SHIVNA SAHITYIKI JANUARY MARCH 2023

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सुबीर

कायकारी संपादक एवं क़ानूनी सलाहकार

शहरयार (एडवोकट)

सह संपादक

शैले शरण, आकाश माथुर

िडज़ायिनंग

सनी गोवामी, सुनील पेरवाल, िशवम गोवामी

संपादकय एवं यवथापकय कायालय

पी. सी. लैब, शॉप नं. 2-7

साट कॉलैस बेसमट

बस टड क सामने, सीहोर, म.. 466001

दूरभाष : +91-7562405545

मोबाइल : +91-9806162184 (शहरयार)

ईमेल- shivnasahityiki@gmail.com

ऑनलाइन 'िशवना सािहयक'

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फसबुक पर 'िशवना सािहयक’

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एक ित : 50 पये, (िवदेश हतु 5 डॉलर $5)

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RNI NUMBER:-MPHIN/2016/67929

ISSN:2455-9717

çàæßÙæâæçãUçˆØ·¤è जनवरी-माच 2023 1 शोध, समीा तथा आलोचना क अंतराीय पिका वष : 7, अंक : 28, ैमािसक : जनवरी-माच 2023 िविवालय अनुदान आयोग ारा अनुमोिदत पिका
संरक एवं सलाहकार संपादक सुधा ओम ढगरा संपादक पंकज
संपादन, काशन एवं संचालन पूणतः अवैतिनक, अयवसाियक। पिका म कािशत सामी लेखक क िनजी िवचार ह। संपादक तथा काशक का उनसे सहमत होना आवयक नह ह। पिका म कािशत रचना म य िवचार का पूण उरदाियव लेखक पर होगा। पिका जनवरी, अैल, जुलाई तथा अटबर माह म कािशत होगी। समत िववाद का याय े सीहोर (मयदेश) रहगा। आवरण किवता डॉ. वंदना शमा आवरण िच पंकज सुबीर

आवरण किवता / डॉ. वंदना शमा

संपादकय/शहरयार/3

यंयिच/काजलकमार/4

शोधआलोचना

एसडनाटकऔर

संाउपायाय/5

वंिचतकवा

डॉ.सिचनगपाट/8

कमपुतक

'तीनअपािहज’

िज़ंदगीकसबसेसदरात

डॉ.राकशशु/कपनामनोरमा

कणिबहारी/11

पुतकसमीा

मेरीमाँमबसीह

सयमभारती/डॉ.भावना/10

सूखे

समयकसाी

िसंहवमा/नंदभाराज/17 पेड़तथाअयकहािनयाँ

अंतराकरवड़/अनीकमारदुबे/19

सफ़हपरआवाज़

कलाशमंडलेकर/िवनयउपायाय/23

बदकोठरीकादरवाज़ा

अिनतारम/रमशमा/24

सामािजकअययननवचार

गोिवदसेन/काशकात/25

बुिजीवीसमेलन

गोिवदसेन/पंकजसुबीर/27

दुिनयामेरआसपास

काशकात/एकताकानूनगोबी/29

नक़ाशीदारकिबनेट

कमलचंा/सुधाओमढगरा/30

कालासोना

डॉ.एस.शोभना/रनूयादव/31

धापूपनाला

अखतरअली/कलाशमंडलेकर/32

पोटली

दीपकिगरकर/सीमायास/33 एकगधाचािहए ो.नवसंगीतिसंह/डॉ.दलजीतकौर/41 पाँचवाँ

शोधआलेख

राजनारायणबोहरकउपयासमायजीवन

डॉ.पाशमा/34

मधुकांकरयाककहानीकलाऔरउनकावैचारकसंसार

डॉ.इदूकमारी/37

संजीवक'फाँस'उपयासमिकसानजीवन

ेताजायसवाल/39

िशवानीककहािनयमनारी-चर

महीकमारी/42

िकरसमाज:तीसरीदुिनयाकतीसरीताली

डॉ.अजुनक.तडवी/44

वासीऔरभारतीयसािहयसृजनमगांधीवादकासंिगकता

अिवनाशकमारवमा/47

आंजणाचौधरीजाितकासमाजजीवन

पटलआकाशकमारसंजयभाई/50

आधुिनकिहदीउपयासमकिषसंकित

गौरविसंह/52

का12मअथशािवषयकपामकािवेषणामक

अययन

शोधीमतीशसा/55

ओरछाकिभििचकािचामकअययन

भअवाल/59

संतदरयावकवाणी:वतमानासंिगकता

मनीषसोलंक/62

कबेरनाथरायकिनबंधमविणतराम

सुजाताकमारी/65

राीयआंदोलनममिहलाकभागीदारता

एवंगाँधीजीकाभाव

डॉ.कोमलआिहर/68

मासमीिडयाकासमाजम

मभारतीयसंकितकामूयांकन

संदीपकमारराजपूत/76

Diabetes,test,DiagnosisDiabetesRisk&Care

Dr.ChhayabenR.Suchak/79

ProgrammeToIncreaseTheAptitudeForEnglish

KataraSejalbahenNathubhai/82

Social Value of Parents and Children in Joint and NuclearFamilies

Dr.HarshadkumarR.Thakkar/85

ExploringIndianMythologyinModernScenario

PatelSitabenKalubhai/88

FreedomOfThePressAndTheHumanRights

DrManishkumarRamanlalPandya/91

PeopleInTheRajQuartet-AStudy

JyotiYadav/94

Public-PrivateSectorCompositionInIndianEconomy

NidhiTewatia/97

ImpactofGoodsandServicesTaxinRetailSector

VVV.Satyanarayan/101

2 çàæßÙæâæçãUçˆØ·¤è जनवरी-माच 2023
ए राजबोहर
मनकतुरपाई अिदितिसंहभदौरया
ओमढगरा
अपने
परचलते
/शैलेशरण/14
/सुधा
/20
रतु
तंभ
कानूनगो/जयजीतयोितअकलेचा/70
जेश
भाव पटलधाराबेनपी./71 ीमागवतमयोग-साधनाकआयामकमहा डॉ.योसनासीरावल/73 सतनतकाल
इस अंक म
çàæßÙæâæçãUçˆØ·¤è जनवरी-माच 2023 3 शहरयार िशवना काशन, पी. सी. लैब, साट कॉलैस बेसमट बस टड क सामने, सीहोर, म.. 466001, मोबाइल- 9806162184 ईमेल- shaharyarcj@gmail.com संपादकय नई िदी क िव पुतक मेले का अपना आकषण ह। िपछले साल यह मेला आयोिजत होते-होतेटलगयाथा,यिकउसीसमयकोरोनानेअपनेलौटनेकदतकदेदीथी।जबतीन साल पहले यह पुतक मेला आयोिजत िकया गया था, उस समय सार िव म कोरोना क आहट सुनाई दे रही थी। जनवरी 2020 म नई िदी पुतक मेला आयोिजत िकया गया और माच 2020 म सारी दुिनया कोरोना क चपेट म आ गई। िजस समय पुतक मेला चल रहा था, उससमयचीनमकोरोनाअपनािशकजाकसचुकाथा।भारतीयउसेएकसामयबीमारीमान करचलरहथे।मगरउसकबादपताचलािकबीमारीिकतनीअसमायथी।ख़ैरअब2023म फरवरी म एक बार िफर पुतक का यह उसव िदी म मनाया जाएगा। कोरोना क बाद का यह पहला पुतक मेला ह। िपछले साल जब मेला अंत म थिगत आ, तब बत से िनणय आयोजक ने ऐसे िलए थे, िजनक कारण छोट काशक को टॉल क िलए अिधक भुगतान करनापड़रहाथा।टॉसकोबकरनेयाजोड़नेकसुिवधाहटालीगईथी,इसककारण ही छोट काशक परशान थे। लेिकन िपछले साल तो मेला ही नह हो पाया और इस साल आयोजक ने एक बार िफर टॉल जोड़ने क सुिवधा दान कर छोट काशक को राहत दान क ह। इस बार का मेला इसिलए भी िवशेष ह िक इस बार यह मेला नवीनीकरण क बाद तैयार ए गित मैदान पर लगाया जाएगा। गित मैदान क दूर से ही िदखाई देने वाले बड़-बड़ मंडप अब नह ह, उनक जगह अयाधुिनक प से तैयार िकए गए हॉल ह। 2020 म जब िव पुतकमेलाआयोिजतिकयागयाथा,तबपूरगितमैदानमिनमाणकायचलरहाथा।जगहजगह तोड़-फोड़ चल रही थी। अब गित मैदान तैयार हो चुका ह। नव सुसत इस गित मैदान म पुतक का पहला कभ भराएगा। नई िदी िव पुतक मेले का इतज़ार सभी को रहता ह। पाठक को, लेखक को, काशक को, सभी को। यह पुतक मेला एक कार से मेलजोलकामुखअवसरहोताह।देशभरकलेखकिदीपचतेहपुतकमेलेमिशरकत करने। जब इटरनेट पर एक पूरा का पूरा बाज़ार उपलध हो गया ह, आप अपने मोबाइल पर एकइशारसेजोपुतकचाहवहख़रीदसकतेह,तबभलापाठकयआताहपुतकमेलम ? वह आता ह पुतक को महसूस करने। इटरनेट क दुिनया एकदम आभासी दुिनया ह, जहाँ कछभीमहसूसनहिकयाजासकता।पुतककशबू,उनकोछकरमहसूसकरनेकिलए तोपाठककोपुतकतकहीजानापड़गा।औरिफरइसबातकभीसंभावनारहतीहिकवहाँ उसेअपनेपसंदीदालेखकसेिमलनेकाभीअवसरहोगा।बार-बारयहकहाजाताहिकपाठक समा हो रह ह, िकताब अब नह िबकत, लेिकन उसक बाद भी हर साल पुतक मेले म पाठककभीड़पहलेसेयादाहोतीह।ऐसेमयहकहनािकपाठकतोएकदमहीसमाहो गया ह, अब िकताब नह िबकत, ज़रा ठीक नह ह। नई िदी का यह पुतक मेला इस बार ठीकसमयपरभीहोरहाह।हरसालयहमेलाजनवरीकपहलेहीसाहमआयोिजतिकया जाताथा,िजससमयिदीमठडअपनीचरमसीमापरहोतीह।बाहरसेआनेवालेलोगक िलए इस मौसम म िदी जाना िकसी परीा से कम नह होता था। इस बार पुतक मेले को जाती ई सिदय क गुलाबी से मौसम म आयोिजत करने का जो िनणय िलया गया ह, वह वागत योय ह। इस कारण इस बार बाहर क अितिथ अिधक संया म िदी पच सकगे। िशवना काशन भी इस बार नई िदी िव पुतक मेले म पच रहा ह। िशवना क कोिशश यहरहतीहिकिशवनाकटॉलमपमलेखककोअपनाएकटॉलिमले,जहाँबैठकरवे बितया सक, सािहय क चचा कर सक। तो िमलते ह 25 फरवरी से 5 माच क बीच म िशवना काशनकटॉलपरनईिदीिवपुतकमेलेम...।
पुतक मेले म आपकाही शहरयार
िमलते ह िव
4 çàæßÙæâæçãUçˆØ·¤è जनवरी-माच 2023 यंय िचकाजल कमार kajalkumar@comic.com

तुतिकयाअबेरकामूने।उनकिलएअसंगितनतोकवलएकभावह,न हीकोईएकअहसासऔरनहीनाटकयभावपैदाकरनेवालाएकिवषय।कामूकिलएयह एकदाशिनकनह,जोहरमनुयकसामनेउपथतह।नयहहिकयायहजीवनिजये जाने योय ह, जब मनुय का अतव ही िनरथक हो गया ह। 1941 म िलखे गए उनक िनबंध 'िदिमथऑफिसिसफस'मपूरीपरथितकसाथयहीठोसदाशिनकनउभरता

çàæßÙæâæçãUçˆØ·¤è जनवरी-माच 2023 5 िहदी सािहय म एकांक िवधा का आरभ नाटक क साथ-साथ ही देखने को िमलता ह। िहदीमनालेखनकशुआतकरनेवालेभारतदुहरंने'अंधेरनगरी'जैसावरतगित सेघिटतहोनेवालाछोटानाटकिलखा।भारतदुमंडलककईलेखकनेसामािजकबुराइयपर छोट-छोट नाटक िलखे, जो ायः यंय का वर िलये ए होते थे। भारतदु क बाद िहदी क ना लेखन परपरा को िवकिसत करने वाले लगभग सभी नाटककार ने एकांक िलखे। जयशंकर साद, रामकमार वमा, भुवनेर साद, लमी नारायण लाल, उदय शंकर भ, जगदीश चं माथुर, लमी नारायण लाल, उप नाथ अक, मोहन राकश आिद ने एकांक िवधाकोिवकिसतऔरसमृिकया। पारवारक,सामािजक,राजनीितकआिदिविभिवषयकोभावशालीढगसेउभारनेक िलएइनएकांिकयमिवषय-वतुकअनुपतरह-तरहकिशपगतयोगभीिमलतेह।कह िमथकय-पौरािणक-ऐितहािसक पा क मायम से अपने समय क न को उठाया गया ह; कहहाय-यंयकासृजनामकयोगकरआधुिनकजीवनकिवसंगितयकोउजागरिकया गया ह; कह फटसी का सहारा लेकर, तो कह िबलकल यथाथवादी ढग से समकालीन समयाकोउभारागयाह। इहमसेएकिशपहएसिडटीयानीअसंगित।भुवनेरकएकांक'तांबेककड़'को िहदी का पहला असंगत नाटक माना जाता ह। यह एकांक 1946 म कािशत आ। िव सािहयमिसएएसडनाटकसेपहलेहीभुवनेरकायहएकांकआचुकाथा।िहदी नाटक क संदभ म जब असंगत नाटक क बात होती ह, तब भुवनेर क 'तांबे क कड़' क साथ िजस एकांक क सबसे अिधक चचा होती ह, वह ह िविपन कमार अवाल का 'तीन अपािहज'। यह एकांक 1969 म कािशत आ। 'तीन अपािहज' एकांक पर चचा करने से पहलेआवयकहिकअसंगतनाटककोसमझिलयाजाए। 1950 तथा 1960 क दशक म एसड सािहय पम म आधुिनक सािहय क अय आंदोलनकतरहसामनेआया।ितीयिवयुमदुिनयािववंसकिजसअनुभवसेगुज़री, उससेमनुयताकसामनेएकबड़ासंकटपैदाआ।जीवनकाअथहीजैसेखोगया।भयावह वतमान ने भिवय क सार वन-िच और खाक मानो िमटा िदये थे। मनुय-जीवन बेतुका, िनेय, सारहीन तथा अथहीन होकर रह गया था। मनुय और जीवन क तकपूण संगित समा-सीहोगईथी।असंगितउसदौरकामूलभावहोगई।जीवनकअसंगितसािहयऔर कला म भी असंगित क मायम से ही य ई। बत-से लेखक-िवचारक ने एसड या असंगत को समझने-समझाने का यास िकया, लेिकन इसे सबसे पहले सैांितक प से एक दशनकतौरपर
ह। कामू क इसी िनबंध से भािवत यूरोप और अमरीका क कछ नाटककार ने जीवन क िनरथकता और बेतुकपन को अपने नाटक म तुत िकया। उहने मनुय और जीवन क बीच कतािककसंगितकसमाहोजानेकोअपनेनाटकमनकवलिवषय-वतु,बकउसक तुितकयुकपमभीयुिकया।नाटकसेकहानीकागायबहोना,भाषासेसंदभ का गायब होना, पा का चारिक िविशता से हीन होना -यानी नाटक क पहले क परिचतसंरचनाकोहीपूरीतरहवतकरदेनाअसंगतनाटककपमसामनेआया।ििटश आलोचक मािटन एलन ने 1961 म अपनी पुतक 'एसड ामा' म सबसे पहले 'िथयेटर ऑफ िद एसड' पद का उपयोग िकया। उहने ही सैमुएल बैकट, यां जेने, आथर एदामोव, हरोडिपंटरआिदकोएसिडटनाटककारकपमपहचाना। शोध-आलोचना एसड
संा
डॉ. संा उपायाय 107, सारा अपाटमस ए-3, पम िवहार, नयी िदी-110063 मोबाइल- 9818184806
नाटक और 'तीन अपािहज'
उपायाय

एलन ने अपनी पुतक''िथयेटर ऑफ िद एसड' म असंगत नाटक को परभािषत करने और उसक संरचना को समझने का यास भी िकया ह। असंगत नाटक क परभाषा देते ए वे िलखते ह, "TheTheatreoftheAbsurd strivestoexpressitssenseofthe senselessnessofthehuman conditionandtheinadequacyof therationalapproachbytheopen abandonmentofrationaldevices anddiscursivethought." 1

आगे वे असंगत नाटक क िविशता को उसक सामािजक-राजनीितक संदभ म तुत करते ए बताते ह िक यह नाटक चर-िवरोधी (aAnti-character), भाषािवरोधी (Anti-language), कथानकिवरोधी (Anti-plot) और नाटक-िवरोधी (Anti-drama) ह। वे बताते ह िक हर तरह क संरचना क िवरोधी इस नाटक क भी आिख़र एक संरचना तो ह ही। वह संरचना एकवृसीह,िजसकाकोईिसरानह।2

ये सभी िविशताएँ िवोह का भाव िलये ए ह। वंस क िजन परथितय म असंगत

नाटककशुआतहोतीह,उनमसामािजक, राजनीितक, सािहयक—हर तरह क

संरचना क िव िवोह ही जम ले सकता था।

िहदी म असंगत नाटक क शुआत

पम क नकल से नह ई। भुवनेर क िजस एकांक 'तांबे क कड़' को पहले असंगत एकांक क प म पहचाना गया, उसकरचनाबैकट,जेनेतथािपंटरकिस

एसड नाटक से पहले ही हो चुक थी। इन

सबक बाद 1969 म कािशत होने वाला

िविपन कमार अवाल का एकांक ''तीन

अपािहज' एलन क असंगत नाटक क

संरचना क सभी िविशताएँ िलये ए ह।

लेिकन इसक अंतवतु िवशु भारतीय

परथितय से उपजीह। आज़ादीक बादक

कछ

किवता-कहानी क संरचना से इनकार िकया जाने लगा। इसी साठोरी समय म िविपन कमार अवाल ने 'तीन अपािहज' एकांक िलखा। 'तीन अपािहज' म तीन पुष ह—क,ू खू और गू। एकांककार ने उह "अपािहज-स"े

: (अपने उपर आमण मानकर) या

जगह ह जीवन क वह िवसंगित, िजसम कू, खू और गू फसे ह। यहाँ उनक बेतुक बात ह और हरकते ह। उह क तालमेल से पाठक/दशक क सामने वह थित खुलती ह,िजससेयहएकांकउपजाह।वहथितह आज़ादी क बाद क उस हताश दौर क, िजसम युवा क सामने कोई भिवय वन नह ह, यवथा क नाम पर अराजकता ह, नेता क भाषणबािज़याँ ह, आज़ादी एक िनरथक शद मा ह। ऐसी िनराशाजनक परथितमतीनपुषएकहीजगहबैठ-लेट सारािदनगकिकयाकरतेह। नेिमचं जैन, िजहने एकांक

कहा!

खू:खाक।

कू : खाक...खा...क...(िसर िहलाता ह,

मानोसंबंधनसमझपारहाहो।)

खू:अबबोलोबू!

गू : हम लोग जब िमलकर बैठते ह, तो

लड़तेयह?

खू : यिक हम आज़ाद ह।

िह...िह...िह...!4

अथवा

खू:कू!

कू:हाँ!

खू:हमकबआज़ादए?

कू:यहीिटूकउसमझलो।

खू:कोईदससालकाहोगा,कछउपर।

कू:औरया।

खू : तो आज़ाद अभी बा ह। हम बा

कसेबनसकतेह?

गू:आज़ादबानह,देशह।

खू:देशबाकसेबनसकताह?

कू:अपनीिकमतसे!5

एकांक क इन उरण म तीन पा

6 çàæßÙæâæçãUçˆØ·¤è जनवरी-माच 2023
वष नये मनुय, नयी उमीद और नये वन क साथ देश क नविनमाण क वष थे। िजसउसाहऔरभरोसेकसाथसभीएकजुट होकर इस राह पर चल पड़ थे, वह उसाह कछ वष म िशिथल पड़ने लगा और भरोसा टटने लगा। 'यह आज़ादी झूठी ह, देश क जनता भूखी ह' जैसे नार सुनायी पड़ने लगे। 1960कबादककिवता-कहानीमभीवन भंग और मोहभंग क वर मुखर होने लगे। अकिवता-अकहानी का दौर आया, िजसम
कहा ह। एकांक क आरभ म आधा िदन गुज़र चुकने क बाद तेल क एक लप क नीचे बैठ कू,
िदखायी
िनेय बैठ
बेतुक
से लेट होते ह और कभी उठने को होते ह। और अंत मउसीलपकनीचेहीरातहोजातीह।कहने काअथयहहिकसुनाने
ह।
को लघु नाटक कहा, अपनी पुतक 'नये िहदी लघु नाटक' क भूिमका म िलखते ह—"'िविपन कमार अवाल क नाटक म आज क राजनीितक, सामािजक और बौिक जीवन क आमवंचना, ढग और िदशाहीनता को उधेड़ा गया ह। 'तीन अपािहज' म वाधीनता क बाद पूरी पीढ़ी क अपािहज बना िदये जाने क हालत िदखायी गई ह। तीन अपािहज बड़ तीखे ढग से सारी यवथा और मानवीय आधार क टट जाने क थित को पेश करते ह।3 शारीरक और मानिसक प से पूरी तरह दुत ये तीन पा परथितवश 'अपािहज' ह।अपनीबुि,योयताऔरमताकावयं और समाज क िलए िकसी भी तरह साथक उपयोग करने क अवसर और परथितय का न होना उह अपािहज बनाता ह। इस ासद थित को एकांक हायापद बनाकर तुत करता ह, िजससे इसका तीखापन और बढ़जाताह।जीवनकाहरपहलूिकसकार उपहास करने क चीज़ हो गया ह, बत-से संवाद से यह बात उभरती ह। उदाहरण क िलए 'आज़ादी' का िज दो जगह आता ह औरउपहासामकढगसेहीआताह: खू : तो कू ऐसी भाषा य बोलता ह? गू:उसकमज।अबहमआज़ादह। खू:खाक। कू
खू और गू
देते ह। उसी लप क नीचे
वे
बात करते ह। कभी बैठ
किलएइसएकांक
कोईकहानीनहह।कहानीयहाँसेगायब
कहानी क

आज़ादी का उपहास करते िदखायी देते ह।

पा म चल रह भाषण क आवाज़ म आगे

सुनायीदेताह-"हमारधानमंीनेकहाहिक

अबहमकामकरनाचािहए।खालीहाथनह

बैठना चािहए।" शद जो कह रह ह, उससे

उलट मंच पर तीन पा खाली हाथ बैठ

िदखायी देते ह। इस कार भाषण, पा क ये

संवाद और उनका िनय बैठ रहना--यह

सब िमलकर तकालीन भारतीय समाज क

िवसंगितकोसामनेलाताह।

अपनेएकलेख'नाटक:कसा,यओर

िकसक िलए' शीषक लेख म िविपन कमार

अवाल िलखते ह, "जब नाटक म हरकत

और भाषा का आमना-सामना होता ह, तब

शद क योग क कई अथ खुलते ह। जो

सामने ह, उसे नाम देना पहला तर ह। जो

सामनेनहह, उसे पुकारना दूसरातरह। जो सामनेह,परशबदलेह,उसेभेदकरनाम

देना तीसरा तर ह। हरकत कछ और हो और

उसक भाव को पकड़कर नाम कछ दूसरा

िदयाजाए,तबशदकातीसराअथखुलताह

और यह नाटक म सहज ही लाया जा सकता

ह।"6

भाषाऔरहरकतकायहआमना-सामना

इसएकांकमिनरतरपाठक/दषककसामने

उस िछपे ए अथ का उाटन करता चलता

ह,जोइसकामंतयह।एकांककाआरभही

इसतरहहोताह:

कू:(उठनेकाउपमकरतेए)चलो!

खू:चलोया?...कसेचल?

कू : (झककर उठना बंद करता ह)

उठकर।

खू : ओ, उठकर! (और आराम से बैठ

जाताह।)7

भाषा म 'चलो' शद और बैठ जाने क

हरकत क भाषा का िमलना आगे चलने क

ेरणा समा हो जाने और समाज क गित

अवहोजानेकअथकोउजागरकरताह।

इसी तरह टट पिहये का संग भी समाज क

गितशीलताकटटजानेकोउभारताह।

समाज क िवसंगितय

ह, कह कछ और जाते ह। इसिलए हरकत क भाषा कासहारालेनाअिनवायहोगयाह।"8

बेतुक संवाद क

घर कर गई ह, शद अपने अथ खो बैठ ह, आपसी अिवास बढ़ रहा ह,तमामसामािजक-राजनीितकसंथापर सेजनताकाभरोसाहटरहाह,नेतासबएकसेह,भिवय-वनलुहोगयाह--यहसब पूर एकांक क िनिमित म बत छ प म उपथत ह। एकांक क पाठ म इन सबक पाठक से थोड़ा छट जाने भी खतर ह। हाँ, उसक मंचीय तुित म शद और हरकत का यह आमना-सामना य होने से अथ का उाटन बेहतर हो सकता ह। शद पर बलाघात, शद क बीच हका िवराम, भाव को यंिजत करते वर और उनक साथ अिभनेता

परथित पाठक/ दशक क भीतर बेचैनी और छटपटाहट भर देती ह। पा क िनयता और िसफ बात उसे िनरथकताबोध का तीखा अहसास कराती ह। इस तरह भाषा-िवरोधी, चर-िवरोधी,कथानक-िवरोधीऔरनाटकिवरोधीअपनीअसंगतसंरचनामयहएकांक अपने योजन म सृजनामक प से सफल होताह। 000 संदभ 1 'िद िथयेटर ऑफ एसड : मािटन एलन, एंकर बुस, अमेरका, 1961; पृ 25, 2 वही, पृ 28-29, 3 नये िहदी लघु नाटक:संपादक:नेिमचंजैन,नेशनलबुक ट इिडया; 1986; पृ 10, 4 तीन अपािहज : िविपन कमार अवाल; लोकभारती काशन; ितीय संकरण 1982, पृ 12-13, 5 वही, पृ 16, 6 वही,पृ212-213,7वही,पृ11,8नये नाटक क जमदाता : भुवनेर; िहदी ग िववेचना; संकलन और संपादन जवरीम पारख।

çàæßÙæâæçãUçˆØ·¤è जनवरी-माच 2023 7
को य करने म हरकतकभाषाकयोगपरअपनेलेख'नये नाटक क जमदाता : भुवनेर' म िविपन कमार अवाल िलखते ह—"'यिद शद झूठ पड़गएह,तोहमहरकतकभाषाकासहारा लेनापड़गा।हरकतकभाषाहमारजीवनका अंगह।कभीहम हरकतयादाकरतेहऔर कभी बोलते अिधक ह। दोन का संतुलन ही पूरी भाषा ह। पर जब एक पर से आथा उठ जाती ह, तब दूसरी उसक जगह ले लेती ह। आजलगताह,बत-सेशदअथखोबैठह या संेषण क िलए फािज़लमय हो गए ह। इनक सहार हम कहना कछ चाहते
भाषा इस एकांक म संदभ से जुड़कर िविश अथ पा लेती ह। िविपन कमार अवाल अपने पाठक/दशक से उस िवशेष संदभ परिचत होने क माँग करते ह, जो इस एकांक क बुनावट म बत ही िछपे ढग से मौजूद ह। उसक सहायता क िलए वे तीन पा क बेतुक और असंगत संवादमसूकतौरपरकछशदछोड़तेह। आज़ादी, एकता, पिहया, भाषण, लड़ाई, धरती माँ, दोत इसी तरह क शद ह। जीवन म उेयहीनता
क गितिविधयाँ--एकांक क कय क उस छ अथ को उभारने म ये सबसहायकहगे। असंगतनाटककिविषताहीयहहिक उसक कय और िशप म असंगत से ही संगित आती ह। कथावतुिवहीन इस एकांक क संवाद म कथोपकथन नह ह। अतािकक बातकाबेतरतीबिसलिसलाऔरसंवादका बेतुकापनजीवनकतािककिसलिसलेकटट जाने और उसक तुक चले जाने को बबी उभारता ह। बत जगह संवाद पूरी पं म न होकर दो-दो तीन-तीन शद क ह। भाषा क सहज संरचना को तोड़ते। तीन पा क नाम भीएक-दूसरमग-महोजानेवालेह। नाम से उनक कोई पहचान उजागर नह होती।नहीउनककोईचारिकिविशताएँ उभारनाएकांककारकाउेयह।वहउह अतव होते ए भी अतवहीन ही िदखाना चाहताह। एकांक तेल क िजस लप क नीचे बैठ तीन पा क साथ शु होता ह, उसी लप क नीचे ही समा हो जाता ह। अंितम पं ह'"रात हो जाती ह।" यानी सुबह यह से िफर वही िसलिसला शु होगा। जैसे जीवन एक वृमचकरकाटरहाहो।जैसेकोईिसरान िमलरहाहोभिवयका,िजसेपकड़करआगे बढ़ा जा सक। उपर से िखलंदड़, बेिफ, मजािकया और हायापद िदखते कू, खू और गू क ासद
8 çàæßÙæâæçãUçˆØ·¤è जनवरी-माच 2023 नईसदीकईसंदभमिविशह।मानवािधकारकपहलइसकवैकअजडाकपम लित हो रही ह। इस दौर म मानवािधकार क चचा ने आंदोलन का प धारण कर िलया ह। जोसमाजलंबेसमयसेहािशएपरथा,वंिचतथाउसेमुयधारामलानेकायासकईतर, आयाम पर तथा मायम ारा आ ह। इसम सािहय क भूिमका उेखनीय ह। नई सदी क सािहय ने इस पहल को आंदोलन म परवितत करने क िलए संबल दान िकया ह। भारतीय सािहयकर ने एक ओर हािशए क समाज क पीड़ा को िचित िकया ह तो दूसरी ओर उनक चेतना, िवोह और ितरोध को। रचनाकार ने हािशए पर खड़ समाज को, वंिचत को उनक अिधकार क ा क िलए वा क भूिमका िनभाई ह। इन वा म पंकज सुबीर अणी ह। वे नई सदी क सश कथाकार ह। इहने नई सदी क कथा सािहय को यापकता दानकह।िहदीसािहयमयहनामअबजाना-पहचानबनचुकाह।इनककथासािहयक िववेचना से ही नई सदी क कथा सािहय क आलोचना संभव ह। नई सदी क भारत का यथाथ िचणइनककथासािहयमआह।भारतीयसमाजजीवनकापूराढांचाइनकाकथासािहय तुतकरताह।ेमचंदकतरहइनककथाकाकनवासिवशालह।गाँवऔरशहरकबदले ए प-रग को इनका कथा सािहय सूमता से अिभय करता ह। इनक कथा सािहय क वैचारक का आधार मानवीयता ह। वे मानविधकर क िलए वंिचत क वा क भूिमका अपनातेह। पंकजसुबीरनईसदीकचिचतऔरसंवेदनशीलकथाकारह।इनक'येवोसहरतोनह', 'अकाल म उसव' और 'िजह जुम-ए-इक पे नाज था' ये तीन उपयास तथा 'ईट इिडया कपनी', 'मआ घटवारन और अय कहािनयाँ', 'कसाब. गांधी @ यरवदा. इन', 'चौपड़ क चुड़ल', 'रते', 'हमेशा देर कर देता म', 'होली' और 'ेम' ये आठ कहानी संह कािशत एह।पंकजजीकायहकथासंसारिवचारऔरसंवेदनासेअनुािणतह।उहनेकथा क मायम से भारतीय समाज क यथाथ को अिभय दी ह। जो समाज सिदय से पीिड़त ह, वंिचत ह और नए दौर म भी शोिषत और हािशए पर ह ऐसे समाज को शोषण मु कर मुय धारामलानेकपहलवेकथासािहयकमायमसेकरतेह। भारत किष धान देश ह। किष और िकसान भारतीय अथयवथा का मुख आधार ह। वैक आिथक महासा का जो सपना हम देख रह ह वह किष और िकसान क िबना संभव नह ह। लिकन नई सदी क दौर म हम देख रह ह िक िकसान आमहयाएँ कम नह हो रही ह। िजसक बलबूते पर हम सपना देख रह ह उसका ही अतव आज संकट म ह। वह हालात से मजबूरहोकरफासँीकफदेकोअपनारहाह।मुयआधारहोनेकबावजूदअबवहमुयधार सेकटकरहािशएपरचलागयाह।ेमचंदजीारािचितवंिचतहोरीआजआज़ादीकअमृत महोसव क बाद भी हम 'रामसाद' क प म िदखाई दे रहा ह। ऐसे वंिचत, शोिषत और समया क मकड़जाल म िघर िकसान का यथाथ पंकज सुबीर क 'अकाल म उसव' उपयास म िचित आ ह। इस संदभ म सुशील िसाथ िलखते ह, "'गोदान' का होरी िकसान सेमज़दूरबनगयाथा,'अकालमउसव'कारामसादिकसानसेिभुकबनजाताह।हमार देशने1936से2016तकइतनीगितकह।"1 यह उपयास रामसाद और कमला िकसान परवार क मायम से भारतीय िकसान क शोध-आलोचना वंिचत क वा डॉ. सिचन गपाट डॉ. सिचन गपाट सहायक ायापक, िहदी िवभाग, मुंबई िविवालय महामा गांधी रोड, फोट मुंबई 400032 महारा मोबाइल 9423641663

पीड़ा को य करता ह। वतमान म िकसान

क सामने सबसे बड़ा सवाल अपने अतव

क संकट का ह। यिक "सार हालात तो मर

जाने क ह। िजंदा कसे रहा जाए ?"2

रामसाद क थित भी ऐसी ही ह लेिकन

शासन और सरकारी तं उसव क

आयोजन म यत ह। रामसाद क

समया क ित वह उदासीन ह। अपनी

समयाएँ वह जब शासन क सामने रखने

क कोिशश करता ह तब उसे उर िमलता ह

िक "आपको िकसने कहा ह खेती करो ? मत

करो अगर नुकसान का इतना ही डर ह तो।

जबकहाहीजाताहिकखेतीमौसमकभरोसे

खेला जानेवाला जुआ ह, तो य खेलते हो

इस जुए को? िकसी ने कहा ह या आपसे ?

मत करो खेती, कोई दूसरा काम करो।"3

शासन और सरकारी तं क उदासीनता से

रामसाद को फासँी का फदा अपनाना पड़ता

ह। रामसाद आमहया कर लेता ह।

यवथाकउदासीनतायहाँपरभीख़मनह

होतीबकवहअमानवीयताकापलेलेती

ह। रामसाद क आमहया को िकसान क

आमहया करार न देते ए सरकारी तं इसे

पागल क आमहया सािबत करने म जुट

जाता ह। मीिडया भी शासन और सरकारी

तं का ही साथ देता ह। मृयु क बाद भी

रामसाद को इस शोषण से मु नह िमल

पाती। तब सुशील िसाथ का कथन साथक

लगता ह िक "कौन ह जो वतं भारत म

वतंता से वंिचत ह ?" उर िमलता ह

रामसाद जैसे िकसान ! ऐसे िकसान क

वा क भूिमका पंकज सुबीर िनभाते ह

और िकसान जीवन क समया को वे

उपयास क मायम से अिभय करते ह

साथ ही िकसान जीवन क समया क

समाधानभीवेबतातेह।मुयधाराकसमाज

को वे समझाने क कोिशश करते ह िक

िकसानहीसमाजकोसबसेअिधकसबसीडी

सिदयसेदेताआरहाह।

पंकज सुबीर समाज म या समया

पुष धान समाज म उसका कई आयाम पर शोषण हो रहा ह। वह आज भी शोिषत, वंिचत ह। पंकज सुबीर ी का प लेते ए उसक शोषण को उजागर करते ह। 'ईट इिडया कपनी' कहानी संह क 'तमाशा' कहानी

कहानीमवेपुषिवमशपरचचाकरतेह।वे

कहानी क मायम से यह बताते ह िक आज

ऐसेभीकईपुषहजोपनीारातािड़तह।

कहानी क मैनेजर साहब पनी क तान और

उाहन से तंग आकर अपने जीवन को पूणिवराम देते ह। मैनेजर साहब क पीड़ा क मायम से पंकज सुबीर शोिषत पुष क शोषणकोअिभयकरतेह।

पंकज सुबीर वंिचत, शोिषत एवं हािशए क आवाज को िकसागोई क मायम से

तुत करते ह। उहने कथा सािहय म नई

भाषा,नयािशपऔरकईरोचकयोगिकए

ह। उनक उपयास

çàæßÙæâæçãUçˆØ·¤è जनवरी-माच 2023 9
एवं िवसंगितय को बारीक और बेबाक से अिभय करते ह। वतमान वैक दौर म आज भी लोग जाित, धम और संदाय क आधार पर भेदभाव करते ह। इस भेदभाव क िवसंगित को वे 'ईट इिडया कपनी' कहानी संह क 'क' कहानी म िचित करते ए वंिचत क पीड़ा को अिभय करते ह। कहानी म धम, संदाय और जाित तथा भूख कबीचकाजोसंघषहउसेमुखतासेय िकया ह। कहानी का मुख पा जफर मुलम समुदाय से ह। वह उस संदाय से होनेककारणउसेरोज़गारनहिमलपाताह। जफर क िकमत उसक धम क सामने हार जातीह।वहरोज़मराकज़रतपूरीनहकर पाता। धम और संदाय क कारण उसे भूखा रहना पड़ता ह। कहानी का पा िवनय कहता ह "जब पेट म रोिटयाँ छम-छम करक नाच रहीहो,तबहोताहआदमीिहदूयामुसलमान वरना तो हम एक ही जात क ह भूखमर क जात क। िहदू या मुसलमान होने का शौक पालना हमारी औकात से बाहर क चीज़ ह।"5 जफ़र को धम क कारण नौकरी नह िमलती। आज ऐसे कई संदभ िमलते ह तथा घटनाएँ िदखाई देती ह जहाँ कवल य का धम, संदाय और जाित देखी जाती ह। मनुय को मनुय क प म नह देखा जाता। जफ़र कहताहिक"जैसेहीमअपनानामबताता वैसे ही लोग क माथे पर िशकन पड़ जाती ह जैसे म मुसलमान ना होकर कोई जानवर ।"6 जफ़र जैसे वंिचत क पीड़ा को पंकज सुबीरअिभयदेतेह।'रामभरोसहोलीका मरना'यहकहानीभीइसमहवपूणह। आजीपुषकसाथहरेमिदखाई दे रही ह। लेिकन उसे शोषण से मु नह िमली ह।
ी िवमश और चेतना क संदभ म उेखनीय ह। यह प शैली म िलखी गई कहानी ह। एक युवती अपने िपता कोपिलखतीहयिकवहनहचाहतीिक उसकशादीमवेआएऔरअपनीउपथित दज कराकर अपना अिधकार जताए। िजस पुष ने उसे 'तमाशा' नाम िदया हो और माँ तथा दादी को उसक कारण बत कछ सहना पड़ा हो ऐसे िपता का वह िवरोध करती ह। 'मआ घटवारन और अय कहािनया'ँ कहानी संह क 'दो एकांत' कहानी ी जीवन क ासदी को अिभय करती ह। पुष वचववादी समाज म ी को िविभ पमवीकारिकयाजाताहलेिकनबेटीक पमआजभीसमाजअपनानेकिलएतैयार नह ह। इस िवडबना को वे िचित करते ह। कहानीमएकयुवकदादाजीकोपूछताहिक सारी लड़िकयाँ कहाँ चली गई ? इस पर दादाजी का जवाब िवचिलत करनेवाला ह। वे कहते ह िक "कह नह गई, हमने ख़म कर दी, हमने। हमने, हम जो दूसर हर प म ी कोपसंदकरतेथे,लेिकनबेटीकपमउसे देखतेहीहमजानेयाहोजाताह?"7बेटीक प म ी को वीकित न देना िचंता का िवषय ह। इस िचंता को पंकज सुबीर कट करते ह। 'चौपड़ क चुड़ले' कहानी संह म भीीशोषणकायथाथिचितआह। पंकज सुबीर बदलते समय क अनुसार िवमश क बदलती थितय को भी िचित करते ह। 'नकारखाने म पुष िवमश'.
और कहािनय क वतु और िशप दोन भावी ह और कहानी कहने क अंदाज म ऐसा देसीपन और पहचान ह िक वह पाठक को भाव व थित क एक नई ज़मीन पर ले जाकर खड़ा कर देती ह। पंकज सुबीर क कहािनयाँ असर लंबी होती ह, पर यह कहािनयाँ न ऊब पैदा करती ह और न थकाती ह। इनक कहािनयाँ पाठक को बांधे

रखते ह। इनक कहािनयाँ िकस से भरी ई

होती ह जो पाठक को ऊब से बचाती ह और

बांधे रखती ह। ऐसी सरल, सहज और

पाानुकल भाषा क मायम से वंिचत क

आवाज़ को पाठक तक पचाते ह। उनक

मुकिलएयनकरतेह।

पंकज सुबीर नई सदी क ऐसे चिचत

कथाकार ह जो वंिचत क पधर ह। उनक

शोषण को ख़म करने क िलए वे उनक

आवाज़बनजातेह।उनकावाबनकरवे

बेबाकसेउनकसमयाकािचणकरते

ह और अपनी लेखकय संवेदना का िवतार

करते ह। साथ ही समया क िनराकरण क

िलएसहीउपायभीबतातेह।पंकजसुबीरका

कथा सािहय मानवीय गुण से भरपूर ह। वे

मनुयता क थापना और िवकास क िलए िनरतर यनशील िदखाई देते ह। वे होरी क तरह रामसाद जैसे पा को गढ़ते ह जो संवेदनाकोझकझोरकरपाठककोसोचने

क िलए िववश करता ह। िकस क मायम

सेवेिकसान,ी,दिलतऔरशोिषतसमाज

का यथाथ कट करते ह। उनक ारा क गई मानवािधकार क सािहयक पहल आज

आंदोलन बन चुक ह। यह आंदोलन वंिचत

को मुय धारा म लाने क िनत ही

सफलहोगा,ऐसािवासह।

000

माँ का संघषपूण जीवन, उनका सहचय, ममव, ेह, पाता, वासयता

आमसा

करताह।उदाहरणकिलएिमथकका योग देख- उधर बुत ह बनी बैठी अिहया / इधर कछ राम क भी यतता ह। िबब का योगदेख-उतरआयाहोजैसेचाँदघरम/कहसेलायाहवहिबबटटका। अंततः यह कहा जा सकता ह िक यह पुतक माँ क संपूण जीवन संघष क कथा कहने क साथ-साथ संपूण य क जीवन, उनक अमता, मु, संघष तथा संवेदना क साथ जुड़तीनज़रआतीह।इसपुतककामुयपृ(कवर)हमख़ासाभािवतकरताह,मानोमाँ कसंपूणजीवनगाथारखाऔररगकमायमसेउकरदीगईहो। 000 सयम भारती राजकय इटर कॉलेज वा, उर देश पुतक समीा (ग़ज़ल संह) मेरी माँ म बसी ह समीक : सयम भारती लेखक : डॉ.भावना काशक : ेतवणा काशन

âæçãUçˆØ·¤è जनवरी-माच 2023

10 çàæßÙæ
आिद को
करनेवालीपुतक'मेरीमाँमबसीह...'
संदभ - 1.िवमश–अकाल म उसव (थिगत समय म फसे जीवन का आयान) – संपा. डॉ. सुधा ओम ढगरा, िशवना काशन, थम संकरण – जनवरी 2017, पृ. 25, 2.आिख़री छलांग – िशवमूित, नया ानोदय,जनवरी2008,पृ.79,3.अकालम उसव - पंकज सुबीर, िशवना काशन, संकरण 2017, पृ. 170, 4.िवमश –अकाल म उसव (थिगत समय म फसे जीवन का आयान) – संपा. डॉ. सुधा ओम ढगरा, िशवना काशन, थम संकरण –जनवरी 2017, पृ. 25, 5.ईट इिडया कपनी – पंकज सुबीर, भारतीय ानपीठ, संकरण 2009, प.ृ 12, 6.वही, प.ृ 12, 7.मआ घटवारीऔरअयकहािनयाँ–पंकजसुबीर, सामियककाशन,संकरण2012,पृ.151 ईह।डॉ.भावनाारािलिखतयहग़ज़लसंह'माँ'कसंपूणजीवनसंघषककथाकहनेक साथ-साथ संपूण ी जीवन क संवेदना, मु, संघष, दु:ख, दद, पीड़ा, अमता आिद सवालसेजुड़तीनज़रआतीह।माँऔरिपताकिदएएसंकारजीवनभरउनकऔलादक साथरहतेह,िजहयहसयसमाज'संकार'कसंादेताह।यहसंकारमाँकसाँचेमढल करहीअपनावातिवकपाकरताह।डॉ.भावनाइसपुतकममाँकबनाएगएसाँचे, ितमान और उनक संकार को शद म ढालती ह। माँ, इस वाथ दुिनया म दोत और सहचरबनकरहमेशाअपनेबेटऔरबेिटयकासाथदेतीह।माँकासाथ,ेहऔरआशीवाद ाकरकरामभीमयादापुषोमीरामकहलाए,माखनचोरभीारकाधीशबने,गणेशजी देवतामअणीकहलाए।माँकासाथअपनीऔलादकोनकवलमंिज़लकउुंगिशखर तकपचाताहबकइसदुिनयाकोदेखनेएवंसमझनेकाएकनयानज़रयाभीदानकरता ह- धीर-धीर ेिमल ख़त को दुहराऊ,
ेतवणकाशन,नईिदीसेकािशत
/ आखर-आखर जी लूँ उसम रम जाऊ, / साथ तुहारा यिदिमलजाएपहले-सा/पहलेजैसावरमकोरसमगाऊ।(पृसंया-22)
कलापपरअगरबातकजाएतोयहपुतकभावकअनुकलशद,रस,िबंब,तीक आिदकायोगकरतीनज़रआतीह।लोकमचिलतशदाविलयकसाथअंेज़़ी,फारसी, उदूआिदकशदकाभीयोगिकयागयाह।लोकमचिलतदंतकथा,िमथक,गाथाआिद कभावऔरसीखभीइनग़ज़लमशािमलिकयागयाह।शदकाचयनसरलएवंभावपूण ह।तीकऔरिबंबकानवीनयोगहमख़ासाभािवत

(कहानी संह)

क सबसे सद

रात

समीक : डॉ. राकश शु

कपना मनोरमा

लेखक : कण िबहारी काशक : िशवना काशन, सीहोर

म 466001

अकिमआयानकभावशालीयंजना डॉ.राकशशु कणिबहारीककहािनयाँपढ़तेएजोबातज़हेनमसबसेपहलेआतीह,यहिक

देशकराजधानीमनाथ-ईटडसकएकबराीयकपनीमकायरतमहक शुा क जीवन, मनःथितय तथा अतव क जोजहद क साथ उसक हष-

चलती रहती ह। कहानी म भारतीय और पााय परपरा तथा जीवन-मूय क अंतिवरोध क यंजनाकसाथख़ासाबौिकिवमशभीह।इसेपढ़तेएमहसूसहोताहिकयिदकहानी को िज़ंदगी का ितप मान ल, तो िज़ंदगी िजतनी संघषशील, ंामक, रहयमय और दाशिनक चीज़ ह; उतनी ही कहानी भी। तभी तो कथाकार का यह कथन िकतना ासंिगक ह, "कभी-कभी कहािनयाँ और कभी-कभी जीवन एक-दूसर

डॉ. राकश शु

117/254-ए, पी-लॉक, िहतकारी नगर, काकादेव, कानपुर -208025

मोबाइल- 9839970460

ईमेल- rakeshshukla940@gmail.com

कपना मनोरमा

मोबाइल- 8953654363

ईमेल-kalpanamanorama@gmail.com

çàæßÙæâæçãUçˆØ·¤è जनवरी-माच
11
2023
क म पुतक
िज़ंदगी
उनका सृजनामकमनसामियकयाताकािलकमहवकिवषयकोभीअनूठिशपमढाललेताह। उहकथानककतलाशनहकरनीपड़तीह।टॉलटॉयकशदम,"कथानकसदाजीवनक कोलाहल से, वतमान समय क जीवंत अंतिवरोध से उप होता ह। यह िकसी सामािजक अंतिवरोध क कटीकरण क चाबी ह।" उ कसौटी पर कण िबहारी क कहािनयाँ खरी उतरती ह। ये जीवन क तरह ही वाभािवक और अकिम आयान क भावशाली यंजना ह।फ़ामूलाबतासेरिहतसहजताउनककलाकपहचानह। 'िज़ंदगीकसबसेसदरात'उनकासोलहवाँकहानीसंहह,िजसमशािमलदसकहािनयाँ जीवनकअलग-अलगरगकोपूरीकलामकतासेअिभयकरतीह। 'डबक'मगाँवकलोक-जीवनऔरवहाँकअनुभवकिवरासपदाह।कमलाअथात डबककाजीवनगाँवमबहतीआमीनदीकिबनाअधूराह।कथाकारकशदम,"आमीक पानीकोकमिलयासेयारहोगयाह,याकमिलयापानीमजलकरानीहोगईहयहबतापाना किठन था।" लोक सप कहानीकार ने नदी क ित एक अंयज तथा अिशित युवती क िजस आमीय अनुराग को य िकया ह, वह अुत ह। िसकहरा ताल से िनकलने वाली आमीनदीमडबकलगाकरउसपारिनकलजानेवालीकमिलयाकाजबगौनाहोताहतोवह दुःखीहोकरअपनेिपतासेकहतीह,"बाबू...नीिबनाहमकइसेजीयब?" हमकहसकते ह िक एक ी भी नदी क तरह होती ह, यिक उसम भी नदी जैसी शीतलता और सृ को सपकरनेकागुणिवमानह।मनुयसयताकिवकासममनिदयाँहमारीाण-धाराएँ रही ह, यह िवान क िवमश का िवषय हो सकता ह, पर लोक जीवन म उनका िकतना महव ह,यहइसकहानीसेिस
"जब
कोभीबड़ीिशतसेउठातीह।हरकारसे सुखी-सप, लाख डॉलर क पैकज वाले आज क युवा क दापय या अय पारवारक, रागामक सबध अयंत खोखले हो गए ह; इस खालीपन को भरने क कवायद सारी िज़ंदगी
क सामने चुनौती बनकर खड़ हो जाते ह। तय करना मुकल हो जाता ह िक दोन म आयजनक कौन ह? रिगतान क बीच जबरनिखलाएगएफलकोिजसतरहहरदमजीिवतनहरखाजासकताउसीतरहजीवनक साथ अपनी मनमानी नह चलती। कछ बात ऊपर वाले पर छोड़कर मु हो लेना चािहए। यिककछसवालकजवाबकभीनहिमलते।" कण िबहारी जी रोज़मरा क सामाय-सी घटना पर भी साथक कहािनयाँ िलख लेते ह। इनम जो यथाथ यंिजत होता ह; उसम मानवीय भाव-बोध ह। 'बादशाह' का रशाचालक सचमुचकाबादशाहह,जोनिसफ़रोज़कथानायककहालचालपूछताह;बकगंतय पर पचकरउसकारापैसेिदएजानेपरयहकहनानहभूलतािक,"बाबूजी,पैसेनहतोनद, और..पैसेचािहएतोहमदआपको।" 'अकला चना' िसफ़ खाड़ी-देश म कल क बंधतं क मनमानी और तानाशाही क
होताह।
पहले क तीन शािदय से शी नह िमली तो चौथी से िमलेगी, इसक या गारटी ह?"खाड़ी-
िवषाद को दशातीयहकहानीकाँ ट-मैरज-जैसेसवाल

कहानी नह, बक सभी पलक कल क

कहानी ह, जहाँ एक िशक अपने अिधकार

किलएलड़ताह।िसफ़अपनेिलएनह;वह

उन सबक िलए लड़ता ह, जो लड़ाई क िलए

कभी िहमत नह जुटा पाते ह। इस कहानी म

खाड़ी-देश क िवकास क अतकथा भी

बड़ी रोचक ह, जहाँ कभी कबीलाई संकित

थी।आपसममारकाटहोतीथी।औरजहाँक

लोग कभी समुी लुटर थे, वहाँ तेल या

िनकला िक दुिनया भर क कपिनयाँ उसे

िनकालने दौड़ पड़, और पेो-डॉलर क

चलते'कलकलुटर-िभखारीआजकरॉयल

फ़िमली हो गए।' कहानीकार का बत-सा समय नौकरी क दौरान यू. ए. ई. म बीता ह, इसिलए वहाँ क सामािजक जीवन, िवशेषकर वासी भारतीय समाज का बत ही बारीक िवेषण ह। शुक या नीरस िवषय पर

रोचक कहािनयाँ रचनाकार क कलामक

उकताकाउदाहरणह।

'सेन चाइड' म िवािथय क

िनरकशता क समया को उठाया गया ह।

का म अनुशासन न हो तो, और िकसी

िवाथकोडाँट दतोभीिशककनौकरी

जाना तय ह। कहानीकार क शद म, "फ़ाताएवेिदनजबिंिसपलऔरकल

मैनेजमट अपने िशक क मान-समान को

सबसे ऊपर रखते थे, और ब क माँ-बाप

भीगुजीकासमानकरतेथे।मगरअबवह

ज़माना बीत गया।" ऐसे म एक तथाकिथत

सेन चाइड क अजीबोग़रीब हरकत सार

कल क िलए िचंता का सबब बनती ह।

कतूहलसेपरपूणयहकहानीआजकिशा

यवथा पर भी करारा यंय करती ह। अपने

कयऔरिशपमभीयहबेहतरीनह।

कणिबहारीककहािनयमअनुभवका

वैिवय ह। वासी भारतीय क सामािजक

जीवन क जैसी अिभय उनक उनक

कलम से ई ह, अय नह िदखाई देती।

उनकजीवन-औरमानवीयसरोकारइन

कहािनय को साथकता दान करते ह। 'दो

लाख का थपड़' म म पाटनर दो िम क बीच होने वाला छोटा-सा झगड़ा कसे

को मानती ह; पर मुलम सदाय क ढकोसल क हसी भी उड़ाती ह। मूय-संमण क दौर म कहानीकार ने भारतीय जीवन मूय क ासंिगकता को भी दशाया ह। कथानायक क शद म, "म पूछना चाहता था िक या अनकचडकोसयनहबनायाजासकता? म बताना चाहता था िक िहदुतान म यिद तीन तलाक देने

इसक कथावतु ह। कथानायक कशदम,"भिवयकयोजनाएबनतऔर बस एक मुकाम पर ख़ामोशी क हवाले हो

जातिकदोनघरकलोगअगरमानजातेतो

सब कछ शी-शी सभव होता। लेिकन

ज़माना वह था, िजसमे मोहबत घर-परवार क आगे िसर पटकती थ। ललुहान आ

करतीथ।दमतोड़तीथ।"

को िनभा ले जाने म ही रत का महवसमझतेह।" मानवीय-पधरता क कारण इन कहािनय म संवेदना का ताप ह। 'कमा' क एम.ए. बी एड. बेरोजगार यूसुफ़ को उसका

कण िबहारी जी बत सादगी क साथ कथा-संयोजन करते ह। वे कलामकता क थान पर सेषणीयता और िकसागोई को िवशेषमहवदेतेह।देश,कालऔरवातारण क जीवंत तुित इनका िवशेष गुण ह। कलिमलाकर यापक समाज म संवेदना

जातकरनाहीकहािनयकाउेयह। 000

मानवीयमनकउथल-पुथल

कपनामनोरमा

'िज़ंदगी क सबसे सद रात' कहािनय म

और एकिदनकथानायककसलाहपरवहअपने देश म ही खी-सूखी खाने, और तीारत

तथापनीतथापरवारकमुहबतकोमहव देताह। 'अभागी' म कोरोना-काल मएक कामवाली क यथा-कथा, उसक यातना और

िजतनी िशत से भारत का लोक-जीवन

आया ह, उतनी ही गरमा और सौव क

साथ अबु धाबी का परवेश, समाज, कचर, हाव-भाव और जीवन-यवहार भी पढ़ने को

िमलताह।कहाजाताहिकएकरचनाकारक

िलए मण अित आवयक ह। इस मामले म

लेखक का अनुभव सघन ह।

âæçãUçˆØ·¤è जनवरी-माच 2023

12 çàæßÙæ
'ितल का ताड़' बन जाता ह। इसे रोचक ढग से तुत िकया गया ह। 'सविया' भी उसी परवेश क कहानी ह, िजसका कथानक िवतृत ह। अंतरराीय या वैक परय क उर आधुिनक समाज क सांकितक तथा धम क संकण दायर म ी-मु का कछ हद तक तीक ह कथानाियका सूडानी मूल क सैली, जो इलाम
क सुिवधा
िमल
तो पानबे ितशत शािदय का भिवय एक िमनटसेभीकमसमयमतयहोजाए।लेिकन ऐसा न होने क कारण ही तलाक जैसी बात कभी-कभी ही सुनने म आती ह। िहदुतानी लोग शादी
ससुर
उसक लॉी ह, लेिकन वह तो अपनी अिभिच का काय िशण करना चाहता ह। िवडबना यह िक वहाँ उसे कल-बस क ीनरी करनी पड़तीह।उसेबसतथाकलकासस और टॉयलेट तक साफ़ करने पड़ते ह।
सबको
जाए,
खाड़ी-देश ले आता ह, जहाँ
पीड़ा को पढ़ते ए हमारी आँखसजल हो जाती ह। िकसी क सहायता लेने पर एक सुंदर ी का आशंिकत होना वाभािवक ही ह। ऐसे म एक िनछल बुग ारा पैसा वापस न िकये जाने क शत पर िकया गया आिथक सहयोग, कछ िदन बाद िजनक कोरोनासेमृयुहोजातीह,आिदिववरणइस कहानीकोअपूवऊचाईदानकरतेह। शीषक कहानी 'िज़ंदगी क सबसे सद रात'मािमकेमकथाह,असफलेमकथा। लैशबैक म चलती यह ेम कहानी हमार अंतःकरण को आलोिड़त करती ह। बेपनाह मोहबत करने वाले एक जोड़ क सहजीवन मपरणितनहोपाना।ेम-मृितय कपूँजी सहाले कथानायक का आजीवन एकाक रहना, और ेयसी वेदांगी का पित क िनरतर उपेा और ताड़ना से अततः िवि हो जाना आिद,
कहािनयाँ पढ़ते एयहपिदखाईपड़ताह। संह क पहली कहानी भारतीय ज़मीन कह।'डबक'कहानीमआमीनदीकचचा कसाथकमलाकजीवटकबातभीिशत से कही गई ह। पेवन और िनहोरया को जब बेटीहोतीहतोबभनौटीकतरहयेदोनदुःख मनाने क जगह पंिडत क पास जाकर अपनी

नवजात पुी क िलए नाम िवचरवाते ह।

पंिडत उस बी का नाम कमला रख देते ह

लेिकन माँ-बाप को कमला कहने म ेह

तीत होता ह इसिलए वे लाड़ से उसे

'कमिलया'यादापुकारतेह।लमीकाएक

नाम कमला भी ह इसिलए बेटी को वे दोन

ग़रीब दपि अपने िलए भायशाली मानते

ह। न जाने चलते-िघसटते कमला को आमी

नदी से कब यार हो जाता ह। कहानी क

भाव-भूिम का अंदाज़ा इस वाय से लगाया

जा सकता ह। "कहानी उस डबक क ह

िजसेअगरमौकािमलतातोनजानेकबउसने

मिहला तैराक म िहदुतान का नाम रोशन

कर िदया होता।"यह कहानी मिहला

सशकरणकबातकरतीह।

'ढाक क मलमल' कहानी इस वाय से शु होती ह। "कहानी खाड़ी देश क

राजधानी म नाथ ईट डर ब क वह

शाम" ऑिफस टाफ़ अपने परवार क साथ

एक ब म पाट क िलए इका ह, उसम

कछ लोग िबना परवार क भी पचे ह, कछ

लोग नई ाइिनंग वाले भी पचते ह। महक

शुा नाम क लड़क अनवर क साथ पाट

म शािमल होती ह। िजसे अनवर अपने दोत

से िमलवाता ह। महक शुा को देखते ही

कथा क नैरटर क मुँह से अचानक उसका

नाम 'मलमल' िनकल जाता ह। िजसे सुनकर

उसका एक िम बेहद खुश होकर कह उठता

ह, "या नामकरण िकया ह!" कछ समय

बाद महक शुा को अपना नाम 'मलमल'

पसंद आने लगता ह। वह अपने बदले ए

नाम मलमल से िचढ़ती नह ह बक धीर-

धीरअपनेबारमअनवरकोबतातीचलतीह।

अनवरकोपताचलताहिकमहकशुाक

तीनशािदयाँहोचुकहऔरिजसशादीमवह

अभीबसरकररहीह,वहमहजएककांट

ह जो ख़म होने जा रहा ह लेिकन उस

समझौते वाली शादी को महक शुा बचा

लेना चाहती ह। समझौते म बधँा वाटम नह

चाहता िक उसक

दो-चार हज़ार क मदद म कभी भी कर सकता ।" िजसे सुनकर कथानायक हतभ सोचने लगता ह िक आिख़र

करती ह। 'अकला चना', 'सेन चाइड' और 'कमा' कहािनय म िवालयी दाँव-पच क बारीक पीकारी ह। कसे एक एलाई को शोिषत िकया जाता ह, कसे िबना सहीबताएउसेइतनाटॉचरकरउसथितम पचा दो िक वह इतीफ़ा वयं िलख दे और उसका िहसाब-िकताब भी ठीक से न करते

चोट से घायल ह।"

इसक बाद कथानायक अपनी अशरीरी हो

चुक ेिमका को जब याद करता ह तो मन

कचोटकसाथभारीहोताचलताह।

मानवीय मन क उथल-पुथल म िनब

कहानी संह को पढ़ना यानी िक भारत और खाड़ी देश क जन-जीवन क संघष को

नजदीकसेदेखनाऔरजाननाह,साथमयह

भीसमझनाहिकसमाजचाहजहाँकाभीहो, लोग और उनक जीवन क संघष, आशा, िनराशा, उसव और ांितयाँ एक जैसी

çàæßÙæâæçãUçˆØ·¤è जनवरी-माच
13
2023
बीवी को िकसी भी कार से पता चले िक वह िकसी अय ी क साथ कांटमिववािहतपुषकतरहरहरहाह। कांटख़महोनेकबादवहमहकशुक साथ न रहकर अपनी पनी क साथ रहना चाहता ह। ये कहानी बेहद दद समेट ए िदखी। अंत म कथा नाियका कहती ह, "अनवर ढाक क मलमल क तरह म भी।" यानी िक ढाका क मलमल िफर भी सोलह चरणसेगुज़रकरकमसेकम'मलमल'बन जाती ह लेिकन चार शािदयाँ करने क बाद भी महकशुाकोशादीकासुखनहिमलताह और वह अमेरका लौटने का िनय कर लेती ह। कहानी क बुनावट म ढाका क मलमल जैसा ी-जीवन क दुखद चरण भी ह। ‘बादशाह'कहानीपरतदारह।एकरशा चालक जब ये जान जाता ह िक उसक रशे मबैठायकहानीिलखताहतोवहथोड़ा िवचार कर कहता ह िक,"पैसे न ह तो ना दो बाबूजी और कभी पैस क ज़रत पड़, हम से कहना यादा नह लेिकन
रामआसर ने ये य कहा? दूसर कहानी उस य क बात कहती ह जो िकसीभीहालतमघर-परवार,रतेदारऔर एक आम य क भी मदद करने क िलए तपर ह यिक उसक पास संतोष ह और िजतना वह कमाता ह वह उसक िलए काफ़ ह। आज क भागमभागी सयता म जुते य को ककर सोचने क िलए ये कहानी मजबूर
म घुमाते रहना, दद से भर देता ह। दूसरी कहानी म िकस कदर िशा यवथा पर अिभभावक का दबदबा बढ़ता जा रहा ह और एक िशक िकतना िनरीह ाणी बनता जा रहा ह िक उसक गदन नहोजैसेमुगकगदनबनगईह,िजसेकभी भी मरोड़ िदया जा सकता ह। 'कमा' कहानी बतातीहिकबाहरकदेशमपैसेतभीकमाए जा सकते ह जब आपक पास कािबिलयत होगी और साथ म ये भी िक एक दूसर क मदद करक दुिनया को बदरग होने से बचाया जासकताह। 'दोलाखकाथपड़'कहानीकिलएयही कगीिकयेकहानीबतयारीह।जबऐसा दौरचलरहाहोिकजहाँअपनेकामबनानेक िलए िमता को भी इतेमाल कर िलया जाता हो वह इस कहानी का नायक अपने िम क िलए कसे नद हराम कर पूरी रात उसक तीमारदारी म िबता देता ह। 'सविया' कहानी पढ़ते ए बार-बार हसी आती रही। ऐसा नह िक कहानी म सब हसने क बाबत ही िलखा गयाहो।इनदोनकहािनयमअरबीशदक योग ने जीवतता बढ़ा दी ह और परवेश िवशनीय लगने लगा ह। 'अभागी' और 'िज़ंदगी क सबसे सद रात' कहानी म सवेदना को इस कदर बुना गया ह िक िकरदारकमायमसेजीवनकउतार-चढ़ाव को ये कहािनयाँ िचांिकत करती चलती ह और पढ़ने वाले को लगने लगता ह िक कोई सामने बैठा अपने जीवन क ख-मीठ अनुभव सुनाए जा रहा ह। कहानी थोड़ी दूर चलती ह िक एक कथानायक का संवाद आता ह,"मेरी मुहबत ललुहान ह। खून से लथपथ ह अनिगनत
ए लछदार वाद-बात
होती ह। िनत प से इन कहािनय को पढ़ा जाना चािहए यिक इन कहािनय म कपना िकतनी ह, का तो पता नह लेिकन यथाथ कय क धरातल पर अपनी बात मज़बूती से कहतािदखाईपड़ताह। 000

पुतक समीा

(किवता संह)

समीक : राज बोहर लेखक : शैले शरण

काशक : िशवना काशन, सीहोर, म 466001

शैल शरण एक िवचारशील किव ह वे अपनी किवता म दशन िवचार और सामािजकता को शािमल करते

सपकतरह/सरसराकरभागजाए।।(पृ18)

'नेमलेट'मिपताकोिशतसेयादकरतेकिविलखते

इसकिवताकअंितमपंयाँयहयकरतीहिकअबिपतानहह,िजहनायकयाद कररहाहलेिकनिफरभीअंततकआते-आतेकभीकिवकमरहजाताह,मनुयऔरमािमक यरहजाताह।तभीउसमकिवताभाषाकछकमहोजातीह। इस संह क सबसे लंबी किवता मॉब िलिचंग:कछ किवताएँ ह। एक ही िवषय

14 çàæßÙæâæçãUçˆØ·¤è जनवरी-माच 2023
सूखे प
चलते ए
पर
ह। यह शािमल करना सायास नह अनायास होता ह यानी यह सब उनक िचंतन म शािमल ह। तभी तो किवता िलखते व वह सहज प से किवता म आ जाता ह। शैल शरण का किवता संह 'सूखे प पर चलते ए' िशवना काशन से िपछले िदन कािशत होकर आया ह। इस संह क सारी किवताएँ किव क वैचारक प क साथ-साथ उनकसहजपसेपयवेणऔरसमाजमशािमलमुपरअपनेिवचारकटकरतीह।हर किवतायूँतोिवचारसेहीगहराईपातीह,वेकिवताएँिजनमिवचारनहहोता,उहमहजसंगीत क साथ गा लेने भर क रचनाएँ माना जाता ह। लेिकन आज किवता वैचारक समृि और वैचारकउपथितककारणहीमहवपूणयामहवहीनहोतीह। इससंहमकछख़ासमुपरकिवकिलखीगईकिवताएँशािमलह।इनकिवतासे गुज़रने क बाद हम महसूस करते ह िक किव इस संह म यादा परप होकर पाठक क सामनेआएह।उनककिवता'संबोधनिकसानकिलए'देिखएिकसान.../करो/इतनाकरो/िकआजकरनेको/कछबाकनारह मौतआएऔरकह/"चलो"/तुमहाथबढ़ाकरकहो/चलो...कहाँचलनाह औरमौत/राता
किवता
ह िपतानेमुझेजूझनािसखाया/इससंघषमबतबारहारा/हाथमशिलएडरतारहा/ गंभीर मसल म शत पर अड़ा रहा / ज़री माण क बदले तक िदए /कल िमलाकर िमया और अिनतता का वलय रचता रहा / सोचता िनंतता का वह नीला आसमान कहाँ से लाऊ/जोअबतकमाथेपरभरोसाबनातनरहा।(पृ19)
भटक
पर अनेक किवताएँिलखनेकपरपरािहदीमशुसेरहीह।आजकसमाजऔरराजनीितकपरयम 'मॉबिलिचंग'ऐसीदहशतभरीखतरनाकघटनाह,जोमनुयकिववेककोहरलेतीह,मनुय कधैयकोख़मकरदेतीह।मॉबिलिचंग:कछकिवताएँमकिवनेअनेककिवताएँिलखीह। इसम पहली किवता ह- वे लोग जो / भीड़ बनकर मुझे पीट रह थे / चुप नह थे / आोश म उनक मुयाँ और दांत / एक साथ िभंच जाते / मुँह खुलता तो गोली सी गािलयाँ िनकलती / बोल...जय बोल बोल...जय../ म उस समय वही कहता गया जो वे लोग चाहते थे / वे सब हया क जुनून म थे / जब म बेसुध होकर पलक मूंद रहा था / मने देखा / मोहमद और राम दोनभीड़कपीछखड़ह। पीछयानीकिवकहनाचाहताहिकवेदोनअसहायसेअपनेबंदकअिववेकभीड़को राज बोहर मोबाइल- 9826689939

देखरहहऔरकछकरनहपारहह।

यह एक सावभौम िनयम ह िक सारा

सािहय इसी समाज से रचा जाता ह। यही

िमलती ह किवता क परथितयाँ, अनुभूितयाँ और शदावली या यही िमलते ह

रचना क िवषय उपयास क िवषय। किव

क एक किवता ह - िवषय यह पैदा होते ह

इसमवेिलखतेह-आदमीकजीवनसंिहता

महीिवषयपैदाहोतेह/दजकरनाचाहता

िफलहाल / नद म सर उठाकर छटपटाती /

दूरसेआतीई,कराह...किवताम/वैसेभी

कछ उस पर कहािनयाँ िलखने म यत ह /

औरकछउपयासिलखनेकतैयारीम।

एक और उदहारण : वैसे तो पूरा का पूरा

उपयास ह वह / संास क इद-िगद भटकता

आ / टकड़ा टकड़ा जुड़कर महानगर क

लोकलमलटकाआ।

हम सभी ने कोिवड-19 क दौरान

भयानक िवथापन देखा - आज़ादी क बाद

कासबसेबड़ािवथापन।अतरकबातयह

थी िक आज़ादी क िवथापन म िहसा साथ म

थी, सड़क पर चल रहा य हर कदम इस

दहशतमथािककोईकािफलाउनपरहमला ना कर दे, लेिकन इस तुरत गुज़र चुक

िवथापन म ऐसे कोई भय नह थे, डर नह

थे। कभी कभार पुिलस वाल क डाटँ

फटकार, समझाइश, क अलावा भूख और

थकान क हमले ही ऐसे िवथापन क ख़तर

थे। लेिकन थोड़ी राहत, थोड़ सुताने और

थोड़ी सी िनंतता िमल जाने, सहयोग िमल

जाने क बाद यह कािफले आराम से अपने

घर तक पचे। किव ने अपने समकाल क

इस घटना को किवता 'लॉकडाउन म

िवथापन' म िलखा ह- बोझा लादे ब का

हाथथामे/बोतलमभीगेचनेलेकरचलेहगे /पतानहसूबचाभीहोगाउनकपास/या

वैसेहीख़महोचुकाहोगा/जैसेमािलकपर

िवास ... / कएँ क पास क हगे / तब

िबनारसी-बाटी/उनकयास/ऊपरक

जेबमरखीरज़गारीक

करती ह। ऐसी किवता म मृयु क आशंका क बीच, शमशान, मं का शयशोधन, कोई रात, ढलकर पक जाने क बाद, ह देव, सच को सच क तरह, िशखंडी होने पर, मंथन, िवपरीतकसेजीलेतेहोयार,जोिनयंितनह होते,ढलानपर,)अंततः,शािमलह। सँह क अनेक किवताएँ

िसांत और उनक िवेषण क बाद िलखी

और इस तरह मनोगत िवेषण

यहपैदाहोतेह,याक

सुख को, राधेयाम ितवारी, का नाम िलयाजासकताह।

भी करते ह और उह एक नए अथ म आयोिजत भी करते ह। कित से जुड़ी किवता म नदी, िवपरीत कसे जी लेते हो यार, पृवी, जल, अन, आकाश, और वायु, क नाम िलए जा सकते ह। आिख़री पाँच किवताएँ पृवी, जल, अन, आकाश, वायु तो मनुय देह क पंच

तव पर कित ह। िजन पर एक नए और भावशालीतरीकसेशैलशरणनेकिवताएँ िलखीह।

करते ए किवता िलखते ह, िकसी

मवेेिमकाकोसंबोिधतकरतेहतोिकसीम

पनी को। संह क किवता ओ िवदुषी, रगमंच,बूढ़ाजोहोचुकाथा,ेकअप,आप

से नह डरती, पहली बार, सहयाी, पतझड़

यथाथ और बदलते समय क परथितयाँ भी किव क नज़र से छटी नह ह।वेिवकास,बदलतेसमयममेराशहर,इन िदन सपना, मॉब-िलंिचंग कछ किवताएँ, बसंत आने क संकत, लॉक डाउन म िवथापन, क मायम से बदलते समय क थितय को िचित ही नह करते बक उन परएकवैचारकिटपणीभीदेतेह।

किव िपता पर 'नेम लेट ' और 'खपरल

कछत'

çàæßÙæ
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हीकएँ म भीतर िगर गई होगी.../ पता नह वह मेर शहर का नाम जानते भी ह या नह / पते क डायरी छटी होगी बदहवासी म / नंबर तो अवय होगा उनक फ़ोन म / या या पता बैटरी चली गई हो / मने नह देखा उह .../ बूढ़होनेकोआएहगेिपताकतरहरतोपर बरस क जमी काई पर / िफसलने लगे हगे यादकपैर। शैल शरण क सबसे अिधक किवताएँ दशन पर आधारत ह। इस तरह क किवताएँ नकवलकिवकिवचारपकोकटकरती हबकभारतीयसंकितऔरभारतीयदशन क अनेक मुे कट
तरह/झाँकते
मनोवैािनक
मनोवैािनक
क बाद िनकलते ए िनकष पर कित ह। ऐसी किवतामसपनकपांडिलिप,अकलेपन कासदी,िवषय
क गई
ेम
ह, अपनी पनी क ित भी और ेिमका क ित भी। संह म किव अपने ेम क बात य को संबोिधत
गई ह और वे मनुय क ंद,
िचंतन
इस
संहमेमऔरदांपयपरभीबबात
ह। मनुय का कीय भाव ेम ह। यह
अपने परजन क ित भी होता
क ठीक बाद, किवताएँ िचहत क जा सकती ह िजनम ेम क गहराई और दांपय का माधुय भी अलग-अलग किवता म आयाह। किव ी (या कह लड़क) क ित सहानुभूित नह बक समानुभूित अनुभूित क तर पर िचंतन करते ह उनक कछ किवताएँ लड़िकय, यािय क मानिसक ं पर कित हऐसी किवता म इतजार:एक य, एक अनचाही याा, एक और सच, समझौता,जोिनयंितनहहोते,कनामिलए जासकतेह। कोई भी रचनाकार किव हो या कहानीकार और चाह यंयकार या िनबंधकार हो वह अपने आसपास क वातावरण यानी कित, कदरत, जलवायु और पृवी को अनदेखा नह कर सकता अगर वह रचनाकार ह, तो उसका पहला ेम कदरत ह, कित ह, जलवायु ह, अपना वातावरण ह। एक युग था जब हर किव बतायत म कित पर ही किवताएँ िलखता था। उन िदन पेड़, िचिड़या, नदी, तार, जानवर आिद किवता क िवषय आ करते थे। लेिकन इस संह म शैल शरण कवल ाकितक वणन नह करते, बक कित क उपादान का मानवीकरण
किवतामिपताकेमबारमलेिकन तािकक भाव से किवता िलखता ह तो ेम और वासय का गठजोड़ किवता म माँ को बतिशतसेयादकरताह। िकसान- मजदूर को संबंिधत उनक किवताएँ 'संबोधन िकसान क िलए ' और 'इछा क गाथा' ह तो महानगरीय बोध

यानी आधुिनकता पर उनक किवता तथागत

हम कहाँ जाएँगे, अयाय भूलते ए, याद

करते करने लायक किवताएँ ह। जलवायु

कह, बदलता समय कह या अपनी जमभूिम

से लगाव क किवता डब क बाद एक य

हरसूद, संह क सबसे मािमक किवता कही

जा सकती ह। किव ने अपने तरीक से नए

तीक बनाए ह, तो राजनीितक वातावरण पर

भी अपनी बेबाक िटपणी दी ह। ऐसे नए

तीक और राजनीितक वातावरण पर िलखी

गईउनककिवतासॉिबट,मेरीभेड़,कनाम

िलए जा सकते ह। समाज म बदलती, या

होती मायता पर उनक किवता ओ महानुभाव,मेरीटोपीछीनली,आदमीनेकहा

जीमािलक कनामउेखनीयह।

आज मनुय क सामने देह महवपूण ह, यश नह ह, नाम नह ह। ऐसी किवता म िनशानदेही, कह भी जा सकता क नाम िलए जा सकते ह। किव अपने बचपन को

भूलता नह ह, वह अपने प को याद करता

आ पर कल म क िदन कछ िच नामक

किवताएँइसमशािमलकरताह।

इससंहसेगुज़रनेकबादहमअगरठड

िदमाग से िवचार कर तो महसूस होता ह िक

किवकवरपहलेसँहकतुलनामयादा

तीखेएह,यायूँकहिकपहलेसंहकबाद

इस दूसर संह म उहने अपनी यादा

तकशील किवताएँ रखी ह। इन किवता से

किव का वैचारक प कट होता ह।

हालांिक एक अंितम िनणय, िवचारधारा क

िनधारतकरनेवाले पकाअंितम असइन किवता से कट नह होता। यह नह कह

सकते िक किव िकसक साथ खड़ा ह, िकस िवचारधारा को मानता ह, िफर भी हर रचनाकार क िवचारधारा मानवतावादी होती हीह।मानवकिलएसंघषकरता,वंिचतक बात को उजागर करता हर रचनाकार ही

जनमानस को वीकार योय होता ह। नेता

क,साधीशकशतगाताकोईभीकिव

जनतावीकारनहकरती।

इस संह क किवता म आम आदमी

क पीड़ा, हताशा और

ह, समाज क किव ह। हालािँक हम उह मज़दूर क किव, िकसान क किव या समाज क अंितम जन क किव नह कह सकते, िफर भी मयवगक,क़बाईसमाजककिवह।

इस संह क किवता को देख तो भारतीय दशन क मु को उठाते किव क पमशरणइससंहमसामनेआएह।

हमआशाकरतेहिकउनककाययाा म आगे

आलेख, कहानी क साथ अपना िच तथा संि सा परचय भी भेज। पुतक

समीा का वागत ह, समीाएँ अिधक

लबी नह ह, सारगिभत ह। समीा क

साथ पुतक क कवर का िच, लेखक का

िच तथा काशन संबंधी आवयक जानकारयाँ भी अवय भेज। एक अंक म आपकिकसीभीिवधाकरचना(समीाक अलावा)यिदकािशतहोचुकहतोअगली

रचनाकिलएतीनअंककतीाकर।एक

बार म अपनी एक ही िवधा क रचना भेज, एक साथ कई िवधा म अपनी रचनाएँ न भेज।रचनाएँभेजनेसेपूवएकबारपिकाम कािशत हो रही रचना को अवय देख। रचनाभेजनेकबादवीकितहतुतीाकर, बार-बार ईमेल नह कर,

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ं को किव ने कट िकयाह।इससंहकछकिवताएँकमज़ोरभी ह। ये कछक ऐसी ऐसी किवताए ह िजनम किव पहली कछ पंय म एक मुे को सही ठहराते ह तो दूसर और तीसर पद म िवकिसत अलग मुे को सही ठहराने लगते ह।किवताकीकतनहरहपाती।िबखरीई सीलगतीह।किवताकामूलभावकिवताको पढ़ते-पढ़तेतकसमझमनहआता। कायभाषाकोलेकरभीकछकिवता पर पुनिवचार िकया जा सकता था। पहले संह म किव िजस काय भाषा क साथ तुत ए थे, इस संह क कछ किवता म वह काय भाषा य क य नह रही ह। तकशीलतायावैचारकदबावदोनोमकारण जो भी रहा हो, किव इस संह क किवता म वैसे ही सरल कट नह हो पा रह ह। यािन इस संह क कछ किवताएँ किठन ह, लगता हजैसेबुवगकिलएिलखीगह।संभव ह संपािदत करते समय, किवता का आकार घटाते समय यह अनजाने म हो गई जदबाजी हो या िवचार किवता क ित आह क कारण जानबूझकर कला और काय वैभव क अनदेखी करते ए किव सायास योजना हो। अलबा किवता म एक ख़ास भाषा, ख़ास अंदाज़, हौसले क तलाश करता पाठक कछ किवता म ऐसे जुमले अंदाज़कोनहपाताहतोिनराशहोताह। किव शैल शरण जनता क किव
कई सोपान आएँगे, िजनम वे मोहक काय भाषा, भावशाली शद संसार और अपनी पहले संह जैसी काय िशप क किवता क साथ 'सूखे प पर चलते ए' नामक इस किवता संह को इससे अिधक गहन िवचारशील तेवर साथ लेकर कट हगे। 000 लेखक से अनुरोध ‘िशवना सािहयक' म सभी लेखक का वागत ह। अपनी मौिलक, अकािशत रचनाएँ ही भेज। पिका म राजनैितक तथा िववादापद िवषय पर रचनाएँ कािशत नह क जाएँगी। रचना को वीकार या अवीकार करने का पूण अिधकार संपादक मंडल का होगा।कािशतरचनापरकोईपारिमक नह िदया जाएगा। बत अिधक लबे प तथा लबे आलेख न भेज। अपनी सामी यूिनकोड अथवा चाणय फॉट म वडपेड क टट फ़ाइल अथवा वड क फ़ाइल क ारा ही भेज। पीडीऍफ़ या कन क ई जेपीजी फ़ाइल म नह भेज, इस कार क रचनाएँ िवचार म नह ली जाएँगी। रचना क साट कॉपी ही ईमेल क ारा भेज, डाक ारा हाड कॉपी नह भेज, उसे कािशत करना अथवा आपको वापस कर पाना हमार िलएसंभवनहहोगा।रचनाकसाथपूरानाम व पता, ईमेल आिद िलखा होना ज़री ह।
चूँिक पिका ैमािसक ह अतः कई बार िकसी रचना को वीकत करने तथा उसे िकसी अंक म कािशत करने क बीच कछ अंतराल हो सकताह। धयवाद संपादक shivnasahityiki@gmail.com

पुतक समीा

सामने लाते ह, िजसक कारण पाठक एक लेखक क मनोभाव और सरोकार को तो समझता ही ह, अपने समयकोभीसमपमसमझपाताह।नंदभाराजवयंिहदीजगकएकजानेमानेकिव कथाकारसमीकऔरसंकितकसमालोचकह,अत:इनसााकारमनयाजाननेकिलए बतकछह। एक और बात जो इस पुतक को

çàæßÙæâæçãUçˆØ·¤è जनवरी-माच 2023 17 कहानी उपयास म बसा कपनालोक पाठक क तौर पर भाता ह, परतु तभी जब उस कपना क पीछ कोई ठोस ज़मीनी हक़क़त हो, पूरी तरह से कापिनक उड़ान एक सजग पाठककोबाधँ नहपाती।फटसीअछीलगतीह,लेिकनउसकभीएकउहोतीह।जीवन क संघष से गुज़रते ए वही रचनामक सािहय पाठक को आकिषत करता ह, जो अपने आसपास को समझने क समझ देता हो, बशत िवचार क बोझ से भारी और आदश क गठरय से बोिझल न हो, िजनसे आज का युवा बचकर भागता ह, तो िफर या तरीका हो िक िजासू मतक क खोज पूरी हो? मुझे लगता ह :आमकथाएँ सब से यादा पसंद क जानेवाली िवधा ह, लेिकन जब अपने िय लेखक क बात आती ह तो एक पाठक क िदलचपी उसक जीवन क उन पहलु को जानने क अिधक होती ह, िजसने उसे लेखक बनाया।यऔरकसेवहलेखकबनाउसकवैचारकपृभूिमयाह?उसकरचेएपा को वही वप य िमला जैसे न नये लेखक और गभीर पाठक क मन म उठना वाभािवकहतोऐसेहीपाठककिलएहनंदभाराजकहालहीमिशवनाकाशनसेआई बीसनामीलेखकसेसााकारकसंहकपुतक'अपनेसमयकसाी'। एक सजग मनुय का अपने समय क साथ या संबंध हो सकता ह, यह जानने क िलए िचतनशील मतक क धनी य से बातचीत करना सब से सरल तरीका अवय ह, परतु उस िचतक को उसक मानिसक तर तक पचाने क िलए उेरक क प म सामने वाले य से भी उसी तर पर बातचीत क अपेा वा भािवक ह, तभी यह बातचीत िनणायक वप पर पचती ह। बीते ए को देखना और समझना आसान ह, परतु अपने वतमान को समझना थोड़ा मुकल। बीते ए काल को खड म बाटँकर समझा जा सकता ह, जो साथ चलरहाहोउसेकसेदेखाजाए,कसेसमझाजाए?अपनेसमयकोनिसफदेखनावरठीक से जानना और यायाियत करना हो तो इसक िलए साी भाव का होना आवयाक ह। एक संिबुिवालाइसानहीऐसाकरसकताह।ऐसेहीअपनेसमयकसाीबुयय सेमुलाकात,जोसुखदसंयोगसेलोकियरचनामकलेखकभीह,उहसेसंवादइसपुतक किवषयवतुह। इससंवादकितमइकसवशतादीकआठवदशकसेलेकरकोरोनाकालतकअलग अलग कारण से िलये गए सााकार िस लेखक क वैचारकता को हमार
महवपूण बनाती ह, वह ह इसक संवाद शैली। यह आपसी संवाद ही ह, जो समय क िनरतरता को बनाए रखता ह। समय वयं म कछ नह, कवल मानवीय संकित क परकापिनक सपदा ह, जो सदैव परवतनशील होते ए भी अुह,िनरतरह।समयकइसीअुणनसपदाकिविभआयामकोपहचाननेऔर समझनेमसंवादमहवपूणभूिमकािनभाताह। 1993 म नंद भाराज और यामाचरण दुबे ने संकित क परकपना, संकित क दायर औरसंकितमराजनीितपरजोबातचीतकथी,वहसांकितकसेदेशजिचंतनकिजस अभाव क ओर इिगत करती ह, वह आज भी उतनी ही ासंिगक ह। सविय सािहयकार रतु िसंह वमा बी-35, योित माग, बापू नगर, जयपुर, 302004, राजथान ईमेल- reetuverma78@gmail.com
(कहानी संह) अपने समय क साी समीक : रतु िसंह वमा लेखक : नंद भाराज काशक : िशवना काशन, सीहोर, म 466001

सिदानंद हीरानंद वायायन अेय से

1981 म सािहय क बुिनयादी सरोकार और

ासंिगकता पर ए संवाद क दौरान अेय

कहतेह"बाहरऔरभीतरकजगएकदूसर

से जुड़ ए ह, तब उस संबंध को प करने

वाली चीज़ सािहय होती ह। तब उसक

ासंिगकता बनी रहती ह। -िवषमता क

बीच जीने का सामय सािहय हम देता तो

नहलेिकनउसमवृिकरताह-सािहयका

भाव ऐसा होता ह िक उससे हमार संवेदन

का िवतार होता ह -यिक सािहय हमारा

संवेदन बदलता ह इसिलए मनुय क प म

हम थोड़ा बदलते ह, इसिलए हम समाज को

बदलना चाहते ह, पूरी िया ऐसी ह।"

अेय जी क साथ ई इस बातचीत का यह

एक अंश ह, जो सचेतन प से हमेशा िलए पाठककमानसपटलपरअंिकतहोजाताह। सािहयकगितशीलधाराअथवादूसरी

परपरा पर िहदी क सुिस आलोचक डॉ.

नामवरिसंहसेसुिवतृतसााकारपुतकम

दजह।यहाँवेबतातेहिकएकआलोचकक

प म मूयांकन क उनक अपने मापदड

या ह। उनक अनुसार हर रचनाकार वतुत: एक आलोचक भी होता ह अत: वे समानधमा

ह। आलोचना क आधार तभ डॉ. रामिवलास शमा रचना और आलोचना क आपसी संबंध पर पूछ गए न क जवाब म

िवतार से यूरोप म कलामक तथा िववेचनामक सािहय क िवभेद पर अपनी

बात कहते ह – वातव म कोई रचना िववेचनामक हो सकती ह और आलोचना

कलामक, दोन क बीच कोई प िवभाजकरखानहह।सािहयबोधचीज़क आपसी संबंध को पहचानने से ही िवकिसत

होताह।

उपयास 'तमस' क मायम से जनमानस

म अपनी पैठ बनानेवाले भीम साहनी कहानी

को अपने आपम पूण और समथ िवधा मानते

ह। उीसव सदी क अतम दो तीन दशक

पुल क ज़रत पर आकर ठहरती ह। इसी तरह आकाशवाणी से जुड़ सािहयकम गोपालदास जी से संवाद

जैसेपेशकरसकतेह। किवता को सामािजक कम मानने वाले राजथान क जनकिव हरीश भादानी कहते ह "किवता क दो कम ह वह िनयामक वग को सोचनेकोिववशकरतीहऔरशोिषतवंिचत को बदलाव क िलए उकसाती ह।" उनक अपनीकायभाषाकअलहदागूँजउहशेष किवगीतकारसेअलगपहचानदेतीह। किवता और आलोचना क सश हतार अशोक वाजपेयी लेखकय जवाबदेही क न पर कहते ह िक किव

उपायाय अपनी नयी कित 'मुबोध का मुकामी वना' पर कत इस संवाद म मुबोध क किवता क कथा-पाठ पर नयी िववेचना और अपना कोण सामने रखतेह। 2018 म जब नंद जी वर कथाकारनाटककारअसगरवजाहतकाजयपुरकैस ब म सााकार ले रह थे तो संयोग से म भी उसी बैठक म मौजूद थी। दो बु यय का वातालाप सुनना अपने आपको समृ करना था। एक रचनाकार क सामािजक उेय से जुड़ने और बनने क पूरी िया उहने खुलकर बताई। कथाकार वयं काश जब आज क िहदी कहानी पर कहते ह िक 'आज क कहानी म पसीने क कोईकमीनहह,आसँ ुककमीह'तोयह उनक गंभीर िवेषणामक

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कथा सािहय क दशा और िदशा का जो लेखा जोखा वह खचते ह, वह पाठक क िलए एक पूरी खुराक बन जाता ह। हाँ एक िवशेष बात जो उनक कह म उभरकर आती ह, वह यह िक रचनामक लेखन म जो भावनामकगहराईहोतीह,आलोचनामनह होती,वहाँसमऔरतटथचािहए। दारा िशकोह उपयास िलखनेवाले उदू अफसानािनगार काजी अदुल सार से उनक अदबी सफ़र पर मानीखेज़ बातचीत मुतिलफ कौम क बीच एक
हाथ रहा, उनसे लोक सारण क बदलती भूिमका पर संवाद बत रोचक बन पड़ाह। सुिस किव नंद चतुवदी अपने साथ एसंवादमरचनाऔरिवचारकअतसबंध पर कहते ह िक कोई रचना िवचाररिहत नह हो सकती, लेिकन चिूँक आजकल वैयकता उभरकर आ रही ह, िवचार यिद आमीयता एवं समया से सबता को खो देगा तो किवता या रचना कभी बड़ी नह हो सकती। वे समाजवाद और किवता पर अपने िवचार बतलाते ह और आठव दशक म आगाह करते ह िक यवथा क पास जो संचार क साधन हो गए ह, वे सय को चाह
क बुिनयादी जवाबदेही किवता एवँ भाषा क ित ह, अंतत: यही उसक सामािजक िज़मेदारी ह। भाषा को उसक समत अतविनय क साथ बचाए रखना किव का कतता ापन ह। 'आवां' और 'नाला सोपारा' जैसे चिचत उपयास क लेिखका िचा मुल एक संवाद म एक बेहद िवचारणीय मुे क ओर संकत करते ए कहती ह िक 'आधी आबादी का सब से बड़ा दद ह िक उसे अपनी कोख परभीअिधकारनह।' क क िबरला फाउडशन क िबहारी पुरकार से समािनत किव मधर मृदुल न कवल अछ किव-लेखक रह ह, वर एक खर अिधवा भी रह। उहने सािहय और संकित से जुड़ िविभ संगठन क साथ काम भी िकया ह। इस पुतक म अिधवा और लेखक क तौर पर उनक याा को पाठकबेहतरढगसेजानसकगे। इसी तरह हमार लोक क सांकितक िवरासत और सािहय को सहजने थामनेवाले एनसाोपीिडयािवजयवमासेसाथकवाता यहाँ संकिलत ह। जाने माने किव िचक नंदिकशोर आचाय जब पूरी आमीयता से अेय क लेखकय यव क सम पहलु पर बात करते ह तो कई नये अयाय खुलते ह। इसी तरह सुिस कथाकार रमेश
नज़रये का आकलन ह। 'से लेखन म तासीर दद, उपीड़न,अयायसेहीउपजतीह'यहकहना हवरकथाकारपानूखोिलयाका,िजनका यह मानना ह िक लेखक क रचनामक याा उसकवयंकिवकासयााभीहोतीह। आिदवासी समाज और सािहय क पयाय
एक महवापूण उपलध ह, िजनका महादेवी वमा, बाबा आट जैसे कई दुलभ सााकार क पीछ महती

कह या मुख आवाज़, हरराम मीणा जी ने अपनी पुिलस सेवा क पृभूिम होने बावजूद

किवताएँ, बंध काय, याा वृतात, संमरण, वैचारक ग और िवशेषकर

आिदवासी िवमश पर कई पुतक िलखी ह।

वभािवक ह, नंद जी क साथ उनका यह

संवादभीउतनाहीरोचकऔरिविवधतािलये

ह।

प आपसी संवाद का एक बेहतरीन

मायमरहहतोनंदजीऔरसूयबालाजीका

एक प संवाद भी पुतक क िवषयवतु ह।

एकसजगऔरममपाठककमनमसवाल

िकस तरह उथल पुथल मचा सकते ह, इस

बातकबानगीहनंदजीकनऔरयतुर

क संजीदा तरीक से खुलते

मनोभाव क परत। वे बेहद प और महीन

तरीकसेजीवनकबारीकसचसामनेलातीह

िक पढ़कर कोई भी जीवन क िवसंगितय क

मानवमनपरपड़नेवालेअसरकोउभारनेक सूयबाला जी क कािबिलयत का कायल हो

जाए। एक जगह वे कहती ह, "जीवन क

बतसीथितयाँतकसेपरहोतीह।अयाय

िकया नह जाता, लेिकन हो रहा होता ह। ऐसे

मदो

रातेहोतेहसामने,एकअपनेिहसेका

सुख, जो मेरा ाय ह इसे सवँ ा और

ऊहापोह से मु हो जाऊ। यहाँ संकार और

अत क ऊहापोह उह नह घेरते। दूसरा

राता अित संवेदनशील ािणय का होता ह।

मेरीपाउनमआतेह।"

िववरण काफ लबा हो गया ह - कारण

यह भी रहा िक एक भी सााकार मुझे ऐसा

नह लगा, िजसका परचय छोड़ा जा सक,

परतुयहज़रकहनाचागीिकपूरीपुतक

ममादोमिहलारचनाकारकउपथितह, जबिक समकालीन रचना परय म ी रचनाकारकबेहतरउपथितकोदेखतेए

कछ कम लगती ह – संयोग या परथित जो भी हो। अपने समय और समाज को समता म देखनेवाले वैचारक समृि

अलावाअनेककथाएँयानखचतीहजैसे'डडी,चाचाकबआएँगे','बदचलन'।

जाए, तो यह संह लेखक क िवतारत कोण, समाज क वतमान थित और भिवय क चुनौितय क बीच एक संतुलन का शादक यास बनकर हमार सामने आता ह। अिधकांशकथाएँहिजनमएकपसमापनकाअभावथोड़ाखटकताह।लेिकनइसेशायद लेखक ारा पाठक पर िकया आ िवास या उह अपने मन क िवतार क िलए िदया गया अवसर भी कहा जा सकता ह। भाषा सरल ह, शैली म लेखक का काये और भौगोिलक पृभूिमपपसेसामने

çàæßÙæâæçãUçˆØ·¤è जनवरी-माच 2023 19
ी-मनोजग
से भरपूर कलम क धनी यव से ऐसे आमीय संवाद,िजसपुतककथातीहो,वहिनत हीसहजनेयोयह। 000 'पेड़' जो िक शीषक कथा ह, राजे महाराजा क समय से चलते ए वतमान िवकिसत अवथा म बदलती सोच का तीक ह। 'मृयुबोध' कहानी, आज िकतने ही ऐसे घर क मूक यथा ह जहाँ कोई बड़ पद से सेवािनवृ कोई बुग बैठा ह और अपनी अकड़, अफ़सरी, यतता और मान समान क सुनहर िदन और सेवािनवृि क बाद क वातिवकता और ाथिमकतासेआँखमूँदलेनाचाहताह।यिद'मृितयाँ'शीषकककथाकोदेख,तोअपने जीवनकोचलिचिकभाँितएकअसफलिनदशककनज़रएसेदेखनेवालासामायय िदखाई देताह।येकपरवारम इसकारकय काकछ नकछितशत िकसी न िकसी पा म िदखाई दे ही जाता ह। ये दोन ही कहािनयाँ, समय क साथ मन का िवतार न कर पाने वाले, एक ही साँचे म रहने वाले और एक ही से संसार को देखने वाले ऐसे बुग क यथा ह, जो सब कछ समझकर भी, अपनी ही आदत से वयं परशान ह। 'दहशत' कथा हम सभीककथाह।लॉकडाउनकदौरानकबदलीईथितयाँिजहनेकवलमानवताकोही नहबदलाह,हमसभीकआपसीसंबंधपरभावडालाहऔरअंतरामाकपमभीहमजो लगताथािकहमवयंऐसेह,वैसासबकछकहभीनहीथा। 'बँटवार'और'चेकबुक'जैसी कथाएँ लेखक क यापक और य क ित वथ कोण को तुत करती ह। इसक
आतीह।इनरचनामयिदकछमानवीयसंवेदनाकबारीक िचण को भी थान िदया जाए, ाकितक िचण, सौदय और कपनाशीलता क कछ शद िमलकर इन कथा को और अिधक रजक, तुित क िलए परपूण बना सकते ह। कल िमलाकर यह संह और इसक कहािनयाँ लंबे समय तक आपक साथ बने रहते ह। इसक कवलपायाघटनाएँनही,समताआपकसाथीहोतीह। 000 अंतरा करवड़, 117, ी नगर एटशन, इदौर, म मोबाइल- 9752540202 पुतक समीा (कहानी संह) पेड़ तथा अय कहािनयाँ समीक : अंतरा करवड़ लेखक : अनीकमार दुबे काशक : ससािहय काशन, िदी
देखा

पुतक समीा

(किवता संकलन)

समीक : अिदित िसंह भदौरया

संपादक : सुधा ओम ढगरा

काशक : िशवना काशन, सीहोर, म 466001

अमेरका क िहदी रचनाकार क किवता, ग़ज़ल, दोह, गीत का यह संह ह, िजसे सुधा

पलटने पर मजबूर नह करती बक इसक साथ चलने लगते ह। भाव क तुित बत ब ह। ऐसे जैसे

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मन क तुरपाई
ओमढगरानेसंपािदतिकयाह।िविभभावऔरसंवेगकोसमेटइसकायसंहका नाम ह 'मन क तुरपाई'। अमेरका म बसे, अपनी माटी से दूर, पर उसक ित अपना कय िनभाते ए नॉथ करोलाइना सािहय मंच क किवय क सुंदर तुित को दिशत करता ह यह कायसंह। भावकोअपनेहीअंदाज़़मकहाजानाएककलाह।इसकलाकोअपनेअंदाज़सेतुत करते ए चैपल िहल, नॉथ करोलाइना क अफ़रोज़ ताज अपने दोह और ग़ज़ल से िदल म दतकदेतेह-पंछीबैठापजरा,मनहीमनमशाद/सारीदुिनयाजेलम,महीएकआज़ाद अपनेभीतरसबकछपालेनेकदौड़मजबहमदकोहीइछाकबंधनमबाधँ चुक होतेहतबयेपंयाँहमअपनेसेहीिमलातेएपूछतीहिकयाखोजरहहोऔरकहाँजारह हो?इसकाकोईजवाबहतोबताओ।मानवीयासदीकोउकरतीपंयाँदेिखए-गंगाउटी रामक,कहदूँसाँचीबात/मुदकोहताजमहल,िज़दकोफटपाथ अपनी जड़ को मान देते ए अफ़रोज़ जी ने बत सुदर भाव से कहा ह - वृदावन बस नामह,वनकाअजबहहाल/घरघरगैयापूछती,कहाँगएगोपाल इसक साथ ही अपनी जमभूिम को नमन करते ए भेदभाव क लकर को िमटाते ए िलखतेह-बामन,ानी,मौलवी,सयदछतअछत/माँतेरपरवारक,सारपूतसपूत अफ़रोज़जीग़ज़लमउनकाकमालदेख-कमसेकमइतनातोग़मभरपूरहोनाचािहए/ िदलकइकइकज़मकोनासूरहोनाचािहए शद ने पीड़ा को उकरा नह बक महसूस िकया ह। हर शद ने हम भीतर तक झकझोर िदयाह। शालट, नॉथ करोलाइना क रखा भािटया ने किवता म द को िजया ह। रखा जी क किवताएँ थोड़ी लबी ज़र ह पर यह पे
हमारी बात उहने अपनी कलम से कही हो। हर किवता म एक नया भाव, जो उड़ल देता ह ी क अनेक उथल-पुथल िवचार को, उन बात को जो वे अपने अंदर रख लेती ह। 'बावरा मन' म मौसम क मायम से मन क गहराइय को जीया ह लेिखका ने, वह दूसरी ओर मकान को घर बनाने क सफ़र म रत क महव को बताया ह - एक घर बनाया धीरज से / डाल सौहाद जीवन भर का / मज़बूत घर म ठहरबड़एरते/दरारपड़तेछोड़गएपुरानाघर मानवीय जीवन म रत का या महव ह और एक छोटी सी ग़लतफ़हमी भी रत क साथ-साथघरकोभीतोड़देतीह।लेिखकानेइसददकोबड़ीमािमकतासेबुनाह। बादलकमायमसेजीवनकशातसचकोलेिखकािलखतीह,बादलकभीनहमरता अिदित िसंह भदौरया सािहल, िसििवनायक टॉवर, लैट नं. 404, लॉक- ए, बंगाली चौराहा, मयंक वाटर पाक क पास, िबछोली मरदाना, इदौर, म 452016 मोबाइल- 8959361111

तब वह मानवीय भाव से कहना चाहती ह िक

शदकभीनहमरते,जबचलायमानहवा

म अपने भाव को शद म उकरना चाहो तो

यादरखिकवहआपकोआपकजानेकबाद

भी िज़ंदा रखगे- बादल उड़ चले गगन म /

िमले खुशगवार धूप से / चलते ह पवत क

आँचल म / वािदय म झील क, हस क

फलवारीम

अपने आतव क महव को बताती

किवता 'काश'- म पतंग उस यार क /

आज म उड़ रही बँधी / दूसरी डोर से और

अफ़सोस तुम उस डोर को काटने म उलझ

गएहोदमही!

इन पंय म अपने मज़बूत अतव क

साथ-साथ यह बताना चाहा ह िक भीड़ म

अपनी पहचान बनाने क िलए मेहनत ही

एकमाराताह,जोआपकिवरोिधयकोभी

उनकहीअहककारणवयंहरादे।

डरहम, नॉथ करोलाइना क कसुम

नैपिसक क हाल ही म िवदेशी छा क िलए

िहदी क पापुतक अमेरका म कािशत

ईह।

ेम क अटट बंधन को किवता म

िपरोते ए उ क सीमा क पर शद म

जान डाल देने वाली रचना को बुना गया ह।

किवता 'जब तुम िमलोगे' म ेम क उस प

कोबतायागयाहजहाँेिमकाकोचाहहिक

उ क हर बदलते दौर म वह अपने साथी को

अपने साथ देखे। पर लेिखका क कलम मा

ेमतकहीसीिमतनहकररही।आधुिनकता

क दौड़ म हम कब िकसक साथ हो रह ह, िवचारऔरभावसेपरमाशरीरहीिदखाई

दे रह ह। उस पर कटा करती किवता 'के

और मािलक' म भावना का कोई थान

नह ह- मेर के क तो नसबंदी कब क हो

गई/अबजहाँचाह,वहाँमुँहमार

यहकटाहउससोचपरजोबेहदिनन

तर क तक से वयं को आधुिनक और खुले

िवचारवालाबतानेमजुट

कसामने लादेतीह।

करी, नॉथ करोलाइना क अमृत वाधवा ने जीवन क दाशिनकता को करीब से अनुभव करक, अपनी िचंता को शद म बाधँकर

पाठक क सामने एक न छोड़ा ह। 'या म

सच म जीत गया'

म गए। मा यही से लेिखका पाठक को अपने साथ िसफ़ बाँधती ही नह बक ले जाती ह ेम क उस शात प म जब वह ेम को मा दो लोग

क बीच क साय तक नह देखती। उनक

नज़रमवहभीेमह,जबबेटीअपनेमातािपता का सहारा बन। और बेटी को पाने का सुख जब माता-िपता अनुभव कर। उन पल को सफलता से भावुक ण बनाकर लेिखका

पाठककोअपनाबनालेतीह।

रॉले, नॉथ करोलाइना म रहने वाल

çàæßÙæ
21
âæçãUçˆØ·¤è जनवरी-माच 2023
एह। समाज क एक दूसर पहलू को छती किवता 'एक औरत एक आदमी' आज क समाज म ी क दशा को बबी दिशत करती ह, जहाँ आज भी ी अकली सुरित नहह। अगली किवता माँ ारा क जा रही परवरश पर न िच लगाती ह। लेिखका पूछती ह - बेिटय को करवाती ह, िसलाई, बुनाई / बेट को य नह देती ान, इज़त करबनेइसान ी को िसफ खाना नह चािहए। जीने क िलएउसकसबसेयादाज़रतभरीखुराक ह मान समान और यार। इस बात को मािणत करती लेिखका क अगली किवता 'दरवाज़ा'ह-खटखटायाबतदरवाज़ाउसने भूखीयासीथीयारकवह यह पंयाँ अदर से झंझोड़ देती ह। लेिखका ने बबी समाज क हर पहलू को छआहएपैस, नॉथ करोलाइना म रहने वाले चरनजीत लाल क किवताएँ ेम क िविभ प को सुंदरता से पाठक क सामने ेम क िवशुपमसजातीह।सजानाशदबरबस ही आ जाता ह। जब हम इन किवता क भाव को महसूस करते ह। ऐसी किवताएँ पाठक क िलए एक ऐसा मानी माहौल को बनातीह,जहाँेमदेहसेपरआमाकिमलन क बात करता ह। उसका ेम इतज़ार करता ह।वहेमीसेकछभीचाहतानहह,वहबस समय क साथ अपने भाव को अपने म समेट एह। इनकिवतामेमकोपानेकलालसा नहबकेमकसमीपरहनेकचाहह।जो ेमकपिवभावकोहमारीआँख
किवता म यु क बाद क घटना का मािमक िचण िकया ह। या यु ही हल ह? इस न को पाठक क सामने सजीवता से िचित करने म अमृत जी पूरी तरहसफलरहह।'माँधरतीसेयछलकर' और 'गंगा और जीवन' किवता म कित कितहमारबदलतेिवचारकोिचितकरने म लेखक ने जो पंयाँ िलखी ह, वे पाठक कोभावुककरदेतीह-माँसेबढ़करधरतीह, इससे न कर कोई इनकार / लेिकन ह मानव, यनाकरइसकातूसकार बदलते समय म िवकास क नाम पर जो हम कित को नुकसान पचा रह ह, यह पंयाँउनपरएककटाह। संह पी बिगया म शद से सजे फल म अगला नाम ह एपैस,नॉथ करोलाइना म रहने वाल ममता यागी जी का। ी क िविभ मनोभाव को दिशत करत वे एक ी बनकर, माँ बनकर अपने दाियव को पूरा करने क बाद जब हथेिलय को टटोलती ह तो सब खाली ह। बचा ह तो बस इतज़ार। जोशायदअबहमेशाकिलएउसकाह।िफर भीवहआसकपंछीकोउड़नेनहदेती।उसे भरोसा ह िक वह कल ज़र आएगा। िजस कल म वह िकसी रते क मोहताज नह बकवहसपूणीह।'मेरीचाहत'मएक माँकबेबसीह,तो'िबखराव'मएकीक चाहत, 'लौट आना' म एक आस जगाए ेिमकाइतज़ारकररहीहेमीका। डरहम, नॉथ करोलाइना क उषा देव क किवताएँआपकोजीवनकएकअलगिदशा मलेजाती
ीरामकितउनकभावको देखकर पाठक वयं ही उन पल को जीने लगता
ह।
ह,जब ी राम वनवास
िबंदु िसंह क किवताएँ िदखने म हक-फक लगतीह।परगहरमनोभावकोसमेटएह। लाइक और िडसलाइक एवं किकग शुिकग और िज़ंदगी किवता म करारा तंज ह आज क जीवन पर, िजस म फसबुक एवं अय सोशल नेटविकग साइड पर हम िकतने िनभर हो गए ह। किकग–शुिकग म जीवन को

मसालसेजोड़करएकअलगपबाँधागया

ह। करीने से एवं सहजता से किठन बात को

पाठककसामनेरखनेमलेिखकासफलरही

ह।

काय सागर म अगली लहर करी,नॉथ

करोलाइना म रहने वाले गीता कौिशक 'रतन'

क किवता क ह। मानवता क ित िचंता

तोजतातीहपरआगेआनेवालेसमयकिलए

आगाह भी कराती ह। कोरोना जैसी महामारी

क आने क बाद अपने आपको एक नई सोच

से जोड़ने को कहती ह। व क मार म वह

बलवान समय क गाथा कहती ह। उनक

किवतामभावनाकाएकअलगबहाव

ह,जो पाठक को सीखने और सोचने दोन

िदशाकओरलेजाताह।

मोरवल,नॉथकरोलाइनामरहनेवाल

अिदित मजूमदार क किवताएँ जीवन क कट अनुभव से परचय कराती ह। भूख से लाचार

एक लड़क क मायम से जब उसक जीवन कोदेखतोआँखगीलीहोजातीह-

िपता बड़ा परवार उसक कधे पर लाद /

चले गए उस लोक / जहाँ जाने क िलए माँ

तरसतीहहररोज़

इन पंय को पढ़कर उस लड़क क

साथ एक जुड़ाव सा महसूस होने लगता ह।

उसक सार दुख को दूर करने को मन करता

ह।पाठककोअपनीओरखचतीअिदितजी

क कलम से जब हम िवजेता पढ़ते हतो

दुिनयावी समाज म पुष क होने का अथ हम

समझ म आता ह। िपता, पित क प म वह

आपको सुरा देता ह। यह उसक जाने क

बाद आपको अिधक अनुभव होता ह। हर

पं म समाज का मािमक िचण िलए

अिदितजीककिवताएँबेहतरीनलग।

करी, नॉथ करोलाइना म रहने वाले सुर

मोहन कौिशक 'िनमही' क किवताएँ किव

क उदासीन प को यादा बाहर ला ह।

इनक रचना म एक तलाश ह,जो पाठक

जीवन म आने वाली उमीद का इतज़ार

वहपुनजम

कसाधमवहपाठककोआतकरतीह। कवियी क जीवन म नकारामकता का कोई

थान नह

सािहयक

1.काशनकाथान:पी.सी.लैब,शॉपनं. 3-4-5-6, साट कॉलैस बेसमट, बस टडकसामने,सीहोर,म,466001

2.काशनकअविध :ैमािसक

3.मुककानाम:बैरशेख़।

पता : शाइन िंटस, लॉट नं. 7, बी-2, ािलटी परमा, इिदरा ेस कॉलैस, ज़ोन1,एमपीनगर,भोपाल,म462011

याभारतकनागरकह:हाँ। (यिद िवदेशी नागरक ह तो अपने देश का नामिलख):लागूनह।

4.काशककानाम:पंकजकमारपुरोिहत।

पता:पी.सी.लैब,शॉपनं.3-4-5-6,साट कॉलैस बेसमट, बस टड क सामने, सीहोर,म,466001

म अपनी रचना को बत सुदरता से पाठक क सामने रखा ह। जीवन क दाशिनकता को द म समेट उनक रचनाएँ बरबस ही पाठक को अपनी ओरआकिषतकरतीह।अनचुनाराता,एक बफली शाम, मधुमखी का गीत इन रचना म संकतामक तरीक से भाव क अिभयकगईह।

अंत म म यह कहना चाहती िक किवताएँ संगीत क तरह होती ह, जो आपक भीतर कई तरग को उप करती ह। आपक जीवन क कई अछते पहलू आपको दूसर क कलमकमायमसेसजेिमलतेह।यहसंह मािमक, भावनामक एवं सांकितक

याभारतकनागरकह:हाँ।

(यिद िवदेशी नागरक ह तो अपने देश का

नामिलख):लागूनह। 5.

466001 याभारतकनागरकह:हाँ। (यिद िवदेशी नागरक ह तो अपने देश का नामिलख):लागूनह।

4. उन यय क नाम / पते जो समाचार प / पिका क वािमव म ह। वामी का

नाम : पंकज कमार पुरोिहत। पता : रघुवर

िवला, सट एस कल क सामने, चाणयपुरी,सीहोर,म466001

याभारतकनागरकह:हाँ। (यिद िवदेशी नागरक ह तो अपने देश का

नामिलख):लागूनह।

म,पंकजकमारपुरोिहत,घोषणाकरतािक यहाँ िदए गए तय मेरी संपूण जानकारी और

िवासकमुतािबकसयह।

िदनांक 21 माच 2022

हतार पंकज कमार पुरोिहत

(काशक क हतार)

âæçãUçˆØ·¤è जनवरी-माच 2023

22 çàæßÙæ
को
कराती
को
डरहम, नॉथ करोलाइना क मीरा गोयल क रचना म जीवंतता िदखाई देती ह। वह आत कराना चाहती ह िक यिद आप ी हतोआपपूणह।आपकोकछऔरतलाशने क कोई ज़रत नह। मेरा जीवन, भावना, नक-झक, अिभमानी ीत, शतरज, चुनौती इन रचना म कवियी क कलम म आपकोिविवधताकदशनहगे।
ह। पाठक इनक कछ नम से द
जोड़पाएँगे।
ह। वह िफर से मानव जीवन को जीनेकिलएउसािहतह।इनकरचनाको पढ़कर पाठक सकारामक हो जाएँगे और एक भीन–भीन सी मुकराहट पाठक अपने होठ पर महसूस करगे। विनता क मायम से ी होने का जो मूय किवयी ने बताया ह, उसकोपढ़करअपनेीहोनेपरअिभमानहो जाएगा। बेहद सुदर एवं मन को मोह लेने वालेशदसेसजीविनतािदलकोछलेगी। संह क अंितम किव को पढ़कर अनुभव आ िक भाव, भाषा क मोहताज नह होते। चैपल िहल, नॉथ करोलाइन क जॉन काडवेल ने िहदी
भाषा क मायम से पाठक क मन को छ लेगा। इस संह को पाठक क सम लाने क िलए इस संहकसंपादकसुधाओमढगराबधाईक पाह।गहरसागरमसेअनमोलमोितयको ँढ़कर एक माला को िपरोना सराहनीय काम ह। िविभ भाव और िवधा को समेट यह संह पाठक को अपनी और आकिषत करगा। 000 फाम IV समाचार प क अिधिनयम 1956 क धारा 19-डी क अंतगत वािमव व अय िववरण (देखिनयम8)।
कानाम:िशवना
पिका
संपादककानाम:पंकजसुबीर। पता : रघुवर िवला, सट एस कल क सामने,चाणयपुरी,सीहोर,म

िकयाह।उहनेइनसााकारकमाफ़त रचनाकार क याा और सरोकार का िवतृत िववेचन िकया ह। सृजन

कछ िनकष तक पचता िक कला म ऊचाई ा करना असल म गहराई ा करना ह। भूिमकाकबतौरहीिलखेगएअपनेसंिआलेखमपकारअजयबोिकलभीअमूमनइह िनकषपरठहरतेह।बोिकलकामाननाहिकिकसीभीसााकारकसाथकतातभीहजब वह हम कलाकार या सािहयकार क मम तक ले जाए तथा उस

çàæßÙæâæçãUçˆØ·¤è जनवरी-माच 2023 23 कलाश मंडलेकर 15-16, कणपुरम कॉलोनी, जेल रोड, िसिवल लाइस माता चौक खंडवा म. . 450001 मोबाइल- 9425085085, 9425086855 ईमेल- kailashmandlekar@gmail.com पुतक समीा (सााकार संह) सफ़ह पर आवाज़ समीक : कलाश मंडलेकर लेखक : िवनय उपायाय काशक : आईसेट पलकशन, भोपाल 'सफ़ह पर आवाज़' कला समीक तथा यात उोषक िवनय उपायाय ारा िलए गए सााकार का संह ह। इस कित म यातनाम रचनाकार एवं कलािवद क लगभग चालीस सााकार ह जो मुतिलफ़ समय तथा अवसर पर िलए गए ह। इन सााकार म एक तरह कबेतकुफ़भीह,नाकलताभीऔरऔसुयभी।दरअसलयेटीनइटरयूज़नहह इनमगहरीिजासाह।अपनेसमयककला,संगीत,रगमंचजैसीिविभिवधाकनेपय कोअनावृकरनेककोिशशभी। सािहय,कलाऔरमीिडयाकेमिवनयउपायायएकजाना-पहचानानामह।उहने नईदुिनया और दैिनक भाकर जैसे नामचीन अख़बार से अपने पकारता क करयर क शुआत क और एक लबे व तक सांकितक पकारता जैसे नवाचार पर गंभीरता पूवक कामिकया।वेआकाशवाणीतथादूरदशनकिलएवृिचतथापटकथालेखनसेभीजुड़रह ह।अनेकसरकारीऔरग़ैरसरकारीआयोजनमभीउोषककतौरपरआमंितिकयेजाते ह। िवनय उपायाय क पास 'कला समय' तथा 'रग संवाद' जैसी बड़ी पिका क सपादन काभीतवीलनरह।वतमानमवेटगोरिवकलाएवंसंकितकभोपालकिनदेशकह। वतुतः कला और संकित क े म काम करने क उनक सुदीघ अनुभव को ही इन सााकारकसायकपमदेखाजासकताह।अपनेकलेवरऔरअंतवतुकनज़रयेसे भीइनकामािणकताअसंिदधह। यानदेनेकबातयेहिकिहदीकआधुिनकगिवधामसााकारकोआलोचनाने कभी भी िवमश क क म थान नह िदया। इसक बजाए ग क अय समकालीन िवधा जैसे डायरी रपोताज संमरण अथवा आमकथा अिद पर िफर भी चचाएँ होती रही ह। जबिक सािहय अथवा रचनाधिमता को और अिधक ामािणक, ा और िवसनीय बनाने म सााकार क महवपूण भूिमका रही ह। कथाकार राजे यादव ारा सी सािहयकार अतोन चेखव एवं सेठ गोिवद दास ारा िलया गया आचाय रजनीश का इटरयू आज भी सािहय क अमूय धरोहर ह। बहरहाल आलोचना क इस एकांगी क बावजूद अपनी लोकियताकबलपरसााकारएकबपिठतअथवाबुतिवधाकपमसवमायह। िवनय उपायाय क कित 'सफ़ह पर आवाज़' क भूिमका किव कथाकार तथा सपादक डॉ.संतोषचौबेनेिलखीह।पुतककलबीभूिमकामचौबेनेसजनाकउस,योजनतथा कला क अंतरानुशासन क गंभीर मीमांसा करते ए सााकार क िविध तथा सााकारकताकअंतकािवतारसेखुलासा
क अंतयाा क
को लेकर एक थान पर वे कहते ह- "इन सााकार से गुज़रते ए म अपने
सय को उािटत करने पर िववशकरदेजोकईबारअनजानेरहजाताह।उेखनीयहक'सफ़हपरआवाज़'ऐसीकई िजासा अथवा नाकलता क िशनात करती ह। िवनय उपायाय कहते ह िक ये तारीख़मलौटतीऔरसमयकोपुकारतीआवाज़ह। यह िकताब लगभग तीन सौ साठ भर-पूर पृ म िवतृत ह। उेखनीय ह िक पेपरबैक संकरण, शाट टोरीज़ और हडी िकताब क दौर म यह अपेाकत हद थ ह। लेिकन पाठ-सुख का यान रखते ए लेखक ने इन भट वाता को िवधा वार म देकर कितपय उप शीषक म िवभािजत कर िदया ह। इन सााकार को पढ़कर लेखक क अंत, शोध तथा अययन का पता चलता ह। रगमंच, गायन, पेटस तथा समकालीन लेखन म योग धिमता, कपनाशीलताएवंिशपइयािदकोलेकरिकयेगएनसेहमअपनेसमयककलाऔर
परेय

सजना को समझने तथा आकलन करने क

िमलतीह।िनसंदेहयहाँिवनयउपायाय

नेसाहसकसाथउनसवालकोभीउठायाह

जोरचनाकारकिवचारऔरवायता

से जुड़ ह और बाज दफ िजनसे टकराने से

लोग बचते ह। जैसे एक थान पर वे अली

सरदार जाफरी से सरवती वंदना िवषयक

नकरतेहयाजावेदअतरसेिनतांतिनजी

सवाल पूछते ह िक उहने अपने ससुर कफ

आज़मी पर तो िलखा लेिकन अपने िपता जाँ

िनसार अतर पर कछ नह िलखा।

समकालीन पकारता िवषयक पूछ गए

सवाल पर यात सािहयकार अशोक

वाजपेयी ने वतमान पकारता क गैर

ि़जमेदाराना रवैये पर ोभ गट िकया ह।

जबिक गु-िशय परपरा पर लोक िचतक डॉ. किपल ितवारी का सााकार वतमान

बाज़ारवाद क बरअस पौरािणक और पारपरक मूय क गहरी मीमांसा करता ह।

िवरग और पुतक याा जैसे नवाचार को

लेकर संतोष चौबे बत आशावत िदखाई

देते ह। िकशोरी अमोणकर क सुर से आगे

जानेकअिभलाषातथानएिथयेटरकोलेकर

मशर रगकम हबीब तनवीर क िचंताएँ ग़ौर

तलबह।

पुतक म संिहत सााकार को लेकर

िकसी भी िकम क आह से

मु ह। िजस गंभीरता क साथ वे मंच क

जाने-माने किव नीरज से वातालाप करते ह उसी सरलता और शाइतगी क साथ नई

किवता क मकबूल रचनाकार मंगलेश

डबराल से भी गुतगू कर लेते ह। िहदी क िस आलोचक भाकर ोिय ने िवचारधारा क ं पर खुलकर बातचीत क ह। साथ ही लिलत िनबध क उपेा को लेकर डॉ. परहार क िचंताएँ वािजब ह। सााकार क इस वृहद संह म नौशाद, सैयदहदररजा,भूयाम,िगरजादेवी,डॉ. यामसुदर दुबे तथा कथाकार

नाियका क मनोजग क सैर कराती ह। मो ा क आस म आते लोग क लंबी लाइन वैरायकओरढकलतीह।कमीरसेपलायनकरनेकबावजूदअपनेेमसेिवमुखनहहोती हनाियका।कहानीकसाथआपइितहास,भूगोलकसैरकरसकतेह।वहभीपूरीसहजताक साथ। 'हादसा' हर ओर, हर समय ी क साथ होनेवाले हादस क याद िदलाती कथा ह। पारवारकसंबंधसेलेकरिपतृसाकिवरोधपररमशमानेसुंदरशैलीकाजामापहनाकर कथाकोपरोसाह।सुख-दुख,ेम,वैराय,पारवारकसंबंध

âæçãUçˆØ·¤è जनवरी-माच 2023

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इटरयूकार
िचा मुल कउपथितयानआक करतीह। भरोसा हिकसफ़हकआवाज़दूरतकपचेगीऔर अनेकितविनयमलौटकरआयेगी। 000 संहक12कहािनयमजीवनकिविवधवणलंतछिवयाँह।मानवीयताइनकथा का मुय वर ह। हादसा, मोव वन, उसका जाना, नैहर छटल जाए, िनवसन, महामशान म राग-िवराग, बद कोठरी का दरवाज़ा और चार आने क खुशी जैसी कहािनय म आज का समाज बेहद मुखर ह। 'िनवसन' साहिसक कथा ह, िजसम पौरािणक पा सीता िववश नह, एक मज़बूत नारी का ितिनिधव करती ह। राम, लमण क अनुपथित म दशरथ का िपडदान करने का सीता का फसला सही ह। दशरथ उनक िपडदान को वीकार भी करते ह पर राम नह। गया क फगु नदी, गाय, कतक फल आिद क साथ नह देने क बावजूद इसम िपतृसा पर गहन हार प नज़र आता ह। 'जैबो झरया लैबो सिड़या', कोयले से समृ राय क जलते शहर क बहाने पलायन, रहवासी क ग़रीबी, मजबूरी को वर देती ह। खुले कोयला खदान क कारण अनपुंज बन गया ह झरया। अब भी जल रहा ह। उसी क पृभूिम म साथक कथा। 'मिनका का सच' बचिचत डायन था पर िलखी गई ह। आज इकसव सदी म भी डायन कहकर ी को तािड़त िकया जाता ह। यहाँ िवधवा ी बुरी, गंदी नज़र से बचने क िलए द को डायन चारत करवा देती ह। यह कथा ामिणकता एवं थोड़ी और कसावटकमाँगकरतीह।थमकहानी'महामशानमराग-िवराग'वाराणसीकतटपरबैठी
सेलेकरशोषण,यौनिहसा, सपिमबेटीकउरािधकारीहोनेकिविवधमौजूँनइनकहािनयमउठाएगएह।िविवध कथाभूिम क सामािजक न पाठक क मन को जैसे करदते ए परवतन क माँग करते ह। कितकज़रीउपथितकहािनयकोरोचकतादानकरतीह।एकतरफेमरागतोदूसरी तरफशोषण,यौनिहसा,अंधिवासककरीितयाँ...नजानेिकतनेबंधन।लेिखकाकसजग सबकासंधानकरतीह।कछकूफकअशुियाँसुधारीजानीचािहएथ। 000 अनीता रम, 1सी, डी लॉक, सयभामा ड, डोरडा, कसई, राँची -834002, झारखंड मोबाइल- 9431701893, ईमेल- rashmianita25@gmail.com पुतक समीा (कहानी संह) बद कोठरी का दरवाज़ा समीक : अिनता रम लेखक : रम शमा काशक : सेतु काशन, िदी

नवचार समीक : गोिवद सेन लेखक : काश कात काशक : एकलय फाउडशन, भोपाल

सीखनेकोयातनादायकबनातेरह।पहली का म दािखल बा कछ ही िदन म कल से बचने लगता ह। उसे

çàæßÙæâæçãUçˆØ·¤è जनवरी-माच 2023 25
पुतक समीा
(िनबंध) सामािजक अययन
यह एक कट सय ह िक िशा को लेकर तमाम बहस, योजना, कायम क बावजूद सीखनाआनंददायकनहबनसका।पाम,िकताब,परीाएँ,मंथलीटट,पढ़नेकतौरतरीक,कलऔरकाकावातावरणसबिमलकर
कल और िशक डरावने लगने लगते ह। उसक चेहर क हसी और मन क शी ग़ायब हो जाती ह। वह एक बुझाआबाबनकररहजाताह।सरकारीकलइनबुझेएबकभडारगृहबनकररह जातेह।आजभीकमोबेशयहीथितह।ाइवेटकलइनसेबतअलगनहह।वेसजे-सँवर क़लगाह ह जहाँ ब क संवेदना क साथ-साथ उनक िजासा और उसाह भी क़ल होते रहतेह। इह हालात को बदलने क िलए 'एकलय' कली िशा म नवाचारी योग को लेकर आईथी।एकलयनेायोिगकपसेतैयारकगईपुतककिलएिशककोिशितकर और ऐितहािसक थल क याा करवाकर चयिनत शाला म ब क सीखने-िसखाने क िया को सहज, सुगम और आनंदमयी बनाने क कोिशश क थी। यह सही माने म बाल कतिशाथीिजसनेपारपरकजड़ताकोतोड़ाथा। एकलय का सामािजक अययन का कायम मयदेश शासन क सौजय से 1988 से लेकर 2000 तक होशंगाबाद, हरदा और देवास क चुिनदा आठ िमिडल कल म चला। देवास िजले क चयिनत कल म एक कल मानकड भी थी। काश कात इसी मानकड कलमपढ़ारहथे। तुत पुतक 'सामािजक अययन नवाचार : ब क साथ-साथ मने भी सीखा' काश कात क उस दौर क बतौर ामीण िशक क अनुभव का उपयोगी, ेरक और जीवंत दतावेज़ ह। भूिमका क ारभक पंय म काश कात ने प िलखा ह – 'कल म पढ़ानेकिलएिकसीिवषयकायोिगकतौरपरतैयारकगईकोईपुतकबकसाथ-साथ िशक क िलए द भी सीखने का कसा भावशाली मायम हो सकती ह यह मने 'एकलय' ारा का छह, सात और आठ क िलए तैयार क गई सामािजक अययन क पुतक से जाना।' गोिवद सेन राधारमण कालोनी, मनावर 454446, धार, म.. मोबाइल- 989310439 ईमेल-govindsen2011@gmail.com

पुतकम19साथकऔररोचकशीषक

क जरए काश कात ने तफ़सील और

िसलिसलेवार ढग से अपने अनुभव को दज

िकया ह। इनसे गुज़रते ए िशा क वतमान

दशा और िदशा का भी अंदाज़ लगाया जा

सकता ह। एकलय क ायोिगक प से

तैयार क गई पुतक और िशण ने

सीखने-िसखाने क िकया को ब क िलए

िकतनाआनंददायकबनायागयाऔरिशक

कमनकोिकतनासंतोषिदया,इसपुतकसे

जाना जा सकता ह। रटत क पुरानी जड़

परपरा को तोड़कर गितिविधय क जरए

िसखाना ब म बुिनयादी समझ को पैदा

करता ह। यही नह एक िशक क िलए भी

यह गूँगे क गुड़ क समान एक आनंददायक

अनुभूितहोतीह।

एटलस सामािजक अययन िशण क अिनवायसहायकसामीह।लेिकनआमतौर पर सरकारी हो या िनजी कल इस िवषय का पढ़ना-पढ़ाना इसक िबना ही िनपटा िदया

जाता ह। काश कात ने जब एक िनजी

कलकयुवािशकसेपूछािकवेपढ़ानेक दौरान एटलस का उपयोग िकस तरह करते ह तो वे दोन ही चक। उहने एटलस का नाम

ही नह सुना था तो उसक उपयोग का सवाल

ही नह उठता। वे िशक पोट ेजुएट थे

और हाई कल म तीन-चार साल से भूगोल

पढ़ा रह थे। उह नोर िलखवा कर

इितहास-भूगोल पढ़ाया गया था और उसी

तरीक का उपयोग वे ब को पढ़ाने म करते

थे। जबिक काश कात अपनी का म

आिख़र तक एटलस को एक ज़री औजार

कतरहइतेमालकरतेरह।

सामािजक अययन िवषय क िशण म

ब म बुिनयादी समझ तब पैदा होगी जब

उह नश, लोब और एटलस क जरए

पढ़ाया जाए। बे इनका उपयोग कर। इन

सहायक सामिय को ब को उपलध

कराया जाए और िशक उनका मागदशन

कर। लेिकन का म अिधक बे अिधक ह

और िशण सामी कम

था। बादमउनमसेकछबनेउकाम भूगोल म अछा दशन िकया। बे रग का उपयोग मनचाह िच बनाने म करने लगे। बाल पिका 'चकमक' क गितिविधय म भागलेनेलगे।मानकडकएकबेइकबाल

िकताब आोपांत रोचक ह। भाषाशैली म एक सादगी, सहजता और वाह ह।

कह भी अितर ान उड़लने क कोिशश

नह क गई ह। इससे सहज ही बाल

मनोिवान क आधार पर िशण क गितिविधय को अपनाने और िवकिसत करने

क इछा पैदा होती ह। परो प से यह

जानने का मौका भी िमलता ह िक िशक

और ब क बीच कसा संबंध होना चािहए।

िशा समाज क मूलभूत आवयकता ह।

इसिलए यह पुतक िशक ही नह, पालक

âæçãUçˆØ·¤è जनवरी-माच 2023

26 çàæßÙæ
हो तो िशक क सूझ-बूझ से समया का हल हो सकता ह। काश कात ने नश क कमी को देसी िसंग पित से ब से पया संया म नशे बनवाए और ब से उन पर काम करवाया। यह उनका मौिलक िकतु सफल तरीका था। लोब क कमी को ब को समूह म बारी-बारी से लोब को देकर पूरा िकया गया। छठी का म ही पापुतक क साथएटलसभीअिनवायकरिदयागया।इस एटलस का उपयोग आठव तक तो होना ही था। इस तरह हर बे को लोब और एटलस देखने, सीखने-समझने और धरती पर मौजूद महाीप, महासागर, पवत,
भी सीखा। इस तरह
िलए बुिनयादी समझ बनाने म बत सहायक
का बनाया मोर का िच चकमक क बीच क दो पेज पर छपा और चिचत आ। यह काश कात और उस बे क िलए िकतना
रहा
जासकतीह। इितहास पढ़ाने क
गाँव का इितहास तैयार करवाया गया। इसम बनेबसहभािगताक।कछसवालको देकर यह काम करवाया गया। गाँव से संबंिधत आँकड़ इक िकए गए। कछ सवाल ब ने द भी बना िलए। मानकड कानाममानकडयपड़ा?गाँवमहाटकब से लगने लगा ? गाँव म िबजली कब आई ? गाँव म पंचायत कब बनी ? जैसे न क जवाब तलाश करने म ब ने काफ मेहनत क। इस तरह उनक इितहास क बुिनयादी समझ बन गई। उसम उह आनंद भी आया। द करक सीखने का आनंद अलग ही होता ह। नागरक शा क पढ़ाई क िलए भी ब को गाँव क ाम पंचायत क मायम से िवधान सभा, लोकसभा से जोड़ा गया। पंचायतसेसंबंिधतकामकोसमझनेकिलए गाँव क सरपंच क मदद ली गई। हाट, टस, ग़रीबी, खेती-िकसानी, रोज़गार, सामािजक सुधार आिद सभी पाठ को पढ़ाने-समझाने क िलएगाँवकोऔज़ारकतरहइतेमालिकया गया। संबंिधत पाठ से बे सहज ही यावहारकतौरपरजुड़गए। िशण का काम इतना सहज नह ह, िजतना समझा जाता ह। अमूत अवधारणा को समझाना किठन होता ह। अैल क एक दोपहर को कात जी का एक छा डालाराम उनकसामनेउपथतहोताह।एकसवालसे वह परशान था। उसका सवाल था-'सर, इस पाठ म िलखा ह िक गौतम बु का जम सन 563 ई.प.ू म आ और मृयु 483 ई.प.ू म ! िकसी भी य क मृयु िपछली तारीख म कसे हो सकती ह।' तब काश कात का जवाब था-'ऐसा इसिलए बेटा िक ईसा पूव म सउटचलतेह।' यहाँ जवाब क अपेा सवाल महवपूण ह।एकसड़कमज़दूरकबेटकिदमाग़मयह सवाल उठना ही ख़ास बात ह। वह यिद िबना समझेहीरटलेतातोउसमतकशपैदाही नह होती। बे क िवचार िया का शु होनाएकउपलधह। यह
निदय, वन, िविभ देश आिद क थित को जानने का मौकािमलगया।उनकाानपुताआ।
नेएटलसकजरएनशकोरगना
सीखना उनक
उसाहवधक
होगा, इसक कपना क
िलए ब से मानकड
और उन सबक िलए अयंत पठनीय ह जो अपने ब क िलए सहज और आनंददायक िशा चाहते ह। जो चाहते ह िक उनक ब क िलए िशा यातनादायक न हो। उनका बा हसते ए कल जाए और हसते ए ही लौट। 000

न पड़ी हो। इन यंय रचना म कमाल का चुटीलापन ह। चूँिक पंकज सुबीर एक कथाकार भी ह,इसिलए

çàæßÙæâæçãUçˆØ·¤è जनवरी-माच 2023 27 पुतक
(यंय संह) बुिजीवी
समीक : गोिवद सेन लेखक : पंकज सुबीर काशक : िशवना काशन, सीहोर, म 466001 “लोग कहते ह िक समय बत बदल गया ह अब कोई िकसी का समान ही नह करता, मगर यह सच नह ह, लोग अपने ही चार तरफ नह देखते िक िकतने समान हो रह ह। संतेलाल, भंतेलाल का समान कर रहा ह, तो भंतेलाल, संतेलाल का समान कर रहा ह।" पंकज सुबीर क यंय संह 'बुदजीवी समेलन' क पहली यंय रचना 'समािनत होते बाल-बाल बचना' क ये ारिभक पंयाँ ह। यंय म समान लोलुपता और समान-बंधन करनेवालीएजिसयपरगहरातंजह।यहयासंहमआगेककोईभीयंयरचनाहो,पाठक िकसीकएकभीपं'कप'करनापसंदनहकरगा। समकालीन समय अनेक िवसंगितय से भरा ह। यह समय यंय रचना क िलए खाद-पानी का काम करता ह। सामािजक, राजनैितक हो या िनतांत यगत जीवन, अनेक िवसंगितय, िवडबना, िवूपता और पाखंड से भरा ह। बमुखी ितभा क धनी पंकज सुबीर ने इन सब पर बबी हार िकया ह। शायद ही कोई िवषय छटा हो िजस पर पंकज क व
उनकयंयमकथामकताकापुटभरपूरह।दरअसलहरयंयरचनाएकरोचक औररसभरािक़साहीह। राजनीितकाेिवसंगितय,िवडबनाऔरपाखंडसेआपादमतकभराह।पंकजने नेताकोएकािधकयंयरचनामिनशानेपरिलयाह।पंकजजीकाहरयंयपाठकको अपनीशुआतीपंयसेपकड़लेताह,िफरआिख़रतकनहछोड़ता।मसलन'नेताहोजाने कठीकपहले'कारिभकपंयाँदेिखए-"नेताहोजानापरतदारचानकिनमाणकतरह सततियानहहिकएकपरतपरदूसरीपरतऔरइसकारकईपरतजमकरकालांतरम एक चान बनती ह। नेता बनना तो बत छोटी िया ह।" यंय क नायक क इकसव कारोबार को छोड़कर नेता क प म बाईसव कारोबार म वेश करने क रोचक कथा ह। नेता किलएपूरादेशहीदूकानहोताह,उसेअपनेिलएअलगसेदूकाननहखोलनीहोतीह।'नेता, राजनीितशाऔरएकअददनप'कनबतचुटीलेहजोराजनीितकपूरीपोलको गोिवद सेन राधारमण कालोनी, मनावर 454446, धार, म.. मोबाइल- 989310439 ईमेल-govindsen2011@gmail.com
समीा
समेलन

खोल देते ह। नप का एक न नमूने क

तौर पर देख - "यिद एक े म ढाई सौ

पोिलंग बूथ ह तो बताइए जीतने क िलए

उमीदवारकोबंदूक,बदमाशऔरबमक

कल िकतनी संया लगेगी?" इसी तरह

नप म दल बदल, बूथ कचरग,चमचा

आिद क परभाषाएँ और मतदान क

पूवराि,एकनेताकपनी,एकचुनावीरली

आिद म से िकसी एक िवषय पर चार सौ

शदकािनबंधभीपूछागयाह।

जनता, नेता मतलब पथर क सनम, को

दा मानने पर मजबूर ह-'नेता से एक

मुलाकात' म यही बात िदलचप ढग से उभर

कर आई ह। 'नेताजी क सुबह' और

छाप नेता' म भी टे नेता क

िदनचया और मुतखोरी पर तंज िकया गया

ह। 'ए ेट लीडर' नेता क चर को

उजागर करने वाला छा ारा िलिखत एक

रोचकिनबंधह।

बुिजीिवय क पाखंड पर पंकज जी ने

अनेक यंय रचना म िकया ह। भीतरी

पोलपय को बेबाक से उजागर िकया ह। 'बुिजीवी समलेन' ने 304 पृ क यंय

संह को शीषक देने क िज़मेदारी िनभायी

ह। इस यंय रचना म बुिजीवी क लण

और उनक िविभ मुा पर खुलकर

काश डाला ह। बुिजीवी क परभाषा क

साथ उसका सजीव िच देिखए-"िहदुतान

मएकिवशेषाणीहोताह,जोचकटदाढ़ी

रखता ह, बाल म कघी नह करता और

आसमान क ओर देखता आ ऐसी बात

करता ह, जो िकसी क समझ म नह आती, यहाँ तक क उसको द को भी नह, उसी

कोबुिजीवीकहतेह।"

'किव िफर भी िवन ह', 'एक होत-ेहोते

रह गए किव क शादी' 'एक वीभस किव गोी' 'सुनसान पाक म किवता क साथ एक

शाम' आिद यंय रचना म किवय और

उनक ियाकलाप को िनशाने पर िलया गया ह। 'इतजार करते करते सािहयकार बने ए

लोग''वर

आप को भीिकसीकाइतज़ारह,तोपागलहोने,मरने, जैसे टे काय हरिगज़ न कर, सकारामक, रचनामकऔरसािहयककायकर।िहदीम एम.ए. कर डाल, यह इतज़ार का एक मा ोडटव जवाब ह, िक जा तूने इतज़ार करवाया तो देख ज़ािलम, तेर इतज़ार म मने िहदी म एम.ए. कर डाला, और सिहयकार हो गया और अब ढर सारी नवोिदत कवियियसेिघरा।तूनहऔरसही,और नह और सही, देर मत किजए,

एम.ए.।' बाल पर पंकज ने एकािधक यंय िलखे ह और सभी म िविवधता बनाकर रखी ह। 'आपक भी बाल

मजबूरकरताह।पंकजजीनेकईनएमजेदार और मारक उपमा, िवशेषण, मुहावर और पद का सृजन िकया ह िजनसे भाषा का जायका और बढ़ जाता ह। इस भाषा म एक देशीपन और बेलौसपन भी ह। मसलन –चरण धतूर, फल ोधावथा, नवनीत िवलेपन, गोबर िवलेपन, काला- ढस, गीदड़ावलोकन, भाड़गमन, हतपाद वाता

मौिलक एवं अकािशत रचनाएँ ही भेज। वह रचनाएँ जो सोशल मीिडया क िकसी मंच जैसे फ़सबुक, हासएप आिद पर कािशत हो चुक ह, उह पिका म काशन हतु नह भेज। इस कार क रचना को हम कािशत नह करगे। साथ ही यह भी देखा गया ह िक कछ रचनाकारअपनीपूवमअयिकसीपिकाम कािशत रचनाएँ भी िवभोम-वर म काशन क िलए भेज रह ह, इस कार क रचनाएँ न भेज।अपनीमौिलक

28 çàæßÙæ
âæçãUçˆØ·¤è जनवरी-माच 2023
'मूंगफली
सािहयकार'मसािहयकारक छकोउजागरिकयाह। 'िहदीमएम.ए.करनाभलेहीइतज़ारक बोरयत को दूर करने का उपाय समझा जाता ह, मगर उसी क गभ से आजकल सिहयकार पैदा हो रह ह। तो अगर
सिहयकार क पूरी जमात आपक िहदी एम.ए. होने क तीा कर रही ह, आइए और कर डािलए िहदीम
झड़ रह ह ?','गए िदन जुफ क साए क' और 'हाँ साहब झड़ रह ह...अब बोलो...?' तीन म िवषय एक ही ह िकतु सबका िनवाह और सदभ अलगअलग ह। इह पढ़ना भी एक आनददायक अनुभवसेगुज़रनाह। इन यंय रचना म भाषा का वाह पाठक को बाँध लेता ह। भाषा का िखलंदड़ापनबतगुदगुदाताह।मुकरानेपर
आिद। एक यंय 'शद का इतेमाल' भी ज़ोरदार ह। कछ विनिमत नवीन व वाय भी आपको आनंिदत करगे। जैसे-"नंगे को चीरहरण का या डर?" अनेक नवीन लेिकन मजेदार शद क संि प भी यंय क वाह म तैरते ए िमल जाते ह। इसी तरह इनम संदभानुसार िफमी गीत क रोचक पैरोिडयकाज़ायकािमलजाताह। पंकज जी ने इन यंय क जरए 'भंतेलाल' या 'भंत'े क चर को सफलतापूवकगढ़ाह।कहवहपकारहतो कह सािहयकार क प म आता ह। अनेक यंय म वह यंय नायक क िम क प म नज़रमआताहजोउससेकछनकछपूछता रहता ह। इस चर क सहार पंकज जी ने जन जीवन म या अनेक िवसंगितय को अपने ढग से उजागर िकया ह। इसी तरह झमकड़ी बाई भी एकािधक यंय म एक ामीण अनपढ़मिहलाकपआतीह। यह संह यंय क पंच परमेर हरशंकर परसाई, शरद जोशी, लतीफ़ घघी, मुताक अहमद यूसुफ, ीलाल शु और यंय क डॉटर डॉ. ान चतुवदी और डॉ. ेम जनमेजय को समिपत ह। मुझे इसे पढ़ते ए रवनाथ यागी भी बत याद आए। िकताबकाआवरणपेिनशिचकारकिच से सत ह। मुझे पूरा िवास ह िक संह क ये असी यंय रचनाएँ पाठक को समोिहत कर लेगी। यह िकताब हाय क मखमलीयानमरखीयंयकतेज़तलवार ह। 000 लेखक से अनुरोध सभी समाननीय लेखक से संपादक मंडल का िवन अनुरोध ह िक पिका म काशन हतु कवल अपनी
तथाअकािशतरचनाएँ ही पिका म काशन क िलए भेज। आपका सहयोग हम पिका को और बेहतर बनाने म मददकरगा,धयवाद। -सादर संपादक मंडल

ह।लेिकन यह िवनता िलजिलजी नह ह। उसम भी ज़री मानी जानेवाली ढ़ता ह। बचपन, मृितयाँ, कठपुतिलयाँजैसेिवषयपरिलखतेवतउनकावरऔरअिधककोमलहोजाताह।बारश, कितइयािद

çàæßÙæâæçãUçˆØ·¤è जनवरी-माच 2023 29
(िनबंध संह) दुिनया मेर आसपास
लेखक
काशक :
काशन,जयपुर पुतक'दुिनयामेरआसपास'एकताकानूनगोबीकचयिनतआलेखकासंहह।इनम एकज़रीिकमकासंिगकताह।िजसकापतापुतकमसमिलतआलेखकिवषयसे ही चल सकता ह : संवाद क संवेदना, रत क महक, जीवन का उसव, रत क रगोली, कित क ऋण, िबदा होती बारश को सुनते ए, जीवन संगीत, घरलू िहसा, बाज़ार मघर, कामयाबी क औज़ार, िनजता का न इयािद! संह क लगभग सभी आलेख इसी तरह क िवषयपरकतह।जोिकिसफ़लेिखकाकहीनहबकहमारभीआसपासकदुिनयाह। तक़रीबन हर िदन घिटत होने और हमार सावजिनक जीवन का अितपरिचत िहसा बन जानेवाली दुिनया! आप इसे एक तरह से बासी होती जा रही दुिनया भी कह सकते ह। लेिकन, एकता इसे अपनी युवा नयी नज़र से देखती ह। इस देखने म जो ताज़गी ह वह इन आलेख म उभरकरआतीह। सम प से देख तो संह क रचना म एक ख़ास तरह क रचनामकता का भाव ह। वीकायता का भी! इसिलए इनम िशकायत नह ह। जहाँ कह थोड़ी-बत अगर ह भी तो वहाँ भी वह बजाय र करने क समझने-समझाने क कोिशश करती िदखाई देती ह। एक ज़री िकम क आही भाव से! िवडबना-िवसंगितय क साथ भी वह इसी तरह पेश आती ह। घरलूिहसाजैसेिवषयपरिलखेआलेखमइसेदेखाजासकताह।यूँभी,इसतरहककछक आलेख अगर छोड़ द तो संह म नकारामक िवषय पर कत आलेख नह ह। अिधकतम आलेखमआमिज़दगीकअनेकछोट-बड़सहज-सामायसंगमौजूदह। ऐसा नह िक िनजी, पारवारक एवं सावजिनक मु को लेकर िलखे गए इन आलेख म आलोचनामक का अभाव ह। इनम आलोचनामक तो ह लेिकन वह इकहरी न होकरसतुिलतिकमकह।एकताउनचीज़बातपरफ़ोकसकरतीहजोजीवन-जगको िकसीनिकसीतरहबुिनयादीतौरपरसुदर-सुखदबनातीह।एकिनरतररऔरअमानुिषक होतेजारहसमयमउनककलजमाकोिशशहरतरहककोमलता,मधुरताऔरसुदरताको बचानेकह।समयाकोदेखनेसमझनेकाउनकानज़रयाऔरतरीक़ािकसीहदतकमासूम िकम का ह। यह मासूिमयत नकली, बनावटी और ओढ़ी ई िकम क नह बक सहजवाभािवक ह। सदाशयता, संवेदनशीलता और आमीयता से भरी ई! और ऐसा िसफ़ किव होनेककारणनहह।किवताकाउनकरचना-िववेकपरकोईअितरदबावनहह।अिय और नकारामक मु पर भी उनक आलेख का वर कोमल ही ह। मन क साफ़-सफ़ाई, कड़वेकाभीवागतजैसेिवषयपरिलखेगएआलेखपढ़करइसेसमझाजासकताह। संह क कई आलेख ऐसे ह िजनसे गुज़रते ए िवन िकम क आान, आह और नसीहतकाबोधहोताह।िकसीतरहकआामकताइनमअनुभवनहहोती।िववंसतोख़ैर उनम ह ही नह! ये आलेख मूल प से संसार को ताज़ा, पिव, आथा और िवास क भाव सेदेखीजानेवालीरचनाएँह।जहाँकहअसहमितअथवािवरोधहवहाँभीिवनता
सेसबधतआलेखिभबोधकरचनाएँह। इनआलेखमिबदाहोतीबारशकसुननेककोिशश,फरतकचहल-क़दमी,वसत मजीवनकउमंगकोमहसूसिकयाजासकताह।वैसे,इनमज़रीमौक़परसंघषकरनेका भी आान ह। अछी बात ह िक सारी कोमलता, मधुरता, संवेदनशीलता क बावजूद इनका इनम अितरक नह ह। और इसी कारण ये आलेख भावुक लाप या दन होने से बच गए ह। 'रत को बनाये रखने क िलए कतता का भाव ज़री ह।' या िफर, 'घर क अटाले क िनपटानकतरहहीहमअपनेभीतरकसामीकािनपटानभीकरतेरहनाचािहए।'जैसेवाय इनआलेखकभाषाऔरकहनकगहराईकाअनुभवकरवातेह। 000 काश कांत १५५, एल आई जी,मुखज नगर, देवास 455001 म मोबाइल- 9407416269
पुतक समीा
समीक : काश कात
: एकता कानूनगो बी
बोिध

मदोकहािनयाँसमानातंरचलरहीह,जबिकदोनकहािनयकाकथानक

िभ ह। एक ओर भीषण ाकितक आपदा ह, वह दूसरी ओर ेम जैसा कोमल और दय पशभावह,धोखा,मकारीह,मानवता,िनःवाथसेवाभावह।कहानीकाएकअयसंग भी मन को छ गया जाता ह। ाकितक आपदा म ही एक िहरणी अपने शावक क साथ घर क बैकयाड म भोजन क तलाश म साथक को िदखती ह वह उह िबकट िखला कर पानी िपलाताह,यहमानवदयकपशुेमएवंसदयताकाअनुभवकरताह। उपयास म खािलतान, लेिननवाद, मासवाद, शोिषत, मेहनतकश, धािमक करता, वैकपूँजीवादजैसेशदनेगहरीपैठबनाईह।कहानी

30 çàæßÙæâæçãUçˆØ·¤è जनवरी-माच 2023 पुतक समीा (उपयास) नक़ाशीदार
समीक : कमल चंा लेखक : सुधा ओम ढगरा काशक : िशवना काशन, सीहोर, म 466001 नक़ाशीदार किबनेट का आरभ एक पूव म भोगा गया सय,जो ाकितक आपदा क प म जीवन म अवतरत आ था, से िकया गया ह। भयभीत करने वाले टॉरनेडो क अनुभव का बत ही सटीक वणन िकया ह, िजसे पढ़कर पाठक उस िवपि को वयं भोगते अनुभव करते ह। बफ़ला अंधड़, बारश का चवात, वृ का समूल उखड़ना, घर म पानी भर जाना, िबजली गुल हो जाना, आकाश म सहायता क िलए उड़ रह हलीकॉटर, बेसमट म सुरित या घर क मय बने थान को चुनने क सलाह देते रिडओ टी. वी., ये सभी िलिखत य हमारा मानिसकतारतयसीधाकथानकसेजोड़तेह। सुधा जी ने उपयास म पमी एवं भारतीय पारवारक यवथा पर भी काश डाला ह। संयुपरवारतथाएकाकपरवारकआपदाबंधनकोभीबिढ़यातरीकसेतुतिकयाह। ाकितक आपदा हॉरकन और टॉरनेडो क भाव से वृ का टट कर बड़ी टहनी ारा घर क िखड़क तोड़कर घर म पानी भरने से कहानी म नया मोड़ आता ह, एक नक़ाशीदार किबनेट से डायरी का िमलना, नाियका का उसे पढ़ना एक नई कहानी को पाठक से परिचत करवाताह।यहकहानीमूलकहानीकसाथहीचलतीह।हमनएपासेिमलतेह।अभीतक हम नाियका उनक पित साथक से ही िमले ह, इस सहायक कहानी म कछ पा पमी मीनल, सोनल,सुखी,सेहमाराआमना-सामनाहोताह।अनेकपरथितयाँजमलेतीह।जहाँएक ओर अवसाद, ईया, ेष, वाथ क रते पटल पर उभरते ह, वह दूसरी ओर िनःवाथ ेम संग भी ह। कहानी अनेक आरोह-अवरोह क साथ आगे बढ़ती ह। पाठक क सामने अनेक नएवंउसुकतापैदाकरतीह,जैसे...नक़ाशीदारकिबनेटमरखीडायरीकोनाियकाारा अभी तक न पढ़ना, िजसम बत सी ऐसी आसमाय और दुःखद घटना का िज़ ह। यह कहानी हमार सामने पृ 22 से 68 तक अनवरत तथा आगे भी क-क कर चलती ह, जो पाठक क मन म आगे या होगा क िजासा जगाती ह। आगे भी पाठक इस कहानी से गाहबगाह-ब-होतेजातेह। सहायक कहानी म सोनल को बलदेव बने सुलेमान ारा ेमजाल म फसा कर अनौपचारकिववाहकरअमेरकालेजाकरकसतकचमफसानेकमंशारखनावतमान क अनेक ा, अंिकता, आिद आिद क याद िदलाता ह, व िसहरन पैदा करता ह। यिप सोनल अपनी सतकता क कारण इस पंच से बच कर भाग िनकलती ह। वह एक अमेरकन दंपित क घर म शरण िमलना तथा सुरित पुिलस एवं शेटर होम तक पचना सुखद अनुभूित काअहसासकरातीह। तुतउपयास
किबनेट
मेम,याग,समपणजैसेमानवीय मूय को भी समुिचत थान िदया गया ह। ेम म ठगी, संयोग, िवयोग जैसे अिवभाव भी आकषण क बने ह। जहाँ तक लेखन क बात कर तो लेिखका वासी भारतीय ह, िहदी क साथअंेज़ीवायएवंशदकाखुलकरयोगिकयागयाह।उपयासकभाषाबतसरल धारावाह ह, िचामक एवं िववरणामक शैली ह। पाठक क सम घटनाम पढ़ते समय य उप करते ह, यह लेखन क सफलता ह। संवाद छोट भावपूण ह। अंेज़ी, पंजाबी भाषाकाभावभीिदखाईदेताह। 000 कमल चंा 277-रोिहत नगर, फज़ -1, बाविड़या कलां, E-8, एसटशन, भोपाल 462039 म मोबाइल- 9893290596 ईमेल- kjc158.jc1@gmail.com

का सृजन करता ह। इस से कहा जा सकता ह िक लेिखका क रचना म शोिषत-पीिड़त, वंिचत वग क पीड़ा और ी मन क वेदना मुखरत ई ह। यह उदा व भावधान कहािनय से परपूण संह ह। िचंतन और मनन क मायम से जो ताना-बाना बुना गया ह, वह कािबले तारीफ ह। उसे िबना, लाग-लपेट क सरलता से

çàæßÙæâæçãUçˆØ·¤è जनवरी-माच 2023 31 पुतक समीा (कहानी संह) काला सोना समीक : डॉ. एस. शोभना लेखक : रनू यादव काशक : िशवना काशन, सीहोर, म 466001 'काला सोना' क कहािनयाँ ी-जीवन क संघष क कहािनयाँ ह। समकालीन रचना परय म जहाँ अय रचनाकार ी क वजूद से जुड़ सवाल और सरोकार तक ही सीिमत िदखाई देते ह, वही रनू ऐसी कथाकार ह िजहने इससे आगे बढ़कर ी-जीवन क महवपूण सवाल को उठाया ह और साथ ही अपनी गहरी संवेदना से कहानी को और भी तयपरक और सयबनािदयाह।इसकहािनयकोपढ़तेएसयऔरकपनामभेदिमटताआसातीत होता ह। यह कहािनयाँ ी-दासता क िव खड़ी य का पाठ ह िजसम आधुिनक ही नह लबेअससेी-संघषसेजुड़ीकईअनकहीबातकोिबनािकसीशोर-शराबेकसाथपाठक तकलेआतीह।'कालासोना'कजरएलेिखकाउनतमामकोनकोभीभरतीईनज़रआती हजहाँिकसीकायानअमूमननहजाता। 'काला सोना' कहानी-संह म 12 कहािनयाँ संकिलत ह- नचिनया, काला सोना, वसुधा, मुखान, छोछक, कोपभवन, टोनिहन, अमरपाली, चऊकवँ राँड, डर, खुखड़ी, मुँहझौसी –यहनामिसफउनकहािनयमिचितपाकहीकहानीनहबकउनहजार-लाखय क जीवंत दशा का ऐसा िच ह जो मन को झंकत कर देता ह। उहने समाज म य क शोषण क उन पहलु क ओर भी हमारा यान आकिषत िकया ह जो ी क अमता को आहत करत ह। पुषवचववादी मानिसकता वाले समाज म ी क वािभमान, उसक इछा और उसक मनोकामना को त-िवत िकया ह। 'नचिनया' संह क पहली कहानी ह िजसम राजन को अपनी िच का अनुसरण करने क िलए समाज म वीकित नह िमलती और सोनपरी को समाज म फहड़ क प म देखा जाता ह। नचिनया म लोक कला औरितभासंपकलाकारकजीवनकसंघषकािज़िकयागयाह।'कालासोना'बाछड़ समुदायककहानीहजहाँएकमाँअपनीबीकोमाहवारीआनेतकहीबचाकररखसकती हऔरउसकबादपेटभरनेकिलएिबजनेसमछोड़नापड़ताह। लेिखका क कहािनय का कथानक ी-मन पर आधारत ह। उहने ी मन क कोने म बरससेदबीिससिकयकोअपनीकहािनयमकछऐसेबुनाहिककहािनयाँसजीवहोउठती ह और पा जीवंत हो जाते ह। यह सब कहािनयाँ ी-जीवन क िवडबना को दशाती ह। ी अपनेजीवनकहरणकभीवयंसे,कभीअपनेआसपासकलोगसे,कभीसमाजसेसंघष करतीरहतीह।वचववादीसामपैसकिलएमोहताजदादी,वसुधाकाअपनेअतवको बचाने का यास, आपाली का अपनी िज़ंदगी को पुनः बनाने का यास, रािधका का अपने बेटी को अिधकार िदलाने क छटपटाहट आिद सब पाठक क दय को संवेिदत करते ह। इन कहािनय को पढ़ने पर यह न म उभरता ह िक या यही ी क िनयित ह ? या उसक अतवकवतंताकमाँगह? कोईभीरचनाकारकभी
सीिमत
अपनेसमाजऔरअपनेवग
ितिनिध
य करनाउककहानीकारकछिवकोिदखाताह। िकसी भी रचनाकार क ताक़त उनक भाषा होती ह भाषा को ताक़त शदावली से िमलती ह,लेिखकानेभाषाऔरशदकाचयनकहानीकपरवेशकअनुसारिकयाह।हमिनत प से कह सकते ह िक लेिखका क भाषा एवं कित ेरणादायक ह। आधुिनक ग े म लेिखकाकयहकहानी-संकलनएकसाथकहतेपहऔरआशाहिकवेसािहयसृजनक े म लगातार आगे बढ़ती रहगी और िहदी सािहय भंडार क वृि म अपना योगदान देती रहगी। 000 डॉ. एस. शोभना अिसटट ोफसर टा महािवालय, अनलही ाम मैसूर 570028 कनाटक
भीअपनेतक
नहरहता।वह
क प म अपने सािहय

पुतक समीा

ले जाता ह, जहाँ तक वह वयं नह पच पाता ह। यंय हम िसयासत क चालािकय से अवगत कराताह,यंयहीहमएहसासकराताहिकहमकहाँकहाँठगेजारहह,यंयहमचौका, जागृतऔरिज़दाकरताह।यहबतपाक,पिवऔरमुक़सकायह। जबहमइससंहकोहाथमलेतेह,तोशुआतमहीानचतुवदी

32 çàæßÙæâæçãUçˆØ·¤è जनवरी-माच 2023
धापू पनाला
काशक
धापूपनालावाहकोआहमतदीलकरतीयंयरचनाकासंहह।िशवनाकाशनसे जो एक सौ बयािलस पृ का यंय संह आया ह न, िजसम एक से बढ़ कर एक रचनाए शािमल ह, िजसका कवर पेज क. रिव ने तैयार िकया ह, िजसक साफ़ िचकने कागज़ पर ुिटहीन साफ़ प छपाई ह, िजसका मूय दो सौ पये और नाम धापू पनाला ह, िजसक लेखक कलाश मंडलेकर ह, इसम भाषा का कमाल गज़ब का ह। इसम दो िकम क भाषा ह एक बोलती भाषा ह, एक मौन क भाषा ह। एक शद क भाषा ह, एक इशार क भाषा ह। िलिखत क बीच म जो अिलिखत ह वह यादा अथवान ह, उसक आवाज़ अिधक तेज़ और तीखी ह। असल रचना वह नह ह, जो िलिखत ह, िलिखत तो बस अिलिखत को उभारने का मामायमह।इसमगुदगुदाते-गुदगुदातेमंडलेकरजीअचानकिचमटदेतेहऔरवाहआहम तदीलहोजातीह।वाहिनकलतेिनकलतेआहिनकलजाए,यहीतोयंयह। यंय क यह गंगा कलाश से िनकली ह। कलाश मंडलेकर जी क सोच से िनिमत ई रचनाएँिकताब से िनकल कर आँख तक ही नह आत, बक िदमाग़ तक पचती हऔर पचतेहीउथलपुथलमचादेतीह।पथरजैसेिवषयपरमोमजैसीरचनािलखनेवालेलेखक ह कलाश जी। जब हम संह क रचनाएँ पढ़ते ए आगे बढ़ते ह तब अहसास होता ह कलाश जीशौकतथानवी,इनेइशाऔरमुताकअहमदयुसुफकपरपराकयंयकारह। यंय म हाय भी ह हाय ही नह ह, ये बेमकसद क रचनाए नह इसक िलखे जाने म िलखे जाने क वजह शािमल ह िजसम रचनाकार साफ़गोई से यह कहने म पूरी तरह कामयाब आहिकहमयाानहमागबदलनेकज़रतह। संहकपहलीरचना"कॉलोनीकदंतिचिकसक"ह।पहलेनंबरकरचनाएकनंबरक रचनाह।एकसाधारणसीबातकोआगेबढ़ातेएमंडलेकरजीइसेअसाधारणरचनाबनादेते ह।यहकायजैसाआलेखहपजैसाग।यहलेखनककशीदाकारीह,नकाशीह,यंय लेखनमिकयागयासुनारीकामह,जोथान-थानपरलोहारीकाममतदीलहोजाताह। कलाश मंडलेकर बात कहने क िलये रचना म उपयु मौसम पैदा करते ह, पंच क िलये थान बनाते हऔर सहजता से यंय का ऐसा वाय िनिमत कर देते हिक अब तक जो रचना ठड पानी क बौछार कर रही थी अचानक खौलते ए पानी सी लगने लगती ह। मंडलेकर जी का यह नर कािबले तारीफ़ ह िक ये रचना म चीखते िचाते नह ह लेिकन बात दूर तक पचातेह।िबगड़ाआकलरवालीरचनाकयहलाईनहीइनकलेखनकाअंदाज़बयानकर देतीहदेिखए"कईबारकलरइसदौरकनेताकतरहधोखाधड़ीपरउतरआतेहपंखाचल रहाहलेिकनपंपबंदह"। धापूपनालापढ़तेपढ़तेयहमहसूसहोनेलगताहिकरोटीकपड़ामकानकतरहयंयभी जीवनकआवयकआवयकताह।यंयआमआदमीकसोचऔरसमझकोवहाँतक
जीकिलखीभूिमका नज़रआतीहइसेपढ़िबनाकलाशमंडलेकरकरचनासंसारमवेशकरनाउिचतनहहोगा। यहभूिमकािकसीमकानकमुयारमलगीकॉलबेलकतरहह,िजसेबजाएिबनावेश करनाग़लतह।जबहमकोईमशीनखरीदतेहतोसाथमकपनीउसेसमझनेऔरइतेमालक िलये एक िनदश पुतका भी देती ह, यहाँ भी ान जी क भूिमका वैसी ही िनदिशका क प म मौजूदह। िकसी पुतक क समीा या चचा म इतना ही बताया जा सकता ह बाक सब क िलए तो पुतकहीपढ़नाहोगा। 000 अखतर अली िनकट मेडी हथ हापटल आमानाका, रायपुर (छीसगढ़) 492010 मोबाइल- 9826126781
(यंय संह)
समीक : अखतर अली लेखक : कलाश मंडलेकर
: िशवना काशन, सीहोर, म 466001

थी न', 'िमलान', 'िनणय', 'धरा पर चाँद', 'सुंदरता', 'भरोसा', 'िहसाब' जैसी रचना म य क मन क भावना को, उनक चेतना को और उनक वािभमान को बबी य िकया ह। 'पहचान', 'तसी', 'तुलसी म तेजपान', 'ोफशनल', 'सपात', 'रक', 'चयन', 'आज माँ बन जाओ', 'पथर', 'कोिडग िडकोिडग'जैसीलघुकथाएँलंबेअंतरालतकज़ेहनमभावछोड़तीह।'अिधकार','पोटली', 'हतांतरण', 'पासा पलट गया', 'ज़ािहर सूचना', 'मेरी कहानी' जैसी लघुकथाएँ यथाथवादी जीवनकासटीकिचणह।इससंहकअयलघुकथाएँ

çàæßÙæâæçãUçˆØ·¤è जनवरी-माच 2023 33 पुतक समीा (लघुकथा संह) पोटली समीक :
लेखक :
यास काशक : विनका पलकशस, नई िदी 'पोटली'सीमायासकापहलालघुकथासंहह।इससंकलनम89लघुकथाएँसंकिलत ह। इस संह क रचनाएँ अपने आप म मुकमल और उेयपूण लघुकथाएँ ह और पाठक कोमानवीयसंवेदनाकिविवधरगसे-ब-करवातीह। 'नो हॉन लीज़' हमार व क नज़ पर उगली रखती ह। यह सामािजक सरोकार क शात मूय को बड़ी िशत क साथ रखांिकत करती ह। यह एक यापक जागकता क िवचारोेजकलघुकथाह,िजसमहमारसमयकायथाथविनतह।'मुझसेपूछाथाया'रचना म रचनाकार ने िकशोरवय क बेट, िजसक माता-िपता अलग हो जाते ह, क मानिसक धरातल को समझकर उसक मन क तह तक पचकर लघुकथा का सृजन िकया ह। यह एक िकशोरवय क बेट क कोमल भावना क अिभय ह। 'कहो ना यार ह' शहरी जीवन क आपाधापी क बीच रत म बची ई ताज़गी का िच तुत करती ह। रचनाकार ने इस लघुकथा म पारवारक संबंध क धड़कन को बबी उभारा ह। 'समाधान' एक बेहतरीन लघुकथा ह, जो एक बी क पीड़ा को अिभय करती ह। इस लघुकथा म बी क मातािपता आपस म झगड़ते रहते ह। िपता और बी क संवाद ारा ही माता-िपता क झगड़ने क समया का समाधान िनकलता ह। डाक बंगल म रात कने वाले सरकारी अिधकारय, नेताककारनामकतख़साइयसे-ब-करवातीहइससंहकलघुकथा'बारी'। 'वहाँहपानी'रचनामपानीकदुपयोगकपड़तालकगईह। एक ी क मन क यथा, उसक वेदना, िववशता और लाचारी को प अनुभव िकया जासकताहइससंहकलघुकथा'मनहथीन'म।लेिकनजबयहीीअपनेपैरपरखड़ी होती ह तो पुष का अहकार चूर-चूर हो जाता ह। बचपन िकतना िनछल और मासूम होता ह उसक बानगी ह लघुकथा 'चरणामृत'। 'फॉमूला' म वतमान समय म कल म क जाने वाली धाँधली,ाचारकायथाथिचणकसाथलेिखकानेकमपढ़िलखेिपताकईमानदारीका ामािणकिचणिकयाह।'समझ'लघुकथामिशाकिगरतेतरपरिचंताकटकगईह। 'ज़री तो नह' अपने कय और कथानक से काफ रोचक बन पड़ी ह। 'सुपर ओवर' का कनवासबेहतरीनह।इसमवसुधाकोउसकमेहनतऔरईमानदारीकाफलिमलताह। 'दोती : एक लघु संवाद' ना शैली म िलखी गई एक लघुकथा ह िजसम आधुिनक जीवन शैली और िमता को रखांिकत िकया गया ह। 'फर', 'अमरव', 'कमत', 'शांित' और 'सौगात' इयािद लघुकथा म सीमा जी ने तीक का साथक योग कर अपनी कलामक मता का परचय िदया ह। 'लमी स', 'म नह
मनकोछकरउसकममसेपहचान कराजातीह। इस संह क रचनाएँ वातिवक यथाथ को तुत करती ह। लघुकथा क कय म िविवधता ह। िवषयवतु और िवचार म नयापन ह। जीवन क अनेक तय एवं सय इन लघुकथा म उािसत ए ह। लघुकथाकार क लघुकथाएँ समाज क लंत मु से मुठभेड़ करती ह और उस समया का समाधान भी तुत करती ह। संह क अिधकांश लघुकथाकाकथानकसकारामकऔरेरणादायीह।लेिखकाजीवनकिवसंगितयऔर जीवनककेिचकोउािटतकरनेमसफलईह।इसपुतकसेलेिखकाकसमाज कितसकारामकसियतागोचरहोतीह। 000 दीपक िगरकर 28-सी, वैभव नगर, कनािडया रोड, इदौर- 452016 म मोबाइल- 9425067036 ईमेल- deepakgirkar2016@gmail.com
दीपक िगरकर
सीमा
34 çàæßÙæâæçãUçˆØ·¤è जनवरी-माच 2023 शोध आलेख (शोध आलेख) राजनारायण बोहर क उपयास म ाय जीवन शोध लेखक : डॉ. पा शमा बंलाभाषामलबीकथाकपमचिलतिवधाक'उपयास'शदकोिविभिवान ने अपनी-अपनी परभाषा म आब करने का यास िकया ह। लेिकन इन परभाषा म शदगतअंतरहोतेएभीअथगतकोईमूलभूलअतरनहीह।डॉयाम-सुदरदासउपयास को 'मनुय क वातिवक जीवन क कापिनक कथा' मानते ह तो ेमचद 'मानव-चर क िच' को उपयास मानते ह। बाबू गुलाबराय ने उपयास क परभाषा देते ए िलखा ह"उपयास काय-कारण ंखला म बंधा आ वह ग-कथानक ह िजसम अपेाकत अिधक िवतार तथा पेचीदगी क साथ वातिवक जीवन का ितिनिधव करने वाले यय से संबंिधत वातिवक कापिनक घटना ारा मानव-जीवन क सय का रसामक प से उाटनिकयाजाताह।1 उपयास क सािहय प को मानव-जीवन क अयिधक िनकट लाने का ेय ेमचद को ह।एकआलोचकनेठीकहीिलखाह-"ेमचदकपदापणकपूवतकिहदीउपयासमानो िकसी अिवकिसत किलका क भाँित मौन, िनपद एवं चेतनाहीन सा हो रहा था, िदवाकर क थम रमय क भाँित ेमचद क पावन कला का पुनीत पश पाकर मानो वह जाग उठा, िखलउठाऔरमुकरानेलगा।"2 वतमान म जय नदन, िशवमूित, संजीव, महश कटार, अिनल यादव, राजनारायण बोहर आिदउपयासकारनेायजीवनकिवभीिषकापरअपनीलेिखनीचलायीह। राजनारायण बोहर क 'मुखिबर' और 'अथान' उपयास म ाय परवेश क झलक िमलती ह तो 'आड़ा व' म ाय जीवन क सपूण गाथा का िचण ह। वे वयं कबाई परवेश से ह और गाँव, खेत-खिलहान, हल-बैल, कआ-बावड़ी, चूहा चाक सब उनक आँख म चलिच क भाँित मौजूद ह। िमी क सधी खुशबू क ठसक, गे क उमगती बािलयकलहक,कीअिमयाँकमहकसबउहनेदेखाह। गाँवकिकसानअपनेखेतकोअपनेशरीरकािहसाहीमानतेह।उनकिदलमऔरर निलयमखेतखूनबनकरहतेह–"दरअसलदादाकशरीरमधड़कतेथेखेत! नसमखूनबनबहतेथेखेत! साँसमहवाबनकररहतेथेखेत! िजन िदन खेत म फसल लहलहा रही होती, दादा क धमाचौकड़ी देख पसीना-पसीना हो जाते वप। सार खेत एक दूसर से दूर थे, दादा एक से दूसर खेत तक िकतनी ही बार आते जाते। दादाजबतकखानाखाते,वपहाथमेगोफनीिलएककड़भर-भरकरदूरतकफकते रहतेऔरमुँहसेदादाक'हररर'कआवाज़िनकालतेतोफसलकादानाखारहपरदेडरक वजहसेफरसेउड़जाते।"3 जीवन-यथाथकािचणकरतेसमयायःसभीउपयासकारतनऔरमनको,बुिऔर दय को िवभािजत कर देते ह। यह िवभाजन वाभािवक ह िक ं और टकराव, तदुपरात भटकाव को जम देता ह। इतने बड़ संसार म जीवन म कौन से दो य समान िच और डॉ. पा शमा ायापक, िहदी महारानी लमीबाई कला एवं वािणय महािवालय वािलयर, म. . मोबाइल- 9406980207 इमेल-Dr.padma_sharma@rediffmail.com

वभाव क िमलते ह ? जीना ह तो जीवन से

कछ समझौता करना लाजमी ह परतु हमारा

उपयासकारबताताहिकसमझौतायव

काहननह-टटोपरझुकोनह।

गाँव म अब भी लड़िकय को उनका

िहसा नह िदया जाता, ज़मीन क िहसे क

बदले म उनसे यह िलखा िलया जाता ह िक

उह नकद और ज़वेर क प म अपने िहसे

का धन िमल गया ह अब उह खेत म से

अपनािहसानहचािहए"चतीस बीघा रकबा क चार खेत

उरािधकार म िपताजी को िमले थे। िपताजी

क देहावसान क बाद िपताजी क फोती

िलखकरदािखलखारजकवातेउसज़मीन

क िमसल चली तो जुगल िकशोर और

रामवप दोन भाइय क नाम पटवारी क

खतौनी और खाते म चढ़ गए थे। इस िया

म पहले सुभा ने तहसीलदार क सामने

िलखकर दे िदया था िक मुझे शादी-याह क

वाते नगदी और ज़वेरात क प म एक

िहसा अलग रख िदया गया ह, वह कल

संपि का तीसरा िहसा ह, िजससे म पूरी

तरहसंतु,दादाऔरवपनेमुझेअपने

िहसे से यादा पैसा नगद दे िदया, तो आगे

मुझे अपने घर क ज़मीन म से कछ भी नह

लेना ह। वह न िलखती तो सुभा क नाम भी

इसज़मीनकातीसरािहसाचढ़ता।"4-गाँव

मअभीभीखेतमािलकिकसानदकोखेत

िवहीन मज़दूर से ऊचा मानता ह, कोई भी

िकसान िवपरीत हालात म भी मज़दूरी करने

नह जाता। अगर नयी पीढ़ी का िकशोर या

युवकमज़दूरीकरनेकातावरखेतोपुरानी

पीढ़ी क लोग बेइज़ती समझ कर उसे

मज़दूरीकरनेसेरोकतेह-

िपताजी खिटया पर ही िनढाल पड़ थे।

उनक पास बैठकर जुगल िकशोर ने इधर-

उधर क बात क िफर धीर से सड़क पर जाने

क अपनी इछा बताई तो िपता िबफर उठ थे

-"सार नाक कटा दे हमारी। चतीस बीघा

धरती को मालक, जात से ठाकर और दूसर

घर क तगारी डारगो। गाँववाले का कहगे।

कल बात िबरादरी

उसने डरते-डरते कहा 'काऊ सेठ क नह, सरकार

उसे या मतलब उनक थित से! खैर िकसी तरह पूरीतरकारीकापकाभोजनबनाथा।"6 हमारा देश किष धान देश रहा ह। किष एक ऐसा यवसाय ह िजसम परवार क ी, पुष दोन को काम करना पड़ता ह तापय यहिकपुषककायमयकाबराबरीसे सहयोग देना हमार देश क िलए कोई नई बात

नहह।

ह-

से भी उनका आमीय लगाव जुड़ा

बतीसेदसिकलोमीटरदूरतय

गई इस नई बती

ह।

जुगल िकशोर न हो तो एक आध खेत बेच दो

यह कब काम आएँगे।' एकाएक िवधायक

बीचमबोलेतोआगसीलगगईथीदादाको।

"खेत हमार पुरख क धरोहर ह िवधायक

जी, उनम कमी-बेशी करने का अिधकार नह

ह हमको, बस उनक रखवाली करते ए

फसल खाते रह और ब को य का य

सप जाएँ इतनी िज़मेदारी ह हमारी।' कहते

दादा ने द पर मुकल से िनयंण िकया

था।"9

गाँव म सामाय जन जीवन

çàæßÙæ
35
âæçãUçˆØ·¤è जनवरी-माच 2023
म जाएगी तो बनी - बनाई इतघूरमचलीजाएगी।"
क सेवा म जाएँगे, सरकार तो राजा कहलाती, भगवा को प होती ह वह। दूसरगाँववालेभीजारहह।"5 गाँव म था ह िक हरयाली अमावया को खेितहर मज़दूर और सिजया (साझीदार मज़दूर) खेत मािलक क घर जाकर भोजन करते ह, इसक िलए उह यौते क दरकार नह होती। जब खेत मािलक क आिथक थितसुढ़नहोऐसेमकोईआमंणपरआ जाएतोयवथाकरनामुकलहोजाताह"उस िदन हरयाली अमावस थी और हर वषकतरहसिझयाभोजनकरनेआगयाथा तब दादा और अमाँ ने कसी िनगाह से एक दूसरकोदेखाथा।याकरभाई,रवाजहसो सिझया हर वष हरयाली अमावया को तो भोजन करने आएगा ही
7 िकही कारण से जब भी गाँव क लोग िवथािपत होते ह वो अपने छट रह पुराने मकान से िखड़क, दरवाज़े और कबेलू तक उठा कर नए मकान म लाने का यास करते ह। भले उनक ज़रत न हो! यिक उन वतु
होता
"िपछली
को नया धमपुर नाम िदया गया था। इस बती को कछ लोग नयागाँव भी कहते थे। यहाँ एक ही आकार कार क सब मकान बनाए गए थे। गाँव म चार सौ घर थे, उसक िलए नई बती म चार सौ मकान बनाकर उनक दीवार पर गे िमी से नाम िलख िदए गए थे। एक िदन उनको सरकारी टर-ॉली से लाद-लाद कर नए गाँव म पचाया जाना शु आ। गाँव क बत से लोग पुराने घर से सामान उठाते व अपने घर क कबेलू, लकड़ी, दरवाज़े,चौखट,िखड़कभीउखाड़करखने लगेथे।"8 शोषण क चक म िपसते ए िकसानमजदूर क मु ही बोहर जी क समत लेखन का सवािधक महवपूण उेय रहा ह। इसिलए उहने इनक जीवन से सबधत समत समया का अयत यथाथ िचण िकया ह। इस म म उहने िदखाया ह िक िदन-रात मेहनत म अपना खून-पसीना एक करनेवालेयेिकसानभूखेरहतेहऔरउनका खून चूसकर जीने वाले जमदार, साकारमहाजन, साधारी और उनक सहयोगी कमचारी वग ऐशो- आराम क साथ अपना जीवन यतीत करते ह। बोहर जी ने अपने उपयास म शोषण का क काले कारनाम का यथाथ िच तुत करते ए िकसान- जीवन क यातना को मूत प िदया ह। गाँव का िकसान अपने खेत से बेतहाशा यार करता ह, वह मानता ह िक ज़मीन तो उसक पास अगली पीढ़ी को सौपने तक क िलए पुरख क धरोहर ह, वह खेत से कवल फसल लेना अपना हक नह समझता वरन वे उसकजीवनकािहसाहोतेह"तुहार पास ज़मीन तो अछी ख़ासी
चलता रहता ह। कोई भी घटना दुघटना होने क कछ िदन बाद ही सब सामाय हो जाता ह िकतु जब डाक क आमद गाँव म होती ह तब उनक जाने क बाद दैिनक चया िफर से ारभ हो जातीह"अधखुले दरवाज़े खुलने लगे और बूढ़-

बे-जवान बाहर िनकलने लगे। गाँव का

जीवन सामाय होने लगा। घर-घर से बाटीमटका िलये औरत िनकल और उनक ठ

क ठ पानी क क और हड पप क

तरफबढ़चले।"10

गाँवकलोगिजतनािवासडॉटरऔऱ

एलोपैथी क दवा पर करते ह उतना ही

एतबार उह जादू-टोने औऱ गडा ताबीज पर

रहताह।

'वेपरहजऔरदवाइयनकोयानरिखयो

जोडॉटरनेिलखभेजीह'यारभरीिहदायत

क साथ दादा उठ गए थे और घर से बाय

तरफजारहीगलीमबढ़िलएथे।मनेअंदाज़

लगाया िक अब वे अपने जादू-टोने से जुड़

दोत जालम को सारी बात बता कर बे क

सलामती क िलए गंडा-ताबीज बनवा कर

लौटगे।"11

पदा था अभी भी गाँव का अंग बनी ई ह। गाँव क याँ भले ही उ दराज य न ह, िलहाज़ क िलए वे अपनी साड़ी का पू

चेहर पर नाक तक खच कर रखती ह। रोज़

रोज़ कज़वेर पहनना और सिखय से िमलना

उनकितिदनकियामसमिलतह-

"मामीऐसीसजी-धजीरहतीिकवेपतीस

साल से कम क लगत। मामा ने लाड़ म

आकर उह दो सेर चाँदी क आयल, लछ

और करधनी बनवा दी िजसे पहनकर नक-

झुनक करती मामी पूर गाँव म िफरत। चौड़ी

पी क मोटी बनारसी साड़ी पहर क वे जब

नाक तक पू खचकर िकसी मद से बात

करती तो दस बार अपने चूरय भर हाथ

िहलाती, िजनक मदभर संगीत म डबा आदमी

उनकआधेढकचेहरकोदेखनेकोलालाियत

हो उठता। नई ब क तरह पूर अदब और

िलहाज से रहती थी वे। ....और इस अदब-

िलहाज़ का ही कमाल था िक गाँव घर क ब-बेिटयाँ िदन भर उह घेर रहती और मामा

क मकान से ही-ही ठी-ठी क वर गजूँते। नई

क चौड़ दालान म उदा

और चोटी- बदुआ से सुघड़ता से तैयार होकर आई अिधक मास क सिखयाँ

प से िचित िकया ह। राजनारायण

बोहर ने ाय जीवन को न कवल देखा ह वरनउसेिजयाभीहइसिलएउनकउपयास म ाय जीवन और उससे संपृ समत

पहलु को मोहक अंदाज़ म तुत िकया

ह। ऐसा लगता ह िक हम िकसी गाँव क पगडडी पर चलकर गाँव का अवलोकन कर

रह ह ... गाँव क य हमारी आँख क आगे चलिचकभाँितगुजरनेलगतेह। 000

संदभ- 1 सािहयक िनबंध डॉ रामसागर

िपाठीएवंडॉशांितवपगुपृ774,2 वही पृ 780, 3 आड़ा व- राजनारायण बोहर, पृ 20, 4 वही पृ 25, 5 वही पृ 44, 6 वही पृ 42, 7 िहदी कथासािहय: समकालीन सदभ- डॉ ान अथाना पृ 10, 8 आड़ा व- राजनारायण बोहर, पृ 82, 9 वही पृ 32, 10 मुखिबरराजनारायण बोहर, पृ 11, 11 वही पृ 21, 12 वही पृ 59, 13 अथानराजनारायण बोहर, पृ 72, 14 वही पृ

âæçãUçˆØ·¤è जनवरी-माच 2023

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उ क लड़िकय
कारण यह
क बाद भी
ब बेिटय से ऐसे खुलकर बितयाती वे जैसे वे उन सब क जनम-जनम कहमउसहिलयाँह।"12 गाँव महर वग म बेरोज़गारी ह। युवक तीस साल क हो चुक ह, लेिकन उह काम धंधा नही ह। ऐसे कछ िबगड़ युवक दूसर से अकारण झगड़ा कर बैठते ह, िकसी क मुग औरबकरीचुराकखाजातेहतोलड़िकयव मिहलाकसाथछड़छाड़भीकरबैठतेह। गाँव म सांकितक धरोहर अभी भी िवमान ह, चाह तीज यौहार ह या त उपवास, उह पूरी िविध िवधान और मनोयोग से मनाया जाता ह। िजस बरस भी पुषोम मास पड़ता ह, गाँव क याँ समूह म नहाने नदी तालाब पर जाती ह लौटकर भजन पूजन कतनकरतीहऔऱकथासुनतीहऐसे म एक िदन अमा से पता लगा िक गाँव क याँ हर तीन वष म पढ़ने वाले इस अिधकमासयानीपुषोममासमनहानका त ले रही ह और इस बार अिधकांश मिहला क इछा ह िक पंिडत मुरलीधर शाीकजगहउनकबेटधरणीधरकमुँहसे पुषोममासकमहमककथासुन। दो बजे धरणीधर ने िपता क असंय पोिथय म से पुषोम मास क पोथी खोज िनकाली और एक रशमी पटका म बाधँकर रख दी। ढाई बजे उहने झकझकाते धोती कता पहने, माथे पर लंबा सा ितलक लगाया, इ क शीशी म ई का फाहा िभगोकर कत पररगड़ाऔरमंिदरकओरचलिदए। दूरसेहीढोलक-मंजीरकसाथगायाजा रहा लोकगीत सुनाई पड़ रहा था -'कभी राम बनक कभी याम बनक चले आना ! भुजी चले आना।' मंिदर
उह क इतज़ार म थी। बीच म एक ऊची चौक पर उनक िलए आसन िबछा था और उससे ऊची पौधे पर चौक पर पोथी रखने का इतज़ाम िकयागयाथा।"13 गाँव का मंिदर सदा ही बाहर से आए अजनबी अितिथ क िलए िवाम गृह होता ह। फसल कटने क बाद ऐसे म ायः कभी कोई खेल तमाशे या कोई कथा भागवत करने वाले पडतगाँवपचतेहतोउनकासहषवागत होताह"फसल कटने और खिलहान से िनपटने क बाद क िदन थे यानी गम का मौसम। उन िदन बाहर से आए साधु और पंिडत क िलए गाँव का मंिदर एक थाई िठकाना होता था। पंिडत जी भी सीधे उसी मंिदर पर पचे। भोजन पानी आ और दोपहर को जब उनक मुलाकात गाँव वाल से ई। उहने अपना परचय िदया िक उनका नाम रामजस िवेदी ह,चालीसिकलोमीटरदूरकक़बेमरहतेह और िनवाथ भाव से हर कह राम कथा सुनाते ह, अगर गाँव वाले चाहगे तो यहाँ भी सुना दगे। गाँव वाल क सहमित िमली तो पंिडतजीकईिदनकिलएिटकगएथे। घर-घर से गाँव क मिहलाएँ और पुष मंिदर पर इका होते होते और देर रात तक वहजमेरहते।सुबहपंिडतजीसेिमलनेगाँव क लोग मंिदर पचते तो िदन म भी क बहाने बचचाहोती।"14 ाय जीवन पर िलखने वाले उपयासकार ने ामीण जीवन क झांक तुत करते ए संकित क कई प को भावी
क लगाव का सबसे बड़ा
था िक उ म इतनी जेठी होने
मामी
साड़ी
57

लौटना, उनक माता-िपता को अकला एवं बीमार बना देता ह। "टॉबी, अजय, रिव, िववेक और िवकास सब झलक िदखा-िदखाकर उड़

2

कहािनय म वणयवथा, सादाियकता, नलवाद, औपिनवेिशकता, पूँजीवाद आिद क ित िवरोध क संकित देखने को िमलती ह। यही नह मधु जी देश से बाहर िवदेश म भी अपनी आलोय से घटना का अवलोकन करतीरहतीह।पमीकरण

çàæßÙæâæçãUçˆØ·¤è जनवरी-माच 2023 37 कहानीिवधाकिनमाणऔरिवकासकलंबीियानेउसमकईअपेितबदलाविकये ह, न कवल कथानक बक भाषा, परवेश, संवाद, पा आिद म भी। इस बदलाव का सबसे बड़ा कारण समाज एवं परवेश म बदलाव ह, िजसने लेखक क िवचार को भी बदला ह। िशवपूजन सहाय अपने िनबंध 'कहानी कला' म िलखते ह - "कथानक क िलए लेखक कवल ऐसी घटनाएँ लेता ह, जो समिलत प से उसका कोई िनत मंतय करने क मता रखती ह।" 1 मधु कांकरया क कहािनय म भी कथानक का चुनाव उनक वैचारक संसार क यापकता को ोितत करता ह। उनक कहािनय म शायद ही कोई समया, कोई िवचार, कोई भाव, कोई सय उनक नज़र से बच पाता ह। अब तक मधु जी क अनेक कहानी संह कािशत हो चुक ह, िजनम मुख ह- 'बीतते ए', 'और अंत म ईशु', 'िचिड़या ऐसे मरती ह', 'भरी दोपहरी क अंधेर', 'काली चील', 'फ़ाइल', 'उसे बु ने काटा', 'अंतहीन मथल' और 'जलकभी'। मधु कांकरया जी का समाज क ित आधुिनक, गितशील एवं यथाथवादी नज़रया ह। उहने अनेक ऐसे िवषय पर कहािनयाँ िलखी ह, जो समाज का यान नह खच पाते ह। बदलतेबाज़ार,समाजऔरपारवारनेएकाकपनकिशकारयुवाकोनशेकतरफधकला ह। पित-पनी क संबंध म िबखराव आया ह। माता-िपता और ब क बीच म दूरयाँ आई ह। अनेक अपराध ने अपने पैर पसार िलये ह। मधु जी क 'और अंत म ईशु' कहानी म नशे क समया, 'फ़ाइल' म यौन शोषण, बलाकर, अनाथ ब क समया, 'जलकभी' म अिववािहतमाँसेजमीबेटीकाजीवन,'अवेषण'मेमकओरउमुखएकपादरीकांद, 'यु और बु' म आतंकवाद क समया, 'पॉलीिथन म पृवी' म ूण हया क समया का िचणआह। मधुकांकरयाककहािनयमिविभसंकितयऔरउनकबीचकाटकरावभीिचित आ ह। भारत देश शांित का, बु क संदेश का देश ह, लेिकन बदलती सामरक कटनीितक माँगनेदेशकोराबजटपरखचकरनेवालेअणीदेशमलािदयाह।शाऔरकला कधरती,कमीरकहसवािदयाँआजआतंकवादसेतहोगईह।'युऔरबु'कहानी युऔरआतंकवादकसायमडटसैिनककजीवनकोबतहीकरीबसेिदखातीह।बढ़ता िडिजटलीकरणकायकनईसंकितकोजमदेरहाह,िजससेकायमकशलताकमाँगबढ़ी ह। रोज़गार क तलाश और बेहतर िशा ने युवा म पलायन को जम िदया ह, परणामवप परवार का दायरा और िसमट गया। 'अारह साल का लड़का' कहानी म ब का िशा हतु िवदेश जाकर लंबे समय तक न
औरलोकियसंकितकाभारतपरभावहोयाभारतसेअलग एपािकतान,बांलादेशमएसांकितकबदलावहो।मधुजी'वहभीअपनादेशह'कहानी मढाकाकमुलमसमाजममिहलाकथितकिहदूसमाजसेतुलनाकरतीह,वेपाती ह िक मुलम समाज म िबना तलाक़ क बिववाह य क जीवन को बत किठन बना देता ह।वेिलखतीह-"मजबभीउसेबुकमदेखतीमुझेलालटनकभीतरक़दजलतीलौकयाद आती।"3िनयहीमिहलाकभीतरबतक़ािबिलयतह,बशतउहअवसरिदयाजाए। मधु जी ने अनेक आिदवासी े म अपनी याा क दौरान आिदवािसय क धमातरण क िया पर भी गौर िकया। 'अवेषण' कहानी म एक पा गुंजन, पादरी से कहती ह- "भयंकर िवपि और दाण अभाव क जंगल म जीवनयापन करते आिदवािसय को ोिसन क एक टबलेट क ितदान म ईसाइयत को अंगीकार करते म नह सोचती िक उनका यह धमपरवतन शोध आलेख (शोध आलेख) मधु कांकरया क कहानी
उनका
संसार शोध लेखक : डॉ. इदू कमारी डॉ. इदू कमारी (एसोिसएट ोफसर) माता सुंदरी कॉलेज िदी िविवालय िदी 110002 मोबाइल- 9873405194 ईमेल- induvimal2013@gmail.com
गए पेसी-कोला क देश म।"
मधु जी क
कला और
वैचारक

िकसी आमक उकष, तवान आपक टन कमांडमस या बड़ी रोशनी म आने क फलवप आ होगा।"4 लोभन देकर धम वीकार कराना ग़ैरकानूनी ह, लेिकन ग़रीबी, भुखमरी, बेरोज़गारी, सामािजक असुरा कितपूजकआिदवािसयकोईसाईबननेपर िववशकरतीह।

मधु जी क सम वैचारक को देख तो

उनक राजनीितक िवचारधारा मासवाद क

तरफ झुक ह, परतु वे अपने लेखन म

वैचारक संतुलन और सतकता िनरतर बनाये

रखती ह। 'िचिड़या ऐसे जीती ह' कहानी क

पा आकांा नेपाल म ई जनांित को

नेपालकानयाचेहराकहतीह।"नेपालमई नई-नवेली जनांित क बार म उसने टीवी पर देखा और पिका म ब पढ़ा भी था और जाने य उसे यह िवास होने लगा था िक

एकबारयिदिकसीिवचारकोरोपिदयाजाए तो देर-सबेर उसे फलते-फलते देर नह

लगती।"5 िनसंदेह लेिखका लोकतं क

समथकह जनताकिहतकबातकरतीह।

मधु कांकरया जी ने सािहयक िवमश

जैसे- ी िवमश, दिलत िवमश, आिदवासी

िवमश एवं िकर िवमश क अितर

िकसान, युवा, सेस वकर, सैिनक, बे एवं

बुग क साथ-साथ पशु-पिय का दद भी

िचित िकया ह। एक सााकार म मधु जी

ीवाद क िवषय म कहती ह - "ीवाद से

मेरा मतलब उस ी से ह िजसक पास

वैािनक ह, तािकक ह। जो सार

अंधिवास और कमकांड से मु हो।"6 मधु जी अनुसार दहज उपीड़न, बलाकार, छड़खानी, एिसड अटक, कया ूण हया, वेयावृि, अिशा जैसी समकालीन समयाएँ य क िवकास-माग म जिटल

बाधा ह। 'पोलीिथन म पृवी' कहानी म लेिखकानेीऔरपृवीकोजीवोपिका पयाय मानते ए, उसक िवनाश पर िचंता जािहर क ह।

देखकर उसका पूव ेमी कहता ह-"कसेलहरकसाथदौड़नेवालीकिवता, वन और सदय म ही िवचरण

का अपरहाय अंग ह, लेिकन ी ही

बकयेकयकोअपनीअमता

रखनाचािहए।मधु

सोच को तोड़ती नज़रआतीह।

िवमशकसेमधुजीक कहािनयाँ अित महवपूण ह, यिक कोरी कपना से पर उनका वयं का शोध और अनुभव इस िवमश से जुड़ा ह। आिदवािसय क िलए सुरित घर, पौक भोजन, आधुिनकिशा,रोज़गारकगारटी,वाय सुिवधाएँ उपलध ह, साथ ही उनक

सूची: 1. कहानी कला, िशवपूजन सहाय, ग कोश, 2. ितिनिध कहािनयाँ, मधु कांकरया, पृ - 99, िकताबघर काशन, नई िदी, थम संकरण 2013, 3. वह भी अपना देश ह, मधु कांकरया, पृ- 167, आलोचना पिका, राजकमल काशन ा. िल. नई िदी, अंक 68, जनवरी-माच 2022, 4. ितिनिध कहािनयाँ, मधु कांकरया, पृ- 155, िकताबघर काशन, नई िदी, थम संकरण 2013, 5. वही पृ - 115, 6. मधु कांकरया से जयी िसंह क बातचीत, समालोचन वेब पिका, 23 अगत 2021, 7. ितिनिध कहािनयाँ, मधु कांकरया, पृ- 142, िकताबघर काशन, नई िदी, थम संकरण2013,8.पृ-126,9.पृ-90,

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जनवरी-माच 2023
वतमान म लाटक दूषण पृवीकभूिमकोबंजरबनारहाह,तोकया ूण हया मानव जीवन को। इस कहानी म डॉटर कहता ह- "मेरी बात नोट कर लीिजए िमटर िक औरत हो या धरती जब भी उसक कोख से छड़खानी क जाएगी नतीजे भयंकर िनकलगे।"7 एक दूसरी कहानी 'फ़ाइल' म एनजीओ म रहने वाले उन अनिगनत ब क फाइल म दज कहानी ह जो िकसी न िकसीकारकशोषणकािशकारह।मधुजी नेतटथहोकरअपनीकहािनयमयक शोषक और शोिषत दोन ही भूिमका िचित क ह। मधु जी िलखती ह- "ये परवेश और संकार ही ह जो ी को सदैव यह याद िदलाते ह िक वह ी ह।"8 अयथा याँ भी िकसी पुष क भाँित ही उठना - बैठना, खाना-पीना, घूमना, पढ़ना, नौकरी करना, िवचार य करना चाहती ह। वह ायः ी कोिचिड़याकसमानदेखतीहजोिवचारक ढ़ता को छोड़, उड़ सक। 'िचिड़या ऐसे मरती ह' कहानी म रशमा शादी क बाद अपने सभी वन छोड़कर पूरी तरह बदल चुक होती ह, िजसे
करने वाली एक खरगोश लड़क िसफ दाल- रोटी क ही होकर रह गई ह।"9 िनसंदेह दाल-रोटी जीवन
नह
बनाये
जीकयहाँीइसी अमता क न पर एक कदम और आगे बढ़ाती ह, अपनी दैिहक और वैचारक अमता क ओर। मधु जी क कहानी 'चूह कोचूहाहीरहनेदो'मीअपनीअमताक िलए िढ़वादी िपतृसामक
ाचीन समृ परपरा, आथा, संकित, भाषा भी सुरित रह, यिक कह न कह यह भारत क धरोहर का िहसा ह। आिदवासी समाज और आिदवासी े को िवकिसत करने क िलए अनेक यास िकये जा रह ह, लेिकन जंगल को काटकर, उनक आवास को न करक, उनक अिधकार छीनकर, उनक परपरा एवं संकित म हतेप करक िकया गया िवकास आिदवािसय को मंजूर नह। िजसमएकबड़ाकारणयहभीहिकसरकार, िवकास का सीधा समुिचत लाभ उन तक पचानेमअसफलरहीह। िनकष:- समय क समानांतर कहानी क िवषयवतु का चयन करती मधु जी ायः आधुिनक मु को क म रखती ह। उनम लेिखका होने क साथ-साथ एक सामािजक कायकता क गुण भी ह, यही कारण ह िक अपनी छोटी से छोटी याा म भी अपनी आलोय खोले रखती ह। उनक िवचार क भूिम म सबसे पहले वे लोग या वे मुे आतेह,जोज़रीहकाशमआनेको।मधु जीकहानीकलाकढ़पसेहटकरसहज और बोधगय तुित पर यान देती ह, िजसक िलए किवता, सूयाँ, मुहावर, भाषायी वैिवय, िबब, संवाद आिद उनक ज़री शाीय उपकरण ह। इन कार समतः कह सकते ह िक समय संदभ से सश प से जुड़ी मधु कांकरया जी क कहानी कला और
दौर म कहानीक
ममहवपूणभूिमकािनभा रहीह। 000 संदभ
आिदवासी
वैचारक वतमान
िवकास

कमामलमसे9300िकसानऔर7300खेतमजदूरथे। इनमसे88 ितशतनेक़ज़कबोझसेदबकरआमहयाक।आमहयाकरनेवालका77ितशतछोट िकसानऔरएकितहाईअकलेकमानेवालेथे।11ितशतपरवारकबकपढ़ाईछटगई और साढ़ तीन ितशत परवार म लड़िकय क शािदयाँ नह हो सक। अिधकांश परवार

çàæßÙæâæçãUçˆØ·¤è जनवरी-माच 2023 39 ‘फाँस'' िकसान जीवन पर आधारत उपयास ह। िजसम संजीव ने िवदभ क िकसान क बहानेसपूणभारतकिकसानकददकथाकहीह।उपयासकपृभूिमहदेशभरमलगभग िपछलेदोदशकसेबढ़रहीिकसानकआमहयाएँ।बतहीलंतमुाचुनाहसंजीवने और शायद िहदी म पहली बार ेमचंद क 'गोदान' क बाद िकसान और गाँव क पूरी िज़ंदगी काददऔरकसमसाहटसामनेआईह।इसउपयासमिकसानजीवनकसभीसमयाको क म रखा गया ह। िजसम कवल महारा क यवतमाल िजले क बनगाँव का ही िचण नह हबकआंपदेशऔरकनाटककिकसानसिहतभारतकउनतमामिकसानककहािनयाँ शािमलहिजहपहलेआधुिनकबीजकाइतेमालकरनेकिलएफसलायाजाताहिफरक़ज़ िदयाजाताह।लेिकनकभीसखूेकमारकभीकितकमारककारणसीधे-सादेिकसानक िज़ंदगी क़ज़ और सूखे क बोझ तले आमहया करने को िववश ह। ''वतमान िकसान आदोलनकपरिधमाअपनीफसलकिलएयूनतमसमथनमूयतकहीसीिमतनहह। बक इसका संबंध देश क उस िनन मय और िनन वग से भी ह जो पूरी तरह सावजिनक िवतरणणालीसेिमलनेवालेअनाजपरिनभरह।बाज़ारकोखुलाछोड़देनेकबादअनाजक दामकाअंधाधुंधबढ़नेसेइनवगकाजीनामुकलहोजाएगातोदूसरीओरदामकघटनेसे िकसानकिलएआमहयाकअलावाकोईरातानहरहगा।उदाहरणकिलएपंजाबकएक गाँव म ही 52 िवधवाएँ ह िजनक पितय ने उनक पैदावार का उपादन मूय तक न िमलने क कारणआमहयाएँकह।''1 भारत एक किष धान देश ह िजसक अथयवथा का आधार किष ही ह। ामीण समाज क अिधकांश लोग अपनी आजीिवका क िलए किष पर ही िनभर ह। वतमान म िकसान क फसलअकालककारणसूखरहीह,अितवृककारणबहरहीह।जबिकसरकारीमहकमे नेिकसानसेमुँहमोड़िलयाह।जैसेउहकछपताहीनहो।परणामवपिकसानिवकप क अभाव म फाँसी क फदे पर झूल रहा ह। अभी हाल ही म आ िकसान आदोलन इसका माणहजहाँवेअपनेअिधकारकिलएसंघषकरतेएमौतकमहुँ मसमागए।''26नवबर 2020 से शु आ िकसान आदोलन 25 फरवरी 2021 तक पूर दो महीने अिहसक तरीक से चला। इस दौरान सरकार लगातार दबाव म रही। िवशेषकर 26 जनवरी को िकसान संगठन ारा टर परड क आान से।''2 इस उपयास म संजीव ने िकसान क िपछड़पन, दुःख, दैय,अभाव,अान,अंधिवासकसाथिविवधसामािजकऔरिकसानजीवनकगाथाको य िकया ह। बीते वष म हजार िकसान ने अपनी आिथक िवषमता क कारण आमहया करली।अख़बार,रिडयो,टी.वी.सबनेअफमखाली,ख़बरतकनई।''िपछले17सालम सामनेआयेआमहया
म कोई-न-कोई सदय दुचंता या अवसाद से त पाया गया।''3 राीय अपराध रकाड यूरो क अनुसार हर रोज़ दस िकसान आमहया करते ह। इसका कारण एक ठोस व कारगर किषनीित का अभाव ह। आज खेती-िकसानी एक मजबूरी और संभािवत मौत का नाम ह। बत से ऐसेिकसानहिजनकपासखेतीकअलावादूसराकोईिवकपनहह।अगरउनकपासदूसरा िवकप होता तो वे िकसानी छोड़ देते। भारत एक िवशाल जनसंया वाला देश ह और यहाँ क अिधकांशिकसानिवप।कभीाकितकआपदासेतोकभीकट,िटयकआमणसे, तोकभीबंदर,भालूऔरसुअरसेफसलबबादहोतीह।इसकबादजोफसलहाथमआतीह तो उसका कोई खरीददार नह िमलता िजससे वे मजबूर होकर िमी क मोल पर फसल को बेचनेकिलएिववशहोजातेह।इससंदभमेमपालशमाकहतेह-''फाँसखतरकघंटीभी शोध आलेख (शोध आलेख) संजीव क 'फाँस' उपयास म िकसान जीवन शोध लेखक : ेता जायसवाल ेता जायसवाल शोधाथ िहदी िवभाग राँची िविवालय, राँची

ह और आमहया क िव ढ़ आमबल

दान करने वाली चेतना और ज़मीनी

संजीवनी का संकप भी।''4 िकसान खेती से

भावामक प से जुड़ होते ह और चाह कर

भी वे खेती छोड़ नह पाते। इसिलए लाख

मुसीबत पड़ने पर भी वे इसम फसे रहते ह।

औरउनकबेभीआगेचलकरखेतीपरही

िनभररहतेह।

संजीवकइसउपयासकोपढ़करलगता

ह िक ेमचंद क समय क िकसान और आज

क समय क िकसान क जीवन और उनक

थितय म कोई ख़ास अंतर नह आया ह।

दोन क परथितयाँ समान ह। गोदान का

अगला चरण ह 'फाँस'। 'गोदान' म होरी

अपनी परथितय को झेलकर भूखे पेट

मरता ह और फाँस म िशबू अपनी परथितय का सामना करते ए भूखे पेट

मरता ह। उपयास म कहा गया ह - ''खतेी

कोई धंधा नह, बक एक लाइफ टाइल ह - जीने का तरीका। िजसे िकसान अय िकसी

भी धंधे क चलते छोड़ नह सकता। सो तुम

बाबा......तुम लाख कहो िक तुम खतेी छोड़

दोगे,नहछोड़सकते।िकसानीतुहारखूनम

ह।''5िशबूऔरउसकजैसेकईिकसानहजो

बक का क़ज़ न चुका पाने क थित म अपनी जान गँवा देते ह। क़ज़ न चुका पाने क कारण िशबू अपनी पनी शकन क गले क

हसुली बेचने को कहता ह - ''रानी ये क़ज़

गलेकफाँसहिनकालफकोऔरिजसिदन

मने िनकाल फका, वह जैसे िनहाल हो

गया।''6 िकसान क जीवन को लेकर सरकार

नये-नये योग करती ह लेिकन उसक

ज़मीनी हककत कछ और होती ह। सभी योजना का लाभ पूँजीपित उठाते ह और

िकसान क िहसे आता ह क़ज़ और

आमहया। इस उपयास म िशबू, सुनील या

मोहन बाघमार सभी सामािजक, आिथक, राजनीितक यातनाएँ झेलते ए, बक क क़ज़

से दबे रहते ह। और मेहनत करक अनाज उगाते ह, लेिकन बाज़ार म जब बेचने जाते ह

अनाज का मूय सेठ, साकार, नेता तय करते ह।

क उपज और मेहनत का अवमूयन आज़ाद भारत म िजतनाआउतनाइितहासमपहलेकभीनह आ था। बक

िवदेशी खाद और िवदेशी नल क गाएँ थोपी जा रही ह। देशी वतुएँ लु होती जा रही ह। िकसान क आमहया का िसलिसला थमने का नाम नह ले रहा ह। भारत म अनेक िकसान ने आमहया कर ली। कभी बक क क़ज़ क कारण तो कभी ाकितक आपदा क कारण, कभी नेता क नीितय क कारण, कभी ग़रीबी क कारण, हर रोज़ भारत कािकसानितल-ितलकरमरनेकिववशह।

''सवाल यह ह िक भारतीय िकसान अकला

पड़ाकसे।आमशेतकरीकबातकरतोक़ज़ म रहना उसक िनयित ह, क़ज़ म पैदा होना, क़ज़महीमरजाना।''8क़ज़कइसभयानक आतंक ने िकसान का जीना मुकल कर िदया ह। आज़ादी से पहले जमदार और

इतने नासमझ ह िक अपने िहत को भी वे नह पहचानसकते?''9

इस उपयास क मुय समया िकसान क आमहया ह। ग़रीबी और बेकारी से जूझते-जूझते कसे वह िज़ंदगी से हार मान बैठता ह, यही उपयास का मुय िवषय ह। 'फाँस'किटपणीममैनेजरपाडयनेिलखा ह िक - ''यह उपयास ेमचंद क कथासािहय क गितशील परपरा का िवकास ह।''10 संजीव ने महारा क िवदभ ही नह, िवदभ को क

âæçãUçˆØ·¤è जनवरी-माच 2023

40 çàæßÙæ
उिचत मूय न िमल पाने क थित म िकसान आमहया कर लेते ह। ''यह साई ह िक बीज, खाद, मजदूरी और किष उपकरण क कमत लगातार बढ़ती रही हऔरअनाजककमतउसअनुपातमनह बढ़ी ह। यही कारण ह िक िकसान क आिथक हालत ख़राब होती गई और क़ज़ क मकड़जालमवेफसतेचलेगए।इसफाँससे मुकाराताउहआमहयामिदखताह, इकसवसदीकाइससेबड़ाअिभशापकछ और नह हो सकता। िकसान
यह कहना अनुिचत नह होगा िक िकसान क जान का भी मोल नह समझा जा रहा ह। यह िवचारना आवयक ह िक िकसान क यह दुदशा िकसने क और य?''7 भूमडलीकरण क कारण आज िकसान क ऊपर िवदेशी, बीज,
तो उस
साकार दोन िकसान को लूटते थे और आज़ादीकबादगाँवकाबड़ाभूपितसाकार बनकर अपने ही िकसान को लूट रहा ह। न कवल जीते जी बक मरने क बाद भी। साकार ही तय करता ह िक मृतक क आमहया पा ह या अपा तािक िमलने वाले सरकारी अनुदान म वह अपना िहसा तयकरसक। सरकार िकसान क िलए नीितयाँ तो बनाती ह। लेिकन वो नीितयाँ कवल सरकारी फाइल म ही बंद पड़ी रहती ह। उसका यथोिचत ियावयन नह हो पाता िजसक कारण िकसान को उसका लाभ नह िमल पाता ह। यह उपयास भारत क किष नीित क साथ-साथ पूर सामािजक, आिथक, राजनीितक यवथा पर न िच खड़ा करता ह। साथ ही साथ भूमंडलीकरण क आामक दौर म किष िवरोधी नीित िकसान क आमहया क दहलीज पर पचाकर ही दमलेतीह।अभीहालहीमकिषसंबंिधतजो कानून बनाए गए यह उसका उदाहरण ह''यह एक कण साई ह िक िदी म िकसान क आदोलन क पचासव िदन तक 121लोगइसआदोलनमशहीदहोचुकह। वतंता आदोलन क बाद वत भारत म शायद यह पहला मौका ह जब िकसी शांितपूण आदोलन म इतने िकसान और सतकशहादतईह।अपनीजानकबाजी लगाकर िकसान िपछले पचास िदन से िठठरतीरातमभीइसबातकिलएसड़कपर आदोलनरत ह िक सरकार ने किष सबधी जो तीन कानून बनाये ह, उह वापस ले, लेिकन सरकार उनक बात सुन नह रही ह। दूसरी तरफ सरकार शोर यह मचा रही ह िक उसनेिकसानकिहतमतीनकानूनबनायेह और िकसान अपने ही िहत क कानून को समझ नह रह ह। या भारतीय िकसान
म रखकर उहने तेलंगाना, आंदेश, बुंदेलखड सभी जगह क िकसान क दुदशा को बताने का यास िकयाह।यहीनहदेशकसीमालांघकरवह सात समदर पार अमेरका क िकसान क पास भी पचते ह। संजीव िकसान क िज़ंदगी

क बारीिकय तक पचने क िलए उनक

िज़ंदगी क बीच उतरते ह। संजीव का यह

उपयास वातव म एक िवशद पड़ताल ह

तथा एक गहन खोज ह जो िकसान जीवन क

हर तह को खोलने म सम ह। ''वतमान

िवकास क इस दौर म पूँजी का खेल जारी ह।

इसने देशभ िकसान और मजदूर को

हािशएपरधकलिदयाह।जैसेििटशशासन

काल म साकार ने अकाल क दौर म

िकसान को क़ज़ देकर पूरा कलका खरीद

िलया था।''11 यह उपयासकार हम आने

वाले पल क भयावहता का एहसास भी

करवाता ह। उपयासकार क िचता ह िक

राजा बने इन बदर नेता क आसर बैठना

उिचतनह,िकसानकोदसामूिहकपसे

कछकरनाचािहए।उसेदआमिनभरहोना होगा। बैल और बाग का सहारा लेना होगा। पैदा कम होगा, कम सही। जब कोई उसक िचता नह करता, तो उसे भी इन नेता, यापारयकापेटपालनेकिचताछोड़देनी चािहए। 000

संदभ-सं. िब पंकज, समयांतर, जनवरी 2021, पृ सं.-06, सं. पाडय क. क., जनमत, फरवरी 2021, पृ सं.-03, सं. िब पंकज, समयांतर, फरवरी 2021, पृ सं.-13, सं. ो. नवले संजय, उपयासकार संजीव िकसान- आमहया यथाथ और िवकप, वाणी काशन, िदी, 2018, पृ स.ं-105, संजीव, फाँस, वाणी काशन, िदी, 2015, पृ सं.-17, वही, पृ सं.-105, सं. कालजयी िकशन, सबलोग, जनवरी 2021, पृ सं.-05, संजीव, फाँस, वाणी काशन, िदी, 2015, पृ स.ं-105, स.ं कालजयी िकशन, सबलोग, जनवरी 2021, पृ सं.-04, सं. ो. नवले संजय, उपयासकार संजीव िकसान-आमहया यथाथ और िवकप, वाणी काशन, िदी, 2018, पृ सं.-99, सं. डॉ. चंदेल उपे िसंह, डॉ. मेहरा िदलीप, आिदवासी संवेदना और िहदी उपयास, उकष पलशस एड िडीयूटस, कानपुर,2017,पृसं.-182

समीा हतु पुतक डॉ. दलजीत

तोकरोना'मकोरोनाक भयानकमहामारीकदौरानदेशकलोगकअंध-भ/अंध-ा/अंध-िवासकोिनशाना बनाया गया ह। 'साथ चलगे शमशान तक' म लोक-िदखावे क िलए अंितम संकार क िलए मशान घाट तक जाना आवयक दशाया ह। 'बी गुल' अपने वाहन से लाल/नीली बी को हटानेकबादउअिधकारय

çàæßÙæâæçãUçˆØ·¤è जनवरी-माच 2023 41
कौर का एक यंय संह ह, िजसम कल 35 यंय शािमल ह। पुतक क सभी यंय आसपास क माहौल और समाज क बदसूरत चेहर को उजागर करते ह। लेिखका ने बत पैनी से हर थित का अवलोकन िकया और िफर उसे अपनीकलमकमायमसेतीकटाारातुतिकया।पुतककाशीषकयंय'एकगधा चािहए' सािहयकार ारा पुरकार/ समान हािसल करने क िलए यु िकये जाते घिटया िक़मकतौर-तरीकसेसंबंिधतह।'समानमिमलासामान'मलेिखकानेपिकयाहिक वातव म समान म िदए जाने वाले- शाल, मृित िच, शंसाप, धन-रािश क कमत समािनत होने वाले लेखक से पहले ही वसूल कर ली जाती ह। 'आट आफ टॉक' म डबल मानक खेलने वाले सािहयकार पर कटा ह, जो एक ओर तो िकसी से समािनत होने वाले लेखकक ज़ोर-शोर सेिनदा करतेह, वह दूसरी ओर उसीसमाननीय लेखक को बधाई देते ह। 'िसी का बुखार' म लेखक ारा समाचार प, पिका, फसबुक क मायम से द कागुणगानिकयाजाताह,यहाँतकिकिकसीसेिलखवाईसमीाअपनेनामपरछपवाईजाती ह।'ेमचदकवापसी'मबतायागयाहिकलेखककितभाकोईमायनेनहरखती,बक उसका'जुगाड़ी'होनाआवयकह।यानीवहयातोिवदेशीहो,याऊचेओहदेपरहो,यािफर िकसी नेता/मंी/अय का िनकटवत हो। 'हो गई आँख चार' म चमा (ऐनक) पहनने/ न पहननेकतककोबतहीयंयामकशैलीमदशायागयाह।'कछ
कदशाकबारमह। 'मतआनाअितिथ'भीकोरोनासंकटक दौरान घर आने वाले मेहमान को रोकने क बार म ह। कोरोना क समय लोग ने अपने घर क दरवाज़परिलखवािलयाथा-'कपयाहमारघरनआएँ...।' इसकारइससंहकबाकयंय-रचनामसामािजकघटनाकोतंज़कसे देखा गया ह। डॉ. दलजीत कौर ारा िलिखत सािहय (काय-संह, बाल-किवताएँ, कहानी, लघुकथा,अनुसंधानआिद)मनईिवधायंयकाशािमलहोनाशुभसंकतह। 000 ो. नव संगीत िसंह, ातकोर पंजाबी िवभाग, अकाल यूिनविसटी, तलवंडी साबो151302 (बिठडा) पंजाब मोबाइल- 9417692015 पुतक समीा (यंय संह) एक गधा चािहए समीक : ो.नव संगीत िसंह लेखक : डॉ. दलजीत कौर काशक : डटालाइन पलशर चंडीगढ़

क िविभ पहलु को गहराई क साथ देखा और उसे यथाथकधरातलपरतुतिकयाह।आजकयतमजीवनमनारीकवातिवकयथाथको अिभय अनेक प म होती ह। िशवानी क 'ितशोध' कहानी म नारी का पनी प म चरसामनेआताह।एकआई.ए.एस.पितकिकसकारपितकअिधनथअिधकारयसे समान

42 çàæßÙæâæçãUçˆØ·¤è जनवरी-माच 2023 शोधसारांशिहदी क लोकिय साठोरी कथा लेिखका गौरापंत 'िशवानी' वातंयोर युग क जानी मानीिहदीलेिखकारहीह।इनकलेखनतथायवमउदारवािदताऔरपरपरािनताक अुतमेलकजड़बतगहरीथी।इसीिविवधतापूणजीवनशैलीऔरपरथितयकोयान म रखकर इहने अनेक कहािनयाँ िलखी। इनक ारा रिचत कथा सािहय म नारी जीवन क अिभय मुख प से ई ह। िशवानी ने भारतीय नारी क यव और संकार को बत ही सुदर ढग से उकरा ह। इनक समूची कहािनय म कालानुगत वातिवकता क साथ नारी क अलग वप का िचण िमलता ह। िजसक मायम से िशवानी क कय का वप उजागर होता ह। कथामक िविवधता रचनाकार क अनुभव क आधार पर जम लेती ह। रचनाकार का अनुभव िजतना यापक और गहरा होता ह उतना ही उसका कय आकषक बनता जाता ह। िशवानी ने अपने अनुभव आधारत नारी क चर से जुड़ी संभावना क अिभय अलगअलगपमकह। तकनीक शदावली - नारी-चर, गृहथ ी, शासिनक अिधकारी, ममतामयी, अपरािधनीआिद। परचय - समकालीन िहदी कथा सािहय क इितहास का एक अनूठा लोकरिजत अयाय गौरांपत िशवानी ह जो नारी संवेदना क िचतेरी लेिखका मानी जाती ह। नारी-जीवन क अिभय का अुत प अपनी लेखनी क जादूगरी से िबखेरने वाली िशवानी ने अपनी कहािनय म नारी क पुी प म, पनी प म, बहन प म और माँ क प म चारिक िवशेषताकोउजागरिकयाह।इहनेनारीसंबंधीअनेकिवशेषपहलुकोउािटतकरने का यास िकया ह तो दूसरी ओर सामािजक परेय म नारी क भूिमका क अनेक आयाम िचित करने का यास िकया। नारी सपूण समाज क वह संचािलनी श ह िजसक मायम से समाज का कयाण होता ह। नारी समाज म अलग-अलग वप म अपनी भूिमका अदा करती ह िजससे उनका चर सामने आता ह। िशवानी ने ी क चारिक सभावना क अिभयकरसमाकालीनिहदीकथासािहयकोसमृबनायाह। िशवानी ने नारी और उसक चर
बटोरतीहऔरपितपरशासनकरतीह।सौदािमनीिशितएवंसमृपरवारककया होने क अहम से पित क ित खा यवहार अपनाती ह। साथ ही अपने सास-ससुर क ित इतनादयहीनयवहारकरतीहिजससेवेअपनेपुकघरआनेकासाहसही नहकरतेह। सौदािमनीमैणभावनाक कमी होने से अपने पित को खुशनह रख पातीह। इसकार समसामियकजीवनमिदखाईपड़नेवालीपनीकचारिकिवशेषताकोउजागरिकयाह। वह दूसरी कहानी 'करए िछमा' म ीधर क पनी अपने ख़राब वभाव क कारण अपने पित क साथ दुयवहार करती ह िजससे ीधर ऊब जाता ह और वन-िवलाव सा अनावयक भटकतािफरताह। िशवानीनेअलग-अलगपमनारी-चरकोअिभयिकयाह।नारीगृहथजीवनम रहकर िकस कार अपनी भूिमका अदा करती ह। इनक 'बंद घड़ी' कहानी म ी का गृहथ शोध आलेख (शोध आलेख) िशवानी क कहािनय म नारीचर शोध लेखक : मही कमारी मही कमारी शोधाथ - िहदी िवभाग महाराजा सूरजमल िविवालय, भरतपुर राजथान

प म चर-िचण आ ह। कहानी क

मुयपामायाभावुकवभावकनारीहजो

परवार म समायोजन नह कर पाती ह। वह

गृहथपमनारीिचणकरनेवालीकहानी

'यूिडथ से जयती' म रमा दी माँ क मरने क

बाद िकस कार गृहथी सँभालती ह िजसे

देखकरसबदंगहोजातेह।अपनीमाँकमरने

पर पाँच वष छोट भाई को अपनी छोटी उ म

िजस गंभीरता से सँभालती ह, इसक साथ-

साथ भडार, चौका, ितजोरी व लेन-देन म

कभी भूलकर भी ढोकर नह खाती ह। वष

बाद िपता क मृयु होने पर रमा अकली पड़

जाती ह। न सास, न ससुर, न कोई आमीयजन। इसी से वह कमठ नारी इधरउधरभागदौड़करएककलमनौकरीा

करती ह। नौकरी क साथ अपना अयापन

काय जारी रखती ह और बी.ए, एम.ए. कर

िनंग कर लेती ह। इस कार एक नारी का चर-िचण प म लेिखका ने अिभय

िकयाह।

इसी कार िशवानी ने शासिनक

अिधकारी क प म नारी-िचण को सािहय

क कागज पर उकरा ह। िशवानी अपने शद

कचलिचपमहमारमनकपरदेपरनारी

िचण कर सक। 'अपरािजता' कहानी क

मायम से करती ह। कहानी क पा आरती

एक उपदथ अिधकारी ह िजसक शादी

एक साधारण ामीण य से होती ह।

आरती उ पद ा होने से अहकारत

होकर पित से दुयवहार करती ह। अपनी

अफसर िम मडली क बीच अपने पित को

शोधकायरतिवानकपमतुतकरतीह इस अिभनय से ऊबकर भजन एक औघड़

वामी क आम म चला जाता ह। इस कार

एक नारी का िनरकश यवहार, झूठा िदखावा

औरअहकारीवृिकाचरअजागरिकया

ह जो समसामियक थित को परलित

करता ह। वह इनक 'िजलाधीश' कहानी म

भी एक मयमवगय परवार क असाधारण

लड़कसुमनकाचरसामनेआताह।सुमन को कड़ संघष क बाद िजलाधीश का पद ा होता ह। सिचवालय का वेदाययन

चािहए। इस तरह नारी का चर-िचण िशवानी ारा रिचत अनय कहािनय 'उपहार', 'कया', गूंगा', 'गहरी नद', 'िनवाण' आिद म भी नारी चर आिथक प से सुढ़, आमिनभर, सुघड़औरिशितपमिमलता

क कहािनय म कय

और िशप क से िविवधता िमलती ह।

क कारण दोन क गाढ़

का अंत हो जाता ह। इस कार नारी क

म लालची वृि वेश करती ह। इसी कार इनक 'जोकर' कहानी म नारी चर

का िचण अलग-अलग सामािजक परवेश

म होता ह। कहानी का पा ीमती ितलोमता

साथ ही इनक कहानी सािहय म लेिखका क अनुभव आधारत अलग-अलग वप का िचण भी आ ह। िशवानी ने नारी क चर कअिभयकछइसकारकहिकनारी कह दुगा, कह सती, कह ममतामयी, कह वािभमानी,कहवाथपरायणा,कहभावुक तो कह िज़मेदार यव को तुत करने वालीसुिशितनारीकािचणकरतीह।

000

संदभ-

1. िशवानी क े कहािनया,ँ िशवानी पृ. 4-5, 2. वही पृ. 66,90, 3. मेरी िय कहािनयाँ - िशवानी, पृ. 127, 4. वही पृ. 39,79,96,97,100, 5. एक थी रामरथी, िशवानी, पृ. 125, 6. करए िछमा, िशवानी, पृ. 53, 7. अपरािधनी, िशवानी, पृ. 91, 8. पुपहार, िशवानी, पृ. 69, 9. मािणक, िशवानी,पृ.95

çàæßÙæâæçãUçˆØ·¤è जनवरी-माच
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कर सुमन एक ऐसे िजले क बागडोर सँभालने पचती ह जहाँ एक नह अनेक िजलाधीश को सरदद ई। यिक यह िजला देश का 'ाबम चाइड' था। लेिकन सुमन का साहस तमाम मुकल को अपने पर हावी नह होने देता ह। सुमन का गांभीय, तटथता ओर असाधारण ितभा को देखकर वहाँ क िवरोधी दल क नेता रणधीर िसंह दंग रह जाते ह। सुमन अपने कायथल क अलावा कह नह जाती थी, न िकसी से उतनी मैी करती। मिटगक समय सुमन अपनेमातहतक बीच ऐसे तनकर कस पर बैठी रहती जैसे किबनेट कमंीगणसेिघरीगरमामयीधानमंीहो। कभी भी रणधीर िसंह ने सुमन को जलाते संकचाते, झपते नह देखा था। यिक उसम गहरा आमिवास था जो िक एक शासिनक अिधकारी म होना
ह। इसी तरह िशवानी ने सामािजक नारी क प म नारी चर का िचण अपनी कहानी 'अपराधी कौन' म बबी से िकया ह। यह कहानी दो य क चर का िचण करती ह जो आभूषण को लेकर झगड़ती ह। पहले दोन सहिलयाँ गाढ़ मैीपूण यवहार क कारण नद-भोजाई क रते म बंध जाती ह। आभूषण लालसा
मैी
चर
देवी
ह। बचपन से ही
मता रखती ह। शादी क बाद उसक पित ारा इकलौते बेट को सकस कपनी को बेचने पर ितलोमा झुंझलाहट और िववशता से पागल हो जाती ह। इस कार एक राजकया क चर म परवतन आता ह। इसी कार 'जा र एकाक' म लेिखका ने नारी सुलभ वभाव ईया, िवेष क चर का िचण िकया ह। आिथकअसमानताककारणकहानीकपा देवरानी और जेठानी म ईया और ोध क भावनाघरकरजातीह।िजससेवेअपनासब कछखोबैठतीह।इसभावनासेजेठानीहया तककाकदमउठातीहतोदेवरानीजेठानीक बेकहयाभीकरतीह।जोआजकसमय म मुय प से घिटत हो रहा ह। इस कार इस कहानी क मायम से नारी मन क ईया औरितशोधकभावनाकाघृणामकचर कािचणआह। 'गहरीनद'कहानीकउमाअपरािधिनय क देखरख करने वाली वाडन ह। िपता क मृयु हो जाने पर उसक शादी पुिलस अफसर से कर दी जाती ह। उसक पित से पहले दो पनय क दो पुियाँ भी थी। उमा अपने ेह, कणा से परपूण वभाव क कारण सबका मन जीत लेती ह, लेिकन पित को नह जीत पाती और अपने पित का अनुिचत यवहार सहन न कर पाने पर आमहया कर लेती ह। उमा म ितशोध क भावना नह थी िजससे वह वयं को अपरािजत वीकार करती ई आमहया का कदम उठाती ह यिकवहएकवािभमानीमिहलाथी। वतुतः िशवानी
राजा सतीशदेव वमन क इकलौती बेटी
वह गायन म अपूव

या कोई डॉटरी सिटिफकट था? यिद नह तो लाली पाउडर लगाकर तो शाहख खान से लेकर आिमर खान तक सभी भाग ले सकते थे। इस िदशा म कोई यास न करा जाएगा िक लिगक िवकलांगता क िचिकसीय पैमाने िनधारत ह और इस आधार पर उह िशा से लेकर नौकरयमवरीयतादीजाए,आरणिदयाजाए।" िकर

44 çàæßÙæâæçãUçˆØ·¤è जनवरी-माच 2023 िकर समुदाय क लोग ने अपने अनुभव और िवचार को य करने क िलए 'आधा सच'नामसेअपनालॉगआरभिकयाह।िहजड़किवसदयितयोिगताकआयोजनक संबंधमलॉगमिलखागयाह-"िवकलांगकोजोड़नेकाएकयहीराताह?सदयपधा क बाद ये कहाँ खो जाते ह? सेिलना जेटली क तरह मॉडिलंग या िफम म आकर समानपूवक जीवन य नह जी पाती ह? य नह लिगक िवकलांग ब क िलए आज तक लमीनारायणिपाठीयाशबनममौसीनेकलकमाँगकयादहीखोलिदया।यनह ये आगे आकर ाई जैसी संथा का सहयोग लेकर ब को पढ़ाती-िलखाती ह? य नह इनआयोजकनेमुंबईमनमभीखमाँगनेयाकमाठीपुरामसेसकभूखेदरदकभूखिमटा कर अपने पेट क भूख िमटा कर ददनाक जीवन जीने वाले मासूम लिगक िवकलांग को इस आयोजन क सूचना तक ना दी? ये कहगे िक हमने तो अख़बार म सूचना दी थी तो ज़रा ये किटल बताएँ िक िकतने िहजड़ अख़बार पढ़ने लायक बनाए आज तक इन लोग ने? आिख़र सवाल िक इन आयोजक ने कसे िनधारत करा िक सार ितभागी लिगक िवकलांग (िहजड़ा) ही ह,
को अपने साथ समाज क मुयधारा से जोड़ने क ज़रत ह, उनको समान क साथरोज़गारमुहयाकराएँजाएँ।िहजड़ानह,हम"इसान'समझाजाएइतनीसीउनकमाँगह। िकर समाज कवल जैिवक असमानता को ही नह झेलता, वरन उसे समािजक, शारीरक, मानिसकअसमानतावशोषणकदौरसेभीगुजरनापड़ताह। िहजड़ को लेकर समाज का जो िहकारत भरा नज़रया ह, उनक ित जो भाषा ह और उनकोमनोरजनकासाधनमासमझनेकजोमानिसकताह,उसीकापरणामहिकिहजड़ क भाषा कभी-कभी गाली गलौच क सीमा को पार कर जाती ह। दरअसल जो घिटया मानिसकताऔरिहकारतसमाजसेउहिमलतीहवहीिहकारतसमाजकोअपनेयवहारारा लौटादेतेह।कितारादशारीरककमीककारणसमाजकमुयधाराउहसमाननह शोध आलेख (शोध आलेख) िकर समाज : तीसरी दुिनया क तीसरी ताली शोध लेखक : डॉ. अजुन क. तडवी डॉ. अजुन क. तड़वी, एसोिशयेट ोफसर, आटस कॉलेज, पाटन, 384265 (उ. गुजरात)

देपाती।रोज़गारकअवसरनादेना,कलम

पढ़नेकाअवसरनादेनामुयधाराकसमाज

का एक षं ह, तािक यह समाज

पारपरक पेशे म उलझा रह। भीख माँगता रह

और वेयावृि क जाल से बाहर न िनकल

सक। िकसी कल क कस पर या कलेी

मऔरशासनमकभीिकसीिहजड़कोबैठ

देखाह?

िकतनी जगह 'एम' या 'एफ' कॉलम क

अितर तीसरा ऑशन होता ह? कभी कह

मॉल या पलक पैलेस म थड जडर क िलए

अलग वॉशम क सुिवधा देखी ह? इन सब

जिटलता व समया से िकर समाज

जब जूझता ह तो गिहर ह उसक वभाव म

कठोरता और कडआपन य होगा।

मेकअप क मोटी परत क नीचे अपनी

आंतरक िज़ंदगी क बदसूरती को छपाते ए

िकरकाजीवनसामायकसेहोसकताह?

उनक जीवन म या वेदना, छटपटाहट, मजबूरी और जीवन म भीतर तक पैठ जमाए

दद क दातां को समझने क िज़मेदारी

आमजनकह।

"िशा क कमी, अय यवसाय म

जुड़ने क सीिमत अवसर, आिथक तंगी व

परवार का भावनामक लगाव न होना ही

अिधकांश िहजड़ को यौन कम क ओर ले

जाताह।लोगकसोचमयहरचाबसाहिक

सार िहजड़ यौन कम ह, जो ग़लत ह। इसी

कारण इह सामािजक समान नह िमल पा

रहा ह, इसी कारण इह समाज म अवांिछत

माना जाता ह। लोग को इह देखने, समझने, परखने क िलए अपने पूवाह से मु होना

पड़गा, जो अीलता का चमा लगाकर इन क बार म देखते एवं सुनते ह, वह उतारना होगा।" धरती पर तीसरी योिन का वजूद ह तो हम इनक हक िदलाने म िकर समुदाय क

मददकरनीचािहए।इनकोपढ़नेऔरसमझने

क बाद ही िहजड़ा समुदाय को लेकर जो

पूवाह और ांितयाँ ह उनसे समाज मु हो

सकता ह। िकर क मानिसक पीड़ा को

सािहय

सच तो यह

ह िक दिलत का अपना परवार ह, ी क पास उनका अिधकार ह, लेिकन िकर क

पास अपना कछ भी नह? वे परवार, समान, अिधकार, सामािजक सरोकार आिद

सब से वंिचत ह।" लेबयन, िकर क जीवनशैलीऔरसंघषपरआधारतउपयास ह तीसरी ताली िजसे दीप सौरभ ने 2014 म िलखा ह। यह उपयास ऐसे समाज क यथा कथा को बयान करता ह जो समाज म उपथत रहकर भी अनुपथित का दंश झेल रहा ह।

आधारत ह। िजसका काशन 2013 म आ। िनमला भुरािड़यानेिकरसमाजकतुलनााक िदन क कौ से क ह जैसे ा क िदन म कौ को खीर पूरी िखलाई जाती ह लेिकन

सामाय िदन म कौ का घर आना अपशगुन माना जाता ह वैसे ही शादी, याह,िशशु- जम क अवसर पर िकर को थोड़ा बत समान िमल जाता ह और सामाय िदन म उनक मुँह पर दरवाज़ा

बंदकरिदयाजाताह।

2018 म सािहय अकादमी समान से

पुरकत

çàæßÙæâæçãUçˆØ·¤è जनवरी-माच 2023 45
क जरए समझा जा सकता ह। सािहय ही वह लेटफाम ह जो िकर को सामािजक समानता क अिधकार िदलाने म महवपूणभूिमकािनभासकताह।सािहयक मायम से िहजड़ क जीवन शैली क पड़तालकरइससमुदायकबार मह भीम जी का उपयास 'िकर कथा' िकर क जीवन का लंत दतावेज ह। राजा जग राज िसंह बुंदेला क घर रानी आभािसंहककोखसेदोजुड़वाबियका जम होता ह। िजनम से एक िशशु(सोना) क जननांग अिवकिसत रहते ह। यह से शु हो जातीहसोनाकहािशयकेरणककथा।राजा जग राज िसंह अपनी बेिटय पा व सोना को जान से भी यादा यार करते थे। लेिकन सोना क िहजड़ा होने क बात खुलने पर वह दीवानपंचमिसंहकोसोनाकोमारनेकाम देते ह। यही साई ह िहजड़ क जीवन क िजसेमहभीमने'िकरकथा'उपयासम अिभय िकया ह। उस नही बी का या दोष िजसे ईर ने अपूण बनाकर भेजा ह? लेिकन िवथापन का दंश, घर परवार से बेघर होने का दद, समाज से बिहकत होने कसजािकरकोझेलनीपड़तीह। 'िहजड़ क िज़ंदगी भी अजीब सी ह। जहाँ का सारा दद अपने मसमेट ए ह। आज िवमश का घमासान मचा आ ह। हािशये क बात हर तरह क जा रही ह। परतु
तीसरी ताली ऐसे लोग क ताली ह िजह िनजी जीवन म कभी ताली नह िमली। 'लेखकनेछानबीनकबादिहजड़कजीवन शैली, उनक बीच गीय, इलाक और गी क वारस को लेकर होने वाले नखराब,े िकसी को जबरदती िहजड़ा बनाने,चुनरीकरम,गुपरपराकािनवाह, मूछ वाले िगरया रखने, िहजड़ो क अंदर िछपी ीव क भावना, उनक मानवीय संवेदना और ममव, िहजड़ होने क दद, उनक आोश और संघष आिद को िवतार से परत दर परत खोला ह। िहजड़ क जीवन क साथ-साथ इस उपयास म एक समानांतर दुिनयाहसमलिगकक,िवकतकितवाल क। इतना ही नह लेखक ने राजनैितक पतर बाज़ीकोभीउजागरिकयाह। सफदपोशकिशकारिकशोरकददको योित क इन शद क मायम से समझा जा सकताह-'मानाममद,लेिकनयहसमाज मुझसेमदकाकामलेनेकिलएराजीनहह। मुझे इस समाज म मादा क तरह भोग क चीज़ म तदील कर िदया ह। म मद र, औरत र या िफर िहजड़ा बन जाऊ, इससे िकसीकोकोईफकनहपड़गा।पेटकआग तो बड़-बड़ को ना जाने या-या बना देती ह।" देश म 99 ितशत िहजड़ अिशित ह। कारणजािहरहिकिहजड़किशाकिलए कोईकलनहह।अगरिकरहोनेकबात कोछपाकरकोईकलमवेशपाभीलेताह तो शारीरक भाव भंिगमाए प होते ही कलशासनउहबाहरिनकालदेताह। िनमला भुरािड़या का उपयास 'गुलाम मंडी' अंतरराीय देह यापार पर
'पोटबॉसनंबर203नालासोपारा' उपयास िचा मुल ारा प शैली म िलखा गया ह। मुंबई क र वािहनी लोकल न क वेटन उपनगर का लगभग आिख़री टशन ह- नालासोपारा। िकर जीवन पर कित इस उपयास का पा िवनोद उफ

िबी माँ को एकतरफा िचयाँ िलखता ह।

िजसनेिकरहोनेककारणमाँ,परवार,घर

से िबछड़ने का दंश झेला ह वही िवनोद एक

अधूरपन और कशमकश म होने क बावजूद

अपनी िबरादरी क लोग को समाज म इत

िदलाने का संकप लेता ह। उसका परवार

बदनामी क डर से यह घोिषत कर देता ह िक

िवनोदकएकयााकदौरानदुघटनाममृयु

हो गई ह। उसक अवशेष तक नह िमले।

राजनीितक ताकत क प को भी

उपयासमिचितिकयागयाह।िवधायकव

अय राजनीितक ताकत क िदलचपी इसम

नह ह िक िकनर समुदाय का िवकास िकया

जाए, वे तो उहमहज वोट बक मानकर

तुीकरण का खेल रच रह थे। ये उपयास

िकर जीवन क संघष को िचित करता ह, उह मनुय माने जाने क संघष क गाथा ह-

पोटबॉसनंबर203नालासोपारा।

जैसे अछत को हरजन व दिलत तथा

िवकलांग को िदयांग समान देने क िलए

िमला ह। उसी कार िहजड़ क िलए िकर

शद रखा गया ह। सािहय और सय समाज

ारा िहजड़ क िलए िकर शद ही यु

िकया जाता ह। लेिकन या नाम बदलने से

उसका िनिहताथ बदल जाएगा। इसक

अिभय नालासोपारा म िवनोद क इस

कथन म देखी जा सकती ह- 'सुनने म िकर

शद भले ही गाली ना लगे मगर अपने

िनिहताथमवहउतनाहीरऔरममातकह

िजतना िहजड़ा। िकर क सफद पेशी म

िलपटा चला आता ह, उसक वयामकता

म रचा बसा। कोई भूले तो कसे भूले।" मह

भीम का एक अय उपयास 'म पायल'

जीवनी परक उपयास ह। पु क वािहश

जुगनी क िपता को जुगनी को जुगनू बनाने क

िलएिववशकरदेतीह।िहजड़ाहोनेकसजा जुगनी को इस प म िमलती ह िक उसक िपता अपनी झूठी मान मयादा क िलए जुगनी क

होगा, तभी यह लोग

मसामायलोगकभाँितअपनेमानव अिधकार क साथ जीवन यापन कर सकगे। मुयधारा क समाज को िकर समुदाय को उनकहकवमानवीयअिधकारदेनेमकटौती

सामािजक भेदभाव ही उनक उ यवहार का कारण बनता ह। सािहय ही वह औजार ह जो िकर क मानिसक पीड़ा को कलम ारा पाठक क सामने रख सकता ह। यह सभी उपयास िकर क िज़ंदगी का यथाथ दतावेज ह, िजसकोसमाजअछतसमझकरजानवरसेभी बदतर यवहार करता ह। इनको समझे िबना इनसे नफरत करता ह। उसक जीवन क दद, पीड़ा, समाज म थान पाने क ललक, िजजीिवषा को हम समझना होगा। िहजड़ क बार म जो नकारामक सोच ह उसम बदलाव सािहय ारा ही संभव ह। सािहय क ारा िहजड़ से जुड़ मु को सही ढग से उठाया जा सकता ह। उनक ित संवेदनशीलता क भावनाजगाईजासकतीह।अिधकसेअिधक सािहय लेखन ारा, नाटक को मंिचत करक, डॉयूमी तथा िफम क जरए िकर िवमश

इनम संवेदना ह, शारीरक , सोचने

समझने क मता ह, ज़रत ह उसे रािहत

म िनयोिजत करने क। िशा, दीा, रोज़गार

समान और इनक साथ इसान जैसा

करनेकिज़मेदारीसयसमाजक ह। हम िकर समुदाय क ित सिहणु और उदारहोनाहोगा। 000

संदभ1. मदन नाइक,पा, म य नह, राजकमल काशन, .स. 2012, पृ स. 165, 2. डॉ. िवजताप िसंह, रिव कमार गौड़ (संपादक) भारतीय सािहय एवं समाज

मतृतीयिलंगीिवमश,अधूरीदेह-महभीम, अमन काशन, थम संकरण, 2016, पृ स.9, 3. Aadhasach.blogspot. In, vwOctober, 2010, 4. डॉ. िवजतापिसंह, रिव कमार गौड़ (संपादक) भारतीय सािहय एवं समाज म तृतीय िलंगी िवमश,हम भी इसान ह- मह भीम, पृ स. 15,5.डॉ.िवजतापिसंह,रिवकमारगौड़ (संपादक),भारतीय सािहय एवं समाज म तृतीयिलंगी िवमश, मह भीम का उपयास ' िकरकथा' एक वैचारक पड़ताल, रिवकमार गौड़, पृ स. 107, 6. डॉ. िवजतापिसंह, रिवकमारगौड़ (संपादक) भारतीय सािहय एवं समाज म तृतीयिलंगी िवमश, एक समांतर दुिनया क अपरहाय ासदी-'तीसरी ताली', डॉ. गुरामकडा नीरजा, पृ स. 35, 7. सौरभ,दीप,तीसरी ताली, वाणी काशन, पृस. 57, 8. मुल, िचा,पोट बॉस नंबर 203 नालासोपारा, सामियक काशन, पृ स. 12-13

âæçãUçˆØ·¤è जनवरी-माच 2023

46 çàæßÙæ
हया करने तक से परहज नह करते चपलपानीमिभगोकरमारना,गलेमरसी डालकर खचना उनक नफरत का सबूत ह। लेिकनइसमजुगनीकायादोषह?िपताक नफरत इतनी बढ़ जाती ह िक वह घर छोड़ करभागजातीह। इसकारसािहयकारािहजड़ािवमश अलग तर क ऊचाई छ सकता ह। सािहय हीवहमायमहिजससेनईपीढ़ीिकरको समान देने क िलए ेरत हो सकती ह। कानून, सरकार, यायालय इह िकतने भी अिधकार दे दे इनक िज़ंदगी म बदलाव तब तकसंभवनहजबतकसमाजकमुयधारा इनक ित अपना नज़रया नह बदलेगा। समाज क मानिसक सोच ही इनक गितिविधय म कावट बनती ह। समाज को इस समुदाय क ित
कोण याय पूण करना होगा। इनक ित अपमानजनक यवहार
करनी चािहए।
को पूरी जिटलता क साथ तुत िकया जा सकता ह। इन उपयास क कथावतु िकर समुदाय को इसान समझे जाने का अनुरोध करती ह। ये उपयास िकर क ित नज़रया बदलने क चेतावनी देते ह और समाज म उनक िनधारत भूिमका क आलोचना करते ह। िकर िजतनी यादा दया माँगता ह, समाज उसे उतनी ही िहकारत और नफरत देता ह। वह जीिवत ह, और अलग ह इसक िलए उह सॉरी बोलने क ज़रत नह ह। समाज को अपनी मानिसकता बदलने क ज़रत ह। आमा का जडर शरीर क जडर से मैच नह खाता ह तो इसम िकर काया दोष? िशा क म इनका ितरकार ना करक आमजन कतरहइहभीपढ़ाईकाअवसरिदयाजाए।
अपना
ख़म करना
समाज
नह
यवहार

मजबूत करना, एकता, सय, अिहसा, साहस, ढता, िना आिद क थापना करने म वासी सािहयकार सफल गोचर होते ह. वासी भारतीय सािहयकार म उषा ियंवदा का नाम गांधी िवचारधारा क लेिखका क प म आता ह। इनक मुखउपयास'कोगीनहरािधका','शेषयाा','पचपनखंभेलालदीवार','अंतवशी'और 'भया कबीर उदास' आिद म गांधीतव मुखता से गोचर होते ह। भारतीय सािहयकार गांधीवादी

çàæßÙæâæçãUçˆØ·¤è जनवरी-माच 2023 47 शोधसार:भारतीय उपयास म शु से सामािजक सुधार को महवपूण थान िमला ह। भारतीय उपयासकार क साथ-साथ वासी उपयासकार क रचना म गांधीवादी िवचारधारा का भाव गोचर होता ह। भारतीय ामोोग, ामीण सयता, तप और याग, भारतीय ाम और संपूण भारतीयता क मुकल तवीर वासी सािहयकार क उपयास, कहािनय और किवता म चुर माा म गोचर होती ह। गांधीवादी िवचार क मूल तंभ ह, सय और अिहसा। सवदय, सयाह एवं रामराय गांधीजी क तीन आदश थे। इन आदश क थापना अपनी सािहय कितय क मायम से करने का यास वासी सािहयकार ने िकया ह। भारतीयता क अवधारणा को
िवचारधारा क िता कर िवदेश म आिथक वावलंबन का िवचार वासी भारतीय को दे रह ह। वासी और भारतीय सािहयकार क रचना का अययन करने से ातहोताहिकइनरचनामिवशेषतःउपयासमगांधीवादकअिभयईह।इसबात कोहममाननाहोगा।सभीवासीऔरभारतीयसािहयकारबमुखीितभाकधनीह,वासी भारतीयसािहयकारनेसिचतऔरआनंदकसाथअिभवंिचतजनताकसाथअपनेसािहय कोजोडनेकायासिकयाआपरलितहोताह।वतमानमवासीभारतीयसािहयकारक साथ-साथपाठकभीगांधीवादसेभािवतएह।गांधीयुगऔरगांधीवादकासंिगकताआज भीऔरभिवयमभीबनीरहगी। शोध आलेख (शोध आलेख) वासी और भारतीय सािहय सृजन म गांधीवाद क ासंिगकता शोध लेखक : अिवनाश कमार वमा अिवनाश कमार वमा (शोधाथ) िहदी िवभाग, नानक चद ऐंल संकत महािवालय, मेरठ मोबाइल- 7983363275 ईमेल- akvermanet20@gmail.com

बीज शद :- एकता, सय, अिहसा, साहस, ढता, िना, गांधीतव, गांधीवाद, वासी, समकालीन, चार- सार, वावलंबन, योजना, परलित, मानवीय मूय,सािहयकार,गोचर,यापकता, समाजवादी उपयासकार म ताराशंकर वंोपायाय, यशपाल, नागाजुन ऐितहिसक उपयासकार मे मुहमद अली तबीब, आर. बी. गुंजीकर, कहयालाल मानकलाल मुंशी, रामन िपई, वृंदावनलाल वमा आिद

महवपूण उपयासकार ह। इन उपयासकर म ेमचंद "ेमाम उपयास म गांधीवाद क राते जा रह थे... ेमचंद ने महामा गांधी क वाधीनता आंदोलन का अपने सािहय म यापक िचण िकया ह। महामा गांधी ने

पर बल िदया तो ेमचंद ने चरखा, खादी,िवदेशीवतुकबिहकारआिदका यथाथपूण िचण िकया। 'रगभूिम' का नायक

अंधा सूरदास तो महामा गांधी का ितप ह

जो सय, धम तथा अिहसा से अंेज़ तथा

अंेज़ भ भारतीय से असहयोग करता

आ औोगीकरण क िव ामीण

संकित को बचाने क िलए संघष करता

ह।"1 कहना आवयक नह िक भारतीय

उपयास सय का पुरकार करते नज़र आते

ह।

'एक बीघा गोड', माटी क महक, मैला

आँचल, ाम सेिवका, पानी क ाचीर, जल

टटता आ आिद उपयास म गांधीवाद को

मुखता से िचित िकया ह। भारतीय उपयासकार क साथ-साथ वासी भारतीय

(अमेरका), उषा राजे ससेना (िटन), उषा वमा ( िटन), कारनाथ ीवातव (िटन), कित चौधरी (िटन), डॉ. कण कमार (िटन), िदया माथुर (िटन), पेश गु (िटन), पुपा भागव (िटन), मोहन राणा (िटन), शैल अवाल (िटन), सय ीवातव ( िटन), लमीधर मालवीय (िटन), ेह ठाकर (कनाडा), जिकया जुबेरी, ेमलता वमा (अजटीना), ो. सुािणयम (िफजी), अचना पेयूली (डनमाक), अिमत जोशी (नाव), सुरशच शु (नाव), रामेर अशांत (अमेरका), डॉ. िवजय कमार मेहता (अमेरका), डॉ. वेदकाश बटक (अमेरका), िवनोद ितवारी, (अमेरका), सचदेव गुा (अमेरका), गौतम सचदेव (िटन), डॉ. कमलिकशोर गोयनका (िटन), धनराज शभू (मारीशस), रामदेव धुरधर (मारीशस), डॉ. िजेकमार भगत 'मधुकर' (मारीशस), मुकश जी बोध (मारीशस), मुनारलाल िचतामिण (मारीशस), राज हीरामन (मॉरीशस), सूयदेव िखरत (मारीशस), अजािमल माताबदल (मारीशस), अजय मंा (मारीशस), डॉ. उदयनारायण गंगू (मारीशस), नारायणपत देसाई (मारीशस), हलाद रामशरण (मॉरीशस), हमराज सुदर (मारीशस), पूजाचंद नेमा(मारीशस), मािटन हरद लमन (सूरीनाम), महादेव खुनखुन (सूरीनाम), सुरजन परोही (सूरीनाम), डॉ. पुपता (सूरीनाम), बासुदेव पाड (ििनडाड), डॉ. रामभजन सीताराम (दिण अका), उषा ठाकर (नेपाल), डॉ. िववेकानद शमा (िफजी), डॉ. राजे िसंह (कनाडा) आिद

वासीभारतीय

ह।"2 इन वासी

सफल ए गोचर होते ह। वासी

48 çàæßÙæâæçãUçˆØ·¤è जनवरी-माच
2023
वदेशी
आते
सािहयकार ने गांधीवाद का चार-सार िवदेशमिकयाआपरलितहोताह। भारतीय ामोोग, ामीण सयता, तप और याग, भारतीय ाम और संपूण भारतीयता क मुकल तवीर वासी भारतीयसािहयकारकउपयास,कहािनय और किवता म चुर माा म गोचर होती ह। सािहयकार अिभमयु अनत (मारीशस) का उपयास 'गांधीजी बोले थ'े इसका परचय देता ह। इस उपयास का नायकपरकाशसंघषकातीकबनकरगांधी िवचारधारा को आमसात करता ह। इहने पीस से यादा उपयास िलखे ह। उनक सािहय म िगरिमिटया मजदूर क अतव और अिधकार एवं ासदी और ताड़ना का यथाथ-िचण िमलता ह। "आज से सरअसी वष पूव क मॉरशसीय समाज म भारतीय क जो थित थी, ममातक ग़रीबी क बीच अपनी ही बिवध जड़ता और गौरांग साधीश से उनका जो दोहरा संघष था, उसे उसक समता म हम यहाँ बबी महसूस करते ह। मदन, पाराशर, सीता, मीरा, सीमा आिद इस उपयास क पा ह, िजनक िवचार, संकप, म, याग और ेम संबंध उ मानवीय आदश क थापना करते ह और जो िकसी भी संमणशील जाित क ेरणा ोत हो सकते ह।"3 कहना आवयक नह िक अिभमयु अनत जैसे अनेक वासी सािहयकार ने गांधी िवचार को अपनी सािहय कितय क मायम से पाठक क सामने रखा ह। गांधी िवचार क मूल तंभ ह सय और अिहसा। सवदय सयाह एवं रामराय गांधीजी क तीन आदश थे। इन
सािहय कितय
भारतीय सािहयकारो म उषा ियंवदा
नाम
उपयासकार क रचना म गांधीवाद का भाव गोचर होता ह। सामािजक समया को अपनी रचना का िवषय बनाने वाले और गांधी िवचारधारा से भािवत वासी सािहयकार क लंबी सूची उपलध ह। "उनम उषा ियंवदा, अचला शमा (िटन), कण बलदेव वैद (अमेरका), टी.एन.िसंह,तेजेशमा(िटन),अिभमयु अनत (मारीशस), कण िबहारी (अबूधाबी), पूिणमा बमन (अबूधाबी), किवता वाचवी (िटन), सुषम बेदी (अमेरका), अंजना संधीर (अमेरका), डॉ. सुर गभीर, क लेिखका क प म आता ह। इनक मुख उपयास 'कोगी नह रािधका', 'शेष याा', 'पचपन खंभे लाल दीवार', 'अंतवशी' और 'भया कबीर उदास' आिद म गांधीतव
आदश क थापना अपनी
कमायमसेकरनेका
यास
सािहयकार ने िकया ह। ''गांधीवाद ह िनरतर आमपरीण और योग गांधीजी क िविशता रही ह इसिलए गांधीवाद म कछ तवाणपऔरथायीहतोकछदेहप ह और परवतनशील एवं िवकासशील ह।''4 इन तव को पाठक तक पचाने म वासी भारतीय सािहयकार सफल ए नज़र आते ह। भारतीयता क अवधारणा को मजबूत करना, एकता, सय, अिहसा, साहस, ढ़ता, िना आिद क थापना करने म वासी भारतीय सािहयकार
का
गांधी िवचारधारा

मुखतासेगोचरहोतेह।

वासीभारतीयसािहयकारकणिबहारी

ने कहानी, उपयास, किवता, नाटक आिद

िवधा क मायम से गांधी िवचार को

तुित दी ह। इहने रखा उफ़ नौलिखया,

पथराई आँख वाला याी और पारदिशय

आिदउपयासिलखे।इनक'गाँधीकदेशम'

शीषक से एकांिकय का संकलन मानवीय

मूय क ित क आथा का उम उदाहरण

ह।"गांधीजीनेउनसभीलोगकोसहारािदया

जो िहसा क िशकार थे।"5 कहना आवयक

नह िक वासी भारतीय सािहयकार

गांधीवादी िवचारधारा क िता कर िवदेश

म आिथक वावलंबन का िवचार वासी

भारतीय को दे रह ह। वासी भारतीय

सािहयकार क रचना का अययन करने से ात होता ह िक इन रचना म िवशेषतः

उपयास म गांधीवाद क अिभय ई ह।

इस बात को हम मानना होगा। सभी वासी

भारतीय सािहयकार बमुखी ितभा क धनी

ह, अतः सभी आयाम का िववेचन करना

असंभव ह। 'िसमट गई धरती' उपयास क लेखकनरशभारतीयनेसमकालीनजीवनक िवषमता पर कटा िकया ह। लमीधर मालवीय ने 'दायरा', 'िकसी और सुबह', 'रतघड़ी'और'यहचेहरायातुहाराह?'इन उपयास ारा मेहनतकश समाज को क म रखकरमािमकतासेगांधीिवचारकाआदानदानकरनेकायासिकयाह।हमजानतेह, महामा गांधीजी ने जाित, वग, भेदभाव का िवरोध िकया। िवशांित का मं िदया। इस मं को वासी भारतीय सािहयकार क

रचना म पाया जाने क कारण ही समकालीन वासी भारतीय सािहय गांधीवाद

से ओतोत गोचर होता ह। "जाितय म

बट समाज का एक धीमी िया म िमक

िवकास आ था "6 इस बात क ओर वासी भारतीय सािहयकार सचेत ह। िफर भी वे

गांधीजी

म सुषम बेदी नाम अणी ह। इनक 'गाथा अमरबेल क', 'कतरा दर कतरा', 'इतर', 'मने नाता तोड़ा' 'हवन',

क आवयकता ह, इस बात को सारािवअपनारहाह। 000

सदभ-1.डॉ.एम.सलीमबेगआधुिनक िहदी सािहय म गाँधीवाद, पृ 30, 2. अिभमयु अनत गांधीजी बोले थ,े राजकमल काशन 2008 , 3.रामनाथ सुमन लेखक क बात गांधीवाद क परखा, साधना सदन, िदी पृ 06, 4.नारायण भाई देसाई – सब क गांधी, राजथान ौढ़ िशासिमित,जयपुर1जनवरी,2020 पृ 213,5.रामपुिनयानी–सामािजकयायएक सिच परचय, वाणी काशन 1 जनवरी, 2010 पृ 57, 6.डॉ. तेज िसंह –राीय

आंदोलन और िहदी उपयास, पृ 145., 7.िवकाश गु, मोिहनी गु महामा गाँधी : य और िवचार, राधा काशन 1

जनवरी,1996पृ45,8.डॉ.आनंदवप

पाठक – नागरी संगम (ैमािसक पिका)

जुलाई–िसतंबर,2011

çàæßÙæâæçãUçˆØ·¤è जनवरी-माच 2023 49
क तरह जात पात नह मानते और अिहसा और शांित म िवास रखते ह। सुदशन ियदिशनी क उपयास 'सूरज नह उगेगा', 'रत क दीवार' एवं 'काँच क टकड़' गांधी तव को पाठक क सामने रखते ह। सुदशनगांधीिवचारधाराकउपासकहउनक जीवन और सािहय, दोन पर गांधीवाद का भाव गोचर होता ह। 'सूरज नह उगेगा' उपयास इस िवचारधारा को तुित देता ह। "उपयासकार ने समाज सुधार क भावना से ही अछत समया को उठाया ह और उसका समाधान िकया ह।"7 वासी भारतीय सािहयकार ने वासी जीवन क पीड़ा, अकलापन क समया पर समाधान खोजने का यास िकया ह। वासी भारतीय सािहयकार
'लौटना', 'नव भूम क रसकथा', एवं 'मोच' आिद उपयास म गांधीवादी आदश को तुितदीह।शारीरकमकोसवेमाना ह। अमेरक पृभूिम पर िलखा गया हवन उपयास वैक सािहय और गांधीवाद का उम उदाहरण मानना होगा। "गांधीवाद क मूल तव क अतगत सय, अिहसा और सेवाभावमुखह।इनम
तो
जीवन
ह। सय और ईर को गांधीजी एक दूसर से िभ नह मानते ह। उनक अनुसार सय, ईर का ही दूसरा प ह। इसी कारण ईर को सिदानद अथा स िचत व आनद कहा जाता ह।"8 कहना आवयक नह िक वासी भारतीय सािहयकार ने स िचत और आनंद क साथ अिभवंिचत जनता क साथ अपने सािहय को जोडने का यास िकया आ परलित होता ह। "महामा गांधी अपनीकितमआदशवादीपरअपनेिचतन म यावहारक थे। इस िलए उह एक यावहारक िचंतक और िवचारक माना जा सकता ह। उन क आदश थे वराय, समता मूलक समाज, सादा जीवन, घरलू उोग का िवतार, िजसे वदेशी आदोलन क दौरान बलिमला।सयिना,अिहसाऔरवराय उन क िचतन क मूलाधार थे, िजन क आधार पर गांधीवाद क मूि गढ़ी गई।"9 हम जानते ह, गांधीजी ारा िनभयता से िदए एक भाषण से भािवत होकर िवनोबा भावे ने गांधीजी से पाचारशुिकयाथा। अतः कहना आवयक नह िक वतमान म वासी भारतीय सािहयकार क साथ।साथ पाठक भी गांधीवाद से भािवत ए ह। गांधीयुग और गांधीवाद क ासंिगकता आज भी और भिवय म भी बनी रहगी, इस म दो रायनह।"कालकगितपरयानदेनेसेऐसा तीत होता ह िक गित ही उसका जीवन ह। न उसका आिद ह न अंत, मानव समाज अपनी सुिवधाकिलयेकालगितपरकछिचहबना लेता ह और उसी क आधार पर काल गनना करने लगता ह। ये संव, ये सन उसी क उदाहरण ह िजसे वष, मास, िदन म िवभािजत कर अपना काम चलाता ह। िपछल िदन एक कालाविध को 'गांधीयुग ' कहा गया था।"8 कहना उिचत होगा िक इस युग म गांधीजी का भाव सबसे अिधक था। वासी भारतीय सािहयकार क रचना संसार का अययन करने से ात होता ह िक गांधीयुग का भाव आज भी िव पर बना रहा ह, इस बात को हममानना होगा। गांधीवाद संपूण वैक सािहय क क म रहा ह। आज भी िव सािहय और संपूण मानव समाज को गांधीवाद
सेसयऔरअिहसा
गांधीवाद क ाण ह। गांधीजी का समत
दशनइहदोनतवसेअनुािणत

कईउपजाितयकायहएकसमूहह।आंजणाजाटकनाम क बाद आपको चौधरी, पटल, कणबी, देसाई, आंजणा जाट, आंजणा चौधरी आिद िलखा िमलताहजबिकइसगोककलनामकपमपटल,चौधरी,देसाई,जाट,मौय,ण,गुजर, काग, जुवा, सोलंक, भािटया, लोह, हाडीया आिद ह। भारत म राजथान, गुजरात और

50 çàæßÙæâæçãUçˆØ·¤è जनवरी-माच 2023 शोध आलेख (शोध आलेख)
का समाज जीवन शोध लेखक : पटल आकाश कमार संजय भाई मागदशक : डॉ. सी.जी भ आंजणाएकभारतीयाचीनखेितहरजाितहऔरएकजाटसमाजकागोभीह।अभीक समय म अगर हम देख तो पता चलता ह िक आंजना, कलबी, पटल, आंजणा जाट/आंजणा चौधरी,चौधरीतथापाटदारसिहत
मय देश म यह एक िहदू जाित ह। उहने यह भी िवशेष प से गुजरात और राजथान, और राजथानमजागीरदार,जमदारयाचौधरीओरपटलकपमजानाजाताह। आथा - 'भट' और 'चरण' इितहास क पुतक क अनुसार, अंजना चौधरी क उपि सहाजुनकआठबेटसेह।परशुरामियकोमारनेकिलएआएह,वहएकशशाली िय राजा थे जोसहाजुन क िलए आये था। इस लड़ाईम, सहाजुन औरउसक 92 पु मारगएथे।शेषआठबेटमाउटआबूपरदेवीअबुदाकशरणमआगये।देवीअबुदानेउह संरित िकया और परशुराम अपने श इस शत पर दने क िलए तैयार ए िक उह दद नह होगा। देवी अबुदा ने उनको आासन िदया। वे देवी क अनुयायी थे, जाित क नाम क उपि पटल आकाश कमार संजय भाई हमचंाचाय उर गुजरात िविवालय पाटन, गुजरात 384265
आंजणा चौधरी जाित

देवी अंजनी माता, भगवा हनुमान क माता

सेआतीह।माउटआबूमदेवीअबुदाअंजना

चौधरीककलदेवीह।

मूल - जाित क सदय देवी क अनुयायी

थे। वे दिणी राजथान म फल गये और

उसक बाद गुजरात गए। यहाँ से अपनी

परपरा क अनुसार समुदाय, मय देश क

मंदसौरतकपचे।अंजनाअभीभीिहदीक

मालवी बोली बोलते ह। मालवी और

गुजराती। राजथान म, वे दो यापक ेीय

िडवीजनमबँटजातेह।मालवीअंजनाआगे

इस तरह फाक, िशह, खार, न, गिडया, ईआईटी, जुडार, कवा, कडली, िदी, वादा, काग, भूरया, मेवाड़, लोगार, ओध, मुंज, कावा और संयु प एसोगेमस

कलकसंयामिवभािजतह। आंजणाचौधरीजाितकपरपरा-िहदु

क प म, चौधरी सीमाता (गभावथा), उपनयन (धागा समारोह), 'िववाह' (शादी)

औरमौतसेसंबंिधतमहवपूणसंकारकरते

ह। सीमातोनयन क वैिदक 'संकार' से मेल खाती ह, जो जम-सीमाता, लोकिय खोलोभरवो क प म जाना जाता ह, और मिहला क पहली गभावथा क जन मनाने

क िलए पित क घर म िकया जाता ह। घर क सामने परसर क कोने म यह नामकरण संकार क बारहव िदन पर होता ह। चाची

(फोई) ने आज नामकरण संकार करती ह

और नाम क िलएएक ाण से सलाह ली

ह, िजसक िलए रािश च क संकत क

अनुसारनामिदयाजाताह।

चौधरी शादी समारोह परपरागत प से

मय एिशयाई संकार क अनुसार आयोिजत

करते रह ह। ये संकार परपरागत प से

िवकिसत िकये ह और कई मायन म अलग ह। वे शादी को बत महव देते ह और समारोह बत रगीन और कई िदन तक आयोिजतहोतेह।िननिलिखतचरणसगाई, गणेशपूजन,वरघोड़ा,शादी,रसेशन,आिद एकशादीमहोतेह।

शादी क बाद एक य गृहथाम (गृहथ क चरण) म वेश करता ह, िजसे िहदूशा

ह।इसकअलावा,यहदोनउसे मारने क कोिशश क, जो िहरयकिशपु और

होिलका क बुराई हरकत से अिधक हलाद

क िवास क जीत िचत करने क िलए मनायाजाताह।

नवराि देवी 'अंबाजी' क समान म नौ रात का योहार

क लोग बत समृ ह। राजथान म इस गो क बड़ बड़ यापारी, अफसर, िशा िवद पाए जाते ह जो इस गो कजाटकानामरोशनकरतेह।अहमदाबाद, बड़ौदा,सूरत,मास,पुणे,नािसक,बाड़मेर, उि़डसा, गोवा, मुंबई म कई बड़ यापारक काय क मािलक आंजणा जाट गो क लोग बनेबैठएह।

000

संदभ- 1. अकरावल सीक, 'मॉडन इयूज एँड स इन इिडयन एजुकशन', भारत काशन, अहमदाबाद, दूसरा संकरण, 1971, 2. काले जयंत दाेय, सेठ कनुभाई, 'गुजरात', गुजरात िवकोश ट, अहमदाबाद, थम संकरण, 1995, 3.गांधीभोगीलाल,"गुजरातदशन"(गुजरात का यापक आिधकारक परचय), चेतन काशगृह,वडोदरा,थमसंकरण,1960

çàæßÙæâæçãUçˆØ·¤è जनवरी-माच 2023 51
म'संकार'कपममानाजाता ह। शादी का ताव आम तौर पर सामािजक आिथक थित और िशा को मुयतः यान मरखकरिदयाजाता ह,जोलड़ककओर से आता ह। चौधरी समुदाय म, लड़क क िपता सगाई समारोह क दौरान एक पए का िसकातुतकरताह। जाितगु-संतीराजारामजीमहाराज िशकारपुरा आम दूर लूनी से लगभग 6 िकमीकदूरीपरथतह।लूनीराजथानक जोधपुर िजले म एक तहसील ह। इस आम को उीसव सदी म संत राजा राम जी महाराज ारा थािपत िकया गया था। िशकारपुराआमकमहतहसंतदेवारामजी महाराज, संत िकशना राम जी महाराज व गु सूरजमल जी महाराज, संत दयाराम। आम अपनी थापना से समाज क सेवा करने क िलएकायकररहाह। योहार- चौधरी लोग को बड़ी धूमधाम क साथ िनन यौहार मनाते ह– राबंधन (संरणकबंधन)भाइयऔरबहनकबीच क रते को मनाता ह। यह ावण न क महीनेपरपूिणमाकिदनमनायाजाताह। िदवाली सबसे िस योहार म से एक हऔरबड़ीधूमधामकसाथमनायाजाताह। पटाखे और िमठाई दीवाली समारोह क साथ। राय म हर घर म िबजली क बब या मोमबी से कािशत िकया जाता ह। योहार चारिदनकिलएजासकतेह। होली क रग या यार का योहार ह। यह वसंत क आगमन को िनिपत करने क िलए मनाया
जाता
ह। लोग, चाह िजस िलंग, जाितऔरधमकह,गरबाऔरडांिडयारास ारा अपने पारपरक नृय दशन करने क िलएएकहोतेह। सारांश- गुजरात म आंजणा जाट चौधरी कगाँवमुयपसेउरगुजरातमिमलतेह जबिक मुय बती क प म बनासकांठा और साबरकांठा क आस पास क ामीण े म ये लोग मुय प से िनवास करते ह। येलोगअपनेनामकआगेअटक,पटलऔर देसाई लगाते ह िजसक कारण इह आंजणा अटक, आंजणा पटल और आंजणा देसाई क नाम से जाना जाता ह। आंजणा जाट का गो ह। जानकारी क अनुसार यह गो 265 ईवी कआसपासअतवमआयाथा। राजथान म भी आंजणा चौधरी क बड़ी आबादी ह। आंजणा गो क उपगो क 260 गो राजथान म रहते ह। जबिक कछ गुजरात, हरयाणा और राजथान क गो आपस म िमलते जुलते ह िजसक कारण ये लोग एक ही गो म शादी नह करते ह। ये लोग एक ही गो क लोग को भाई बहन मानते ह। राजथान म ऑजना चौधरी क बती मुय प से माउट आबु, आबु रोड, लासोर, िसरोही, जोधपुर, सांचोर, भीडवाल, बाडमेर,िचतौड,तापगढ,ओरयामिमलती ह। आंजणाजाटमुयपसेखेतीबाड़ीका काय करते थे लेिकन राजथान म रतीली ज़मीनऔरसूखेककारणइनलोगकोकिष क जगह नौकरी और यावसाय को अपना पेशा बनाया। िजसक कारण आंजणा गो क जाट म राजथान

साथ ही उसक समया से समाज को बकरवाया।यहउपयासकपहलीसफलताथीजबवहमानवकितआ।इसकालम किष, िकसान, आम आदमी, ी, दिलत आिद अछते िवषय पर सािहय क रचना ई। ेमचंद क गोदान, गबन, ेमाम आिद उपयास तथा िनराला क 'अलका' उपयास, रामचं ितवारी क 'कमला' उपयास को किष, िकसान, मिहला, दिलत आिद को हािसए पहलु क

52 çàæßÙæâæçãUçˆØ·¤è जनवरी-माच 2023 भूिमका जब हम 'भारतीयता' क अवधारणा को समझने क कोिशश करते ह तब सबसे पहले एक बात सामने आती ह वह यह िक भारत एक किष धान देश ह, अथात किष और कषक वाले देश का एक िच उभर कर हमार सम आता ह। वातव म भारत क पहचान का आधार भी किषऔरकषकहीह।िकसीभीदेशकपहचानउसकदेशकमुखिवशेषताकआधारपर कजातीह।कहनाअनुिचतनहोगािकभारतीयसंकितकपहचान'किषसंकित'ह।भारत कलगभगसरितशतआबादीगाँवमबसतीह।औरगाँवतोकिषधानवामीणजीवन का िनवहन किष पर ही आधारत होता ह। जैसा िक कहा जाता ह भारत क आमा गाँव म बसतीहइसआधारपरकहसकतेहिककिषऔरिकसानभारतकआमाह।किषसंकित कोइसकारसेपरभािषतिकयाजासकताह-'किषकवलएकयवसायनहअिपतुमानव जाित का पालन - पोषण करने वाली संकित ह'। भारत क मूल म किष संकित ह। किष संकितमसमाजकावहपआताहजोकिषपरआधारतहो। किषसंकितमगाय,बैल,हल,औरखेतकामहविवशेषहोताह।कषकअपनेपशु, खेती करने क साधन और कषक जीवन म आने वाले परपरागत योहार का रण करता ह। यहीकिषकमूलभूतसाधनभीह।हरभारतीयिकसानकआकांाहोतीहिकउसकारपर एक गाय बंधी हो। भारतीय सनातनी परपरा म गाय को माँ का थान िदया गया ह। सनातनी धािमक काय तथा योहार म घर क आँगन को गाय क गोबर से लीपना शुभ माना जाता ह। भारत क लगभग हर घर से पहली रोटी गाय क िलए िनकाल ली जाती ह। यही कारण ह िक भारत क संकित को गौ संकित भी कहा जाता ह। भारतीय किष संकित म ईर क उपासना, धन क पूजा, दान, आतकता, संयम, बुग क ित सहानुभूित, अितिथ सकार, िविभ योहार, सहयोग क भावना, का िवशेष ह। यही किष संकित क सूचक ह और किष संकित क मूल तव भी। भारतीय कषक जीवन इन सार तव से अछता नह ह। भारत क िकसान का सपूण जीवन किष संकित पर आधारत ह। आज लोप होते किष संकित तव को यान म रखकर, आधुिनक िहदी सािहय म ख़ासकर उपयास िवधा म किष संकित का कसावपिदखाईदेताहइसिबंदुकोदेखनेसमझनेकायासकरगे। कजीशद:किष,िकसान,भारतीयकिषपरपरा,किषसंकित,योहार,परपराएँ,गायब होतेहल–बैल,लोकगीत,संयुपरवार,सहयोगभावना शोध आलेख : िजस कार से िहदी उपयास क परपरा का सूपात आ ह उसम शुआत क चरण म किष और िकसान नगय ही रह। ऐयारी, ितिलम, जासूसी, ेम धान आिद उपयास क होड़ म मनुय जीवन क समया को गौण थान ा आ। वह ेमचंद युग म उपयास आम आदमी से जुड़ा और
संदभ म देखा जा सकता
भी िकसान अथवा किष कित सािहय क रचनाहोतीरही।आज़ादीकबादिकसानकबदहालीऔरामीणपरवेशकोआधारबनाकर अनेक उपयास क रचना ई। नागाजुन का बलचनमा, रितनाथ क चाची, भैरवसाद गु का सी मैया का चौरा, रणु का मैला आँचल, िशवसाद िसंह का अलग अलग वैतरणी, रामदरस िम क पानी क ाचीर और टटता आ जल, जगदीश चं क कभी न छोड़ खेत, धरतीधननअपना,औरिकसानीपरपराकमहवपूणलेखकिववेकरायकलोकऋण,सोना माटी,समरशेषहआिदउपयासकोकिषऔरिकसानकपरपरामदेखाजासकताह। भारतभूिमपरवैिदककालसेहीकिषकामहवरहाह।ऋिषयनेकिषकसफलताक शोध आलेख (शोध आलेख) आधुिनक िहदी उपयास म किष संकित (इकसव सदी क संदभ म) शोध लेखक : गौरव िसंह गौरव िसंह पीएचडी शोधाथ िहदी िवभाग, तिमलनाड कीय िविवालय, ितवार, 610005
ह। ेमचंदोर काल म

कामना क और किष क ित जागक करने

क िलए उहने सू क रचना भी क, अथववेद म किष योय भूिम क महव को

इसकारविणतिकयागयाह–

ययातस: िदश: पृिथया

ययमानंकय:सवभुवु/

या िवभित बधा ाणदेत सा नो

दधातु।

ययां पूव पूवजना िवचिर ययां देवा

असुरानयवयन/

गवामानां वयस िवा भंगवच

पृवीनोदधातु।"1

किष आज मानवीय आवयकता क

पूितहतुनहोकरपूणतयायावसाियकहोगई

ह। कहने का तापय ह िक मनुय ने अपनी

सिलयत क िलए तरह – तरह क किष यं का िवकास कर िलया िजसक कारण वह

सुगमता से किष काय कर पा रहा ह लेिकन

मनुय ने 'मूय' क फर म पड़कर अपनी

'मूल' संकित को पीछ छोड़ िदया ह। डॉ.

ीकण 'जुगनू' ारा संपािदत

पुतक क तावना

म किष क गरमा और महव को इस कार

िदखाया गया ह –"मानव क जीवन म किष सबसे बड़ी ांित कही जा सकती ह। इसने पृवी क महव को जम िदया और भूिम क उपजाऊ – अनउपजाऊ, जलीय – जंगली, पहाड़ी – पथरीली और रतीली – बंजर गुण

क पहचान क साथ – साथ बसाव और यवसायजैसीवृियकािवकासआ।"2

किष आमिनभर मानवीय समाज क ोतक

ह। इसने मनुय जाित को सयता का थम

और महवपूण पाठ पढ़ाया। खेद क बात ह

िक आज मनुय ने उसी किष को उपेित

छोड़िदयाह।

किष संकित म संयु परवार का

िवशेष थान ह तथा संयु परवार किष

संकित क

किष संकित क आधार तंभ म से एक ह। एकता, अनुशासन, ेम, सौहाद, िवनता, आिद

कासमावेशयादातरसंयुपरवारम िदखाईदेताह। ामीण परवेश म हमेशा से एकता और संयुता का भाव रहा ह। यह भाव किष संकित का ही तव ह। िबना एकता और सहयोग क भवन क किष काय को साधना दुलभ

को

खाली हाथ नह लौटाया जाता ह बक शगुन

वपउसकोकछनकछिदयाजाताह।

वह कषक परवार म वतु िविनमय क

परपरा का िनवाह हमेशा से होता आया ह।

सामाय प से हम लेन – देन कहते ह।

çàæßÙæâæçãUçˆØ·¤è जनवरी-माच 2023 53
भूिमगोयेव
'कायपीयकिषपित'
पहचान भी ह। आज का युग आमकिवअथकीह।इनदोनकारणसे संयु परवार का िवघटन हो रहा ह। इसक बावजूद भी किष संकित म इनका महव औरसदयबनाआह।भारतमकिषकवल एक यावसाियक आयाम ही नह वरन वह एक जीवन शैली और उससे यादा एक संकित ह। इसी कारण भारत म बड़ी संया म लोग अ को पूजते व का प मानते ह। भारतीय किष संकित म किष को उम, यापार को मयम, और नौकरी को अधम बताया गया ह। अथात भारतीय संकित म किष को मुखता दी गई ह। इसका कारण ह िक किष से अनाज पैदा होता ह और पेट क भूखशांतकरताहऔरजोभूखशांतकरवह ेऔरपूयनीयहोताह। भारतीय संकित क पहचान किष संकित से ह और संयु परवार किष संकित क मुय अंग ह। आज जब संयु परवार गायब हो रह ह और लोग एकाक जीवन जी रह ह ऐसे मोहभंग क समय म िमिथलेर कत 'तेरा संगी कोई नह' उपयास म संयु परवार एक य िदखाई देता ह। लेखक उपयास
–"वे
छिवनाथ।िपताकमृयुकबादिजसमुतैदी से रिवनाथ ने किष काय और अपने परवार को संभाला उसक चचा पूर गाँव म थी। जहाँ एकओरलोगकहते-भाईहोतोरिवनाथक तरह।"3 संयु परवार
तव
गाँव वालो' उपयास
म िनिहतएकताकायिदखाईदेताह।खेतम धनरोपा हो रहा ह। सभी लोग एक साथ बैठकर खेत म भोजन करते िदखाई देते ह –"सबने ूबवेल पर जाकर अछी तरह हाथ-मुँह धोए। सबको पल देकर खाना परोसा जाने लगा। िविभ बतन म सजी चटपटी और लजीज खा सामिय से भूख बढ़ा देने वाली खुशबू िनकलकर पूर िवाम थलपरपसरगई।"4यहकिषसंकितहीह जो आपसी सौहाद और एकता को परय देती ह। अयथा आज तो ऐसा देखने म आता ह िक कोई िकसी क साथ रहना नह चाहता ह। खेद क बात ह आज आधुिनकता क युग म यह य िछटपुट ही िदखाई देते ह। किष अब परपरागत नह रही ह तब कसे उससे जुड़ीपरपराएँबचीरहसकगी? भारतीय ामीण परवार म रम –रवाज का अयिधक चलन रहता ह। यहाँ आशीवाद वप नई आई ब को कछ न कछ उपहार िदया ही जाता ह। ख़ासकर यह रमामीणिकसानजीवनमदेखनेआतीह। अपनी ब हो या िकसी अय क लेिकन यिद वह थम बार अपने िकसी संबंधी क यहाँ जाती ह तो उसको खाली हाथ नह लौटाया जाता ह। इसी संदभ म तेजपाल चौधरी कत 'भूिमपु'उपयास म िदखाया गया ह िक रिव जब अपनी पनी शुा क साथ अपने दोत िवजये क यहाँ जाता ह। वहाँ से वापस लौटनेसमयिवजयेकमाँशुाकोउपहार वपएकचाँदीकािसकादेतीह–"चलने क समय उनहने शुा को गले लगाकर यार िकया और एक चाँदी का िसका उसक हाथ म रख िदया।"5 यह भारत क परपरा ह जो आज भी ामीण समाज म सहष िनभाई जाती ह।यहऐसीपरपराएँहोतीहजोएकपीढ़ीसे दूसरी पीढ़ी को वतः हतातरत होती रहती ह। यह भारत म अब तक ामीण े म बची ई परपरा ह िजसम घर आए मेहमान
क पा रिवनाथ क बार म िलखता ह
चार भाई थे, उनक बाद दूसर चंनाथ, तीसर देवनाथ और चौथे
ह। जयनंदन कत 'सतनत को सुनो
म कषक समाज
इस परपरा म एक दूसर क सहयोग से ामीण लोगअपनेकायकोकरलेतेह।इसपरपरासे आपसी सौहाद और सहयोग क भावना बनी रहती ह। संजीव कत 'फाँस' उपयास म इस परपरा को िदखाया गया ह। िसंधु ताई का एक बैल मर जाने से वह आसानी से एक बैल जाधवसेलेकरअपनेखेतकोजुतवालेतीह। इस लेन – देन क िया को लेखक िसंधु

ताई क ारा इस कार से य करवाता ह

–"पहलाबैलसपदंशसेमरातोकधेसेकधा

लगाकर हमने शेती (खेती) क, वो बगल से

जाधव अभी-अभी गए न, एक बैल उनका, एक बैल हमारा।"6 आज गाँव से इस परपरा

का लोप होता जा रहा ह। कोई िकसी क काम

म सहयोग नह करता ह। इसक पीछ मुय

कारण ह मशीन क उपि। मशीन क आ

जाने से मानवीय मूय और सहयोग क

भावना का पतन आ ह इसम कोई दो राय

नहह।

ामीण े म िकसान असर अपने –

अपनेखेतमकामकरतेवकोईलोकगीत

गुनगुनाते अथवा िकसी पेड़ क छांव म बैठ कर सामूिहक प से गाते ए िदखाई दे जाते ह।लोकगीतकयहपरपराकिषसंकितक एक सबसे अनूठी परपरा ह। लोकगीत

िकसान को शीतलता और काय करने क

आमकमतादानकरतेह।फसलगहाई, कटाई, िनराई, िसंचाई आिद क समय िकसान लोगलोकगीतकोगातेअथवागुनगुनातेरहते ह। डॉ. शांित जैन लोकगीत क संदभ म

कहती ह –"शात सय ह िक लोकगीत म

हमार संकार क आमा ह। ुितपरपरा क

इसिवधामकिमताकाकहथाननह।हर

अवसर, हर ऋतु, हर रग म गाये जाने वाले ये

गीत सहज ही लोग को अपनी ओर आक

कर लेते ह। भले ही उनक भाषा समझ से पर

होिकतुवरऔरलयकोभाषाकआधारक

अिनवायता नह होती ह।"7 लोकगीत क

संदभ म डॉ शांित जैन का यह कथन यथाथ

जान पड़ता ह। लोकगीत अनायास ही य

कोअपनीओरखचलेतेह।आधुिनकिहदी

उपयास म भी िमिथलेर का 'तेरा संगी

कोई नह' उपनायास म लोकगीत का वर

सुनाईदेताह–"खेतवाघूमेरिकसनवा/झूमे

खेतवा म धनवा / बह पुरवावयरया / बोले

बाग म कोयिलया / गमक आम क मोजरया / खेतवा

चतुवदीकत'कालीचाट'उपयास

कचये,कबाजोअँेजीचये/ बनडीहनादान"9 किष संकित क तव म भूिम, िमी, हल – बैल, हिसया – खुरपी, फावड़ा –कदाल, जल, खाद – बीज, बैलगाड़ी आिद कामुखपसेउपयोगिकयाजाताह।सारी पारपरक किष

आपदा काकोपभीझेलनापड़ताह। िनकषपमकहसकतेहिकआजहर ेममशीनीकरणहोजानेककारणहरे क काय णािलय म बत कछ परवतन हो चुका ह। ठीक इसी कार िकसान जीवन क किष े म अनय साधन क उपलध हो जाने क कारण बत सारी किष ियाएँ (िनराई,गुड़ाई,गहाई,आिद)जो

ादशम खंडम, सू, 4, 5, पृ, सं. 2882-83,कारयंालए मुित, संवत 1975, सन, 1918, डॉ. ीकण 'जुगन'ू, (संपादक) 'कायपीयकिषपित' पृ स.ं 18, चौखंभा संकत सीरीज ऑिफस, बनारस, थम संकरण – 2013, िमिथलेर, तेरा संगी कोई नह, पृ सं. 101,लोकभारतीकाशन,इलाहाबाद,थम संकरण 2018, जयनंदन, सतनत को सुनो गाँव वाल, पृ सं. 124, वाणी काशन नई िदी, संकरण 2005, तेजपाल चौधरी, भूिमपु, पृ सं. 174, िवकास काशन कानपुर, थम संकरण 2012, संजीव, फाँस, पृ सं. 42, वाणी काशन नई िदी, थम संकरण 2015, डॉ. शांित जैन, लोकगीत क संदभ और आयाम, पृ सं. 01 से संदिभत, िविवालय काशन वाराणसी, थम संकारण, काशन वष1964, िमिथलेर, तेरा संगी कोई नह, पृ सं 19 – 20, सुनील चतुवदी, कालीचाट, पृ सं. 31, अंितका काशन गािजयाबाद, थम संकरण, 2015, िववेकराय, िकसान का देश, पृ सं. 74, थम संकरण 1956, कमयोगीेस,आजमगढ़,

âæçãUçˆØ·¤è जनवरी-माच 2023

54 çàæßÙæ
र िकसनवा
धनवा......"8 सुनील
मभीलोकगीतकावरसुनाईदेताह।गाँवम िववाहोसव का माहौल होता ह। अचानक गाँव वाले लोकगीत गाना शु कर देते ह। जैसा िक जानते ह लोकगीत क िलए कोई थान अथवा समय िवशेष क बंध क यवथा क ज़रत नह होती ह। यह कह भी, कभी भी गाये जा सकते ह ठीक वैसे ही यहाँपरिदखाईदेताह,अचानकामीणलोग िमल-जुल कर इस गीत को गाते िदखाई देते ह।"बनडीहनादान,कबाजोअँेजीचये
बनडी
डांडी
यवथा इह तव पर िनभर ह। गाँव म िकसान जन खेती – िकसानी को ही अपना सबसे बड़ा िहतैषी मानते ह। किष िया म जुताई, बुवाई, िनराई, िसंचाई, िनराई – गुड़ाई, कटाई – गहाई, क बाद अंततः अनाज भंडारण िकया जाता ह। यह किषकियाहिजसकोएकिकसानशु सेअंततकिनभाताहतभीवहअनाजकोघर मलानेमसफलहोपताह।किषकइनतव क आधार पर या कह सकते ह िक इह तव क मायम से किष क िया को शु तक अंततकअंजामिदयाजाताह।इसियाक चलते कई बार उसको ाकितक
मनुयअपने आप करता था वह समा हो चुक ह। आज यांिकता क दौर म भी किष और िकसानी से िकसान का मोहभंग होता जा रहा ह। िववेकराय िकसान क इस मोहभंग क अवथा को लय करते ए िलखते ह –"िकसान था भी कभी िनपट शु दय का िनमल चर वाला संसार भर क अिखल िसधाई और सरलता का आदश। आज यांिक सयता ने िकसान क यव को मोम नह रहने िदया। उसे लौह फलक बना िदया।" 10 किष संकित क धीर – धीर लोप होते जाने म मशीन का बड़ा हाथ ह। यही कारण ह आज का िहदी उपयास सािहय ेमचंदककथासािहयसेबतिभिदखाई देता ह। तकालीन समय म ेमचंद ने कषक समाज का यथाथ िच िदखाया था यिक तब आज क जैसे अयाधुिनक किष यं नह थे िकसान एक दूसर क िनकट रहता था। आज भी िकसान क समया को सािहय क मायम से समाज तक पचाया जा रहा ह लेिकनसमयकसाथ–साथकिषसंकितम भीबदलावआयाह। 000 संदभपंिडत ेमकरणदास,
झूमे
/ झूमे खेतवा म
/ पंखीखसकचये,झालरमखमलकचये /
ह नादान, गोटा बबई को चये/
सोना
अथववेदभायम,

का े उपयु् एवं पयाहऔरसययमअिधकताअथवाकमीनहह।एककरणकआधारपरिवेषण करने से ात आ ह िक सभी सेयय म परपर एककरण ह। य व सम अथशा क सभी सयय म सैातक एवं यवहारक प क मय एककरण ह। इस पाम म शािमलसभीसययकाआवयकतानुसारअयिवषयकसाथएककरणिकयागयाह। िकसी रा क वतमान आवयकता, आकांा एवं परथितय को गत रखते एिवालयमअथशाकािशणबतमहवपूणथानरखताह।अथशाकाानजहाँ छा क िलए महवपूण ह, वहाँ यह समाज क अय वग तथा राीय से भी उपयोगी ह। उमायिमकतरपरअथशाका

çàæßÙæâæçãUçˆØ·¤è जनवरी-माच 2023 55 सारांश का 12 म अथशा िवषय क िलए िनधारत पाम म तुत सयय क े (उपयुता, पयाता, अिधकता अथवा कमी) तथा सयय म एककरण (सयय म परपर, सैातक एवं यावहारक प म तथा अय िवषय क साथ एककरण) क आधार परिकयागयाह।पाममसययकतुतीकरणकािवेषणकरनेसेयहातआ ह िक पाम म य व सम अथशा्, उपभोा संतुलन, माँग, उपादक का यवहार, उपादक का संतुलन, पूित, पूण ितयोिगता, बाज़ार ूप सयय, राीय आय अवधारणाएँ, राीय आय समुय, मुा, बिकग, िविनमय सयय
ानछााकाकरवानाबतआवयकह।इसतर पर िवाथ मानिसक से परप हो जाता ह। अतः िवषयवतु को हर कोण से समझनेकमताउसमिवकिसतहोजातीह।अतःइसतरपरअथशाकयेकेका अययन उसक िलए उपयोगी होगा, लेिकन पावतु एवं पािया उसक मता क अनुकल होनी चािहए। आिथक िसात एवं िनयम का ान, भारतीय अथयवथा का वप, िविभ अथशाय क उपयोगी मत, अतराीय अथयवथा म भारत का थान, भारत क आिथक ोत एवं उनक उपयोिगता आिद पाम म िनिहत होने चािहए और पुतकयानकसाथयावहारकानहतुपाियाएँभीशािमलहोनीचािहए। शोध आलेख (शोध आलेख) का 12 म अथशा िवषय क पाम का िवेषणामक अययन शोध लेखक : ीमती श सा डॉ. मुरलीधर िमा ीमती श सा

अतः िकसी रा क वतमान आवयकता, आकांा एवं

परथितय को गत रखते ए िवालय

म उ मायिमक तर पर अथशा का

िशण आवयक ह यिक इस तर पर

िवािथयमसमतशयकासयकप

से

िवकास हो चुका ह। िवािथय म

भाषाान, तकश िनणय लेने क श, िचतन, मनन एवं अंकदिशता आिद शय

कािवकासहोजाताह।

िवालयीन िशा म पाम का

महवपूण थान ह। पाम िविभ

शैिक गितिविधय का वप िनधारत

करता ह। इसिलए िशा क िविभ तर क

िलए अनुमोिदत पाम क गुणवा का

आकलन करना शोधकता क िच का िवषय रहा ह। पाम क िवेषणपरक

समालोचना क म म ओ. पी. परमेरम (2001) ने मायिमक िवालय तर पर कला िशा का, अपणा लािलनकर (2012)

ने भारत व इलैड क मायिमक तर पर यािमित पाम का, पालीवाल (1998)

ने ाथिमक तर क पाम का, सैनी (2005)नेहाईकलपामका,िसंहएवं

वाजपेयी (2000) ने जीवन िवान क पामकाअययनिकयाह।

अथशा पाम मुय उेय उ मायिमक तर क िवािथय म अथशा

क समझ िवकिसत करना ह। ऐसे म शोधाथ

य का 12 म अथशा िवषय क िलए

िनधारत पाम म तुत सयय क

े और सयय म परपर, सैातक

एवं यावहारक प म तथा अय िवषय क

साथ एककरण का अययन करने का

िनयिकया।

अययनकउेय

(1) का 12 म अथशा िवषय क

िलए िनधारत पाम म तुत सयय

केकाअययनकरना।

(2) का 12 म अथशा िवषय क

िलए िनधारत पाम म तुत सयय

कएककरणकाअययनकरना।

12 म अथशा िवषय क िलए िनधारत पाम म तुत सयय क े और एककरण क थित जानने क िलए 'िवषयवतु िवेषण िविध' का योग िकया

क िलए

उ मायिमक तर पर िनधारत पाम म से 12व का क िलए िनधारत पाम

को सौेयपूण ढग से यादश क प म चुनागयाह।

द क ोत- तुत अययन म उ मायिमक तर क 12व का क िलए कीय मायिमक िशा बोड ारा का क िलएिनधारतअथशािवषयकापाम दकााथिमकोतह।

क कित- तुत अययन म शोध उेय क पूित क िलए 12व का क िलए कीय मायिमक िशा बोड ारा का क िलए िनधारत पाम मंए सयय क े एवं सयय क मय एककरणअययनकरनेकिलए

िवषयवतु

िवेषण से ा द क कित वणनामककारकरहीह।

अययन िया एवं ियािविध- तुत अययन म अांिकत िया एवं ियािविध

अपनायीगयीः

(अ) सवथम कीय मायिमक िशा

बोड ारा उ मायिमक तर पर 12व

का क िलए का क िलए िनधारत

अथशा क पाम का गहन अययन

िकयागया।

(आ) अथशा क पाम का गहन अययन क उपरात 'पाम िवषयवतुिवेषण प' का सत प से िवकास िकयागया।

समयाएँ, उपादन संभावना सीमा, अवसर लागत को शािमल िकया गया ह। अथयवथासययउपयुह।उपभोा संतुलनसययमअथ,सीमांतउपयोिगता, ासमान सीमांत, उपयोिगता का िनयम, सीमांत उपयोिगता, उपभोा क ाथिमकताकोशािमलिकयागयाह।माँग सयय को बाज़ार माँग, माँग क िनधारक, माँग अनुसूची, माँग व, माँग क कमत लोच को शािमल िकया गया ह। उपादक का यवहार सयय म उपादन फलन, लागत, सा को शािमल िकया गया ह। उपादक का संतुलन म अथ, शत, सीमांत सा, सीमांत लागत को शािमल िकया गया ह। पूित सयय म बाज़ार पूित, पूित क िनधारक, पूित, अनुसूची, पूित व, पूित क कमत लोच को शािमल िकया गया ह। पूण ितयोिगता म अथ, िवशेषता, बाज़ार संतुलन िनधारण को शािमल िकया गया ह। बाज़ार वप म एकािधकार, एकािधकारामक ितयोिगता, अपािधकार

को शािमल िकया गया ह। तुत सयय

ेकसेउपयुह।

(ख) सम अथशा म राीय

56 çàæßÙæâæçãUçˆØ·¤è
जनवरी-माच 2023
अययन
अययन
िविध - इस
म का
गयाह। जनसंया,यादशनएवंयादशन तुत अययन म कीय मायिमक िशा बोड ारा अथशा िवषय
(इ) 'पाम िवषयवत-ु िवेषण प' क सहायता से 12व का क पाममसययकपहचानकगई। (ई)सययकपहचानकबादउनका े एवं एककरण क िवशेष संदभ म शोधाथ ारा िवकिसत आधार को यान म रखते ए पाम का िवेषण िकया गया। (उ) े एवं एककरण क िवशेष संदभ मशोधाथारािवकिसतआधारकोयानम रखते ए पाम का िवेषण िकया गया। िनकष का 12 क अथशा पाम का िवेषण करने पर अांिकत िनकष ा एहः सययकेकआधारपरिनकष (क)
म य व सम को प करने म उसको अथ को पिकयागयाह।तुतसययउपयु ह। अथयवथा सयय म अथ, कय
तुत पाम
आय अवधारणा म उपभोग वतुएँ, पूँजीगत वतुएँ, अतम वतुएँ, मयवत वतुएँ टॉक, वाह, सकल िनवेश, मूयास राीय आय का चिय वाह, राीय आय

परकलन क िविधय को शािमल िकया गया

ह। राीय आय सयय को सकल उपाद, िनवल राीय उपाद, सकल व िनवल घरलू

उपाद, राीय आय, िनजी आय, यैक

आय, वैयक योय आय, वातिवक

और भौितक सकल घरलू उपाद, सकल

घरलू उपाद और कयाण को शािमल िकया

गयाह।मुासययमअथ,काय,मुाक

माँग मुा क पूित, जनता क मुा व यापारक बक क िनवल जमा को

शािमल िकया गया ह। बिकग सयय म

कय बक, यापारक बक क साख िनमाणियाकोशािमलिकयागया ह।आय सयय म उपभोग वृि, बचत वृि, घटक, सम माँग को शािमल िकया गया ह। पूणरोज़गारकोअवैछकबेरोज़गारी,माँग

आिधय, माँग कमी, साख क उपलधता

को शािमल िकया गया ह। सरकारी बजट म

अथ, उेय, घटक, ायाँ, यय को

शािमल िकया गया ह। भुगतान संतुलन म

अथ, घटक, आय को शािमल िकया गया ह।

िवदेशी िविनमय म थर व नय िवदेशी दर

िनयंित संतरण मु बाज़ार म िवदेशी

िविनमय दर को शािमल िकया गया ह। तुत

सययेकसेउपयुह।

(ग)तुतपाममयवसम

अथशा म पयाता ह। अथयवथा

सययमअथ,कयसमयाएँ,उपादन संभावना और अवसर लागत सयय म

पयाता ह। उपभोा का संतुलन सयय म उपयोिगता, सीमांत उपयोिगता, ासमान

सीमांतउपयोिगताकािनयम,अनिधमानव िवेषण,उपभोाकाबजट,उपभोाक ाथिमकताएँ सयय म पयाता ह। माँग

सयय म बाज़ार माँग, माँग क िनधारक, माँग अनुसूची, माँग व, माँग क कमत

व सयय म पयाता ह। माँग क लोच

का मापन सयय म अपयाता ह। उपादक का यवहार म उपाद फलन, कल उपाद, औसत उपाद, सीमांत उपाद, लागत, संा

म पयाता ह। सम अथशा म अवधारणा, उपभोग वतुएँ, टॉक, वाह, सकल िनवेश, मूयास, आय का चय वाह, राीय आय परकलन िविधय म पयाता ह। राीय आय समुय म सकल राीय उपाद, िनवल राीय उपाद, सकल और िनवल घरलू उपाद बाज़ार मूय और कारक लागत पर, राीय योय आय, िनजी आय, वैयक आय, वैयक योय आय वातिवक और भौितक सकल घरलू उपाद, सकल घरलू उपाद और कयाण सयय म पयाता ह। मुा सयय म मुा क पूित, मुा क माँग को शािमल नह करने से अपयाताह।बिकगसययमअयबक कोशािमलनहकरनेसेअपयाताह।आय म सम माँग, उपभोग वृि, बचत वृि सयय म पयाता ह। पूण रोज़गारी सयय म अथ, अवैछक बेरोज़गारी, माँग आिधय व माँग कमी सयय म अपयाता ह। सरकारी बजट और अथयवथा सयय म अथ, घटक, भुगतान संतुलन म घाटा, ायाँ, यय, सरकारी घाट क माप सयय म पयाता ह।िवदेशीिविनमयसययमथरवनय िवदेशी िविनमय दर, िनयंित संतरण, िवदेशी िविनमय दर का िनधारण सयय म पयाता ह। तुत सयय म िच क आधारपरपयाताह। (घ) अिधकता व कमी क आधार पर अययन करने पर प होता

सरकारीबजट और अथयवथा, भुगतान संतुलन, िवदेशी िविनमय सयय म े क आधार पर आिधयवकमीपनहहोरहीह।

सयय क एककरण क आधार पर िनकष

(क) पाम म सयय क एककरण का अययन करने पर प होता ह िक य व सम अथशा म एककरण ह। य अथशा म यगत इकाई का अययन िकया जाता ह। सम अथशा क अंतगत सपूण इकाई का अययन िकया जाता ह। य अथशा, सम अथशा तथा अथयवथा सयय म एककरण ह। उपभोा संतुलन, माँग, उपयोिगता सयय म एककरणह।उपादककायवहारऔरपूित सयय म एककरण ह। बाज़ार क वप और कमत िनधारण क अंतगत पूण ितयोिगता, बाज़ार संतुलन, एकािधकार, एकािधकारामक और अपािधकार म एककरण दिशत हो रहा ह। सम अथशा म राीय आय क मूल अवधारणा, उपभोग वतुएँ, पूँजीगत वतुएँ,अतमवतुएँमएककरणपहो रहा ह। राीय आय समुय म सकल राीय आय, िनवल राीय आय, सकल घरलू उपाद, िनवल घरलू उपाद इयािद

सयय म एककरण प हो रहा ह। इन

सब म राीय आय का वणन करना ज़री ह। मुा और बिकग सयय म एककरण

प हो रहा ह। सम माँग, उपादन का संतुलन व पूण रोज़गार

çàæßÙæâæçãUçˆØ·¤è जनवरी-माच 2023 57
सयय म पायता ह। उपादक का संतुलन सयय म अथ, शत, सीमांत संा, सीमांत लागत सयय म पयाता ह। पूित सयय म बाज़ार पूित, पूित क िनधारक, पूित अनुसूची, पूित व सयय म पयता ह। पूण ितयोिगता म िवशेषताएँ, बाज़ार संतुलन का िनधारण, भोग व पूित क िखसकाव सयय म पयाता ह। बाज़ार वप म एकािधकार, एकािधकारामक ितयोिगता एवं अपािधकार सयय
ह िक य अथशा व सम अथशा म अथ को प िकया गया ह। तुत सयय म अिधकता व कमी नह ह। अथयवथा, उपभोा संतुलन, माँग, माँग क कमत लोच, उपादन का यवहार, उपादन का संतुलन, पूित, पूित क कमत लोच, पूण ितयोिगता, बाज़ार वप सयय म अिधकता व कमी नह ह। सम अथशा म राीय आय अवधारणा, राीय आय समुय, मुा, बिकग, आय, अपकाल म उपादनसंतुलन,पूणरोज़गार,
क तुतीकरण से आय व रोज़गार सयय म एककरण प हो रहा ह। सरकारी बजट, सरकारी बजट म घाटा, भुगतान संतुलन, िवदेशी िविनमय पर क तुतीकरण ह। बजट अथयवथा तथा भुगतान संतुलन सयय

म एककरण प हो रहा ह। पाम म

सयय म आपस म एककरण ह।

यकतथासमअथशामएककरण

िवमानह।

(ख) एककरण क आधार पर सैांितक

व यावहारक म एककरण से प होता ह

उपभोा का अनिधमान व उपयोिगता सयय का संबंध गृहिवान, मनोिवान

िवषय का नवोिदत

िवषय होने क कारण वैािनक व यवथत

िक

सैांितक प म य अथशा म उपादन संभावना सीमा, अवसर लागत, सीमांत उपयोिगता ासमान सीमांत को प

िकया जाता ह। यावहारक प म इनसे सबधत सारणी, व, रखिच व जीवन म इनक ारा उपभोय वतु का उदाहरण पकरनाइयािदकायिदयाजाताह।माँग, पूित, लागत, संा से संबंिधत आँकड़, सारणी, रखािच व, सांयक का योग सबधी यावहारक काय िकया जाता ह। कहाँ कहाँ बजार क कौनसे वप (पूण ितयोिगता, एकािधकार, एकािधकारामक, अपािधकार) ह उनक सूची बनाना संबंधी यावहारककायिकयाजाताह।

सम अथशा म राीय आय परकलन क िविधय को िनकालना।

सांयक का योग, तुलना संबंधी यावहारक काय िकया जाता ह। मुा, बिकग, यय, आय संबंधी आँकड़ इका

करना, मुा क नीितयाँ कसी ह, ाचीन मुा

संबंधी काय िकया जाता ह। आय व यय क

आँकड़ इक करना, बक से रािश

िनकालना, जमा करवाना काय करना आिद

काय िकया जाता ह। बजट से संबंिधत

पारवारक बजट बनाना, दो देश क बीच

िवदेशी िविनमय संबंधी आँकड़ इक

करना, अंतर क कारण क सूची बनाना

इयािद यावहारक काय िकया जाता ह।

अतः सैातक व यावहारक म एककरण

िवमानह। (ग) य अथशा म अथयवथा

का संबंध भूगोल, समाजशा से ह।

अथयवथा क कीय समया, आिथकियाकलापकाआयोजनसयय का संबंध, समाजशा, इितहास, िवान से ह। बजट, लागत सयय का संबंध इितहास,गृहिवान,राजनीितशा,गिणतसे

वािणयशा, भूगोल से ह। अतः का 12 क सयय म आवयकतानुसार लगभग सभी िवषय क साथ एककरण िवमान ह एककरण होने से सयय यवथतढ़गसेतुतह। सम अथशा क सयय राीय आय अवधारणा और समुय का संबंध गिणत, भूगोल, सांयक, वािणयशा, गृहिवान, समाजशा से ह। मुा और बिकग सयय का संबंध गिणत, वािणय से ह। आय व रोज़गार सयय का संबंध भूगोल, गृहिवान से ह। सरकारी बजट सयय का संबंध राजनीितशा, गृहिवान,सांयक,गिणतसेह। शैिकिनिहताथअथशा िवषय क पाम क िवेषण से कछ गुण व दोष काश म आये ह। उ मायिमक तर पर अथशा िवषय क पाम क िवेषण से उभर यह प भावी ियावयन प हतु िशक व िशािथय, िवशेष, पाम िनमाी सिमितय क सदय, पाम आकपनकता तथा अय िवषय से जुड़ िशककिलएमहवपूणहोसकतेह।उ मायिमक तर पर अथशा पाम क िवेषण से ा िनकष क आधार पर तुत अययन क िननिलिखत िनिहताथ हो सकतेह(1) अथशा िवषय क पाम से ा िनकष का उपयोग यह बोड वतमान

पाम क रचना को यान म रखकर

कला संकाय क िवषय व मानिवक संकाय

किवषयमसययकोएककतकरतेए

पाम का िनमाण करना चािहए।

अथशा िवषय क पाम क अतगत

सैातक व यावहारक प को अलगअलगतुतकरनेकथानपरपामक अतगत एककत प म तुत करना चािहए।

(3) पाम िशक को अययन हतु िदशा िनदश दान करता ह। सयय का पूण तुतीकरण उिचत े, एककरण को िशककोिवषयकोभावीकरनेहतुआधार

दान करता ह। अतः पाम का िनमाण पूणउेिखतवपपसेकरनाचािहए।

000

सदभ- कौल, लोकश (1998), शैिक अनुसंधान क काय णाली का िवकास, पलिशंग हाऊस, ाथिमक िलिखत, जंगपुरा, नई िदी, किपल, एच. क. (2007),अनुसंधानिविधया,ँ एच.पी.भागव बुक हाउस, आगरा, कमार, राजीव. (2002), अथशा िशण, सािहय काशन, आगरा, पालीवाल, मनीषा (2015), उ मायिमक तर पर भूगोल अनुदेशन : समालोचनामक अययन, शोध बध, िशा संकाय, वनथली, राज, सोहन व महश ितवारी (2015), िशा क उेय ान एवं पाचया, अनु काशन जयपुर, िसंह, योगेश कमार (2015), अथशा िशण, ए. पी. एच. पलिशंग कॉरपरशन, नई िदी, ससेना, िनमला. (2014), अथशा िशण, राजथान िहदी थ अकादमी, जयपुर, शमा, वदना व बी. एस. रायजादा (2011), िशा म अनुसंधान क आवयक तव, राजथान िहदी थ अकादमी,जयपुर।

58 çàæßÙæâæçãUçˆØ·¤è
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से ह। माँग व पूित का संबंध वािणयशा, भूगोल, मनोिवान, अंकशा से ह। बाज़ार
संबंध
पाम क ित ितपु ा करने क िलए िकया जा सकता ह। पाम क ित ा ए सकारामक पहलु का योग िविशताकोजारीरखनेकिलएकरतेह। वहयूनताएँएवंसुझावकायोगयकरना चािहए।यहसंकतदेतेह।बोडइनसंकतको योग पाम म संशोधन करने, नवीनीकरण करने, िवशेष को िदशा-िनदश दानकरनेऔरिवशेषकाचयनकरनेहतु करसकताह। (2) पाम िनमाण सिमित क सदय कउमायिमकतरकछाकआयुवग कोयानमंररखकरउनकपरपवृिक अनुसार व अथशा
ह।
का

कहा जा सकता ह। बुंदेलखंड-संकित मंिदर-संकित का बोलबाला ह। यहाँ क अनेक मंिदर क दीवार और छत पर रासलीला क िविभ य न कवल आकषक ह, बक िदय वातावरण बनाने म समथ, सफल और सहायक भी ह। ओरछा क मंिदर क िभि िच सुदर औरभोलीह,इसिलएवेशंसनीयह।

शोधसमयातुत िवषय पर आधारत शोध ओरछा क िभि िच क िचामक अययन पर कछ शोधअवयएहगे।परतुओरछाकिभििचकअययनकोएकसाथतुतकरनेका कोई यास नह िकया गया ह। ओरछा क कला म

çàæßÙæâæçãUçˆØ·¤è जनवरी-माच 2023 59 परचय–शोध िवषय ''ओरछा क िभि िच का िचामक अययन'' पर कित ह, िजस पर चचा करने क िलए मुझे इससे जुड़ कई पहलु को समेटना ह। िवशेष प से ओरछा क ऐितहािसक,सांकितक,भौगोिलकएवंधािमकपृभूिम,कलाकािवकास,भारतीयकलाम इसका वतं अतव आिद। उपरो िववेचना करने क िलए इस तय को समझना आवयकहोगािकओरछाबुदेलखडकाअिभअंगरहाह।इससेिववेचनाकरनेक िलए सवथम बुदेलखड क ऐितहािसक वप को समझना होगा, िफर ओरछा क सांकितक समृि तथा कला क िवकास और उसक वप का यवथत ढग से उेख करनाहोगा। िभि कला सबसे ाचीन िचकला ह। ागैितहािसक काल क ऐितहािसक अिभलेख म सवथम िमी क बतन का िनमाण आ, लेिकन कछ समय बाद लोग िमी का उपयोग दीवारपरिचबनानेकिलएकरनेलगे।िभििचकलाम,दीवारपरयािमतीयआकितय, कलामकपांकन,पारपरकिडजाइन, सहज बनावट और अनुकरणीयसरलआकितयम मु कपना, मु आवेग और रिखक ऊजा िनिहत होती ह, जो अितीय ताजगी और य सदयपैदाकरतीह। शद "िभििच" का उपयोग कला क इितहास म िकसी सतह पर खरच या पिटग करक िलखनेयािडजाइनकरनेकारािनिमतकलाककायकोसंदिभतकरनेकिलएिकयाजाता ह। िजसम वणक क एक परत को खरच कर उसक नीचे दूसरी परत कट करना शािमल ह। इस तकनीक का उपयोग मुय प से कहार ारा िकया जाता था, जो अपने माल को चमकाते थे और िफर उसम एक िडज़ाइन को खंगालते थे। ाचीन समय म, दीवार पर एक नुकली वतु से िभि िच बनाए जाते थे, हालाँिक कभी-कभी चाक या कोयले का उपयोग िकया जाता था। िभििच सरल िलिखत शद से लेकर िवतृत दीवार िच तक ह, और वे ाचीनकालसेअतवमह,उदाहरणकिलएाचीनिम,ाचीनीसऔररोमनसााय कसमयकउदाहरणह।यहशदीक-ाफनसेिलयागयाह-िजसकाअथह"िलखना"। ओरछा क मंिदर क िनमाण कला को कवल अतीत क पुनरावृि नह माना जा सकता, यह गितशील और जीवंत कला का आदश तुत करती ह। ओरछा को मंिदर का शहर ही
रखाएँ, समायोजन, वण और तकनीक का महव।अिधकांशशोधकताइनिविभघटकसेअनिभह।ओरछाकिचिविभपक आधार पर उकण ह। ये तवीर सामाय जनजीवन से जुड़ी ई लगती ह। इसम मनुय क घटनाऔरथितयकोअलग-अलगपमअंिकतिकयागयाह।ओरछाकिचकारने भी समय और परथित क अनुसार वातावरण को कम से कम पंय म अिधक से अिधक भावकोयकरनेकायासिकयाह।यहाँकिचकारनेाचीनभारतीयसािहयमविणत कलाकछहअंगकोबड़ीबसूरतीसेसमेटाह। साधारण िच को भी कलाकार ने बत ही सुदर तरीक से आयामक प म तुत शोध आलेख (शोध आलेख) ओरछा क िभि िच का िचामक
शोध लेखक : भ अवाल शोध िनदशक डॉ.रखा भटनागर भ अवाल शोधाथ ी कणाक िविवालय, छतरपुर
अययन

िकया ह। मेरा यह यास रहगा िक ओरछा

और मथुरा क िच म,

जो जातक-कथा

कपमभगवाकिविभजीवनकसाथ-

साथ आम लोग क जीवन पर आधारत

तुत िकए गए ह, उह िवतार से बताया

जाएगा।

ओरछा क िच म ईर को अनेक

जम और अनेक प म िचित िकया गया

ह। ईर क ये प न कवल मानव प म ह

बक िविभ प म परवितत ए ह। इन

प क पीछ या आयामकता थी और

कलाकारकसोचऔरकपनायाथी।यह

िबंदु भी िवचारणीय ह। म अपने शोध क

मायम से इन तय पर चचा करने क

कोिशशकगी।

शोधउेय-

तुत अययन क िलये िनन उेय

का िनधारण िकया गया ह, जो इस कार से

ह।

1-ओरछाकसांकितक,धािमकवप

किववेचनाकरना।

2-िभि िच परपरा क साथ ही ओरछा

क िभि िच क भाव प और कला प

कसमपसेिववेचनाकरना।

3-ओरछा क िभि िच क िचांकन

िवशेषता क आधार पर िवतृत अययन

करना।

4-ओरछा क मंिदर क िभि िच क आयामक, कलामक और सौदयामक

िविशताकाअययनकरना।

परकपना-

तुत अययन ऐितहािसक और दाशिनक वृि का होने क कारण

परकपना क आवयकता नह ह, पंरतु शोध क मौिलकता और ांसिगकता को

यान म रखते ये िनन परकपना का

िनमाणिकयागयाह।

1-ओरछा क मंिदर क िभििच क आयामक,कलामकऔरसौदयअनुपम बेजोड़ह।

2-ओरछा क िभि िच म भाव और कला

ओरछा क मंिदर क िभि िच, बाक े किभििचसेपृथकह।

शोधकाकाये-

शोध का काय े ओरछा क िविभ थान क िभििच पर आधारत ह। ओरछा क िभििच भारतीय कला का िव म ितिनिधव करते ह। ओरछा क कला मंडप म वातु, मूित एवं िच तीन का बत ही सुदर िचण ह। िचाकन क िलए कलाकार ने िजस कार क यवथा िभििच को बनाते समय क ह वह िनत आज भी कपनीय ह। ओरछा क मंिदर म छत पर बारीक

िकया ह। भिवय म भी शोध क िलए ओरछा म अनेक संभावनाएँह। शोधिविधउेय तथा परकपना

क कारण परकपना क आवयकता नह ह, पंरतु शोधक मौिलकता औरांसिगकता को यान म रखते ये तुत अययन को ऐितहािसकऔरदाशिनकशोधिविधसेपूरा िकयागया। ऐितहािसकऔरदाशिनक

क आकषण को बचाया जा सकता ह, जोिक िनसंदेह पयटक क भी आकषण का क हगे। ओरछा, ऐितहािसक, साकितक और

धािमक प से समृ ह। यहाँ क िभि िच को भी संरित कर उनको पयटन क प म िवकिसत िकया जा रहा ह। इसी वजह से

तुतअययनकामहवह।

शोधकांसिगकता-

ओरछा राम राजा मंिदर क नाम से िस ह। यह शहर बेतवा नदी क तट पर थत ह।

बेतवा नदी क दोन िकनार क पुरातावक सवण से पता चलता ह िक यह े ागैितहािसक काल से लगातार फलताफलता और फलता-फलता रहा ह। 9व शतादी क बाद बुंदेलखंड पर चंदेल शासक काशासनथा,िजनकअवशेषमंिदर,ाचीन महव

âæçãUçˆØ·¤è जनवरी-माच 2023

60 çàæßÙæ
पकोअिभयकरनेक
ह। 3-िचांकन िवशेषता क आधार पर
मता
अंकन आज भी वातु शा क ाचीनिवानकामाणह। ओरछा क मंडप म जो मूितयाँ उकरी गई ह वह वातव म अुत कला का नमूना ह। ओरछा क येक मंडप म मूित एवं िच का बत ही सुदर समायोजन
वह िवहार या चैय ह
क अनुसार मूित का िनमाण िकया
परिचकअयिधकृंखलाह।वतमानम अययन क से िचकार ने तभ, छत व दीवार पर िचाकन
शोध िविध क िबना असंभव ह। तुत अययन ऐितहािसक और दाशिनक वृि
वृिकाहोने क कारण अययन क िलये ाथिमक ऑकड़ या ाथिमक तय क आवयकता नह ह। अययन म ओरछा क मंिदर क ऐितहािसक जानकारी, थापय कला, िभि िच क िनमाण क पंरपरा, रग क उपयोग क परपरा, िवषयवतु से संबंिधत कािशत और अकािशत शोध बंध, शोध प क साथ ही ऐितहािसक तय को ितीयक ऑकड़ क प म संकिलत कर उनक िववेचनाकगई। इस कार अययन क दौरान ा होने वाले नये तय क आधार पर शोध क उेयकोपूरािकयाजाएगा। शोधकामहवाचीन काल म िभि िच का िवशेष महवहोताथा।मंिदरवमहलकोआकषक बनाने क िलए िभि िच क महवपूण भूिमका रहती थी। जब हम िकसी मंिदर या पौरािणक थल क दशन को जाते ह तो मंिदर क दीवार, गुंबद व अंदनी िहस म बने देवी देवता क िभि िच देखने क बाद उनसे संबंिधत पूरी घटना मन म अंिकत हो जातीह। िवडबना ह िक पौरािणक मंिदर क नवीनीकरण क नाम पर इन िभि िच को न िकया जा रहा ह। जो बचे ह वह भी न होने क कगार पर ह। इन िभि िच को बचाकर मंिदर और पुरातन थल
ह। मंडप म चाह
उसी
गया ह। ओरछा क थान
क पूित
का होने
और क प म देखे जा सकते ह। ओरछा क पास मोहनगढ़ और गढ़कडार िकलकआसपासबावड़ीआिद। ताप ने 1531 ई. म बुंदेल क राजधानी गढ़कडार से ओरछा थानांतरत कर दी। ओरछा क बुंदेला शासक से पहले भी यहाँ बसावट क अवशेष थे। बुंदेला

शासक ने ही इनका पुनिनमाण कराया था।

चारदीवारीऔरवेशारमुयथे।ताप

और भारती चं ने बेतवा नदी क तट पर चार

दीवार क भीतर ओरछा िकले का िनमाण

िकया। ओरछा क बुंदेला शासक म

महवपूण ह भारतीय चं, मधुकर शाह, राम

शाह,वीरिसंहबुंदेलाआिद।इनमसेबतसे

िनमाण काय वीर िसंह बुंदेला ने ओरछा म

कराए थे। बुंदेली कलम क िकले, गिढ़या, महल, मंिदर, बावड़ी आिद और िभि िच यहाँकिचकाितिनिधवकरतेह।बादम बुंदेला शासक ने िटहरी अथा टीकमगढ़ को अपनी राजधानी बनाया। टीकमगढ़, मोहनगढ़, िलधौरा, िदगौड़ा, एटन, खरगापुर, बदेवगढ़ आिद सिहत आसपास क े म हरटज भवन बने ह। ओरछा

धािमक प से िस ह, लेिकन ऐितहािसक

और सांकितक िवरासत क आधार पर

ओरछा को िसि नह िमल पाई ह। इह

कारणसेवतमानशोधासंिगकह।

शोधकपृभूिम-

भारत क कला भारतीय संकित का

वाहन ह। कला संकित म िनिहत

आयामक भावना क साथ चलती ह। कला

न कवल यगत भावना को य

करतीहबकसमाजकदैिनकगितिविधय

से भािवत य क पूर वातावरण को एक

नए प क साथ हमार सामने लाती ह।

सांकितक, ाकितक प से

समृ े ह। यहाँ क पिव तीथ और

रमणीय थल आज भी इसक वैभव क

तवीर पेश करते ह। िवंय पवत ंखला ागैितहािसक काल से ही मानव क िलए

उपयु आवास रही ह। इस े म बसे

ओरछा को धािमक प से राम राजा सरकार

औरऐितहािसकपसेमहलकेकप

मजानाजाताह।ओरछाकरामराजासरकार

क मंिदर क साथ-साथ महल म ाचीन एवं

उकिभििचाएह,जोकलामक

से महवपूण तीत होते ह। इसक िभि

िच का सवण करने पर ात होता ह िक

इनम ाचीन भारतीय कला क तव को

ह। तुत शोध अययन क मायम से उपयु मंिदर क िभि िच म िनिहत लोक संकित क भाव, परपरा,

ऐितहािसक

परेय को विणत करने का यास िकया गयाह।

शोधकसाितकपरखातुतशोधअययनिचकलाहोसकता

ह िजसे लिलत कला कहा जाता ह, परतु अययन क शोध समया का िवतार से अययन करने पर ात होता ह िक वतमान

अययन िचकला क साथ-साथ इितहास, धमशा, समाजशा और िचकारी िवषयसेभीसंबंिधतह।

अययन क से ओरछा क िभि िच का अययन न कवल िचकला क से िकया गया ह, बक इसक ऐितहािसक महव, काल गणना, धािमक महव क साथ-साथ सामािजक परपरा कसेभीिकयागयाह।इसीकारणशोध क मौिलकता, तािककता

ऐितहािसक

महव को यान म रखते ए अययन क वैािनक परखा तैयार क गई ह। तुत अययन म पूव अययन, शोध प क काशन तथा समय-समय पर कािशत पुतक क आधार पर शोध क सैातक परखा

अतव को महवपूण मानते ह। यिक इसने अपने े म बुंदेलखंड क सांकितक और ऐितहािसक परपरा को मुख थान िदया ह। इसिलए भारतीय िचकला क इितहास म बुंदेलखंड िचकला शैली को मुख थान देकर इसक योगदान औरमहवकोभुलायानहजासकता।

क अुत उदाहरण ह। कई िचकार टीकमगढ़ और बाणगढ़ म रहते ए लंबे समय तक छतरपुरी, टीकमगढ़ी

000

संदभ-

1. राधा कमल मुखज - भारतीय िचकला का िवकास, 2. िवय देश ओरछा का अतीत - सूचना व सार िवभागउ.., 3. नाथ डॉ. राम - मयकालीन भारतीय कलाएँ एवं उनका िवकास, 4. िम राम चरण हयारय - बुदेलखड क संकित और सािहय, 5. िदय अबका साद - ओरछा क िचकारी, 6. गैर ठाकर लमण िसंह - ओरछा दशन का इितहास, 7. चतुवदीरामिम-ओरछाकाअतीत

çàæßÙæâæçãUçˆØ·¤è जनवरी-माच 2023 61
बुंदेलखंड
समािव करने का सफल यास िकया गया
एवं
उपसंहार
िचित थ म कलाकार
को महव देकर उह
पचाया ह। अिहरावण िचावली, अयम िच, गीतगोिवंद, भागवतपुराण, रागमाला आिद क िच इस शैली
और कालपी क बादामी कागज पर िच बनाते रह ह। देवगढ़, मदनपुर, छतरपुर और इसक आसपास क थान म वातुकला और मूितकला क लगभग 192 अुत उदाहरण िमलते ह। वे परपरा को िवकिसत करने और आगेबढ़ानेमबतमददगाररहह। िजस कार अजता से राजपूत शैली का िवकास आ, उसी कार बुदेली शैली का िवकास राजपूत शैली से आ, परतु मुगल कलम का भाव दोन पर पड़ा ह, तथािप बुदेली कलम क अपनी कछ िवशेषताएँ ह, िजसक कारण इसे राजपूत कलम से िभ मानी जाती ह। बुंदेली कलम भारतीय िचकलाशैलीकोएकिवशेषपशदेतेह। भारतीय कला क इितहास म सभी कलाकार क िलए इसका िवशेष थान माना जाता ह। एक मुख िवधा क प म इसक योगदान को भुलाया नह जा सकता। इसिलए इसशैलीकाबतमहवह।लेिकनअभीभी इस शैली क कछ सामी िस और मुख लोग क िनजी संह म ह, िजसे वे अपनी संपि समझकर शोधकता और पारखी लोग को पूर उसाह क साथ नह िदखाते, लेिकन यह उमीद क जाती ह िक िजस िदन यह सामी िनकलेगी, उस िदन बुंदेलखंड शैलीकऔरतवसामनेआएँगेऔरइसिलए यहाँ क लोग इस उमीद पर कायम ह िक भिवय म भी बुंदेलखंड का गौरव इसी तरह रौशनी क ओर बढ़ता रहगा, िजससे यह भारत क मुख शैिलय म िगने जाते ह और िजनकािनणयभिवयमहीतयहोगा। आज भी कलाकार िदन-ितिदन क खोज और कािशत सामी क मायम से इसक
तैयारकगईह।
-
ने लोक तव
जनता क िनकट

भेदभाव, सांदाियक समवयककाअभाव,मानवीयमूयकाास,आचरणकअशुता,पूँजीवादीयवथाका िशकार होना, पयावरण संकट, अिहसा आिद अनेक ऐसे तव िजनका सामना वतमान मानव कररहाह।

म बत सी ग़लत आदत को सीख जाता ह। उन युवा क िलए संत दरयाव क वाणी का उपदेश भावीहोसकताह।संतदरयावकअनुसारलोहापारसकासंगकरकसोनाबनजाताहउसी

62 çàæßÙæâæçãUçˆØ·¤è जनवरी-माच 2023 वतमानउरआधुिनकदौरममानवजीवनयंवतबनकररहगयाहनउसमसंवेदनाहन हीनैितकता।एकिनतढरमढलाजीवनऔरउससेउपिनराशामानवजीवनकमुख समया म से एक ह। साथ ही समाज क कपता, सामािजक
सािहयऔरमानवकसंबंधपरिवचारकरतोहमदेखतेहिकसािहयमानवका पथदशकबनकरउभरताह।संतकायभीमानवताकापथदशकह।इसीममरामेही संदाय तथा संत दरयाव क वाणी क वतमान ासंिगकता भी िनिववाद बनी ई ह। संत दरयावकवाणीकाभावपमराजथानकनागौर,पाली,बीकानेर,जोधपुरआिदिजल मिननतथामयमवगयिकसानपरवारपरयापकपसेदेखाजासकताह।संतदरयाव ारा ससंगित, शु आचरण, सांदाियक समवय, मोह माया, दुयसन याग, संघष ेरणा, सय-ेम, नारी, वतंता, आमानुसंधान आिद पर िदए क उपदेश वतमान ासंिगकता क सेमहवपूणहजोलोगकोसमागपरचलनेकिशादेतेह। ससंगित- संत दरयाव क वाणी म ससंगित पर यापक िवचार िमलते ह। ससंगित का यह उपदेश आज क युवा क िलए बत ही महवपूण ह यिक आज का युवा कसंगत म पड़कर अपना जीवन अिववेकपूण ही न कर दे रहा ह। पााय संकित क भाव
कार
को हण करना चािहए तािक उसका जीवन भी उत बन सक, उसेबुरीसंगतवालेयकासाथनहकरनाचािहएलोहपलटकचनभया,करपारसकोसंग।1 इसी कार संत दरयाव िमता पर भी िलखते हिक लोहा पारस का संग करक उसी क तरहबनजाताहऔरअगरवहउसीकतरहअछानहबनपाताहतोयकोवहिमता झूठी समझनी चािहए। साथ ही दरयाव िलखते हिक कपटी य का संग करने से अछा य भी कपटी हो जाता ह और साध यानी अछ य का संग करने से बुरा य भी अछा बन जाता ह। आज क दौर म ससंगित का यह िवचार ासंिगक तथा उपयोगी ह िवशेष पसेउसपरथतमजबआजकायुवासुसंगितकअपेाकसंगतमजदीपड़जाताहलोहा काला भीतर किठन, पारस परसे सोय। / पारस परसा जािनये अंग-अंग पलट नह तो शोध आलेख (शोध आलेख) संत दरयाव क वाणी : वतमान ासंिगकता शोध लेखक : मनीष सोलंक मनीष सोलंक शोधाथ, िहदी सािहय िवभाग महामा गांधी अंतरराीय िहदी िविवालय, वधा (महारा), 442001
य को भी सुसंगत

हझूठासंग।।2

दरया संगत साध क, कल िबष नासै

धोय। / कपटी का संगत िकये, आप कपटी

होय।।3

अतः आज का युवा वग ससंगित म रहकर जीवन क उित कर सकता ह चाह

वहभौितकहोयाआयामक।

आचरण क शुता- वतमान समय म य का आचरणसवािधक िनन तर पर

माना जाता ह। धोखाधड़ी, झूठ, छल-कपट,

आिद सांसारक पंच य क आचरण को

िनन िकए ए ह। संत दरयाव शु आचरण

का उपदेश देकर य को यथाथपरक

जीवन जीने क ेरणा देते ह। संत दरयाव क

अनुसार य को अंतजग तथा बिहजग

से एक होना चािहए उसम कोई भेद नह होना चािहए,यथा:-

बाहर से उल दसा, भीतर मैला अंग।

तासेतीकौवाभला,तनमनएकिहरग।।4

इससे आगे संत दरयाव मनुय जीवन क

औिचय पर उपदेश देते ए कहते हिक

चौरासी यौिनय क उपरांत मनुय जीवन

िमलता ह उसम भी य मनुयता का

आचरण अथा शु आचरण नह रखता ह

तो यह मनुय जीवन ही उसक िलए िनरथक

ह। मनुयता क महव और आचरण शुता

का यह उपदेश आधुिनककरण क अंध दौड़

म ओझल होते मनुय क अतव क िलए

महवपूणह,यथा-

लखचौरासीभुगतकर,मानुषदेहपाई।/ रामनामयायानह,तोचौरासीआई।।5

आमसंतोष-मोहमाया- आज का मनुय अयिधक महवाकांी ह, जो एक-दूसर क देखा-देखीमबड़-बड़वनदेखताह,इससे वहवाथएवंमोहवशकजालमफसकररह जाता ह, जब ये वन पूण नह होते हऔर यकोअसफलतािमलतीहतोवहइनक पूितहतु अपराधक ओर बढ़ताह। इससंदभ

संत दरयाव क वाणी वतमान समय म ासंिगकह-

सबहीवेदपुराण।। 9 दरया दस दरवाज म, ता िबच पढ़त िनमाज। / ररो ममो इक रटत ह, और सकल बेकाज।

नारी आवे ीत कर, सतगुर परसै आन। / दरया िहत उपदेस दे, माय बिहन धी जान।।

13

वतमान भोगवादी पााय संकित क भाव से नारी क ित कामजिनत कोण सव िवमान ह। आधुिनकता ने नारी को

जहाँएकओरवतंता,िशातथाअिधकार

जागृित द क ह वह उसका दैिहक शोषण

भीवतमानममनुयतापरमुखकलंकवृि ह। िजस भारत भूिम पर नारी क समान तथा िता क िलए यु तक ए ह वहाँ

çàæßÙæâæçãUçˆØ·¤è जनवरी-माच 2023 63
भेड़ गित संसार क, हार िगनै न हार। / देखादेिखपरबतचढ़,देखादेखीखाड़।। 6 दरयागैलाजगको,कसेदीजैसीख।/ सौकौसाँचालनकर,चालनजानैबीख।।7 इसी कार वतमान मनुय क धनलोलुपताऔरमोहपरभीसंतदरयावका उपदेश ासंिगक ह, कोयल और कौए का उदाहरण देकर संत दरयाव मोह क थित पकरतेहिकयजोकछभीमोहवश अपनेपरजनकिलएकरताहवहवयंउसी क िलए अनुपयोगी होता ह यह आज क दौर काकटयथाथहकोयलआलेमूढ़क,धरआपणांअंड।/ िनसिदनराखैहतम,ितनसेपड़नखंड।।8 सांदाियक समवय- रामेही संदाय रण तथा संत दरयाव क याित सांदाियक समवय को लेकर िवशेष प से रही ह। संत दरयाव वयं मुलम परवार म जम लेते ह लेिकन इनक संकार, िशा-दीा पूण प से िहदू रीितरवाज से ई ह। आज भी इनक अनुयायी िहदू धम से संबंिधत ही ह। आज जब धािमक असिहणुता एवं करता चरम पर ह, जहाँ पर धम एवं जाितगत वाथ से ऊपर उठकर युवा म समत मानव समुदायकितसमताकभावनाकािवकास समय क माँग ह, वहाँ संत दरयाव क राम शद क याया सांदाियक समवय क महवपूण भूिमका िनभाती ह। संत
राम शद म र से
िहदू-मुलम
आज क समय म बत ही ासंिगककहाजासकताहररा तौ रब राम ह, म मा मोहमद जान। / दोयहरफममाइना,
10 सवदुयसनयाग-संतदरयावकवाणी तथा रामेही संदाय म मपान, तंबाक, ूमपान आिद सभी कार क नश क ित कड़ी िनंदा िमलती ह। कम से कम वतमान समय म धरातल पर रामेही संदाय क अनुयाियय पर तो संत दरयाव क वाणी का भाव प देखा जा सकता ह, रामेही य सदा नश से दूर ही रहता ह और वह अपनेघरमनशाकरनेवालेयकोवेश भी नह करने देता ह। आज का युवा नशे को अपने जीवन का अंग वीकार कर चुका ह जबिक उसक परणाम से वह वयं िविदत ह िक यह न कवल शारीरक तौर पर अिपतु मानिसक तथा सामािजक तौर पर भी हय ह ऐसी थित म संत दरयाव का नशा मु पर उपदेशासंिगकह,यथादरया अमल ह आसुरी िपये होय सैतान। / राम रसायन जो िपय,े सदा छाक गलतान।। 11 नारी संबंधी िवचार:- जहाँ ानायी काय परपरा क संत क काय म नाथपंथी सािहय क भाव से नारी को माया, महाठगीनी आिद कहकर गृहथ तथा नारी साहचय का िवरोध िमलता ह तथा नारी को मु म बाधक माना गया ह, वह रामेही संदाय तथा संत दरयाव क वाणी म नारी िवषयक मत संत काय क साधारण धारणा से िवपरीत िमलता ह। संत दरयाव ने न िसफ नारी को जग जननी कहा अिपतु नारी क महव को भूलने वाले संत तो मूख तक कहा ह,यथानारीजननीजगक,पालपोसदेपोष।/ मूरखरामिबसारकर,तािहलगावैदोष।।12 साथ ही संत दरयाव नारी क िलए भ मागखोलनेकभीपधरह,यथा-
दरयाव
राम तथा म से मोहमद क याया कर
समवय कायन करते हजो
आज उसी नारी क अमता ितिदन तार-तार हो रही ह। आज का युवा संत दरयाव क वाणी कोअपनेजीवनमउतारकरउसीकअनुप आचरणकरनारीकोसमानकसेदेख तो नारी पर होने वाल अयाचार एवं अपराध नगयहगे।

संघषकेरणा-संतदरयावकवाणीम

संघष क ेरणा संबंिधत बत सी उयाँ

िमलतीहजोआजकयुवाकोहरकायक

ित िनापूवक यन करने क ेरणा देती

ह। वतमान समय म जब युवा अिभेरक

वा (मोिटवेशन पीकर) को सुनकर अपने

लय क ित उमुख होता ह वह काय संत

दरयाव क वाणी पूव से ही कर रही ह। संत

दरयाव चटी का उदाहरण देकर कहते हिक

एक चटी को िकतनी ही बाधा आ जाए

लेिकन वह सदैव अपने लय तक पचने क

िलए यनशील रहती ह, वह हार नह मानती

ह, उसी कार आज क युवा को भी जब

तक लय क ा न हो तब तक संघषरत

रहनाचािहए,यथा-

साँख जोग पपील गित, िबघन पड़ ब

आय।/बावललागैिगरपड़,मंिज़लनपचे

जाय।।14

इसी कार संत दरयाव संघषरत य

क िवशेषता बताते ह िक संघषरत य

कभीहारनहमानताहसूर बीर साँची दसा, कब न माने हार। /

अणीिमलैआगेधसै,सनमुखझेलैसार।।15

अतःकहाजासकताहिकआजकयुवा

पीढ़ी क िलए संघष ेरणा का यह संत

दरयाव का उपदेश ासंिगक ही ह। वतंता

का समथन- संत दरयाव अपनी वाणी म

मनुय क वतंता तथा वयं अपने माग पर

चलने का उपदेश देते हजो वतमान म

ासंिगक ह। आज का समाज एक दूसर क

नकल कर झूठी भोग िवलािसता तथा िदखावे

म िवास करता ह, ऐसे समय म जब संत

दरयाव य वयं क बनाएँ माग पर चलने

का उपदेश देते ह तो बत ही ासंिगक कहा

जाएगा, यथा- मछी पंछी साध का, दरया

मारगनािह।

अपनी इछा से चल, कम धनी क मािह।। 16

सय वचन का उपदेश:- नैितक धरातल

धारा क संत किव यवहारकता पर बल देते ए

को महवपूण मानते ह। संत दरयाव अपनी

रात क समान बताया ह, जो िक वतमान युवा क िलए ेरणादायक कहा जा सकता ह- सीखत ानी ान गम, कर क बात। / दरया बाहर चाँदना,भीतरकालीरात।।18 अतः वतमान युवा श से अपेित ह िक ान का उपयोग यवहारक धरातल पर कर जागक सश रा िनमाण म अपनी महवपूणभूिमकाकािनवहनकर।

िस होती ह। 000

संदभ-

पर

ह, यथा- काम ोध हया पर नास। / सुपना

माहनकिनवास।।19

वतमान म देश क अिधकतर जनसंया

युवा श ह, जो देश का भिवय और कणधार ह। युवा श अपनी ऊजा का सकारामक योग कर देश को िव पटल पर उित क िशखर पर पचा सकती ह। राजनैितक,आिथक,िशाएवंसमाजसंबंधी समया का समाधान

1. दरया साहब (मारवाड़ वाल)े बानी और जीवन चरत, वेलवेिडयर छापाखाना, इलाहाबाद, तृतीय संकरण, 1922, सुिमरन काअंग,पृ8,31,2.वह,पारसकाअंग, पृ 33, 3, 3. वह, िमित अंग, पृ 41, 48,4.वह,हसउदासकाअंग,पृ24,8, 5. वह, सुिमरन का अंग, पृ 10, 37, 6. वह,उपदेशकाअंग,पृ31,11,7.वह, उपदेशकाअंग,पृ30,7,8.वह,सतगुर का अंग, पृ 4, 36, 9. वह, िमित अंग, पृ 43, 64, 10. वह, िमित अंग, पृ 40, 35, 11. वह, िमित अंग, पृ 43, 61, 12. वह, िमित अंग, पृ 43, 63, 13. वह, िमित अंग, पृ 43, 62, 14. वह, भेष का अंग, पृ 36, 27, 15. वह, सूर का अंग, पृ 14, 25, 16. वह, उपदेश का अंग, पृ 32, 28, 17. वह, सूर का अंग, पृ 14, 16, 18. वह, साध का अंग, पृ 26, 9, 19. वह, सुपने का अंग, पृ 27,12

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64 çàæßÙæ
े जीवन क िनमाण हतु सय क भूिमका महवपूण रहती ह। आज क समय म झूठ बोलना िकसी भी य क िलए एक सामाय बात ह और य उसे जीवन का अंगवीकारकरचुकाह।ऐसेमसंतदरयाव कायहउपदेशकयकोसयिनहोना चािहए, आज क युवा क िलए ेरणाोत हीकहाजासकताह,यथा-साधसूरकाएक अंग, मना न भावै झूठ। / साध न छाँड़ राम को,रनमिफरनपूठ।।17 यवहारकता पर बल- वतमान िशा यवथा कवल पुतकय ान क कारण यवहारक धरातल पर िनन उपयोगी रह गई ह। ानायी काय
वाणी म मा पुतकय ान को िमया कहकर उसे िनन माना ह तथा उसे बाहर से ऊजला तथा भीतर से काली
संयम- आम संयम पर उपदेश भारतीय परपरा म पूव से चले आ रह ह लेिकन हर संत-पंथ म उसे अपने ढग से अिभय िकया ह। संत दरयाव क वाणी म भी संयम पर वतमान ासंिगकता यु उपदेश िमलते
आमानुभूित
कर युवा राोथान म सिय भागीदारी सुिनत कर सकता ह, आवयकता ह कवल उस युवा श को सहीिदशादकरनेक,िजसमसमतसंत सािहय तथा संत दरयाव क वाणी आदश सहायक िस हो सकती ह। संत दरयाव क िशा को जीवन म उताकर य अपने जीवन चर को उवल बना सकता ह। वामी िववेकानंद का भी मानना ह िक य का उवल यव चर से होता ह, कपड़ से नह। िजस रा का चर सय, संयम, िशल जैसे सुण से अिभिहत हगा वहराअवयहीिवगुबनेगा।नारीक ित समान भाव, आपसी समवय आिद भाव सामािजक उथान क सोपान बनगे। युवा क ानामक श मानव कयाण क पोषक बनेगी। यह बदलाव युवा वग क सोच म बदलाव से ही संभव ह। पााय सयता क िनरतर अंधानुकरण ने भारतीय संकित क मूल मानक क अतव को संकट म डाल िदया ह। समाज युवा को आगे बढ़ने क ेरणा तो देता ह लेिकन भारतीय मूय क अनुप सही िदशा िनदशन नहहोपारहाह।संतकायतथासंतदरयाव क वाणी इसी िदशा म एक महवपूण ेरणाोत ह जो िक जीवन म सही-ग़लत, अछ-बुर क पहचान म सहायक

राम क चर का िवेषण िकया ह। भारतीयता क मूल म उहने राम क 'चर' को रखा। राम पर जब उहने िनबंध िलखा तब राम िववाद और िवचार दोन क ह किबंदु क प म िवराजमान थे। राम क चरसेवेबसमोिहतथे,यहउनकिनबंधकोपढ़नेसेपताचलताह।अपनीलािलयमयी

çàæßÙæâæçãUçˆØ·¤è जनवरी-माच 2023 65 भूिमका : कबेरनाथ राय िहदी सािहय क िनबंध िवधा क एक मज़बूत तभ क प म िदखाई देते ह। िजहने अपनी लेखन कला से इस िवधा को मा समृ ह नह िकया बक उसम कई नए योग भी िकये। उहने संकित, सयता, कित से लेकर देश-िवदेश क सािहय पर िलखा। उहने ऐितहािसक, दाशिनक आिद कई य से
बौिकता
उहनेरामपरिलखेगएिनबंधकोऔरभीख़ासबनािदयाह।इसलेखमउनक चुिनंदा िनबंध म विणत राम का वणन ह। उनक ारा राम को आधार बनाकर िलखे गए िनबंध संहह-'महाकिवकतजनी','ेताकावृहसाम'और'रामायणमहातीथम'।कईऔरसंह मभीरामकिवषयमिछट-पुटवणनिमलताह।यथा-(गधमादन-राघवःकणोरसः)। बीजशद:कबेरनाथराय,राम,भारतीयसंकित,िनवासन,कणा शोधआलेख: भारतीय समाज म 'रामकथा' को सवािधक यापक और संकप-संवेग िमथक म िगना जाता ह। कबेरनाथ राय िलखते ह िक यह रामकथा – "कह-न-कह िकसी-न-िकसी प म शोध आलेख (शोध आलेख) कबेरनाथ राय क िनबंध म विणत राम शोध लेखक : सुजाता कमारी सुजाता कमारी पीएचडी शोधाथ िहदी िवभाग, तिमलनाड कीय िविवालय, ितवार, 610005
से

वातिवकइितहाससेअवयजुड़ाह।कवल

यह वामीिक नामक य क कपोल-

कपना होती तो इतने िवतृत भूखंड को

येकजाितऔरउपजाितकलोक-मृितम

इस तरह इसका दख़ल सभव नह होता। यह

तो ई इसक िवतार क बात। उदाता और

गहराई क से भी िवचार कर तो पता

चलेगा िक रामकथा भारतीय मनीषा का एक

अयंत िविम उपादन ह। थूल इितहास क

प म यह आय क दो सांकितक धारा

आिदम और नय क संघष-गाथा ह।"1 वे

मानते ह िक जहाँ रावण आिदम आयव का

ितिनिध ह और जापित, वैानर अन क

उपासकह।वहरामचंउरवैिदकसंकित

क, नय आयव क और िकरात-िनषादिवड़ से संयु दीित आयव क ितिनिध ह।

रामकथा म दापय ेम क गाथा भी विणत ह िजसे रवीनाथ 'पारवारक जीवन

का महाकाय' कहा करते थे। इस तरह क

दापय का उेख पहले ह ाणआरयक ंथ म हो चुका ह, जहाँ काम और

तु (य) क मूय का भाव देखने को

िमलता ह। ाण ंथ म पनी हर कार क

य म आवयक ह। इस ंथ क भाषा म

कहा जाए तो पनी य क आधी जंघा ह।

भारतीय समाज क पारवारक और

सामािजक जीवन पर अगर पात िकया

जाएतोउसपररामकथाकासवािधकभाव

िदखाईदेताह।कबेरनाथराययहमानतेहिक

रामकथा पर यह भाव ाण-आरयक

संकित क शीलचारक से सीधे-सीधे उतार

गएह।िजनलोगनेरामकथायािमयाकहा

उन जैस क िलए ह कबेरनाथ राय िलखते ह

िक – "य रामावतार को ऐितहािसक मानने का एकमा माण समत दिण एिशयायापी, सदायिनरपे, नलिनरपे, बल लोक-िवास और लोकानुुित ह और यह कम मजबूत दतावेज नह। सारी घटनाएँ मा कपना-आित होत तो लोकअनुमृितकइतनीगहराईमजाकरितत नह हो पात। यह कथा िहदू-जैन-बौ, ाण-अाण, आय-आयतर, भारतीय-

वृहर भारतीय, जबूीप-ीपातर भारत, सव लोक- िवास का अंग बनकर ितत ह, तो घटना क कीय आकित

िमया नह हो सकती। इसका वतमान प िमथकय अलंकरण ले चुका ह। परतु सय क मजबूत काठी नीचे अवय वतमान ह। अयथायहदीघजीवीनहहोपाती।"2

भारतीयता का उेख करते ए

समिझए भारतीयताकआदशपकोभीहमजानलेते ह। राम एक तरीक़ से मनुयव क चरम सीमा ह। साथक से भारतीयता ु, संकण राीयता क दभ से अलग ह। पूण प से भारतीय बनने का अथ ह। राम जैसा बनना।आजकसमयमिनवासनथायीभाव ह।यहिनवासनिसफ़सािहयतकहसीिमत नह ह बक

ह।आिदसेअंततकअपनीमानुषीचया का णभर क िलए भी परयाग नह करते, कह भी अलौिकक श, अुत अितमानवीय ईरीय श क दशन ारा police action क तरह, सुदशन च

करिलयाह, िजससे उसक ितबता िकसी से जुड़ी ई

नह ह। चाह वह देश हो, रा, समाज, परवार, ेम, दया आिद से वह कटकर ह जीवन यतीत करना चाहता ह। हम िनवासन याअकलापनकोशापकसेनहदेखते बक यह शाप तब बन जाता ह जब इसम

मंगाकर काम नह करते, सब कछ को सहज मानुषी ढग से िवकिसत होने देते ह और इस कठोर मानुषी जीवन क सीमा क भीतर, ईर क िदयता का चरम प उािटत कर जाते ह अतः 'अवतारव' उनम पूणतः शतितशतिततहोजाताह।3 उनका मानना था िक आज क भौितकवादीयुगमजहाँपाायसंकितक आकषण म इछा श उम होती जा रही ह, वैसे समय म हम एक ऐसे आदश चािहए

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उसक साथकता को समझाने क िलए कबेरनाथ राय ने तीन शद का िज िकया ह। 1. ॐ 2.िशव और 3.राम। राम
ह। यह
संकित
और कण-कण म बसा आ ह।
मम जब हम जान
सपूण िव म लोग इस िनवासनकोभोगरहह।लेिकनअलग-अलग देश म िनवासन क िवधा अलग-अलग ह। राम का यव अनास या व क तटथता से ह। वह आज का मनुय अपने आपकोवककोटरमहबंद
शद जनमानस क बत ह क़रीब ह। िशव देवता ह या बाबा ह। लेिकन'राम'भाईह,बेटाह,पितह,सबकछ
भारतीय
क जन-जन
'राम' शद का
लेते
तो
अजनबीपनजुड़जाताह। हमारा
Democracy
म, हम चाह सोशिलट टट म रह या Communism म, हम हर हालत म नागरक ईमानदार ह चािहए, अछा भाई, अछा बेटा और अछा पित चािहए। अब भले ही राजनीितक यवथा कछ भी हो लेिकन अथयवथा बदलने से यह आवयकता बदल नह जाती। इन सब गुण का समाहार हम राम म िदखाई देता ह, इसिलएहमारआदशवहह।वेहीपूणावतार ह। उह यह मानना हमारी ऐितहािसक आवयकताभीह। वैणव सदाय यह मानता ह िक परमामा एक िनगुण सा ह, जो िनय और ुवह।औरिव-पंचसेपरह।दूसरीसा यह ह िक जो अणु-अणु म ह वह िवामा ह। तीसरी सा ह, पुषोम िजसे ईसाई Personal God या सगुण पुष कहते ह।यहीमनुयजाितपरकणाकरनेकिलए अवतरत होते ह। वह आकित और देह को धारणकरकमनुयपमधरतीपरआताह। कबेरनाथरायिलखतेहिक-"अवतारममूल बात ह ईर का मानुषीकरण। ईर ारा 'मानुषी चया' का धारण। ईर ारा मनुय क सीमा का वरण। और यह मानुषी सीमा का वरण चरमप म रामचं ही करते
िवास
म हो या Totalitarian पित
वे िया श क तीक ह। राम का नाम चाह वह य हो या िफर समाज दोन क िलए ह भवसागर को पार कराने वालीनावह। रघुगण शद क उपि को लेकर वे िलखतेहिक-"मुझेसदेहहिकयह'रगण' शद यवाचक संा नह। 'र' 'रघु' का
जो संयमी हो, िजसम पुषाथ हो। और ऐसे ह ी रामचं।

ही ाकत प ह। और 'गण' शद पतः

Republic ह। अतः रघु क गण का

यह महा अिभयान था। जो कोसल से िमिथला

तक पुनः फल गया। रघुगण ने थानीय

िववाद क सहयोग से िजस संकित क नव

डाली वही आज क वणाम-संकित या

िहदूसंकित ह। वही भारतीय संकित का

धान चेहरा भी ह। इसी वंश का सवे

पुष था 'रामच' और इसी पुष क

जीवनगाथाहमाराराीयमहाकायह।"4

अतः जब हम कहते ह िक रामच

पूणावतार ह तो हमारा तापय वामीिक क

राम और 'अयाम रामायण' क राम क

संयु प से ह। वामीिक क रामायण रस

तक और शीलाचारक प को उािटत

करती ह तो अयाम रामायण उसक

आयामक या दाशिनक प को। यह मेरी

बातनह।यहगोसाँजीकबातह।'रामव'

क गूढ़तम मम को गोसाँ जी से यादा

समझने वाला आज तक पैदा नह आ। और

उहने यह िनणय िलया था िक राम क जो

आकित वे तुत करगे वह वामीिक और

अयाम रामायण क समवत छिव होगी

औरयहीछिव'पूणावतार'ह।वेभीइसीछिव

को पूणावतार मानते रह। रामायमीशं हर।

"तोजबमरामकोपूणावतारमानतातोमेरा तापय वामीिक क अयाम रामायण क समवत'राम'अथा'मानस'क'रामामीशं हर' से ही ह। और इसका कारण यह ह िक

यह 'सा' क तीन सोपान, रस, शील और

अयाम पर अपनी चरम पूणता क साथ िततह।"5

तभी तो कहा जाता ह िक मनुयता िजस

सीमातकजासकतीह,उसकाचरमिबंदुराम

म ितत ह। वे मनुय थे। लेिकन मनुयता

का वरन उहने उसी सीमा तक िकया जहाँ

तक शील और कणा का सबंध ह। वे

िलखतेह-"रामकाजीवनसााकणरस ह। वे ईर क तरह अनास, तटथ और मिहमामय ह, तो मनुय क तरह 'धीर, वीर, गभीर' ह;

सोम और अन क 'िवतार' प का आिदिबदु ह। ियाश धान होने क कारण इसे 'गाहय' का महाकाय भी कहा जाता ह और इछाश को इसम

कित का तीक था जो िशव क वाम भाग म रहती ह। ऊपरवाला खड ान-खड था जो योम म चला गया। नीचेवाला खड इछा-खड था जो पाताल म वेश कर गया। रह गया मयखड जो िया - खड था। उसे ही राम ने धरती पर रख िदया। इस काय का आदश ही ह 'अनास पुषाथ-योग'। यह इसीिलए गृहथ धम और नागरक धम का महाकाय ह। गृहथ जीवन का सपूण वृ इसम उतर

आया ह। परतु यह कथा क मानवीय धरातल

मइसढगसेडबताहिकजबउभरता हतोमोतीहािसलकरकहिनकलताह। 000 संदभ- 1 कबेरनाथ राय, रामायण महातीथम, चौथा संकरण, 2011, भारतीय ानपीठ, नई िदी, 2 कबेरनाथ राय, रामायण महातीथम, चौथा संकरण, 2011, भारतीय ानपीठ, नई िदी, 3 कबेरनाथ राय, रामायण महातीथम, चौथा संकरण, 2011, भारतीय ानपीठ, नई िदी, 4 कबेरनाथ राय, रामायण महातीथम, चौथा संकरण, 2011, भारतीय ानपीठ, नई िदी, 5. कबेरनाथ राय, रामायण महातीथम, चौथा संकरण, 2011, भारतीय ानपीठ, नई िदी, 6. कबेरनाथ राय, रामायण महातीथम, चौथा संकरण, 2011, भारतीय ानपीठ, नई िदी, 7. कबेरनाथ राय,गधमादन,1972,भारतीयानपीठ,नई िदी।

çàæßÙæâæçãUçˆØ·¤è जनवरी-माच 2023 67
'ध, यामल, कण' ह। जब मऐसासोचतातोमेरमनकअयअंधकार को चीरती ई एक छिव हठा उगती ह और मेर अतर म धीर-घोर नील प क तरह फिटत होती ह। उस नीलोपल क कोमल पश से मेरा अतव िवगिलत हो कर िफर वायवीय हो जाता ह और हलका-हलका सौरभ बन कर मनोरम पपासर क धीर समीरण म लीन हो जाता ह। तब राम क ारा भोगी गई सारी यथा एवं उन क जीवन को सपूणकणाकामसहभोगीसाीबनजाता और उस ण भर क लघु अविध म लगता हिकमैभीदेवताही।"6 रामकथा एक तरह क सिवता - कथा ह। इसक कित सूयामक ह और यह ुमडल का काय ह जो सगुण सृ क िवकास का ह
िक इसे 'आिदकाय' कहा
अिधदेवता ह िवणु का सिवताप जो
यविनका
परहीिदखाईदेदेतीह।रामचने जब धनुष तोड़ा तो उसक तीन खड हो गए। वह िशव-िपनाक िगुणामक
'आिद' प ह। यही कारण ह
जाता ह। इसका
दबाकर
क पीछ धकल िदया गया ह। यह बात धनुमग
अवसर
किलएहीयुयुह।कथाकअदरअथ का िपुर ह। मानवीय धरातल पर यह अगर इस कथा को देखा जाए तो पारवारक शील क आदश क कथा ह। कबेरनाथ राय यह मानते थे िक इन आदश को तुलसीदास ने अपनेंथमबबीयिकयाह। रामकिवषयमिलखतेएउहनेअपनी भाषासधीईरखीहयहउनकख़ािसयतथी िक वे िवषय क अनुकल अपनी भाषा को ढ़ाल लेते थे। वे वयं िलखते ह िक- "रचना केमएक-एकशदशतादयकयोग कबादएकिविशअथगरमापाताह।नयी उपभाषा म ऐसी अथ-गरमा ले आना िक वह सूर-तुलसीकउरािधकारकोवहनकरसक और दूसरी और दूसरी ओर संसार क आधुिनक लेखक क समकता से बात कह सकएकख़ासबड़ाकामथा।"7 अतः हम देखते ह िक कई य से कबेरनाथ राय ने राम क िवषय पर िलखा ह। और यह कथा पारवारक, सामािजक, राजनीितक आिद सभी से महवपूण ह। उहने यह बताने क कोिशश क ह िक रामकथाकभीतरएकसारवतधाराबहतीह िजसे हम भारत वष कहते ह। उनक िलए राम कोईराजनीितकतंकपमनहथेिजसक िवषयमिलखकरवाहवाहीपायीजाए।उनक िलए राम िचंता का वह िवषय थे िजस पर उहने एक-एक वाय शोध करक िलखा ह। उहनेनय
िजस ढग से कबेरनाथ राय ने उन पर िलखा ह वह अमूय ह। उह पढ़ने वाला पाठक उनक शद क गहराई
आयकपमभीउहदेखनेक कोिशश क। अनेक िवान ने राम पर िलखा ह लेिकन िनबंध क े म

था। वहाँ उहने देखा िक भारी संया म मिहलाएँ उनक राजनीितक िवचार से भािवत होती ह। उनक नेतृव म ए कई आंदोलन म मिहलाएँ जेल गई, िबना िकसी िशकायत क उहने जेल क कठोर

68 çàæßÙæâæçãUçˆØ·¤è जनवरी-माच 2023 िजनदेशमआजभीसामंतीथाकजकड़नअंगदकपैरकतरहजमीईह,पदाथा क दीवार को लाँघना जहाँ आज भी मुकल ह, उसी उर भारत म गाँधीजी क आान पर हज़ार क संया म औरत सड़क पर उतर आ थ। इलाहाबाद, लखनऊ, िदी, पंजाब, िबहार,लाहौरऔरपेशावरकमिहलाएँघरसेबाहरिनकलएवंसावजिनकदशनवजुलूस मशािमलहोनेलग।भलेघरकऔरतकोिबनाघूँघट-बुका,पदाकसड़क-गिलयमइससे पहलेकभीनउतरतेदेखनेवालीजनताइसपरवतनऔरउसाहसेचिकतथी। गाँधीजीकयोगदानसेइनकारनहिकयाजासकता,िकतुइसतयकोभीयानमरखना ज़री ह िक जब गाँधीजी ने मिहला संबंधी अपने िवचार रखे, तब मिहलाएँ वयं भी अपने गुण को पहचानने लगी थ। ऐसा कवल उनक यवसाियक िज़ंदगी-डॉटर, िशिका और सामािजक कायकता क तरह ही नह, वर सावजिनक, राजनीितक जीवन म भी राीय और सुधारवादीआंदोलनमिमकऔरिकसानआंदोलनमउनकभूिमकाकोदेखाजासकताह। राीय आंदोलन म मिहला क बढ़ती भागीदारी गाँधीजी क भाव से ई। 1920 तक गाँधीजी एक गाथापुष बन चुक थे। गाँधीजी मिहला को इसिलए भी जुटा सक िक उह पुषकरवैयेकाभीयानथा। गाँधीजी क यव क ख़ािसयत थी िक वे न कवल मिहला म िवास जगाने म सम थे, वर मिहला क पित, िपता, पु, भाइय का भी िवास उह ा था। उनक नैितक आदश इतने ऊचे थे िक जब मिहलाएँ बाहर आकर राजनीितक े म काम करती थी, तो उसक परवार क सदय उनक सुरा क बार म िनंत रहते थे। इसका कारण था िक गाँधीजी का यान मिहला क जुझा मता पर पहली बार दिण अका म िखंचा
सज़ा झेली और खदान िमक क हड़ताल म शािमल ई। दिण अका क सयाहआंदोलनमउहनेमिहलामआमयागऔरपीड़ासहनेकअुतमतादेखी। मिहलाकआम-यागीएवंबिलदानीवभावकिहमायतीगाँधीजीपहलेहीयनह थे,इससेपहलेभीसमाजसुधारकऔरपुनारकनेइसपरकमज़ोरनहिदयाथा।समाजसुधारक ने मिहला क आमयाग को एक जबरदती थोपे कमकाड क तरह देखा। पुनारक क सोच थी िक इन कमकाड से िहदू मिहला क छिव गौरवमयी बनती ह। गाँधीजी ने नारी क इन गुण को िहदू कमकांड से अलग परभािषत िकया। गाँधीजी ने कहा िक यहभारतीयनारीवकावाभािवकगुणह,यिकउनकअहमभूिमकामाँकह।गाँधीजीक सोचथीिकगभधारणऔरमातृवकअनुभवसेगुज़रनेककारणमिहलाएँशांितऔरअिहसा कासंदेशफलानेमयादाउपयुह।गाँधीजीकअनुसारी-पुषमजैिवकगुणकअंतर क कारण उनक अलग-अलग भूिमकाएँ ह और दोन ही समान प से महवपूण ह। पुष शोध आलेख (शोध आलेख) राीय आंदोलन म मिहला
भागीदारता
गाँधीजी का भाव शोध लेखक : डॉ. कोमल आिहर डॉ. कोमल आिहर
एवं

कमाकर लाता ह और ी घर और ब क

देखभाल करती ह। यहाँ भी गाँधीजी ने ी क

मातृव गुण और य क भूिमका को

अलगपरभािषतिकयाह।गाँधीजीकोलगता

था िक उनक अिहसा क लड़ाई म मिहलाएँ

उनक िवचारधारा क यादा नज़दीक ह

यिक उसम काफ पीड़ा सहना शािमल ह

और मिहला से यादा बेहतर कलीन और

े ढग से पीड़ा कौन सह सकता ह।

गाँधीजीकनज़रमपीड़ासहनेकागुणहोना

बत ज़री ह। उनक नज़र म "वैछक

िवधवा" आदश एटिवट थी, यिक उसम

पीड़ा म सुख का राता खोज िलया। उनक

नज़र म वह सी सती थी न िक वह जो पित

क िचंता म जलकर ाण क आित दे देती

थी।

गाँधीजी क यगत छिव संत महामा

क होने क कारण उनक नेतृव म शु ए

देश-भ आंदोलन क राजनीितक और

धािमक िमली-जुली छिव बनी। उसका े

राजनीित से ऊपर उठकर धािमक हो गया।

देशभ को धम माना गया, देश को देवी माँ

क संा दी गई, िजसक िलए बड़ से बड़ बिलदान भी कम थे। गाँधीजी आंदोलन म

मिहला भागीदारी क पूण पधर थे। वे मिहला क सभा म, अपने भाषण म, आंदोलन म उनक भागीदारी अिनवाय मानते

थेऔरसाथहीयहकहकरेरतकरतेथेिक देिवय और वीरांगना क तरह आंदोलन म

उनक अपनी अलग भूिमका ह और उसम

इसभूिमकाकोिनभानेकशऔरिहमत

भी ह। उहने मिहला को िवास िदलाया

िक आंदोलन को उनक महवपूण योगदान

क ज़रत ह। वे कहते थे िक जब मिहलाएँ

सयाहआंदोलनमशािमलहगी,तभीपुष भीआंदोलनमपूरासहयोगदेगा।85ितशत भारतीय मिहलाएँ िनधनता और अान क अंधकारमडबीईह।उहनेमिहलानेता

कहा िक उह सामािजक सुधार,

चरखा चलाने का िशण, खादी बेचना, शराब बदी, देश क वाधीनता का चार, सभाएँ करना छआछत िमटाने संबंधी उपदेशदेना,कांेसकसदयताबढ़ाना। 1928 म लितका ने बंगाल म 'मिहला राीय संघ

'भारत छोड़ो आंदोलन'महजारकसंयाममिहलाने भाग िलया। हजार मिहलाएँ भूिमगत ई। समानातरसरकारबनानेमसहायकरह,रल क पटरी उखाड़ने से लेकर कचहरय पर

या ांितकारी आंदोलन म ह। उनक ककानामथा-"शांितमंिदर"।यहीउनका नेटवक था। यहाँ मिहला का पढ़ना, िलखना, घरलू हत-कलाएँ, ाथिमक िचिकसा, वयं- रा करने क साथ वाधीनता क महव को बताया जाता

झडा फहराने म अणी रह। इस दौरान लाठी-गोली, बलाकार तक क भारी संया म औरत िशकार । कईय क हयाएँ क गई। अणा आसफ अली ने वािलया टक

मुंबई म झडा फहराते ए "अंेज़ भारत

छोड़ो" तथा "करो या मरो " क उोषणा

क, तो डॉ. उषा मेहता तथा उनक सािथय ने

मुंबई म समानातर रिडयो टशन चलाया।

भारी संया म िकसान मिहला ने भूिमकार और भूवािमय क अिधकार क िख़लाफ़

आवाज़ उठाई। उस आंदोलन म

çàæßÙæâæçãUçˆØ·¤è जनवरी-माच 2023 69
से
मिहला िशा एवं मिहला अिधकार क िलए कानून बनानेकिलएकामकरनाचािहए,तािकउह एक बुिनयादी अिधकार िमल सक ! उहने कहा िक मिहला नेता को सीता, ौपदी और दमयंती क तरह सावक ढ़ और िनयंित होना चािहए, तभी वह य क भीतर पुष क साथ बराबरी का भाव जगा सकगी और अपने अिधकार क ित सचेत तथावतंताकितजातकरसकगी। गाँधीजी क अनुसार बराबरी का यह अथ कदािपनहथािकमिहलाएँवेसबकामकर, जो पुष करते ह। गाँधीजी क आदश दुिनया म य और पुष क अपने वभाव व मतानुसार काम क अलग-अलग े िनत थे। उहने मिहला को "वदेशी त" लेने को कहा। वे सारी िवदेशी वतु का परयाग कर और ितिदन थोड़ समय सूत कातने और खादी पहनने क िता कर। खादी भात फरी िनकाली। धरने आिद का आयोजन करने क साथ खादी का चारसार,
क थापना क। बंगाल का पहला मिहला संगठन, जो राजनीितक े म काम करता था। लितका का मिहला क िलए संदेश था "उठो, जागो, अपने देश को अछी तरह देखो।" मिहलाएँ आंदोलन म तभी सिय हो सकती थ, जब उह घर क पुष सदय का समथन ा हो। इसक िलए ज़री था िक उनक पित, िपता या भाई कांेस
था। लितका तथा अय मिहला नेता को यह प हो गया था िक मिहलाएँ देश क सभी मामलेसेकटीईह। 1930 तक आत-ेआते भारतीय य ने परदा उठाकर फक िदया और रा क काम क िलए भारी संया म बाहर आ। गाँधीजी ने सावजिनक गितिविधय क सहभािगता क औिचय को िस करते ए उसे िवतार िदया, तािक वे वग एवं सांकितक बंधन को तोड़कर आगे बढ़। 1930 क दशक म हजार क संया म मिहलाएँ, "सिवनय अवा" और "असहयोग आंदोलन" म भाग ले रही थ। 'ऑल इिडया िवमस ास' को भी अपने उवगय दायर से बाहर आना पड़ा। उहने ामीण िकसान और ग़रीब मिहला क बीच काम करना शु िकया। अब यह संथा एक एटिवट संथा बन गई थी और इसक 1931 म अया सरोिजनी नायड बनी। इसक पहले तक अया महारािनयाँ होतीथ। स 1940 क दशक म िितज पर वाधीनता का इधनुष िदखाई रहा था और शायद यही कारण ह िक य का आंदोलन पूरी तरह वाधीनता संाम म तदील हो गया और नारी मु क मुे को भारत क वाधीनता क साथ जोड़कर देखा जाने लगा। माना जाने लगा िक वाधीनता क साथ ही पुष एवं ी क मय मौजूदा असमानताएँ दूर हो जाएँगी तथा वतं भारत म सबकछ ठीक हो जाएगा। सन 1942 क
"जेल भरो आंदोलन" भी शािमल था। 'वधा' सेवााम म मिहला आम क संचािलका रमाबेन इया काकहनाथािक-"स1942मसेवाामम गाँधीजी ने उन सभी मिहला से, जो जेल जाने वाली थ, उह अपने िपता, पित, भाई से िलिखत सहमित-प मंगवाया था। "िजन

लोग क पास सहमित प था, वे ही जेल भरो

आंदोलनमशािमलहोसकतीथ।"

इसी तरह कमला देिसकन, जो 15 वष

क आयु म आं देश से भागकर वधा

सेवााम गाँधीजी क वाधीनता आंदोलन म

शािमल होने क िलए आई थ, जो बाद म डॉ.सुशीला नैयर (थम वाय मंी) क

सेटरी बन और आजीवन कतूरबा

हॉपटल से जुड़ी रह। उनका कहना था"गाँधीजी ने मुझे सेवााम आम म रहने क

िलए मेर िपता से अनुमित प िलखवाया था।

िपता क आा क बाद ही म सेवााम आम

मरहसक।"

गाँधीजी ने मिहला क आिथक

वतंता क बार म प प से कभी कछ

नह कहा। गाँधी जी क अनुसार ी याग

और पीडा क ितमा ह। सूत कातना और

व बुनना उसक िलए धािमक काय थे और

मिहला क वभाव क अनुकल थे। इस

तरह राीय आंदोलन म मिहला को नई िपतृसा तले बाय रहने को मायता िमली। रावािदय को मिहला क मु तथा

उथान से कोई सरोकार नह था। इसक

िवपरीतमिहलाकपनी,पुीऔरमाँक

भूिमका क पु ई। कवल राीय

आंदोलन क आवयकता को देखते ए

उसे थोड़ा बत िवतार िमल गया। इस तरह

पारपरक इितहास म मिहला क संया

थोड़ी और बढ़ गई। 'राीयता क इितहास म मिहला का योगदान कवल उनक

पारपरक भूिमका का िवतार मा ह। राीय आंदोलन म मिहला का कह कोई

वतंअतवनहिदखता। 000

संदभ(१) महामा गाँधी भारत क िवरल चर – डॉ. रामानुजाचाय, (२) भारत का

जननायक : महामा गाँधी – डॉ.रामशरण

गु,(३)वाधीनभारतमगाँधीकादान–

डॉ. रोिमला शमा, (४) वाधीन भारत म

मिहला क भूिमका – डॉ. रामेरी ितवारी, (५) राीय आंदोलन म सेनािनय काअवदान

युवा पकार और यंयकार जयजीत

ह। जयजीत क अलावा भी कई पूववत लेखक ने इस ाप को आजमाया ह। जयजीत वयं 'िहदी सेटायर' जैसे िडिजटल मंच पर इस तरह िलखते रह ह। पुतक म यादातर ताकािलक ख़बर और संग पर

âæçãUçˆØ·¤è जनवरी-माच 2023

70 çàæßÙæ
योित अकलेचा क पहली िकताब 'पाँचवा तभ' ह जयजीत ने यंय िवधा क अब तक िक परपरा को नए और अपने तौर तरीक से आगे बढ़ानेकासाहसिकयाह।यिपकईबारअख़बारीलेखनकोसािहयकपकारताभीकहा गया ह। मुझे याद आता ह शरदजी क कॉलम लेखन को सािहयक पकारता कहा गया था औरउहपीभीपकारतावगमदानिकयागया।ख़बरऔरअख़बारकसुिखयपर ही यादातर कॉलमी यंय रचनाएँ आ रही ह जो ताकािलक संदभ क होने से पाठक को आकिषततोकरतीहीहपरसंपादककोभीउहकािशतकरनेमसुिवधाहोजातीह। थोकमिलखीजारहीऐसीरचनासेइतरजयजीतअकलेचाकरचनाएँइसिलएअलग होजातीहिकपकारहोनेककारणख़बरऔरसुिखयकभीतरउतरकरउसकआमातक पच जाने क योयता उनम पेशागत प से ह। दूसर वे जोिखम लेकर अपनी रचना का ापबदलकरिवधाकिवकासमअगलामहवपूणकदमबढ़ादेतेह। जयजीत क िकताब 'पाँचवां तभ' क सबसे बड़ी बी यही ह जैसा िक लब म चिचत यंयकार आलोक पुरािणक ने कहा भी ह, इनम यंय िवधा म नए योग का साहस सचमुच पतः परलित होता ह। आवरण पर इसे यंय रपोिटग क पहली िकताब कहा गया ह। िनसंदेह यंय रपोिटग पहले भी इका-दुका देखने पढ़ने को िमलती रही
लेख,रपोिटग िक़से तो ह ही साथ ही'इटरयू' ाप म भी बड़ीिदलचप रचनाएँ देनेमवेसफलएह। म इस पुतक क हर पं से यानपूवक गुज़रा और कह सकता िक हर शद और वायपाठककोरोमांिचतकरताहऔरबतभावीपसेबाँधेरखताह।पहलेसोचरहाथा कछपंयकउदाहरणदेकरअपनीबातकोपुदूँिकतुयहिबकलभीसभवनह।हर पंदेकरसमीाकोलंबाखचनानिसफलेखककितभाकितबकसंभािवतपाठक क िजासा क ित भी ग़लत होगा। पाठक इस िकताब को मँगवाकर अवय पढ़। लेखक क गहरीयंयसमझऔररोचक,मारकतुितककायलएबगैरनहरहगे। 000 जेश कानूनगो, 503, गोयल रजसी, चमेली पाक, इदौर 452018 मोबाइल- 9893944294 पुतक समीा (यंय संह) पाँचवाँ तंभ समीक : जेश कानूनगो लेखक : जयजीत योित अकलेचा काशक : मक पलकशन भोपाल
çàæßÙæâæçãUçˆØ·¤è जनवरी-माच 2023 71 तावना वतमानसमयममीिडयाकउपयोिगता,महवएवंभूिमकािनरतरबढ़तीजारहीह।कोई भी समाज, सरकार, वग, संथा, समूह य मीिडया क उपेा कर आगे नह बढ़ सकता। आज क जीवन म मीिडया एक अपरहाय आवयकता बन गया ह। अगर हम देख िक समाज िकसेकहतेहतोयहतयसामनेआताहिकलोगकभीड़याअसंबमनुयकोहमसमाज नह कह सकते ह। समाज का अथ होता ह संबंध का परपर ताना-बाना, िजसम िववेकवान औरिवचारशीलमनुयवालेसमुदायकाअतवहोताह। मीिडया एक सम तं ह िजसम िंिटग ेस, पकार, इलेॉिनक मायम, रिडयो, िसनेमा,इटरनेटआिदसूचनाकमायमसमिलतहोतेह।अगरसमाजममीिडयाकभूिमका कबातकर,तोइसकातापययहआिकसमाजममीिडयायऔरअयपसेया योगदान दे रहा ह एवं उसक उरदाियव क िनवहन क दौरान समाज पर उसका या सकारामकऔरनकारामकभावपड़रहाह। मासमीिडयाककार लोकजनसंचार(लोकमीिडया) पारपरकमीिडयायापारपरकमीिडयासंचारकोबढ़ानेतथािकसीसमाजकज़मीनीतर पर संवाद को बढ़ाने का एक साधारण उपकरण ह। कठपुतली क मायम से होने वाले दशन लोकमीिडया(जनसंचार)काएकलोकियतरीकाहजोमनोरजकतथासूचनापरकहोताह। ाचीन िहदू दाशिनक ने कठपुतिलय क संचालक को बत महव िदया ह उह ईर को एककठपुतलीसंचालकमानाऔरसपूणिवकोकठपुतलीकाएकरगमंचमाना। नुकड़नाटकजनसंचारकाएकऔरमायमहिजसकायोगयापकपसेसामािजक राजनीितक संदभ का चार करने और सामािजक मु पर जागकता उप करने क िलए िकया जाता ह। नुकड़ नाटक छोट, सीधे, मुखर तथा अितर प से अिभय धान होते ह यिक उनका दशन उन थान पर होता ह जहाँ भारी भीड़ होती ह उनको सुढ़ समाज सुधार का चार करने क िलए योग म लाया जाता ह और भीड़ को िकसी ख़ास मुे पर एकजुटकरनेकिलएउनकोसशमायममानाजाताह। िंटमीिडया िंटमीिडयाकअतगतमुितसामीकमायमसेजनसंचारशािमलह।इसकअतगत शोध आलेख (शोध आलेख) मास मीिडया का समाज म भाव शोध लेखक : पटल धाराबेन पी. मागदशक : ो डॉ. बी.एल. पवार पटल धाराबेन पी. हमचंाचाय उर गुजरात िविवालय, पाटन – २०२२

समाचार प, पिकाएँ, बुकलेट, य

मािसक, अधवािषक, वािषक पिकाएँ आिद

आती ह (मुित शद ान, सूचना तथा यूज

टोरी /घटना पर कत समाचार) क

शुआत ई उसक बाद कलका (अब

कोलकाता) म और देश क अय ात म

समुवत शहर से होते ए उसका िवतार

आ।

िंट मीिडया क एक िवशेषता ह िक

िवतृत समाचार सारत करते ह और मु

पर गंभीर चचा करते ह भारत म िकसी अय

मीिडया क तुलना म िंट मीिडया ने िविभ

कार क लेख क मायम से अयिधक

वैिवय क साथ सूचना दान क जाती ह।

िंट मीिडया क सबसे बड़ी कमजोरी यह ह

िकउहकवलसारहीपढ़सकतेह।

इलेॉिनकमीिडया

सामािजक संवाद तथा चार का एक अय अयिधक लोकिय मायम ह इलेॉिनक मीिडया जो िंट मीिडया क साथ

िवतृत आ। इलेॉिनक मीिडया िवषयवतुकोोतातकसारतकरनेक

िलए इलेॉिनक मीिडया का जम रिडयो क

आिवकार क साथ आ जब एक आवाज़ ने

दूसर महाीप क लाख लोग को रोमांिचत

कर िदया जो इस आवाज़ को सुनने क िलए

लालाियतथे।

समाजममीिडयाकभाव

मीिडया मनुय क मतक को तथा

समाज म हमार यवहार और काय करने क

तरीक को भािवत करता ह। इस भाव का

तर िकतना होगा यह मीिडया क उपलधता

एवं उसक यापकता पर िनभर करता ह।

सभी पारपरक जनसंचार मायम का अभी

भी हमार जीवन पर यापक भाव पड़ता ह।

कभी पुतक का सवािधक भाव इसिलए

पड़ता था यिक वे लोग क बीच समाचार

प, पिका, रिडयो या टलीिवजन से

पहले आ गई। समाचार प और पिका

का भाव उनक िवकास क साथ-साथ

अिधकहोनेलगा।आवाज़करकॉिडगऔर

िफमकाभावथाऔरअभीभीह।रिडयो

हमारसामनेिवानक अनेक छिवय तथा माकिटग, लोग क किठनाइयऔरिवासका,कामुकतातथा िहसा, जानी

भीमीिडयाका भाव सामािजक और राजनीितक दोन े म होने लगताह।इनदोनमऐसीअनेकबातहऔर मीिडया इन दोन े क येक िहसे क बात करता ह। मीिडया का समाज पर सकारामक और नकारामक दोन कार का भावपड़ताह। समाज पर मीिडया क सकारामक भाव ह सूचना क उपलधता, िशा क िवषय म नई जानकारी, सोशल मीिडया क वतं कित, मीिडया ब क िशा एवं उनक िवकास म एक सकारामक भूिमका िनभा सकताह।यहिवमहोनेवालीगितिविधय एवंघटनाकिवषयमताजाजानकारीएवं

उपलधकराकरमानवताकबतबड़ीसेवा

कर सकता ह। मीिडया को सवृिय क अिभवनहतुभीआगेआनाचािहए।

000

संदभ- जोशी शािलनी, जोशी िशव साद 'वेब पकारता नया मीिडया नये झान राधाकण पलकशन नई िदी, थम संकरण-2012, डॉ. दयानद गौतम "मीिडया सािहय, समाज एवं सरोकार" अरधाम काशन करनाल रोड कथल हरयाणा, थम संकरण-2013, संजय िवेदी "सोशल नेटविकग नए समय का संवाद" यश पलकशस, थम संकरण –2013, िवनोद िवपुल और िसह राजबीर "फसबुक सोशल मीिडया का चमकार" िहदी पॉकट बुस नई िदी थम संकरण – 2014, चहाण शकतला, "आविनक मीिडया लेखन" इिशका पलिशंग हाउस िदी, जयपुर, थम संकरण -2015, डॉ. ीवातव अिवनाश "या आपका डॉटर पोषक तव क बार म जानता ह" मंजुल पलिशंगहाऊस,संकरण-2016

âæçãUçˆØ·¤è जनवरी-माच 2023

72 çàæßÙæ
और उसक बाद टलीिवजन अयिधक
कबादटलीिवजन
मानी हतय और बत सी ऐसी चीज़ क बार म जानकारी और तवीर पेश क। नवीन एवं भावशाली मीिडया िवतरण चैनल 21व "शतादी म हमार सामने आए। वड वाइड वेब (िव यापी वेब) का इटरनेट क मायम से सार क ारा हम रोज़ ही लॉग, िवक, सोशल नेटवक आभासी दुिनया तथा अनेक कार से जानकारी एवं िवचारकाआदानदानहोरहाह। मीिडया हमार जीवन क लगभग हर े मफलगयाह।चाह,वहटलीिवजनसमाचार ह, वेब सामी हो, पुतक या अय कोई चीज़जोभीसूचनाहममीिडयासेाकरते
ह।
पड़नाहीह।समाजपर
सारांश
से नेतृव
क िवचारधारा भािवत होती ह। मीिडया को ेरकक भूिमकाम भीउपथत होना चािहए िजससे समाज एवं सरकार को ेरणा व मागदशन ा हो। मीिडया समाज क िविभ वग क िहत का रक भी होता ह। वह समाज क नीित, परपरा, मायता तथा सयता एवं संकित क हरी क प म भी भूिमका िनभाता ह। पूर िव म घिटत िविभ घटना क जानकारी समाज क िविभ वग को मीिडया क मायम से ही िमलती ह। अत: उसे सूचनाएँ िनप प से सहीपरेयमतुतकरनीचािहए। मीिडया अपनी ख़बर ारा समाज क असंतुलन एवं संतुलन म भी बड़ी भूिमका िनभाता ह। मीिडया अपनी भूिमका ारा समाज म शांित, सौहाद, समरसता और सौजय क भावना िवकिसत कर सकता ह। सामािजक तनाव, संघष, मतभेद, यु एवं दंग क समय मीिडया को बत ही संयिमत तरीक से काय करना चािहए। रा क ित भ एवं एकता क भावना को उभरने म भी मीिडया क अहम भूिमका होती ह। शहीद क समान म ेरक उसाहवक ख़बर
भावशाली रह। 20व "शतादी क समा
ने
हउसकाहरयकदैिनकजीवनमअसर पड़ता
इसक यापकता का भाव तो
समाचारदेताह।
-मीिडयासमाजकोअनेककार
दान करता ह। इससे समाज
क सारण म मीिडया को बढ़-चढ़कर िहसा लेना चािहए। मीिडया िविभ सामािजक कायारासमाजसेवककभूिमकाभीिनभा सकता ह। भूकप, बाढ़ या अय ाकितक या मानवकत आपदा क समय जनसहयोग

पाताह। एक िवाथ कालय ह िवा ा, िकतु यिद वह अपने िच को अययन म एका नह कर पाता ह, तो वह अपने लय क ा म असफल ही रहता ह। जीवन का कोई भी काय यापारयोनहो,अपनेलयकाकिलएउसलयकितएकािचताअिनवायह। पारमािथकलाभकिलएभीमानवजीवनमयोगकाथानअयतमह। भागवत पुराण म उपिनषद से ा देहािद का पक बड़ सुदर प म उपलध होता ह। यह शरीर एक रथ ह। इयाँ इसम अ ह। मन इय का वामी ह और वही लगाम ह।

çàæßÙæâæçãUçˆØ·¤è जनवरी-माच 2023 73 पुराणकाभारतीयवामयमएकिवशेषथानह।वेदकबादभारतीयपरपराकअनुसार पुराण का ही थान आता ह। छांदोय उपिनषद म पुराण को पंचम वेद कहा गया ह।१ अथव वेद म तो पुराण क उपि अय वेद क साथ ही बताई गई ह।२ समत पौरािणक सािहय म भागवत पुराण का थान अयत महवपूण ह। भारत क धम-ाण जनता म िवशेष कर पुराण मभागवतपुराणकािवशेषमहवह।भारतीयपरपराकअनुसारभागवतपुराणमसभीवेदव उपिनषद का सार संहीत ह। यह शुकमुख से सब हो जाने क कारण अमृत व से यु िनगमपीकपवृकापकाआफलह।३ भागवत पुराण म अनेक संग म योग–साधना का अयत िवशद वणन उपलध होता ह। इस म योग शद का योग वत प से एवं कमव ान तथा भ पूवक दोन ही कार से आ ह। युधातु से ध यय लगाने पर योग शद िनप होता ह। पावल योगसू म िच कवृियकािनरोधहीयोगकहागयाह।४यहिचकवृियकािनरोधकवलपारमािथक सेहीअपेयहोऐसानहह।जीवनकयेककायमसफलताकिलएयोगअपेयह। कोई य यापार करता ह, वह अपना सारा यान कवल यापार म ही लगाता ह। उसक साय वतु ह न। उसका मन अपने साय, कवल धन पर ही कत रहता ह। वह अपने इस लयकपूितकिलएइसकारमनकोएकसमािहतकरनेकउपरातहीसफलहो
रथकासारिथह। भागवत पुराण म दिशत योग भ क अंश क प म ही उपिद आ ह। योग –साधना काउेयमनकोएकाकरकभगवाकचरणमलगानाह।मनकोिनिवषयकरककछ भी मरण न करते ए उसे भगवा क ी िवह क िकसी अवयव म लगा देना चािहए। उस समयिकसीअयिवषयकािचतनअथवामरणनहकरनाचािहए।उसेपूणपसेभगवा मलीनकरदेनाचािहए,वहीिवणुकापरमपदहजहाँमनिनरतरआनदसेआयाियतरहता ह।८ यह समत संसार िगुणामक प ह औ रमन इह गुण म आि रहता ह। िगुणामकमनकोधारणाारासंयमकरनाचािहए।धारणाकाराहीमनकािगुणजयम शोध आलेख (शोध आलेख) ीमागवत म योग-साधना क आयामक महा शोध लेखक : डॉ. योसना सी रावल डॉ. योसना सी रावल
शदािदिवषयहीमागह।बुिइस

न होता ह। मन क धारण िकये जाने पर ही

मनुयभलणयोगकोाकरताह।९

इस कार यह ात होता ह िक भागवत पुराण

म उपिदयोग भ क एक अंग क प म

हीविणतह।

योग का लय ह िच का उपशम।१०

िववेकपुषभीबधारजोगुणऔर

तमो गुण म आि हो जाया करता ह,

वह अतत आ मन को यु करने क

चेा करता ह, इस म उस क िवषय क ित

दोष – बनी रहती ह।११ योग साधक को

शनैःशनैः माद रिहत हो कर, आसन और

ाणवायुकोजीतकर,कालानुसार िनिवण

होकर मन को सब ओर से आक कर क

भगवा म ही लगाना चािहए।१२ िवणु पुराण

क अनुसार भी आमान क यन भूतयम, िनयमािदसापेमनकिविशगितऔरउस

क से संयोगन को ही योग अिभिहत

िकयागयाह।१३ पौरािणक योग एवं पातलयोग म यहाँ

पअतरगोचरहोताह।पतिलक

मतानुसार िच क वृिय का िनरोध ही योग

ह।जबिकपुराणकअनुसारिचकवृिय

कािनरोधहोजानेकअनतरउसकाक

साथहीयोगह।

जो योगी पर मावथा अथवा आम-

वप को ा कर लेता ह वह दैव वश

अपनी देह क लौटने, आने, उठाने या बैठने

क कोई सुिध नह रखता ह। उस क दशा

मिदरासेमयकसशहोतीह,िजसे

मिदराकमादककारणयहसुिधनहरहती

ह िक उस क शरीर पर व ह या नह।१४

वृिय क िनद हो जाने पर मन आय, िवषय और राग से रिहत हो जाता ह। गुण क वृियकिनवृहोजानेपरवहपरमामाका

िबना िकसी यवधान क दशन करता ह।१५

योगायास ारा िच क वृिय क लय हो

जानेसेसुखदुःखरिहत–पमिहमाम

वहथतहोजाताह।

वणन आयान क अतगत गोचर होता ह।

नारद का जीवन वृांत, ुव का वृांत, किपलायानएवंीकण

भीम ारा देहयाग, सती ारा देहयाग १७ आिदवणनमयोगाराशरीरयागकरनेका उेख ा होता

कभावसेअपनेपूवजमववतमानकसभी वृात का ान हो जाता ह। इस कार िनयम क भी तफल का िनपण िकया

गया ह जैसे – सतोष से योगी को उम सुख क ा होती ह तो वायाय सेइ देव क

िसिहोजातीहइयािद।

आसन:

योग का तीसरा अंग आसन ह। पतिल

ने िकसी िवशेष आसन का नाम िनिद नह

िकया ह, अिपतु उनक म थर हो कर

सुखपूवकबैठनाहीआसनह।भागवतपुराण

क अनुसार

âæçãUçˆØ·¤è जनवरी-माच 2023

74
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वहअातजिनतअपने कतृवकअहकारकोभीयागदेताह।१६ भागवतपुराणमअांगयोगकावप: भागवत पुराण म अांग योग साधना का वणन य एवं अय दोन ही प म उपलध होता ह। (१) िकसी
को आय लेने का वणन और (२) िकसी महापुषकदेहयागकावणन अांग योग का यह अय
य क योग
कजीवनचरतक अने को संगो म योग का अय वणन िमलता ह। देहयाग क वणन क अतगत भी
ह। यह सब कथा म विणतयोगसाधनाकाअयवणनहीह। अांगयोगसाधना
क अितर इसम अांग योगका सिवतर वणन भी उपलध होता ह।१८ पातल योग दशन क भाँित ही योग क आठ अंग बताये गए ह - यम, िनयम, आसन, ाणायाम, याह, धारणा, यान और समािध। इन सभी का वणन भागवत पुराण म उपलध होताह। यम –भागवत पुराण म यम क बारह भेद बताये ह - (१) अिहसा (२) सय (३) आतयअतेय (४) असंग (५) ी (६) असंचय (७) आतय (८) चय (९) मौन (१०) धैय(११) माऔर (१२) अभय।१९ पतिल ने अपने योग सू म
क कवल पाँच भेट बताये ह- अिहसा, सय,
चयऔर
पुराण म भी उपयु पाँचयम ही वीकार िकये गए ह।अत:भागवतपुराणमयमकसंयाम७ यम अिधक परगिणत िकये गए ह। यह एक नवीनएवंमौिलकअवधारणाहिनयम: भागवत पुराण म िनयम क भी बारह भेद बताये गए ह - (१) शौच (२) जप(३) तप (४) होम (५) ा (६) आितय (७) भगवदचना (८) तीथाटन (९) पराथचेा(१०) सतोष (११) आचाय –सेवा। इस कार यहाँ एकादश िनयम ही आयात ह। भागवत पुराण म यमव िनयम दोन क संया बारह – बारह बताई गई ह।२० अतः शौच क बाव अयतर दो दो भेद मानने पर यह संया पूण हो जाती ह। पतिलकयोगसूमयमकभाँितिनयम क संया भी पाँच ही िनिद क गई हशौच, सतोष, तपया, वायाय व ईर ािणधान। िवणु पुराण भी पतिल का ही अनुसरण करता ह। भागवत पुराण म तीथाटन आिद का समावेश पौरािणक परपरा क कारण ह। भागवत पुराण अनुसार िनयमािद पुष क का मनानुसार फल दान करने वालेहोतेह।िवणुपुराणअनुसारयमिनयम का सकाम भाव से सेवन करने पर मनुय को िविशफल क ा होती ह और िनकाम भाव से सेवन करने पर मु क ा होती ह। पतिल ने येक यम – िनयमािद क पृथक-पृथक फल का वणन िकया ह। चयकितासेवीयलाभहोताह।अिहसा क िता से योगी क एक िमड िनकट, िहसक जीव भी वौर-भाव सिहत हो जाते ह। सय क िता से योगीकतय - पालन –प िया क फल का आय बन जाता ह। इस कार वह वरदान देने या ाप देने म समथ हो जाता ह। अतेय क भाव से योगी क सम सवरन कट हो जाते ह। अपरह
कअयवणन
यम
अतेय,
अपरह।िवणु
भी समतल थान पर सीधे शरीर वाला हो कर सुख –पूवक बैठना ही आसन ह।२१साधककोघरसेिनकलकरपुयतीथ क जल म ान कर क एकात म पिव थान पर िविध वबछाये गए आसन पर आसीन होना चािहए। इसक अितर इसम मुासन व वातक आसन का भी उेख ा होता ह। तक मुासन का उेख भी ाहोताह।भगवाशंकरकवणनमकहा

गयाहिकवेबांयापैरदायीजंघापररखेए, बांया हाथ बांये घुटने पर रखे ए, कलाई म ा क माला डाले तकक म िवराज मान

थे।२२

ाणायाम:

योगकाचतुथअंगाणायामह।अयास

ारााणवायुकोवशमकरनेकियाही

ाणायाम कहलाती ह। पतिल अनुसार

आसन िसि क उपरातास-ास क

गित का िवछद ही ाणायाम ह। भावगत

पुराण अनुसार ाणायाम म नासा पर

थर कर लेनी चािह एव अपने दोन हाथ

अंक म रख लेने चािहए।२३ ाणायाम म तीन

कार ास िया होती ह – कभक और

रचक। इस कार क िया से ही ाण

वायु का माग –शोधन होता ह। णव अथवा

बीज का मरण करते ए ाणायाम कर

नेसेयोगीकामनउसीकारिनमलहोजाता

ह िजस कार वायु और अन से त लौह

अपनामलछोडदेताह।२४

याहार: तवषय से इय को आक करने

को ही याहार कहा गया ह। इय को वश

म िकये िबना िकसीकार क साधना संभवन

ह ह। याहार क अयास ारा योगी क

इयाँ वश म हो जाती ह। याहार सबधी

वणन बडी ही आलंकारक भाषा म िकया

गयाह।यहाँमनकाराबुिकसहायतासे

इय को तवषय से समेट कर उह मन

म थर करने का यन करना चािहए। यहाँ

इयकउपमाअसे,मनकलगामसे

तथाबुिकसारिथसेदीगईह।२५

धारणा:

मन को िकसी एक वतु म धारण करने

कानामहीधारणाह।२६पतंजिलअनुसारभी

िच को एक देश म ठहराना ही धारणा ह।

िवणु पुराण अनुसार िच का भगवा म

धारणकरना

प िवक भी कथा, ह अथवा होगा वही

भगवा का थूल से थूल प ह। जल, अन, वायु, आकाश, अहकार,

इसम भगवा क सगुण प क यान का वणन उपलध होता ह। सगुणप क यान म भगवा क चरण से ारभ करक अत म साधकभगवाकमुकानकयानमतमय होजाताह।

यान क अयास ारा साधक का भगवा म ेम हो जाता ह। उस का दय भ म िवत हो जाता ह, शरीर म आनदाितरक से रोमांच हो जाता ह और उकठा वश अु से बारबार वह अपने

शरीरकोनहलाताह।२९

समािध:

अांग योग क अतगत यान क बाद

समािध

क साधनाकावणनिकयागयाह।

मु क अितर इसी साधना से अनेक िसिय को भी ा करने का साधन

ह। य-त योग दशन का

चुर भाव िदखाई पडता ह। इसक अनुसार

योग भगवद भ को ा करने का एक

साधन ह। भगवद गीता क भाँित ही भागवत

पुराण म योग का भ व ान क साथ

समवयथािपतिकयागयाह।

000

संदभ1अथववेद - एस. डी. सातवतेकर, वायायमडल, ध, 1939, 2छांदोयउपिनषद - गीताेस, गोरखपुर, 3भागवतपुराण- गीताेस, गोरखपुर, 4भागवतपुराण - ीधरटीका, पडतपुतकालय, वाराणसी, 5िवणुपुराण- गीताेस, गोरखपुर, 6योगसू- कशीसंकतसीरीज, वाराणसी, 7 कठोपिनषद- गीताेस, गोरखपुर

çàæßÙæâæçãUçˆØ·¤è जनवरी-माच 2023 75
हीधारणाह। भागवत पुराण म दो कार क धारणा िविहत ह – वैराज और अतयामी धारणा। भगवा क दो प ह - थूल तथा सूम, मशः इन दोन प क धारणा ही वैराज तथा अतयामी धारणा ह। जो कछ भी काय
मह और कित इन स आवरण से आवृ इस ाड शरीर म जो भगवा िवराट पुष ह, वही धारणा क आय ह जो वैराज धारणा कहलातीह। यान: येयवतुकसाथिचकाएकहोजाना ही यान ह। भपूवक धारणा क ारा साधक गहन ान को ा करता ह और उसक थूल सूम क ित कत होती जाती ह।२८ िवणु पुराण अनुसार िजसम परमेर क प क ही तीित होती ह, ऐसी जो िवषयातर पृहा से रिहत एक अनवरत धारा ह, उसे ही यान कहते ह। पतिल अनुसार येय वतु म िच का एका हो जाना ही यान ह। भागवत पुराण क तृतीय कध म यान का सुंदर वणन िकया गया ह। इसी को यान योग भी कहा गया ह।
का थान आता ह। पतिल अनुसार जबिचयेयाकारमपरिणतहोताहसाधक क अपने वयं क वप का अभाव हो जाता ह और वह येय से िभन ह रहता ह, इसी अवथा का नाम समािध ह। भागवत पुराण अनुसार इस अवथा म िच संकपिवकप क वृिय से रिहत हो जाता ह और सुख दुःख से पर उस भगवा म ही थत हो जाता ह उस समय वह अपना कतृव-भाव छोडकर परमाम – काा को ा हो जाता ह।३० इसकारभागवतमअांगयोगसाधना का िवशद वणन उपलध होता ह। अांग योग को भ क साधन क प म उपिद िकया गया ह। इस का अांग योग पातल योग काय थाव अनुकरण नह ह अिपतु इसम मौिलकता भी गोचर होती ह। इसकअनुसारआमाराममुिनभीभगवाक अहतु क भ करते ह। ३१ अतः प हो जाताहिकइसमयोगभकसाधनपम विणत ह। भागवत पुराण क मायता अनुसार तोभहीसवकसाधनह। हठयोगसाधना वायुारावथलकऊपरिवशुच म ले जाता ह। इसक उपरात सिछ को िनकरकभहकबीचमआाचमले जाता ह। आा च म थोडी देर वायु को रोककर थर लय क साथ िफर उसेस हसार च म ले जाता ह और िफर वह र को भेद कर अपना शरीर छोड देता ह।३२ इस कार योगी क ारा मु होने
बताया गया ह। इस कार भागवत पुराण म अनेक संगमयोगसाधनाकाअयतिवशदवणन उपलध होता

था। राय क समत शयाँ, जैसे- कायकारी, सैिनकएवंयाियकयवथाउसमहीकतथी।डॉ.करशीनेसुतानकसवथितक कारणउसेवैधािनकसभुतथावातिवकसभुकउपािधसेिवभूिषतिकयाह।

76 çàæßÙæâæçãUçˆØ·¤è जनवरी-माच 2023 शोध-सार- ऐितहािसक अनुसधान िविध म इितहास िनमाण क मुख ोत-पुरातावक एवं सािहय ोत अिधक महवपूण होते ह। ये ोत मुयतः ितीय ोत क अतगत आते ह। सतनत काल से लेकर मुगल-काल तक मुसलमान किवय ने िहदू किवता क मायम से अय प से िहदू-मुलम एकता का माग शत िकया ह। मुलम किवय म अमीर खुसरो, अदुरहीम खानखाना। रसखान तथा शेख मुबारक का नाम िवशेष ह। इसक अितर िनजामुीन औिलया क मुख िशय अमीर खुसरो ने फारसी क थान पर िहदी को अिधक महव िदया। इस कार ती झझांवत क मय उपरो सत क सराहनीय यास क परणामव सतनतकालीन भारत म सांकितक सामंजय थािपत आ तथा समकालीन भारतपरइसकाअयिधकभावपड़ातथाएकनवीनिमितसंकितकाजमआ। मुलम समाज - इस समय शासक वण से सबधत होने क कारण तकालीन मुसलमान वयंकोउसमझतेथे।उससमयकमुलमसमाजमेिनःसंदेहजाितयवथाकाचलन नहथा।िकतुजम,नलतथाधमकआधारपरयेमुसलमानकईवगमिवभािजतथे।िशया और सुी मुसलमान म अयिधक मतभेद था। उस समय क िवदेशी मुसलमान भारतीय मुसलमानकोघृणाकसेदेखतेथे,परअाहकसमसभीकारकमुसलमानएक थे। सतनत कालीन मुलम समाज मुय प से तीन भाग म िवभािजत था- 1. िवदेशी मुसलमान,2.भारतीयमुसलमान,3.दास। नल क आधार पर िवदेशी मुसलमान तुक, ईरानी, पठान, अफगानी तथा मुगल म िवभािजत थे। मुय प से िदी सतनत म मुय पद पर इह रखा जाता था। िवदेशी मुसलमान को तकालीन इितहासकार िननिलिखत पाँच वग म बांटते ह- 1. शासक वग, 2. सामतएवंअमीरवग,3.उलेमावग,4.मयमवग,5.साधारणवग इसम शासक वग सबसे शशाली
मुसलमान
िवभािजतकरतेथे।1.खान,2.लक,3.टमीर,4.िसपहसालार। मय युग म इन अमीर का तकालीन राजनीित पर िवशेष भाव था। िकतु जब ये अिधक शशालीतथाअिनयंितहोजातेथेतोसुतानइनकशयाँवापसलेसकताथा।क.एम. अशरफ क अनुसार- ''सुतान उनक जीवन काल म ही इनक उपािधयाँ वापस ले सकता था इह सदैव सुतान क कपा पर िनभर रहना पड़ता था।''वह उलेमा वग याय, धम तथा िशा सेसबधतपदपरिवराजमानहोताथा। डॉ. क.एम. अशरफ क अनुसार- ''करान म उलेमा का थान सामाय प से मुसलमान सेपृथकमनागयाहजोलोगकोउिचतमागदशनकरातेह।'' उलेमा राजनीित म भी हतेप करते थे। वे सुतान को वैधािनक िवषय क साथ-साथ राजनीित िवषय पर भी अपनी सलाह देते थे। इस काल म अलाउीन िखलजी व उसक प़ु शोध आलेख (शोध आलेख) सतनतकाल म भारतीय संकित का मूयांकन शोध लेखक : संदीप कमार राजपूत डा० मंजुलका तोमर शोध िनदशक व आचाय संदीप कमार राजपूत शोधाथ, इितहास िवभाग मानिवक,सामािजक िवान व कला संकाय महिष यूिनविसटी ऑफ इनफामशन एंड टोलॉजी, लखनऊ
म दूसरा महवपूण वग अमीर का था, जो वयं को िननिलिखत ेिणय म

शाह िखलजी को छोड़कर शेष सतनत

सुतानकसमयइनकािवशेषमहवथा।

सतनत काल म मय वग- यहाँ मयम

वग से तापय यापारी, कमचारी, िलिपक या

लेखक इयािद आते ह। डॉ. युसूफ सैन क

अनुसार- ''मयम ेणी क लोग क संबंध म

हमारी जानकारी बत कम ह। इस वग म यापारी-यवसायीऔरसरकारीकमचारीया लेखक वग जैसा िक उहकहा जाता था, समिलत थे। समु तट पर रहने वाले

यापारी और सौदागर का जीवन िनत प

से उन लोग से ऊचा था जो देश कभीतरी भूभाग म रहते थे। िजसका कारण यह था िक उह दूसर देश क लोग क सपक म आना

पड़ता था और अतराीय आराम और

सुिवधा का भी उह अनुकरण करना पड़ता था।''

वतुतः मय काल म उ वग क

उपरात मयमवगय समाज ही एक ऐसा

समाज था िजसक आिथक थित सही थी।

समाजमइनकामानतथासमानहीसहीथा, अिपतु ये शासक तथा जनसाधारण वग क मयएकमहवपूणकड़ीथी।मयमवगक

अपेा अमीर क थित उ नह थी, यिक इह अपना उ जीवन तर बनाये रखने क िलए अिधक यय करना पड़ता था।

साथ शासक वग को स करने क िलए महगे-महगेउपहारभीदेतेपड़तेथे।

इस िवषय पर बिनयर कहता ह िक''बतहीकमधनवानअमीरसेमेरीपहचान

थी। इसक िवपरत उनम से अिधकांश

ऋणत थे। बादशाह क बमूय उपहार

और अपने कमचारय क कारण वे िवनाश

ककगारपरपचगएथे।''

मयमवगउससमयसमानपरथातथा

उस समय क मयम वग क यय का

जीवन तर शासक क तुलना म नीचा था

िकतु अमीर क अपेा उ था। वातव म

यह मयम वग सरकारी कमचारय क भय क कारण उ तरीय जीवन नह जीते थे, उह सदैव यह डर लगा रहता था िक कोई उनक सपि न

कम खचा करता था तथा िनधन क तरह जीवन यतीत करता था। मयमवगय

सरकारी कमचारय का जीवन भी बत

सपनहथा।''

इस समय उोग क थापना ारभ

या छोट यापारी, मजदूर वग इयािद वतुतः सपूण सतनत काल म इनक थित शोचनीय तथा दयनीय ही रही। इस िवषय म युसूफ सैन िलखते ह िक- ''कब

नगर म रहने वाले िनन ेणी क लोग

िवदेशी याी उनक दुदयकाहीिचणकरतेह।''

का सबसे मुखकारयुबदीकोदासबनानेकाथा। इनआमणकारीतुकनेभारतकभीतरऔर बाहर अपने यु म बड़ पैमाने पर ितपी

सैिनक को पकडकर दास बनाया। इस

सतनत काल म पम एिशया क समान

भारत म भी ी तथा पुष क िलए दास क बाज़ारथािपतहोगएथे।इनदासमयूनानी, तुक एवं भारतीय दास क कमत अिधक

होतीथी।इसकअितरअकासेभीदास

सतनत काल म भारत लाये जाते थे। इनका

मुखकारहशीथा।

ायःकौशलपूणदासककमतअिधक

थी तथा सुदर लड़क उस सतनत काल

çàæßÙæâæçãUçˆØ·¤è जनवरी-माच 2023 77
छीन ले। इस िवषय म बिनयर िलखते ह िक- '' यापारी वग बत
चुक
मायम
से
अनुसार-
समु
थे।अरबेरयातथा फारस तक से उनक यापारक संबंध थे। उनम से अनेक पूँजीपित अयिधक अमीर थे।'' संेप म कह तो मयम वग क आिथक थित तो सही थी िकतु उनक सामािजक तथा सांकितक थित अछी नह थी। मयम वग म भी उ यापारी ही अिधक सप था। वह अिधकांश मुलम अमीर वग भी अपने व शासकय कारण से परशान था। जनसाधारण वग- इस वग का थान मयम वग क उपरात आता ह, जो िनन तरीय था। इस वग म िननिलिखत य समिलत थे- कारीगर वग, कषक वग, छोट-दुकानदार
तथा िकसान क ऐसी दशा थी, जैसी आधुिनकसमयमह।जहाँतकउनकिनवास का संबंध ह, अिधकतर
इस
िवचार तकालीन यूरोपीय याी पेलसट भी रखता ह। वही िलखता ह िक- ''उनक मकान िमीकबनेएछपरकछतकह।कछ िमी क घड़ पकाने क बतन और दो चारपाइय क अितर उनक घर म साजसा क सामी या तो बत कम ह या िबकल कम ह। उनक िबतर बत कम ह, कवल दो चादर- िजसम से एक िबछाने तथा दूसरी ओढ़ने क काम आती ह। ीम ऋतु क िलए यह पया ह िकतु कड़ाक क जाड़ करातवतुतःबतदयनीयहोतीह।'' सतनत काल म दास क थितउपरो जन साधारण वग क अितर नगर म रहने वाला एक बड़ा वग दास तथा घरलू नौकर का आ करता था। वतुतः भारत क ाचीनसमयमसेहीदासतथादासयवथा का चलन रहा ह। नारद मृित म अनेक कार क दास का िवतृत वणन िकया गया ह। ायः दास परवार म जमे, कए िकये गए दास, वयं को बेहाल बनाया गया दास तथा िविभ कार क दास का िववरण हम िविभ िहदू थ म ा होता ह। िकतु हम यह यान रखना चािहए िक इस ाचीन भारत म दास क थित दयनीय नह, अिपतु समानीय थी। उह परवार का ही एक भाग माना जाता था, तभी तो जब मेगथनीज भारत आया था तो उसने यहाँ पर दास का अभाव पाया था। उसने भारत म सात सामािजक वग कभीचचाकहिकतुइसमदाससमिलत नहथे।परतुसतनतकालआते-आतेदास कथितिबगड़गई। सतनत काल म दास बनाने
हो
थी। इनम से कछ उोग राय क
से कछ उोग यापारय क मायम
चलाये जाते थे। डा. युसूफ सैन क
''गुजरात म बिनये भारत क समत
तटपरयापारकरते
तथा
िवषय म तथा इससे िमलते-जुलते
म कमत लगायी जाती थी। वतुतः सतनत काल म कशल दास को अिधक महव िदया जाता था, यिक उनका यु म कशलता से योगिकयाजासकताथा।ऐसाहीएकदास शासक कतुबुीन ऐबक था, जो अपनी कशलता क कारण दास बना था। ऐसे ही

िववरण हम पमी तथा मय एिशया म भी

िमलते ह, जहाँ लोग को पकड़कर दास

बनाया जाता था तथा इसक बाद उह इलाम

धम कबूल करवाया जाता था। ऐबक ने भारत

म सा ा क उपरात दास यवथा को

बनाये रखा। उसने 1195 म गुजरात पर

आमण करक यहाँ से 20,000 तथा

कािलंजरपरआमणतथावहाँसेपकडकर

50,000 यय को दास बनाया। िकतु

बलवनतथाअलाउीनिखनजीनेइतनेबड़

पैमानेपरइसकारदासनहबनाये।वतुतः

इनक काल म भी दास को भी वतु क

समान लूट का एक भाग ही समझा जाता था।

हम यह यान रखना चािहए िक अिधकांश

युबंिदय को मार िदया जाता था कवल

कछक कौशल पूण यय को िजदा रखा जाताथा।

इस िवषय म महदी हसन िलखते ह िक13व शतादी क दास क समान राय क

सीमा को बढ़ाने अथवा िवोह को दबाने

जैसी सेवा क अपेा दास ने गजकोष को

टककरनेमअपनायोगदानिकया।

य क थित- ाचीन भारत म हम

अनेक िवदुषी मिहला का िववरण पाते ह, िजससे ात होता ह िक उनक थित ाचीन

समय म अछी थी, िकतु पूव मय काल

आते-आते उनक जाितय तथा उपजाितय क

उव क कारण इनक थित म िननता

आई। मुसलमान क आगमन क उपरांत

सतनत काल म उनक थित म भी भी

िगरावट आई। अनेक खतर क कारण अब

उसे संरण म रहना होता था। इस िवषय म

अमीर खुसर िलखता ह िक- '' य का

जीवन िनयंित था। प़ुी क प म वह माता-

िपता, पनी क प म पित और िवधवा क प

म उसे अपने पु क सरण म रहना होता था।''

इस समय बपनी िववाह का चलन बड़ा तथा िवधवा िववाह पर अनेक अंकश लगे। िजसक

जवान होने से पूव ही कर देना अपना धम समता था। वतुतः बाल िववाह

तथा पदा यवथा का मुय कारण इन आांता क काम िपपासा से उह बचाना था। अतः कया का जम शोक का कारण माना जाता था तथा कभी-कभी बाल कया हयाभीहोतीथी। सतनत क अित किठन थित म कछ याँ िशित थी, िकतु ामीण भारत म अिधकांश याँ अिशित ही थ। िकतु उ कल या उ परवार म ी िशा पर यानिदयाजाताथा।डॉअशरफकअनुसार''राजेर क पनी अवत सुदरी, देवलरानी, पमते, पिन तथा मीराबाई िशितनारयकसजीवउदाहरणह।''

इस कार ये अयंत ही दुलभ थे तथा अिधकांश याँ अिशित ही थी।

को उलेमा कहा जाता ह। पैगबर क उपरात इलामी समाज म सबसे बड़ वामी खलीफा ही थे। उस समय खलीफा म यह था चिलत थी िक खलीफा अपने जीवन काल म ही अपने उरािधकारी को िनयु अथवा मनोनीत कर

सकता ह। कछ माल क उपरात खलीफा का यह पद वंशानुगत ही हो गया। इसम महमूद गजनवी थम वतं मुलम शासक था, िजसनेसुतानकउपािधधारणकरलीथी।

सतनत काल म िशा यवथािनःसदेह हम जानते ह िक अपने उम क समय से ही मुलम शासक युिय थे। वे अपना अतव बचाए रखने क िलए संघष और यु को जानते थे। इसक उपरात भी सतनत काल िविभ शासक ने िशय क उित क अनेक काय िकये। वतुतः हम जानते ह िक िकसी भी देश क सयता या संकित का मुय आधार उस देश

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78 çàæßÙæ
कारण य क थित और यूनता पर आ गई। सती था का चलन से ही था। अब राजपूत याँ मुसलमान आाता क कारण जौहर (वयं को अन म जला डालना) भी अपनाने लगी। सतनत म य से यह आशा क जाती थी िक वह पित क शव क साथ वयं सती ही हो जाए अथवा अपना जीवन िभुणी क समान िजये। इस िवषय अलबनी िलखा ह िक- '' िवधवा का एकमा िवकप सती होना था। िवधवाहोनापापसमझाजाताथा।'' वह यूरोपीय याी डला वेला ने िलखा ह िक- ''िवधवा पुनिववाह नह करती थी और अपने िसर क बाल कटवाकर एकातवासी रहतीथी।'' अब मुलम आमणकारय क आगमन क उपरात भारतीय िहदू समाज म पदा यवथा क बीमारी भी आ गई। िहदू मिहला से िववाह क िलए मुलम सदैव लालाियत रहते थे, अतः उनक रता से बचनेकिलएबालिववाहतथापदायवथा का आरभ आ। एक िपता अपनी पुी का िववाह उसक
उपरो क अितर देवदासी क था भी इस समय उपथतथी।मदरमसुदरबािलकाको नृय क उेय से देवदासी बना िदया जाता था, जहाँ उसे कभी-कभी अयिधक िघनौना जीवनयतीतकरनापड़ताथा। सतनत कालीन भारत क जाित यवथा- पूव क भाँित पूव मयकाल म भी भारत म जाितय क जिटलताएँ बनी रह। िहदू क साथ-साथ मुसलमान म अनेक मतभदे पाये जाते थे। अाता तुक भारतीय मुसलमानकोसमानकसेनहदेखते थे तथा उनक ित सदा ही घृणा क भावना बनी रहती थी। इसक अितर भारतीय मुसलमान को राजकय सेवा का अवसर भी ना क बराबर ा आ। इसक अितर जो सुी मुसलमान होते थे वे िशया मुसलमान कोछोटीसेदेखतेथे। िदी सतनत क शासिनक यवथा- भारत का सपूण मयकाल म इलाम क कर रायधम बना रहा इस समय करपंिथय ने अाह क पैगबर मुहमद साहब क ामािणक काय और कथन का ही सहारा िलया। पैगबर क इन काय तथा कथन को हदीस का नाम िदया गया।वतुतःइलामीकानून'शरीअत'करान और 'हदीस' पर ही आधारत ह। इलाम म िढ़वादी यायाकता
क िशा ही होती ह। अंेज़ ने इसिलए भारत आगमन क उपरात देश क देशी िशय को न करने कायासिकयातथामाअपनेनौकरीयोय सेवक बनाने क िलए कछ अंेज़ी का सार कराया। 000

(ResearchArticle)

Diabetes,test, DiagnosisDiabetes

Risk&Care

ResearchAuthor: Dr.ChhayabenR.Suchak

Introduction

In order to discuss diabetes more thoroughly, an understanding of the anatomy and physiology related to the development of diabetes in necessary. The problems of diabetes originate in an organlocatedbehindthestomachaboutthelengthofahumanhand called the pancreas. The pancreas is necessary for both digesting food and regulating energy. It is the regulation of energy for the bodythatisimportantinthedevelopmentofdiabetes.Thepancreas produceshormonesthatmetabolizefood.Thesehormonesregulate the use of glucose, a simple sugar, which is used for most of the activitiesinourbodies.Thepancreasregulatesenergyinavarietyof behaviours in which humans engage such as exercise and movement,respondingtotraumaandstress,andinfections.

Thepancreassecretesthreedifferenttypesofhormones.Insulin isthefirsthormonethatisproducedwhenglucoserisesintheblood. Insulinusuallyrisesaftereatingameal,andexcessglucosethatis notusedisstimulatedbyinsulintobestoredinmusclesandfatcells sothatenergycanbeusedlater.Theliveralsostoresexcessglucose in the form of a carbohydrate called glycogen.The second type of pancreatic hormone is glucagon. Glucagon breaks down glycogen stored in the liver so that it can be used as energy when blood glucosesuppliesaredown.Thethirdtypeofpancreatichormoneis called somatostatin, thought to be important in regulating both insulinandglucagon.

When diabetes develops, this balanced control system does not operateproperly.Theglucoseinthebloodstreamincreases,andthe cells are not able to utilize it. The individual developes hyperglycemia(excessglucoseintheblood).Thiscanbedetected bymeasuringtheglucoseinthebloodfromabloodsample,orifthe glucose is elevated enough, it can be detected in the urine as spillover. This sort of situation occurs when there is not enough insulintopermitthecellstoutilizetheglucose,orthereisresistance mostlikelyatthecellularleveltothepresenceofinsulin.Bothcases producediabetes.

Box4.2.DiabetesFactsandFigures

-About 15.7 million people in the United States have diabetes, and5.4milliondonotknowit!

-Diabetesintheseventh-leadingcauseofdeathbydiseaseinthe UnitedStates.

-Diabetesisachronicdiseasethathasnocure.

-Diabetesistheleadingcauseofblindnessinpeoplebetweenthe agesof20and74.

-Approximately 27,900 people started treatment for end-stage renuldisease.

-Peoplewithdiabetesaretwotofourtimesmorelikelytohave heartdisease.

-Peoplewithdiabetesaretwotofourtimesmorelikelytosuffera stroke.

- Health care and related costs for the treatment of diabetes are about$92billionannually.

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ResearchArticle
Dr.ChhayabenR.Suchak DepartmentofPsychology ArtsCollegeVijaynagar Sabarkantha
Gujrat

The most common form of diabetesisType2orNonInsulin Dependent Diabetes Mellitus (NIDDM), also known as adult onset diabetes. Usually, people who develop NIDDM are over 30yearsofage.

As we discussed in the opening section of this chapter, pregnant women sometimes develop gestational diabetes. Thistypeofdiabetesoftentakes the form of adult onset diabetes (NIDDM).

SomeIndianindividualswith uncontrolled diabetes (adult onset is the most common) develop extremes of high and lowconcentrationofsugarinthe blood, which is sometimes termedbrittle,unstable,orlabile diabetes.Theseindividualsmay require hospitalization in order to become stabilized. Brittle diabetics may need three and fourinsulininjectionsadayand a very closely monitored lifestyle, with diet controls and activity levels carefully controlled.

Diabetes has two types of long-term effects. One type is associated with blood vessel involvement. Damage to the largevesselsputsthediabeticat greater risk of stroke, heart attack,andgangreneofthefeet.

StressandType1Diabetes

Thus, the role of stress management procedures in the treatmentofType1diabeteshas notyetbeenmadeclear.Studies using larger groups of subjects matched for age of onset, personality characteristics, sex, and type of stress should help clarifythispicture.

StressandType2Diabetes

Accordint to Surwit and Schneider,studiesexploringthe effects of stress and stress management procedures have been more consistent in finding

positive results for Type – 2 diabetes than for Type 1 diaboetes research. These researchers point to studies showing how stress affects glucose levels in Type 2 diabetics both acutely and chronically.Evidencefromboth animals and humans indicates that individuals with Type 2 diabeteshavealteredadrenergic sensitivityinthepancreaswhich may make them susceptible to stressful environmental conditions.Ifstresscanincrease blood glucose, then training in relaxationshouldlowerglucose. This seems to be so, but subject pools have been small, with a greatdealofsubjectvariability.

whocouldbenefitfromstress management strategies and a corresponding improvement in health status. Further research would also necessitate investigatingindividualsintheir natural social environment where other factors may be playingroles.

medical therapy program involving 38 patients withType 2 diabetes. Volunteers were assigned to relaxation training and diabetes education or a diabetes education – alone group.Thewereadmittedtothe hospital for metabolic assessment and then given outpatientrelaxationtrainingfor eight weeks. Assessments were repeatedat24and48weeks..

Type1orType2diabetescan be clarified. psychological characteristics of individuals who respond to stress management interventions. Paying attention to these characteristicswillbeimportant in the future if stress management techniques are to beofmaximumeffectiveness.

DiabetesManagement

Psychological Factors:

Diabetesisagoodmodelforthe study of chronic disorder management because there are waystomeasurebloodglucoses over varying lengths of time. In the short term, one can measure daily blood glucose levels, glycosylated haemoglobin, which represents average blood glucose levels over six to eight weeks,andfructosamine,which measures blood glucose levels overshortertimeperiods.Shortterm complications of diabetes occur such as diabetic ketoacidosis and hypoglycaemic episodes. In the long run, complications such as retinal destruction, kidney disease and failure, foot ulcers, gangrene, and male erectile impotencedevelop.

Psychological variables are important because the health beliefs, knowledge, and behaviour of both people with diabetes and of health care professionals involved in dealing with these people affect how diabetics control their disease

Because diabetes is so difficult to control effectively overthelongrun,itisimportant to pay attention to diabetic patients psychological well being, as well as metabolic control. According to Bradley, psychologicaloutcomesthatare measured by existing paperand-pencil personality inventories may be inappropriate with people with diabetes. Personality measures of depression and anxiety include items that may be indicative of depression in the general population, but may reflect the symptoms of poor blood glucose control in diabetics. For example, fatigue, appetite disturbances, weight loss, anxiety, irritability, and

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loss of sexual interest may be symptoms of abnormal blood glucose levels rather than depression.BradleyandBradley and Lewis have developed measures of psychological adjustment designed for diabetics and include measures to determine well being and energyaswellasdepressionand anxiety. Ideal diabetic management occurs when the diabetic is satisfied with the treatment regime as well as maintaining effective blood glucose control. However, measurement of psychological processes may give us clues to what is going wrong with individualswhoaremaintaining poor diabetic control. It may also provide ideas on ways to approachpatientsbasedontheir personality styles to improve control.

Weight

Someresearchersfoundthat combinations of nutrition education, behaviour modification techniques, very how calorie diets, and exercise produced dramatic weight losses in some patients with Type2diabetes.

Psychologists can aid diabetics in other ways, including assisting in tailoring treatment regimens to patients' individual needs and social context, providing coping strategies for familes with diabetics, and helping health careprofessionalsimprovetheir communication skills with their diabetic patients. Diabetic adolescents are also prone to eating disorders. According to Bradley, young, mostly female diabetics may binge and then omit insulin injections so that they do not gain weight from their binging. These all pose special challenges for the

psychologist. AdherencetoTreatment

Management of chronic illnesses such as diabetes necessitates lifetime behavioural changes. In diabetes, patients are asked to measure their blood glucose, administer insulin, make significant and difficult dietary changes.

The results showed that selfefficacy was a significant predictor of adherence to the separatecomponentsofdiabetes management over a subsequent eight-week period. The authors found that reports of adherence had a significant positive relationship with concurrent glycosylated hemogoblin even afterseverityofthedisorderwas controlled statistically. The authors noted some limitations in the generalizability of the results.Sixty-twopercentofthe subjectsinthestudywereType2 diabetics, possibly resulting in weighting the results in their favour over Type 1 diabetics. The authors could not clearly separate out the relative effects of each type of diabetes on the results. person's self-efficacy may be important to overall managementofdiabetes.

Summary

Diabetes involves the disregulation of carbohydrate metabolismbythepancreasand cellularprocessesinthebody.In Type 1 diabetes, the pancreas makes little or no insulin; therefore, the body cannot metabolize glucose for its energy needs. It is thought that Type 1 diabetes is caused by an autoimmune process whereby the body's immune system destroys the beta cells of the pancreas that make insulin. In distinction to Type 1 diabetes, Type 2 deiabetics have

functioning beta cells that may be making too little insulin, appropriate amounts, or an excess.Theproblemcanbethat the cells which absorb glucose have developed a resistance to the effects of insulin owing in parttolifestylefactorssuchasa high-fat diet and a sedentary lifestyle. Both short-term and long-term complications develop from the disease. Deterioration of the circulatory andneuralsystemsislikely.but more research is needed to fine tune methodological problems and to identify the personality variables that respond favourably to stress managementtechniques.

FoodforThought

1. What is Diabetes Mellitus ? What biological processes contribute to its effects ? Describethedifferenttypes.

2.Whatarethefactorswithin our control and the factors that arenotwithinourcontrolinthe origin and progression of diabetes?

3.Why is adherence difficult in managing diabetes ? How would you go about improving adherence?

4. Describe the effects of stress on diabetes. What psychological techniques might be useful in managing the disease ? What factors might makethemeffective?

000

Bibliography

Reference

1. Health Psychology, Dinesh Rawat, Sublime Publication, Jaipur –302006

2. Clinical Psychology, Charu Sharma

3. Problems and Practices in MentalHygiene,DattatreyP.

4.www.searchgooglediabetes

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(ResearchArticle) ProgrammeTo IncreaseThe AptitudeForEnglish

ResearchAuthor:

KataraSejalbahenNathubhai

Ph.DScholer,HnguPatan Guide

Dr.D.SPatel

Asso.Professor,HnguPatan

Introduction

Even in our country, the need and desire to learn English languageisgrowingdaybydayamongIndiansbecause,asEnglish is an international language, it is necessary for every person to be able to communicate effectively in English. So it is necessary that every person should get an opportunity to speak English. English subjectiseasyatsecondarylevelisTherefore,approachesshouldbe takensothatthestudentsusetheEnglishlanguageextensivelyand the students learn to absorb it themselves. Students can read and writebutcannotcommunicateeffectivelyinEnglish.Therefore,it is necessary to create such an environment in the class so that the studentsareexcitedtocommunicateintheEnglishlanguage,sothat the students communicate with each other, and for this to increase theEnglishAptitude,itisnecessarytocreatesuchasituationinthe class that the students should continue to have a practical opportunitytospeakEnglish.Speaking,readingprocessisnotonly verbalexpression,buttheresultoftheentirementalprocess.From which his Aptitudes. The subject matter is about preparation and narrationandpracticality.Today'sworldischangingrapidly.Itsuse is maximum in external life. However, it is used in schools to measure students' interest or aptitude for that English subject by including it in intelligence tests. Hence this topic of aptitude program structure and its effectiveness has been chosen under a differentnameandwithaviewtomeasuringthestudent'sstrength towardstheEnglishsubject.

Operatonaldefinitionsoftheterms

Secondaryschool

Education after completion of primary education. As per education policy of 1986 7+3+2 as per the educational scheme of 7+3+2 the standard after primary 8 which is the beginning of secondary education means 9th. A managed school imparting education up to class 9 and 10. In the present study, governmentsemi-government (receiving government grant) and self-financed educational institutes teaching the curriculum of class 9 and 10 in thestateofGujarathavebeenacceptedassecondaryschools.

SecondarySchoolintermediatebetweenelementaryschooland college.

KataraSejalbahenNathubhai

Ph.DScholer, HnguPatan

Asso.Professor,HnguPatan

Objectivesofthestudy1.Toconstructaptitudepre-testandposttest for students of class-9 to know the aptitude towards English subject. to do. 2. To construct a program to increase Aptitude in English subject among students of class-9. 3. To study the effectivenessofaprogramdesignedforAptitudeinEnglishsubject among students of class-9. 4. To study the effectiveness of a programdesignedforAptitudeinEnglishsubjectamongstudentsof class-9 with respect to gender. 5. To study the effectiveness of a program designed for Aptitude in English subject among class-9 students with respect to habitat. 6. To study the effectiveness of a program designed for Aptitude in English subject among class-9 studentsintermsofpre-testandpost-testscoresoftheexperimental group.

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ResearchArticle

7. To study the effectiveness of a program designed for English subject Aptitude in class-9studentsintermsofpretest and post-test scores of a controlgroup.

8. To study the effectiveness of a program designed for Aptitude in English subject in class-9 students with respect to experimental group and control group.

RESEARCHHYPOTHISIS

Ho1 There will be no significant difference between mean score of students of control group rural habitat maleand students of experimentalgroupruralhabitat maleon Aptitude for English SubjectPre-Test.

Ho2 There will be no significant difference between mean score of students of control group rural habitat femaleand students of experimentalgroupruralhabitat femaleon Aptitude for English SubjectPre-Test.

Ho3 There will be no significant difference between mean score of students of control group urban habitat maleand students of experimental group urban habitat maleon Aptitude for EnglishSubjectPre-Test.

Ho4 There will be no significant difference between mean score of students of control group urban habitat femaleand students of experimental group urban habitat femaleon Aptitude for EnglishSubjectPre-Test.

Ho5 There will be no significant difference between mean score of students of control group maleand students of experimental group maleon Aptitude for English Subject Pre-Test.

Ho6 There will be no

significant difference between mean score of students of control group femaleand students of experimental group femaleon Aptitude for English SubjectPre-Test.

Ho7 There will be no significant difference between mean score of students of control group rural habitatand students of experimental group rural habitaton Aptitude for EnglishSubjectPre-Test.

Ho8 There will be no significant difference between mean score of students of control group urban habitat and students of experimental group urban habitat on Aptitude for EnglishSubjectPre-Test.

Ho9 There will be no significant difference between mean score of students of control groupand students of experimental groupon Aptitude forEnglishSubjectPre-Test.

Ho10 There will be no significant difference between mean score of students of control group ruralhabitat maleand students of experimentalgroup ruralhabitat maleon Aptitude for English Subjectpost-test.

Studyvariables

Avariablecanbesaidtobean attribute that has different values.Inotherwordsavariable means something that changes, more precisely a variable is a noun to which a number value can be applied. Any characteristic of a person group orenvironmentthatcanchange. It is known as variable. E.g. Age,gender, intelligence, achievement, program, method etc.

Typesofresearch

Among the above types of research, research conducted is practical is research. Because,

the purpose of the research conductedistodesignandtesta program to developAptitude in theEnglishlanguage.

ResearchMethodology

Variousresearchmethodsare used to conduct research in the field of educational research. If any type of research is carried out, a suitable method has to be thought of to find a solution to theproblemthathasarisen.Itis necessary that the result of any research is satisfactory and reliable and for that research method or technique is important.

PresentResearchplanning

Observationofchangesinthe outcome variable by systematically changing the causalvariableundercontrolled conditions to establish a causal relationship between the variables within the research is the experimental method, in the survey method the data is obtained from each member of the population or even from a selectedsample.

Implementation of the Experiment

In the context of the present research,theeducationprogram was implemented during the academicyear2022-23tomake the competency enhancement program effective for the studentsofclass-9.

Toolsofresearch

Sincethemainpurposeofthe presentresearchistodesignand test an English subjectAptitude program, it is natural that an instrument should be designed. Henceinthepresentresearchthe researcher has used self-made learningprogramasatool.Also a self-administered pre-test and post-test for English subject Aptitude is also designed to check the effectiveness of the Rachel Competency

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EnhancementProgram. SampleforStudy

Inthisscheme60maleand60 female students in the control group and 60 male and 60 female students in the experimental group. has been included. 60 rural and 60 urban female students in the control group and 60 male and 60 female students in the experimental group. has been included.

Aptitude for English Subject post-test.

Ø Experiment-wise mean score of the students of experimentalgroup ruralhabitat malewere found to be higher thanthemeanscoreofthegroup of students of control group ruralhabitatmaleonAptitudefor English Subject posttest.Aptitude of students ofexperimentalgroup ruralhabitat malewas found to be significantly higher than Aptitudeofgroupofstudentsof control group ruralhabitat maleon Aptitude for English Subjectpost-test.

Ø Experiment-wise mean score of the students of experimentalgroup femalewere foundtobehigherthanthemean scoreofthegroupofstudentsof control group femaleon

Aptitude for English Subject post-test.Aptitude of students ofexperimentalgroup femalewas found to be significantly higher than Aptitudeofgroupofstudentsof control group femaleon

Aptitude for English Subject post-test.

Ø Experiment-wise mean score of the students of experimentalgroup rural habitatwere found to be higher thanthemeanscoreofthegroup ofstudentsofcontrolgrouprural habitaton Aptitude for English

Subject post-test.Aptitude of students ofexperimentalgroup rural habitatwas found to be significantly higher than Aptitudeofgroupofstudentsof control group rural habitaton Aptitude for English Subject post-test.

Ø Experiment-wise mean score of the students of experimental groupwere found tobehigherthanthemeanscore of the group of students of control groupon Aptitude for English Subject posttest.Aptitude of students ofexperimentalgroupwasfound to be significantly higher than Aptitudeofgroupofstudentsof control groupon Aptitude for EnglishSubjectpost-test.

Effect of score of post-test andpre-testcontrolgroup

ØMeanscoreofthepost-test controlgroupwerenotfoundto behigherthanthemeanscoreon pre-test of the group of control grouprural habitat male.Aptitude of students of control group on the post-test wasnotfoundtobesignificantly higherthanAptitudeofgroupof students of control grouprural habitatmale

Mean score of the post-test controlgroupwerenotfoundto behigherthanthemeanscoreon pre-test of the group of control grouprural habitat female.Aptitude of students of control group on the post-test wasnotfoundtobesignificantly higherthanAptitudeofgroupof students of control grouprural habitat female Mean score of the post-test control group were not found to be higher than the mean score on pre-test of the group of control groupurban habitatmale Aptitude of studentsofcontrolgrouponthe post-test was not found to be significantly higher than

Aptitudeofgroupofstudentsof controlgroupurbanhabitatmale.

Mean score of the post-test controlgroupwerenotfoundto behigherthanthemeanscoreon pre-test of the group of control grouprural habitat .Aptitude of studentsofcontrolgrouponthe post-test was not found to be significantly higher than Aptitudeofgroupofstudentsof controlgroupruralhabitat

Mean score of the post-test controlgroupwerenotfoundto behigherthanthemeanscoreon pre-test of the group of control groupurban habitat.Aptitude of studentsofcontrolgrouponthe post-test was not found to be significantly higher than Aptitudeofgroupofstudentsof controlgroupurbanhabitat.

Mean score of the post-test controlgroupwerenotfoundto behigherthanthemeanscoreon pre-test of the group of control group.Aptitude of students of control group on the post-test was found to be significantly higherthanAptitudeofgroupof studentsofcontrolgroup

Conclusion

The present study examined the effectiveness of students through a program designed to improve students' Aptitude in English. Little effort has been made to overcome the aversion to the English subject. In the present study there is a possibilityofsomeerrorsdueto the personal limitations and abilities of the students. The present research paper has been prepared by this research with the purpose of helping to raise awareness among teachers, students and society in English subject. This research will be worthwhileifitbecomesaguide and useful for those involved in Englisheducation. 000

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(ResearchArticle) SocialValueof ParentsandChildren inJointandNuclear Families

Theimportanceofthefamilyinmakingandmoldinganindividualon theonehand,andinfluencingsocialgroupsandpatternsontheother,has been recognized by social scientists. The present study focuses on individual level changes affected by the modifications that are taking place in the family under rapid on-going socio-cultural changes in contemporary Indian society.Asample was taken from theAhmedabad City.Total360participants(240parentsand120children)wereincluded in this study.The age of the parents was ranging 35-45 years with mean ageof(44.62)andminimumgraduationlevelofeducationandchildrenof age group from 15-17 years. The results show the family structure does not effect on parents and children social value in the family.There is no significant differences were found between parents and children social value in joint families. There is significant differences were found between parents and children social value in nuclear families. By identifying salient factors in the family structures and its influence on social values, the study hopes to provide significant implications for humandevelopmentinchangingsocialcontexts.

Keywords:FamilyStructure,Socialvalues,Culturaldimensions. FamilyStructure

Familystructureisconceptualizedastheconfigurationofrole,power andstatus,andrelationshipsinthefamily.InIndiathestructureoffamily can be seen broadly as of three types. The traditional family is the one living jointly and inclusive of members from different generations. The extendedfamilyisone,wheremarriedsonsandbrothersliveseparately, but they continue to have joint property and share income. The nuclear typeoffamilyistheone,inwhichthegroupconsistsofamale,hiswife andtheirchildren.

Innuclearfamiliestheconceptis'memywifeandmychildren'withno place for others is alarming. These are some common features seen in contemporaryurbansocietyinIndia.

Familyjointnessstillcontinuestobemajorsociologicalphenomena. KapadiaK.M.(1966)hasdefinedajointfamilyas;"theyshoulddwellin thesamehouse,taketheirmealsandperformtheirworshiptogetherand enjoypropertyincommon".

Structural changes involve similar role differtiations in almost all aspectsofsociallife.Growthinscienceandtechnologyaddsimpetusto processandfinallyacceleratesthemomentumofchange.Changeceaseto be exceptional phenomena, as in the traditional societies, it becomes a day-to-dayfactoflifetolivewithitisnotmerelytolerated,itisglorified. Underthesecircumstancesthereisoftenlogbetweenculturalandsocial structuralformsofmodernizinginthesesocieties.

SocialValues

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ResearchArticle
C.

Valueshavebeendefinedasthe conception of the desirable Kluckhohn, (1951) influencing selective behaviour. Social scientistsalsoagreethatvaluesare veryimportantandserveasguiding principles in people's lives. Values are important for understanding various social-psychological phenomena (Schwartz & Bardi, 2001). Values are embodied in social activities relationships, and institutions.However,thelatterare subject to change and adjustment while values have a relative permanence and universality. Studies that report relations of values to behavioural intentions in hypothetical situation (Feather, 1995; Sagiv & Schwartz, 1995) demonstratethatpeoplewanttoact according to their values. Value priorities prevalent in a society are a key element, perhaps the priorities of individuals represent centralgoalthatrelatetoallaspects of behaviour. Mukerjee (1949). Valuesarebelievedtobeimportant for social equilibrium and maintance of the system. Values play crucial role in determining human behaviour and social relationshipsaswellasmaintaining and regulating social structure and interactions on the one hand and giving them cohesion and stability ontheother(Verma,2004).

Differences in family pattern may bring about differences in social values and ideologies. Ganguli, (1989); In traditional societies like India, the spiritual values as embodied in its religion andphilosophycanclaimtobethe primary and original source of all derivedsocialvalues.IntheIndian situation, these seem to have been accompanied by social change processessuchasurbanizationand industrialization. The nuclear familystructureisassumedtofavor sharing of roles rather than a hierarchical structuring of roles, liberal rather than conservative attitudes, role diffusion an overall egalitarian outlook rather than a traditional out look. (Rokeach, 1973,Schwartz,1992,Schwartz&

Bilsky, 1987, 1990, Triandis, 1994).

It has been seen that social values are drastically affected by urban influence and subsequent assimilationofwesternideasdueto the effect of modernization. Traditional values have declined considerably. Even the teaching of civic virtues of love, co-operation, obedience, tolerance, discipline and renouncement, which a child used to learn at home in a joint familyandwhichenabledthechild to grow up as a good citizen, has been taken over by other social institutions. Sagiv and Schwartz (2002) found that values predict whether counselees exhibit independent verses dependent behaviour throughout a number of careercounsellingsessions.

Objectives

The primary objective of the presentstudywastoinvestigatethe relationshipoffamilystructureand social values as they relate to family structure in contemporary Indian society. Specifically the study attempts to look at the relationship of social values of Parents and their Children in joint andnuclearfamilies.

Method Sample

120Urbanmiddleclassfamilies of which 60 nuclear and 60 joint families, with at least one child were taken. The age range of parentswas35-45yearswithmean ageof(44.62)minimumgraduation levelofeducation.Thechildwasa studentofclass10or12withmean age of (15.70) in the age range 1517years.

Tools

SchawartzValueSurvey(1990) forChildren:Inordertounderstand chhildren's values a scale consisting of 16 items to measure wasthe10value.

Results&Discussion

Means and Standard deviations forthedifferentscoresareshownin the table 1. Parents and children social value were examined on all the test variables using t-ratio. Table1indicativeofthedifference

between Parents & children social valueinjointandnuclearfamilies. Results indicate family structure does not affect the social value in thejointandnuclearfamilies.Table 2 shows there is no significant differences in Social Value of Parents and Children in joint families. Table 3 indicates there is significant differences were found betweenParentsandtheirChildren Social Value in nuclear families. Father & Children (t=2.28, p<0.05), Mother & Children t=2.62,P<0.01).

To see the effect of type of family & social value of parents and children 1 test was calculated. Family structure doesn't affect the social value of Parents and their children. Whatever type of family (jointandnuclear)butsocialvalues remain same because value is fundamental concept in early socialization of children. Parents taught good habits and give importance for cherished social value to teach their children's. Mukerjee (1949) contend as was expected, the child and parental value are highly correlated Since, Family is base of socialization process and parents are the first teacher's. It can be said that the values are transferred through verbal or non-verbal interaction and thus the relations is very significantone.Roland(1988),and Garg and Parikh (1993) made meticulous observations about family dynamics, family values, andtheroleoffamilyrelationships in the development of the value system of the individual. He also noticed that mainly the elderly women of the family transmit the culturalvaluesystemtotheyoung. Parents show high social value in achievement&stimulationandlow in power. Children show similar valuepatternaccordingtoherorhis parents. This value system emphasizes solidarity and cooperation, affection and understanding, following the traditional norms and customs of thefamily.GargandParikh(1993), theuppermiddleclass,namely,the

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educated urban elite (MBAs) are the crossroads as along with familialvaluessuchasobedienceto parents, conformity, self denial, and fulfilment of parental expectations, Western values such ashavingameaningfulandcreative life space, quest for more knowledge, achievement and no complacencyarealsoimbibed.

There is no significant difference between Parents Social Value & Children value in Joint FamiliesIn Indian traditional family there have several changes instructuralandfunctionalbutstill children's have more respect to their elders. Thus there is strong emotional involvement with the familyAlso,girlsshowatendency ofhavingsimilarvaluesasoftheir mothers and boys to that of father. This can be attributed to the closeness of these to each other. Girls are generally said to be close to mothers and boys take father to be a model in joint family system. The values inculcated by the socializing agencies have their sourceinregionandtradition.Both the family and educational institutions may make efforts to inculcate cherished values in their wardsasfaraspossible.

Therearesignificantdifferences betweenParents&ChildrenSocial value patterns in nuclear families. Inthenuclearfamiliesparentsgave morefreedomtotheirchildrenand theyhavencontrolonthem.

Conclusion

Due to the western impact over contemporary Indian social system, tremendous changes affected every walk of life. These changes have influenced the society not only overtly but also have provided alternatives to the existing values and ideas towards the different aspect of society and humanbehaviour.Butontheother hand, it is also equally true that Indian traditions are so deeply rooted that these alternatives have been succeeded in total transformationofthesociety.

Thisfindingsuggeststhatvalue play a vital role in development of

the human beings. All the human functions are governed by the individual&collectivevalues.This study provides for an understanding of the changing conditionsofIndianfamilyandthe social and family values that exist in contemporary Indian society. However, further research is neededtostudytherelationshipsof several changes and attitudes that are taking place in society and its impact on family structure and development.

000

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(ResearchArticle)

ExploringIndian Mythologyin ModernScenario

ResearchAuthor: PatelSitabenKalubhai

ResearchScholar

Guide:Dr.M.F.Patel

Abstract:

Devdutt Pattanaik is knowledgeable in Indian folklores giving experiencesaboutvarietiesinthediscernmentandexaminationof Indian legendary stories and Indian culture. He gives intelligent comprehensionofeachandeverypartofIndianculture,Godsand Goddesses. How he might interpret the subject remaining parts at different aspects. In 'Sita', Devdutt Pattanaik examinations the Ramayana, the inspirations of the characters, and the activities of the human brain, causing the pursuer to understand introspect. DevduttPattanaiktakesusthroughtheexcitingbendsintheroadof the immortal story that has developed north of millennia, adorned by local retellings. In a style similar as in 'Jaya', he advances his translation, and that of gossips before him - from Valmiki's Ramayana,toSanskritplays,puranas,renditionsindifferentIndian dialects,inJainandBuddhistpractices,andinsouth-eastAsia.

While we might have seen a wide range of stories and understandings spinning around the epic Ramayana, this specific book of Devdutt Pattanaik retells the legendary, causing to notice the many oral, visual and composed retellings made in various times, better places, by different writers, every one attempting to address the riddle in their own novel manner. The authors today havelikewiseattemptedtochangethetypesoftraditionalfolklore toaddressthecontemporaryissuesoftoday.Despitethefactthatthe retellings are changing with an alternate face each time the center embodiment of the story continues as before. There will be a constantupsurgeinthefancifulsubstanceaslongastheconfidence andcultureisflawlessinthegeneralpublic.

Keywords: Devdutt Pattanaik, Indian mythology, Ramayana, Sita,contemporary

Introduction:

Folklore assumes a significant part in human existence as it offersustheresponsestonumerousstrictpracticesanddistinction amonggreatandfiendishness.Takeanyfolklore;itwillessentially betheexcursionofhero,whobattlesagreatdealtocarryonwitha morallife.

"TheWesternstorycelebratesalinearconstructoflife–withone beginning, one ending and one life in between. The Indian story celebratesacyclicalconstructoflife–withmanybeginnings,many endingsandmanylivesinbetween.Thusstoriesreflecttheculture they emerge from, while reinforcing the culture at the same time (Pattanaik,Culture:50InsightsFromMythology5-6)."

Smt.C.C.MahliaArtsand ShethHNGU,Patan

C.N.CommerceCollege, Visnagar

Accordingly,hefacescircumstanceswheres/heseparateamong greatandfiendishnessandlearnsnumerousvirtueswhichtowards the end helps him/her to overcome the abhorrent in the story. Indeed, even before the appearance of composing abilities, fantasiesexistedinthepubliceyethroughoralcustom.Itformedthe underpinning of human advancement strict, culture, and way of

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ResearchArticle

thinking, writing, craftsmanship, tradition and custom. Legends of a progress stories which casings and give constructiontothewayoflifeof that specific civilization. Consequently, concentrating on legends, sacred texts, sagas and sacrosanct book of a specific religion will give a profound knowledge into its conviction framework and social design. Devdutt Pattanaik's Sita tries to incitethought,torouse,togrow one's psyche and understand one'struecapacity.

"Everybody lives in myth. This idea disturbs most people. For, conventionally, myth means falsehood. Nobody likes to live in falsehood. Everybody believes they live in truth. But there are many types of truth. Some objective, some subjective. Some logical, some intuitive. Some cultural, some universal. Some are based on evidence; others depend on faith. Myth is truth that is subjective, intuitive, cultural, andgroundedinfaith(Pattanaik, Myth = Mithya: Decoding HinduMythologyxv)."

The creator calls attention to the errors of human instinctpeople esteem things over contemplations, judge as opposed to figuring out one mores'perspective,liveindread not confidence.Whatis implied intheepicismadeunequivocal. Pattanaik explains the contrast amongjatiandvarna,showsthe significance given to devotion (of all kinds of people), discussestheresultswhenaman compels himself on a lady, and notices the consideration of eunuchsinthestory.

Devdutt's Exploration on Myth:

There have been a few contemporary creators who

have reevaluated or retold Indian legends with another viewpoint. Dr. Devdutt Pattanaikispresentlyoneofthe most amazing mythologists of India. His books like Indian Mythology:Tales,Symbols,and Rituals from the Heart of the Subcontinent, Sita: An Illustrated Retelling of Ramayana, Jaya: An Illustrated Retelling of Mahabharata, Shikhandi: and Other Queer Tales They Don't Tell You, The GirlWhoChose:ANewWayof Narrating the Ramayana, Myth =Mithya:AHandbookofHindu Folkloreandsomemore,arefor the most part retelling of the accounts taken from extraordinary Indian legends like the Ramayana and the Mahabharata and a few other fanciful stories from different varioussources.

"Withinthereisregardforthe law of marriage; without there isn't any. Within, Sita is Rama's wife. Outside, she is a woman for the taking. Ravana knows that if he enters Rama's hut and forceshimselfonSitahewillbe judged by the rules of society. But when he forces himself on Sita outside the Lakshmanarekha, he will be judged by the laws of the jungle. Within, he will be the villain who disregarded the laws of marriage. Outside, he will be hero, the great trickster (Pattanaik, Myth = Mithya: Decoding Hindu Mythology 100)."

Sita is a book that consolidatesnumerousformsof The Ramayana, alongside some measure of Devdutt's creative mind.

"In certain spots, I have utilized my creative mind, adding to the long custom of addingstoriestotheepic—,for

example, the section where Sita's recipes are utilized in Lankan kitchens to take care of thoseexhaustedofwar.Thereis another part where Sita leaves the royal residence when Ram ousts her. This is enlivened by people tunes that ladies have sung for ages — they sound so suggestive and agonizing it appears they totally figure out Sita's agony. I've attempted to bringthisout,"saysDevdutt.

Devdutt Pattanaik's Sita lookstoincitethought,tomove, to extend one's brain and understand one's true capacity. Thecreatorcallsattentiontothe errorsofhumaninstinct-people esteem things over considerations, judge as opposed to grasping one mores' perspective, live in dread not confidence.

"Astoryisbasicallyaplotbut narrationistheprocessbywhich a story is told. The same story sounds different when the storyteller is different. And every storyteller changes his narration depending on the audience. All this makes storytelling rather complex, which is why our view of the world and our truths are also complex(Pattanaik,Culture:50 InsightsFromMythology6)."

Whatisimpliedintheepicis made express. Sita gives comprehension of the fanciful ladies characters like Sita, Draupadi, Mandodari, Kunti, Gandhari, Surpankha, Satyavati, Urmila, Kaikeyi and some more. He reflects various characteristics of male and female character. In his book Sita he grasps Sita a lady of shrewdness:

“Sita'sdadneverrealizedthe worldthatwasthekitchen.Sita's mom never realized the world that was the court. Yet, Sita

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acknowledged she knew both. This is the way the psyche grows, she contemplated internally. This is the means by which Brahma turns into the Brahman. She was a Brahmin, she understood, searcher of intelligence as well as transmitter of shrewdness (Pattanaik, Myth = Mithya: Decoding Hindu Mythology 65)."

Devdutt could sound sermonizing at many focuses however the touchy points that he is managing makes him sound like an all-knowing essayist. The book answers numerous 'why's' and 'how's' related with legendary characters, which were unanswered till now. There are numerous impressions of legendary characters in human character even today, for example, one will find individual confined by his own moralstandardslikeRam,there are numerous autonomous ladiestodaywhohavetheirown considerations and follow their impulse.ThepersonalityofRam should be visible as extremely confounded to be valid truly on account of his choices that he makes during dilemmatic circumstances.

"We earn, save, spend. Brahma is the one who earns, brings in the money. Vishnu spends and invests it in the market, enabling exchange so thatcommerceflourishes.Shiva issomeonewhoisnotinterested inmoneyatall;hisistheattitude ofnon-attachment,vairagya.On the other hand, Brahma's children are so interested in moneythattheyhoardandfight over it, which is why no one worships Brahma or his children. The one who does business with the world, is

involved with it, is Vishnu, so weworshiphim.Whenwegrow old and wish to get rid of our desires, we can follow Shiva's example by renouncing money. Eachofushasallthesequalities, mostly Brahma's, but we shouldn't encourage those. We should harness Vishnu's qualities, so that Lakshmi, money, follows us.Towards the end of our life, we should becomelikeShiva;renouncethe material world and move on (Pattanaik,DevlokwithDevdutt Pattanaik23)

In Devdutt Pattanaik's 'Sita', Sita isn't a casualty. She has grown up standing by listening to the sages talk about the Upanishads. She lifts Shiva's powerful bow effortlessly, and kills Ravana's twin in a wild fight.Sheisinsightfulandsolid. A single parent to her children, sheisfree,notdeserted.Slamis seenbattlingtofindsomepeace with what he should do as lord. HestaysgavetoSita,andstrolls into the stream Sarayu reciting hername.Thecreatorcompares culture(wheresocietyislimited by rules) with nature (where there are no limits). He thinks about Ram, ruler and upholder of rules, with Krishna, the kingmakerwhocurvesrules.He draws out into the open images and allegories, themes and examples. The composing is strong,themannerofexpression fresh. The Ramayana is a story of feeling - dutiful friendship, devotion, love, covetousness, desire and vindictiveness. Pattanaik's reminiscent writing draws out these feelings in the entirety of their power. The peruser is left inclination a profound feeling of sympathy withthecharacters.

Conclusion:

By rethinking fantasies from

loved works of art and old stories,Devduttinvestigatesthe secretive idea of people. He explains and clarifies on the underlying driver of customs and no practices in India even today.The persona of Gods and Goddess is both dreaded and revered in India when they are viewedasmortalpeople.Ending withaquotepresentedinhisall books:

Withininfinitemythsliesthe eternal truth Who sees it all? Varunahasbutathousandeyes, Indra has a hundred,You and I, onlytwo.

(Pattanaik, Myth = Mithya: DecodingHinduMythologyix)

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(ResearchArticle)

FreedomOfThe PressAndThe HumanRights

1.Introduction

While international human rights documents emphasize the intrinsicvalueofafreemedia,thehumanrightsdiscoursehasover theyearstendedtorelegateittothebackgroundbecauseoftensions arising from divergent value systems, privacy protection and hate speechissues.Whilethemostserioussourceoftension,thebalance thatneedstobestruckbetweenprotectionofminoritygroupsfrom hatespeechontheonehandandfreedomofexpressionontheother, isdifficulttoreconcileatthelevelofabstractconceptsoruniversal values,mostnationshavestruckaproperbalancesuitedtotheirown experienceandspecificcircumstances.Afreemediawithitsimpact onpublicopinionandinstitutionsinademocraticsystemcanbeof greatinstrumentalvalueinpromotinghumanrightsobservance.Its effectiveness, however, varies depending on the nature of the humanrightsviolations,withtheremedialimpactbeingthegreatest in routine cases of custodial violence and the like and the least in insurgencytypeofsituationswherestatepolicyseekstosuppressa terrorist or secessionist group, The greatest challenge before the human rights community and the media is to get the democratic system to respond sensitively and safeguard human rights in difficult situations when national security concerns come to the fore.

2. Freedom of the Press in International Human Rights Documents

Freedom of the press and the media, which forms part of the largerrightoffreedomofspeech,isanimportant,thoughoverthe years somewhat diminishing, component of international human rightsdocumentsstartingfromtheUniversalDeclarationofHuman Rights and through the International Covenant on Civil and PoliticalRights(ICCPR)andtheregionalcovenants.TheUniversal Declarationelevatesittothepreamblethatstates,'Theadventofa world in which human beings shall enjoy freedom of speech and beliefandfreedomfromfearandwanthasbeenproclaimedasthe highest aspiration of the common people. Article 19 specifies, 'Everyonehastherighttofreedomofopinionandexpression;this rightincludesfreedomtoholdopinionswithoutinterferenceandto seek,receive,andimpartinformationandideasthroughanymedia andregardlessoffrontiers'.

HimmatnagrGujarat383001

IntheEuropeanconventionfortheProtectionofHumanRights and Fundamental Freedoms and in the American Convention on Human Rights, the basic right of freedom of expression is guaranteed in a way similar to Article 19 of the ICCPR. The EuropeanConventioninArticlelOissomewhatmoreelaborateon thegroundsonwhichrestrictionsmaybeimposed:'(2)Theexercise ofthesefreedoms,sinceitcarrieswithitdutiesandresponsibilities, may be subject to such formalities, conditions, restrictions, or penaltiesasareprescribedbylawandarenecessaryinademocratic society, in the interests of national security, territorial integrity, or

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ResearchArticle
ResearchAuthor: DrManishkumarRamanlal Pandya DrManishkumarRamanlal Pandya M.Sc,M.EdPh.DAssistant Teacher JainacharyaAnandghansuri Vidyalaya

publicsafety,fortheprevention of disorder or crime, for the protection of health or morals, for the protection of the reputationorrightsofothers,for preventing the disclosure of information received in confidence, or for maintaining theauthorityandimpartialityof thejudiciary.'

The American Convention (in Article 13) seeks also to protectfreedomofthepressand the media from indirect controls: '(3) The right of expressionmaynotberestricted by indirect methods or means, suchastheabuseofgovernment or private controls over newsprint, radio broadcasting frequencies, or equipment used in the dissemination of information, or by any other means tending to impede the communication and circulation of ideas and opinions.' It allows censorship of certain categories of expression: '(4) Notwithstanding the provisions of paragraph 2 above, public entertainments may be subject bylawtopriorcensorshipforthe sole purpose of regulating access to them for the moral protection of childhood and adolescence.'LiketheICCPR,it enjoins on the parties to ban propaganda of hate and incitement:'(5)Anypropaganda for war and any advocacy of national, racial, or religious hatred that constitute incitements to lawless violence or to any other similar illegal action against any person or groupofpersonsonanygrounds including those of race, colour, religion, language, or national origin shall be considered as offensespunishablebylaw.'

3.FreedomofthePressinthe HumanRightsDiscourse

The growing body of what

may be regarded as the human rights discourse comprising books, journals, papers, theses and other publications, material on Internet websites, conferences and seminars, and generally the work and delineation of issues by human rights organizations tends to focus on groups such as children, women, victims of torture, conflict and crime, dissidents, prisoners of conscience, and others whose libertyiscurtailed,andrefugees. Organizations such as the Committee to Protect Journalistsfocusspecificallyon the issue of freedom of expression and report on the state of human rights. The US State Department's annual reports generally contain an assessment of press freedom in differentcountries.

The delineation of free press and freedom of expression issues in the human rights discourse shows that the concern is largely over aggravated forms of assault on freedomofexpressionincluding killing and imprisonment of journalists and writers and physical attacks on newspaper premises. Heroic defiance of censorship and restrictions that entail penalties and suffering is highlighted while silent compliance is hardly noticed. It would seem that restrictions on the freedom of expression coupled with restrictions on liberty or violations of physical security are taken seriously, not just restrictions on freedom of expression per se. At the same time, those who resort to more subtle measures to muzzle the press hardly come under such scrutiny.

This may be in part because of rights touching on life,

physicalwellbeing,andfreedom beingaccordedahigherpriority. Also,thepressandthemediaare not seen as disadvantaged, needing as much support as other groups do. In an interesting paper on the debate on a new broadcasting bill in India,MarkN.Templeltonnotes that there was no discussion from the human rights perspective in terms of the fundamental freedoms and the righttoseek,receive,andimpart information. He suggests, 'Perhaps they (human rights activists) think that the satellite broadcastersandcableoperators will fight for media freedoms and that the human rights communitycanspenditslimited timeandenergyelsewhere.'The fact that substantial sections of the press and the electronic media are associated with large and profitable groups would onlygotoreinforcethisattitude.

4. Tensions between Free PressandHumanRights

There are, however, sources oftensionaswellbetweenafree press and human rights advocates. In the first place, human rights advocacy demands a certain commitment and a passionate espousal of good causes that cannot be found in the disembodied, neutral voices of journalists. Journalism tends to be valueneutral, with its insistence on getting all sides of a story and whilethereisstillplentyofroom to write with a great deal of sensitivityandfeelingandmake adeepimpactonpublicopinion, thedemandsofobjectivityneed tobekeptinmind.

It is not uncommon for human rights advocates to express their disappointment overthemediawhichtheyseeas reflecting human rights

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concerns inadequately or not at all. Justice RajinderSachar, a notedcivillibertiesproponentin Indiahasthistosayoftheroleof theIndianpressinrelationtoits coverage of human rights abuses:"'This attitude (of the media) was disappointingly reflected in the passive, even negative, role the media played when dealing with the working of the Terrorists and Disruptive Activities (Prevention) Act. Governments conveniently invoke the sensitive ground of national security to silence the media from reporting human rights violations in affected areas.Unfortunately,themedia, by and large, has a tendency to accept this gratuitous advice withoutmuchdemur.

Secondly, human rights advocacy leans towards greater privacyprotection,especiallyin the case of victims of rape, violence and accidents, and children. Some of the more blatant cases of violations of privacy by the media that have been brought up before the courts include the case of reporters entering the hospital room and photographing the nine-year-old son of a famous French actor who had been injured in an accident. a story with photographs in Time magazine of a woman with a severe eating disorder (under captions such as 'She eats for ten. and photographing and interviewing in the hospital room an English actor who was semi-conscious after having sufferedasevereheadinjury?

It was in Rwanda, however, that radio was used most insidiously and blatantly in the serviceofgenocide.Theofficial government station, Radio Rwanda, initially 'played a pernicious role in instigating

severalmassacres',accordingto the Special Rapporteur to the UN Commission on Human Rights, B.W Ndiaye. When Radio Rwanda was brought under the control of moderates as part of the reforms aimed at reconciliation, the extremists among the officials in the military and in business started the Radio-Television Libre des Milles Collines (RTLM) which gained a large audience for its popular talk show format. It operatedinconjunctionwiththe ruling party's private militia, Interhamwe, and typically it would name and criticize an individual and immediately Interhamwe groups would find and attack him. It became even more active in instigating genocide afterApril 1994 when it started organizing roadblocks ('RTLMradioiswiththepeople manning the roadblocks'. was a constant announcement) and naming'enemies'whowerethen stopped and killed by militias. Typical of its propaganda was a broadcast on 15 April 1994, whenanannouncerexhortedthe listeners: 'If you do not want to haveRwandiansexterminated... stand up, take action ... without worrying about international opinion.

It still found that his rights had been violated but on a considerably smaller scale than hadbeenfoundinitsNovember 1999 decision. It ruled that the violations would be taken into account in his trial. If found not guilty by the trial chamber, he would be entitled to financial compensation; if, on the other hand, the trial chamber found himguilty,theviolationswould be taken into account in determining his sentence. He has since been indicted on nine counts including crime against

humanity and violations of the GenevaConventions.

5.Conclusion

The convention notes the conflict between prohibition of hate speech and the right to freedom of expression and calls for 'due regard' for rights enumerated in the Universal Declaration including the rights of freedom of speech, association, and conscience. Theactualbalancethatisstruck between the need to protect vulnerable ethnic or religious minoritygroupsandtherightto freespeechvarieswidelyamong nations. The United States' approach tends to be the most tolerant of free speech. Europe, Germany, France, Austria, and the Netherlands maintain broad restrictions on racist speech including Holocaust denial while the United Kingdom generallyemphasizesthepublic order aspect. Some other countries, including India, prohibit the wounding of religious or ethnic sentiments and impose wide restrictions in this area. Broadly, the extent of freedom of speech allowed and the degree of protection for vulnerable groups against hate speech reflect the experience and the specific circumstances in the individual countries. Countries that have seen the impactofhatepropagandahave put in place a regime more restrictive-of free speech and more protective of minority groups.Adetaileddiscussionof hate speech laws is beyond the scopeofthispaperbutitisclear enough that one could lean towards greater protection of ethnicandreligiousgroupsfrom hate propaganda or towards allowing a greater latitude for freespeech.

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(ResearchArticle)

PeopleInTheRaj Quartet-AStudy

ResearchAuthor: JyotiYadav ResearchScholar,Department ofEnglish

Dr.Pratima ResearchSupervisor, JyotiYadav ResearchScholar, DepartmentofEnglish, MaharishiSchoolof Humanities&Arts,MUIT, Lucknow

Abstract

People are an essential part of a successful book, according to E.M.Forster.RajQuartetisalsoabrilliantbook.TheFacetsofthe Novel E, M.Forster says in his analytical book: "We don't need to wonderwhathappensnext,nortowhomdidithappen..Becausethe characters of a tale are typically human, it seemed convenient to entitle the People' part to this element" (Forster 54) of the interpretationofthereadersofthebook,hesays:"Andifthewriter desires, the author will thoroughly understand the peopling of a novel,andrevealhisinnerandhisouterexistence.Thecitizensare portrayedbythenumerouscharacters.

There are too many unforgettable people whose lives are featuredinthebookpages.Inthemiddleofthis,abeautifulEnglish nurse and her Indian lover fend with themselves. It's a fascinating talethatevokesemotionsofremorseandrespectforboth.Atoneof cleverlydelineatedcharactersexists:Daphne,Lily,andtheWhites. Through the action of the protagonists in introducing all of the subtleties of class and race, Scott reveals that individuals with diverse communities and traditions couldn't work together on an equalfooting.

Keywords: Daphne, Characters, Protagonists, Merrick, Raj, Sarah,Miss,HariLayton.

Introduction

In 1942, the waves of transition are felt everywhere.ABritish womanisattackedbyIndiansinthischaoticscenario-andallheck breaks out. As we remember, "the Bibighar event" becomes a metaphor: the beginning of the British Raj 's demise. [1] The exceptional success of Pau1 Scott is to encapsulate this massive canvasofcertainmisfits'privatelives.[2]TheEnglishgirl,withno charm:HariKumar,orHaryCoomer,ashepreferstonamehimself; the Indian, outside; and English inside; and Merrick, the police officer,mindfulofhislowstatusinBritishsociety.Thistriangleis like anything else seen in fiction, when love and hatred connect

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ResearchArticle

these characters together similarly, dragging them through the eventual vortex in thegardensoftheBibighar.[3]

Scott is the only British writertowritewithoutaclueof racial superiority .... All three main characters can identify a bitofthemselves.Wefindatruly empathetic English author in PaulScott.

The Raj Quartet is better regarded as the four works investigating the British Raj in India by English and Indian character. The Raj Quartet is popular for its four works. The DiamondintheCrown,TheDay of the Scorpion, The Towers of Secrecy and The Spoils Distribution were some of the most sensitive and personal cultural experiences with a colonial sense from the twentieth century. Paul Scott produces dynamic, riveting characters and indescribable accounts from his portrait of MohammedAliKasim,Muslim leaders, to the unorthodox colonel 's daughter, Sarah Layton.Scottexamineshowthe British had projected the reality ofthesubcontinentonafantasy ofthemselvesandofIndia.[4]

FemaleCharacters

Paul Scott builds multidimensional, multi-faceted personalities. The women addressedinthetextsshowthat, although they exist in a masculine patriarchal culture, theysometimescontroltheman andwhilemanyofthemsufferin their everyday life, they are not victims of individual individuals, but of a specific political and ideological structure.[5]

MissDaphneMannerss

Miss Daphne Mannerss is a youngBritishgirlwhocomesto India with her Aunt Ethel

Manners after becoming an Orphan and later transfers to a friend of her family, Rajput Princess Lili Chaterjee who stays in House in Mayapore. She's a rounded character since she evolves over time. [6] "She hit me, well, good natured but incompetent when I first saw Daphne. She was tall and fairly shy.Shehasalwaysbeenlosing stuff, "the girl responds to Lady Chatterjee.[7]

SarahLaytonAndAhmed

"I doubt anything and every possibility. I'm not comfortable with having everything happen, I'm not willing to allow everything happen. If I don't alter it I'll never be happy." Sarah is one of the most beautiful protagonists in the Quartet. She's still a round character and she evolves over time.[8]

In view of all the traumatic incidentsinherlifeandherlonglastingfriendshipwithaMuslim Congress chief Ahmed Kasim, Sarah Layton, a leading female actress in the Raj Quartet, survives the adversity of the destiny. She experiences Barbie Bachelor's collapse and death, her mother's demise, her sister Susan 's emotional breakup, Ronald Merrick's startling demise, and Ahmed Kasim 's tragicfailure.[9]

Barbie Bachelor And Miss EdwinaCrane

In the same missionary organization are Barbie and Edwina. Both are flat protagonists, so the period doesn'tshiftwhentheyareaged. Someone has turned a gang of marauders away from the kindergarten since Barbie replaced Edwina with patriotism, where she taught with the strengths of her personality.Edwinawasthefirst

touch. In the light of Barbie's view of Edwina, it is not particularly surprising and so Edwina's suicide was unavoidably an extremely big shock.[10]

Mr. Chaudhuri And Hari Kumar

The picture of the "unknown Indian," which she replicated many times at The Towers of Silence, not only symbolizes Mr.ChaudhuriandHari,butalso reflects all the other futile attempts of different characters to cross the cultural divide between Britain and India that eventually contributed to both sidesmiseryandbloodshed.[11] Barbie completes the replicated lives of Edwina and Daphne thematicallyand,asBoyersays, "showsthatthedissatisfactionin interpersonal affairs is not confined to romantic affection." Barbie reveals that all these typesofcompassionarefocused on the same humanist imperative. Through this connection Scott compares humanismtofaithandsexuality and,throughitsgenuinehumane purpose, reveals its inadequacy and incapacity in conquering imperialconflict.[12]

MaleCharacters

HariKumar

Hari Kumar, the novel hero. Heisarotatingman,andastime progresses, he evolves. Never was Hari Kumar granted the ability to know his Indian origins. He was brought to England as a child to study at a renowned Chillingborough State Academy, and spent his school holidays with the Lindseys,aBritishdynasty.This begantounderstandtheguiding desire of his father to see his only son excel under the same circumstances as an Englishman.[13]

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Capt.RonaldMerrick

Scott's most interesting development is Ronald Merrick 's character. Perhaps the truest measure of the nature of any othercharacterishisresponseto Merrick'speculiarcombination of heroism and aggression, decency and depravity. The narrator sends the reader conflicting messages from the beginning of The Diamond in the Crown. [14] Merrick is evidently arduous and assumed to be decent if not beautiful pukka. Initially, Merrick's hatred of Hari Kumar was analysedbythereaderasjealous of Miss Daphne Mannerss affections. The openness of Merrick against class nuances encourages the reader to condone his feelings of unsworthiness as a supporter of the impeccably associated Daphne, yet Merrick 's increasing resentment of the well-educated "fair skin gentlemen" of public school reveals a darker side to his personality.[15]

LT.COL.JohnLayton

Layton is Colonel 1st, in Pankot and Rampur, Pankot RifleCommander.Nowhe'sthe patriarchoftheLaytontribe.Itis theproductofChillingborough, which is the same school that Hari Kumar and Miss Daphne's children attend exclusively. As Layton tells the account, John Layton is held captive by Germansafterbeingcapturedin the North African War Theatre. [16]

PanditBaba

Thealiasofamanwithlinks to the Indian nationalists is "Pandit Baba." Pandit Baba is a committed Hindu in Mirat's Indian community and elsewhere.Sincehewaspresent on Mayapore during the riots,

Miss DaphnéMannerss' harassment,HariKumarandhis colleagues were violently treated by Pandit Baba to take revenge on Ronald Merrick. Often Merrick sees Baba's test signs, but he can do little with him. Pandit Baba teaches Ahmed Kasim to preserve his Indian cultural origins and criticizes him for speaking English only and wearing westernclothing.[17]

Conclusion

In conclusion, he claimed that he wrote novels "for the intentionofprovidingavoiceto people who might otherwise be inarticulate." This argument may justifiably be expanded to involve others who dread to communicateat all, so that they don'texposeadisdainfulreality about themselves. The Oppressor and the Oppressed: Unusual Women: -Futile Mission: Apathy of the charactersofthe'Memsahibs':

The Raj quartet is an epic story of British troops, an Englishlady,anIndianloverand sadistic police officer all bundledinthechaosandwarfor freedom of British power India during WWII. The book is thrilling. The beautiful way the images have been woven in uniqueandexcitingformsinthe sequence, the eternally unforgettable characters, the compellinghistoryofsignificant incidents,thecompassionofthe sequencetowardsthecitizensof all ages, the charisma of many protagonists .... There was an error. Allows an epic book for the Quartet. It is not just the action that improves the performance, but most specifically the internal growth of human character that is fascinating.

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(ResearchArticle) Public-Private SectorComposition

InIndianEconomy

ABSTRACT

The Paper focuses on the analysis of the impact of Gross NationalIncomeandPublicExpenditureontotalemploymentand itspublicandprivatesectorcomponents.Italsoexaminestheratios of public and private sector employment to total employment and publicsectortoprivatesectoremployment.Theresultsofsummary statistics of employment, public and private sector employment, publicexpenditureandgrossnationalincomearebrieflydiscussed. Growth of total employment, public and private sector employment, gross national income and public expenditure is examined to determine the direction and magnitudes of intertemporalchanges.Growthtrendofallthreeratiosisdeterminedto detectandtoanticipatetheinter-relationsofchange.Stationarityof timeseriesoftotalemployment,employmentinpublicandprivate sectors, gross national income and public expenditure of Indian economy is evaluated by RandomWalk Model and Dickey-Fuller test. The results show that the time series data of total, public and private sector employment approximate normal distribution with extremely low skewedness and concentration. The coefficients of variation of all 6 time series data are relatively very low. But the timeseriesofGNIisnon-stationaryat0.05probabilitylevelwhile time series of public expenditure displays negative trend. Total employment depends on lagged total employment and GNI while employment in public sector depends on lagged public sector employment and public expenditure. But the function of employment in public sector shifts downwards to the left over the years since the employment in public sector has been declining consistently. Consistent decline in public expenditure and public sector employment implies a decrease in public expenditure on salaries of public employees even though per public employee

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ResearchArticle

expendituremayberisingdueto consistent rise in pay packages. Negative change in private sector employment is determined by lagged private sector employment and private income/expenditure.Theresults of Engel-Granger test of cointegrationshowthevariablesto be well co-integrated in the chosendistributedlagmodels.

HIGHLIGHTS

m The paper studies the dynamics the function of employment in public sector shiftsdownwardstotheleftover the years since the employment inpublicsectorhasbeen decliningconsistently.

mThechapterfocusesonthe analysis of the impact of Gross NationalIncomeAnd

Public Expenditure on total employment and its public and privatesectorcomponents.

Keywords: GNI, ASF, ADF, DLM,GPNI

Introduction

Output/income at any given point in time depends on the quantity and quality of factor inputs, technology of production, organization of productive activities and techniques of management of both men and materials. Therefore, the growth of output/incomethroughtimeand over space requires increase in thequantityoffactorinputsand improvement in their quality, change in or replacement of old by more advance technology, improvement in organization structure and techniques of management of both men and materials. However, it is generallynotpossibletochange all the above factors and parameters together at the same time due to the fixity of fixed capital, including machinery and equipment, and the

technology machinery and equipment embodies. Machinery and equipment are non-malleable factors while labor/human capital and materials are, by and large, malleable factor inputs. Consequently, one or some of the variables/malleable factors of production are generally changed at the given point in time. Therefore, one of the two alternative approaches to growth may be followed: (i) Factormultiplicationprocess;or (ii) Factor transformation process of the raising of output intertemporally. Under factor multiplication process, technology, quality of factor inputs, organization structure and managerial techniques remain invariant through time. Consequently, production function shifts upwards to the right as the scale of operations increases. But input-output coefficients remain constant. Under the factor transformation process, production function changes both in nature and locationwhichresultsinchange in the input-output coefficients. Technologicalchangeliesatthe base of factor transformation process of growth. Induction of advance technology warrants employmentofbetterandhigher educated human capital, and consequently, better skilled and higher educated manpower and increased productivity become the main drivers of growth of output. (Sharma, Amit & Prakash, Shri, 2018, Prakash, Shri & Balakrishnan, Brinda, 2008). Consequently, human capital plays an important role, ifnotmorecriticalrolethanthat played by physical capital (Cf. Schultz, 1960, Dennison, E.F., 1969,Prakash,Shri,1977,1995, Sharma, Amit & Prakash, Shri

2018). As productivity is stipulated to be the determinant of wages/salaries, productivity propelled growth may be expected to result in increased salary expenditure both in publicandprivatesectors.

TheoryofEmployment

Theory of employment did notreceivemuchattentionofthe classicaleconomistsduetotheir blind faith in the efficacy and effectiveness of Say's Law of Marketswhichstatesthatsupply creates its own demand. Therefore,theyassumedthatthe economy always remains in stable equilibrium at full employment. This theory is, thus, a denial of the possibility of existence of unemployment which is a perennial problem of all modern economies, irrespective of their developed or developing nature. However, the centrally planned socialist economies have been an exception to the general global scenario of persistence of unemployment at low or high level of income and its growth. Therefore, less than full employment equilibrium prevails in the world economy. The classical economists' Iron LawofWagesstipulatedthatthe supply of labor increases if the wages are greater than the cost of subsistence, but increased labor supply makes wages decline till it equals subsistence cost of living. A highly unrealistic assumption underlines the theory. It implicitly assumes that the increaseinpopulationcausedby a stimulus of increased wages coincides with the supply of labor which overlooks the time lag between child birth and increase in labor force. Dichotomy between the facts and theory of such unrealistic

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employment, especially during the worldwide depression of early thirties, discredited the Say's Law of Market totally. It also paved the way for the acceptance and approval of Keynes' General Theory of Employment, Money and Interest Rate. Keynes' theory highlighted that the Aggregate Supply Function (ASF) equals Aggregate Demand Function (ADF) in equilibrium. Generally, the equality between ASFandADFoccursatlessthan full employment. Thus, Keynes recognized the existence of unemployment in the state of general equilibrium of the economy.Hepostulatedthatthe deficiencyofaggregatedemand results in dis-equilibrium that causes unemployment in labor market. He suggested that an increaseinpublicexpenditurein generalandpublicinvestmentin particular mitigates insufficiency/deficiency of aggregatedemand.Theperiodic occurrenceofdemandrecession in the globalized world economy has been a regular featuresincethen.

MaterialsandMethodology

The study uses multiple methodsandmodelsratherthan depending upon the results of one single method or model of data analysis. Methods and modelsareselectedaccordingto the objectives of the study and the nature and expanse of data. The following statistical methods and econometric models have been used: (i) Descriptive statistic to portray basicfeaturesandfacetsofdata baseofthestudy;(ii)Ratiosand proportions are used to 147 normalizethedatabythecontrol of size effect and for the evaluation of relative intertemporal

changesinthecorevariables associated with the public and private sectors of the Indian economy.; (iii) Random Walk Model and Dickey-Fuller test are used to determine whether timeseriesofgivendatasetsare stationary; (iv) Time trend and growth curves are estimated to evaluate the differential rates of growth of basic variables of the study; (v) Since the time series of different data sets are found stationary at first difference, Distributed Lag Model (DLM) has been preferred to other forms of model specification. DLMincorporatesthefirstlagof thedependentvariableasoneof the determinants. The model also facilitates the derivation of long run structural equilibrium model from the short run reduced form equilibrium model. Besides, DLM is not atheoretical model like VAR. These advantages are not available with the error correctionmodelalso.

LiteratureReview

However, recession and inflation have historically been mutually exclusive both conceptuallyandempiricallytill theoilinflationofearlyandlate seventies (Prakash, Shri, 1981, Sharma, Shalini, 2005, Sharma, Sudhi & Prakash, Shri, 2014, Sharma, Sudhi, 2016). Hicks (1965, 1973) distinguished betweenthetheoriesofflexand fix prices in modern economies to recognize the cleavage between the behavior of cost based fix prices and demand driven flex prices. The emergence of a new feature of coexistence of recession in fixprice sectors, and hence, unemployment or want of growth of employment in the midst of inflation in flex-price sectors of the economy at the

same time has emerged in post oil inflation period of early seventies (Mathur, P. N., 1973, Prakash, Shri, 1981, Prakash, Shri & Goel, Veena, 1985, Sharma, Shalini, 2005, Sharma, Sudhi & Prakash, Shri, 2014). This has also resulted in the theoretical and empirical refutation of Philips' hypothesis that inflation leads to decline in unemployment and increase in employment (Prakash, Shri & Sharma, Sudhi, 2013, Sharma, Sudhi & Prakash, Shri 2014). But the theory of employment still remains among the emptier theoretical boxes of both micro and macro-economics. All the same, the above discussion provides the theoretical backdrop of the modern day problems of inflation and employment/unemployment. This is despite the fact that the democratic countries with market economies and planned economies with autocratic political regimes remain concerned with the control of unemployment.

Results

Analysis of Empirical Results

Empiricalresultsarereported sequentially but thematically. First, results of descriptive statistics are discussed. It is followed by the evaluation of results of Dickey-Fuller test of stationarity. The results of the growth curves along with the trendgrowthofratiosofthecore variables are taken up next. Lastly, the results furnished by the distributed regression modelsarediscussed.

Important Facets and Features of Observed Values of Employment

The time series of total employment comprises the

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series of employment in private and public sectors of Indian economy. Ratio of (i) private sector employment to total employment; (ii) public sector employment to total employment; and (iii) public sector employment to private sector employment are derived fromthedatapertainingtototal, public and private sector employment. Thus, total employment is used to normalizeemploymentinpublic andprivatesectors.Incidentally, private sector employment and paypackageshavebeenusedas the reference or bench mark in some of the past studies. Therefore, private sector employmentisusedinthisstudy also to normalize public sector employment. However, the rationalebehindthisisdifferent from the rationale used in the paststudieswhichrelatemostly todevelopedmarketeconomies. Indonesiaisanexceptiontothis. However, India has been dilutingthepivotalroleofpublic investment and public sector employment by promoting private investment and private sector employment. Therefore, these ratios are conceived to capturethechangeintheroleof two sectors in employment generation. These ratios highlight the relative roles of privateandpublicsectorsinthe generation of employment and the growth of the economy throughtime.Besides,theratios arescalefreeandareappropriate for inter-temporal and intersector comparisons in the market economy in transition whichmaystillbequasiplanned economies. In the planned economies, however, the structure of employment and economy are dominated and even controlled by the

government. This warrants an evaluation of the changing role ofpublicexpenditureandpublic sector in the growth of employment and GNI in the economy.

FindingsandConclusions

The following are the main findingsofthechapter:

1.Inter-temporal distribution oftotalemployment,publicand privatesectoremploymentdoes not significantly diverge from normaldistribution.

2.Inter-temporal distribution of GNI diverges from normal distribution, and consequently, itstimeseriesisnotstationaryat 0.05probabilitylevel.

3.Total employment consistently stagnates for 3-5 yearsbeforeitincreasesagain.

4.Public sector employment consistently declines while private sector employment grows over the years at a sluggishrate.

5.The ratios of public sector employmenttototalandprivate sector employment decline throughtime.

6.Total employment is the positivefunctionoflaggedtotal employment and GNI. But total employment increases nominally in response to an increaseinGNI.

7.Public sector employment significantly depends on public expenditure while GPNI is the significant determinant of privatesectoremployment.

8.Preceding year's total, public and private sector employment influence current employmentmorethantheGNI, publicexpenditureandGPNI.

9.The functions of total and public sector employment are downward shifting to the left throughtheyears.

10.An implication of the above results is that the salary

expenditure of the government relative to public expenditure may decline through time though the per employee salary expenditure may rise consistently.

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References

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(ResearchArticle) ImpactofGoodsand ServicesTaxin RetailSector

Abstract- In India, the indirect tax system has undergone significantmodifications,whichcanbetermedasacomprehensive taxbenefitortheGST(productsandservicestax),Itisanationaltax ongoodsandservicesproduced,sold,andconsumed.GST'seffects will mostly benefit businesses and individual retail investors, as well as the stock market. It has the potential to bring more promotionalbenefitsintermsofcorporateprofitabilityandbusiness promotion, as it will bring long-term sustainable change to individual private investors and the sector as a whole. prize. The benefitsoftheGoodsandServicesTaxontopparticipants(industry and individual retail investors) in Indian stock markets will be highlighted in this paper. The final remarks emphasised that the implementationofGSTwillattempttobridgethegapbetweenthe organised and unorganised sectors, and that it will have overall positive implications for individual investors as a result of consistent market practices such as cost competitiveness or consumer endurance that directly benefit end users as a result of a highly competitive market.From a macroeconomic aspect, it also highlighted how the bill is expected to effect various sectors and gainmarketshare.

Overview- The introduction of the Goods and Services Tax (GST) in India has been called "one country, one tax," "turning point,"and"reformofthecentury."Notetheintroductionofunified value-added tax (VAT) on invoice and credit-based products and services in a vast and diverse federal state governed by numerous parties at both national and quasi-national levels. It's a worthy achievement.Ittakesalongtimeforalmostallcountriesadopting GSTtostabilize,andtheGoodsandServicesTax,introducedatthe federal and state levels about 30 years ago, is still developing in Canada (Bird, 2012). .. The amount of work required to achieve such changes at the national and quasi-national levels of India is enormous.Thisincludesthefederalgovernment,29states,andtwo unionterritories,allofwhichhavedifferentruling-ledparliaments. This type of change is a large-scale experiment in cooperative federalismthatrequiresStatesmanlikeoversight.

Sinceroughly2018,166nations,includingallOECDmembers, haveimposedVATinoneformoranotheronlabourandgoods.To avoid distorting or recovering monies lost due to duty reductions afterjoiningtheWTO,mostdevelopingcountrieshavesubstituted their flowing local exchange desires with VAT requests. The GST was created to be a cash machine, and it has shown to be a useful instrument for recouping income lost as a result of tax cuts. Only five nations have removed VAT before reintroducing it with changes.Ofcourse,theIMFhasareputationforbeingamasterof change(BirdandGendron,2007),andthishasbeenamajorshiftfor theFund'smembers(Keen,2009).

The transition to VAT / GST has been much smoother in most countries as taxes are collected primarily by the federal government.VATwas also centrally collected in federal countries such asAustralia and Germany. Brazil, Canada, and the European Union are the only other countries to adopt GST, and even after yearsofexperience,reformsarestillunderwayinthesecountries.In Brazil,interstatecommercetaxesareleviedonthebasisoforigin,

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ResearchArticle

and both federal and state versionsofVATlackconceptual and administrative clarity. The costsofcompliance,controland distortion are very high, and there are problems with crossborder trade and interstate tax exports (Varsano, 2000, Brid and Gendron, 2007). VAT is a prerequisite for participation in the European Union's twentyseven member countries. It is based on the destination notion, however the issue of crossborder trade is still being contested(Keen2009,Cnossen, 2010). Furthermore, in terms of thresholds, exclusions, and rate structure, there is minimal consistency among member countries'taxpolicies.Inreality, the EU's standard VAT rate rangesfrom15%to25%,witha mean of 19.4%, whereas every otherEuropeancountry,withthe exception of Denmark, has one or more rates in addition to the standard rate (Bird and Gendron, 2007). After 28 years of experience, Bird (2013) believes that the change in Canada has been difficult and thatitisstillaworkinprogress.

II.ExecutionofGSTinIndia: Characteristics of Interest

There is no "one size fits all" or "one and only" GST, according to international experience with GST implementation. Dependingonwhatispolitically acceptable, multiple models with diverse structure and execution mechanisms exist in different nations. However, the general ideas advocated by the majority of specialists are as follows:

(i)IAimforabroadbasewith few exclusions, credits, rebates, ordeductions;

(ii) set the bar high enough for the administration to concentrate on "whales" rather

than "minnows." This will not only save money on administration, but it will also promote the cause of equity (KeenandMintz,2004).

(iii) In order to decrease administrative,compliance,and distortioncosts,thetaxstructure should be kept simple, with minimumratedifferentiation.

(iv) Keep a close eye on the tax system, focusing on the basics such tax collection at the source and an identification numbersystem.

(v) do not gather more data than can be processed in a reasonableamountoftime;

(vi) Ensure that proper records are kept and that longterm self-evaluation is a goal. Despite the fact that conventional wisdom on GST has been demonstrated to be correct in most cases, strict compliance is not always attainable. "Some" bad "characteristics, such as extremely high or too low thresholds, too wide tax exemptions, and variable tax rates, can be important for successful recruitment. "Bird and Gendron (2007; p. 4) write. "Such elements may be extremelydifficulttoeliminate," they warn. As illustrated in the diagram, the GST combines manyfederalandstatetaxes.

Table1.Theshiftisaone-ofa-kindexperimentinwhichboth the bureaucracy and state legislatures forego charge experts in favour of combining the native utilisation fee structure. GST is divided into three parts: Central GST (CGST),StateGST(SGST),and Interstate GST (IGST) (IGST). Taxes are expected to be objectively based and revenue from interstate transactions will be deposited in the IGST

accountbeforebeingdistributed by destination through the clearinghouse process. The Constitution has been amended to make GST a joint issue betweentheCenterandtheState (Article 269A), governed by a new constitutional body, the GSTCouncil,andheadedbythe Minister of Finance and the Minister of Finance or other ministers.Apastorappointedby eachstateandcoalitionregionof which the council is a member. The Secretary of the Commissionis the Union Revenue Secretary, and the Council's responsibilities are overseen by a separate Secretariat. A 66 percentmajorityshouldsupport thechamber'sdecisions.

The GST Council is a major institutional innovation and collaborative federalist company. The state chose to abandon its fiscal autonomy in favor of tax harmonization, but refused to delegate its obligations to the federal government. Instead, they decided to create a new constitutional institution that would include representatives from the federal government andeachstate.One-thirdofthe voting rights are controlled by the Centre, while the remaining two-thirds are equally controlled by each state. The Constitution requires a twothirds majority to make a decision. The GST Network (GSTN), a non-profit organization,wasestablishedto provide common shared information technology (IT) infrastructure and services to central governments, state governments, taxpayers and other interested parties. Nonsovereign financial institutions own a 51% stake, while the

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center and state own the remaining 49%. No action was taken despite the decision to become a 100% state-owned enterpriseinMarch2018.

To convince the states, the focal government focused on remunerating any shortfall in income from their genuine receipts from the combined chargesstartingaround2015-16 by14%eachyearforafive-year term. Payments will be backed byaone-timetariffondefective and luxury goods, which is leviedatarateof15%to96%of the associated tariff rate, in additiontoCGSTandSGST.An analysis of the patterns of state fees supplied to the GST is to reach an agreement with the state, despite the fact that the central government expects 14% growth in base year revenuein2015.It showsthatwehaveagreedto a liberal plan-16, which shows that the actual increase was much lower. Five-year and three-year growth rates of GST feeincomeconsumedinvarious states. The typical development rate for non-extraordinary classification states north of threeyearswas8.9percent,and it was 11.7 percent more than five years. Essentially, it was 12.3 and 12.4% for exceptional classification states, separately. Moreover, considering that ostensible GDP development hasnoweasedback,moststates are probably not going to accomplish 14% development and should be redressed. Accordingly, the Cess to make upforthedutiesmustbehuge.It very well may be seen that repaying cess income represented around 8.5 percent of GST assortments in 2017-18 and8.3percentin2018-19.

III. Effects of GST: Savings

in costs, enhanced productivity, and revenue effect (a) Cost savings and enhanced productivity:The installation of GSTisasignificantchange,and two years is insufficient time to evaluate its impact. In addition, the structure and operational characteristics are being changed regularly, and reforms are constantly underway. Moreover, given the political diversity of India and the number of states with different economic characteristics, politically acceptable changes are far from perfect and are constantly evolving. However, as Bird and Gendron (2007) argue,whilesubstantivereforms are difficult to implement, they can be permanent as they have been agreed upon by stakeholders. Keen (2013) used the concept of "C-efficiency" to separate GDP's GST income share into normal tax rates, consumption (excluding GST), and the interactive term "Cefficiency".Weareinvestigating the impact. "" The latter is the ratioofGSTrevenuetostandard rates and consumables. AcostaOrmacecha and Morozumi (2019) used this approach to assessEuropeanUnionVATand raise VAT while reducing income tax, which only promotes growth if VAT is increased by'C efficiency'. I conclude that. The reduction in the standard tax rate will also promote the growth of a certain amount of VAT income. However,inthecontextofIndia, it is not possible to estimate the "c-efficiency" for assessing reform.Two years is too short a period to do such an empirical analysis, and monthly census figuresareavailable,butthereis no corresponding consumption. Estimates; (ii) When using

multiple GST tax rates, it is difficult to identify the standard tax rate 12. As a result, determining the impact of GST is limited to anecdotal evidence andassumptions.

STATEMENT OF THE PROBLEM

The execution of the Goods and Services Tax (GST) would be a major step in the right direction in India's circuitous duty changes. By consolidating countless Central and State charges into a solitary duty, it would fundamentally lessen flowing or twofold tax collectionandclearthewayfora common public market. The primary benefit for customers would be a decrease in the general taxation rate on products, which is currently assessedtobesomewhereinthe rangeof25and30percent.The execution of GST would likewiseexpandtheseriousness of Indian items in both the homegrown and unfamiliar businesssectors.Themovement of exchanging is alluded to as retail.Aretailerisanyindividual or association that sells labor and products straightforwardly toshoppersorend-clients.Nonretailmovementalludestodeals made by certain retailers to business clients. Lawful meanings of retail in different wards or regions require that something like 80% of deals action be to end-clients. Accordingly, the ongoing review centers around FMCG, materials, lodgings, clinical shops, adornments, etc. Likewise inspected were retailers' GST information, the effect of GST execution on shippers, and retailers' mentalities about GST execution.

(GST) GOODS AND

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SERVICETAX

It aids in determining the positive and negative effects of GSTon the retail industry.As a result, GST will be a favourite. InIndia,theGoodsandServices Tax (GST) is a multi-layered destination- based tax that applies to all value creation. GST (Products and Services Tax)isaconsumptiontaxlevied onbothgoodsandservices.The GST law has replaced some of the indirect tax regulations that previouslyexistedinIndia.GST (Goods and Services Tax) is a singleindirecttaxthatappliesto all Goods and Services sold in the United States. In the GST system, taxes are collected at each point of sale. Interstate sales are taxed by both the federal and state governments. Internal sales are taxed at the same rate as external sales. The GST journey in India began in the year 2000, when a committee was created to draught the legislation.The law tookanother17yearstobecome law.In2017,boththeLokSabha and the Rajya Sabha passed the GST Bill. On July 1, 2017, the GST Law entered into effect. One of the main advantages of GST is that it reduces the cascading effect on the sale of goodsandservices.Theabsence ofthecascadingeffectwillhave a direct influence on the cost of individual items. The GST should cut the cost of goods since it eliminates tax on tax. GST is heavily influenced by technology. Registration, return filing, refund claims, and notice answers must all be done through the GST system. As a result, the processes will be hastened. significant repercussions for the retail industryThecascadingimpactis prevented since GST is

calculated only on the value provided at each level of ownership transfer. The GST (Goods and Services Tax) is a singleindirecttaxthatappliesto allgoodsandservicessoldinthe UnitedStates.

CONCLUSION

According to this research, numerous indirect taxes will be consolidatedundertheproposed GST regime, resulting in a simpler tax regime, notably for industries such as FMCG, Textiles, Hotel, Medical Shop, Jewellery, and so on.Apart The tax rate will have a significant impactonallofthelistedareas, in addition to simplifying tax compliance.TheVATrateinthe FMCGsectorisbetween22and 24 percent. The rate under the GST regime would be in the range of 5% to 28%. The VAT rateinthetextileindustrywas45 percent; under the GST regime, the rate would range from 5 to 18 percent. And The VAT rate in the hotel industry was 5-20%; under the GST regime, the rate would be 5–18%.

In other words, GST has a good and bad impact on all of theseindustries.

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