मार्च-अप्रैल 2014 विश्व विन्दी ददिस के दौरान आयोवित प्रवतयोविताएँ विद्यार्थियं द्वारा समूि-िान
कमचर्ाररयं द्वारा समूि-िान
समापन समारोि छात्रों द्वारा प्रािचना िीत
प्रो.रमा शंकर िमाच द्वारा स्िाित भाषण
विद्यार्थियं द्वारा कायचक्रम
वनदेशक मिोदय एिं अवतवि मिोदय द्वारा भाषण
दशचक
पुरस्कार वितरण
कविता आओ सािी अब कु छ पल सािर दकनारे सैर कर आते िं बादल अपना ग़म आँवियं मं रो र्ुका िै अब वसर्च दूर आसमानं मं खोए रिता िै अब यि घाि ििरा िो र्ुका िै; अब अल्र्ािो मं कु छ दोिराया निं िा सकता िै कु छ तुम मेरे आखं मं देख सकते िो कु छ मं तुम्िारी आँखं मं पिर्ान सकता हूँ; अब कु छ बोलने की ज़रुरत निं िै आओ अब र्ंद खामोश पल ऐसे सािर दकनारे काट आते िं लिरं के , बादलं के संि सैर कर आते िं
डॉ. प्रभु राििोपाल सिायक प्राध्यापक यांवत्रोकीय इं िीवनयरी विभाि
पहे लियाँ 1. एक िुर्ा और बत्तीस र्ोर बत्तीस रिते तीनं ओर बारि घंटे करते काम बाकी समय करं आराम
- दाँत
2. दो से हुए र्ार र्ार से हुए सोलि यि िै इस र्ाल र्ार नाम तो इसका, बोलो
- िनसंख्या
3. मेरे वबना किाँ पढ़ाई मेरे वबना किाँ वलखाई विसके पास निं हूँ मं िि िाना िाता अनपद और िँिार
- कलम
4. पैर निं पर र्लता हूँ बताओ मं कौन हूँ
- समय
5. बच्चे निं खा पाते मुझको बड़े बूड़े भी शायद िी हुए लाल रंि िै मेरा बताओ तो क्या हूँ मं
- वमर्च
श्रीमती िी. सीतालक्ष्मी अिीक्षक, डीन (प्रशासन) का कायाचलय
िह कहती है सुनो जाना िो किती िै सुनो िाना मोिब्बत मोम का घर िै। तवपश-ए-बद-िुमानी की किं वपघला ना दे इसको ॥ मं किता हूँ विस ददल मं ज़रा भी बद-िुमानी िो ििाँ कु छ ओर िो तो िो मोिब्बत िो निी सकती॥ िो किती िै सदा ऐसे िी क्या तुम मुझको र्ािोिे। दक मं इस कमी कोई ििारा कर निं सकती॥ मं किता हूँ मोिब्बत क्या िै ये तुमने वसखाया िै मुझे तुमसे मोिब्बत के वसिा कु छ भी निी आता॥ िो किती िै िुदाई से बहुत डरता िै मेरा ददल। दक खुद को तुम से िट कर देखना मुमदकन निी िै अब॥ मं किता हूँ यिी िादसे बहुत मुझको सताते िं मिर सर् िै मोिब्बत मं िुदाई साि र्लती िै॥ िो किती िै बताओ क्या मेरे वबन िी सकोिे तुम। मेरी बातं मेरी यादं मेरी आँखं भुला दोिे तुम॥ मं किता हूँ कभी ऐसी बात पर सोर्ा निी मंने अिर एक पल को भी सोर्ूँ तो साँसे रुकने लिती िं॥ िो किती िै तुम्िं मुझसे मोिब्बत इस कदर क्यं िै। दक मं एक आम सी लड़की तुम्िं क्यं खास लिती िै॥ मं किता हूँ कभी खुद को मेरी आँखं से देखो मेरी दीिानिी क्यं िै
नािंद्र कु मार
खुद िी िान िाओिी॥
विद्यािी, िांतररक्ष इं िीवनयरी विभाि, एई12डी021
मानि जीिन मं भाषा की भूलमका भाषा का मानि िीिन के िर पिलू मं मित्त्िपूणच भूवमका िं। भाषा िो सािन, िं विसके ज़ररये िम अपने दृविकोण, भािनाओं एिं विर्ारं को दूसरं से स्पि करते िं। भाषा कई तरि के िोते िं- वलवखक, मौवखक तिा सांकेवतक। दैवनक िीिन के छोटे से छोटे कायच भी भाषा से िुड़े हुए िोते िं। उदािरण के वलए, ट्रैदर्क वसग्नल की बवत्तयं की भाषा लोिं के यातायात का वनयंत्रोण करती िं। भाषा िमं अपनी िाि-भाि तिा आिाज़ की लििा के िररये,संिाद के वलए सक्षम बनाती िं और यिी संिादनशीलता लोिं के बीर् के मेलभाि, बंिनं तिा सवम्मवलत कायचिािी का प्रमुख कारण िै। इतने बहुसंख्यक भाषाओं के उद्गम कई सालं से विद्वानं एिं भाषा-िैज्ञावनकं के चिर्ता का कारण रिा िै। कु छ संस्कृ वतयं के पुराणं के अनुसार, एक िक्त ऐसा िा, िब लोिं के बीर् एक िी भाषा प्रर्वलत िी। दकन्तु, एक देिता ने क्रुद्ध िोकर लोिं के बीर् एक दूसरे के वलए ईर्षयाच और भ्रम ििाकर उन्िं अलि कर ददया। तब से, िर खंड के लोिं ने अपनी अलि भाषा का प्रर्ार शुरू कर ददया। यि िानना अवनिायच िं दक संिाद एक पारस्पररक उपकरण िै और विदेश मं पढ़ने और रिने की इच्छा रखने िाले लोिं को आिश्यक िै, दक िे ििाँ की भाषा और संस्कृ वत से पररवर्त िो। र्ािे िो यात्रोा उद्योि के वलए िो या दर्र के िल मनोरं िन के वलए। िर देश के नािररक उम्मीद करते िं दक ििाँ के वनिासी, उनके रिन-सिन, िीिन शैली, भाषा एिं संस्कृ वत से परररवर्त रिे। विश्व के दशचकं के बीर् अपनी पिर्ान िताने के वलए,कं पनी ि अन्य संिठनं को भाषा मं प्रिाढ़ ज्ञान प्राप्त करना अवनिायच िै। िर देश के लोिं के वलए भाषा बहुत िी मित्त्िपूणच िै। सर् किा िाये, तो विश्व की भाषाओं के बीर् प्रत्यक्ष रूप से अंतर तो निं िै। अंतर िो, तो भी के िल उनकी िणचमाला, उच्चारण तिा व्याकरण मं िं। अतः, िर व्यवक्त को भाषा के ज़ररये, अपने देशिावसयं तिा सििीिकं की संस्कृ वत को समझने और परखने का प्रयास करना र्ाविए। दकसी भाषा मं िमारा ज्ञान, दूसरं के विर्ारं एिं उनकी संस्कृ वत के प्रवत िमारे सम्मान का संकेत करता िै। इन सबके अवतररक्त भाषा का एक मनोिैज्ञावनक रूप भी िै िो की बहुत मित्त्िपूणच िै। िब िम अपने ग्रािकं से, दकसी अनुिादक की सिायता के वबना उनकी अपनी भाषा मं िाताचलाप करते िं, तो िमारे बीर् विश्वास और ईमान बढ़ता िं, िो भविर्षय मं िमारे मज़बूत व्यापाररक सम्बन्िं का पिला कदम िै,तिाआिे र्लकर िमारे व्यािसावयक वसवद्ध का कारण बनता िै। यि खुशी की बात िै दक आिकल ज़्यादा से ज़्यादा शैवक्षक एिं नौकरी की संस्िाएँ भाषा के मित्त्ि को स्िीकार कर रिे िै और छात्रों एिं आिेदकं की भती के वलए भाषा का ज्ञान योज्ञता के रूप मं अपनाया िा रिा िै। भाषा के ज़ररये िम अपने अनुभिं को दूसरं से स्पि करते िं। ज़रा सोवर्ए! अिर िमारे बच्चं मं मातृ भाषा मं युवक्त विकवसत करने की नौबत आए, िबदक िम उनकी मातृ भाषा मं ज्ञान तथ्य के रूप मं स्िीकारने की क्षमता रखते िं। इन तकच -वितरकं से यिी उभरता िै, दक मानि िीिन मं भाषा एक बहुत िी मित्त्िपूणच भौवमक वनभाती िै।
राखी, छात्रोा, मानविकी ि समाि विज्ञान विभाि
भाषा मात्रो पररितचन िी स्िायी िै, समय बिता िै, बदलता िै, अपने वर्न्ि छोड़ता हुआ र्ला िाता िै अतीत की विस्रवतया बनने को, पररितचन की यि सतत प्रदक्रया विकास र्क्र िै । विकास के इस उद्क्क्रम मं भाषा एक प्रमुख तत्ि िै । भाषा दो विवभन्न व्यवक्तयं के मध्य िैर्ाररक आदान प्रदान का एक माध्यम िै । मानिीय सभ्यता के विकास के क्रम मं मनुर्षय ने भाषा को विकवसत दकया िै । भाषाए तो पशु एिं पवक्षयं की सांकेवतक ध्िवन को भी किा िा सकता िै, लेदकन बोवद्धक स्तर के अनुरूप भाषाओ का स्तर भी विकवसत िोता िया िै। मनुर्षय के अनेको समूिं ने अलि अलि पररक्षेत्रोो मं समान्तर काल मं भाषा का विकास दकया िै अतएि प्रत्येक क्षेत्रो अपनी एक अलि भाषा रखता िै। क्षेत्रो विशेष की भोिोवलक संरर्ना, सांस्कृ वतक िवतविविया, पारस्पररक सम्बन्ि एि संघषो ने भाषा के इस विकास को प्रभावित दकया िै । विकास काल के इस र्क्र मं कु छ भाषाए विलुप्त भी हुई िै िैसे की संस्कृ त एिं प्राकृ त । तो ििी कु छ भाषाओ के समािम से नयी भाषाओ का िन्म भी हुआ िै, िैसे की चििदी एिं अरबी के समािम से उदूच का िन्म हुआ । भाषाओ का विलुवप्तकरण या नयी भाषाओ का िन्म रािनीवतक, सामाविक एिं व्यािसावयक आिश्यकताओ के कारण िी िोता िै। उदािरण के वलए ितचमान समय मं अंग्रेिी भाषा का मित्ि इसकी प्रार्ाररकता एिं सििता के कारण बढ िया िै। लेदकन दकसी भी पररवस्िती मं समाि विशेष के वलए िैर्ाररक आदान प्रदान का प्रभािी माध्यम उस क्षेत्रो विशेष की भाषा िी िोती िै क्यूंदक यि उस क्षेत्रो के िैर्ाररक, सांस्कृ वतक, भोिोवलक एिं व्यािसावयक संघषो के र्लस्िरूप विकवसत हुई िै। इसीवलए किा भी िया िै "वनि भाषा उन्नवत अिे, सब उन्नवत को मूल" अिाचत अपनी भाषा का उपयोि करना विकास को आसान बनाता िै और यिी विकास का सार िै। लेदकन साि िी िमं यिाँ यि भी समझना िोिा की भाषा को लेकर िम वस्िर निं िो सकते। अिर पररितचन िमारी आिश्यकता िै तो िमं अपनी भाषा मं समय के साि पररितचन लाने िोिे तादक यि िैर्ाररक, सांस्कृ वतक, भोिोवलक एिं व्यािसावयक आिश्यकताओं के अनुरूप िो। शेष तो समय िी बताएिा लेदकन भाषा वनसंदि े विकास की िुरी िै। अंकेश िैन विद्यािी विद्युत इंिीवनयरी विभाि