Saber mantr ke utkilan bidhhi

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शाबर मं

को जगाने क व ध

******************************

वापर युग म भगवान ी कृ ण क आ ा से अजन ु ने पशप ु तअ

ाि त के लए भगवान शव का

तप कया! एक दन भगवान शव एक शकार का भेष बनाकर आये और जब पूजा के बाद अजन ु ने सुअर पर बाण चलाया तो ठ क उसी व त भगवान शव ने भी उस सुअर को तीर मारा, दोन म वाद ववाद हो गया और शकार

पी शव ने अजन ु से कहा, मुझसे यु करो जो यु म जीत जायेगा सुअर उसी को द या

जायेगा! अजन ु और भगवान शव म यु शु हुआ, यु दे खने के लए माँ पावती भी शकार का भेष बना वहां आ गयी और यु दे खने लगी! तभी भगवान कृ ण ने अजन ु से कहा िजसका रोज तप करते हो वह शकार के भेष म सा ात ् खड़े है ! अजन ु ने भगवान शव के चरण म गरकर ाथना क और भगवान शव ने अजन ु को अपना असल

व प दखाया!

अजन ु भगवान शव के चरण म गर पड़े और पशप ु तअ

इि छत वर द या, उसी समय माँ पावती ने भी अपना असल

के लए ाथना क ! शव ने अजन ु को

व प दखाया! जब शव और अजन ु म यु

हो रहा था तो माँ भगवती शकार का भेष बनाकर बैठ थी और उस समय अ य शकार जो वहाँ यु दे ख रहे थे उ ह ने जो मॉस का भोजन कया वह भोजन माँ भगवती को शकार समझ कर खाने को दया! माता ने वह भोजन हण कया इस लए जब माँ भगवती अपने असल

प म आई तो उ ह ने ने भी

शकार ओं से स न होकर कहा ”हे करात ! म स न हूँ, वर मांगो!” इसपर शकार ओं ने कहा ”हे माँ हम भाषा याकरण नह ं जानते और ना ह हम सं कृत का ान है और ना ह हम ल बे चौड़े व ध वधान कर सकते है पर हमारे मन म भी आपक और महादे व क भि त करने क इ छा है, इस लए य द आप स न है तो भगवान शव से हम ऐसे मं माँ भगवती क

दलवा द िजये िजससे हम सरलता से आप का पज ू न कर सके!

स नता दे ख और भील का भि त भाव दे ख कर आ दनाथ भगवान शव ने शाबर मं

क रचना क ! यहाँ एक बात बताना बहुत आव यक है क नाथ पंथ म भगवान शव को ”आ दनाथ” कहा जाता है और माता पावती को ”उदयनाथ” कहा जाता है! भगवान शव जी ने यह व या भील को दान क और बाद म यह व या दादा गु म कया और करोड़ो शाबर मं

ये

नाथ को मल , उ ह ने इस व या का बहुत चार सार

क रचना क ! उनके बाद गु गोरखनाथ जी ने इस पर परा को आगे बढ़ाया

और नव नाथ एवं चौरासी स ो के मा यम से इस व या का बहुत चार हुआ! कहा जाता है क योगी का नफनाथ जी ने पांच करोड़ शाबर मं

क रचना क और वह चपटनाथ जी ने सोलह करोड़ शाबर मं

क रचना क ! मा यता है क योगी जालंधरनाथ जी ने तीस करोड़ शाबर मं के बाद अन त को ट नाथ स ो ने शाबर मं

क रचना क !यह शाबर मं

श य पर परा से आगे बढ़ने लगी, इस लए शाबर मं

क रचना क ! इन यो गय क व या नाथ पंथ म गु

चाहे कसी भी कार का य ना हो उसका स ब ध

कसी ना कसी नाथ पंथी योगी से अव य होता है! अतः यह कहना गलत ना होगा क शाबर मं नाथ स ो क दे न है !


शाबर मं के मु य पांच कार है – *********************************** 1. बल शाबर मं – इस कार के शाबर मं काय स

के लए योग होते है, इन म

य ीकरण नह ं

होता! केवल िजस मंशा से जप कया जाता है वह इ छा पूण हो जाती है ! इ ह काय स ना होगा! यह मं सभी कार के कम को करने म स म है! अतः इस कार के मं काय- स

मं कहना गलत

म यि त दे वता से

के लए ाथना करता है, साधक एक याचक के प म दे वता से याचना करता है!

2. बभर शाबर मं – इस कार के शाबर मं भी सभी कार के काय को करने म स म है पर यह बल शाबर मं से अ धक ती माने जाते है ! बभर शाबर मं म साधक दे वता से याचना नह ं करता अ पतु दे वता से सौदा करता है! इस कार के मं

म दे वता को गाल , ाप, दह ु ाई और धमक आ द दे कर काम

करवाया जाता है! दे वता को भट द जाती है और कहा जाता है क मेरा अमुक काय होने पर म आपको इसी कार भट दं ग ू ा! यह मं बहुत यादा उ होते है!

3. बराट शाबर मं – इस कार के शाबर मं म दे वता को भट आ द ना दे कर उनसे बलपूवक काम करवाया जाता है! यह मं कार के मं

भाव दखाते है! इस वयं स होते है पर गु -मख ु ी होने पर ह अपना पण ू

म साधक याचक नह ं होता और ना ह सौदा करता है! वह दे वता को आदे श दे ता है क मेरा

अमक ु काय तरु ं त करो! यह म

मु य प से योगी का नफनाथ जी के कापा लक मत म अ धक च लत

है! कुछ योग म योगी अपने जत ु े पर मं पढ़कर उस जत ु े को जोर-जोर से नीचे मारते है तो दे वता को चोट लगती है और मजबरू होकर दे वता काय करता है!

4. अढै या शाबर मं – इस कार के शाबर मं बड़े ह य ीकरण बहुत ज द होता है!

य ीकरण इन म

पंि तय के ह होते है ! अ धकतर अढै या म फर भी यह पूण भावी होते है !

बल माने जाते है और इन मं

के भाव से

क मु य वशेषता है और यह मं लगभग ढ़ाई

म दह ु ाई और धमक का भी इ तेमाल नह ं कया जाता पर

5. डार शाबर मं – डार शाबर मं एक साथ अनेक दे वताओं का दशन करवाने म स म है िजस कार “बारह भाई मसान” साधना म बारह के बारह मसान दे व एक साथ दशन दे जाते है! अनेक कार के दे वी दे वता इस मं के भाव से दशन दे जाते है जैसे “चार वीर साधना” इस माग से क जाती है और चार वीर एक साथ कट हो जाते है! इन म

क िजतनी शंसा क जाए उतना ह कम है , यह द य स

य को

दे ने वाले और हमारे इ ट दे वी दे वताओं का दशन करवाने म पूण प से स म है! गु अपने कुछ वशेष श य को ह इस कार के म

का

ान दे ते है!

नाथ पंथ क महानता को दे खकर बहुत से पाखंडी लोग ने अपने आपको नाथ पंथी घो षत कर दया है

ता क लोग उनक बात पर व वास कर ले! ऐसे लोग से य द यह पछ ू ा जाये क आप बारह प थो म से कस पंथ से स ब ध रखते है ? आपक द

ा कस पीठ से हुयी है ? आपके गु कौन है? तो इन लोग का


उ तर होता है क म बताना ज र नह ं समझता य क इन लोग को इस वषय म

ान ह नह ं होता , पर

आज के इस युग म लोग बड़े समझदार है और इन धूत को आसानी से पहचान लेते है ! ऐसे महापाखंडीयो ने ह

चार कया है क सभी शाबर मं ”गोरख वाचा” है अथात गु गोरखनाथ जी के

मख न है या जो म का नफनाथ जी ने रचे है वो भी ु से नकले हुए है पर मेरा ऐसे लोग से एक ह गोरख वाचा है ? या जालंधरनाथ जी के रचे म भी गोरख वाचा है ? इन मं क बात अलग है पर या मुि लम शाबर मं भी गोरख वाचा है? ऐसा नह ं है मुि लम शाबर मं मुि लम फक र भगवान शव ने सभी मं

को क लत कर दया पर शाबर मं

वारा रचे गए है !

क लत नह ं है ! शाबर मं क लयुग म

अमत ृ व प है ! शाबर मं को स करना बड़ा ह सरल है न ल बे व ध वधान क आव यकता और न ह कर यास और अंग यास जैसी ज टल

याएँ! इतने सरल होने पर भी कई बार शाबर मं का पूण

भाव नह ं मलता य क शाबर मं सु त हो जाते है ऐसे म इन मं

को एक वशेष

या वारा जगाया

जाता है!

शाबर मं के सु त होने के मु य कारण – **************************************** 1. य द सभा म शाबर मं बोल दए जाये तो शाबर मं अपना भाव छोड़ दे ते है! 2. य द कसी कताब से उठाकर म

जपना शु कर दे तो भी शाबर मं अपना पूण भाव नह ं दे ते!

3. शाबर मं अशु होते है इनके श द का कोई अथ नह ं होता य क यह ामीण भाषा म होते है य द इ ह शु कर दया जाये तो यह अपना भाव छोड़ दे ते है!

4. दशन के लए य द इनका योग कया जाये तो यह अपना भाव छोड़ दे ते है ! 5. य द केवल आजमाइश के लए इन मं

का जप कया जाये तो यह म

अपना पूण भाव नह ं दे ते !

ऐसे और भी अनेक कारण है ! उ चत यह रहता है क शाबर मं को गु मुख से ा त करे य क गु सा ात शव होते है और शाबर मं के ज मदाता वयं शव है ! शव के मुख से नकले म

शाबर मं के सु त होने का कारण कुछ भी हो इस व ध के बाद शाबर म

असफल हो ह नह ं सकते !

पूण प से भावी होते है !

|| म || ********** सत नमो आदे श! गु जी को आदे श! ॐ गु जी! डार शाबर बभर जागे, जागे अढै या और बराट, मेरा जगाया न जागे तो तेरा नरक कंु ड म वास! दह ु ाई शाबर माई क ! दह ु ाई शाबरनाथ क ! आदे श गु गोरख को! || व ध || ********** इस म को त दन गोबर का कंडा सल ु गाकर उसपर गग ू ल डाले और इस म जाप हो गूगल सुलगती रहनी चा हये ! यह

का १०८ बार जाप करे ! जब तक म

या आपको २१ दन करनी है , अ छा होगा आप यह म

अपने गु के मुख

से ले या कसी यो य साधक के मुख से ले! गु कृपा ह सव प र है कोई भी साधना करने से पहले गु आ ा ज र ले! || योग व ध || ***************


जब भी कोई साधना करे तो इस म भाव बढ़ जायेगा! य द कोई म

को जप से पहले ११ बार पढ़े और जप समा त होने पर ११ बार दोबारा पढ़े म

का

बार-बार स करने पर भी स न हो तो कसी भी मंगलवार या र ववार के दन उस

को भोजप या कागज़ पर केसर म गंगाजल मलाकर अनार क कलम से या बड के पेड़ क कलम से लख ले! फर

कसी लकड़ी के फ े पर नया लाल व

बछाएं और उस व

पर उस भोजप को था पत करे ! घी का द पक जलाये,

अि न पर गग ू ल सल ु गाये और शाबर दे वी या माँ पावती का पज ू न करे और इस म

को १०८ बार जपे फर िजस म

जगाना है उसे १०८ बार जपे और दोबारा फर इसी म

का १०८ बार जप करे ! लाल कपडे दो मंगवाए और एक घड़ा भी

पहले से मंगवा कर रखे! िजस लाल कपडे पर भोजप

था पत कया गया है उस लाल कपडे को घड़े के अ दर रखे और

को

भोजप को भी घड़े के अ दर रखे! दस ू रे लाल कपडे से भोजप का मुह बांध दे और दोबारा उस कलश का पूजन करे और शाबर माता से म

जगाने के लए ाथना करे और उस कलश को बहते पानी म बहा दे ! घर से इस कलश को बहाने के

लए ले जाते समय और पानी म कलश को बहाते समय िजस म

बार करने से ह

भाव दे ती है पर फर भी इस

को जगाना है उसका जाप करते रहे! यह

या एक

या को ३ बार करना चा हये मतलब र ववार को फर मंगलवार को फर

दोबारा र ववार को ! भगवान आ दनाथ और माँ शाबर आप सबको म

सं ृ हत – सेक अ दल ु गफार , नआळी,कटक,ओ डशा

दान करे !


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