खिड़की आवाज़
पतझड़ संस्करण
अंक #4
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दिल्ली, भारत
लघु अर्थव्यवस्था पर विशेष अंक
स्मार्ट सिटी की आत्मा
जर्मन अर्थशास्त्री स्थानीय अर्थव्यवस्था से प्रभावित हुआ
मौसम की रिपोर्ट स ि त म्ब र से न वं ब र 2 0 1 7
12 पन्ने
आगाज़ के साथ सीखने के नए तरीके
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“एक देश , एक टैक्स” से जूझते स्थानीय व्यापार
तस्वीर: महावीर सिंह बिष्ट
गर्म और नम, नवम्बर के अंत तक ठं डा डेमेरारा, गुयाना
गर्म, ज़्यादातर धूप, हल्की-फुल्की बारिश
हेडलबर्ग, जर्मनी
आं शिक धूप, बादल से घिरा हुआ, नवम्बर तक ठं ड और बारिश
महावीर सिंह बिष्ट
लो
लेगोस, नाइजीरिया
गर्म, आं शिक धूप, बीच-बीच में बारिश
मोगदिशु, सोमालिया
गर्म, आं शिक धूप, बीच-बीच में बारिश
चित्रण: अनार्या
पटना, भारत
हल्की बारिश, धूप, धीरे-धीरे तापमान में कमी
गगन सिंह के सहज रेखा चित्र
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घटते मुनाफे के बीच, हँ सी मज़ाक और एक दस ू रे का साथ, हाल ही में लागू किये गए जीएसटी को समझने की जद्दोजहद और दवु िधा से उबरने में मदद करते हैं।
अपनी खराब आर्थि क स्तिथि के बीच खिड़की की बहुत-सी कबाड़ी की दुकानों में से एक के कर्मचारी मस्ती-मज़ाक करते हुए।
काबुल, अफगानीस्तान
ज़्यादातर धूप और गर्मी, नवंबर में ठं ड
के सहयोग से
गों को अक्सर बोलते सुना है कि मोदी जी एक अनोखे नेता हैं। जो मन में आये, करके दम लेते हैं । हाल ही में उनके नेतृत्व वाली केंदरी् य सरकार ने ‘एक देश, एक टैक्स’ के नारे के साथ जी.ऐस.टी. बिल को लोगों के सामने पेश किया। कई लोगों ने इसे क्रांतिकारी बिल कहा, कई समझने की कोशिश कर रहे हैं कि आख़िर यह बला क्या है! सरकार का कहना है कि इससे व्यापार करना आसान हो जाएगा। खिड़की जैसे मध्यम और छोटे वर्ग के व्यापारियों वाले समुदाय पर इस बिल के प्रभाव को समझने के लिए हमने खिड़की गाँव के व्यापारियों से बात की। सबसे पहले हम यह समझ लें कि खिड़की एक शहरी गाँव हैं, जहाँ मध्यम और छोटे वर्ग के व्यापारियों की जनरल स्टोर, केमिस्ट, रेस्टोरेंट, बिजली, कपड़ा तथा अन्य ज़रूरती सामानों की दक ु ानें हैं। ज़्यादातर दक ु ानें असंगठित क्षेत्र के दायरे में आती हैं। जी.ऐस.टी. की रूपरेखा इस तरह से बनाई गई है कि कहीं ना कहीं इन दक ु ानों को नियमित करना भी इस बिल का एक उद्देश्य है। बिल लाना एक बात है, पर उसे लागू करने में बहुत सी अड़चनें हैं। भारत जैसे देश में एक बिल को लाना और सभी को एक नज़रिए से देखना ग़लत है। ऐसा सोचना भी विरोधाभास है। उसी तरह जी.एस.टी. में कई विरोधाभास हैं। पहला; इस टैक्स को लागू करने से पहले माना जा रहा था कि सभी सामानों और सुविधाओं पर एक ही टैक्स लागू किया जायेगा ताकि इसे लागू करने और समझने
में आसानी हो । लेकिन इसमें चार स्लैब हैं, 5%,12%, 18% और 28%। ऐसा माना जा रहा था कि 28 % टैक्स सिर्फ लक्ज़री सामानों पर लगाया जायेगा लेकिन मूलभूत चीज़ों पर भी इसे लागू किया गया है। कई वस्तुओं के लिए स्लैब निर्धारित कर पाना भी कठिन है।
हमने उनसे कहा कि ऐसा माना जा रहा है कि जी.एस.टी. से सबको फायदा होगा, उन्होंने तपाक से जवाब दिया कि इसके फ़ायदों को समझ पाना अभी मुश्किल है। साथ ही एक छोटे व्यापारी को साल में 36 रिटर्न भरने के लिए एक और आदमी को नौकरी पर रखना पड़ेगा। खर्च बढ़ेगा।
हमने खिड़की के जे-ब्लॉक के ‘वर्मा मेडिकोज़’ के एस.के. वर्मा से बात की। वे कहते हैं कि जी.एस.टी. आने के बाद परेशानी बढ़ गई है। यह टैक्स एक दोहरी मार की तरह है। अभी तक हम विमुदरी् करण से उबर भी नहीं पाए कि इस नए टैक्स को समझने में लगे हुए हैं । उनका मानना है कि इस तरह के बिना तैयारी के लगाए हुए टैक्स से डीलरों से आने वाली सप्लाई कम हो जाती है। हम दवाई जैसी ज़रूरी सामानों को बेचते हैं, ऊपर से माल ही नहीं आएगा तो ग्राहक को बेचेंगे क्या? कई बार ग्राहक को खाली हाथ जाना पड़ता है। दस ू री दर्जे की दवाओं के दाम बढ़ने से दवाओं की सप्लाई भी कम हो गयी है।
दस ू रा; माना जा रहा था कि इस टैक्स से गरीबों को फायदा होगा । अगर मूलभूत चीज़ें जैसे कि तेल, साबुन आदि पर 18 से 28 % टैक्स हैं और काजू, पिस्ता बादाम जैसी चीज़ों पर 5% टैक्स है,तो गरीबों को किस तरह का फ़ायदा होगा इसका अनुमान लगाना कठिन है। इस टैक्स को छोटे और मध्यम वर्ग के व्यापारियों को समझने में वक़्त लगेगा, साथ उनके ही यह उनके छोटे-छोटे मुनाफ़े में सेंध कि तरह है। जिसका सीधा प्रभाव मध्यम वर्ग और निचले वर्ग के ग्राहकों पर पड़ेगा। हमने हौज़ रानी में इलेक्ट्रि कल्स की दक ु ान चलाने वाले तनवीर अहमद से बात की । वे कहते हैं कि बड़े व्यापारियों को इस टैक्स से कोई फर्क नहीं पड़ेगा। बिजली के सभी सामानों पर 28% टैक्स है। खरीद ही अगर महंगी होगी तो बेचेंगे क्या? कमाएं गे क्या? अचानक आये इस से टैक्स से पुराने स्टॉक को निकालना एक सरदर्दी है। साथ ही एकाउं ट्स को मेन्टेन करने का खर्च बढ़ेगा। कम से कम एक कंप्यूटर-ऑपरेट करने वाला लड़का चाहिए। ऑपरेटिंग कॉस्ट बढ़ने से सीधा-सीधा मुनाफा कम होगा। तो सवाल यह उठता है कि, क्या यह टैक्स उन लोगों के लिए है जो पहले से ही बड़े व्यापारी हैं? यह किस तरह का आँ कलन है जिसमें सबसे निचले स्तर का व्यापारी और ग्राहक ही पिसता है।
इसके बाद मैं अश्वनी जी से मिला,जिनकी हौज़ रानी के बग़ल वाली गली में ज्वेलरी की एक दक ु ान है। उन्होंने कहा कि सरकार को टैक्स बढ़ाने की बजाय व्यापार बढ़ाने पर ध्यान देना चाहिए। टैक्स यदि कम होगा तो छोटा व्यापारी ख़ुद ब ख़ुद नियमित हो जाएगा। इससे एक बात तो समझ आयी की हमारे देश के मध्यम वर्ग के व्यापारियों की बुद्धि पॉलिसी बनाने वाले लोगों से बेहतर है। टैक्स सरल करने की बजाय, पुराने टैक्स को नए जामे में पेश करने में सरकार ने कोई कसर नहीं छोड़ी। तीसरा विरोधाभास, अशिवनि जी की बातों से ख़ुद ब ख़ुद बाहर आया। शराब और पेट्रोल जैसी वस्तुओं पर फ़्लोटिंग टैक्स जी.ऐस.टी. के सरलीकरण के मूलभूत सिद्धांत की धज्जियाँ उड़ाता हुआ नज़र आता है। जहाँ एक ओर दनि ु या भर में पेट्रोल के दाम घटे हैं, वहाँ पेट्रोल का जीएसटी की जद में ना आना कई सवाल खड़े करता है। सी.ए. गुलशन शर्मा कहते हैं कि छोटे व्यापारी पर इसका सीधा असर होगा क्योंकि उनके लिए यह टैक्स समझने और लागू करने में कई अड़चने हैं । उनकी सेल्स में गिरावट आएगी और बुक कीपिंग का खर्चा बढ़ेगा । सभी से बात करने पर यह समझ आने लगा कि जी.एस.टी. एकीकरण करने वाला सरल टैक्स तो नहीं है। इससे हर बार की तरह छोटे व्यापारियों के लिए कोई आश्वासन नहीं है। उन्हें इससे होने वाली असुविधा और इसके फ़ायदों को समझने में वक़्त लगेगा।