टकसके जासूस सछऩकय फैठ गए हं हभाये फैठने, खाने औय सोने के कभयं भं टक हभायी नीॊद तक से चरी गई है हभाये दारानं फयाभदं औय खसरमानं की धूऩ हभाये ऩैयं से क्खसकती जा यही है हभायी धयती हभायी हवा हभाया आकाश हभाया ऩानी हभसे हो यहा है दयू रगाताय हभसे छीनकय हभायी आग टकसने यख री है अऩने ये टिक्जये िेड गोदाभं भं टक हभायी आत्भा तक भं बय गई है सीरन अॊधेये भं डू फ यही है त्रवयोध भं तनी भाॊसऩेसशमं की चभक उठो सशयाओॊ भं उफरने दो खून का सभॊजाज उठो खुरने दो तारू से सचऩकी हुई ाॊजफान उठो टक इस फाय हभ सफ सभरकय छुड़ेा राएॉ अऩनी आग

टक हभायी दसु नमा को फहुत तंज ाॊजरूयत है योशनी की


सॊजम की हजाय-हजाय ऑॊखं मुर्द् हो यहा है धृतयाद्स के ऩास सॊजम की हजाय-हजाय ऑॊखं हं टपय बी अनसबऻ है धृतयाद्स मुर्द् की जभीनी सूचनाओॊ से समा सॊजम की हॊ जाय-हॊ जाय ऑॊखं गुभयाह कय यही हं धृतयाद्स को मा वे नहीॊ दे ख ऩा यहीॊ अजुन ष औय दम ु ोधन की तरवायं से मुर्द्-बूसभ ऩय किकय सगयीॊ हजाय-हजाय फाहं को हजाय-हजाय घुिनं को हजाय-हजाय धड़ें को हजाय-हजाय ससयं को ाॊखन ू के दरदर भं धॊस यही है धयती हवा ऩानी आग औय आकाश हय कहीॊ हो यहा है मुर्द् औय अनसबऻ है धृतयाद्स मुर्द् की जभीनी सूचनाओॊ से सॊजम की हजाय-हजाय ऑॊखं ऩय फॊधी हं अॊधेये की हजाय-हजाय ऩक्ट्िमाॉ दहक भेयी औय तुम्हायी ऑख ॊ का ऩानी फन सकता है सीने की आग


जया सोचो आओ फैठो इस फुझी हुई याख भं कुये दं

टपय टकसी ख्वाफ की दहक तो समा हुआ टक गूॊगे हं

चीखं टपय बी रगाकय जोय समा

ऩता दयक ही जाए

मह आरीशान काॊच की दीवाय नावं टकतनी नभी थी इफायत भं ऩढ़ेते ही बीग गईं ऑॊखं ऑ ॊखं भं पैर गई झीर एक चर सनकरीॊ मादं की नावं ऩानी भं ऩाॉव डार फैठा यहा सभम टकनाये ह्य शाभ हुई, खुर गईं ऩरयॊ दं की ऩॉखं नावं से उतये भुसाटपय दयू कहीॊ खो गमे सुकत्रव का स्वप्न नीॊद के घोड़े​े ऩय सवाय


टकसी स्वप्न की तराश भं जाने को था सुकत्रव टक त्रफजरी चभकी फादर गयजे आकाशवाणी भुत्रक्त के यास्ते अकेरे भं नहीॊ सभरते!   याहुर झा

कत्रवता एक अद्भत ु साॊस्कृ सतक सचन्तन है, जो भनुष्म की क्जजीत्रवषा का एक सुन्दय सॊक्रभ

तैमाय कयती है । सॊक्रभ अथाषत ् नावं से फना हुआ ऩुर। अरग-अरग याग, अरग-अरग यॊ ग,

अरग-अरग अनुबूसत, अरग-अरग अवधायणा, अरग-अरग इसतहास, अरग-अरग ऩयम्ऩया की नावं औय उन सफ को जोड़ेकय जो सुन्दय सॊक्रभ फना है एक ऩूणषतय कत्रव की साॊस्कृ सतक दृत्रद्श व इसकी क्जजीत्रवषा की अऩाय शत्रक्त से, वह कत्रवता है , क्जसके बीतय हभ सॊस्कृ सत, प्रकृ सत औय जीवन भं व्माद्ऱ भहायाग का अन्वेषण बी कयते हं औय त्रवषभता के प्रसत वेदना से बी बय उठते हं , समंटक फकौर कत्रव शभशेय 'इक करभ है औय सौ भजभून हं , एक कतया खूने टदर तूॊपान है ।' याहुर झा द्राया श्री असनरूर्द् ससन्हा गुरॊजाय ऩोखय भुॊगेय-811201 (त्रफहाय) भो.: 09473045444 F F F F F F आजकर स्वतॊि रेखन एवॊ ऩिकारयता।


जन्भ : 1980 याहुर झा

वे रोग कौन थे... वे रोग कौन थे क्जन्हं छद्म भुठबेड़ें भं अकार भौतं सभरीॊ... औय कहीॊ कोई आवाॊज की एक तीरी बी नहीॊ जरी खफय (1) जो खफय आदभी को उसकी आदसभमत के क्खराॊप खड़ेा कयती है वही इस वक्त सफसे फड़ेी खफय है (2) दयअसर उनकी हय खफय एक त्रवषकन्मा है जो त्रवचाय की दे ह से सरऩिकय चुऩके से... उसे


डॉ स रेती है (3) वे दसु नमा के सफसे फड़े​े दहशतगदष हं जो अऩनी हय स्माह-सॊपेद खफयं से दहशत ऩैदा कय दभकते चाॉद की अथाह यक्श्भमं औय आते वसॊत की ऩीरी गॊध से बयी हभायी नीॊद को ताय-ताय कय दे ते हं (4) वे हय अच्छी खफय को भायकय एक ऩानीदाय सुफह की साॉस रेती सॊबावनाओॊ के दसू धमा चेहये ऩय

कासरख ऩोत दे ते हं औय शहय की जागती सड़ेकं ऩय अचानक एक फदसूयत सन्नािा त्रफछ जाता है धुध ॊ , धुएॊ औय कारी ऑॊधी की तयह


(5) मह सभझदाय खफयं की शासतय दसु नमा है

मह चभकदाय खफयं की अद्ऴीर दसु नमा है

मह ऩयतदाय खफयं की चभकीरी दसु नमा है ... काश! इस शासतय... अद्ऴीर... चभकीरी... कऩिीरी दसु नमा के फाये भं भं एक उजरी औय सच्ची खफय कह ऩाता उड़ेजते सॊसाय भं टहरती एक हयी ऩत्ती की तयह...!   कुभाय

  यचना से ज्मादा कटठन है यचना का कायण फताना। फताने फैठो तो न जाने टकतनी धायाएॉ ... टकतने प्रद्ल आ घेयते हं । इन प्रद्लं भं कुछ स्वाबात्रवक रूऩ से 'भासूभ' होते हं ... वहीॊ कुछ फनाविी 'समाने'। सरखना अच्छा रगता है । सरखते सभम रगता है ... चरो कुछ सभाज, कुछ अऩने सरए जी सरए। कबी-कबी सीधे-सीधे गद्य सरखने के स्थान ऩय ''आड़ेा-सतयछा'' सरखने का भन कयता है । कह नहीॊ सकता भेया मह रेखन 'कत्रवता' शीषषक के अॊतगषत आएगा अथवा नहीॊ? जहाॉ भेया गद्य भेये 'टदभाग' के वहीॊ भेयी कत्रवताएॉ भेये 'टदर' के ाॊकयीफ हं । कोसशश कयता हूॉ जो बी सरखूॉ 'ईभानदाय' सरखू.ॉ ..। कुभाय ऩारीवार फुक सेण्िय


गाॊधी भाकेि, इिावा-206001 (उ.प्र.) भो.: 09761453660 F F F F F F आजकर ऩुस्तक व्मवसाम से सभम चुयाकय सरखना-ऩढ़ेना। जन्भ : 1966 कुभाय

वाताषओॊ की भेज फेहद सचकनी होती है वाताषओॊ की भंज चाहे दे श की सड़ेकं टकतनी बी ऊफड़े-खाफड़े समं न हं? वाताषओॊ की भंज ऩय कुओॊ के सूखने जर-स्तय के नीचे क्खसकने का कोई असय नहीॊ होता वहाॉ हय वाताषकाय के साभने धयी यहती हं साॊप टक्रस्िर क्सरमय ऩानी की फोतरं... जो इधय ाॊखत्भ हुई सभझो उधय आईं अहा! वाताषओॊ की भंज ऩय भौसभ टकतना खुशनुभा होता है हय यॊ ग-रूऩ खुशफू के पूर वहाॉ सजे होते हं


भजार है इनभं से कोई पूर भुयझामा हुआ हो?

दे शी-त्रवदे शी वाताषकायं के भूड को खयाफ कयने का साहस टकसभं है ... वाताषओॊ की इन भंजं से दयू खयाफ सड़ेक

ऩातार सभाए जर-स्तय सूखा भौसभ सरए दे श योता है तो योए काश! शेष दे श बी वाताषओॊ की भंज जैसा होता... झूठ ...औय सुनाइए कैसे हं ? सभि ऩूछता है जफटक वह जानता है भं कैसा हूॉ? अच्छा हूॉ!

भं कहता हूॉ

जफटक भेये साथ भेया सभि बी जानता है कहीॊ कुछ अच्छा नहीॊ है वह मूॉ ही ऩूछता है भं मूॉ ही फताता हूॉ

फस मूॉ ही टदन किते जा यहे हं सचभुच मूॉ ही...


ऩूयक भेयी ऩत्नी ऐसा नहीॊ टक फच्चं की ऩुस्तकं की क्जल्द नहीॊ फाॉध सकती िाॉड से कनस्तय नहीॊ उताय सकती ऊॉचाई ऩय रगे जारे नहीॊ साॊप कय सकती दसू धए का त्रफर नहीॊ चैक कय सकती बायी गद्दं को धूऩ नहीॊ टदखा सकती दीवाय ऩय कीर नहीॊ ठंक सकती सूखते कऩड़े​े उठाने को आतुय फॊदय नहीॊ बगा सकती वह मह सफ कय सकती है भेयी अनुऩक्स्थसत भं अससय कयती बी है रेटकन जफ भं होता हूॉ घय

तफ अऩना काभ कयते हुए ऩत्नी ऐसे ही कुछ काभ

भेये ऊऩय बी डार दे ती है त्रवद्वास भासनए ऐसे ही कुछ काभ कयते हुए

भुझे उतनी ही खुशी सभरती है क्जतनी ऩत्नी को भुझे ऐसे ही कुछ काभ संऩकय  आत्भस्वीकृ सत


सनदोष नहीॊ हूॉ भं... बायतीम कानून के अनुसाय भुझे सॊजा नहीॊ सभरी, तो समा! ऑ ॊखं से टकए हं हभने जहाॉ सैकड़ें फरात्काय... वहीॊ छे ड़ेखासनमं की सॊख्मा तो हॊ जाय से ऊऩय ही होगी दोस्तो! भेयी तॊकरीप मह है टक बरे ही दसु नमा की नॊजयं भं भं ऩाॊक-साॊप हूॉ

रेटकन 'आइना' दे खने ऩय भं अऩनी ही नॊजयं भं सगय जाता हूॉ... कॊजष भुझसे भेयी योटिमाॉ छीनकय वह टदराता है अऩने फच्चे को रयभोि वारी काय नॊकरी भोफाइर छं माॉ-छै माॉ वारी गुटड़ेमा रव फंक ऩप्ऩी हाउस वीटडमो गेभ औय न जाने समा-समा... जफटक भं हय फाय खारी जेफ सरए अऩने फच्चे से कहता यहता हूॉ नहीॊ फेिे


सदी भं आइसक्रीभ नुॊकसान कये गी   प्रऻा गुद्ऱा

साभाक्जक, साॊस्कृ सतक, याजनीसतक क्स्थसतमं व घिनाओॊ के भद्दे नजय भन-भक्स्तष्क भं फहुत कुछ ऐसा घिता है क्जसे असबव्मक्त टकए त्रफना भन फेचैन यहता है । भेया सरखना उरझनं के फीच सुरझने की एक कोसशश है । साथ ही अऩनी आशाओॊ एवॊ आकाॊऺाओॊ के सरए एक आकाश ढू ॊ ढ़ेने जैसा है । भेये त्रवचाय से कत्रवता मा कहानी सरखना कहीॊ न कहीॊ सभम औय सभाज की क्स्थसतमं को ऩकड़ेने की एक कोसशश है ताटक अच्छा फुया, टहत-अनटहत का कोई ऩैभाना मटद हभने सनधाषरयत टकमा है तो उसऩय अऩने को तौर सकं, ऩयख सकं। प्रऻा गुद्ऱा द्राया श्री त्रवष्णु गोऩ 'आसशमाना' अहीय िोरी, कयभिोरी याॉची-834008 (झायखण्ड) भो.: 09835734033 F F F F F F आजकर व्माख्माता, टहन्दी त्रवबाग, याॉची

जन्भ : 1984 प्रऻा गुद्ऱा

सवार-जवाफ सुरगते सवारं के फीच


खड़े​े हं हभ शीतरता जरूयी है क्जन्दा यहने के सरए साथ ही भयने के त्रवरुर्द् फने यहने के सरए जवाफ रेटकन जुफाॊ से टपसर यहे हं जवाफ अऩनी ऩकड़े भं राना चाहने ऩय ऩरि कय, सवार कयते हं जवाफ ऐसा होना है , खतयनाक हाॉ खतयनाक है जवाफ का सवार भं फदरना औय... इस दौय भं जफ हभाये ाॊक्जन्दा यहने के सवार ऩय जवाफ जरूयी है फहुत जरूयी प्रेभ भं रड़ेकी प्रेभ भं ऩड़ेी रड़ेकी को सुन्दय, फहुत सुन्दय

टदखाई दे ती है दसु नमा ऩरयन्दं की बाॉसत

आसभान भं उड़ेने को उसका जी चाहता है योजभयाष की टदसकतं

ऩये शान नहीॊ कयतीॊ अफ उसे भसरन अफ कॉरेज से तुयॊत


रौिने के फाद भाॉ बेजती है कुछ साभान रेने तो ना-नूकुय नहीॊ कयती है वह चरी जाती है खुशी-खुशी त्रऩता औय बाइमं की व्मस्तता नहीॊ खरती औय न ही भाॉ का घय-गृहस्थी के काभं भं उरझे यहना अफ तो अच्छा रगता है रड़ेकी को अकेरा होना प्रेभ भं ऩड़ेी रड़ेकी फदर गई है फहुत

ऩय उसका फदरना त्रऩता औय बाइमं ने नहीॊ भहसूसा भाॉ को ऩता है थोड़ेा-थोड़ेा टक रड़ेकी को प्रेभ हो गमा है वैसा ही जैसा हुआ था रैरा को भजनूॊ से

शीयीॊ को पयहाद से हीय को याॊझा से

सोहनी को भहीवार से औय रड़ेकी एक टदन खुद कय फैठती है गरती कयके अऩने प्रेभ का इजहाय औय रड़ेकी के सरए-ऩरयवाय भं शुरू हो जाती हं फॊटदशं प्रेभ भं ऩड़ेी रड़ेकी

छुऩ-छुऩकय भोफाइर ऩय फातं कयती है , बरे वो फातं


भाि प्रेभ की न हं घय औय सभाज की हं कॉरेज की हं, ऑटपस की हं रटकन जफ से जान गए हं घयवारे रड़ेकी को छुऩ-छुऩ कय ही

फातं कयनी होती है रड़े से प्रेभ भं ऩड़ेी रड़ेकी एक टदन... अऩने त्रऩता से ऩूछ फैठती है सासधकाय टक उस रड़ेके से उसका ब्माह होगा मा नहीॊ क्जससे वह कयती है प्रेभ त्रऩता की समा है इच्छा वह जानना चाहती है , नहीॊ दे ते जवाफ त्रऩता जल्दफाजी भं कुछ बी नहीॊ कहना चाहते, ऩय सगनाते हं भजफूरयमाॉ अऩनी फातं सनकारती हं रयश्तेदायं की सभाज की, टहत की, अटहत की प्रेभ भं ऩड़ेी रड़ेकी सोचती है त्रऩता के फाये भं उनकी फातं डयाती हं उसे ऩय दस ू ये ही ऺण

रड़ेके का चेहया घूभ जाता है उसकी ऑ ॊखं भं आ जाती है एक चभक रेटकन प्रेभ भं ऩड़ेी रड़ेकी टपय गौय कयती है त्रऩता की फातं ऩय त्रऩता ने कहा था टक... ''ठीक है भं याजी हूॉ, तुम्हाया ब्माह कयने को रेटकन एक फाय नाते रयश्तेदाय... सफकी सोच रेना''


औय कई-कई टदनं तक रड़ेकी सोचती यही त्रऩता की फातं ऩय एक टदन रड़ेकी ने घय से बाग जाने की फात सोची रेटकन सोचते ही बागने की फात माद आई उसे छोिी फहन साथ ही माद आई उसे अऩने भुहल्रे की रड़ेकी भेघा क्जसने बाग कय टकमा था प्रेभी से ब्माह खुश थी वो अऩना घय फसाकय रेटकन भेघा की छोिी फहन भमूयी जो ऩढ़ेती थी दसवीॊ भं स्कूर आते-जाते, सुन-सुन कय ताने घय औय कस्फे वारं के एक टदन कूद ऩड़ेी तीन भॊक्जरे भकान की छत से प्रेभ भं ऩड़ेी रड़ेकी सोचती यही बाई-फहनं के फाये भं त्रऩता के फाये भं, सभाज के फाये भं समंटक त्रऩता ने उसे कहा था टक ''तुम्हं ससपष अऩनी ही सचन्ता है तो ठीक है ... रेटकन एक फाय सफकी सोच रेना'' औय...

टदसम्फय की कॊऩकॊऩाने वारी, आधी यात भं रड़ेकी ऩसीने से नहा उठी त्रफस्तय से उठकय उसने ऩॊखे का क्स्वच ऑन टकमा कई फाय कयती यही वह ऩॊखे का क्स्वच ऑन ऑप...


...ऩये शान थी प्रेभ भं ऩड़ेी रड़ेकी आक्खयकाय पाॉसी का पॊदा गरे भं डार रिक गई सीसरॊग पैन भं सफने कहा... नादान थी रड़ेकी! 

असबषेक शभाष 'नीरकॊठ' 

क्जस प्रकाय 'कत्रवता' सॊकि के टदनं भं साथ दे ती है , उसी प्रकाय 'कत्रवता' की उऩज भं बी आऩातकारीन ऩरयक्स्थसतमाॉ एक सनणाषमक बूसभका अदा कयती हं । सॊकि के सभम हभ मूॉ ही नहीॊ कफीय, तुरसी, सनयारा औय नागाजुषन की कत्रवताओॊ को गुनगुनाते हं । अगय थोड़ेा उत्साह औय थोड़ेी बी ईभानदायी से भुझे कुछ कहने का अवसय सभरे तो भं मही कहूॉगा टक 'कत्रवता' सबी साटहक्त्मक त्रवधाओॊ से कहीॊ असधक 'भनुष्म' के कयीफ है । असबषेक शभाष 'नीरकॊठ' रम्बुआ, सुल्तानऩुय (उ.प्र.) भो.: 09641112959 F F F F F F आजकर टहन्दी त्रवबाग, शाक्न्त सनकेतन त्रवद्वत्रवद्यारम भं शोधछाि। जन्भ : 1984


असबषेक शभाष 'नीरकॊठ'

कुछ कत्रवताएॉ (त्रप्रम बैयव ससॊह के सरए) (1) सूख जाना नटदमं भं ऩानी मा जीवन जीने के साये यास्तं का फॊद हो जाना भाॉ का वैधव्म औय त्रऩता का असभम ही गुजय जाना बाई की आवायगी औय फहन का फाॊजाय भं उतय जाना फुझ जाना चूल्हं का, याशन के अबाव भं औय उड़े जाना छप्ऩय का, ऑॊधी के झंकोभं खोर रे जाना कसाइमं का, टदन भं ही ऩशुओॊ को औय टकसी आदभखोय की बाॉसत, नीरगामं द्राया चय जाना त्रफरकुर सफेये ही... जीने के फाद बी, कैसे कह दॉ ू टक मे सफ जीवन जीने के अनुकूर रऺण हं खुश यहने की कोसशश कयता हूॉ, त्रफना टकसी खफय के

औय हॉ सता बी हूॉ, ऩड़ेोससमं को साभने आते हुए दे खकय इन्हीॊ सायी गसतत्रवसधमं के फीच

भं टपय से झाॉकने रगता हूॉ 'क्खड़ेकी' के फाहय उस 'डाटकए' के इॊ तॊजाय भं

जो तभाभ ऩिं के साथ भुहल्रे भं इधय-उधय बिकता है भं बी हो रेता हूॉ उसके ऩीछे , एक ऩि की अऩेऺा के साथ...

मह जानते हुए टक, 'इसकीसवीॊ सदी' भं बी तुभ एकदभ सनयऺय हो... मा ऩाठशारा के टकसी बी अध्माऩक ने तुम्हं ऩढ़ेाने से इनकाय कय टदमा है (2) हभाये औय तुम्हाये हाथं भं वह ताकत कहाॉ यही अफ


औय कहाॉ यही सॊफॊधं की वह कसावि सभम के उताय-चढ़ेाव भं सफ कुछ ढीरा-सा ऩड़े गमा है एक रयश्ता फनाता हूॉ तो दस ू या त्रफखयने को आतुय हो उठता है

आज दे खते ही दे खते सफ कुछ सभम के हाथं भं चरा गमा है ऐसे भं भुझे बी रयश्तं की खैय सराभती के सरए 'सभम' का दयवाजा खिखिाना ऩड़ेता है हभ जाते हं सभम के ऩास औय खिखिाते हं उसका दयवाजा भगय जफ आवाज सुनने के फाद बी 'सभम' फाहय नहीॊ सनकरता तफ हभ औय तुभ जो सड़ेक की ऩयस्ऩय त्रवयोधी ऩिरयमं ऩय खड़े​े हुए हं रौि जाते हं अऩने घयं को अऩना-सा भुॉह रेकय... (3) तुभ जफ आती थी, तो तुम्हाये साथ ही चरे आते थे यास्ते के तभाभ ऩेड़े-ऩौधे बी ऩक्ऺमं को अऩने कॊधे ऩय फैठाए ाेहुए

जैसे कोई भाॉ टकसी भहान उद्दे श्म के सरए जा यही हो अऩने फच्चे को गोद भं सचऩकाए हुए

हवाएॉ तुम्हायी याह को औय बी आसान फना दे ती थीॊ तुम्हाये आने से शताक्ब्दमाॉ अऩने आऩ ही वाचार हो जाती थीॊ आज तुभने मे सायी सनकिताएॉ खो दी हं उस जगह, उस ऩथ औय उस व्मत्रक्त से जो अऩरक तुम्हं सनहायता यहता था औय उत्साटहत हो जाता था तुम्हायी झरक ऩाते ही... अये ! भं समा, भं तो आदभी हूॉ?

अफ तो वह यास्ता बी न जाने समं चुऩ-सा यहता है


तुम्हाये जाने के फाद...   प्रबाकय ससॊह

  कत्रवता भेये सरए प्रेभ औय प्रसतयोध को व्मक्त कयने का सवाषसधक सहज व सशक्त भाध्मभ एवॊ भनुष्म के बावं की बाषा भं सवोत्तभ असबव्मत्रक्त है । प्रबाकय ससॊह टहन्दी त्रवबाग टहन्द ू त्रवद्व त्रवद्यारम, वायाणसी भो.: 09450623078 F F F F F F आजकर अध्माऩनकामष। जन्भ : 1979 प्रबाकय ससॊह

अशुब सदी की टठठु यती आधी यात भं आती है कुत्तं के योने की आवाजं यात के त्रवमाफान भं फड़ेी बमावह औय डयावनी रगती हं मे यंगिे खड़े​े हो जाते हं कहते हं

उनका योना भौत, सूखा, तफाही मा टकसी अशुब का सॊकेत योना क्जतना बमावह होता


अशुब का शक उतना ही गहयाता जाता रोग उनको गासरमाॉ दे ते ऩत्थयं औय ईंि के िु कड़ें से वाय बी कयते कई घामर हो जाते नहीॊ रुकता उनका योना अफ उनके योने भं कोई सुने तो सुन सकता है उनकी कयाह बी जरूयी तो नहीॊ उनका योना, ससपष अशुब सॊकेत हो कड़ेकती सदष आधी यात भं ठॊ ड के एहसास से शामद यो यहे हं वे... सचट्ठी वह रयश्तं के स्नेटहत सम्फोधन प्माय, आशीवाषद औय स्नेह के साथ आयम्ब होती है सभाद्ऱ होती है अऩनत्व बये शब्द

भसरन, तुम्हाया, आऩका मा शुबेच्छु से फीच भं ढे य सायी अऩनी औय दसु नमावी फातं एक-एक शब्द प्माय औय सशकामत से सने

शब्दं भं सरखने वारे का उफड़े-खाफड़े मा सचकना चेहया साप उबय आता है उसके भन की स्भृसतमाॉ, सशकवे-सशकामतं, सच औय झूठ गरने रगते हं सरखने वारे का रृदम फनकय औय तफ वे शब्द, शब्द ही नहीॊ यहते हं क्जॊदगी फन जाते हं सभम से ऩहरे हभाये सभम की चाहत सभम से ऩहरे सफ कुछ

फाय-फाय वे शब्द


फहस से ऩहरे सनष्कषष गीत से ऩहरे सॊगीत चुनाव से ऩहरे नतीजे ऩयीऺा से ऩहरे सवार सभ्मता-सभीऺा दयू कहीॊ जफ कोई दहशतगदष अन्जाभ दे यहा होता है अऩने भनसूफं को भुझे भहसूस होती है उसके फाद की चीत्काय उठती रऩिं फदहवास, बागते रोग अधजरे क्जस्भ ददीरी छत्रवमाॉ पड़ेपड़ेाते ऩॉख करुणा के व्माकुर सभम की इफायत भं सरखी जा यही अऩयाध कथा बमावह अभानवीम... फारूदं के भरफं भं दपन भासूभ, फेगुनाह आतॊकी त्रवषधय पुॉपकायता पन पैराए िू िे बननावशेष-सी

त्रवखक्ण्डत सभ्मता जरता सूमष धूसभर चन्िभा की चाॉदनी बम-सभसश्रत रेख-सा त्रवस्तीणष इन यत्रक्तभ ऩथं ऩय


दयू तक...। 

वन्दना शाही

जी-1, सेसिय 27 गौतभफुर्द् नगय (नोएडा) भो.: 09454581399 F F F F F F आजकर 'बायतीम उच्च अध्ममन सॊस्थान' सशभरा भं एसोससएि। जन्भ : 1973 वॊदना शाही

जीवन दे खती हूॉ जीवन

मा जरता हुआ दीमा उसकी तेज, भटद्रभ होती रौ को दौड़ेते-बागते

रोग

सुफह, दोऩहय, शाभ कुछ ऩाने की कोसशश भं बीड़े भं जगह फनाते हुए


महाॉ-वहाॉ बागते कयते हुए आवेदन नवाते हुए भाथा

भानते हुए भन्नतं चढ़ेाते हुए चढावे

जीते हुए वतषभान

सचन्ता बत्रवष्म की सभम का ढॊ ग औय इनसे सभराते हुए कदभ झुॊझराते-क्झझकते अनजानी याहं ऩय

जाते

भोरबाव कयते टक हे ईद्वय प्रसन्न हो दे दो वयदान जीवन जीने का जीवनयाग सुनाई दे जाती है सचटड़ेमं की चहचह फड़ेी सुफह जग गए होते हं

शामद हभं सुनाते हं जीवन का याग जीवन को जीना त्रवषभताओॊ भं

बी

आकुरता है फेचेनी है इनभं द:ु ख टक हभ सभझना


नहीॊ चाहते चहक औय याग के साथ जीना इनकी ध्वसनमं से दयू -फहुत दयू हो गए हभ

उदास रड़ेकी आज वो उदास है अवाक बी जो यहती थी भगन सऩनं भं खोई उधेड़ेफुन भं प्माय के ख्वाफ दे खती हुई-सी

खुसशमाॉ उसके चेहये से छरक-सी जाती थीॊ द:ू ख कोसं दयू

प्रेभ ऩय अिू ि त्रवद्वास सनश्छर प्ररेभासबव्मत्रक्त प्रेभ के प्रसत ऩूयी आद्वस्त उदास है समं आज? शामद उसे भारूभ हो गमा प्रेभ का छद्म रूऩ! फड़े​े तत्रफमत से छरी गई वो। 


आशीष दशोत्तय

जीवन के सॊघषष, सुख-दख ु , त्रवसॊगसतमाॉ कबी अवसाद तो कबी आक्रोश भं तब्दीर हो जाती

हं भगय जफ मही असबव्मत्रक्त सकायात्भक रूऩ भं साभने आती है तो कत्रवता का जन्भ होता है । मही कत्रवता सभाज का आईना होती है औय सागय को याह बी टदखाती है । आशीष दशोत्तय 39, नागयवास, यतराभ-457001 भो.: 09827084966 F F F F F F आजकर जन सॊऩकष कामाषरम भे कामषयत एवॊ स्वतॊि रेखन। जन्भ : 1972 आशीष दशोत्तय

फच्चे नहीॊ जानते भासचस की टडक्ब्फमं के घय फनाकय सगयाने के अभ्मास फच्चं को उस यंज फड़ेा भॊजा आमा जफ रगबग ऐसी ही दो इभायतं बयबयाकय सगय गईं, फच्चं को नहीॊ भारूभ


इभायतं टकसने सगयाई औय समू? ॉ मा क्जसकी इभायतं सगयीॊ वह कौन औय कैसी ताकत है भॊगय इसके ाॊपौयन फाद से फच्चे डये -सहभे हुए हं उन्हं ऩता है टक टडक्ब्फमं के घय, सगयने के फाद भायऩीि-हाथाऩाई होना तम है उनके कानं भं अबी से अऩने सासथमं की चीखं योने की आवाॊजं सुनाई दे यही हं सीता पर का ऩेड़े वह सीता पर का ऩेड़े अससय भेये ख्मारं भं आ जाता है क्जस ऩय रगा कयते थे फड़े​े -फड़े​े पर फुजुगष कहते थे कई फयस ऩुयाना है मह ऩेड़े त्रफल्कुर हभाये बाई जैसा वे सहे जते यहे उसे कापी सभम तक औय ऐसा ही चाहा हभसे बी ऑ ॊगन भं जफ तक वह ऩेड़े था, तफ तक एक त्रवद्वास था उसके न यहने ऩय घय से त्रवद्वास ही रूठ गमा


फडी-सी इभायतं भं कैद हभ एक-दस ू ये ऩय बी

नहीॊ कयने रगे त्रवद्वास हभायी ख्वाटहशं की पेहरयस्त भं वह ऩेड़े कबी नहीॊ जुड़े सका इस वक्त जफटक घय वारे गए हं सॊतं के प्रवचन सुनने औय कुछ भशगूर हं घय के ऩमाषवयण की सचन्ता भं सोचता हूॉ

परं से रदा वह ऩेड़े आ जाए ख्वाफं भं औय भं तोड़े रूॉ एक पर क्जसके फीज त्रफखेय दॉ ू

चुऩके से ऩूये ऑॊगन भं 

सुजीत कुभाय ससॊह

सच कहूॉ तो भेयी कत्रवता 'सभम औय सभाज की ऩरयक्रभा' है । इस शहय (आजभगढ़े) के इसतहास औय सभजाज ऩय नजय जाती है तो ऑॊखं पिी यह जाती हं । शहय की ऩरयक्रभा कयते हुए एक गहये आवेश भं भंने मह कत्रवता सरखी है । कत्रवता भेये सरए औषसध है । सुजीत कुभाय ससॊह शोध छाि, टहन्दी त्रवबाग, टहन्दी बवन फी.एच.मू., वायाणसी-221005 भो.: 09454351608


F F F F F F आजकर शोध छाि, टहन्दी त्रवबाग, फी.एच.मू.। जन्भ : 1981 सुजीत कुभाय ससॊह

मह आजभगढ़े है मह दस ू यी फात है टक

1857 की रड़ेाई इस शहय ने रड़ेी थी जगदीशऩुय वारे कुॉअय ससॊह के नेतत्ृ व भं मह बी अरग फात है टक आचामष याभचन्ि शुसर आते-जाते यहते थे अऩने फड़े​े फेिे के ऩास जो आॊजभगढ़े भं ही वकीर थे आरोचक भरमज इस शहय के त्रऩछड़े​े ऩन को रेकय सचक्न्तत यहते थे औय उनकी दृत्रद्श भं ''शहय का त्रऩछड़ेाऩन शुरू होता था अऩने भसखी-भच्छय, धुएॉ, शोय, स्कूर, कचहयी, हरवाई की दक ु ानं अॊखफाय के स्िारं, वेश्माओॊ औय शयाफ के अडडं के साथ'' सफसे जरूयी औय भहत्वऩूणष फात मह टक आॊजभगढ़े का इसतहास फताता है टक 'दॊ गा महाॉ की जातीम ऩहचान है ' चाहं तो आऩ इसे याभत्रवरास शभाष की 'टहन्दी जासत' बी कह सकते हं आऩ 'टहन्दी-प्रदीऩ', 'बायत जीवन', 'सयस्वती', 'भमाषदा' के अॊक उरि-ऩुरि जाइए सॊमुक्त प्राॊत भं हुए दॊ गं की चचाष जरूय सभर जाएगी उसभं 1893 ई. भं, इसी आॊजभगढ़े भं

गौयऺा आॊदोरन को रेकय हुआ था दॊ गा जो इसतहास भं हो चुका है नत्थी

टकतने है वान थे टहन्द,ू भुसरभानं के प्रसत टकतने कत्र टकए गए इस शहय भं


टकतने फरात्काय हुए इस दॊ गे भं कोई टहसाफ नहीॊ था उसका

भुकदभा दजष टकमा त्रब्रटिश हुकूभत ने औय

'आॊजभगढ़े गौहत्मा त्रवप्रव' नाभ से एक ऩुक्स्तका सरखी ऩक्ण्डत त्रफशननायामणदय, फैरयस्िय-एि-रा ने क्जसभं व्मक्त की गई थी सॊवेदना टहन्दओ ु ॊ के प्रसत मही ऩक्ण्डत दय, आगे चरकय

1911 के करकत्ता काॊग्रेस असधवेशन भं चुने गए थे सबाऩसत अफ आऩ भूल्माॊकन कयं , काॊग्रेस के चरयि औय उसकी नीसत का शहय भं अफ बी हो यहे हं दॊ गे बगवाधारयमं ने अऩना रक्ष्म फना सरमा है इस शहय को दॊ गे का काटपरा गोयखऩुय से टहनहनाता हुआ चरा आता है औय याहुर का शहय जर उठता है

कबी आॊजभगढ़े ये रवे स्िे शन दे खा है आऩने? यह-यहकय होने वारी बीड़े को दे खा है आऩने? रोग फोरयमा-त्रफस्तय सभेिे झोरा-झोरी-सॊदक ू उठाए

ताक यहे हं छऩया-रोकभान्म सतरक (िी) एससप्रेस को शहय, कस्फा, गाॉव, घय, ऩरयवाय, माय-दोस्त खेत-खसरहान, बेड़े-फकयी, गइमा-फसछमा छोड़ेने की ऩीडा स्ऩद्श झरक यही है इनके चेहयं ऩय गॊजफ का सन्नािा है गॊजफ की उदासी है गॊजफ की सतरसभराहि है गॊजफ का जोश है गॊजफ का योष है सऩने, अयभान, बत्रवष्म, सॊघषष, द:ु ख, कजष, फीभायी अगय मह सफ कुछ दे खना हो आऩको तो इस शहय को दे खं


''भाई ये ! जफ भुन्ना फॉम्फे आए, तो वह महाॉ अऩना ऩता आॊजभगढ़े न फताए'' भोफाइर ऩय सभझा यहा है फेिा अऩनी भाॉ को आॊजभगढ़े से सहभा है सॊसद, बायत, दसु नमा औय साॊसद उर्द्ोत्रषका की आवाॊज... प्रेिपाभष ऩय हरचर रुकती है छऩया-रोकभान्म सतरक (िी) प्रेिपाभष नॊ. एक ऩय दौड़ेने रगे रोग फूढ़े​े, फच्चे, फहुएॉ, फेटिमाॉ, फेिे

नाना-नानी, दादा-दादी, नाती-ऩोते ऩूया ऩरयवाय कह रीक्जए मा ऩूया जनऩद कह रीक्जए योजी-योिी की सचन्ता भं ऩूये कुनफे का भुॊफई ऩरामन हो यहा है टकसी के 'याज' का डय नहीॊ है इन्हं बीड़े छॉ ि गई स्िे शन खारी हो गमा रोग गामफ हो गए अये ! मह समा? एक-एक कयके टपय आ यहे हं रोग स्िे शन ऩय दयबॊगा-अहभदाफाद एससप्रेस मही है साफयभती एससप्रेस तुम्हं माद है ना गोधया-काण्ड! तुम्हं भारूभ है , इसी भं आॊजभगढ़े के बी थे बइमा रोग जुगनू का इॊ तजाय अबी बी कयती है उसकीभाॉ जुगनू अबी तक नहीॊ आमा अऩने गाॉव वह दसरत था


ससपष भुॊफई औय अहभदाफाद ही नहीॊ कोरकाता, टदल्री, चेन्नई, फॊगरुरु, ऩानीऩत है दयाफाद, बोऩार, चण्डीगढ़े, जमऩुय, सोनीऩत औय न जाने कहाॉ-कहाॉ ऩहुॉच जाते हं

आॊजभगढ़े के रोग, ऩेि की ज्वारा फुझाने सॊमुक्त अयफ अभीयात, सऊदी अयफ, ओभान कुवैत औय फहयीन तक ऩरबय भं, साफयभती सैकड़ें को रे बागी इस स्िे शन ऩय कफज ्ॊ ा है रार फॊदयं का

औय इन फॊदयं से ससपष आॊजभगढ़े ही नहीॊ उड़ेीसा औय कनाषिक बी हं िस्त दे श को रीरने भं रगे हं मे फॊदय रीर यहे हं मे औय शामद रीर ही जावं 'कम्प्मूियीकृ त आयऺण केन्ि' भं तकनीकी गड़ेफड़ेी थी इससरए भं प्रेिपाभष ऩय िहर यहा था औय फॊदयं को दे ख यहा था तबी भेये ाॊकयीफ से एक नौ-दस सार की कुफड़ेी-रड़ेकी हाथ भं चप्ऩर ऩहने ऩूये शयीय को घसीिते बीड़े की तयप फढ़ेी औय चप्ऩर सनकारकय अऩना हाथ पैरा टदमा 'ह्-ह्, जा-जा, बाग-बाग' की सभवेतचीख गाॉती फाॉधे वह कुफड़ेी

त्रवस्पारयत नेिं से रोगं को घूयती यही दे य तक अचानक, वह बीड़े से गामफ हो गई कमास, अॊपवाह, चचाष, कोराहर 'समा हुआ?' 'टकसी ने गोरी भाय दी उसे' 'समो?' 'ऩता नहीॊ'


जफ सायी बीड़े उस कुफड़ेी की ऩीठ ऩय सवाय थी, तो आॊजभगढ़े चीख बी यहा था औय यो बी यहा था आॊजभगढ़े को रोग टदरासा दे -दे कय, कुफड़ेी फनामे जा यहे हं रोग आ यहे हं , रोग जा यहे हं अॊजफ-सा सन्नािा ऩसया है शहय भं एक भहत्वऩूणष सूचना 'गोदान एससप्रेस शाहगॊज तक आ चुकी है ' प्रेभचन्द के ऩाि भुॊफई से रदे-पॊदे आ यहे हं कॊजष से जकड़े​े हुए आ यहे हं

होयी का कहीॊ अता-ऩता नहीॊ धसनमा रारिे न सरए खोज यही है फदहवास है आॊजभगढ़े ये रगाटड़ेमं के आने-जाने के क्रभ भं ऩियी ऩाय, इफ्को-खाद ट्रक ऩय राद यहे हं भजदयू -ऩल्रेदाय

खाद के सरए राठीचाचष हो यहा है टकसानं ऩय, ऩूवांचर भं कंटपमात उस ऩाय खड़ेी है जहाॉ ऩानी की िॊ की है खूफ ऊॉची क्जसकी ऺभता 20500 रीिय की है औय क्जसकी सपाई 17 भई 2006 को हुई थी शफाना आॊजभी की मह कंटपमात

छोड़े आती है टदल्री, इन आॊजभगटढ़ेमं को माद है न तुम्हं , फिरा हाऊस भुठबेड़े योते हुए कहती है नूयजहाॉ की अम्भी इसी से गमा था भेया नूय भाय डारा 'उन्हंने' उसे नूय डयता था 'उन्हंने' से


'उन्हंने' बमानक औय खतयनाक फन्दय हं महाॉ के ऩेड़ें ऩय ऩत्ते नहीॊ हं महाॉ सचटड़ेमाॉ नहीॊ चहकतीॊ भॊजदयू गीत नहीॊ गाते

भाॊ रोरयमाॉ नहीॊ सुनातीॊ महाॊ फन्दयं का आतॊक है जो रोगं की खाद्य-साभग्री छीन रेते हं । जफ भं प्रेिपाभष ऩय खड़े​े -खड़े​े मह कत्रवता सरख यहा था, तबी वह कुफड़ेी भेये ऩास से गुजयी, औय भं ससहय गमा मह जॊसशन नहीॊ है , छोिा-सा स्िे शन है महाॉ ट्रे नं आती-जाती यहती हं टदल्री-भुॊफई-अहभदाफाद औय अफ भाॉग की जा यही है कोरकाता के सरए, 'कोरकाता एससप्रेस' की मह टकसानं, भेहनतकशं, सॊघषषशीरं, श्रसभकं औय घुभसकड़ें का शहय है अऩने हक के सरए बूख हड़ेतार औय आभयण अनशन तक कयते यहते हं मे न हो त्रवद्वास तो ऩूछ रो तैय्मफ आॊजभी से जोकहया भं जफ कोई साटहत्मकाय आना चाहता है , तो वह दहर उठता है टक कैसे जाएॉ जोकहया? टक जोकहया एक गाॉव है वैचारयक रूऩ से त्रऩछड़ें का महाॉ आने वारा हय साटहत्मकाय ससपष अऩनी सुत्रवधाओॊ का यखता है ख्मार उसे सचन्ता नहीॊ दस ू यं की, सचन्ता है ससपषअऩनी इसी ये रवे स्िे शन ऩय हुई असुत्रवधाओॊ के सरए


अऩने को वरयद्ष नागरयक फताते हुए भभता कासरमा ने

सरखा था एक खुरा ऩि, ये रभॊिी रारूप्रसाद मादव के नाभ औय असुत्रवधाओॊ के सरए जभकय रताड़ेा था ये रवे को नवम्फय 2008 भं जफ बायत के टहन्दी फुत्रर्द्जीवी, टहन्दी प्रेभी अऩनी सुत्रवधाओॊ की जुगाड़े भं रगे थे, औय टहन्दी प्राध्माऩक उग्र थे चङ्ढा ससभसत की ससपारयश रागू न होने से तो 'जनसत्ता' भं सशऺाभॊिी अजुन ष ससॊह के नाभ एक खुरा ऩि छऩा था काशी की नागयी प्रचारयणी सबा को फचाने के सरए टहन्दी के अक्स्तत्व के सरए मह खुरा ऩि िै ससस, ऑससपोडष , रॊदन, कंिफयी, कैसरॊपोसनषमा त्रवमना, टहडे रफगष, मोकष, वेसनस, ओस्रो, कोरक्म्फमा त्रवद्वत्रवद्यारमं के प्राध्माऩकं ने सरखा था, साथ ही टहन्दी के कुछ जगभगाते नाभ बी थे उसभं कत्रवता भं जगह नहीॊ है उनके सरए असुत्रवधाओॊ के सरए ाॊखेद है , मह आॊजभगढ़ेहै टहन्दी भय यही है त्रवदे सशमं के फचाने से नहीॊ फचेगी टहन्दी आॊजभगढ़े भं हरयऔध, याहुर, चन्िफरी, भरमॊज नहीॊ हं खत्भ हो चुके हं वे,

जोकहया कोसशशं के फाद बी नहीॊ फचा ऩामेगी उसे।  शशाॊक शेखय


अऩनी कत्रवताओॊ के भाध्मभ से भं सभाज भं अऩनी बूसभका जानने -फूझने की कोसशश कयता हूॉ। भुझे रगता है टक मह भेये आत्भ का त्रवस्ताय तो है ही, भेये आत्भ भं दसु नमा की क्स्थसत बी है । कत्रवताई की सुदीघष ऩयॊ ऩया भं भनुष्मता की ऩड़ेतार टकसी बी कत्रव का काम्म हो सकता है समंटक मटद अऩने सभम औय सभाज की ऩहचान कय सकने भं भेयी कत्रवताएॉ कुछ कय सकं, तो भुझे अच्छा रगेगा। शशाॊक शेखय द्राया श्री नये न्ि शभाष चरयिवन, फससय-802101 (त्रफहाय) भो.: 0943168068 F F F F F F आजकर

शोध छाि। जन्भ : 1983 शशाॊक शेखय

घय घय भं इतनी योशनी नहीॊ टक दे खा जा सके सफ कुछ सायी चीजं ऩय जभी है धूर झोर ने वषं से फुना है जार भािी का घय था टकतनी खुशफू थी जीवन भं चूनं की गॊध से सरऩिी थी आत्भा वातानुकूसरत कभयं भं टकतनी घुिन है आज नदी सूख गई है सऩनं की िहनी से छूि गमा है ऩत्ता

जड़ें को चाि गमा है दीभक


जैसे कुछ ही टदनं भं नीराभ हो जाएगा घय   अस्भुयायी नॊदन सभश्र 'भधुकय'

कभया नॊ.-105, त्रफयरा-सॊकुर काशी टहन्द ू त्रवद्वत्रवद्यारम

वायाणसी-221005

अस्भुयायी नॊदन सभश्र 'भधुकय'

जादग ू य की पूॉक आक्खयकाय भाया गमा साॉऩ नेवरे को सभरे सम्भान मोनम है ही मह भाय सगयामा इसने फेहद त्रवषैरे साॉऩ को रेटकन भं तराश यहा हूॉ

उस जादग ू य को

क्जसने अऩनी पूॉक से यस्सी को फना टदमा था साॉऩफेहद त्रवषैरा साॉऩ भुझे बी नाज है नेवरे ऩय रेटकन फजाम दाद दे ने के उसे भं ढू ॉ ढ़े यहा हूॉ गरी-गरी


उस जादग ू य को

क्जसकी पूॉक ही फेहद त्रवषैरी है क्जससे वह सनजीव यक्स्समं को साॉऩ फनामा कयता है सुना है गरी-गरी वह अऩना खेर टदखामा कयता है क्जन्दगी टकतनी अकेरी फॊद कोई एक कभयाएक ससॊगर चायऩाई कुछ टकताफं कॉत्रऩमाॉ कुछ मही िे फुर की कभाई िॊ गनी ऩय तौसरमा गॊजी जाॉसघमा खूटॉ िमं ऩय ससरविं से तय कऩड़े​े कुछ सुफह के जूठे दो चाय फतषन त्रफखये हुए से प्माज के सछरके िु कड़े​े अधजरी ससगये ि के औय कोने भं यखा फेकाभ झाड़ेू ससय धुनता है छत का ऩॊखा जैसे भौत की हो आक्खयी टहचकी एक कोने भं जरता है फल्फ सुरगता हुआ खुद अऩनी तऩन से कफ तरक जरता यहे गा फ्मूज होगा


टपय अॊधेयी अनफुझी-सी इक ऩहे रीक्जन्दगी टकतनी अकेरी अधछे ड़ेू करभ भं तो अधछे ड़ेू करभ हूॉ रगाताय सघसिता यहा कहीॊ इफायत उतयी कहीॊ ये खा फनी

कहीॊ सादा ही ऩथ छूिता यहा भेयी नोक ऩय दस ू यं की फात यही भेयी क्झझक सदा भेये साथ यही   चॊिकाॊत ससॊह रोटहत, 106, (तृतीम त्रवॊग)

जे.एन.मू., नई टदल्री-110067 F F F F F F आजकर अध्ममन व स्वतॊि रेखन। चॊिकाॊत ससॊह

असगनऩाखी दयू फहुत दयू उड़ेा भं दे खते-दे खते

इतनी दयू चरा गमा

जहाॉ से रौि कय आना बी भुक्श्कर ही था वे कहते गए


वे यिते गए नहीॊ छोड़ें गे, कुचर ही डारंगे भेये डै ने भं उनकी फात सुनता सुनकय हॊ सता टपय हॊ सकय चर दे ता वे सचढ़ेते हरकान होते तयह-तयह के भुॊह फनाते आक्खय एक टदन बयी दऩ ु हय भं

जरा दी गई भेयी झोऩड़ेी पूॊक टदमा गमा भेये रहरहाते खेतं को भगय भेये भन के त्रवद्वास को रुकाठी दे कय जराना आसान नहीॊ था भं फन चुका था असगनऩाखी ऩत्थय वीयाने शहय का अदना-सा एक ऩत्थय सभरा एक शाभ वैसे ही जैसे सभरते हं रोग सड़ेक से गुजयते हुए ऩहचाने से

अनजाने से

सभरकय फसतमाते हुए हो चरा साथ क्जधय


दो-चाय गट्ठय घास भुस्कया यही थी एक ऩहचानी हुई गाम थन टहराते हुए

जुगारी का भजा पयभा यही थी हुल्रड़ेफाजी के साथ

तम टकए कई भीर हभने न भुझे पुयसत अजनफी होने की न उसे यात की ऩहरी अॊसधमायी योशनी भं दयू से ही

हाथ टहरा यहा था घय दआ सराभ के फाद ु रुखसत हुआ ऩत्थय दफ ु ाया न सभरा जफटक

आज बी उसे खोजता हुआ

गाॉव से शहय हो आता हूॉ।   याजेश कुभाय

कत्रवता सरखना भेया शौक है । आस-ऩास की ऩरयक्स्थसतमं को दे खकय भुझे ऩीड़ेा होती है । मही ऩीड़ेा भं अऩनी कत्रवता के भाध्मभ से आऩके सभने राना चाहता हूॉ। मही प्रमास यहता है टक भेयी कत्रवता को आज का ऩाठक सभझे।


याजेश कुभाय आनन्दऩुयी कॉरोनी, कॉरेज भोड़े हजायीफाग, झायखण्ड-825301 भो.: 09905723002 F F F F F F आजकर 'झायखण्ड की टहन्दी कहानी : एक भूल्माॊकन' त्रवषम ऩय शोधकामष जायी। जन्भ : 1980 याजेश कुभाय

फॊद घड़ेी घड़ेी जो कबी सभम के साथ चरती थी आज फॊद है

उसके अन्दय की भशीनं भं जॊग रग चुका है सभम के ऩटहए की तयह चरने वारे काॉिे अफ रुक चुके हं उसे बी अफ आगे फढ़ेने के सरए कारे धन की फैट्री चाटहए क्स्वस फंक भं एकाउण्ि चाटहए भशीनी तेरं की जगह दे श की जनता का खून चाटहए घड़ेी जो सभम के साथ चरती थी आज फॊद है ।  


वेदसभि शुसर 'भमॊक'

पूर खूफसूयत समं होते हं? कोमर समं कूकती है ? नटदमाॉ कर-कर कयती समं फहती हं ? इन सवारं-सा एक सवार औय बी हो सकता है यचनाकाय यचनाएॉ समं कयता है ? जवाफ भं कुछ कह ऩाना, खुद के सरए, टपरहार, कटठन हो यहा है । टपय बी, शामद, यचना अऩने सभम को आने वारे सभम के सरए साथषकता प्रदान कयने के साथ-साथ यचनाकाय को सभम से जोड़ेती है । वेदसभि शुसर 'भमॊक' अॊग्रेजी त्रवबाग, याजधानी कॉरेज टदल्री त्रवद्वत्रवद्यारम नई टदल्री-110015

F F F F F F आजकर जे.एन.मू. से अॊग्रेजी साटहत्म भं एभ.टपर. औय टदल्री त्रव.त्रव. भं रेसचयय। वेदसभि शुसर 'भमॊक'

गाॉधी-जमन्ती भनाई गोडसं ने आज टपय दो असिू फय था गोडसं ने आकय झण्डा पहयामा गाॉधी की भूसतष को भारा ऩहनाई 'सत्म-अटहॊ सा-प्रेभ' के जुभरे को एक फाय नहीॊ


कई फाय दोहयामा औय कहा 'उन्ही को आदशष भानकय दे श चराना होगा जैसा अफ तक चरामा है ' एक के फाद एक गोडसे आते गए गाॉधी को दे श की जरूयत फताते गए तबी गाॉधी की भूसतष से आवाज आई 'आज हभाये हत्मायं ने हभाया जन्भ-टदवस भनामा है ' दे श को, सभाज को गाॉधी की जरूयत फतामा है

खुशी हुई टक सफको गाॉधी अफ सभझ भं आमा है तो समा भै इसतहास दोहयाऊॉ आज दो असिू फय को इस धयती ऩय आऩ सबी की खासतय टपय से आ जाऊॉ? सबी गोडसे एक स्वय भं तुयन्त फोरे ''न न न...!'' हभ गाॉधी की भूसतष को


भजाय को, त्रवचाय को उनसे जुड़े​े हय त्मोहाय को भना सकते हं ऩूज सकते हं भगय गाॉधी को इस धया ऩय स्वीकाय कय ऩाना भुक्श्कर है    सॊतोष श्रेमॊस

 जीवन की आऩाधाऩी भं जो कुछ छूि यहा है, उन भानवीम भूल्मं को सहे जने के आग्रह से उऩजती हं भेयी कत्रवताएॉ। भेयी कत्रवता सभाज के उस अक्न्तभ व्मत्रक्त की बावनाओॊ को आवाज दे ने की कोसशश है क्जसका श्रभ त्रफना टकसी आग्रह के दसु नमा को सनयॊ तय सुॊदय फनाए यखने के सरए कामषशीर है । सॊतोष श्रेमॊस द्राया श्री प्रेभचन्द श्रीवास्तव वसशद्ष नगय, आया त्रफहाय-802301 भो.: 09570554300 F F F F F F आजकर असधवक्ता एवॊ स्वतॊि रेखन सॊतोष श्रेमॊस

भृगतृष्णा


ये सगस्तान-सी वीयान क्जन्दगी भं चरा जा यहा हूॉ अकेरा दे खता हूॉ हय तयप तऩती

ये त ही ये त... चाहता हूॉ ठॊ ड़ेी छाॉव जहाॉ सुस्ता सकूॉ ठॊ डा ऩानी जो प्मास फुझा सके नभष घास, क्जसऩय फेटपक्री से सो सकूॉ दयू ... कहीॊ दयू ...

ऩानी दे खते ही दौड़ेता हूॉ औय ऩाता हूॉ

ससपष ये त... ही... ये त तऩती ये त... फदहवास भं... भेये ऩैय भं छारे ऩड़े गए हं प्रसतऻा कयता हूॉ

इन भयीसचकाओॊ से आकत्रषषत नहीॊ होने की फाय... फाय... ऩय हय फाय ऐसा ही होता है तऩते ये त ऩय झुरसते हुए

इन भयीसचकाओॊ के

आकषषण से भुक्त नहीॊ हो ऩाता टकसी उम्भीद भं दौड़े ही ऩड़ेता हूॉ


एक नई भयीसचका की ओय। रौि आने तक माद है भुझे वह टदन जफ भं फच्चा था भेयी भाॉ भुझे योकती थी फाहय जाने से डयती थी इस आशॊका से टक भं कुचरा न जाऊॉ टकसी वाहन के तरे मा टपय बूर ना जाऊॉ अऩने घय का यास्ता आज बी जफ भं फड़ेा हो गमा हूॉ वह दहर जाती है

भुझे फाहय जाते दे खकय भेये सुयक्ऺत घय रौि आने तक यास्ते ऩय टिकाए यखती है नजय रौिने भं होने वारी थोड़ेी-सी दे य भं ही सायी दसु नमा के दे वताओॊ को रगा आती है गोहाय इससरए नहीॊ टक शहय भं योज की गोरीफायी मा फभ के धभाकं के फीच कहीॊ शासभर ना हो जाए उसक फेिे का नाभ वह डयती है मह सोचकय टक भयने के फाद बी कोई सशनाख्त कयने आगे नहीॊ आएगा उसके फेिे की


न आएगी भयने की खफय ही औय वो भेया श्रार्द् बी नहीॊ कय ऩाएगी अऩने भयने तक टपय कोई नहीॊ फचेगा उसे आग दे ने वारा बी   त्रप्रमोवसत सनड.व्थंजा

भहात्भा गाॊधी अॊतयाषद्सीम टहन्दी त्रवद्वत्रवद्यारम, वधाष भहायाद्स-442001 F F F F F F आजकर टहन्दी बाषा एवॊ साटहत्म भं अध्ममनयत। भॊजुश्री वभाष

ऩंटिॊ ग कुछ बी शाॊत नहीॊ होता यॊ गं भं अऩने अक्स्तत्व को तराशती एक औयत फहे सरमा के खौप से पड़ेपड़ेाती सचटड़ेमा


आकाश तराशता एक तोता कुछ बी शाॊत नहीॊ सनस्शब्द नहीॊ होते काॊगॊज ऩय उतयते यॊ ग त्रऩता भुझे चाटहए एक त्रऩता जो सुयक्ऺत यख रे भेये अहसास भेयी ऑ ॊखं भं उग आई बावनाएॉ भेयी हॉ सी के गुब्फाये को दे सके थोड़ेा-सा आकाश औय सुयक्ऺत यख रे एक ऩतरी िहनी ऩय

दसु नमा की िॊ गी

अऩनी छोिी-सी नाक भुझे चाटहए एक त्रऩता औयत श्रसभक भिभैरी काॉच की चूटड़ेमं वारे

मे हाथ

कठोय, कारी, िू िी त्रफखयी ये खाओॊ वारी हथेसरमाॉ न होतीॊ

न होते

धूर औय सभट्िी से सने फार फड़ेी-फड़ेी रकीयं औय सभट्िी का भहावय रगाए


मं अटडग ऩैय न होते तफ खेतं भं अन्न की फासरमाॉ

न हॉ सतीॊ

न हभाया ऩेि बयता हो ऩाते

औय न हभ

इस सृत्रद्श की

श्रेद्ष यचना एक असबशद्ऱ सचटड़ेमा अऩने छतदाय घंसरे से झाॉकती नहीॊ है

एक सचटड़ेमा

अऩने ऩॊखं के फीच छुऩाए यहती है अऩना वजूद वजूद क्जसभं सहभा है

घंसरे भं तैयती

कई ऑ ॊखं का वजूद वजूद जो बूखा है वजूद का

जो प्मासा है

हॉ सने से िू िता औय सुफकने से सुयक्ऺत है दसु नमा की सफसे

कभजोय िहनी ऩय

छतदाय घंसरे की तयह रिकता वजूद जफ कबी बी क्खरक्खराती है सचटड़ेमा माद कयना चाहती है क्जसने ऩहरी फाय

वह चंच

ि​िोरे थे उसके ऩॊख

कैभूय ऩवषत की सफसे ऊॉची


शृॊखरा ऩय धूऩ संकते हुए असबशात्रऩत होती है सचटड़ेमा दसु नमा की फद्दआ ु ओॊ का टक क्खरक्खराना

अऩने छतदाय घंसरे से झाॉकना औय वृऺ सभूहं भं कोई नई िहनी तराशना तुम्हाया धभष नहीॊ

फस

तुभ दख ु ं भं चुप्ऩी साधना छुऩाए यखना

अऩनी दे ह ऩॊखं भं

अऩना वजूद फूढ़ेा वृऺ औय आदभी उस फूढ़े​े िीरे ऩय वषं से खड़ेा एक फूढ़ेा वृऺ

दे ख यही हूॉ भं

वृऺ का खड़ेा होना औय उसे दे खना भेये क्जन्दा होने के अहसास से जुड़ेा है त्रऩता ने फतरामा था वे इसी रूऩ भं दे खते आए हं मह फूढ़ेा िीरा औय िीरे ऩय खड़ेा मह ऩेड़े एक टदन त्रऩता ने ऩूछा भं दे ख नहीॊ यहा हूॉ वह िीरा

औय


औय नहीॊ दीख यहा वह फूढ़ेा ऩेड़े सफ कुछ ठीक तो है , त्रफटिमा औय दस ू ये टदन नहीॊ यहे त्रऩता टपय एक यात धयती के सफसे छोिे एकाॊत भं िीरे की ऩीठ ऩय खड़ेी होकय भंने वृऺ से कहा एक सभान बोगते यहे वसॊत औय ऩतझड़े के टदन सूमष का तेज तुम्हं झुरसा नहीॊ सका त्रवचसरत, नहीॊ कय सके भेघ के अनॊत जर हे वीय, हे ऩयाक्रभी ऩहरे भयता है आदभी मा भयती है उसकी ऑॊख टपय उसी एकाॊत भं वृऺ झुका

औय गोद भं उठाकय भुझसे कहा क्जतनी छोिी हो तुभ उतना ही फड़ेा है , तुम्हाया प्रद्ल अबी इतना बय जानो क्जसके ऩास नहीॊ है दृत्रद्श वह अऩने जीवन भं बी भया है अन्मथा हय आदभी अऩने-अऩने िीरे ऩय भेयी तयह


खड़ेा है    भॊजुश्री वभाष

 भं शब्दं के इदष -सगदष घूभती यहती ह,ूॉ शब्द भेये आस-ऩास भॊडयाते यहते हं । उन्हीॊ शब्दं भं अऩने आऩ को ढू ॊ ढने की कोसशश से ही कुछ नमा फनकय साभने आ जाता है तथा अऩनी ऩरयक्स्थसतमं से बावनात्भक रगाव ही भुझे सरखने के सरए प्रेरयत कयता है । भॊजुश्री वभाष 115K, भु. गजयाढ सासायाभ-821115 पोन : 221837 F F F F F F आजकर सशक्ऺका। जन्भ : 1975 भॊजुश्री वभाष

ऩंटिॊ ग कुछ बी शाॊत नहीॊ होता यॊ गं भं अऩने अक्स्तत्व को तराशती एक औयत


फहे सरमा के खौप से पड़ेपड़ेाती सचटड़ेमा आकाश तराशता एक तोता कुछ बी शाॊत नहीॊ सनस्शब्द नहीॊ होते काॊगॊज ऩय उतयते यॊ ग त्रऩता भुझे चाटहए एक त्रऩता जो सुयक्ऺत यख रे भेये अहसास भेयी ऑ ॊखं भं उग आई बावनाएॉ भेयी हॉ सी के गुब्फाये को दे सके थोड़ेा-सा आकाश औय सुयक्ऺत यख रे एक ऩतरी िहनी ऩय

दसु नमा की िॊ गी

अऩनी छोिी-सी नाक भुझे चाटहए एक त्रऩता औयत श्रसभक भिभैरी काॉच की चूटड़ेमं वारे

मे हाथ

कठोय, कारी, िू िी त्रफखयी ये खाओॊ वारी हथेसरमाॉ न होतीॊ

न होते


धूर औय सभट्िी से सने फार फड़ेी-फड़ेी रकीयं औय सभट्िी का भहावय रगाए मं अटडग ऩैय न होते तफ खेतं भं अन्न की फासरमाॉ

न हॉ सतीॊ

न हभाया ऩेि बयता हो ऩाते

औय न हभ

इस सृत्रद्श की

श्रेद्ष यचना एक असबशद्ऱ सचटड़ेमा अऩने छतदाय घंसरे से झाॉकती नहीॊ है

एक सचटड़ेमा

अऩने ऩॊखं के फीच छुऩाए यहती है अऩना वजूद वजूद क्जसभं सहभा है

घंसरे भं तैयती

कई ऑ ॊखं का वजूद वजूद जो बूखा है वजूद का

जो प्मासा है

हॉ सने से िू िता औय सुफकने से सुयक्ऺत है दसु नमा की सफसे

कभजोय िहनी ऩय

छतदाय घंसरे की तयह रिकता वजूद जफ कबी बी क्खरक्खराती है सचटड़ेमा


माद कयना चाहती है क्जसने ऩहरी फाय

वह चंच

ि​िोरे थे उसके ऩॊख

कैभूय ऩवषत की सफसे ऊॉची शृॊखरा ऩय धूऩ संकते हुए असबशात्रऩत होती है सचटड़ेमा दसु नमा की फद्दआ ु ओॊ का टक क्खरक्खराना

अऩने छतदाय घंसरे से झाॉकना औय वृऺ सभूहं भं कोई नई िहनी तराशना तुम्हाया धभष नहीॊ

फस

तुभ दख ु ं भं चुप्ऩी साधना छुऩाए यखना

अऩनी दे ह ऩॊखं भं

अऩना वजूद फूढ़ेा वृऺ औय आदभी उस फूढ़े​े िीरे ऩय वषं से खड़ेा एक फूढ़ेा वृऺ

औय

दे ख यही हूॉ भं

वृऺ का खड़ेा होना औय उसे दे खना भेये ाॊक्जन्दा होने के अहसास से जुड़ेा है त्रऩता ने फतरामा था वे इसी रूऩ भं दे खते आए हं मह फूढ़ेा िीरा औय िीरे ऩय खड़ेा मह ऩेड़े


एक टदन त्रऩता ने ऩूछा भं दे ख नहीॊ यहा हूॉ वह िीरा

औय नहीॊ दीख यहा वह फूढ़ेा ऩेड़े सफ कुछ ठीक तो है , त्रफटिमा औय दस ू ये टदन नहीॊ यहे त्रऩता टपय एक यात धयती के सफसे छोिे एकाॊत भं िीरे की ऩीठ ऩय खड़ेी होकय भंने वृऺ से कहा एक सभान बोगते यहे वसॊत औय ऩतझड़े के टदन सूमष का तेज तुम्हं झुरसा नहीॊ सका त्रवचसरत, नहीॊ कय सके भेघ के अनॊत जर हे वीय, हे ऩयाक्रभी ऩहरे भयता है आदभी मा भयती है उसकी ऑॊख टपय उसी एकाॊत भं वृऺ झुका औय गोद भं उठाकय भुझसे कहा क्जतनी छोिी हो तुभ उतना ही फड़ेा है , तुम्हाया प्रद्ल अबी इतना बय जानो क्जसके ऩास नहीॊ है दृत्रद्श वह अऩने जीवन भं बी भया है


अन्मथा हय आदभी अऩने-अऩने िीरे ऩय भेयी तयह खड़ेा है   सैमद जैगभ इभाभ

भं कत्रवताएॉ नहीॊ सरखता... कत्रवताएॉ भुझे सरखती हं । भेयी उदासी, भेये दख ु , भेयी उटद्रननता, शामद सफ कुछ। भेये भुतात्रफक

कत्रवता साटहत्म की सफसे सयर औय सफसे कटठन त्रवधा है । सयर इससरए समंटक हय कोई

कत्रवता सरख सकता है ... कटठन इससरए समंटक ऐसी कत्रवता जो दस ू यं के भन को छू जाए

मा टपय अऩनी फात भुसकभर तौय ऩय कह जाए... फेहद भुक्श्कर से आती है । कत्रवता शब्दं का सॊगीत है जो अच्छी फन ऩड़े​े तो त्रफना टकसी वाद्य मॊि के धुनं त्रफखेयती है , भन के ताय छे ड़ेती है । शब्दं का मही सॊगीत भुझे कत्रवताओॊ के सरए प्रेरयत कयता है । सैमद जैगभ इभाभ डॉ. एस.ए. भुजफ्पय वाडष नॊ. 15, गाॊधी नगय क्जरा चॊदौरी-232104, (उ.प्र.) भो.: 09873767778 F F F F F F आजकर िीवी िु डे नेिवकष भं कामषयत। जन्भ : 1982 सैमद जैगभ इभाभ


ख्वाफं के जॊगर भं हभ टपय सभरंगे... ख्वाफं के जॊगर भं बिकते हुए ऩीरी धूऩ के टकसी ऩेड़े तरे उकताए हाये हाॉपते एक-दस ू ये को सनहायते हभ टपय सभरंगे टकसी सुयभई शाभ धड़े-धड़े कयती धड़ेकनं के शोय के फीच खाभोश चुऩचाऩ ऑ ॊखं भं उदास ऑॊसुओॊ की कतायं सरमे हभ टपय सभरंगे फयसती फूॊदं भं प्मासे काॉऩते खुश्क रफं ऩय जफाॉ टपयाते फेफस, फेचन ै , राचाय, सुरगते हभ टपय सभरंगे क्जॊदगी के आक्खयी रम्हं भं एक दस ू ये की ऑॊखं भं

त्रफजरी की तयह चभकते एक दस ू ये के टदर भं

फादर की तयह गयजते हभ टपय सभरंगे औय मूॉ ही सभरते यहं गे भौन सनशब्द एक दस ू ये के अिू ि प्रेभ भं सयाफोय हभेशा

हभ टपय सभरंगे।


  आशा तनेजा

 प्रत्मेक यचनाकाय की तयह अऩने आस-ऩास की झीरं से भन भं उठे ख्मारं को शब्दं के रूऩ भं काॊगॊज ऩय उतायती हूॉ क्जनभं कटठन बाषा की जगह सयर शब्दं का प्रमोग कयने की इच्छा हभेशा यही है क्जसे ऩढ़ेकय जनसाभान्म के भन भं बी वही अहसास टहरोयं खा सके क्जसके चरते भेयी बावनाओॊ को भजफूय होकय यचना का रूऩ रेना ऩड़ेा। आशा तनेजा द्राया, श्री एस.डी. त्रिऩाठी 363, स्कीभ नॊ. 2 राजऩत नगय, अरवय (याजस्थान) भो.: 09711850979 F F F F F F आजकर उऩसॊऩादक 'ऩाखी' (साटहक्त्मक ऩत्रिका)। आशा तनेजा

कुछ कत्रवताएॉ (1) नदी का मे टकनाया भेयी तयह है क्जस ऩय रहयं फाय-फाय आती हं िकयाती हं औय तुयॊत रौि बी जाती हं


टकनाया टपय बी खुश है रहयं ऩर बय के स्ऩशष से प्रेभ का अहसास तो टदराती हं (2) मटद भं गुभ हो जाऊॉ तो ना ढू ॉ ढना भुझे गसरमायं औय फाॊजायं भं फागं औय फगीचं भं नदी औय ऩहाड़ें भं फस झाॉक रेना भेयी भाॉ की ऑॊखं भं भेये त्रऩता के गवष भं घय भं फने उस भॊटदय भं जहाॉ भं सुफह का कुछ वक्त त्रफताती हूॉ औय हाॉ, मे कहना ना बूरना भेयी भाॉ से टक तुम्हं धोखा हुआ था

भं कबी खोई ही नहीॊ थी (3) भं चुऩ समं नहीॊ यहती समं नहीॊ दे ती जफान को आयाभ अससय ऩूछते हं रोग डयते हं भेयी आवाॊज से कहीॊ उसे शब्द न सभर जाएॉ जो ऑ ॊखं दे खती हं टदभाग सभझता है अनुबव जानता है खोर ना दे बेद उनके ऻान नहीॊ है शामद ऑ ॊखं की बाषा का उगरती है जो याज हय ऩर उनके


बाव फदर-फदर कय औय डय भेये फोरं का है (4) ऩानी का फुरफुरा खुसशमं की तयह है

जीवन की यवानगी ऩय टदखता छुऩता-सा क्जसका जन्भ सही सोच की फूॉद औय सपरता की रहय ऩय कुछ ऩर के सरए होता है जो ठहयाव के सरए नहीॊ फस भुस्कान की आस से जन्भ रेता है (5)

अगय हभ होते अजनफी तो कबी एक दज ू े की ओय न ताकते

न भुस्कुयाते एक दज ू े को दे ख न हार-चार ऩूछते

न बीड़े भं हाथ सभराते नजय आते रेटकन मटद मही सफ फातं हभं दोस्त फनाती तो हभ हाथ सभराते सभम हाथ की घटड़ेमं ऩय गौय न कयते मा भुस्कुयाते हुए चेहये की यॊ गत से क्रीभ का अॊदाजा न रगाते

औय खुद को सफसे सुखी टदखाने की नाकाभ कोसशश बी कबी न कयते   अनाय ससॊह वभाष

जफ भं दे श औय सभाज भं व्माद्ऱ अनीसत, अत्माचाय, असशऺा, त्रवषभता, गयीफी आटद को


दे खता हूॉ तो वह सफ भेये अॊदय उभड़ेता-धुभड़ेता यहता है औय टपय वह कत्रवता के रूऩ भं प्रस्पुटित होता है । कत्रवता भेये सरए दे श औय

सभाज के प्रसत अऩने भनोबावं को व्मक्त कयने का सफसे सहज औय सशक्त भाध्मभ है । अनाय ससॊह वभाष 'भधुवन' दीनदमार कॉरोनी कासगॊज-205123 क्जरा-काॊशीयाभ नगय, (उ.प्र.) भो.: 09720625646 F F F F F F आजकर

अध्माऩन जन्भ : 1974 अनाय ससॊह वभाष

प्रेभ कयने के टदन जरूयी नहीॊ प्रेभ फीस-ऩच्चीस की उम्र भं टकमा जाए प्रेभ चारीस-ऩचास की उम्र भं बी टकमा जा सकता है प्रेभ सत्तय-अस्सी की उम्र भं बी टकमा जा सकता है औय ाॊक्जन्दगी फची यहे तो प्रेभ सौ के आस-ऩास बी टकमा जा सकता है राख िके की फात मे है टक प्रेभ कयने की कोई उम्र नहीॊ होती प्रेभ कयने के टदन होते हं क्जन टदनं भं प्रेभ टकमा जाता है उन टदनं भं टदभाग सनक्ष्क्रम औय ठण्डा होता है टदर सटक्रम औय गयभ होता है जोश आसभान ऩय औय होश यसातर भं होता है


प्रेसभका रामक औय हय कोई नारामक होता है प्रेभ व्मवसाम औय व्मवसाम चौऩि होता है सभम कभ औय 'काभ' असधक होता है सऩने फड़े​े -फड़े​े औय ऩरयणाभ शून्म होता है क्जन टदनं भं प्रेभ टकमा जाता है वे टदन आनॊदभमी औय प्माये होते हं असपर होने के फावजूद ऐसतहाससक होते हं प्रेभऩूणष चचाषओॊ भं सगवष सुनाने को होते हं ऐसे टदन फकवास होकय बी ाॊखास होते हं ाॊखास होकय बी फकवास होते हं   तीसयी नस्र का आदभी ऩहरी नस्र का आदभी जी-तोड़े भेहनत कयता है खून औय ऩसीना फहाता है टपय बी दो जून की योिी को तड़ेऩता है दस ू यी नस्र का आदभी टहजड़ें की तयह

तासरमाॉ फजाता है औय त्रफना काभ का दाभ ऩाता है तीसयी नस्र का आदभी है तो सफसे सनकृ द्श


रेटकन फन फैठा है सफसे उत्कृ द्श मह तीसयी नस्र का आदभी ऩहरी नस्र का खून ऩीता है दस ू यी नस्र से तासरमाॉ फजवाता है भं ऩूछता हूॉ

मह तीसयी नस्र का आदभी अभय समं है भयता समं नहीॊ? छामाप्रसत वषं से दे ख यहे हं कोई ाॊपकष नहीॊ टदखता फीते वषष औय नए वषष भं टदन बी उतने ही होते हं भहीने बी उतने ही होते हं कबी टकसी वषष भं एक टदन फढ़े तो जाता है ऩय कभ होने का नाभ नहीॊ रेता है फड़ेा भुक्श्कर होता है एक वषष गुजायना हभ गयीफं को हभं एक-एक टदन एक-एक वषष रगता है औय एक-एक वषष एक-एक सदी हय वषष आता है नमा वषष

ऩुयाने वषष ऩय ऩयदा डारने


औय हभ गयीफं को फहराने कुछ बी नहीॊ होता नमा नए वषष भं नमा वषष होता है ऩुयाने वषष की फस छामाप्रसत ससॊपष छामाप्रसत   नीयज दइमा

 प्रेभ इन टदनो भेयी यचना प्रटक्रमा का आधाय यहा है औय

प्रेभ कत्रवताएॉ अऩनी भाॉ, प्रेसभका,

ऩत्नी मा खुद ईद्वय के त्रवषम भं सरखकय भं कोई नमा काभ नहीॊ कय यहा। मह तो सबी कत्रव कयते आए हं , ऩय प्रेभ इतना त्रवशार है टक जो भंने इन कत्रवताओॊ भं यचा है वह अफ तक शामद नहीॊ सरखा गमा था। शामद मह बी कहना ठीक रगेगा टक इन कत्रवताओॊ ने भुझे औय भेये प्रेभ को यचा है । नीयज दइमा द्राया, भदन गोऩार रढ़ेा ऩो.-भहाजन (रूनकयनसय) फीकानेय (याजस्थान) भो.: 09461375668 F F F F F F आजकर ऩी.जी.िी. टहन्दी केन्िीम त्रवद्यारम, नॊ. 1 जन्भ : 1968


नीयज दइमा

याजकुभायी : कुछ कत्रवताएॉ (1) वह जा यही थी अऩने घय

फैठकय रयसशा भं

रगी याजकुभायी-सी भंने कुछ नहीॊ टकमा भं जल्दी भं था फस खुशी छरकी अऩने आऩ औय उसने बी दे खा होगा जल्दी भं

भगय टकसे

भुझे मा खुशी हो? (2) क्जस टकसी से हुआ हो प्रेभ मटद वह प्रेभ है

तो समा कभ होती है वहटकसी याजकुभायी से? (3) टकमा ही नहीॊ जीवन भं कबी नाऩ-तोर अफ समा करूॉगा? भंने टदमा क्जतनी चाह थी


याजकुभायी तुभने टदमा फस उतना ही सरखा भंने तुम्हाया प्रेभ फाकी का प्रेभ

उसे छूना तो दयू

जो नहीॊ टदमा दे खा बी नहीॊ (4) जानता था कत्रव

याजकुभायी का प्माय वह नहीॊ है जानता था कत्रव इसका अॊत कल्ऩनाओॊ के िू िे ऩॊख कुछ फेतयतीफ सचि फहुत उदास यॊ ग घामर सऩने

औय खत्भ न होने वारी

ऩीड़ेा भं तयफतय माद है टपय बी टकमा उसने प्माय मह भानते हुए

इन सफ से फड़ेा है प्माय का होना क्जसके सरए सफ स्वीकाय है (5) याजकुभायी ने फताए अऩने भहर के एक के फाद एक


फहुत साये यहस्म वह गुद्ऱ यास्ता जो खोर दे ता

साये यहस्म

वहाॉ आकय रुकी औय रुकी यही नहीॊ खोरने टदमा नहीॊ खोरा वह दयवाॊजा वह जो बी था इॊ तॊजाय भं

अफ बी स्भृसत भं

वहीॊ खड़ेा है

औय याजकुभायी

खोई है टकसी स्वप्न भं वहाॉ बी कोई याजकुभाय नहीॊ (6) याजकुभायी ने दे खा अऩनी छत से चाॉद चाॊद ने बी दे खा होगा उसे चाॉद ने कुछ बी सोचा होगा टकसी कत्रव जैसा दे खकय चाॉद ने चाॉद तो नहीॊ सोचा होगा (7) दोहयी क्जन्दगी जीने को शात्रऩत है याजकुभायी उसके बीतय मुर्द् मुर्द्-त्रवश्राभ के सभम

चरता है सनयॊ तय


वह सोचती है हाॉ मह ठीक है

औय जैसे ही फढ़ेाती है

दो-चाय कदभ आगे रुक जाती है वहीॊ सोचते हुए

नहीॊ, मह गरत है ।   उस्भान खान 316, झेरभ हॉस्िर, जे.एन.मू. नई टदल्री-110067 F F F F F F आजकर जे.एन.मू. भे अध्ममनयत। उस्भान खान

ऩमाषमवाची नहीॊ कुछ चीॊजं आती हं एक साथ जैसे कोई कहे प्माय तो टकनाये ऩड़ेी एक नाव भं उतयी शाभ औय जॊगरी पूरं का गुच्छा तोहपे भं उदास यतजगं के भोड़े ऩय अकेरा खड़ेा नीभ जैसे कोई कहे - घय तो ससराई भशीन की घड़े-घड़े डम्भय रगे तीय दाॉत कािे सससके


यंजगाय कामाषरम के साभने खड़ेा खजेरा कुत्ता एक जैसे कोई कहे - दे श तो श्भशान भं एक इभरी का ऩेड़े क्जस्भ से जान खंचता चाॉद घय रौिी औयतं औय घय नहीॊ रौिी औयतं जो कहा गमा था 'साये जहाॉ से अच्छा' उसके अरावा बी फहुत कुछ एक साथ कंधता है फहुत कुछ हाराॉटक

ऩमाषमवाची नहीॊ औय बी दोस्त शाभ िू िी हुई सभजयाफं रेकय ऩुर ऩय फैठीहै दोस्त की फाईं जेफ से एक गीत सभरा है आक्खयी दभ क्जसकी धुन ऩय नाचा जो अद्वत्थाभा के कऩार-सा भेयी साॉसं भं उतय यहा है

भंने घय साप टकमा दीवायं ऩय सॊपेदी ऩोती नई चादय त्रफछाई तटकमं की खोर फदरा औय चुऩ यहा


शाभ कुछ दे य भं क्खड़ेकी से उतये गी नीभ ऩय चढ़े​े गी औय भय जाएगी भेये ऩास फचे यहं गे एक गीत औय िू िी सभजयाफं

भं घय जाऊॉगा घय को गन्दा करुॉ गा दीवायं फदयॊ ग

(अजफ फात है यक्स्समाॉ झूरा ही नहीॊ फनतीॊ यात चाॉद ही नहीॊ होता

औय बी द:ु ख हं औय बी दोस्त

औय बी प्रसतयोध अबी)

औय एक गीत अऩनी फाईं जेफ भं यख रूॉगा

हभाया प्माय सीत्रऩमं भं चभकेगा अच्छे वॊक्त भं बी जैसे अबी चभकता है औय शाभ सभजयाफं फनाएॉगी उससे सभुि उभड़े​े गा


औय रोग टदर ऩय हाथ यखे हंगे   रुसचका अग्रवार

स्ट्रीि नॊ. 96, आदशष कॉरोनी सभासध योड, खन्ना (ऩॊजाफ) भो.: 0981582771 F F F F F F आजकर शोध छािा ऩॊजाफ त्रवद्वत्रवद्यारम। रुसचका अग्रवार

अऩनी जड़ें अजीफ-सा एक वाकमा दे खा एक ऩेड़े को उल्िा खड़ेा दे खा अऩनी जडं ऊऩय उठा के आसभाॊ भं पैरा के नन्हे ऩेड़े ने सोचा टक इन जड़ें को बी हवा दॉ ू

फाहय की दसु नमा टदखा दॉ ू

भासूभ ऩेड़े फड़ेा नादान था शयायती हवाओॊ के रुख से अनजान था तेज ऑॊसधमं ने उसे


ऩर भं सगया टदमा सरिा टदमा

जभीन ऩय औॊधे भुॉह

भंने ऩूछा आक्खय

भाजया समा है ? फोरा मे अऩनी जडा​ाेाॊ से खेरने की सॊजा है मे कारे-कारे साए हं उन गीतं के उन फातं के अरप ्ॊ ाजं के कुछ कारे-कारे साए हं

अऩनी सॊपेद हथेसरमं ऩे जफ तुभको ढू ॉ ढा कयती हूॉ मे तीखी रकीयं

हाथं भं गहये

खोदती जाती हं टपय तकदीयं चो-चो कय खोखरा-सा कय जाती हं औय हाथं भं

जो फसता है

जो फचता है मे कारे-कारे साए हं कबी-कबी शाभ के ख्वाफ ये त की तयह जो उड़ेने रगते हं इन ऑ ॊखं भं सूखे ऩत्ते फेरं से चढ़ेने रगते हं

औय कारी ऩुतरी ऑॊखं की एकदभ ऩीरी ऩड़े जाती है मे उनभं बी बय जाते हं टपय साये ख्वाफ एक-एक कयके दभ घुिने से भय जाते हं मे कारे-कारे साए हं


  नवनीत कुभाय झा

गौयाॊग बवन (ऩीताॊफय सभश्रा रॉज के ऩीछे ) आदशष कॉरोनी, भधुफनी-847211 (त्रफहाय) नवनीत कुभाय झा

भेयी दादी फूढी अशक्त भाॊसऩेसशमाॉ अफ बी सतत ् टक्रमाशीर हं झुयीदाय चेहये ऩय

अनुबवी ऑ ॊखं भं यॊ गीन स्वप्नं के अवशेष अफ बी शेष हं हाथ अबी बी आतुय यहते हं गढ़ेने को अनुबव से बीगे शब्दं को सॊतसतमं को उत्साटहत कयने को वह स्त्री व्मस्त यही ऩूये जीवन सभग्र जीवन-दशषन श्रभ की दास्तान अऩनी कामष कुशरता सुनाती है वह अऩनी जुफानी योज-योज कहती है


अतीत के टकस्से सुख-द:ु ख जो कुछ बी आमा था उसके टहस्से

कुछ बी फचाकय यखना नहीॊ आमा उसे अऩने ऩास फाॉि टदमा सफ कुछ उनभं जो रोग थे उसके आस-ऩास   टकयण सतवायी

 कत्रवता भं टकसी कायणवश नहीॊ सरखती। जफ अॊतभषन एवॊ फटहभषन का सॊघषष भुझे भथने रगता है, सभाज भं टदखने वारा सत्म असत्म रगने रगता है , वक्त कािना भुक्श्कर होने रगता है , यात की नीॊद उड़ेने रगती है , जीना दब ू य होने रगता है , तफ करभ उठ जाती है औय चरने रगती है , अऩने-आऩ अनवयत। करभ फॊद तफ होती है जफ भं वाऩस आती हूॉ अऩने वतषभान जीवन भं। वही करभफर्द् फातं फन जाती हं कत्रवता। टकयण सतवायी कभया नॊ.-14 सयस्वती छािावास, त्रिवेणी सॊकुर काशी टहन्द ू त्रवद्वत्रवद्यारम वायाणसी-221005

F F F F F F आजकर शोध छािा (टहन्दी त्रवबाग) काशी टहन्द ू त्रवद्वत्रवद्यारम, वायाणसी टकयण सतवायी


एक अदद आदभी भंने टदन के उजारं भं फहुत चाहा टक

एक ऐसा अदद आदभी सभरे जो योक रेइॊ सान को ऩत्थय होने से जानवय से फदतय होने से सफसे त्रफछड़ेने से खुद भं ससभिने से आदभी से दयू होने से ऩय नहीॊ सभरा, नहीॊ सभरा, नहीॊ सभरा टकसी ने कहा टदन के उजारं भं नहीॊ आजकर आदभी जागता है यात के अॊधेयं भं भंने सोचाजफ आदभी 'यात' से खुश है तफ वह

कहाॉ जाएगा? समा फनेगा? कफ तक आदभी यहे गा? आभ फात अससय न चाहते हुए बी योती हं ऑ ॊखं


ऩयन्तु आता है कबी ऐसा बी सभम जफ भं चाहती हूॉ खुरकय योना

इतना, इतना, इतना योना टक यो रेने के फाद हो जाए भन सनभषर तथा शुरू हो सके क्जन्दगी एक नए ससये से तफ नहीॊ आते ऑॊसू नहीॊ योतीॊ ऑॊखं औय नहीॊ हो ऩाता सनभषर मे भन ऐसा भं भहसूस कयती हूॉ

समा आऩ रोग बी? चसरए, तफ तो आभ फात है   टहना जयीन

इॊ जहाय कम्ऩाउण्ड, सभल्रत कॉरोनी वासेऩुय, धनफाद-826001 (झायखण्ड) भो.: 09835376025 F F F F F F


आजकर स्वतॊि रेखन व अनुवाद टहना जयीन

गुटड़ेमा की हॉ सी गुटड़ेमा की एक िाॊग िू िी गुटड़ेमा हॉ सती यही टपय िू िी उसकी दस ू यी िाॊग

तफ बी वह हॉ सती यही गुटड़ेमा के दोनं हाथ उखाड़े​े गए वह न चीखी न सचल्राई

उसके फार नंचे गए उसने उप् तक नहीॊ टकमा उसे भादयॊ जाद नॊगा कय टदमा गमा वह रगाताय हॉ सती यही टठठु यती यात भं गुटड़ेमा पंक दी गई खुरे ऑॊगन भं टपय बी उसकी हॉ सी को ऩारा नहीॊ भाय ऩामा सुफह बीख भाॉगती गुटड़ेमा-सी फच्ची के किोये भं अनाज की जगह डार दी गई गुटड़ेमा फच्ची ने उसे


खेरने की ढे य सायी

उम्भीदं के साथ छुआ हॉ सी ठीक वैसी ही हॉ सी...   प्रबात कुभाय झा

भं चाहता हूॉ टक भेयी कत्रवताएॉ शब्दं की भामा की दसु नमा से फाहय आकय जनसयोकायं की

सच्ची ऩैयोकाय फने। मह केवर फौत्रर्द्क त्रवभशष फनकय न यहे फक्ल्क साभाक्जक सयोकायं की उन कसौटिमं ऩय खया उतय सके, क्जसभं आभजन का असस टदखता हो। भेयी कत्रवता भेया

अध्ममन नहीॊ भेये अनुबव की ऩरयणसत है । भंने जो कुछ दे खा है औय भहसूस टकमा है , उसी को शब्द दे ने की कोसशश है । प्रबात कुभाय झा कभया नॊ.-48 डॉ. याजेन्ि प्रसाद छािावास सशऺा सॊकाम, कभच्छा काशी टहन्द ू त्रवद्वत्रवद्यारम वायाणसी-221005

भो.: 09795888140 F F F F F F आजकर फी.एच.मू. से फी.एड.। जन्भ : 1988 प्रबात कुभाय झा

सॊसद का ऩता


धूसभर ने क्जस सड़ेक को सॊसद से जोड़ेा अफ वहाॉ फ्राई ओवय फने हं धूसभर ने क्जस ऩगडण्डी से सॊसद को दे खा था सॊसद ने उसे कई रेन वारी चभचभाती सड़ेकं भं फदर टदमा धूसभर हं टक तीसये आदभी की तराश भं (क्जस प्रद्ल ऩय सॊसद भौन है ) सॊसद की चुप्ऩी भं उत्तय ढू ॉ ढने भं प्रमासयत अफ बी बिक यहे हं औय टदख जाते हं गाहे -फगाहे सॊसद के साभने सॊसद का ऩता ऩूछते जफटक साभने खड़ेा होता है अट्िाहास कयता हुआ सफसे फड़े​े जनतॊि का सफसे फड़ेा प्राचीय    चारु चॊचर द्राया श्री याकेश सभश्रा यघुकुर गृह, कऩूयथरा रखीभऩुय, खीयी भो. : 09455299305 mishracharu699@gmail.com F F F F F F आजकर 'अभय उजारा' दै सनक (सीताऩुय) भं कामषयत।


चारु चॊचर

भं नहीॊ जन्भी कई फाय भंने सुरझाए हं न जाने टकतने ही गूढ़े यहस्म कई फाय भंने गैयं के सरए बी न जाने समं फनाए हं यास्ते कई फाय भंने सुनी हं न जाने कैसे? अनकही फातं ऩय आज... भं चाहती हूॉ

अऩना अक्स्तत्व शामद इसीसरए भाॉ की कोख भं बी हूॉ हासशए ऩय

इस उम्भीद भं टक इन्हीॊ अऩनं के फीच से कोई सुरझाएगा भेयी उरझन कोई फनाएगा भेये सरए बी यास्ता मा टपय कोई सुनेगा... भेयी कही फात रेटकन मे ख्वाफ हं


समंटक भं रड़ेकी हूॉ। कैसे कहूॉ! बीड़े भं ऩास से गुजयते अनजान हाथ ससय से ऩाॉव तक ससयहन ऩैदा कय दे ते हं औय कऩड़ें के बीतय तक झाॉकती ऑ ॊखं डया दे ती हं नीॊद भं बी समंटक शब्दं की बीड़े भं खड़ेा एक शब्द सभझा दे ता है अनजान हाथं औय झाॉकती ऑॊखं के साथ रड़ेकी होने का अथष   नई कहासनमाॉ, नई नस्र भुशयष प आरभ जौकी डी-304, ताज इॊ करेव, गीता कॉरोनी टदल्री-110031

भो.: 09873757095


उदष ू जगत

नई कहासनमाॊ, नई नस्री भुशयष प आरभ ज़ौ़ी

भुशयष फ़ आरभ ज़ौ़ी डी 304 ताज इॊ करेव गीता कारोनी टदल्रीप 110031 भो 09873757095

यौशनदान से झाॊकती कहासनमाॉ योशनदान से झाॊकती कहासनमाॉ। दादी अम्भा औय नानी अम्भा के होठं से फुरॊद होती कहासनमाॉ। भगय कहासनमाॉ तो सो गईं। उदष ू अपसाने की शुरुआत के साथ ही हॊ जायं नाभं का एक काफ्रा आमा था। रेटकन तफ कहासनमाॉ ऩढ़ेने वारे बी थे। रेटकन तफ मह दसु नमा इतनी फड़ेी औय

बमानक नहीॊ थी। तफ क्जन्दगी की ऐसी 'ये स' नहीॊ थी। तफ सभम भं एक ठहयाव हुआ कयता था औय आज जैसे सभम ही गुभ हो गमा है । दादी अम्भा बी खाभोश है कहासनमाॉ, भगय कहाॉ...? कहासनमाॉ तो सो गईं...। ऐसा नहीॊ है टक उदष ू भं नमी ऩीढ़ेी नहीॊ आई है । इक्श्तमाक सईद से सभयाक सभयजा, एभ. भुफीन

तक। रयज्वान से यहभान अब्फास औय जान आरभ तक। साटदका नवाफ से सगीय यहभानी तक। टपय बी मह नाभ फहुत ज्मादा नहीॊ। इनभं से 25-30 की उम्र के आसऩास का कोई बी नहीॊ।

इनभं फहुत कभ नाभ हं जो नई नस्र का प्रसतसनसधत्व कय सकते हं । जैसे कुछ वषष ऩहरे उदष ू के फहुत फड़े​े आरोचक डॉ. भुहम्भद हसन ने सगीय की एक कहानी 'ऩोस्िय' ऩय अऩनी याम दे ते हुए कहा था 'अगय मह कहानी सगीय ने सरखी है तो त्रऩछल्रे 40 वषं भं भंने इससे फड़ेी कहानी नहीॊ ऩढ़ेी।'


सशकामत मह है टक मह रोग फाजाब्ता नहीॊ सरख यहे । रगाताय नहीॊ सरख यहे । सरखने के सरए क्जस भेहनत, कसभिभंि की जरूयत होती है , वह इस ऩीढ़ेी के ऩास नहीॊ है । कुछ तो भजफूरयमाॉ। क्जन्दगी की ये स भं खो जाने का दख ु । टपय रम्फे अन्तयार के फाद कोई एक कहानी।

सन ् 2009 उदष ू के सरए एक फेहतय सार था। अशअय नजभी की इदायत भं इस्फात जैसा म्मायी ऩयचा आमा हुआ। कनाषिक उदष ू अकादभी ने अजकाय जैसे खुफसूयत यसारे का तोहपा टदमा।

भुम्फई से जहीन अॊसायी ने तहयीये -नौ शुरू टकमा। कोसशश मह थी टक नई नस्र की तराश की जाए। टपसशन को रेकय फासगमानातेवय के ऩीछे एक ही सवार था अच्छा समं नहीॊ सरखा जा यहा है ? नई नस्र कहाॉ है ? उदष ू की नई नस्र को रेकय अशअय नॊजभी के तअस्सुयात महाॉ करभफन्द कय यहा हूॉ।

''त्रऩछरे कई वषं से हभाये महाॉ नई नस्र की सशनाख्त का भाभरा जोय-शोय से उठामा जाता यहा है । रेटकन भेयी सभझ भं नहीॊ आता टक अदफ भं नई औय ऩुयानी नस्र आक्खय है समा चीॊज? भं महाॉ अखतूरुर-इभान की फात हसगषज दोहयाना नहीॊ चाहता टक नस्र तो घोड़े​े औय गधं की होती है । भेया सवार ससपष मह है टक नई औय ऩुयानी नस्र से आऩकी भुयाद समा है । दो नस्रं के फीच अॊतय ऩैदा कयने का आऩ के ऩास ऩैभाना समा है । आऩ सचॊतन की फुसनमाद ऩय इस सभस्मा का सनऩिाया कयं गे मा टपय सन मा टहॊ जयी के टहसाफ से मे भाभरा तम टकमा जाएगा। कुछ रोग कहते हं टक 80 के फाद साभने आने वारे शामयं औय आदीफं ऩय भुशतसभर नस्र को नई नस्र भं शुभाय टकमा जाता है ।रेटकन महाॉ बी कई सवार ऩैदा होते हं । जैसे 1.

समा वो शामय बी नई नस्र से सॊफॊध यखता है जो शेय तो साठ से कह यहा था। रेटकन

अस्सी के फाद साभने आमा। 2.

उन शामयं औय अपसानासनगायं के फाये भं आऩ समा कहं गे, जो कापी अयसे से अदफ की

यचना कय यहे हं रेटकन टकसी कायण अफ तक साभने नहीॊ आ सके। 3.

अगय सभम के टहसाफ से ही आऩको सशनाख्त की तराश है तो मे फेकाय की जद्दोजहद है

समंटक आऩ तो मूॊ बी अस्सी के फाद की नस्र कहराए जा यहे हं औय बरा समा चाटहए? 4.

एक अहभ सवार मे बी उठता है टक आऩने कैसे तम टकमा है टक टकतनी दहाई के फाद

कोई नस्र ऩुयानी ऩड़े जाती है समंटक अस्सी के फाद की नस्र बी जभानी एतफाय से अफ फूढ़ेी हो चुकी है । कुछ रोग नई नस्र की तायीॊप उसके टपकयी रुझानात से तम कयने की कोसशश कय यहे हं । उनके भुतात्रफक नई नस्र जदीटदमत से आजाद होकय अऩनी सशनाख्त फनाने की जद्दोजहद कय यही है । अगय मे सच है तो भाप कीक्जएगा, मे जद्दोजहद बी कापी ऩुयानी हो चुकी है । रेटकन अफ तक नई नस्र को इसभं कुछ खास काभमाफी नहीॊ सभरी है वयना सशनाख्त का सवार ही नहीॊ उठता। दस ू यी फात अगय सचभुच जदीटदमत से नई नस्र आजाद है तो टपय वो जदीद


नसकादं से समं उम्भीद यखती है ? टक वो वकीर फनकय उनका भुकदभा बी रड़े​े गी।'' भं फहुत हद तक अशअय नॊजभी की तभाभ फातं से इत्तेपाक यखता हूॉ। रेटकन सवार है , ऩुयाने नॊसकादं ने बी समा टकमा। इसी शुभाये भं अऩने ही अदारयमा भं ऐसे ही एक फड़े​े आरोचक

वारयस अल्वी के फाये भं जो उन्हंने सरखा है , उससे इॊ काय की गुॊजाइश नहीॊ। रेटकन मही काभ शम्सुयषहभान पारुकी ने बी टकमा। सफके सफ एक ही हम्भाभ के नॊगे। क्जसने सराभ टकमा, चाऩरूसी की, इन नॊसकादं ने उसी को अपसानासनगाय तारीभ टकमा। अऩने योर भॉडर फनाए औय तॊग नजयी की त्रफसायत ऩय अऩने त्रऩिे भुहये चरे। ''फारयस अल्वी की तनटकदी भेयाॊज भॊिं औय फेदी ऩय सरखी गई तहयीयं को तसरीभ टकमा जाता है । वारयस अल्वी ने एक जगह मे बी सरख भाया टक तनकीद मानी आरोचना उस नाजुक अॊदाभ रंडे की तयह है क्जसकी सोहफत भं कुॊवायी रड़ेटकमाॉ खुद को सुयक्ऺत ऩाती हं ।'' जुभरा पड़ेकता हुआ है रेटकन इसकी जद भं खुद वारयस अल्वी बी आ गए। उस नाजुक अॊदाभ रंडे का

करयश्भा दे खना हो तो आऩ तयन्नुभ रयमाॊज, रारी चौधयी औय सयवत खान जैसे औसत दजे की अपसानासनगायंऩय वारयस अल्वी के भुजासभन ऩढ़ेना न बूसरए। भॊिं ने कहा था फुढ़ेाऩे का इश्क खतयनाक होता है । रेटकन अगय उसका 'भुआवजा' कतय के डे ढ़े राख के इनाभ के तौय ऩय सभरना है तो भुझ जैसा कोई अहभक ही होगा जो मे खतया भोर रेने को तैमाय न हो। इस्फातशुभाया4-5 महाॉ उस आक्रोश को दे खा जा सकता है , जो ससपष अशअय नॊजभी के फजूद भं साॊस नहीॊ रे यहा है , फक्ल्क ज्मादातय उदष ू वारे इस गुस्से से दो-चाय हं । उदष ू का आरोचना-फाॊजाय सदष ऩड़ेा है ।

अकादसभमाॉ अऩनी भनभानी कय यही हं । रोग कहासनमं से फंजाय हो चुके हं । एक हॊ कीॊकत औय बी है टक उदष ू वारे शामद बूभॊडरीकयण, उऩसनवेशवाद सॊस्कृ सत, नरोफर वासभंग, आतॊक के नए फाॊजाय से अरग आज बी ऑॊखं फन्द टकए सरखने भं भशगूर हं इससरए उनकी कहासनमं भं

सभम साॊस नहीॊ रे यहा है औय िासदी मह टक नई नस्र बी तंजी से फदरती हुई हवा कासुयाग रगाने भं नाकाभ है । मा इसे मूॉ कह सकते हं टक नई नस्र के रोग बी ससपष अऩनी सहूसरमत की कहासनमाॉ सरखने भं व्मस्त हं । कहानी, नई ऩीढ़ेी औय बायतीम जड़ें

हादसं ने बायतीम उदष ू साटहत्म ऩय गहया प्रबाव डारा है । आजादी के फाद उदष ू कहासनमं भं

त्रवबाजन, गुराभी, साॊप्रदासमक दॊ गे औय 'आजादी के फाद की सशनाख्त' त्रवषम फनेऐसे त्रवषम क्जन ऩय मे कहासनमाॉ आधारयत थीॊ। मह फात अदफ भं फाय-फाय उठती यही टक उदष ू वारं की जड़े​े कहाॉ हं ? कुछे क नॊसकादं ने उदष ू के जदीद अॊपसानं ऩय हभरा कयते हुए मे तकष बी ऩेश टकमा टक दयअसर उदष ू कहासनमाॉ अऩनी सभस्माओॊ से कि गई हं । सभस्माओॊ से भतरफ अऩनी भािी, अऩनी जड़ें से। रेटकन ऐसा

सोचना सही नहीॊ है । हसैनुरहक की 'खाये ऩुश्त' हो मा शभोइर की 'आफगीने' मा टपय शौकत


हे मात की कहानी 'फाग' हो। कभअहसन से 'अकयाभ फाग' तक अनवय खाॊ, अनवय कभय से हभीद सहखदी तक जदीद कहासनमाॉ अऩनी भािी, अऩनी सॊस्कृ सत, अऩनी जड़ें से इतनी जुड़ेी हुई थीॊ टक फाय-फाय टहॊ दस् ु तानी सभाज भं अऩने होने मा सशनाख्त का भसरा उठा यही थीॊ। इसी

त्रवषम को रेकय शॊपॊक ने 'काॉच का फाॊजीगय' जैसा भहत्वऩूणष उऩन्मास औय कई दस ू यी कहासनमाॉ बी सरखीॊ।

जदीटदमत का रुझान दयअसर डये हुए साटहत्मकायं की डयी हुई आवाॊजे थीॊ।

वे डये हुए समं थे। मा टकससे डय यहे थे। इस ऩय सभीऺा मा फाय-फाय फताने की जरूयत नहीॊ है । उदष ू साटहत्मकाय की फेफसी औय राचायी का आरभ मह है टक उसने फहुत कभ अऩनी जभीन से जुड़ेने की कोसशशं कीॊ त्रवबाजन के आस-ऩास अच्छे टकस्भ की हकीकत सनगायी के उदाहयण तो

साभने आए रेटकन आॊजादी के एक-दो दशक गुॊजयते ही मे जभीन हभाये ज्मादातय कथाकायं के ऩास से गुभ हो गई मा गुभ कय दी गई। तयसकीऩसॊदी से जदीटदमत की ओय वाऩसी बी दयअसर 'एक सहभा हुआ डय' था। डय जो स्वाधीनता की कोख से फयाभद हुआ था। इस िासदी को उदष ू वारं ने कुछ ज्मादा इससरए बी भहसूस टकमा टक ऩाटकस्तान फनने के षडमॊि भं बी

उदष ू को कसूयवाय ठहयामा गमा। उदष ू के साथ दस ू या फड़ेा हादसा मह था टक घय-घय फोरी जानी वारी जफान से उसकी है ससमत छीन री गई। उदष ू योजी-योिी से काि दी गई।

त्रवबाजन का जख्भ, टहन्द-ू भुक्स्रभ दॊ गे, वातावयण भं ऩसया हुआ बममे भनोवैऻासनक जामजा

इससरए बी जरूयी है टक उदष ू साटहत्मकाय थोड़ेा-थोड़ेा इन सफसे प्रबात्रवत होता यहा। इससरए मह कहना भुक्श्कर नहीॊ है टक इजहाये फमान ऩय ऩाफॊदी के बम से उसने जदीद मा तजयीदी

कहासनमाॉ, न सभझ भं आने वारे प्रतीकर्द् के दयसभमान ऩनाह सरमा हो। इसी से सभरता-जुरता एक कायण मह बी हो सकता है टक इस भुसरसर बम ने उसके ऩास से 'सीधे साॊप शब्दं' को गामफ कय टदमा था। चूटॉ क वह साटहत्मकाय था, उसे सरखने का जंक्खभ बी उठाना था। वह चुऩ नहीॊ यह सकता था औय बम से िस्त सीधे अऩनी फात कहने से भॊजफूय था, शामद इसीसरए जदीटदमत की इक्ब्तदा हुई मा सरखने वारे सरखने के नाभ ऩय प्रतीकं का सहाया रेने रगे। इस फीच आॊजाद बायत भं बायतीम भुसरभानं के साथ एक घिना औय हुई थी नमे ससये से उनका इस्राभीकयण हो यहा था अथाषत, बायतीम रोकतॊि के नमे ऩरयवेश भं, वे एक नमा 'सेसमुरय बायत' अऩने वजूद भं ऩैवस्त कय यहे थे। इसे गरत भामनं से आॊकना ठीक नहीॊ है । रेटकन ऐसा हो यहा था। इस्राभ की गहयी धुध ॊ धीये धीये छॊ ि यही थी। इसे हभ मूॉ बी कह सकते हं टक हभ एक बमानक टकस्भ की कट्ियता, अऩने भक्स्तष्क से अरग कय यहे थे। नए ऩरयवेश भं भुसरभान होने के भामने फदरे थे। जहूरयमत की

रहय इतनी तंजी से आई थी टक 'इॊ जहाये -फमान' के सरए नए-नए शब्द ऩैदा होने रगे थे। उदष ू का जदीद अदफ इनसे ऑॊखं भूॊदकय नहीॊ यह सकता था। मे मुग फाॊगी रेखकं का मुग था। उदष ू कहासनमं का अफ तक का सफसे कटठन औय सुनहयी मुग। उस मुग के सरखने वारं ऩय


इरज ्ॊ ाभात बी रगे टक इन कथाकायं ने उदष ू साटहत्म से ऩाठक छीन सरमा।

दयअसर ऩाठकं की िासदी मह थी टक वे साटहत्म भं आए नमे ऩरयवतषनं को अचानक सभझ नहीॊ ऩाए। नई कहासनमाॉ उनके सरए 'भशॊसकत' बयी कहासनमाॉ थी। 'तजुफ'े मा 'प्रमोग' के नाभ ऩय फीस वषष इन तब्दीसरमं की ऑॊधी से दो-चाय यहे । रेटकन 80 के फाद 'फमासनमा' की वाऩसी ने एक साथ कई दस ू ये सवार खड़े​े कय टदए थे।

नई खेऩ भं उदष ू अपसाना सरखने वारा गैय भुसरभान कथाकाय गामफ था। जोगेन्ि ऩार, यतन

ससॊह, कश्भीयीरार जाटकय, गुयफचन ससॊह की ऩीढ़ेी ऩुयानी ऩड़े गई थी मा खोती जा यही थी। नए कथाकाय साम्प्रदासमकता की एकाएक तंज हुई आॊधी से डय गए थे।

नब्फे के फाद की ऩीढ़ेी भं सगीय यहभानी, यहभान अब्फास, रयॊ जवाउहक, खुशीद अकयभ, तयन्नुभ रयमाॊज, साटदका नवाफ सेहय, अहभद सगीय जैसे रोग सटक्रम हं । ऩाटकस्तान : नई ऩीढ़ेी औय फगावत कहा जाता है टक दे श मा वहाॉ की जनता के सभॊजाज, सॊस्कृ सत को जानना होतो वहाॉ का साटहत्म ऩढ़े रीक्जए। रेटकन अबी हार-टपरहार तक मह फात ऩाटकस्तान साटहत्म के सरए नहीॊ कही जा सकती थी, समंटक ऩाटकस्तान आॊजाद तो हुआ रेटकन आॊजाद भुल्क के हुसभयानं को ऩिकारयता औय साटहत्म की आॊजादी गवाया नहीॊ थी।

ऩाटकस्तान का अवाभी शामय हफीफ जासरफ हुसभयानं के त्रवयोध भं कत्रवताएॉ सरखता था औय जेर की हवाएॊ खाता था। वह सरखता था, 'खुदा हभाया नहीॊ, खुदा तुम्हाया है ।'

कहते हं , वहाॉ के भशहूय आरोचक डॉ. हसन असकयी इस नए इस्राभी दे श के सरए इस्राभी

सोच यखने वारा कोई साटहक्त्मक नामक तराश कयना चाहते थे। खैय, मह तराश भॊिो ऩय खत्भ हुई। भगय भॊिो के फाद नए-नए ऩाटकस्तान की टपजा भं याजनैसतक औय साभाक्जक चुनौसतमं को साटहत्म भं ऩेश कयना आसान नहीॊ था। कुछ कथाकाय ऩाटकस्तान जाकय खाभोश हो गए। कुदयतुल्राह शहाफ जैसा साटहत्मकाय खुद सयकायी तॊि का टहस्सा फन गमा। नई आफोहवा भं साॊस रेने वारा यचनाकाय सॊकेतं औय प्रतीकं द्राया अऩनी फात कहने के सरए भजफूय था। आॊजादी के दस-ऩॊिह वषं भं ऩाटकस्तान भं बी साॊप्रदासमक दॊ गे, प्रवास का ददष , नए ऩाटकस्तान की उरझनं आटद रेखन के आधाय त्रवषम फने यहे । 'खुदा की फस्ती' जैसा उऩन्मास इसी ददष से फाहय सनकरा था। कुदयतुल्राह शहाफ, अजीज अहभद, भुभताज भुफ्ती आगा फाफय, सराहुद्दीन अकफय, खदीॊजा भस्तूय, हाॊजया भस्तूय जैसं के अपसाने ददष की कोख से जन्भे थे। 1960 के फाद साटहत्म भं जदीटदमत का असय कुछ ज्मादा ही कफूर टकमा गमा। डॉसिय सरीभ आगा कजसरफाश ने अऩनी टकताफ 'जदीद उदष ू अपसाने' भं सरखा है , ''1958 भं ऩाटकस्तान भं भाशषर रॉ

रगा टदमा गमा। 'जुफानफॊदी' की जो सूयतेहार हुई, उससे फाहय सनकरने के सरए कथाकायं ने 'प्रतीकात्भक' अॊदाॊज इक्ख्तमाय टकमा।


मानी ऐसी फातं नहीॊ की जाएॉ क्जससे भाशषर रॉ भं उनकी सगयफ्तायी सॊबव हो सकती थी।'' जाटहय है , ऩाटकस्तान का सख्त भाशषर रॉ आतॊक उस सभम उदष ू अपसाने ऩय साप दे खा जा

यहा था। इसी दयसभमान वहाॉ 'तजयीदी' अथाषत एब्सट्रे सि कहासनमाॉ बी सरखी गईं। इॊ तेजाय हुसैन

ने कई कहानी की 'फूतीका' सरखी। इॊ तेजाय हुसैन नए अपसाने के फाफा आदभ फन गए। धीये -धीये सरखने वारं का काटपरा पैरता जा यहा था। यशीद अभजद, अनवय सज्जाद, खासरदा हुसैन,

भॊशा माद, अहभद हभेश, अहभद दाऊद, पहभी आजभी, सभी अहूजा, भहभूद वाक्जद, शभशाद

अहभद, नाससय फगदादी, अहभद जावेद, सभजाष हासभद फेग, शम्स नगभान, ताटहय नकवी, एजाॊज याही, भॊजहरुर इसराभ, अनवय जाटहदी, उभयाव तारयक, आससप परुं खी औय असद भुहम्भद खाॊ। महाॉ नाभ सगनाना भॊशा नहीॊ है रेटकन जहीन अपसानासनगायं का एक फड़ेा काटपरा अच्छी औय नई कहासनमाॉ रेकय साभने आ यहा था। 1965 भं बायत-ऩाक मुर्द् के नतीजे भं ऩाटकस्तान भं ऩहरी फाय दे श प्रेभ जैसी बावनाओॊ ने जन्भ सरमा। उस सभम के रगबग सबी साटहत्मकायं ने बायत-ऩाक मुर्द् को अऩना त्रवषम फनामा। गुराभुस्सकरैन नकवी ने 'जरी सभट्िी की खूश्फू', भुभताज भुफ्ती ने 'ऩाटकस्तान', खदीजा भस्तूय ने 'ठॊ डा-भीठा ऩानी', इसी तयह भसूद भुफ्ती औय पखुद ं ा रोधी ने बी इस त्रवषम को रेकय कहासनमाॉ सरखी।

1971 की जॊग के फाद भाभरा दस ू या था। याजनैसतक गसतत्रवसधमाॉ तेज हो चुकी थीॊ। इधय

ऩाटकस्तान के एक धड़े का अरग होना अथाषत 'फॊनरादे श' का फनना ऩाटकस्तानी कथाकायं के सरए नई बावनाओॊ को रेकय आमा था। उसे ऩाटकस्तानी अपसानासनगायं ने 'जज्फाती-िासदी' के तौय ऩय सरमा था। इॊ तेजाय हुसैन, भसूद अशअय, अख्तय जभार, यशीद अहभद, अरी है दय

भक्ल्रक, शहजाद भॊजय, ए. खय्मान, अहभद जैनुद्दीन, शहनाॊज ऩयवीन, नूरुर होदा सैमद जैसे कथाकाय उदष ू से प्रबात्रवत कहासनमाॉ सरख यहे थे।

1980 से 90 के फीच टहॊ दस् ु तान औय ऩाटकस्तान के साटहत्म भं 'फमासनमाॉ' की वाऩसी हो चुकी

थी। इसी फीच ऩाटकस्तान ने 'प्रॉससी मुर्द्' बी बायत के त्रवरुर्द् छे ड़े टदमा था। कहासनमाॉ इन नई 'सभस्माओॊ' को सभझाने की कोसशश कय यही थीॊ। ऩाटकस्तान भं 1958 मानी भाशषर रॉ रगने के फाद से रेकय रॊफे सभम तक साटहत्म ऩय एक खास तयह के संसयसशऩ से इनकाय नहीॊ टकमा जा सकता रेटकन मह बी अजीफ-सा सच है टक ऩाटकस्तानी कहासनमाॉ अफ ज्मादा आॊजाद टपजा भं साॊस रे यही हं । नए कथाकाय बायत-ऩाक मुर्द्ं के कारे इसतहास को बुराकय नए ससये से दोस्ती का ऩैगाभ रेकय साभने आ यहे हं । भुहम्भद इल्मास, गुरनौखेज अख्तय, सभीना इफ्तेखाय, शभीय आगा कजसरफाश की कहासनमाॉ ऩाटकस्तान के नए दौय की कहासनमाॉ हं । फक्ल्क मह आज का सच


फोरती कहासनमाॉ हं । आस्ट्रे सरमा भं फसने वारे ऩाटकस्तानी साटहत्मकाय अशयप शाद के दो उऩन्मास 'फेवतन' औय 'वजीये आजभ' आज के ऩाटकस्तान की कथा सुनाते नॊजय आते हं । पौजी शासन का आतॊक सयकायी सहूसरमतं का दरु ु ऩमोग, भसक्जदं ऩय फैठी हुई ऩुसरस, दस ू ये दयजे के शहयी जैसे 'भहाक्जय'। अशयप शाद के इस खतयनाक ट्रामोरोजी का तीसया टहस्सा बी 'सदये -आरा' के नाभ से प्रकासशत हो चुका है । नई ऩीढ़ेी ने अफ खुरकय 'फमासनमा' अॊदाज भं अऩनी फात कहने का ससरससरा शुरू टकमा है । ऩिकारयता का भाहौर चाहे जैसा बी यहा हो, रेटकन साटहत्म ने खुरी हवा भं साॊस रेना आयॊ ब कय टदमा है । ऩुरुष औय भटहरा कथाकायं की एक फड़ेी खेऩ खुरकय क्जम्भेदारयमाॉ सनबा यही है । अबी हार भं ऩाटकस्तान से भुफीन सभजाष के सॊऩादन भं भुकारभा का 2000 ऩृद्षं का अपसाना नॊफय प्रकासशत हुआ था। इससे ऩहरे ऩाटकस्तान की एक ऩत्रिका 'योशनाई' ने बी अपसानं ऩय चाय जखीभ शुभाये तयतीफ टदए थे। ऩाटकस्तान भं नई नस्र तेजी से साभने आने की कोसशश

कय यही है जफटक टहन्दस् ु तान भं नई नस्र के नाभ ऩय ससपष एक बमानक खाभोशी नॊजय आती है । रेटकन उम्भीद के झयोखे अबी बी खुरे हं । नई नस्र की तराश का ससरससरा जायी है ।  

कुछ नोट्स

अनास्था के जॊगर भं आस्था की खोज

आनॊद वर्द्ष न एप 4/64 चाय इभरी बोऩार 462016 भोफाइर 09425138047 फकौर याजेन्ि मादव कहानी शुरू से आदभी औय आदभी के फीच के सॊवाद की त्रवधा है औय जफ तक आदभी है , तफ तक सॊवाद फना यहे गा, तफ तक कहानी फनी यहे गी। हभ कहानी सुनंगे। कहानी का भतरफ आज है अऩने अनुबवं को उसभं साझीदाय कयना, टकसी को उसभं शासभर


कयना।

त्रवबा यानी फीसवीॊ सदी के अॊसतभ टहस्से औय इसकीसवीॊ सदी के आयॊ ब की कहानी की दसु नमा भं अऩनी उऩक्स्थसत दजष कयाता एक ऐसा नाभ हं जो तभाभ अॊधी खोहं के फीच योशनी की रकीय खीॊचता चरता है । त्रवबा यानी की कहासनमाॉ तत्कारीन सभाज के सॊघषष, द्रन्द्र औय क्स्थसतमं से जन्भी कहासनमाॉ हं जो त्रविऩ ू ताओॊ को मथातथ्म सचत्रित कयते हुए बी अॊतत: आशा की बावबूसभ ऩय खड़ेी नजय आती हं । 'इसी दे श के इसी शहय भं' कहानी सॊग्रह त्रवबा यानी का नवीनतभ

कहानी सॊग्रह है । टहन्दी औय भैसथरी भं सभान गसत यखने वारी त्रवबा यानी की इन कहासनमं भं कस्फे से रेकय भहानगय तक का सॊऩूणष सभम सचत्रित हुआ है । कहानी की नई जभीन को

तराशते हुए त्रवबा यानी कुछ ऐसे त्रवषमं का स्ऩशष कयती हं जो मूॉ तो असत साभान्म टदखते हं रेटकन ऩाठक को सोचने ऩय त्रववश कय दे ते हं । दयअसर कहानी सरखते सभम यचनाकाय का

भन उस रुई की तयह होता है जो दही को त्रफरोती है औय उस भॊथन के फाद कहानी एक नमा स्वरूऩ ग्रहण कय रेती है । 'इसी दे श के इसी शहय भं' सॊग्रह भं कुर फायह कहासनमाॉ शासभर हं । रेटकन इन फायहं कहासनमं के अरग-अरग छामारूऩ हं । एक खास फात इन कहासनमं भं मह है टक इन सबी कहासनमं का त्रवतान नगयीम जीवन के आस-ऩास फुना गमा है । सॊग्रह की ऩहरी कहानी 'फेवजह' एक फड़ेा प्रद्ल छोड़ेती है हभाये साभने। मह प्रद्ल साम्प्रदासमकता से जुड़ेा हुआ है । दॊ गं की कोई वजह नहीॊ होती, टपय बी दॊ गे होते हं , मह कहानी त्रवबाजन की िासदी को रेकय सरखी गई कहासनमं की माद टदराती है । सम्प्रदामं की फेवजह दश्ु भनी कैसे

सनयीहं की जान रेती है , मह टकसी से छुऩा नहीॊ। एक अरग शैरी भं त्रवबा जी कहानी का अॊत आशावादी ढॊ ग से कयती है ''मह भहज एक कहानी है औय कहानी ऩय मकीन त्रफरकुर ही नहीॊ टकमा जाना चाटहए। कबी-कबी कहानी भहज एक पंिे सी को रेकय चरती है , क्जस ऩय चभत्कृ त तो हुआ जा सकता है , रेटकन मकीन त्रफरकुर नहीॊ टकमा जा सकता। सरहाजा आऩ बी त्रवद्वास न कयं तो

अच्छान कहानी ऩय औय न ही दॊ गं ऩय। ठीक है न?''


यचनाकाय ऩाठक से एक आद्वक्स्त का बाव चाहता है । त्रवबा यानी की कहासनमं की एक त्रवशेषता मह बी है टक त्रवषम की त्रवत्रवधता के कायण इन्हं अरग-अरग टदनं भं ऩढ़ेा जाना चाटहए। सॊग्रह की अगरी कहानी 'प्रेभ कहीॊ त्रफकता नहीॊ हाि, फाि फाॊजाय' शीषषक से तो ऐसा रगता है टक मह कहानी प्रेभ के इदष -सगदष फुनी गई है रेटकन कहानी भं सनताॊत अनछुआ त्रवषम सरमा गमा है ।

दक्ऺण बायत की एक सयकायी कॊऩनी भं टहन्दी ससखाने के सरए यासगनी बाटिमा की सनमुत्रक्त की गई है । आयॊ ब भं कॊऩनी के कभषचायी इस बाषा का बायी त्रवयोध कयते हं , समंटक वे टहन्दी नहीॊ सीखना चाहते रेटकन यासगनी का श्रभ धीये -धीये यॊ ग राता है औय वहाॉ का ऩूया भाहौर फदर जाता है । इसी कहानी की ऩॊत्रक्तमाॉ हं दमानॊद योज नहा कय आने रगा। नुन्जू ध्मान से दाढ़ेी फनाने औय साप-सुथये प्रेस टकए हुए कऩड़े​े ऩहनने रगा। वयदयाजन, थॉभस, भुथ्थू सबी है यान

थे। काभगायं के फातचीत, उठने-फैठने, चरने-टपयने के तौय-तयीके फदर गए थे। तो टहन्दी इतनी इपैक्सिव बाषा है । 'मस सय, केवर बाषा नहीॊ, सॊस्कृ सत, सभ्मता यीसत-रयवाज इन सबी के ऻान का दस ू या नाभ है टहन्दी।' बाषा के भाध्मभ से सॊस्कारयत कयने का जो प्रमास यासगनी ने टकमा,

वह सचभुच प्रेयणादाई है । ऩाठक इस कहानी को ऩढ़ेते सभम एक दस ू यी भानससकता भं प्रवेश कय जाता है । बावनात्भक सॊफॊध इस कहानी भं इतनी गहयाई से असबव्मक्त टकए गए हं टक ठीक

वयदयाजन की तयह कहानी के अॊत भं ऩाठक अऩनी जेफ से रुभार सनकारने को त्रववश हो जाता है । महाॉ भैक्ससभ गोकी द्राया असबव्मक्त टकए गए त्रवचाय माद आते हं । गोकी कहते हं टक साटहत्म का रक्ष्म मही है टक वह अऩने आऩ को सभझने भं भनुष्म की सहामता कये , उसका

आत्भत्रवद्वास फढ़ेाए, उसभं सत्म की काभना जगाए, रोगं भं जो ओछाऩन है , उससे जूझे औय उनभं जो अच्छाइमाॉ हं , उन्हं दे खे, टदखाए। रोगं के रृदम भं रज्जा, आक्रोश औय साहस की बावनाएॉ सॊचासरत कये तथा इस फात का ऩूया प्रमत्न कये टक रोग उदात्त, आक्त्भक शत्रक्त ऩाएॉ औय अऩने जीवन को संदमष के ऩावन आरोक से उद्दीद्ऱ कयं । गोकी की मे ऩॊत्रक्तमाॉ 'इसी दे श के इसी शहय भं' शीषषक कहानी ऩय त्रफरकुर खयी उतयती हं । सभस्िय सईद का ट्राॊसपय फम्फई से टकसी दस ू ये शहय भं हुआ है औय वे टकयाए का भकान खोज यहे हं । इस खोज के दौयान उन्हं

अऩने सरए तभाभ दयवाजे फॊद नजय आते हं । जफ वे अऩने सहकभी याणे से कहते हं ''जानते हो, भेये से सबी ने मही कहा, हभ भुसरभानं को भकान नहीॊ दे ते। ए याणे फोरो, तुभ फोरो, भं सभमाॉ फनकय अऩने आऩ ऩैदा हो गमा समा? भेये सभमाॉ होने भं भेया कोई कसूय है समा? भेया फाऩ-दादा मह भुल्क छोड़ेकय नहीॊ गमा तो इसभं भेया कोई सभस्िे क है , नहीॊ न, तो टपय तुम्हाये शहय वारा रोग एइसा काहे को फारता है ये ।'' सईद साहफ का मे ददष अफ उस भुसरभान का ददष है जो नौकयी कयने शहय से फाहय सनकरा है । रोग उसे सॊटदनध सनगाहं से ऩयख यहे हं । रेटकन इन त्रवऩयीत ऩरयक्स्थसतमं भं बी आशा की टकयण जगभगाती है । भकान खोजते-खोजते सईद साहफ एक सैन्मासधकायी के घय ऩहुॉच जाते हं जो सहज ही उन्हं टकयाए ऩय भकान दे दे ता


है । कैप्िन दे शऩाॊडे सभस्िय सईद से कहते हं , ''आऩ टहॊ द ू हं , भुसरभान हं भगय हं तो इॊ सान ही

न। भेयी एक ही शतष होती है अऩने टकयामेदायं के सरए टक 'ही शुड बी क्जॊदाटदर'।'' कहानी का मह आशावादी अॊत ऩाठकं को एक सुखद क्स्थसत भं ऩहुॉचा दे ता है , जो गोकी की दृत्रद्श भं साटहत्म का वास्तत्रवक रक्ष्म है ।

आशावाटदता की मह दृत्रद्श एक अन्म कहानी 'मे दो सार' भं बी टदखाई ऩड़ेती है । सभकारीन कथा सॊसाय की एक खाससमत जो इधय त्रवशेष रूऩ से दृत्रद्शगत हुई है , वह है भुक्स्रभ चरयिं का

बयऩूय सचिण। 'मे दो सार' कहानी के नामक हं फुजुगव ष ाय शौकत साहफ जो फहुत जल्दी रयिामय होने वारे हं औय क्जन्हंने रयिामयभंि के फाद की ाॊक्जॊदगी के सरए अनेक सऩने फुन यखे हं ।

अचानक सयकाय रयिामयभंि की उम्र दो सार औय फढ़ेा दे ती है , दफ्तय के दस ू ये रयिामय होने वारे दो सार औय नौकयी की ाॊक्जॊदगी ऩाकय खुश हं ऩय शौकत साहफ फेहद दख ु ी। इसी ऊहाऩोह भं वे अॊतत: नौकयी से रयिामय होने का सनणषम रेते हं । उनका सोचना है टक ''फूढ़े​े फेभजी से दफ्तयआएॉगे जाएॉगे औय मुवा इस उस दफ्तय भं बिकंगे औय िस्ट्रे शन औय फढ़ेाएॉगे।'' शौकत साहफ के टदर से सनकरी हुई आवाज ऩाठक को गहये तक सॊस्ऩशष कयती है 'मा अल्राह। इन फच्चं को जीने की याह फता। मे हभाये भुल्क के कर के आपताफ, भहताफ औय ससताये हं । इनके वजूद को, सचयाग को आजाद कय, नाउम्भीदं के झोकं से इनके हंसरं की रौ को न फुझा इनकी वजूटदमत से भुल्क आफाद यहे हॉ सता-खेरता भुल्क, हॉ सते-खेरते फच्चे। टकतना सुहाना होगा वह टदन। खुदामा। हभ इॊ तजाय कयं गे उस टदन का। हभं मकीन है टक वह टदन एक न एक टदन आएगा, जरूय, जरूय आएगा। आभीन।'

साभाक्जक सयोकायं औय दासमत्व फोध से बयी मे कहासनमाॉ फाय-फाय मह माद टदराने की कोसशश कयती हं टक अबी सफ कुछ सभाद्ऱ नहीॊ हुआ है । फचा हुआ है फहुत कुछ। जो फचा है , वह टकसी न टकसी आशा के रूऩ भं है । इसी आशावाद को असबव्मक्त कयती एक अन्म कहानी है 'है रो डॉ. ऩाये ख'। अऩने काभ भं भसरूप डॉ. ऩाये ख मह जान ही नहीॊ ऩाता टक क्जस जानरेवा फीभायी से वह दस ू यं को फचा यहा है , वही फीभायी जया-सी राऩयवाही से उसकी जान रे रेगी। अॊतत: डॉ.

ऩाये ख की िासद भृत्मु होती है ऩय वह अऩनी सनद्षा की भशार जाते-जाते थभा जाता है ससस्िय

सनवेटदत को। एडस योसगमं के प्रसत सॊवेदना जगाती मह कहानी नए औय अनछुए त्रवषम ऩय फेहद सकायात्भक ढॊ ग से सरखी गई है । डॉ. ऩाये ख की अॊसतभ ऩॊत्रक्तमाॉ हं ''जा यहा हूॉ सय, रेटकन भया नहीॊ हूॉ, क्जॊदा हूॉ, यहूॉगा, जफ तक दसु नमा भं आस है , उम्भीद है ...'' मह उम्भीद ही जीवन की

इच्छा कामभ यखती है । डॉसियी ऩेशे ऩय कभ ही कहासनमाॉ सरखी गई हं । मह कहानी असभताब शॊकय याम चौधयी की कहानी 'दधीसच' (हॊ स) की माद टदराती है । इस सॊग्रह की अगरी कहानी है 'कठऩुतरी। एक साधायण-सी ऩुतरी भं ऩयी औय ऩैगॊफय जान पूॉक दे ते हं । जवान होने तक तो सफ कुछ ठीक यहता है ऩय शादी होने के ठीक फाद कठऩुतरी ऩय मॊिणाओॊ का जो दौय शुरू होता है , उसका कोई अॊत नहीॊ। मह कहानी वतषभान ऩरयक्स्थसतमं


भं नायी स्वातॊत्र्म ऩय गहया प्रहाय कयती है । स्त्री सजी-धजी ऩुतरी के ही रूऩ भं आज बी स्वीकाय की जा यही है । उसकी अऩनी कोई स्वतॊि सत्ता नहीॊ। मह कहानी बी एक नई शैरी अऩनाते हुए सरखी गई है । त्रवबा यानी की मह सनजता उन्हं सभकारीन कथाकायं भं त्रवसशद्श फनाती है । वे

जीवन की अनेक सच्चाइमं का अन्वेषण कयती हं । इस सॊदबष भं भई 1982 भं अभयकॊिक भं आमोक्जत सशत्रवय भं अभयकाॊत द्राया व्मक्त टकए गए दृद्शव्म हं : 'जीवन की सच्चाइमं का अन्वेषण सदा कद्श, ऩरयश्रभ औय जोक्खभ का काभ है । रेखन बी ऐसा ही कभष है । रेखक अऩने दे श औय सभाज के साथ होता है , मटद व्मवस्था अन्मामकायी हो तो उसे व्मवस्था से िकयाना ऩड़ेता है , जफ सभाज भं साटहत्म, करा आटद का सम्भान न होता हो तो उसे उऩेक्ऺत होने का खतया उठाना ऩड़े सकता है , जफ अवसयवादी भनोवृत्रत्तमं की कि होती हो तो उसे सुख, वैबव आटद की क्जॊदगी बी त्मागनी ऩड़ेती है । इन सबी खफयं के फीच उसे साटहत्म की भशार जराए यखनी होती है । यचना यचनाकाय से भाॉग कयती है जीवन, सभाज औय जनता के सनकि यहने की, उनसे कदभ-कदभ ऩय सीखने की, यचना के साथ घोय ऩरयश्रभ कयने की, ऩठन-ऩाठन की। इस सॊग्रह की एक औय भहत्वऩूणष कहानी है 'आसतशदाने'। इस कहानी के ऩाि जयीना औय डॉसिय इकफार दोनं शादीशुदा हं । ऩरयक्स्थसतवश दोनं के फीच स्नेह का ऐसा त्रवयवा होता है टक वे रोक राज, कुर, भमाषदा सफ कुछ बूर कय आकॉठ प्रेभ भं डू फ जाते हं । रेटकन जफ एक टदन डॉसिय इकफार जयीना के साभने सनकाह का प्रस्ताव यखते हं तो जयीना साप भना कय दे ती है ।

कभ ऩढ़ेी-सरखी जयीना की फात सुनकय इकफार सभमाॉ अकफका जाते हं । इसी कहानी की ऩॊत्रक्तमाॉ हं जयीना की आवाज तसनक तल्ख हो गई ''टपय इस फात का बी समा बयोसा टक तराक के

क्जन तीन रफ्जं का इस्तेभार कयके आऩ अऩनी फेगभ से छुिकाया ऩाकय भुझे अऩनी फेगभ फनाएॉगे, उन्हीॊ तीन रफ्जं का इस्तेभार कयके आऩ भुझसे सनजात ऩाकय टकसी औय के आगोश औय जुल्पं के घेये भं न जा पॉसंगे? फेगभ ने सही कहा है आऩसे टक मकीन एक सख्त चट्िान है तो साथ ही साथ ये त का ढू ह बी, क्जसे ढहते दे य नहीॊ रगती। सनकाह-त्रवकाह बूर जाइए, सभमाॉ! फेगभ का कोई कुसूय नहीॊ है । कुसूय तो आऩका बी नहीॊ है औय भेया बी नहीॊ है । हभ सबी अऩने-अऩने जज्फातं के तहत सही हं । भगय जज्फातं के ऊऩय जो पजष होता है न, वह हभेशा जज्फात से बायी होता है । भंने अऩनी भुहब्फत का पजष सनबाते हुए अऩने भदष को ऩुसरस के

हवारे कय टदमा औय अफ फीफी का पजष सनबाने के सरए भं वकीर कयने जा यही हूॉ। आऩकी फेगभ बी जज्फात औय पजष दोनं ही ऩरड़ें से बायी हं ।'

जयीना की ऩरयऩसव दृत्रद्श के आगे ऩढ़े​े -सरखे इकफार फहुत छोिे प्रतीत होते हं । त्रवबा यानी की कहासनमाॉ साभाक्जक अॊतत्रवषयोधं की गहयी ऩहचान कयती चरती हं । प्रेषणीमता के स्तय ऩय वे

नए अथष दे ती हं औय भनुष्म के भन की अतर गहयाइमं से नए बावफोध खोज राती हं । सॊग्रह की कहानी 'बागं' का भुख्म ऩाि सनम्न वगीम सबखायी है भॊगतू जो बीख भाॉगते हुए बी तयह-


तयह के सऩने दे खता है । सऩने दे खने ऩय टकसी का वश नहीॊ। रेटकन सऩने औय मथाथष भं अॊतय है । कहानी का अॊत बमानक धभाके के साथ होता है क्जसभं सफ कुछ ऩिाखे की तयह उड़े जाता है । आतॊक का बमानक चेहया ऩूये सभाज को आक्राॊत कयता है । समा गयीफ समा अभीय, सफके सफ इससे प्रबात्रवत होते हं । सॊग्रह की दो अन्म कहासनमाॉ हं 'शात्रऩत' औय 'भाताजी की भटहभा'। कभोवेश सत्म घिनाओॊ ऩय आधारयत मे कहासनमाॉ दे श की याजनीसत भं भझे हुए ऩरयवायं की

घिनाओॊ ऩय आधारयत प्रतीत होती हं । इनभं एक ओय कुक्त्सत याजनीसत का बमावह चेहया है तो दस ू यी ओय उसी याजनीसत से जकड़ेा हुआ सभाज।

त्रवबा यानी की ऩैनी दृत्रद्श अऩने चायं ओय की हवा को सॉघती है औय शब्दं के भाध्मभ से रूऩासमत कयती है । 'सुनॊदा कहाॉ गई' औय 'रॉ ड्रीभरंड' जैसी कहासनमाॉ बी इस सॊग्रह भं हं जो भहानगयीम त्रविऩ ू ताओॊ को सचत्रित कयती चरती हं । त्रवबा यानी ने कहासनमं के रेखन भं नए

शब्द भढ़ेने का साथषक प्रत्मन टकमा है । ऑॊधी का हू-हूऩन, रैरासगयी, इभोशन ठू ॉ सना, ऑॊखं भं फारयश पैरी हुई थी, जैसे त्रफम्फ एक नई इफायत सरखते दीखते हं । महाॉ वीक्तोय श्सरोव्स्की की

ऩॊत्रक्तमाॉ साथषक जान ऩड़ेती हं बाषा औय साटहत्म के फीच वैसा ही सॊफॊध है जैसा ऩुयाने जभाने भं हवा औय ऩारदाय ऩोत के भागष के फीच होता था। रेखक शैरी के ऩारं ऩय सनमॊिण फनाए यखता है । त्रवबा यानी की कहासनमाॉ दयअसर आद्वक्स्त की कहासनमाॉ हं औय रेक्खका अऩनी साटहत्म की नाव के ऩारं को सचभुच फड़ेी कुशरता से सनमॊत्रित कयती चरती हं । 

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दष्ु चक्र भं कत्रवता फोसधसत्व

फोसधसत्व फ्रैि नॊ. 3, श्री गणेश कोऑऩये टिव हाउससॊग सोसामिी प्राि नॊ. 233, चायकोऩ काॊडीवरी (वेस्ि) भुम्फई-400067 भुझे सरखना था कत्रव उद्भ्भ्राॊत की दो कत्रवता ऩुस्तकं ऩय। एक 'सदी का भहायाग' जो टक उनके


त्रऩछरी सदी भं सरखी कत्रवताओॊ भं से चुनी हुई कत्रवताओॊ का सॊकरन है ।

औय दस ू यी ऩुस्तक थी 'हॊ सो फतजष यघुवीय सहाम' क्जसका प्रकाशन 2009 भं हुआ है । रेटकन

'सदी का भहायाग' की कत्रवताओॊ ने भुझे ऩस्त कय टदमा। खास कय 'स्वमॊप्रबा' औय 'रुदावताय' ने। भंने 'सदी का भहायाग' भं सॊकसरत 'स्वमॊप्रबा' के अॊश को सभझने के सरए सभकारीन कत्रवता की आरोचना के उऩरब्ध भानदण्डं से काभ चराना चाहा रेटकन दख ु के साथ कहना चाहूॉगा टक असपर यहा। मही हार 'रुिावताय' कत्रवता के साथ बी हुआ। जहाॉ एक ऩूयी ऩीढ़ेी

ऩौयाक्णक आख्मानं से दयू सभकारीनता के प्रदे श भं बिक गई हो मा बिका दी गई हो, वहाॉ

अचानक ही ऩौयाक्णक ऩािं औय त्रवषम-वस्तु ऩय केटित कत्रवताओॊ ऩय कुछ कह ऩाना कटठन तो है ही। माद कयने ऩय बी उद्भ्भ्राॊत के अरावा कोई कत्रव-नाभ ध्मान भं नहीॊ आता क्जसने त्रऩछरे फीसेक वषं भं बायत के ऩौयाक्णक मुग ऩय बूर कय बी सरखा हो। सनयारा, टदनकय, नये न्ि शभाष आटद के फाद से मह ऩौयाक्णक प्रदे श टहन्दी कत्रवता साटहत्म के ऩरयदृश्म से ऩये है । सभकारीन सटक्रम कत्रवमं-रेखकं-आरोचकं से ऩूछा जाना चाटहए टक बाई, ऩुयाने बायत से इतना ऩयहे ज समं। औय समा प्राचीन बायत को सभझे त्रफना आज का मा बत्रवष्म का कोई बायत फना सकोगे? भं एकासधक फाय ऩहरे बी कह चुका हूॉ टक मह अतीत से त्रवरग ऩीढ़ेी का साटहत्म-रेखन तफ तक सनजीव यहे गा, जफ तक इसभं ऩुयाने बायत का आरोक नहीॊ ऩड़े जाता। तो 'सदी का भहायाग' ऩय सरखूग ॉ ा रेटकन फाद भं आज नहीॊ, अबी नहीॊ। कुछ कत्रव अऩने सभम सभाज को, अऩने ऩाठक को हभेशा भुक्श्कर भं डारते हं । वे सीधा, सहज, सयर यास्ता न अऩनाकय, कुछ अरग ही सुय साधते हं । फने फनाए रीक ऩय चरना उनके स्वबाव भं ही नहीॊ होता। कत्रव उद्भ्भ्राॊत ने 'हॉ सो फतजष यघुवीय सहाम' नाभक अऩने ताजा कत्रवता सॊग्रह भं अऩनी यचनाओॊ से एक ऐसा ही कटठन औय अरग सुय साधा है । क्जन्हंने उनके भहाकाव्म औय खॊडकाव्म ऩढ़े​े हंगे, उनके सरए मह सॊग्रह एक चुनौती से कभ नहीॊ होगा। 'स्वमॊप्रबा' औय 'रुिावताय' के कत्रव की ऩूयी काव्म चेतना अचानक एक ऩूणष ऩरयवसतषत स्वरूऩ भं साभने खड़ेी हो जाती है । महाॉ उनकी काव्म-बाषा औय काव्म-वस्तु, मा कहं टक काव्म सॊसाय ही फदरा-सा टदखाई दे ता है । उनके कहने की मह नई बॊसगभा मह ऩूछने ऩय फाध्म कयती है टक


आक्खय एक भहाकाव्म-भेधा से सम्ऩन्न कत्रव को पुिकर-कत्रवत्त की बूसभ ऩय उतयने की समा आवश्मकता आन ऩड़ेी। समं चुना होगा कत्रव उद्भ्भ्राॊत ने उस याह को क्जस ऩय वे फहुधा चरते नहीॊ दे खे-सुने गए। उनका मह नव ऩॊथ चमन कुछ-कुछ भहाकत्रव सूयदास के याभचरयि की

भटहभा फखानने के सनणषम का स्भयण कयाता है । क्जसभं सूयदास इस भुिा भं टदखते हं टक याभकथा के गामको, मह भत सभझ रेना टक भं कृ ष्ण बक्त कत्रव हूॉ तो याभ का चरयत नहीॊ गा

सकता। 'हॉ सो फतजष यघुवीय सहाम' की कत्रवताओॊ से उद्भ्भ्राॊत ने मह प्रभाक्णत टकमा है टक वे बी वैसी कत्रवताएॉ सरख सकते हं जैसी कत्रवताएॉ सरख कय उनकी ऩीढ़ेी के ऩहरे औय फाद के तभाभ कत्रवमं ने भहाकत्रव का दजाष हाससर टकमा हुआ है औय शीषष ऩय त्रवयाज यहे हं । इस सॊग्रह की कई कत्रवताओॊ भं उद्भ्भ्राॊत ने

टहन्दी कत्रवता को खारा का घय फना दे ने के षडमॊि को न केवर ये खाॊटकत टकमा है , फक्ल्क उसे ध्वस्त कयने का प्रमास बी टकमा है । वे 'शीषषस्थ' कत्रवता (ऩृद्ष 105) भं टहन्दी साटहत्म भं चर यही सगयोहफॊदी को उजागय कयते हुए सरखते हं भाटपमा भुस्कयामा

अऩनी शासतय चार चरते हुए आगे आमा

औय फोरा वत्स! अफ तू हभेशा के सरए हो जा भस्त

औय सभझ रे टक तू हो गमा शीषषस्थ। इस कत्रवता भं कत्रव एक साटहत्म भाटपमा के ऩैयं भं ऩड़ेा है औय भाटपमा उसे वत्स कह यहा है । महाॉ वत्स शब्द के प्रमोग ऩय भं अरग से ध्मान टदराना चाहूॉगा। भाटपमा मह सभझ चुका है

टक आज कत्रव एक फछड़े​े से असधक अहसभमत नहीॊ यखता। ऐसा फछड़ेा क्जसके ऩूट्ठे ऩय भाटपमा का हाथ है तो उसे शीषष ऩय त्रवयाजने से कौन योक सकता है । टदल्री औय दे श के तभाभ कत्रवमं ने ऐसा भाटपमा के ऩैयं भं सहजता से शीषष यख कय वह आसन ऩा सरमा है क्जसे एक सजग कत्रव अऩनी कत्रवता भं दजष कय यहा है । इसे उद्भ्भ्राॊत सनद्ळम ही भहाकाव्म मा खॊड काव्म सरखकय नहीॊ उजागय कय सकते थे। उन्हं जो कहना था, उसके सरए व्मॊग औय वक्रोत्रक्त की नऩी- तुरी कत्रवताई का कौशर ही काभ आ सकता था औय उद्भ्भ्राॊत ने इस नव ऩथ ऩय चर कय टदखामा। वैसे मह सॊग्रह दो खॊडं भं त्रवबक्त है । ऩहरा खॊड है 'हॉ सो फतजष यघुवीय सहाम' औय दस ू या खॊड है

'वह भाया जाएगा'। इन दोनं स्थूर त्रवबाजनं के असतरयक्त बी मह सॊग्रह कई सूक्ष्भ खॊडं भं फॉिा है । एक खॊड है कत्रव के आस-ऩास का वह सभाज जो टदन-यात मत्न कयके कुछ फड़ेी बौसतक


उऩरक्ब्ध ऩाना चाहता है । दस ू ये वह सॊसाय है जो टकसी बी तयह अऩने जीवनमाऩन के जुगत भं रगा है । तीसये वे रोग हं जो न इधय के खाने भं टपि हं , न उधय के खाने भं। वे हय तयह से उऩेक्ऺत औय अऩभासनत हं । चौथे टहस्से भं कत्रव स्वमॊ को रक्ष्म कयता है औय फाय-फाय वह आत्भारोचन कयके अऩने भन भं उऩजे अॊधकाय को ताय-ताय कयता यहता है । इस सॊग्रह भं वे क्जतने सनभषभ फाहयी सभाज औय सभुदाम के सरए हं , उसके कहीॊ असधक सनभषभ औय किु वे स्वमॊ के सरए बी हं । इसका ठोस प्रभाण है उनकी 'चूहा' शीषषक ऩहरी कत्रवता का मह अॊश क्जसभं वे स्वमॊ को सॊफोसधत कयते हुए सरखते हं कहीॊ भुझको ही तो नहीॊ कोई गरतपहभी? भं ही तो नहीॊ इन चूहं भं से एक हूॉ कुतय यहा है जो

सभम के त्रवयाि बोजऩि ऩय सरखे हुए जीवन के शब्द त्रफना जाने फूझे?

उद्भ्भ्राॊत की मह मा इस प्रकाय की आत्भ-दशषन की कत्रवताएॉ टहन्दी भं त्रवयर हं । ऐसी कत्रवताओॊ भं उनकी बाव-बॊसगभा कबी-कबी त्रिरोचन जी की आत्भारोचनऩयक कत्रवताओॊ की माद टदरा दे ती हं । अऩनी त्रवकरताओॊ औय त्रवपरताओॊ ऩय त्रिरोचन जी ने क्जस सनभषभता से सरखा है , उद्भ्भ्राॊत ने उस सनभषभता को आगे फढ़ेाते हुए उसभं व्मॊग चोि औय फढ़ेा दी है । उनकी इस तयह की कत्रवताओॊ भं 'दाढ़ेी' कत्रवता को दे ख सकते हं क्जसभं एक गृहस्थ के

बीतय छुऩे हुए भध्मवगीम भन को वे साप-साप दे ख ऩाते हं । वह भन जो उम्र के दफाव को

भानने से इन्काय कयता है । वह ऩत्नी के ऩरयहास तक को स्वीकाय नहीॊ कयता रेटकन साभाक्जक दफाव के आगे मह भान रेता है टक वह अबी वही नौजवान नहीॊ, फक्ल्क 57 सार का वह ऩुरुष है जो टक कहीॊ न कहीॊ फुढ़ेाऩे की ओय फढ़े चुका है । भुझको बी झिका रगा जवानी के खूफसूयत सातवं आसभान से भं अचानक सगया सत्तावन सारा फुढाऩे की धयती ऩय मह स्वभन की सच्चाई दे खने की त्रिरोचनी कंध का एक औय चिक त्रवस्ताय है समंटक आज का टहॊ दी-कत्रव आत्भारोचन के स्थान ऩय सॊसायारोचन भं उरझा है । उद्भ्भ्राॊत जी 'भध्म' नाभ की


एक औय कत्रवता भं भध्मवगष की तभाभ टपतयतं को दजष कयते हं । कत्रवता भध्म वगष के उहाऩोह से शुरू होकय अगरी ही ऩॊत्रक्तमं भं मह फता दे ती है टक मह कत्रवता भध्मवगष के भनोत्रवऻान को सभझने जा यही है वह इधय जामे टक उधय? बायी असभॊजस ऩशोऩेश सफसे सुयक्ऺत जगह भध्म ऩऺ भं टक प्रसतऩऺ? सफसे सनयाऩद तिस्थ। कत्रव कठोय भध्मवगष के साये आत्भोत्थानकंटित चरयि को उजागय कयने के फाद स्वमॊ ऩय आता है । रेटकन जफ वह अऩनी क्स्थसत का सचिण कयता है , तफ बी अऩने अॊदाजे फमाॉ को फदर नहीॊ दे ता फक्ल्क औय सख्त हो जाता है ऩािी-वािी से हभं समा भतरफ? आक्खय हभं काभ बी कयाने हं अऩने वैसे तो सबी भ्रद्श इस हभाभ भं साये नॊगे हं साये के साये क्जनभं हं हभ बी इस कत्रवता को ऩढ़ेते सभम हभं मह ध्मान भं यखना होगा टक आज के कत्रव फहुतामत भं साये कऩि-खोि सफ फाहयी जगत भं दे खने के अभ्मासी हो गए हं । वह कफीय की ऩयम्ऩया कफ की

खत्भ हो गई है क्जसभं सभाज की गॊदगी के साथ ही भन की भैर बी टदख जाता था औय कत्रव


मह घोषणा बी कय दे ते थे टक भेया भन बी कोई फहुत उजरा नहीॊ है । 'जो टदर खोजूॉ आऩना,

भुझसे फुया न कोम' की फात आज आक्खय टहन्दी कत्रवता भं एक ससये से समं गामफ है । आक्खय इतने ऩत्रवि औय नेकटदर कत्रवमं की मह त्रवकि त्रफयादयी अचानक कहाॉ से जन्भ रे आई। मटद हभ इस प्रद्ल का कोई बी उत्तय दे ऩाते हं तो मह सभझना असान होगा टक टहन्दी कत्रवता से सभाज का बयोसा समं नहीॊ यह गमा है । वैसे तो कोई बी अऩनी दही को खट्िा नहीॊ कहता। तो टपय टहन्दी के कत्रव अऩने भन के खट्िे ऩन को उजागय समं कयने रगे। मह तो उद्भ्भ्राॊत जैसे कत्रव की नादानी है जो मह स्वीकाय कय यहा है टक बइए, भं भध्म वगष का आदभी हूॉ औय

भुझभं बी कुछ कसभमाॉ औय खासभमाॉ हं । इस स्वीकाय से उद्भ्भ्राॊत का कत्रव फड़ेा ही होता है , घिता नहीॊ। आज तो हय कत्रव जनता का कत्रव है । वह सभाज को सीधे औय सुत्रवधाजन्म तयीके से दो टहस्सं भं त्रवबाक्जत कय दे ता है । एक उनके प्रबुओॊ का वगष औय एक वॊसचत कत्रव का वगष। औय मह त्रवबाजन होते ही कत्रव का काभ फन जाता है । वह उम्र बय वे औय भं मा वे औय हभ की शैरी भं कत्रवताएॉ यचता यहता है । उसके सरए आत्भारोचन एक त्माज्म वस्तु-त्रवषम है । भेये उऩमुक्त ष कथनं से मह नतीजा न सनकार रीक्जएगा टक 'हॉ सो फतजष यघुवीय सहाम' टकसी बक्त मा सॊन्मासी कत्रव की टकताफ है । नहीॊ, मह सभाज भं यह यहे , जी यहे जूझ यहे एक कत्रव की टकताफ है क्जसभं वह अऩनी तभाभ सपरताओॊ, असपरताओॊ के साथ भौजूद है । इसीसरए इन कत्रवताओॊ भं कत्रव का सभाज बी झरकता है उद्भ्भ्राॊत चाहते तो एक नकरी साभाक्जक मथाथष गढ़े सकते थे क्जसभं व्माऩक सयोकाय वारी कुछ कत्रवताएॉ शासभर कय री जातीॊ औय चीजं को

दे खने का तयीका औय कथन थोड़ेा कोभर, भृद ु औय भोहक हो जाता। इस सॊकरन की कत्रवताओॊ को ऩढ़ेते हुए रगाताय रगता है टक कत्रव टकसी को ऺभा कयने औय छोड़ेने के भूड भं नहीॊ है ।

वह बुजा उठाकय सफको ररकाय यहा है । सफको फता यहा है टक दे ख, इस कौए के भन भं सछऩे सभाज के करुष को दे ख। दे ख, इस चूहे की कुतयन भं छीज यहे बायतीम आत्भा को दे ख। वे सभाज की उन त्रवसचि आवाजं को बी सुनते औय सरत्रऩफर्द् कयते हं क्जन्हं साटहत्म भं कोई दजष कयना नहीॊ चाहता। उनकी 'गासरमाॉ' शीषषक कत्रवताओॊ को दे खा जा सकता है क्जसभं वे उन आवाजं को बी ऩकडते हं क्जनके फोरने वारं को वे ठीक-ठीक दे ख नहीॊ यहे होते। गासरमाॉ क्रभ की कत्रवताएॉ खासकय कत्रव की भनोदशा को टदखाती हं । गासरमाॉ-1 भं वे सरखते हं कुछ फच्चं की चीखं कुछ औयतं की सचल्राहिं कुछ रोगं के दभ घुिने की आवाजं मह सफ सड़ेक के टकनाये से रगी चहाय दीवायी के


उस ऩाय का टक्रमा-व्माऩाय था भुझे ऩता नहीॊ उसे कयने वारे कौन थे कत्रव ने उन चेहयं को नहीॊ दे खा है । वह उन आवाजं को सुन-गुन यहा है औय उनके भभष को सभझ यहा है । वह दभ घुिने की आवाज को बी सुनता है । मह कत्रव के अन्तभषन के कान हं । जफ चभष चऺु दे खने भं असभथष हो जाते हं तो भन के कान सफ दे खने-सभझने रगते हं । कबीकबी ऑ ॊखन दे खी से कानं सुनी असधक काभ आती है । कबी-कबी भन से सुनी गई फात बी कत्रव के साभने सभाज का एक अरग रूऩ उऩक्स्थत कय दे ती है । हाॉराटक इस कत्रवता भं बी कत्रव ने इन तभाभ आवाजं के क्खराप टकसी नकरी सॊघषष की भुिा नहीॊ री है । भं मह कत्रवता ऩढ़ेते हुए फेहद सशॊटकत था टक अफ नहीॊ तो अफ कत्रव मह कहे गा टक भं इन आवाजं को सभिा दॉ ग ू ा। रेटकन कत्रव त्रफना बावनात्भक प्रवाह भं फहे इन आवाजं से ऩीछा छुड़ेाने के सरए बागता है

भं सयऩि बाग सरमा वहाॉ से रेटकन बागने से औय कोई बरे भुक्त हो जाए, एक कत्रव, एक साभाक्जक बरा कैसे फच सकता है । तबी तो वे आवाजं अऩने तम इयादं के साथ कत्रव का ऩीछा कयती हं भगय असाभाक्जक आवाजं ने औय बी तेजी से ऩीछा टकमा भेया अन्तत: भेयी हत्मा कय दे ने का इयादा सरए। कत्रव त्रफना असतरयक्त कथन के

मह कह दे ता है टक जो असाभाक्जक आवाजं को सुनेगा मा सभझने की कोसशश कये गा, उसे भयने के सरए तैमाय यहना होगा। इस सॊग्रह की कई कत्रवताओॊ को ऩढ़ेते-ऩढ़ेते आऩको रग सकता है टक महाॉ तक आकय उद्भ्भ्राॊत का सभत कथन वारा कत्रव कहीॊ छूि गमा है । भस्तक ऩय फाॉध सूम-ष भौय जाता है कार ऩुरुष जाने टकस ठौय मा


फाहं भं बय रूॉ मह सछिक गई छूऩ भिभैरा कय दॉ ,ू इन टकयनं का रूऩ

आऩ सोच सकते हं टक क्जस कत्रव ने ऐसी ठसक बयी सभत कथन वारी काव्म ऩॊत्रक्तमाॉ एक नहीॊ सैकड़ें फाय सरखी हं , वह अचानक इतना समं फोर यहा है । आऩ को रग सकता है टक कत्रवता ऩूणत ष ा के ऩास ऩहुॉच गई है , टपय अचानक एक नमा भोड़े आ जाता है । औय बाषा इतनी सादगी से बयी टक रगता ही नहीॊ टक मह सॊग्रह उस कत्रव का है क्जसने भहाकाव्म, खॊडकाव्म, काव्म-

नािक, गीत-नवगीत औय गजरं आटद की तीन दजषन से असधक टकताफं सरखी हं , साटहत्म की कई त्रवधाओॊ भं काभ टकमा हुआ है । उस कत्रव के इस प्रकाय सनयरॊकाय वासम त्रवन्मास औय उन्भुक्त

सॊबाषण के ऩीछे उसका कोई न कोई भन्तव्म अवश्म होगा। भुझे रगता है टक महाॉ तक आतेआते कत्रव ने आवाभ से सीधे फातचीत का यास्ता अऩना सरमा है । अफ उसे भीय की तयह मह दत्रु वधा

नहीॊ है टक शेय भेये हं सफ ख्वास ऩसॊद ऩय भुझे गुॊफ्तगू अवाभ से है । 'हॉ सो फतजष यघुवीय सहाम' के कत्रव को न खास रोगं की ऩसॊद का ख्मार है , न वह खास रोगं से गुफ्तगू ही कयना चाहता है । वह अऩने कफीयाना ठाठ भं खोमा है । वह साप-साप दे ख यहा है अऩने आस-ऩास के खेर को। वह सभझ यहा है टक कैसे साटहत्म के भठाधीश कत्रव औय कत्रव

को यगड़े यहे हं , धूर भं सभरा यहे हं । ऐसे भं कत्रवता को दष्ु चक्र से फचाने का एक ही तयीका है उसे सख्त औय ठोस फनामा जाए। फहुत साज-शृॊगाय से सॊघषष की शत्रक्त सभाद्ऱ हो जाती है ।

सुॊदयता भं सबड़ेने का बाव स्वभेव ऺीण हो जाता है । इससरए उद्भ्भ्राॊत को त्रऩछरी अरॊकारयक बाषा औय सुघड़े शैरी का त्माग तो कयना ही था। कत्रव को सभत कथन की गुरु गॊबीय छत्रव को बी ध्वस्त कयना था। मटद वे ऐसा न कयते तो चूहे, गुराभ, वह भाया जाएगा, डॉरय, रार फत्ती, दष्ु चक्र भं कत्रवता, शीषषस्थ, कफाड़ेी, स्वाहा, खेर भदायी का, याभ याज्म, नभस्काय! कत्रववय! हे भूखष कत्रव, गाम, अभृत-फॉद, कौवा, गुरुकुर जैसी कत्रवताएॉ न सरखी जा ऩातीॊ। इससरए कत्रव के फदरे हुए यॊ ग-रूऩ को सभझने के सरए उसकी फदरी

त्रवषम वस्तु ऩय ध्मान दे ना होगा। मह ऩरयवतषन अकायण औय असावधानी भं नहीॊ हुआ है फक्ल्क

कत्रव की सोची-सभझी काव्म चेतना का सुऩरयणाभ है । मह रगबग आधी सदी की काव्म साधना से उऩजा काव्म-फोध है जो कत्रव से कहता है टक वह अऩनी बाषा को जया आवाभ ऩसॊद कयके दे खे। उद्भ्भ्राॊत आज अऩनी ऩीढ़ेी के सवाषसधक बयोसे के कत्रव हं , भेये इस कथन से हो सकता है कुछ कत्रव यॊ ज हं। रेटकन भुझे मह कहने भं कोई सॊकोच नहीॊ होता टक उद्भ्भ्राॊत ने व्मत्रक्तगत


गुिफॊटदमं से टकनाये यह कय टहन्दी की साधना की है । उनसे कई दजे नीचे के कत्रवमं ने समासमा ऩुयस्काय-सम्भान नहीॊ जुगाड़े कय यखे हं । उनकी उम्र के कई रोग अबी त्रऩछरे सार तक मुवा कत्रवमं की सूची भं सनरषज्जताऩूणष तयीके से शासभर यहे हं । भं नहीॊ सभझता टक इस सचय मुवा कत्रवमं ने कौन-सी जड़ेी-फूिी खा यखी है क्जनसे न इनकी कत्रवता प्रौढ़े हो यही है , न खुद मे। अच्छा है टक उद्भ्भ्राॊत ने अऩनी सुयऺा के सरए मुवा कत्रव फने यहने का कोई यास्ता नहीॊ ऩकड़ेा। वे जहाॉ ऩहुॉचे हं , अऩने सरखे के फर ऩय। आगे बी उनके काव्म-ऩथ का त्रवस्ताय

उनका रेखन ही होगा, न टक ऩुयस्काय आटद। जैसे उन्हंने आज के सभम भं भहाकाव्म सरख कय टहॊ दी साटहत्म भं ऩौयाक्णक प्रसॊगं को प्रवेश टदरामा है , उसी प्रकाय भं मह काभना करूॉगा टक सभकारीन टहन्दी कत्रवता भं बी वे कुछ भहाकाव्मात्भक कत्रवताएॉ अवश्म सरखंगे। 'हॉ सो फतजष यघुवीय सहाम' के फाद वे रगाताय टहन्दी जगत भं अऩनी कत्रवताओॊ से उथर-ऩुथर भचाते यहं गे। 

गुनगुनाती दऩ ु हयी भं सघन छाॉव की खंज ससर्द्ाथष शॊकय

डॉ. ससर्द्ाथष शॊकय टहन्दी त्रवबाग जम प्रकाश त्रवद्वत्रवद्यारम छऩया-841301 (त्रफहाय) भो.: 0988905098

कोई कह सकता है टक बयत प्रसाद का कत्रव उनके कहानीकाय से सनकरा है । 'एक ऩेड़े की आत्भकथा' कत्रवता सॊग्रह से ऩहरे 'औय टपय एक टदन' नाभ से कहासनमं का सॊग्रह प्रकासशत हो चुका है । रेटकन टपय मह सनष्कषष शामद फहुत एकाॊगी होगा। असर भं, बयत प्रसाद की कहासनमं भं कत्रवताओॊ की सी बावात्भकता औय कत्रवताओॊ भं बावात्भकता के साथ कथातत्व दे खा जा सकता है । आरोच्म सॊग्रह की गई कत्रवताओॊ की कथात्भकता त्रवशेष रूऩ से उल्रेखनीम है ।


'पूरन दे वी : एक सवार' कत्रवता भं बयत प्रसाद कथाकाय के टकस्सागो रूऩ के साथ प्रस्तुत होते हं ''त्रऩता भल्राह थे नाभ था दे वीदीन सभट्िी का घय था रेटकन अऩना नहीॊ, ऩुस्तैनी फस दो फीघा जभीन जैसे, सनधषन के घय भं दफ ु रे फच्चे की भुस्कान।'' 'अजेम ट्रे जेडी' भं बी कथात्भक 'नये शन' है । इसे कहानी औय कत्रवता के फीच त्रवधागत आवाजाही के तौय ऩय बी दे खा जा सकता है , रेटकन भुझे रगता है मह स्वमॊ बयत प्रसाद के यचनाकाय की सनजी त्रवशेषता है , जहाॉ दोनं तत्वं के फीच गहया अन्तगुम् ष पन ऩामा जाता है । वैसे चाहे क्जन्दगी हो मा कत्रवताई, हभ शुरू तो एक सपर नि की तयह ही कयना चाहते हं । नि तो अऩनी चार औय सन्तुरन भं सपर हो जाता है , रेटकन जीवन औय कत्रवता प्राम: त्रवच्मुसतमं से बयी होती है । शामद मही रड़ेखड़ेाहि जीवन औय कत्रवता का सौन्दमष हो। इससरए कहा जाता है टक अच्छी कत्रवता हभेशा एक सॊबावना है । कुछ कत्रवताएॉ एकदभ से ढह जाती हं औय कुछ रड़ेखड़ेाती हुई अऩनी भॊक्जर की तयप फढ़ेती हं । बयत प्रसाद ने भानो अऩनी ऩूयी यचना मािा को 'एक ऩेड़े की आत्भकथा' के भाध्मभ से फमाॉ कय टदमा है ''कंऩरे पूिी धया ऩय हये ऩन का बाय रेकयतना सनकरा ऩीठ ऩय था खड़ेा, सीधा टकन्तु दफ ष ।'' ु र महाॉ जीवन का 'हयाऩन' बाय है औय फढ़ेने के उऩक्रभ भं खुद को 'दफ ष ' ऩाता है , मह ु र

आत्भस्वीकृ सत का फड़ेा फोध है , रेटकन ''था खड़ेा सीधा'' बी कत्रव की यचनात्भक फनावि मा उसके अऩने भानससक गठन से फहुत गहये जुड़ेा हुआ है । एक अच्छी सापगोई औय

आत्भस्वीकृ सत से बयी इस कत्रवता भं आगे फढ़ेने की ररक है , मह यचनात्भक सॊबावना से मुक्त कत्रवता है । नई ऩृथ्वी, नमा छाॉव औय नई कंऩरं की उम्भीद फुनती मह कत्रवता खुद को वृत्रर्द् के नए एहसास एवॊ सॊबावना से बय दे ती है । कत्रवता ससपष कत्रवता नहीॊ होती है । वह टकसी कत्रव की कत्रवता होती है औय कई फाय कत्रव की


अऩनी अक्स्भता एवॊ अक्स्तत्व के 'जस्िीटपकेशन' के उऩकयण के तौय ऩय प्ररमुक्त होती है । तो समा हभ भान रं टक कत्रवता स्वमॊ कत्रव के 'होने' औय 'सही होने' को कहने का भॊच है । 'जफ भेया रृदम' कत्रवता भं कत्रव इसी तयह उऩक्स्थत है । वह अऩने फाये भं फताते हुए दसु नमा को दे खता है । मह कत्रवता अऩनी काभनाओॊ औय अफ तक न हाससर की जा सकी मा अऩेक्ऺत दसु नमा की

आकाॊऺा का गीत है । इस कत्रवता का आत्भसधसकाय एक 'कन्पेसन' मा तौफा नहीॊ है , फक्ल्क दसु नमा जैसी है , वैसी समं है औय अगय वैसी है तो कत्रव उसे फदरने के सरए कुछ कय समं नहीॊ ऩा यहा है , मह कुछ-कुछ भुत्रक्तफोध के 'असनवाय आत्भसॊबवा, को ऩा रेने की फेचन ै ी जैसी है ।

बयत प्रसाद की कत्रवता सॊकल्ऩं वारी है । वह कत्रवता की इफादतं के जरयए दे श औय दसु नमा के प्रसत शुब सॊकल्ऩं एवॊ अऩने ठोस इयादं को प्रकि कयती है । 'अजेम ट्रे जेडी' कत्रवता भं दोिू क शब्दं भं बयत प्रसाद कह दे ते हं ''बावी ऩृथ्वी को फचाना आगाभी सभ्मता की नन्ही-नन्ही पसरं को फफषयता के योगं से भुत्रक्त टदराना।''

(ऩृ.सॊ. 53)

अनुटदन टहॊ स्र औय त्रववेकहीन होती दसु नमा के प्रसत मह कत्रवता एक जरूयी सॊकल्ऩ है । असर भं

बयत प्रसाद की कत्रवता की फड़ेी त्रवशेषता है टक वह अऩने सभम के ताऩं, उत्ताऩं औय वेदनाओॊ को ऩकड़ेती है । तत्ऩद्ळात ् ऻानात्भक सॊवेदना के जरयए सॊवेटदत होकय वह शब्दं भं उतय आती है । कुछ बाव तो कत्रव के रृदम भं इतने गहये औय तीखे अनुबवं के साथ उतयते हं टक उसे सशद्दत से भहसूस टकमा जा सकता है ।

'गुजयात की यात' ऐसी ही कत्रवता है । इस कत्रवता के

भाध्मभ से कत्रव ने गुजयात के भाध्मभ से भनुष्मं की दसु नमा ऩय छा यही टहॊ सा की कारी यात की बमावहता को दशाषमा है टदनकार, बमावह अन्धकाय उतया जीवन स्वतॊि नब ऩय टहॊ सा, कट्ियता ऑॊखं दो फेखौप घूयती दम्बऩूणष थी भौत उगरती, शून्म-बाव बयती हयती प्रकाश, बय चकाचंध ऩागर बौहं का प्ररम बाव खीॊचता प्राण अन्धा कयता! (ऩृ.स. 58)


'फासभमान के फुर्द्', 'कश्भीय के फच्चे', 'अजेम िे य् जेडी', 'बॉवयी क्जॊदा है ' जैसी कत्रवताएॉ कत्रव के

अऩने सभम भं फहुत गहये उऩक्स्थत होने का प्रभाण दे ती हं । ससपष प्रभाण ही शामद। रेटकन मे

चीजं हभं कत्रवता की अन्तवषस्तु को रेकय त्रवभशष के एक दस ू ये धयातर ऩय रे जाती हं । मह वह धयातर है जहाॉ कत्रव को अऩने सभम के साऩेऺ खड़ेा होना होता है , जहाॉ वह अऩनी कत्रवता की

अन्तवषस्तु एवॊ उसकी दीघषजीत्रवता के कठघये भं खड़ेा होता है । आक्खय मह सवार तो ऩूछा ही जा सकता है टक समा कत्रवता को सभसाभसमकता से फोक्झर होना चाटहए। समा कत्रवता त्रवद्यभान वतषभान एवॊ तत्कार की टडिे र है औय अगय आज की कत्रवता को तत्कार एवॊ उऩक्स्थत घिनाओॊ की काव्मात्भक टडिे र ही फनना है तो अन्म भीटडमा की तयह ही इसकी बूसभका सूचनात्भक फनकय यह जाएगी। असर भं, आज भीटडमा के दस ू ये तॊि त्रवकससत हो गए हं जो इन घिनाओॊ को असधक स्ऩद्शता एवॊ गहन सॊवेदनऺभ ढॊ ग से प्रस्तुत कयते हं । सवार तो मह बी है

टक अगय त्रवद्यभान वतषभान भं घि यही साभाक्जक-याजनीसतक घिनाएॉ ही कत्रव की सॊवेदनशीरता की कसौिी फन जाएॉगी तो कई भहाकत्रव खारयज हो जाएॉगे। आज अमोध्मा, गुजयात, कश्भीय, फासभमान आटद त्रवषमं ऩय कत्रवताएॉ हं रेटकन मह आद्ळमष की फात है टक समं बायत-ऩाटकस्तान त्रवबाजन जैसी िासद घिना ऩय कत्रवता नहीॊ है । त्रवबाजन ऩय अच्छे उऩन्मास हं , कहासनमाॉ हं , रेटकन कत्रवता नहीॊ दे ख ऩामा। आक्खय ऐसा समं है , मह सवार शामद कत्रवता त्रवधा की अऩनी प्रकृ सत से जुड़ेा हो मा स्वमॊ कत्रव की सॊवेदनशीरता से। फहयहार फताना मही है टक बयत प्रसाद के इस सॊग्रह की कई कत्रवताएॉ अऩने सभम भं घि यही घिनाओॊ की काव्मात्भक खैय-खफय रेती हं । कहने का आशम मह है टक कत्रव के सरए उऩक्स्थत एवॊ उऩरब्ध दे श औय कार सजषना की जभीन प्रदान कयता है

''इतने वषं से उत्तय की शान्त औय सुन्दय घािी भं तोऩं, गोरं, फन्दक ू ं का

खूनी शासन गूॉज यहा है ।'' सूचना दे कय कत्रव अऩनी साभाक्जक प्रसतफर्द्ता का प्रभाण तो दे दे ता है , रेटकन कत्रवता की अऩनी यचनात्भक जभीन फासधत हो जाती है । कत्रव की मह क्स्थसत तफ है , जफ वह खुद को 'शब्दं का त्रवक्रेता' कहता है । अथाषत ् महाॉ कत्रवता 'स्वान्त: सुखाम' नहीॊ है । कत्रवता बयत प्रसाद के सरए एक सामास उऩक्रभ है औय त्रफरकुर सजग त्रवक्रेता की तयह वह दावे बी कयते हं शब्दं का त्रवके्यता भं हूॉ शब्द फेचता


एक छोिे शब्द भं हं बये टकतने अथष साये प्मास गहयी फुझा रेना अथष को ऩीकय हभाये । (ऩृ.सॊ. 46) ऩूयी कत्रवता भं रम के साथ फुनी हुई गहयी अथषवत्ता इस सॊगह की अन्म कत्रवताओॊ से इसे अरग कयती है ।

वैसे कुछ घिना-केक्न्िक, सभसाभसमक प्रधान कत्रवताओॊ को छोड़े दं , तो इस सॊग्रह भं अनेक ऐसी कत्रवताएॉ हं जहाॉ बयत प्रसाद का कत्रव-रूऩ फहुत सॊवेदनशीर सजषक के रूऩ भं प्रकि होता है । असर भं बयत प्रसाद की कत्रवताएॉ आत्भत्रवबोय कय दे ने वारे त्रवस्भम एवॊ वेदना से उऩजी हं । इन कत्रवताओॊ भं जीवन औय प्रकृ सत के प्रसत अथाह कृ तऻता का बाव है । इसीसरए इनभं कहीॊ भाॉ की छाती तो कहीॊ साॉवरी घिाओॊ के धायासाय दध ू से कत्रव खुद को बया-ऩूया भहसूस कयता है । बयत प्रसाद का यचनाकाय

ऐसी सॊवेदनाओॊ वारा है जो प्रकृ सत को उसी त्रफम्फात्भकता, सघ्राण सॊवेदना, याग, यॊ ग औय धुनं के साथ भहसूस कयता है । रेटकन इन भसृण अनुबवं के साथ वह याजनीसतक प्रसतफर्द्ता के स्तय ऩय बी म्मान से अऩनी तरवाय काढ़े​े खड़ेा यहताहै । 'भाॉ' बयत प्रसाद की कत्रवता का भभषस्थर है । 'ईसा की भाॉ' भं बयत प्रसाद ने सरीफ ऩय चढ़ेाए गए ईसा भसीह के ददष को भाॉ के करेजे से भहसूस कयते हुए उसे यचनात्भक असबव्मत्रक्त दी है । बयत प्रसाद की कत्रवता भं करुणा का बाव फहुत गहया है । मह 'करुणा' अॊग्रेजी के 'कम्ऩैसन' वारी प्रतीत हो सकती है टकन्तु भुझे तो मह बायतीम सॊस्कृ सत के करुणा के ऩऺ वारी ही

असधक टदखती है । बायतीम सॊस्कृ सत का मह करुऊणाषि रृदम भनुष्मं की वेदनाओॊ की िोह तो रेता ही है साथ ही क्रंच औय हॊ स की वेदनाओॊ के साथ बी उतनी ही गहयाई के साथ अऩने आऩ को सम्फर्द् कयता है । वैसे बयत प्रसाद का यचनाकाय-व्मत्रक्तत्व आधुसनक मुग का है औय उसभं जे.एन.मू. की सजग याजनीसतक छाऩ है । इस आधाय ऩय उन ऩय मह ठप्ऩा सहज ही चस्ऩाॉ हो सकता है टक वाभऩॊथी चेतना ने बयत प्रसाद के अन्दय करुणात्भक कत्रवकभष को औय प्रखय फनामा है । रेटकन एक कत्रव रृदम जो अऩनी 'ऑॊसू' कत्रवता भं गूॉगे ऩशुओॊ की फेफसी ऩय दख ु ी है , जो प्रचण्ड तूपान को बाॉऩ यहा है औय उजड़े​े हुए घंसरे ऩय सचटड़ेमं के अभषष को

भहसूस कय यहा है । ऐसा कत्रव कहीॊ न कहीॊ आटद कत्रव के उस रृदम का वारयस है क्जसभं क्रंच ऩऺी के भाये जाने ऩय उऩजे त्रवमोग का गहया द:ु ख कत्रवता फनकय पूि ऩड़ेा था। स्त्री-ऩुरुषं के अरावा शेष-सृत्रद्श भं ऑॊसू तराशने वारा बयत प्रसाद का कत्रव-रृदम सनक्द्ळत रूऩ से बायतीम

ऩयॊ ऩया के उस बाव-फोध से जुड़ेा है क्जसभं दमा एवॊ करुणा का त्रवस्ताय भानवेतय सृत्रद्श तक है ।


अफ भेया मह सोचना टकतना सही औय टकतना गरत है टक बयत प्रसाद की कत्रवताओॊ को ऩढ़ेते हुए मही रगता है टक अच्छी कत्रवता के सरए त्रवचायधाया नहीॊ, फक्ल्क करुणा औय कोतूहर

असधक जरूयी है । बयत प्रसाद की कत्रवताओॊ भं मह दोनं उऩक्स्थत हं । महाॉ करुणा औय कोतूहरय ् कत्तृत्व बाव के साथ उऩक्स्थत हं , एक सकभषक एवॊ हस्तऺेऩकायी उऩक्स्थसत की तयह। अफ इसे कोई बयत प्रसाद की वैचारयक प्रसतफर्द्ता मा ऩऺधयता की तयह बी ऩढ़ेने के सरए स्वतॊि है । रेटकन भुझे तो मही रगा टक बयत प्रसाद के कत्रव भं ि​िके सूयज को दे खने की ररक है । वह उजास होते ही गेहूॉ कािने के सरए टकसानं, औयतं, फच्चं औय फेटिमं के जत्थे को बी दे ख

रेना चाहता है । इन्हीॊ सफ कत्रवताओॊ के फीच 'भदष -औयत' जैसी कत्रवता बी है । त्रवषम-वस्तु की दृत्रद्श से मह अकेरी औय अनूठी कत्रवता है ''हय भुक्श्कर से जूझने का जॊज्फा है हायकय बी कबी हाय न भानने औय भैदान न छोड़ेने की क्जद है ।'' (ऩृ.सॊ. 110) कत्रव की सॊवेदना की बूसभ इतनी फहुवणी, फहुयॊगी एवॊ फहुबावमुत ् छत्रवमं वारी है टक उसभं

फछड़े​े की हषषध्वसन, टकसान के भुॉह से यात के सन्नािे भं छे ड़ेा गमा कफीय का सनगुण ष -बजन, डू फते सभम डासरमं औय ऩत्रत्तमं भं क्झरसभराता हुआ सूयज, गाॉव के फगीचे भं झयते हुए ऩीरे ऩत्ते औय आत्भा को तृद्ऱ कय दे ने वारी कोऩरं सबी एक साथ उऩक्स्थत हं । मकीनन इन

अनुबूसतमं वारे इस कत्रव को कोई 'नॉस्िै क्ल्जक' भान सकता है , कत्रवताओॊ के सहज-उच्छसरत बाव-फोध को रूभानी भानते हुए स्वच्छन्दतावाद की कोटि भं डारकय खारयज कय सकता है ,

टकन्तु भं कत्रव की इन सायी अनुबूसतमं एवॊ सॊवेदनाओॊ के साथ खड़ेा हूॉ समंटक आधुसनक मुग

की नाना वैचारयक जटिरताओॊ औय सचन्तन की सयक्णमं के फीच कत्रव ने कत्रवता के अफोधऩन को उसकी सहज क्जऻासावृत्रत्त के साथ सहे ज यखा है । आज शामद कत्रवता के इसी अऩेक्ऺत 'इन्नोसंस' की दयकाय है । कत्रव 'अथष का अनथष' कयने वारे इस सभम भं 'बव्म-सभ्मं ऩय अऩना आक्रोश प्रकि कयता है ''मे फड़े​े समाने जादग ू य ऩयभससर्द् अऩनी कयनी भं भहासगर्द् जान सके मा सभझ सके

वे काराफाज, वे भहाभटहभ

वे बव्म-सभ्म

वे नहीॊ चाहते

वे सोच-सभझ भं

कोई बी उनकी सच्चाई

उनकी फातं।'' कत्रव ऐसे बव्म-सभ्मं के भन भं ''घनावृऺ ओछे ऩन

का पर-पूर यहा बीतय-बीतय'' को अच्छी तयह ऩहचानता है । सफ कुछ धो दो, जो कुछ सनभषर, सनष्करुष-सा फचेगा वहीॊ टकसी बूसभ से बयत प्रसाद की कत्रवता पूिती है । आऩ चाहं तो उस ऩय कोई रेफर चस्ऩाॉ कय दं , ऩय सच मह है टक रेफर ऩाठक का ही होगा, कत्रव का कभ। असर भं महाॉ कत्रव अऩनी त्रवत्रवध प्रसतफर्द्ताओॊ, सयोकायं के


फीच यागारुण सॊवेदना के साथ उऩक्स्थत है । इसी फीच कत्रवता के कुछ त्रवसशद्श भभषस्थर बी आते हं जहाॉ आऩको कत्रवता के सौन्दमष एवॊ उसके भाधुमष ऩय यीझ जाना होता है । जैसे 'तुम्हायी हॉ सी' कत्रवता- इसभं हॉ सी उसे ''ऩहरी धूऩ भं बीगी हुई।''

''ओस की नई-नई चभक'' मा ''उगते अॊकुय की भासूभ हरयमारी'' रगती है । इसी कत्रवता भं हॉ सी की सान्िता तफ औय असधक सान्ि औय असबयाभ हो उठती है जफ वे कहते हं टक तुम्हायी हॉ सी घनघोय फारयश के फाद ऩूयफ के शीतर आकाश भं घनी धूऩ का आकषषण है । मा वह सुदयू अॊचर के उत्सव भं रोकधुन ऩय फजते

नतषटकमं के ऩाजेफ की झॊकाय जैसे अबी-अबी क्खरे हुए पूर की सनभषर खुशफू।

इस प्रकाय इस सॊग्रह की कत्रवताओॊ भं प्रकृ सत का सकभषक भानवीम रूऩ फहुत सुन्दय उऩभानं के साथ असबव्मक्त हुआहै ।  

ताना फाना

नमा, नमा नहीॊ है बयत प्रसाद

बयत प्रसाद प्रवक्ता-टहन्दी त्रवबाग ऩूवोत्तय ऩवषतीम त्रव.त्रव. सशराॊग-793022 (भेघारम) भो. : 09863076138


जो नमा है , वह नमा नहीॊ है , जो रघु है वह रघु नहीॊ है , जो कच्चा है वह कच्चा नहीॊ है । सवार उठाइए टक कैसे? वह ऐसे टक उस नमे तयह की कल्ऩना, अनुबूसत औय सोच का ताजाऩन हभाये ऩास नहीॊ है । वह जीवन-जगत को सवाषसधक अऻात, नमे औय ताजा यॊ ग के साथ दे खने का भासरक है । उसकी रघुता ससपष उम्र की मा आकाय-प्रकाय की है बावनाओॊ की नहीॊ, रृदम की सटक्रमता की नहीॊ, बावनात्भक ऩत्रविता की नहीॊ। इसी प्रकाय एक नवसजषक मटद कच्चा है तो जीवन के व्माऩक अनुबवं भं, न टक अऩने सृजन-सॊकल्ऩ भं, स्तयीम सनष्कषष भं मा सभकारीन मथाथष के त्रववेकऩूणष त्रवद्ऴेषण भं। नवसजषक भं यचने की प्राकृ सतक शत्रक्तमाॉ असतशम तीव्रता के साथ सटक्रम यहती हं , उसकी भानससक औय बावनात्भक ऊजाष ऩर-प्रसतऩर ज्वायबािे की प्रकृ सत धायण टकए यहती है । एक तयह से उसके सभूचे रघु आकय भं प्रत्मेक दृश्म, अदृश्म, ऻात-

अऻात, सूक्ष्भ-स्थूर को जान रेने, छू रेने, ऩा रेने की फेचन ै ी भची यहती है । धायणा को ऩरि दे ने, ऩरयबाषा को खारयज कय दे ने, रीक से इॊ काय कय दे ने औय असम्बव को सम्बव फनाने की अप्रकि ऺभता, प्रसतबा औय कूवत नवसजषक भं अकूत, असीभ होती है । उसकी कात्रफसरमत उस रघु जर धाया की तयह है , जो टकसी ऊॉचाई से सगयने का अवसय ऩाकय ही टदगन्तव्माऩी असबनव स्वय का कभार टदखा ऩाती है । तो टपय नवसजषक कैसे हुआ रघु? कैसे हुआ कच्चा? कैसे हुआ चरताऊ भुहावये भं नव?

नवसजषक की त्रवकल्ऩहीन भहत्ता बी इसी भं है टक वह बाषा, सशल्ऩ, गठन, सॊवेदना औय कल्ऩनाशीरता अथाषत ् साटहत्म के प्रत्मेक त्रवबाग भं अऩनी भौसरक ऺभता का ऩयचभ रहयाए। रगे टक हाॉ, उसकी बाषा नए मुग के जन्भ की आहि दे यही है , ऐसी शब्द-साभथ्मष तो ऩहरे

कबी नहीॊ दे खी गई, प्रखय कल्ऩनाशीरता का ऐसा नभूना ऩहरे कबी नहीॊ टदखाई टदमा। सभम के प्रसत उठे छोिे -फड़े​े सवारं का उत्तय नवसजषक ठीक वैसे ही नहीॊ दे ता, जैसा टक अफ तक टदमा गमा है । वह ऩुयाने उत्तय से फगावत जरूय कयता है मा टपय असनवामषत: अऩनी ओय से कुछ नमा जोड़ेता है । सभकार ऩय अत्मन्त नए टकन्तु कीभती तयीके से करभ चराने की उम्भीद नए रेखक से की जाती है । नवसजषक के अध्ममन का दामया सीसभत होने के फावजूद तयोताज है , इसीसरए टकसी त्रवषम के दयसत्म ऩय जफ उसकी सोच खुरती है तो कुछ अत्रवस्भयणीम भासभषकता औय ताक्त्वकता दे कय ही शान्त होती है । नवसजषन की करभ भं सभसाभसमक जीवन त्रफरकुर आधुसनक स्वय भं फोरता है , ऐसी तभाभ साभाक्जक, भानवीम औय साॊस्कृ सतक प्रवृत्रत्तमाॉ जो दफे ऩाॉव, सछऩ-सछऩकय, शनै: शनै: ऩैठ फना यही हं , जो सभकार की ऩूयी सॊयचना को अस्तव्मस्त औय टदशाहीन कय दे यही हं , उस ऩय फेहद तत्ऩय, जागरूक औय ऩैनी नजय नवसजषक की यहती है औय मुग की घातक प्रवृत्रत्तमं के क्खराप ऩहरा भोचाष खोरने का मुगीन दासमत्व नवसजषक ऩय ही है । वषष 2009 भं साटहक्त्मक ऩिकारयता की प्रथभ ऩॊत्रक्त भं अऩनी ऩहचान कामभ कयने वारी ऩत्रिका यही 'रभही'। इसका 'असिू फय-टदसम्फय-2009' का अॊक 'कहानी-त्रवशेषाॊक' है । प्रस्तुत अॊक भं


सुऩरयसचत कथाकाय 'भहे श किाये ' की कहानी 'फच्चं को सफ फताऊॉगी' प्रकासशत हुई है । इसभं

सगरयजा एक फेसहाया नवमुवती है , उसके फार-फच्चे हं । गाॉव के सयऩॊच, डकैत औय बी न जाने कैसे, टकतने छुिबैमा, फड़ेबैमा उसकी आकषषक कामा से भनभाना खेर खेरते हं । सगरयजा बी

सनरषज्जताऩूवक ष अऩने शयीय का शोषण होने दे ती है । गाॉव-दे हात की गयीफ-गुयफा स्त्री का शयीय नोच-नोच कय खाए जाने रामक भाॊस के िु कड़े​े के ससवाम भानो कुछ होता ही नहीॊ। भहे श जी ने सगरयजा की नॊगी अससरमत के ऩीछे उसकी ऩयाक्जत आत्भऩीड़ेा को ही आवाज दी है । इसी क्रभ भं याकेश कुभाय ससॊह की कहानी ''कहानी खत्भ नहीॊ होती'' प्रेभचन्द की कहानी 'कपन' के कारजमी चरयिं घीसू-भाधो को इस सदी की कहानी के फहाने उठाना मह प्रभाक्णत कयता है टक मे अबी भये नहीॊ हं , कहीॊ न कहीॊ जीत्रवत है । इनकी सनमसत औय बमावह हो गई है । अन्त्मज रोकजीवन के कथाकाय याकेश कुभाय ससॊह ने अऩने कल्ऩना-कौशर के फर ऩय वतषभान मथाथष की ऩीड़ेा को प्रेभचन्द के ऐसतहाससक दख ष जोड़ेा है । आगे शैरेम जी की ु के साथ कुशरताऩूवक

कहानी ''महीॊ कहीॊ से।'' प्रस्तुत कहानी भं रोकेन्िनाथ जैसे साटहत्म के सशऺक की वैचारयक-सॊघषष व्मथा के फहाने उन तभाभ फौत्रर्द्कं के जीवन भं िू ि ऩड़ेने वारी दद्व ु ारयमं का सचिण टकमा गमा

है , जो सभाज भं आसथषक औय साभाक्जक सभता दे खना चाहते हं । शैरेमजी घिना औय त्रवषम को उसकी अऩनी प्रकृ सत के अनुसाय दे खने से कहीॊ ज्मादा अऩने सॊकल्ऩी भन के नजरयए से दे खते हं । इस अथष भं वे साथषक फदराव की क्जद यखने वारे ऩरयवतषनकायी कथाकाय हं । इसी अॊक भं अशोक सभश्र की कहानी

''गाॉव की भौत।'' भं शहय जाकय फसे हुए 'यतन' नाभक मुवक के बीतय

अऩनी जड़ें से रगाताय किने का असहाम ददष तो है ही, साथ ही साथ 21वीॊ सदी भं

अव्मवक्स्थत औय टदशायटहत तयीके से फदरते हुए उत्तयप्रदे शी गाॉवं का नसशा बी है , भगय

सूचनात्भक औय रगबग सनफन्धात्भक दामये भं फॉधकय यह जाने वारा। कुछ आगे फढ़ेने ऩय यणीयाभ गढ़ेवारी की कहानी ''ऩाया उपष ऩायस उपष...।'' मह कहानी ऩहाड़े ऩय यचे-फसे वतषभान गाॉवं की रूटढ़ेवादी, उजडड औय टदनभ्रसभत भानससकता ऩय चोि कयती है । गढ़ेवारी ने इस कहानी की स्त्री-ऩाि सुन्दयी (जो टक त्रवधवा है ) का दफ ु ाया त्रववाह टदखाकय ऩुन: इस सवार को हवा दी है टक समा आऩस भं प्रेभ कयने वारा जोड़ेा, चाहे वह टकसी बी धभष का हो, जासत का हो सभाजस्वीकामष त्रववाह सपरताऩूवक ष कय सकता है ? (रभही, असिू फय-टदसम्फय, 09, सम्ऩादक-त्रवजम याम)Ð 'प्रगसतशीर वसुधा' के अॊक-82 भं प्रकासशत गजेन्ि यावत की कहानी- 'फारयश, ठॊ ड औय वह'। इसभं कहानीकाय ने भधुभेह योग से ग्रस्त एक रावारयस इॊ सान की खानाफदोशी िे य् जडी को

साकाय टकमा है । कूड़े​े दान भे पंकी गई सनयथषक वस्तुओॊ की तयह हभाये आज के भौजूदा सभाज भं एक दो नहीॊ, हजायं फक्ल्क राखं इॊ सान घनघोय अऩभान, घृणा औय सतयस्काय की ाॊक्जॊदगी ढो यहे हं । अदृश्म हवा, घूभती हुई ऩृथ्वी औय सचय-भौन आकाश के अरावा क्जसका दसु नमा भं

अऩना कहराने वारा कोई नहीॊ है । इसी अॊक भं है नीयज वभाष की कहानी 'गुभ होते रोग'। मह


कहानी सदी के ऩहरे दशक भं असहाम औय अशब्द होकय रगाताय त्रऩछड़ेते-सगयते, त्रवऩन्न होते ग्राभीण बायत की प्राभाक्णक कथा है । 'चयका' दसरत वगष का भाभूरी टकसान है क्जसकी आत्भा जासत-धभष औय ऊॉच-नीच के जड़े-सॊस्कायं से सनसभषत है , वह गाॉव के ही त्रवसेसय ऩॊटडत की सेवािहर के प्रसत गुराभं की तयह कृ तऻताऩूवक ष सभत्रऩषत है । 'भुन्ना' जो टक चयका का फेिा है , इस गुराभ सनमसत के क्खराप ससय से ऩैय तक त्रविोही है । उसे पिापि धन कभाने, आधुसनक सुखसुत्रवधा से रैस यहने औय धसनकं की तयह ऐशोआयाभ रूिने का ऩूया चस्का है । (प्रगसतशीर वसुधा, जुराई-ससतम्फय, 09, सम्ऩादक-कभराप्रसाद)Ð 'दोआफा', के असिू फय अॊक भं प्रकासशत दे वेन्ि ससॊह का उऩन्मास अॊश 'हभ फाक्ज यहर छी ऩरिू ' शीषषक से प्रकासशत है । इसभं त्रफहाय के गाॉवं से यात-टदन ऩरामन कयते ग्राभीणजन की अश्रुऩूणष कथा के फहाने उनकी सचन्ता भं सससकते हुए त्रवचायं को खुरकय प्रस्तुत टकमा गमा है । गाॉवो का दसरत टहन्दस् ु तानी अन्धी गरी भं उगी हुई ऩीरी-ठण्डी दफ ू है । वह अऩनी प्राणघातक त्रवऩन्नता

से बमबीत होकय भहानगय भं बाग आता है , क्जसकी क्जन्दगी प्रसतटदन अऩने योभ-योभ के नीचे क्स्थत खून को फहाने औय स्रभं के अन्धकायभम यसातर भं डू फ जाती है । कुछ ऩॊत्रक्तमाॉ ऩटढ़ेए ''तफ दे श दयका था, अफ गाॉव दयके हं । कस्फे तथा शहय दयके हं । घय-ऩरयवाय फॊिे हं । आधा वहाॉ, आधा महाॉ। महाॉ मे खोबारयमं भं यहते हं । ऩिरयमं ऩय सोते हं । सफ दख ु सहकय भहानगय के

सफसे कटठन काभ सॊबारते हं । एवज भं दयु दयु ाए जाते हं ।'' ऩृद्ष सॊख्मा, 110, ('दोआफा' असिू फय, 09, सम्ऩादक-जात्रफय हुसेन)।

'इयावती' ऩत्रिका के 'अॊक-9' भं प्रकासशत सुषभा भुनीन्ि की कहानी 'ट्रीिभंि'। इसभं सुषभा जी ने 'सॊजोग' नाभक कऩड़ेा व्मवसामी के त्रववाहे तय मौन-सम्फन्ध का भुद्दा उठामा है । सॊजोग फारफच्चेदाय है , साॊस्कारयक ऩृद्षबूसभ का है , अऩनी ऩत्नी यतन का एकसनद्ष प्माय ऩामा है उसने, टपय बी...। कहानी आजकर फेटहसाफ दय से भूल्महीन होते आदभी का सच उजागय कयती है , भगय एक ये खीम वणषन-त्रवन्मास की शैरी भं। आगे है याजनायामण की कहानी ''इम्तहान''। आधुसनक से आधुसनक होकय बी कैसे प्रेभ की भानवीम गरयभा को फचाए यखा जा सकता है , मह कहानी इस दर ष मथाथष का ऩठनीम उदाहयण है । महाॉ दो मुवा प्रेसभमं के फीच ि​िकी चाहत की बायी उथरु ब ऩुथर भची यहने के फावजूद टकसी के आचयण भं भमाषदाहीन हो उठने की सनक नहीॊ है औय इसी अभय-प्रकृ सत को एक नमा अॊजाभ दे ती असभत भनोज की कहानी ''स्िे शन ऩय प्रेभ''। अचानक चरते-टपयते, घूभते-घाभते प्रेभ जगा दे ने वारी उम्र भं डू फे हुए मुवक तरुण औय ज्मोत्स्ना के फीच अव्मक्त टकन्तु ऩसके प्रेभ की हकीकत है मह कहानी। प्रेभ जैसे शाद्वत

भॊिभुनधकायी भुद्दे को ऺण-ऺण फदरती बावनात्भक क्स्थसतमं के सूक्ष्भ सचिण से कहानी को औय वेदनाऩूणष फनामा जा सकता था, ऩयन्तु असभत भनोज त्रवषम के ऊऩय-ऊऩय तैयते हुए, त्रफना तत्रफमत से डु फकी रगाए सीधे-सीधे ऩाय सनकर गए। (प्रगसतशीर इयावती, अॊक, 9, सम्ऩादकयाजेन्ि याजन)Ð


साटहत्म जगत भं अऩनी नई उऩक्स्थसत दजष कयाने वारी ऩत्रिका 'असबनव-भीभाॊसा' के प्रवेशाॊक 09, 'अगस्त' के अॊक भं प्रकासशत उषा भहाजन की कहानी- 'एॊिीक', आज के असत आधुसनक फाजायवादी अऩसॊस्कृ सत भं आकॊठ यभी हुई नवमौवना 'गोगी' औय साभाक्जक भूल्मं, सॊस्कायं एवॊ भमाषदाओॊ भं जीने वारी, मौन-शुसचता को अॊधत्रवद्वास की हद तक भहत्व दे ने वारी भाॉ के फीच वैचारयक िकयाहि की कहानी है । कहानी का सनष्कषष है टक ससपष प्रेभ की जभीन ऩय खड़े​े होने वारे सम्फन्ध सनष्कॊिक नहीॊ हं , महाॉ बी शयीय के प्रसत बोगवादी भानससकता चयभ से कुछ नीचे सटक्रम नहीॊ यहती। (असबनव भीभाॊसा, प्रवेशाॊक, 09, सम्ऩादक-त्रववेक ऩाॊडेम)Ð 'ऩरयकथा' के 'नवम्फय-टदसम्फय-09' अॊक भं नसीभ साकेती की कहानी 'सौदा'। मह कहानी ऩृथ्वी की हवा, सभट्िी, ऩानी औय धयती की भातृ-शत्रक्त को न ससपष फचाने, फक्ल्क उसके सरए जान की कुफाषनी बी दे दे ने को तत्ऩय टदखाई दे ती है । ऩृथ्वी को आगे जीत्रवत यखने के सरए उसका स्वास्थ्म फचाए यखने ऩय कोऩेनहे गन भं त्रवद्व के याद्साध्मऺं की फैठकं हुईं। भुद्दा है प्रत्मेक

क्जम्भेदाय दे श Co2 गैस (काफषन 'डाईआससाइड' के उत्सजषन भं कुछ प्रसतशत (10-15) की कभी राएॉ। फात-फहस भं दे श एक दस ू ये का ससय पोड़ेकय खा जाने को तैमाय हं , भगय इस सृत्रद्श-

त्रवनाशक गैस को कभ उत्सक्जषत कयने के सरए तैमाय नहीॊ हं । आगे इसी अॊक भं याभाशीष की कहानी 'टहसाफ'। इसभं कहानीकाय ने भजाटकमा औय हॉ सोड़े शैरी भं 'हुनीरार' जैसे भाभूरी औय फेयोजगाय आदभी के नाचीज दयसत्म को उबाय कय यख टदमा है । ऩैसे की फेतयह तॊगी औय

फेयहभ बूख के कायण वह होिर भं खाना ऩयोसने का काभ कयता है । कुछ ही दयू ी ऩय भौजूद

टदखती है हरय टदवाकय की कहानी 'चॊदा'। इसभं धभष की खोर भं सछऩे उस साम्प्रदासमक, उन्भादी औय चरयतभ्रद्श रम्ऩि को टदखामा गमा है , जो धभष के नाभ ऩय टहॊ सा, फरात्काय, अऩहयण औय रूि का नॊगा नृत्म खेरने से जया बी सॊकोच नहीॊ कयता। आजकर त्मौहाय, ऩवष, उत्सव फुत्रर्द्शून्म टदखावेफाजी औय धासभषक रुतफा जभाने का भाध्मभ फन गमा है । दग ु ाषऩूजा हो,

गणेशऩूजा हो मा टपय रक्ष्भीऩूजा सफ भं मही त्रववेकभुक्त प्रदशषनफाजी फढ़े-चढ़ेकय टदखाई दे ती है । ('ऩरयकथा', नवम्फय-टदसम्फय, 09)Ð टहभाचर प्रदे श भं फैठकय सभकारीन टहन्दी कत्रवता भं ऩहचान फनाने वारे कत्रव सुयेश सेन सनशाॊत। 'प्रगसतशीर इयावती' भं उनकी कुर दस कत्रवताएॉ प्रकासशत हुई हं , क्जनभं सशभरा भार योड ऩय, नादान फेिी का त्रऩता, रड़ेटकमाॉ, घय औय ऩहाड़े शीषषक कत्रवताएॉ अऩनी साथषकता प्रभाक्णत कयने भं ऩूणत ष : सऺभ हं । सशभरा भार योड आधुसनक उऩबोक्तावादी टदनभ्रसभत सॊस्कृ सत का प्रतीक है , वहाॉ रोकऺेिं भं कभषशीर शुष्क-धूसभर चेहयं के सरए जगह कहाॉ? 'घय' कत्रवता वतषभान भनुष्म के भानवीम ऩुनसनषभाण का सॊकल्ऩ दहु याती है । 'घय' प्रतीक है शयीय का, क्जसका न जाने टकन-टकन कायणं से, हद दजे के उस ऩाय तक ऩतन हो चुका है । जामसी

सरखते हं 'मथा-मथा त्रऩण्डे , तथा-तथा ब्रह्माण्डे ' तो टपय अन्त: व्मत्रक्तत्व के अभ्मुत्थान के त्रफना सृत्रद्श की यऺा सम्बव है समा? केशव शयण ने अऩनी कत्रवता 'खतये औय डय फाॉधने वारे' भं


आदभी के बीतय सभाए हुए अवैध, अन्मामी बम की प्रबुसत्ता को फेनकाफ टकमा है । (प्रगसतशीर इयावती, अॊक 09)Ð

सृजन की दसु नमा भं तेजी से अग्रसय हो यही ऩत्रिका 'जनऩथ' का 'नवम्फय' अॊक 'कत्रवता का सगयना' भरमारभ के सुप्रससर्द् कत्रव के. सक्च्चदानॊदन ऩय केक्न्ित है । सभकारीन भरमारभ कत्रवता भं अमप्ऩ-ऩक्णसकय, ओ.एन.वी. कुरूऩ, फार चन्िन चुल्रीकाड़े के साथ-साथ के. सक्च्चदानन्दन का नाभ सनभ्रांत त्रवद्वास के साथ सरमा जाता है । सभकार की भूल्मवत्ता को भरमारभ बाषा भं जुफान दे ने वारे इन सबी कत्रवमं ने स्भयणीम मािा-कत्रवताएॉ सरखी हं । जैसे अमप्ऩ-ऩक्णसकय की 'अभेरयकी स्केच्स', 'यात व टदन' तथा 'इवाना'। के. ससचदानन्दन की फाकामदा ऩहचान ही मािा-कत्रव के रूऩ भं होती है । 'ऩर रोकभ', ऩर कारभ ् (कई दसु नमा, कई सभम), औय 'भुनू मािा' (तीन मािाएॉ) इनकी मािाओॊ से सम्फक्न्धत योचक काव्म सॊकरन हं ।

'जनऩथ' के इस अॊक की असधक से असधक दस कत्रवताएॉ ही अन्तवषस्तु की भहत्ता का गहया सुख दे ऩाती हं , वयना असधकाॊश कत्रवताएॉ उड़ेती हुई वे शुष्क ऩत्रत्तमाॉ हं , क्जनके ठौय-टठकाने का कुछ अता-ऩता नहीॊ। वे फेअथष ही यह गई है , उनकी बीड़े के फीच एकाध हयी ऩत्ती टदख जाए तो सॊमोग की फात है । सॊतोष अरेसस ने एक अनुवादक का सॊतोषजनक दासमत्व सनबामा है । (जनऩथ, नवम्फय, 09, सम्ऩादक-अनॊत कुभाय ससॊह)Ð 'प्रगसतशीर वसुधा' भं प्रकासशत चन्िकाॊत दे वतारे की कत्रवता 'सुदीऩ के न यहने ऩय'। दे वतारे जी ने जो टक स्वमॊ बी स्व. सुदीऩ फनजी के सभानधभी सजषक व्मत्रक्तत्व हं , सुदीऩ फनजी के शब्द से ऩये साटहत्मेत्तय व्मत्रक्तत्व को काव्म-ऩॊत्रक्तमं भं प्रवाटहत टकमा है । इसी अॊक भं वरयद्ष कत्रव

कुॉवयनायामण की आठ कत्रवताएॉ। इसभं ऩहरी कत्रवता 'घुड़ेसवाय' दृत्रद्शऩूणष है । कहीॊ सुदयू , गहये

अतर भं सटक्रम यहती सूक्ष्भ यचनात्भक अनुबूसतमं को ध्मान औय एकाग्रता के भ्रभ से प्रकासशत कय रे आने की करा कुॉवयनायामण की प्रसतबा का भूर टहस्सा है । इस कत्रवता की तीन ऩॊत्रक्तमाॉ प्रवेश कयना चाहता हूॉ

टकसी ऐसी सदी भं

क्जसकी सटदमं से प्रतीऺा है (ऩृ. सॊख्मा-61)। रम्फी

कत्रवता के चरन भं अऩना नाभ जोड़ेती कत्रवता 'कफूरनाभा', सृजनकताष हं मुवा कत्रव 'सनशाॊत'। मह कत्रवता इस अथष भं अरग है टक मह एकर अथष के त्रवस्ताय की कत्रवता नहीॊ, फक्ल्क असॊख्म खक्ण्डत अथष दे ने वारी कत्रवता है । मह एक व्मत्रक्त के रूऩ भं अऩनी रघुता, स्वाथषऩयता औय चरताऊ सॊकीणषता के सहषष आत्भ-स्वीकाय की कत्रवता है । आत्भसत्म कहने का साहस इसके त्रफखये -सछतयाए हुए भहत्व का एकभाि कायण है । इसी अॊक भं ऻानेन्िऩसत की कत्रवता 'ये त के

द्रीऩ ऩसय आए हं ।' सटदमं-सहस्राक्ब्दमं से काशी से सिकय, असबन्न होकय फहने वारी कभषवीया, धभषवीया अजस्र भभता-प्रवाटहनी 'गॊगा' के प्रसत कत्रव-ऩुि का अनोखा उदग्र अनुयाग यो ऩड़ेा है । गॊगा है तो फनायस है , गॊगा नहीॊ तो फनायस को बी भया हुआ ही सभक्झए। दे क्खए दो ऩॊत्रक्तमाॉ गॊगा बम से बी ससकुड़ेी जाती हं

उय तक ये त औय ऑॊखं भं बया हुआ ऩानी (ऩृ. सॊ. 163)।

उभा शॊकय चौधयी की ऩाॉच कत्रवताएॉ। इसभं उभाशॊकय स्त्री के आधुसनक सचत्त के ताय को ऩहरे


फायीकी से ऩकड़ेते हं , टपय शब्दं की धीभी चोि से उसभं ध्वसन ऩैदा कयते हं । इसीसरए इनकी कत्रवताओॊ का अथष एक-दो वासम भं नहीॊ, ऩूये त्रवन्मास भं खुरता है । (प्रगसतशीर वसुधा, जुराईससतम्फय, 09)Ð 'असबनव भीभाॊसा' के प्रवेशाॊक भं प्रसतत्रद्षत मुवा कत्रव 'फोसधसत्व' की आठ कत्रवताएॉ हं , रगबग आठं कत्रवताएॉ दस-ऩन्िह सभनि के औसत से कयीफ दो घण्िे भं आयाभ से सनफिा दी गई कत्रवताएॉ रगती हं । वैसे फोसधसत्व अऩने साभाक्जक, ऩारयवारयक औय आॊचसरक ऩरयवेश से जुडे हुए अनेक रोक त्रवषमं को भूल्मवान अथं की गरयभा से मादगाय फनाने भं सऺभ हं । 'कुछ फातं' शीषषक कत्रवता भं सुभन ससॊह प्रत्मेक इॊ सान का सच फताने की कोसशश कयती हं । (असबनव भीभाॊसा, प्रवेशाॊक, अगस्त-09)Ð सभकारीन सृजन ऩरयदृश्म भं अऩनी सनयन्तय उऩक्स्थसत फनाए यखने वारी उत्तयाखण्ड की प्रसतसनसध टहन्दी ऩत्रिका 'आधायसशरा'। ऩच्चीस वषष का सपय ऩूया कयने के उऩरक्ष्म भं इसका 'त्रिरोचन-त्रवशेषाॊक' प्रकासशत हुआ है । शुरुआत ही रोकसचत्त के गामक कत्रव की प्रसतसनसध कत्रवता 'चॊऩा कारे-कारे अच्ऺय नहीॊ चीन्हती' से हुई है । वासम साधायण, सीधा-सादा। चम्ऩा का

व्मत्रक्तत्व-सचिण त्रफरकुर सीधी ये खा भं। कत्रवता का प्रवाह सयर ये खीम, ऩयन्तु समा अथष इसका इतना सऩाि है , ऊऩय-ऊऩय तैय यहा है ? नहीॊ। त्रिरोचन की ऩहचान फन चुकी इस कत्रवता भं चम्ऩा के प्रसत कत्रव के बीतय आकॊठ आत्भीमता है , त्रऩतृवत ् स्नेह है औय उसकी सनयऺयता भं

ऩत्रवि भानव-त्रववेक खोज रेने की प्रपुल्र उत्सुकता है । चम्ऩा अऩने फारभ के प्रसत अिू ि नेह क्जस बोरेऩन के साथ कह डारती है , वही इस कत्रवता की दीघाषमु का कायण फन जाता है । (आधायसशरा, त्रिरोचन त्रवशेषाॊक, 09, सम्ऩादक-टदवाकय बट्ि)Ð 'दोआफा' के अॊक भं प्रकासशत अरुण कुभाय का आरेख 'त्रवस्थाऩन'। तथ्म, घिना, सचॊतन औय प्रबाव के उसचत सभश्रण से टकसी जटिर भुद्दे को टकस तयह जानने मोनम फनामा जा सकता है , अरुण जी का मह रेख इसका प्रभाण है । साटहत्मकाय हरययाभ भीणा का रेख 'सनशाने ऩय आटदवासी' भाि जानकायी यखने मोनम सवेऺण फनकय यह गमा है , जफटक वे आटदवाससमं के त्रवस्थाऩन जैसी ऩुयानी, फेइराज, गहयी ऩीड़ेा को अनम्म स्वय दे सकते थे। वही स्वय ऩाठक के भन भं आटदवाससमं के अकथ दख ु को अत्रवस्भयणीम फना दे ता। आगे इसी भुद्दे ऩय मुवा कत्रव

अशोक ससॊह का रेख 'त्रवनाश की ओय'। कत्रव ने त्रफहाय औय झायखण्ड के आटदवासी-फहुर ऺेिं भं ऩक्द्ळभी दे शं की भुनापेफाज कम्ऩसनमं के शोषणजार को 'अधषननन' टकमा है । (दोआफा, असिू फय, 09, सम्ऩादक-जात्रफय हुसैन)Ð

'आधायसशरा' के त्रिरोचन-त्रवशेषाॊक भं हरयऩार त्मागी का सॊस्भयणात्भक रेख ''उस जनऩद के कत्रव को माद कयते हुए।'' हरयऩार जी ने सधी हुई करभ से कहीॊ ज्मादा असतशम अनौऩचारयक

आत्भीमता के साथ 'जनऩद-कत्रव' को माद टकमा है । त्रिरोचन सनयारा नहीॊ हं , भगय उनके सृजन का अॊदाज सनयारा जैसा ही सनयारा है । अऩने ढग की भॊदगाभी गहन अथषधाया ससपष त्रिरोचन ही


सरख सकते थे। याभ कुभाय कृ षक का सॊस्भयण- ''फॊद गरी के आक्खयी भकान भं।'' इस 'शब्दशास्त्री' को कृ षक जी ने अऩूवष स्नेह के साथ माद टकमा है भानो इस भहत ् कत्रव की अनोखी भहत्ता कृ षक जी के रृदम को अऩना अव्वर दीवाना फनाकय बावत्रवबोय नृत्म कयवा यही हो। सुबाष चन्ि कुशवाहा का सॊस्भयण 'त्रिरोचन का घय।' कथाकाय का रेख एक भामने भं हभं सावधान कयता है टक टहन्दी का साटहक्त्मक जगत आज बी अऩने सनभाषताओॊ, सशक्ल्ऩमं औय बत्रवष्म िद्शाओॊ का सरीके से सम्भान कयना नहीॊ जानता। (आधायसशरा, त्रिरोचन त्रवशेषाॊक, 2009)Ð 'ऩरयकथा' के नवम्फय-टदसम्फय 09 अॊक भं आरोचक शॊबुनाथ का आरेख 'एसशमाई सॊस्कृ सतभहानता, अॊतत्रवषयोध औय चुनौसतमाॉ।' आरोचक शॊबुनाथ जी ने इसभं, आधुसनक त्रवद्व भं त्रवसबन्न याद्सं (अभेरयका, चीन, जाऩान, बायत, ऩाटकस्तान, फाॊनरादे श) की सॊस्कृ सतमं के फीच वचषस्व, अन्तत्रवषयोध, िकयाहि औय मुर्द्ोन्भाद को ये खाॊटकत कयने का कुशर श्रभ टकमा है । जाऩान के नोफेर साटहत्मकाय ऩुयस्काय त्रवजेता 'कंजाफुयो ओए' ऩय त्रवदे शी साटहत्म के भभषऻ क्जतेन्ि बाटिमा का आरेख 'टहयोसशभा का अॊधेया...।' 'सनऩ द फडस, शूि टद टकडस,' 'ए ऩसषनर भैिय' औय 'ए हीसरॊग पैसभरी' कंजाफुयो के प्रभुख प्रससर्द् उऩन्मास हं । (ऩरयकथा, नवम्फय-टदसम्फय, 09)Ð नए अॊक : एक यचना 1. 09। 2.

ऩाॊडेऩुय सनवासी सूयदास-एक सशनाख्त (रेख) याभ ऩार गॊगवाय, 'फहु वचन', जुराई-ससतम्फय, सनमसत (कत्रवता) सशवकुिी रार वभाष, अऺयऩवष, उत्सव अॊक,

असिू फय, 09। 3.

'जोगी' (कत्रवता), याकेश 'अॊश', 'शेष', असिू फय-टदसम्फय, 09।

4.

फैक ऩेऩय (कहानी) टदरीऩ कुभाय, 'वाक् ', जून-असिू फय, 09।

5.

सूकय भद्दव (कत्रवता), अरुण कुभाय ससॊह, 'ऩऺधय' अॊक-8, 2009 ई.।

6.

चौखि ऩय (कत्रवता), अशोक सतवायी, 'कृ सत ओय', 54, असिू फय-

टदसम्फय, 09। 7.

हभायी आत्भा ही तो नहीॊ कहीॊ? (रेख), अॊजना वभाष, दस्तावेज, जनवयी-भाचष, 09।

8.

याजसभाज, त्रवद्याऩसत की कत्रवता भं (रेख) प्रबात कुभाय सभश्र, 'आरोचना', जुराई-ससतम्फय,

09। 9.

जगह खोजती जभीन (कत्रवता) कभर जैन, 'गुॊजन', टदसम्फय, 09।

10. 'आतॊक' (कत्रवता) अशोक कुभाय ओझा, 'हॊ स' टदसम्फय, 09। 11. घासपूस का घोड़ेा (कहानी) शशाॊक घोष, 'ऩाखी', टदसम्फय, 09।


12. 'सौबानम तो टपफ्िी-टपफ्िी होता है ' (आरेख) सॊजम कृ ष्ण, साटहती सारयका, जुराईटदसम्फय, 09। 13. तीस सार की रड़ेकी (कहानी) ज्मोसत चावरा, नमा ऻानोदम, टदसम्फय, 09। 14. 'चुप्ऩी' (कत्रवता) प्रऻा ऩाॊडेम, 'वतषभान साटहत्म' नवम्फय, 09। 15. फ्राऩ शो... (कहानी) अरुण सभश्रा, 'ऩयस्ऩय', असिू फय, 09। 16. रोकतॊि के सरए बस्भासुय फना भीटडमा (रेख) अयत्रवॊद शभाष, 'भीटडमा त्रवभशष', जुराईससतम्फय, 09। 

ब्रा ग

सशराओॊ को तयाशती छे सनमाॉ अयत्रवन्द श्रीवास्तव

अयत्रवन्द श्रीवास्तव करा कुिीय, अशेष भागष भधेऩुया-852113 भो.: 09430280862

साटहत्म जगत ने अऩने तीन सशक्त भहायसथमं को खो टदमा। गुणाकय भुरे, प्रबाष जोशी औय कुॊवयऩार ससॊह नहीॊ यहे । इनके भहाप्रमाण ऩय त्रप्रॊि भीटडमा ने टकतने शब्द औय कारभ इनके सरए खचष टकए, मह जग जाटहय है ! मह अरग फात है टक मे तीनं त्रप्रॊि जगत को जीवय बय सम्फत्रर्द्ष त कयते यहे । फहयहार ब्रॉग जगत ने इनके व्मत्रक्तत्व एवॊ कृ सतत्व ऩय जभ कय प्रकाश डारा। चीन भं कम्मुसनस्ि क्राॊसत की साठवीॊ फयसी, भहात्भा गाॊधी अॊतयाषद्सीम टहन्दी त्रवद्वत्रवद्यारम औय टहॊ दस् ु तानी एकेडभी, इराहाफाद की ओय से आमोक्जत याद्सीम ब्रागय सॊगोद्षी के साथ कुछ नए न्मूज ऩोिष रं का शुबायम्ब बी इन्हीॊ अपयातपयी बये भाहौर भं हुआ औय नए

ब्रॉगअॊतयजार ऩय ताजा, ि​िका यचनाकायं ने बी ऩुयजोय ताकत से अऩनी उऩक्स्थसत दजष कयाई। आमाषवतष, शब्दाॊजसर, अरगसा, टदर की फात, डाटकमा आटद नाभ से कई नए ब्रॉगं ने ब्रॉसगॊग जगत भं दस्तक दी।


गुणाकय भुरे औय प्रबाष जोशी ऩय त्रऩॊि भीटडमा भं कुछ पुिकय खफयं आईं तो कुॊवयऩार जी के प्रसत उनकी फेयऊऊखी को ब्रॉगयं ने आड़े​े हाथं सरमा। करकत्ता त्रवद्वत्रवद्यारम के टहन्दी त्रवबाग भं प्रोपेसय तथा भीटडमा औय साटहत्मारोचना के अध्मेमता जगदीद्वय चतुवद े ी ने अऩने ब्रॉग http://jagadishwarchaturvedi blogspot.com भं काभये ड केऩी का जाना अऩूयणीम ऺसत है शीषषक से सरखा टक कुॊवयऩार जी ने आजीवन कभषठ कम्मुसनस्ि की तयह जीवन त्रफतामा। उनके ऩास जीवन भं फहुत साये काभ थे। रेटकन भया ् ाससवादी कम्मुसनस्ि ऩािी का काभ वे ऩूयी तल्रीनता, ईभानदायी औय टदरेयी के साथ कयते थे। वे अरीगढ़े भुक्स्रभ त्रवद्वत्रवद्यारम भं टहन्दी त्रवबाग भं प्रोपेसय थे। अरीगढ़े की वाभऩथी याजनीसत की धुयी थे। वषं तक भाकऩा की अरीगढ़े त्रवद्वत्रवद्यारम ब्राॊच के ससचव बी यहे । एक कम्मुसनस्ि औय साथ भं टहन्द ू होने के फावूद वे अरीगढ़े भुक्स्रभ त्रवद्वत्रवद्यारम की अकादसभक ऩरयषद् भं चुने गए। उनका अरीगढ़े के

अकादसभक जगत भं फेहद सम्भान था। कुॊवयऩार ससॊह को माद कयते हुए। http://jlsindore. blogspot.com ने श्रर्द्ाॊजसर: काभये ड कुॊवयऩार ससॊह शीषषक से सरखा टक जाने-भाने टहन्दी

साटहत्मकाय व अरीगढ़े भुक्स्रभ त्रवद्वत्रवद्यारम के ऩूवष डीन काभये ड कुॊवयऩार ससॊह का रॊफी फीभायी के फाद 72 वषष की आमु भं फीती यात सनधन हो गमा। वे जनवादी रेखक सॊघ के सॊस्थाऩक सदस्मं भं से एक यहे हं तथा वतषभान भं जनवादी रेखक सॊघ की याद्सीम उऩाध्मऺ के रूऩ भं सेवा प्रदान कय यहे थे। हार ही भं आऩके सम्भान भं आमोक्जत कामषक्रभ के दौयान आऩने भयणोऩयाॊत वैऻासनक

अनुसॊधान हे तु दे हदान कयने की इच्छा जाटहय की थी। उनकी अॊसतभ इच्छा को ऩूणष कयते हुए आऩकी दे ह अ.भु.मू. को सौऩ दी गई।

इधय कम्मुसनस्ि चीन ने अऩनी साठवीॊ फयसी ऩय कई 'ब्राईि' तस्वीयं ऩेश की हं । चीन को रेकय जगदीद्वय चतुवद े ी के कई वैचारयक आरेख चचाष भं यहे हं । 'चीन की साठवीॊ फयसी ऩय त्रवशेषऩयपेसि सभाजवाद औय सॊचायक्राॊसत' औय अबी ताजे रेख 'चीन की कम्मुसनस्ि ऩािी भं यखैरं का जरवा' शीषषक ऩोस्ि भं कई वैचारयक सवार ऩाठकं के सभऺ यखे गए हं । इराहाफाद भं आमोक्जत 'टहन्दी सचट्ठाकायी की दसु नमा' ऩय भहात्भा गाॊधी अॊतयाषद्सीम टहन्दी

त्रवद्वत्रवद्यारम, वधाष द्राया की गई याद्सीम सॊगोद्षी को ब्रागयी के इसतहास की फड़ेी घिना भाना ब्रागयं ने।

http://janatantra..com भं त्रवनीत कुभाय की यऩि आई इराहाफाद भं सचट्ठाकायी की

दसु नमा त्रवषम ऩय आमोक्जत दो टदनं की याद्सीम सॊगोद्षी का उर्द्ािन कयते हुए डॉ. नाभवय ससॊह ने ब्रासगॊग को आजादी की अनॊत दसु नमा भानकय ससरेब्रेि कयने वारे ब्रागय सभाज को इस ऩऺ से बी सोचना जरूयी फतामा। डॉ. नाभवय ससॊह की ही फात को आगे फढ़ेाते हुए भहात्भा

गाॊधी अन्तयाषद्सीम टहन्दी त्रवद्वत्रवद्यारम के कुरऩसत त्रवबूसत नायामण याम ने कहा टक हभं ऩता है टक जफ स्िे ि इस तयह के टकसी बी भाभरे भं दखर कयती है तो उसका यवैमा टकस तयह का होता है ? ऐसे भसरे भं ब्मूयोक्रेसी सनमॊिण के नाभ ऩय टकस तयह का व्मवहाय कयती है , मे सफ


हभं सभझना होगा। उन्हंने इन्ियनेि के जरयए आऩाय सूचना प्रसारयत टकए जाने के सवार ऩय कहा टक जो बी इन्पॉभेशन आ यहे हं , उनभं नारेज एरीभंि टकतना है , इस ससये से बी सोचने की जरूयत है ? शुरुआत भं क्जस तयह िे रीत्रवजन के आने से रगा टक अखफाय औय ऩत्रिकाएॉ अऩना भहत्व खो दं गी, वैसी ही चचाष ब्राग के फाये भं की जा यही है रेटकन ऐसा नहीॊ है । http://batangad.blogspot.com ने याद्सीम ब्रागय सगोद्षी के ऩहरे टदन को फेहद शानदाय फतामा। तभाभ तयह की गहभा-गहभी के फीच http://www.sahityasrijan blogsport. com ऩय कात्मामनी की ऩाॉच कत्रवताएॉ आईं, ऐसा टकमा जाए टक... शीषषक कत्रवता कुछ इस प्रकाय है ऐसा टक जाए टक एक साक्जश यची जाए फारूदी सुयॊगे त्रफछाकय उड़ेा दी जाए चुप्ऩी की दसु नमा त्रवनाश के फाद सृजन औय कुछ खोने के ऩद्ळात ् ऩाने की, उम्भीदं के अॊकुय यचनात्भक धयातर ऩय बी टदखे, 'कुछ औयं की कुछ अऩनी फातं' नाभ से अभये न्ि नाथ त्रिऩाठी, सारयका सससेना

की अनकही फातं, नोएडा के त्रवजम ऩाण्डे म की फेढफ, टदल्री के फी.एर. गौय का फोरता सन्नािा, सोनबि के आवेश का दस्तावेज, भेयठ के शाटहद सभजाष का जज्वात, रखनऊ के आशीष वसशद्ष का ऩोस्ि फॉसस 7, प्रबात यॊ जन का जानकी ऩुर नाभ से नए-नए ब्रॉगं का आगाज हुआ। वसनता, जो त्रवरसाऩुय भं नवोदम त्रवद्यारम की छािा है ने अऩने ब्रॉग

http://vanitakikalam.blogspot. com ऩय ऩहरे ऩोस्ि भं 'आतॊकवाद' शीषषक से कत्रवता सरखी तो भुम्फई के कैप्िन भारी ने '2611 शभष टदवस की एक िीस' से अऩने ब्रॉग ऩय ऩहरा ऩोस्ि

बेजा, यामऩुय के वरुण कुभाय सखाजी ने http://sakhajee.blogspot.com ऩय 'ससमासत की फद्बद ू ाय

सच्चाई' शीषषक ऩोस्ि भं फाफयी क्जन्न के फाहय आने ऩय ससमासी चार ऩय आभजन की सचन्ता को उकेया। ऩमाषवयण के प्रसत मुवाओॊ की सचन्ता http://dhruvsinghrathore22.blogspot. का Stopp Global Warming नाभ से आए ब्रॉग भं टदखी जहाॉ शीषषक के साथ ही सरखा है भेया नाभ धु ्यव है , भुझे इस फात की टपक्र है टक नरोफर वासभंग हभायी धयती को नुकसान ऩहुॉचा यही है इससरए हभं सयकाय औय

ऩूयी दसु नमाॉ से कहना है टक उन्हं पैसट्रीज औय प्रदष ू ण ऩय योक रगानी चाटहए अन्मथा उनके

कुकभं ऩरयणाभ हभं बुगतने ऩड़ें गे। कृ ष्ण कुभाय सभश्र का कृ त्रष, वन औय ऩमाषवयण ऩय केक्न्ित http://manhanvillage.wordpress.com बी ध्मान आकत्रषषत कयता है । अबी त्रफरकुर ि​िका ब्रॉग शब्द-सनसध http://shabadnidhi.blogsot.com ने अऩने ऩहरे ऩोस्ि 'कहाॉ खो गमा रयश्तं की सभठास दे ने वारा नभक' शीषषक से एक बावनात्भक शुरुआत की है । जोधऩुय


की शोबना चौधयी ने अऩने ब्रॉग 'कुछ फीते हुए ऩर' भं- भं फेगुनाह हूॉ, शीषषक से तीन ऩोस्ि बेजे, वेटदका ने ब्रॉग 'वेटदका' ऩय अऩनी असबव्मत्रक्त का भाध्मभ कत्रवता को फनामा है । नए सृजन की आहि नई टदल्री की ऋचा के ब्रॉग नए कदभ-नए स्वय http://www.nayekadamnayeswar.bnogspot. com भं बी सभरती है । महाॉ एक साथ कई ताजे यचनाकायं से रूफरू हुआ जा सकता है । हार भं ''भेयी नमायह कहासनमाॉ'' नाभ से एक फार-कहानी सॊग्रह फसॊती प्रकाशन, नई टदल्री से प्रकासशत हुआ है , क्जसका त्रवभोचन '18वं नई टदल्री त्रवद्व ऩुस्तक भेरे' भं वरयद्ष कथाकाय टहभाॊशु जोशी एवॊ वरयद्ष कत्रव-गजरकाय शेयजॊग गगष ने टकमा

था। इस ऩुस्तक से इनकी दो फार कहासनमाॉ ब्रॉक भं प्रस्तुत की गई है । साथ ही अॊजना फख्शी की ऩाॉच कत्रवताएॉ हभाया ध्मान खीॊचती हं , दे खं कुछ ऩॊत्रक्तमाॉ फेटिमाॉ रयश्तं-सी ऩाक होती हं फुनती हं एक शार

अऩने सॊफॊधं के धागे से

कि जाना होता है जड़े से अऩनी

फेटिमाॉ धान-सी होती हं

टपय योऩ टदमा जाता है क्जन्हं

जो

ऩक जाने ऩय क्जन्हं

नई जभीन भं।

है दयाफाद की यीसतका का ब्रॉग http://unxploredimensions.blogspot.com कत्रवताओॊ से बया है । बोऩार के सुधीय शभाष ने 'डाटकमा' http://dankiya. blogspot.com सारयका सससेना ने 'शब्दाॊजसर' http://shabdokiunjali. blogspot.com तथा याजस्थान की भनीषा

कुरश्रेद्षा http://boloji-manisha.

blogspot.com ने बी अऩनी असबव्मत्रक्त का भाध्मभ कत्रवता को फनामा है । दे खं भनीषा की कत्रवता की कुछ वानगी-वह नहीॊ जानती उसका होना इतना दष्ु कय होगा वह नहीॊ जानती वह आदभी कफ उसके शयीय भं जा सछऩा

जो सनयन्तय उसे अऩभासनत व ऩयास्त कय यहा है ...

कम्प्मूिय के की-फोडष ऩय मुवा यचनाकायं की अॊगुसरमाॉ सथयक यही हं , वे छे सनमाॉ फन अनगढ़े सशराओॊ को आकाय दे यहे हं , वे याजनीसत सटहत साटहत्म की तभाभ त्रवधाओॊ ऩय सरख यहे हं । मुवा ऩिकाय आकाश श्रीवास्तव का नमा न्मूज ऩोिष र 'थडष आई वल्डष न्मूज' http://www.thirdeyeworldnews.co.in अबी आमा, खोजी खफयं को ऩूये ऩैकेज के साथ ऩेश कयने वारी इस वेफसाइि के अरावा सुनीर कुभाय का 'आिष न्मूज वीकरी' http://artnewsweekly.com बी करा जगत की तभाभ खफयं को सभेिने के प्रमास भं जुिा है । मे सबी प्रमास दशाषते हं टक आने वारा कर मुवाओॊ का है । चरते-चरते मुवा हास्म कत्रव अरफेरा खिी http://hindihasyaka visammelan.blogspot.com के सुत्रवचाय शयाफ तो अच्छी थी, भेया ही रीवय कभजोय था जो उसे झेर न सका....। 


प्रकाशन के ऩाॉचवे वषष भं प्रवेश कयने के साथ मुवा सृजनशीरता ऩय कंटित 'ऩरयकथा' का त्रवसशद्श सॊमोजन मुवा मािा

(नौ अॊकं की शृॊखरा) मुवा कत्रवता (क्रभ सॊ. 1) मुवा कहानी (क्रभ सॊ. 2, 3 4) मुवा आरोचना (क्रभ सॊ. 5) मुवा ससनेभा (क्रभ सॊ. 6) मुवा यॊ गकभष (क्रभ सॊ. 7) मुवा करा (क्रभ सॊ. 8) मुवा जीवन (क्रभ सॊ. 9) l

त्रवसशद्श अॊकं के क्रभ भं फीच-फीच भं साभान्म अॊक बी प्रकासशत हंगे।

l

त्रवसशद्श सॊमोजन से सॊफॊसधत यचनाएॉ अॊक के आयॊ ब भं प्रस्तुत हंगी।

l

उऩमुक्त ष अॊकं की तैमायी चर यही है ।

जैसे-जैसे अॊक तैमाय हंगे, उनके प्रकाशन की घोषणा होती जामेगी। l

टकसी सयकायी त्रवबाग, अकादभी, सॊस्था, कम्ऩनी मा व्मत्रक्त को मह अवसय सभरेगा टक वे

चाहं तो टकसी एक मा एक से ज्मादा अॊकं की प्रस्तुसत कयं । इस क्स्थसत भं अॊक भं सवाषसधक उऩमुक्त स्थान ऩय इस आशम का उल्रेख सभात्रवद्श यहे गा। मुवा यचनाकायं से अनुयोध है टक वे उऩमुक्त ष अॊकं के सरए यचनाएॉ

आरेख बेजं।


अगरा अॊक भाचष-अप्रैर 2010 कथामािा डू फ (उटड़ेमा कहानी) : कुभाय हसन

अनु. : अरूण होता

कारू की नानी (फाॊनरा कहानी) :

यभानाथ याम अनु. : टदरीऩ शभाष अऻात

रेख नई सदी भं सोच : डॉ. ब्रजकुभाय ऩाॊडेम सजषकं का प्रेऺागृह क्जतेन्ि बाटिमा कत्रवताएॉ त्रवजंि नवरेखन : टिप्ऩक्णमाॉ सॊस्भयण फाफा का गुस्सा : रूऩ ससॊह चॊदेर एक परांग का सपय भोये भन बावे काशी की गरी : आनॊद वधषन कहासनमाॉ ऩुन्नी ससॊह, भहे न्ि ससॊह सयना, अवधेश कुभाय श्रीवास्तव जम प्रकाश, त्रवद्या ससॊह, शुसरा चौधयी, असभताब शॊकय यामचौधयी, सैमद भोहम्भद अशयप, ओभ प्रकाश कृ त्माॊश कत्रवताएॉ त्रवभर कुभाय, शहॊ शाह आरभ, क्जतंि कुभाय, शॊकयानॊद भहादे व िोद्यो, भनीषा झा उदष ू जगत भुशयं प आरभ जौकी ससनेभा कुछ नोट्स

ताना-फाना बयत प्रसाद ब्रॉग अयत्रवॊद श्रीवास्तव  




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