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Kamlesh Maheshwari
आदमी बुलबुला है पानी का, और पानी की बहती सतह पर, टूटता भी है, और डूबता भी है, फिर उभरता है, फिर से बहता है, न समंदर निगल सका इसको, वक्त की मौज पर सदा बहता; आदमी बुलबुला है ...
आदमी बुलबुला है पानी का, और पानी की बहती सतह पर, टूटता भी है, और डूबता भी है, फिर उभरता है, फिर से बहता है, न समंदर निगल सका इसको, वक्त की मौज पर सदा बहता; आदमी बुलबुला है ...