िसिद्ध मंत
िसिद्ध पुरुषों द्वारा वताये गये मंत िसिद्ध मंत कहलाते है !
शाबर मंत पिरभाषा श्री मत्स्येन्द्र नाथ जी के िशष्य तथा गुरु गोरख नाथ जी के गुरु भाई श्री शाबर नाथ जी के द्वारा इन मंतो को शिक्ति प्रदान की जाने के कारण इन्हे शाबर मंत कहते है ! इनमे हनुमान जी हांक, लक्ष्मण, की आन, गुरु की शिक्ति- मेरी भिक्ति फुरो मंत ईश्वरो वाचा आिद वाक्य प्रयुक्ति होते है ! इनके िसिद्ध करने मे कोई िवशेष बहु त यम- िनयम और हवन की आवश्यकता नही होती, भोले शंकर तथा पावर ती जी ने िजसि सिमय अर्जुरन सिे िकरात वेश मे युद्ध िकया था उसि सिमय भोले शंकर ने आगम चचार मे पावर ती जी के प्रश्नो के उत्तर मे यह मंत बताये थे जो िभल्ल प्रदत्त होने सिे शाबर मंत कहलाये , और योिगयों महात्माओं के मंत मे मुसिलमानों के भी मंत शािमल है! मंत िसििद्ध के बारे मे बहु त सिारी उपयोगी बाते आप को बताई गई है ! आजकल चोटी रखने का तो िरवाज उठ गया है, परन्तु चोटी हमारे शरीर का एरिरयल है ! शरीर के सिबसिे शीषर भाग जहां परमात्मा का अर्ंश परमात्मा िनवासि है, उसिके मंिदर की ध्वजा स्वरुप चोटी है ! अर्गर िकसिी के चोटी न हो तो कुशा की एरक चोटी बनाकर अर्पने दािहने कान पर लगा लेनी चािहएर, उसि सिमय यह मंत पढे िचद् रुिपणी महामाये िदव्यतेज सिमितेन्वते ! ितष्ठ देिव िशखामध्ये तेजो वृद्धिद्ध कुरुष्व मे !! इसिके बाद यज्ञोपवीत धारण करना चािहएर, तथा ऋषिष न्यासि, करन्यासि, अर्ंग न्यासि, छं द, बीज शिक्ति कीलक ऋषिष की अर्पने शरीर के अर्ंगों िसिर, मुख, हृदय, नािभ, गुह्य भाग, दोनों पैरों मे स्थापना करनी चािहएर ! और जो भी देवता की पूजा कर रहे हो, उनको मूितर मान मानकर उन देवताओं के मंतों का पूजन वन्दन करना चािहएर !