How to cite this paper: Dinesh Mohan Joshi | Girishbhatta. B "Vararuchi and Madhava's Chandravakya" Published in International Journal of Trend in Scientific Research and Development (ijtsrd), ISSN: 2456 6470, Volume 6 | Issue 6, October 2022, pp.1781 1792, URL: www.ijtsrd.com/papers/ijtsrd52171.pdf
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International
(IJTSRD) Volume
Issue
September-October
@ IJTSRD | Unique Paper ID IJTSRD52171 | Volume 6 | Issue 6 | September October 2022 Page 1781 वररुचिएवं माधवके िन्द्रवाक्य चिनेश मोहनजोशी1 ,चिरीशभट्ट. चि2 1मानविकी एिं समाज विज्ञान विभाग, भारतीय प्रौद्योवगकी संस्थान, मुम्बई 2वसद्धान्तज्यौवतषशास्रे विद्यािाररविशोिच्छात्तरः रावरयसस्कतविश्वविद्यालय , वतरुपवत
Journal of Trend in Scientific Research and Development
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6,
2022 Available Online: www.ijtsrd.com e-ISSN: 2456 6470
सिद्धान्त ज्योतिष के तितिध ग्रन्ोों में ग्रहिाधन करने के तनयमोों का प्रतिपादन तकया गया है । प्रायः िभी आचायों ने ग्रहिाधन के सिये एक जैिी पद्धति का अनुिरण तकया है । चन्द्रिाधन के िन्दभभ में केरि के प्रसिद्ध गसणिज्ञ िररुसच ने एक अनूठी तिसध का अतिष्कार तकया सजिको ''चन्द्रिाक्य'' के नाम िे जाना जािा है । के .िी. शमाभ जी के अनुिार िररुसच का जन्म 400 A. D के आिपाि हुआ था । िररुसच ने 248 चन्द्रिाक्योों का तनमाभण
।
प्रारम्भ
पहुोंच
एक भगण कहिािा है । चन्द्रमा को इि प्रकार का एक भगण पूरा करने के सिये िगभग 27.5 तदन का िमय िग जािा है । एिे 9 भगण पूरे करने के सिये िररुसच ने 248 तदनोों को सिया क्यूोंतक चन्द्र के 9 भगण पूरे होने पर 248 तदन िग जािे हैं । 248 एक पूणाभङ्क है अिः इिको स्वीकार तकया गया । इिी प्रकार हम 110 भगण भी िे िकिे हैं । एिी स्थिति में 2992 चन्द्रिाक्योों की रचना करनी पडेगी । “िाक्य तिसध” अन्य िैद्धास्थन्तक तिसधयोों िे पूणभ रूप िे सभन्न है । सिद्धान्तग्रन्ोों में ििभप्रथम ित्कािीन अहगभण िाधन करके मध्यग्रह प्राप्त तकया जािा है। ित्पश्चाि् मन्दातद िोंस्कारोों िे स्फुटग्रह का िाधन तकया जािा है परन्तु चन्द्रिाक्य के िन्दभभ में एिा नहीों है । िास्ति में अगर देखा जाये िो िाक्य का अथभ शब्द िमूह है परन्तु केरिीय ज्योतिष परम्परा में िाक्य का अथभ एक एिे पद िे हो सजििे िङ्ख्यायोों का बोध हो जािा है । िररुसच एिों माधि ने स्फुटचन्द्र िाधन के सिये एिे िाथभक िोंस्कृि िाक्योों की रचना इिनी कुशििा िे की है तक अगर िाक्य को कटपयातद िङ्ख्या पद्धति िे तनरीक्षण तकया जाये िो यह िाक्य अङ्कोों में पररितिभि हो जािे हैं जो तक चन्द्र के तनसश्चि अन्तराि में स्पष्ट मान हैं । केरि में गसणि एिों खगोि शास्त्र का तिकाि आयभभट के सिद्धान्तोों के आधार पर हुआ था परन्तु ित्कािीन केरि के तिद्वानोों ने यह अनुभि तकया तक आयभभटीय ग्रन् के आधार पर जो ग्रहिाधन अथिा ग्रहण काि की जो गणना की जा रही है िह प्रत्यक्ष िे कुछ अिग है इिी बाि को ध्यान में रखिे हुये केरि के प्रसिद्ध गसणिज्ञ हररदत्त (650 700 A. D) ने आयभभटीय के ग्रहभगणोों में शकाब्द िोंस्कार का उपयोग करिे हुये “ग्रहचारतनबन्धन” नामक ग्रन् की रचना की । इिी नई पद्धति को हररदत्त
ग्रन्ोों की रचना का आधार ''परतहि'' पद्धति ही है । हररदत्त ने अपने ग्रन् “ग्रहचारतनबन्धन” में मन्द और शीघ्रफि की िूक्ष्मिा के सिये िाक्योों का प्रयोग तकया था । 13िीों शिाब्दी के एक अन्य गसणिज्ञ पुिुमन िोमयाजी ने स्फुटग्रहिाधन के सिये ''िाक्यकरण'' नाम के ग्रन् की रचना की । कुप्पन्नाशास्त्री एिों के . िी . शमाभ जी ने इि ग्रन् का रचनाकाि 1282 1316 A. D माना है । िररुसच के िाक्योों के आधार पर चन्द्रस्पष्ट जैिा तक हम प्रारम्भ में भी चचाभ कर चुके हैं तक िररुसच ने 248 चन्द्रिाक्योों की रचना की थी और उन िाक्योों को कटपयातद पद्धति िे अङ्कोों में पररितिभि तकया जािा है । उदाहरण स्वरूप हम िररुसच के प्रथम िाक्य ''गीनभः श्रेयः '' को िेिे हैं । कटपयातद पद्धति िे इि िाक्य का मान 1203 प्राप्त होिा है सजििे 0r12o03′ यह मान प्राप्त होिा है, यही प्रथम चन्द्रिाक्य का मान है । िाक्योों को प्रयोग करने की तिसध कुछ इि प्रकार िे है िूयोदय के िमय अगर चन्द्रमा का मान उिके मन्दोच्च के मान के िमान है िो उि चन्द्रमान में क्रमशः िाक्योों के मान को जोड देने िे िूयोदयकािीन स्फुटचन्द्र का मान प्राप्त होिा है । मान िीसजये x उि तदन का चन्द्रस्फुट है सजि तदन चन्द्र और इिके मन्दोच्च का मान िमान है और हमें उि तदन िे आगे के 5िें तदन का चन्द्रस्पष्ट अपेसक्षि है, IJTSRD52171
तकया
तकिी एक नक्षत्र िे
करके पुनः चन्द्र का उिी नक्षत्र िक
जाना
ने “परतहि” नाम की िोंज्ञा दी । िाक्यकरण, िेण्िारोह, स्फुटचन्द्रातप्त इत्यातद
International Journal of Trend in Scientific Research and Development @ www.ijtsrd.com eISSN: 2456 6470 @ IJTSRD | Unique Paper ID IJTSRD52171 | Volume 6 | Issue 6 | September October 2022 Page 1782 इि स्थिति में हम x के मान में 5िें तदन के चन्द्रिाक्य के मान को जोड देगें । एिा करने पर अमुक तदन का िूयोदयकािीन स्पष्ट चन्द्र होगा । िाररणी 2 में देखने पर हमने यह पाया तक 5िाों चन्द्रिाक्य ''धन्येयों नारी'' है एिों इिका मान 2r1o19′ है, इिको x में जोडने पर स्पष्टचन्द्र प्राप्त होिा है । इिी िरह िे हम िभी तदनोों का िूयोदयकािीन स्फुटचन्द्र इिी तिसध िे प्राप्त कर िकिे हैं । मन्दोच्च एिों चन्द्रमान की िमानिा को हम नीचे तदये गये सचत्र िे िमझ िकिे है । इि सचत्र में बिन्त िम्पाि को Г कहा गया है यहाों िे हम ग्रहिाधन के सिये गणना करिे हैं । यहाों Mचन्द्र है एिों Uमन्दोच्च है । ГOU एिों ГOMकोण θ हैं जोतक क्रमशः मन्दोच्च एिों चन्द्र का मान हैं जोतक िमान है । एिी आकाशीय स्थिति होने पर ही चन्द्रिाक्योों को उपयोग में िाया जा िकिा है । चन्द्र एिों मन्दोच्च की मध्यगति पर स्फुट चन्द्र तनभभर करिा है । ''िाक्यकरण' एिों ''स्फुटचन्द्रातप्त'’ में जो चन्द्र एिों मन्दोच्च मध्यगति का मान तदया गया है िही मान िूि रूप िे ''करणपद्धति'’ में ''शकाब्द िोंस्कार'’ के रूप में तदया गया है । ''शकाब्द िोंस्कार'’ इत्यातद इि शोध िेख के तिषय नहीों हैं अिः इनकी तिस्तृि चचाभ इि शोध िेख में नहीों की जायेगी । शोधिेखन का मुख्य उद्देश्य शोध छात्रोों एिों पाठकोों को चन्द्रिाक्य पद्धति िे अिगि कराना है िातक िह भी इि तदशा में शोध कर िकें । माधि के िाक्योों के आधार पर चन्द्रस्पष्ट िङ्गमग्राम के माधि (1340 1425 A. D) ने िररुसच का अनुिरण करिे हुए पुनः अपने ग्रन् ''िेण्िारोह'' एिों ''स्फुटचन्द्रातप्त'' में 248 चन्द्रिाक्योों की रचना की जो तक िररुसच के चन्द्रिाक्योों िे असधक िूक्ष्म फि देने िािे हैं । िररुसच के चन्द्रिाक्य किा िक ही ग्रहस्पष्ट मान देिे हैं परन्तु माधि के चन्द्रिाक्य तिकिा िक जो तक गसणिागि स्फुटचन्द्र के मान के िुल्य पाये जािे हैं । ''िेण्िारोह'' एिों ''स्फुटचन्द्रातप्त'' में चन्द्रिाक्योों के िाधन के प्रकार बिाये गये हैं परन्तु िाक्य िाधन की युतियोों की चचाभ नहीों की गई है । पुिुमन िोमयाजी ने अपने ग्रन् ''करणपद्धति'' में युतियोों ितहि िाक्यिाधन की प्रतक्रया का प्रतिपादन तकया है । कटपयातद पद्धति चन्द्रिाक्योों के अथभ को िमझने के सिये कटपयातद पद्धति का ज्ञान अपेसक्षि है इिी कारण िे कटपयातद पद्धति को िाररणी 1 में दशाभया गया है । कटपयातद पद्धति के अनुिार व्यञ्जनोों को 1 िे 0 िक अङ्कोों िे द्योतिि तकया गया है । इि पद्धति के अन्तगभि स्वर को शून्य माना जािा है परन्तु िोंयुि स्वर का ग्रहण नहीों तकया जािा । 33 व्यञ्जनोों को ही अङ्कोों के माध्यम िे बिाया जािा है । िाररणी 1 के आधार पर शब्दोों का गसणिीय मान तनकािा जा िकिा है ।
International Journal of Trend in Scientific Research and Development @ www.ijtsrd.com eISSN: 2456 6470 @ IJTSRD | Unique Paper ID IJTSRD52171 | Volume 6 | Issue 6 | September October 2022 Page 1783 अङ्क 1 2 3 4 5 6 7 8 9 0 व्यञ्जन क ट प य ख ठ फ र घ ड ब ि घ ढ भ ि ङ ण म श च ि ष छ थ ि ज द ह झ ध ळ ञ न Table 1: कटपयातद पद्धति का तििरण िररुसच के अनुिार चन्द्रिाक्यशोधन प्रतक्रया चन्द्रिाक्योों में कािक्रम िे कोई तिकार न आ जाये इि बाि को ध्यान में रखकर आचायों ने िाक्यशोधन प्रतक्रया का प्रतिपादन तकया । िररुसच के चन्द्रिाक्योों के तनरीक्षण िम्बन्धी उद्धृि श्लोक “िाक्यकरण” िे सिया गया है जो इि प्रकार है । भिेि् िुखस्य राशीनाों अधं िाक्यों िु मध्यमम् । आतदिाक्यमुपान्त्यों च भििीति `भिेि् िुखम्' ॥ यत्राप्यक्षरिन्देहः ित्र िोंिाप्य `देिरम्' । त्यजेि् िद्गििाक्यातन, सशष्टों शोध्यों `भिेि् िुखाि्' ॥ रासशयोों के अधभ भाग में ''भिेि् िुखम्'' (248िाों िाक्य) जोड देने िे मध्यम िाक्य (124िाों) प्राप्त होिा है । आतदिाक्य में उपास्थन्तम िाक्य जोड देने िे “भिेि् िुखम्” िाक्य (248िाों िाक्य) प्राप्त होिा है । [अिः ] जब भी िाक्य िम्बन्धी अक्षर में िन्देह हो िो ''देिरम्''
को सिख िें एिों उिमें िे िाक्य [िन्देह िम्बन्धी िाक्य] को घटा दें । जो शेष िाक्य िङ्ख्या [घटाने पर ] आयेगी उिको [उि िाक्य िम्बन्धी मान को] “भिेि् िुखम्” (248िें िाक्य)
के माध्यम िे िमझने का प्रयाि करेंगे । श्लोक की प्रथम पति के आधार पर तनम्नसिसखि िमीकरण बनिा है इिी िमीकरण को निीन पद्धति िे इि प्रकार सिखा जा िकिा है इि िमीकरण में 0r27o44′ ''भिेि् िुखम्'' है जो तक अस्थन्तम िाक्य है । एिों 6r13o52′ 124िें चन्द्रिाक्य का मान है सजिको श्लोक में “मध्यमम्” कहा गया है । श्लोक की तद्विीय पति में “आतदिाक्यम्” िे असभप्राय प्रथम िाक्य िे है एिों “उपान्त्यम्” िे असभप्राय अन्त िािे िे पूिभ िाक्य िे है । प्रथम और उपान्त्य िाक्य के मानोों का योग 248िें िाक्य के मान के िुल्य हो जािा है जो तक कटपयातद में ''भिेि् िुखम्'' है । िररुसच का प्रथम चन्द्रिाक्य ''गीनभः श्रेयः '' है सजिका मान 12o03′ है एिों 247िें िाक्य का मान ''किेः शक्यम्'' 15o41′ है । इन दोनोों के योग िे 248िाों िाक्य ''भिेि् िुखम्'' प्राप्त होिा है सजिका मान 27o44′ है । इि िूत्र को तनम्नसिसखि प्रकार िे बिाया जा िकिा है । िाi + िा२४८ i = िा२४८ आधुतनक तिसध िे इिी िमीकरण को तनम्नसिसखि प्रकार िे सिखा जा िकिा है Vi + V248−i = V248 मान िीसजये i का मान 5 है िब यह िमीकरण तनम्नसिसखि प्रकार िे बनेगा V5 + V248−5 = V248 iका मान 1 िे िेकर 248 िक होगा । श्लोक की अतग्रम पतियोों में िाक्य िन्देह के िमाधान हेिु युति बिाई गयी है जो इि प्रकार है ििभप्रथम ''देिरम्'' (248) को िातपि करें । इिमें िे उि िाक्य को घटा िें सजिमें िन्देह है । जो भी शेष बचे उिके मान को ''भिेि् िुखम्'' (248िें िाक्य के मान) िे घटा
(248)
िे घटा दें । [िन्देह िािा िाक्य इि प्रतक्रया िे शुद्ध हो जायेगा] इि तिसध को हम उदाहरण
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जिों प्राज्ञाय
शशी िन्द्यः स्याि्
गोरितप्रयः
िनातन यत्र
अन्नों गोत्रश्री: रुष्टास्ते नागाः
सधगन्धः तकि पुरोगा अभीः
मान्यः ि कति: अररष्टनाशम्
बािो मे केश: कुशधाररण: इतष्टतिभद्यिे ि राजा प्रीि: िुगुप्रायोऽिौ सधगस्तु ह्रािः अङ्गातन यदा
कतिकण्ठिा कथा शीििम्पद्यानन्दः श्रीतिभना न मुकुन्दाि् तनराधारोऽतहराजः
तिकटधीः
2 वेण्वारोह एवं स्फटचन्द्राप्ति में “धनननकरो ननर्यर्ौ” दिर्ा गर्ा है प्िसका मान
8r 01o 17′ 35′′
8r 15o 00′ 42′′
8r 28o 29′ 20′′
9r 11o 42′ 31′′
9r 24o 40′ 06′′
10r 07o 22′ 48′′
10r 19o 52′ 04′′
11r 02o 10′ 04′′
11r 14o 19′ 32′′
11r 26o 23′ 37′′
8o 25′ 46′′ 20o 29′ 29′′ 1r 02o 38′ 12′′ 1r 14o 55′ 07′′ 1r 27o 23′ 03′′
2r 10o 04′ 11′′ 2r 23o 00′ 06′′
3r 06o 11′ 35′′ 3r 19o 38′ 33′′ 4r 03o 20′ 09′′ 4r 17o 14′ 47′′ 5r 01o 20′ 06′′ 5r 15o 33′ 17′′ 5r 29o 51′ 05′′ 6r 14o 10′ 03′′ 6r 28o 26′ 41′′
11r 02o 10′ 09
International Journal of Trend in Scientific Research and Development @ www.ijtsrd.com eISSN: 2456 6470 @ IJTSRD | Unique Paper ID IJTSRD52171 | Volume 6 | Issue 6 | September October 2022 Page 1785 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 श्रेष्ठा िा कथा िौख्यस्यानन्दः ध्यानों मान्यों तह धीरो तह राजा श्रुत्वास्य युद्धम् अभिच्छराद्धम् गोरिो ननु स्याि् द्रुमा धन्या नये इष्टों राज्ञः
धन्या
त्वों
क्षेत्रजः नीिे
कुयाभि्
तिद्येयों स्याि्
रक्षा राज्यस्य
नेत्रे
िेनािान्
धीराः
शािीनों
क्षीरों गोनो
रत्नचयो
िाः प्रजाः प्राज्ञाः स्युः अश्वानाों को योग्यः िद्वैरों तप्रयायाः धिस्त्वम्
राजा
िन्नद्धा
प्रधानम्
नयेि्
नृपः
कुबेरो
स्तेनानाों
7r 17o 22′ 08r 01o 17′ 8r 15o 01′ 8r 28o 29′ 9r 11o 42′ 9r 24o 40′ 10r 07o 23′ 10r 19o 52′ 11r 02o 10′ 11r 14o 19′ 11r 26o 24′ 8o 26′ 20o 30′ 1r 02o 38′ 1r 14o 55′ 1r 27o 23′ 2r 10o 04′ 2r 23o 00′ 3r 06o 12′ 3r 19o 39′ 4r 03o 21′ 4r 17o 15′ 5 r01o 20′ 5r 15o 33′ 5r 29o 51′ 6r14o 10′ 6r 28o 27′ 7r 12o 37′ 7r 26o 39′ 8r 10o 30′ 8r 24o 07′ 9r 07o 29′ 9r 20o 35′ 10r 03o 26′ 10r 16o 02′ 10r 28o 26′ 11r 10o 40′ 11r 22o 46′ 04o 49′ िानरो मधुपानाढ्यः घनतनकरो तनयभयौ2 रोगे धैयभतिपयभयः िूिो तगररसश्चत्रकूटः स्तम्भमात्रो तह धीरधीसस्त्रनेत्रः प्रपदौ गुरोनभम्यौ छन्नो माणिकः तकम् गानगोष्ठी िुखाय काकुध्वतननभकाराि् िनुनभ नगरे श्रीः शैिाः पुस्थििनगाः िोिो जिसधः तकि धनी नरोऽङ्गनािान् ििभतिद् व्यािः कतिः स्तेनेन द्रव्यनाशः िूयो बिमाकाशे मनुष्यो मधुरात्मा गानों नेष्टों तिपत्तौ पिभचन्द्रोऽतहग्रस्तः भोगेच्छािों तप्रयेऽथे मागधो गीिरिः िीनो नागो तनकुञ्जे गामुक्षा न तिरेजे रिौ हरेः ितन्नसधः िणाभन् िागनुरुन्धे भािे स्मरोऽङ्गनानाों स्याि् गायत्री नास्थस्तकैतनभन्द्या धनों चोरो हरेतन्नत्यम् धमं सधगनपायस्य धीगतिभभद्ररूपेयम् क्षीरािौ तिभुः
श्वा तिरोद्धा दीघभरररोंिुनाभ नाके
7r 17o 21′ 41′′
′′ है ।
7r 12o 37′ 34′′ 7r26o 39′ 35′′ 8r 10o 30′ 03′′ 8r 24o 06′ 53′′ 9r 07o 28′ 42′′ 9r 20o 34′ 54′′ 10r 03o 25′ 44′′ 10r 16o 02′ 13′′ 10r 28o 26′ 09′′ 11r 10o 39′ 59′′ 11r 22o 46′ 39′′ 4o 49′′ 26′′
16o 52′ 28o 28′ 1r 11o 10′ 1r 23o 31′ 2r 06o 05′ 2r 18o 52′ 3r01o 55′ 3r 15o 14′ 3r 28o 47′ 4r 12o 35′ 4r 26o 34′ 5r 10o 44′ 5r 24o 59′ 6r 09o 18′ 6r 23o 36′ 7r 07o 51′ 7r 21o 58′ 8r 05o 55′ 8r 19o 40′ 9r 03o 10′ 9r 16o 25′ 9r 29o 24′ 10r 12o 08′ 10r24o 39′ 11r 06o 58′ 11r 19o 08′ 1o 13′ 13o 15′ 25o 19′ 1r 07o 27/ 1r 19o 43′ 2r 02o 10′ 2r 14o 49′ 2r 27o 43′ 3r 10o 53′ 3r 24o 18′ 4r 07o 58′ 4r 21o 52′ 5r 05o 56′ 5r 20o 08′ 6r 04o 26′
51′′ 28o 57′ 33′′ 1r 11o 09′ 23′′ 1r 23o 30′ 53′′ 2r 06o 04′ 27′′ 2r 18o 52′ 02′′ 3r 01o 54′ 50′′ 3r 15o 13′ 16′′ 3r 28o 46′ 54′′ 4r 12o 34′ 33′′ 4r 26o 34′ 16′′ 5r 10o 43′ 28′′ 5r 24o 59′ 07′′ 6r 09o 17′ 53′′ 6r 23o 36′ 14′′ 7r 07o 50′ 43′′ 7r21o 58′ 00′′ 8r 05o 55′ 11′′ 8r 19o 39′ 48′′ 9r 03o 10′ 03′′ 9r 16o 24′ 56′′ 9r 29o 24′ 14′′ 10r 12o 08′ 29′′ 10r 24o 39′ 08′′ 11r 06o 58′ 15′′ 11r 19o 08′ 30′′ 1o 13′ 00′′ 13o 15′ 11′′ 25o 18′ 33′′ 1r 07o 26′ 34′′ 1r 19o 42′ 27′′ 2r 02o 09′ 03′′ 2r 14o 48′ 39′′ 2r 27o 42′ 55′′ 3r 10o 52′ 40′′ 3r 24o 17′ 59′′ 4r 07o 58′ 04′′ 4r 21o 51′ 22′′ 5r 05o 55′ 39′′ 5r 20o 08′ 08′′ 6r 04o 25′ 35′′
International Journal of Trend in Scientific Research and Development @ www.ijtsrd.com eISSN: 2456 6470 @ IJTSRD | Unique Paper ID IJTSRD52171 | Volume 6 | Issue 6 | September October 2022 Page 1786 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 ग्रामस्तस्य जन्मजरा इष्टका कायाभ कुिगुरुः स्याि् मुतनस्तु उग्रः प्रमोदकरः शशाङ्कानुगः िक्ष्यातम कािम् िम्भेदः खिैः शीितप्रयस्त्वम् िेिािरिः
तिरुद्धों स्त्रीधनम् हीनप्रायो नटः सधगश्वः सखन्नोऽयम् तदशिु नः पथ्यम् जनोऽन्धः पापकः गृह्या स्याि् मान्यों िोके धन्यः शरैः िुखी ि तनत्यम् िाभो धान्यस्य अङ्कर नीर धािद्वैद्योऽत्र गत्वा िराष्टम गमनकािम् दयािान् रोगी होमिानों िनम् श्रीमान् पुत्रो िा िन्मम नाम दानानाों क्रमः क्षेत्रिानस्तु
तिसभन्नों कमभ धमभिान् रामः तदग्वयाळो नास्थस्त िे बािा भ्रान्ताः कामािन्नः िः होमों पुत्राथभम् मसणमाभनदः नातिद्धः पादे उत्पिों तनसधः शूद्रस्तु योद्धा
िुग्रीिोऽनन्ततनष्ठः प्राज्ञो रामो दैत्याररः अशुभाशया नागाः चपिः कामपािः िाग्मी िु
गङ्गा भागीरथ्यभूि् िपस्वीगतिरूध्वभम् जरद्गिोऽनुद्यम् िूनुधाभमाभरणम् गुणोऽिूया धतनषु तिकृिा गौडरीतिः िघुनभ मैथुनेच्छा आनन्दमयो रिः कल्पः सशशुमभनुजः दृढधीिभिपदः िीना आपोऽम्बुतनधौ क्षामिाररस्तोयसधः भाग्यतिरोधः
उपेयः आगोहीनोऽसधक पट ज्ञानी गाग्याभय कृपणः कौस्थण्डन्यः िोिा दीपसशखा स्वगभस्तु प्राथभनीयः िौभ्रात्रों िासधकों स्याि् िीनोऽळीनो तत्रनेत्रः सधगाहितिकारः सशसशरा िािरश्रीः असभरामा नकुिी धमोऽथभः पूिभरङ्गः भानुजो तमथुनेऽभूि् रौद्रो यमस्यारम्भः सधगाशामशनेऽस्थस्मन् जनादभनो नरेशः मृगाः िूरा िनान्ते 16o
′
यमोऽयमस्थन्तके गौरी िाणोदाभराः गरळों नोपयुञ्ज्याि् गोमानिों गरीयान्
िादरागी
क्रोधाि् धरा हीनाश्रया तनत्यम् जनोऽन्धो गत्वरो नश्येि् मुकुन्दान्मोक्ष
51
6r 18o 45′ 7r 03o 02′ 7r 17o 13′ 8r 01o 17′ 8r 15o 08′ 8r 28o 47′ 9r 12o 10′ 9r 25o 18′ 10r 08o 11′ 10r 20o 48′ 11r 03o 14′ 11r 15o 28′ 11r 27o 36′ 9o 39′ 21o 41′ 1r 03o 46′ 1r 15o 58′ 1r 28o 18′ 2r 10o 50′ 2r 23o 36′ 3r 06o 37′ 3r 19o 54′ 4r 03o 26′ 4r 17o 12′ 5r 01o 11′ 5r 15o 19′ 5r 29o 34′ 6r 13o 52′ 6r 28o 10′ 7r 12o 25′ 7r 26o 33′ 8r 10o 32′ 8r 24o 18′ 9r 07o 50′ 9r 21o 07′ 10r 04o 08′ 10r 16o 54′ 10r 29o 26′ 11r 11o 46′
चण्डो िै भोजपतिः
धीगम्योऽनङ्ग आिीि्3
6r 18o 44′ 36′′
7r 03o 01′ 39′′
7r 17o 13′ 19′′
8r 01o 16′ 26′′
8r 15o 08′ 17′′
8r 28o 46′ 40′′
9r 12o 10′ 11′′
9r 25o 18′ 05′′ 10r 08o 10′ 34′′ 10r 20o 48′ 32′′ 11r 03o 13′ 44′′ 11r 15o 28′ 32′′ 11r 27o 35′ 49′′ 9o 38′ 53′′ 21o 41′ 09′′ 1r 03o 46′ 10′′
1r 15o 57′ 19′′ 1r 28o 17′ 39′′ 2r 10o 49′ 48′′ 2r 23o 35′ 46′′ 3r 06o 36′ 53′′ 3r 19o 53′ 36′′ 4r 03o 25′ 39′′ 4r 17o 11′ 51′′ 5r 01o 10′ 21′′ 5r 15o 18′ 39′′ 5r 29o 33′ 46′′ 6r 13o 52′ 21′′ 6r 28o 10′ 56′′ 7r 12o 25′ 59′′ 7r 26o 34′ 13′′ 8r 10o 32′ 37′′ 8r 24o 18′ 42′′ 9r 07o 50′ 37′′ 9r 21o 07′ 12′′ 10r 04o 08′ 10′′ 10r 16o 54′ 00′′ 10r 29o 26′ 02′′ 11r 11o 46′ 17′′
International Journal of Trend in Scientific Research and Development @ www.ijtsrd.com eISSN: 2456 6470 @ IJTSRD | Unique Paper ID IJTSRD52171 | Volume 6 | Issue 6 | September October 2022 Page 1787 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 शम्भुजभयति रत्नाङ्गनाथाभ िक्ष्योऽिौ पाथभः िापत्यतनन्दा जनो मान्यो तह ि िादी राजा आकारो युद्धम् दास्यातम श्राद्धम् कायभहातननाभयाभ दम्भान्नरा नष्टाः
जीणो मे कायः दया हरस्य अशनपरः िािुिेखोऽत्र िङ्गिो नागः तिशुद्धो योगी िाराङ्गों नभः तप्रयाथं कतिः पापोऽयों तनसश धन्यो मान्योऽम्शे भोगाधं रामा रामा गीयिे अत्याहारस्तु शारीरकोऽिौ िोिचक्रिः प्रागतनिदम् तदव्यिान् राजा अोंशासथभनोधधः िेनायाः क्रोधः दानों भानोनभष्टम् भूतमस्तस्य तनत्यम् चक्राधं प्राज्ञाय िा भायाभः पापोऽयम्
तिकिानाों कायाभः हरणों पाद्यस्य िुिा िम्प्रत्यया सधगन्धः कतिः पुत्रः ित्त्वाङ्गनेयम्
मानदेयों मुरळी ज्विनो यजने नम्यः क्रीडा दृढा नरनायोः तिश्वों गोपाि
फिाहारो मुख्यकल्पः धन्वी शूिी
गोमदो
धनुज्याभ
आढ्यः
िन्वी शीिगररष्ठा िक्ष्मीस्तुङ्गस्तनाङ्गी चिा िक्ष्मीधभन्यगा सधगशीघ्रगा नािः पूणभः पयिा कुम्भः कतठनोऽयों कीनाशः सधगहोंयुमकस्माि् षड्भागबन्धुरीशः कठोरो मृगपतिः क्षीणो न व्याहरति धमभशास्त्रों श्रेयिे िोकोऽसभिाषी रिे िागरो गोनभ पदम् रतिजुष्टों िाररजे िाम्बोऽतनशों िन्नद्धः प्रत्यािन्नः पुरोधाः इतष्टदाभनों तिना नेष्टा नानासभमिों कनकम् श्रीनिः श्रीधरो तनत्यम् िुकृतिः स्वयों पाककृि्
धैयाभियः िन्यािी चन्द्राि् िापापनोदः िेव्यो जनैमुभकुन्दः असभषिोऽहरहः कायोऽनायैरुपसधः
एकाकी
िुरैः पूज्यः
गळी
तिपाठा
षड्भागैनृभपः धन्यः िाणुमुपेयाि् सधगिौख्यों तहरण्याि् देिो धािन्नैकत्र
3 “आसीत” स्फटचन्द्रालि स लिया गया ह जबलक वण्वारोह म “इव” लदया गया ह जो लक उलचत प्रतीत नहीं होता ।
11r 23o 58′ 6o 03′ 18o 05′ 1r 00o 08′ 1r 12o 16′ 1r 24o 30′ 2r 06o 56′ 2r 19o 33′ 3r 02o 26′ 3r 15o 34′ 3r 28o 57′ 4r 12o 36′ 4r 26o 17′ 5r 10o 31′ 5r 24o 42′ 6r 08o 59′ 6r 23o 18′ 7r 07o 36′ 7r 21o 48′ 8r 05o 52′ 8r 19o 46′ 9r03o 26′ 9r 16o 51′ 10r 00o 01′ 10r 12o 55′ 10r 25o 34′ 11r 08o 01′ 11r 20o 17′ 2o 25′ 14o 29′ 0r 26o 31′ 1r 08o36′ 1r 20o 46′ 2r 03o 05′ 2r 15o 36′ 2r 28o 20′ 3r 11o 19′ 3r 24o 34′ 4r 08o 04′
काष्ठिमा गात्रयतष्टः
अरररनाप्तः चण्डभानुजभयी
व्यिस्थच्छन्नोऽनुनयः
11r 23o 57′ 21
6o 02′ 20′′ 18o 04′ 36′′ 1r 00o 07′ 41′′ 7r 12o 15′ 01′′ 1r 24o 29′ 54′′ 2r 06o 55′ 12′′ 2r 19o 33′ 18′′ 3r 02o 25′ 54′′ 3r 15o 33′ 57′′
3r 28o 57′ 36′′
4r 2o 36′ 07′′ 4r 26o 28′ 04′′
5r 10o 31′ 17′′
5r 24o 43′ 01′′ 6r 09o 00′ 06′′
6r 23o 19′ 07′′
7r 07o 36′ 32′′ 7r 21o48′ 59′′ 8r 05o 53′ 09′′ 8r 19o 46′ 21′′
9r 03o 26′ 18′′
9r 16o 51′ 29′′
10r 00o 01′ 06′′
10r 12o 55′ 13′′ 10r 25o 34′ 42′′ 11r 08o 01 12′′
11r 20o 17′ 00′′
2o 24′ 58′′
14o 28′ 18′′ 26o 30′ 30′′
1r 08o 35′ 03′′
1r 20o 45′ 21′′
2r 03o 04′ 33′′
2r 15o 35′ 18′′
2r 28o 19′ 42′′
3r 11o 19′ 07′′ 3r 24o 34′ 08′′ 4r 08o 04′ 32′′
International Journal of Trend in Scientific Research and Development @ www.ijtsrd.com eISSN: 2456 6470 @ IJTSRD | Unique Paper ID IJTSRD52171 | Volume 6 | Issue 6 | September October 2022 Page 1788 136 137 138 139 140 141 142 143 144 145 146 147 148 149 150 151 152 153 154 155 156 157 158 159 160 161 162 163 164 165 166 167 168 169 170 171 172 173 174 तदशोऽम्बराण्यस्य ग्लौनाभस्थस्त मीनजेयम् दानातन तनत्यम् िपः श्रेयः स्याि् अम्बुसभररष्टैः क्षमास्तु नरैः िोिधीः पुत्रः िे रौद्रा नागाः तििोमकुिम् ि मन्दो रागी िैितप्रयस्त्वम् िाम्प्रिों रतिः कुिानाों
श्रुत्वा स्वरासण धमो दानों िु दूष्यों गोत्रों िे िुिासथभनोऽथध सजत्वास्य
श्रमणो
ित्र
मुखे
पसििों राज्ञः िैिजा नायभः िासभनभराः स्युः मीनिग्नेऽत्र िािुमध्ये श्रीः नोग्रा दारा राज्ञः धन्यः स्याि् कािः िगे त्वों खिैः श्वानो दीनो िा
कमभ
रथः
तनन्दा षतिधान्याहुः
गोतनभसधः केशास्ते काळाः यानातन नो नयेि् सशसशरे पानीयम् भोगमात्रों तनत्यम् यूनाों दानों पथ्यम् ित्येन श्रेयः स्याि्
श्रीः धारािृतष्टः
प्रभुः िाध्यो योगो
पत्नी
स्तेनो न
िेनासधकाङ्गरक्षा
तपनाकी प्रभिो गुणरत्नाढ्याः प्रकृत्याऽऽनन्द उत्पाद्यः अनिूया तनरपाया सजष्णुिभररष्ठः तदश्यातदन्द्रो भाग्यम् नगो नगोऽचरि् गानशीिो जनोऽयम् पुराणो भानुरीड्यः बािोऽभून्नीिनेत्रः जटी शूिी शङ्करः प्रिृद्धोऽयों जाठरः ितन्नधौ स्याि् कपािी दीनेष्वीडा तिफिा खाण्डिघ्नो जनो िै4
′′
कीनाशो व्याघ्रकल्पः िाङ्माधुरी िरेण्या श्रीकृष्णो मोक्षतनष्ठः हृष्टो िीिासधकारी स्वामी शरीरेऽतनिः िाणुगभङ्गाशयािुः िैिाथध मन्दरोगी िानाच्चिा ररपिः तिनोदरुसचः
तनयमाि्
गभाभभरणा
तनधभनैषी
श्रीगधिाििा नािीि् धमाभज्जीिेि् परािुः धनी गुणी मनुजः पररषत्स्वसधकेहा तदव्यः क्षीराम्बुतनसधः धीरः कणभस्तु योद्धा िनयो ज्ञातननाों नम्यः गोकणभतमत्रों
4 वण्वारोह एव स्फटचन्द्रालि म “बािऽवज्ञो जनो व” उद्धत ह एव इसका मान 4r
o
′
′′ है।
08
04
13
4r 21o 49′ 5r 05o 46′ 5r 19o 53′ 6r 04o 08′ 6r 18o 26′ 7r 02o 45′ 7r 17o 00′ 8r 01o 10′ 8r 15o 09′ 8r 28o 57′ 9r12o 30′ 9r 25o 49′ 10r 08o52′ 10r 21o 39′ 11r 04o 13′ 11r 16o 34′ 11r 28o 56′ 10o 52′ 22o 55′ 1r 04o 58′ 1r 17o 04′ 1r 29o 18′ 2r 11o 42′ 2r 24o 18′ 3r 07o 09′ 3r 20o 15′ 4r 03o 37′ 4r 17o 14′ 5r 01o 05′ 5r 15o 07′ 5r 29o 17′ 6r 13o 34′ 6r 27o 53′ 7r 12o 11′ 7r 26o 24′ 8r 10o 29′ 8r 24o 23′ 9r 08o 05′ 9r 21o 32′
4r 21o 49′ 17′′ 5r 05o 46′ 33′′ 5r 19o 53′ 55′′ 6r 04o 08′ 27′′ 6r 18o 26′ 49′′ 7r 02o 45′ 34′′ 7r 17o 01′ 11′′ 8r 01o 10′ 19′′ 8r 15o 09′ 55′′ 8r 28o 57′ 26′′ 9r 12o 30′ 57′′ 9r 25o 49′ 15′′ 10r 08o 51′ 55′′ 10r 21o 39′ 22′′ 11r 04o 12′ 50′′ 11r 16o 34′ 14′′ 11r 28o 46′ 09′′ 10o 51′ 38′′ 22o 54′ 02′′ 1r 04o 56′ 51′′ 1r 17o 03′ 34′′ 1r 29o 17′ 28′′ 2r 11o 41′ 31′′ 2r 24o 18′ 07′′ 3r 07o 0′ 05′′ 3r 20o 15′ 26′′ 4r 03o 37′ 23′′ 4r 17o 14′ 21′′ 5r 01o 04′ 56′′ 5r 15o 07′ 02′′ 5r 29o 17′ 58′′ 6r 13o 34′ 38′′ 6r 27o 53′ 37′′ 7r 12o 11′ 23′′ 7r 26o24′ 31′′ 8r 10o 29′ 45′′ 8r 24o 24′ 16′′ 9r 08o 05′ 45′′ 9r 21o 32′ 35′′
International Journal of Trend in Scientific Research and Development @ www.ijtsrd.com eISSN: 2456 6470 @ IJTSRD | Unique Paper ID IJTSRD52171 | Volume 6 | Issue 6 | September October 2022 Page 1789 175 176 177 178 179 180 181 182 183 184 185 186 187 188 189 190 191 192 193 194 195 196 197 198 199 200 201 202 203 204 205 206 207 208 209 210 211 212 213 धिाः कारिः क्षोभः शनैः शनैः गोशुतद्धकामः दीनो िो ज्ञातिः ित्र दीयिे शोभा राज्ञः िेना आज्ञा िाध्या िा नटस्यानन्दः धनेशोऽयों जनः ि मन्दो ह्रदः नागरो
धीिशः
श्रमो
धूिी
बाह्यिने
तिगिपापोऽयम् िािदत्र कायभः ग्रामो नष्टः शशी रात्रौ दुःशुभा नष्टाः भानुः िद्यः स्याि् दयाधं श्रेयः प्रभायाः पुत्रः हयभश्वः श्रेष्ठः धनुः िेनाङ्गम् शाक्यज्ञोऽरागी िसििों निम् िैद्यः ि कतिः मेनका नाम िेना मध्यमा िोंयुद्धक्रमः स्वगभिोकोऽस्थस्त गुणाथध रतिः काव्यतप्रयोऽिौ भद्रिरोऽथध धू राज्ञः पादे गुरुिभरदः मानदो तनसधः रङ्गस्य श्रद्धा
िौम्यधीः स्वयों प्रभुः
िास्थग्मनोऽमी
िुखदों निनीिम्
िारनाथः पयस्यतनच्छा कथम्5 धान्ये न कस्यानन्दः शमधनाः शापदाः चाराथध महाराजः िोमोऽनङ्गाररव्याभधः मत्योऽधन्वा शरधीः शशी कुमुतदनीनम्यः रुद्रो धीगम्यः प्राज्ञैः
प्राज्ञौ तिष्णुरुद्रौ पद्माक्षी शोभनास्या भगो गोनाथः पूज्यः हररः िेव्यो धरया पौिस्त्यो भयङ्करः िाने जयो िररष्ठः मानधनः िानुगः िरुणः को न रागी गौरी ििीिा न िा करीभव्योऽिौ युिा िमस्थस्वनीयों तनशा रत्नािनमुपेमः हेम िम्पद्धाररणाम् जडो तिडम्बयति िसििाशा िम्प्रति गुरुकाये प्रयािः पाण्डिाः प्राप्तरथाः सशिधीरनापदे चापी िीरो तद्वरदे शश्वन्मौनी जनोऽन्धः मूिों फिाढ्यश्राद्धः
युद्धः
क्रोधः
दीनो तनत्यम्
स्याद्राज्ञोऽयम्
योग्यम्
बािास्तु
शशिक्ष्मासधकाोंशुः
धन्वन्तररजभयति िागीशो
स्याि् ईशतप्रयो तिनायकः तिद्योज्ज्विा िातकभकस्य धनाप्ताभूदतद्रकन्या दुगेयमतनन्द्या
5 वेण्वारोह एवं स्फटचन्द्राप्ति में “फलज्ञानेच्छा कथम” उद्धि है एवं इसका मान 7
o
′ है ।
r 17
00
10r 04o 4′ 10r 17o 40′ 11r 00o 21′ 11r 12o 49′ 11r 25o 06′ 7o 14′ 19o 18′ 1r 01o 2′ 1r 13o 25′ 1r 25o 34′ 2r 07o 52′ 2r 20o 21′ 3r 03o 04′ 3r 16o 02′ 3r 29o 15′ 4r 12o 43′ 4r 26o 27′ 5r 10o 22′ 5r 24o 29′ 6r 08o 4′ 6r 23o 00′ 7r 07o 19′ 7r 21o 36′ 8r 05o 46′ 8r 19o 46′ 9r 03o 35′ 9r 17o 11′ 10r 00o 31′ 10r 13o 35′ 10r 26o 25′ 11r 09o 00′ 11r 21o 22′ 3o 35′ 15o 41′ 27o 44′
10r 04o 43′ 56
10r 17o 39′ 32
11r 00o 20′ 44
11r 12o 48′ 32
11r 25o 05′ 22
7o 14′ 02′′ 19o 17′ 43′′ 1r 01o 19′ 52′′ 1r 13o 23′ 59′′ 1r 25o 33′ 31′′ 2r 07o 51′ 36′′ 2r 20o 20′ 59′′ 3r 03o 03′ 48′′ 3r 16o 01′ 32′′ 3r 29o 14′ 51′′ 4r 12o 43′ 37′′ 4r 26o 26′ 51′′ 5r 10o 22′ 52′′ 5r 24o 29′ 16′′ 06r 08o 43′ 10′′ 6r 23o 01′ 17′′ 7r 07o 20′ 10′′ 7r 21o 36′ 18′′ 8r 05o 46′ 17′′ 8r 19o 47′ 04′′ 9r 03o 36′ 01′′ 9r 17o 11′ 08′′ 10r 00o 31′ 07′′ 10r 00o 31′ 07′′ 10r 26o 24′ 33′′
11r 08o 59′ 27′′ 11r 21o 22′ 04′′ 3o 34′ 54′′ 15o 40′ 55′′ 27o 43′ 29′′
International Journal of Trend in Scientific Research and Development @ www.ijtsrd.com eISSN: 2456 6470 @ IJTSRD | Unique Paper ID IJTSRD52171 | Volume 6 | Issue 6 | September October 2022 Page 1790 214 215 216 217 218 219 220 221 222 223 224 225 226 227 228 229 230 231 232 233 234 235 236 237 238 239 240 241 242 243 244 245 246 247 248 स्वभािो ज्ञानस्य अििेयों नायाभः पुत्रो ज्ञानाढ्योऽयम् धिः श्रेयः पथ्यम् िन शर पट िैद्योऽिौ हयो धन्यः अतप्रयो नये शास्त्रबाह्योऽयम् भोगमात्रस्य
गािः
िुरिसिसभः तत्रराज्ञाङ्कशा धारासभः
अनङ्गासश्रिा धन्यः ि नाथः तििस्य रिः िि मानदः षतिधों
मङ्गिों
योग्यः िोंयुद्धे योगो ज्ञातननः स्याि् शैिाियो नम्यः मसििों प्राज्ञाय अतनधानों कपेः श्रोतत्रयः तप्रयस्य मङ्गिम् किेः शक्यम् भिेि् िुखम्
ग्रामाथध नरः यात्रान्नों श्रेष्ठम् सभन्नाङ्गो नागः प्रज्ञािो योगी मुख्यो धीरो िीनः
तप्रया िः
श्रमः तत्रसभहाभतनस्ते
पदम्
नीळम्
6 उद्यानों स्त्रीिनाथम् दीपिैिों पात्रिम् िूयोऽस्तु िो मानदः भानुः ििाभसधको तह पीनोत्तुङ्गाङ्गो नळः हीनपापः िुयोद्धा िूनुः कुिीनोऽनुनेयः धरणो बिीयानाढ्यः 7 बािेऽसभरुसचरनल्पा स्थिरधीमभहीनायकः स्वनाभरी रम्यरूपाढ्या भीमो िििः शशी नभोमध्ये धीरगीभाभिुरा
िमािाभो घनो तनत्यम् प्रभोसधभगच्छकनकम् िैश्वानरों नानुयायाि् रागातदिैराग्यों पथ्यम् श्रीरामनाम रम्याग्र्यम् प्रज्ञािान् पाथभः बीभत्सुयोधोऽयम् ग्रामासधपः कनकी धस्थिल्ले फुल्लपुिम् कािो बिी शरण्यः िुङ्गयशिो नराः धमभज्ञाः प्राङ्नरेन्द्राः दीघाभङ्गो नीिनागः फिाढ्यो ऋिुकािः केशिो योद्धा रङ्गे िौबिो िरयुिा पद्मेषु रन्ता रतिः भ्रमरश्रीतनभकामम् िपोधराः स्वैररणः आद्यो गोतिन्द एषः ित्काव्यज्ञोऽम्बरीषः
′′
′′
′′
′′
′′
Table 2: िररुसच एिों माधि के चन्द्रिाक्योों की िुिना 6 वण्वारोह एव स्फटचन्द्रालि म “षट्काव्यज्ञोऽम्बरीय” उद्धत ह एव इसका मान 6r 23o 01′ 16′′ है । 7 वेण्वारोह एवं स्फटचन्द्राप्ति में “िरुणो बलीर्ानाढ्र्” उद्धि है एवं इसका मान 10r 13o 35′ 26// है ।
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International Journal of Trend in Scientific Research and Development @ www.ijtsrd.com eISSN: 2456 6470 @ IJTSRD | Unique Paper ID IJTSRD52171 | Volume 6 | Issue 6 | September October 2022 Page 1791 तनष्कषभ माधि के चन्द्रिाक्य िररुसच के चन्द्रिाक्योों की िुिना में असधक िूक्ष्म हैं । िररुसच ने जहाों किा िक ही चन्द्रिाक्योों के मान का िाधन तकया है िहीों माधि ने इनका िाधन तिकिा िक कर तदया है । चन्द्रिाक्योों के िम्बन्ध में और भी जैिे शकाब्दिोंस्कार, ध्रुि, खण्ड, मण्डि इत्यातद तिषय चन्द्रिाक्योों के िन्दभभ में अपेसक्षि हैं परन्तुतिस्तार भय िे यहाों इन तिषयोों की चचाभ नही की गई है । चन्द्रिाक्योों की िहायिा िे हम 248 तदनोों के चक्र में स्फुटचन्द्र प्राप्त कर िेिे हैं । िाक्योों के मान िम्बन्धी िोंशय तनिारण हेिु प्रतक्रया का भी इि शोध पत्र में िणभन तकया गया है । भतिष्य में चन्द्रिाक्य िम्बन्धी अन्य तिषयोों को िेकर पृथक् शोध पत्र सिखने की हमारी योजना है । िन्दभभ ग्रन्
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[7] Pai R. Venketeswara, Mahesh K. and Ramasubramanian K., Kriyākalāpa: A Commentary of Tantrasaṅgraha in Keralabhāṣā, Indian Journal of History of Science, pp. T1 T47, 45, No. 2, 2010.
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[10] Sarma U. K. V., Pai Venketeswara, Joshi Dinesh Mohan and Ramasubramanian K., ‘Madhyamnayanaprakāraḥ: A Hitherto Unknown Manuscript Ascribed to Mādhava’, Indian Journal of History of Science, pp. T1 T29, 46, No. 1, 2011.
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