Khirkee Voice (Issue 6) Hindi

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ग्रीष्म संस्करण

खिड़की आवाज़ अंक #6

माँ का अपने बच्चे के लिए गहरा प्यार

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मौसम की रिपोर्ट

जु ल ा ई - स ि त म्ब र 2 0 1 8

अलामांडा गोल्डन ट्रंपेट

आबिजान, ऐवेरी कोस्ट

जुलाई में सुहाना मौसम, अगस्त में भारी बारिश दिल्ली, भारत हिबिस्कस

गर्म और नम, आवर्ती बारिश के साथ काबुल, अफगानीस्तान ट्यूलिप

ज़्यादातर गर्म और तेज़ धूप किन्शासा, कॉन्गो गुलाबी इजीप्सियन स्टारक्लस्टर

सुहाना मौसम, सितम्बर में आं धी तूफ़ान लेगोस, नाइजीरिया कला लिली

12 पन्ने

प्रेम विशेषांक

शहर में प्यार के कई रंग

अध्याय 6. जबरन समुद्र में ले जाया गया

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आई ध्रु

महावीर सिंह बिष्ट वीकरण के दौर में देश-प्रेम और राष्ट्रवाद जैसे पेचीदा मसलों के अनेकों अर्थ हो सकते हैं। जब भी दीमकों की तरह कोई बड़ी समस्या या हालात देश को खोखला कर रहे होते हैं, देश प्रेम अलग-अलग विचारधाराओं के स्वरूप को ओढ़े देशप्रेमियों के दिल में बसता है। हमारा सीना फूल उठता है, जब गणतंत्र दिवस पर सैन्यबलों के जुलूस निकलते हैं। हम हर स्वतंत्र दिवस पर आज़ादी की पतंग उड़ाते हैं और देश के लिए अपने प्यार को ज़ाहिर करते हैं। तो सवाल यह उठता है कि इन दो मौक़ों पर क्या परेड कर रहे सैन्य बलों की सराहना करना और आज़ादी के जुनून में पतंग उड़ाना, हमारी देशभक्ति का सबूत है ? क्या देश के प्रति वफ़ादारी और प्यार एक नागरिक होने के नाते इन सरल अभिव्यक्तियों तक ही सीमित है ? या सभी नियमों और क़ानूनों का पालन करना हमारे देश से प्यार का सबूत है ? क्या हम एक देशभक्त नागरिक होने की सभी जिम्मेदारियाँ निभा रहे हैं? इन्हीं सवालों के साथ हमने खिड़की एक्सटेंशन में रह रहे लोगों से बदलते वक़्त में देश-प्रेम और राष्ट्रवाद को समझने का प्रयास किया। “हर व्यक्ति अपनी मातृभूमि से प्यार करता है। इसे समझने और समझाने की कोई ख़ास ज़रूरत नहीं है”, रोहित खन्ना जी कहते हैं। उनकी खिड़की एक्सटेंशन के जे. ब्लॉक में पेंट की दक ु ान है। साथ

के सहयोग से

भगवती प्रसाद की यादगार अभिव्यक्ति

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माय इं डिया

खिड़की वासियों के देशप्रेम की अभिव्यक्ति... ही वे यह कहते हैं,”एक नागरिक होने के नाते हमें अपने मोहल्ले की साफ़ सफ़ाई का ध्यान रखना चाहिए क्योंकि हम नागरिक अधिकारों की बात तो करते हैं, पर ज़िम्मेदारियों को तवज्जो नहीं देते। खुद की ज़िम्मेदारियों को नहीं समझते। हर समस्या के लिए सत्ताधारी लोगों को कोसने से क्या होगा?”उनकी इस बात ने देशभक्ति के मूल की ओर इशारा किया जिसमें हमारे छोटे-छोटे प्रयासों और कृत्यों से हम देश के प्रति प्यार को ज़ाहिर करते हैं। साथ ही उन्होंने सविंधान की ओर भी इशारा किया जिसमें नागरिकों के मौलिक अधिकारों और जिम्मेदारियों को एक मानदण्ड माना जा सकता है। रोमियो कोंगो में हैं और उन्हें सत्ता के खिलाफ संगीत बनाने की वजह से देश छोड़ना पड़ा। वे कहते हैं, “जब भी हमारे आसपास कुछ गलत हो रहा हो, तो हमें आवाज़ उठानी चाहिए, ज़रुरत पड़े तो सबको जगाना चाहिए, शायद यही सच्ची देशभक्ति का सबूत है।” इस बात से समझ आया कि मूक दर्शक बनने की बजाय हमें देश की उन्नति के लिए समाज की कुरीतियों से भी लड़ना चाहिए। तो ऐसे में देश की उन्नति के लिए हम किस तरह योगदान दे सकते हैं? इसी का जवाब खोजते हुए हम भोले शंकर शर्मा जी से मिले। वे क्रि केट देखने के बड़े शौक़ीन हैं। उन्हें याद है, जब भारत 1983 में कपिल देव की कप्तानी में वर्ल्ड कप जीता था,

तो उनकी ख़ुशी का ठिकाना नहीं रहा था। वे खिड़की एक्सटेंशन में कई वर्षों से जुड़े हुए हैं और एक पेंटर का काम कर रहे हैं। वे कहते हैं,”जब भी देश को मेरी ज़रूरत पड़ेगी, तो जैसे भी होगा मैं योगदान दूँगा। हम बिना ट्रेनिंग के सरहद पर तो नहीं जा सकते, पर अपनी काबिलियत के हिसाब से योगदान देंगे। देश के प्रति प्यार तो दिल में होता है।” उनकी बातों से एक आम नागरिक की अपनी मातृभूमि के प्रति भावनाओं की झलक मिलती है। भोले जी ने हमे बताया कि उनके सबसे करीबी दोस्तों में से एक किसी अन्य धर्म के हैं, लेकिन कुछ शरारती तत्वों द्वारा किसी के देश प्रेम को धर्म विशेष से जोड़कर, सवाल उठाना सरासर गलत है। हमारी दिलचस्पी यह जानने में थी, कि फिर क्यों राजनेताओं और शरारती तत्वों द्वारा किसी धर्म विशेष के देश प्रेम पर सवाल उठाया जाता है, जबकि आम आदमी को इससे फर्क नहीं पड़ता। वे समाज में सौहार्द के साथ रहते हैं। इस पर मो.शम्मी ने प्रकाश डाला। उनका बिजली का काम है, उनका खिड़की में अक्सर आना-जाना लगा रहता है। वे कहते हैं,”जहाँ आपका जन्म हुआ हो, उससे जुड़ाव तो लाज़मी है। देश और धर्म अलग-अलग हैं। लोगों की विचारधारा अलग हो सकती है। जनतंत्र में राजनीती की वजह से खामियाँ आ रही है। लोगों की सोच बदलनी चाहिए। कोई भी राष्ट्रवाद पर सवाल उठाता तो उस पर

बहस होनी चाहिए। हर नागरिक अपने तरीके देश को योगदान देता है।” उनकी बातों से समझ आने लगा कि देश को प्यार करना एक निजी मामला है और देश और दनि ु या के सभी लोगों की अपनी-अपनी राय हो सकती है। शायद राष्ट्रवाद से ज़्यादा अहम मानवतावाद है, जिसमें समाज के लोग एक दूसरे की संवेदनाओं का ख्याल रखें। देविका मेनन खिड़की में एक कैंटीन चलती और उन्होंने खूबसूरत शब्दों में कहा,”अगर हम अपने देश से प्यार करते हैं, तो कूड़ा इधर-उधर न फेंके। संसाधनों का सूझबूझ से इस्तेमाल करें और महिलाओं को सुरक्षित महसूस करायें।साथ ही अपने आसपास के लोगों के प्रति सवेंदना दिखायें।” देविका के शब्दों में कुछ सरल उपायों से अपने आसपास के लोगों के प्रति संवेदना की झलक मिलती है। हमनें अपने आइवरी कोस्ट (अफ्रीका) के मित्र ऐविस से जानना चाहा कि देश के लिए क्या करना चाहिए, तो वे बोले,”आप अपने देश से प्यार करते हैं तो मेहमानों का अच्छे से स्वागत करते हैं। मुझे भारत में रहना बहुत अच्छा लगता है, पर कभीकभी भाषा के अंतर की वजह से ज़्यादा लोगों से बात नहीं हो पाती। पर मैं कभीकभी भूल जाता हूँ कि मैं किसी अन्य देश में हूँ, ये मेरा जैसा ही है। पर मुझे कभी9 कभी अपने देश के खाने और मौसम

खि.आ.: हम यह जानना चाहते हैं, लोगों की हिन्दू-मुस्लिम के बारे में बहुत-सी आम-धारणाएँ हैं, पर आपकी कहानी सुनकर ऐसा प्रतीत नहीं हुआ ? सं: मेरे बचपन से ही बहुत से मुस्लिम दोस्त रहे हैं। अच्छे बुरे लोग दोनों तरफ हैं। यह सब आपके अनुभवों और शिक्षा पर भी निर्भ र करता है। ज़रूरी यह है कि इन मसलों को खुले दिमाग से सोचा जाए। जो व्यक्ति सूजबूझ से अपने आसपास की चीज़ों को सवाल करता है और परखता तो

वह अपने जीवन के फैसले खुद ले सकता है। आदमी को अपनी सोच को प्रगतिशील बनाना चाहिए। खि.आ.: आपकी प्रेम-कहानी में किस किस तरह के उतार-चढ़ाव आये हैं? सं: हमें अक्सर डर लगता था, कि ये सब अचानक ख़त्म न हो जाये। पर हम मिलते थे, छिपते-छिपाते । मैं कई बार उन्हें घर के नीचे छोड़ने भी जाता था। हर रिश्ते में उतार-चढ़ाव तो लगा ही रहता है। खि.आ.: आप दोनों की संस्कृतियों 11

एक सदाबहार प्रेम कहानी संदीप छिकारा और सैय्यद मे हनाज़ एक खुशहाल जोड़ा है। खिड़की आवाज़ ने उनकी प्रेम कहानी जाननी चाही।

लगातार तेज़ बारिश

मालतीस रॉक कॅन्टौरी

मोगदिशु, सोमालिया

सुहाना और बादलों से घिरा हुआ, निरंतर आं धी तूफ़ान

सफ़ेद कचनार

रेखा चित्र: शिवांगी सिंह

पटना, भारत

जुलाई में सुहाना मौसम, लगातार भारी बारिश

खि.आ.: तो आपकी कहानी कैसे शुरु हुई? सं: यह लगभग 2005 की बात है, तब एक कम्पनी मैं मेरी जॉब लगी थी। वहाँ पहली बार मेरी मुलाकात मेहनाज़ से हुई थी। वो हमारी ट्रेनर थी। लगभग तीन दिन हमारी हल्की-फुल्की बातचीत हुई। अगले 7-8 महीने कोई बात नहीं हुई। ट्रेनिंग के लोगों का एक ग्रुप बना, जिसमें उन्होंने मिलने का प्लान बनाया। तो वहाँ मेहनाज़ और मेरे अलावा कोई और नहीं पहुँचा। इस तरह हमारी बातों का सिलसिला शुरू हुआ। लगभग दो साल बाद हम एक न्यू ईयर पार्टी में मैंने उन्हें प्रोपोज़ किया। उन्होंने हाँ कर दी। हमें थोड़ी शंका थी,क्यूंकि वो मुस्लिम थी और मैं जाट। मेरे परिवार में प्रेम-विवाह को लेकर ज़्यादा आपत्ति नहीं थी। हम दोनों की उम्र बढ़ने लगी तो दोनों को शादी के रिश्ते आने लगे। मैंने अपने घर में बता दिया। सुनकर, पिताजी ने शुरुआत में आपत्ति जताई, लेकिन माँ के बात करने पर वो मान गए। मेरे पिताजी ने अस्वासन

दिया कि वे मेरे साथ हैं। उनके परिवार में शुरू में सबने मना कर दिया। उनके भाई ने मुझसे मिलने की इच्छा जताई। वे तो मान गए, पर बाकी परिवार वाले अभी भी सहमत नहीं थे। अंतत: मैंने उनके पिताजी से बात की तो उन्होंने कहा: ये आपकी ज़िन्दगी है, आपका भविष्य है, आप जानते हैं, गलत सही सब आपका है। फिर हमारे माता-पिता मिलने को तैयार हुए। अब एक समस्या यह थी कि हमारे यहाँ लड़की वाले रिश्ता लेकर आते हैं और उनकी संस्कृति में लड़के वाले। । हम मेरे ससुरजी जी के दफ्तर में मिले। हम बच्चे लोग बाहर बैठे थे और हमारे माता-पिता ने लगभग आधे घंटे अकेले बात की। जब वे बाहर आये तो उन्होंने बताया कि शादी की तारीख तय हो गयी है। इस तरह हमारी शादी हुई। खि.आ.: बाद में किसी ने कोई आपत्ति उठाई? सं: नहीं किसी को कोई आपत्ति नहीं है और आसपास वाले भी कुछ नहीं बोलते।


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