ज़ेहन काव्य संग्रह
अयन शर्ाा
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ज़ेहन काव्य संग्रह
अयन शर्ाा
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Zehan by Ayan Sharma ISBN: 9798629429739 विशेष रूप से अमेज़न पर प्रकाशशत। अयन शमाा द्िारा शिखित काव्य संकिन ज़ेहन कॉपीराइट © अयन शमाा 2020 सिााधिकार सुरक्षित
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सूची
आमुि.............................................................................. 8 ज़हनेयान ........................................................................ 11 अब "ज़ेहन" है ................................................................. 12 उन्हें अच्छा नही िगता ................................................... 13 सच्चा क्या है .................................................................. 14 बस प्रीत शििता हूूँ ......................................................... 15 तम् ु ही "ज़ेहन" .................................................................. 16
"ज़ेहन" मिुशािा ............................................................. 17 शििता हूूँ ....................................................................... 18 आ जाओ ........................................................................ 19 इक िम्हा शिख़ दूँ ू .......................................................... 20 उन्हें अच्छा नही िगता ................................................... 21 कैसे नींद आएगी ............................................................. 22 क्या बाकी है ................................................................... 23 ज़हे -नसीब ....................................................................... 24 जाने कब ........................................................................ 25
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तुम ही हो ...................................................................... 26 पछ ू ो ............................................................................... 27 बाकी है .......................................................................... 28 हकदार ........................................................................... 29 इंसान हम भी तो हैं ........................................................ 30 ठहरो .............................................................................. 31 क्यों हूूँ............................................................................ 32 क्या शििूूँ ! ..................................................................... 33
"ज़ेहन" बस…।................................................................. 34 कमी सी है ..................................................................... 35
‘था’ िो........................................................................... 36 काफी है .......................................................................... 37 काबबि ........................................................................... 38 गर पास होती ................................................................. 39 छोड़ ददया है ................................................................... 40 प्यार बाकी है .................................................................. 41 मुबारक़ ........................................................................... 42 मुहब्बत या सज़ा ............................................................. 43
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रं गरे ज़ ............................................................................ 44 शायर ............................................................................. 45 हकीक़त .......................................................................... 46 बाररश ............................................................................ 47 तेरे शब्द ......................................................................... 48 नदी................................................................................ 49 कौन ............................................................................... 50 मज़हब ........................................................................... 51 बेमज़हब ......................................................................... 52 महाकाि ......................................................................... 53 दहसाब ............................................................................ 54 तू शििे या ना शििे ....................................................... 55
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आमुि मेरी सोच का पन्नो पर उभर पाना मेरे शिए सौभाग्य की बात है । मेरी पस् ु तक "ज़ेहन" को आपके हाथ में सौपते हुए मैं बेहद उत्सक ु ता और हषा से यह बताना चाहूंगा की इस पस् ु तक में
बबिरे हर एक िफ़्ज़, हर एक पंक्क्तयाूँ मेरी सोच, मेरे रं ग तथा मेरी शभन्न कल्पनाओं के प्रततबबम्ब हैं। अपनी कल्पना को पन्नो पर शििते िक़्त ये ख़्याि में भी नही था की मैं इन विकषाक मोततयों को वपरोने योग्य बन पाऊंगा। मेरी अभ्यासी आभूषण को स्थान तथा स्नेह दे ने हे तु आप सभी का आभार।
आपका,
अयन शमाा प्रयागराज, भारत
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ज़हनेयान
सोचा है अक्सर प्यार का पैगाम शििें। शिख़ दें हमारा नाम या ज़हनेयान शििें। कोई पढ़ता नहीं है प्यार, ग़म और िुशशयों को। ख्िादहश उनकी है कब, िशु शयों में पण ू वा िराम शििें। ***
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अब "ज़ेहन" है
मेरी ककस्मत ने है , मुझको निाज़ा दो िकीरों से जो गाढ़ी ददिे पररिार, उभरती अब "ज़ेहन" है ।
शशिर पे िश ु नम ु ा बादि मझ ु े अन्िा सा कर दे ते वपता ने थामा पहिा हाथ, पकड़े अब "ज़ेहन" है ।
अनधगनत रात काटी है मेरी आूँिें बबना झपके माूँ की गोद थी हर बार, िोरी अब "ज़ेहन" है ।
िुटा दूँ ू प्यार से सबकुछ, काश इतना बनू सिम बड़ी मुझसे बहन मेरी, छोटी अब "ज़ेहन" है ।
बरकत पर मेरी चाहत, बड़ी फ़रमाइशें मेरी िो मेरा कर गए सबकुछ, बाकी अब "ज़ेहन" है ।
***
12
उन्हें अच्छा नही िगता उनका प्यार मेरी क्ज़ंदगी, हैं इस बात से िाककफ़ जो कर दे ता कभी इज़हार, उन्हें अच्छा नही िगता।
पकड़कर हाथ हमने साथ, िांघी है कई सरहद मगर मांगू कभी िो हाथ, उन्हें अच्छा नही िगता।
िो करते हैं दआ ु ,मेरे सपने साकार होने की िो िद ु मेरा सपना, उन्हें अच्छा नही िगता।
कहते फ़का ककसे पड़ता, मेरे हूँसने या रोने से दो िक्त ना बोिूं, उन्हें अच्छा नही िगता।
कािी रात, आिी नींद, क्ज़ंदा ख़ाब है मेरे जो बीती रात ना सोऊूँ, उन्हें अच्छा नही िगता।
***
13
सच्चा क्या है मेरी सोच तेरी सच्चाई में अच्छा क्या है ?
"ज़ेहन" मेरे प्यार तेरी दोस्ती में सच्चा क्या है ?
जो होना है यहाूँ उसने तो पहिे से ही शिख़ डािा , कफर मेरी इबादत तेरी प्राथाना में अब रिा क्या है ?
"ज़ेहन" मेरे प्यार तेरी दोस्ती में सच्चा क्या है ?
शमिे हार हमे या जीत मगर बस ये समझ आये हमारी जात तेरी विश्िास में कच्चा क्या है ?
"ज़ेहन" मेरे प्यार तेरी दोस्ती में सच्चा क्या है ?
हाूँ जब भी अंत हो दोनों किेिर साथ रि दे ना , दे िें तो हमारी कब्र तेरी राख़ में पक्का क्या है ?
"ज़ेहन" मेरे प्यार तेरी दोस्ती में सच्चा क्या है ? ***
14
बस प्रीत शििता हूूँ ना ककसी गीत की आशा। महज़ बस प्रीत शििता हूूँ।।
मेरी कुछ पंक्क्तयों से जो "ज़ेहन" तम ु रूठ जाते हो। क्या गिती है मेरी अक्सर समाजी रीत शििता हूूँ।।
महज़ तुम स्िर नहीं सरगम नहीं संगीत हो मेरे। सन ु हरी शाम में िद ु पर हर गज़ ु री पीर शििता हूूँ।।
आंिे मूंद कर तुमको यूूँ बाहों में जकड़ िेना। इसी ररश्ते को पन्नो में मैं अक्सर मीत शििता हूूँ।।
हो क्जतना प्राप्त, है पयााप्त तुम्हारा अक्स जीिन में। हूूँ थोड़ा स्िाथी इसको भी अपनी जीत शििता हूूँ।।
***
15
तुम्ही "ज़ेहन" दतु नया से थे अनजान तबसे इश्क़ कर बैठे। कभी जब होश में आये "ज़ेहन" संसार बन गए। जिता ददन, िो ढिती शाम, हर जगती रात बन गए। तम् ु ही सजदा, तम् ु ही मंददर, तम् ु ही अरदास बन गए।
***
16
"ज़ेहन" मिुशािा उनका प्यार हािा सा
ख़ुद प्यािा बन गयी। आज पीने िािा साकी
"ज़ेहन" मिश ु ािा बन गयी।।
शििा है नाम उनका इस शहर की, हर दीिारों पे नहीं साकी शमिा अबतक जो भर दे , प्यािा हािे से कोई ग़म में , कोई शौक़ में, प्यािे को पकड़ा है दो बूँद ू महज़ जज़ार किम का सहारा बन गयी। आज पीने िािा साकी, "ज़ेहन" मिुशािा बन गयी।।
कभी एक िक्त था प्यािा पकड़ना, शौक़ िगता था मगर होठों ना छू जाए हािा, ख़ौफ िगता था यहाूँ कुछ बात थी जब भी तसव्िुर, रूह तक पहुूँची नशे में नाम मोती सा शििा, अब मािा बन गयी। आज पीने िािा साकी, "ज़ेहन" मिुशािा बन गयी।
*** 17
शििता हूूँ "ज़ेहन" जो शमिती इश्क़ से फ़ुसात, अिग जज़्बात शििता हूूँ। हर आब-ए-तल्ख़ की हाित, अजब अगलात शििता हूूँ।।
***
18
आ जाओ जो मेरे प्यार मेरी हर िुशी हर बेरुख़ी में हो। ज़ेहन" ख्िादहश मेरी मुझे थाम िो, क्ज़न्दगी में आ जाओ। मेरे हर रोज़ के िाततर, "ज़ेहन" इस रोज़ आ जाओ।
***
19
इक िम्हा शिख़ दूँ ू हर तमन्ना से परे एक तमन्ना शिख़ दूँ ।ू आ तेरे नाम से क्ज़न्दगी पे इक िम्हा शिख़ दूँ ।ू गज़ब तो ये कक हर बात से यूूँ िाककफ़ हूूँ। क्जसे रोकर है जिाना िो गशु िस्तां शिख़ दूँ ।ू ।
"ज़ेहन" तेरा जो ज़हन मेरे, ज़हन में है । उसे बेिक़्त बेपनाह एक पनाह दे दं ।ू मझ ु े क्या डर है ककसी बात का मेरे ज़ातनब। जहन्नम ु न हो नसीब िो जहनम ु ां शिख़ दूँ ।ू ।
ए "ज़ेहन" तुझपे क्ज़न्दगी का कुछ िम्हा शिख़ दूँ ?ू
***
20
उन्हें अच्छा नही िगता उनका प्यार मेरी क्ज़ंदगी, हैं इस बात से िाककफ़ जो कर दे ता कभी इज़हार, उन्हें अच्छा नही िगता।
पकड़कर हाथ हमने साथ, िांघी है कई सरहद मगर मांगू कभी िो हाथ, उन्हें अच्छा नही िगता।
िो करते हैं दआ ु ,मेरे सपने साकार होने की िो िद ु मेरा सपना, उन्हें अच्छा नही िगता।
कहते फ़का ककसे पड़ता, मेरे हूँसने या रोने से दो िक्त ना बोिूं, उन्हें अच्छा नही िगता।
कािी रात, आिी नींद, क्ज़ंदा ख़ाब है मेरे जो बीती रात ना सोऊूँ, उन्हें अच्छा नही िगता।
***
21
कैसे नींद आएगी िो कहते कमा करते जा क्ज़न्दगी चि कर आएगी।
"ज़ेहन" अब तू बता दे आज़ कैसे नींद आएगी? कभी मेरे हाथ थामे कोई सीने से िगा िेता। कहे , मुहब्बत नही कफर क्यों है उसका चाूँद सा सजदा। मगर मािम ू है मझ ु को तू इक ददन दरू जाएगी।
"ज़ेहन" अब तू बता दे आज़ कैसे नींद आएगी? जो पन्नो पे शििा है नाम तेरा, मुझसे था संभि। थोड़ी काबबशियत होती तो उसमे रं ग भर दे ता। ख़ुदा कि रात बोिा सब्र तेरे काम आएगी।
"ज़ेहन" अब तू बता दे आज़ कैसे नींद आएगी? "ज़ेहन" तू ही बता, ये क्यू है मेरी रोज़ की उल्फ़त। िो मानो सो गया जो आज़ कि कफर िौट आएगी। ये मेरी चादरें , सपनें ये पन्ने कफर जिाएंगी।
"ज़ेहन" इस रोज़ कोई केहदे , कि को कैसे नींद आएगी? 22
***
क्या बाकी है
तेरे हर शब्द समंदर से, दो आूँिें ज़बानी है । है मेरी क्ज़न्दगी तझ ु में, मेरा मुझमें क्या बाकी है !
***
23
ज़हे -नसीब ख़ुदा शौक़ीन है "ज़ेहन" की ज़हे -नसीब नज़्मों का। मौसम शांत हो अक्सर कर िो बूंदे धगराया है ।।
अपनी िामोशशयों को यंू जो पन्नो पर उतारा है । बनेंगे अश्क़ के कारण या कुबात भी गिारा है । बख़ूबी जानता हर इक अदद कमज़ोररयाूँ मेरी। आूँिे बंद थी, सोया था, सपनों से जगाया है ।।
बहुत शौक़ीन है अल्िाह बख़ूबी ख़ुद शििाया है ।।
***
24
जाने कब मन जो सागर से गहरे अंिेरों में था। उन गहराइयों को शशिर कर गयी। मेरे ददि मे न जाने कब घर कर गयी।
"ज़ेहन" क्यू ज़ेहन में ज़ेहन कर गयी।। ***
25
तुम ही हो उनकी रात जो मख़मि सी शसििट पर गुज़रती है । मेरी तो छत भी तुम, बहती हिा, तुम ही शसतारा हो।
"ज़ेहन" तुम ही हो उगता चाूँद, हर इक नज़ारा हो।।
िो माना डूब जाते है िो अक्सर एक दज ू े में। तुम्हारी आंि उदा ,ू मेरी नज़्मों का सहारा हो।
"ज़ेहन" तुम ही हो ढिती शाम, सागर का ककनारा हो।
दो तरफा प्यार है क्जनको, महज़ इक बार जीतेगा। एक मेरा प्यार है जो रोज़ जीता, कफर भी हारा है ।
"ज़ेहन" इस प्यार में रो रोकर हं सना भी गिारा है ।। ***
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पूछो अगर अस्काम मेरे थे तो असीर भी मैं था। जो गर हो िक़्त थोड़ा ए-ज़ेहन अस्बाब भी पूछो।
थे आिम में बहे आूँसू कोई अस्हाब भी पछ ू ो।।
मुझसे अक्श्कया इन्सान के अश्फ़ाक़ बन जाओ। ज़ेहन बेबाक हो जाऊं मेरे अल्फाज़ बन जाओ।
***
27
बाकी है
बेपरिादहयाूँ मेरी, उसी परिररश का दहस्सा हैं, जहाूँ मुिाकात में बबछड़ने का, ररिाज़ बाकी है । ये बूंदे हैं बस जो, कहकाशीं रातों में धगर आयीं, अभी शमिना मेरा, घि ु ना तेरा, बरसात बाकी है ।।
***
28
हकदार
जब पढूं तेरा नाम, ददिे इक नाम अपना भी। दे सकूूँ हर प्यार, हूूँ हकदार उतना ही।। दे िा है तुझको िादहशों में, रं ग बुनते भी। हम करें रण पार, हर मैदान चुनते ही।। ***
29
इंसान हम भी तो हैं भिे हों थामे तेरा हाथ, शशकारी हम भी तो हैं। जो घुि जाते संग हर शाम, रात हम भी तो हैं।
तुम्हारा गम, तुम्हारी दोस्ती, हाूँ माना प्यार भी सच्चा मगर कुछ अनकही बातों के शशकार हम भी तो हैं। हो ककतने भी सहज अरमान, इंसान हम भी तो हैं।
***
30
ठहरो इस चिते िक़्त की रफ्तार में दो िक़्त तो ठहरो। समाजी तुच्छ िारा में अडडग एक बार तो ठहरो। मैं शििता था, हूूँ शििता और रहूंगा यूूँ ही कुछ पंक्क्त। मगर हर किम हो साकार "ज़ेहन" क्जस रोज़ तम ु ठहरो!
***
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क्यों हूूँ
ओढ़कर छांि रहबर का भी, आदहस्ता क्यों हूूँ? अबस मैं अजनबी इस दौड़ का, दहस्सा क्यों हूूँ? तबस्सुम सी नज़र से, नज़्में अक्सर मुझसे पूछे है , हरएक अन्जाम में मैं, हार का ककस्सा क्यों हूूँ?
***
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क्या शििूूँ !
मैं शििूूँ कुछ अनकहा या िो शििूूँ, जो कहा नही? तू िो रं ग है , जो रं गा नही कुछ श्िेत है , पर हिा नही। तू कुछ अजनबी, कुछ महज़बीं इक अनछुआ एहसास है । या ये कहूूँ, तू कुछ नहीं कुछ तुझमे है , जो ख़ास है ।
***
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"ज़ेहन" बस…। नज़र से दरू इतना
ख़ुद को मख़मि में िपेटे हो।
"ज़ेहन" बस याद आयी है तेरी रोया नहीं हूूँ मैं।।
मैं रिता हूूँ कदम कुछ बेतुकी सी बेरुख़ी के बीच। है रस्ते की समझ कच्ची थोड़ी िोया नहीं हूूँ मैं।।
मुझे अब नींद आती है तेरी शैतातनयों के संग। है मेरी िड़कनें कुछ तेज़ अभी सोया नहीं हूूँ मैं।।
"ज़ेहन" बस...। ***
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कमी सी है
मेरी बातों में कुछ, अल्फ़ाज़ की कमी सी है , तेरी आंिों में कुछ, एहसास की कमी सी है । ऐ मेरी रूह, मेरे अख़्स को आज़ाद रहने दे , तेरे ददि में भी कुछ, जज़्बात की कमी सी है ।।
मेरी िोरी में तेरे रात की, कमी सी है , जिती शाख़ में, कुछ राख़ की, कमी सी है । सुनाता हूूँ कई सपने, सुबह में आईने को अब, उन्ही हर आज क्जनमे, साथ की कमी सी है ।।
***
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‘था’ िो
जो उससे शमन्नतें करता, दआ करता सिामत की। ु सहज़ से इस कदर गुजरा, कभी दज ू ा था िो।।
मैं िेकर राह अपनी ही चिा, मंक्ज़ि अिग पहुंचा। जो मेरे साथ न था अब, कभी हुदा था िो।।
अशेमज़हब, अशेशादहद, मुहब्बतें आक़ा है मुझसे रूठ जा बैठा, कभी ख़ुदा था िो।।
***
36
काफी है
महकफ़ि तेरी, शशरक़त मेरी, बेशक़ बड़ी ज़हमत। तेरे ही नाम में चचाा मेरा, गुमनाम काफी है ।। मेरी हैं गदा सी गुस्ताखियां, और ग़ैरती से ग़म। मगर हों ददि में तेरी िड़कनें , एहसास काफी है ।।
***
37
काबबि
चि अचि, समति में छुपकर, छि के काबबि मैं कहाूँ? तिब सबको हुस्न की है , इश्क़ अब हाशसि कहाूँ? ***
38
गर पास होती
आंिों से पढ़ िी जाए, ऐसी बात होती। जुगनू भी न सुन पाए, िो आिाज़ होती। ना होता दस ू रा, तेरे मेरे िामोशशयों के बीच ना झठ ू ा मस् ु कुरा पाते, "ज़ेहन" गर पास होती।
ककसी तककये पे ना ही, आूँसुिों कक छाप होती। अभी बस चाूँद है , तब रोशनी भी साथ होती। बाहें बन जाती पदाा, मैं तुम्हे मेहफ़ूज़ कर िेता और शििता रात तेरे नाम, "ज़ेहन" गर पास होती।
िड़कन चिे पर शांत, ऐसी रात होती। तेरी बातों में सच्चाई, मेरे में राज़ होती। उिझ कर एकदज ू े में, कोई कहातनयां पढ़ते ना होता ददन न कोई रात, ज़ेहन गर पास होती।
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39
छोड़ ददया है
बसर की किम नहीं छोड़ी शििना छोड़ ददया है । असर करने िगे एहसास जपना छोड़ ददया है ।
बबना काजि के भी, आंिे तेरी बेहद िूबसूरत है । मगर आंिों के ज़ररये ददि में रहना छोड़ ददया है ।
"ज़ेहन" कुछ रात से हर रात जगना छोड़ ददया है । अपनी मक्स्जद में अब मक्न्दर को रिना छोड़ ददया है ।
***
40
प्यार बाकी है
पढ़े हैं चादरों की कुछ बुनािट में कई अिर, कमी तो छत की है , उन बादिों ने कब ककया पदाा।।
सन ु ी हर इक िुनें हर गीत की, अब बोि बाकी है , विफि संगीत है , जो दरू रयों तक दम नहीं भरती।।
रसोई में पड़े सौगात पर, उपिास क्यों करना? गित है माूँ, िो बासी रोदटयाूँ हमतक नहीं पहुूँची।।
समय कुछ प्यार में रुसिा ककया, अभी प्यार बाकी है , िक्त कब िक्त है बेिक़्त, ये ख़ुद िक्त िाककफ़ है ।। ***
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मुबारक़
समूचे भूिरा को, घरघटा नें घेर रिा है , महज़ सपना तेरा सपना, तुझे सपना मुबारक़। तेरी आंिें जो चाहे , जिते नभ का अंश भी दे िे, महज़ चंदा ददिा शीति, तझ ु े चंदा मब ु ारक़।।
***
42
मुहब्बत या सज़ा
फ़ररश्ते की चाहत, और ख़ामोश आूँसू, मुहब्बत हमारी, सज़ा तो नहीं है । यूूँ सपनों में शमिना, या शमिने के सपने, ख़द ु ा की ये ज़ीनत, ख़द ु ा तो नहीं है ?
***
43
रं गरे ज़
मेरी परछाइयों में भी, परक्स्तश भेद होता।
"ज़ेहन" जो क्ज़न्दगी शििता मेरी, रं गरे ज़ होता।। िो सारे रं ग जो, रं गों की दतु नया से परे हैं। मेरी हर बरकती बातों में, उनका योग होता।।
काश! जो क्ज़न्दगी शििता मेरी, रं गरे ज़ होता।
***
44
शायर मुहब्बत का ख़्िाब था, ख़ुद ख़्िाब बन गयी। शिख़ डािी तुझपे क्ज़न्दगी, अल्फाज़ बन गयी। ना मेरा शौक है , जो बैठा बस नज़्में शििा करूूँ। अपना ना सही पर शक्र ु है , शायर तो कह गयी।
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45
हकीक़त
गददा श में कुछ, गुमनाम सी, गस् ु ताख़ हकीक़त, अनकहे , अल्फ़ाज़ के, अस्बाब हकीक़त। ज़मी पे तू, है आसमां तेरे आईने में , ज़फ़र शमिती नहीं फ़ररयाद से, बे-दाद हकीक़त।।
***
46
बाररश िो प्रमाण दे ती है , यूूँ अपने पास होने का। बूूँदे कई धगरी, जब अश्क़ शसरहाने में आई है । ये बाररश है साहब, इतनी धगरी कफर मुस्कुराई है ।
न पररिार था ना तुम "ज़ेहन", कफर भी मैं सोया हूूँ। बन के अपना कोई, पीठ मेरी थपथपाई है । ये बाररश है साहब, सपनों में एहसास िाई है ।
संग अक्सर ख़ुद को, मैने तुझको सौंपा है । रिा जब कदम दिदि में , मझ ु को िींच िाई है । ये बाररश है साहब, नूरे महकफ़ि की नुमाइश है ।
***
47
तेरे शब्द
थी ज़बाूँ कटी, तनष्पि है ये। थी क़िम बबकी, प्रततपि है ये। पर, शब्द तेरे क्या हिक़ में थे? अिर क्या कहीं फ़िक़ में थे?
कोई ज़ेहन ज़ुबाूँ में, ज़ब्त नहीं, ये ख़ाब हैं तेरे, पत्र नही। जो आंिों से, सब शिख़ डािे, स्तम्भ है तू, स्तब्ि नहीं।।
***
48
नदी
आराइश में बहा जो उम्र भर मैं, िो नदी हूूँ। उदगम विषविनाशक कंठ क्जसका, िो नदी हूूँ। जो धगर कर नभशशिा से, भूिरा पर छाप छोड़े, शिपट जाता जो बन के माूँ का आूँचि, िो नदी हूूँ।।
आदहस्ता चाूँद का इज़हार करता, िो नदी हूूँ। आशिंगन राम का अयन से करता, िो नदी हूूँ। आब-ए-आईना में आसमाूँ सा, तेज कर िारण, आशफ़् ु ता शसंिु का विश्राम करता, िो नदी हूूँ।।
***
49
कौन
जहाूँ मुि जप रहे हैं राम, रािण कौन बनता है ? जहाूँ हर एक नमाज़ी पाक़, दानि कौन बनता है ? यहाूँ हर राह पर हर बेदटयाूँ, है िातनयत में हैं। फांसी के तख्ते पर, प्रतीिा कौन शििता है ?
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50
मज़हब जो तेरा प्यार है , िो भी उस अयान जैसा है ? जो गर है राम िो, कफर उसपे ये इल्ज़ाम कैसा है ? जो है इल्ज़ाम दोनों पर, कभी इम्तेहान भी होगा। दे िें,, महज़ ये कब्र ककसकी और ये कबब्रस्तान ककसका है ?
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51
बेमज़हब
अिी के तख़्त सी िुशबू शतन के दर से आती है । सुगंधित पुष्प, मुहबते इत्र का तनमााण करते हैं।।
आज काकफ़र भी इस मंददर में क्यों गम ु नाम बैठा है ? महकफ़ि है सजी कीतान भी कुछ अल्िाह के करते हैं।।
िो चढ़ती चादरों या झुकती पिकों का करे सजदा? आक्ज़म हृदय बेशक़, इश्क़ बेमज़हब में करते हैं।।
***
52
महाकाि
िमा अिमा की रे िा पर नश्िर ईिा का नाश करे ।
रि शमा, हया, अनभ ु ि, अशभनय सुि दुःु ि में अट्टहास करे ।
कभी बफा गिे आ सूया शमिे प्रत्येक शिबास का त्याग करे ।
िह मत्ृ यु ओढ़ कर बैठा है , हम जीवित भी जा ख़ाक शमिे।। ***
53
दहसाब
मेरे घर की खिड़की पर रिी ककताबी पन्नों का हर शाम हिा से पिट जाना। आज़ पापा की पुरानी सफेद कमीज़ पर पड़े स्याही के िब्बो ने उस िक़्त का दहसाब मागा है ।।
मैं अक्सर छोड़ दे ता था किम जब भी हुआ रुख़सत, कुछ बूढ़े से हुए जज़ार हाथों ने उसका दहसाब माूँगा है ।। मेरी हर फरमाइशों के आड़े आई उनकी न जाने ककतनी सी ज़रूरत, उन फरमाइशों को शमिी तिज़्ज़ो का आज दहसाब माूँगा है ।।
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54
तू शििे या ना शििे
तू शििे या ना शििे, मसरूफ़ होना चादहए। अनकहे से िाक्य को, मशहूर होना चादहए। बेज़ुबानी बात के हर, मेज़बानी अिरों को कािे गहरे पन्नों पर, महफूज़ होना चादहए।।
***
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