ISSN: 2278 – 2168
Milestone Education Review (The Journal of Ideas on Educational & Social Transformation)
Year 08, No.02 (October, 2017)
Special Issue on Philosophy, Man and His World
Chief-Editor: Desh Raj Sirswal Guest-Editor: Devdas Saket
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Milestone Education Review (2278-2168) Milestone Education Review (The Journal of Ideas on Educational & Social Transformation) is an online peer-reviewed bi-annual journal of Milestone Education Society (Regd.) Pehowa (Kurukshetra). For us education refers to any act or experience that has a formative effect on the mind, character, or physical ability of an individual. The role of education must be as an instrument of social change and social transformation. Social transformation refers to large scale of social change as in cultural reforms and transformations. The first occurs with the individual, the second with the social system. This journal offers an opportunity to all academicians including educationist, social-scientists, philosophers and social activities to share their views. Each issue contains about 100 pages. Š Milestone Education Society (Regd.), Pehowa (Kurukshetra) Chief-Editor: Dr. Desh Raj Sirswal, Assistant Professor (Philosophy), P.G .Govt. College for Girls, Sector-11, Chandigarh. Guest-Editor: Mr. Devdas Saket, Research Scholar, Department of Philosophy, Vikram University, Ujjain (M.P.). Associate Editors: Dr. Merina Islam, Dr. Poonama Verma Editorial Advisory Board: Prof. K.K. Sharma (Former-Pro-Vice-Chancellor, NEHU, Shillong). Prof. (Dr.) Sohan Raj Tater (Former Vice Chancellor, Singhania University, Rajasthan). Dr. Dinesh Chahal (Department of Education, Central University of Haryana). Dr. Manoj Kumar, (P.G. Department of Sociology, P.G.Govt. College for Girls, Sector-11, Chandigarh.) Dr. Sudhir Baweja (University School of Open Learning,, Panjab University, Chandigarh). Dr. K. Victor Babu (Department of Philosophy and Religious Studies, Andhra University, Visakhapatnam). Dr. Nidhi Verma (Department of Psychology, C.R.S. University, Jind (Haryana). Dr. Jayadev Sahoo (Jr. Lecturer in Logic & Philosophy, GM Jr. College, Sambalpur, Odisha).
Declaration: The opinions expressed in the articles of this journal are those of the individual authors, and not necessary of those of the Society or the Editor. Front page picture is downloaded from the Internet.
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In this issue……….. Title & Author दर्शन, सज ृ नात्मकता और मानवीय सम्बन्ध
Page No. 04-13
दे र्राज ससरसवाऱ
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दर्शन, सृजनात्मकता और मानवीय सम्बन्ध देर्राज ससरसवाल साराांर् मानवीय-सम्बन्ध सददयों से दर्शन और सासहत्य के ाऄध्ययन का मुख्य सवषय रहा है. जब भी हम मानवीय सम्बन्धों के सववेचन पर जाते है तब हम ाआनकी प्रकृ सत, व्यसिगत और सामासजक सम्बन्धों की प्रमासणकता के सम्बन्ध म बात करते ह और हम के वल दार्शसनक सवचारों तक ही सीसमत नह रहते बसकक हम मनोसवज्ञासनकों, समाजर्ासियों, राजनीसतक सवचारकों के साथ-साथ सासहत्यकारों द्वारा दी गयी व्याख्याओं का भी ाऄध्ययन करना पड़ता है कयूांदक यह ाऄन्तरश सवषयी ाऄध्ययन का सवषय है. जब भी मानवीय सम्बन्धों का दार्शसनक ाऄध्ययन करते ह तो हम
मानवीय प्रकृ सत, नैसतक मूकयों, ज्ञान
का क्षेत्र, राजनीसतक-स्वतन्त्रता और ाऄसनवायशता ाआत्यादद दर्शन के सवसभन्न पहलुओं को भी समझना पड़ता है. प्रेम की प्रकृ सत (the nature of love), समत्रता (friendship), ाअत्मासभरुसच एवम ाऄन्य (self-interest and others), दूसरों से सम्बन्ध (relationships with strangers) और सामासजक-सहभासगता (social participation) ाआत्यादद ाआस ाऄध्ययन की सवषयवस्तु म ससम्मसलत है. ाआस र्ोध-पत्र का मुख्य ाईद्देश्य दर्शन और सृजनात्मकता म सम्बन्ध और मानवीय सम्बन्धों म ाआनकी ाईपयोसगता का ाऄध्ययन करना है. दर्शन का ाऄथश और पररभाषा प्रोफ. दयाकृ ष्ण ने "ज्ञान मीमाांसा" दकताब म भारत म दर्शन की सस्थसत का वणशन करते हुए सलखा है , "दर्शन के नाम पर भारत म एक ऐसी ाऄबौसिकता का प्रचार दकया जाता है सजसे ाऄध्यात्म नाम देकर बुसि के ाऄनांत ाअक्षेपों से बचाया जाता है। बात र्ब्द की नही है यदद दर्शन का ाऄथश वही है जो ये लोग देते ह; तो हमे ाईसके सलए कोाइ नया नाम खोजना पड़ेगा सजसका बुसि ही क्षेत्र है और तकश सजसका प्राण है। र्ायद 'दफकस्फा' ाईसके सलए ाऄसधक ाईपुि र्ब्द हो।… जहााँ बुसि की बात नह है वहाां दर्शन की बात करना दफजूल है। ध्यान लगााआए , घड्ताल बजााआए , प्राणायाम कीसजये ,योग सासधये, यह सब खुर्ी से कीसजये ,पर कम से कम ाआनको दर्शन की सांज्ञा मत दीसजये। ाऄलग- ाऄलग चीजों को एक नाम से पुकारने से कोाइ लाभ नही है ।"1 दर्शन की कोाइ सनसित पररभाषा देना काफी करिन है लेदकन दफर भी सबना पररभाषा के दकसी भी सवज्ञान या समाज सवज्ञान के ाऄथश को नही समझा जा सकता। यहााँ पर हम दर्शन की एक पररभाषा का सवश्लेषण करगे। दर्शन की एक सम्भासवत पररभाषा यह हो सकती है, "ाऄनवरत और प्रयत्नर्ील चचतन की बौसिक व्याख्या और ाईसके मूकयाङ्कन का प्रयास दर्शन कहलाता है।"2 लेदकन ाऄगर हम ाआस पररभाषा का सवस्श्लेष्ण कर तो सनम्नसलसखत करिनााआयााँ हम प्रतीत होती ह. ाआस पररभाषा के सवसभन्न घटकों को देख : 4
ाऄनवरत र्ब्द का ाऄथश है, लगातार /परम्परा से। लेदकन यहााँ पर ाऄपवाद है की जब कोाइ दार्शसनक जब सोचता है, तो यह ाईम्मीद और भावना रहती ह की र्ायद वह कु छ नया प्रस्तुत करे । ाऄत: यह र्ब्द साथशक तो है, लेदकन पररभाषा म ाऄनावश्यक है।
प्रयत्नर्ील चचतन : चचतन दो प्रकार का है: स्वाभासवक चचतन (thinking without efforts) जैस-े मन म ख्यालों का चलना। प्रयत्नर्ील सचन्तन ( thinking with efforts) - कोसर्र् द्वारा ाऄथाशत सजसमे क्रमानुसार प्रदक्रया होती है। लेदकन ऐसा चचतन बौसिक ही है। ाऄत: ाआसको ाऄलग से कहने की ाअवश्यकता नह है। साथ ही के वल दर्शन ही नह
ाऄन्य सवज्ञानों म भी
प्रयत्नर्ील सचन्तन होता है और साथ म व्यावहाररक जीवन म हम हर कम करने के सलए भी ाआसका ाआस्तेमाल करते है, लेदकन यह दर्शन नह है। जैसे यात्रा से पहले समय सारणी व कायशक्रम बनाना। सचन्तन के ाआस भेद को महत्वपूणश माना गया है। ाआसे तार्ककक (logical) या प्रत्ययात्मक (conceptual) भेद कहा जाता है।
दकसी भी पररभाषा को दो दोषों से रसहत होना चासहए – ाऄसतव्यासि दोष ाऄव्यासिदोष
पररभाषा ाईस वस्तु के लक्षणों को प्रकट करती है सजसका हम मुख्यत: वणशन कर रहे ह . ाऄसतव्यासि दोष ाईसे कहते ह, सजसम लक्षण ाईस वस्तु के ाऄलावा ाऄन्य म भी रहते ह जैसे 'गाय' ाईसे कहते ही, सजसके चार थन होते ही, ाआसम ाऄसतव्यासि दोष है, कयोंदक भस ाआत्यादद के भी ऐसा होता है। ाऄव्यासि दोष ाईसे कहते है, सजसम लक्षण ाऄव्याि होता है, यासन ाऄपूणश होता है, जैसे 'गाय' ाईसे कहते है, जो सफ़े द होती है। यह लक्षण भी पयाशि नह है, कयोंदक गाय काली, भूरी ाआत्यादद हो सकती है। लेदकन ाईपरोि पररभाषा की कसमयों को हम देखना होगा। ाईपरोि पररभाषा म प्रयत्नर्ील सचन्तन ाऄन्य सवज्ञानों म भी ही। ाऄत: ाऄसतव्यासि दोष है और साथ ही यह बौसिक का व्याख्या का ही एक ाऄांग ह. साथ ही जो लक्षण दो वस्तुओं म भेद को प्रकट कर, ाईन्ह स्पष्ट करता है वह व्यव्छेद्क धमश (differentiating characteristic) कहलाता है। वह पररभाषा म होना चासहए । जैसे वैर्ेसषक दर्शन म 'कमश' के सलए 'गसत' व्यावतशक धमश है, कयोंदक यह ाईसे ाऄन्यों से भेद ददखलाती है कयोंदक जहााँ भी कमश है, वहाां गसत है, जैसे हाथ सहलाना।
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दर्शन की पररभाषा के सलए एक और गुण है, जो बहुत ाअवश्यक है, सजससे वह ाऄन्य बौसिक व्याख्याओं या सवज्ञानों से ाईसे ाऄलग करता है, यह है- ाआसन्ियानुभाव सनरपेक्ष होना यासन ाआसन्ियानुभाव से परे होना। लेदकन यहााँ पर प्रश्न ाईिता है की ाआसन्ियानुभाव सनरपेक्ष होना गसणत और तकश र्ाि म भी पाया जाता है, दफर यहााँ ाऄांतर कया रह जाता है ? ाआसका सम्भाव्य ाईत्तर यह ददया जा सकता है की दर्शन मानव-जीवन के सवसवध पक्षों को लेकर चलता है, जबदक गसणत ाआससे बहुत सभन्न होता है। ाऄग्रवती गसणत (advanced mathematics) के वल ाऄवधारणाओं से भरा है, ाऄनुभूसत का कोाइ स्थान नह । ाऄत: दर्शन की पररभाषा सनम्न दी जा सकती है: "मानव-जीवन के सवसवध पक्षों का बौसिक - ाऄवधारणात्मक सचन्तन या ऐसे सचन्तन का ाअलोचनात्मक मूकयाांकन दर्शन है।" (Pure rational-conceptual thought regarding different aspects of human life or a critical thought over such kind of thoughts may be called as philosophy.) दर्शन की ाऄन्य सवर्ेषता यह है की यह ाअत्मालोचक (self- critical ) है। कहने का भाव यही है की दर्शन ही एक मात्र ऐसा सवषय है, जो ाऄपने स्वरूप के बारे म सोचता है। जैसे : ाआसतहास कया है?, सवज्ञानां कया है?, गसणत कया है?, सवसध कया है? दर्शन ही एक मात्र सवषय है, जो ाआसके बारे सचन्तन करता है, यह सभी के स्वरूप की ाऄवधारणाओं का ाऄध्ययन करता है। ाऄन्य सवषय ऐसा नह करते। परन्तु ाअसस्तत्ववादी दार्शसनक ाआससे सभन्न सवचार रखते है, वे कहते है दक बुसि या तकश से जब हम मानव जीवन से सम्बसन्धत जैसे प्यार, नैसतकता, धमश ाआत्यादद ाऄवधारणाओं को समझने की कोसर्र् करते ह तो ाईनकी ाअत्मा का हनन कर देते ह. यह वास्तव म ाअसस्तत्व नह
रखते , लेदकन ाआनको
समझने के सलए हम ाआन्ह जीना होगा। यदद ऐसा ही होता तो सासहत्य और दर्शन म समानता है और दफर ाआन दोनों म ाऄांतर कया रह जाता है ? यह समझ नह
ाअता। ाईपरोि सवचार ाऄकबटश कामू,
काफ़्का,सात्रश ाआत्यादद ाअसस्तत्वादी दार्शसनकों के ह। दर्शन पर वतशमान ाअक्षेप: दर्शन और दर्शनर्ाि की ाईपयोसगता पर बहस का ाआसतहास बहुत पुराना है, सवसभन्न समय म दार्शसनकों ने तत्कालीन परसस्थसतयों के ाऄनुसार दर्शन का सवश्लेष्ण और मुकयाांकन दकया है और पररणामस्वरूप ाऄलग ाऄलग दर्शन की र्ाखाओं और नवीन समस्याओं का ाईद्भव हुाअ है. लेदकन सपछले साल एक भौसतकी के वैज्ञासनक ने ऐसी रटप्पणी की है सजस पर दुसनया भर म हांगामा मचना तय है। एक काांफ्रस म महान वैज्ञासनक स्टीफन हॉककग ने कहा दक ‘दर्शनर्ाि मृत हो चुका है।’ वह सोचते ह दक दर्शन खत्म हो चुका है, कयोंदक ाआस क्षेत्र म नाइ बात नह ाअ रही ह। हॉककग मानते ह दक दर्शन (दफलॉसफी) वह युवा है, जो कॉकटेल पाटी म तब ददखता है, जब सारे ाऄसतसथ जा चुके होते ह। सवाल ाईिता है दक सबसे बुसिमान जीसवत ाआांसानों म से एक हॉककग ने यह ाअपसत्तजनक रटप्पणी कयों
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की? जासहर तौर पर ाआसका कारण है: ‘दर्शनर्ािी।’ हॉककग ने कहा, ‘ाआनका ाअधुसनक सवकास से कोाइ वास्ता नह , खास तौर से भौसतकी से।’ ाईनके ाऄनुसार,साांसाररक सच्चााआयों की जानकारी भौसतकर्ािी के पास है। हॉककग द्वारा र्ुरू की गाइ यह बहस न ससफश गलत बुसनयाद पर रटकी है, बसकक गलत ददर्ा म भी बढ़ गाइ है। जासहर है वे एक स्थासपत भौसतकर्ािी ह और ाईनकी कही गाइ एक-एक बात पर सवचार दकया जाता है। वैसे सजस गांभीरता से ाईन्होंने ाऄब तक काम दकया है, ाईनके ाआस बयान को बगैर सोचे-समझे ददया गया बयान नह माना जा सकता है। यह समझने की जरूरत है दक ाअज भी सवश्वसवद्यालयों म दफलॉसफी की पढ़ााइ होती है और दुसनया के साथ मानव ाऄसस्तत्व पर दर्शनर्ािी सवसभन्न दृसष्टकोणों से दकताब सलख रहे ह। ाआससलए यह सवाल ज्यादा सटीक है दक कौन-से दर्शनर्ाि मृत हो चुके ह? ाआस सवषय से जुड़े सवाल नए नह ह। हॉककग की यह व्याख्या काफी हद तक सही है। ाईन्ह की बात का समथशन दुसनया भर के और वैज्ञासनकों ने भी दकया है। लेदकन सवाल ाईिता है की दर्शन के बारे ाआस तरह की बात वतशमान म कयों ाईि रही है ? ाआसका एकमात्र जवाब यह हो सकता है की दार्शसनकों को ाऄपने सचन्तन को वतशमान सामासजक और राजसनसतक समस्याओं पर लाना होगा जोदक सीधे मानव जीवन से जुडी ह और लगातार ाईसे प्रभासवत करती रहती है. भारत म दार्शसनकों को एक सवर्ेष एसकटसवज्म की जरूरत है और ाआसके सलए ाईन्ह सांककप लेना होगा और दर्शन की जीवन्तता को ददखाना होगा. 3 ाआस तरह हम कह सकते ह की ाऄगर दार्शसनक ाऄपनी भूसमका को नह पहचान पाते तो दर्शन पर ाआस तरह के ाअक्षेप सम्भाव्य ह. सजशनात्मकता कया है? सजशनात्मकता ाऄथवा रचनात्मकता दकसी वस्तु, सवचार, कला, सासहत्य से सांबि दकसी समस्या का समाधान सनकालने ाअदद के क्षेत्र म कु छ नया रचने, ाअसवष्कृ त करने या पुनसृशसजत करने की प्रदक्रया है। यह एक मानससक सांदक्रया है जो भौसतक पररवतशनों को जन्म देती है। सृजनात्मकता के सांदभश म वैयसिक क्षमता और प्रसर्क्षण का ाअनुपासतक सांबन्ध है। रासधका मेनन के ाऄनुसार “सृजनर्ीलता का कोाइ एक ाअसधकाररक पररप्रेक्ष्य या पररभाषा नह है और ददलचस्प बात तो यह है दक सृजनर्ीलता के सलहाज से मनोसवज्ञान द्वारा ाऄध्ययन की गाइ दूसरी बातों के सवपरीत खुद सृजन-र्ीलता को मापने को कोाइ सवश-स्वीकृ सत तकनीक भी नह है। सांसश्लष्ट सिटेसनका सवश्वकोष ने सृजनात्मकता की पररभाषा देते हुए ाईसे एक नया सवचार या सोच, ककपनार्ील हुनर के जररए कोाइ नह चीज सनर्ममत करने की क्षमता, दकसी समस्या का कोाइ नया हल, नया तरीका या युसि या कोाइ नाइ कलात्मक वस्तु या रूप बताया है। सवश्लेषण, क्रसमक, सवकास व सुधारों और नाइ खोजों के मानकों पर ाअगे बढने को भी सृजनर्ीलता समझा जाता है। ाआस पररभाषा को लेने पर ाऄांतदृसश ष्ट दकसी खास क्षेत्र की बपौती नह रह जाती।“4 सृजनात्मकता के ाऄगर र्ासब्दक ाऄथश की बात दकया जाये तो “create”का र्ासब्दक ाऄथश है – सृजन करना, ाईत्पन्न करना ाअदद. “Creativity” से ाऄथश है, सवचारों और वस्तुओं म नये सबांध देखना. ाऄब
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प्रश्न ाईिता है की कया नवीनता का होना सृजनात्मकता के सलए ाअवश्यक है? कु छ सवद्वानों ने सृजनात्मकता की पररभाषाय प्रस्तुत की ह सजनमे नवीनता को सृजनात्मकता का मुख्य चबदु माना गया है :
िेव्द्हल (Drevdhal) के ाऄनुसार, “ सृजनात्मकता व्यसि की वह योग्यता है सजसके द्वारा वह कोाइ नवीन रचना करता है ाऄथवा नवीन सवचार प्रस्तुत करता है. ” ( Creativity is the ability of individual by which he creates something new and presents novel ideas.) According to Drevdahl, "Creativity is the capacity of a person to produce compositions or ideas which are essentially new."
सस्कनर (Skinner) के ाऄनुसार , “सृजनात्मकता से ाऄथश है दक वू=यसि की भसवष्यवासणयाां नाइ, मौसलक तथा ाऄसाधारण होती ह. सृजनर्ील व्यसि वह है जो नये क्षेत्रों की खोज करता है, नये ाऄवलोकन करता है, नाइ भसवष्यवासनयााँ करता है तथा नए सनष्कषश सनकालता ह”. (Creativity thinking means that the predictions for the individual are new, original and unusual. The creative thinker is one who explores new areas and makes new observations, new predictions, new in references.) According to Skinner, "Creative thinker is one who explores new areas, makes new observations, predictions and inferences."
स्टेगनर एवम् कावोस्की (Stagner and Karwoski) के ाऄनुसार, “ दकसी नाइ वस्तु का पूणश या ाअचर्क ाईत्पादन सृजनात्मकता है.” (Creativity implies the production of the totality or partiality novel identity.) According to Stagner, "Creativity implies the production of a totally or partially novel identity.
ाअाआजैक (Eysneck ) के ाऄनुसार, “ सृजनात्मकता वह योग्यता है सजसके द्वारा नए सांबांधों का ज्ञान होता है तथा ाआसकी ाईत्पसत्त के परम्परागत प्रसतमानों से हटकर ाऄसाधारण सवचार ाईत्पन्न होते ह.” (Creativity is the ability to see new relationship, to produce unusual ideas and to deviate from traditional patterns of thinking.)
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ाईपरोि पररभाषाओं के ाअधारपर हम सृजनात्मकता की सवर्ेषताओं का सनम्नसलसखत रूप से ाईकलेख कर सकते ह :
सृजनात्मकता सावशभौसमक होती है ाऄथवा सृजनात्मकता सभी प्रासणयों म होती है, दकसी म ाऄसधक और दकसी म कम.
सृजनात्मक योग्यता प्रसर्क्षण तथा सर्क्षा द्वारा सवकससत की जा सकती है . 8
सृजनात्मकता ाऄसभव्यसि द्वारा दकसी नाइ वस्तु को ाईत्पन्न दकया जाता है, परन्तु यह जरूरी नह दक वह वस्तु पूणशरूप से नाइ हो.
सृजनात्मकता प्रक्रम से जो ाईत्पादन होता है वह मौसलक होता है.
सृजनात्मकता और बुसि म ाऄसधक सम्बन्ध नह है .
सगकफोडश ने ाऄपने ाऄनुसांधानों के ाअधार और यह सनष्कषश सनकला की सृजनात्मक सचन्तन म सनम्नसलसखत योग्यताएां र्ासमल होती है: a) समस्याओं के प्रसत सांवेदनर्ीलता (Sensitivity of Problems) b) लचीलापन (Flexibility) c) सवस्तण (Elaboration) d) प्रवाह(Fluency) e) पुन: पररभासषत करना (Re-definition) f) ाऄमूतश एवम् सांक्षेपण करने की क्षमता (Abstracting ability) g) व्यवसस्थत एवम वगीकरण करने की क्षमता (Ability to arrange) h) सांगरित एवम् सुगरित करने की क्षमता (Ability to coherence and organization) i) सांसश्लष्ठ एवम् सुबि करने की क्षमता (Ability to synthesize and closure)
ाऄत: हम यह कह सकते ह दक सृजनर्ीलता वह मानससक प्रदक्रया है सजसके द्वारा मनुष्य ाऄपने वातावरण को ाआस प्रकार बल देना चाहता है दक ाईसम वह नए सवचार नमूने ाऄथवा सम्बन्ध ाईत्पन्न कर सके . सृजनर्ीलता मौसलक कायश करने की क्षमता है या सजससे हम पुराने ाऄनुभवों को पुनाः सनर्ममत करके नाइ रचना करने की ाईपयोगी योग्यता कह सकते ह.6 दर्शन, सृजनात्मकता और मानवीय सम्बन्ध ाऄभी हमने दर्शन के स्वरूप और सृजनात्मकता के बारे पढ़ा. दर्शन और सृजनात्मकता म कया सम्बन्ध है? दर्शन सृजनात्मकता को सवषयवस्तु प्रदान करता है ाऄथवा दृसष्टकोण? मानवीय सम्बन्ध दकसे कहते ह? बेहतर और बदतर मानवीय सम्बन्ध सृजनात्मकता को दकस प्रकार प्रभासवत करते ह? दर्शन का ाआन सबम कया योगदान है? ये कु छ प्रश्न है सजनका ाईत्तर हम खोजना होगा तभी हमारी खोज दकसी साथशकता की तरफ ाऄग्रसर होगी. प्रो. देवराज के ाऄनुसार, “मनुष्य की सृजनात्मक प्रदक्रया का दर्शन हम प्राकृ सतक व्यवस्था को बदलने म तथा ाईसकी सौन्दयाशत्मक ाऄसभरूसच म होता है। मनुष्य बाह्य घटनाओं के प्रसत ाऄपनी प्रसतदक्रया सवसभन्न ढांगों से व्यि करता है।“ डॉ. कलाम के ाऄनुसार, “सवोत्तम सर्क्षा वह होती है जब सर्क्षक ाऄपने छात्र को सृजनात्मक ाऄध्ययन की ाअदत डाल दे, सजससे जीवनपयंत ज्ञान की सपपासा जगी रहे। सर्क्षक न के वल ाऄपने सर्क्षण से छात्रों पर प्रभाव डालता है
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ाऄसपतु सनस्वाथश ज्ञान के प्रसतपादन जैसे मानवीय मूकयों से भी ाईनको प्रभासवत करता है।“ ाआस तरह के काफी सवचार पढने को समलते है और यह सब हमारे ाआस ाऄध्ययन को साथशक बनता है. जब कोाइ व्यसि कला की बात करता है तो भावनाएां, ाऄसभव्यसि और सृजनात्मकता ाआत्यादद र्ब्दों से हमारा सामना होता है. सृजनात्मक र्ब्द का प्रयोग हर कला, सासहत्य और ज्ञान की हर र्ाखा म करते ह लेदकन ससफश कला से जोड़ कर ाआसको देखना सांकुसचत दृसष्टकोण होता है. दर्शन के क्षेत्र म ाऄगर हम देख तो हम सृजनात्मकता के ाऄध्ययन बारे ज्यादा सवस्तृत चचाश नह समलती लेदकन हम महान दार्शसनकों के लेखन म ाआसका वणशन ाअसानी से देख सकते ह. प्लेटो के ाऄनुसार प्रेरणा एक तरह का पागलपन ही है तथा कान्त सृजनात्मकता को ककपना से जोड़ते ह. दोनों ही दार्शसनकों ने स्व्छन्द्तावाद को प्रभासवत दकया और सृजनात्मकता की महत्वपूणश ाऄवधारणाएाँ ह. यह ाअियश का सवषय है की दर्शन के क्षेत्र म ाआस पर 1950-2000 के बीचम बहुत कम काम हुाअ है. कला दर्शन म भी ाऄगर हम देख तो व्याख्या, कला की पररभाषा,सौन्दयश की ाऄवधारणा ाआत्यादद पर ज्यादा काम हुाअ है बजाये सृजनात्मकता के . सवषय की गहनता और ाईपरोि ाईिाये गये महत्वपूणश प्रश्नों के कणश दर्शन म यह भी मुख्य सवषय होना चासहए. मनोसवज्ञान म जरूर ाआस सवषय पर काफी काम हुाअ है दकन्तु यह मात्र सौंदयशर्ाि का सवषय न रहकर सवज्ञान, कला, तकनीकी, सांगिनात्मक जीवन, और रोजमराश की गसतसवसधयों म भी पाया जाता है. जब भी हम दर्शन म सृजनात्मकता की बात करते ह तो के वल कला दर्शन का ाऄलावा मनोदर्शन, सवज्ञान और ज्ञानमीमाांसा जैसे ाऄन्य सवषयों की तरफ भी हम जाना पड़ेगा. बेयशस गौट (Berys Gaut) ाऄपने लेख “द दफलोसोफी और दक्रएरटसवटी”7 म सृजनात्मकता को दर्शन के सन्दभश म ाऄध्ययन करते समय सृजनात्मकता और ककपना म कया सम्बन्ध है, कया सृजनात्मक प्रदक्रया बौसद्भक होती है, ज्ञान का सृजनात्मकता से कया सम्बन्ध है, कया सृजनात्मकता की व्याख्या की जा सकती है ाआत्यादद प्रश्नों को ाईिाते ह. ाआसके साथ ही वह सृजनात्मक दर्शन के सनम्नसलसखत महत्वपूणश सवषयों पर भी चचाश करते ह : 1. पहला प्रश्न है की कया सृजनात्मकता एक सद्गुण है? ाअजकल ज्ञान की हर र्ाखा म सद्गुणों की चचाश हो रही है तो तब यह प्रश्न ाऄसधक महत्वपूणश हो जाता है की कया सृजनात्मकता एक सद्गुण है ? 2. दूसरा महत्वपूणश प्रश्न यह है की सृजनात्मकता और बौसिकता एक दुसरे को कै से प्रभासवत करती है? 3. तीसरा महत्वपूणश प्रश्न है की कया सृजनात्मकता परम्परा से सवपरीत होती है? कु छ दार्शसनक ऐसा मानते ह की सृजनात्मकता म कु छ तत्व परम्परा का भी होता है. ाऄगर ऐसा ही है तो परम्परा के सलए समाज की जरूरत होती है तो सृजनात्मकता भी ाऄसनवायशताः सामासजक हो जाती है. ाअजकल सृजनात्मकता सम्बन्धी मनोसवज्ञान की सामासजक साांस्कृ सतक ससिाांत म हम ाआस तरह के दार्शसनक पक्ष देखने को समलते ह तो ाआस तरह यह ससिाांत भी दार्शसनकों के ाऄध्ययन का सवषय होना चासहए.
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4. चौथी महत्वपूणश बात यह है की डार्मवन के सृजनात्मकता के ससिाांत पर भी दार्शसनकों को ाऄपना ध्यान लगाना चासहए. कयूांदक ाआस पर ज्यादा काम मनोसवज्ञासनकों ने ही सृजनात्मकता के क्षेत्र म दकया है जबदक दार्शसनकों के के सलए भी यह बहुत मूकयवान है.8 ाईपरोि के ाऄलावा गौट कु छ महत्वपूणश दार्शसनक प्रश्न भी ाईिाते ह की कया सृजनात्मकता की व्याख्या की जा सकती है ? बहुत से दार्शसनक ाआसकी प्राकृ सतक व्याख्या देने से परहेज नह करते. जैसा की प्लेटो के ाऄनुसार सृजनात्मकता हमारे ाऄांदर रहने वाले देवताओं का काम है. कान्त के ाऄनुसार व्याख्याएां सनधाशररत सनयमों के ाअधार पर दी जा सकती ह और सुद ां र कला के ाआस तरह के कोाइ सनधाशरक सनयम नह है कयोंदक यह बुसि (genius) का काम है जबदक बुसि स्वयम भी यह नह जानती की ये सवचार कहााँ से ाअते ह. ाआस तरह वह वतशमान समय की ाऄवधारणों के बात करते हुए कहते ह की सृजनात्मकता के कम्प्यूटेर्नल ाऄवधारणों से भी ाऄद्ययन करने की ाअवश्यकता है. दार्शसनक ाआस सवषय को भी ाईिा सकते है की कया सवसभन्न ज्ञान की र्ाखाओं म सृजनात्मकता एक जैसे काम करती है या ाऄलग ाऄलग हो सकती है? वह ाअगे कहते ह की दार्शसनकों के सलए यह प्रश्न भी महत्वपूणश बन जाता है की कया सृजनात्मकता कला म कलात्मक मूकय रखती है? ाईपरोि सवषयों म वह हम यही ददखाना चाहते ह की सृजनात्मकता के ाऄद्ययन म दार्शसनक भी ाऄपनी महत्वपूणश भूसमका सनभा सकते ह कयोंदक सृजनात्मकता से सम्बन्धी जो प्रश्न मनोसवज्ञान से जुड़े है वह वास्तव म दर्शन के क्षेत्र म भी ाअते ह ाआससलए ाआनका दार्शसनक ाऄद्ययन महत्वपूणश हो जाता है .9 ाऄब हमारे सलए प्रश्न ाईिता है की मानवीय सम्बन्धों का दर्शन और सृजनात्मकता से कया सम्बन्ध है. ाआस प्रश्न का सीधा ाईत्तर है की दर्शन मानवीय सम्बधों को पररभाषा देता है और सृजनात्मकता ाईसम प्राण फूां कती है. दकसी भी व्यसि की सृजनर्ीलता का जन्म मानव मूकयों के प्रसत सांवेदनर्ीलता के ाऄनुसार ही होता है और यही सृजनर्ीलता दर्शन की सीमा म ाअती है. सृजनात्मकता के सलए सकारात्मक प्रेरणा की जरूरत होती है ाऄगर हमे सही प्रेरणा और सहयोग समलता है तो हम ाऄपनी सृजनर्ीलता को बड़ा सकते ह ाऄन्यथा नकारात्मक सम्बन्ध हमारे स्वासभमान को िे स पहुांचाते ह और ाआसी कारण हमारे द्वारा दकये गये कायों म वह गुणवत्ता नह समलती. ाऄत: हम यह मान सकते ह व्यसि के सृजनर्ील होने म ाईसके सम्बन्धों और सामासजकता की बहुत बड़ी भूसमका है. समासजकता मानवीय सम्बन्धों पर ाअधाररत होती है ाआस सलए दर्शन, सृजनर्ीलता और मानवीय सम्बन्धों म ाऄटूट सम्बन्ध है. सृजनर्ीलता और सामासजकता म कया सम्बन्ध ाआस पर रासधका मेनन जी के यह सवचार बहुत महत्वपूणश हो जाते ह, “सजस तरह सृजनर्ीलता पररभासषत की जाती है, सजस तरह वह ाईभरती है और सजन क्षेत्रों म ाईभरती है, यह सब सामासजक तौर पर तय होता है। सृजनात्मकता भी सामासजक सनर्ममत है। दकस तरह के सृजनर्ील सवचार दकन क्षेत्रों म दकसे समलगे, यह ाईनकी सामासजक भूसमकाएां तय करती ह। ाऄगर िी या पुरुष के काम कु छ सीसमत दायरों म बांद दकए जाएांगे तो हम ाईनसे दूसरे क्षेत्रों म ाईत्कृ ष्ट प्रदर्शन करने, वहाां पैदा होने वाली समस्याओं से सनपटने और ाईनम सृजनात्मक भरने की ाऄपेक्षा कै से कर सकते ह? ाअर्मथक व्यवस्थाओं का चररत्र, सामासजक चलन और राजनैसतक सत्ता दकस दकस्म की है, ाआससे भी सृजनर्ीलता का मूकय तय होता है।...सृजनर्ीलता समाज सनरपक्ष नह है, बसकक सजस समय म हम 11
रहते ह, वह कै सा है, वहाां दकस दकस्म के सत्ता सवभाजन मौजूद ह, सफलता कै से पररभासषत होती है, दकसे मूकयवान कहा जाता है, ऐसी बात ाईस पर गहरा ाऄसर डालती ह और वह दकसी ाऄसाधारण मसस्तष्क की हद म कै द नह रहती, बसकक वह ाऄनेक ाअयामों वाली है और खुद को सवसभन्न तरीकों से ाऄसभव्यि करती है, जो ाआस पर सनभशर ह दक कोाइ दकस दकस्म के कामों से जुडा है ाआससलए सर्क्षाकर्ममयों के रूप म सृजनर्ीलता की सांकीणश पररभाषाएां हमारी मदद नह करती। ाईनका सामासजक सांदभश ाऄपररहायश महत्व रखती ह।... हम यह ध्यान देने की जरूरत है दक सृजनर्ीलता के ाऄनेक स्वरूप ह, वह ाऄनेक क्षेत्रों म ाऄसभव्यि होती है और वह दकसी म भी ाऄसभव्यि हो सकती है, बर्ते ाईन्ह गहरााइ के साथ ाईससे रूबरू होने, ददलचस्पी के सवसभन्न क्षेत्रों को खोजने के ाऄवसर सभी को ाईपलब्ध हों। सृजनर्ीलता के सामासजक सांदभश और क्षमताओं पर िप्पा लगाने या भावी क्षमताओं को सवकससत व प्रसर्सक्षत दकए जाने के पहले ाईनको वगीकृ त करने से बचने की बात पर ध्यान देना भी महत्वपूणश है। मुझे लगता है दक हमारी सर्क्षा व्यवस्था जो सामासजक सवभेदों को ददनोंददन िोस करती जा रही है और गारां टी कर रही है दक गरीब छात्रों को दररि सुसवधाओं, दररि ाअधारभूत ढाांचों और सीखने के दररि ाऄवसरों वाले दररि स्कू ल नसीब हों, जबदक ाऄसभजनों र्सिर्ाली लोगों, ाऄमीरों और ाईसे पाने की समथश रखने वालों को ऐसे भव्य स्कू ल ाईपलब्ध हों जो बच्चों की प्रसतभा को बहुसवध क्षेत्रों की ओर सवकससत कर और बच्चों को सवोत्तम सर्क्षार्ािीय पिसतयों से रूबरू कराएां।10 सार रूप म हम कह सकते ह की दर्शन को पररभासषत करते समय सुझाये गये सबन्दुओं पर ध्यान देना चासहए. दर्शन और सृजनात्मकता म बहुत महत्वपूणश सम्बन्ध है. दार्शसनकों को चासहए की ाआसके सवसवध पक्षों का ाऄध्ययन कर और ज्ञान की दूसरी र्ाखाओं द्वारा ददए गये सवचारों और ससिाांतों को ध्यान म रखते हुए ाऄपने सवचार दे. ाआस सन्दभश म गौट का लेख बहुत महत्वपूणश कड़ी बन जाता है. सृजनात्मकता सामासजकता से जुड़ा हुाअ है और मानवीय सम्बन्ध ाआसम महत्वपूणश भूसमका सनभाते ह . ाऄत: तीनों का ाऄध्ययन एक महत्वपूणश सवषय है. सन्दभश एवम रटप्पसणयााँ: 1. प्रो. दया कृ ष्ण, ज्ञान मीमाांसा, ाऄध्याय प्रथम,राजस्थान चहदी ग्रन्थ ाऄकादमी, जयपुर. 2. प्रस्तुत पररभाषा सवश्लेष्ण मेरे ाऄध्यापक स्व. प्रो. नरदर नाथ गुिा जी और मेरे ाअपसी बातचीत का पररणाम है. 3. कया ‘दर्शन’ मर गया है?” नया ाआांसडया , http://www.nayaindia.com/buniyad/kyadarshan-mar-gaya-hain-77955.html 4. रासधका
मेनन,
“सामासजक
सांदभश
म
सृजनात्मकता”,
देर्बन्धु,
माचश
2011
http://www.deshbandhu.co.in/newsdetail/5259/9/0#.VL51Z3I5CP813. 5. सृजनात्मकता की यह पररभाषाएां ाआस लेख से ली गयी है: ससथल कु मार द्वारा सलसखत, “वाय र्ुड
ाआांसडसवजुाऄल
सडफरसेस
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बी
डेवलप्ड?
http://www.publishyourarticles.net/knowledge-hub/education/why-shouldindividual-differences-be-developed.html. 6. प्रोसमला ओबरॉय, ाऄसधगमकताश, ाऄसधगम एवम् ज्ञान का मनोसवज्ञान, लक्ष्मी बुक सडपो, सभवानी (हररयाणा) 2014, पृष्ठ 294-295. 7. बेयशस गौट (Berys Gaut) ाऄपने लेख “दी दफलोसोफी और दक्रएरटसवटी”, दफलोसोफी कम्पास, 5/12 (2010): 1034–1046, 10.1111/j.1747-9991.2010.00351.x 8. वही. 9. वही. 10. रासधका
मेनन,
“सामासजक
सांदभश
म
सृजनात्मकता”,
देर्बन्धु,
माचश
http://www.deshbandhu.co.in/newsdetail/5259/9/0#.VL51Z3I5CP813.
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2011
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cU/ku eqDr gqvk gh ughaA rknkRE; VwV x;k gksrk rks vkHkkl ek= vUr%dj.k esa lfØ;rk lekIr gks tkrhA ;g psru dk o`R;k:<+ gksuk D;k gS\ ;g ,d dfYir fLFkfr gSA tSls LoIu dk jksx LoIu dh gh vkS"kf/k ls feVrk gS] oSls gh l`f"V dh dYiuk ds dkj.k tks vUr%dj.k dh dYiuk djds mlls dfYir :i ls rknkRE;kiUu gks x;k gS] og ml dfYir vUr%dj.k dh dfYir o`fÙk esa dfYir czã dh dYiuk djds bl rknkRE; ls eqDr gksrk gSA czã dYiuk dk fo"k; curk ugha] vr% o`fÙk esa vk;k czã dfYir gh gksrk gS] fdUrq ;g dfYir czãkdkj o`fÙk ldy vuFkZ dh fuofrZdk gSA Jqfr 'kkL= lUrok.kh ek= liz;kstu gSaA ;g iz;kstu l`f"V esa lalkj esa gS vkSj lizk.k ekuo ds fy, 'kjhj/kkjh ds fy, gSA bl Lrj ij l`f"V] 'kjhj] lalkj& bu lcdks lR; ekudj gh lk/kd dks pyuk iM+rk gSA vU;Fkk iz;kstu iwfrZ ds i'pkr~ rks tSls 'kjhj rFkk lalkj dk cks/k gksrk gS( 'kkL= dk Hkh cks/k gks tkrk gSA bl 'kjhj ,oa lalkj dks lR; ekudj gh ge vuUrdky ls O;ogkj dj jgs gSaA blh esa tUe ej.k gSA blh esa lq[k&nq%[k gS vkSj blh ds lq[k&nq%[k] tUe&ej.k ds cU/ku ls NqVdkjs dk lk/ku crykrs gSaA vc lkekU; psru dks NksM+ nsa rks blesa nks psru vkSj Li"V gSa ,d 'kjhj esa vUr%dj.k esa vfHkeku djus okyk tho psruA ;gh tUe ej.k ds pDdj esa iM+k gSA ;gh lq[k&nq[k dk HkksDrk gS vkSj blh dks lk/ku djds eqDr gksuk gSA
bl l`f"V dk lapkyd ,d psru gSA og l`f"V esa O;kid jgrk Hkh blls ijs gS vkSj bl 'kjhj esa vUr%dj.k esa gh og vUr;kZeh :i ls fLFkr gSA og egs'oj minz"Vk gS] vuqeUrk gSA oLrqr% ogh drkZ vkSj HkksDrk Hkh gSA og vUr;kZeh vUr%dj.k esa gksdj Hkh dsoy minz"Vk gSA og vUr%dj.k dk eq[; nz"Vk ugha gS vkSj vUr%dj.k esa rknkRE;kiUu gksdj drkZ Hkh ugha cuk gSA drkZ rks gS izd`frA vUr%dj.k vkSj ofg%dj.k ¼bfUnz;k¡½ nksuksa izd`fr ds dk;Z gSaA vr% bfUnz;ksa ls ;k eu ls tks dqN gksrk gS] lc dk;Z izd`fr ds xq.kksa ls gh gksrk gS&
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oLrqr% tho fdlh dk;Z dk drkZ ugha gS] fdUrq vgadkj ls ewfNZrizk; gksdj izd`fr ds xq.kksa ls gq, dk;Z dks og vius esa vkjksfir djds vius dks drkZ eku ysrk gSA ;g eku ysus ds dkj.k gh deZ ds 'kqHkk'kqHk Qy dk og HkksDrk gks tkrk gSA tks egs'oj gS] izd`fr dk lapkyd gS] ogh okLrfod HkksDrk gSA ysfdu og blh 'kjhjkfHkekuh tho dk HkrkZ gS bldk Hkj.k&iks"k.k ogh djrk gS] vr% tc vKkuh tho vius dks drkZ eku ysrk gS rc og bldh ekU;rk dk vuqeksnu dj nsrk gSA og vuqeUrk cuk jgrk gSA
1- v"Vkn'k iqjk.k n'kZu i`"B&11 2- fu#Dr 2@16@2 3- fu#Dr 1@20@1 4- xhrk & 15&16] 17 5- euqLe`fr & 6-25 6- euqLe`fr & 6-83 7- Hkkxor 12-5-1 8- Hkkxor & 4&29&50] 51 9- xhrk & 13&20] 21] 22 10- xhrk & 3-27
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21 oha lnha ekuo bfrgkl ds fy, cgqr gh ifjorZudkjh ;qx ekuk tkrk gSA vkt ftl xfr ls ifjorZu gksrk gSA mldh folaxfr;ksa vkSj okSpfjd la?k"kZ blds fy, mÙkjnk;h gSaA bl xfr ls blls igys dHkh Hkh ifjorZu ugha gqvk gSA bUgha ifjoZruksa ds ifj.kkeLo:Ik lekt dks vusd leL;kvksa dks lkeuk djuk iM+rk gSSAa lkekftd izxfr ds fy, bu leL;kvksa dk lek/kku vko”;d gSA O;fDr dh Lora=rk ds fy, /keZfuisZ{khdj.k dh izfØ;k dks ekuokf/kdkj dh vksj izsfjr djrh gSA blds uke ls Li’V gksrk gS fd bl izdkj dh oká izfØ;kvksa ds ek/;e ls loZ/keZ &leHkko dh Hkkouk mÌsf'kr gksrh gSA /keZfuisZ{khdj.k dh Lora=rk dks Lohdkj djus ds fy, gesa izkIr Lora=rk dk guu u gksus dh n'kk esa ge lR; :ih /keZ dks Lohdkj djrs gSaA blh izdkj ge /keZ dh /kkj.kk dks le> ysrs gSaA Þfo;uk ?kks"k.kk ds vuqlkj] fyax vk/kkfjr fgalk] lHkh izdkj dk ySafxd mRihM+u rFkk 'kks"k.k ftlesa lkaLÑfrd iwoZxzg ,oa efgykvksa dk vUrjkZ"Vªh; voS/k&O;kikj Hkh lfEefyr gS tks ekuo O;fDr dh xfjek ,oa ewY; ls vlaxr gS] vo'; lekIr gksuk pkfg, rFkk ;g jk"Vªh; dk;Zokgh }kjk dkuwuh mik;ksa rFkk vkfFkZd] lkekftd fodkl] f'k{kk] lqjf{kr izlwfr ,oa LokLF; lko/kkuh rFkk lkekftd leFkZu ls fd;k tk ldrk gSaAÞ1 Hkkjr ds lafo/kku esa vusd izdkj ds ewyHkwr vf/kdkjksa dks Hkh laofs 'kr djus dk izko/kku gSA Hkkjrh; lafo/kku /keZfujis{krk ds vk/kkj ij tkfr] Hkk’kk] /keZ] fyax jkT; bR;kfn ds lkFk HksnHkko ugha djsxkA bl izdkj dh fopkj/kkjk ekuoh; fgrksa dh j{kk ds fy, izR;sd a ukxfjd lerk iznku djrh gSA pkgs dksbZ Hkh ukxfjd xjhc gks ;k iw¡thifr gks] i<k+fy[kk gks ;k vui<+ gks bl izdkj lHkh ds fy, lerk iw.kZ fopkj/kkjk ns'k ds lafo/kku esa izkIr gSA ftls izR;sd ekuo gksus ds ukrs mls leku vf/kdkj izkIr gksrk gSA Hkkjr esa ges'kk /keZfujis{k jkT; dh laKk ls foHkwf"kr fd;k tkrk jgk gSA ;|fi ;g “kCn gekjs Hkkjrh; lafo/kku esa dgh ugha mYysf[kr gSA ftl izdkj ls lasdqyj “kCn dk fgUnh :ikUrj.k cgq/kk /keZfujis{k dh ckr djrs gSaA 'kks/k i= /keZfujisZ{krk ,oa ekuokf/kdkj dh vo/kkj.kk ,d izdkj dk f}rh;d lkexzh ladyu dk fo"k; gSA ftlesa la'ys"k.kkRed v/;;u i)fr dks pquk x;k gSA 'kks/k izfof/k esa vkRelk{kkRdkj] fo}kuksa dk ekxZn'khZ ifj.kke] i= if=dkvksa bR;kfn ds }kjk v/;;u dk vk/kkj cuk;k x;k gSA f’k{kk ds ek/;e ls /keZfuisZ{khdj.k dks izksRlkfgr djuk vkSj blds ykHkksa dk Kku izkIr djkukA LoPN jktuhfr dk vk/kkj iznku djrk gSA ftlds vk/kkj ij fopkj i)fr dk fu:i.k gh /keZfuisZ{krk vkSj ekuokf/kdkj dh Lora=rk iznku djrk gSA blds lkFk&lkFk lUnHkZ xzUFkksa gsrq iqLrdky;ksa] bUVjusV] i=] if=dkvksa dks Hkh 'kks/k fuekZ.k dk iz;ksx fof/k lEEkr cukus dk iz;kl djrk gSaA
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1- lkEiznkf;drk ds lkFk&lkFk /keZfujis{krk esa lgk;d fl) gks tkrh gSA 2- ckSf)d {kerk ds fodkl ls ladqfpr fopkjksa dks vyx fd;k tk ldrk gSA 3- fo'ocU/kqRo dh Hkkouk ls vksr&izksr gksdj ns'k izse dh Hkkouk ls izlkj&izlkj fd;k 4-
tkuk pkfg,A ftlls lerk vkSj Lora=rk dk guu ugha gksrk gSA vU/kfo'oklh ijEijkvksa vkSj :f<+oknh fopkj/kkjkvksa dks [kRe dj lqfprk iw.kZ thou thus ds fy, ekuo dks vxzlj gksuk pkfg,A
ekuo dh Lora=rk esa ekuokf/kdkj dh vo/kkj.kk fufgr gSA ftlds ihNs ekuoh; thou ds izR;sd leL;k,sa vkSj fopkj/kkj,sa lkfey gSA ßvkfFkZd] lkekftd ,oa lkaLÑfrd vf/kdkjksa dh izlafonk rFkk flfoy ,oa jktuhfrd vf/kdkjksa dh izlafonk esa eq[; vUrj ;g gS fd igys okyk vFkkZr~ vkfFkZd izlafonk esa izorZu dk ra= vkfFkZd ,oa lkekftd ifj"kn~ gS tcfd nwljh vFkok jktuhfrd izlafonk ;g dk;Z ekuo vf/kdkj lfefr }kjk fd;k tkrk gSAÞ3 gekjs orZeku iz;kstuksa ds fy, ekuokf/kdkj dh 'kfDr;ksa ds }kjk ekuo fgr dks /;ku esa j[kus dk iz;kl gSA blls 1858 ls ihNs tkus dh vko';drk ugha gSA blls fczfV'k ljdkj ds v/khu gksus okys Hkkjrh; izHkqlÙkk ds }kjk bZLV bafM;k dEiuh ds ls ysdj vius fczfV'k ikyZeaVs us fczVsu dh ljdkj }kjk lh/ks iz'kkfud dk;Z iz.kkyh dks Hkkjrh; 'kklu dk igyk dkuwu cuk;k x;k FkkA Hkkjrh; iz'kklfud iz.kkyh Hkkjrh; dkuwu vf/kfu;e usa ekuo dks laj{k.k dh fopkj/kkjk dks lapkfyr djrk gSaA ;g vf/kfu;e gekjs Hkkjrh; losZ{k.k dk vk/kkj Hkh laoS/kkfud LFky jgk gSaA blesa ekuokf/kdk ds lezkV ds vkR;fUrd fu;a=.k dk izeq[k fl)kUr FkkA blesa ns'k ds iz'kklu esa Hkkjrh; uxfjd vkSj tuer dks fo'ks"k LFkku jgk gSA lafo/kku dk izk:i tSlk fopfjr fd;k tkrk gSA ;g ns'k dsoy 'kklu ds oSpkfjd ra=ksa ds miyC/k gksuk pkfg,A ;g lÙkk esa fdlh LFkkuh; vkSj fo'ks"k ny dks LFkkfir djus dh iz;qfDr fof/k gSA dqN ns'kksa esa ;g lÙkk ifjofrZr
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dk vkogku fd;k x;kA lÙkk esa dkSu gks] bls turk ds fuf'pr djrh gSA tSlk fd gksuk gh pkfg,] ;fn bl ra= dks yksdra= ds ijh{k.k ij [kjk mrjrk gSA lafo/kku ds rS;kj gksus rd] bl vf/kfue;eksa ds iwoZ dk bfrgkl jktkvksa ds v/khu FkkA ftldsa dkj.k jktkvksa ds nkxh eaf=;ksa ds dkj.k mUgsa u tkus fdrus d"V Hkksxus iM+rs FksA Hkkjrh; lkekftd ijEijk esa tc lafo/kku dh dk;Ziz.kkyh rS;kj gqbZ ml le; lekt dks leqfpr U;k; izkIr gksus yxrk gSA ogk¡ ls jktk ds mÙkjnkf;Ro jkT; ls gV tkrk gSA og izfØ;k la?kh; jkT; 'kklu ds gkFk esa vkdj lafo/kku ds v/khu gks tkrh gSA bl vf/kfu;e ds ykxw gksus ij] jktk dh 'kfDr;ksa dk iz;ksx [kRe gks tkrk gSA Hkkjr 'kklu vf/kfu;e esa izkarh; lfefr;ksa vkSj fo/kkueaMyksa dks ^^LFkkuh; Lo'kklu** dh ckrksa ij fo/kku ifj"kn dh vf/kfu;fer djus okyh 'kfDRk Hkh iznku dh x;h FkhA rc ;gk¡ /keZ fujis{krk ds lEcU/k esa /kkfeZd dk;ksZa ds izfr fof'k"B vfHko`f) dh Lora=rk dh ckr vkrh gSA ftlesa dgk x;k gS fd ßfdlh Hkh O;fDr dks ,sls djksa dk lank; djus ds fy, ck/; ugha fd;k tk,xk ftuds vkxe fdlh fof'k"V /keZ ;k /kkfeZd laiznk; dh vfHko`f) ;k iks"k.k esa O;; djus ds fy, fofufnZ"V :i ls fofu;ksftr fd, tkrs gSaAÞ4 ftlls /keZfujis{krk vkSj ekuokf/kdkj dh jkT; i{k/kj ds :i esa ekuokf/kdkj vk;ksx dks Hkstrh gSA ftllsa bu fjiksZVksa esa vkus okyh dfBukbZ;ksa ds lUnHkZ esa fdlh Hkh lfefr dks ck/kd ugha cuk;k tk ldrk gSA ftl ihf<+r ds fy, jkT; vk;ksx i{k/kj ds :i eas dk;Z djrk jgrk gSA mlesa lEcU/k esa jkT; ekuokf/kdkj vk;ksx ds dqN fn'kk funsZ'kd jkT; i{kdj ds fjiksZV ij fopkj foek'kZ dj fu;Z.k izfroknh dks lqukrs gSaA bl gsrq fo|eku vf/kfu;eksa ls Lora= Hkkjr ds lafo/kku esa fofufnZ"V gSA ftuds os izfrfuf/k&'kklu dh ,d bdkbZ ds :i esa jkT;ksa esa LFkkfir gSA bu LFkkuh; fudk;ksa ds dk;Z dh fuxjkuh vkSj ihf<+r dks U;k; fnykus ds fglkc ls fd;k tkrk gSA euokf/kdkj fdlh Hkh ukxfjd ds lkFk gksus okys vU;k; dks U;k; fnykus dh ?kks"k.k djrk gSA blds lUnHkZ esa pkgs og iq:"k gks ;k efgyk nksuksa dks leku :i ls vf/kdkj dh ckrs djrs gSaA vk/kqfud ;qx esa efgykvksa ds izfr laons uk dks fu:fir djus ds fy, efgykvksa ds vf/kdkjksa dks vUnksyu ds ek/;e ls Hkh rhoz xfr dh fn'kk nsus ds i{k esa dkjxj fn[kkbZ nsrk gSA ß1925 esa esfDldks flVh esa gq;s efgykvksa ij izFke fo'o lEesyu ls ysdj nks n'kdksa dh efgykvksa ds fy, iq:"kksa ds leku vf/kdkjksa ds vkUnksyu ls egRoiw.kZ ifjorZu rFkk mUufr gqbZ gSA bl nkSjku vUrjkZ"Vªh; laf/k;k¡ gqbZ gSA rFkk jkT; ljdkjksa us vusd dkuwu ikfjr fd;s gSaAÞ 5 blds lkFk&lkFk ,d egRoiw.kZ iz'u mBrk gS fd efgykvksa ds fy, vusd dkuwu cus gSaA fdUrq lqjf{kr fdruh gSaA cgqr gh fopkj.kh; iz'u gksrk tk jgk gSA bu lHkh ds mUur thou esa D;k efgykvksa ds thou esa lq/kkj gqvk gS] fd ughaA fdUrq vusd ckrksa ds vkus ls dqN egRoiw.kZ iz'u mRiUu gksrs gSaA ftlds dkj.k oSpkfjd ifj.kkeksa ds vk/kkj ij efgykvksa dk lkFkZd lq>ko feys gaSA tcfd iw.kZ :i ls ;g Hkh ugha dgk tk ldrk gS fd efgykvksa dks iw.kZ U;k; izkIr gq, Hkh gS ;k ughaA tcfd ;g dgk tkrk gSA jktuhfrd n`f"V gks ;k lkekftd] vkfFkZd vkSj lkaLÑfrd {ks=ksa esa Hkh efgykvksa ds lkFk HksnHkko vkSj vi;l dh uhfr viukbZ tkrh jgh gSA ftldk eq[; dkj.k vf'k{kk] xjhch] vkfFkZd vlekurk] lwpuk ds ek/;eksa dk fu:i.k vkSj muds rd tkudkjh dk vHkko vkfn dkj.kksa ls ihNs gaSA ßdqN {ks=ksa esa fLFkfr cM+h gh xEHkhj gSaA ,d vuqeku ds vuqlkj] fo'o dh nks&frgkbZ efgyk;sa vf'kf{kr gSa rFkk f'k{kk ds {ks= esa mudh izxfr 24
iq:"kksa dh vis{kk dkQh eUn gSaA vkSlru iq:"kksa dh vis{kk efgykvksa ds osru leku dk;Z ds fy, 30 ls 40 izfr'kr de gSaAÞ6 blls vleuk ds Lrj vkSj c<+s tk jgs gSA fdUrq dqN gn rd ekuokf/kdkj vk;ksx dh ftEesnkfj;ksa vkSj 'kfDr;ksa ds dkj.k mUgsa vf/kdkj izkIr gks jgs gSaA
/keZfujis{krk O;fDr ds vkRe fpUru dk fo"k; ekuk tkrk gSA tcfd ekuokf/kdkj ekuo ds vkUrjfjd vkSj oá laj{k.k ds fy, thou vkSj 'kjhj dk leUo; djrk gSA gSA bUgha xq.kksa ls euq"; esa thou ds izfr n.M vkSj U;k; dh izfØ;k dk fodkl djrk gSA /keZfujis{krk euq"; dh gh rjg lekt ds vusd xq.kksa dk leUo; ek= ekuk tkrk gSA blh gsrq oSKkfud folaxfr;ksa dk fu:i.k gksus ls lkekU; /keksZa dks NksM+dj djuk iM+rk gSA buds nks"k ds Hkh mik; crk;s x;s gSA7 D;kasfd /keZ ls gh laLdkj mRiUu gksrs gSA bUgha laLdkjksa ds dkj.k U;k; dj ikuk ;k vU;k; u djuk Hkh O;fDr lh[krk gSA ftllsa ekuokf/kdkj dh xfjek Hkh lqfuf'pr gksrh gSA blh esa lekt vkSj jk"Vª dk fuekZ.k Hkh fufgr gSA 1- MkW- ';ke fd'kksj diwj] ekuo vf/kdkj] lsUVªy ykW ,tsUlh] bykgkckn] 2008] i`"B 73 2- MkW- eqjyh/kj prqosZnh] n.M izfØ;k lafgrk] bykgkckn ykW ,tsUlh ifCyds'kUl~] bykgkckn] prqnZl laLdj.k] i`"B 81 3- MkW- ';ke fd'kksj diwj] ekuo vf/kdkj] lsUVªy ykW ,tsUlh] bykgkckn] 2008] i`"B 53 4- ih-ds- Hkë] Hkkjr dk lafo/kku] vkn'kZ fof/k izdk'ku] fcykliqj ¼N-x-½ 2016] i`"B 10 5- MkW- ';ke fd'kksj diwj] ekuo vf/kdkj] lsUVªy ykW ,tsUlh] bykgkckn] 2008] i`"B 79 6- ogh] i`"B 79 7- MkW- jktcyh ik.Ms;] fgUnw /keZdks'k] mÙkj izns'k fgUnh laLFkku] y[kuÅ ¼m-iz-½] 2003] i`"B 340
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oSf'od leL;kvksa ds funku esa dY;k.kdkjh jkT; ds fy, /keZ dh egrh vko';drk jk"Vªh; ,oa vUrjkZ"Vªh; Lrj ij bl fo"k; esa 'kks/k i= dh vg~e izklafxdrk gksxhA vkpk;Z pk.kD; jkT; ds fuekZ.k esa vFkZ vkSj /keZ dks egRoiw.kZ ekurs gSaA
/keZ ,oa dk;Z nksuksa gh vFkZey w d izrhr gksrs gSaA bUgha dks dk;Z ds vFkZ dk ewy dkj.k ekuk tkrk gSA blh izdkj ls cqf) iwoZd FkksMsa+ dk;Z djus ij flf) dh izkfIr gksrh gSA iwoZ iz;Ru ds }kjk fd;k gqvk dksbZ Hkh dk;Z vlg~t ugha gksrk gSA lHkh dk;Z ljy vkSj dY;k.kdkjh gksrs gSaA /keZ gh lR; gS mlds fcuk euq"; dk thou O;FkZ gSA euq"; /keZ dks vkfRed :i ls /kkj.k djrk gS] mls gh ¼lR;½ /keZ dgrs gSaA tc O;fDr cká :i esa /kkj.k djrs gSaA og /keZ :ih pknj gSA ftldksa vaxzsth esa ^fjyhtu* dgk tkrk gSA /keZ ls rRi;Z lR;fu"Bk ls vkpk;Z pk.kD; /keZ ds }kjk jkT; dks dY;k.kdkjh izHkqrk laiUu cukrk gSA mlh izdkj egkRek fonqj egkHkkjr esa dkSjoksa vkSj ik.Moksa ds chp jktuhfrd ruko ds lEcU/k esa dgrs gaS fd vkidk ;g /keZ ugha dgrk gS] vius HkkbZ&ifjokjksa dks fgLlk u nsA vkidk /keZ gS fd vids HkkbZ ik.Moksa dks jkT; dk fgLlk fn;k tkuk pkfg,A gesa yxrk gS fd dksbZ Hkh dky jgk gks mlus HkkbZ&HkkbZ esa fookn] jkT; dks ysdj la?k"kZ] fL=;ksa dks ysdj vlekurk gks ;k la?k"kZA fdUrq tc ge nk'kZfud rkSj ij bl fopkj/kkjk dks ij[kus dk iz;kl djrs gSaA rc ;g la?k"kZ /keZ lEer jgk fn[kkbZ nsrk gSA /keZ vkSj v/keZ ;ss nksuksa ,d flDds ds igyw gSa tgk¡ /keZ mHkj dj lkeus vkrk gS ogk¡ nwljk i{k vius&vki no ¼ihNs gV tkrk gS½ tkrk gSA blh lEcU/k esa egkRek fonqj us ik.Moksa ls /keZ] vFkZ] dke esa Js"Brk dh ppkZ djrs gSaA buesa lcls Js"B dkSu gS] egkRek fonqj ds dgrs gSa fd /keZ lcls Js"B gSA blds lEcU/k esa vtqZu ls iwNk x;kA vtZqu dgrs gSa fd vFkZ gh Js"B gSA vFkZ ls /keZ fØ;k dks fd;k tk ldrk gSA vFkZ ls dkeukvksa dh izkfIr dh tk ldrh gSA mlh izdkj udqy vkSj lgnso Hkh dgrs gSa fd vFkZ vkSj dke Js"B gSA blds fcuk ekuo fodkl dh dYiuk ugha dh tk ldrh gSA Hkhe dgrs gSa fd dke ds fcuk dqN Hkh laHko ugha gSaA ;gk¡ rd dkeukvksa dh iwfrZ gsrq vkpk;Z eqfu] _f"k;ksa us vius thou dks [kik;k gSaA o"kksZa&o"kksZa rd riL;k fd;k gSA dkeuk ds fcuk u dksbZ /ku izkIr djrk gS vkSj u /keZ ds ckjs esa gh fpUru djrk gSA mnkgj.k Lo:i ngh ls eD[ku dk fuekZ.k gksukA mlh izdkj dke gh Js"B gSA fdUrq /keZ] vFkZ] dke rhuksa dks cjkoj lsou tks ugha djrk og lcls cM+k fuÑ"B gSA blds lEcU/k esa /keZjkt ;qf)f"Bj dgrs gSa fd O;fDr dks vuklDr gksuk pkfg,A2 ftlls og eqDr gks ldsA blls ;g fu"d"kZ fudyrk gSA ftl o.kZ lekt] jkT; esa /ku ugha gSA og O;FkZ gSA mlh izdkj 'kwnz oxZ vFkZ ls oafpr gksus ds dkj.k /keZ dh iz/kkurk rks Hkjh gqbZ gSA fdUrq og lQy ugha gqvk gSA
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D;ksafd mlesa /keZ loZJs"B le>rk jgkA ftlus vFkZ dks Js"B le>k gS vkt vk/kqfud le; esa Hkh mPp vkSj izxfr dh vksj c<+rk tk jgk gSA ftlus /keZ dks igpkuk mldk vfLrRo gh ugha fn[kkbZ nsrk gSA ;s dSlh folaxfr gSa ;g vk/kqfud ekuo ds lkeus ,d pqukSrhiw.kZ iz'u gS\ vkpk;Z 'kqØkpk;Z dh ckr djsa rks gesa jk"Vª ds ekuo dY;k.k vkSj jkT; ds dY;k.k esa 'kqØ vlqjksa ds xq: gksrs gq, Hkh mUgksaus vius /keZ dks ugha NksM+kA vlqjksa dks ewY; f'k{kk uSfrd :i ls iznku fd;sA ,d xq: dk izse lEiw.kZ jk"Vª dks txk nsus okyh ftKklk og gSA ftlesa e`rlathouh fo|k ds }kjk dp dks ftUnk djuk ,d lPps fu"Bkoku xq: dk ije~ /keZ gSA fQj Hkh og /keZ dks ugha Hkwys ;g ,d ekuoh; /keZ dh dYiuk FkhA vxj ge orZeku thou dh ckrs djsa rc vjktdrk] pksjh] cykRdkj >wBs vkjksi] vuSfrdrk Hkjs] jkT; esa ,d fodB fLFkr iui jgh gSA bldk dgha&u&dgha O;fDr /keZ dks ugha igpku ik jgk gSA blfy, uSfrd ewYw ;ksa vkSj /keZ ls HkVdrk tk jgk gSA blh lEcU/k esa vUrjk"Vªh; Lrj ij ns[krs gSa rks vkpk;Z c`gLifr nsoxq: gksrs gq, Hkh /keZ dh fo'ks"krk dks crk;k fd /keZ ds fcuk O;fDr dk dksbZ vfLrRo ugha gSA jktk Hkr`gfj us Hkh Hkksxfoykl thou ls tc /keZ dk Kku izkIr gksrk gSA rc Hkr`gfj vius thou dks oSjkX; iw.kZ thou O;rhr djus ds fy, fudy tkrs gSaA ftl Hkh fo}ku us v/keZ dk lgkjk jkT; ds dY;k.k esa fy;k gS] mldk loZuk'k gqvk gSA vkpk;Z dqy dh ckr djsa rc xq:nzk.s kkpk;Z tSls egku Kkuh ,d f'k"; ls Ny djds vxwBk ek¡xaAs vius iq= v'oLFkkek dks nw/k fiykus dss fy, dkSjoksa dh ikB'kkyk esa v/;kid cusA ogk¡ ij v/keZ ds lkFk pyus ds dkj.k mUgsa vius iq= vkSj Lo;a dks [kksuk iM+kA ftldksa loZJs"B /kuq/kZj cuk;k mlh ds }kjk e`R;q dks Hkh izkIr gq,A ;g vtqZu ds fy, /keZ lEer dk;Z jgk gksxk] D;ksafd lR; ges'a kk ls lR; jgk gSA /keZ ;g ugha ns[krk fd fdruk uqd'kku gksxk vkSj esjk ijk;k dkSu gS\ v/keZ ls lHkh dkyksa esa lagkj gqvk gSA /keZ dh ges'kk fot; gqbZ gSA blhfy, ;qf)f"Bj dks /keZjkt ds lEcks/ku ls lEcksf/kr fd;s x;sA fdUrq ,d i{k ij /;ku fn;k tk;A rc yxrk gS fd /keZjkTk ;qf)f"Bj dk /keZ f}rh; i{k dh n``f"V esa ugha dgk tk ldrk] fd iRuh dks tq,as tSls ?k`f.kr [ksy esa nko ij yxkuk pkfg,\ ,sls ÑR;ksa dk ifj.kke vfu"Bdkjd gksrs gSaA blh lEcU/k esa pk.kD; dgrs gSa fd e)iku vkSj tq,sa v/keZ dk lgkjk ysus oky O;fDr vkfn gks mlds pfj= ghu gksus esa ld ugha djuk pkfg,A bl izdkj ds O;fDr vf/kdre :ikas esa Hkz"V gksxasA og vius v/khu djus ds fy, tq;sa tSls [ksy [ksy [ksyrs gSaA jktk fl)ks/ku ds iq= fl)kFkZ ,d jktk ds iq= gksrs gq, firk dh bruh lqfo/kk djus ds ckotwn Hkh og jkT; ds dY;.kdkjh Lo:i dks ns[kk] ftlesa nq%[k gh nq%[k fn[kkbZ nsrk gSA rc fl)kFkZ dk eu gh fopfyr gks tkrk gSA rr~{k.k og oSjkX; dks /kkj.k dj ysrs gSaA Kku izkIr djus dh ijkdk"Bk ds }kjk cq)Ro dk Kku izkIr gksrk gSA uSfrd O;oLFkk dks _Xosn esa _r~ dgk x;k gSA ,d i{k ij ns[kk tk;s rks osnksa vkSj mifu"knksa ls gesa jkT; dY;k.k ds /keZ lEer vkpkj.k dk Kku _r~ ls Hkh izkIr gksrk gSA bl izÑfr ds pfØ;dj.k dh izfØ;k Lo:i /keZ dk fuekZ.k gh _r~ ls gksrk gSA ßizfl) nk'kZfud gsjkYM gkSQMhax dk er gS fd ßeuq"; ds vPNs ;k cqjs deksZa dk Qy u"V ugha gksrkAÞ3 blh ds rkjrE; esa lEiw.kZ Hkkjrh; n'kZu dk /keZ ds LkkFk xgjk lECkU/k gSA euq"; ds lkjs drZO; deZ Qy ij gh fuHkZj djrk gSA
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lkekftd U;k; ls vFkZ gS] fd lekt esa jgus okys izR;sd O;fDr dks fcuk mlds /keZ o tkfr;ksa dk /;ku esa j[ks] thou dh ewyHkwr vfuok;Z vko';drkvksa dks] tSls&Hkkstu] diM+k vkSj edku dh iwfrZ gks] izR;sd O;fDRk dks lkekftd ,oa vkfFkZd fodkl dk leqfpr volj iznku gks] ekuo dk ekuo }kjk 'kks"k.k u fd;k tkos vkSj vkfFkZd lÙkk dk fodsUnzhdj.k gksA jktuhfrd 'kfDr esa lHkh dh Hkkxhnkjh gksA nwljs 'kCnksa esa lkekftd U;k; ,d O;kid vo/kkj.kk gSA blls lkekftd vkSj vkfFkZd #i ls fiNM+s yksxksa ij fo'ks"k /;ku nsus] fofHkUu {ks=ksa esa mfpr volj iSnk djus vkSj gj izdkj dh lekurk fn, tkus dh ckr fufgr gSA lkekftd U;k; dk mÌs'; gS] fd lkekftd vkSj vkfFkZd #i ls fiNM+s oxZ dks tks gj izdkj ls fodkl ds volj ls oafpr gS] mUgsa fo'ks"k volj vkSj lqfo/kk iznku dj vU; oxksZa ds cjkcj ykuk vkSj lkekftd O;oLFkk dks vf/kd ekuoh; vkSj U;k;laxr vk/kkj iznku djuk gSA4 izkjfEHkd dky esa ;k ml le; dsoy mijksDr pkj o.kZ gh Fks ysfdu rRi'pkr~ ;s pkj tkfr;k¡ cu xbZ vkSj fQj bu pkj tkfr;ksa dh gtkjksa tkfr;k¡ cu xbZA ,slk dgk tkrk gS fd vkt dh tkfr O;oLFkk izkphu o.kZ O;oLFkk dk fodkl gS vlkekftd rRoksa usa gtkjksa lky ls cSfnd O;oLFkk dk :i deZ.kk ls cnydj tUe.kk dj fn;k vkSj lekt dh mÙke ls mÙke lsok ds dke dks vkSj esgur ds dke dks uhp tkfr dk ntkZ nsdj vius fy, Å¡ph tkfr vkSj Å¡ps ckSf)d dky dks vkjf{kr djk fy;k rkfd v;ksX; gksdj Hkh egkif.Mr dgyk ldsa vkSj fcuk esgur ds ih<+h nj ih<+h mUgsa mÙke Hkkstu] mÙke lEeku vkSj mÙke lsok fey ldsA tkfr O;oLFkk usa eqV~Bh Hkj Å¡ph tkfr esa tUe ysusa ek= ls Å¡pk cu tkus okys dks vikj lkekftd lÙkk ,oa lEeku ns fn;k vkSj ckadh ds mRiknd vko';d Je djus okyksa dks in nfyr cukdj NksM+ fn;kA Hkkjr ds e/;dkyhu 'kklu dky esa Hkh 'kwnzkas vkSj vNwrksa dks f'k{kk lekurk vkSj Lora=rk ds ekuoh; vf/kdkj izkIr ugha FksA ckck lkgc Hkhejko vEcsMdj ds le; esa tkfr O;oLFkk bruh tfVy Fkh fd czkã.k] {kf=;] oS'; tks rFkkdfFkr fgUnw /keZ xzUFkksa ds vuqlkj mPp dgykrs Fks os 'kwnz tkfr;ksa dks Li'kZ ugh dj ldrs gS ,slk ;fn Hkwy o'k dgha gks tkrk rks os vius vkidks vifo= ekurs Fks vkSj Luku djus ds ckn gh os vius ?kj esa izos'k djrs FksA 'kwnz tkfr;ksa ls bruk ?k`f.kr orkZc fd;k tkrk Fkk fd og vius vki dks tkuojksa ls Hkh x;k chrk le>rk FkkA Lora=rk iwoZd ckrsa djuk] mPp tkfr;ksa ds lkFk esa pyuk ,oa muds cxy esa cSBuk iw.kZr;k izfrcaf/kr Fkk lkFk gh n.Muh; Hkh FkkA fgUnw /keZ ds dbZ /kkfeZd xzUFk ftudh vkt Hkh lekt esa ekU;rk gS muesa tkfr O;oLFkk ds ckjs esa dfBu jhfr vkSj uhfr dk fu/kkZj.k fd;k x;k gSA euqLe`fr] iqjk.k] rqylhnkl] jkek;.k esa lkekftd fLFkfr esa cgqr gh Li"V :i ls Å¡p ,oa uhp tkfr;ksa ds lac/a k esa ys[k fd;k x;k gSA Hkkjrh; lekt ls lacaf/kr MkW- Hkhejko vEcsMdj dk egRoiw.kZ ;ksxnku FkkA Hkkjrh; lekt esa dqN tkfr;k¡ vius dks mPp ekurh Fkh vkSj lÙkk] lEifÙk] vf/kdkj f'k{k.k iqjksfgr] ljdkjh ukSdfj;k¡] vFkZ O;kikj] m|ksx vkSj [ksrh ij viuk dBksj vU;k;dkjh rFkk vR;kpkjh
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fu;a=.k j[krh FkhA blds ifj.kke ;g gq, fd vLi`'; tkfr;ksa ds yksx nhu] nfyr] misf{kr] vf'kf{kr] vU;k;&vR;kpkj ihfM+r ukSdjh jfgr] [ksrh jfgr] O;kikj m|ksx jfgr vkSj lÙkkghu gks x;sA Hkkjrh; lekt dh bl izdkj dh okLrfodrk dks /;ku esa j[kdj MkW- Hkhejko vEcsMdj us tkfr Hksn u"V djds fgUnw lekt dks laxfBr fd;k ftlls fgUnw lekt vaxzstksa dh xqykeh ls eqDr rFkk Lora= gks rFkk og ges'kk gh Lora= jgsA bl izdkj MkW- Hkhejko vEcsMdj dk dk;Z lekt lq/kkj djus okyk vkSj Hkkjrh; lekt dks laxfBr vkSj leFkZ djus okyk FkkA MkW- vEcsMdj vLi`';ksa esa izfr"Bk dh] lkekftd] lkaLÑfrd] 'kS{kf.kd] oSpkfjd vkSj lnkpkj dh Økafr djrs jgs vkSj lafo/kku esa detksj oxksZa ds fy, fo'ks"k izko/kku cukdj Hkkjr gh ugh cfYd fo'o ds le{k ,d dY;k.kdkjh dk;Z izLrqr fd;s ftldk ifj.kke gS fd vkt gekjk ns'k lqf'kf{kr ns'k gS vU;Fkk 85 izfr'kr nfyr o fiNM+ksa dh vkcknh vkt Hkh fodkl dh eq[;/kkjk ls vyx gksrhA MkW- vEcsMdj U;k; dh iwoZorhZ vo/kkj.kkvksa rFkk izkphu Hkkjr dh o.kZ O;oLFkk] ;wuku ds egku~ nk'kZfud IysVks }kjk izfrikfnr U;k; dh ;kstuk] vjLrq }kjk mYysf[kr O;oLFkk] izfl)teZu fopkjd uhR'ks }kjk izfrikfnr mRÑ"V vkSj nSoh fl)kUr] e/;;qxhu n`f"Vdks.k] ekDlZ }kjk izfrikfnr loZgkjk oxZ dk lektoknh fl)kUr vkSj ;gk¡ rd fd xk¡/kh }kjk izfrikfnr dks Lohdkj ugh djrs gSA MkW- Hkhejko vEcsMdj dk n`f"Vdks.k gS fd lkekftd U;k; dks vfHkO;fDr djus ls mi;qZDr ;s lHkh fopkj v/kwjs o ,dkaxh gSa D;ksafd buesa ls dksbZ Hkh fl)kUr nfyr] 'kksf"kr] ihfM+r vkSj detksj oxZ ds vf/kdkjksa dh lgh odkyr ugha djrk gS MkW- vEcsMdj ds vuqlkj& lkekftd U;k; dh vo/kkj.kk ,d ,slh O;kid vo/kkj.kk gS ftlesa U;k; ds lHkh i{k Lor% lekfgr gSa MkW- vEcsMdj dk fpUru vkSj n'kZu iw.kZr% ekuorkoknh gS] ekuo LojU; vkSj ekuo ds lkeFkZ esa vEcsMdj dh vdwV vkSj vVwV vkLFkk gSA MkW- Hkhejko vEcsMdj dh ekU;rk Fkh fd euq"; dks u dsoy Hkw[k feVkus ds fy, jksVh pkfg;s vfirq ekufld larqf"V ds fy, vPNs fopkj Hkh vko';d gSA MkW- lkgc dh n`f"V ls fopkj vkneh dk vuks[kk vkSj foy{k.k [ktkuk gS bl dkj.k mUgksua s nfyr ,oa fiNM+kas esa fopkj 'kfDr dk lapkj fd;k bl fopkj 'kfDr esa ek= rhu 'kCn Fks vFkkZr~ f'k{kk] laxBu vkSj la?k"kZ ftuds dkj.k Hkkjro"kZ esa tutkx`fr rFkk ;qxnz"Vk gksusa ds ukrs MkW- vEcsMdj us vke vkneh ds fpUru izfØ;k dks lqn`<+ fd;k rkfd ,d u;k okrkoj.k cu lds vkSj le; ds lkFk lkekftd ifjorZu ,oa lkekftd U;k; dk fopkj QyhHkwr gks ldsA5 MkW- Hkhejko vEcsMdj }kjk lkekftd U;k; gsrq fd;s x;s vFkd iz;kl us lEeku iwoZd thou ds vk/kkj ij cgqr cy fn;k FkkA ekuo lekt esa lkekftd O;oLFkk mlds lalk/ku mRikndrk] Je dk lgh ewy rFkk O;fDrxr Lora=rk] cqfu;knh vf/kdkj gksrs gSA ;gh tura=h; iz.kkyh yksdra= dh vko';drk gS] mldh vkRek gS] mldk vfLrRo gS ysfdu vkt ge pkjksa dh vksj ns[k jgs gSa fd O;kogkfjd :i esa vke vkneh dks thou dk vk/kkj utj ugh vkrkA 36
thou dk vf/kdkj n`f"Vxr ugha gks jgk gSA bldk eq[; dkj.k gS fd vaxzsth le; esa thou ds vk/kkj ds rkSj ij lalk/kuksa dh vis{kk lEifÙk dks dkuwuh ekU;rk FkhA bl {ks= esa ckck lkgc us laxBukRed ,oa laoS/kkfud iz;kl fd;sA 1. jÙkw] ukud pUn] MkW- vEcsMdj] dqN vuNq, izlax] 2003] lE;d izdk'ku] ubZ fnYyh] i`-& 17 2. ckS)] Lo:i paUnz] egkM+ ØkfUr dk vej bfrgkl] 2010] lE;d izdk'ku] ubZ fnYyh] i` la-&33 3. flag] jke xksiky] MkW- vEcsMdj dk fopkj n'kZu] 2002] e/;izns'k fgUnh xzUFk vdkneh] Hkksiky] 462003 i`-&3]6 4. esgjnk] MkW- ch- ,y-] vEcsMdj vkSj lkekftd U;k;] 1992] jkor ifCyds'kUl t;iqj] i`& 69 5. esgjnk] MkW- ch- ,y-] vEcsMdj vkSj lkekftd U;k;] 1992] jkor ifCyds'kUl t;iqj] i`& 70
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1- vkS|ksxhdj.k ,d foLr`r izfØ;k gS bldk rkRi;Z ;g gS blds vUrxZRk m|ksxksa esas 234567-
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xgjkbZ ls ns[kk tk, rks vkS|ksxhdj.k vkSj uxjhdj.k es dksbZ vUrj ugh gSA cfYd mUgs ,d gh oLrq ds nks igyw dgs rks dksbZ vfr”;ksfDr ugh gksxh ,d dh vkHkko ess nwljs dk vFkZ vLi’V ,oa viw.kZ gSA bldk dkj.k ;g gS fd vf/kdka’krk ,slk ik;k x;k gS fd tgk¡ ij m|ksxksa dk fodkl gqvk ogh uxjks dk Hkh fodkl gqvkA vusd uxj ,sls Hkh gSA ftldk fodkl fdlh [kkl m|ksxksa ds dkj.k ugh gqvk gSA fdUrq ogk¡ m|ksxks dk Lo:Ik gks gh tkrk gSA tgk¡ ,d m|ksx dh LFkkiuk gksrh gSA bathfu;fjax] jlk;fud moZjd] bysDVªkfuDl] [kk| lalk/ku IykfLVd] ,oa vU; mi;ksxh dh oLrqvksa ds mRiknu ds ;g dk;Z egRo j[krk gSA vk/kqfud ;qx esa ns'kksa dh vkS|ksfxd fodkl dk ekin.M muds ÅtkZ lalk/ku ds m|ksxksa dh fodkl dh fn'kk ls ekik tk ldrk gSA ;g m|ksx tgka ,d vksj ekuo thou dh vusd mi;ksfxrkvksa ds fy, fufgr gksrh gSA ogk¡ ij etnwjh dh etnwjh gsrq Hkh egRoiw.kZ ekuk tkrk gSA ogk¡ ij fo’kky tula[;k ,d LFkku esa fuokl djus yxrh gSAbl tula[;k dh vo’;drkvks dh iwfrZ ds fy, vusd m|ksxks dh LFkkiuk gks tkrh gSA fo’kky tula[;k ds ifj.kkeLo:Ik vusd izdkj dh laLFkkvksa dk TkUe vkSj fodkl gksrk gSA bl izdkj uxjhdj.k dh izfdz;k iwjh gksrh gSA fuokfl;ksa ds thou Lrj dks mUufr djrs gS ogh nwljh vksj vis{kkd`r de iw¡th esa jkstxkj ds volj miyC/k djus ,oa mRiknu esa egRoiw.kZ ;ksxnku iznku djrs gSA 1- ih-lh- xqIrk ,oa lh-,y- prqosZnh] O;olkf;d okrkoj.k ,oa m|ferk] Jh egkohj cqd fMiks ifCy'klZ] ubZ fnYy] 2013&14] i`"B 60 2- MkW- vks- vkj- ,l- JhokLro] vkfFkZd fopkjksa dk bfrgkl % izÑfrokfn;ksa ls vkt rd] jk/kk ifCyds'kUl] ubZ fnYyh] 2012] i`"B 12 3- js[kk 'kekZ] xzkeh.k fodkl ,oa fu;kstu] jkor izdk'ku] ubZ fnYyh] 2012] i`"B 70 4- ds-ch- lDlsuk ,oa th-,u- oekZ] vkS|ksfxd lfUu;e] jes'k cqd fMiks] t;iqj] 1975&76] i`"B 210 5- ds-ch- lDlsuk ,oa th-,u- oekZ] vkS|ksfxd lfUu;e] jes'k cqd fMiks] t;iqj] 1975&76] i`"B 210 6- izks- ch-ds- vxzoky ,oa MkW- ,l-lh- 'kekZ] O;kolkf;d laxBu izcU/k ,oa iz'kklu] v:.k izdk'ku] Xokfy;j] 1984] i`"B 63 7- MkW- ,l- vf[kys'k ,oa MkW- la/;k 'kqDyk] Hkkjr esa xzkeh.k fodkl] lsUVj QkWj fjlpZ LVMht] jhok ¼e-iz-½] 2010] i`"B 267
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ekuoh; vkSj i;kZoj.kh; HkkSxksfyd :i ls ekuo thou ds fy, mi;ksxh gSA euq’; dk fuekZ.k i;kZoj.k es ik;s tkus okys rRoksa ls gqvk gSSA euq’; dk fuekZ.k ikap rRoksa ls feykdj gqvk gSA feV~Vh] ty] ok;q] vfXu] vkdk’k ls gqvk gSA lkFk gh lEiw.kZ Ik;kZoj.k euq’; ds dY;k.k ds fy, gh fd;k x;k gSA euq’; viuh Kkurkol vius vusd Ik;kZoj.kh; dk;Z izR;{k u lgh vizR;{k :Ik ls ogkW dgh&u&dgh ekuo dY;k.k djrk gSA euq’; vkSj Ik;kZoj.k dk n’kZu euq’; ds uSfrd ewY;ksa ,oa drO;Z cks/k dh vksj /;ku fnykrk gSA euq’; tc&tc Ik;kZoj.k dh vis{kk fd;k mldk loZuk’k gqvkA euq’; dh vVwV “kfDRk i;kZoj.k dh ,d lk/kkj.k pksV Hkh ugh lg~ ldrh gSA
Hkkjr esa euq’; dks Ik;kZoj.kh; pqukSfr;k¡ fey jgh gSA ftldk lcls egRoiw.kZ dkjd euq’; dks Bgjk;k tk jgk gSA gekjs lkeus lcls cM+h pqukSrh tula[;k dh vf/kdrk dks lhfer djuk gSSA ;g ugh gS fd tula[;k fu;a=.k Lor% fodkl djsxk ijUrq fodkl tula[;k o`f) njksa esa gkL; djsxkA Hkkjr es tula[;k xjhch vkSj Ik;kZoj.k ijLij lacfa /kr gS Hkkjr izk;% xjhc yksxksa ls le`) Hkwfe gSA xjhch vkSj Ik;kZoj.kh; fuEuhdj.k ds chp lECkU/k vfr n`<+ gSa ;g eq[; eqÌk vkSj lcls cM+h pqukSrh gSA ouks dh vU/kk&/kqU/k dVkbZ vkSj ty Lrj dk fxjrk xzkQ ftldk ifj.kke ns[kk tk jgk gS fd ufn;ksa esa cka/k cuk dj taxy dks mtkM+k tk jgk gS ftldk Ik;kZoj.kh; izHkko ekuo ij iM jgk gSA
izLrkfor “kks/k i= dh izof` Ùk lkS)kfUrd gS vr% fo’k;@’kks/k leL;k ds vuq:Ik rF; ladyu ds f}rh;d L=ksrks dk iz;ksx v/;;u ds nkSjku fd;k x;k gSA ftlesa lUnHkZ xzU Fk iqLrdky; i=&if=dkvksa ,oa usV ds ek/;e ls v/;;u lkekxzh dk p;u dj rF; fo”ys’k.k dk iz;kl fd;k x;k gSA
euq’; vkSj Ik;kZoj.k n’kZu vkt Ik;kZoj.k esa vR;vko’;d n’kZu dk fo’k; cu x;k gSA ftlus lEiw.kZ ekuo lekt dks bl rF; ij xgjkbZ ls fopkj djuk gksxk dh vkt gekjs thou lqjf{kr dSls jgs\ Ik;kZoj.kh; lek/kku dk fodkl bl izdkj gksuk pkfg, ftlls thou dh xq.koRRkk rFkk Ik;kZoj.k dks dksbZ gkfu u gks Hkkjr esa bls xaHkhjrk ls ys ldrs gSA
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Ekuq’; bZ’oj dh loksZd`’B d`r gSA LFkypj] ty pj ,oa uHkpjksa es ls euq’; dks lcls Js’B bZ”oj us cuk;k gSA dsoy euq’; gh og d`r gSA ftlesa lkspus le>us fu.kZ; ysus vkfn dh “kfDr izkIr gS euq’; dk fuek.kZ Ik;kZoj.k es ik;s tkus okys rRoksa ls gqvk gSA *fNr ty ikod xxu lehjk] iap :fpr vfr v/ke “kjhjk* vFkkZr~ ekuo “kjhj dk fuekZ.k vkRek lfgr feV~Vh] ty] vfXu] gok] vkdk’k ls gqvk gSA lkFk gh lEiw.kZ Ik;kZoj.k euq’; ds dY;k.k ds fy, gh fd;k x;k gSA euq’; viuh Kkurk ol vius vusd Ik;kZoj.kh; tcfd izR;{k u lgh vizR;{k :i ls ogkW dgh&u&dgh ekuo dY;k.k djrk gSA tSls& fgald i’kq gekjs Qlyks ds fy, nq’eu “kkdkgkfj;ksa dks [kkdj Ik;kZoj.kh; lUrqyu cuk;s j[krs gSA “kiZ] euq’; ds fy, gkfudkjd ekurs gSA fdUrq pwgksa tSls gekjs fy, uqd’kku nk;d tkuojksa dks [kkdj euq’; ds fy, ykHknk;d fl) gksrk gSA euq’; ,oa Ik;kZoj.k ,d gh flDds ds nks igyw gSA nksuks esa ls euq’; vius d`R;ksa ls Ik;kZoj.k laj{k.k ,oa lqj{kk djrk gSA vkSj euq’; gh Ik;kZoj.k dks uqd’kku igqpkrk gSA vFkkZr~ euq’; vkSj i;kZoj.kh; izfrfdz;k “kq: gks tkrh gSA vkSj rks euq’; dks uqd’kku mBkuk iMrk gSA gekjs ikSjkf.kd] lfgR;ks]a yksddFkkvkssa ,oa fdonfUr;ksa esa dgh&u&dgh ;g ckr dgh xbZ gSa fd euq’; tc Ik;kZoj.k ds lkFk NsM+NkM djrk gSA rks Ik;kZoj.k Hkh viuk jkSnz :[k fn[kkdj euq’; dks izrkf.kr djrk gSAekyFl us tula[;k o`f) dh ?kkrd crkrs gq, dgk gS fd ;fn euq’; tula[;k o`f) dks uSfrd rjhdksa ls ugh jksdrk rks izkd`frd izdksi iSnk gksrs gSA tSls & ck<+] lw[kk] vdky] egkekfj;kW rwQku] ;q) ,oa HkwdEi bR;kfnA ns[kk rks ogka rd x;k gS fd euq’; Lo;a i;kZoj.kh; laUrqyu cuk ysrk gSA tSls& tula[;k o`f) gksus ij lÙkk ds fy, la?k’kZ egkHkkjr dky bldk Tokyar mnkgj.k gSA oSKkfud izxfr us euq’; Ik;kZoj.k dks u /;ku ns dj v/kk /kqU/k fodkl dh gksM es vkxs c<+us dks rkRi;Z jgrk gSA ifj.kke lkeus gS fo’kSyh xSls mRiUu gksrh gSA ty iznwf’kr gksrk gSA /ofu izn’w k.k gksrk gSA dkj[kkuks ds ikl HkhM+ mRiUUk gksrh gSA tks nq?kZVuk vkSj vijk/k dk dkj.k curh gSA eqEcbZ dh pky ,oa psUubZ dh psjh xUnh ofLr;k¡ Ik;kZoj.kh; laUrqyu foxkMus esa rkRi;Z jgh gSA ftl dkj.k ;kSu vijk/k] Uk’kk [kksjh] vijk/k izo`fÙk ,oa fcekfj;k¡ cMs+ iSekus ls ikbZ tkrh gSA vusd ;kSu jksx bUgh ofLr;ksa dk ifj.kke gSA o`{kks dh vU/kk&/kqU/k dVkbZ lM+ds] ,oa ugj vkS|ksfxd ,oa vkoklh; ofLr;ksa dks clus es fd;k tkrk gSA ftldk nq’ifj.kke vo’kkZ] vdky] ,oa Xykscy okfeZx ds :I es fn[kkbZ nsrk gSA okrkoj.k esa dkcZu MkbZ vkDlkbM dh vf/kdrk tks m|ksxksa ,oa okguksa ds /kqvksa ls mRiUu gksrk gSA okrkoj.k dks xeZ djus es lgk;d gksrk gSA ftldk ifj.kke gS dh vkt] o’kkZ okyk {ks= ysfdu vo’kkZ okys {ks= Hkh’k.k o’kkZ ,oa ck<+ dk f’kdkj gks jgs gSaA lkFk gh /kqvksa dk oQZ fi?ky dj eSnkuh ufn;ksa esa ikuh dh vf/kdrk iSnk dj jgk gSA ftlls lkeqUnz dk ty Lrj Å¡pk mB jgk gSSA ftldk ifj.kke leqUnz ds fdukjs clus okyh cfLr;ksa dks ty esa lek nsus es gks x;k A lqukeh bldk mnkgj.k gSA dhMs& + edksMs dks ekjkus ds fy, dhVuk”kd nckb;ksa ds fuekZ.k ls Ik;kZoj.k iznwf’kr gks jgk gSA ps;j uscy w ,oa Hkksiky xSl dk.M bldk mnkgj.k gSSA v/kk&/kqU/k dkj[kkuksa dh LFkkiuk ls ufn;ksa dk ty dkj[kkuksa ds fudyus okys dpus ls iznfw ’kr gks jgk gSA ftlls ty tho lekIr gks jgs gSA ufn;ksa dk iznwf’kr ikuh u tkuojksa ds mi;ksx ds fy, ugh gh d`f’k ds fy, mi;ksxh gSA vkxjk ,oa dkuiqj ds twrs dEifu;ksa ls fudyus okyk dpjk xaxk dks csgn nwf’kr dj fn;k gSA vkt ;gh gkyr vU; ufn;ksa dk gSA 59
Ik;kZoj.kh; vlUrqyu dk ifj.kke gS fd euq’; dh izo`fÙk;k¡ nq’o`fÙk;ksa es ifjofRrZr gks tkrh gSA vR;f/kd tula[;k osjkstxkjh iSnk djrh gSA tks vijk/k dks izksRlkfgr djrh gSA vkSj euq’; vuSfrd ewY;ksa dks egRo nsus yxrk gSA Hk’Vªkpkj xou vkfn] izo`fÙk;k¡ bl ckr dk }Sord gsA euq’; vkSj Ik;kZoj.k ;fn vius&vius lhekvksa es jgdj vius drO;ksa dk fuokZgu djrs gaSA u rks euq’; dk uqd’kku gksrk ugh Ik;kZoj.k dk gksrk Ik;kZoj.k vpsru gS oks vius rjQ ls dksbZ igy ugh djrk Ik;kZoj.k dks NsMus ,oa vlaUrqfyr djus ds fy, euq’; gh djrk gSA vius LokFkZ vkSj egRokdka{kh LokFkZ ds fy, fdlh ij fopkj ugh djrk vUUkr% uqd’kku euq’; dks gh mBkuk iMrk gSA vr% euq’; vkSj Ik;kZoj.k dk n”kZu euq’; ds uSfrd ewY;ksa ,oa dÙkO;Z cks/k dh vksj /;ku fnykrk gSA euq’; tc&tc Ik;kZoj.k dh mis{kk fd;k mldk loZuk’k gqvkA euq’; dh vVwV “kfDRk i;kZoj.k dh ,d lk/kkj.k pksV dks ugh lg~ ldrhA euq’; dk drO;Z gS fd i;kZoj.k dks viuk lg;ksxh ekus mldk laj{k.k djsA ,oa mls ekrk&firk tSlk ntkZ nsA Ik;kZoj.k lcls ljy vFkksZ esa gekjk ifjos’k gh Ik;kZoj.k gSA Hkkjr o’kZ gh ,slk ns’k gS fd tgk¡ Ik;kZoj.k ls lacaf/kr Kku u;k ugh vfirq ,d /kjksgj gS i`Foh dks ekrk ekuus dk n`f’Vdks.k gekjs thou es vrhr ls fo|eku jgk gSA Ik’pkR; vko/kkj.kk ges Ik;kZoj.k lacU/kh ?kVdksa dks oSKkfud i= ls Kkr djokrh gSA fd Hkkjrh; n’kZu esa Ik;kZoj.k ds oSKkfud i= ds Kkr djokrh gSA fd Hkkjrh; n’kZu esa Ik;kZoj.k ds oSKkfud i{k ds lkFk blds laj{k.k ds uSfrd nkf;Ro Hkh lkSis x;s gSA izkphu dky ls ysdj vktrd] fo”ks’k rkSj ij fiNyh lfn;ksa esa vU; thoksa dh rqyuk esa ekuoh; xfrfof/k;ksa ls Ik;kZoj.k lokZf/kd izHkkfor gqvk gSaA ekuo thou dh xfrfof/k;ksa ds fy, mldh ewyHkwr vko’;drkvksa dh iwfrZ ds fy, vko’;d FkhA ijUrq vf/kdka’k xfrfof/k;k¡ ekuo dks vf/kd lq[kh cukus ,oa foykflrk iw.kZ thou O;krhr djus ds fy, FkhA euq’; vkSj Ik;kZoj.k dk n’kZu f'k{kk fodkl dh /kqjh gS fodflr lekt dk mÌs”; mlesa vf/kd ls vf/kd O;fDr;ksa dk f’kf{kr gksuk gSA fodkl ds fy, lekt ds izR;sd o.kZ dks f'k{kk ds vf/kd volj miyC/k gksuk pkfg,A fodkl’khy ns’kksa esa fofHkUu {ks=ksa es fo’ks’kKrk dh vo’;drk gksrh gSA tks f’kf{kr O;fDr;ksa ds dMh la[;k esa gksus ls vkrh gSa] ysfdu f'k{kk dk mÌs’; flQZ fMxzh /kkjdksa dks iSnk djuk ugha] cfYd O;fDr;ksa dks vPNk thou ;kiu djus es l{ke cukuk gksuk pkfg,A f'k{kk O;fDr;ksa dks mfpr fu.kZ; ysus vius vf/kdkjks ds izfr ltx cukus vkSj muds dRrkZO;ksa dks djus ;ksX; cukrh gSA f'k{kk ,slh gks tks O;fDr;ksa dks vius Hkfo’; vkSj vkus okyh ih<+h ds lEcU/k es lkspus ;ksX; cuk,A f'k{kk dk mÌs’; lkekftd ln~Hkko vkSj lekurk ykuk pkfg,A ftlls i;kZoj.k ekuo vkSj n’kZu dk cpk;k tk ldsA t:jrksa vkSj foykflrk dh ekU;rk,a Hkh O;fDr&O;fDr] leqnk; vkSj ns’kksa ds fglkc ls cnyrh gSA gks ldrk gS fd dqN yksx cqfu;knh t:jrks dks thus ds fy, t:jh le>s rks dqN yksx reku lqfo/kkvksa dks cqfu;knh t:jrsa le>sA gesa ;g /;ku esa j[kuk gh gksxk fd vfr tula[;k vkSj vfrmiHkksx] nksuksa dk Ik;kZoj.k ij vlj iM+rk gSA u nksuksa eqn~nksa dh iM+rky vkSj mudk lek/kku bls /;ku esa j[kdj gh <w<a k tkuk pkfg,A
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fdlh ns'k ;k izn's k ds vkfFkZd fodkl ds fy, m|ksx ,oa O;kikj dh fLFkfr vPNh gksxh vko';d gSA m|ksx ls miHkksx o iw¡thxr oLrqvksa dk mRiknu gksrk gSA ftlls izkÑfrd o ekuoh; lalk/kuksa dk leqfpr nksgu] jkstxkj volj esa o`f)-gksrh gS ogha O;kikj }kjk oLrqvksa miHkksDrkvksa rFkk leqfpr fooj.k {kerk ,oa fooj.k o foØ; lk/kuksa dk leqfpr fodkl gksrk gSA e/;izn's k ,oa izkÑfrd lalk/kuksa ls ifjiw.kZ jkT; gSA vkfFkZd dkj.kksa ,oa f'k{kk& tkx:drk dh deh ds dkj.k vkS|ksfxd o O;kolkf;d xfrfof/k;k¡ xfr ugha idM+ ldhA 'kkldh; ;kstukvksa dks iwjk djus ds fy, okf.kfT;d dj /ku dh miyC/krk fu/kkZfjr djrk gSA uksVoUnh ds i'pkr~ ;g vk'kadk O;Dr dh x;h Fkh] fd vkS|ksfxd o O;kolkf;d xfrfof/k;k¡ izHkkfor gksxh] fdUrq ,slk ugha gqvk ofYd vizR;{k dj ds vUrxZr vkus okys lHkh djksa miyC/krk esa o`f) gqbZ gSA dfri; dfBukbZ;k¡ gS ftudk fujkdj.k fn;s x;s lq>koksa ds vey ls fd;k tk ldrk gSA izn's k dk vkS|ksfxd o O;kolkf;d xfrfof/k;k¡ fnu izfrfnu ldkjkRed :i ls vkxs c<+ jgh gSA vk'k; gS] izns'k dk prqeqZ[kh fodkl gksxkA m|ksx ,oa O;kikj fdlh ns'k o izn's k ds vkfFkZd fodkl ds vk/kkj gksrs gSaA m|ksxksa ls yksxksa dks miHkksx dh tkus okyh oLrqvksa o iw¡thxr oLrqvkas dk mRiknu gksrk gSA rFkk O;kikj }kjk nwj&nwj rd ns'k o fons'kksa esa oLrqvksa dk forj.k gksrk gSA oLrqvksa dh miyC/krk] jkstxkj l`tu] lalk/kuksa dk iz;ksx] izkÑfrd lk/kuksa dk nksgu rFkk yksxksa dk thou Lrj esa lq/kkj gskrk gsA ns'k dh Lora=rk ds ckn m|ksx o O;kikj c<+kus ds fy, ;kstukvksa esa foÙkh; izko/kku fd;s x;s] yksxksa dks tkx:d fd;k x;k 1991A dh vkfFkZd lq/kkj esa ykbZlsflax izFkk dks lekIr dj bUlisDVj jkt ,oa vU; ykyQhrk 'kkgh ds dkj.k gksus okys Hkz"Vªkpkj o foyEcrk dks lekIr dj fn;k x;kA m|ksx ,oa O;kikj dk lapkyu djus ds fy, cSdksa ,oa vU; foÙkh; laLFkkvksa }kjk vklku _.k iznku djus gsrq izko/kku fd;s x;s lkFk gh _.kksa ij lClhMh] fctyh] ikuh] Hkwfe o dPps eky vkfn dh iwfrZ lLrs nj djus dh O;oLFkk dh x;h] ftldk ifj.kke ;g gqvk fd dei<s& + fy[ks o lk/ku&foghu yksxksa] efgykvksa] fodykaxksa o f'kf{kr csjkstxkjksa dks m|ksx O;kikj pykus ds volj izkIr gq, rFkk lekt dk vkfFkZd] lkekftd fodkl rsth ls gksus yxkA e-iz- {ks= dk izkÑfrd ,oa ekuoh; lalk/kuksa ls lEiUu jkT; gSA f'k{kk o tkx:drk ds vHkko ds dkj.k fiNM+k gqvk FkkA fdUrq 'kkldh; iz;klksa ds dkj.k jkT; dk rsth ls fodkl gqvk gSA 'kkldh; jktLo esa Hkh o`f) gqbZ gS] ftldk mi;ksx izn's k ds lexz fodkl esa fd;k x;k gSA
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e-iz- dk vkS|ksfxd o O;kikfjd fodkl i;kZIr ugha gqvk gSA uksV cUnh ls m|ksx o O;kikj dks >Vdk yxk gSA m|ksx o O;kikj ls izkIr djksa esa deh vkbZ gSA m|ksx o O;kikj esa fujk'kk dk okrkoj.k mRiUu gqvk gSA 'kks/k dk;Z gsrq vusd mÌs';ksa dks lEeq[k jD[kk x;k gSA e-iz- dh m|ksx o O;kikj dh fLFkfr dk v/;;u djukA uksV cUnh ds ckn m|ksx o O;kikj ls izkIr gksus okys okf.kfT;d dj dh fLFkfr dk irk yxkukA izn's k dh m|ksx o O;kikj ds Vªs.M Kkr djukA okf.kfT;d dj dh leL;kvksa o dfBukbZ;ksa dk v/;;u djukA leL;kvksa ,oa dfBukbZ;ksa ds lek/kku ds mik; lq>kukA
e-iz- {ks=Qy dh n`f"V ls ns'k dk nwljk cM+k izn's k gSA izkÑfrd lalk/kuksa esa moZjk Hkwfe] ou&lEink] [kfut lEink ¼dks;yk ,oa pwus dk iRFkj bR;kfn½ ty ls iwfjr ufn;k¡] ,oa i;ZVu LFky i;kZIr ek=k esa miyC/k gSA f'k{kk] flpkbZ] LokLF;] ;krk;kr] lapkj o fo|qr lsokvksa dk i;kZIr fodkl gqvk gSA ifj.kke LokLF; izns'k dk vkfFkZd fodkl rsth ls lapkfyr gqvk gSA 'kklu }kjk m|ksx&O;kikj dks c<+kus gsrq ;kstuk,sa cukbZ x;h gSaA uoEcj 2017 dh uksV cUnh dh ?kks"k.kk ds ckn ;g Hk; O;kIr gks x;k Fkk fd dgha bldk izHkko izn's k ds m|ksx&O;kikj ij _.kkRed u iM+sA 'kkldh; foHkkxksa] O;kikj&okf.kfT;d laLFkkvksa ,oa cSadksa dh vkfFkZd xfrfof/k;ksa dh iM+rky dh x;hA okf.kfT;d dj foHkkx }kjk fofHkUu dj L=ksrksa dk v/;;u dj rF; izkIr fd;s x;s ,oa mudk izn'kZu lkj.kh ds ek/;e ls oxhZdj.k i'pkr~ fd;k x;k gSA
63
1
oSV
19252-67
21950-00
2
lh,l Vh-
1118-33
1130-00
3
izos'k dj
308-1
3810-12
4
izksQl s uy VSDl
316-36
325-05
5
euksjatu o foKkiu dj
121-25
130-00
3456
14-5 %
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%
1
2016
928-20
2222-0
2198-0
2131-24
2
2017
1000-13
2551-7
2574-0
2294-5
932-00
13 %
mi;qZDr lkj.kh ls Li"V gS fd 2016 o 2017 ds pkj ekgks]a vizSy] ebZ] twu o tqykbZ ekgksa ds dj jktLo ds rqyukRed v/;;u ls djus ls lHkh ekgksa esa 2016 dh rqyuk esa 2017 ds lEcfU/kr ekg esa jktLo esa o`f) gqbZ gSA ;g o`f) 932 djksM+ :- o o`f) dh nj 13 izfr'kr jgh gSA Li"V gS fd izns'k esa uksV cUnh dk vlj ugha izrhr gksrk gSA
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vusd m|ksx o O;kikj ls lEcfU/kr vk¡dM+s miyC/k ugha gks ikrsA ys[kk iqLrdksa dk lapkyu mfpr izdkj ls ugha fd;k tkrkA dj pksjh dh Hkh leL;k lgh lwpukvksa dh izkfIr esa lk/kd gSA Hkz"Vkpkj o ykyQhrk 'kkgh Hkh foHkkx esa lfØ; gSA
lHkh vkS|ksfxd o O;kikfjd ?kjkuksa ds [kkrksa dk fof/kor lapkyu djuk pkfg,A lwpuk,¡ dEI;wVj esa ntZ gksuh pkfg, ,oa ys[kksa dh vkfMV le;&le; ij gksuh pkfg,A 'kkldh; e'khujh dks lfØ; gksuh pkfg,A dj&pksjh o fglkc&fdrkc dh tk¡p le;&le; ij gksuh pkfg,A dj dh nj Hkh dj pksjh dks izksRlkfgr djrh gSA vr% dj dh nj de dh tkuh pkfg,A lHkh O;olkf;;ksa dks dj nk;js eas ykus dk iz;kl gksus pkfg,A vusd dfBukbZ;ksa ,oa dherksa ds ckotwn izn's k esa okf.kfT;d dj fofHkUu L=ksrksa ls c<+k gSA uksV&cUnh ls vk'kadk Fkh fd m|ksx&O;kikj foijhr fn'kk esa izHkkfor gksxs] fdUrq ,slk ugha gqvkA bl {ks= esa i;kZIr lq/kkj dh xqtkabl gSA fn;s x;s lq>koksa ij vey djus ij i;kZIr dj jktLo izkIr gksxk] ftldk mi;ksx izns'k ds lokZxh.kl fodkl esa gksxkA 1- bdksukfed losZ 2016&17 2- okf.kfT;d dj e-iz- fjiksVZ&2016&17 3- fjtoZ cSd vkWQ bafM;k] cqysfVu] 2016&17 4- lekpkj i=&if=dk,sAa
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vkS|ksfxd f'k{kk dk vkfFkZd egRo gSA blh izdkj Hkkjro’kZ es Hkh bldk egRo fdlh Hkh izdkj ls de ugh gSA Hkkjro’kZ 1947 dh Lora=rk ds ckn ls vkS|ksfxd f'k{kk dk egRo c<+rk x;kA ftllsa O;fDr dks vkS|ksfxd f'k{kk ds fy, vkfFkZd fLFkr dks lqn`<+ djus dh vko';drk eg'kwl gksus yxrh gSA tks ekuoh; lalk/kuksa ds ifj.kke Lo:i ;g f'k{kk vke vkneh ds ijs FkhA ftllsa O;fDr dh xjhek dk iw.kZ /;ku j[k ikuk fdlh O;fDr ds cl dh ckr ugha FkhA okLrfod vFkkZs es vkS|ksxhdj.k dh izfdz;k LoraU=rk ds ckn ls gh izkjEHk gksrh gSA Hkkjro’kZ esa fuEudkj.kksa ls vkS|ksxhdj.k dh vo”;drk gSA ftlesa f'k{kk lcls egRoiw.kZ ekuh tkrh gSA tks ,d Hkkjr ,d fodkl'khy jk"Vª gSaA1 ftlds lkFk&lkFk lkekftd vkfFkZd vkSj jktuSfrd igyw dks tksM+k tk ldrk gSA vkfFkZd n`f’V ls Hkkjr dks lEi+Uu ns”k ugha dgk tk ldrk gSA ns”k ds laUrqyu vkfFkZd fodkl ds fy, vkS|ksxhd f'k{kk dh vR;Ur gh vo”;drk gSA Hkkjr d`f’k iz/kku ns”k gSA fdUrq ;gk¡ ds ewy lk/ku] gy] cSy] cht] vkSj i”kq gh ekus tkrs gSA ftlls ;gk¡ dh vkoknh dk vf/kd Hkkx vR;Ur gh fiNM+h voLFkk eas ik;k tkrk gSA lkFk gh fdlkuksa dh :f<+oknh ijEijk vkSj vU/kfo”oklksa dh ckxM+ksj us mUgas vf/kd :iksa esa fopfyr dj fn;k gSA ftlds vk/kkj ij bl ns'k esa vkS|ksfxd f'k{kk dh rjQ cgqr gh de /;ku fn;k x;k gSA D;ksafd vkS|ksfxd f'k{kk iz.kkyh cgqr gh eg¡xh gSA 'kks/k i= vkS|ksfxd f'k{kk dk vkfFkZd egRo uked ;g 'kks/k i= ,d izdkj dk f}rh;d lkexzh dk iz;ksx fd;k gSA ftlesa fo'ys"k.kkRed i)fr dks vk/kkj ekuo dj bl bl i= dk fu:fir djus dk ,d lQy iz;kl gSA 'kks/k izfof/k ds vUrxZr vusd fo}kuksa ds ds lq>ko] 'kks/k if=dk] ,oa vU; if=dkvksa ds ek/;e ls v/;;u fd;k x;k gSA blds lkFk&lkFk vusd n`f"Vdks.kksa ds lkFk f'k{kk ij vf/kd tksj fn;k x;k gSA D;ksafd vkt Hkh ekuoh; thou esa euq"; 21 lnha ds Hkkjr esa Hkh vkS|ksfxd f'k{kk ls oafpr eglw'k dj jgk gSA ftldk eq[; dkj.k vkfFkZd igyw gSA bu vkfFkZd igyw ds fy, lkekftd vk/kkj ij thou dh vusd fn'kkvksa ls fudyus okys 'kSf{kd laUnHkksZa dks v/;;u dk vk/kkj cuk;k x;k gSA blds lkFk iqLrdky;ksa ,oa bUVjusV dh Hkh lkexzh dk iz;ksx bl rF; dks le>us ds fy, iz;ksx fd;k x;k gSA vkS|ksfxd f'k{kk ds fodkl esa v/kkslajpukRed lalk/kuksa dh Hkwfedk dk egRoiw.kZ ;ksxnku jgk gSA ftlls lkekftd vkSj vkfFkZd :iksa esa ekuoh; thou dh vusd dlkSfV;ksa ls O;fDr tw>rk jgrk gSA ftldh fopkj/kkjk ls vkfFkZd fodkl ls ekuo lekt dh lgHkkfxrk lqfuf'pr djkus esa f'k{kk dk egRoiw.kZ ;ksxnku jgk gSA m|ksx ds ek/; ls tgk¡ ,d vksj csjkstxkjh de gksrh gSA2 ogha nwljh vksj lEiw.kZ ekuo lekt dh vk; esa o`f) gksrh tk jgh gSA ftlls 'kSf{kd :i lsa vkfFkZd fLFkfr;k¡ vkM+s vk jgh gSaA ogha vxj esa nwljs rF;ksa dks ns[kus dk iz;kl djrs gSa
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ftldh dYiuk ,d i;ZVd djrk gSA ;gk¡ f'kdkj djus okys Hkh cgqr ek=k eaas O;fDr vkrs FksAa ftudh fo'ks"krk dk eq[; dkj.k jgk fd dqN taxyh tkuojksa dk f'kdkj djrs FksA5
iUuk vkSj Nrjiqj ftys dks lhek ij ogus okyh dsu unh ds nksuksa vksj fLFkr ouksa dh lqUnjrk vkSj muesa ik;s tkus okys oU; izk.kh dk vkd"kZ.k dk dsUnz jgk gSA ftldh fo'kkyrk vkSj oU; izkf.k;ksa ds j{kk dk vkJ; dsUnz jgk FkkA bldk lcls igys xxÅ uke ls bldk izfrosnu gqvkA vH;kj.; ds uke ls foKIr fd;k x;kA lu~ 1977 bZ- esa xxÅ uke ls fo[;kr fd;k x;k gSA tks vxs pydj jk"Vªh; m|ku ds uke ls fo[;kr gvk gSA blds lkFk 1981 dks iUuk dk jk"Vªh; m|ku ?kksf"kr fd;k x;kA iUuk jk"Vªh; m|ku esa iUuk ftys ds rsjg xzkeksa dks ,oa Nrjiqj ftys ds vU; xzkeksa dks feykdj 539-9044 oxZ fd-eh- yxHkx dk vHk;j.; {ks= fodflr gSA iUuk jk"Vªh; m|ku esa vusdksa phrk vkSj 'ksj ik;s tkrs gSaA bl m|ku esa Hkkyw] phrk] lkaHkj] pkSfl?kk] fpdkjk] ghj.k] uhyxk; vkSj blds lkFk&lkFk vU; izdkj ds NksVs&cM+s tkuokjksa dk lajf{kr {ks= gSA iUuk ftys dh igkM+h [ksM+k ekxZ ij fLFkfr dqN nwjh ij l?ku ouksa ds lkSUn;Z ds chp esa c`gLifr dq.M gSA ;g dsu unh ds fdukjs esa fLFkr gSA ;g ?kkVh yxHkx 800 fQV dh xgjkbZ esa fufeZr gksrh tk jgh gSA ;gk¡ ij vusd dq.M gSA bl ?kkVh esa mrjus vkSj izo's k djus ds fy, cgqr gh [krjukd ekxZ gSA ftlls mrj dj ty izikr dh fLFkr LFkku ij tk;k tk ldrk gSA ;g izxSfrgkfld dky ds f'kyk ys[kksa ds ek/;e ls Hkh bldh lajpuk Hkh vyx fdLe dh yxrh gSA blfy, ;gk¡ ij vkus okys i;ZVdksa dk teckM+k yxk jgrk gSA ;gk¡ ds xjhcksa dk lcls cM+k euksjatd vkSj eksgd i;ZVu dk dsUnz cu x;k gSA6 tgk¡ og fcuk iSlk [kpZ fd;s gq, vklkuh ls igq¡p ldrs gSaA ftldh fopkj/kkjk dk ifj.kke gh vusd izdkj dh folaxfr;ksa ls fufeZr gksrk gSA c`gLifr dq.M dh vkykSfdd NBk] LoPNrk rFkk 'kkfUr dk izrhd ekuk tkrk gSA ;gk¡ ij vusd rjg dh eafUnjksa vkSj ouksa dk fo'kkyrk fn[kkbZ nsrh gSA ;gk¡ ij J)kyqvksa dks ikjykSfdd vkuUn dh vuqHkwfr ls voHkwr gksrs gSaA ,slk fo'okl ekuk tkrk gSA fd Hkxoku c`gLifr dk n'kZu Hkxoku jke us ;gk¡ fd;k FkkA ,slk ekuk tkrk gSA blh dkj.k bldk uke c`gLifr dq.M j[kk x;k FkkA ;gk¡ ds dq.M dk ikuh cgqr gh LoPN vkSj fueZy jgrk gSA
i;ZVu ds egRo dks ns[kus ls irk pyrk gS fd iUuk dh lkSUn;Z vkSj vHk;kj.; ds ek/;e ls iw¡thifr gh ugha ;gk¡ ij xjhcksa dks Hkh i;ZVu dk vkuUn izkIr gksrk gSA D;ksfa d og Hkkjh Hkjde iSlk nsdj i;ZVu dk vkuUn ugha mBk ldrk gSA i;ZVu ds fy, fu/kkZu ds fy, ;k=kO;; cgqr Hkkjh gksus ls bu lkSUn;Z dks ns[kus dh ykylk gh [kRe gks tkrh gSA i;ZVu dk egRo c<+ jgk gSA bldk dkj.k fd vkt O;fDr dh O;oLrrk ds dkj.k og vusd txgksa esa tkus ds fy, le; fudky dj vius fnekxh O;Lrrkvksa ls Lo;a ds thou dks vyx djus dh
72
igy djrk gSA ftlls O;fDr ds fnekx esa izkÑfrd lkSUn;Z dh vuqHkwfr ls og ekufld 'kkafr dk vuqHko djrk gSA
1- e/;izn's k i;ZVu foHkkx] ifjogu ,oa lapkj foHkkx ea=ky;] ubZ fnYyh] 1958] i`"B 89 2- MkW- v:.k j?kqoa'kh ,oa MkW- pUnzys[kk] j?kqoa'kh] i;kZoj.k iznw"k.k] e-iz- fgUnh xzUFk vdkneh] Hkksiky] 1993 i`"B 34 3- ih-Mh- “kekZ] ifjfLFkfrdh ,oa Ik;kZoj.k 2011&2012] i`"B 22
Lrksxh ifCyds”kUl esjB& laLdj.k
4- jkts'k xks;y] i;ZVu lqfo/kkvksa dk izcU/ku] oanuk ifCyds'kUl] ubZ fnYyh] 2011] i`"B 14 5- ds-,y- vxzoky] Hkkjr ds lkaLÑfrd dsUnz] [ktqjkgksa fn eSdfeyu dEiuh] ubZ fnYyh] 1980] i`"B 64 6- MkW- ch-ih- flag] i;ZVu fodkl leL;k,¡ ,oa lEHkkouk,¡] vk'kk ifCyf'kax dEiuh] vkxjk] 2013&14] i`"B 225
73
i;ZVu ekuo thou ds lkSUn;Z iw.kZ thou thus dk euksjatd LFkku gSA tgk¡ ekuo dks ;k=k ds nkSjku gjh Hkjh /kjrh vkSj i;ZVu esa m|ksxksa dk izpyu gksrk gSA ftl izdkj ekuo izkÑfrd vkd"kZ.k ds dsUnzkas dks ns[kus dk ,d fo'ks"k egkSy jgrk gSA HkkSfrd vko';drkvksa ds fy, m|ksxksa dk gksuk vko';d gksrk gSA ftlls O;fDr dks i;ZVu LFky essa tkus ij mls mi;ksxh lkexzh vklkuh ls miyC/k gks tkrh gSA ÞHkkSfrd Lo:i esa fofHkUurk;sa n`'; lkSUn;Z i;ZVu LFkyksa ds vkd"kZ.k dk vk/kkj gSAÞ1 LoHkko ls gh ekuo dh ftKklk izÑfr ds vusd {kBkvksa vkSj n`';ksa dks ns[kus dh gksrh gSA ftl izdkj ls ckS) Lrwi nsmj dksBkj esa ik;s tkus okyh gfj;kyh vkSj Lrwiksa dk ifjn`'; fn[kkbZ nsrk gSA bldh vusd fofo/krkvksa dks tkuus ds dkj.k ml izÑfrd egkSy dks O;fDr ns[kus ds fy, mRlqd gksrk gSA blh fy, izÑfr ds }kjk fufeZr LFkku dks i;ZVu ds :i esa O;fDr ml fodkl dh fn'kk dk vkuUn ysrk gSA i;ZVu O;fDr ds fy, ,d ,slh euksjatd ;k=k o`rkar gSA ftls O;fDr vuqHko ds mÌs';ksa ls i;ZVu dh vksj ;k=k djrk gSA i;ZVd mls dgrs gS tks ;k=k djrs le; vius lkekU; okrkoj.k ds cká LFkkuksa esa jgus ds fy, i;ZVd T;knk ls T;knk la[;k esa vkrs gSA ogk¡ ,d lky ds fy, O;kikj] m|ksxksa dks Hkh LFkkfir djrs gSA ßi;ZVu ,d ,slh ?kVuk o laca/kksa dk feJ.k gS tks fdlh LFkku ij vfuokfl;ksa dh ;k=k vkSj muds ogk¡ Bgjus ls mRiUu gksrk gS rFkk ftlds vUrxZr O;fDr mu LFkku ij u rks LFkk;h :i ls clrk gS vkSj u /ku dekus ds fy, dksbZ dk;Z djrk gSAÞ2 i;ZVu ekuo ds chp vkilh lEcU/kksa dks etcwr djrk gSA vU; jkT;ksa vkSj ns'kksa ls vkus okys O;fDr;ksa dks Bgjus dh lqfo/kkvksa dks Hkh iznku djrk gSA ;g :dus dk LFkku dqN fo'ks"k fnuksa ;k eghuksa ds fy, gksrk gSA ftlesa dgk tkrk gS fd ;g O;fDr fdlh Hkh fo'ks"k ifjfLFkfr;ksa esa T;knk fnu rd u :dsxk vkSj u gh dekus ds mÌs';ksa ls dksbZ m|ksx gh LFkkfir djsxkA vxj ge lkekftd vkSj vkS|ksfxd n`f"V ls ns[ks rks i;ZVu dk vFkZ gksrk gSA fd ;g ,d euksjatd LFkku gSA ftlds vUrxZr ,d LFkku ij ukxfjdksa dks vftZr /ku dks nwljh txgksa ij fd;s x;s ;k=k ij [kpZ fd;k tkrk gSA blds lEcU/k esa MkW- ftokÌhu us dgk gS fd ß;g] vkjke] euksjatd rFkk lkaLÑfrd vko;drkvksa dh larqf"V ds n`f"Vdks.k ls ,d lkekftd lapj.k gSAÞ3 ßvUrjkZ"Vªh; i;ZVu ;k fons'kh i;ZVu] blesa yksx ,d ns'k ls nwljs ns'k dk Hkze.k djrs gSa vkSj blh dkj.k fofHkUu eqnzkvksa dk iz;ksx fofue; ds ek/;e ds :i esa djrs gSaA vyx&vyx eqnzkvksa ds gksus ds dkj.k vUrjkZ"Vªh; i;ZVu dk Hkqxrku lUrqyu ij izHkko iM+rk gSAÞ4 'kks/k i= e/;izns'k esa i;ZVu m|ksx dk vkfFkZd v/;;u ,d izdkj dk f}rh;d lkexzh ladyu dk fo"k; gSA ftlesa fo'ys"k.kkRed i)fr ls v/;;u dks viuk;k x;k gSA 'kks/k izfof/k esa lk{kkRdkj] fo}kuksa ds ekxZn'kZu izkFkfed L=ksrksa ,oa 'kks/k tuZy] i= ,oa if=dkvksa ds ek/;eksa 74
ls Hkh v/;;u fd;k x;k gSA blds lkFk&lkFk lUnHkZ xzUFkksa gsrq iqLrdky;ksa bUVjusV dk Hkh lgkjk 'kks/k i= rS;kj djus esa fy;k x;k gSA 'kks/k i= dk mÌs'; e/;izn's k esa i;ZVu m|ksx dk vkfFkZd v/;;u dks le>us dk iz;kl gS] ;s lHkh fl)kUr i;ZVu esa vkus okys i;ZVdksa dh n`f"V dks ns[krs gq, gSa] i;ZVd Lons'kh gks ;k vU; ns'k dk ukxfjd gks og viuh ekuoh; ftKklkvksa dh iwfrZ gsrq ;k=k djrk gSA bl ;k=k ds fy, okf.kT;d vkoklh;] /keZ'kkykvksa] gksVyksa ,oa eqlkfQj [kkuksa vkfn esa Bgjrk gSA og fdlh fo'ks"k iz;kstu gsrq ;k=k forkUr djrk gSA ftlesa /kkfeZd LFky ds :i esa Hkh og ,d jkr ;k pkSfcl ?kaVksa ds fy, og rhFkZ ;k=k t:j djrk gSA ßukWjcy us i;ZVd dh O;k[;k djrs gq;s fy[kk gS fd izR;sd O;fDr tks fons'k esa LFkk;h fuoklh djus ds fy;s ugha vkrk vFkok ogk¡ fujUrj dk;Z djus ugha vkrk rFkk tks ns'k esa vius vLFkk;h fuokl ds nkSjku vU; LFkku ij vftZr eqnzk dks [kpZ djrk gS ogha i;ZVd gSAÞ5 %& vkfFkZd n`f"V ls i;ZVu dh fLFkfr vkSj mlds foÙkh; O;oLFkkvksa ds dk;Z dks tksM+us gsrq i;ZVd vius lk/kuksa dh n`f"V ls viuh ek¡x dks iwfjr djrk gSA ;g i;ZVd ckgj ls vkus okys i;ZVd rFkk futh LFkkuksa ls vkus okys Hkh i;ZVd lkfey gksrs gSA tks i;ZVd futh ml jkT; ds gksus ds dkj.k og m|ksx Hkh LFkkfir djrs gSaA ftlds dkj.k vkfFkZd fLFkfr ml m|eh dh lq/kjrh gSA nwljh ckr jk"Vªh; vFkZO;oLFkk dks Hkh ykHk gksrk gSA dqN i;ZVd 'kSf{kd mÌs';ksa ls vkrs gSaA muds fy, vkfFkZd vk/kkj gksuk cgqr egRoiw.kZ gksrk gSA ftlls muds 'kks/k ;k i;ZVu esa jgus] [kkus ds fy, gksVy vkfn ls Hkh vkfFkZd L=ksra ksa dh tkudkjh izkIr gksrh gSA blesa lkekftd i;ZVd Hkh vkrs gSaA mlds vk/kkj ij mudk Hkko vk; fuEu gksus ds dkj.k og ifjokj viuh vko';drkvksa dks iwjk u dj ikus dh n'kk esa og i;ZVu LFky ij QqVikFk ij vius thfodksia ktZu gsrq nqdku Mkyrk gSA bl rjg ds lkekftd i;ZVu ls jk"Vªh; vFkZO;oLFkk dks Hkh ykHk izkIr gksrk gSA e/;izn's k esa i;ZVu m|ksx dk vkfFkZd vk/kkj Hkh ns'k fons'k ls vius okys i;ZVd gh gksrs gSaA ßtc lhfer lk/kuksa okys O;fDr i;ZVu esa fgLlk ysrs gSa vFkok muds fy;s izsj.kknk;d mik; viukus tkrs gSa rks mls lkekftd i;ZVu dgrs gSaAÞ6 i;ZVu ds fo'ks"k :i esa etnwj Hkh lkfey gksrs gSa ftudh vkenuh dk L=ksra cgqr gh de gksrk gSA ftl dkj.k mUgsa i;ZVu dh eg¡xh oLrqvkas dks Ø; ugha dj ikrs gSaA muds fy, i;ZVu flQZ ,d n`'; dh rjg gksrk gSA dqN i;ZVu jkT; 'kklu vkSj xSj ljdkjh :i ls lajf{kr gksrs gSaA mlesa deZpkfj;ksa] etnwjksa vkfn ds vk/kkj ij cuk;s x;sa la?kksa ds ek/;e ls pyrs gSaA ßvUrjkZ"Vªh; i;ZVu ;k fons'kh i;ZVu] blesa yksx ,d ns'k ls nwljs ns'k dk Hkze.k djrs gSa vkSj blh dkj.k fofHkUu eqnzkvksa dk iz;ksx fofue; ds ek/;e ds :i esa djrs gSaA vyx&vyx eqnzkvksa ds gksus ds dkj.k vUrjkZ"Vªh; i;ZVu dk Hkqxrku lUrqyu ij izHkko iM+rk gSAÞ7
75
i;ZVu esa i;ZVdksa ds fy, ;g LFkkuh; nqdkuksa ds ek/;e ls NksVh&eksVh oLrqvksa dks izkIr djus dk ek/;e Hkh O;olkf;d izfr"Bku gksrs gSaA buds egRoiw.kZ ?kVdksa ds vk/kkj ij ;gk¡ nqdkus Hkh lajf{kr dh tkrh gSA tks nqdkus O;kolkf;d :i ls i;ZVdksa dks lqfo/kk,sa iznku djrs gSaA i;ZVd fodkl fuxe dh lgk;rk ls vkS|ksfxd {ks=ksa eas Hkh cgqr ls vUrjk"Vªh; Lrj ij vk;s gq, i;ZVd ml i;ZVu dh vkfFkZd O;oLFkk ij :fp j[krs gSaA ftl izdkj ls Lekfjd lEifÙk;k¡ gks ldrh gSA tSls ckS) Lrwi dh Lekfjdk,¡] fgUnw /keZ dh /kkfeZd izFkk dks ekuus okys O;fDr;ksa ds fy, nsorkvksa dh izfrek,sa] bLyke lEiznk; dks Lohdkj djus okys O;fDr;ksa ds fy, etkj] vkfn Lekfjdk,sa izpfyr gksrh gSA ftlls ogk¡ vkus okys i;ZVu esas i;ZVdksa dks vkfFkZd lqfo/kkvksa gsrq m|ksx] t:jriw.kZ ewfrZ;k¡ bR;kfn lkekxzh Hkh vklkuh ls izkIr gks tkrh gSA tks jk"Vªh; vk; dks c<+kok nsrk gSA ;g i;ZVu yxHkx vkt fo'o O;kikj ds :i esa viuk :i fn[kk;s tk jgk gSA ftlls fu;kZr izR;sd nl o"kZ esa nqxuq k gksrk tk jgk gSA Þcgqr ls ns'kksa us i;ZVu dks fu;kZr m|ksx ds :i esa fodflr djus dk fu'p; fd;k gS ftlls fd jk"Vª vkS|ksfxd midj.k izkIr djus esa lQy gksAa cktkj dh O;kidrk] mRiknuksa dh fofo/krk] oLrqvksa dh vR;f/kd la[;k rFkk bu lHkh ds Åij foÙkh; miyfC/k ds dkj.k i;ZVu ,d ize[q k vkfFkZd fØ;k rFkk fons'kh fofue; vtZu dk egRoiw.kZ L=ksr cu pqdk gSAÞ8 e/;izn's k jkT;ksa esa mu lsokvksa ds ek/;e ls i;ZVu dh lqfo/kk miyC/k djrs gSaA ftlesa izR;{k vkSj vizR;{k :i ls i;ZVu dks ykHk izkIr gksuk pkfg,A ftlls i;ZVdksa dks i;ZVu esa vkus ls oafpr u gksuk iM+sAa tksfd jk"Vªh; Lrj ij i;ZVu ,d viuk LFkku cuk pqdk gSA ftlls izR;sd le; esa i;ZVd ogk¡ euksjatd vkuUn ysus vkrs gSaA i;ZVdksa ds dkj.k ;krk;kl ls Hkh jk"Vªh; vk; dks ykHk izkIr gksrk gSA ogk¡ ds m|ksxksa dks Hkh vk; izkIr gksrh gSA blls ;g lkfcr gksrk gS fd dksbZ Hkh ns'k ;g pkgs fd i;ZVdksa dk vf/kd ls vf/kd vkxeu gks rks mls vkus okys vU; jkT;ksa ;k ns'k ls vkxUrqdkas dk fu"Bk iw.kZ Lokxr djsAa ftllsa muds eu esa fdlh izdkj dh xyr HkzkfUr;k¡ u iSnk gksA blls Hkh jk"Vªh; vk; dks Qk;nk gksrk gSA i;ZVu esa dqN ckrs fo'ks"k :i ls gksuh pkfg,A pksjh ls cpus ds fy, fo'ks"k lqfo/kk gksuh pkfg,A vLirky gksuh pkfg,A ftlls vk;s gq, fdlh i;ZVd dks LoLF; ykHk izkIr gks ldsA lM+d ekxZ lqO;ofLFkr gksus pkfg,A lapkj ds lk/ku] dkjikfdZx] Bgjus dh lqHky O;oLFkk gksuh pkfg,A LoPN ty] Hkkstu] ukLrk ds lkFk&lkFk lqj{kk dh fo'ks"k O;LFkk gksus ls i;ZVd dks vlqfo/kk dk lkeuk ugha djuk iM+rk gSA ftlls i;ZVu dsUnzksa esa vkus ds fy, i;ZVd ges'kk yykf;r jgrs gSaA9
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1-
MkW- ch-ih- flag] i;ZVu fodkl leL;k,¡ ,oa lEHkkouk,¡] vk'kk ifCyf'kax dEiuh] vkxjk] 2013&14] i`"B 31
2-
Swiss Professor Hunziker and Krapf, Quoted by : Negi JMS : Tourism & Hoteliering : A world-wide Industry : Gitanjali Publishing House, New Delhi 1982 Page 22. Dr. Zivaddin Javiace artical on tourism and geography in the International travel and Recreation Journal No. 3 P, 23 Quoted by - Negi JMS, Tourism & Hoteliering, A World Wide Industry, Gitanjali Publishing House, New Delhi 1982, P 23.
3-
4-
MkW- vthr dqekj 'kqDy] mÙkj izns'k esa i;ZVu m|ksx] frokjh ifCyds'kal] fnYyh] 1991] i`"B 24
5-
A. J. Norval, Tourist Industry, Quoted by kaul R.N., Dynamics of Tourism, A Trilogy , Vol. I The Phenomenon, Sterling Publishers Private Limited, New Delhi-1985, Page 2.
6-
MkW- MCY;w- gsathdj& usxh] ts-,e- ,l- }kjk nwfjTe ,.M gksVfy;fjax & , oYM okbM bUMLVªh ls fy;k x;k gS] i`"B 140 MkW- vthr dqekj 'kqDy] mÙkj izns'k esa i;ZVu m|ksx] frokjh ifCyds'kal] fnYyh] 1991] i`"B 24 MkW- vthr dqekj 'kqDy] mÙkj izns'k esa i;ZVu m|ksx] frokjh ifCyds'kal] fnYyh] 1991] i`"B 32&33 jkts'k xks;y] Hkkjrh; i;ZVu m|ksx] oanuk ifCyds'kUl] ubZ fnYyh] 2011] i`"B 23
7-
8-
9-
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CONTRIBUTORS OF THIS ISSUE
डॉ. देर्राज ससरसवाल, सहायक प्राध्यापक (दर्शनर्ाि), राजकीय स्नात्तकोत्तर कन्या महासवद्यालय, सेकटर -११, चांडीगढ़
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