Scholarly Research Journal for Humanity Science & English Language,
Online ISSN 2348-3083, SJ IMPACT FACTOR 2021: 7.278, www.srjis.com
PEER REVIEWED & REFEREED JOURNAL, FEB-MAR, 2023, VOL-11/56
अभय कुमार शमाा, Ph. D.
पूवा-शोधछात्र, शशक्षा सींकाय, कमच्छा, काश टिन्द ब्रवश्वब्रवद्यालय
Paper Received On: 18 MAR 2023
Peer Reviewed On: 31 MAR 2023
Published On: 1 APRIL 2023
19वींशताब्दीके प्रारींभतक, भारतमेंब्रिटिशसरकारकीअशधकाींशनशतयााँसाम्राज्यब्रवस्तार
-धरेकुशलअध्यापकोंकीमाींगबढीऔर इससींदभामेंब्रिटिशसरकारद्वाराप्रस्तुत नशतयोंमेंब्रवशभन्नसुझावोंएवींशसफाररशोंकोप्रस्ताब्रवत
टकयागया।प्रस्तुतलेखमें19वींशताब्दीके ब्रिटिशभारतमेंशशक्षािेतुप्रस्तुतब्रवशभन्नब्रववरणपत्रों एवींनशतयोंमेंअध्यापक शशक्षाके ब्रवकासिेतुप्रस्तुत कीगईशसफाररशोंकाब्रवस्तारपूवाकवणान टकयागयािै।जजसके पररणामस्वरूपधरे-धरेतत्कालनब्रिटिशभारतमेंअध्यापकोंके प्रशशक्षण
परबलटदयाजानेलगाऔरइसिेतुसरकारएवींशनज सींस्थाओींद्वाराअध्यापकप्रशशक्षणसींस्थाओीं कोस्थाब्रपतटकयागया।
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शताब्दी के ब्रिटिश शशक्षा न शतयों में अध्यापक शशक्षा
19 व
परिीकेंटितथीं।शशक्षाके क्षेत्रमेंउनके द्वाराबि ुतिीकमध्यानटदयागयाथा , टकींतुइसशताब्दीमें शशक्षाके ब्रवस्तारपरभ ध्यानटदयाजानेलगा।इससेधरे
मुख्य शब्द: शशक्षा, अध्यापक शशक्षा
प्रस्तावना भारत में अध्यापकों को औपचाररक रूप से प्रशशजक्षत करने एवीं इस िेतु प्रशशक्षण सींस्थाओीं की स्थापना के ब्रवकास का इशतिास अशधक प्राच न निीीं िै। 18व शताब्दी के प्रारींभ में जब ब्रवशभन्न शमशनरी सींस्थाओीं का आगमन िआ, तो उन्िोंने यिााँ पर शशक्षा के प्रसार िेतु चैररिी स्कूलों के शनमााण में अपन मित्वपूणा भूशमका शनभाई। टकींतु इन स्कूलों की स्थापना का मुख्य उद्देश्य शशक्षा का प्रसार करना निीीं था, बजकक इनके द्वारा अपने धमा का प्रचार प्रसार करना था। इस सींदभा में ररक्िर (1908) Abstract
डॉ० अभय कुमार शमाा (Pg. 13989-14003) 13990 Copyright © 2023, Scholarly Research Journal for Humanity Science & English Language का कथन िै टक - रेवरेण्ड शम० बेंजाशमन स्वार्टजा ने मिास में पुतागाल एवीं तशमल ब्रवद्याशथायों के शलए एक स्कूल की स्थापना की, जजसमें उन्िोंने इन ब्रवद्याशथायों को अींग्रेज एवीं ईसाई धमा के शनयमों को शसखाने की कोशशश की (पृ० 113)। इन शमशनररयों में एक नाम शमस्िर जजगेनबकग का आता िै, जजन्िोंने अपने सियोशगयों के साथ शमलकर कई शमशनरी एवीं शैजक्षक कायों को टकया। इन कायों में चैररिी स्कूलों की स्थापना के साथ िी साथ अध्यापकों को प्रशशजक्षत करने के शलए एक प्रशशक्षण सींस्थान भ शाशमल था। उन्िोंने इस प्रशशक्षण सींस्थान की स्थापना वर्ा 1716 ई० में ट्ाींक्वेबार में टकया (ररक्िर, 1908, पृ० 109; नुरुकलाि एवीं नायक, 1943, पृ० 46)। शम० जजगेनबकग के अशतररक्त कई अन्य शमशनररयों ने भ चैररिी स्कूलों की स्थापना की। ये शमशनरी, इस शताब्दी के अींत तक सटिय रुप से काया करते रिे, टकींतु अब उन्िें ब्रवशभन्न प्रकार की कटिनाइयों का सामना करना पडा। ये कटिनाइयााँ कींपन सरकार द्वारा अपनाई गई सख्त धाशमाक तिस्थता की न शत के कारण उत्पन्न िई थ ीं। इस न शत ने सकारात्मक रूप से शमशनरी प्रयासों को ितोत्साटित टकया। इस समय तक कींपन अपने साम्राज्य के ब्रवस्तार पर िी ध्यान दे रिी थ , टकींतु अब इन्िोने शशक्षा के प्रसार की ओर भ ध्यान देना प्रारींभ टकया। इस टदशा में वारेन िेजस्िींग एवीं बनारस के रेज डेंि जोनाथन डींकन ने मित्वपूणा काया टकया। िालाींटक इनके द्वारा टकए गए कायों का मुख्य उद्देश्य टिद व मुजस्लम व्यब्रक्तयों को टिद व मुजस्लम कानूनों की व्याख्या करने के शलए अींग्रेज जजों के सिायक के रूप में प्रशशजक्षत करना था (नुरुकलाि एवीं नायक, 1943, पृ० 47)। इसके उपराींत कींपन के अशधकाररयों द्वारा यिााँ की शशक्षा व्यवस्था में ध रे-ध रे पररवतान टकया गया। इसके अींतगात ब्रवशभन्न आयोगों एवीं ब्रवभागों का गिन टकया गया। इन आयोगों द्वारा शशक्षा के ब्रवकास िेतु ब्रवशभन्न सुझावों को प्रस्तुत टकया गया। इसके साथ िी साथ इन आयोगों द्वारा योग्य अध्यापकों की आवश्यकता को भ मिसूस टकया गया और इस टदशा में भ ब्रवशभन्न सुझावों को प्रस्तुत टकया गया। पररणाम स्वरुप अध्यापकों के प्रशशक्षण एवीं इस िेतु प्रशशक्षण स्कूलों की स्थापना का मागा खुलता गया।
डॉ० अभय कुमार शमाा (Pg. 13989-14003) 13991 Copyright © 2023, Scholarly Research Journal for Humanity Science & English Language उपरोक्त पृष्ठभूशम के आधार पर प्रस्तुत लेखा में 19व शताब्दी के ब्रवशभन्न चतुथाकों में अध्यापकों के प्रशशक्षण िेतु ब्रिटिश न शतयों में की गई शसफाररशों का ब्रववरण प्रस्तुत टकया गया िै। 19व शताब्दी में अध्यापकों के प्रशशक्षण िेतु ब्रिटिश न शतयों में की गई सींस्तुशतयों का ब्रवश्लेर्ण 1. 19व शताब्दी के प्रथम चतुथाक (1801-1825) में ब्रिटिश न शतयों में अध्यापक शशक्षा 19व शताब्दी का यि एक ऐसा दौर था, जब भारत में शशक्षा का प्रचार प्रसार ब्रवशभन्न शमशनरी सींस्थाओीं द्वारा टकया जा रिा था। इनमें प्रमुख लींदन शमशनरी सोसायिी, चचा शमशनरी सोसायिी, अमेररकन शमशनरी सोसायिी, स्कॉटिश शमशनरी सोसायिी आटद प्रमुख थे। इन सींस्थाओीं द्वारा टकए गए प्रयासों के फलस्वरूप स्कूलों की स्थापना में त व्र वृब्रि िई। इस चतुथाक के प्रारींभ तक जिाीं ब्रिटिश सरकार मात्र अपने साम्राज्य के ब्रवस्तार पर ध्यान दे रिी थ , अब वि शशक्षा के प्रसार की ओर भ ध्यान देने लग । इस सींदभा में लॉडा शमींिो द्वारा 6 माचा 1811 को प्रस्ताब्रवत ब्रववरण पत्र से ज्ञात िोता िै टक उन्िोंने बनारस में स्थाब्रपत सींस्कृत कॉलेज की तजा पर दो अन्य कॉलेजों को खोलने की शसफाररश की (शापा, 1920, पृ० 20)। इसके दो वर्ा बाद 1813 ई० में ईस्ि इींटडया कींपन एक्ि-1813 आया। इसके धारा - 43 में कींपन को भारत में शशक्षा के प्रसार का उत्तरदाशयत्व सौंपा गया और साटित्य के पुनरुिार और उसकी उन्नशत के शलए भारत य ब्रवद्वानों को प्रोत्साटित करने तथा भारत के ब्रिटिश प्राींतों में शनवास करने वाले लोगों के ज्ञान का ब्रवकास करने के शलए प्रशत वर्ा एक लाख रु० व्यय करने का प्रावधान टकया गया(पृ० 22)। इस प्रावधान के बाद कींपन के अशधकाररयों द्वारा स्वदेश शशक्षा को प्रोत्साटित टकया जाने लगा। यिाीं के ग्राम ण स्कूलों में पढाने वाले शशक्षकों के सींबींध में 2 अक्िबर 1815 को लॉडा मायर ने अपने ब्रववरण पत्र में किा टक ये लोग एक छोिे से वज फे के शलए पढना, शलखना और अींकगजणत की मूल बातें शसखाते िैं, जो टकस भ व्यब्रक्त के साधन की पिच के भ तर िै और जो शनदेश देने की उनमें योग्यता िै, वि गाींव के जम ींदार, मुन म और दकानदारों के शलए पयााप्त
डॉ० अभय कुमार शमाा (Pg. 13989-14003) 13992 Copyright © 2023, Scholarly Research Journal for Humanity Science & English Language थ । लॉडा मायर चािते थे टक सरकार के िस्तक्षेप या अध क्षण द्वारा मौजूदा र्टयूशन के सुधार िेतु शनदेश टदए जाएाँ। इसके अशतररक्त इस देश में शशक्षा के सुधार िेतु ब्रवशभन्न योजनाओीं को ढाका, पिना, मुशशादाबाद स्िेशनों पर गटित सशमशतयों को ब्रवचार िेतु भेजने का भ सुझाव टदया। इस के साथ दो प्रायोशगक स्कूल एक टिदओ के शलए एवीं दसरा मुजस्लमों के शलए, प्रत्येक जजले में एक सशमशत के पयावेक्षण में स्थाब्रपत करने का प्रस्ताव टदया (पृ० 24-27)। 19व शताब्दी के प्रथम चतुथाक में ब्रिटिश सरकार की न शतयों में सामान्य शशक्षा िेतु स्कू लों की स्थापना पर अशधक ध्यान टदया गया टकींतु इन ब्रवद्यालयों में पढाने वाले अध्यापकों के प्रशशक्षण पर बित कम ध्यान टदया गया था। 2. 19व शताब्दी के टद्वत य चतुथाक (1826-1850) में ब्रिटिश न शतयों में अध्यापक शशक्षा 19व शताब्दी के दसर चतुथाक में ब्रिटिश सरकारें अपन न शतयों में अध्यापकों के प्रशशक्षण एवीं इस िेतु प्रशशक्षण सींस्थाओीं की स्थापना पर ध्यान देना प्रारींभ कर टदए थे। इस टदशा में एक मित्वपूणा कदम मिास के गवनार सर थॉमस मुनरो द्वारा उिाया गया। इन्िोंने 10 माचा 1826 ई० को एक ब्रववरण पत्र प्रस्तुत टकया, जजसमें सामान्य शशक्षा के साथ िी अध्यापकों की जस्थशत एवीं उनके प्रशशक्षण की भ चचाा की। इस सींदभा में उन्िोंने अपने ब्रववरण पत्र में शलखा टक प्रत्येक छात्रों द्वारा फीस के रूप में चार से छ: या आि आने टदए जाते िैं और अध्यापकों को सामान्यतः 6 से 7 रु० माशसक वेतन प्राप्त िोता िै, जो इस व्यवसाय को प्रेररत करने के शलए पयााप्त निीीं था। इसका एक कारण गरीब को बताते िए, उन्िोने इसके समाधान िेतु अनुदान देने की शसफाररश की। इसके साथ िी साथ उन्िोंने यि भ किा टक सावाजशनक कायाालयों में शशजक्षत व्यब्रक्तयों को शनयुक्त करने के शलए वतामान में बेितर शनदेश देने वाले अध्यापक समूिों की आवश्यकता िै। इसके शलए प्रत्येक व्यब्रक्त को आज ब्रवका िेतु पयााप्त खचा देना िोगा। इस िेतु सरकार को एक सामान्य भत्ता देने की शसफाररश की। अध्यापकों को प्रशशजक्षत करने के शलए एक स्कूल के सींदभा में, उन्िोंने किा टक- मिास स्कूल बुक सोसाइिी की सशमशत द्वारा 25 अक्िबर 1824 के पत्र में जो प्रस्ताव टदया गया था, उस सींदभा में उन्िें
डॉ० अभय कुमार शमाा (Pg. 13989-14003) 13993 Copyright © 2023, Scholarly Research Journal for Humanity Science & English Language माशसक रूप से रु० 700 टदया जाना चाटिए, जो अध्यापकों के वेतन भुगतान एवीं प्रेस के खचा के शलए िै। आगे उन्िोंने यि भ प्रस्ताव टदया टक प्रत्येक कलेक्ट्ेि में दो प्रधान ब्रवद्यालय, एक टिदओ के शलए एवीं दसरा मुसलमानों के शलए खोला जाना चाटिए। इसके बाद जैसा टक अध्यापक शमलते िैं, टिद स्कूलों को बढाया जा सकता िै, जजससे प्रत्येक तिस ल को एक या प्रत्येक कलेक्ट्ेि को 15 स्कूल टदए जा सकें (शापा, 1920, पृ० 74)। 1826 ई० से 1840 ई० के दौरान देश के ब्रवशभन्न प्राींतों में भारत य एवीं पाश्चात्य शशक्षा को लेकर एक ब्रववाद ध रे-ध रे उग्र रूप लेने लगा था। इस ब्रववाद को सुलझाने के शलए भारत के तत्काल न गवनार लॉडा ब्रवशलयम बेंटिक द्वारा िी०ब ० मैकाले की शनयुब्रक्त की गई। इन्िोंने अपने ब्रववरण पत्र में अींग्रेज शशक्षा की वकालत की और इसे भारत य शशक्षा से अशधक श्रेष्ठ बताया। इनके द्वारा सुझाए गए प्रस्तावों से यि ब्रववाद निीीं सुलझ पाया। इस ब्रववाद को लॉडा ऑकलैंड द्वारा 1840 ई० तक उनकी अपन सूझबूझ द्वारा सुलझाया जा सका। इस ब्रववाद के दौरान अध्यापकों के प्रशशक्षण पर कम ध्यान टदया गया। इस टदशा में बॉम्बे प्राींत में 1845 के ‘रूल एींड रेगुलेशन एजुकेशनल एस्िेजब्लशमेंर्टस अींडर द बोडा ऑफ एजुकेशन’ में कुछ प्रावधान टकए गए। इसमें स्कूल मास्िर के प्रशशक्षण िेतु एलटफींस्िन सींस्थान में यिाीं के प्रोफेसरों द्वारा एक मास्िर और अध क्षक के अध न एक नॉमाल स्कूल स्थाब्रपत करने की बात की गई, जजसमें 15 मरािी, 15 गुजरात और 10 कनारी ऐसे ब्रवद्याथी शाशमल िोंगे जजनकी आयु 15 से 20 वर्ा िोग । प्रत्येक ब्रवद्याशथायों को वज फा के रूप में रु०5 से अशधक निीीं टदया जाएगा और इन्िें स्वयीं को शनयशमत रूप से कक्षा में उपजस्थत िोने एवीं शनधााररत शनदेशों का पालन करने के शलए 3 वर्ा तक बाध्य करना िोगा। प्रत्येक ब्रवद्याथी को एक शलजखत अनुबींधन में भ शाशमल िोना िोगा। इसके तित जब वे मास्िर का दाशयत्व शनभाने के योग्य िो जायेंगे तो वे बोडा के शलए 3 वर्ा तक अपन सेवा प्रदान करेंगे और यटद वे इसके शलए मना करते िैं, तो अध्ययन की अवशध में प्राप्त सींपूणा राशश वापस करन िोग । जो ब्रवद्याथी स्वयम को अक्षमता या
डॉ० अभय कुमार शमाा (Pg. 13989-14003) 13994 Copyright © 2023, Scholarly Research Journal for Humanity Science & English Language असावधान के कारण अयोग्य साब्रबत करेंगे उन्िें कक्षा से ििा टदया जाएगा(ररचे, 1922, पृ० 164165)। 3. 19व शताब्दी के तृत य चतुथाक (1851-1875) में ब्रिटिश न शतयों में अध्यापक शशक्षा 19व शताब्दी के इस तृत य चतुथाक के प्रारींभ में प्राींत य सरकारों द्वारा स्कू लों की स्थापना एवीं ब्रवशेर् रूप से अध्यापकों के प्रशशक्षण िेतु नॉमाल स्कूलों की स्थापना पर जोर टदया गया। इस टदशा में मिास के गवनार सर िेनरी पोटिींगर ने 6 जून 1851 ई० के अपने ब्रववरण पत्र में यि आशा जताई टक जैसे िी उशचत स्कूल मास्िर शमलते िैं, मिास के कुछ बडे शिरों में प्राींत य स्कूलों की स्थापना की जाएग । इसके साथ िी उन्िोंने प्राथशमकता के साथ इस प्राींत में एक नॉमाल स्कूल के गिन की शसफाररश की, जो ब्रवशेर् रूप से प्राींत य एवीं अन्य मदरसों में योग्य स्कूल मास्िर को शनयोजजत करने के शलए था। इस िेतु उन्िोने यि सुझाव टदया टक वे सभ व्यब्रक्त जो प्राींत य स्कूलों में जाएींगे, उनके पास अींग्रेज का अच्छा ज्ञान िोना चाटिए, इसके साथ िी साथ उन्िें जजस जजला में भेजा जाएगा विाीं की स्थान य भार्ा एवीं बोल से भ उन्िें पूणा पररशचत िोना िोगा। इस योग्यता की जााँच िेतु सुझाया टक जजस टकस को उस स्कूल में, स्कूल के अध क्षण एवीं देखभाल के शलए भेजा जाना िै, उसे तब तक निीीं भेजा जाएगा जब तक की परीक्षा के माध्यम से यि साब्रबत न िो जाए टक वे उस प्राींत की भार्ा में पढाने के शलए योग्य िैं (ररचे, 1922, पृ० 204)। इस वर्ा 5 अगस्त 1851 ई० को शम० इशलयि ने भ अपने ब्रववरण पत्र में मिास प्राींत में योग्य स्कूल मास्िरों को लाने के शलए एक नॉमाल स्कूल के गिन का सुझाव टदया(पृ०212)। वर्ा 1853 ई० में ईस्ि इींटडया कींपन का चािार एक्ि आया, जजसमें भारत य शशक्षा में सुधार लाने िेतु एक जाींच सशमशत के गिन का सुझाव टदया गया। इसके पश्चात 19 जुलाई 1854 ई० को द कोिा ऑफ डायरेक्िर ने सम्पूणा भारत के शलए एक शशक्षा योजना प्रस्तुत की। इसके अध्यक्ष सर चाकसा वुड थे। इस कारण द कोिा ऑफ डायरेक्िर द्वारा प्रस्तुत यि टडस्पैच ‘वुड टडस्पैच’ के नाम से भ जाना जाता िै। इसके अशतररक्त इसे भारत में अींग्रेज शशक्षा का मैग्नाकािाा के नाम से भ जाना जाता
डॉ० अभय कुमार शमाा (Pg. 13989-14003) 13995 Copyright © 2023, Scholarly Research Journal for Humanity Science & English Language िै। इस टडस्पैच के सन्दभा में लाडा डलिौज ने अपने ब्रववरण पत्र में घोब्रर्त टकया टक यि सम्पूणा भारत के शलए शशक्षा की एक ऐस योजना िै, जो स्थान य या सवोच्च सरकार की तुलना में किीीं अशधक व्यापक िै, जो कभ भ सुझाई जा सकत िै (ररचे, 1922, पृ०364)। इस टडस्पैच के पैरा 17 से 21 में शशक्षा ब्रवभाग के गिन और इसके सींचालन िेतु ब्रवस्तार से सुझाव टदया गया िै, जो शनम्नशलजखत िैं शशक्षा के अध क्षण और शनदेशन को अशधक व्यवजस्थत स्तर पर रखने के शलए, और इस िेतु भारत के ब्रवशभन्न प्रेस डेंस (प्रातो) में कम्पन सरकारों की मश नरी के एक टिस्से के रूप में एक शैजक्षक ब्रवभाग बनाया जाये। इसके अन्तगात प्रत्येक प्रेस डेंस और लेफ्िीनेंि-गवनार के शलए एक अशधकारी शनयुक्त टकया जाएगा, जजसे शशक्षा से जुडे व्यवसाय के प्रबींधन के शलए ब्रवशेर् रूप से प्रभार टदया जाएगा, और इसके सींचालन के शलए वि सरकार के प्रशत तुरन्त जजम्मेदार िोगा। भब्रवष्य के शलए शनरीक्षण की एक पयााप्त प्रणाल भ शशक्षा प्रणाल का एक अशनवाया टिस्सा िोगा, इस िेतु पयााप्त सींख्या में योग्य शनरीक्षकों को शनयुक्त टकया जाए, जो समय-समय पर उन कॉलेजों और स्कूलों की जस्थशत पर ररपोिा देंगे, जो सरकार द्वारा समशथात और प्रबींशधत िैं और साथ िी साथ ऐसे उपाय भ टकये जाएाँ जजसके द्वारा सरकारी शनरीक्षण के अन्तगात लाए जासक। वे इन सींस्थानों के ब्रवद्वानों की परीक्षा आयोजजत करेंगे, या सिायता करेंगे, और आम तौर पर, उनकी सलाि से, पूरे देश में कालेजों और स्कूलों के सींचालन में प्रबींधकों और स्कूलमास्िरों की सिायता करेंगे। इसके अलावा, शैजक्षक ब्रवभागों के शलए क्लकों और अन्य अशधकाररयों के रूप में एक उशचत कशमायों की आवश्यकता िोग , शनरीक्षकों के कायावािी की ररपोिा समय-समय पर बनाई जान चाटिए और इन्िें टफर से शशक्षा ब्रवभाग के प्रमुखों की वाब्रर्ाक ररपोिा में शाशमल टकया जाना चाटिए। जो साींजख्यकीय
डॉ० अभय कुमार शमाा (Pg. 13989-14003) 13996 Copyright © 2023, Scholarly Research Journal for Humanity Science & English Language ब्रववरजणयों (भारत के सभ भागों में समान रूपों में तैयार टकए जाने के शलए) और शशक्षा से सींबींशधत एक सामान्य गुणों की अन्य जानकारी के साथ िमें प्रेब्रर्त की जान चाटिए। इस टडस्पैच की प्रशतयाीं फोिा सेंि जॉजा और बॉम्बे की सरकारों को भेज जायेंग , और उन्िें शनदेश टदया जायेगा टक वे अपने-अपने प्रेस डेंस में शशक्षा के अध क्षण और शनरीक्षण के शलए अस्थाय व्यवस्था करें। इस तरि की व्यवस्था के शलए वे मींजूरी िेतु सूशचत करेंगे। शैजक्षक ब्रवभागों के प्रमुखों, शनरीक्षकों और अन्य अशधकाररयों के चयन में, ऐसे व्यब्रक्तयों की सेवाओीं को सुरजक्षत करना सबसे अशधक मित्वपूणा िोगा जो न केवल अपने चररत्र, जस्थशत और अशधग्रिण से, िमारी सेवा करने के शलए सवोत्तम िों, बजकक भारत के मूल शनवाशसयों के ब्रवश्वास को शनयींब्रत्रत करने वाले भ िों। शशक्षा ब्रवभाग के प्रथम प्रमुख और साथ िी कुछ शनरीक्षक िमारी शसब्रवल सेवा के सदस्य िोने चाटिए, क्योंटक पिल बार में इस तरि की शनयुब्रक्तयों से अनुमान लगाया जा सकता िै टक इन अशधकाररयों को टकस स्थान पर रखा जायेगा और िम शशक्षा के ऐसे ब्रवर्य को जजसे मित्व देते िैं, उसे टदखाने के शलए, और साथ िी, उनमें से ऐसे व्यब्रक्तयों को चुनने के शलए जो कताव्य के प्रदशान के शलए सबसे योग्य िों। लेटकन िम चािते िैं टक न तो इन अशधकाररयों, और न िी शशक्षा से जुडे टकस अन्य को, उस सेवा के सदस्यों द्वारा आवश्यक रूप से भरा जाए, जो उनके शलए सबसे उपयुक्त िो चािे वि यूरोप य िो या भरत के मूल शनवास । उनके पाररश्रशमक का पैमाना इतना तय टकया जाएगा टक सावाजशनक रूप से उनके द्वारा शनभाए जाने वाले मित्वपूणा कताव्यों को मान्यता दी जा सके (पृ०369-370)। इस टडस्पैच में भारत य शशक्षा व्यवस्था के सींदभा में उन कशमयों को इींशगत टकया गया, जो कभ इींग्लैंड में व्याप्त थ ीं। विााँ पर जब शशक्षा में सुधार के शलए व्यवजस्थत प्रयास टकए जाने लगे, तो मुख्य दोर्ों में से एक योग्य स्कूल-मास्िरों की अपयााप्त सींख्या और शशक्षण की अपूणा पिशत पाई गई थ । इसके पश्चात स्कूल-मास्िरों के प्रशशक्षण के शलए नामाल और मॉडल स्कूलों की न ींव रख गई और
डॉ० अभय कुमार शमाा (Pg. 13989-14003) 13997 Copyright © 2023, Scholarly Research Journal for Humanity Science & English Language प्राथशमक स्कूलो के सींगिन, अनुशासन और शनदेश के शलए सवोत्तम तरीकों से उदािरण प्रस्तुत टकया गया। कोिा ऑफ डायरेक्िर द्वारा कुछ इस प्रकार की कम भारत में अशधक स्पष्ट रूप से मिसूस की गई, क्योंटक र्टयूशन के काम के शलए उशचत रूप से शशजक्षत व्यब्रक्तयों को खोजने में कटिनाई अशधक थ और वे भारत के प्रत्येक प्रेस डेंस में मास्िरों के शलए प्रशशक्षण स्कूलों और कक्षाओीं की स्थापना को यथाश घ्र देखना चािते थे। इस उद्देश्य की प्राशप्त िेतु उन्िोने सुझाया टक पूरी तरि से नए स्कूलों की स्थापना करने की तुलना में, कम कटिनाई के साथ कुछ मौजूदा सींस्थानों को पूरी तरि या आींशशक रूप से अनुकूशलत करा सकते िैं (ररचे, 1922, पृ०383)। इस उद्देश्य के शलए ग्रेि ब्रििेन में जो योजना अपनाई गई थ , और जजसे भारत के शलए अपनाया जाना था, उस योजना के सम्बन्ध में वुड टडस्पैच में शाशमल टकए गए मुख्य सुझाव शनम्नशलजखत िैं छात्राध्यापक का चयन और वज फा प्रदान करना (उन स्कूलों के मास्िरो को एक छोिा सा भुगतान देना, जजसमें वे स्कूल समय के अन्तगात अपने अनुदेशन के शलए कायारत िैं), यटद वे नामाल स्कूलों के योग्य साब्रबत िोते िैं, तो उन्िे उन नामाल स्कूलों में प्रशशक्षण पूरा करने पर प्रमाण पत्र जारी टकया जाये, जब उन्िें बाद में स्कूल-मास्िर के रूप में शनयोजजत टकया जाये तो उन्िें पयााप्त वेतन टदया जाये। यि प्रणाल भारत में सरकारी कॉलेजों और स्कूलों दोनों में और सरकारी शनरीक्षण के तित लाए गए सभ सींस्थानों में सिायता अनुदान के माध्यम से लागू टकया जाये। नॉमाल स्कूल के छात्राध्यापकों और छात्रों के शलए वज फे की राशश बडी सावधान से तय की जान चाटिए। पिले वाले को उस राशश से अशधक सामान्य भत्ता शमलना चाटिए, जजसे वे स्कूल छोडने पर अजजात करेंगे, और बाद वाले को वज फा उस शसिाींत द्वारा ब्रवशनयशमत टकया जाना चाटिए जो िमने छात्रवृब्रत्त के सींबींध में शनधााररत टकया िै।
डॉ० अभय कुमार शमाा (Pg. 13989-14003) 13998 Copyright © 2023, Scholarly Research Journal for Humanity Science & English Language इन उपायों को लागू करने के शलए, आपको भारत के मूल शनवाशसयों के कई वगों की जस्थशत और सींभावनाओीं को ध्यान में रखना िोगा, जो अपने साथ देशवाशसयों को शशजक्षत करने के मित्वपूणा कताव्य को शनभाने के शलए तैयार िैं। शैजक्षक सेवाओ के शलए 1831 ई० के पेंशन शनयमों के देर से ब्रवस्तार को, इस सींबींध में सींशोधन के बाद अपनाने की आवश्यकता िो सकत िै; और िमारी इच्छा िै टक भब्रवष्य के शलए स्कूलमास्िर का पेशा, भारत के मूल शनवाशसयों को ऐसे प्रलोभन दे सकता िै जैसा टक सावाजशनक सेवा की अन्य शाखाओीं में आयोजजत टकया जाता िै। स्कूल-मास्िरों के ऐसे वगा का प्रावधान, जैसा टक िम देखना चािते िैं, समय का काम िोना चाटिए और "स्वदेश स्कूलों" को प्रोत्साटित करने में, िमारा वतामान उद्देश्य उन शशक्षकों को बेितर बनाना िोना चाटिए, जजन्िें िम अपने अशधकार में पाते िैं, और इस बात का ध्यान रखना िोगा टक इस वगा के व्यब्रक्तयों की शत्रुता को भडकाने के शलए निी, जजसका प्रभाव शनम्न वगों के मन पर बित अशधक िोता िै, जिाीं तक सींभव िो इससे बचा जाए। इसके अलावा, उन्िें नामाल स्कूलों और कक्षाओीं में भाग लेने के शलए प्रोत्साटित टकया जाना चाटिए जो इसके बाद अध्यापकों के इस वगा के शलए स्थाब्रपत टकए जा सकते िैं। स्कूल-मास्िरों के प्रशशक्षण के शलए समान मित्व स्थान य स्कूल-पुस्तकों का प्रावधान िै, जो स्कूलों की शनचल कक्षाओीं में अध्ययन का उद्देश्य िोने से यूरोप य जानकारी प्रदान करेगा। इसमें कोई सींदेि निीीं िै टक इस टदशा में ब्रपछले वर्ों में कुछ काया टकया गया िै, लेटकन अभ भ बित कुछ टकया जाना बाकी िै और िम मानते िैं टक 1825 ई० में श्र एम० एलटफीं स्िन द्वारा अनुशींशसत पाठ्यिम को अपनाने से कशमयों को आसान से और तेज से पूरा टकया जा सकता िै, अथात- " ब्रवशेर् पुस्तकों का सबसे अच्छा अनुवाद या शनटदाष्ट भार्ाओीं में सवोत्तम प्राथशमक ग्रींथों को ब्रवज्ञाब्रपत टकया जाये और इसके शलए उदारतापूवाक पुरस्कार टदया जाये(पृ० 383-384)।
डॉ० अभय कुमार शमाा (Pg. 13989-14003) 13999 Copyright © 2023, Scholarly Research Journal for Humanity Science & English Language वुड टडस्पैच में अध्यापकों के प्रशशक्षण िेतु जो सुझाव टदए गए उसके अनुपालन में बींगाल सरकार द्वारा भारत सरकार को 16 नवींबर 1854 को शलखे एक पत्र में किा गया टक वतामान में सींस्कृत मिाब्रवद्यालय में िमारे शलए बित अच्छे स्कूल मास्िरों को प्रशशजक्षत टकया जा रिा िै, जो टक प्रधानाध्यापक के िाथों में बींगाल के शलए नॉमाल स्कूल की तरि िोता जा रिा िै। टकींतु ब्रबिार के शलए एक नॉमाल स्कूल की स्थापना ब्रवचारण य िै। इन्िोंने यि भ सुझाया टक इस क्षेत्र में अब जो भ प्रयोग टकए जाएाँ, वे पिले सरकार की एजेंशसयों द्वारा टकए जाएाँ और सरकार को चाटिए टक इसे अपने िाथों में ले ले (ररचे,1922, पृ० 102)। 30 टदसींबर 1854 ई० को लॉडा डलिौज द्वारा एक ब्रववरण पत्र प्रस्तुत टकया गया, जजसमें उन्िोने किा टक नॉमाल स्कूलों की स्थापना बित िी आवश्यक िै और स्थान य सरकारों को ब्रबना टकस सींकोच के इस सींबींध में टडस्पैच के सुझावों को अपनाने में प्रसन्नता िोग । इस व्यवसाय को वाींछन य बनाने की पयााप्त आवश्यकता और मित्व को देखते िए स्थान य सरकारों को इींग्लैंड से योग्य व्यब्रक्तयों को बुलाने का अशधकार टदया जाना चाटिए और इन्िें िमारे कॉलेजों में प्रोफेसर के रूप में सेवा देने िेतु भारत आने वाले व्यब्रक्तयों के बराबर उदार वेतन देने की कोशशश करन चाटिए(पृ० 406)। 13 फरवरी 1855 को भारत सरकार द्वारा बींगाल सरकार को शलखे पत्र में पररर्द के गवनार जनरल स्थान य भार्ा के शशक्षकों के प्रशशक्षण िेतु नॉमाल स्कूलों को स्थाब्रपत करने की आवश्यकता से बित प्रभाब्रवत िए और इस सींबींध में लेजफ्िनेंि गवनार को गींभ रतापूवाक ध्यान देने की शसफाररश की (पृ० 103)। अध्यापकों के प्रशशक्षण िेतु कींपन के अशधकाररयों द्वारा टदए गए सुझावों को लागू करने के बाद भ अध्यापकों की कम को लगातार मिसूस टकया जा रिा था। इस सींबींध में 7 अप्रैल 1859 ई० के टडस्पैच में किा गया टक - जब से भारत में शशक्षा की प्रगशत को बढावा देने के उपाय टकए गए िैं, स्कूलों के ब्रवशभन्न वगों के शलए कुशल अध्यापकों की कम से बडी कटिनाई का अनुभव टकया गया िै, न केवल उच्च शनयुब्रक्तयों के शलए बजकक शमटडल स्कूलों के प्रभार के शलए भ । स्थान य स्कूलों के शलए स्थान य आपूशता स्पष्ट रूप से अपररिाया थ (पृ० 434)। इसके साथ िी इस टडस्पैच में यि भ आशींका
डॉ० अभय कुमार शमाा (Pg. 13989-14003) 14000 Copyright © 2023, Scholarly Research Journal for Humanity Science & English Language व्यक्त की गई थ टक प्रशशक्षण सींस्थाओीं को उस स मा तक निीीं चलाया गया, जजस पर कोिा ऑफ डायरेक्िर ने ब्रवचार टकया था। 1854 ई० के टडस्पैच में शनटित एींग्लोवनााकुलर के साथ-साथ वनााकुलर स्कूलों के शलए भ प्रशशक्षण सींस्थाओीं की आवश्यकता से मिामटिम सरकार भ सिमत िैं। जजन ब्रवद्यालयों में अींग्रेज पढाया जाता िै उनमें प्रशशजक्षत अध्यापकों की कम के कारण अींग्रेज शशक्षण में आई लगातार अक्षमता को सभ ररपोिों में दशााया गया िै। इस कम की पूशता िेतु एक मात्र साधन इस देश के सक्षम व्यब्रक्तयों की शनयुब्रक्त िै और मैं अनुरोध करता ि टक इस प्रयोजन िेतु आप जजन उपायों का प्रस्ताव कर सकते िैं उनके बारे में शनजश्चत ब्रववरण प्रस्ताब्रवत करें(पृ० 442)। उपरोक्त प्रयासों के पररणाम स्वरूप अध्यापकों के प्रशशक्षण िेतु नॉमाल स्कूलों की स्थापना में वृब्रि िई। इस चतुथाक के अींत तक न केवल भारत सरकार बजकक स्थान य सरकारों के साथ िी साथ शनज सींस्थाओीं एवीं शमशनररयों ने भ इस टदशा में मित्वपूणा योगदान टदया। 4. 19व शताब्दी के चतुथा चतुथाक (1876-1900) में ब्रिटिश न शतयों में अध्यापक शशक्षा 19व शताब्दी के इस अींशतम चतुथाक के प्रारींभ तक भारत के लगभग सभ प्राींतों में अध्यापकों के प्रशशक्षण िेतु नॉमाल स्कूलों की स्थापना त व्र गशत से िई थ , टकींतु 1875 ई० के बाद इन स्कूलों की सींख्या में लगातार कम आई। इस दौरान वर्ा 1880 ई० में लॉडा ररपन को भारत का गवनार जनरल शनयुक्त टकया गया। इन्िोंने यिाीं की शैजक्षक गशतब्रवशधयों की जाींच िेतु 3 फरवरी 1882 ई० को भारत य शशक्षा आयोग की शनयुब्रक्त की। गवनार जनरल की कायाकाररण सभा के सदस्य सर ब्रवशलयम िींिर को इस आयोग का अध्यक्ष शनयुक्त टकया गया। सर ब्रवशलयम िींिर के नाम पर इस आयोग को िींिर कम शन के नाम से भ जाना जाता िै। इस आयोग ने शशक्षा के ब्रवशभन्न ब्रबदओ के सींदभा में अपने सुझाव एवीं शसफाररशों को प्रस्तुत टकया था। इनके सुझावों में प्रमुख था शशक्षा को स्थान य शनकायों शनकायों को सौंप देना। ऐसा िी सुझाव अध्यापकों के प्रशशक्षण िेतु भ टदया जो शनम्नशलजखत िै-
डॉ० अभय कुमार शमाा (Pg. 13989-14003) 14001 Copyright © 2023, Scholarly Research Journal for Humanity Science & English Language 1. नॉमाल स्कूलों की आपूशता चािे वि सरकारी िो या सिायता प्राप्त इतना स्थान यकृत िो टक प्रत्येक शनरीक्षकों के अध न आने वाले मींडलों (टडव जन) के सभ प्राथशमक ब्रवद्यालयों, चािे वि सरकारी िो या सिायता प्राप्त, उनकी स्थान य आवश्यकताओीं को पूरा कर सके। प्राथशमक शशक्षा के शलए आवींटित प्राींत य शनशधयों पर प्रथम अशधकार इसके शनदेशन एवीं शनरीक्षण की लागत और पयााप्त नॉमाल स्कूलों के प्रावधान का िै (ररपोिा ऑफ द एजुकेशन कम शन,1882, पृ० 175)। 2. शशक्षण के शसिाींत और अभ्यास में एक परीक्षा आयोजजत की जाए, जजसमें सफलता के बाद िी टकस भ सरकारी या सिायता प्राप्त माध्यशमक ब्रवद्यालयों में अध्यापक के रूप में स्थाई रोजगार िेतु एक शता जोडा जाए (पृ० 254)। 3. एक नॉमाल स्कूल में ‘शशक्षण के शसिाींतों और अभ्यास में अनुदेशन’ के पाठ्यिम में भाग लेने के इच्छक स्नातकों को दसरों की तुलना में प्रशशक्षण के एक छोिे पाठ्यिम से गुजरना पडेगा (पृ० 254)। आयोग द्वारा टद गई सुझावों काई उपरान्त अध्यापक शशक्षा के क्षेत्र में प्रशशक्षण सींस्थाओीं की स्थापना में जो कम आई थ , उसमें एक बार पुन: वृब्रि आरम्भ िई, जो 19व शताब्दी के अन्त तक जारी रिी। शनष्कर्ा उपरोक्त ब्रववरणों के आधार पर शनष्कर्ा रूप में यि किा जा सकता िै टक 19व शताब्दी के प्रारींभ में ब्रिटिश भारत में अध्यापकों के प्रशशक्षण िेतु अध्यापक शशक्षा का सुचारू रूप से प्रारम्भ निीीं िआ था। इस शताब्दी के प्रारम्भ में ब्रिटिश भारत के ब्रवशभन्न प्राींतों के गवनार द्वारा इस टदशा में सुझाव एवीं शसफाररशें प्रस्ताब्रवत की गईं । इसक़े अन्तगात सर थॉमस मुनरो, सर िेनरी पोटिींगर एवीं शम० इशलयि ने अपने ब्रववरण पत्रों में बेितर प्रशशजक्षत अध्यापकों की आवश्यकता पर बल देते िए, इस िेतु एक सामान्य भत्ते एवीं नामाल स्कूलों के गिन का सुझाव प्रस्तुत टकया। वर्ा 1854 ई० में
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ब्रिटिश पररयड बम्बई:
: सुपररींिेंडेंि
डॉ० अभय कुमार शमाा (Pg. 13989-14003) 14002 Copyright © 2023, Scholarly Research Journal for Humanity Science & English Language ब्रिटिश सरकार द्वारा सम्पूणा ब्रिटिश भारत की शशक्षा व्यवस्था को सुधारने के शलए वुड टडस्पैच लाया गया, जजसमें शशक्षक शशक्षा िेतु व्यवजस्थत रूप से सुझाव प्रस्तुत टकया गया। इसके उपरान्त वर्ा 1859 ई० में प्रस्तुत टडस्पैच में प्रशशजक्षत अध्यापकों की कम को बताते िए इस कम की पूशता िेतु इस देश के सक्षम व्यब्रक्तयों की शनयुब्रक्त सुझाव प्रस्तुत टकया गया। इसके पररणाम स्वरूप ब्रिटिश भारत के सींपूणा प्राींतों में अध्यापकों के प्रशशक्षण िेतु नामाल स्कूलों की स्थापना में त व्र वृब्रि िई। तदपरात 1875 ई० तक प्रशशक्षण िेतु नामाल स्कूलों की स्थापना में त व्र वृब्रि िई, टकींतु इसके उपरान्त नॉमाल स्कूलों की स्थापना में िो रिी वृब्रि में कम आने लग । इस समय 1882 ई० में िींिर कम शन का गिन टकया गया जजसमें नॉमाल स्कू लों की आपूशता को इतना स्थान यकृत करने का सुझाव प्रस्तुत टकया गया, जजससे प्रत्येक शनरीक्षकों के अध न आने वाले मींडलों के सभ ब्रवद्यालयों की स्थान य आवश्यकताओीं को पूरा टकया जा सके । इसके साथ िी साथ शशक्षण के शसिाींत और अभ्यास में परीक्षा आयोजजत करने की भ शसफाररश की गई। पररणाम स्वरूप सींपूणा भारत के ब्रिटिश प्राींतों में अध्यापक प्रशशक्षण सींस्थाओीं की सींख्या में वृब्रि िई जो आने वाल 20व शताब्दी में अध्यापक शशक्षा के क्षेत्र में एक अभूतपूवा उजन्न्त िेतु मजबूत आधारशशला प्रस्तुत की। सन्दभा ग्रन्थ
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डॉ० अभय कुमार शमाा (Pg. 13989-14003) 14003 Copyright © 2023, Scholarly Research Journal for Humanity Science & English Language सत्थ अनाधन, एस० (1894). टिस्ट्ीऑफ़एजुकेशनइनमिासप्रेशसडेंस मिास: श्र शनवास वरदाचारी एण्ड कम्पन , पृ० 295. नाथा वेस्िना एण्ड अवध एजुकेशन कशमशन ररपोिा (1884). द नाथा वेस्िना प्रोब्रवींसेस एण्ड अवध प्रोब्रवींशशयलकमेिीब्रवथएब्रवडेंसिेकनब्रबफोरदकमेिीएण्डमेमोररयलएड्रेस्डि ू दएजुकेशन कशमशन कलकत्ता: सुपररींिेंडेंि ऑफ गवनामेंि ब्रप्रींटिींग, पृ० 491. बॉम्बे एजुकेशन कशमशन ररपोिा (1884). बॉम्बेप्रोब्रवींशशयलकमेिी (खण्ड 1) कलकत्ता: सुपररींिेंडेंि ऑफ गवनामेंि ब्रप्रींटिींग, पृ० 222. बींगाल एजुकेशन कशमशन ररपोिा (1884). दबींगालप्रोब्रवींशशयलकमेिीब्रवथएब्रवडेंसिेकनब्रबफोरद कमेिीएण्डमेमोररयलएड्रेस्डि ू दएजुकेशनकशमशन कलकत्ता: सुपररींिेंडेंि ऑफ गवनामेंि ब्रप्रींटिींग, पृ० 416. मिास एजुकेशन कशमशन ररपोिा (1884). दमिासप्रोब्रवींशशयलकमेिीब्रवथएब्रवडेंसिेकनब्रबफोरद कमेिीएण्डमेमोररयलएड्रेस्डि ू दएजुकेशनकशमशन कलकत्ता: सुपररींिेंडेंि ऑफ गवनामेंि ब्रप्रींटिींग, पृ० 216. एजुकेशन कम शन ररपोिा (1883). ररपोिा ऑफ द एजुकेशन कमशन-1882(भाग एक).कलकत्ता: मैनेजर ऑफ पजब्लकेशन, पृ० 350.