Saber mantr ke utkilan bidhhi

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शाबर मं

को जगाने क व ध

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वापर युग म भगवान ी कृ ण क आ ा से अजन ु ने पशप ु तअ

ाि त के लए भगवान शव का

तप कया! एक दन भगवान शव एक शकार का भेष बनाकर आये और जब पूजा के बाद अजन ु ने सुअर पर बाण चलाया तो ठ क उसी व त भगवान शव ने भी उस सुअर को तीर मारा, दोन म वाद ववाद हो गया और शकार

पी शव ने अजन ु से कहा, मुझसे यु करो जो यु म जीत जायेगा सुअर उसी को द या

जायेगा! अजन ु और भगवान शव म यु शु हुआ, यु दे खने के लए माँ पावती भी शकार का भेष बना वहां आ गयी और यु दे खने लगी! तभी भगवान कृ ण ने अजन ु से कहा िजसका रोज तप करते हो वह शकार के भेष म सा ात ् खड़े है ! अजन ु ने भगवान शव के चरण म गरकर ाथना क और भगवान शव ने अजन ु को अपना असल

व प दखाया!

अजन ु भगवान शव के चरण म गर पड़े और पशप ु तअ

इि छत वर द या, उसी समय माँ पावती ने भी अपना असल

के लए ाथना क ! शव ने अजन ु को

व प दखाया! जब शव और अजन ु म यु

हो रहा था तो माँ भगवती शकार का भेष बनाकर बैठ थी और उस समय अ य शकार जो वहाँ यु दे ख रहे थे उ ह ने जो मॉस का भोजन कया वह भोजन माँ भगवती को शकार समझ कर खाने को दया! माता ने वह भोजन हण कया इस लए जब माँ भगवती अपने असल

प म आई तो उ ह ने ने भी

शकार ओं से स न होकर कहा ”हे करात ! म स न हूँ, वर मांगो!” इसपर शकार ओं ने कहा ”हे माँ हम भाषा याकरण नह ं जानते और ना ह हम सं कृत का ान है और ना ह हम ल बे चौड़े व ध वधान कर सकते है पर हमारे मन म भी आपक और महादे व क भि त करने क इ छा है, इस लए य द आप स न है तो भगवान शव से हम ऐसे मं माँ भगवती क

दलवा द िजये िजससे हम सरलता से आप का पज ू न कर सके!

स नता दे ख और भील का भि त भाव दे ख कर आ दनाथ भगवान शव ने शाबर मं

क रचना क ! यहाँ एक बात बताना बहुत आव यक है क नाथ पंथ म भगवान शव को ”आ दनाथ” कहा जाता है और माता पावती को ”उदयनाथ” कहा जाता है! भगवान शव जी ने यह व या भील को दान क और बाद म यह व या दादा गु म कया और करोड़ो शाबर मं

ये

नाथ को मल , उ ह ने इस व या का बहुत चार सार

क रचना क ! उनके बाद गु गोरखनाथ जी ने इस पर परा को आगे बढ़ाया

और नव नाथ एवं चौरासी स ो के मा यम से इस व या का बहुत चार हुआ! कहा जाता है क योगी का नफनाथ जी ने पांच करोड़ शाबर मं

क रचना क और वह चपटनाथ जी ने सोलह करोड़ शाबर मं

क रचना क ! मा यता है क योगी जालंधरनाथ जी ने तीस करोड़ शाबर मं के बाद अन त को ट नाथ स ो ने शाबर मं

क रचना क !यह शाबर मं

श य पर परा से आगे बढ़ने लगी, इस लए शाबर मं

क रचना क ! इन यो गय क व या नाथ पंथ म गु

चाहे कसी भी कार का य ना हो उसका स ब ध

कसी ना कसी नाथ पंथी योगी से अव य होता है! अतः यह कहना गलत ना होगा क शाबर मं नाथ स ो क दे न है !


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