शरु ु ाअत... मममथलेश की कलम से
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... लिखने का शौक मुझे कब िगा , यह कुछ ठीक याद नहीं है , परन्तु मेरे लपताजी मुझे खबू पत्र भेजते थे. वह आमी से ररटायर हैं , और जब वह सेवा में थे , तब मैं अपने भाइयों के साथ घर से दूर पढाई करता था. पहिे हॉस्टि में , लिर रूम िेकर आगे की पढाई के समय में लपताजी का पत्र बड़ा सम्बि था. बड़े िम्बे-िम्बे पत्र और छोटी-छोटी लिखावट में ऐसा प्रतीत होता था लक वह बहु त कुछ हमें बताना चाहते हैं. मुझे लवश्वास है लक िेखन की आदत तभी से िगी होगी और समयानुसार इसमें सुधार आता गया. पढाई के बाद लदल्िी में उत्तम सालहत्यकारों का सालनध्य लमिा , लजसमें गुरुवर डॉ.लवनोद बब्बर का नाम प्रमुख है. यह सभी िेख मेरी वेबसाइट (www.mithilesh2020.com) पर संकलित हैं और समय-समय पर जागरण , नवभारत टाइम्स इत्यालद ऑनिाइन माध्यमों के साथ लवलभन्न छोटी-बड़ी पत्रपलत्रकाओं में भी प्रकालशत होते रहे हैं. िेखनी में रोज नए शब्दों से पररचय होता है और लवलभन्न शब्दों के अथथ लवलभन्न प्रकार से प्रयोग हु ए दीखते हैं. सीखने के क्रम में अपने भाई , अपनी पत्नी को अपने िेख पढ़वा िेता हूँ , और दो चार शुभलचंतक िेसबुक पर उत्साह बढ़ाते रहते हैं. आप सभी का आशीवाथ द मेरे उत्साह को कई गुणा बढ़ा देगा , ऐसा मुझे लवश्वास है. यलद एक भी िेख आप पढ़ें और उसमें कहीं सटीकता िगे तो अपनी प्रलतलक्रया से जरूर अवगत कराएं . आपका अपनामममथलेश.
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मिषय - सूची 1. जन-ाअन्दोलन के मनमहताथथ (Page… 7) 2. राजनीमत (Page… 11) 3. व्यमभचार : सामामजक, राजनीमतक, न्यामयक ाऄथिा व्यमिगत, एक ाऄिलोकन (Page… 15) 4. प्रणब दा… सफल राजनीमत से ाअदशथ चन ु ौमतयों तक (Page… 19) 5. भ्रष्टाचार (Page… 23) 6. छत्रपमत मशिाजी (Page… 26) 7. राहुल गाांधी नए सोच िाले हो गए हैं! (Page… 31) 8. मोदी मन्त्र : योजना या लफ्फाजी (Page… 32) 9. जहरीली राजनीमत (Page… 34) 10.केजरीिाल का मास्टरस्रोक (Page… 36) े क सांघ, िही परु ाना राग (Page… 38) 11.सिालों में राष्ट्रीय स्ियांसि ै ामनकता एिां जनलोकपाल मबल (Page… 40) 12.राजनीमत, सांिध 3 www.zmu.in | www.hindinewsportal.com | Mob: +91- 9990089080, Mail: m@zmu.in
13.ाअमखर बेदाग़ क्यों हैं धोनी? (Page… 42) 14.मजम्मेिार को सामने लाओ (Page… 44) 15.हक़ तो ाईनको भी है (Page… 46) 16.ाईम्मीदिारों को भी देमखये (Page… 48) 17.मोदी को रोकने की बात ही क्यों? (Page… 49) 18.िद्ध ृ ों की दशा: सांस्कारमिहीनता एिां पीमियों का ाऄांतर (Page… 51) 19.ाऄथोपाजथन की भाषा बने महांदी (Page… 54) 20.खेलों पर एकामधकार और भ्रष्टाचार (Page… 56) 21.देश के कानून से ाउपर नहीं है कोाइ (Page… 58) 22.गज ु रात : मिकास एिां सांस्कृमत का सांगम (Page… 60) 23.लोक-सांस्कृमत का सांिाहक है सांयि ु पररिार (Page… 63) 24.धत ृ राष्ट्र और ाईसका दय ु ोधन (Page… 66) 25.मिधानसभा चन ु ाि पररणाम, सभी को सबक(Page… 68) 26.पटाखों का करें मिरोध, सममृ द्ध ाअएगी मनमिथरोध (Page… 71) 27.जम्मू कश्मीर मिलय मदिस का औमचत्य '२६ ाऄक्टूबर' (Page… 73) 28.समरसता का महापिथ 'छठ-पूजा' (Page… 75) 29.देश के लौह-परु ु ष एिां लौह-ममहला की चाररमत्रक समानताएां (Page… 77) 4 www.zmu.in | www.hindinewsportal.com | Mob: +91- 9990089080, Mail: m@zmu.in
30.भारतीय समाज की कमथत 'ाअधुमनकता' एिां कामकाजी ममहलाएां (Page… 79)
31.काला धन, शेषनाग और प्रधान सेिक! (Page… 82) 32.स्िास््य सेिाओ ां का ितथमान स्िरुप एिां स्िच्छता ाऄमभयान (Page… 85) 33.सांत न छोडे सांताइ (Page… 88) 34.ाऄमत का भला न ... (Page… 90) 35.ाऄनाथों का नाथ बनें; सीखें मबगडैल से... (Page… 93) 36. ...क्यों ाअएां यि ु ा ाअपके पास! (Page… 95) 37.पडोसी बदले नहीं जा सकते, ाआसमलए... (Page… 98) 38.सांस्कृमत के तथाकमथत 'ठेकेदार' (Page… 101) 39.पररितथन सांसार का मनयम है (Page… 104) 40.एक नया पैगांबर लााआए, ... जनाब! (Page… 107) 41.बच्चा भााइ के 'मन की बात' (Page… 111) 42.ाऄल्लाह! ाईन बच्चों को 72 कममसन हूरें न देना...! (Page… 113) 43.भारत रत्न ि राजधमथ (Page… 116) 44.महांदुत्ि के पांच प्राण (Page… 119) 45.गोडसे के बहाने! (Page… 125) 46.एक और गणतांत्र-मदिस! (Page… 128) 5 www.zmu.in | www.hindinewsportal.com | Mob: +91- 9990089080, Mail: m@zmu.in
47.मदल्ली की भािी मख् ु यमांत्री 'मकरण बेदी' (Page… 130) 48.चााँद पर जाने की तमन्ना... (Page… 132) 49.दररयाां मबछाने िाले हमारे बच्चा भााइ (Page… 136) 50.बेमटयों की दमु नया: ितथमान सन्दभथ (Page… 138)
51.सांघ, मोदी और केजरीिाल: बदलते दौर का महांदत्ु ि (Page… 141)
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जन-ाअन्दोलन के मनमहताथथ सच्चाई को नमन || राष्ट्र को नमन !! राष्ट्र की जनता को नमन !! अन्ना हजारे को नमन !! अन्ना हजारे की टीम को नमन !! दोस्तों, “कुरुक्षेत्र लिल्म में एक गरीब िड़की का बिात्कार मुख्यमंत्री के बेटे द्रारा करने पर ईमानदार पलु िस आलिसर केस दजथ करके कड़ी कारथ वाई करता है, थोड़े राजनीलतक सपोटथ से केस को बि लमिता है और मुख्यमंत्री समझौते की कोलशश करता दीखता है, माफ़ी मांगता दीखता है और अपने बेटे को भी माफ़ी मांगने को कहता है | खैर, यह तो सामान्य बात हो गयी, मै लजस मुख्य बात लक तरि आपका ध्यान लदिाना चाहता हु , वह इस प्रकार है” जब मुख्यमंत्री का बेटा माफ़ी मांगता है तो उसके शब्द कुछ ऐसे है – “ मै माफ़ी मांगता हु इन्स्पेक्टर, अगिी बार से बिात्कार नहीं करूूँगा| छोड़ न यार, कुछ िे-दे कर ख़तम कर मामिा, नहीं तो पररणाम भुगतने को तैयार रह″ !! जरा गौर करें इस माफ़ी पर, इस माफ़ी के शब्दों पर | ऐसा नहीं है लक अन्ना हजारे से पहिे नेताओं ने कोलशश नहीं लक पर वह इन्ही शब्दों में िंसकर रह जाते हैं और जन-भावनाओ के साथ न्याय नहीं कर पाते| न्याय से मे रा अलभप्राय है जनता के सम्मान की सचमुच रक्षा, हकीकत में अलभव्यलि| नेताओं ने पहिे घोटािे लकये, जनता को नौकर समझा, इनको घुटनों पर आकर माफ़ी मांगनी ही चालहए थी, और वह भी ऐसी माफ़ी की उसके अिावा कोई रास्ता न हो, और जनता ताकतवर की तरि माफ़ करे न की कमजोर की तरह| इसलिए भी यह जीत यादगार बन जाती है, क्योंलक यह जीत हमें जीत की ही तरह लमिी है, लकसी ने दी नहीं है यह जीत हमने िड़कर अपने बि से हालसि की है| कमजोरो की तरह नहीं लमिी हमें यह जीत, इसी बात पर रामधारी लसंह ‘लदनकर’ की एक पंलि याद आती है –
“क्षमा शोभती ाईस भुजांग को मजसके पास गरल(मिष) हो, ाईसको क्या जो दांतहीन, मिषरमहत, मिनीत, सरल हो |” जनता ने इस बार अन्ना हजारे के माध्यम से इस पंलि को चररताथथ करते हु ए जन-प्रलतलनलधयों को चेतावनी दे कर माफ़ी दी है लक जाओ और अपना काम ठीक से करो नहीं तो “. िोकपाि तो लसिथ एक लनलमत्त-मात्र है, और असिी जीत भी नहीं है, असिी जीत तो यह है की जनता ने ताकतवर की तरह जन-प्रलतलनलधयों को माफ़ लकया है और राजनीलत के अिावा लबजनेस, मनोरं जन, 7 www.zmu.in | www.hindinewsportal.com | Mob: +91- 9990089080, Mail: m@zmu.in
आलथथ क इत्यादी सभी क्षेत्रो के प्रलतलनलधयों को चेतावनी दी है लक सुधर जाओ, अन्यथा अपने अंजाम के लजम्मे वार खुद ही होगे तुम| और िोकतंत्र में लनश्चय ही सभी को इस चेतावनी-सन्दे श को गंभीरता से िेना ही होगा | मलहंद्रा एं ड मलहंद्रा के चेयरमैन आनंद मलहंद्रा लक लटपण्णी इस बारे में उल्िेखनीय है”रामिीिा मैदान में जो कुछ हो रहा है, वह बड़े बदिाव का प्रतीक है। िोग अब न केवि राजनेताओं, बलल्क उद्योगपलतयों से भी जवाबदे ही चाहते हैं।‛ जो समझदार है, इस चेतावनी को गंभीरता से िेगा ही, िािू प्रसाद यादव जैसे जन-प्रलतलनलध सब कुछ समझते हु ए भी इसका मखौि ही उड़ायेंग,े क्योंलक जनता ने उनको नकार लदया है शायद उनको आिाकमान से कुछ हालसि हो जाये | कुछ और भी है चचाथ के लिए, जो शायद राजनीलत लक समझ को ब्याख्यालयत करें , आम जनता के लिए ये बहु त ही जरूरी है, कृपया दे खें इसे – कुछ जन-प्रलतलनलध तो कोलशश ही नहीं करते मुद्ङे को समझने को और अपने लहत साधने के अिावा उनके पास कोई दस ू रा मसौदा नहीं पाया जाता है, जैसे कलपि लसब्बि, अलननवेश (मै स्वामी कहना नहीं चाहूँगा ऐसे व्यलि को) | कुछ समझ तो जाते हैं पर उनके अपने स्वाथथ होते है लजसके कारण वो मुद्ङे को भटकाने लक पुरजोर कोलशश करते है | िािू प्रसाद कहते है लक वो गावं से आयें है, सब समझते है, लनलश्चत ही लकसी को शक नहीं है उनकी जन-समझ पर, परन्तु इसका क्या करें लक ‚लबहार में राजनैलतक जमीन उनको लदख नहीं रही है और कांग्रेस का अंध-भि होने के अिावा उनके पास कोई चारा नहीं है‛ | अपने १५-वषथ के शाशन के दौरान उन्होंने लबहार लक जनता को न लसिथ भारत में अलपतु लवश्व में पहचान लदिाई| वह यलद मुखथ होते या हवाई नेता होते तो शायद लदि को संतोष होता, िेलकन वो जे.पी. आन्दोिन से लनकिे हु ए जन-नेता थे और जन शब्द को उन्होंने अपनी जेब (पाकेट) से ज्यादा कुछ नहीं समझा | ऐसे ब्यलि राजनैलतक किंक होते है, और ऐसों को राजनैलतक-अपराधी घोलषत करने का लवधेयक आना चालहए | इसी कड़ी में माननीय अमर लसंह ‘ब्रोकर’ , राजा लदलनवजय लसंह इत्यादी का नाम ससम्मान लिया जा सकता है| तीसरी जमात राजनैलतक-मख ू ों की होती है, जो जनता की शलि में अपनी महत्वाकांक्षा को परू ा होने का माध्यम दे खते हैं| इस कड़ी में मै लजसका नाम िूँग ू ा शायद आप-सब के गुस्से का लशकार भी होना पड़े, पर आज मन मान नहीं रहा है और किम चिती ही जा रही है | जी हाूँ ! बाबा रामदे व जी इस कड़ी में मजबत ू ी से प्रलतलनलधत्व कर रहे हैं, जनता उनके पास अपने दुुःख-ददथ दरू करने आई थी, उसे उम्मीद थी की यह बंदा कुछ करे गा, योग के माध्यम से आस भी जगाई थी रामदे व ने| परन्त,ु हाय रे राजनीलत! तू लिर जीती और रामदे व होटिों में समझौते की बाट जोहते रहे| मै प्रत्येक क्षण टी.वी. पर िाइव उनकी भाव-भंलगमा दे खता 8 www.zmu.in | www.hindinewsportal.com | Mob: +91- 9990089080, Mail: m@zmu.in
रहा ४ जन ू को, िगातार वो इस कोलशश में िगे रहे की कोई ऐसा समझौता हो लजससे की उनका कद बढ़ जाये, जनता का भिा हो या नहीं, ये प्रश्न रामदे व के आन्दोिन में पीछे छूट गया था| अगिा नाम आपको आश्चयथ में डािेगा, जी हाूँ राहु ि गाूँधी जी! आज वो ज़माना पीछे छूट रहा है की लसिथ लवरासत के नाम पर भारतीय जनता आपको आूँखों पर लबठा िे और हमे शा अपना भगवान बनाये रक्खे| राहु ि गाूँधी इस भ्रम में हैं की कुछ लकसानो के घर उन्होंने भोजन कर लिया और वह ताउम्र उनका भि हो गया| बारीकी से दे खें तो आप पाएं गे की शायद वह लकसान भि हो भी जाए, पर उसी लकसान/ गरीब का िड़का पढ़ा लिखा है और वह राहु ि के भावनात्मक जाि में िंसने वािा नहीं है| राहु ि जी आगे बढें हमारी शुभकामना है, पर जनता की क़द्र करना सीखना ही होगा उन्हें और राजनीलत के ऊपर दे श-सेवा को तरजीह दे ना ही होगा, ये आदे श है जनता का, ररक्वेस्ट नहीं है| मैंने सुना है की लप्रयंका चाणक्य की भलू मका में है राहु ि गाूँधी के, पर लप्रयंका इंलदरा गाूँधी नहीं हैं की जन-समहू को अच्छे से समझ सकें, राहु ि को अपनी समझ लवकलसत करनी ही होगी, लदलनवजय लसंह जैसों का मागथ दशथ न क्षलणक िाभ भिे ही लदिाये पर दीघथ कािीन नुकसानदायक ही लसद्च होगा | जनिोकपाि के बारे में चाहे जो भी लनणथ य संसद करे , पर इससे बड़ी जीत जनता को हालसि हो चुकी है| यह बात मै इसलिए कह रहा हूँ लक नेता किाबाजी को अपना हलथयार मानते है और अलधकांशतुः नेता सुलपररयाररटी-काम््िेक्स से ग्रलसत होते हैं और अपने कररयर के अंलतम समय में अपनी सारी इज्ज़त/ प्रलतष्ठा खो दे ते है इसी कारण | अमर लसंह, िािू प्रसाद, ए.राजा, नटवर लसंह, लदलनवजय लसंह और तमाम नाम, शायद आपके आस-पास भी तमाम िोग हो ऐसे या शायद हम भी | सांसद बहु त ईमानदारी से लबि पास शायद ही करें , िेलकन उस लनणथ य के पहिे जो करारी चोट उनकी इगो पर होनी चालहए, वो चोट हु ई है और इससे बेहतर चोट नहीं हो सकती | इसलिए दे श अभी जश्न मनाये, क्योंलक जश्न मनाने का इससे बेहतर मौका एक दे शवासी का शायद ही लमिा हो, कमसे कम हमारी इस पीढ़ी को तो कतई नहीं | दोस्तों, अहंकार की हंसी यलद न ही हंसी जाये तो बेहतर है, क्योंलक दुयोधन पर द्रोपदी लक हंसी अभी भी मे रे कानो में गंज ू रही है| िाख बुराइयों के बावजदू हमारा िोकतंत्र बहत मजबत ू लस्थलत में है | मे रा ये िेख इस आन्दोिन की मि ू भावना को उभारना है, न लक लकसी को चोट पहु ूँचाना, जनता भी इस बात को समझे, इसी में हम सब लक गररमा है, क्योंलक संसद और सांसद भी हम में से ही है, िोगो को राजनीलत से नफ़रत नहीं होनी चालहए,वरन राजनीलत को सुद्च करने के प्रयास होने चालहए, अच्छे जन-प्रलतलनलधओं का ै ालनक अलधकारों को समझाना इसी प्रलक्रया की महत्वपण चुनाव और अपने संवध ू थ कड़ी है, क्योंलक इसके आभाव में तानाशाही लक संभावनाओं को इंकार नहीं लकया जा सकता| िेलकन इन बातों को िेकर जनप्रलतलनलध जनता को ब्िैकमे ि नहीं कर सकते और िोकतंत्र को बचाने की लजम्मे वारी सवाथ लधक जनप्रलतलनलधयों की ही है, क्योंलक वह जन-प्रलतलनलध है ही इसलिए, आम जनता से बुलद्च में आगे है, इसलिए 9 www.zmu.in | www.hindinewsportal.com | Mob: +91- 9990089080, Mail: m@zmu.in
उनकी भावनाओ का ख्याि रखते हु ए िोकतंत्र को यही बचाएूँ | इस सन्दभथ में मै यही कहना चाहूँगा की िोकतंत्र को लसिथ तानाशाही का डर लदखाकर जनता को मुखथ नहीं बनाया जा सकता| योगीराज कृष्ट्ण का उपदे श मुझे याद आ रहा है –
‘यदा यदा ही धमथ स्य निालनभथ वती भारत, अलभत्तुथानम धमथ स्य तदात्मानं सज ृ ाम्यहम’ पररत्राणाय साधुनां, लवनाशाय च दुष्ट्कृताम, धमथ संस्थापनाथाथ य संभवालम युगे-युगे !!’ एक कडवी ब्याख्या यह भी है लक यलद ईश्वर भी आते हैं तो वह िोकतंत्र नहीं होगा, छुपे शब्दों में वह तानाशाही ही होगी| अब इन नेताओं को बहु त ही गंभीरता से सोचना होगा िोकतंत्र के बारे में क्योंलक जब-जब सच्चाई लक हार होगी भगवान तो आयेंगे ही और यलद वह आते है तो िोकतंत्र कहा होगा ? वह तो राजतन्त्र होगा| जनता का क्या है, उसके लिए वह भी ठीक, यह भी थोड़े -बहु त अंतर के साथ ठीक| तानाशाही में सवाथ लधक तकिीि प्रलतलनलधयों को ही होती है, इस बात का लवशेष ख्याि रखें| आम जनता को मैंने यह कहते हु ए सुना है की इससे अच्छा तो इंलदरा गाूँधी की इमरजेंसी ही थी, कुछ सनकी िोग तो यहाूँ तक कहते है की ‘इन भारतीय िटू ेरो से अच्छा तो अंग्रेज ही थे| िोकतंत्र को सुरलक्षत रखने के लिए धमथ लक सुरक्षा करनी ही होगी, सच्चाई लक सुरक्षा करनी ही होगी, न्याय का शासन स्थालपत करना ही होगा, तब ही िोकतंत्र लक रक्षा हो सकती है और वह िोकतंत्र ऐसा होगा लक शायद रामराज्य लक जगह हम उसका उदाहरण दें, और उसकी सवाथ लधक लजम्मे वारी सत्ता-प्रलतष्ठान की है|
-जय लहंद - मममथलेश. (www.mithilesh2020.com)
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राजनीलत अक्सर हम लकसी भी मुद्ङे पर सीधे िायदे की ओर नजरें गड़ाएं रहते है जबलक उसके साथ तमाम और भी बातें होती है, जो कभी-कभी तो मि ू बातों से भी ज्यादा महत्वपण ू थ प्रभाव छोडती है | खैर, अन्य िेखकों की तरह मे रा उत्साह भी बढ़ा और ढूंढने िगा कोई अन्य मुद्ङा, पर अभी िेखन का शुरूआती दौर होने से कोई मुद्ङा जंचा ही नहीं | िेलकन लपछिे सोमवार को सुप्रीम कोटथ के िै सिे का समाचार टी.वी. चैनिों पर परु े लदन छाया रहा और हो भी क्यों नहीं, यह एक ऐसे लववालदत राजनीलतज्ञ के बारे में था लजसे आम जनता और दे श के बुलद्चजीवी तो राष्ट्रीय स्तर पर दे खने की सोचते है पर उसे राजनीलतक रूप से अछूत करने का लपछिे दस वषों से िगातार प्रचार चि रहा है | जी हाूँ! मै नरे न्द्र मोदी की ही बात कर रहा ह,ूँ लजसे अपनी पाटी भाजपा में ही तमाम लबरोधों का सामना करना पड़ता है, कांग्रेस और अन्य दिों की तो बात ही छोलडये| ना, ना मै गुजरात-दंगो की वकाित करने के लबिकुि भी पक्ष में नहीं हूँ और कोई सच्चा/ शांलतलप्रय दे शवासी उस नरसंहार को कैसे भि ू सकता है, लजसने परु े लवश्व का ध्यान इस्िामी-आतंकवाद से हटाकर एकबारगी भारत पर केलन्द्रत कर लिया था| मै उस वि अभी युवावस्था की दहिीज पर था, पर मे री समझ आज भी यह इशारा कर रही है की अगर केंद्र में भाजपा की ही सरकार संयम से काम नहीं िेती तो शायद इस पुरे दे श में एक दूसरा वि ही शुरू हो सकता था जो की लकसी भी अवस्था में लकसी दे शप्रेमी को स्वीकार नहीं होता| माननीय बाजपेयी जी और अन्य दे शवालसयों की ही तरह मुझे भी ‘गुजरात दंगो में राष्ट्रीय-शमथ ‘ ही नजर आती है और आनी चालहए भी| िेलकन हम यहाूँ चचाथ कुछ अन्य लबन्दुओ ं पर करें गे, और आप खुद ही लनणथ य करें गे की दे श को हम लकस लदशा में िे जाना चाहते हैं| भारत के सिि ब्यलियों की हम बात करें तो लनुःसंदेह उद्योगपलतयों का नाम सबसे ऊपर आएगा| रतन टाटा, नारायणमलू तथ और अन्य परू ा उद्योग जगत एक स्वर में नरे न्द्र मोदी की न लसिथ प्रशंशा करता है वरन उन्हें भारत के सवोच्च राजनैलतक पद पर आसीन दे खना चाहता है| रतन टाटा जैसा उद्योगपलत खुिेआम उनको ‘प्रधानमंत्री’ पद के कालबि बता चक ू ा है| दूसरी तरि प्रगलतशीि मुलस्िम-वगथ की बात करे तो वह भी गज ु रात के सांप्रदालयक-सदभाव की खि ु ेआम तारीि करता रहा है, दे वबंद के प्रो. वस्तानावी इसके सबसे बड़े उदाहरण हैं, हािाूँलक बाद में उनको उपकुिपलत के पद से हाथ धोना पड़ा इसी सच्चाई को स्वीकारने के लिए| सामालजक चेहरों की बात करें तो अभी-अभी एक बड़ा चेहरा बनकर उभरे अन्ना हजारे जी को भी तारीि के बाद सहयोलगयों के दबाव में पीछे हटना पड़ा था| दो प्रश्न उठते हैं यहाूँ पर, पहिा क्या उपरोि सारे प्रलतलनलध गुजरात-दंगो को भि ू चुके हैं या यह सभी संवेदनहीन है ? हम सब इसका जवाब जानते है, और वह यह है की न तो ये सारे व्यलित्व संवेदनहीन हैं और न ही गुजरात दंगो को भुिा पाएं है,
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तो लिर ऐसी कौन सी मजबरू ी है की इन्हे नरे न्द्र-मोदी की प्रशंशा करनी ही पद रही है, कोई मुखथ तो है नहीं ये सारे , इसका उत्तर आगे खोजने की कोलशश करें गे इस िेख में| दूसरा प्रश्न यह है की नरे न्द्र मोदी के इतना लवकास करने के बावजदू , अपनी छलव स्वक्ष, प्रशाशन और उद्यम-आकषथ ण के बावजदू उन्हें ही क्यों राजनीलतक लनशाने पर लिया जा रहा है बार-बार, िगातार, बहार से भी और घर के अन्दर से भी, क्या इसके गभथ में लसिथ गुजरात दंगा ही है या बात कुछ आगे है| यलद उपरोि दोनों प्रश्नों के उत्तर हम ढूढ़ िे तो यकीन मालनये, हमारा दे श राजनीलतक रूप से लस्थर तो होगा ही साथ-ही-साथ आलथथ क, सैन्य और तमाम अन्य मोचो पर हम भरी बढ़त हालसि कर पाएं ग|े प्रश्न लसिथ नरे न्द्र मोदी का हो तो कोई भी इसे गंभीरता से नहीं िेगा पर प्रश्न एक-राजनीलतक व्यवस्था का है, प्रश्न भ्रष्टाचार का है, प्रश्न लवकास और सुशाशन का भी है, लजसके लबना असंभव है िोकतंत्र में खुशहािी िा पाना. खुशहािी की बात कौन कहे एक नागररक के तौर पर लकसी भी भारतवासी का भारत में रह पाना असंभव है, न उसके अलधकारों की बात होगी ना उसकी सुरक्षा की. हर बंद राम-भरोसे ही चिने को मजबरू होगा| ज्यादा गंभीर भाषण हो गया ऊपर की पंलियों में, मै कुछ हल्के-िुल्के प्रश्न आपके सामने रखता हूँ, जरा सोलचये भारतवषथ में अभी लकतने ऐसे राजनैलतक-महापुरुष है, जो न लसिथ सोचते है बलल्क उनका लदि बार-बार यकीन लदिाता है की यार! कभी न कभी तो मै बनूँग ू ा ही ‚प्रधानमंत्री‛ “ बताइए-बताइए, ऐसे लकतने िोग होंगे, मै कोलशश करता हूँ सही संख्या पता करने की – राहु ि गाूँधी, आडवानी जी, लचदंबरम साहब, िािू प्रसाद जी, माननीया मायावती बहन, साउथ की अम्मा, मुिायम लसंह जी भी मुिायम बनने की कोलशश में हैं और ऐसे न जाने लकतने नाम है लजनकी न तो कोई छलव स्वक्ष है, न कोई योनयता है, लकसी की पाटी की लसिथ २-४ सीटें है, तो लकसी की अपनी है पाटी में स्वीकायथ ता भी नहीं है, कोई उम्र के आलखरी पड़ाव में है तो कोई जालतवाद के सहारे शीषथ पर पहु चने का ख्वाब संजोये है. मैंने यह सामलयक प्रश्न इसलिए पछ ू ा है की क्या ‘प्रधान-मंत्री’ का पद अभी भी इतना सस्ता है की कोई जन्म से ही प्रधानमंत्री है तो कोई जालत के आरक्षण से प्रधानमंत्री के शीषथ पर लवराजमान होने की चेष्टा कर रहा है. क्या अन्य लवकलसत दे शो जैसे अमे ररका में भी ऐसा ही सोचते है िोग, चीन, जापान, इंनिैंड में सारे राजनीलतज्ञ ऐसे ही लबना लकसी आधार के उम्मीद िगाये बैठे रहते है. हर अपराधी, हर नाकारा लजसे हर जगह से लतरष्ट्कृत लकया गया हो, वह राजनीलत में िीट क्यों होता है, क्या यह राजनीलत की मनमानी है या िोकतंत्र की अपररपक्वता| कोई राजनीलत का मानदंड ही नहीं है, बस मुह उठाये और हो गया हर ब्यलि राजनीलतज्ञ, बन गया मंत्री, बन गया मुख्यमंत्री और बना डािा अिजि को माफ़ करने का कानन ू | क्या राजनीलत का यही मानक है हमारे दे श में आज़ादी के ६४ साि बाद भी| जी हाूँ! महानुभाव, यही सत्य है, लजसने जीवन का कोई भी काम खुद से नहीं लकया हो, पैदा हु आ बाप के पैसे पर, पिा बाप के पैसे पर, आवारा बना बाप के पैसे पर, ना कोई अनुभव, ना कोई संघषथ , वही व्यलि आप के लिए कानन ू बनाता है और वह कानन ू कहता है की अिजि की िांसी की सजा माफ़ कर दी जाये, अन्ना हजारे को
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जेि में डाि लदया जाये, अरलवन्द केजरीवाि, लकरण बेदी को कुचि लदया जाये, नरे न्द्र मोदी को िांसी दे लदया जाये “ लिर गंभीर हो गयी पंलियाूँ, क्या करू नया-नया लिखना शुरू लकया है ना, खैर ऊपर के दोनों प्रश्न आपको याद होंगे, उनमे से पहिा यह था की ऐसी कौन सी मजबरू ी है जो नरे न्द्र मोदी की तरि बुलद्चजीवी समाज का ध्यान खींच रही है| सबसे बड़ा कारन है- अलत मजबत ू राजनीलतक इक्षाशलि (यह ‘अलत’ शब्द नरे न्द्र मोदी को अपनों के लबच भी नुक्सान पहु ंचा रहा है परन्तु इंलदरा गाूँधी के बाद शायद मोदी ऐसी इक्षाशलि वािे इकिौते राजनेता हैं लजसकी दे श को सख्त जरूरत है), इससे दे श लनलश्चत तौर पर राजनैलतक स्थालयत्व की तरि अग्रसर होगा; दूसरा महत्वपण ू थ कारन है लवकाश की उद्यमशीिता जो िगातार रोजगार और यव ु ाओं में लवश्वास पैदा करती जा रही है; तीसरा शशि प्रशाशन भी एक अलत महत्वपण ू थ कारन है जो साम्प्रदालयकता से आगे सोचने को प्रेररत करता है, अल्पसंख्यको में लवश्वास जगाता है, न्याय की उम्मीद जगाता है| इसके अिावा नरे न्द्र मोदी का अपना व्यलित्व, सजगता, अनुभव और राजनीलतक समझ उन्हें अिग ही श्रेणी में खड़ा करती है| ये सारे गुण, लवशेषकर उपरोि तीन मुख्य गुण बुलद्चजीलवयों को लसिथ नरे न्द्र मोदी में ही लदख रहें है. प्रधानमंत्री के लकसी अन्य उम्मीदवार में इन तीनो में से एक के भी दशथ न दुिथभ है, यही एकमात्र कारन है नरे न्द्र मोदी को समथथ न के पीछे| ये सारे बुलद्चजीवी जानते है की दे श में पहिे भी दंगे हु ए, ८४ में लसक्खों पर हु आ जुल्म आज तक कांग्रेस को परे शान कर रहा है, पर इस लसक्ख दंगे का मि ू नेहरु पररवार तो राजनैलतक अछूत नहीं है, लिर मोदी ही क्यों ?? दे श के सभी उद्यमी और बुलद्चजीवी जानते है की राजनीलतक िचरता से दे श का क्या नुकसान होता है, यह कोई पलश्चम बंगाि से पछ ू े | दंगे की बात एक जगह है, पर कहीं भी यह सत्यालपत नहीं हु आ है की नरे न्द्र मोदी ही सालजशकताथ थे, लकसी न्यायािय ने उन्हें दोषी करार नहीं लदया है| मै इससे आगे की बात करता ह,ूँ माना की नरे न्द्र मोदी दोषी है राजनीलतक रूप से, एकबारगी यह मान भी लिया जाये तो लपछिे १० सािो से क्या इस नेता ने प्रत्यक्ष- अप्रत्यक्ष अपनी गिती मानकर प्रायलश्चत नहीं लकया है, यकीन मालनये आज गुजरात में लकसी भी प्रदे श के मुकाबिे सबसे ज्यादा भाईचारा है, सबसे ज्यादा लवकास है| नरे न्द्र मोदी ने कोई जान-बझ ू कर अपराध नहीं लकया है, प्रशाशन में उनसे जरूर गिती हु ई है और भरी गिती हु ई है, पर वह उसका प्रायलश्चत कर चुके है गुजरात के जनजीवन का स्तर ऊपर उठाकर, और सजा भुगत चुके है लपछिे १० बषों से राजनीलतक-अछूत बनकर| क्या अब भी आप रतन टाटा, वस्तान्वी, अन्ना हजारे को गित कहें गे | उन्होंने जाने-अनजाने दे श के भिाई की ही बात कही है और उनका यह मानना भी सत्य है की राष्ट्रीय राजनीलत में नरे न्द्र मोदी जैसा व्यलित्व ही कुछ कर सकता है, भारत को ऐसे ही राजनेता की जरूरत है| दस ू थ है की नरे न्द्र मोदी के िाख कोलशश करने के बावजदू क्यों ू रा प्रश्न इस व्याख्या से भी महत्वपण राजनैलतक-वगथ उन्हें स्वीकार करने को तैयार नहीं है| इसका उत्तर कुछ सकारात्मक है तो कुछ नकारात्मक, सकारात्मक पहिू कहता है की नरे न्द्र मोदी को गुजरात दंगो की कालिख धोने के लिए 13 www.zmu.in | www.hindinewsportal.com | Mob: +91- 9990089080, Mail: m@zmu.in
अभी और प्रयास की जरूरत समझता है, वही कुछ वगथ का यह भी मानना है की नरे न्द्र मोदी की तानाशाह छलव कही घातक न लसद्च हो, कुछ उनके अकडू स्वाभाव को गित मानते हैं, पर ये गिलतयाूँ अथवा सुधर संभव हैं और इसको नरे न्द्र मोदी भी बखबू ी समझते हैं इसीलिए उनके अब के भाषणों और लपछिे वक्त्ब्यों में साफ़ अंतर दे खा जा सकता है| नकारात्मक पहिू कांग्रेस की अल्पसंख्यक-तुलष्टकरण की नीलत रही है, जो इन लदनों कुछ ज्यादा ही मुखर हो उठी है, उत्तर प्रदे श में मुिायम लसंह और लबहार में िािू प्रसाद के कमजोर होने से मुलस्िम वोट-बैंक असमंजस में है और कांग्रेस येन-केन-प्रकारे ण इस वोट बैंक को अपना बनने की कोलशश कर रही है लबना लकसी ररस्क के| वह चाहे कांग्रेस के लदलनवजय लसंह का ‘िादे न-जी और ठग-रामदे व’ का बयान हो, बटािा हाउस की छीछािेदर हो, अिजि की िांसी को िटकाना हो, या अभी कांग्रेस के समथथ न से कश्मीर-लवधानसभा से अिजि की माफ़ी का प्रस्ताव हो, हर जगह इसकी बू आराम से महसस ू की जा सकती है, आलखर कांग्रेस ऐसा क्यों ना करे , अब धीरे -धीरे मतदाता समझदार हो रहे है, लसिथ मुलस्िम समुदाय ही ऐसा है जो कम-लशलक्षत अथवा अलशलक्षत माना जाता है, इनके बि पर राहु ि को २०१४ में प्रधानमंत्री का पद सौपना आसान जो होगा| नरे न्द्र मोदी के नकारात्मक लवरोध की एक और बड़ी वजह आर.एस.एस. से सम्बद्च होना भी है, कांग्रेस स्वीकार करे ना करे परन्तु राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ एक बड़ी राजनीलतक और सामालजक ताकत बनकर उभरा है, और जनमानस पर इसका सामालजक प्रभाव कािी पहिे से माना जाता रहा है, पर इन लदनों इसने राजनीलत में भी कांग्रेस की जड़े लहिाने तक चुनौती दी है| अब आप सभी लनष्ट्कषथ खुद लनकािे और राजनीलतक रूप से जागरूक हो और अपने आसपास का वातावरण जागरूक करें , क्योंलक हमारे दे श का राजनीलतक पररपक्व होना लनहायत जरूरी है, इसके लबना लकसी आन्दोिन का ठोश पररणाम नहीं आ सकता, चाहे जे.पी. का आन्दोिन रहा हो, या वी.पी. लसंह का अथवा वतथ मान नायक अन्ना हजारे का आन्दोिन हो| दे श को अब एक शशि राजनीलतज्ञ चालहए जो संपण ू थ दे श को आगे िेकर चि सके, दे श उसके लिए लमटने को भी तैयार है और दे श उसके लिए संघषथ करने को भी तैयार है, चाहे वह राजनीलतज्ञ नरे न्द्र मोदी हो अथवा कोई और| यलद कोई अन्य लवकल्प नहीं हैं तो नरे न्द्र मोदी को जवाबदे ह बनाकर भाजपा को आगे िाना चालहए और कांग्रेस को भी अपनी दो मुख्य नीलतयों में सुधार की गन्ु जाईस खोजनी चालहए, तालक दे श लवकास के पथ पर अग्रसर हो ना की अलस्थर राजनीलत की ओर | इन्ही बातों के साथ आपसे लबदा िेता ह|ूँ
जय महांद !! - मममथलेश. (www.mithilesh2020.com)
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व्यमभचार : सामामजक, राजनीमतक, न्यामयक ाऄथिा व्यमिगत, एक ाऄिलोकन हम सभी को क्रोध आता है इस तरह की घटनाओं को सुनकर, दे खकर;; क्योंलक इस तरह की घटनाओं में दुसरे शालमि होते है | सभी को हंसी आती है, आनंद आता है, कौतहू ि जगता है ऐसे समय;; जब उन्हें परू ा समाज ही इस तरह के व्यलभचार की तरि बढ़ता दीखता है, कुछ अिग नहीं दीखता है जब उन्हें, आम सी बात िगती है उन्हें | रोना आता है हम सबको अपने आप पर क्योंलक यह तो सवथ त्र व्याप्त हो रहा है, संस्थाओं और समाज की बात कौन करे , बलल्क यह व्यलभचार/ जंगिीपन सोच तो हमारे स्वयं के अन्दर बहत गहरे से मौजदू है | आज यलद दे श के गहृ मंत्री कह रहे है लक जो आज एक लनदोष िड़की के साथ हु आ वह हमारे घर में भी हो सकता है तो यह लनलश्चत रूप से अपरालधयों का डर नहीं बलल्क समाज के व्यलियों में िगातार उत्पन्न हो रही जंगिी-सोच का भय है, क्योंलक यह सोच तो उच्च से िेकर लनम्न वगथ तक व्याप्त है, सवथ व्यापी, िाईिाज | …. अब यलद दे श का गहृ मंत्री समाज की गन्दी होती सोच से भय खा रहा है तो साधारण जनमानस की कौन कहे .. ?? इनके अलतररि एक चौथी अवस्था मुझे और ज्ञात होती है, जो मुझे लसरे से क्रोलधत करती है, हंसी की अवस्था भी उत्पन्न करती है, साथ में रोने का अंलतम लवकल्प भी दे ती है“ और वह है हमारे समाज के नामचीन महानुभावों, संस्थाओं आलद की बौलद्चक लववशता | समाज न कानन ू से चिता है, न जनता मात्र से और न ही धनाढ्यों की मनमजी से न लकसी और संशाधन मात्र से, बलल्क यह सब तो मात्र सहयोगी तत्व है समाज के पररचािन के ;; वही ूँ समाज तो हमे शा दूरदलशथ यों द्रारा बताई गयी लदशा में मुड़ने को लववश हो जाता है | चाहे कोई भी युग हो, कोई भी महारथी हु आ हो“ हमे शा उसने अपने अतीत पर गौरव लकया है (आज भी अनेक संस्थाएं इसी अतीत के नाम पर चि पा रही हैं) | प्राचीन काि के अपने पवू थ जों में मयाथ दा परु ु षोत्तम राम की बात करें , यलु धलष्ठर इत्यालद भाइयों के समाज लनमाथ ण योगदान की, अथवा वतथ मान ईलतहास के स्वामी लववेकानंद की बात करें अथवा महलषथ दयानंद की, सभी ने अतीत का सहारा िेकर वतथ मान को सुधारने में महती भलू मका लनभायी है | स्वामी दयानंद ने तो नारा भी लदया है- ‚वेदों की ओर िौटो‛ | िब्बो-िुआब यह लक क्या आज हमें लिर से अपने अतीत में दे खने की जरूरत नहीं है ? आज जब समाज में हर तरि अपराध, अन्याय, भागमभाग, व्यलभचार बढ़ रहा है, तो क्या हमें सच में लसिथ तात्कालिक शोर मचाकर तुष्ट हो जाना चालहए ? क्या हम लसिथ कुछ बेिगाम, कु-सांस्काररक िोगों को िांसी पर चढ़ाकर 15 www.zmu.in | www.hindinewsportal.com | Mob: +91- 9990089080, Mail: m@zmu.in
संतुष्ट हो िेंग,े अथवा इसके पीछे छुपे वास्तलवक कारणों को समझना चाहें गे भी | राष्ट्रवादी लवचारकों, आधुलनक लवचारकों, युवाओं सलहत कई िोगों ने इस घटना के पीछे के अनेक कारण लगनाये है, कुछ ने कहा है लक यह लिल्मों, टी.वी. कायथ क्रमों में बढती अश्लीिता का पररणाम है तो कुछ का लवचार है लक कानन ू सख्त होने चालहए, कानन ू का भय होना चालहए, कुछ ने िांसी की सजा की मांग की | कुछ िोगों को तो मैंने यह भी चचाथ करते सुना लक िडलकयां इस तरह के हािातों के लिए स्वयं लजम्मे वार है, कुछ ने ितवा जारी करके ऐसी समस्याओं से लनबटने की कोलशश करी, आलद, आलद | पर दे शवालसयों, यकीन कीलजये और सोलचये क्या िांसी की सजा दे ने से ऐसे अपराध रुक जायेंगे ? क्या लिल्मों पर प्रलतबन्ध इसका समाधान है, क्या िड़लकयों को ितवों के जररये हमे शा बुरका पहनाने से इस समस्या पर रोक संभव है ? यह तो ठीक उसी प्रकार है, जैसे गहरे प्रेम में लकसी व्यलि का लदि टूट गया हो और हम उसे जोड़ने के लिए उसपर ‘्िास्टर’ िगायें अथवा उसके छाती पर गरम तेि, लकसी एिोपैथ दवा जैसे मवू / झंडू बाम िगायें | यह मात्र हास्य का लवषय हो सकता है, रोग का ईिाज कदालप नहीं हो सकता है | वतथ मान लस्थलत भी कुछ ऐसी ही है | साफ्टवेयर पेशे से जड़ ु े होने के कारण एक दो चीजों का उल्िेख करना चाहूँगा यहाूँ, हमारे पेशे में साफ्टवेयर टेलस्टंग नाम का एक लडपाटथ मेंट कायथ करता है, लजसका मुख्य कायथ लकसी बनाये गए प्रोग्राम में गिलतयों की जाूँच करना होता है | जरा बारीकी से ध्यान दीलजयेगा यहाूँ, वह लसिथ गिलतयों को ठीक से पकड़ता है, सही नहीं करता है, सही करने के लिए तो अन्य दुसरे लवभाग कायथ करते हैं | ,इसी प्रकार यलद दे श में भी कोई दंगा हु आ, कोई घोटािा हु आ, कोई अन्य समस्या आयी तो हमारी माननीय सरकार भी इस तरह के लवभागों से जाूँच कराती है, कारणों पर और उनसे लनवारण के उपायों पर भी | कभी लकसी पवू थ न्यायाधीश से तो कभी सांसदों के समहू से, और दोस्तों कभी कभी तो जाूँच इतनी छोटी- छोटी बातों पर बैठाई जाती है लजससे यह भान ही नहीं हो पाता है लक सरकार का वास्तलवक काम क्या है ? उदाहरण स्वरुप सरकार को पता होता है लक लकसी मंत्री ने लदि खोि कर घोटािा लकया है, लिर भी वह उस पर सी.बी.आई. जाूँच बैठाती है, लकसी लवशेष न्यायाधीश से कारणों की जाूँच कराती है और वह लवशेष आयोग अथवा एजेंसी एक भारी भरकम ररपोटथ सरकार को दे ती है | इस उद्चरण के पीछे मे रा स्पष्ट मंतव्य है लक जब छोटी- छोटी घटनाओं पर हमारी केंद्र सरकार अनेक तरह की जाूँच बैठा दे ती है, तो इस तरह के व्यापक सामालजक अपराधों पर उसने लकसी लवशेष न्यायाधीश से जाूँच करने की जरूरत क्यों नहीं समझी ? क्या यह वास्तव में एक छोटा- मोटा अपराध मात्र है ? क्या िोगों का प्रदशथ न गस्ु से में उठा ज्वार भर है अथवा इसका कोई सामालजक पररप्रेक्ष्य भी है ? यलद हाूँ, तो सरकार को इस तरह के सामालजक बदिावों पर एक व्यापक जांच करानी चालहए, इसके कारणों पर और लनवारणों पर भी | पर हमारे माननीय गहृ मंत्री तो संसद का लवशेष सत्र बुिाने भर की जरूरत भी नहीं समझते है | दोगिापन दे लखये हमारा, एक तरि तो हमारे गहृ मंत्री को अपनी बेलटयों की लचंता सताती है लक उनके साथ भी कुछ ऐसा न हो जाये, वही ूँ दूसरी तरि वही गहृ मंत्री इस परू ी घटना को लसिथ कानन ू सख्त कर दे ने भर से हि करने का भ्रम पािते है | 16 www.zmu.in | www.hindinewsportal.com | Mob: +91- 9990089080, Mail: m@zmu.in
क्या वाकई यह समस्या इतनी छोटी है, लजसे हम जैसे नीम हकीम भी अपने नुस्खों से ठीक करने का दम भरने िगे हैं ? इस लवकराि सामालजक समस्या पर समाज, कानन ू , बुलद्चजीवी समाज का दोगिापन तो दे लखये, सब इसको ठीक करने का इतना सरि नुस्खा दे रहे है, जैसे इधर नुस्खा िगाया और उधर समस्या समाप्त | कुछ जाने माने बुलद्चजीलवयों को तो इस समस्या के जोर पकड़ने पर ऐतराज भी होने िगा है, एक दे श के जाने माने न्यायलवद और प्रेस से सम्बंलधत लवद्रान ने इस समस्या को लमलडया में इतनी कवरे ज लमिने पर उकताहट प्रकट की है, उन्होंने बाकायदा अपने ब्िॉग पर इस समस्या को ज्यादा कवरे ज लमिने पर दबे स्वरों में लनंदा की है | क्या करें वह भी, कुछ नया नहीं है न इसमें, रोज- रोज वही प्रदशथ न, माध्यम वगथ का ददथ “ अब बोररयत तो होगी ही न | एक अन्य नामी दबंग मंत्री ने भी इस सारी कवायद को मात्र पलब्िलसटी- स्टंट बताया है | और भी है कई िोग, जो इस तरह की भावना रखते है | कहने को हम लवश्व के सबसे बड़े िोकतंत्र में लनवास करते हैं दोस्तों, और िोकतंत्र का तो प्रथम गुण ही यही होता है लक हम लकसी भी समस्या पर व्यापक वाद- लववाद करके उसका हि लनकािें | पर यहाूँ लकसी समस्या पर आप दो लदन से ज्यादा चचाथ नहीं कर सकते, पुराना पड़ जाता है न | यहाूँ के िोगों को, बुलद्चजीलवयों को िुसथ त नहीं है लकसी समस्या पर चचाथ करने हे त,ु उसका समाधान ढूंढने हे तु | मामिा बासी हो जाता है यार, कौन सुने वही रोज की टरथ - टरथ | हम अपने रोग का ईिाज करने को कौन कहे, अपने को रोगी मानने को ही तैयार नहीं है | पर रोग तो है, और रोग इतना व्यापक और संक्रामक है लक रोज नए नए मरीजों की पहचान हो रही है | पर यह रोग अभी िा-ईिाज नहीं बना है दोस्तों और ऐसा भी नहीं है लक हम भारतवासी भाई बहन लमिकर इसका मुकाबिा ही नहीं कर सकें | पर इसके लिए इक्का- दुक्का मरीजों पर ध्यान िगाने की बजाय इसका टीकाकरण अलभयान चिाना होगा, वह भी िगातार | लजस प्रकार से पोलियो नामक भयानक बीमारी से हम भारतवासी भाई बहन लमिकर िड़ पाए हैं, ठीक उसी प्रकार से हम समाज में व्याप्त कुसंस्कारों से भी अवश्य ही िड़ें गे | पर इसके लिए सबसे पहिे हम सरकार से इस घटना की व्यापकता की तरि ध्यान लदिाकर इसके लिए एक उच्च- स्तरीय न्यालयक आयोग और जे.पी.सी. के गठन की सामानांतर मांग करते है, लजससे हमें समाज में हो रहे इन नकारात्मक पररवतथ नों पर एक आलधकाररक दृलष्टकोण लमि सके | कृपया सरकार इस मामिे में जो भी तात्कालिक लनणथ य िेना हो, अवश्य िे परन्तु दीघथ कालिक रूप से इसकी व्यापकता पर दो उच्च स्तरीय सलमलतयां जरूर बनाये लजसमे न्यालयक आयोग न्याय की दृलष्ट से सामलजक बदिावों का अध्ययन करे और जे.पी.सी. सामालजक और राजनीलतक रूप से | इस मामिे में िोक सभा प्रलतपक्ष सुषमा स्वराज द्रारा संसद का लवशेष सत्र बुिाने की मांग का मै पुनुः समथथ न करना चाहूँगा, लजसे मीलडया ने शायद गौर ही नहीं लकया | सुषमा जी का ध्यान मै उनकी पाटी द्रारा स्मलृ त ईरानी और संजय लनरुपम मामिे में त्वररत प्रलतलक्रया की तरि भी लदिाना चाहूँगा | लजस तरह से बी.जे.पी. ने तुरंत आनन िानन में अपनी नेता के आत्म सम्मान के लिए एक्शन लिया ठीक उसी प्रकार से वह लदल्िी रे प मामिे सलहत दे श के इसी तरह के तमाम अन्य मामिों में भी तुरंत सरकार पर 17 www.zmu.in | www.hindinewsportal.com | Mob: +91- 9990089080, Mail: m@zmu.in
व्यापक दबाव बनाये और उसे दो सामानांतर आयोगों के गठन के लिए मजबरू करे , क्योंलक वह लसिथ स्मलृ त ईरानी भर के लिए लवपक्ष नहीं है बलल्क वह सम्पण ू थ भारतवषथ की तरि से संसद में लवपक्ष की भलू मका में है | प्रमुख लवपक्षी दि इस बात का ध्यान रखे लक यलद इस मुद्ङे पर वह सरकार को उच्च-स्तरीय लनष्ट्पक्ष जाूँच कराने और उसकी संस्तुलतयों पर कारथ वाई करने के लिए राजी कर िेती है तो अयोध्या के राम उसे राम मंलदर न बना पाने के लिए अवश्य ही क्षमादान दे दें गे | वही ूँ कांग्रेस शालसत य.ू पी.ए. भी यह अच्छे से समझ िे लक लसिथ कानन ू बना िेने भर से और डं डे के जोर से वह समाज को सुसाशन नहीं दे पायेगी, क्योंलक यलद ऐसा होता तो रामदे व सलहत अन्ना हजारे का जनिोकपाि के लिए इतना लवकराि आन्दोिन न खड़ा होता, वह इस बात को भी भिी- भांलत समझ िे लक लदल्िी में जो गुस्सा जनता का लदख रहा है, उसमे लपछिी कई घटनाओं का लमश्रण है और जनता में यह कत्तई सन्दे श न जाये लक यह सरकार तो बस मजबरू ी का नाम है, सरकार इस से जैसे तैसे गिा भी न छुडाये क्योंलक लकस से लकससे गिा छुड़ाएगी वह, कभी कािा धन, कभी जनिोकपाि तो कभी बिात्कार के लिए न्याय आन्दोिन | वस्तुतुः िोग अब यह सोच रहे हैं लक सरकार तो कुछ गंभीरता से करना ही नहीं चाहती | तो अब अवसर है सरकार के पास जनता के लिए वास्तव में कुछ करने का | त्वररत कारथ वाई तुरंत जो होनी है वह तो हो ही और सामानांतर न्यालयक जाूँच के साथ- साथ जे.पी.सी. की राजनीलतक और सामालजक पड़ताि और उनकी संस्तुलतयों पर कारथ वाई | यकीन करे लशंदे साहब, यह जनता के साथ साथ सोलनया मैडम के प्रलत सबसे बड़ी विादारी होगी क्योंलक मनरे गा, आर.टी.आई. तो अब पुराने पड़ चुके है, अगिे चुनाव में राहु ि बाबा िोगों को यह वादा तो कर पाएं गे लक हमने लियों को भयमुि समाज दे ने के लिए कुछ लकया | एक दो और राजनीलतक िाभ आपको बता दे लशंदे साहब, इसमें कोई भी पाटी, कोई भी जालत आरक्षण की मांग नहीं करे गी और सच्चर इत्यालद कमे लटयों की तरह इनकी लसिाररशों को िाग ू करना मुलश्कि और राजनीलतक नुकसानदायक कदालप नहीं होगा | अब भिा कोई पोलियो- उन्मि ू न का लवरोध करे गा क्या ? “ तो लशंदे साहब, अपनी बेलटयों को लनभथ य कीलजये और कृपया िग जाइये इस वास्तलवक कायथ में, भगवान, अल्िाह, ईसु आपकी मदद करे ।।
- मममथलेश. (www.mithilesh2020.com)
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प्रणब दा… सफल राजनीमत से ाअदशथ चन ु ौमतयों तक जब अलधकालधक िोग राजनीलत के बारे में यह कहते नहीं थकते है लक ‚राजनीलत में लवश्वास की जगह नहीं होती‛, उन सलक्रय िोगों को भावी महामहीम प्रणब मुखजी के धैयथ और लवश्वास से सीख िेनी चालहए. सीख िेने की जरूरत न लसिथ कांग्रेस के िोगो को है, बलल्क इस घटनाक्रम से भाजपा के अलत सलक्रय राजनेता एवं संभालवत प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार नरे न्द्र मोदी को भी जरूरत है, क्योंलक धैयथ और लवश्वास न रखने का ही नतीजा है लक वह अपने मात-ृ संगठन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की चरम नाराजगी और अपनी पाटी भाजपा में भी नाराजगी के आलखरी मुहाने पर खड़े है. लनलश्चत रूप से धैयथ ममता बनजी को भी रखने की जरूरत है, लजन्होंने अपनी व्यलिगत राजनीलत की जल्दबाजी में अिग- थिग होने में कोई कसर नहीं छोड़ी है और साथ ही साथ मुिायम लसंह यादव की अंगड़ाई को भी धैयथ रखने की जरूरत थी, लजसमे उन्होंने तुरुप का पत्ता बनने की कोलशश में शायद अपनी लवश्वसनीयता को ही दाव पर िगा लदया. राजनीलत की हर एक व्याख्या इलतहास से शुरू होती है. इससे पहिे लक हम प्रणब मुखजी की राजनीलत की सुिझी चािों की बात करें , हमें यह जान िेना होगा लक प्रणब आलखर राजनीलत में इतने अहम् क्यों है, लवशेष रूप से कांग्रेस जैसी पाटी में लजसमे हमे शा से एक ही पररवार का राजनैलतक वचथ स्व रहा है, उसके लिए प्रणब मुखजी अपररहायथ कैसे हो गए ? एक सवोत्कृष्ट राजनेता, अक्िमंद प्रशाशक, चिता लिरता शब्दकोष, इलतहासकार- िेखक एवं लपछिे ८ वषों से कांग्रेस पाटी की डूबती नाव के खेवनहार इत्यालद उपनामों से नवाजे गए श्री मुखजी का जन्म १९३५ को बीरभम ू लजिे के लमराती नमक गावं में हु आ था. लपता कामदा लकंकर मुखजी कांग्रेस के सलक्रय सदस्य एवं ख्यात स्वतंत्रता सेनानी थे. उनके लपता पलश्चम बंगाि लवधान पररषद् के करीब १४ साि तक सदस्य भी रहे . उनके पदलचन्हों पर चिते हु ए प्रणब मुखजी ने अपना राजनैलतक जीवन १९६९ से राज्य सभा सदस्य के रूप में आरम्भ लकया. १९७३ में उद्योग मंत्रािय में राज्य मंत्री के तौर पर कायथ लकया. उनका मंत्री के रूप में उल्िेखनीय कायथ काि १९८२ से १९८४ के बीच रहा लजसमे यरु ोमनी पलत्रका ने उन्हें लवश्व के सवथ श्रेष्ठ लवत्त मंत्री के रूप में मल्ू यांकन लकया. इसके बाद श्री मुखजी ने कांग्रेसी सरकार में अनेक लवभागों में मंत्री के रूप में कायथ लकया. राजनीलत में कांग्रेस पाटी में श्री मुखजी की िोकलप्रय नेता की छलव सदा से बनी रही है. स पाटी की आतंररक राजनीलत की बात करें तो, श्री मुखजी के हालशये पर जाने की कहानी भी िगातार चचाथ में बनी रही. इंलदरा गाूँधी के शाशनकाि के दौरान नंबर दो की पोजीशन हालसि करने वािे श्री मुखजी का राजनीलतक वनवास श्रीमती इंलदरा गाूँधी की आकलस्मक मत्ृ यु के बाद शुरू हु आ. अपनी सवथ लवलदत छलव के अनरू ु प कांग्रेस पाटी पररवार-पज ू क नेता श्री राजीव गाूँधी को प्रधानमंत्री पद की गद्ङी सौपना चाहते थे और बाद में हु आ भी वही. श्री मुखजी वही पर मात खा बैठे और अपनी योनयता और बुलद्चमता को उन्होंने राजनीलत समझ लिया. कहा जाता है लक श्री मुखजी के उस समय के रवैये को नेहरुगाूँधी पररवार आज तक नहीं भुिा पाया और श्री मुखजी िगातार अपनी अवहे िना झेिते भी रहे . श्री 19 www.zmu.in | www.hindinewsportal.com | Mob: +91- 9990089080, Mail: m@zmu.in
मुखजी के योनय होने के बावजदू पहिे राजीव गाूँधी प्रधानमंत्री बने लिर उसके बाद पी.वी.नरलसम्हा राव और हद तो तब हो गयी जब गाूँधी पररवार के वतथ मान नेतत्ृ व ने श्री मुखजी के कलनष्ठ रहे डॉ. मनमोहन लसंह को प्रधानमंत्री की कुसी पर बैठा लदया और श्री मुखजी के मन में हर घाव गहरा होता गया. पर उन्होंने धैयथ और लवश्वास का दामन िम्बे समय तक नहीं छोड़ा. यहाूँ तक लक कई छोटे बड़े मंत्री डॉ. मुखजी को आूँख भी लदखाते रहे, कई अहम् िै सिों में उनकी सिाह को ताक पर रखा गया पर उन्होंने लवश्वास का दामन और अपनी योनयता को लनखारना जारी रखा, उन्हें अपनी अंलतम जंग जो जीतनी थी. वतथ मान राजनीलत की बारीक़ समझ रखने वािे इस बात पर एक मत है लक कांग्रेस पाटी पहिे प्रणब मुखजी के नाम पर भी लसरे से असहमत थी. सोलनया गाूँधी प्रणब के नाम पर िगातार नाक- भौं लसकोड़ती रही है. अब से नहीं बलल्क जबसे मनमोहन लसंह प्रधानमंत्री बने है तब से, या शायद उससे पहिे से ही, क्योंलक पहिे कांग्रेस पाटी के नाम पर सोलनया गाूँधी ऐसा राष्ट्रपलत चाहती थी जो २०१४ में कांग्रेस की भावी सम्भावना राहु ि गाूँधी को जरूरत पड़ने पर उबार सके, अपनी गररमा के लवपरीत जाकर भी, इसीलिए कुछ कमजोर नाम भी िगातार चचाथ में बने रहे . यलद कांग्रेस पाटी की मंशा साफ़ होती तो प्रणब मुखजी के नाम की सावथ जालनक घोषणा कभी की हो चुकी होती और राष्ट्रपलत चुनाव की इतनी छीछािेदर तो नहीं ही होती. भिा हो ममता बनजी का जो उन्होंने कांग्रेस को तो कम से कम इस बात के लिए मजबरू लकया लक वह अपने प्रत्यालशयों के नाम तो बताये. इसी कड़ी में प्रणब का नाम कांग्रेस की तरि से दावेदार के रूप में उभरा, पर उनके साथ और भी एक नाम उभरा लजससे यह साफ़ जालहर हो गया लक कांग्रेस पाटी अभी भी प्रणब का लवकल्प खोज रही थी. सीधी बात कहें तो प्रणब मुखजी भी अपनी दावेदारी को िेकर बाहरी दिों की तरि से ज्यादा आश्वस्त थे, परन्तु कांग्रेस की तरि से लबिकुि भी नहीं. यहाूँ तक लक उनके संबंधो की बदौित भाजपा के कई नेता जैसे मे नका गाूँधी, यशवंत लसन्हा इत्यालद सावथ जलनक रूप से उन्हें अपनी पसंद बता चुके थे, परन्तु प्रणब मुखजी अपनी धरू -लवरोधी सोलनया गाूँधी को कैसे भि ू जाते, लजसने श्री मुखजी की राजनीलतक संभावनाओं पर गहरा आघात लकया था. अब िे- दे कर श्री मुखजी को राजनीलत के आलखरी पड़ाव पर राष्ट्रपलत पद की एक ही उम्मीद बची थी, और उसे वह लकसी भी हाि में हालसि करने की मन ही मन ठान चुके थे. इसी क्रम में श्री मुखजी ने अपने संबंधो का जाि लबछाया और राष्ट्रपलत चुनाव के समय से कािी पहिे इसकी चचाथ अिग-अिग सुरों से शुरू करा दी. इसमें श्री मुखजी खुद भी सधे शब्दों में राय व्यि करने से नहीं चुके और अपने को मीलडया, अन्य राजनैलतक लमत्रों के माध्यम से चचाथ में बनाये रक्खा. श्री मुखजी सोलनया गाूँधी की लपछिी चािो से बेहद सावधान थे, लजसमे लपछिे राष्ट्रपलत चुनाव में श्रीमती गाूँधी अपनी मजी का प्रत्याशी उठाकर कांग्रेलसयों के सामने रख लदया और क्या मजाि लक कोई कांग्रेसी चूँ ू भी करता लक राष्ट्रपलत पद के उम्मीदवार के लिए वतथ मान राष्ट्रपलत महोदया श्रीमती प्रलतभा पालटि से भी योनय उम्मीदवार हैं. श्रीमती सोलनया गाूँधी इस बार भी वही दाव चिने की कोलशश में थी और शायद वह कोई छुपा हु आ उम्मीदवार िाती भी जो की महामहीम की कुसी की शोभा बढाता परन्तु सोलनया गाूँधी की राजनीलतक महत्वाकांक्षाओं को येन-केन-प्रकारे ण परू ा ही करता, भिे उसकी गररमा सुरलक्षत रहती अथवा नहीं. प्रणब दा इस तथ्य से भिी- भांलत पररलचत थे लक यलद सोलनया ने लकसी गदहे को राष्ट्रपलत पद के 20 www.zmu.in | www.hindinewsportal.com | Mob: +91- 9990089080, Mail: m@zmu.in
उम्मीदवार के लिए प्रस्तालवत कर लदया तो कांग्रेस की समस्त राजनीलत लसिथ उसकी हाूँ में हाूँ ही लमिाती नजर आती, लिर उसके बाद प्रणब दा िाख सर पटकते, कुछ नहीं होता, बलल्क उनको बागी कह कर नटवर लसंह, जगन मोहन, हरीश रावत सी कारथ वाई का सामना करना पड़ता, और गाना पड़ता ‚अब पछताए होत क्या जब लचलड़या चुग गयी खेत‛ | पर बंगािी बाबु इस बार बेहद सावधान थे, अपनी छलव िगातार खेवनहार की बनाये रखते हु ए, उन्होंने सोलनया की लकसी चाि को कोई मौका ही नहीं लदया. जब तक सोलनया कुछ समझती तब तक तो गेद को बंगािी बाबु ईडन-गाडे न की सीमा रे खा के बाहर भेज चुके थे और इस खेि में मुिायम ने दादा का भरपरू साथ लदया. आश्चयथ न करें आप िोग, है तो यह अनुमान ही परन्तु मुिायम जैसा राजनैलतक पहिवान ममता जैसी लबगडैि नेता के साथ प्रेस- कांफ्रेंस करता है और तीन में से दो बेवकूिी भरे नाम का प्रस्ताव करता है. मुिायम जैसे राजनीलतज्ञ को क्या यह आम आदमी को भी पता है लक मनमोहन को राष्ट्रपलत बनाने का मतिब उनका प्रधानमंत्री के रूप में नाकाम होना है और कांग्रेस इसे सरे आम स्वीकार करे गी, वह भी ममता- मुिायम के कहने पर यह तो असंभव बात थी. सोमनाथ चटजी एक मत ृ प्राय राजनीलतज्ञ है और उनका नाम लसिथ बंगािी प्रतीक के रूप में घसीटा गया. िे दे कर बचे डॉ. किाम. मुिायम यह भिीभांलत जानते थे लक किाम की उम्मीदवारी बेहद मजबत ू होगी और कांग्रेस उसके मुकाबिे में अपने सबसे मजबत ू प्रत्याशी को ही मैदान में उतारे गी, और प्रणब मुखजी जैसा मजबत ू और स्वीकायथ नेता भिा कौन होता. बस तस्वीर पानी की तरि साफ़ हो गयी और जैसे ही कांग्रेस ने दबाव में आकर प्रणब मुखजी को प्रत्याशी बनाया, राजनीलत के मालहर मुिायम ने तगड़ा दाव खेिते हु ए और लबना दे री लकये उनके लबना शतथ समथथ न की घोषणा कर दी. इससे पहिे प्रत्याशी घोलषत करने का जबरदस्त दबाव सपा ने अपने नेताओं के माध्यम से कांग्रेस पर बनाया लक ‚कांग्रेस अपने प्रत्याशी को िेकर खुद ही भ्रम में है, और उसे प्रणब के नाम की जल्द से जल्द घोषणा करनी चालहए‛. यही नहीं बलल्क सपा ने जबरदस्त शंशय बनाते हु ए कांग्रेस को यह साफ़ कर लदया लक वह आसानी से उसके लकसी भी उम्मीदवार का समथथ न नहीं करे गी. परन्तु प्रणब के नाम की सावथ जालनक घोषणा होते ही सपा ने बहत ही आसानी से उसे समथथ न दे लदया. दोस्तों, अब मुझे यह बात लबिकुि समझ नहीं आ रही है लक ममता बनजी राजनीलत के इस खेि में लसिथ इस्तेमाि हु ई है अथवा उन्होंने सोलनया के वचथ स्व को तोड़ने की साथथ क पहि करते हु ए अपना राजनैलतक नुकसान जानबझ ू कर लकया है. परन्तु कोई बात नहीं ममता दीदी, आप अपने खेि में सिि रहीं और दादा ने आपको अपनी बहन संबोलधत करके आपका सावथ जलनक आभार भी व्यि लकया है. पर यलद आप इस खेि से अनजान थी तो मुिायम लसंह को भलू ियेगा नहीं, उनके पिीते में लचंगारी लदखाने के लिए कमसे कम आप २०१४ िोकसभा चुनाव का इंतजार तो कर ही सकती हैं. इसी कड़ी में डॉ. किाम ने भी अपने पत्ते नहीं खोिकर बहत ही पररपक्व नागररक होने का सबत ू पेश लकया है, क्योंलक यलद इस खेि में आप घसीटे जाते तो भारत की जनता अपने आप को अपमालनत महसस ू करती, क्योंलक संलवधान के अनुसार राष्ट्रपलत के चुनाव की एक प्रलक्रया है लजसे राजनीलतक दि एक दायरे में रह कर और लबना शोर- शराबे के परू ा करते हैं. परन्तु कांग्रेस पाटी की आतंररक राजनीलत से यलद 21 www.zmu.in | www.hindinewsportal.com | Mob: +91- 9990089080, Mail: m@zmu.in
गिती हु ई है और उस गिती के ििस्वरूप आज दे श का प्रत्येक नागररक इस चुनाव से सीधा जुड़ा महसस ू कर रहा है, तब कांग्रेस पर जन भावना की अनदे खी करके जनता का अनादर ही नहीं बलल्क िोकतंत्र का सीधा अपमान करने का भी आरोप िगता, क्योंलक आपका व्यलित्व राजनीलत से परे है. जनता से जड ु ाव की बात करें तो डॉ. किाम आसमान का दजाथ रखते है, और प्रणब मुखजी एक सम्मालनत नेता होने के बावजदू उनसे कोषों पीछें है, न लसिथ एक व्यलि के तौर पर बलल्क एक सावथ जलनक छलव के तौर पर भी, साफ़ सुथरी छलव के तौर पर भी, दे श को लदए गए उनके सीधे योगदान के तौर पर भी, त्याग के तौर पर भी और यही नहीं वरन राष्ट्रपलत के लपछिे कायथ काि में डॉ. किाम ने यह सालबत कर लदखाया लक भारत का राष्ट्रपलत लकसे कहते है, उसे कैसा होना चालहए, जन- जन से कैसे जड़ ु कर काम लकया जाता है. प्रणब दा की असिी चुनौलतया लसिथ सोलनया गाूँधी को पटखनी दे ने की ही नहीं है, उसमे तो वह शतप्रलतशत कामयाब ही रहे हैं, वरन प्रणब मुखजी को डॉ. किाम के सफ़र को ही आगे बढ़ाना होगा, जनभावनाओं के साथ जुड़कर चिना होगा और अिोकतांलत्रक और जनता-लवरोधी कायों से बचना होगा. गौरतिब है लपछिे लदनों अन्ना हजारे के जनांदोिन में डॉ. प्रणब मुखजी ने जनभावनाओं को दबाने का काम लकया था, चाहे अन्ना हजारे की लगरफ़्तारी हो, लकरण बेदी को डांटना हो अथवा अनेक घोटािो इत्यालद में कांग्रेस पाटी को बचाना हो, प्रणब जी साफ़ छलव के बावजदू मंलत्रमंडि का ही एक लहस्सा रहे है और वह कांग्रेस पाटी के घोटािों से कहीं न कहीं सीधा न सही तो परोक्ष रूप से जुड़े रहने का दाग रूर है. राष्ट्रपलत पद पर वह लकसी पाटी या लकसी आिाकमान के नहीं वरन दे श के प्रलतलनलध िगे, नहीं तो भारतीय जनता खुद को ठगा सा महसस ू करे गी. यह सच है लक भारत की जनता ९० िीसदी से ऊपर डॉ. किाम को राष्ट्रपलत पद के लिए पसंद करती है, परन्तु वह डॉ. प्रणब मुखजी को नापसंद भी नहीं करती. बस यही वह अंतर है लजसमे डॉ. किाम के आदशथ को आगे बढ़ाना होगा प्रणब दा को और राजनीलत में उनकी स्वीकायथ ता और व्यापक अनुभव को दे खते हु ए भारतीय जनता की उम्मीदें लनसंदेह बहत स्वाभालवक है. उम्मीद है भारत दे श लपछिे ८ वषथ से नेतत्ृ व- लवहीन होने के आरोपों से उबरे गा.डॉ. प्रणब मुखजी के नेतत्ृ व में एक नया सवेरा सभी भारतवालसयों के चेहरे की मुस्कान बनेगा.
जय महांद !! - मममथलेश. (www.mithilesh2020.com)
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भ्रष्टाचार आपके चारो तरह लनराशा का माहौि होने के बावजदू , भ्रष्टाचार से लघरे होने पर भी, भारतवषथ की महानता के भाव से आपका मस्तक ऊूँचा होता होगा, हमे शा नहीं तो कभी-कभार तो जरूर ही. नहीं, नहीं मै लठठोि नहीं कर रहा हूँ, यह एक लवपरीत वास्तलवकता है, कम से कम मुझ-जैसो के साथ तो लनलश्चत ही है. यलद दुसरे व्यलियों की बात छोड़ दे तो भी स्वयं का अधथ -लवकलसत मलस्तष्ट्क लनश्चय ही चारो तरि बुराइयों का भंडार लदखाता है, िेलकन कहीं कोने में छुपी मलस्तष्ट्क की पण ू थ ता कहती है, नहीं यह बुराइयां हमारे भारतवषथ की लनलश्चत ही नहीं हैं, यह तो बाहर से आयी हु ई हैं. इन बातों में सच्चाई हो भी सकती है. िेलकन एक बात तो तय है की यलद इन बुराइयों का अलस्तत्व है तो भी अभी पण ू थ रूप हम पर हावी नहीं हो पाई हैं, लसिथ हमारा उपरी आवरण ही इनसे प्रभालवत हु आ है. यह बात मै बहु त लवश्वास से कह सकता हूँ की हर भारतीय की अंतरात्मा अभी भी उसे रास्ता लदखाती है, िाख वह बुरा दीखता है, पर एक छोटी सी घटना उसके असिी सच्चे स्वरुप को उजागर कर ही दे ती है. आलखर हम यह कैसे भि ू जायें की अंगुलिमाि जैसों की अंतरात्मा पर पड़ी धुि यलद साफ़ हो गयी, तो हमारी अंतरात्मा से भी बुराइयों का पदाथ हट सकता है और लिर सामने होगी भारत की स्वक्ष, लनमथ ि और लवश्व गुरू की छलव. यही हमारा भारत है, लजसके बारे में सोच-सोच कर छाती चौड़ी होती रहती है, लक कभी तो हम उस जगह पर पहु ंचेगे जो हम लसिथ अतीत में सुनते आयें है. िेलकन इसके लिए यह जरूरी है लक आत्मा पर पड़ी धुि साफ़ हो और इसके लिए लनलश्चत ही हर बार कोई बुद्च नहीं आयेंगे. हमें स्वयं अपने बीच में से ही बुद्च खोजना होगा और उन्हें आदर दे ना होगा. इस बात पर आगे लवस्तार से चचाथ करें गे. एक वाकया आज मे रे साथ घलटत हु आ, मैं अपनी मोटरसाइलकि से बैंक में अपनी कंपनी का रूपया जमा कराने जा रहा था, रास्ते में लदल्िी पुलिस की खाकी वदी में ३-४ कांस्टेबि और रैलिक पुलिस वैररकेड िगाकर चेलकंग कर रहे थे. यलद आपने लदल्िी में मोटरसाइलकि से सफ़र लकया है तो आप पररलचत होंगे इस तरह लक चेलकंग से, ड्राइलवंग िाइसेंस, प्रदुषण और इन्सुरेंस के कागज लदखाओ, ऐसा लनदेश हु आ एक कांस्टेबि का. मै अपने कागजात परु े रखता ह,ूँ सो आश्वस्त था. मैंने अपने पसथ में दे खा तो इंसोरें स का पेपर नहीं था. याद आया, लपछिी बरसात में गीिा होने के कारन मे री पत्नी ने उसे सुखाने के लिए लनकािा था. गाड़ी साइड में िगाओ, लिर कांस्टेबि की आवाज आई और इन्सुरेंस का पेपर न पाकर मे री मोटरसाइलकि की चाभी लनकाि कर अपने हाथ में िे िी. कर दंू चािान, ११०० रुपये का होता है इन्सुरेंस का, कर दंू ? िगातार वह दबाव बनाने का प्रयत्न करने िगा. इधर मै नम्रता से पेश आ रहा था, नहीं तो झठ ू -मठ ू का और समय िगता. मे री ऊपर की जेब िूिी हु ई थी, इस बात का एहसास उसे बखबू ी हो चक ू ा था, और अब वह कुछ और ही चाह रहा था. मै इस इशारे को समझ रहा था, िेलकन मै ऐसी िेन-दे न से भरसक बचने की कोलशश करता हूँ. वह कांस्टेबि भी आश्वस्त था की अब कहाूँ? अब तो कुछ बन ही जायेंगे. यलद १०० रुपये का चािान होता तो मै कब का भर चक ु ा होता पर ११०० रुपये का चािान सुनकर मे रा आदशथ िगातार अंकि जी, अंकि जी की रट िगा रहा था, उसे अपनी सिाई पेश कर रहा था. ‘जाने दो यार उसे’, िड़का झठ ू बोिता नहीं िग रहा है, एक बुजुगथ की आवाज थी, बगि के िुटपाथ पर 23 www.zmu.in | www.hindinewsportal.com | Mob: +91- 9990089080, Mail: m@zmu.in
शायद टहि रहे होंगे. यह बोिकर वह महानुभाव आगे चिे गए. आप यकीं नहीं करें गे, वह बुजुगथ चिे गए और कांस्टेबि ने मे री तरि गाड़ी की चाभी कर दी. मुझसे नजरे लमिाये लबना, कहा ‘जाओ बेटा’ . दो बातें इससे लनकिती हैं. पहिी भारतीय व्यवस्था, सभ्यता, अंतरात्मा नाम की चीजें अभी भी अलस्तत्व में हैं, जरूरत है उस पर जमी हु ई धुि पर कपडा मारने की. दस ू री बात, हम सभी को बार-बार िगातार सही रास्ता लदखाने की भी जरूरत है और जो वगथ, ज्यादा से ज्यादा प्रभावी हो सकता है, वह ‘सीलनयर लसलटजन’ वगथ ही है. भारतीय सभ्यता में बुजुगो का एक खास स्थान रहा है. उसके पास व्यापक समझ होने के साथ-साथ पयाथ प्त समय भी है. मै सकारात्मक िेखन में हमे शा से लवश्वास करता हूँ. हमसे पछ ू ा जाता है, क्या भ्रष्टाचार को िेकर आप गुस्सा हैं? िेलकन यह प्रश्न अधरू ा है. सही प्रश्न यह है लक- आप भ्रष्टाचार को िेकर लकस से गुस्सा हैं ? लनश्चय ही जवाब आएगा, दस ु से ?? हाूँ, जी आपने सही सुना, क्या ू रों से, सरकार से, दध ू वािे से. और खद आप भ्रष्टाचार को िेकर खुद से भी गुस्सा है ? यलद नहीं तो यह मान िीलजये की आप दोहरी मानलसकता के लशकार है. छोटे से िेकर बड़े -बड़ो तक को सांप संघ ू जायेगा इस प्रश्न से. िेलकन सवाि यहाूँ लसिथ समस्या का नहीं है, समस्या से हम सभी कहीं न कही अवगत तो हैं ही, प्रश्न है समस्या के समाधान का. यकीं मालनये, यह समाधान एक िम्बी प्रलक्रया है और वह भी सावधानी से अपनाई जाने वािी प्रलक्रया. इस संपण ू थ समस्या का हि दे श के नौलनहािों का चररत्र-लनमाथ ण है, नैलतक लवकास है और वह संभव है लसिथ और लसिथ ‘भारतीय संयुि पररवार’ से. मै आगे की पंलियों में इस बात को तथ्यात्मक तरीके से रखूँग ू ा. वैसे भी आज की पीढ़ी कािी हद तक तालकथक और वैज्ञालनक है. संयुि भारतीय पररवार में िाख अन्य बुराइयां हो सकती है, पर मै कुछ प्रश्न रखता हूँ समाज के सामने खालिस तालकथक और वैज्ञालनक भीएक युवा की शादी की औसत उम्र २५-३५ साि के बीच में होती है. इसी उम्र में सामान्यतुः संतानोत्पलत भी होती है. पहिा प्रश्न- क्या इस उम्र में इस युवा के पास अपने बच्चे के लिए समय होता है, ध्यान रहे, यह कैररयर का सुनहरा दौर होता है हर एक के लिए. दूसरा प्रश्न- क्या इस उम्र में इस युवा के पास इतना पयाथ प्त अनभ ु व होता है जो बच्चे के लवकास में सहायक हो सके. जी नहीं, वह तो अपने जीवन-साथी तक को न समझ पाता है न समझा पाता है. अदाितों में तिाक के बढ़ते मामिे इसकी कहानी स्वयं कहते हैं. तीसरा प्रश्न- यलद मान भी लिया जाये लक इस युवा के पास इतना समय भी है और पयाथ प्त अनुभव भी है, तो भी आप समाजशाि के मि ू लसद्चांत का पुनराविोकन करें , जो स्पष्ट कहता है लक- ‚मनुष्ट्य एक सामालजक प्राणी है‛. उस छोटे बच्चे को मनुष्ट्यों से भरे माहौि में लवकलसत होने दो, मे रे आदरणीय और महान दे शवालसयों. उसे दादा लक कहालनयाूँ सुनने दो, उसे चाचा लक डांट पड़ने दो, बड़ी माूँ को िाड करने दो, उसे भाइयों-चचेरे भाइयों से मे िजोि बढ़ाने दो. मत पािो उसे मशीनों के बीच में . लवलडओ गेम, कं्यटू र, बुद्च-ू बाक्स उसे स्वाथी, संकुलचत और आत्मकेंलद्रत बनाते है. यह प्रलक्रया हमारे संपण ू थ समाज को बीमार कर रही है. लजस एकि पररवार में बाप घस ू लक मोटी रकम से िम्बी-िम्बी गालड़यां खरीदता है, क्या कोई उस से पछ ू ता है
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इसकी नैलतकता के बारे में? बच्चा छोटा है और पत्नी तो आनंलदत होती है हीरा-जलडत मोटे हार को पाकर. बच्चा बड़ा होकर ठीक इन्ही आदतों का मुरीद बन जाता है. इसके लवपरीत भारतीय समाज में संयुि पररवार लक व्यवस्था इन सबका लनदान है, बुजुगों की सामालजक सुरक्षा की गारं टी है. मै इसका अंध-समथथ न नहीं कर रहा ह,ूँ इस में भी तमाम बुराइयां हो सकती है, समाजशाि के लवशेषज्ञ इसके बारे में बेहतर तकथ दे सकते हैं. पर मै उन्ही लवशेषज्ञ-बंधुओ ं से पछ ू ता हूँ लक आज ‘संसदीय-व्यवस्था’ से सबका भरोसा उठ चक ु ा है, नेता संपण ू थ लवश्वसनीयता खो चक ु े हैं, तो यह व्यवस्था ख़तम कर के हम कोई तानाशाही-माडि क्यों नहीं लवकलसत कर िेते हैं ? लिर तो यहाूँ एक अन्ना हजारे के आन्दोिन से समाजशालियों लक भक ृ ु लटयाूँ तन जाती है. राहु ि गाूँधी को संसदीय-परं परा पर खतरा लदखने िगता है. और परू ा समाज एक सुर में इस सड़ी-गिी संसदीय व्यवस्था को सुधारने का समवेत प्रयास करता दीखता है. ठीक इसी प्रकार हमें संयि ु पररवार के दोषों को हटाकर समाज के लहत में इस व्यवस्था को पुनजीलवत करना चालहए. स्वयंसेवी संगठनो को इसकी महत्ता समझकर इसकी प्राणप्रलतष्ठा करनी चालहए. यलद बहत जरूरी हो तो सरकार को भी इसके संरक्षण के लिए आगे आना चालहए, क्योंलक चररत्र-लनमाथ ण के लबना वास्तलवक बदिाव लक आशा करना लदवा-स्व्न ही है. आंदोिनों से लसिथ सत्ता बदिती है, व्यवस्था नहीं. व्यवस्था के लिए चररत्र-लनमाथ ण अलत आवश्यक तत्व है. और चररत्र-लनमाथ ण की प्रथम और अलत प्रभावी सीढ़ी पररवार ही है. नहीं, नहीं मै लसिथ पररवार लक बात नहीं कर रहा ह,ूँ एकि पररवार तो बच्चो को मशीन में पररवलतथ त करते जा रहे हैं. मै तो भारतीय संयुि पररवार की बात कर रहा हूँ, लजसके बि पर भारतीयों ने एक होकर लवकास लकया, कृलष रुपी उद्यम को चरम पर पहु ूँचाया और सोने की लचलड़या, लवश्व-गरु ु इत्यादी उपनामों से कृताथथ लकया दे श को. इस व्यापक भारतीय महानता का आधार लसिथ भारतीय-चररत्र था, लजसने हमें लनलवथ वाद लशखर पर पहु ूँचाया और भारतीय चररत्र की एकमात्र जन्मदात्री भारतीय संयुि पररवार परं परा ही थी. सोलचये ! सोलचये ! सोलचये !
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छत्रपमत मशिाजी (वह वीर योद्चा लजसने भवानी तिवार के बि पर लहन्दुओ ं का खोया सम्मान व आत्मलवश्वास जीतकर लदखाया) लशवाजी के लपता,शहाजी एक पेशेवर योद्चा एवं एक प्रकार से पन ू ा राज्य के शासक और स्वामी थे. उस दौर में भारत पांच मुलस्िम साम्राज्यों में बनता था – लदल्िी का मुग़ि साम्राज्य, बीजापुर का आलदि साम्राज्य, दौिताबाद का लनजाम साम्राज्य, गोिकुंडा का क़ुतुब साम्राज्य और लबदर का वररद साम्राज्य. जब लशवाजी गभथ में थे, तब शहाजी अपने घर से दूर मुग़ि सम्राट शाहजहाूँ के आदे श पर लवद्रोही सबू ेदार, दररया खां रोलहल्िा का पीछा कर रहे थे, जो भाग कर दलक्षण की ओर चिा गया था. मुलस्िम शासक लहन्दू योद्चाओं का अपने लहत में बुरी तरह से इस्तेमाि करते थे और उन्हें आपस में िड़ाकर उनपर तरह तरह से अत्याचार करते थे. लशवाजी के लपता एक कुशि रणनीलतकार की तरह लवलभन्न मुलस्िम शासकों के बीच संतुिन बनाकर रखते थे. इसी बीच १९ फ़रवरी १६३० को जीजाबाई ने तीखे नैन-नक्श वािे एक सुन्दर बच्चे को जन्म लदया, और उस बच्चे के नाम उनके ससुर लबठोजी तथा दादा कोंडदे व (लशवाजी के गुरु) ने सवथ सम्मलत से नवजात का नाम ‘लशवाजी’ रखा. माूँ जीजाबाई ने लशव को दे श की गौरवशािी परम्पराओं, संस्कृलत, ईलतहास तथा पौरालणक-धालमथ क कथाओं के शरू वीरों के बारे में बताया और उनमे कूट- कूट कर लहन्दू भावना भरी. माूँ और लबठोजी ने बािक लशवा को अहसास करा लदया लक उसके एक शरू वीर योद्चा बन्ने में ही उन सबका भलवष्ट्य लछपा है. उसके मन-मलस्तष्ट्क में यह बात भी लबठा दी गयी लक उसका जन्म लहन्दू धमथ के पुनरुद्चार के लिए हु आ है. शहाजी के लवश्वस्त कमांडर दादा कोंडदे व ने लशवा को शि प्रयोग भी लसखाना आरम्भ कर लदया था. राजनीलतक लशक्षा के लिए वे लशवा को अपने साथ राज्य के दौरों पर भी िे जाते थे. दादा जानते थे लक एक सिि शासक बनने के लिए शि और शाि दोनों का जानकर होना आवश्यक है. दोनों एक दुसरे के लबना अधरू े हैं. इन आरं लभक सात वषों में लशवा ने केवि कुछ लदन ही लपता का सालनध्य पाया. माूँ जीजाबाई, दादा लबठोजी और संरक्षक दादा कोंडदे व ही लशवा के प्रेरणाश्रोत रहे . लशवा बहत महत्वाकांक्षी, आक्रामक, चतुर तथा लवचारशीि था. एक बार लशवाजी के लपता शहाजी बीजापुर के बादशाह मोहम्मद आलदि के दरबार में लशवाजी को िेकर गए और उन्होंने झुककर आलदि को मुलस्िम ढं ग से कोलनथ श लकया और लशवाजी से भी ऐसी ही अपेक्षा की. पर लशवाजी ने अपने सर को नहीं झुकाया और वह मुलस्िम बादशाह को घरू ते रहे . एक अन्य वाकये के अनस ु ार, एक मुलस्िम कसाई एक गाय को बच ू डखाने की तरि िे जा रहा तो लशवाजी उस पर कटार से हमिा करने दौड़े , क्योंलक उनकी माूँ जीजाबाई ने उनको लसखाया था लक गाय हमारी माता होती है और मुलस्िम शासक हम पर अत्याचार करते रहते हैं और लहन्दुओ ं की दुदथशा के लिए मुख्य रूप से लजम्मे वार हैं.
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सन १६३९ में जीजाबाई तथा लशवा दादा कोंडदे व के पास पन ू ा पहु ूँच गए. दादोजी एक अलत कुशि प्रशासक तथा योजनाकार थे. नेतत्ृ व का गुण उनमें नैसलगथ क था. माता जीजाबाई की इच्छा पर सबसे पहिे ‚गणेश- मंलदर‛ का लनमाथ ण लकया गया. पन ू ा नगर के पुनलनथ माथ ण के क्रम में शहाजी पररवार के लिए िािमहि प्रसाद का लनमाथ ण लकया गया. दादोजी ने बहत िगन से एक बहत बड़े सुन्दर और ििदार पेड़ों के बाग़ का लनमाथ ण करवाया, लजसका नाम उन्होंने अपने स्वामी के सम्मान में ‘शहाबाग़’ रखा. इसी दौरान १० वषीय लशवा का लववाह ७ वषीय बालिका सईबाई से कर लदया गया. इसी दौरान लशवाजी अपने लपता के साथ बंगिौर प्रवास के दौरान अपनी युद्च किा को लनखारते रहे . उन्होंने अपने भाई संभाजी से युद्च कौशि लसखा. उनके लपता उनके गुणों को दे खकर यकीन करते थे लक उनका बेटा लशवा ईलतहास जरूर रचेगा. इसी दौरान लशवा का लववाह शोभाबाई से भी हु आ. इसके बाद पुनुः दादोजी के संरक्षण में लशवाजी ने ‚स्वराज्य‛ नामक लहन्दू साम्राज्य की रचना की, लजसमे लहन्दू लहत, धमथ तथा संस्कृलत सुरलक्षत हो. इसका आरम्भ पन ू ा के चरों ओर लस्थत २४ मावि क्षेत्रों को पन ू ा राज्य में लमिाकर लकया जाना था. हर मावि क्षेत्र का शासन एक दे शमुख पररवार के द्रारा लकया जाता था. ये दे शमुख सदा एक- दुसरे से िड़ते- झगड़ते रहते थे. ये दे शमुख मुलस्िम अलधकारीयों के तिवे चाटने की होड़ िगाये रहते थे. िोग दे शमुखों की मनमानी और अत्याचारों से तंग आ चक ु े थे. दादोजी और लशवा ने पहिे उन दे शमुखों से संपकथ लकया जो मुलस्िम लवरोधी स्वभाव के थे. ‛स्वराज्य की रूपरे खा लशवाजी के सपने के रूप में उनके सामने रखी गयी. दे शमुखों को ‚स्वराज्य‛ योजना पसंद आ गयी. दे शमुख अपने- अपने क्षेत्र में गए तथा िोगों के सामने उन्होंने लशवाजी का ‚स्वराज्य‛ का लवचार प्रस्तुत लकया. प्रलतलक्रया सकारात्मक थी. लहन्दू जनता मंलदरों के तोड़े -िोड़े जाने, गायों की हत्या, अपनी लियों के अपहरण पर मुलस्िम शासकों से अत्यंत क्षुब्ध थे, उन्हें िगा लक यलद स्वराज्य सचमुच अलस्तत्व में आ गया तो वे लनभथ य होकर सम्मालनत जीवन व्यतीत कर सकेंगे. पर िोग लशवाजी को प्रत्यक्ष दे खने को उत्सुक थे जो लक उन्हें ‚स्वराज्य‛ का सपना लदखा रहा था. वे उसे तुिना चाहते थे, उसकी नेतत्ृ व क्षमता को आंकना चाहते थे और थाह िेना चाहते थे लक लशवाजी लकस सीमा तक युद्च िड़ सकता है. लशवाजी ने मावि क्षेत्रों का दौर कर िोगों के बीच जाना आरम्भ कर लदया. उन्हें िोगों का मन और लवश्वास जीतने में दे र नहीं िगी. दादोजी ने अपने लशष्ट्य को जन- संपकथ में पारं गत कर रखा था. जहाूँ कहीं लशवाजी गए वही ूँ उन्होंने युवा कायथ कताथ ओ ं का दि खड़ा लकया. उनके द्रारा लशवाजी ने तोड़े - िोड़े मंलदरों का लिर से लनमाथ ण शुरू कराया. इससे जनता भावनात्मक रूप से लशवाजी के साथ हो गयी. अलधकतर दे शमुख लशवाजी के खेमे में आ गए. कुछ लवरोधी दे शमुख भागे- भागे बीजापुर के मुलस्िम दरबार जाकर लशवाजी के लवरुद्च जहर उगिा. उन्हें लशवाजी के अनुयालययों ने पकड़ा तथा दलण्डत लकया क्योंलक िोग अब ‘स्वराज्य’ योजना के पक्षधर हो गए थे. एक रात, लशवाजी ने पन ू ा से ५० मीि दूर एक मंलदर के लनकट एक गुिा में अपने पक्के युवा अनुयालयओं को एकत्र लकया. उन सबने स्वराज्य लनमाथ ण की शपथ िी. उन्हें अि- शि लदए गए तथा प्रलशलक्षत लकया गया. इस प्रकार स्वराज्य सेना की पहिी बटालियन तैयार हो गयी. 27 www.zmu.in | www.hindinewsportal.com | Mob: +91- 9990089080, Mail: m@zmu.in
लशवाजी के युवा सैलनक दि ने लनकट के तोरण दुगथ पर हमिा बोि लदया. तोरण दुगथ आलदि साम्राज्य का था. दुगथ की रक्षा के लिए उपलस्थत थोड़े से ही कमथ चारी व पहरे दार थे लजन्होंने लबना िड़े समपथ ण कर लदया. दुगथ की मरम्मत के समय एक दीवार की खुदाई में एक खजाना हाथ िगा. यह खजाना युवा लशवाजी के लिए दैवी बरदान सालबत हु आ. उन्हें धन की सख्त आवश्यकता थी. उस खजाने ने लशवाजी का भानय बदिा और वही स्वराज्य की मि ू पंज ू ी बना. उसी धन से लनकट की पहाड़ी पर अधरू े बने राजगढ़ दुगथ का लनमाथ ण कायथ परू ा कराया गया. उसके बाद स्वराज्य सैलनकों की टुकड़ीयों ने कंवाररगढ़ सलहत अनेक दुगों पर शीघ्र ही कब्ज़ा कर लिया. अब दुगों की िम्बी क़तार स्वराज्य का भगवा झंडा िहरा रही थी. लशवाजी की छलव लनणाथ यक के रूप में तब स्थालपत हु ई जब जन्होने पडोसी राज्य जाविी को न्याय लदिाया. दस ू री ओर दलक्षण में लशवाजी के बड़े भाई शम्भाजी भी वैसे ही दावं-पेंचों में िगे थे. उन्होंने बंगिौर को केंद्र बनाकर आसपास के लहन्दू राज्यों को अपने साथ लमिाकर दलक्षण में भी स्वराज्य खड़ा करने का कायथ आरम्भ कर लदया. इस बीच इन अलभयानों के दौरान अनेक घटनाएं हु ई जैसे बीजापुर मुलस्िम शासक द्रारा गंभीर रूप से लशवाजी का लवरोध करना, शहाजी का कैद में होना, मुग़ि शासको के माध्यम से लशवाजी की राजनीलतक चािें, बंगिौर और कोंडाना दुगथ बीजापरु को िौटाना, कान्होजी तथा िोहोकारे के रूप में लशवाजी को अमल्ू य सालथयों की भेंट, जाविी शासक यशवंतराव मोरे का लवश्वासघात और लशवाजी द्रारा उसका वध. १६५० के दौरान बीजापुर में मोहम्मद शाह आलदि की मत्ृ य,ु मुग़ि शासक शाहजहाूँ का िगातार वीमार होने से उसके राज्य में आतंररक संघषथ, औरं गजेब के साथ संघषथ की शुरुआत और उसके साथ राजनीलतक चािें इत्यालद अनेक घटनाएं हु ई लजन्होंने इलतहास को गंभीर रूप से प्रभालवत लकया. इन दस वषों में लशवाजी ने अवसर पैदा लकये, उनका िाभ उठाया तथा मुलस्िम साम्राज्यों के साथ चहू े लबल्िी के खेि खेिे. पररणामस्वरूप लहन्दुओ ं का वाराज्य अलस्तत्व में आया लजसके झंडे चािीस दुगों पर िहरा रहे थे, उसका िम्बा समुद्रतट था, बंदरगाह थे तथा हािैंड, फ़्ांस, इंनिैण्ड तथा पुतथगाि से व्यापार पर लनयंत्रण था. स्वराज्य की छोटी-मोटी नौसेना भी थी. स्वराज्य की अपनी शलिशािी सेना थी जो आक्रमणों का मुंहतोड़ जवाब दे सकती थी. स्वराज्य का अलधकतर क्षेत्र आलदि साम्राज्य को काट कर बना था और उसी साम्राज्य में लशवाजी के लपता अब भी कायथ रत थे. शहाजी ने बीजापुर दरबार को स्पष्ट बता लदया लक उनके बेटे अब उनके लनयंत्रण में नहीं हैं. साम्राज्य स्वयं उनसे जैसे ठीक समझे लनपट िे. इसी दौरान लशवाजी ने आलदि साम्राज्य के दुदाां त योद्चा और अपने बड़े भाई संभाजी की धोखे से हत्या करने वािे अिजि खां का भी अकेिे बध लकया. यह वाकया ईलतहास में अत्यंत प्रलसद्ङ है क्योंलक अिजि का अत्यंत भीमकाय शरीर वािा था और उसकी सेना भी लशवाजी के मुकाबिे अत्यंत ताकतवर थी, तथालप लशवाजी ने अिजि खान को मरकर उसके पड़ाव से ६५ हाथी, ४०० घोड़े , १२०० ऊंट, तीन िाख के रत्न, सात िाख की अशलिथयाूँ, तोपें तथा कािी असिाह पर कब्ज़ा लकया. लशवाजी के सेनापलत पािेकर ने वाई पर धावां बोिकर वहां पड़ाव डािे बीजापुर की मुख्य सेना को खदे ड़ लदया. बाद में लशवाजी बालक सेना िेकर उनसे जा लमिे. लिर सारी स्वराज्य सेना लवजय अलभयान पर लनकि पड़ी. उसने सतारा, कोल्हापरू 28 www.zmu.in | www.hindinewsportal.com | Mob: +91- 9990089080, Mail: m@zmu.in
और पल्हंगढ़ पर अलधकार कर लिया. गोदक, कोकाक, और कोंकड़ भी जीते गए. दाभोि बंदरगाह पर कब्ज़ा कर लिया गया. तथा कई लवदे शी जहाज हलथया लिए गए. एक जहाज के अंग्रेज कप्तान को बंदी बना लिया गया. लवदे शी व्यापारी लशवाजी के कारनामों की दास्तानें िेकर अपने-अपने दे श िौटे. इस दौरान लशवाजी की बढती ख्यालत से त्रस्त होकर बड़े मुलस्िम साम्राज्य एकजुट होकर एक बागी सरदार लसद्ङी जोहर के नेतत्ृ व में लशवाजी से िोहा िेने को राजी हो गए. बीजापुर की सहायता के लिए मुग़ि शासक, गोिकंु डा के क़ुतुब शासक इत्यालद ने एक लवशाि सेना के साथ लशवाजी पर धावां बोि, इतनी बड़ी सेनाओं का एक साथ सामना करना संभव नहीं था अतुः लशवाजी गुप्त रास्ते से अपने लवश्वस्त सैलनकों के साथ लसद्ङी जोहर को चकमा दे कर भाग लनकिे. मुग़ि सेनापलत साइस्ता खां पन ू ा में आ धमका और लशवाजी के िािमहि प्रसाद में रहने िगा. यह लशवाजी को अपमालनत करने की एक चाि थी. उसने एक सेना पन्हाल्गढ़ की ओर भी रवाना कर दी. जब लशवाजी को मुग़ि सेना के पन्हाल्गढ़ आने की खबर लमिी तो उन्होंने चािाकी से अपने सैलनकों से दुगथ खािी करवा लिया. लिर उस दुगथ के लिए लसद्ङी जोहर की बीजापुर सेना और मुग़ि सेना में भयंकर मार-काट हु ई. उन्हें आपस में िड़वाकर चतुर लशवाजी अपने लकिे में बैठे खबू हूँसते रहे . छापामारी के द्रारा उन्होंने मुग़ि सेनापलत साइस्ता खान को अपने िािमहि से न लसिथ खदे ड़ा बलल्क मुग़ि सेना को उन्होंने भारी हालन पहु ंचाई. इस दौरान लशवाजी के अनेक अपने भी लशवाजी के लवरुद्च मुलस्िम शासकों का साथ दे ते रहे, लजनमे कोजी राजे (लशवाजी के सौतेिे भाई), बाजी घोरपडे इत्यालद थे. लशवाजी एक बार लिर तफ़ ू ान बनकर शत्रओ ु ं तथा रास्ते में बाधा बनने वािों को उखाड़ िेंकते हु ए गोवा, ररक्ट द्रीप, खुदाबंदपुर, हु बिी, बैंगुिी और सरू त क्षेत्रों से स्वराज्य के कोष को भरने के लिए खजाने बटोरते हु ए बढे जा रहे थे. इससे औरं गजेब लचंलतत हु ए. मुग़ि साम्राज्य की गद्ङी पर औरं गजेब ने अलधकार कर लिया थे. उसने लनणथ य लिया लक लशवाजी के पर काटने होंगे. उसने लशवाजी की नाक में नकेि डािने का दालयत्व मुग़ि साम्राज्य के वयोवद्च ृ योद्चा राजा जयलसंह पर डािा. जयलसंह एक चतुर और काइयां योद्चा था, जो बुलद्चबि से शत्रुओ ं को परास्त करने में लसद्चहस्त था. जब मुग़ि कमांडरों का बस लशवाजी पर नहीं चिा तो औरं गजेब ने उनके लवरुद्च लहन्दू कमांडर को मैदान में उतारने का िै सिा कर लिया, क्योंलक एक लहन्दू ही लशवाजी की मनोलस्थलत भांप सकता था और उनकी कमजोरी पकड़ सकता था. मुग़ि साम्राज्य के विादार सैलनक की भांलत जयलसंह ने सहषथ चुनौती स्वीकार कर िी और ३० लसतम्बर १६६४ को औरं गजेब के जन्मलदन के अवसर पर जयलसंह एक लवशाि सेना तथा युद्च में टेप उ्सेनापलतयों को िेकर लशवाजी से लभड़ने लनकि पड़ा और औरं गजेब की दो लहन्दू योद्चाओं को आपस में िड़ाने की चाि सिि रही, तथालप लशवाजी ने जयलसंह को समझाने का बहत यत्न लकया और लहन्दुओ ं के लहतों की दुहाई दी पर गद्ङार समझते ही कहाूँ है ? मनोवैज्ञालनक युद्च के ज्ञाता लहन्दू योद्चा जयलसंह के एकबारगी लशवाजी को समपथ ण करने को मजबरू भी कर लदया पर लशवाजी ने मुग़ि सेनापलत जयलसंह और बीजापुर को आपस में िड़वाकर और जयलसंह को हरवाकर अपनी हार का कूटनीलतक बदिा भी िे लिया. इसी दौरान ‚आगरा- कांड‛ के नाम से मशहर वाकये में धोखे से लशवाजी को अपने दरबार में सम्मालनत करने 29 www.zmu.in | www.hindinewsportal.com | Mob: +91- 9990089080, Mail: m@zmu.in
को बुिवाकर औरं गजेब ने बंदी बना लिया पर लशवाजी वहां से लमठाइयों के डब्बे में भाग लनकिे और लिर लशवाजी का लवलधवत लहन्दू साम्राज्य ‛स्वराज्य‛ के छत्रपलत सम्राट के रूप में राज्यालभषेक लकया गया. वषों उत्सव मनाये गए. लशवाजी ने लहन्दुओ ं का खोया सम्मान तथा आत्मलवश्वास अपनी खडग के बि पर जीतकर िा लदखाया था. लिर छत्रपलत के अपने पररवार में ही िुट का जहर घुि. उनकी युवा पत्नी सोयराबाई ने लजद्ङ करना आरम्भ कर लदया लक उनका बेटा राजाराम ही गद्ङी का वाररश होगा, इस कारन शम्भाजी (लशवाजी के बड़े पत्र ु , लजन्होंने यद्च ु में लशवाजी का साथ लदया था और वह योनय भी थे) अपनी सौतेिी माूँ से घण ृ ा करने िगा. घर में क्िेश इतना बाधा लक लशवाजी वीमार पड़ गए और उनका जीवन तनावों से भर गया. वह युवा पत्नी के मोहजाि में िंसे रहते थे और युवा पत्नी हरदम उनपर दबाव बनाये रखती थी. इन दबावों में लशवाजी कभी कभी मानलसक संतुिन भी खो दे ते थे. ऐसे ही एक समय उन्होंने अपने पत्र ु शम्भाजी को अपने ही शत्रु मुगिों के खेमे में उनकी सेवा में भेज लदया. शम्भाजी को घर से दरू हटाकर वे पररवार में कुछ शांलत िाना चाहते थे. लशवाजी को अपनी भि ू का अहसास तब हु आ जब मुगिों ने संभाजी के कंधे पर बन्दूक रखकर स्वराज्य को हालन पंहुचाना आरम्भ कर लदया. पर अब क्या हो सकता था. लशवाजी और वीमार होकर मत्ृ यु सैया पर िेट गए. सैया के चारों ओर पररवारजन बुरी तरह झगड़ने िगे. ३ अप्रैि १६८० को छत्रपलत लशवाजी का लनधन हो गया. उन्होंने अपने जीवन के िक्ष्य को बखबू ी परू ा लकया. भारत के इस वीर योद्चा ने लवपरीत पररलस्थलतयों में भी हमें ईलतहास का एक गौरवशािी अध्याय लदया, लजसमे रचा स्वालभमान तथा आत्मलवश्वास का सन्दे श जो हमारे मन को सदा सुवालसत करता रहे गा और हमारी आने वािी पीलढ़यों को गौरव का पाठ पढ़ता रहे गा.
- मममथलेश. (www.mithilesh2020.com)
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राहुल गाांधी नए सोच िाले हो गए हैं! दे श की सबसे पुरानी कांग्रेस पाटी के लपछिे दस साि से नए चेहरे बने राहु ि गांधी अब अपनी सोच को और भी नयापन दे रहे हैं. लदल्िी के तािकटोरा स्टेलडयम में चि रही कांग्रेस पाटी की बैठक को अपने जोश और सोच से िबरे ज करने में कोई कसर नहीं छोड़ी कांग्रेस पाटी के युवराज ने. इस सन्दभथ में एक कांग्रेसी नेता की पहिे कही गयी एक लट्पणी को उद्चत ृ करना उलचत रहे गा. उन्होंने भाजपा और उसके नेता नरें द्र मोदी पर कड़ा हमिा बोिते हु ए कहा था लक उन्होंने अपने आपको कािी पहिे ओवरसेि कर लदया है. इस कड़ी में राहु ि गांधी लबिकुि सही समय पर अपनी गलत पकड़ रहे हैं. असिी नेता वही होता है, जो चुनाव आते आते अपनी परू ी गलत पकड़ िे, और मतदान के लदन बटन दबने तक अपनी गलत बनाये रखे. हाूँ, लिर बेशक वह मतदान के बाद अपनी गाड़ी पर ब्रेक क्यों न िगा दे . अब जबलक २०१४ की दुंदुम्भी बज चुकी है, तब कांग्रेस पाटी के १० साि पुराने परन्तु नए सोच वािे लचराग राहु ि गांधी अपने तरकश से कई तीर लनकाि रहे हैं. एक तरि तो अपने भाषणों में वह परं परा, कांग्रेस पाटी की सोच और भारत के इलतहास की कड़ी दुहाई दे रहे हैं वहीं दूसरी ओर वह लवपक्ष की माकेलटंग रणनीलत को जनता के सामने उजागर करने की भरपरू कोलशश कर रहे हैं. माकेलटंग रणनीलत का अलधकालधक दुरूपयोग करने का आरोप िगाते हु ए उन्होंने गंजे को कंघी बेचने का परु ाना मुहावरा भी इस्तेमाि कर डािा. वहीं लदल्िी में नयी नवेिी आम आदमी पाटी पर उन्होंने गंजों का हे यर कट करने को िेकर सधा हु आ व्यंनय भी लकया. खैर, यह राहु ि गांधी का अलधकार है लक वह अपने कायथ कताथ ओ ं को उत्सालहत करें , उन्हें चाजथ करें , परन्तु क्या यह बेहतर नहीं होता लक वह अपनी सरकार पर लपछिे पांच साि तक बेहतर और भ्रष्टाचार मुि शासन दे ने का दबाव बनाये रखते. लजस प्रकार राहु ि गांधी ने कायथ कताथ ओ ं की बैठक में प्रधानमंत्री से दे श की मलहिाओं के लिए ९ की जगह १२ लसिेंडर की मांग की, तो क्या यह बेहतर नहीं होता लक लसिेंडर पर सलब्सडी समाप्त करने के लनणथ य पर वह सरकार पर अपना दबाव बनाते. जहाूँ तक बात माकेलटंग की है, तो राहु ि गांधी की माकेलटंग भी कुछ कम नहीं है. परन्तु जब दे श घोटािों, भ्रष्टाचार, मलहिा सुरक्षा और सीमा-सुरक्षा के मुद्ङों से बुरी तरह जझ ू रहा हो तब कोई भी माकेलटंग नकारात्मक हो जाती है. राहु ि गांधी को यह बात खुिे तौर पर पता होनी चालहए लक माकेलटंग में साख की अहम् भलू मका होती है. यलद लकसी संगठन की साख पर ही प्रश्नलचन्ह िग जाए तो माकेलटंग उसके लिए नकारात्मक भलू मका लनभाती है. बेहतर होगा राहु ि गांधी के लिए लक २०१४ के चुनाव में उनकी पाटी का जो होगा, वह उनके लपछिे पांच साि के कामों का ही पररणाम होगा. परन्तु उनकी पाटी को दे श की जरूरत है अभी, और लजस सोच, धमथ -लनरपेक्षता की बात वह कर रहे हैं, उसकी भी जरूरत है दे श को. परन्तु यह लसिथ िफ्िाजी से नहीं होगा. अब कांग्रेस पाटी और राहु ि गांधी को पारदलशथ ता अपनानी ही होगी, क्योंलक अब लसिथ लवपक्ष ही नहीं, बलल्क भारतीय जनता उनसे जवाब मांग रही है. और िोकतंत्र में जनता भगवान होती है. सुन रहे हैं न राहु ि बाबा.
- मममथलेश. (www.mithilesh2020.com) 31 www.zmu.in | www.hindinewsportal.com | Mob: +91- 9990089080, Mail: m@zmu.in
मोदी मन्त्र : योजना या लफ्फाजी नरें द्र मोदी ने आलखरकार अपने वादों का लपटारा खोिकर एक कदम आगे बढ़ा लदया है. लजस प्रकार लदल्िी के तािकटोरा स्टेलडयम में राहु ि गांधी ने जोरदार भाषण लदया, उसने भाजपाइयों के कान खड़े कर लदए थे. इसके साथ तािकटोरा स्टेलडयम में ही राहु ि गांधी को चुनाव प्रचार कमान दे कर उन्हें कांग्रेस ने एक कदम आगे भी कर लदया था और प्रधानमंत्री घोलषत नहीं करके उन्होंने राहु ि गांधी को सुरलक्षत भी कर लिया है. अभी तक चुनाव प्रचार में आगे चि रहे नरें द्र मोदी भी राहु ि गांधी के इस बदिे रूप से सचेत हो गए और मात्र दो लदन बाद उन्होंने भारत के लवकास के लिए रोडमैप पेश कर लदया. इस रोडमैप में उन्होंने बेहद बड़ी-बड़ी बातें रखीं, उससे भी आगे जाकर उन्होंने अमे ररका और जापान जैसे दे शों के लवकास जैसी तुिनात्मक योजनाओं का खुिासा रखकर आज के नए युवा की मानलसकता को िुभाने में कोई कसर नहीं छोड़ी. नरें द्र मोदी यूँहू ी भारत की दूसरी सबसे बड़ी और संघ-लसंलचत भाजपा के शीषथ पर नहीं पहु ूँच गए हैं. जो बात उनके भीतर है, उसमें सबसे ख़ास बात है लक वह सही मौके पर सही बात करते हैं. कई मामिों में उनकी वाणी वैद्य की तरह लदखती है, जो जनता की नब्ज पकड़ने में मालहर है. परन्तु नरें द्र मोदी के भाषण में जो बड़ी बातें कही गयी हैं, बात इससे आगे तक जाती है. हािांलक नरें द्र मोदी एक जांचे और परखे नेता हैं और उनका सावथ जलनक जीवन भी गज ु रात दंगों को छोड़कर बेदाग़ रहा है. परन्तु जब बात केंद्र की आती है तब मसिा कुछ और हो जाता है. भारतीय शासन प्रणािी में जब राज्य कोई गित कदम उठाता है तब उसके ऊपर केंद्र का अंकुश रहता है परन्तु केंद्र के मामिे में ऐसा नहीं होता है. केंद्र में यलद कोई सरकार रहती है तब वह सीधे-सीधे परू े दे श के लिए लजम्मे वार होती है. और यहीं सवाि उठता है नरें द्र मोदी के वादों पर. उन्होंने अपने भाषण में रक्षा नीलत, लवदे श नीलत, अथथ नीलत से जड़ ु े मुद्ङों पर कोई ख़ास राय नहीं रखी. नरें द्र मोदी के शासन, प्रशासन पर तो उनके लवरोधी भी कुछ ख़ास प्रश्न नहीं करते हैं, प्रश्न तो उनके रवैये को िेकर है. प्रश्न लवकास से ज्यादा इस बात को िेकर है लक कश्मीर समस्या के बारे में उनका रवैया क्या होगा. प्रश्न यह भी है लक लजस प्रकार अमे ररका ने मोदी को वीजा दे ने से मना कर रखा है, उससे कहीं वह नाराज होकर अमे ररका के साथ सम्बन्धों को लबगाड़ें गे तो नहीं. कहीं वह तानाशाह बनकर दे श के ताने-बाने को ख़राब तो नहीं करें गे. बेहतर होता यलद नरें द्र मोदी बुिेट-रेन, एम्स और बेहतर प्रबंधन संस्थानों के साथ इन मुद्ङों पर भी आम जनता का लदि जीतने की कोलशश करते . नरें द्र मोदी के इस भाषण में दे श की ग्रामीण जनता का भी कोई खास लजक्र नहीं लदखा और इस बात पर आश्चयथ इसलिए भी होता है लक कहीं मोदी ने लबना योजना के लदल्िी के अरलवन्द केजरीवाि की तरह लसिथ बड़ी-बड़ी बातें तो नहीं की. लजस प्रकार लदल्िी अरलवन्द केजरीवाि के शासन में अराजकता की ओर बढ़ रहा है, कहीं दे श मोदी के नेतत्ृ व में वैसा तो नहीं हो जायेगा. इन सभी प्रश्नों का जवाब नरें द्र मोदी को जरूर ही दे ना चालहए. यह बात कहने में लकसी पत्रकार को िाग-िपेट नहीं होगा लक नरें द्र मोदी के प्रलत दे श भर में एक भारी आकषथ ण है, परन्तु क्या लसिथ आकषथ ण और बड़ी-बड़ी बातों से काम चि जायेगा. िोकतंत्र में कई िोग लजन प्रश्नों को 32 www.zmu.in | www.hindinewsportal.com | Mob: +91- 9990089080, Mail: m@zmu.in
उठा रहे हैं, मोदी उन पर भी सरृदयता से जवाब दें . भाजपा के सवोच्च नेता बन चुके मोदी को अपने बुजुगथ और संरक्षण िाि कृष्ट्ण आडवाणी की सीख पर भी ध्यान दे ना चालहए, लजसमें वह उन्हें अलत आत्म लवश्वास से बचने की सिाह दे ते हैं. हमें यह कहने में कोई गुरेज नहीं है लक कांग्रेस महा भ्रष्टाचारी पाटी है, परन्तु यह बात लवचारणीय है लक वह इतनी गित होने के बावजदू भी ६० साि तक शासन में कैसे रही. इस प्रश्न का उत्तर यही है लक सबको साथ िेकर चिने की किा राजनीलत के लिए बेहद आवश्यक है. नरें द्र मोदी वत्तथ मान नेताओं में लनलश्चत रूप से कािी योनय लदखते हैं, परन्तु वह समस्त भारत को साथ िेकर कैसे चिेंगे, इस बाबत भी उनको अपनी राय स्पष्ट करनी चालहए. यही िोकतंत्र है. अपनी बात भी रलखये, और दस ू रों की बातों का सरृदयता से जवाब भी दीलजये. सुन रहे हैं न प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार, मोदी जी.
- मममथलेश. (www.mithilesh2020.com)
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जहरीली राजनीमत वैसे तो राजनीलत का व्यवहाररक चररत्र भी यही है, परन्तु लपछिे कुछ लदनों से शालब्दक अथों में भी राजनीलत को जहरीिा बताने की होड़ शुरू हो गयी है. इसकी शुरुआत यपू ीए अध्यक्षा सोलनया गांधी ने एक चुनावी रै िी में करते हु ए कहा लक कुछ िोग जहर की खेती कर रहे हैं. अब तेज-तराथ र राजनीलतज्ञ और भाजपा के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार नरें द्र मोदी को इसका जवाब दे ना ही था और उन्होंने अपने लचरपररलचत िच्छे दार भाषा में इसका जवाब लदया भी. बातों के तार को एक दूसरे से जोड़ते हु ए उन्होंने जयपुर के कांग्रेसी लचंतन के चलचथ त राहु ि बोि का हवािा लदया, लजसमें राहु ि गांधी के अनुसार उनकी माूँ ने सत्ता को जहर बताया था. नरें द्र मोदी के अनुसार यलद सत्ता जहर है तो सवाथ लधक जहरीिी तो कांग्रेस हु ई. खैर, बातों का क्या है, बातें तो होती ही रहती हैं, िेलकन िोकसभा चुनाव के नजदीक आते आते इस बात पर चचाथ जरूरी हो जाती है लक आलखर जहरीिा है कौन? क्या लसिथ एक दुसरे को जहरीिा कह दे ने से खुद अपना जहर छुप जायेगा? क्या दे श की जनता को इतनी आसानी से लवकास के मुद्ङे से हटाकर दंगों के जहर में उिझा दें गी राजनैलतक पालटथ यां? सवाि यह भी है लक एक अरब से ज्यादा आबादी का युवा दे श क्या रोजी-रोजगार से हटकर जहरीिी राजनीलत के साये में ही रहने को मजबरू होगा? पुलिस, प्रशासन, सड़कें, मलहिा-सुरक्षा, सीमा-सुरक्षा, आलथथ क असुरक्षा और ऐसे ही दुसरे अन्य मुद्ङों को जहर की राजनीलत पर बलि चढ़ाया जायेगा. वगैर इन प्रश्नो का जवाब पाये बेहद मुलश्कि होगी जनता के लिए. जनता पशोपेश में रहे गी िोकसभा चुनाव को िेकर, क्योंलक िगभग सभी एक दुसरे से वैसे ही अिग नजर नहीं आ रहे थे, और अब तो ईमानदार और ईमानदारी का ढोंग पीटने वािी एक नयी पाटी पर भी नस्िवाद, मलहिाओं का अपमान, अमानवीय होने का आरोप, अराजक और जहरीिा होने का आरोप खद ु उसी पाटी के संस्थापक सदस्य और लवधायक िगा रहे हैं. दूसरों की तो लिर बात ही क्या की जाय. अब कुछ िोग नेताओं को समाज से बाहर का मानते हैं, तो उनका कुछ भी नहीं हो सकता है. िेलकन यह बात सत्य है लक समाज से ही यह नेता लनकिते हैं. तो क्या यह मान लिया जाय लक राजनीलत के साथ-साथ हमारा समाज भी जहरीिा होता जा रहा है. नहीं, नहीं... ... यह बात तो सवाथ लधक लमथ्या प्रतीत होती. आलखर 'वसुधवै कुटुंबकम' की बात शुरू करने और िगातार मानने वािा समाज जहरीिा कैसे हो सकता है भिा? तो क्या यह मान लिया जाय लक चुनाव के समय में जहर की बात लसिथ इसलिए कही जाती है क्योंलक इस लनलश्चत समय के लिए जनता की आूँखों पर पट्टी िगाई जा सके. यह ठीक है लक हमारे दे श में एक बड़ा वगथ अभी भी सामलजक समरसता का पक्षधर है, परन्तु उन कुछ िोगों का क्या करें , जो अपने लनलहत स्वाथों के कारण लवशेष पररलस्थलतयों में जहर का िै िाव करते रहते हैं. जहर का िै िाव करने के आरोप से कांग्रेस तो बच ही नहीं सकती है क्योंलक यह बात पण ू थ तुः सत्य है लक दे श में ६० साि से भी अलधक समय खुद कांग्रेस गद्ङी पर रही है और दे श में हजारों की संख्या में दंगे और ८४ का बड़ा नरसंहार उसी की दे ख-रे ख में हु ए हैं. इन आरोपों से भाजपा भी नहीं बच सकती है क्योंलक बाबरी मलस्जद का लवध्वंश और गुजरात दंगे उसके दामन पर बड़ा दाग रहे हैं. इन बातों से दुसरे क्षेत्रीय दि 34 www.zmu.in | www.hindinewsportal.com | Mob: +91- 9990089080, Mail: m@zmu.in
ै ालनक पदों की और ईमानदार पाटी भी कैसे बच सकती है क्योंलक नस्िवाद, मलहिा-सुरक्षा और संवध गररमा को िेकर उस पर कई गम्भीर प्रश्न खड़े हु ए हैं. अब जनता इन सभी लवचारधाराओं को आइना लदखाने को पण ू थ रूप से तत्पर है. बस इन्तेजार है तो िोकसभा चुनाव की लतलथयों का. आलखर जहर और जहरीिा होने का असिी प्रमाण-पत्र तो जनता ही दे गी.
- मममथलेश. (www.mithilesh2020.com)
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केजरीिाल का मास्टरस्रोक अरलवन्द केजरीवाि लजस प्रकार आंदोिन से लनकिकर मुख्यमंत्री बने थे, उसने कइयों के मन में उम्मीद की िहर भर दी थी. िेलकन इसी के साथ लजस प्रकार से उन्होंने िोकलप्रयता की राजनीलत की खालतर एक के बाद एक िै सिे करने शुरू कर लदए, उसने उनके समथथ कों में जल्द ही लनराशा भी पैदा कर दी. हािाूँलक उन्होंने जल्दी-जल्दी कई कागजी िै सिे भी लिए, जो शायद उतने असरदार सालबत नहीं हु ए, लजतना उन्हें होना चालहए था. मसिन, पानी को २० लकिोिीटर तक मुफ्त करना केजरीवाि की चतुराई के बाद भी प्रशासलनक स्तर पर एक बड़ा िै सिा था. िेलकन चूँलू क केजरीवाि तब तक पररपक्व राजनीलतज्ञ नहीं बने थे, तो यह मुद्ङा और िै सि कुछ हद तक नकारात्मकता की भेंट चढ़ गया. लबजिी का िै सिा, सलब्सडी के बावजदू और कुछ सीमाओं के बाद भी एक बड़ा िै सिा कहा जा सकता है, लजससे िोगों को सीधे तौर पर िौरी राहत लमिी. िेलकन यहाूँ पर भी राजनैलतक अपररपक्वता ने उन्हें वह िाभ नहीं उठाने लदया, जो घाघ राजनीलतज्ञ उठा पाते. यह दो बड़े दांव यूँहू ी लनकि गए. यह बात तो दावे के साथ कही जा सकती है लक यलद केजरीवाि ने यही दोनों िै सिे पुरे होमवकथ के साथ लिए होते, लकसी कांग्रेसी या भाजपाई की तरह, तो इसका असर कुछ और ही होता. इन दोनों बड़े िै सिों से िायदा नहीं लमिते दे ख केजरीवाि झल्िाते गए और असििता की राह पर बढ़ते लदखने िगे. लिर जनता दरबार, लबना लकसी होमवकथ के बुरी तरह असिि हो गया और केजरीवाि को लपछिे पैरों पर खड़ा होने को मजबरू होना पड़ा. असििता से लखलसयाये केजरीवाि और उनके मंलत्रयों पर सबसे बड़ा सवाि तब उठा जब खेड़की एक्सटेंसन में उनके मंत्री सोमनाथ भारती कानन ू के उल्िंघन, बदजब ु ानी, िजीवाड़े , मीलडया से बदतमीजी जैसे कई आरोपों में सीधे-सीधे लघर गए. अनुभव, यहीं तो काम आता है, जो केजरीवाि और उनकी टीम के पास लबिकुि भी नहीं था. उनके बचाव में केजरीवाि ने खुद की प्रलतष्ठा और परू ी पाटी की साख को दाव पर िगा लदया और वह तो भिा हो पवू थ सेिोिॉलजस्ट योगेन्द्र यादव की समझ का, लजन्होंने उप-राज्यपाि से लमिकर और उनके हाथ-पावं पड़कर एक प्रेस लवज्ञलप्त जारी कराकर दो पलु िस वािों को छुट्टी पर लभजवाने की बात मना िी. अन्यथा आम आदमी पाटी की मट्टी पिीत होने की शुरुआत केजरीवाि ने अराजकता की तरि बढ़कर खुद ही कर दी थी. खैर, झटका िगा उन्हें इन वाकयों से और वह संभि-संभि कर चिने िगे और अपनी अकड़ को ढीिी करते हु ए बगैर ना-नुकर लकये २६ जनवरी की परे ड में चुपचाप लनयमों के अनुसार बैठे और कोई हंगामा नहीं लकया, क्योंलक वह समझ चक ु े थे, एक-दो गिलतयां उनको अशथ से िशथ पर पहु ंचाने को कािी होती. 'आप' की ऐसी दुगथलत दे खकर उनको बड़े और घाघ समथथ कों के कान खड़े हो गए, और उन्होंने कुछ केजरीवाि को भी समझाया और खुद केजरीवाि के समथथ न में खुिकर आये भी. लदल्िी पुलिस के बढे हु ए उत्साह को कुछ लवशेष और बड़े मीलडया समहू ों ने एक के बाद एक लस्टंग कर पस्त कर लदया, तो दूसरी तरि केजरीवाि और उनकी टीम ने भी सावधानी से कदम बढ़ाने का िै सिा लकया. बड़बोिे मंलत्रयों और लवधायकों को बोिने से रोका गया तो शोएब इकबाि और रामबीर शौक़ीन जैसे आजाद लवधायकों से समझौते की राह (वही पुरानी राजनीलत का रास्ता) भी लनकािी गयी. 36 www.zmu.in | www.hindinewsportal.com | Mob: +91- 9990089080, Mail: m@zmu.in
भारतीय जनता पाटी के हमिे को कुंद करने के लिए केजरीवाि ने अपना मास्टरस्रोक भी चि लदया, और वह था शीिा दीलक्षत पर कारवाथ ई की शुरुआत करने का. अब पुराने राजनीलतक लनयम तो यही कहते हैं लक केजरीवाि कारवाथ ई शुरू करके लवपक्ष को रोकेंगे, वहीं कारवाथ ई और जांच का िगातार एक्सटेंसन करके कांग्रेस को भी संतुष्ट करें गे. क्योंलक यलद उनको राजनीलत करनी है, तो उसके लनयम तो यही कहते हैं लक शीिा पर कारवाथ ई का लदखावा जरूर हो, िेलकन या तो इसकी जांच आगे बढ़ती रहे अथवा उनको क्िीनलचट लमि जाए. क्योंलक शीिा के इतनी जल्दी जेि जाने का मतिब कांग्रेस के लिए बेहद खतरनाक होगा. और कांग्रेस अंदरखाने से अपने एक या दो लवधायकों को लनदेश दे सकती है लक वह पाटी से बगावत करके सरकार लगरा दें . आलखर राजनीलत की सबसे परु ानी प्रोफ़ेसर वही तो है. खैर, केजरीवाि की मंशा क्या है और वह अपनी मंशा को राजनीलत के साथ कैसे लमिा पाते हैं, इसे दे खने में अभी वि िग सकता है, िेलकन शीिा के लखिाि जांच शुरू करके वह अपना सबसे मजबत ू दांव तो चि ही चुके हैं. लदिचस्प होगा, इस नए महत्वकांक्षी िोगों के समहू का राजनीलतक नजररये से आंकिन करना. आप भी अपनी कमर कस िीलजये, बहु त कुछ दे खना और सीखना जो है जनता को. क्योंलक जब तक जनता राजनीलत नहीं सीखेगी, समझेगी तब तक यह नेता उसे बेवक़ूफ़ बनाते ही रहें गे. केजरीवाि की शायद यही एक अच्छाई खुि कर सामने आयी है लक जनता को उनसे कािी कुछ सीधे -सीधे लसखने को लमि रहा है. और यही सीखकर वह २०१४ में लसखाने का दावा भी करे गी.
- मममथलेश. (www.mithilesh2020.com)
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े क सांघ, िही परु ाना राग सिालों में राष्ट्रीय स्ियांसि यह बात लकसी से लछपी हु ई नहीं है लक चुनावी राजनीलत में भारतीय जनता पाटी को सवाथ लधक सहयोग आरएसएस, यालन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की तरि से ही लमिता है. यह सहयोग कायथ कताथ ओ ं से िेकर योजना बनाने और योजना कायाथ लन्वत करने में आने वािी प्रत्येक कलठनाई से लनपटने और उससे भी आगे कलथत तौर पर दे श/ राज्य की नीलतयों में हस्तक्षेप तक होता है. यही कारण है लक एक सांस्कृलतक संगठन होने के बावजदू कांग्रेस, सपा, राजद और दूसरे राजनैलतक दि आरएसएस पर लनशाना साधने में कोताही नहीं करते हैं, क्योंलक उन्हें पता है लक भारतीय जनता पाटी की रीढ़ की हड्डी यलद कोई है, तो वह है आरएसएस. चाहे जैसे भी यलद आरएसएस पर लनशाना िग जाए, तो भारतीय जनता पाटी को लपछिे पैरों पर खड़ा करने में बेहद आसानी रहे गी. िेलकन इस आरएसएस की चचाथ करते समय एक बेहद लदिचस्प बात सामने आती है, वह है इससे कांग्रेसी लवचारधारा का िगातार डरना. आजादी के पहिे भी कांग्रेस के सबसे बड़े नेता और दे श के राष्ट्रलपता महात्मा गांधी का आरएसएस के प्रलत दुराग्रह कोई लछपा हु आ लवषय नहीं है. महात्मा गांधी की १९४८ में लजस प्रकार हत्या हु ई और लबना लकसी ख़ास सबत ू के लजस प्रकार आरएसएस को प्रलतबंलधत कर लदया गया था, उस पर आज भी सवाि उठते रहे हैं. हािाूँलक बाद में सबत ू के अभाव में कांग्रेस ही की सरकार को मजबरू न अपने प्रलतबन्ध को हटाना पड़ा था. कहते हैं, इस प्रलतबन्ध से पहिे आरएसएस पण ू थ रूप से सांस्कृलतक संगठन रहा था, परन्तु आरएसएस के प्रचारकों ने इसके बाद १९५१ में जनसंघ की स्थापना करके राजनीलत में अपनी पैठ बनाने की शुरुआत कर दी थी. यह तो लनलश्चत बात है लक आरएसएस शुरू से ही अपने अिग तेवर में शलिशािी लदखने िगा था, लजसकी लवचारधारा कांग्रेस से लबिकुि अिहदा थी. हािाूँलक आरएसएस को राजनीलतक पररणाम प्राप्त करने में िगभग पचास साि िग गए और उनकी राजनैलतक स्वीकायथ ता तब हु ई जब अटि लबहारी बाजपेयी प्रधानमंत्री बने. इसके पहिे इसका राजनैलतक प्रभाव लछटपुट ही था. इसमें यह उद्चत ृ करना आवश्यक है लक आपातकाि में आरएसएस पर एक बार लिर इंलदरा गांधी ने प्रलतबन्ध िगाया, िेलकन तब तक आरएसएस राजनीलत लसख चक ु ा था और तब के तत्कािीन िोकनायक जयप्रकाश नारायण को भी अिग लवचारधारा के होने के बावजदू आरएसएस को साथ िेने को मजबरू होना पड़ा और आरएसएस के सहयोग और उसके समलपथ त कायथ कताथ ओ ं के संघषथ से ही इंलदरा गांधी जैसी ताकतवर नेता को झुकाया जा सका. इस बीच चंद्रशेखर और अन्य जनता पाटी के नेताओं का आरएसएस लवरोध कभी कम नहीं हु आ, िेलकन इसके लवपरीत आरएसएस की ताकत िगातार बढ़ती ही रही. जनता पाटी में जनसंघ के लविय के समय की एक बेतुकी शतथ बड़ी प्रलसद्ङ है, लजसमें जनता पाटी के नेताओं ने संघ के स्वयंसेवकों को जनता पाटी का सदस्य न होने की शतथ रख दी थी. इस बीच आरएसएस पर िगातार उन्मादी और साम्प्रदालयक लवचारधारा का प्रसार करने के आरोप िगते रहे और राजनीलतक रूप से पररपक्व हो गया आरएसएस और जनसंघ के बाद उसकी अगिी कड़ी भाजपा मजबत ू होती चिी गयी. आरएसएस और भाजपा की मजबत ू ी का वत्तथ मान में अंदाजा इस बात से ही िगाया 38 www.zmu.in | www.hindinewsportal.com | Mob: +91- 9990089080, Mail: m@zmu.in
जा सकता है लक कांग्रेस अकेिे उसका मुकाबिा करने में अब सक्षम नहीं है और उसे कई-कई क्षेत्रीय दिों के सहयोग की जरूरत पड़ रही है. इस बात को कई लवचारक अलतश्योलि मान सकते हैं, िेलकन यह तथ्य है लक वत्तथ मान की राजनीलत आरएसएस/ भाजपा बनाम अन्य की है. २०१४ के आम चुनाव में भाजपा जहाूँ अपने दम पर २७२ का आंकड़ा छूने का दम भर रही है, वही ूँ दस ू री तरि कांग्रेस दस ू रों के कंधे पर बन्दक ू रखकर गोिी चिाती साफ़ लदखती है. जहाूँ तक असीमानंद के कलथत साक्षात्कार की बात है, तो इसका कहीं कोई आधार लदखता नहीं है, बजाय राजनीलत के, क्योंलक खुद कांग्रेस की सरकार केंद्र में है और केंद्र से जुडी जांच एजेंसी एनआईए संघ से जुड़े पदालधकाररयों को क्िीन-लचट दे चुकी है. वैसे भी राजनीलत में सवािों का उठना कोई नयी बात नहीं है, और जब बात आरएसएस जैसे ताकतवर संगठन की हो तब तो सवािों की बौछार होगी ही. िेलकन इन सवािों में दम लकतना है, यह तो सवाि उठाने वािों को बताना ही चालहए, लवशेषकर तब जब उसके हाथ में सत्ता और ताकत दोनों की चाभी हो. आलखर कांग्रेस और आरएसएस दोनों के साथ-साथ जनता भी तो पररपक्व हु ई है. दोनों जनता को इतने हल्के में न िें, अन्यथा पटखनी दे ने में जनता को सबसे ज्यादा महारत हालसि है. यही तो हमारे िोकतंत्र की ख़बू सरू ती है लक प्रत्येक वाद-लववाद के िै सिा जनता के हाथ में होता है और जनता इन लववादों पर िै सिा सुनाने के लिए लबिकुि उपयुि जज है. क्या कहते हैं, 'आप'.
- मममथलेश. (www.mithilesh2020.com)
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ै ामनकता एिां जनलोकपाल मबल राजनीमत, सांिध दे श की राजनीलत लपछिे ४ सािों से जनिोकपाि लबि से मुि नहीं हो पा रही है. पहिे जहाूँ आन्दोिनों, धरनों और प्रदशथ नों को इसके शुरूआती चरण के रूप में दे खा गया, वहीं अब यह िड़ाई सरकार से होती हु ई ै ालनकता और अराजकता के प्रश्न पर आकर लटक गयी है. हर बार मोहरे पर होता है, कलथत संवध जनिोकपाि लबि. ऐसा नहीं है लक इसकी भनक तत्कािीन राजनैलतक तंत्र को नहीं रही होगी, और शायद इसीलिए इस मुद्ङे को जल्द से जल्द ख़त्म करने के लिए परस्पर लवरोधी राजनैलतक पालटथ यां लमि गयीं और इस जनिोकपाि लबि के अगुआ रहे अन्ना हजारे को येन केन प्रकारे ण साध लिया गया. आनन िानन में िोकसभा, राज्यसभा से यह लबि ध्वलनमत से पाररत हु आ और िोगों ने समझा लक यह मुद्ङा तो केजरीवाि से लछन गया. कािी हद तक यह सच भी है. अब केजरीवाि और उनके लमत्र लबजिी-पानी के मुद्ङे पर आलखर कब तक िड़ते रहें गे. हाूँ, यलद जनिोकपाि का मुद्ङा वह दुबारा जीलवत करने में सिि रहे तो इसे पहिे राज्य, उप-राज्यपाि, गहृ -मंत्रािय से होते हु ए संसद के मागथ से दे शव्यापी बनाने का मौका जरूर हाथ िग सकता है. अब बात लबिकुि साफ़ हो जाती है, लजसमें पुराना तंत्र इस मुद्ङे को समाप्त करना चाहता है, और नयी उभरी ताकत इस मुद्ङे को जीलवत करने के लिए कुछ भी करने को तैयार लदखती है. जरा सोलचये, यह मुद्ङा यलद केजरीवाि अपनी योजना के अनस ु ार धम ू -धाम से लकसी पाकथ/ स्टेलडयम में िे जाकर, लवधानसभा का सत्र बुिाकर पास करा िे जाते हैं, तो उनकी िोकलप्रयता का ग्राि कहाूँ से कहाूँ तक पहु ूँच जाएगा और पुराने राजनैलतक तंत्र, लजसको वह भ्रष्टाचारी कह कहकर कठघरे में एक हद तक खड़ा कर चुके हैं, उसकी ब्रांलडं ग का ग्राि लकतना नीचे आ जायेगा. राजनीलत को समझने वािे घाघ राजनीलतज्ञ अब तक केजरीवाि को समझ चक ु े होंगे लक उनकी राजनैलतक जमीन क्या है, अथवा आम आदमी पाटी अपना राजनैलतक अलस्तत्व कहाूँ ढूंढ रही है. लबिकुि साफ़ है, पुराना तंत्र ख़त्म करके या उसको करारी चोट पहु ंचाकर ही आम आदमी आगे बढ़ सकती है. अपना इरादा वह जालहर कर चुके हैं. यह बात सही है अथवा गित यह एक बहस का मुद्ङा जरूर हो सकता है. पुराना तंत्र इस बात की कवायद में िगा है लक नयी उभरती ताकत को समझौता करने के नाम पर सीलमत कर लदया जाय और अपने अंदर समे ट लिया जाय, िेलकन केजरीवाि और उनके तेज-तराथ र सालथयों का लवश्वास या आभाष लदल्िी की जीत के बाद और भी पक्का हो गया होगा लक वह पुराने तंत्र को समाप्त करके या सीलमत करके अपना वचथ स्व स्थालपत कर सकते हैं. वोटों के पररणाम के बारे में आंकिन तो खैर अभी नहीं लकया जा सकता, िेलकन राजनैलतक तंत्र के लखिाि जो जनता में आग िगी हु ई है, उसको केजरीवाि और उनकी टीम ने बहु त पहिे ही भांप लिया था और उस गुस्से से अपनी लखचड़ी पकाने िायक सामथ्यथ भी उन्होंने जुटा लिया है, या उनको ऐसा लवश्वास है. अब जरा सोलचये, केजरीवाि कांग्रेस और भाजपा जैसे दिों को समाप्त करके, तोड़ करके अपना उभार करने का सपना दे ख रहे हैं, और न लसिथ दे ख रहे हैं, बलल्क जनिोकपाि लबि को आधार बनाकर अपनी चािें भी चि रहे हैं. अब सामने से िड़ाई आर-पार की लदख रही है, और यह िोकसभा के पररणामों तक सम्भवतुः लदखेगी भी. हाूँ, िोकसभा के पररणामों के बाद सभी दि अपना सामथ्यथ , जनता का समथथ न और उसकी आशा को समझ चुके होंगे, और तब िै सिा होगा कौन रहे गा, 40 www.zmu.in | www.hindinewsportal.com | Mob: +91- 9990089080, Mail: m@zmu.in
कौन धलू मि होगा या कौन लकस से लमिकर रहे गा. तब तक यह शह और मात का खेि चिता रहे गा. जहाूँ तक बात जनिोकपाि की वैधालनकता का है तो इस बात पर भी खेि ही चि रहा है. लपछिे लदनों लदल्िी के मुख्यमंत्री अरलवंद केजरीवाि ने मीलडया को एक खत लदया था, लजसमें लिखा गया था लक जलस्टस मुकुि मुद्गि, पीवी कपरू , केएन भट्ट और लपनाकी लमश्रा की राय िेने के बाद ही उन्होंने जनिोकपाि लबि को लवधानसभा में पेश करने की तैयारी की थी. केजरीवाि ने दिीि दी थी लक इनसे राय के बाद ही जनिोकपाि लबि का प्रस्ताव पाररत लकया था, िेलकन अब इन चार नामों में से दो - वररष्ठ वकीि केएन भट्ट और लपनाकी लमश्रा ने कहा है लक उन्होंने न तो लबि दे खा है और न ही इस तरह की कोई राय दी है. इससे केजरीवाि जरूर थोड़े बैकिूट पर आ गए हैं. थोडा उनपर दबाव इसलिए भी पड़ा है क्योंलक लदल्िी के उपराज्यपाि के पछ ू े जाने पर भारत के सॉलिलसटर जनरि ने कहा था लक जनिोकपाि लबि को लबना गहृ ै ालनक होगा. मंत्रािय की मंजरू ी के पास नहीं लकया जा सकता है और बताया था लक यह तरीका असंवध िेलकन एक के बाद एक इसकी काट लनकािी जायेगी, क्योंलक राजनीलत में कुछ भी असम्भव नहीं होता है. और जब प्रश्न राजनैलतक अलस्तत्व का हो तब तो हर तरह का रास्ता हर पक्ष लनकािेगा. क्योंलक बदिाव चाहे कुछ आया हो अथवा नहीं आया हो, एक बदिाव तो आया ही है और वह है वत्तथ मान राजनैलतक तंत्र के मन में डर. अब तक तो उनको िगता था लक वह इस बार नहीं जीते, तो ५ साि बाद भी जोर-आजमाइश कर सकते हैं. िेलकन अब उन्हें यह डर है लक वह लजस प्रकार राजनीलत करते आये हैं, वह राजनीलत ही कहीं न बदि जाय. लिर नयी राजनीलत में वह भिा कहाूँ लिट बैठेंगे. ऐसा नहीं है लक इस सवाि से लसिथ पुराना तंत्र ही जझ ू रहा है, बलल्क नए तंत्र की तो और भी समायाएं हैं. एक तो उन्हें खुद को सालबत करने की जद्ङोजहद है, दस ू रे उन्हें राजनीलत के परु ाने लनयम लसिथ सीखने हैं, क्योंलक वह जब परु ाना जानेंगे तभी तो अपना नया लनयम बनाएं गे. इसमें बारीकी यह है लक पुराना लनयम उन्हें लसिथ सीखना है, अपनाना नहीं है, क्योंलक यलद वह वही लनयम अपनाते हैं, जो पहिे से हैं तो पुरानी राजनीलत ही क्या बुरी है. मतिब साफ़ है, उन्हें राजनीलत करनी तो है, िेलकन राजनीलत के तात्कालिक िायदों से खुद को दूर रखना है. और उनकी सबसे बड़ी समस्या यह है लक जनता की आशाएं और उम्मीदें सबसे ज्यादा होने के कारण उनकी बारीकी से लशनाख्त हो रही है और उसमें वह कई छे द नजर आ रहे हैं, जो शायद सामान्य रूप से नजर नहीं आते. संलवधान का उल्िंघन, अराजकता, अनुभव की कमी से तो वह जझ ू ही रहे हैं, साथ में उनकी एकमात्र पंज ू ी 'साफ़-नीयत' पर भी उनकी बड़ी महत्वाकांक्षा भारी पड़ती लदख रही है. क्योंलक साफ़ नीयत तो एक बेहद सटीक दैवीय गुण है, और यह अकेिे नहीं चिता है, बलल्क धैयथ, सलहष्ट्णुता, त्याग, संतुिन इत्यालद अन्य मानवीय गुणों का परू क है. ऐसा नहीं हो सकता लक आप अपनी मजी से एक सदगुण के प्रशंसक और िािोवर होने का दावा करें , और दूसरे मानवीय गुणों से आप कन्नी काट िें. यहीं तो संलदनध हो जाते हैं 'आप'. खैर, प्रयासों में कािी दम होता है और पुराने और नए दोनों तंत्रों के लिए यह सीखने का उलचत अवसर है. पुराना अपनी गिती सुधारे , अन्यथा वह लमट जायेगा और नया अलत-आत्मलवश्वास से बचकर साफ़ नीयत से ही संतुिन बनाये अन्यथा उसकी भ्रण ू -हत्या हो जायेगी. और इससे बड़ी बात यह है लक दोनों तंत्र एक दूसरे के प्रलत सलहष्ट्णु हों. आलखर यही तो है 'साफ़ नीयत'. - मममथलेश. (www.mithilesh2020.com) 41 www.zmu.in | www.hindinewsportal.com | Mob: +91- 9990089080, Mail: m@zmu.in
ाअमखर बेदाग़ क्यों हैं धोनी? यह भिा कैसे सम्भव है लक लकसी संस्था के कई सदस्य लिलक्संग जैसे गम्भीर अपराध में शालमि रहे हों और उसी संस्था का सबसे महत्वपण ू थ और तेज-तराथ र लखिाड़ी एवं कै्टन इन बातों से अनजान रहा हो. वैसे लक्रकेट में लजस प्रकार पैसे की आवाजाही एक लवशेष रफ़्तार से शुरू हो चुकी है, उसने इस खेि को दागदार बनाने के तमाम रास्ते खोि लदए हैं. हािाूँलक इस लक्रकेट की प्रशासलनक संस्था की एक बेहद ख़ास बात रही है, वह यह है लक चाहे बीसीसीआई के कोई भी अध्यक्ष, लकसी भी दरमयान रहे हों, वह सीमा से कािी आगे तक ताकतवर रहे हैं. बात चाहे जगमोहन डािलमया की रही हो, या राजनेता शरद पवार हों अथवा लनवत्तथ मान एन. श्रीलनवासन ही क्यों न हों, इन िोगों के पास बेइंलतहा ताकत रही है. कोई भी आरोप िगा िे, कोई कुछ भी कह िे, इन िोगों पर कुछ भी िकथ नहीं पड़ता है. यहाूँ तक लक २०१३ में भी, लजसमें अनेकों हलस्तयां जेि की हवा खा चुकी हैं, वह भी एन. श्रीलनवासन का कुछ भी नहीं लबगाड़ सकी. आसाराम, तेजपाि, िािू प्रसाद, संजय दत्त सलहत अनेकों िोगों पर २०१३ का प्रकोप तो पड़ा, िेलकन बीसीसीआई के अध्यक्ष पर गम्भीर आरोप िगने के बावजदू , उनके दामाद के सीधे-सीधे लिलक्संग में शालमि होने की पुलष्ट होने के बावजदू उनका कुछ भी नहीं लबगड़ सका. लनयम बदि कर वह महज कुछे क लदनों के लिए प्रलक्रयाओं से दरू भर रहे, िेलकन इसके बावजदू वह अध्यक्ष बने रहे . बड़े कापोरे ट के तौर पर पहचाने जाने वािे एन. श्रीलनवासन अब आईसीसी के भी अध्यक्ष बन चुके हैं, और उनके रसख ू का अंदाजा इसी बात से िगाया जा सकता है लक बड़े -बड़े राजनेता भी उनके सामने अपना मुंह बंद रखने में ही भिाई समझते हैं. मसिन, अरुण जेटिी, राजीव शुक्ि, अनुराग ठाकुर और अन्य दस ू रे . हािाूँलक इस बात पर लववाद हो सकता है, िेलकन लक्रकेट के पैसे को राष्ट्र का पैसा क्यों नहीं माना जाना चालहए. आलखर इस बात का क्या तुक है लक राष्ट्र के नाम पर िोकलप्रय हो रहे खेि और लखिालड़यों पर कुछे क िोगों का एकालधकार हो जाए. और न लसिथ एकालधकार हो जाए, बलल्क आईपीएि जैसे नए-नए तरीके लनकािकर भलवष्ट्य की सम्पदा पर भी लनयंत्रण कर लिया जाए. जरा सोलचये तो, एक बेहद भारी भरकम रकम, भारतीयों की जेब से लनकि कर कुछ िोगों की जेब में जमा हो जाती है. छोटे-मोटे कई लखिालड़यों पर तो लिलक्संग के आरोप िगते ही रहे हैं, िेलकन न्यायमलू तथ मुदगि की जांच ररपोटथ के माध्यम से अब िंसे हैं दे श के िोकलप्रय भारतीय लक्रकेट कप्तान महें द्र लसंह धोनी. उन पर सीधेसीधे आरोप िगाते हु ए कहा गया है लक धोनी चेन्नई सुपर लकंनस के गुरुनाथ मय्पन को बचाने में शालमि रहे हैं. यह बात लकतनी सच है अथवा झठ ू है, यह तो जांच का लवषय हो सकती है, िेलकन पैसे के इस खेि में लकसी का चररत्र पतन होना लबिकुि भी नयी बात नहीं है. धोनी को इस बात की छूट नहीं दी जा सकती है क्योंलक वह भारत को लवश्व-कप लदिाने वािे कप्तान हैं. बलल्क इसके लिए तो उनकी और भी कड़ाई से जांच की जानी चालहए और दोषी सालबत होने पर उनके ऊपर यथा योनय प्रलतबन्ध िगना चालहए. इसके साथ साथ इस बात की मांग भी जोरों से उठनी चालहए लक लक्रकेट को भी खेि मंत्रािय के अंतगथ त
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िाया जाए और लक्रकेट की ताकत और पैसे के ऊपर राष्ट्र का सीधा लनयंत्रण हो, न लक कुछे क िोगों का. इसी में लक्रकेट की भी भिाई है और राष्ट्र की भी.
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मजम्मेिार को सामने लाओ संसद में होता तो बहु त कुछ रहा है, िेलकन तेिंगाना मुद्ङे को िेकर संसद में लजस प्रकार का कृत्य हु आ, उसके लजम्मे वार को खोजा जाना जरूरी है. जनता जानना चाहती है लक क्या वही दो सांसद इस शमथ नाक हरकत के लिए पण ू थ लजम्मे वार हैं, अथवा इन सबके पीछे वोटबैंक की घलटया राजनीलत और दे श की बड़ी पालटथ यां भी लजम्मे वार हैं. लजस प्रकार िोकतंत्र के मंलदर में, िोकतंत्र ही के दे वता कहे जाने वािे सांसद, अपने व्यवहार से राक्षस नजर आये , उसने समच ू े तंत्र को कठघरे में खड़ा कर लदया है. दोष लसिथ कांग्रेस और तेिगुदेशम के दो सांसदों को नहीं लदया जा सकता क्योंलक लजस प्रकार इस मुद्ङे को कांग्रेस पाटी लपछिे कई महीनों से गरम कर रही थी, उसके सन्दभथ में इस कृत्य पर आश्चयथ नहीं लकया जाना चालहए. आलखर कोई सरकार राज्यों के बंटवारे पर इतनी ज्यादा असंवेदनशीि कैसे हो सकती है. राज्यों का बंटवारा भावनात्मक मुद्ङा होता है, िोग इसे अपना जातीय मसिा बना िेते हैं, और यही कारण है लक इस संघषथ में हजारों िोगों की बलि हो चुकी है. अब जब, दूसरे सांसदों की आूँखों में कािी-लमचथ का स्प्रे गया है, तब शायद उन्हें इस बात का अहसास हो लक उनकी राजनीलत का स्प्रे जनता के जीवन में लकतना जहरीिा असर करता है. इस मुद्ङे को बेहद शांत तरीके से और अंदरूनी तरीके से भी लनपटाया जा सकता था, बजाय लक इस मुद्ङे को चाकू की नोंक पर रखा गया. कई पत्रकारों को इस मुद्ङे के जहरीिे होने का आभाष तभी हो गया था जब वररष्ठ कांग्रेसी नेता लदलनवजय लसंह ने इस मुद्ङे पर आंध्र के सांसदों को दरलकनार करते हु ए अपनी एकतरिा लसिाररश कर दी थी. दरअसि, इस मुद्ङे के राजनीलतकरण को समझने के लिए हमें आंध्र की राजनीलत पर दृलष्टपात करना होगा. कांग्रेस के बड़े छत्रप समझे जाने वािे आंध्र के पवू थ मुख्यमंत्री वाई.एस.राजशेखर रे ड्डी की असामलयक मौत से कहानी की शुरुआत हु ई. स्वाभालवक रूप से, खानदानी राजनीलत का गढ़ रही कांग्रेस में स्व. रे ड्डी के पुत्र जगन मोहन रे ड्डी ने कुसी पर अपना दावा ठोंक लदया और जब कांग्रेसी आिाकमान ने उसको कुसी न दे कर लकरण कुमार रे ड्डी को मुख्यमंत्री बना लदया तब जगन ने बगावत कर दी और कांग्रेस ने सीबीआई के माध्यम से उसे १६ महीनों तक जेि में रखा. आंध्र में हु ए लवधानसभा उपचन ु ावों में जहाूँ कांग्रेस मुंह के बि लगर गयी, वही ूँ जगन मोहन १४ सीटें जीतकर एक बड़ी ताकत बन गए. अब जगन को डाउन करने के लिए, कांग्रेस ने असमय तेिंगाना मुद्ङे को हवा दी, और उसी के ििस्वरूप संसद में भारतीय िोकतंत्र की सबसे शमथ नाक घटना दजथ हो गयी. अब कांग्रेस इस मुद्ङे को जिा-जिाकर बेशक तेिंगाना में अपना आधार खड़ा कर िे, िेलकन जनता का और िोकतंत्र का लजस प्रकार अपमान और नुक्सान हु आ, उसकी भरपाई शायद कभी नहीं की जा सके. इसलिए, इस अपराध और राष्ट्रद्रोह जैसे कृत्य के असिी लजम्मे वार न लसिथ वह दो सांसद हैं, बलल्क वह भी हैं, जो राजनीलत के पीछे लछपकर दे श में जहर िै िाने का कायथ करते रहे हैं. इस मुद्ङे पर उस राजनीलत को जवाब दे ना चालहए, जो जनता के लहतों का रखवािा होने का दम भरती रही है. अन्यथा िोकतंत्र उसे कभी माफ़ नहीं करे गा, और ऐसी राजनीलत को उसका पाप िे डूबेगा. यहाूँ प्रश्न लकसी एक राजनैलतक पाटी का 44 www.zmu.in | www.hindinewsportal.com | Mob: +91- 9990089080, Mail: m@zmu.in
नहीं है, बलल्क गित व्यवस्था का है. आलखर िोकतंत्र के लहस्से में तेिंगाना, मुजफ्िरनगर, गुजरात, लसक्ख दंगे शमथ ही तो हैं. या कुछ और, 'आप' भी तो सोलचये...!
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हक़ तो ाईनको भी है हक़ तो उनको भी है बेहद मुलश्कि होता है जमी जमाई व्यवस्था में अपनी जगह बना पाना. अब जबलक आम आदमी पाटी पर से आंदोिन और व्यवस्था-सुधार का खुमार कािी हद तक उतर चुका है और राजनीलत की खुमारी छाने िगी है तब इस समस्त प्रकरण को थोडा उदार होकर दे खा जाना आवश्यक हो गया है. हािाूँलक इस वाक्य से केजरीवाि और उसकी टीम जरूर सहमत नहीं होगी, िेलकन यह बात दावे से कही जा सकती है लक उनकी असहमलत भी राजनैलतक ही होगी. दे श-सेवा और व्यवस्था-सुधार का दावा आलखर कौन नहीं करता है. भाजपा तो इसकी पुरानी ठे केदार है ही, कांग्रेस जो शायद सवाथ लधक भ्रष्टाचारी रही है, वह भी दे श सेवा और व्यवस्था सुधार का रोज दावा करती है. इसलिए आप समथथ क भी यलद दिीय व्यवस्था में दे शभि होने का दावा करते हैं तो उनको मान्यता लमिनी चालहए, न लक उनको अराजक अथवा अनुभवहीन कहकर खाररज करते रहना चालहए. एक वगथ का ही सही, हक़ तो उनको भी है राजनीलत करने का. हक़ उनको है पुरानी व्यवस्था पर प्रश्न खड़ा करने का. राजनीलतज्ञों और पंज ू ीपलतयों के बीच भ्रष्टाचारी तािमे ि पर प्रश्न खड़ा करने की स्वतंत्रता पर प्रलतप्रश्न क्यों होना चालहए. इस सन्दभथ में अरलवन्द केजरीवाि के मुख्यमंत्री पद से इस्तीिा दे ने की चचाथ भी जरूरी हो जाती है. राजनीलत के दावं-पेंच में नौसीलखए रहे आप के लवधायकों को लवधानसभा में पहिे लदन से लजस प्रकार कांग्रेस और भाजपा के लवधायक नीचा लदखा रहे थे, वह गौर करने का लवषय है. चाहे आप लवधायकों द्रारा तािी बजाना और टेबि थपथपाने का शुरूआती मसिा हो, या अरलवन्द केजरीवाि ै ालनक कहने के लसिलसिे का आलखरी जुमिा हो, कांग्रेस और भाजपा के नेता इस नयी टीम को असंवध कहें या उन्हीं के नए राजनैलतक भाई-बंधुओ ं को स्वीकार करने को क्षण भर को भी तैयार नहीं लदखे. ठीक उसी प्रकार लजस प्रकार लकसी लपता का जायज पुत्र, उसकी नाजायज औिाद से दूरी बनाये रखता है. ये उदाहरण कुछ ज्यादा ही सटीक बैठ गया. िेलकन इस बात में कोई दो राय नहीं है लक पुराना राजनैलतक वगथ इस नए राजनैलतक वगथ को अभी भी नाजायज औिाद ही मानता है. िेलकन िोकतंत्र में लनयम तो यही कहते हैं लक नाजायज हो या जायज, उनका हक़ बराबर है. हाूँ एक दुसरे को मान्यता दे ने से बाप को कष्ट नहीं होता है. यलद जनता को राजनैलतक दिों का बाप मान लिया जाय तो नयी और परु ानी दोनों व्यवस्थाएं उसी की संतानें हैं. और अब जब जनता चाहती है लक नई व्यवस्था को मान्यता लमिे, तो इसमें पुरानी व्यवस्था को कोई कष्ट नहीं होना चालहए. वैसे भी, पुरानी व्यवस्था से जनता कुछ ज्यादा ही त्रस्त है. केजरीवाि के लदल्िी मुख्यमंत्री पद से इस्तीिा दे ने से उनकी अक्षमता का सन्दे श लनलश्चत रूप से गया है, िेलकन उनके पास राजनैलतक रूप से बेहद कम लवकल्प बचे थे. एक तो उनके िोक-िुभावन वादों पर से परदा उठने िगा था, दस ू रा िोकसभा के लिए उनके नेतत्ृ व और जुझारूपन की कमी उनकी पाटी साफ़ महसस ू करने िगी थी. िेलकन इस्तीिा दे ने का इससे भी बड़ा ै ालनक सालबत करने में कारण यह था लक भाजपा और कांग्रेस के धुरंधर और घाघ नेता उनको असंवध ै ालनक. अब सिि होने िगे थे. अब यलद वह कुछ नहीं करते तो भी मुलश्कि और कुछ करते तो असंवध 46 www.zmu.in | www.hindinewsportal.com | Mob: +91- 9990089080, Mail: m@zmu.in
थोड़ा बहु त वह एक्सपोज तो जरूर हु ए, िेलकन कािी कुछ राजनीलत वह सीख गए. कम से कम इतना तो वह जरूर सीख गए होंगे लक अलत उत्साह में खुद को अराजक नहीं कहें गे. िेलकन वह जो प्रश्न उठा रहे हैं, उस पर स्थालपत दिों को जवाब लनलश्चत रूप से दे ना पड़े गा. नाजायज, नाजायज कह दे ने से उसका कानन ू ी आधार ख़त्म नहीं हो जायेगा. आलखर संलवधान भी तो यही कहता है लक "हक़ तो सभी को है".
- मममथलेश. (www.mithilesh2020.com)
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ाईम्मीदिारों को भी देमखये भारतीय जनता पाटी का चुनावी अलभयान वैसे तो बड़ी रफ़्तार से चि रहा है, िेलकन उनकी कुछे क बातों को िेकर मतदाताओं के मन में संदेह आने िगा है. भाजपा वैसे तो सादगी और शुलचता की बातें करते आघाती नहीं है, िेलकन हाि ही में लजस प्रकार ४०० करोड़ की भारी-भरकम रालश के ब्रांड-लबलल्डं ग पर खचथ करने की बात कही जा रही है, उसने इसके समथथ कों के कान खड़े कर लदए हैं. लवरोधी पालटथ यां तो इस पर प्रश्न दाग ही रही हैं, िेलकन उससे बड़ा प्रश्न यह उठता है लक क्या चुनाव जीतने के बाद मोदी और उनकी टीम इस पैसे को व्याज समे त वसि ू ेंगी भी. यह बात तो लबल्कुि स्पष्ट है लक भ्रष्टाचार की जननी राजनीलत ही है और इसके साथ इस बात से भी इंकार नहीं लकया जा सकता है लक लजस प्रकार राजनैलतक दि चंदे का िेन-दे न करते रहे हैं, उसमें भ्रष्टाचार का बहु त अहम रोि होता है. कई बार तो चंदे की रकम आम जनता द्रारा स्वेच्छापवू थ क सीलमत होती है, जबलक कई बार यह बड़े घरानों द्रारा लकसी पाटी की नीलतयों को प्रभालवत करने में प्रमुख भलू मका लनभाती है. ऐसे में चंदों पर और लकसी पाटी द्रारा लकये जा रहे खचथ पर मतदाताओं का प्रश्न पछ ू ना िाजमी हो जाता है. भाजपा के ही सन्दभथ में एक और नीलतगत बात सामने आ रही है, लजसने मतदाताओं और मोदी के समथथ कों को लनराश करना शुरू कर लदया है. भाजपा के बड़े नेता और यहाूँ तक लक राजनाथ लसंह अपनी जनसभाओं में बार-बार कह रहे हैं लक इस बार मतदाता, स्थानीय उम्मीदवारों को न दे ख,ें बलल्क वह मोदी के नाम पर अपना वोट दें . प्रश्न यही खड़ा हो जाता है लक आलखर उम्मीदवारों को अनदे खा करने की अपीि भाजपा के शीषथ नेतत्ृ व द्रारा क्यों की जा रही है. मतदाता संशय कर रहा है लक क्या भाजपा के उम्मीदवार ईमानदार नहीं होंगे? क्या मोदी के नाम पर ऐरे -गैरे उम्मीदवारों को लटकट दे लदया जायेगा? यलद सचमुच ऐसा होगा तो भारत की बहु संख्यक जनता पर से मोदी का प्रभाव कम होने में ज्यादा समय नहीं िगेगा. बेहतर होता, यलद मोदी को चमत्कारी मानने के साथ-साथ िोकतंत्र के मनमालिक उम्मीदवारों को लटकट भी लदया जाता. और साथ में अपने बेहतरीन प्रचार के साथ जनता को यह भी सन्दे श दे ने की कोलशश की जाती लक उनका प्रचार अथाह और गित कािे धन पर लनभथ र नहीं है, बलल्क उसके कायथ कत्ताथ और स्वयंसेवक उसके मि ू में हैं. उसे लकसी बनावटी और लदखावटी कैम्पेन की आवश्यकता नहीं है, बलल्क जनता तक सन्दे श पहु ूँचाने में उसके नेता और सहयोगी ही पयाथ प्त हैं. अच्छे उम्मीदवारों की क्या अहलमयत होती है, यह भारतीय जनता पाटी और मोदी को लदल्िी के लपछिे लवधानसभा चुनावों से सीख िेना चालहए था. लजस प्रकार चुनाव के कुछ ही लदनों पहिे लवजय गोयि को हटाकर डॉ. हषथ वधथ न को मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार घोलषत लकया गया था, उसी का कहीं न कहीं पररणाम था लक लदल्िी में भाजपा सबसे बड़ी पाटी के रूप में उभरी. लवश्ले षक इस बात को दावे के साथ कह रहे हैं लक भाजपा का केंद्र में सरकार बनना अथवा नहीं बनना इस बात पर लनभथ र करे गा लक वह िोकसभा में अपने उम्मीदवारों को ईमानदारी की कसौटी पर कैसे कसती है, बजाय यह कहने के लक लसिथ मोदी के नाम पर मतदाता अपनी आूँखें बंद कर िें.
- मममथलेश. (www.mithilesh2020.com) 48 www.zmu.in | www.hindinewsportal.com | Mob: +91- 9990089080, Mail: m@zmu.in
मोदी को रोकने की बात ही क्यों? कई बार मन में प्रश्न उठता है लक राजनीलत क्या नकारात्मकता का ही नाम है या इसके द्रारा कुछ सकारात्मक पररणाम भी प्राप्त लकये जा सकते हैं. कुछ नेता राजनीलत को समाज-सुधार और बलढ़या प्रशासन का ही एक घटक मानते हैं. िेलकन आश्चयथ तब होता है जब यही नेता बजाय एक बड़ी िाइन खींचने के, एक-दुसरे पर छींटाकसी करने को अपना राजनैलतक आधार मानने िगते हैं. ताजा मामिा राजनीलत के केंद्र-लबंदु बने नरें द्र मोदी का है. उनके तमाम लवरोधी अपने राजनैलतक हमिों में उनकी साम्प्रदालयक छलव को उभारते रहे हैं. इसमें कोई बुराई भी नहीं है. आपलत्त तो तब होती है, जब इसी नकारात्मकता को आधार बनाकर वोट मांगे जाते हैं. आलखर इसे आम जनता को मुखथ बनाने का प्रयास नहीं माना जाये तो और क्या माना जाए, क्योंलक राजनीलत में आये हु ए तमाम नेता आलखर राजनीलत में इसलिए ही तो आते हैं, क्योंलक वह जनता की बेहतरी के लिए कायथ कर सकें. और कोई भी कायथ उनकी अपनी क्षमता से ही होगा, न लक मोदी या दूसरों की बुराई करके. आज कि यह चिन हो गया है लक मोदी की बुराई करो, और वोट मांग िो. नेताओं की मानलसकता कुछ यं ू हो गयी है लक चुनाव जीतने का एक ही मंत्र है, और वह है 'मोदी-लवरोध'. हमें मोदी या लकसी और से कोई िगाव नहीं है, उन्होंने जो गित लकया है, उसके लिए अदाितें, जनता और ईश्वर हैं, िेलकन हमें इस बात पर भी आपलत्त है लक मोदी का नाम बार-बार िेकर आम जनता को मायावती, प्रकाश करात, मुिायम लसंह या दुसरे नेता जनता को मुखथ बनाएं . हाूँ, िोकतंत्र में उनको हक़ है वोट मांगने का, िेलकन अपनी अच्छी योजनाओं के बि पर. वह अपना प्रशासलनक खाका िेकर जनता के पास जाएं , और उससे वोट मांगे. जहाूँ तक बात तीसरे मोचे के नेताओं की है, तो उसकी कहानी तो इंलदरा गांधी के ज़माने से स्पष्ट है. लजस प्रकार मोरारजी दे साई की सरकार के लखिाि प्रधानमंत्री पद के लिए ही चौधरी चरण लसंह ने जनता पाटी में बगावत कर दी थी, उसकी अगिी कड़ी लवश्व्नाथ प्रताप लसंह और चंद्रशेखर की महत्वाकांक्षा के रूप में सामने आयी. इससे आगे बढ़ें तो, एच. डी. दे वेगौड़ा, इन्द्र कुमार गज ु राि की महत्वाकांक्षा परू ा दे श दे ख ही चक ू ा है. वत्तथ मान हािात में भी, तीसरे मोचे में लजतने दि हैं, उतने ही प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार. अब 'एक अनार, और सौ बीमार' वािी लस्थलत से भिा कब, लकसका कल्याण हु आ है. और जो भी दि तीसरे मोचे के गठन का उपक्रम कर रहे हैं, उनमें से अलधकांशतुः कांग्रेस के भागीदार रह चुके हैं, और कई तो अब भी कांग्रेसी भ्रष्टाचार में शालमि हैं. मसिन, मुिायम लसंह की समाजवादी पाटी और मायावती की ही बहु जन समाजवादी पाटी. बेहतर होगा, यह सभी नेता लहटिरशाही, पररवारवाद, भ्रष्टाचार से मुि होकर पहिे अपने ही दि में िोकतंत्र की स्थापना करें , अन्यथा दे श इन पर कैसे भरोसा करे गा. उदाहरण के लिए, मुिायम लसंह की सपा में ही, वह खुद, उनके भाई, उनके बेटे, भतीजे, बहु और पता नहीं कौन-कौन कब्ज़ा जमाये हु ए हैं. अब वह भिा दे श को पररवारवाद से मुि कराने की बात लकस मुंह से करते हैं. मायावती की पाटी में भी उनके सामने उनके नेता बैठ तक नहीं सकते हैं. कलथत तौर पर वह सभी को अपने पावं छूने तक के लिए मजबरू 49 www.zmu.in | www.hindinewsportal.com | Mob: +91- 9990089080, Mail: m@zmu.in
करती रही हैं. माक्सवादी पाटी के प्रकाश करात और उनके सहयोलगयों द्रारा पलश्चम बंगाि में उद्योग लकतना चौपट हो चक ू ा है, यह बताने की आवश्यकता नहीं है. अब यह नेता लकस तीसरे मोचे की बात कर रहे हैं, यह वही जानें. मोदी को यलद रोकना ही उनका मकसद है तो वह खुिकर कांग्रेस के साथ चुनावी गठबंधन कर सकते हैं. अन्यथा जनता परु ाने अनभ ु व दे खकर सजग हो जायेगी और चन ु ाव में लसिथ मोदीलवरोध के नाम पर वोट बटोरना मुलश्कि हो जायेगा. अब तो आम चुनाव संपन्न हो चुके हैं, और सभी नेता पररणाम की प्रतीक्षा में रत हैं. १६ मई को उन नेताओं को करारा झटका िगेगा, लजन्होंने लसिथ मोदी लवरोध की राजनीलत की है. आलखर िोकतंत्र की ख़बू सरू ती भी तो यही है लक समय-समय पर सभी को सबक लमिता रहे .
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िद्ध ृ ों की दशा: सांस्कारमिहीनता एिां पीमियों का ाऄांतर सलदयों से लजस धरा पर मनुस्मलृ त का यह नीलत वाक्य बार-बार दोहराया जाता –
ाऄमभिादनशीलस्य मनत्यां िद्ध ृ ोपसेमिनाः। चत्िारर तस्य िधथन्ते ाअयमु िथद्या यशो बलम्।। अथाथ त् लनत्य गुरुजनों का अलभवादन और वद्च ृ ों की सेवा करने से आय,ु लवद्या, यश एवं बि की प्रालप्त होती है। उसी भारत भलू म पर हाि ही में बुजुगों के सथ दुव्यथ वहार की कुछ घटनाएं लचंतन को लववश करती हैं। जैसे सम्पलत्त के िािच में गालजयाबाद के एक पुत्र द्रारा अपने लपता और अपने भतीजे का बेरहमी से क़त्ि लकया। पंजाब में बेटे ने माूँ को पीट-पीट कर मार डािा। जयपुर में तािा िगे घर के बाहर एक बुजुगथ दम्पत्ती कई लदनों तक सड़क पर पड़े रहे । यं ू तो बुजुगों के प्रलत तमाम अपराध हमारे समाज की कुलत्सत पहचान बन चुके हैं, िेलकन प्रलतलदन अख़बारों में स्थान पा रही घटनाएं सामालजक ताने-बाने की नींव पर गंभीर प्रश्नलचन्ह खड़ा करती हैं। प्रश्न खड़ा होना भी चालहए, क्योंलक एक तरि इलतहास में भारत के लवश्व गुरु होने के बारे में तमाम तथ्य प्रमालणत हैं, तो दूसरी तरि भलवष्ट्य की सुपर-पॉवर बनने की तरि अगिी पीढ़ी कुिांचे भर रही है। ऐसे में उन कारणों पर लवचार लकया जाना सामलयक होगा, लजसने हमारे समरस, "वसुधवै कुटुंबकम" की सोच वािे समाज की जड़ें तक लहिा दी हैं। आलखर कौन सोच सकता है लक समस्त संसार को अपना पररवार मानने की पररकल्पना दे ने वािे भारतवषथ में पाररवाररक व्यवस्था लछन्नलभन्न हो गयी है। आलखर एक अपंग समाज बनाकर हम सुपर-पॉवर एवं खुशहािी का भ्रम कैसे पाि सकते हैं। बुजुगों के कल्याण एवं आलधकाररता के लिए काम करने वािे एक संगठन के ताजा सवे के अनुसार 52 िीसदी बुजुगों को पररवार में सम्मानजनक माहौि नहीं लमिता है। 57 िीसदी बुजुगथ सम्पलत्त के लिए प्रतालड़त लकये जाते हैं । अब यह बात अपने आप में अजीब है लक लजन बुजुगों के इस संसार के जाने अथाथ त उनकी मत्ृ यु के बाद भी हम लपतपृ क्ष में लपंडदान करते हैं पर उनके जीलवत रहते उन्हें उलचत सम्मान तक क्यों नहीं दे त?े आलखर यह हमारे चररत्र का दोहरापन नहीं तो और क्या है? यह समय की मांग है लक बदिती पररलस्थलतयों में व्यवस्था को मानवीय दृलष्टकोण के लिए हम तैयार करें । एक सुर में युवाओं को दोषी करार दे ना कोई समाधान नहीं होगा बलल्क समस्या को और पेलचदा बनाने का कायथ करे गा। लनलश्चत रूप से लशक्षा से नैलतक मल्ू यों की लवदाई संस्कार लवहीनता के लिए दोषी है। परं तु इसके अनेक अन्य पक्ष भी हैं लजसकी अनदे खी नहीं की जा सकती। एक नजर से दे खने पर यह सभी समस्याएं हमारे अथथ तंत्र से जुड़ीं लदखती हैं। अलधकांश पाररवाररक लववाद धन की लि्सा के कारण होते हैं जो बुजुगों के प्रलत उपेक्षा और अपराध दोनों के कारक हैं। स्वतंत्रता से पवू थ हमारा समाज कृलष-आधाररत अथथ व्यवस्था से संचालित था। पररवार के सभी सदस्य एक जगह पर रहकर शारीररक श्रम से धनोपाजथ न करते थे। चूँलू क एक-दूसरे की आवश्यकता थी इसलिए एक दूसरे के प्रलत सहयोग का भाव भी था। ऐसे में स्वाथथ कम एवं सलहष्ट्णुता का भाव अलधक रहता था। कािान्तर में कृलष अथथ व्यवस्था की अवनलत से संतुिन लबगड़ता 51 www.zmu.in | www.hindinewsportal.com | Mob: +91- 9990089080, Mail: m@zmu.in
चिा गया। यह ठीक है लक दूसरे क्षेत्रों में रोजगार के अवसर बढ़े, िेलकन पररवारों का लवखंडन हु आ। सभी पहिे शरीर से तो लिर मन से एक-दसरे से दूर होते चिे गए। पररणाम सामने है- माता-लपता दो-तीन पुत्रों होते हु ए भी अकेिे हैं। सभी अिग-अिग स्थानों पर धनोपाजथ न में िगे हैं, अतुः ररश्ते नाम मात्र के रह गए हैं। अनेक बार लदिों का अंतर पहिे रार तो लिर दरार का काम करता है। आज जो हत्यारी मानलसकता लदखाई दे रही है उसका एक कारण यह भी है। दस ु व लकया जा रहा है वह भी आजादी के बाद की पररलस्थलतयों से जड़ ु ा हु आ है। इस दौर ू रा कारण जो अनभ में लवस्थापन बढ़ा। अपने पारम्पररक व्यवसाय और क्षेत्र छोड़कर दूसरे क्षेत्रों में जाने से पुरानी पीढ़ी अपनी अगिी पीढ़ी से कट गई या यं ू कहें लक श्रेष्ठता ग्रंलथ के कारण वह अपने बच्चों से तािमे ि लबठाने से असमथथ हो गए। ये वे िोग थे लजन्होंने जीवन में लवपरीत पररलस्थलतयों से संघषथ करके सििता प्राप्त की। ऐसा अनभ ु व लकया जाता है लक वह पीढ़ी कठोर और अनेक बार आत्मकेंलद्रत बन गई। सवेक्षणों में यह तथ्य सामने आता है लक अनेक बार बुजुगों की कठोरता और युवाओं के जीवन में उनका अत्यालधक हस्तक्षेप उन्हें अपनी ही संतान से दूर करने का कारण बनता है। हािाूँलक िगभग सभी बुलद्चजीवी तकथ दे ते हैं लक ‘कोई बुजुगथ अपने बच्चों का भिा ही चाहता है।’ िेलकन लजस तेजी से दुलनया बदि रही है, जीवनशैिी में पररवतथ न हो रहे हैं ऐसे में अपने जमाने की पररलस्थलतयों जैसे आचरण की आज की पीढ़ी से अपेक्षा करना अथवा उनपर जबरदस्ती अपनी राय थोपना मतभेद से मनभेद, तत्पश्चात खुिे लवरोध का बड़ा कारण बन जाता है। कई बुजुगथ ऐसे भी दे खे गए हैं जो अपने बच्चों के बच्चे जवान हो जाने के बाद भी उनके दैलनक व्यवहार में बेतरतीब दखि दे ते हैं। उनका व्यवहार ऐसा होता है मानो उनके 40 साि के िड़के को बुलद्च ही नही है। बेशक यह तकथ थोड़ा अजीब हो िेलकन सच्चाई है लक आज का समाज बेहद तेजी से वैश्वीकरण की तरि बढ़ा है। ऐसे में यलद पलत-पत्नी साथ में कहीं घम ू ने जाते हैं, कुछ अपनी मजी से खाना चाहते हैं, अपने बच्चों की परवररश अपने ढं ग से करना चाहते हैं, तो हमारे वररष्ठों को इसके प्रलत सलहष्ट्णु होने की आवश्यकता है। इसके सही-गित होने के साथ इसकी व्यवहाररकता को अनदे खा नहीं लकया जा सकता। लसिथ अपने को बुलद्चमान समझना और दूसरों को कमतर आंकना, क्योंलक हमारी उम्र अलधक है, अनुभव अलधक है, आज के पररप्रेक्ष्य में थोड़ा अटपटा जान पड़ता है। आज जब छोटी उम्र के बच्चे लवज्ञान, अनुसंधान, टेिीलवजन, खेिकूद इत्यालद में झंडे गाड़ रहे हैं, तो हमें उनकी योनयता का सम्मान करना चालहए और उनसे तािमे ि लबठाना चालहए, न लक बालिग़ हो जाने के बाद भी उसके जीवन की लदशा लनलश्चत या लनयंलत्रत करने का प्रयास करते रहना चालहए। महाभारत काि में दो ऐसे लपताओं का उदाहरण लमिता है, लजन्होंने अपने पुत्र के लिए सम्पण ू थ जीवन और सब कुछ दाव पर िगा लदया था। एक दुयाथ ेेधन के लपता धतृ राष्ट्र और दूसरे अश्वत्थामा के लपता द्रोणाचायथ ने ने अपने पुत्रों के लिए क्या-क्या नहीं लकया। पर पररणाम क्या हु आ हम जानते हैं। वहीं दस ू री तरि पांडव लपता के न होने पर भी लनणथ य िेकर सक्षम बनते चिे गए। रामायण काि में भी राजा दशरथ की पररलध से बाहर जाकर ही राजकुमार राम, मयाथ दा पुरुषोत्तम राम से भगवान श्रीराम बन सके। ऐसे में ‘लसिथ हम ही अपने बच्चों का भिा सोच सकते हैं’ जैसे तकथ थोड़ी अलतवालदता हैं और इससे हमें बचने का प्रयास करना चालहए। हाूँ, बच्चों की योनयता पर ध्यान दे ना माता लपता का कत्तथ व्य है, लकन्तु बालिग़ हो जाने के उपरान्त उसे लनणथ य प्रलक्रया में शालमि करने से स्वयं लनणथ य 52 www.zmu.in | www.hindinewsportal.com | Mob: +91- 9990089080, Mail: m@zmu.in
िेने के लिए प्रेररत करना चालहए। यलद उसका गित लनणथ य हो तो उसे तकथसंगत ढ़ं ग से मागथ दशथ न लदया जा सकता है। ऐसे में वह और सावधान होगा। जबलक सही लनणथ य उसका उत्साह बढ़ाएं गे. इसका अथथ यह भी नहीं लक दोषी बड़े ही हैं। जब हम युवा-पक्ष की तरि दृलष्ट डािते हैं तो यहां भी असंतुलित तस्वीर ही नजर आती है। आज प्रलतयोलगता के कड़े दौर में दो तरह के युवा मुख्य रूप से उभर रहे हैं। एक वगथ वह है जो इस वैश्वीकरण के दौर में उलचत प्रलशक्षण, समपथ ण व सजगता से सििता के लशखर छू रहा है। वहीं एक वगथ वह है जो सिि नहीं हो पा रहा है। प्रलतयोगी पररवेश में कहीं न लटक पाने वािे यव ु ा कंु ठा और लवकृत मानलसकता के लशकार होते जा रहे हैं। ऐसे में जो युवक अपनी योनयता, क्षमता का लवस्तार नहीं कर पाते और अपनी महत्वांकाक्षा पर लनयंत्रण भी नहीं रखना जानते, उन्हें अपनी जरूरतें परू ी करने के लिए धन की भी आवश्यकता है, अतुः माूँ-बाप के रूप में उसे आसान लशकार लमि जाते हैं। ये अपनी असीलमत इच्छाओं के लिए अपने बुजग ु ों के प्रलत आक्रामक हो जाते हैं। इन कंु लठत और सामालजक अपराधी युवकों को कठोर दंड तो लमिना ही चालहए, साथ ही साथ इनकी लस्थलत बेहतर कैसे हो इसपर भी सम्पण ू थ समाज सहानुभलू त से लवचार करे . क्योंलक गिाकाट प्रलतयोलगता आलखर कब िाभदायी होती है। अब उन युवकों की बात भी कर िी जाय, जो कलथत रूप से सिि होने की श्रेणी में आते हैं, जो आलथथ क रूप से संपन्न हैं, लशलक्षत हैं। यह जानकर बड़ा दुखद आश्चयथ होगा लक ये सभ्य और लशलक्षत िोग ही ओल्ड-एजहोम कॉन्से्ट को बढ़ावा दे रहे हैं। वे यह समझने को तैयार नहीं लक यह पलश्चमी व्यवस्था हमारे बुजुगों के लिए बंदीगहृ के समान है। यह सामालजक लवकृलत है। पलश्चम का समाज भावनाओं पर आधाररत नहीं है। जन्म से मत्ृ यु तक नाममात्र की भावनात्मक औपचाररकता होती है। जैसे मदर डे - एक लदन माूँ के लिए,िादर डे - एक लदन लपता के लिए। इसके लवपरीत हमारे समाज की नींव भावनाओं पर आधाररत है। हमारे लिए हर लदन माूँ-बाप, ररश्ते नातों का है। ओल्ड-एज होम का समथथ न करने वािों को लवचार करना चालहए लक वह अपने बुजग ु ों के लिए जो व्यवस्था चाह रहे हैं, क्या वही सब उन्हें स्वयं अपनेेे लिए भी मान्य होगा। शायद कदालप नहीं! तो लिर यह दोहरापन क्यों? यह प्रमालणत तथ्य है लक बच्चे अलधकांशतुः वही सीखते हैं, जो अपने माता-लपता को करते हु ए दे खते हैं। यलद इन प्रश्नों पर युवा पीढ़ी लवचार करना प्रारम्भ कर दे तो समाधान भी वह स्वयं ही ढूंढ िेगी। बस हमारे बुजुगों को इस प्रलक्रया में युवाओं का साथ दे ना होगा। उनका उत्साहवधथ न करना होगा। उनको सजग करते रहना होगा। बजाय इसके लक उनके लनणथ य िेने की क्षमता को कम लकया जाए। बदिाव समाज की सच्चाई हैं, िेलकन यह सच है लक लपछिी सदी में समाज लजतनी तेजी से बदिा है, उतना पररवतथ न कई सलदयों में नहीं हु आ होगा। तेजी से बदिी तकनीक ओर वैश्वीकरण के दौर में बुजुगथ और युवा दोनों को आपसी सौहादथ और तािमे ि से पाररवाररक व्यवस्था को संतुलित करने का प्रयास करना चालहए। आलखर तभी हम पररवार की श्रेष्ठ परम्परा को जीवांत कर अपने पररवेश और समाज को बेहतर बना सकेंगे।
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ाऄथोपाजथन की भाषा बने महांदी लहंदी पखवाड़े के समापन के अवसर तक कािी लवद्रानों ने लवलभन्न मंचों पर अपने लवचार व्यि लकये हैं. स्वभाषा की बात हु ई, साथ में स्वरोजगार की बात हु ई, स्वशासन, स्वतंत्रता इत्यालद तमाम बातें भाषा से ही तो शुरू होती हैं. इस क्रम में यह बात लसद्च हो चुकी है लक दे वनागरी लिलप लवश्व भर की दस ू री लिलपयों में सवाथ लधक वैज्ञालनक है. इसके साथ ही लहंदी भाषा, चीनी मंडाररन और अंग्रेजी के बाद लवश्व में तीसरी सबसे ज्यादा बोिी जाने वािी भाषा भी है. इसमें अंग्रेजी और लहंदी बोिने वािों की संख्या ५० करोड़ के आस पास ही है. सच ू ना प्रोद्योलगकी, वेबसाइट लबजनेस से जुड़ा हु आ ह,ूँ इसलिए ऑनिाइन लबजनेस से जुड़े हु ए आंकड़ों पर जब नजर डािता हूँ तो दे ख कर ख़ुशी होती है लक िगभग सभी बड़े व्यापाररक घराने अंग्रेजी के साथ लहंदी में भी अपनी वेबसाइट के माध्यम से उपलस्थत रहने की सिि कोलशश कर रहे हैं. हािाूँलक लहंदी कं्यटू र इत्यालद माध्यमों के लिए उतनी सरि अभी भी नहीं बन पायी है, इसके बावजदू मे रे पास वेबसाइट जब वेबसाइट बनने के लिए आती है तो ३ में से १ कस्टमर वेबसाइट को लहंदी में भी रखने का आग्रह करता है. कुछ नहीं तो ऑनिाइन रांसिेटर ही िगाने को कहता है, लजससे लबना कोई अलतररि मे हनत लकये, उसके अंग्रेजी कंटेंट ही लहंदी में दे खे जा सकें. यह प्रयास 70 िीसदी से ज्यादा शुद्च होता है. सरकारी स्तर पर भी िगभग सभी वेबसाइट लहंदी में भी उपिब्ध हैं. िेसबुक की दुलनया से हम सब जुड़े ही हैं. भारत में तो मुझे िगता है, दे वनागरी में िेसबुक इस्तेमाि करने वािों की संख्या अंग्रेजी से दोगुनी हो गयी है. लहंदी की सहयोगी अन्य भाषाओूँ को लमिा लदया जाय, तो यह संख्या िेसबुक की तीन चौथाई हो जाएगी. िेलकन, ऑनिाइन लबजनेस से जड़ ु े होने के कारण इससे जड ु ी समस्याओं पर िोकस करना चाहंगा. जब तक कोई भाषा, कोई संस्कृलत, लशक्षा सीधे तौर से ‘अथोपाजथ न’ से नही जुड़ पाती है, उसकी स्वाभालवक प्रगलत संलदनध हो जाती है. लहंदी इस मामिे में आज़ादी के बाद से ही दुभाथ नयशािी रही है. उदाहरण के तौर पर ब्िॉगसथ की बात करूूँगा. अपने ब्िॉग लिखकर कई अंग्रेजी के िेखक बलढ़या पैसे कमा रहे हैं, वहीं लहंदी िेख से यि ु ब्िॉग शुरू से लदक्कत में िंस जाता है, जबलक उनके पाठक भी पयाथ प्त हो रहे हैं, इसके बावजदू यह हाि होता है लक लहंदी ब्िॉग/ वेबसाइट के लिए गग ू ि एडसेंस या दुसरे ्िेटिॉमथ एप्रवू ि ही नहीं दे ते हैं. इसी तरह दे शी, लवदे शी लजतने भी उत्पाद बन रहे हैं, उन सभी के मैनुअि लहंदी में हों तो लहंदी के जानकारों को न लसिथ काम लमिेगा, बलल्क उस उत्पाद की समझ भी भारतीय खरीददारों को ठीक तरह से हो पायेगी. हे ल्थ इन्सुरेंस, मोटर इन्सुरेंस या िाइि इन्सुरेंस के अलधकांश मैनअ ु ि, िॉम्सथ - प्रपत्र लहंदी में क्यों नहीं आते हैं, यह बात कई बार सोचने पर भी मुझे समझ नहीं आती है. यहाूँ यह बताना मैं आवश्यक समझता हूँ लक दे श में अंग्रेजी बोिने और समझने के बावजदू िोग लहंदी में ही सुलवधा महसस ू करते हैं. जैसे मैंने उपरोि प्रपत्रों की चचाथ की, जो अंग्रेजी में रहने पर हम उसकी हे लडं ग या एक पैरा ही पढ़ पाते हैं, जबलक वह लहंदी में रहने पर उतने ही समय में हम परू ा पेज पढ़ जाएूँ . मैं दावे के साथ कह सकता हूँ लक िॉमथ भरने वािों में से 90 िीसदी िोग उसके बारीक प्रावधानों को पढ़ ही नहीं पाते हैं, न समझ पाते हैं, और इसका सबसे बड़ा कारण इन सबका लहंदी में नहीं होना है. प्रशासलनक दफ्तरों, अदाितों इत्यालद की 54 www.zmu.in | www.hindinewsportal.com | Mob: +91- 9990089080, Mail: m@zmu.in
कायथ वाही पर लहंदी के लवषय में चचाथ न ही करना उलचत है, क्योंलक इसे न कोई सुनने वािा है, न समझने वािा. अभी हाि ही में एक चचाथ बड़ी तेजी से िै िी थी लक अदािती आदे श लहंदी में ही लिखे जाएूँ, क्योंलक िै सिे से सम्बंलधत व्यलि उसे समझने के लिए वकीि या दूसरों पर लनभथ र हो जाते हैं. ऐसा नहीं है लक इन सब बातों से हम पररलचत नहीं हैं. िेलकन यह बात बार-बार दोहराना पड़े गा हमें, तालक नीलत-लनयंत्रकों के कानों में यह बात हथौड़े की तरह िगे. पंहुचती तो वह पहिे भी रही है. हािाूँलक लहंदी मनाने और उसको प्रोत्सालहत करने के तमाम सरकारी, गैर-सरकारी प्रयास हो रहे हैं. और इन सब प्रयासों का सकारात्मक असर भी लदख रहा है. सबसे बड़ा असर यह हु आ है लक लहंदी, गैर-लहंदी भाषाओूँ का मुद्ङा समय के साथ राष्ट्रलहत की खालतर सकारात्मक हो गया है. अब िगभग सभी िोग लहंदी की प्रगलत की खालतर कमर कस रहे हैं. अनेक गैरलहंदी भाषाई सालहत्यकारों द्रारा सालहत्य रचनाएं हो रही हैं. िेलकन सरकार को उपरोि वलणथ त मामिों में सख्ती से लनयमन करना होगा, लजससे उत्पाद, अथोपाजथ न में लहंदी की सहभालगता तेजी से बढे . और तभी हम लहंदी के पक्ष में साथथ क पहि होते दे खेंगे और शायद तब हमें लहंदी लदवस, लहंदी पखवाड़ा मनाने की जरूरत भी नहीं पड़े गी. आलखर साथथ कता यही तो है लहंदी पखवाड़े की. भारतेंदु हररश्चंद्र ने भी क्या खबू कहा है -
‚लनज भाषा उन्नलत अहै, सब उन्नलत का मि ू ‛ लबन लनज भाषा ज्ञान के, लमटे न लहय को शि ू ‛ - मममथलेश. (www.mithilesh2020.com)
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खेलों पर एकामधकार और भ्रष्टाचार अब से पहिे दे श में एकमात्र खेि लक्रकेट ही था, लजसकी चमक-दमक िोगों को प्रभालवत करती थी. न लसिथ आम िोगों को, बलल्क व्यवसालययों और उनके पीछे -पीछे अपरालधयों, सट्टेबाजों को भी सक्रीय होने का भरपरू मौका लमिा. दे श की गररमा और इज़्ज़त के साथ साथ लखिालडयों को भी इस खेि ने बदनाम लकया. लिर भी कुछ हद तक बात लनयंत्रण में रही. िेलकन खेि के सबसे व्यवसालयक संस्करण आईपीएि के आने के बाद तो इस खेि में हर प्रकार की गन्दगी लमिने िगी. लपछिे लदनों एक चलचथ त समाचार चैनि ने लक्रकेट के आईपीएि में लिलक्संग पर बड़े खुिासे का दावा करते हु ए कहा था लक इस अपराध में लक्रकेट से जुड़ा हर बड़ा नाम शालमि है. मसिन शरद पवार, एन.श्रीलनवासन, िलित मोदी, लवजय माल्या और लखिालडयों की तो खैर बात ही क्या है. िेलकन हम कहते हैं लक यह कोई खुिासा नहीं है, बलल्क यह पहिे से ही जगजालहर है. लक्रकेट के खेि में लजस प्रकार से पैसों की बरसात हो रही है और उसको िगातार मलहमामंलडत लकया जा रहा है, उसने प्रत्येक उद्यमी/ व्यवसायी और अपराधी को इसके प्रलत एक भारी आकषथ ण प्रदान लकया है. सट्टेबाजी, स्पॉट-लिलक्संग, जैसे तमाम दूसरे शब्दों का जन्मदाता है यह खेि. इससे बड़ी बात यह है लक राजनीलत, प्रशासन जैसे दूसरे क्षेत्रों में जहाूँ पारदलशथ ता की बात जोर-शोर से उठ रही है, वहीं लक्रकेट में चपु चाप एक ख़ास वगथ द्रारा लनयंत्रण करने का बड़ा षड़यंत्र लपछिे कई सािों से बेहद संगलठत रूप से चिाया जा रहा है. भारत की जनता तो हमे शा की तरह अपने लखिालडयों के बदन पर लतरं गा लिपटा दे खकर खुश हो जाती है और भारत माता की जय के नारे िगने िगते हैं. उसे क्या पता, उसकी इसी भावना को पैसे में बदि कर अपनी जेबें गरम करने की सालजश िम्बे समय से चि रही है. सबसे पहिे प्रश्न उठता है लक्रकेटीय संस्था के लनयंत्रण पर. जब लक्रकेट के लनयंत्रण बोडथ के नाम में 'भारत' शब्द जुड़ा हु आ है और लतरं गे का वह और उसके लखिाड़ी इस्तेमाि करते हैं तब इस बात का कोई तुक नहीं है लक इसका व्यवसालयक इस्तेमाि हो और इस पर सरकार का सीधा लनयंत्रण न हो. समय-समय पर आलखर कैसे कुछ गुट इस संस्था पर कब्ज़ा जमा कर बैठ जाते हैं. कभी जगमोहन डािलमया का ग्रपु तो कभी शरद पवार का गैंग. कभी िलित मोदी हावी हो जाते हैं तो कभी ई.श्रीलनवासन का लसक्का चिता है. कोई जांच नहीं, कोई आरटीआई कानन ू िाग ू नहीं होता है इन पर. यह कहना अलतश्योलि नहीं होगा लक 'मुलस्िम पसथ नि िा बोडथ ' की तरह ही 'भारतीय लक्रकेट कंरोि बोडथ ' है, लजसका 'शरीयत-कानन ू ' की तरह अपना 'लक्रकेटीय-कानन ू ' है. और इन पर भी भारत-राष्ट्र के दुसरे कानन ू िाग ू नहीं होते हैं. लक्रकेट की बढ़ती िोकलप्रयता का आपरालधक दोहन करने के लिए 'इलन्डयन प्रीलमयर िीग' का गठन हु आ और आपको जानकार आश्चयथ होगा लक भारत में यह लवचार इस बोडथ का भी नहीं था. भारत में यह लवचार मीलडया मुग़ि कहे जाने वािे, ज़ी-ग्रुप के सुभाष चंद्रा के माध्यम से सामने आया जब उन्होंने 'आईसीएि', यालन इंलडयन लक्रकेट िीग के नाम से इसके दोहन की कोलशश शुरू की. बीसीसीआई के ठे केदार उनकी इस कोलशश पर भड़क उठे और आईसीएि को रोकने की तमाम जायज-नाजायज कोलशशें तब की गयीं. आईसीएि में खेिने वािे लखिालड़यों को भारतीय टीम से लनकािने की कोलशश भी तब हु ई और लवदे श के लक्रकेट बोडों पर भी अपने लखिालड़यों को आईसीएि से 56 www.zmu.in | www.hindinewsportal.com | Mob: +91- 9990089080, Mail: m@zmu.in
दूर रहने के लिए भारी दबाव बनाया गया. आलखर, बीसीसीआई अपने सोने के अंडे दे ने वािी मुगी को दुसरे के दरवाजे पर कैसे जाने दे ती. तब आनन-िानन में गठन हु आ 'आईपीएि' का और शुरू हु आ लक्रकेट में अब तक का सबसे घलटया, व्यवसालयक और अनैलतक दोहन. इस शुद्च व्यवसालयक दोहन ने अपराध से डी-कंपनी, शराब व्यवसाय से लवजय माल्या, बॉिीवुड से कम समय में धनवान बने अलभनेता, राजनीलत से शलश थरूर जैसे कई नामों को अपनी तरि खींचा. दे श की जनता लजन लखिालडयों को अपनी शान समझती थी, वह गाजर-मि ू ी और शराब की ही तरह बाजार में लबकते लदखे और लसिथ उनकी लक्रकेट की किा ही नहीं लबकी बलल्क लबका उनका ईमान, लबकी उनकी नैलतकता और लबक गयी उनकी दे शभलि भी. तमाम जआ ु ड़ी जैसे गावं के चौराहे पर पकडे जाते हैं, और तमाम वेश्याएं जैसे लकसी रे ड-िाइट एररया से पकड़ी जाती हैं, ठीक वैसे ही सट्टेबाज और सुंदररयों के घािमे ि से इस खेि के व्यवसायीकरण पर मुहर िग गयी. मुहर 'आईपीएि' के अपराधीकरण पर भी अब िग चुकी है. िेलकन मजबरू है दे श का कानन ू , क्योंलक लक्रकेट के पास उसका अपना 'शरीयत-कानन ू ' है और वह दे श के तमाम कानन ू ों से ऊपर है. आलखर लक्रकेट को दे श में 'धमथ ' का दजाथ यंहू ी नहीं लमिा हु आ है. व्यावसालयकता की बात लक्रकेट से आगे बढ़ते हु ए अब कबड्डी, और लिर िूटबाि तक जा पहु ंची है. आईपीएि की ही तजथ पर इन खेिों का दोहन करने की रणनीलत सज चक ु ी है. खैर, इन खेिों में क्या होगा यह तो आगे की बात है, िेलकन यहाूँ यह प्रश्न उठना िाजमी है लक आलखर इन खेिों पर कुछ घराने और प्रभावशािी िोग अपना एकालधकार लकस प्रकार करते जा रहे हैं. क्या सरकार द्रारा इन खेिों के प्रलत गंभीर रवैये के साथ कानन ू बनाया गया है या छोड़ लदया गया है इन्हें छुट्टे सांड की तरह- हरे भरे खेतों में चरने के लिए. लनश्चय ही ये सांड खेतों को बबाथ द करके रख दें गे. भ्रष्टाचार, कािाबाज़ारी तो होगी ही, दस ू रे गैरकानन ू ी धंधे भी ििेंग,े िूिेंगे. और इस भ्रम में आप कतई न रहे लक इससे आम लखिालडयों को कुछ िाभ होगा! वह तो बस सट्टेबाजों के हाथ का लखिौना बनकर रह जायेंगे. चीयर िीडर, चमक-दमक, व्यवसाय सब होगा यहाूँ, नही होगा तो खेि और खेि-भावना. िेलकन इन खेिों के कलथत प्रशासक और दिाि यह बात ठीक तरह से समझ िें लक अब तक चुप बैठी यह भोिी सी लदखने वािी जनता कहीं इस परू े खेि का वैसा ही हाि न कर दे, जैसा िोकसभा चुनाव में राजनीलत का हु आ है. आलखर अदाितों में भी, जनता की अदाित से बड़ी दूसरी अदाित कौन है? और अब इसकी शुरुआत भी हो चुकी है, िेलकन दे खना लदिचस्प होगा लक जनता इन अनैलतक व्यवसालययों और लछपे अपरालधयों पर अपना लनणथ य कब तक सुनाती है.
- मममथलेश. (www.mithilesh2020.com)
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देश के कानून से ाउपर नहीं है कोाइ भारत दे श में लवलभन्न प्रकार के िोग और समहू पाये जाते हैं और इसी के लहसाब से उनकी मानलसकता भी बदिी रहती है. िेलकन इस बीच एक बात बड़ी कॉमन नजर आती है और वह है इन सभी के मन में दे श के कानन ू से खुद को ऊपर समझने की ित. गांव में पान की दक ू ान या चाय की दुकान पर बैठा हु आ छुटभैया नेता हो या दे श में बड़े कॉपोरे ट समहू के धनाढ्य के तौर पर पहचान रखने वािा व्यवसायी, सभी दे श के कानन ू के ऊपर खुद को समझते ही नहीं हैं, बलल्क उनके मन में प्रत्येक पररलस्थलत में सब कुछ 'मैनेज' कर िेने की नीयत भी होती है और वह इस लसिलसिे में अपनी जुगत भी लभड़ाते रहते हैं. आलखर कानन ू में कहीं तो झोि है, जो इस प्रकार की मानलसकता आम-ओ-ख़ास सभी में लवकलसत हो जाती है. यह अिग बात है लक जब कानन ू अपनी पर उतरता है तब आम की तो बात ही क्या की जाय, बड़े से बड़े ख़ास इस चक्की में लपस जाते हैं. इस बड़े िोकतालन्त्रक दे श में, आबादी के अनुपात के लहसाब से प्रशासलनक ढाूँचे में बड़ी खालमयां मौजदू हैं. इन्हीं खालमयों का िायदा उठाकर धत ू थ व्यवसायी येन, केन प्रकारे ण धन और सत्ता के केंद्र में आने में सिि हो जाते हैं, और भारतीय जनता को धत्ता बताने की कोलशश में िग जाते हैं. हाि ही में डीएिएि जैसी बड़ी कंपनी के ऊपर शेयर बाज़ार में कारोबार पर बाजार लनयामक संस्था सेबी ने प्रलतबन्ध िगाया है. इस कंपनी के ऊपर लनवेशकों से जानकारी छुपाने का आरोप िगाते हु ए इनके लनदे शकों को भी प्रलतबंलधत लकया गया है. यहाूँ यह बताना उलचत रहे गा लक डीएिएि कंपनी सोलनया गांधी के दामाद रोबटथ वाड्रा से कलथत सौदे को िेकर बड़ी चलचथ त रही है. पर इस कड़ी में लसिथ डीएिएि के केपी लसंह ही नहीं हैं, बलल्क जेि में बंद सहारा के मुलखया सुब्रत रॉय सहारा जैसे व्यवसायी भी हैं. सहारा के साथ-साथ ररिायंस समहू को स्पेक्रम घोटािों और लवजय माल्या इत्यालद को कमथ चाररयों के साथ धोखाधड़ी करने जैसे आरोपों का सामना करना पड़ा है. लवजय माल्या ने तो सांसदों के घर पर प्रभालवत करने की माशा से 'महूँगी शराब' तक लभजवा दी थी. और भी कई बड़े लबजनेसमैन अपने कायों को साधने की खालतर अलधकाररयों समे त, नेताओं और न्यायाधीशों तक को प्रभालवत करने की कोलशश खि ु े तौर पर करते रहे हैं. जहाूँ तक बात डीएिएि समहू की है, तो बच्चा-बच्चा जानता है लक हररयाणा में इस कंपनी ने लकस प्रकार अकूत सम्पत्ती हालसि की है. इसी प्रकार सहारा समहू के मुलखया तो न्यायािय की नािरमानी करने के आरोप के चिते जेि में बंद हैं. डीएिएि या सहारा ऐसे पहिे औद्योलगक घराने नहीं हैं, लजन पर इस तरह के मामिे दजथ हु ए हैं, िेलकन अपनी गिलतयों से वह इस तरह के पहिे औद्योलगक घराने जरूर बन गए हैं, जो सीधे तौर पर कानन ू की नािरमानी करने वािा प्रतीत हो रहा है. हािाूँलक इस बात से इंकार नहीं लकया जा सकता है लक औद्योलगक समहू ों को िलक्षत करने में राजनैलतक उद्ङे श्य भी हो सकते हैं, िेलकन बावजदू इसके उन्हें कानन ू का पािन करने में संयम तो लदखाना ही चालहए. इसके साथ सरकार और न्यायपालिका को अपरालधयों को दंड जरूर दे ना चालहए, िेलकन इससे पहिे इस बात की कड़ी व्यवस्था होनी चालहए लक कोई भी धत ू थ या तेज व्यलि आम जनमानस के पैसों अथवा उसकी भावनाओं के साथ सीधा लखिवाड़ नहीं कर सके. 58 www.zmu.in | www.hindinewsportal.com | Mob: +91- 9990089080, Mail: m@zmu.in
यलद डीएिएि या सहारा जैसी कंपनी ने लनवेशकों के पैसों के साथ कोई धोखाधड़ी की भी है तो यह प्रश्न उस सेबी से ही पछ ू ा जाना चालहए लक वह लबना लकसी ठोस गारं टी के ऐसा कैसे कर पायी, और सेबी के अलधकारी आलखर कोई धोखाधड़ी हो जाने के बाद क्यों जागते हैं. और डीएिएि समहू कोई आज से तो कारोबार कर नहीं रहा है तो लिर उस पर आज से पहिे प्रश्न क्यों नहीं पछ ू े गए? क्या इस समस्त प्रकरण में खुद 'सेबी' भी शक के दायरे में नहीं है? उन सभी अलधकाररयों पर भी कड़ी कारवाथ ई होनी चालहए, लजन्होंने डीएिएि को लनयमों में ढीि दी होगी. जनता का पैसा आईपीओ के रास्ते करने वािी कंपनी पर आलखर लढिाई कैसे की जा सकती है. बाद में प्रलतबन्ध िगाने पर भी नुक्सान लनवेशकों को ही तो होता है. इसके साथ इन बातों से कौन इंकार कर सकता है लक सरकारी अलधकारी चंद पैसों में गित सही कारोबाररयों को आगे बढ़ने में खुिी मदद करते हैं. औद्योलगक घरानों को भी चालहए लक वह अपनी साथ के साथ-साथ लनवेशकों के पैसों का परू ा परू ा लहसाब दें और खुद को दे श के कानन ू ों से ऊपर समझने की लजद्ङ भी छोड़ दें . इसी में खुद उनकी भी भिाई है, उनके लनवेशकों की भी भिाई है और बड़े समहू से जुड़े कमथ चाररयों का भलवष्ट्य भी इसी में सुरलक्षत रहे गा. प्रश्न को आगे तक िे जाने पर हम दे खते हैं लक कानन ू को ठें गा लदखाने में लसिथ उद्योगपलत ही नहीं, बलल्क धमाथ लधकारी भी पीछे नहीं हैं. कई पाखंडी लवलभन्न आरोपों में जेि की हवा भी खा रहे हैं. गहराई से अध्ययन करने पर यह स्पष्ट हो जाता है लक गित सही काम करने के लिए शुरुआत में कानन ू की कमजोरी का िायदा उठाया जाता है, और िंसने पर सिेदपोश बड़ी आसानी से, वोट की खालतर इन सभी का बचाव करते हैं. जरूरत है कानन ू की व्यवस्था को दुरुस्त करने की, तालक कोई भी आम या ख़ास कानन ू के दायरे में ही रहे . क़ानन ू के दायरे से बाहर जाते ही उसको सरकार का भय हो. तभी आम जनमानस के शोषण में कमी आएगी और हम कह सकेंगे लक दे श में "कानन ू का राज है".
- मममथलेश. (www.mithilesh2020.com)
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गज ु रात : मिकास एिां सांस्कृमत का सांगम लपछिे लदनों गुजरात की बड़ी चचाथ सुनने को लमिी. यं ू तो स्वामी दयानंद, महात्मा गांधी, सरदार पटेि के गहृ -राज्य गुजरात की चचाथ बहु त पहिे से संपन्न राज्य के रूप में होती रही है, िेलकन इस राज्य की माकेलटंग लजस तरह से लपछिे दशक में हु ई, वह लनलश्चत रूप से बेलमसाि है. लकसी हॉिीवुड लिल्म की तरह गुजरात का प्रचार-प्रसार लकया गया. दावे लकये गए लक लवकास का माहौि वहां सबसे अनुकूि है, तो टूररज्म को िेकर इस बात को सालबत भी लकया गया. क्या दे शी, क्या लवदे शी, जो भी उद्योगपलत, अलभनेता या सामान्य जन वहां गया, गुजरात की तारीफ़ करने से खुद को रोक नहीं सका. कई बुलद्चजीवी इस बात से कािी लखन्न लदखते हैं लक गुजरात की सम्पन्नता का श्रेय कोई एक बात भिा कैसे िे सकता है. इन बुलद्चजीलवयों की यह लखन्नता कुछ हद तक यथाथथ भी हो सकती है, िेलकन इस बात से भिा कौन इंकार कर सकता है लक लवकास की रफ़्तार एक बार तो शायद गलत पकड़ भी िे, िेलकन उस गलत को िगातार १२ सािों से ज्यादा कायम रखना अपने आप में बड़ी उपिलब्ध है. यलद ऐसा नहीं होता तो, कुछ समय तक दे श में सबसे आगे रहने वािा शहर कोिकाता, इतनी बुरी तरह बबाथ द और बदहाि नहीं होता. अभी भी लवकलसत राज्यों में लगना जाने वािा पंजाब, लबजिी और कानन ू व्यवस्था की बुरी हाित से नहीं जझ ू रहा होता. इसके लवपरीत मात्र १० साि पहिे जंगिराज की खालतर बदनाम रहा लबहार, इन दस सािों में सकारात्मक माहौि तैयार करने में असिि रहता. कुछ हद तक ही सही, िेलकन सुशासन बाबू कहे जाने वािे समाजवादी ने बदिाव तो लकया ही है. इसी पैमाने पर हम गज ु रात के शेर कहे जाने वािे राष्ट्रवादी नेता को भी श्रेय दे ही सकते हैं. गज ु रात की जब हम बात करते हैं तो २४ घंटे लनबाथ ध लबजिी, अच्छी सड़कें, अच्छी प्रशासलनक व्यवस्था, िाििीताशाही पर िगाम, एक हद तक ही सही, िेलकन है. व्यापार के लिए आकलषथ त करने वािी माकेलटंग, घुमक्क्डों के लिए साबरमती एवं अन्य तीथथ स्थानों का लवकास, साफ़ सुथरी पररवहन व्यवस्था इस राज्य को दे श के अन्य राज्यों से कई ििाां ग आगे खड़ा करती है. िेलकन इन सब व्यवस्थाओं के अलतररि भी गज ु रात का सकारात्मक चेहरा मुझे अपनी यात्रा के दौरान लदखा, जो लक उसके मानवसंशाधन के बारे में है, और यह उसकी सम्पन्नता का सवाथ लधक लवशेष कारण भी है. िेलकन, इसकी चचाथ करने से पहिे जरा एक नजर आप उत्तर प्रदे श, लबहार और दुसरे लपछड़े राज्यों पर डािें. बदहाि िोग, दूसरी जगह पिायन करते िोग, एक-दुसरे की टांग खींचते िोग, मे हनत की बजाय ग्पबाजी को अपना पेशा बना चक ु े िोग और ऐसी ही अन्य समस्याओं से दो-चार होते हु ए अपराधी बनते िोग. इन बीमार राज्यों में रह रहे व्यलियों के पास खािी समय भरपरू है, िेलकन उसका प्रयोग यह िोग चुनावी राजनीलत की चचाथ में नष्ट कर दे ते हैं. ये सभी समस्याएं और समाज को टुकड़ों के रूप में बाूँट चुकी जालतवादी राजनीलत ने इन बीमार प्रदे शों को आईसीय ू में पहु ंचा लदया है. और लसिथ राजनीलत ही क्यों, पररवार नामक संस्था तो कुढ़न, जिन और आपसी िड़ाई का अखाड़ा बन चक ु ी है, तो सामालजक संस्थाएं , मंलदर इत्यालद बुराइयों का दस ू रा अड्डा बन चुके हैं. वहां, न तो संस्कार लमिता है बच्चों को, न बड़ों को शांलत लमिती है. हाूँ! िटू मार, नशा, लनम्न-स्तरीय राजनीलत जरूर दे खने को लमि जाती है. अब आप प्रश्न करें गे लक क्या 60 www.zmu.in | www.hindinewsportal.com | Mob: +91- 9990089080, Mail: m@zmu.in
यह सभी समस्याएं गुजरात में नहीं हैं, तो मैं एक शब्द में कहूँगा, "नहीं". एक बार ऊपर के पैरा को आप लिर पढ़ें और लिर प्रश्न करें लक गुजरात इतना संपन्न क्यों हैं, तो आपको यही जवाब लमिेगा लक वहां के िोग सुबह उठने के बाद अपने पशुओ ं का दूध लनकािने में िग जाते हैं, लिर पी.जे.कूररयन द्रारा स्थालपत अमि ू डे यरी के लिए परू ी वैज्ञालनक लवलध से दध ू इकठ्ठा करने में िग जाते हैं. यहाूँ, यह बताना आवश्यक है लक सहकाररता के लसद्चांत से यह परू ी व्यवस्था गांव से शुरू होकर आगे तक जाती है. लजस गाूँव पोगिू में मैं गया था, वहां सुबह बच्चे घरों में पढ़ रहे थे. औरतें काम में िगी थीं, दजी गाूँव में ही कपड़ा लसि रहा था. लदन में हम एक नलसां ग स्कूि के कायथ क्रम में गए, तो दे खा बच्चे बेहद अनुशालसत होकर बात सुन रहे थे, कह रहे थे. सच कहूँ, तो मुझे कोई लनठल्िा लदखा नहीं. शाम होते ही, उस छोटे से गाूँव के मंलदर में आरती शुरू हो गयी, और कई सारे बच्चे उसमें लबना लकसी भेदभाव के इकठ्ठे हो गए. मंलदर के प्रांगण में गाूँव के िोग, आते रहे और कुछ समय पुजारी जी के साथ लबता कर, कुछ चचाथ कर के जाते भी रहे . कहने का मतिब यह लक हर एक वहां एक दुसरे के समय के साथ खुद के समय की क़द्र करने के प्रलत सचेत नजर आ रहा था. जीवन के जो चार पुरुषाथथ बताये गए हैं, धमथ , अथथ , काम और मोक्ष, उसमें से पहिे तीन को परू ा करते दे खा मैंने गज ु रात के िोगों को. उत्तर प्रदे श एवं लबहार के बॉडथ र, बलिया में पैदा हु आ िड़का और लदल्िी में कई सािों से रहने के कारण, यह मे रे लिए लनलश्चत रूप से आश्चयथ का लवषय था. िेलकन प्रत्यक्ष को प्रमाण की आवश्यकता भिा कब होती है. कुछ बातें, खटकने वािी भी थीं, मसिन ५ लदनों में इस राज्य में लहंदी की उपेक्षा दे खने के बाद मे रे मन में टीस उठ रही थी. साइन-बोडथ, बातचीत, िेखन की भाषा परू ी तरह से गज ु राती और कुछ अंग्रेजी थी. ऐसा प्रतीत होता है लक वहां योजनाबद्च तरीके से लहंदी के ऊपर प्रहार लकया गया हो. वहां के राष्ट्रवादी बुलद्चजीलवयों से बातचीत करने पर यह स्पष्ट था लक लपछिे दस सािों के दौरान वहां का नेतत्ृ व इसके लिए लजम्मे वार रहा है. इसी सन्दभथ में यह कहना उलचत होगा लक भारत के प्रधानमंत्री अभी अमे ररका की यात्रा (लसतम्बर २०१४) पर हैं, और उन्होंने संयुि राष्ट्र संघ में अपना भाषण लहंदी में ही लदया है. इस भाषण में कई गिलतयां भी मीलडया ने पकड़ी हैं. लहंदी के प्रलत अचेत िोगों को इस वाकये से सावधान हो जाना चालहए, क्योंलक लवश्व-पटि पर भारत की पहचान लहंदी ही है. इसके अलतररि स्वास्थ्य के प्रलत जागरूकता भी कम नजर आयी, लवशेषकर िड़लकयों में . औसत से भी कम वजन वािी िडलकयां आप को वहां हर जगह लदख जाएं गी. हािाूँलक 'मद्यपान' सरकारी रूप से वहां प्रलतबंलधत है, िेलकन इस पेय की कािाबाजारी वहां जोरों से है, लबना लकसी ख़ास रोक-टोक के, लसिथ सरकार को टैक्स नहीं लमिता. सांस्कृलतक पवथ 'गरबा' की चचाथ लकये लबना गुजरात की चचाथ परू ी नहीं होती है. िेलकन दुुःख की बात यह है लक गरबा के वतथ मान स्वरुप से वहां के स्थानीय प्रबुद्च जन नाखुश लदखे. हों भी क्यों नहीं, आलखर संस्कृलत में अपसंस्कृलत घुि जाने से लकसे पीड़ा नहीं होगी. यह 'अपसंस्कृलत' का जहर लसिथ गुजराती 'गरबा' में ही नहीं, बलल्क परू े भारत में घर कर गया है. हाूँ! अंतर इतना जरूर है लक गुजरात के प्रबुद्च इस बात पर लचंलतत हैं, तो उत्तर प्रदे श के समाजवादी इस 'अपसंस्कृलत' को बच्चों की भि ू बता दे ते हैं. अंतर यह भी है लक गांधी के इस राज्य में कानन ू व्यवस्था लबगड़ने पर कारथ वाई होती है, तो दुसरे लहंदी भाषी राज्यों के 61 www.zmu.in | www.hindinewsportal.com | Mob: +91- 9990089080, Mail: m@zmu.in
नेता और संस्थाएं बेतुके बयान दे कर पल्िा झाड़ िेती हैं. लपछिे ही लदनों केरि के राज्यपाि से हटने वािी, लदल्िी की एक पवू थ मुख्यमंत्री ने कानन ू व्यवस्था के बारे में कहा था लक यह बाहर के िोगों के आने से लबगड़ जाती है. यहाूँ यह बताना िाजमी रहे गा लक गुजरात में भी परू े दे श से िोग जाकर रोजी कमा रहे हैं. अतुः बहानेबाजी से दरू हटकर राजनीलतज्ञों को, सामालजक संस्थाओं को, धालमथ क संस्थाओं को एवं व्यलियों को परू े दे श के सन्दभथ में गुजरात से सीख िेनी होगी, क्योंलक यह शायद भारतीय के सबसे नजदीक है, और हमारी ही संस्कृलत है, लजसे अन्य राज्य पीछे छोड़ चुके हैं. समय लमिने पर आप भी जरूर जाइये गुजरात में, िेलकन लसिथ शहर और दो चार पाकथ घम ू कर चिे मत आइयेगा, बलल्क कुछे क लदन गज ु राती गाूँवों में जरूर गज ु ररएगा, िोगों की कायथ प्रणािी को सीलखएगा, डे यरी उद्योग को दे लखएगा. और तब आप दूसरों को भी कह सकेंगे लक 'कुछ लदन तो गुजारो गुजरात में'!
- मममथलेश. (www.mithilesh2020.com)
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लोक-सांस्कृमत का सांिाहक है सांयि ु पररिार त्यौहारों का मौसम अपने शबाब पर है. नवरात्रों, दशहरा के बाद दीपाविी के पावन पवथ का हम स्वागत कर रहे हैं. इस बात में दो राय नहीं है लक त्यौहार हमारे जीवन में न लसिथ सजीवता िाते हैं, बलल्क मनुष्ट्य को सामालजक बनाने में इन त्यौहारों की बड़ी भलू मका होती है. और यही त्यौहार जब सामालजक स्वीकृलत के बाद घर-घर में प्रवेश कर जाते हैं, तो संस्कृलत का लनमाथ ण होता है. मन में बड़ा रोचक प्रश्न उठता है लक संस्कृलत आलखर एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक लकस प्रकार जाती है. एक सदी से दूसरी सदी तक लकस प्रकार ये त्यौहार अपना सिर तय करते हैं? क्या िोक-संस्कृलत को भी लकसी मानव की जीवन-यात्रा की तरह ही कलठनाइयों का सामना करना पड़ता है? तब तो लनश्चय ही इन त्यौहारों और िोक-संस्कृलत का स्वरुप भी बदिता होगा? कािांतर में इन बदिावों का मानव जीवन पर क्या प्रभाव पड़ता है, इस पर एक नजर डािना सामलयक होगा. उपरोि कथनों की गहराई में जाने के लिए मैं स्वामी लववेकानंद से िेकर आज के भारतीय प्रधानमंत्री तक, उन तमाम तेजस्वी महानुभावों का लजक्र करना चाहंगा, लजन्होंने लवदे शी धरती पर भारत को गौरवालन्वत करने का प्रयास लकया है. सभी महान भारतीय, लवदे शी धरती पर उस भारतीय मंत्र का बड़े गौरव से लज़क्र करते हैं, जो कहता है लक 'सम्पण ू थ लवश्व हमारा पररवार है'. जी हाूँ! मैं 'वसुधवै कुटुंबकम' की ही बात करता हूँ. यलद लकसी भारतीय की मंशा पर कोई प्रश्नलचन्ह खड़ा होता है, तो वह तत्काि इस मंत्र को उच्चाररत करता है. िेलकन बड़े आश्चयथ का लवषय है लक लवदे शों में इस मंत्र का बार-बार और िगातार गुणगान करने के बावजदू भारत में इस मंत्र को न कोई बोिता है, न कोई सुनता है, न कोई मानता है. यलद आपको लवश्वास नहीं है इस कथन पर तो लपछिे दस सािों से छप रहे पत्र-पलत्रकाओं को खंगाि िीलजये. उसमें इस कथन का प्रयोग आपको नहीं लमिेगा. यदा कदा लमि भी गया तो वह लवदे शी उद्चरण से सम्बंलधत होगा. कुटुंब, यालन पररवार क्या है, जरा इस बात पर लिर से लवचार कीलजये. लशक्षण की भाषा में कहा गया है लक व्यलि की प्रथम पाठशािा उसका पररवार ही है. भारतीय पररप्रेक्ष्य में दे खा जाय तो, न लसिथ प्रथम पाठशािा बलल्क व्यलि के परू े जीवन की सबसे सशि पाठशािा है हमारा 'भारतीय पररवार'. जरा शब्दों पर गौर करें , मैंने प्रयोग लकया है 'भारतीय पररवार' और भारतीय पररवार का एक ही मतिब है 'संयि ु पररवार'. लनलश्चत रूप से इसी संयुि पररवार की भावना को आधार मानकर, और इस संस्था के द्रारा लनलमथ त भारतीयों पर लवश्वास करके ही हमारे पवू थ जों ने 'वसुधवै कुटुंबकम' का मंत्र लदया होगा. उन्हें लवश्वास था लक संयुि पररवार का जो मजबत ू स्तम्भ, उन्होंने बनाया है, वह व्यलि लनमाथ ण के लिए सवोत्तम लवकल्प है. यह सवोत्तम क्यों है और इसकी वैज्ञालनकता क्या है, इसके बारे में आगे चचाथ करें गे िेलकन इससे पहिे आपसे एक प्रश्न पछ ू ता हूँ लक साथ रहने वािे न्यलू क्ियर पलत-पत्नी के लिए इस लदवािी का मतिब क्या होगा? सामान्यतुः लदन में वह लकसी मल्टी्िेक्स में एक मवू ी दे खने जायेंग,े लिर कहीं रे स्टोरें ट में लडनर कर िेंगे, या घर पर लपज़्ज़ा आडथ र कर िेंगे. हाूँ! एकाध मोमबलत्तयां भी जिा िेंगे. यलद उनका बेटा छोटा है, 63 www.zmu.in | www.hindinewsportal.com | Mob: +91- 9990089080, Mail: m@zmu.in
तो शाम को डर-डरकर एकाध िुिझलड़याूँ जिा िेगा और यलद बेटा बड़ा है तो अपने दोस्तों के साथ या िेसबुक पर ....! तथाकलथत 'न्यलू क्ियर िेलमिी' में यही लस्थलत, प्रत्येक त्यौहार में बरकार रहती है, एक सामान्य 'हॉलिडे ' की तरह. जरा लवचार कीलजये! क्या यही मतिब है इन त्यौहारों का! क्या इसी रास्ते से बच्चों में संस्कार पनपेगा? क्या इसी रास्ते से पलत-पत्नी का आपसी सम्बन्ध मजबत ू होगा? क्या इसी रास्ते से समाज में समरसता आएगी? नहीं! नहीं! नहीं! यहाूँ स्पष्ट करना उलचत रहे गा लक यह लस्थलत आपके, हमारे चारो तरि पनप रही है, लजसे िोक-संस्कृलत तो कतई नहीं कहा जा सकता है, हाूँ! कुसंस्कृलत या मशीनी संस्कृलत जरूर कह सकते हैं इसे. यह एक बड़ा कारण है लक आज के समय मनाये जाने वािे त्यौहारों से िोक का िोप हो गया है. अब की बार जो लदवािी मना रहे होंगे आप, उसमें न तो कुम्हार के बनाये लदए होंगे, न धुलनये का धुना रुई होगा, न लकसान द्रारा उत्पालदत सरसों का तेि होगा, न नवािे द्रारा लनकािा गया दे शी घी होगा. इसके बदिे होंगे चाइनीज झािर, रे डीमे ड नकिी लमठाइयां, और दे शी घी की पलू ड़यों के बदिे होगा, बासी और सड़ा हु आ लपज़्ज़ा. सच पलू छये तो 'न्यलू क्ियर िेलमिी' का कांसे्ट न लसिथ हमारे त्यौहारों की अहलमयत समाप्त कर रहा है बलल्क हमारे समाज की रीढ़ को खोखिा करता जा रहा है, िगातार ! इसके लवपरीत आप कुछ बचे हु ए संयि ु पररवार के अवशेषों का ही अध्ययन कर िीलजये. वहां इस दीपाविी में घर के मुलखया ने अपने छोटे भाइयों, बेटे-बेलटयों को िोन कर लदया होगा लक दीपाविी पर सभी को घर की पज ू ा में सलम्मलित होना है. न चाहते हु ए भी आधुलनक लकस्म के सदस्य वहां पहु ंचेंग,े पज ू ा में सलम्मलित भी होंगे. एक-दुसरे से लमिेंगे, उनसे बातें करें गे. दादा- दादी, चाचा- चाची, काका- काकी से औपचाररकता ही सही, िेलकन हािचाि पछ ू ें गे. पड़ोस के ताऊ को भी पज ू ा की लमठाई दे ने के बहाने लमि आएं ग,े दो बातें सीख पाएं गे. अपने मोहल्िे से मे िजोि बढ़ाने को सज्ज हो पाएं गे. इन भारतीय पररवारों के छोटे बच्चे जो लनश्छि हैं, बड़ों के बीच तनाव से बेखबर, वह भी घर के इस माहौि को दे खकर आनंलदत होंगे और िोक संस्कृलत के संवहन की लजम्मे वारी जाने-अनजाने अपने ऊपर िेने को तत्पर होंगे. संयुि पररवार में त्यौहार के दृश्य का यह वणथ न आपको थोड़ा अटपटा िग सकता है, िेलकन आज के टूटन के इस दौर में यही सत्य है, शायद सुनने में कड़वा िगे. इसके साथ यह भी सत्य है लक संयुि पररवार या भारतीय पररवार अपनी बुरी हाित में भी तथाकलथत न्यलू क्ियर िेलमिी से िाख गुना बेहतर है. हािाूँलक, संयुि पररवार के आिोचक भी कम नहीं हैं, इसकी कलमयां एक-एक करके वह बता दें ग,े लजनमें कई कलमयां सच भी हो सकती हैं, मसिन, संयुि पररवार में तमाम आलथथ क कलठनाइयाूँ हैं, तो नेतत्ृ व को िेकर टकराहट होती हैं, लवकास अवरुद्च हो जाता है. िेलकन हमें यह समझना पड़े गा लक इन सभी कलमयों को दूर लकया जा सकता है. यन ू ान, रोम सब इस जहाूँ से लमट गए और हम भारतीय बचे हैं, तो इसके मि ू में हमारी मानव-लनमाथ ण की प्रथम पाठशािा ही है. लहन्दू धमथ के युगों के अनुसार सतयुग, त्रेता, द्रापर, कलियुग में आलखर संयुि पररवार ही तो रहे हैं, लजनके कंधे पर सवार होकर हमारी संस्कृलत यहाूँ तक पहु ंची है. ज्ञात इलतहास में भी आज़ादी के पहिे तक हमारी व्यवस्था यही भारतीय पाररवाररक व्यवस्था ही तो थी. अब जब अमे ररका, लब्रटेन समे त तमाम लवकलसत दे श मानव-लनमाथ ण की प्रलक्रया में असिि होकर हमारे भारतीय दशथ न की तरि दे ख रहे हैं, तो हम क्षलणक लि्सा में िंसकर, संकुलचत स्वाथथ की खालतर 64 www.zmu.in | www.hindinewsportal.com | Mob: +91- 9990089080, Mail: m@zmu.in
समाज को तोड़ रहे हैं, एकि पररवार जैसी लवकृलत िै िाकर भारतीय िोक-संस्कृलत को नष्ट कर रहे हैं. आलखर, भारतीय दशथ न हमारा िोक-व्यवहार ही तो है. वैज्ञालनक दृलष्ट से भी दे खा जाय तो बच्चे की सीखने की उम्र १४ साि तक मानी गई है. १४ साि तक उसके चररत्र, बुलद्च का लनमाथ ण ९० िीसदी तक हो चक ू ा होता है. अब जरा इसको दुसरे नजररये से दे खें. एक युवक, युवती की शादी और संतानोत्पलत्त सामान्यतुः २५ से ३५ साि के बीच में संपन्न हो जाती है. यह समय कैररयर के लिहाज से बड़े उथि-पथ ु ि का समय होता है. यव ु क शारीररक, मानलसक, सामालजक, आलथथ क रूप से कड़े संघषथ करता है इस वि. समय की कमी होती है, अनुभव की कमी होती है, धन की कमी होती है इस दौरान. अपनी संतान के लिए एकि-दंपलत्त के पास लबिकुि समय नहीं होता है. वह या तो नौकर के सहारे या बोलडां ग स्कूि के सहारे , कं्यटू र और टीवी के सहारे अपने बच्चे का पोषण करते हैं. जरा सोलचये! ऐसे पािन-पोषण से उस बच्चे की संवेदना बचेगी क्या? समस्त सुख-सुलवधाएं , व्यवस्थाएं मानव-लनमाथ ण से बढ़कर हैं क्या? हम इसकी क्या कीमत चक ू ा रहे हैं? भारतीयता से दूर क्यों भाग रहे हैं हम? इस दीपाविी को इस यक्ष प्रश्न पर लवचार करना सामलयक होगा. और इस दीपाविी को आप इस बात की कोलशश भी करें की यह त्यौहार आपके अपने पररवार के अलधकांश सदस्यों के बीच मनाया जाय. तभी हम भी अपनी महान िोक-संस्कृलत को अगिी पीढ़ी को सौंप पाएं ग,े अन्यथा .... !
- मममथलेश. (www.mithilesh2020.com)
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धत ृ राष्ट्र और ाईसका दय ु ोधन आज किम उठाते ही जाने क्यूँ ू धतृ राष्ट्र का चररत्र ध्यान में आ गया. लिर धतृ राष्ट्र-चररत्र में दुयोधन का ध्यान भी प्रथम क्रम में ही सामने आया. ऐलतहालसक रूप से दे खा जाय तो धतृ राष्ट्र को याद करने के और भी कई कारण हैं, जैसे अपने अंधत्व के बावजदू उनका एक वीर योद्चा होना और कुशि राजनीलतज्ञ होना अपने आप में बेलमसाि था. लिर ऐसा क्या कारण था लक उनकी पहचान किुलषत दुयोधन के लपता के रूप में ही ज्यादा है. किुलषत दुयोधन इसलिए क्योंलक अपने भाइयों को लवषपान, द्रौपदी अपमान और उससे आगे बढ़कर अपने कुि का सवथ नाश करने का मुख्य लजम्मे वार वही लदखा. होनहार वीरवान के होत चीकने पात की उिटी तजथ पर दुयोधन की दुष्टता की झिक उसके बचपन से ही लदखने िगी थी और इस बात से धतृ राष्ट्र भी भिी-भांलत पररलचत थे. लिर आलखर उन्होंने उसी को अपना उत्तरालधकारी चुनने का लनणथ य क्यों लिया? क्या लसिथ इसलिए लक वह उनका पुत्र था? तटस्थ रूप से दे खने पर प्रतीत होगा लक लसिथ ऐसा नहीं था, हाूँ इस कारण उनका झुकाव इस तरि जरूर हु आ होगा. िेलकन मुख्य कारण उनकी अपनी महत्वाकांक्षा रही होगी और महत्वाकांक्षा भी क्या बलल्क इसे स्वयं को ज्यादा योनय सालबत करने का अहम् कहा जाए तो ज्यादा उपयुि होगा. अंधत्व होने के बावजदू धतृ राष्ट्र ने इस सच को सम्पण ू थ जीवन भर स्वीकार नहीं लकया और वह अपने आपको पांडु, लवदुर और खुद भीष्ट्म से ज्यादा महान और योनय होने का अहसास लदिाते रहे . स्पष्ट है लक यलद व्यलि अपनी लकसी एक अयोनयता या कमी को स्वीकार नहीं कर पाये तो धीरे -धीरे उस व्यलि के दुसरे गुणों का भी िोप हो जाता है, यही धतृ राष्ट्र के साथ भी हु आ. इसके साथ यह भी सच है लक एक असिि व्यलि अथवा शासक जो स्वयं की अयोनयता को नहीं मानता है और खद ु में सुधार नहीं करता है, वह योनय व्यलियों को अपने आस-पास दे खना और महसस ू करना भी स्वीकार नहीं करता है. धतृ राष्ट्र के पास उनके अंधत्व का कोई ईिाज नहीं था और यही कारण था लक वह स्वयं से ज्यादा योनय व धालमथ क गांधारी, लवदुर और भीष्ट्म की सिाह को अपने परू े जीवन में अनदे खा करते रहे और उनकी सिाहों के लवपरीत चिते रहे, यलु धलष्टर और उनके चार भाइयों की तो बात ही क्या की जाय. इस क्रम में अपने से भी अयोनय़, अधमी दुयोधन, शकुलन इत्यालद का साथ और सिाह उन्हें पसंद आती रही. इस परू े लववरण का तात्पयथ वही लनकिता है जो आजकि के नेताओं के व्यवहार में साफ़ झिकता है लक वह चापिस ू ों से लघरे रहना पसंद करने िगे हैं. मतिब साफ़ है लक आजकि के नेतागण भी धतृ राष्ट्र की ही भांलत समस्याओं से लनपट नहीं पाते हैं और अपनी अयोनयता स्वीकार कर उसे सुधारने की कवायद करना सबके बस की बात भिा कहाूँ होती है? यह बात लसिथ नेताओं पर ही िाग ू हो, ऐसा भी नहीं है, बलल्क आज के समय में क्या एक सामान्य अलधकारी क्या एक पुजारी, क्या एक व्यापारी और क्या एक कमथ चारी सभी एक तरि से अपनी अयोनयता और असििता को सुधारने की बजाय उसको छुपाने के लिए चापिस ू ी और चापिस ू ों की शरण में हैं. िेलकन इन समस्त कवायदों का पररणाम दे खना उतना ही आवश्यक है, लजतना धतृ राष्ट्र को महाभारत काि में दे खना चालहए था. अन्यथा तब जैसे कुरुराष्ट्र और कुरुवंश की बबाथ दी हु ई थी, ठीक वैसे ही चापिस ू ों द्रारा लदनभ्रलमत संस्थानों, संगठनों और सरकारों के साथ-साथ राज्यों और अंततुः दे श का 66 www.zmu.in | www.hindinewsportal.com | Mob: +91- 9990089080, Mail: m@zmu.in
पतन सुलनलश्चत है. यलद इस समस्या से कोई संस्थान उबरने की चाहत और नीयत रखता है तो उसे अयोनयता, असििता, सुधार की प्रलक्रया से गुजरना ही होगा अन्यथा उसे चापिस ू ों की फ़ौज पर लनभथ र होना ही पड़े गा और लिर जब वह खुद अयोनय है, लवधमी है, अहंकारी है और सुधार की प्रलक्रया से कोसों दूर है तो धतृ राष्ट्र ही की भांलत अपने झठ ू े -सच्चे साम्राज्य के भ्रमजाि को कायम रखने के लिए उसे चापिस ू या चापिस ू ों की फ़ौज खड़ी करनी ही पड़े गी, जो उसको शेखलचल्िी के सपने लदखाते रहें गे. हािाूँलक कुछ िोग इन सब चीजों को व्यवहाररकता का नाम दे ते हैं, िेलकन ऐसे महानुभावों को याद रखना चालहए लक पानी स्वभावतुः ऊपर से नीचे ही आता है. और मनुष्ट्य का स्वभाव व्यवहाररक रूप से पतन की ओर ही जाता है, जबलक प्रगलत के लिए और वह भी धालमथ क साथथ कता यि ु लवकास के लिए तो जतन करने ही पड़ते हैं. प्रमाण सलहत लसद्च, तमाम उदाहरण और व्याख्यान यि ु हमारा इलतहास कहता है लक स्वयं आगे बढ़ने और संस्थाओं को स्थाई ऊंचाई पर िे जाने के लिए लनयम बड़े ही सरि हैं, और वह यह हैं लक मन, वचन और कमथ में समानता िायी जाए. आज के सन्दभथ में कहें तो साफ़ नीयत और सच्चे अनुशासन के तािमे ि से, खुद की भिाई भी हो और आपसे जुड़े िोगों की भिाई भी हो. उदाहरणाथथ यलद आप एक कंपनी चिाते हैं और आपको लवकास करने की धुन सवार है तो आपको खद ु योनय होना होगा, अपनी गिलतयों को मानने और उनका सुधार करने को तत्पर रहते हु ए अपनी सांस्थालनक क्षमता बढ़ानी होगी. लिर आप आराम से चापिस ू ों से बचते हु ए अपने संस्थान की प्रगलत कर पाएं गे और धतृ राष्ट्र के लवपरीत अपना योनय उत्तरालधकारी चुनने में सक्षम भी हो पाएं गे. और इस तरह की प्रगलत स्थायी होगी, क्योंलक इसमें आपके कमथ चाररयों का भलवष्ट्य भी सुरलक्षत रहे गा, आपसे जड़ ु े पाटथ नसथ का लवश्वास भी आपके प्रलत बना रहे गा और आपके एं ड-यज ू र, यालन उपभोिा को भी आपसे संतुलष्ट लमिेगी. वही ूँ दस ू री तरह यलद आप खुद काम से जी चुराएं गे तो आपको एक मायाजाि बनाना ही पड़े गा, लजसमें चापिस ू ों की महत्ता बढ़े गी और आपसे जुड़े हु ए समस्त िोग अंततुः गतथ में होंगे. और हाूँ! आप भी तब गतथ में ही होंगे. तब न आपकी वास्तलवक कीमत रहे गी और न ही आपसे जुड़े िोगों की. सालहत्य में इसे ही 'पानी' कहा गया है. इसको आप साख, जुबान कुछ भी कह सकते हैं. इलतहास हमें बहु त कुछ लसखाता है और समझाता भी है. वह तो हम ही हैं जो अपने आूँखों पर हाथ रख िेते हैं और लिर कहते हैं लक लकतना अन्धकार है. धतृ राष्ट्र तो जन्मांध था, िेलकन 'अंधत्व' से हम सब पीलड़त क्यों हैं, इस यक्ष प्रश्न का हि हमें ही ढूूँढना होगा. २०१४ का आम चुनाव बीत चक ू ा है, हररयाणा, महाराष्ट्र के चुनाव के नतीजे भी आ जायेंग,े आगे भी चुनाव होंगे, िेलकन ,इस चुनावी िोकतंत्र में इसी कसौटी पर आपको वोलटंग-मशीन का बटन भी दबाते रहना होगा. दे खना होगा जनता को उम्मीदवारों की साथथ कता को भी और उनसे जुड़े िोगों की साथथ कता को भी. अन्यथा लमथ्याचार और भ्रमजाि में आप भी धतृ राष्ट्र ही की भांलत 'दुयोधन' ही का चुनाव कर बैठेंगे. सच कहा न!
- मममथलेश. (www.mithilesh2020.com)
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मिधानसभा चन ु ाि पररणाम, सभी को सबक अब जबलक महाराष्ट्र और हररयाणा के चुनाव पररणाम आ चुके हैं, तो यह स्पष्ट हो गया है लक दे शवालसयों ने सकारात्मक वोलटंग की थी. िोकसभा की ही भांलत हररयाणा में जनता ने बहु त पहिे से कांग्रेस के लखिाि मन बना लिया था और इस कड़ी में भपू ेंद्र लसंह हु ड्डा की ठीक-ठाक छलव भी बेअसर रही. कहना उलचत होगा लक केंद्र की लपछिी मनमोहन-सोलनया सरकार की अिोकलप्रयता का खालमयाजा कांग्रेस को इन चुनावों में भी भुगतना पड़ा. और बहु त उम्मीद है लक कांग्रेस केंद्र की पवू थ वती सरकार की बदनाम छलव से पार नहीं पा सकेगी, और आगे के चुनावों में भी उसे हार का मुंह दे खना ही पड़े गा. कांग्रेस की बुरी छलव का असर यहाूँ तक है लक यलद कोई सहयोगी उसके साथ खड़ा है तो उसकी हार भी लनलश्चत ही है. कई िोगों को आश्चयथ हु आ होगा लक महाराष्ट्र में सरकार बनाने के लिए भाजपा, लशवसेना बातचीत करने का प्रयास कर ही रही थी, तो लबन मांगे शरद पवार की एनसीपी ने भाजपा को समथथ न दे ने का एिान कर लदया. इस कड़ी में कई कहालनयाूँ भी चि रही हैं, मसिन एनसीपी भ्रष्टाचार के आरोप में अपने नेताओं को बचाने का सौदा करना चाहती है, या शरद पवार लशवसेना की ताकत को कम करना चाहते हैं. िेलकन, इतना बड़ा और आत्मघाती कदम उठाने का पररणाम शरद पवार भी जानते होंगे, और वह यह भी जानते होंगे लक संघ भी कभी नहीं चाहे गा लक एनसीपी, भाजपा का गठबंधन हो. तो लिर क्यों? उत्तर यह है लक शरद पवार को भाजपा का साथ लमिे न लमिे, िेलकन भाजपा को समथथ न की घोषणा करके उन्होंने कांग्रेस की कािी छाया से मुि होने का सिि प्रयास लकया है. जरा चुनाव पहिे की तस्वीर पर नजर डालिये, इधर भाजपा-लशवसेना का गठबंधन टूटा नहीं लक कांग्रेस और पवार का ररश्ता भी लबना एक पि की दे री लकये खत्म हो गया, मानो शरद पवार, कांग्रेस से मुि होने ै थे. वह भी जानते हैं लक लशवसेना भाजपा की लवचारधारा लहंदुत्व ही तो है. यह बात सौ के लिए लकतने बेचन िीसदी सच है लक प्रधानमंत्री नरें द्र मोदी एक कुशि प्रचारक हैं, कुशि प्रबंधन में मालहर हैं, िेलकन इन सब लवशेषताओं से ऊपर कांग्रेस की जनमानस से नफ़रत सबसे ऊपर है. जरा सोशि मीलडया पर चिने वािे राहु ि गांधी, कांग्रेस के चटु कुिों पर गौर कीलजये, िोग कांग्रेस को लकसी कीमत पर बदाथ श्त करने को तैयार ही नहीं हैं. और बहु त संभव है लक कांग्रेस को राजनीलतक अछूत मान लिया जाय. और लसिथ केंद्र में ही क्यों, आप महाराष्ट्र के पवू थ मुख्यमंत्री पथ्ृ वीराज चव्हाड़ के उस बयान पर गौर करें , जब उन्होंने कहा लक यलद वह आदशथ घोटािे में सख्त रूख अपनाते तो महाराष्ट्र में परू ी कांग्रेस ही समाप्त हो जाती. सच तो यह है लक घोटािे, भ्रष्टाचार, पररवारवाद, तुलष्टकरण के साथ ढे रों बुराइयां कांग्रेस में अपने चरम पर पहु ूँच चुकी थीं. हाूँ! मोदी को इस बात के लिए धन्यवाद जरूर करना चालहए लक उन्होंने न लसिथ इन बुराइयों को मजबत ू ी से जनता तक पहु ूँचाया, बलल्क खुद के रूप में एक सकारात्मक लवकल्प भी पेश लकया. जनता कांग्रेस के लखिाि इस कदर है लक वह न लसिथ उसे हरा रही है, बलल्क उससे लवपक्ष का तमगा भी लछनती जा रही है. महाराष्ट्र में दूसरी बड़ी पाटी के उद्चव ठाकरे की टीस लशवसेना के मुखपत्र में लनकिी, लजसमें उन्होंने कहा लक यलद भाजपा, लशवसेना साथ में िड़ते तो कांग्रेस और उसके सहयोलगयों को २५ सीटें भी नसीब नहीं होतीं. उनकी बात में सच्चाई हो सकती है, िेलकन यह भी सच है लक गठबंधन तोड़ने के लिए 68 www.zmu.in | www.hindinewsportal.com | Mob: +91- 9990089080, Mail: m@zmu.in
वह भी कम लजम्मे वार नहीं हैं. हािाूँलक भाजपा, शरद पवार से बहु त पहिे से नजदीलकयां बढ़ा रही थी और इसके केंद्र में अलमत शाह और राज्य के दे वेन्द्र िड़नवीस जैसे नेता शालमि थे. लशवसेना की नाराजगी का यह भी एक कारण थे, लजसके कारण उसने अपना रूख कड़ा लकया. उसे यह तो उम्मीद थी ही लक भाजपा सबसे बड़ी पाटी के रूप में उभरे गी, िेलकन उसको यह उम्मीद नहीं थी लक शरद पवार की एनसीपी को इतनी सीटें लमि जाएूँ गी लक वह भाजपा को समथथ न दे सके.
खैर, राजनीलत संभावनाओं का ही खेि है. लशवसेना की हैलसयत कम करने की कोलशश भाजपा और एनसीपी दोनों बड़ी लशद्ङत से कर रहे हैं. िेलकन लहंदुत्व के समथथ क, महाराष्ट्र और लवशेषकर मंुबई में लशवसेना को ज्यादा मुिीद पाते हैं. यह सच भी हो सकता है, िेलकन बािा साहे ब ठाकरे की राजनीलत से यहीं अिग हो जाती है उद्चव की राजनीलत. अब जबलक एनसीपी ने खुिेआम भाजपा को समथथ न दे ने की घोषणा कर दी है और उसके इस एिान पर भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अलमत शाह सरे आम अपनी ख़ुशी व्यि कर रहे हैं, तो उद्चव दबाव में आ चक ु े हैं. जबलक बािा साहे ब, इस दबाव को झटककर लवपक्ष में बैठना और संघषथ करना पसंद करते, क्योंलक वह जानते थे लक बेमेि लवचारधारा की राजनीलत लटकाऊ नहीं होती है. भाजपा और एनसीपी दो लबिकुि लवपरीत लवचारधारा की पालटथ यां हैं और यलद वह लमिते हैं तो यह लशवसेना के लिए आक्सीजन का काम करती. उदाहरण के लिए, आपको लदल्िी लवधानसभा की याद लदिाना चाहंगा. आपको याद होंगे राजनीलत के लक्षलतज पर चमकने वािे अरलवन्द केजरीवाि. कांग्रेस के ८ लवधायक लकतनी जल्दी जाकर लदल्िी के उप-राज्यपाि को अपना समथथ न-पत्र सौंप आये. केजरीवाि भी िािच में िंस गए, और लिर आगे की कहानी सबको पता है. उद्ङव में जरा भी राजनीलतक समझ होती तो वह एनसीपी और भाजपा की शादी पर चुटकी िेते और खुद लवपक्ष में बैठ कर मराठी राजनीलत को धार दे ते. िोगों में सहानभ ु लू त की भावना भी जागती और उनकी त्यागी राजनेता की छलव भी बनती. इस चुनाव में एक और बात जो खुिकर सामने आयी है, वह है मोदी की सलक्रयता. लजस प्रकार से दे श के प्रधानमंत्री ने भारी समुद्री तफ़ ू ान 'हु दहु द' पीलड़तों की अनदे खी करके इन राज्यों में चन ु ाव प्रचार लकया, वह अभत ू पवू थ था. कई िोगों ने मोदी की अलत-सलक्रयता की आिोचना भी की. महाराष्ट्र के पररणाम से मोदी की साख धलू मि नहीं हु ई है तो उसे चोट जरूर पहु ंची है, क्योंलक एनसीपी का समथथ न िे तो भाजपा के लिए कुआं, और लशवसेना से समथथ न िे तो खाई. िेलकन अलमत शाह जैसे जल्दबाज नेता और लवदभथ के समथथ क दे वेन्द्र िड़नवीस जैसे नेताओं को अपने प्रधानमंत्री की साख की लफ़क्र नहीं है, वह तो जैसे-तैसे सरकार बना िेना चाहते हैं, बस! भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष बन चुके अलमत शाह पर यहीं शक हो जाता है लक़ उन्हें पाटी की लवचारधारा की समझ भी है या नहीं, क्योंलक एनसीपी जैसी पालटथ यां लहंदुत्व के लिए लवष का कायथ करें गी, यह सबको पता है. हररयाणा में तो मोदी सीधे मुख्यमंत्री तय कर दें ग,े िेलकन महाराष्ट्र में लशवसेना िड़नवीस के नाम पर आसानी से नहीं मानेगी. लनलतन गडकरी एक अच्छे लवकल्प जरूर होते, लकन्तु केंद्र में वह एकमात्र संघ के करीबी बचे हैं, जो मोदी सरकार पर बारीक लनगाह रखे हु ए है, इसलिए संघ गडकरी को केंद्र में ही सक्रीय रखना चाहे गा. लशवसेना लदवंगत नेता गोपीनाथ की पुत्री पर दांव खेिना चाहे गी, 69 www.zmu.in | www.hindinewsportal.com | Mob: +91- 9990089080, Mail: m@zmu.in
िेलकन उसका लबिकुि अनुभवहीन होना इस रास्ते में बाधा उत्पन्न करे गा. दे खना लदिचस्प होगा लक महाराष्ट्र की समस्या को कैसे सुिझाते हैं राजनाथ लसंह, क्योंलक राजनाथ को मातोश्री भेजने का एक ही मतिब है लक मोदी और अलमत शाह महाराष्ट्र से पार पाने में लविि रहे हैं. इन चुनाव पररणामों ने लवश्नोई की हररयाणा जनलहत कांग्रेस, राज ठाकरे की मनसे को िगभग अप्रासंलगक बना लदया है, लवशेषकर राज ठाकरे की हाित बहु त ख़राब हो गयी है. अब तो वह सम्मानजनक हाित में लशवसेना तक में िौटने का रास्ता भी नहीं ढूंढ पाएं गे. वोटरों ने बहु त सोच - समझकर प्रत्येक राजनीलतक दि को सीख दी है और यह स्पष्ट कर लदया है लक िोकतंत्र की चाभी उसी के हाथों में रहे गी, न लक लकसी मोदी या अलमत शाह के हाथों में और न ही लकसी मातोश्री के हाथ में . िोकतंत्र की इस ताकत को प्रणाम करने के साथ आप सबको धनतेरस, दीपाविी, भैयादूज की कोलट-कोलट शुभकामनाएं .
- मममथलेश. (www.mithilesh2020.com)
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पटाखों का करें मिरोध, सममृ द्ध ाअएगी मनमिथरोध अभी कि की ही खबर है लक आंध्रा के तटीय पवू ी गोदावरी लजिे के वकालट्पा गांव में एक पटाखा िै क्री में हु ए लवस्िोट में 14 मलहिाओं समे त 17 िोगों की मौत हो गई. काकीनाड़ा लजिा मुख्यािय के समीप उ्पडा कोथापल्िी मंडि के वकालट्पा गांव में लस्थत एक लनजी िै क्री में मजदरू काम कर रहे थे तभी दोपहर बाद अचानक यह लवस्िोट हु आ. पुलिस के अनुसार, लवस्िोट के समय कई मजदूर वहां काम कर रहे थे. एक दूसरी खबर दे लखये, 'लनयमों को ताक पर रखकर लबक रहे पटाखे', इस कारण दुघथटनाओं की आशंका बढ़ी. एक और खबर के अनुसार, पुलिस ने लदवािी के सीजन में कई अवैध कारोबाररयों को पटाखों के अवैध कारोबार में पकड़ा है. हािाूँलक ये कुछ लदनों में बड़े आराम से छूट जायेंगे. िेलकन सवाि यह है लक दीपाविी के समय िोगों में पटाखों को िेकर जो उन्माद रहता है, उस का िायदा गित तरीके से कई कारोबारी उठाते हैं. वैसे भी हमारे दे श में पटाखे बनाने को िेकर कोई ठोस लनयम-कानन ू नहीं हैं, तो लजसको लजस प्रकार समझ आता है, पटाखे बनाकर अपना कारोबार करता है. लकस तरह के पटाखें हों, उन पटाखों में लकतनी मात्रा में बारूद हो, सुरक्षा के इंतजाम लकस प्रकार के हों, प्रदष ू ण लनयंत्रण के तय मानक क्या हों, इस पर लकसी का ध्यान नहीं जाता है. और इसके अभाव में िोगों के जान-माि को तो खतरा उत्पन्न होता ही है, पयाथ वरण को गंभीर खतरा उत्पन्न हो जाता है. आपकी जानकारी के लिए बता दें लक पटाखों की दुकानों के लिए सरकार ने कई तरह के लनयम बना रखे हैं, लजनमें मुख्य शतें हैं -पटाखों की लबक्री लबजिी के तारों के नीचे नहीं होगी. -लबजिी का रांसिामथ र के पास दुकान नहीं होनी चालहए. -पैरोि पंप की दूरी कम से कम 50 िीट की दूरी होनी चालहए. -पास में रुई और कपड़ों का गोदाम नहीं होना चालहए. -दुकान के बाहर पानी और रे त की बालल्टयां रखी होनी चालहए. -कपड़े के शालमयाने के नीचे दुकान नहीं िगनी चालहए. -लबजिी के बल्ब व हे िोजन िाइटों का प्रयोग नहीं होना चालहए. अब इन लनयम कानन ू ों में लकतनों का पािन होता है, यह सबको पता है, नतीजा होता है भयानक दुघथटना. इसके अलतररि अरबों, खरबों की संपलत्त एक रात में जिकर स्वाहा हो जाती है, इस बात को भारत जैसे गरीब दे श के सन्दभथ में अनदे खा नहीं लकया जा सकता है. परू ा लवश्व भारतीय उप-महाद्रीप के दे शों को तीसरी दुलनया के दे श कह कर अपमालनत करता है. भारत की गरीबी का हाि ही अमे ररकी अखबार में मजाक उड़ा था, लजसमें एक भारतीय लकसान को अपनी गाय के साथ मंगि ग्रह पर पहु ंचना लदखाया गया 71 www.zmu.in | www.hindinewsportal.com | Mob: +91- 9990089080, Mail: m@zmu.in
था. खैर उस अभद्र काटूथन का लवरोध होना ही था और हु आ भी. िेलकन वह काटूथन भारत की गरीबी को रे खांलकत कर ही गया. दीपाविी के सन्दभथ में गरीबी, अथथ व्यवस्था को छोड़ भी दें तो स्वास्थ्य दृलष्ट से बच्चों और गरीबों के लिए यह दीपाविी की रात सबसे बुरी रात सालबत होती है. और इस का एकमात्र कारण पटाखों से लनकिा असीलमत धंुआ और शोर होता है. लवशेषकर शहरों में दमा और ह्रदय-रोग के कई मरीज परिोक लसधार जाते हैं. मैं अपनी बात करूूँ तो लपछिी दीपाविी में मे रे ढाई साि के बच्चे को धुंए से एिजी हो गयी और उसको दीपाविी की सुबह ही डाक्टर के पास िेकर जाना पड़ा. लपछिी बार ही की दीपाविी में गाूँव में रहने वािे मे रे भांजे का हाथ जि गया था और न लसिथ जिा था बलल्क इतनी बुरी तरह से जिा था लक उसके एक हाथ में परू ा छािा पड़ गया और वह मचेंट नेवी की जॉब खोते-खोते बचा. बहु त िोगों को अपनी आूँखों में धुंए से, लचंगाररयों से भारी लदक्कत हो जाती है. पटाखों को िेकर न लसिथ आलथथ क और स्वास्थ्य सम्बन्धी समस्याएं हैं, बलल्क सांस्कृलतक रूप से भी यह दीपाविी के महत्त्व को कम करता जा रहा है. बच्चे तो बच्चे, युवकों में भी पटाखों को िेकर कुछ इस तरह की प्रलतद्रंलदता होती है लक दीपाविी के लदन भाईचारे की बजाय शत्रुता उत्पन्न हो जाती है. मध्यम वगीय घरों के बच्चे तरह-तरह के पटाखों को दे खकर उदास हो जाते हैं, उन्हें अपने घरवािों पर ही गुस्सा आता है. त्यौहार जो हमारे समाज में समरसता घोिने के लिए जाने जाते हैं, उन्हें लदखावे की इस प्रवलृ त्त ने जहरीिा बना लदया है. इस दीपाविी पर उलचत यही होगा लक खचीिे पटाखों की बजाय हम परं परागत दीयों की पंलियाूँ जिाएं और इस दीपाविी में भारतीय परं परा को जीलवत रखें. बहु त शुभकामनाएं .
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जम्मू कश्मीर मिलय मदिस का औमचत्य '२६ ाऄक्टूबर' लपछिे लदनों लदल्िी में आयोलजत एक गोष्ठी में जाने का अवसर लमिा, लजसे जम्मू कश्मीर पीपल्स िोरम नामक एक संस्था ने आयोलजत लकया था. सभा में जम्मू कश्मीर लवषय के लवद्रान, सरकारी अलधकारी एवं सेना के ररटायडथ उच्चालधकारी भी सलम्मलित थे. गोष्ठी में राष्ट्रवालदयों का समहू था तो इस राज्य के इलतहास से िेकर आधुलनक पररदृश्यों पर व्यापक चचाथ हु ई, कई नई बातें जानने, सुनने को लमिी जो लनलश्चत रूप से हमारी उस धारणा से अिग था, जो हम मीलडया के माध्यम से या अनलधकृत पुस्तकों से ग्रहण करते आये हैं. जैसा लक हम सभी को ज्ञात है लक २६ अक्टूबर १९४७ को जम्मू कश्मीर के तत्कािीन महाराजा हरी लसंह ने भारत में पण ू थ लविय के घोषणा-पत्र पर हस्ताक्षर कर लदया था, और तभी से ही यह भारत का अलभन्न अंग बन चुका है. तो लिर प्रश्न उठना िाजमी है लक आलखर आज़ादी के बाद से ही कश्मीर क्षेत्र को लववालदत क्यों बताया जा रहा है? साथ में इस क्षेत्र को िेकर पालकस्तान इतना संवेदनशीि क्यों है? लसिथ पालकस्तान ही क्यों, पलश्चम के दे श भी जाने अनजाने, छुपे रूप में पालकस्तान को उकसाते ही रहते हैं. यहाूँ तक लक पालकस्तान की वैलश्वक छलव एक आतंकवादी दे श की होने के बावजदू कोई भी पलश्चमी दे श इस मुद्ङे पर पालकस्तान पर दबाव नहीं बनाता है. यह लस्थलत तब है जब भारत एक आलथथ क महाशलि बन चुका है और अलधकांश दे शों के राजनैलतक, आलथथ क लहत भारत से जुड़े हु ए हैं. चीन जो हमारा पारम्पररक प्रलतद्रंदी या शत्रु कह िें, है, उसका रोि तो पालकस्तान को उकसाने में है ही. इलतहास के आईने में दे खने पर पता चिता है लक अंग्रेजी शासन के अंलतम गवनथ र िाडथ माउं टबेटन के समय के पहिे से ही अंग्रेजों ने भारत पालकस्तान बनाने की जो चाि चिी थी, उस समय ही अंग्रेज प्रशासकों ने कश्मीर के अंतराथ ष्ट्रीय महत्त्व को रे खांलकत करते हु ए इस बात को मान लिया था लक पालकस्तान का अलस्तत्व में रहना और कश्मीर का उस में लविय होना पलश्चम के लहत में रहे गा. इसलिए कश्मीर का लविय पालकस्तान में कराने के लिए अंग्रेजों ने एड़ी-चोटी का जोर िगा लदया था. पालकस्तान ने कश्मीर के लजस लहस्से पर कब्ज़ा लकया है, उस समे त कश्मीर की भौगोलिक सीमाओं का अंतराथ ष्ट्रीय महत्त्व कहीं ज्यादा होता. अन्य कई दे शों से सीमाओं के िगने के कारण इसके सामररक महत्त्व का अंदाजा अंग्रेजों को भी था. उस समय के अंग्रेज प्रशासक यह भी समझ चुके थे लक भलवष्ट्य में भारत उनके दबाव में कभी नहीं झुकेगा, जबलक पालकस्तान अपनी आतंररक बदहािी के कारण दबाव में आकर पलश्चम के दे शों ै ा कराता रहे गा. िेलकन जम्मू कश्मीर के महाराजा द्रारा, भारत में लविय करने के बाद को रास्ता मुहय माउं टबेटन परे शान हो गया. लिर पालकस्तान द्रारा १९४७ में ही आक्रमण करके ४,००० वगथ लकिोमीटर से ज्यादा भलू म हलथया िी गयी. बाद में यह कब्ज़ा राजनैलतक कमजोरी के कारण बढ़कर कािी ज्यादा हो गया. जम्मू कश्मीर को िेकर कई िोगों के मन में यह भ्रम भी है लक जवाहरिाि नेहरू संयुि राष्ट्र में कश्मीर मुद्ङे को िेकर गए. यह सच है लक पंलडत नेहरू संयुि राष्ट्र में गए, िेलकन वह पालकस्तानी सेना द्रारा कश्मीर में क़त्ि-ए-आम मचाने को िेकर पालकस्तान को कठघरे में खड़ा करने गए थे, न लक कश्मीर मामिे में संयुि राष्ट्र को हस्तक्षेप का न्यौता दे ने. हाूँ! राजनैलतक रूप से भि ू यह जरूर हु ई लक रे िरें डम की बात को िेकर हम कहीं िंस गए, िेलकन यह बात परू ी तरह से भारत के लिए आंतररक मुद्ङा 73 www.zmu.in | www.hindinewsportal.com | Mob: +91- 9990089080, Mail: m@zmu.in
ही रही है. इस सन्दभथ में यह महत्वपण ू थ बात है लक पालकस्तान ने कभी भी कश्मीर पर अपना दावा नहीं लकया, वह कर भी नहीं सकता है. बलल्क उसने कश्मीर में मानवालधकारों के हनन की बात लवलभन्न अंतराथ ष्ट्रीय मंचों पर उठायी है. हािाूँलक सभी जानते हैं लक यह पालकस्तान की दोहरी नीलत ही है, िेलकन तकनीकी रूप से अपने कब्ज़े के कश्मीर को वह आज़ाद कश्मीर ही कहता है. इन सब प्रश्नों पर गौर करने के बाद यह स्पष्ट है लक कश्मीर के लिए लसिथ पालकस्तान ही नहीं, बलल्क भारत को अलस्थर करने के लिए दूसरी वैलश्वक ताकतें भी परदे के पीछे िगातार सक्रीय रही हैं, अन्यथा पालकस्तान की इतनी क्षमता नहीं है लक वह ६० सािों से सीधा और छद्म युद्च भारत से िड़ पाये. संतुलष्ट की बात यह है लक राजनैलतक मोचों पर कमजोरी के बावजदू हम पालकस्तान से सीधा यद्च ु तो जीते ही हैं, छद्म यद्च ु पर भी भारतीय सेना काबू पा चुकी है. अब कश्मीर से आतंकवाद िगभग समाप्त हो चक ू ा है, िेलकन राज्य के २० िीसदी लहस्सों में अिगाववादी जरूर सक्रीय हैं. िेलकन यह अिगाववादी कहीं से भी राष्ट्रीय ताकतों पर भारी नहीं हैं. इसलिए आतंकवाद के लदनों में कश्मीर छोड़कर भारत के दुसरे लहस्सों की तरि पिायन करने वािे िोगों में लहम्मत भरने की, उनके साथ खड़े होने की जरूरत है अब. इस कड़ी में यह बताना सामलयक होगा लक सेनालधकाररयों के मन में इस बात की टीस जरूर है लक पालकस्तान से हर तरह की िड़ाई जीतने के बावजदू , उनके अलधकाररयों, सैलनकों को मानवालधकार के नाम पर न्यायाियों/ आयोगों के चक्कर काटने पड़े हैं, जबलक मि ू कश्मीररयों की हत्या करने वािे, उनकी ज़मीन पर कब्ज़ा करने, लहन्दुओ ं को घाटी से भगाने वािों के लखिाि हर एक की जुबां बंद हो जाती है. आलखर इनके अलधकारों के लिए घाटी में आंदोिन क्यों नहीं होता, इनकी जायदाद पर कब्ज़ा करने वािों के लखिाि कोटथ में मामिा दायर क्यों नहीं लकया जाता, इन अिगाववालदयों के लखिाि मानवालधकार हनन की कायथ वाही के लिए लवलभन्न संस्थाएं दबाव क्यों नहीं बनातीं. इसके साथ में यह बात भी सच है लक कश्मीर को िेकर हम कािी हद तक ग़ितफ़हमी के लशकार रहे हैं. जरूरत है इन सब मुद्ङों को िेकर दे श भर में व्यापक जागरूकता िै िाने की. जम्मू कश्मीर को िेकर अंग्रेजों द्रारा सालहत्य लिखे गए, तब लनलश्चत रूप से ही उसमें नकारात्मकता भरी थी, इसलिए इलतहास को खंगािने कर उस का दे शलहत में अध्ययन लकये जाने की जरूरत है. जम्मू कश्मीर हर तरह से भारत का लहस्सा था, यलद कुछ लववाद है तो लनलश्चत रूप से पालकस्तान द्रारा कब्जाए क्षेत्र को िेकर है. हािांलक लपछिे दशकों में आतंकवाद की पीड़ा झेि चुके कश्मीरी, लवशेषकर लहन्दुओ ं के मन में लनश्चय ही डर का माहौि है, और यह डर का माहौि तभी लनकिेगा जब सभी भारतवासी तन, मन, धन से उनके साथ हर पि खड़े रहें गे. आज़ादी के समय के हमारे पवू थ जों द्रारा जो लकया जा सकता था, वह उन्होंने अपने प्रयास से लकया, कई चुकें भी हु ई ं, लकन्तु कश्मीर को िेकर राष्ट्र न कभी कमज़ोर पड़ा, न कभी पड़े गा.
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समरसता का महापिथ 'छठ-पूजा' भारतवषथ को यलद एक वाक्य में पररभालषत करना हो तो उसे लनलश्चत रूप से ही 'त्यौहारों का दे श' कह कर सम्बोलधत लकया जायेगा. यलद जनवरी महीने से शुरू करें तो गुरु गोलवन्द लसंह जयंती, मकर संक्रांलत, पोंगि के बाद फ़रवरी में बसंत पंचमी, रलवदास जयंती, महालशवरालत्र का बड़ा त्यौहार आता है. लिर एकएक करके, होिी, रामनवमी, वैसाखी, बुद्च पलू णथ मा, रक्षाबंधन, जन्माष्टमी, गणेश चतुथी, ओणम, दीपाविी, गोवधथ न के रास्ते छठ महापवथ के बाद भी यह लसिलसिा िगातार आगे बढ़ता जाता है. अनेक पत्र-पलत्रकाओं में त्यौहारों के ऊपर िगातार लिखा जाता है, कई राष्ट्रीय पलत्रकाओं के त्यौहार लवशेषांकों में वैज्ञालनक दृलष्टकोण के साथ सामलजक संरचनाओं को मजबत ू ी दे ने में त्यौहारों की अहम भलू मका बताई जाती है. अपनी रोजमराथ की जीवनचयाथ में भागते-दौड़ते मनुष्ट्य को त्यौहार रस से भर दे ते हैं और उनको यह एहसास लदिाते हैं, उसे सचेत करते हैं लक इस मशीनी युग में वह मशीन न बनें, बलल्क अपने प्रलत, अपने पररवार के प्रलत, अपने गाूँव-मोहल्िे के प्रलत, अपने समाज के प्रलत वह मे िजोि रखें, साझी संस्कृलत के लवकास में अपना योगदान करें . भारतीय व्यवस्था में लजस प्रकार ब्राह्मण, क्षलत्रय, वैश्य, शद्रू चार वणथ माने गए हैं, ठीक उसी प्रकार इन के कायों से सम्बंलधत चार मुख्यतुः त्यौहार रक्षाबंधन, लवजयादशमी, दीपाविी और होिी की मान्यता है. हािांलक आधुलनक काि में इस ऐलतहालसक व्याख्या की कोई ख़ास अहलमयत नहीं है, बलल्क अहलमयत इस बात की ज्यादा है लक त्यौहार अपने उद्ङे श्य को परू ा कर पा रहे हैं अथवा नहीं. अपने लपछिे िेखों में मैंने कई बार कहा है लक त्यौहारों की भलू मका िोक-संस्कृलत के लवकास में सबसे महत्वपण ू थ होती है, इसके साथ इस बात का भी लज़क्र करने में हमें कोई लहचक नहीं होनी चालहए लक ऊपर वलणथ त त्यौहारों में अलधकांशतुः एक सरकारी छुट्टी से ज्यादा अहलमयत नहीं रखते हैं. आधुलनक जीवन-शैिी और संयुि पररवारों के टूटन के दौर में हमारे पास खुद के लिए वि नहीं है, अपनी धमथ पत्नी के लिए वि नहीं है, अपने बच्चों के लिए वि नहीं हैं, अपने माूँ-बाप, चाचा-चाची और पररवार के दुसरे सदस्यों की कौन बात करे . खैर, इन वास्तुलस्थलतयों के अनेक कारण हैं, और उस मुद्ङे पर चचाथ गाहे -बगाहे होती रहती हैं. िेलकन इसका पररणाम यह होता है लक त्यौहारों का अपना उद्ङे श्य सीलमत होता जा रहा है. हािाूँलक उपरोि वलणथ त व्याख्याएं 'छठमहापवथ ' पर अपना नकारात्मक प्रभाव कतई नहीं छोड़ पाई ं हैं. हािाूँलक त्यौहारों की तुिना करना थोड़ी अजीब बात होगी, िेलकन शोध की दृलष्ट से मैं सोचता हूँ तो आश्चयथ से कहना पड़ता है लक दुसरे त्यौहार जहाूँ अपनी अहलमयत को खोते जा रहे हैं, वही ूँ छठ महापवथ का बेहद तेजी से दे श और लवदे श तक में प्रसार हो रहा है. डूबते सय ू थ को अर्घयथ दे ने वािी एकमात्र ज्ञात परं परा वािी छठ पज ू ा की मलहमा सवथ व्यापी हो चक ु ी है. हािाूँलक शुरुआत में यह त्यौहार लबहार और पवू ी उत्तर प्रदे श के कुछ लहस्सों में ही मनाया जाता रहा है. आज सुबह की एक घटना आप सभी से साझा करना चाहंगा. प्रत्येक लदन की भांलत आज भी अपने बच्चे को सुबह मैं स्कूि छोड़ने पहु ूँच गया. संयोग से मुझे याद नहीं था लक छठ पज ू ा के कारण आज उसकी छुट्टी है, 75 www.zmu.in | www.hindinewsportal.com | Mob: +91- 9990089080, Mail: m@zmu.in
तो स्कूि के गेट पर नोलटस िगी थी छुट्टी की, अतुः मैं िौटने िगा. इस बीच मे रा ध्यान आस पास के कुछ वररष्ठ िोगों पर चिा गया, जो बड़बड़ा रहे थे लक भाई! वोट की पॉलिलटक्स है, लदल्िी में भी इनकी संख्या ५० िाख से ज्यादा हो गयी है, इसलिए हर नेता इनकी चापिस ू ी में िगा है, लदल्िी में भी छठ पज ू ा पर छुट्टी घोलषत हो गयी है. थोड़ा अजीब तो िगा लिर लवचारमनन होकर मैं दे शभर की लस्थलतयों पर इस त्यौहार के सन्दभथ में सोचने िगा. भारत जैसे दे श में, मुंबई जैसे आधुलनक शहर में लपछिे लदनों लजस प्रकार छठ पज ू ा का भारी लवरोध लकया गया, उसने कइयों के रोंगटे खड़े कर लदए थे. अपने प्रदे श में रोजी-रोजगार की व्यवस्था न होने के कारण वह व्यलि पिायन करता है, िेलकन अपने दे श में भी वह व्यलि त्यौहार नहीं मना सकता, सम्मान से जी नहीं सकता, इस बात ने दे श भर में छठ पज ू ा को िेकर भारी उत्सुकता पैदा कर दी. लबहार, यपू ी या लकसी भी राज्य के िोग हों, जब भी लकसी भारतीय पर अपनी संस्कृलत को िेकर जरा भी आंच आती है, वह बेहद सजग होकर और भी तीव्र गलत से आगे बढ़ता है. इसके साथ यह भी ऐलतहालसक सच है लक जो यात्रा करते हैं, वह लवकास करते हैं. जो एक जगह जम जाते हैं, वह जड़ हो जाते हैं. गुिामी के काि में हमारे पवू थ जों को अंग्रेजों ने गुिाम बनाकर दुसरे दे शों में भेजा था, िेलकन अब वह उन दे शों की रीढ़ बन चुके हैं, ऐसे तमाम उदाहरण हमारे सामने हैं. बलल्क कुछ दे शों में तो वह राष्ट्र-प्रमुख के पद तक पहु ूँच चक ु े हैं. यही हाि अपने दे श में लपछड़े और लवकलसत राज्यों की मानलसकता को िेकर है. एक जगह के िोग, दुसरे राज्य के कमजोर िोगों को अपने पास बैठाना पसंद नहीं करते हैं, क्योंलक कमजोर व्यलि हर तरह का कायथ करने को तत्पर रहता है, और इस कारण स्थानीय व्यलि को कड़ी चुनौती का सामना करना पड़ता है. मे हनती िोग तो मुकाबिा करते हैं, िेलकन आिसी िोगों की मानलसकता का िायदा राज ठाकरे जैसे राजनेता अच्छे से उठाना जानते हैं. संयोग कलहये या कुछ और, िेलकन लपछिे दशकों में छठ-पज ू ा 'लपछड़े -िोगों', लपछड़े राज्यों की अलस्मता का प्रतीक बन गयी. मुद्ङे का राजनीलतकरण होने से इसका प्रचार-प्रसार तो खबू हु आ िेलकन इस त्यौहार की असिी अहलमयत हम समझ नहीं पाये. दुुःख की बात यह है लक तमाम कुलटि िोग, छठ-पवथ के नाम पर िाखों की िटू करते हैं, वोटसथ का सौदा करते हैं. लदल्िी, मुंबई हो या रायपुर, भोपाि अथवा कोई अन्य शहर हो, छठ पज ू ा के नाम पर व्यावसालयकता खबू िि-िूि रही है. इसके राजनीलतकरण से अिग हटकर सोचें तो इस पवथ पर लजस प्रकार का सामलजक एकत्रीकरण होता है, वह लकसी और दशा में दुिथभ है. मैं अपनी बात करूूँ तो मे रे गाूँव में छठ पज ू ा पर दे श और लवदे श तक रहने वािे िोग एकत्र होते हैं और गाूँव के तािाब के लकनारे शाम को चार घंटे से ज्यादा समय भी दे ते हैं. अपने सर पर छठ पज ू ा की सामग्री और प्रसाद से भरी टोकरी िेकर घाट पर जाने का आनंद अनुपम होता है. संस्कृलत की छटा इस समरस त्यौहार के माध्यम से न लसिथ दे श में बलल्क दे श से बाहर रहने वािे भारतीयों को जोड़ने में लकया जा सकता है. इसके साथ इस त्यौहार की मि ू भावना जो मैं समझता ह,ूँ वह यही है लक लगरते को भी सहारा दो, ठीक उसी प्रकार लजस तरह से डूबते सरू ज की मलहमा को छठ पज ू ा के माध्यम से हम स्वीकार करते हैं. क्योंलक जो लगरे गा, वही उठे गा, जो डूबेगा, वही उगेगा. जो संघषथ करे गा, वही आगे होगा. जो ठहर जाएगा, वह मत ृ हो जाएगा. आइये, राजनीलत से दूर हटकर इस पवथ की मलहमा को आत्मसात करें और बोिें- "जय छठ मइया की". - मममथलेश. (www.mithilesh2020.com) 76 www.zmu.in | www.hindinewsportal.com | Mob: +91- 9990089080, Mail: m@zmu.in
देश के लौह-परु ु ष एिां लौह-ममहला की चाररमत्रक समानताएां आज ३१ अक्टूबर को दे श के दो महापुरुषों को याद करने का सुअवसर है. आज़ादी के समय जहाूँ दे शवालसयों ने सरदार वल्ल्भभाई पटेि का िौह चररत्र दे खा, वहीं आज़ाद भारत में श्रीमती इंलदरा गांधी ने भारत की सुरक्षा को िेकर हर वह कदम उठाया, जो आज के समय भी प्रासंलगक है, और हमे शा रहे गा. दे श के भीतर तमाम नेता हु ए हैं, हैं और आगे भी होते रहें गे िेलकन कुछ एक चररत्र पक्षपात से हटकर, राजनीलत से हटकर प्रेरणा दे ते हैं, दे शभलि का एक मानदंड तय करते हैं और उनके द्रारा स्थालपत मल्ू यों की अनदे खी कर पाना इलतहास के लिए भी संभव नहीं हो पाता है. अब दे लखए ना, इस बात को लवडम्बना कहा जाय या कुछ और लक दे श को लकसी प्रकाश स्तम्भ की भांलत अूँधेरे में रास्ता लदखाने वािे िौह-परु ु ष को लपछिी कांग्रेस की सरकारों ने अनदे खा कर लदया था, तो ठीक इसी रास्ते पर चिते हु ए कलथत राष्ट्रवादी सरकार भी दे श की िौह मलहिा की अनदे खी पर उतर आयी है. सरदार पटेि ने अंग्रेजी गुिालमयत से पीलड़त, शोलषत, लबखरे भारत को लकसी योद्चा की भांलत एकजुट लकया, तो इंलदरा गांधी ने दुगाथ का रूप धारण करके गरीबी, भख ू मरी, अलशलक्षत भारत में गौरव का भाव जगाया. िेलकन दे श के वतथ मान भानय लवधाताओं को इस तथ्य को समझने की िुसथ त कहाूँ है. बस वह इन महान नायकों की िौह प्रलतमाएं बनाकर संतुष्ट हो जाते हैं, वह इनके महान चाररलत्रक गुणों को तो छू भी नहीं पाते हैं. दे शभलि और दे शवालसयों की रक्षा के जो मल्ू य सरदार पटेि और इंलदरा गांधी ने स्थालपत लकये हैं, उसे लपछिी सरकार और वतथ मान सरकार ने समझा ही नहीं हैं, उस रास्ते पर चिने की बात शुरू ही कहाूँ होती है. लपछिी सरकार को तो भारत की जनता ने बड़ी बुरी लबदाई या कहें लक श्रद्चांजलि दे चुकी है, इसलिए उसकी बात क्या की जाय, िेलकन वतथ मान सरकार भी सीमा-सुरक्षा के मुद्ङे पर कुछ ख़ास करती नहीं लदख रही है. सरदार पटेि की जयंती और श्रीमती गांधी की पुण्य-लतलथ पर आज उनको परू ा दे श याद कर रहा है, इन जननायकों को श्रद्चा-सुमन अलपथ त कर रहा है, तो ऐसे उपयुि समय में यह बताना उलचत होगा लक इन दोनों नेताओं की छलव अपने आप में लनलवथ वाद रही थी. दे शलहत की खालतर इन्होने योगेश्वर श्रीकृष्ट्ण की भांलत न लसिथ राजनीलत की, बलल्क जरूरत पड़ने पर सुदशथ न-चक्र उठाने से भी यह नहीं चक ू े. एक दूसरी खास बात इन दोनों के चररत्रों में और समझ आती है लक कमथ पथ पर चिते हु ए इन्हें अपनों के द्रारा सवाथ लधक लवरोध का सामना करना पड़ा. राजनीलत कहें या कुछ और िेलकन आज़ादी के बाद दे श की अलधकांश प्रांतीय सलमलतयां, प्रधानमंत्री के पद के लिए सरदार पटेि के पक्ष में थीं, िेलकन उन पर जवाहरिाि नेहरू को वरीयता लमिी. इसी के सामानांतर इंलदरा गांधी को भी उन्हीं की पाटी के वररष्ठों ने पाटी तक से लनकाि लदया, िेलकन उनके भीतर मौजदू िौहतत्व ने उन्हें इलतहास के स्वलणथ म अक्षरों तक पहु ंचा लदया. कहना अलतशयोलि नहीं होगी लक गीता में लजस कमथ योग की व्याख्या योगेश्वर श्रीकृष्ट्ण ने की है, उसका अक्षरशुः पािन इन दोनों िौह-व्यलित्वों ने लकया है. हैदराबाद और जन ू ागढ़ की ररयासतों 77 www.zmu.in | www.hindinewsportal.com | Mob: +91- 9990089080, Mail: m@zmu.in
का लविय करने में सरदार पटेि ने मोह का त्याग कर लदया और अपने लप्रय नेता नेहरू तक से नाराजगी मोि िी. वहीं इंलदरा गांधी ने भी आपरे शन ब्िू स्टार को दे श के लिए जरूरी माना और उनके चाररलत्रक बि को दे लखये लक एक लवशेष कौम के लखिाि हो जाने के बावजदू उन्होंने अपनी लनजी सुरक्षा से उस कौम के िोगों को अिग नहीं लकया. दोनों महानायकों के काि में कुछ साि का िकथ जरूर रहा हो, िेलकन दे शभलि की खालतर एक्शन िेने में दोनों का जवाब नहीं. तमाम ऐलतहालसक कहालनयाूँ दोनों के चररत्र से जुडी हु ई ं हैं, और हम सब उसे जानते भी हैं. उनको जानने में हमसे कोई गिती नहीं होती है, िेलकन समस्या तब आती है, जब हम उनके द्रारा लकये गए कायों और लदखाए गए रास्तों को मानते नहीं हैं. आम जनमानस को तो इन महापरु ु षों से सीख िेनी ही चालहए, िेलकन लवशेषरूप से राजनेताओं को राजनीलत का उद्ङे श इन िौह-चररत्रों से सीखने की आवश्यकता है. कटुता के इस दौर में सरदार पटेि का राजनैलतक जीवन बेहद व्यवहाररक हो जाता है.तमाम मतलभन्नताओं के बावजदू उन्होंने पंलडत नेहरू से लजस प्रकार सामंजस्य बनाये रखा, उस चररत्र को, सरदार पटेि की लवश्व में सबसे ऊूँची प्रलतमा बनाने का दावा करने वािे नेतत्ृ व को सीखना चालहए. िौह पुरुष की बात चि रही है तो कलथत राष्ट्रवादी नेतत्ृ व को भाजपा के िौह-पुरुष कहे जाने वािे भीष्ट्म की अनदे खी पर भी अपना रूख साफ़ करना चालहए. ठीक यही लस्थलत इंलदरा गांधी के समथथ कों पर भी िाग ू होती है. उनके समय भी कांग्रेस पाटी धराति में जा चुकी थी, िेलकन उन्होंने लकस प्रकार उसे पुनजीवन लदया, यह अध्ययन का लवषय है. दे श में मजबत ू लवपक्ष का होना बहु त जरूरी है, और खासकर िोकतालन्त्रक प्रलक्रया में तो यह जनमानस का प्राण होता है. यलद दे श में लवपक्ष नहीं है तो इसके लिए इंलदरा गांधी के राजनैलतक उत्तरालधकारी कहिाने वािे लकतने लजम्मे वार हैं, इस बात पर उन्हें मंथन करना चालहए, और यलद इंलदरा गांधी की गररमा को वह कायम न रख पाएं तो दस ू रों के लिए रास्ता छोड़ दे ना चालहए. आलखर यह दोनों महापुरुष परू े दे श के गौरव हैं, िेलकन इनका गौरव हम तभी रख पाएं गे जब दे श की खालतर, दे शवालसयों की खालतर प्रत्येक िािच, भय से मुि होकर, लवरोलधयों के साथ तािमे ि बनाकर आगे बढ़ें . इसी में इन महान व्यलित्वों की श्रद्चांजलि भी होगी, और दे श का कल्याण भी.
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भारतीय समाज की कमथत 'ाअधमु नकता' एिां कामकाजी ममहलाएां कुछ ही लदनों पहिे की बात है, जब लवश्व की सबसे बड़ी आई टी कंपनी माइक्रोसॉफ्ट के सीईओ से लकसी ने प्रश्न लकया लक योनयता में बराबर होने के बावजदू मलहिाओं के मे हनताने उनके पुरुष समकक्षों से कमतर क्यों हैं? संयोग से यह सीईओ साहब भारतीय मि ू के ही हैं, और भारतीय मि ू के व्यलि शािों को बड़े मनोयोग से पढ़ते हैं. तो उन महाशय ने तपाक से जवाब लदया लक मलहिाएं कमथ करें और सेिरी की लचंता छोड़ दें ! प्रलतलक्रया स्वरुप बवाि होना ही था, और हंगामा इतना हु आ लक इन महाशय को सावथ जलनक माफ़ी तक मांगनी पड़ी. खैर! यह तो एक बात हु ई, िेलकन इस हंगामे ने मुझे मलहिाओं की लस्थलत पर पन ु लवथ चार करने को मजबरू लकया, लवशेषकर आज के भारतीय पररदृश्य में . चूँलू क हमारा दे श परु ातनपंथी और रूलढ़वादी रहा है, यहाूँ मलहिाओं को िेकर अनेक आंदोिन चिे हैं, उनके अलधकारों के लिए, उनके सम्मान के लिए हर स्तर पर कायथ भी हु ए हैं, िेलकन लिर भी मलहिा अलधकारों के सन्दभथ में हमारे दे श को लनचिे पायदान पर ही रखा जाता है. हािाूँलक, दे श की आज़ादी को िेकर हम ्िेलटनम जुबिी मनाने को तैयार हैं, िेलकन मलहिाओं की दशा पर लचंतन करने का समय हमारे पास कम है. यह लस्थलत तब है, जब दे श लवदे श में लजन भारतीयों ने झंडे गाड़े हैं, उनमें मलहिाओं की संख्या कहीं से कमतर नहीं है. चाहे कल्पना चाविा, सुनीता लवलियम्स, लकरण बेदी, मैरीकॉम जैसी एक क्षेत्र में बुिंदी छूने वािी मलहिा प्रलतभाओं की बात करें या इंलदरा नय ू ी, चंदा कोचर, सालवत्री लजंदि जैसी व्यवसायी मलहिाओं की बात करें या लिर राजनीलत के क्षेत्र में सुषमा स्वराज, सोलनया गांधी जैसी हलस्तयों की बात कर िें, यह सच ू ी बढ़ती ही जाती है. यलद कुछ नहीं बढ़ता है तो वह हमारे दे श की सामान्य मलहिाओं का जीवन स्तर. यलद कुछ नहीं बदिता है तो वह है हमारे समाज की वही रूलढ़वादी सोच, जो औरतों को माइक्रोसॉफ्ट के सीईओ की तरह काम करने भर का अलधकार दे ते हैं. उन जैसों की नजर में वह अपने अलधकारों को मांग नहीं सकती हैं, उन पर लवचार नहीं कर सकती हैं अथवा उसके लिए िड़ाई नहीं िड़ सकती हैं. एक नजर में दे खने पर यह कहा जा सकता है लक भारतीय मलहिाओं की लस्थलत में पहिे की अपेक्षा बहु त सुधार हु आ है, अब वह उच्च लशक्षा ग्रहण कर रही हैं, नौकररयां कर रही हैं, आलथथ क और सामालजक रूप से सशि बन रही हैं. िेलकन बारीकी से दे खने पर यह भी स्पष्ट हो जाता है लक यह सििता प्रतीकात्मक स्तर पर ही है, और जो कुछ प्रतीकात्मक भी है, उसके लिए भी उन मलहिाओं को कई जगह भारी कीमत तक चुकानी पड़ रही है. प्रश्न यहाूँ उठता है और उठना भी चालहए लक आलखर हमारा समाज और समाज के कलथत पढ़े -लिखे िोग, कामकाजी मलहिाओं को प्रोत्सालहत क्यों नहीं कर पा रहे हैं? क्या हमारी सामालजक संरचना अभी तक इस वैलश्वक बदिाव को स्वीकार नहीं कर पायी है? क्या इस नकारात्मक पररदृश्य में मलहिाओं की भी भलू मका है? यलद हाूँ! तो क्या और उसका समरस हि क्या है? हािाूँलक इन प्रश्नों का उत्तर ढूंढने से पहिे हमें अपनी सामालजक संरचना की मि ू भत ू बातों पर पन ु दृथलष्ट जरूर डािनी होगी, क्योंलक हजारों सािों की सोच को कुछ दशकों में बदि पाना लनश्चय ही कलठन 79 www.zmu.in | www.hindinewsportal.com | Mob: +91- 9990089080, Mail: m@zmu.in
अवधारणा है. लियों को अब तक पलत की सेवा करने और बच्चों को सूँभािने की मशीन ही समझा जाता रहा है, और लसिथ मशीन ही नहीं, बलल्क उसे अलधकारलवहीन भी समझा जाता रहा है. हािाूँलक, समय के साथ यह सोच इतनी जरूर बदिी है लक अब हमारा संलवधान और समाज दोनों लियों को अलधकारयुि मानने िगा है. अब हर घर की िडलकयां उच्च लशक्षा ग्रहण कर पाती हैं. नौकरी करने का प्रयत्न भी करती हैं, िेलकन उसके बाद .... .... !!! सारी समस्या उसके बाद उत्पन्न होनी शुरू हो जाती है. रूलढ़वादी और अलतवादी स्वभाव वािों की हम बात नहीं करते, क्योंलक उनकी संख्या धीरे -धीरे कम हो रही है और उनके लवचार भी लवकासशीि हो रहे हैं. हम बात करते हैं आधुलनक और पढ़ी लिखी जमात की. शादी के बाद सन्तानोत्पत्ती होते ही नौकरीपेशा मलहिा को अपनी नौकरी का बलिदान करना ही पड़ता है. भारत में ऐसा ९० िीसदी मामिों में होता है, शेष दस िीसदी मामिों में दम्पलत्तयों के बीच तनाव की लस्थलत बन जाती है. शुरुआत में कुछ िोग जरूर डे -बोलडां ग / क्रेच को प्राथलमकता दे ने की सोचते हैं, िेलकन भारत में यह संस्कृलत पनप ही नहीं पायी है, और शायद उस रूप में लवस्ताररत होगी भी नहीं. क्योंलक भारत में बच्चों को न लसिथ उस पररवार का बलल्क दे श का भलवष्ट्य तक कहा और माना जाता है. अब यह सोचने वािी बात है लक भारत जैसे भावना - प्रधान दे श में बच्चों का िािन-पािन लकसी नौकर या प्रोिेशनि के हाथ में कैसे लदया जा सकता है. यह ठीक है लक बच्चों के लनमाथ ण की सवाथ लधक सिि और प्रमालणत प्रलक्रया हमारे दे श की संयुि पररवार व्यवस्था रही है, िेलकन इस संस्था के िगातार टूटन ने हमारे दे श की औरतों पर सबसे ज्यादा कहर ढाया है. आधुलनकता और अथथ के साथ स्वालभमान की कुछ ऐसी मजबरू ी है लक दे श में पढ़ी लिखी मलहिाएं नौकरी करना चाहती हैं, िेलकन नौकरी करते ही उन्हें अपना पररवार, अपने बच्चों का भलवष्ट्य, संस्कार और ररश्ते तार-तार होते नजर आते हैं. लजद्ङ करके यलद वह शुरूआती कुछ लदनों तक नौकरी करती भी है तो उसे घर के दुसरे कामों के अलतररि बच्चों के पािन का अलतररि दबाव सहन करना पड़ता है. इस दबाव के ििस्वरूप लडप्रेशन समे त अनेक बीमाररयां कम उम्र में ही मलहिाओं को जकड िेती हैं. यलद लिर भी जैसेतैसे, अपनों का लवरोध करके, िड़ कर वह अपनी जॉब जारी भी रखती है तो कुछ सािों के बाद पता िगता है लक उसका बच्चा उस से कािी दूर चिा गया है. टीवी, कं्यटू र से िगाव के कारण वह मशीन बन गया है, तो माूँ के समय न दे पाने के कारण वह इंसानी भावनाओं और संवेदनाओं से भी वंलचत रह गया है. आलखर कोई िी लकतनी भी आधुलनक क्यों न हो जाय, िेलकन भारतीय माताओं और लवदे शी मदसथ में इतना अंतर तो रहे गा ही लक उसे अपने पुत्र से सबसे ज्यादा िगाव होगा, लकसी डे बोलडां ग अथवा क्रेच से अलधक. इन पररलस्थलतयों के साथ तािमे ि लबठाकर, औरतों के लिए नौकरी कर पाना कािी मुलश्कि हो जाता है. इस के साथ यह बताना मुनालसब होगा लक समाज के साथ, पुरुषों के साथ औरतों की सोच भी कामकाजी नहीं हो पायी है. मैं व्यलिगत रूप से कई ऐसी पढ़ी लिखी मलहिाओं को जानता ह,ूँ लजनका अपना घरे िु व्यवसाय है, वह आसानी से अपने पलत का हाथ बंटा सकती हैं, लजस से उनका घर भी बचा रहे गा और वह कामकाजी भी बनी रह पाएं गी, िेलकन उन पर बाहर काम करने का, स्वच्छं दता का भत ू जाने क्यों सवार 80 www.zmu.in | www.hindinewsportal.com | Mob: +91- 9990089080, Mail: m@zmu.in
रहता है? मतिब यलद वह काम करें गी तो कहीं बाहर, नहीं तो वह घर बैठकर टीवी और लकट्टी में समय ही लनकिेंगी. हािाूँलक बदिी हु ई पररलस्थलत में यह सबसे सुगम हि है लक पढ़ी लिखी औरतें स्व-उद्योगों के सहारे अपने व्यलित्व को लनखारें , अपने पलत के या घरे िु व्यवसाय में अपनी आलथथ क सम्पन्नता का रास्ता ढूंढने का प्रयत्न करें . यलद हम एक क्षेत्र की ही बात करें तो, आज के समय में जब सच ू ना प्रौद्योलगकी में भारत अपने झंडे गाड़ रहा है, तो इसको िेकर तमाम स्वरोजगार की संभावनाएं भी उत्पन्न हु ई हैं. घर बैठकर छोटे रोजगार के अवसरों जैसे- टाइलपंग, डे टा एं री से िेकर व्यापक अवसरों जैसेलबजनेस कंसलल्टंग, बड़े प्रोजेक्ट्स की कोलडं ग तक का काम घर बैठकर ही लकया जा सकता है. कई बड़ी कंपलनयां घर बैठकर फ्रीिांस करने की सुलवधा दे ती हैं. सबसे बड़ी बात यह है लक सच ू ना प्रोद्योलगकी में ऐसा कोई काम नहीं है, लजसे पढ़ी लिखी िडलकयां घर बैठकर एक कं्यटू र के सहारे कर नहीं सकती हैं. यलद काम करने में कोई समस्या आती है तो यटू ् यबू , गग ू ि जैसी सुलवधाओं से बेहद आसानी से वह स्टेपबाई-स्टेप सीख सकती हैं. इसके अलतररि, लजस सॉफ्टवेयर में लदक्कत आती है, वह सॉफ्टवेयर बनाने वािी कंपनी हर वि तैयार रहती है सपोटथ दे ने के लिए. पर मुझे बड़ा अजीब िगता है, जब अपने समकक्ष कई िड़लकयों को बहाने बनाकर काम से भागते दे खता हूँ. शायद, वह भी उसी सोच की लशकार हैं लजसमें पैसा कमाने के लिए पलत होता है और वह बच्चे सूँभािने की खानापलू तथ करने के लिए. खानापलू तथ शब्द इसलिए मुझे इस्तेमाि करना पड़ रहा है क्योंलक आज कि की िड़की घरे िु हो या कामकाजी, बच्चे को टीवी के सहारे ही छोड़ दे ती हैं, या स्कूि अथवा ट्यश ू न के सहारे छोड़कर खश ु हो िेते हैं. हािाूँलक यहाूँ, पुरुष-वगथ को क्िीन लचट नहीं दी जा सकती, क्योंलक एकि पररवार में उनके पास अपनी बीवी के साथ वीकेंड पर मवू ी दे खने का समय जरूर होता है, िेलकन अपने छोटे बच्चे के साथ शाम को पाकथ में घम ू ना उन्हें समय की बबाथ दी िगता है. काश! संयुि पररवार में यह युवा रहते और उनके माूँ-बाप उनके कान खींचते रहते. उनको थोड़ा बुरा जरूर िगता, थोड़ा कष्ट भी होता, िेलकन खद ु उनका भलवष्ट्य और उनकी अगिी पीढ़ी का भलवष्ट्य अपेक्षाकृत अच्छा बनता. ईमानदारी से दे खा जाए तो आज के भारतीय समाज में लियों की लस्थलत बेहद उिझी हु ई नजर आती है. कई बार इसके लिए समाज की सोच लजम्मे वार होती है तो कई बार खुद मलहिाओं की मानलसकता इसका कारण होती है. िेलकन भारतीय समाज का लवस्ततृ लचंतन करने पर इसके दो हि नजर आते हैं, लजसको पररमालजथ त लकया जा सकता है. ऊपर की पंलियों में संयुि पररवार और स्व-रोजगार का वणथ न इसी भारतीय संवेदना को ध्यान में रखकर लकया गया है. उम्मीद है, समाज के साथ प्रत्येक व्यलि इस समस्या को लवकराि बनने से पहिे व्यलिगत रुलच िेकर इस समस्या पर अध्ययन करे गा एवं इसका बहु आयामी हि दे ने का प्रयत्न करे गा. इन्हीं शब्दों के साथ, आप से लवदा िेते हु ए आपकी प्रलतलक्रया द्रारा उत्साहवधथ न की उम्मीद करता हूँ.
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काला धन, शेषनाग और प्रधान सेिक! वह री खबू सरू ती! बड़ा सुखद आश्चयथ होता है राजनेताओं की चतुराई दे खकर. हंसी आती है जनता की बेबशी पर, और िोकतंत्र का व्यवसाय करने वािे ठे केदारों पर क्रोध का आना जाना तो िगा ही रहता है. लजस कािे धन के मुद्ङे को योग ऋलष से िेकर लवपक्षी पाटी के भीष्ट्म लपतामह ने जोर शोर से उठाया, उसे िपक कर भारत के प्रधानमंत्री ने अपनी कुसी पांच साि के लिए सुरलक्षत कर िी. इस बात पर िोग खुश भी हु ए और होना भी चालहए, िेलकन प्रधानमंत्री ने रे लडयो कायथ क्रम 'मन की बात' में जनता को बड़े ही भारतीय अंदाज में बेवक़ूफ़ बनाने की कोलशश की. न लसिथ बेवक़ूफ़ बनाने की कोलशश की बलल्क बेहद खबू सरू ती से इस कािे धन के मुद्ङे को डस्टलबन में भी पहु ंचा लदया. जरा उनके शब्दों पर गौर कीलजये- दे श के बाहर गया गरीबों का कािाधन वापस जरूर आएगा. आगे बोिते हु ए श्री मोदी ने कहा, "जहां तक कािे धन का सवाि है, आप मुझ पर भरोसा कीलजये, यह मे रे लिए आलटथ कि ऑफ़ िेथ है, मे रे दे शवालसयों, भारत के गरीब का पैसा जो बाहर गया वो पाई पाई वापस आएगी." इसके आगे बोिते हु ए पीएम ने परू े मुद्ङे पर बेहद खबू सरू ती से पानी िेरते हु ए कहा लक लवदे शों में लकतना कािाधन जमा है, इसके बारे में लकसी को पता नहीं है. वाह जी! तो यहाूँ प्रश्न उठना स्वाभालवक है लक इन्हीं श्री मोदी ने चुनावों के पहिे अपने चुनावी भाषणों में कहा था लक वह काि धन िाएं गे और कािे धन की मात्रा इतनी ज्यादा है लक हर भारतीय को घर बैठे १५ - १५ िाख रूपये लमि जायेंगे. िेलकन इस मन की बात कायथ क्रम में प्रधानमंत्री यहीं नहीं रुके, बलल्क उन्होंने कहा, "आज तक लकसी को पता नहीं है, ना मुझे, ना सरकार को, ना आपको लक लकतना धन दे श के बाहर है. बस समझदार को इशारा ही कािी है, बुलद्चजीवी तो उनके इस इशारे को समझ ही गए होंगे. यहाूँ भी इन बड़बोिे प्रधानमंत्री की बात रुकी नहीं, बलल्क आगे उन्होंने कािे धन की मात्रा लनधाथ ररत करते हु ए कहा लक लवदे शों में काि धन चाहे ५ रूपये हों, ५ सौ हों, ५ हजार हों या .... !! खैर, लवपक्षी नेता भी कौन सा मुंह लदखाने िायक हैं. उन्होंने भी प्रधानमंत्री को झठ ू ा करार दे ते हु ए जनता से सावथ जलनक माफ़ी मांगने की वकाित करने में दे री नहीं की. िेलकन इस बीच कािे धन के मसिे पर लजस प्रकार हो हल्िा मचा है, यह शायद भारत में सबसे चलचथ त शब्द बन गया है. यह हो-हल्िा कोई आज नहीं मच रहा है, बलल्क लपछिे कई सािों से इसे बेहद बारीकी से सुिगाया गया है. इसके तमाम आंकड़ों पर, कािे धलनकों पर खबू चचाथ एं हु ई ं हैं, सरकारें तक बदि गयीं हैं, यलद कुछ नहीं बदिा है तो वह है इसकी असलियत और इसका उद्गम-स्थि. कोई मुखथ ही होगा, जो यह दावा करे गा लक कािा धन उत्पन्न होने की दशा और लदशा में रं च मात्र भी पररवतथ न आया है. सब कुछ यथावत है. हाूँ! कािे धन पर हु ए तमाम आन्दोिनों, अलभयानों में अरबों रूपयों का कािा धन जरूर खप गया है, इसकी जांच पर तमाम आयोगों ने खबू िीपा-पोती की है, अखबार के तमाम पेज इस मुद्ङे पर खबू रं गे गए हैं, िेलकन मुद्ङा जस का तस. वस्तुतुः कािा धन, बड़े व्यवसाय, भ्रष्टाचार, मनी िांलड्रं ग, चुनाव-खचथ , सट्टेबाजी, ब्िैकमे लिंग, िाििीताशाही इत्यालद इतने घुिे लमिे शब्द हैं, लजनके लनलहताथथ एक-दुसरे से गहराई से जड़ ु े हु ए हैं. और इन शब्दों की मलहमा तो दे लखये लक खुद को दे श का प्रधान सेवक कहने वािे, िेलकन अपने ही दि में लहटिर की तरह व्यवहार करने वािे व्यलि ने भी आज हार स्वीकार कर िी, लक मुझे भी कुछ नहीं पता. वाह रे 82 www.zmu.in | www.hindinewsportal.com | Mob: +91- 9990089080, Mail: m@zmu.in
कािा धन! तेरी मलहमा अपरम्पार है. हमारे दे श के सुपरमैन सरीखे नेता, जो उत्तराखंड की त्रासदी से कई हजार गुजरालतयों को बचा िे जाते हैं, लवश्व के सबसे बड़े दादा बराक ओबामा से 'केम छो' बुिवा िेते हैं. अपनी पाटी के भीष्ट्म को नाक रगड़ने पर मजबरू कर दे ते हैं, कांग्रेस का परू े दे श से सिाया करने के अलभयान को दौड़ा दे ते हैं, िेलकन तेरे आगे वह भी नतमस्तक हैं. हे कािे धन! कहीं तू कालिया नाग तो नहीं है, या लिर शेष नाग, लजस पर सम्पण ू थ पथ्ृ वी लटकी हु ई है. शायद हाूँ! तू शेषनाग ही है शायद, और कम से कम भारतीय व्यवस्था तो तुझ पर ही लटकी है, नहीं तो अपने प्रधान सेवक तुझसे भी अपनी सेवा जरूर करा िेते. तेरी सम्पण ू थ मलहमा का वणथ न तो मैं नहीं कर सकता, िेलकन तेरी एकाध मलहमा का दशथ न मुझे भी हु आ है, उस का वणथ न मैं करने की लहमाकत कर रहा ह,ूँ बुरा मत मानना. संयोग कलहया या दुयोग, लदल्िी में अखबार उद्योग से कई वषों तक जुड़ा रहा हूँ. अभी भी कई पत्रकार लमत्र हैं, लजनसे बात होती रहती है. िोकतंत्र के इस चौथे स्तम्भ कहे जाने वािे 'मीलडया उद्योग' की सच्चाई आप सुनेंगे तो आप इस लवदे शों में जमा कािे धन को एक पि के लिए भि ू जायेंगे. एक तरि अलधकांश छोटे अखबार, छोटे िोगों को लपत्त पत्रकाररता के माध्यम से अपना लशकार बनाते हैं, तो दूसरी ओर बड़े मीलडया घराने परू े दे श में टैक्स चोरी का सबसे बड़ा केंद्र बन गए हैं. बड़े उद्योगपलतयों, व्यापाररयों की मदद करके यह उद्योग कािा धन उत्पन्न करने का सबसे बड़ा ज्ञात श्रोत है, और यह बात कोई लछपी बात नहीं है. अलधकांश िोग इस तथ्य से अवगत भी हैं. और लसिथ मीलडया घराने ही क्यों, तमाम प्रलतलष्ठत इवेंट मैनेजर, ढोंगी प्रवचनकताथ, एनजीओ का रे ट कािे धन उद्योग से बेहद गहराई से जुड़ा हु आ है. दे श के प्रधानमंत्री को बेशक यह hindi-library-books-pustakalay-bookसच्चाइयाूँ पता नहीं हों, िेलकन उनके ही गहृ राज्य गज ु रात के एक बड़े धालमथ क सम्प्रदाय द्रारा कािे धन के िेन-दे न का खि ु ा खेि लकस प्रकार चिता है, यह बताने की आवश्यकता नहीं है. उस सम्प्रदाय के मंलदर परू े लवश्व में हैं, और आप उनको यहाूँ भारत में दान दीलजये लिर कुछ प्रलतशत काटकर वह रकम आप लवदे श में उनकी ही संस्था से िे िीलजये. जो टैक्स सरकार के खाते में जाना चालहए, उसे इस प्रकार के बड़े मगरमच्छ लनगि जाते हैं, इस बात को कौन नहीं जानता है. प्रधानमंत्री जी, आपको सच में पता नहीं है या आप जान समझकर आूँखें बंद कर िेना चाहते हैं, यह तो आप ही जानें िेलकन आप यह जान िीलजये लक दे श की लजस आम जनता ने आपको अपने सर आूँखों पर लबठाया है, वह इतनी मुखथ भी नहीं है. आज कई उद्योगपलतयों के कायथ क्रमों में आप जाते हैं और वह बड़ी सहजता से, तस्वीरों में, आपकी गररमा के लखिाि आपकी पीठ पर हाथ रख दे ते हैं, वह दे श की असिी टैक्सपेयर नहीं है. टैक्सपेयर तो वह जनता है, लजन्हें यह सभी उद्योगपलत 'कंज्यम ू र' कह कर इंसान होने का हक़ छीन िेते हैं. साबुन, तेि, आटा, चावि, सब्जी, पेरोि सलहत रोजमराथ की चीजों पर भरी टैक्स िगाकर दे श की लतजोरी भरती है, और उस लतजोरी के दम पर ही दे श चिता है. यह बड़े िोग तो लसिथ कािे धन जमा करते हैं. बेशक आप न मानें, िेलकन आप जानते जरूर हैं. यह ठीक है लक राजनीलत की तमाम मजबरू रयाूँ होती हैं, िेलकन इस भ्रष्टाचार की जड़ को सुखाने के लिए आपने कुछ भी तो नहीं लकया है अब तक. एक व्यलि पर हाथ नहीं डािा, एक व्यलि जेि में नहीं गया, एक रूपया तक नहीं आया. टैक्स चोरी की एक ठोस कवायद नहीं हु ई, लिर लकस मुंह से आप खुद को जनता का प्रधान सेवक कहते हैं, यह आपको स्वयं सोचना चालहए. हाूँ! जनता का ध्यान भटकाने में आपका कोई जवाब नहीं, कभी सिाई के 83 www.zmu.in | www.hindinewsportal.com | Mob: +91- 9990089080, Mail: m@zmu.in
नाम पर तो कभी कािे धन के नाम पर. हे जननायक! आप यह भी तो सोलचये लक गंदगी िै िती क्यों है, कािा धन उत्पन्न कैसे होता है? क्यों उत्पन्न होता है. कुछ तो कीलजये! अब तक जो हु आ सो हु आ, अब कािा धन न बने, भ्रष्टाचार न हो, उसको तो रोकने की कवायद शुरू कीलजये, नहीं तो हमारे गुरुवर कहते हैं लक इलतहास के लकसी कूड़े दान में जाने के लिए अपनी मनुः लस्थलत भी तैयार कर िीलजये. लिर छोड़ दीलजये, जननायक का तमगा, जनसेवक का तमगा और गवथ से कलहये लक आप भी 'उनकी' ही भांलत शासक हैं, नेता हैं. वही नेता, लजनके मुंह भी दे शवासी सुबह उठकर दे खना पसंद नहीं करते हैं. आप समझ रहे हैं न! (िेखक को अपने लवचारों से जरूर अवगत कराएं )
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स्िास््य सेिाओ ां का ितथमान स्िरुप एिां स्िच्छता ाऄमभयान भारतीय संस्कृलत में लजन महत्वपण ू थ सुखों की बात की गयी है, उन सभी में स्वास्थ्य को सवोपरर माना गया है. हम, आप अक्सर इस वाक्य 'पहिा सुख लनरोगी काया' को सुनते रहते हैं, पर आपको दे श के स्वास्थ्य पर नजर दौड़ाने के बाद इस सत्र ू वाक्य के उल्टा चररत्र ही दे खने को लमिेगा. व्यलियों के स्वास्थ्य की बात करें , नेताओं के स्वास्थ्य की बात करें अथवा पेट िुिाये आध्यालत्मक आरामपरस्त कलथत 'संतों' की बात करें या लिर आप प्रशासन की बात ही कर िीलजये, स्वास्थ्य के प्रलत हमारी अनदे खी, िापरवाही हमें तीसरी दुलनया का दे श सालबत करती है. लपछिे लदनों अपनी माताजी को दे श के सबसे बड़े मे लडकि इंस्टीट्यटू 'एम्स' में िे जाना पड़ा, उनको रृदय लवशेषज्ञ के पास िे जाना था. 'एम्स' जैसी बड़ी, कलथत रूप से 'लवश्वस्तरीय' संस्था के गेट पर पहु ूँचते ही आपको अव्यवस्था का अंदाजा होना शुरू हो जाएगा. बेतरतीब रैलिक, मुख्य द्रार के बाहर ढे रों रे हड़ी वािों का जमावड़ा, पालकांग की भारी असुलवधा और कम प्रलशलक्षत लकसी प्राइवेट लसक्युररटी कंपनी के ठे के पर 'व्यवस्था' सूँभािते गाडथ आपको इस संस्थान के लवश्वस्तरीय होने का अहसास कतई नहीं लदिा पाएं गे. असंवेदनशीि िोग, दे श में ज्यादा जनसंख्या को इस अव्यवस्था के लिए लजम्मे वार ठहराने में जरा भी दे र नहीं िगाएं ग,े िेलकन प्रश्न यहाूँ उठता है लक परू े दे श में एक-एक गाूँव को आदशथ गाूँव का बनाने का उपक्रम करने वािे हमारे सांसद और यह व्यवस्था क्या दे श भर में एक सरकारी अस्पताि को मॉडि नहीं बना सकती है, जो वास्तव में लवश्वस्तरीय हो. क्या लदल्िी के 'एम्स' लजस पर कई बार हमने नाज करने में कोताही नहीं की है, वहां इस प्रकार की अव्यवस्था दे श भर के अस्पतािों की दुदथशा बताने के लिए पयाथ प्त नहीं है. यह तो शुरुआत भर है, आगे हम बढ़ते गए और लकसी रे िवे स्टेशन की तरह िम्बी िाइनों में िगे िोग और आपस में कभी-कभी भीड़ रहे नागररकों पर भी आप दया और झठ ू ी सहानुभलू त लदखाने के अलतररि कुछ नहीं कर सकते . व्यवस्था संभाि रहे गाडथ , चूँलू क गाडथ प्राइवेट कंपनी के और कम प्रलशलक्षत हैं, इसलिए वह कभी ग्पें मारते हैं तो कभी मरीजों और उनके पररजनों में लववाद होने पर यथासंभव लनपटाने की कोलशश भी वही करते हैं. यही नहीं, कुछ गाड्थस को कुछ मरीजों से पैसे िेकर उनको िाइन में आगे िगाकर या उनकी पची आगे भी बढ़ाते हैं, लजससे कई बार लववाद उत्पन्न हो जाता है. खैर, जैसे तैसे सुबह छुः बजे से पची कटाने के लिए िाइन में हम भी िगे थे और हमारा नंबर तीन बजे आया, तब तक यहाूँ, वहां हम यायावर की भांलत भटकते रहे , क्योंलक प्रतीक्षा हाि में घुसते ही आपको कुम्भ मे िे की याद आ जाएगी, और ....!! हमारा नंबर चूँलू क 21 था, इसलिए हमसे पहिे के 19 िोगों को डॉक्टर साहब दे ख चुके थे, इिेक्रॉलनक लडस््िे बोडथ पर हमारी दृलष्ट लटकी थी लक अचानक डॉक्टर साहब गोि हो गए और आधे घंटे के बाद पधारे . बाद में पता चिा लक 'लबचारे ' लकसी इमरजेंसी केस को दे खने 'आपरे शन-लथयेटर' में गए थे. लिर आते ही 20 नंबर के मरीज को दे खते ही उस पर भड़क उठे, मैं आपरे शन नहीं करूूँगा, तुमसे ररपोटथ मंगाई थी... .!! मरीज तो मरीज, उसके चक्कर में डॉक्टर साहब भी लचड़लचड़े हो गए. खैर, हमारा नंबर आया, हमारी तरि 85 www.zmu.in | www.hindinewsportal.com | Mob: +91- 9990089080, Mail: m@zmu.in
दृलष्ट उठकर उन्होंने एक बार दे खा और हमारा काडथ दे खने िगे. हमारी माताजी को पहिे से लनदेश था लक वह ब्िड-प्रेसर का चाटथ बनाकर िाएं, वह अपने झोिे से वह चाटथ लनकाि ही रही थीं लक डॉक्टर साहब उसे दे खे लबना बोिे लक माताजी का हाटथ कमजोर है, दवा लज़न्दगी भर चिेगी. माताजी चूँलू क साड़ी पहनती हैं, अतुः स्टीि की थािी वािी, मरीज-कुसी से उठकर अपना पल्िू ठीक करने िगीं, तब तक अटेंडेंट ने उनको िगभग धक्का दे ते हु ए बोिा लक बाहर लनकि कर साड़ी ठीक कीलजयेगा, दूसरों को आने दीलजये. दरवाजे के बाहर लकसी पुराने लसनेमा की लखड़की जैसा दृश्य था, वह भी ऐसा जैसे 'ब्िैक' में लटकटें लबक रही हों. क्या करता, बचते-बचाते माता जी को बाहर लनकािकर घर िाया. इस बीच सुबह छुः बजे के बाद हमें 'एम्स' पररसर को भी दे खने का अवसर लमिा, जहाूँ कुछ एररया साफ़सुथरे भी हैं, िेलकन लिर भी जगह-जगह कूड़ा िै िे दे खना अपने आप में एक दुुःखद अनुभव था. कुछ टॉयिेट की हाित इतनी बुरी थी (इस ब्िॉग में िोटो संिनन हैं), जो लकसी चौराहे पर पलब्िक टॉयिेट की याद ताजा कर रही थी. आज जब परू ा दे श साफ़-सिाई के अलभयान में 'िोटो-लखंचाने' पर जोर दे रहा है, बड़े वैलश्वक नेता बन चुके महानुभाव हमारे प्रधानमंत्री हैं, बलढ़या और ईमानदार माने जाने वािे डॉक्टर हमारे स्वास्थ्य मंत्री हैं, ऐसे में लदल्िी जैसे शहर के केंद्र में 'एम्स' जैसे पररसरों की िोटो 'ट्लवटर' पर िोग क्यों नहीं अपिोड कर रहे हैं, यह बड़ा अजीब था. दुलनया भर में सिाई का लदखावा करने वािे नेता, अलभनेता, अलधकारी कहाूँ हैं. हमारे गुरुवर, जो राष्ट्र-लकंकर पलत्रका के यशस्वी संपादक भी हैं, उनका एक िेख है "सिाई अलभयान नहीं, बलल्क हमारी आदत होनी चालहए". इस िेख में लदखावे पर उन्होंने कड़ा प्रहार लकया है. गन्दगी के दृश्य को जब मैं अपने कैमरे में कैद कर रहा था तो हमारी बुजुगथ माताजी ने इस सन्दभथ में हमसे पछ ू ा, तो मैं आदतन प्रशासन की बुराई करने िगा, तो उन्होंने सबसे पहिे मुझे टोका लक तुम िोटो तो लखंच रहे हो, िेलकन तुमने उस गन्दगी पर थक ू ा क्यों? लिर उन्होंने मुझे लदन भर जनता द्रारा िै िाई जा रही गन्दगी की तरि ध्यान लदिाया. यहाूँ तक लक प्रतीक्षािय में कुलसथ यों के नीचे लबलस्कट के पैकेट, टॉिी के रै पर, संतरे के लछिके पड़े हु ए थे (ब्िॉग में िोटो संिनन हैं). मैं शलमां दा था, क्योंलक दूसरों की तरह हम भी तो नागररक ही हैं. हमारे दे श में, जहाूँ 'पहिा सुख लनरोगी काया' कहा जाता है और जहाूँ महात्मा गांधी जैसे वैलश्वक नेता ने 'स्वच्छता' को स्वतंत्रता से भी जरूरी बताया है, वहां के तथाकलथत सबसे सुदृढ़ मे लडकि इंस्टीट्यटू की इस हाित ने हमारी व्यवस्था की परत-दर-परत उधेड़ डािी. लिर अखबारों में स्वास्थ्य को िेकर तमाम वह आंकड़े सच नजर आने िगे, लजसमें भ्रण ू -हत्या, नकिी दवाइयों का कारोबार, मनुष्ट्यों के अंगों का अवैध व्यापार, हॉलस्पटल्स के घोटािे, डॉक्टरों की भारी कमी, आपातकाि में मरने वािे मरीजों की भारी संख्या का लज़क्र होता हैं. लिर वह सारे अलभयान भी लदखावा प्रतीत िगने िगे, लजसमें भारत की छलव लकसी महंगे 'कुते' की तरह प्रदलशथ त लकया जाता हैं, िाखों के चश्मे पहनकर दे श की जनता को सुखी दे खा जाता हैं, नौकरशाहों की चापिस ू ी में पड़कर दे श की खुशहािी का अंदाजा िगाया जाता हैं. जरूरत लिर उसी 'लनरोगी काया' के मन्त्र को साथथ क करने की है, और यह लकसी िोटो-लखंचाउ अलभयान से नहीं होगा, बलल्क इसे हमें अपनी आदत में शुमार करना होगा. यलद दे श के भानय लवधाता और दे शवासी इस तथ्य को
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समझ पाएं गे तो ही हम सिाई, स्वच्छता और स्वास्थ्य के मामिे में 'तीसरी दुलनया के दे श' की श्रेणी से बाहर लनकि पाएं गे और गवथ से उस वैलदक मंत्र को साथथ कता से दुहरा पाएं ग,े जो कहता है -
"सवे सुलखनुः भवन्तु, सवे सन्तु लनरामया, सवे भद्रालण पश्यन्तु, मा कलश्चद् दुुःखभाग भवेत् |" शुभकामनाओं सलहत,
- मममथलेश. (www.mithilesh2020.com)
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सांत न छोडे सांताइ कबीर दास का यह प्रलसद्च दोहा सज्जन व्यलियों के दृढ चररत्र की बेहद सुन्दर व्याख्या करता है. यह कहना अनुलचत न होगा लक भारत जैसे दे श में, जहाूँ 'संत' शब्द का प्रयोग बहु धा धालमथ क अथों में होता है, वहां यह दोहा अपनी महत्ता खो चुका है. सामान्य जन की बात क्या की जाय. यह कहना अलतश्योलि नहीं होगी लक आने वािी पीलढ़यों को जब कभी आधुलनक संतों की कानन ू ी कहानी सुनाई जाएगी तो वह 'संत' और 'संतई' के साथ 'गुंडई' शब्दों को समानाथी ही समझेगा. हाि ही में हररयाणा के कलथत संत की चचाथ बड़े जोरों पर है. एक तरि हाई कोटथ के आदे श के बाद उन महोदय की लगरफ्तारी के लिए उनके आश्रम में पुलिस, कमांडो व सीआरपीएि की टुकलडय़ों का जमावड़ा है, रात में लठठुरती ठं ड के बीच श्रद्चािु व पुलिस के जवान अपने मोचों पर तैनात हैं, वहीं दूसरी ओर संलवधान को चुनौती दे ते उनके श्रद्चािु मीलडया के माध्यम से प्रशासन को संदेश दे रहे हैं लक अगर प्रशासन चाहे तो संत को वीलडयो कांफ्रेंलसंग के माध्यम से आश्रम से ही कोटथ में पेश लकया जा सकता है, िेलकन वे लगरफ़्तारी नहीं दें गे. वाह जी! क्या बात है, एक तो संत और उनकी संतई, ऊपर से उनके संत-प्रवलृ त्त के श्रद्चािु. क्या संलवधान, क्या कोटथ , क्या प्रशासन! सभी को धत्ता बताते हु ए इन 'संत' नामक महाशय ने कानन ू के सामने चुनौती पेश कर दी है, और कानन ू के िम्बे-िम्बे हाथ अूँधेरे में तीर चिा रहे हैं, समझौते की बाट जोहते लिर रहे हैं. प्रश्न लवचारणीय होगा लक भारत जैसे महान दे श, जहाूँ दाधीच जैसे संत ने अपना शरीर ही िोकलहत की खालतर बलिदान कर लदया था, वहां िोकलहत को झटकने की परं परा इन कलथत 'संतों' द्रारा मलहमामंलडत क्यों की जा रही है. बात लसिथ एक संत की ही नहीं है, बलल्क इस तरह के संतों में अनेक नाम सलम्मलित हैं. ईश्वर को अपना 'दोस्त' बताने वािे एक और संत, जो राजस्थान की जेि में हवा खा रहे हैं, ने भी अपनी लगरफ़्तारी के पहिे और बाद में खबू हंगामा करवाया. कािे धन के ऊपर शोर मचाने वािे एक और योगाचायथ ने लपछिी सरकार के कायथ काि में बड़ा शोर मचाया, उसके बाद उन संत महोदय एवं उनकी संतई में लवश्वास रखने वािों पर आधी रात को सरकारी डं डों का तुषारापात हु आ, और उनको मलहिाओं के वेश में लनकिना पड़ा. उसके बाद उन्होंने अपनी 'सेना' बनाने का भी संतई वािा लवचार प्रकट लकया था, लजसकी कड़ी आिोचना होने के बाद वह िोकतालन्त्रक तरीके से अपना लवरोध प्रकट करने के लिए राजी हु ए. खैर, उन्होंने उसके बाद संघषथ लकया, और कहा जाता है लक उनके प्रयासों का भी नयी सरकार के गठन में योगदान रहा है. एकाध और संतों लजन पर बिात्कार, हत्या के मुकदद्मे हु ए, अपने श्रद्चािुओ ं को भड़काकर लगरफ़्तारी से बचने की भरपरू कोलशश करते रहे हैं, कानन ू के पािन में सरददथ बनते रहे हैं. धमथ भीरु दे श में, धमथ के नाम पर व्यापार करने वािों की संख्या भी बहु तायत में मौजदू है. हर एक सम्प्रदाय के नाम पर, लवचार के नाम पर इन 'संत' महोदयों की दक ु ी लमि जाएगी. आम जनमानस ू ान हर जगह खि तो इनके जाि में स्वाथथ की खालतर, डर से, अंधलवश्वास से िंस ही जाता है, िेलकन सरकारी अलधकारी, न्यायपालिका से जुड़े िोग, मीलडयाकमी भी अपने गित लहत साधने की खालतर इनके मलहमामंडन में कोई कसर नहीं रखते हैं. कई अिसरों, नेताओं को इन गुंडों, माफ़ कीलजयेगा कलथत 'संतों' के चरणों में 88 www.zmu.in | www.hindinewsportal.com | Mob: +91- 9990089080, Mail: m@zmu.in
िोट-पोट करते दे खा गया है. कभी वोट की खालतर, कभी कािा धन सफ़ेद करने की खालतर, कभी लवरोलधयों को पस्त करने की गरज से. यह एक बहु त बड़ा कारण है लक यह िोग िोकतंत्र और संलवधान को अपने आगे कुछ नहीं समझते हैं और एक के बाद एक आपरालधक कृत्य करने से भी गुरेज नहीं करते हैं, यहाूँ तक लक न्यायािय की अवमानना भी इनके दायें-बाएं हाथ का खेि होता है. बेहद तालकथक बात है लक लजस वोट की खालतर हररयाणा की सरकार, वतथ मान लववाद के हि में टािमटोि कर रही है, उस ढीिेपन से जनता के मन में कानन ू की इज़्ज़त दो कौड़ी की हो जाएगी. िेलकन उन रहनुमाओं को इसकी लिक्र कब रही है, जो आज वाह लिक्रमंद होंगे! प्रश्न लसिथ कानन ू ी भी नहीं, बलल्क भारत जैसे धालमथ क दे श में लजस प्रकार धमथ की प्रलतष्ठा को यह िोग तार-तार करते जा रहे हैं, वह लचंतनीय और लनंदनीय तो है ही, इसके साथ वाह दंडनीय भी है. अभी एक समुदाय के सन्यासी ने अपने िेसबुक प्रोिाइि पर इस बात की गवथ से 'पलु ष्ट' की है लक "वह समलिंगी (गे) है. आपको सुनने में जरा अजीब िगेगा, लकन्तु यह सत्य है. हमारे गुरुवर ने उसकी पोस्ट पर कठोर प्रलतलक्रया व्यि करते हु ए लिखा लक- "सच स्वीकारना अच्छी बात है. िेलकन सबसे पहिे संन्यासी के वि उतारो। अपनी प्रलतष्ठा की रक्षा करो या न करो - भगवे की प्रलतष्ठा धलू मि न करें ." लकतनी सटीक लट्पणी है. आज जरूरत इसी बात की है लक समाज इन अपरालधयों, गंड ु ों, नािायकों से खि ु कर कहे लक वह अपना धालमथ क चोिा उतार दे . आलखर धमथ की आड़ िेकर ही तो यह िोग संतई और गुंडई को लमक्स कर दे ते हैं. जब तक समाज, प्रशासन इस तरह के कृत्यों के प्रलत सख्त नहीं होगा तब तक इस समस्या का दूसरा समाधान हो भी नहीं सकता. इसी प्रलक्रया में कई बार राजनैलतक लवरोधी सचमुच के संतों को भी परे शान करते हैं, िेलकन सच्चे संत परे शान होने के बावजदू िोकलहत, िोकाचार को हालन पहु ूँचाने वािे लकसी कृत्य को समथथ न नहीं दे ते हैं, चन्दन की ही भांलत अपने शरीर पर सपथ लिपटने के बावजदू वह अपनी शीतिता का त्याग नहीं करते हैं. संत की पररभाषा भी तो यही है-
"संत न छोड़े संतई, कोलटक लमिे असंत." - मममथलेश. (www.mithilesh2020.com)
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ाऄमत का भला न ... यं ू तो प्रत्येक सालहत्य में कािी कुछ होता है सीखने को, और जब वह सालहत्य कबीर जैसे स्पष्टवादी संत के मुख से प्रस्िुलटत हु आ हो, तो लिर क्या कहने! कबीर के दोहे पढ़ने पर प्रतीत होता है लक एक ही दोहे में एक ही बात को दो, तीन या उससे ज्यादा उदाहरण दे कर लसद्च लकया गया है. न कोई लक्िष्टता, न कोई गढ़ ू शब्द, िेलकन गढ़ ू तम भावाथथ . उनके एक दोहे को पढ़कर वतथ मान राजनीलत के सन्दभथ में 'अलत' शब्द पर लवचार करने की इच्छा हु ई. पहिे उनके दोहे को स्मरण करना उलचत होगा, लजसमें कबीरदास बड़ी बेबाकी से कहते हैं लक-
अलत का भिा न बोिना, अलत की भिी न चपू । अलत का भिा न बरसना, अलत की भिी न धपू ।। भारत भलू म की यह खालसयत रही है लक यहाूँ हर प्रकार के महापुरुषों के दशथ न होते रहते हैं. आप कहें गे लक महापुरुषों के भी प्रकार होते हैं क्या? जी हाूँ! एक लसिथ नाम के महापुरुष होते हैं, दुसरे प्रकार के वे महापुरुष होते हैं, लजन पर महापुरुषत्व थोपा गया होता है. तीसरे प्रकार के महापुरुष, श्रेष्ठ आत्म-प्रवंचक होते हैं. आज कि एक अन्य प्रकार के महापुरुषों का बड़ा जोर है, लजन्हें 'माकेलटंग महापुरुष' भी कहा जा सकता है. एक और प्रकार के महापुरुष ध्यान में आते हैं, लजन्हें 'खास महापुरुष' भी कहा जा सकता है और यह लकसी लवशेष उद्ङे श्य हे तु लनलमथ त लकये जाते हैं, उसके बाद इनके महापुरुषत्व पर ग्रहण िग जाता है. यह बताना उलचत होगा लक उपरोि वलणथ त 'महापुरुषों' को िोकलहत, मयाथ दा इत्यालद से दूर-दूर तक कोई नाता नहीं होता है. वह मयाथ दा लजसको लनभाकर राम, मयाथ दा पुरुषोत्तम बने, वह िोकलहत लजसके लिए कृष्ट्ण के मुख से गीता-उद्घोष हु आ और दाधीच जैसे महलषथ ने अपना शरीर बलिदान कर लदया. मतिब साफ़ है लक आज कि महापुरुष 'ब्रांलडं ग' के द्रारा बनाये और लबगाड़े जाते हैं. जी हाूँ! और इस कायथ के लिए कई बड़ी माकेलटंग कंपलनयां कतार में खड़ी रहती हैं. वह आपके उठने, बैठने से िेकर चिने, मुिाकात करने की कुछ ऐसी तस्वीरें गढ़ती हैं लक क्या कहने? भारत में २०१४ के आम चुनाव से पहिे बड़ी चचाथ एं हु ई ं लक अमुक पाटी ने या अमुक नेता ने इस या उस कंपनी को ब्रांलडं ग के लिए ५०० करोड़, ५००० करोड़ का ठे का लदया. िेलकन यहाूँ लिर कबीरदास की 'अलत..." वािी वाणी याद आ जाती है. आधुलनक युग में थोड़ा बहु त तो एडजस्ट हो जाता है, िेलकन 'अलत' नुकसानदायक ही होती है, यह िोकसभा के पररणाम से लिर लसद्च हो गया था. इसी कड़ी में आज के समय में कलथत रूप से भारत की लवदे शों में छलव चमकाने और डं का बजवाने का बड़ा ज़ोर चि रहा है. कभी-कभी तो िगता है लक कबीरदास की 'अलत...' वािी वाणी ऐसी ही पररलस्थलत के लिए तो नहीं बनी है. वतथ मान में भारतीय प्रधानमंत्री के लिए लवश्वलवजयी, अश्वमे घ यज्ञ करने वािा और न जाने क्या-क्या संज्ञाएं प्रयोग में िाई जा रही हैं. कही उनके नाम से रेन चि रही है तो कहीं रे स्टोरें ट खुि रहे हैं. खैर, यह लकसी की व्यलिगत श्रद्चा भी हो सकती है, माकेलटंग भी हो सकती है. िेलकन प्रश्न उठता है लक भारत को इन सब गलतलवलधयों से 90 www.zmu.in | www.hindinewsportal.com | Mob: +91- 9990089080, Mail: m@zmu.in
क्या हालसि होगा? भारतीय जनमानस का जीवन-स्तर लकस प्रकार सुधरे गा? ऐसा नहीं है लक लसिथ वतथ मान में ही ऐसा व्यलित्व लदखा है, बलल्क पहिे भी ऐसे तमाम व्यलि और व्यलित्व लवश्व-स्तर पर ब्रांलडं ग करते रहे हैं. कई िोग इस बात को नकारात्मक कहें ग,े िेलकन एकाध और भारतीय ब्रांडों की चचाथ सामलयक होगी. आपको ब्रांलडं ग से सम्बंलधत रलवंद्रनाथ टैगोर की बात बताता हूँ. बड़े नाम थे, बड़ा व्यलित्व था, नोबेि पुरस्कार से सम्मान प्राप्त थे. एक बार वह जापान की लकसी यलू नवलसथ टी में बड़ी-बड़ी बातें कह रहे थे, अच्छी बातें, सुन्दर बातें. वहां के एक छात्र ने उठकर सीधे-सीधे पछ ू ा यलद आपके पास इतनी अच्छी बातें हैं, आप का दे श इतना महान है तो वहां भख ू े-नंगे क्यों हैं? उसे तीसरी दुलनया का दे श क्यों माना जाता है? इस बात का जवाब नहीं था इस भारतीय ब्रांड के पास. स्वामी लववेकानंद का भारतीय समाज में बड़ा योगदान है, िेलकन यह सन्दभथ उनके उभार के लदनों का है. लशकागो धमथ -सम्मिेन से स्वामीजी लवश्वलवख्यात हो चक ु े थे. िेलकन इस प्रश्न ने उनका भी पीछा नहीं छोड़ा, लजसके बात उन्होंने लवदे श-प्रवास करना छोड़कर भारत में भख ू ों को भोजन कराना बेहतर समझा और अपना सम्पण ू थ जीवन गरीबों, लपछड़ों की सेवा में अलपथ त कर लदया और कहा 'नर सेवा, नारायण सेवा है'. महात्मा गांधी को भी बड़ा वैलश्वक ब्रांड माना जाता है, िेलकन इलतहास को खंगािने पर स्पष्ट हो जाता है लक अंग्रेज उन्हें अपनी उूँ गलियों पर ही घुमाते रहे . इंनिैण्ड में हु ए गोिमे ज सम्मिेन से वह खािी हाथ तो िौटे ही, भारत पालकस्तान का लवभाजन भी उनकी बड़ी भि ू ों में शालमि था. यह वैलश्वक राजनीलत चढ़ाकर उतारने में बड़ी लसद्चस्त है. पहिे खबू चढ़ाती है, लिर ऐसा लगराती है लक पानी तक नहीं लमिता है. आज़ादी के बाद बड़े भारतीय वैलश्वक नेता कहे जाने वािे पंलडत नेहरू की चचाथ लकये लबना यह सच ू ी अधरू ी ही रहे गी. लहंदी-चीनी, भाई-भाई के नारे के बाद हमारी अलस्मता की जो दुदथशा हु ई, उससे हम आज तक मुि नहीं हो पाये हैं. बड़े -बुजुगथ भी छोटों को समझाते हु ए कहते हैं लक अपने घर को ठीक करो पहिे, बाद में बाहर डींगे मारना, और राजनीलत का भी यही लसद्चांत है, यह बात वतथ मान में भारतीय नेतत्ृ व को समझ आ जानी चालहए. महंगे कुते, महंगा चश्मा पहनने से भारत की छलव नहीं बदि जाएगी. लवश्व के नागररकों को भारत की लस्थलत के बारे में ठीक से पता है, और वह बस पररलस्थलत का िायदा उठाने की लिराक में ही हैं. हो-हल्िा करने से बचना चालहए, यह नादानों का काम है. ढोि पीटने की 'अलतवालदता' कहीं से िाभकारी नहीं है. उद्यम करना चालहए, िोगों को सशि करना चालहए, इसी में भारतवषथ की असि गररमा है. हमारे चेहरे की बजाय हमारा कायथ हमारी पहचान बने, इस बात का प्रयास हो. वतथ मान सरकार का हनीमन ू पीररयड समाप्त हो चक ू ा है, उसे लवदे शी टूर के प्रलत आकषथ ण पैदा करने से बाज आना चालहए. साधारण और उद्ङे श्यपरक यात्रा, िो-प्रोिाइि लदखने वािी यात्रा िाभ पहु ंचाती है, यह बात राजनीलत और कूटनीलत समझने वािे नीलतज्ञ ठीक मानते हैं. यलद नहीं, तो लिर 'अलत' का पररणाम भी इस नेतत्ृ व को समझ िेना चालहए. 'भख ू े-नंगों' का प्रश्न कि भी था, आज भी है. अलशक्षा, स्वास्थ्य-समस्याएं , क्षेत्रीय समस्याएं , आलथथ क समस्याएं , रोजगार हमारे सामने मुंह बाए खड़ी हैं, इस पर ध्यान कब आएगा? कुछ िोग कहें गे लक प्रधानमंत्री बने उन्हें चंद लदनों ही तो हु ए हैं. जवाब में कहा जा सकता है लक वह प्रधानमंत्री बेशक आज बने
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हैं, िेलकन उनकी उम्र ६० से ज्यादा है. क्या वह इस प्रश्न का जवाब दें ग?े या छलव चमकाने की अलतवालदता में ही उिझे रहें गे?
- मममथलेश. (www.mithilesh2020.com)
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ाऄनाथों का नाथ बनें; सीखें मबगडैल से... कई बार िोग, लजन्हें लबगड़ैि, बद्तमीज और ऐसी ही अन्य संज्ञाओं से नवाजते हैं, वह दुलनया को कुछ ऐसी सीख दे जाते हैं, लजसकी लमसाि ढूंढें नहीं लमिती. बात इस बार मायानगरी से है. एक तरि लहंदी लिल्में परू े लवश्व में भारत की एक खास पहचान बना चुकी हैं, वहीं दे श में लजन दो चीजों के प्रलत, गैर-परं परागत रूप से सवाथ लधक आकषथ ण है, वह लनलश्चत रूप से लक्रकेट और बॉिीवुड ही है. आज कि के शहरी और दे हाती दोनों प्रकार के अलधकांश युवक या तो बड़े लक्रकेटर बनने का सपना दे खते हैं अथवा लकसी एलक्टंग क्िास में हीरो बनने का प्रयास लदख जाना सामान्य बात है. लक्रकेट में इन युवकों के आदशथ सलचन तेंदुिकर होते हैं, वहीं हीरोलगरी लदखाने के शौकीनों के सिमान खान. जी हाूँ! खबर भी इन्हीं सालहबान की है. माचो मैन, मोस्ट एलिलजबि बैचिर, िेडी-लकिर, दोस्तों का दोस्त, दुश्मनों का दुश्मन इत्यालद तमाम उपनाम इन्हें इस मायानगरी से लमिे हैं. इनके कायों में तमाम लहट लिल्मों के अलतररि लकसी को भी थ्पड़ िगा दे ना, मलहिाओं की बेइज्जती करना, गैर-कानन ू ी रूप से कािे लहरणों का लशकार करना जैसे तमाम लववाद शालमि रहे हैं. आगे पररचय बढ़ाते हु ए इनके बारे , इनकी समझ के बारे में राजनीलत के िोग भी िोहा मानते हैं. आम चुनाव के पहिे नरें द्र मोदी के साथ इनके पतंग उड़ाने को िेकर कड़ा लववाद उत्पन्न हो गया था, िेलकन लववाद और सिमान खान एक दुसरे के परू क कहे ही जाते हैं, तो इसमें कोई नयी बात है नहीं. लपछिे लदनों से सिमान खान िगातार मीलडया की सुलखथ यां बटोर रहे हैं और संयोग से इसका कारण सकारात्मक है. िूटपाथ पर मरी हु ई माूँ के पास एक छुः महीने की बच्ची रो रही थी, लजसे सिमान खान के पररवार ने सहारा लदया. लबना इमोशनि सीन में घुसे आप इस बात पर भी गौर कीलजये लक इस बच्ची को परू ी कानन ू ी प्रलक्रया के बाद गोद लिया गया और उसके िािन-पािन में सिमान खान ने उसी सोशि स्टेटस को अपनाया, जो शायद उनके अपने पररवार के बच्चों को लमिा है. दुलनया ने उनकी शादी की रस्म को दे खा ही, समझा ही. इस बारे में अख़बारों में, चैनिों में खबू बातें कही गयीं, सुनीं गयीं, िेलकन कहीं भी इसके मानवीय पहिू पर चचाथ सुनने का अवसर नहीं लमिा. संवेदनहीनता की पराकाष्ठा दे लखये लक कुछ िोग इस परू े प्रकरण की चचाथ भानय के रूप में करते लमिे लक उस िूटपाथ की िड़की की लकतनी सुन्दर लकस्मत है लक आज वह िाखों की गाड़ी पर चि रही है, करोड़ों के महिों में रह रही है. परू ी दुलनया की अजब हाित हो गयी है लक वह हर ररश्ते को अथथ के तराज ू में िाकर खड़ा कर दे ती है. उसके लिए संवेदना का मोि भी चंद लसक्के हो गए हैं. इस अथथ हीन, अंतहीन, लनरथथ क, भानयवादी और िािची चचाथ ने इस परू े उदाहरण को बहु त ही गित तरीके से पेश लकया है. नचलनया कह कर बुलद्चजीलवयों, िेखकों, सालहत्यकारों के बीच अपमालनत लकया जाने वािा बॉिीवुड और इसके लबगड़ैि कहे जाने वािे सिमान खान ने अपने इस कृत्य से बुलद्चजीलवयों के गाि पर करारा तमाचा जड़ा है. थ्पड़ िगाने का अभ्यास तो उनको पहिे ही था, िेलकन उनका यह तमाचा परू े समाज पर पड़ा है. समाज के ठे केदारों को यह बात समझ िेनी चालहए.
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२०१३ में आयी एक ररपोटथ के अनुसार भारतवषथ में २० िाख बच्चे अनाथ हैं. कमोबेश, दे श के सरकारी कमथ चाररयों की संख्या भी इतनी ही है. राजनेता, अलभनेता, व्यापारी इत्यालद सक्षम िोगों का वगथ छोड़ भी दें तो यह आंकड़ा शलमां दा करने वािा ही है. दे श में करोड़ों ऐसे िोग हैं, जो सिमान खान की तरह एकएक हाथ बढ़ाएं तो अनाथ होने का अलभशाप दे श से २४ घंटे के भीतर समाप्त हो सकता है. िेलकन नहीं! यह हमारी लजम्मे वारी नहीं है, यह तो सरकार करे गी! लकसी 'स्वच्छता-अलभयान', 'आदशथ गावं अलभयान' की तरह 'अनाथ-अलभयान' चिाएगी, लिर सभी ५४३ सांसद एक-एक बच्चे को गोद िेकर िोटो लखंचायेंगे और बाद में उन िड़कों का भी पता नहीं चिेगा. एक और वाकया याद आ रहा है. एक दंपलत्त हैं, ईश्वर ने उन्हें धन-धान्य से पररपण ू थ लकया है, िेलकन लबचारे संतानसुख से वंलचत हैं वह. कभी उस दंपलत्त के मन में भी लकसी को गोद िेने की इच्छा जगी होगी, तो वह अपने से छोटी जालत के गरीब बच्चे को शहर िाये. पढ़ाया लिखाया भी लबचारे को, िेलकन जब वह जवान हु आ तो उसके साथ इसलिए ररश्ता खत्म कर लदया, लक वह उनकी संपलत्त में लहस्सेदार न बन जाए. मतिब साफ़ है, उन्होंने उस बच्चे को कभी अपनाया ही नहीं, बलल्क दस ू री भाषा में कहा जाय तो उन्होंने उसे नौकर ही समझा. यह लसिथ एक उदाहरण नहीं है, बलल्क आपको गोद िेने के नाम पर ऐसे तमाम वाकये नजर आ जायेंग,े जहाूँ हमारा सभ्य समाज इनका शोषण करने में जरा भी कोताही नहीं करता है. अनाथािय के नाम पर बच्चों से नशीिी दवाओं का कारोबार कराना, भीख मांगने के लिए दे श के बच्चों को लववश करना, उनके शारीररक अंगों का व्यापार करना इत्यालद कुकृत्य बेहद आम हैं. शमथ आनी चालहए, हमें खुद को सभ्य कहते हु ए. हमसे अच्छा तो वह लबगड़ैि बच्चा है, जो लकसी के भी गाि पर थ्पड़ िगा दे ता है, िेलकन लकसी की आत्मा, लजस पर लज़न्दगी भर थ्पड़ पड़ते, उसको उसने बचा लिया. एक की ही सही! आपसे भी तो एक की ही लजम्मे वारी िेने की अपेक्षा करता है दे श का अनाथ! आप भी तो उसी परमात्मा के अंश हैं न, उसी नाथ की कृपादृलष्ट से धनवान बने हैं, बड़े बने हैं, योनयता हालसि की है, लिर क्या लववशता है इन बेसहारों के सर को छाूँव दे ने में . स्वयं लवचार करें !
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... क्यों ाअएां यि ु ा ाअपके पास! लपछिे लदनों दे वबंद की सालहलत्यक भलू म पर गया. अवसर था महान सालहत्यकार, दे शभि स्व. डॉ. महे न्द्रपाि काम्बोज की पहिी पुण्यलतलथ का. इस महान लवभलू त के जीलवत रहते लसिथ एक बार लमिने का अवसर तब लमिा जब काम्बोज जी के लमत्र डॉ. लवनोद बब्बर द्रारा लिलखत लकताब-लवमोचन का समारोह आयोलजत हु आ था. आप उस कायथ क्रम में संचािक की भलू मका में थे. एक श्रेष्ठ मंच संचािक, लजसकी दृलष्ट सभागार के हर एक कोने से पररलचत थी और हर एक कोना भी उनके सञ्चािन लनदेश का मानो इंतज़ार कर रहा था. चमकता हु आ िािाट, सौम्यता, विृत्व-शैिी और उनकी सरिता ने एक नजर में मुझे अपने प्रभाव में िे लिया. सच कह,ूँ तो उस कुछ घंटे के कायथ क्रम में आधे से ज्यादा समय डॉ.काम्बोज का प्रभामंडि मुझ पर हावी रहा. खैर, ऐसा कई िोगों के साथ होता है, कई प्रभालवत करने वािे व्यलित्व लमिते हैं, लबछड़ते हैं और उनका प्रभाव समाप्त हो जाता है. संयोग से उनके दे हावसान के कुछ महीनों बाद उनके सुपुत्र ने मुझसे संपकथ करके अपने लपता के व्यलित्व और कृलतत्व को संरलक्षत करने के लिए वेबसाइट बनवाने हे तु मुझसे संपकथ लकया तो मे रे सामने उनकी धुंधिी पड़ती यादों को सहे जने का अवसर भी लमिा. उनकी पहिी पुण्यलतलथ पर इस वेबसाइट का उद्घाटन उनके लमत्रों एवं सम्बलन्धयों द्रारा दे वबंद में लकया गया. िेलकन मुख्य बात इसके बाद की है जो आपसे लज़क्र करना चाहता हूँ. इस पुण्य-लतलथ के लिए डॉ.काम्बोज के परम लमत्र और हमारे गुरु डॉ.लवनोद बब्बर के अिावा नागरी लिलप पररषद जैसी महत्वपण ू थ संस्था के बड़े लवद्रान के साथ मैं भी गाडी में बैठा हु आ था. लदल्िी से दे वबंद का रास्ता िगभग ३ घंटे के आस पास है, तो इन ३ घंटों के दौरान कई मुद्ङों पर महानभ ु ावों की चचाथ भी सुनने को लमिती रही. यव ु ाओं, उनकी सालहलत्यक जागरूकता पर भी कई प्रश्न और उत्तर होते रहे . लदल्िी से दे वबंद जाने के दौरान मैं भी युवाओं की सालहलत्यक उदासीनता के प्रलत थोड़ा लनराश था, क्योंलक इससे पहिे भी कई िोग इस आसान प्रश्न को उठाते ही रहते हैं. कई लदनों, महीनों और सािों से इन प्रश्नों का उत्तर ढूंढने की कोलशश करता रहा था, िेलकन दे वबंद की सालहलत्यक धरती पर, स्व. काम्बोज जी की पहिी पुण्यलतलथ के कायथ क्रम ने इन समस्त सवािों की पोि खोि दी. डॉ.कांबोज जी के तमाम लशष्ट्य, उनके आस पास के यव ु क थे, जो एक से बढ़कर एक कलवताएं कह रहे थे, अपने गुरु के प्रलत श्रद्चांजलि दे रहे थे, नम्र थे, सजग से और इन सबसे बढ़कर संवेदनशीि थे. सभी के रृदय से यह भाव बारम्बार मुख पर आ रहा था लक उन्हें तो किम पकड़ने का ढं ग भी नहीं था, िेलकन डॉ. काम्बोज ने उन्हें हमे शा प्रेररत लकया, आगे बढ़ाया, प्रोत्सालहत लकया. यहाूँ खुद को सालहत्यजगत का परु ोधा समझने वािे, यव ु कों की उदासीनता की लशकायत करते रहने वािे बड़े सालहत्यकारों को दपथ ण के सामने खड़ा होने की जरूरत है. यं ू भी सालहत्य की दो पररभाषाएं सवाथ लधक प्रचलित हैं. पहिी 'सालहत्य समाज का दपथ ण है और दूसरी 'सबको साथ िेकर चिने वािा'. युवकों को नािायक, बदलमजाज,
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संस्कृलतलवहीन और जाने क्या-क्या बताने वािे स्वनामधन्य सालहत्यकार अपने व्यलित्व और कृलतत्व को इन दो पररभाषाओं की कसौटी पर कसने के लिए तैयार हैं क्या? कृलतत्व से जहाूँ समाज में घट रही घटनाओं का लवलभन्न लवधाओं में, प्रचलित माध्यमों के द्रारा प्रकाशन है, लजससे समाज को सहज रूप से दपथ ण की भांलत अपनी तस्वीर लदख सके और अपनी कलमयों का आंकिन कर वह उसमें सुधार कर सके. एक तरि अलधकांश सालहत्यकारों को यह पता ही नहीं चि पा रहा है लक समाज में लकतनी तेजी से बदिाव आया है, ररश्ते-नातों की पररभाषाएं कहाूँ से कहाूँ तक पहु ूँच गयी हैं, तो वह सालहत्य के नाम पर अपने कभी के पुराने अनुभव थोपते रहते हैं. लजन सालहत्यकारों को थोड़ी बहु त आधुलनक पररप्रेक्ष्य, समाज की समझ भी है, उनके सालहत्य में आत्म-प्रवंचना, स्व-दैनलन्दनी अथवा चाटुकाररता का पुट साफ़ झिकता है. क्या यही पढ़ने के लिए, यही समझने के लिए आप युवाओं को अपने पास बुिाना चाहते हैं? इस पैरा की पहिी िाइन में मैंने माध्यमों की बात भी की है. बदिते तकनीलक यग ु में ८० िीसदी से ज्यादा सालहत्यकार, उन्हीं पुराने माध्यमों की रट िगाये हु ए हैं. उनके लिए वेबसाइट जैसे शब्द अनजान हैं, अधसुने हैं या लिर भ्रलमत करने वािे हैं. जबलक युवा पीढ़ी के मामिे में यही अनुपात लबिकुि उल्टा है. ८० िीसदी से ज्यादा युवा वेबसाइट के माध्यम से ही संदेशों का आदान-प्रदान करते हैं. एक बड़ा गैप. अब समझना होगा लक एक ही कलवता, एक ही विव्य लवलभन्न सभाओं में सुनाने वािे कलथत 'सालहत्यकारों' का लकतना प्रभाव इन युवकों पर पड़े गा, यह अपने आप समझ में आ जाने वािी बात है. दस ू री बात 'व्यलित्व' की न ही करें तो उलचत रहे गा. सम्मान के लिए गुटबाजी, थैिी (पुलड़या/ नकद) के लिए मारामारी, नाम का िािच, साथी कलवयों / िेखकों को हर मौके बेमौके नीचा लदखाना, लशष्ट्य के नाम पर युवाओं/ युवलतयों का दैलहक, आलथथ क शोषण करना, अपने पररवार तक को न संभाि पाना (बहु तायत में ), शराब और दस ु ों का लदव्यदशथ न आपको ू री तमाम बुराइयों की ित पकड़ िेना इत्यालद ढे रों सुन्दर गण आज के सालहत्यकारों में सुिभता से हो जायेगा. नाम की भख ू , पैसे की भख ू , पद की भख ू .... भख ू ही भख ू !! यही सालहत्यकार का व्यलित्व है क्या? इसी के बि पर आप युवाओं को अपने पास बुिाते हैं? अरे आप याद कररये मुंशी प्रेमचंद को, लनरािा को और आधुलनक जगत में स्व. डॉ. महें द्र पाि काम्बोज को. उस डॉ.काम्बोज को, जो अपने अंतु-िाखा जैसे खंड-काव्य में ग्रामीण-चररत्रों की बात करते हैं, लबना इस बात की परवाह लकये लक उसे पदमश्री, बुकर प्राइज या राष्ट्रपलत पुरस्कार लमिेगा या नहीं. गावों को भारत की आत्मा कहा गया है. कोई बताएगा लक भारत की आत्मा पर लकतने प्रमालणत ग्रन्थ आ रहे हैं? अथवा पुराने ग्रंथों का नवीनीकरण भी हो रहा है या नहीं? डॉ.काम्बोज ने अपने आस पास के युवकों को प्रेररत लकया, क्योंलक वह जानते थे लक वह अब बुजुगथ हो चुके हैं और आने वािा समय इन्हीं युवाओं का है. नए ज़माने का सालहत्य वही दे सकते हैं. उन्हें लकसी प्रकार का लवशेष 'भ्रम' नहीं था लक वह ही दुलनया को समझ रहे हैं, यह युवक तो मुखथ हैं, इन्हें क्या पता! अपने कृलतत्व और व्यलित्व के माध्यम से उन्होंने सालहत्य की दोनों पररभाषाओं को साथथ क लकया है. समाज का दपथ ण भी आपने प्रस्तुत लकया और सबको साथ िेकर भी आप चिे. सालहलत्यक रूप से उनको सबि बनाया, लसिथ उन्हें अपने पीछे -पीछे घुमाने वािा 'चेिा' नहीं बनाया.
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इसलिए मरने के बाद भी आपके लशष्ट्यत्व के लिए मे रे जैसे नािायक युवकों की आूँखों में आंसू हैं. आपको नमन है 'युगपुरुष'!
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पडोसी बदले नहीं जा सकते, ाआसमलए ... अमे ररका के महाशलि बनने को िेकर लपछिी सदी में कई दे शों ने ईष्ट्याथ का रोग पािा है िेलकन इसके साथ यह भी एक कड़वा सच है लक वह सभी दे श कहीं न कहीं नेस्तनाबत ू होते चिे गए, अपनी हस्ती खोते चिे गए और अमे ररका जस का तस बना रहा. यही नहीं, उसकी ताकत िगातार बढ़ती ही चिी जा रही है. कुछ तो बात है, जो एलशयाई दे श पकड़ नहीं पा रहे हैं या पकड़ना चाहते ही नहीं हैं. जानना लदिचस्प होगा लक अमे ररका की वैलश्वक सलक्रयता उसके अपने महाद्रीप से बाहर बहु त ज्यादा रहती है, लवशेषकर एलशया, यरू ोप और अफ्रीका में . वैलश्वक शलि बनने के लिए उसने अपने इदथ -लगदथ कुछ इस प्रकार का जाि बुना है, लजसे तोडना तो दरू , एलशयाई दे श छू भी नहीं पाते हैं. अमे ररका का लसिथ नाम ही नहीं है 'संयुि राज्य अमे ररका' बलल्क इस नाम की संयुि साथथ कता उसने अपनी राजनीलत में व्यवहाररक रूप से समालहत की है, वह भी आज नहीं, बहु त पहिे से. जब कुछ लवश्ले षक कहते हैं लक २१वीं सदी एलशया की है, भारत की है या चीन की है तो इस बात पर बड़ी जोर की हंसी आना स्वाभालवक ही है. जी हाूँ! यह बात सुनकर लकसी अंधभि को बड़ी तेज लमची िग सकती है, िेलकन यह सच है लक एलशया, लवशेषकर भारतीय उप-महाद्रीप बारूद के ढे र पर खड़ा है और न लसिथ खड़ा है, उस बारूद को अक्सर ही बाहर-भीतर के िोगों द्रारा लचंगाररयां लदखाने की कोलशशें भी जारी हैं. परमाणु शलि-संपन्न तीन बड़े राष्ट्र चीन, भारत और पालकस्तान, जो वैलश्वक राजनीलत में गित सही कारणों के साथ चचाथ में भी बने रहते हैं और कुछ हद तक दखि भी रखते हैं, उनके आपसी सम्बन्ध अत्यंत उिझे हु ए एवं अस्पष्ट हैं. जरा याद कीलजये चीनी राष्ट्रपलत शी लजनलपंग के हालिया भारत-दौरे को जब चीनी राष्ट्राध्यक्ष अहमदाबाद में भारतीय प्रधानमंत्री के साथ झि ू ा झि ू रहे थे और चीनी सैलनक भारतीय सीमा में कबड्डी खेिने पर उतारू हो गए. हाि ही में संपन्न हु ई १८वीं साकथ लशखर सलमट पर गौर कीलजये, जब परू ा लवश्व मोदी और शरीि के हाथ लमिने-लमिाने पर चचाथ कर रहा था, बजाय की इस सम्मिेन की चुनौलतयों, योजनाओं पर चचाथ करने के. इस सम्मिेन में भारतीय प्रधानमंत्री ने अपने पहिे के भाषणों की तरह जब िच्छे दार भाषण लदया, लदिों को लमिाने की खबू वकाित की, साकथ दे शों की सीमाओं को खोिने की वकाित की तब उस पर लट्पणी करते हु ए मे रे गुरु ने कहा लक पहिे जुबां तो खोिें, सीमाएं लिर तो खुिेंगी. उनका मतिब साफ़ था लक भारत को वैलश्वक राजनीलत की लजम्मे वाररयों को समझते हु ए बड़ा लदि करना चालहए था. एक और बात जो बड़ी चचाथ में रही वह नेपािी प्रधानमंत्री का भारत और पालकस्तान को अपने मतभेद भुिाने का उपदे श दे ना था. वैलश्वक शलि बनने की ओर अग्रसर हो रहे शलिशािी दे श के लिए इससे शुभ िक्षण और क्या हो सकता था भिा. कई काटूथनों में मजाक में यह बात लिखी गयी लक लकसी की न सुनने वािे प्रधानमंत्री पर आरोप झठ ू े हैं, क्योंलक वह काठमांडू की सुनते हैं. खैर, जैसा लक होना था यह सम्मिेन हाथ लमिाने, न लमिाने, पलत्रका पढ़ने की बातों तक सीलमत रह गया. इसके बावजदू लक भारत की कालबि लवदे श मंत्री यह मानती और कहती हैं लक कूटनीलत में कभी िुिस्टॉप नहीं होता. प्रश्न जरूर उठता है लक कालबि लवदे श मंत्री की सिाहों की इस तरीके से अनदे खी कैसे हो पा रही है. काठमांडू में हमारा अलड़यि रवैया परू े लवश्व ने दे खा. क्या सच में हम इस रास्ते से वैलश्वक महाशलि का दजथ पा जायेंगे. 98 www.zmu.in | www.hindinewsportal.com | Mob: +91- 9990089080, Mail: m@zmu.in
जब सम्मे िनों की चचाथ चि रही है तो लब्रस्बेन में हु ए आलथथ क महाशलियों के ग्रुप जी-२० की चचाथ न करना नाइंसािी होगी. जैसा लक हमे शा होता आया है, बड़े सम्मिेन अपने मि ू उद्ङे श्यों को परू रत करें न करें राजनीलतक उद्ङे श्य कायाथ न्वयन में जरूर िाये जाते हैं. लजस प्रकार काठमांडू में नवाज शरीि को अिगथिग करने की कोलशशें हु ई ं, उसी प्रकार ऑस्रेलिया के लब्रस्बेन में रूसी राष्ट्रपलत व्िालदमीर पलु तन को अिग थिग करने की कोलशश की गयी. िेलकन साकथ सम्मिेन और जी-२० में हु ई राजनीलत में एक बारीक िकथ पर आप गौर कीलजये. एक तरि रूस के राष्ट्रपलत को ऑस्रेलिया समे त पलश्चमी दे शों ने एक सरू में िताड़ा और कनाडा के प्रधानमंत्री हापथ र ने रूसी राष्ट्रपलत को यहाूँ तक कह लदया लक 'मैं आपसे हाथ लमिाऊंगा, िेलकन आप यक्र ू े न से बाहर लनकलिए'. लनलश्चत रूप से इस राजनीलत के पीछे अमे ररका का ही होमवकथ था. दूसरी ओर भारत के प्रधानमंत्री को नेपाि जैसे छोटे राष्ट्र ने उपदे श दे लदया लक उन्हें पालकस्तानी शरीि से हाथ लमिाना चालहए. और परू े वैलश्वक मीलडया में शरीि के प्रलत सहानुभलू त गयी तो भारतीय पक्ष का नकारात्मक अलड़यि रवैया ही सामने आया. यही नहीं, लकसी साकथ दे श ने प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से भारत का साथ भी नहीं लदया. प्रश्न बड़ी बेरहमी से उठाया जा सकता है लक भारत के लकस पडोसी के साथ अच्छे सम्बन्ध हैं? अभी हाि ही में भटू ान के राजा लजनमे खेसर ने बयान लदया था लक भारत में उनका सत्कार ठीक ढं ग से नहीं लकया गया. वहीं नेपाि में चीन लजस प्रकार से अपनी घुसपैठ बढ़ा रहा है, उसकी काट भारत के पास यथाथथ रूप में है नहीं. हाूँ! भाषणों में हम चाहे जो कह िें, मुंह ही तो है. श्रीिंका के साथ समुद्री लववाद और चीन से उसकी लनकटता हमें िगातार परे शान कर रही है. भारत की या कहें लक मोदी की लवदे श-नीलत की प्रशंसा करने वािे महानुभावों की बुलद्च पर तरस आता है, क्योंलक वह मैलडसन स्कूवेयर पर बड़ी सभा और मोदी-मोदी के नारों को कूटनीलत समझते हैं अथवा वह लिजी के समुद्री तट पर मोदी की इंस्टग्रामी िोटो को दूरगामी नीलत का पररणाम मानते हैं या आस्रेलिया में मोदी-एक्सप्रेस चिाने वािी माकेलटंग को वह दे शलहत में मानते हैं. माफ़ कीलजयेगा, िेलकन यह सारे काम तो बॉिीवुड का हीरो ऋलतक रोशन भी करता है, शाहरुख़ भी नाच गाकर मनोरं जन करता है और भीड़ भी हलटंग करती है... यो, यो ....!! हमें बड़े ही स्पष्ट रूप से समझना होगा लक अमे ररका के अपने पडोसी दे शों के साथ सम्बन्ध बड़े प्रगाढ़ हैं, वह चाहे कनाडा हो, बहामास हो, जमैका, कोस्टा ररका, पनामा, अरूबा या लिर मैलक्सको, बरमड ू ा ही क्यों न हो. गौर करने वािी बात है लक यलद अमे ररका भी कनाडा के साथ सीमा-लववाद में उिझा होता तो क्या वह वैलश्वक ताकत बन पाता. कई दे शों ने अपने पड़ोलसयों के साथ संबंधों की परवाह न करते हु ए वैलश्वक शलि बनने की कोलशश की, िेलकन उनकी औकात कुछे क दशकों से ज्यादा नहीं लटक पायी. चाहे वह जमथ नी हो या लिर रूस ही क्यों न हो. चीन भी आगे बढ़ने की कोलशश जरूर कर रहा है, िेलकन वैलश्वक राजनीलत के जानकार जानते हैं लक उसके अपने पड़ोलसयों से तनावपण ू थ सम्बन्ध उसे वैलश्वक राजनीलत का पुरोधा कभी नहीं बनने दें गे. वह पडोसी चाहे भारत हो, जापान हो या लवयतनाम ही क्यों न हो. स्पष्ट है लक लजस रास्ते पर भारत, चीन, पालकस्तान इत्यालद राष्ट्र चि रहे हैं, उस रास्ते पर कुछे क दशकों की कौन बात करे , कुछे क सलदयों तक की लस्थलत भी एलशया के अनुकूि नहीं बन पायेगी. अमे ररकी बड़ी सरिता से एलशयाई मि ू के िोगों आसमान पर चढ़ाकर कहता है लक २१वीं सदी एलशया की सदी है, तालक 99 www.zmu.in | www.hindinewsportal.com | Mob: +91- 9990089080, Mail: m@zmu.in
एलशयाई मानव-संशाधन उसे अपनी सेवाएं प्रस्तुत करता रहे और एलशयाई नेता आपस में लभड़ते रहें . भारत के पवू थ प्रधानमंत्री एवं महान कूटनीलतज्ञ अटि लबहारी बाजपेयी का कहा यह तथ्य कहावत में ही रह जाए लक लमत्र तो बदिे जा सकते हैं, िेलकन पडोसी नहीं, इसलिए पड़ोलसयों के साथ सम्बन्ध बेहतर करना जरूरी है. आप भी इन एलशयाई नेताओं की तरह खश ु िहमी में बने रलहये लक अगिी सदी, अगिे दशक आप ही के हैं. शायद हम नागररकों के भी हज़ारों लमत्र होंगे, िेसबुक पर तो होंगे ही, िेलकन चूँलू क हम एलशया के हैं, इसलिए हम अपने पड़ोलसयों को नजरअंदाज कर दे ते होंगे. ठीक कहा या नहीं, जरूर सोलचये.
- मममथलेश. (www.mithilesh2020.com)
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सांस्कृमत के तथाकमथत 'ठेकेदार' समाज कल्याण के लिए एक समय लजस परं परा को िोग सहषथ स्वीकार करते हैं, वही परं परा कई बार अपने सड़े -गिे रूप में सामने आती है, लजससे लसवाय ददथ और मवाद के कुछ और नहीं लनकिता है. भारतवषथ में इसका सवोत्तम उदाहरण इसकी जालत-व्यवस्था है. ब्राह्मण, क्षलत्रय, वैश्य, शद्रू के लजस वगीकरण के माध्यम से हमारे ऋलष-मुलनयों एवं प्राचीन समाज शालियों ने सामालजक व्यवस्था को सरि बनाने का प्रयास लकया था, कािांतर में वह व्यवस्था दूलषत होती गयी. न लसिथ प्राचीन काि, मध्य काि में बलल्क आधुलनक काि में भी इस जालत व्यवस्था ने समाज को लजतनी हालन पहु ंचाई है, उतनी हालन शायद परमाणु बम या कोई दस ू रा आधुलनक हलथयार भी नहीं पहु ंचा सकता है. एक तरि दे श भर के राजनीलतज्ञ अपनी राजनीलत को साधने के लिए जालत-भेद को टकराव के रास्ते पर िे जाते हैं, तो दूसरी ओर समाज भी दे शभलि एवं लशक्षा को दरलकनार कर जालतगत टकराव को बढ़ाने का कायथ लनरं तर जारी रखे हु ए है. अपनी महानता का गुण गाते न थकने वािी लवलभन्न जालतयों, उपजालतयों के पास लसिथ एक कायथ है, और वह है दस ू री जालतयों को नीचा लदखाना और अपने अनुकूि लस्थलत होने पर उनके प्रलत शारीररक, मानलसक, आलथथ क लहंसा करना, उनका शोषण करने की कोलशश करना. यह भी एक कटु सच है लक भारतीय समाज की ऊूँची जालतयों ने अब तक अपने से कमजोर जालतयों का भरपरू शोषण लकया है, और जैसा लक पररवतथ न संसार का लनयम है तो धारा अब लवपरीत लदशा में बहने को तैयार बैठी है. मुझे यह कहने में जरा भी संकोच नहीं है लक ब्राह्मण, क्षलत्रय की अगिी पीढ़ी के अलधकांश युवक परिे दजे के नािायक और कामचोर बन रहे हैं. उनके पवू थ जों ने जो ज़मीन इकट्ठी कर रखी थी, उस पर उनसे खेती होती नहीं है, साथ में आधुलनकता के लिहाज से उनसे अध्ययन भी नहीं होता है, लजससे सरकारी नौकररयों में उनके अवसर सीलमत हो गए हैं. लबचारे समाज के ठे केदार रहे हैं, समाज को लदशा दे ने और उसकी रक्षा करने का गवथ माथे पर िगाये घुमते हैं, तो उनसे छोटा-मोटा काम भी नहीं होता है, मसिन कोई दूकान, कोई प्राइवेट जॉब या कोई चतुथथ श्रेणी की नौकरी. इतने पर भी अपनी ढोंगी वाणी, पोथी-पत्रा और हे कड़ी से वह काम चिा िेते थे, िेलकन लपछिे कुछ दशकों में तो राजनीलतक सत्ता भी उनके हाथ से लनकि चुकी है. बड़ी बुरी हाित में हैं लबचारे ! अब तो पेंडुिम की भांलत लबचारे कभी इधर तो कभी उधर. उदाहरण स्वरुप उत्तर प्रदे श की राजनीलत में ब्राह्मणों की हाित दे ख कर लसवाय दया के कुछ नहीं आता है. िोक-परिोक, आध्यात्म, वेदों के ठे केदार कभी बसपा में, कभी भाजपा में और कभी अधमरी कांग्रेस में ठोकरें खाते हैं. लजन जालतयों को वह अपनी बराबरी में बैठाने से हमे शा संकोच करते रहे थे, अब उसी जालत के नेताओं के चरणों में बैठकर अपना अलस्तत्व ढूंढते लिरते हैं. हे ईश्वर! यह तुमने क्या लकया? यह तेरा कैसा न्याय है? राजपत ू ों की हाित तो इससे भी बुरी है. गाूँव के इन बड़े साहबानों के खेत में पहिे मजदूरों की िाइन िगी रहती थी, तो अब वह बड़े साहब मजदूरों के घर के चक्कर िगा रहे हैं, उनकी लमन्नतें करते हैं और वह अपनी मजी और अपनी शतों पर कभी काम करता है, कभी ठें गा लदखा दे ता है. एक रोचक बात बताऊूँ 101 www.zmu.in | www.hindinewsportal.com | Mob: +91- 9990089080, Mail: m@zmu.in
आपको मे रे गाूँव में एक बार लकसी मजदूर की अकड़ पर एक राजपत ू महोदय लबगड़ गए और क्षलत्रय शान के अनुसार उनकी जुबान गालियां बकने िगीं. अब क्या कहें उन महाशय को, बदिे हु ए लनष्ठु र समय को वह पहचान नहीं पाये, अपने से नीची जालत मानने वािों की बस्ती में थे. बाद में गाूँव के िोगों को पता चिा लक लबचारे के शरीर पर िाि लनशानों के साथ मंुह पर नाखन ू ों के कई लनशान बन गए थे. लिर वह महोदय कभी उस बस्ती की ओर नहीं गए. एक दुसरे राजपत ू महाशय तो कई लदनों तक भगवान कृष्ट्ण की जन्मस्थिी में पड़े रहे, बड़ी मुलश्कि से उनकी ज़मानत हु ई. िेलकन, वह रस्सी ही क्या लजसके बि चिे जाएूँ, बेशक वह जि क्यों न गयी हो. और वह ब्राह्मण, राजपत ू ही क्या जो जालतवादी मानलसकता छोड़ दे . हािाूँलक नयी, पढ़ी-लिखी पीढ़ी में कुछ सकारात्मक पररवतथ न आ रहा है और वह जालत-भेद को नकार रहे हैं. िेलकन अभी भी अलधकांश ब्राह्मण नेता वही हैं जो परशुरामजयंती के बहाने शलि-प्रदशथ न करते हैं और बड़े गवथ से कहते लिरते हैं लक क्षलत्रयों को यलद लकसी ने ठीक लकया तो वह परशुराम ही थे. राजपत ू नेता भी भिा कम क्यों रहे, वह भी कहते हैं हमारे राम, भीष्ट्म की तो बात छोड़ ही दो, लजन्होंने परशुराम को झुकाया, एक बािक यालन िक्ष्मण ने परशुराम की ऐसी-तैसी कर दी. एक और ख़ास बात है इन जिी हु ई रलस्सयों की लक यह आपस में इतना प्रेम करते हैं लक एक-दुसरे की टांग खींचने का कोई मौका हाथ से नहीं जाने दे ते. कई जगहों से एक पत्रकार के नाते मुझे परशुरामजयंती, क्षलत्रय-सम्मिेन का बुिावा आता है, िेलकन वहां आप कभी मत जाइयेगा क्योंलक वहां आपको कोई सम्मिेन नहीं लदखेगा, बलल्क एक ब्राह्मण दुसरे की टांग खींचता लदखेगा, और एक राजपत ू दुसरे राजपत ू की ऐसी की तैसी करने का अवसर ढूंढता लमिेगा. ऐसी ही एक जगह एक ब्राह्मण महोदय अपनी लवद्रता का घोि लपिा रहे थे लक भारत की संस्कृलत को मुसिमानों, ईसाइयों से ब्राह्मणों ने ही बचाया है तो मे रा सीधा प्रश्न था लक क्या भारत-पालकस्तान-बांनिादे श के 90 िीसदी से ज्यादा मुसिमान एवं ईसाई नीची जालत के िोग नहीं हैं, लजन्हें आप ब्राह्मणों ने मंलदर में घुसने नहीं लदया, अपने पास लबठाया नहीं और बकवास करते हो संस्कृलत-रक्षा की. कश्मीरी-मुसिमानों एवं कश्मीरी-पंलडतों की कहानी कौन नहीं जानता. इस सवाि पर वह संस्कृलतरक्षक ब्राह्मण महोदय खी-खी करके रह गए. कई सच्चे ब्राह्मण लवद्रान ऑििाइन इस बात को स्वीकार करते हैं लक ब्राह्मणों ने इस दे श का लजतना अलहत लकया, उतना अलहत अंग्रेजों एवं मुलस्िम आक्रमणकारी भी नहीं कर पाये. आज-कि में ही छत्तीसगढ़ के लकसी मंत्री का बयान आया लक 'ब्राह्मण ही बचा सकते हैं भारतीय संस्कृलत'! क्यों भाई, कोई और संस्कृलत की रक्षा करने की कोलशश करे गा, वेदों की ऋचाओं का श्रवण करे गा तो उसके कानों में लपघिा शीशा डािोगे आप! छत्तीसगढ़ के मंत्री महोदय, आपने अपने राजनीलतक भाई, लबहार के मुख्यमंत्री सवथ श्री जीतनराम मांझी को नहीं सुना शायद! वह कहते हैं लक बड़ी जालतयां उन्हें न लसखाएं , क्योंलक वह उनसे ज्यादा पढ़े -लिखे हैं और उनसे ज्यादा बुलद्च उनके पास है. आधुलनक काि में भी यलद मष ू क प्रजालत बड़बोिे मांझी को अपना शत्रु मानती है तो माने, िेलकन वह अपना सीना ठोक कर कहते हैं लक वह लकसी ररमोट-कंरोि से नहीं चिते हैं. वह अपनी मे हनत से सीएम बने हैं, और पीएम भी बनेंगे. यह अिग बात है लक उनके सर पर लकसका हाथ है, यह सभी जानते हैं. आप शायद उनके उस राजनीलतक दांव को भी भि ू गए, जब वह लकसी मंलदर गए और बाहर आकर उन्होंने बयान दे लदया लक मैं 102 www.zmu.in | www.hindinewsportal.com | Mob: +91- 9990089080, Mail: m@zmu.in
दलित हूँ, इसलिए मे रे मंलदर में प्रवेश के बाद मंलदर को गंगाजि से धोया गया. इस बयान के बाद परू ा प्रदे श और उस मंलदर का ब्राह्मण पुजारी सकते में था और उस पुजारी ब्राह्मण को अपनी रक्षा भारी पड़ रही थी और छत्तीसगढ़ के मंत्री महोदय, आप कहते हैं लक ब्राह्मण ही संस्कृलत की रक्षा कर सकते हैं. अरे ! पहिे अपनी रक्षा तो करना उन्हें लसखाइये. उन्हें लसखाइये लक कामचोरी और भगवान की दिािी छोड़कर कुछ काम धंधा करें , मे हनत करके अपनी एवं अपने पररवार की रक्षा करें . संस्कृलत का ठे का आप िोग छोलड़ये, यह अपनी रक्षा आप ही कर िेगी. आप चुनाव की तैयारी कीलजये और अपनी सीट बचाइये और हाूँ! ऐसे बयान जारी मत लकया कररये, नहीं तो अपने मंलत्रपद की रक्षा आपको मुलश्कि िगने िगेगी. समय की मांग भी यही है लक राजपत ू , दलित, ब्राह्मण, व्यापारी इत्यालद का भेदभाव छोड़कर सच्चाई से सब िोग मे हनत से अपने कायों में िगें, तब भारतीय संस्कृलत की रक्षा आप ही हो जाएगी. अपने-अपने कुछ महापुरुष गढ़ कर आपस में लवद्रेष फ़ै िाने वािे ढोंगी कमथ कांडों से इस दे श का और मानवता का सत्यानाश ही होगा, हमे शा की तरह. स्वयं लवचार कीलजये.
- मममथलेश. (www.mithilesh2020.com)
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पररितथन सांसार का मनयम है भारत की संस्कृलत में लवचारों की इतनी सुन्दर व्याख्या की गयी है लक दुलनया की लकसी संस्कृलत से इसकी तुिना नहीं हो सकती. ज्ञात तथ्यों के आधार पर यलद कहा जाय तो लकसी कायथ के तीन आयाम होते हैं, जो क्रमशुः मन, वचन और कमथ की यात्रा करते हु ए अपने िक्ष्य की तरि बढ़ता है. उदाहरणाथथ यलद लकसी छोटे बच्चे को लवद्यािय भेजने का समय है तो सवथ प्रथम यह लवचार हमारे मन में पनपता है, तत्पश्चात हम अपनी वाणी द्रारा घरवािों को, उस बच्चे को अपनी बात बताते हैं, अपने लवचार से अवगत कराते हैं और तब आलखर में उस बच्चे का दालखिा उस लवद्यािय में होता है. िेलकन जरा सोलचये, यलद यह बात हमारे मन में ही दबी रह जाय तो... !! अथवा हम इसे बस लवचार के रूप में प्रलतलष्ठत करके इलतश्री कर िें तो ... !! लनलश्चत रूप से हमारा कायथ तब सिि अथवा परू ा नहीं कहा जा सकता है. आज कि उन तमाम बातों पर बेहद संकुलचत दायरे में पुनचथ चाथ शुरू हो रही है या शुरू की जा रही है, लजन बातों पर आम जनमानस की अगाध श्रद्चा रही है. यह अिग बात है लक महान भारतीय लवचारों के कई ममथ ज्ञ अपनी चाररलत्रक लनष्ठा को िेकर इस काि में संलदनध सालबत हो रहे हैं. गीता के नाम से कोई अनजान नहीं है आज. इस ग्रन्थ को यलद सवाथ लधक प्रलतलष्ठत ग्रन्थ कहा जाय तो कोई अलतश्योलि नहीं होगी. धमथ की बड़ी कठोर एवं स्पष्ट व्याख्या करने वािा ग्रन्थ, लजसके बारे में कहा गया है लक यलद तराज ू के एक पिड़े पर समस्त वेद, शाि रख लदए जाएूँ तो भी भगवद्गीता की मलहमा उन सभी ग्रंथों से ज्यादा होगी. यं ू तो गीता के प्रत्येक अध्याय में मानव जीवन की तमाम दुलवधाओं का लनराकरण है, लकन्तु उसकी जो सीख सवाथ लधक प्रभालवत करने वािी है, वह है 'पररवतथ न संसार का अटि लनयम है'. जो आज है कि वह नहीं होगा, कि कुछ और होगा और इस तरह से यह श्रंख ृ िा अनंत है. दुलनया में कोई भी लसद्चांत तभी मान्यता प्राप्त करता है, जब वह लसद्चांत समय की कसौटी पर खरा उतर सके. गीता के पररवतथ नशीि लसद्चांत को समय ने अपनी कसौटी पर कई बार कसा है, िेलकन सवाि इससे अिग है. और सवाि उठाना जरूरी इसलिए है क्योंलक िाखों िोगों की भीड़ में गीता के ममथ की व्याख्या करने वािे कई लवशेषज्ञ, उन्हें आप संत कह िें या कुछ और आज सिाखों के पीछे पड़े हैं. आलखर क्यों? तकथ यह भी लदया जा सकता है लक गीता को ये िोग जानते भी नहीं, लसिथ लदखावा करते हैं. वैसे यह सच ही है लक यह िोग गीता को मानने और समझने की बजाय लसिथ उसकी क्रेलडलबलिटी को कैश कराने में ज्यादा यकीन करते हैं. माकेलटंग के दौर में गीता जैसा पलवत्र ग्रन्थ भी अछूता नहीं बचा है. एक से एक सजावटी पुस्तकें, लजनकी लजल्दें और फ्रेम्स आपको लकसी महूँगी पेंलटंग का अहसास कराएं गी, वह वगथ लवशेष के ड्राइंग हाि में या कार की डैशबोडथ पर अपनी उपलस्थलत दजथ करा रही होंगी, बेशक उस लकताब को कभी खोिा न गया हो. उद्चत ृ करना थोड़ा अजीब होगा लकन्तु गीता तो इस मामिे में बहु त पहिे से प्रचिन में रही है. आज़ादी के काि में महात्मा गांधी इसको अपने हाथ में िेकर घुमते थे तो आज के वतथ मान प्रधानमंत्री इसको अंतराथ ष्ट्रीय ग्रन्थ बनाने की भरपरू कोलशश कर रहे हैं. ठीक है, यहाूँ तक भी कोई आपलत्त नहीं है, िेलकन लजस ग्रन्थ के लसद्चांत सम्पण ू थ ब्रह्माण्ड में प्रलतलष्ठत हों, उसे राष्ट्रीय-ग्रन्थ की मान्यता दे ने की बात कहने 104 www.zmu.in | www.hindinewsportal.com | Mob: +91- 9990089080, Mail: m@zmu.in
से लसवाय लववाद के आलखर क्या हालसि हो जायेगा, यह बात समझ से पर है. वैसे राष्ट्रीय ग्रन्थ का मसिा भारत की लजन मंत्री महोदय ने उठाया है, उन्हें गीता के लसद्चांतों की सबसे ज्यादा जरूरत बताई जा रही है. लजस प्रकार उनकी इच्छा और महत्वाकांक्षा कहीं कोने में दुबक गई है, उस लस्थलत में उन्हें 'लस्थतप्रज्ञ' होना ही पड़ा है. गीता का सहारा िेकर पाटी में वह अपनी परु ानी प्रलतष्ठा प्राप्त करने का प्रयास जरूर कर रही हैं, िेलकन गीता के सवाथ लधक महत्वपण ू थ अध्याय 'पररवतथ न संसार का लनयम है' को वह भि ू गयी सी िगती हैं. राजनीलतक लवश्ले षक तो यही समझते रहे हैं. खैर, राजनीलतक लवश्ले षकों का क्या, उनका काम है समझते रहना, हमारा काम है कहते रहना. िेलकन दे खने पर यह बात भी िगती है लक कुशि विा मंत्री महोदया की बात को उनकी ही पाटी और संगठन के िोगों ने कुछ ख़ास तवज्जो दी नहीं. शायद! ठीक से होमवकथ हु आ नहीं था इस मुद्ङे पर. वैसे इसमें मंत्री महोदया का दोष भी नहीं है, क्योंलक आप उन्हें मंत्री तो बनाते हो िेलकन लवदे श मंत्रािय खुद संभािते हो तो वह क्या करें ? अचानक उन्हें कुछ कमथ करने की सझ ू ी। अब कमथ की बात करनी हो तो सबसे पहिे गीता का स्मरण होता है. उन्होंने कमथ लकया- गीता को ही राष्ट्रीय ग्रन्थ बनाने की बात उठा दी जबलक गीता तो अपने प्रथम क्षण से ही धमथ . जालत, क्षेत्र, सम्प्रदाय से ऊपर होकर सभी के लिए है इसलिए अंतराष्ट्रीय है. अनेक लवदे शी लवद्रानो ने गीता की भरू र भरू र प्रशंसा की है, जमथ नी में संस्कृत और गीता को जानने वािे बहु त है, गीता को ही राष्ट्रीय ग्रन्थ घोलषत करने की मांग को उग्र नहीं होना चालहए क्योलक गीता कमथ की बात करते हु ए 'िि' की लचंता न करने का उपदे श भी दे ती है। गीताकार ने स्पष्ट कहा हैसवथ धमाथ न पररत्यज्य मामे कं शरणम व्रज। अहम् त्वा सवथ पापेभ्यो मोक्षलयष्ट्यामी मा शुचुः।। - गीता 18/66 एक मे रे दे शभि लमत्र इस मुद्ङे पर बड़े परे शान नजर आये. कहने िगे गीता की बात करने वािों को गीता का ज़रा भी ज्ञान होता तो वह कमथ करने की कोलशश कर रहे अपने प्रधानमंत्री का साथ दे ते न लक उसे कभी रामजादों - हरामजादों की बहस में उिझाते और न कभी गीता को राष्ट्रीय ग्रन्थ की बहस में . आगे बढ़ते हु ए बोिे- बहु त सािों के बाद दे श में एक ऐसा व्यलि कुसी पर बैठा है लजससे आम जनमानस को थोड़ी उम्मीद बंधी है, िेलकन इस उम्मीद को कोई यह बात कह कर पिीता िगाने की कोलशश करता है लक पथ्ृ वीराज चौहान के बाद दे श में पहिी बार कोई लहन्दू शासक हु आ है, तो कोई मंत्री ज्योलतष और लवज्ञान की बहस में उसे उिझा दे ता है. गीता का गुणगान करने का दावा करने वािे उसके मि ू लसद्चांत को क्यों नहीं समझ रहे हैं लक उनका समय अब पररवलतथ त हो चक ू ा है. लमत्र महोदय का पारा चढ़ता जा रहा था और उन्होंने आगे राजनीलत के उन जानकारों की बलखया उधेड़नी शुरू की जो यह कहते नहीं अघाते लक वतथ मान प्रधानमंत्री की जीत उनकी कलथत लहंदूवादी छलव के कारण हु ई है. ऐसे आत्म केंलद्रत िोग आज के बदिते युवा को तब समझ ही नहीं पाये हैं. ऐसे युवा, जो वास्तव में बकवास बातों को छोड़कर गीता के लसद्चांत 'कमथ करो' को मानता है. क्या यह सच नहीं है लक प्रधानमंत्री को प्रधानमंत्री बनाने में उस बड़े वगथ का हाथ है लजसे लकसी भी कीमत पर लवकास चालहए, लजसे रामज़ादों और हरामजादों से कोई मतिब नहीं है, लजसे राष्ट्रीय पशु और राष्ट्रीय ग्रन्थ की प्रतीकात्मकता से भी कोई ख़ास मतिब नहीं है. हाूँ! उसे दे श से 105 www.zmu.in | www.hindinewsportal.com | Mob: +91- 9990089080, Mail: m@zmu.in
ै ा मतिब है, उसे दे शवालसयों और उनकी खुशहािी से भी मतिब है और वह सभी युवा लवचारों की भि ू भुिय में आत्ममुनध होने की बजाय गीता जैसे महान ग्रन्थ को, आज के समाज में लक्रयालन्वत करने की सोच रखते हैं और उन्हें लनलश्चत रूप से सिाखों के पीछे पड़े लकसी संत, बाप ू या कुंलठत राजनेता की आवश्यकता नहीं है, गीता का ममथ समझने के लिए. ध्यान से दे खो, बीते समय के कणथ धारों, आज का यव ु ा 'गीता को जी रहा है. दे खो और अपने बदिते समय को स्वीकार करो.
- मममथलेश. (www.mithilesh2020.com)
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एक नया पैगांबर लााआए, ... जनाब! भारत में इस समय लजस घटना पर सड़क से संसद तक हंगामा मचा हु आ है, वह लनलश्चत रूप से धमाथ न्तरण का मुद्ङा है. लवपक्ष तो इस बात पर जो हंगामा मचा रहा है, वह है ही, िेलकन लहन्दू संगठनों से जुड़े बुलद्चजीवी भी इस परू े प्रकरण पर अंदरखाने बेहद नाराज बताये जा रहे हैं. उनके अनुसार आरएसएस कोई आज से लहंदुत्व के समथथ न में कायथ तो कर नहीं रही है, बलल्क इससे बेहतर कायथ, लजनमें घर-वापसी और लमशनररयों से आलदवासी, लपछड़ों की रक्षा के कायथ शालमि थे, लपछिी यपू ीए सरकार के दौरान हो रहे थे. संघ के कई नेताओं का मुलस्िम नेटवकथ बहु त जबरदस्त था (अब भी है) और िाखों मुसिमानों को राष्ट्रवादी लवचार से जोड़ने का श्रेय इसी संगठन को है. तब चूँलू क कायथ बेहद सुलनयोलजत ढं ग से हो रहा था और छुटभैये और हल्के िोग सरकारी डर के कारण सामने आने से कतराते थे. अब लजसको दे खो, संघ, बीजेपी और मोदी की नज़रों में अपना नंबर बढ़ाने में िगा हु आ है और इस चक्कर में बहस कहीं से कहीं रास्ता भटक रही है. इसके अलतररि आम चुनावों के बाद मोदी की छलव लजस प्रकार आम जनता में और मजबत ू हु ई है, उसने संघ को कहीं न कहीं लचंलतत भी लकया है. पत्रकारीय हिकों में इस बात पर जोरदार चचाथ हो रही है लक मोदी को साधने में संघ ने अपने घोड़ों को तेजी से दौड़ाया है. संसद में इस मुद्ङे पर चचाथ करते हु ए वररष्ठ समाजवादी नेता मुिायम लसंह यादव ने संसदीय कायथ मंत्री वेंकैया नायडू से यह कहते हु ए सदन से वाकआउट लकया लक आप के हाथ में यलद सत्ता रही तो आप दे श को तोड़ दोगे. खैर, मुिायम का चररत्र भी कोई कम सांप्रदालयक नहीं रहा है, जो उनको दे श का खैरख्वाह माना जाय. मसिा यह है लक अंदरखाने इन बातों से पक्के लहंदूवादी छलव वािे प्रधानमंत्री नरें द्र मोदी भी खश ु नहीं बताये जा रहे हैं. वह चूँलू क भारत के प्रधानमंत्री हैं और उनके नाम पर ही आम भारतवालसयों ने वोट लकया है, इसलिए यह दोहराना आवश्यक है लक लहंदुत्व के मुद्ङे पर उनका रूख अपनी छलव के लवपरीत ही रहा है. गुजरात में जब वह मुख्यमंत्री थे, तब कहा जाता है वहां संघ या उसके आनुषंलगक संगठनों की बोिती बंद थी. आग उगिने वािे प्रवीण तोगलड़या को तो उन्होंने कई बार चुप कराया था. यही नहीं, सड़कों के लवकास में कई मंलदरों को तोड़ने में उन्होंने ज़रा भी संकोच नहीं लदखाया. अब जब उन्हें प्रधानमंत्री बने 6 महीने से ज्यादा हो चुके हैं, तो खालिस संघी राजनीलत से उन्हें भी दो-चार होना पड़ रहा है. हाि ही में आयोलजत लहन्दू कांग्रेस बड़ी चलचथ त हु ई. उस सम्मिेन में लवलहप के अशोक लसंघि ने कहा लक 800 सािों बाद कोई लहन्दू शासक लदल्िी की गद्ङी पर बैठा है. इसके तुरंत बाद जब सांसद साध्वी ने रामज़ादों, हरामजादों का बयान लदया तो मोदी िूट पड़े . कड़ी चेतावनी दे ते हु ए उन्होंने संघी राजनीलत को लनयंलत्रत करने की कोलशश भी की, लजसमें साध्वी को मांिी तक मांगनी पड़ी. िेलकन केंद्रीय राजनीलत और प्रदे श की राजनीलत में अंतर मोदी को अब समझ आ रहा होगा. साध्वी को दी गयी चेतावनी का कोई खास असर संघ पर हु आ नहीं, बलल्क उसकी प्रलतलक्रया स्वरुप गीता को राष्ट्रीय ग्रन्थ बनाने का असमय मुद्ङा छे ड़ा गया और अब धमाथ न्तरण के मुद्ङे पर एक राष्ट्रीय बहस छे ड़ दी गयी है. लकतने मुसिमान या ईसाई लहन्दू बने, यह प्रश्न पीछे छूट गया और मीलडया में यह छलव प्रचाररत हो गयी लक इस सरकार पर लहंदूवादी हावी होने की कोलशश कर रहे हैं, या लहंदूवादी राजनीलत के जररये समाज को बांटने की कोलशश 107 www.zmu.in | www.hindinewsportal.com | Mob: +91- 9990089080, Mail: m@zmu.in
में सरकार साथ दे रही है. नरें द्र मोदी की आम चुनाव से पहिे चाहे जो छलव रही हो, िेलकन आम चुनाव के समय से उनके बारे में जो धारणा बनी, लवशेषकर युवा-वगथ में, वह लनलश्चत रूप से यही थी लक यह बंदा लकसी खास सम्प्रदाय का तुलष्टकरण नहीं करे गा, बलल्क उससे आगे बढ़कर िोगों की रोजी-रोटी की समस्या सुिझाने पर जोर दे गा. नरें द्र मोदी खुद भी इस अपेक्षा से अनजान नहीं हैं. उनका राजनैलतक कौशि ही कहा जायेगा लक एक के बाद एक लवदे श यात्राएं, लनवेश कायथ क्रम, आलथथ क अवधारणाएं इत्यालद उद्ङे श्यों की पलू तथ में इतनी तेजी से चिे हैं लक लकसी और लववाद के लिए बीते छुः महीनों में लकसी को समय ही नहीं लमिा है. लवरोधी तो लवरोधी संघ के गहन लवचारकों तक को उनकी इस योजना को समझने में समय िग रहा है. संघ बेशक, लवचारकों को तैयार करता है, राष्ट्रवाद - लहन्दुवाद की घुट्टी लपिाकर उन्हें जवान करता है, मुसिमानों के बारे में तमाम ऐलतहालसक चचाथ ओ ं को सुन सुनकर, रट रटकर वह लवचारक प्रौढ़ होता है, और यह बात उद्चत ृ करने में कोई लहचक नहीं होनी चालहए लक मुसिमानों को लहंदुत्व और राष्ट्र के लिए संघ बड़ा खतरा मानता है. यह लवचार कोई नया नहीं है और इस्िाम को िेकर यह अवधारणा स्थानीय या भारतीय भर नहीं है, बलल्क यह एक वैलश्वक अवधारणा बन चुकी है. िोग अपने आस पास लकसी मुसिमान को दे खकर सजग हो जाते हैं, अपनी सोसायटी में उन्हें रखना उन्हें सहज नहीं िगता है. आलखर लवश्वास जमे भी तो कैसे, अिकायदा के िादे न को गए अभी कुछ साि भी नहीं हु ए लक ख़िीफ़ाई, कबीिाई तजथ पर इस्िालमक स्टेट नामका संगठन खड़ा हो गया. यही नहीं, भारत के कई मुसिमान युवक इसमें पकडे गए. और तो और यह िेख लिखे जाने तक पता चिा है लक 'आईएस' के आलिलशयि ट्लवटर अकाउं ट पर ट्वीट भारत के 'बंगिौर' से की जा रही थी. ऐसे में लसिथ आरएसएस को मुलस्िम लवरोधी कैसे कहा जा सकता है. यह एक कटु सच है लक इस्िाम की मतान्धता को िेकर सम्पण ू थ लवश्व में उसको संलदनध नजर से दे खा जा रहा है. चरमपंथी, आतंकवादी, जेहाद, लहंसा, मुसिमान जैसे शब्द अब समानाथी िगने िगे हैं. पर हि क्या है? हि इतना सरि भी नहीं है लक तुरत िुरत में लमि जाय और दुलनया में शांलत व्याप्त हो जाय. लवचारकों के अनुसार इस्िाम और दुसरे धमों में जो सबसे मि ू अंतर समझ आता है, वह इसका जड़ होना बताया जाता है. इस्िाम की पलवत्र पुस्तक कुरआन की कई आयतों का उदाहरण दे कर लवरोधी उसे लहंसा को बढ़ावा दे ने वािी बातें मानते हैं. ऐसा नहीं है लक यह पहिा ऐसा धमथ -ग्रन्थ है लजसकी कलमयों की चचाथ होती है, बलल्क हाि ही की बात है जब रूस में गीता को कुछ ऐसे ही कारणों से प्रलतबंलधत करने की गित कोलशश हु ई थी. हािाूँलक रूसी सरकार को अपना प्रलतबन्ध वापस िेना पड़ा. िेलकन लहंदुत्व के बारे में सोचने पर यह िगता है लक इसमें लवचारों की आज़ादी से बदिते युग के साथ धमथ में नत ू नता तो आती ही है, धमथ के लनयम-कायदे भी प्रैलक्टकि बने रहते हैं. ज़रा सोलचये, यलद लहन्दू धमथ में लसिथ एक ही ग्रन्थ की मान्यता होती और यलद वह गीता होती तो लहन्दुओ ं का जीवन कैसा होता. िेलकन यह लहंदुत्व का सौभानय है लक लकसी पररलस्थलत में गीता के श्लोक मानव जीवन को अपना कत्तथ व्य करने की प्रेरणा दे ते हैं तो दूसरी पररलस्थलत में रामायण के राम त्याग करने की प्रेरणा दे ते हैं. स्वामी दयानंद उसी लवशेष पररलस्थलत में मलू तथ पज ू ा का लवरोध करते हैं तो स्वामी लववेकानंद लहन्दू-दशथ न को एक नयी ऊंचाई प्रदान करते हैं. कोई ग्रन्थ, व्यलि लकतना भी महान क्यों न हो, िेलकन पररलस्थलत के अनुसार उसमें बदिाव आवश्यक है, नहीं तो 108 www.zmu.in | www.hindinewsportal.com | Mob: +91- 9990089080, Mail: m@zmu.in
उसका अलस्तत्व लमट जायेगा. श्रीमदभगवद गीता के ही शब्दों में कहें तो 'पररवतथ न संसार का लनयम है', इस्िाम और उसके िािोवर इस पररवतथ न के लसद्चांत को नकार दे ता है. जहाूँ तक आम िोगों की समझ है, इस मान्यता में न तो नवीन लवचारों की जगह है और नवीन लवचारों के प्रलत असलहष्ट्णुता तो जगजालहर है. एक चुटकुिा इस सन्दभथ में बड़े ज़ोरों से चिता है. एक लकसी दुसरे धमथ के व्यलि को मुसिमान बनने का शौक चढ़ा, तो उनका खतना लकया गया, लबचारे को बड़ा ददथ हु आ. बातन ू ी थे महाशय, वहां गए तो बोिने पर पाबन्दी िगा दी गयी, इसलिए उि कर इस्िाम छोड़ने की बात बोि दी. बस लिर क्या था- चार धमाां ध युवक तिवार िेकर उनके सामने खड़े हो गए और बोिे- इस्िाम से जाने की बात बोिोगे तो गिा काट दें गे. लबचारे डरते हु ए बुदबुदाये- अजीब जगह है यार! आओ तो नीचे से काटते हैं, जाओ तो ऊपर से ... !! लजस धमाथ न्तरण पर इतनी हाय-तौबा मची है, वह लबचारे गरीब मुसिमान डरे हु ए हैं. हािाूँलक भारत की सुप्रीम कोटथ ने 1977 के अपने एक फ़ै सिे में कहा था लक अपनी मज़ी से धमथ पररवतथ न करना ग़ित नहीं है, िेलकन इस्िाम इस मामिे में अब तक उदार नहीं बन पाया है. यलद ऐसा नहीं होता तो तस्िीमा नसरीन, सिमान रूश्दी जैसे व्यलियों को अपनी जान बचाने की खालतर यहाूँ-वहां भागना नहीं पड़ता. यलद गौर से दे खा जाय तो तस्िीमा जैसे िोग वास्तव में इस्िाम का भिा चाहते हैं, इसलिए उसे अपडे ट करने का भरसक प्रयत्न कर रहे हैं. इन उदाहरणों के अलतररि नोबेि परु स्कार लवजेता मिािा यस ू ुफ़ज़ई का नाम हमारे सामने है. जहाूँ एक तरि परू े लवश्व में उसकी सोच और लहम्मत की ख्यालत हो रही है, वहीं दस ू री ओर मुस्िमान उसे बुके वािी पदाथ नशीं बनाये रखने पर आमादा हैं. भारत में भी आलमर खान बड़े समाजसुधारक के रूप में उभरने की कोलशश कर रहे हैं. 'सत्यमे व जयते' नामक कायथ क्रम से उन्होंने बड़ी ख्यालत अलजथ त की है, िेलकन इस्िाम की तमाम बुराइयों में एक की तरि भी दे खने की लहम्मत वह नहीं कर सके हैं, क्योंलक वह जानते हैं यलद उन्होंने बुरका-प्रथा, बहु -लववाह, लहंसा का मुद्ङा छुआ भी तो भारत जैसे धमथ लनरपेक्ष दे श की पुलिस और प्रशासन भी उनकी रक्षा नहीं कर पायेगी और उन्हें भी लकसी िन्दन या पेररस में शरण िेना पड़े गा. यही नहीं, वह हज की यात्रा करके अपनी मुलस्िम छलव को पुख्ता करने का प्रयास करते हैं. यह हाित तो तब है जब अलधकांश बड़े मुलस्िम नाम समाज सुधारक का चोिा ओढ़ने की कोलशश करते हैं, यलद उन्होंने धमथ पर एक शब्द भी बोिा तो उनकी जान गयी समझो. एकाध जो लनकिते हैं, वह राजनीलत के लशकार बन जाते हैं और लकसी लजन्ना की भांलत मानवता का खन ू बहाने की ठान िेते हैं. िेलकन इसके अिावा रास्ता क्या है? मुझे नहीं िगता लक यलद खुद मुसिमान अपने धमथ को आधुलनक नहीं बना सकते, ज़माने के साथ तािमे ि नहीं लबठा सकते तो यह कायथ कोई लहन्दू संगठन या लकसी ईसाई दे श की राजनीलत कर सकती है. जरूरत इसी बात की है लक इस्िाम के अंदर से लवचारक बाहर लनकिें और उन्हें दुलनया सपोटथ करे , यलद जरूरत हो तो कोई नया पैगंबर बनाया जाय. यलद लहन्दुओ ं के अवतार हो सकते हैं, ईसाइयों के ईसामसीह दुबारा आ सकते हैं या पोप के माध्यम से ईसाई समाज का प्रलतलनलधत्व कर सकते हैं तो मुसिमानों के दुसरे पैगंबर भी हो सकते हैं और अपने धमथ को मानव समाज के कल्याण के लिए प्रेररत कर सकते हैं. यलद मुसिमान आज शक की लनगाह से दे खे जा रहे हैं, गुमराह हो रहे हैं, अलशलक्षत बन रहे हैं, जेिों में नारकीय जीवन लबता रहे हैं, उनकी वैलश्वक पहचान संलदनध हो रही है तो उनको बेहतर जीवन दशथ न दे ने के लिए एक नया पैगंबर क्यों नहीं बनाया जा सकता है. आरएसएस ने 109 www.zmu.in | www.hindinewsportal.com | Mob: +91- 9990089080, Mail: m@zmu.in
मुलस्िम नेताओं को आगे बढ़ाने का जो क्रम शुरू लकया था और अमे ररका ने मिािा के माध्यम से इस्िाम की बुराइयों को उभारने का जो प्रयास शुरू लकया है, इन प्रयासों को आगे बढ़ाने की आवश्यकता है. हाूँ! इन प्रयासों में लदक्कत तब शुरू हो जाती है जब अमे ररका िादे न जैसों को, मुशरथ ि जैसों को पहिे पैदा करता है और बाद में अत्याचारों पर पदाथ डािने उसके सीआईए के अलधकारी सामने आकर जासस ू ी संस्था द्रारा मानवालधकारों को कुचिे जाने को जायज़ ठहराते हैं. यही बात लहंदुत्व के समथथ कों को भी समझ िेनी चालहए लक क्या वह दे श के 20 करोड़ मुसिमानों को लहन्दू धमथ में वालपस िाने की सोच रखते हैं या उनकी सोच को राष्ट्रवादी बनाने का लवकल्प बेहतर है. और 20 करोड़ ही क्यों, लवश्व की दूसरी सबसे बड़ी आबादी के बारे में अमे ररका का आंकिन भी बदि गया है. मे रे ख़याि से इस्िाम को अपनी रूलढ़वालदता पर लवचार करने के लिए तैयार करना ज्यादा बेहतर लवकल्प सालबत होगा. एक तो भारत जैसे िोकतालन्त्रक दे श में प्रत्येक नागररक अपने धमथ को मानने के लिए स्वतंत्र है, िेलकन यलद कहीं कुछ राष्ट्रलहत में नहीं लदखता है तो उसके प्रलत व्यापक rss-sanghदृलष्टकोण अपनाने की आवश्यकता है. यह बात अब कुतकथ की श्रेणी में ही आएगी लक 'मुसिमानों ने लहन्दुओ ं पर अत्याचार करके उन्हें मुसिमान बनाया, तो अब हम वही करें गे.' आूँख के बदिे आूँख वािे लसद्चांत से परू ी दुलनया अंधी हो जाएगी. लहन्दू संगठनों को यह बात याद रखनी चालहए लक आम लहन्दू उदार है और उस लसद्चांत का पोषक है लजसमें उसके भगवान लवष्ट्णु की छाती पर एक व्यलि िात मार दे ता है और वह सह जाते हैं. बहु त खन ू बह चक ू ा है लपछिे 800 सािों में, लजम्मे वार कौन है इस पर बहस से क्या िायदा! वैसे भी यलद बाबर ने 500 सािों पहिे तिवार के बि पर लहन्दुओ ं को मुसिमान बनाया और अब लहन्दू संगठन वही करने की कोलशश करें तो इसे लनरा बेवकूिी ही कही जाएगी. यं ू भी हमारे दे श के यव ु क मंगि पर जाकर परू ी वसुधा का मंगि करने की कोलशश कर रहे हैं और हम इस बहस में उिझे हैं लक भगवान या खुदा की प्राथथ ना हाथ जोड़कर करें या घुटने मोड़कर. सोच बदिो, दे श बदिेगा!
- मममथलेश. (www.mithilesh2020.com)
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बच्चा भााइ के 'मन की बात' आज बच्चा भाई बड़े नाराज लदख रहे थे. नाराजगी में उनका चेहरा और भी लबचारा बन जाता है. मैंने सोचा लक उनकी बगि से नजर बचाकर लनकि जाऊं, पर आज तक कभी बचा जो आज बच जाऊंगा. उनके घर के सामने से सड़क जाती है, और वही हमारे लनकिने का मुख्य रास्ता है, साथ में मैं हूँ- हाूँ करता रहता हूँ, बातचीत में वाह-वाह भी कर दे ता ह,ूँ इसलिए बच्चा भाई शाम के समय मे रे इन्तेजार में अपनी बैठक को छोड़ते नहीं हैं. दे खते ही बोिे- लमलथिेश जी ! रलववार को नहीं लदखे, घर में दुबके रहे, अब क्या सोमवार को भी नहीं लमिने का इरादा है. मैंने ही-ही करते हु ए कहा, अरे नहीं भाई जी! कि वो लबजिी के साथ बरसात हो रही थी और मुझे 'लबजिी' से हमे शा डर िगता है? हाूँ- हाूँ, क्यों नहीं, लबजिीबाई डराने वािी चीज ही है! मैंने कहा, अरे नहीं भाई जी! वो वािी लबजिी नहीं, मैं तो आसमान वािी चमकती, कड़कती लबजिी की बात कर रहा हूँ. हाूँ! हाूँ! आओ बैठो मे रे पास. वो भाई जी! मैं,... मैं ... ... मे री बात परू ी भी नहीं हु ई थी लक वह बोिे, अरे सुन यार! यहाूँ दे श की लज़ंदलगयाूँ दांव पर िगी हु ई हैं और तुझे अपनी पड़ी है. दे श की बात, वह भी बच्चा भाई की चाय के साथ, मे री कमजोरी बन चुकी थी. सब्ज़ी िाने लनकिा था, पर लहम्मत कर के सोचा लक थोड़ी दे र दे श के लिए लनकाि लिया तो कौन सी आित आ जाएगी. लहम्मत इसलिए करनी पड़ी क्योंलक दो लदन से सब्ज़ी िाने के बहाने बना रहा था, और आज घर पर खबू जिी-कटी सुनने के बाद लनकिा था. मन में सोचा! भगवान जाने, क्या हाि करायेगा ये बच्चा भाई! लिर दे शभलि के भाव ने भगत लसंह से िेकर वीर सावरकर के कािापानी को याद लकया और भावी भय को रृदय के लकसी कोने में दुबका लदया. बच्चा भाई से लकसी खांटी दे शभि की तरह पछ ू ा- क्या हो गया है दे श और उसकी लज़न्दलगयों को. बच्चा भाई ने कहा- मोदी जी लज़न्दगी ज़ीने से मना कर रहे हैं! मैंने कहा मोदी जी! क्यों मजाक कर रहे हो आप? मैंने दे श के ऊपर कभी मजाक लकया है, जो मजाक कर रहा हूँ, बच्चा भाई ने संजीदगी से कहा. अरे भाई, तुम्हें ग़ितफ़हमी हु ई होगी, कान साफ़ लकया करो, मैंने थोड़ा कड़े स्वर में कहा. यं ू भी दे श और दे शभलि के साथ मोदीजी के बारे में कुछ सुनना मुझे पसंद नहीं हैं, इन तीनों शब्दों को मैं पयाथ यवाची कहता हूँ. िेलकन बच्चा भाई ने मे रे गुस्से की परवाह न करते हु ए मे री ही जानकारी पर प्रश्नलचन्ह िगते हु ए प्रश्न दागा- रे लडयो-टीवी नहीं दे खते हो का! इसी इतवार को मन की बात में तो कह रहे थे दे शवालसयों से लक लज़न्दगी जीना छोड़ दो! मैंने कहा लक वह तो 'नशा छोड़ने' की बात कह रहे थे. हाूँ! वही तो ... पंकज उधास की गाई उस गजि की िाइन भि ू गए हो लमलथिेश जी, जो कहती है- 'लज़न्दगी एक नशे के लसवा कुछ नहीं, तुमको पीना न आये तो मैं क्या करूूँ'. अलभप्राय समझते ही हम दोनों ठहाका िगाने िगे. मैंने कहा बात कुछ जमी नहीं भाई जी! नशे से लकतने िोग बबाथ द हो रहे हैं, उनको सही रास्ते पर िाने की कोलशश ही तो की मोदी जी ने और आप उनको लखंच रहे हो. बच्चा भाई भी परू े मड ू में बैठे थे, बोिे- तुम्हें तो लफ़ल्मी नगरी का ज़रा भी ज्ञान नहीं है, करोड़ों-अरबों का वारा-न्यारा करने वािी इंडस्री का ददथ भी तो समझो. वह दे वदास में शराब पीकर िड़खड़ाता हु आ हीरो कहता है न लक- हम तो इसलिए पीते हैं लक बदाथ श्त कर सकें. यह तो मोदी नहीं हु ए पारो हो गए, जो ्यार में नाकाम रहे दे वदास से कहती है- शराब छोड़ दो. अरे जो िोग लज़न्दगी में नाकाम होते हैं वह कहाूँ जायेंगे. मैंने बच्चा भाई की बात काटते हु ए कहा 111 www.zmu.in | www.hindinewsportal.com | Mob: +91- 9990089080, Mail: m@zmu.in
लक मोदी जी ने इसका हि भी अपने मन से बता लदया है लक माता-लपता बच्चों को कुछ िक्ष्य दें और िेि होने पर उनका उत्साह बढ़ाएं . मे रे इतना कहते ही ज़ोर-ज़ोर हूँसते हु ए बच्चा भाई बोिे, यार तुम भी किम चिाते हो, अकि को भी चिा लिया करो. अब आडवाणी जी, सुषमा जी, सोलनया जी और लबचारे तीसरे मोचे की झािर के फ्यज ू बल्बों का कौन से माूँ-बाप उत्साह बढ़ाएं ग,े इसलिए वह गीता को राष्ट्रीय ग्रन्थ बनाने से िेकर धमाथ न्तरण, जेहाद और जाने क्या-क्या नशा करने और कराने पर उतारू हैं. मैंने कहा- बच्चा भाई! इसके लिए भी मोदी जी ने रे लडयो द्रारा सोशि मीलडया पर जागरूकता के लिए मुहीम चिाने की बात भी तो की है. बच्चा भाई िगभग लचल्िा उठे ! सोशि मीलडया, िेसबुक, ट्लवटर तो खुद एक नशा है, आलिस में , घर में, लबस्तर में हर जगह लववाद ही लववाद. दे श की प्रोडलक्टलवटी बढ़ाने का सपना लदखाने वािे मोदीजी को सोशि मीलडया के कारण समथथ न लमिता है, उनके मुफ्त के अंधभि उस पर लवरोलधयों की खाि खींचने को तैयार रहते हैं, इसलिए वह हैशटैग की बात करें गे ही, िेलकन बॉस से िेकर बीवी तक इस सोशि मीलडया से परे शान हैं. िगे हाथ बच्चा भाई ने एक चुटकुिा भी सुना डािा, एक बुलढ़या का मजाक उड़ाती हु ई लकसी नवलववालहता ने उससे कहा लक दादी माूँ- आप िोगों के समय में दस-बारह बच्चे कैसे हो जाते थे. बुलढ़या ने तपाक से उत्तर लदया- बेटी! हमारे ज़माने में सोने के समय हम िोग िेसबुक, वाट्सअप पर अपना समय खराब नहीं करते थे. मैंने सोचा लक इससे पहिे लक घर पर मे री बलखया उधड़े, मैं वहां से सरक जाऊं, बहाना बनाया लक- चिो! योग लदवस तो मोदीजी ने घोलषत करवा लदया, आप तब तक दो-चार आसान करो, मैं सलब्ज़याूँ िेकर आता हूँ. योग की बात कहनी थी लक बच्चा भाई िूट पड़े - अरे ! योग पहिे अपने मंलत्रयों को तो लसखाएं महोदय! लकसी को भी 'जीभ में गाूँठ' वािे योग की प्रेलक्टस ही नहीं है. मोदीजी, चीन से मुकाबिे की बात कह कर दे श को लवकास के पथ पर िे जाने के लिए ज़ोर िगा रहे हैं, वहीं उनके मंत्री दे श को पालकस्तान की तरह 'धालमथ क-एडवेंचर' का अखाड़ा बनाने पर तुिे हैं. कभी रामज़ादों, हरामजादों, कभी गोडसे तो कभी पथ्ृ वीराज चौहान की तरह लहन्दू शासक का लनरथथ क बयान. आलखर, अकेिे बाबा के योग करने से क्या होगा? वैसे 'जीभ में गाूँठ िगाने' वािा योग तो उनको भी नहीं आता था, तभी तो िड़लकयों की सिवार.... !! मैंने आलखरी दांव िेंका और कहा लक बच्चा भाई! आप केवि आिोचना करना जानते हो, दे श में पहिा ऐसा प्रधानमंत्री हु आ है, लजसने दे श के मुख्यमंलत्रयों के साथ लबना नौकरशाही की कृपा के 'लदि से लदि लमिाओ' अलभयान चिाया और परू े ढाई घंटे तक मोदी के साथ लदि लवि ्यार व्यार खेिते रहे . लचढ़ते हु ए बच्चा भाई बोिे! काहे का लदि लमिन! उत्तर प्रदे श का युवा तो कहता है लक जबरदस्ती मुझे झाड़ू पकड़ाने पर मोदी जी उतर आये हैं, मैं झाड़ू नहीं पकडूूँगा, मैं अपने राष्ट्रीय अध्यक्ष का बच्चा हूँ तो क्या मोदीजी भी मुझे बच्चा ही समझ बैठे हैं. वहीं पलश्चम बंगाि की नालयका तो मोदीजी का जुबानी बुरा हाि करने का कोई मौका नहीं छोड़ रही हैं. लिर काहे का लदि-लमिन. इससे पहिे की हमारी िड़ाई आगे बढ़ती, बच्चा भाई मे रे गुस्से को भांपते हु ए बोिे- जाओ, तुम्हें सब्ज़ी भी तो िेनी है, घरवािी खाना नहीं दे गी तो लिर मे रे लखिाि ही गुस्सा लनकािोगे. लिर मे रे घावों पर िेप िगाते हु ए बोिे- वैसे सलब्ज़याूँ सस्ती हु ई हैं, जाओ नहीं तो बरसात लिर शुरू हो जाएगी. मैं भुनभुनाता हु आ बैठक से बाहर लनकि आया और प्रलतज्ञा की लक अगिी बार इसके सामने ही नहीं पडूंगा. इस बच्चा भाई की तो ... !! - मममथलेश. (www.mithilesh2020.com)
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ाऄल्लाह! ाईन बच्चों को 72 कममसन हूरें न देना...! पालकस्तान के प्रलत आज की घटना ने कइयों की तरह मे रे मन में भी सहानुभलू त और पीड़ा का पहाड़ बना लदया है. यं ू तो पालकस्तान और उसके रहनुमाओं के लिए यह दो-चार लदन में भि ू जाने वािी बात होगी, तथालप लवश्व के लिए आतंक की शरणस्थिी पालकस्तान में हु ई घटना बेहद चौंकाने वािी है. लजस प्रकार पेशावर के आमी स्कूि में 130 बच्चों का बेरहमी से कत्ि कर लदया गया, वह पालकस्तान की एक राष्ट्र के रूप में मान्यता पर प्रश्नलचन्ह है. भारतीय प्रधानमंत्री ने इस कायराना हमिे की लनंदा करते हु ए कहा, स्कूि में छात्रों और अन्य लनदोष िोगों की जान िेने वािा यह एक ऐसा लववेकहीन बबथ रतापण ू थ कृत्य है, लजसे शब्दों में बयान नहीं लकया जा सकता. आज लजन िोंगों ने अपने लप्रयजनों को खोया है, मैं उनके साथ हं. हम उनके ददथ को महसस ू करते हैं और उनके प्रलत हमारी गहरी संवेदना है. संवेदना का स्नेहिेप परू े लवश्व से आ रहा है, ठीक वैसे ही जैसे हलथयारों की खेप पालकस्तान में आती है. अमे ररकी राष्ट्रपलत बराक ओबामा और लवदे श मंत्री जान केरी ने आतंक के रूप में इन नयी चुनौलतयों का लज़क्र कर के अपनी खानापलू तथ कर िी है, परन्तु सवाि उठता है लक 21वीं सदी में मंगि और उससे आगे तक कुिांचे भरने वािे इंसान की इंसालनयत कहाूँ है. अरे ! इस बेरहमी से तो कोई जानवर भी अपने लशकार की हत्या नहीं करता है. लकसी की आूँख में गोिी, लकसी बच्चे के लदमाग में, लकसी के हाथ और पैर में और इससे भी उन जेहादी दररं दों का जेहाद परू ा नहीं हु आ तो उन बच्चों की टीचर को लज़ंदा जिा लदया. आह! मानव इलतहास में बाबर, औरं गज़ेब, लहटिर जैसे कई क्रूर िोग हु ए हैं, लजन्होंने मानवता के प्रलत घोर अपराध लकया है, िेलकन यह अपराध, नहीं नहीं अपराध मत कलहये इसे, वहशीपन भी छोटा शब्द है इसके लिए... मे री लडक्शनरी में शब्द नहीं लमि रहे हैं इस कुकृत्य के लिए... या रुलकए! 'लजहाद' इसके लिए उपयुि शब्द है शायद! हाूँ! यह शब्द तो जाना पहचाना होगा आपके लिए भी, लकन्तु पहिे के तमाम छद्म पररचयों से अिग यह 'लजहाद' शब्द का असिी पररचय है. हाूँ! हाूँ! भारत में मुंबई के 26 /11 हमिे के मास्टर-माइंड हालिज सईद ने अभी हाि ही में एक सभा की थी और उसमें भारत को धमकी दे ते हु ए बोिा था लक भारत, चपु चाप कश्मीर पालकस्तान को दे दे, नहीं तो सारे मुसिमान 'लजहाद' के लिए तैयार हैं. बताना माकूि होगा लक 130 बच्चों की मौत से दुखी नवाज शरीि की सरकार ने, लवश्व समुदाय द्रारा प्रलतबंलधत उस आतंकवादी की सभा के लिए बाकायदा सरकारी रेनों की व्यवस्था करवाई और 'लजहाद' लज़ंदाबाद के नारे िगवाये. िेलकन यह सभी आम बातें हैं, लवशेषकर पालकस्तान के सन्दभथ में लजतना भी कह लिया जाय कम ही होगा. धमथ की बुलनयाद पर िाखों िोगों का खन ू बहाकर लजस पालकस्तान की नीवं रखी गयी, वह भिा सुखचैन से रह भी कैसे सकता है. अंग्रेजी शासन के अंलतम प्रलतलनलध िाडथ माउं टबेटन ने पालकस्तान के लनमाथ ण के समय ख़ास रुलच िी थी, तब लब्रलटश नीलतज्ञों के लदमाग में यह बात जरूर थी लक पालकस्तान की भौगोलिक लस्थलत एवं धमथ के आधार पर उसके कमजोर शासक पलश्चम की नीलतयों के प्रलत आने वािे समय में मुिीद रहें गे. अिगालनस्तान, ईरान, चीन और भारत के मध्य पालकस्तान जैसा सैलनक-बेस उन्हें 113 www.zmu.in | www.hindinewsportal.com | Mob: +91- 9990089080, Mail: m@zmu.in
भिा कहाूँ लमि सकता था. आज 130 से अलधक बच्चों की लनरीह मौत पर मानवालधकारों के कलथत लहमायती पलश्चमी दे श भिे ही लकतने घलड़यािी आंसू बहा िें, िेलकन पालकस्तान को इन पलश्चम के दे शों ने एलशया में अपनी राजनीलत साधने के लिए हमे शा बौना बनाये रखा. रूस, चीन जैसी बड़ी महाशलियों और भारत जैसे लवश्व के बड़े बाज़ार में पालकस्तान के माध्यम से घुसपैठ बनाने का िगातार प्रयत्न लकया है अमे ररका एवं उसके सहयोगी दे शों ने. पालकस्तानी रहनम ु ाओं की लबडम्बना भी यही रही लक उन सभी ने सतही तौर पर भारत लवरोध की राजनीलत के लसवा दूसरा कोई काम लकया ही नहीं. इस असिि दे श का डगमगाता िोकतंत्र हो या उसके सैलनक शासक, सभी भारत लवरोध की खेती करके अपनी आजीलवका चिाते रहे . िांसी के तख्ते के करीब, दे शद्रोह का आरोप झेि रहे पवू थ सैलनक तानाशाह परवेज मुशरथ ि को जब अपने बचने का समस्त मागथ बंद होते लदखाई दे ने िगा तो उन्होंने एक के बाद एक भारत लवरोधी बयान दे ने का लसिलसिा शुरू कर लदया. कभी भारत के प्रधानमंत्री को मुलस्िम लवरोधी बताने का तो कभी कश्मीर को जेहालदयों के भरोसे भारत से छीन िेने का. यह लसिथ परवेज मुशरथ ि भर की बात भी नहीं है, बलल्क भुट्टो पररवार से िेकर शरीि खानदान और इमरान की नयी ताज़ी दूकान के यही नज़ारे हैं. भारत-लवरोध इनके लिए आसान रहा भी है, क्योंलक धमथ के आधार पर दे श का बंटवारा होने से दोनों दे शों के नागररकों के ज़ख्म थे ही, और एक के बाद एक चार सीधी िड़ाइयां और वषों से लछड़े छद्म युद्च ने इस ज़ख्म पर िगातार नमक ही लछड़का है. ऊपर से तुराथ यह लक इस्िाम, लजहाद के नाम पर 99 िीसदी मुसिमानों से जो भी करवा िो, वह राज़ी हो जाते हैं, क्योंलक उनको जन्नत में कलथत तौर पर 72 कमलसन हरों के साथ जश्न मनाने का सपना सच करना होता है. मुलस्िम समाज की कई लबडम्बनाओं में से यह भी एक लबडम्बना ही है. खैर, बदिे वि में भारत की बढ़ती ताकत से लवश्व की तमाम महाशलियां सजग हो गयीं और उन्होंने लपछिे दशकों में पालकस्तान को भारत के लखिाि खबू इस्तेमाि लकया. अमे ररका के हलथयारों का सबसे बड़ा आयातक दे श पालकस्तान रहा ही है, अभी हाि ही के दशकों में चीन के हाथों में खेिना पालकस्तान को खबू रास आ रहा है. सुना तो यहाूँ तक है लक दहशतगदों को हलथयार के साथ सधी हु ई लमलिरी रेलनंग चीन के सैलनक भी दे रहे हैं. बंदरगाह के साथ पालकस्तान द्रारा कालबज कश्मीर में चीन को रास्ता दे ना इत्यालद पालकस्तानी राजनीलत के लदवालियेपन को प्रकट करने के लिए कािी है. यहाूँ तक लक नेपाि में दक्षेस सम्मिेन में हो रहे समझौतों पर नवाज शरीि ने लजस प्रकार रोड़ा अटकाया वह चीनी इशारे पर ही था. महान नीलतज्ञ चाणक्य ने कहा है लक दोस्ती और दुश्मनी हमे शा बराबर वािों में ही करनी चालहए. इस उलि पर पालकस्तान जरा भी अमि कर िे तो उसे समझ आ जाएगी लक चीन और अमे ररका उसके दोस्त न कभी थे, न कभी हो सकते हैं. अमे ररकी कभी भी उसके घर में घुसकर िादे न को मार सकते हैं तो अपनी दोस्ती का दम भरने वािे चीनी राष्ट्रपलत भारत तो आ सकते हैं, िेलकन पालकस्तान को ठें गा लदखने में जरा भी परहे ज नहीं करते हैं. इमरान खान जैसे बुलद्चजीवी राजनीलतज्ञ भी तालिबान की लजस प्रकार लहमायत कर रहे हैं, उससे नुक्सान लसिथ पालकस्तान का ही हु आ है. पालकस्तानी हु क्मरानों को यह बात साफ़ समझ आ जानी चालहए थी लक भारत में पालकस्तान से ज्यादा मुसिमान हैं और आज़ादी के बाद से अब तक उनके मन में पालकस्तान के प्रलत बेहद सॉफ्ट कानथ र रहा है. 114 www.zmu.in | www.hindinewsportal.com | Mob: +91- 9990089080, Mail: m@zmu.in
यलद पालकस्तान ने इस सॉफ्ट कानथ र का प्रयोग अपने यहाूँ उद्योग, व्यापार को बढ़ाने में लकया होता तो पालकस्तान आज लखिौना नहीं बना रहता. बेहद आंतररक राजनीलत की बात है यह. अब तो उसकी नािायकी से भारत के मुसिमान भी कन्नी काटने िगे हैं और जैसे-जैसे समय बीतेगा भारत का मुसिमान पालकस्तान से दरू होता जायेगा. िाखों पालकस्तालनयों का जीवन-यापन भारत के ऊपर लनभथ र है. बॉिीवुड से िेकर, कपडे तक के कारोबार को यलद तरजीह दी गयी होती तो पालकस्तान कहाूँ से कहाूँ पहु ूँच सकता था. िेलकन अब लस्थलत बेहद तेजी से बदि रही है और पालकस्तान गहृ -युद्च की तरि तेजी से बढ़ रहा है. उसे ग़ितफ़हमी है लक चीन या अमे ररका भारत के लखिाि उसका साथ दें गे. उसकी ग़ितफ़हमी कश्मीर मुद्ङे को िेकर दरू हो जानी चालहए थी, जब वह लचल्िाता रहा और कोई दे श सुनने को राजी न हु आ. िेलकन धमाां ध िोगों को अक्ि कब आयी है, जो आज आएगी. यं ू भी लवश्व पर कालबज़ ईसाई समुदाय की मंशा कुछ और ही है, लजसकी झिक मुलस्िम समाज को लमि ही गयी होगी, िेलकन उसके पुरोधा भारत के साथ 130 लनरीह बच्चों के लखिाि लजहाद करें तो इसे धमाथ न्धता के अलतररि कुछ और नहीं कहा जा सकता. जहाूँ तक भारतीय मुसिमानों की बात है, उनमें से अलधसंख्य मुसिमान इन बातों को समझ चुके हैं और कम से कम पालकस्तानी मुहालजरों के साथ असिी पालकस्तालनयों की दुगथलत से उनकी सोच कािी बदिी है. जो थोड़ा बहु त बदिाव है, वह भी समय के साथ हो जायेगा, इस बात में कोई दो राय नहीं है. ईश्वर, अल्िाह उन बच्चों की रूह को शांलत दे, हाूँ उन बच्चों को 72 कमलसन हरें न दे, आलखर वह बच्चे अभी बालिग़ नहीं थे, नवीं-दसवीं के बच्चे थे. उन लबचारों को क्या पता होगा लक लजहाद की असलियत क्या है? पालकस्तानी आमी स्कूि पर हु ए हमिे में घायि एक बच्चा टीवी पर रोते हु ए कह रहा था लक वह बड़ा होकर- इन लजहालदयों, आतंलकयों की नस्ि को ख़त्म कर दे गा. आह! उस मासम ू को क्या पता... उसके अब्ब,ु चाच,ू अम्मी और उसके पड़ोसी ही उन लजहालदयों के प्रलत सहानुभलू त रखते हैं या खद ु ही लजहाद करते हैं. काश! वह बच्चा समझ पाता... !!! और समझ पाते यह बातें पालकस्तानी हु क्मरान... !!
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भारत रत्न ि राजधमथ आलखर भारतीय जनता पाटी के वररष्ठतम नायकों में से एक अटि लबहारी बाजपेयी को भारत-रत्न पुरस्कार दे ने की घोषणा कर ही दी गयी. साथ में आज़ादी के नायक एवं कांग्रेस के पांच बार अध्यक्ष रह चुके पंलडत मदन मोहन मािवीय को भी यह पुरस्कार दे ने की घोषणा भी की गयी है. लनलश्चत रूप से दोनों महापुरुषों का योगदान अपने-अपने समय में अतुिनीय रहा है और दे श का आम जनमानस इनसे सुपररलचत भी है. एक तरि मदन मोहन मािवीय को आज़ादी के पहिे के उन लशक्षालवदों में अग्रणी माना जाता है, लजन्होंने मैकािे की अंग्रेजी लशक्षा-प्रणािी, जो लक भारतीयता को नष्ट करने के इरादे से ही िाग ू की जा रही थी, उसका न लसिथ उलचत लवरोध लकया बलल्क आपने उसकी वैकलल्पक लशक्षा-नीलत पेश की एवं बनारस लहन्दू लवश्वलवद्यािय के माध्यम से भारतीय लवचारों की अिख जगाये रखा. महामना मािवीय लसिथ लशक्षालवद ही नहीं, बलल्क गंगा, लहंदुत्व, संस्कृलत के प्रबि संरक्षक के तौर पर उभरे . जिपुरुष के नाम से लवख्यात, मैनसेसे पुरस्कार से सम्मालनत श्री राजेंद्र लसंह इलतहास के पन्नों से श्री मािवीय का उद्चरण दे ते हु ए कहते हैं लक 'जब अंग्रेज प्रशासक भारतीय संस्कृलत की प्रतीक गंगा नदी में नािे के माध्यम से शहर की गन्दगी डािने का प्रस्ताव िाये तो श्री मािवीय ने हर स्तर पर इस बात का लवरोध लकया'. वहीं अटि लबहारी बाजपेयी का योगदान इस मायने में अलद्रतीय है लक एक अपररपक्व िोकतंत्र, लजसमें एक पररवार का िगभग कब्ज़ा हो गया था और िोग िोकतंत्र में भी राजशाही की घुटन महसस ू करने िगे थे, उसका न लसिथ साथथ क लवकल्प लदया, बलल्क आपने उस लवकल्प को 5 साि तक सिितापवू थ क आजमा कर आगे के लिए भी रास्ता साफ़ कर लदया. वस्तुतुः बाजपेयी को यलद आधुलनक िोकतंत्र का सवथ श्रेष्ठ नायक कहा जाए तो कोई अलतशयोलि नहीं होगी. लबना लकसी रिरं लजत, अलतवादी उदाहरण के आपने सद्भावना, दे शभलि, लवकास की अद्भुत लमसाि पेश की, लजसको समझने में वतथ मान भारतीय नेतत्ृ व को भी सािों िग सकते हैं. आपके प्रशंसक न लसिथ दे श में बलल्क पालकस्तान, अमे ररका सलहत तमाम दे शों में भी रहे हैं, जो आपके लवराट व्यलित्व का प्रतीक है. दे श की राजनीलत में भी आपने भारतीय जनता पाटी को स्वीकृत बनाने का सबसे महत्वपण ू थ कायथ लकया. यह बताना आवश्यक नहीं है लक आप लजस लवचारधारा से जुड़े रहे, उसे आम जनमानस में स्वीकृत होने में 70 सािों से ज्यादा समय िग गया, और दे श इस बात का कृतज्ञ रहे गा लक आपने राष्ट्रवादी लवचारधारा को अलतवादी होने से बचाया एवं उसे मुख्य धारा में समालहत करने में अग्रणी भलू मका का लनवाथ ह लकया. अटि लबहारी बाजपेयी को भारत-रत्न दे ने पर कुछ महत्वपण ू थ बयानों का लज़क्र करना सामलयक होगा. जम्मू कश्मीर के पवू थ मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्िाह ने कहा लक- यपू ीए(कांग्रेस) सरकार को पहिे ही भारतरत्न दे दे ना चालहए था. वहीं बाजपेयी के सहयोगी रहे एवं अब भाजपा के प्रबि लवरोधी लनतीश कुमार ने बाजपेयी को भारत-रत्न दे ने की प्रशंसा करते हु ए उनके उदार-रृदय की प्रशंसा करते हु ए वतथ मान सरकार पर राजनैलतक लनशाना साधने में दे री नहीं की. भाजपा के िौह-परु ु ष कहे जाने वािे िाि कृष्ट्ण आडवाणी ने भी बाजपेयी को भारत-रत्न पुरस्कार का सच्चा हकदार बताया. आडवाणी जी के अलतररि भाजपा से कोई ख़ास उत्साहवधथ क प्रलतलक्रया सामने नहीं आयी. आप यलद इन तीनों ज़मीनी व्यलित्वों पर गौर करें 116 www.zmu.in | www.hindinewsportal.com | Mob: +91- 9990089080, Mail: m@zmu.in
तो कहीं न कहीं भारत के वतथ मान प्रधानमंत्री नरें द्र मोदी से इनकी राजनैलतक प्रलतद्रंलदता कटु रूप में जगजालहर है. भाजपा के दो शीषथ पुरुष, लजन्होंने भारतीय सत्ता पर अपना अलधकार लसद्च लकया है, वह अटि लबहारी बाजपेयी और नरें द्र मोदी ही हैं. इसके साथ लबडम्बना यह भी है लक दोनों शीषथ नेताओं की छलव जनता में लबिकुि अिग तरह की है. लनसंकोच रूप से कहा जा सकता है लक भारत रत्न बाजपेयी और नरें द्र मोदी दोनों अपने-अपने समय में जनता में बेहद िोकलप्रय हैलसयत के नेता रहे हैं, िेलकन दोनों के प्रशंसकों में भी ज़मीन-आसमान का अंतर है. लपछिे लदनों संघ के एक कायथ क्रम में जाने का अवसर लमिा. उस कायथ क्रम में एक संघ के पुराने प्रचारक आये हु ए थे. अपने भाषण (बौलद्चक) के दौरान वह उद्चत ृ करना नहीं भि ू े लक लदल्िी में अब 'राष्ट्रीय लवचार एवं सत्ता के लवचार' में एकरूपता आ गयी है. वह यह बताने से भी नहीं चक ू े लक 'अटि लबहारी बाजपेयी' के शासन काि में कलथत 'राष्ट्रीय लवचार एवं सत्ता के लवचार' में एकरूपता नहीं थी, बलल्क कहीं न कहीं कन्फ्यज ू न था. उस कायथ क्रम में ही क्यों, लदल्िी में लपछिे लदनों हु ई बहु चलचथ त 'लहन्द-ू कांग्रेस' में लवलहप के अंतराथ ष्ट्रीय पदालधकारी अशोक लसंघि ने सीना ठोक कर कहा लक लदल्िी में 800 सािों बाद राष्ट्रीय लवचार की सरकार बनी है. लकतनी अजीब एवं कृतर्घन लवडम्बना है लक लजन दो महापुरुषों ने संघ पररवार को मुख्य धारा में चिने िायक बनाया, उसको गांधी-हत्या, अलतवादी लवचारधारा से बाहर लनकाि कर िाने में मुख्य भलू मका लनभाई, उन दोनों को हालसये पर डाि लदया गया है. आडवाणी को राजनैलतक रूप से परे धकेि लदया गया है, वहीं बाजपेयी से वैचाररक रूप से दूरी बनाने की कोलशश की जा रही है. खैर, अटिजी का कद इतना बड़ा है लक भारत रत्न उनको लमिना ही था, िेलकन संघ पररवार की तरि से इस पुरस्कार पर कोई ख़ास प्रलतलक्रया नहीं आयी है, लजसको नोलटस लकया जा सके, हाूँ! सामान्य प्रलतलक्रया तो आएगी ही, क्योंलक बाजपेयी भी तो स्वयंसेवक ही रहे हैं. बाजपेयी की तरह संघ से तािमे ि लबठाने में नरें द्र मोदी भी कसरत कर रहे हैं, िेलकन वह सिि होंगे या नहीं, यह तो वि ही बताएगा. हाूँ! एक बात स्पष्ट है लक यलद नरें द्र मोदी को भी भारत-रत्न कहिाना है तो उन्हें बाजपेयी से प्रेरणा िेनी ही होगी एवं उनके समरस, सद्भावना इत्यालद गुणों को ग्रहण करना ही होगा. 25 लदसंबर को बाजपेयी जी का जन्मलदवस है, मोदी भी उनसे 'राजधमथ ' के आशीवाथ द की अपेक्षा कर रहे होंगे, क्योंलक असिी 'राजधमथ ' के ज्ञान की जरूरत नरें द्र मोदी को अब है. तीन-चार लदन पहिे बाजपेयी जी के ऊपर दोपंलियाूँ लिखीं थीं-
हे यग ु परु ु ष! तम ु को नमन सींचा है तम ु ने नि चमन मदया तांत्र सच में लोक को जन जन के तम ु ाअलोक हो सद्भािना के कमथ फल ाऄनेकता में भी सफल 117 www.zmu.in | www.hindinewsportal.com | Mob: +91- 9990089080, Mail: m@zmu.in
समरसता के प्रयत्न हो तम ु सच में ‘भारत रत्न‘ हो
- मममथलेश. (www.mithilesh2020.com)
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महांदत्ु ि के पांच प्राण भारतीय इलतहास में रुलच रखने वािों के लिए वीर सावरकर कोई अपररलचत नाम नहीं हैं. एक तरि इस नाम के त्याग और बलिदान के सदृश कोई दूसरा उदाहरण नहीं लमिता है, वहीं दूसरी ओर कुछ िोगों के विव्य लवनायक सावरकर को अलतवादी कहकर उनपर लनशाना साधने से नहीं चक ू ते हैं. लहंदी सालहत्य सदन द्रारा प्रकालशत 'लहंदुत्व के पंच प्राण नामक पुस्तक में उनके कुछ संकलित िेखों को पढ़ने का सुअवसर लमिा. अनुवादक लवक्रम लसंह ने इन िेखों को अच्छे से सहे जा है. इस पुस्तक में वीर सावरकर के ९ िेख शालमि लकये गए हैं, जो वीर सावरकर की लहन्दू समाज के प्रलत गहन समझ का पररचय दे ते हैं. इस पुस्तक को पढ़ने के उपरान्त इस बात में कोई संशय नहीं रह जाता है लक लहंदुत्व के महान लवचारकों में वीर सावरकर का स्थान अक्षुण्ण है, लवशेषकर स्वतंत्रता आंदोिन के दौर में अंग्रेज़ों से िोहा िेने के अलतररि आपने लहन्दू समाज को संगलठत करने में अपनी समस्त बौलद्चक ताकत झोंक दी, जो उस दौर के मुलस्िम कट्टरपंथ से लनपटने के लिए भी समयानुकूि था. एक तरि महात्मा गांधी के प्रभामंडि से दे श के बड़े जननेता अलभभत ू होकर उनके सही-गित कदमों का अंध समथथ न कर रहे थे, वहीं दे शलहत की खालतर आपने महात्मा गांधी तक की कटु आिोचना करने में कोई कोताही नहीं की. आपने महात्मा गांधी के कई लसद्चांतों की जमकर बलखया उधेड़ी है, लजनमें 'मुलस्िम तुलष्टकरण' और 'आत्यंलतक अलहंसा' प्रमुख है. आपकी तरह दे श के अन्य दे शवासी भी यह बात मानते हैं लक तमाम योगदानों के बावजदू दे श बंटवारे, सांप्रदालयक लहंसा एवं अंग्रेजों के अत्याचारों में महात्मा गांधी की गित नीलतयां कािी हद तक लजम्मे वार रही हैं. इस ऐलतहालसक पुस्तक में आपने 'लहंदुत्व की व्यापक पररभाषा' दे ने के साथ राष्ट्रभाषा लहंदी, छुआछुत, लहन्दुओ ं की घटती संख्या, अलहंसा की गित पररभाषा के कारण लहन्दुओ ं में पनप रही कायरता, धमथ का रृदय में स्थान एवं उसकी उपयोलगता, जालत-भेद पर कटु प्रहार एवं उससे होने वािे नुक्सान पर गहन दृलष्ट डािी है. 'लहन्दू' शब्द का अथथ एवं उसकी व्याख्या करते हु ए आपने इस सलू ि को उद्चत ृ लकया है-
आलसंधुलसंधुपयथ न्ता यस्य भारतभलू मका. लपतभ ृ ुःू पुण्यभश्च ू वै स वै 'लहन्दु' ररलत स्मत ृ ुः. यह प्रश्न सदैव से उठता रहा है लक लहन्दु कौन? आपने उसकी स्पष्ट व्याख्या करते हु ए कहा है लक अलसन्धु-लसंधु लजसकी लपतभ ृ लू म और पुण्यभलू म दोनों भारतवषथ हो, वह लहन्दु कहिाने का अलधकारी है. तमाम भारतीयों के भ्रम को दूर करते हु ए वीर सावरकर कहते हैं लक लहन्दु शब्द की उत्पलत्त मुसिमानों या लकसी अन्य द्रारा नहीं हु ई है, बलल्क लहन्दु, लहंदुस्तान, लहन्द इन प्राकृत शब्दों का मि ू उद्गम ऋनवेदकािीन सप्तलसंधु नामक हमारे अपने प्राचीनतम राष्ट्रीय अलभधा में ही है. ऋनवेद में 'सप्तलसन्धवुः' प्रयुि होने के साथ उस प्राचीन काि में हमारे लनकटस्थ ईरान, बेबोलियन, प्राचीन अरब आलद राष्ट्र हमें हमारे 'सप्तलसंधु' इसी राष्ट्रीय अलभधा से जानते थे. 'पारलसयों ने' ढाई हजार वषथ पवू थ के उनके धमथ ग्रंथों में हमारे राष्ट्र को 119 www.zmu.in | www.hindinewsportal.com | Mob: +91- 9990089080, Mail: m@zmu.in
'हप्तलहन्दु' से ही सम्बोलधत लकया है. तत्कािीन प्राचीन 'बेबोलियन' ग्रंथों में हमारे दे श से लनयाथ लतत झीने तथा सुन्दर विों को 'लसंधु' या 'लसन्धुव' कहा हु आ है. आगे लहन्दु शब्द पर प्रकाश डािते हु ए वीर सावरकर कहते हैं लक अिेक्जेंडर से दो सौ वषथ पवू थ का ग्रीक इलतहासकार हे काटेआस भी हमारे प्राचीन राष्ट्र को हमारे ही लसंधु शब्द के ग्रीक रूप Indu India इसी नाम से उल्िेख करता है. बुद्चकाि में लहन्दुस्थान में आये हु ए 'चीनी' यात्री हु एनत्संग ने भी हमारे राष्ट्र को लसंधु शब्द का चीनी अपभ्रंश 'लशन्दु' इसी अलभधा से सम्बोलधत लकया था. यही नहीं, मुसिमानों के पैगम्बर मोहम्मद साहब के जन्म से पवू थ अरबी िोग जब शैव एवं शाि पंथ सदृश धमथ के अनुयायी थे तब भी हमारे राष्ट्र का वणथ न करे हु ए लहन्द एवं लहन्दु नामों का उन्होंने गौरव से उच्चारण लकया है. इसमें वलणथ त एक पंलि दे लखये-
अया मुवारकि अजे या शैयेनोहा लमनि लहंदे. वा अरा दक्क़िा हो मइयो नज्जेिा लजकतन ू . इस िेख में लहन्दु शब्द के उल्िेखों का उदाहरण दे ते आप भलवष्ट्य पुराण के उद्बोधक श्लोकों का वणथ न करते हैं-
जानुस्थाने जैनुशब्दुः सप्तलसंधु स्तथैव च. हप्तलहन्दुयाथ वनीलत पुनज्ञेया गुरुलण्डका. इसी प्रकार शालिवाहन कुि के राजाओं की कथाओं का वणथ न करते हु ए इसी पुराण में कहा गया है लक बालल्हक, चीन, ताताथ र आलद मिेच्छ शत्रुओ ं का समि ू नाश करने के उपरान्त उस भपू लत ने लसंध को अपने उत्तम आयथ राष्ट्र की सीमा लनलश्चत लकया. लसंधु के इस ओर का जो प्रदे श है वह हमारा लसन्धुस्थान एवं उस ओर का जो प्रदे श है वह मिेच्छस्थान है, ऐसा सीमांकन लकया, अटक उल्िंघन के लनषेध लनयम भी इसी समय में प्रचलित हु आ. 'नागन्तव्य त्वया भपू पैशाचे दे शधत ू थ के' इस भलवष्ट्यपुराण के श्लोकों में भी लसंधु उल्िंघन का बंधन उद्चत ृ है. पथ्ृ वीराज चौहान के समकािीन चंदभाट के काव्य में भी लहन्दुस्थान शब्द का गौरवयुि प्रयोग लकया गया है.
अटि थाट मलहपाट अटि तारा गढ़ थानम्. अटि नगर अजमेर अटि 'लहंदव-अस्थानम्. जब आज के आधुलनकतम समय में लहन्दू शब्द की राष्ट्रीयता पर कुछे क िोग प्रश्न उठाने की धष्ट ृ ता करते हैं, तो समझा जा सकता है लक आज़ादी के समय मुलस्िम िीग और छद्म सेकुिरवालदयों द्रारा बहु िता से लहन्दू शब्द को साम्प्रदालयक बताने की कोलशश हु ई होगी. उन सभी पर प्रहार करते हु ए वीर सावरकर 120 www.zmu.in | www.hindinewsportal.com | Mob: +91- 9990089080, Mail: m@zmu.in
उद्घोष करते हैं लक लहन्दू शब्द पण ू थ रूप से राष्ट्रीय है. इसे लसद्च करते हु ए वह कहते हैं लक- मैं आयथ हूँ, मैं भारतीय हूँ इस स्वतुः की लस्थलत से अनलभज्ञ होने वािे िाखों िोग लमि सकते थे पर मैं 'लहन्दू हूँ' यह भावना झोंपड़ी-झोंपड़ी में करोड़ों िोगों में जम चुकी थी. परू े दे श के आम जनमानस के साथ पंजाब में श्री गरु ु गोलवंद लसंह जी का जो जीलवत कायथ था वह उन्हीं के शब्दों में इस प्रकार वलणथ त है-
सकि जगत में खािसा पंथ जागे. जगे धमथ 'लहन्दू' सकि भंड भाजे. महाराष्ट्र के समथथ रामदास जी को भी जो पीड़ा थी वह भी यही लक
'या भम ू ंडळाचे ठाई. लहन्दू ऐसा उरिा नाहीं. (भावाथथ - इस भम ू ण्डि में मानो 'लहन्द'ू तो बचा ही नहीं.) गरु ु तेगबहादुर के सामान हजारों हु तात्माओं ने 'लहन्दू शब्द का पररत्याग करो, नहीं तो प्राणत्याग हे तु तत्पर हो जाओ!' ऐसी शत्रु की धोंस पर प्राण त्याग लदए, पर इस 'लहन्दू' शब्द का पररत्याग नहीं लकया. परू ब से िेकर पलश्चम तक, उत्तर से िेकर दलक्षण तक सभी जालतयां, सम्प्रदाय अपने को लहन्दू मानने और कहने में सदा से गवथ करती आयी हैं. लहन्दू शब्द के इलतहास से यह स्पष्ट हो जाता है लक यह शब्द मि ू तुः तथा मुख्यतुः दे शवाचक एवं राष्ट्रवाचक है, लकसी लवलशष्ट पज ू ा-पद्चलत भर का ही लनदशथ क नहीं है. अपनी लकताब 'लहंदुत्व के पंच प्राण' में सावरकर जी स्पष्ट कहते हैं लक लहंदुत्व कोई धमथ मत नहीं है, बलल्क यह राष्ट्रीयता का द्योतक है. लजसकी लपतभ ृ ू एवं पुण्यभू भारत है, वही लहन्दू है. लपतभ ृ ू अथाथ त केवि वह भलू म नहीं जहाूँ अपने माता-लपता का जन्म हु आ हो, लपतभ ृ ू तो उस भलू म को कहा जाता है लजसमें प्राचीन काि से एक परं परा से हमारे पवू थ ज लनवास करते आये हैं. इसी प्रकार पुण्यभू का तात्पयथ उस भलू म से है लजस भलू म में लकसी धमथ का संस्थापक, ऋलष, अवतार प्रकट हु आ, उसने उस धमथ को उपदे श लदया, उसके लनवास से उस भलू म को धमथ क्षेत्र का पुण्यत्व प्राप्त हु आ, वह उस क्षेत्र की पुण्यभू है. लहंदुत्व की यह पररभाषा लजतनी ऐलतहालसक है उतनी ही वतथ मान लस्थलत के अनस ु ार भी है. वह लजतनी सत्य है उतनी ही इष्ट भी. लजतनी व्यापक है, उतनी ही व्यावतथ क भी. सावरकर जी के िेखों में लिखी बातें कािी हद तक सत्य प्रतीत होती हैं. लहन्दू शब्द के बारे में भ्रम की लस्थलत पर वह कहते हैं लक यलद लहन्दू की यह पररभाषा प्रारम्भ में ही उपिब्ध हो जाती तो 'लहन्द'ू शब्द को लकसी खास पज ू ा-पद्चलत से जोड़ने की भ्रालन्त ही उत्पन्न नहीं होती. मुसिमान राजसत्ता ने स्वतुः की सुलवधा हे त,ु धमाथ न्धता के नशे में लहन्दुस्थान के करोड़ों िोगों को लहन्दू एवं मुसिमान इन दो टुकड़ों में बाूँट लदया- इस प्रकार जो भी व्यलि मुसिमान नहीं था वह लहन्दू माना जाने िगा. इस कारण से मुसिमान 121 www.zmu.in | www.hindinewsportal.com | Mob: +91- 9990089080, Mail: m@zmu.in
जालतयों के अलतररि सभी जालतयां एक ध्वज के नीचे संगलठत हु ई ं और इससे यह सालबत हु आ लक लहन्दू शब्द का अथथ लसिथ सनातलनयों या आयथ समालजयों के लिए ही नहीं था बलल्क इसमें समस्त भारत के िोग शालमि थे. लहन्दू शब्द को वेदनुयालययों से जोड़ने का कारण वह लवचारक ही रहे जो लहंदुत्व की सवाां गीण व्याख्या राष्ट्रीय एवं सांस्कृलतक आधार पर न करने के कारण उसके उन प्रमुख अंगों की ओर दुिथक्ष्य होकर, उसकी धालमथ क पररभाषा को प्रलतपालदत करने िगे और लहन्दू समाज के बहु संख्यक िोग वेदानुयायी होने के कारण यह धारणा बिवती होती गयी. यही कारण रहा लक लसक्ख, जैन, बौद्च, आयथ समाज, ब्रह्मोसमाज, दे वसमाज आलद पंथ कई बार लहन्दू शब्द के सम्बन्ध में भ्रम पाि िेते थे. अपनी स्पष्टवालदता के कारण अंग्रेजों से िेकर कांग्रेसी सत्ता तक का दंश झेि चक ु े वीर सावरकर लबना लकसी िाग-िपेट के खुि कर कहते हैं लक मुसिमान और ईसाई लहन्दू नहीं माने जा सकते क्योंलक धमथ पररवतथ न से वह भ्रष्ट हो चुके हैं, उनकी पुण्यभू अरब स्थान, पैिेस्टाइन आलद हो चुके हैं अतुः उनकी लनष्ठा बंट गयी है. इस प्रकार अपने लवस्ततृ िेख में लजस प्रकार लहन्द,ू अलहन्दू की राष्ट्रीय व्याख्या वीर सावरकर जी ने स्पष्ट रूप में की है, वह कहीं अन्यत्र लमिना दुिथभ है. अपने अगिे िेख में संस्कृतलनष्ठ लहंदी का समथथ न करते हु ए वीर सावरकर खास वगथ के दोहरे पन की धलज्जयां उड़ाने से चक ू े नहीं हैं. राष्ट्रीय लवचारों के प्रलत वह प्रखर रूप में सामने आते हैं, और ढोंलगयों के तुलष्टकरण की जमकर लखंचाई करते हैं. एक उद्चरण दे लखये- हम लहन्दुओ ं में एक ऐसा वगथ है, लजसकी यह लवलचत्र धारणा है लक कोई भी 'राष्ट्रीय' आंदोिन तब तक राष्ट्रीय हो ही नहीं सकता जब तक कोई ऐरा-गैर मुसिमान उसमें िा करके न लबठाया जाय. वह लसिथ आिोचना ही नहीं करते हैं, बलल्क महात्मा गांधी के द्रारा लहंदी के प्रलत लकये गए योगदान को सराहते भी हैं, िेलकन मुसिमानों के प्रलत उनके झुकाव को राष्ट्र के प्रलत लवलक्षप्त धारणा बताने में जरा भी संकोच नहीं करते हैं. लहंदी को राजभाषा बनाने को िेकर लजस प्रकार मुसिमानों ने लवरोध लकया और दे श के लहन्दुओ ं तो छोलड़ये, अलधकालधक मुसिमानों में भी न समझी जाने वािी उदथ ू के लिए लज़द्ङ की, वह इलतहास में दजथ अध्याय है. महात्मा गांधी ने उनके दबाव में आकर लहंदी के साथ अन्याय भी लकया. लहंदी की वकाित करते हु ए वीर सावरकर जी कहते हैं लक लकसी भी दे श की राष्ट्रभाषा तो वह होती है, लजसमें उस राष्ट्र का सारा उच्च सालहत्य होता है. मुसिमानों द्रारा फ़ारसी लिलप अपनाये जाने की वकाित करने पर वीर सावरकर ने नागरी लिलप के पक्ष में ज़ोरदार तकथ प्रस्तुत लकये हैं. अपने तकों को वह भाषा में जालतक्रम से िेकर उदथ ू की दररद्रता और मुसिमानों की हठधलमथ ता की कड़े शब्दों में लनंदा करते हैं. यहाूँ तक लक उदथ ू का बंगाि के मुसिमानों ने भी खुि कर लवरोध लकया था, उसके बावजदू दे श के कुछ मुसिमानों के साथ महात्मा गांधी हाूँ में हाूँ लमिाते रहे . वीर सावरकर उदथ ू के साथ अंग्रेजी शब्दों को लहंदी में लमिाने के सख्त लखिाि थे और उन्होंने स्पष्ट कहा लक 'संस्कृतलनष्ठ लहंदी ही हम लहन्दुओ ं की राष्ट्रभाषा है एवं संस्कृतलनष्ठ नागरी लिलप ही हम लहन्दुओ ं की राष्ट्रलिलप है.' 'लहंदुत्व के पंच प्राण' पुस्तक को पढ़ते हु ए आपको भी मे री तरह िगेगा लक वीर सावरकर आपके सम्मुख आपसे बात कर रहे हों, प्रत्येक मुद्ङे पर व्यवहाररक दृलष्टकोण िाजवाब है. जैसे- जालत-भेद पर वह सवणों को कड़ी िटकार िगाते हैं और कहते हैं लक लजन लनचिी जालतयों को तुम गिे नहीं िगाते हो, वह 122 www.zmu.in | www.hindinewsportal.com | Mob: +91- 9990089080, Mail: m@zmu.in
मुसिमान, ईसाई बनकर तुम्हारे शत्रु बन जायेंगे. इसके लिए वह मुलस्िम और ईसाईयों को शुलद्चकृत करने का प्रयास भी करने को कहते हैं. िेलकन शद्रू ों के साथ शुलद्चकृत लहन्दुओ ं को सवणथ जालतयों द्रारा भेदभाव का लशकार बनाये जाने पर उनका मन क्षोभ से भर उठता है. एक उद्चरण दे लखये वीर सावरकर के ही शब्दों में एक बड़े ही प्रामालणक शुलद्चकृत व्यलि से हमें एक पत्र प्राप्त हु आ है, उसमें वे लिखते हैं, मे रे लहन्दू धमथ -प्रवेश से लकसी भी प्रकार रूष्ट न होते हु ए लमशनररयों ने मुझे संक्रांलत पवथ पर मंुह मीठा करने हे तु परम्परानस ु ार लति-गुड भेजा है. मे रे पुत्रों को दस-दस रूपये की लमठाई भेजी है, हमसे दूर होते हु ए भी वे प्रलत सप्ताह मे रा कुशिमंगि पछ ू ते रहते हैं, इन सब बातों का रहस्य मैं भिी-भांलत जानता ह;ूँ परन्तु जब वे उनकी धमथ ध्वजा के नीचे िाने के उद्ङे श्य से लवधलमथ यों से इतना मीठा बोि सकते हैं, तो हमारे लहन्दुधमथ की ध्वजा के नीचे जब हम सब खड़े हैं तब स्वजनों को परस्पर में एक दुसरे से तो मीठा बोिना चालहए.! पर! जब मैं और मे रे पुत्र रास्ते से जाते हैं, तब मे रे ये लहंदुबंधु मे री ओर लतरस्कार से हूँसते हैं और दुसरे रास्ते से चिे जाते हैं. लकसी के बरामदे में अभी भी हम बैठ नहीं सकते. तीज-त्यौहार पर प्रेम से दो शब्द भी कोई नहीं बोिता. ऐसी अवस्था में केवि एक आलत्मक संतोष जो मुझे मे रे लहन्दू पवू थ जों के वास्तु में लनवास करने से प्राप्त हो रहा है, के कारण ही लवपक्ष के प्रिोभन एवं स्वपक्ष के लतरस्कार का कुछ भी प्रभाव नहीं िगता. मैं लहन्दू हूँ, इस भावना के सुख का उपभोग मैं कर सकता ह,ूँ इतना ही मे रे लिए पयाथ प्त है. अगिे िेख में अपनी प्रखर शैिी को जारी रखते हु ए वीर सावरकर लहन्दुओ ं को अपनी संख्या एवं गण ु दोनों को लवकलसत करने पर ज़ोर दे ते हु ए कहते हैं लक संख्याबि सबसे बड़ी शलि है, इसलिए उसका संरक्षण एवं संवधथ न करो. मुसिमानों का उदाहरण दे ते हु ए वीर सावरकर तब के सन्दभथ में कहते हैं लकलदल्िी की मुसिमानी पररषद के भाषणों और प्रस्तावों को दे खो: मुहम्मद अिी से िेकर छोटे-मोटे गुंडों तक प्रत्येक मुसिमान को कम से कम दस-बारह लहन्दुओ ं को तो भ्रष्ट करना ही चालहए, इस प्रकार दहाड़ें मार रहे हैं- क्योंलक, लहन्दुस्थान में मुसिमानों की संख्या को लहन्दुओ ं से अलधक बनाना है. इसी के कारण लहन्दू लियों को बहिा िुसिाकर एवं जबरदस्ती अपने साथ िे जाते हैं क्योंलक उन्हें मुसिमानों के संख्याबि को लहन्दुओ ं से ज्यादा बनाना है. ईसाइयों से भी लहन्दुओ ं को सचेत रहना पड़े गा क्योंलक प्रलतवषथ कम से कम दस िाख िोगों को ईसाई लनगि जा रहे हैं, उनको ईसाई बना रहे हैं. ऐसे में लहन्दुओ ं को अपनी रक्षा के लिए बेहद सचेत होना पड़े गा. वीर सावरकर जी आगे कहते हैं लक सवथ प्रथम यह ध्यान में रखना चालहए लक यलद समाज-जालत अलस्तत्व में होगी तब ही तो उसमें गुणरूपी शलि बढ़ाने का प्रश्न उत्पन्न होता है, इसलिए लनरे संख्याबि में क्या रखा है, ऐसा कहने वािे धत ू ों को खरी-खरी सुनाओ एवं अपनी संख्या बढ़ाओ. हमें गुणबि तो आवश्यक ही है, पर संख्याबि भी हमें आवश्यक है. हमारा लहन्दुराष्ट्र हम संख्या के रूप में भी घटने नहीं दें ग,े गुणों में भी घटने नहीं दें गे. गुणबि पंगु है तो अकेिा संख्याबि अंध है, इस सामालजक सत्य को लहन्दुओ ं को समझना पड़े गा. अपने अगिे िेख में गांधी की अव्यवहाररक अलहंसा की धलज्जयाूँ उड़ाते हु ए वीर सावरकर घोषणा करते हैं लक 'प्रलतघात का साहस लहन्दुओ ं में कूट-कूट कर भरा है'. लहंसा एवं अलहंसा के अथों की वतथ मान में गांधीजी 123 www.zmu.in | www.hindinewsportal.com | Mob: +91- 9990089080, Mail: m@zmu.in
जैसे पोंगापंलडतों ने जो उधेड़बुन मचा रखी है, उससे वे वचन भिे ही परस्पर लवरोधी लदखाई दे ते हों, परन्तु लहन्दुधमथ के ममथ ज्ञ आचायथ, पवू थ से ही इस शब्द का जो अथथ बताते आये हैं, उसको ध्यान में िेने पर,
तस्मादुलत्तष्ठ कौन्तेय, युद्चाय ररतलनश्चयुः का गजथ न करते हु ए अपना सुदशथ न-चक्र ऊूँचा उठा कर कंस का मदथ न करने वािे कृष्ट्ण एवं उनकी गीता ये दोनों ही लहन्दुधमथ एवं लहन्दुराष्ट्र के प्रमुखतम आराध्या दे वता क्यों बने यह सबके समझ में आने जैसी बात है. इसके अिावा गांधीजी लजस युलधलष्ठर की बात लनरी अलहंसा के लिए करते हैं, उन्होंने भी अट्ठारह लदनों तक युद्च लकया था. मुसिमानों से लहन्दुओ ं को अिग एवं बौलद्चक बताते हु ए वीर सावरकर कहते हैं लक लहन्दू मुसिमान की भांलत लवलक्षप्त कटटर नहीं, पर लहन्दू कटटर अवश्य है. लहन्दू मुसिमान की भांलत धमोन्मत जानवर नहीं, पर लहन्दू धमथ वीर अवश्य है. इसलिए ऐ खडग, तेरी लवजय हो! गुरु गोलवंदलसंह जी ने स्वतुः की तिवार के सम्बोधन में रचे हु ए काव्य में भी कुछ ऐसा ही कहा है-
सुखसंताकरणम् दुमथलतहरणम् खिदिदिनम् जयतेग्रम. वीर सावरकर की 'लहंदुत्व के पंच प्राण' पुस्तक को पढ़कर, एक से बढ़कर एक रोचक प्रसंग, उदाहरण, उद्चरणों को समझकर इस स्वातंत्र्य वीर के प्रलत श्रद्चा में लसर आप ही झुक जाता है. और मन गा उठता है-
'तेरा वैभव अमर रहे माूँ हम लदन चार रहें न रहे ' - मममथलेश. (www.mithilesh2020.com)
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गोडसे के बहाने! लपछिे लदनों से जो बात राष्ट्रीय राजनीलत में सबसे ज्यादा चलचथ त हु ई है, वह लनलश्चत रूप से नाथरू ाम गोडसे के ऊपर हो रही चचाथ ही है. नाथरू ाम गोडसे का प्रश्न सवथ प्रथम भाजपा के साक्षी महाराज ने उठाया और चूँलू क भारत के वैलश्वक ब्रांड माने जाने वािे महात्मा गांधी को अब भारत के संघी प्रधानमंत्री भी स्वीकार कर चुके हैं तो साक्षी महाराज को अपने कदम पीछे खींचने ही थे. लहंदुत्व के दुसरे मुद्ङों की तरह संघ और उसके आनुषांलगक संगठनों पर नरें द्र मोदी संजय जोशी के समय से ही िगातार दबाव बना पाने में सिि रहे हैं. िेलकन, कांग्रेस की तरह मोदी को भी यह भ्रम हो गया िगता है लक दे श में भाजपा और संघ के अलतररि दस ृ प्राय हो चुकी हैं. िेलकन, िोकतंत्र और लवशेषकर चुनावी राजनीलत की ू री संस्थाएं मत खालसयत ही यही है लक यहाूँ पक्ष और लवपक्ष होंगे ही. यह ठीक बात है लक आज़ादी के पहिे से अब तक दे श की मुख्य पाटी रही कांग्रेस लमटने की ओर अग्रसर हो रही है, और उसका लमट जाना ही ठीक है, क्योंलक उसके ऊपर पररवारवाद का गहरा दाग िग गया है, लजसे अयोनयता की हद तक ढोया जाना, िोकतंत्र की मि ू भावना के लवपरीत है. कांग्रेस का लमटना, लसिथ एक पाटी या नेहरू खानदान के राजवंश के लमटने भर की कहानी ही नहीं होगी, बलल्क इसकी डोर राष्ट्रलपता कहे जाने वािे 'मोहनदास करमचंद गांधी' तक भी पहु ंचेगी. आज़ादी के बड़े नायकों में से एक माने जाने वािे महात्मा गांधी के बारे में आम जनमानस की धारणा यही बनी है लक उनकी महानता को सत्ता ने बढ़ा- चढ़ाकर दे श पर थोपा है. इस बात से कई िोग सहमत नहीं हो सकते हैं, िेलकन कम से कम संघ और भाजपा से जुड़े िोगों को इस बात की घुट्टी उनके बािपन से लपिाई गयी है. इस पर बात आगे करें गे, िेलकन यहां यह बताना सामलयक होगा लक महात्मा गांधी ने आज़ादी के तुरंत बाद कांग्रेस को खत्म करने की वकाित की थी. इस ऐलतहालसक उद्चरण को नरें द्र मोदी अपने भाषणों में िगातार उठाते रहे हैं. अब प्रश्न उन संलघयों की बड़ी जमात का है, जो महात्मा गांधी के चररत्र के बारे में सरकारी नजररये से अिग नजररया रखते हैं और चूँलू क वह कािी सक्रीय और अनश ु ासनलप्रय भी माने जाते हैं तो उनका प्रभाव दे श के कई छोरों तक पहु ंचा है. महात्मा गांधी के ऊपर संघ के स्वयंसेवक और दे श के प्रधानमंत्री का य-ू टनथ इन संलघयों को कहीं न कहीं कुरे द रहा है. संघी, अटि लबहारी बाजपेयी से भी इसीलिए नाराज रहते थे, क्योंलक वह अपनी अंतराथ ष्ट्रीय छलव के प्रलत ज्यादा सजग हो गए थे, और लवचारधारा उस छलव से दब गयी थी. नरें द्र मोदी भी अपनी अंतराथ ष्ट्रीय छलव चमकाने एवं दस ू री मजबरू रयों के चिते गांधी को अपना तो रहे हैं, िेलकन इन सब िोगों को काबू करने में उनको भी पसीना आ ही रहा होगा. सुना तो यह भी गया है लक अपने इस्तीिे तक का दांव चिने तक की नौबत आ गयी थी हमारे नए गांधीभि को. खैर, जैसे-तैसे धमकी काम कर गयी और सीधे तौर पर संघ और लवलहप आलद के पदालधकारी खामोश हो गए, िेलकन अंदर ही अंदर तमाम संगठन धमाथ न्तरण समे त नाथरू ाम गोडसे के मुद्ङे को उठाने में िगे रहे .
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इस मुद्ङे को उठाने में जो संस्था सवाथ लधक जोर िगा रही है, वह अलखि भारत लहन्दू महासभा नामक संगठन है. वीर सावरकर के नाम से पहचानी जाने वािी संस्था का मुख्यािय केंद्रीय लदल्िी के मंलदर मागथ पर लस्थत है. भव्य भवन में आतंररक दरारें जरूर पड़ी हैं, िेलकन इससे जुड़े िोग टीवी, अख़बारों पर नाथरू ाम गोडसे का यथासंभव गण ु गान कर रहे हैं. मीलडया भी इस लवषय को खबू कवरे ज दे रहा है और संयोग दे लखये लक यह संस्था धीरे -धीरे सक्रीय होने का प्रयत्न भी करने िगी है. इस संस्था में अभी के समय बड़ी गहमागहमी बनी रहती है, जो कुछ महीने पहिे तक दे खने को नहीं लमिती थी. मुख्यािय पर जाने के बाद नाथरू ाम गोडसे से इस संस्था के जुड़ाव को, उनकी प्रलतमा को, नाथरू ाम के सालहत्य को आप आसानी से समझ जायेंगे. वतथ मान लहन्दू महासभाई िोगों में से कुछ िोग अंदरखाने महात्मा गांधी की हत्या को जायज़ नहीं ठहराते हैं, िेलकन बड़े गवथ से बताते भी हैं लक यलद नाथरू ाम गोडसे महात्मा गांधी को नहीं मारते तो पालकस्तान को कलथत रूप से 55 करोड़ रूपये लदया जाता और पालकस्तान और बांनिादे श (तब का पवू ी पालकस्तान) के बीच कई लकिोमीटर चौड़ा रास्ता भारत सरकार को दे ने के लिए मजबरू होना पड़ता. तब दे श की लस्थलत क्या होती, यह समझा जा सकता है. यही नहीं, कई लहन्दू महासभाई आज़ादी के समय िाखों िोगों के क़त्ि-ए-आम के लिए गांधी को सीधे तौर पर लजम्मे वार ठहराते हैं. कुरे दने पर वह साफ़ कहते हैं लक आज़ादी के कई साि पहिे से मुलस्िम आंदोिन दे श में खड़ा हो रहा था, लजसमें गांधी की तुलष्टकरण की नीलत भी कािी हद तक लजम्मे वार थी. इसके बावजदू दे श के लहन्दू गांधी को अपना नेता मान कर उसके साथ खड़े रहे, जबलक मुसिमानों ने गांधी को कभी अपना नेता नहीं माना. गांधी कहता रहा लक दे श उसकी िाश पर बंटेगा, इसलिए कोई लहन्दू इधर से उधर न हों. पररणाम यह हु आ लक िाखों िोग इस लवभाजन के दौरान काट डािे गए. इलतहास में इस प्रकार का वीभत्स नरसंहार कभी नहीं हु आ था. लहन्दू महासभाई इस बात पर भी रोष प्रकट करते हैं लक जब दे श का लवभाजन धमथ के आधार पर तय हो गया तब भी गांधी ने अपनी मजी चिाकर कहा लक लहन्द-ू मुसिमान जहाूँ चाहे रह सकते हैं और इस प्रकार गांधी की कमजोरी की वजह से यह दे श आज भी लहन्द-ू मुसिमान की समस्याओं से लघरा हु आ है. लहन्दू महासभा से जुड़े िोग साफ़ कहते हैं लक इस दे श को गांधी का दे श बताकर आम जनमानस के साथ सबसे बड़ा छि लकया गया है, क्योंलक उस व्यलि का व्यलिगत चररत्र भी संलदनध था. अंग्रेजों ने उसे भारत के क्रांलतकाररयों को कुचिने के लिए तैयार लकया था, और गांधी ने लकया भी यही. दे श की आज़ादी के असि नायकों भगत लसंह, चंद्रशेखर आज़ाद, सुभाष चन्द्र बोस जैसे क्रांलतकाररयों को इस व्यलि ने कभी बदाथ श्त नहीं लकया. यहाूँ तक लक जब सुभाष चन्द्र बोस कांग्रेस अध्यक्ष का चुनाव जीत गए थे तब इस व्यलि के दशथ न ने क्या लकया, यह इलतहास में दजथ है. लहन्दू महासभाई गोडसे के बहाने गांधी के चररत्र पर बात करते हु ए कहते हैं लक आज़ादी के बाद भी जब दे श की अलधकांश प्रांतीय सलमलतयां सरदार पटेि को प्रधानमंत्री बनाने के पक्ष में थीं, तब गांधी की भलू मका के चिते नेहरू प्रधानमंत्री बने और दे श को लमिा पररवारवाद का नासरू . लहन्दू महासभाई इस बात से बेहद रूष्ट नजर आते हैं लक यह दे श एक तरि तो भगवान राम तक को कठघरे में खड़ा कर दे ते हैं. उनके ऊपर एक धोबी प्रश्नलचन्ह खड़ा कर दे ता है और उसकी बात सुनी जाती है. इस प्रकार के
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िोकतालन्त्रक चररत्र वािे भारतवषथ में गांधी की गिलतयों को परू ा दे श जानने समझने के बावजदू चचाथ करने से लहचलकचाता क्यों है? गांधी के दुगथ ण ु ों पर चचाथ को अपराध कैसे मान लिया जाता है? संलघयों और लहन्दू महासभाइयों का ददथ लकसी हद तक जायज भी है. महात्मा के नाम से मशहर गांधी ने लनलश्चत रूप से दे श के लहत में भी कई काम लकये, लजनमें अछूतों के उद्चार-कायथ क्रम, दे श को लकसी हद तक जोड़ने का कायथ, दे श को संगलठत करने का कायथ भी शालमि है. उनके इन कायों की प्रशंसा दे श और समच ू ा लवश्व करता है, िेलकन इन बातों से उनकी कलमयों पर पदाथ भिा कैसे डािा जा सकता है. क्या गांधी भगवान राम से भी बढ़कर इस दे श में हैं. मयाथ दा पुरुषोत्तम राम के एकाध कृत्यों पर तमाम सकारात्मक, नकारात्मक चचाथ िोग करते हैं, तो गांधी पर क्यों नहीं? चचाथ उनके सत्य के प्रयोग नामक उन अध्यायों पर भी होनी चालहए, लजसे भारतीय िोग 'चररत्र' कहते हैं. गोडसे के बहाने ही सही, गांधी के चररत्र की लशनाख्त होनी ही चालहए, क्योंलक उन्हें राष्ट्रलपता के तौर पर दे श और भावी पीढ़ी को बताया जाता है. और अपने लपता के बारे में जानने का हक तो हर एक बच्चे को होता ही है. उसका लपता लकन मामिों में अच्छा है या था, कहीं वह शराबी तो नहीं था, कहीं वह औरतों का रलसया तो नहीं था और यलद था यह गवथ का लवषय कैसे है? कहीं अपने आप को भगवान समझने की भि ू करके उस व्यलि ने दे शद्रोह का कायथ तो नहीं लकया? दे श के बंटवारे में आलखर उसकी और उसकी नीलतयों की क्या भलू मका थी? प्रश्न लसिथ नाथरू ाम गोडसे का नहीं है, बलल्क वह बंटवारे के बाद आम जनमानस में गांधी के प्रलत उपजे रोष के प्रतीक मात्र दीखते हैं. दे श बंटने के बाद गांधी की नीलतयों से दे श का बहु संख्यक बेहद नाराज हो गया था और इन हािातों की जानकारी गांधी के साथ-साथ तत्कािीन प्रधानमंत्री नेहरू को भी थी. राजनीलत, लवपक्ष की बातें अपनी जगह हैं, िेलकन इन तमाम प्रश्नों पर चचाथ होनी चालहए, क्योंलक हमारे दे श के िोगों को अब प्रश्न पछ ू ना और तह तक पहु ंचना सीखना ही होगा. कभी गांधी को, कभी नेहरू को तो कभी मोदी को भगवान बना दे ने से इस दे श का भिा नहीं होने वािा है, बलल्क दे श का लहत इसमें है लक िोग हर एक बात पर, प्रत्येक चररत्र पर पैनी नजर रखें और उसकी जीवनी की कठोर व्याख्या करें . गांधी जैसों के सन्दभथ में इस प्रकार के प्रश्न उठाना और भी जरूरी हो जाता है, क्योंलक उनके लसद्चांतों को दे श में योजनाबद्च तरीके से थोपा गया है. प्रश्न पछ ू ने के तरीके या माध्यम पर सवाि उठाने की बजाय उसके उत्तर, सही उत्तर की खोज होनी चालहए. उद्ङे श्य तो लसिथ सच्चाई तक पहु ूँचने का होना चालहए. बेशक उसका माध्यम कोई अंगुलिमाि बने या कोई बुद्च, कोई गांधी बने या कोई नाथरू ाम गोडसे! कोई संघी बने या कोई लहन्दू महासभाई!
- मममथलेश. (www.mithilesh2020.com)
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एक और गणतांत्र-मदिस! िो एक बार लिर आ गया गणतंत्र लदवस. गुिामी के एक िम्बे दौर से मुलि के बाद जब 1947 में हमें आजादी लमिी, िेलकन उन गुिामी के अंग्रेजीयत कानन ू ों और परम्पराओं से असिी मुलि हमें २६ जनवरी १९५० को लमिी जब प्रचलित कानन ू ों को ताक पर रखकर हमें अपने कानन ू और अपनी परम्पराओं को मानने का हक़ हमारे संलवधान ने लदया. इससे पहिे ‘गवनथ मेंट ऑफ़ इंलडया एक्ट 1935’ हमारे दे श में िाग ू था. यह भारतवषथ के तीन महान राष्ट्रीय पवों में से एक है, जबलक बालक दो पवथ स्वतंत्रता लदवस और गांधी जयंती हैं. गणतंत्र लदवस का असिी और शालब्दक मकसद यही है लक जनता का जनता के द्रारा शासन शुरू होने की घोषणा का लदवस. अब जबलक दे श 65वां गणतंत्र लदवस मना रहा है तब इस बात की चचाथ होनी िाजमी है लक यह अपने वास्तलवक अथथ को प्राप्त हु आ है अथवा नहीं. लपछिी बार की 26 जनवरी बड़ी चलचथ त हु ई थी, क्योंलक जनता का सवाथ लधक समथथ न और सालनध्य प्राप्त करने का दावा करने वािे एक नए राजनीलतक दि के शीषथ नेता ने इस महत्वपण ू थ अवसर को जनता का ै ालनक अवसर मानने से सावथ जलनक रूप से इंकार कर लदया था. हािाूँलक वह व्यलि तब महत्वपण ू थ संवध पद पर लवराजमान था, परन्तु इसके बावजदू उसने गणतंत्र लदवस के अवसर को वीआईपी, यालन लवलशष्ट व्यलियों के मनोरं जन का अवसर करार लदया था. जी हाूँ! हम बात कर रहे हैं लदल्िी के पवू थ मुख्यमंत्री अरलवन्द केजरीवाि की. खैर, इस बात की चहु ंओर आिोचना होनी भी चालहए थी और हु ई भी, परन्तु यह प्रश्न लनलश्चत रूप से आन खड़ा हु आ है लक क्या वाकई हमारा दे श गणतंत्र के अपने मकसद को पाने में कामयाब हो गया है अथवा वास्तव में कहीं भारी गड़बड़ हु ई है. अब दे श में जनता के पण ू थ बहु मत से आयी िोकलप्रय सरकार है, लजसने न लसिथ िोकसभा बलल्क कई लवधानसभा के चन ु ावों में भी अपना परचम िहराया है. इस नयी सरकार ने जनधन योजना, श्रमे व जयते योजना, सिाई अलभयान जैसी कई बड़ी योजनाएं िाग ू की हैं, और कुछ हद तक ही सही, इसका कायाथ न्वयन भी सुलनलश्चत लकया है. हािाूँलक इस बार गणतंत्र लदवस से पहिे कुछ सकारात्मक तस्वीरें जरूर लदखी हैं. प्रतीकात्मक ही सही, लवदे श नीलत पर भारत की उपलस्थलत लदखी है, तो अमे ररका जैसे महाशलिशािी दे श के राष्ट्रपलत बराक ओबामा इस गणतंत्र लदवस पर न चाहते हु ए भी मे हमान बन रहे हैं. हािाूँलक उनके आने से पहिे मीलडया में लदल्िी की प्रदूलषत हवा से िेकर उनकी सुरक्षा तक पर तमाम समाचार आ रहे हैं, जो भारत की प्रलतष्ठा के लिए सकारात्मक तो नहीं ही हैं. हािाूँलक इस तरह की खबरें राजनलयक स्तर पर चिी गई चािें भी होती हैं. लकन्तु इन्हें सामान्य रूप में ही लिया जाना चालहए. इस क्रम में यलद हािातों को परत दर परत उधेड़ा जाए और कश्मीर से कन्याकुमारी तक रह रहे भारतीय नागररकों के जीवन स्तर पर दृलष्टपात लकया जाए तो यह बात साफ़ हो जाती है लक हमारा दे श गणतांलत्रक होने के बावजदू अपने मकसद से अभी भी कोसो दूर है. लजस संलवधान के िाग ू होने के बाद हमारा दे श गणतंत्र बना, उसी संलवधान के मि ू अलधकार दे श की 50 िीसदी से ज्यादा आबादी की पहु ूँच से दरू है. समानता का अलधकार, स्वतंत्रता का अलधकार, शोषण के ै ालनक लखिाि अलधकार, धालमथ क स्वतंत्रता का अलधकार, सांस्कृलतक और शैलक्षक अलधकार एवं संवध उपचारों के अलधकार में हमें कहीं भी एकरूपता नजर नहीं आती है. 128 www.zmu.in | www.hindinewsportal.com | Mob: +91- 9990089080, Mail: m@zmu.in
एक तरि दे श में एक बड़ा धनाढ्य वगथ है, लजसने दे श की 80 िीसदी से ज्यादा पंज ू ी पर एक तरह से कब्ज़ा कर रखा है और दूसरी तरह शोलषत मध्यम और गरीब वगथ है, लजसकी संख्या 85 िीसदी से ज्यादा होने के बावजदू दे श के संशाधनों पर उनका कोई हक़ ही नहीं है. हाूँ, इस बात को कहने में हमें कोई गुरेज नहीं होना चालहए लक यह एक बड़ा वगथ अभी भी वास्तलवक अथों में गि ु ामी से मुि नहीं हु आ है. स्वतंत्रता, शोषण की लखिाित, लशक्षा जैसे अलधकार इनके लिए बेमतिब हैं. हाूँ, पांच साि पर इनके पास वोट दे ने का अलधकार जरूर है. िेलकन वह भी बेचना इनकी मजबरू ी बन जाता है. जब इनके घर में पैसे की लकल्ित होती है, तब कािी कुछ समझते हु ए भी यह चंद लसक्कों की खनक में अपने वोट क्यों न बेच दें, इसका तकथ ढूंढे नहीं लमिता है. आत्महत्या करते लकसान, पैसे की लकल्ित में पढ़ाई छोड़ते यव ु ा और पढ़-लिख कर लडग्री हालसि करने के बावजदू नौकरी के लिए दर-दर भटकता दे श का भलवष्ट्य. क्या यही वह तस्वीरें हैं, लजन्हें दे खने की कल्पना हमारे पुरखों ने की होगी. कुछ आत्ममुनध एवं कमरे में बैठने वािे लचंतक जरूर तकथ दें गे लक दे श में परमाणु बम हैं, बड़ी-बड़ी लमसाइिें हैं, अंतररक्ष तकनीक है, सच ू ना प्रोद्योलगकी है, लक्रकेट में सलचन और धोनी जैसे लखिाड़ी हैं, लसनेमा में रृतीक और सिमान हैं, राजनीलत में मोदी, राहु ि और केजरीवाि हैं, अथथ शाि में अमत्यथ सेन और नए बने नीलत आयोग के उपाध्यक्ष अरलवंद पनगलढ़या हैं, शांलत के क्षेत्र में कैिाश सत्याथी हैं, परन्तु हाय रे दुभाथ नय! इनमें से कुछ भी, कुछ भी तो ऐसा नहीं है लजसे गणतंत्र लदवस की साथथ कता के रूप में पेश लकया जा सके. गरीबी-अमीरी, खुशहािी-दुलदथ न, शांलत-अराजकता के बीच इस तरह की उपिलब्धयां मात्र छिावा प्रतीत होती हैं, मानो अपने दुुःख से परे शान होकर गांव का कोई दुलखया शाम को नौटंकी दे खने जाता है. नौटंकी के दो-चार घंटे वह अपने दुुःख जरूर भि ू जाता है, परन्तु लिर जब वह सुबह सोकर उठता है, तो वही खाने की समस्या, बीमार पत्नी की दवा की समस्या और उसकी बेटी के स्कूि जाने की समस्या. कहाूँ है गणतंत्र ? आज यह प्रश्न पछ ू ा जाना चालहए, उन ठे केदारों से, जो दे श की ठे केदारी पर ताि ठोंकते रहे हैं. आज यह प्रश्न िाजमी है क्योंलक आज 65 साि होने को आये हैं अपने सैद्चांलतक गणतंत्र होने के. परन्तु यह व्यवहाररक गणतंत्र कब आएगा, इस बात का जवाब शायद लकसी तंत्र के पास नहीं है. आपके पास भी नहीं और हमारे पास भी नहीं. तो आइये, हम िोकतंत्र के उसी दुलखया की तरह दो-चार घंटे आनंद िे िें, क्योंलक मात्र एक लदन बाद हम लिर उन्हीं प्रश्नों तिे दबे होंगे, जो प्रश्न लपछिे 65 साि से करोङो भारतीयों को दबाये हु ए हैं. जय हो गणतंत्र, जय हो जनतंत्र, जय हो गणतंत्र!
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मदल्ली की भािी मख् ु यमांत्री 'मकरण बेदी' लकरण बेदी लकसी पररचय की मोहताज नहीं हैं. वतथ मान समय में यलद युवकों/ युवलतयों से उनके आदशथ व्यलित्वों की सच ू ी बनाने को कहा जाय, तो उनमें से अलधकांश की सच ू ी में लकरण बेदी का नाम टॉप-१० में जरूर होगा. बचपन से उनके लकये गए कायों, उनकी सझ ू बझ ू , उनका साहस, दरू दलशथ ता और इन सबसे बड़ा उनका जुझारूपन सक्रीय और गंभीर युवाओं के लिए प्रेरणास्पद रहा है. स्कूिी बच्चों और लवशेषकर एनसीसी जैसे रेलनंग संस्थाओं से जुड़ें व्यलियों के लिए वह सवोच्च प्रेरणादायक रही हैं. एक आदशथ और प्रामालणक व्यलिगत जीवन के साथ लकरण बेदी उन नामों में हैं, लजन्होंने अपने वजदू को कायम रखते हु ए, सहकलमथ यों से साथथ क तािमे ि करते हु ए अपने प्रोिेशन में ऊंचाई को छुआ. दे श भर में छपी 'जीके' (सामान्य ज्ञान) की ऐसी कोई लकताब नहीं होगी, लजसमें लकरण बेदी का नाम न हो. लकरण बेदी के लजस काम ने उनको लवश्व-स्तरीय ख्यालत लदिाई, वह उनका लतहाड़ जेि में कैलदयों के सुधार से जुड़ा लवषय है. लकरण बेदी ने लतहाड़ जेि और कैलदयों की दशा में सुधार के लिए जो कदम उठाए, वह कई जेिरों के लिए आज भी लमसाि है. उन्होंने सालबत लकया लक अगर कैलदयों से मानवीय बताथ व करते हु ए उन्हें सुधार का मौका लदया जाए, तो वे समाज के लिए उपयोगी सालबत हो सकते हैं. उनके प्रोिेशनि कररयर में रैलिक को सुधारने के लिए उनकी सख्ती और व्यवहाररकता का तािमे ि भी हमे शा याद लकया जाता रहे गा. इसके अलतररि, वह बचपन से ही उन तमाम मलहिाओं के लिए एक लमशाि रही हैं, जो अपने जीवन में कुछ करना चाहती हैं. आधुलनकता से तािमे ि करते हु ए, पाररवाररक जीवन से सामंजस्य लबठाते हु ए अपने प्रोिेशनि दालयत्वों को लकस प्रकार, सजगता से लनभाना चालहए, इस बात का लकरण बेदी से बेहतर उदाहरण कोई और नहीं. इस कड़ी में लकरण बेदी के जीवन पर एक िीचर लिल्म 'यस मैडम सर' बन चुकी है. इसे ऑस्रेलियाई लिल्म लनमाथ ता मे गन डोनेमन ने प्रोड्यस ू लकया है. इस लिल्म को दुलनया के कई लिल्म महोत्सवों में लदखाया गया है. पुरस्कारों की बात की जाय तो लकरण बेदी को शौयथ पुरस्कार, 'एलशया का नोबेि परु स्कार' कहा जाने वािा 'रमन मैनसेसे परु स्कार' के अिावा और भी कई परु स्कारों से नवाजा जा चक ु ा है. लदल्िी में अपने से कलनष्ठ पुलिस अलधकारी के कलमश्नर बनने के उपरांत लकरण बेदी ने इस्तीिा दे कर अपने आत्म सम्मान को बचाये रखा और उसके बाद उनका जीवन समाज-सेवा को अलपथ त हो गया. कई गैर सरकारी संगठनों की स्थापना और सक्रीय कामकाज के अिावा वह २१वीं सदी के सबसे बड़े आंदोिन अन्ना-आंदोिन में बेहद महत्वपण ू थ चेहरा बनीं रहीं. इंलडया अगेंस्ट कर्शन के बैनर तिे चिे आंदोिन में लकरण बेदी ने एक क्रलन्तकारी, अन्ना की लवश्वासपात्र सहयोगी की भलू मका का बखबू ी लनवथ हन लकया. भख ू हड़ताि लकया, जेि गयीं और तब दे श की भ्रष्टाचारी सरकार को घुटने के बि लटकने को मजबरू कर लदया. बाद में इस बड़े आंदोिन से जुड़े कुछ िोगों द्रारा आंदोिन को हाईजैक करके उसको राजनीलतक रूप दे ने से अन्ना हज़ारे और लकरण बेदी जैसे दस ू रे वररष्ठों ने लकनारा कर लिया और पररणामस्वरूप यह गैर-राजनीलतक आंदोिन लबखर गया. लकरण बेदी का जीवट इसके बाद भी कायम रहा और कई राजनीलतक पालटथ यों के िुभावने ऑिर के बावजदू उन्होंने अपना आत्म सम्मान बनाये रखा. 130 www.zmu.in | www.hindinewsportal.com | Mob: +91- 9990089080, Mail: m@zmu.in
लकरण बेदी बदिे राजनीलतक हाित में अब भारतीय जनता पाटी में शालमि हो गयी हैं. उसका िाभ-हालन, गुणा-गलणत अपनी जगह है, लकन्तु इस बात के लिए हमें और भी खुश होना चालहए लक लकरण जी परू े स्वालभमान के साथ राजनीलत में आयी हैं, अपने वजदू के साथ उन्होंने लखिवाड़ नहीं लकया है. वह चाहतीं तो िोकसभा के चन ु ाव के समय ही भाजपा में आ जातीं और बेहद आसानी से लकसी मंलत्रपद की दावेदार भी होतीं, िेलकन तब उनकी छलव नहीं बचती, और उनके साथ भी िािची की छलव जुड़ जाती. यही नहीं, वह आम आदमी पाटी से भी मुख्यमंत्री की उम्मीदवार बहु त पहिे ही बन जातीं, लकन्तु अरलवन्द केजरीवाि द्रारा 'टीम-अन्ना' को धोखा दे ना और आंदोिन को हाईजैक करना उन्हें कभी रास नहीं आया. उनकी छलव पहिे भी लकसी मुख्यमंत्री से कम नहीं थी और कई िोगों की मुख्यमंत्री बन कर भी कोई छलव नहीं बनी. ठीक उसी प्रकार, जैसे हमारे लपछिे प्रधानमंत्री, राजसेवक की छलव से बाहर नहीं लनकि पाये. लकरण बेदी के भाजपा में आने से लवरोधी लनलश्चत रूप से सहज नहीं हैं और तमाम प्रलतलक्रयाएं सामने आ रही हैं. कुछ िोग कह रहे हैं लक 'अन्ना के सभी बच्चे सेटि हो गए'.तो उन्हें यह समझ िेना चालहए लक 'अरलवन्द केजरीवाि', अन्ना आंदोिन की पहचान के मुहताज रहे हैं और उसका उन्होंने जमकर िायदा उठाया है और 'अल्पभोग' भी लकया है. लकरण बेदी, अन्ना और अब भाजपा नेता के अिावा भी पहचान रखती हैं और उनकी इस पहचान पर कोई दूसरी पहचान हावी नहीं होने वािी. यलद लकसी को यकीन न हो तो, दे श भर में लकसी भी स्टोर से 'जीके' (सामान्य ज्ञान) की पुस्तक उठा कर दे ख िो. उसमें अन्ना या लकसी दूसरे का नाम हो न हो, "लकरण बेदी" का नाम जरूर लमि जायेगा. हार के डर से कुछ िोग, लकरण बेदी के उन पुराने ट्वीट्स को सामने िा रहे हैं, लजसमें उन्होंने अन्ना आंदोिन के दौरान भाजपा की लखंचाई की है. कई िोग भि ू चक ु े हैं, िेलकन उस आंदोिन को याद रखने वािे जानते हैं लक उस समय परू ा दे श ही भाजपा और कांग्रेस की सोच की बुराई कर रहा था. यहाूँ तक लक संघ से जुड़े िोग भी भाजपा के लखिाि आंदोिन से जुड़े थे. सवाि कांग्रेस या भाजपा का नहीं था तब, सवाि उनकी सोच को िेकर था. कांग्रेस बदिी नहीं, इसलिए लमट गयी. केजरीवाि भी कमोबेश, कांग्रेस जैसी सोच के हो गए हैं, कांग्रेस के साथ सरकार भी चिा चुके हैं, इसलिए वह भी रसाति में हैं. हाूँ! भाजपा अन्ना आंदोिन के बाद बदिी है, ऊपर से नीचे तक. इसलिए लकरण बेदी जैसे कई िोगों का लवचार भी बदिा है. आज भाजपा दे श को आगे िे जा रही है, तो दे शवालसयों, लदल्िीवालसयों और लकरण बेदी का उनसे जुड़ना कहाूँ से गित है? आज जब राजनेताओं की साख बची नहीं है और नेता बनने के लिए िोग गित सही लकसी भी रास्ते की परवाह नहीं करते हैं, उम्मीद है लकरण जी, राजनीलत में रहते हु ए भी अपने स्वालभमान के साथ कोई समझौता नहीं करें गी और अपने प्रभाव से राजनीलत के पेशे को भी गन्दगी से, कुछ हद तक ही सही, लनजात लदिा सकेंगी. लदल्िीवालसयों ने लपछिे सािों में बड़ी उठापठक का सामना लकया है और अब लदल्िीवालसयों का हक है लक उन्हें लकरणबेदी जैसा सशि और दूरदशी नेतत्ृ व लमिे . आलखर, राजधानी का इतना हक तो बनता ही है.
- मममथलेश. (www.mithilesh2020.com)
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चााँद पर जाने की तमन्ना... प्रवालसयों की लनष्ठा पर प्रश्न उठना कोई नई बात नहीं है. कोई उनको अपनी छोड़ी गयी ज़मीन के प्रलत गद्ङार बताता है तो लजस नयी ज़मीन पर वह गए हैं, वहां उन्हें अपना नहीं माना जाता है. थोड़ा पीछे जाएूँ तो भारत-पालकस्तान के बंटवारे के समय जो मुसिमान भारत में अपना सब कुछ छोड़कर भी पालकस्तान चिे गए हैं, उनको भी वहां कई दशक बीत जाने के बाद भी 'मुहालजर' ही कहा जाता है. कुछ ऐसी ही लस्थलतयों पर आधाररत अमे ररकन राजनीलतज्ञ बॉबी लजंदि का बयान आया है, लजसमें उन्होंने कहा है लक वह लसिथ अमे ररकी हैं, 'भारतीय-अमे ररकी' नहीं! आगे जोड़ते हु ए उन्होंने यहाूँ तक कह डािा लक उनके माता-लपता 40 साि पहिे अमे ररका में अमे ररकी बनने गए थे! खैर, यह एक राजनेता का राजनीलतक बयान कह कर तत्काि खाररज लकया जा सकता है, िेलकन इस बीच इस प्रश्न की जड़ तक पहु ंचा जाना जरूरी है की प्रवालसयों की इच्छा और मजबरू ी का आधार क्या है और वास्तव में उनके कत्तथ व्य और लनष्ठा की कसौटी क्या है. लपछिे लदनों से यह बड़ा घातक रेंड सामने आया है, जब दे श के तमाम उच्च प्रलशक्षण संस्थाओं से सक्षम प्रलतभाएं प्रलशलक्षत होकर 'एनआरआई' बनने का सपना मन में पाि िेती हैं. कोई युवक गाूँव के लकसी गरीब, मजदरू माूँ-बाप की मे हनत पर सवार होकर इन संस्थाओं तक पहु ूँचता है तो अलधकांश यव ु कों पर भारत सरकार अपने संसाधनों को बेतहासा खचथ करती है, तालक यह प्रलतभाएं दे श की सेवा कर सकें. िीस तो इन संस्थाओं में इनके खचथ की दस िीसदी भी नहीं होती है और यलद इन संस्थाओं के स्तर की बात करें तो इनमें पढ़ने वािे युवकों, युवलतयों को िगभग मुफ्त लशक्षा और प्रलशक्षण लमि जाता है. उसके बाद यह प्रलतभाएं दे श की लकतनी सेवा करती हैं, या करनी चालहए, यह बॉबी लजंदि ने अपने बयान में बता लदया है. उनका यह बयान अभी बेशक भारत-लवरोध जैसा िगे, लकन्तु यह एक सच्चाई है. आईआईटी, आईआईएम, एनआईटी और ऐसे ही अनेक समकक्ष संस्थान दे श की प्रलतभाओं को दे श के लिए नहीं अमे ररका या दुसरे ऐसे ही दे शों के लिए प्रलशलक्षत करती हैं. बीच में इसी मुद्ङे को िेकर इन संस्थाओं में पढ़ने वािों पर लनलश्चत अवलध के लिए 'अनब ु ंध' साईन करने की बात भी कही-सुनी गई. महात्मा गांधी ने अपने एक कथन में कहा है लक दे श में जब तक गाूँवों का लवकास नहीं होता, तब तक दे श का लवकास संभव नहीं. 'गाूँवों की ओर िौटो', बहु त परु ाना, मशहर नारा है. यह लसिथ एनआरआई के लिए ही बात हो, ऐसा नहीं है, बलल्क हमारे दे श में भी जो अंधाधुंध शहरीकरण हो रहा है, कहीं न कहीं इसी प्रवास की समस्या से जुड़ा हु आ लवषय है. इसी लवषय से जुड़ा हु आ एक वाकया बताता हूँ. गाूँव में लकसी गरीब पररवार की हाड़तोड़ मे हनत, मजदूरी से एक महाशय भारतीय फ़ौज में 'कनथ ि' रैं क तक पहु ूँच गए. अिसर ग्रेड अपने आप में एक अिग, उच्च ओहदा होता है. उन्होंने गाूँव जाना िगभग छोड़ ही लदया. अपने लपता के अंलतम-संस्कार में भी लबचारे जैसे-तैसे गाूँव पहु ंच,े क्योंलक गाूँव तक रेन, फ्िाइट की सुलवधा तो छोड़ ही दीलजये, सड़क और उस पर चिने वािे िोकि साधन भी माशा अल्िाह ही थे. लक्रया-कमथ में हफ्ते भर से ज्यादा समय िगता है और इस दौरान वह लबचारे गाूँव में आने के बारे में अपने कष्ट का रोना रोते रहे . 132 www.zmu.in | www.hindinewsportal.com | Mob: +91- 9990089080, Mail: m@zmu.in
उनके ही पररवार के लकसी िड़के ने उनसे कहा लक चाचाजी! मैंने भी बीए पास कर लिया है, आप मे री नौकरी भी कहीं फ़ौज में िगवा दीलजये. वह कटाक्ष करते हु ए बोिे लक 'बीए'. दे श में िाखों इंलजलनयर लडग्री िेकर बेकार घम ू रहे हैं और तुम गंवार, बीए पास करके नौकरी पाने की बात कर रहे हो. तुम गाूँव के लपछड़े िोग, लकसी काम को इतना आसान कैसे समझ िेते हो? तुम्हें पता है नौकरी पाने की खालतर क्याक्या करना पड़ता है? अंग्रेजी िराथ टेदार होनी चालहए, बॉडी िैंगुएज पॉलजलटव होनी चालहए, एटीकेट, एटीट्यड ू ... और भी जाने वह क्या-क्या कहते रहे . वह तो शायद रूकते ही नहीं, िेलकन उस बीए पास िड़के की आूँखों में आंसू आ गए और वह घर के अंदर चिा गया. गाूँव के एक बुजुगथ ने कनथ ि साहब को टोकते हु ए कहा लक बेटा! आज तो तुम शहर के हो गए, िेलकन वह लदन तुम भि ू गए जब तुम्हारी नाक बहती थी और तुम िटी हु ई पैंट पहनकर स्कूि जाते थे. लजसको तुमने गांव का गंवार कहा, उसी के घर से तुम्हारी माूँ आटा मांग कर िाती थी और तुम उसकी रोटी खाकर स्कूि जाते थे. िेलकन, तुमने तो गाूँव और समाज का कजथ तो एक झटके में उतार लदया! यह सुनना भर था लक कनथ ि साहब, आत्मनिालन की बजाय और भड़क गए, कहा- काका! तुम्हारे जैसी सोच रहती तो आज इंसान चाूँद पर नहीं पहु ूँच सकता था. और लिर उसके बाद कनथ ि साहब गाूँव में लिर कभी लदखे नहीं. इस वाकये को आप सच मान सकते हैं. हमारे आस-पास नजर दौड़ाने पर एनआरआई के सन्दभथ में ही नहीं, बलल्क दे श में भी 'क्रीमी-िेयर' कुछ ऐसा ही करती नजर आती है. बड़े अलधकारी, आईएएस, आईपीएस, पीसीएस या लकसी मल्टीनेशनि में काम करता टॉप-एलक्सक्यलू टव में से अलधकांश गाूँव से उठे हु ए व्यलि हैं. उनकी माूँ ने इनकी पढ़ाई की खालतर अन्य सहोदरों की अपेक्षा थोड़ा ज्यादा दध ू लपिाया होगा और बाप ने दुसरे भाइयों-बहनों के मुकाबिे लकताबें पहिे लदिाई होंगी. उन माूँ-बाप को शायद यह उम्मीद रही होगी लक एक िड़का बड़ा अिसर बन गया तो दुसरे भाइयों-बहनों के लहत की भी लचंता करे गा. उन्हें कतई आभास नहीं रहा होगा लक गाूँव और भाई-बहनों की कौन पछ ू े , वह माूँ - बाप को िात मार दे गा. माूँ के प्रश्न पर ही एक एनआरआई महोदय हम पर लबगड़ गए. हु आ यं ू लक वह लदल्िी में लकसी की शादी में शरीक होने आये थे. लदल्िी की एक मंलदर-रुपी संस्था है और वहां िड़के- िड़लकयों से लहंदी में शादी की ए्िीकेशन लिखवाई जाती है. खैर! उनका अपना रूि है. इस लहंदी के प्रश्न पर वह सहज नहीं रह सके और भारतीयों के लपछड़े पन की चचाथ छे ड़ दी. अपनी मुंहिट आदत के कारण मैं चुप न रह सका और उनसे सीधा प्रश्न कर बैठा लक आपकी माूँ जीलवत हैं? उन्होंने कहा- हाूँ! मैंने लिर पछ ू ा- कहाूँ हैं वह? उन्होंने कहाूँ- गाूँव में? मैंने कहा- उनकी दे खभाि कौन करता है ? उन्होंने कहा, नौकर रखने के लिए कहा था, िेलकन माूँ ने मना कर लदया. मे री आूँखों को घरू ता पाकर, उन्होंने लिर कहा- मैंने माूँ से अपने साथ लवदे श चिने के लिए कहा, िेलकन उसने खुद मना कर लदया. 133 www.zmu.in | www.hindinewsportal.com | Mob: +91- 9990089080, Mail: m@zmu.in
उनकी इस बात पर मैंने कठोरता से कहा- माूँ को नौकरानी बनाने के लिए आप अमे ररका िे जाना चाहते थे? अब तक वह सकपका चुके थे. बात बढ़ती, उससे पहिे ही मंडप में उनको बुिाने वािे आ गए. लिर अगिे कुछ घंटों तक वह महोदय उदासी ओढ़कर नजरें चुराते रहे . आलखर, इन प्रश्नों का जवाब उपरोि वलणथ त 'कनथ ि साहब' या 'लजंदि जैसे एनआरआई' दे सकते हैं क्या? या लिर वह तमाम 'आईआईटीयन' और प्रबंधन के प्रलशलक्षत युवा जवाब दें ग,े जो पिते यहाूँ हैं, संसाधन यहाूँ का इस्तेमाि करते हैं और अपनी उत्पादकता लकसी और के लिए इस्तेमाि करते हैं? और अभी नरें द्र मोदी की बहु चलचथ त रै िी हु ई अमे ररका में, मैलडसन स्क्वायर पर. यलद अमे ररका में लजंदि जैसे अमे ररकी ही थे, तो उस रै िी में िाखों िोग क्या भारत से गए थे? और लिर दोहरी नागररकता और वीजा-सम्बन्धी लदक्कतों को दूर करने के लिए मोदी ने तमाम घोषणाएं लकसके लिए कीं. न्यय ू ाकथ में लकसी लसक्ख अमे ररकी पर रक चढ़ा लदया जाता है, तो उसके लिए भारत सरकार क्यों दबाव बनाये? ऑस्रेलिया में लजंदि जैसे लकसी नागररक पर हमिा होता है तो उसके लिए भारत-सरकार पैरवी क्यों करे ? सच तो यह है लक मनष्ट्ु य, मनुष्ट्य तब तक ही है, जब तक उसमें कत्तथ व्य भाव है और कत्तथ व्य भाव जड़ के वगैर शन्ू य है. बॉबी लजंदि को ऊपरी तौर पर ही सही अमे ररकी बनने की जल्दी लदखती है, िेलकन अमे ररलकयों को इतनी जल्दी नहीं होगी उन्हें अमे ररकी बनाने में . इस पहचान की राजनीलत ने मानवता का बहु त नुक्सान लकया है. लजंदि जैसे िोग ही हैं, जो इस में उिझे रहते हैं और लनष्ठा को राजनीलतक िाभ-हालन के पैमाने पर तोिते हैं. अपनी लमटटी को कोई भी नहीं छोड़ना चाहता है, आलथथ क मजबरू रयों, रोजगार की संभावनाओं, बेहतरी के लिए व्यलि एक जगह से दूसरी जगह पिायन करता है, िेलकन 80 िीसदी से ज्यादा मामिों में यह अपनी जड़ से जुड़ा हु आ रहता है, क्योंलक नैलतकता यही मांग करती है. यलद कोई एक पीढ़ी अमे ररका चिी गयी है तो क्या उसका संस्कार पररवलतथ त हो जायेगा? संस्कार उन पलत्तयों का नाम है, जो जड़ से खाद-पानी िेती रहती है. यलद जड़ नहीं तो संस्कार कैसा? बॉबी लजंदि तब भारतीय अमे ररकी नहीं होंगे, जब वह अपने इलतहास को लमटा दें गे. अपने लपता का नाम अपने बच्चों को नहीं बताएूँ गे और अपने नाम से लजंदि टाइटि भी हटा िेंगे. उनकी पत्नी का नाम 'सुलप्रया' है, उसे बदिकर वह कोई क्िालडया नाम रख िें, क्योंलक यह नाम भी भारतीयता से ही जुड़ा है. सक्षम होने के बाद अपने गाूँव से बेशक कोई 'क्रीमी-िेयर' का व्यलि नाता तोड़ िे, या भारत से जाने के बाद कोई एनआरआई भारत से ररश्ता खत्म कर िे, उसे यह बात याद रखनी चालहए लक उसकी अगिी पीढ़ी भी है और लबना जड़ के वह सख ू जाएगी. शायद यही कारण है लक शहरों में बड़े िोगों के बच्चे संस्कारलवहीन होकर ड्रग, अपराध की शरण िे िेते हैं अथवा लनमथ मता से अपने माूँ-बाप को छोड़कर अपनी पुरानी लनष्ठा को छोड़कर, कोई दूसरी छद्म लनष्ठा धारण कर िेते हैं. तब वही माूँ-बाप रोते हैं, िेलकन वह भि ू जाते हैं लक अपने गाूँव, अपने भाइयों और अपने संस्कारों को छोड़कर उन्होंने भी यही लकया था. भारत जैसे लवकासशीि दे श और दे श के गाूँव, जहाूँ सक्षम िोगों की इतनी जरूरत है, वहां लजंदि जैसों और 'कनथ ि' जैसे िोगों का व्यवहार नैलतक अपराध की श्रेणी में आएगा, क्योंलक उन्होंने लकसी और का हक 134 www.zmu.in | www.hindinewsportal.com | Mob: +91- 9990089080, Mail: m@zmu.in
मारकर योनयता हालसि की है, दे श का नमक, जी हाूँ! टाटा नमक खाकर दे श के साथ, अपने गाूँव के साथ गद्ङारी की है और तकथ लदया है, खोखिी व्यवहाररकता का, चाूँद पर जाने के सपने का. लकसी शायर ने क्या खबू कहा है'चााँद पर जाने की तमन्ना करने िालों, पहले धरती पर रहना तो सीख लो'.
- मममथलेश. (www.mithilesh2020.com)
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दररयाां मबछाने िाले हमारे बच्चा भााइ बच्चा भाई! एक राजनीलतक पाटी के बहु त पुराने सक्रीय कायथ कत्ताथ रहे हैं. उस पाटी के एक नेता के पीछे पीछे घम ू ना हो, या उसकी सभा की व्यवस्था करना हो अथवा उस सभा में कुलसथ यां, दररयां िगाने का काम हो, बच्चा भाई बड़े मनोयोग से अपना दालयत्व लनबाहते हैं. उनकी बैठक के सामने से गुजरा तो सोचा उनसे लमिता चिूँ.ू राम राम के बाद मैंने महसस ू लकया लक लबचारे कुछ उदास बैठे थे. उन्होंने चाय मंगाई, तो मैंने पछ ू ही लिया, क्या बात है आज अपना भाई उदास क्यों है? मे रा इतना पछ ू ना ही था लक वह भड़क उठे . कहा! तुम्हारी आदत केवि मजाक उड़ाने की है, ऐसे पछ ू रहे हो जैसे जानते ही नहीं. अरे नेताजी को इस बार लटकट नहीं लमिा है. मर जाएूँ यह सारे 'पैराशलू टये'! चार लदन पहिे वह लवरोधी पाटी से अपनी पाटी में शालमि हु आ और उसे लटकट लमि गया. यह कहते-कहते बच्चा भाई भावुक हो गए. मैंने भी रोनी सी सरू त बना कर कहा, अरे लचंता क्यों करते हो भाई! तुम्हारी पाटी में हाई कमान बड़ा समझदार है, वह कहीं न कहीं तुम्हारे नेताजी को भी एडजस्ट कर दे गा. यह सुनकर वह और भी भड़क गए, कहा, कौन हाई कमान? उसे क्या पता, पाटी के समीकरण क्या हैं? वह तो खुद भी पैराशटू से ही हाई कमान बना है. उसे क्या पता, हम दरी लबछाने वािों का ददथ ! लज़न्दगी िगा दी इस पाटी में, और अब हमारे ही नेता को बेलटकट घोलषत कर लदया. मैंने मरहम िगाते हु ए कहा लक तुम्हारे नेताजी कम जुगाड़ू नहीं हैं, वह सरकार में कोई न कोई रास्ता लनकाि कर लकसी आयोग के अध्यक्ष, उपाध्यक्ष तो बन ही जायेंगे और इस तरह दरी लबछाने वािों की क़द्र भी रह जाएगी. मे री इस बात पर बच्चा भाई का रहा सहा धैयथ भी जवाब दे गया और उन्होंने तपाक से कहा, सरकार! अरे लजस पाटी में जीवन िग गया, उसमें ही नहीं सुनी जा रही है तो सरकार में क्या ख़ाक सुनी जाएगी. वैसे भी सरकार का मतिब दिाि और पंज ू ीपलतयों का गठजोड़ होता है. दे खा नहीं, पुणे के एक रे स्टोरें ट से लकस तरह एक गरीब बच्चे को धक्का दे कर बाहर लनकाि लदया गया. सरकार उनके लिए कुछ नहीं कर पायी, लजसके लिए चुनकर आयी तो दुसरे की भिा क्या लबसात! लटकट तो तुम्हें लमिना नहीं था, लिर तुम क्यों रो रहे हो? मैंने जरा कठोर होकर पछ ू ा! हाूँ! िेलकन मे रे नेताजी को लमि जाता तो मैं तीसरे ्िाट पर अपना मकान तो बनवा िेता और बच्चे का दालखि करवाया है इंजीलनयररं ग में, उसकी िीस अब कहाूँ से आएगी? पाटी के समपथ ण की गाने वािे बच्चा भाई अब अपने असिी ददथ को बयाूँ कर रहे थे. मैंने मन में कहा, यह बात तो परू ा मोहल्िा जानता है, िेलकन प्रत्यक्ष रूप में उनसे हमददी जताते हु ए कहा लक आपने दूसरी उभरती हु ई पाटी में जाने की सिाह नहीं दी नेताजी को, शायद काम बन जाता. वह भी ईमानदारी की राजनीलत करने का दम भरते हैं. बच्चा भाई तो सभी दांव पेच पहिे ही आजमा कर हार चक ु े थे, बोिे- आप लस्थलत से 'अनलभज्ञ' हैं. उस नयी पाटी में अब कई करोड़पलत आ चुके हैं, और लटकट उसी को लमि रही है, जो कई करोड़ चढ़ावे के साथ चुनाव में टक्कर दे ने का दम भी रखता हो. आप क्या यह चाहते हो लक दररयां लबछा - लबछा कर हमने जो पाई-पाई जोड़ा है, वह सब िुट जाए. यह सिाह भि ू कर भी हम नेताजी को नहीं दे सकते. 136 www.zmu.in | www.hindinewsportal.com | Mob: +91- 9990089080, Mail: m@zmu.in
मैंने हार मानते हु ए कहा- तो लिर आप ही बताओ, रास्ता क्या है आपकी मुलि का. अब जाकर उनके चेहरे पर दरी लबछाने वािे कायथ कत्ताथ से अिग भाव लदखे और आूँखें नचाते हु ए बोिे- हमने भी दररयां लबछातेलबछाते राजनीलत का ककहरा सीख लिया है. लजस नए पैराशलू टये महोदय को लटकट लमिा है, आज शाम को उसके चरणों में िोटना शुरू कर दें गे. आलखर, क्षेत्र की समझ है हमें और पाटी की भी समझ है. हमारी लनष्ठा पाटी के प्रलत है और पाटी हाई कमान का आदे श सर माथे पर. आप तो 'अनलभज्ञ' ही रहे , हमें दे लखएगा, हम तीसरे ्िॉट पर भी कैसी चार-मंलजिा ईमारत खड़ी कराते हैं, इस बार राजस्थानी पत्थर भी िगवाएं गे. मैं अवाक सा बच्चा भाई का मुंह ताक रहा था. नहिे पर दहिा जड़ते हु ए बच्चा भाई बोिे- तुम्हें भी लकतनी बार कहा है, दररयां लबछाने का काम शुरू कर दो. आज कि काम होता ही क्या है, बस नेताजी के आने पर थोड़ा शोरगुि करना पड़ता है, उनके सामने दूसरी ओर से कुसी लखंच कर रखनी पड़ती है और अपनी सेवा के बदिे ईनाम के लिए झोिी िै िाना पड़ता है. उनका मुंहिगा बनने का सुख लमिे, सो अिग. तुम 'अनलभज्ञ' ही रहे , किम लघसते रहते हो, पररवार-पररवार, दे श-दे श लचल्िाते रहते हो, इधर-उधर टक्कर मारते रहते हो. मैं बच्चा भाई के ज्ञान की अनभ ु वयि ु बातें सुनता जा रहा था, लबना लकसी टोकाटाकी के. तभी बच्चा भाई का िोन घनघना उठा, चेहरे पर ख़ुशी के भाव आ गए. नए 'पैराशलू टये', माफ़ कीलजयेगा, 'नेताजी' के स्वागत के लिए लजिा-कायाथ िय पर दरी लबछाने वािों को बुिाया गया था. िोन रखते ही बच्चा भाई उछिते हु ए बोिे! मुझे नए उम्मीदवार ने ख़ास तौर पर बुिाया है, मैं तुमसे शाम को लमिता हूँ. और हाूँ! मे री दरी लबछाने वािे काम के बारे में सोचना, िेलकन किम को कहीं छुपा दे ना तब ... !! उनके जाने के बाद मैं धीरे -धीरे अपने घर की ओर िौटने िगा, और 'दरी लबछाने' वािे काम के बारे में गंभीरता से मनन भी जारी था!
- मममथलेश. (www.mithilesh2020.com)
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बेमटयों की दमु नया: ितथमान सन्दभथ प्रधानमंत्री नरें द्र मोदी ने अपनी तमाम योजनाओं के साथ बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ योजना की शुरुआत कर दी है. मलहिा एवं बाि लवकास, मानव संसाधन मंत्रािय की साथ वािी इस योजना में मुख्य रूप से िी-पुरुष लिंगानुपात घटाने पर ज़ोर दे ने की बात कही गयी है. इसके अलतररि िड़लकयों की उत्तरजीलवता और संरक्षण सुरलक्षत करना और िड़लकयों की लशक्षा पर काम करने का मुख्य िक्ष्य रखा गया है. भारत के नए प्रधानमंत्री का भाषण यं ू तो हमे शा ही रोचक होता है, मन से वह भाषण दे ते हैं, और इस योजना के उद्घाटन-स्थि पर ब्रांड-अम्बैस्डर के रूप में बॉिीवुड का चमकदार चेहरा माधुरी दीलक्षत के रूप में उपलस्थत था, तो प्रभाव जमे गा ही. लकन्तु इस योजना के अनेक पहिुओ ं को दे खने के बाद यह स्पष्ट हो जाता है लक आज़ादी के बाद चिी तमाम आधी- अधरू ी योजनाओं की तरह यह योजना भी लकसी प्रकार लभन्न नहीं है. भ्रण ू -हत्या, िड़लकयों की लशक्षा पर तमाम बातें और कायथ क्रम हम सब बचपन से सुनते आ रहे हैं, िेलकन इस बार मन आस िगाये बैठा था लक इस योजना में ज़मीनी कारणों पर लवचार लकया जायेगा और िड़लकयों के जन्म से िेकर उनके सशलिकरण तक के मि ू कारणों पर अध्ययन लकया जायेगा, लिर लकसी कायथ क्रम की घोषणा की जाएगी. िेलकन, जैसा लक प्रत्येक सरकार के बाद होता है लक उस सरकार का िेस तो बदि जाता है, लकन्तु उसके अंतर में कायथ करनेवािे िोग, नौकरशाहों की सोच नहीं बदिती है और पररणाम वही, एक ढरे पर चिती दुलनया और उस दुलनया के लिए एक ही ढरे पर बनतीं योजनाएं . इस योजना में दे श भर के 676 लज़िों में 100 चयलनत लजिों को कायथ क्षेत्र बनाया गया है, जबलक 'गड ु ् डागुड्डी' बोडथ पर, लकसी ग्राम-पंचायत में लिंगानुपात के बारे में सच ू नाएं लिखीं जाएूँ गी. इसके अलतररि आम जनमानस के लिए कत्तथ व्य रूप में कुछ बातों को दुहराया गया है लक वह बलच्चयों के जन्म पर उत्सव मनाएं , 'पराया-धन' की मानलसकता से वह बाहर आएं, इत्यालद इत्यालद. कहना अलतश्योलि नहीं होगा लक इस प्रकार की प्रतीकात्मक योजनाओं से दे श की बेलटयों का न तो कुछ ख़ास भिा हु आ है और होने की सम्भावना भी नहीं है. तो लिर प्रश्न उठता है लक क्या इस योजना की साथथ कता शुन्य है? नहीं! लकसी भी योजना की साथथ कता इस मामिे में शुन्य नहीं हो सकती है, क्योंलक वह कहीं न कहीं संवाद का जररया तो बनती ही है. इसके साथ प्रश्न यह भी उत्पन्न होता है लक क्या संवाद अथवा जागरूकता के अपने उद्ङे श्यों को इस प्रकार की योजनाएं परू रत कर पाने में सक्षम हैं? आपको लिर लनराशा हाथ िगेगी और नकारात्मक उत्तर ही लमिेगा, नहीं! कारण? मलहिाओं के अलधकारों से जुड़े अलधकांश लवषयों में जागरूकता की सवाथ लधक आवश्यकता स्वयं मलहिाओं को ही है. भ्रण ू -हत्या और बेटी की अलशक्षा अथवा उसके बाि-लववाह में आश्चयथ जनक रूप से आपको मलहिाओं की ही सहभालगता नजर आएगी, कई मामिों में पुरुषों से भी ज्यादा. इस मुद्ङे पर चचाथ और स्पष्ट हो जाएगी, जब हम मलहिाओं की लशक्षा और उसकी उपयोलगता पर बात करें गे. आज िगभग प्रत्येक मध्यम-वगथ पररवार में िड़लकयां ग्रेजुएशन करती ही हैं, कुछ बीच में भी छोड़ दे ती हैं यह अिग बात है. और 138 www.zmu.in | www.hindinewsportal.com | Mob: +91- 9990089080, Mail: m@zmu.in
मध्यम वगथ की ही बात कही जाए तो कई िडलकयां इंजीलनयररं ग से िेकर दुसरे प्रोिेशनि कोसेस की तरि बहु तायत में मुड़ रही हैं. भारत का लनम्न आय-वगथ भी इस मामिे में जागरूक हु आ है और उस वगथ की िडलकयां भी लशक्षा प्राप्त करने में कदम-दर-कदम आगे बढ़ा रही हैं. प्रधानमंत्री जी, एवं 'बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ' के लनमाथ ताओं! इसके बाद क्या होता है, इस बात पर ध्यान दीलजये ज़रा! तमाम लशक्षा-प्रलशक्षण प्राप्त करने के बाद भी, अलधकांश िड़लकयां, सामलजक दबाव में जल्द ही शादी करती हैं और घर में बैठ जाती हैं. लिर उनकी लशक्षा लपछिी पीढ़ी की उन औरतों से ज्यादा अहलमयत नहीं रखती है, जो पांचवी पास होती थीं और दरू दे श में नौकरी करते अपने पलत को पत्र लिख िेती थीं. कुछे क िीसदी मलहिाएं संघषथ करती हैं और शादी के बाद भी नौकरी करने का अपना लनणथ य, तमाम लवरोध-प्रलतरोध के बाद भी जारी रखती हैं, िेलकन उनका संघषथ भी तब दम तोड़ जाता है, जब मातत्ृ व की लजम्मे दारी उन पर आती है. पररणाम लिर वही, ढाक के तीन पात! मलहिा लिर वहीं की वहीं, आलथथ क आज़ादी उसकी लछन जाती है और तमाम प्रयासों के बावजदू उसके साथ जो पररलस्थलत गज ु री, अपनी बेटी के साथ वह उसी लस्थलत की कल्पना करके लसहर जाती है. आगे सुलनए, प्रधानमंत्री जी! कुछे क मलहिाएं , आलथथ क सशलिकरण के लिए मातत्ृ व के बाद भी संघषथ जारी रखती हैं और अपने बच्चों को क्रेच या डे -बोलडां ग के सहारे छोड़ने का ररस्क िेती हैं, और पररणामतुः उनके बच्चे माूँ-बाप से दरू , कुंलठत और अपेक्षाकृत असामालजक लनकिते हैं. अपने आप में यह आंकड़े भयानक हैं लक अपने आलथथ क एवं कायथ की स्वतंत्रता के लिए लज़द्ङ करती मलहिाओं का अपने पररवार से तािमे ि नहीं हो पाता है और लिर समाज में तिाक जैसी लवकृलत िै िती है. इन मलहिाओं से अिग कुछ और मलहिाएं जो सक्षम होती हैं, वह तो बच्चे ही पैदा नहीं करना चाहतीं. अब मैं पुनुः मि ू प्रश्न पर आता हूँ. ऐसी पररलस्थलत में 'बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ' अलभयान लकस प्रकार से मलहिाओं से संवाद स्थालपत करने में सक्षम हो पायेगा? संवाद वही कर सकता है जो सक्षम हो और मलहिाओं को हम कुछ हद तक साक्षर बना पाने में बेशक कामयाब हु ए हैं, लकन्तु उनकी सक्षमता पर लस्थलत आज़ादी के 67 सािों बाद भी कुछ ख़ास नहीं बदिी है. यही कारण है लक संवाद, जागरूकता के तमाम प्रयास लसिथ कागजी ही रह जाते हैं. इस वस्तुलस्थलत में तस्वीर बेहद डरावनी नजर आती है. क्या वि की यह मांग नहीं है लक बेलटयों की भिाई के लिए, उनकी माताओं को आलथथ क रूप से सक्षम एवं स्वतंत्र बनाया जाय? क्या समय यह नहीं कहता है लक पढ़ी-लिखी िड़लकयों को रोजगार की भरपरू संभावनाएं लमिें? क्या मलहिा एवं बाि लवकास मंत्रािय की यह लजम्मे वारी नहीं है लक वह बदिते समय के अनुरूप, बेहतर पाररवाररक माहौि के लिए शोध पर जोर दे, पाररवाररक क्षेत्रों में सक्रीय गैर-सरकारी संस्थाओं, भारतीय संयुि-पररवारों से तािमे ि करे ? क्या मलहिाओं के सशलिकरण के लिए घरे िु उद्योगों के लवकास की संभावनाएं मौजदू हैं? यलद नहीं, तो कौन
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लजम्मे दार है? क्या घर से बाहर लनकिती मलहिाओं को सुरक्षा है? लकसी प्रकार की पीड़ा अथवा हादसा होने पर हमारा तंत्र उस िड़की के साथ लकतना सहयोगात्मक रहता है? यलद इन प्रश्नों के उत्तर ढूंढ लिए जाते हैं, तो यकीन मालनये, िी और मलहिा आधाररत हमारा समाज कई प्रश्नों के उत्तर स्वतुः पा जायेगा. अब हािात बदिे हैं, और दे श के नागररक इस बात के प्रलत लजम्मे वार नजर आते हैं. वह अपने बच्चों को, बलच्चयों को बचाना चाहते हैं, पढ़ना चाहते हैं िेलकन उसके बाद क्या? दे श की नयी सरकार की इस योजना में स्पष्ट रूप से उथिापन दीखता है और कागजी खानापलू तथ ज्यादा नजर आती है. सच कहा जाय तो यह 80 के दशक की योजना िगती है, क्योंलक अब समाज की समस्याएं अिग हैं और वतथ मान में मलहिाओं की, बेलटयों की समस्याओं का समाधान तो छोलड़ये, इस योजना में उन समस्याओं का लज़क्र भी नहीं दीखता है. गणतंत्र लदवस की बेिा पर दे शवासी इस प्रश्न पर जरूर लवचार करें और अपने लवचारों से जागरूकता फ़ै िाने का लनणथ य करें तो सरकार और उसके नौकरशाह भी कागजी खानापलू तथ से जरूर बचेंगे लजसका पररणाम लनलश्चत रूप से यथाथथ पर आधाररत होगा, न लक योजना के नाम पर पुरानी िाइि को कॉपी-पेस्ट कर लदया जायेगा.
- मममथलेश. (www.mithilesh2020.com)
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सांघ, मोदी और केजरीिाल: बदलते दौर का महांदत्ु ि लदल्िी के चुनाव पररणामों ने दे श की राजनीलत में आ रहे बदिावों को व्यापक रूप से पुख्ता लकया है. इसे समझने के लिए हमें लपछिे िोकसभा चुनावों का पन्ना लिर से पिटना होगा. 9 महीने पहिे जब िोकसभा में नरें द्र मोदी प्रचंड बहु मत िेकर िोकसभा में पहु ंचे थे तो यह बात बड़ी जोर शोर से कही गयी लक उनकी जीत 'लहंदुत्व के एजेंडे' की जीत है. दूसरी ओर यह कहने वािों की भी कमी नहीं रही लक यह लहंदुत्व की बजाय मोदी की लवकासवादी छलव के लिए लकया गया वोट है. मैं समझता हूँ यह दोनों ही तकथ लसरे से गित थे. तीसरे तरह के वह िोग थे, लजन्होंने कहा लक यह मोदी की लवकासवादी छलव और लहंदुत्व का लमिा जुिा रूप है, लजसने राष्ट्रीय राजनीलत में कांग्रेस के वचथ स्व को समाप्त करने की हद तक तोड़ लदया है. गौर से सोचने पर यह तीसरी तरह का तकथ भी आंलशक रूप से ही सही प्रतीत होता है. आंलशक रूप से सही इसलिए क्योंलक मोदी की लहन्दुत्ववादी छलव और लवलहप अथवा संघ की लहन्दू राजनीलत में व्यापक अंतर आ चक ू ा है. तह में जाने पर स्पष्ट हो जाता है लक दोनों लहन्दुत्ववादी छलवयाूँ एक दुसरे की लवरोधी भी हैं. मोदी की शपथ ग्रहण से लदल्िी लवधानसभा चुनाव तक लहंदुत्व की इन दोनों लवचारधाराओं में टकराहट साफ़ लदखी है. स्वाभालवक है लक इन कथनों को पहिी बार सुनने पर एक तरह की कन्फ्यज ू न उत्पन्न होती है, िेलकन दे श की राजनीलत में आये व्यापक बदिावों का अध्ययन करने पर यह भ्रम दूर हो जाता है. आइये दे खते हैं. अंग्रेजों के दे श में आने से पहिे भारत हज़ारों साि तक गुिामी भुगत चक ू ा था. न लसिथ राजनीलतक बलल्क आम लहन्दुओ ं का धालमथ क-जीवन भी गुिामी से भरा हु आ था. समय-समय पर उस काि में भी लहन्दुओ ं की बगावत लवलभन्न रूपों में जारी रही, लकन्तु राजतन्त्र के प्रभाव एवं लशक्षा, संचार के अभाव ने उन आन्दोिनों को कभी संगलठत होने ही नहीं लदया. खैर, उस राजतंत्रीय प्रणािी में जन मन के भावों की बजाय सैलनक-शलि एवं लवरोलधयों को कुचिने की क्रूर प्रणािी ज्यादा प्रचिन में रही. अंग्रेजों के दे श में आने के साथ ही आधुलनकता का भी प्रवेश हु आ और उस आधुलनकता का िाभ भारतवालसयों ने भी आन्दोिनों के लिए उठाया, जो लक स्वाभालवक बात थी. अंग्रेज हज़ारों साि के लहन्दू - मुलस्िम वैर को भांप चुके थे और उन्होंने इसका राजनीलतक िाभ भी उठाया. यं ू तो राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का जन्म 1925 में हु आ, लकन्तु उसका पोषण उन हज़ारों साि की धालमथ क गुिामी की प्रलतलक्रया थी जो संगलठत होने के लिए अनुकूि माहौि का इंतज़ार कर रही थी. संघ के उभार के लिए आज़ादी के पहिे के बीस साि और आज़ादी के बाद के 10 साि बड़े महत्वपण ू थ एवं अनक ु ू ि रहे . यह वह काि था जब 'गरू ु जी' के नाम से मशहर एम. एस. गोिविकर ने संघ का नेतत्ृ व एक िम्बे समय तक लकया. दे श लवभाजन से महात्मा गांधी का पराभव हु आ और पालकस्तान से आये शरणालथथ यों एवं दंगों से प्रभालवत लहन्दुओ ं ने संघ की राजनीलतक महत्वाकांक्षा को एक आधार लदया. इस ऐलतहालसक सन्दभथ को उद्चत ृ करना आवश्यक था क्योंलक इसी लहंदुत्व के इदथ -लगदथ संघ की राजनीलत आलथथ क सुधारों की शुरुआत यालन 90 के दशक तक चिी. 92 में दे श लवभाजन के बाद सबसे अनुकूि राजनीलतक लस्थलत संघ और भाजपा के लिए तब बनी जब बाबरी ढांचे को ढहा लदया गया. िेलकन, इन तमाम समीकरणों के बावजदू संघ अभी सत्ता के नजदीक पहु ूँचने के बावजदू 141 www.zmu.in | www.hindinewsportal.com | Mob: +91- 9990089080, Mail: m@zmu.in
उस पर कालबज नहीं हो पायी थी. आलथथ क उदारीकरण के दौर में अटि लबहारी बाजपेयी ने समय की अनुकूिता को समझा और संघ के लहंदुत्व की बदिी पररभाषा एवं नए प्रयोगों के साथ सत्ता का ज़रा सा स्वाद संलघयों को लमिा. धीरे -धीरे राज्यों में संघ की सरकारें बनने िगीं. गुजरात दंगों से भाजपा को तत्कािीन िोकसभा चन ु ावों में हार जरूर लमिी, लकन्तु कई राज्यों में उसके संगठनों को एक तेज धार भी लमिी. बस यही वह समय था, जब नरें द्र मोदी और संघ के लहंदुत्व में अंतर पनपना शुरू हो गया था. नरें द्र मोदी ने अपनी लहंदुत्व की पररभाषा को नए जमाने के साथ तेजी से जोड़ा. उन युवाओं के साथ मोदी का जुड़ाव िगातार मजबत ू हु आ, जो आलथथ क उदारीकरण के बाद आलथथ क रूप से, मानलसक और बौलद्चक रूप से सशि हो रहे हैं. संघ इस लस्थलत में कोसों पीछे रह गया है. उन युवाओं के साथ वह नहीं जुड़ पाया है जो संचार के माध्यमों का इस्तेमाि करने में अपनी परु ानी पीढ़ी से कोसों आगे हैं. यह वही यव ु ा हैं जो लकसी #टैग के साथ दे श भर में लकसी मुद्ङे पर 24 घंटे से भी काम समय में एक राय बना िेते हैं. यह वही युवा हैं, जो लकसी जनिोकपाि के लिए परू े दे श में एक महीने से भी कम समय में ऐसा आंदोिन खड़ा कर दे ते हैं लजसके सामने संसद के सदस्य लगड़लगड़ाते हु ए नजर आते हैं. और यही वह युवा हैं, लजन्होंने भाजपा एवं संघ को लदल्िी लवधानसभा चन ु ाव में भरी दोपहरी में तारों के दशथ न करा लदए. सब कुछ बेहद जल्दी! इससे पहिे लक कोई कुछ समझे, कोई कुछ रणनीलत बनाये, कोई बथ ू प्रबंधन करे या कोई पाटी उन तमाम पारम्पररक समीकरणों को दुरुस्त करे ... तब तक युवा सब कुछ कर चक ू ा होता है. अब लिर से प्रश्न उठता है लक जब नरें द्र मोदी इन युवाओं से जुड़े थे, तब वह इस मड ू को क्यों नही भांप पाये? यही नहीं, सरकार में आने के बाद इन यव ु ाओं की सिाह को सुनने और उनकी भागीदारी के लिए बेहद सक्रीय लडपाटथ मेंट और डे लडकेटेड वेबसाइट बनाई गयी और आश्चयथ की बात तो यह है लक युवाओं का एक बड़ा वगथ इसमें रुलच भी िे रहा है. तो क्या नरें द्र मोदी यहाूँ चक ू गए हैं अथवा बात कुछ और है!
एक बार और थोड़ा पीछे की ओर चिते हैं. नरें द्र मोदी जब गज ु रात में मुख्यमंत्री थे, तब गज ु रात दंगों के बाद के काि में उन पर मंलदरों को तोड़ने के साथ अन्य लहंदुत्व लवरोधी आरोप िगाए गए और यह आरोप खुद संलघयों और लहंदूवालदयों ने ही िगाए थे. यही नहीं, उन पर गुजरात में संघ और लवलहप इत्यालद संगठनों को बबाथ द करने का भी आरोप िगा, जो कािी हद तक सच भी था. केंद्र में आने के समय यह प्रश्न संलघयों के बीच में चचाथ का लवषय बना रहा. राजनीलत को समझने वािे बेहद सतकथता से इस बात को समझ सकते हैं लक प्रधानमंत्री बनने के बाद के 9 महीनों में नरें द्र मोदी ने इन संगठनों पर कुछ खास िगाम िगाने की कोलशश नहीं की. लकसी एक भाजपा सांसद को डांट जरूर पड़ी, परन्तु भाजपा के तमाम सांसद और दुसरे संगठन लहंदुत्व के नाम पर अनगथ ि बयानबाजी करते रहे . प्रधानमंत्री की चु्पी पर अंतराथ ष्ट्रीय मीलडया में भी खबू हो-हल्िा मच रहा है, लकन्तु प्रधानमंत्री खुद को लवदे श दौरों और प्रशासलनक गलतलवलधयों तक ही सीलमत रख रहे हैं. यहाूँ तक लक अमे ररकी राष्ट्रपलत बराक ओबामा के दो- दो बार धालमथ क सलहष्ट्णुता पर ऊूँगिी उठाये जाने के बावजदू प्रधानमंत्री अपने होठों को लसिे हु ए से क्यों लदख रहे हैं? यह उनके जाूँचे 142 www.zmu.in | www.hindinewsportal.com | Mob: +91- 9990089080, Mail: m@zmu.in
परखे गुजराती स्वभाव के भी लवपरीत है और उनकी छलव के भी. आलखर, उन्होंने अपने राजनैलतक कररयर में लहंदुत्व को िेकर न कभी बयानबाजी की है और अपने अलधकार क्षेत्र में लकसी और को भी बयानबाजी नहीं करने दी है. यहाूँ पर भी मोदी का लहंदुत्व संघ के लहंदुत्व से इस प्रकार लभन्न हो जाता है लक बयानबाजी के बजाय वह चपु चाप बड़ी कारथ वाई करने में यकीन रखते हैं. मोदी के समथथ क जानते हैं लक वह अपनी लहन्दुत्ववादी छलव के लिए उलचत समय पर, पालकस्तान पर सैलनक कारथ वाई करने में भी गुरेज नहीं करें गे. इस सन्दभथ में अमे ररकी संसद में एक ररपोटथ भी पेश की जा चुकी है. जबलक तमाम बयानबाजी करने वािे बड़े से बड़ा संघी भी पालकस्तान से युद्च के नाम पर गोि-मोि बातें करने िगता है. अपनी तरह के लहंदुत्व का नायक, गज ु रात में लहन्दुत्ववादी संगठनों को नेस्तनाबत ू करने वािा, संजय जोशी के माध्यम से संघ को चुनाव के पहिे ही घुटने टेकने पर मजबरू करने वािे शख्स की चु्पी कुछ हजम नहीं हो रही है. इसका अथथ लजतना उिझा हु आ है, उतना स्पष्ट भी है. लदल्िी चुनाव पररणामों के बाद ही नहीं, आप पहिे के राष्ट्रीय, अंतराथ ष्ट्रीय अख़बारों को उठकर दे ख िीलजये, सबमें मोदी के बहाने संघ पर ही लनशाना साधा गया है. मोदी की च्ु पी संघ को और घायि करती जा रही है. अपने कायथ कताथ ओ ं को वह कैसे कहे लक वह गोडसे, घर-वापसी, मुसिमानों, बच्चे पैदा करने जैसे बयान न दें, क्योंलक सरकार तो उसे रोक ही नहीं रही है. अब मोदी के दोनों हाथों में िड्डू हैं. उनकी िोकलप्रयता पर कोई िकथ नहीं पड़ रहा है, लवशेषकर युवा वगथ में और संघ और दुसरे लहन्दुत्ववादी संगठन िगातार लनशाने पर आते जा रहे हैं. इस लस्थलत के बाद एक ही लवकल्प बचता है लक यलद मोदी को सरकार चिानी है और भाजपा को जीत लदिानी है तो वह एजेंडा मोदी का होगा. उनका 'अपना लहंदुत्व' का एजेंडा और उनका अपना 'लवकास का एजेंडा'. थोड़ा और साफ़ कहा जाय तो, अब मोदी के एजेंडे के अनुसार संघ को अपने एजेंडे में भारी बदिाव करने होंगे, अन्यथा अपने स्वयंसेवक के प्रधानमंत्री होने के बावजदू उसे राजनीलतक उपेक्षा का लशकार होना पड़े गा. मोदी और उनके समथथ क बड़े साफ़ शब्दों में कह रहे हैं लक लदल्िी में हार इसलिए हु ई क्योंलक रामजादा- ह....दा, गोडसे, घर वापसी इत्यालद पर बयानबाजी हु ई थी. यही बात कश्मीर घाटी में भाजपा को एक भी सीट नहीं लमिने पर उछिी थी. इस बात का संघी और लवश्व लहन्दू पररषद वािे लवरोध भी नहीं कर पाएं गे क्योंलक यही बात अंतराथ ष्ट्रीय जगत पर भी हो रही है, दे श का युवा भी यही बोि रहा है, दे श का मुसिमान भी यही बोि रहा है. जी हाूँ! आपने सही सुना, दे श का मुसिमान मोदी को वोट दे न दे पर उनके समथथ न में इसलिए बोि रहा है क्योंलक उसे हमे शा से संघ ज्यादा नापसंद है. इस परू े पररप्रेक्ष्य में सच बात तो यह है लक केंद्र में मोदी के इतने बड़े उभार की आशंका संघ को भी नहीं थी और उभार हो जाने के बाद भी संघ मोदी से लनपटने के लिए कोई कारगर योजना नहीं बना पाया, ठीक उसी प्रकार जैसे वह दे श के युवा को खुद से जोड़ नहीं पाया. आज यह प्रश्न chetan-bhagat-booksिाजमी है लक दे श में अनेक क्षेत्रों में युवाओं के सक्रीय भलू मका लनभाने के बावजदू संघ के मि ू लशलवर में लकतने युवा हैं. राजनीलत में हर तरि युवाओं की व्यापक एं री हु ई है, यहाूँ तक लक भाजपा में भी, सालहत्य से िेकर समाज सेवा और उद्योग में युवा जबरदस्त तरीके से खुद को प्रस्तुत कर रहे हैं. केजरीवाि की टीम को छोड़ ही दीलजये क्योंलक वहां तो िगभग सौ िीसदी युवा ही हैं, खुद मोदी की कोर टीम में युवाओं की भरमार है. ऐसे में संघ युवाओं को लकतनी महत्वपण ू थ भलू मका में िा रहा है या लिर उनको लसिथ संख्या 143 www.zmu.in | www.hindinewsportal.com | Mob: +91- 9990089080, Mail: m@zmu.in
बढ़ाने की दृलष्ट से ही रखा गया है. जो कुछ थोड़े बहु त युवा हैं भी, उनको प्रेररत करने के लवकल्प में संघ क्या बदिाव िा पाया है यह भी दे खने वािी बात है. पहिे के संघी, शादी नहीं करते थे, अब युवा भी नहीं करना चाहते हैं. संघी पहिे सक्रीय रहते थे, अब युवा उनसे ज्यादा सक्रीय हैं, अध्ययन भी करते हैं. पहिे के संघी दे श सेवा के भाव से कायथ करते थे, लकन्तु अब संघ में प्रवेश भाजपा जाने का राजमागथ बन गया है. वैसे, युवाओं में राष्ट्रप्रेम के प्रलत जागरूकता के भावों का लवलभन्न कारणों से संचार भी हु आ है. पहिे संघ के िोग आपस में चचाथ करके अनुभव को बढ़ाते थे, अब युवा, सोशि मीलडया पर उनसे कहीं ज्यादा और बहु कोणीय चचाथ करता है. अब उस युवा को यह कहना लक अरलवन्द केजरीवाि, लवदे शी शलियों द्रारा, लहंदुत्व के लवरुद्च खड़ा लकया गया षड्यंत्र है, अलवश्वसनीय िगता है. उस यव ु ा को अब गोडसे, घर-वापसी जैसे शोरगुि वािे लहंदुत्व से ज्यादा प्रेम नरें द्र मोदी वािे लहंदुत्व से है, जो चुपचाप कायथ करने और समस्या का इिाज करने में यकीन करती है. वह युवा वगथ जानता है लक लहंदुत्व को अब असिी खतरा इस्िाम से नहीं है, बलल्क चीन से है जो लक भारत के आलथथ क महाशलि बनने से ही सुरलक्षत रहे गा. आधुलनक काि में, धमथ और अथथ की जो लमक्स्ड संस्कृलत तैयार हु ई है, उसे समझने को संघ अभी तैयार नहीं दीखता है. उसके नेता मख ू थ तापण ू थ बयान दे ते हैं लक दे श की मलस्जदों में वह गौरी-गणेश की मलू तथ रखवा दें गे. अब दे श की 80 िीसदी से ज्यादा आबादी को यह हास्यास्पद और क्रोध लकये जाने िायक िगता है. ऐसा नहीं है लक दे श का युवा धमथ के मामिे में सजग नहीं है, बलल्क सोशि मीलडया पर इन तमाम मुद्ङों पर चचाथ होती ही रहती है. लहंदुत्व के समथथ क नेता यलद मोदी के लहंदुत्व का अध्ययन करें तो दे श के यव ु ाओं से कनेक्ट कर पाएं गे और इससे भी महत्वपण ू थ वह 80 और 90 के दशक की राजनीलत से बाहर लनकि पाएं गे. और मोदी ही क्यों, लहंदुत्व समथथ क नेता 'अरलवन्द केजरीवाि के लहंदुत्व' का भी अध्ययन करें . उनकी पाटी ने जामा मलस्जद के शाही इमाम के मुंह पर थ्पड़ मारते हु ए ऐन चुनाव से पहिे उनका समथथ न िेने से इंकार कर लदया था. न लसिथ इंकार लकया था, बलल्क इस मुद्ङे को आप नेता संजय लसंह ने दे शभलि से जोड़ते हु ए, पालकस्तानी प्रधानमंत्री को अपने बेटे की दस्तारबंदी में बुिाने और नरें द्र मोदी को नहीं बुिाने को िेकर इमाम की बेइज्जती तक कर डािी. सावधान हो जाओ संलघयों! ऐसी लहम्मत तुम भी न कर पाते. यही नहीं, भारत माता की जय और वन्दे मातरम के गाने केजरीवाि की सभा में परू े जोश से गाये जा रहे हैं. मोदी भी यही करते हैं, पालकस्तान से बातचीत एक झटके में समाप्त करते हैं और अमे ररका से गठबंधन करके चीन के माथे पर पसीना िा दे ते हैं. यह असिी लहंदुत्व है, बदिते ज़माने का लहंदुत्व, मोदी का लहंदुत्व और केजरीवाि का लहंदुत्व जो दे श प्रेम से सीधे कनेक्ट करता है, न लक शोरगुि मचाकर पाखंड! संघ में बड़े व 'बढ़ ू े ' लवचारक होते हैं, उम्मीद है इस नए युवा लहंदुत्व पर लवचार-मंथन होगा, अन्यथा मोदी अपने उद्ङे श्य से चक ू ते नहीं हैं, और पहिी बाजी उनके हाथ रही है !!
- मममथलेश. (www.mithilesh2020.com)
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