SWAMI VIVEKANAND KE SAMAJIK AUR SHAIKSHIK VICHARDHARA KI VERTMAN PRASANGIKTA KA EK SAMALOCHNATMAK AD

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Scholarly Research Journal for Interdisciplinary Studies, Online ISSN 2278-8808, SJIF 2021 = 7.380, www.srjis.com

PEER REVIEWED & REFEREED JOURNAL, NOV-DEC, 2022, VOL- 10/74

स्वामीवििेकानंदके सामाविकऔरशैविकविचारधाराकीिर्तमान

Paper Received On: 25 DECEMBER 2022

Peer Reviewed On: 31 DECEMBER 2022

Published On: 01 JANUARY 2023

स्वामीपििेकानिंदभारतीयपशक्षादशशनऔरज्ञानचेतनाकेिहनक्षत्रहैंजोनाकेिलभारतिरबल्कििूरीदुपनयामेंअिने अद्भुतज्ञानकीिृष्ठभूपमसेिररपचतकरायाउन्ोिंनेभारतकीगौराल्कितिरिंिराकोकायमकरतेहुएसमय-समयिरअिने

ज्ञानात्मकपिचारधाराकोसिंिूणशपिश्वकेसामनेलानेकाप्रयासपकया , औरउनकेपिचारोिंसेनाकेिलसनातनसिंस्कृपतबल्कि सिंिूणशपिश्वमेंभारतीयसिंस्कृपतकाएकनयाप्रचारप्रसारअिनेस्तरसेकरनेकाकायशपकयाl

दशशनकोजीििंतएििंव्यिहाररकबनानेकेपलएहरस्तरिरअिनेपििेकऔरसकारात्मकपिचारधाराकोआगेलानेकाप्रयास

बातकरताहो , औरऐसेमेंस्वामीपििेकानिंदजैसादूसराकोईदाशशपनकव्यल्कित्वजोधमशअध्यात्मपशक्षासमाजतथाव्यल्कित्व के समस्तिहलुओिंकोअिनेमेंसमेटकरएकसिंिूणशसमाजकीिररकल्पनाकरताहोl उसके पिचारधारामेंआत्मपचिंतन

इसकाअनुसरणकरनेकेपलएिैचाररकप्रेरणाकाकारणबनताहोऐसेसिशभोपमकव्यल्कित्वकोइसशोधित्रमेंव्याख्यापित करनेकाप्रयासपकयाजासकताहै

मुख्यशब्द: अराजकता , िैचाररक , सिंस्कृपत , िैचाररकसिंस्कृपत , सिंस्कृपत , सािशभौपमक , व्यल्कित्वभूमिंडलीकरणव्यािहाररक , अध्यात्म ,

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तथाराष्टीयचेतनाजागृतकरनेकाएकप्रयासपकयाइसमेंउन्ोिंनेभारतीयदशशनकोजीििंतऔरव्यािहाररकरूि

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सोमापाल (
श्रीरामकृष्णशारदाआश्रम , पशक्षकप्रपशक्षणमहापिद्यालय , रपििंद्रिथ , हजारीबाग ,झारखिंड825301
प्रासंविकर्ाकाएकसमालोचनात्मकअध्ययन
सहायकप्राध्यापिका )
स्वामीपििेकानिंदजीनेभारतीय
पकयाl आजकेदौरमेंजबसिंिूणशपिश्वभूमिंडलीकरण ,उदारीकरण , पहिंसाऔरअशािंतजैसेिातािरणमेंचलरहाहैl समाज मेंकटूता , आपहिंसा ,धापमशक ,कट्टरिाद , क्षेत्रिाद , सिंप्रदायिाद ,भाषािादइत्यापदतरहकेपििादोिंसेचलरहाहैl ऐसील्कथथपतमें
जोशायदइसअराजकताकेदौरमेंभीशािंपतकी
हमेंभारतीयसिंस्कृपतकेएकऐसेमनीषीकापचिंतनमननिरबलदेनाहोगा ,
, िेद , गीतातथाधमशपकसीके जीिनकाआधारमानतेहुएउसके महत्वकोस्पष्टपकयागयाहोतथासिंिूणशजनमानसको
इसदौरमेंयहबदलािजबपकसिंिूणशपिश्वपनजीकरण, उदारीकरण, पहिंसातथाअशािंपत क्षेत्रिाद, सिंप्रदायिाद तथा धमश की िराकाष्ठा से जूझ रहा है l कट्टरिाद िैमनस्य का बोलबाला हो ऐसे में भारतीय सिंस्कृपत में पकसी आध्याल्कत्मक पिचारधारा के िोशक के रूि में अिनी िहचान बनाने िाले पकसी एकव्यल्कि का चुनािकरनािडेगापजसने िूरीपजिंदगीअिने पिचारोिंधमश
ले जाने काकायशकरने िालेव्यल्कित्वकाचयनकरनाहीहोगा l भारत में समय-समयिर अनेक दाशशपनक तथा सामापजक पिचार को ने अिने पिचारोिंकेबल िर सिंिूणश समाज में एक निीन चेतना का सिंचार करने का कायश पकया l पजसमें रामकृष्ण िरमहिंस, स्वामी दयानिंद सरस्वती जैसे मनीपषयोिंने एकसुधारात्मकयुग का सूत्रिातपकया l इसीिरिंिरा को आगे बढाते हुएस्वामी पििेकानिंदका नाम भी एक युग दृष्टा के रूि में जाना जाता है l इन्ोिंने समय और िररल्कथथपतयोिंको समझते हुए भारत में नि पनमाशण
में प्रचाररत करने के साथ-साथ सामापजक सुधार की चेतना को भी आगे बढाने का पनश्चयपकया l िहयुग अिंग्रेजी शासनकाथाएकतरहसे भारतीयमानपसकचेतनाकोदबाकररखागयाथा l स्वामीपििेकानिंदजीने अिने नि Abstract
भारतमेंभूमिंडलीकरणके
कीपसल्कियोिंतथाएकपिकासात्मकस्वरूिकोआगे

इसीप्रकारस्वामीपििेकानिंदजीनेपशक्षाकािास्तपिकमतलबबालककीअिंतपनशपहतशल्कियोिंकाबाहरकीतरफ

पकमात्रिुस्तककीतथास्कूलीपशक्षासेव्यल्कित्वकापिकासनहीिं

में राष्टकपिरामधारीपसिंहपदनकरने भीअिनापिचारस्पष्टपकयाहै l स्वामीपििेकानिंदिहभारतकासमुद्रहै

के साथशकतत्वसभीसमापहतरहते हैं l दाशशपनकपचिंतनिरअिनापिचारस्पष्टकरते

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भारतके पनमाशणके क्षेत्रमेंअिनेिररिपतशतिररष्कृतस्वरूिकीआिश्यकतािरबलपदया l औरइनके दाशशपनक पचिंतनतथापिचारधाराकोसमझने काएकप्रयासइसशोधित्रके माध्यमसेपकयागयाहै l पशक्षा की िररभाषा देते हुए स्वामी पििेकानिंद जी ने कहाहै पक, पशक्षा मात्र सूचना प्राप्त करने का आधार नहीिंहै बल्किअनेकप्रकारकीअतापकशकजानकाररयोिंकोमल्कस्तष्कमें
पशक्षानहीिंहोसकती
l उन्ोिंने कहाहै
हो सकता l हमारा लक्ष्य िह पशक्षा है l पजससे बालक का न केिल चररत्र पनमाशण हो, बल्कि उसका मनोबल बौल्किक पिकास व्यल्किगत पिकास तथा आत्मपनभशर बनाने की पदशा में उसको उपचत बल पमल सके l इतना ही नहीिंइसके पलए शैपक्षक पिचारोिं को ितशमान समय में िररल्कथथपत के अनुसार आत्मसात करने तथा उससे जरूरी उिदेशऔरबदलािकीपदशामें पनरिंतरित्रप्रदशशनकाकायशस्पष्टहोनाचापहए l पिश्वके दशशनके इपतहासमेंइसबातकाप्रमाणहैपक, जबजबकभीभीज्ञानमेंबदलािकीआिश्यकतामहसूस हुई है इसमें दाशशपनक पिचारधारा से जुडे लोगोिंने अिना सिंिूणश पजम्मेदारी को कारगर ढिंग से पनिशहन पकया है l भारतकाइपतहासऔरसापहत्यइसबातकाऋणीहैपक, इसकोधारदेनेकाकायशइनदाशशपनकपिचारकोनेपकया स्वामी पििेकानिंद जी के पिचारोिं िर िेद और उिपनषद की गहरी छाि थी l इन्ोिंने दाशशपनक कृपतयोिं पिशेषकर उिपनषदके इसछािंदोग्यश्वेतािंबरकठोिपनषदतथामुिंडकउिपनषदकाउिरणके रूिमेंप्रयोगपकयाहै l िृहद आरण्यक उिपनषद की उद्घोषणा ,संमत्र वि ब्रह्मा. अथाशत ब्रह्म ही सत्य है, इसको पििेकानिंद जी ने भी एकमात्र सत्र सत्य के रूि में स्वीकार पकया है l ब्रह्मा की सत्ता पनत्य असीम तथा अनिंत है l उसे िह शल्कि तथा जगतमें पकसीभीरूिमें
l अतःस्वामीपििेकानिंदजीके अनुसारअनिंतकीखोजअनिंत मेंहीकीजानाचापहए l हमारीअिंतरमुखीआत्माहीएकमात्रअनिंतहै l इसपलएउसमेंब्रह्मकीखोजकीजासकती है l कठोिपनषद के उिरणके माध्यम से स्वामी पििेकानिंद जीने स्पष्टपकया है पक, बलबुल्कि मनुष्य तथाबाहरी भौपतकसिंसाधनोिंसे युििस्तुओिंके िीछे व्यल्किआजीिनदौडतारहताहै, िरिंतु सत्यकीखोजकीअिंपतमइच्छा नहीिंिूरा हो िाती है l स्वामी पििेकानिंद जी के अनुसार बालबुल्कि मनुष्य पजस प्रकार एक ही जगत तथा अपि में प्रपिष्ट होकर ब्रह्मा िस्तु के भेद के रूि से पभन्न पभन्न रूि धारण कर लेती है, और ऐसे में एक और उदाहरण के माध्यम से स्वामी पििेकानिंद ने बताया पक एक ही बार जगत में प्रपिष्ट होकर नाना प्रकार के िस्तुओिं के भेद से िस्तुओिंके अनुरूिकोधारणकरतीहै, तथािस्तु के बाहरपिद्यमानरहतीहै l पििेकानिंद जी आत्मा और िरमात्मा में पकसी भी प्रकार के भेद को सही नहीिंमानते l उन्ोिंने इस भेद को उदाहरण के माध्यम से बतायापकएकिेड िर दो िक्षी बैठे हैं, पजसमें से एकशािंपत ल्कथथरऔर भव्य है तथा नीचे रहने िाला जीि आत्मा पिपभन्न प्रकार के फल का भोग कर रहा है स्वामी जी उसी पिचारधारा को मनका प्रदान करतेहैं l डॉ.िी.एस.नरिडे के अनुसार, पििेकानिंदउिपनषदऔरगीताके अच्छे ज्ञाताथे l िहबौिऔरजैनसापहत्यके ििंपडतथे l उनके िात्रोिंमेंभिभूपतऔरकापलदासके उिरणसमानरूिसेपमलतेहैं l िहीउनके पिचारोिंके
l पजसमेंधमशराजनीपतराष्टीयताअतराष्टीयअिबोधउिपनषदतथापिज्ञान
हुएस्वामीपििेकानिंदजीने कहाथाउिपनषदोिंकाप्रत्येकिृष्ठमुझे शल्किकासिंदेशदेताहै l उिपनषदोिंकायहिाक्यहै l मानितेजस्वीबनो पिद्वानबनोपिशेषरूिसे स्मरणकरने योग्यहै l समस्तजीिनमें मैंने इससूत्रसे बहुतबडी पशक्षाप्राप्तकीहै , तथाअिनीउजाश में िृल्किकीहै l
भरदेने से कोईलाभनहीिंहै l पडग्रीप्राप्तकरना
, बल्किपशक्षाकामतलबसिंिूणशव्यल्कित्वकापनमाशणकरनाहै l
प्रकटीकरणहीपशक्षाबताया
खोजिानासिंभिनहीिंहै
सिंदभश

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श्रीमदभाििर्के अनुसार असर्िस्तुकीर्ोसत्तािीनिींबल्किसटकाकभीअभािनिींिोर्ाअर्ःदोनोंिीअिस्थाओंमेंसत्यकी उपल्कस्थवर्विद्यमानरिर्ीिै l गीताकीबातकोप्राचीनपिचारकोिंमें

सास्वतअथथाईरहनेिालापजसकाकभीकोईअभािनाहो

भपिष्य तथा ितशमान

ऐसेपिचारोिंके कारणहीस्वामीपििेकानिंदजीकादाशशपनकपचत्रणब्रह्मअथिासल्किदानिंद कीधारणाके आसिासघूमताहुआप्रतीतहोताहै

काप्रपतपनपधत्वकरताहै l उसके पिचारसेब्रह्माहीएकमात्रसत्ताहै

l अद्वैतिेदािंतके अनुसार, उन्ोिंने ब्रह्मकोईपनरिेक्षपनदेपशतऔरपनगुशणसत्ताकोस्वीकारपकया

भािंपतईश्वरकोसमग्रसिंसारकास्वामीऔरकमशकाफलदातामानाहै

औरईश्वरके साकारकीसत्यताकोस्वीकारपकयाहै l उनके

अिने दशशनमें कीहै l

स्वामीजीनेकहाहैपकआत्मानकभीआतीहैनाजातीहै , यहनातोकभीजन्मलेतीहैऔरनाकभीमरती

की छाया आत्मा िर िडती रहती है l भ्रम िश आत्मा जबतकसोचतीरहतीहै l तबतकिहबिंधनमें

l पििेकानिंदजीनेआत्माकोएकपनराकारचेतनऔरिस्तुकहाहैजोसिशव्यािी

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पिख्यातजगद्गुरुशिंकराचायश ने इसप्रकार स्पष्ट
है
,अथाशत सत्य िहहै पजसके पिषय में हमारी बुल्कि िररिपतशत ना होपजसकाजोरूिपनपश्चतहैउसके रूिमें कोईिररितशननाहो l लोकमान्यवर्लकके
,अथिातीनोिंकालभूत
पकया
, यावदव्याबुल्किब्यािचररर्र्त्सर्
अनुसार
में पजस का अभाि ना हो िही सत्य है l इसके सत्य को अस्वीकार नहीिंपकया जा सकता l स्वामीजीनेसत्यकोिररभापषतकरतेहुएकहाहै पक, सत्यिहहै, जोकालािंतरमें भीअन्यथासिंज्ञाप्राप्तनहीिंकर सकताहै अतःस्वामीजीने सत्यकोप्पररभापषतकरतेहुएकहाहै पक
कारणसेभेदाना जासके िहीसत्यहै
l उनकामाननाथापकब्रह्म स्वयमएक स्वयिंभूहै l उसकाकोई न कोई एककारण है, ना उसमें देश है ना काल है और ना कायश कारण है l िह एकमात्र असद की सत्ता है, और केिलउसीकाअल्कस्तत्वहै , ब्रह्माके अल्कस्तत्वहरएकिदाथशकाअल्कस्तत्वउसीमात्रामें है l पजसमात्रामें िहसत्ता
, औरिहीएकमात्रसत्यप्रकापशतचेतनाज्योपत है l प्रत्येकिदाथश उसीसेउधारलीहुईज्योपतसेप्रकापशतहोरहाहै l स्वामी वििेकानंद िी के अनुसार स्वामी पििेकानिंद जी ने अिने ज्ञान को िररभापषत करते हुए कहा है पक , आत्मानतोनाशिानहै नाभपिष्यहै, उससे अनिंतगुनाऊिंचाथथानपनगुशणसत्ताकाहै l उन्ोिंने स्पष्टपकयाहै पक बुल्किउसपनगुशणसत्ताकोइसपिश्वकीसृपष्टिालनहारशासकतथासिंघारकके
उिादानऔरपनपमत्त कारणके रूिमें िरमशासकके रूिमें जीिनमें प्रेममें िरमसौिंदयशभािके रूिमें ऊजाश प्रदानकरतीहै l अिने व्याखान मे उिपनषदोिंके िाक्योिंका समथशन करते हुए उन्ोिंने कहा पक, िहजो उसकी आत्मा का सार है l िहीसत्यहै िहीआत्माहै तुमिहहोजोधूमकेतु कीतरहइसनक्षत्रके पसतारे हो l अथाशतइसकाअथश यहहै पक तुमहीईश्वरहो
है l औरयहीबातउसके दशशनकासारतत्वहै ईश्वर के स्वरूि को भी स्वामी पििेकानिंद जी ने अिने अनुसार पचिंतन में स्पष्ट पकया है l उन्ोिंने शिंकराचायश की
l िरब्रह्माके पििरीतिरब्रह्माके ईश्वरसगुन
, जोदेशकालऔरकायश
l
रूिमेंउसके
अनुसारब्रह्मअिनीिास्तपिकप्रकृपतमेंशुिअशुि तथा शुि पचत्त तथा ईश्वर की दो प्रकृपत या पजन िर ि शासन करता है l एक तो जीिन की और दूसरे सिंसार की रचनाकरनेिालेमायाकीिररकल्पनाकीगईहै l िहसिशज्ञसिशशल्किमानऔरसमग्रसिंसारके उद्भििालनऔर प्रलय का करता है l उसे ज्ञान प्राप्त करने के पलए पकसी इिंपद्रय की तथा कायश करने के पलए पकसी शरीर की आिश्यकतानहीिंहोती l साररूिमें आपदब्रह्माहै l पजसकीिररकल्पनास्वामीजीने
है, प्रकृपत ही आत्मा के सन्मुख गपतशील है, और इस गपत
रहतीहै पकिंतु जबसे यहिताचलजाताहै पक, िहसिशव्यािीहै तोिहमुिकाअनुभिकरतीहै
कहाहै िहशाश्वतहै स्वामीजीने अिने सत्कायश बातकोस्वीकारपकयाहै l उनकाकहनाहै पककारणऔरकायश दोनोिंअपभन्न है l कायश केिलकारणकारूिािंतरमात्रहै l अतःयहसमुदायब्रह्मािंडशुन्यसे उत्पन्ननहीिंहोसकता l पबनापकसी कारणके िहनहीिंआसकताहै इतनाहीनहीिंकारणहीकायश के भीतरसूक्ष्मरूिसे पिद्यमानरहताहै l सत्कायश बादमें भीपििेकानिंदने बौल्किकआतिंकिादकीउिल्कथथपतकोस्वीकारपकयाहै l

स्वामीपििेकानिंदजीसमियिादीपिचारधाराकोअिनाते

दूसरे

l स्वामीजीके जीिनदशशनिरिेदािंतदशशनकाकाफीप्रभािपदखताहै l उन्ोिंने िेदोिंकागहनअध्ययनपकयाथा l पजससे उनके जीिन में िेद की पशक्षाओिंका बडा ही साथशकप्रभाि

जीिनमेंिेदािंतकाजोसबसेज्यादाप्रभाििडािहअद्वैतिेदािंतकाहै l इनप्रभािके कारणउनको एकप्राकृपतकिेदािंतभीकहागया l िेदािंतदशशनके

स्वामीजीिाश्चात्यदशशनप्रणालीदाशशपनकपिपधतापकशकतथाबौल्किकपििेचनासेबहुतआधाअपधकप्रभापितथे l उनकीमान्यताथीपकतापकशकदृपष्टसेसिंतुष्टनाहोजाएजबतकपकसीभीबातकापिश्वासआिंखमूिंदकरनहीिंपकया

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पििेकानिंदजीनेसृपष्टकीउत्पपत्तके पजसक्रमकोस्वीकारपकयाहै l िहसािंख्यदशशनसेअपधकसमीिहै l समस्त जड िदाथों का मूल उिादान करण आकाश तत्व है l और समस्त शल्कियोिंका मूल स्रोत प्राण है, और आकाश तथाप्राणकी व्यूत्पपत्त ज्ञानकीमहत्व सेहुईहै l
हुएकहते हैं पक, जडशल्किमनसूयश अथिाअन्य
सेहीअपभव्यल्किकामाध्यमहै l सबकुछस्वयिं प्रभु की कृिा है l िह जगत का उिादान और पनपमत्त कारण है l जो कम सिंकुपचत होकर िही पिचार का रूि धारणकरलेताहै पफरिहीक्रमपिकपसतहोकरिुनःईश्वरबनजाताहै यहीसबजगतकारहस्यहै l दाशशपनक पिचारोिंमें स्वामी पििेकानिंद जी ने माया िर अिने पिचार व्यि पकए हुए हैं l माया शब्द का प्रयोग साधारणरूिमें भ्रमभ्रािंपतअथिाइसीप्रकारके अन्यअथोंमें पकयाजाताहै l मायािेदािंतकाएििं पििेकानिंदके दशशनकाएकप्रमुखसिंप्रत्यहै l पजसमें अद्वैतिेदािंतके समानस्वामीजीकीमायाकोसिशअपनिशचनीयकहागया है l मायाके पिषयमें नतोयहकहाजासकताहै पकउसकाअल्कस्तत्वनहीिंहै, क्योिंपकउसीके समस्तभेदउत्पन्न पकए गए हैं, और इसके पिषय में यह कहा जा सकता है पक उसका अल्कस्तत्व है क्योिंपक िह सदैि दूसरे िर ही आपश्रतरहतीहै l वििेकानंदिीके वशिासंबंधीविचारोंकीदाशतवनकपृष्ठभूवम : धमश के स्वरूि की इतनी पनरिेक्ष एििं व्यािक भूपमका आज तक पकसी ने नहीिंसुना था l सनातन पहिंदू धमश इतना व्यािक उद्देश्य पलए हुए है पक, समूची मनुष्य जापत का पहत तथा सही पदशा में पिकास की सिंभािना इस धमश में अिंतपनशपहत है l यह सच तो सनातन धमश के बहुसिंख्यक अनुयाई पहिंदुस्तानी भी शायद या नहीिंजानते थे l िपश्चमी समाजने स्वामीजीके मुखसेधमश कीऐसीव्याख्यासुनीतोिहिाह-िाहकरउठे l स्वामीजीकीप्रशिंसामेंइतनी तापलयािं बजेपकस्वयिंस्वामीजीभीचपकतरहगएथे
िडा l िेदािंत का अथश है िेदोिंका अिंपतम चरम लक्ष्य, िेददोभागोिंकमशकािंड तथाज्ञानकािंडमें पिभापजतहै l कमशकािंडमें सिंस्कारऔरयज्ञके पनयमहै l जबपक ज्ञानकािंडमें धमश काआध्याल्कत्मकिक्षहै l उन्ोिंने जीिनके दोनोिंभागोिंकमशकािंडऔरज्ञानकािंडकोअिने जीिन में उतारने काप्रयासपकयाहै, िेदािंतकोपहिंदुओिंने अिने मूलधमश के ग्रिंथके रूिमें स्वीकारपकयाहै, औरस्वामी जीतोपहिंदू धमश के एककट्टरसमथशकके रूिमें पिख्यातहुए l उनिरिेदािंतदशशनकाइतनाज्यादाप्रभाििडा पकउन्ोिंने तोयहािं तककहपदयापकपहिंदू धमश कहनेसेहमलोगोिंकािहीअपभप्रायहै, जोिास्तिमेंिेदािंतीकाहै l स्वामीजीके
प्रभािमें हीस्वामीजीके धापमशकतथादाशशपनकआधारोिंका पनमाशण पकया l उनका दाशशपनक पसिािंत व्यािहाररक िेदािंत कहलाया l िेदािंत के पसिािंत से सभी व्यल्कि मूलतः ब्रह्म स्वरूि होने से एक है उनमें सभी लोगोिंके प्रपत प्रेम सभी धमों के प्रपत समान आदर भाि को उत्पन्न पकया िास्तिमें िेदािंतदशशनहीउनके धमशपनरिेक्षके रूिमेंअपभव्यल्किहोताहै l
जाना चापहए l यही कारण है पक िह प्रायः अिने गुरु को रहस्यमई अनुभि की बातोिंिर सिंदेह पकया करते थे l अिने गुरुमें भीउन्ोिंने तभीपिश्वासपकया, जबस्वयिंउन्ोिंनेइसकीआत्मानुभूपतकरपलया l स्वामीपििेकानिंदजी के जीिनिरअनेकधमशतथादाशशपनकपिचारोिंकाप्रभाििडा l उनमेंउनके जीिनमेंसबसेअपधकपजसकाप्रभाि िडा िह पहिंदू धमश था l ईसाई धमश के प्रभाि से पहिंदू धमश को बचाने के प्रपत िह इतने सचेष्ट हुए l उनके जीिन में पहिंदू धमश के साथ-साथ बौल्किक इस्लाम इत्यापद धमों का पिशेष प्रभाि िडा l इन सब धमों में पिशेष रूिसे बौि धमश बहुतअपधकप्रभािशालीरहा l उन्ोिंने कहा है पक, पहिंदू धमश बौि धमश के पबना नहीिंरह सकता न बौि धमश पहिंदू धमश के पबनारहसकताहै l
नामसेिररपचतपिपभन्निैपश्वकशल्कियोिंकाउसपिश्वव्यािी

िीिईश्वरऔरब्रह्मा

● ईश्वरव्यल्कियोिंव्यल्कियोिंकीसिोिसत्ताकोसमझताहै, औरसाथहीिहएकव्यल्किभीहै ठीकउसी प्रकारजैसेपकमानिशरीरइकाईहोतेहुएभीकोपशकाओिंरूिीअनेकव्यल्कियोिंकाबृहत्रूिहै

सिशव्यािीसिशसुखसिशशल्किमानऔरसिशज्ञहै l

● जगतऔरईश्वरसािेपक्षकसताएहैं

1. आत्माकास्वभािचिंचलताकाहै

2. आत्माकास्वभािईश्वरसेिरे है l

3. आत्मसास्वतएििंअपिनाशीहै l

4. आत्माकाअिंपतमलक्ष्यमुल्किहै l

5. आत्माकािास्तपिकस्वरूिहै l

6. आत्मापनराकारहै l

7. आत्माअजन्माहै l

स्वामीपििेकानिंदजीआत्माऔरउसकीमुल्किकीक्यापकयाकीव्याख्या

● ईश्वरआराधनाइसप्रकारकरते हैं कीकमोंमें हीउसकागुणगानहोनीचापहए , अथाशतपनष्कामभािसे कमश करनाचापहए l

● कमश योगीकोदाताके रूिमेंकायशकरनाचापहए l

● सामान्यिगोंकोभीपगडाभािसेनहीिंदेखनाचापहए l

● कमशयोगीके पलएसततकमशशीलताआिश्यकहै l

स्वामीवििेकानंदके

● पशक्षाऐसीहोपजसमें

● पशक्षाके

बालककाशारीररकमानपसकआध्याल्कत्मकपिकासहोसके l

द्वाराबालकके

चररत्रकापनमाशणहोमनकापिकासहोबुल्किपिकपसतहोतथाबालकआत्मपनभशर बने l बालकबापलकाओिंदोनोिंकोसमानपशक्षादेनीचापहए

पनकटताका

होनाचापहए l सिशसाधारणमेंपशक्षाकाप्रचारप्रसारपकयाजानाचापहए l देशकीआपथशकप्रगपतके पलए

तकनीकीपशक्षाकीआिश्यकताकोध्यानमेंरखकरहीपदयाजानाचापहए l

● मानिीयएििंराष्टीयपशक्षािररिारसेहीशुरूकीजानीचापहए l

पिचारोिंकीप्रासिंपगकताकोदेखाजाए, तोपनपश्चतरूिसेस्वामीपििेकानिंद जीनेअिनेदाशशपनकऔरशैपक्षकपिचारधाराकोएकउत्कृष्टिहचानपदयापजसकीिजहसेआजसिंिूणश

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सोमािाल
Pg. (17949-17954) 17953
l ● ईश्वरकाअल्कस्तत्वजीिके अल्कस्तत्विरहीपनभशरहै
और ईश्वर सािेपक्षक सत्ताए हैं, ईश्वर सिशव्यािी सिशसुख, सिशशल्किमान और सिशज्ञ है l ईश्वर ईश्वर
● जीि
l ● ईश्वरजगतकासूक्ष्मरूिहै, तथाजगतईश्वरकाथथूलरूिहै l जीिब्रह्मकाहीअिंशहै l ● ब्रह्म पिश्व की सृपष्ट ल्कथथपत तथा प्रत्यय का कारण है अतः कायश की पनष्पपत्त के पलए कारण का पिद्यमान होनाअपनिायशहै l ● ईश्वर हीसभीसिंथथाओिंकासिश प्रमुखसिश दृष्टा है l इसके पबना इसपकसी कीकृिाल िररकल्पना करना सिंभिनहीिंहै यहकहाजासकताहै l आत्मा:
आत्मास्वभािरूिमें शुिऔरिूणशहै l
वशिादशतनके आधारभूर्वसिांर्
l ● धापमशक पशक्षािुस्तकोिंद्वारानादेकर आचरण एििं सिंस्कारोिंद्वारा देनी चापहए l िाठ्यक्रम में लौपककएििं िारलौपककदोनोिंप्रकारके पिषयोिंकोथथानदेनाचापहए l ● पशक्षागुरुगृहमें प्राप्तकीजानीचापहए l पशक्षकएििं छात्रकासिंबिंधअपधकपनकटतमसे
भारतमें उनकादशशनके क्षेत्रमें एकआदशश है l
इसप्रकारपििेकानिंदके

सोमािाल Pg. (17949-17954) 17954

संदभतग्रंथसूची

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डॉसुबोधअदािल

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गुप्ताआरती(1985) स्वामीपििेकानिंदकेशैपक्षकदशशनकाअध्ययन ,िीएचडीपथपससइनएजुकेशन

बरेलीl

जोशीइलाचिंद्र(2010)स्वामीपििेकानिंदराजश्रीप्रकाशन , नईपदल्ली

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, गगशब्रदसशस्ट्ैनफोडशप्रकाशन , प्रयागl
, रुहेलखिंडपिश्वपिद्यालय
, l

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