ग्रीष्म संस्करण
खिड़की आवाज़ अंक #9
जश्न और लोग
12 पन्ने
शहर के अजीबो-गरीब दृश्य
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5
हाशिये से आवाज़
रिफ्यूजी कैंप में डर और उम्मीद की किरण
8
के सहयोग से
कचरा कम करने के नुस्खे
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दस ू रों से मुलाकात
मौसम की रिपोर्ट जू न - स ि तं ब र 2 0 1 9
इं ड ि ग ो
तस्वीर: एकता चौहान
आबिजान, ऐवेरी कोस्ट
चौधरी पूरन सिंह, अपने पुश्तैनी घर में अपने परिवार के साथ।
ज़्यादातर तेज़ धूप बीच-बीच में आं धी-तूफ़ान
ब् लॉ क प ्रिं ट
दिल्ली, भारत
जून में गर्म और शुष्क जुलाई के बाद गर्म और नम
क ि ल् ली म
काबुल, अफगानीस्तान
गर्म और शुष्क कभी-कभी बादल
किन्शासा, कॉन्गो
कु ब ा
खिड़की एक्सटें श न की सं क री गलियों के बीच एक ऐसा मोहल्ला है , जिसमें जाने से लोग सं क ोच करते हैं । एकता चौहान इन आशावादी लोगों कि छु पी हुई जिं दगी और सच्चाई को उजागर करती हुईं। गर्म, बादल और नम के साथ आँ धी-तूफ़ान,जुलाई में धूप
मैं
अकवित
लेगोस, नाइजीरिया
गर्म, बादल और आँ धी-तूफान और बीच-बीच में बारिश
अ बे र व ा बे न
मोगदिशु, सोमालिया
गर्म, धूप और बीच-बीच में बादल और बारिश
धूप, गर्म और जुलाई में बारिश
पारंपरिक पैटर्न और बुनाई: अरु बोस
भ ा ग ल पु र ी
पटना, भारत
खिड़की गाँ व में पै द ा हु ई और मु झे अपने समाज पर बहु त गर्व था। मु झे यहाँ अपनापन और चिर-परिचित महसू स होता था। मु झे अच्छा लगता था कि मैं हर गली, हर परिवार और चप्पेचप्पे से अच्छी तरह वाकिफ थी। लेक िन एक ऐसी गली थी, जो मु झे मालू म नहीं थी। जबकि यह गली, गाँ व के बिल्कु ल बीच में थी, मैं ने वहाँ से कभी नहीं गु ज़ री। जब मैं बड़ी हो रही थी, मे रे बु ज़ुर्गों ने वहाँ ना जाने की सख्त हिदायत दी। मैं वहाँ चक्कर काटकर बाहर से गु ज रती और यही आदत भी बन गयी। यह गली चमार और जाटव समु द ाय की है । मैं दिसं ब र की कड़ाके की ठण्ड में ‘उस’ गली से गु ज़ री। मे रे पिताजी ने मु झे समु द ाय के एक यु व ा वकील से मिलवाया था जो यु व ा सशक्तिकरण के लिए काम करता है । जै से ही मैं उस गली में दाखिल हु ई , आसपास की दनि ु या ही मानो बदल गयी। जबकि खिड़की गाँ व , मध्यम और कम आय वाले समु द ाय के रूप में जाना जाता है , यह ‘मोहल्ला’ हमसे कई गु न ा पिछड़ा हु आ है । कु छ गालियां तो इतनी सं क री हैं , कि वहाँ धू प भी नहीं घु स पाती। मकान छोटे से हैं ,
ज़्यादातर एक या दो कमरों वाले जिसमें गलियों के अहाते को बर्त न और कपड़े धोने के लिए इस्तेमाल किया जाता है । मु झे चौधरी पू र न के घर ले जाया गया, जो समु द ाय के सबसे बु जु र्ग लोगों में से एक हैं । मैं आर्काइवल प् रो जे क ्ट के लिए कु छ इं ट रव्यू पहले कर चु की थी, तो जानती थी कि ज़्यादातर बु जु र्ग रात होने से पहले घर पर ही मिल जाते हैं , खासतौर पर सर्दियों में । और शाम का वक़्त उनसे बातचीत के लिए उचित होता है । जै से ही मैं उनके घर पहुं ची तो, उनकी बहू ने बताया कि वे अभी काम से लौटे नहीं हैं । एक 85 साल के बु जु र्ग अभी भी काम कर रहे हैं ? मैं ने उनसे पू छ ा, तो पता चला कि वे कें द ्र सरकार की नौकरी में माली के पद से रिटायर हु ए थे और आज भी छोटा-मोटा प् रा इवे ट काम उठा ले ते हैं । मैं उनसे मिलने से पहले ही, उनकी निष्ठा दे ख कर काफी प्र भ ावित हो गई थी। मैं एक बगीचे नु म ा किचन में उनका इं त ज़ार कर रही थी, तो एक अजनबी को अपने घर में दे ख कर, उनके पोते - पोतियों ने मु झे घे र लिया। आखिरकार, पू र न बाबा आये और मैं ने उनका अभिवादन
किया। उन्होंने ज़ोर दे क र कहा कि मैं कु र्सी पर बै ठूं और उन्हें लकड़ी की सख्त तख्ती पर बै ठ ने की आदत है । जब हमने बातचीत शु रू की तो, मे री नज़र उनके हाथों पर पड़ी। वे एक मे ह नतकश आदमी के हाथ थे , कठिन परिश्र म की रेख ाएं और दरारें साफ़ नज़र आ रही थीं। पू री बातचीत के दौरान, पू र न बाबा थोड़े विचलित से नज़र आ रहे थे , जब भी मैं उनके समु द ाय की सामाजिक स्तिथि के बारे में पू छ ती तो उनकी आवाज़ बदल जाती। शायद पहली बार कोई उनकी कहानी में दिलचस्पी दिखा रहा था। शायद पहली बार कोई उन्हें सु न रहा था। सालों के दबे हु ए भाव और गु स ्सा बाहर आने लगा, जायज़ भी था। उन्होंने गाँ व में कानू न बनने के बावजू द छु आछू त के अनियंत्रि त प्रचलन के बारे मे बताया, कि कै से ऊँ ची जात वालों ने उन्हें कभी नहीं अपनाया और बराबरी का दर्जा नहीं दिया। पु र ाने सामाजिक भे द भाव आज भी कै से उनकी ज़िन्दगी को प्र भ ावित करते हैं । इन पू र्व धारणाओं और भे द भाव की वजह से इस समु द ाय की आर्थिक स्थिति पर
सीधा असर पड़ता है । इस समु द ाय को किसी भी आर्थिक सं पत्ति का हिस्सा या ज़मीन नहीं दी गयी। ऐतिहासिक रूप से ये दे ह ाड़ी मज़द रू थे और पू री तरह द स ू रों के खे तों में काम करने को मजबू र थे । 1970 के दशक के बाद जहाँ ऊं ची जात के लोगों ने ज़मीनें बे च कर या किराये पर दे क र बहु त पै स ा जोड़ा, वहीँ जाटव लोगों के पास सं पत्ति के रूप में यही छोटे घर हैं । पू र न बाबा के मु त ाबिक, नयी पीढ़ी के लिए असल सं पत्ति और उम्मीद अच्छी शिक्षा और नौकरी है । जबकि समु द ाय को सरकारी आरक्षण का फायदा मिलता है (ये अनु सूच ित जातियों में आते हैं ) , पू र न बाबा एक अलग कहानी बयाँ करते हैं । उनके मु त ाबिक, अच्छी शिक्षा होने के बावजू द , उनके पास अच्छी नौकरियाँ नहीं हैं । वे अपने दो पोतियों और पोते की ओर इशारा करते हु ए बताते हैं कि एक साल पहले ग्रे जु ए शन पू री करने के बावजू द , उन्हें कोई अच्छी नौकरी नहीं मिली है । मैं उनकी आँ खों में लाचारी और निराशा साफ-साफ दे ख पा रही थी। ऊँ ची जात के लोग अपने 2
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खिड़की आवाज़ • ग्रीष्म अंक 2019
दस ू रों से मुलाकात / पृष्ठ 1 से उपनाम को गर्व के साथ ले ते हैं और इस समु द ाय में उन्हें अपने उपनाम पर शर्मिंदा होना पड़ता है । ज़्यादातर ने अपनी पहचान छु पाने के लिए तटस्थ नाम अपनाये हु ए हैं । शायद यही शर्म जाटव समु द ाय के बच्चों को विरासत में मिली है , उनके अस्तित्व से जु डी हु ई शर्म । जाटवों ने अन्य नीची जाट के लोगों के साथ मिलकर, ऊँ ची जात के लोगों की सहूलि यत के लिए प् राचीन काल से ही शारीरिक श्र म किया है । अगर वे कू ड़ा न उठाते और मु र्दा जानवरों की खाल न निकालते , तो गालियाँ जानवरों के कं कालों से भरी
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मार्च की आधी रात को, मैं अपने मौसा और मौसी के साथ कश्मीरी गे ट बस अड्डे के पास सें ट स्टीफेंस अस्पताल के विश्राम कक्ष में मामा और भाई का शिफ्ट बदलने की प्रतीक्षा कर रहे थे । वो पिछले दो दिन से कोमा में थी। सर्जरी के तुरंत बाद मे री उनसे बात हु ई थी, जब उन्होंने मुझसे पूछा ,”मैं कहाँ हूँ, सर्जरी खत्म हो गयी?” मैं ने उन्हें बताया कि सर्जरी सफल रही और अब वे आई.सी.यू. में हैं। मैं ने उन्हें दिलासा दिया कि सब ठीक हो जाये गा। उन्होंने बताया कि उन्हें सिरदर्द हो रहा है, तो मुझे पैर और माथा दबाने को कहा। मैं ने हिचकते हुए उनका माथा और पैर दबाये ।मुझे अजीब, असहज और अप्रत ्यक्ष क् रोध में प्यार दिखा रही थी, क्योंकि उन्होंने तो कभी दिखाया नहीं। यह हमारी आखिरी बातचीत थी। मामा और भाई आ गए थे और हम सब जाने की तैयारी कर रहे थे ,
शोक शब्द D S S P अ स दु D इ P ड पी I H O E A A र ड़ा Sवि द O ख R न N N I B C R I I N श्वा मा का E K O A C र Lस W L I E F
हु ई होती। अगर जाटव औरतें , गाँ वों से मानव मल न उठातीं, तो ऊँ चे घरों की शु द्ध ता भं ग हो जाती। उन्हें सम्मान और उनका क़र्ज़ चु क ाने के बदले , इस शर्म को उनके काम से जोड़कर दे ख ा जाने लगा। उनके और उनके समु द ाय के द्वारा सदियों से इस सामाजिक भे द भाव के बारे में बताते हु ए पू र न बाबा बार-बार पू छ ते , ”क्या हम इं स ान नहीं हैं ?” ये चं द शब्द आज भी मु झे डराते हैं । मु झे अपने और अपने समु द ाय की सामाजिक स्थिति की ओर से माफ़ी माँ ग ने की तीव्र इच्छा हु ई । जब मैं वापस जा
रही थी, मैं हर घर का दरवाज़ा खटकाकर माफ़ी माँ ग ना चाहती थी। इन छोटी-छोटी बातों ने मानो मे री आँ खें ही खोल दी हों। मैं इस गाँ व के हर ऊँ ची जाती के घर में गयी हूँ । किसी न किसी रूप में इनका मे रे परिवार से सं बं ध है , लेक िन एक ‘अछू त’ के घर जै सी ख़ु शी और इज़्ज़त मु झे कहीं भी नहीं मिली। जहाँ मे र ा जाना मना था। उनके पास चाय, खाना या महं गी कटलरीया गद्दीदार सोफा जै स ा दे ने के लिए कु छ भी नहीं था, लेक िन उन्होंने मु झे वक़्त, इज़्ज़त और अपनापन दिया।
ताकि अगले दिन अस्पताल आने से पहले नींद पूरी कर लें । जैसे ही हम निकलने वाले थे , तभी एक घोषणा हुई, कि रजनी का परिवार आई.सी.यू. में जल्दी आये । मे री सांस हलक में अटक गयी और जानती थी कि कु छ गड़बड़ है। उसी पल मु झे एहसास हुआ कि वे अब बचें गी नहीं। हम आई.सी.यू. की तरफ भागे और इंतज़ार करने लगे कि डॉक्टर उनकी हालत बयां करे। डॉक्टर ने गंभीर आवाज़ में कहा,”वे उनकी स्थिति की बारीकी से निगरानी कर रहे हैं और वे वें टीले ट र पर हैं। उन्हें एक दिल का दौरा पड़ा है और दस ू रा भी पड़ने की सम्भावना है। ऐसे में , हम उन्हें बचा नहीं पाएं गे ।” सब बॉलीवुड फिल्मों के उन उदास दृश्यों की तरह लग रहा था जिनका मैं हमे शा मज़ाक उड़ाती थी। लेकिन, मैं इस हकीकत को अपने ज़हन में महसूस कर पा रही थी। डॉक्टर आई.सी.यू . की तरफ भागे क्योंकि नर्स ने कहा कि उनकी हालत बिगड़ रही है। मुझे
एहसास हो गया था कि यही अंत है। वे वापस आये और बताया कि उन्हें दस ू रा दौरा पड़ा है। जब वो ये बता रहे थे , तो मैं आई.सी.यू. से उलटी दिशा में चलने लगी। मैं अस्पताल के द स ू रे छोर पर, द स ू रे गलियारे में पहुँ च गई थी। मैं ने कु छ कामरेड को यह खबर दी। मे री आँ खों से आँ सू टपकने लगे और मैं फूट-फूट कर रोने लगी, मैं काफी दे र तक अस्पताल के फर्श पर अके ले बैठी रही। मौसी का मे रे गायब होने पर कॉल आया, मैं ने फ़ोन काटा और आई.सी.यू . वापस आ गयी। वहाँ सभी मौजूद थे , मौसी मे री तरफ बढ़ी और हलके से मुझे खींचा, लेकिन मैं अंदर जाने में हिचक रही थी। उन्होंने ने कहा,”तुम्हें जाना पड़ेगा...आखिरी बार उन्हें दे ख लो।” नर्स डे थ सर्टिफिके ट ले कर आई और और पूछा कि साईन कौन करेगा? इस सवाल से , मैं बचपन में जा पहुँ ची, जहाँ मे री माँ मे री रिपोर्ट कार्ड पर साईन करती या मुझे अपने दस्तखत किये हु ए
चे क भे जती। मैं ने नर्स से कलम ली और दस्तखत कर दिए। मु झे अच्छी तरह याद है कि मैं अगले कु छ महीने मानो एक समाधि में गु म हो गयी थी। इस बीच मैं जो भी कर रही थी, काफी यांत्रिक सा था। उनके अंति म सं स्कार से ले कर, उनके सामान को जमा करना, शोक बैठकों में जाना, कागज़ी कारवाई पू री करना, लोगों को दःु ख में सं भ ालना, मे रा मन अजीब तरीके से काम कर रहा था। मे री माँ , जानीमानी दलित नारीवादी समाजसे वी, रजनी तिलक, 30 मार्च, 2018 को चल बसी। एक साल गु जर गया है, लेक िन आज भी नहीं जानती कि उनके बिना कै से रहूँगी। उनकी गैरमौजू दगी का सामना करना, ज़िन्दगी का सबसे मुश्कि ल दौर है। पिछले 31 सालों की इस सबसे बड़ी व्यथा ने मु झे बहु त कु छ सिखा दिया है। कई बार जब मैं बिलकु ल टू ट जाती हूँ, तो मैं लोगों से यूँ ही अपनी माँ
की मृ त्यु और अन्य मु द्दों के बारे में बात करने लगती हूँ, और शोक को समझने की कोशिश करती हूँ । शायद लोगों से किसी अपने को खोने के अनु भ वों को साझा करना और उनकी बातें सु नना, मे रे लिए इस व्यथा से बाहर निकलने का एकमात्र रास्ता है। लोगों की इन कहानियों को सु नकर शोकाकु ल लोगों के साथ चर्चा और बातचीत के लिए मैं ने एक मापदंड बनाया है। यह एक कोशिश है , शारीरिक और भवनात्मक रूप से शोक के अलगअलग मायनों को समझने की। जब लोग हमारे साथ हैं, तो उनकी अहमियत समझना। ज़िंदगी की कद ्र करना, गहरे और सार्थक नाते जोड़ना और प्यार करना। हमारी ज़िन्दगी में जो लोग हैं, उनसे इतने अच्छे से व्यवहार करना, मानो आखिरी दिन हो। सबसे बड़ी ख़ु शी, अपने परिवार, दोस्तों, प्रेमियों, अजनबियों, प्र कृति, विचार और समाज के लिए करुणा और प्यार व्यक्त करना है।
शोक का मापदंड
से सम्बंधित भावात्मक और शाश्वत जानकारी चित्रित शब्दावली बनाने की कोशिश और संकल्पना, ज्योत्स्ना सिद्धार्थ द्वारा, चित्रण @that_thing_i_do द्वारा A G सु N चिं A धो B डि D S I ला H ना H R E W H भू A या L S D मा D नि G I गु C उ अ भू नीं थ Y त म हि उ अ बै N O U U N E E T N E O E X E I Y M O A E E L नि N स्सा प न्न खा प्रे ख चा उ का ड़ न स्टी ल द दा क े यू रा G ल N I M ता T P A S L P S H A T S N N D V S O E ष्क ्रि द चे X E झ F रा L हो B R R R O P E T A R H T E G N A P O R हो श ना M री म्मी L U न N प Dह E रि ना आ E ला य R U T N I A E V ना L L नी S I सी S सी O शा M T न ध ना S E E ना Y न S ल A आ N E दी E E S I R R I ना N S प T N I ट या ता I बो S T A S T I S S S T N A I A G S A D A ग ना ना A न O S Y L I I A S S S I G W T E N ध O ना O N N N O A I N N N E E E N L O C S S S N E S S S
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यहाँ शोक के अलग-अलग रूपों से जूझने के कुछ सरल उपाय हैं।”आज मैं क्या करूँ ?” सवाल से दिन की शुरुआत करें । cry जी aभरriver रोयें
punch pillow तकिये aको पीटें
eat fresh readकिताबें good पढ़ books ताज़ा फल fruits खायें ें
scream loud ज़ोर सेout चीखें
inhale सांसexhale लें
phoneसेa बात friend दोस्त करें
stay hydrated पानी पीयें
take long करें bath लंबाa स्नान
sip some tea
listen to सु music संगीत नें
keep a journal डायरी लिखें
grow garden पौधेa उगायें
draw and paint चित्रकारी करें
get a haircut हे अरकट करवायें
go somewhere घूमने जायें new
पुराने पल याद करें
adopt pet जानवर aपालें
watch cat videos कैट वीडियो देखें
seek मददhelp लें
चाय पियें
ar y Deiar D
bake cake केक aबनायें
2
कसरत करें
exercise daily
pursue a passion कुछ नया सीखें
take a nap सोयें
cherish memories
सम्पादकीय
हाशिये पर
मालिनी कोचुपिल्लै
ग्रीष्म अंक 2019 • खिड़की आवाज़
नज़र क
पूरन बाबा की रसोई और अहाता, उनका परिवार यहाँ पीढ़ियों से रहता आया है।
अंतराष्ट्रीय खिड़की फेस्टिवल में ‘खिड़की 17’,
जनता के लिए परफॉर्म करते हुए।
सं ग ीत और उसकी पब्लिक पार्टी और जश्न एक जुड़े हुए समाज के लिए क्यों जरूरी है
ज
और सें स र किया जाता है, लेक िन अन्य क्षत्रों और स्त् रो तों के सं गीत को खू ब सरहाना मिलती है। लेक िन हिंदी सं गीत के अनोखे प न से युर ोपियन कलाकारों ने एसिड हाउस और डिस्को रीमिक्स निकालें हैं। इन जगहों पर, किसी भारतीय मू ल के कलाकार को यह सं गीत बजाने से पहले दो बार सोचना पड़ता है, परन्तु कोई युर ोपियन कलाकार बजाये तो उसे खू ब वाहवाही मिलती है। इन उच्च वर्ग की जगहों पर रंग और वर्ग के आधार पर भे द भाव भी होता है। लेक िन ये उन्हीं सं स ्कृतियों को अलग-थलग कर
विदिशा सै नी
श्न किसी भी समु द ाय का एक अहम अं ग होता है। लोगों को एक दस ू रे की विविधता को समझना बहु त ज़रूरी है। खिड़की एक ऐसी जगह है जहाँ सभी धर्मों और सं स ्कृतियों के लोग एक साथ आते हैं, वे ना सिर्फ एक द स ू रे के खानपान और वे श भू ष ा को अनु भ व करते हैं, बल्कि एक द स ू रे की सां स ्कृतिक धु नों और जश्न के तरीकों को भी जान पाते हैं। ऐसी जगहों पर भाषा का अनु व ाद भी एक अहम कड़ी है, रोज़मर्रा की बातों और सं व ाद के अलावा अन्य साधन जै से फिल्म, में भी। स्वाति जानू , जो एक कम्युनिटी आर्किटे क ्ट हैं, जिन्होंने ‘फ़ोन रिचार्ज की द क ु ान’ शरू किया, जिसमें वे लोगों का फ़ोन रिचार्ज करती और उनके फ़ोन से मीडिया और गाने ले क र उन्हें नए गाने और मीडिया दे ती। वे फिल्म स्क्रीनिंग भी करतीं। उन्होंने एक हरे परदे वाला शटर द क ु ान स्टूडियो शु रू किया, जिसमें बाद में खिड़की आवाज़ के साथ खिड़की टॉक शो का आयोजन किया गया। इस तरह के भागीदारी वाले प्र य ोग में , डब फिल्में और अन्य बहु स ां स ्कृतिय मीडिया का आदान-प्र द ान हु आ । सं गीत और पार्टी कल्चर को अगर दिल्ली के सन्दर्भ में दे ख ा जाए तो, शहरी उच्च वर्ग ने भोग-विलास की वस्तु बना दिया है, जबकि इसकी असल जड़ें कई अश्वे त और स्वदे शी सं स ्कृतियों में दे खी जा सकती हैं। टे क ्नो की जडें 1980 के डे ट् रोइट में हैं। इसे अश्वे त समु द ाय के शिकागो हाउस, डिस्को, फं क और जै ज़ से मिलकर बनाया जाता है। साउं ड सिस्टम कल्चर 40 के दशक के जमै क ा से आता है। डिस्को को 1960 के दशक के लैटि नो, ब्लैक और एल.जी.बी.टी. समु द ाय द्वारा अपनाया गया। इन उच्च वर्ग की पार्टियों में हिंदी सं गीत को नकारा
अहम भूमि का है। सार्व ज ानिक स्थलों पर लोगों की भीड़ पर कड़े नियम लाद दिए जाते हैं कि “कब्ज़ा आं दोलन” न हो जाए। जबकि, सार्व ज ानिक स्थलों की हमे श ा से ही विविध समु द ायों के एक साथ आने में अहम भूमि का रही है। यदि हम यू . एस. और यू . के . की ब्लॉक पार्टियों की बात करें तो, एक पू रे ब्लॉक को बं द कर, लोग अपना हक़ जताते हु ए , वहाँ जश्न मनाते हैं। अलग-अलग समु द ायों के लोग एक साथ आकर, बाजार, खाने के स्टाल, गे म , फिल्म और नाच गाना करते हैं।
: blackpast.org
बातचीत का रास्ता खुले ग ा। इस अं क में आपको कई अनसु नी आवाज़ें , चे ह रे और जिंदिगियों को डॉक्यूमें ट शन, कला, विद रो् ह और सं वे द ना के रूप में दिख जायें गी। हाशिया उनके लिए भी है, जो खुद की भावनाओं को व्यक्त नहीं कर पाते । ये हमारी कोशिश हे मन के भीतर के अँ धे रे कोनों में झाँ क ने की और समझने की। इसके लिए शोक का एक मापदंड आपको अं द र पन्नों में दिख जाये ग ा, ताकि किसी के खोने के द ःु ख का आप सामना कर सकें ।हमारे सें ट र स्प्रेड में आप शहर भर में , सावर्जनिक स्थलों पर, औरतों के साथ हो रहे द र्व्य ु वहार पर गु स ्सा, पासा पलटकर दिखाया गया है, जिसमें पु रु ष एक वस्तु की तरह है। एक बे टी गाँ व की तिरस्कृ त गलियों से , सदियों से छु पी हु ई कहानियाँ बयाँ कर रही है। चाहे हमारे दे श के लोग कु छ भी चु नें , हम तो उम्मीद के साथ भविष्य में आगे बढ़ रहे हैं । आने वाले समय में नए इवें ट और अं क प्लान करते हु ए , हम अपने पाठकों से सवाल, समस्याएं और कलात्मक रुझानों के बारे में जानना चाहते हैं। यदि आप अपने समु द ाय से जु ड़ ना चाहते हैं और लोगों और नागरिकों का एक ऐसा तं त्र बनाना चाहते हैं, जो अपने शहर और मोहल्ले की परेश ानियों के बारे में ; कलात्मक, आलोचनात्मक और भागीदारी से काम करे तो हमें लिखें और हमसे जु ड़ें ।
स्त्रोत
सिटीजन आर्काइव प्रोजेक्ट के लिए एकता चौहान
भी ना ख़त्म होने वाले इले क ्शन का दौर जै से - जै से नज़दीक आ रहा है, हमें रूककर सोचने का एक मौका मिला। यह सोचने के लिए कि क्या हो सकता था और आगे क्या होगा। हम खिड़की आवाज़ में अक्सर सोचते हैं कि हमने भू त में क्या किया और आने वाले भविष्य में क्या करेंगे । हमारी नज़र में , खिड़की हमे श ा से ही खुद को एक शहर के आयने की तरह प्र स ्तुत करता आया हैजटिलता, भगदड़, बं ट वारे और द शु ्मनी के एक पुल िंदे की तरह, समाज और वर्ग और अन्य विचारों से मिलकर और चलते चलते यारियों से मिलकर, जो बड़े शहर को आकार दे ते हैं। यह एक ऐसी भी जगह है, जो हाशिये पर रहने वाले लोगों को छत्त भी दे ती है। हमारे जटिल और बँ टे हु ए समाज में , हाशिये पर रहने वाले ये लोग; समु द ायों, समू हों और वै यक्तिक स्तर पर विविधता को दर्शाते हैं, और अपने आवाज़ सु ने जाने की रोज़ की लड़ाई भी दिखाते हैं, जो बराबरी के हक की लड़ाई हैइंस ान समझने की लड़ाई है। इस प् रो जे क ्ट में इस मौहल्ले की एक बारीक छवि दिखाने के मकसद से हमने सोचा कि यह अत्यंत ज़रूरी हैं कि हाशिये का विस्तृत और रंगीन चित्र प्र स ्तुत किया जाये । इन मिटाई और छिपे हु ए इतिहास और सच्चाईयोँ को बताते हु ए , हमें उम्मीद है कि हाशिये पर धके ले हु ए लोगों से उनकी ज़िन्दगी, समाज, परिवार और स्वीकृति सरीखे विषयों पर
जी मैन और उनका क्रू 80 के दशक के ब्रोक्स में संगीत बजाते हुए (तस्वीर: हेनरी चल्फान्त)
रहे हैं , जिनके सं गीत का ये उपभोग कर रहे हैं । वर्तमान में , वैश्वि क स्तर पर ऐसे अहम आं दोलन चल रहे हैं , जो सं गीत और नाइटलाइफ़ को समु द ाय के लिए समावे शी बना रहे हैं , लेक िन इन शब्दों के प्रचलन, जवाबदे ही और जिम्मेदारी के सन्दर्भ में सही रूप और अर्थ मिलना बाकी है। कु छ गै र -पु रु ष कलेक्टि व आगे आ रहे हैं, जो सं गीत और नाइटलाइफ़ इंड स्ट्री में लिंगभे द को चु न ौती दे रहे हैं। ऐसे कलेक्टि व की सँ ख ्या बढ़ रही है और वे एक द स ू रे के साथ मिलकर, एक साकरात्मक, समावे शी और साम्यिक भविष्य को रूप दे रहे हैं। सं गीत के अलावा जश्न में , व्यंजन, दृश्य और परिधानों की भी
खिड़की के अपने स्वदे शी कलाकर हैं, जै से ‘खिड़की 17’ ग्रु प । बॉलीवु ड के निर्माताओं ने स्ट्रीट हिप हॉप को अपना बना लिया है। जबकि असल ‘गल्ली बॉय’, सं घ र्ष करते हु ए इधर-उधर काम करते हैं। खिड़की का अपना समावे शी और भागीदारी वाला जश्न,’अं त राष्ट्री य खिड़की फेस्टिवल ( आस्था चौहान और मालिनी कोछुपिल्लै द्वारा आयोजित )’ एक अहन स्थान था, विविधता, सं स ्कृति और सामयिकता के बारे में बात करने का। साधारण उपायों और साझा जगहों से लोग सं गीत के माध्यम के बारे में सशक्त रूप से बात करेंगे और बाकी समु द ायों की सं स ्कृति और कहानियों के प्रति जिज्ञासा और अपनापन दिखाएं गे ।
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खिड़की आवाज़ • ग्रीष्म अंक 2019
ख़ास शृंखला
समुद्र में जबरन ले जाया गया एक कलाकार की अपनी परदादी के जबरन प्रवास की 9वीं क़िस्त
प्रलय
शब्द + कलाकृ ति एं ड्रू अनं द ा वू गे ल
व
ह हौले - हौले आगे बढ़ रही थी, उसके कदम ज़मीन पर पड़ ही नहीं रहे थे । उसकी त्वचा पर मले हु ए हल्दी से उसका पू र ा शरीर दमक रहा था। रौशनी पड़ने पर उसने अपनी आँ खें मींच ली। माला की रूह को मानो उसके शरीर में , सोने के भारी गहनों ने रोककर रखा हो, जो उसकी कालहाइयों, ऐड़ियों और गर्दन पर लदे हु ए थे । जै से - जै से कार्यक्र म आगे बढ़ रहा था, उसके पू रे शरीर में प्र ल य सा कौंध गया। उसने खुद के भीतर झाँ क कर दे ख ा, कि थोड़ी ताकत और हिम्मत मिले , ताकि वह, जो होने वाला है , उसे रोक पाए। उसने भीतर झाँ क ा, ढू ँ ढ ा, उसे इस नियति से बचाने वाला कोई नहीं मिला। उसकी शादी का दिन था, और उसकी आत्मा, कु छ पल बाद की घटनाओं को सोचकर काँ प रही थी। तख्तापलट के बाद, अपनी बहन के गाँ व से बचकर भागने से , छ: महीने बीत चु के थे । माला के पिता, लिफ्ता मान सोलो ने , उथल-
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पु थ ल के माहौल के ठन्डे पड़ने और सु रक्षित होने तक, उसके रहने का बं द ोबस्त द रू के दोस्तों के पास कराया था। लेक िन उसका काम करने का वीज़ा, ख़त्म होने वाला था, और सरकार दस्तावे ज़ों की जाँ च के लिए अधिकारीयों को भे ज रही थी। इस वक़्त उसके पास दो ही विकल्प थे , वह खराब हालात वाले गयाना वापस चले जाये या यहाँ रहकर शादी कर ले । उसके अपने दे श में हालात अच्छे नहीं थे , और ना ही उसकी किस्मत। वह अपने अठारहवें जन्मदिन पर बाल-बाल बची थी। बर्नहम की सरकार और उसकी मिल्ट्री के हाथों एक जल्दी और हिंसक मौत से वह बच निकली थी। वापस जाने की तीव्र इच्छा के बावजू द , उसे मालू म था कि वह वापस नहीं जा सकती थी। उसने पिछले छः महीने अपने पिता के दोस्तों के फार्म में काम करते हु ए बिताये थे । वह रोज़ सु ब ह, जल्दी उठकर गाय का द ध ू निकलती और मक्खन बनाती। बाकी का पू र ा दिन वह उनके पाँ च बच्चों को सं भ ालती।
माला का मन फार्म में रुकने का था। उसे बच्चों का ख्याल रखना और जानवरों के साथ काम करना अच्छा लगता था। लेक िन एक दिन सरकारी अधिकारी आये , उसे पता था कि यहाँ उसके दिन गिने - चु ने ही हैं । परिवार ने पू र ा इं ते ज़ा म किया और कहा कि वो शादी कर ले । वह एहसान फरामोश नहीं दिखना चाहती थी, लेक िन उसे कु छ समझ भी नहीं आ रहा था। वह परिवार काफी दयालु था, तो वे माला को इस आग में क्यों झोंक रहे थे । वह डर से काँ पी और वापस होश में आई। उसी पल, वह हवन अग्नि के फे रे ले रही थी, खुद को ऐसे आदमी से सात जन्मों से तक जोड़ने के लिए, जिसे वह बिल्कु ल भी नहीं जानती थी। वह आदमी, मोटा और उससे उम्र में कहीं बड़ा, पे र ामरिबो के एक प्र भ ावी खानदान से आता था। डॉक्टर, इं जीनियर और राजने त ाओं का खानदान। जब माला ने उससे पू छ ा कि वह क्या करता है , उसने कोई उत्तर नहीं दिया। वह परिवार
में सबसे बड़ा बे ट ा था, लेक िन उसकी अब तक शादी नहीं हु ई थी। जब वे अग्नि के सात फे रे ले रहे थे , माला उसे ही दे ख रही थी। वह ना सिर्फ मोटा था, बल्कि उसमें से द र्गु न्ध भी आ रही थी। उसे वह, गुं डे मव्वाली सा प्र तीत हो रहा था, जै से गयाना में उसके गाँ व के शराब के ठे कों के इर्दगिर्द घू म ते नज़र आते हैं । उसे , उस आदमी की बिल्कु ल भी जानकारी नहीं थी। उसके पसीने भरे हाथों की पकड़ से वह बता सकती थी कि वह अच्छा आदमी नहीं है । उसने आँ खें मीचीं और अपने ही भीतर डू ब-सी गयी। वह बे लों और पे ड़ की टहनियों के बारे में सोचने लगी, जो उसे पडोसी के आम के बगीचे में एक पे ड़ से द स ू रे पे ड़ पर कू दने में सहारा दे ते । हिचककर उसके कदम रगड़ते हु ए , उसकी किस्मत की नियति में घसीटते आगे बढ़ रहे थे । अग्नि के सातवें फे रे तक, माला मानो अदृश्य-सी हो गयी थी। उसे लग ही नहीं रहा था कि उसका कोई अस्तित्व भी है , वह इस पू रे घटनाक्र म को द रू किसी तारामं ड ल से दे ख रही थी, वह इस पल की सम्भावना से भी बहु त द रू थी। एक उन्नीस साल की लड़की की तरह, उसके प्यार से जु ड़े अने कों सपने थे । गयाना के स्कू ल में ब्रिटिश उपन्यासों की प्रे म कहानियाँ पढ़कर उसका दिल फू ट पड़ता। अब, वह एक द स ू रे दे श में थी, तलवार की धार पर सवार। एक भगोड़े की सी जाद ईु ज़िन्दगी की कहानी के तीखे प न को महसू स
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करती हु ई । ढोल नगाड़े की आवाज़ें , जो ख़ु शी और उत्साह का प्र तीक हैं , उसे कोर्ट मार्शल और मौत की सज़ा जै सी सु न ाई दे रही थीं। उसके पिता नहीं आये । उसकी माँ शादी की एक लाल साडी दे ने आई। वह अपनी मं झ ली बे टी की सज़ा दे ख ने के लिए रुकने वाली नहीं थी। वह अपने आसपास के धुँ ध ले नज़ारे में सिर्फ अजनबियों को दे ख पा रही थी। उसका दिल ते ज़ धड़क रहा था और उसकी धमनियों में खू न सर्राटे से बह रहा था और उसे समझ आने लगा की हो क्या रहा है । वह वक़्त में पीछे भागना चाहती थी, जं ग ल से गु ज़ रकर, जहाँ से उसके पिता उसे लाये थे , उसी रास्ते को तय कर, वापस गयाना जाना चाहती थी, आज से अलग, एक नई किस्मत बनाने । लेक िन, ये सब बीते वक़्त की बातें थी, उसकी ज़िन्दगी की रेख ा में सबकु छ घटित हो चु क ा था, यही उसकी नियति थी। अब वह वापस नहीं जा सकती थी, वह अपने अके ले प न को स्वीकार कर चु की थी। जै से ही सातवां फे रा पू र ा हु आ , उसकी आँ खें खुली और उसने जश्न मनाती हु ई महिलाओं की आवाज़ों को सु न ा और अँ धे रे कोनों में मु स ्कराते हु ए शराब पीते पु रु षों को दे ख ा। उसकी आत्मा का सु न्न पन हल्का पड़ने लगा और उसका वर्तमान उसके शरीर को चीरने लगा। यह बं ध न जु ड़ चु क ा था और उसका खुद पर कोई अधिकार नहीं बचा था।
जंगल कम्पोजीशन I , अर्हसिवल पिग्मेंट प्रिंट, 2019 पेंटिं ग कम्पोजीशन I I, ऑइल ऑन पेपर, 2015 अपार्थेड कम्पोजीशन I, इं क ऑन पेपर, 2017
महावीर सिंह बिष्ट
ग्रीष्म अंक 2019 • खिड़की आवाज़
हाशिये से उठकर
महावीर सिंह बिष्ट विकास पर काफी ध्यान देती थी। रेखा ने कहा,”वे तरह-तरह के सवाल पूछती मैं रेखा के घर की दीवारों को बारीकी और सवाल करने के लिए प्रोत्साहित भी से देख रहा था। सामने की दीवार पर करती। ऐसे में बच्चों का एक ऐसा समूह चार तितलियाँ एक पंक्ति में नीले रंग से बना, जो अपने इलाके में बिजली, पानी पुति हुई दीवार पर लगाकर सजाई हुई और अन्य किसी समस्या को उठाकर थी । सामने एक पुराना टी.वी.सेट एक स्थानीय नेता से मिलकर, उसे सुलझाने छोटे जर्जर शेल्फ़ पर रखा हुआ था। एक की अर्ज़ी डालते।” ऐसे में रेखा ने बताया कोने में कुछ किताबें बेतरतीब ढंग से कि उसे एहसास होने लगा कि उनका रखी हुई थी। पीछे की दीवार पर इलाका अभी भी बहुत पिछड़ा है। अम्बेडकर की एक बड़ी फ़ोटो थी। एक दरअसल वे यू.पी. के एक गाँव से आकर हाथ में संविधान पकड़े वे दस ू रे गाँव में ठू ँ स दिए गए हैं। यहाँ ू रे हाथ की दस अंगुली से अनंत की ओर इशारा कर रहे मूलभूत सुविधाओं के लिए काफी संघर्ष थे। पूरा घर लगभग 50 गज़ के क़रीब करना पड़ता है। रोज़ पानी और राशन रहा होगा। लेकिन रेखा का व्यक्तित्व इस के लिए कतारें लगती हैं। बहुत से बच्चे चार दिवारी से कहीं ज़्यादा बड़ा है।मैंने शिक्षा से आज भी वंचित हैं। आये दिन अलग-अलग स्त्रोतों से उनकी ख़ूब यहाँ आपराधिक घटनाएं होती हैं। तारीफ़ सुनी है। वे कहते हैं कि रेखा बेरोज़गार युवा या तो आवारगी करते मदनपुर खादर के चप्पे-चप्पे से वाक़िफ़ नज़र आ जाते हैं। किसी ना किसी हैं। वे हमेशा से रूढ़िवादी सोच से लड़ते आपराधिक गतिविधि से जुड़ जाते हैं। हुए, किसी भी संसाधनहीन बच्चे, औरत तो उन्होंने ठाना कि बड़े होने पर वे और व्यक्ति के हक़ के लिए लड़ने को हर समाज कार्य से जुड़ेंगी, अपनी सेण्टर समय तैयार रहती हैं। इन्हीं बातों ने मुझे की दीदी की तरह। अगले तीस मिनट जिज्ञासा से भर दिया और मैं उनकी हमने मदनपुर खादर की अन्य प्रेरणा की असल वजह जानना चाहता विषमताओं और इनसे लड़ने सरीखे विषयों की विस्तार में चर्चा की। मैं था। उसी वक़्त रेखा ने प्रवेश किया। वे उनकी बातें सुनकर बीच-बीच में सोचने बताने लगीं कि जिस बच्चे की वो मदद लगा कि जब तक उन जैसे लोग हैं, तो करने गई थी, उसके पास पहचान ‘उम्मीद’ और “हिम्मत” बनी रहती है। साबित करने के लिए कोई दस्तावेज़ रेखा ने मुझे एक घंटे बाद होने वाले एक नहीं था। ऐसे में रेखा ने उसकी ज़िम्मेदारी ‘युवा सशक्तिकरण’ कार्यक्रम का न्योता लेते हुए स्कू ल अधिकारीयों को दिया और मैंने झट से हामी भर दी। उनकी बातों से मुझे ‘भेषज दीदी’ अंडर्टेकिंग ऐफ़िडेविट दिया। मैंने अपना कैमरा सेट किया और इंटरव्यू शुरू की याद आयी। मुझे कुछ वक़्त पहले किया। मैंने उनसे उनके इस सामाजिक एक असाइनमेंट के लिए झारखण्ड जाने कार्य की प्रेरणाओं और नि:स्वार्थ होकर का मौका मिला। जिसमें हमनें दरू काम करने के जज़्बे के बारे में पूछा। वे दराज़ के गाँवों में पानी से जुड़े विकास बताने लगी कि उनका परिवार राय कार्य का जायज़ा लेना था। ये जगहें बरेली के पास एक छोटे से से गाँव से राँची से पचास किलोमीटर के दायरे में ं ू आता है। उनके पिता चाहते थे कि थी। कुछ घंटो की ड्राइव के बाद हम बुड ं े।यह उनके बच्चों को अच्छी शिक्षा मिले नाम के एक छोटे से कस्बे में पहुच इसलिए वे दिल्ली आ गए। शुरू में वे दिल्ली आदिवासी बहुल क्षेत्र है। मुझे वहाँ की के नेहरुप्लेस के नज़दीक रहते थे। बाद में जल सहायक कार्यकर्ता से मिलवाया वहाँ की कच्ची कोलोनियों को हटाकर गया। वह लगभग 25 साल एक पतलीप्रशासन ने उन्हें मदनपुर खादर में दबु ली महिला थी। मैंने उनका नाम पूछा पुनर्वासित किया । यहाँ एक दो ही स्कू ल तो वे, टू टी-फूटी हिंदी में बोली, “मेरा हुआ करता था।सरकारी स्कू ल काफ़ी नाम भेषज देवी है...।” मैंने उनके नाम सालों बाद बना। उसके पिता छोटी का मतलब पूछा, तो वे बोलीं, “इसका मोटी नौकरी करते थे, तो प्राइवेट स्कू ल मतलब दवाई है, यहाँ ऐसे ही नाम रखे में दाख़िला नहीं करा सकते थे। भाग्य से जाते हैं। वैसे भी वापस जाकर आपको वहाँ एक एन.जी.ओ. काम करती थी,जो याद भी नहीं रहेगा।” उनकी यह बात बच्चों की शिक्षा के लिए काम करती है। मुझे याद रही कि कैसे हम शहरों में, रेखा ने बताया कि बचपन से ही पढ़ाई पिछड़ेपन और असलियत से पूरी तरह लिखाई में तेज़ रहीं हैं। उनकी जटिल न सिर्फ दरू , बल्कि कटे हुए रहते हैं। ये ं ला-सा विषयों पर भी अच्छी पकड़ थी। जैसे- सब हमारी याददाश्त में धुध जैसे वे बड़ी हो रहीं थी, शैक्षिक ज्ञान के रहता है, और हम बहुत जल्द भूल जाते साथ-साथ उनकी सामाजिक समझ भी हैं। समाज की इस इकाई को एक जगह बढ़ रही थी। वे सामाजिक विषमताओं से से दस ू री जगह बार-बार विस्थापित रूबरू होने लगी। एन.जी.ओ. मैं जो किया जाता है, हाशिये की ओर। पर दीदी आई थीं, वे बच्चों के बौद्धिक इन्ही में से कुछ ‘रेखा’ और ‘भेषज’
जैसे किरदार उभर कर आते हैं, जो बागडोर संभाल कर दबे-कुचलों की उम्मीद बनकर उन्हें आगे बढ़ाने के लिए। भेषज दीदी ने मुझे एक कमरा दिखाया जिसमें कभी स्कू ल शुरू ही नहीं हो पाया। ऊपर उसके एक कोने में छे द था जिसमें से चमगादड़ों का एक झुण्ड घूर रहा था। -मैं रेखा के साथ कार्यक्रम में पहुँचा। वहाँ एक टेंट लगा हुआ, जिसमें सूखी मिट्टी के एक पार्क में कालीन और कुछ कुर्सियाँ लगी हुई थी। मंच पर कुछ अतिथि-गण मौजूद थे। यह एक सर्टिफिकेट समारोह था जिसमें उत्तीर्ण बच्चों को हौसलाअफ़ज़ाई के लिए सर्टिफिकेट मिलना था। कुछ ही देर में बहुत से बच्चे इकट्ठे हो गए और रेखा उनसे मिलने चली गयी। सभी उसे जानते थे। मैं कुछ तस्वीरें लेने लगा। काफी गर्मी थी। मैं आसमान की और देखने लगा तो बादल छाए हुए थे। कार्यक्रम की शुरुआत हुई। अतिथि लोगों ने भाषण दिए और बच्चों और मौजूद लोगों ने तालियों की गड़गड़ाहट से उत्साह दिखाया। काफी अच्छा माहौल था। मंद-मंद हवा चलने लगी, जिससे मिट्टी उठने लगी। थोड़ी देर बाद हवा के झोंके तेज़ होने लगे, लेकिन कार्यक्रम चलता रहा। किसी का उत्साह कम नहीं हुआ। हवा जैसे-जैसे तेज़ हो रही थी, टेंट को थामे लोहे के खम्बे हिलने लगे। इससे पहले कि कोई होश संभाल पता, एक तेज़ हवा के झोंके ने टेंट को धराशायी कर दिया। भगदड़ सी मच गयी और लोग खुद को धूल के गुबार से बचाते हुए बाहर आ गए। भाग्य से किसी को चोट नहीं आई। आयोजकों ने सभी को सावधानी से घर जाने को कहा। मैंने भी रेखा और अन्य लोगों से विदा ली। शाम के 7-8 बज चुके थे। मैं जनपथ मेट्रो स्टेशन पर उतरा और पालिका की तरफ आगे बढ़ने लगा। इनर सर्किल के कोने पर एक वाटर डिस्पेंसर लगा हुआ था। उस कोने में घुप अँधेरा था। यहाँ कनॉट प्लेस में आजकल इलेक्ट्रॉनिक डिस्प्ले, फ्री वाई-फाई और वाटर डिस्पेंसर जैसी सुविधाएं आम नागरिक के लिए मौजूद हैं। अचानक डिस्पेंसर की एक छोटी खिड़की से एक हाथ बाहर आया, फिर उस संकरे छे द से एक 19-20 साल का एक युवक बाहर निकलने लगा। यह काफी रोचक लेकिन भयभीत करने वाला दृश्य था। इससे पहले कि मैं कुछ सोच पाता, उस लड़के की कमीज़ से बहुत से एक-दो के सिक्के ज़मीन पर छन्न से गिरे, वह बाहर कूदा और गिरते पड़ते अँधेरे में गुम हो गया।
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खिड़की आवाज़ • ग्रीष्म अंक 2019
भों
तीत र
ये अक्सर अकेले या जोड़ों में लड़कियों के रहने की जगह ( जैसी कॉलेज ) के पास पाये जाते हैं। ध्यान खींचने के लिए अलग-अलग धुनों वाली तेज़ सीटी बजायेंगे। इनकी अभद्र धुनें आपको डरा देंगी, कान के परदे फाड़ देंगी और आपके रोंगटे खड़े कर देंगी।
स
ुे े र ब
एक रे डियो चैनल जो औरत दिखने पर अपने आप चालू हो जाता है। अपनी प्लेलिस्ट में से बेहूदा गाने बजाने लगता है -छे ड़छाड़ चित्रहार, ठरकी तराने और अश्लीलता की गीत माला...
व्रूम्म्म्म करते हुए औरतों को अपनी बुलेट से परे श करें गे। गलत तरीके उल्टा सीधा बाइक चल गन्दा हॉर्न बजाते हुए, से अपनी 500 लोग प्रॉ में क
रावडी रेडियो
एडम टौन्टिंग
दुनिया के शुरू होने से ही, आदमियों ने सावर्जनिक स्थानों को ऐसे घेर लिए है , मानो उनकी जागीर हो। वहीँ दूसरी ओर मर्दों की घूरती हुई नज़रों से औरतों का इधर से उधर जाना दूभर हो जाता है । उनके लिए ना सिर्फ आना जाना मुश्किल हो जाता है , बल्कि जगहें भी सिमट जाती हैं । एक औरत को अक्सर छे ड़ा, छुआ, दबोचा, पुकारा, परे शान कर वस्तु बना दिया जाता है । इस यौन उत्पीड़न को जुर्म होने के बावजूद महिलाओं द्वारा रोज़ भुगता जाता है और हलके में लिया जाता है और इसे अंग्रेज़ी में “ईव टीसींग” कहा जाता है । जो मुद्दे की गंभीरता को ख़त्म कर देता है । अगर पासे को पलटकर, नज़रों को उलट दिया जाए तो! औरतों की नज़रें , छे ड़ने वाले आदमियों को कैसे देखेंगी और वे कौन सी वस्तुएँ बन जाएं गे? पेश है “एडम टौन्टिंग”-पुरुष वस्तुओं के रूप में!
बश े र
म्बा ्म ख
ये एक परमानेंट खम्बे की तरह हर गली में दिख जायेंगे। अवैध रूप से खड़े, ये लगातार आँखों में काँटे की तरह चुभते रहेंगे।ऐसा अतिक्रमण जो सार्वजानिक स्थलों को और कम कर देते हैं।
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-पूजा ढींगरा ण त्र ि च र शब्द औ
स क्ष रा न ी ब र दू एक
बड़ी आँखों वाला राक्षस जिसे औरत के जिस्म की भूख है, ये बेवजह सरे आम अपनी बड़ीबड़ी आँखें लिए घूमता रहता है और औरत को घूरते हुए फुल बॉडी स्कैन करता है।
एक कम
औ दे फ्ल जा स गदंग लगता है से निक निरं तर सार्वजनिक को गन्दा, अ और औरतों के लि असुरक्षित बना देता है।
ग्रीष्म अंक 2019 • खिड़की आवाज़
ोंपू
बाबू
हड्डियों का एक ढाँचा अचानक ज़मीन के अंदर से प्रकट हो जायेगा और ये अंकल डायनासौर के ज़माने के होने के बावजूद, जवान और बूढी औरतों को छे ड़ेगा।
ो शान से लाकर, बेशर्मी लिंगम 0 सीसी गों की प्रॉपर्टी पार्क करें गे।
सनकी फव्वारा
चड्डी ब ड्
डी
वह इस गलतफहमी में रहता है कि उसके जेट स्प्रे जनता के लिए, स्वर्ग के जादुई फुव्वारों जैसे खुशनुमा होते होंगे। इस विफल फव्वारे को यह समझना होगा कि उसका चिपचिपा जोश ना सिर्फ अस्वीकार्य है, अभद्र भी है परन्तु एक क़ानूनी अपराध है।
मर्दानगी का एक अजब नमूना तब दिखता है जब कमज़ोर अंडकोश वालों का एक झुंड मिल जाता है। उनकी सामूहिक ताकत, फैली हुई छातियाँ और चड्डियाँ, उन्हें औरतों को डराने के लिए उकसाती हैं।
क मोड, जो औरत को दखते ही, फ्लश ना की सकने वाली गी उगलने ह।उसके मुँह कलने वाला डायरिया, क स्थलों असहनीय लिए ।
एक ऐसा स्प्रिंग लगा हुआ खिलौना, जो बढ़े गा, मुड़ेगा, टेढ़ा होगा, खिंचेगा, फोल्ड होगा, पलटेगा, लम्बा होगा, दरअसल आपके पास आने, छूने, महसूस करने , चूँटी फोडने, धक्का देने के और आपके साथ खिलौने जैसा बर्ताव करने के लिए किसी भी हद तक चला जायेगा।
फर
ं ाल अंकल कक
लो
लचीला
माउथ
ाँटा क ी क ठर
टी
पॉ
बकब
क
श राबी
ऐसा, जिसका शरीर 72.8 % शराब और 200 % बकवास से भरा हुआ होता है। एक घातक फार्मूला जो डोपामीन के जोश में, नीच और गलत काम करता है।
एक दखल अंदाज़ी करने वाला पौधा, जो चुभता, धक्का देता, चूँटी फोड़ता और आपके कपड़ों में फँस जाता है। भीड़भाड़ वाली जगह में सबसे अधिक मिलते हैं और सबको परे शान कर चोट पहुँचाता हैं।
@post_for_the_patriarchy
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खिड़की आवाज़ • ग्रीष्म अंक 2019
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अस्थिर पहचान
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म्नेस्टी इं ट रने श नल द्वारा लाहौर पीछे छोड़कर आये थे । मैं रोहिंग्या दनि ु या के सबसे बचपन से कहानियाँ सु न ता आया ज़्यादा सताये हु ए था कि वे कितना कु छ पीछे छोड़ अल्पसं ख ्यकों में से एक हैं । साल आये थे और दिल्ली में एक नई 1982 मैं , म्यांमार सरकार ने , ज़िन्दगी शु रू करना कितना जो कि एक बुद्धि स्ट बहु ल दे श है , कठिन था। उन्हें लगता था कि ने रोहिंग्या समु द ाय की नागरिकता उनकी आत्मा का एक हिस्सा को धार्मिक और जातीय कारणों आज भी लाहौर में जीवित है । जब से गै र -क़ानू नी घोषित कर दिया। भी मैं रोहिंग्या लोगों को दे ख ता हूँ 2010 से 2012 के बीच, लगभग तो, मैं सोचता हूँ कि क्या उनका 200 रोहिंग्या परिवार भारत अनु भ व भी ऐसा ही रहा होगा और आये और दिल्ली के रिफ्यूजी कै म्पों उनकी कहानियाँ भी ऐसी ही रही में बस गए। कई सालों से , हज़ारों होंगी। रोहिंग्या मु स लमान, जु ल ्मों से दिल मोहम्मद, शाहीन बाग के बचकर बां ग ्लादे श भाग निकले हैं । रोहिंग्या रिफ्यूजी कैं प का ने त ा है । लेक िन बां ग ्लादे श उन्हें ‘अवै ध वे अक्सर अपने और अपने विदे शी’ मानता है और उन्हें अपने समु द ाय के डर के बारे में बताते सीमा में बसने नहीं दे त ा। हैं - बिछड़े घर को याद करते हैं । शाहीन बाग, मदनपु र खादर, उनके पास जो भी बचा है , उससे ओखला और विकासपु री के वे एक द स ू रे से जु ड़ा हु आ महसू स आसपास लगभग 900 रोहिंग्या करते हैं और आज भी हर हालात रिफ्यूजी कैं प हैं । मैं ने मदनपु र का सामना करते हैं । हाल ही में खादर के पास अपने एक दोस्त थोपी गई जाँ च प्रक ्रि याओं से , के घर जाते हु ए इन कै म्पों को उन्हें बर्मा सरकार की उनको घर दे ख ा था। मैं अक्सर रूककर चाय से निकालने से पहले की प्रक ्रि या के ठे लों के पास खड़े और बतियाते याद आ गई। युव ा रोहिंग्या लड़कों से बात शाहीन बाग के द स ू रे ने त ा करना चाहता था। उनकी ज़िन्दगी मोहम्मद उस्मान कहते हैं , ”लोग के बारे में जानना चाहता था। सन डरे हु ए हैं । उन्हें लगता है कि इस 1947 में , भारतीय उपमहाद्वीप जाँ च के बाद उन्हें वापस भे ज के हिंसक विभाजन में मे रे दादाजी दिया जाये ग ा। वेर िफिके शन फॉर्म
में रखीन स्टेट में रह रहे हमारे रिश्तेदारों का नाम लिया गया है । वे मु सीबत में पड़ सकते हैं । हर सु ब ह लोग चाय की द क ु ानों के पास, दनि ु याभर में रोहिंग्या समु द ाय के हालात की खबर ले ने के लिए इकठ्ठा होते हैं । इससे उनकी बे चै नी और बढ़ जाती है । ज़्यादातर दे ह ाड़ी मजद रू हैं , या कु क या कचरा बीनने का काम करते हैं - अक्सर दे ह ाड़ी के लिए कां ट्रे क ्टर या बिचौलिए पर निर्भर रहते हैं । मोहम्मद फ़ारूग कहते हैं , ”वे हमें काम तो दे ते हैं , लेक िन आधी दे ह ाड़ी ही दे ते हैं । कभीकभी एक पाई भी नहीं दे ते । वे भे द भाव करते हैं और हमारा फायदा उठाते हैं । ” इस फोटो प् रो जे क ्ट के माध्यम से , दिल्ली के रोहिंग्या समु द ाय के सं प र्क में आकर, मैं राष्ट्री यता और धर्म से अलग हटकर पहचान के मायनों को समझने की कोशिश कर रहा हूँ । रोहिंग्या मे रे लिए अहम हैं क्योंकि वे , प्र त ्यक्ष और अप्र त ्यक्ष रूप से पु श ्तैनी विरासत को धर्म और जाति के आधार पर, सबकु छ खो जाने का सटीक उदहारण हैं ।
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शब्द और तस्वीर- अनुज अरोड़ा
1. रोहिं ग्या रिफ्यूजी कैंप का नेता, दिल मोहम्मद, ईद-अल-अदा के मौके पर 22 अगस्त, 2018 को शाहीन बाग, नई दिल्ली के पास अपने दोस्तों से गले लगते हुए। 2. मोहम्मद फारुख, खजूरी ख़ास में एक दिहाड़ी मजदूर हैं। अपने बच्चों के साथ। 9 अक्टूबर, 2018 3. शाहीन बाग का रोहिं ग्या रिफ्यूजी कैंप। इन कैंपों में अक्सर मूलभूत सुविधाएं जैसे पीने का साफ़ पानी और स्वच्छता का अभाव है। रहने के खराब हालत होने पर भी, वे म्यांमार से ज़्यादा यहाँ रहना पसंद करते हैं। 6 नवम्बर, 2018 4. शाहीन बाग में एक अस्थाई कैंप में, शाम को बच्चे कंप्यूटर सीखते हुए। 22 अक्टूबर, 2018 5. रशीद ( बीच में ) अपने दोस्तों के साथ। वह शाहीन बाग के आसपास एक ऑटो रिक्शा चलाता है। 15 नवम्बर, 2018 6. मोहम्मद इस्माइल अपने परिवार के साथ अपनी बेटी से वीडियो कॉल करते हुए। वह बांग्लादेश के एक कैंप में है। 18 अक्टूबर, 2018 7. बच्चे, शाहीन बाग के कैंप में मस्ती करते हुए। 9 अक्टूबर 2018
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परिक्रमा ए
क कमरा जिस में में लोग गोडाउन में पड़े हु ए आलू के बोरियों की तरह बिखरे पड़े हैं , वहाँ सत्या अपने कमरे की टू टी हु ई खिड़की की तरफ दे ख ते हु ए कु छ सोचता है । बे चै नी की वजह से वह पू री रात नहीं सो पाता, आखिर कर वो धीमे से बिल्ली की तरह खड़ा होता और लोगों को ऊपर से पार होकर एक बीड़ी जलाने जाता है । बीड़ी जलाते हु ए वो खिड़की से खाली सड़क को दे ख ता है । बीड़ी का धु आं छोड़ते ही हवा में एक छल्ला बनता है और उस छल्ले में उसे चाँ द दिखाई दे त ा है ।
अं ज न: दे ख -दे ख आज मे र ा छल्ला चां द को छू ले ग ा। जामु न : मे र ा तो छल्ला इतना बड़ा है कि तु झे ही पू र ा निकल जाएगा। सत्या: मैं तो बस चाहता हूं कि मे र ा छल्ला उस आम के पे ड़ के पास पहुं च जाए और उसी में समा जाए। अं ज न: सत्या, चल ना एक दिन चलके वो आम तोड़ लाते है , किस्सा ही ख़तम । सत्या: मगर मैं ये नहीं चाहता। मैं आराम से इं त ज़ार कर रहा हूँ आम का और उनकी बे टी का, दोनों का । अं ज न: हा हा । ठाकु र साहब बाहर आएं गे और कहें गे अरे सत्य परमे श्व र ये लीजिये ये आम आपके सम्मान में ! जामु न : ठर्की साला! अपने गु ल्ली डं डे को काम में ले आ सब दिक्कत द रू । ठाकु र के कु त्ते भी हमसे बे ह तर खाना खाते हैं ! सत्या: क्या मतलब है तु म लोगों का? अं ज न: ये आखरी कस ले और चलते हैं ।
अगले दिन रामे श्व र और चं द ्र प्र क ाश उसी गां व के दो लड़के सरपं च ठाकु र के घर की तरफ दे ख ते हैं ।
रामे श्व र: यह आम बस मे र ा दिन बना दे ते हैं और और आम के मालिक से भी मु झे मोहब्बत है । चं द प ्र ्र क ाश: हां वह एक बहु त दिग्गज इं स ान है , सारे नौजवान उन्हीं की तरह बनना चाहते हैं । रामे श्व र: वो नहीं बे व कू फ, वो! उसके लं बे बाल दे ख , उसका चे ह रा तो आम से भी ज्यादा मीठा होगा! मु झे बस वो चाहिए! चं द प ्र ्र क ाश: अगले साल वो शहर जा रही है पढ़ने और तु म यहां पर इं ट र के एग्जाम नहीं पास कर पा रहे हो 3 साल से । रामे श्व र: प्यार की कोई सीमा नहीं होती और वै से भी वो और मैं एक ही जात के है । मु झे उसको एक प्रे म पत्र लिखना चाहिए। चं द प ्र ्र क ाश: लिखना भी आता तु झे ? रामे श्व र: उसके लिए तो तू है ना!
दोनों लड़के बै ठ के खत लिखते हैं , अचानक से ठाकु र साहब बागीचे में आ पॅ हु च ते है और दोनों भाग जाते , उस ही दौरान खत गिर जाता है । ठाकु र: कौन थे ये लड़के ? चमनलाल: मालू म नहीं सरकार। ठाकु र: मैं रोज आम घटते हु ए दे ख रहा हूँ , यह सारे लोग आम के भू खे हैं ! चमनलाल: बागीचे के चारों तरफ घे र दे ते है । ठाकु र: क्या मजाक कर रहे हो? अब ठाकु र को सु र क्षा की जरूरत पड़ेगी? वो क्या है ?
ग्रीष्म अंक 2019 • खिड़की आवाज़
एक्ट थ्री, चार एक्ट का तीसरा भाग, स्टीवन एस जॉर्ज द्वारा रचित। प्रवासी समुदाय के अनुभवों पर आधारित। ठाकु र उस खत को उठाता है और पढ़ने लगता है । ठाकु र: प्रिय सरस्वती, मैं तु म से मोहब्बत करता हूं और तु म ्हारे आम के पे ड़ से भी। मैं वही हूँ तु म ्हारे बगीचे से आम चु र ाता हूँ ।और अब मैं तु म ्हारा दिल भी चु र ाना चाहता हूँ और उसके बाद मैं इस आम के पे ड़ का मालिक भी बन्न जाऊँ गा। तु म ्हारा आम चोर ठाकु र: क्या बकवास है ये ! हरामखोर! चमनलाल: सरकार इनका पता लगाते हैं किसकी इतनी हिम्मत हु ई ! ठाकु र: कोई जरूरत नहीं सरस्वती को अभी के अभी के अभी बु ल ाओ। चमनलाल: ठीक है सरकार ठाकु र: यह क्या बकवास है ? सरस्वती: पिताजी आप किस बारे में बोल रहे है ? ठाकु र: ये खत! कौन है ये ? सरस्वती: दिखाइए मु झे ठाकु र: नहीं! कोई ज़रूरत नहीं! तु म शहर जा रही हो अभी इस ही वक़्त, अब वही पढाई होगी तु म ्हारी! सरस्वती: पिताजी मैं ने तो कु छ भी.. ठाकु र: बस मैं ने अपना फै सला सु न ा दिया है ! ठाकु र : बहु त हो गया, अभी के अभी तु म शहर जा रहे हो, हमने इस लिए थोड़ी तु म ्हे स्कू ल भे ज ा था। तु म सब लोग मे रे साथ चलो, रामु और चं द ू को भी बु ल ा लो उन्हें जवान लड़को के बारे में पता है तीनों दोस्त तालाब के पास मिलते हैं अं ज न - जामु न : दे ख ते है कौन दौड़ जीते ग ा
सत्या : मु झे नहीं करना अं ज न: आज कल तु म बहु त ज़्यादा मन करने लग रहे हो सत्या: क्या हम लोग सिर्फ इस लिए दोस्त है ? जामु न : हम अपने जात की वजह से दोस्त है । ये सब छोड़ दे ख उस किनारे औरतों ने आना शु रू कर दिया और अब नहाना शु रू करेंगी अं ज न, जामु न और सत्या उस दृश्य का लु फ ्त उठा रहे होते है । अचानक से ठाकु र और बाकी लोग इन् तीनो को पटक पटक के पीटना शु रू कर दे ते है । ठाकु र : बे श र्म हरामी अछू त! साले ! रामे श्व र : इन्ही में से एक है , सरपं च जी! चं द प ्र ्र क ाश : हम दोनों ने कल इन्हे आम के बारे में बात करते हु ए सु न ा था ठाकु र (जामु न का गला। दबाते हु ए ): कौन खाना चाहता है मे रे बगीचे से आम? चं द प ्र ्र क ाश: बोलते क्यों नहीं सू अ र के बचो! रामे श्व र: वो खत किसने लिखा था? ठाकु र: तु म में से पढ़ना लिखना कौन जनता है ? सत्या: मैं सब लोग मिलकर सत्या, अं ज न और जामु न को घसीट-घसीट के मारते हैं । पू रे गां व में घु म ा घु म ा के मारते है । ठाकु र: आज ये लोग अपनी जगह भू ल गए हैं , यह भू ल गए कि इन्हे गाँ व के बाहर क्यों रखा जाता है । आज इस लड़के ने सरपं च के बगीचे से आम चु र ाने की कोशिश करि और कल को यह लोग मंदि र में घु स ने की बात भी करेंगे ! क्या यही चाहिए हम
सबको ? रामे श्व र - चं द प ्र ्र क ाश: नहीं ! नहीं ! ठाकु र: आज इन् ने सारी हद पार कर दी ये कहके की आम के बगीचे का मालिक बनना चाहता है और सरपं च की बे टी से शादी करना चाहता है । इनके पू रे टोले को सबक सिखाने की जरूरत है , ताकि आने वाली सौ पीढ़ियाँ भी ऐसा कोई सपना ना दे ख सके और यह ना भू ले कि यह लोग सिर्फ गधा-मजद रू ी करने के लिए पै द ा हु ए है । रामे श्व र- चं द प ्र ्र क ाश: इन लोगों को पू रे गां व में नं ग ा घु म ाते हैं । ठाकु र: हम लोगों को इनको मारना पड़ेगा! रामे श्व र और चं द ्र प्र क ाश यह सु न ते ही डर जाते हैं , अं ज न, जामु न और सत्या अपनी आखरी सां से गिन रहे होते हैं , उसी वक्त सत्या ट्रे न के गु ज रने की आवाज सु न ता है । सत्य अपनी सारी ताकत लगाता है , रामे श्व र और चं द ्र प्र क ाश को धक्का मारता है और दौड़ता है । मीलों द रू तक नं गे पाँ व दौड़ता रहता है और ट्रै न में चढ़ जाता है । सत्या: आहहहहहहहहहह !!!! यह पहली बार था कि किसी ने खिड़की में सत्या की चींख सु नी हो। एक हारे हु ए इं स ान की तरह खड़े होकर सत्या रोने लगता है और उसकी आँ खों में आँ सू नहीं रुकते । अशफाक के किस्से ने , कु छ दबे हु ए कड़वे सच को मानो कफन से बाहर निकाल ज़िंदा खड़ा कर दिया। सत्या अब अपने आप को रोक नहीं पा रहा है , यह सोचने से की अशफाक के साथ क्या हु आ होगा और अब उसके साथ क्या होगा?
पड़ोसी देशों का सफर जारी है
अ
मु र वारीद पै व न्द
फ़ग़ानिस्तान में , मे री बहन ने मे र ा यु व ा लड़कियों के स्कू ल में दाखिला कराया। वे चाहती थी कि हमारी शिक्षा जल्द से जल्द पू री हो जाये । इस स्कू ल में आप दो सालों की शिक्षा एक ही साल में पू री कर सकते थे । लेक िन, मु झे द ूस री कक्षा में दाखिला मिला, क्योंकि मु झे पश्तो नहीं आती थी। मैं उस भाषा को पढ़, लिख और बोल नहीं पाती थी, इसलिए प्रिंसिपल ने मु झे द ूस री कक्षा में दाखिला दिया। स्कू ल का शु रू आती दौर काफी अच्छा था, क्योंकि हमारे नियमित टीचर थे और मैं बहु त सी नई बातें समझ और सीख पा रही थी। पाँ च वीं कक्षा तक सब ठीक था। अचानक कु छ दिक्कतों के कारण ( जो हम समझ नहीं पा रहे थे ), टीचरों ने स्कू ल आना बं द कर दिया। हम सब परे श ान थे । ज्ञान की मे री भू ख को शान्त करने के लिए मैं ने अं गरे् जी और
कं प्यूटर सीखने के लिए एक इंस ्टिट्यू ट में दाखिला लिया। मैं नवीं कक्षा में पहुँ च चु की थी, लेक िन स्कू ल में हालात अभी भी ख़राब थे , मैं स्कू ल रोज़ नहीं जा पाती थी। कभी-कभी तो मैं सु ब ह जल्दी उठकर, स्कू ल के लिए तै य ार होकर जाती थी, लेक िन स्कू ल में एक भी टीचर नहीं होता था। छात्र बोर होकर क्लास में सो जाते थे , बाकी इधर-उधर घू म कर, हर वक़्त गपशप करते रहते । इस तरह के माहौल में , बिना कु छ सीखे , मैं ने निर्ण य लिया कि स्कू ल जाने का कोई मतलब नहीं है । मैं हफ्ते में एक-दो ही जाती और बाकी दिन इंस ्टिट्यू ट में अं गरे् जी और कं प्यूटर क्लास जाती। इसी दौरान, मे री एक बहन की शादी हो गई और पू र ा परिवार जश्न में व्यस्त हो गया। नवीं कक्षा के बाद, एक बदलाव आया और टीचर वापस आने लगे । उनमें से एक ख़ास टीचर थी, जो हमारी स्थिति को समझती थी एं ड छात् रा ओं की मदद भी करती थी।
उनका नाम नीलोफर था। मैं अपने सवालों के साथ उनके पास गई। मैं ने उन्हें बताया कि मु झे मेडि कल क्षे त्र में दिलचस्पी है । उन्होंने मु झे हौसला दे ते हु ए एफ.एम.आई.सी. के बारे में बताया। वे कराची, पाकिस्तान में पढ़ने के लिए लड़कियों को मेडि कल क्षे त्र में जाने के लिए छात्र वत्ृ ति दे ते हैं । मैं ने इस मौके को भु न ाने के लिए बहु त सी जानकारी इकठ्ठा की। मैं हर बात को नीलोफर मै म से साझा करती और वे मु झे दिशा दे ते हु ए , जानकारी और प् रो त्साहन दे ती। मैं ने दो महीने बाद होने वाली प्र वे श परीक्षा की तै य ारी शु रू कर दी। द र्भा ु ग्य से एक बार फिर, अफ़ग़ानिस्तान के हालात खराब होने लगे और एक बार फिर हमें अपना घर, उम्मीदें और सपने पीछे छोड़ने पड़े और नई जगह जाना पड़ा। इस बार हम इंडि या आये । मैं प्र वे श परीक्षा नहीं दे पायी और इंडि या में रिफ्यूजी बनकर रह रही हूँ ।
“रिज़वान भाई सबसे बेहतरीन हेअरकट देते हैं”
“कैसे भी बाल हों, हम कोई भी वेस्टर्न स्टाइल देते हैं ।”
“मैं नहीं, मेरी कैंची बोलेगी!”
खिड़की आवाज़ के पाठकों के लिए ख़ास 10% छू ट!! पता: एल 13/ए, मालवीय नगर
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खिड़की आवाज़ • ग्रीष्म अंक 2019
दलित फे मिनिज्म आर्काइव की एक झलक ज्योत्स्ना सिद्धाथ कीर्ति जयकुमार दलित फेमिनिज्म आर्काइव, जिसे पहले दलित वीमेन आर्काइव कहा जाता था, का मकसद साउथ एशिया में दलित नारीवादी चर्चाओं को मजबूत करना है। दलित महिलाओं की उपलब्धियों को लेखों और प्रोफाइल के माध्यम से फेमिनिस्ट मूवमेंट और उनकी कहानियों को मजबूत करना है। इसने फेमिनिस्ट मूवमेंट में दलित
एनी नमाला
एनी नमाला एक सामाजिक कार्यकर्ता हैं, जो दलितों के अधिकारों के लिए काम करती हैं। वे , सें टर फॉर सोशल इक्विटी और इन्क्लूसिव की डायरेक्टर हैं। वे अछूत आं दोलन की एक अहम प्रवक्ता हैं। वे ने शनल एडवाइजरी कौंसिल फॉर इम्प्लीटे शन ऑफ़ आर.टी.ई. की 2010 में सदस्य चुनी गई।ं एनी नमाला ने सॉलिडेरिटी फॉर चिल्ड्रन अगें स्ट डिस्क्रिमिने शन एं ड एक्सक्लूशन (SGCADE)के लिए भी काम किया है।
फू लन दे व ी
फूलन दे वी ( 10 अगस्त 1963 26 जुल ाई 2001 ), डाकू थीं, जो बाद में में बर ऑफ़ पार्लियामें ट बनीं। वे ग्रा मीण उत्तर प्रदेश के एक गरीब परिवार में पैदा हुई ं और उन्होंने ना सिर्फ गरीबी दे खी, बल्कि उनका बाल विवाह भी हुआ और एक खराब शादी के बाद उन्होंने जुर्म की दनि ु या में कदम रखा। कठिन परिस्थितियों और घिनोने रेप से फूलन दे वी के गैं ग को बदला ले ने के लिए 22 राजपूत लोगों को मारने पर कु प्रसिद्धि मिली। फूलन दे वी ने 11 साल जे ल में बिताये और अन्य इल्जामों पर उनके खिलाफ कोर्ट के स चले । 1994 में , मुल ायम सिंह यादव की सरकार ने उनपर लगे सारे के स वापस ले लिए और फूलन दे वी रिहा हो गई।ं इसके बाद उन्होंने समाजवादी पार्टी का उम्मीदवार बनकर सं सद के लिए चुनाव लड़ा और दो बार मिर्ज़ापुर से लोक सभा सांसद चुनी गयी।
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महिलाओं की कहानियों के गायब होने की लम्बी बहस में योगदान दिया है। इस आर्काइव में इकठ्ठा की गयी सामग्री 18 वीं सदी से आज तक, अलग-अलग क्षेत्रों में दलित महिलाओं के योगदान को दर्शाता है। साथ ही उनके विचारों, योगदान और उपलब्धियों को फेमिन्स्ट आं दोलन के इतिहास से जोड़ता है। यह, इस गलफहमी को चुनौती भी देता है कि दलित नारीवाद की शुरुआत हाल ही में हुई है, बल्कि
मायावती भारतीय राजनीती की एक शक्तिशाली ने त ा है और चार बार उत्तर प्र दे श की मु ख ्यमं त्री रही हैं । वे बहु ज न समाज पार्टी की राष्ट्री य अध्यक्ष हैं , जो बहु ज नों के लिए सामाजिक बदलाव पर जोर दे ते हैं । ये पिछड़ी जातियाँ हैं , जै से मु स लमान, अनु सूच ित जाती और अनु सूच ित जनजाति। मायावती की शु रु आत विनम्र रही जिसे पू र्व प्र ध ानमं त्री पी.वी. नरसिम्हाराव ने ‘लोकतं त्र का चमत्कार’ बताया। वे पहली पिछड़ी जाति की महिला मु ख ्यमं त्री थीं। लाखों दलित उन्हें , एक नायक के रूप में दे ख ते हैं और प्यार से बहनजी पु क ारते हैं ।
मायावती
सुजाता सुरप े ल्ली एक समाजिक कार्यकर्ता और शिक्षक हैं। वर्तमान में वे यूनिवर्सिटी कॉलेज ऑफ़ आर्ट्स, सोशल साइंस और कॉमर्स की, सातवाहना यूनिवर्सिटी, करीमनगर की प्रिंसिपल हैं। वे पिछले 13 सालों से सोशियोलॉजी पढ़ा रही हैं। वे तेलुगु अखबारों के लिए लगातार लिखती हैं और ‘देसी दिशा’ नाम की एक तिमाही पत्रिका का संपादन करती हैं। उनकी दिलचस्पी, जाति और लिंग के आधार पर अंतर, आदिवासी अधिकार, पर्यावरण के मुद्दे, प्राकृतिक संसाधन के लिए सशक्त भागीदारी का माहौल बनाना है। वे सोशियोलॉजी में मास्टर्स हैं और दलित महिला सशक्तिकरण में पी.एच.डी. हैं।
सु ज ाता सु रेप ल्ली
इस बात पर ज़ोर देता है कि ये हमेशा से था। ऐसे बहुत से आर्काइव हैं, जो दलितों और दलित महिलाओं के इतिहास को डॉक्यूमेंट कर रहे हैं, लेकिन एक ऐसे आर्काइव की कमी खल रही थी, जो पिछड़ों में भी हाशिये पर धकेलने की परंपरा की बात करे। इसलिए दलित महिलाओं पर सामग्री इकठ्ठा करने के अलावा, दलित फेमिनिज्म आर्काइव का मकसद, ना सिर्फ इतिहास में योगदान देना है, बल्कि; दलित
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आशा कोतवाल आशा कोतवाल एक समाजसे वी और दलित महिला अधिकार में एक्सपर्ट हैं । वर्त मान में वे दलित महिला अधिकार आं दोलन (AIDMAM)कीजनरल से करे् टरी हैं । जो दलित मानव अधिकार के ने श नल कैं पे न का अहम हिस्सा है । वे विंग-इंडि या की कनवीनर और स्टीयरिंग कमिटी का हिस्सा हैं , जो उत्तर पू र्व से महिला ने तृ त ्व को आगे बढ़ा रहे हैं और दलितों और आदिवासी समु द ायों के साथ मिलकर, सरकारी तं त्र की पड़ताल कर उसमें से शोषण करने वाले ढाँ चे हटाकर, लिंग समानता से समाज को सशक्त कर रही हैं ।
उर्मि ला पवार उर्मिला पवार एक जानीमानी दलित नारीवादी और इतिहासकार हैं , जो महाराष्ट्र के महार समु द ाय के एक पिछड़े परिवार से आती हैं । पवार को बचपन से ही अपने जाति से पीछे होने का एहसास हो गया था, इसी कारण वे बड़ी होकर दलित और नारीवादी समाजसे वी बनीं। उनकी लघु कथायें हमे श ा से , सवर्ण अत्याचार की गवाह रही हैं । उनकी लघु कथा ‘कवच’ को एस.एन.डी.टी. वू मे न युनि वर्सि टी के सिले ब स में शामिल किया गया और मिनाक्षी मू न के साथ उनके डॉक्यूमें ट शन को, नारीवादी नज़रिये से दलित इतिहास को दे ख ने में अहम भूमि का रही है ।
पुरुषों, क्वीयर और अन्य संजातीय और धार्मिक पिछड़े वर्ग, जिन्हें जाति, वर्ग और लिंग के आधार पर हाशिये पर धकेला गया है, उनकी कहानियों को समाने लाना है। तभी दलित नारीवाद सम्मिलित रूप से सही मायनों में सामने आ पायेगा। दलित वीमेन आर्काइव का नाम बदलकर, दलित फेमिनिज्म आर्काइव इसलिए कर दिया गया, क्योंकि हमें महसूस हो गया था कि सिर्फ दलित महिलाओं की तस्वीरों और समाग्री लगाने से सही चर्चा नहीं
होगी।
एक बड़ी बहस और चर्चा के लिए, अलग-अलग सामाजिक लोगों का एक साथ आना बहुत ज़रूरी है। वर्तमान में, यह आर्काइव कीर्ति जयकुमार और करुणा डी’सूज़ा के साथ मिलकर, दलित औरतों के @instagram((@dalitfeminismarchive) पर प्रोफाइल बना रहा है। भविष्य में हम इसी बातचीत को आगे बढ़ाने के लिए, लेखों, पत्रों और अन्य माध्यमों को काम में लायेंगे।
मीरा कु मार पाँ च बार सं स द रही हैं और 2017 में यू . पी.ए. की राष्ट्र पति पद की उम्मीदवार थीं। उन्हें बिना किसी विरोध के 2009 से 2014 में पहली महिला लोक सभा स्पीकर के रूप में चु न ा गया। 15 वीं लोक सभा से पहले वे 8 वीं, 11 वीं,12 वीं और 14 वीं लोक सभा के लिए भी चु नी गई थीं। वे 2004-2009 में मनमोहन सिंह की सरकार में सामाजिक गोगू श्यामला न्याय और शसक्तीकरण मं त्री भी रही हैं । गोगू श्यामला एक ते ल गु ले ख क और जानीमानी नारी और दलित मीरा कु मार अधिकारों की प्र व क्ता हैं । 1969 में रं ग ा रे ड्डी डिस्ट्रि क्ट के पे डे मु ल गाँ व में पै द ा हु ई। उनके माता पिता खे ती मजद ूर थे । वे स्थनीय ज़मींदार के यहाँ काम करने वाले मजद ूरों ( वे ट्टी, बिना तनख्वा वाले मज़द ूर ) की ने त ा थी। वे बताती हैं कि उनके भाई रामचं द ्र को खे ती मज़द ूरी में जबरन धके ला गया , और वे अके ली थीं जिन्हें उच्च शिक्षा का अवसर मिला। आर्थिक तं गी के बावजू द , उन्होंने अं बे ड कर ओपन विश्वविद्यालय से बै च लर ऑफ़ आर्ट्स की डिग्री ली। रजनी तिलक ( 27 मई 1958 30 मार्च 2018 ) भारतीय दलित अधिकारों की कार्यकर्ता और दलित नारीवाद और लेखकों में एक जाना माना नाम है। वे सेंटर फॉर अल्टरनेटिव दलित मीडिया की एक्सेक्यूटिव डायरेक्टर रहीं हैं और नेशनल एसोसिएशन ऑफ़ दलित आर्गेनाईजेशन की सह-संस्थापक और दलित लेखक संघ की प्रेजिडेंट भी रही हैं। 80 के दशक में तिलक ने भारतीय दलित पैंथर्स के साथ एक यूनियन की शुरुआत की। सु ज ाता गिड़ला उन्होंने आहवान नाम के एक दलित थिएटर ग्रुप की शुरुआत की और सु ज ाता गिड़ला एक भारतीययुवाओं का एक ग्रुप बनाकर छात्र अमरीकी ले ख क हैं । वे ऐन्ट्स जागरूकता प्रोग्राम की शुरुआत अमं ग ऐलीफैं ट्स: एन अनटचे ब ल की। वे बहुत से संस्थानों से जुडी फैमिली एं ड द मेकिं ग ऑफ़ हुई थीं, जैसे एन.ए.सी. मॉडर्न इंडि या लिखने के लिए डी.ए.ओ.आर., सी.ए.डी.ए.एम., प्रसिद्ध हैं । वे आं ध्र प्र दे श में पै द ा एन.एफ.डी.डब्लू और दलित हु ई ं और 1990 में 26 साल की महिला आं दोलन आदि। उम्र में अमरीका चली गई। वे न्यू यॉर्क में रहती हैं और न्यू यॉर्क सिटी सबवे में कं डक्टर का काम रजनी तिलक करती हैं । गिड़ला बैं क ऑफ़ नई यॉर्क के लिए सॉफ्टवे य र एप्लीके शन डिज़ाइनर का काम करती थीं, लेक िन 2009 के आर्थिक सं क ट और मं दी के कारण उन्हें नौकरी से हाथ धोना पड़ा। फिर उन्होंने कहा कि वे हाथ का काम करना चाहती थी। वे दनि ु या की सबसे व्यस्त सबवे की पहली भारतीय महिला कं डक्टर हैं ।
ग्रीष्म अंक 2019 • खिड़की आवाज़
सा थ अप ने
धरती को बचाने के 26 सरल तरीके
ें रख
पू ज ा ढींगरा द्वारा
फैशन
इधर-उधर खाने की
फास्ट
कचरा कम करें एक सीरीज है जो अं ग्रे ज ी शब्दावली के 26 अक्षरों के ज़रिये , कम खपत, दोबारा इस्ते म ाल और कचरे के रीसायकल करने के 26 सरल तरीके बता रही है ।
बहायें अपना खून मेंस्ट्रुअल कप में
ोतल ी ब ी क पा न
कचरा कम करें
बजाय घर पे पकायें
जुड़ें चीजों से इस्तेमाल करें
में
हरे भरे हो जायें प्राकृतिक इलाज से
घर
बाँस की बनाई
करो इस्तेमाल, झोला, चम्मच और डब्बा
लोकल
चीज़ें अपनायें
एल.ई.डी बल्ब
मन से और हाथ से
ना करें ईयर बड का इस्तेमाल
बनाओ खुद का सामान
क्यों है
कचरा पूछो
अपनी कॉलोनी के कचरे की समस्या से परे श ान होकर, भारत सरकार के स्वच्छ भारत अभियान की असफलता और सबसे ज़रूरी; कचरा बीनने वालों की द र्दु शा दे ख कर, मैं ने ठाना कि इस सरल सीरीज़ से जागरूकता फै लाऊँ । मे री कचरे को मै ने ज करने का सफर दो साल पहले शु रू हु आ , जब मैं ने मन बनाया कि मैं सबसे पहले अपना कचरा कम करुँ गी। मैं अपने आसपास के लोगों को भी समझाने की कोशिश कर रही थी, लेक िन मु झे एहसास हु आ कि या तो मैं बहु त ज़्यादा सँ क ोच करती हूँ (अजनबियों से ) या काफी आक् रामक हो जाती हूँ (दोस्तों और परिवार के साथ)। ऐसे में डिज़ाईन बीच का रास्ता था-एक तरीका, जिसने मु झे बड़ी समस्या के सरल उपाय दिए।
डिस्पोजेबल बंद करें
खेती करें
त्याग दें
और खायें
चलिए किचन वेस्ट की खाद बनायें
ें रोक
खुद को नया सामान लेने से
ऑप्ट आउट
करें
मेलर व
पसीने की बदबू फिटकरी से दूर करें
सब्सक्रिप्शन से
स्विच ऑफ और अनप्लग करें
टपकते पानी को बंद करें
जानो?
विनेगर से कीटाणु मारें
धूप इस्तेमाल करें
योग करें कॉटन पैजामे
वजह, बेवजह चलिये
सामान
उपकरण विचार
ज़रूरी सामान साथ ले के चलें में
एक्सचेंज करें
कचरा कम करें धरती को बचाने के 26 सरल तरीके
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खिड़की आवाज़ • ग्रीष्म अंक 2019
स्थानीय बिज़नेस वूमेन ने सफलता चखी
रूहान सिंगला एक आत्मनिर्भर उद्यमी हैं।जिन्होंने खिड़की एक्टेंशन के अपने घर से एक सफल बिज़नेस की शुरुआत की है। उन्होंने अपने बिज़नेस, कीटोरू बेक्स-एक विशिष्ट कीटोजेनिक बेकरी के बारे में, महावीर सिंह बिष्ट से बात की। महावीर: आप खिड़की में कब से रह रहे हैं ? आपका अनु भ व कै सा रहा? रूहान: मैं कई सालों से आते - जाते खिड़की की निवासी रही हूँ । शु रू से ही मु झे खिड़की अच्छा लगता था, मु झे यह मोहल्ला आरामदायक लगता था, किराये कम थे और पडोसी और मकान मालिक दखलअं द ाज़ी नहीं करते थे । लोगों की आम धारणा है कि खिड़की सु रक्षित नहीं है , यहाँ अपराध और वै श ्यावृति होती है , लेक िन मु झे यहाँ सु रक्षित और सुवि धाजनक लगता है । म: आपको बिज़ने स करने का विचार कै से आया और आप आगे कै से बढ़ीं? रू: मे र ा रुझान बिज़ने स की ओर पहले से रहा है । मैं ने अपने दोस्तों के साथ पहले भी बिज़ने स चलाये हैं , लेक िन वे ज़्यादा सफल नहीं रहे । कीटोरू बे क स का आईडिया मे री खुद की हे ल ्थी खाने और लाइफस्टाइल की ज़रूरत से आया। मैं थोड़ी मोटी तो थी, लेक िन कभी अस्वस्थ नहीं थी, जब तक मु झे अनाज निगलने में दिक्कत नहीं हु ई । पता चला की मु झे ग्लूटे न से दिक्कत होती है । मैं ने थोड़ी रिसर्च की और कीटोजेनि क डाइट के बारे में जानाजो प् रो टीन और हे ल ्थी फै ट से भरा हु आ होता है , अनाज और कार्बोहाइड्रेट्स में कम होता है । मैं ने ये डाइट ले न ा शु रू किया तो, मे र ा वजन घटने लगा और मे रे एनर्जी ले व ल बढ़ने लगे । मैं ये डाइट रोज़
ले ने लगी! लेक िन ऑनलाइन सर्च करने पर मु झे ये डाइट कहीं नहीं मिली। मैं ने सोचा कि मैं ही कु छ कर सकती हूँ और यह बिज़ने स शु रू किया।
म: आपको किस तरह की चु न ौतियों का सामना करना पड़ा ? रू: शु रु आत में काफी चु न ौती पू र्ण था। मैं ने जोमाटो से पार्ट नरशिप की और मे र ा पे ज बनने पर जल्द ही पहला आर्ड र आ गया। मैं घबरा गई! मैं अपने पहले क्लाइं ट को निराश नहीं कर सकती थी! मे री एक दोस्त ने मु झे , क्रै कर और गार्लिक ब्रेड का पहला आर्ड र तै य ार करने मैं मदद की! क्लाइं ट को खाना बहु त पसं द आया।उसके बाद तो आर्ड र आते ही गए, और सभी को खाना बहु त पसं द आया और वे अपने पड़ोसियों और दोस्तों को भी आर्ड र करने की सलाह दे ते । मैं और मे री काम वाली शु रू के दिनों में तो, लगभग आठ घं टे किचन में खड़े रहते । उसके बाद चीज़ें आसान हो गयीं और मैं ने एक बड़ा घर किराये पर ले लिया और काम भी सरल हो गया म: खिड़की में रहने से आपके बिज़ने स को किस तरह मदद मिली ? रू: मे री मे रे मकान-मालिकों से अच्छी बनती है - मु झे नहीं लगता दिल्ली में शायद ही ऐसी जगहें होंगी, जिनमें मकान-मालिक घर से बिज़ने स करने की इजाज़त दे त ा
होगा। खिड़की इस लिए भी ख़ास है क्योंकि यहाँ बहु त सी सुवि धाएं आसपास पास ही मौजू द हैं ।
म: बिज़ने स में किस तरह की वृद्धि हु ई है ? रू: चीज़ें काफी अच्छी रही हैं । मे रे खाने से लोग अपना वज़न घटा पा रहे हैं और बच्चों को भी स्वास्थ्य के लिए फायदे मं द ग्लूटे न फ्री विकल्प मिल जाता है । इससे डायबिटीज से लड़ने में भी मदद मिलती है । कीटोरू बॉक्स को गं ग ा राम के डॉक्टर भी ले ने की सलाह दे ते हैं , खासतौर पर गर्भवती महिलाओं के लिए जिनका ब्लड शु ग र कम होना चाहिए! हमने वे ब साइट भी शु रू की है , जो हमारी आय का सबसे बड़ा स्त् रो त है । भविष्य में , मे रे धीरे- धीरे रिटे ल स्टोर में प्री -बे क ्ड सामान बे च ना चाहती हूँ । म: आप अपने जै से युव ा बिज़ने स करने वालों को क्या सु झ ाव दें गी? रू: मैं वही कर रही हूँ , जो मु झे समझ आता है , जिसे ले क र मैं काफी उत्साहित हूँ । यह मे री ज़िन्दगी जीने के तरीके से मिलता है । चीज़ें अपने आप होती चली गई। शायद, ये सही वक़्त था, मे ह नत और लगन भी बहु त ज़रूरी है । युव ा बिज़ने स करने वालों को ऑनलाइन के ज़माने में कोई नहीं रोक सकता। मैं तो ये कहूँ गी कि अपने दिल की सु नें , चाहे छोटे से छोटा आईडिया क्यों न हो।
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