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िजस कमर के दारा िकसी सती या पुरष को अपने पित मुगध करने का भाव िनिहत हो, वो मोहनकमर' कहलाता है। मोहन अथवा सममोहन यह दोनो पायः एक ही भाव को पदिशरत करते है। मोह को ममतव, पेम, अनुराग, सनेह, माया और सामीपय पापत करने की लालसा का कृतय माना गया है। मोहन कमर की यही सब पितिकयाएं होती है। िनषुर, िवरोधी, िवरकत, पितदंदी अथवा अनय िकसी को भी अपने अनुकूल, पणयी और सनेही बनाने के िलए मोहन कमर का पयोग िकया जाता है। मोहन कमर के पयोगो को िसद करने के िलए पहले िनमिलिखत मंत का दस हजार जप करना चािहए। ऊँ नमो भगवते कामदेवाय यसय यसय दृशयो भवािम यश मम मुखं पशयित तं तं मोहयतु सवाहा।'' पयोग से पूवर पतयेक तंत को पहले उपयुरकत मंत से अिभमंितत कर लेना चािहए। मोहन कमर के पयोग िनमिलिखत है :१. तुलसी के सूखे हुए बीज के चूणर को सहदेवी के रस मे पीसकर ललाट पर ितलक के रप मे लगाएं। २. असगंध और हरताल को केले के रस मे अचछी तरह से पीसकर उसमे गोरोचन िमलाएं तथा मसतक पर ितलक लगाएं तो देखने वाले मोिहत हो जायेगे। ३. वच, कूट, चंदन और काकड़ िसंगी का चूणर बनाकर अपने शरीर तथा वसतो पर धूप देने अथवा इसी चूणर का मसतक पर ितलक लगाने से मनुषय, पशु, पकी जो भी देखेगा मोिहत हो जाएगा। इसी पकार पान की मूल को िघसकर मसतक पर उसका ितलक करने से भी देखने वाले मोिहत होते है। ४. केसर, िसंदरू और गोरोचन इन तीनो को आंवले के रस मे पीसकर ितलक करने से लोग मोिहत होते है। ५. शेत वच और िसंदरू पान के रस मे पीसकर एवं ितलक लगाकर िजसके भी सामने जाएंगे वो मोिहत हो जाएगा। ६. अपामागर (िजसे औंगा, मागरा या लाजा भी कहते है) धान की खील और सहदेवी - इन सबको पीसकर उसका ितलक करने से वयिकत िकसी को भी मोिहत कर सकता है। ७. शेत दवू ा और हरताल को पीसकर ितलक करने से मनुषय तीनो लोको को मोिहत कर लेता है। ८. कपूर और मैनिसल को केले के रस मे पीसकर ितलक करने से अभीष सती-पुरष को मोिहत कर सकता है।